अथा[त ्मुिनराज ने हष[त होकर कोमल...

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अथा[त मुिनराज ने हǒष[त होकर कोमल वाणी से कहा Ǒक संपूण[ Ƶ तीथɟ का जल ले आओ Ǒफर उÛहɉने औषिध, मूल, फू ल, फल और पऽ आǑद को अनेकɉ मांगिलक वःतुओं के नाम िगनकर बताये मुिनने वेदɉ मɅ कहा हआ सब ǒवधान बताकर कहा- नगर मɅ बहत से मंडप सजाओं फलɉ समेत आम, सुपारȣ और के ले के वृ¢ नगर कȧ गिलयɉ मɅ चारɉ ओर रोप दो चौदह वष[ कȧ अविध के उपराÛत राम-लआमण-सीता के सकु शल अयोÚया लौटने पर भी तीनɉ माताएँ तथा सुहािगनɅ इन ाकृ ितक मंगल पदाथɟ से उनका वागत करती हɇ उपयुƠ वण[न से पƴ है Ǒक पऽ, पुप, फल, दबू , दहȣं , पान, सुपारȣ, जलयुƠ कलश, फलसमेत वृ¢ɉ के रोपन आǑद पदाथɟ के योग से मानव अपने अभीƴ काय[ कȧ िसǒƨ के िलए, शकु न ǽप से इनका उपयोग ÏयोितषशाƸ बता रहा है ǒविभÛन पशु-प¢ी, पदाथ[ आǑद मानव मनोरथपूित[ होने कȧ शुभ सूचना हȣ नहȣं देते अǒपतु अशुभ सूचना भी देते हɇ भरत निनहाल से अयोÚया को लौट रहे हɇतो उÛहɅ कौए गÛदȣ जगह बैठे हए , तथा गƭा और िसयार बुरȣ तरह से िचãलाते हए Ǻǒƴगत होते हɇ इÛहɅ देखते हȣ भरत िनकट भǒवय मɅ Ǒकसी अǒय घटना होने के भय के संऽःत हो रहा था और यह सÍच भी था Ǒक इधर अयोÚया मɅ राजा दशरथ का िनधन हो चुका है तथा राम वन चले गए थे रावण के युƨ के िलए ःथान करते हȣ अपशुकन हो रहे थे परÛतु रावण गव[ के कारण उन पर ǒवचार नहȣं करता ःथान-काल मɅ होने वाले अपशुकनɉ का वण[न करते हए तु लसी कहते हɇ Ǒक घोड़े -हाथी उसका साथ छोड़कर िचंघाड़ते हए भाग जाते हɇ , िसयार, िगध, कौए, गधे शÞद करने लगते हɇ ; कु ƣे भɋकने लगते हɇ और उãलू भयानक शÞद करते हए मानɉ रावण को उसकȧ असफलता और मृ×यु का संके त युƨ-भूिम मɅ जाने से पूव[ हȣ करा देते हɇ Ð अथा[त मुिनराज ने हǒष[त होकर कोमल वाणी से कहा Ǒक संपूण[ Ƶ तीथɟ का जल ले आओ Ǒफर उÛहɉने औषिध, मूल, फू ल, फल और पऽ आǑद को अनेकɉ मांगिलक वःतुओं के नाम िगनकर बताये मुिनने वेदɉ मɅ कहा हआ सब ǒवधान बताकर कहा- नगर मɅ बहत से मंडप सजाओं लɉसमेत आम, सुपारȣ और के ले के वृ¢ नगर कȧ गिलयɉ मɅ चारɉ ओर रोप दो गोमाय गीध कराल खर रव वान बोलǑहं अित घने जनु कालदत उलूक बोलǑहं बचन परम भयावने ।। 1 (लंकाकाÖड, दो-77 के बाद का छं द) गीधɉ का उड़-उड़ कर िसर पर आकर बैठना भी अिनƴकर माना जाता है , वानरɉ Ʈारा य£ को ǒवÚवंस होते देख रावण बोिधत होकर जब युƨ मɅ जाने लगता है तो उसे ऐसे अपशुकन होते हɇ Ð 1 . रामचǐरतमानस, सटȣक मझला साईज, लंकाकाÖड, पृ . 777 300

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  • अथात मुिनराज ने ह षत होकर कोमल वाणी से कहा क संपूण ौे तीथ का ्जल ले आओ । फर उ ह ने औषिध, मूल, फूल, फल और पऽ आ द को अनेक मांगिलक वःतुओं के नाम िगनकर बताये । मुिनने वेद म कहा हआ सब वधान ुबताकर कहा- नगर म बहत से मंडप सजाओं । फलु समेत आम, सुपार और केले के वृ नगर क गिलय म चार ओर रोप दो ।

    चौदह वष क अविध के उपरा त राम-लआमण-सीता के सकुशल अयो या लौटने पर भी तीन माताएँ तथा सुहािगन इन ूाकृितक मंगल पदाथ से उनका ःवागत करती ह ।

    उपयु वणन से ःप है क पऽ, पुंप, फल, दबू, दह ं, पान, सुपार , जलयु कलश, फलसमेत वृ के रोपन आ द पदाथ के योग से मानव अपने अभी काय क िस के िलए, शकुन प से इनका उपयोग योितषशा बता रहा है ।

    विभ न पशु-प ी, पदाथ आ द मानव मनोरथपूित होने क शभु सूचना ह नह ं देते अ पतु अशभु सूचना भी देते ह । भरत निनहाल से अयो या को लौट रहे हतो उ ह कौए ग द जगह बैठे हएु , तथा ग ा और िसयार बुर तरह से िच लाते हए ु

    गत होते ह । इ ह देखते ह भरत िनकट भ वंय म कसी अ ूय घटना होने के भय के संऽःत हो रहा था और यह स च भी था क इधर अयो या म राजा दशरथ का िनधन हो चुका है तथा राम वन चले गए थे ।

    रावण के यु के िलए ूःथान करते ह अपशकुन हो रहे थे पर तु रावण गव के कारण उन पर वचार नह ं करता । ूःथान-काल म होने वाले अपशकुन का वणन करते हए तुु लसी कहते ह क घोड़े-हाथी उसका साथ छोड़कर िचंघाड़ते हए भाग ुजाते ह, िसयार, िगध, कौए, गधे श द करने लगते ह; कु े भ कने लगते ह और उ लू भयानक श द करते हए मान रावण को उसक असफलता और मृ यु का संकेत ुयु -भूिम म जाने से पूव ह करा देते ह Ð

    अथात मुिनराज ने ह षत होकर कोमल वाणी से कहा क संपूण ौे तीथ का ्जल ले आओ । फर उ ह ने औषिध, मूल, फूल, फल और पऽ आ द को अनेक मांगिलक वःतुओं के नाम िगनकर बताये । मुिनने वेद म कहा हआ सब वधान ुबताकर कहा- नगर म बहत से मंडप सजाओं । फु ल समेत आम, सुपार और केले के वृ नगर क गिलय म चार ओर रोप दो ।

    “गोमाय गीध कराल खर रव ःवान बोल हं अित घने । जनु कालदत उलूक बोल हं बचन परम भयावने ।।ू ” 1

    (लंकाका ड, दो-77 के बाद का छंद) गीध का उड़-उड़ कर िसर पर आकर बैठना भी अिन कर माना जाता है,

    वानर ारा य को व वंस होते देख रावण बोिधत होकर जब यु म जाने लगता है तो उसे ऐसे अपशकुन होते ह Ð

    1 . ौीरामच रतमानस, सट क मझला साईज, लकंाका ड, प.ृ 777

    300

  • “चलत हो हं अित असुभ भयंकर । बैठ हं गीध उड़ाइ िसर ह पर ।।” 1

    (लंकाका ड, दो-81, चौ-1)

    उधर वभीषण से रावण के नािभकु ड म अमतृ िनवास के रहःय को जानकर जैसे ह ौीराम ह षत होकर हाथ म वकराल बाण महण करते ह, उसी समय रावण के सम अनेक ूकार के अपशकुन होने लगते ह जनका तुलसी ने वःततृ वणन कया है । बहतु -से गधे, कु े और िसयार रोने लगे; प ी दःखसूचक विचऽ विन ुकरने लगे; आकाश म जहाँ-तहाँ केतु ूकट हो; दस दशाओं म आग लगने लगी; बना ह योग के सूयमहण होने लगा; मूितयाँ नेऽ-माग से जल बहाने लगी; आकाश से वळपात होने लगा; अ यंत ूच ड वायु बहने लगी; पृ वी काँपने लगी तथा बदाल र , बाल और धूिल क वषा करने लगे ।

