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अमुख

गृह मंत्रालय, भारत सरकार के राजभाषा विभाग के आदेशानुसार

राजभाषा नीति के अनुपालन के क्रम में भारतीय सूचना

प्रौद्योगिकी संस्थान में इस वर्ष सितंबर माह में दिनांक 1

सितंबर 2016 से 15 सितंबर 2016 तक हिंदी पखवाड़ा का

आयोजन किया जाएगा | इस अवधि के दौरान संस्थान के

शिक्षकों/ अधिकारियों एवं स्टाफ तथा छात्रों के लिए विविध

प्रतियोगिताएं आयोजित की गई|

क्रम

कार्यक्रम

मुख्यआयोजक

प्रतिभागी

दिनांक

1

कम्प्यूटर पर हिंदी में टंकण

श्रीपंकजमिश्रा

छात्र / कर्मचारी

02/09/2016

2

निबंध लेखन

डॉ. रंजनाव्यास

सभी

06/09/2016

3

हिंदी टिप्पणी एवं प्रारूप लेखन

डॉ. के. के. तिवारी, डॉ. पी. के. सैनी

कर्मचारी

07/09/2016

4

स्वरचित काव्य पाठ

डॉ. माधवेन्द्रमिश्र

सभी

09/09/2016

5

श्रुतिलेख

डॉ. ओ. पी. श्रीवास्तव, डॉ. माधवेन्द्रमिश्र

छात्र / कर्मचारीकेबच्चे

13/09/2016

6

वाद-विवाद

श्री उत्कर्षराज

सभी

13/09/2016

भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थानइलाहाबाद

निदेशक कार्यालय

प्रोफ़ेसर जी. सी. नन्दी दिनांक: 15 सितम्बर 2016

(सन्देश)

हिंदी पखवाड़े के समापन पर राजभाषा हिंदी से सम्बंधित आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों में एकरसता का आभास हो रहा हैं| संस्थान में ऐसे प्रयासो सेराजभाषा के प्रसार में सहयोग होगा, हिंदी भाषा में शोध को बढ़ावा मिलेगा एवं राजभाषा का भी विकास होगा । भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, इलाहाबाद में ऐसे आयोजन को बल मिलना चाहिए जो छात्रों को मौलिकता से जुड़े हों । हिंदी इसका एक सशक्त साधन हैं । हिंदी दिवस, 14 सितंबर के दिन पर मैं संसथान के सभी लोगों को हिंदी दिवस की शुभकामनाये देता हूँ ।

(प्रो0 जी0 सी0 नंदी)

निदेशक की कलम से ।

अध्यक्ष की कलम से

भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थानइलाहाबाद

(सन्देश)डॉ.माधवेन्द्र मिश्र दिनांक:15 सितम्बर 2016

वह पथ क्या, पथिक कुशलता क्या, जिस पथ पर बिखरे शूल न हो ,

नाविक की धर्य कुशलता क्या, जबधाराए प्रतिकूल न हो |

मित्रों,

हिंदी पखवाड़े के उपलक्ष पर हमने जो क्रिया-कलाप किए और जिस उत्साह से आप सबों ने बढ़-चढ़ कर विभिन्न प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया, उससे यह अनुभूति होती है, की राजभाषा के प्रति हमारा अनुराग कम नहीं हैं | आवश्यकता इस बात की जरूर है, की इसको हम अपने दैनिक कार्यप्रणाली में आत्मसात कर उसे अपने दिनचर्या का अंग बना सके, जैसे की ये हमारी बोल-चाल का अंग हैं; उसी तरह ये हमारे कार्यालयों का भी अभिन्न अंग बन जाए| राजभाषा के प्रति नवयुवक छात्रों का रुझान देखते हुए मै आह्लादित मन से ये बात जरूर कहना चाहूँगा की तकनीकी क्षेत्र में कार्य करने वाले छात्र और शोध करने वाले छात्रों के पास राजभाषा हेतु रूचि हैं एवं इसके अनुपालन में भी अभिरुचि हैं| मैं धन्यवाद देना चाहूँगा उन सभी लोग का, जो इस कार्यक्रम का हिस्सा रहे, विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग लिया | कार्यक्रमों के विजेताओं को उनके जीत की बधाई देता हूँ | सभी प्रतिभागी साधुवाद के पात्र हैं | मैं धन्यवाद देना चाहूँगा निदेशक महोदय का जिन्होंने पल-पल साथ देकर इस पखवाड़े को सफल बनाया, साथ ही वरिष्ठ अधिष्ठाताओं का जिन्होंने हर तरीके से सहयोग किया | अंत में मैं आप सभी को धन्यवाद् करते हुए अभी से आगामी वर्ष के लिए तैयारी करने का निवेदन करता हूँ |

डॉ. माधवेन्द्र मिश्र

उपाध्यक्ष की कलम से

भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थानइलाहाबाद

(सन्देश)डॉ.पवन कुमार सैनी दिनांक:15 सितम्बर 2016

गृह मंत्रालय, भारत सरकार के राजभाषा विभाग के आदेशानुसार राजभाषा नीति के अनुपालन के क्रम में भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान में इस वर्ष सितंबर माह में दिनांक 1 सितंबर 2016 से 15 सितंबर 2016 तक हिंदी पखवाड़ा का आयोजन किया जाएगा | इस अवधि के दौरान संस्थान के शिक्षकों/ अधिकारियों एवं स्टाफ तथा छात्रों के लिए विविध प्रतियोगिताएं आयोजित की गई | हम जानते हैं की 14 सितम्बर को हिंदी दिवस मनाया जाता हैं| आज ही के दिन 1949 में हिंदी भाषा, देवनागरी लिपि को राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया था | आज यह विश्व में तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा हैं |

इस हिंदी दिवस के उपलक्ष्य पर हिंदी में बोलचाल बढ़ने को जोर देता हूँ |

डॉ. पी. के. सैनी

भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थानइलाहाबाद

(सन्देश)डॉ.नीतेश पुरोहित दिनांक:15 सितम्बर 2016

हिन्दी पखवाड़ा आयोजन समिति द्वारा संस्थान मे सितंबर 1 से 15 वर्ष 2016 मे विभिन्न कार्यक्रमो का अत्यंत तन्मयता से आयोजन कियाजाना और उसके उपर इस स्मारिका का प्रकाशन करना बहुत ही अभिनंदनीय है| आशाहै की आपके द्वारा किया गया यह बीजारोपण समस्त अवरोधो को परास्त कर एकविशाल वृक्ष का रूप लेकर संस्थान एवम् इसके कर्मचारियो के लिए हितकारी होगा|

हार्दिक शुभकामनाओ सहित,

डॉ.नीतेश पुरोहित

विभागाध्यक्ष, इलेक्ट्रॉनिक एवम् संचार अभियांत्रिकी विभाग

विभागाध्यक्ष, इलेक्ट्रॉनिक एवम् संचार अभियांत्रिकी विभाग सह सदस्य की कलम से

संयुक्त अध्यक्ष, छात्र सम्बंधित

भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थानइलाहाबाद

(सन्देश)डॉ.विजय चौरसिया दिनांक:15 सितम्बर 2016

हिंदी सिर्फ एक भाषा ही नही है, वरण ये हमे एक दुसरे से जोड़ने का साधन हैं | अंग्रेजी में बात कर हमे वो अपनापन महसूस नही होता जो,हिंदी के वार्तालाप से फलीभूत हो पाता हैं | हिंदी सिर्फ बोलचाल का ही नहीं वरण जीने का भी सलीका हैं | ज्यदातर शिक्षण संस्थानों में पढाई अंग्रजी माध्यम से होती हैं, जिससे युवाओं में हिंदी के प्रति रुझान कम हो गया हैं और अंग्रेजी भाषा एक महत्वपूर्ण स्थान ले रही है | यह न सिर्फ राजभाषा के अहित में हैं बल्कि हमारी संस्कृति के लिए भी घातक सिद्ध हो सकता हैं | हम सब को मिल कर अब यही प्रयास करना चाहिए की हमदैनिक कार्यो, कार्यक्रमों एवं बोलचाल में भी हिंदी भाषा का प्रयोग करे |

