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पे्रमा भाग 1 / पे्रमचंद पन्ना संवाद सोस देखें . पुराने अवतरण

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टिटप्पणी लि�खें © गद्य कोश हि न्दी साहि त्य को इंटरनैट पर एक जग �ाने का एक अव्यावसायियक और सामूहि क प्रयास ै। इस वैबसाइट पर संकलि�त सभी रचनाओं के सवायि3कार रचनाकार या अन्य वै3 कॉपीराइट 3ारक के पास सुरक्षि5त ैं। इसलि�ये गद्य कोश में संकलि�त कोई भी रचना या अन्य सामग्री हिकसी भी तर के सावजहिनक �ाइसेंस ( जैसे हिक GFDL) के अंतगत उप�ब्ध न ीं ै। © All the material collected in Gadya Kosh is copyrighted by their respective writers and are, therefore, not available under any public, free or general licenses including GFDL

 रचनाकार: पे्रमचंद                 

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सच्ची उदारता

संध्या का समय ै, डूबने वा�े सूय की सुन री हिकरणें रंगीन शीशो की आड़ से, एक अंग्रेजी ढंग पर सजे हुए कमरे में झॉँक र ी ैं जिजससे सारा कमरा रंगीन ो र ा ै। अंग्रेजी ढं़ग की मनो र तसवीरें, जो दीवारों से �टक र ीं ै, इस समय रंगीन वस्त्र 3ारण करके और भी संुदर मा�ूम ोती ै। कमरे के बीचोंबीच एक गो� मेज़ ै जिजसके चारों तरफ नम मखम�ी गद्दोकी रंगीन कुर्सिसPयॉ हिबछी हुई ै। इनमें से एक कुसR पर एक युवा पुरूष सर नीचा हिकये हुए बैठा कुछ सोच र ा ै। व अहित संुदर और रूपवान पुरूष ै जिजस पर अंग्रेजी काट के कपडे़ बहुत भ�े मा�ूम ोते ै। उसके सामने मेज पर एक कागज ै जिजसको व बार-बार देखता ै। उसके चे रे से ऐसा हिवटिदत ोता ै हिक इस समय व हिकसी ग रे सोच में डूबा हुआ ै। थोड़ी देर तक व इसी तर प �ू बद�ता र ा, हिफर व एकाएक उठा और कमरे से बा र हिनक�कर बरांडे में ट �ने �गा, जिजसमे मनो र फू�ों और पत्तों के गम�े सजाकर 3रे हुए थे। व बरांडे से हिफर कमरे में आया और कागज का टुकड़ा उठाकर बड़ी बेचैनी के साथ इ3र-उ3र ट �ने �गा। समय बहुत सु ावना था। मा�ी फू�ों की क्यारिरयों में पानी दे र ा था। एक तरफ साईस घोडे़ को ट �ा र ा था। समय और स्थान दोनो ी बहुत रमणीक थे। परन्तु व अपने हिवचार में ऐसा �व�ीन ो र ा था हिक उसे इन बातों की हिब�कु� सुयि3 न थी। ॉँ, उसकी गदन आप ी आप हि �ाती थी और ाथ भी आप ी आप इशारे करते थे—जैसे व हिकसी से बातें कर र ा ो। इसी बीच में एक बाइलिसहिक� फाटक के अंदर आती हुई टिदखायी दी और एक गोरा-लिचटठा आदमी कोट पत�ून प ने, ऐनक �गाये, लिसगार पीता, जूत ेचरमर करता, उतर पड़ा और बो�ा, गुड ईवनिनPग, अमृतराय।

अमृतराय ने चौंककर सर उठाया और बो�े—ओ। आप ै यिमस्टर दाननाथ। आइए बैटिठए। आप आज ज�से में न टिदखायी टिदयें।

दाननाथ—कैसा ज�सा। मुझे तो इसकी खबर भी न ीं।

अमृतराय—(आश्चय से) ऐं। आपको खबर ी न ीं। आज आगरा के �ा�ा 3नुष3ारी�ा� ने बहुत अच्छा व्याख्यान टिदया और हिवरोयि3यो के दॉँत खटटे कर टिदये।

दाननाथ—ईश्वर जानता ै मुझे जरा भी खबर न थी, न ीं तो मैं अवश्य आता। मुझे तो �ा�ा सा ब के व्याख्यानों के सुनने का बहुत टिदनों से शौंक ै। मेरा अभाग्य था हिक ऐसा अच्छा समय ाथ से हिनक� गया। हिकस बात पर व्याख्यान था?

अमृतराय—जाहित की उन्नहित के लिसवा दूसरी कौन-सी बात ो सकती थी? �ा�ा सा ब ने अपना जीवन इसी काम के ेत ुअपण कर टिदया ै। आज ऐसा सच्चा देशभक्त और हिनष्कास जाहित-सेवक इस देश में न ीं ै। य दूसरी बात ै हिक कोई उनके लिसद्वांतो को माने

या न माने, मगर उनके व्याख्यानों में ऐसा जादू ोता ै हिक �ोग आप ी आप खिखPचे च�े आते ै। मैंने �ा�ा सा ब के व्याख्यानों के सुनने का आनंद कई बार प्राप्त हिकया ै। मगर आज की स्पीच में तो बात ी और थी। ऐसा जान पड़ता ै हिक उनकी ज़बान में जादू भरा ै। शब्द व ी ोते ै जो म रोज़ काम में �ाया करते ै। हिवचार भी व ी ोते ै जिजनकी मारे य ॉँ प्रहितटिदन चचा र ती ै। मगर उनके बो�ने का ढंग कुछ ऐसा अपूव ै हिक टिद�ों को �ुभा �ेता ै।

दाननाथ को ऐसी उत्तम स्पीच को न सुनने का अत्यंत शोक हुआ। बो�े—यार, मैं जंम का अभागा हँू। क्या अब हिफर कोई व्याख्यान न ोगा?

अमृतराय—आशा तो न ीं ैं क्योंहिक �ा�ा सा ब �खनऊ जा र े ै, उ3र से आगरा को च�े जाएगंे। हिफर न ीं मा�ूम कब दशन दें।

दाननाथ—अपने कम की ीनता की क्या कहँू। आपने उसस्पीच कीकोई नक� की ो तो जरा दीजिजए। उसी को देखकर जी को ढारस दँू।

इस पर अमृतराय ने व ी कागज का टुकड़ा जिजसको वे बार-बार पढ़ र े थे दाननाथ के ाथ में रख टिदया और बो�े—स्पीच के बीच-बीच में जो बाते मुझको सवार ो जाती ै तो आगा-पीछा कुछ न ीं सोचते, समझाने �गे—यिमत्र, तुम कैसी �ड़कपन की बातें करते ो। तुमको शायद अभी मा�ूम न ीं हिक तुम कैसा भारी बोझ अपने सर पर �े र े ो। जो रास्ता अभी तुमको साफ टिदखायी दे र ा ै व कॉँटो से ऐसा भरा ै हिक एक-एक पग 3रना कटिठन ै।

अमृतराय—अब तो जो ोना ो सो ो। जो बात टिद� में जम गयी व तम गयीं। मैं खूबजानता हंू हिक मुझको बड़ी-बड़ी कटिठनाइयों का सामना करना पडे़गा। मगर आज मेरा हि साब ऐसा बढ़ा हुआ ैं हिक मैं बडे़ से बड़ा काम कर सकता हंू और ऊँचे से ऊँचे प ाड़ पर चढ़ सकता हँू।

दाननाथ—ईश्वर आपके उत्सा को सदा बढ़ावे। मैं जानता हँू हिक आप जिजस काम के लि�ए उद्योग करेगें उसे अवश्य पूरा कर टिदखायेगें। मैं आपके इरादों में हिवध्न डा�ना कदाहिप न ीं चा ता। मगर मनुष्य का 3म ैं हिक जिजस काम में ाथ �गावे प �े उसका ऊँच-नीच खूब हिवचार �े। अब प्रच्छन बातों से टकर प्रत्य5 बातों की तरफा आइए। आप जानते ैहिक इस श र के �ोग, सब के सब,पुरानी �कीर के फकीर ै। मुझे भय ै हिक सामाजिजक सु3ार का बीज य ॉँ कदाहिप फ�-फु� न सकेगा। और हिफर, आपका स ायक भी कोई नजर न ीं आता। अके�े आप क्या बना �ेंगे। शायद आपके दोस्त भी इस जोखिखम के काम में आपका ाथ न बँटा सके। चा े आपको बुरा �गे, मगर मैं य जरूर कहँूगा हिक अके�े आप कुछ भी न कर सकें गे।

अमृतराय ने अपने परम यिमत्र की बातों को सुनकर सा उठाया और बड़ी गंभीरता से बो�े—दाननाथ। य तुमको क्या ो गया ै। क्या मै तुम् ारे मुँ से ऐसी बोदेपन की बातें सुन र ा हंू। तुम क ते ो अके�े क्या बना �ोगे? अके�े आदयिमयों की कारगुजारिरयों से इहित ास भरे पडे़ ैं। गौतम बुद्व कौन था? एक जंग� का बसनेवा�ा सा3ु, जिजसका सारे देश में कोई मददगार न था। मगर उसके जीवन ी में आ3ा हि न्दोस्तान उसके पैरों पर सर 3र चुका था। आपको हिकतने प्रमाण दँू। अके�े आदयिमयों से कौमों के नाम च� र े ै। कौमें मर गयी ै। आज उनका हिनशान भी बाकी न ीं। मगर अके�े आदयिमयों के नाम अभी तक जिजPदा ै। आप जानते ैं हिक प्�ेटों एक अमर नाम ै। मगर आपमें हिकतने ऐसे ैं जो य जानते ों हिक व हिकस देश का र ने वा�ा ै।

दाननाथ समझदार आदमी थे। समझ गये हिक अभी जोश नया ै और समझाना बुझाना सब व्यथ ोगा। मगर हिफर भी जी न माना। एक बार और उ�झना आवश्यक ‘अच्छी जान पड़ी मैने उनको तुरंत नक� कर लि�या। ऐसी जल्दी में लि�खा ै हिक मेरे लिसवा कोई दूसरा पढ़ भी न सकेगा। देखिखए मारी �ापरवा ी को कैसा आडे़ ाथों लि�या ै:

सज्जनों। मारी इस दुदशा का कारण मारी �ापरवा ी ैं। मारी दशा उस रोगी की-सी ो र ी ै जो औषयि3 को ाथ में �ेकर देखता ै मगर मुँ तक न ीं �े जाता। ॉँ भाइयो। म ऑंखे रचाते ै मगर अं3े ै, म कान रखते ै मगर ब रें ै, म जबान रखते ै मगर गँूगे ैं। परंतु अब व टिदन न ीं र े हिक मको अपनी जीत की बुराइयाँ न टिदखायी देती ो। म उनको देखते ै और मन मे उनसे घृणा भी करते ै। मगर जब कोई समय आ जाता ै तो म उसी पुरानी �कीर पर जाते ै और नअ बातों को असंभव और अन ोनी समझकर छोड़ देते ै। मारे डोंगे का पार �गाना, जब हिक मल्�ा ऐसे बाद और कादर ै, कटिठन ी न ीं प्रत्युत दुस्साध्य ै।

अमृतराय ने बडे़ ऊँचे स्वरों में उस कागज को पढ़ा। जब व चुप हुए तो दाननाथ ने क ा—हिन:संदे बहुत ठीक क ा ै। मारी दशा के अनुकू� ी ै।

अमृतराय—मुझकों र -र कर अपने ऊपर क्रो3 आता ै हिक मैंने सारी स्पीच क्यों न नक� कर �ी। अगर क ीं अंग्रेजी स्पीच ोती तो सबेरा ोते ी सारे समाचारपत्रों में छप जाती। न ीं तो शायद क ीं खु�ासा रिरपोट छपे तो छपे। (रूककर) तब मैं ज�से से �ौटकर आया हँू तब से बराबर व ी शब्द मेरे कान में गँूज र े ै। प्यारे यिमत्र। तुम मेरे हिवचारों को प �े से जानते ो, आज की स्पीच ने उनको और भी मजबूत कर टिदया ै। आज से मेरी प्रहितज्ञा ै हिक मै अपने को जाहित पर न्यौछावर कर दँूगा। तन, मन, 3न सब अपनी हिगरी हुई जाहित की उन्नहित के हिनयिमत्त अपण कर दँूगा। अब तक मेरे हिवचार मुझ ी तक थे पर अब वे प्रत्य5 ोंगे। अब तक मेरा दय दुब� था, मगर आज इसमें कई टिद�ों का ब� आ गया ै। मैं खूब जानता हँू हिक मै कोई उच्च-पदवी न ीं रखता हंू। मेरी जायदाद भी कुछ अयि3क न ीं ै। मगर मैं अपनी सारी जमा जथा अपने देश के उद्वार के लि�ए �गा दँूगा। अब इस प्रहितज्ञा से कोई मुझको हिडगा न ीं सकता।

(जोश से)ऐ थककर बैठी हुई कौम। �े, तेरी दुदशा पर ऑंसू ब ानेवा�ों में एक दुखिखयारा और बढ़ा। इस बात का न्याय करना हिक तुझको इस दुखिखयारे से कोई �ाभ ागा या न ीं, समय पर छोड़ता हँू।

य क कर अमृतराय जमीन की ओर देखने �गे। दाननाथ, जो उनके बचपन के साथी थे और उनके बचपन के साथी थे और उनके स्वभाव से भ�ीभॉँहित परिरलिचत थे हिक जब उनको कोई 3ुन मा�ूम हुआ। बो�े—अच्छा मैंने मान लि�या हिक अके�े �ोगों ने बडे़बडे़ काम हिकय े ैं और आप भी अपनी जाहित का कुछ न कुछ भ�ा कर �ेंगे मगर य तो सोलिचये हिक आप उन �ोगों को हिकतना दुख पहँुचायेंगे जिजनका आपसे कोई नाता ै। प्रेमा से बहुत जल्द आपका हिववा ोनेवा�ा ै। आप जानते ै हिक उसके मॉँ-बाप पर�े लिसरे के कटटर हि न्दू ै। जब उनको आपकी अंग्रेजी पोशाक और खाने-पीने पर लिशकायत ै तो बत�ाइए जब आप सामजिजक सु3ार पर कमर बां3ेगे तब उनका क्या ा� ोगा। शायद आपको प्रेमा से ाथ 3ोना पडे़।

दाननाथ का य इशारा क�ेजे में चुभ गया। दो-तीन यिमनट तक व सन्नाटे में जमीन की तरफ ताकते र े। जब सर उठाया तो ऑंखे �ा� थीं और उनमें ऑंसू डबडबाये थे। बो�े—यिमत्र, कौम की भ�ाई करना सा3ारण काम न ीं ै। यद्यहिप प �े मैने इस हिवषय पर ध्यान न टिदया था, हिफर भी मेरा टिद� इस वक्त ऐसा मजबूत ो र ा ै हिक जाहित के लि�ए र एक दुख भोगने को मै कटिटबद्व हँू। इसमें संदे न ीं हिक प्रेमा से मुझको बहुत ी प्रेम था। मैं उस पर जान देता था और अगर कोई समय ऐसा आता हिक मुझको उसका पहित बनने का आनंद यिम�ता तो मैं साहिबत करता हिक प्रेम इसको क त े ै। मगर अब प्रेमा की मो नी मूरत मुझ पर अपना जादू न ीं च�ा सकती। जो देश और जाहित के नाम पर हिबक गया उसके टिद� मे कोई दूसरी चीज जग न ीं पा सकती। देखिखए य व फोटो ै जो अब तक बराबर मेरे सीने से �गा र ता था। आज इससे भी अ�ग ोता हंू य क ते-क ते तसवीर जेब से हिनक�ी और उसके पुरजे-पुरजे कर डा�े, ‘प्रेमा को जब मा�ूम ोगा हिक अमृतराय अब जाहित पर जान देने �गा, उसके टिदन में अब हिकसी नवयौवना की जग न ी र ी तो व मुझे 5मा कर देगी।

दाननाथ ने अपने दोस्त के ाथों से तसवीर छीन �ेना चा ी। मगर न पा सके। बो�े—अमृतराय बडे़ शोक की बात ै हिक तुमने उस सुन्दरी की तसवीर की य दशा की जिजसकी तुम खूब जानते ो हिक तुम पर मोहि त ै। तुम कैसे हिनठुर ो। य व ी संुदरी ै जिजससे शादी करने का तुम् ारे वैकंुठवासी हिपता ने आग्र हिकया था और तुमने खुद भी कई बार बात ारी। क्या तुम न ीं जानते हिक हिववा का समय अब बहुत हिनकट आ गया ै। ऐसे वक्त में तुम् ारा इस तर मुँ मोड़ �ेना उस बेचारी के लि�ए बहुत ी शोकदायक ोगा।

इन बातों को सुनकर अमृतराय का चे रा बहुत मलि�न ो गया। शायद वे इस तर तस्वीर के फाड़ देने का कुछ पछतावा करने �गे। मगर जिजस बात पर अड़ गय ेथे उस पर अडे़ ी र े। इन् ीं बातों में सूय अस्त ो गया। अँ3ेरा छा गया। दाननाथ उठ खडे़ हुए। अपनी बाइलिसहिक� सँभा�ी और च�ते-च�ते य क ा—यिमस्टर राय। खूब सोच �ो। अभी कुछ न ीं निबPगड़ा ै। आओ आज तुमको गंगा की सैर करा �ाये। मैंने एक बजरा हिकराये पर �े रक्खा ै। उस पर चॉँदनी रात में बड़ी ब ार र ेगी।

अमृतराय—इस समय आप मुझको 5मा कीजिजए। हिफर यिम�ँूगा।

दाननाथ तो य बातचीत करके अपने मकान को रवाना हुए और अमृतराय उसी अँ3ेरे में, बड़ी देर तक चुपचाप खडे़ र े। व न ीं मा�ूम क्या सोच र े थे। जब अँ3ेरा अयि3क हुआ तो व जमीन पर बैठ गये। उन् ोंने उस तसवीर के पुज} सब एक-एक करके चुन लि�ये। उनको बडे़ प्यार से सीने में �गा लि�या और कुछ सोचते हुए कमरे में च�े गए।

बाबू अमृतराय श र के प्रहितयिष्ठत रईसों में समझे जाते थे। वका�त का पेशा कई पुश्तों से च�ा आता था। खुद भी वका�त पास कर चुके थे। और यद्यहिप वका�त अभी तक चमकी न थी, मगर बाप-दादे ने नाम ऐसा कमाया था हिक श र के बडे़-बडे़ रईस भी उनका दाब मानते थे। अंग्रेजी कालि�ज मे इनकी लिश5ा हुई थी और य अंग्रेजी सभ्यता के प्रेमी थे। जब तक बाप जीते थे तब तक कोट-पत�ून प नते तहिनक डरते थे। मगर उनका दे ांत ोते ी खु� पडे़। ठीक नदी के समीप एक संुदर स्थान पर कोठी बनवायी। उसको बहुत कुछ खच करके अंग्रेजी रीहित पर सजाया। और अब उसी में र ते थे। ईश्वर की कृपा से हिकसी चीज कीकमी न थी। 3न-द्रव्य, गाड़ी-घोडे़ सभी मौजूद थे।

अमृतराय को हिकताबों से बहुत प्रेम था। मुमहिकन न था हिक नयी हिकताब प्रकालिशत ो और उनके पास न आवे। उत्तम क�ाओं से भी उनकी तबीयत को बहुत �गाव था। गान-हिवद्या पर तो वे जान देते थे। गो हिक वका�त पास कर चुके थे मगर अभी व हिववा न ीं हुआ था। उन् ोने ठान लि�या था हिक जब व वका�त खूब न च�ने �गेगी तब तक हिववा न करँूगा। उस श र के रईस �ा�ा बदरीप्रसाद सा ब उनको कईसा� से अपनी इक�ौती �ड़की प्रेमा के वास्ते, चुन बैठे थे। प्रेमा अहित संुदर �ड़की थी और पढ़ने लि�खने , सीने हिपरोने में हिनपुण थी। अमृतराय के इशारे से उसको थोड़ी स ी अंग्रेजी भी पढ़ा दी गयी थी जिजसने उसके स्वभाव में थोड़ी-सी स्वतंत्रता पैदा कर दी थी। मुंशी जी ने बहुत क ने-सुनने से दोनो प्रेयिमयों को लिचटठी पत्री लि�खने की आज्ञा दे दी थी। और शायद आपस में तसवीरों की भी अद�ा-बद�ी ो गये थी।

बाबू दाननाथ अमृतराय के बचपन के सालिथयों में से थे। कालि�ज मे भी दोनों का साथ र ा। वका�त भी साथ पास की और दो यिमत्रों मे जैसी सच्ची प्रीहित ो सकती ै व उनमे थी। कोई बात ऐसी न थी जो एक दूसरे के लि�ए उठा रखे। दाननाथ ने एक बार प्रेमा को म ताबी पर खडे़ देख लि�या था। उसी वक्त से व टिद� में प्रेमा की पूजा हिकया करता था। मगर य बात कभी उसकी जबान पर न ीं आयी। व टिद� ी टिद� में घुटकर र जाता। सैकड़ों बार उसकी स्वाथ दृयि� ने उसे उभारा था हिक त ूकोई चा� च�कर बदरीप्रसाद का मन अमृतराय से फेर दे, परंतु उसने र बार इस कमीनेपन के ख्या� को दबाया था। व स्वभाव का बहुत हिनम� और आचरण का बहुत शुद्व था। व मर जाना पसंद करता मगर हिकसी को ाहिन पहँुचाकर अपना मनोरथ कदाहिप पूरा न ीं कर सकता था। य भी न था

हिक व केव� टिदखाने के लि�ए अमृतराय से मे� रखता ो और टिद� में उनसे ज�ता ो। व उनके साथ सच्चे यिमत्र भाव का बताव करता था।

आज भी, जब अमृतराय ने उससे अपने इरादे जाहि र हिकये तब उसेन सच्चे टिद� से उनको समझाकर ऊँच नीच सुझाया। मगर इसका जो कुछ असर हुआ म प �े टिदखा चुके ै। उसने साफ साफ क टिदया हिक अगर तुम रिरफामरों कीमंड�ी में यिम�ोगे तो प्रेमा से ाथ 3ोना पडेगा। मगर अमृतराय ने एक न सुनी। यिमत्र का जो 3म ै व दाननाथ ने पूरा कर टिदया। मगर जब उसने देखा हिक य अपने अनुष्ठान पर अडे़ ी र ेगें तो उसको कोई वज न मा�ूम हुई हिक मैं य सब बातें बदरी प्रसाद से बयान करके क्यों न प्रेमा का पहित बनने का उद्योग करँू। य ां से व य ी सब बातें सोचते हिवचारते घर पर आये। कोट-पत�ून उतार टिदया और सी3े सादे कपडे़ पहि न मुंशी बदरीप्रसाद के मकान को रवाना हुए। इस वक्त उसके टिदन की जो ा�त ो र ी थी, बयान न ी की जा सकती। कभी य हिवचार आता हिक मेरा इस तर जाना, �ोगों को मुझसे नाराज न कर दे। मुझे �ोग स्वाथR न समझने �गें। हिफर सोचता हिक क ीं अमृतराय अपना इरादा प�ट दें और आश्चय न ीं हिक ऐसा ी ो, तो मैं क ीं मुँ टिदखाने योग्य न रहँूगा। मगर य सोचते सोचते जब प्रेमा की मो नी मूरत ऑंख के सामने आ गयी। तब य सब शंकाए दूर ो गयी। और व बदरीप्रसाद के मकान पर बातें करते टिदखायी टिदये।

पे्रमा भाग 2 / पे्रमचंद पन्ना संवाद सोस देखें . पुराने अवतरण

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 रचनाकार: पे्रमचंद                 

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जलन बुरी बला है

�ा�ा बदरीप्रसाद अमृतराय के बाप के दोस्तों में थे और अगर उनसे अयि3क प्रहितयिष्ठत न थे तो बहुत ेठे भी न थे। दोनो में �ड़के-�ड़की के ब्या की बातचीत पक्की ो गयी थी। और अगर मुंशी 3नपतराय दो बरस भी और जीते तो बेटे का से रा देख �ेते। मगर का�वश ो गये। और य अमान मन मे लि�ये वैकुण्ठ को लिस3ारे। ां, मरते मरते उनकी बेटे ो य नसी त थी हिक मु० बदरीप्रसाद की �ड़की से अवश्य हिववा करना। अमृतराय ने भी �जाते �जाते बात ारी थी। मगर मुंशी 3नपतराय को मरे आज पॉंच बरस बीत चुके थे। इस बीच में उन् ोने वका�त भी पास कर �ी थी और अचे्छ खासे अंग्रेज बन बैठे थे। इस परिरवतन ने पब्लिब्�क की ऑंखो में उनका आदर घटा टिदया था। इसके हिवपरीत बदरीप्रसाद पक्के हि न्दू थे। सा� भर, बार ों मास, उनके य ां श्रीमद्भागवत की कथा हुआ करती थी। कोई टिदन ऐसा न जाता हिक भंडार में सौ पचास सा3ुओं का प्रसाद न बनता ो। इस उदारता ने उनको सारे श र मेंसव्रहिप्रय बना टिदया था। प्रहितटिदन भोर ोते ी, व गंगा स्नान को पैद� जाया करते थे ओर रास्ते में जिजतने आदमी उनको देखते सब आदर से सर झुकाते थे और आपस में कानाफुसी करते हिक दुखिखयारों का य दाता सदा फ�ता फू�ता र े।

यद्यहिप �ा�ा बदरीप्रसाद अमृतराय की चा�-ढा� को पसंद न करते थे और कई बेर उनको समझा कर ार भी चुके थे, मगर श र में ऐसा ोन ार, हिवद्यावान, संुदर और 3हिनक कोई दूसरा आदमी न था जो उनकी प्राण से अयि3क हिप्रय �ड़की प्रेमा के पहित बनने के योग्य

ो। इस कारण वे बेबस ो र े थे। �ड़की अके�ी थी, इसलि�ए दूसरे श र में ब्या भी न कर सकते थे। इस �ड़की के गुण और संुदरता की इतनी प्रशंसा थी हिक उस श र के सब रईस उसे चा त ेथे। जब हिकसी काम काज के मौके पर प्रेमा सो� ों शं्रगार करके जीती तो जिजतनी और स्त्रिस्त्रयॉँ व ॉँ ोतीं उसके पैरों त�े आंखे हिबछाती। बडी बूढी औरतें क ा करती थी हिक ऐसी संुदर �ड़की क ीं देखने में न ीं आई। और जैसी प्रेमा औरतों में थी वैसे ी अमृतराय मद� में थे। ईश्वर ने अपने ाथ से दोनों का जोड़ यिम�ाया था।

ॉँ, श र के पुराने हि न्दू �ोग इस हिववा के खिख�ाफ थे। व क त ेहिक अमृतराय सब गुण अगर स ी, मगर ै तो ईसाई। उनसे प्रेमा जैसी �ड़की का हिववा करना ठीक न ीं ै। मुंशी जी के नातेदार �ोग भी इस शादी के हिवरूद्व थे। इसी खींचातान� में पॉँच बरस बीत चुके थे। अमृतराय भी कुछ बहुत उद्यम न मा�ूम ोते थे। मगर इस सा� मुंशी बदरीप्रसाद ने भी हि याब हिकया, और अमृतराय भी मुस्तैद हुए और हिववा की साइत हिनश्चय की गयी। अब दोनों तरफ तैयारिरयां ो र ी थी। प्रेमा की मां अमृतराय के नाम पर हिबकी हुई थी और �ड़की के लि�ए अभी से ग ने पाते बनवाने �गी थी, हिक हिनदान आज य म ाभयानक खबर पहँुची हिक अमृतराय ईसाई ो गया ै और उसका हिकसी मेम से हिववा ो र ा ै।

इस खबर ने मुंशी जी के टिद� पर व ी काम हिकया जो हिबज�ी हिकसी रे भरे पेड़ परहिगर कर करती ै। वे बूढे़ तो थे ी, इस3क्के को न स सके और पछ़ाड खाकर जमीन पर हिगर पडे़। उनका बेसु3 ोना था हिक सारा भीतर बा र एक ो गया। तमांम नौकर चाकर, अपने पराये इकटठे ो गय ेऔर ‘क्या हुआ’। ‘क्या हुआ’। का शोर मचने �गा। अब जिजसको देखिखये य ी क ता हिफरता ै हिक अमृतराय ईसाई ो गया ै। कोई क ता ै थाने में रपट करो, कोई क ता ै च�कर मारपीट करो। बा र से दम ी दम में अंदर खबर पहँुची। व ा भी कु राम मच गया। प्रेमा की मां बेचारी बहुत टिदनों से बीमार थी। और उन् ीं की जिजद थी हिक बेटी की शादी ज ॉँ तक जल्द ो जाय अच्छा ै। यद्यहिप व पुराने हिवचार की बूढ़ी औरत थी और उनको प्रेमा का अमृतराय के पास प्रेम पत्र भेजना एक ऑंख न भाता था। तथाहिप जब से उन् ोने उनको एक बार अपने आंगन में खडे़ देख लि�या था तब से उनको य ी 3ुन सवार थी हिक मेरी ऑंखों की तारा का हिववा ो तो उन् ीं से ो। व इस वक्त बैठी हुई बेटी से बातचीत कर र ी थी हिक बा र से य खबर पहँूची। व अमृतराय को अपना दमाद समझने �गी थी—और कुछ तो न ो सका बेटी को ग�े �गाकर रोने �गी। प्रेमा ने आसू को रोकना चा ा, मगर न रोक सकी। उसकी बरसों की संलिचत आशारूपी बे�-5ण मात्र में कुम् �ा गयी। ाय। उससे रोया भी न गया। लिचत्त व्याकु� ो गया। मॉँ को रोती छोड़ व अपने कमरे में आयी, चारपाई पर 3म से हिगर पड़ी। जबान से केव� इतना हिनक�ा हिक नारायण, अब कैसे जीऊँगी और उसके भी ोश जाते र े। तमाम 3र की �ौहिड़यॉँ उस पर जान देती थी। सब की सब एकत्र ो गयीं। और अमृतराय को ‘ त्यारे’ और ‘पापी’ की पदहिवयॉँ दी जाने �गी।

अगर घर में कोई ऐसा था हिक जिजसको अमृतराय के ईसाई ोने का हिवश्वास न आया तो व प्रेमा केभाई बाबू कम�ा प्रसाद थे। बाबू स ाब बडे़ समझदार आदमी थे। उन् ोंने अमृतराय के कई �ेख मालिसकपत्रों में देखे थे, जिजनमें ईसाई मत का खंडन हिकया गया था। और ‘हि न्दू 3म की महि मा’ नाम की जो पुस्तक उन् ोंने लि�खी थी उसकी तो बडे़-बडे़ पंहिडतो ने तारीफ की थी। हिफर कैसे मुमहिकन था हिक एकदम उनके खया� प�ट जाते और व ईसाई मत 3ारण कर �ेते। कम�ाप्रसाद य ी सोच र े थे हिकदाननाथ आत ेटिदखायी टिदये। उनके चे रे से घबरा ट बरस र ी थी। कम�ाप्रसाद ने उनको बडे़ आदर से बैठाया और पूछने �गे—यार, य खबर क ॉं से उड़ी? मुझे तो हिवश्वास न ीं आता।

दाननाथ—हिवश्वास आने की कोई बात भी तो ो। अमृतराय का ईसाई ोना असंभव ै। ां व रिरफाम मंड�ी में जा यिम�े ै, मुझसे भू� ो गयी हिक य ी बात तुमसे न क ी।

कम�ाप्रसाद—तो क्या तुमने �ा�ा जी से य क टिदया?

दाननाथ ने संकोच से सर झुका कर क ा—य ी तो भु� ो गई। मेरी अक्� पर पत्थर पड़ गये थे। आज शाम को जब अमृतराय से मु�ाकात करने गया तो उन् ोने बात बात में क ा हिक अब मैं शादी न करँूगा। मैंने कुछ न सोचा हिवचारा और य बात आकर मुंशी जी से क दी। अगर मुझको य मा�ूम ोता हिक इस बात का य बतंगड ो जायगा तो मैं कभी न क ता। आप जानते ैं हिक अमृतराय मेरे परम यिमत्र ै। मैंने जो य संदेशा पहँुचाया तो इससे हिकसी की बुराई करने का आशय न था। मैंने केव� भ�ाइ की नीयत से य बात क ी थी। क्या कहँू, मुंशी जी तो य बात सुनते ी जोर से लिचल्�ा उठे—‘व ईसाई ो गया। मैंने बहुतेरा अपना मत�ब समझाया मगर कौन सुनता ै। व य ी क ते मूछा खाकर हिगर पडे़।

कम�ाप्रसाद य सुनते ी �पककर अपने हिपता के पास पहंूचे। व अभी तक बेसु3 थे। उनको ोश में �ाये और दाननाथ का मत�ब समझाया और हिफर घर में पहंूचे। उ3र सारे मु ल्�े की स्त्रिस्त्रयाँ प्रेमा के कमरे में एकत्र ो गयी थीं और अपने अपने हिवचारनुसार उसको सचेत करने की तरकीबें कर र ी थी। मगर अब तक हिकसी से कुछ न बन पड़ा। हिनदान एक संुदर नवयौवना दरवाजे से आती टिदखायी दी। उसको देखते ी सब औरतो ने शोर मचाया जो पूणा आ गयी। अब रानी को चेत आ जायेगी। पूणा एक ब्राह्मणी थी। इसकी उम्र केव� बीस वष की ोगी। य अहित सुशी�ा और रूपवती थी। उसके बदन पर सादी साड़ी और सादे ग ने बहुत ी भ�े मा�ूम ोते थे। उसका हिववा पंहिडत बसंतकुमार से हुआ था जो एक दफ्तर में तीस रूपये म ीने के नौकर थे। उनका मकान पड़ोस ी में था। पूणा के घर में दूसरा कोई नथा। इसलि�ए जब दस बजे पंहिडत जी दफ्तर को च�े जाते तो व प्रेमा के घर च�ी आती और दोनो सखिखया शाम तक अपने अपने मन की बातें सुना करतीं। प्रेमा उसको इतना चा ती थी हिक यटिद व कभी हिकसी कारण से न आ सकती तो स्वयं उसके 3र च�ी जाती। उसे देखे हिबना उसको क� न पड़ती थी। पूणा का भी य ी ा� था।

पूणा ने आते ी सब स्त्रिस्त्रयों को व ॉँ से टा टिदया, प्रेमा को इत्र सुघाया केवडे और गु�ाब का छींटा मुख पर मारा। 3ीरे 3ीरे उसके त�वे स �ाये, सब खिखड़हिकयॉँ खु�वा दीं। इस तर जब ठंडक पहँुची तो प्रेमा ने ऑंखे खो� दीं और चौंककर उठ बैठी। बूढ़ी मॉँ की

जान में जान आई। व पूणा की ब�ायें �ेने �गी। और थोड़ी देर में सब स्त्रिस्त्रयाँ प्रेमा को आशीवाद देते हुए सिसP3ारी। पूणा र गई। जब एकांत हुआ तो उसने क ा—प्यारी प्रेमा। ऑंखे खो�ो। य क्या गत बना रक्खी ै।

प्रेमा ने बहुत 3ीरे से क ा— ाय। सखी मेरी तो सब आशाऍं यिमटटी में यिम� गयीं।

पूणा—प्यारी ऐसी बातें न करों। जरा टिद� को सँभा�ो और बताओ तुमको य खबर कैसे यिम�ी?

प्रेमा—कुछ न पूछो सखी, मैं बड़ी अभाहिगनी हँू (रोकर) ाय, टिद� बैठा जाता ै। मैं कैसे जीऊँगी।

पूणा—प्यारी जरा टिद� को ढारस तो दो। मै अभी सब पता �गये देती हँू। बाबू अमृतराय पर जो दोष �ोगों ने �गाया ै व सब झूठ ै।

प्रेमा—सखी, तुम् ारे मुँ में घी शक्कर। ईश्वर करें तुम् ारी बातें सच ों। थोड़ी देर चुप र ने के बाद व हिफर बो�ी—क ीं एक दम के लि�ए मेरी उस कठक�ेजिजये से भेट ो जाती तो मैं उनका 5ेम कुश� पूछती। हिफर मुझे मरने का रंज न ोता।

पूणा—य कैसी बात क ती ो सखी, मरे व जो तुमको देख न सके। मुझसे क ो मैं तांबे के पत्र पर लि�ख दंू हिक अमृतराय अगर ब्या करेंगे तो तुम् ीं से करेंगे। तुम् ारे पास उनके बीलिसयो पत्र पडे़ ै। मा�ूम ोता ै हिकसी ने क�ेजा हिनका� के 3र टिदया ै। एक एक शब्द से सच्चा प्रेम टपकता ै। ऐसा आदमी कभी दगा न ीं कर सकता। प्रेमा—य ी सब सोच सोच कर तो आज चार बरस से टिद� को ढारस दे र ी हंू। मगर अब उनकी बातों का मुझे हिवश्वास न ीं र ा। तुम् ीं बताओ, मैं कैसे जानू हिक उनको मुझसे प्रेम ै? आज चार बरस के टिदन बीत गयें । मुझे तो एक एक टिदन काटना दूभर ो र ा ै और व ॉँ कुछ खबर ी न ीं ोती। मुझे कभी कभी उनके इस टा�मटो� पर ऐसी झँुझ�ा ट ोती ै हिक तुमसे क्या कहंू। जी चा ता ै उनको भू� जाऊँ। मगर कुछ बस न ीं च�ता। टिद� बे या ो गया।

य ॉँ अभी य ी बातें ो र ी थी हिक बाबू कम�ाप्रसाद कमरे में दाखिख� हुए। उनको देखते ी पूणा ने घूघँट हिनका� �ी और प्रेमा �े भी चट ऑंखो से ऑंसू पोंछ लि�ए और सँभ� बैठी। कम�ाप्रसाद—प्रेमा, तुम भी कैसी नादान ो। ऐसी बातों पर तुमको हिवश्वास क्योंकर आ गया? इतना सुनना था हिक प्रेमा का मुखड़ा गु�ाब की तर खिख� गया। ष के मारे ऑंखे चमकने �गी। पूणा ने आहि स्ता से उसकी एक उँग�ी दबायी। दोनों के टिद� 3ड़कने �गे हिक देखें य क्या क ते ै।

कम�ाप्रसाद—बात केव� इतनी हुई हिक घंटा भर हुआ, �ा�ा जी के पास बाबू दाननाथ आये हुए थे। शादी ब्या की चचा ोने �गी तो बाबू सा ब ने क ा हिक मुझे तो बाबू अमृतराय के इरादे इस सा� भी पक्के न ीं मा�ू ोते। शायद व रिरफाम मंड�ी में दाखिख� ोने वा�े ै। बस इतनी सी बात �ोगों ने कुछ का कुछ समझ लि�या। �ा�ा जी अ3र बे ोश ोकर हिगर पडे़। अम्मा उ3र बद वास ो गयी। अब जब तक उनको संभा�ू हिक सारे घर में को�ा � ोने �गा। ईसाई ोना क्या कोई टिदल्�गी ैं। और हिफर उनको इसकी जरूरत ी क्या ै। पूजा पाठ तो व करते न ीं तो उन् ें क्या कुते्त ने काटा ै हिक अपना मत छोड़ कर नक्कू बनें। ऐसी बे सर-पैर की बातों पर एतबार न ीं करना चाहि ए। �ो अब मुँ 3ो डा�ो। ँसी-खुशी की बातचीत की। मुझे तुम् ारे रोने-3ोने से बहुत रंज हुआ। य क कर बाबू कम�ाप्रसाद बा र च�े गये और पूणा ने ंसकर क ा—सुना कुछ मैं जो क ती थी हिक य सब झूठ ैं। �े अब मुं मीठा करावो।

प्रेमा ने प्रफुब्लिल्�त ोकर पूणा को छाती से लि�पटा लि�या और उसके पत�े पत�े ोठों को चूमकर बो�ी—मुँ मीठा हुआ या और �ोगी?