    इस ूकार हम देखते ह क लोक व ास के अनुसार अपशकुन के िच समझे जाने वाले व वध अ हतकर ूाकृितक पदाथ का प रचय देते हए तुलसी ने ःप कर ुदया है क ूकृित के विभ न अंग तो तटःथ भाव से अपने कायम रत होते ह पर तु पथृक्-पथृक ् अवसर पर उनके पथृक-पथृक काय तथा प को देख कर मानव अपने शभु-अशभु का अनुमान लगाने लगता है ।

    योितषशा म हम देखते है क ौीराम ने वानर सेना के ूःथान के समय कहा कÐ हे सुमीव ! इस समय सूय आकाश के म य म जा पहँचा है यह वजय ुनाम का मुहत है । यह यु ूःथाू न के िलए उिचत एवं उ म है । यु आर भ म भी व णत है क आज उ रा फा गुनी न ऽ है, कल इसका हःतन ऽ से योग होगा य क ये दोन बमशः आते ह । अतः हे सुमीव ! हम सार सेनाओं से िघरे हए ुआज ह याऽा आर भ करते ह । इसके अित र शकुन स न धी वःततृ ववेचन भी रामच रतमानस काल म ूा होता है । शुकन शुभ एवं अशभु दो ूकार के थे । विभ न ूकार एवं अनेक वध प से शकुन का ान कया गया है । शभु शकुन के अ तगत सूय का मेघ र हत होना, वायु का धूलर हत, सुखपूवक ूवाह, जल का ःव छ, ःवाद एवं मधुर होनाु , वृ का फलयु होना, प य का मधुर ःवर व ूस नयु होना, ी का बायां अंग फड़कना आ द माने गए ह । इसी ूकार अशभु शकुन का भी वणन है । सूय का का तह न होना, प रमहयु , नीलवण के ध ब से यु होना, च िमा का रा ऽ म न चमकना, तार का ःव छ मेघ र हत दवस म भी दखाई न देना, आकाश म वलमान प ड का धरती पर िगरना, स धा का र म धूल से या होना आ द का उ लेख कया गया है । इस ूकार अनेक ःथल पर योितषशा का वणन ूा होता है ।

    1 . ौीरामच रतमानस, सट क मझला साईज, लकंाका ड, प.ृ 785

    301

  • अतः हम कह सकते है क योितषशा वह अनुमान के आधार पर चल रहा है, क तु शकुन-अपशकुन के आधार पर ह आने वाली प र ःथित का वणन कर सकते और वह न बे ूितशत स च साबीत हई है तुलसीदास जी ु Ôरामच रतमानसÕ म इस का ःप उ लेख देते है । आज हरेक काय योितषशा के आधार पर ह हो रहा है । मानस म योितषशा ीओंने दघ डया मुहत बड़ा शभु माना है । ु ू और वह यह भी कहते है क इसम शभु, अशभु होने क कोई संभावना ह नह ं रहती एसा बताया गया है । यह कतना व ास दायक शा है । तुलसीदास जी ने तो मानस क शरुआत और अंत भी योितषशा के आधार पर ह कया है । मानस संपूण होने के बाद अंत म भी तलुसीदास जी ने Ôौीरामशलाका ू ावलीÕ शीषक देकर हम को योितषशा से प रिचत कराते ह ।

    ौीरामशलाका ू ावली

    मानसानुरागी महानुभाव को ौीरामशलाका ू ावली का वशेष प रचय देने क कोई आवँयकता नह ं ूतीत होती । उसक मह ा एवं उपयोगीता से ूाय सभी मानसूेमी प रिचत ह गे । अतः नीचे उसका ःव पमाऽ अ कत करके उससे ू ो र िनकालने क विध तथा उसके उ र-फल का उ लेख कर दया जाता है । ौीरामशलाका ू ावली का ःव प इस ूकार है Ð

    स ू उ ब हो म ु ग ब सु नु ब ध िध इ द र फ िस िस र हं बस ह मं ल न ल य न अं सुज सो ग सु कु म म ग त न इ ल धा बे नो य र न कु जो म र र र अ क हो सं रा य पु सु थ सी जे इ ग म* सं क रे हो स स िन त र त र स हुँ हु ब ब प िच स हं स तु म का T र र म िम मी हा T जा हू ह ं T T ता रा रे र ह का फ खा जू ई र रा पू द ल िन को जो गो न मु ज यँ ने मिन क ज प स ल ह रा िम स र ग द मु ख म ख ज म त जं िसं ख नु न को िम िनज क ग धु ध सु का स र गु ब म अ र िन म ल T न ढ़ ती न क भ ना पु व अ T र ल T ए तु र न नु वै थ िस हुँ सु हा रा र स स र त न ख T ज T र T T ला धी T र T हू ह ं खा जू ई रा रे1

    1 . ौीरामच रतमानस, सट क मझला साईज, ट काकार- हनमुानूसाद पो ार, प.ृ 972

    302

  • इस रामशलाका ू ावली के ारा जस कसी को जब कभी अपने अभी ू का उ र ूा करने क इ छा हो तो सवूथम उस य को भगवान ौीरामच िजी का यान करना चा हए । तदन तर ौ ा- व ासपूवक मनसे अभी ू का िच तन करते हए ू ावली के मनचाहे को क म अँगुली या कोई शलाका रख देना चा हए ुऔर उस को क म जो अ र हो उसे अलग कसी कोरे कागज या ःलेट पर िलख लेना चा हए । ू ावली के को क पर भी ऐसा कोई िनशान लगा देना चा हए, जससे न तो ू ावली ग द हो और न ू ो र ूा होने तक वह को क भूल जाय । अब जस को क का अ र िलख िलया गया है उससे आगे बढ़ना चा हए तथा उसके नव को क म जो अ र पड़े उसे भी िलख लेना चा हये । इस ूकार ूित नव अ र क बम से िलखते जाना चा हए और तब तक िलखते जाना चा हए, जब तक उसी पहले को क के अ रतक अँगुली अथवा शलाका न पहँच जाय । पहले को क का अ र ुजस को क के अ र से नवाँ पड़ेगा, वहाँ तक पहँचतेु -पहँचते एक चौपाई पूर हो ुजायगी, जो ू कता के अभी ू का उ र होगी । यहाँ इस बात का यान रखना चा हए क कसी- कसी को क म केवल ÔआÕ क माऽा ÔTÕ और कसी- कसी को क म दो-दो अ र ह । अतः िगनते समय न तो माऽावाले को क को छोड़ देना चा हए और न दो अ रवाले को क को दो बार िगनना चा हये । जहाँ माऽा का को क आवे वहाँ पूविल खत अ र के आगे माऽा लख लेना चा हए और जहाँ दो अ र वाला को क आवे वहाँ दोन अ र एक साथ िलख लेना चा हए ।

    अब उदाहरण के तौर पर इस रामशलाका ू ावली से कसी ू के उ र म एक चौपाई िनकाल द जाती है । पाठक यान से देख । कसीने भगवान ौीरामच िजी का यान और अपने ू का िच तन करते हए य द ू ावली के ु * इस िच से संयु ÔमÕ वाले को क म अँगुली या शलाका रखा और वह ऊपर बताये बम के अनुसार अ र िगन-िगनकर िलखता गया तो उ रःव प यह चौपाई बन जायगी Ð

    “हो इ ह सो इ जो रा म * र िच रा खा । को क र त क ब ढ़ा वै सा खा ।।”

    (दो-51-4)

    यह चौपाई बालका ड तगत दोहा-51 का 4 चौपाई है । इसका अथ हैÐ Ôजो कुछ रामने रच रखा है, वह होगा । तक करके कौन शाखा बढ़ावे ।Õ ू कता को इस उ रःव प चौपाई से यह आशय िनकालना चा हये क काय होने म स देह है, अतः उसे भगवान पर छोड़ देना ौयेकर है ।्

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  • इस चौपाई के अित र ौीरामशलाका ू ावली से आठ चौपाइयाँ और बनती ह, उन सबका ःथान और फलस हत उ लेख नीचे कया जाता है । कुल नौ चौपाइयाँ ह Ð

    1. सुिन िसय स य असीस हमार । पू ज ह मन कामना तु हार ।।

    ःथान Ð यह चौपाई बालका ड म दोहा-235 का 4 चौपाई है । इसका अथ हैÐ Ôहे सीता ! हमार स ची आसीस सनुो, तु हार मनोकामना पूर होगी ।Õ और ौी सीताजी के गौर पूजन के ूसंगम है । गौर जी ने ौीसीताजी को आशीवाद दया है ।

