घाघ की कहावतें

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घाघ की कहावत आज के सभम भ टीवी व येडडमो ऩय भौसभ सॊफॊधी जानकायी मभर जाती है। रेककन सददम ऩहरे न टीवी-येडडमो थे , न सयकायी भौसभ ववबाग। ऐसे सभम भ भहान ककसान कवव घाघ व बडयी की कहावत खेतहय सभाज का ऩीद ढम से ऩथदशन कयते आमी ह। बफहाय व उतयदे के गाॊव भ मे कहावत आज बी कापी रोकवम ह। जहाॊ वैऻातनक के भौसभ सॊफॊधी अन भान बी गरत हो जाते ह , ाभीण की धायणा है कघाघ की कहावत ाम: सम साबफत होती ह। Table of Contents घाघ की कहावत .............................................................................................................................................. 1 वषम सूची ................................................................................................... Error! Bookmark not defined. सुकार ........................................................................................................................................................ 1 अकार औय सुकार ...................................................................................................................................... 3 वषाश ............................................................................................................................................................. 4 ऩैदावाय ....................................................................................................................................................... 5 जोत............................................................................................................................................................ 6 फोवाई ......................................................................................................................................................... 7 वाम सू .................................................................................................................................................... 8 काऱ सवश तऩै जो योदहनी, सवश तऩै जो भ य। ऩरयवा तऩै जो जेठ की, उऩजै सातो त य।। मदद योदहणी बय तऩे औय भ र बी ऩ या तऩे तथा जेठ की तऩदा तऩे तो सात काय के अन ऩैदा हगे।

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Page 1: घाघ की कहावतें

घाघ की कहावतें आज के सभम भें टीवी व येडडमो ऩय भौसभ सॊफॊधी जानकायी मभर जाती है। रेककन सददमों ऩहरे न टीवी-येडडमो थे, न सयकायी भौसभ ववबाग। ऐसे सभम भें भहान ककसान कवव घाघ व बड्डयी की कहावतें खेततहय सभाज का ऩीद ढमों से ऩथप्रदर्शन कयते आमी हैं। बफहाय व उत् तयप्रदेर् के गाॊवों भें मे कहावतें आज बी कापी रोकवप्रम हैं। जहाॊ वैऻातनकों के भौसभ सॊफॊधी अनुभान बी गरत हो जाते हैं, ग्राभीणों की धायणा है कक घाघ की कहावतें प्राम: सत् म साबफत होती हैं।

Table of Contents घाघ की कहावतें .............................................................................................................................................. 1

ववषम सचूी ................................................................................................... Error! Bookmark not defined.

सकुार ........................................................................................................................................................ 1

अकार औय सकुार ...................................................................................................................................... 3

वषाश ............................................................................................................................................................. 4

ऩदैावाय ....................................................................................................................................................... 5

जोत ............................................................................................................................................................ 6

फोवाई ......................................................................................................................................................... 7

वाह्म सतू्र .................................................................................................................................................... 8

सुकाऱ

सवश तऩै जो योदहनी, सवश तऩै जो भूय। ऩरयवा तऩै जो जेठ की, उऩजै सातो तूय।।

मदद योदहणी बय तऩे औय भूर बी ऩूया तऩे तथा जेठ की प्रततऩदा तऩे तो सातों प्रकाय के अन्न ऩैदा होंगे।

Page 2: घाघ की कहावतें

र्ुक्रवाय की फादयी, यही सनीचय छाम। तो मों बाख ैबड्डयी, बफन फयसे ना जाए।।

मदद र्ुक्रवाय के फादर र्तनवाय को छाए यह जाएॊ, तो बड्डयी कहते हैं कक वह फादर बफना ऩानी फयसे नहीॊ जाएगा।

बादों की छठ चाॊदनी, जो अनुयाधा होम। ऊफड़ खाफड़ फोम दे, अन्न घनेया होम।।

मदद बादो सुदी छठ को अनुयाधा नऺत्र ऩड़ ेतो ऊफड़-खाफड़ जभीन भें बी उस ददन अन्न फो देने से फहुत ऩैदावाय होती है।

अद्रा बद्रा कृत्त्तका, अद्र येख जु भघादह। चॊदा ऊगै दजू को सुख से नया अघादह।।

मदद द्ववतीमा का चन्द्रभा आद्राश नऺत्र, कृत्त्तका, श्रेषा मा भघा भें अथवा बद्रा भें उगे तो भनुयम सुखी यहेंगे।