पूणा—य यिमठाइयॉँ रख छोडो उनके वास्ते जिजनकी हिनठुराई पर अभी कुढ़ र ी थी। मेरे लि�ए तो आगरा वा�े की दुकान की ताजी-ताजी अमृहितयॉँ चाहि ए।

प्रेमा—अच्छा अब की उनको लिचटठी लि�खँगी तो लि�ख दँूगी हिक पूणा आपसे अमृहितयॉँ मॉँगती ै। पूणा—तुम क्या लि�खोगी, ॉँ, मैं आज का सारा वृतांत लि�खँूगी। ऐसा-ऐसा बनाऊँगी हिक तुम भी क्या याद करो। सारी क�ई खो� दँूगी।

प्रेमा—(�जाकर) अच्छा र ने दीजिजए य सब टिदल्�गी। सच मानो पूणा, अगर आज की कोई बात तुमने लि�खी तो हिफर मैं तुमसे कभी न बो�ूगी।

पूणा—बो�ो या न बो�ो, मगर मैं लि�खँूगी जरूर। इसके लि�ए तो उनसे जो चाहँूगी �े �ूँगी। बस इतना ी लि�ख दँूगी हिक प्रेमा को अब बहुत न तरसाइए।

प्रेमा—(बात काटकर) अच्छा लि�खिखएगा तो देखूँगी। पंहिडत जी से क कर व दुगत कराऊँ हिक सारी शरारत भू� जाओ। मा�ूम ोता ै उन् ोंने तुम् ें बहुत सर चढ़ा रखा ै।

अभी दोनों सखिखयॉँ जी भर कर खुश न ोने पायी थीं हिक उनको रंज पहँुचाने का हिफर सामान ो गया। प्रेमा की भावज अपनी ननद से रदम ज�ा करती थी। अपने सास-ससुर से य ॉँ तक हिक पहित से भी, क्रद र ती हिक प्रेमा में ऐसे कौन से चॉँद �गे हिक सारा घराना उन

पर हिनछावर ोने को तैयार र ता ै। उनका आदर सब क्यों करते ै मेरी बात तक कोइ न ीं पूछता। मैं उनसे हिकसी बात मे कम न ीं हँू। गोरेपन में, संुदरता में, शंृ्रगार मे मेरा नंबर उनसे बराबर बढ़ा-चढ़ा र ता ै। ॉँ व पढ़ी-लि�खी ै। मैं बौरी इस गुण को न ीं जानती। उन् ें तो मद� में यिम�ना ै, नौकरी-चाकरी करना ै, मुझ बेचारी के भाग में तो घर का काम काज करना ी बदा ै। ऐसी हिनर�ज �ड़की। अभी शादी न ीं हुई, मगर प्रेम-पत्र आते-जाते ै।, तसवीरें भेजी जाती ै। अभी आठ-नौ टिदन ोते ै हिक फू�ों के ग ने आये ै। ऑंखो का पानी मर गया ै। और ऐस कु�वंती पर सारा कुनबा जान देता ै। प्रेमा उनके ताने और उनकी बो�ी-ठोलि�यो को ँसी में उड़ा टिदया करती और अपने भाई के खाहितर भावज को खुश रखने की हिफक्र में र ती थी। मगर भाभी का मुँ उससे रदम फू�ा र ता। आज उन् ोंने ज्यो ी सुना हिक अमृतराय ईसाई ो गये ै तो मारे खुशी के फू�ी न ीं समायी। मुसकराते, मच�ते, मटकते, प्रेमा के कमरे में पहँुची और बनावट की ँसी ँसकर बो�ी—क्यों रानी आज तो बात खु� गयी। प्रेमा ने य सुनकर �ाज से सर झुका लि�या मगर पूणा बो�ी—सारा भॉँडा फूट गया। ऐसी भी क्या कोई �ड़की मद� पर हिफस�े। प्रेमा ने �जाते हुए जवाब टिदया—जाओ। तुम �ोगों की ब�ा से । मुझसे मत उ�झों।

भाभी—न ीं-न ीं, टिदल्�गी की बात न ीं। मद सदा के कठक�ेजी ोते ै। उनके टिद� में प्रेम ोता ी न ीं। उनका जरा-सा सर 3मकें तो म खाना-पीना त्याग देती ै, मगर म मर ी क्यों न जायँ उनको जरा भी परवा न ीं ोती। सच ै, मद का क�ेजा काठ का।

पूणा—भाभी। तुम बहुत ठीक क ती ो। मद� का क�ेजा सचमुच काठ का ोता ै। अब मेरे ी य ॉँ देखों, म ीने में कम-सेकम दस-बार टिदन उस मुये सा ब के साथ दोरे पर र ते ै। मै तो अके�ी सुनसान घर में पडे़-पडे़ करा ा करती हँू। व ॉँ कुछ खबर ी न ीं ोती। पूछती हँू तो क ते ै, रोना-गाना औरतों का काम ै। म रोंये-गाये तो संसार का काम कैसे च�े।

भाभी—और क्या, जानो संसार अके�े मद� ी के थामे तो थमा ै। मेरा बस च�े तो इनकी तरफ ऑंख उठाकर भी न देखू। अब आज ी देखो, बाबू अमृतराय का करतब खु�ा तो रानी ने अपनी कैसी गत बना डा�ी। (मुस्कराकर) इनके प्रेम का तो य ा� ै और व ॉँ चार वष से ी�ा वा�ा करते च�े आते ै। रानी। नाराज न ोना, तुम् ारे खत पर जाते ै। मगर सुनती हँू व ॉँ से हिवर�े ी हिकसी खत का जवाब आता ै। ऐसे हिनमोहि यों से कोई क्या प्रेम करें। मेरा तो ऐसों से जी ज�ता ै। क्या हिकसी को अपनी �ड़की भारी पड़ी ै हिक कुऍं में डा� दें। ब�ा से कोई बड़ा मा�दार ै, बड़ा संुदर ै, बड़ी ऊँची पदवी पर ै। मगर जब मसे प्रेम ी न करें तो क्या म उसकी 3न-दौ�त को �ेकर चाटै? संसार में एक से एक �ा� पडे़ ै। और, प्रेमा जैसी दु�हि न के वास्ते दु� ों का का�।

प्रेमा को य बातें बहुत बुरी मा�ूम हुई, मगर मारे संकोच के कुछ बो� न सकी। ॉँ, पूणा ने जवाब टिदया—न ीं, भाभी, तुम बाबू अमृतराय पर अन्याय कर र ी ो। उनको प्रेमा से सच्चा प्रेम ै। उनमें और दूसरे मद� मे बड़ा भेद ै।

भाभी—पूण अब मुं न खु�वाओ। प्रेम न ीं पत्थर करते ै? माना हिक वे बडे़ हिवद्यावा�े ै और छुटपने में ब्या करना पसंद न ीं करते। मगर अब तो दोनो में कोई भी कमलिसन न ीं ै। अब क्या बूढे ोकर ब्या करेगे? मै तो बात सच कहंूगी उनकी ब्या करने की चेष्ठा ी न ीं ै। टा�मटो� से काम हिनका�ना चा ते ै। य ी ब्या के �5ण ै हिक प्रेमा ने जो तस्वीर भेजी थी व टुकडे़-टुकडे़ करके पैरों त�े कुच� डा�ी। मैं तो ऐसे आदमी का मुँ भी न देखूँ।

प्रेमा ने अपनी भावज को मुस्कराते हुए आते देखकर ी समझ लि�या था हिक कुश� न ीं ै। जब य मुस्कराती ै, तो अवश्य कोई न कोई आग �गाती ै। व उनकी बातचीत का ढंग देखकर स मी जाती थी हिक देखे य क्या सुनावनी सुनाती ै। भाभी की य बात तीर की तर क�ेजे के पार ो गई क्का बक्का ोकर उसकी तरफ ताकने �गी, मगर पूणा को हिवश्वास न आया, बो�ी य क्या अनथ करती ो, भाभी। भइया अभी आये थे उन् ोने इसकी कुछ भी चचा न ी की। मै। तो जानती हंू हिक प �ी बात की तर य भी झूठी ै। य असंभव ै हिक व अपनी प्रेमा की तसवीर की ऐसी दुगत करे।

भाभी—तुम् ारे न पहितयाने को मै क्या करंू, मगर य बात तुम् ारे भइया खुद मुझसे क र े थे। और हिफर इसमें बात ी कौन-सी ै, आज ी तसवीर मँगा भेजो। देखो क्या जवाब देते ै। अगर य बात झूठी ोगी तो अवश्य तसवीर भेज देगे। या कम से कम इतना तो क ेगे हिक य बात झूठी ै। अब पूणा को भी कोई जवाब न सूझा। व चुप ो गयी। प्रेमा कुछ न बो�ी। उसकी ऑंखो से ऑंसुओ की 3ारा ब हिनक�ी। भावज का चे रा ननद की इस दशा पर खिख� गया। व अत्यंत र्षिषPत ोकर अपने कमरे में आई, दपण में मु ँ देखा और आप ी आप मग्न ोकर बो�ी—‘य घाव अब कुछ टिदनों में भरेगा।‘

पे्रमा भाग 3 / पे्रमचंद पन्ना संवाद सोस देखें . पुराने अवतरण

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 रचनाकार: पे्रमचंद                 

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झूठे मददगार

बाबू अमृतराय रात भर करवटें बद�ते र े। ज्यों-ज्यों उन् ोने अपने नये इरादों और नई उमंगो पर हिवचार हिकया त्यों-त्यों उनका टिद� और भी दृढ़ ोता गया और भोर ोते- ोते देशभलिक्त का जोश उनके टिद� में � रें मारने �गा। प �े कुछ देर तक प्रेमा से नाता टूट जाने की सिचPता इस � र पर बॉँ3 का काम करती र ी। मगर अंत में � रे ऐसी उठीं हिक व बॉँ3 टूट गया।

सुब ोते ी मुँ - ाथ 3ो, कपडे़ पहि न और बाइलिसहिक� पर सवार ोकर अपने दोस्तों की तरफ च�े। प �े पहि � यिमस्टर गु�जारी�ा�बी.ए. ए�.ए�.बी. के य ॉँ पहँुचे। य वकी� सा ब बडे़ उपकारी मनुष्य थे और सामाजिजक सु3ार का बड़ा प5 करते ै। उन् ोंने जब अमुतराय के इरादे ओर उनके पूरे ोने की कल्पनाए सुनी तो बहुत खुश हुए और बो�े—आप मेरी ओर से हिनश्चिश्चPत रहि ए और मुझे अपना सच्चा हि तैषी समजिझए। मुझे बहुत ष हुआ हिक मारे श र में आप जैसे योग्य पुरूष ने इस भारी बोझ को अपने सार लि�या। आप जो काम चा ें मुझे सौप दीजिजए, मै उसको अवश्य पूरा करूगा और उसमें अपनी बड़ाई समझूँगा।

अमृतराय वकी� सा ब की बातों पर �टू ो गये। उन् ोंने सच्चे टिद� से उनको 3न्यवाद टिदया और क ा हिक मैं इश श र में एक सामाजिजक सु3ार की सभा स्थाहिपत करना चा ता हँू। वकी� सा ब इस बात पर उछ� पडे़ और क ा हिक आप मुझे उस सभा का सदस्य और हि तलिचन्तक समझें। मैं उसकी मदद टिद�ोजान से करँुगा। उमृतराय इस अचे्छ शगुन ोते हुए दाननाथ के घर पहँूचे। म प �े क चुके ैं हिक दाननाथ के घर पहँूचे। म प �े क चुके ै हिक दाननाथ उनके सच्चे दोस्तों में थे। वे दनको देखते ी बडे़ आदर से उठ खडे़ हुए और पूछा-क्यों भाई, क्या इरादे ैं?

अमृतराय ने बहुत गम्भीरत से जवाब टिदया—मैं अपने इरादे आप पर प्रकट कर चका हँू और आप जानते ैं हिक मैं जो कुछ क ता हँू व कर टिदखाता हँू। बस आप के पास केव� इतना पूछना के लि�ए आया हँू हिक आप इस शुभ काय में मेरी कुछ मदद करेंगे या न ीं? दाननाथ सामजिजक सु3ार को पंसद तो करता था मगर उसके लि�ए ानी या बदनामी �ेना न ीं चा ता था। हिफर इस वक्त तो, व �ा�ा बदरी प्रसाद का कृपापात्र भी बनना चा ता था, इसलि�ए उसने जवाब टिदया—अमृतराय तुम जानते ो हिक मैं र काम में तुम् ारा साथ देने को तैयार हँू। रुपया पैसा समय, सभी से स ायता करुगॉँ, मगर लिछपे-लिछपे। अभी मैं इस सभा में खुल्�म-खुल्�ा सस्त्रिम्मलि�त ोकर नुकसान उठाना उलिचत न ीं समझता। हिवशेष इस कारण से हिक मेरे सस्त्रिम्म�त ोने से सभा को कोई ब� न ीं पहँुचेगा।

बाबू अमृतराय ने अयि3क वादानुवाद करना अनुलिचत समझा। इसमें सन्दे न ीं हिक उनको दाननाथ से बहुत आशा थी। मगर इस समय व य ॉँ बहुत न ठ रे और हिवद्या के लि�ए प्रलिसद्ध थे। जब अमृतराय ने उनसे सभा संबं3 बातें कीं तो व बहुत खुश हुए। उन् ोंने अमृतराय को ग�े �गा लि�या और बो�े—यिमस्टर अमृराय, तुमने मुझे सस्ते छोड़ टिदया। मैं खुद कई टिदन से इन् ीं बातों के सोच-हिवचार में डूबा हुआ हँू। आपने मेरे सर से बोझ उतार लि�या। जैसी याग्ता इस काम के करने की आपमें ै व मुझे नाम को भी न ीं। मैं इस सभा का मेम्बर हँू।

बाबू अमृतराय को पंहिडत जी से इतनी आशा न थी। उन् ोंने सोचा था हिक अगर पंहिडत जी इस काम को पसंद करेंगे तो खुल्�मखुल्�ा शरीक ोते जिझझकें गे। मगर पंहिडत जी की बातों ने उनका टिद� बहुत बढ़ा टिदया। य ॉँ से हिनक�े तो व अपनी ी ऑंखों में दो इंच ऊँचे मा�ूम ोते थे। अपनी अथलिसजिद्ध के नशे में झूमते-झामते और मूँछों पर ताव देते एन.बी. अगरवा� सा ब की सेवा में पहँुचें यिमस्टर अगरावा�ा अंग्रेजी और संस्कृत के पंहिडत थे। व्याख्यान देने में भी हिनपुण थे और श र में सब उनका आदर करते थे। उन् ोंने भी अमृतराय की स ायता करने का वादा हिकया और इस सभा का ज्वाइण्ट सेक्रटेरी ोना स्वीकार हिकया। खु�ासा य हिक नौ बजते-बजते अमृतराय सारे श र के प्रलिसद्ध और नई रोशनीवा�े पुरुषों से यिम� आये और ऐसा कोई न था जिजसने उनके इरादे की पशंसा न की ो, या स ायता करने का वादा न हिकया ो। ज�से का समय चार बजे शाम को हिनयत हिकया गया।

टिदन के दो बजे से अमृतराय के बँग�े पर �जसे की तैयारिरयॉँ ोने �गीं। पश हिबछाये गये। छत में झाड़-फानूस, ॉँहिडयाँ �टकायी गयीं। मेज और कुर्सिसPयॉँ सजाकर 3री गयी और सभासदों के लि�ए खाने-पीने का भी प्रबं3 हिकया गया। अमृतराय ने सभा के लि�ए एक लि�ए एक हिनयमाव�ी बनायी। एक व्याख्यान लि�खा और इन कामों को पूरा करके मेम्बरों की रा देखने �गे। दो बज गये, तीन बज गये, मगर कोई न आया। आखिखर चार भी बजे, मगर हिकसी की सवारी न आयी। ॉँ, इंजीहिनयर सा ब के पास से एक नौकर य संदेश �ेकर आया हिक मैं इस समय न ीं आ सकता।

अब तो अमृराय को सिचPता ोने �गी हिक अगर कोई न आया तो मेरी बड़ी बदनामी ोगी और सबसे �ब्लिज्जत ोना पडे़गा हिनदान इसी तर पॉँच बज गए और हिकसी उत्सा ी पुरुष की सूरत न टिदखाई दी। तब ता अमृतराय को हिवश्वास ो गया हिक �ोगों ने मुझे 3ोखा टिदया। मुंशी गु�जरी�ा� से उनको बहुत कुछ आशा थी। अपना आदमी उनके पास दौड़ाया। मगर उसने �ौटकर बयान हिकया हिक व घर पर न ीं ै, पो�ो खे�ने च�े गये। इस समय तक छ: बजे और जब अभी तक कोई आदमी न प3ारा तो अमृतराय का मन बहुत मलि�न ो गया। ये बेचारें अभी नौजवान आदमी थे और यद्यहिप बात के 3नी और 3ुन के पूरे थे मगर अभी तक झूठे देशभक्तों और बने हुए उद्योहिगयों का उनको अनुभव न हुआ था। उन् ें बहुत दु:ख हुआ। मन मारे हुए चारपाई पर �ेट गये और सोचने �गे की अब मैं क ीं मुँ टिदखाने योग्य न ीं र ा। मैं इन �ोगों को ऐसा कटिट� और कपटी न ीं समझता था। अगर न आना था तो मुझसे साफ-साफ क टिदया ोता। अब क� तमाम श र में य बात फै� जाएगी हिक अमृतराय रईसों के घर दौड़ते थे, मगर कोई उनके दरवाजे पर बात पूछने को भी न गया। जब ऐसा स ायक यिम�ेगे तो मेरे हिकये क्या ो सकेगा। इन् ीं खया�ों ने थोड़ी देर के लि�ए उनके उत्सा को भी ठंडा कर टिदया।

मगर इसी समय उनको �ा�ा 3नुष3ारी�ा� की उत्सा व3क बातें याद आयीं। व ी शब्द उन् ोंने �ोगो के ौस�े बढ़या थे, उनके कानों में गँूजने �गे—यिमत्रो, अगर जाहित की उन्नहित चा त े ो तो उस पर सवस्व अपण कर दो। इन शब्दों ने उनके बैठते हुए टिद� पर अंकुश का काम हिकया। चौंक कर उठ बैठे, लिसगार ज�ा लि�या और बाग की क्यारिरयों में ट �े �गे। चॉँदनी लिछटकी हुई थी। वा के झोंके 3ीरे-3ीरे आ र े थे। सुन्दर फू�ों के पौ3े मन्द-मन्द � रा र े थे। उनकी सुगन्ध चारों ओर फै�ी हुई थी। अमृतराय री- री दूब पर बैठ गये और सोचने �गे। मगर समय ऐसा सु ावना था और ऐसा अनन्ददायक सन्नाटा छाया हुआ था हिक चंच� लिचत्त प्रेमा की ओर जा पहँुचा। जेब से तसवीर के पुज� हिनका� लि�ये और चॉँदनी रात में उसी बड़ी देर तक गौर से देखते र े। मन क ता था—ओ अभागे अमृतराय तू क्योंकर जिजयेगा। जिजसकी मूरत आठों प र तेरे सामने र ती थी, जिजसके साथ आनन्द भोगने के लि�ए तू इतने टिदनों हिवरा ाहिगन में ज�ा, उसके हिबना तेरी जान कैसी र ेगी? त ूतो वैराग्य लि�ये ै। क्या उसको भी वैराहिगन बनायेगा? त्यारे उसको तुझे सच्चा प्रेम ैं। क्या तू देखता न ीं हिक उसके पत्र प्रेम में डूबे हुए र ते ै। अमृतराय अब भी भ�ा ै। अभी कुछ न ीं हिबगड़ा। इन बातों को छोड़ो। अपने ऊपर तरस खाओ। अपने अमानों के यिमट्टी में न यिम�ाओ। संसार में तुम् ारे जैसे बहुत-से उत्सा ी पुरुष पडे़ हुए ै। तुम् ारा ोना न ोना दोनों बराबर ै। �ा�ा बदरीप्रसाद मुँ खो�े बैठे ै। शादी कर �ो और प्रेमा के साथ प्रेम करो। (बेचैन ोकर) ा मैं भी कैसा पाग� हँू। भ�ा इस तस्वरी ने मेरा क्या हिबगाड़ा था जो मैंने इसे फाड़ा डा�ा। े ईश्वर प्रेमा अभी य बात न जानती ो।

अभी इसी उ3ेड़बुन में पडे़ हुए थे हिक ाथों में एक ख़त �ाकर टिदया। घबराकर पूछा—हिकसका ख़त ै?

नौकर ने जवाब टिदया—�ा�ा बदरीप्रसाद का आदमी �ाया ै।

अमृतराय ने कॉँपते हुए ाथों से पत्री �ी और पढ़ने �गे। उसमें लि�खा था—

‘‘बाबू अमृतराय, आशीवाद

मने सुना ै हिक अब आप सनात 3म को त्याग करके ईसाइसायों की उस मंड�ी में जो यिम�े ैं जिजसको �ोग भू� से सामाजिजक सु3ार सभा क ते ै। इसलि�ए अब म अहित शोक के साथ क ते ैं हिक म आपसे कोई नाता न ीं कर सकते।

आपका शुभसिचPतक बदरीप्रसाद ।’’

इस लिचट्टी को अमृतराय ने कई बार पढ़ा और उनके टिद� में अग खींचातानी ोने �गी। आत्मस्वाथ क ता था हिक इस सुन्दरी को अवश्य ब्या ों और जीवन के सुख उठाइओ। देशभलिक्त क ती थी जो इरादा हिकया ै उस पर अडे़ र ो। अपना स्वाथ तो सभी चा ते ै। तुम दूसरों का स्वाथ करो। इस अहिनत्य जीवन को व्यतीत करने का इससे अच्छा कोई ढंग न ीं ै। कोई पन्द्र यिमनट तक य �ड़ाई ोती र ी। इसका हिनणय केव� दो अ5र लि�खने पर था। देशभक्त ने आत्मसवाथ को परास्त कर टिदया था। आखिखर व ॉँ से उठकर कमरे मे गये और कई पत्र कागज ख़बर करने के बाद य पत्र लि�खा—

‘‘म ाशय, प्रणाम

कृपा पत्र आया। पढ़कर बहुत दु:ख हुआ। आपने मेरी बहुत टिदनों की बँ3ी हुई आशा तोड़ दी। खैर जैसा आप उलिचत समझे वैसा करें। मैंने जब से ोश सँभा�ा तब से मैं बराबर सामाजिजक सु3ार का प5 कर सकता हँू। मुझे हिवश्वास ै हिक मारे देश की उन्नती का इसके लिसवाय और कोई उपाय न ीं ै। आप जिजसको सनातन 3म समझे हुए बैठै ै, व अहिवद्या और असभ्यता का प्रत्य5 सवरुप ै।

आपका कृपाकां5ी अमृतराय।

पे्रमा भाग 4 / पे्रमचंद पन्ना संवाद सोस देखें . पुराने अवतरण

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 रचनाकार: पे्रमचंद                 

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जवानी की मौत

समय वा की तर उड़ता च�ा जाता ै। एक म ीना गुजर गया। जाडे़ का कँूच हुआ और गमR की �ैनडोरी ो�ी आ पहँुची। इस बीच में अमृतराय ने दो-तीन ज�से हिकय ेऔर यद्यहिप सभासद दस से ज्यादा कभी न हुए मगर उन् ोंने हि याव न छोड़ा। उन् ोंने प्रहितज्ञा कर �ी थी हिक चा े कोई आवे या न आवे, मगर हिनयत समय पर ज�सा जरुर हिकया करुगॉँ। इसके उपरान्त उन् ोंने दे ातों में जा-जाकर सर�-सर� भाषाओं में व्याख्यान देना शुरु हिकया और समाचार पत्रों में सामाजिजक सु3ार पर अचे्छ-अचे्छ �ेख भी लि�खे। इनकों तो इसके लिसवाय कोई काम न था। उ3र बेचारी प्रेमा का ा� बहुत बे ा� ो र ा था। जिजस टिदन उसे-उनकी आखिखरी लिचट्टी पहँुची थी उसी टिदन से उसकी रोहिगयों की-सी दशा ो र ी थी। र घड़ी रोने से काम था। बेचारी पूण लिसर ाने बैठे समझाया करती। मगर प्रेमा को जरा भी चैन न आता। व बहु3ा पडे़-पडे़ अमृतराय की तस्वीर को घण्टों चुपचाप देखा करती। कभी-कभी जब बहुत व्याकु� ो जाती तो उसके जी मे आता हिक मौ भी उनकी तस्वीर की व ी गत करँु जो उन् ोंने मेरी तस्वीर की की ै। मगर हिफर तुरन्त य ख्या� प�ट खा जाता। व उस तसवी को ऑंखों से �ेती, उसको चूमती और उसे छाती से लिचपका �ेती। रात में अके�े चारपाई पर पडे़-पडे़ आप ी आप प्रेम और मु ब्ब्त की बातें हिकया करती। अमृराय के कु� प्रेम-पत्रों को उसने रंगीन कागज पर, मोटे अ5रों, में नक� कर लि�या था। जब जी बहुत बेचैन ोता तो पूण से उन् ें पढ़वाकर सुनती और रोती। भावज के पास तो व प �े भी बहुत कम बैठती थी, मगर अब मॉँ से भी कुछ खिखPची र ती। क्योंहिक व बेटी की दशा देख-देख कुढ़ती और अमृतराय को इसका करण समझकर कोसती। प्रेमा से य कठोर वचन न सुने जाते। व खुद अमृतराय का जिजक्र बहुत कम करती। ॉँ, अब पूणा या कोई और दूसरी स े�ी उनकी बात च�ाती तो उसको खूब कान �गाकर सुनाती। प्रेमा एक ी मास में ग�कर कॉँटा ो गयी। ाय अब उसको अपने जीवन की कोई आशा न थी। घर के �ोग उसकी दवा-दारू में रुपया ठीकरी की तर फूक र े थे मगर उसको कुछ फयदा न ोता। कई बार �ा�ा बदरीप्रसाद जी के जी में य बात आई हिक इसे अमृतराय ी से ब्या दँू। मगर हिफर भाई-ब न के डर से हि याव न पड़ता। प्रेमा के साथ बेचारी पूणा भी रोहिगणी बनी हुई थी।

आखिखर ो�ी का टिदन आया। श र में चारों ओर अबीर और गु�ा� उड़ने �गा, चारों तरफ से कबीर और हिबरादरीवा�ों के य ॉँ से जनानी सवारिरयॉँ आना शुरु हुई और उसे उनकी खाहितर से बनाव-लिसगार करना, अचे्छ-अचे्छ कपड़ा प नना, उनका आदर-सम्मान करना और उनके साथ ो�ी खे�ना पड़ा। व ँसने, बो�ने और मन को दूसरी बातों में �गाने के लि�ए बहुत कोलिशश करती र ी। मगर कुछ बस न च�ा। रोज अके� में बैठकर रोया करती थी, जिजससे कुछ तसकीन ो जाती। मगर आज शम के मारे रो भी न सकती थी। और टिदन पूण दस बजे से शाम तक बैठी अपनी बातों से उसका टिद� ब �ाया करती थी मगर थी मगर आज व भी सवेरे ी एक झ�क टिदखाकर अपने घर पर त्यो ार मना र ी थी। ाय पूणा को देखते ी व उससे यिम�ने के लि�ए ऐसी झपटी जैसे कोई लिचहिड़या बहुत टिदनों के बाद अपने निपPजरे से हिनक� कर भागो। दोनो सखिखयॉँ ग�े यिम� गयीं। पूणा ने कोई चीज मॉँगी—शायद कुमकुमे ोंगे।

प्रेमा ने सन्दूक मगाया। मगर इस सन्दूक को देखते ी उसकी ऑंखों में ऑंसू भर आये। क्योंहिक य अमृतराय ने पर सा� ो�ी के टिदन उसके पास भेजा था। थोड़ी देर में पूणा अपने घर च�ी गयी मगर प्रेमा घंटो तक उस सन्दूक को देख-देख रोया की।

पूणा का मकान पड़ोसी ी में था। उसके पहित पब्लिण्डत बसंतकुमार बहुत सी3े मगर शैकीन और प्रेमी आदमी थे। वे र बात स्त्री की इच्छानुसार करते। उन् ोंने उसे थोड़ा-बहुत पढ़या भी था। अभी ब्या हुए दो वष भी न ोने पाये थे, प्रेम की उमंगे दोनों ी टिद�ों में उमड़ हुई थी, और ज्यों-ज्यों टिदन बीतते थे त्यों-त्यों उनकी मु ब्बत और भी ग री ोती जाती थी। पूणा रदस पहित की सेवा प्रसन्न र ती, जब व दस बजे टिदन को दफ्तर जाने �गते तो व उनके साथ-साथ दरवाजे तक आती और जब तक पब्लिण्डत जी टिदखायी देते व दरवाजे पर खड़ी उनको देखा करती। शाम को जब उनके आने का समय ाता तो व हिफर दरवाजे पर आकर रा देखने �गती। और ज्यों ी व आ जाते उनकी छाती से लि�पट जाती। और अपनी भो�ी-भा�ी बातों से उनकी टिदन भर की थकन 3ो देती। पंहिडत जी की तरख्वा तीस रुपये से अयि3क न थी। मगर पूणा ऐसी हिकफ़यात से काम च�ाती हिक र म ीने में उसके पास कुछ न कुछ बच र ता था। पंहिडत जी बेचारे, केव� इसलि�ए हिक बीवी को अचे्छ से अचे्छग ने और कपडे़ प नावें, घर पर भी काम हिकया करते। जब कभी व पूणा को कोई नयी चीज बनवाकर देते व फू�ी न समाती। मगर �ा�ची न थी। खुद कभी हिकसी चीज के लि�ए मुँ न खो�ती। सच तो य ै हिक सच्चे प्रेम के आन्नद ने उसके टिद� में प नने-ओढ़ने की �ा�सा बाकी न रक्खी थी।

आखिखर आज ो�ी का टिदन आ गया। आज के टिदन का क्या पूछना जिजसने सा� भर चाथड़ों पर काटा व भी आज क ीं न क ीं से उ3ार ढँूढ़कर �ाता ै और खुशी मनाता ै। आज �ोग �ँगोटी में फाग खे�ते ै। आज के टिदन रंज करना पाप ै। पंहिडत जी की शादी के बाद य दूसरी ो�ी पड़ी थी। प �ी ो�ी में बेचारे खा�ी ाथ थे। बीवी की कुछ खाहितर न कर सके थे। मगर अब की उन् ोंने बड़ी-बड़ी तैयारिरयाँ की थी। कोई डढ़ सौ, रुपया ऊपर से कमाया था, उसमें बीवी के वास्ते एक सुन्दर कंगन बनवा था, कई उत्तम साहिड़याँ मो� �ाये थे और दोस्तों को नेवता भी दे रक्खा था। इसके लि�ए भॉँहित-भॉँहित के मुरब्बे, आचार, यिमठाइयॉँ मो� �ाये थे। और गाने-बजाने के समान भी इकटे्ट कर रक्खे थे। पूणा आज बनाव-चुनाव हिकये इ3र-उ3र छहिब टिदखाती हिफरती थी। उसका मुखड़ा कुन्दा की तर दमक र ा था उसे आज अपने से सुन्दर संसार में कोई दूसरी औरत न टिदखायी देती थी। व बार-बार पहित की ओर प्यार की हिनगा ों से देखती। पब्लिण्डत जी भी उसके शंृ्रगार और फबन पर आज ऐसी रीझे हुए थे हिक बेर-बेर घर में आते और उसको ग�े �गाते। कोई दस बजे ोंगे हिक पब्लिण्डत जी घर में आये और मुस्करा कर पूणा से बो�े—प्यारी, आज तो जी चा ता ै तुमको ऑंखों में बैठे �ें। पूणा ने 3ीरे से एक ठोका देकर और रसी�ी हिनगा ों से देखकर क ा—व देखों मैं तो व ॉँ प �े ी से बैठी हँू। इस छहिब ने पब्लिण्डत जी को �ुभा लि�या। व झट बीवी को ग�े से �गाकर प्यार करने। इन् ीं बातों में दस बजे तो पूणा ने क ा—टिदन बहुत आ गया ै, जरा बैठ जाव तो उबटन म� दँू। देर ो जायगी तो खाने में अबेर-सबेर ोने से सर दद ोने �ेगेगा।

पब्लिण्डत जी ने क ा—न ीं-न ीं दो। मैं उबटन न ीं म�वाऊँगा। �ाओ 3ोती दो, न ा आऊँ।

पूणा—वा उबटन म�वावैंगे। आज की तो य रीहित ी ै। आके बैठ जाव।

पब्लिण्डत—न ीं, प्यारी, इसी वक्त जी न ीं चा ता, गमR बहुत ै।

पूणा ने �पककर पहित का ाथ पकड़ लि�या और चारपाई पर बैठकर उबटन म�ने �गी।

पब्लिण्डत—मगर ज़रा जल्दी करना, आज मैं गंगा जी न ी जाना चा ता हँू।

पूणा-अब दोप र को क ॉँ जाओगे। म री पानी �ाएगी, य ीं पर न ा �ो।

पब्लिण्डत—य ी प्यारी, आज गंगा में बड़ी ब ार र ेगी।

पूणा—अच्छा तो ज़रा जल्दी �ौट आना। य न ीं हिक इ3र-उ3र तैरने �गो। न ाते वक्त तुम बहुत तुम बहुत दूर तक तैर जाया करते ो।

थोड़ी देर मे पब्लिण्डत जी उबटन म�वा चुके और एक रेश्मी 3ोती, साबुन, तौलि�या और एक कमंड� ाथ मे �ेकर न ाने च�े। उनका कायदा था हिक घाट से जरा अ�ग न ा करते य तैराक भी बहुत अचे्छ थे। कई बार श र के अचे्छ तैराको से बाजी मार चुके थे। यद्यहिप आज घर से वादा करके च�े थे हिक न तैरेगे मगर वा ऐसी 3ीमी-3ीम च� र ी थी और पानी ऐसा हिनम� था हिक उसमे मजिद्धम-मजिद्धम �कोरे ऐसे भ�े मा�ूम ोते थे और टिद� ऐसी उमंगों पर था हिक जी तैरने पर ��चाया। तुरंत पानी में कूद पडे़ और इ3र-उ3र कल्�ों�े करने �गे। हिनदान उनको बीच 3ारे में कोई �ा� चीजे ब ती टिदखाया दी। गौर से देखा तो कम� के फू� मा�ूम हुए। सूय की हिकरणों से चमकते हूए व ऐसे सुन्दर मा�म ोते थे हिक बसंतकुमार का जी उन पर मच� पड़ा। सोचा अगर ये यिम� जायें तो प्यारी पूणा के कानों के लि�ए झुमके बनाऊँ। वे मोटे-ताजे आदमी थे। बीच 3ारे तक तैर जाना उनके लि�ए कोई बड़ी बात न थी। उनको पूरा हिवश्वास था हिक मैं फू� �ा सकता हँू। जवानी दीवानी ोती ै। य न सोचा था हिक ज्यों-ज्यों मैं आगे बढँूगा त्यों-त्यों फू� भी बढ़ेंगे। उनकी तरफ च�े और कोई पन्द्र यिमनट में बीच 3ारे में पहँूच गये। मगर व ॉँ जाकर देखा तो फू� इतना ी दूर और आगे था। अब कुछ-कुछ थकान मा�ूम ोने �गी थी। मगर बीच में कोई रेत ऐसा न था जिजस पर बैठकर दम �ेते। आगे बढ़ते ी गये। कभी ाथों से ज़ोर मारते, कभी पैरों से ज़ोर �गाते, फू�ों तक पहँूचे। मगर उस वक्त तक ाथ-पॉँव दोनों बोझ� ो गये थे। य ॉँ तक हिक फू�ों को �ेने के लि�ए जब ाथ �पकाना चा ा तो उठ न सका। आखिखर उनको दॉँतों मे दबाया और �ौटे। मगर जब व ॉँ से उन् ोंने हिकनारों की तरफ देखा तो ऐसा मा�ूम हुआ मानों जार कोस की मंजिज� ै। बदन में जरा भी शलिक्त बाकी न र ी थी और पानी भी हिकनारे से 3ारें

की तरफ ब र ा था। उनका हि याव छूट गया। ाथ उठाया तो व न उठे। मानो व अंग में थे ी न ीं। ाय उस वक्त बसंतकुमार के चे रे पर जो हिनराशा और बेबसी छायी हुई थी, उसके खया� करने ी से छाती फटती ै। उनको मा�ूम हुआ हिक मैं डूबा जा र ा हँू। उस वक्त प्यारी पूणा की सुयि3 आयी हिक व मेरी बाट देख र ी ोगी। उसकी प्यारी-प्यारी मो नी सूरत ऑंखें के सामने खड़ी ो गयी। एक बार और ाथ फें का मगर कुछ बस न च�ा। ऑंखों से ऑंसू ब ने �गे और देखते-देखते व � रों में �ोप ा गये। गंगा माता ने सदा के लि�ए उनको अपनी गोद मे लि�या। का� ने फू� के भेस मे आकर अपना काम हिकया।

उ3र ा� का सुलि�ए। पंहिडत जी के च�े आने के बाद पूणा ने थालि�यॉँ परसीं। एक बतन में गु�ा� घो�ी, उसमें यिम�ाया। पंहिडत जी के लि�ए सन्दूक से नये कपडे़ हिनका�े। उनकी आसतीनों में चुन्नटें डा�ी। टोपी सादी थी, उसमें लिसतारें टॉँके। आज माथे पर केसर का टीका �गाना शुभ समझा जाता ै। उसने अपने कोम� ाथों से केसर और चन्दन रगड़ा, पान �गाये, मेवे सरौते से कतर-कतर कटोरा में रक्खे। रात ी को प्रेमा के बग़ीचे से सुन्दर कलि�यॉँ �ेती आयी थी और उनको तर कपडे़ में �पेट कर रख टिदया था। इस समय व खूब खिख� गयी थीं। उनको तागे में गँुथकर सुन्दर ार बनाया और य सब प्रबन्ध करके अपने प्यारे पहित की रा देखने �गी। अब पंहिडत जी को न ाकर आ जाना चाहि ए था। मगर न ीं, अभी कुछ देर न ीं हुई। आते ी ोगें, य ी सोचकर पूणा ने दस यिमनट और उनका रास्ता देखा। अब कुछ-कुछ सिचPता ोने �गी। क्या करने �गे? 3ूप कड़ी ो र ी ै। �ौटने पर न ाया-बेन ाया एक ो जाएगा। कदालिचत यार दोस्तों से बातों करने �गे। न ीं-न ीं मैं उनकों खूब जानती हँू। नदी न ाने जाते ैं तो तैरने की सुझती ै। आज भी तैर र े ोंगे। य सोचकर उसने आ3ा घंटे और रा देखी। मगर जब व अब भी न आये तब तो व बैचैन ोने �गी। म री से क ा—‘हिबल्�ों जरा �पक तो जावा, देखो क्या करने �गे। हिबल्�ों बहुत अचे्छ स्वाभव की बुटिढ़या थी। इसी घर की चाकरी करते-करते उसके बा� पक गये थे। य इन दोनों प्राक्षिणयों को अपने �ड़कों के समान समझती थी। व तुरंत �पकी हुई गंगा जी की तरफ च�ी। व ॉँ जाकर क्या देखती ै हिक हिकनारे पर दो-तीन मल्�ा जमा ैं। पंहिडत जी की 3ोती, तौलि�या, साबुन कमंड� सब हिकनारे पर 3रे हुए ैं। य देखते ी उसके पैर मन-मन भर के ो गए। टिद� 3ड़-3ड़ करने �गा और क�ेजा मुँ को आने �गा। या नारायण य क्या ग़जब ो गया। बद वास घबरायी हुई नज़दीक पहँूची तो एक मल्�ा ने क ा—का े हिबल्�ों, तुम् ारे पंहिडत न ाय आवा र ेन।