मै धन्यवाद देना चाहूँगा हिंदी पखवाड़ा समिति का जिन्होंने हिंदी में कार्य करने हेतु प्रोत्साहित किया एवं राजभाषा के उपयोग हेतु भी प्रयासरत हैं | अंत मै मैं सभी विजेताओ को बधाई देना चाहूँगा जिन्होंने इस पखवाड़े के विभिन्न कार्यकर्मो में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया हैं |

डॉ. विजय चौरसिया

संपादक मंडल

संरक्षक

प्रोफ़ेसर जी. सी. नन्दी

(माननीय निदेशक, भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान इलाहाबाद)

अध्यक्ष उपाध्यक्ष

डॉ. माधवेन्द्र मिश्र डॉ पवन कुमार सैनी

सदस्य

डॉ. नीतेश पुरोहित रवि शंकर मेहता

भारतीय सूचना प्रौद्यागिकी संस्थान, इलाहाबाद

भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, इलाहाबाद, 1999 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रांगन में शुरु किया गया | संसथान के निर्माण के पीछे सूचना प्रोद्योगिकी एवं उसके साथ के विषयों की पृष्ठभूमि थी | वर्ष 2000 में इस संस्थान को डीम्ड विश्वविद्यालय की मान्यता प्राप्त हो गयी |

संस्थान आईटी के क्षेत्र में एक शीर्षसंस्थान स्थान प्राप्त हैं | सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) और संबंधित क्षेत्रों में पेशेवर विशेषज्ञता और कुशल जनशक्ति के विकास की महत्वाकांक्षी उद्देश्यों के साथ इस संसथान के निर्माण की कल्पना की गई है| आईआईआईटी इलाहाबाद की स्थापना, भारत सरकार का एक बड़ा कदम है | देश को सक्षम करने के लिए, और सभी स्तरों पर आईटी की बहु-आयामी पहलुओं का दोहन, और विशेषज्ञता हासिल करने के लिए स्वदेशी क्षमता के लिए आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए इस संस्थान की स्थापना की गयी हैं |

देवघाट, झालवा स्थित 100 एकड़ में फैला इसका खूबसूरत प्रांगण को ज्यामिति तर्ज पर सावधानी से बनाया गया है एवं इस परिसर के आगे बागवानी के द्वारा एक प्रेरक माहौल बनाने की संकल्पना के तर्ज पर एक रॉक गार्डन का भी निर्माण किया गया हैं |यह संसथान के लिए बड़े गर्व की बात है कि तीन शैक्षणिक रैंकिंग में शामिल हैं| हाल ही में प्रकाशित, 'क्यूएस यूनिवर्सिटी रैंकिंग ब्रिक्स 2014', इस ब्रिक्स देशों, अर्थात्, ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका में विश्वविद्यालयों में शुमार था, की रैंकिंग में आईआईआईटी इलाहाबाद का प्रदर्शन भी उत्कृष्ट था|इंडिया टुडे, भारत की अग्रणी पत्रिका ने भी भारत के शीर्ष 10 इंजीनियरिंग संस्थानों के बीच आईआईआईटी इलाहाबाद को भी स्थान दिया गया है है। यह सात आईआईटी के बाद 8 वां स्थान दिया गया है। सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह माना जा सकता है कि आईआईआईटी-ए सबसे कम उम्र के संस्थान इंडिया टुडे के शीर्ष 10 रैंकिंग में शामिल किया जाना है। यह सिर्फ 14 साल पहले 1999 में स्थापित किया गया था।

पिछले साल भी आईआईआईटी इलाहाबाद नैसकॉम-डेटाक्वेस्ट रैंकिंग से 11 वें स्थान पर था और प्लेसमेंट में 4 स्थान पर था।

हिंदी पखवाड़ा 2016 में, विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया गया | इसका शुभारंभ माननीय निदेशक महोदय के करकमलो से दिनांक-01 सितम्बर 2016 को प्रशासनिक भवन में निर्मित प्रेक्षागृह में किया गया | कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन से किया गया, फिर बाद में कई वक्ताओं ने अपने मत रखे | इस कार्यक्रम की कुछ झलकियाँ निम्नलिखित हैं |

दिनांक 2 सितम्बर 2016 को कंप्यूटर पर हिंदी टंकन प्रतियोगिता का आयोजन किया गया |

इसके मुख्य आयोजक थे श्री पंकज मिश्रा |

विजेताओं की सूची निम्न्लिखित हैं|

श्री राजीव कुमार भाटिया श्री संजय कुमार श्रीमती प्रभा वर्मा

मानो या न मानो, कल होलिका दहन था वैसे ही आज होली का दहन है। लोगो की नैतिकताओं का पतन और मानवीय सोच की विनाशलीला की पराकाष्ठा। लोगो ने कलजहाँ होली जलाई, आज उसे घर ले आए, उसका रंगो से अभिषेक किया और विश्वास दिलाया की अगले वर्ष तक उसे पल-पोस कर बड़ा करेंगे। लोगो ने क्या जलाया, यहबात न किसी को याद रहेगी, न रहती है, क्योकि उन्होंने तो कुछ जलाया ही नही,

बस साल बदल डाला। दिनकर जी की पंक्ति है – जला अस्थियाँ बारी –बारी चिटकाई जिनमे चिंगारी।उनकी जयघोष इतिहास याद रखता है, जिनकी निष्ठाजीवंत आत्मस्वरूप, निजस्थित एकमात्र प्राणदीप्त आत्मज्ञान में रहती है। वेमेरे उपासक होते है। मेरी भक्ति करते है। उनकी जयघोष सभी सुनते है परन्तु

तोल नही पाते उन मूल्यों को जो नितप्रायः नश्तर होती जा रही है। हाट तोहमेशा सजा रहता है परन्तु उन सूक्षम तत्वों को इस भावनाओ के बाजार मेंनाकाफी है। यहीं कही परिवर्तन की हवा है, तो कही परिवर्तन की आंधी। यहीपरवर्तन की दरबार है तो कहीं परिवर्तन की सरकार। यही परिवर्तन आँख मिचोलीहै। यही परिवर्तन होली है। परिवर्तन ही जीवन का सार है।

इसी क्रम में अगली प्रतियोगिता थी निबंध लेखन की, जिसका आयोजन दिनांक 6 सितम्बर को किया गया था |

इसकी आयोजिका डॉ. रंजना व्यास थी |

इस प्रतियोगिता** के निर्णायक मंडल में निम्नलिखित सदस्य थे -:

