दाम्पत्य जीवन के सुख.pdf
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दाम्पत्य जीवनTRANSCRIPT
दाम्पत्य जीवन के सुख-दखु और समाधान :- यह मनुष्य को परमात्मा का एक वरदान है। कहते हैं, जोड़ियाां परमात्मा द्वारा पहले से ही तय होती हैं। पूवव जन्म में ककए गए पाप एवां पुण्य कमों के अनुसार ही जीवन साथी ममलता है और उन्हीां के अनुरूप वैवाहहक जीवन दखुमय या सखुमय होता है। कुां डली में वववाह का ववचार मुखयतः सप्तम भाव स ेही ककया जाता है। इस भाव स ेवववाह के अलावा वैवाहहक या दाम्पत्य जीवन के सखु-दखु, जीवन साथी अथावत पतत एवां पत्नी, काम (भोग ववलास), वववाह स ेपूवव एवां पश्चात यौन सांबांध, साझदेारी आहद का ववचार ककया जाता है। यहद कोई भाव, उसका स्वामी तथा उसका कारक पाप ग्रहों के मध्य में स्स्थत हों, प्रबल पापी ग्रहों स ेयुक्त हों, तनबवल हों, शुभग्रह न उनसे युत हों न उन्हें देखते हों, इन तीनों स ेनवम, चतथुव, अष्टम, पांचम तथा द्वादश स्थानों में पाप ग्रह हों, भाव नवाांश, भावेश नवाांश तथा भाव कारक नवाांश के स्वामी भी शत्र ुरामश में, नीच रामश में अस्त अथवा युद्ध में परास्जत हों तो उस भाव स ेसांबांधधत वस्तओुां की हातन होती है। वैवाहहक जीवन के अशुभ योग :- यहद सप्तमेश शुभ युक्त न होकर षष्ठ, अष्टम या द्वादश भावस्थ हो और नीच या अस्त हो, तो जातक या जातका के वववाह में बाधा आती है। यहद षष्ठेश, अष्टमेश या द्वादशशे सप्तम भाव में ववराजमान हो, उस पर ककसी ग्रह की शुभ दृस्ष्ट न हो या ककसी ग्रह से उसका शुभ योग न हो, तो वैवाहहक सुख में बाधा आती है। सप्तम भाव में कू्रर ग्रह हो, सप्तमेश पर कू्रर ग्रह की दृस्ष्ट हो तथा द्वादश भाव में भी कू्रर ग्रह हो, तो वैवाहहक सुख में बाधा आती है। सप्तमेश व कारक शकु्र बलवान हो, तो जातक को ववयोग दखु भोगना प़िता ह
यहद शुक्र सप्तमेश हो (मेष या वसृ्श्चक लग्न) और पाप ग्रहों के साथ अथवा उनसे दृष्ट हो, या शुक्र नीच व शत्रु नवाांश का या षष्ठाांश में हो, तो जातक स्त्री कठोर धचत्त वाली, कुमागवगाममनी और कुलटा होती है। फलतः उसका वैवाहहक जीवन नारकीय हो जाता है। यहद शतन सप्तमेश हो, पाप ग्रहों क साथ व नीच नवाांश में हो अथवा नीच रामशस्थ हो और पाप ग्रहों स ेदृष्ट हो, तो जीवन साथी के दषु्ट स्वभाव के कारण वैवाहहक जीवन क्लेशमय होता है। राहु अथवा केतु सप्तम भाव में हो व उसकी कू्रर ग्रहों स ेयुतत बनती हो या उस पर पाप दृस्ष्ट हो, तो वैवाहहक जीवन अक्सर तनावपूणव रहता है। यहद सप्तमेश तनबवल हो और भाव 6, 8 या 12 में स्स्थत हो तथा कारक शकु्र कमजोर हो, तो जीवन साथी की तनम्न सोच के कारण वैवाहहक जीवन क्लेशमय रहता है। सूयव लग्न में व स्वगहृी शतन सप्तम भाव में ववराजमान हो, तो वववाह में बाधा आती आती है या वववाह ववलांब स ेहोता है। सप्तमेश वक्री हो व शतन की दृस्ष्ट सप्तमेश व सप्तम भाव पर प़िती हो, तो वववाह में ववलांब होता है। सप्तम भाव व सप्तमेश पाप कतवरी योग में हो, तो वववाह में बाधा आती है। शुक्र शत्रुरामश में स्स्थत हो और सप्तमेश तनबवल हो, तो वववाह ववलांब से होता है।
शतन सूयव या चांद्र स ेयुत या दृष्ट हो, लग्न या सप्तम भाव में स्स्थत हो, सप्तमेश कमजोर हो, तो वववाह में बाधा आती है। शुक्र ककव या मसांह रामश में स्स्थत होकर सूयव और चांद्र के मध्य हो और शतन की दृस्ष्ट शुक्र पर हो, तो वववाह नहीां होता है। शतन की सूयव या चांद्र पर दृस्ष्ट हो, शुक्र शतन की रामश या नक्षत्र में में हो और लग्नेश तथा सप्तमशे तनबवल हों, तो वववाह में बाधा तनस्श्चत रूप स ेआती है। वैवाहहक जीवन में क्लेश सप्तम भाव, सप्तमेश और द्ववतीय भाव पर कू्रर ग्रहों का प्रभाव वैवाहहक जीवन में क्लेश उत्पन्न करता है। लग्न, सप्तम भाव, सप्तमेश की कारक शुक्र, राहु, केतु या मांगल स ेदृस्ष्ट या युतत के फलस्वरूप दाम्पत्य जीवन में क्लेश पैदा होता है। यहद जातक व जातका का कुां डली ममलान (अष्टकूट) सही न हो, तो दाम्पत्य जीवन में वैचाररक मतभेद रहता है।
