जीवन रसायन - hariomgroup · ‘जीवन रसायन’ का यह...

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ातः मरणीय परम पूÏय संत आसारामजी बापू के ससंग वचनɉ से नवनीत जीवन-रसायन ःतावना .............................................................................................................................. 2

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Page 1: जीवन रसायन - HariOmGroup · ‘जीवन रसायन’ का यह िदय कटोरा आत्मरस के िपपासुओं हाथ

ातः ःमरणीय परम प य

सत ौी आसारामजी बाप क सतसग वचन म स नवनीत

जीवन-रसायन

ःतावना 2

जीवन रसायन 3

गर भि एक अमोघ साधना 36

ौी राम-विश सवाद 39

आतमबल का आवाहन 42

आतमबल कस जगाय 43

ःतावना इस पिःतका का एक-एक वाकय ऐसा ःफिलग ह िक वह हजार वष क घनघोर अधकार को एक पल म ही घास की तरह जला कर भःम कर सकता ह | इसका हर एक वचन आतम ानी महापरष क अनतःतल स कट हआ ह | सामानय मनय को ऊपर उठाकर दवतव की उ चतम भिमका म पहचान का सामथयर इसम िनिहत ह | ाचीन भारत की आधयाितमक पर परा म पोिषत महापरष न समािध ारा अपन अिःततव की गहराईय म गोत लगाकर जो अग य अगोचर अमत का खजाना पाया ह उस अमत क खजान को इस छोटी सी पिःतका म भरन का यास िकया गया ह | गागर म सागर भरन का यह एक न यास ह | उसक एक-एक वचन को सोपान बनाकर आप अपन लआय तक पहच सकत ह | इसक सवन स मद क िदल म भी ाण का सचार हो सकता ह | हताश िनराश दःखी िचिनतत होकर बठ हए मनय क िलय यह पिःतका अमत-सजीवनी क समान ह | इस पिःतका को दिनक lsquoटॉिनकrsquo समझकर ौ ाभाव स धयर स इसका पठन िचनतन एव मनन करन स तो अवय लाभ होगा ही लिकन िकसी आतमव ा महापरष क ौीचरण म रहकर इसका ौवण-िचनतन एव मनन करन का सौभा य िमल जाय तब तो पछना( या कहना) ही कया दिनक जीवन- यवहार की थकान स िवौाित पान क िलय चाल कायर स दो िमनट उपराम होकर इस पिःतका की दो-चार सवणर-किणकाए पढ़कर आतमःवरप म गोता लगाओ तन-मन-जीवन को आधयाितमक तरग स झकत होन दो जीवन-िसतार क तार पर परमातमा को खलन दो | आपक शारीिरक मानिसक व आधयाितमक ताप-सताप शात होन लगग | जीवन म परम ति की तरग लहरा उठगी |

lsquoजीवन रसायनrsquo का यह िद य कटोरा आतमरस क िपपासओ क हाथ म रखत हए सिमित अतयनत आननद का अनभव करती ह | िव ास ह की अधयातम क िज ासओ क जीवन को िद यामत स सरोबार करन म यह पिःतका उपयोगी िस होगी |

- ौी योग वदानत सवा सिमित

अमदावाद आौम

जीवन रसायन 1) जो मनय इसी जनम म मि ा करना चाहता ह उस एक ही जनम म हजार वष का कम कर लना होगा | उस इस यग की रझतार स बहत आग िनकलना होगा | जस ःव न म मान-अपमान मरा-तरा अ छा-बरा िदखता ह और जागन क बाद उसकी सतयता नही रहती वस ही इस जामत जगत म भी अनभव करना होगा | बसhellipहो गया हजार वष का काम परा | ान की यह बात दय म ठ क स जमा दनवाल कोई महापरष िमल जाय तो हजार वष क सःकार मर-तर क म को दो पल म ही िनवत कर द और कायर परा हो जाय | 2) यिद त िनज ःवरप का मी बन जाय तो आजीिवका की िचनता रमिणय ौवण-मनन और शऽओ का दखद ःमरण यह सब छट जाय |

उदर-िचनता िय चचार िवरही को जस खल |

िनज ःवरप म िन ा हो तो य सभी सहज टल || 3) ःवय को अनय लोग की आख स दखना अपन वाःतिवक ःवरप को न दखकर अपना िनरी ण अनय लोग की ि स करना यह जो ःवभाव ह वही हमार सब दःख का कारण ह | अनय लोग की ि म खब अ छा िदखन की इ छा करना- यही हमारा सामािजक दोष ह | 4) लोग कय दःखी ह कय िक अ ान क कारण व अपन सतयःवरप को भल गय ह और अनय लोग जसा कहत ह वसा ही अपन को मान बठत ह | यह दःख तब तक दर नही होगा जब तक मनय आतम-सा ातकार नही कर लगा | 5) शारीिरक मानिसक नितक व आधयाितमक य सब पीड़ाए वदानत का अनभव करन स तरत दर होती ह औरhellipकोई आतमिन महापरष का सग िमल जाय तो वदानत का

अनभव करना किठन कायर नही ह | 6) अपन अनदर क परम र को सनन करन का यास करो | जनता एव बहमित को आप िकसी कार स सत नही कर सकत | जब आपक आतमदवता सनन ह ग तो जनता आपस अवय सत होगी | 7) सब वःतओ म दशरन करन म यिद आप सफल न हो सको तो िजनको आप सबस अिधक म करत ह ऐस कम-स-कम एक यि म परमातमा का दशरन करन का यास करो | ऐस िकसी ततव ानी महापरष की शरण पा लो िजनम ानद छलकता हो | उनका ि पात होत ही आपम भी का ादभारव होन की स भावना पनपगी | जस एकस-र मशीन की िकरण कपड़ चमड़ी मास को चीरकर हि डय का फोटो खीच लाती ह वस ही ानी की ि आपक िच म रहन वाली दहाधयास की परत चीरकर आपम ई र को िनहारती ह | उनकी ि स चीरी हई परत को चीरना अपक िलय भी सरल हो जायगा | आप भी ःवय म ई र को दख सक ग | अतः अपन िच पर ानी महापरष की ि पड़न दो | पलक िगराय िबना अहोभाव स उनक सम बठो तो

आपक िच पर उनकी ि पड़गी | 8) जस मछिलया जलिनिध म रहती ह प ी वायमडल म ही रहत ह वस आप भी ानरप काशपज म ही रहो काश म चलो काश म िवचरो काश म ही अपना

अिःततव रखो | िफर दखो खान-पीन का मजा घमन-िफरन का मजा जीन-मरन का मजा | 9) ओ तफान उठ जोर-शोर स आधी और पानी की वषार कर द | ओ आननद क महासागर पथवी और आकाश को तोड़ द | ओ मानव गहर स गहरा गोता लगा िजसस िवचार एव िचनताए िछनन-िभनन हो जाय | आओ अपन दय स त की भावना को चन-चनकर बाहर िनकाल द िजसस आननद का महासागर तय लहरान लग | ओ म की मादकता त ज दी आ | ओ आतमधयान की आतमरस की मिदरा त हम पर ज दी आ छािदत हो जा | हमको तरनत डबो द | िवल ब करन का कया योजन मरा मन अब एक पल भी दिनयादारी म फसना नही चाहता | अतः इस मन को यार भ म डबो द | lsquoम और मरा hellipत और तराrsquo क ढर को आग लगा द | आशका और आशाओ क चीथड़ को उतार फ क | टकड़-टकड़ करक िपघला द | त की भावना को जड़ स उखाड़ द | रोटी नही िमलगी कोई परवाह नही | आौय और िवौाम नही िमलगा

कोई िफकर नही | लिकन मझ चािहय म की उस िद य म की यास और तड़प | मझ वद पराण करान स कया

मझ सतय का पाठ पढ़ा द कोई ||

मझ मिदर मिःजद जाना नही |

मझ म का रग चढ़ा द कोई ||

जहा ऊच या नीच का भद नही |

जहा जात या पात की बात नही ||

न हो मिदर मिःजद चचर जहा |

न हो पजा नमाज़ म फकर कही ||

जहा सतय ही सार हो जीवन का |

िरधवार िसगार हो तयाग जहा ||

जहा म ही म की सि िमल |

चलो नाव को ल चल ख क वहा || 10) ःव नावःथा म ा ःवय अकला ही होता ह | अपन भीतर की क पना क आधार पर िसह िसयार भड़ बकरी नदी नगर बाग-बगीच की एक परी सि का सजरन कर लता ह | उस सि म ःवय एक जीव बन जाता ह और अपन को सबस अलग मानकर भयभीत होता ह | खद शर ह और खद ही बकरी ह | खद ही खद को डराता ह | चाल ःव न म सतय का भान न होन स दःखी होता ह | ःव न स जाग जाय तो पता चल िक ःवय क िसवाय और कोई था ही नही | सारा पच क पना स रचा गया था | इसी कार यह जगत जामत क ारा कि पत ह वाःतिवक नही ह | यिद जामत का ा अपन आतमःवरप म जाग जाय तो उसक तमाम दःख-दािरिय पल भर म अ य हो जाय | 11) ःवगर का साा य आपक भीतर ही ह | पःतक म मिदर म तीथ म पहाड़ म जगल म आनद की खोज करना यथर ह | खोज करना ही हो तो उस अनतःथ आतमानद का खजाना खोल दनवाल िकसी ततवव ा महापरष की खोज करो | 12) जब तक आप अपन अतःकरण क अनधकार को दर करन क िलए किटब नही ह ग तब तक तीन सौ ततीस करोड़ कण अवतार ल ल िफर भी आपको परम लाभ नही होगा | 13) शरीर अनदर क आतमा का व ह | व को उसक पहनन वाल स अिधक यार

मत करो | 14) िजस ण आप सासािरक पदाथ म सख की खोज करना छोड़ दग और ःवाधीन हो जायग अपन अनदर की वाःतिवकता का अनभव करग उसी ण आपको ई र क पास जाना नही पड़गा | ई र ःवय आपक पास आयग | यही दवी िवधान ह | 15) बोधी यिद आपको शाप द और आप समतव म िःथर रहो कछ न बोलो तो उसका शाप आशीवारद म बदल जायगा | 16) जब हम ई र स िवमख होत ह तब हम कोई मागर नही िदखता और घोर दःख सहना पड़ता ह | जब हम ई र म तनमय होत ह तब यो य उपाय यो य वित यो य वाह अपन-आप हमार दय म उठन लगता ह | 17) जब तक मनय िचनताओ स उि न रहता ह इ छा एव वासना का भत उस बठन नही दता तब तक बि का चमतकार कट नही होता | जजीर स जकड़ी हई बि िहलडल नही सकती | िचनताए इ छाए और वासनाए शात होन स ःवतऽ वायमडल का अिवभारव होता ह | उसम बि को िवकिसत होन का अवकाश िमलता ह | पचभौितक बनधन कट जात ह और श आतमा अपन पणर काश म चमकन लगता ह | 18) ओ सज़ा क भय स भयभीत होन वाल अपराधी नयायधीश जब तरी सज़ा का हकम िलखन क िलय कलम लकर ततपर हो उस समय यिद एक पल भर भी त परमाननद म डब जाय तो नयायधीश अपना िनणरय भल िबना नही रह सकता | िफ़र उसकी कलम स वही िलखा जायगा जो परमातमा क साथ तरी नतन िःथित क अनकल होगा | 19) पिवऽता और स चाई िव ास और भलाई स भरा हआ मनय उननित का झ डा हाथ म लकर जब आग बढ़ता ह तब िकसकी मजाल िक बीच म खड़ा रह यिद आपक िदल म पिवऽता स चाई और िव ास ह तो आपकी ि लोह क पद को भी चीर सकगी | आपक िवचार की ठोकर स पहाड़-क-पहाड़ भी चकनाचर हो सक ग | ओ जगत क बादशाह आग स हट जाओ | यह िदल का बादशाह पधार रहा ह | 20) यिद आप ससार क लोभन एव धमिकय स न िहल तो ससार को अवय िहला दग | इसम जो सनदह करता ह वह मदमित ह मखर ह |

21) वदानत का यह िस ात ह िक हम ब नही ह बि क िनतय म ह | इतना ही नही lsquoब हrsquo यह सोचना भी अिन कारी ह म ह | य ही आपन सोचा िक lsquoम ब हhellip

दबरल हhellip असहाय हhelliprsquo तय ही अपना दभार य शर हआ समझो | आपन अपन पर म एक जजीर और बाध दी | अतः सदा म होन का िवचार करो और मि का अनभव करो | 22) राःत चलत जब िकसी िति त यि को दखो चाह वह इ लड़ का सवारधीश हो चाह अमिरका का lsquoिसड़टrsquo हो रस का सवसवार हो चाह चीन का lsquoिड़कटटरrsquo हो- तब अपन मन म िकसी कार की ईयार या भय क िवचार मत आन दो | उनकी शाही नज़र को अपनी ही नज़र समझकर मज़ा लटो िक lsquoम ही वह ह |rsquo जब आप ऐसा अनभव करन की च ा करग तब आपका अनभव ही िस कर दगा िक सब एक ही ह | 23) यिद हमारा मन ईयार- ष स रिहत िब कल श हो तो जगत की कोई वःत हम नकसान नही पहचा सकती | आनद और शाित स भरपर ऐस महातमाओ क पास बोध की मितर जसा मनय भी पानी क समान तरल हो जाता ह | ऐस महातमाओ को दख कर जगल क िसह और भड़ भी मिव ल हो जात ह | साप-िब छ भी अपना द ःवभाव भल जात ह | 24) अिव ास और धोख स भरा ससार वाःतव म सदाचारी और सतयिन साधक का कछ िबगाड़ नही सकता | 25) lsquoस पणर िव मरा शरीर हrsquo ऐसा जो कह सकता ह वही आवागमन क चककर स म ह | वह

तो अननत ह | िफ़र कहा स आयगा और कहा जायगा सारा ा ड़ उसी म ह | 26) िकसी भी सग को मन म लाकर हषर-शोक क वशीभत नही होना | lsquoम अजर हhellip अमर हhellip मरा जनम नहीhellip मरी मतय नहीhellip म िनिलर आतमा हhelliprsquo यह भाव ढ़ता स दय म धारण करक जीवन जीयो | इसी भाव का िनरनतर सवन करो | इसीम सदा त लीन रहो | 27) बा सदभ क बार म सोचकर अपनी मानिसक शाित को भग कभी न होन दो | 28) जब इिनिया िवषय की ओर जान क िलय जबरदःती करन लग तब उनह लाल आख

िदखाकर चप कर दो | जो आतमानद क आःवादन की इ छा स आतमिचतन म लगा रह वही स चा धीर ह |

29) िकसी भी चीज़ को ई र स अिधक म यवान मत समझो | 30) यिद हम दहािभमान को तयागकर सा ात ई र को अपन शरीर म कायर करन द तो भगवान

ब या जीसस बाईःट हो जाना इतना सरल ह िजतना िनधरन पाल (Poor Paul) होना | 31) मन को वश करन का उपाय मन को अपना नौकर समझकर ःवय को उसका भ मानो | हम अपन नौकर मन की उप ा करग तो कछ ही िदन म वह हमार वश म हो जायगा | मन क

चचल भाव को ना दखकर अपन शानत ःवरप की ओर धयान दग तो कछ ही िदन म मन न

होन लगगा | इस कार साधक अपन आनदःवरप म म न हो सकता ह | 32) समम ससार क ततव ान िव ान गिणत का य और कला आपकी आतमा म स िनकलत ह

और िनकलत रहग | 33) ओ खदा को खोजनवाल तमन अपनी खोजबीन म खदा को ल कर िदया ह | य रपी तरग म अनत सामथयररपी समि को छपा िदया ह | 34) परमातमा की शािनत को भग करन का सामथयर भला िकसम ह यिद आप सचमच

परमातम-शािनत म िःथत हो जाओ तो समम ससार उलटा होकर टग जाय िफ़र भी आपकी शािनत

भग नही हो सकती | 35) महातमा वही ह जो िच को ड़ावाड़ोल करनवाल सग आय िफ़र भी िच को वश म रख बोध

और शोक को िव न होन द | 36) वित यिद आतमःवरप म लीन होती ह तो उस सतसग ःवाधयाय या अनय िकसी भी काम क िलय बाहर नही लाना चिहय | 37) स ढ़ अचल सक प शि क आग मसीबत इस कार भागती ह जस आधी-तफ़ान स बादल

िबखर जात ह | 38) सषि (गहरी नीद) आपको बलात अनभव कराती ह िक जामत का जगत चाह िकतना ही यारा और सदर लगता हो पर उस भल िबना शािनत नही िमलती | सषि म बलात िवःमरण हो उसकी सतयता भल जाय तो छः घट िनिा की शािनत िमल | जामत म उसकी सतयता का अभाव

लगन लग तो परम शािनत को ा ा परष बन जाय | िनिा रोज़ाना सीख दती ह िक यह ठोस

जगत जो आपक िच को िमत कर रहा ह वह समय की धारा म सरकता जा रहा ह | घबराओ

नही िचिनतत मत हो तम बात म िच को िमत मत करो | सब कछ ःव न म सरकता जा रहा ह | जगत की सतयता क म को भगा दो | ओ शि मान आतमा अपन अतरतम को िनहार ॐ का गजन कर दबरल िवचार एव िचताओ को कचल ड़ाल दबरल एव त छ िवचार तथा जगत को सतय मानन क कारण तन बहत-बहत

सहन िकया ह | अब उसका अत कर द | 39) ान क किठनमागर पर चलत व आपक सामन जब भारी क एव दख आय तब आप उस

सख समझो कय िक इस मागर म क एव दख ही िनतयानद ा करन म िनिम बनत ह | अतः उन क दख और आघात स िकसी भी कार साहसहीन मत बनो िनराश मत बनो | सदव आग

बढ़त रहो | जब तक अपन सतयःवरप को यथाथर रप स न जान लो तब तक रको नही | 40) ःवपनावःथा म आप शर को दखत ह और ड़रत ह िक वह आपको खा जायगा | परत आप

िजसको दखत ह वह शर नही आप ःवय ह | शर आपकी क पना क अितिर और कछ नही | इस

कार जामतावःथा म भी आपका घोर-स-घोर शऽ भी ःवय आप ही ह दसरा कोई नही | थकतव

अलगाव क िवचार को अपन दय स दर हटा दो | आपस िभनन कोई िमऽ या शऽ होना कवल

ःव न-म ह | 41) अशभ का िवरोध मत करो | सदा शात रहो | जो कछ सामन आय उसका ःवागत करो चाह

आपकी इ छा की धारा स िवपरीत भी हो | तब आप दखग िक तय बराई भलाई म बदल

जायगी | 42) रािऽ म िनिाधीन होन स पहल िबःतर पर सीध सखपवरक बठ जाओ | आख बद करो | नाक

स ास लकर फ़फ़ड़ को भरपर भर दो | िफ़र उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo का लबा उ चारण करो | िफ़र स

गहरा ःवास लकर lsquoॐhelliprsquo का लबा उ चारण करो | इस कार दस िमनट तक करो | कछ ही िदन

क िनयिमत योग क बाद इसक चमतकार का अनभव होगा | रािऽ की नीद साधना म पिरणत हो जायगी | िदल-िदमाग म शाित एव आनद की वषार होगी | आपकी लौिकक िनिा योगिनिा म बदल

जयगी | 43) हट जाओ ओ सक प और इ छाओ हट जाओ तम ससार की णभगर शसा एव धन-

स पि क साथ स बध रखती हो | शरीर चाह कसी भी दशा म रह उसक साथ मरा कोई सरोकार नही | सब शरीर मर ही ह | 44) िकसी भी तरह समय िबतान क िलय मज़दर की भाित काम मत करो | आनद क िलय

उपयोगी कसरत समझकर सख बीड़ा या मनोरजक खल समझकर एक कलीन राजकमार की भाित काम करो | दब हए कचल हए िदल स कभी कोई काम हाथ म मत लो | 45) समम ससार को जो अपना शरीर समझत ह तयक यि को जो अपना आतमःवरप

समझत ह ऐस ानी िकसस असनन ह ग उनक िलय िव प कहा रहा 46) ससार की तमाम वःतऐ सखद ह या भयानक वाःतव म तो त हारी फ़लता और आनद क

िलय ही कित न बनाई ह | उनस ड़रन स कया लाभ त हारी नादानी ही त ह चककर म ड़ालती ह

| अनयथा त ह नीचा िदखान वाला कोई नही | पकका िन य रखो िक यह जगत त हार िकसी शऽ न नही बनाया | त हार ही आतमदव का यह सब िवलास ह | 47) महातमा व ह िजनकी िवशाल सहानभित एव िजनका मातवत दय सब पािपय को दीन-

दिखय को म स अपनी गोद म ःथान दता ह | 48) यह िनयम ह िक भयभीत ाणी ही दसर को भयभीत करता ह | भयरिहत हए िबना अिभननता आ नही सकती अिभननता क िबना वासनाओ का अत स भव नही ह और िनवारसिनकता क िबना िनवरता समता मिदता आिद िद य गण कट नही होत | जो बल दसर

की दबरलता को दर ना कर सक वह वाःतव म बल नही | 49) धयान म बठन स पहल अपना समम मानिसक िचतन तथा बाहर की तमाम स पि ई र क

या सदगर क चरण म अपरण करक शात हो जाओ | इसस आपको कोई हािन नही होगी | ई र आपकी स पि दह ाण और मन की र ा करग | ई र अपरण बि स कभी हािन नही होती |

इतना ही नही दह ाण म नवजीवन का िसचन होता ह | इसस आप शाित व आनद का ोत

बनकर जीवन को साथरक कर सक ग | आपकी और पर िव की वाःतिवक उननित होगी | 50) कित सननिच एव उ ोगी कायरकतार को हर कार स सहायता करती ह | 51) सननमख रहना यह मोितय का खज़ाना दन स भी उ म ह | 52) चाह करोड़ सयर का लय हो जाय चाह अस य चनिमा िपघलकर न हो जाय परत ानी महापरष अटल एव अचल रहत ह | 53) भौितक पदाथ को सतय समझना उनम आसि रखना दख-ददर व िचताओ को आमऽण

दन क समान ह | अतः बा नाम-रप पर अपनी शि व समय को न करना यह बड़ी गलती ह |

54) जब आपन यि तव िवषयक िवचार का सवरथा तयाग कर िदया जाता ह तब उसक समान

अनय कोई सख नही उसक समान ौ अनय कोई अवःथा नही | 55) जो लोग आपको सबस अिधक हािन पहचान का यास करत ह उन पर कपापणर होकर ममय िचतन कर | व आपक ही आतमःवरप ह | 56) ससार म कवल एक ही रोग ह | सतय जगिनमथया - इस वदाितक िनयम का भग ही सवर यािधय का मल ह | वह कभी एक दख का रप लता ह तो कभी दसर दख का | इन सवर यािधय

की एक ही दवा ह अपन वाःतिवक ःवरप तव म जाग जाना | 57) ब धयानःथ बठ थ | पहाड़ पर स एक िशलाखड़ लढ़कता हआ आ रहा था | ब पर िगर इसस पहल ही वह एक दसर िशलाखड़ क साथ टकराया | भयकर आवाज़ क साथ उसक दो भाग

हो गय | उसन अपना मागर बदल िलया | धयानःथ ब की दोन तरफ़ स दोन भाग गज़र गय |

ब बच गय | कवल एक छोटा सा ककड़ उनक पर म लगा | पर स थोड़ा खन बहा | ब ःवःथता स उठ खड़ हए और िशय स कहा ldquoभी ओ स यक समािध का यह वलत माण ह | म यिद धयान-समािध म ना होता तो िशलाखड़ न मझ कचल िदया होता | लिकन ऐसा ना होकर उसक दो भाग हो गय | उसम स िसफ़र एक छोटा-सा ककड़ ऊछलकर मर पर म लगा | यह जो छोटा-सा ज़ म हआ ह वह धयान की पणरता म रही हई कछ नयनता का पिरणाम ह | यिद धयान पणर होता तो इतना भी ना लगता |rdquo 58) कहा ह वह तलवार जो मझ मार सक कहा ह वह श जो मझ घायल कर सक कहा ह वह

िवपि जो मरी सननता को िबगाड़ सक कहा ह वह दख जो मर सख म िव न ड़ाल सक मर सब भय भाग गय | सब सशय कट गय | मरा िवजय-ाि का िदन आ पहचा ह | कोई ससािरक

तरग मर िनछल िच को आदोिलत नही कर सकती | इन तरग स मझ ना कोई लाभ ह ना हािन

ह | मझ शऽ स ष नही िमऽ स राग नही | मझ मौत का भय नही नाश का ड़र नही जीन की वासना नही सख की इ छा नही और दख स ष नही कय िक यह सब मन म रहता ह और मन

िमथया क पना ह | 59) स पणर ःवाःथय की अजीब यि रोज सबह तलसी क पाच प चबाकर एक लास बासी पानी पी लो | िफ़र जरा घम लो दौड़ लो या कमर म ही पज क बल थोड़ा कद लो | नहा-धोकर ःवःथ शानत होकर एकात म बठ जाओ | दस बारह गहर-गहर ास लो | आग-पीछ क कतर य

स िनि त हो जाओ | आरो यता आनद सख शािनत दान करनवाली िवचारधारा को िच म बहन दो | िबमारी क िवचार को हटाकर इस कार की भावना पर मन को ढ़ता स एकाम करो िक

मर अदर आरो यता व आनद का अनत ोत वािहत हो रहा हhellip मर अतराल म िद यामत का महासागर लहरा रहा ह | म अनभव कर रहा ह िक समम सख आरो यता शि मर भीतर ह | मर मन म अननत शि और सामथयर ह | म ःवःथ ह | पणर सनन ह | मर अदर-बाहर सवरऽ

परमातमा का काश फ़ला हआ ह | म िव प रिहत ह | सब नद स म ह | ःवग य सख मर अदर ह | मरा दय परमातमा का ग दश ह | िफ़र रोग-शोक वहा कस रह सकत ह म दवी ओज क मड़ल म िव हो चका ह | वह मर ःवाःथय का दश ह | म तज का पज ह | आरो यता का अवतार ह | याद रखो आपक अतःकरण म ःवाःथय सख आनद और शािनत ई रीय वरदान क रप म िव मान ह | अपन अतःकरण की आवाज़ सनकर िनशक जीवन यतीत करो | मन म स कि पत

रोग क िवचार को िनकाल दो | तयक िवचार भाव श द और कायर को ई रीय शि स पिरपणर रखो | ॐकार का सतत गजन करो | सबह-शाम उपरो िवचार का िचतन-मनन करन स िवशष लाभ होगा | ॐ आनदhellip ॐ शाितhellip

पणर ःवःथhellip पणर सननhellip 60) भय कवल अ ान की छाया ह दोष की काया ह मनय को धमरमागर स िगरान वाली आसरी माया ह | 61) याद रखो चाह समम ससार क तमाम पऽकार िननदक एकिऽत होकर आपक िवरध

आलोचन कर िफ़र भी आपका कछ िबगाड़ नही सकत | ह अमर आतमा ःवःथ रहो | 62) लोग ायः िजनस घणा करत ह ऐस िनधरन रोगी इतयािद को सा ात ई र समझकर उनकी सवा करना यह अननय भि एव आतम ान का वाःतिवक ःवरप ह | 63) रोज ातः काल उठत ही ॐकार का गान करो | ऐसी भावना स िच को सराबोर कर दो िक

lsquoम शरीर नही ह | सब ाणी कीट पतग गनधवर म मरा ही आतमा िवलास कर रहा ह | अर उनक

रप म म ही िवलास कर रहा ह | rsquo भया हर रोज ऐसा अ यास करन स यह िस ात दय म िःथर हो जायगा | 64) मी आग-पीछ का िचनतन नही करता | वह न तो िकसी आशका स भयभीत होता ह और न

व रमान पिरिःथित म माःपद म ीित क िसवाय अनय कही आराम पाता ह |

65) जस बालक ितिब ब क आौयभत दपरण की ओर धयान न दकर ितिब ब क साथ खलता ह जस पामर लोग यह समम ःथल पच क आौयभत आकाश की ओर धयान न दकर कवल

ःथल पच की ओर धयान दत ह वस ही नाम-रप क भ ःथल ि क लोग अपन दभार य क

कारण समम ससार क आौय सि चदाननद परमातमा का धयान न करक ससार क पीछ पागल

होकर भटकत रहत ह | 66) इस स पणर जगत को पानी क बलबल की तरह णभगर जानकर तम आतमा म िःथर हो जाओ | तम अ त ि वाल को शोक और मोह कस 67) एक आदमी आपको दजरन कहकर पिरि छनन करता ह तो दसरा आपको स जन कहकर भी पिरि छनन ही करता ह | कोई आपकी ःतित करक फला दता ह तो कोई िननदा करक िसकड़ा दता ह | य दोन आपको पिरि छनन बनात ह | भा यवान तो वह परष ह जो तमाम बनधन क िवर

खड़ा होकर अपन दवतव की अपन ई रतव की घोषणा करता ह अपन आतमःवरप का अनभव

करता ह | जो परष ई र क साथ अपनी अभदता पहचान सकता ह और अपन इदरिगदर क लोग क

सम समम ससार क सम िनडर होकर ई रतव का िनरपण कर सकता ह उस परष को ई र मानन क िलय सारा ससार बाधय हो जाता ह | परी सि उस अवय परमातमा मानती ह | 68) यह ःथल भौितक पदाथर इिनिय की ाित क िसवाय और कछ नही ह | जो नाम व रप पर भरोसा रखता ह उस सफलता नही िमलती | सआम िस ात अथारत सतय आतम-ततव पर िनभरर रहना ही सफलता की कजी ह | उस महण करो उसका मनन करो और यवहार करो | िफर नाम-

रप आपको खोजत िफरग | 69) सख का रहःय यह ह आप य - य पदाथ को खोजत-िफरत हो तय -तय उनको खोत

जात हो | आप िजतन कामना स पर होत हो उतन आवयकताओ स भी पर हो जात हो और पदाथर भी आपका पीछा करत हए आत ह | 70) आननद स ही सबकी उतपि आननद म ही सबकी िःथित एव आननद म ही सबकी लीनता दखन स आननद की पणरता का अनभव होता ह | 71) हम बोलना चहत ह तभी श दो चारण होता ह बोलना न चाह तो नही होता | हम दखना चाह तभी बाहर का य िदखता ह नऽ बद कर ल तो नही िदखता | हम जानना चाह तभी पदाथर का ान होता ह जानना नही चाह तो ान नही होता | अतः जो कोई पदाथर दखन सनन या जानन म

आता ह उसको बािधत करक बािधत करनवाली ानरपी बि की वि को भी बािधत कर दो | उसक बाद जो शष रह वह ाता ह | ाततव धमररिहत श ःवरप ाता ही िनतय सि चदाननद

ह | िनरतर ऐसा िववक करत हए ान व यरिहत कवल िचनमय िनतय िव ानाननदघनरप

म िःथर रहो | 72) यिद आप सवागपणर जीवन का आननद लना चाहत हो तो कल की िचनता छोड़ो | अपन चार

ओर जीवन क बीज बोओ | भिवय म सनहर ःवपन साकार होत दखन की आदत बनाओ | सदा क

िलय मन म यह बात पककी बठा दो िक आपका आनवाला कल अतयनत काशमय आननदमय

एव मधर होगा | कल आप अपन को आज स भी अिधक भा यवान पायग | आपका मन

सजरनातमक शि स भर जायगा | जीवन ऐ यरपणर हो जायगा | आपम इतनी शि ह िक िव न

आपस भयभीत होकर भाग खड़ ह ग | ऐसी िवचारधारा स िनि त रप स क याण होगा | आपक

सशय िमट जायग | 73) ओ मानव त ही अपनी चतना स सब वःतओ को आकषरक बना दता ह | अपनी यार भरी ि उन पर डालता ह तब तरी ही चमक उन पर चढ़ जाती ह औरhellipिफर त ही उनक यार म फ़स जाता ह | 74) मन िविचऽ एव अटपट माग ारा ऐस ततव की खोज की जो मझ परमातमा तक पहचा सक | लिकन म िजस-िजस नय मागर पर चला उन सब माग स पता चला िक म परमातमा स दर चला गया | िफर मन बि म ा एव िव ा स परमातमा की खोज की िफर भी परमातमा स अलग रहा | मनथालय एव िव ालय न मर िवचार म उ टी गड़बड़ कर दी | म थककर बठ गया | िनःत ध हो गया | सयोगवश अपन भीतर ही झाका धयान िकया तो उस अनत रि स मझ सवरःव िमला िजसकी खोज म बाहर कर रहा था | मरा आतमःवरप सवरऽ या हो रहा ह | 75) जस सामानय मनय को पतथर गाय भस ःवाभािवक रीित स ि गोचर होत ह वस ही ानी को िनजाननद का ःवाभािवक अनभव होता ह | 76) वदानत का यह अनभव ह िक नीच नराधम िपशाच शऽ कोई ह ही नही | पिवऽ ःवरप ही सवर रप म हर समय शोभायमान ह | अपन-आपका कोई अिन नही करता |

मर िसवा और कछ ह ही नही तो मरा अिन करन वाला कौन ह मझ अपन-आपस भय कसा 77) यह चराचर सि रपी त तब तक भासता ह जब तक उस दखनवाला मन बठा ह |

मन शात होत ही त की गध तक नही रहती |

78) िजस कार एक धाग म उ म मधयम और किन फल िपरोय हए ह उसी कार मर आतमःवरप म उ म मधयम और किन शरीर िपरोय हए ह | जस फल की गणव ा का भाव धाग पर नही पड़ता वस ही शरीर की गणव ा का भाव मरी सवर यापकता नही पड़ता | जस सब फल क िवनाश स धाग को कोई हािन नही वस शरीर क िवनाश स मझ सवरगत आतमा को कोई हािन नही होती | 79) म िनमरल िन ल अननत श अजर अमर ह | म असतयःवरप दह नही | िस परष इसीको lsquo ानrsquo कहत ह | 80) म भी नही और मझस अलग अनय भी कछ नही | सा ात आननद स पिरपणर कवल िनरनतर और सवरऽ एक ही ह | उ ग छोड़कर कवल यही उपासना सतत करत रहो | 81) जब आप जान लग िक दसर का िहत अपना ही िहत करन क बराबर ह और दसर का अिहत करना अपना ही अिहत करन क बराबर ह तब आपको धमर क ःवरप का सा तकार हो जायगा | 82) आप आतम-ित ा दलबनदी और ईयार को सदा क िलए छोड़ दो | पथवी माता की तरह सहनशील हो जाओ | ससार आपक कदम म नयोछावर होन का इतज़ार कर रहा ह | 83) म िनगरण िनिबय िनतय म और अ यत ह | म असतयःवरप दह नही ह | िस परष इसीको lsquo ानrsquo कहत ह | 84) जो दसर का सहारा खोजता ह वह सतयःवरप ई र की सवा नही कर सकता | 85) सतयःवरप महापरष का म सख-दःख म समान रहता ह सब अवःथाओ म हमार अनकल रहता ह | दय का एकमाऽ िवौामःथल वह म ह | व ावःथा उस आतमरस को सखा नही सकती | समय बदल जान स वह बदलता नही | कोई िवरला भा यवान ही ऐस िद य म का भाजन बन सकता ह | 86) शोक और मोह का कारण ह ािणय म िविभनन भाव का अधयारोप करना | मनय जब एक को सख दनवाला यारा स द समझता ह और दसर को दःख दनवाला शऽ समझकर उसस ष करता ह तब उसक दय म शोक और मोह का उदय होना अिनवायर

ह | वह जब सवर ािणय म एक अख ड स ा का अनभव करन लगगा ािणमाऽ को भ का पऽ समझकर उस आतमभाव स यार करगा तब उस साधक क दय म शोक और मोह का नामोिनशान नही रह जायगा | वह सदा सनन रहगा | ससार म उसक िलय न ही कोई शऽ रहगा और न ही कोई िमऽ | उसको कोई कलश नही पहचायगा | उसक सामन िवषधर नाग भी अपना ःवभाव भल जायगा | 87) िजसको अपन ाण की परवाह नही मतय का नाम सनकर िवचिलत न होकर उसका ःवागत करन क िलए जो सदा ततपर ह उसक िलए ससार म कोई कायर असाधय नही | उस िकसी बा श की जररत नही साहस ही उसका श ह | उस श स वह अनयाय का प लनवाल को परािजत कर दता ह िफर भी उनक िलए बर िवचार का सवन नही करता | 88) िचनता ही आननद व उ लास का िवधवस करनवाली रा सी ह | 89) कभी-कभी मधयरािऽ को जाग जाओ | उस समय इिनिया अपन िवषय क ित चचल नही रहती | बिहमरख ःफरण की गित मनद होती ह | इस अवःथा का लाभ लकर इिनियातीत अपन िचदाकाश ःवरप का अनभव करो | जगत शरीर व इिनिय क अभाव म भी अपन अख ड अिःततव को जानो | 90) य म ीित नही रहना ही असली वरा य ह | 91) रोग हम दबाना चाहता ह | उसस हमार िवचार भी मनद हो जात ह | अतः रोग की िनवित करनी चिहए | लिकन जो िवचारवान परष ह वह कवल रोगिनवित क पीछ ही नही लग जाता | वह तो यह िनगरानी रखता ह िक भयकर दःख क समय भी अपना िवचार छट तो नही गया ऐसा परष lsquoहाय-हायrsquo करक ाण नही तयागता कय िक वह जानता ह िक रोग उसका दास ह | रोग कसा भी भय िदखाय लिकन िवचारवान परष इसस भािवत नही होता | 92) िजस साधक क पास धारणा की ढ़ता एव उ य की पिवऽता य दो गण ह ग वह अवय िवजता होगा | इन दो शा स ससि जत साधक समःत िव न-बाधाओ का सामना करक आिखर म िवजयपताका फहरायगा | 93) जब तक हमार मन म इस बात का पकका िन य नही होगा िक सि शभ ह तब तक मन एकाम नही होगा | जब तक हम समझत रहग िक सि िबगड़ी हई ह तब तक

मन सशक ि स चार ओर दौड़ता रहगा | सवरऽ मगलमय ि रखन स मन अपन-आप शात होन लगगा | 94) आसन िःथर करन क िलए सक प कर िक जस पथवी को धारण करत हए भी शषजी िब कल अचल रहत ह वस म भी अचल रहगा | म शरीर और ाण का ा ह | 95) lsquoससार िमथया हrsquo - यह मद ानी की धारणा ह | lsquoससार ःव नवत हrsquo - यह मधयम ानी की धारणा ह | lsquoससार का अतयनत अभाव ह ससार की उतपि कभी हई ही नहीrsquo -

यह उ म ानी की धारणा ह | 96) आप यिद भि मागर म ह तो सारी सि भगवान की ह इसिलए िकसीकी भी िननदा करना ठ क नही | आप यिद ानमागर म ह तो यह सि अपना ही ःवरप ह | आप अपनी ही िननदा कस कर सकत ह इस कार द नो माग म परिननदा का अवकाश ही नही ह | 97) य म ा का भान एव ा म य का भान हो रहा ह | इस गड़बड़ का नाम ही अिववक या अ ान ह | ा को ा तथा य को य समझना ही िववक या ान ह | 98) आसन व ाण िःथर होन स शरीर म िव त पदा होती ह | शरीर क ारा जब भी िबया की जाती ह तब वह िव त बाहर िनकल जाती ह | इस िव त को शरीर म रोक लन स शरीर िनरोगी बन जाता ह | 99) ःव न की सि अ पकालीन और िविचऽ होती ह | मनय जब जागता ह तब जानता ह िक म पलग पर सोया ह | मझ ःव न आया | ःव न म पदाथर दश काल िबया इतयािद परी सि का सजरन हआ | लिकन मर िसवाय और कछ भी न था | ःव न की सि झठ थी | इसी कार ततव ानी परष अ ानरपी िनिा स ानरपी जामत अवःथा को ा हए ह | व कहत ह िक एक क िसवा अनय कछ ह ही नही | जस ःव न स जागन क बाद हम ःव न की सि िमथया लगती ह वस ही ानवान को यह जगत िमथया लगता ह | 100) शारीिरक क पड़ तब ऐसी भावना हो जाय िक lsquoयह क मर यार भ की ओर स हhelliprsquo तो वह क तप का फल दता ह | 101) चलत-चलत पर म छाल पड़ गय ह भख याकल कर रही हो बि िवचार

करन म िशिथल हो गई हो िकसी पड़ क नीच पड़ ह जीवन अस भव हो रहा हो मतय का आगमन हो रहा हो तब भी अनदर स वही िनभरय धविन उठ lsquoसोऽहमhellipसोऽहमhellipमझ भय नहीhellipमरी मतय नहीhellipमझ भख नहीhellip यास नहीhellip कित की कोई भी यथा मझ न नही कर सकतीhellipम वही हhellipवही हhelliprsquo 102) िजनक आग िय-अिय अनकल-ितकल सख-दःख और भत-भिवय एक समान ह ऐस ानी आतमव ा महापरष ही स च धनवान ह | 103) दःख म दःखी और सख म सखी होन वाल लोह जस होत ह | दःख म सखी रहन वाल सोन जस होत ह | सख-दःख म समान रहन वाल र जस होत ह परनत जो सख-दःख की भावना स पर रहत ह व ही स च साट ह | 104) ःव न स जाग कर जस ःव न को भल जात ह वस जामत स जागकर थोड़ी दर क

िलए जामत को भल जाओ | रोज ातः काल म पनिह िमनट इस कार ससार को भल जान की आदत डालन स आतमा का अनसधान हो सकगा | इस योग स सहजावःथा ा होगी | 105) तयाग और म स यथाथर ान होता ह | दःखी ाणी म तयाग व म िवचार स आत ह

| सखी ाणी म तयाग व म सवा स आत ह कय िक जो ःवय दःखी ह वह सवा नही कर सकता पर िवचार कर सकता ह | जो सखी ह वह सख म आस होन क कारण उसम िवचार का उदय नही हो सकता लिकन वह सवा कर सकता ह | 106) लोग की पजा व णाम स जसी सननता होती ह वसी ही सननता जब मार पड़

तब भी होती हो तो ही मन य िभ ानन महण करन का स चा अिधकारी माना जाता ह | 107) हरक साधक को िब कल नय अनभव की िदशा म आग बढ़ना ह | इसक िलय

ानी महातमा की अतयनत आवयकता होती ह | िजसको स ची िज ासा हो उस ऐस

महातमा िमल ही जात ह | ढ़ िज ासा स िशय को गर क पास जान की इ छा होती ह | यो य

िज ास को समथर गर ःवय दशरन दत ह | 108) बीत हए समय को याद न करना भिवय की िचनता न करना और व रमान म ा

सख-दःखािद म सम रहना य जीवनम परष क ल ण ह | 109) जब बि एव दय एक हो जात ह तब सारा जीवन साधना बन जाता ह |

110) बि मान परष ससार की िचनता नही करत लिकन अपनी मि क बार म सोचत ह |

मि का िवचार ही तयागी दानी सवापरायण बनाता ह | मो की इ छा स सब सदगण आ जात ह

| ससार की इ छा स सब दगरण आ जात ह | 111) पिरिःथित िजतनी किठन होती ह वातावरण िजतना पीड़ाकारक होता ह उसस

गजरन वाला उतना ही बलवान बन जाता ह | अतः बा क और िचनताओ का ःवागत करो | ऐसी पिरिःथित म भी वदानत को आचरण म लाओ | जब आप वदानती जीवन यतीत करग तब दखग

िक समःत वातावरण और पिरिःथितया आपक वश म हो रही ह आपक िलय उपयोगी िस हो रही ह | 112) हरक पदाथर पर स अपन मोह को हटा लो और एक सतय पर एक तथय पर अपन

ई र पर समम धयान को किनित करो | तरनत आपको आतम-सा ातकार होगा | 113) जस बड़ होत-होत बचपन क खलकद छोड़ दत हो वस ही ससार क खलकद छोड़कर आतमाननद का उपभोग करना चािहय | जस अनन व जल का सवन करत हो वस ही आतम-

िचनतन का िनरनतर सवन करना चािहय | भोजन ठ क स होता ह तो ति की डकार आती ह वस

ही यथाथर आतमिचनतन होत ही आतमानभव की डकार आयगी आतमाननद म मःत ह ग |

आतम ान क िसवा शाित का कोई उपाय नही | 114) आतम ानी क हकम स सयर काशता ह | उनक िलय इनि पानी बरसाता ह | उनही क

िलय पवन दत बनकर गमनागमन करता ह | उनही क आग समि रत म अपना िसर रगड़ता ह | 115) यिद आप अपन आतमःवरप को परमातमा समझो और अनभव करो तो आपक सब

िवचार व मनोरथ सफल ह ग उसी ण पणर ह ग | 116) राजा-महाराजा दवी-दवता वद-पराण आिद जो कछ ह व आतमदश क सक पमाऽ

ह | 117) जो लोग ितकलता को अपनात ह ई र उनक स मख रहत ह | ई र िजनह अपन

स दर रखना चाहत ह उनह अनकल पिरिःथितया दत ह | िजसको सब वःतए अनकल एव पिवऽ

सब घटनाए लाभकारी सब िदन शभ सब मनय दवता क रप म िदखत ह वही परष ततवदश ह | 118) समता क िवचार स िच ज दी वश म होता ह हठ स नही |

119) ऐस लोग स स बनध रखो िक िजसस आपकी सहनशि बढ़ समझ की शि बढ़

जीवन म आन वाल सख-दःख की तरग का आपक भीतर शमन करन की ताकत आय समता बढ़

जीवन तजःवी बन | 120) लोग बोलत ह िक धयान व आतमिचनतन क िलए हम फरसत नही िमलती | लिकन

भल मनय जब नीद आती ह तब सब महतवपणर काम भी छोड़कर सो जाना पड़ता ह िक नही

जस नीद को महतव दत हो वस ही चौबीस घनट म स कछ समय धयान व आतमिचनतन म भी िबताओ | तभी जीवन साथरक होगा | अनयथा कछ भी हाथ नही लगगा | 121) भल जाओ िक तम मनय हो अमक जाित हो अमक उ हो अमक िड़मीवाल हो अमक धनधवाल हो | तम िनगरण िनराकार सा ीरप हो ऐसा ढ़ िन य करो | इसीम तमाम

कार की साधनाए िबयाए योगािद समािव हो जात ह | आप सवर यापक अख ड चतनय हो | सार ान का यह मल ह | 122) दोष तभी िदखता जब हमार लोचन म क अभावरप पीिलया रोग स मःत होत ह | 123) साधक यिद अ यास क मागर पर उसी कार आग बढ़ता जाय िजस कार ार भ

म इस मागर पर चलन क िलए उतसाहपवरक कदम रखा था तो आयरपी सयर अःत होन स पहल

जीवनरपी िदन रहत ही अवय सोऽहम िसि क ःथान तक पहच जाय | 124) लोग ज दी स उननित कय नही करत कय िक बाहर क अिभाय एव िवचारधाराओ का बहत बड़ा बोझ िहमालय की तरह उनकी पीठ पर लदा हआ ह | 125) अपन ित होन वाल अनयाय को सहन करत हए अनयायकतार को यिद मा कर िदया जाय तो ष म म पिरणत हो जाता ह | 126) साधना की शरआत ौ ा स होती ह लिकन समाि ान स होनी चािहय | ान मान

ःवयसिहत सवर ःवरप ह ऐसा अपरो अनभव | 127) अपन शरीर क रोम-रोम म स ॐ का उ चारण करो | पहल धीम ःवर म ार भ

करो | शर म धविन गल स िनकलगी िफर छाती स िफर नािभ स और अनत म रीढ़ की ह डी क

आिखरी छोर स िनकलगी | तब िव त क धकक स सष ना नाड़ी तरनत खलगी | सब कीटाणसिहत

तमाम रोग भाग खड़ ह ग | िनभरयता िह मत और आननद का फ वारा छटगा | हर रोज ातःकाल

म ःनानािद करक सय दय क समय िकसी एक िनयत ःथान म आसन पर पवारिभमख बठकर

कम-स-कम आधा घनटा करक तो दखो | 128) आप जगत क भ बनो अनयथा जगत आप पर भतव जमा लगा | ान क

मतािबक जीवन बनाओ अनयथा जीवन क मतािबक ान हो जायगा | िफर यग की याऽा स भी दःख का अनत नही आयगा | 129) वाःतिवक िश ण का ारभ तो तभी होता ह जब मनय सब कार की सहायताओ स िवमख होकर अपन भीतर क अननत ॐोत की तरफ अमसर होता ह | 130) य पच की िनवित क िलए अनतःकरण को आननद म सरोबार रखन क िलए

कोई भी कायर करत समय िवचार करो म कौन ह और कायर कौन कर रहा ह भीतर स जवाब

िमलगा मन और शरीर कायर करत ह | म सा ीःवरप ह | ऐसा करन स कतारपन का अह

िपघलगा सख-दःख क आघात मनद ह ग | 131) राग- ष की िनवित का कया उपाय ह उपाय यही ह िक सार जगत-पच को मनोरा य समझो | िननदा-ःतित स राग- ष स पच म सतयता ढ़ होती ह | 132) जब कोई खनी हाथ आपकी गरदन पकड़ ल कोई श धारी आपको कतल करन क

िलए ततपर हो जाय तब यिद आप उसक िलए सननता स तयार रह दय म िकसी कार का भय

या िवषाद उतपनन न हो तो समझना िक आपन राग- ष पर िवजय ा कर िलया ह | जब आपकी ि पड़त ही िसहािद िहसक जीव की िहसावित गायब हो जाय तब समझना िक अब राग- ष का अभाव हआ ह | 133) आतमा क िसवाय अनय कछ भी नही ह - ऐसी समझ रखना ही आतमिन ा ह | 134) आप ःव न ा ह और यह जगत आपका ही ःव न ह | बस िजस ण यह ान हो जायगा उसी ण आप म हो जाएग | 135) िदन क चौबीस घ ट को साधनामय बनान क िलय िनक मा होकर यथर िवचार करत हए मन को बार-बार सावधान करक आतमिचतन म लगाओ | ससार म सल न मन को वहा स उठा कर आतमा म लगात रहो | 136) एक बार सागर की एक बड़ी तरग एक बलबल की िता पर हसन लगी | बलबल न

कहा ओ तरग म तो छोटा ह िफर भी बहत सखी ह | कछ ही दर म मरी दह टट जायगी िबखर

जायगी | म जल क साथ जल हो जाऊगा | वामन िमटकर िवराट बन जाऊगा | मरी मि बहत

नजदीक ह | मझ आपकी िःथित पर दया आती ह | आप इतनी बड़ी हई हो | आपका छटकारा ज दी नही होगा | आप भाग-भागकर सामनवाली च टान स टकराओगी | अनक छोटी-छोटी तरग

म िवभ हो जाओगी | उन अस य तरग म स अननत-अननत बलबल क रप म पिरवितरत हो जाओगी | य सब बलबल फटग तब आपका छटकारा होगा | बड़ पन का गवर कय करती हो जगत की उपलि धय का अिभमान करक परमातमा स दर मत जाओ | बलबल की तरह सरल

रहकर परमातमा क साथ एकता का अनभव करो | 137) जब आप ईयार ष िछिानवषण दोषारोपण घणा और िननदा क िवचार िकसीक

ित भजत ह तब साथ-ही-साथ वस ही िवचार को आमिऽत भी करत ह | जब आप अपन भाई की आख म ितनका भ कत ह तब अपनी आख म भी आप ताड़ भ क रह ह | 138) शरीर अनक ह आतमा एक ह | वह आतमा-परमातमा मझस अलग नही | म ही कतार सा ी व नयायधीश ह | म ही ककर श आलोचक ह और म ही मधर शसक ह | मर िलय तयक

यि ःवतऽ व ःव छनद ह | बनधन पिरि छननता और दोष मरी ि म आत ही नही | म म

हपरम म ह और अनय लोग भी ःवतऽ ह | ई र म ही ह | आप भी वही हो | 139) िजस कार बालक अपनी परछा म बताल की क पना कर भय पाता ह उसी कार जीव अपन ही सक प स भयभीत होता ह और क पाता ह | 140) कभी-कभी ऐसी भावना करो िक आपक सामन चतनय का एक महासागर लहरा रहा ह | उसक िकनार खड़ रह कर आप आनद स उस दख रह ह | आपका शरीर सागर की सतह पर घमन गया ह | आपक दखत ही दखत वह सागर म डब गया | इस समःत पिरिःथित को दखन वाल आप सा ी आतमा शष रहत ह | इस कार सा ी रप म अपना अनभव करो | 141) यिद हम चाहत ह िक भगवान हमार सब अपराध माफ कर तो इसक िलए सगम साधना यही ह िक हम भी अपन सबिधत सब लोग क सब अपराध माफ कर द |

कभी िकसी क दोष या अपराध पर ि न डाल कय िक वाःतव म सब रप म हमारा यारा ई दव ही बीड़ा कर रहा ह |

142) पणर पिवऽता का अथर ह बा भाव स भािवत न होना | सासािरक मनोहरता एव घणा स पर रहना राजी-नाराजगी स अिवचल िकसी म भद न दखना और आतमानभव क ारा आकषरण व तयाग स अिल रहना | यही वदानत का उपिनषद का

रहःय ह | 143) ई र सा ातकार तभी होगा जब ससार की ि स तीत होन वाल बड़-स-बड़ विरय को भी मा करन का आपका ःवभाव बन जायगा | 144) चाल यवहार म स एकदम उपराम होकर दो िमनट क िलए िवराम लो |

सोचो िक lsquo म कौन ह सद -गम शरीर को लगती ह | भख- यास ाण को लगती ह |

अनकलता-ितकलता मन को लगती ह | शभ-अशभ एव पाप-प य का िनणरय बि करती ह | म न शरीर ह न ाण ह न मन ह न बि ह | म तो ह इन सबको स ा दन वाला इन सबस नयारा िनलप आतमा |rsquo 145) जो मनय िनरतर lsquoम म हhelliprsquo ऐसी भावना करता ह वह म ही ह और lsquoम ब हhelliprsquo ऐसी भावना करनवाला ब ही ह | 146) आप िनभरय ह िनभरय ह िनभरय ह | भय ही मतय ह | भय ही पाप ह | भय ही नकर ह | भय ही अधमर ह | भय ही यिभचार ह | जगत म िजतन असत या िमथया भाव ह व सब इस भयरपी शतान स पदा हए ह | 147) परिहत क िलए थोड़ा काम करन स भी भीतर की शि या जागत होती ह |

दसर क क याण क िवचारमाऽ स दय म एक िसह क समान बल आ जाता ह | 148) हम यिद िनभरय ह ग तो शर को भी जीतकर उस पाल सक ग | यिद डरग तो क ा भी हम फ़ाड़ खायगा | 149) तयक िबया तयक यवहार तयक ाणी ःवरप िदख यही सहज समािध ह | 150) जब किठनाईया आय तब ऐसा मानना िक मझ म सहन शि बढ़ान क िलए ई र न य सयोग भज ह | किठन सयोग म िह मत रहगी तो सयोग बदलन लगग |

िवषय म राग- ष रह गया होगा तो वह िवषय कसौटी क रप म आग आयग और उनस पार होना पड़गा | 151) ततव ि स न तो आपन जनम िलया न कभी लग | आप तो अनत ह सवर यापी ह िनतयम अजर-अमर अिवनाशी ह | जनम-मतय का ही गलत ह महा-

मखरतापणर ह | जहा जनम ही नही हआ वहा मतय हो ही कस सकती ह 152) आप ही इस जगत क ई र हो | आपको कौन दबरल बना सकता ह जगत म आप ही एकमाऽ स ा हो | आपको िकसका भय खड़ हो जाओ | म हो जाओ | ठ क स समझ लो िक जो कोई िवचार या श द आपको दबरल बनाता ह वही एकमाऽ अशभ ह | मनय को दबरल व भयभीत करनवाला जो कछ इस ससार म ह वह पाप ह | 153) आप अपना कायर या कतर य करो लिकन न उसक िलए कोई िचनता रह न ही कोई

इ छा | अपन कायर म सख का अनभव करो कय िक आपका कायर ःवय सख या िवौाम ह | आपका कायर आतमानभव का ही दसरा नाम ह | कायर म लग रहो | कायर आपको आतमानभव कराता ह |

िकसी अनय हत स कायर न करो | ःवतऽ वि स अपन कायर पर डट जाओ | अपन को ःवतऽ

समझो िकसीक कदी नही | 154) यिद आप सतय क मागर स नही हटत तो शि का वाह आपक साथ ह समय आपक

साथ ह ऽ आपक साथ ह | लोग को उनक भतकाल की मिहमा पर फलन दो भिवयकाल की स पणर मिहमा आपक हाथ म ह | 155) जब आप िद य म क साथ चा डाल म चोर म पापी म अ यागत म और सबम भ क दशरन करग तब आप भगवान ौी कण क मपाऽ बन जायग | 156) आचायर गौड़पाद न ःप कहा आप सब आपस म भल ही लड़त रह लिकन मर साथ नही लड़ सक ग | आप सब लोग मर पट म ह | म आतमःवरप स सवर या ह | 157) मनय सभी ािणय म ौ ह सब दवताओ स भी ौ ह | दवताओ को भी िफर स

धरती पर आना पड़गा और मनय शरीर ा करक मि ा करनी होगी | 158) िनि नतता क दो सऽ जो कायर करना जररी ह उस परा कर दो | जो िबनजररी ह

उस भल जाओ | 159) सवा-म-तयाग ही मनय क िवकास का मल मऽ ह | अगर यह मऽ आपको जच

जाय तो सभी क ित सदभाव रखो और शरीर स िकसी-न-िकसी यि को िबना िकसी मतलब क

सहयोग दत रहो | यह नही िक जब मरी बात मानग तब म सवा करगा | अगर बनधक मरी बात

नही मानत तो म सवा नही करगा |

भाई तब तो तम सवा नही कर पाओग | तब तो तम अपनी बात मनवा कर अपन अह की पजा ही

करोग | 160) जस ःव न िमथया ह वस ही यह जामत अवःथा भी ःव नवत ही ह िमथया ह | हरक

को अपन इस ःव न स जागना ह | सदगर बार-बार जगा रह ह लिकन जाग कर वापस सो न जाए ऐसा परषाथर तो हम ही करना होगा | 161) सदा सननमख रहो | मख को कभी मिलन मत करो | िन य कर लो िक आपक

िलय शोक न इस जगत म जनम नही िलया ह | आननदःवरप म िचनता का ःथान ही कहा ह 162) समम ा ड एक शरीर ह | समम ससार एक शरीर ह | जब तक आप तयक क

साथ एकता का अनभव करत रहग तब तक सब पिरिःथितया और आस-पास की चीज़ हवा और समि की लहर भी आपक प म रहगी | 163) आपको जो कछ शरीर स बि स या आतमा स कमजोर बनाय उसको िवष की तरह

ततकाल तयाग दो | वह कभी सतय नही हो सकता | सतय तो बलद होता ह पावन होता ह

ानःवरप होता ह | सतय वह ह जो शि द | 164) साधना म हमारी अिभरिच होनी चािहय साधना की तीो माग होनी चािहय | 165) दसर क दोष की चचार मत करो चाह व िकतन भी बड़ ह | िकसी क दोष की चचार करक आप उसका िकसी भी कार भला नही करत बि क उस आघात पहचात ह और साथ-ही-साथ अपन आपको भी | 166) इस ससार को सतय समझना ही मौत ह | आपका असली ःवरप तो आननदःवरप

आतमा ह | आतमा क िसवा ससार जसी कोई चीज ही नही ह | जस सोया हआ मनय ःव न म अपनी एकता नही जानता अिपत अपन को अनक करक दखता ह वस ही आननदःवरप आतमा जामत ःव न और सषि - इन तीन ःवरप को दखत हए अपनी एकता अि तीयता का अनभव

नही करता | 167) मनोजय का उपाय ह अ यास और वरा य | अ यास मान य पवरक मन को बार-बार परमातम-िचतन म लगाना और वरा य मान मन को ससार क पदाथ की ओर स वापस

लौटाना | 168) िकसी स कछ मत मागो | दन क िलय लोग आपक पीछ-पीछ घमग | मान नही

चाहोग तो मान िमलगा | ःवगर नही चाहोग तो ःवगर क दत आपक िलय िवमान लकर आयग |

उसको भी ःवीकार नही करोग तो ई र आपको अपन दय स लगायग | 169) कभी-कभी उदय या अःत होत हए सयर की ओर चलो | नदी सरोवर या समि क तट

पर अकल घमन जाओ | ऐस ःथान की मलाकात लो जहा शीतल पवन मनद-मनद चल रही हो | वहा परमातमा क साथ एकःवर होन की स भावना क ार खलत ह | 170) आप य -ही इ छा स ऊपर उठत हो तय -ही आपका इि छत पदाथर आपको खोजन

लगता ह | अतः पदाथर स ऊपर उठो | यही िनयम ह | य - य आप इ छक िभ क याचक का भाव धारण करत हो तय -तय आप ठकराय जात हो | 171) कित क तयक पदाथर को दखन क िलय काश जररी ह | इसी कार मन बि

इिनिय को अपन-अपन कायर करन क िलय आतम-काश की आवयकता ह कय िक बाहर का कोई काश मन बि इिनिय ाणािद को चतन करन म समथर नही | 172) जस ःव न ा परष को जागन क बाद ःव न क सख-दःख जनम-मरण पाप-प य