डॉ. नीतेश पुरोहित डॉ. प्रज्ञा सिंह डॉ. रेखा वर्मा डॉ. संजय सिंह

यह प्रतियोगिता दो वर्गो में कराई गई थी | पहला वर्ग छात्रों का था, एवं दूसरा वर्ग कर्मचारियों एवं अधिकारी वर्ग के लिए था | प्रतियोगिता का विषय था “क्यूँ राष्ट्रीय भाषा नहीं बन पा रही हैं हिंदी” |

विजेताओं के नाम निम्नलिखित हैं |

आशीष चौधरी अंकित परेवाल दीपक बैरवा

इस प्रतियोगिता में प्रतिभागियों ने काफी उत्साह से भाग लिया | इसके साथ ही एक गैर हिंदी भाषी प्रतिभागी ने भी भाग लिया जिनको इस प्रयास के लिए पुरस्कृत किया गया |

जोयलिन डेसा

प्रथम पुरस्कार:-आशीष चौधरी (IIT2013041) द्वारा लिखित निबंध

परिचय-

“जन गण मन हिंदी की जय बस नारों में रह जाती हैं |

पर भाषा के महाज्वार में हिंदी क्यूँ बह जाती हैं |“

आधुनिक समय में हमने अपनी पहचान तथा संस्कृति को एक नई दिशा में परिवर्तित कर दिया हैं, एक समय था जब हमने 2500 ईसा पूर्व दुनिया की प्राचीनतम संस्कृति सिन्धु सभ्यता के रूप में होने का गौरव प्राप्त किया हैं परन्तु आज पच्छिमी संस्कृति के बहाव में हमने अपने अस्तित्व को कटघरे में खड़ा कर दिया हैं |आजादी के बाद से अगर हिंदी भाषा के ग्राफ को देखा जय तो हम देखंगे की भारत की भाषा हिंदी जो उस समय दुनिया की दूसरी सबसे जायदा बोली जाने वाली भाषा थी, वो आज पांचवे स्थान पर आ गई हैं, यही कारण हैं की आज हम हिंदी को प्रयोग मात्र औपचारिक भाषा के रूप में देखते हैं|

हिंदी के राष्ट्रीय भाषा नहीं बन पाने के कारण-

1). सामाजिक कारण

“अंग्रेजी पढ़ी के जदपि , सबगुणहोत प्रवीन

पर निजभाषा ज्ञान बिनु, रहत हीन के हीन |”

आज देश शहरी क्षेत्र में रह रहे व्यक्ति जिन्हें प्रायः शिक्षित कहा जाता हैं, वे बड़ी-बड़ी कंपनियों या विदेशो में नौकरी करते हैं जिनके लिए हिंदी भाषा का मूल्य नहीं हैं, वे सिर्फ अंग्रजी को ही सब कुछ मानते हैं, और प्रायः उन्हें नौकरी भी अंग्रेजी की ही सहायता से मिलती हैं |अतः वे अपने आप को समाज के एक अलग भाग में देखते हैं जहाँ से एक क्षितिज पर भारत का ग्रामीण समाज तथा शहरी भाग दो अलग भागों में बंट जाता हैं, और यही कारण हैं की जब भाषा के राष्ट्रीयकरण की बात आती हैं तो देश इन दो भागों में अलग-अलग खड़ा देखी देता हैं |

2). भौगालिक कारण -:

“देश प्रगति के पाठ पर होगा,हिंदी के विस्तार से |

हिंदी का स्वर बुला रहे हैं, सात समुन्दर पार से |”

भारत देश अनेक छोटे-छोटे राज्यों में बंटा हैं और प्रत्येक राज्य की अपनी एक अलग बोली /भाषा हैं जिस कारण जब राष्ट्रीय भाषा की बात आती हैं तो एक सुम्पूर्ण भारत छोटे-छोटे टुकडो में पृथक देखी पड़ता हैं |अतः यदि हिंदी को राष्ट्रीय भाषा बनाना हैं तो सुम्पूर्ण देश को एक बनाना पड़ेगा और भाषाओँ की श्रंखला में हिंदी का गुणगान करना पड़ेगा |

3).ऐतिहासिक व राजनैतिक कारण -:

“माँभारती के भाल की श्रृंगार हैं हिंदी,

हिन्दोस्तां के बाग की बहार हैं हिंदी |

माना की रख दिया हैं संविधान में मगर,

पन्नो के बीच आज तर-तर हैं हिंदी ||”

भारत में महमूद गजनवी से लेकर मुग़ल काल तक हिंदी भाषा ने सतत संघर्ष किया | जब हिंदी शौशवावस्ता में थी उस समय इसकी जननी संस्कृत के साथ-साथ अरबी फारसी जैसी भाषा टहथा पली व प्राकृत जैसी देसी भाषाओ ने इसके स्वरुप को कई प्रकार से बदला जिससे हिंदी कई तरह की भाषाओ व बोलियों में विभाजित हो गई और आज वो स्वंय को हिंदी का रूप नहीं मानती अतः हिंदी की राष्ट्रीयकरण में विरोध उत्पन्न होता हैं |

हिंदीका प्रमुख रूप

क). उच्च हिंदी- देवनागरी लिपि पर आधारित

ख). दक्खनी- हैदराबाद व दक्षिणी भारत में बोली जाने वाली

ग). रेख्ता- सायरी में प्रयुक्त

घ). उर्दू- हिंदी का वह रूप जो अरबी-फारसी में लिखा जाता हैं |

तथा आज हर क्षेत्र में वोट बैंक की राजनीती के चलते अन्यभाषी भाषा के ठेकेदार हिंदी भारत की भाषा , हिंदी नही होने दे रहे हैं, जबकि अब भी हिंदी बोलने वालों की संख्या अन्य किसी भाषा की तुलना में कहीं अधिक हैं |

निष्कर्ष

प्रत्येक वर्ष 14 सितम्बर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता हैं, आज देश में औद्योगीकरण तथा डिजिटलाईजेशन के चलते ग्रामीन हिंदी भाषा क्षेत्रो को अछुता कर दिया गया हैं | यही कारण हैं की देश में हिंदी भाषी योग्य नेतृत्व की कमी पाई जा रही हैं, और जब बात हिंदी के राष्ट्रीयकरण की आती हैं तो हिंदी का नेतृत्व पीछे रह जाता हैं | अतः हमे जरुरत हैं की राज्यों व पृथक करने वाले भिन्न-भिन्न तथ्यों का त्याग कर एक साथ मिलकर आगे बढे तथा हिंदी को न सिर्फ राष्ट्रभाषा बल्कि राष्ट-संघ की भाषा का दर्जा दिलाये |

“गूंज उठे भारत की धरती, हिंदी के गुणगान से,

पूजित पोषित, परिवर्धित हो, बालक, वृद्ध जवानों से |”

जय हिन्द, जय भारत||

द्वितीय पुरस्कार:- अंकित परेवाल (IBM2012030)

हमारा भारतवर्ष असीम सम्भावानावों एवं भाषाओका देश हैं|संविधान के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अधिकार हैं अपनी सुविधा के अनुसार वो भाषा का प्रयोग कर सके | हिंदी हमारे देश की एक प्राचीन भाषा हैं एवं भारत के एक विशाल हिस्से में, विभिन्न बोलियों के साथ इसका प्रयोग किया जाता हैं | अन्य भाषाओ की तुलना में हिंदी ही एक ऐसी भाषा हैं जिसे भारत के प्रत्येक हिस्से में आंशिक अथवा पूर्ण रूप से बोला या समझा जाता हैं | भाषा महज एक बोलने का साधन नहीं हैं, वरण भाषा एक सूत्र हैं जिससे हर एक भारतवासी को बंधा जा सकता हैं | भारत के एक बड़े तबके के द्वारा हिंदी बोले व समझाने के बावजूद हिंदी को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा नहीं प्राप्त हो पाया हैं | इसके अनेक कारण हैं |