    फल Ð ू कता का ू उ म है, काय िस होगा ।

    2. ू बिस नगर क जे सब काजा । हदयँ रा ख कोसलपुर राजा ।।

    ःथान Ð यह चौपाई सु दरका ड म दोहा 4 का 1 चौपाई है । इसका अथ हैÐ Ôअयो यापुर के राजा ौीरघुनाथजी को दय म रखे हए नगु रम ूवेश करके सब काम क जये ।Õ और यह सु दरका ड म हनुमानजी के लंका म ूवेश करने के समय क है ।

    फल Ð भगवान का ःमरण करके कायार भ करो, सफलता िमलेगी ।

    3. उधर हं अंत न होइ िनबाह ।ू कालनेिम जिम रावन राह ।।ू

    ःथान Ð यह चौपाई बालका ड म दोहा 6 का 3 चौपाई है । इसका अथ हैÐ Ôअ त तक उनका कपट नह ं िनभता, जैसे कालनेिम, रावण और राह का हाल हआु ु Õ यह आरंभ म स संग वणन के ूसंग म है ।

    फल Ð इस काय म भलाई नह ं है । काय क सफलता म संदेह है ।

    4. बिध बस सजुन कुसंगत परह ं । फिन मिन सम िनज गुन अनुसरह ं ।।

    ःथान Ð यह चौपाई बालका ड म दोहा 2 का 5 चौपाई है । इसका अथ हैÐ Ôदेवयोग से य द सभी स जन कुसंगित म पड़ जाते ह, तो वे वहाँ भी साँप क म ण के समान अपने गुण का ह अनुकरण करते ह ।Õ यह आरंभ म ह स संग-वणन के ूसंग क है ।

    फल Ð खोटे मनुंय का सगं छोड़ दो । काय पूण होने म स देह है ।

    5. मुद मंगलमय संत समाजू । जो जग जंगम तीरथराजू ।।

    304

  • ःथान Ð यह चौपाई बालका ड म दोहा नं. 1 के 4 चौपाई है । संत-समाज पी तीथ के वणन म है ।

    फल Ð ू उ म है । काय िस होगा ।

    6. गरल सुधा रपु कर हं िमताई । गोपद िसंधु अनल िसतलाई ।।

    ःथान Ð यह चौपाई सु दरका ड म दोहा नं. 4 के 2 चौपाई है । ौीहनुमानजी के लंका म ूवेश करने के समय क है ।

    फल Ð ू बहत ौे है । काय सफल होगा ।ु

    7. ब न कुबेर सुरेस समीरा । रन स मुख ध र काहँ न धीरा ।।ु

    ःथान Ð यह चौपाई लंकाका ड म दोहा नं. 7 के 2 चौपाई है । रावण क मृ यु के प ात म दोदर के वलाप के ूसंग म है ।्

    फल Ð काय पूण होने म स देह है ।

    8. सुफल मनोरथ होहँ तु हारे ।ु रामु लखनु सुिन भए सुखारे ।।

    ःथान Ð यह चौपाई बालका ड म दोहा नं. 236 के 2 चौपाई है । पुंपवा टका से पुंप लाने पर व ािमऽजी का आशीवाद है ।

    फल Ð ू बहत उ म है । काय िस होगा ।ु

    इस ूकार रामशलाका ू ावली म कुल नौ चौपाईयाँ बनती है, जनम सभी ूकार के ू के उ र िमल सकते है । यह एक भरपूर योितषशा ह है । जसम संपूण योितषशा का समावेश हो जाता है । यह भी माना गया है क संपूण मानस क रचना भी ौीरामशलाका ू ावली के आधार पर ह हआ है । समम ुÔरामच रतमानसÕ म पहले से अ त तक योितषशा का ान हम िमलता है ।

    अतः हम कह सकते है क आज जनसामा य इस धारणा से ॅिमत है क योितषशा माऽ भ वंय स ब धी कलादेश करनेवाला शा है क तु योितषशा माऽ भ वंय का कथन करनेवाला शा ह नह ं है अ पतु इस शा के सं हता, िस ा त आ द ःकंध ूकृित एवं इसके भौितक वषय के अनेक रहःय का ान उपल ध कराते ह । योितषशा म जो व वध मह, न ऽ से वृ उ प एवं इन पर व वध मह का आिधप य कहा गया है ।

    305

  • 5.11 Ôरामच रतमानसÕ म वाःतुशा : वाःतुशा बहत ह बड़ा शा ु है । इसम गहृ संबधंी पहलुओं पर वःतार से ूकाश

    डाला गया है, जैसे भू पर ण, भू शोधन, गहृिनमाण, आंत रक और बाहर सजावट एवं घर म जल, पेड़, पौधे और वःतुओं आ द क ःथित । य क ॄ ांड म संचार करती हई ऊजा ुका वाःतुशा म वशेष मह व है । वाःतुशा को जीवन म अपनाकर जीवन कैसे बदला जा सकता है । इसके िलए वाःतु व ान के नेशनल चेरमेन तजे ि पाल यागी का कहना है क जस ूकार अनुलोम- वलोम करने से शर र क आतं रक सफाई होती है, उसी ूकार 6 माह म एक बार घर को नमक डालकर धोने के बाद ठंडे पानी से धोना चा हए जससे सद और गम ताप प रवतन क वजह से जमीन पर जमीं नेगे टव एनज ख म हो जाती है यह ू बया ूोसेस ओफ ःशेस रमूलव कहलाती है । जो ठ क उसी ू बया से िमलती जुलती है जसम एक इंसान ःट म बाथ के बाद नॉमल बाथ लेकर ःवयं को तरोताजा महससू करता है । वैवा हक जीवन म भी वाःतुशा का वशेष मह व है । ववाह जैसी संःथा को पूर तरह से सुर त रखने के िलए एक भवन ह सबसे यादा ज र होता है । य क ववाह के बाद गोपनीय काय और अंतरंग बात के िलए घर सबसे सुर त शरणाःथल का काय करते ह । इसिलए उस घर को बनाने म वाःतुशा क सहायता लेना ज र है । आजकल छोटे या बडे भवन क बनावट पहले के भवन क तुलना म सुंदर और भ य ज र हो गई है, ले कन मकान को सुंदरता ूदान करने के िलए अिनयिमत आकार को मह व देने लगे ह । इस कारण मकान बनाते समय जाने अनजाने वाःतु िस ांत को दर कनार कया जाता है, जससे घर म सकारा मक और नकारा मक ऊजा के बीच असंतुलन क ःथित पैदा हो जाती है । इस कारण वहाँ रहने वाल के शार रक और मानिसक रोगी बनने क आशंका होती है । वाःतुशा तो केवल ूकृित म सूय क जीवनदायी, सकारा मक ऊजा के ौे उपयोग का तर का बताया है, ता क उसे महण करने वाले ःवःथ, शांितपूवक जीवन जी सक । वह भवन जहाँ ूातः काल के बदले दन क करण आती ह वहाँ रहने वाल का ःवाः य अ छा नह ं रहता । दोपहर के समय पड़ने वाली सूय क नकारा मक करण ःवाः य के िलये बहत ुनुकसानकरक ह । यह कारण है क वाःतुशा म द ण और प म क द वार को ऊँचा रखने का ूावधान दया जाता है । साथ ह इन दशाओं म उ र और पूव क तुलना म कम से कम आएँ और ईशान दशा म ःथत जल ोत पर भी यह करण पड़ सक । भवन के ईशान कोण म अिधक खाली जगह रखने का कारण भी सूय क गित ह है । जब सूय उतरायण होता है तो दोपहर तक लाभदायक करण पृ वी पर पड़ती है ले कन जब सूय द णायण होता है तो दोपहर के पूव ह हािनकारक करण पड़नी शु हो जाती है । इसिलए उतरायण काल क सूय क करण का पूरा लाभ पाने के िलए वाःतुशा म द ण क अपे ा उ र म यादा खाली जगह छोड़ने क सलाह द गई है ।

    306

  • यान रहे वाःतुशा एक व ान है । घर क बनावट म ह वाःतु अनुकूल प रवतन कर वाःतुदोष को दर कया जा सकता है ।ू

    5.11.1 वाःतशुा का अथ : वाःतुशा श द वाःतु एव ंशा से यु है । ये दोन ह श द विश अथ

    को बताते ह । वाःतु श द वःतु से िनिमत है जसका अिभूाय है क पदाथ वशेष क वशेषकला के मा यम से उपयोगी एवं आवँयकता अनु प बताना ।

