श्रीगुरु सप्तशती - अध्याय पहिला

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۩۞۩|| ीगु सतशती ||۩۞۩|| चैतय गगनगरी नाथाय नमः || अयाय पहिला ᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥ गणेशाय नमः | सरवयै नमः | यो नमः | चैतय गगनगरी नाथाय नमः | भतीचा सागर | वये भगवान ीशंकर | तयाया दयी नरंतर | उठती लिरी ेमाया |||| भती संप | जाणे एकला उमारमण | तया वाचोनी अय | नेणो ीग णवे ||||

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श्रीगुरु सप्तशती - अध्याय पहिला ||ॐ चैतन्य गगनगिरी नाथाय नमः ||

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Page 1: श्रीगुरु सप्तशती - अध्याय पहिला

๑۩۞۩๑|| श्रीगुरु सप्तशती ||๑۩۞۩๑

|| ॐ चैतन्य गगनगगरी नाथाय नमः ||

अध्याय पहिला

ᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥᴥ

श्री गणेशाय नमः | श्री सरस्वत्यै नमः | श्री गुरुभ्यो नमः | ॐ चैतन्य गगनगगरी नाथाय नमः |

श्री गुरुभक्तीचा सागर | स्वये भगवान श्रीशंकर | तयाच्या हृदयी ननरंतर | उठती लिरी गुरुपे्रमाच्या ||१||

श्री गुरुभक्ती संपूणण | जाणे एकला उमारमण | तया वाचोनी अन्य | नेणो श्रीगुरु पूणणत्वे ||२||

Page 2: श्रीगुरु सप्तशती - अध्याय पहिला

๑۩۞۩๑|| श्रीगुरु सप्तशती ||๑۩۞۩๑

िोता श्री गुरंचे स्मरण | उचळंबे हृदयी उमारमण | सवण कायण ववसरोन | गाई महिमा श्रीगुरुचा ||३||

एकांतमाजी बैसोन | गाई श्री गुरुमहिमान | पावणती ववस्स्मत िोऊन | ववनीत भावे पुसतसे ||४||

मिादेवी उवाच- ओम ्नमो देव देवेश| परात्पर जगद्गुरो | गुरु शब्दस्य तात्पयण |वद लोकलोकेश्वर ||५||

गुरुमंत्रस्य देवस्य | धमणस्य तस्य एव वा | ववशेषस्तु मिादेव | तद्वदस्व दयाननधे ||६||

ववनम्र भावे पावणती | म्िणे श्रीमिेश्वराप्रती |श्री गुरुमहिमा मजप्रती | कृपा करोनी सांगावा ||७||

एकोनी पावणतीचे वचन | संतुष्ट िोई उमारमण| ववसरोननया देिभान| श्री गुरुमहिमा सांगतसे ||८||

मिादेवी उवाच- यस्य स्मतृ्याच नामोक्त्या | तपो यज्ञ क्रिया हदषु | न्यून ंसंपूणणतांयानत | सद्यो वंदे श्रीसद्गुरम ्||९||

पावणती सांगो काई|श्रीगुरुची नवलाई | अपूणण सवण पूणण िोई | नाम प्रतापे श्री गुरुच्या|| १० ||

यज्ञ तप क्रिया साधन | न्यून ते िोई पूणण | ऐसे अगाध महिमान | नामी ज्याच्या भरलेले ||११||

त्या श्रीगुरुसी वंदन | ऐसे म्िणे उमारमण | तो अगचतं्य दयाघन | नररपे साकारला ||१२||

यो गुरुः स शशवः प्रोक्तः यः शशवः स गुरुः स्मतृः| तस्माध्दी श्रीगुरोभणस्क्तः भसु्क्त मसु्क्त प्रदानयनी ||१३||

श्रीगुरु तोची ईश्वरु| श्रीगुरु तोची स्वये गुरु|म्िणोननया गुरुभक्ती साचार | देई भोग मुस्क्तते||१४||

गुरु तीथण गुरु यज्ञ| गुरु दान गुरु तप|गुरु अग्नी गुरु सूयण | सवण गुरुमयं जगत ्||१५||

तीथण यज्ञ तप दान | अग्नी सूयण नारायण | सवण श्रीगुरुचे चरण |जग संपूणण श्रीगुरु ||१६||

सवणपापववशुध्दात्मा | श्रीगुरुपादसेवनात ् | देिी ब्रह्म भवेत ्तस्मात ्| तत ्कृताथ ंवदाशमते ||१७||

सेववता श्रीगुरुचरण | सवण पाप िोई दिन | आत्मा शुध्द िोऊन | देिीच ब्रह्म िोतसे ||१८||

गुरुपादाम्बुजं स्मतृ्वा | जलं शशरसी धारयेत ्| सवण नतथाणवगािस्य |संप्राप्नोनत फलं नरः ||१९||