सर्वप्रथम, भारत भौगोलिक दृष्टिकोण से एक विशाल देश हैं, इसे उपमहाद्वीप भी कहा जाता हैं |यहाँ हजारो-भाषा/बोलियाँ बोली जाती हैं |गौरमतलब हैं की आज़ादी के समय भारत में राज्यों का बंटवारा नहीं था | उस समय एक राज्य में अनेक भाषाएँ बोली जाती थी | सन 1951 में भारत के कई राज्यों में भाषा के आधार पर बंटवारे की मांग होने लगी | जैसे मद्रास राज्य में तेलगु, तमिल, कन्नड़ एवं मलयालम भाषी लोग तथा मुंबई में हिंदी, मराठी एवं गुजरती लोग | प्रथम लोकसभा चुनावों के दौरान देश के प्रथम प्रधानमंत्री प. जवाहरलाल नेहरु के सामने भाषा की एक बड़ी चुनौती उभर कर सामने आई| हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का स्वप्न तब भी आधुरा रह गया था, जब इन राज्यों के नागरिक भाषा के आधार पर बंटवारे की बात कर रहे थे | अगले कुछ वर्षो तक उस देश में हिंदी भाषा को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा मिलना एक कल्पना सा लगने लगा | जहाँ भाषा पर बंटवारे के लिए लोग आन्दोलन करने लगे हों, वो किसी एक भाषा को बोलने के लिया या दूसरी भाषा बोलने वाले व्यक्ति के साथ रहने के लिए तैयार नहीं थे | उनके मांगो के विद्रोह को देखते हुए भाषा के आधार पर राज्यों का विभाजन कर दिया गया |

लेकिन आज समय बदल गया हैं, आज का समय इलेक्ट्रॉनिक्स एवं तकनीक का युग हैं | आज हिंदी भाषी लोगो का प्रतिशत आज से 50 वर्ष पहले की तुल्लना में अधिक हैं | परन्तु आज स्थिति और भी गंभीर हो गई हैं | आज पाश्चात्य सभ्यता का दंश हमारी हिंदी भाषा पर ग्रहण बना हुआ हैं |

आज के युवा की हिंदी भाषा में उतनी रूचि नहीं रह गई हैं | शर्म की बात हैं, जो हिंदी उसकी मातृभाषा हैं, जिस हिंदी भाषा में वो अपने जीवन का पहला शब्द बोलता हैं, एक दिन पाश्चात्य सभ्यता के प्रभाव में उस युवा को हिंदी से ही शर्म आने लगती हैं, एवं अंग्रेजी बोलने में वो गर्व महसूस करता हैं |अंग्रेजी बोलना, आज के युवा को आधुनिक होना, शिक्षित होना एवं सभ्य होने के भ्रम में डाल देता हैं |

हिंदी अगर राष्ट्रीय भाषा नही बन पा रही हैं तो उसमे हम भी कम जिम्मेदार नही हैं |माता-पिता अपने बच्चो पर अंग्रेजी सिखने पर जोर डालते हैं| सरकार की ओर से भी कोई विशेस प्रयास नही किया जाता हैं | सरकारे एक विशेष कक्षा तक हर राज्य के पत्यक्रम में हिंदी को अनिवार्य कर सकती हैं | किन्तु सरकार की तरफ से ऐसा कोई प्रावधान नही हैं |

इस निबंध के माध्यम से यह नहीं कहा जा रहा हैं की क्षेत्रय भाषाओ का प्रयोग बंद हो जाए वरण यह बताने का प्रयास हैं की हमे हिंदी को सूत्रधार बनाना हैं, जो पुरे भारतवर्ष को एक धागे में पिरो सके | भाषा के उपर राजनीती बंद होनी चाहिए | युवाओ को हिंदी का प्रयोग करने हेतु प्रोत्साहित करना चाहिए |बचप्पन से ही उन्हें यह बताना चाहिए की हिंदी हमारा गौरव हैं |हमे हिंदी को दिल से अपनाना हैं | आप किसी भी राज्य के हो, हिंदी आना अनिवार्य हैं | जिस दिन हम पहले स्वर को याद कर हिंदी को सम्मान देंगे, उस दिन हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की n सिर्फ एक स्वर में आवाज़ उठेगी बल्कि वो मांग भी पूरी होगी |

तृतीय पुरस्कार:दीपक बैरवा द्वारा लिखित निबंध-:

आजअंग्रेज़ी जूझ रहा यह देश यह कहता हैं की हिंदी हमारी मातृभाषा हैं | मातृ शब्द के साथ के साथ जुड़े होने का कारण हैं की इसमें वो ममता हैं, जो हमें आपस में जोडती हैं, सिर्फ यही सोच कर , यह हमारे पूर्वजो द्वारा भी पूजनीय रही हैं |

जब विषय हो राष्ट्रीयता का तब कुछ तथ्यों पर विचार करना आवश्यक हैं |

राष्ट्रीयता या राष्ट्रीय प्रतीक बन्ने के लिए आवश्यक पहलु-:

जब बात हो राष्ट्रीय भाषा की तो यह जानना भी उतना ही जरूरी हैं की देश(राष्ट्र) का निर्माण कैसे हुआ, किस परिस्थिति का सामना करके देश बना ? गेरमतलब हैं की पुर्तगालियों, मुगलों, गोरोंव अन्य प्रकार के अतिक्रमणकारी प्रवितीवाले व्याकितियों के प्रभाव से जूझ चूका हैं यह देश | स्वाभाविकयह तो साबित हो ही जाता हैं की कुछ न कुछ प्रभाव हर संस्कृति छोड़ ही जाती हैं |

आंग्ल भाषा का इस कदर प्रयोग इस बात का साक्षी हैं | आन्ही हमारा देश अपनी आजादी की 70वर्ष की वर्षगांठ मनाने में जूता हुआ हैं, क्यूंकि जब हमे आजादी मिली तब देश के हालात ऐसे थे की सरकारे व लोग अपनी राष्ट्रीयता के मुद्दे पर पहुँच ही नही पा रहे हैं |

देश की विविधता में एकता रुपी सोच

भारत एक ऐसा देश हैं जिसमे कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक भांति-भांति के लोग, धर्म, भाषाएँ व बोलियाँ है | एक बड़ा तबका आज हिंदी को समझता भी नही हैं | यदि हम दक्षिण भारत में प्रकाश डाले तो तेलगु, तमिल व मलयालम जैसे भाषाएँ प्रभाव में हैं और वो हिंदी से वंचित हैं| भारतीय संविधान में 18 भाषावों को ब्भाषा का दर्जा दिया गया हैं | यदि गौर करे तो भारत जैसे सांस्कृतिक विविधता वाले राष्ट्र में एक भाषा पर विशेष जोर देना कोई बुद्धिमानी नही होगी |

सांस्कृतिक विविधता

भारत में प्रभावी रूप से चार धर्म व 100 से अधिक समुदाय हैं जो विभिन्न प्रकार की संस्कृतियों में विस्वास रखते हैं | यह हमारे देश की एक खूबी हैं |यदि हम देश के विभिन्न हिस्सों में प्रवास करे तो हम बिलकुल ही अनोखा उतर चढ़ाव पायेंगे |