यहद जातक व जातका की रामशयों में षडाष्टक भकूट दोष हो, तो दोनों के जीवन में शत्रुता, वववाद, कलह अक्सर होत ेरहते हैं। यहद जातक व जातका के मध्य द्ववद्ववादश भकूट दोष हो, तो खच ेव दोनों पररवारों में वैमनस्यता आती है स्जसके फलस्वरूप दोनों के मध्य क्लेश रहता है। यहद पतत-पत्नी के ग्रहों में ममत्रता न हो, तो दोनों के बीच वचैाररक मतभेद रहता है। जैसे यहद ज्ञान, धमव, रीतत-ररवाज,
परांपराओां, प्रततष्ठा और स्वामभमान के कारक गु त तथा सदरदयव, भौततकता और ऐांहद्रय सखु के कारक शुक्र के जातक और जातका की मानमसकता, सोच और जीवन शैली बबल्कुल ववपरीत होती है। पतत-पत्नी के गुणों (अथावत स्वभाव) में ममलान सही न होने पर आपसी तनाव की सांभावना बनती है। अथावत पतत-पत्नी के मध्य अष्टकूट ममलान बहुत महत्वपूणव है, स्जस पर गांभीरतापूववक ववचार कर लेना चाहहए। मांगल दोष भी पतत-पत्नी के मध्य तनाव का कारक होता है। स्वभाव स ेगमव व कू्रर मांगल यहद प्रथम (अपना), द्ववतीय (कुटुांब, पत्नी या पतत की आयु), चतुथव (सखु व मन), सप्तम (पतत या पत्नी, जननेंहद्रय और दाम्पत्य), अष्टम (पतत या पत्नी का पररवार और आयु) या द्वादश (शय्या सुख, भोगववलास, खचव का भाव) भाव में स्स्थत हो या उस पर दृस्ष्ट प्रभाव स ेकू्ररता या गमव प्रभाव डाले, तो पतत-पत्नी के मध्य मनमुटाव, क्लेश,
तनाव आहद की स्स्थतत पैदा होती है। राहु, सूयव, शतन व द्वादशेश पथृकतावादी ग्रह हैं, जो सप्तम (दाम्पत्य) और द्ववतीय (कुटुांब) भावों पर ववपरीत प्रभाव डालकर वैवाहहक जीवन को नारकीय बना देते हैं। दृस्ष्ट या युतत सांबांध से स्जतना ही ववपरीत या शभु प्रभाव होगा उसी के अनुरूप वैवाहहक जीवन सखुमय या दखुमय होगा। द्ववतीय भाव में सूयव के सप्तम, सप्तमेश, द्वादश और द्वादशशे पर (राहु पथृकतावादी ग्रह) प्रभाव से दाम्पत्य जीवन में क्लेश की, यहाां तक कक तलाक की नौबत आ जाती है। मानव और जानवर में आहार, तनद्रा, भय एवां मथैुन ये चार प्रवसृ्त्तयाां समान रूप स ेववद्यमान रहती हैं। ककां तु मथैुन का महत्व आज के युग में अत्यधधक है। हमारे द्रष्टा ऋवषयों न ेनक्षत्रों का वगीकरण मलांग के आधार पर ककया है। कन्या हो या वर, स्जस नक्षत्र में पैदा होता है, उस नक्षत्र का प्रभाव उस पर प़िता है। उसका मथैुन स्वभाव तत्सांबांधधत योतन के अनुरूप होता है। कुां डली मेलापन के समय यहद इस बात पर ववचार ककया जाए, तो तनश्चय ही दोनों का शारीररक सांबांध सांतोषजनक रहेगा अन्यथा वैवाहहक जीवन में कटुता पैदा होगी। वववाह हेतु मलेापक में योतनकूट का अपना ववशेष महत्व है। स्जन वर और कन्या के योतनकूट पर ध्यान नहीां हदया जाता, उनका वैवाहहक जीवन कष्टमय हो जाता है। दसूरी तरफ, स्जनकी कुां डली ममलान में योतनकूट पर गांभीरतापवूवक ववचार ककया जाता है, उनका वैवाहहक जीवन आनांदमय रहता है। इस यूरेतनयम युग में शुक्र अतत शस्क्तशाली हो रहा है। इससे भववष्य में सेक्स की प्रधानता रहेगी। ऐस ेमें योतनकूट का महत्व और अधधक बढ़ गया है, स्जस पर ध्यान देना ही चाहहए, ताकक तलाक की स्स्थतत से बचा जा सके। इसी में नवदम्पतत का कल्याण है। अनुभूत उपाय : यहद कुां डली में वधैव्य योग हो, तो शादी से पहले घट वववाह, अश्वत्थ वववाह, ववष्णु प्रततमा या शामलग्राम वववाह वववाह कराना तथा प्रभ ुशरण में रहना चाहहए।