स्मरोननया गुरुचरण | करीता जल शशरी धारण | केले सवण तीथांचे स्नान|ऐसे पुण्य शमळतसे ||२०||

Page 3: श्रीगुरु सप्तशती - अध्याय पहिला

๑۩۞۩๑|| श्रीगुरु सप्तशती ||๑۩۞۩๑

शोषणं पाप पंकस्य| हदपनं ज्ञान तेजसाम ्|गुरुपादोदकम ्सम्यक् | संसारावणणवतारकम ्||२१||

सत्य िे माझे वचन| तीथण जे श्रीगुरुचरण | ते करीता प्राशन | पाप नाश िोतसे ||२२||

करावया पापाचे शोषण| तैसेची व्िावया ज्ञान | गुरुचरणतीथाणसमान | नािी उत्तम साधन ते||२३||

अज्ञानमूलिरणं| जन्मकमणननवारणं |ज्ञानवैराग्यशसध्यथं | श्रीगुरुपादोदकं वपबेत ्||२४||

पावणती रिस्य गुप्त| ऐक सांगतो तुजप्रत | प्राशशता गुरुचरणतीथण | समूळ अज्ञान जातसे ||२५||

अनंत जन्म कमण| व्िावयासी ननवारण | करावे तीथण प्राशन | पावन गुरुचरणांचे||२६||

वैराग्य भक्ती ज्ञान| शांती आणण समाधान | प्राशशता तीथण गुरुचरण |अनायासे शमळतसे ||२७||

श्रीगुरु करीती जेथे स्नान| त्या स्थानींचे जीवन | तेगच करीता भावे प्राशन | सवण साधन िोतसे ||२८||

गुरुपदोदकम ्पीत्वा| गुरुस्च्िष्टभोजनं |गुरुमूते सदा ध्यानं | गुरुनाणम सदा जपेत|्|२९||

करावे तीथण प्राशन| श्रीगुरुस्च्िष्ट भोजन |करोनीया गुरुध्यान |नाम स्मरावे श्रीगुरुचे ||३०||

करीता इतुके साधन | आपैसे येई ज्ञान | कैसे करावे वणणन | अपार महिमा श्रीगुरुचा ||३१||

गुरुवक्तं्र स्स्थतं ब्रह्म | प्राप्तते तत ्प्रसादतः | गुरोध्याणनं सदा कुयाणत ्| कुलस्त्री स्वपतेयणथा ||३२||

गुरुवदन परब्रह्म | ऐसे मानोनी करावे ध्यान | िोत गुरु कृपा पूणण | शशष्य ब्रह्मगच िोतसे ||३३||

म्िणोनी पनतव्रतेप्रमाण | सदैव करावे श्रीगुरुध्यान | ऐसे करीता उन्मन | आपैसे मन िोतसे ||३४||

कमणणा मनसा वाचा | ननत्यं आराध्येत ्गुरुम ् | दीघणदंडं नमस्कृत्य | नीलणज्जो गुरुसस्न्नधौ ||३५||

पावणती माझे ध्यान | श्रीगुरुचे प्रसन्न वदन | तयाचे पूजा ववधान वप्रये तुजसी सांगतो ||३६||

ज्याचेनी ब्रह्मासी ब्रह्मपण | तो सद्गुरु माझे पजूास्थान | सवाणथी शे्रष्ठ पावन | तेथील पजून त ेऐसे ||३७||

काया वाचा आणण मन | यांसिी व्िावे समपणण | स्मरोननया श्रीगुरुचरण | लीन रिावे गुरुपायी ||३८||

Page 4: श्रीगुरु सप्तशती - अध्याय पहिला

๑۩۞۩๑|| श्रीगुरु सप्तशती ||๑۩۞۩๑

जीवे सवणस्वयेसी आपण | त्यासी ररघावे अनन्यशरण | त्याच्या वचनासी प्राण | ननश्चये जाण ववकावा ||३९||

सांडोननया देिाशभमान | प्रनतष्ठा मान सन्मान | स्वतःचे मीपण | ववसरोनी जावे गुरुपुढे ||४०||

कननष्ठ सेवा काम| आवडीने करणे आपण | िेची गुरुपूजा ववधान | सुख भक्तासी देतसे ||४१||

श्रीगुरुसेवा करीता पािी | ब्रह्म सायुज्य लागे पायी | श्रीगुरुसेवेपरते कािी | नािी शे्रष्ठ साधन ||४२||

सद्गुरुस्वरुप ते जाण | अखडं ब्रह्म पररपणूण | तयासी िोऊनी समपणण | शरण जावे तयालागी ||४३||

ननष्कपट भावे संपूणण | सद्गुरुसी जो अनन्न्य शरण | त्याचे मीिी वंदी शरण | इतुका जाणा धन्य तो ||४४||

श्रीगुरुभक्त माझा प्राण | ऐसे म्िणे उमारमण | तो अगचतं्य दयाघन | सवाणधार गुरुभक्ता ||४५||