भौगोलिक विविधता

दरअसल हिमाद्री के शिखर से अरब सागर तक भारत में एक विशाल तापान्तर देखने को मिलता हैं | सभी राज्य अपने में अलग जलवायु के द्योतक हैं |यह भी एक महत्वपूर्ण कारण हिंदी की रुकावट का |

हिंदी को प्रभुत्व में लाने के लिए किये जा सकने वाले उपाय

आंग्ल भाषा का प्रयोग आज हमारे देश के लगभग 90 फीसदी से अधिक संस्थानों में हो रहा हैं |कारण यह हैं की शिक्षा प्रणाली,उत्पादन क्षेत्र, अनुसन्धान एवं अन्य बाज़ार आज जायदातर पच्छिम संस्कृति वाले देशों से प्रभावित हैं | यदि हमे हिंदी को उस स्थर तक पहुँचाना हैं तो हमे अपना कोई भी पक्ष ऐसा करना होगा की पूरा विश्व हम पर आश्रित हो, तब स्वाभावित अन्य देशों को हिंदी का सहारा लेना ही पड़ेगा | हिंदी साहित्य का बढ़-चढ़ कर उपयोग होना चाहिए वरना यह सार्थक नहीं हो पायगा |

पच्छिम संस्कृति का प्रभाव

यदि गौर करे तो हम पायंगे की आज के युग में भारत म एक ऐसा दौर चला हैं की यदि किसी वर्ग में विशिष्ठ स्तर का दिखावा करना हैं तो लोग अमूमन आंग्ल भाषा का ही प्रयोग करते हैं व हिंदी भाषियों का उपहास उड़ाते हैं | इसमेंकभी भी मिथ्यावादी व निराशावादियों की नही बल्कि हम जैसे उस तबके के हैं जो जो यह झेल रहा होता हैं |आजहामारी वेशभूषा से लेकर के बोलचाल तक पाश्चात्य के बोझ तले दबा हुआ हैं |

शैक्षणिक पाठ्यक्रम

यदि हम शुरुआत से अंत तक गौर करे तो हम पायंगे की अब यह एक दिखावा हो चूका हैं, की अपने बच्चे को अन्गल प्राथमिक/माध्यमिक विद्यालय में दाखिला दिलाना | हिंदी में यदि बालक बात करते हैं तो उनको डांटना व प्रताड़ित करना| यह पाठ्यक्रम बदलने की आवश्यकता हैं |

उपसंहार

हिंदी को राष्ट्रीय भाषा बनाने के लिए पुरे राष्ट्र में चेतना की लहर लानी पड़ेगी| उसके लिए हमे अपनी निराशावादी सोच को बदलना पड़ेगा | देशवाशियों को स्वावलंबी बनाना पड़ेगा |

सहज हो जाता कठिन से कठिन कोई काम

गन लो यदि मन में उसे तुम ले हरि का नाम |

गैर हिंदी भाषी प्रतिभागी जोयलिन डेसा द्वारा लिखित निबंध

भारत एक बहुभाषी देश हैं | जैसा की हम जानते हैं यहाँ हर राज्यों में, तथा अलग-अलग क्षेत्र में विभिन्न भाषाओँ का प्रयोग किया जाता हैं | यहाँ अनेक प्रकार के लोग, हर तरह से अपनी आवशाक्यता को अपने उत्क्रीष्ठ सोच से आगे बढ़ाते हैं | यहाँ के लोगो में फिर भी एकता हैं, विभिन्न भाषाओँ तथा रहन-सहन, वेश भूषा के बावजूद भी देश में एकता हैं |

हिंदुस्तान को अपने भाषा पर गर्व हैं,यहाँ विभिन्न विचारधाराओं वाले लोग भी एकता पूर्ण देश को आगे बढ़ाते हैं| हमारी देश की भाषा हिंदी इसलिए नही बन पा रही हैं क्यूंकि भाषाओँ के प्रति हमे भेद-भाव पैदा नही करनी चाहिए| एक विकाशशील देश एकता और विभिन्न उन्मत विचारों पर तथा विकास पर विश्वास रखती हैं| बहुभाषी होने के कारण इस पर आभी तक विचार नहीं किया गया |

कन्नड़, तेलगु, अस्सामी, गुजरती, तमिल इस तरह के कई भाषाओ के अनुसार राज्यों में बंटा भारत में हर भाषा को अपना ही स्तःन प्राप्त हुआ हैं | आज भी हिंदी भाषा की पहुँच सबसे जायदा क्षेत्रों में हैं | पर आधुनिकता और बदलते वातावरण से हिंदी अपनी स्थान खो रही हैं |

अंग्रेजी भाषा को विश्व में सामान्य भाषा मणि जाती हैं | इसीकारण हर स्कूल, कॉलेज में अंग्रेजी प्रथम भाषा बनाकर उसको पढ़ना जायदा प्राथमिकता दे रहे हैं | कई राज्यों में हिंदी को स्कूल में पढ़ते ही नही | अपने राज्य की भाषाओ को महत्व दिया जाता हैं | आज के ज़माने में लोग अपनी ही भाषा को भूल अंग्रेजी भाषा अपना रहे हैं |

भारत को हिंदुस्तान नाम से भी जाना जाता हैं |लेकिन वास्तविकता ते हैं की कोई हिंदी को प्रधानता देने की हिम्मत नहीं कर सकता |हर राज्य में राजनीती तथा हर एक क्षेत्र में जो भी विचार विनियम होता हैं, वो अपनी-अपनी राज्य भाषा में हैं | इस नवयुग भारत में तकनीक के नाम पर अपनी संस्कृति तथा राष्ट्र-भाषा अपना वजूद खो रही हैं | आज ऐसा दिन आ गया हैं की एक क़ानून की जरूरत पद रही हैं की हिंदी को पढाना पड़े और शिखाना अनिवार्य हो |

अगर हिंदी भाषा को हर कोई जानेगा और पढ़ेगा तो भारत में भाषाओ के कारण जो झगडे और हिंसा हो रही है, वो बूंद हो जायगी | “पढ़ेगा इंडिया तभी आगे बढेगा इंडिया” का ध्येय वाक्य को मन में रखते हुए हिंदी की परगति के साथ देश की प्रगति को भी जोड़ कर देखे |

दिनांक 7 सितम्बर 2016 को इस पखवाड़ा की अगली कड़ी के रूप में हिंदी प्रारूप /टिपन्न लेखन का आयोजन किया गया |

इसके आयोजकडॉ. के. के. तिवारी, डॉ. पी. के. सैनी थे|

डॉ. के. के. तिवारी डॉ. पी. के. सैनी

निर्णायक की भूमिका में निम्नलिखित लोग थे |

डॉ. ओ. पी. श्रीवास्तव डॉ. आशीष कुमार

विजेताओ के नाम इस प्रकार हैं |

श्री कपिल श्रीवास्तव श्री राजीव कुमार भाटिया श्रीमती जागृति बजाज

सिर्फ खड़े होकर पानी देखने से आप नदी नहीं पार कर सकते.