    वाःतु श द संःकृत भाषा का है । इसके आधार पर इसका अथ हैÐ Ôवस त ूा णनो यऽÕ1 अथात ्जहाँ जस भवन या ःथान म मनुंय अथवा देवता िनवास करते ह, वह वाःतु है । जन शा म इसका सा गोपांग ववेचन है, वह वाःतुशा है ।

    5.11.2 वाःतुशा क प रभाषा : अथशा म कौ ट य ने वाःतु को व ा के अ तगत ःवीकार करते हए इसम ु

    न माऽ भवन अ पतु वा टका, ब ध, सेतु, ू येक ूकार का भवन, तड़ाग, पु षक रणी आ द को भी समा हत कया है ।2

    अमरकोश के अनुसारÐ ÔवेँमभूःÕ अथात गहृभूिमः वाःतु कह जाती है । ्ÔवेँमभूःÕ और ÔगहृभूिमःÕ गहृ रचनायो य नैिम क भूिम है ।3

    वाःतु सं ेप म ईशा या द कोण से ूार भ होकर गहृ िनमाण क वह कला है जो गहृ क व न, नाश, ूाकृितक उ पात आ द से र ण करती है ।4

    इस ूकार सममतः कहा जा सकता है क वाःतुशा ान क वह व ा है जो मानव जीवन को यव ःथत कर ूकृित के अनु प जीवनधारण को सुखपूवक यतीत करने का िनदश देती है । इसी शा के ान के आधार पर मानव अपनी चयन क गई भूिम एव ं ःथान को अपने वचार, ूयोग एवं संयोजन कला से सुखपूवक िनवासयो य बनाता है । वाःतुशा का उ ेँय मानव जीवन एवं िनवासःथान को यव ःथत एवं सुखपणू बनाता है । वाःतु का उ ेँय इहलोक एवं परलोक दोन क ूाि है ।

    वाःतुशा का वषय ेऽ अित वःततृ है । नारदसं हता म कहा गया है क भवन म रहने वाले भूःवामी को हर ूकार के भवन शभुफलदायक पुऽ-पौऽा द सुख

    1 . वनःपित व ान और भारतीय योितषशा (औषध व ान तथा वाःतुशा स हत), डॉ. द पाली िम ल, प.ृ 189 2 . कौ ट य अथशा , कौ ट य, प.ृ 78 3 . अमरकोश, ितवार देवदत, 2.2.19 4 . हलायधु कोष, जोशी यजशंकर, सचूना वभाग, प.ृ 606

    307

  • को बढ़ाने वाला ऐ य, लआमी, धन एवं वैभव को बढ़ाने वाला हो, इसका वचार वाःतु म कया जाता है । भवन म अ न का ःथान कहाँ हो, जल (व ण) का ःथान कहाँ हो, पूजा-अचना का ःथल कस दशा म हो, शयनक कस दशा म हो । इसके अित र भूख ड क आकृित कैसी होनी चा हए इन सभी वषय पर वःतार से िच तन करना वाःतुकला का वषय ेऽ है । गहृ भवन, उ च ूासाद, दगु, गाँव, नगर, म दर, देवालय, कूप, तालाब, वापी, मूित िनमाण, ःथाप य कला, विभ न ूकार के म डप, य शालाएँ, सभागहृ, िश वका, रथ, विभ न ूकार के यान, उ ान, मंच इ या द का िनमाण करना, ूित ा करना, उनका संशोधन करना वाःतुकला का वषय है । कई ःथल पर यह भी कहा गया है क इस विध के ारा भली ूकार से जो वाःतु का स मान करता है वह मनुंय आरो य, पुऽ, धन, धा या द का लाभ ूा करता है ।

    वाःतुशा क उ प कस ूकार कस प म हई यह एक वचारणीय ू ुहै । इस वषय म मतभेद भी पाए जाते ह । वःतुतः इस कला का मानव जीवन से अित ूाचीन समय से ह स ब ध रहा है य क मानव जीवन के ूार भक चरण म अ ःथर जीवन यतीत करता था । वह ःथान-ःथान पर ॅमण करता हआ ूकृित ुूदत पदाथ से ह जीवनयापन करता था । इस अवःथा म उसने सवूथम प य से गहृ िनमाण स ब धी ूेरणा ली और गुफा आ द म िनवास कया जस ूकार प ी घास ितनके से अपने घ सले बनाते ह, उसी ूकार मनुंय ने भी घास-फूस से गहृ िनमाण कया जसका ूित प झोपड़ के प म आज भी उपल ध है ।

    इस ूकार वाःतु क उ प मु यतः दो आधार पर हईु - वृ के अनुकरण पर तथा िग र गुफाओं के अनुकरण पर । मानव ने जब ूथम गहृ िनमाण कया होगा तब उसने वृ के शाखा आ द भाग के अनुकरण पर अपने िनवास ःथान को अनेक भाग, वभाग से यु प ूदान कया ।

    5.11.3 ÔमानसÕ म वाःतशुा : वाःतुशा का ता पय नगर, हाट, बाजार, सरोवर आ द के िनमाण स ब धी

    है । गोःवामी जी के Ôरामच रतमानसÕ म सु दर नगर , बाजार तथा भवन के िनमाण के सकेंत ूसंगानसुार हए है । भवनु -िनमाण स ब धी कुशलता का एक ँय मानस के बालका ड, जनकपुर -ूसंग म देखने को िमलता है जहाँ अनेक ूकार के सु दर भवन को देखकर िच िचतक हो उठता है । ेत रंग के राजमहल के सु दर ार सु ढ दरवाजे तथा बीच म आंगन और उनम म ण-ज डत सोने क जर के पद का िनदश है । साथ ह गज-बा ज-शाला का ँय भी य है और बहत से शरूवीरु , मंऽी और सेनापित है । उन सबके घर भी राजमहल-सर खे ह ह । उनका उ लेख बालका ड म िमलता ह जैसे Ð

    308

  • “अित अनूप जहँ जनक िनवासू । बथक हं बबुध बलो क बलासू ।। होत च कत िचत कोट बलोक । सकल भुवन सोभा जनु रोक ।।

    धवल धाम मिन पुरट पट सुघ टत नाना भाँित । िसय िनवास सुंदर सदन सोभा किम क ह जाित ।।

    सुभग ार सब कुिलस कपाटा । भपू भीर नट मागध भाटा ।। बनी बसाल बा ज गज साला । हय गय रथ संकुल सब काला ।।

    सूर सिचत सेनप बहतेरे ।ु नपृगहृ स रस सदन सब केरे ।।” 1

    (बालका ड, दो-212, चौ-4, दो-213, चौ-1, 2)

    भवन के साथ घर, दरवाजे तथा झरोख क चचा गोःवामीजी ने यथाःथान क है Ð

    “िनर ख सहज सुंदर होउ भाई । हो हं सुखी लोचन फल पाई ।। जुबतीं भवन झरोख ह लागीं । िनरख हं राम प अनुरागीं ।।” 2

    (बालका ड, दो-219, चौ-2)

    भवन के साथ देव-म दर के िनमाण के संकेत भी तुलसी कृत रामच रतमानस के बालका ड म िमलते ह जैसे Ð

    “सर समीप िग रजा गहृ सोहा । बरिन न जाइ दे ख मनु मोहा ।।” 3

    (बालका ड, दो-226, चौ-4, दो-227, चौ-2)

    अथात सरोवर के पास िग रजाजी का म दर सुशोिभत है् , जसका वणन कया जा सकता; देखकर मन मो हत हो जाता है ।

    यह िग रजा-गहृ नाम का मं दर हम पुंप-वा टका ूसंग म देखने को िमलता है । क तु िनमाण संबंधी िनपुणता का कोई संकेत उ ःथल पर नह ं हआ है । ुगोःवामी जी के सम-सामियक युग म राजक य उ ान एवं सरोवर का िनमाण ूचुरता के साथ कया जाता था । पुंप-वा टक तथा उसके म य िनिमत सरोवर वणन म गोःवामी जी समकालीन वाःतुकला का सु दर प रचय िमलता है Ð

    1 . ौीरामच रतमानस, सट क मझला साईज, बालका ड, प.ृ 183, 184 2 . वह , प.ृ 189 3 . वह , प.ृ 195

    309

  • “म य बाग स सोह सुहावा । मिन सोपान बिचऽ बनाया ।। बमल सिललु सरिसज बहरंगा । जलखग कूजत गुंजत भृंगा ।।ु