हिबल्�ो क्या जवाब देती उसका ग�ा रँु3 गया, ऑंखों से ऑंसू ब ने �गे, सर पीटने �गी। मल्�ा ों ने समझाया हिक अब रोये-पीटे का ोत ै। उनकी चीज वस्तु �ेव और घर का जाव। बेचारे बडे़ भ�े मनई र ेन। हिबल्�ो ने पंहिडत जी की चीजें �ी और रोते-पीटती घर की तरफ च�ी। ज्यों-ज्यों व मकान के हिनकट आती त्यों-त्यों उसके कदम हिपछे को टे आत ेथे। ाय नाराण पूणा को य समाचार कैसे सुनाऊँगी व हिबचारी सो� ो सिसPगार हिकय ेपहित की रा देख र ी ै। य खबर सुनकर उसकी क्या गत ोगी। इस 3क्के से उसकी तो छाती फट जायगी। इन् ीं हिवचारों में डूबी हुई हिबल्�ो ने रोते हुए घर में कदम रक्खा। तमाम चीजें जमीन पर पटक दी और छाती पर दो त्थड़ मार ाय- ाय करने �गी। बेचारी पूणा इस वक्त आईना देख र ी थी। व इस समय ऐसी मगन थी और उसका टिद� उमंगों और अरमानों से ऐसा भरा हुआ था हिक प �े उसको हिबल्�ो के रोने-पीटने का कारण समझ में न आया। व कबका कर ताकने �गी हिक यकायक सब मजारा उसकी समझ में आ गया। टिद� पर एक हिबज�ी कौं3 गयी। क�ेजा सन से ो गया। उसको मा�ूम ो गया हिक मेरा सु ाग उठ गया। जिजसने मेरी बॉँ पकड़ी थी उससे सदा के लि�ए हिबछड़ गयी। उसके मुँ से केव� इतना हिनक�ा—‘ ाय नारायण’ और व पछाड़ खाकर 3म से ज़मीन पर हिगर पड़ी। हिबल्�ो ने उसको सँभा�ा और पंखा झ�ने �गी। थोड़ी देर में पास-पड़ोस की सैंकड़ों औरते जमा ो गयीं। बा र भी बहुत आदमी एकत्र ो गये। राय हुई हिक जा� ड�वाया जाय। बाबू कम�ाप्रसाद भी आये थे। उन् ोंने पुलि�स को खबर की। प्रेमा को ज्यों ी इस आपक्षित्त की खबर यिम�ी उसके पैर त�े से यिमट्टी हिनक� गयी। चटपट आढकर घबरायी हुई कोठे से उतरी और हिगरती-पड़ती पूणा की घर की तरफ च�ी। मॉँ ने बहुत रोका मगर कौन सुनता ै। जिजस वक्त व व ॉँ पहँुची चारों ओर रोना-3ोना ो र ा था। घर में ऐसा न था जिजसकी ऑंखों से ऑंसू की 3ारा न ब र ी ो। अभहिगनी पूणा का हिव�ाप सुन-सुनकर �ोगों के क�ेजे मुँ को आय जाते थे। ाय पूणा पर जो प ाड़ टूट पड़ा व सातवे बैरी पर भी न टूटे। अभी एक घंटा प �े व अपने को संसार की सबसे भाग्यवान औरतों में समसझती थी। मगर देखते ी देखते क्या का क्या ो गया। अब उसका-सा अभागा कौन ोगा। बेचारी समझाने-बूझाने से ज़रा चुप ो जाती, मगर ज्यों ी पहित की हिकसी बात की सुयि3 आती त्यों ी हिफर टिद� उमड़ आता और नयनों से नीर की झड़ी �ग जाती, लिचत्त व्याकु� ो जाता और रोम-रोम से पसीना ब ने �गता। ाय क्या एक-दो बात याद करने की थी। उसने दो वष तक अपने प्रेम का आन्नद �ूटा था। उसकी एक-एक बात उसका ँसना, उसका प्यार की हिनगा ों से देखना उसको याद आता था। आज उसने च�ते-च�ते क ा था—प्यारी पूणा, जी चा ता ैं, तुझे ऑंखों में हिबठा �ूँ। अफसोस े अब कौन प्यार करेगा। अब हिकसकी पुतलि�यों में बैठँूगी कौन क�ेजे में बैठायेगा। उस रेशमी 3ोती और तोलि�या पर दृयि� पड़ी तो जोर से चीख उठी और दोनों ाथों से छाती पीटने �गी। हिनदान प्रेमा को देखा तो झपट कर उठी और उसके ग�े से लि�पट कर ऐसी फूट-फूट कर रोयी हिक भीतर तो भीतर बा र मुशी बदरीप्रसाद, बाबू कम�ाप्रसाद और दूसरे �ोग आँखों से रुमा� टिदये बेअब्लिख्तयार रो र े थे। बेचारी प्रेमा के लि�ए म ीने से खाना-पीना दु�भ ो र ा था। हिवरा न� में ज�ते-ज�त ेव ऐसी दूब� ो गयी थी हिक उसके मुँ से रोने की आवाज तक न हिनक�ती थी। हि चहिकयॉँ बँ3ी हुई थीं और ऑंखों से मोती के दाने टपक र े थे। प �े व समझती थी हिक सारे संसार में मैं ी एक अभाहिगन हँू। मगर इस समय व अपना दु:ख भू� गयी। और बड़ी मुश्किश्क� से टिद� को थाम कर बो�ी—प्यारी सखी य क्या ग़ज़ब ो गया? प्यारी सखी इ़सके जवाब में अपना माथा ठोंका और आसमान की ओर देखा। मगर मुँ से कुछ न बो� सकी।

इस दुखिखयारी अब�ा का दु:ख बहुत ी करुणायोग्य था। उसकी जिजन्दगी का बेड़ा �गानेवा�ा कोई न था दु:ख बहुत ी करुणयोग्या था उसकी जिजन्दगी का बेड़ा पार �गानेवा�ा कोई न था। उसके मैके में लिसफ एक बूढे़ बाप से नाता था और व बेचारा भी आजक� का मे मान ो र ा था। ससुरा� में जिजससे अपनापा था व पर�ोक लिस3ारा, न सास न ससुर न अपने न पराये। काई चुल्�ू भर पानी देने वा�ा टिदखाई न देता था। घर में इतनी जथा-जुगती भी न थी हिक सा�-दो सा� के गुजारे भर को गुजारे भर ो जाती। बेचारी पंहिडत जी को अभी-नौकरी ी करते हिकतने टिदन हुए थे हिक रुपया जमा कर �ेते। जो कमाया व खाया। पूणा को व अभी व बातें न ीं सुझी थी। अभी उसको सोचने का अवकाश ी न मी�ा था। ॉँ, बा र मरदाने में �ोग आपस में इस हिवषय पर बातचीत कर र े थे।

दो-ढ़ाई घण्टे तक उस मकान में स्त्रिस्त्रयों का ठट्टा �गा र ा। मगर शाम ोते- ोते सब अपने घरों को लिस3ारी। त्यो ार का टिदन था। ज्यादा कैसे ठ रती। प्रेमा कुछ देर से मूछा पर मूछा आने �गी थी। �ोग उसे पा�की पर उठाकर व ाँ से �े गये और टिदया में बत्ती पड़ते-पड़ते उस घर में लिसवाय पूणा और हिबल्�ी के और कोई न था। ाय य ी वक्त था हिक पंहिडत जी दफ्तर से आया करते। पूणा उस वक्त द्वारे पर खड़ी उनकी रा देखा करती और ज्यों ी व ड्योढ़ी में कदम रखते व �पक कर उनके ाथों से छतरी �े �ेती और उनके ाथ-मुँ 3ोने और ज�पान की सामग्री इकट्टी करती। जब तक व यिम�ान्न इत्याटिद खाते व पान के बीडे़ �गा रखती। व प्रेम रस का भूख, टिदन भर का थका-मॉँदा, स्त्री की दन खाहितरदारिरयों से गदगद ो जाता। क ाँ व प्रीहित बढ़ानेवा�े व्यव ार और क ॉँ आज का सन्नटा? सारा घर भॉँय-भॉँय कर र ा था। दीवारें काटने को दौड़ती थीं। ऐसा मा�ूम ोता हिक इसके बसनेवा�ो उजड़ गये। बेचारी पूणा ऑंगन में बैठी हुई। उसके क�ेजे में अब रोने का दम न ीं ै और न ऑंखों से ऑंसू ब ते ैं। ॉँ, कोई टिद� में बैठा खून चूस र ा ै। व शोक से मतवा�ी ो गयी ै। न ीं मा�ूम इस वक्त व क्या सोच र ी ै। शायद अपने लिस3ारनेवा�े हिपया से प्रेम की बातें कर र ी ै या उससे कर जोड़ के हिबनती कर र ी ै हिक मुझे भी अपने पास बु�ा �ो। मको उस शोकातुरा का ा� लि�खते ग्�ाहिन ोती ै। ाय, व उस समय प चानी न ीं जाती। उसका चे रा पी�ा पड़ गया ै। ोठों पर पपड़ी छायी हुई ैं, ऑंखें सूरज आयी ैं, लिसर के बा� खु�कर माथे पर हिबखर गये ै, रेशमी साड़ी फटकार तार-तार ो गयी ै, बदन पर ग ने का नाम भी न ीं ै चूहिड़या टूटकर चकनाचूर ो गयी ै, �म्बी-�म्बी सॉँसें आ र ी ैं। व लिचन्ता उदासी और शोक का प्रत्य5 स्वरुप मा�ूम ोती ै। इस वक्त कोई ऐसा न ीं ै जो उसको तसल्�ी दे। य सब कुछ ो गया मगर पूणा की आस अभी तक कुछ-कुछ बँ3ी हुई ै। उसके कान दरवाजे की तरफ �गे हुए हुए ै हिक क ीं कोई उनके जीहिवत हिनक� आने की खबर �ाता ो। सच ै हिवयोहिगयों की आस टूट जाने पर भी बँ3ी र ती ै।

शाम ोते- ोते इस शोकदायक घटना की ख़बर सारे श र में गँूज उठी। जो सुनता लिसर 3ुनता। बाबू अमृतराय वा खाकर वापस आ र े थे हिक रासते में पुलि�स के आदयिमयों को एक �ाश के साथ जाते देखा। बहुत-से आदयिमयों की भीड़ �गी हुई थी। प �े तो व समझे हिक कोई खून का मुकदमा ोगा। मगर जब दरिरयाफ्त हिकया तो सब ा� मा�ूम ो गया। पब्लिण्डत जी की अचानक मृत्यु पर उनको बहुत रोज हुआ। व बसंतकुमार को भ�ी भॉँहित जानते थे। उन् ीं की लिसफारिरश से पंहिडत जी दफ्तर में व जग यिम�ी थी। बाबू सा ब �ाश के साथ-साथ थाने पर पहँुचे। डाक्टर प �े से ी आया हुआ था। जब उसकी जॉँच के हिनयिमत्त �ाश खो�ी गयी तो जिजतने �ोग खडे़ थे सबके रोंगेटे खडे़ ो गय ेऔर कई आदयिमयों की ऑंखों से ऑंसू हिनक� आये। �ाश फू� गयी थी। मगर मुखड़ा ज्यों का त्यों था और कम� के सुन्दर फू� ोंठों के बीच दॉँतों त�े दबे हुए थे। ाय, य व ी फू� थे जिजन् ोंने का� बनकर उसको डसा था। जब �ाश की जॉँच ो चुकी तब अमृतराय ने डाक्टर सा ब से �ाश के ज�ाने की आज्ञा मॉँगी जो उनको स ज ी में यिम� गयी। इसके बाद व अपने मकान पर आये। कपडे़ बद�े और बाईलिसहिक� पर सवार ोकर पूणा के मकान पर पहँुचे। देखा तो चौतरफासन्नाटा छाया हुआ ै। र तरफ से लिसयापा बरस र ा ै। य ी समय पंहिडत जी के दफ्तर से आने का था। पूणा रोज इसी वक्त उनके जूत ेकी आवजे सुनने की आदी ो र ी थी। इस वक्त ज्यों ी उसने पैरों की चाप सुनी व हिबज�ी की तर दरवाजे की तरफ दौड़ी। मगर ज्यों ी दरवाजे पर आयी और अपने पहित की जगी पर बाबू अमृतराय को खडे़ पाया तो टिठठक गयी। शम से सर झुका लि�या और हिनराश ोकर उ�टे पॉँव वापास हुई। मुसीबत के समय पर हिकसी दु:ख पूछनेवा�ो की सूरत ऑंखों के लि�ए ब ाना ो जाती ै। बाबू अमृतराय एक म ीने में दो-तीन बार अवश्य आया करते थे और पंहिडत जी पर बहुत हिवश्वास रखते थे। इस वक्त उनके आने से पूणा के टिद� पर एक ताज़ा सदमा पहँुचा। टिद� हिफर उमड़ आया और ऐसा फूट-फूट कर रोयी हिक बाबू अमृतराय, जो मोम की तर नम टिद� रखते थे, बड़ी देर तक चुपचाप खडे़ हिबसुरा हिकये। जब ज़रा जी टिठकाने हुआ तो उन् ोंने म ीर को बु�ाकर बहुत कुछ टिद�ासा टिदया और दे �ीज़ में खडे़ ोकर पूणा को भी समझया और उसको र तर ा की मदद देने का वादा करके, लिचराग ज�त-ेज�ते अपने घर की तरफ रवाना हुए। उसी वक्त प्रेमा अपनी म ताबी पर वा खाने हिनक�ी थी। सकी ऑंखें पूणा के दरवाजे की तरफ �गी हुई थीं। हिनदान उसने हिकसी को बाइलिसहिक� पर सवार उ3ार से हिनक�त ेदखा। गौर से देखा तो पहि चान गई और चौंककर बो�ी—‘अरे, य तो अमृतराय ै।

पे्रमा भाग 5 / पे्रमचंद पन्ना संवाद सोस देखें . पुराने अवतरण

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 रचनाकार: पे्रमचंद                 

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अँय ! यह गजरा क्या हो गया?

पंहिडत बंसतकुमार का दुहिनया से उठ जाना केव� पूणा ी के लि�ए जान�ेवा न था, प्रेमा की ा�त भी उसी की-सी थी। प �े व अपने भाग्य पर रोया करती थी। अब हिव3ाता ने उसकी प्यारी सखी पूणा पर हिवपक्षित्त डा�कर उसे और भी शोकातुर बना टिदया था। अब उसका दुख टानेवा�ा, उसका गम ग�त करनेवा�ा काई न था। व आजक� रात-टिदन मुँ �पेटे चारपाई पर पड़ी र ती। न व हिकसी से ँसती न बो�ती। कई-कई टिदन हिबना दाना-पानी के बीत जाते। बनाव-लिसगार उसको जरा भी न भाता। सर के ब� दो-दो फ्ते न गँूथे जाते। सुमादानी अ�ग पड़ी रोया करती। कँघी अ�ग ाय- ाय करती। ग ने हिबल्कु� उतार फें के थे। सुब से शाम तक अपने कमरे में पड़ी र ती। कभी ज़मीन पर करवटें बद�ती, कभी इ3र-उ3र बौख�ायी हुई घूमती, बहु3ा बाबू अमृतराय की तस्वीर को देखा करती। और जब उनके प्रेमपत्र याद आते तो रोती। उसे अनुभव ोता था हिक अब मैं थोडे़ टिदनों की मे मान हँू।

प �े दो म ीने तक तो पूणा का ब्रह्मणों के खिख�ाने-हिप�ाने और पहित के मृतक-संस्कार से सॉँस �ेने का अवकाश न यिम�ा हिक प्रेमा के घर जाती। इसके बाद भी दो-तीन म ीने तक व घर से बा र न हिनक�ी। उसका जी ऐसा बुझ गया था हिक कोई काम अच्छा न �गता। ाँ, प्रेमा मॉँ के मना करने पर भी दो-तीन बार उसके घर गयी थी। मगर व ॉँ जाकर आप रोती और पूणा को भी रु�ाती। इसलि�ए अब उ3र जाना छोड़ टिदया था। हिकन्त ुएक बात व हिनत्य करती। व सन्ध्या समय म ताबी पर जाकर जरुर बैठती। इसलि�ए न ीं हिक उसको समय सु ाना मा�ूम ोता या वा खाने को जी चा ता था, न ीं प्रत्युत केव� इसलि�ए हिक व कभी- कभी बाबू अमृतराय को उ3र से आते-जाते देखती। ाय लि�ज वक्त व उनको देखते उसका क�ेजा बॉँसों उछा�ने �गता। जी चा ता हिक कूद पडँू और उनके कदमों पर अपनी जान हिनछावर कर दँू। जब तक व टिदखायी देते अकटकी बॉँ3े उनको देखा करती। जब व ऑंखों से आझ�ा ो जाते तब उसके क�ेजे में एक हूक उठती, आपे की कुछ सुयि3 न र ती। इसी तर कई म ीने बीत गये।

एक टिदन व सदा की भॉँहित अपने कमरे में �ेटी हुई बद� र ी थी हिक पूणा आयी। इस समय उसको देखकर ऐसा ज्ञात ोता था हिक व हिकसी प्रब� रोग से उठी ै। चे रा पी�ा पड़ गया था, जैसे कोई फू� मुरझा गया ो। उसके कपो� जो कभी गु�ाब की तर खिख�े हुए थे अब कुम् �ा गये थे। वे मृगी की-सी ऑंखें जिजनमें हिकसी समय समय जवानी का मतवा�ापन और प्रेमी का रस भरा हुआ था अन्दर घुसी हुई थी, लिसर के बा� कं3ों पर इ3र-उ3र हिबखरे हुए थे, ग ने-पाते का नाम न था। केव� एक नैन सुख की साड़ी बदन पर पड़ी हुई थी। उसको देखते ी प्रेमा दौड़कर उसके ग�े से लिचपट गयी और �ाकर अपनी चारपाई पर हिबठा टिदया।

कई यिमनट तक दोनों सखिखयॉँ एक-दूसरे के मुँ को ताकती र ीं। दोनो के टिद� में ख्या�ों का दरिरया उमड़ा हुआ था। मगर जबान हिकसी की न खु�ती थी। आखिखर पूणा ने क ा—आजक� जी अच्छा न ीं ै क्या? ग�कर कॉँटा गयी ो

प्रेमा ने मुसकराने की चे�ा करके क ा—न ीं सखी, मैं बहुत अच्छी तर हँू। तुम तो कुश� से र ी?

पूणा की ऑंखों में आँसू डबडबा आये। बो�ी—मेरा कुश�-आनन्द क्या पूछती ो, सखी आनन्द तो मेरे लि�ए सपना ो गया। पॉँच म ीने से अयि3क ो गये मगर अब तक मेरी आँखें न ीं झपकीं। जान पड़ता ै हिक नींद ऑंसू ोकर ब गयी।

प्रेमा—ईश्वर जानता ै सखी, मेरा भी तो य ी ा� ै। मारी-तुम् ारी एक ी गत ै। अगर तुम ब्या ी हिव3वा ो तो मैं कँुवारी हिव3वा हँू। सच क ती हँू सखी, मैने ठान लि�या ै हिक अब परमाथ के कामों में ी जीवन व्यतीत करँुगा।

पूणा—कैसी बातें करती ो, प्यारी मेरा और तुम् ारा क्या जोड़ा? जिजतना सुख भोगना मेरे भाग में बदा था भोग चुकी। मगर तुम अपने को क्यों घु�ाये डा�ती ो? सच मानो, सखी, बाबू अमृतराय की दशा भी तुम् ारी ी-सी ै। वे आजक� बहुत मलि�न टिदखायी देते ै। जब कभी इ3र की बात च�ती हँू तो जाने का नाम ी न ीं �ेते। मैंने एक टिदन देखा, व तुम् ारा काढ़ा हुआ रुमा�ा लि�ये हुए थे।

य बातें सुनकर प्रेमा का चे रा खिख� गया। मारे ष के ऑंखें जगमगाने �गी। पूणा का ाथ अपने ाथों में �ेकर और उसकी ऑंखों से ऑंखें यिम�ाकर बो�ी-सखी, इ3र की और क्या-क्या बातें आयी थीं?

पूणा-(मुस्कराकर) अब क्या सब आज ी सुन �ोगी। अभी तो क� ी मैंने पूछा हिक आप ब्या कब करेंगे, तो बो�े-‘जब तुम चा ो।’ मैं बहुत �जा गई।

प्रेमा—सखी, तुम बड़ी ढीठ ो। क्या तुमको उनके सामने हिनक�ते-पैठते �ाज न ीं आती?

पूणा—�ाज क्यों आती मगर हिबना सामने आये काम तो न ीं च�ता और सखी, उनसे क्या परदा करँू उन् ोंने मुझ पर जो-जो अनुग्र हिकय े ैं उनसे मैं कभी उऋण न ीं ो सकती। पहि �े ी टिदन, जब हिक मुझ पर व हिवपक्षित्त पड़ी रात को मेरे य ाँ चोरी ो गयी। जो कुछ असबाबा था पाहिपयों ने मूस लि�या। उस समय मेरे पास एक कौड़ी भी न थी। मैं बडे़ फेर में पड़ी हुई थी हिक अब क्या करँु। जिज3र ऑंख उठाती, अँ3ेरा टिदखायी देता। उसके तीसरे टिदन बाबू अमृतराय आये। ईश्वर करे व युग-युग जिजये: उन् ोंने हिबल्�ो की तनख़ा बॉँ3 दी और मेरे साथ भी बहुत स�ूक हिकया। अगर व उस वक्त आडे़ न आत ेतो ग ने-पाते अब तक कभी के हिबक गये ोते। सोचती हँू हिक व इतने बडे़ आदमी ाकर मुझ क्षिभखारिरनी के दरवाजे पर आते ै तो उनसे क्या परदा करँु। और दूहिनया ऐसी ै हिक इतना भी न ीं देख सकती। व जो पड़ोसा में पंडाइन र ती ै, कई बार आई और बो�ी हिक सर के बा� मुड़ा �ो। हिव3वाओं का बा� न रखना चाहि ए। मगर मैंने अब तक उनका क ना न ीं माना। इस पर सारे मु ल्�े में मेरे बारे में तर -तर की बातें की जाती ैं। कोई कुछ क ता ैं, कोई कुछ। जिजतने मुँ उतनी बातें। हिबल्�ो आकर सब वृत्तान्त मुझसे क ती ै।सब सुना �ेती हँू और रो-3ोकर चुप ो र ती हँू। मेरे भाग्य में दुख भोगना, �ोगों की ज�ी-कटी सुनना न लि�खा ोता तो य हिवपक्षित्त ी का े को पड़ती। मगर चा े कुछ ो मैं इन बा�ों को मुँड़वाकर मुण्डी न ीं बनना चा ती। ईश्वर ने सब कुछ तो र लि�या, अब क्या इन बा�ों से भी ाथ 3ोऊँ।

य क कर पूणा ने कं3ो पर हिबखरे हुए �म्बे-�म्बे बा�ों पर ऐसी दृयि� से देखा मानो वे कोई 3न ैं। प्रेमा ने भी उन् ें ाथ से सँभा�ा कर क ा—न ीं सखी खबरदार, बा�ों को मुँड़वाओगी तो मसे-तुमसे न बनगी। पंडाइन को बकने दो। व पग�ा गई ै। य देखो नीचे की तरफ जो ऐठन पड़ गयी ैं, कैसी सुन्दर मा�ूम ोती ै य ी क कर प्रेमा उठी। बक्स में सुगस्त्रिन्धत ते� हिनका�ा और जब तक पूणा ाय- ाय करे हिक उसके सर की चादर खिखसका कर ते� डा� टिदया और उसका सर जाँघ पर रखकर 3ीरे-3ीरे म�ने �गी। बेचारी पूणा इन प्यार की बातों को न स सकी। आँखों में आँसू भरकर बो�ी—प्यारी प्रेमा य क्या गजब करती ो। अभी क्या काम उप ास ो र ा ै? जब बा� सँवारे हिनक�ूँगी तो क्या गत ोगी। अब तुमसे टिद� की बात क्या लिछपाऊँ। सखी, ईश्वर जानता ैं, मुझे य बा� खुद बोझ मा�ूम ोते ैं। जब इस सूरत का देखनेवा�ा ी संसार से उठ गया तो य बा� हिकस काम के। मगर मैं इनके पीछे पड़ोलिसयों के ताने स ती हँू तो केव� इसलि�ए हिक सर मुड़ाकर मुझसे बाबू अमृतराय के सामने न हिनक�ा जाएगा। य क कर पूणा जमीन की तरफ ताकने �गी। मानो व �जा गयी ै। प्रेमा भी कुछ सोचने �गी। अपनसखी के सर में ते� म�ा, कंघी की बा� गँूथे और तब 3ीरे से आईना �ाकर उसके सामने रख टिदया। पूणा ने इ3र पॉँच म ीने से आईने का मुँ न ीं देखा था। व सझती थी हिक मेरी सूरत हिब�कू� उतर गयी ोगी मगर अब जो देखा तो लिसवया इसके हिक मुँ पी�ा पड़ गया था और कोई भेद न मा�ूम हुआ। मध्यम स्वर में बो�ी—प्रेमा, ईश्वर के लि�ए अब बस करो, भाग से य सिसPगार बदा न ीं ैं। पड़ोलिसन देखेंगी तो न जाने क्या अपरा3 �गा दें।

प्रेम उसकी सूरत को टकटकी �गाकर देख र ी थी। यकायक मुस्कराकर बो�ी—सखी, तुम जानती ो मैंने तुम् ारा सिसPगार क्यों हिकया?

पूणा—मैं क्या जानँू। तुम् ारा जी चा त ोगा।

प्रेमा-इसलि�ए हिक तुम उनके सामने इसी तर जाओ।

पूणा—तुम बड़ी खोटी ो। भ�ा मैं उनके सामने इस तर कैसे जाऊँगी। व देखकर टिद� में क्या में क्या क ेंगे। देखनेवा�े यों ी बेलिसर-पैर की बातें उड़ाया करते ै, तब तो और भी न मा�ूम क्या क ेंगे।

थोड़ी देर तक ऐसे ी ंसी-टिदल्�ी की बातो-बातो में प्रेमा ने क ा-सखी, अब तो अके�े न ीं र ा जाता। क्या ज ै तुम भी य ीं उठ आओ। म तुम दोनों साथ-साथ र ें।

पूणा—सखी, मेरे लि�ए इससे अयि3क ष की कौन-सी बात ोगी हिक तुम् ारे साथ रहँू। मगर अब तो पैर फूक-फूक कर 3रना ोती ै। �ोग तुम् ारे घर ी में राजी न ोंगे। और अगर य मान भी गये तो हिबना बाबू अमृतराय की मजR के कैसे आ सकती हँू। संसार के �ोग भी कैसे अं3े ै। ऐसे दया�ू पुरुष क ते ैं हिक ईसाई ो गया ैं क नेवा�ों के मुँ से न मा�ूम कैसे ऐसी झूठी बात हिनका�ती ै। मुझसे व क ते थे हिक मैं शीघ्र ी एक ऐसा स्थान बनवानेवा�ा हँू ज ाँ अनाथ ज ॉँ अनाथ हिव3वाऍं आकर र ेंगी। व ॉँ उनके पा�न-पोषण और वस्त्र का प्रबन्ध हिकया जाएगा और उनके पढ़ना-लि�खाना और पूजा-पाठ करना लिसखाया जायगा। जिजस आदमी के हिवचार ऐसे शुद्ध ों उसको व �ोग ईसाई और अ3मR बनाते ै, जो भू�कर भी क्षिभखमंगे को भीख न ीं देते। ऐसा अं3ेर ै।

प्रेमा- बहि न, संसार का य ी ै। ाय अगर व मुझे अपनी �ौंडी बना �ेते तो भी मेरा जीवन सफ� ो जाता। ऐसे उदारलिचत्त दाता चेरी बनना भी कोई बड़ाई की बात ै।

पूणा—तुम उनकी चेरी का े को बनेगी। का े को बनेगी। व तो आप तुम् ारे सेवक बनने के लि�ए तैयार बैठे ै। तुम् ारे �ा�ा जी ी न ीं मानते। हिवश्वास मानो यटिद तुमसे उनका ब्या न हुआ तो कवारे ी र ेंगे।

प्रेमा—य ॉँ य ी ठान �ी ै हिक चेरी बनँूगी तो उन् ीं की।

कुछ देरे तक तो य ी बातें हुआ की। जब सूय अस्त ोने �गा तो प्रेमा ने क ा—च�ो सखी, तुमको बगीचे की सैर करा �ावें। जब से तुम् ारा आना-जाना छूटा तब से मैं उ3र भू�कर भी न ीं गयी।

पूणा—मेरे बा� खो� दो तो च�ूँ। तुम् ारी भावज देखेगी तो ताना मारेगी।

प्रेमा—उनके ताने का क्या डर, व तो वा, से उ�झा करती ैं। दोनों सखिखयां उठी और ाथ टिदये कोठे से उतार कर फु�वारी में आयी। य एक छोटी-सी बहिगया थी जिजसमें भॉँहित-भॉंहित के फू� खिख� र े थे। प्रेमा को फू�ों से बहुत प्रम था। उसी ने अपनी टिद�ब�ावा के लि�ए बगीचा था। एक मा�ी इसी की देख-भा� के लि�ए नौकर था। बाग़ के बीचो-बीच एक गो� चबूतरा बना हुआ था। दोनों सखिखयॉँ इस चबूतेरे पर बैठ गयी। इनको देखते ी मा�ी बहुत-सी कलि�यॉँ एक साफ तर कपडे़ में �पेट कर �ाया। प्रेमा ने उनको पूणा को देना चा ा। मगर उसने बहुत उदास ोकर क ा—बहि न, मुझे 5मा करो,इनकी बू बास तुमको मुबारक ो। सो ाग के साथ मैंने फू� भी त्याग टिदये। ाय जिजस टिदन व का�रुपी नदी में न ाने गये ैं उस टिदन ऐसे ी कलि�यों का ार बनाया था। (रोकर) व ार 3रा का 3रा का गया। तब से मैंने फू�ों को ाथ न ीं �गाया। य क ते-क ते व यकयक चौंक पड़ी और बो�ी—सखी अब मैं जाउँगी। आज इतवार का टिदन ै। बाबू सा ब आते ोंगे।

प्रेमा ने रोनी ँसकर क ा-‘न ी’ सखी, अभी उनके आने में आ3 घण्टे की देर ै। मुझे इस समय का ऐसा ठीक परिरचय यिम� गया ै हिक अगर कोठरी में बन्द कर दो तो भी शायद ग�ती न करँु। सखी क ते �ाज आती ै। मैं घण्टों बैठकर झरोखे से उनकी रा देखा करती हँू। चंच� लिचत्त को बहुत समझती हँू। पर मानता ी न ीं।

पूणा ने उसको ढारस टिदया और अपनी सखी से ग�े यिम�, शमाती हुई घंूघट से चे रे को लिछपाये अपने घर की तरफ़ च�ी और प्रेमी हिकसी के दशन की अक्षिभ�ाषा कर म ताबी पर जाकर ट �ने �गी।

पूणा के मकान पर पहँुचे ठीक आ3ी घड़ी हुई थी हिक बाबू अमृतराय बाइलिसहिक� पर फर-फर करते आ पहँुचे। आज उन् ोंने अंग्रेजी बाने की जग बंगा�ी बाना 3ारण हिकया था, जो उन पर खूब सजता था। उनको देखकर कोई य न ीं क सकता था हिक य राजकुमार न ीं ैं बाजारो में जब हिनक�ाते तो सब की ऑंखे उन् ीं की तरफ उठती थीं। रीहित के हिवरुद्ध आज उनकी दाहि नी क�ाई पर एक बहुत ी सुगस्त्रिन्धत मनो र बे� का ार लि�पटा हुआ था, जिजससे सुगन्ध उड़ र ी थी और इस सुगन्ध से �ेवेण्डर की खुशबू यिम�कर मानों सोने में सो ागा ो गया था। संद�ी रेशमी के बे�दार कुरते पर 3ानी रंग की रेशमी चादर वा के मन्द-मन्द झोंकों से � रा-� रा कर एक अनोखी छहिव टिदखाती थी। उनकी आ ट पाते ी हिबल्�ो घर में से हिनक� आई और उनको �े जाकर कमरे में बैठा टिदया।

अमृतराय—क्यों हिबल्�ो, सग कुश� ै?

हिबल्�ो— ॉँ, सरकार सब कुश� ै।

अमृतराय—कोई तक�ीफ़ तो न ीं ै?

हिबल्�ो—न ीं, सरकार कोई तक�ीफ़ न ीं ै।

इतने में बैठके का भीतरवा�ा दरवाजा खु�ा और पूणा हिनक�ी। अमृतराय ने उसकी तरफ़ देखा तो अचमे्भ में आ गये और उनकी हिनगा आप ी आप उसके चे रे पर जम गई। पूणा मारे �ज्जा के गड़ी जाती थी हिक आज क्यों य मेरी ओर ऐसे ताक र े ैं। व भू� गयी थी हिक आज मैंने बा�ों में ते� डा�ा ै, कंघी की ै और माथे पर �ा� हिबन्दी भी �गायी ै। अमृतराय ने उसको इस बनाव-चुनाव के साथ कभी न ीं देखा था और न व समझे थे हिक व ऐसी रुपवती ोगी।

कुछ देर तक तो पूणा सर नीचा हिकये खड़ी र ी। यकायक उसको अपने गँुथे केश की सुयि3 आ गयी और उसने झट �जाकर सर और भी हिनहुरा लि�या, घँूघट को बढ़ाकर चे रा लिछपा लि�या। और य खया� करके हिक शायद बाबू सा ब इस बनाव सिसPगार से नाराज ों व बहुत ी भो�ेपन के साथ बो�ी—मैं क्या करु, मैं तो प्रेमा के घर गयी थी। उन् ोंने ठ करके सर में मे ते� डा�कर बा� गँूथ टिदये। मैं क� सब बा� कटवा डा�ूँगी। य क ते-क ते उसकी ऑंखों में ऑंसू भर आये।

उसके बनाव सिसPगार ने अमृतराय पर प �े ी जादू च�ाया था। अब इस भो�ेपन ने और �ुभा लि�या। जवाब टिदया—न ीं—न ीं, तुम् ें कसम ै, ऐसा रहिगज न करना। मैं बहुत खुश हँू हिक तुम् ारी सखी ने तुम् ारे ऊपर य कृपा की। अगर व य ॉँ इस समय ोती तो इसके हिन ोरे में मैं उनको 3न्यवाद देता।

पूणा पढ़ी-लि�खी औरत थी। इस इशारे को समझ गयी और झेपेर गदन नीचे कर �ी। बाबू अमृतराय टिद� में डर र े थे हिक क ीं इस छेड़ पर य देवी रु� न ो जाए। न ीं तो हिफर मनाना कटिठन ो जाएगा। मगर जब उसे मुसकराकर गदन नीची करते देखा तो और भी टिढठाई करने का सा स हुआ। बो�े—मैं तो समझता था प्रेमा मुझे भू� ोगी। मगर मा�ूम ोता ै हिक अभी तक मुझ पर कुछ-कुछ स्ने बाक़ी ै।

अब की पूणा ने गदन उठायी और अमृतराय के चे रे पर ऑंखें जमाकर बो�ी, जैसे कोई वकी� हिकसी दुखीयारे के लि�ए न्या3ीश से अपी� करता ो-बाबू सा ब, आपका केव� इतना समझना हिक प्रेमा आपको भू� गयी ोगी, उन पर बड़ा भारी आपे5 ै। प्रेमा का प्रेम आपके हिनयिमत्त सच्चा ै। आज उनकी दशा देखकर मैं अपनी हिवपक्षित्त भू� गयी। व ग� कर आ3ी ो गयी ैं। म ीनों से खाना-पीना नामात्र ै। सारे टिदन आनी कोठरी में पडे़-पडे़ रोय करती ैं। घरवा�े �ाख-�ाख समझाते ैं मगर न ीं मानतीं। आज तो उन् ोंने आपका नाम �ेकर क ा-सखी अगर चेरी बनँूगी तो उन् ीं की।

य समाचार सुनकर अमृतराय कुछ उदास ो गये। य अखिग्न जो क�ेजे में सु�ग र ी थी और जिजसको उन् ोंने सामाजिजक सु3ार के राख त�े दबा रक्खा था इस समय 5ण भर के लि�ए 33क उठी, जी बेचैन ोने �गा, टिद� उकसाने �गा हिक मुंशी बदरीप्रसाद का घर दूर न ीं ै। दम भर के लि�ए च�ो। अभी सब काम हुआ जाता ै। मगर हिफर देशहि त के उत्सा ने टिद� को रोका। बो�े—पूणा, तुम जानती ो हिक मुझे प्रेमा से हिकतनी मु ब्बत थी। चार वष तक मैं टिद� में उनकी पूजा करता र ा। मगर मुंशी बदरप्रसाद ने मेरी टिदनों की बँ3ी हुई आस केव� इस बात पर तोड़ दी हिक मैं सामाजिजक सु3ार का प5पाती ो गया। आखिखर मैंने भी रो-रोकर उस आग को बुझाया और अब तो टिद� एक दूसरी ी देवी की उपासना करने �गा ै। अगर य आशा भी यों ी टूट गयी तो सत्य मानो, हिबना ब्या ी रहँूगा।

पूणा का अब तक य ख़या� था हिक बाबू अमृतराय प्रेमा से ब्या करेंगे। मगर अब तो उसको मा�ूम हुआ हिक उनका ब्या क ीं और �ग र ा ै तब उसको कुछ आश्चय हुआ। टिद� से बातें करने �गी। प्यारी प्रेमा, क्या तेरी प्रीहित का ऐसा दुखदायी परिरणाम ोगा। तेरो मॉँ-बाप, भाई-बंद तेरी जान के ग्रा ो र े ैं। य बेचारा तो अभी तक तुझ पर जान देता ैं। चा े व अपने मुँ से कुछ भी न क े, मगर मेरा टिद� गवा ी देता ै हिक तेरी मु ब्बत उसके रोम-रोम में व्याप र ी ै। मगर जब तेरे यिम�ने की कोई आशा ी न ो तो बेचारी क्या करे मजबूर ोकर क ीं और ब्या करेगा। इसमें सका क्या दोष ै। मन में इस तर हिवचार कर बो�ी-बाबू सा ब, आपको अयि3कार ै ज ॉँ चा ो संबं3 करो। मगर मैं मो य ी कहँूगी हिक अगर इस श र में आपके जोड़ की कोई ै तो व ी प्रमा ै।

अमृत०—य क्यों न ीं क तीं हिक य ॉँ उनके योग्य कोई वर न ीं, इसीलि�ए तो मुंशी बदरीप्रसाद ने मुझे छुटकार हिकया।

पूणा—य आप कैसी बात क ते ै। प्रेमा और आपका जोड़ ईश्वर ने अपने ाथ से बनाया ै।

अमृत०—जब उनके योग्य मैं था। अब न ीं हँू। पूणा—अच्छा आजक� हिकसके य ॉँ बातचीत ो र ी ै?

अमृत०—(मुस्कराकर) नाम अभी न ीं बताऊँगा। बातचीत तो ो र ी ै। मगर अभी कोई पक्की उम्मेदे न ीं ैं।

पूणा—वा ऐसा भी क ीं ो सकता ै? य ॉँ ऐसा कौन रईस ै जो आपसे नाता करने में अपनी बड़ाई न समझता ो।

अमृत०—न ीं कुछ बात ी ऐसी आ पड़ी ै।

पूणा—अगर मुझसे कोई काम ो सके तो मैं करने को तैयार हँू। जो काम मेरे योग्य ो बता दीजिजए।

अमृत—(मुस्कराकर)तुम् ारी मरजी हिबना तो व काम कभी पूरा ो ी न ी सकता। तुम चा ो तो बहुत जल्द मेरा घर बस सकता ै।

पूणा बहुत प्रसन्न हुई हिक मैं भी अब इनके कुछ काम आ सकँूगी। उसकी समझ में इस वाक्य के अथ न ीं आये हिक ‘तुम् ारी मजR हिबना तो व काम पूरा ो ी न ीं सकता। उसने समझा हिक शायद मुझसे य ी क ेंगे हिक जा के �ड़की को देख आवे। छ: म ीने के अन्दर ी अन्दर व इसका अक्षिभप्राय भ�ी भॉँहित समझ गयी समझ गयी।

बाबू अमृतराय कुछ देर तक य ॉँ और बैठे। उनकी ऑंखें आज इ3र-उ3ार से घूम कर आतीं और पूणा के चे रे पर गड़ जाती। व कनब्लिख्य से उनकी ओर ताकती तो उन् ें अपनी तरफ़ ताकते पाती। आखिखर व उठे और च�ते समय बो�े—पूणा, य गजरा आज तुम् ारे वास्ते �ाया हँू। देखो इसमें से कैसे सुगन्ध उड़ र ी ै।

पूणा भौयचक ो गयी। य आज अनोखी बात कैसी एक यिमनट तक तो व इस सोच हिवचार में थी हिक �ूँ या न �ूँ या न �ूँ। उन गजरों का ध्यान आया जो उसने अपने पहित के लि�ए ो�ी के टिदन बनये थे। हिफर की कलि�यों का खया� आया। उसने इरादा हिकया मैं न �ूँगी। जबान ने क ा—मैं इसे �ेकर क्या करँूगी, मगर ाथ आप ी आप बढ़ गया। बाबू सा ब ने खुश ोकर गजरा उसके ाथ में हिपन् ाया, उसको खूब नजर भरकर देखा। हिफर बा र हिनक� आये और पैरगाड़ी पर सवार ो रवाना ो गये। पूणा कई यिमनट तक सन्नाटे में खड़ी र ी। व सोचती थी हिक मैंने तो गजरा �ेने से इनकार हिकया था। हिफर य मेरे ाथ में कैसे आ गया। जी चा हिक फें क दे। मगर हिफर य ख्या� प�ट गया और उसने गज़रे को ाथ में पहि न लि�या। ाय उस समय भी भो�ी-भा�ी पूणा के समझ में न आया हिक इस जुम�े का क्या मत�ब ै हिक तुम चा ो तो बहुत जल्द मेरा घर बस सकता ै।

उ3र प्रेमा म ताबी पर ट � र ी थी। उसने बाबू सा ब को आते देखा था।उनकी सज-3ज उसकी ऑंखों में खुब गयी थी। उसने उन् ें कभी इस बनाव के साथ न ीं देखा था। व सोच र ी थी हिक आज इनके ाथ में गजरा क्यों ै । उसकी ऑंखें पूणा के घर की तरफ़ �गी हुई थीं। उसका जी झँुझ�ाता था हिक व आज इतनी देर क्यों �गा र े ै? एकाएक पैरगाड़ी टिदखाई दी। उसने हिफर बाबू सा ब को देखा। चे रा खिख�ा हुआ था। क�ाइयों पर नज़र पड़ी गयी, ँय व गजरा क्या ो गया?

पे्रमा भाग 6 / पे्रमचंद पन्ना

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 रचनाकार: पे्रमचंद                 

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पूणा ने गजरा पहि न तो लि�या। मगेर रात भर उसकी ऑंखों में नींद न ीं आयी। उसकी समझ में य बात न आती थी। हिक अमृतराय ने उसे गज़रा क्यों टिदया। उसे ऐसा मा�ूम ोता था हिक पंहिडत बसंतकुमार उसकी तरफ बहुत क्रो3 से देख र े ै। उसने चा ा हिक गजरा उतार कर फें क दँू मगर न ीं मा�ूम क्यों उसके ाथ कॉंपने �गे। सारी रात उसने ऑंखों में काटी। प्रभात हुआ। अभी सूय भगवान ने,भी कृपा न की थी हिक पंडाइन और चौबाइन और बाबू कम�ाप्रसाद की बृद्ध म राजिजन और पड़ोस की सेठानी जी कई दूसरी औरतों के साथ पूणा के मकान में आ उपब्लिस्थत हुई। उसने बडे़ आदर से सबको हिबठाया, सबके पैर छुएं उसके बाद य पंचायत ोने �गी।

पंडाइन (जो बुढ़ापे की बज से सूखकर छो ारे की तर ो गयी थी)-क्यों दु�हि न, पंहिडत जी को गंगा�ाभ हुए हिकतने टिदन बीते?