धमर-अधमर आिद ःपशर नही करत कय िक वह सब खद ही ह | खद क िसवाय ःव न म दसरा कछ

था ही नही | वस ही जीवनम ानवान परष को सख-दःख जनम-मरण पाप-प य धमर-अधमर ःपशर नही करत कय िक व सब आतमःवरप ही ह | 173) वही भमा नामक आतम योित क म रह कर भ क रही ह सअर म रह कर घर रही ह गध म रह कर रक रही ह लिकन मखर लोग शरीर पर ही ि रखत ह चतनय ततव पर नही | 174) मनय िजस ण भत-भिवय की िचनता का तयाग कर दता ह दह को सीिमत और उतपि -िवनाशशील जानकर दहािभमान को तयाग दता ह उसी ण वह एक उ चतर अवःथा म पहच जाता ह | िपजर स छटकर गगनिवहार करत हए प ी की तरह मि का अनभव करता ह | 175) समःत भय एव िचनताए आपकी इ छाओ का णाम ह | आपको भय कय लगता ह

कय िक आपको आशका रहती ह िक अमक चीज कही चली न जाय | लोग क हाःय स आप डरत

ह कय िक आपको यश की अिभलाषा ह कीितर म आसि ह | इ छाओ को ितलाजिल द दो | िफर दखो मजा कोई िज मदारी नहीकोई भय नही | 176) दखन म अतयत करप काला-कलटा कबड़ा और तज ःवभाव का मनय भी आपका ही ःवरप ह | आप इस तथय स म नही | िफर घणा कसी कोई लाव यमयी सदरी सि की

शोभा क समान अित िवलासभरी अ सरा भी आपका ही ःवरप ह | िफर आसि िकसकी

आपकी ानिनिया उनको आपस अलग करक िदखाती ह | य इिनिया झठ बोलनवाली ह | उनका कभी िव ास मत करो | अतः सब कछ आप ही हो | 177) मानव क नात हम साधक ह | साधक होन क नात सतय को ःवीकर करना हमारा ःवधमर ह | सतय यही ह िक बल दसर क िलय ह ान अपन िलय ह और िव ास परमातमा स

स बनध जोड़न क िलय ह | 178) अपनी आतमा म डब जाना यह सबस बड़ा परोपकार ह | 179) आप सदव म ह ऐसा िव ास ढ़ करो तो आप िव क उ ारक हो जात हो | आप

यिद वदानत क ःवर क साथ ःवर िमलाकर िन य करो आप कभी शरीर न थ | आप िनतय श

ब आतमा हो तो अिखल ा ड क मो दाता हो जात हो | 180) कपा करक उन ःवाथरमय उपाय और अिभाय को दर फ क दो जो आपको पिरि छनन रखत ह | सब वासनाए राग ह | यि गत या शरीरगत म आसि ह | उस फ क दो | ःवय पिवऽ हो जाओ | आपका शरीर ःवःथ और बि पणरःवरप हो जायगी | 181) यिद ससार क सख व पदाथर ा ह तो आपको कहना चािहय ओ शतान हट जा मर सामन स | तर हाथ स मझ कछ नही चािहय | तब दखो िक आप कस सखी हो जात हो परमातमा-ा िकसी महापरष पर िव ास रखकर अपनी जीवनडोरी िनःशक बन उनक चरण म सदा क िलय रख दो | िनभरयता आपक चरण की दासी बन जायगी | 182) िजसन एक बार ठ क स जान िलया िक जगत िमथया ह और ािनत स इसकी तीित

हो रही ह उसको कभी दःख नही होता | जगत म कभी आसि नही होती | जगत क िमथयातव क

िन य का नाम ही जगत का नाश ह | 183) अपन ःवरप म लीन होन माऽ स आप ससार क साट बन जायग | यह साटपद

कवल इस ससार का ही नही समःत लोक-परलोक का साटपद होगा | 184) ह जनक चाह दवािधदव महादव आकर आपको उपदश द या भगवान िवण आकर उपदश द अथवा ाजी आकर उपदश द लिकन आपको कदािप सख न होगा | जब िवषय का तयाग करोग तभी स ची शाित व आनद ा ह ग |

185) िजस भ न हम मानव जीवन दकर ःवाधीनता दी िक हम जब चाह तब धमारतमा होकर भ होकर जीवनम होकर कतकतय हो सकत ह- उस भ की मिहमा गाओ | गाओ नही तो सनो | सनो भी नही गाओ भी नही तो ःवीकार कर लो | 186) चाह समि क गहर तल म जाना पड़ सा ात मतय का मकाबला करना पड़ अपन

आतमाि क उ य की पितर क िलय अिडग रहो | उठो साहसी बनो शि मान बनो | आपको जो बल व सहायता चािहय वह आपक भीतर ही ह | 187) जब-जब जीवन स बनधी शोक और िचनता घरन लग तब-तब अपन आननदःवरप

का गान करत-करत उस मोह-माया को भगा दो | 188) जब शरीर म कोई पीड़ा या अग म ज म हो तब म आकाशवत आकाशरिहत चतन

ह ऐसा ढ़ िन य करक पीड़ा को भल जाओ | 189) जब दिनया क िकसी चककर म फस जाओ तब म िनलप िनतय म ह ऐसा ढ़

िन य करक उस चककर स िनकल जाओ | 190) जब घर-बार स बनधी कोई किठन समःया याकल कर तब उस मदारी का खल

समझकर ःवय को िनःसग जानकर उस बोझ को ह का कर दो | 191) जब बोध क आवश म आकर कोई अपमानय वचन कह तब अपन शाितमय

ःवरप म िःथर होकर मन म िकसी भी ोभ को पदा न होन दो | 192) उ म अिधकारी िज ास को चािहय िक वह व ा सदगर क पास जाकर ौ ा पवरक महावाकय सन | उसका मनन व िनिदधयासन करक अपन आतमःवरप को जान | जब

आतमःवरप का सा ातकार होता ह तब ही परम िवौािनत िमल सकती ह अनयथा नही | जब तक

व ा महापरष स महावाकय ा न हो तब तक वह मनद अिधकारी ह | वह अपन दयकमल म परमातमा का धयान कर ःमरण कर जप कर | इस धयान-जपािद क साद स उस व ा सदगर

ा ह ग | 193) मन बि िच अहकार छाया की तरह जड़ ह णभगर ह कय िक व उतपनन होत

ह और लीन भी हो जात ह | िजस चतनय की छाया उसम पड़ती ह वह परम चतनय सबका आतमा ह | मन बि िच अहकार का अभाव हो जाता ह लिकन उसका अनभव करनवाल का अभाव

कदािप नही होता |

194) आप अपनी शि को उ चाितउ च िवषय की ओर बहन दो | इसस आपक पास व

बात सोचन का समय ही नही िमलगा िजसस कामकता की गध आती हो | 195) अपराध क अनक नाम ह बालहतया नरहतया मातहतया गौहतया इतयािद |

परनत तयक ाणी म ई र का अनभव न करक आप ई रहतया का सबस बड़ा अपराध करत ह | 196) सवा करन की ःवाधीनता मनयमाऽ को ा ह | अगर वह करना ही न चाह तो अलग बात ह | सवा का अथर ह मन-वाणी-कमर स बराईरिहत हो जाना यह िव की सवा हो गई |

यथाशि भलाई कर दो यह समाज की सवा हो गई | भलाई का फल छोड़ दो यह अपनी सवा हो गई

| भ को अपना मानकर ःमित और म जगा लो यह भ की सवा हो गई | इस कार मनय

अपनी सवा भी कर सकता ह समाज की सवा भी कर सकता ह िव की सवा भी कर सकता ह

और िव र की सवा भी कर सकता ह | 197) आतमा स बाहर मत भटको अपन कनि म िःथर रहो अनयथा िगर पड़ोग | अपन-

आपम पणर िव ास रखो | आतम-कनि पर अचल रहो | िफर कोई भी चीज आपको िवचिलत नही कर सकती | 198) सदा शात िनिवरकार और सम रहो | जगत को खलमाऽ समझो | जगत स भािवत

मत हो | इसस आप हमशा सखी रहोग | िफर कछ बढ़ान की इ छा नही होगी और कछ कम होन स

दःख नही होगा | 199) समथर सदगर क सम सदा फल क भाित िखल हए रहो | इसस उनक अनदर सक प

होगा िक यह तो बहत उतसाही साधक ह सदा सनन रहता ह | उनक सामथयरवान सक प स

आपकी वह किऽम सननता भी वाःतिवक सननता म बदल जायगी | 200) यिद रोग को भी ई र का िदया मानो तो ार ध-भोग भी हो जाता ह और क तप का फल दता ह | इसस ई र-कपा की ाि होती ह | याकल मत हो | क सल और इनजकशन

आधीन मत हो | 201) साधक को चािहय िक अपन लआय को ि म रखकर साधना-पथ पर तीर की तरह

सीधा चला जाय | न इधर दख न उधर | ि यिद इधर-उधर जाती हो तो समझना िक िन ा िःथर नही ह |

202) आपन अपन जीवन म हजार ःव न दख ह ग लिकन व आपक जीवन क अश नही बन जात | इसी कार य जामत जगत क आड बर आपकी आतमा क सम कोई मह व नही रखत | 203) एक आतमा को ही जानो अनय बात को छोड़ो | धीर साधक को चािहय िक वह

सावधान होकर आतमिन ा बढ़ाय अनक श द का िचनतन व भाषण न कर कय िक वह तो कवल

मन-वाणी को पिरौम दनवाला ह असली साधना नही ह | 204) जो परष जन-समह स ऐस डर जस साप स डरता ह स मान स ऐस डर जस नकर स

डरता ह ि य स ऐस डर जस मद स डरता ह उस परष को दवतागण ा ण मानत ह | 205) जस अपन शरीर क अग पर बोध नही आता वस शऽ िमऽ व अपनी दह म एक ही आतमा को दखनवाल िववकी परष को कदािप बोध नही आता | 206) मन तो शरीर को ई रापरण कर िदया ह | अब उसकी भख- यास स मझ कया

समिपरत वःत म आस होना महा पाप ह | 207) आप यिद िद य ि पाना चहत हो तो आपको इिनिय क ऽ का तयाग करना होगा | 208) लयकाल क मघ की गजरना हो समि उमड़ पड बारह सयर तपायमान हो जाय पहाड़ स पहाड़ टकरा कर भयानक आवाज हो तो भी ानी क िन य म त नही भासता कय िक

त ह ही नही | त तो अ ानी को भासता ह | 209) सतय को ःवीकार करन स शाित िमलगी | कछ लोग यो यता क आधार पर शाित

खरीदना चाहत ह | यो यता स शाित नही िमलगी यो यता क सदपयोग स शाित िमलगी | कछ

लोग स पि क आधार पर शाित सरि त रखना चाहत ह | स पि स शाित नही िमलगी स पि

क सदपयोग स शाित िमलगी वस ही िवपि क सदपयोग स शाित िमलगी | 210) त छ हािन-लाभ पर आपका धयान इतना कय रहता ह िजसस अनत आननदःवरप

आतमा पर स धयान हट जाता ह | 211) अपन अनदर ही आननद ा करना य िप किठन ह परनत बा िवषय स आननद

ा करना तो अस भव ही ह |

212) म ससार का काश ह | काश क रप म म ही सब वःतओ म या ह | िनतय इन

िवचार का िचनतन करत रहो | य पिवऽ िवचार आपको परम पिवऽ बना दग | 213) जो वःत कमर स ा होती ह उसक िलय ससार की सहायता तथा भिवय की आशा की आवयकता होती ह परनत जो वःत तयाग स ा होती ह उसक िलय न ससार की सहायता चािहय न भिवय की आशा | 214) आपको जब तक बाहर चोर िदखता ह तब तक जरर भीतर चोर ह | जब दसर लोग

स िभनन अयो य खराब सधारन यो य िदखत ह तब तक ओ सधार का बीड़ा उठान वाल त अपनी िचिकतसा कर | 215) सफल व ही होत ह जो सदव नतमःतक एव सननमख रहत ह | िचनतातर-शोकातर लोग की उननित नही हो सकती | तयक कायर को िह मत व शाित स करो | िफर दखो िक यह

कायर शरीर मन और बि स हआ | म उन सबको स ा दनवाला चतनयःवरप ह | ॐ ॐ का पावन गान करो | 216) िकसी भी पिरिःथित म मन को यिथत न होन दो | आतमा पर िव ास करक

आतमिन बन जाओ | िनभरयता आपकी दासी बन कर रहगी | 217) सतसग स मनय को साधना ा होती ह चाह वह शाित क रप म हो चाह मि क

रप म चाह सवा क रप म हो म क रप म हो चाह तयाग क रप म हो | 218) भला-बरा वही दखता ह िजसक अनदर भला-बरा ह | दसर क शरीर को वही दखता ह

जो खद को शरीर मानता ह | 219) खबरदार आपन यिद अपन शरीर क िलय ऐश-आराम की इ छा की िवलािसता एव इिनिय-सख म अपना समय बरबाद िकया तो आपकी खर नही | ठ क स कायर करत रहन की नीित

अपनाओ | सफलता का पहला िस ात ह कायरिवौामरिहत कायरसा ी भाव स कायर | इस

िस ात को जीवन म चिरताथर करोग तो पता चलगा िक छोटा होना िजतना सरल ह उतना ही बड़ा होना भी सहज ह | 220) भतकाल पर िखनन हए िबना भिवय की िचनता िकय िबना व रमान म कायर करो | यह भाव आपको हर अवःथा म सनन रखगा हम जो कछ ा ह उसका सदपयोग ही अिधक

काश पान का साधन ह |

221) जब आप सफलता की ओर पीठ कर लत हो पिरणाम की िचनता का तयाग कर दत

हो स मख आय हए क र य पर अपनी उ ोगशि एकाम करत हो तब सफलता आपक पीछ-पीछ

आ जाती ह | अतः सफलता आपको खोजगी | 222) वि तब तक एकाम नही होगी जब तक मन म कभी एक आशा रहगी तो कभी दसरी | शात वही हो सकता ह िजस कोई क र य या आवयकता घसीट न रही हो | अतः परम शाित पान

क िलय जीवन की आशा भी तयाग कर मन ाननद म डबो दो | आज स समझ लो िक यह शरीर ह ही नही | कवल ाननद का सागर लहरा रहा ह | 223) िजसकी पककी िन ा ह िक म आतमा हrsquo उसक िलय ऐसी कौन सी मिथ ह जो खल

न सक ऐसी कोई ताकत नही जो उसक िवर जा सक | 224) मर भा य म नही थाई र की मज आजकल सतसग ा नही होताजगत

खराब ह ऐस वचन हमारी कायरता व अनतःकरण की मिलनता क कारण िनकलत ह | अतः नकारातमक ःवभाव और दसर पर दोषारोपण करन की वि स बचो | 225) आप जब भीतरवाल स नाराज होत हो तब जगत आपस नाराज रहता ह | जब आप

भीतर अनतयारमी बन बठ तो जगतरपी पतलीघर म िफर गड़बड़ कसी 226) िजस ण हम ससार क सधारक बन खड़ होत ह उसी ण हम ससार को िबगाड़नवाल बन जात ह | श परमातमा को दखन क बजाय जगत को िबगड़ा हआ दखन की ि बनती ह | सधारक लोग मानत ह िक lsquoभगवान न जो जगत बनाया ह वह िबगड़ा हआ ह और हम उस सधार रह ह |rsquo वाह वाह धनयवाद सधारक अपन िदल को सधारो पहल | सवरऽ िनरजन का दीदार करो | तब आपकी उपिःथित माऽ स आपकी ि माऽ स अर यार आपको छकर बहती हवा माऽ स अननत जीव को शाित िमलगी और अननत सधार होगा | नानक कबीर महावीर ब और लीलाशाह बाप जस महापरष न यही कजी अपनायी थी | 227) वदानत म हमशा कमर का अथर होता ह वाःतिवक आतमा क साथ एक होकर च ा करना अिखल िव क साथ एकःवर हो जाना | उस अि तीय परम ततव क साथ िनःःवाथर सयोग ा करना ही एकमाऽ स चा कमर ह बाकी सब बोझ की गठिरया उठाना ह |

228) अपनी व रमान अवःथा चाह कसी भी हो उसको सव च मानन स ही आपक दय म आतम ान ान का अनायास उदय होन लगगा | आतम-सा ातकार को मील दर की कोई चीज समझकर उसक पीछ दौड़ना नही ह िचिनतत होना नही ह |

िचनता की गठरी उठाकर यिथत होन की जररत नही ह | िजस ण आप िनि नतता म गोता मारोग उसी ण आपका आतमःवरप गट हो जायगा | अर गट कया होगा आप ःवय आतमःवरप हो ही | अनातमा को छोड़ दो तो आतमःवरप तो हो ही | 229) सदा ॐकार का गान करो | जब भय व िचनता क िवचार आय तब िकसी मःत सत-फकीर महातमा क सािननधय का ःमरण करो | जब िननदा-शसा क सग आय तब महापरष क जीवन का अवलोकन करो | 230) िजनको आप भयानक घटनाए एव भयकर आघात समझ बठ हो वाःतव म व आपक ियतम आतमदव की ही करतत ह | समःत भयजनक तथा ाणनाशक घटनाओ क नाम-रप तो िवष क ह लिकन व बनी ह अमत स | 231) मन म यिद भय न हो तो बाहर चाह कसी भी भय की साममी उपिःथत हो जाय आपका कछ िबगाड़ नही सकती | मन म यिद भय होगा तो तरनत बाहर भी भयजनक पिरिःथया न होत हए भी उपिःथत हो जायगी | व क तन म भी भत िदखन लगगा | 232) िकसी भी पिरिःथित म िदखती हई कठोरता व भयानकता स भयभीत नही होना चािहए | क क काल बादल क पीछ पणर काशमय एकरस परम स ा सयर की तरह सदा िव मान ह | 233) आप अपन पर कदािप अिव ास मत करो | इस जगत म आप सब कछ कर सकत हो | अपन को कभी दबरल मत मानो | आपक अनदर तमाम शि या छपी हई ह | 234) यिद कोई मन य आपकी कोई चीज़ को चरा लता ह तो ड़रत कय हो वह मनय

और आप एक ह | िजस चीज़ को वह चराता ह वह चीज़ आपकी और उसकी द न की ह | 235) जो खद क िसवाय दसरा कछ दखता नही सनता नही जानता नही वह अननत ह |

जब तक खद क िसवाय और िकसी वःत का भान होता ह वह वःत स ची लगती ह तब तक आप

सीिमत व शात ह असीम और अनत नही |

236) ससार मझ कया आनद द सकता ह स पणर आनद मर भीतर स आया ह | म ही स पणर आननद ह स पणर मिहमा एव स पणर सख ह | 237) जीवन की समःत आवयकताए जीवन म उपिःथत ह परनत जीवन को जब हम

बा रग म रग दत ह तब जीवन का वाःतिवक रप हम नही जान पात | 238) िननदक की िननदा स म कय मरझाऊ शसक की शसा स म कय फल िननदा स म घटता नही और शसा स म बढ़ता नही | जसा ह वसा ही रहता ह | िफर िननदा-ःतित स

खटक कसी 239) ससार व ससार की समःयाओ म जो सबस अिधक फस हए ह उनही को वदानत की सबस अिधक आवयकता ह | बीमार को ही औषिध की यादा आवयकता ह | कय जी ठ क ह न 240) जगत क पाप व अतयाचार की बात मत करो लिकन अब भी आपको जगत म पाप

िदखता ह इसिलय रोओ | 241) हम यिद जान ल िक जगत म आतमा क िसवाय दसरा कछ ह ही नही और जो कछ

िदखता ह वह ःव नमाऽ ह तो इस जगत क दःख-दािरिय पाप-प य कछ भी हम अशात नही कर सकत | 242) िव ान दाशरिनक व आचाय की धमकी तथा अनमह आलोचना या अनमित

ानी पर कोई भाव नही ड़ाल सकती | 243) ह यि रप अननत आप अपन पर पर खड़ रहन का साहस करो समःत िव का बोझ आप िखलौन की तरह उठा लोग | 244) िसह की गजरना व नरिसह की ललकार तलवार की धार व साप की फफकार तपःवी की धमकी व नयायधीश की फटकारइन सबम आपका ही काश चमक रहा ह | आप इनस

भयभीत कय होत हो उलझन कय महसस करत हो मरी िब ली मझको याऊ वाली बात कय

होन दत हो 245) ससार हमारा िसफ़र िखलोना ही ह और कछ नही | अबोध बालक ही िखलौन स

भयभीत होता ह आसि करता ह िवचारशील यि नही |

246) जब तक अिव ा दर नही होगी तब तक चोरी जआ दार यिभचार कभी बद न

ह ग चाह लाख कोिशश करो | 247) आप हमशा अदर का धयान रखो | पहल हमारा भीतरी पतन होता ह | बा पतन तो इसका पिरणाम माऽ ह | 248) तयाग स हमशा आनद िमलता ह | जब तक आपक पास एक भी चीज़ बाकी ह तब

तक आप उस चीज़ क बधन म बध रहोग | आघात व तयाघात हमशा समान िवरोधी होत ह | 249) िनि तता ही आरो यता की सबस बड़ी दवाई ह | 250) सख अपन िसर पर दख का मकट पहन कर आता ह | जो सख को अपनायगा उस

दख को भी ःवीकार करना पड़गा | 251) म (आतमा) सबका ा ह | मरा ा कोई नही | 252) हजार म स कोई एक परष भीतर स शात िच वाला रहकर बाहर स ससारी जसा यवहार कर सकता ह | 253) सतय क िलए यिद शरीर का तयाग करना पड़ तो कर दना | यही आिखरी ममता ह जो हम तोड़नी होगी | 254) भय िचनता बचनी स ऊपर उठो | आपको ान का अनभव होगा | 255) आपको कोई भी हािन नही पहचा सकता | कवल आपक खयालात ही आपक पीछ पड़ ह | 256) म का अथर ह अपन पड़ोसी तथा सपकर म आनवाल क साथ अपनी वाःतिवक अभदता का अनभव करना | 257) ओ यार अपन खोय हए आतमा को एक बार खोज लो | धरती व आसमान क शासक आप ही हो | 258) सदव सम और सनन रहना ई र की सव पिर भि ह |

259) जब तक िच म ढ़ता न आ जाय िक शा की िविधय का पालन छोड़ दन स भी दय का यथाथर भि भाव न नही होगा तब तक शा की िविधय को पालत रहो |

गर भि एक अमोघ साधना 1 जनम मरण क िवषचब स म होन का कोई मागर नही ह कया सख-दःख हषर-शोक लाभ-

हािन मान-अपमान की थ पड़ स बचन का कोई उपाय नही ह कया

हअवय ह | ह िय आतमन नाशवान पदाथ स अपना मन वािपस लाकर सदगर क

चरणकमल म लगाओ | गरभि योग का आौय लो | गरसवा ऐसा अमोघ साधन ह िजसस

व रमान जीवन आननदमय बनता ह और शा त सख क ार खलत ह |

गर सवत त नर धनय यहा | ितनक नही दःख यहा न वहा || 2 स च सदगर की की हई भि िशय म सासािरक पदाथ क वरा य एव अनासि जगाती ह

परमातमा क ित म क पप महकाती ह | 3 तयक िशय सदगर की सवा करना चाहता ह लिकन अपन ढग स | सदगर चाह उस ढग स

सवा करन को कोई ततपर नही | जो िवरला साधक गर चाह उस ढ़ग स सवा कर सकता ह उस कोई कमी नही रहती |

िन सदगर की सवा स उनकी कपा ा होती ह और उस कपा स न िमल सक ऐसा तीन लोक म कछ भी नही ह | 4 गर िशय का स बनध पिवऽतम स बनध ह | ससार क तमाम बनधन स छड़ाकर वह मि क मागर पर ःथान कराता ह | यह स बनध जीवनपयरनत का स बनध ह | यह बात अपन दय की डायरी म सवणर-अ र स िलख लो | 5 उ ल सयर क काश क अिःततव को मान या न मान िफर भी सयर हमशा काशता ह | चचल मन का मनय मान या न मान लिकन सदगर की परमक याणकारी कपा सदव बरसती ही रहती ह | 6 सदगर की चरणरज म ःनान िकय िबना कवल किठन तप यार करन स या वद का

अधयन करन स वदानत का रहःय कट नही होता आतमानद का अमत नही िमलता | 7 दशरन शा क चाह िकतन मनथ पढ़ो हजार वष तक िहमालय की गफा म तप करो वष तक ाणायाम करो जीवनपयरनत शीषारसन करो समम िव म वास करक याखान दो िफर भी सदगर की कपा क िबना आतम ान नही होता | अतः िनरािभमानी सरल िनजाननद म मःत दयाल ःवभाव क आतम-सा ातकारी सदगर क चरण म जाओ | जीवन को धनय बनाओ | 8 सदगर की सवा िकय िबना शा का अधयन करना मम साधक क िलय समय बरबाद करन क बराबर ह | 9 िजसको सदगर ा हए ह ऐस िशय क िलय इस िव म कछ भी अा य नही ह | सदगर िशय को िमली हई परमातमा की अम य भट ह | अर नहीhellipनही व तो िशय क सम साकार रप म कट हए परमातमा ःवय ह | 10 सदगर क साथ एक ण िकया हआ सतसग लाख वष क तप स अननत गना ौ ह | आख क िनमषमाऽ म सदगर की अमतवष ि िशय क जनम-जनम क पाप को जला सकती ह | 11 सदगर जसा मपणर कपाल िहतिचनतक िव भर म दसरा कोई नही ह | 12 बाढ़ क समय याऽी यिद तफानी नदी को िबना नाव क पार कर सक तो साधक भी िबना सदगर क अपन जीवन क आिखरी लआय को िस कर सकता ह | यानी य दोन बात स भव ह |

अतः यार साधक मनमखी साधना की िज करना छोड़ दो | गरमखी साधना करन म ही सार ह | 13 सदगर क चरणकमल का आौय लन स िजस आननद का अनभव होता ह उसक आग िऽलोकी का साा य त छ ह | 14 आतम-सा ातकार क मागर म सबस महान शऽ अहभाव का नाश करन क िलए सदगर की आ ा का पालन अमोघ श ह | 15 रसोई सीखन क िलय कोई िसखानवाला चािहय िव ान और गिणत सीखन क िलय

अधयापक चािहय तो कया िव ा सदगर क िबना ही सीख लोग 16 सदगरकपा की स पि जसा दसरा कोई खजाना िव भर म नही | 17 सदगर की आ ा का उ लघन करना यह अपनी क खोदन क बराबर ह | 18 सदगर क कायर को शका की ि स दखना महापातक ह | 19 गरभि व गरसवा - य साधनारपी नौका की दो पतवार ह | उनकी मदद स िशय ससारसागर को पार कर सकता ह | 20 सदगर की कसौटी करना असभव ह | एक िववकाननद ही दसर िववकाननद को पहचान सकत ह | ब को जानन क िलय दसर ब की आवयकता रहती ह | एक रामतीथर का रहःय दसर रामतीथर ही पा सकत ह |

अतः सदगर की कसौटी करन की च ा छोड़कर उनको पिरपणर पर परमातमा मानो |

तभी जीवन म वाःतिवक लाभ होगा | 21 गरभि योग का आौय लकर आप अपनी खोई हई िद यता को पनः ा करो सख-दःख जनम-मतय आिद सब न स पार हो जाओ | 22 गरभि योग मान गर की सवा क ारा मन और िवकार पर िनयऽण एव पनः सःकरण | 23 िशय अपन गर क चरणकमल म णाम करता ह | उन पर ौ फल की वषार करक उनकी ःतित करता ह ldquoह परम प य पिवऽ गरदव मझ सव च सख ा हआ ह | म िन ा स जनम-मतय की पर परा स म हआ ह | म िनिवरक प समािध का श सख भोग रहा ह | जगत क िकसी भी कोन म म म ता स िवचरण कर सकता ह | सब पर मरी सम ि ह | मन ाकत मन का तयाग िकया ह | मन सब सक प एव रिच-अरिच का तयाग िकया ह | अब म अख ड शाित म िवौाित पा रहा ह hellip आननदमय हो रहा ह | म इस पणर अवःथा का वणरन नही कर पाता | ह प य गरदव म आवाक बन गया ह | इस दःतर भवसागर को पार करन म आपन

मझ सहायता की ह | अब तक मझ कवल अपन शरीर म ही स पणर िव ास था | मन िविभनन योिनय म अस य जनम िलय | ऐसी सव च िनभरय अवःथा मझ कौन स पिवऽ कम क कारण ा हई ह यह म नही जानता | सचमच यह एक दलरभ भा य ह |

यह एक महान उतक लाभ ह | अब म आननद स नाचता ह | मर सब दःख न हो गय | मर सब मनोरथ पणर हए ह |

मर कायर स पनन हए ह | मन सब वािछत वःतए ा की ह | मरी इ छा पिरपणर हई ह | आप मर स च माता-िपता हो | मरी व रमान िःथित म म दसर क सम िकस कार कट कर सक सवरऽ सख और आननद का अननत सागर मझ लहराता हआ िदख रहा ह | मर अतःच िजसस खल गय वह महावाकय lsquoत वमिसrsquo ह | उपिनषद एव वदानतसऽ को भी धनयवाद | िजनह न िन गर का एव उपिनषद क महावाकय का रप धारण िकया ह | ऐस ौी यासजी को णाम ौी शकराचायर को णाम सासािरक मनय क िसर पर गर क चरणामत का एक िबनद भी िगर तो भी उसक ःब दःख का नाश होता ह | यिद एक िन परष को व पहनाय जाय तो सार िव को व पहनान एव भोजन करवान क बराबर ह कय िक िन परष सचराचर िव म या ह | सबम व ही ह |rdquo

ॐhellip ॐ hellip ॐ hellip

ःवामी िशवानद जी

ौी राम-विश सवाद ौी विश जी कहत ह ldquoह रघकलभषण ौी राम अनथर ःवरप िजतन सासािरक पदाथर ह व सब जल म तरग क समान िविवध रप धारण करक चमतकार उतपनन करत ह अथारत ई छाए उतपनन करक जीव को मोह म फसात ह | परत जस सभी तरग जल ःवरप ही ह उसी कार सभी पदाथर वःततः न र ःवभाव वाल ह |

बालक की क पना स आकाश म य और िपशाच िदखन लगत ह परनत बि मान मनय क िलए उन य और िपशाच का कोई अथर नही | इसी कार अ ानी क िच म यह जगत सतय हो ऐसा लगता ह जबिक हमार जस ािनय क िलय यह जगत कछ भी नही | यह समम िव पतथर पर बनी हई पतिलय की सना की तरह रपालोक तथा अतर-बा िवषय स शनय ह | इसम सतयता कसी परनत अ ािनय को यह िव सतय लगता ह |rdquo विश जी बोल ldquoौी राम जगत को सतय ःवरप म जानना यह ाित ह मढ़ता ह | उस िमथया अथारत कि पत समझना यही उिचत समझ ह | ह राघव तव ा अहता आिद सब िवम-िवलास शात िशवःवरप श ःवरप ही ह | इसिलय मझ तो क अितिर और कछ भी नही िदखता | आकाश म जस जगल नही वस ही म जगत नही ह | ह राम ार ध वश ा कम स िजस परष की च ा कठपतली की तरह ई छाशनय और याकलतारिहत होती ह वह शानत मनवाला परष जीवनम मिन ह | ऐस जीवनम ानी को इस

जगत का जीवन बास की तरह बाहर-भीतर स शनय रसहीन और वासना-रिहत लगता ह | इस य पच म िजस रिच नही दय म िचनमाऽ अ य ही अ छा लगता ह ऐस परष न

भीतर तथा बाहर शािनत ा कर ली ह और इस भवसागर स पार हो गया ह | रघनदन श व ा कहत ह िक मन का ई छारिहत होना यही समािध ह कय िक ई छाओ का तयाग करन स मन को जसी शािनत िमलती ह ऐसी शािनत सकड़ उपदश स भी नही िमलती | ई छा की उतपि स जसा दःख ा होता ह ऐसा दःख तो नरक म भी नही | ई छाओ की शािनत

स जसा सख होता ह ऐसा सख ःवगर तो कया लोक म भी नही होता | अतः समःत शा तपःया यम और िनयम का िनचोड़ यही ह िक ई छामाऽ दःखदायी ह और ई छा का शमन मो ह | ाणी क दय म जसी-जसी और िजतनी-िजतनी ई छाय उतपनन होती ह उतना ही दख स वह

ड़रता रहता ह | िववक-िवचार ारा ई छाय जस-जस शानत होती जाती ह वस-वस दखरपी छत की बीमारी िमटती जाती ह |

आसि क कारण सासािरक िवषय की ई छाय य - य गहनीभत होती जाती ह तय -तय

दःख की िवषली तरग बढ़ती जाती ह | अपन परषाथर क बल स इस ई छारपी यािध का उपचार यिद नही िकया जाय तो इस यािध स छटन क िलय अनय कोई औषिध नही ह ऐसा म ढ़तापवरक

मानता ह | एक साथ सभी ई छाओ का स पणर तयाग ना हो सक तो थोड़ी-थोड़ी ई छाओ का धीर-धीर तयाग

करना चािहय परत रहना चािहय ई छा क तयाग म रत कय िक सनमागर का पिथक दखी नही होता | जो नराधम अपनी वासना और अहकार को ीण करन का य नही करता वह िदन -िदन अपन

को रावण की तरह अधर कऐ म ढ़कल रहा ह | ई छा ही दख की जनमदाऽी इस ससाररपी बल का बीज ह | यिद इस बीज को आतम ानरपी अि न स ठ क-ठ क जला िदया तो पनः यह अकिरत नही होता | रघकलभषण राम ई छामाऽ ससार ह और ई छाओ का अभाव ही िनवारण ह | अतः अनक कार की माथाप ची म ना पड़कर कवल ऐसा य करना चािहय िक ई छा उतपनन ना हो | अपनी बि स ई छा का िवनाश करन को जो ततपर नही ऐस अभाग को शा और गर का उपदश

भी कया करगा जस अपनी जनमभमी जगल म िहरणी की मतय िनि त ह उसी कार अनकिवध दख का िवःतार कारनवाल ई छारपी िवषय-िवकार स य इस जगत म मनय की मतय िनि त ह | यिद मानव ई छाओ क कारण ब च -सा मढ़ ना बन तो उस आतम ान क िलय अ प य ही करना पड़ | इसिलय सभी कार स ई छाओ को शानत करना चािहय | ई छा क शमन स परम पद की ाि होती ह | ई छारिहत हो जाना यही िनवारण ह और ई छाय

होना ही बधन ह | अतः यथाशि ई छा को जीतना चािहय | भला इतना करन म कया किठनाई ह जनम जरा यािध और मतयरपी कटीली झािड़य और खर क व - समह की जड़ भी ई छा ही ह

| अतः शमरपी अि न स अदर-ही-अदर बीज को जला ड़ालना चािहय| जहा ई छाओ का अभाव ह

वहा मि िनि त ह |

िववक वरा य आिद साधन स ई छा का सवरथा िवनाश करना चािहय | ई छा का सबध जहा-जहा ह वहा-वहा पाप प य दखरािशया और ल बी पीड़ाओ स य बधन को हािज़र ही समझो | परष

की आतिरक ई छा य - य शानत होती जाती ह तय -तय मो क िलय उसका क याणकारक

साधन बढ़ता जाता ह | िववकहीन ई छा को पोसना उस पणर करना यह तो ससाररपी िवष व को पानी स सीचन क समान ह |rdquo

- ौीयोगविश महारामायण

आतमबल का आवाहन कया आप अपन-आपको दबरल मानत हो लघतामथी म उलझ कर पिरिःतिथय स िपस रह हो

अपना जीवन दीन-हीन बना बठ हो hellipतो अपन भीतर सष आतमबल को जगाओ | शरीर चाह ी का हो चाह परष का कित क साा य म जो जीत ह व सब ी ह और कित क बनधन स पार अपन ःवरप की पहचान िजनह न कर ली ह अपन मन की गलामी की बिड़या तोड़कर िजनह न फ क दी ह व परष ह | ी या परष शरीर एव मानयताए होती ह | तम तो तन-मन स पार िनमरल आतमा हो | जागोhellipउठोhellipअपन भीतर सोय हय िन यबल को जगाओ | सवरदश सवरकाल म सव म

आतमबल को िवकिसत करो | आतमा म अथाह सामथयर ह | अपन को दीन-हीन मान बठ तो िव म ऐसी कोई स ा नही जो त ह ऊपर उठा सक | अपन आतमःवरप म िति त हो गय तो िऽलोकी म ऐसी कोई हःती नही जो त ह दबा सक | भौितक जगत म वाप की शि ईलकशोिनक शि िव त की शि गरतवाकषरण की शि बड़ी मानी जाती ह लिकन आतमबल उन सब शि य का सचालक बल ह | आतमबल क सािननधय म आकर पग ार ध को पर िमल जात ह दव की दीनता पलायन हो जाती ह ितकल पिरिःतिथया अनकल हो जाती ह | आतमबल सवर िरि -िसि य का िपता ह |

आतमबल कस जगाय हररोज़ तःकाल ज दी उठकर सय दय स पवर ःनानािद स िनवत हो जाओ | ःव छ पिवऽ ःथान

म आसन िबछाकर पवारिभमख होकर प ासन या सखासन म बठ जाओ | शानत और सनन वि

धारण करो | मन म ढ भावना करो िक म कित-िनिमरत इस शरीर क सब अभाव को पार करक सब

मिलनताओ-दबरलताओ स िप ड़ छड़ाकर आतमा की मिहमा म जागकर ही रहगा |

आख आधी खली आधी बद रखो | अब फ़फ़ड़ म खब ास भरो और भावना करो की ास क साथ

म सयर का िद य ओज भीतर भर रहा ह | ास को यथाशि अनदर िटकाय रखो | िफ़र lsquoॐhelliprsquo का ल बा उ चारण करत हए ास को धीर-धीर छोड़त जाओ | ास क खाली होन क बाद तरत ास ना लो | यथाशि िबना ास रहो और भीतर ही भीतर lsquoहिर ॐhelliprsquo lsquoहिर ॐhelliprsquo का मानिसक

जाप करो | िफ़र स फ़फ़ड़ म ास भरो | पव रीित स ास यथाशि अनदर िटकाकर बाद म धीर-धीर छोड़त हए lsquoॐhelliprsquo का गजन करो | दस-पिह िमनट ऐस ाणायाम सिहत उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo की धविन करक शानत हो जाओ | सब

यास छोड़ दो | वि य को आकाश की ओर फ़लन दो | आकाश क अनदर पथवी ह | पथवी पर अनक दश अनक समि एव अनक लोग ह | उनम स एक

आपका शरीर आसन पर बठा हआ ह | इस पर य को आप मानिसक आख स भावना स दखत

रहो | आप शरीर नही हो बि क अनक शरीर दश सागर पथवी मह न ऽ सयर चनि एव पर ा ड़ क

ा हो सा ी हो | इस सा ी भाव म जाग जाओ | थोड़ी दर क बाद िफ़र स ाणायाम सिहत lsquoॐhelliprsquo का जाप करो और शानत होकर अपन िवचार को दखत रहो | इस अवःथा म ढ़ िन य करो िक lsquoम जसा चहता ह वसा होकर रहगा |rsquo िवषयसख स ा धन-

दौलत इतयािद की इ छा न करो कय िक िन यबल या आतमबलरपी हाथी क पदिच म और सभी क पदिच समािव हो ही जायग | आतमानदरपी सयर क उदय होन क बाद िम टी क तल क दीय क ाकाश रपी शि सखाभास की गलामी कौन कर

िकसी भी भावना को साकार करन क िलय दय को करद ड़ाल ऐसी िन यातमक बिल वि होनी आवशयक ह | अनतःकरण क गहर-स-गहर दश म चोट कर ऐसा ाण भरक िन बल का आवाहन करो | सीना तानकर खड़ हो जाओ अपन मन की दीन-हीन दखद मानयताओ को कचल

ड़ालन क िलय | सदा ःमरण रह की इधर-उधर भटकती वि य क साथ त हारी शि भी िबखरती रहती ह | अतः वि य को बहकाओ नही | तमाम वि य को एकिऽत करक साधनाकाल म आतमिचनतन म लगाओ और यवहारकाल म जो कायर करत हो उसम लगाओ | द िच होकर हरक कायर करो | अपन ःवभाव म स आवश को सवरथा िनमरल कर दो | आवश म आकर कोई िनणरय मत लो कोई िबया मत करो | सदा शानत वि धारण करन का अ यास करो | िवचारशील एव सनन रहो | ःवय अचल रहकर सागर की तरह सब वि य की तरग को अपन

भीतर समालो | जीवमाऽ को अपना ःवरप समझो | सबस ःनह रखो | िदल को यापक रखो | सकिच ता का िनवारण करत रहो | ख ड़ातमक वि का सवरथा तयाग करो | िजनको ानी महापरष का सतसग और अधयातमिव ा का लाभ िमल जाता ह उसक जीवन स

दःख िवदा होन लगत ह | ॐ आननद आतमिन ा म जाग हए महापरष क सतसग एव सतसािहतय स जीवन को भि और वदात स प

एव पलिकत करो | कछ ही िदन क इस सघन योग क बाद अनभव होन लगगा िक भतकाल क

नकारतमक ःवभाव सशयातमक-हािनकारक क पनाओ न जीवन को कचल ड़ाला था िवषला कर िदया था | अब िन यबल क चमतकार का पता चला | अततरम म आिवरभत िद य खज़ाना अब

िमला | ार ध की बिड़या अब टटन लगी | ठ क ह न करोग ना िह मत पढ़कर रख मत दना इस पिःतका को | जीवन म इसको बार-बार पढ़त रहो | एक िदन म यह पणर ना होगा | बार-बार अ यास करो | त हार िलय यह एक ही पिःतका काफ़ी ह | अनय कचराप टी ना पड़ोग तो चलगा | शाबाश वीर शाबाश

  • परसतावना
  • जीवन रसायन
  • गर भकति एक अमोघ साधना
  • शरी राम-वशिषठ सवाद
  • आतमबल का आवाहन
  • आतमबल कस जगाय
Page 2: जीवन रसायन - HariOmGroup · ‘जीवन रसायन’ का यह िदय कटोरा आत्मरस के िपपासुओं हाथ

जीवन रसायन 3

गर भि एक अमोघ साधना 36

ौी राम-विश सवाद 39

आतमबल का आवाहन 42

आतमबल कस जगाय 43

ःतावना इस पिःतका का एक-एक वाकय ऐसा ःफिलग ह िक वह हजार वष क घनघोर अधकार को एक पल म ही घास की तरह जला कर भःम कर सकता ह | इसका हर एक वचन आतम ानी महापरष क अनतःतल स कट हआ ह | सामानय मनय को ऊपर उठाकर दवतव की उ चतम भिमका म पहचान का सामथयर इसम िनिहत ह | ाचीन भारत की आधयाितमक पर परा म पोिषत महापरष न समािध ारा अपन अिःततव की गहराईय म गोत लगाकर जो अग य अगोचर अमत का खजाना पाया ह उस अमत क खजान को इस छोटी सी पिःतका म भरन का यास िकया गया ह | गागर म सागर भरन का यह एक न यास ह | उसक एक-एक वचन को सोपान बनाकर आप अपन लआय तक पहच सकत ह | इसक सवन स मद क िदल म भी ाण का सचार हो सकता ह | हताश िनराश दःखी िचिनतत होकर बठ हए मनय क िलय यह पिःतका अमत-सजीवनी क समान ह | इस पिःतका को दिनक lsquoटॉिनकrsquo समझकर ौ ाभाव स धयर स इसका पठन िचनतन एव मनन करन स तो अवय लाभ होगा ही लिकन िकसी आतमव ा महापरष क ौीचरण म रहकर इसका ौवण-िचनतन एव मनन करन का सौभा य िमल जाय तब तो पछना( या कहना) ही कया दिनक जीवन- यवहार की थकान स िवौाित पान क िलय चाल कायर स दो िमनट उपराम होकर इस पिःतका की दो-चार सवणर-किणकाए पढ़कर आतमःवरप म गोता लगाओ तन-मन-जीवन को आधयाितमक तरग स झकत होन दो जीवन-िसतार क तार पर परमातमा को खलन दो | आपक शारीिरक मानिसक व आधयाितमक ताप-सताप शात होन लगग | जीवन म परम ति की तरग लहरा उठगी |

lsquoजीवन रसायनrsquo का यह िद य कटोरा आतमरस क िपपासओ क हाथ म रखत हए सिमित अतयनत आननद का अनभव करती ह | िव ास ह की अधयातम क िज ासओ क जीवन को िद यामत स सरोबार करन म यह पिःतका उपयोगी िस होगी |

- ौी योग वदानत सवा सिमित

अमदावाद आौम

जीवन रसायन 1) जो मनय इसी जनम म मि ा करना चाहता ह उस एक ही जनम म हजार वष का कम कर लना होगा | उस इस यग की रझतार स बहत आग िनकलना होगा | जस ःव न म मान-अपमान मरा-तरा अ छा-बरा िदखता ह और जागन क बाद उसकी सतयता नही रहती वस ही इस जामत जगत म भी अनभव करना होगा | बसhellipहो गया हजार वष का काम परा | ान की यह बात दय म ठ क स जमा दनवाल कोई महापरष िमल जाय तो हजार वष क सःकार मर-तर क म को दो पल म ही िनवत कर द और कायर परा हो जाय | 2) यिद त िनज ःवरप का मी बन जाय तो आजीिवका की िचनता रमिणय ौवण-मनन और शऽओ का दखद ःमरण यह सब छट जाय |

उदर-िचनता िय चचार िवरही को जस खल |

िनज ःवरप म िन ा हो तो य सभी सहज टल || 3) ःवय को अनय लोग की आख स दखना अपन वाःतिवक ःवरप को न दखकर अपना िनरी ण अनय लोग की ि स करना यह जो ःवभाव ह वही हमार सब दःख का कारण ह | अनय लोग की ि म खब अ छा िदखन की इ छा करना- यही हमारा सामािजक दोष ह | 4) लोग कय दःखी ह कय िक अ ान क कारण व अपन सतयःवरप को भल गय ह और अनय लोग जसा कहत ह वसा ही अपन को मान बठत ह | यह दःख तब तक दर नही होगा जब तक मनय आतम-सा ातकार नही कर लगा | 5) शारीिरक मानिसक नितक व आधयाितमक य सब पीड़ाए वदानत का अनभव करन स तरत दर होती ह औरhellipकोई आतमिन महापरष का सग िमल जाय तो वदानत का

अनभव करना किठन कायर नही ह | 6) अपन अनदर क परम र को सनन करन का यास करो | जनता एव बहमित को आप िकसी कार स सत नही कर सकत | जब आपक आतमदवता सनन ह ग तो जनता आपस अवय सत होगी | 7) सब वःतओ म दशरन करन म यिद आप सफल न हो सको तो िजनको आप सबस अिधक म करत ह ऐस कम-स-कम एक यि म परमातमा का दशरन करन का यास करो | ऐस िकसी ततव ानी महापरष की शरण पा लो िजनम ानद छलकता हो | उनका ि पात होत ही आपम भी का ादभारव होन की स भावना पनपगी | जस एकस-र मशीन की िकरण कपड़ चमड़ी मास को चीरकर हि डय का फोटो खीच लाती ह वस ही ानी की ि आपक िच म रहन वाली दहाधयास की परत चीरकर आपम ई र को िनहारती ह | उनकी ि स चीरी हई परत को चीरना अपक िलय भी सरल हो जायगा | आप भी ःवय म ई र को दख सक ग | अतः अपन िच पर ानी महापरष की ि पड़न दो | पलक िगराय िबना अहोभाव स उनक सम बठो तो

आपक िच पर उनकी ि पड़गी | 8) जस मछिलया जलिनिध म रहती ह प ी वायमडल म ही रहत ह वस आप भी ानरप काशपज म ही रहो काश म चलो काश म िवचरो काश म ही अपना

अिःततव रखो | िफर दखो खान-पीन का मजा घमन-िफरन का मजा जीन-मरन का मजा | 9) ओ तफान उठ जोर-शोर स आधी और पानी की वषार कर द | ओ आननद क महासागर पथवी और आकाश को तोड़ द | ओ मानव गहर स गहरा गोता लगा िजसस िवचार एव िचनताए िछनन-िभनन हो जाय | आओ अपन दय स त की भावना को चन-चनकर बाहर िनकाल द िजसस आननद का महासागर तय लहरान लग | ओ म की मादकता त ज दी आ | ओ आतमधयान की आतमरस की मिदरा त हम पर ज दी आ छािदत हो जा | हमको तरनत डबो द | िवल ब करन का कया योजन मरा मन अब एक पल भी दिनयादारी म फसना नही चाहता | अतः इस मन को यार भ म डबो द | lsquoम और मरा hellipत और तराrsquo क ढर को आग लगा द | आशका और आशाओ क चीथड़ को उतार फ क | टकड़-टकड़ करक िपघला द | त की भावना को जड़ स उखाड़ द | रोटी नही िमलगी कोई परवाह नही | आौय और िवौाम नही िमलगा

कोई िफकर नही | लिकन मझ चािहय म की उस िद य म की यास और तड़प | मझ वद पराण करान स कया

मझ सतय का पाठ पढ़ा द कोई ||

मझ मिदर मिःजद जाना नही |

मझ म का रग चढ़ा द कोई ||

जहा ऊच या नीच का भद नही |

जहा जात या पात की बात नही ||

न हो मिदर मिःजद चचर जहा |

न हो पजा नमाज़ म फकर कही ||

जहा सतय ही सार हो जीवन का |

िरधवार िसगार हो तयाग जहा ||

जहा म ही म की सि िमल |

चलो नाव को ल चल ख क वहा || 10) ःव नावःथा म ा ःवय अकला ही होता ह | अपन भीतर की क पना क आधार पर िसह िसयार भड़ बकरी नदी नगर बाग-बगीच की एक परी सि का सजरन कर लता ह | उस सि म ःवय एक जीव बन जाता ह और अपन को सबस अलग मानकर भयभीत होता ह | खद शर ह और खद ही बकरी ह | खद ही खद को डराता ह | चाल ःव न म सतय का भान न होन स दःखी होता ह | ःव न स जाग जाय तो पता चल िक ःवय क िसवाय और कोई था ही नही | सारा पच क पना स रचा गया था | इसी कार यह जगत जामत क ारा कि पत ह वाःतिवक नही ह | यिद जामत का ा अपन आतमःवरप म जाग जाय तो उसक तमाम दःख-दािरिय पल भर म अ य हो जाय | 11) ःवगर का साा य आपक भीतर ही ह | पःतक म मिदर म तीथ म पहाड़ म जगल म आनद की खोज करना यथर ह | खोज करना ही हो तो उस अनतःथ आतमानद का खजाना खोल दनवाल िकसी ततवव ा महापरष की खोज करो | 12) जब तक आप अपन अतःकरण क अनधकार को दर करन क िलए किटब नही ह ग तब तक तीन सौ ततीस करोड़ कण अवतार ल ल िफर भी आपको परम लाभ नही होगा | 13) शरीर अनदर क आतमा का व ह | व को उसक पहनन वाल स अिधक यार

मत करो | 14) िजस ण आप सासािरक पदाथ म सख की खोज करना छोड़ दग और ःवाधीन हो जायग अपन अनदर की वाःतिवकता का अनभव करग उसी ण आपको ई र क पास जाना नही पड़गा | ई र ःवय आपक पास आयग | यही दवी िवधान ह | 15) बोधी यिद आपको शाप द और आप समतव म िःथर रहो कछ न बोलो तो उसका शाप आशीवारद म बदल जायगा | 16) जब हम ई र स िवमख होत ह तब हम कोई मागर नही िदखता और घोर दःख सहना पड़ता ह | जब हम ई र म तनमय होत ह तब यो य उपाय यो य वित यो य वाह अपन-आप हमार दय म उठन लगता ह | 17) जब तक मनय िचनताओ स उि न रहता ह इ छा एव वासना का भत उस बठन नही दता तब तक बि का चमतकार कट नही होता | जजीर स जकड़ी हई बि िहलडल नही सकती | िचनताए इ छाए और वासनाए शात होन स ःवतऽ वायमडल का अिवभारव होता ह | उसम बि को िवकिसत होन का अवकाश िमलता ह | पचभौितक बनधन कट जात ह और श आतमा अपन पणर काश म चमकन लगता ह | 18) ओ सज़ा क भय स भयभीत होन वाल अपराधी नयायधीश जब तरी सज़ा का हकम िलखन क िलय कलम लकर ततपर हो उस समय यिद एक पल भर भी त परमाननद म डब जाय तो नयायधीश अपना िनणरय भल िबना नही रह सकता | िफ़र उसकी कलम स वही िलखा जायगा जो परमातमा क साथ तरी नतन िःथित क अनकल होगा | 19) पिवऽता और स चाई िव ास और भलाई स भरा हआ मनय उननित का झ डा हाथ म लकर जब आग बढ़ता ह तब िकसकी मजाल िक बीच म खड़ा रह यिद आपक िदल म पिवऽता स चाई और िव ास ह तो आपकी ि लोह क पद को भी चीर सकगी | आपक िवचार की ठोकर स पहाड़-क-पहाड़ भी चकनाचर हो सक ग | ओ जगत क बादशाह आग स हट जाओ | यह िदल का बादशाह पधार रहा ह | 20) यिद आप ससार क लोभन एव धमिकय स न िहल तो ससार को अवय िहला दग | इसम जो सनदह करता ह वह मदमित ह मखर ह |

21) वदानत का यह िस ात ह िक हम ब नही ह बि क िनतय म ह | इतना ही नही lsquoब हrsquo यह सोचना भी अिन कारी ह म ह | य ही आपन सोचा िक lsquoम ब हhellip

दबरल हhellip असहाय हhelliprsquo तय ही अपना दभार य शर हआ समझो | आपन अपन पर म एक जजीर और बाध दी | अतः सदा म होन का िवचार करो और मि का अनभव करो | 22) राःत चलत जब िकसी िति त यि को दखो चाह वह इ लड़ का सवारधीश हो चाह अमिरका का lsquoिसड़टrsquo हो रस का सवसवार हो चाह चीन का lsquoिड़कटटरrsquo हो- तब अपन मन म िकसी कार की ईयार या भय क िवचार मत आन दो | उनकी शाही नज़र को अपनी ही नज़र समझकर मज़ा लटो िक lsquoम ही वह ह |rsquo जब आप ऐसा अनभव करन की च ा करग तब आपका अनभव ही िस कर दगा िक सब एक ही ह | 23) यिद हमारा मन ईयार- ष स रिहत िब कल श हो तो जगत की कोई वःत हम नकसान नही पहचा सकती | आनद और शाित स भरपर ऐस महातमाओ क पास बोध की मितर जसा मनय भी पानी क समान तरल हो जाता ह | ऐस महातमाओ को दख कर जगल क िसह और भड़ भी मिव ल हो जात ह | साप-िब छ भी अपना द ःवभाव भल जात ह | 24) अिव ास और धोख स भरा ससार वाःतव म सदाचारी और सतयिन साधक का कछ िबगाड़ नही सकता | 25) lsquoस पणर िव मरा शरीर हrsquo ऐसा जो कह सकता ह वही आवागमन क चककर स म ह | वह

तो अननत ह | िफ़र कहा स आयगा और कहा जायगा सारा ा ड़ उसी म ह | 26) िकसी भी सग को मन म लाकर हषर-शोक क वशीभत नही होना | lsquoम अजर हhellip अमर हhellip मरा जनम नहीhellip मरी मतय नहीhellip म िनिलर आतमा हhelliprsquo यह भाव ढ़ता स दय म धारण करक जीवन जीयो | इसी भाव का िनरनतर सवन करो | इसीम सदा त लीन रहो | 27) बा सदभ क बार म सोचकर अपनी मानिसक शाित को भग कभी न होन दो | 28) जब इिनिया िवषय की ओर जान क िलय जबरदःती करन लग तब उनह लाल आख

िदखाकर चप कर दो | जो आतमानद क आःवादन की इ छा स आतमिचतन म लगा रह वही स चा धीर ह |

29) िकसी भी चीज़ को ई र स अिधक म यवान मत समझो | 30) यिद हम दहािभमान को तयागकर सा ात ई र को अपन शरीर म कायर करन द तो भगवान

ब या जीसस बाईःट हो जाना इतना सरल ह िजतना िनधरन पाल (Poor Paul) होना | 31) मन को वश करन का उपाय मन को अपना नौकर समझकर ःवय को उसका भ मानो | हम अपन नौकर मन की उप ा करग तो कछ ही िदन म वह हमार वश म हो जायगा | मन क

चचल भाव को ना दखकर अपन शानत ःवरप की ओर धयान दग तो कछ ही िदन म मन न

होन लगगा | इस कार साधक अपन आनदःवरप म म न हो सकता ह | 32) समम ससार क ततव ान िव ान गिणत का य और कला आपकी आतमा म स िनकलत ह

और िनकलत रहग | 33) ओ खदा को खोजनवाल तमन अपनी खोजबीन म खदा को ल कर िदया ह | य रपी तरग म अनत सामथयररपी समि को छपा िदया ह | 34) परमातमा की शािनत को भग करन का सामथयर भला िकसम ह यिद आप सचमच

परमातम-शािनत म िःथत हो जाओ तो समम ससार उलटा होकर टग जाय िफ़र भी आपकी शािनत

भग नही हो सकती | 35) महातमा वही ह जो िच को ड़ावाड़ोल करनवाल सग आय िफ़र भी िच को वश म रख बोध

और शोक को िव न होन द | 36) वित यिद आतमःवरप म लीन होती ह तो उस सतसग ःवाधयाय या अनय िकसी भी काम क िलय बाहर नही लाना चिहय | 37) स ढ़ अचल सक प शि क आग मसीबत इस कार भागती ह जस आधी-तफ़ान स बादल

िबखर जात ह | 38) सषि (गहरी नीद) आपको बलात अनभव कराती ह िक जामत का जगत चाह िकतना ही यारा और सदर लगता हो पर उस भल िबना शािनत नही िमलती | सषि म बलात िवःमरण हो उसकी सतयता भल जाय तो छः घट िनिा की शािनत िमल | जामत म उसकी सतयता का अभाव

लगन लग तो परम शािनत को ा ा परष बन जाय | िनिा रोज़ाना सीख दती ह िक यह ठोस

जगत जो आपक िच को िमत कर रहा ह वह समय की धारा म सरकता जा रहा ह | घबराओ

नही िचिनतत मत हो तम बात म िच को िमत मत करो | सब कछ ःव न म सरकता जा रहा ह | जगत की सतयता क म को भगा दो | ओ शि मान आतमा अपन अतरतम को िनहार ॐ का गजन कर दबरल िवचार एव िचताओ को कचल ड़ाल दबरल एव त छ िवचार तथा जगत को सतय मानन क कारण तन बहत-बहत

सहन िकया ह | अब उसका अत कर द | 39) ान क किठनमागर पर चलत व आपक सामन जब भारी क एव दख आय तब आप उस

सख समझो कय िक इस मागर म क एव दख ही िनतयानद ा करन म िनिम बनत ह | अतः उन क दख और आघात स िकसी भी कार साहसहीन मत बनो िनराश मत बनो | सदव आग

बढ़त रहो | जब तक अपन सतयःवरप को यथाथर रप स न जान लो तब तक रको नही | 40) ःवपनावःथा म आप शर को दखत ह और ड़रत ह िक वह आपको खा जायगा | परत आप

िजसको दखत ह वह शर नही आप ःवय ह | शर आपकी क पना क अितिर और कछ नही | इस

कार जामतावःथा म भी आपका घोर-स-घोर शऽ भी ःवय आप ही ह दसरा कोई नही | थकतव

अलगाव क िवचार को अपन दय स दर हटा दो | आपस िभनन कोई िमऽ या शऽ होना कवल

ःव न-म ह | 41) अशभ का िवरोध मत करो | सदा शात रहो | जो कछ सामन आय उसका ःवागत करो चाह

आपकी इ छा की धारा स िवपरीत भी हो | तब आप दखग िक तय बराई भलाई म बदल

जायगी | 42) रािऽ म िनिाधीन होन स पहल िबःतर पर सीध सखपवरक बठ जाओ | आख बद करो | नाक

स ास लकर फ़फ़ड़ को भरपर भर दो | िफ़र उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo का लबा उ चारण करो | िफ़र स

गहरा ःवास लकर lsquoॐhelliprsquo का लबा उ चारण करो | इस कार दस िमनट तक करो | कछ ही िदन

क िनयिमत योग क बाद इसक चमतकार का अनभव होगा | रािऽ की नीद साधना म पिरणत हो जायगी | िदल-िदमाग म शाित एव आनद की वषार होगी | आपकी लौिकक िनिा योगिनिा म बदल

जयगी | 43) हट जाओ ओ सक प और इ छाओ हट जाओ तम ससार की णभगर शसा एव धन-

स पि क साथ स बध रखती हो | शरीर चाह कसी भी दशा म रह उसक साथ मरा कोई सरोकार नही | सब शरीर मर ही ह | 44) िकसी भी तरह समय िबतान क िलय मज़दर की भाित काम मत करो | आनद क िलय