    बागु तड़ाग ु बलो क ूभु हरषे बंधु समेत । परम र य आरामु यह जो राम हु सुख देत ।।” 1

    (बालका ड, दो-226, चौ-4, दो-227)

    “हनुमानजी सु दरका ड म जब एक वशाल पवत पर चढ़कर उ ह ने लंका देखी । तो वे च कत हो जाते है । वह नगर एक वशेष दग के प म बनाया गया है ु । बहत ह बड़ा कला हैु , वह अ यंत ऊँचा है, उसके चार ओर समुि से घेरा था । सोने का कोट चार ओर व मान था । म णय से भरचक मकान थे । अ छे चौराहे थे, सु दर बीिथयाँ थीं, अखाड़े थे, बगीचे और सरोवर थे इस ूकार नगर रचना आधुिनक समय म उिचत लगती है । लंका सुंदर और सुर त थी ।”2 तुलसीदास जी के श द म Ð

    “कनक कोट बिचत मिन कृत सुंदरायता घना । चऊह ट ह ट सुब ट बथीं चा पुर बहु बिध बना ।। बन बाग उपबन बा टका सर कूप बापीं सोहह ं । नर नाग सुर गंधब क या प मुिन न मोहह ं ।।” 3

    (सु दरका ड, छं-1, 2)

    इस नगर म वन, बाग, उपवन और वा टकाएँ एव ंसरोवर, कूप और वा पयाँ थी तथा सीता क सोध म त पर हनुमानजी ार देखे गये सु दरका ड म ह र म दर का भी उ लेख मानस म िमलता है ।

    “भवन एक पुिन द ख सुहावा । ह र मं दर तहं िभ न बनावा ।।” 4

    (सु दरका ड, दो-4, चौ-4)

    हनुमानजी ने एक सु दर महल देखा, वहाँ भगवान का एक अलग म दर ्बना हआ था ।ु

    वाःतुकला का एक उदाहरण राजा राम के अयो यापुर -वणन म देखने यो य ह, जहाँ नगर के उ र दशा म सरयूजी बह रह ह, जनका जल िनमल और गहरा है ।

    1 . ौीरामच रतमानस, सट क मझला साईज, बालका ड, प.ृ 194 2 . तुलसी-िच तन: नये आयाम, डॉ. जगद श ूसाद अ नहोऽी, प.ृ 131 3 . वह , सु दरका ड, प.ृ 660 4 . वह , प.ृ 662

    310

  • मनोहर घाट बँधे हए हु , कनारे पर जरा भी क चड़ नह ं है । कूछ दर पर अलग घाट ूहै, जहाँ घोड़ और हािथय के ठ ट-के-ठ ट जल पया करते ह । पानी भरने के िलये भी बहत से घाट हु , जो बड़े ह मनोहर है । राजघाट बड़े सु दर और ौे है, सरयूजी के कनारे- कनारे देवताओं के म दर ह, जनके चार ओर सु दर उपवन है और सरयूजी के कनारे- कनारे सु दर तुलसी जी के झंुड-के झंुड बहतु -से पेड़ मुिनय ने लगा रखे ह । नगर के बाहर भी परम सु दरता है । ौी अयो यापुर के दशन करते ह संपूण पाप भाग जाते ह । वहाँ वन, उपवन, बाविलयाँ और तालाब सुशोिभत ह । इसका उ लेख हम उ रका ड म िमलता ह Ð

    “उ र दिस सरजू बह िनमल जल गंभीर । बाँधे घाट मनोहर ःव प पंक न हं तीर ।।

    द र फराक िचर सो घाटा । जहँ जल पअ हं बा ज गज ू ठाटा ।। पिनघट परम मनोहर नाना । तहाँ न पु ष कर हं अःनाना ।। राजघाट सब बिध सुंदर बर । म ज हं तहाँ बरन चा रउ नर ।। तीर तीर देव ह के मं दर । चहँ दिस ित ह के उपबन सुंदर ।।ु कहँ कहँ स रता तीर उदासी । बस हं यान रत मुिन सं यासी ।।ु ु पुर सोभा कछु बरिन न आई । बाहेर नगर परम िचराई ।। देखत पुर अ खल अध भागा । बन उपबन बा पका तड़ागा ।।

    बापीं तड़ाग अनूप कूप मनोहरायत सोहह ं । सोपान सुंदर नीर िनमल दे ख सुर मुिन मोहह ं ।। बह रंग कंु ज अनेक खग कूज हं मधुप गुंजारह ं । आराम र य पका द खग रव जनु पिथक हंकारह ं । अिनमा दक सुख संपदा रह ं अवध सब छाइ ।।” 1

    (उ रका ड, दो-28-29)

    यहाँ हम घाट, मं दर, उपवन, पुर, नगर (बापी), तड़ाग, सोपान आ द का एक साथ िचऽण िमलता है ।

    उपयो भवन , महल , मं दर, उपवन तथा लंका के वै व यपूण आवास के वणन से यह ःप होता है क भवन िनमाण शा तथा वाःतुशा का व ान अपनी ौे ता पर था । अंतम हम कह सकते ह क वाःतु का अथ िनवास यो य ःथान है तथा भूिम का आभूषण वनःपित है । इस ूकार वनःपित व ान के बना वाःतुशा भी अधूरा ह है ।

    1 . ौीरामच रतमानस, सट क मझला साईज, उ रका ड, प.ृ 861, 862

    311

  • 5.12 Ôरामच रतमानसÕ म रसायन-शा : रसायनशा व ान क वह शाखा है जसम पदाथ के संघटन, संरचना, गुण और

    रासायिनक ूित बया के दौरान इनम हए प रवतन का अ ययन कया जाता है । इसका ुशा दक व यास रस-अयन है, जसका शा दक अथ रस (िव ) का अ ययन है । यह एक भौितक व ान है जसम पदाथ के परमाणुओं, अणुओं, बःटल और रासायिनक ू बया के दौरान मु हए या ूयु हए ऊजा का अ ययन कया जाता है । सं ेप म रसायन व ान ु ुरासायिनक पदाथ का वै ािनक अ ययन है । रसायन व ान को के ि य व ान या आधारभूत व ान भी कहा जाता है, य क यह दसरे व ान जैसेू , खगोल व ान, भौितक व ान, पदाथ व ान, जीव व ान और भू- व ान को जोड़ता है । जैसे Ð

    उंमा ारा बहतु -सी ठोस वःतुएँ गैस बन जाती ह । गैस का अ ययन ह व ान क इस शाखा का ूमुख वषय है । इन गैस के िनमाण ॐोत आ द का पता लगाने के प वै ािनक को ूकृित पर ह िनभर रहना होता है ।

    जल म से जब व ुत-धारा गुजरती है तो गैस ूा होती हैÐ ओ सीजन और हाइसोजन । हाइसोजन गैस को ओ सीजन गैस म जलाने से केवल एक पदाथ बनता है और वह हे जल । वायु भी ओ सीजन और नाइशोजन गैस का िमौण ूमा णत कया जा चुका है । जीवन के िलए तथा वःतुओं को जलाने के िलए ओ सीजन गैस अ यावँयक है । पृ वी पर ूा सभी त व क अपे ा यह अिधक माऽा म उपल ध है । ूकाश-सं ेषण (फोटो-िस थेिसज) बया ारा वृ -पौधे काबन डाय साइड को सोखथे ह और उतनी ह माऽा म ओ सीजन बाहर िनकालते ह । इस ूवृ म ओ सीजन का भ डार कभी समा नह ं होता । अतः सूय क करण ारा इस गैस को ूा कया जाता है । यौिगक प म यह गैस ूाकृितक वनःपितय के अित र ूकृित के पशु-जगत ्च टान और जल म बाह य से या ुहै । जल म ओ सीजन क कुछ माऽा धुली रहने के कारण ह जलजीव-ज तु ासो वास बया म इसका उपयोग कर जीवन धारण करते ह ।

    काबन और हाइसोजन बहत से यौिगक बनाते ह ज ह हाइसोकाबन का िमौण कहते ुहै । यह वनःपित तथा जीव-ज तुओं के अवशेष के गलने-सड़ने के फलःव प पृ वी म एक वशेष ग ध वाले िव के प म पाया जाता है ।

    पदाथ के जलने से बनी गैस धुएँ का प धारण कर लेती ह । धुआँ ूायः पानी क भाप और काबनडाय साइड का िमौण होता है । तुलसी अ न से धुएँ क उ प का वणन करते ह Ð