सोभ सुक्र सुयगुरु ददवस, ऩौष अभावस होम। घय घय फजे फधावनो, दखुी न दीख ैकोम।।

मदद ऩूस की अभावस्मा को सोभवाय, र्ुक्रवाय फहृस्ऩततवाय ऩड़ ेतो घय घय फधाई फजेगी-कोई दखुी न ददखाई ऩड़गेा।

सावन ऩदहरे ऩाख भें, दसभी योदहनी होम। भहॊग नाज अरु स्वल्ऩ जर, ववयरा ववरसै कोम।।

मदद श्रावण कृयण ऩऺ भें दर्भी ततथथ को योदहणी हो तो सभझ रेना चादहए अनाज भहॊगा होगा औय वषाश स्वल्ऩ होगी, ववयरे ही रोग सुखी यहेंगे।

ऩूस भास दसभी अॊथधमायी। फदरी घोय होम अथधकायी। सावन फदद दसभी के ददवसे। बये भेघ चायो ददमस फयसे।।

Page 3: घाघ की कहावतें

मदद ऩूस फदी दसभी को घनघोय घटा छामी हो तो सावन फदी दसभी को चायों ददर्ाओॊ भें वषाश होगी। कहीॊ कहीॊ इसे मों बी कहते हैं-‘काहे ऩॊडडत ऩद़ि ऩद़ि बयो, ऩूस अभावस की सुथध कयो।

ऩूस उजेरी सप्तभी, अयटभी नौभी जाज। भेघ होम तो जान रो, अफ सुब होइहै काज।।

मदद ऩूस सदुी सप्तभी, अयटभी औय नवभी को फदरी औय गजशना हो तो सफ काभ सुपर होगा अथाशत ्सुकार होगा।

अख ैतीज ततथथ के ददना, गुरु होवे सॊजूत। तो बाखैं मों बड्डयी, उऩजै नाज फहूत।।

मदद वैर्ाख भें अऺभ ततृीमा को गुरुवाय ऩड़ ेतो खफू अन्न ऩैदा होगा।

अकाऱ और सुकाऱ

सावन सुक्रा सप्तभी, जो गयजै अथधयात। फयसै तो झुया ऩयै, नाहीॊ सभौ सुकार।।

मदद सावन सुदी सप्तभी को आधी यात के सभम फादर गयजे औय ऩानी फयसे तो झुया ऩड़गेा; न फयसे तो सभम अच्छा फीतेगा।

असुनी नमरमा अन्त ववनासै। गरी येवती जर को नासै।। बयनी नासै तनृौ सहूतो। कृततका फयसै अन्त फहूतो।।

मदद चतै भास भें अत्श्वनी नऺत्र फयसे तो वषाश ऋतु के अन्त भें झुया ऩड़गेा; येतवी नऺत्र फयसे तो वषाश नाभभात्र की होगी; बयणी नऺत्र फयसे तो घास बी सूख जाएगी औय कृततका नऺत्र फयसे तो अच्छी वषाश होगी।

आसा़िी ऩूनो ददना, गाज फीजु फयसॊत। नासे रच्छन कार का, आनॊद भानो सत।।

आषा़ि की ऩूणणभा को मदद फादर गयजे, बफजरी चभके औय ऩानी फयसे तो वह वषश फहुत सुखद फीतेगा।

Page 4: घाघ की कहावतें

वर्ाा योदहनी फयसै भगृ तऩ,ै कुछ कुछ अद्रा जाम। कहै घाघ सुने घातघनी, स्वान बात नहीॊ खाम।।

मदद योदहणी फयसे, भगृमर्या तऩै औय आद्राश भें साधायण वषाश हो जाए तो धान की ऩैदावाय इतनी अच्छी होगी कक कुत्ते बी बात खाने से ऊफ जाएॊगे औय नहीॊ खाएॊगे।

उत्रा उत्तय दै गमी, हस्त गमो भुख भोरय। बरी ववचायी थचत्तया, ऩयजा रेइ फहोरय।।

उत्तय नऺत्र ने जवाफ दे ददमा औय हस्त बी भुॊह भोड़कय चरा गमा। थचत्रा नऺत्र ही अच्छा है कक प्रजा को फसा रेता है। अथाशत ्उत्तया औय हस्त भें मदद ऩानी न फयसे औय थचत्रा भें ऩानी फयस जाए तो उऩज अच्छी होती है।