उपयोगी कसरत समझकर सख बीड़ा या मनोरजक खल समझकर एक कलीन राजकमार की भाित काम करो | दब हए कचल हए िदल स कभी कोई काम हाथ म मत लो | 45) समम ससार को जो अपना शरीर समझत ह तयक यि को जो अपना आतमःवरप

समझत ह ऐस ानी िकसस असनन ह ग उनक िलय िव प कहा रहा 46) ससार की तमाम वःतऐ सखद ह या भयानक वाःतव म तो त हारी फ़लता और आनद क

िलय ही कित न बनाई ह | उनस ड़रन स कया लाभ त हारी नादानी ही त ह चककर म ड़ालती ह

| अनयथा त ह नीचा िदखान वाला कोई नही | पकका िन य रखो िक यह जगत त हार िकसी शऽ न नही बनाया | त हार ही आतमदव का यह सब िवलास ह | 47) महातमा व ह िजनकी िवशाल सहानभित एव िजनका मातवत दय सब पािपय को दीन-

दिखय को म स अपनी गोद म ःथान दता ह | 48) यह िनयम ह िक भयभीत ाणी ही दसर को भयभीत करता ह | भयरिहत हए िबना अिभननता आ नही सकती अिभननता क िबना वासनाओ का अत स भव नही ह और िनवारसिनकता क िबना िनवरता समता मिदता आिद िद य गण कट नही होत | जो बल दसर

की दबरलता को दर ना कर सक वह वाःतव म बल नही | 49) धयान म बठन स पहल अपना समम मानिसक िचतन तथा बाहर की तमाम स पि ई र क

या सदगर क चरण म अपरण करक शात हो जाओ | इसस आपको कोई हािन नही होगी | ई र आपकी स पि दह ाण और मन की र ा करग | ई र अपरण बि स कभी हािन नही होती |

इतना ही नही दह ाण म नवजीवन का िसचन होता ह | इसस आप शाित व आनद का ोत

बनकर जीवन को साथरक कर सक ग | आपकी और पर िव की वाःतिवक उननित होगी | 50) कित सननिच एव उ ोगी कायरकतार को हर कार स सहायता करती ह | 51) सननमख रहना यह मोितय का खज़ाना दन स भी उ म ह | 52) चाह करोड़ सयर का लय हो जाय चाह अस य चनिमा िपघलकर न हो जाय परत ानी महापरष अटल एव अचल रहत ह | 53) भौितक पदाथ को सतय समझना उनम आसि रखना दख-ददर व िचताओ को आमऽण

दन क समान ह | अतः बा नाम-रप पर अपनी शि व समय को न करना यह बड़ी गलती ह |

54) जब आपन यि तव िवषयक िवचार का सवरथा तयाग कर िदया जाता ह तब उसक समान

अनय कोई सख नही उसक समान ौ अनय कोई अवःथा नही | 55) जो लोग आपको सबस अिधक हािन पहचान का यास करत ह उन पर कपापणर होकर ममय िचतन कर | व आपक ही आतमःवरप ह | 56) ससार म कवल एक ही रोग ह | सतय जगिनमथया - इस वदाितक िनयम का भग ही सवर यािधय का मल ह | वह कभी एक दख का रप लता ह तो कभी दसर दख का | इन सवर यािधय

की एक ही दवा ह अपन वाःतिवक ःवरप तव म जाग जाना | 57) ब धयानःथ बठ थ | पहाड़ पर स एक िशलाखड़ लढ़कता हआ आ रहा था | ब पर िगर इसस पहल ही वह एक दसर िशलाखड़ क साथ टकराया | भयकर आवाज़ क साथ उसक दो भाग

हो गय | उसन अपना मागर बदल िलया | धयानःथ ब की दोन तरफ़ स दोन भाग गज़र गय |

ब बच गय | कवल एक छोटा सा ककड़ उनक पर म लगा | पर स थोड़ा खन बहा | ब ःवःथता स उठ खड़ हए और िशय स कहा ldquoभी ओ स यक समािध का यह वलत माण ह | म यिद धयान-समािध म ना होता तो िशलाखड़ न मझ कचल िदया होता | लिकन ऐसा ना होकर उसक दो भाग हो गय | उसम स िसफ़र एक छोटा-सा ककड़ ऊछलकर मर पर म लगा | यह जो छोटा-सा ज़ म हआ ह वह धयान की पणरता म रही हई कछ नयनता का पिरणाम ह | यिद धयान पणर होता तो इतना भी ना लगता |rdquo 58) कहा ह वह तलवार जो मझ मार सक कहा ह वह श जो मझ घायल कर सक कहा ह वह

िवपि जो मरी सननता को िबगाड़ सक कहा ह वह दख जो मर सख म िव न ड़ाल सक मर सब भय भाग गय | सब सशय कट गय | मरा िवजय-ाि का िदन आ पहचा ह | कोई ससािरक

तरग मर िनछल िच को आदोिलत नही कर सकती | इन तरग स मझ ना कोई लाभ ह ना हािन

ह | मझ शऽ स ष नही िमऽ स राग नही | मझ मौत का भय नही नाश का ड़र नही जीन की वासना नही सख की इ छा नही और दख स ष नही कय िक यह सब मन म रहता ह और मन

िमथया क पना ह | 59) स पणर ःवाःथय की अजीब यि रोज सबह तलसी क पाच प चबाकर एक लास बासी पानी पी लो | िफ़र जरा घम लो दौड़ लो या कमर म ही पज क बल थोड़ा कद लो | नहा-धोकर ःवःथ शानत होकर एकात म बठ जाओ | दस बारह गहर-गहर ास लो | आग-पीछ क कतर य

स िनि त हो जाओ | आरो यता आनद सख शािनत दान करनवाली िवचारधारा को िच म बहन दो | िबमारी क िवचार को हटाकर इस कार की भावना पर मन को ढ़ता स एकाम करो िक

मर अदर आरो यता व आनद का अनत ोत वािहत हो रहा हhellip मर अतराल म िद यामत का महासागर लहरा रहा ह | म अनभव कर रहा ह िक समम सख आरो यता शि मर भीतर ह | मर मन म अननत शि और सामथयर ह | म ःवःथ ह | पणर सनन ह | मर अदर-बाहर सवरऽ

परमातमा का काश फ़ला हआ ह | म िव प रिहत ह | सब नद स म ह | ःवग य सख मर अदर ह | मरा दय परमातमा का ग दश ह | िफ़र रोग-शोक वहा कस रह सकत ह म दवी ओज क मड़ल म िव हो चका ह | वह मर ःवाःथय का दश ह | म तज का पज ह | आरो यता का अवतार ह | याद रखो आपक अतःकरण म ःवाःथय सख आनद और शािनत ई रीय वरदान क रप म िव मान ह | अपन अतःकरण की आवाज़ सनकर िनशक जीवन यतीत करो | मन म स कि पत

रोग क िवचार को िनकाल दो | तयक िवचार भाव श द और कायर को ई रीय शि स पिरपणर रखो | ॐकार का सतत गजन करो | सबह-शाम उपरो िवचार का िचतन-मनन करन स िवशष लाभ होगा | ॐ आनदhellip ॐ शाितhellip

पणर ःवःथhellip पणर सननhellip 60) भय कवल अ ान की छाया ह दोष की काया ह मनय को धमरमागर स िगरान वाली आसरी माया ह | 61) याद रखो चाह समम ससार क तमाम पऽकार िननदक एकिऽत होकर आपक िवरध

आलोचन कर िफ़र भी आपका कछ िबगाड़ नही सकत | ह अमर आतमा ःवःथ रहो | 62) लोग ायः िजनस घणा करत ह ऐस िनधरन रोगी इतयािद को सा ात ई र समझकर उनकी सवा करना यह अननय भि एव आतम ान का वाःतिवक ःवरप ह | 63) रोज ातः काल उठत ही ॐकार का गान करो | ऐसी भावना स िच को सराबोर कर दो िक

lsquoम शरीर नही ह | सब ाणी कीट पतग गनधवर म मरा ही आतमा िवलास कर रहा ह | अर उनक

रप म म ही िवलास कर रहा ह | rsquo भया हर रोज ऐसा अ यास करन स यह िस ात दय म िःथर हो जायगा | 64) मी आग-पीछ का िचनतन नही करता | वह न तो िकसी आशका स भयभीत होता ह और न

व रमान पिरिःथित म माःपद म ीित क िसवाय अनय कही आराम पाता ह |

65) जस बालक ितिब ब क आौयभत दपरण की ओर धयान न दकर ितिब ब क साथ खलता ह जस पामर लोग यह समम ःथल पच क आौयभत आकाश की ओर धयान न दकर कवल

ःथल पच की ओर धयान दत ह वस ही नाम-रप क भ ःथल ि क लोग अपन दभार य क

कारण समम ससार क आौय सि चदाननद परमातमा का धयान न करक ससार क पीछ पागल

होकर भटकत रहत ह | 66) इस स पणर जगत को पानी क बलबल की तरह णभगर जानकर तम आतमा म िःथर हो जाओ | तम अ त ि वाल को शोक और मोह कस 67) एक आदमी आपको दजरन कहकर पिरि छनन करता ह तो दसरा आपको स जन कहकर भी पिरि छनन ही करता ह | कोई आपकी ःतित करक फला दता ह तो कोई िननदा करक िसकड़ा दता ह | य दोन आपको पिरि छनन बनात ह | भा यवान तो वह परष ह जो तमाम बनधन क िवर

खड़ा होकर अपन दवतव की अपन ई रतव की घोषणा करता ह अपन आतमःवरप का अनभव

करता ह | जो परष ई र क साथ अपनी अभदता पहचान सकता ह और अपन इदरिगदर क लोग क

सम समम ससार क सम िनडर होकर ई रतव का िनरपण कर सकता ह उस परष को ई र मानन क िलय सारा ससार बाधय हो जाता ह | परी सि उस अवय परमातमा मानती ह | 68) यह ःथल भौितक पदाथर इिनिय की ाित क िसवाय और कछ नही ह | जो नाम व रप पर भरोसा रखता ह उस सफलता नही िमलती | सआम िस ात अथारत सतय आतम-ततव पर िनभरर रहना ही सफलता की कजी ह | उस महण करो उसका मनन करो और यवहार करो | िफर नाम-

रप आपको खोजत िफरग | 69) सख का रहःय यह ह आप य - य पदाथ को खोजत-िफरत हो तय -तय उनको खोत

जात हो | आप िजतन कामना स पर होत हो उतन आवयकताओ स भी पर हो जात हो और पदाथर भी आपका पीछा करत हए आत ह | 70) आननद स ही सबकी उतपि आननद म ही सबकी िःथित एव आननद म ही सबकी लीनता दखन स आननद की पणरता का अनभव होता ह | 71) हम बोलना चहत ह तभी श दो चारण होता ह बोलना न चाह तो नही होता | हम दखना चाह तभी बाहर का य िदखता ह नऽ बद कर ल तो नही िदखता | हम जानना चाह तभी पदाथर का ान होता ह जानना नही चाह तो ान नही होता | अतः जो कोई पदाथर दखन सनन या जानन म

आता ह उसको बािधत करक बािधत करनवाली ानरपी बि की वि को भी बािधत कर दो | उसक बाद जो शष रह वह ाता ह | ाततव धमररिहत श ःवरप ाता ही िनतय सि चदाननद

ह | िनरतर ऐसा िववक करत हए ान व यरिहत कवल िचनमय िनतय िव ानाननदघनरप

म िःथर रहो | 72) यिद आप सवागपणर जीवन का आननद लना चाहत हो तो कल की िचनता छोड़ो | अपन चार

ओर जीवन क बीज बोओ | भिवय म सनहर ःवपन साकार होत दखन की आदत बनाओ | सदा क

िलय मन म यह बात पककी बठा दो िक आपका आनवाला कल अतयनत काशमय आननदमय

एव मधर होगा | कल आप अपन को आज स भी अिधक भा यवान पायग | आपका मन

सजरनातमक शि स भर जायगा | जीवन ऐ यरपणर हो जायगा | आपम इतनी शि ह िक िव न

आपस भयभीत होकर भाग खड़ ह ग | ऐसी िवचारधारा स िनि त रप स क याण होगा | आपक

सशय िमट जायग | 73) ओ मानव त ही अपनी चतना स सब वःतओ को आकषरक बना दता ह | अपनी यार भरी ि उन पर डालता ह तब तरी ही चमक उन पर चढ़ जाती ह औरhellipिफर त ही उनक यार म फ़स जाता ह | 74) मन िविचऽ एव अटपट माग ारा ऐस ततव की खोज की जो मझ परमातमा तक पहचा सक | लिकन म िजस-िजस नय मागर पर चला उन सब माग स पता चला िक म परमातमा स दर चला गया | िफर मन बि म ा एव िव ा स परमातमा की खोज की िफर भी परमातमा स अलग रहा | मनथालय एव िव ालय न मर िवचार म उ टी गड़बड़ कर दी | म थककर बठ गया | िनःत ध हो गया | सयोगवश अपन भीतर ही झाका धयान िकया तो उस अनत रि स मझ सवरःव िमला िजसकी खोज म बाहर कर रहा था | मरा आतमःवरप सवरऽ या हो रहा ह | 75) जस सामानय मनय को पतथर गाय भस ःवाभािवक रीित स ि गोचर होत ह वस ही ानी को िनजाननद का ःवाभािवक अनभव होता ह | 76) वदानत का यह अनभव ह िक नीच नराधम िपशाच शऽ कोई ह ही नही | पिवऽ ःवरप ही सवर रप म हर समय शोभायमान ह | अपन-आपका कोई अिन नही करता |

मर िसवा और कछ ह ही नही तो मरा अिन करन वाला कौन ह मझ अपन-आपस भय कसा 77) यह चराचर सि रपी त तब तक भासता ह जब तक उस दखनवाला मन बठा ह |

मन शात होत ही त की गध तक नही रहती |

78) िजस कार एक धाग म उ म मधयम और किन फल िपरोय हए ह उसी कार मर आतमःवरप म उ म मधयम और किन शरीर िपरोय हए ह | जस फल की गणव ा का भाव धाग पर नही पड़ता वस ही शरीर की गणव ा का भाव मरी सवर यापकता नही पड़ता | जस सब फल क िवनाश स धाग को कोई हािन नही वस शरीर क िवनाश स मझ सवरगत आतमा को कोई हािन नही होती | 79) म िनमरल िन ल अननत श अजर अमर ह | म असतयःवरप दह नही | िस परष इसीको lsquo ानrsquo कहत ह | 80) म भी नही और मझस अलग अनय भी कछ नही | सा ात आननद स पिरपणर कवल िनरनतर और सवरऽ एक ही ह | उ ग छोड़कर कवल यही उपासना सतत करत रहो | 81) जब आप जान लग िक दसर का िहत अपना ही िहत करन क बराबर ह और दसर का अिहत करना अपना ही अिहत करन क बराबर ह तब आपको धमर क ःवरप का सा तकार हो जायगा | 82) आप आतम-ित ा दलबनदी और ईयार को सदा क िलए छोड़ दो | पथवी माता की तरह सहनशील हो जाओ | ससार आपक कदम म नयोछावर होन का इतज़ार कर रहा ह | 83) म िनगरण िनिबय िनतय म और अ यत ह | म असतयःवरप दह नही ह | िस परष इसीको lsquo ानrsquo कहत ह | 84) जो दसर का सहारा खोजता ह वह सतयःवरप ई र की सवा नही कर सकता | 85) सतयःवरप महापरष का म सख-दःख म समान रहता ह सब अवःथाओ म हमार अनकल रहता ह | दय का एकमाऽ िवौामःथल वह म ह | व ावःथा उस आतमरस को सखा नही सकती | समय बदल जान स वह बदलता नही | कोई िवरला भा यवान ही ऐस िद य म का भाजन बन सकता ह | 86) शोक और मोह का कारण ह ािणय म िविभनन भाव का अधयारोप करना | मनय जब एक को सख दनवाला यारा स द समझता ह और दसर को दःख दनवाला शऽ समझकर उसस ष करता ह तब उसक दय म शोक और मोह का उदय होना अिनवायर

ह | वह जब सवर ािणय म एक अख ड स ा का अनभव करन लगगा ािणमाऽ को भ का पऽ समझकर उस आतमभाव स यार करगा तब उस साधक क दय म शोक और मोह का नामोिनशान नही रह जायगा | वह सदा सनन रहगा | ससार म उसक िलय न ही कोई शऽ रहगा और न ही कोई िमऽ | उसको कोई कलश नही पहचायगा | उसक सामन िवषधर नाग भी अपना ःवभाव भल जायगा | 87) िजसको अपन ाण की परवाह नही मतय का नाम सनकर िवचिलत न होकर उसका ःवागत करन क िलए जो सदा ततपर ह उसक िलए ससार म कोई कायर असाधय नही | उस िकसी बा श की जररत नही साहस ही उसका श ह | उस श स वह अनयाय का प लनवाल को परािजत कर दता ह िफर भी उनक िलए बर िवचार का सवन नही करता | 88) िचनता ही आननद व उ लास का िवधवस करनवाली रा सी ह | 89) कभी-कभी मधयरािऽ को जाग जाओ | उस समय इिनिया अपन िवषय क ित चचल नही रहती | बिहमरख ःफरण की गित मनद होती ह | इस अवःथा का लाभ लकर इिनियातीत अपन िचदाकाश ःवरप का अनभव करो | जगत शरीर व इिनिय क अभाव म भी अपन अख ड अिःततव को जानो | 90) य म ीित नही रहना ही असली वरा य ह | 91) रोग हम दबाना चाहता ह | उसस हमार िवचार भी मनद हो जात ह | अतः रोग की िनवित करनी चिहए | लिकन जो िवचारवान परष ह वह कवल रोगिनवित क पीछ ही नही लग जाता | वह तो यह िनगरानी रखता ह िक भयकर दःख क समय भी अपना िवचार छट तो नही गया ऐसा परष lsquoहाय-हायrsquo करक ाण नही तयागता कय िक वह जानता ह िक रोग उसका दास ह | रोग कसा भी भय िदखाय लिकन िवचारवान परष इसस भािवत नही होता | 92) िजस साधक क पास धारणा की ढ़ता एव उ य की पिवऽता य दो गण ह ग वह अवय िवजता होगा | इन दो शा स ससि जत साधक समःत िव न-बाधाओ का सामना करक आिखर म िवजयपताका फहरायगा | 93) जब तक हमार मन म इस बात का पकका िन य नही होगा िक सि शभ ह तब तक मन एकाम नही होगा | जब तक हम समझत रहग िक सि िबगड़ी हई ह तब तक

मन सशक ि स चार ओर दौड़ता रहगा | सवरऽ मगलमय ि रखन स मन अपन-आप शात होन लगगा | 94) आसन िःथर करन क िलए सक प कर िक जस पथवी को धारण करत हए भी शषजी िब कल अचल रहत ह वस म भी अचल रहगा | म शरीर और ाण का ा ह | 95) lsquoससार िमथया हrsquo - यह मद ानी की धारणा ह | lsquoससार ःव नवत हrsquo - यह मधयम ानी की धारणा ह | lsquoससार का अतयनत अभाव ह ससार की उतपि कभी हई ही नहीrsquo -

यह उ म ानी की धारणा ह | 96) आप यिद भि मागर म ह तो सारी सि भगवान की ह इसिलए िकसीकी भी िननदा करना ठ क नही | आप यिद ानमागर म ह तो यह सि अपना ही ःवरप ह | आप अपनी ही िननदा कस कर सकत ह इस कार द नो माग म परिननदा का अवकाश ही नही ह | 97) य म ा का भान एव ा म य का भान हो रहा ह | इस गड़बड़ का नाम ही अिववक या अ ान ह | ा को ा तथा य को य समझना ही िववक या ान ह | 98) आसन व ाण िःथर होन स शरीर म िव त पदा होती ह | शरीर क ारा जब भी िबया की जाती ह तब वह िव त बाहर िनकल जाती ह | इस िव त को शरीर म रोक लन स शरीर िनरोगी बन जाता ह | 99) ःव न की सि अ पकालीन और िविचऽ होती ह | मनय जब जागता ह तब जानता ह िक म पलग पर सोया ह | मझ ःव न आया | ःव न म पदाथर दश काल िबया इतयािद परी सि का सजरन हआ | लिकन मर िसवाय और कछ भी न था | ःव न की सि झठ थी | इसी कार ततव ानी परष अ ानरपी िनिा स ानरपी जामत अवःथा को ा हए ह | व कहत ह िक एक क िसवा अनय कछ ह ही नही | जस ःव न स जागन क बाद हम ःव न की सि िमथया लगती ह वस ही ानवान को यह जगत िमथया लगता ह | 100) शारीिरक क पड़ तब ऐसी भावना हो जाय िक lsquoयह क मर यार भ की ओर स हhelliprsquo तो वह क तप का फल दता ह | 101) चलत-चलत पर म छाल पड़ गय ह भख याकल कर रही हो बि िवचार

करन म िशिथल हो गई हो िकसी पड़ क नीच पड़ ह जीवन अस भव हो रहा हो मतय का आगमन हो रहा हो तब भी अनदर स वही िनभरय धविन उठ lsquoसोऽहमhellipसोऽहमhellipमझ भय नहीhellipमरी मतय नहीhellipमझ भख नहीhellip यास नहीhellip कित की कोई भी यथा मझ न नही कर सकतीhellipम वही हhellipवही हhelliprsquo 102) िजनक आग िय-अिय अनकल-ितकल सख-दःख और भत-भिवय एक समान ह ऐस ानी आतमव ा महापरष ही स च धनवान ह | 103) दःख म दःखी और सख म सखी होन वाल लोह जस होत ह | दःख म सखी रहन वाल सोन जस होत ह | सख-दःख म समान रहन वाल र जस होत ह परनत जो सख-दःख की भावना स पर रहत ह व ही स च साट ह | 104) ःव न स जाग कर जस ःव न को भल जात ह वस जामत स जागकर थोड़ी दर क

िलए जामत को भल जाओ | रोज ातः काल म पनिह िमनट इस कार ससार को भल जान की आदत डालन स आतमा का अनसधान हो सकगा | इस योग स सहजावःथा ा होगी | 105) तयाग और म स यथाथर ान होता ह | दःखी ाणी म तयाग व म िवचार स आत ह

| सखी ाणी म तयाग व म सवा स आत ह कय िक जो ःवय दःखी ह वह सवा नही कर सकता पर िवचार कर सकता ह | जो सखी ह वह सख म आस होन क कारण उसम िवचार का उदय नही हो सकता लिकन वह सवा कर सकता ह | 106) लोग की पजा व णाम स जसी सननता होती ह वसी ही सननता जब मार पड़

तब भी होती हो तो ही मन य िभ ानन महण करन का स चा अिधकारी माना जाता ह | 107) हरक साधक को िब कल नय अनभव की िदशा म आग बढ़ना ह | इसक िलय

ानी महातमा की अतयनत आवयकता होती ह | िजसको स ची िज ासा हो उस ऐस

महातमा िमल ही जात ह | ढ़ िज ासा स िशय को गर क पास जान की इ छा होती ह | यो य

िज ास को समथर गर ःवय दशरन दत ह | 108) बीत हए समय को याद न करना भिवय की िचनता न करना और व रमान म ा

सख-दःखािद म सम रहना य जीवनम परष क ल ण ह | 109) जब बि एव दय एक हो जात ह तब सारा जीवन साधना बन जाता ह |

110) बि मान परष ससार की िचनता नही करत लिकन अपनी मि क बार म सोचत ह |

मि का िवचार ही तयागी दानी सवापरायण बनाता ह | मो की इ छा स सब सदगण आ जात ह

| ससार की इ छा स सब दगरण आ जात ह | 111) पिरिःथित िजतनी किठन होती ह वातावरण िजतना पीड़ाकारक होता ह उसस

गजरन वाला उतना ही बलवान बन जाता ह | अतः बा क और िचनताओ का ःवागत करो | ऐसी पिरिःथित म भी वदानत को आचरण म लाओ | जब आप वदानती जीवन यतीत करग तब दखग

िक समःत वातावरण और पिरिःथितया आपक वश म हो रही ह आपक िलय उपयोगी िस हो रही ह | 112) हरक पदाथर पर स अपन मोह को हटा लो और एक सतय पर एक तथय पर अपन

ई र पर समम धयान को किनित करो | तरनत आपको आतम-सा ातकार होगा | 113) जस बड़ होत-होत बचपन क खलकद छोड़ दत हो वस ही ससार क खलकद छोड़कर आतमाननद का उपभोग करना चािहय | जस अनन व जल का सवन करत हो वस ही आतम-

िचनतन का िनरनतर सवन करना चािहय | भोजन ठ क स होता ह तो ति की डकार आती ह वस

ही यथाथर आतमिचनतन होत ही आतमानभव की डकार आयगी आतमाननद म मःत ह ग |

आतम ान क िसवा शाित का कोई उपाय नही | 114) आतम ानी क हकम स सयर काशता ह | उनक िलय इनि पानी बरसाता ह | उनही क

िलय पवन दत बनकर गमनागमन करता ह | उनही क आग समि रत म अपना िसर रगड़ता ह | 115) यिद आप अपन आतमःवरप को परमातमा समझो और अनभव करो तो आपक सब

िवचार व मनोरथ सफल ह ग उसी ण पणर ह ग | 116) राजा-महाराजा दवी-दवता वद-पराण आिद जो कछ ह व आतमदश क सक पमाऽ

ह | 117) जो लोग ितकलता को अपनात ह ई र उनक स मख रहत ह | ई र िजनह अपन

स दर रखना चाहत ह उनह अनकल पिरिःथितया दत ह | िजसको सब वःतए अनकल एव पिवऽ

सब घटनाए लाभकारी सब िदन शभ सब मनय दवता क रप म िदखत ह वही परष ततवदश ह | 118) समता क िवचार स िच ज दी वश म होता ह हठ स नही |

119) ऐस लोग स स बनध रखो िक िजसस आपकी सहनशि बढ़ समझ की शि बढ़

जीवन म आन वाल सख-दःख की तरग का आपक भीतर शमन करन की ताकत आय समता बढ़

जीवन तजःवी बन | 120) लोग बोलत ह िक धयान व आतमिचनतन क िलए हम फरसत नही िमलती | लिकन

भल मनय जब नीद आती ह तब सब महतवपणर काम भी छोड़कर सो जाना पड़ता ह िक नही

जस नीद को महतव दत हो वस ही चौबीस घनट म स कछ समय धयान व आतमिचनतन म भी िबताओ | तभी जीवन साथरक होगा | अनयथा कछ भी हाथ नही लगगा | 121) भल जाओ िक तम मनय हो अमक जाित हो अमक उ हो अमक िड़मीवाल हो अमक धनधवाल हो | तम िनगरण िनराकार सा ीरप हो ऐसा ढ़ िन य करो | इसीम तमाम

कार की साधनाए िबयाए योगािद समािव हो जात ह | आप सवर यापक अख ड चतनय हो | सार ान का यह मल ह | 122) दोष तभी िदखता जब हमार लोचन म क अभावरप पीिलया रोग स मःत होत ह | 123) साधक यिद अ यास क मागर पर उसी कार आग बढ़ता जाय िजस कार ार भ

म इस मागर पर चलन क िलए उतसाहपवरक कदम रखा था तो आयरपी सयर अःत होन स पहल

जीवनरपी िदन रहत ही अवय सोऽहम िसि क ःथान तक पहच जाय | 124) लोग ज दी स उननित कय नही करत कय िक बाहर क अिभाय एव िवचारधाराओ का बहत बड़ा बोझ िहमालय की तरह उनकी पीठ पर लदा हआ ह | 125) अपन ित होन वाल अनयाय को सहन करत हए अनयायकतार को यिद मा कर िदया जाय तो ष म म पिरणत हो जाता ह | 126) साधना की शरआत ौ ा स होती ह लिकन समाि ान स होनी चािहय | ान मान

ःवयसिहत सवर ःवरप ह ऐसा अपरो अनभव | 127) अपन शरीर क रोम-रोम म स ॐ का उ चारण करो | पहल धीम ःवर म ार भ

करो | शर म धविन गल स िनकलगी िफर छाती स िफर नािभ स और अनत म रीढ़ की ह डी क

आिखरी छोर स िनकलगी | तब िव त क धकक स सष ना नाड़ी तरनत खलगी | सब कीटाणसिहत

तमाम रोग भाग खड़ ह ग | िनभरयता िह मत और आननद का फ वारा छटगा | हर रोज ातःकाल

म ःनानािद करक सय दय क समय िकसी एक िनयत ःथान म आसन पर पवारिभमख बठकर

कम-स-कम आधा घनटा करक तो दखो | 128) आप जगत क भ बनो अनयथा जगत आप पर भतव जमा लगा | ान क

मतािबक जीवन बनाओ अनयथा जीवन क मतािबक ान हो जायगा | िफर यग की याऽा स भी दःख का अनत नही आयगा | 129) वाःतिवक िश ण का ारभ तो तभी होता ह जब मनय सब कार की सहायताओ स िवमख होकर अपन भीतर क अननत ॐोत की तरफ अमसर होता ह | 130) य पच की िनवित क िलए अनतःकरण को आननद म सरोबार रखन क िलए

कोई भी कायर करत समय िवचार करो म कौन ह और कायर कौन कर रहा ह भीतर स जवाब

िमलगा मन और शरीर कायर करत ह | म सा ीःवरप ह | ऐसा करन स कतारपन का अह

िपघलगा सख-दःख क आघात मनद ह ग | 131) राग- ष की िनवित का कया उपाय ह उपाय यही ह िक सार जगत-पच को मनोरा य समझो | िननदा-ःतित स राग- ष स पच म सतयता ढ़ होती ह | 132) जब कोई खनी हाथ आपकी गरदन पकड़ ल कोई श धारी आपको कतल करन क

िलए ततपर हो जाय तब यिद आप उसक िलए सननता स तयार रह दय म िकसी कार का भय

या िवषाद उतपनन न हो तो समझना िक आपन राग- ष पर िवजय ा कर िलया ह | जब आपकी ि पड़त ही िसहािद िहसक जीव की िहसावित गायब हो जाय तब समझना िक अब राग- ष का अभाव हआ ह | 133) आतमा क िसवाय अनय कछ भी नही ह - ऐसी समझ रखना ही आतमिन ा ह | 134) आप ःव न ा ह और यह जगत आपका ही ःव न ह | बस िजस ण यह ान हो जायगा उसी ण आप म हो जाएग | 135) िदन क चौबीस घ ट को साधनामय बनान क िलय िनक मा होकर यथर िवचार करत हए मन को बार-बार सावधान करक आतमिचतन म लगाओ | ससार म सल न मन को वहा स उठा कर आतमा म लगात रहो | 136) एक बार सागर की एक बड़ी तरग एक बलबल की िता पर हसन लगी | बलबल न

कहा ओ तरग म तो छोटा ह िफर भी बहत सखी ह | कछ ही दर म मरी दह टट जायगी िबखर

जायगी | म जल क साथ जल हो जाऊगा | वामन िमटकर िवराट बन जाऊगा | मरी मि बहत

नजदीक ह | मझ आपकी िःथित पर दया आती ह | आप इतनी बड़ी हई हो | आपका छटकारा ज दी नही होगा | आप भाग-भागकर सामनवाली च टान स टकराओगी | अनक छोटी-छोटी तरग

म िवभ हो जाओगी | उन अस य तरग म स अननत-अननत बलबल क रप म पिरवितरत हो जाओगी | य सब बलबल फटग तब आपका छटकारा होगा | बड़ पन का गवर कय करती हो जगत की उपलि धय का अिभमान करक परमातमा स दर मत जाओ | बलबल की तरह सरल

रहकर परमातमा क साथ एकता का अनभव करो | 137) जब आप ईयार ष िछिानवषण दोषारोपण घणा और िननदा क िवचार िकसीक

ित भजत ह तब साथ-ही-साथ वस ही िवचार को आमिऽत भी करत ह | जब आप अपन भाई की आख म ितनका भ कत ह तब अपनी आख म भी आप ताड़ भ क रह ह | 138) शरीर अनक ह आतमा एक ह | वह आतमा-परमातमा मझस अलग नही | म ही कतार सा ी व नयायधीश ह | म ही ककर श आलोचक ह और म ही मधर शसक ह | मर िलय तयक

यि ःवतऽ व ःव छनद ह | बनधन पिरि छननता और दोष मरी ि म आत ही नही | म म

हपरम म ह और अनय लोग भी ःवतऽ ह | ई र म ही ह | आप भी वही हो | 139) िजस कार बालक अपनी परछा म बताल की क पना कर भय पाता ह उसी कार जीव अपन ही सक प स भयभीत होता ह और क पाता ह | 140) कभी-कभी ऐसी भावना करो िक आपक सामन चतनय का एक महासागर लहरा रहा ह | उसक िकनार खड़ रह कर आप आनद स उस दख रह ह | आपका शरीर सागर की सतह पर घमन गया ह | आपक दखत ही दखत वह सागर म डब गया | इस समःत पिरिःथित को दखन वाल आप सा ी आतमा शष रहत ह | इस कार सा ी रप म अपना अनभव करो | 141) यिद हम चाहत ह िक भगवान हमार सब अपराध माफ कर तो इसक िलए सगम साधना यही ह िक हम भी अपन सबिधत सब लोग क सब अपराध माफ कर द |

कभी िकसी क दोष या अपराध पर ि न डाल कय िक वाःतव म सब रप म हमारा यारा ई दव ही बीड़ा कर रहा ह |

142) पणर पिवऽता का अथर ह बा भाव स भािवत न होना | सासािरक मनोहरता एव घणा स पर रहना राजी-नाराजगी स अिवचल िकसी म भद न दखना और आतमानभव क ारा आकषरण व तयाग स अिल रहना | यही वदानत का उपिनषद का

रहःय ह | 143) ई र सा ातकार तभी होगा जब ससार की ि स तीत होन वाल बड़-स-बड़ विरय को भी मा करन का आपका ःवभाव बन जायगा | 144) चाल यवहार म स एकदम उपराम होकर दो िमनट क िलए िवराम लो |

सोचो िक lsquo म कौन ह सद -गम शरीर को लगती ह | भख- यास ाण को लगती ह |

अनकलता-ितकलता मन को लगती ह | शभ-अशभ एव पाप-प य का िनणरय बि करती ह | म न शरीर ह न ाण ह न मन ह न बि ह | म तो ह इन सबको स ा दन वाला इन सबस नयारा िनलप आतमा |rsquo 145) जो मनय िनरतर lsquoम म हhelliprsquo ऐसी भावना करता ह वह म ही ह और lsquoम ब हhelliprsquo ऐसी भावना करनवाला ब ही ह | 146) आप िनभरय ह िनभरय ह िनभरय ह | भय ही मतय ह | भय ही पाप ह | भय ही नकर ह | भय ही अधमर ह | भय ही यिभचार ह | जगत म िजतन असत या िमथया भाव ह व सब इस भयरपी शतान स पदा हए ह | 147) परिहत क िलए थोड़ा काम करन स भी भीतर की शि या जागत होती ह |

दसर क क याण क िवचारमाऽ स दय म एक िसह क समान बल आ जाता ह | 148) हम यिद िनभरय ह ग तो शर को भी जीतकर उस पाल सक ग | यिद डरग तो क ा भी हम फ़ाड़ खायगा | 149) तयक िबया तयक यवहार तयक ाणी ःवरप िदख यही सहज समािध ह | 150) जब किठनाईया आय तब ऐसा मानना िक मझ म सहन शि बढ़ान क िलए ई र न य सयोग भज ह | किठन सयोग म िह मत रहगी तो सयोग बदलन लगग |

िवषय म राग- ष रह गया होगा तो वह िवषय कसौटी क रप म आग आयग और उनस पार होना पड़गा | 151) ततव ि स न तो आपन जनम िलया न कभी लग | आप तो अनत ह सवर यापी ह िनतयम अजर-अमर अिवनाशी ह | जनम-मतय का ही गलत ह महा-

मखरतापणर ह | जहा जनम ही नही हआ वहा मतय हो ही कस सकती ह 152) आप ही इस जगत क ई र हो | आपको कौन दबरल बना सकता ह जगत म आप ही एकमाऽ स ा हो | आपको िकसका भय खड़ हो जाओ | म हो जाओ | ठ क स समझ लो िक जो कोई िवचार या श द आपको दबरल बनाता ह वही एकमाऽ अशभ ह | मनय को दबरल व भयभीत करनवाला जो कछ इस ससार म ह वह पाप ह | 153) आप अपना कायर या कतर य करो लिकन न उसक िलए कोई िचनता रह न ही कोई

इ छा | अपन कायर म सख का अनभव करो कय िक आपका कायर ःवय सख या िवौाम ह | आपका कायर आतमानभव का ही दसरा नाम ह | कायर म लग रहो | कायर आपको आतमानभव कराता ह |

िकसी अनय हत स कायर न करो | ःवतऽ वि स अपन कायर पर डट जाओ | अपन को ःवतऽ

समझो िकसीक कदी नही | 154) यिद आप सतय क मागर स नही हटत तो शि का वाह आपक साथ ह समय आपक

साथ ह ऽ आपक साथ ह | लोग को उनक भतकाल की मिहमा पर फलन दो भिवयकाल की स पणर मिहमा आपक हाथ म ह | 155) जब आप िद य म क साथ चा डाल म चोर म पापी म अ यागत म और सबम भ क दशरन करग तब आप भगवान ौी कण क मपाऽ बन जायग | 156) आचायर गौड़पाद न ःप कहा आप सब आपस म भल ही लड़त रह लिकन मर साथ नही लड़ सक ग | आप सब लोग मर पट म ह | म आतमःवरप स सवर या ह | 157) मनय सभी ािणय म ौ ह सब दवताओ स भी ौ ह | दवताओ को भी िफर स

धरती पर आना पड़गा और मनय शरीर ा करक मि ा करनी होगी | 158) िनि नतता क दो सऽ जो कायर करना जररी ह उस परा कर दो | जो िबनजररी ह

उस भल जाओ | 159) सवा-म-तयाग ही मनय क िवकास का मल मऽ ह | अगर यह मऽ आपको जच

जाय तो सभी क ित सदभाव रखो और शरीर स िकसी-न-िकसी यि को िबना िकसी मतलब क

सहयोग दत रहो | यह नही िक जब मरी बात मानग तब म सवा करगा | अगर बनधक मरी बात

नही मानत तो म सवा नही करगा |

भाई तब तो तम सवा नही कर पाओग | तब तो तम अपनी बात मनवा कर अपन अह की पजा ही

करोग | 160) जस ःव न िमथया ह वस ही यह जामत अवःथा भी ःव नवत ही ह िमथया ह | हरक

को अपन इस ःव न स जागना ह | सदगर बार-बार जगा रह ह लिकन जाग कर वापस सो न जाए ऐसा परषाथर तो हम ही करना होगा | 161) सदा सननमख रहो | मख को कभी मिलन मत करो | िन य कर लो िक आपक

िलय शोक न इस जगत म जनम नही िलया ह | आननदःवरप म िचनता का ःथान ही कहा ह 162) समम ा ड एक शरीर ह | समम ससार एक शरीर ह | जब तक आप तयक क

साथ एकता का अनभव करत रहग तब तक सब पिरिःथितया और आस-पास की चीज़ हवा और समि की लहर भी आपक प म रहगी | 163) आपको जो कछ शरीर स बि स या आतमा स कमजोर बनाय उसको िवष की तरह

ततकाल तयाग दो | वह कभी सतय नही हो सकता | सतय तो बलद होता ह पावन होता ह

ानःवरप होता ह | सतय वह ह जो शि द | 164) साधना म हमारी अिभरिच होनी चािहय साधना की तीो माग होनी चािहय | 165) दसर क दोष की चचार मत करो चाह व िकतन भी बड़ ह | िकसी क दोष की चचार करक आप उसका िकसी भी कार भला नही करत बि क उस आघात पहचात ह और साथ-ही-साथ अपन आपको भी | 166) इस ससार को सतय समझना ही मौत ह | आपका असली ःवरप तो आननदःवरप

आतमा ह | आतमा क िसवा ससार जसी कोई चीज ही नही ह | जस सोया हआ मनय ःव न म अपनी एकता नही जानता अिपत अपन को अनक करक दखता ह वस ही आननदःवरप आतमा जामत ःव न और सषि - इन तीन ःवरप को दखत हए अपनी एकता अि तीयता का अनभव

नही करता | 167) मनोजय का उपाय ह अ यास और वरा य | अ यास मान य पवरक मन को बार-बार परमातम-िचतन म लगाना और वरा य मान मन को ससार क पदाथ की ओर स वापस

लौटाना | 168) िकसी स कछ मत मागो | दन क िलय लोग आपक पीछ-पीछ घमग | मान नही

चाहोग तो मान िमलगा | ःवगर नही चाहोग तो ःवगर क दत आपक िलय िवमान लकर आयग |

उसको भी ःवीकार नही करोग तो ई र आपको अपन दय स लगायग | 169) कभी-कभी उदय या अःत होत हए सयर की ओर चलो | नदी सरोवर या समि क तट

पर अकल घमन जाओ | ऐस ःथान की मलाकात लो जहा शीतल पवन मनद-मनद चल रही हो | वहा परमातमा क साथ एकःवर होन की स भावना क ार खलत ह | 170) आप य -ही इ छा स ऊपर उठत हो तय -ही आपका इि छत पदाथर आपको खोजन

लगता ह | अतः पदाथर स ऊपर उठो | यही िनयम ह | य - य आप इ छक िभ क याचक का भाव धारण करत हो तय -तय आप ठकराय जात हो | 171) कित क तयक पदाथर को दखन क िलय काश जररी ह | इसी कार मन बि

इिनिय को अपन-अपन कायर करन क िलय आतम-काश की आवयकता ह कय िक बाहर का कोई काश मन बि इिनिय ाणािद को चतन करन म समथर नही | 172) जस ःव न ा परष को जागन क बाद ःव न क सख-दःख जनम-मरण पाप-प य

धमर-अधमर आिद ःपशर नही करत कय िक वह सब खद ही ह | खद क िसवाय ःव न म दसरा कछ

था ही नही | वस ही जीवनम ानवान परष को सख-दःख जनम-मरण पाप-प य धमर-अधमर ःपशर नही करत कय िक व सब आतमःवरप ही ह | 173) वही भमा नामक आतम योित क म रह कर भ क रही ह सअर म रह कर घर रही ह गध म रह कर रक रही ह लिकन मखर लोग शरीर पर ही ि रखत ह चतनय ततव पर नही | 174) मनय िजस ण भत-भिवय की िचनता का तयाग कर दता ह दह को सीिमत और उतपि -िवनाशशील जानकर दहािभमान को तयाग दता ह उसी ण वह एक उ चतर अवःथा म पहच जाता ह | िपजर स छटकर गगनिवहार करत हए प ी की तरह मि का अनभव करता ह | 175) समःत भय एव िचनताए आपकी इ छाओ का णाम ह | आपको भय कय लगता ह

कय िक आपको आशका रहती ह िक अमक चीज कही चली न जाय | लोग क हाःय स आप डरत

ह कय िक आपको यश की अिभलाषा ह कीितर म आसि ह | इ छाओ को ितलाजिल द दो | िफर दखो मजा कोई िज मदारी नहीकोई भय नही | 176) दखन म अतयत करप काला-कलटा कबड़ा और तज ःवभाव का मनय भी आपका ही ःवरप ह | आप इस तथय स म नही | िफर घणा कसी कोई लाव यमयी सदरी सि की

शोभा क समान अित िवलासभरी अ सरा भी आपका ही ःवरप ह | िफर आसि िकसकी

आपकी ानिनिया उनको आपस अलग करक िदखाती ह | य इिनिया झठ बोलनवाली ह | उनका कभी िव ास मत करो | अतः सब कछ आप ही हो | 177) मानव क नात हम साधक ह | साधक होन क नात सतय को ःवीकर करना हमारा ःवधमर ह | सतय यही ह िक बल दसर क िलय ह ान अपन िलय ह और िव ास परमातमा स

स बनध जोड़न क िलय ह | 178) अपनी आतमा म डब जाना यह सबस बड़ा परोपकार ह | 179) आप सदव म ह ऐसा िव ास ढ़ करो तो आप िव क उ ारक हो जात हो | आप

यिद वदानत क ःवर क साथ ःवर िमलाकर िन य करो आप कभी शरीर न थ | आप िनतय श

ब आतमा हो तो अिखल ा ड क मो दाता हो जात हो | 180) कपा करक उन ःवाथरमय उपाय और अिभाय को दर फ क दो जो आपको पिरि छनन रखत ह | सब वासनाए राग ह | यि गत या शरीरगत म आसि ह | उस फ क दो | ःवय पिवऽ हो जाओ | आपका शरीर ःवःथ और बि पणरःवरप हो जायगी | 181) यिद ससार क सख व पदाथर ा ह तो आपको कहना चािहय ओ शतान हट जा मर सामन स | तर हाथ स मझ कछ नही चािहय | तब दखो िक आप कस सखी हो जात हो परमातमा-ा िकसी महापरष पर िव ास रखकर अपनी जीवनडोरी िनःशक बन उनक चरण म सदा क िलय रख दो | िनभरयता आपक चरण की दासी बन जायगी | 182) िजसन एक बार ठ क स जान िलया िक जगत िमथया ह और ािनत स इसकी तीित

हो रही ह उसको कभी दःख नही होता | जगत म कभी आसि नही होती | जगत क िमथयातव क

िन य का नाम ही जगत का नाश ह | 183) अपन ःवरप म लीन होन माऽ स आप ससार क साट बन जायग | यह साटपद

कवल इस ससार का ही नही समःत लोक-परलोक का साटपद होगा | 184) ह जनक चाह दवािधदव महादव आकर आपको उपदश द या भगवान िवण आकर उपदश द अथवा ाजी आकर उपदश द लिकन आपको कदािप सख न होगा | जब िवषय का तयाग करोग तभी स ची शाित व आनद ा ह ग |

185) िजस भ न हम मानव जीवन दकर ःवाधीनता दी िक हम जब चाह तब धमारतमा होकर भ होकर जीवनम होकर कतकतय हो सकत ह- उस भ की मिहमा गाओ | गाओ नही तो सनो | सनो भी नही गाओ भी नही तो ःवीकार कर लो | 186) चाह समि क गहर तल म जाना पड़ सा ात मतय का मकाबला करना पड़ अपन

आतमाि क उ य की पितर क िलय अिडग रहो | उठो साहसी बनो शि मान बनो | आपको जो बल व सहायता चािहय वह आपक भीतर ही ह | 187) जब-जब जीवन स बनधी शोक और िचनता घरन लग तब-तब अपन आननदःवरप

का गान करत-करत उस मोह-माया को भगा दो | 188) जब शरीर म कोई पीड़ा या अग म ज म हो तब म आकाशवत आकाशरिहत चतन

ह ऐसा ढ़ िन य करक पीड़ा को भल जाओ | 189) जब दिनया क िकसी चककर म फस जाओ तब म िनलप िनतय म ह ऐसा ढ़

िन य करक उस चककर स िनकल जाओ | 190) जब घर-बार स बनधी कोई किठन समःया याकल कर तब उस मदारी का खल

समझकर ःवय को िनःसग जानकर उस बोझ को ह का कर दो | 191) जब बोध क आवश म आकर कोई अपमानय वचन कह तब अपन शाितमय

ःवरप म िःथर होकर मन म िकसी भी ोभ को पदा न होन दो | 192) उ म अिधकारी िज ास को चािहय िक वह व ा सदगर क पास जाकर ौ ा पवरक महावाकय सन | उसका मनन व िनिदधयासन करक अपन आतमःवरप को जान | जब

आतमःवरप का सा ातकार होता ह तब ही परम िवौािनत िमल सकती ह अनयथा नही | जब तक

व ा महापरष स महावाकय ा न हो तब तक वह मनद अिधकारी ह | वह अपन दयकमल म परमातमा का धयान कर ःमरण कर जप कर | इस धयान-जपािद क साद स उस व ा सदगर

ा ह ग | 193) मन बि िच अहकार छाया की तरह जड़ ह णभगर ह कय िक व उतपनन होत

ह और लीन भी हो जात ह | िजस चतनय की छाया उसम पड़ती ह वह परम चतनय सबका आतमा ह | मन बि िच अहकार का अभाव हो जाता ह लिकन उसका अनभव करनवाल का अभाव

कदािप नही होता |

194) आप अपनी शि को उ चाितउ च िवषय की ओर बहन दो | इसस आपक पास व

बात सोचन का समय ही नही िमलगा िजसस कामकता की गध आती हो | 195) अपराध क अनक नाम ह बालहतया नरहतया मातहतया गौहतया इतयािद |

परनत तयक ाणी म ई र का अनभव न करक आप ई रहतया का सबस बड़ा अपराध करत ह | 196) सवा करन की ःवाधीनता मनयमाऽ को ा ह | अगर वह करना ही न चाह तो अलग बात ह | सवा का अथर ह मन-वाणी-कमर स बराईरिहत हो जाना यह िव की सवा हो गई |

यथाशि भलाई कर दो यह समाज की सवा हो गई | भलाई का फल छोड़ दो यह अपनी सवा हो गई

| भ को अपना मानकर ःमित और म जगा लो यह भ की सवा हो गई | इस कार मनय

अपनी सवा भी कर सकता ह समाज की सवा भी कर सकता ह िव की सवा भी कर सकता ह

और िव र की सवा भी कर सकता ह | 197) आतमा स बाहर मत भटको अपन कनि म िःथर रहो अनयथा िगर पड़ोग | अपन-

आपम पणर िव ास रखो | आतम-कनि पर अचल रहो | िफर कोई भी चीज आपको िवचिलत नही कर सकती | 198) सदा शात िनिवरकार और सम रहो | जगत को खलमाऽ समझो | जगत स भािवत

मत हो | इसस आप हमशा सखी रहोग | िफर कछ बढ़ान की इ छा नही होगी और कछ कम होन स

दःख नही होगा | 199) समथर सदगर क सम सदा फल क भाित िखल हए रहो | इसस उनक अनदर सक प

होगा िक यह तो बहत उतसाही साधक ह सदा सनन रहता ह | उनक सामथयरवान सक प स

आपकी वह किऽम सननता भी वाःतिवक सननता म बदल जायगी | 200) यिद रोग को भी ई र का िदया मानो तो ार ध-भोग भी हो जाता ह और क तप का फल दता ह | इसस ई र-कपा की ाि होती ह | याकल मत हो | क सल और इनजकशन

आधीन मत हो | 201) साधक को चािहय िक अपन लआय को ि म रखकर साधना-पथ पर तीर की तरह

सीधा चला जाय | न इधर दख न उधर | ि यिद इधर-उधर जाती हो तो समझना िक िन ा िःथर नही ह |

202) आपन अपन जीवन म हजार ःव न दख ह ग लिकन व आपक जीवन क अश नही बन जात | इसी कार य जामत जगत क आड बर आपकी आतमा क सम कोई मह व नही रखत | 203) एक आतमा को ही जानो अनय बात को छोड़ो | धीर साधक को चािहय िक वह

सावधान होकर आतमिन ा बढ़ाय अनक श द का िचनतन व भाषण न कर कय िक वह तो कवल

मन-वाणी को पिरौम दनवाला ह असली साधना नही ह | 204) जो परष जन-समह स ऐस डर जस साप स डरता ह स मान स ऐस डर जस नकर स

डरता ह ि य स ऐस डर जस मद स डरता ह उस परष को दवतागण ा ण मानत ह | 205) जस अपन शरीर क अग पर बोध नही आता वस शऽ िमऽ व अपनी दह म एक ही आतमा को दखनवाल िववकी परष को कदािप बोध नही आता | 206) मन तो शरीर को ई रापरण कर िदया ह | अब उसकी भख- यास स मझ कया

समिपरत वःत म आस होना महा पाप ह | 207) आप यिद िद य ि पाना चहत हो तो आपको इिनिय क ऽ का तयाग करना होगा | 208) लयकाल क मघ की गजरना हो समि उमड़ पड बारह सयर तपायमान हो जाय पहाड़ स पहाड़ टकरा कर भयानक आवाज हो तो भी ानी क िन य म त नही भासता कय िक

त ह ही नही | त तो अ ानी को भासता ह | 209) सतय को ःवीकार करन स शाित िमलगी | कछ लोग यो यता क आधार पर शाित

खरीदना चाहत ह | यो यता स शाित नही िमलगी यो यता क सदपयोग स शाित िमलगी | कछ

लोग स पि क आधार पर शाित सरि त रखना चाहत ह | स पि स शाित नही िमलगी स पि

क सदपयोग स शाित िमलगी वस ही िवपि क सदपयोग स शाित िमलगी | 210) त छ हािन-लाभ पर आपका धयान इतना कय रहता ह िजसस अनत आननदःवरप

आतमा पर स धयान हट जाता ह | 211) अपन अनदर ही आननद ा करना य िप किठन ह परनत बा िवषय स आननद

ा करना तो अस भव ही ह |

212) म ससार का काश ह | काश क रप म म ही सब वःतओ म या ह | िनतय इन

िवचार का िचनतन करत रहो | य पिवऽ िवचार आपको परम पिवऽ बना दग | 213) जो वःत कमर स ा होती ह उसक िलय ससार की सहायता तथा भिवय की आशा की आवयकता होती ह परनत जो वःत तयाग स ा होती ह उसक िलय न ससार की सहायता चािहय न भिवय की आशा | 214) आपको जब तक बाहर चोर िदखता ह तब तक जरर भीतर चोर ह | जब दसर लोग

स िभनन अयो य खराब सधारन यो य िदखत ह तब तक ओ सधार का बीड़ा उठान वाल त अपनी िचिकतसा कर | 215) सफल व ही होत ह जो सदव नतमःतक एव सननमख रहत ह | िचनतातर-शोकातर लोग की उननित नही हो सकती | तयक कायर को िह मत व शाित स करो | िफर दखो िक यह

कायर शरीर मन और बि स हआ | म उन सबको स ा दनवाला चतनयःवरप ह | ॐ ॐ का पावन गान करो | 216) िकसी भी पिरिःथित म मन को यिथत न होन दो | आतमा पर िव ास करक

आतमिन बन जाओ | िनभरयता आपकी दासी बन कर रहगी | 217) सतसग स मनय को साधना ा होती ह चाह वह शाित क रप म हो चाह मि क

रप म चाह सवा क रप म हो म क रप म हो चाह तयाग क रप म हो | 218) भला-बरा वही दखता ह िजसक अनदर भला-बरा ह | दसर क शरीर को वही दखता ह

जो खद को शरीर मानता ह | 219) खबरदार आपन यिद अपन शरीर क िलय ऐश-आराम की इ छा की िवलािसता एव इिनिय-सख म अपना समय बरबाद िकया तो आपकी खर नही | ठ क स कायर करत रहन की नीित

अपनाओ | सफलता का पहला िस ात ह कायरिवौामरिहत कायरसा ी भाव स कायर | इस

िस ात को जीवन म चिरताथर करोग तो पता चलगा िक छोटा होना िजतना सरल ह उतना ही बड़ा होना भी सहज ह | 220) भतकाल पर िखनन हए िबना भिवय की िचनता िकय िबना व रमान म कायर करो | यह भाव आपको हर अवःथा म सनन रखगा हम जो कछ ा ह उसका सदपयोग ही अिधक

काश पान का साधन ह |

221) जब आप सफलता की ओर पीठ कर लत हो पिरणाम की िचनता का तयाग कर दत

हो स मख आय हए क र य पर अपनी उ ोगशि एकाम करत हो तब सफलता आपक पीछ-पीछ

आ जाती ह | अतः सफलता आपको खोजगी | 222) वि तब तक एकाम नही होगी जब तक मन म कभी एक आशा रहगी तो कभी दसरी | शात वही हो सकता ह िजस कोई क र य या आवयकता घसीट न रही हो | अतः परम शाित पान

क िलय जीवन की आशा भी तयाग कर मन ाननद म डबो दो | आज स समझ लो िक यह शरीर ह ही नही | कवल ाननद का सागर लहरा रहा ह | 223) िजसकी पककी िन ा ह िक म आतमा हrsquo उसक िलय ऐसी कौन सी मिथ ह जो खल

न सक ऐसी कोई ताकत नही जो उसक िवर जा सक | 224) मर भा य म नही थाई र की मज आजकल सतसग ा नही होताजगत

खराब ह ऐस वचन हमारी कायरता व अनतःकरण की मिलनता क कारण िनकलत ह | अतः नकारातमक ःवभाव और दसर पर दोषारोपण करन की वि स बचो | 225) आप जब भीतरवाल स नाराज होत हो तब जगत आपस नाराज रहता ह | जब आप

भीतर अनतयारमी बन बठ तो जगतरपी पतलीघर म िफर गड़बड़ कसी 226) िजस ण हम ससार क सधारक बन खड़ होत ह उसी ण हम ससार को िबगाड़नवाल बन जात ह | श परमातमा को दखन क बजाय जगत को िबगड़ा हआ दखन की ि बनती ह | सधारक लोग मानत ह िक lsquoभगवान न जो जगत बनाया ह वह िबगड़ा हआ ह और हम उस सधार रह ह |rsquo वाह वाह धनयवाद सधारक अपन िदल को सधारो पहल | सवरऽ िनरजन का दीदार करो | तब आपकी उपिःथित माऽ स आपकी ि माऽ स अर यार आपको छकर बहती हवा माऽ स अननत जीव को शाित िमलगी और अननत सधार होगा | नानक कबीर महावीर ब और लीलाशाह बाप जस महापरष न यही कजी अपनायी थी | 227) वदानत म हमशा कमर का अथर होता ह वाःतिवक आतमा क साथ एक होकर च ा करना अिखल िव क साथ एकःवर हो जाना | उस अि तीय परम ततव क साथ िनःःवाथर सयोग ा करना ही एकमाऽ स चा कमर ह बाकी सब बोझ की गठिरया उठाना ह |

228) अपनी व रमान अवःथा चाह कसी भी हो उसको सव च मानन स ही आपक दय म आतम ान ान का अनायास उदय होन लगगा | आतम-सा ातकार को मील दर की कोई चीज समझकर उसक पीछ दौड़ना नही ह िचिनतत होना नही ह |

िचनता की गठरी उठाकर यिथत होन की जररत नही ह | िजस ण आप िनि नतता म गोता मारोग उसी ण आपका आतमःवरप गट हो जायगा | अर गट कया होगा आप ःवय आतमःवरप हो ही | अनातमा को छोड़ दो तो आतमःवरप तो हो ही | 229) सदा ॐकार का गान करो | जब भय व िचनता क िवचार आय तब िकसी मःत सत-फकीर महातमा क सािननधय का ःमरण करो | जब िननदा-शसा क सग आय तब महापरष क जीवन का अवलोकन करो | 230) िजनको आप भयानक घटनाए एव भयकर आघात समझ बठ हो वाःतव म व आपक ियतम आतमदव की ही करतत ह | समःत भयजनक तथा ाणनाशक घटनाओ क नाम-रप तो िवष क ह लिकन व बनी ह अमत स | 231) मन म यिद भय न हो तो बाहर चाह कसी भी भय की साममी उपिःथत हो जाय आपका कछ िबगाड़ नही सकती | मन म यिद भय होगा तो तरनत बाहर भी भयजनक पिरिःथया न होत हए भी उपिःथत हो जायगी | व क तन म भी भत िदखन लगगा | 232) िकसी भी पिरिःथित म िदखती हई कठोरता व भयानकता स भयभीत नही होना चािहए | क क काल बादल क पीछ पणर काशमय एकरस परम स ा सयर की तरह सदा िव मान ह | 233) आप अपन पर कदािप अिव ास मत करो | इस जगत म आप सब कछ कर सकत हो | अपन को कभी दबरल मत मानो | आपक अनदर तमाम शि या छपी हई ह | 234) यिद कोई मन य आपकी कोई चीज़ को चरा लता ह तो ड़रत कय हो वह मनय

और आप एक ह | िजस चीज़ को वह चराता ह वह चीज़ आपकी और उसकी द न की ह | 235) जो खद क िसवाय दसरा कछ दखता नही सनता नही जानता नही वह अननत ह |

जब तक खद क िसवाय और िकसी वःत का भान होता ह वह वःत स ची लगती ह तब तक आप

सीिमत व शात ह असीम और अनत नही |

236) ससार मझ कया आनद द सकता ह स पणर आनद मर भीतर स आया ह | म ही स पणर आननद ह स पणर मिहमा एव स पणर सख ह | 237) जीवन की समःत आवयकताए जीवन म उपिःथत ह परनत जीवन को जब हम

बा रग म रग दत ह तब जीवन का वाःतिवक रप हम नही जान पात | 238) िननदक की िननदा स म कय मरझाऊ शसक की शसा स म कय फल िननदा स म घटता नही और शसा स म बढ़ता नही | जसा ह वसा ही रहता ह | िफर िननदा-ःतित स

खटक कसी 239) ससार व ससार की समःयाओ म जो सबस अिधक फस हए ह उनही को वदानत की सबस अिधक आवयकता ह | बीमार को ही औषिध की यादा आवयकता ह | कय जी ठ क ह न 240) जगत क पाप व अतयाचार की बात मत करो लिकन अब भी आपको जगत म पाप

िदखता ह इसिलय रोओ | 241) हम यिद जान ल िक जगत म आतमा क िसवाय दसरा कछ ह ही नही और जो कछ