    “धूम अनल संभव सुनु भाई ।”1

    (उ रका ड, दो-105(क), चौ-5) 1 . ौीरामच रतमानस, सट क मझला साईज, उ रका ड, प.ृ 929

    312

  • धुएँ का रंग काला होता है Ð

    धूम कुसंगित का रख होइ ।

    धूप के धुएँ से आकाश के काले होने क चचा करते हए भी तुलसी इस त य को ुसबकता ूदान करना चाहते ह Ð

    “धूप धूप नभू मेचक भयऊ । अगर धूप बह जनु अंिधआर ।।ु ” 1

    (बालका ड, दो-346, चौ-1, दो-194, चौ-3)

    काबनडाय साइड के िमौण के कारण धुएँ म कडुआपन होता है । अतः धुएँ से लोग क याकुलता और उसक सघनता म एक-दसरे को पहचानने क असमथता का वणन करते ूह । पर तु सुग धत पदाथ अगर-धूप आ द से िनकलने वाला धुआँ उनके संसग के कारण अपने कडएपन को याग देता है ु Ð

    “धूमउ तजइ सहज क आई । अग ूसंग सुगंध बसाई ।।”2 (बालका ड, दो-9, चौ-4)

    यह धुआँ जल, अ न और पवन के ससंग म जगत को जीवन देने वाले बादल का ्प धारण कर लेता है Ð

    “सोइ जल अनल अिनल संधाना । होइ जलद जग जीवन दाता ।।” 3

    (बालका ड, दो-6, चौ-6)

    विभ न भौितक त व के िमौण से मेघ -स ब धी क व का यह वणन बड़ा त यपरक है ।

    अ न अर ण लकड़ के रगड़ने से आग उ प न होती है । तुलसी रामकथा को ववेक पी अ न ूकट करने के िलए अर ण बतात ह Ð

    “पुिन बबेक पावक कहँ अरनी ।ू ”4 (बालका ड, दो-30(ख), चौ-3)

    इस ूकार हम देखते ह क वै ािनक का रसायन-शा स ब धी अ ययन ूकारा तर से ूकृित के विभ न त व एवं पदाथ के अ ययन पर ह आधार त है । रसायन-शा म ूकृित के विभ न पदाथ म होने वाले रासायिनक प रवतन और उनके फलःव प िनिमत एक अ य पदाथ का अ ययन कया जाता है । 1 . ौीरामच रतमानस, सट क मझला साईज, बालका ड, प.ृ 294, 168 2 . वह , प.ृ 14 3 . वह , प.ृ 10 4 . वह , प.ृ 34

    313

  • 5.13 Ôरामच रतमानसÕ म नीितशा : ÔनीतÕ से ता पय हैÐ समाज व य के उ थान के िलए िनधा रत मूल व िस ा त

    ह । ऐसे नैितक िस ा त कसी भई य अथवा समाज के च रऽ को उठाने के िलए होते ह । वह नीित के प म जाने जाते ह । Ôरामच रतमानसÕ एक अमर नीित-म थ है । मानस क रचना नैितक आदश को मूित प देने का सफल ूयास है । लोक-क याण क भावना इसक ूेरक रह है । नैितक आदश को य गत, सामा जक, राजनीितक, सांःकृितक सभी धरातल पर अपनाकर तुलसीदास जी ने उ ह यावहा रक साथकता ूदान क है । जो आदश केवल सै ा तक होते ह, यावहा रक नह ं, उनका नीित क से कोई मू य नह ं होता । हम नैितक आदश , चरम लआय क ूाि को ह नैितक उ कष मानते ह । य प नैितक आदश इस अपूण मानव-जीवन म कभी पूण- पेण ूा नह ं कया जा सकता; य क जतना ह हम उसे ूा करते जाते ह, उतना ह वह ऊँचा उठता जाता है । फर भी जो लोग नैितक आदश को अपने जीवन म जतना अिधक ूा करते ह, उतने ह वे मानवीय धरातल से ऊँठे उठते जाते ह । Ôरामच रतमानसÕ ऐसे ह नैितक आदश का भंडार है और राम के च रऽ म नैितक आदश के चरम प क अिभ य हई है । राम ह संपूण कथानक के के िएवं ुआधार ह । जस ूकार एक सूय समःत भूमंडल के अंधकार ितरो हत कर ूकाश से भर देता है उसी ूकार राम के आदश च रऽ क योित ने समःत च रऽ को योितमय कर दया है । मानस के ारा द गई नैितक िश ा देश, काल क सीमा से परे ू येक युग के िलये पा रवा रक, सामा जक, राजनीितक अ यवःथा, जसका वणन उ ह ने किलयुग-ूसंग कया है, ु ध होकर लोक-क याण क से राम के आदश च रऽ, आदश प रवार, आदश समाज

    एवं आदश रा य का िचऽण कया है, ता क सुख एवं शा त का साॆा य ःथा पत हो सके । इसिलए उ ह ने पाऽ के च रऽ-िचऽण म नैितक उ कृ ता ूदिशत क है । तुलसीदास का लआय लोक- हत था । वे य , समाज व रा य के सम ऐसा आदश उप ःथत करना चाहते थे जसका पालन करने से पा रवा रक वैमनःय, सामा जक बुराइयाँ दर हो एवं राजनीितक ूसु यवःथा ःथा पत हो सके । इसिलए उ ह ने पाऽ के च रऽ-िचऽण म नैितक उ कृ ता ूदिशत क है । तुलसीदास का लआय लोक- हत था । वे य , समाज व रा य के सम ऐसा आदश उप ःथत करना चाहते थे जसका पालन करने से पा रवा रक वैमनःय, सामा जक बुराइयाँ दर ह एवं राजनीितक सु यवःथा ःथा पत हो सके । इसीिलए मानस के पाऽ का ूच रऽ-िचऽण नैितक से अिधक उ कृ , मया दत एवं आदशपूण है । मानस के आदश पाऽ कभी भी मयादा का उ लंघन नह ं करते, चाहे कैसी भी वषम प र ःथित य न हो । मानस क सबसे बड़ वशेषता यह है क उसम नैितक गुण एवं मू य क केवल सूची नह ं बतलाई गई । नीित के केवल उपदेश ह नह ं दये गये; वरन आदश पाऽ ारा उनका पाल् न कर यवहा रकता ूदिशत क गई है । उसम Ôउपदेश से उदाहरण ौे हैÕ का िस ा त अपनाया गया है, तथा उपदेश देने और आचरण न करने को हेय बतलाया गया है ।

    314

  • अिधकांश लोग उपदेश देने म तो चतुर होते ह; पर ःवयं आचरण करने वाले लोग कम ह होते ह । अतः मानस म नैितक आदश को सजीवता ूदान क गई है, जससे लोग उ ह अपने जीवन म उतारकर नैितक उ कष ूा कर सक ।

    5.13.1 नीित श द क यु प : चतुवद ारकाूसाद शमा के अनुसार Ð “नीित श द ÔनीÕ धात ुम Ô कतनÕ्

    ू यय लगने से बनता है ।”1

    जसका अथ हैÐ ले जाने क बया आचार-प ित, लोक या समाज के क याण के िलए िन द कया हआ आचारु - यवहार ।

    अमरकोश के अनुसार संःकृत म नीित श द एक ह अथ के वधायक है । दोन का उदगम भी ूेरणाथक धातु ÔनीÕ से है ।2

    याकरणानुसार Ð इसम ÔअचÕ् ू यय लगने से ÔनीÕ के ÔईÕ को गुण तथा ÔएÕ को ÔअचÕ आदेश होने पर ÔनयÕ श द िस होता है ।3

    Ôभावे यां नÕ् सूऽ से ÔनीÕ धातु म लगे न ् ÔनÕ तथा ÔकÕ का लोप होने से केवल ÔितÕ ह शेष रहता । धातु ÔनीÕ के साथ संयोग होने से ÔनीितÕ श द िनंप न होता ।4

    इस आधार पर नीित का अथ होगा Ð इहलोक एवं परलोक स ब धी सफलता के उपाय आ द जसके ारा िस कये जाते ह, वह नीित है ।

    5.13.2 नीितशा क प रभाषाएँ : नीितशा को सव च हत का व ान कहा जाता है । इसको मानवजीवन म

    स न हत आदश का व ान भी कह सकते ह । नीितशा क प रभाषाएँ िन निल खत ह Ð

    अरःतू ने कहा है कÐ “नीितशा मानव-जीवन के चरम लआय का अ वेषण है । परम- हत लआय है Ð वह लआय जसके सब अ य तथाकिथत लआय वाःतव म साधना है । नैितक वचारक इसी परम- हत क खोज म सतत ूय शील ् रहे ह ।”