रबिन्द्रनाथ टैगोर

अगली प्रतियोगिता है स्वरचित कविता पाठ | इसके मुख्य आयोजक डॉ. माधवेन्द्र मिश्र हैं |

इसमें निर्णायक की भूमिका में निम्नलिखित गणमान्य व्यक्ति थे-:

प्रोफ़ेसर शेखर वर्मा डॉ. अखिलेश तिवारी डॉ. प्रमोद कुमार

विजेताओ का चयन दो वर्गो में हुआ था पहला था कर्मचारी वर्ग-:

श्रीउपेन्द्र कसनियाल डॉ. पूजा जैन श्रीमती नाज़ फराह

छात्र वर्ग-:

आशीष चौधरीरवि शंकर मेहता अनूप मोर्य

सर्वप्रथम आयोजक डॉ. माधवेन्द्र मिश्र जी की एक कविता प्रस्तुत हैं-:

हैं तो होने से क्या, न हो तो कुछ खोने से क्या?

मुकम्मल जहाँ खवाब हैं, बेवजह रोने से क्या ?

रास्ते जो मंजिले मांगे, उनकी सैट होने से क्या,

शौहरतजो फ़ना होकर मिले, ऐसी शौराहत के होने से क्या ?

हैं तो होने से क्या, न हो तो कुछ खोने से क्या?

क्यूँ जिंदगी है धुवां- धुवां, क्यूँ हर तरफ गुबार हैं|

न जाने किसकी आस में, थमी हुई बहार हैं |

नशा कभी का ढल चूका, क्यूँ बाकि अभी भी खुमार हैं |

क्यूँ जिंदगी है धुवां- धुवां, क्यूँ हर तरफ गुबार हैं|

दर्द देने वाले तेरा बेदर्द होना, ऊफक्या यही प्यार हैं |

दफ्तरे रोजगार पे खड़ा हूँ, दरे-मददगार पर खड़ा हूँ मैं

पास आया नही कोई मौका मेरे, अभी भी कतार में खड़ा हूँ मैं|

गर्म है, साजिशों का बाज़ार आज भी,

तेरी तलवार के खितिर गर्दन लिए खड़ा हूँ मैं|

यू ही नही बनी इल्जामो की फेरहिस्त ,

ज़माने से तेरे इंतजार में खड़ा हूँ मैं|

शेष सारी कविताए प्रतियोगितामें प्रतिभागियों के द्वारा पढ़ी गई थी-:

कर्मचारी वर्ग-

उपेन्द्र कसनियाल द्वारा पढ़ी गई कविता

भाषा अभिव्यक्ति का आधार हैं,

क्या इतना ही सीमित मेरा संसार हैं |

ढूढ रही हूँ अपने लिए ठिकाना,

पर सोचा न था की इतना मुस्कील

होगा अपने लिए एक कोना पाना |

न जाने येविवशता और क्या क्या दिखलाएगी,

कहीं ये अपने देश में ही दर-दर के ठोकरे तो न खिलवाएगी|

मेरी हालत तो उस माँ की तरह हैं

उस बच्चे को जन्म देने से लेकर

बड़ेहोने तक पलती हैं |

और विवाह उपरांत उसकी पत्नी के समक्ष

अपने आप को विवश पाती हैं |

पर मैं भी तो माँ हूँ न,

जैसे माँ अपने बच्चे को हमेशा दुवाएं देती रहती हैं,

उसी प्रकार मैं भी अपने देशवाशियों

को सदैव दुवाएं देती रहूंगी |

आगे मैं रहूँ, न रहूँ पर सबसे ये जरूर कहूँगी ,

अरे गलती से ही सही कभी न कभी

तो तुम मुझे याद करोगे |

और याद करते-करते अपने बच्चो से

मेरे बारे में कुछ तो कहोगे |

बस यही मेरी पूंजी हैं|

इससेज्यदा की कब और कहाँ मुझे सूझी हैं |

बाकि प्यार मिला तो सही, ना मिला तो भी सही,

क्यूंकि सब के लिए खुला इस माँ का दरबार हैं,

मेरेसीने में तो सब के लिए बराबर का प्यार हैं |

बसइतनाही मेरे इस जीवन का सार हैं,

क्यूंकि भाषाही अभिव्यक्ति का आधार हैं |

डॉ. पूजा जैन द्वारा संप्रेषित कविता

नारी

मैंअदम्य शक्ति हूँ,

ज्योति हूँ,

पर्वतों से झर-झर बहती सरिता हूँ,

मैं कुमुदिनी, मैं कमलिनी,

मैं ही चन्द्रमा की धवलता हूँ |

ममता हूँ

स्नेह हूँ,

त्याग हूँ अश्रुधारा हूँ,

मैं धर्य, विस्वास मैं,

मैं ही सहनशीलता हूँ |

दया हूँ, करुना हूँ

क्षमा हूँ , परोपकार हूँ

मैं शीतलता,

सोम्यता मैं

मैं ही प्रेम की परिभाषा हूँ |

चेतना हूँ, उर्जा हूँ,

अग्नि की पवित्रता हूँ |

मैं साहस, ताक़त मैं

मैं कभी न मिटने वाली आशा हूँ |

तप हूँ, वैराग्य हूँ,

शील हूँ , संयम हूँ ,

मैं योगिनी, ब्र्हम्चारिणी मैं

मैं ही यज्ञों की आहुति हूँ |

मर्दिनी हूँ, वीरांगना हूँ,

धर्मयुद्ध की ललकार हूँ ,

मैंतेजस्वी, यसस्वी मैं,

मैं ही बिजली सी चमकती तलवार हूँ |

लक्ष्मी हूँ ,

सरस्वती हूँ,

मैं ही काली,

महामाया हूँ,

मैं द्रौपदी, सीता मैं,

हर युग की अग्नि परीक्षा हूँ|

कम्यता हूँ, कोमलता हूँ,

मैं ही सुन्दरतम हूँ

मैं रमणीयता,

योवानता मैं,

मैं ही श्रीजनता का आधार हूँ |

मैं नारी हूँ|

श्रीमती फराह नाज़ द्वारा बोली गई कविता

पन्ने  डायरी केपीले से उस काग़ज़ पेमान्द पड़ती स्याही सेकुछ हर्फ़ लिखे थे..इस तरफ कुछ नाम लिखे थेउस तरफ़ कुछ र्कज़ लिखे थे..बाकी सारे सफ़हों पेइस तरफ कुछ नज़्म लिखी थीउस तरफ कुछ तर्ज़़ लिखे थे..सबसे छिपा केडायरी में कैद रखा थाआखिरी के पन्नों मेंकुछ र्दद लिखे थे..ज़रुरतों को शौक पेतरजीह दे दी,क्या करें क़िस्मत मेंकुछ फ़र्ज़ लिखे थे..

शीर्षक: ये जीवन

संभावनाओं से परेसवालों की तह मेंकहानियों सा रोचकवास्तविकताओं सा स्पष्ट.. जीवन !

कुछ आढ़ातिरछाकुछ मुश्किल आसानकुछ गहन गंभीरकभी सोचनीय कभी अधीर.. जीवन !

ये जीवनमहत्वाकांक्षाओं को आंकतास्वप्नों को लांघताकभी अँधेरे की ओंट मेंकभी सूरज सा झांकता.. जीवन !

हाँ जीवनजिसे जीने के अंदाज़ बदल गए हैंशब्द वही हैं मायने बदल गए हैं !

क्या सहिस्णुता क्या त्याग क्या प्रेमभावनाओ के सब तराने बदल गए हैं !सिरहाने अब कोई क़िताब नहीं होतीगोया अपनों के भी तो ठिकाने बदल गए हैं !