िदखता ह वह ःव नमाऽ ह तो इस जगत क दःख-दािरिय पाप-प य कछ भी हम अशात नही कर सकत | 242) िव ान दाशरिनक व आचाय की धमकी तथा अनमह आलोचना या अनमित

ानी पर कोई भाव नही ड़ाल सकती | 243) ह यि रप अननत आप अपन पर पर खड़ रहन का साहस करो समःत िव का बोझ आप िखलौन की तरह उठा लोग | 244) िसह की गजरना व नरिसह की ललकार तलवार की धार व साप की फफकार तपःवी की धमकी व नयायधीश की फटकारइन सबम आपका ही काश चमक रहा ह | आप इनस

भयभीत कय होत हो उलझन कय महसस करत हो मरी िब ली मझको याऊ वाली बात कय

होन दत हो 245) ससार हमारा िसफ़र िखलोना ही ह और कछ नही | अबोध बालक ही िखलौन स

भयभीत होता ह आसि करता ह िवचारशील यि नही |

246) जब तक अिव ा दर नही होगी तब तक चोरी जआ दार यिभचार कभी बद न

ह ग चाह लाख कोिशश करो | 247) आप हमशा अदर का धयान रखो | पहल हमारा भीतरी पतन होता ह | बा पतन तो इसका पिरणाम माऽ ह | 248) तयाग स हमशा आनद िमलता ह | जब तक आपक पास एक भी चीज़ बाकी ह तब

तक आप उस चीज़ क बधन म बध रहोग | आघात व तयाघात हमशा समान िवरोधी होत ह | 249) िनि तता ही आरो यता की सबस बड़ी दवाई ह | 250) सख अपन िसर पर दख का मकट पहन कर आता ह | जो सख को अपनायगा उस

दख को भी ःवीकार करना पड़गा | 251) म (आतमा) सबका ा ह | मरा ा कोई नही | 252) हजार म स कोई एक परष भीतर स शात िच वाला रहकर बाहर स ससारी जसा यवहार कर सकता ह | 253) सतय क िलए यिद शरीर का तयाग करना पड़ तो कर दना | यही आिखरी ममता ह जो हम तोड़नी होगी | 254) भय िचनता बचनी स ऊपर उठो | आपको ान का अनभव होगा | 255) आपको कोई भी हािन नही पहचा सकता | कवल आपक खयालात ही आपक पीछ पड़ ह | 256) म का अथर ह अपन पड़ोसी तथा सपकर म आनवाल क साथ अपनी वाःतिवक अभदता का अनभव करना | 257) ओ यार अपन खोय हए आतमा को एक बार खोज लो | धरती व आसमान क शासक आप ही हो | 258) सदव सम और सनन रहना ई र की सव पिर भि ह |

259) जब तक िच म ढ़ता न आ जाय िक शा की िविधय का पालन छोड़ दन स भी दय का यथाथर भि भाव न नही होगा तब तक शा की िविधय को पालत रहो |

गर भि एक अमोघ साधना 1 जनम मरण क िवषचब स म होन का कोई मागर नही ह कया सख-दःख हषर-शोक लाभ-

हािन मान-अपमान की थ पड़ स बचन का कोई उपाय नही ह कया

हअवय ह | ह िय आतमन नाशवान पदाथ स अपना मन वािपस लाकर सदगर क

चरणकमल म लगाओ | गरभि योग का आौय लो | गरसवा ऐसा अमोघ साधन ह िजसस

व रमान जीवन आननदमय बनता ह और शा त सख क ार खलत ह |

गर सवत त नर धनय यहा | ितनक नही दःख यहा न वहा || 2 स च सदगर की की हई भि िशय म सासािरक पदाथ क वरा य एव अनासि जगाती ह

परमातमा क ित म क पप महकाती ह | 3 तयक िशय सदगर की सवा करना चाहता ह लिकन अपन ढग स | सदगर चाह उस ढग स

सवा करन को कोई ततपर नही | जो िवरला साधक गर चाह उस ढ़ग स सवा कर सकता ह उस कोई कमी नही रहती |

िन सदगर की सवा स उनकी कपा ा होती ह और उस कपा स न िमल सक ऐसा तीन लोक म कछ भी नही ह | 4 गर िशय का स बनध पिवऽतम स बनध ह | ससार क तमाम बनधन स छड़ाकर वह मि क मागर पर ःथान कराता ह | यह स बनध जीवनपयरनत का स बनध ह | यह बात अपन दय की डायरी म सवणर-अ र स िलख लो | 5 उ ल सयर क काश क अिःततव को मान या न मान िफर भी सयर हमशा काशता ह | चचल मन का मनय मान या न मान लिकन सदगर की परमक याणकारी कपा सदव बरसती ही रहती ह | 6 सदगर की चरणरज म ःनान िकय िबना कवल किठन तप यार करन स या वद का

अधयन करन स वदानत का रहःय कट नही होता आतमानद का अमत नही िमलता | 7 दशरन शा क चाह िकतन मनथ पढ़ो हजार वष तक िहमालय की गफा म तप करो वष तक ाणायाम करो जीवनपयरनत शीषारसन करो समम िव म वास करक याखान दो िफर भी सदगर की कपा क िबना आतम ान नही होता | अतः िनरािभमानी सरल िनजाननद म मःत दयाल ःवभाव क आतम-सा ातकारी सदगर क चरण म जाओ | जीवन को धनय बनाओ | 8 सदगर की सवा िकय िबना शा का अधयन करना मम साधक क िलय समय बरबाद करन क बराबर ह | 9 िजसको सदगर ा हए ह ऐस िशय क िलय इस िव म कछ भी अा य नही ह | सदगर िशय को िमली हई परमातमा की अम य भट ह | अर नहीhellipनही व तो िशय क सम साकार रप म कट हए परमातमा ःवय ह | 10 सदगर क साथ एक ण िकया हआ सतसग लाख वष क तप स अननत गना ौ ह | आख क िनमषमाऽ म सदगर की अमतवष ि िशय क जनम-जनम क पाप को जला सकती ह | 11 सदगर जसा मपणर कपाल िहतिचनतक िव भर म दसरा कोई नही ह | 12 बाढ़ क समय याऽी यिद तफानी नदी को िबना नाव क पार कर सक तो साधक भी िबना सदगर क अपन जीवन क आिखरी लआय को िस कर सकता ह | यानी य दोन बात स भव ह |

अतः यार साधक मनमखी साधना की िज करना छोड़ दो | गरमखी साधना करन म ही सार ह | 13 सदगर क चरणकमल का आौय लन स िजस आननद का अनभव होता ह उसक आग िऽलोकी का साा य त छ ह | 14 आतम-सा ातकार क मागर म सबस महान शऽ अहभाव का नाश करन क िलए सदगर की आ ा का पालन अमोघ श ह | 15 रसोई सीखन क िलय कोई िसखानवाला चािहय िव ान और गिणत सीखन क िलय

अधयापक चािहय तो कया िव ा सदगर क िबना ही सीख लोग 16 सदगरकपा की स पि जसा दसरा कोई खजाना िव भर म नही | 17 सदगर की आ ा का उ लघन करना यह अपनी क खोदन क बराबर ह | 18 सदगर क कायर को शका की ि स दखना महापातक ह | 19 गरभि व गरसवा - य साधनारपी नौका की दो पतवार ह | उनकी मदद स िशय ससारसागर को पार कर सकता ह | 20 सदगर की कसौटी करना असभव ह | एक िववकाननद ही दसर िववकाननद को पहचान सकत ह | ब को जानन क िलय दसर ब की आवयकता रहती ह | एक रामतीथर का रहःय दसर रामतीथर ही पा सकत ह |

अतः सदगर की कसौटी करन की च ा छोड़कर उनको पिरपणर पर परमातमा मानो |

तभी जीवन म वाःतिवक लाभ होगा | 21 गरभि योग का आौय लकर आप अपनी खोई हई िद यता को पनः ा करो सख-दःख जनम-मतय आिद सब न स पार हो जाओ | 22 गरभि योग मान गर की सवा क ारा मन और िवकार पर िनयऽण एव पनः सःकरण | 23 िशय अपन गर क चरणकमल म णाम करता ह | उन पर ौ फल की वषार करक उनकी ःतित करता ह ldquoह परम प य पिवऽ गरदव मझ सव च सख ा हआ ह | म िन ा स जनम-मतय की पर परा स म हआ ह | म िनिवरक प समािध का श सख भोग रहा ह | जगत क िकसी भी कोन म म म ता स िवचरण कर सकता ह | सब पर मरी सम ि ह | मन ाकत मन का तयाग िकया ह | मन सब सक प एव रिच-अरिच का तयाग िकया ह | अब म अख ड शाित म िवौाित पा रहा ह hellip आननदमय हो रहा ह | म इस पणर अवःथा का वणरन नही कर पाता | ह प य गरदव म आवाक बन गया ह | इस दःतर भवसागर को पार करन म आपन

मझ सहायता की ह | अब तक मझ कवल अपन शरीर म ही स पणर िव ास था | मन िविभनन योिनय म अस य जनम िलय | ऐसी सव च िनभरय अवःथा मझ कौन स पिवऽ कम क कारण ा हई ह यह म नही जानता | सचमच यह एक दलरभ भा य ह |

यह एक महान उतक लाभ ह | अब म आननद स नाचता ह | मर सब दःख न हो गय | मर सब मनोरथ पणर हए ह |

मर कायर स पनन हए ह | मन सब वािछत वःतए ा की ह | मरी इ छा पिरपणर हई ह | आप मर स च माता-िपता हो | मरी व रमान िःथित म म दसर क सम िकस कार कट कर सक सवरऽ सख और आननद का अननत सागर मझ लहराता हआ िदख रहा ह | मर अतःच िजसस खल गय वह महावाकय lsquoत वमिसrsquo ह | उपिनषद एव वदानतसऽ को भी धनयवाद | िजनह न िन गर का एव उपिनषद क महावाकय का रप धारण िकया ह | ऐस ौी यासजी को णाम ौी शकराचायर को णाम सासािरक मनय क िसर पर गर क चरणामत का एक िबनद भी िगर तो भी उसक ःब दःख का नाश होता ह | यिद एक िन परष को व पहनाय जाय तो सार िव को व पहनान एव भोजन करवान क बराबर ह कय िक िन परष सचराचर िव म या ह | सबम व ही ह |rdquo

ॐhellip ॐ hellip ॐ hellip

ःवामी िशवानद जी

ौी राम-विश सवाद ौी विश जी कहत ह ldquoह रघकलभषण ौी राम अनथर ःवरप िजतन सासािरक पदाथर ह व सब जल म तरग क समान िविवध रप धारण करक चमतकार उतपनन करत ह अथारत ई छाए उतपनन करक जीव को मोह म फसात ह | परत जस सभी तरग जल ःवरप ही ह उसी कार सभी पदाथर वःततः न र ःवभाव वाल ह |

बालक की क पना स आकाश म य और िपशाच िदखन लगत ह परनत बि मान मनय क िलए उन य और िपशाच का कोई अथर नही | इसी कार अ ानी क िच म यह जगत सतय हो ऐसा लगता ह जबिक हमार जस ािनय क िलय यह जगत कछ भी नही | यह समम िव पतथर पर बनी हई पतिलय की सना की तरह रपालोक तथा अतर-बा िवषय स शनय ह | इसम सतयता कसी परनत अ ािनय को यह िव सतय लगता ह |rdquo विश जी बोल ldquoौी राम जगत को सतय ःवरप म जानना यह ाित ह मढ़ता ह | उस िमथया अथारत कि पत समझना यही उिचत समझ ह | ह राघव तव ा अहता आिद सब िवम-िवलास शात िशवःवरप श ःवरप ही ह | इसिलय मझ तो क अितिर और कछ भी नही िदखता | आकाश म जस जगल नही वस ही म जगत नही ह | ह राम ार ध वश ा कम स िजस परष की च ा कठपतली की तरह ई छाशनय और याकलतारिहत होती ह वह शानत मनवाला परष जीवनम मिन ह | ऐस जीवनम ानी को इस

जगत का जीवन बास की तरह बाहर-भीतर स शनय रसहीन और वासना-रिहत लगता ह | इस य पच म िजस रिच नही दय म िचनमाऽ अ य ही अ छा लगता ह ऐस परष न

भीतर तथा बाहर शािनत ा कर ली ह और इस भवसागर स पार हो गया ह | रघनदन श व ा कहत ह िक मन का ई छारिहत होना यही समािध ह कय िक ई छाओ का तयाग करन स मन को जसी शािनत िमलती ह ऐसी शािनत सकड़ उपदश स भी नही िमलती | ई छा की उतपि स जसा दःख ा होता ह ऐसा दःख तो नरक म भी नही | ई छाओ की शािनत

स जसा सख होता ह ऐसा सख ःवगर तो कया लोक म भी नही होता | अतः समःत शा तपःया यम और िनयम का िनचोड़ यही ह िक ई छामाऽ दःखदायी ह और ई छा का शमन मो ह | ाणी क दय म जसी-जसी और िजतनी-िजतनी ई छाय उतपनन होती ह उतना ही दख स वह

ड़रता रहता ह | िववक-िवचार ारा ई छाय जस-जस शानत होती जाती ह वस-वस दखरपी छत की बीमारी िमटती जाती ह |

आसि क कारण सासािरक िवषय की ई छाय य - य गहनीभत होती जाती ह तय -तय

दःख की िवषली तरग बढ़ती जाती ह | अपन परषाथर क बल स इस ई छारपी यािध का उपचार यिद नही िकया जाय तो इस यािध स छटन क िलय अनय कोई औषिध नही ह ऐसा म ढ़तापवरक

मानता ह | एक साथ सभी ई छाओ का स पणर तयाग ना हो सक तो थोड़ी-थोड़ी ई छाओ का धीर-धीर तयाग

करना चािहय परत रहना चािहय ई छा क तयाग म रत कय िक सनमागर का पिथक दखी नही होता | जो नराधम अपनी वासना और अहकार को ीण करन का य नही करता वह िदन -िदन अपन

को रावण की तरह अधर कऐ म ढ़कल रहा ह | ई छा ही दख की जनमदाऽी इस ससाररपी बल का बीज ह | यिद इस बीज को आतम ानरपी अि न स ठ क-ठ क जला िदया तो पनः यह अकिरत नही होता | रघकलभषण राम ई छामाऽ ससार ह और ई छाओ का अभाव ही िनवारण ह | अतः अनक कार की माथाप ची म ना पड़कर कवल ऐसा य करना चािहय िक ई छा उतपनन ना हो | अपनी बि स ई छा का िवनाश करन को जो ततपर नही ऐस अभाग को शा और गर का उपदश

भी कया करगा जस अपनी जनमभमी जगल म िहरणी की मतय िनि त ह उसी कार अनकिवध दख का िवःतार कारनवाल ई छारपी िवषय-िवकार स य इस जगत म मनय की मतय िनि त ह | यिद मानव ई छाओ क कारण ब च -सा मढ़ ना बन तो उस आतम ान क िलय अ प य ही करना पड़ | इसिलय सभी कार स ई छाओ को शानत करना चािहय | ई छा क शमन स परम पद की ाि होती ह | ई छारिहत हो जाना यही िनवारण ह और ई छाय

होना ही बधन ह | अतः यथाशि ई छा को जीतना चािहय | भला इतना करन म कया किठनाई ह जनम जरा यािध और मतयरपी कटीली झािड़य और खर क व - समह की जड़ भी ई छा ही ह

| अतः शमरपी अि न स अदर-ही-अदर बीज को जला ड़ालना चािहय| जहा ई छाओ का अभाव ह

वहा मि िनि त ह |

िववक वरा य आिद साधन स ई छा का सवरथा िवनाश करना चािहय | ई छा का सबध जहा-जहा ह वहा-वहा पाप प य दखरािशया और ल बी पीड़ाओ स य बधन को हािज़र ही समझो | परष

की आतिरक ई छा य - य शानत होती जाती ह तय -तय मो क िलय उसका क याणकारक

साधन बढ़ता जाता ह | िववकहीन ई छा को पोसना उस पणर करना यह तो ससाररपी िवष व को पानी स सीचन क समान ह |rdquo

- ौीयोगविश महारामायण

आतमबल का आवाहन कया आप अपन-आपको दबरल मानत हो लघतामथी म उलझ कर पिरिःतिथय स िपस रह हो

अपना जीवन दीन-हीन बना बठ हो hellipतो अपन भीतर सष आतमबल को जगाओ | शरीर चाह ी का हो चाह परष का कित क साा य म जो जीत ह व सब ी ह और कित क बनधन स पार अपन ःवरप की पहचान िजनह न कर ली ह अपन मन की गलामी की बिड़या तोड़कर िजनह न फ क दी ह व परष ह | ी या परष शरीर एव मानयताए होती ह | तम तो तन-मन स पार िनमरल आतमा हो | जागोhellipउठोhellipअपन भीतर सोय हय िन यबल को जगाओ | सवरदश सवरकाल म सव म

आतमबल को िवकिसत करो | आतमा म अथाह सामथयर ह | अपन को दीन-हीन मान बठ तो िव म ऐसी कोई स ा नही जो त ह ऊपर उठा सक | अपन आतमःवरप म िति त हो गय तो िऽलोकी म ऐसी कोई हःती नही जो त ह दबा सक | भौितक जगत म वाप की शि ईलकशोिनक शि िव त की शि गरतवाकषरण की शि बड़ी मानी जाती ह लिकन आतमबल उन सब शि य का सचालक बल ह | आतमबल क सािननधय म आकर पग ार ध को पर िमल जात ह दव की दीनता पलायन हो जाती ह ितकल पिरिःतिथया अनकल हो जाती ह | आतमबल सवर िरि -िसि य का िपता ह |

आतमबल कस जगाय हररोज़ तःकाल ज दी उठकर सय दय स पवर ःनानािद स िनवत हो जाओ | ःव छ पिवऽ ःथान

म आसन िबछाकर पवारिभमख होकर प ासन या सखासन म बठ जाओ | शानत और सनन वि

धारण करो | मन म ढ भावना करो िक म कित-िनिमरत इस शरीर क सब अभाव को पार करक सब

मिलनताओ-दबरलताओ स िप ड़ छड़ाकर आतमा की मिहमा म जागकर ही रहगा |

आख आधी खली आधी बद रखो | अब फ़फ़ड़ म खब ास भरो और भावना करो की ास क साथ

म सयर का िद य ओज भीतर भर रहा ह | ास को यथाशि अनदर िटकाय रखो | िफ़र lsquoॐhelliprsquo का ल बा उ चारण करत हए ास को धीर-धीर छोड़त जाओ | ास क खाली होन क बाद तरत ास ना लो | यथाशि िबना ास रहो और भीतर ही भीतर lsquoहिर ॐhelliprsquo lsquoहिर ॐhelliprsquo का मानिसक

जाप करो | िफ़र स फ़फ़ड़ म ास भरो | पव रीित स ास यथाशि अनदर िटकाकर बाद म धीर-धीर छोड़त हए lsquoॐhelliprsquo का गजन करो | दस-पिह िमनट ऐस ाणायाम सिहत उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo की धविन करक शानत हो जाओ | सब

यास छोड़ दो | वि य को आकाश की ओर फ़लन दो | आकाश क अनदर पथवी ह | पथवी पर अनक दश अनक समि एव अनक लोग ह | उनम स एक

आपका शरीर आसन पर बठा हआ ह | इस पर य को आप मानिसक आख स भावना स दखत

रहो | आप शरीर नही हो बि क अनक शरीर दश सागर पथवी मह न ऽ सयर चनि एव पर ा ड़ क

ा हो सा ी हो | इस सा ी भाव म जाग जाओ | थोड़ी दर क बाद िफ़र स ाणायाम सिहत lsquoॐhelliprsquo का जाप करो और शानत होकर अपन िवचार को दखत रहो | इस अवःथा म ढ़ िन य करो िक lsquoम जसा चहता ह वसा होकर रहगा |rsquo िवषयसख स ा धन-

दौलत इतयािद की इ छा न करो कय िक िन यबल या आतमबलरपी हाथी क पदिच म और सभी क पदिच समािव हो ही जायग | आतमानदरपी सयर क उदय होन क बाद िम टी क तल क दीय क ाकाश रपी शि सखाभास की गलामी कौन कर

िकसी भी भावना को साकार करन क िलय दय को करद ड़ाल ऐसी िन यातमक बिल वि होनी आवशयक ह | अनतःकरण क गहर-स-गहर दश म चोट कर ऐसा ाण भरक िन बल का आवाहन करो | सीना तानकर खड़ हो जाओ अपन मन की दीन-हीन दखद मानयताओ को कचल

ड़ालन क िलय | सदा ःमरण रह की इधर-उधर भटकती वि य क साथ त हारी शि भी िबखरती रहती ह | अतः वि य को बहकाओ नही | तमाम वि य को एकिऽत करक साधनाकाल म आतमिचनतन म लगाओ और यवहारकाल म जो कायर करत हो उसम लगाओ | द िच होकर हरक कायर करो | अपन ःवभाव म स आवश को सवरथा िनमरल कर दो | आवश म आकर कोई िनणरय मत लो कोई िबया मत करो | सदा शानत वि धारण करन का अ यास करो | िवचारशील एव सनन रहो | ःवय अचल रहकर सागर की तरह सब वि य की तरग को अपन

भीतर समालो | जीवमाऽ को अपना ःवरप समझो | सबस ःनह रखो | िदल को यापक रखो | सकिच ता का िनवारण करत रहो | ख ड़ातमक वि का सवरथा तयाग करो | िजनको ानी महापरष का सतसग और अधयातमिव ा का लाभ िमल जाता ह उसक जीवन स

दःख िवदा होन लगत ह | ॐ आननद आतमिन ा म जाग हए महापरष क सतसग एव सतसािहतय स जीवन को भि और वदात स प

एव पलिकत करो | कछ ही िदन क इस सघन योग क बाद अनभव होन लगगा िक भतकाल क

नकारतमक ःवभाव सशयातमक-हािनकारक क पनाओ न जीवन को कचल ड़ाला था िवषला कर िदया था | अब िन यबल क चमतकार का पता चला | अततरम म आिवरभत िद य खज़ाना अब

िमला | ार ध की बिड़या अब टटन लगी | ठ क ह न करोग ना िह मत पढ़कर रख मत दना इस पिःतका को | जीवन म इसको बार-बार पढ़त रहो | एक िदन म यह पणर ना होगा | बार-बार अ यास करो | त हार िलय यह एक ही पिःतका काफ़ी ह | अनय कचराप टी ना पड़ोग तो चलगा | शाबाश वीर शाबाश

  • परसतावना
  • जीवन रसायन
  • गर भकति एक अमोघ साधना
  • शरी राम-वशिषठ सवाद
  • आतमबल का आवाहन
  • आतमबल कस जगाय
Page 3: जीवन रसायन - HariOmGroup · ‘जीवन रसायन’ का यह िदय कटोरा आत्मरस के िपपासुओं हाथ

lsquoजीवन रसायनrsquo का यह िद य कटोरा आतमरस क िपपासओ क हाथ म रखत हए सिमित अतयनत आननद का अनभव करती ह | िव ास ह की अधयातम क िज ासओ क जीवन को िद यामत स सरोबार करन म यह पिःतका उपयोगी िस होगी |

- ौी योग वदानत सवा सिमित

अमदावाद आौम

जीवन रसायन 1) जो मनय इसी जनम म मि ा करना चाहता ह उस एक ही जनम म हजार वष का कम कर लना होगा | उस इस यग की रझतार स बहत आग िनकलना होगा | जस ःव न म मान-अपमान मरा-तरा अ छा-बरा िदखता ह और जागन क बाद उसकी सतयता नही रहती वस ही इस जामत जगत म भी अनभव करना होगा | बसhellipहो गया हजार वष का काम परा | ान की यह बात दय म ठ क स जमा दनवाल कोई महापरष िमल जाय तो हजार वष क सःकार मर-तर क म को दो पल म ही िनवत कर द और कायर परा हो जाय | 2) यिद त िनज ःवरप का मी बन जाय तो आजीिवका की िचनता रमिणय ौवण-मनन और शऽओ का दखद ःमरण यह सब छट जाय |

उदर-िचनता िय चचार िवरही को जस खल |

िनज ःवरप म िन ा हो तो य सभी सहज टल || 3) ःवय को अनय लोग की आख स दखना अपन वाःतिवक ःवरप को न दखकर अपना िनरी ण अनय लोग की ि स करना यह जो ःवभाव ह वही हमार सब दःख का कारण ह | अनय लोग की ि म खब अ छा िदखन की इ छा करना- यही हमारा सामािजक दोष ह | 4) लोग कय दःखी ह कय िक अ ान क कारण व अपन सतयःवरप को भल गय ह और अनय लोग जसा कहत ह वसा ही अपन को मान बठत ह | यह दःख तब तक दर नही होगा जब तक मनय आतम-सा ातकार नही कर लगा | 5) शारीिरक मानिसक नितक व आधयाितमक य सब पीड़ाए वदानत का अनभव करन स तरत दर होती ह औरhellipकोई आतमिन महापरष का सग िमल जाय तो वदानत का

अनभव करना किठन कायर नही ह | 6) अपन अनदर क परम र को सनन करन का यास करो | जनता एव बहमित को आप िकसी कार स सत नही कर सकत | जब आपक आतमदवता सनन ह ग तो जनता आपस अवय सत होगी | 7) सब वःतओ म दशरन करन म यिद आप सफल न हो सको तो िजनको आप सबस अिधक म करत ह ऐस कम-स-कम एक यि म परमातमा का दशरन करन का यास करो | ऐस िकसी ततव ानी महापरष की शरण पा लो िजनम ानद छलकता हो | उनका ि पात होत ही आपम भी का ादभारव होन की स भावना पनपगी | जस एकस-र मशीन की िकरण कपड़ चमड़ी मास को चीरकर हि डय का फोटो खीच लाती ह वस ही ानी की ि आपक िच म रहन वाली दहाधयास की परत चीरकर आपम ई र को िनहारती ह | उनकी ि स चीरी हई परत को चीरना अपक िलय भी सरल हो जायगा | आप भी ःवय म ई र को दख सक ग | अतः अपन िच पर ानी महापरष की ि पड़न दो | पलक िगराय िबना अहोभाव स उनक सम बठो तो

आपक िच पर उनकी ि पड़गी | 8) जस मछिलया जलिनिध म रहती ह प ी वायमडल म ही रहत ह वस आप भी ानरप काशपज म ही रहो काश म चलो काश म िवचरो काश म ही अपना

अिःततव रखो | िफर दखो खान-पीन का मजा घमन-िफरन का मजा जीन-मरन का मजा | 9) ओ तफान उठ जोर-शोर स आधी और पानी की वषार कर द | ओ आननद क महासागर पथवी और आकाश को तोड़ द | ओ मानव गहर स गहरा गोता लगा िजसस िवचार एव िचनताए िछनन-िभनन हो जाय | आओ अपन दय स त की भावना को चन-चनकर बाहर िनकाल द िजसस आननद का महासागर तय लहरान लग | ओ म की मादकता त ज दी आ | ओ आतमधयान की आतमरस की मिदरा त हम पर ज दी आ छािदत हो जा | हमको तरनत डबो द | िवल ब करन का कया योजन मरा मन अब एक पल भी दिनयादारी म फसना नही चाहता | अतः इस मन को यार भ म डबो द | lsquoम और मरा hellipत और तराrsquo क ढर को आग लगा द | आशका और आशाओ क चीथड़ को उतार फ क | टकड़-टकड़ करक िपघला द | त की भावना को जड़ स उखाड़ द | रोटी नही िमलगी कोई परवाह नही | आौय और िवौाम नही िमलगा

कोई िफकर नही | लिकन मझ चािहय म की उस िद य म की यास और तड़प | मझ वद पराण करान स कया

मझ सतय का पाठ पढ़ा द कोई ||

मझ मिदर मिःजद जाना नही |

मझ म का रग चढ़ा द कोई ||

जहा ऊच या नीच का भद नही |

जहा जात या पात की बात नही ||

न हो मिदर मिःजद चचर जहा |

न हो पजा नमाज़ म फकर कही ||

जहा सतय ही सार हो जीवन का |

िरधवार िसगार हो तयाग जहा ||

जहा म ही म की सि िमल |

चलो नाव को ल चल ख क वहा || 10) ःव नावःथा म ा ःवय अकला ही होता ह | अपन भीतर की क पना क आधार पर िसह िसयार भड़ बकरी नदी नगर बाग-बगीच की एक परी सि का सजरन कर लता ह | उस सि म ःवय एक जीव बन जाता ह और अपन को सबस अलग मानकर भयभीत होता ह | खद शर ह और खद ही बकरी ह | खद ही खद को डराता ह | चाल ःव न म सतय का भान न होन स दःखी होता ह | ःव न स जाग जाय तो पता चल िक ःवय क िसवाय और कोई था ही नही | सारा पच क पना स रचा गया था | इसी कार यह जगत जामत क ारा कि पत ह वाःतिवक नही ह | यिद जामत का ा अपन आतमःवरप म जाग जाय तो उसक तमाम दःख-दािरिय पल भर म अ य हो जाय | 11) ःवगर का साा य आपक भीतर ही ह | पःतक म मिदर म तीथ म पहाड़ म जगल म आनद की खोज करना यथर ह | खोज करना ही हो तो उस अनतःथ आतमानद का खजाना खोल दनवाल िकसी ततवव ा महापरष की खोज करो | 12) जब तक आप अपन अतःकरण क अनधकार को दर करन क िलए किटब नही ह ग तब तक तीन सौ ततीस करोड़ कण अवतार ल ल िफर भी आपको परम लाभ नही होगा | 13) शरीर अनदर क आतमा का व ह | व को उसक पहनन वाल स अिधक यार

मत करो | 14) िजस ण आप सासािरक पदाथ म सख की खोज करना छोड़ दग और ःवाधीन हो जायग अपन अनदर की वाःतिवकता का अनभव करग उसी ण आपको ई र क पास जाना नही पड़गा | ई र ःवय आपक पास आयग | यही दवी िवधान ह | 15) बोधी यिद आपको शाप द और आप समतव म िःथर रहो कछ न बोलो तो उसका शाप आशीवारद म बदल जायगा | 16) जब हम ई र स िवमख होत ह तब हम कोई मागर नही िदखता और घोर दःख सहना पड़ता ह | जब हम ई र म तनमय होत ह तब यो य उपाय यो य वित यो य वाह अपन-आप हमार दय म उठन लगता ह | 17) जब तक मनय िचनताओ स उि न रहता ह इ छा एव वासना का भत उस बठन नही दता तब तक बि का चमतकार कट नही होता | जजीर स जकड़ी हई बि िहलडल नही सकती | िचनताए इ छाए और वासनाए शात होन स ःवतऽ वायमडल का अिवभारव होता ह | उसम बि को िवकिसत होन का अवकाश िमलता ह | पचभौितक बनधन कट जात ह और श आतमा अपन पणर काश म चमकन लगता ह | 18) ओ सज़ा क भय स भयभीत होन वाल अपराधी नयायधीश जब तरी सज़ा का हकम िलखन क िलय कलम लकर ततपर हो उस समय यिद एक पल भर भी त परमाननद म डब जाय तो नयायधीश अपना िनणरय भल िबना नही रह सकता | िफ़र उसकी कलम स वही िलखा जायगा जो परमातमा क साथ तरी नतन िःथित क अनकल होगा | 19) पिवऽता और स चाई िव ास और भलाई स भरा हआ मनय उननित का झ डा हाथ म लकर जब आग बढ़ता ह तब िकसकी मजाल िक बीच म खड़ा रह यिद आपक िदल म पिवऽता स चाई और िव ास ह तो आपकी ि लोह क पद को भी चीर सकगी | आपक िवचार की ठोकर स पहाड़-क-पहाड़ भी चकनाचर हो सक ग | ओ जगत क बादशाह आग स हट जाओ | यह िदल का बादशाह पधार रहा ह | 20) यिद आप ससार क लोभन एव धमिकय स न िहल तो ससार को अवय िहला दग | इसम जो सनदह करता ह वह मदमित ह मखर ह |

21) वदानत का यह िस ात ह िक हम ब नही ह बि क िनतय म ह | इतना ही नही lsquoब हrsquo यह सोचना भी अिन कारी ह म ह | य ही आपन सोचा िक lsquoम ब हhellip

दबरल हhellip असहाय हhelliprsquo तय ही अपना दभार य शर हआ समझो | आपन अपन पर म एक जजीर और बाध दी | अतः सदा म होन का िवचार करो और मि का अनभव करो | 22) राःत चलत जब िकसी िति त यि को दखो चाह वह इ लड़ का सवारधीश हो चाह अमिरका का lsquoिसड़टrsquo हो रस का सवसवार हो चाह चीन का lsquoिड़कटटरrsquo हो- तब अपन मन म िकसी कार की ईयार या भय क िवचार मत आन दो | उनकी शाही नज़र को अपनी ही नज़र समझकर मज़ा लटो िक lsquoम ही वह ह |rsquo जब आप ऐसा अनभव करन की च ा करग तब आपका अनभव ही िस कर दगा िक सब एक ही ह | 23) यिद हमारा मन ईयार- ष स रिहत िब कल श हो तो जगत की कोई वःत हम नकसान नही पहचा सकती | आनद और शाित स भरपर ऐस महातमाओ क पास बोध की मितर जसा मनय भी पानी क समान तरल हो जाता ह | ऐस महातमाओ को दख कर जगल क िसह और भड़ भी मिव ल हो जात ह | साप-िब छ भी अपना द ःवभाव भल जात ह | 24) अिव ास और धोख स भरा ससार वाःतव म सदाचारी और सतयिन साधक का कछ िबगाड़ नही सकता | 25) lsquoस पणर िव मरा शरीर हrsquo ऐसा जो कह सकता ह वही आवागमन क चककर स म ह | वह

तो अननत ह | िफ़र कहा स आयगा और कहा जायगा सारा ा ड़ उसी म ह | 26) िकसी भी सग को मन म लाकर हषर-शोक क वशीभत नही होना | lsquoम अजर हhellip अमर हhellip मरा जनम नहीhellip मरी मतय नहीhellip म िनिलर आतमा हhelliprsquo यह भाव ढ़ता स दय म धारण करक जीवन जीयो | इसी भाव का िनरनतर सवन करो | इसीम सदा त लीन रहो | 27) बा सदभ क बार म सोचकर अपनी मानिसक शाित को भग कभी न होन दो | 28) जब इिनिया िवषय की ओर जान क िलय जबरदःती करन लग तब उनह लाल आख

िदखाकर चप कर दो | जो आतमानद क आःवादन की इ छा स आतमिचतन म लगा रह वही स चा धीर ह |

29) िकसी भी चीज़ को ई र स अिधक म यवान मत समझो | 30) यिद हम दहािभमान को तयागकर सा ात ई र को अपन शरीर म कायर करन द तो भगवान

ब या जीसस बाईःट हो जाना इतना सरल ह िजतना िनधरन पाल (Poor Paul) होना | 31) मन को वश करन का उपाय मन को अपना नौकर समझकर ःवय को उसका भ मानो | हम अपन नौकर मन की उप ा करग तो कछ ही िदन म वह हमार वश म हो जायगा | मन क

चचल भाव को ना दखकर अपन शानत ःवरप की ओर धयान दग तो कछ ही िदन म मन न

होन लगगा | इस कार साधक अपन आनदःवरप म म न हो सकता ह | 32) समम ससार क ततव ान िव ान गिणत का य और कला आपकी आतमा म स िनकलत ह

और िनकलत रहग | 33) ओ खदा को खोजनवाल तमन अपनी खोजबीन म खदा को ल कर िदया ह | य रपी तरग म अनत सामथयररपी समि को छपा िदया ह | 34) परमातमा की शािनत को भग करन का सामथयर भला िकसम ह यिद आप सचमच

परमातम-शािनत म िःथत हो जाओ तो समम ससार उलटा होकर टग जाय िफ़र भी आपकी शािनत

भग नही हो सकती | 35) महातमा वही ह जो िच को ड़ावाड़ोल करनवाल सग आय िफ़र भी िच को वश म रख बोध

और शोक को िव न होन द | 36) वित यिद आतमःवरप म लीन होती ह तो उस सतसग ःवाधयाय या अनय िकसी भी काम क िलय बाहर नही लाना चिहय | 37) स ढ़ अचल सक प शि क आग मसीबत इस कार भागती ह जस आधी-तफ़ान स बादल

िबखर जात ह | 38) सषि (गहरी नीद) आपको बलात अनभव कराती ह िक जामत का जगत चाह िकतना ही यारा और सदर लगता हो पर उस भल िबना शािनत नही िमलती | सषि म बलात िवःमरण हो उसकी सतयता भल जाय तो छः घट िनिा की शािनत िमल | जामत म उसकी सतयता का अभाव

लगन लग तो परम शािनत को ा ा परष बन जाय | िनिा रोज़ाना सीख दती ह िक यह ठोस

जगत जो आपक िच को िमत कर रहा ह वह समय की धारा म सरकता जा रहा ह | घबराओ

नही िचिनतत मत हो तम बात म िच को िमत मत करो | सब कछ ःव न म सरकता जा रहा ह | जगत की सतयता क म को भगा दो | ओ शि मान आतमा अपन अतरतम को िनहार ॐ का गजन कर दबरल िवचार एव िचताओ को कचल ड़ाल दबरल एव त छ िवचार तथा जगत को सतय मानन क कारण तन बहत-बहत

सहन िकया ह | अब उसका अत कर द | 39) ान क किठनमागर पर चलत व आपक सामन जब भारी क एव दख आय तब आप उस

सख समझो कय िक इस मागर म क एव दख ही िनतयानद ा करन म िनिम बनत ह | अतः उन क दख और आघात स िकसी भी कार साहसहीन मत बनो िनराश मत बनो | सदव आग

बढ़त रहो | जब तक अपन सतयःवरप को यथाथर रप स न जान लो तब तक रको नही | 40) ःवपनावःथा म आप शर को दखत ह और ड़रत ह िक वह आपको खा जायगा | परत आप

िजसको दखत ह वह शर नही आप ःवय ह | शर आपकी क पना क अितिर और कछ नही | इस

कार जामतावःथा म भी आपका घोर-स-घोर शऽ भी ःवय आप ही ह दसरा कोई नही | थकतव

अलगाव क िवचार को अपन दय स दर हटा दो | आपस िभनन कोई िमऽ या शऽ होना कवल

ःव न-म ह | 41) अशभ का िवरोध मत करो | सदा शात रहो | जो कछ सामन आय उसका ःवागत करो चाह

आपकी इ छा की धारा स िवपरीत भी हो | तब आप दखग िक तय बराई भलाई म बदल

जायगी | 42) रािऽ म िनिाधीन होन स पहल िबःतर पर सीध सखपवरक बठ जाओ | आख बद करो | नाक

स ास लकर फ़फ़ड़ को भरपर भर दो | िफ़र उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo का लबा उ चारण करो | िफ़र स

गहरा ःवास लकर lsquoॐhelliprsquo का लबा उ चारण करो | इस कार दस िमनट तक करो | कछ ही िदन

क िनयिमत योग क बाद इसक चमतकार का अनभव होगा | रािऽ की नीद साधना म पिरणत हो जायगी | िदल-िदमाग म शाित एव आनद की वषार होगी | आपकी लौिकक िनिा योगिनिा म बदल

जयगी | 43) हट जाओ ओ सक प और इ छाओ हट जाओ तम ससार की णभगर शसा एव धन-

स पि क साथ स बध रखती हो | शरीर चाह कसी भी दशा म रह उसक साथ मरा कोई सरोकार नही | सब शरीर मर ही ह | 44) िकसी भी तरह समय िबतान क िलय मज़दर की भाित काम मत करो | आनद क िलय

उपयोगी कसरत समझकर सख बीड़ा या मनोरजक खल समझकर एक कलीन राजकमार की भाित काम करो | दब हए कचल हए िदल स कभी कोई काम हाथ म मत लो | 45) समम ससार को जो अपना शरीर समझत ह तयक यि को जो अपना आतमःवरप

समझत ह ऐस ानी िकसस असनन ह ग उनक िलय िव प कहा रहा 46) ससार की तमाम वःतऐ सखद ह या भयानक वाःतव म तो त हारी फ़लता और आनद क

िलय ही कित न बनाई ह | उनस ड़रन स कया लाभ त हारी नादानी ही त ह चककर म ड़ालती ह

| अनयथा त ह नीचा िदखान वाला कोई नही | पकका िन य रखो िक यह जगत त हार िकसी शऽ न नही बनाया | त हार ही आतमदव का यह सब िवलास ह | 47) महातमा व ह िजनकी िवशाल सहानभित एव िजनका मातवत दय सब पािपय को दीन-

दिखय को म स अपनी गोद म ःथान दता ह | 48) यह िनयम ह िक भयभीत ाणी ही दसर को भयभीत करता ह | भयरिहत हए िबना अिभननता आ नही सकती अिभननता क िबना वासनाओ का अत स भव नही ह और िनवारसिनकता क िबना िनवरता समता मिदता आिद िद य गण कट नही होत | जो बल दसर

की दबरलता को दर ना कर सक वह वाःतव म बल नही | 49) धयान म बठन स पहल अपना समम मानिसक िचतन तथा बाहर की तमाम स पि ई र क

या सदगर क चरण म अपरण करक शात हो जाओ | इसस आपको कोई हािन नही होगी | ई र आपकी स पि दह ाण और मन की र ा करग | ई र अपरण बि स कभी हािन नही होती |

इतना ही नही दह ाण म नवजीवन का िसचन होता ह | इसस आप शाित व आनद का ोत

बनकर जीवन को साथरक कर सक ग | आपकी और पर िव की वाःतिवक उननित होगी | 50) कित सननिच एव उ ोगी कायरकतार को हर कार स सहायता करती ह | 51) सननमख रहना यह मोितय का खज़ाना दन स भी उ म ह | 52) चाह करोड़ सयर का लय हो जाय चाह अस य चनिमा िपघलकर न हो जाय परत ानी महापरष अटल एव अचल रहत ह | 53) भौितक पदाथ को सतय समझना उनम आसि रखना दख-ददर व िचताओ को आमऽण

दन क समान ह | अतः बा नाम-रप पर अपनी शि व समय को न करना यह बड़ी गलती ह |

54) जब आपन यि तव िवषयक िवचार का सवरथा तयाग कर िदया जाता ह तब उसक समान

अनय कोई सख नही उसक समान ौ अनय कोई अवःथा नही | 55) जो लोग आपको सबस अिधक हािन पहचान का यास करत ह उन पर कपापणर होकर ममय िचतन कर | व आपक ही आतमःवरप ह | 56) ससार म कवल एक ही रोग ह | सतय जगिनमथया - इस वदाितक िनयम का भग ही सवर यािधय का मल ह | वह कभी एक दख का रप लता ह तो कभी दसर दख का | इन सवर यािधय

की एक ही दवा ह अपन वाःतिवक ःवरप तव म जाग जाना | 57) ब धयानःथ बठ थ | पहाड़ पर स एक िशलाखड़ लढ़कता हआ आ रहा था | ब पर िगर इसस पहल ही वह एक दसर िशलाखड़ क साथ टकराया | भयकर आवाज़ क साथ उसक दो भाग

हो गय | उसन अपना मागर बदल िलया | धयानःथ ब की दोन तरफ़ स दोन भाग गज़र गय |

ब बच गय | कवल एक छोटा सा ककड़ उनक पर म लगा | पर स थोड़ा खन बहा | ब ःवःथता स उठ खड़ हए और िशय स कहा ldquoभी ओ स यक समािध का यह वलत माण ह | म यिद धयान-समािध म ना होता तो िशलाखड़ न मझ कचल िदया होता | लिकन ऐसा ना होकर उसक दो भाग हो गय | उसम स िसफ़र एक छोटा-सा ककड़ ऊछलकर मर पर म लगा | यह जो छोटा-सा ज़ म हआ ह वह धयान की पणरता म रही हई कछ नयनता का पिरणाम ह | यिद धयान पणर होता तो इतना भी ना लगता |rdquo 58) कहा ह वह तलवार जो मझ मार सक कहा ह वह श जो मझ घायल कर सक कहा ह वह

िवपि जो मरी सननता को िबगाड़ सक कहा ह वह दख जो मर सख म िव न ड़ाल सक मर सब भय भाग गय | सब सशय कट गय | मरा िवजय-ाि का िदन आ पहचा ह | कोई ससािरक

तरग मर िनछल िच को आदोिलत नही कर सकती | इन तरग स मझ ना कोई लाभ ह ना हािन

ह | मझ शऽ स ष नही िमऽ स राग नही | मझ मौत का भय नही नाश का ड़र नही जीन की वासना नही सख की इ छा नही और दख स ष नही कय िक यह सब मन म रहता ह और मन

िमथया क पना ह | 59) स पणर ःवाःथय की अजीब यि रोज सबह तलसी क पाच प चबाकर एक लास बासी पानी पी लो | िफ़र जरा घम लो दौड़ लो या कमर म ही पज क बल थोड़ा कद लो | नहा-धोकर ःवःथ शानत होकर एकात म बठ जाओ | दस बारह गहर-गहर ास लो | आग-पीछ क कतर य

स िनि त हो जाओ | आरो यता आनद सख शािनत दान करनवाली िवचारधारा को िच म बहन दो | िबमारी क िवचार को हटाकर इस कार की भावना पर मन को ढ़ता स एकाम करो िक

मर अदर आरो यता व आनद का अनत ोत वािहत हो रहा हhellip मर अतराल म िद यामत का महासागर लहरा रहा ह | म अनभव कर रहा ह िक समम सख आरो यता शि मर भीतर ह | मर मन म अननत शि और सामथयर ह | म ःवःथ ह | पणर सनन ह | मर अदर-बाहर सवरऽ

परमातमा का काश फ़ला हआ ह | म िव प रिहत ह | सब नद स म ह | ःवग य सख मर अदर ह | मरा दय परमातमा का ग दश ह | िफ़र रोग-शोक वहा कस रह सकत ह म दवी ओज क मड़ल म िव हो चका ह | वह मर ःवाःथय का दश ह | म तज का पज ह | आरो यता का अवतार ह | याद रखो आपक अतःकरण म ःवाःथय सख आनद और शािनत ई रीय वरदान क रप म िव मान ह | अपन अतःकरण की आवाज़ सनकर िनशक जीवन यतीत करो | मन म स कि पत

रोग क िवचार को िनकाल दो | तयक िवचार भाव श द और कायर को ई रीय शि स पिरपणर रखो | ॐकार का सतत गजन करो | सबह-शाम उपरो िवचार का िचतन-मनन करन स िवशष लाभ होगा | ॐ आनदhellip ॐ शाितhellip

पणर ःवःथhellip पणर सननhellip 60) भय कवल अ ान की छाया ह दोष की काया ह मनय को धमरमागर स िगरान वाली आसरी माया ह | 61) याद रखो चाह समम ससार क तमाम पऽकार िननदक एकिऽत होकर आपक िवरध

आलोचन कर िफ़र भी आपका कछ िबगाड़ नही सकत | ह अमर आतमा ःवःथ रहो | 62) लोग ायः िजनस घणा करत ह ऐस िनधरन रोगी इतयािद को सा ात ई र समझकर उनकी सवा करना यह अननय भि एव आतम ान का वाःतिवक ःवरप ह | 63) रोज ातः काल उठत ही ॐकार का गान करो | ऐसी भावना स िच को सराबोर कर दो िक

lsquoम शरीर नही ह | सब ाणी कीट पतग गनधवर म मरा ही आतमा िवलास कर रहा ह | अर उनक

रप म म ही िवलास कर रहा ह | rsquo भया हर रोज ऐसा अ यास करन स यह िस ात दय म िःथर हो जायगा | 64) मी आग-पीछ का िचनतन नही करता | वह न तो िकसी आशका स भयभीत होता ह और न

व रमान पिरिःथित म माःपद म ीित क िसवाय अनय कही आराम पाता ह |

65) जस बालक ितिब ब क आौयभत दपरण की ओर धयान न दकर ितिब ब क साथ खलता ह जस पामर लोग यह समम ःथल पच क आौयभत आकाश की ओर धयान न दकर कवल

ःथल पच की ओर धयान दत ह वस ही नाम-रप क भ ःथल ि क लोग अपन दभार य क

कारण समम ससार क आौय सि चदाननद परमातमा का धयान न करक ससार क पीछ पागल

होकर भटकत रहत ह | 66) इस स पणर जगत को पानी क बलबल की तरह णभगर जानकर तम आतमा म िःथर हो जाओ | तम अ त ि वाल को शोक और मोह कस 67) एक आदमी आपको दजरन कहकर पिरि छनन करता ह तो दसरा आपको स जन कहकर भी पिरि छनन ही करता ह | कोई आपकी ःतित करक फला दता ह तो कोई िननदा करक िसकड़ा दता ह | य दोन आपको पिरि छनन बनात ह | भा यवान तो वह परष ह जो तमाम बनधन क िवर

खड़ा होकर अपन दवतव की अपन ई रतव की घोषणा करता ह अपन आतमःवरप का अनभव

करता ह | जो परष ई र क साथ अपनी अभदता पहचान सकता ह और अपन इदरिगदर क लोग क

सम समम ससार क सम िनडर होकर ई रतव का िनरपण कर सकता ह उस परष को ई र मानन क िलय सारा ससार बाधय हो जाता ह | परी सि उस अवय परमातमा मानती ह | 68) यह ःथल भौितक पदाथर इिनिय की ाित क िसवाय और कछ नही ह | जो नाम व रप पर भरोसा रखता ह उस सफलता नही िमलती | सआम िस ात अथारत सतय आतम-ततव पर िनभरर रहना ही सफलता की कजी ह | उस महण करो उसका मनन करो और यवहार करो | िफर नाम-

रप आपको खोजत िफरग | 69) सख का रहःय यह ह आप य - य पदाथ को खोजत-िफरत हो तय -तय उनको खोत

जात हो | आप िजतन कामना स पर होत हो उतन आवयकताओ स भी पर हो जात हो और पदाथर भी आपका पीछा करत हए आत ह | 70) आननद स ही सबकी उतपि आननद म ही सबकी िःथित एव आननद म ही सबकी लीनता दखन स आननद की पणरता का अनभव होता ह | 71) हम बोलना चहत ह तभी श दो चारण होता ह बोलना न चाह तो नही होता | हम दखना चाह तभी बाहर का य िदखता ह नऽ बद कर ल तो नही िदखता | हम जानना चाह तभी पदाथर का ान होता ह जानना नही चाह तो ान नही होता | अतः जो कोई पदाथर दखन सनन या जानन म

आता ह उसको बािधत करक बािधत करनवाली ानरपी बि की वि को भी बािधत कर दो | उसक बाद जो शष रह वह ाता ह | ाततव धमररिहत श ःवरप ाता ही िनतय सि चदाननद

ह | िनरतर ऐसा िववक करत हए ान व यरिहत कवल िचनमय िनतय िव ानाननदघनरप

म िःथर रहो | 72) यिद आप सवागपणर जीवन का आननद लना चाहत हो तो कल की िचनता छोड़ो | अपन चार

ओर जीवन क बीज बोओ | भिवय म सनहर ःवपन साकार होत दखन की आदत बनाओ | सदा क

िलय मन म यह बात पककी बठा दो िक आपका आनवाला कल अतयनत काशमय आननदमय

एव मधर होगा | कल आप अपन को आज स भी अिधक भा यवान पायग | आपका मन

सजरनातमक शि स भर जायगा | जीवन ऐ यरपणर हो जायगा | आपम इतनी शि ह िक िव न

आपस भयभीत होकर भाग खड़ ह ग | ऐसी िवचारधारा स िनि त रप स क याण होगा | आपक

सशय िमट जायग | 73) ओ मानव त ही अपनी चतना स सब वःतओ को आकषरक बना दता ह | अपनी यार भरी ि उन पर डालता ह तब तरी ही चमक उन पर चढ़ जाती ह औरhellipिफर त ही उनक यार म फ़स जाता ह | 74) मन िविचऽ एव अटपट माग ारा ऐस ततव की खोज की जो मझ परमातमा तक पहचा सक | लिकन म िजस-िजस नय मागर पर चला उन सब माग स पता चला िक म परमातमा स दर चला गया | िफर मन बि म ा एव िव ा स परमातमा की खोज की िफर भी परमातमा स अलग रहा | मनथालय एव िव ालय न मर िवचार म उ टी गड़बड़ कर दी | म थककर बठ गया | िनःत ध हो गया | सयोगवश अपन भीतर ही झाका धयान िकया तो उस अनत रि स मझ सवरःव िमला िजसकी खोज म बाहर कर रहा था | मरा आतमःवरप सवरऽ या हो रहा ह | 75) जस सामानय मनय को पतथर गाय भस ःवाभािवक रीित स ि गोचर होत ह वस ही ानी को िनजाननद का ःवाभािवक अनभव होता ह | 76) वदानत का यह अनभव ह िक नीच नराधम िपशाच शऽ कोई ह ही नही | पिवऽ ःवरप ही सवर रप म हर समय शोभायमान ह | अपन-आपका कोई अिन नही करता |

मर िसवा और कछ ह ही नही तो मरा अिन करन वाला कौन ह मझ अपन-आपस भय कसा 77) यह चराचर सि रपी त तब तक भासता ह जब तक उस दखनवाला मन बठा ह |

मन शात होत ही त की गध तक नही रहती |

78) िजस कार एक धाग म उ म मधयम और किन फल िपरोय हए ह उसी कार मर आतमःवरप म उ म मधयम और किन शरीर िपरोय हए ह | जस फल की गणव ा का भाव धाग पर नही पड़ता वस ही शरीर की गणव ा का भाव मरी सवर यापकता नही पड़ता | जस सब फल क िवनाश स धाग को कोई हािन नही वस शरीर क िवनाश स मझ सवरगत आतमा को कोई हािन नही होती | 79) म िनमरल िन ल अननत श अजर अमर ह | म असतयःवरप दह नही | िस परष इसीको lsquo ानrsquo कहत ह | 80) म भी नही और मझस अलग अनय भी कछ नही | सा ात आननद स पिरपणर कवल िनरनतर और सवरऽ एक ही ह | उ ग छोड़कर कवल यही उपासना सतत करत रहो | 81) जब आप जान लग िक दसर का िहत अपना ही िहत करन क बराबर ह और दसर का अिहत करना अपना ही अिहत करन क बराबर ह तब आपको धमर क ःवरप का सा तकार हो जायगा | 82) आप आतम-ित ा दलबनदी और ईयार को सदा क िलए छोड़ दो | पथवी माता की तरह सहनशील हो जाओ | ससार आपक कदम म नयोछावर होन का इतज़ार कर रहा ह | 83) म िनगरण िनिबय िनतय म और अ यत ह | म असतयःवरप दह नही ह | िस परष इसीको lsquo ानrsquo कहत ह | 84) जो दसर का सहारा खोजता ह वह सतयःवरप ई र की सवा नही कर सकता | 85) सतयःवरप महापरष का म सख-दःख म समान रहता ह सब अवःथाओ म हमार अनकल रहता ह | दय का एकमाऽ िवौामःथल वह म ह | व ावःथा उस आतमरस को सखा नही सकती | समय बदल जान स वह बदलता नही | कोई िवरला भा यवान ही ऐस िद य म का भाजन बन सकता ह | 86) शोक और मोह का कारण ह ािणय म िविभनन भाव का अधयारोप करना | मनय जब एक को सख दनवाला यारा स द समझता ह और दसर को दःख दनवाला शऽ समझकर उसस ष करता ह तब उसक दय म शोक और मोह का उदय होना अिनवायर

ह | वह जब सवर ािणय म एक अख ड स ा का अनभव करन लगगा ािणमाऽ को भ का पऽ समझकर उस आतमभाव स यार करगा तब उस साधक क दय म शोक और मोह का नामोिनशान नही रह जायगा | वह सदा सनन रहगा | ससार म उसक िलय न ही कोई शऽ रहगा और न ही कोई िमऽ | उसको कोई कलश नही पहचायगा | उसक सामन िवषधर नाग भी अपना ःवभाव भल जायगा | 87) िजसको अपन ाण की परवाह नही मतय का नाम सनकर िवचिलत न होकर उसका ःवागत करन क िलए जो सदा ततपर ह उसक िलए ससार म कोई कायर असाधय नही | उस िकसी बा श की जररत नही साहस ही उसका श ह | उस श स वह अनयाय का प लनवाल को परािजत कर दता ह िफर भी उनक िलए बर िवचार का सवन नही करता | 88) िचनता ही आननद व उ लास का िवधवस करनवाली रा सी ह | 89) कभी-कभी मधयरािऽ को जाग जाओ | उस समय इिनिया अपन िवषय क ित चचल नही रहती | बिहमरख ःफरण की गित मनद होती ह | इस अवःथा का लाभ लकर इिनियातीत अपन िचदाकाश ःवरप का अनभव करो | जगत शरीर व इिनिय क अभाव म भी अपन अख ड अिःततव को जानो | 90) य म ीित नही रहना ही असली वरा य ह | 91) रोग हम दबाना चाहता ह | उसस हमार िवचार भी मनद हो जात ह | अतः रोग की िनवित करनी चिहए | लिकन जो िवचारवान परष ह वह कवल रोगिनवित क पीछ ही नही लग जाता | वह तो यह िनगरानी रखता ह िक भयकर दःख क समय भी अपना िवचार छट तो नही गया ऐसा परष lsquoहाय-हायrsquo करक ाण नही तयागता कय िक वह जानता ह िक रोग उसका दास ह | रोग कसा भी भय िदखाय लिकन िवचारवान परष इसस भािवत नही होता | 92) िजस साधक क पास धारणा की ढ़ता एव उ य की पिवऽता य दो गण ह ग वह अवय िवजता होगा | इन दो शा स ससि जत साधक समःत िव न-बाधाओ का सामना करक आिखर म िवजयपताका फहरायगा | 93) जब तक हमार मन म इस बात का पकका िन य नही होगा िक सि शभ ह तब तक मन एकाम नही होगा | जब तक हम समझत रहग िक सि िबगड़ी हई ह तब तक

मन सशक ि स चार ओर दौड़ता रहगा | सवरऽ मगलमय ि रखन स मन अपन-आप शात होन लगगा | 94) आसन िःथर करन क िलए सक प कर िक जस पथवी को धारण करत हए भी शषजी िब कल अचल रहत ह वस म भी अचल रहगा | म शरीर और ाण का ा ह | 95) lsquoससार िमथया हrsquo - यह मद ानी की धारणा ह | lsquoससार ःव नवत हrsquo - यह मधयम ानी की धारणा ह | lsquoससार का अतयनत अभाव ह ससार की उतपि कभी हई ही नहीrsquo -

यह उ म ानी की धारणा ह | 96) आप यिद भि मागर म ह तो सारी सि भगवान की ह इसिलए िकसीकी भी िननदा करना ठ क नही | आप यिद ानमागर म ह तो यह सि अपना ही ःवरप ह | आप अपनी ही िननदा कस कर सकत ह इस कार द नो माग म परिननदा का अवकाश ही नही ह | 97) य म ा का भान एव ा म य का भान हो रहा ह | इस गड़बड़ का नाम ही अिववक या अ ान ह | ा को ा तथा य को य समझना ही िववक या ान ह | 98) आसन व ाण िःथर होन स शरीर म िव त पदा होती ह | शरीर क ारा जब भी िबया की जाती ह तब वह िव त बाहर िनकल जाती ह | इस िव त को शरीर म रोक लन स शरीर िनरोगी बन जाता ह | 99) ःव न की सि अ पकालीन और िविचऽ होती ह | मनय जब जागता ह तब जानता ह िक म पलग पर सोया ह | मझ ःव न आया | ःव न म पदाथर दश काल िबया इतयािद परी सि का सजरन हआ | लिकन मर िसवाय और कछ भी न था | ःव न की सि झठ थी | इसी कार ततव ानी परष अ ानरपी िनिा स ानरपी जामत अवःथा को ा हए ह | व कहत ह िक एक क िसवा अनय कछ ह ही नही | जस ःव न स जागन क बाद हम ःव न की सि िमथया लगती ह वस ही ानवान को यह जगत िमथया लगता ह | 100) शारीिरक क पड़ तब ऐसी भावना हो जाय िक lsquoयह क मर यार भ की ओर स हhelliprsquo तो वह क तप का फल दता ह | 101) चलत-चलत पर म छाल पड़ गय ह भख याकल कर रही हो बि िवचार

करन म िशिथल हो गई हो िकसी पड़ क नीच पड़ ह जीवन अस भव हो रहा हो मतय का आगमन हो रहा हो तब भी अनदर स वही िनभरय धविन उठ lsquoसोऽहमhellipसोऽहमhellipमझ भय नहीhellipमरी मतय नहीhellipमझ भख नहीhellip यास नहीhellip कित की कोई भी यथा मझ न नही कर सकतीhellipम वही हhellipवही हhelliprsquo 102) िजनक आग िय-अिय अनकल-ितकल सख-दःख और भत-भिवय एक समान ह ऐस ानी आतमव ा महापरष ही स च धनवान ह | 103) दःख म दःखी और सख म सखी होन वाल लोह जस होत ह | दःख म सखी रहन वाल सोन जस होत ह | सख-दःख म समान रहन वाल र जस होत ह परनत जो सख-दःख की भावना स पर रहत ह व ही स च साट ह | 104) ःव न स जाग कर जस ःव न को भल जात ह वस जामत स जागकर थोड़ी दर क