    ड . आर. जाटव ने कहा है कÐ “नीितशा यवहार क अ छाई तथा बुराई का शा है ।”

    1 . संःकृत श दाथ-कौःतभु, चतुवद ारकाूसाद शमा, प.ृ 611 2 . भारतीय नीित-का य पर परा और रह म, बालकृंण Ôआं कचनÕ, प.ृ 5 3 . संःकृत श दाथ-कौःतभु, चतुवद ारकाूसाद शमा, प.ृ 611 4 . वह

    315

  • ड . आर. जाटव ने कहा है कÐ “नीितशा मानव-जीवन म स न हत आदश का शा है । यह मनुंय के परम- हत का व ान है ।”1

    5.13.3 ÔमानसÕ म नीितशा : Ôरामच रतमानसÕ म नैितक नीित संबधंी वचार य कया है । नीित से

    ता पय समाज व य के उ थान के िलए िनधा रत मू य व िस ा त ह । ऐसे नैितक िस ा त कसी भी य अथवा समाज के च रऽ को उठाने के िलए होते है । वह नीितशा के प म जाने जाते है । तुलसी-सा ह य के अनुशीलन से ात होता है क उ ह ने िन त ह नीित संबंधी समम सा ह य का गहन अ ययन कया होगा । संपूण नैितक आचार को िन निल खत वग म बाँटा गया ह Ð

    (1) धम-नीित (2) लोक-नीित (3) राजनीित (4) अथनीित

    (1) धम-नीित : धम-नीित के संबंध म तुलसीदास का सारा बोध ा मक है । वे सुमित-

    कुमित के को पु य-पाप, शभु-अशभु, नीित-अनीित, धम-अधम, याय-अ याय, स य-अस य, स प - वप आ द जीवन और जगत क बह वध ् ु -मूलकता म देखते ह । तुलसी ने धम और नीित संबंधी कोण को समझने के िलए उनके

    ा मक कोण को समझना आवँयक है Ð

    “सुमित कुमित सब क उर रहह ं । नाथ पुरान िनगम अस कहह ं । जहाँ सुमित तहँ संपित नाना । जहाँ कुमित तहँ बपित िनदाना ।।”2

    (सु दरका ड, दो-390(क), चौ-3)

    सुमित-कुमित का ह स य-अस य के का ोत है और स य-अस य सीधे पु य-पाप से स ब धत है Ôस यÕ ह समःत उ म सुकृत (पु य ) क जड़ है । यह बात वेद-पुराण म ूिस है ।

    “न हं अस य सम पातक पुंजा । िग र राम हो हं क को टक गुंजा ।। स यमूल सब सुकृत सहाए । बेद पुरान ब दत मनु गाए ।।” 3

    (अयो याका ड, दो-27, चौ-3) 1 . नीितशा के ूमुख िस ा त, ड . आर. जाटव, प.ृ 2, 3 2 . ौीरामच रतमानस, सट क मझला साईज, सु दरका ड, प.ृ 390 3 . वह , अयो याका ड, प.ृ 329

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  • राम दशरथ के सुकृत और ःनेह क सीमा कहे गये ह । कैकेयी को कुमित कहा गया है और उसक तक-ौृखंला को कु वचार पी प ी क आंख पर लगी फुल ह को खोलना बतलाया गया है । दशरथ के अनुसार होनहार-वश ह कैकेयी के मन म कुम आ बसी । भरत जी भी कैकेयी को कुमित कहकर पुकारते ह और आबोश य करते हए कहते हु , अर कुमित जब तूने मन म कुमत ठाना, उसी समय तेरे दय के टकड़ेु -टकड़े य न हो गये । रामु -सीता को भूिम पर सोते देख िनषाद भी कुमित और उसक स तितय - राग, रोष, ईंया, मद और मोह के ःव न म भी वशीभूत नह ं होना चा हए । सब वकार से मु होकर सुमित- संचा रणी राम-भ ह वरे य है । म दोदर भी रावण को अनीित से वमुख करने के उ ेँय से परामश देती है ।

    कुमित-मःतो के म य म धम और नीित का पालन क ठन होता है । नीित-िनपुण को अनीित तिनक भी नह ं चती । कुमित का स ब ध अशभु से तथा शभु-शू यता से सहज ह जुड़ जाता है । राम के मंगल-ूःथान से जानक जी को भी शभु शकुन होने लगे । जानक को जो शकुन होते थे रावण के िलए वे ह , अपशकुन थे । इस ूकार आ मक से तुलसी ने नीित धम को य कया है ।

    नीित कहती है क मूख, सेवक, कंजूस राजा, कुलटा ी और कपट िमऽ शलू समान है, पीड़ा देने वाले ह । ौीराम को सुमीव क िमऽता के कारण उसके ह भाई बािल का वध करना पड़ा । बािल के ू से तो एक बार लगता है क कह ं राम से अधम, अनथ हो गया । जब बािल ने पूछा Ð

    “धम हेतु अवतरेह गोसाई । मारेह मो हं ु ु याध क नाई ।। म बैर सुमीव पआरा । अवगुन कवन नाथ मो ह मारा ।।” 1

    ( क ंक धाका ड, दो-82)

    बािल के ू म धम का संबंध है, उसका व ास है क िनद ष का वध नह ं हो सकता अतः भगवान (धम हेतु अवतरेहु) ौीराम भी उसक ू प रिघ से दर नह ं ूहै । ौीराम मानव अवतार लेकर भी धम क वजा झुकने नह ं देते, इसीिलये कहते ह Ð

    “अनुज बधू भिगनी सतु नार । सुन सठ क या सय ए चार ।।” 2

    ( क ंक धाका ड, दो-8, चौ-4) 1 . ौीरामच रतमानस, सट क मझला साईज, क ंक धाका ड, प.ृ 635 2 . वह

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  • अथात ्धम क र ा के िलये जो कया, वह नीित स मत ह कया । समाज म मयादा क र ा के िलए तथा समाज को कामुकता से परे रखने के िलये ौीराम ने ÔसठÕ कहकर बािल क िन दा क है । दशनीय है क उपरो म चार याँ प रवार क इकाई क ह ज ह यिभचार से दर रखकर ह आदश समाज क नैितकता ूा ूक जा सकती है । तुलसी ने नैितकता को समाज के उ थान के मूल के प म देखा है । फर बािल के ू का उ र देते हए कहते ह ु Ð

    “इ ह ह कु बलोकई जोई । ता ह बध कछु पाप न होई ।।” 1

    ( क ंक धाका ड, दो-8, चौ-4)

    समाज क नैितकता और च रऽ को बनाए रखने के िलये ौीराम के अनुसार ÔवधÕ क सजा भी अिधक नह ं है । इसम ÔवधÕ से जुड़े ÔपापÕ के दोष को भी शु कर दया है अथात उसका वध नैितक है् , नीित पूण है ।

    ौी सीताजी क खोज म सभी वानर भगवान ौीराम जी का ःमरण करते हए ुचले क तु उनम हनुमानजी कृतकाय हए । उ ह ने आकर अपने आरा य को मःतक ुनवाया । ूभु ने उ ह िनकट बुलाया और िसर पर हाँथ फराकर अपने हाथ क अँगूठ उ ह द ओर कहा क तुम अ य वानर को लेकर द ण दशा म जाओ । ःप है क ौीराम सब कुछ जानते ह क तु लोकोपचार के साथ नीित क मयादा भी उ ह रखनी है ।

    रावण क प ी म दोदर राम के सीता ःव प से प रिचत है । वह रावण को समझाती है क सीता को लौटा दो इसी म तु हारा हत है य क Ð

    “ हत न तु हारा स भु अज क ह ।”2

    (सु दरका ड, दो-35, चौ-5)

    िशव ःवयं राम के भ है, फर वे रावण क सहायता कैसे कर सकते ह, क तु रावण वापस लौटने को तैयार नह ं है । य क उसका तो संक प है कÐ ूभ ुके हाथ से ह ूाण यजु, ता क जीवन पी भव तर सकंु ।

    सब प र ःथितयाँ उसी के अनुकूल बनती है । ौीराम क वानर सेना समुि पार आने क सूचना पा कर रावण मं ऽय से मंऽणा करने लगा, क तु कोई उिचत सलाह नह ं देता ।