पूणा-(डरते-डरते) पॉच म ीने से कुछ अयि3क हुआ ोगा।

पंडाइन-और अभी से तुम सबके घर आने-जाने �गीं। क्या नाम हिक क� तुम सरकार के घर च�ी गयी थीं। उनक क्वारी कन्या के पास टिदन भर बैठी र ीं। भ�ा सोचो ओ तुमने कोई अच्छा काम हिकया। क्या नाम हिक तुम् ारा और उनका अब क्या साथ। जब व तुम् ारी सखी थीं, तब थीं। अब तो तुम हिव3वा ो गयीं। तुमको कम से कम सा� भर तक घर से बा र पॉव न हिनका�ना चाहि ए। तुम् ारे लि�ए सा� भर तक ॅसना-बो�ना मना ैं म य न ीं क ते हिक तुम दशन को न जाव या स्नान को न जाव। स्नान-पूजा तो तुम् ारा 3म ी ै। ॉ, हिकसी सो ाहिगन या हिकसी क्वारी कन्या पर तुमको अपनी छाया न ी डा�नी चाहि ए।

पंडाइन चुप हुई तो म ाराजिजन टुइयॉ की तर च कने �गीं-क्या बत�ाऊँ, बड़ी सरकार और दु�ाहि न दोनों �हू का 3ंूट पीकर र गई। ईश्वर जाने बड़ी सरकार तो हिब�ख-हिब�ख रो र ी थीं हिक एक तो बेचारी �ड़की के यों र जान के �ा�े पडे़ ै। दूसरी अब रॉँड बेवा के साथ उठना-बैठना ै। न ीं मा�ूम नारायण क्या करनेवा�े ै। छोटी सकार मारे क्रो3 के कॉप र ी थी। ऑखों से ज्वा�ा हिनक� र ी थी। बारे मैनें उनको समझाया हिक आज जाने दीजिजए व बेचारी तो अभी बच्चा ै। खोटे-खरे का मम क्या जाने। सरकार का बेटा जिजये, जब बहुत समझाया तब जाके मानीं। न ीं तो क ती थीं मैं अभी जाकर खडे़-खडे़ हिनका� देती हँू। सो बेटा, अब तुम सो ाहिगनो के साथ बैठने योग्य न ीं र ीं। अरे ईश्वर ने तो तुम पर हिवपक्षित्त डा� दी। जब अपना प्राणहिप्रय ी न र ा तो अब कैसा ँसना-बो�ना। अब तो तुम् ारा 3म य ी ै हिक चुपचाप अपने घर मे पड़ी र ो। जो कुछ रुखा-सूखा यिम�े खावो हिपयो। और सकार का बेटा जिजये, जाँ तक ो सके, 3म के काम करो।

म ाराजिजन के चुप ोते ी चौबाइन गरजने �गीं। य एक मोटी भदेलिस� और अ3ेड़ औरत थी—भ�ा इनसे पूछा हिक अभी तुम् ारे दु� े को उठे पॉँच म ीने भी न बीते, अभी से तुम कं3ी-चोटी करने �गीं। क्या हिक तुम अब हिव3वा ो गई। तुमको अब सिसPगार-पेटार से क्या सरोकार ठ रा। क्या नाम हिक मैंने जारों औरतों को देखा ै जो पहित के मरने के बाद ग ना-पाता न ीं प नती। ँसना-बो�ना तक छोड़ देती ै। य न हिक आज तो सु ाग उठा और क� सिसPगार-पटार ोने �गा। मैं �ल्�ो-पत्तों की बात न ीं जानती। कहँूगी सच। चा े हिकसी को तीता �गे या मीठा। बाबू अमृतराय का रोज-रोज आना ठीक न ीं ै। ै हिक न ी, सेठानी जी?

सेठानी जी बहुत मोटी थीं और भारी-भारी ग नों से �दी थी। मांस के �ोथडे हिडडरयों से अ�ग ोकर नीचे �टक र े थे। इसकी भी एक बहू रॉँड़ ो गयी थी जिजसका जीवन इसने व्यथ कर रखा था। इसका स्वभाव था हिक बात करते समय ाथों को मटकाया करती थी। म ाराजिजन की बात सुनकर—‘जो सच बात ोगी सब कोई क ेगा। इसमें हिकसी का क्या डर। भ�ा हिकसी ने कभी रॉँड़ बेवा को भी माथे पर निबPदी देते देखा ै। जब सो ाग उठ गया तो हिफर सिसPदूर कैसा। मेरी भी तो एक बहू हिव3वा ै। मगर आज तक कभी मैंने उसको �ा� साड़ी न ीं पहि नने दी। न जाने इन छोकरिरयों का जी कैसा ै हिक हिव3वा ो जाने पर भी सिसPगार पर जी ��चाया करता ै। अरे इनको चाहि ए हिक बाबा अब रॉँड ो गई। मको हिनगोडे़ सिसPगार से क्या �ेना।

म ाराजिजन—सरकार का बेटा जिजये तुम बहुत ठीक क ती ो सेठानी जी। क� छोटी सरकार ने जो इनको मॉँग में सेंदूर �गाये देखा तो खड़ी ठक र गयी। दॉँतों त�े उंग�ी दबायी हिक अभी तीन टिदन की हिव3वा और य लिसगार। सो बेटा, अब तुमको समझ-बूझकर काम करना चाहि ए। तुम अब बच्चा न ीं ो।

सेठानी—और क्या, चा े बच्चा ो या बूढ़ी। जब बेरा च�ेगी तो सब ी क ेंगे। चुप क्यों ो पंडाइन, इनके लि�ए अब कोई रा -बाट हिनका� दो।

डाइन—जब य अपने मन की ोगयीं तो कोई क्या रा -बाट हिनका�े। इनको चाहि ए हिक ये अपने �ंबे�ंबे केश कटवा डा�े। क्या नाम हिक दूसरों के घर आना-जाना छोड़ दे। कं3ी-चोटी कभी न करें पान न खाये। रंगीन साड़ी न प नें और जैसे संसार की हिव3वायें र ती ै वैसे र ें।

चौबाइन—और बाबू अमृतराय से क दें हिक य ॉँ न आया करें। इस पर एक औरत ने जो ग ने कपडे़ से बहुत मा�दार न जान पड़ती थी, क ा—चौबाइन य सब तो तुम क गयी मगर जो क ीं बाबू अमृतराय लिचढ़ गये तो क्या तुम इस बेचारी का रोटी-कपड़ा च�ा दोगी? कोई हिव3वा ो गयी तो क्या अब अपना मुँ सी �ें।

म राजिजन—( ाथ चमकाकर) य कौन बो�ा? ठसों। क्या ममता फड़कने �गी?

सेठानी—( ाथ मटकाकर) तुझे हिकसने बु�ाया जो आ के बीच में बो� उठी। रॉँड़ तो ो गयी ो, का े न ीं जा के बाजर में बैठती ो।

चौबाइन—जाने भी दो सेठानी जी, इस बौरी के मुँ क्या �गती ो।

सेठानी—(कड़ककर) इस मुई को य ॉँ हिकसने बु�ाया। य तो चा ती ै जैसी मैं बे यास हँू वैसा ीसंसार ो जाय।

म राजिजन— म तो सीख दे र ी थीं तो इसे क्यों बुरा �गा? य कौन ोती ै बीच में बो�नेवा�ी?

चौबाइन—बहि न, उस कुटनी से ना क बो�ती ो। उसको तो अब कुटनापा करना ै।

इस भांहित कटूलिक्तयों द्वारा सीख देकर य सब स्त्रिस्त्रयाँ य ा से प3ारी। म राजिजन भी मुंशी बदरीप्रदान के य ॉँ खाना पकाने गयीं। इनसे और छोटी सकार से बहुत बनती थी। व इन पर बहुत हिवश्वास रखती थी। म राजिजन ने जाते ी सारी कथा खूब नमक-यिमच �गाकर बयान की और छोटी सरकार ने भी इस बात को गॉँठ बॉँ3 लि�या और प्रेमा को ज�ाने और सु�गाने के लि�ए उसे उत्तम समझकर उसके कमरे की तरफ च�ी।

यों तो प्रेमा प्रहितटिदन सारी रात जगा करती थी। मगर कभी-कभी घंटे आ3 घंटे के लि�ए नींद आ जाती थी। नींद क्या आ जाती थी, एक ऊंघ सी आ जाती थी, मगर जब से उसने बाबू अमृतराय को बंगालि�यों के भेस में देखा था और पूणा के घर से �ौटते वक्त उसको उनकी क�ाई परगजरा न नजर आया था तब से उसके पेट में ख�ब�ी पड़ी हुई थी हिक कब पूणा आवे और कब सारा ा� मा�ूम ो। रात को बेचैनी के मारे उठ-उठ घड़ी पर ऑंखे दौड़ाती हिक कब भोर ो। इस वक्त जो भावज के पैरां की चा� सुनी तो य समझकर हिक पूणा आ र ी ै, �पकी हुई दरवाजे तक आयी। मगर ज्यों ी भावज को देखा टिठठक गई और बो�ी—कैसे च�ीं, भाभी?

भाभी तो य चा ती ी थीं हिक छेड़-छाड़ के लि�ए कोई मौका यिम�े। य प्रश्न सुनते ी हितनक का बो�ी—क्या बताऊ कैसे च�ी? अब से जब तुम् ारे पास आया करँूगी तो इस सवा� का जवाब सोचकर आया करँूगी। तुम् ारी तर सबका �ोहू थोडे़ ी सफेद ो गया ै हिक चा े हिकसी की जान हिनक�, जाय, घी का घड़ा ढ�क जाए, मगर अपने कमरे से पॉँव बा र न हिनका�े।

प्रेमा ने व सवा� यों ी पूछ लि�या था। उसके जब य अथ �गाये गये तो उसको बहुत बुरा मा�ूम हुआ। बो�ी—भाभी, तुम् ारे तो नाक पर गुस्सा र ता ै। तुम जरा-सी बात का बतगंढ बना देती ो। भ�ा मैंने कौन सी बात बुरा मानने की क ी थी?

भाभी—कुछ न ीं, तुम तो जो कुछ क ती ो मानो मुँ से फू� झाड़ती ो। तुम् ारे मुँ में यिमसरी घो�ी हुई न। और सबके तो नाक पर गुससा र ता ै, सबसे �ड़ा ी करते ै।

प्रेमा—(झल्�ाकर) भावज, इस समय मेरा तो लिचत्त हिबगड़ा हुआ ै। ईश्वर के लि�ए मुझसे मत उ�झो। मै तो यों ी अपनी जान को रो र ी हंू। उस पर से तुम और भी नमक लिछड़कने आयीं।

भाभी—(मटककर) ां रानी, मेरा तो लिचत्त हिबड़ा हुआ ै, सर हिफरा हुआ ै। जरा सी3ी-सादी हँू न। मुझको देखकर भागा करो। मै। कट ी कुहितया हंू, सबको काटती च�ती हंू। मैं भी यारों को चुपके-चुपके लिचटठी-पत्री लि�खा करती, तसवीरें बद�ा करती तो मैं भी सीता क �ाती और मुझ पर भी घर भर जान देने �गता। मगर मान न मान मैं तेरा मे मान। तुम �ाख जतन करों, �ाख लिचटिटठयॉँ लि�खो मगर व सोने की लिचहिड़या ाथ आनेवा�ी न ीं। य ज�ी-कटी सुनकर प्रेमा से जब्त न ो सका। बेचारी सी3े स्वभाव की औरत थी। उसका वष� से हिवर की बखिग्न में ज�ते-ज�ते क�ेजा और भी पक गया था। व रोने �गी।

भावज ने जब उसको रोते देखा तो मारे ष के ऑंखे जगमगा गयीं। ते्तरे की। कैसा रू�ा टिदया। बो�ी—हिब�खने क्या �गीं, क्या अम्मा को सुनाकर देशहिनका�ा करा दोगी? कुछ झूठ थोड़ी ी क ती हँू। व ी अमृतराय जिजनके पास आप चुपके-चुपके प्रेम-पत्र भेजा करती थी अब टिदन-द ाडे़ उस रॉँड़ पूणा के घर आता ै और घंटो व ीं बैठा र ता ै। सुनती हँू फू� के गजरे �ा �ाकर प नाता ै। शायद दो एक ग ने भी टिदये ै।

प्रेमा इससे ज्यादा न सुन सकी। हिगड़हिग कर बो�ी—भाभी, मैं तुम् ारे पैरों पड़ती हंू मुझ पर दया करो। मुझे जो चा ो क �ो। (रोकर) बड़ी ो, जी चा े मार �ो। मगर हिकसी का नाम �ेकर और उस पर छ़ठे रखाकर मेरे कद� को मत ज�ाओ। आखिखर हिकसी के सर पर झूठ-मूठ अपरा3 क्यों �गाती ो।

प्रेमा ने तो य बात बड़ी दीनता से क ी। मगर छोटी सरकार ‘छुदे्द रखकर’ पर हिबगड़ गयीं। चमक कर बो�ीं— ॉँ, ॉँ रानी, मैं दूसरों पर छुदे्द रखकर तुमको ज�ाने आती हंून। मैं तो झूठ का व्यव ार करती हँू। मुझे तुम् ारे सामने झूठ बोन�े से यिमठाई यिम�ती ोगी। आज मु ल्�े भर में घर घर य ी चचा ो र ी ै। तुम तो पढ़ी लि�खी ो, भ�ा तुम् ीं सोचो एक तीस वष के संडे मदवे का पूणा से क्या काम? माना हिक व उसका रोटी-कपड़ा च�ाते ै मगर य तो दुहिनया ै। जब एक पर आ पड़ती ै तो दूसरा उसके आड़ आता ै। भ�े मनुष्यों का य ढंग न ीं ै हिक दूसरें को ब काया करें, और उस छोकरी को क्या को ई ब कायेगा व तो आप मद� पर डोरे डा�ा करती ै। मैंने तो जिजस टिदन उसकी सूरत देखी रथी उसी टिदन ताड़ गयी थी हिक य एक ी हिवष की गांठ ैं। अभी तीन टिदन भी दूल् े को मरे हुए न ीं बीते हिक सबको झमकड़ा टिदखाने �गी। दूल् ा क्या मरा मानो एक ब�ा दूर हुई। क� जब व य ॉँ आई थी तो मै बा� बंु3ा र ी थी। न ीं तो डेउढ़ी के भीतर तो पैर 3रने ी न ीं देती। चुडै़� क ीं की, य ॉँ आकर तुम् ारी स े�ी बनती ै। इसी से अमृतराय को अपना यौवन टिदखाकर अपना लि�या। क� कैसा �चक-�चक कर ठुमुक-ठुमुक् च�ती थी। देख-देख कर ऑंखे फूटती थीं। खबरदार, जो अब कभी, तुमने उस चुडै� को अपने य ॉँ हिबठाया। मै उसकी सूरत न ीं देखना चा ती। जबान व ब�ा ै हिक झूठ बात का भी हिवश्वास टिद�ा देती ै। छोटी सरकार ने जो कुछ क ा व तो सब सच था। भ�ा उसका असर क्यों न ोता। अगर उसने गजरा लि�ये हुए जाते न देखा ोता तो भावज की बातों को अवश्य बनावट समझती। हिफर भी व ऐसी ओछी न ीं थी हिक उसी वक्त अमृतराय और पूणा को कोसने �गती और य समझ �ेती हिक उन दोनों में कुछ सॉँठ-गॉँठ ै। ॉँ, व अपनी चारपाइ पर जाकर �ेट गयी और मुँ �पेट कर कुछ सोचने �गी।

प्रेमा को तो पं�ंग पर �ेटकर भावज की बातों को तौ�ने दीजिजए और म मदाने में च�े। य एक बहुत सजा हुआ �ंबा चौड़ा दीवानखाना ै। जमीन पर यिमजापुर खुबसूरत का�ीनें हिबछी हुई ै। भॉँहित-भॉँहित की गदे्ददार कुर्सिसPयॉँ �गी हुई ै। दीवारें उत्तम लिचत्रों से भूक्षि5त ै। पंखा झ�ा जा र ा ै। मुंशी बदरीप्रसाद एक आरामकुसR पर बैठे ऐनक �गाये एक अखबार पढ़ र े ै। उनके दायें-बायें की कुर्सिसPयों पर कोई और म ाशय रईस बैठे हुए ै। व सामने की तरफ मुंशी गु�जारी�ा� ैं और उनके बग� में बाबू दाननाथ ै। दाहि नी तरफ बाबू कम�ाप्रसाद मुंशी झंम्मन�ा� से कुछ कानाफूसी कर र े ै। बायीं और दो तीन और आदमी ै जिजनको म न ीं प चानते। कई यिमनट तक मुँशी बदरीप्रसाद अखबार पढ़ते र े। आखिखर सर उठाया और सभा की तरफ देखकर बड़ी गंभीरता से बो�े—बाबू अमुतराय के �ेख अब बडे़ ी निनPदनीय ोते जाते ै।

गु�जारी�ा�—क्या आज हिफर कुछ ज र उग�ा?

बदरीप्रसाद—कुछ न पूलिछए, आज तो उन् ोंने खु�ी-खु�ी गालि�यॉँ दी ै। मसे तो अब य बदाश्त न ीं ोता।

गु�जारी—आखिखर कोइ क ॉँ तक बदाश्त करे। मैने तो इस अखबार का पढ़ना तक छोड टिदया।

झम्मन�ा�—गोया अपने अपनी समझ में बड़ा भारी काम हिकया। अजी आपका3म य ै हिक उन �ेखों को काटिटए, उनका उत्तर दीजिजए। मै आजक� एक कहिवत्त रच र ा हँू, उसमे मैंने इनकों ऐसा बनाया ै हिक य भी क्या याद करेंगे।

कम�ाप्रसाद—बाबू अमृतराय ऐसे अ3जीवे आदमी न ीं ै हिक आपके कहिवत, चौपाई से डर जाऍं। व जिजस काम में लि�पटते ै सारे जी से लि�पटते ै।

झम्मन०— म भी सारे जी से उनके पीछे पड़ जाऍंगे। हिफर देखे व कैसे श र मे मुँ टिदखाते ै। क ो तो चुटकी बजाते उनको सारे श र में बदनाम कर दँू।

कम�ा०—(जोर देकर) य कौन-सी ब ादुरी ै। अगर आप �ोग उनसे हिवरो3 मो� लि�या चा ते ै। तो सोच-समझ कर �ीजिजए। उनके �ेखों को पटिढए, उनको मन में हिवचारिरए, उनका जवाब लि�खिखए, उनकी तर दे ातो मे जा-जाकर व्याख्यान दीजिजए तब जा के काम च�ेगा। कई टिदन हुए मै अपने इ�ाके पर से आ र ा था हिक एक गॉँव में मैने दस-बार जार आदयिमयों की भीड़ देखी। मैंने समझा पैठ ै। मगर जब एक आदमी से पूछा तो मा�ूम हुआ। हिक बाबू अमृतराय का व्याख्यान था। और य काम अके�े व ी न ीं करते, कालि�ज के कई ोन ार �ड़के उनके स ायक ो गये ै और य तो आप �ोग सभी जानते ैं हिक इ3र कई म ीने से उनकी वका�त अं3ा3ंु3 बढ़ र ी ै।

गु�जारी�ा�—आप तो स�ा इस तर देते ै गोया आप खुद कुछ न करेंगे।

कम�ाप्रसाद—न, मैं इस काम में। आपका शरीक न ीं ो सकता। मुझे अमृतराय के सब लिसद्वांतो से मे� ै, लिसवाय हिव3वा-हिववा के।

बदरीप्रसाद—(डपटकर) बच्च, कभी तुमको समझ न आयेगी। ऐसी बातें मु ँ से मत हिनका�ा करों।

झमन�ा�—(कम�ाप्रसाद से) क्या आप हिव�ायत जाने के लि�ए तैयार ै?

कम�ाप्रसाद—मैं इसमे कोई ाहिन न ीं समझता।

गु�ाजरी�ा�—( ंसकर) य नये हिबगडे ैं। इनको अभी अस्पता� की वा खिख�ाइए।

बदरीप्रसाद—(झल्�ाकर) बच्चा, तुम मेरे सामने से ट जाओ। मुझे रोज ोता ै।

कम�ाप्रसाद को भी गुस्सा आ गया। व उठकर जाने �गे हिक दो-तीन आदयिमयों ने मनाया और हिफर कुसR पर �ाकर हिबठा टिदया। इसी बीच में यिमस्टर शमा की सवारी आयी। आप व ी उत्सा ी पुरूष ैं जिजन् ोंने अमृतराय को पक्की स ायता का वादा हिकया था। इनको देखते ी �ोगो ने बडे़ आदर से कुसR पर हिबठा टिदया। यिमटर शमा उस श र में म्यूहिनलिसपैलि�टी के सेके्रटरी थे।

गु�ाजारी�ा�—कहि ए पंहिडत जी क्या खबर ै?

यिमस्टर शमा—(मूँछो पर ाथ फेरकर) व ताजा खबर �ाया हँू हिक आप �ोग सुनकर फड़क जायँगे। बाबू अमृतराय ने दरिरया के हिकनारे वा�ी री भरी जमीन के लि�ए दरखास्त ै। सुनता हँू व ॉँ एक अनाथा�य बनवायेगे।

बदरीप्रसाद—ऐसा कदाहिप न ीं ो सकता। कम�ाप्रसाद। तुम आज उसी जमीन के लि�ए मारी तरफ से कमेटी में दरखास्त पेश कर दो। म व ॉँ ठाकुरद्वारा और 3मशा�ा बनावायेंगे।

यिमस्टर शमा—आज अमृतराय सा ब के बँग�े पर गय ेथे। व ॉँ बहुत देर तक बातचीत ोती र ी। सा ब ने मेरे सामने मुसकराकर क ा—अमृतराय, मैं देखूँगा हिक जमीन तुमको यिम�े।

गु�जारी�ा� ने सर हि �ाकर क ा—अमृतराय बडे़ चा� के आदमी ै। मा�ूम ोता ै, सा ब को प �े ी से उन् ोंने अपने ढंग पर �गा लि�या ै।

यिमस्टर शमा—जनाब, आपको मा�ूम न ीं अंग्रेजों से उनका हिकतना मे�जो� ै। मको अंग्रेज मेम्बरों से कोई आशा न ीं रखना चाहि ए। व सब के सब अमृतराय का प5 करेंगे।

बदरीप्रसाद—(जोर देकर) ज ॉँ तक मेरा बस च�ेगा मै य जमीन अमृतराय को न �ेने दँूगा। क्या डर ै, अगर और ईसाई मेम्बर उनके तरफदार ै। य �ोग पॉँच से अयि3क न ीं। बाकी बाईस मेबर अपने ैं। क्या मको उनकी वोट भी न यिम�ेगी? य भी न ोगा तो मै उस जमीन को दाम देकर �ेने पर तैयार हँू।

झम्मन�ा�—जनाब, मुझको पक्का हिवश्वास ै हिक मको आ3े से जिजयादा वोट अवश्य यिम� जायँगे।

× × ×

एक बहुत ी उत्तम रीहित से सजा हुआ कमरा ै। उसमें यिमस्टर वा�टर सा ब बाबू अमृतराय के साथ बैठे हुए कुछ बातें कर र े ै। वा�टर सा ब य ॉँ के कयिमश्नर ै और सा3ारण अंग्रेजों के अहितरिरक्त प्रजा के बडे़ हि तैषी और बडे़ उत्सा ी प्रजापा�क ै। आपका स्वभाव ऐसा हिनम� ै हिक छोटा-बड़ा कोई ो, सबसे ँसकर 5ेम-कुश� पूछते और बात करते ै। व प्रजा की अवस्था को उन्नत दशा में �े जाने का उद्योग हिकया करते ै और य उनका हिनयम ै हिक हिकसी हि न्दुस्तानी से अंग्रेजी में न ीं बो�ेगे। अभी हिपछ�ी सा� जब प्�ेग का डंका चारों ओर घेनघोर बज र ा था, वा�टर सा ब, गरीब हिकसानों के घर जाकर उनका ा�-चा� देखते थे और अपने पास

से उनको कंब� बॉँटते हिफरते थे। और अका� के टिदनों मेंतो व सदा प्रजा की ओर से सरकार के दरबार में वादानुवाद करने के लि�ए तत्पर र ते ै। सा ब अमृतराय की सच्ची देशभलिक्त की बड़ी बड़ाई हिकया करते ै और बहु3ा प्रजा की र5ा करने में दोनों आदमी एक-दूसरे की स ायता हिकया करते ै।

वा�टर—(मुसकराकर) बाबू सा ब। आप बड़ा चा�ाक ै आप चा ता ै हिक मुंशी बदरी प्रसाद से थै�ी-भर, रूपया �े। मगर आपका बात व न ीं मानने सकता।

अमृतराय—मैंने तो आपसे क टिदया हिक मै अनाथा�य अवश्य बनवाउँगा और इस काम में बीस जार से कम न �गेगा। अगर आप मेरी स ायता करेंगे तो आशा ै हिक य काम भी सफ� ो जाए और मै भी बना रहँू। और अगर आप कतरा गये तो ईश्वर की कृपा से मेरे पास अभी इतनी जायदाद ै हिक अके�े दो अनाथा�य बनवा सकता हँू। मगर ॉँ, तब मैं और कामों में कुछ भी उत्सा न टिदखा सकँूगा।

वा�टर—( ंसकर) बाबू सा ब। आप तो जरा से बात में नाराज ो गया। म तो बो�ता ै हिक म तुम् ारा मदद दो जार से कर सकता ै। मगर बदरीप्रसाद से म कुछ न ीं क ने सकता। उसने अभी अका� में सरकार को पॉँच जार टिदया ै।

अमृतराय—तो य दो जार में �ेकर क्या करँूगा? मुझे तो आपसे पंद्र जार की पूरी आशा थी। मुंशी बदरीप्रसाद के लि�ए पॉँच जार क्या बड़ी बात ै? तब से इसका दुगना तो व एक मंटिदर बनवाने में �गा चुके ै। और केव� इस आशा पर हिक उनको सी आई.ई की पदवी यिम� जाएगी, व इसका दस गुना आज दे सकते ै।

वा�टर—(अमृतराय से ाथ यिम�ाकर) वे�, अमृतराय। तुम बड़ा चा�ाक ै। तुम बड़ा चा�ाक ै तुम मुंशी बदरीप्रसाद को �ूटना मॉँगता ै।

य क कर सा ब उठ खडे़ हुए। अमृतराय भी उठे। बा र हिफटन खड़ी थी दोनों उस पर बैठ गये। साईस ने घोडे़ को चाबुक �गाया और देखते देखते मुंशी बदरीप्रसाद के मकान पर जा पहंूचे। ठीक उसी वक्त जब व ॉँ अमृतराय से रार बढ़ाने की बातें सोची जा र ी थीं।

प्यारे पाठकगण। म य वणन करके हिक इन दोनों आदयिमयों के पहँुचते ी व ॉँ कैसी ख�ब�ी पड़ गयी, मुंशी बदरीप्रसाद ने इनका कैसा आदर हिकया, गु�जारी�ा�, दाननाथ और यिमस्टर शमा कैसी ऑंखे चुराने �गे, या सा ब ने कैसे काट-छांट की बाते की और मुंशी जी को सी.आई.ई की पदवी की हिकन शब्दों में आशा टिद�ाइ आपका समय न ीं गँवाया चा ते। खु�ासा य हिक अमॄतराय को य ॉँ से सत्तर जार रूपया यिम�ा। मुंशी बदरीप्रसाद ने अके�े बार जार टिदया जो उनकी उम्मीद से बहुत ज्यादा था। व जब य ॉँ से च�े तो ऐसा मा�ूम ोता था हिक मानों कोई गढ़ी जीते च�े आ र े ै। व जमीन भी जिजसके लि�ए उन् ोने कमेटी मे दरखस्त की थी यिम� गयी और आज ी इंजीहिनयर ने उसको नाप कर अनाथा�य का नकशा बनाना आरंभ कर टिदया।

सा ब और अमृतराय के च�े जाने पर य ॉँ यो बाते ोने �गी।

झम्मन�ा�—यार, मको तो इस �ौंडे ने आज पांच सौ के रूप में डा� टिदया।

गु�जारी �ा�—जनाब, आप पॉँच सौ को रो र ी ै य ॉँ तो एक जार पर पानी हिफर गया। मुंशी जी तो सी.आई.ई की पदवी पावेगें।य ॉँ तो कोई रायब ादुरी को भी न ीं पूछता।

कम�ाप्रसाद—बडे शोक की बात ै हिक आप �ोग ऐसे शुभ काय मे स ायता देकर पछताते ै। अमृतराय को देखिखए हिक उन् ोंने अपना एक गॉँव बेचकर दस जार रूपया भी टिदया और उस पर दौड़-3ूप अ�ग कर र े ै।

मुंशी बदरीप्रसाद—अमृतराय बड़ा उत्सा ी आदमी ै। मैने आज इसको जाना। बच्चा कम�ाप्रसाद। तुम आज शाम को उनके य ॉँ जाकर मारी ओर से 3न्यवाद दे देना।

झम्मन�ा�—(मुं फेरकर) आप क्यों न प्रसन्न ोंगे, आपको तो पदवी यिम�ेगी न?

कम�ाप्रसाद—( ंसकर) अगर आपका व कहिवत्त तैयार ो तो जरा सुनाइए।

दाननाथ जो अब तक चुपचाप बैठे हुए थे बो�े—अब आप उनकी निनPदा करने की जग उनकी प्रंशसा कीजिजए।

यिमस्टर शमा—अच्छा, जो हुआ सो हुआ, अब सभा हिवसजन कीजिजए, आज य मा�ूम ो गया हिक अमृतराय अके�े म सब पर भारी ै।

कम�ाप्रसाद—आपने न ीं सुन, सत्य की सदा जय ोती ै।

पे्रमा भाग 7 / पे्रमचंद पन्ना संवाद सोस देखें . पुराने अवतरण

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 रचनाकार: पे्रमचंद                 

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आज से कभी मन्दि)दर न जाऊँगी

बेचारी पूणा, पंडाइन, चौबाइन, यिमसराइन आटिद के च�े जाने के बाद रोने �गी। व सोचती थी हिक ाय। अब मैं ऐसी मनहूस समझी जाती हंू हिक हिकसी के साथ बैठ न ीं सकती। अब �ोगों को मेरी सूरत काटने दौड़ती ैं। अभी न ीं मा�ूम क्या-क्या भोगना बदा ै। या नारायण। तू ी मुझ दुखिखया का बेड़ा पार �गा। मुझ पर न जाने क्या कुमहित सवार थी हिक लिसर में एक ते� ड�वा लि�यौ। य हिनगोडे़ बा� न ोते तो का े को आज इतनी फ़जी त ोती। इन् ीं बातों की सुयि3 करते करते जब पंडाइन की य बात याद आ गयी हिक बाबू अमृतराय का रोज रोज आना ठीक न ीं तब उसने लिसर पर ाथ मारकर क ा—व जब आप ी आप आत े ै तो मै कैसे मना कर दँू। मै। तो उनका टिदया खाती हँू। उनके लिसवाय अब मेरी सुयि3 �ेने वा�ा कौन ै। उनसे कैसे क दँू हिक तुम मत आओ। और हिफर उनके आने में रज ी क्या ै। बेचारे सी3े सादे भ�े मनुष्य ै। कुछ नंगे न ीं, शो दे न ीं। हिफर उनके आने में क्या रज ै। जब व और बडे़ आदयिमयों के घर जाते ै। तब तो �ोग उनको ऑंखो पर हिबठाते ै। मुझ क्षिभखारिरन के दरवाजे पर आवें तो मै कौन मुँ �ेकर उनको भगा दँू। न ीं न ीं, मुझसे ऐसा कभी न ोगा। अब तो मुझ पर हिवपक्षित्त आ ी पड़ी ै। जिजसके जी में जो आवै क ै।

इन हिवचारों से छुटटी पाकर व अपने हिनयमानुसार गंगा स्नान को च�ी। जब से पंहिडत जी का दे ांत हुआ था तब से व प्रहितटिदन गंगा न ाने जाया करती थी। मगर मुँ अं3ेरे जाती और सूय हिनक�ते �ौट आती। आज इन हिबन बु�ाये मे मानों के आने से देर ो गई। थोड़ी दूर च�ी ोगी हिक रास्ते में सेठानी की बहू से भेट ो गई। इसका नाम रामक�ी था। य बेचारी दो सा� से रँडापा भोग र ी थी। आयु १६ अथवा १७ सा� से अयि3क न ोगी। व अहित संुदरी नख-लिशख से दुरूस्त थी। गात ऐसा कोम� था हिक देखने वा�े देखते ी र जाते थे। जवानी की उमर मुखडे से झ�क र ी थी। अगर पूणा पके हुए आम के समान पी�ी ो र ी थी, तो व गु�ाब के फू� की भाहित खिख�ी हुई थी। न बा� में ते� था, न ऑंखो में काज�, न मॉँग में संदूर, न दॉँतो पर यिमससी। मगर ऑंखो मे व चंच�ता थी, चा� मे व �चक और ोठों पर व मनभवानी �ा�ी थी हिक जिजससे बनावटी शंृ्रगार की जरूरत न र ी थी। व मटकती इ3र-उ3र ताकती, मुसकराती च�ी जा र ी थी हिक पूणा को देखते ी टिठठक गयी और बडे़ मनो र भाव से ंसकर बो�ी—आओ बहि न, आओ। तुम तो जानों बताशे पर पैर 3र र ी ो।

पूणा को य छेड़-छाड़ की बात बुरी मा�ूम हुई। मगर उसने बड़ी नमR से जवाब टिदया—क्या करंू बहि न। मुझसे तो और तेज न ीं च�ा जाता।

रामक�ी—सुनती हंू क� मारी डाइन कई चुडै़�ो के साथ तुमको ज�ाने गयी थी। जानों मुझे सताने से अभी तक जी न ीं भरा। तुमसे क्या कहू बहि न, य सब ऐसा दुख देती ै हिक जी चा ता ै माहुर खा �ूँ। अगर य ी ा� र ा तो एक टिदन अवश्य य ी ोना ै। न ीं मा�ूम ईश्वर का क्या हिबगाड़ा था हिक स्वप्न में भी जीवन का सुख न प्राप्त हुआ। भ�ा तुम तो अपने पहित के साथ दो वष तक र ीं भी। मैंने तो उसका मुँ भी न ीं देखा। जब तमाम औरतों को बनाव-सिसPगार हिकये ँसी-खुशी च�ते-हिफरते देखती हँू तो छाती पर सापँ �ोटने �गता ै। हिव3वा क्या ो गई घर भर की �ौंडी बना दी गयी। जो काम कोई न करे व मै करंु। उस पर रोज उठते जूत,े बैठते �ात। काजर मत �गाओ। हिकस्सी मत �गाओ। बा� मत गँुथाओ। रंगीन साहिड़यॉँ मत प नों। पान मत खाओ। एक टिदन एक गु�ाबी साड़ी प न �ी तो चुडै़� मारने उठी थी। जी में तो आया हिक सर के बा� नोच �ूँ मगर हिवष का घँूट पी के र गयी और व तो व , उसकी बेटिटयॉँ और दूसरी बहुऍं मुझसे कन्नी काटती हिफरती ै। भोर के समय कोई मेरा मुँ न ीं देखता। अभी पड़ोस मे एक ब्या पड़ा था। सब की सब ग ने से �द �द गाती बजाती गयी। एक मै ी अभाहिगनी घर मे पडी रोती र ी। भ�ा बहि न, अब क ॉँ तक कोई छाती पर पत्थर रख �े। आखिखर म भी तो आदमी ै। मारी भी तो जवानी ै। दूसरों का राग-रंग, ँसी, चु � देख अपने मन मे भी भावना ोती ै। जब भूख �गे और खाना न यिम�े तो ार कर चोरी करनी पड़ती ै।

य क कर रामक�ी ने पूणा का ाथ अपने ाथ में �े लि�या और मुस्कराकर 3ीरे 3ीरे एक गीत गुनगुनाने �गी। बेचारी पूणा टिद� में कुढ़ र ी थी हिक इसके साथ क्यों �गी। रास्ते में जारों आदमी यिम�े। कोई इनकी ओर ऑंखे फाड़ फाड़ घूरता था, कोई इन पर बोलि�या बो�ता था। मगर पूणा सर को ऊपर न उठाती थी। ॉँ, रामक�ी मुसकरा मुसकरा कर बड़ी चप�ता से इ3र उ3र ताकती, ऑंखे यिम�ाती और छेड़ छाड़ का जवाब देती जाती थी। पूणा जब रास्ते में मद� को खडे देखती तो कतरा के हिनक� जाती मगर रामक�ी बरबस उनके बीच में से घुसकर हिनक�ती थी। इसी तर च�ते च�ते दोनो नदी के तट पर पहँुची। आठ बज गया था। जारों मद स्त्रिस्त्रयॉँ, बच्चे न ा र े थे। कोई पूजा कर र ा था। कोई सूय देवता को पानी दे र ा था। मा�ी छोटी-छोटी डालि�यों में गु�ाब, बे�ा, चमे�ी के फू� लि�ये न ानेवा�ों को दे र े थे। चारों और जै गंगा। जै गंगा। का शब्द ो र ा था। नदी बाढ़ पर थी। उस मटमै�े पानी में तैरते हुए फू� अहित संुदर मा�ूम ोते थे। रामक�ी को देखते ी एक पंडे ने क ी—‘इ3र सेठानी जी, इ3र।‘ पंडा जी म ाराज पीताम्बर प ने, हित�क मुद्रा �गाये, आसन मारे, चंदन रगड़ने में जुटे थे। रामक�ी ने उसके स्थान पर जाकर 3ोती और कमंउ� रख टिदया।

पंडा—(घूरकर) य तुम् ारे साथ कौन ै?

राम०—(ऑंखे मटकाकर) कोई ोंगी तुमसे मत�ब। तुम कौन ोते ो पूछने वा�े?

पंडा—जरा नाम सुन के कान खुश कर �ें।

राम०—य मेरी सखी ैं। इनका नाम पूणा ै।

पंडा—( ँसकर) ओ ो ो। कैसा अच्छा नाम ै। ै भी तो पूण चंद्रमा के समान। 3न्य भाग्य ै हिक ऐसे जजमान का दशन हुआ।

इतने में एक दूसरा पंडा �ा� �ा� ऑंखे हिनका�े, कं3े पर �ठ रखे, नशे में चूर, झूमता-झामता आ पहँुचा और इन दोनो ��नाओं की ओर घूर कर बो�ा, ‘अरे रामभरोसे, आज तेरे चंदन का रंग बहुत चोखा ै।

रामभरोसे—तेरी ऑंखे का े को फूटे ै। प्रेम की बूटी डा�ी ै जब जा के ऐसा चोखा रंग भया।

पंडा—तेरे भाग्य को 3न्य ैं य रक्त चंदन (रामक�ी की तरफ देखकर) तो तूने प �े ी रगड़ा रक्खा था। परंतु इस म�याहिगर (पूणा की तरफ इशारा करके) के सामने तो उसकी शोभा ी जाती र ी।

पूणा तो य नोक-झोंक समझ-समझ कर झेंपी जाती थी। मगर रामक�ी कब चूकनेवा�ी थे। ाथ मटका कर बो�ी—ऐसे करमठँटिढ़यों को थोडे़ ी म�याहिगर यिम�ा करता ै।

रामभरोसे—(पंडा से) अरे बौरे, तू इन बातों का मम क्या जाने। दोनो ी अपने-अपने गुण मे चोखे ै। एक में सुगं3 ै तो दूसरे में रंग ै।

पूणा मन में बहुत �ब्लिज्जत थी हिक इसके साथ क ॉँ फँस गयी। अब तक वो न ा-3ोके घर पहँुची ोती। रामक�ी से बो�ी—बहि न, न ाना ो तो न ाओ, मुझको देर ोती ै। अगर तुमको देर ो तो मैं अके�े जाऊँ।

रामभरोसे—न ीं, जजमान। अभी तो बहुत सबेरा ै। आनंदपूवक स्नान करो।

पूणा ने चादर उतार कर 3र दी और साड़ी �ेकर न ाने के लि�ए उतरना चा ती थी हिक यकायक बाबू अमृतराय एक सादा कुता प ने, सादी टोपी सर पर रक्खे , ाथ में नापने का फीता लि�ये चंद ठेकेदारों के साथ अहित टिदखायी टिदये। उनको देखते ी पूणा ने एक �ंगी घूघंट हिनका� �ी और चा ा हिक सीटिढ़यों पर �ंबाई-चौड़ाइ नापना था क्योहिक व एक जनाना घाट बनवा र े थे। व पूणा के हिनकट ी खडे़ ो गये। और कागज पेसिसP� पर कुछ लि�खने �गे। लि�खते-लि�खते जब उन् ोंने कदम बढ़ाया तो पैर सीढ़ी के नीचे जा पड़ा। करीब

था हिक व औ3ै मुँ हिगरे और चोट-चपेट आ जाय हिक पूणा ने झपट कर उनको सँभा�ा लि�या। बाबू सा ब ने चौंककर देखा तो दहि ना ाथ एक संुदरी के कोम� ाथों में ै। जब तक पूणा अपना घँूघट बढ़ावे व उसको प चान गये और बो�े—प्यारी, आज तुमने मेरी जान बचा �ी।

पूणा ने इसका कुछ जवाब न टिदया। इस समय न जाने क्यों उसका टिद� जोर जोर से 3ड़क र ा था और आखो में ऑंसू भरा आता था। ‘ ाय। नारायण, जोक ीं व आज हिगर पड़ते तो क्या ोता...य ी उसका मन बेर बेर क ता। ‘मैं भ�े संयोग से आ गयी थी। व लिसर नीचा हिकय ेगंगा की � रों पर टकटकी �गाये य ी बातें गुनती र ी। जब तक बाबू सा ब खडे़ र े, उसने उनकी ओर एक बेर भी न ताका। जब व च�े गए तो रामक�ी मुसकराती हुई आयी और बो�ी—बहि न, आज तुमने बाबू सा ब को हिगरते हिगरते बचा लि�या आज से तो व और भी तुम् ारे पैरों पर लिसर रकखेगे।

पूणा—(कड़ी हिनगा ों से देखकर) रामक�ी ऐसी बातें न करो। आदमी आदमी के काम आता ै। अगर मैंने उनको सँभा� लि�या तो इसमे क्या बात अनोखी ो गयी।

रामक�ी—ए �ो। तुम तो जरा सी बात पर हितहिनक गयीं।

पूणा—अपनी अपनी रूलिच ै। मुझको ऐसी बातें न ीं भाती।

रामक�ी—अच्छा अपरा3 5मा करो। अब सक र से टिदल्�गी न करँूगी। च�ो त�ुसीद� �े �ो।

पूणा—न ीं, अब मै य ॉँ न ठ रँूगी। सूरज माथें पसर आ गया।

रामक�ी—जब तक इ3र उ3र जी ब �े अच्छा ै। घर पर तो ज�त ेअंगारों के लिसवाय और कुछ न ीं।

जब दोनो न ाकर हिनक�ी तो हिफर पंडो ने छेड़नाप चा ा, मगर पूणा एकदम भी न रूकी। आखिखर रामक�ी ने भी उसका साथ छोड़ना उलिचत न समझा। दोनो थोड़ी दूर च�ी ोगी। हिक रामक�ी ने क ा—क्यों बहि न, पूजा करने न च�ोगी?