िलए जामत को भल जाओ | रोज ातः काल म पनिह िमनट इस कार ससार को भल जान की आदत डालन स आतमा का अनसधान हो सकगा | इस योग स सहजावःथा ा होगी | 105) तयाग और म स यथाथर ान होता ह | दःखी ाणी म तयाग व म िवचार स आत ह

| सखी ाणी म तयाग व म सवा स आत ह कय िक जो ःवय दःखी ह वह सवा नही कर सकता पर िवचार कर सकता ह | जो सखी ह वह सख म आस होन क कारण उसम िवचार का उदय नही हो सकता लिकन वह सवा कर सकता ह | 106) लोग की पजा व णाम स जसी सननता होती ह वसी ही सननता जब मार पड़

तब भी होती हो तो ही मन य िभ ानन महण करन का स चा अिधकारी माना जाता ह | 107) हरक साधक को िब कल नय अनभव की िदशा म आग बढ़ना ह | इसक िलय

ानी महातमा की अतयनत आवयकता होती ह | िजसको स ची िज ासा हो उस ऐस

महातमा िमल ही जात ह | ढ़ िज ासा स िशय को गर क पास जान की इ छा होती ह | यो य

िज ास को समथर गर ःवय दशरन दत ह | 108) बीत हए समय को याद न करना भिवय की िचनता न करना और व रमान म ा

सख-दःखािद म सम रहना य जीवनम परष क ल ण ह | 109) जब बि एव दय एक हो जात ह तब सारा जीवन साधना बन जाता ह |

110) बि मान परष ससार की िचनता नही करत लिकन अपनी मि क बार म सोचत ह |

मि का िवचार ही तयागी दानी सवापरायण बनाता ह | मो की इ छा स सब सदगण आ जात ह

| ससार की इ छा स सब दगरण आ जात ह | 111) पिरिःथित िजतनी किठन होती ह वातावरण िजतना पीड़ाकारक होता ह उसस

गजरन वाला उतना ही बलवान बन जाता ह | अतः बा क और िचनताओ का ःवागत करो | ऐसी पिरिःथित म भी वदानत को आचरण म लाओ | जब आप वदानती जीवन यतीत करग तब दखग

िक समःत वातावरण और पिरिःथितया आपक वश म हो रही ह आपक िलय उपयोगी िस हो रही ह | 112) हरक पदाथर पर स अपन मोह को हटा लो और एक सतय पर एक तथय पर अपन

ई र पर समम धयान को किनित करो | तरनत आपको आतम-सा ातकार होगा | 113) जस बड़ होत-होत बचपन क खलकद छोड़ दत हो वस ही ससार क खलकद छोड़कर आतमाननद का उपभोग करना चािहय | जस अनन व जल का सवन करत हो वस ही आतम-

िचनतन का िनरनतर सवन करना चािहय | भोजन ठ क स होता ह तो ति की डकार आती ह वस

ही यथाथर आतमिचनतन होत ही आतमानभव की डकार आयगी आतमाननद म मःत ह ग |

आतम ान क िसवा शाित का कोई उपाय नही | 114) आतम ानी क हकम स सयर काशता ह | उनक िलय इनि पानी बरसाता ह | उनही क

िलय पवन दत बनकर गमनागमन करता ह | उनही क आग समि रत म अपना िसर रगड़ता ह | 115) यिद आप अपन आतमःवरप को परमातमा समझो और अनभव करो तो आपक सब

िवचार व मनोरथ सफल ह ग उसी ण पणर ह ग | 116) राजा-महाराजा दवी-दवता वद-पराण आिद जो कछ ह व आतमदश क सक पमाऽ

ह | 117) जो लोग ितकलता को अपनात ह ई र उनक स मख रहत ह | ई र िजनह अपन

स दर रखना चाहत ह उनह अनकल पिरिःथितया दत ह | िजसको सब वःतए अनकल एव पिवऽ

सब घटनाए लाभकारी सब िदन शभ सब मनय दवता क रप म िदखत ह वही परष ततवदश ह | 118) समता क िवचार स िच ज दी वश म होता ह हठ स नही |

119) ऐस लोग स स बनध रखो िक िजसस आपकी सहनशि बढ़ समझ की शि बढ़

जीवन म आन वाल सख-दःख की तरग का आपक भीतर शमन करन की ताकत आय समता बढ़

जीवन तजःवी बन | 120) लोग बोलत ह िक धयान व आतमिचनतन क िलए हम फरसत नही िमलती | लिकन

भल मनय जब नीद आती ह तब सब महतवपणर काम भी छोड़कर सो जाना पड़ता ह िक नही

जस नीद को महतव दत हो वस ही चौबीस घनट म स कछ समय धयान व आतमिचनतन म भी िबताओ | तभी जीवन साथरक होगा | अनयथा कछ भी हाथ नही लगगा | 121) भल जाओ िक तम मनय हो अमक जाित हो अमक उ हो अमक िड़मीवाल हो अमक धनधवाल हो | तम िनगरण िनराकार सा ीरप हो ऐसा ढ़ िन य करो | इसीम तमाम

कार की साधनाए िबयाए योगािद समािव हो जात ह | आप सवर यापक अख ड चतनय हो | सार ान का यह मल ह | 122) दोष तभी िदखता जब हमार लोचन म क अभावरप पीिलया रोग स मःत होत ह | 123) साधक यिद अ यास क मागर पर उसी कार आग बढ़ता जाय िजस कार ार भ

म इस मागर पर चलन क िलए उतसाहपवरक कदम रखा था तो आयरपी सयर अःत होन स पहल

जीवनरपी िदन रहत ही अवय सोऽहम िसि क ःथान तक पहच जाय | 124) लोग ज दी स उननित कय नही करत कय िक बाहर क अिभाय एव िवचारधाराओ का बहत बड़ा बोझ िहमालय की तरह उनकी पीठ पर लदा हआ ह | 125) अपन ित होन वाल अनयाय को सहन करत हए अनयायकतार को यिद मा कर िदया जाय तो ष म म पिरणत हो जाता ह | 126) साधना की शरआत ौ ा स होती ह लिकन समाि ान स होनी चािहय | ान मान

ःवयसिहत सवर ःवरप ह ऐसा अपरो अनभव | 127) अपन शरीर क रोम-रोम म स ॐ का उ चारण करो | पहल धीम ःवर म ार भ

करो | शर म धविन गल स िनकलगी िफर छाती स िफर नािभ स और अनत म रीढ़ की ह डी क

आिखरी छोर स िनकलगी | तब िव त क धकक स सष ना नाड़ी तरनत खलगी | सब कीटाणसिहत

तमाम रोग भाग खड़ ह ग | िनभरयता िह मत और आननद का फ वारा छटगा | हर रोज ातःकाल

म ःनानािद करक सय दय क समय िकसी एक िनयत ःथान म आसन पर पवारिभमख बठकर

कम-स-कम आधा घनटा करक तो दखो | 128) आप जगत क भ बनो अनयथा जगत आप पर भतव जमा लगा | ान क

मतािबक जीवन बनाओ अनयथा जीवन क मतािबक ान हो जायगा | िफर यग की याऽा स भी दःख का अनत नही आयगा | 129) वाःतिवक िश ण का ारभ तो तभी होता ह जब मनय सब कार की सहायताओ स िवमख होकर अपन भीतर क अननत ॐोत की तरफ अमसर होता ह | 130) य पच की िनवित क िलए अनतःकरण को आननद म सरोबार रखन क िलए

कोई भी कायर करत समय िवचार करो म कौन ह और कायर कौन कर रहा ह भीतर स जवाब

िमलगा मन और शरीर कायर करत ह | म सा ीःवरप ह | ऐसा करन स कतारपन का अह

िपघलगा सख-दःख क आघात मनद ह ग | 131) राग- ष की िनवित का कया उपाय ह उपाय यही ह िक सार जगत-पच को मनोरा य समझो | िननदा-ःतित स राग- ष स पच म सतयता ढ़ होती ह | 132) जब कोई खनी हाथ आपकी गरदन पकड़ ल कोई श धारी आपको कतल करन क

िलए ततपर हो जाय तब यिद आप उसक िलए सननता स तयार रह दय म िकसी कार का भय

या िवषाद उतपनन न हो तो समझना िक आपन राग- ष पर िवजय ा कर िलया ह | जब आपकी ि पड़त ही िसहािद िहसक जीव की िहसावित गायब हो जाय तब समझना िक अब राग- ष का अभाव हआ ह | 133) आतमा क िसवाय अनय कछ भी नही ह - ऐसी समझ रखना ही आतमिन ा ह | 134) आप ःव न ा ह और यह जगत आपका ही ःव न ह | बस िजस ण यह ान हो जायगा उसी ण आप म हो जाएग | 135) िदन क चौबीस घ ट को साधनामय बनान क िलय िनक मा होकर यथर िवचार करत हए मन को बार-बार सावधान करक आतमिचतन म लगाओ | ससार म सल न मन को वहा स उठा कर आतमा म लगात रहो | 136) एक बार सागर की एक बड़ी तरग एक बलबल की िता पर हसन लगी | बलबल न

कहा ओ तरग म तो छोटा ह िफर भी बहत सखी ह | कछ ही दर म मरी दह टट जायगी िबखर

जायगी | म जल क साथ जल हो जाऊगा | वामन िमटकर िवराट बन जाऊगा | मरी मि बहत

नजदीक ह | मझ आपकी िःथित पर दया आती ह | आप इतनी बड़ी हई हो | आपका छटकारा ज दी नही होगा | आप भाग-भागकर सामनवाली च टान स टकराओगी | अनक छोटी-छोटी तरग

म िवभ हो जाओगी | उन अस य तरग म स अननत-अननत बलबल क रप म पिरवितरत हो जाओगी | य सब बलबल फटग तब आपका छटकारा होगा | बड़ पन का गवर कय करती हो जगत की उपलि धय का अिभमान करक परमातमा स दर मत जाओ | बलबल की तरह सरल

रहकर परमातमा क साथ एकता का अनभव करो | 137) जब आप ईयार ष िछिानवषण दोषारोपण घणा और िननदा क िवचार िकसीक

ित भजत ह तब साथ-ही-साथ वस ही िवचार को आमिऽत भी करत ह | जब आप अपन भाई की आख म ितनका भ कत ह तब अपनी आख म भी आप ताड़ भ क रह ह | 138) शरीर अनक ह आतमा एक ह | वह आतमा-परमातमा मझस अलग नही | म ही कतार सा ी व नयायधीश ह | म ही ककर श आलोचक ह और म ही मधर शसक ह | मर िलय तयक

यि ःवतऽ व ःव छनद ह | बनधन पिरि छननता और दोष मरी ि म आत ही नही | म म

हपरम म ह और अनय लोग भी ःवतऽ ह | ई र म ही ह | आप भी वही हो | 139) िजस कार बालक अपनी परछा म बताल की क पना कर भय पाता ह उसी कार जीव अपन ही सक प स भयभीत होता ह और क पाता ह | 140) कभी-कभी ऐसी भावना करो िक आपक सामन चतनय का एक महासागर लहरा रहा ह | उसक िकनार खड़ रह कर आप आनद स उस दख रह ह | आपका शरीर सागर की सतह पर घमन गया ह | आपक दखत ही दखत वह सागर म डब गया | इस समःत पिरिःथित को दखन वाल आप सा ी आतमा शष रहत ह | इस कार सा ी रप म अपना अनभव करो | 141) यिद हम चाहत ह िक भगवान हमार सब अपराध माफ कर तो इसक िलए सगम साधना यही ह िक हम भी अपन सबिधत सब लोग क सब अपराध माफ कर द |

कभी िकसी क दोष या अपराध पर ि न डाल कय िक वाःतव म सब रप म हमारा यारा ई दव ही बीड़ा कर रहा ह |

142) पणर पिवऽता का अथर ह बा भाव स भािवत न होना | सासािरक मनोहरता एव घणा स पर रहना राजी-नाराजगी स अिवचल िकसी म भद न दखना और आतमानभव क ारा आकषरण व तयाग स अिल रहना | यही वदानत का उपिनषद का

रहःय ह | 143) ई र सा ातकार तभी होगा जब ससार की ि स तीत होन वाल बड़-स-बड़ विरय को भी मा करन का आपका ःवभाव बन जायगा | 144) चाल यवहार म स एकदम उपराम होकर दो िमनट क िलए िवराम लो |

सोचो िक lsquo म कौन ह सद -गम शरीर को लगती ह | भख- यास ाण को लगती ह |

अनकलता-ितकलता मन को लगती ह | शभ-अशभ एव पाप-प य का िनणरय बि करती ह | म न शरीर ह न ाण ह न मन ह न बि ह | म तो ह इन सबको स ा दन वाला इन सबस नयारा िनलप आतमा |rsquo 145) जो मनय िनरतर lsquoम म हhelliprsquo ऐसी भावना करता ह वह म ही ह और lsquoम ब हhelliprsquo ऐसी भावना करनवाला ब ही ह | 146) आप िनभरय ह िनभरय ह िनभरय ह | भय ही मतय ह | भय ही पाप ह | भय ही नकर ह | भय ही अधमर ह | भय ही यिभचार ह | जगत म िजतन असत या िमथया भाव ह व सब इस भयरपी शतान स पदा हए ह | 147) परिहत क िलए थोड़ा काम करन स भी भीतर की शि या जागत होती ह |

दसर क क याण क िवचारमाऽ स दय म एक िसह क समान बल आ जाता ह | 148) हम यिद िनभरय ह ग तो शर को भी जीतकर उस पाल सक ग | यिद डरग तो क ा भी हम फ़ाड़ खायगा | 149) तयक िबया तयक यवहार तयक ाणी ःवरप िदख यही सहज समािध ह | 150) जब किठनाईया आय तब ऐसा मानना िक मझ म सहन शि बढ़ान क िलए ई र न य सयोग भज ह | किठन सयोग म िह मत रहगी तो सयोग बदलन लगग |

िवषय म राग- ष रह गया होगा तो वह िवषय कसौटी क रप म आग आयग और उनस पार होना पड़गा | 151) ततव ि स न तो आपन जनम िलया न कभी लग | आप तो अनत ह सवर यापी ह िनतयम अजर-अमर अिवनाशी ह | जनम-मतय का ही गलत ह महा-

मखरतापणर ह | जहा जनम ही नही हआ वहा मतय हो ही कस सकती ह 152) आप ही इस जगत क ई र हो | आपको कौन दबरल बना सकता ह जगत म आप ही एकमाऽ स ा हो | आपको िकसका भय खड़ हो जाओ | म हो जाओ | ठ क स समझ लो िक जो कोई िवचार या श द आपको दबरल बनाता ह वही एकमाऽ अशभ ह | मनय को दबरल व भयभीत करनवाला जो कछ इस ससार म ह वह पाप ह | 153) आप अपना कायर या कतर य करो लिकन न उसक िलए कोई िचनता रह न ही कोई

इ छा | अपन कायर म सख का अनभव करो कय िक आपका कायर ःवय सख या िवौाम ह | आपका कायर आतमानभव का ही दसरा नाम ह | कायर म लग रहो | कायर आपको आतमानभव कराता ह |

िकसी अनय हत स कायर न करो | ःवतऽ वि स अपन कायर पर डट जाओ | अपन को ःवतऽ

समझो िकसीक कदी नही | 154) यिद आप सतय क मागर स नही हटत तो शि का वाह आपक साथ ह समय आपक

साथ ह ऽ आपक साथ ह | लोग को उनक भतकाल की मिहमा पर फलन दो भिवयकाल की स पणर मिहमा आपक हाथ म ह | 155) जब आप िद य म क साथ चा डाल म चोर म पापी म अ यागत म और सबम भ क दशरन करग तब आप भगवान ौी कण क मपाऽ बन जायग | 156) आचायर गौड़पाद न ःप कहा आप सब आपस म भल ही लड़त रह लिकन मर साथ नही लड़ सक ग | आप सब लोग मर पट म ह | म आतमःवरप स सवर या ह | 157) मनय सभी ािणय म ौ ह सब दवताओ स भी ौ ह | दवताओ को भी िफर स

धरती पर आना पड़गा और मनय शरीर ा करक मि ा करनी होगी | 158) िनि नतता क दो सऽ जो कायर करना जररी ह उस परा कर दो | जो िबनजररी ह

उस भल जाओ | 159) सवा-म-तयाग ही मनय क िवकास का मल मऽ ह | अगर यह मऽ आपको जच

जाय तो सभी क ित सदभाव रखो और शरीर स िकसी-न-िकसी यि को िबना िकसी मतलब क

सहयोग दत रहो | यह नही िक जब मरी बात मानग तब म सवा करगा | अगर बनधक मरी बात

नही मानत तो म सवा नही करगा |

भाई तब तो तम सवा नही कर पाओग | तब तो तम अपनी बात मनवा कर अपन अह की पजा ही

करोग | 160) जस ःव न िमथया ह वस ही यह जामत अवःथा भी ःव नवत ही ह िमथया ह | हरक

को अपन इस ःव न स जागना ह | सदगर बार-बार जगा रह ह लिकन जाग कर वापस सो न जाए ऐसा परषाथर तो हम ही करना होगा | 161) सदा सननमख रहो | मख को कभी मिलन मत करो | िन य कर लो िक आपक

िलय शोक न इस जगत म जनम नही िलया ह | आननदःवरप म िचनता का ःथान ही कहा ह 162) समम ा ड एक शरीर ह | समम ससार एक शरीर ह | जब तक आप तयक क

साथ एकता का अनभव करत रहग तब तक सब पिरिःथितया और आस-पास की चीज़ हवा और समि की लहर भी आपक प म रहगी | 163) आपको जो कछ शरीर स बि स या आतमा स कमजोर बनाय उसको िवष की तरह

ततकाल तयाग दो | वह कभी सतय नही हो सकता | सतय तो बलद होता ह पावन होता ह

ानःवरप होता ह | सतय वह ह जो शि द | 164) साधना म हमारी अिभरिच होनी चािहय साधना की तीो माग होनी चािहय | 165) दसर क दोष की चचार मत करो चाह व िकतन भी बड़ ह | िकसी क दोष की चचार करक आप उसका िकसी भी कार भला नही करत बि क उस आघात पहचात ह और साथ-ही-साथ अपन आपको भी | 166) इस ससार को सतय समझना ही मौत ह | आपका असली ःवरप तो आननदःवरप

आतमा ह | आतमा क िसवा ससार जसी कोई चीज ही नही ह | जस सोया हआ मनय ःव न म अपनी एकता नही जानता अिपत अपन को अनक करक दखता ह वस ही आननदःवरप आतमा जामत ःव न और सषि - इन तीन ःवरप को दखत हए अपनी एकता अि तीयता का अनभव

नही करता | 167) मनोजय का उपाय ह अ यास और वरा य | अ यास मान य पवरक मन को बार-बार परमातम-िचतन म लगाना और वरा य मान मन को ससार क पदाथ की ओर स वापस

लौटाना | 168) िकसी स कछ मत मागो | दन क िलय लोग आपक पीछ-पीछ घमग | मान नही

चाहोग तो मान िमलगा | ःवगर नही चाहोग तो ःवगर क दत आपक िलय िवमान लकर आयग |

उसको भी ःवीकार नही करोग तो ई र आपको अपन दय स लगायग | 169) कभी-कभी उदय या अःत होत हए सयर की ओर चलो | नदी सरोवर या समि क तट

पर अकल घमन जाओ | ऐस ःथान की मलाकात लो जहा शीतल पवन मनद-मनद चल रही हो | वहा परमातमा क साथ एकःवर होन की स भावना क ार खलत ह | 170) आप य -ही इ छा स ऊपर उठत हो तय -ही आपका इि छत पदाथर आपको खोजन

लगता ह | अतः पदाथर स ऊपर उठो | यही िनयम ह | य - य आप इ छक िभ क याचक का भाव धारण करत हो तय -तय आप ठकराय जात हो | 171) कित क तयक पदाथर को दखन क िलय काश जररी ह | इसी कार मन बि

इिनिय को अपन-अपन कायर करन क िलय आतम-काश की आवयकता ह कय िक बाहर का कोई काश मन बि इिनिय ाणािद को चतन करन म समथर नही | 172) जस ःव न ा परष को जागन क बाद ःव न क सख-दःख जनम-मरण पाप-प य

धमर-अधमर आिद ःपशर नही करत कय िक वह सब खद ही ह | खद क िसवाय ःव न म दसरा कछ

था ही नही | वस ही जीवनम ानवान परष को सख-दःख जनम-मरण पाप-प य धमर-अधमर ःपशर नही करत कय िक व सब आतमःवरप ही ह | 173) वही भमा नामक आतम योित क म रह कर भ क रही ह सअर म रह कर घर रही ह गध म रह कर रक रही ह लिकन मखर लोग शरीर पर ही ि रखत ह चतनय ततव पर नही | 174) मनय िजस ण भत-भिवय की िचनता का तयाग कर दता ह दह को सीिमत और उतपि -िवनाशशील जानकर दहािभमान को तयाग दता ह उसी ण वह एक उ चतर अवःथा म पहच जाता ह | िपजर स छटकर गगनिवहार करत हए प ी की तरह मि का अनभव करता ह | 175) समःत भय एव िचनताए आपकी इ छाओ का णाम ह | आपको भय कय लगता ह

कय िक आपको आशका रहती ह िक अमक चीज कही चली न जाय | लोग क हाःय स आप डरत

ह कय िक आपको यश की अिभलाषा ह कीितर म आसि ह | इ छाओ को ितलाजिल द दो | िफर दखो मजा कोई िज मदारी नहीकोई भय नही | 176) दखन म अतयत करप काला-कलटा कबड़ा और तज ःवभाव का मनय भी आपका ही ःवरप ह | आप इस तथय स म नही | िफर घणा कसी कोई लाव यमयी सदरी सि की

शोभा क समान अित िवलासभरी अ सरा भी आपका ही ःवरप ह | िफर आसि िकसकी

आपकी ानिनिया उनको आपस अलग करक िदखाती ह | य इिनिया झठ बोलनवाली ह | उनका कभी िव ास मत करो | अतः सब कछ आप ही हो | 177) मानव क नात हम साधक ह | साधक होन क नात सतय को ःवीकर करना हमारा ःवधमर ह | सतय यही ह िक बल दसर क िलय ह ान अपन िलय ह और िव ास परमातमा स

स बनध जोड़न क िलय ह | 178) अपनी आतमा म डब जाना यह सबस बड़ा परोपकार ह | 179) आप सदव म ह ऐसा िव ास ढ़ करो तो आप िव क उ ारक हो जात हो | आप

यिद वदानत क ःवर क साथ ःवर िमलाकर िन य करो आप कभी शरीर न थ | आप िनतय श

ब आतमा हो तो अिखल ा ड क मो दाता हो जात हो | 180) कपा करक उन ःवाथरमय उपाय और अिभाय को दर फ क दो जो आपको पिरि छनन रखत ह | सब वासनाए राग ह | यि गत या शरीरगत म आसि ह | उस फ क दो | ःवय पिवऽ हो जाओ | आपका शरीर ःवःथ और बि पणरःवरप हो जायगी | 181) यिद ससार क सख व पदाथर ा ह तो आपको कहना चािहय ओ शतान हट जा मर सामन स | तर हाथ स मझ कछ नही चािहय | तब दखो िक आप कस सखी हो जात हो परमातमा-ा िकसी महापरष पर िव ास रखकर अपनी जीवनडोरी िनःशक बन उनक चरण म सदा क िलय रख दो | िनभरयता आपक चरण की दासी बन जायगी | 182) िजसन एक बार ठ क स जान िलया िक जगत िमथया ह और ािनत स इसकी तीित

हो रही ह उसको कभी दःख नही होता | जगत म कभी आसि नही होती | जगत क िमथयातव क

िन य का नाम ही जगत का नाश ह | 183) अपन ःवरप म लीन होन माऽ स आप ससार क साट बन जायग | यह साटपद

कवल इस ससार का ही नही समःत लोक-परलोक का साटपद होगा | 184) ह जनक चाह दवािधदव महादव आकर आपको उपदश द या भगवान िवण आकर उपदश द अथवा ाजी आकर उपदश द लिकन आपको कदािप सख न होगा | जब िवषय का तयाग करोग तभी स ची शाित व आनद ा ह ग |

185) िजस भ न हम मानव जीवन दकर ःवाधीनता दी िक हम जब चाह तब धमारतमा होकर भ होकर जीवनम होकर कतकतय हो सकत ह- उस भ की मिहमा गाओ | गाओ नही तो सनो | सनो भी नही गाओ भी नही तो ःवीकार कर लो | 186) चाह समि क गहर तल म जाना पड़ सा ात मतय का मकाबला करना पड़ अपन

आतमाि क उ य की पितर क िलय अिडग रहो | उठो साहसी बनो शि मान बनो | आपको जो बल व सहायता चािहय वह आपक भीतर ही ह | 187) जब-जब जीवन स बनधी शोक और िचनता घरन लग तब-तब अपन आननदःवरप

का गान करत-करत उस मोह-माया को भगा दो | 188) जब शरीर म कोई पीड़ा या अग म ज म हो तब म आकाशवत आकाशरिहत चतन

ह ऐसा ढ़ िन य करक पीड़ा को भल जाओ | 189) जब दिनया क िकसी चककर म फस जाओ तब म िनलप िनतय म ह ऐसा ढ़

िन य करक उस चककर स िनकल जाओ | 190) जब घर-बार स बनधी कोई किठन समःया याकल कर तब उस मदारी का खल

समझकर ःवय को िनःसग जानकर उस बोझ को ह का कर दो | 191) जब बोध क आवश म आकर कोई अपमानय वचन कह तब अपन शाितमय

ःवरप म िःथर होकर मन म िकसी भी ोभ को पदा न होन दो | 192) उ म अिधकारी िज ास को चािहय िक वह व ा सदगर क पास जाकर ौ ा पवरक महावाकय सन | उसका मनन व िनिदधयासन करक अपन आतमःवरप को जान | जब

आतमःवरप का सा ातकार होता ह तब ही परम िवौािनत िमल सकती ह अनयथा नही | जब तक

व ा महापरष स महावाकय ा न हो तब तक वह मनद अिधकारी ह | वह अपन दयकमल म परमातमा का धयान कर ःमरण कर जप कर | इस धयान-जपािद क साद स उस व ा सदगर

ा ह ग | 193) मन बि िच अहकार छाया की तरह जड़ ह णभगर ह कय िक व उतपनन होत

ह और लीन भी हो जात ह | िजस चतनय की छाया उसम पड़ती ह वह परम चतनय सबका आतमा ह | मन बि िच अहकार का अभाव हो जाता ह लिकन उसका अनभव करनवाल का अभाव

कदािप नही होता |

194) आप अपनी शि को उ चाितउ च िवषय की ओर बहन दो | इसस आपक पास व

बात सोचन का समय ही नही िमलगा िजसस कामकता की गध आती हो | 195) अपराध क अनक नाम ह बालहतया नरहतया मातहतया गौहतया इतयािद |

परनत तयक ाणी म ई र का अनभव न करक आप ई रहतया का सबस बड़ा अपराध करत ह | 196) सवा करन की ःवाधीनता मनयमाऽ को ा ह | अगर वह करना ही न चाह तो अलग बात ह | सवा का अथर ह मन-वाणी-कमर स बराईरिहत हो जाना यह िव की सवा हो गई |

यथाशि भलाई कर दो यह समाज की सवा हो गई | भलाई का फल छोड़ दो यह अपनी सवा हो गई

| भ को अपना मानकर ःमित और म जगा लो यह भ की सवा हो गई | इस कार मनय

अपनी सवा भी कर सकता ह समाज की सवा भी कर सकता ह िव की सवा भी कर सकता ह

और िव र की सवा भी कर सकता ह | 197) आतमा स बाहर मत भटको अपन कनि म िःथर रहो अनयथा िगर पड़ोग | अपन-

आपम पणर िव ास रखो | आतम-कनि पर अचल रहो | िफर कोई भी चीज आपको िवचिलत नही कर सकती | 198) सदा शात िनिवरकार और सम रहो | जगत को खलमाऽ समझो | जगत स भािवत

मत हो | इसस आप हमशा सखी रहोग | िफर कछ बढ़ान की इ छा नही होगी और कछ कम होन स

दःख नही होगा | 199) समथर सदगर क सम सदा फल क भाित िखल हए रहो | इसस उनक अनदर सक प

होगा िक यह तो बहत उतसाही साधक ह सदा सनन रहता ह | उनक सामथयरवान सक प स

आपकी वह किऽम सननता भी वाःतिवक सननता म बदल जायगी | 200) यिद रोग को भी ई र का िदया मानो तो ार ध-भोग भी हो जाता ह और क तप का फल दता ह | इसस ई र-कपा की ाि होती ह | याकल मत हो | क सल और इनजकशन

आधीन मत हो | 201) साधक को चािहय िक अपन लआय को ि म रखकर साधना-पथ पर तीर की तरह

सीधा चला जाय | न इधर दख न उधर | ि यिद इधर-उधर जाती हो तो समझना िक िन ा िःथर नही ह |

202) आपन अपन जीवन म हजार ःव न दख ह ग लिकन व आपक जीवन क अश नही बन जात | इसी कार य जामत जगत क आड बर आपकी आतमा क सम कोई मह व नही रखत | 203) एक आतमा को ही जानो अनय बात को छोड़ो | धीर साधक को चािहय िक वह

सावधान होकर आतमिन ा बढ़ाय अनक श द का िचनतन व भाषण न कर कय िक वह तो कवल

मन-वाणी को पिरौम दनवाला ह असली साधना नही ह | 204) जो परष जन-समह स ऐस डर जस साप स डरता ह स मान स ऐस डर जस नकर स

डरता ह ि य स ऐस डर जस मद स डरता ह उस परष को दवतागण ा ण मानत ह | 205) जस अपन शरीर क अग पर बोध नही आता वस शऽ िमऽ व अपनी दह म एक ही आतमा को दखनवाल िववकी परष को कदािप बोध नही आता | 206) मन तो शरीर को ई रापरण कर िदया ह | अब उसकी भख- यास स मझ कया

समिपरत वःत म आस होना महा पाप ह | 207) आप यिद िद य ि पाना चहत हो तो आपको इिनिय क ऽ का तयाग करना होगा | 208) लयकाल क मघ की गजरना हो समि उमड़ पड बारह सयर तपायमान हो जाय पहाड़ स पहाड़ टकरा कर भयानक आवाज हो तो भी ानी क िन य म त नही भासता कय िक

त ह ही नही | त तो अ ानी को भासता ह | 209) सतय को ःवीकार करन स शाित िमलगी | कछ लोग यो यता क आधार पर शाित

खरीदना चाहत ह | यो यता स शाित नही िमलगी यो यता क सदपयोग स शाित िमलगी | कछ

लोग स पि क आधार पर शाित सरि त रखना चाहत ह | स पि स शाित नही िमलगी स पि

क सदपयोग स शाित िमलगी वस ही िवपि क सदपयोग स शाित िमलगी | 210) त छ हािन-लाभ पर आपका धयान इतना कय रहता ह िजसस अनत आननदःवरप

आतमा पर स धयान हट जाता ह | 211) अपन अनदर ही आननद ा करना य िप किठन ह परनत बा िवषय स आननद

ा करना तो अस भव ही ह |

212) म ससार का काश ह | काश क रप म म ही सब वःतओ म या ह | िनतय इन

िवचार का िचनतन करत रहो | य पिवऽ िवचार आपको परम पिवऽ बना दग | 213) जो वःत कमर स ा होती ह उसक िलय ससार की सहायता तथा भिवय की आशा की आवयकता होती ह परनत जो वःत तयाग स ा होती ह उसक िलय न ससार की सहायता चािहय न भिवय की आशा | 214) आपको जब तक बाहर चोर िदखता ह तब तक जरर भीतर चोर ह | जब दसर लोग

स िभनन अयो य खराब सधारन यो य िदखत ह तब तक ओ सधार का बीड़ा उठान वाल त अपनी िचिकतसा कर | 215) सफल व ही होत ह जो सदव नतमःतक एव सननमख रहत ह | िचनतातर-शोकातर लोग की उननित नही हो सकती | तयक कायर को िह मत व शाित स करो | िफर दखो िक यह

कायर शरीर मन और बि स हआ | म उन सबको स ा दनवाला चतनयःवरप ह | ॐ ॐ का पावन गान करो | 216) िकसी भी पिरिःथित म मन को यिथत न होन दो | आतमा पर िव ास करक

आतमिन बन जाओ | िनभरयता आपकी दासी बन कर रहगी | 217) सतसग स मनय को साधना ा होती ह चाह वह शाित क रप म हो चाह मि क

रप म चाह सवा क रप म हो म क रप म हो चाह तयाग क रप म हो | 218) भला-बरा वही दखता ह िजसक अनदर भला-बरा ह | दसर क शरीर को वही दखता ह

जो खद को शरीर मानता ह | 219) खबरदार आपन यिद अपन शरीर क िलय ऐश-आराम की इ छा की िवलािसता एव इिनिय-सख म अपना समय बरबाद िकया तो आपकी खर नही | ठ क स कायर करत रहन की नीित

अपनाओ | सफलता का पहला िस ात ह कायरिवौामरिहत कायरसा ी भाव स कायर | इस

िस ात को जीवन म चिरताथर करोग तो पता चलगा िक छोटा होना िजतना सरल ह उतना ही बड़ा होना भी सहज ह | 220) भतकाल पर िखनन हए िबना भिवय की िचनता िकय िबना व रमान म कायर करो | यह भाव आपको हर अवःथा म सनन रखगा हम जो कछ ा ह उसका सदपयोग ही अिधक

काश पान का साधन ह |

221) जब आप सफलता की ओर पीठ कर लत हो पिरणाम की िचनता का तयाग कर दत

हो स मख आय हए क र य पर अपनी उ ोगशि एकाम करत हो तब सफलता आपक पीछ-पीछ

आ जाती ह | अतः सफलता आपको खोजगी | 222) वि तब तक एकाम नही होगी जब तक मन म कभी एक आशा रहगी तो कभी दसरी | शात वही हो सकता ह िजस कोई क र य या आवयकता घसीट न रही हो | अतः परम शाित पान

क िलय जीवन की आशा भी तयाग कर मन ाननद म डबो दो | आज स समझ लो िक यह शरीर ह ही नही | कवल ाननद का सागर लहरा रहा ह | 223) िजसकी पककी िन ा ह िक म आतमा हrsquo उसक िलय ऐसी कौन सी मिथ ह जो खल

न सक ऐसी कोई ताकत नही जो उसक िवर जा सक | 224) मर भा य म नही थाई र की मज आजकल सतसग ा नही होताजगत

खराब ह ऐस वचन हमारी कायरता व अनतःकरण की मिलनता क कारण िनकलत ह | अतः नकारातमक ःवभाव और दसर पर दोषारोपण करन की वि स बचो | 225) आप जब भीतरवाल स नाराज होत हो तब जगत आपस नाराज रहता ह | जब आप

भीतर अनतयारमी बन बठ तो जगतरपी पतलीघर म िफर गड़बड़ कसी 226) िजस ण हम ससार क सधारक बन खड़ होत ह उसी ण हम ससार को िबगाड़नवाल बन जात ह | श परमातमा को दखन क बजाय जगत को िबगड़ा हआ दखन की ि बनती ह | सधारक लोग मानत ह िक lsquoभगवान न जो जगत बनाया ह वह िबगड़ा हआ ह और हम उस सधार रह ह |rsquo वाह वाह धनयवाद सधारक अपन िदल को सधारो पहल | सवरऽ िनरजन का दीदार करो | तब आपकी उपिःथित माऽ स आपकी ि माऽ स अर यार आपको छकर बहती हवा माऽ स अननत जीव को शाित िमलगी और अननत सधार होगा | नानक कबीर महावीर ब और लीलाशाह बाप जस महापरष न यही कजी अपनायी थी | 227) वदानत म हमशा कमर का अथर होता ह वाःतिवक आतमा क साथ एक होकर च ा करना अिखल िव क साथ एकःवर हो जाना | उस अि तीय परम ततव क साथ िनःःवाथर सयोग ा करना ही एकमाऽ स चा कमर ह बाकी सब बोझ की गठिरया उठाना ह |

228) अपनी व रमान अवःथा चाह कसी भी हो उसको सव च मानन स ही आपक दय म आतम ान ान का अनायास उदय होन लगगा | आतम-सा ातकार को मील दर की कोई चीज समझकर उसक पीछ दौड़ना नही ह िचिनतत होना नही ह |

िचनता की गठरी उठाकर यिथत होन की जररत नही ह | िजस ण आप िनि नतता म गोता मारोग उसी ण आपका आतमःवरप गट हो जायगा | अर गट कया होगा आप ःवय आतमःवरप हो ही | अनातमा को छोड़ दो तो आतमःवरप तो हो ही | 229) सदा ॐकार का गान करो | जब भय व िचनता क िवचार आय तब िकसी मःत सत-फकीर महातमा क सािननधय का ःमरण करो | जब िननदा-शसा क सग आय तब महापरष क जीवन का अवलोकन करो | 230) िजनको आप भयानक घटनाए एव भयकर आघात समझ बठ हो वाःतव म व आपक ियतम आतमदव की ही करतत ह | समःत भयजनक तथा ाणनाशक घटनाओ क नाम-रप तो िवष क ह लिकन व बनी ह अमत स | 231) मन म यिद भय न हो तो बाहर चाह कसी भी भय की साममी उपिःथत हो जाय आपका कछ िबगाड़ नही सकती | मन म यिद भय होगा तो तरनत बाहर भी भयजनक पिरिःथया न होत हए भी उपिःथत हो जायगी | व क तन म भी भत िदखन लगगा | 232) िकसी भी पिरिःथित म िदखती हई कठोरता व भयानकता स भयभीत नही होना चािहए | क क काल बादल क पीछ पणर काशमय एकरस परम स ा सयर की तरह सदा िव मान ह | 233) आप अपन पर कदािप अिव ास मत करो | इस जगत म आप सब कछ कर सकत हो | अपन को कभी दबरल मत मानो | आपक अनदर तमाम शि या छपी हई ह | 234) यिद कोई मन य आपकी कोई चीज़ को चरा लता ह तो ड़रत कय हो वह मनय

और आप एक ह | िजस चीज़ को वह चराता ह वह चीज़ आपकी और उसकी द न की ह | 235) जो खद क िसवाय दसरा कछ दखता नही सनता नही जानता नही वह अननत ह |

जब तक खद क िसवाय और िकसी वःत का भान होता ह वह वःत स ची लगती ह तब तक आप

सीिमत व शात ह असीम और अनत नही |

236) ससार मझ कया आनद द सकता ह स पणर आनद मर भीतर स आया ह | म ही स पणर आननद ह स पणर मिहमा एव स पणर सख ह | 237) जीवन की समःत आवयकताए जीवन म उपिःथत ह परनत जीवन को जब हम

बा रग म रग दत ह तब जीवन का वाःतिवक रप हम नही जान पात | 238) िननदक की िननदा स म कय मरझाऊ शसक की शसा स म कय फल िननदा स म घटता नही और शसा स म बढ़ता नही | जसा ह वसा ही रहता ह | िफर िननदा-ःतित स

खटक कसी 239) ससार व ससार की समःयाओ म जो सबस अिधक फस हए ह उनही को वदानत की सबस अिधक आवयकता ह | बीमार को ही औषिध की यादा आवयकता ह | कय जी ठ क ह न 240) जगत क पाप व अतयाचार की बात मत करो लिकन अब भी आपको जगत म पाप

िदखता ह इसिलय रोओ | 241) हम यिद जान ल िक जगत म आतमा क िसवाय दसरा कछ ह ही नही और जो कछ

िदखता ह वह ःव नमाऽ ह तो इस जगत क दःख-दािरिय पाप-प य कछ भी हम अशात नही कर सकत | 242) िव ान दाशरिनक व आचाय की धमकी तथा अनमह आलोचना या अनमित

ानी पर कोई भाव नही ड़ाल सकती | 243) ह यि रप अननत आप अपन पर पर खड़ रहन का साहस करो समःत िव का बोझ आप िखलौन की तरह उठा लोग | 244) िसह की गजरना व नरिसह की ललकार तलवार की धार व साप की फफकार तपःवी की धमकी व नयायधीश की फटकारइन सबम आपका ही काश चमक रहा ह | आप इनस

भयभीत कय होत हो उलझन कय महसस करत हो मरी िब ली मझको याऊ वाली बात कय

होन दत हो 245) ससार हमारा िसफ़र िखलोना ही ह और कछ नही | अबोध बालक ही िखलौन स

भयभीत होता ह आसि करता ह िवचारशील यि नही |

246) जब तक अिव ा दर नही होगी तब तक चोरी जआ दार यिभचार कभी बद न

ह ग चाह लाख कोिशश करो | 247) आप हमशा अदर का धयान रखो | पहल हमारा भीतरी पतन होता ह | बा पतन तो इसका पिरणाम माऽ ह | 248) तयाग स हमशा आनद िमलता ह | जब तक आपक पास एक भी चीज़ बाकी ह तब

तक आप उस चीज़ क बधन म बध रहोग | आघात व तयाघात हमशा समान िवरोधी होत ह | 249) िनि तता ही आरो यता की सबस बड़ी दवाई ह | 250) सख अपन िसर पर दख का मकट पहन कर आता ह | जो सख को अपनायगा उस

दख को भी ःवीकार करना पड़गा | 251) म (आतमा) सबका ा ह | मरा ा कोई नही | 252) हजार म स कोई एक परष भीतर स शात िच वाला रहकर बाहर स ससारी जसा यवहार कर सकता ह | 253) सतय क िलए यिद शरीर का तयाग करना पड़ तो कर दना | यही आिखरी ममता ह जो हम तोड़नी होगी | 254) भय िचनता बचनी स ऊपर उठो | आपको ान का अनभव होगा | 255) आपको कोई भी हािन नही पहचा सकता | कवल आपक खयालात ही आपक पीछ पड़ ह | 256) म का अथर ह अपन पड़ोसी तथा सपकर म आनवाल क साथ अपनी वाःतिवक अभदता का अनभव करना | 257) ओ यार अपन खोय हए आतमा को एक बार खोज लो | धरती व आसमान क शासक आप ही हो | 258) सदव सम और सनन रहना ई र की सव पिर भि ह |

259) जब तक िच म ढ़ता न आ जाय िक शा की िविधय का पालन छोड़ दन स भी दय का यथाथर भि भाव न नही होगा तब तक शा की िविधय को पालत रहो |

गर भि एक अमोघ साधना 1 जनम मरण क िवषचब स म होन का कोई मागर नही ह कया सख-दःख हषर-शोक लाभ-

हािन मान-अपमान की थ पड़ स बचन का कोई उपाय नही ह कया

हअवय ह | ह िय आतमन नाशवान पदाथ स अपना मन वािपस लाकर सदगर क

चरणकमल म लगाओ | गरभि योग का आौय लो | गरसवा ऐसा अमोघ साधन ह िजसस

व रमान जीवन आननदमय बनता ह और शा त सख क ार खलत ह |

गर सवत त नर धनय यहा | ितनक नही दःख यहा न वहा || 2 स च सदगर की की हई भि िशय म सासािरक पदाथ क वरा य एव अनासि जगाती ह

परमातमा क ित म क पप महकाती ह | 3 तयक िशय सदगर की सवा करना चाहता ह लिकन अपन ढग स | सदगर चाह उस ढग स

सवा करन को कोई ततपर नही | जो िवरला साधक गर चाह उस ढ़ग स सवा कर सकता ह उस कोई कमी नही रहती |

िन सदगर की सवा स उनकी कपा ा होती ह और उस कपा स न िमल सक ऐसा तीन लोक म कछ भी नही ह | 4 गर िशय का स बनध पिवऽतम स बनध ह | ससार क तमाम बनधन स छड़ाकर वह मि क मागर पर ःथान कराता ह | यह स बनध जीवनपयरनत का स बनध ह | यह बात अपन दय की डायरी म सवणर-अ र स िलख लो | 5 उ ल सयर क काश क अिःततव को मान या न मान िफर भी सयर हमशा काशता ह | चचल मन का मनय मान या न मान लिकन सदगर की परमक याणकारी कपा सदव बरसती ही रहती ह | 6 सदगर की चरणरज म ःनान िकय िबना कवल किठन तप यार करन स या वद का

अधयन करन स वदानत का रहःय कट नही होता आतमानद का अमत नही िमलता | 7 दशरन शा क चाह िकतन मनथ पढ़ो हजार वष तक िहमालय की गफा म तप करो वष तक ाणायाम करो जीवनपयरनत शीषारसन करो समम िव म वास करक याखान दो िफर भी सदगर की कपा क िबना आतम ान नही होता | अतः िनरािभमानी सरल िनजाननद म मःत दयाल ःवभाव क आतम-सा ातकारी सदगर क चरण म जाओ | जीवन को धनय बनाओ | 8 सदगर की सवा िकय िबना शा का अधयन करना मम साधक क िलय समय बरबाद करन क बराबर ह | 9 िजसको सदगर ा हए ह ऐस िशय क िलय इस िव म कछ भी अा य नही ह | सदगर िशय को िमली हई परमातमा की अम य भट ह | अर नहीhellipनही व तो िशय क सम साकार रप म कट हए परमातमा ःवय ह | 10 सदगर क साथ एक ण िकया हआ सतसग लाख वष क तप स अननत गना ौ ह | आख क िनमषमाऽ म सदगर की अमतवष ि िशय क जनम-जनम क पाप को जला सकती ह | 11 सदगर जसा मपणर कपाल िहतिचनतक िव भर म दसरा कोई नही ह | 12 बाढ़ क समय याऽी यिद तफानी नदी को िबना नाव क पार कर सक तो साधक भी िबना सदगर क अपन जीवन क आिखरी लआय को िस कर सकता ह | यानी य दोन बात स भव ह |

अतः यार साधक मनमखी साधना की िज करना छोड़ दो | गरमखी साधना करन म ही सार ह | 13 सदगर क चरणकमल का आौय लन स िजस आननद का अनभव होता ह उसक आग िऽलोकी का साा य त छ ह | 14 आतम-सा ातकार क मागर म सबस महान शऽ अहभाव का नाश करन क िलए सदगर की आ ा का पालन अमोघ श ह | 15 रसोई सीखन क िलय कोई िसखानवाला चािहय िव ान और गिणत सीखन क िलय

अधयापक चािहय तो कया िव ा सदगर क िबना ही सीख लोग 16 सदगरकपा की स पि जसा दसरा कोई खजाना िव भर म नही | 17 सदगर की आ ा का उ लघन करना यह अपनी क खोदन क बराबर ह | 18 सदगर क कायर को शका की ि स दखना महापातक ह | 19 गरभि व गरसवा - य साधनारपी नौका की दो पतवार ह | उनकी मदद स िशय ससारसागर को पार कर सकता ह | 20 सदगर की कसौटी करना असभव ह | एक िववकाननद ही दसर िववकाननद को पहचान सकत ह | ब को जानन क िलय दसर ब की आवयकता रहती ह | एक रामतीथर का रहःय दसर रामतीथर ही पा सकत ह |

अतः सदगर की कसौटी करन की च ा छोड़कर उनको पिरपणर पर परमातमा मानो |

तभी जीवन म वाःतिवक लाभ होगा | 21 गरभि योग का आौय लकर आप अपनी खोई हई िद यता को पनः ा करो सख-दःख जनम-मतय आिद सब न स पार हो जाओ | 22 गरभि योग मान गर की सवा क ारा मन और िवकार पर िनयऽण एव पनः सःकरण | 23 िशय अपन गर क चरणकमल म णाम करता ह | उन पर ौ फल की वषार करक उनकी ःतित करता ह ldquoह परम प य पिवऽ गरदव मझ सव च सख ा हआ ह | म िन ा स जनम-मतय की पर परा स म हआ ह | म िनिवरक प समािध का श सख भोग रहा ह | जगत क िकसी भी कोन म म म ता स िवचरण कर सकता ह | सब पर मरी सम ि ह | मन ाकत मन का तयाग िकया ह | मन सब सक प एव रिच-अरिच का तयाग िकया ह | अब म अख ड शाित म िवौाित पा रहा ह hellip आननदमय हो रहा ह | म इस पणर अवःथा का वणरन नही कर पाता | ह प य गरदव म आवाक बन गया ह | इस दःतर भवसागर को पार करन म आपन

मझ सहायता की ह | अब तक मझ कवल अपन शरीर म ही स पणर िव ास था | मन िविभनन योिनय म अस य जनम िलय | ऐसी सव च िनभरय अवःथा मझ कौन स पिवऽ कम क कारण ा हई ह यह म नही जानता | सचमच यह एक दलरभ भा य ह |

यह एक महान उतक लाभ ह | अब म आननद स नाचता ह | मर सब दःख न हो गय | मर सब मनोरथ पणर हए ह |

मर कायर स पनन हए ह | मन सब वािछत वःतए ा की ह | मरी इ छा पिरपणर हई ह | आप मर स च माता-िपता हो | मरी व रमान िःथित म म दसर क सम िकस कार कट कर सक सवरऽ सख और आननद का अननत सागर मझ लहराता हआ िदख रहा ह | मर अतःच िजसस खल गय वह महावाकय lsquoत वमिसrsquo ह | उपिनषद एव वदानतसऽ को भी धनयवाद | िजनह न िन गर का एव उपिनषद क महावाकय का रप धारण िकया ह | ऐस ौी यासजी को णाम ौी शकराचायर को णाम सासािरक मनय क िसर पर गर क चरणामत का एक िबनद भी िगर तो भी उसक ःब दःख का नाश होता ह | यिद एक िन परष को व पहनाय जाय तो सार िव को व पहनान एव भोजन करवान क बराबर ह कय िक िन परष सचराचर िव म या ह | सबम व ही ह |rdquo

ॐhellip ॐ hellip ॐ hellip

ःवामी िशवानद जी

ौी राम-विश सवाद ौी विश जी कहत ह ldquoह रघकलभषण ौी राम अनथर ःवरप िजतन सासािरक पदाथर ह व सब जल म तरग क समान िविवध रप धारण करक चमतकार उतपनन करत ह अथारत ई छाए उतपनन करक जीव को मोह म फसात ह | परत जस सभी तरग जल ःवरप ही ह उसी कार सभी पदाथर वःततः न र ःवभाव वाल ह |

बालक की क पना स आकाश म य और िपशाच िदखन लगत ह परनत बि मान मनय क िलए उन य और िपशाच का कोई अथर नही | इसी कार अ ानी क िच म यह जगत सतय हो ऐसा लगता ह जबिक हमार जस ािनय क िलय यह जगत कछ भी नही | यह समम िव पतथर पर बनी हई पतिलय की सना की तरह रपालोक तथा अतर-बा िवषय स शनय ह | इसम सतयता कसी परनत अ ािनय को यह िव सतय लगता ह |rdquo विश जी बोल ldquoौी राम जगत को सतय ःवरप म जानना यह ाित ह मढ़ता ह | उस िमथया अथारत कि पत समझना यही उिचत समझ ह | ह राघव तव ा अहता आिद सब िवम-िवलास शात िशवःवरप श ःवरप ही ह | इसिलय मझ तो क अितिर और कछ भी नही िदखता | आकाश म जस जगल नही वस ही म जगत नही ह | ह राम ार ध वश ा कम स िजस परष की च ा कठपतली की तरह ई छाशनय और याकलतारिहत होती ह वह शानत मनवाला परष जीवनम मिन ह | ऐस जीवनम ानी को इस

जगत का जीवन बास की तरह बाहर-भीतर स शनय रसहीन और वासना-रिहत लगता ह | इस य पच म िजस रिच नही दय म िचनमाऽ अ य ही अ छा लगता ह ऐस परष न

भीतर तथा बाहर शािनत ा कर ली ह और इस भवसागर स पार हो गया ह | रघनदन श व ा कहत ह िक मन का ई छारिहत होना यही समािध ह कय िक ई छाओ का तयाग करन स मन को जसी शािनत िमलती ह ऐसी शािनत सकड़ उपदश स भी नही िमलती | ई छा की उतपि स जसा दःख ा होता ह ऐसा दःख तो नरक म भी नही | ई छाओ की शािनत

स जसा सख होता ह ऐसा सख ःवगर तो कया लोक म भी नही होता | अतः समःत शा तपःया यम और िनयम का िनचोड़ यही ह िक ई छामाऽ दःखदायी ह और ई छा का शमन मो ह | ाणी क दय म जसी-जसी और िजतनी-िजतनी ई छाय उतपनन होती ह उतना ही दख स वह

ड़रता रहता ह | िववक-िवचार ारा ई छाय जस-जस शानत होती जाती ह वस-वस दखरपी छत की बीमारी िमटती जाती ह |

आसि क कारण सासािरक िवषय की ई छाय य - य गहनीभत होती जाती ह तय -तय

दःख की िवषली तरग बढ़ती जाती ह | अपन परषाथर क बल स इस ई छारपी यािध का उपचार यिद नही िकया जाय तो इस यािध स छटन क िलय अनय कोई औषिध नही ह ऐसा म ढ़तापवरक

मानता ह | एक साथ सभी ई छाओ का स पणर तयाग ना हो सक तो थोड़ी-थोड़ी ई छाओ का धीर-धीर तयाग

करना चािहय परत रहना चािहय ई छा क तयाग म रत कय िक सनमागर का पिथक दखी नही होता | जो नराधम अपनी वासना और अहकार को ीण करन का य नही करता वह िदन -िदन अपन

को रावण की तरह अधर कऐ म ढ़कल रहा ह | ई छा ही दख की जनमदाऽी इस ससाररपी बल का बीज ह | यिद इस बीज को आतम ानरपी अि न स ठ क-ठ क जला िदया तो पनः यह अकिरत नही होता | रघकलभषण राम ई छामाऽ ससार ह और ई छाओ का अभाव ही िनवारण ह | अतः अनक कार की माथाप ची म ना पड़कर कवल ऐसा य करना चािहय िक ई छा उतपनन ना हो | अपनी बि स ई छा का िवनाश करन को जो ततपर नही ऐस अभाग को शा और गर का उपदश

भी कया करगा जस अपनी जनमभमी जगल म िहरणी की मतय िनि त ह उसी कार अनकिवध दख का िवःतार कारनवाल ई छारपी िवषय-िवकार स य इस जगत म मनय की मतय िनि त ह | यिद मानव ई छाओ क कारण ब च -सा मढ़ ना बन तो उस आतम ान क िलय अ प य ही करना पड़ | इसिलय सभी कार स ई छाओ को शानत करना चािहय | ई छा क शमन स परम पद की ाि होती ह | ई छारिहत हो जाना यही िनवारण ह और ई छाय

होना ही बधन ह | अतः यथाशि ई छा को जीतना चािहय | भला इतना करन म कया किठनाई ह जनम जरा यािध और मतयरपी कटीली झािड़य और खर क व - समह की जड़ भी ई छा ही ह

| अतः शमरपी अि न स अदर-ही-अदर बीज को जला ड़ालना चािहय| जहा ई छाओ का अभाव ह

वहा मि िनि त ह |

िववक वरा य आिद साधन स ई छा का सवरथा िवनाश करना चािहय | ई छा का सबध जहा-जहा ह वहा-वहा पाप प य दखरािशया और ल बी पीड़ाओ स य बधन को हािज़र ही समझो | परष

की आतिरक ई छा य - य शानत होती जाती ह तय -तय मो क िलय उसका क याणकारक

साधन बढ़ता जाता ह | िववकहीन ई छा को पोसना उस पणर करना यह तो ससाररपी िवष व को पानी स सीचन क समान ह |rdquo

- ौीयोगविश महारामायण

आतमबल का आवाहन कया आप अपन-आपको दबरल मानत हो लघतामथी म उलझ कर पिरिःतिथय स िपस रह हो

अपना जीवन दीन-हीन बना बठ हो hellipतो अपन भीतर सष आतमबल को जगाओ | शरीर चाह ी का हो चाह परष का कित क साा य म जो जीत ह व सब ी ह और कित क बनधन स पार अपन ःवरप की पहचान िजनह न कर ली ह अपन मन की गलामी की बिड़या तोड़कर िजनह न फ क दी ह व परष ह | ी या परष शरीर एव मानयताए होती ह | तम तो तन-मन स पार िनमरल आतमा हो | जागोhellipउठोhellipअपन भीतर सोय हय िन यबल को जगाओ | सवरदश सवरकाल म सव म

आतमबल को िवकिसत करो | आतमा म अथाह सामथयर ह | अपन को दीन-हीन मान बठ तो िव म ऐसी कोई स ा नही जो त ह ऊपर उठा सक | अपन आतमःवरप म िति त हो गय तो िऽलोकी म ऐसी कोई हःती नही जो त ह दबा सक | भौितक जगत म वाप की शि ईलकशोिनक शि िव त की शि गरतवाकषरण की शि बड़ी मानी जाती ह लिकन आतमबल उन सब शि य का सचालक बल ह | आतमबल क सािननधय म आकर पग ार ध को पर िमल जात ह दव की दीनता पलायन हो जाती ह ितकल पिरिःतिथया अनकल हो जाती ह | आतमबल सवर िरि -िसि य का िपता ह |

आतमबल कस जगाय हररोज़ तःकाल ज दी उठकर सय दय स पवर ःनानािद स िनवत हो जाओ | ःव छ पिवऽ ःथान

म आसन िबछाकर पवारिभमख होकर प ासन या सखासन म बठ जाओ | शानत और सनन वि

धारण करो | मन म ढ भावना करो िक म कित-िनिमरत इस शरीर क सब अभाव को पार करक सब

मिलनताओ-दबरलताओ स िप ड़ छड़ाकर आतमा की मिहमा म जागकर ही रहगा |

आख आधी खली आधी बद रखो | अब फ़फ़ड़ म खब ास भरो और भावना करो की ास क साथ

म सयर का िद य ओज भीतर भर रहा ह | ास को यथाशि अनदर िटकाय रखो | िफ़र lsquoॐhelliprsquo का ल बा उ चारण करत हए ास को धीर-धीर छोड़त जाओ | ास क खाली होन क बाद तरत ास ना लो | यथाशि िबना ास रहो और भीतर ही भीतर lsquoहिर ॐhelliprsquo lsquoहिर ॐhelliprsquo का मानिसक

जाप करो | िफ़र स फ़फ़ड़ म ास भरो | पव रीित स ास यथाशि अनदर िटकाकर बाद म धीर-धीर छोड़त हए lsquoॐhelliprsquo का गजन करो | दस-पिह िमनट ऐस ाणायाम सिहत उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo की धविन करक शानत हो जाओ | सब

यास छोड़ दो | वि य को आकाश की ओर फ़लन दो | आकाश क अनदर पथवी ह | पथवी पर अनक दश अनक समि एव अनक लोग ह | उनम स एक

आपका शरीर आसन पर बठा हआ ह | इस पर य को आप मानिसक आख स भावना स दखत

रहो | आप शरीर नही हो बि क अनक शरीर दश सागर पथवी मह न ऽ सयर चनि एव पर ा ड़ क

ा हो सा ी हो | इस सा ी भाव म जाग जाओ | थोड़ी दर क बाद िफ़र स ाणायाम सिहत lsquoॐhelliprsquo का जाप करो और शानत होकर अपन िवचार को दखत रहो | इस अवःथा म ढ़ िन य करो िक lsquoम जसा चहता ह वसा होकर रहगा |rsquo िवषयसख स ा धन-

दौलत इतयािद की इ छा न करो कय िक िन यबल या आतमबलरपी हाथी क पदिच म और सभी क पदिच समािव हो ही जायग | आतमानदरपी सयर क उदय होन क बाद िम टी क तल क दीय क ाकाश रपी शि सखाभास की गलामी कौन कर

िकसी भी भावना को साकार करन क िलय दय को करद ड़ाल ऐसी िन यातमक बिल वि होनी आवशयक ह | अनतःकरण क गहर-स-गहर दश म चोट कर ऐसा ाण भरक िन बल का आवाहन करो | सीना तानकर खड़ हो जाओ अपन मन की दीन-हीन दखद मानयताओ को कचल

ड़ालन क िलय | सदा ःमरण रह की इधर-उधर भटकती वि य क साथ त हारी शि भी िबखरती रहती ह | अतः वि य को बहकाओ नही | तमाम वि य को एकिऽत करक साधनाकाल म आतमिचनतन म लगाओ और यवहारकाल म जो कायर करत हो उसम लगाओ | द िच होकर हरक कायर करो | अपन ःवभाव म स आवश को सवरथा िनमरल कर दो | आवश म आकर कोई िनणरय मत लो कोई िबया मत करो | सदा शानत वि धारण करन का अ यास करो | िवचारशील एव सनन रहो | ःवय अचल रहकर सागर की तरह सब वि य की तरग को अपन

भीतर समालो | जीवमाऽ को अपना ःवरप समझो | सबस ःनह रखो | िदल को यापक रखो | सकिच ता का िनवारण करत रहो | ख ड़ातमक वि का सवरथा तयाग करो | िजनको ानी महापरष का सतसग और अधयातमिव ा का लाभ िमल जाता ह उसक जीवन स

दःख िवदा होन लगत ह | ॐ आननद आतमिन ा म जाग हए महापरष क सतसग एव सतसािहतय स जीवन को भि और वदात स प