    1 . ौीरामच रतमानस, सट क मझला साईज, क ंक धाका ड, प.ृ 635 2 . वह , सु दरका ड, प.ृ 687

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  • ौीराम के भ भी नीितपूण सलाह देते ह । उन सेना को समुि के पार जाना और भगवान ःवयं सब भाँित से समथ भी है क तु नीित व नह ं है । वे समुि को बाण से सुखाने से पूव राःता माँगते ह, अनुरोध करते है, वनय करते ह । तुलसी के ौीराम धीर गंभीर व ये ता के अनु प काय करने वाले ह । उ ह ने सागर को ूणाम कया और वनय करने के िलये तट पर कुश आसन बछाकर बैठ गये । तीन दन तक उ ह ने ूाथना क और तब बोलेÐ भय बनु होइ न ूीित । अथात भय के ्बीना ूीित नह ं होती । यह एक नीित धम ह है ।

    म दोदर ने पित से एक बात और कह ं क Ð “हे ःवामीÐ बैर उसी से करनी चा हए जसे बु व बल से जीता जा सके ।”1 यानी रावण को यह बताना कतना वशाल स य है क उसम और ौीराम म कोई समानता नह ं है । इस त य म पित के शभु क ह कामना है य क म दोदर रा स कुल म ज मी तो भी या ? है तो भारतीय नार ह । जसका सवःव पित के िलये है, पित ह है । रा स के मखु से राम क सेना के करतब सुनकर उसका दय हल जाता है तो वह िगड़िगड़ा उठती हैÐ

    “तासु बरोध न क जअ नाथा । काल करम जव जाक हाथा ।।”2

    (लंकाका ड, दो-5, चौ-5)

    उसका भय यथ नह ं है य क पुऽ अ य कुमार के साथ अ य स ब धय को जसने और जसके दत ने मार दया वह ःवयं कू तना बलशाली होगा । वह शकंाओं के बीच झूल रह है । जानती है क वे तो भगवान ह ज ह ने िभ न-िभ न प धारण कर हर कालो से द का नाश कया है और वे ह पृ वी का भार हरने के ुिलये अवत रत हए ह । उनके हाथ म ु काल, कम और जीव सभी ह । हे नाथ ! उनका वरोध उिचत नह ं है ।

    प ी म दोदर ने अपने पित को बहत तरह से समझा ने क कोिशश क ुक तु रावण अहं एवं हठ के वश म होकर उसने उसक एक ह बात नह ं मानी । जब कु भकण ने सीताहरण क सार कथा सुनी तो वह रा स होते हए भी कह उठाु Ð

    “जगद बा ह र आिन अब । सठ चाहन क यान ।।” 3

    (लंकाका ड, दो-62) 1 . तुलसी के का यादश, डॉ. मालती दबुे, डॉ. रामगोपाल िसंह, प.ृ 210 2 . ौीरामच रतमानस, सट क मझला साईज, लकंाका ड, प.ृ 712 3 . वह , प.ृ 762

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  • कु भकण को इसम अिन दखा, अतः उसने पछताने के भाव से कहा क तुमने मुझे पहले य नह ं बतायाÐ “हे रा सराज ! तूने अ छा नह ं कया । सा ात ्जगतजननी सीता को चुरा कर तू अब क याण चाहता है । फर भी उसने कहा Ð

    “अजहँ तात यािगु अिभमाना । भजह राम होह ह क यानाु ।।” 1

    (लंकाका ड, दो-62, चौ-1)

    हे भाई ! अब भी त ूअिभमान को छोड़ ौीराम का ःमरणं कर तो तेरा क याण िन त है ।

    धम-नीित के समथन करने वाले मं ऽय के थोडे मंत य पर ूकाश डालते हए ुरावण का पुऽ ूहःत रावण को नीित- वरोध न करने क सलाह देता है । पित के ूितकूल आचरण करने वाली कैकेयी को अमंगल-मूल कहकर िध कारा गया है । तुलसीदास ने अनैितकता और पाप के ूित सै ा तक वरोध ह य नह ं कया है, वरन धम नीित अपनायी है ।्

    (2) लोक-नीित : तुलसी क लोक-नीित का आधार है मानव के चा र ऽक वकास क असीम

    संभावनाओं म अटट व ास । इस ूकार तुलसी आःथावाद और आ ःतक वचारक ूहै । इसी आ ःतकता पर उनका आशावाद टका है । किलयुग का िनराशाजनक और जुगु सामूलक िचऽ अं कत करने के बाद भी उनके सारे ूय किलयुग म वकृित के ःथान पर संःकृित क ःथापना करने और मानव तथा समाज के जीवन को ऊ वमुखी बनाने क दशा म उ मुख है । उनका व ास है क राम-नाम के ःमरण और भ से किलयुग पर सहज ह वजय पायी जा सकती है ।

    तुलसी क लोक-नीित तीन तरह से देखने से सु वधा जनक होगा Ð क) य गत आचार ख) पा रवा रक आचार ग) सामा जक आचार

    क) य गत आचार : तन, मन और आचरण क शु ता ह तुलसी के नीित वषयक िच तन का

    मूल आधार है । तुलसी ने य को स त के ल ण के प म ूःतुत कये ह । स त कभी भी नीित का याग नह ं करते । वे सरल ःवभाव वाले तथा सभी से ूेम रखने वाले होते ह । स त का मन करोड़ो व न म भी नीित को नह ं यागता ।

    1 . ौीरामच रतमानस, सट क मझला साईज, लकंाका ड, प.ृ 762

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  • क तु ऐसे परोपकार और परमाथ स त वरल भी होते ह, स त वषय- वमुख, सुशील, गुण-स प न, पर दःख से दःखी तथा पर सखु से सुखीु ु , समबु , अजातशऽु, मदह न, वैरा यवान,् लोभ, बोध, भय आ द से मु दयालु, िनंकपट भ , िनरािभमानी, मानूद, िनंकाम होता है । वह शम, दम और िनयम-शौच, स त ष, तप, ःवा याय और ई र- ूा णधान तथा नीित से कभी वचिलत नह ं होता और मुख से कभी कठोर वचन नह ं बोलता । इसके वपर त अस त ईंयालु, िन दा-रत, कामी, बोधी, अिभमानी, िनदयी, कपट , कु टल और पापी होता है । यह अकारण शऽु और भलाई करने वाले के साथ बुराई करने वाला होता है । द य झूठा मोर के ुसमान ऊपर से मधुर भाषी और भीतर से िनमम, परिोह , पर ी, परधन और परिन दा म आस होता है । ऐसे पापी मनुंय नर शर र धारण कये हए भी रा स ु है ।

    भरत के च रऽ के मा यम से तुलसी ने नैितक आचरण के उ कष का क ितमान ूःतुत कया है Ð

    “िनरविध गुन िन पम पु ष भरतु भरत सम जािन । क हअ सुमे क सेर सम क बकुल मित सकुचािन ।।” 1

    (अयो याका ड, दो-288)

    भर ाज ऋ ष ारा आित य- प म सम पत भोग सामिमय म से कसी का भी भरत ने ःपश तक नह ं कया Ð

    “संपित चकई भरतु चक मुिन आयस खेलवार । ते ह िनिस आौम पंजराँ राखे भा िभनुसार ।।” 2

    (अयो याका ड, दो-215)

    विध, ह र, हर का पद पाकर भी भरत को राजमद नह ं हो सकता Ð

    “भरत ह होई न राजमद बिध ह र हर पद पाइ ।ु कबहँ क काँजी सीकरिन छ रिसंधु बनसाइ ।।ु ” 3

    (अयो याका ड, दो-231)

    य गत आचार अथात नीित को हम भरत के पाऽ म ःप देख चुके ् क भरत को कसी भी ूकार का लोभ, मोह नह ं है ।

    ख) पा रवा रक आचार : तुलसी-सा ह य म िशव, बािल-सुमीव, जनक, केवट, रावण और राम आ द

    अनेक य य के प रवार के स दभ ूा है, क तु वशेषता दो प रवार क ह है । 1 . ौीरामच रतमानस, सट क मझला साईज, अयो याका ड, प.ृ 534 2 . वह , प.ृ 476 3 . वह , प.ृ 489

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  • राम-प रवार और रावण-प रवार । भारतीय पर परा के अनुसार प ी, पुऽ, सेवक, िशंय के कत यो पर तो वशेष प से ूकाश डाला ह गया है, क तु पित, पता, माता, ःवामी और गु र के कत य का भी उ लेख कया गया है । प ी के पितोत पर तुलसी ने वशेष बल दया है । चार ूकार क