पूणा—न ीं सखी, मुझे बहुत देर ो जायगी।

राम०—आज तुमको च�ना पडे़गा। तहिनक देखो तो कैसे हिव ार की जग ै। अगर दो चार टिदन भी जाओ तो हिफर हिबना हिनत्य गये जी न माने।

पूणा–तुम जाव, मैं न जाऊँगी। जी न ीं चा ता।

राम०—च�ों च�ो, बहुत इतराओ मत। दम की दम में तो �ौटे आते ै।

रास्ते में एक तंबो�ी की दूकान पड़ी। काठ के पटरों पर सुफेद भीगे हुए कपडे़ हिबछे थे। उस पर भॉँहित-भॉँहित के पान मसा�ों की खूबसूरत हिडहिबयॉँ, सुगं3 की शीलिशयॉँ, दो-तीन रे- रे गु�दस्ते सजा कर 3रे हुए थे। सामने ी दो बडे़-बडे़ चौखटेदार आईने �गे हुए थे। पनवाड़ी एक सजीया जवान था। सर पर दोपल्�ी टोपी चुनकर टेडी दे रक्खी थी। बदन में तंजेब का फँसा हुआ कुता था। ग�े में सोने की तावीजे। ऑंखो में सुमा, माथे पर रोरी, ओठो पर पान की ग री �ी�ी। इन दोनोंस्त्रिस्त्रयों को देखते ी बो�ा—सेठानी जी, पान खाती जाव।

रामक�ी ने चठ सर से चादर खसका दी और हिफर उसको एक अनुपम भाव से ओढकर ंसत ेहुए नयनो से बो�ी—‘अभी प्रसाद न ीं पाया’।

पनवाड़ी—आवो। आवो। य भी तो प्रसाद ी ै। संतों के ाथ की चीज प्रसाद से बढ़कर ोती ै। य आज तुम् ारे साथ कौन शलिक्त ै?

राम—य मारी सखी ै।

तम्बो�ी—बहुत अच्छा जोड़ा ै। 3न्य् भाग्य जो दशन हुआ।

रामक�ी दुकान पर ठमक गयी और शीशे में देख देख अपने बा� सँवारने �गी। उ3र पनवाड़ी ने चाँदी के वरक �पेटे हुए बीडे फुरती से बनाये और रामक�ी की तरफ ाथ बढ़ाया। जब व �ेने को झुकी तो उसने अपना ाथ खींच लि�या और ँसकर बो�ा—तुम् ारी सखी �ें तो दें।

राम०—मुँ बनवा आओ, मुँ । (पान �ेकर) �ो, सखी, पान खाव।

पूणा—मैं न खाऊँगी।

राम—तुम् ारी क्या कोई सास बैठी ै जो कोसेगी। मेरी तो सास मना करती ै। मगर मैं उस पर भी प्रहितटिदन खाती हँू।

पूणा—तुम् ारी आदत ोगी मैं पान न ीं खाती।

राम—आज मेरी खाहितर से खाव। तुम् ें कसम ै।

रामक�ी ने बहुत ठ की मगर पूणा ने हिग�ौरिरयॉँ न �ीं। पान खाना उसने सदा के लि�ए त्याग टिदया था। इस समय तक 3ूप बहुत तेज़ ो गयी थी। रामक�ी से बो�ी—हिक3र ै तुम् ारा मंटिदर? व ाँ च�ते-च�त ेतो सांझ ो जायगी।

राम—अगर ऐसे टिदन कटा जाता तो हिफर रोना का े का था।

पूणा चुप ो गयी। उसको हिफर बाबू अमृतराय के पैर हिफस�ने का ध्यान आ गया और हिफर मन में य प्रश्न हिकया हिक क ीं आज व हिगर पड़ते तो क्या ोता। इसी सोच मे थी हिक हिनदान रामक�ी ने क ा—�ो सखी, आ गया मंटिदर।

पूणा ने चौंककर दाहि नी ओर जो देखा तो एक बहुत ऊँचा मंटिदर टिदखायी टिदया। दरवाजे पर दो बडे़-बडे़ पत्थर के शेर बने हुए थे। और सैकड़ो आदमी भीतर जाने के लि�ए 3क्कम-3क्का कर र े थे। रामक�ी पूणा को इस मंटिदर में �े गयी। अंदर जाकर क्या देखती ै हिक पक्का चौड़ा ऑंगन ै जिजसके सामने से एक अँ3ेरी और सँकरी ग�ी देवी जी के 3ाम को गयी ै। दाहि नी ओर एक बारादरी ै जो अहित उत्तम रीहित पर सजी हुई ै। य ॉँ एक युवा पुरूष पी�ा रेशमी कोट प ने, सर पर खूबसूरत गु�ाबी रंग की पगड़ी बॉँ3े, तहिकया-मसनद �गाये बैठा ै।पेचवान �गा हुआ ै। उगा�दान, पानदान और नाना प्रकार की संुदर वस्तुओं से सारा कमरा भूहिषत ो र ा ै। उस युवा पूरूष के सामने एक सु3र कायिमनी सिसPगार हिकये हिवराज र ी ै। उसके इ3र-उ3र सपरदाये बैठे हुए स्वर यिम�ा र े ै। सैकड़ो आदमी बैठे और सैकड़ो खडे़ ै। पूणा ने य रंग देखा तो चौंककर बो�ी—सखी, य तो नाचघर सा मा�ूम ोता ै। तुम क ीं भू� तो न ीं गयीं?

राम—(मुस्कराकर) चुप। ऐसा भी कोई क ता ै। य ी तो देवी जी का मटिदर ै। व बरादरी में म ंत जी बैठे ै। देखती ो कैसा रँगी�ा जवान ै। आज शुक्रवार ै, र शुक्र को य ॉँ रामजनी का नाच ोता ै।

इस बीच मे एक ऊँचा आदमी आता टिदखायी टिदया। कोई छ: फुट का कद था। गोरा-लिचटठा, बा�ों में कं3ी क हुई, मुँ पान से भरे, माथे पर हिवभूहित रमाये, ग�े में बडे़-बडे़ दानों की रूद्रा5 की मा�ा प ने कं3े पर एक रेशमी दोपटटा रक्खे, बड़ी-बड़ी और �ा� ऑंखों से इ3र उ3र ताकता इन दोनों स्त्रिस्त्रयों के समीप आकर खड़ा ो गया। रामक�ी ने उसकी तरफ कटा5 से देखकर क ा—क्यों बाबा इन्द्रवत कुछ परशाद वरशाद न ीं बनाया?

इन्द्र—तुम् ारी खाहितर सब ाजिजर ै। प �े च�कर नाच तो देखो। य कंचनी काश्मीर से बु�ायी गयी ै। म ंत जी बेढब रीझे ैं, एक जार रूपया इनाम दे चुके ैं।

रामक�ी ने य सुनते ी पूणा का ाथ पकड़ा और बारादरी की ओर च�ी। बेचारी पूणा जाना न चा ती थी। मगर व ॉँ सबके सामने इनकार करते भी बन न पड़ता था। जाकर एक हिकनारे खड़ी ो गयी। सैकड़ों औरतें जमा थीं। एक से एक सुन्दर ग ने �दी हुई । सैकड़ो मद थे, एक से एक गबरू ,उत्तम कपडे़ प �े हुए। सब के सब एक ी में यिम�े जु�े खडे़ थे। आपस में बीलि�यॉँ बो�ी जाती थीं, ऑंखे यिम�ायी जाती थी, औरतें मद� में। य मे�जो� पूणा को न भाया। उसका हि याव न हुआ हिक भीड़ में घुसे। व एक कोने में बा र ी दबक गयी। मगर रामक�ी अन्दर घुसी और व ॉँ कोई आ3 घण्टे तक उसने खूब गु�छर} उड़ाये। जब व हिनक�ी तो पसीने में डूबी हुई थी।तमाम कपडे़ मस� गय ेथे।

पूणा ने उसे देखते ी क ा—क्यों बहि न, पूजा कर चुकीं? अब भी घर च�ोगी या न ीं?

राम 0—(मुस्कराकर) अरे, तुम बा र खडी र गयीं क्या?

जरा अन्दर च�के देखो क्या ब ार ै? ईश्वर जाने कंचनी गाती क्या ै टिद� मसोस �ेती ै।

पूणा—दशन भी हिकया या इतनी देर केव� गाना ी सुनती र ीं?

राम 0—दशन करने आती ै मेरी ब�ा। य ॉँ तो टिद� ब �ाने से काम ै। दस आदमी देखें दस आदयिमयों से ँसी टिदल्�गी की, च�ों मन आन ो गया। आज इन्द्रदत्त ने ऐसा उत्तम प्रसाद बनाया ै हिक तुमसे क्या बखान करँू।

पूणा –क्या ै ,चरणामृत?

राम 0—( ॅसकर) ॉँ, चरणामृत में बूटी यिम�ा दी गयी ै।

पूणा—बूटी कैसी?

राम 0—इतना भी न ीं जानती ो, बूटी भंग को क ते ैं।

पूणा—ऐ ै तुमने भंग पी �ी।

राम—य ी तो प्रसाद ै देवी जी का। इसके पीने में क्या ज ै। सभी पीते ै। क ो तो तुमको भी हिप�ाऊँ।

पूणा—न ीं बहि न, मुझे 5मा करो।

इ3र य ी बातें ो र ी थी हिक दस-पंद्र आदमी बारादरी से आकर इनके आसपास खडे़ ो गये।

एक—(पूणा की तरफ घूरकर) अरे यारो, य तो कोई नया स्वरूप ै।

दूसरा—जरा बच के च�ो, बचकर।

इतने में हिकसी ने पूणा के कं3े से 3ीरे से एक ठोका टिदया। अब व बेचारी बडे़ फेर में पड़ी। जिज3र देखती ै आदमी ी आदमी टिदखायी देती ै। कोई इ3र से ंसता ै कोइ उ3र से आवाजें कसता ै। रामक�ी ँस र ी ै। कभी चादर को खिखसकाती ै। कभी दोपटटे को सँभा�ती ै। एक आदमी ने उससे पूछा—सेठानी जी, य कौन ै?

रामक�ी—य मेरी सखी ै, जरा दशन कराने को �ायी थी।

दूसरा—इन् ें अवश्य �ाया करों। ओ ो। कैसा खु�ता हुआ रंग ै।

बारे हिकसी तर इन आदयिमयों से छुटकारा हुआ। पूणा घर की ओर भागी और कान पकडे़ हिक आज से कभी मंटिदर न जाउँगी।

पे्रमा भाग 8 / पे्रमचंद पन्ना संवाद सोस देखें . पुराने अवतरण

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 रचनाकार: पे्रमचंद                 

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कुछ और बातचीत

पूणा ने कान पकडे़ हिक अब मंटिदर कभी न जाऊगी। ऐसे मंटिदरों पर दई का कोप भी न ीं पड़ता। उस टिदन से व सारे घर ी पर बैठी र ती। समय काटना प ाड़ ो जाता। न हिकसी के य ॉँ आना न जाना। न हिकसी से भेट न मु�ाकात। न कोई काम न 3ं3ा। टिदन कैसे कटे। पढ़ी-लि�खी तो अवश्य थी, मगर पढे क्या। दो-चार हिकस्से-क ानी की पुरानी हिकताबें पंहिडत जी की संदूक में पड़ी हुई थी, मगर उनकी तरफ देखने को अब जी न ीं चा ता था। कोई ऐसा न था जो बाजार से �ाती मगर व हिकताबों का मो� कया जाने। दो-एक बार जी में आया हिक कोई पुस्तक प्रेमा के घर में मँगवाये। मगर हिफर कुछ समझकर चुप ो र ी। बे�-बूटे बनाना उसको आते ी न थें। हिक उससे जी ब �ाये, ॉँ सीना आता था। मगर सीये हिकसके कपडे़। हिनत्य इस तर बेकाम बैठे र ने से व रदम कुछ उदास सी र ा करती। ॉँ, कभी-कभी पंडाइन और चौबाइन अपने चे�े-चापड़ों के साथ आकर कुछ लिसखावन की बातें सुना जाती थीं। मगर जब कभी व क तीं हिक बाबू अमृतराय का आना ठीक न ीं तो पूणा साफ-साफ क देती हिक मैं उनको आने से न ीं रोक सकती और न कोई ऐसा बताव कर सकती हँू जिजससे व समझें हिक मेरा आना इसको बुरा �गता ै। सच तो य ै हिक पूणा के दय में अब अमृतराय के लि�ए प्रेम का अंकुर जमने �गा था। यद्यहिप व अभी तक य ी समझती थी हिक अमृतराय य ॉँ दया की रा से आया करते ै। मगर न ीं मा�ूम क्यों व उनके आने का एक-एक टिदन हिगना करती। और जब इतवार आता तो सबेरे ी से उनके शुभगमन की तैयारिरयॉँ ोने �गती। हिबल्�ो बडे़ प्रेम से सारा मकान साफ करती। कुर्सिसPयां और तस्वीरों पर से सात टिदन की जमी हुई 3ू�-यिमटटी दूर करती। पूणा खुद भी अचे्छ और साफ कपडे़ प नती। अब उसके टिद� मे आप ी आप बनाव-सिसPगार करने की इच्छा ोती थी। मगर टिद� को रोकती। जब बाबू अमृतराय आ जाते तो उसका मलि�न मुख कंुदन की तर दमकने �गता। उसकी प्यारी सूरत और भी अयि3क प्यारी मा�ूम ोने �गती। जब तक बाबू सा ब र त ेउसे अपना घर भरा मा�ूम ोता। व इसी कोलिशश मे र ती हिक ऐसी क्या बात करू जिजसमें व प्रसन्न ोकर घर को जावें। बाबू सा ब ऐसे ँसमुख थे हिक रोते को भी एक बार ँसा देते। य ॉँ व खूब बु�बु� की तर च कते। कोई ऐसी बात न क ते जिजससे पूणा दुखिखत ो। जब उनके च�ने का समय आता तो व कुछ उदास ो जाती। बाबू सा ब इसे ताड़ जाते और पूणा की खाहितर से कुछ देर और बैठते। इसी तर कभी-कभी घंटों बीत जाते। जब टिदया में बत्ती पड़ने की बे�ा आती तो बाबू सा ब च�े जाते। पूणा कुछ देर तक इ3र-उ3र बौख�ाई हुई 3ूमती। जो जो बाते हुई ोती, उनको मन में दो राती। य समय उस आनंददायक स्वप्न-सा जान पड़ता था जो ऑंख के खु�ते ी हिब�ाय जाता ै।

इसी तर कई मास और बीत गये और आखिखर जो बात अमृतराय के मन में थी व पूरी ो गयी। अथात पूणा को अब मा�ूम ोने �गा हिक मेरे टिद� में उनकी मु ब्बम समाती जाती ै। और उनका टिद� भी मेरी मु ब्बत से खा�ी न ीं। अब पूणा प �े से ज्यादा उदास र ने �गी। ाय। ओ बौरे मन। क्या एक बार प्रीहित �गाने से तेरा जी न ीं भरा जो त ूहिफर य रोग पा� र ा ै। तुझे कुछ मा�ूम ै हिक इस रोग की औषयि3 क्या ै? जब तू य जानता ै तो हिफर क्यो, हिकस आशा पर य स्ने बढ़ा र ा ै और बाबू सा ब। तुमको क्या क ना मंजूर ै? तुम क्या करने पर आये ो? तुम् ारे जी में क्या ै? क्या तुम न ीं जानते हिक य अखिग्न 33केगी तो हिफर बुझाये न बुझेगी? मुझसे ऐसा कौन-सा गुण ै? क ॉँ की बड़ी संुदरी हँू जो तुम प्रेमा, प्यारी प्रेमा, तो त्यागे देते ो? व बेर बेर मुझको बु�ाती ै। तुम् ीं बताओ, कौन मुँ �ेकर उसके पास जाऊँ और तुम तो आग �गाकर दूर से तमाशा देखोगे। इसे बुझायेगा कौन?बेचारी पूणा इन् ीं हिवचारों में डूबी र ती। बहुत चा ती हिक अम़तराय का ख्या� न आने पावे, मगर कुछ बस न च�ता।

अपने टिद� का परिरचय उसको एक टिदन यों यिम�ा हिक बाबू अमृतराय हिनयत समय पर न ीं आये। थोड़ी देर तक तो व उनकी रा देखती र ी मगर जब व अब भी न आये तब तो उसका टिद� कुछ मसोसने �गा। बड़ी व्याकु�ता से दौड़ी हुई दीवाजे पर आयी और आ3 घंटे तक कान �गाये खड़ी र ी, हिफर भीतर आयी और मन मारकर बैठ गयी। लिचत्त की कुछ व ी अवस्था ोने �गी जो पंहिडत जी के दौरे पर जाने के वक्त हुआ करती। शंका हुई हिक क ीं बीमार तो न ीं ो गये। म री से क ा—हिबल्�ो, जरा देखो तो बाबू सा ब का जी कैसा? न ीं मा�ूम क्यों मेरा टिद� बैठा जाता ै। हिबल्�ो �पकी हुई बाबू सा ब के बँग�े पर पहँुची तो ज्ञात हुआ हिक व आज दो तीन नौकरों को साथ �ेकर बाजार गय ेहुए ै। अभी तक न ीं आये। पुराना बूढ़ा क ार आ3ी टॉँगों तक 3ोती बॉँ3े सर हि �ाता हुआ आया और क ने �गा—‘बेटा बड़ा खराब जमाना आवा ै। जार का सउदा ोय तो, दुइ जार का सउदा ोय तो म ी �ै आवत र ेन। आज खुद आप गये ै। भ�ा इतने बडे़ आदमी का उस चा त र ा। बाकी हिफर सब अंग्रेजी जमाना आया ै। अँग्रेजी पढ़-पढ़ के जउन न ो जाय तउन अचरज न ीं। हिबल्�ो बूढे क र केसर हि �ाने पर ँसती हुई घर को �ौटी। इ3र जब से व आयी थी पूणा की हिवलिचत्र दशा ो र ी थी। हिवक� ो ोकर कभी भीतर जाती, कभी बा र आती। हिकसी तर चैन ी न आता। जान पड़ता हिक हिबल्�ो के आने में देर ो र ी ै। हिक इतने में जूते ी आवाज सुनायी दी। व दौड़ कर द्वार पर आयी और बाबू सा ब को ट �ते हुए पाया तो मानो उसको कोई 3न यिम� गया। झटपट भीतर से हिकवाढ खो� टिदया। कुसR रख दी और चौखट पर सर नीचा करके खड़ी ो गयी।

अमृतराय—हिबल्�ो क ीं गयी ै क्या?

पूणा—(�जाते हुए) ॉँ, आप ी के य ॉँ तो गयी ै।

अमृत०—मेरे य ॉँ कब गयी? क्यो कुछ जरूरत थी?

पूणा—आपके आने में हिव�ंब हुआ तो मैने शायद जी न अच्छा ो। उसको देखने के लि�ए भेजा।

अमृत०—(प्यार से देखकर) बीमारी चा े कैसी ी ो, व मुझे य ॉँ आने से न ीं रोक सकती। जरा बाजार च�ा गया था। व ॉँ देर ो गयी।

य क कर उन् ोंने एक दफे जोर से पुकारा, ‘सुखई, अंदर आओ’ और दो आदमी कमरे में दाखिख� हुए। एक के ाथ मे ऐक संदूक था और दूसरे के ाथ में त हिकय ेहुए कपडे़। सब सामान चौकी पर रख टिदया गया। बाबू सा ब बो�े—पूणा, मुझे पूरी आशा ै हिक तुम दो चार मामू�ी चीजें �ेकर मुझे कृताथ करोगी।( ंसकर) य देर मे आने का जुमाना ै।

पूणा अचमे्भ में आ गई। य क्या। य तो हिफर व ी स्ने बढ़ाने वा�ी बातें ै। और इनको खरीदने के लि�ए आप ी बाजार गये थे। अमृतराय। तुम् ारे टिद� में जो ै व मै जानती हंू। मेरे टिद� में जो ै व तुम भी जानते ो। मगर इसका नतीजा? इसमें संदे न ीं हिक इन चीजों की पूणा को बहुत जरूरत थी। पंहिडत जी की मो� �ी हुई सारिरया अब तक �ंगे तंगे च�ी थी। मगर अब प नने को कोई कपडे़ न थे। उसने सोचा था हिक अब की जब बाबू सा ब के य ा से मालिसक तनख्वा यिम�ेगी तो मामू�ी सारिरयॉँ मगा �ूँगी। उसे य क्या मा�ूम था हिक बीच में बनारसी और रेशमी सारिरयों का ढेर �ग जायगा। पहि �े तो व स्त्रिस्त्रयों की स्वाभाहिवक अत्यक्षिभ�ाषा से इन चीजों को देखने �गी मगर हिफर य चेत कर हिक मेरा इस तर चीजो पर हिगरना उलिचत न ीं ै व अ�ग ट गयी और बो�ी—बाबू सा ब। इस अनुग्र के लि�ए मै आपको 3न्यवाद देती हँू, मगर य भारी-भारी जोडे़ मेरे हिकस काम के। मेरे लि�ए मोटी-झोरी सारिरयॉँ चाहि ए। मैं इन् े प नूगी तो कोई क्या क ेगा।

अमृतराय—तुमने �े लि�या। मेरी मे नत टिठकाने �गी, और मै कुछ न ीं जानता।

इतने में हिबल्�ो पहँुची और कमरे में बाबू सा ब को देखते ी हिन ा� ो गयी। जब चौकी पर दृयिष्ठ पड़ी और इन चीजों को देखा तो बो�ी—क्या इनके लि�ए आप बाजार गये थे। बूढा क र रो र ा था हिक मेरी दस्तूरी मारी गयी।

अमृतराय—(दबी जबान से) व सब क ार मेरे नौकर ैं। मेरे लि�ए बाजार से चीजें �ाते ै। तुम् ारे सकार का मै चाकर हँू।

हिबल्�ो य सुनकर मुसकराती हुई भीतर च�ी गई। पूणा के कान में भी भनक पड़ गयी थी। बो�ी—उ�टी बात न कहि ए। मैं तो खुद आपकी चेरिरयो कीचेरी हँू। इसके बाद इ3र-उ3र की कुछ बातें हुई। माघ-पूस के टिदन थे, सरदी खूब पड़ र ी थी। बाबू सा ब देर तक न बैठ सके और आठ बजते बजते व अपने घर को लिस3ारे। उनके च�े जाने के बाद पूणा ने जो संदूक खो�ा तो दंग र गयी। स्त्रिस्त्रयो के सिसPगार की सब सामहिग्रयॉँ मौजूद थीं और जो चीज थी संुदर और उत्तम थी। आइना, कंघी, सुगंयि3त ते�ों की शीलिशयॉँ, भॉँहित’भाहित के इत्र, ाथों के कंगन, ग�े का चंद्र ार, जड़ाऊ, एक रूप �ा पानदान, लि�खने पढने के सामान से भरी एक संदूकची, हिकस्से-क ानी की हिकतबों, इनके अहितरिरक्त और भी बहुत-सी चीजें बड़ी उत्तम रीहित से सजाकर 3री हुइ थी। कपड़ो का बेठन खो�ा तो अच्छी से अच्छी सारिरया टिदखायी दी। शबती, 3ानी, गु�ाबी, उन पर रेशम के बे� बूट बने हुए। चादरे भारी सुन रे काम की। हिबल्�ो इन चीजो को देख-देख फू�ी न समाती थी। बो�ी—बहू। य सब चीजें तुम प नोगी तो रानी ो जाओगी—रानी।

पूणा—(हिगरी हुई आवाज में) कुछ भंग खा गयी ो क्या हिबल्�ों। मै य चीजें प नँूगी तो जीती बचँूगी। चौबाइन और सेठानी ताने दे देकर जान �े �ेगी।

हिबल्�ो—ताने क्या देंगी, कोई टिदल्ल्गी ै। इसमें उनके बाप का क्या इजारा। कोई उनसे मांगने जाता ै।

पूणा ने म री को आश्चय की ऑंखो से देखा। य ी हिबल्�ो ै जो अभी दो घंटे प �े चौआइन और पडाइन से सम्महित करती थी और मुझे बेर-बेर प नने-ओढ़ने से बजा करती थी। यकायक य क्या कायाप�ट ो गयी। बो�ी—कुछ संसार के क ने की भी तो �ाज ै।

हिबल्�ो—मै य थोड़ा ी क ती हँू हिक रदम य चीजें प ना करों। जब बाबू सा ब आवें थोड़ी देर के लि�ए प न लि�या।,

पूणा(�जाकर)—य सिसPगार करके मुझसे उनके सामने क्योंकर हिनक�ा जायगा। तुम् ें याद ै एक बेर प्रेमा ने मेरे बा� गँू3 टिदये थे। तुमसे क्या कहँू। उस टिदन व मेरी तरफ ऐसा ताकते थे जैसे कोई हिकसी पर जादू करे। न ीं मा�ूम क्या बात ै हिक उसी टिदन से व जब कभी मेरी ओर देखते ै तो मेरी छाती-3ड़ 3ड करने �गती ै। मुझसे जान-बूझकर हिफर ऐसी भू� न ोगी।

हिबल्�ो—बहू, उनकी मरजी ऐसी ी ै तो क्या करोगी, इन् ीं चीजों के लि�ए क� व बाजार गये थे। सैकड़ो नौकर-चाकर ै मगर इन् ें आप जाकर जाये। तुम इनको न प नोगी तो व अपने टिद� में क्या क ेंगे।

पूणा—(ऑंखो में ऑंसू भरकर) हिबल्�ो। बाबू अमृतराय न ीं मा�ूम क्या करने वा�े ै। मेरी समझ में न ीं आता हिक क्या करँू। व मुझसे टिदन-टिदन अयि3क प्रेम बढ़ाते जाते ै और मैं अपने टिद� को क्या कहँू, तुमसे क ते �ज्जा आती ै। व अब मेरे क ने में न ीं र ा। मो ल्�े वा�े अ�ग बदनाम कर र े ै। न जाने ईश्वर को क्या करना मंजूर ै।

हिबल्�ो ने इसका कुछ जवाब न टिदया। पूणा ने भी उस टिदन खाना न बनाया। सॉंझ ी से जाकर चारपाई पर �ेट र ी। दूसरे टिदन सुब को उठकर उसने व हिकताबें पढ़ना शुरू की, जो बाबू स ाब जाये थे। ज्यों-ज्यों व पढ़ती उसको ऐसा मा�ूम ोता हिक कोई मेरी ी

दुख की क ानी क र ा ै। इनके पढ़ने में जो जी �गा तो इतवार का टिदन आया। टिदन हिनक�ते ी हिबल्�ो ने ँसकर क ा—आज बाबू सा ब के आने का टिदन ै।

पूणा—(अनजान बनकर) हिफर?

हिबल्�ो—आज तुमको जरूर ग ने प नने पडे़गे।

पूणा—(दबी आवाज से) आज तो मेरे सर में पीड़ा ो र ी ै।

हिबल्�ो—नौज, तुम् ारे बैरी का सर दद करे। इस ब ाने से पीछा न छूटेगा।

पूणा—और जो हिकसी ने मुझे ताना टिदया तो तु जानना।

हिबल्�ो—ताना कौन रॉँड देगी।

सबेरे ी से हिबल्�ो ने पूणा का बनाव-सिसPगार करना शुरू हिकया। म ीनों से सर न म�ा गया था। आज सुगंयि3त मसा�े से म�ा गया, ते� डा�ा गया, कंघी की गयी, बा� गँूथे गये और जब तीसरे प र को पूणा ने गु�ाबी कुतR प नकर उस रेशमी काम की शबती सारी प नी, ग�े मे ार और ाथों में कंगन सजाये तो संुदरता की मूर्षितP मा�ूम ोने �गी। आज तक कभी उसने ऐसे रत्न जहिड़त ग ने और बहुमूल्य कपडे़ न प ने थे। और न कभी ऐसी सुघर मा�ूम हुई थी। व अपने मुखारनिवPद को आप देख देख कुछ प्रसन्न भी ोती थी, कुछ �जाती भी थी और कुछ शोच भी करती थी। जब सॉँझ हुई तो पूणा कुछ उदास ो गयी। जिजस पर भी उसकी ऑंखे दरवाजे पर �गी हुई थीं और व चौंक कर ताकती थी हिक क ीं अमृतराय तो न ीं आ गये। पॉँच बजते बजत ेऔर टिदनों से सबेरे बाबू अमृतराय आये। कमरे में बैठे, हिबल्�ो से कुश�ानंद पूछा और ��चायी हुई ऑंखो से अंदर के दरवाजे की तरफ ताकने �गे। मगर व ॉँ पूणा न थीं, कोई दस यिमनट तक तो उन् ोंने चुपचाप उसकी रा देखी, मगर जब अब भी न टिदखायी दी तो हिबल्�ो से पूछा—क्यो म री, आज तुम् ारी सकार क ॉँ ै?

हिबल्�ो—(मुस्कराकर) घर ी में तो ै।

अमृत०—तो आयी क्यों न ीं। क्या आज कुछ नाराज ै क्या?

हिबल्�ो—(हंूसकर) उनका मन जाने।

अमृत०—जरा जाकर लि�वा जाओ। अगर नाराज ों तो च�कर मनाऊँ।

य सुनकर हिबल्�ो ँसती हुई अंदर गई और पूणा से बो�ी—बहू, उठोगी या व आप ी मनाने आत े ै।

पूणा—हिबल्�ो, तुम् ारे ाथ जोड़ती हँू, जाकर क दो, बीमार ै।

हिबल्�ो—बीमारी का ब ाना करोगी तो व डाक्टर को �ेने च�े जायॅगे।

पूणा—अच्छा, क दो, सो र ी ै।

हिबल्�ो—तो क्या व जगाने न आऍंगे?

पूणा—अच्छा हिबल्�ो, तुम ी केई ब ाना कर दो जिजससे मुझे जाना न पडे़।

हिबल्�ो—मैं जाकर क े देती हँू हिक व आपको बु�ाती ै।

पूणा को कोई ब ाना न यिम�ा। व उठी और शम से सर झुकाये, घँूघट हिनका�े, बदन को चुराती, �जाती, ब� खाती, एक हिग�ौरीदान लि�ये दरवाजे परआकर खड़ी ो गइ अमृतराय ने देखा तो अचमे्भ में आ गये। ऑंखे चौयि3या गयीं। एक यिमनट तक तो व इस तर ताकते र े जैसे कोई �ड़के खिख�ौने को देखे। इसके बाद मुस्कराकर बो�े—ईश्वर, तू 3न्य ै।

पूणा—(�जाती हुई) आप कुश� से थे?

अमृत०—(हितछ³ हिनगा ों से देखकर) अब तक तो कुश� से था, मगर अब खैरिरयत न ीं नजर आती।

पूणा समझ गयी, अमृतराय की रंगी�ी बातों का आनंद �ेते �ेते व बो�ने मे हिनपुण ो गयी थी। बो�ी—अपने हिकये का क्या इ�ाज?

अमृत०—क्या हिकसी को अपनी जान से बैर ै।

पूणा ने �जाकर मुँ फेर लि�या। बाबू सा ब ँसने �गे और पूणा की तरफ प्यार की हिनगा ों से देखा। उसकी रलिसक बातें उनको बहुत भाइ, कुछ का� तक और ऐसी ी रस भरी बाते ोती र ीं। पूणा को इस बात की सुयि3 भी न थी हिक मेरा इस तर बो�ना चा�ना मेरे लि�ए उलिचत न ीं ै। उसको इस वक्त न पंडाइन का डर था, न पडोलिसयों का भय। बातों ी बातों में उसने मुसकराकर अमृतराय से पूछा—आपको आजक� प्रेमा का कुछ समाचार यिम�ा ै?

अमृत०—न ीं पूणा, मुझे इ3र उनकी कुछ खबर न ीं यिम�ी। ॉँ, इतना जानता हँू हिक बाबू दाननाथ से ब्या की बातचीत ो र ी ै।

पूणा—बाबू दाननाथ तो आपके यिमत्र ै?

अमृत०—यिमत्र भी ै और प्रेमा के योगय भी ै।

पूणा—य तो मै न मानूगी। उनका जोड़ ै तो आप ी से ै। ॉ, आपका ब्या भीतो क ीं ठ रा था?

अमृत०— ॉँ, कुछ बातचीत ो र ी थी।

पूणा—कब तक ोने की आशा ै?

अमृत०—देखे अब कब भाग्य जागता ै। मैं तो बहुत जल्दी मचा र ा हंू।

पूणा—तो क्या उ3र ी से खिखPचाव ै। आश्चय की बात ै।

अमृत०—न ीं पूणा, मै जरा भाग्य ीन हँू। अभी तक लिसवाय बातचीत ोने के और कोई बात तय न ीं हुई।

पूणा—(मुसकराकर) मुझे अवश्य नवता दीजिजएगा।

अमृत०—तुम् ारे ी ाथों में तो सब कु ै। अगर तुम चा ो तो मेरे सर से रा बहुत जल्द बँ3 जाए।

पूणा भौचक ोकर अमृतराय की ओर देखने �गी। उनका आशय अब की बार भी व न समझी। बो�ी—मेरी तरफ से आप हिनक्षिश्चत रहि ए। मुझसे ज ॉँ तक ो सकेगा उठा न रखूँगी।

अमृत०—इन बातों को याद रखना, पूणा, ऐसा न ो भू� जाओ तो मेरे सब अरमान यिमटटी में यिम� जाऍं।

य क कर बाबू अमृतराय उठे और च�ते समय पूणा की ओर देखा। उसकी ऑंखे डबडबायी हुई थी, मानो हिवनय कर र ी थी हिक जरा देर और बैटिठए। मगर अमृतराय को कोइ जरूरी काम था 3ीरे से उठ खडे़ हुए और बो�े—जी तो न ी चा ता हिक य ॉँ से जाऊँ। मगर आज कुछ काम ी ऐसा आ पड़ा। य क ा और च� टिदये। पूणा खड़ी रोती र गई।

पे्रमा भाग 9 / पे्रमचंद पन्ना संवाद सोस देखें . पुराने अवतरण

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 रचनाकार: पे्रमचंद                 

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तुम सचमुच जादूगर हो

नौ बजे रात का समय था। पूणा अँ3ेरे कमरे में चारपाई पर �ेटी हुई करवटें बद� र ी ै और सोच र ी ै आखिखर व मुझेस क्या चा ते ै? मै तो उनसे क चुकी हिक ज ॉँ तक मुझसे ो सकेगा आपका काय लिसद्व करने में कोई बात उठा न रखूँगी। हिफर व मुझसे हिकतना प्रेम बढ़ाते ै। क्यों मेरे सर पर पाप की गठरी �ादते ै मै उनकी इस मो नी सूरत को देखकर बेबस हुई जाती हँू।

मैं कैसे टिद� को समझाऊ? व तो प्रेम रस पीकर मतवा�ा ो र ा ै। ऐसा कौन ोगा जो उनकी जादूभरी बातें सुनकर रीझ न जाय? ाय कैसा कोम� स्वभाव ै। ऑंखे कैसी रस से भरी ै। मानो दय में चुभी जाती ै।

आज व और टिदनों से अयि3क प्रसन्न थे। कैसा र र कर मेरी और ताकते थे। आज उन् ोने मुझे दो-तीन बार ‘प्यारी पूणा’ क ा। कुछ समझ में न ीं आता हिक क्या करनेवा�े ै? नारायण। व मुझसे क्या चा ते ै। इस मो ब्बत का अंत क्या ोगा।

य ी सोचते-सोचते जब उसका ध्यान परिरणाम की ओर गया तो मारे शम के पसीना आ गया। आप ी आप बो� उठी।

न......न। मुझसे ऐसा न ोगा। अगर य व्यव ार उनका बढ़ता गया तो मेरे लि�ए लिसवाय जान दे देने के और कोई उपाय न ीं ै। मैं जरूर ज र खा �ूँगी। न ी-न ीं, मै भी कैसी पाग� ो गयी हँू। क्या व कोई ऐसे वैसे आदमी ै। ऐसा सज्जन पुरूष तो संसार में न ोगा। मगर हिफर य प्रेम मुझसे क्यों �गाते ै। क्या मेरी परी5ा �ेना चा ती ै। बाबू सा ब। ईश्चर के लि�ए ऐसा न करना। मै तुम् ारी परी5ा में पूरी न उतरँूगी।

पूणा इसी उ3ेड़-बुन मे पड़ी थी हिक नींद आ गयी। सबेरा हुआ। अभी न ाने जाने की तैयारी कर र ी थी हिक बाबू अमुतराय के आदमी ने आकर हिबल्�ो को जोर से पुकारा और उसे एक बंद लि�फाफा और एक छोटी सी संदूकची देकर अपनी रा �गा। हिबल्�ो ने तुरंत आकर पूणा को य चीजें टिदखायी।

पूणा ने कॉँपते हुए ाथों से खत लि�या। खो�ा तो य लि�खा था—

‘प्राणप्यारी से अयि3क प्यारी पूणा।

जिजस टिदन से मैंने तुमको प �े प � देखा था, उसी टिदन से तुम् ारे रसी�े नैनों के तीर का घाय� ो र ा हँू और अब घाव ऐसा दुखदायी ो गया ै हिक स ा न ीं जाता। मैंने इस प्रेम की आग को बहुत दबाया। मगर अब व ज�न अस य ो गयी ै। पूणा। हिवश्वास मानो, मै तुमको सच्चे टिद� से प्यार करता हंू। तुम मेरे दय कम� के कोष की मालि�क ो। उठते बैठते तुम् ारा मुसकराता हुआ लिचत्र आखों के सामने हिफरा करता ै। क्या तुम मुझ पर दया न करोगी? मुझ पर तरस न खाओगी? प्यारी पूणा। मेरी हिवनय मान जाओ। मुझको अपना दास, अपना सेवक बना �ो। मै तुमसे कोई अनुलिचत बात न ीं चा ता। नारायण। कदाहिप न ीं, मै तुमसे शास्त्रीय रीहित पर हिववा करना चा ता हँू। ऐसा हिववा तुमको अनोखा मा�ूम ोगा। तुम समझोगी, य 3ोखे की बात ै। मगर सत्य मानो, अब इस देश में ऐसे हिववा क ीं क ीं ोने �गे ै। मै तुम् ारे हिवर में मर जाना पसंद करँूगा, मगर तुमको 3ोखा न दंूगा।

‘पूणा। न ी मत करो। मेरी हिपछ�ी बातों को याद करो। अभी क� ी जब मैंने क ा हिक ‘तुम चा ो तो मेरे सर बहुत जल्द से रा बँ3 सकता ै।‘ तब तुमने क ा था हिक ‘मै भर शलिक्त कोई बात उठा न रखूँगी। अब अपना वादा पूरा करो। देखो मुकर मत जाना।

‘इस पत्र के साथ मैं एक ज ाऊ कंगन भेजता हू। शाम को मैं तुम् ारे दशन को आऊँगा। अगर य कंगन तुम् ारी क�ाई पर टिदखाइ टिदया तो समझ जाऊँगा हिक मेरी हिवनय मान �ी गयी। अगर न ीं तो हिफर तुम् ें मुँ न टिदखाऊँगा।

तुम् ारी सेवा का अक्षिभ�ाषी अमृतराय।

पूणा ने बडे़ गौर से इस खत को पढ़ा और शोच के अथा समुद्र में गोते खाने �गी। अब य गु� खिख�ा। म ापुरूष ने व ॉँ बैठकर य पाखंड रचा। इस 3ूमपन को देखो हिक मुझसे बेर बेर क ते थे हिक तुम् ारे ी ऊपर मेरा हिववा ठीक करने का बोझ ै, मै बौरी क्या जानँू हिक इनके मन में क्या बात समायी ै। मुझसे हिववा का नाम �ेत ेउनको �ाज न ीं ोती। अगर सु ाहिगन बनना भाग में बादा ोता तो हिव3वा का े िµो ोती। मै अब इनको क्या जवाब दँू। अगर हिकसी दूसरे आदमी ने य गा�ी लि�खी ोती तो उसका कभी मु ँ न देखती। मैं क्या सखी प्रेमा से अच्छी हँू? क्या उनसे संुदर हँू?क्या उनसे गुणवती हँू? हिफर य क्या समझकर ऐसी बाते लि�खत े ै? हिववा करेगे। मै समझ गयी जैसा हिववा ोगा। क्या मुझे इतनी भी समझ न ीं? य सब उनकी 3ूतपन ै। व मुझे अपने घर रक्खा चा ते ैं। मगर ऐसा मुझसे कदाहिप न ोगा। मै तो इतना ी चा ती हँू हिक कभी-कभी उनकी मो नी मूरत का दशन पाया करँू। कभी-कभी उनकी रसी�ी बहितयॉँ सुना करँू और उनका कुश� आनंद, सुख समाचार पाया करँू। बस। उनकी पत्नी बनने के योग्य मै न ीं हँू। क्या हुआ अगर दय में उनकी सूरत जम गयी ै। मै इसी घर में उनका ध्यान करते करते जान दे दँूगी। पर मो के बस के आकर मुझसे ऐसा भारी पाप न हिकया जाएगा। मगर इसमें उन बेचारे का दोष न ीं ै। व भी अपने टिद� से ारे हुए ै। न ीं मा�ूम क्यों मुझ अभाहिगनी में उनका प्रेम �ग गया। इस श र में ऐसा कौन रईस ै जो उनको �ड़की देने में अपनी बड़ाई न समझे। मगर ईश्वर को न जाने क्या मंजूर था हिक उनकी प्रीहित मुझसे �गा दी। ाय। आज की सॉँझ को व आएगे। मेरी क�ाई पर कंगन न देखेगे तो टिद� मे क्या क ेंगे? क ीं आना-जाना त्याग दें तो मै हिबन मारे मर जाऊँ। अगर उनका लिचत्त जरा भी मेरी ओर से मोटा हुआ, तो अवश्य ज र खा �ूगीँ। अगर उनके मन में जरा भी माख आया, जरा भी हिनगा बद�ी, तो मेरा जीना कटिठन ै।

हिबल्�ो पूणा के मुखडे़ का चढ़ाव-उतार बडे़ गौर से देख र ी थी। जब व खत पढ़ चुकी तो उसने पूछा—क्या लि�खा ै बहू?