खतनके काटै घनै भोयावै। तव फयदा के दाभ सुरावै।।

ऊॊ ख की जड़ से खोदकय काटने औय खफू तनचोड़कय ऩेयने से ही राब होता है। तबी फैरों का दाभ बी वसूर होता है।

हस्त फयस थचत्रा भॊडयाम। घय फैठे ककसान सुख ऩाए।।

हस्त भें ऩानी फयसने औय थचत्रा भें फादर भॊडयाने से (क्मोंकक थचत्रा की धूऩ फड़ी ववषाक्त होती है) ककसान घय फैठे सुख ऩाते हैं।

हथथमा ऩोतछ ढोरावै। घय फैठे गेहूॊ ऩाव।ै।

मदद इस नऺत्र भें थोड़ा ऩानी बी थगय जाता है तो गेहूॊ की ऩैदावाय अच्छी होती है।

जफ फयखा थचत्रा भें होम। सगयी खेती जावै खोम।। थचत्रा नऺत्र की वषाश प्राम: सायी खेती नयट कय देती है।

Page 5: घाघ की कहावतें

जो फयसे ऩुनवशसु स्वाती। चयखा चरै न फोरै ताॊती।

ऩुनवशसु औय स्वाती नऺत्र की वषाश से ककसान सुखी यहते है कक उन्हें औय ताॊत चराकय जीवन तनवाशह कयने की जरूयत नहीॊ ऩड़ती।

जो कहुॊ भग्घा फयसै जर। सफ नाजों भें होगा पर।। भघा भें ऩानी फयसने से सफ अनाज अच्छी तयह परते हैं।

जफ फयसेगा उत्तया। नाज न खावै कुत्तया।।

मदद उत्तया नऺत्र फयसेगा तो अन्न इतना अथधक होगा कक उसे कुते बी नहीॊ खाएॊगे।

दसै असा़िी कृयण की, भॊगर योदहनी होम। सस्ता धान बफकाइ हैं, हाथ न छुइहै कोम।।

मदद असा़ि कृयण ऩऺ दर्भी को भॊगरवाय औय योदहणी ऩड़ ेतो धान इतना सस्ता बफकेगा कक कोई हाथ से बी न छुएगा।

असा़ि भास आठें अॊथधमायी। जो तनकरे फादय जर धायी।। चन्दा तनकरे फादय पोड़। सा़ेि तीन भास वषाश का जोग।।

मदद असा़ि फदी अयटभी को अन्धकाय छामा हुआ हो औय चन्द्रभा फादरों को पोड़कय तनकरे तो फड़ी आनन्ददातमनी वषाश होगी औय ऩथृ्वी ऩय आनन्द की फा़ि-सी आ जाएगी।

असा़ि भास ऩूनो ददवस, फादर घेये चन्द्र। तो बड्डयी जोसी कहैं, होवे ऩयभ अनन्द।।

मदद आसा़िी ऩूणणशभा को चन्द्रभा फादरों से ढॊका यहे तो बड्डयी ज्मोततषी कहते हैं कक उस वषश आनन्द ही आनन्द यहेगा।

पैदावार

Page 6: घाघ की कहावतें

योदहनी जो फयसै नहीॊ, फयसे जेठा भूय। एक फूॊद स्वाती ऩड़,ै रागै तीतनउ नूय।।

मदद योदहनी भें वषाश न हो ऩय ज्मेयठा औय भूर नऺत्र फयस जाए तथा स्वाती नऺत्र भें बी कुछ फूॊदे ऩड़ जाएॊ तो तीनों अन्न (जौ, गेहूॊ, औय चना) अच्छा होगा।

जोत

गदहय न जोतै फोवै धान। सो घय कोदठरा बयै ककसान।। गहया न जोतकय धान फोने से उसकी ऩैदावाय खफू होती है।

गेहूॊ बवा काहें। असा़ि के दइु फाहें।। गेहूॊ बवा काहें। सोरह फाहें नौ गाहें।। गेहूॊ बवा काहें। सोरह दामॊ फाहें।। गेहूॊ बवा काहें। काततक के चौफाहें।।

गेहूॊ ऩैदावाय अच्छी कैसे होती है ? आषा़ि भहीने भें दो फाॊह जोतने से; कुर सोरह फाॊह कयने से औय नौ फाय हेंगाने स;े काततक भें फोवाई कयने से ऩहरे चाय फाय जोतने से।