एव पलिकत करो | कछ ही िदन क इस सघन योग क बाद अनभव होन लगगा िक भतकाल क

नकारतमक ःवभाव सशयातमक-हािनकारक क पनाओ न जीवन को कचल ड़ाला था िवषला कर िदया था | अब िन यबल क चमतकार का पता चला | अततरम म आिवरभत िद य खज़ाना अब

िमला | ार ध की बिड़या अब टटन लगी | ठ क ह न करोग ना िह मत पढ़कर रख मत दना इस पिःतका को | जीवन म इसको बार-बार पढ़त रहो | एक िदन म यह पणर ना होगा | बार-बार अ यास करो | त हार िलय यह एक ही पिःतका काफ़ी ह | अनय कचराप टी ना पड़ोग तो चलगा | शाबाश वीर शाबाश

  • परसतावना
  • जीवन रसायन
  • गर भकति एक अमोघ साधना
  • शरी राम-वशिषठ सवाद
  • आतमबल का आवाहन
  • आतमबल कस जगाय
Page 4: जीवन रसायन - HariOmGroup · ‘जीवन रसायन’ का यह िदय कटोरा आत्मरस के िपपासुओं हाथ

अनभव करना किठन कायर नही ह | 6) अपन अनदर क परम र को सनन करन का यास करो | जनता एव बहमित को आप िकसी कार स सत नही कर सकत | जब आपक आतमदवता सनन ह ग तो जनता आपस अवय सत होगी | 7) सब वःतओ म दशरन करन म यिद आप सफल न हो सको तो िजनको आप सबस अिधक म करत ह ऐस कम-स-कम एक यि म परमातमा का दशरन करन का यास करो | ऐस िकसी ततव ानी महापरष की शरण पा लो िजनम ानद छलकता हो | उनका ि पात होत ही आपम भी का ादभारव होन की स भावना पनपगी | जस एकस-र मशीन की िकरण कपड़ चमड़ी मास को चीरकर हि डय का फोटो खीच लाती ह वस ही ानी की ि आपक िच म रहन वाली दहाधयास की परत चीरकर आपम ई र को िनहारती ह | उनकी ि स चीरी हई परत को चीरना अपक िलय भी सरल हो जायगा | आप भी ःवय म ई र को दख सक ग | अतः अपन िच पर ानी महापरष की ि पड़न दो | पलक िगराय िबना अहोभाव स उनक सम बठो तो

आपक िच पर उनकी ि पड़गी | 8) जस मछिलया जलिनिध म रहती ह प ी वायमडल म ही रहत ह वस आप भी ानरप काशपज म ही रहो काश म चलो काश म िवचरो काश म ही अपना

अिःततव रखो | िफर दखो खान-पीन का मजा घमन-िफरन का मजा जीन-मरन का मजा | 9) ओ तफान उठ जोर-शोर स आधी और पानी की वषार कर द | ओ आननद क महासागर पथवी और आकाश को तोड़ द | ओ मानव गहर स गहरा गोता लगा िजसस िवचार एव िचनताए िछनन-िभनन हो जाय | आओ अपन दय स त की भावना को चन-चनकर बाहर िनकाल द िजसस आननद का महासागर तय लहरान लग | ओ म की मादकता त ज दी आ | ओ आतमधयान की आतमरस की मिदरा त हम पर ज दी आ छािदत हो जा | हमको तरनत डबो द | िवल ब करन का कया योजन मरा मन अब एक पल भी दिनयादारी म फसना नही चाहता | अतः इस मन को यार भ म डबो द | lsquoम और मरा hellipत और तराrsquo क ढर को आग लगा द | आशका और आशाओ क चीथड़ को उतार फ क | टकड़-टकड़ करक िपघला द | त की भावना को जड़ स उखाड़ द | रोटी नही िमलगी कोई परवाह नही | आौय और िवौाम नही िमलगा

कोई िफकर नही | लिकन मझ चािहय म की उस िद य म की यास और तड़प | मझ वद पराण करान स कया

मझ सतय का पाठ पढ़ा द कोई ||

मझ मिदर मिःजद जाना नही |

मझ म का रग चढ़ा द कोई ||

जहा ऊच या नीच का भद नही |

जहा जात या पात की बात नही ||

न हो मिदर मिःजद चचर जहा |

न हो पजा नमाज़ म फकर कही ||

जहा सतय ही सार हो जीवन का |

िरधवार िसगार हो तयाग जहा ||

जहा म ही म की सि िमल |

चलो नाव को ल चल ख क वहा || 10) ःव नावःथा म ा ःवय अकला ही होता ह | अपन भीतर की क पना क आधार पर िसह िसयार भड़ बकरी नदी नगर बाग-बगीच की एक परी सि का सजरन कर लता ह | उस सि म ःवय एक जीव बन जाता ह और अपन को सबस अलग मानकर भयभीत होता ह | खद शर ह और खद ही बकरी ह | खद ही खद को डराता ह | चाल ःव न म सतय का भान न होन स दःखी होता ह | ःव न स जाग जाय तो पता चल िक ःवय क िसवाय और कोई था ही नही | सारा पच क पना स रचा गया था | इसी कार यह जगत जामत क ारा कि पत ह वाःतिवक नही ह | यिद जामत का ा अपन आतमःवरप म जाग जाय तो उसक तमाम दःख-दािरिय पल भर म अ य हो जाय | 11) ःवगर का साा य आपक भीतर ही ह | पःतक म मिदर म तीथ म पहाड़ म जगल म आनद की खोज करना यथर ह | खोज करना ही हो तो उस अनतःथ आतमानद का खजाना खोल दनवाल िकसी ततवव ा महापरष की खोज करो | 12) जब तक आप अपन अतःकरण क अनधकार को दर करन क िलए किटब नही ह ग तब तक तीन सौ ततीस करोड़ कण अवतार ल ल िफर भी आपको परम लाभ नही होगा | 13) शरीर अनदर क आतमा का व ह | व को उसक पहनन वाल स अिधक यार

मत करो | 14) िजस ण आप सासािरक पदाथ म सख की खोज करना छोड़ दग और ःवाधीन हो जायग अपन अनदर की वाःतिवकता का अनभव करग उसी ण आपको ई र क पास जाना नही पड़गा | ई र ःवय आपक पास आयग | यही दवी िवधान ह | 15) बोधी यिद आपको शाप द और आप समतव म िःथर रहो कछ न बोलो तो उसका शाप आशीवारद म बदल जायगा | 16) जब हम ई र स िवमख होत ह तब हम कोई मागर नही िदखता और घोर दःख सहना पड़ता ह | जब हम ई र म तनमय होत ह तब यो य उपाय यो य वित यो य वाह अपन-आप हमार दय म उठन लगता ह | 17) जब तक मनय िचनताओ स उि न रहता ह इ छा एव वासना का भत उस बठन नही दता तब तक बि का चमतकार कट नही होता | जजीर स जकड़ी हई बि िहलडल नही सकती | िचनताए इ छाए और वासनाए शात होन स ःवतऽ वायमडल का अिवभारव होता ह | उसम बि को िवकिसत होन का अवकाश िमलता ह | पचभौितक बनधन कट जात ह और श आतमा अपन पणर काश म चमकन लगता ह | 18) ओ सज़ा क भय स भयभीत होन वाल अपराधी नयायधीश जब तरी सज़ा का हकम िलखन क िलय कलम लकर ततपर हो उस समय यिद एक पल भर भी त परमाननद म डब जाय तो नयायधीश अपना िनणरय भल िबना नही रह सकता | िफ़र उसकी कलम स वही िलखा जायगा जो परमातमा क साथ तरी नतन िःथित क अनकल होगा | 19) पिवऽता और स चाई िव ास और भलाई स भरा हआ मनय उननित का झ डा हाथ म लकर जब आग बढ़ता ह तब िकसकी मजाल िक बीच म खड़ा रह यिद आपक िदल म पिवऽता स चाई और िव ास ह तो आपकी ि लोह क पद को भी चीर सकगी | आपक िवचार की ठोकर स पहाड़-क-पहाड़ भी चकनाचर हो सक ग | ओ जगत क बादशाह आग स हट जाओ | यह िदल का बादशाह पधार रहा ह | 20) यिद आप ससार क लोभन एव धमिकय स न िहल तो ससार को अवय िहला दग | इसम जो सनदह करता ह वह मदमित ह मखर ह |

21) वदानत का यह िस ात ह िक हम ब नही ह बि क िनतय म ह | इतना ही नही lsquoब हrsquo यह सोचना भी अिन कारी ह म ह | य ही आपन सोचा िक lsquoम ब हhellip

दबरल हhellip असहाय हhelliprsquo तय ही अपना दभार य शर हआ समझो | आपन अपन पर म एक जजीर और बाध दी | अतः सदा म होन का िवचार करो और मि का अनभव करो | 22) राःत चलत जब िकसी िति त यि को दखो चाह वह इ लड़ का सवारधीश हो चाह अमिरका का lsquoिसड़टrsquo हो रस का सवसवार हो चाह चीन का lsquoिड़कटटरrsquo हो- तब अपन मन म िकसी कार की ईयार या भय क िवचार मत आन दो | उनकी शाही नज़र को अपनी ही नज़र समझकर मज़ा लटो िक lsquoम ही वह ह |rsquo जब आप ऐसा अनभव करन की च ा करग तब आपका अनभव ही िस कर दगा िक सब एक ही ह | 23) यिद हमारा मन ईयार- ष स रिहत िब कल श हो तो जगत की कोई वःत हम नकसान नही पहचा सकती | आनद और शाित स भरपर ऐस महातमाओ क पास बोध की मितर जसा मनय भी पानी क समान तरल हो जाता ह | ऐस महातमाओ को दख कर जगल क िसह और भड़ भी मिव ल हो जात ह | साप-िब छ भी अपना द ःवभाव भल जात ह | 24) अिव ास और धोख स भरा ससार वाःतव म सदाचारी और सतयिन साधक का कछ िबगाड़ नही सकता | 25) lsquoस पणर िव मरा शरीर हrsquo ऐसा जो कह सकता ह वही आवागमन क चककर स म ह | वह

तो अननत ह | िफ़र कहा स आयगा और कहा जायगा सारा ा ड़ उसी म ह | 26) िकसी भी सग को मन म लाकर हषर-शोक क वशीभत नही होना | lsquoम अजर हhellip अमर हhellip मरा जनम नहीhellip मरी मतय नहीhellip म िनिलर आतमा हhelliprsquo यह भाव ढ़ता स दय म धारण करक जीवन जीयो | इसी भाव का िनरनतर सवन करो | इसीम सदा त लीन रहो | 27) बा सदभ क बार म सोचकर अपनी मानिसक शाित को भग कभी न होन दो | 28) जब इिनिया िवषय की ओर जान क िलय जबरदःती करन लग तब उनह लाल आख

िदखाकर चप कर दो | जो आतमानद क आःवादन की इ छा स आतमिचतन म लगा रह वही स चा धीर ह |

29) िकसी भी चीज़ को ई र स अिधक म यवान मत समझो | 30) यिद हम दहािभमान को तयागकर सा ात ई र को अपन शरीर म कायर करन द तो भगवान

ब या जीसस बाईःट हो जाना इतना सरल ह िजतना िनधरन पाल (Poor Paul) होना | 31) मन को वश करन का उपाय मन को अपना नौकर समझकर ःवय को उसका भ मानो | हम अपन नौकर मन की उप ा करग तो कछ ही िदन म वह हमार वश म हो जायगा | मन क

चचल भाव को ना दखकर अपन शानत ःवरप की ओर धयान दग तो कछ ही िदन म मन न

होन लगगा | इस कार साधक अपन आनदःवरप म म न हो सकता ह | 32) समम ससार क ततव ान िव ान गिणत का य और कला आपकी आतमा म स िनकलत ह

और िनकलत रहग | 33) ओ खदा को खोजनवाल तमन अपनी खोजबीन म खदा को ल कर िदया ह | य रपी तरग म अनत सामथयररपी समि को छपा िदया ह | 34) परमातमा की शािनत को भग करन का सामथयर भला िकसम ह यिद आप सचमच

परमातम-शािनत म िःथत हो जाओ तो समम ससार उलटा होकर टग जाय िफ़र भी आपकी शािनत

भग नही हो सकती | 35) महातमा वही ह जो िच को ड़ावाड़ोल करनवाल सग आय िफ़र भी िच को वश म रख बोध

और शोक को िव न होन द | 36) वित यिद आतमःवरप म लीन होती ह तो उस सतसग ःवाधयाय या अनय िकसी भी काम क िलय बाहर नही लाना चिहय | 37) स ढ़ अचल सक प शि क आग मसीबत इस कार भागती ह जस आधी-तफ़ान स बादल

िबखर जात ह | 38) सषि (गहरी नीद) आपको बलात अनभव कराती ह िक जामत का जगत चाह िकतना ही यारा और सदर लगता हो पर उस भल िबना शािनत नही िमलती | सषि म बलात िवःमरण हो उसकी सतयता भल जाय तो छः घट िनिा की शािनत िमल | जामत म उसकी सतयता का अभाव

लगन लग तो परम शािनत को ा ा परष बन जाय | िनिा रोज़ाना सीख दती ह िक यह ठोस

जगत जो आपक िच को िमत कर रहा ह वह समय की धारा म सरकता जा रहा ह | घबराओ

नही िचिनतत मत हो तम बात म िच को िमत मत करो | सब कछ ःव न म सरकता जा रहा ह | जगत की सतयता क म को भगा दो | ओ शि मान आतमा अपन अतरतम को िनहार ॐ का गजन कर दबरल िवचार एव िचताओ को कचल ड़ाल दबरल एव त छ िवचार तथा जगत को सतय मानन क कारण तन बहत-बहत

सहन िकया ह | अब उसका अत कर द | 39) ान क किठनमागर पर चलत व आपक सामन जब भारी क एव दख आय तब आप उस

सख समझो कय िक इस मागर म क एव दख ही िनतयानद ा करन म िनिम बनत ह | अतः उन क दख और आघात स िकसी भी कार साहसहीन मत बनो िनराश मत बनो | सदव आग

बढ़त रहो | जब तक अपन सतयःवरप को यथाथर रप स न जान लो तब तक रको नही | 40) ःवपनावःथा म आप शर को दखत ह और ड़रत ह िक वह आपको खा जायगा | परत आप

िजसको दखत ह वह शर नही आप ःवय ह | शर आपकी क पना क अितिर और कछ नही | इस

कार जामतावःथा म भी आपका घोर-स-घोर शऽ भी ःवय आप ही ह दसरा कोई नही | थकतव

अलगाव क िवचार को अपन दय स दर हटा दो | आपस िभनन कोई िमऽ या शऽ होना कवल

ःव न-म ह | 41) अशभ का िवरोध मत करो | सदा शात रहो | जो कछ सामन आय उसका ःवागत करो चाह

आपकी इ छा की धारा स िवपरीत भी हो | तब आप दखग िक तय बराई भलाई म बदल

जायगी | 42) रािऽ म िनिाधीन होन स पहल िबःतर पर सीध सखपवरक बठ जाओ | आख बद करो | नाक

स ास लकर फ़फ़ड़ को भरपर भर दो | िफ़र उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo का लबा उ चारण करो | िफ़र स

गहरा ःवास लकर lsquoॐhelliprsquo का लबा उ चारण करो | इस कार दस िमनट तक करो | कछ ही िदन

क िनयिमत योग क बाद इसक चमतकार का अनभव होगा | रािऽ की नीद साधना म पिरणत हो जायगी | िदल-िदमाग म शाित एव आनद की वषार होगी | आपकी लौिकक िनिा योगिनिा म बदल

जयगी | 43) हट जाओ ओ सक प और इ छाओ हट जाओ तम ससार की णभगर शसा एव धन-

स पि क साथ स बध रखती हो | शरीर चाह कसी भी दशा म रह उसक साथ मरा कोई सरोकार नही | सब शरीर मर ही ह | 44) िकसी भी तरह समय िबतान क िलय मज़दर की भाित काम मत करो | आनद क िलय

उपयोगी कसरत समझकर सख बीड़ा या मनोरजक खल समझकर एक कलीन राजकमार की भाित काम करो | दब हए कचल हए िदल स कभी कोई काम हाथ म मत लो | 45) समम ससार को जो अपना शरीर समझत ह तयक यि को जो अपना आतमःवरप

समझत ह ऐस ानी िकसस असनन ह ग उनक िलय िव प कहा रहा 46) ससार की तमाम वःतऐ सखद ह या भयानक वाःतव म तो त हारी फ़लता और आनद क

िलय ही कित न बनाई ह | उनस ड़रन स कया लाभ त हारी नादानी ही त ह चककर म ड़ालती ह

| अनयथा त ह नीचा िदखान वाला कोई नही | पकका िन य रखो िक यह जगत त हार िकसी शऽ न नही बनाया | त हार ही आतमदव का यह सब िवलास ह | 47) महातमा व ह िजनकी िवशाल सहानभित एव िजनका मातवत दय सब पािपय को दीन-

दिखय को म स अपनी गोद म ःथान दता ह | 48) यह िनयम ह िक भयभीत ाणी ही दसर को भयभीत करता ह | भयरिहत हए िबना अिभननता आ नही सकती अिभननता क िबना वासनाओ का अत स भव नही ह और िनवारसिनकता क िबना िनवरता समता मिदता आिद िद य गण कट नही होत | जो बल दसर

की दबरलता को दर ना कर सक वह वाःतव म बल नही | 49) धयान म बठन स पहल अपना समम मानिसक िचतन तथा बाहर की तमाम स पि ई र क

या सदगर क चरण म अपरण करक शात हो जाओ | इसस आपको कोई हािन नही होगी | ई र आपकी स पि दह ाण और मन की र ा करग | ई र अपरण बि स कभी हािन नही होती |

इतना ही नही दह ाण म नवजीवन का िसचन होता ह | इसस आप शाित व आनद का ोत

बनकर जीवन को साथरक कर सक ग | आपकी और पर िव की वाःतिवक उननित होगी | 50) कित सननिच एव उ ोगी कायरकतार को हर कार स सहायता करती ह | 51) सननमख रहना यह मोितय का खज़ाना दन स भी उ म ह | 52) चाह करोड़ सयर का लय हो जाय चाह अस य चनिमा िपघलकर न हो जाय परत ानी महापरष अटल एव अचल रहत ह | 53) भौितक पदाथ को सतय समझना उनम आसि रखना दख-ददर व िचताओ को आमऽण

दन क समान ह | अतः बा नाम-रप पर अपनी शि व समय को न करना यह बड़ी गलती ह |

54) जब आपन यि तव िवषयक िवचार का सवरथा तयाग कर िदया जाता ह तब उसक समान

अनय कोई सख नही उसक समान ौ अनय कोई अवःथा नही | 55) जो लोग आपको सबस अिधक हािन पहचान का यास करत ह उन पर कपापणर होकर ममय िचतन कर | व आपक ही आतमःवरप ह | 56) ससार म कवल एक ही रोग ह | सतय जगिनमथया - इस वदाितक िनयम का भग ही सवर यािधय का मल ह | वह कभी एक दख का रप लता ह तो कभी दसर दख का | इन सवर यािधय

की एक ही दवा ह अपन वाःतिवक ःवरप तव म जाग जाना | 57) ब धयानःथ बठ थ | पहाड़ पर स एक िशलाखड़ लढ़कता हआ आ रहा था | ब पर िगर इसस पहल ही वह एक दसर िशलाखड़ क साथ टकराया | भयकर आवाज़ क साथ उसक दो भाग

हो गय | उसन अपना मागर बदल िलया | धयानःथ ब की दोन तरफ़ स दोन भाग गज़र गय |

ब बच गय | कवल एक छोटा सा ककड़ उनक पर म लगा | पर स थोड़ा खन बहा | ब ःवःथता स उठ खड़ हए और िशय स कहा ldquoभी ओ स यक समािध का यह वलत माण ह | म यिद धयान-समािध म ना होता तो िशलाखड़ न मझ कचल िदया होता | लिकन ऐसा ना होकर उसक दो भाग हो गय | उसम स िसफ़र एक छोटा-सा ककड़ ऊछलकर मर पर म लगा | यह जो छोटा-सा ज़ म हआ ह वह धयान की पणरता म रही हई कछ नयनता का पिरणाम ह | यिद धयान पणर होता तो इतना भी ना लगता |rdquo 58) कहा ह वह तलवार जो मझ मार सक कहा ह वह श जो मझ घायल कर सक कहा ह वह

िवपि जो मरी सननता को िबगाड़ सक कहा ह वह दख जो मर सख म िव न ड़ाल सक मर सब भय भाग गय | सब सशय कट गय | मरा िवजय-ाि का िदन आ पहचा ह | कोई ससािरक

तरग मर िनछल िच को आदोिलत नही कर सकती | इन तरग स मझ ना कोई लाभ ह ना हािन

ह | मझ शऽ स ष नही िमऽ स राग नही | मझ मौत का भय नही नाश का ड़र नही जीन की वासना नही सख की इ छा नही और दख स ष नही कय िक यह सब मन म रहता ह और मन

िमथया क पना ह | 59) स पणर ःवाःथय की अजीब यि रोज सबह तलसी क पाच प चबाकर एक लास बासी पानी पी लो | िफ़र जरा घम लो दौड़ लो या कमर म ही पज क बल थोड़ा कद लो | नहा-धोकर ःवःथ शानत होकर एकात म बठ जाओ | दस बारह गहर-गहर ास लो | आग-पीछ क कतर य

स िनि त हो जाओ | आरो यता आनद सख शािनत दान करनवाली िवचारधारा को िच म बहन दो | िबमारी क िवचार को हटाकर इस कार की भावना पर मन को ढ़ता स एकाम करो िक

मर अदर आरो यता व आनद का अनत ोत वािहत हो रहा हhellip मर अतराल म िद यामत का महासागर लहरा रहा ह | म अनभव कर रहा ह िक समम सख आरो यता शि मर भीतर ह | मर मन म अननत शि और सामथयर ह | म ःवःथ ह | पणर सनन ह | मर अदर-बाहर सवरऽ

परमातमा का काश फ़ला हआ ह | म िव प रिहत ह | सब नद स म ह | ःवग य सख मर अदर ह | मरा दय परमातमा का ग दश ह | िफ़र रोग-शोक वहा कस रह सकत ह म दवी ओज क मड़ल म िव हो चका ह | वह मर ःवाःथय का दश ह | म तज का पज ह | आरो यता का अवतार ह | याद रखो आपक अतःकरण म ःवाःथय सख आनद और शािनत ई रीय वरदान क रप म िव मान ह | अपन अतःकरण की आवाज़ सनकर िनशक जीवन यतीत करो | मन म स कि पत

रोग क िवचार को िनकाल दो | तयक िवचार भाव श द और कायर को ई रीय शि स पिरपणर रखो | ॐकार का सतत गजन करो | सबह-शाम उपरो िवचार का िचतन-मनन करन स िवशष लाभ होगा | ॐ आनदhellip ॐ शाितhellip

पणर ःवःथhellip पणर सननhellip 60) भय कवल अ ान की छाया ह दोष की काया ह मनय को धमरमागर स िगरान वाली आसरी माया ह | 61) याद रखो चाह समम ससार क तमाम पऽकार िननदक एकिऽत होकर आपक िवरध

आलोचन कर िफ़र भी आपका कछ िबगाड़ नही सकत | ह अमर आतमा ःवःथ रहो | 62) लोग ायः िजनस घणा करत ह ऐस िनधरन रोगी इतयािद को सा ात ई र समझकर उनकी सवा करना यह अननय भि एव आतम ान का वाःतिवक ःवरप ह | 63) रोज ातः काल उठत ही ॐकार का गान करो | ऐसी भावना स िच को सराबोर कर दो िक

lsquoम शरीर नही ह | सब ाणी कीट पतग गनधवर म मरा ही आतमा िवलास कर रहा ह | अर उनक

रप म म ही िवलास कर रहा ह | rsquo भया हर रोज ऐसा अ यास करन स यह िस ात दय म िःथर हो जायगा | 64) मी आग-पीछ का िचनतन नही करता | वह न तो िकसी आशका स भयभीत होता ह और न

व रमान पिरिःथित म माःपद म ीित क िसवाय अनय कही आराम पाता ह |

65) जस बालक ितिब ब क आौयभत दपरण की ओर धयान न दकर ितिब ब क साथ खलता ह जस पामर लोग यह समम ःथल पच क आौयभत आकाश की ओर धयान न दकर कवल

ःथल पच की ओर धयान दत ह वस ही नाम-रप क भ ःथल ि क लोग अपन दभार य क

कारण समम ससार क आौय सि चदाननद परमातमा का धयान न करक ससार क पीछ पागल

होकर भटकत रहत ह | 66) इस स पणर जगत को पानी क बलबल की तरह णभगर जानकर तम आतमा म िःथर हो जाओ | तम अ त ि वाल को शोक और मोह कस 67) एक आदमी आपको दजरन कहकर पिरि छनन करता ह तो दसरा आपको स जन कहकर भी पिरि छनन ही करता ह | कोई आपकी ःतित करक फला दता ह तो कोई िननदा करक िसकड़ा दता ह | य दोन आपको पिरि छनन बनात ह | भा यवान तो वह परष ह जो तमाम बनधन क िवर

खड़ा होकर अपन दवतव की अपन ई रतव की घोषणा करता ह अपन आतमःवरप का अनभव

करता ह | जो परष ई र क साथ अपनी अभदता पहचान सकता ह और अपन इदरिगदर क लोग क

सम समम ससार क सम िनडर होकर ई रतव का िनरपण कर सकता ह उस परष को ई र मानन क िलय सारा ससार बाधय हो जाता ह | परी सि उस अवय परमातमा मानती ह | 68) यह ःथल भौितक पदाथर इिनिय की ाित क िसवाय और कछ नही ह | जो नाम व रप पर भरोसा रखता ह उस सफलता नही िमलती | सआम िस ात अथारत सतय आतम-ततव पर िनभरर रहना ही सफलता की कजी ह | उस महण करो उसका मनन करो और यवहार करो | िफर नाम-

रप आपको खोजत िफरग | 69) सख का रहःय यह ह आप य - य पदाथ को खोजत-िफरत हो तय -तय उनको खोत

जात हो | आप िजतन कामना स पर होत हो उतन आवयकताओ स भी पर हो जात हो और पदाथर भी आपका पीछा करत हए आत ह | 70) आननद स ही सबकी उतपि आननद म ही सबकी िःथित एव आननद म ही सबकी लीनता दखन स आननद की पणरता का अनभव होता ह | 71) हम बोलना चहत ह तभी श दो चारण होता ह बोलना न चाह तो नही होता | हम दखना चाह तभी बाहर का य िदखता ह नऽ बद कर ल तो नही िदखता | हम जानना चाह तभी पदाथर का ान होता ह जानना नही चाह तो ान नही होता | अतः जो कोई पदाथर दखन सनन या जानन म

आता ह उसको बािधत करक बािधत करनवाली ानरपी बि की वि को भी बािधत कर दो | उसक बाद जो शष रह वह ाता ह | ाततव धमररिहत श ःवरप ाता ही िनतय सि चदाननद

ह | िनरतर ऐसा िववक करत हए ान व यरिहत कवल िचनमय िनतय िव ानाननदघनरप

म िःथर रहो | 72) यिद आप सवागपणर जीवन का आननद लना चाहत हो तो कल की िचनता छोड़ो | अपन चार

ओर जीवन क बीज बोओ | भिवय म सनहर ःवपन साकार होत दखन की आदत बनाओ | सदा क

िलय मन म यह बात पककी बठा दो िक आपका आनवाला कल अतयनत काशमय आननदमय

एव मधर होगा | कल आप अपन को आज स भी अिधक भा यवान पायग | आपका मन

सजरनातमक शि स भर जायगा | जीवन ऐ यरपणर हो जायगा | आपम इतनी शि ह िक िव न

आपस भयभीत होकर भाग खड़ ह ग | ऐसी िवचारधारा स िनि त रप स क याण होगा | आपक

सशय िमट जायग | 73) ओ मानव त ही अपनी चतना स सब वःतओ को आकषरक बना दता ह | अपनी यार भरी ि उन पर डालता ह तब तरी ही चमक उन पर चढ़ जाती ह औरhellipिफर त ही उनक यार म फ़स जाता ह | 74) मन िविचऽ एव अटपट माग ारा ऐस ततव की खोज की जो मझ परमातमा तक पहचा सक | लिकन म िजस-िजस नय मागर पर चला उन सब माग स पता चला िक म परमातमा स दर चला गया | िफर मन बि म ा एव िव ा स परमातमा की खोज की िफर भी परमातमा स अलग रहा | मनथालय एव िव ालय न मर िवचार म उ टी गड़बड़ कर दी | म थककर बठ गया | िनःत ध हो गया | सयोगवश अपन भीतर ही झाका धयान िकया तो उस अनत रि स मझ सवरःव िमला िजसकी खोज म बाहर कर रहा था | मरा आतमःवरप सवरऽ या हो रहा ह | 75) जस सामानय मनय को पतथर गाय भस ःवाभािवक रीित स ि गोचर होत ह वस ही ानी को िनजाननद का ःवाभािवक अनभव होता ह | 76) वदानत का यह अनभव ह िक नीच नराधम िपशाच शऽ कोई ह ही नही | पिवऽ ःवरप ही सवर रप म हर समय शोभायमान ह | अपन-आपका कोई अिन नही करता |

मर िसवा और कछ ह ही नही तो मरा अिन करन वाला कौन ह मझ अपन-आपस भय कसा 77) यह चराचर सि रपी त तब तक भासता ह जब तक उस दखनवाला मन बठा ह |

मन शात होत ही त की गध तक नही रहती |

78) िजस कार एक धाग म उ म मधयम और किन फल िपरोय हए ह उसी कार मर आतमःवरप म उ म मधयम और किन शरीर िपरोय हए ह | जस फल की गणव ा का भाव धाग पर नही पड़ता वस ही शरीर की गणव ा का भाव मरी सवर यापकता नही पड़ता | जस सब फल क िवनाश स धाग को कोई हािन नही वस शरीर क िवनाश स मझ सवरगत आतमा को कोई हािन नही होती | 79) म िनमरल िन ल अननत श अजर अमर ह | म असतयःवरप दह नही | िस परष इसीको lsquo ानrsquo कहत ह | 80) म भी नही और मझस अलग अनय भी कछ नही | सा ात आननद स पिरपणर कवल िनरनतर और सवरऽ एक ही ह | उ ग छोड़कर कवल यही उपासना सतत करत रहो | 81) जब आप जान लग िक दसर का िहत अपना ही िहत करन क बराबर ह और दसर का अिहत करना अपना ही अिहत करन क बराबर ह तब आपको धमर क ःवरप का सा तकार हो जायगा | 82) आप आतम-ित ा दलबनदी और ईयार को सदा क िलए छोड़ दो | पथवी माता की तरह सहनशील हो जाओ | ससार आपक कदम म नयोछावर होन का इतज़ार कर रहा ह | 83) म िनगरण िनिबय िनतय म और अ यत ह | म असतयःवरप दह नही ह | िस परष इसीको lsquo ानrsquo कहत ह | 84) जो दसर का सहारा खोजता ह वह सतयःवरप ई र की सवा नही कर सकता | 85) सतयःवरप महापरष का म सख-दःख म समान रहता ह सब अवःथाओ म हमार अनकल रहता ह | दय का एकमाऽ िवौामःथल वह म ह | व ावःथा उस आतमरस को सखा नही सकती | समय बदल जान स वह बदलता नही | कोई िवरला भा यवान ही ऐस िद य म का भाजन बन सकता ह | 86) शोक और मोह का कारण ह ािणय म िविभनन भाव का अधयारोप करना | मनय जब एक को सख दनवाला यारा स द समझता ह और दसर को दःख दनवाला शऽ समझकर उसस ष करता ह तब उसक दय म शोक और मोह का उदय होना अिनवायर

ह | वह जब सवर ािणय म एक अख ड स ा का अनभव करन लगगा ािणमाऽ को भ का पऽ समझकर उस आतमभाव स यार करगा तब उस साधक क दय म शोक और मोह का नामोिनशान नही रह जायगा | वह सदा सनन रहगा | ससार म उसक िलय न ही कोई शऽ रहगा और न ही कोई िमऽ | उसको कोई कलश नही पहचायगा | उसक सामन िवषधर नाग भी अपना ःवभाव भल जायगा | 87) िजसको अपन ाण की परवाह नही मतय का नाम सनकर िवचिलत न होकर उसका ःवागत करन क िलए जो सदा ततपर ह उसक िलए ससार म कोई कायर असाधय नही | उस िकसी बा श की जररत नही साहस ही उसका श ह | उस श स वह अनयाय का प लनवाल को परािजत कर दता ह िफर भी उनक िलए बर िवचार का सवन नही करता | 88) िचनता ही आननद व उ लास का िवधवस करनवाली रा सी ह | 89) कभी-कभी मधयरािऽ को जाग जाओ | उस समय इिनिया अपन िवषय क ित चचल नही रहती | बिहमरख ःफरण की गित मनद होती ह | इस अवःथा का लाभ लकर इिनियातीत अपन िचदाकाश ःवरप का अनभव करो | जगत शरीर व इिनिय क अभाव म भी अपन अख ड अिःततव को जानो | 90) य म ीित नही रहना ही असली वरा य ह | 91) रोग हम दबाना चाहता ह | उसस हमार िवचार भी मनद हो जात ह | अतः रोग की िनवित करनी चिहए | लिकन जो िवचारवान परष ह वह कवल रोगिनवित क पीछ ही नही लग जाता | वह तो यह िनगरानी रखता ह िक भयकर दःख क समय भी अपना िवचार छट तो नही गया ऐसा परष lsquoहाय-हायrsquo करक ाण नही तयागता कय िक वह जानता ह िक रोग उसका दास ह | रोग कसा भी भय िदखाय लिकन िवचारवान परष इसस भािवत नही होता | 92) िजस साधक क पास धारणा की ढ़ता एव उ य की पिवऽता य दो गण ह ग वह अवय िवजता होगा | इन दो शा स ससि जत साधक समःत िव न-बाधाओ का सामना करक आिखर म िवजयपताका फहरायगा | 93) जब तक हमार मन म इस बात का पकका िन य नही होगा िक सि शभ ह तब तक मन एकाम नही होगा | जब तक हम समझत रहग िक सि िबगड़ी हई ह तब तक

मन सशक ि स चार ओर दौड़ता रहगा | सवरऽ मगलमय ि रखन स मन अपन-आप शात होन लगगा | 94) आसन िःथर करन क िलए सक प कर िक जस पथवी को धारण करत हए भी शषजी िब कल अचल रहत ह वस म भी अचल रहगा | म शरीर और ाण का ा ह | 95) lsquoससार िमथया हrsquo - यह मद ानी की धारणा ह | lsquoससार ःव नवत हrsquo - यह मधयम ानी की धारणा ह | lsquoससार का अतयनत अभाव ह ससार की उतपि कभी हई ही नहीrsquo -

यह उ म ानी की धारणा ह | 96) आप यिद भि मागर म ह तो सारी सि भगवान की ह इसिलए िकसीकी भी िननदा करना ठ क नही | आप यिद ानमागर म ह तो यह सि अपना ही ःवरप ह | आप अपनी ही िननदा कस कर सकत ह इस कार द नो माग म परिननदा का अवकाश ही नही ह | 97) य म ा का भान एव ा म य का भान हो रहा ह | इस गड़बड़ का नाम ही अिववक या अ ान ह | ा को ा तथा य को य समझना ही िववक या ान ह | 98) आसन व ाण िःथर होन स शरीर म िव त पदा होती ह | शरीर क ारा जब भी िबया की जाती ह तब वह िव त बाहर िनकल जाती ह | इस िव त को शरीर म रोक लन स शरीर िनरोगी बन जाता ह | 99) ःव न की सि अ पकालीन और िविचऽ होती ह | मनय जब जागता ह तब जानता ह िक म पलग पर सोया ह | मझ ःव न आया | ःव न म पदाथर दश काल िबया इतयािद परी सि का सजरन हआ | लिकन मर िसवाय और कछ भी न था | ःव न की सि झठ थी | इसी कार ततव ानी परष अ ानरपी िनिा स ानरपी जामत अवःथा को ा हए ह | व कहत ह िक एक क िसवा अनय कछ ह ही नही | जस ःव न स जागन क बाद हम ःव न की सि िमथया लगती ह वस ही ानवान को यह जगत िमथया लगता ह | 100) शारीिरक क पड़ तब ऐसी भावना हो जाय िक lsquoयह क मर यार भ की ओर स हhelliprsquo तो वह क तप का फल दता ह | 101) चलत-चलत पर म छाल पड़ गय ह भख याकल कर रही हो बि िवचार

करन म िशिथल हो गई हो िकसी पड़ क नीच पड़ ह जीवन अस भव हो रहा हो मतय का आगमन हो रहा हो तब भी अनदर स वही िनभरय धविन उठ lsquoसोऽहमhellipसोऽहमhellipमझ भय नहीhellipमरी मतय नहीhellipमझ भख नहीhellip यास नहीhellip कित की कोई भी यथा मझ न नही कर सकतीhellipम वही हhellipवही हhelliprsquo 102) िजनक आग िय-अिय अनकल-ितकल सख-दःख और भत-भिवय एक समान ह ऐस ानी आतमव ा महापरष ही स च धनवान ह | 103) दःख म दःखी और सख म सखी होन वाल लोह जस होत ह | दःख म सखी रहन वाल सोन जस होत ह | सख-दःख म समान रहन वाल र जस होत ह परनत जो सख-दःख की भावना स पर रहत ह व ही स च साट ह | 104) ःव न स जाग कर जस ःव न को भल जात ह वस जामत स जागकर थोड़ी दर क

िलए जामत को भल जाओ | रोज ातः काल म पनिह िमनट इस कार ससार को भल जान की आदत डालन स आतमा का अनसधान हो सकगा | इस योग स सहजावःथा ा होगी | 105) तयाग और म स यथाथर ान होता ह | दःखी ाणी म तयाग व म िवचार स आत ह

| सखी ाणी म तयाग व म सवा स आत ह कय िक जो ःवय दःखी ह वह सवा नही कर सकता पर िवचार कर सकता ह | जो सखी ह वह सख म आस होन क कारण उसम िवचार का उदय नही हो सकता लिकन वह सवा कर सकता ह | 106) लोग की पजा व णाम स जसी सननता होती ह वसी ही सननता जब मार पड़

तब भी होती हो तो ही मन य िभ ानन महण करन का स चा अिधकारी माना जाता ह | 107) हरक साधक को िब कल नय अनभव की िदशा म आग बढ़ना ह | इसक िलय

ानी महातमा की अतयनत आवयकता होती ह | िजसको स ची िज ासा हो उस ऐस

महातमा िमल ही जात ह | ढ़ िज ासा स िशय को गर क पास जान की इ छा होती ह | यो य

िज ास को समथर गर ःवय दशरन दत ह | 108) बीत हए समय को याद न करना भिवय की िचनता न करना और व रमान म ा

सख-दःखािद म सम रहना य जीवनम परष क ल ण ह | 109) जब बि एव दय एक हो जात ह तब सारा जीवन साधना बन जाता ह |

110) बि मान परष ससार की िचनता नही करत लिकन अपनी मि क बार म सोचत ह |

मि का िवचार ही तयागी दानी सवापरायण बनाता ह | मो की इ छा स सब सदगण आ जात ह

| ससार की इ छा स सब दगरण आ जात ह | 111) पिरिःथित िजतनी किठन होती ह वातावरण िजतना पीड़ाकारक होता ह उसस

गजरन वाला उतना ही बलवान बन जाता ह | अतः बा क और िचनताओ का ःवागत करो | ऐसी पिरिःथित म भी वदानत को आचरण म लाओ | जब आप वदानती जीवन यतीत करग तब दखग

िक समःत वातावरण और पिरिःथितया आपक वश म हो रही ह आपक िलय उपयोगी िस हो रही ह | 112) हरक पदाथर पर स अपन मोह को हटा लो और एक सतय पर एक तथय पर अपन

ई र पर समम धयान को किनित करो | तरनत आपको आतम-सा ातकार होगा | 113) जस बड़ होत-होत बचपन क खलकद छोड़ दत हो वस ही ससार क खलकद छोड़कर आतमाननद का उपभोग करना चािहय | जस अनन व जल का सवन करत हो वस ही आतम-

िचनतन का िनरनतर सवन करना चािहय | भोजन ठ क स होता ह तो ति की डकार आती ह वस

ही यथाथर आतमिचनतन होत ही आतमानभव की डकार आयगी आतमाननद म मःत ह ग |

आतम ान क िसवा शाित का कोई उपाय नही | 114) आतम ानी क हकम स सयर काशता ह | उनक िलय इनि पानी बरसाता ह | उनही क

िलय पवन दत बनकर गमनागमन करता ह | उनही क आग समि रत म अपना िसर रगड़ता ह | 115) यिद आप अपन आतमःवरप को परमातमा समझो और अनभव करो तो आपक सब

िवचार व मनोरथ सफल ह ग उसी ण पणर ह ग | 116) राजा-महाराजा दवी-दवता वद-पराण आिद जो कछ ह व आतमदश क सक पमाऽ

ह | 117) जो लोग ितकलता को अपनात ह ई र उनक स मख रहत ह | ई र िजनह अपन

स दर रखना चाहत ह उनह अनकल पिरिःथितया दत ह | िजसको सब वःतए अनकल एव पिवऽ

सब घटनाए लाभकारी सब िदन शभ सब मनय दवता क रप म िदखत ह वही परष ततवदश ह | 118) समता क िवचार स िच ज दी वश म होता ह हठ स नही |

119) ऐस लोग स स बनध रखो िक िजसस आपकी सहनशि बढ़ समझ की शि बढ़

जीवन म आन वाल सख-दःख की तरग का आपक भीतर शमन करन की ताकत आय समता बढ़

जीवन तजःवी बन | 120) लोग बोलत ह िक धयान व आतमिचनतन क िलए हम फरसत नही िमलती | लिकन

भल मनय जब नीद आती ह तब सब महतवपणर काम भी छोड़कर सो जाना पड़ता ह िक नही

जस नीद को महतव दत हो वस ही चौबीस घनट म स कछ समय धयान व आतमिचनतन म भी िबताओ | तभी जीवन साथरक होगा | अनयथा कछ भी हाथ नही लगगा | 121) भल जाओ िक तम मनय हो अमक जाित हो अमक उ हो अमक िड़मीवाल हो अमक धनधवाल हो | तम िनगरण िनराकार सा ीरप हो ऐसा ढ़ िन य करो | इसीम तमाम

कार की साधनाए िबयाए योगािद समािव हो जात ह | आप सवर यापक अख ड चतनय हो | सार ान का यह मल ह | 122) दोष तभी िदखता जब हमार लोचन म क अभावरप पीिलया रोग स मःत होत ह | 123) साधक यिद अ यास क मागर पर उसी कार आग बढ़ता जाय िजस कार ार भ

म इस मागर पर चलन क िलए उतसाहपवरक कदम रखा था तो आयरपी सयर अःत होन स पहल

जीवनरपी िदन रहत ही अवय सोऽहम िसि क ःथान तक पहच जाय | 124) लोग ज दी स उननित कय नही करत कय िक बाहर क अिभाय एव िवचारधाराओ का बहत बड़ा बोझ िहमालय की तरह उनकी पीठ पर लदा हआ ह | 125) अपन ित होन वाल अनयाय को सहन करत हए अनयायकतार को यिद मा कर िदया जाय तो ष म म पिरणत हो जाता ह | 126) साधना की शरआत ौ ा स होती ह लिकन समाि ान स होनी चािहय | ान मान

ःवयसिहत सवर ःवरप ह ऐसा अपरो अनभव | 127) अपन शरीर क रोम-रोम म स ॐ का उ चारण करो | पहल धीम ःवर म ार भ

करो | शर म धविन गल स िनकलगी िफर छाती स िफर नािभ स और अनत म रीढ़ की ह डी क

आिखरी छोर स िनकलगी | तब िव त क धकक स सष ना नाड़ी तरनत खलगी | सब कीटाणसिहत

तमाम रोग भाग खड़ ह ग | िनभरयता िह मत और आननद का फ वारा छटगा | हर रोज ातःकाल

म ःनानािद करक सय दय क समय िकसी एक िनयत ःथान म आसन पर पवारिभमख बठकर

कम-स-कम आधा घनटा करक तो दखो | 128) आप जगत क भ बनो अनयथा जगत आप पर भतव जमा लगा | ान क

मतािबक जीवन बनाओ अनयथा जीवन क मतािबक ान हो जायगा | िफर यग की याऽा स भी दःख का अनत नही आयगा | 129) वाःतिवक िश ण का ारभ तो तभी होता ह जब मनय सब कार की सहायताओ स िवमख होकर अपन भीतर क अननत ॐोत की तरफ अमसर होता ह | 130) य पच की िनवित क िलए अनतःकरण को आननद म सरोबार रखन क िलए

कोई भी कायर करत समय िवचार करो म कौन ह और कायर कौन कर रहा ह भीतर स जवाब

िमलगा मन और शरीर कायर करत ह | म सा ीःवरप ह | ऐसा करन स कतारपन का अह

िपघलगा सख-दःख क आघात मनद ह ग | 131) राग- ष की िनवित का कया उपाय ह उपाय यही ह िक सार जगत-पच को मनोरा य समझो | िननदा-ःतित स राग- ष स पच म सतयता ढ़ होती ह | 132) जब कोई खनी हाथ आपकी गरदन पकड़ ल कोई श धारी आपको कतल करन क

िलए ततपर हो जाय तब यिद आप उसक िलए सननता स तयार रह दय म िकसी कार का भय

या िवषाद उतपनन न हो तो समझना िक आपन राग- ष पर िवजय ा कर िलया ह | जब आपकी ि पड़त ही िसहािद िहसक जीव की िहसावित गायब हो जाय तब समझना िक अब राग- ष का अभाव हआ ह | 133) आतमा क िसवाय अनय कछ भी नही ह - ऐसी समझ रखना ही आतमिन ा ह | 134) आप ःव न ा ह और यह जगत आपका ही ःव न ह | बस िजस ण यह ान हो जायगा उसी ण आप म हो जाएग | 135) िदन क चौबीस घ ट को साधनामय बनान क िलय िनक मा होकर यथर िवचार करत हए मन को बार-बार सावधान करक आतमिचतन म लगाओ | ससार म सल न मन को वहा स उठा कर आतमा म लगात रहो | 136) एक बार सागर की एक बड़ी तरग एक बलबल की िता पर हसन लगी | बलबल न

कहा ओ तरग म तो छोटा ह िफर भी बहत सखी ह | कछ ही दर म मरी दह टट जायगी िबखर

जायगी | म जल क साथ जल हो जाऊगा | वामन िमटकर िवराट बन जाऊगा | मरी मि बहत

नजदीक ह | मझ आपकी िःथित पर दया आती ह | आप इतनी बड़ी हई हो | आपका छटकारा ज दी नही होगा | आप भाग-भागकर सामनवाली च टान स टकराओगी | अनक छोटी-छोटी तरग

म िवभ हो जाओगी | उन अस य तरग म स अननत-अननत बलबल क रप म पिरवितरत हो जाओगी | य सब बलबल फटग तब आपका छटकारा होगा | बड़ पन का गवर कय करती हो जगत की उपलि धय का अिभमान करक परमातमा स दर मत जाओ | बलबल की तरह सरल

रहकर परमातमा क साथ एकता का अनभव करो | 137) जब आप ईयार ष िछिानवषण दोषारोपण घणा और िननदा क िवचार िकसीक

ित भजत ह तब साथ-ही-साथ वस ही िवचार को आमिऽत भी करत ह | जब आप अपन भाई की आख म ितनका भ कत ह तब अपनी आख म भी आप ताड़ भ क रह ह | 138) शरीर अनक ह आतमा एक ह | वह आतमा-परमातमा मझस अलग नही | म ही कतार सा ी व नयायधीश ह | म ही ककर श आलोचक ह और म ही मधर शसक ह | मर िलय तयक

यि ःवतऽ व ःव छनद ह | बनधन पिरि छननता और दोष मरी ि म आत ही नही | म म

हपरम म ह और अनय लोग भी ःवतऽ ह | ई र म ही ह | आप भी वही हो | 139) िजस कार बालक अपनी परछा म बताल की क पना कर भय पाता ह उसी कार जीव अपन ही सक प स भयभीत होता ह और क पाता ह | 140) कभी-कभी ऐसी भावना करो िक आपक सामन चतनय का एक महासागर लहरा रहा ह | उसक िकनार खड़ रह कर आप आनद स उस दख रह ह | आपका शरीर सागर की सतह पर घमन गया ह | आपक दखत ही दखत वह सागर म डब गया | इस समःत पिरिःथित को दखन वाल आप सा ी आतमा शष रहत ह | इस कार सा ी रप म अपना अनभव करो | 141) यिद हम चाहत ह िक भगवान हमार सब अपराध माफ कर तो इसक िलए सगम साधना यही ह िक हम भी अपन सबिधत सब लोग क सब अपराध माफ कर द |

कभी िकसी क दोष या अपराध पर ि न डाल कय िक वाःतव म सब रप म हमारा यारा ई दव ही बीड़ा कर रहा ह |

142) पणर पिवऽता का अथर ह बा भाव स भािवत न होना | सासािरक मनोहरता एव घणा स पर रहना राजी-नाराजगी स अिवचल िकसी म भद न दखना और आतमानभव क ारा आकषरण व तयाग स अिल रहना | यही वदानत का उपिनषद का

रहःय ह | 143) ई र सा ातकार तभी होगा जब ससार की ि स तीत होन वाल बड़-स-बड़ विरय को भी मा करन का आपका ःवभाव बन जायगा | 144) चाल यवहार म स एकदम उपराम होकर दो िमनट क िलए िवराम लो |

सोचो िक lsquo म कौन ह सद -गम शरीर को लगती ह | भख- यास ाण को लगती ह |

अनकलता-ितकलता मन को लगती ह | शभ-अशभ एव पाप-प य का िनणरय बि करती ह | म न शरीर ह न ाण ह न मन ह न बि ह | म तो ह इन सबको स ा दन वाला इन सबस नयारा िनलप आतमा |rsquo 145) जो मनय िनरतर lsquoम म हhelliprsquo ऐसी भावना करता ह वह म ही ह और lsquoम ब हhelliprsquo ऐसी भावना करनवाला ब ही ह | 146) आप िनभरय ह िनभरय ह िनभरय ह | भय ही मतय ह | भय ही पाप ह | भय ही नकर ह | भय ही अधमर ह | भय ही यिभचार ह | जगत म िजतन असत या िमथया भाव ह व सब इस भयरपी शतान स पदा हए ह | 147) परिहत क िलए थोड़ा काम करन स भी भीतर की शि या जागत होती ह |

दसर क क याण क िवचारमाऽ स दय म एक िसह क समान बल आ जाता ह | 148) हम यिद िनभरय ह ग तो शर को भी जीतकर उस पाल सक ग | यिद डरग तो क ा भी हम फ़ाड़ खायगा | 149) तयक िबया तयक यवहार तयक ाणी ःवरप िदख यही सहज समािध ह | 150) जब किठनाईया आय तब ऐसा मानना िक मझ म सहन शि बढ़ान क िलए ई र न य सयोग भज ह | किठन सयोग म िह मत रहगी तो सयोग बदलन लगग |

िवषय म राग- ष रह गया होगा तो वह िवषय कसौटी क रप म आग आयग और उनस पार होना पड़गा | 151) ततव ि स न तो आपन जनम िलया न कभी लग | आप तो अनत ह सवर यापी ह िनतयम अजर-अमर अिवनाशी ह | जनम-मतय का ही गलत ह महा-

मखरतापणर ह | जहा जनम ही नही हआ वहा मतय हो ही कस सकती ह 152) आप ही इस जगत क ई र हो | आपको कौन दबरल बना सकता ह जगत म आप ही एकमाऽ स ा हो | आपको िकसका भय खड़ हो जाओ | म हो जाओ | ठ क स समझ लो िक जो कोई िवचार या श द आपको दबरल बनाता ह वही एकमाऽ अशभ ह | मनय को दबरल व भयभीत करनवाला जो कछ इस ससार म ह वह पाप ह | 153) आप अपना कायर या कतर य करो लिकन न उसक िलए कोई िचनता रह न ही कोई

इ छा | अपन कायर म सख का अनभव करो कय िक आपका कायर ःवय सख या िवौाम ह | आपका कायर आतमानभव का ही दसरा नाम ह | कायर म लग रहो | कायर आपको आतमानभव कराता ह |

िकसी अनय हत स कायर न करो | ःवतऽ वि स अपन कायर पर डट जाओ | अपन को ःवतऽ

समझो िकसीक कदी नही | 154) यिद आप सतय क मागर स नही हटत तो शि का वाह आपक साथ ह समय आपक

साथ ह ऽ आपक साथ ह | लोग को उनक भतकाल की मिहमा पर फलन दो भिवयकाल की स पणर मिहमा आपक हाथ म ह | 155) जब आप िद य म क साथ चा डाल म चोर म पापी म अ यागत म और सबम भ क दशरन करग तब आप भगवान ौी कण क मपाऽ बन जायग | 156) आचायर गौड़पाद न ःप कहा आप सब आपस म भल ही लड़त रह लिकन मर साथ नही लड़ सक ग | आप सब लोग मर पट म ह | म आतमःवरप स सवर या ह | 157) मनय सभी ािणय म ौ ह सब दवताओ स भी ौ ह | दवताओ को भी िफर स

धरती पर आना पड़गा और मनय शरीर ा करक मि ा करनी होगी | 158) िनि नतता क दो सऽ जो कायर करना जररी ह उस परा कर दो | जो िबनजररी ह

उस भल जाओ | 159) सवा-म-तयाग ही मनय क िवकास का मल मऽ ह | अगर यह मऽ आपको जच

जाय तो सभी क ित सदभाव रखो और शरीर स िकसी-न-िकसी यि को िबना िकसी मतलब क

सहयोग दत रहो | यह नही िक जब मरी बात मानग तब म सवा करगा | अगर बनधक मरी बात

नही मानत तो म सवा नही करगा |

भाई तब तो तम सवा नही कर पाओग | तब तो तम अपनी बात मनवा कर अपन अह की पजा ही

करोग | 160) जस ःव न िमथया ह वस ही यह जामत अवःथा भी ःव नवत ही ह िमथया ह | हरक

को अपन इस ःव न स जागना ह | सदगर बार-बार जगा रह ह लिकन जाग कर वापस सो न जाए ऐसा परषाथर तो हम ही करना होगा | 161) सदा सननमख रहो | मख को कभी मिलन मत करो | िन य कर लो िक आपक

िलय शोक न इस जगत म जनम नही िलया ह | आननदःवरप म िचनता का ःथान ही कहा ह 162) समम ा ड एक शरीर ह | समम ससार एक शरीर ह | जब तक आप तयक क

साथ एकता का अनभव करत रहग तब तक सब पिरिःथितया और आस-पास की चीज़ हवा और समि की लहर भी आपक प म रहगी | 163) आपको जो कछ शरीर स बि स या आतमा स कमजोर बनाय उसको िवष की तरह

ततकाल तयाग दो | वह कभी सतय नही हो सकता | सतय तो बलद होता ह पावन होता ह

ानःवरप होता ह | सतय वह ह जो शि द | 164) साधना म हमारी अिभरिच होनी चािहय साधना की तीो माग होनी चािहय | 165) दसर क दोष की चचार मत करो चाह व िकतन भी बड़ ह | िकसी क दोष की चचार करक आप उसका िकसी भी कार भला नही करत बि क उस आघात पहचात ह और साथ-ही-साथ अपन आपको भी | 166) इस ससार को सतय समझना ही मौत ह | आपका असली ःवरप तो आननदःवरप

आतमा ह | आतमा क िसवा ससार जसी कोई चीज ही नही ह | जस सोया हआ मनय ःव न म अपनी एकता नही जानता अिपत अपन को अनक करक दखता ह वस ही आननदःवरप आतमा जामत ःव न और सषि - इन तीन ःवरप को दखत हए अपनी एकता अि तीयता का अनभव

नही करता | 167) मनोजय का उपाय ह अ यास और वरा य | अ यास मान य पवरक मन को बार-बार परमातम-िचतन म लगाना और वरा य मान मन को ससार क पदाथ की ओर स वापस

लौटाना | 168) िकसी स कछ मत मागो | दन क िलय लोग आपक पीछ-पीछ घमग | मान नही

चाहोग तो मान िमलगा | ःवगर नही चाहोग तो ःवगर क दत आपक िलय िवमान लकर आयग |

उसको भी ःवीकार नही करोग तो ई र आपको अपन दय स लगायग | 169) कभी-कभी उदय या अःत होत हए सयर की ओर चलो | नदी सरोवर या समि क तट

पर अकल घमन जाओ | ऐस ःथान की मलाकात लो जहा शीतल पवन मनद-मनद चल रही हो | वहा परमातमा क साथ एकःवर होन की स भावना क ार खलत ह | 170) आप य -ही इ छा स ऊपर उठत हो तय -ही आपका इि छत पदाथर आपको खोजन

लगता ह | अतः पदाथर स ऊपर उठो | यही िनयम ह | य - य आप इ छक िभ क याचक का भाव धारण करत हो तय -तय आप ठकराय जात हो | 171) कित क तयक पदाथर को दखन क िलय काश जररी ह | इसी कार मन बि

इिनिय को अपन-अपन कायर करन क िलय आतम-काश की आवयकता ह कय िक बाहर का कोई काश मन बि इिनिय ाणािद को चतन करन म समथर नही | 172) जस ःव न ा परष को जागन क बाद ःव न क सख-दःख जनम-मरण पाप-प य

धमर-अधमर आिद ःपशर नही करत कय िक वह सब खद ही ह | खद क िसवाय ःव न म दसरा कछ

था ही नही | वस ही जीवनम ानवान परष को सख-दःख जनम-मरण पाप-प य धमर-अधमर ःपशर नही करत कय िक व सब आतमःवरप ही ह | 173) वही भमा नामक आतम योित क म रह कर भ क रही ह सअर म रह कर घर रही ह गध म रह कर रक रही ह लिकन मखर लोग शरीर पर ही ि रखत ह चतनय ततव पर नही | 174) मनय िजस ण भत-भिवय की िचनता का तयाग कर दता ह दह को सीिमत और उतपि -िवनाशशील जानकर दहािभमान को तयाग दता ह उसी ण वह एक उ चतर अवःथा म पहच जाता ह | िपजर स छटकर गगनिवहार करत हए प ी की तरह मि का अनभव करता ह | 175) समःत भय एव िचनताए आपकी इ छाओ का णाम ह | आपको भय कय लगता ह

कय िक आपको आशका रहती ह िक अमक चीज कही चली न जाय | लोग क हाःय स आप डरत

ह कय िक आपको यश की अिभलाषा ह कीितर म आसि ह | इ छाओ को ितलाजिल द दो | िफर दखो मजा कोई िज मदारी नहीकोई भय नही | 176) दखन म अतयत करप काला-कलटा कबड़ा और तज ःवभाव का मनय भी आपका ही ःवरप ह | आप इस तथय स म नही | िफर घणा कसी कोई लाव यमयी सदरी सि की

शोभा क समान अित िवलासभरी अ सरा भी आपका ही ःवरप ह | िफर आसि िकसकी

आपकी ानिनिया उनको आपस अलग करक िदखाती ह | य इिनिया झठ बोलनवाली ह | उनका कभी िव ास मत करो | अतः सब कछ आप ही हो | 177) मानव क नात हम साधक ह | साधक होन क नात सतय को ःवीकर करना हमारा ःवधमर ह | सतय यही ह िक बल दसर क िलय ह ान अपन िलय ह और िव ास परमातमा स

स बनध जोड़न क िलय ह | 178) अपनी आतमा म डब जाना यह सबस बड़ा परोपकार ह | 179) आप सदव म ह ऐसा िव ास ढ़ करो तो आप िव क उ ारक हो जात हो | आप

यिद वदानत क ःवर क साथ ःवर िमलाकर िन य करो आप कभी शरीर न थ | आप िनतय श

ब आतमा हो तो अिखल ा ड क मो दाता हो जात हो | 180) कपा करक उन ःवाथरमय उपाय और अिभाय को दर फ क दो जो आपको पिरि छनन रखत ह | सब वासनाए राग ह | यि गत या शरीरगत म आसि ह | उस फ क दो | ःवय पिवऽ हो जाओ | आपका शरीर ःवःथ और बि पणरःवरप हो जायगी | 181) यिद ससार क सख व पदाथर ा ह तो आपको कहना चािहय ओ शतान हट जा मर सामन स | तर हाथ स मझ कछ नही चािहय | तब दखो िक आप कस सखी हो जात हो परमातमा-ा िकसी महापरष पर िव ास रखकर अपनी जीवनडोरी िनःशक बन उनक चरण म सदा क िलय रख दो | िनभरयता आपक चरण की दासी बन जायगी | 182) िजसन एक बार ठ क स जान िलया िक जगत िमथया ह और ािनत स इसकी तीित

हो रही ह उसको कभी दःख नही होता | जगत म कभी आसि नही होती | जगत क िमथयातव क

िन य का नाम ही जगत का नाश ह | 183) अपन ःवरप म लीन होन माऽ स आप ससार क साट बन जायग | यह साटपद