कौन किसका है मीतज़िंदा हैं परंतु जीवित नहीं होते हैं प्रतीतज़िंदा हैं परंतु जीवित नहीं होते हैं प्रतीत !

गोया = उदहारणतया

छात्र वर्ग

आशीष चौधरी द्वारा पढ़ी गई कविता

न आकृति है,

न आकार है,

पर बन रही सरकार है

झूँठ की सड़के बानी जा रही सच्चाई लाचार है

पैसो की है मांग बढ़ रही अपने फिर से गैर हैदुनिया की चकाचौंध में मानव फिर बे-पैर है

मई भी प्रेम का प्यासा हू

और तू भी प्रेम दीवानीसिमट-सिमट कर

नदी समुन्दर बने एक बून्द का पानी

किस्मत ने हमको दूर किया पर

छूना आया हिस्से मेंतुम नयनो का काजल हो

और मई नयनो का पानीनौजवा

कैसे कई रहो में खड़े है

उम्र से काम जुबा से बड़े है

आजादी का झटका भी ऐसा लगा

कीजहा से उठे थे वही से पड़े है

छोड़कर के गीता-और गाथा पुरानीसुनाते है

लैला मजनू की कहानीहाँथ में पैर पे डैम

अब रही भी नहीं फिर भी दिखती है

उनको उन्ही की जवानीहै

हुए फेल दसवी में दस बार

वोमुह में डाले सुपारी सभी से लड़े है

नौजवा कैसे कई रहो में खड़े है

रवि शंकर द्वारा पढ़ी गई कविता

चिता की राख से उठकर ,अश्कों को बहाऊंगा ,

कहीं भी भेज दे मुझको मैं वापस लौट आऊंगा |

चिरागों की आग में जलकर रौशन हो जाऊंगा

कहीं भी भेज दे मुझको , मैं वापस लौट आऊंगा |

कहीं बरबस सी आंखे,

कहीं मौत सी खामोसी,

कहीं तेरा आना था,

कहीं मीरा दीवानी थी|

तेरी हर बात पर एक शेर मैं लिखता जाऊंगा |

कहीं भी भेज दे मुझको, मैं वापस लौट आऊंगा |

कहीं चहरे पे रौनक थी,

कभी चेहरे को छु जाती ,

वो कसमसाती थी ,

वो बिखर जाती थी,

उन बिखरती लाटो को कभी सुलझा मैंजाऊंगा

कहीं भी भेज दे मुझको मैं वापस लौट आऊंगा |

बस एक बात सुनने को,

बैठा है ये मनमौजी

बस एक बात करने को,

करता हैं सरगोशी |

बस इक बात पर ये जीवन मैंअर्पण कर जाऊंगा |

कहीं भी भेज दे मुझको , मैं वापस लौट आऊंगा |

बस इक बार कह देना,

मैं कुछ नही लगता

तेरे रस्ते में खड़ा था,

वहीँ पर गड जाऊंगा,

कहीं भी भेज दे मुझको, मैं वापस लौट जाऊंगा|

जब रूसवाइयां आई थी

मेरे दर पे तेरा पता लेकर

इस कम्बक्त दिल में अपने ही

घर का पता बता दिया |

अब इस कम्बक्त दिल को कैसे समझा पाउँगा |

कहीं भी भेज दे मुझको , मैं वापस लौट आऊंगा |

कभी समझे थे हम भी की

हमारा नाम लोगी तुम |

हमारा नाम क्या है,

पुछ कर इनाम लोगी तुम |

इस मांस के पत्थर पर मैं नाम लिख जाऊँगा

कहीं भी भेज दे मुझको, मैं वापस लौट आऊंगा |

शाम ढलने को थी इस इबादत के साथ,पता नही इन अश्को ने फिर से रुला दिया|

इन अश्कों का मोल मैं चूका जाऊंगा |

कहीं भी भेज दे मुझको, मैं वाप लौट आऊंगा |

तेरी गलियों में बेनाम पड़े थे अबतकआज पता मिला है,

कल मुकाम भी मिल जायगा||

इस मुकाम के खातिर अब विदा ले जाऊंगा |

कहीं भी भेज दे मुझको मैं वापस लौट आऊंगा |

अनूप मौर्या द्वारा पढ़ी गई कविता

आंजन थे कुछ फिर जान बन गए थे ,

अजनबी थे पहले फिर अरमान बन गए थे|

खामोश थे जो अब तक कोई जनता नही था,

एक बार जो बोले तो शान बन गए थे |

होती थी ऐसे बाते एहाशस भी नही था,

हो जाएंगे इतने करीब एहाशस ही नहीं था |

टूटे इस जहाँ में एक साथ जो मिला तो,

एक दुसरे के लिए हम भगवन बन गए थे|

अँधेरी सी जिंदगी में , एक रौशनी सी दिखी थी,

जीने का फिर से आज जो उम्मीदभी मिली थी |

भटके हुए जो हम, पर, मिल गया जो सहारा,

उलझे हुए जो पहलु अब आसन बन गए थे |

एक दुसरे के लिए हम भगवान् बन गए थे |

अगली प्रतियोगिता थी श्रुतिलेख की| इसके आयोजक डॉ. ओ. पी. श्रीवास्तव, डॉ, माधवेन्द्र मिश्र थे|

डॉ. ओ. पी. श्रीवास्तव डॉ. माधवेन्द्र मिश्र

निर्णायक की भूमिका में निम्नलिखित सदस्य थे |

डॉ. उत्कर्ष गोएलडॉ. विनीत तिवारी

छात्र वर्ग में विजेताओ के नाम निम्नलिखित हैं |

सुश्री प्रियंका द्विवेदी श्री आनंद कोटरीवाल श्री मनीष राजश्री अभिषेक कुमार

कर्मचारियों के बच्चो के वर्ग में विशाखा भाटिया को प्रथम पुरस्कार दिया गया |

श्रुतिलेख में निम्नलिखित अंश सभी को लिखने को दिया गया था |

“साहित्य, समाज और संस्कृति में स्त्री विमर्श की बाते ऋचाओं, श्लोकों, सूक्तियों और सिद्धान्तों में इस तरह उलझा दी गई हैं की हम ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते’ के इर्द-गिर्द ही मडराते रहते हैं |सच्चाई कठोर और विकराल हैं | संवेदनशील व्यक्ति उद्वेलित और विवश नजर आता हैं | इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक में स्त्रियों की अस्मिता, सशक्तिकरण और महत्व की तरह यह जानना भी जरूरी है की स्वयं स्त्रियाँ नए बदलाव के प्रति कितनी जागरूक हैं? समाज के सभी क्षेत्रो में स्त्रियाँ अपने कौशल और योग्यता से पुरुषों के वर्चस्व के साथ सदियों पुरानी धारणाएँ तोड़ रही हैं, तथा नेतृत्व के नए कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं | अगर ये सभी स्त्रियाँ अपने अनुभवों को साझा करे तो धारणाओं, परम्पराओ और परिवारों की बेड़ियों में जकड़ी करोड़ों स्त्रियों को प्रेरणा मिल सकती हैं |”