गेहूॊ फाहें। धान बफदाहें।।

गेहूॊ की ऩैदावाय अथधक फाय जोतने से औय धान की ऩैदावाय ववदाहने (धान होने के चाय ददन फाद जोतवा देने) से अच्छी होती है।

गेहूॊ भटय सयसी। औ जौ कुयसी।।

गेहूॊ औय भटय फोआई सयस खेत भें तथा जौ की फोआई कुयसौ भें कयने से ऩैदावाय अच्छी होती है।

गेहूॊ फाहा, धान गाहा। ऊख गोड़ाई से है आहा।।

Page 7: घाघ की कहावतें

जौ-गेहूॊ कई फाॊह कयने स ेधान बफदाहने से औय ऊख कई फाय गोड़ने से इनकी ऩैदावाय अच्छी होती है।

गेहूॊ फाहें, चना दरामे। धान गाहें, भक्का तनयामे। ऊख कसामे।

खफू फाॊह कयने से गेहूॊ, खोंटने से चना, फाय-फाय ऩानी मभरने से धान, तनयाने से भक्का औय ऩानी भें छोड़कय फाद भें फोने से उसकी पसर अच्छी होती है।

ऩुरुवा योऩे ऩूय ककसान। आधा खखड़ी आधा धान।।

ऩूवाश नऺत्र भें धान योऩने ऩय आधा धान औय आधा ऩैमा (छूछ) ऩैदा होता है।

ऩुरुवा भें त्जतन योऩो बैमा। एक धान भें सोरह ऩैमा।।

ऩूवाश नऺत्र भें धान न योऩो नहीॊ तो धान के एक ऩेड़ भें सोरह ऩैमा ऩैदा होगा।

बोवाई

कन्मा धान भीनै जौ। जहाॊ चाहै तहॊवै रौ।।

कन्मा की सॊक्रात्न्त होने ऩय धान (कुभायी) औय भीन की सॊक्रात्न्त होने ऩय जौ की पसर काटनी चादहए।

कुमरहय बदई फोओ माय। तफ थचउया की होम फहाय।।

कुमरहय (ऩूस-भाघ भें जोते हुए) खेत भें बादों भें ऩकने वारा धान फोने से थचउड़ ेका आनन्द आता है-अथाशत ्वह धान उऩजता है।

Page 8: घाघ की कहावतें

आॊक से कोदो, नीभ जवा। गाड़य गेहूॊ फेय चना।।

मदद भदाय खफू पूरता है तो कोदो की पसर अच्छी है। नीभ के ऩेड़ भें अथधक पूर-पर रगते है तो जौ की पसर, मदद गाड़य (एक घास त्जसे खस बी कहते हैं) की ववृि होती है तो गेहूॊ फेय औय चने की पसर अच्छी होती है।

आद्रा भें जौ फोवै साठी। द:ुख ैभारय तनकायै राठी।।

जो ककसान आद्रा भें धान फोता है वह द:ुख को राठी भायकय बगा देता है।

आद्रा फयसे ऩुनवशसुजाम, दीन अन्न कोऊ न खाम।।

मदद आद्राश नऺत्र भें वषाश हो औय ऩुनवशसु नऺत्र भें ऩानी न फयसे तो ऐसी पसर होगी कक कोई ददमा हुआ अन्न बी नहीॊ खाएगा।

आस-ऩास यफी फीच भें खयीप। नोन-मभचश डार के, खा गमा हयीप।।

खयीप की पसर के फीच भें यफी की पसर अच्छी नहीॊ होती।

वाह्य सूत्र

घाघ

"http://hi.wikiquote.org/w/index.php?title=%E0%A4%98%E0%A4%BE%E0%A4%98_%E0%A4%95%E0%A5%80_%E0%A4%95%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E

0%A4%A4%E0%A5%87%E0%A4%82&oldid=5937" से मरमा गमा

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दहन्दी रोकोत्क्तमाॉ

महाॉ के हवारे कहाॉ कहाॉ हैं ऩन्ने से जुड ेफदराव

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ववर्षे ऩयृठ

स्थामी कड़ी

इस ऩन्ने का वऩछरा फदराव २३ जनवयी २०११ को १४:१५ फजे हुआ था। Text is available under the Creative Commons Attribution/Share-Alike License;

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