श्रीगुरुभक्तीचे ज्ञान | जाणे एकगच उमारमण | जरी िोय तोच प्रसन्न | िोई ज्ञान गुरुभक्ता ||४६||

जैसी वत्साकारण | गाय दभेु संतोषोन | सकळा लाभ म्िणोन | गोदगु्धाचा िोतसे ||४७||

तैसे पावणती कारण | श्रीशशव िोउनी प्रसन्न | सांगे जे गुरुभक्तीचे ज्ञान | गुप्त रिस्य म्िणोननया ||४८||

तेची शशव वरदिस्त | सांगे तुम्िा गगरीदत्त | श्रीगगनगगरी आहदनाथ | कृपाळूपणे देतसे ||४९||

श्रीगुरुलीलामतृ | प्राशशता अमर िोई भक्त | म्िणोनी श्रीगुरुसप्तशतीत | श्रीगुरुलीला वणणणल्या ||५०||

करीता गुरुलीला श्रवण | संतुष्ट िोई उमारमण | आशुतोष दयाघन | ज्ञान देई भक्तांसी ||५१||

म्िणोनी भावे करोन | करावे गुरुलीला श्रवण | श्रीगुरुभक्तीच ेज्ञान | िोई प्राप्त ननश्चये ||५२||

Page 5: श्रीगुरु सप्तशती - अध्याय पहिला

๑۩۞۩๑|| श्रीगुरु सप्तशती ||๑۩۞۩๑

श्रीगगनगगरी आहदनाथ | जगदधु्दाराथण अवतरत | त्रैमूनतण भगवान दत्त | लोकांकारणे साकारला ||५३||

शशष्य तयांच ेअनंत | रािती हिमालयी गुप्त | दशद्वादश सिस्त्र असत | आयुमाणन तयांचे ||५४||

शसध्दकोशसध्द श्रीगुरु | श्रीनाथगगनगगरी ईश्वरु | घेवोननया रुप नरु | सामान्यपणे वतणतसे ||५५||

परर तयांच ेमहिमान | जाणणती ऋषी संपूणण | म्िणोनन आदरे करोत | दशणन घेती नाथांच े||५६||

शसध्दाश्रम

शसध्दाश्रम ववख्यात | आिे हिमालयी गुप्त | कैलास मानस मध्यात | आिे गुप्त आश्रम तो ||५७||

तेथे शसध्द अनंत | बैसले तपस्या करीत |श्रीगगनगगरीनाथ | श्रीगुरु सवण शसध्दांचे ||५८||

असो बालपणात | श्रीस्वामी गगनगगरीनाथ | रािूनी शसध्दाश्रमांत | अपार तप आचररले ||५९||

Page 6: श्रीगुरु सप्तशती - अध्याय पहिला

๑۩۞۩๑|| श्रीगुरु सप्तशती ||๑۩۞۩๑

करण्या लोकोध्दार | तेथूनन ननघती श्रीगुरुवर | हिमालयात संचार | करीता देवतांकारणे ||६०||

तीथांते पावन करीत | तापसी शसध्दांते भेटत |शषेनाग तलावात | स्वामी येते जािले ||६१||

सद्गुणांची जो खाण| जया पासोनी सवण ज्ञान | तो शंभू उमारमण | पावणतीसी सांगतसे ||६२||

शशव म्िणे गगरीजेप्रती| दाववतो चल तुजप्रती | नूतन अवतार क्षिती | श्रीदत्तचा जािला ||६३||

अवतार झाले बिु िोती |परर न भूतो न भववष्यनत |कारुण्याची ओतीव मुती |ऐसा मिाअवतार िा ||६४||

समस्त सद्गुण भषूण | कठोर तपाचे आचरण | आशतुोष दयाघन | साकार सगुण मतूी ती ||६५||

जो योगगयांचा ईश्वर |शसध्दांचा श्रीशसध्देश्वर | श्रीपाद नामे अवतार | श्रीदत्ताचा जािला ||६६||

Page 7: श्रीगुरु सप्तशती - अध्याय पहिला

๑۩۞۩๑|| श्रीगुरु सप्तशती ||๑۩۞۩๑

Page 8: श्रीगुरु सप्तशती - अध्याय पहिला

๑۩۞۩๑|| श्रीगुरु सप्तशती ||๑۩۞۩๑

Page 9: श्रीगुरु सप्तशती - अध्याय पहिला

๑۩۞۩๑|| श्रीगुरु सप्तशती ||๑۩۞۩๑

|| इनत श्रीगुरुसप्तशती प्रथमो S ध्यायः ||

|| श्री गुरुदेवेदत्तात्रयेापणणमस्त ु||

๑۩۞۩๑|| ॐ चैतन्य गगनगगरी नाथाय नमः ||๑۩۞۩๑