पूणा—(मलि�न स्वर में) क्या बताऊँ क्या लि�खा ै?

हिबल्�ो—क्यो कुश� तो ै?

पूणा— ॉँ, सब कुश� ी ै। बाबू सा ब ने आज नया स्वॉँग रचा।

हिबल्�ो—(अचंभे से) व क्या?

पूणा—लि�खते ै हिक मुझसे......

उससे और कुछ न क ा गया। हिबल्�ो समझ गयी। मगर व ीं तक पहुची ज ॉँ तक उसकी बुहिद्व ने मदद की। व अमृतराय की बढ़ती हुई मु ब्बत को देख-देखकर टिद� में समझे बैठी हुई थी हिक व एक न एक टिदन पूणा को अपने घर अवश्य डा�ेगे। पूणा उनको प्यार करती ै, उन पर जान देती ै। व प �े बहुत हि चहिकचायगी मगर अंत मे मान ी जायगी। उसने सैकडो रईसों को देखा था हिक नाइनों क ारिरयो, म राजिजनों को घर डा� लि�या था। अब की भी ऐसा ी ोगा। उसे इसमें कोई बात अनोखी न ीं मा�ूम ोती थी हिक बाबू सा ब का प्रेम सच्च ै मगर बेचारे लिसवाय इसके और कर ी क्या सकते ै हिक पूणा को घर डा� �ें। देखा चाहि ए हिक बहू मानती ै या न ीं। अगर मान गयीं तो जब तक जिजयेगे, सुख भोगेगी। मै भी उनकी सेवा में एक टुकड़ा रोटी पाया करँूगी और जो क ीं इनकार हिकया तो हिकसी का हिनबा न ोगा। बाबू सा ब ी का स ारा ठ रा। जब व ी मुँ मोड़ �ेंगे तो हिफर कौन हिकसको पूछता ै।

इस तर ऊँच-नीच सोचकर उसने पूणा से पूछा-तुम क्या जवाब दो दोगी?

पूणा-जवाब ऐसी बातों का भी भ� क ीं जवाब ोता ै। भ�ा हिव3वाओं का क ीं ब्या हुआ ै और व ी भी ब्रह्ममण का 5हित्रय से। इस तर की चन्द क ाहिनयां मैंने उन हिकताबो में पढ़ी जो व मुझे दे गये ै। मगर ऐसी बात क ीं सैतुक न ीं देखने आयी।

हिबल्�ो समझी थी हिक बाबू सा ब उसको घर डरानेवा�े ै। जब ब्या का नाम सुना तो चकरा कर बो�ी-क्या ब्या करने को क ते ै?

पूणा- ॉँ।

हिबल्�ों—तुमसे?

पूणा-य ी तो आश्च ै।

हिबल्�ो—अचराज सा अचरज ैं भ�ा ऐसी क ीं भया ै। बा�क पक गये मगर ऐसा ब्या न ीं देखा।

पूणा-हिबल्�ो, य सब ब ाना ै। उनका मत�ब मैं समझ गयी।

हिबल्�ो-व तो खु�ी बात ै।

पूणा—ऐसा मुझसे न ोगा। मैं जान दे दँूगी पर ऐसा न करँुगी।

हिबल्�ो—बहू उनका इसमें कुछ दोष न ीं ै। व बेचारे भी अपने टिद� से ारे हुए ैं। क्या करें।

पूणा— ाँ हिबल्�ों, उनको न ीं मा�ूम क्यों मुझसे कुछ मु ब्बत ो गयी ै और मेरे टिद� का ा� तो तुमसे लिछपा न ीं। अगर व मेरी जान मॉँगते तो मैं अभी दे देती। ईश्वर जानता ै, उनके ज़रा से इशारे पर मैं अपने को हिनछावर कर सकती हँू।

मगर जो बात व चा ते ै मुझसे न ोगी। उसके सोचती हँू तो मेरा क�ेजा काँपने �गता ै।

हिबल्�ो— ॉँ, बात तो ऐसा ी ै मुदा...

पूणा-मगर क्या, भ�ेमानुसो में ऐसा कभी ोता ी न ीं। ॉँ, नीच जाहितयों में सगाई, डो�ा सब कुछ आता ै।

हिबल्�ो—बहू य तो सच ै। मगर तुम इनकार करोगी तो उनका टिद� टूट जायेगा।

पूणा—य ी डर मारे डा�ता ै। मगर इनकार न करँु तो क्या करँु। य तो मैं भी जानती हँू हिक व झूठ-सच ब्या कर �ेंगे। ब्या क्या कर �ेंगे। ब्या क्या करेंगे, ब्या का नाम करेंगे। मगर सोचो तो दूहिनया क्या क ेगी। �ोग अभी से बदनाम कर र े ै, तो न जाने और क्या-क्या आ5ेप �गायेंगे। मैं सखी प्रेमा को मुँ टिदखाने योग्स न ीं रहँूगी। बस य ी एक उपाय ै हिक जान दे दँू, न र बॉँस न बजें बॉँसुरी। उनको दो-चार टिदन तक रंज र ेगा, आखिखर भू� जाऐंगे। मेरी तो इज्ज़त बच जायगी।

हिबल्�ो—(बात प�ट कर) इस सन्दूकचे मे’ क्या ै?

पूणा-खो� कर देखो।

हिबल्�ो ने जो उसे खो�ा तो एक क़ीमती कंगन री मखम� में �पेटकर 3रा था और सन्दूक में संद� की सुगं3 आ र ी थी। हिबल्�ो ने उसको हिनका� लि�या और चा ा की पूणा के थ खींच लि�या और ऑंखों में ऑंसू भर कर बो�ी—मत हिबल्�ो, इसे मत प नाओ। सन्दूक में बंद करके रख दो।

हिबल्�ों—ज़रा प नो तो देखो कैसा अच्छा मा�ूम ोता ै।

पूणा—कैसे प नँू। य तो इस बात का सूचक ो जाएगा हिक उनकी बात मंजूर ै।

हिबल्�ो-क्या य भी इस चीठी में लि�खा ै?

पूणा— ॉँ, लि�खा ै हिक मैं आज शाम को आऊँगा और अगर क�ाई पर कंगन देखूँगा तो समझ जाऊँगा हिक मेरी बात मंजूर ै।

हिबल्�ो—क्या आज ी शाम को आऍंगे?

पूणा— ॉँ।

य क कर पूणा ने लिसर नीचा कर लि�या। न ाने कौन जाता ै। खाने पीने की हिकसको सु3 ै। दोप र तक चुपचाप बैठी सोचा की। मगर टिद� ने कोई बात हिनणय न की ॉँ, -ज्यों-ज्यों सॉँझ का समय हिनकट आया था त्यों-त्यों उसका टिद� 3ड़कता जाता था हिक उनके सामने कैसे जाऊँगी। व मेरी क�ाई पर कंगन न देखगें तो क्या क ेंगे? क ीं रुठ कर च�े न जायँ? व क ीं रिरसा गये तो उनको कैसे मनाऊँगी?मगर तहिबय ता क़ायदा ै हिक जब कोई बात उसको अहित �ौ�ीन करनेवा�ी ोती ै तो थोड़ी देर के बाद व उसे भागने �गती ै। पूणा से अब सोचा भी न जाता था। माथे पर ाथ घरे मौन सा3े लिचन्ता की लिचत्र बनी दीवार की ओर ताक र ी थी। हिबल्�ो भी मान मारे बैठी हुई थी। तीन बजे ोंगे हिक यकायक बाबू अमृतराय की मानूस आवाज़ दरवाजे पर हिबल्�ो पुकराते सुनायी दी। हिबल्�ो चट बा र दौड़ी और पूणा जल्दी से अपनी कोठरी में घुस गयी हिक दवाज़ा भेड़ लि�या। उसका टिद� भर आया और व हिकवाड़ से लिचमट कर फूट-फूट रोने �गी। उ3र बाबू सा ब बहुत बेचैन थे। हिबल्�ो ज्यों ी बा र हिनक�ी हिक उन् ोंने उसकी तरफ़ आस-भरी ऑंखों से देखा। मगर जब उसके चे रे पर खुशी का कोई लिचह्न न टिदखायी टिदया तो व उदास ो गये और दबी आवाज़ में बो�ी—म री, तुम् ारी उदासी देखकर मेरा टिद� बैठा जाता ै।

हिबल्�ो ने इसका उत्तर कुछ न टिदया।

अमृतराय का माथा ठनका हिक जरुर कुछ गड़बड़ ो गयी। शायद हिबगड़ गयी। डरते-डरते हिबल्�ो से पूछा—आज मार आदमी आया था?

हिबल्�ो ा आया था।

अमृत—कुछ दे गया?

हिबल्�ो—दे क्यों न ीं गया।

अमृत तो क्या हुआ? उसको प ना?

हिबल्�ो— ॉँ, प ना अरे ऑंख भर के देखा तो हूई न ीं। तब से बैठी रो र ी ै। न खाने उठी, न गंगा जी गयी।

अमृत—कुछ क ा भी। क्या बहुत खफ़ा ै?

हिबल्�ो—क तीं क्या? तभी से ऑंसू का तार न ीं टूटा।

अमृतराय समझ गये हिक मेरी चा� बुरी पड़ी। अभी मुझे कुछ टिदन और 3ीरज रखना चाहि ए था। व जरुर हिबगड़ गयीं। अब क्या करँु? क्या अपना-सा मुँ �े के �ौट जाऊँ? या एक दफा हिफर मु�ाकात कर �ूँ तब �ौट जाऊँ कैसे �ौटँू। �ौटा जायगा? ाय अब न �ौटा जायगा। पूणा तू देखने में बहुत सी3ी और भो�ी ै, परन्तु तेरा हृदय बहुत कठोर ै। तूने मेरी बातों का हिवश्वास न ीं माना तू समझती ै मैं तुझसे कपट कर र ा हँू। ईश्वर के लि�ए अपने मन से य शंका हिनका� डा�। मैं 3ीरे-3ीरे तेरे मो में कैसा जकड़ गया हँू हिक अब तेरे हिबना जीना कटिठन ै। प्यारी जब मैंने तुझसे प � बातचीत की थी तो मुझे इसकी कोई आशा न थी हिक तुम् ारी मीठी बातों और तुम् ारी मन्द मुस्कान का ज़ादू मुझ पर ऐसा च� जायगा मगर व जादू च� गया। और अब लिसवाय तुम् ारे उसे और कौन अतार सकता ै। न ीं, मैं इस दरवाजे़ से कदाहिप न ीं हि �ूँगा। तुम नाराज़ ोगी। झल्�ाओगी। मगर कभी न कभी मुझ पर तरस आ ी जायगा। बस अब य ी करना उलिचत ै । मगर देखी प्यारी, ऐसा न करना हिक मुझसे बात करना छोड़ दो। न ीं तो मेरा क ीं टिठकाना न ीं। क्या तुम मसे सचमुच नाराज़ ो। ाय क्या तुम प रों से इसलि�ए रो र ी ो हिक मेरी बातों ने तुमको दुख टिदया।

य बातें सोचते-सोचते बाबू सा ब की ऑंखों में ऑंसू भर आये और उन् ोंने गदगद स्वर में हिबल्�ो से क ा—म री, ो सके तो ज़रा उनसे मेरी मु�ाक़ात करा दो। क दो एक दम के लि�ए यिम� जायें। मुझ पर इतनी कृपा करो।

म री ने जो उनकी ऑंखें �ा� देखीं तो दौड़ हुई घर में आयी पूणा के कमरे में हिकवाड़ खटखटाकर बो�ी---बहू, क्या ग़ज़ब करती ो, बा र हिनक�ो, बेचारे खडे़ रो र े ैं।

पूणा ने इरादा कर लि�या था हिक मैं उनके सामने कदाहिप न जाऊँगी। व म री से बातचीत करके आप ी च�े जायँगे। मगर जब सुना हिक रो र े ै तो प्रहितज्ञा टूट गयी। बो�ी—तुमन जा के क्या क टिदया?

म री—मैंन तो कुछ भी न ीं क ा।

पूणा से अब न र ा गया। चट हिकवाड़ खो� टिदये। और कॉँपती हुई आवाज़ से बो�ी-सच बत�ाओ हिबल्�ो, क्या बहुत रो र े ै?

म री-नारायण जाने, दोनों ऑंखें �ा� टेसू ो गयी ैं। बेचारे बैठे तक न ीं। उनको रोते देखकर मेरा भी टिद� भर आया।

इतने में बाबू अमृतराय ने पुकार कर क ा—हिबल्�ो, मैं जाता हँू। अपनी सकार से क दो अपरा3 5मा करें।

पूणा ने आवाज़ सुनी। व एक ऐसे आदमी की आवाज़ थी जो हिनराशा के समुद्र में डूबता ो। पूणा को ऐसा मा�ूम हुआ जैसे उसके हृदय को हिकसी ने छेद टिदया। ऑंखों से ऑंसू की झड़ी �ग गयी। हिबल्�ों ने क ा—बहू, ाथ जोड़ती हँू, च�ी च�ो जिजसमें उनकी भी खाहितरी ो जाए।

य क कर उसने आप से उठती हुई पूणा का ाथ पकड़ कर उठाया और व घँूघट हिनका� कर, ऑंसू पोंछती हुई, मदाने कमरे की तरफ च�ी। हिबल्�ो ने देखा हिक उसके ाथों में कंगन न ीं ै। चट सन्दूकची उठा �ायी और पूणा का ाथ पकड़ कर चा ती थी हिक कंगन हिपन् ा दे। मगर पूणा ने ाथ झटक कर छुड़ा लि�या और दम की दम में बैठक के भीतर दरवाजे़ पर आके खड़ी रो र ी थी। उसकी दोनों ऑंखें �ा� थी और ताजे ऑंसुओ की रेखाऍं गा�ों पर बनी हुई थी। पूणा ने घँूघट उठाकर प्रेम-रस से भरी हुई ऑंखों से उनकी ओर ताका। दोनों की ऑंखें चार हुई। अमृतराय बेबस ोकर बढे़। लिससकती हुई पूणा का ाथ पकड़ लि�या और बड़ी दीनता से बो�े—पूणा, ईश्वर के लि�ए मुझ पर दया करो।

उनके मुँ से और कुछ न हिनक�ा। करुणा से ग�ा बँ3 गया और व सर नीचा हिकये हुए जवाब के इन्तिन्तजार में खड़ा ो गये। बेचारी पूणा का 3ैय उसके ाथ से छूट गया। उसने रोते-रोते अपना सर अमृतराय के कं3े पर रख टिदया। कुछ क ना चा ा मगर मुँ से आवाज़ न हिनक�ी। अमृतराय ताड़ गय ेहिक अब देवी प्रसन्न ो गयी। उन् ोंने ऑंखों के इशारे से हिबल्�ो से कंगन मँगवाया। पूणा को 3ीरेस कुसR पर हिबठा टिदया। व जरा भी न जिझझकी। उसके ाथों में कंगन हिपन् ाये, पूणा ने ज़रा भी ाथ न खींचा। तब अमृतराय न

सा सा करके उसके ाथों को चूम लि�या और उनकी ऑंखें प्रेम से मग्न ोकर जगमगाने �गीं। रोती हुई पूणा ने मो ब्बत-भरी हिनगा ों से उनकी ओर देखा और बो�ी—प्यार अमृतराय तुम सचमुच जादूगर ो।

पे्रमा भाग 10 / पे्रमचंद पन्ना संवाद सोस देखें . पुराने अवतरण

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 रचनाकार: पे्रमचंद                 

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विववाह हो गया

य ऑंखों देखी बात ै हिक बहुत करके झुठी और बे-लिसर पैर की बातें आप ी आप फै� जाया करती ै। तो भ�ा जिजस बात में सच्चाई नाममात्र भी यिम�ी ो उसको फै�ते हिकतनी देर �गती ै। चारों ओर य ी चचा थी हिक अमृतराय उस हिव3वा ब्राह्मणी के घर बहुत आया जाया करता ै। सारे श र के �ोग कसम खाने पर उद्यत थे हिक इन दोनों में कुछ सॉँठ-गॉँठ जरुर ै। कुछ टिदनों से पंडाइन औरचौबाइन आटिद ने भी पूणा के बनाव-चुनाव पर नाक-भौं चढ़ाना छोड़ टिदया था। क्योंहिक उनके हिवचार में अब व ऐसे बन्धनों की भागी थी। जो �ोग हिवद्वान थे और हि न्दुस्तान के दूसरे देशों के ा� जानते थे उनको इस बात की बड़ी लिचन्ता थी हिक क ीं य दोनों हिनयोग न करे �ें। ज़ारों आदमी इस घात मे थे हिक अगर कभी रात को अमृतराय पूणा की ओर जाते पकडे़ जायँ तो हिफर �ौट कर घर न जाने पावें। अगर कोई अभी तक अमृतराय की नीयत की सफाई पर हिवश्वास रखता था तो व प्रेमा थी। व बेचारी हिवरा खिग्न में ज�ते-ज�ते कॉँटा ो गई थी, मगर अभी तक उनकी मु ब्बत उसके टिद� में वैसी ी बनी हुई थी। उसके टिद� में कोई बैठा हुआ क र ा था हिक तेरा हिववा उनसे अवश्य ोगौ। इसी आशा पर उसके जीवन का आ3ार था। व उन �ोगों में थी जो एक ी बार टिद� का सौदा चुकाते ै।

आज पूणा से वचन �ेकर बाबू सा ब बँग�े पर पहँुचने भी न पाये थे हिक य ख़बर एक कान से दूसरे कान फै�ने �गी और शाम ोते- ोते सारे श र में य ी बात गँूजने �गी। जो कोई सुनता उसे प �े तो हिवश्वास न आता। क्या इतने मान-मयादा के ईसाई ो गये ैं, बस उसकी शंका यिमट जाती। व उनको गालि�यॉँ देता, कोसता। रात तो हिकसी तर कटी। सवेरा ोते ी मुंशी बदरीप्रसाद के मकान पर सारे नगर के पंहिडत, हिवद्वान ध्नाढ़य और प्रहितयिष्ठत �ोग एकत्र हुए और इसका हिवचार ोने �गा हिक य शादी कैसे रोकी जाय।

पंहिडत भृगुदत्त—हिव3वा हिववा वर्जिजPत ैं कोई मसे शास्त्रथ कर �े। वेदपुराण में क ीं ऐसा अयि3कार कोई टिदखा दे तो म आज पंहिडताई करना छोड़ दें।

इस पर बहुत से आदमी लिचल्�ाये, ॉँ, ॉँ, जरुर शास्त्राथ ो।

शास्त्रथ का नाम सुनते ी इ3र-उ3र से सैकड़ों पंहिडत हिवद्याथR बग़�ों में पोलिथयां दबाये, लिसर घुटाये, अँगोछा कँ3े पर रक्खे, मुँ में तमाकू भरे, इकटे्ट ो गये और झक-झक ोने �गी हिक ज़रुर शास्त्रथ ो। प �े य श्लोक पूछा जाय। उसका य उत्तर दें तो हिफर य प्रश्न हिकया जावे। अगर उत्तर देने में व �ोग साहि त्य या व्याकरण में ज़रा भी चूके तो जीत मारे ाथ ो जाय। सैंकड़ों कठमुल्�े गँवार भी इसी मण्ड�ी में यिम�कर को�ा � मचा र े थे। मुँशी बदरीप्रसाद ने जब इनको शास्त्रथ करने पर उतारु देखा तो बो�े—हिकस से करोगे शास्त्राथ? मान �ो व शास्त्राथ न करें तब?

सेठ 3ूनीम�—हिबना शास्त्राथ हिकये हिववा कर �ेगें (3ोती सम् ा� कर) थाने में रपट कर दँूगा।

ठंकुर जोरावर सिसP —(मोछों पर ताव देकर) कोई ठट्ठा ै ब्या करना, लिसर काट डा�ूँगा। �ोहू की नदी ब जायगी।

राव सा ब—बारता की बारात काट डा�ी जायगी।

इतने में सैकड़ों आदमी और आ डटे। और आग में ई3न �गाने �गे।

एक—ज़रुर से ज़रुर लिसर गंजा कर टिदया जाए।

दूसरा—घर में आग �गा देंगे। सब बारात ज�-भुन जायगी।

तीसरा—प �े उस यात्री का ग�ा घोंट देंगे।

इ3र तो य रबोंग मचा हुआ था, उ3र दीवानखाने में बहुत से वकी� और मुखतार रमझल्�ा मचा र े थे। इस हिववा को न्याय हिवरुद्ध साहिबत करने के लि�ए बड़ा उद्योग हिकया जा र ा था। बड़ी तेज़ी से मोटी-मोटी पुस्तकों के वरक उ�टे जा र े थे। बरसों की पुरानी-3ुरानी नज़ीरे पढ़ी जा र ी थी हिक क ीं से कोई दाँव-पकड़ हिनक� आवे। मगर कई घण्टे तक सर ख़पाने पर कुछ न ो सका। आखिखर य सम्महित हुई हिक प �े ठाकुर ज़ोरावर सिसP अमृतराय का 3मकावें। अगर इस पर भी व न मानें तो जिजस टिदन बारात हिनक�े सड़क पर मारपीट की जाय। इस प्रस्ताव के बाद न मानों तो हिवसजन हुई। बाबू अमृतराय बया की तैयारिरयों में �गे हुए थे हिक ठाकुर ज़ोरावर सिसP का पत्र पहँुचा। उसमें लि�खा था—

‘बाबू अमृतराय को ठाकुर ज़ोरावर सिसP का स�ाम-बंदगी बहुत-बहुत तर से पहँुचे। आगे मने सुना ै हिक आप हिकसी हिव3वा ब्राह्मणी से हिववा करने वा�े ै। म आपसे क े देते ैं हिक भू� कर भी ऐसा न कीजिजएगा। न ीं तो आप जाने और आपका काम।’

ज़ोरावर सिसP एक 3नाढ़य और प्रहितयिष्ठत आदमी ोने के उपरान्त उस श र के �ठैंतों और बॉँके आदयिमयों का सरदार था और कई बेर बडे़-बड़ों को नीचा टिदखा चुका था। असकी 3मकी ऐसी न थी हिक अमृतराय पर उसका कुछ असर न पड़ता। लिचट्ठी को देखते ी उनके चे रे का रंग उड़ गया। सोचना �गे हिक ऐसी कौन-सी चा� च�ूँ हिक इसको अपना आदमी बना �ूँ हिक इतने में दूसरी लिचट्ठी पहँुची। य गुमनाम थी और सका आशा भी प �ी लिचट्ठी से यिम�ता था। इसके बाद शाम ोते- ोते सैंकड़ो गुमनाम लिचटिट्टयॉँ आयीं। कोई की क ता था हिक अगर हिफर ब्या का नाम लि�या तो घर में आग �गा देंगे। कोई सर काटने की 3मकी देता था। कोई पेट में छुरी भोंकने के लि�ए तैयार था। ओर कोई मूँछ के बात उखाड़ने के लि�ए चुटहिकयॉँ गम कर र ा था। अमृतराय य तो जानते हिक श रवा�े हिवरो3 अवश्य करेंगे मगर उनको इस तर की राड़ का गुमान भी न था। इन 3महिकयों ने ज़रा देर के लि�ए उन् ें भय में डा� टिदया। अपने से अयि3क खटका उनको पूणा के बारे में था हिक क ीं य ी सब दु� उसे न कोई ाहिन पहँुचावें। उसी दम कपडे़ पहि न, पैरगाड़ी पर सवांर ोकर चटपट मजिजस्टे्रट की सेवा में उपब्लिस्थत हुए और उनसे पूरा-पूरा वृत्तान्त क ा। बाबू सा ब का अंग्रेंजों में बहुत मान था। इसलि�ए न ीं हिक व खुशामदी थे या अफसरों की पूजा हिकया करते थे हिकन्तु इसलि�ए हिक व अपनी मयादा रखना आप जानते थे। सा ब ने उनका बड़ा आदर हिकया। उनकी बातें बडे़ ध्यान से सुनी। सामाजिजक सु3ार की आवश्कता को माना और पुलि�स के सुपरिरण्टेण्डेट को लि�खा हिक आप अमृतराय की र5ा के वास्ते एक गारद रवाना कीजिजए और ख़बर �ेत ेरहि ए हिक मारपीट, खूनखराब न ो जाय। सॉँझ ोते— ोते तीस लिसपाहि यों का एक गारद बाबू सा ब के मकान पर पहँुच गया, जिजनमें से पॉँच ब�वान आदमी पूणा के मकान की हि फ़ाजत करने के लि�ए भेज गये।

श रवा�ों ने जब देखा हिक बाबू सा ब ऐसा प्रबन्ध कर र े ै तो और भी झल्�ाये। मुंशी बदरीप्रसाद अपने स ायकों को �ेकर मजिजस्टे्रट के पास पहँुचे और दु ाई मचाई हिक अगर व हिववा रोक न टिदया गया तो श र में बड़ा उपद्रव ोगा और ब�वा ो जाने का डर ैं। मगर सा ब समझ गये हिक य �ोग यिम�जु� कर अमृतराय को ाहिन पहँुचाया चा ते ैं। मुंशी जी से क ा हिक सकार हिकसी आदमी की शादी-हिववा में हिवघ्न डा�ना हिनयम के हिवरुद्ध ै। जब तक हिक उस काम से हिकसी दूसरे मनुष्य को कोई दुख न ो। य टका-सा जवाब पाकर मुंशी जी बहुत �ब्लिज्जत हुए। व ॉँ से ज�-भुनकर मकान पर आये और अपने स ायकों के साथ बैठकर फैस�ा हिकया हिक ज्यों ी बारात हिनक�े, उसी दम पचास आदमी उस पर टूट पड़ें। पुलि�सवा�ों की भी खबर �ें और अमृतराय की भी ड्डी-पस�ी तोड़कर 3र दें।

बाबू अमृतराय के लि�ए य समय बहुत नाजु क था। मगर व देश का हि तैषी तन-मन-3न से इस सु3ार के काम में �गा हुआ था। हिववा का टिदन आज से एक सप्ता पीछे हिनयत हिकया गया। क्योंहिक ज्यादा हिव�म्ब करना उलिचत न था और य सात टिदन बाबू सा ब ने ऐसी ैरानी में काटे हिक जिजसक वणन न ीं हिकया जासकात। प्रहितटिदन व दो कांस्टेहिब�ों के साथ हिपस्तौ�ों की जोड़ी �गयो दो बेर पूणा के मकान पर आते। व बेचारी मारे डर के मरी जाती थी। व अपने को बार-बार कोसती हिक मैंने क्यों उनको आशा टिद�ाकर य

जोखिखम मो� �ी। अगर इन दु�ों ने क ीं उन् ें कोई ाहिन पहँुचाई तो व मेरी ी नादानी का फ� ोगा। यद्यहिप उसकी र5ा के लि�ए कई लिसपा ी हिनयत थे मगर रात-रात भर उसकी ऑंखों में नींद न आती। पत्ता भी खड़कता तो चौंककर उठ बैठती। जब बाबू सा ब सबेरे आकर उसको ढारस देते तो जाकर उसके जान में जान आती।

अमृतराय ने लिचटिट्टयॉँ तो इ3र-उ3र भेज ी दी थीं। हिववा के तीन-चार टिदन प �े से मे मान आने �गे। कोई मुम्बई से आता था, कोई मदरास से, कोई पंजाब से और कोई बंगा� से । बनारस में सामाजिजक सु3ार के हिवरायि3यों का बड़ा ज़ोर था और सारे भारतवष के रिरफ़मरों के जी में �गी हुई थी हिक चा े जो ो, बनारस में सु3ार के चमत्कार फै�ाने का ऐसा अपूव समय ाथ से न जाने देना चाहि ए, व इतनी दूर-दूर से इसलि�ए आते थे हिक सब काशी की भूयिम में रिरफाम की पताका अवश्य गाड़ दें। व जानते थे हिक अगर इस श र में य हिववा ो तो हिफर इस सूबें के दूसरे श रों के रिरफामरों के लि�ए रास्ता खु� जायगा। अमृताराय मे मानों की आवभगत में �गे हुए थे। और उनके उत्सा ी चे�े साफ-सुथरे कपडे़ प ने स्टेशन पर जा-जाकर मे मानों को आदरपूवक �ाते और उन् ें सजे हुए कमरों में ठ राते थे। हिववा के टिदन तक य ॉँ कोई डेढ़ सौ मे मान जमा ो गये। अगर कोई मनुष्य सारे आयावत की सभ्यता, स्वतंत्रता, उदारता और देशभलिक्त को एकहित्रत देखना चा ता था तो इस समय बाबू अमृतराय के मकान पर देख सकता था। बनारस के पुरानी �कीर पीटने वा�े �ोग इन तैयारिरयों और ऐसे प्रहितयिष्ठत मे मानों को देख-देख दॉँतों उँग�ी दबाते। मुंशी बदरीप्रसाद और उनके स ायकों ने कई बेर 3ूम-3ाम से जनसे हिकये रबेर य ी बात तय हुई हिक चा े जो मारपीट ज़रुर की जाय। हिववा क प �े शाम को बाबू अमृतराय अपने सालिथयों को �ेकर पूणा के मकान पर पहँुचे और व ॉँ उनको बराहितयों के आदर-सम्मान का प्रबं3 करने के लि�ए ठ रा टिदया। इसके बाद पूणा के पास गये। इनको देखते ी उसकी ऑंखें में ऑंसू भर आये।

अमृत—(ग�े से �गाकर) प्यारी पूणा, डरो मत। ईश्वर चा ेगा तो बैरी मारा बा� भी बॉंका न करा सकें । क� जो बरात य ॉँ आयेगी वैसी आज तक इस श र मे हिकसी के दरवाजे़ पर न आयी ोगी।

पूणा—मगर मैं क्या करँु। मुझे मो मा�ूम ोता ै हिक क� जरुर मारपीट ोगी। चारों ओ से य खबर सुन-सुन मेरा जी आ3ा ो र ा ै। इस वक्त भी मुंशी जी के य ॉँ �ाग जमा ैं।

अमृत—प्यारी तुम इन बातों को ज़रा भी ध्यान में न �ाओं। मुंशी जी के य ॉँ तो ऐसे ज�से म ीनों से ो र े ैं और सदा हुआ करेंगे। इसका क्या डर। टिद� को मजबूत रक्खो। बस, य रात और बीच ै। क� प्यारी पूणा मेरे घर पर ोगी। आ व मेरे लि�ए कैसे आन्नद का समय ोगा।

पूणा य सुनकर अपना डर भू� गयी। बाबू सा ब को प्यारी की हिनगा ों से देखा और जब च�ने �गे तो उनके ग�े से लि�पट कर बो�ी—तुमको मेरी कसम, इन दु�ों से बचे र ाना।

अमृतराय ने उसे छाती से �गा लि�या और समझा-बुझाकर अपने मकान को रवाना हुए।

प र रात गये, पूणा के मकान पर, कई पंहिडत रेश्मी बाना सजे, ग�े में फू�ों का ार डा�े आये हिवयि3पूवक �क्ष्मी की पूजा करने �गे। पूणा सो� ों सिसPगार हिकये बैठी हुई थी। चारों तरफ गैस की रोशनी से टिदन के समान प्रकाश ो र ा था। कांस्टेहिब� दरवाजे़ पर ट � र े थे। दरवाजे का मैदान साफ हिकया जा र ा था और शायिमयाना खड़ा हिकया जा र ा था। कुर्सिसPयॉँ �गायी जा र ी थीं, फश हिबछाया गया, गम�े सजसये गये। सारी रात इन् ीं तैयारिरयों में कटी और सबेरा ोते ी बारात अमृतराय के घर से च�ी।

बारात क्या थी सभ्यता और स्वा3ीनता की च�ती-हिफरती तस्वीर थी। न बाजे का 3ड़-3ड़ पड़-पड़, न हिबगु�ों की 3ों 3ों पों पों, न पा�हिकयों का झुमट, न सजे हुए घोड़ों की लिचल्�ापों, न मस्त ालिथयों का रे�पे�, न सोंटे बल्�मवा�ों की कतारा, न फु�वाड़ी, न बगीचे, बश्किल्क भ�े मानुषों की एक मंड�ी थी जो 3ीरे-3ीरे कदम बढ़ाती च�ी जा र ी थी। दोनों तरफ जंगी पुलि�स के आदमी वर्दिदPयॉँ डॉँटे सोंटे लि�य ेखडे़ थे। सड़क के इ3र-उ3र झंुड के झंुड आदमी �म्बी-�म्बी �ाटिठयॉँ लि�ये एकत्र और थे बारात की ओर देख-देख दॉँत पीसते थे। मगर पुलि�स का व रोब था हिक हिकसी को चँू करने का भी सा स न ीं ोता था। बाराहितयों से पचास कदम की दूरी पर रिरजव पुलि�स के सवार लिथयारों से �ैंस, घोड़ों पर रान पटरी जामये, भा�े चमकाते ओर घोड़ों को उछा�ते च�े जाते थे। हितस पर भी सबको य खटका �ग हुआ था हिक क ीं पुलि�स के भय का य हितलि�स्म टूट न जाय। यद्यहिप बाराहितयों के चे रे से घबरा ट �ेशमात्र भी न पाई जाती थी तथाहिप टिद� सबके 3ड़क र े थे। ज़रा भी सटपट ोती तो सबके कान खडे़ ो जाते। एक बेर दु�ों ने सचमुच 3ावा कर ी टिदया। चारों ओर �च� मचगी। मगर उसी दम पुलि�स ने भी डब� माच हिकया और दम की दम मे कई फ़साटिदयों की मुशके कस �ीं। हिफर हिकसी को उपद्रव मचाने का सा स न हुआ। बारे हिकसी तर घंटे भर में बारात पूणा के मकान पर पहँुची। य ॉँ प �े से ी बाराहितयों के शुभागमन का सामान हिकया गया था। ऑंगन में फश �गा हुआ था। कुर्सिसPयॉँ 3री हुई थीं ओर बीचोंबीच में कई पूज्य ब्रह्मण वनकुण्ड के हिकनारे बैठकर आहुहित दे र े थे। वन की सुगन्ध चारों ओर उड़ र ी थी। उस पर मंत्रों के मीठे-मीठे मध्यम और मनो र स्वर जब कान में आते तो टिद� आप ी उछ�ने �गता। जब सब बारती बैठ गये तब उनके माथे पर केसर और चन्दन म�ा गया। उनके ग�ों में ार डा�े गये और बाबू अमृतराय पर सब आदमीयों ने पुष्पों की वषा की। इसके पीछे घर मकान के भीतर गया और व ॉँ हिवयि3पूवक हिववा हुआ। न गीत गाये गये, न गा�ी-ग�ौज की नौबत आयी, न नेगचार का उ3म मचा।

भीतर तो शादी ो र ी थी, बा र ज़ारों आदमी �ाटिठयॉँ और सोंटे लि�ए गु� मचा र े थे। पुलि�सवा�े उनको रोके हुए मकान के चौहिगद खडे़ थे। इसी बची में पुलि�स का कप्तान भ आ पहँुचा।उसने आते ी हुक्म टिदया हिक भीड़ टा दी जाय। और उसी दम पुलि�सवा�ों ने सोंटों से मारमार कर इस भीड़ को टाना शुरु हिकया। जंगी पुलि�स ने डराने के लि�ए बन्दूकों की दो-चार बाढे़ वा में सर कर दी। अब क्या था, चारो ओर भगदड़ मच गयी। �ोग एक पर एक हिगरने �गे। मगर ठीक उसी समय ठाकुर जोरावर सिसP बाँकी पहिगया बॉँ3ें,

रजपूती बाना सजे, दो री हिपस्तौ� �गाये टिदखायी, टिदया। उसकी मूँछें खड़ी थी। ऑंखों से अंगारे उड़ र े थे। उसको देखते ी व �ोब जो लिछहितर-हिबहित ो र े थे हिफर इकट्ठा ोने �गो। जैसे सरदार को देखकर भागती हुई सेना दम पकड़ �े। देखते ी देखते ज़ार आदमी से अयि3क एकत्र ो गये। और त�वार के 3नी ठाकुर ने एक बार कड़क कर क ा—‘जै दुगा जी की व ीं सारे टिद�ों में मानों हिबज�ी कौं3 गयी, जोश भड़क उठा। तेवरिरयों पर ब� पड़ गये और सब के सब नद की तर उमड़ते हुए आगे को बढे़। जंगी पुलि�सवा�े भी संगीने चढ़ाये, साफ़ बॉँ3े, डटे खडे़ थे। चारों ओर भयानक सन्नाटा छाया हुआ था। 3ड़का �गा हुआ था हिक अब कोई दम में �ोहू की नदी ब ा चा ती ै। कप्तान ने जब इस बाढ़ को अपने ऊपर आते देखा तो अपने लिसपाहि यों को ��कारा और बडे़ जीवट से मैदान में आकर सवारों को उभारने �गा हिक यकायक हिपस्तौ� की आवाज़ आयी और कप्तान की टोपी ज़मीन पर हिगर पड़ी मगर घाव ओछा �गा। कप्तान ने देख लि�या था। हिक य हिपस्तौ� जोरावर सिसP ने सर की ै। उसने भी चट अपनी बन्दूक सँभा�ी ओर हिनशाने का �गाना था हिक 3ॉँय से आवाज़ हुई ओर जोरावर सिसP चारों खाने लिचत्त जमीन पर आ र ा। उसके हिगरते ी सबके हि याव छूट गये। वे भेड़ों की भॉँहित भगाने �गे। जिजसकी जिज3र सींग समाई च� हिनक�ा। कोई आ3ा घण्टे में व ॉँ लिचहिड़या का पूत भी न टिदखायी टिदया।