प्रोफ़ेसर यू. एस. तिवारी जी के वक्तव्य का कुछ अंश

आज अंग्रेजी शब्दकोष में प्रतिवर्ष शब्दों को जोड़ा जाता हैं | वहीँ आज हम हिंदी के शब्दकोष बनाने की बात कर रहे हैं | हिंदी भाषा के विकास के लिए शब्दकोष का निर्माण एवं विकास बहुत जरूरी हैं | सूचना प्रौद्यौगिकी एवं आज विज्ञान से हिंदी के जुड़ाव को हम मजाक के तौर पर देख रहे हैं | हिंदी में कंप्यूटर सम्बंधित भिन्न-शब्दों को मजाक के रूप में बोला जाता हैं| एक पुस्तक का उदहारण देते हुए कंप्यूटर के माउस को चूहा कहना, विंडो को खिड़की एवं अन्य उपकरण एवं शब्दों को विकृत रूप में पेश किये जाने की बात कही गयी | साथ ही हिंदी शब्दकोष निर्माण के तकनिकी इतिहास का भी वर्णन किया गया |

इसपखवाड़े की आखिरी प्रतियोगिता थी वाद-विवाद प्रतियोगिता जो 12 सितम्बर को आयोजित की गई थी | इसके आयोजक श्री उत्कर्ष राज थे |

निर्णायक की भूमिका में प्रो. शेखरवर्मा, डॉ. संजय कुमार, डॉ. मनीष कुमार थे|

प्रो. शेखरवर्मा डॉ. संजय कुमार डॉ. मनीष कुमार

विजेताओं के नाम निम्नलिखित हैं :-

कर्मचारी/शिक्षक वर्ग

श्रीमती जागृति बजाजश्री चंद्रकांत उपाध्यायश्री रणजीत कुमार

छात्र वर्ग

श्री आशीष चौधरीश्री आयुष कुमार श्री रविश वर्मा सुश्री दिव्या महेश्वरी अविनाश रेड्डी

प्रतियोगिताका शीर्षक था “क्यासरकारी तकनीकी संस्थानों में डिग्री धारी छात्रों के लिए स्वदेश में रहकर ही काम करना चाहिए या नहीं “

पक्ष में रखे तथ्यों का सार निम्नलिखित हैं-:

इस महान महान देश की पुकार हैं की आज हम इसकी सेवा करें | क्यूँ, नहीं पुकार सकता क्या ये देश ? क्या आप सबों की तरफ इसकी पुकार नहीं आ रही है ? कुछ तो यह भी कह रहे होंगे की क्या किया हैं भारत ने ? क्या किया हैं इस देश ने मेरे लिए ? तकनिकी शिक्षा की बात करे तो प्रति वर्ष जितना व्यय एक छात्र करता हैं, उतना जायदा ही व्यय सरकार भी उस पर करती हैं | यह 2 अनुपात 1 का का आकडा हैं | जैसे की कहे, 1993 का प्रोद्योगिकी विकास आभियान | इस मद में सभी प्रोजेक्टों को 50 करोड़ की राशि स्वीकृत की गयी | शिक्षा पर सरकार प्रतिबद्ध है | तब क्या इस कर्ज को चुकना बेमानी होगा |

जैसे की बात करें हम मंगलयान की | इसको बनाने में 450 करोड़ रूपए की लागत आई | यह लागत बहुत कम हैं | इसका एक कारण यह भी था की स्वदेशी विनिर्माण | स्वदेसी तकनीकी का नमूना पूरा विश्व देख चूका हैं तब क्या तकनीक के नाम पर भारत में सेवा न देना क्या उचित होगा |

इस मंच से मैं एक महान व्यक्ति, हमारे भूतपूर्व राष्ट्रपति, डॉ. ऐ पी जे अब्दुल कलम साहब जी का नाम अवश्य लेना चाहूँगा | उन्होंने भारत 2020 में लिखा है की वर्तमान परिप्रेक्ष्य में, जब भारत की युवा शक्ति के समक्ष विकास के विभिन्न महत्वपूर्ण क्षेत्रों—कृषि, उद्योग, सूचना तथा संचार तकनीक में कार्य करने के विशाल अवसर उपलब्ध हैं | इसके आगे वो लिखते हैं “ये पाँच आधारभूत उद्योग हैं—कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण, भौतिक वस्तुएँ एवं भविष्य, रसायन उद्योग एवं जैव-तकनीकी, भविष्य के लिए निर्माण तथा आयुध सामग्री उद्योग।इन उद्योगों के  के विकास के लिए पर्याप्त संभावनाएँ विद्यमान हैं।“ | इन सबो के लिए भारत में तकनिकी शिक्षाविद की आवश्यकता हैं |

विपक्ष में बोले गए तथ्यों का समावेश निम्नलिखित हैं -:

पहले मुझे कर्त्तव्य और धर्म की बारीक से अंतर को क्या याद दिलाना जरूरी है | क्या आप विदेश में जाकर भारत की सेवा नही कर सकते ? क्या सत्य नाडेला ने भारत आकर डिजिटल इंडिया को सफल बनाने के लिए सुचना और प्रसारण मंत्री श्री रवि शंकर प्रशाद से बात नहीं की ?

क्या अरब और विदेशो में रहने वाले प्रवासी भारतीय देश की सेवा नहीं कर रहे है ? अब यह प्रश्न अगर उठता है की आप स्वदेश की सेवा कैसे कर रहे है , इसका आकलन तो ऐसे ही कर सकते हैं की मैं भारतीयता का बोध लेकर अपने सारे काम कर रहा हूँ |

भारत की विदेशों में बेहतर सूझबूझ के प्रति योगदान और भारत के उद्देश्यों और चिंताओं के प्रति वास्तिवक रूप में सहायता कर कर क्या हम भारत की सेवा नही कर सकते | क्या लोकोपकार और धर्मार्थ कार्य तथा भारत और विदेशों में सामाजिक और मानवीय कार्यों में उल्लेखनीय योगदान कर हम भारत की सेवा नही कर सकते | आर्थिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक क्षेत्रों में भारत और इसके प्रवासी भारतीयों के बीच संबंधों को सुदृढ़ बनाने में उल्लेखनीय योगदान कर कर भी हम भारत की सेवा कर सकते हैं |

किसी भी क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य में अपनी अलग पहचान, जिससे उनके निवास के देश मे भारत की प्रतिष्ठा बढ़ी हो अथवा अपने कौशल से अपनी पहचान, जिससे उस देश में भारत का सम्मान बढ़ा हो कर के भी हम भारत की सेवा कर सकते हैं ।

इस जिम्मेवारी के लिए भी हमे तैयार रहना होगा | ये सभी बाते सेवा ही है, परन्तु इन तर्कों से उन व्यक्तियों के मन में रोष जरूर रहेगा ही भारत और स्वदेसी बन कर हम भारत की सेवा नही कर रहे हैं |

अंत में मैं एक कविता से अंत करना चाहूँगा |

राष्ट्रप्रेमी मैं पर फिर, मानवता का संदेश सुनाने आया हूँ।कुछ नया बताने नहीं,पुरातन मूल्य बचाने आया हूँ।।

भारतीय हम संस्कृति अपनी, युगों-युगों तक अमर रहे।दूधों की नदियां बहती थी,पानी को हम तरस रहे ।घर-घर में तुलसी का पौधा बाग लगाना भूल गये।पेड़ो को थे देव मानते उन्हें बचाना भूल गये।विकास कर रहे किस कीमत पर यही बताने आया हूँ |

“रंगीन यादे”

मैं सोया और स्वप्न देखा कि जीवन आनंद है। मैं जागा और देखा कि जीवन सेवा है। मैंने सेवा की

और पाया कि सेवा आनंद है।

- रबिनन्द्र नाथ टैगोर

सभी प्रतियोगिता के विजेताओं