कवल इस ससार का ही नही समःत लोक-परलोक का साटपद होगा | 184) ह जनक चाह दवािधदव महादव आकर आपको उपदश द या भगवान िवण आकर उपदश द अथवा ाजी आकर उपदश द लिकन आपको कदािप सख न होगा | जब िवषय का तयाग करोग तभी स ची शाित व आनद ा ह ग |

185) िजस भ न हम मानव जीवन दकर ःवाधीनता दी िक हम जब चाह तब धमारतमा होकर भ होकर जीवनम होकर कतकतय हो सकत ह- उस भ की मिहमा गाओ | गाओ नही तो सनो | सनो भी नही गाओ भी नही तो ःवीकार कर लो | 186) चाह समि क गहर तल म जाना पड़ सा ात मतय का मकाबला करना पड़ अपन

आतमाि क उ य की पितर क िलय अिडग रहो | उठो साहसी बनो शि मान बनो | आपको जो बल व सहायता चािहय वह आपक भीतर ही ह | 187) जब-जब जीवन स बनधी शोक और िचनता घरन लग तब-तब अपन आननदःवरप

का गान करत-करत उस मोह-माया को भगा दो | 188) जब शरीर म कोई पीड़ा या अग म ज म हो तब म आकाशवत आकाशरिहत चतन

ह ऐसा ढ़ िन य करक पीड़ा को भल जाओ | 189) जब दिनया क िकसी चककर म फस जाओ तब म िनलप िनतय म ह ऐसा ढ़

िन य करक उस चककर स िनकल जाओ | 190) जब घर-बार स बनधी कोई किठन समःया याकल कर तब उस मदारी का खल

समझकर ःवय को िनःसग जानकर उस बोझ को ह का कर दो | 191) जब बोध क आवश म आकर कोई अपमानय वचन कह तब अपन शाितमय

ःवरप म िःथर होकर मन म िकसी भी ोभ को पदा न होन दो | 192) उ म अिधकारी िज ास को चािहय िक वह व ा सदगर क पास जाकर ौ ा पवरक महावाकय सन | उसका मनन व िनिदधयासन करक अपन आतमःवरप को जान | जब

आतमःवरप का सा ातकार होता ह तब ही परम िवौािनत िमल सकती ह अनयथा नही | जब तक

व ा महापरष स महावाकय ा न हो तब तक वह मनद अिधकारी ह | वह अपन दयकमल म परमातमा का धयान कर ःमरण कर जप कर | इस धयान-जपािद क साद स उस व ा सदगर

ा ह ग | 193) मन बि िच अहकार छाया की तरह जड़ ह णभगर ह कय िक व उतपनन होत

ह और लीन भी हो जात ह | िजस चतनय की छाया उसम पड़ती ह वह परम चतनय सबका आतमा ह | मन बि िच अहकार का अभाव हो जाता ह लिकन उसका अनभव करनवाल का अभाव

कदािप नही होता |

194) आप अपनी शि को उ चाितउ च िवषय की ओर बहन दो | इसस आपक पास व

बात सोचन का समय ही नही िमलगा िजसस कामकता की गध आती हो | 195) अपराध क अनक नाम ह बालहतया नरहतया मातहतया गौहतया इतयािद |

परनत तयक ाणी म ई र का अनभव न करक आप ई रहतया का सबस बड़ा अपराध करत ह | 196) सवा करन की ःवाधीनता मनयमाऽ को ा ह | अगर वह करना ही न चाह तो अलग बात ह | सवा का अथर ह मन-वाणी-कमर स बराईरिहत हो जाना यह िव की सवा हो गई |

यथाशि भलाई कर दो यह समाज की सवा हो गई | भलाई का फल छोड़ दो यह अपनी सवा हो गई

| भ को अपना मानकर ःमित और म जगा लो यह भ की सवा हो गई | इस कार मनय

अपनी सवा भी कर सकता ह समाज की सवा भी कर सकता ह िव की सवा भी कर सकता ह

और िव र की सवा भी कर सकता ह | 197) आतमा स बाहर मत भटको अपन कनि म िःथर रहो अनयथा िगर पड़ोग | अपन-

आपम पणर िव ास रखो | आतम-कनि पर अचल रहो | िफर कोई भी चीज आपको िवचिलत नही कर सकती | 198) सदा शात िनिवरकार और सम रहो | जगत को खलमाऽ समझो | जगत स भािवत

मत हो | इसस आप हमशा सखी रहोग | िफर कछ बढ़ान की इ छा नही होगी और कछ कम होन स

दःख नही होगा | 199) समथर सदगर क सम सदा फल क भाित िखल हए रहो | इसस उनक अनदर सक प

होगा िक यह तो बहत उतसाही साधक ह सदा सनन रहता ह | उनक सामथयरवान सक प स

आपकी वह किऽम सननता भी वाःतिवक सननता म बदल जायगी | 200) यिद रोग को भी ई र का िदया मानो तो ार ध-भोग भी हो जाता ह और क तप का फल दता ह | इसस ई र-कपा की ाि होती ह | याकल मत हो | क सल और इनजकशन

आधीन मत हो | 201) साधक को चािहय िक अपन लआय को ि म रखकर साधना-पथ पर तीर की तरह

सीधा चला जाय | न इधर दख न उधर | ि यिद इधर-उधर जाती हो तो समझना िक िन ा िःथर नही ह |

202) आपन अपन जीवन म हजार ःव न दख ह ग लिकन व आपक जीवन क अश नही बन जात | इसी कार य जामत जगत क आड बर आपकी आतमा क सम कोई मह व नही रखत | 203) एक आतमा को ही जानो अनय बात को छोड़ो | धीर साधक को चािहय िक वह

सावधान होकर आतमिन ा बढ़ाय अनक श द का िचनतन व भाषण न कर कय िक वह तो कवल

मन-वाणी को पिरौम दनवाला ह असली साधना नही ह | 204) जो परष जन-समह स ऐस डर जस साप स डरता ह स मान स ऐस डर जस नकर स

डरता ह ि य स ऐस डर जस मद स डरता ह उस परष को दवतागण ा ण मानत ह | 205) जस अपन शरीर क अग पर बोध नही आता वस शऽ िमऽ व अपनी दह म एक ही आतमा को दखनवाल िववकी परष को कदािप बोध नही आता | 206) मन तो शरीर को ई रापरण कर िदया ह | अब उसकी भख- यास स मझ कया

समिपरत वःत म आस होना महा पाप ह | 207) आप यिद िद य ि पाना चहत हो तो आपको इिनिय क ऽ का तयाग करना होगा | 208) लयकाल क मघ की गजरना हो समि उमड़ पड बारह सयर तपायमान हो जाय पहाड़ स पहाड़ टकरा कर भयानक आवाज हो तो भी ानी क िन य म त नही भासता कय िक

त ह ही नही | त तो अ ानी को भासता ह | 209) सतय को ःवीकार करन स शाित िमलगी | कछ लोग यो यता क आधार पर शाित

खरीदना चाहत ह | यो यता स शाित नही िमलगी यो यता क सदपयोग स शाित िमलगी | कछ

लोग स पि क आधार पर शाित सरि त रखना चाहत ह | स पि स शाित नही िमलगी स पि

क सदपयोग स शाित िमलगी वस ही िवपि क सदपयोग स शाित िमलगी | 210) त छ हािन-लाभ पर आपका धयान इतना कय रहता ह िजसस अनत आननदःवरप

आतमा पर स धयान हट जाता ह | 211) अपन अनदर ही आननद ा करना य िप किठन ह परनत बा िवषय स आननद

ा करना तो अस भव ही ह |

212) म ससार का काश ह | काश क रप म म ही सब वःतओ म या ह | िनतय इन

िवचार का िचनतन करत रहो | य पिवऽ िवचार आपको परम पिवऽ बना दग | 213) जो वःत कमर स ा होती ह उसक िलय ससार की सहायता तथा भिवय की आशा की आवयकता होती ह परनत जो वःत तयाग स ा होती ह उसक िलय न ससार की सहायता चािहय न भिवय की आशा | 214) आपको जब तक बाहर चोर िदखता ह तब तक जरर भीतर चोर ह | जब दसर लोग

स िभनन अयो य खराब सधारन यो य िदखत ह तब तक ओ सधार का बीड़ा उठान वाल त अपनी िचिकतसा कर | 215) सफल व ही होत ह जो सदव नतमःतक एव सननमख रहत ह | िचनतातर-शोकातर लोग की उननित नही हो सकती | तयक कायर को िह मत व शाित स करो | िफर दखो िक यह

कायर शरीर मन और बि स हआ | म उन सबको स ा दनवाला चतनयःवरप ह | ॐ ॐ का पावन गान करो | 216) िकसी भी पिरिःथित म मन को यिथत न होन दो | आतमा पर िव ास करक

आतमिन बन जाओ | िनभरयता आपकी दासी बन कर रहगी | 217) सतसग स मनय को साधना ा होती ह चाह वह शाित क रप म हो चाह मि क

रप म चाह सवा क रप म हो म क रप म हो चाह तयाग क रप म हो | 218) भला-बरा वही दखता ह िजसक अनदर भला-बरा ह | दसर क शरीर को वही दखता ह

जो खद को शरीर मानता ह | 219) खबरदार आपन यिद अपन शरीर क िलय ऐश-आराम की इ छा की िवलािसता एव इिनिय-सख म अपना समय बरबाद िकया तो आपकी खर नही | ठ क स कायर करत रहन की नीित

अपनाओ | सफलता का पहला िस ात ह कायरिवौामरिहत कायरसा ी भाव स कायर | इस

िस ात को जीवन म चिरताथर करोग तो पता चलगा िक छोटा होना िजतना सरल ह उतना ही बड़ा होना भी सहज ह | 220) भतकाल पर िखनन हए िबना भिवय की िचनता िकय िबना व रमान म कायर करो | यह भाव आपको हर अवःथा म सनन रखगा हम जो कछ ा ह उसका सदपयोग ही अिधक

काश पान का साधन ह |

221) जब आप सफलता की ओर पीठ कर लत हो पिरणाम की िचनता का तयाग कर दत

हो स मख आय हए क र य पर अपनी उ ोगशि एकाम करत हो तब सफलता आपक पीछ-पीछ

आ जाती ह | अतः सफलता आपको खोजगी | 222) वि तब तक एकाम नही होगी जब तक मन म कभी एक आशा रहगी तो कभी दसरी | शात वही हो सकता ह िजस कोई क र य या आवयकता घसीट न रही हो | अतः परम शाित पान

क िलय जीवन की आशा भी तयाग कर मन ाननद म डबो दो | आज स समझ लो िक यह शरीर ह ही नही | कवल ाननद का सागर लहरा रहा ह | 223) िजसकी पककी िन ा ह िक म आतमा हrsquo उसक िलय ऐसी कौन सी मिथ ह जो खल

न सक ऐसी कोई ताकत नही जो उसक िवर जा सक | 224) मर भा य म नही थाई र की मज आजकल सतसग ा नही होताजगत

खराब ह ऐस वचन हमारी कायरता व अनतःकरण की मिलनता क कारण िनकलत ह | अतः नकारातमक ःवभाव और दसर पर दोषारोपण करन की वि स बचो | 225) आप जब भीतरवाल स नाराज होत हो तब जगत आपस नाराज रहता ह | जब आप

भीतर अनतयारमी बन बठ तो जगतरपी पतलीघर म िफर गड़बड़ कसी 226) िजस ण हम ससार क सधारक बन खड़ होत ह उसी ण हम ससार को िबगाड़नवाल बन जात ह | श परमातमा को दखन क बजाय जगत को िबगड़ा हआ दखन की ि बनती ह | सधारक लोग मानत ह िक lsquoभगवान न जो जगत बनाया ह वह िबगड़ा हआ ह और हम उस सधार रह ह |rsquo वाह वाह धनयवाद सधारक अपन िदल को सधारो पहल | सवरऽ िनरजन का दीदार करो | तब आपकी उपिःथित माऽ स आपकी ि माऽ स अर यार आपको छकर बहती हवा माऽ स अननत जीव को शाित िमलगी और अननत सधार होगा | नानक कबीर महावीर ब और लीलाशाह बाप जस महापरष न यही कजी अपनायी थी | 227) वदानत म हमशा कमर का अथर होता ह वाःतिवक आतमा क साथ एक होकर च ा करना अिखल िव क साथ एकःवर हो जाना | उस अि तीय परम ततव क साथ िनःःवाथर सयोग ा करना ही एकमाऽ स चा कमर ह बाकी सब बोझ की गठिरया उठाना ह |

228) अपनी व रमान अवःथा चाह कसी भी हो उसको सव च मानन स ही आपक दय म आतम ान ान का अनायास उदय होन लगगा | आतम-सा ातकार को मील दर की कोई चीज समझकर उसक पीछ दौड़ना नही ह िचिनतत होना नही ह |

िचनता की गठरी उठाकर यिथत होन की जररत नही ह | िजस ण आप िनि नतता म गोता मारोग उसी ण आपका आतमःवरप गट हो जायगा | अर गट कया होगा आप ःवय आतमःवरप हो ही | अनातमा को छोड़ दो तो आतमःवरप तो हो ही | 229) सदा ॐकार का गान करो | जब भय व िचनता क िवचार आय तब िकसी मःत सत-फकीर महातमा क सािननधय का ःमरण करो | जब िननदा-शसा क सग आय तब महापरष क जीवन का अवलोकन करो | 230) िजनको आप भयानक घटनाए एव भयकर आघात समझ बठ हो वाःतव म व आपक ियतम आतमदव की ही करतत ह | समःत भयजनक तथा ाणनाशक घटनाओ क नाम-रप तो िवष क ह लिकन व बनी ह अमत स | 231) मन म यिद भय न हो तो बाहर चाह कसी भी भय की साममी उपिःथत हो जाय आपका कछ िबगाड़ नही सकती | मन म यिद भय होगा तो तरनत बाहर भी भयजनक पिरिःथया न होत हए भी उपिःथत हो जायगी | व क तन म भी भत िदखन लगगा | 232) िकसी भी पिरिःथित म िदखती हई कठोरता व भयानकता स भयभीत नही होना चािहए | क क काल बादल क पीछ पणर काशमय एकरस परम स ा सयर की तरह सदा िव मान ह | 233) आप अपन पर कदािप अिव ास मत करो | इस जगत म आप सब कछ कर सकत हो | अपन को कभी दबरल मत मानो | आपक अनदर तमाम शि या छपी हई ह | 234) यिद कोई मन य आपकी कोई चीज़ को चरा लता ह तो ड़रत कय हो वह मनय

और आप एक ह | िजस चीज़ को वह चराता ह वह चीज़ आपकी और उसकी द न की ह | 235) जो खद क िसवाय दसरा कछ दखता नही सनता नही जानता नही वह अननत ह |

जब तक खद क िसवाय और िकसी वःत का भान होता ह वह वःत स ची लगती ह तब तक आप

सीिमत व शात ह असीम और अनत नही |

236) ससार मझ कया आनद द सकता ह स पणर आनद मर भीतर स आया ह | म ही स पणर आननद ह स पणर मिहमा एव स पणर सख ह | 237) जीवन की समःत आवयकताए जीवन म उपिःथत ह परनत जीवन को जब हम

बा रग म रग दत ह तब जीवन का वाःतिवक रप हम नही जान पात | 238) िननदक की िननदा स म कय मरझाऊ शसक की शसा स म कय फल िननदा स म घटता नही और शसा स म बढ़ता नही | जसा ह वसा ही रहता ह | िफर िननदा-ःतित स

खटक कसी 239) ससार व ससार की समःयाओ म जो सबस अिधक फस हए ह उनही को वदानत की सबस अिधक आवयकता ह | बीमार को ही औषिध की यादा आवयकता ह | कय जी ठ क ह न 240) जगत क पाप व अतयाचार की बात मत करो लिकन अब भी आपको जगत म पाप

िदखता ह इसिलय रोओ | 241) हम यिद जान ल िक जगत म आतमा क िसवाय दसरा कछ ह ही नही और जो कछ

िदखता ह वह ःव नमाऽ ह तो इस जगत क दःख-दािरिय पाप-प य कछ भी हम अशात नही कर सकत | 242) िव ान दाशरिनक व आचाय की धमकी तथा अनमह आलोचना या अनमित

ानी पर कोई भाव नही ड़ाल सकती | 243) ह यि रप अननत आप अपन पर पर खड़ रहन का साहस करो समःत िव का बोझ आप िखलौन की तरह उठा लोग | 244) िसह की गजरना व नरिसह की ललकार तलवार की धार व साप की फफकार तपःवी की धमकी व नयायधीश की फटकारइन सबम आपका ही काश चमक रहा ह | आप इनस

भयभीत कय होत हो उलझन कय महसस करत हो मरी िब ली मझको याऊ वाली बात कय

होन दत हो 245) ससार हमारा िसफ़र िखलोना ही ह और कछ नही | अबोध बालक ही िखलौन स

भयभीत होता ह आसि करता ह िवचारशील यि नही |

246) जब तक अिव ा दर नही होगी तब तक चोरी जआ दार यिभचार कभी बद न

ह ग चाह लाख कोिशश करो | 247) आप हमशा अदर का धयान रखो | पहल हमारा भीतरी पतन होता ह | बा पतन तो इसका पिरणाम माऽ ह | 248) तयाग स हमशा आनद िमलता ह | जब तक आपक पास एक भी चीज़ बाकी ह तब

तक आप उस चीज़ क बधन म बध रहोग | आघात व तयाघात हमशा समान िवरोधी होत ह | 249) िनि तता ही आरो यता की सबस बड़ी दवाई ह | 250) सख अपन िसर पर दख का मकट पहन कर आता ह | जो सख को अपनायगा उस

दख को भी ःवीकार करना पड़गा | 251) म (आतमा) सबका ा ह | मरा ा कोई नही | 252) हजार म स कोई एक परष भीतर स शात िच वाला रहकर बाहर स ससारी जसा यवहार कर सकता ह | 253) सतय क िलए यिद शरीर का तयाग करना पड़ तो कर दना | यही आिखरी ममता ह जो हम तोड़नी होगी | 254) भय िचनता बचनी स ऊपर उठो | आपको ान का अनभव होगा | 255) आपको कोई भी हािन नही पहचा सकता | कवल आपक खयालात ही आपक पीछ पड़ ह | 256) म का अथर ह अपन पड़ोसी तथा सपकर म आनवाल क साथ अपनी वाःतिवक अभदता का अनभव करना | 257) ओ यार अपन खोय हए आतमा को एक बार खोज लो | धरती व आसमान क शासक आप ही हो | 258) सदव सम और सनन रहना ई र की सव पिर भि ह |

259) जब तक िच म ढ़ता न आ जाय िक शा की िविधय का पालन छोड़ दन स भी दय का यथाथर भि भाव न नही होगा तब तक शा की िविधय को पालत रहो |

गर भि एक अमोघ साधना 1 जनम मरण क िवषचब स म होन का कोई मागर नही ह कया सख-दःख हषर-शोक लाभ-

हािन मान-अपमान की थ पड़ स बचन का कोई उपाय नही ह कया

हअवय ह | ह िय आतमन नाशवान पदाथ स अपना मन वािपस लाकर सदगर क

चरणकमल म लगाओ | गरभि योग का आौय लो | गरसवा ऐसा अमोघ साधन ह िजसस

व रमान जीवन आननदमय बनता ह और शा त सख क ार खलत ह |

गर सवत त नर धनय यहा | ितनक नही दःख यहा न वहा || 2 स च सदगर की की हई भि िशय म सासािरक पदाथ क वरा य एव अनासि जगाती ह

परमातमा क ित म क पप महकाती ह | 3 तयक िशय सदगर की सवा करना चाहता ह लिकन अपन ढग स | सदगर चाह उस ढग स

सवा करन को कोई ततपर नही | जो िवरला साधक गर चाह उस ढ़ग स सवा कर सकता ह उस कोई कमी नही रहती |

िन सदगर की सवा स उनकी कपा ा होती ह और उस कपा स न िमल सक ऐसा तीन लोक म कछ भी नही ह | 4 गर िशय का स बनध पिवऽतम स बनध ह | ससार क तमाम बनधन स छड़ाकर वह मि क मागर पर ःथान कराता ह | यह स बनध जीवनपयरनत का स बनध ह | यह बात अपन दय की डायरी म सवणर-अ र स िलख लो | 5 उ ल सयर क काश क अिःततव को मान या न मान िफर भी सयर हमशा काशता ह | चचल मन का मनय मान या न मान लिकन सदगर की परमक याणकारी कपा सदव बरसती ही रहती ह | 6 सदगर की चरणरज म ःनान िकय िबना कवल किठन तप यार करन स या वद का

अधयन करन स वदानत का रहःय कट नही होता आतमानद का अमत नही िमलता | 7 दशरन शा क चाह िकतन मनथ पढ़ो हजार वष तक िहमालय की गफा म तप करो वष तक ाणायाम करो जीवनपयरनत शीषारसन करो समम िव म वास करक याखान दो िफर भी सदगर की कपा क िबना आतम ान नही होता | अतः िनरािभमानी सरल िनजाननद म मःत दयाल ःवभाव क आतम-सा ातकारी सदगर क चरण म जाओ | जीवन को धनय बनाओ | 8 सदगर की सवा िकय िबना शा का अधयन करना मम साधक क िलय समय बरबाद करन क बराबर ह | 9 िजसको सदगर ा हए ह ऐस िशय क िलय इस िव म कछ भी अा य नही ह | सदगर िशय को िमली हई परमातमा की अम य भट ह | अर नहीhellipनही व तो िशय क सम साकार रप म कट हए परमातमा ःवय ह | 10 सदगर क साथ एक ण िकया हआ सतसग लाख वष क तप स अननत गना ौ ह | आख क िनमषमाऽ म सदगर की अमतवष ि िशय क जनम-जनम क पाप को जला सकती ह | 11 सदगर जसा मपणर कपाल िहतिचनतक िव भर म दसरा कोई नही ह | 12 बाढ़ क समय याऽी यिद तफानी नदी को िबना नाव क पार कर सक तो साधक भी िबना सदगर क अपन जीवन क आिखरी लआय को िस कर सकता ह | यानी य दोन बात स भव ह |

अतः यार साधक मनमखी साधना की िज करना छोड़ दो | गरमखी साधना करन म ही सार ह | 13 सदगर क चरणकमल का आौय लन स िजस आननद का अनभव होता ह उसक आग िऽलोकी का साा य त छ ह | 14 आतम-सा ातकार क मागर म सबस महान शऽ अहभाव का नाश करन क िलए सदगर की आ ा का पालन अमोघ श ह | 15 रसोई सीखन क िलय कोई िसखानवाला चािहय िव ान और गिणत सीखन क िलय

अधयापक चािहय तो कया िव ा सदगर क िबना ही सीख लोग 16 सदगरकपा की स पि जसा दसरा कोई खजाना िव भर म नही | 17 सदगर की आ ा का उ लघन करना यह अपनी क खोदन क बराबर ह | 18 सदगर क कायर को शका की ि स दखना महापातक ह | 19 गरभि व गरसवा - य साधनारपी नौका की दो पतवार ह | उनकी मदद स िशय ससारसागर को पार कर सकता ह | 20 सदगर की कसौटी करना असभव ह | एक िववकाननद ही दसर िववकाननद को पहचान सकत ह | ब को जानन क िलय दसर ब की आवयकता रहती ह | एक रामतीथर का रहःय दसर रामतीथर ही पा सकत ह |

अतः सदगर की कसौटी करन की च ा छोड़कर उनको पिरपणर पर परमातमा मानो |

तभी जीवन म वाःतिवक लाभ होगा | 21 गरभि योग का आौय लकर आप अपनी खोई हई िद यता को पनः ा करो सख-दःख जनम-मतय आिद सब न स पार हो जाओ | 22 गरभि योग मान गर की सवा क ारा मन और िवकार पर िनयऽण एव पनः सःकरण | 23 िशय अपन गर क चरणकमल म णाम करता ह | उन पर ौ फल की वषार करक उनकी ःतित करता ह ldquoह परम प य पिवऽ गरदव मझ सव च सख ा हआ ह | म िन ा स जनम-मतय की पर परा स म हआ ह | म िनिवरक प समािध का श सख भोग रहा ह | जगत क िकसी भी कोन म म म ता स िवचरण कर सकता ह | सब पर मरी सम ि ह | मन ाकत मन का तयाग िकया ह | मन सब सक प एव रिच-अरिच का तयाग िकया ह | अब म अख ड शाित म िवौाित पा रहा ह hellip आननदमय हो रहा ह | म इस पणर अवःथा का वणरन नही कर पाता | ह प य गरदव म आवाक बन गया ह | इस दःतर भवसागर को पार करन म आपन

मझ सहायता की ह | अब तक मझ कवल अपन शरीर म ही स पणर िव ास था | मन िविभनन योिनय म अस य जनम िलय | ऐसी सव च िनभरय अवःथा मझ कौन स पिवऽ कम क कारण ा हई ह यह म नही जानता | सचमच यह एक दलरभ भा य ह |

यह एक महान उतक लाभ ह | अब म आननद स नाचता ह | मर सब दःख न हो गय | मर सब मनोरथ पणर हए ह |

मर कायर स पनन हए ह | मन सब वािछत वःतए ा की ह | मरी इ छा पिरपणर हई ह | आप मर स च माता-िपता हो | मरी व रमान िःथित म म दसर क सम िकस कार कट कर सक सवरऽ सख और आननद का अननत सागर मझ लहराता हआ िदख रहा ह | मर अतःच िजसस खल गय वह महावाकय lsquoत वमिसrsquo ह | उपिनषद एव वदानतसऽ को भी धनयवाद | िजनह न िन गर का एव उपिनषद क महावाकय का रप धारण िकया ह | ऐस ौी यासजी को णाम ौी शकराचायर को णाम सासािरक मनय क िसर पर गर क चरणामत का एक िबनद भी िगर तो भी उसक ःब दःख का नाश होता ह | यिद एक िन परष को व पहनाय जाय तो सार िव को व पहनान एव भोजन करवान क बराबर ह कय िक िन परष सचराचर िव म या ह | सबम व ही ह |rdquo

ॐhellip ॐ hellip ॐ hellip

ःवामी िशवानद जी

ौी राम-विश सवाद ौी विश जी कहत ह ldquoह रघकलभषण ौी राम अनथर ःवरप िजतन सासािरक पदाथर ह व सब जल म तरग क समान िविवध रप धारण करक चमतकार उतपनन करत ह अथारत ई छाए उतपनन करक जीव को मोह म फसात ह | परत जस सभी तरग जल ःवरप ही ह उसी कार सभी पदाथर वःततः न र ःवभाव वाल ह |

बालक की क पना स आकाश म य और िपशाच िदखन लगत ह परनत बि मान मनय क िलए उन य और िपशाच का कोई अथर नही | इसी कार अ ानी क िच म यह जगत सतय हो ऐसा लगता ह जबिक हमार जस ािनय क िलय यह जगत कछ भी नही | यह समम िव पतथर पर बनी हई पतिलय की सना की तरह रपालोक तथा अतर-बा िवषय स शनय ह | इसम सतयता कसी परनत अ ािनय को यह िव सतय लगता ह |rdquo विश जी बोल ldquoौी राम जगत को सतय ःवरप म जानना यह ाित ह मढ़ता ह | उस िमथया अथारत कि पत समझना यही उिचत समझ ह | ह राघव तव ा अहता आिद सब िवम-िवलास शात िशवःवरप श ःवरप ही ह | इसिलय मझ तो क अितिर और कछ भी नही िदखता | आकाश म जस जगल नही वस ही म जगत नही ह | ह राम ार ध वश ा कम स िजस परष की च ा कठपतली की तरह ई छाशनय और याकलतारिहत होती ह वह शानत मनवाला परष जीवनम मिन ह | ऐस जीवनम ानी को इस

जगत का जीवन बास की तरह बाहर-भीतर स शनय रसहीन और वासना-रिहत लगता ह | इस य पच म िजस रिच नही दय म िचनमाऽ अ य ही अ छा लगता ह ऐस परष न

भीतर तथा बाहर शािनत ा कर ली ह और इस भवसागर स पार हो गया ह | रघनदन श व ा कहत ह िक मन का ई छारिहत होना यही समािध ह कय िक ई छाओ का तयाग करन स मन को जसी शािनत िमलती ह ऐसी शािनत सकड़ उपदश स भी नही िमलती | ई छा की उतपि स जसा दःख ा होता ह ऐसा दःख तो नरक म भी नही | ई छाओ की शािनत

स जसा सख होता ह ऐसा सख ःवगर तो कया लोक म भी नही होता | अतः समःत शा तपःया यम और िनयम का िनचोड़ यही ह िक ई छामाऽ दःखदायी ह और ई छा का शमन मो ह | ाणी क दय म जसी-जसी और िजतनी-िजतनी ई छाय उतपनन होती ह उतना ही दख स वह

ड़रता रहता ह | िववक-िवचार ारा ई छाय जस-जस शानत होती जाती ह वस-वस दखरपी छत की बीमारी िमटती जाती ह |

आसि क कारण सासािरक िवषय की ई छाय य - य गहनीभत होती जाती ह तय -तय

दःख की िवषली तरग बढ़ती जाती ह | अपन परषाथर क बल स इस ई छारपी यािध का उपचार यिद नही िकया जाय तो इस यािध स छटन क िलय अनय कोई औषिध नही ह ऐसा म ढ़तापवरक

मानता ह | एक साथ सभी ई छाओ का स पणर तयाग ना हो सक तो थोड़ी-थोड़ी ई छाओ का धीर-धीर तयाग

करना चािहय परत रहना चािहय ई छा क तयाग म रत कय िक सनमागर का पिथक दखी नही होता | जो नराधम अपनी वासना और अहकार को ीण करन का य नही करता वह िदन -िदन अपन

को रावण की तरह अधर कऐ म ढ़कल रहा ह | ई छा ही दख की जनमदाऽी इस ससाररपी बल का बीज ह | यिद इस बीज को आतम ानरपी अि न स ठ क-ठ क जला िदया तो पनः यह अकिरत नही होता | रघकलभषण राम ई छामाऽ ससार ह और ई छाओ का अभाव ही िनवारण ह | अतः अनक कार की माथाप ची म ना पड़कर कवल ऐसा य करना चािहय िक ई छा उतपनन ना हो | अपनी बि स ई छा का िवनाश करन को जो ततपर नही ऐस अभाग को शा और गर का उपदश

भी कया करगा जस अपनी जनमभमी जगल म िहरणी की मतय िनि त ह उसी कार अनकिवध दख का िवःतार कारनवाल ई छारपी िवषय-िवकार स य इस जगत म मनय की मतय िनि त ह | यिद मानव ई छाओ क कारण ब च -सा मढ़ ना बन तो उस आतम ान क िलय अ प य ही करना पड़ | इसिलय सभी कार स ई छाओ को शानत करना चािहय | ई छा क शमन स परम पद की ाि होती ह | ई छारिहत हो जाना यही िनवारण ह और ई छाय

होना ही बधन ह | अतः यथाशि ई छा को जीतना चािहय | भला इतना करन म कया किठनाई ह जनम जरा यािध और मतयरपी कटीली झािड़य और खर क व - समह की जड़ भी ई छा ही ह

| अतः शमरपी अि न स अदर-ही-अदर बीज को जला ड़ालना चािहय| जहा ई छाओ का अभाव ह

वहा मि िनि त ह |

िववक वरा य आिद साधन स ई छा का सवरथा िवनाश करना चािहय | ई छा का सबध जहा-जहा ह वहा-वहा पाप प य दखरािशया और ल बी पीड़ाओ स य बधन को हािज़र ही समझो | परष

की आतिरक ई छा य - य शानत होती जाती ह तय -तय मो क िलय उसका क याणकारक

साधन बढ़ता जाता ह | िववकहीन ई छा को पोसना उस पणर करना यह तो ससाररपी िवष व को पानी स सीचन क समान ह |rdquo

- ौीयोगविश महारामायण

आतमबल का आवाहन कया आप अपन-आपको दबरल मानत हो लघतामथी म उलझ कर पिरिःतिथय स िपस रह हो

अपना जीवन दीन-हीन बना बठ हो hellipतो अपन भीतर सष आतमबल को जगाओ | शरीर चाह ी का हो चाह परष का कित क साा य म जो जीत ह व सब ी ह और कित क बनधन स पार अपन ःवरप की पहचान िजनह न कर ली ह अपन मन की गलामी की बिड़या तोड़कर िजनह न फ क दी ह व परष ह | ी या परष शरीर एव मानयताए होती ह | तम तो तन-मन स पार िनमरल आतमा हो | जागोhellipउठोhellipअपन भीतर सोय हय िन यबल को जगाओ | सवरदश सवरकाल म सव म

आतमबल को िवकिसत करो | आतमा म अथाह सामथयर ह | अपन को दीन-हीन मान बठ तो िव म ऐसी कोई स ा नही जो त ह ऊपर उठा सक | अपन आतमःवरप म िति त हो गय तो िऽलोकी म ऐसी कोई हःती नही जो त ह दबा सक | भौितक जगत म वाप की शि ईलकशोिनक शि िव त की शि गरतवाकषरण की शि बड़ी मानी जाती ह लिकन आतमबल उन सब शि य का सचालक बल ह | आतमबल क सािननधय म आकर पग ार ध को पर िमल जात ह दव की दीनता पलायन हो जाती ह ितकल पिरिःतिथया अनकल हो जाती ह | आतमबल सवर िरि -िसि य का िपता ह |

आतमबल कस जगाय हररोज़ तःकाल ज दी उठकर सय दय स पवर ःनानािद स िनवत हो जाओ | ःव छ पिवऽ ःथान

म आसन िबछाकर पवारिभमख होकर प ासन या सखासन म बठ जाओ | शानत और सनन वि

धारण करो | मन म ढ भावना करो िक म कित-िनिमरत इस शरीर क सब अभाव को पार करक सब

मिलनताओ-दबरलताओ स िप ड़ छड़ाकर आतमा की मिहमा म जागकर ही रहगा |

आख आधी खली आधी बद रखो | अब फ़फ़ड़ म खब ास भरो और भावना करो की ास क साथ

म सयर का िद य ओज भीतर भर रहा ह | ास को यथाशि अनदर िटकाय रखो | िफ़र lsquoॐhelliprsquo का ल बा उ चारण करत हए ास को धीर-धीर छोड़त जाओ | ास क खाली होन क बाद तरत ास ना लो | यथाशि िबना ास रहो और भीतर ही भीतर lsquoहिर ॐhelliprsquo lsquoहिर ॐhelliprsquo का मानिसक

जाप करो | िफ़र स फ़फ़ड़ म ास भरो | पव रीित स ास यथाशि अनदर िटकाकर बाद म धीर-धीर छोड़त हए lsquoॐhelliprsquo का गजन करो | दस-पिह िमनट ऐस ाणायाम सिहत उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo की धविन करक शानत हो जाओ | सब

यास छोड़ दो | वि य को आकाश की ओर फ़लन दो | आकाश क अनदर पथवी ह | पथवी पर अनक दश अनक समि एव अनक लोग ह | उनम स एक

आपका शरीर आसन पर बठा हआ ह | इस पर य को आप मानिसक आख स भावना स दखत

रहो | आप शरीर नही हो बि क अनक शरीर दश सागर पथवी मह न ऽ सयर चनि एव पर ा ड़ क

ा हो सा ी हो | इस सा ी भाव म जाग जाओ | थोड़ी दर क बाद िफ़र स ाणायाम सिहत lsquoॐhelliprsquo का जाप करो और शानत होकर अपन िवचार को दखत रहो | इस अवःथा म ढ़ िन य करो िक lsquoम जसा चहता ह वसा होकर रहगा |rsquo िवषयसख स ा धन-

दौलत इतयािद की इ छा न करो कय िक िन यबल या आतमबलरपी हाथी क पदिच म और सभी क पदिच समािव हो ही जायग | आतमानदरपी सयर क उदय होन क बाद िम टी क तल क दीय क ाकाश रपी शि सखाभास की गलामी कौन कर

िकसी भी भावना को साकार करन क िलय दय को करद ड़ाल ऐसी िन यातमक बिल वि होनी आवशयक ह | अनतःकरण क गहर-स-गहर दश म चोट कर ऐसा ाण भरक िन बल का आवाहन करो | सीना तानकर खड़ हो जाओ अपन मन की दीन-हीन दखद मानयताओ को कचल

ड़ालन क िलय | सदा ःमरण रह की इधर-उधर भटकती वि य क साथ त हारी शि भी िबखरती रहती ह | अतः वि य को बहकाओ नही | तमाम वि य को एकिऽत करक साधनाकाल म आतमिचनतन म लगाओ और यवहारकाल म जो कायर करत हो उसम लगाओ | द िच होकर हरक कायर करो | अपन ःवभाव म स आवश को सवरथा िनमरल कर दो | आवश म आकर कोई िनणरय मत लो कोई िबया मत करो | सदा शानत वि धारण करन का अ यास करो | िवचारशील एव सनन रहो | ःवय अचल रहकर सागर की तरह सब वि य की तरग को अपन

भीतर समालो | जीवमाऽ को अपना ःवरप समझो | सबस ःनह रखो | िदल को यापक रखो | सकिच ता का िनवारण करत रहो | ख ड़ातमक वि का सवरथा तयाग करो | िजनको ानी महापरष का सतसग और अधयातमिव ा का लाभ िमल जाता ह उसक जीवन स

दःख िवदा होन लगत ह | ॐ आननद आतमिन ा म जाग हए महापरष क सतसग एव सतसािहतय स जीवन को भि और वदात स प

एव पलिकत करो | कछ ही िदन क इस सघन योग क बाद अनभव होन लगगा िक भतकाल क

नकारतमक ःवभाव सशयातमक-हािनकारक क पनाओ न जीवन को कचल ड़ाला था िवषला कर िदया था | अब िन यबल क चमतकार का पता चला | अततरम म आिवरभत िद य खज़ाना अब

िमला | ार ध की बिड़या अब टटन लगी | ठ क ह न करोग ना िह मत पढ़कर रख मत दना इस पिःतका को | जीवन म इसको बार-बार पढ़त रहो | एक िदन म यह पणर ना होगा | बार-बार अ यास करो | त हार िलय यह एक ही पिःतका काफ़ी ह | अनय कचराप टी ना पड़ोग तो चलगा | शाबाश वीर शाबाश

  • परसतावना
  • जीवन रसायन
  • गर भकति एक अमोघ साधना
  • शरी राम-वशिषठ सवाद
  • आतमबल का आवाहन
  • आतमबल कस जगाय
Page 5: जीवन रसायन - HariOmGroup · ‘जीवन रसायन’ का यह िदय कटोरा आत्मरस के िपपासुओं हाथ

कोई िफकर नही | लिकन मझ चािहय म की उस िद य म की यास और तड़प | मझ वद पराण करान स कया

मझ सतय का पाठ पढ़ा द कोई ||

मझ मिदर मिःजद जाना नही |

मझ म का रग चढ़ा द कोई ||

जहा ऊच या नीच का भद नही |

जहा जात या पात की बात नही ||

न हो मिदर मिःजद चचर जहा |

न हो पजा नमाज़ म फकर कही ||

जहा सतय ही सार हो जीवन का |

िरधवार िसगार हो तयाग जहा ||

जहा म ही म की सि िमल |

चलो नाव को ल चल ख क वहा || 10) ःव नावःथा म ा ःवय अकला ही होता ह | अपन भीतर की क पना क आधार पर िसह िसयार भड़ बकरी नदी नगर बाग-बगीच की एक परी सि का सजरन कर लता ह | उस सि म ःवय एक जीव बन जाता ह और अपन को सबस अलग मानकर भयभीत होता ह | खद शर ह और खद ही बकरी ह | खद ही खद को डराता ह | चाल ःव न म सतय का भान न होन स दःखी होता ह | ःव न स जाग जाय तो पता चल िक ःवय क िसवाय और कोई था ही नही | सारा पच क पना स रचा गया था | इसी कार यह जगत जामत क ारा कि पत ह वाःतिवक नही ह | यिद जामत का ा अपन आतमःवरप म जाग जाय तो उसक तमाम दःख-दािरिय पल भर म अ य हो जाय | 11) ःवगर का साा य आपक भीतर ही ह | पःतक म मिदर म तीथ म पहाड़ म जगल म आनद की खोज करना यथर ह | खोज करना ही हो तो उस अनतःथ आतमानद का खजाना खोल दनवाल िकसी ततवव ा महापरष की खोज करो | 12) जब तक आप अपन अतःकरण क अनधकार को दर करन क िलए किटब नही ह ग तब तक तीन सौ ततीस करोड़ कण अवतार ल ल िफर भी आपको परम लाभ नही होगा | 13) शरीर अनदर क आतमा का व ह | व को उसक पहनन वाल स अिधक यार

मत करो | 14) िजस ण आप सासािरक पदाथ म सख की खोज करना छोड़ दग और ःवाधीन हो जायग अपन अनदर की वाःतिवकता का अनभव करग उसी ण आपको ई र क पास जाना नही पड़गा | ई र ःवय आपक पास आयग | यही दवी िवधान ह | 15) बोधी यिद आपको शाप द और आप समतव म िःथर रहो कछ न बोलो तो उसका शाप आशीवारद म बदल जायगा | 16) जब हम ई र स िवमख होत ह तब हम कोई मागर नही िदखता और घोर दःख सहना पड़ता ह | जब हम ई र म तनमय होत ह तब यो य उपाय यो य वित यो य वाह अपन-आप हमार दय म उठन लगता ह | 17) जब तक मनय िचनताओ स उि न रहता ह इ छा एव वासना का भत उस बठन नही दता तब तक बि का चमतकार कट नही होता | जजीर स जकड़ी हई बि िहलडल नही सकती | िचनताए इ छाए और वासनाए शात होन स ःवतऽ वायमडल का अिवभारव होता ह | उसम बि को िवकिसत होन का अवकाश िमलता ह | पचभौितक बनधन कट जात ह और श आतमा अपन पणर काश म चमकन लगता ह | 18) ओ सज़ा क भय स भयभीत होन वाल अपराधी नयायधीश जब तरी सज़ा का हकम िलखन क िलय कलम लकर ततपर हो उस समय यिद एक पल भर भी त परमाननद म डब जाय तो नयायधीश अपना िनणरय भल िबना नही रह सकता | िफ़र उसकी कलम स वही िलखा जायगा जो परमातमा क साथ तरी नतन िःथित क अनकल होगा | 19) पिवऽता और स चाई िव ास और भलाई स भरा हआ मनय उननित का झ डा हाथ म लकर जब आग बढ़ता ह तब िकसकी मजाल िक बीच म खड़ा रह यिद आपक िदल म पिवऽता स चाई और िव ास ह तो आपकी ि लोह क पद को भी चीर सकगी | आपक िवचार की ठोकर स पहाड़-क-पहाड़ भी चकनाचर हो सक ग | ओ जगत क बादशाह आग स हट जाओ | यह िदल का बादशाह पधार रहा ह | 20) यिद आप ससार क लोभन एव धमिकय स न िहल तो ससार को अवय िहला दग | इसम जो सनदह करता ह वह मदमित ह मखर ह |

21) वदानत का यह िस ात ह िक हम ब नही ह बि क िनतय म ह | इतना ही नही lsquoब हrsquo यह सोचना भी अिन कारी ह म ह | य ही आपन सोचा िक lsquoम ब हhellip

दबरल हhellip असहाय हhelliprsquo तय ही अपना दभार य शर हआ समझो | आपन अपन पर म एक जजीर और बाध दी | अतः सदा म होन का िवचार करो और मि का अनभव करो | 22) राःत चलत जब िकसी िति त यि को दखो चाह वह इ लड़ का सवारधीश हो चाह अमिरका का lsquoिसड़टrsquo हो रस का सवसवार हो चाह चीन का lsquoिड़कटटरrsquo हो- तब अपन मन म िकसी कार की ईयार या भय क िवचार मत आन दो | उनकी शाही नज़र को अपनी ही नज़र समझकर मज़ा लटो िक lsquoम ही वह ह |rsquo जब आप ऐसा अनभव करन की च ा करग तब आपका अनभव ही िस कर दगा िक सब एक ही ह | 23) यिद हमारा मन ईयार- ष स रिहत िब कल श हो तो जगत की कोई वःत हम नकसान नही पहचा सकती | आनद और शाित स भरपर ऐस महातमाओ क पास बोध की मितर जसा मनय भी पानी क समान तरल हो जाता ह | ऐस महातमाओ को दख कर जगल क िसह और भड़ भी मिव ल हो जात ह | साप-िब छ भी अपना द ःवभाव भल जात ह | 24) अिव ास और धोख स भरा ससार वाःतव म सदाचारी और सतयिन साधक का कछ िबगाड़ नही सकता | 25) lsquoस पणर िव मरा शरीर हrsquo ऐसा जो कह सकता ह वही आवागमन क चककर स म ह | वह

तो अननत ह | िफ़र कहा स आयगा और कहा जायगा सारा ा ड़ उसी म ह | 26) िकसी भी सग को मन म लाकर हषर-शोक क वशीभत नही होना | lsquoम अजर हhellip अमर हhellip मरा जनम नहीhellip मरी मतय नहीhellip म िनिलर आतमा हhelliprsquo यह भाव ढ़ता स दय म धारण करक जीवन जीयो | इसी भाव का िनरनतर सवन करो | इसीम सदा त लीन रहो | 27) बा सदभ क बार म सोचकर अपनी मानिसक शाित को भग कभी न होन दो | 28) जब इिनिया िवषय की ओर जान क िलय जबरदःती करन लग तब उनह लाल आख

िदखाकर चप कर दो | जो आतमानद क आःवादन की इ छा स आतमिचतन म लगा रह वही स चा धीर ह |

29) िकसी भी चीज़ को ई र स अिधक म यवान मत समझो | 30) यिद हम दहािभमान को तयागकर सा ात ई र को अपन शरीर म कायर करन द तो भगवान

ब या जीसस बाईःट हो जाना इतना सरल ह िजतना िनधरन पाल (Poor Paul) होना | 31) मन को वश करन का उपाय मन को अपना नौकर समझकर ःवय को उसका भ मानो | हम अपन नौकर मन की उप ा करग तो कछ ही िदन म वह हमार वश म हो जायगा | मन क

चचल भाव को ना दखकर अपन शानत ःवरप की ओर धयान दग तो कछ ही िदन म मन न

होन लगगा | इस कार साधक अपन आनदःवरप म म न हो सकता ह | 32) समम ससार क ततव ान िव ान गिणत का य और कला आपकी आतमा म स िनकलत ह

और िनकलत रहग | 33) ओ खदा को खोजनवाल तमन अपनी खोजबीन म खदा को ल कर िदया ह | य रपी तरग म अनत सामथयररपी समि को छपा िदया ह | 34) परमातमा की शािनत को भग करन का सामथयर भला िकसम ह यिद आप सचमच

परमातम-शािनत म िःथत हो जाओ तो समम ससार उलटा होकर टग जाय िफ़र भी आपकी शािनत

भग नही हो सकती | 35) महातमा वही ह जो िच को ड़ावाड़ोल करनवाल सग आय िफ़र भी िच को वश म रख बोध

और शोक को िव न होन द | 36) वित यिद आतमःवरप म लीन होती ह तो उस सतसग ःवाधयाय या अनय िकसी भी काम क िलय बाहर नही लाना चिहय | 37) स ढ़ अचल सक प शि क आग मसीबत इस कार भागती ह जस आधी-तफ़ान स बादल

िबखर जात ह | 38) सषि (गहरी नीद) आपको बलात अनभव कराती ह िक जामत का जगत चाह िकतना ही यारा और सदर लगता हो पर उस भल िबना शािनत नही िमलती | सषि म बलात िवःमरण हो उसकी सतयता भल जाय तो छः घट िनिा की शािनत िमल | जामत म उसकी सतयता का अभाव

लगन लग तो परम शािनत को ा ा परष बन जाय | िनिा रोज़ाना सीख दती ह िक यह ठोस

जगत जो आपक िच को िमत कर रहा ह वह समय की धारा म सरकता जा रहा ह | घबराओ

नही िचिनतत मत हो तम बात म िच को िमत मत करो | सब कछ ःव न म सरकता जा रहा ह | जगत की सतयता क म को भगा दो | ओ शि मान आतमा अपन अतरतम को िनहार ॐ का गजन कर दबरल िवचार एव िचताओ को कचल ड़ाल दबरल एव त छ िवचार तथा जगत को सतय मानन क कारण तन बहत-बहत

सहन िकया ह | अब उसका अत कर द | 39) ान क किठनमागर पर चलत व आपक सामन जब भारी क एव दख आय तब आप उस

सख समझो कय िक इस मागर म क एव दख ही िनतयानद ा करन म िनिम बनत ह | अतः उन क दख और आघात स िकसी भी कार साहसहीन मत बनो िनराश मत बनो | सदव आग

बढ़त रहो | जब तक अपन सतयःवरप को यथाथर रप स न जान लो तब तक रको नही | 40) ःवपनावःथा म आप शर को दखत ह और ड़रत ह िक वह आपको खा जायगा | परत आप

िजसको दखत ह वह शर नही आप ःवय ह | शर आपकी क पना क अितिर और कछ नही | इस

कार जामतावःथा म भी आपका घोर-स-घोर शऽ भी ःवय आप ही ह दसरा कोई नही | थकतव

अलगाव क िवचार को अपन दय स दर हटा दो | आपस िभनन कोई िमऽ या शऽ होना कवल

ःव न-म ह | 41) अशभ का िवरोध मत करो | सदा शात रहो | जो कछ सामन आय उसका ःवागत करो चाह

आपकी इ छा की धारा स िवपरीत भी हो | तब आप दखग िक तय बराई भलाई म बदल

जायगी | 42) रािऽ म िनिाधीन होन स पहल िबःतर पर सीध सखपवरक बठ जाओ | आख बद करो | नाक

स ास लकर फ़फ़ड़ को भरपर भर दो | िफ़र उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo का लबा उ चारण करो | िफ़र स

गहरा ःवास लकर lsquoॐhelliprsquo का लबा उ चारण करो | इस कार दस िमनट तक करो | कछ ही िदन

क िनयिमत योग क बाद इसक चमतकार का अनभव होगा | रािऽ की नीद साधना म पिरणत हो जायगी | िदल-िदमाग म शाित एव आनद की वषार होगी | आपकी लौिकक िनिा योगिनिा म बदल

जयगी | 43) हट जाओ ओ सक प और इ छाओ हट जाओ तम ससार की णभगर शसा एव धन-

स पि क साथ स बध रखती हो | शरीर चाह कसी भी दशा म रह उसक साथ मरा कोई सरोकार नही | सब शरीर मर ही ह | 44) िकसी भी तरह समय िबतान क िलय मज़दर की भाित काम मत करो | आनद क िलय

उपयोगी कसरत समझकर सख बीड़ा या मनोरजक खल समझकर एक कलीन राजकमार की भाित काम करो | दब हए कचल हए िदल स कभी कोई काम हाथ म मत लो | 45) समम ससार को जो अपना शरीर समझत ह तयक यि को जो अपना आतमःवरप

समझत ह ऐस ानी िकसस असनन ह ग उनक िलय िव प कहा रहा 46) ससार की तमाम वःतऐ सखद ह या भयानक वाःतव म तो त हारी फ़लता और आनद क

िलय ही कित न बनाई ह | उनस ड़रन स कया लाभ त हारी नादानी ही त ह चककर म ड़ालती ह

| अनयथा त ह नीचा िदखान वाला कोई नही | पकका िन य रखो िक यह जगत त हार िकसी शऽ न नही बनाया | त हार ही आतमदव का यह सब िवलास ह | 47) महातमा व ह िजनकी िवशाल सहानभित एव िजनका मातवत दय सब पािपय को दीन-

दिखय को म स अपनी गोद म ःथान दता ह | 48) यह िनयम ह िक भयभीत ाणी ही दसर को भयभीत करता ह | भयरिहत हए िबना अिभननता आ नही सकती अिभननता क िबना वासनाओ का अत स भव नही ह और िनवारसिनकता क िबना िनवरता समता मिदता आिद िद य गण कट नही होत | जो बल दसर

की दबरलता को दर ना कर सक वह वाःतव म बल नही | 49) धयान म बठन स पहल अपना समम मानिसक िचतन तथा बाहर की तमाम स पि ई र क

या सदगर क चरण म अपरण करक शात हो जाओ | इसस आपको कोई हािन नही होगी | ई र आपकी स पि दह ाण और मन की र ा करग | ई र अपरण बि स कभी हािन नही होती |

इतना ही नही दह ाण म नवजीवन का िसचन होता ह | इसस आप शाित व आनद का ोत

बनकर जीवन को साथरक कर सक ग | आपकी और पर िव की वाःतिवक उननित होगी | 50) कित सननिच एव उ ोगी कायरकतार को हर कार स सहायता करती ह | 51) सननमख रहना यह मोितय का खज़ाना दन स भी उ म ह | 52) चाह करोड़ सयर का लय हो जाय चाह अस य चनिमा िपघलकर न हो जाय परत ानी महापरष अटल एव अचल रहत ह | 53) भौितक पदाथ को सतय समझना उनम आसि रखना दख-ददर व िचताओ को आमऽण

दन क समान ह | अतः बा नाम-रप पर अपनी शि व समय को न करना यह बड़ी गलती ह |

54) जब आपन यि तव िवषयक िवचार का सवरथा तयाग कर िदया जाता ह तब उसक समान

अनय कोई सख नही उसक समान ौ अनय कोई अवःथा नही | 55) जो लोग आपको सबस अिधक हािन पहचान का यास करत ह उन पर कपापणर होकर ममय िचतन कर | व आपक ही आतमःवरप ह | 56) ससार म कवल एक ही रोग ह | सतय जगिनमथया - इस वदाितक िनयम का भग ही सवर यािधय का मल ह | वह कभी एक दख का रप लता ह तो कभी दसर दख का | इन सवर यािधय

की एक ही दवा ह अपन वाःतिवक ःवरप तव म जाग जाना | 57) ब धयानःथ बठ थ | पहाड़ पर स एक िशलाखड़ लढ़कता हआ आ रहा था | ब पर िगर इसस पहल ही वह एक दसर िशलाखड़ क साथ टकराया | भयकर आवाज़ क साथ उसक दो भाग

हो गय | उसन अपना मागर बदल िलया | धयानःथ ब की दोन तरफ़ स दोन भाग गज़र गय |

ब बच गय | कवल एक छोटा सा ककड़ उनक पर म लगा | पर स थोड़ा खन बहा | ब ःवःथता स उठ खड़ हए और िशय स कहा ldquoभी ओ स यक समािध का यह वलत माण ह | म यिद धयान-समािध म ना होता तो िशलाखड़ न मझ कचल िदया होता | लिकन ऐसा ना होकर उसक दो भाग हो गय | उसम स िसफ़र एक छोटा-सा ककड़ ऊछलकर मर पर म लगा | यह जो छोटा-सा ज़ म हआ ह वह धयान की पणरता म रही हई कछ नयनता का पिरणाम ह | यिद धयान पणर होता तो इतना भी ना लगता |rdquo 58) कहा ह वह तलवार जो मझ मार सक कहा ह वह श जो मझ घायल कर सक कहा ह वह

िवपि जो मरी सननता को िबगाड़ सक कहा ह वह दख जो मर सख म िव न ड़ाल सक मर सब भय भाग गय | सब सशय कट गय | मरा िवजय-ाि का िदन आ पहचा ह | कोई ससािरक

तरग मर िनछल िच को आदोिलत नही कर सकती | इन तरग स मझ ना कोई लाभ ह ना हािन

ह | मझ शऽ स ष नही िमऽ स राग नही | मझ मौत का भय नही नाश का ड़र नही जीन की वासना नही सख की इ छा नही और दख स ष नही कय िक यह सब मन म रहता ह और मन

िमथया क पना ह | 59) स पणर ःवाःथय की अजीब यि रोज सबह तलसी क पाच प चबाकर एक लास बासी पानी पी लो | िफ़र जरा घम लो दौड़ लो या कमर म ही पज क बल थोड़ा कद लो | नहा-धोकर ःवःथ शानत होकर एकात म बठ जाओ | दस बारह गहर-गहर ास लो | आग-पीछ क कतर य

स िनि त हो जाओ | आरो यता आनद सख शािनत दान करनवाली िवचारधारा को िच म बहन दो | िबमारी क िवचार को हटाकर इस कार की भावना पर मन को ढ़ता स एकाम करो िक

मर अदर आरो यता व आनद का अनत ोत वािहत हो रहा हhellip मर अतराल म िद यामत का महासागर लहरा रहा ह | म अनभव कर रहा ह िक समम सख आरो यता शि मर भीतर ह | मर मन म अननत शि और सामथयर ह | म ःवःथ ह | पणर सनन ह | मर अदर-बाहर सवरऽ

परमातमा का काश फ़ला हआ ह | म िव प रिहत ह | सब नद स म ह | ःवग य सख मर अदर ह | मरा दय परमातमा का ग दश ह | िफ़र रोग-शोक वहा कस रह सकत ह म दवी ओज क मड़ल म िव हो चका ह | वह मर ःवाःथय का दश ह | म तज का पज ह | आरो यता का अवतार ह | याद रखो आपक अतःकरण म ःवाःथय सख आनद और शािनत ई रीय वरदान क रप म िव मान ह | अपन अतःकरण की आवाज़ सनकर िनशक जीवन यतीत करो | मन म स कि पत

रोग क िवचार को िनकाल दो | तयक िवचार भाव श द और कायर को ई रीय शि स पिरपणर रखो | ॐकार का सतत गजन करो | सबह-शाम उपरो िवचार का िचतन-मनन करन स िवशष लाभ होगा | ॐ आनदhellip ॐ शाितhellip

पणर ःवःथhellip पणर सननhellip 60) भय कवल अ ान की छाया ह दोष की काया ह मनय को धमरमागर स िगरान वाली आसरी माया ह | 61) याद रखो चाह समम ससार क तमाम पऽकार िननदक एकिऽत होकर आपक िवरध

आलोचन कर िफ़र भी आपका कछ िबगाड़ नही सकत | ह अमर आतमा ःवःथ रहो | 62) लोग ायः िजनस घणा करत ह ऐस िनधरन रोगी इतयािद को सा ात ई र समझकर उनकी सवा करना यह अननय भि एव आतम ान का वाःतिवक ःवरप ह | 63) रोज ातः काल उठत ही ॐकार का गान करो | ऐसी भावना स िच को सराबोर कर दो िक

lsquoम शरीर नही ह | सब ाणी कीट पतग गनधवर म मरा ही आतमा िवलास कर रहा ह | अर उनक

रप म म ही िवलास कर रहा ह | rsquo भया हर रोज ऐसा अ यास करन स यह िस ात दय म िःथर हो जायगा | 64) मी आग-पीछ का िचनतन नही करता | वह न तो िकसी आशका स भयभीत होता ह और न

व रमान पिरिःथित म माःपद म ीित क िसवाय अनय कही आराम पाता ह |

65) जस बालक ितिब ब क आौयभत दपरण की ओर धयान न दकर ितिब ब क साथ खलता ह जस पामर लोग यह समम ःथल पच क आौयभत आकाश की ओर धयान न दकर कवल

ःथल पच की ओर धयान दत ह वस ही नाम-रप क भ ःथल ि क लोग अपन दभार य क

कारण समम ससार क आौय सि चदाननद परमातमा का धयान न करक ससार क पीछ पागल

होकर भटकत रहत ह | 66) इस स पणर जगत को पानी क बलबल की तरह णभगर जानकर तम आतमा म िःथर हो जाओ | तम अ त ि वाल को शोक और मोह कस 67) एक आदमी आपको दजरन कहकर पिरि छनन करता ह तो दसरा आपको स जन कहकर भी पिरि छनन ही करता ह | कोई आपकी ःतित करक फला दता ह तो कोई िननदा करक िसकड़ा दता ह | य दोन आपको पिरि छनन बनात ह | भा यवान तो वह परष ह जो तमाम बनधन क िवर

खड़ा होकर अपन दवतव की अपन ई रतव की घोषणा करता ह अपन आतमःवरप का अनभव

करता ह | जो परष ई र क साथ अपनी अभदता पहचान सकता ह और अपन इदरिगदर क लोग क

सम समम ससार क सम िनडर होकर ई रतव का िनरपण कर सकता ह उस परष को ई र मानन क िलय सारा ससार बाधय हो जाता ह | परी सि उस अवय परमातमा मानती ह | 68) यह ःथल भौितक पदाथर इिनिय की ाित क िसवाय और कछ नही ह | जो नाम व रप पर भरोसा रखता ह उस सफलता नही िमलती | सआम िस ात अथारत सतय आतम-ततव पर िनभरर रहना ही सफलता की कजी ह | उस महण करो उसका मनन करो और यवहार करो | िफर नाम-

रप आपको खोजत िफरग | 69) सख का रहःय यह ह आप य - य पदाथ को खोजत-िफरत हो तय -तय उनको खोत