बा र तो य उपद्रव मचा था, भीतर दु� ा-दु�हि न मारे डर के सूखे जाते थे। बाबू अमृतराय जी दम-दम की खबर मँगाते और थर-थर कॉँपती हुई पूणा को ढारस देते। व बेचारी रो र ी थी हिक मुझ अभाहिगनी के लि�ए माथा हिपटौव� ो र ी ै हिक इतने में बन्दूक छूटी। या नारायण अब की हिकसकी जान गई। अमृतराय घबराकर उठे हिक ज़रा बा र जाकर देखें। मगर पूणा से ाथ न छुड़ा सके। इतने मेंएक आदमी ने हिफर आकर क ा—बाबू सा ब ठाकूर ढेर ो गये। कप्तान ने गो�ी मार दी।

आ3ा घण्टे में मैदान साफ़ ो गया और अब य ॉँ से बरात की हिबदाई की ठ री। पूणा और हिबल्�ो एक सेजगाड़ी में हिबठाई गई और जिजस सज-3ज से बरात आयी थी असी तर वापस हुई। अब की हिकसी को सर उठाने का सा स न ीं हुआ। इसमें सन्दे न ीं हिक इ3र-उ3र झंुड आदमी जमा थे और इस मंड�ी को क्रो3 की हिनगा ों से देख र े थे। कभी-कभी मनच�ा जवान एका3 पत्थर भी च�ा देता था। कभी तालि�यॉँ बजायी जाती थीं। मुँ लिचढ़ाया जाता था। मगर इन शरारतो से ऐसे टिद� के पोढे़ आदयिमयों की गम्भीरता में क्या हिवध्न पड़ सकता था। कोई आ3ा घण्टे में बरात टिठकाने पर पहँुची। दुश्किल् न उतारी गयी ओर बराहितयां की जान में जान अयी। अमृतराय की खुशी का क्या पूछना। व दौड़-दौड़ सबसे ाथ यिम�ाते हिफरते थे। बॉँछें खिख�ी जाती थीं। ज्यों ी दुश्किल् न उस कमरे में पहँुची जो स्वयं आप ी दुश्किल् न की तर सजा हुआ था तो अमृतराय ने आकर क ा—प्यारी, �ो म कुश� से पहँुच गये। ऐं, तुम तो रो र ी ो...य क ते हुए उन् ोंने रुमा� से उसके ऑंसू पोछे और उसे ग�ेसे �गाया।

प्रेम रस की माती पूणा ने अमृतराय का ाथ पकड़ लि�या और बो�ी—आप तो आज ऐसे प्रसन्नलिचत्त ैं, मानो कोई राज यिम� गया ै।

अमृत—(लि�पटाकर) कोई झूठ ै जिजसे ऐसी रानी यिम�े उसे राज की क्या परवा

आज का टिदन आनन्द में कटा। दूसरे टिदन बराहितयों ने हिबदा ोने की आज्ञा मॉँगी। मगर अमृतराय की य स�ा हुई हिक �ा�ा 3नुष3ारी�ा� कम से कम एक बार सबको अपने व्याख्यान से कृतज्ञ करें य स�ा सबो पसंद आयी। अमृतराय ने अपने बगीचे में एक बड़ा शायिमयान खड़ा करवाया और बडे़ उत्सव से सभा हुई। व 3ुऑं3र व्याख्यान हुए हिक सामाजिजक सु3ार का गौरव सबके टिद�ों में बैठे गया। हिफर तो दो ज�से और भी हुए और दूने 3ूम3ाम के साथ। सारा श र टूटा पड़ता था। सैंकड़ों आदयिमयों का जनेऊ टूट गया। इस उत्सव के बाद दो हिव3वा हिववा और हुए। दोनों दूल् े अमृतराय के उत्सा ी स ायकों में थे और दुश्किल् नों में से एक पूणा के साथ गंगा न ानेवा�ी रामक�ी थी। चौथे टिदन सब नेवत री हिबदा हुए। पूणा बहुत कन्नी काटती हिफरी, मगर बराहितयों के आग्र से मज़बूर ोकर उनसे मु�ाकात करनी ी पड़ी। और �ा�ा 3नुष3ारी�ा� ने तो तीन टिदन उसे बराबर स्त्री-3म की लिश5ा दी।

शादी के चौथे टिदन बाद पूणा बैठी हुई थी हिक एक औरत ने आकर उसके एक बंद लि�फ़ाफा टिदया। पढ़ा तो प्रेमा का प्रेम-पत्र था। उसने उसे मुबारकबादी दी थी और बाबू अमृतराय की व तसवीर जो बरसों से उसके ग�े का ार ो र ी थी, पूणा के लि�ए भेज दी थी। उस ख़त की आखिखरी सतरें य थीं---

‘सखी, तुम बड़ी भाग्यवती ो। ईश्वर सदा तुम् ारा सो ाग कायम रखें। तुम् ारे पहित की तसवीर तुम् ारे पास भेजती हँू। इसे मेरी यादगार समझाना। तुम जानती ो हिक मैं इसको जान से ज्यादा प्यारी समझती र ी। मगर अब मैं इस योग्य न ी हिक इसे अपने पास रख सकँू। अब य तुमको मुबारक ो। प्यारी, मुझे भू�ना मत । अपने प्यारे पहित को मेरी ओर से 3न्यवाद देना।

तुम् ारी अभाहिगनी सखी— प्रेमा’

अफसोस आज के पन्द्रवे टिदन बेचारी प्रेमा बाबू दाननाथ के ग�े बॉँ3ी दी गयी। बडे़ 3ूम3म से बरात हिनक�ी। ज़ारों रुपया �ुटा टिदया गया। कई टिदन तक सारा श र मुंशी बदरीप्रसाद के दरवाजे़ पर नाच देखता र ा। �ाखों का वार-न्यारा ो गया। ब्या के तीसरे ी टिदन मुंशी जी पर�ोक को लिस3ारे। ईश्वर उनको स्वगवास दे।

पे्रमा भाग 11 / पे्रमचंद

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 रचनाकार: पे्रमचंद                 

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विवरोधि0यों का विवरो0

मे मानों के हिबदा ो जाने के बाउ य आशा की जाती थी हिक हिवरो3ी �ोग अब लिसर न उठायेंगे। हिवशेष इसलि�ए हिक ठाकुर जोरावार सिसP और मुंशी बदरीप्रसाद के मर जाने से उनका ब� बहुत कम ो गया था। मगर य आशा पूरी न हुई। एक सप्ता भी न गुज़रने पाया था हिक और अभी सुलिचत से बैठने भी न पाये थे हिक हिफर य ी दॉँतहिक�हिक� शुरु ो गयी।

अमृतराय कमरे में बैठे हुए एक पत्र पढ़ र े थे हिक म राज चुपके से आया और ाथ जोड़कर खड़ा ो गया। अमृतराय ने सर उठाकर उसको देखा तो मुसकराकर बो�े—कैसे च�े म ाराज?

म राज— जूर, जान बकसी ोय तो कहँू।

अमृत—शौक से क ो।

म राज—ऐसा न ो हिक आप रिरस े ो जायँ।

अमृत—बात तो क ो।

म राज— जूर, डर �गती ै।

अमृत—क्या तनख्वा बढ़वाना चा ते ो?

म राज—ना ीं सरकार

अमृत—हिफर क्या चा ते ो?

म राज— जूर, मारा इस्तीफा �े लि�या जाय।

अमृत—क्या नौकरी छोड़ोगे?

म राज— ॉँ सरकार। अब मसे काम न ीं ोता।

अमृत—क्यों, अभी तो मजबूत ो। जी चा े तो कुछ टिदन आराम कर �ो। मगर नौकरी क्यों छोड़ों

म राज—ना ीं सरकार, अब म घर को जाइब।

अमृत—अगर तुमको य ॉँ कोई तक�ीफ़ ा तो ठीक-ठीक क दो। अगर तनख्वा क ीं और इसके ज्यादा यिम�ने की आशा ो तो वैसा क ो।

म राज— जूर, तनख्याव जो आप देते ैं कोई क्या माई का �ा� देगा।

अमृतराय—हिफर समझ में न ीं आता हिक क्यों नौकरी छोड़ना च ाते ो?

म राज—अब सरकार, मैं आपसे क्या कहँू। य ॉँ तो य बातें ो र ी थीं उ3र चम्मन व रम्मन क ार और भगे�ू व दुक्खी बारी आपस में बातें कर र े थे।

भगे�ू—च�ो, च�ो जल्दी। न ीं तो कच री की बे�ा आ जै ै।

चम्मन—आगे-आगे तुम च�ो।

भगे�ू— मसे आगँू न च�ा जै ै।

चम्मन—तब कौन आगँू च�ै?

भगे�ू— म केका बताई।

रम्मन—कोई न च�ै आगँू तो म चलि�त ै।

दुक्खी—तैं आगे एक बात कहि त ै। न कोई आगँू च�े न कोई पीछँू।

चम्मन---हिफर कैसे च�ा जाय।

भगे�ू—सब साथ-साथ च�ैं।

चम्मन—तुम् ार क़पार

भगे�ू—साथ च�े माँ कौन रज ै?

मम्मन—तब सरकार से बहितयाये कौन?

भगे�ू—दुक्खी का खूब हिबहितयाब आवत ै।

दुक्खी—अरे राम रे मैं उनके ताई न जैहँू। उनका देख के मोका मुतास ो आवत ै।

भगे�ू---अच्छा, कोऊ न च�ै तो म आगँू चलि�त ैं

सब के सब च�े। जब बरामदे में पहँुचे तो भगे�ू रुक गया।

मम्मन—ठाढे़ का े ो गयो? च�े च�ौ।

भगे�ू---अब म न जाबै। मारा तो छाती 3ड़त ै।

अमृतराय ने जो बरामदे में इनको सॉँय-साँय बातें करते सुना तो कमरे से बा र हिनक� आये और ँस कर पूछा—कैसे च�े, भगे�ू?

भगे�ू का हि याव छूट गया। लिसर नीचा करके बो�ा— जूर, य सब क ार आपसे कुछ क ने आये ै।

अमृतराय—क्या क ते ै? य सब तो बो�ते ी न ीं

भगे�ू—(क ारों से) तुमको जौन कुछ क ना ोय सरकार से क ो।

क ार भगे�ू के इस तर हिनक� जाने पर टिद� में बहुत झल्�ये। चम्मन ने जरा तीखे ोकर क ा—तुम का े ना ीं क त ौ? तुम् ार मुँ में जीभ न ीं ै?

अमृतराय— म समझ गये। शायद तुम �ोग इनाम मॉँगने आये ो। क ारों से अब लिसवाय ॉँ क ने के और कुछ न बन पड़ा। अमृतराय ने उसी दम पॉँच रुपया भगे�ू के ाथ पर रख टिदया। जब य सब हिफर अपनी काठरी में आये तो यों बातें करने �गे—

चम्मन—भगे�ुआ बड़ा बोदा ै।

रम्मन—अस रीस �ागत र ा हिक खाय भरे का देई।

दुक्खी—व ॉँ जाय के ठकुरासो ाती करै �ागा।

भगे�ू— मासे तो उनके सामने कुछ क ै न गवा।

दुक्खी---तब का े को य ॉँसे आगे-आगे गया रह्यो।

इतने में सुखई क ार �कडी टेकता खॉसता हुआ आ पहँुचा। और इनको जमा देखकर बो�ा—का भवा? सरकार का क ेन?

दुक्खी—सरकार के सामने जाय कै सब गँूगे ो गये। कोई के मुँ से बात न लि�क�ी।

भगे�ू—सुखई दादा तुम हिनयाव करो, जब सरकार ँसकर इनाम दे �ागे तब कैसे क ा जात हिक म नौकरी छोड़न आये ैं।

सुखई— म तो तुमसे प �े क दीन हिक य ॉँ नौकरी छोड़ी के सब जने पछतै ो। अस भ�ामानुष कहँू न यिम�े।

भगे�ू—दादा, तुम बात �ाख रुपया की क त ो।

चम्मन—एमॉँ कौन झूठ ैं। अस मनई का ॉँ यिम�े।

रम्मन आज दस बरस र त भये मुदा आ3ी बात कबहँू ना ीं क ेन।

भगे�ू—रीस तो उनके दे में छू न ीं गै। जब बात करत ै ँसकर।

मम्मन—भैया, मसे कोऊ क त हिक तुम बीस क�दार �ेव और मारे य ॉँ च� के काम करो तो म सराकर का छोड़ के कहँू न जाइत। मुद्रा हिबरादरी की बात ठ री। हुक्का-पानी बन्द ोई गवा तो हिफर के के द्वारे जैब।

रम्मन—य ी डर तो जान मारे डा�ते ै।

चम्मन—चौ3री क गये ैं हिकआज इनकेर काम न छोड़ दे ों तो टाट बा र कर दीन जै ी।

सुखई— म एक बेर क दीन हिक पछतौ ो। जस मन मे आवे करो।

क ार भगे�ू के इस तर हिनक� जाने पर टिद� में बहुत झल्�ये। चम्मन ने जरा तीखे ोकर क ा—तुम का े ना ीं क त ौ? तुम् ार मुँ में जीभ न ीं ै?

अमृतराय— म समझ गये। शायद तुम �ोग इनाम मॉँगने आये ो।

क ारों से अब लिसवाय ॉँ क ने के और कुछ न बन पड़ा। अमृतराय ने उसी दम पॉँच रुपया भगे�ू के ाथ पर रख टिदया। जब य सब हिफर अपनी काठरी में आये तो यों बातें करने �गे—

चम्मन—भगे�ुआ बड़ा बोदा ै।

रम्मन—अस रीस �ागत र ा हिक खाय भरे का देई।

दुक्खी—व ॉँ जाय के ठकुरासो ाती करै �ागा।

भगे�ू— मासे तो उनके सामने कुछ क ै न गवा।

दुक्खी---तब का े को य ॉँसे आगे-आगे गया रह्यो।

इतने में सुखई क ार �कडी टेकता खॉसता हुआ आ पहँुचा। और इनको जमा देखकर बो�ा—का भवा? सरकार का क ेन?

दुक्खी—सरकार के सामने जाय कै सब गँूगे ो गये। कोई के मुँ से बात न लि�क�ी।

भगे�ू—सुखई दादा तुम हिनयाव करो, जब सरकार ँसकर इनाम दे �ागे तब कैसे क ा जात हिक म नौकरी छोड़न आये ैं।

सुखई— म तो तुमसे प �े क दीन हिक य ॉँ नौकरी छोड़ी के सब जने पछतै ो। अस भ�ामानुष कहँू न यिम�े।

भगे�ू—दादा, तुम बात �ाख रुपया की क त ो।

चम्मन—एमॉँ कौन झूठ ैं। अस मनई का ॉँ यिम�े।

रम्मन आज दस बरस र त भये मुदा आ3ी बात कबहँू ना ीं क ेन।

भगे�ू—रीस तो उनके दे में छू न ीं गै। जब बात करत ै ँसकर।

मम्मन—भैया, मसे कोऊ क त हिक तुम बीस क�दार �ेव और मारे य ॉँ च� के काम करो तो म सराकर का छोड़ के कहँू न जाइत। मुद्रा हिबरादरी की बात ठ री। हुक्का-पानी बन्द ोई गवा तो हिफर के के द्वारे जैब।

रम्मन—य ी डर तो जान मारे डा�ते ै।

चम्मन—चौ3री क गये ैं हिकआज इनकेर काम न छोड़ दे ों तो टाट बा र कर दीन जै ी।

सुखई— म एक बेर क दीन हिक पछतौ ो। जस मन मे आवे करो।

आठ बजे रात को जब बाबू अमृतराय सैर रिरके आये तो कोई टमटम थानेवा�ा न था। चारों ओर घूम-घूम कर पुकारा। मगर हिकसी आ ट न पायी। म ाराज, क ार, साईस सभी च� टिदये। य ाँ तक हिक जो साईस उनके साथ था व भी न जाने क ॉँ �ोप ो गया। समझ गये हिक दु�ों ने छ� हिकया। घोडे़ को आप ी खो�ने �गे हिक सुखई क ार आता टिदखाई टिदया। उससे पूछा—य सब के सब क ॉँ च�े गय?े

सुखई—(खॉँसकर) सब छोड़ गये। अब काम न करैगे।

अमृतराय—तुम् ें कुछ मा�ूम ै इन सभों ने क्यों छोड़ टिदया?

सुखई—मा�ूम का े ना ीं, उनके हिबरादरीवा�े क ते ैं इनके य ॉँ काम मत करो। अमृतराय राय की समझ में पूरी बात आ गयी हिक हिवरायि3यों ने अपना कोई और बस न च�ते देखकर अब य ढंग रचा ै। अन्दर गये तो क्या देखते ैं हिक पूणा बैठी खाना पका र ी ै। और हिबल्�ो इ3र-उ3र दौड़ र ी ै। नौकरों पर दॉँत पीसकर र गये। पूणासे बो�े---आज तुमको बड़ा क� उठाना पड़ा।

पूणा—( ँसकर) इसे आप क� क ते ै। य तो मेरा सौभाग्य ै।

पत्नी के अ3रों पर मन्द मुसकान और ऑंखों में प्रेम देखकर बाबू सा ब के चढे़ हुए तेवर बद� गये। भड़कता हुआ क्रो3 ठंडा पड़ गया और जैसे नाग सँूबी बाजे का शब्द सुनकर लिथरकने �गता ै और मतवा�ा ो जाता उसी भॉँहित उस घड़ी अमृतराय का लिचत्त भी हिक�ो�ें करने �गा। आव देखा न ताव। कोट पत�ून, जूत ेप ने हुए रसोई में बे3ड़क घुस गये। पूणा ॉँ, ॉँ करती र ी। मगर कौन सुनता ै। और उसे ग�े से �गाकर बो�े—मै तुमको य न करने दूगॉँ।

पूणा भी प्रहित के नशे में बसु3 ोकर बो�ी-मैं न मानँूगी।

अमृत०—अगर ाथों में छा�े पडे़ तो मैं जुरमाना �े �ूँगा।

पूणा—मैं उन छा�ों को फू� समझूँगी, जुरामान क्यों देने �गी।

अमृत०—और जो लिसर में 3मक-अमक हुई तो तुम जानना।

पूणा-वा ऐसे सस्ते न छूटोगे। चन्दन रगड़ना पडे़गा।

अमृत—चन्दन की रगड़ाई क्या यिम�ेगी।

पूणा—वा ( ंसकर) भरपेट भोजन करा दँूगी।

अमृत—कुछ और न यिम�ेगा?

पूणा—ठंडा पानी भी पी �ेना।

अमृत—(रिरलिसयाकर) कुछ और यिम�ना चाहि ए।

पूणा—बस,अब कुछ न यिम�ेगा।

य ॉँ अभी य ी बातें ो र ी थीं हिक बाबू प्राणनाथ और बाबू जीवननाथ आये। य दोनों काश्मीरी थे और कालि�ज में लिश5ा पाते थे। अमृतराय क प5पाहितयों में ऐसा उत्सा ी और कोई न था जैसे य दोनों युवक थे। बाबू सा ब का अब तक जो अथ लिसद्ध हुआ था, व इन् ीं परोपकारिरयों के परिरश्रम का फ� था। और वे दोनों केव� ज़बानी बकवास �गानेवा�ी न ीं थे। वरन बाबू सा ब की तर व दोनों भी सु3ार का कुछ-कुछ कतव्य कर चुके थे। य ी दोनों वीर थे जिजन् ोंने स स्रों रुकावटों और आ3ाओं को टाकर हिव3वाओं से ब्या हिकया था। पूणा की सखी रामक�ी न अपनी मरजी से प्राणनाथ के साथ हिववा करना स्वीकार हिकया था। और �क्ष्मी के मॉँ-बॉँप जो आगरे के बडे़ प्रहितष्ठत रईस थे, जीवननाथ से उसका हिववा करने के लि�ए बनारस आये थे। ये दोनों अ�ग-अ�ग मकान में र ते थे।

बाबू अमृतराय उनके आने की खबर पाते ी बा र हिनक� आये और मुसकराकर पूछा—क्यों, क्या खबर ै?

जीवननाथ—य आपके य ॉँ सन्नाटा कैसा?

अमृत०—कुछ न पूछो, भाई।

जीवन०—आखिखर वे दरजन-भर नौकरी क ाँ समा गय?े

अमृत०—सब ज न्नुम च�े गये। ज़ालि�मों ने उन पर हिबरादरी का दबाव डा�कर य ॉँ से हिनक�वा टिदया।

प्राणनाथ ने ठट्ठा �गाकर का ---�ीजिजए य ॉँ भी व ढंग ै।

अमृतराय—क्या तुम �ोगों के य ॉँ भी य ी ा� ै।

प्राणनाथ---जनाब, इससे भी बदतर। क ारी सब छोड़ भागो। जिजस कुएसे पानी आता था व ॉँ कई बदमाश �ठ लि�ए बैठे ै हिक कोई पानी भरने आये तो उसकी गदन झाड़ें।

जीवननाथ—अजी, व तो क ो कुश� ोयी हिक प �े से पुलि�स का प्रबन्ध कर लि�या न ीं तो इस वक्त शायद अस्पता� में ोते।

अमृतराय—आखिखर अब क्या हिकया जाए। नौकरों हिबना कैसे काम च�ेगा?

प्राणनाथ—मेरी तो राय ै हिक आप ी ठाकुर बहिनए और आप ी चाकर।

ज़ीवनाथ—तुम तो मोटे-ताजे ो। कुएं से दस-बीस क�से पानी खींच �ा सकते ो।

प्राणनाथ—और कौन क े हिक आप बतन-भॉँडे न ीं मॉँज सकते।

अमृत-अजी अब ऐसे कंगा� भी न ीं ो गय े ैं। दो नौकर अभी ैं, जब तक इनसे थोड़ा-बहुत काम �ेंगे। आज इ�ाके पर लि�ख भेजता हँू व ॉँ दो-चार नौकर आ जायँगे।

जीवन—य तो आपने अपना इन्तिन्तज़ाम हिकया। मारा काम कैसे च�े।

अमृत.—बस आज ी य ॉँ उठ आओ, चटपट।

जीवन.—य तो ठीक न ीं। और हिफर य ॉँ इतनी जग क ॉँ ै?

अमृत.—व टिद� से राज़ी ैं। कई बेर क चुकी ैं हिक अके�े जी घबराता ै। य ख़बर सुनकर फू�ी न समायेंगी।

जीवन—अच्छा अपने य ॉँ तो टो �ूँ।

प्राण—आप भी आदमी ैं या घनचक्कर। य ॉँ टो �ूँ व ॉँ टो �ूँ। भ�मानसी चा ो तो बग्घी जोतकर �े च�ों। दोनों प्राक्षिणयों को य ॉँ �ाकर बैठा दो। न ीं तो जाव टो लि�या करो।

अमृत—और क्या, ठीक तो क ते ैं। रात ज्यादा जायगी तो हिफर कुछ बनाये न बनेगी।

जीवन—अच्छा जैसी आपकी मरज़ी।

दोनों युवक अस्तब� में गये। घोड़ा खो�ा और गाड़ी जोतकर �े गये। इ3र अमृतराय ने आकर पूणा से य समाचार क ा। व सुनते ी प्रसन्न ो गई और इन मे मानों के लि�ए खाना बनाने �गी। बाबू सा ब ने सुखई की मदद से दो कमरे साफ़ कराये। उनमें मेज, कुर्सिसPयाँ और दूसरी जरुरत की चीज़ें रखवा दीं। कोई नौ बजे ोंगे हिक सवारिरयॉँ आ पहँुचीं। पूणा उनसे बडे़ प्यार से ग�े यिम�ी और थोड़ी ी देर में तीनों सखिखयॉँ बु�बु� की तर च कने �गीं। रामक�ी प �े ज़रा झेंपी। मगर पूणा की दो-चार बातों न उसका हि याव भी खो� टिदया।

थोड़ी देर में भोजन तैयार ा गया। ओर तीनों आदमी रसोई पर गये। इ3र चार-पॉँच बरस से अमृतराय दा�-भात खाना भू� गये थे। कश्मीरी बावरची तर तर क सा�ना, अनेक प्रकार के मांस खिख�ाया करता था और यद्यहिप जल्दी में पूणा लिसवाय सादे खानों के और कुछ न बना सकी थी, मगर सबने इसकी बड़ी प्रशंसा की। जीवननाथ और प्राणनाथ दोनों काशमीरी ी थे, मगर व भी क ते थे हिक रोटी-दा� ऐसी स्वाटिद� मने कभी न ीं खाई।

रात तो इस तर कटी। दूसर टिदन पूणा ने हिबल्�ो से क ा हिक ज़रा बाज़ार से सौदा �ाओ तो आज मे ानों को अच्छी-अच्छी चीजे़ खिख�ाऊँ। हिबल्�ो ने आकर सुखई से हुक्म �गाया। और सुखई एक टोकरा �ेकर बाज़ार च�े। व आज कोई तीस बरस से एक ी बहिनये से सौदा करते थे। बहिनया एक ी चा�ाक था। बुढ़ऊ को खूब दस्तूरी देता मगर सौदा रुपये में बार आने से कभी अयि3क न देता। इसी तर इस घूरे साहु ने सब रईसों को फॉँसा रक्खा था। सुखई ने उसकी दूकान पर पहँुचते ै टाकरा पटक टिदया और हितपाई पर बैठकर बो�ा—�ाव घूरे, कुछ सौदा सु�ुफ तो दो मगर देरी न �गे।

और र बेर तो घूरे ँसकर सुखई को तमाखू हिप�ाता और तुरन्त उसके हुक्म की तामी� करने �गता। मगर आज उसने उसको और बड़ी रुखाई से देखकर क ा—आगे जाव। मारे य ॉँ सौदा न ीं ै।

सुखई—ज़रा आदमी देख के बात करो। में प चानते न ीं क्या?

घूरे—आगे जाव। बहुत टें-टें न करो।

सुखई-कुछ मॉँग-वॉँग तो न ीं खा गये क्या? अरे म सुखई ैं।

घूरे—अजी तुम �ाट ो तो क्या? च�ो अपना रास्ता देखो।

सुखई—क्या तुम जानते ो में दूसरी दुकान पर दस्तूरी न यिम�ेगी? अभी तुम् रे सामने दो आने रूपया �ेकर टिदखा देता हँू।

घूरे—तूम सी3े से जाओगे हिक न ीं? दुकान से टकर बात करो। बेचारा सुखई साहु की सइ रुखाई पर आश्चय करता हुआ दूसरी दुकान पर गया। व ॉँ भी य ी जवाब यिम�ा। तीसरी दूकान पर पहँुचा। य ॉँ भी व ी 3ुतकार यिम�ी। हिफर तो उसने सारा-बाज़ार छान डा�ा। मगर क ीं सौदा न यिम�ा। हिकसी ने उसे दुकान पर खड़ा तक ोने न टिदया। आखिखर झक मारकर-सा मुँ लि�ये �ौट आया और

सब समाचार क । मगर नमक-मसा�े हिबना कैसे काम च�े। हिबल्�ो ने व ा, अब् की मैं जाती हँू। देखूँ कैसे कोई सौदा न ीं देता। मगर व ाते ज्यों ी बा र हिनक�ी हिक एक आदमी उसे इ3र-उ3र ट �ता टिदखायी टिदया। हिबल्�ो को देखते ी व उसके साथ ो लि�या और जिजस जिजस दुकान पर हिबल्�ो गई व भी परछाई की तर साथ �गा र ा। आखिखर हिबल्�ो भी बहुत दौड़-3ूप कर ाथ झु�ाते �ौट आयी। बेचरी पूणा ने ार कर सादे पकवान बनाकर 3र टिदये।

बाबू अमृतराय ने जब देखा हिक द्रो ी �ोग इसी तर पीछे पडे़ तो उसी दम �ा�ा 3नुष3ारी�ा� को तार टिदया हिक आप मारे या ॉँ पॉँच ोलिशयार खिखदमतगार भेज दीजिजए। �ा�ा सा ब प �े ी समझे हुए थे हिक बनारस में दु� �ोग जिजतना ऊ3म मचायें थोड़ा ैं। तार पाते ी उन् ोंने अपने अपने ोट� के पॉँच नौकरों को बनारस रवाना हिकया। जिजनमें एक काश्मीरी म राज भी थी। दूसरे टिदन य सब आ पहँुचे। सब के सब पंजाबी थे, जो न तो हिबरादरी के गु�ाम थे और न जिजनको टाट बा र हिकये जाने का खटका था। हिवरोयि3यों ने उसके भी कान भरने चा े। मगर कुछ दॉँव च�ा। सौदा भी �खनऊ से इतना मॉँगा लि�या जो कई म ीनों को काफ़ी था।

जब �ोगों ने देखा इन शरारतों से अमृतराय को कुछ ाहिन पहँुची तो और ी चा� च�े। उनके मुवब्लिक्क�ों को ब काना शुरु हिकया हिक व तो ईसाई ो गये ैं। सा बों के संग बैठकर खाते ैं। उनको हिकसी जानवर के मांस से हिवचार न ीं ै। एक हिव3वा ब्रह्माणी से हिववा कर लि�या ै। उनका मुँ देखना, उनसे बातचीत करना भी शास्त्र के हिवरुद्ध ै। मुवब्लिक्क�ों को ब काना शुरु हिक या हिक व तो ईसाई ो गये ै। हिव3वा ब्रह्मणी से हिववा कर लि�या ै। उनका मुँ देखना, उनसे बातचीत करना भी शास्त्र के हिवरुद्ध ै। मुवब्लिक्क�ों में बहु3ा करके दे ातों के राजपूत ठाकुर और भंुइ ार थे जो य ाता अहिवद्या की का�कोठरी में पडे़ हुए थे या नये ज़माने क चमत्कार ने उन् ें चौंयि3या टिदया था। उन् ोंने जब य सब ऊटपटाँग बातें सुनी तब वे बहुत हिबगडे़, बहुत झल्�ाये और उसी दम कसम खाई की अब चा े जो ो इस अ3मR को कभी मुकदमा न देंगे। राम राम इसको वेदशास्त्र का तहिनक हिवचार न ीं भया हिक चट एक रॉँड़ को घर में बैठा� लि�या। छी छी अपना �ोक-पर�ोक दोनों हिबगाड़ टिदया। ऐसा ी था तो हि न्दू के घर में का े को जन्म लि�या था। हिकसी चोर-चंडा� के घर जनमे ोते। बाप-दादे का नाम यिमटा टिदया। ऐसी ी बातें कोई दो सप्ता तक उने मुवब्लिक्क�ों में फै�ी। जिजसका परिरणाम य हुआ हिक बाबू अमृतराय का रंग फीका पड़ने �गा। ज ॉँ मारे मुकदमों के सॉँस �ेने का अवकाश न यिम�ता था। व ॉँ अब टिदन-भर ाथ पर ाथ 3रे बैठे र ने की नौबत आ गयी। य ॉँ तक हिक तीसरा सप्ता कोरा बीत गया और उनको एक भी अच्छा मुकदमा न यिम�ा।

जज सा ब एक बंगा�ी बाबू थे। अमृतराय के परिरश्रम और तीव्रता, उत्सा और चप�ता ने जज सा ब की ऑंखों में उन् ोंने बड़ी प्रशंसा दे रक्खी थी। व अमृतराय की बढ़ती हुई वका�त को देख-देख समझ गये थे हिक थोड़ी ी टिदनों मे य सब वकी�ों का सभापहित ा जाएगा। मगर जब तीन फ्ते से उनकी सूरत न टिदखायी दी तब उनको आश्चय हुआ। सरिरश्तेदार से पूछा हिक आजक� बाबू अमृतराय क ॉँ ैं। सरिरश्तेदार सा ब जाहित के मुस�मान और बडे़ सच्चे, साफ आदमी थे। उन् ोंने सारा ब्योरा जो सुना था क सुनाया। जज सा ब सुनते ी समझ गये हिक बेचारे अमृतराय सामाजिजक कामों में अग्रण्य बनने का फ� भोग र े ैं। दूसरे टिदन उन् ोंने खुद अमृतराय को इज�ास पर बु�वाया और दे ाती ज़मींदारी के सामने उनसे बहुत देर तक इ3र-उ3र की बातें की। अमृतराय भी ँस- ँस उनकी बातों का जवाब टिदया हिकये। इस बीच में कई वकी�ों और बैरिरस्टर जज सा ब को टिदखाने हिक लि�ए कागज पत्र - �ाये मगर सा ब ने हिकसी के ओर ध्यान न ीं टिदया। जब व च�े तो सा ब ने कुसी उठकर ाथ यिम�ाया और जरा जोर से बो�ो – बहुत अच्छा, बाबू सा ब जैसा आप बो�ता ै, इस मुकदमे मे वैसा ी ोगा।

आज जब कच री बरखास्त हुई तो उन जमीदारों में जिजनके मुकदमे आज पेश थे, यों ग�ेचौर ोने �गी।

ठाकुर सा ब- ( पगडी.बॉं3े, मूछें खडी.हिकये, मोटासा �द्व ाथ में लि�ये) आज जज सा ब अमृतराय से खुब- खुब बहितयात र े।

यिमश्र जी- (लिसर घुटाये,टीका �गाये, मु में तम्बाकु दाबाये और कन्घे पर अगोछा रक्खे) खूब ब बहितयावत र ा मानो कोउ अपने यिमत्र से बहितयावै।

ठाकुर- अमृतराय कस ँस- ँस मुडी हि �ावत र ा।

यिमश्र जी- बडे. आदयिमयन का सबजग आदर ोत ै।

ठाकुर- जब �ो दोनो बहितयात र े तब त�ुक कउ वकी� आये बाकी सा ेब कोउ की ओर तहिनक ना ीं ताहिकन।

यिमश्र जी- म क े देइत ै तुमार मुकदमा उन ीं के राय से च�े। सुनत र यो हिक ना ीं जब अमृतराय च�े �ागे तो जज सा ब क ेन हिक इस मुकदमे में वैसा ी ोगा

ठाकुर- सुना का े न ीं, बाकी हिफर काव करी।

यिमश्र जी- इतना तो म कहि त ै हिक अस वहिक� हिपरथी भर में ना ीं ना।

ठाकुर- कसब स करत ैं मानो जिज वा पर सरस्वती बैठी ोय। उनकर बराबरी करैया आज कोई ना ीं ै।

यिमश्र जी- मुदा इसाई ोइ गया। रॉंड.से ब्या हिक ेलिस।

ठाकुर- एतनै तो बीच परा ै। अगर उनका वकी� हिक े ोईत तो बाजी बद के जीत जाईत।

इसी तर दोनो में बातें हुई और टिदया में बती पडतें- पडतें दोनो अमृतराय के पास गये और उनसे मुकदमें की कु� रुयदाद बयान हिक। बाबू सा ब ने प �े ी समझ लि�या था हिक इस मुकदमें में कुछ जान न ीं ै। हितस पर उन् ोंने मूकदमा �े लि�या और दुसरे टिदन एसी योग्यता से ब स की हिक दूसरी ओर के वहिक�- मुखहितयार खडे.मु ताकते र गये। आखिÄर जीत का से रा भी उन् ीं के लिसर र ा। जज सा ब उनकी बकतृया पर एसे प्रसन्न हुए हिक उन् ोंने ँसकर घन्यबाद टिदया और ाथ यिम�या। बस अब क्या था । एक तो अमृतराय यों ी प्रलिसद्व थे, उस पर जज सा ब का य वताव और भी सोने पर सु ागा ो गया । व बँग�े पर पहँुच कर चैन से बैठने भी न पाये थे, हिक मुवब्लिक्क�ो के द� के द� आने �गे और दस बजे रात तक य ी ताता �गा र ा। दूसरे टिदन से उनकी वका�त प �े से भी अयि3क चमक उठी ।

द्रोहि यों जब देखा हिक मारी चा� भी उ�टी पडी. तो और भी दॉत पीसने �गे। अब मुंशी बदरीप्रसाद तो थे हि न ीं हिक उन् ें सी3ी चा�ें बताते। और न ठाकुर थे हिक कुछ बाहुब� का चमत्कार टिदखाते । बाबू कम�ाप्रसाद अपने हिपता के सामने ी से इन बातो से अ�ग ो गये थे। इसलि�ये दोहि यों को अपना और कुछ बस न देख कर पंहिडत भगुदत का द्वार खटखटाया उनसें कर जोड कर क ा हिक म ाराज! कृपा-लिसन्धु! अब भारत वष में म ा उत्पात और घोर पाप ो र ा ै। अब आप ी चा ो तो उसका उद्वार ो सकता ै । लिसवाय आप के इस नौका को पार �गाने वा�ा इस संसार में कोई न ीं ै। म ाराज ! अगर इस समय पूरा ब� न �गाया तो हिफर इस नगर के वासी क ीं मु टिदखाने के योग्य न ीं र ेंगे। कृपा के परना�े और 3म के पोखरा ने जब अपने जजमानों को ऐसी दीनता से स्तुहित करते देखा तो दॉत हिनका�कर बो�े आप �ोग जौन ै तैन घबरायें मत। आप देखा करें हिक भृगुदत क्या करते ै।

सेठ 3ूनीम�- म ाराज! कुछ ऐसा यतन कीजिजये हिक इस दु� का सत्यानाश् ो जाय ! कोई नाम �ेवा न बचे।

कई आदमी- ॉ म ाराज! इस घडी तो य ी चाहि ये।

भृगुदत- य ी चाहि ये तो य ी �ेना। सवथा नाश न कर दू तो ब्रा मण न ीं। आज के सातवें टिदन उसका नाश ो जायेगा।

सेठ जी- द्वव्य जो �गे बेखटके कोठी से मॅगा �ेना ।

भृगुदत- इसके क ने की कोइ आवश्यकता न ीं। केव� पॉच सौ ब्रा मण का प्रहितटिदन भोजन ोगा।

बाबू दीनानाथ-तो कहि ये तो कोई �वाई �गा टिदया जाए। राघो �वाई पेडे़ और �डू बहुत अचे्छ बनाता ै।

भृगुदत- जो पूजा मैं कराउगा उसमें पेड़ा खाना वर्जिजPत ै। अयि3क इमरती का सेवन ो उतना ी काय लिसद्व ो जाता ै।

इस पर पंहिड़त जी के एक चे�े ने क ा- गरू जी! आज तो आप ने न्याय का पाठ देते समय क ा था हिक पेडे़ के साथ द ी यिम�ा टिदया जाए तो उसमें कोइ दोष न ीं र ता।

भृगुदत- ( ॅसकर) ॉ- ॉ अब स्मरण हुआ। मनु जी ने इस श�ोक में इस बात का प्रमाण टिदया ै।

दीनानाथ-(मुसकराकर) म ाराज! चे�ा तो बड़ा हितब्र ै।

सेठ जी- य अपने गरूजी से बाजी �े जायेगा।

भृगुदत- अब हिक इसने एक यज्ञ में दो सेर पूरिरयॉ खायी। उस टिदन से मैने इसका नाम अंहितम परी5ा में लि�ख टिदया।

चे�ा- मैं अपने मन से थोड़ा ी उठा । अगर जजमान ाथ जोड़कर उठा न देते तो अभी सेर भर और खा के उठता।

दीनानाथ-क्यो न ो पटे ! जैसे गुरू वैसे चे�ा!

सेठ जी- म ाराज, अब मको आज्ञा दीजिजए। आज �वाई आ जाएगा। मुनीम जी भी उसके साथ �गे र ेगें। जो सौ दो सौ का काम �गे मुनीम जी से फरमा देना। मगर बात तब ै हिक आप भी इस हिबषय में जान �ड़ा दे।

पंहिड़त जी ने लिसर का कद्द ूहि �ाकर क ा- इसमें आप कोई खटका न समजिझये। एक सप्ता में अगर दु� का न नाश ो जाए तो भृगुदत न ीं। अब आपको पूजन की हिबयि3 भी बता ी दू। सुहिनए तांहित्रक हिबद्या में एक मंत्र एसा भी ै जिजसके जगाने से बैरी की आयु 5ीण ोती ै। अगर दस आदमी प्रहितटिदवस उसका पाठ करे तो आयु में दोप र की ाहिन ोगी। अगर सौ आदमी पाठ करे तो दस टिदन की ाहिन ोगी।

यटिद पाच सौ पाठ हिनत्य ों तो र टिदन पाच वष आयु घटती ैं।

सेठ जी- म ाराज, आप ने इस घड़ी एसी बात क ी हिक मारा चो�ा मस्त ो गया, मस्त ो गया ,

दीनानाथ- कृपालिसन्घु, आप घन्य ो ! आप घन्य ो !

बहुत से आदमी- एक बार बो�ो- पंहिड़त भृगुदत जय !

बहुत से आदमी- एक बार बो�ो- दुष्ठों की छै ! छै ! !

इस तर को�ा � मचाते हुए �ोग अपने- अपने घरो को �ौटे। उसी टिदन राघो �वाई पंहिड़त जी के मकान पर जा डटा। पूजा-पाठ ोने �गे । पाच सौ भुक्खड़ एकत्र ो गय ेऔर दोनों जून मा� उडानें �गे। 3ीरे- 3ीरे पाच सौ से एक जार नम्बर पहुचा पूजा-पाठ कौन करता ै। सबेरे से भोजन का प्रबन्ध करते – करते दोप र ो जाता था। और दोप र से भंग- बूटी छानते रात ो जाती थी। ॉ पंहिडत भृगुदत दास का नाम पुरे श र में उजागर ो र ा था। चारो ओर उनकी बड़ाई गाई जा र ी थ। सात टिदन य ी अ3ा3ंु3 मचा र ा। य सब कुछ हुआ । मगर बाबू अमृतराय का बा� बाँका न ो सका। क ी चमार के सरापे डागर यिम�ते ै। एसे ऑंख् के अं3े और गँठ के पुरे न फँसे तो भृगुदत जैसे गुगो को चखौहितया कौन करायें। सेठ जी के आदमी हित�- हित� पर अमृतराय के मकान पर दौड़ते थे हिक देखें कुछ जंत्र –मत्र का फ� हुआ हिक न ीं। मगर सात टिदन के बीतने पर कुछ फ� हुआ तो य ी हिक अमृतराय की वका�त सदा से बढकर चमकी हुई थी।

पे्रमा भाग 12 / पे्रमचंद पन्ना संवाद सोस देखें . पुराने अवतरण

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 रचनाकार: पे्रमचंद                 

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एक स्त्री के दो पुरूष नहीं हो सकते

प्रेमा का ब्या हुए दो म ीने से अयि3क बीत चुके ैं मगर अभी तक उसकी अवस्था व ी ै जो कँुवारापन में थी। व रदम उदास और मलि�न र ती ैं। उसका मुख पी�ा पड़ गया। ऑंखें बैठे हुई, सर के बा� हिबखरे, उसके टिद� में अभी तक बाबू अमृतराय की मु ब्बत बनी हुई ैं। उनकी मूर्षितP रदम उसकी ऑंखों के सामने नाचा करती ै। व बहुत चा ती ै हिक उनकी सूरत ह्दय से हिनका� दे मगर उसका कुछ बस न ीं च�ता। यद्यहिप बाबू दाननाथ उससे सच्चा प्रेम रखते ैं और बडे़ सुन्दर ँसमुख, यिम�नसार मनुष्य ैं। मगर प्रेमा

का टिद� उनसे न ीं यिम�ता। व उनसे प्रेम-भाव टिदखाने में कोई बात उठा न ीं रखती। जब व मौजूद ोते ैं तो व ँसती भी ैं। बातचीत भी करती ै। प्रेम भी जताती ै। मगर जब व च�े जाते ैं तब उसके मुख पर हिफर उदासी छा जाती ै। उसकी सूरत हिफर हिवयोहिगन की-सी ो जाती ै। अपने मैके में उसे रोने की कोई रोक-टोक न थी। जब चा ती और जब तक चा ती, रोया करती थी। मगर य ॉँ रा भी न ीं सकती। या रोती भी तो लिछपकर। उसकी बूढ़ी सास उसे पान की तर फेरा करती ै। केव� इसलि�ए न ीं हिक व उसका पास और दबाव मानती ै बश्किल्क इसलि�ए हिक व अपने साथ बहुत-सा द ेज �ायी ै। उसने सारी गृ स्थी पतोहू के ऊपर छोड़ रक्खी ै और रदम ईश्वर से हिवनय हिकया करती ै हिक पोता खे�ाने के टिदन जल्द आयें।

बेचारी प्रेमा की अवस्था बहुत ी शोचनीय और करुणा के योग्य ै। व ँसती ै तो उसकी ँसी में रोना यिम�ा ोता ै। व बातचीत करती ै तो ऐसा जान पड़ता ै हिक अपने दुख की क ानी क र ी ै। बनाव-सिसPगार से उसकी तहिनक भी रुलिच न ीं ै। अगर कभी सास के क ने-सुनने से कुछ सजावट करती भी ै तो उस पर न ीं खु�ता। ऐसा मा�ूम ोता ै हिक इसकी कोम� गात में जो मोहि न थी व रुठ कर क ीं और च�ी गयी। व बहु3ा अपने ी कमरे में बैठी र ती ै। ॉँ, कभी-कभी गाकर टिद� ब �ाती ै। मगर उसका गाना इसलि�ए न ीं ोता हिक उससे लिचत्त को आनन्द प्राप्त ो। बश्किल्क व म3ुर स्वरों में हिव�ाप और हिवषाद के राग गाया करती ै।

बाबू दाननाथ इतना तो शादी करने के प �े ी जानते थे हिक प्रेमा अमृतराय पर जान देती ै। मगर उन् ोंने समझा था हिक उसकी प्रीहित सा3ारण ोगी। जब मैं उसको ब्या कर �ाऊँगा, उससे स्न े, बढ़ाऊँगा, उस पर अपने के हिनछावर करँुगा तो उसके टिद� से हिपछ�ी बातें यिमट जायँगी और हिफर मारी बडे़ आनन्द से कटेगी। इसलि�ए उन् ोंने एक म ीने के �गभग प्रेमा के उदास और मलि�न र ने की कुछ परवा न की। मगर उनको क्या मा�ूम था हिक स्न े का व पौ3ा जो प्रेम-रस से सींच-सींच कर परवान चढ़ाया गया ै म ीने-दो म ीने में कदाहिप न ीं मुरझा सकता। उन् ोंने दूसरे म ीने भर भी इस बात पर ध्यान न टिदया। मगर जब अब भी प्रेमा के मुख से उदासी की घटा फटते न टिदखायी दी तब उनको दुख ोने �गा। प्रेम और ईष्या का चो�ी-दामन का साथ ै। दाननाथ सच्चा प्रेम देखते थे। मगर सच्चे प्रेम के बद�े में सच्चा प्रेम चा ते भी थे। एक टिदन व मा�ूम से सबेर मकान पर आये और प्रेमा के कमरे में गये तो देखा हिक व सर झुकाये हुए बैठी ै। इनको देखते ी उसने सर उठाया और चोट ऑंच� से ऑंसू पोंछ उठ खड़ी हुई और बो�ी—मुझे आज न मा�ूम क्यों �ा�ा जी की याद आ गयी थी। मैं बड़ी से रो र ी हँू।

दाननाथ ने उसको देखते ी समझ लि�या था हिक अमृतराय के हिवयोग में ऑंसू बा ये जा र े ैं। इस पर प्रेमा ने जो यों वा बत�ायी तो उनके बदन में आग �ग गयी। तीखी लिचतवनों से देखकर बो�े—तुम् ारी ऑंखें ैं और तुम् ारे ऑंसू, जिजतना रोया जाय रो �ो। मगर मेरी ऑंखों में 3ू� मत झोंको।

प्रेमा इस कठोर वचन को सुनकर चौंक पड़ी और हिबना कुछ उत्तर टिदये पहित की ओर डबडबाई हुई ऑंखों से ताकने �गी। दाननाथ ने हिफर क ा—

क्या ताकती ो, प्रेमा? मैं ऐसा मूख न ीं हँू, जैसा तुम समझती ो। मैंने भी आदमी देखे ैं और मैं भी आदमी प चानता हँू। मैं तुम् ारी एक-एक बात की गौर से देखता हँू मगर जिजतना ी देखता हँू उतना ी लिचत्त को दुख ोता ै। क्योंहिक तुम् ारा बताव मेरे साथ फीका ै। यद्यहिप तुमको य सुनना अच्छा न मा�ूम ोगा मगर ार कर क ना पड़ता ै हिक तुमको मुझसे �ेश-मात्र भी प्रेम न ीं ै। मैने अब तक इस हिवषय में ज़बान खो�ने का सा स न ीं हिकया था और ईश्वर जानता ै हिक तुमसे हिकस क़दर मु ब्बत करता हँू। मगर मु ब्बत सब कुछ स सकती ै, रुखाई न ीं स सकती और व भी कैसी रुखाई जो हिकसी दूसरे पुरुष के हिवयोग में उत्पन्न हुई ो। ऐसा कौन बे ाय, हिन�ज्ज आदमी ोगा जो य देखे हिक उसकी पत्नी हिकसी दूसरे के लि�ए हिवयोहिगन बनी हुई ै और उसका �हू उब�ने न �गे और उसके ह्दय में क्रो3 हिक ज्वा�ा 33क न उठे। क्या तुम न ीं जानती ो हिक 3मशास्त्र के अनुसार स्त्री अपने पहित के लिसवाय हिकसी दुसरे मनुष्य की ओर कुदृयि� से देखने से भी पाप की भीगी ो जाती ै और उसका पहितव्रत भंग ो जाता ै।

प्रेमा तुम एक बहुत ऊँचे घराने की बेटी ो और जिजस घराने की तुम बहू ो व भी इस श रमें हिकसी से ेठा न ीं। क्या तुम् ारे लि�ए य शम की बात न ीं ै हिक तुम एक बाज़ारों की घूमनेवा�ी रॉँड़ ब्राह्मणीं के तुल्य भी न समझी जाओ और व कौन ै जिजसने तुम् ारा ऐसा हिनरादर हिकया? व ी अमृतराय, जिजसके लि�ए तुम ओठों प र मोती हिपरोया करती ो। अगर उस दु� के ह्दय में तुम् ारा कुछ भी प्रेम ोता तो व तुम् ारे हिपता के बार-बार क ने पर भी तुमको इस तर 3ता न बताता। कैसे खेद की बात ैं। इन् ीं ऑंखों ने उसे तुम् ारी तस्वीर को पैरो से रौंदते हुए देखा ै। क्या तुमको मेरी बातों का हिवश्वास न ीं आता? क्या अमृतराय के कतव्य से न ीं हिवटिदत ोता ै की उनको तुम् ारी रत्ती-भर भी परवा न ीं ैं क्या उन् ोंने डंके की चोट पर न ीं साहिबत कर टिदया हिक व तुमको तुच्छा समझते ै? माना हिक कोई टिदन ऐसा था हिक व हिववा करने की अक्षिभ�ाषा रखते थे। पर अब तो व बात न ीं र ी। अब व अमृतराय ै जिजसकी बदच�नी की सारे श र में 3ूम मची हुई। मगर शोक और अहित शोक की बात ै हिक तुम उसके लि�ए ऑंसू ब ा-ब ाकर अपने मेरे खानदान के माथे कालि�ख का टीका �गाती ो।

दाननाथ मारे क्रो3 के काँप र े थे। चे रा तमतमाया हुआ था। ऑंखों से लिचनगारी हिनक� र ी थी। बेचारी प्रेमा लिसर नीचा हिकये हुए खड़ी रो र ी थी। पहित की एक-एक बात उसके क�ेजे के पार हुई जाती थी। आखिखर न र ा गया। दाननाथ के पैरों पर हिगर पड़ी और उन् ें गम-गम ऑंसू की बँूदों से क्षिभगो टिदया। दाननाथ ने पैर खसका लि�या। प्रेमा को चारपाई पर बैठा टिदया ओर बो�े—प्रेमा, रोओ मत। तुम् ारे रोने से मेरे टिद� पर चोट �गती ै। मैं तुमको रु�ाना न ीं चा ता। परन्तु उन बातों को क ें हिबना र भी न ीं सकता। अगर य टिद� में र गई तो नतीजा बुरा पैदा करेगी। कान खो�कर सुनो। मैं तुमको प्राण से अयि3क प्यार करता हँू। तुमको आराम पहँुचाने के लि�ए ाजिज़र हँू। मगर तुमको लिसवाय अपने हिकसी दूसरे का ख्या� करते न ीं देख सकता। अब तक न जाने कैसे-कैसे मैंने टिद� को समझाया। मगर अब व मेरे बस का न ीं। अब व य ज�न न ीं स सकता। मैं तुमको चेताये देता हँू हिक य रोना-3ोना छोड़ा। यटिद इस चेताने पर भी तुम मेरी बात न मानो तो हिफर मुझे दोष मत देना। बस इतना क े देता हँू। हिक स्त्री के दो पहित कदाहिप जीते न ीं र सकते।

य क ते हुए बाबू दाननाथ क्रो3 में भरे बा र च�े आये। बेचारी प्रेमा को ऐसा मा�ूम हुआ हिक मानो हिकसी ने क�ेजे में छुरी मार दी। उसको आज तक हिकसी ने भू�कर भी कड़ी बात न ीं सुनायी थी। उसकी भावज कभी-कभी ताने टिदया करती थी मगर व ऐसा न ोते थे। व घंटों रोती र ी। इसके बाद उसने पहित की सारी बातों पर हिवचार करना शुरु हिकया और उसके कानों में य शब्द गँूजने �गे-एक स्त्री के दो पहित कदाहिप जीते न ीं र सकते।

इनका क्या मत�ब ै?

पे्रमा भाग 13 / पे्रमचंद पन्ना संवाद सोस देखें . पुराने अवतरण

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 रचनाकार: पे्रमचंद                 

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शोकदायक घटना

पूणा, रामक�ी और �क्ष्मी तीनों बडे़ आनन्द से हि त-यिम�कर र ने �गी। उनका समय अब बातचीत, ँसी-टिदल्�गी में कट जात। लिचन्ता की परछाई भी न टिदखायी देती। पूणा दो-तीन म ीने में हिनखर कर ऐसी कोम�ागी ो गयी थी हिक पहि चान न जाती थी। रामक�ी भी खूब रंग-रूप हिनका�े थी। उसका हिनखार और यौवन पूणा को भी मात करता था। उसकी ऑंखों में अब चंच�ता और मुख पर व चप�ता न थी जो प �े टिदखायी देती थी। बश्किल्क अब व अहित सुकुमार कायिमनी ो गयी थी। अचे्छ संग में बैठत-ेबैठत ेउसकी चा�-ढा� में गम्भीरता और 3ैय आ गया था। अब व गंगा स्नान और मजिन्दर का नाम भी �ेती। अगर कभी-कभी पूणा उसको छोड़ने के लि�ए हिपछ�ी बातें याद टिद�ाती तो व नाक-भौं चढ़ा �ेती, रुठ जाती। मगर इन तीनों में �क्ष्मी का रुप हिनरा�ा था। व बडे़ घर में पैदा हुई थी। उसके मॉँ-बाप ने उसे बडे़ �ाड़-प्यार से पा�ा था और उसका बड़ी उत्तम रीहित पर लिश5ा दी थी। उसका कोम� गत, उसकी मनो र वाणी, उसे अपनी सखिखयॉँ में रानी की पदावी देती थी। व गाने-बजाने में हिनपुण थी और अपनी सखिखयों को य गुण लिसखाया करती थी। इसी तर पूणा को अनेक प्रकार के वं्यजन बनाने का व्यसन था। बेचारी रामक�ी के ाथों में य सब गुण न थे। ॉँ, व ँसोड़ी थी और अपनी रसी�ी बातों से सखिखयों को ँसाया करती थी।

एक टिदन शाम को तीनों सखिखयाँ बैठी बातलिचत कर र ी थी हिक पूणा ने मुसकराकर रामक�ी से पूछा—क्यों रम्मन, आजक� मजिन्दर पूजा करने न ीं जाती ो।

रामक�ी ने झेंपकर जवाब टिदया—अब व ॉँ जाने को जी न ीं चा ता। �क्ष्मी रामक�ी का सब वृत्तान्त सुन चुकी थी। व बो�ी— ॉँ बुआ, अब तो ँसने-बो�ने का सामान घर ी पर ी मौजूद ै।

रामक�ी—(हितनककर) तुमसे कौन बो�ता ै, जो �गी ज र उग�ने। बहि न, इनको मना कर दो, य मारी बातों में न बो�ा करें। न ीं तो अभी कुछ क बैठँूगी तो रोती हिफरेंगी।

पूणा—मत �लिछमी (�क्ष्मी) सखी को मत छोड़ो।

�क्ष्मी—(मुसकराकर) मैंने कुछ झूठ थोडे़ ी क ा था जो इनको ऐसा कडुआ मा�ूम हुआ।

रामक�ी—जैसी आप ै वैसी सबको समझती ै।

पूणा— �लिछमी, तुम मारी सखी को बहुत टिदक हिकया करती ो। तुम् री बा� से व मजिन्दर में जाती थी।

�क्ष्मी—जब मैं क ती हँू तो रोती का े को ै।

पूणा—अब य बात उनको अच्छी न ीं �गती तो तुम का े को क ती ो। खबरदार, अब हिफर मजिन्दर का नाम मत �ेना।

�क्ष्मी—अच्छा रम्मन, में एक बात दो तो, म हिफर तुम् ें कभी न छेडे़—म न्त जी ने मंत्र देते समय तुम् रे कान में क्या क ा? मारा माथा छुए जो झूठ बो�े।

रामक�ी—(लिचटक कर) सुना �लिछमी, मसे शरारत करोगी तो ठीक न ोगा। मैं जिजतना ी तर देती हँू, तुम उतनी ी सर चढ़ी जाती ो।

पूणा—ऐ तो बत�ा क्यों न ीं देती, इसमें क्या ज ै?

रामक�ी—कुछ क ा ोगा, तुम कौन ोती ो पूछनेवा�ी? बड़ी आयीं व ॉँ से सीता बन के

पूणा—अच्छा भाई, मत बताओ, हिबगड़ती का े को ो?

�क्ष्मी—बताने की बात ी न ीं बत�ा कैसे दें।

रामक�ी—कोई बात भी ो हिक यों ी बत�ा दँू।

पूणा—अच्छा य बात जाने दो। बताओ उस तंबो�ी ने तुम् ें पान खिख�ाते समय क्या क ा था।

रामक�ी—हिफर छेड़खानी की सूझी। मैं भी पते की बात क दँूगी तो �जा जाओगी।

�क्ष्मी—तुम् े मार कसम सखी, जरुर क ो। य म �ोगों की बातों तो पूछ �ेती ै, अपनी बातें एक न ीं क तीं।

रामक�ी—क्यों सखी, कहँू? क ती हँू, हिबगड़ना मत।

पूणा- क ो, सॉँच को ऑंच क्या।

रामक�ी—उस टिदन घाट पर तुमने हिकस छाती से लि�पटा लि�या था।

पूणा— तुम् ारा सर

�क्ष्मी— समझ गयी। बाबू अमृतराय ोंगे। क्यों ै न?

य तीनों सखिखयॉँ इसी तर ँस-बो� र ीं थीं हिक एक बूढ़ी औरत ने आकर पूणा को आशीवाद टिदया और उसके ाथ में एक खत रख टिदया। पूणा ने अ5र पहि चाने, प्रेमा का पत्र था। उसमें य लि�खा था—

‘‘प्यारी पूणा तुमसे भेंट करने को बहुत जी चा ता ै। मगर य ॉँ घर से बा र पॉँव हिनका�ने की मजा� न ीं। इसलि�ए य ख़त लि�खती हँू। मुझे तुमसे एक अहित आवश्यक बात करनी ै। जो पत्र में न ीं लि�ख सकती हँू। अगर तुम हिबल्�ो को इस पत्र का जवाब देकर भेजो तो जबानी क दँूगी। देखा देर मत करना। न ीं तो अनथ ो जाएगा। आठ बजे के प �े हिबल्�ो य ॉँ अवश्य आ जाए।

तुम् ारी सखी प्रेमा’’

पत्र पढ़ते ी पूणा का लिचत्त व्याकु� ो गया। चे रे का रंग उड़ गया और अनेक प्रकार की शंकाए ँ�गी। या नारायण अब क्या ोनेवा�ा ै। लि�खती ै देखो देर मत करना। न ीं तो अनथ ो जाएगा। क्या बात ै।

अभी तक व कच री से न ीं �ौटे। रोज तो अब तक आ जाया करते थे। इनकी य ी बात तो म को अच्छी न ीं �गती।

�क्ष्मी और रामक�ी ने जब उसको ऐसा व्याकु� देखा तो घबराकर बो�ीं—क्या बहि न, कुश� तो ै? इस पत्र में क्या लि�खा ै?

पूणा—क्या बताऊँ क्या लि�खा ै। रामक�ी, तुम जरा कमरे में जा के झॉँको तो आये या न ीं अभी।

रामक�ी ने आकर क ा—अभी न ीं आये।

�क्ष्मी—अभी कैसे आयेंगे? आज तो तीन आदमी व्याख्यान देने गये ै।

इसी घबरा ट में आठ बजा। पूणा ने प्रेमा के पत्र का जवाब लि�खा और हिबल्�ो को देकर प्रेमा को घर भेज टिदया। आ3ा घंटा भी न बीता था हिक हिबल्�ो �ौट आयी। रंग उड़ा हुआ। बद वास और घबरायी हुई। पूणा ने उसे देखते ी घबराकर पूछा—क ो हिबल्�ो, कुश� क ो।

हिबल्�ो (माथा ठोंककर) क्या कहँू, बहू क ते न ीं बनता। न जाने अभी क्या ोने वा�ा ै।

पूणा—क्या क ा? कुछ लिचट्ठी-पत्री तो न ीं टिदया?

हिबल्�ो—लिचट्ठी क ॉँ से देती? मको अन्दर बु�ाते डरती थीं। देखते ी रोने �गी और क ा—हिबल्�ो, मैं क्या करँु, मेरा जी य ॉँ हिब�कु� न ीं �गता। मैं हिपछ�ी बातें याद करके रोया करती हँू। व (दाननाथ) कभी जब मुझे रोते देख �ेते ैं तो बहुत झल्�ाते ैं। एक टिदन मुझे बहुत ज�ी-कटी सुनायी और च�ते-समय 3मका कर क ा—एक औरत के दो चा नेवा�े कदाहिप जीते न ीं र सकते। य क कर हिबल्�ो चुप ो गयी। पूणा के समझ में पूरी बात न आयी। उसने क ा—चुप क्यों ो गयी? जल्दी क ो, मेरा दम रुका हुआ ै।

हिबल्�ो—इतना क कर व रोने �गी। हिफर मुझको नजदीक बु�ा के कान में क ा—हिबल्�ो, उसी टिदन से मैं उनके तेवर बद�े हुए देखती हँू। व तीन आदयिमयों के साथ �ेकर रोज शाम को न जाने क ॉँ जाते ैं। आज मैंने लिछपकर उनकी बातचीत सुन �ी। बार बजे रात को जब अमृतराय पर चोट करने की स�ा हुई ै। जब से मैंने य सुना ै, ाथों के तोते उडे़ हुए ैं। मुझ अभाहिगनी के कारण न जाने कौन-कौन दुख उठायेगा।

हिबल्�ो की ज़बानी य बातें सुनकर पूणा के पैर त�े से यिमट्टी हिनक� गयी। दनानाथ की तसवीर भयानक रुप 3ारण हिकये उसकी ऑंखों के सामने आकर खड़ी ो गयी।

व उसी दम दौड़ती हुई बैठक में पहँुची। बाबु अमृतराय का व ॉँ पता न था। उसने अपना माथा ठोंक हिबल्�ो से क ॉँ—तुम जाकर आदयिमयों क दो। फाटक पर खडे़ ो जाए। और खुद उसी जग एक कुसR पर बैठकर गुनने �गी हिक अब उनको कैसे खबर करँु हिक इतने में गाड़ी की खड़खड़ा ट सुनायी दी। पूणा का टिद� बडे़ जोर से 3ड़-3ड़ करने �गा। व �पक कर दरवाजे़ पर आयी और कॉँपती हुई आवाज़ से पुकार बो�ी—इतनी देर क ॉँ �गायी? जल्दी आत ेक्यों न ीं?

अमृतराय जल्दी से उतरे और कमरे के अन्दर कदम रखते ी पूणा ऐसे लि�पट गयी मानो उन् ें हिकसी के वार से बचा र ी ै और बो�ी—इतनी जल्दी क्यों आये, अभी तो बहुत सवेरा ै।

अमृतराय—प्यारी, 5मा करो। आज जरा देर ो गयी।

पूणा—चलि�ए र ने दीजिजए। आप तो जाकर सैर-सपाटे करते ैं। य ॉँ दूसरों की जान �कान ोती ैं

अमृतराय—क्या बतायें, आज बात ऐसी आ पड़ी हिक रुकना पड़ा। आज माफ करो। हिफर ऐसी देर न ोगी।

य क कर व कपडे़ उतारने �गे। मगर पूणा व ी खड़ी र ी जैसे कोई चौंकी हुई रिरणी। उसकी ऑंखें दरवाजे़ की तरफ �गी थीं। अचानक उसको हिकसी मनुष्य की परछाई दरवाजे़ के सामने टिदखायी पड़ी। और व हिबज�ी की रा चमककर दरवाजा रोककर खड़ी ो गयी। देखा तो क ार था। जूता खो�ने आ र ा था। बाबू सा ब न ध्यान से देखा तो पूणा कुछ घबरायी हुई टिदखायी दी। बो�े---प्यारी, आज तुम कुछ घबरायी हुई ो।

पूणा—सामनेवा�ा दरवाजा बन्द करा दो।

अमृतराय—गरमी ो र ी ैं। वा रुक जाएगी।

पूणा—य ॉँ न बैठने दँूगी। ऊपर च�ो।

अमृतराय—क्यों बात क्या ै? डरने की कोई वज न ीं।

पूणा—मेरा जी य ॉँ न ीं �गता। ऊपर च�ो। व ॉँ चॉँदनी में खूब ठंडी वा आ र ी ोगी।

अमृतराय मन में बहुत सी बातें सोचते-सोचते पूणा के साथ कोठे पर गये। खु�ी हुई छत थी।कुर्सिसPयॉँ 3री हुई थी। नौ बजे रात का समय, चैत्र के टिदन, चॉँदनी खूब लिछटकी हुई, मन्द-मन्द शीत� वायु च� र ी थी। बगीचे के रे-भरे वृ5 3ीरे-3ीरे झूम-झूम कर अहित शोभायमान ो र े थे। जान पड़ता था हिक आकाश ने ओस की पत�ी �की चादर सब चीजों पर डा� दी ै। दूर-दूर के 3ँु3�े-3ँु3�े पेड़ ऐसे मनो र मा�ूम ोते ै मानो व देवताओं के रमण करने के स्थान ैं। या व उस तपोवन के वृ5 ैं जिजनकी छाया में शकुन्त�ा और उसकी सखिखयॉँ भ्रमण हिकया करती थीं और ज ॉँ उस सुन्दरी ने अपने जान के अ3ार राजा दुष्यन्त को कम� के पते्त पर प्रेम-पाती लि�खी थी।

पूणा और अमृतराय कुर्सिसPया पर बैठ गये। ऐसे सुखदाय एकांत में चन्द्रमा की हिकरणों ने उनके टिद�ों पर आक्रमण करना शुरु हिकया। अमृतराय ने पूणा के रसी�े अ3र चूमकर क ा—आज कैसी सु ावनी चाँदनी ै।

पूणा—मेरी जी इस घड़ी चा त ै हिक मैं लिचहिड़या ोती।

अमृतराय—तो क्या करतीं।

पूणा—तो उड़कर उन दूरवा�े पेड़ों पर जा बैठती।

अमृतराय—अ ा ा देखा �क्ष्मी कैसा अ�ाप र ी ै।

पूणा—�क्ष्मी का-सा गाना मैंने क ीं न ीं सुना। कोय�ा की तर कूकती ै। सुनो कौन गीत ै। सुना मोरी सुयि3 जहिन हिबसरै ो, म राज।

अमृतराय—जी चा ता ै, उसे य ीं बु�ा �ूँ।

पूणा- न ीं। य ॉँ गाते �जायेगी। सुनो। इतनी हिवनय मैं तुमसे करत ौं टिदन-टिदन स्ने बढै़यो म राज।

अमृतराय— ाय जी बेचैन हुआ जाता ै।

पूणा---जैसे कोई क�ेजे में बैठा चुटहिकयॉँ �े र ा ो। कान �गाओ, कुछ सुना, क ती ै। मैं म3ुमाती अरज करत हँू हिनत टिदन पक्षित्तया पठैयो, म राज

अमृतराय—कोई प्रेम—रस की माती अपने सजन से क र ी ै।

पूणा—क ती ै हिनत टिदन पक्षित्तया पठैयो, म राज ाय बेचारी प्रेम में डूबी हुई ै।

अमृतराय---चुप ो गयी। अब व सन्नटा कैसा मनो र मा�ूम ोता ै।

पूणा---प्रेमा भी बहुत अच्छा गाती थी। मगर न ीं।

प्रेमा का नाम जबान पर आते ी पूणा यक़ायक चौंक पड़ी और अमृतराय के ग�े में ाथ डा�कर बो�ी—क्यों प्यारे तुम उन गड़बड़ी के टिदनों में मारे घर जाते थे तो अपने साथ क्या �े जाया करते थे।

अमृतराय—(आश्चय से) क्यों? हिकसलि�ए पूछती ो?

पूणा—यों ी ध्यान आ गया।

अमृतराय—अंग्रेजी तमंचा था। उसे हिपस्तौ�ा क ते ै।

पूणा—भ�ा हिकसी आदमी के हिपस्तौ� की गो�ी �गे तो क्या ो।

अमृतराय—तुरंत मर जाए।

पूणा—मैं च�ाना सीखूँ तो आ जाए।

अमृतराय—तुम हिपस्तौ� च�ाना सीखकर क्या करोगी? (मुसकराकर) क्या नैनों की कटारी कुछ कम ै? इस दम य ी जी चा ता ै हिक तुमको क�ेजा में रख �ूँ।

पूणा—( ाथ जोड़कर) मेरी तुमसे य ी हिवनय ै— मेरा सुयि3 जहिन हिबसरै ो, म ाराज

य क ते-क ते पूणा की ऑंखों में नीर भर आया। अमृतराय। अमृतराय भी गदगद स्वर ो गये और उसको खूब भेंच-भेंच प्यार हिकया, इतने में हिबल्�ो ने आकर क ा—चलि�ए रसोई तैयार ै।

अमृतराय तो उ3र भोजन पाने गये और पूणा ने इनकी अ�मारी खो�कर हिपस्तौ� हिनका� �ी और उसे उ�ट-पु�ट कर गौर से देखने �गी। जब अमृतराय अपने दोनों यिमत्रों के साथ भोजन पाकर �ौटे और पूणा को हिपस्तौ� लि�ये देखा तो जीवननाथ ने मुसकराकर पूछा—क्यों भाभी, आज हिकसका लिशकार ोगा?

पूणा-इसे कैसे छोड़ते ै, मेरे तो समझ ी में न ीं आत।

ज़ीवननाथ—�ाओ मैं बता दँू।

य क कर ज़ीवननाथ ने हिपस्तौ� ाथ में �ीं। उसमें गो�ी भरी और बरामदे में आये और एक पेड़ के तने में हिनशान �गा कर दो-तीन फ़ायर हिकये। अब पूणा ने हिपस्तै� ाथ में �ी। गो�ी भरी और हिनशाना �गाकर दागा, मगर ठीक न पड़ा। दूसरा फ़ायर हिफर हिकया। अब की हिनशाना ठीक बैठा। तीसरा फ़ायर हिकया। व भी ठीक। हिपस्तौ� रख दी और मुसकराते हुए अन्दर च�ी गयी। अमृतराय ने हिपस्तौ� उठा लि�या और जीवननाथ से बो�े—कुछ समझ में न ीं आता हिक आज इनको हिपस्तौ� की 3ुन क्यों सवार ै।

जीवननाथ—हिपस्तौ� रक्ख देख के छोड़ने की जी चा ा ोगा।

अमृतराय—न ीं,आज जब से मैं आया हँू,कुछ घबरया हुआ देख र ा हँू।

जीवननाथ—आपने कुछ पूछा न ीं।

अमृतराय—पूछा तो बहूत मगर जब कुछ बत�ायें भी, हँू- ॉँ कर के टा� गई।

जीवननाथ—हिकसी हिकताब में हिपस्तौ� की �ड़ाई पढ़ी ोगी। और क्या?

प्राणनाथ—य ी मैं भी समझता हँू।

जीवननाथ—लिसवाय इसके और ों ी क्या सकता ै?

कुछ देर तक तीनों आदमी बैठे गप-शप करते र े। जब दस बजने को आये तो �ोग अपने-अपने कमरों में हिवश्राम करने च�े गये। बाबू सा ब भी �ेटे। टिदन-भर के थके थे। अखबार पढ़ते-पढ़ते सो गये। मगर बेचारी पूणा की ऑंखों में नींद क ॉँ? व बार बजे तक एक क ानी पढ़ती र ी। जब तमाम सोता पड़ गया और चारो तरफ सन्नाटा छा गया तो उसे अके�े डर मा�ूम ोने �गा। डरते ी डरते उठी और चारों तरफ के दरवाजे बन्द कर लि�ये। मगर जवनी की नींद, बहुत रोकने पर भी एक झपकी आ ी गयी। आ3ी घड़ी भी न बीती थी हिक भय में सोने के कारण उसे एक अहित भंयकर स्वप्न टिदखायी टिदया। चौंककर उठ बैठी, ाथ-पॉँव थर-थर कॉँपने �गे। टिद� में 3ड़कन ोने �गी। पहित का ाथ पकड़कर चा ती थी हिक जगा दें। मगर हिफर य समझकर हिक इनकी प्यारी नींद उचट जाएगी तो तक�ीफ ोगी, उनका ाथ छोड़ टिदया। अब इस समय उसकी जो अवस्था ै वणन न ीं की जा सकती। चे रा पी�ा ो र ा ै, डरी हुई हिनगा ों से इ3र-उ3र ताक र ी ै, पत्ता भी खड़खड़ाता ै ता चौंक पड़ती ैं। कभी अमृतराय के लिसर ाने खड़ी ोती ै, कभी पैताने। �ैम्प की 3ंु3�ी रोशनी में व सन्नाटा और भी भयानक मा�ूम ो र ा ै। तसवीरे जो दीवारों से �टक र ी ै, इस समय उसको घूरते हुए मा�ूम ोती ै। उसके सब रोंगटे खडे़ ैं। हिपस्तौ� ाथ में लि�ये घबरा-घबरा कर घड़ी की तरफ देख र ी ैं। यकायक उसको ऐसा मा�ूम हुआ हिक कमरे की छत दबी जाती ै। हिफर घड़ी की सुइयों को देखा। एक बज गया था इतने ी में उसको कई आदयिमयों के पॉँव की आ ट मा�ूम हुई। क�ेजा बॉंसों उछा�ने �गा। उसने हिपस्तौ� सम् ा�ी। य समझ गयी हिक जिजन �ोगों के आने का खटका था व आ गये। तब भी उसको हिवश्वास था हिक इस बन्द कमरे में कोई न आ सकेगा। व कान �गाये पैरों की आ ट �े र ी

थी हिक अकस्मात दरवाजे पर बडे़ जोर से 3क्का �गा और जब तक व बाबू अमृतराय को जगाये हिक मजबूत हिकवाड़ आप ी आप खु� गये और कई आदमी 3ड़3ड़ाते हुए अन्दा घुस आये। पूणा ने हिपस्तौ� सर की। तड़ाके की आवाज हुई। कोई 3म्म से हिगर पड़ा, हिफर कुछ खट-खट ोने �गा। दो आवाजे हिपस्तौ� के छुटने की और हुई। हिफर 3माका हुआ। इतने में बाबू अमृतराय लिचल्�ाये। दौड़ो-दौड़ो, चोर, चोर। इस आवाज के सुनते ी दो आदमी उनकी तरफ �पके। मगर इतने में दरवाजे पर �ा�टेन की रोशनी नजर आयी और प्राणानाथ और जीवननाथ ाथों में सोटे लि�ए आ पहँुचे। चोर भागने �गे, मगर दो के दोनों पकड़ लि�ए गये। जब �ा�टेने �ेकर जमीन पर देखा तो दो �ाशे टिदखायी दीं। एक तो पूणा की �ाश थी और दूसरी एक मद की। यकायक प्राणनाथ ने लिचल्�ा कर क ा—अरे य तो बाबू दाननाथ ैं।

बाबू अमृतराय ने एक ठंडी साँस भरकर क ा—आज जब मैंने उसके ाथ में हिपस्तौ� देखा तभी से टिद� में एक खटका-सा �गा हुआ था। मगर, ाय क्या जानता था हिक ऐसी आपक्षित्त आनेवा�ी ै।

प्राणनाथ—दाननाथ तो आपके यिमत्रों में थे।

अमृतराय---यिमत्रों में जब थे तब थे। अब तो शतु्र ै।

× × × × ×

पूणा को दुहिनया से उठे दो वष बीत गया ैं। सॉँझ का समय ैं। शीत�-सुगंयि3त लिचत्त को ष देनेवा�ी वा च� र ी ैं। सूय की हिवदा ोनेवा�ी हिकरणें खिखड़की से बाबू अमृतराय के सजे हुए कमेरे में जाती ैं और पूणा के पूरे कद की तसवीर के पैरों को चूम-चूम कर च�ी जाती ैं। उनकी �ा�ी से सारा कमरा सुन रा ो र ा ैं। रामक�ी और �क्ष्मी के मुखडे़ इस समय मारे आनन्द के गु�ाब की तर खिख�े हुए ै। दोनों ग ने-पाते से �ौस ैं और जब व खिखड़की से भर हिनका�ती ैं और सुन री हिकरणें उनके गु�ाब-से मुखड़ों पर पड़ती ै तो जान पड़ता ै हिक सूय आप ब�ैया �े र ा ै। व र -र कर ऐसी लिचतवनों से ताकती ैं से ताकती ैं जैसी हिकसी की र ी ैं। यकायक रामक�ी ने खुश ोकर क ा—सुखी व देखों आ गये। उनके कपडे़ कैसे सुन्दर मा�ूम देते ै।

एक अहित सुन्दर हिफटन चम-चम करती हुई फाटक के अंदर दाखिख� ोती ै और बँग�े के बरामदे में आकर रुकती ै। बाबू अमृतराय उसमें से उतरते ैं। मगर अके�े न ीं। उनका एक ाथ प्रेमा के ाथ में ै। यद्यहिप बाबू सा ब का सुन्दर चे रा कुछ पी�ा ो र ा ै। मगर ोंठों पर �की-सी मुसकरा ट झ�क र ी ै और माथे पर केशर का टीका और ग�े में खूबसूरत ार और शोभा बढ़ा र े ैं।

प्रेमा सुन्दरता की मूरत और जवानी की तस्वीर ो र ी ै। जब मने उसको हिपछ�ी बार देखा था तो लिचन्ता और दुब�ता के लिचह्न मुखडे़ से पाये जाते थे। मगर कुछ और ी यौवन ै। मुखड़ा कुन्दन के समान दमक र ा ै। बदन गदराय हुआ ै। बोटी—बोटी नाच र ी ै। उसकी चंच�ता देखकर आश्चय ोता ै हिक क्या व ी पी�ी मुँ और उ�झे बा� वा�ी रोहिगन ै। उसकी ऑंखों में इस समय एक घडे़ का नशा समाया हुआ ै। गु�ाबी जमीन की रे हिकनारेवा�ी साड़ी और ऊदे रंग की क�ोइयों पर चुनी हुई जाकेट उस पर खिख� र ी ै। उस पर गोरी-गारी क�ाइयों में जड़ाऊ कडे़ बा�ों में गँुथे हुए गु�ाब के फू�, माथे पर �ा� रोरी की गो�-निबPदी और पॉँव में जरदोज के काम के सुन्दर में सु ागा ो र े ैं। इस ढ़ग के सिसPगार से बाबू सा ब को हिवशेष करके �गाव ै क्योंहिक पूणा देवी की तसवीर भी ऐसी ी कपडे़ पहि ने टिदखायी देती ै और उसे देखकर कोई मुश्किश्क� से क सकता ैं हिक प्रेमा ी की सुरत आइने में उत्तर कर ऐसा यौवन न ीं टिदखा र ी ैं।

अमृतराय ने प्रेमा को एक मखम�ी कुसR पर हिबठा टिदया और मुसकरा कर बो�े—प्यारी प्रेमा आज मेरी जिजन्दगी का सबसे मुबारक टिदन ै।

प्रेमा ने पूणा की तसवीर की तरफ मलि�न लिचतवनों से देखकर क ा— मारी जिज़न्गी का क्यों न ी क ते?

प्रेमा ने य क ा था हिक उसकी नजर एक �ा� चीज पर जा पड़ी जो पूणा की तसवीर के नीचे एक खूबसूरत दीवारगीर पर 3री हुई थी। उसने �पककर उसे उठा लि�या। और ऊपर का रेशमी हिग�ाफ टाकर देखा तो हिपस्तौ� था।

बाबू अमृतराय ने हिगरी हुई आवाज में क ा—य प्यारी पूणा की हिनशानी ै, इसी से उसने मेरी जान बचायी थी।

य क ते—क ते उनकी आवाज कॉँपने �गी।

प्रेमा ने य सुनकर उस हिपस्तौ�ा को चूम लि�या और हिफर बड़ी लि� ाज के साथ उसी जग पर रख टिदया।

इतने में दूसरी हिफ़टन दाखिख� ोती ै। और उसमें से तीन युवक ँसत ेहुए उतरते ैं। तीनों का म प चानते ै।

एक तो बाबू जीवननाथ ैं, दूसरे बाबू प्राणनाथ और तीसरे प्रेमा के भाई बाबू कम�ाप्रसाद ैं।

कम�ाप्रसाद को देखते ी प्रेमा कुसR से उठ खड़ी हुई, जल्दी से घूघँट हिनका� कर लिसर झुका लि�या।

कम�ाप्राद ने बहि न को मुसकराकर छाती से �गा लि�या और बो�े—मैं तुमको सच्चे टिद� से मुबारबाद देता हँू।

दोनों युवकों ने गु� मचाकर क ा—ज�सा कराइये ज�सा, यो पीछा न छूटेगा।