जात हो | आप िजतन कामना स पर होत हो उतन आवयकताओ स भी पर हो जात हो और पदाथर भी आपका पीछा करत हए आत ह | 70) आननद स ही सबकी उतपि आननद म ही सबकी िःथित एव आननद म ही सबकी लीनता दखन स आननद की पणरता का अनभव होता ह | 71) हम बोलना चहत ह तभी श दो चारण होता ह बोलना न चाह तो नही होता | हम दखना चाह तभी बाहर का य िदखता ह नऽ बद कर ल तो नही िदखता | हम जानना चाह तभी पदाथर का ान होता ह जानना नही चाह तो ान नही होता | अतः जो कोई पदाथर दखन सनन या जानन म

आता ह उसको बािधत करक बािधत करनवाली ानरपी बि की वि को भी बािधत कर दो | उसक बाद जो शष रह वह ाता ह | ाततव धमररिहत श ःवरप ाता ही िनतय सि चदाननद

ह | िनरतर ऐसा िववक करत हए ान व यरिहत कवल िचनमय िनतय िव ानाननदघनरप

म िःथर रहो | 72) यिद आप सवागपणर जीवन का आननद लना चाहत हो तो कल की िचनता छोड़ो | अपन चार

ओर जीवन क बीज बोओ | भिवय म सनहर ःवपन साकार होत दखन की आदत बनाओ | सदा क

िलय मन म यह बात पककी बठा दो िक आपका आनवाला कल अतयनत काशमय आननदमय

एव मधर होगा | कल आप अपन को आज स भी अिधक भा यवान पायग | आपका मन

सजरनातमक शि स भर जायगा | जीवन ऐ यरपणर हो जायगा | आपम इतनी शि ह िक िव न

आपस भयभीत होकर भाग खड़ ह ग | ऐसी िवचारधारा स िनि त रप स क याण होगा | आपक

सशय िमट जायग | 73) ओ मानव त ही अपनी चतना स सब वःतओ को आकषरक बना दता ह | अपनी यार भरी ि उन पर डालता ह तब तरी ही चमक उन पर चढ़ जाती ह औरhellipिफर त ही उनक यार म फ़स जाता ह | 74) मन िविचऽ एव अटपट माग ारा ऐस ततव की खोज की जो मझ परमातमा तक पहचा सक | लिकन म िजस-िजस नय मागर पर चला उन सब माग स पता चला िक म परमातमा स दर चला गया | िफर मन बि म ा एव िव ा स परमातमा की खोज की िफर भी परमातमा स अलग रहा | मनथालय एव िव ालय न मर िवचार म उ टी गड़बड़ कर दी | म थककर बठ गया | िनःत ध हो गया | सयोगवश अपन भीतर ही झाका धयान िकया तो उस अनत रि स मझ सवरःव िमला िजसकी खोज म बाहर कर रहा था | मरा आतमःवरप सवरऽ या हो रहा ह | 75) जस सामानय मनय को पतथर गाय भस ःवाभािवक रीित स ि गोचर होत ह वस ही ानी को िनजाननद का ःवाभािवक अनभव होता ह | 76) वदानत का यह अनभव ह िक नीच नराधम िपशाच शऽ कोई ह ही नही | पिवऽ ःवरप ही सवर रप म हर समय शोभायमान ह | अपन-आपका कोई अिन नही करता |

मर िसवा और कछ ह ही नही तो मरा अिन करन वाला कौन ह मझ अपन-आपस भय कसा 77) यह चराचर सि रपी त तब तक भासता ह जब तक उस दखनवाला मन बठा ह |

मन शात होत ही त की गध तक नही रहती |

78) िजस कार एक धाग म उ म मधयम और किन फल िपरोय हए ह उसी कार मर आतमःवरप म उ म मधयम और किन शरीर िपरोय हए ह | जस फल की गणव ा का भाव धाग पर नही पड़ता वस ही शरीर की गणव ा का भाव मरी सवर यापकता नही पड़ता | जस सब फल क िवनाश स धाग को कोई हािन नही वस शरीर क िवनाश स मझ सवरगत आतमा को कोई हािन नही होती | 79) म िनमरल िन ल अननत श अजर अमर ह | म असतयःवरप दह नही | िस परष इसीको lsquo ानrsquo कहत ह | 80) म भी नही और मझस अलग अनय भी कछ नही | सा ात आननद स पिरपणर कवल िनरनतर और सवरऽ एक ही ह | उ ग छोड़कर कवल यही उपासना सतत करत रहो | 81) जब आप जान लग िक दसर का िहत अपना ही िहत करन क बराबर ह और दसर का अिहत करना अपना ही अिहत करन क बराबर ह तब आपको धमर क ःवरप का सा तकार हो जायगा | 82) आप आतम-ित ा दलबनदी और ईयार को सदा क िलए छोड़ दो | पथवी माता की तरह सहनशील हो जाओ | ससार आपक कदम म नयोछावर होन का इतज़ार कर रहा ह | 83) म िनगरण िनिबय िनतय म और अ यत ह | म असतयःवरप दह नही ह | िस परष इसीको lsquo ानrsquo कहत ह | 84) जो दसर का सहारा खोजता ह वह सतयःवरप ई र की सवा नही कर सकता | 85) सतयःवरप महापरष का म सख-दःख म समान रहता ह सब अवःथाओ म हमार अनकल रहता ह | दय का एकमाऽ िवौामःथल वह म ह | व ावःथा उस आतमरस को सखा नही सकती | समय बदल जान स वह बदलता नही | कोई िवरला भा यवान ही ऐस िद य म का भाजन बन सकता ह | 86) शोक और मोह का कारण ह ािणय म िविभनन भाव का अधयारोप करना | मनय जब एक को सख दनवाला यारा स द समझता ह और दसर को दःख दनवाला शऽ समझकर उसस ष करता ह तब उसक दय म शोक और मोह का उदय होना अिनवायर

ह | वह जब सवर ािणय म एक अख ड स ा का अनभव करन लगगा ािणमाऽ को भ का पऽ समझकर उस आतमभाव स यार करगा तब उस साधक क दय म शोक और मोह का नामोिनशान नही रह जायगा | वह सदा सनन रहगा | ससार म उसक िलय न ही कोई शऽ रहगा और न ही कोई िमऽ | उसको कोई कलश नही पहचायगा | उसक सामन िवषधर नाग भी अपना ःवभाव भल जायगा | 87) िजसको अपन ाण की परवाह नही मतय का नाम सनकर िवचिलत न होकर उसका ःवागत करन क िलए जो सदा ततपर ह उसक िलए ससार म कोई कायर असाधय नही | उस िकसी बा श की जररत नही साहस ही उसका श ह | उस श स वह अनयाय का प लनवाल को परािजत कर दता ह िफर भी उनक िलए बर िवचार का सवन नही करता | 88) िचनता ही आननद व उ लास का िवधवस करनवाली रा सी ह | 89) कभी-कभी मधयरािऽ को जाग जाओ | उस समय इिनिया अपन िवषय क ित चचल नही रहती | बिहमरख ःफरण की गित मनद होती ह | इस अवःथा का लाभ लकर इिनियातीत अपन िचदाकाश ःवरप का अनभव करो | जगत शरीर व इिनिय क अभाव म भी अपन अख ड अिःततव को जानो | 90) य म ीित नही रहना ही असली वरा य ह | 91) रोग हम दबाना चाहता ह | उसस हमार िवचार भी मनद हो जात ह | अतः रोग की िनवित करनी चिहए | लिकन जो िवचारवान परष ह वह कवल रोगिनवित क पीछ ही नही लग जाता | वह तो यह िनगरानी रखता ह िक भयकर दःख क समय भी अपना िवचार छट तो नही गया ऐसा परष lsquoहाय-हायrsquo करक ाण नही तयागता कय िक वह जानता ह िक रोग उसका दास ह | रोग कसा भी भय िदखाय लिकन िवचारवान परष इसस भािवत नही होता | 92) िजस साधक क पास धारणा की ढ़ता एव उ य की पिवऽता य दो गण ह ग वह अवय िवजता होगा | इन दो शा स ससि जत साधक समःत िव न-बाधाओ का सामना करक आिखर म िवजयपताका फहरायगा | 93) जब तक हमार मन म इस बात का पकका िन य नही होगा िक सि शभ ह तब तक मन एकाम नही होगा | जब तक हम समझत रहग िक सि िबगड़ी हई ह तब तक

मन सशक ि स चार ओर दौड़ता रहगा | सवरऽ मगलमय ि रखन स मन अपन-आप शात होन लगगा | 94) आसन िःथर करन क िलए सक प कर िक जस पथवी को धारण करत हए भी शषजी िब कल अचल रहत ह वस म भी अचल रहगा | म शरीर और ाण का ा ह | 95) lsquoससार िमथया हrsquo - यह मद ानी की धारणा ह | lsquoससार ःव नवत हrsquo - यह मधयम ानी की धारणा ह | lsquoससार का अतयनत अभाव ह ससार की उतपि कभी हई ही नहीrsquo -

यह उ म ानी की धारणा ह | 96) आप यिद भि मागर म ह तो सारी सि भगवान की ह इसिलए िकसीकी भी िननदा करना ठ क नही | आप यिद ानमागर म ह तो यह सि अपना ही ःवरप ह | आप अपनी ही िननदा कस कर सकत ह इस कार द नो माग म परिननदा का अवकाश ही नही ह | 97) य म ा का भान एव ा म य का भान हो रहा ह | इस गड़बड़ का नाम ही अिववक या अ ान ह | ा को ा तथा य को य समझना ही िववक या ान ह | 98) आसन व ाण िःथर होन स शरीर म िव त पदा होती ह | शरीर क ारा जब भी िबया की जाती ह तब वह िव त बाहर िनकल जाती ह | इस िव त को शरीर म रोक लन स शरीर िनरोगी बन जाता ह | 99) ःव न की सि अ पकालीन और िविचऽ होती ह | मनय जब जागता ह तब जानता ह िक म पलग पर सोया ह | मझ ःव न आया | ःव न म पदाथर दश काल िबया इतयािद परी सि का सजरन हआ | लिकन मर िसवाय और कछ भी न था | ःव न की सि झठ थी | इसी कार ततव ानी परष अ ानरपी िनिा स ानरपी जामत अवःथा को ा हए ह | व कहत ह िक एक क िसवा अनय कछ ह ही नही | जस ःव न स जागन क बाद हम ःव न की सि िमथया लगती ह वस ही ानवान को यह जगत िमथया लगता ह | 100) शारीिरक क पड़ तब ऐसी भावना हो जाय िक lsquoयह क मर यार भ की ओर स हhelliprsquo तो वह क तप का फल दता ह | 101) चलत-चलत पर म छाल पड़ गय ह भख याकल कर रही हो बि िवचार

करन म िशिथल हो गई हो िकसी पड़ क नीच पड़ ह जीवन अस भव हो रहा हो मतय का आगमन हो रहा हो तब भी अनदर स वही िनभरय धविन उठ lsquoसोऽहमhellipसोऽहमhellipमझ भय नहीhellipमरी मतय नहीhellipमझ भख नहीhellip यास नहीhellip कित की कोई भी यथा मझ न नही कर सकतीhellipम वही हhellipवही हhelliprsquo 102) िजनक आग िय-अिय अनकल-ितकल सख-दःख और भत-भिवय एक समान ह ऐस ानी आतमव ा महापरष ही स च धनवान ह | 103) दःख म दःखी और सख म सखी होन वाल लोह जस होत ह | दःख म सखी रहन वाल सोन जस होत ह | सख-दःख म समान रहन वाल र जस होत ह परनत जो सख-दःख की भावना स पर रहत ह व ही स च साट ह | 104) ःव न स जाग कर जस ःव न को भल जात ह वस जामत स जागकर थोड़ी दर क

िलए जामत को भल जाओ | रोज ातः काल म पनिह िमनट इस कार ससार को भल जान की आदत डालन स आतमा का अनसधान हो सकगा | इस योग स सहजावःथा ा होगी | 105) तयाग और म स यथाथर ान होता ह | दःखी ाणी म तयाग व म िवचार स आत ह

| सखी ाणी म तयाग व म सवा स आत ह कय िक जो ःवय दःखी ह वह सवा नही कर सकता पर िवचार कर सकता ह | जो सखी ह वह सख म आस होन क कारण उसम िवचार का उदय नही हो सकता लिकन वह सवा कर सकता ह | 106) लोग की पजा व णाम स जसी सननता होती ह वसी ही सननता जब मार पड़

तब भी होती हो तो ही मन य िभ ानन महण करन का स चा अिधकारी माना जाता ह | 107) हरक साधक को िब कल नय अनभव की िदशा म आग बढ़ना ह | इसक िलय

ानी महातमा की अतयनत आवयकता होती ह | िजसको स ची िज ासा हो उस ऐस

महातमा िमल ही जात ह | ढ़ िज ासा स िशय को गर क पास जान की इ छा होती ह | यो य

िज ास को समथर गर ःवय दशरन दत ह | 108) बीत हए समय को याद न करना भिवय की िचनता न करना और व रमान म ा

सख-दःखािद म सम रहना य जीवनम परष क ल ण ह | 109) जब बि एव दय एक हो जात ह तब सारा जीवन साधना बन जाता ह |

110) बि मान परष ससार की िचनता नही करत लिकन अपनी मि क बार म सोचत ह |

मि का िवचार ही तयागी दानी सवापरायण बनाता ह | मो की इ छा स सब सदगण आ जात ह

| ससार की इ छा स सब दगरण आ जात ह | 111) पिरिःथित िजतनी किठन होती ह वातावरण िजतना पीड़ाकारक होता ह उसस

गजरन वाला उतना ही बलवान बन जाता ह | अतः बा क और िचनताओ का ःवागत करो | ऐसी पिरिःथित म भी वदानत को आचरण म लाओ | जब आप वदानती जीवन यतीत करग तब दखग

िक समःत वातावरण और पिरिःथितया आपक वश म हो रही ह आपक िलय उपयोगी िस हो रही ह | 112) हरक पदाथर पर स अपन मोह को हटा लो और एक सतय पर एक तथय पर अपन

ई र पर समम धयान को किनित करो | तरनत आपको आतम-सा ातकार होगा | 113) जस बड़ होत-होत बचपन क खलकद छोड़ दत हो वस ही ससार क खलकद छोड़कर आतमाननद का उपभोग करना चािहय | जस अनन व जल का सवन करत हो वस ही आतम-

िचनतन का िनरनतर सवन करना चािहय | भोजन ठ क स होता ह तो ति की डकार आती ह वस

ही यथाथर आतमिचनतन होत ही आतमानभव की डकार आयगी आतमाननद म मःत ह ग |

आतम ान क िसवा शाित का कोई उपाय नही | 114) आतम ानी क हकम स सयर काशता ह | उनक िलय इनि पानी बरसाता ह | उनही क

िलय पवन दत बनकर गमनागमन करता ह | उनही क आग समि रत म अपना िसर रगड़ता ह | 115) यिद आप अपन आतमःवरप को परमातमा समझो और अनभव करो तो आपक सब

िवचार व मनोरथ सफल ह ग उसी ण पणर ह ग | 116) राजा-महाराजा दवी-दवता वद-पराण आिद जो कछ ह व आतमदश क सक पमाऽ

ह | 117) जो लोग ितकलता को अपनात ह ई र उनक स मख रहत ह | ई र िजनह अपन

स दर रखना चाहत ह उनह अनकल पिरिःथितया दत ह | िजसको सब वःतए अनकल एव पिवऽ

सब घटनाए लाभकारी सब िदन शभ सब मनय दवता क रप म िदखत ह वही परष ततवदश ह | 118) समता क िवचार स िच ज दी वश म होता ह हठ स नही |

119) ऐस लोग स स बनध रखो िक िजसस आपकी सहनशि बढ़ समझ की शि बढ़

जीवन म आन वाल सख-दःख की तरग का आपक भीतर शमन करन की ताकत आय समता बढ़

जीवन तजःवी बन | 120) लोग बोलत ह िक धयान व आतमिचनतन क िलए हम फरसत नही िमलती | लिकन

भल मनय जब नीद आती ह तब सब महतवपणर काम भी छोड़कर सो जाना पड़ता ह िक नही

जस नीद को महतव दत हो वस ही चौबीस घनट म स कछ समय धयान व आतमिचनतन म भी िबताओ | तभी जीवन साथरक होगा | अनयथा कछ भी हाथ नही लगगा | 121) भल जाओ िक तम मनय हो अमक जाित हो अमक उ हो अमक िड़मीवाल हो अमक धनधवाल हो | तम िनगरण िनराकार सा ीरप हो ऐसा ढ़ िन य करो | इसीम तमाम

कार की साधनाए िबयाए योगािद समािव हो जात ह | आप सवर यापक अख ड चतनय हो | सार ान का यह मल ह | 122) दोष तभी िदखता जब हमार लोचन म क अभावरप पीिलया रोग स मःत होत ह | 123) साधक यिद अ यास क मागर पर उसी कार आग बढ़ता जाय िजस कार ार भ

म इस मागर पर चलन क िलए उतसाहपवरक कदम रखा था तो आयरपी सयर अःत होन स पहल

जीवनरपी िदन रहत ही अवय सोऽहम िसि क ःथान तक पहच जाय | 124) लोग ज दी स उननित कय नही करत कय िक बाहर क अिभाय एव िवचारधाराओ का बहत बड़ा बोझ िहमालय की तरह उनकी पीठ पर लदा हआ ह | 125) अपन ित होन वाल अनयाय को सहन करत हए अनयायकतार को यिद मा कर िदया जाय तो ष म म पिरणत हो जाता ह | 126) साधना की शरआत ौ ा स होती ह लिकन समाि ान स होनी चािहय | ान मान

ःवयसिहत सवर ःवरप ह ऐसा अपरो अनभव | 127) अपन शरीर क रोम-रोम म स ॐ का उ चारण करो | पहल धीम ःवर म ार भ

करो | शर म धविन गल स िनकलगी िफर छाती स िफर नािभ स और अनत म रीढ़ की ह डी क

आिखरी छोर स िनकलगी | तब िव त क धकक स सष ना नाड़ी तरनत खलगी | सब कीटाणसिहत

तमाम रोग भाग खड़ ह ग | िनभरयता िह मत और आननद का फ वारा छटगा | हर रोज ातःकाल

म ःनानािद करक सय दय क समय िकसी एक िनयत ःथान म आसन पर पवारिभमख बठकर

कम-स-कम आधा घनटा करक तो दखो | 128) आप जगत क भ बनो अनयथा जगत आप पर भतव जमा लगा | ान क

मतािबक जीवन बनाओ अनयथा जीवन क मतािबक ान हो जायगा | िफर यग की याऽा स भी दःख का अनत नही आयगा | 129) वाःतिवक िश ण का ारभ तो तभी होता ह जब मनय सब कार की सहायताओ स िवमख होकर अपन भीतर क अननत ॐोत की तरफ अमसर होता ह | 130) य पच की िनवित क िलए अनतःकरण को आननद म सरोबार रखन क िलए

कोई भी कायर करत समय िवचार करो म कौन ह और कायर कौन कर रहा ह भीतर स जवाब

िमलगा मन और शरीर कायर करत ह | म सा ीःवरप ह | ऐसा करन स कतारपन का अह

िपघलगा सख-दःख क आघात मनद ह ग | 131) राग- ष की िनवित का कया उपाय ह उपाय यही ह िक सार जगत-पच को मनोरा य समझो | िननदा-ःतित स राग- ष स पच म सतयता ढ़ होती ह | 132) जब कोई खनी हाथ आपकी गरदन पकड़ ल कोई श धारी आपको कतल करन क

िलए ततपर हो जाय तब यिद आप उसक िलए सननता स तयार रह दय म िकसी कार का भय

या िवषाद उतपनन न हो तो समझना िक आपन राग- ष पर िवजय ा कर िलया ह | जब आपकी ि पड़त ही िसहािद िहसक जीव की िहसावित गायब हो जाय तब समझना िक अब राग- ष का अभाव हआ ह | 133) आतमा क िसवाय अनय कछ भी नही ह - ऐसी समझ रखना ही आतमिन ा ह | 134) आप ःव न ा ह और यह जगत आपका ही ःव न ह | बस िजस ण यह ान हो जायगा उसी ण आप म हो जाएग | 135) िदन क चौबीस घ ट को साधनामय बनान क िलय िनक मा होकर यथर िवचार करत हए मन को बार-बार सावधान करक आतमिचतन म लगाओ | ससार म सल न मन को वहा स उठा कर आतमा म लगात रहो | 136) एक बार सागर की एक बड़ी तरग एक बलबल की िता पर हसन लगी | बलबल न

कहा ओ तरग म तो छोटा ह िफर भी बहत सखी ह | कछ ही दर म मरी दह टट जायगी िबखर

जायगी | म जल क साथ जल हो जाऊगा | वामन िमटकर िवराट बन जाऊगा | मरी मि बहत

नजदीक ह | मझ आपकी िःथित पर दया आती ह | आप इतनी बड़ी हई हो | आपका छटकारा ज दी नही होगा | आप भाग-भागकर सामनवाली च टान स टकराओगी | अनक छोटी-छोटी तरग

म िवभ हो जाओगी | उन अस य तरग म स अननत-अननत बलबल क रप म पिरवितरत हो जाओगी | य सब बलबल फटग तब आपका छटकारा होगा | बड़ पन का गवर कय करती हो जगत की उपलि धय का अिभमान करक परमातमा स दर मत जाओ | बलबल की तरह सरल

रहकर परमातमा क साथ एकता का अनभव करो | 137) जब आप ईयार ष िछिानवषण दोषारोपण घणा और िननदा क िवचार िकसीक

ित भजत ह तब साथ-ही-साथ वस ही िवचार को आमिऽत भी करत ह | जब आप अपन भाई की आख म ितनका भ कत ह तब अपनी आख म भी आप ताड़ भ क रह ह | 138) शरीर अनक ह आतमा एक ह | वह आतमा-परमातमा मझस अलग नही | म ही कतार सा ी व नयायधीश ह | म ही ककर श आलोचक ह और म ही मधर शसक ह | मर िलय तयक

यि ःवतऽ व ःव छनद ह | बनधन पिरि छननता और दोष मरी ि म आत ही नही | म म

हपरम म ह और अनय लोग भी ःवतऽ ह | ई र म ही ह | आप भी वही हो | 139) िजस कार बालक अपनी परछा म बताल की क पना कर भय पाता ह उसी कार जीव अपन ही सक प स भयभीत होता ह और क पाता ह | 140) कभी-कभी ऐसी भावना करो िक आपक सामन चतनय का एक महासागर लहरा रहा ह | उसक िकनार खड़ रह कर आप आनद स उस दख रह ह | आपका शरीर सागर की सतह पर घमन गया ह | आपक दखत ही दखत वह सागर म डब गया | इस समःत पिरिःथित को दखन वाल आप सा ी आतमा शष रहत ह | इस कार सा ी रप म अपना अनभव करो | 141) यिद हम चाहत ह िक भगवान हमार सब अपराध माफ कर तो इसक िलए सगम साधना यही ह िक हम भी अपन सबिधत सब लोग क सब अपराध माफ कर द |

कभी िकसी क दोष या अपराध पर ि न डाल कय िक वाःतव म सब रप म हमारा यारा ई दव ही बीड़ा कर रहा ह |

142) पणर पिवऽता का अथर ह बा भाव स भािवत न होना | सासािरक मनोहरता एव घणा स पर रहना राजी-नाराजगी स अिवचल िकसी म भद न दखना और आतमानभव क ारा आकषरण व तयाग स अिल रहना | यही वदानत का उपिनषद का

रहःय ह | 143) ई र सा ातकार तभी होगा जब ससार की ि स तीत होन वाल बड़-स-बड़ विरय को भी मा करन का आपका ःवभाव बन जायगा | 144) चाल यवहार म स एकदम उपराम होकर दो िमनट क िलए िवराम लो |

सोचो िक lsquo म कौन ह सद -गम शरीर को लगती ह | भख- यास ाण को लगती ह |

अनकलता-ितकलता मन को लगती ह | शभ-अशभ एव पाप-प य का िनणरय बि करती ह | म न शरीर ह न ाण ह न मन ह न बि ह | म तो ह इन सबको स ा दन वाला इन सबस नयारा िनलप आतमा |rsquo 145) जो मनय िनरतर lsquoम म हhelliprsquo ऐसी भावना करता ह वह म ही ह और lsquoम ब हhelliprsquo ऐसी भावना करनवाला ब ही ह | 146) आप िनभरय ह िनभरय ह िनभरय ह | भय ही मतय ह | भय ही पाप ह | भय ही नकर ह | भय ही अधमर ह | भय ही यिभचार ह | जगत म िजतन असत या िमथया भाव ह व सब इस भयरपी शतान स पदा हए ह | 147) परिहत क िलए थोड़ा काम करन स भी भीतर की शि या जागत होती ह |

दसर क क याण क िवचारमाऽ स दय म एक िसह क समान बल आ जाता ह | 148) हम यिद िनभरय ह ग तो शर को भी जीतकर उस पाल सक ग | यिद डरग तो क ा भी हम फ़ाड़ खायगा | 149) तयक िबया तयक यवहार तयक ाणी ःवरप िदख यही सहज समािध ह | 150) जब किठनाईया आय तब ऐसा मानना िक मझ म सहन शि बढ़ान क िलए ई र न य सयोग भज ह | किठन सयोग म िह मत रहगी तो सयोग बदलन लगग |

िवषय म राग- ष रह गया होगा तो वह िवषय कसौटी क रप म आग आयग और उनस पार होना पड़गा | 151) ततव ि स न तो आपन जनम िलया न कभी लग | आप तो अनत ह सवर यापी ह िनतयम अजर-अमर अिवनाशी ह | जनम-मतय का ही गलत ह महा-

मखरतापणर ह | जहा जनम ही नही हआ वहा मतय हो ही कस सकती ह 152) आप ही इस जगत क ई र हो | आपको कौन दबरल बना सकता ह जगत म आप ही एकमाऽ स ा हो | आपको िकसका भय खड़ हो जाओ | म हो जाओ | ठ क स समझ लो िक जो कोई िवचार या श द आपको दबरल बनाता ह वही एकमाऽ अशभ ह | मनय को दबरल व भयभीत करनवाला जो कछ इस ससार म ह वह पाप ह | 153) आप अपना कायर या कतर य करो लिकन न उसक िलए कोई िचनता रह न ही कोई

इ छा | अपन कायर म सख का अनभव करो कय िक आपका कायर ःवय सख या िवौाम ह | आपका कायर आतमानभव का ही दसरा नाम ह | कायर म लग रहो | कायर आपको आतमानभव कराता ह |

िकसी अनय हत स कायर न करो | ःवतऽ वि स अपन कायर पर डट जाओ | अपन को ःवतऽ

समझो िकसीक कदी नही | 154) यिद आप सतय क मागर स नही हटत तो शि का वाह आपक साथ ह समय आपक

साथ ह ऽ आपक साथ ह | लोग को उनक भतकाल की मिहमा पर फलन दो भिवयकाल की स पणर मिहमा आपक हाथ म ह | 155) जब आप िद य म क साथ चा डाल म चोर म पापी म अ यागत म और सबम भ क दशरन करग तब आप भगवान ौी कण क मपाऽ बन जायग | 156) आचायर गौड़पाद न ःप कहा आप सब आपस म भल ही लड़त रह लिकन मर साथ नही लड़ सक ग | आप सब लोग मर पट म ह | म आतमःवरप स सवर या ह | 157) मनय सभी ािणय म ौ ह सब दवताओ स भी ौ ह | दवताओ को भी िफर स

धरती पर आना पड़गा और मनय शरीर ा करक मि ा करनी होगी | 158) िनि नतता क दो सऽ जो कायर करना जररी ह उस परा कर दो | जो िबनजररी ह

उस भल जाओ | 159) सवा-म-तयाग ही मनय क िवकास का मल मऽ ह | अगर यह मऽ आपको जच

जाय तो सभी क ित सदभाव रखो और शरीर स िकसी-न-िकसी यि को िबना िकसी मतलब क

सहयोग दत रहो | यह नही िक जब मरी बात मानग तब म सवा करगा | अगर बनधक मरी बात

नही मानत तो म सवा नही करगा |

भाई तब तो तम सवा नही कर पाओग | तब तो तम अपनी बात मनवा कर अपन अह की पजा ही

करोग | 160) जस ःव न िमथया ह वस ही यह जामत अवःथा भी ःव नवत ही ह िमथया ह | हरक

को अपन इस ःव न स जागना ह | सदगर बार-बार जगा रह ह लिकन जाग कर वापस सो न जाए ऐसा परषाथर तो हम ही करना होगा | 161) सदा सननमख रहो | मख को कभी मिलन मत करो | िन य कर लो िक आपक

िलय शोक न इस जगत म जनम नही िलया ह | आननदःवरप म िचनता का ःथान ही कहा ह 162) समम ा ड एक शरीर ह | समम ससार एक शरीर ह | जब तक आप तयक क

साथ एकता का अनभव करत रहग तब तक सब पिरिःथितया और आस-पास की चीज़ हवा और समि की लहर भी आपक प म रहगी | 163) आपको जो कछ शरीर स बि स या आतमा स कमजोर बनाय उसको िवष की तरह

ततकाल तयाग दो | वह कभी सतय नही हो सकता | सतय तो बलद होता ह पावन होता ह

ानःवरप होता ह | सतय वह ह जो शि द | 164) साधना म हमारी अिभरिच होनी चािहय साधना की तीो माग होनी चािहय | 165) दसर क दोष की चचार मत करो चाह व िकतन भी बड़ ह | िकसी क दोष की चचार करक आप उसका िकसी भी कार भला नही करत बि क उस आघात पहचात ह और साथ-ही-साथ अपन आपको भी | 166) इस ससार को सतय समझना ही मौत ह | आपका असली ःवरप तो आननदःवरप

आतमा ह | आतमा क िसवा ससार जसी कोई चीज ही नही ह | जस सोया हआ मनय ःव न म अपनी एकता नही जानता अिपत अपन को अनक करक दखता ह वस ही आननदःवरप आतमा जामत ःव न और सषि - इन तीन ःवरप को दखत हए अपनी एकता अि तीयता का अनभव

नही करता | 167) मनोजय का उपाय ह अ यास और वरा य | अ यास मान य पवरक मन को बार-बार परमातम-िचतन म लगाना और वरा य मान मन को ससार क पदाथ की ओर स वापस

लौटाना | 168) िकसी स कछ मत मागो | दन क िलय लोग आपक पीछ-पीछ घमग | मान नही

चाहोग तो मान िमलगा | ःवगर नही चाहोग तो ःवगर क दत आपक िलय िवमान लकर आयग |

उसको भी ःवीकार नही करोग तो ई र आपको अपन दय स लगायग | 169) कभी-कभी उदय या अःत होत हए सयर की ओर चलो | नदी सरोवर या समि क तट

पर अकल घमन जाओ | ऐस ःथान की मलाकात लो जहा शीतल पवन मनद-मनद चल रही हो | वहा परमातमा क साथ एकःवर होन की स भावना क ार खलत ह | 170) आप य -ही इ छा स ऊपर उठत हो तय -ही आपका इि छत पदाथर आपको खोजन

लगता ह | अतः पदाथर स ऊपर उठो | यही िनयम ह | य - य आप इ छक िभ क याचक का भाव धारण करत हो तय -तय आप ठकराय जात हो | 171) कित क तयक पदाथर को दखन क िलय काश जररी ह | इसी कार मन बि

इिनिय को अपन-अपन कायर करन क िलय आतम-काश की आवयकता ह कय िक बाहर का कोई काश मन बि इिनिय ाणािद को चतन करन म समथर नही | 172) जस ःव न ा परष को जागन क बाद ःव न क सख-दःख जनम-मरण पाप-प य

धमर-अधमर आिद ःपशर नही करत कय िक वह सब खद ही ह | खद क िसवाय ःव न म दसरा कछ

था ही नही | वस ही जीवनम ानवान परष को सख-दःख जनम-मरण पाप-प य धमर-अधमर ःपशर नही करत कय िक व सब आतमःवरप ही ह | 173) वही भमा नामक आतम योित क म रह कर भ क रही ह सअर म रह कर घर रही ह गध म रह कर रक रही ह लिकन मखर लोग शरीर पर ही ि रखत ह चतनय ततव पर नही | 174) मनय िजस ण भत-भिवय की िचनता का तयाग कर दता ह दह को सीिमत और उतपि -िवनाशशील जानकर दहािभमान को तयाग दता ह उसी ण वह एक उ चतर अवःथा म पहच जाता ह | िपजर स छटकर गगनिवहार करत हए प ी की तरह मि का अनभव करता ह | 175) समःत भय एव िचनताए आपकी इ छाओ का णाम ह | आपको भय कय लगता ह

कय िक आपको आशका रहती ह िक अमक चीज कही चली न जाय | लोग क हाःय स आप डरत

ह कय िक आपको यश की अिभलाषा ह कीितर म आसि ह | इ छाओ को ितलाजिल द दो | िफर दखो मजा कोई िज मदारी नहीकोई भय नही | 176) दखन म अतयत करप काला-कलटा कबड़ा और तज ःवभाव का मनय भी आपका ही ःवरप ह | आप इस तथय स म नही | िफर घणा कसी कोई लाव यमयी सदरी सि की

शोभा क समान अित िवलासभरी अ सरा भी आपका ही ःवरप ह | िफर आसि िकसकी

आपकी ानिनिया उनको आपस अलग करक िदखाती ह | य इिनिया झठ बोलनवाली ह | उनका कभी िव ास मत करो | अतः सब कछ आप ही हो | 177) मानव क नात हम साधक ह | साधक होन क नात सतय को ःवीकर करना हमारा ःवधमर ह | सतय यही ह िक बल दसर क िलय ह ान अपन िलय ह और िव ास परमातमा स

स बनध जोड़न क िलय ह | 178) अपनी आतमा म डब जाना यह सबस बड़ा परोपकार ह | 179) आप सदव म ह ऐसा िव ास ढ़ करो तो आप िव क उ ारक हो जात हो | आप

यिद वदानत क ःवर क साथ ःवर िमलाकर िन य करो आप कभी शरीर न थ | आप िनतय श

ब आतमा हो तो अिखल ा ड क मो दाता हो जात हो | 180) कपा करक उन ःवाथरमय उपाय और अिभाय को दर फ क दो जो आपको पिरि छनन रखत ह | सब वासनाए राग ह | यि गत या शरीरगत म आसि ह | उस फ क दो | ःवय पिवऽ हो जाओ | आपका शरीर ःवःथ और बि पणरःवरप हो जायगी | 181) यिद ससार क सख व पदाथर ा ह तो आपको कहना चािहय ओ शतान हट जा मर सामन स | तर हाथ स मझ कछ नही चािहय | तब दखो िक आप कस सखी हो जात हो परमातमा-ा िकसी महापरष पर िव ास रखकर अपनी जीवनडोरी िनःशक बन उनक चरण म सदा क िलय रख दो | िनभरयता आपक चरण की दासी बन जायगी | 182) िजसन एक बार ठ क स जान िलया िक जगत िमथया ह और ािनत स इसकी तीित

हो रही ह उसको कभी दःख नही होता | जगत म कभी आसि नही होती | जगत क िमथयातव क

िन य का नाम ही जगत का नाश ह | 183) अपन ःवरप म लीन होन माऽ स आप ससार क साट बन जायग | यह साटपद

कवल इस ससार का ही नही समःत लोक-परलोक का साटपद होगा | 184) ह जनक चाह दवािधदव महादव आकर आपको उपदश द या भगवान िवण आकर उपदश द अथवा ाजी आकर उपदश द लिकन आपको कदािप सख न होगा | जब िवषय का तयाग करोग तभी स ची शाित व आनद ा ह ग |

185) िजस भ न हम मानव जीवन दकर ःवाधीनता दी िक हम जब चाह तब धमारतमा होकर भ होकर जीवनम होकर कतकतय हो सकत ह- उस भ की मिहमा गाओ | गाओ नही तो सनो | सनो भी नही गाओ भी नही तो ःवीकार कर लो | 186) चाह समि क गहर तल म जाना पड़ सा ात मतय का मकाबला करना पड़ अपन

आतमाि क उ य की पितर क िलय अिडग रहो | उठो साहसी बनो शि मान बनो | आपको जो बल व सहायता चािहय वह आपक भीतर ही ह | 187) जब-जब जीवन स बनधी शोक और िचनता घरन लग तब-तब अपन आननदःवरप

का गान करत-करत उस मोह-माया को भगा दो | 188) जब शरीर म कोई पीड़ा या अग म ज म हो तब म आकाशवत आकाशरिहत चतन

ह ऐसा ढ़ िन य करक पीड़ा को भल जाओ | 189) जब दिनया क िकसी चककर म फस जाओ तब म िनलप िनतय म ह ऐसा ढ़

िन य करक उस चककर स िनकल जाओ | 190) जब घर-बार स बनधी कोई किठन समःया याकल कर तब उस मदारी का खल

समझकर ःवय को िनःसग जानकर उस बोझ को ह का कर दो | 191) जब बोध क आवश म आकर कोई अपमानय वचन कह तब अपन शाितमय

ःवरप म िःथर होकर मन म िकसी भी ोभ को पदा न होन दो | 192) उ म अिधकारी िज ास को चािहय िक वह व ा सदगर क पास जाकर ौ ा पवरक महावाकय सन | उसका मनन व िनिदधयासन करक अपन आतमःवरप को जान | जब

आतमःवरप का सा ातकार होता ह तब ही परम िवौािनत िमल सकती ह अनयथा नही | जब तक

व ा महापरष स महावाकय ा न हो तब तक वह मनद अिधकारी ह | वह अपन दयकमल म परमातमा का धयान कर ःमरण कर जप कर | इस धयान-जपािद क साद स उस व ा सदगर

ा ह ग | 193) मन बि िच अहकार छाया की तरह जड़ ह णभगर ह कय िक व उतपनन होत

ह और लीन भी हो जात ह | िजस चतनय की छाया उसम पड़ती ह वह परम चतनय सबका आतमा ह | मन बि िच अहकार का अभाव हो जाता ह लिकन उसका अनभव करनवाल का अभाव

कदािप नही होता |

194) आप अपनी शि को उ चाितउ च िवषय की ओर बहन दो | इसस आपक पास व

बात सोचन का समय ही नही िमलगा िजसस कामकता की गध आती हो | 195) अपराध क अनक नाम ह बालहतया नरहतया मातहतया गौहतया इतयािद |

परनत तयक ाणी म ई र का अनभव न करक आप ई रहतया का सबस बड़ा अपराध करत ह | 196) सवा करन की ःवाधीनता मनयमाऽ को ा ह | अगर वह करना ही न चाह तो अलग बात ह | सवा का अथर ह मन-वाणी-कमर स बराईरिहत हो जाना यह िव की सवा हो गई |

यथाशि भलाई कर दो यह समाज की सवा हो गई | भलाई का फल छोड़ दो यह अपनी सवा हो गई

| भ को अपना मानकर ःमित और म जगा लो यह भ की सवा हो गई | इस कार मनय

अपनी सवा भी कर सकता ह समाज की सवा भी कर सकता ह िव की सवा भी कर सकता ह

और िव र की सवा भी कर सकता ह | 197) आतमा स बाहर मत भटको अपन कनि म िःथर रहो अनयथा िगर पड़ोग | अपन-

आपम पणर िव ास रखो | आतम-कनि पर अचल रहो | िफर कोई भी चीज आपको िवचिलत नही कर सकती | 198) सदा शात िनिवरकार और सम रहो | जगत को खलमाऽ समझो | जगत स भािवत

मत हो | इसस आप हमशा सखी रहोग | िफर कछ बढ़ान की इ छा नही होगी और कछ कम होन स

दःख नही होगा | 199) समथर सदगर क सम सदा फल क भाित िखल हए रहो | इसस उनक अनदर सक प

होगा िक यह तो बहत उतसाही साधक ह सदा सनन रहता ह | उनक सामथयरवान सक प स

आपकी वह किऽम सननता भी वाःतिवक सननता म बदल जायगी | 200) यिद रोग को भी ई र का िदया मानो तो ार ध-भोग भी हो जाता ह और क तप का फल दता ह | इसस ई र-कपा की ाि होती ह | याकल मत हो | क सल और इनजकशन

आधीन मत हो | 201) साधक को चािहय िक अपन लआय को ि म रखकर साधना-पथ पर तीर की तरह

सीधा चला जाय | न इधर दख न उधर | ि यिद इधर-उधर जाती हो तो समझना िक िन ा िःथर नही ह |

202) आपन अपन जीवन म हजार ःव न दख ह ग लिकन व आपक जीवन क अश नही बन जात | इसी कार य जामत जगत क आड बर आपकी आतमा क सम कोई मह व नही रखत | 203) एक आतमा को ही जानो अनय बात को छोड़ो | धीर साधक को चािहय िक वह

सावधान होकर आतमिन ा बढ़ाय अनक श द का िचनतन व भाषण न कर कय िक वह तो कवल

मन-वाणी को पिरौम दनवाला ह असली साधना नही ह | 204) जो परष जन-समह स ऐस डर जस साप स डरता ह स मान स ऐस डर जस नकर स

डरता ह ि य स ऐस डर जस मद स डरता ह उस परष को दवतागण ा ण मानत ह | 205) जस अपन शरीर क अग पर बोध नही आता वस शऽ िमऽ व अपनी दह म एक ही आतमा को दखनवाल िववकी परष को कदािप बोध नही आता | 206) मन तो शरीर को ई रापरण कर िदया ह | अब उसकी भख- यास स मझ कया

समिपरत वःत म आस होना महा पाप ह | 207) आप यिद िद य ि पाना चहत हो तो आपको इिनिय क ऽ का तयाग करना होगा | 208) लयकाल क मघ की गजरना हो समि उमड़ पड बारह सयर तपायमान हो जाय पहाड़ स पहाड़ टकरा कर भयानक आवाज हो तो भी ानी क िन य म त नही भासता कय िक

त ह ही नही | त तो अ ानी को भासता ह | 209) सतय को ःवीकार करन स शाित िमलगी | कछ लोग यो यता क आधार पर शाित

खरीदना चाहत ह | यो यता स शाित नही िमलगी यो यता क सदपयोग स शाित िमलगी | कछ

लोग स पि क आधार पर शाित सरि त रखना चाहत ह | स पि स शाित नही िमलगी स पि

क सदपयोग स शाित िमलगी वस ही िवपि क सदपयोग स शाित िमलगी | 210) त छ हािन-लाभ पर आपका धयान इतना कय रहता ह िजसस अनत आननदःवरप

आतमा पर स धयान हट जाता ह | 211) अपन अनदर ही आननद ा करना य िप किठन ह परनत बा िवषय स आननद

ा करना तो अस भव ही ह |

212) म ससार का काश ह | काश क रप म म ही सब वःतओ म या ह | िनतय इन

िवचार का िचनतन करत रहो | य पिवऽ िवचार आपको परम पिवऽ बना दग | 213) जो वःत कमर स ा होती ह उसक िलय ससार की सहायता तथा भिवय की आशा की आवयकता होती ह परनत जो वःत तयाग स ा होती ह उसक िलय न ससार की सहायता चािहय न भिवय की आशा | 214) आपको जब तक बाहर चोर िदखता ह तब तक जरर भीतर चोर ह | जब दसर लोग

स िभनन अयो य खराब सधारन यो य िदखत ह तब तक ओ सधार का बीड़ा उठान वाल त अपनी िचिकतसा कर | 215) सफल व ही होत ह जो सदव नतमःतक एव सननमख रहत ह | िचनतातर-शोकातर लोग की उननित नही हो सकती | तयक कायर को िह मत व शाित स करो | िफर दखो िक यह

कायर शरीर मन और बि स हआ | म उन सबको स ा दनवाला चतनयःवरप ह | ॐ ॐ का पावन गान करो | 216) िकसी भी पिरिःथित म मन को यिथत न होन दो | आतमा पर िव ास करक

आतमिन बन जाओ | िनभरयता आपकी दासी बन कर रहगी | 217) सतसग स मनय को साधना ा होती ह चाह वह शाित क रप म हो चाह मि क

रप म चाह सवा क रप म हो म क रप म हो चाह तयाग क रप म हो | 218) भला-बरा वही दखता ह िजसक अनदर भला-बरा ह | दसर क शरीर को वही दखता ह

जो खद को शरीर मानता ह | 219) खबरदार आपन यिद अपन शरीर क िलय ऐश-आराम की इ छा की िवलािसता एव इिनिय-सख म अपना समय बरबाद िकया तो आपकी खर नही | ठ क स कायर करत रहन की नीित

अपनाओ | सफलता का पहला िस ात ह कायरिवौामरिहत कायरसा ी भाव स कायर | इस

िस ात को जीवन म चिरताथर करोग तो पता चलगा िक छोटा होना िजतना सरल ह उतना ही बड़ा होना भी सहज ह | 220) भतकाल पर िखनन हए िबना भिवय की िचनता िकय िबना व रमान म कायर करो | यह भाव आपको हर अवःथा म सनन रखगा हम जो कछ ा ह उसका सदपयोग ही अिधक

काश पान का साधन ह |

221) जब आप सफलता की ओर पीठ कर लत हो पिरणाम की िचनता का तयाग कर दत

हो स मख आय हए क र य पर अपनी उ ोगशि एकाम करत हो तब सफलता आपक पीछ-पीछ

आ जाती ह | अतः सफलता आपको खोजगी | 222) वि तब तक एकाम नही होगी जब तक मन म कभी एक आशा रहगी तो कभी दसरी | शात वही हो सकता ह िजस कोई क र य या आवयकता घसीट न रही हो | अतः परम शाित पान

क िलय जीवन की आशा भी तयाग कर मन ाननद म डबो दो | आज स समझ लो िक यह शरीर ह ही नही | कवल ाननद का सागर लहरा रहा ह | 223) िजसकी पककी िन ा ह िक म आतमा हrsquo उसक िलय ऐसी कौन सी मिथ ह जो खल

न सक ऐसी कोई ताकत नही जो उसक िवर जा सक | 224) मर भा य म नही थाई र की मज आजकल सतसग ा नही होताजगत

खराब ह ऐस वचन हमारी कायरता व अनतःकरण की मिलनता क कारण िनकलत ह | अतः नकारातमक ःवभाव और दसर पर दोषारोपण करन की वि स बचो | 225) आप जब भीतरवाल स नाराज होत हो तब जगत आपस नाराज रहता ह | जब आप

भीतर अनतयारमी बन बठ तो जगतरपी पतलीघर म िफर गड़बड़ कसी 226) िजस ण हम ससार क सधारक बन खड़ होत ह उसी ण हम ससार को िबगाड़नवाल बन जात ह | श परमातमा को दखन क बजाय जगत को िबगड़ा हआ दखन की ि बनती ह | सधारक लोग मानत ह िक lsquoभगवान न जो जगत बनाया ह वह िबगड़ा हआ ह और हम उस सधार रह ह |rsquo वाह वाह धनयवाद सधारक अपन िदल को सधारो पहल | सवरऽ िनरजन का दीदार करो | तब आपकी उपिःथित माऽ स आपकी ि माऽ स अर यार आपको छकर बहती हवा माऽ स अननत जीव को शाित िमलगी और अननत सधार होगा | नानक कबीर महावीर ब और लीलाशाह बाप जस महापरष न यही कजी अपनायी थी | 227) वदानत म हमशा कमर का अथर होता ह वाःतिवक आतमा क साथ एक होकर च ा करना अिखल िव क साथ एकःवर हो जाना | उस अि तीय परम ततव क साथ िनःःवाथर सयोग ा करना ही एकमाऽ स चा कमर ह बाकी सब बोझ की गठिरया उठाना ह |

228) अपनी व रमान अवःथा चाह कसी भी हो उसको सव च मानन स ही आपक दय म आतम ान ान का अनायास उदय होन लगगा | आतम-सा ातकार को मील दर की कोई चीज समझकर उसक पीछ दौड़ना नही ह िचिनतत होना नही ह |

िचनता की गठरी उठाकर यिथत होन की जररत नही ह | िजस ण आप िनि नतता म गोता मारोग उसी ण आपका आतमःवरप गट हो जायगा | अर गट कया होगा आप ःवय आतमःवरप हो ही | अनातमा को छोड़ दो तो आतमःवरप तो हो ही | 229) सदा ॐकार का गान करो | जब भय व िचनता क िवचार आय तब िकसी मःत सत-फकीर महातमा क सािननधय का ःमरण करो | जब िननदा-शसा क सग आय तब महापरष क जीवन का अवलोकन करो | 230) िजनको आप भयानक घटनाए एव भयकर आघात समझ बठ हो वाःतव म व आपक ियतम आतमदव की ही करतत ह | समःत भयजनक तथा ाणनाशक घटनाओ क नाम-रप तो िवष क ह लिकन व बनी ह अमत स | 231) मन म यिद भय न हो तो बाहर चाह कसी भी भय की साममी उपिःथत हो जाय आपका कछ िबगाड़ नही सकती | मन म यिद भय होगा तो तरनत बाहर भी भयजनक पिरिःथया न होत हए भी उपिःथत हो जायगी | व क तन म भी भत िदखन लगगा | 232) िकसी भी पिरिःथित म िदखती हई कठोरता व भयानकता स भयभीत नही होना चािहए | क क काल बादल क पीछ पणर काशमय एकरस परम स ा सयर की तरह सदा िव मान ह | 233) आप अपन पर कदािप अिव ास मत करो | इस जगत म आप सब कछ कर सकत हो | अपन को कभी दबरल मत मानो | आपक अनदर तमाम शि या छपी हई ह | 234) यिद कोई मन य आपकी कोई चीज़ को चरा लता ह तो ड़रत कय हो वह मनय

और आप एक ह | िजस चीज़ को वह चराता ह वह चीज़ आपकी और उसकी द न की ह | 235) जो खद क िसवाय दसरा कछ दखता नही सनता नही जानता नही वह अननत ह |

जब तक खद क िसवाय और िकसी वःत का भान होता ह वह वःत स ची लगती ह तब तक आप

सीिमत व शात ह असीम और अनत नही |

236) ससार मझ कया आनद द सकता ह स पणर आनद मर भीतर स आया ह | म ही स पणर आननद ह स पणर मिहमा एव स पणर सख ह | 237) जीवन की समःत आवयकताए जीवन म उपिःथत ह परनत जीवन को जब हम

बा रग म रग दत ह तब जीवन का वाःतिवक रप हम नही जान पात | 238) िननदक की िननदा स म कय मरझाऊ शसक की शसा स म कय फल िननदा स म घटता नही और शसा स म बढ़ता नही | जसा ह वसा ही रहता ह | िफर िननदा-ःतित स

खटक कसी 239) ससार व ससार की समःयाओ म जो सबस अिधक फस हए ह उनही को वदानत की सबस अिधक आवयकता ह | बीमार को ही औषिध की यादा आवयकता ह | कय जी ठ क ह न 240) जगत क पाप व अतयाचार की बात मत करो लिकन अब भी आपको जगत म पाप

िदखता ह इसिलय रोओ | 241) हम यिद जान ल िक जगत म आतमा क िसवाय दसरा कछ ह ही नही और जो कछ

िदखता ह वह ःव नमाऽ ह तो इस जगत क दःख-दािरिय पाप-प य कछ भी हम अशात नही कर सकत | 242) िव ान दाशरिनक व आचाय की धमकी तथा अनमह आलोचना या अनमित

ानी पर कोई भाव नही ड़ाल सकती | 243) ह यि रप अननत आप अपन पर पर खड़ रहन का साहस करो समःत िव का बोझ आप िखलौन की तरह उठा लोग | 244) िसह की गजरना व नरिसह की ललकार तलवार की धार व साप की फफकार तपःवी की धमकी व नयायधीश की फटकारइन सबम आपका ही काश चमक रहा ह | आप इनस

भयभीत कय होत हो उलझन कय महसस करत हो मरी िब ली मझको याऊ वाली बात कय

होन दत हो 245) ससार हमारा िसफ़र िखलोना ही ह और कछ नही | अबोध बालक ही िखलौन स

भयभीत होता ह आसि करता ह िवचारशील यि नही |

246) जब तक अिव ा दर नही होगी तब तक चोरी जआ दार यिभचार कभी बद न

ह ग चाह लाख कोिशश करो | 247) आप हमशा अदर का धयान रखो | पहल हमारा भीतरी पतन होता ह | बा पतन तो इसका पिरणाम माऽ ह | 248) तयाग स हमशा आनद िमलता ह | जब तक आपक पास एक भी चीज़ बाकी ह तब

तक आप उस चीज़ क बधन म बध रहोग | आघात व तयाघात हमशा समान िवरोधी होत ह | 249) िनि तता ही आरो यता की सबस बड़ी दवाई ह | 250) सख अपन िसर पर दख का मकट पहन कर आता ह | जो सख को अपनायगा उस

दख को भी ःवीकार करना पड़गा | 251) म (आतमा) सबका ा ह | मरा ा कोई नही | 252) हजार म स कोई एक परष भीतर स शात िच वाला रहकर बाहर स ससारी जसा यवहार कर सकता ह | 253) सतय क िलए यिद शरीर का तयाग करना पड़ तो कर दना | यही आिखरी ममता ह जो हम तोड़नी होगी | 254) भय िचनता बचनी स ऊपर उठो | आपको ान का अनभव होगा | 255) आपको कोई भी हािन नही पहचा सकता | कवल आपक खयालात ही आपक पीछ पड़ ह | 256) म का अथर ह अपन पड़ोसी तथा सपकर म आनवाल क साथ अपनी वाःतिवक अभदता का अनभव करना | 257) ओ यार अपन खोय हए आतमा को एक बार खोज लो | धरती व आसमान क शासक आप ही हो | 258) सदव सम और सनन रहना ई र की सव पिर भि ह |

259) जब तक िच म ढ़ता न आ जाय िक शा की िविधय का पालन छोड़ दन स भी दय का यथाथर भि भाव न नही होगा तब तक शा की िविधय को पालत रहो |

गर भि एक अमोघ साधना 1 जनम मरण क िवषचब स म होन का कोई मागर नही ह कया सख-दःख हषर-शोक लाभ-

हािन मान-अपमान की थ पड़ स बचन का कोई उपाय नही ह कया

हअवय ह | ह िय आतमन नाशवान पदाथ स अपना मन वािपस लाकर सदगर क

चरणकमल म लगाओ | गरभि योग का आौय लो | गरसवा ऐसा अमोघ साधन ह िजसस

व रमान जीवन आननदमय बनता ह और शा त सख क ार खलत ह |

गर सवत त नर धनय यहा | ितनक नही दःख यहा न वहा || 2 स च सदगर की की हई भि िशय म सासािरक पदाथ क वरा य एव अनासि जगाती ह

परमातमा क ित म क पप महकाती ह | 3 तयक िशय सदगर की सवा करना चाहता ह लिकन अपन ढग स | सदगर चाह उस ढग स

सवा करन को कोई ततपर नही | जो िवरला साधक गर चाह उस ढ़ग स सवा कर सकता ह उस कोई कमी नही रहती |

िन सदगर की सवा स उनकी कपा ा होती ह और उस कपा स न िमल सक ऐसा तीन लोक म कछ भी नही ह | 4 गर िशय का स बनध पिवऽतम स बनध ह | ससार क तमाम बनधन स छड़ाकर वह मि क मागर पर ःथान कराता ह | यह स बनध जीवनपयरनत का स बनध ह | यह बात अपन दय की डायरी म सवणर-अ र स िलख लो | 5 उ ल सयर क काश क अिःततव को मान या न मान िफर भी सयर हमशा काशता ह | चचल मन का मनय मान या न मान लिकन सदगर की परमक याणकारी कपा सदव बरसती ही रहती ह | 6 सदगर की चरणरज म ःनान िकय िबना कवल किठन तप यार करन स या वद का

अधयन करन स वदानत का रहःय कट नही होता आतमानद का अमत नही िमलता | 7 दशरन शा क चाह िकतन मनथ पढ़ो हजार वष तक िहमालय की गफा म तप करो वष तक ाणायाम करो जीवनपयरनत शीषारसन करो समम िव म वास करक याखान दो िफर भी सदगर की कपा क िबना आतम ान नही होता | अतः िनरािभमानी सरल िनजाननद म मःत दयाल ःवभाव क आतम-सा ातकारी सदगर क चरण म जाओ | जीवन को धनय बनाओ | 8 सदगर की सवा िकय िबना शा का अधयन करना मम साधक क िलय समय बरबाद करन क बराबर ह | 9 िजसको सदगर ा हए ह ऐस िशय क िलय इस िव म कछ भी अा य नही ह | सदगर िशय को िमली हई परमातमा की अम य भट ह | अर नहीhellipनही व तो िशय क सम साकार रप म कट हए परमातमा ःवय ह | 10 सदगर क साथ एक ण िकया हआ सतसग लाख वष क तप स अननत गना ौ ह | आख क िनमषमाऽ म सदगर की अमतवष ि िशय क जनम-जनम क पाप को जला सकती ह | 11 सदगर जसा मपणर कपाल िहतिचनतक िव भर म दसरा कोई नही ह | 12 बाढ़ क समय याऽी यिद तफानी नदी को िबना नाव क पार कर सक तो साधक भी िबना सदगर क अपन जीवन क आिखरी लआय को िस कर सकता ह | यानी य दोन बात स भव ह |

अतः यार साधक मनमखी साधना की िज करना छोड़ दो | गरमखी साधना करन म ही सार ह | 13 सदगर क चरणकमल का आौय लन स िजस आननद का अनभव होता ह उसक आग िऽलोकी का साा य त छ ह | 14 आतम-सा ातकार क मागर म सबस महान शऽ अहभाव का नाश करन क िलए सदगर की आ ा का पालन अमोघ श ह | 15 रसोई सीखन क िलय कोई िसखानवाला चािहय िव ान और गिणत सीखन क िलय

अधयापक चािहय तो कया िव ा सदगर क िबना ही सीख लोग 16 सदगरकपा की स पि जसा दसरा कोई खजाना िव भर म नही | 17 सदगर की आ ा का उ लघन करना यह अपनी क खोदन क बराबर ह | 18 सदगर क कायर को शका की ि स दखना महापातक ह | 19 गरभि व गरसवा - य साधनारपी नौका की दो पतवार ह | उनकी मदद स िशय ससारसागर को पार कर सकता ह | 20 सदगर की कसौटी करना असभव ह | एक िववकाननद ही दसर िववकाननद को पहचान सकत ह | ब को जानन क िलय दसर ब की आवयकता रहती ह | एक रामतीथर का रहःय दसर रामतीथर ही पा सकत ह |

अतः सदगर की कसौटी करन की च ा छोड़कर उनको पिरपणर पर परमातमा मानो |

तभी जीवन म वाःतिवक लाभ होगा | 21 गरभि योग का आौय लकर आप अपनी खोई हई िद यता को पनः ा करो सख-दःख जनम-मतय आिद सब न स पार हो जाओ | 22 गरभि योग मान गर की सवा क ारा मन और िवकार पर िनयऽण एव पनः सःकरण | 23 िशय अपन गर क चरणकमल म णाम करता ह | उन पर ौ फल की वषार करक उनकी ःतित करता ह ldquoह परम प य पिवऽ गरदव मझ सव च सख ा हआ ह | म िन ा स जनम-मतय की पर परा स म हआ ह | म िनिवरक प समािध का श सख भोग रहा ह | जगत क िकसी भी कोन म म म ता स िवचरण कर सकता ह | सब पर मरी सम ि ह | मन ाकत मन का तयाग िकया ह | मन सब सक प एव रिच-अरिच का तयाग िकया ह | अब म अख ड शाित म िवौाित पा रहा ह hellip आननदमय हो रहा ह | म इस पणर अवःथा का वणरन नही कर पाता | ह प य गरदव म आवाक बन गया ह | इस दःतर भवसागर को पार करन म आपन

मझ सहायता की ह | अब तक मझ कवल अपन शरीर म ही स पणर िव ास था | मन िविभनन योिनय म अस य जनम िलय | ऐसी सव च िनभरय अवःथा मझ कौन स पिवऽ कम क कारण ा हई ह यह म नही जानता | सचमच यह एक दलरभ भा य ह |

यह एक महान उतक लाभ ह | अब म आननद स नाचता ह | मर सब दःख न हो गय | मर सब मनोरथ पणर हए ह |

मर कायर स पनन हए ह | मन सब वािछत वःतए ा की ह | मरी इ छा पिरपणर हई ह | आप मर स च माता-िपता हो | मरी व रमान िःथित म म दसर क सम िकस कार कट कर सक सवरऽ सख और आननद का अननत सागर मझ लहराता हआ िदख रहा ह | मर अतःच िजसस खल गय वह महावाकय lsquoत वमिसrsquo ह | उपिनषद एव वदानतसऽ को भी धनयवाद | िजनह न िन गर का एव उपिनषद क महावाकय का रप धारण िकया ह | ऐस ौी यासजी को णाम ौी शकराचायर को णाम सासािरक मनय क िसर पर गर क चरणामत का एक िबनद भी िगर तो भी उसक ःब दःख का नाश होता ह | यिद एक िन परष को व पहनाय जाय तो सार िव को व पहनान एव भोजन करवान क बराबर ह कय िक िन परष सचराचर िव म या ह | सबम व ही ह |rdquo

ॐhellip ॐ hellip ॐ hellip

ःवामी िशवानद जी

ौी राम-विश सवाद ौी विश जी कहत ह ldquoह रघकलभषण ौी राम अनथर ःवरप िजतन सासािरक पदाथर ह व सब जल म तरग क समान िविवध रप धारण करक चमतकार उतपनन करत ह अथारत ई छाए उतपनन करक जीव को मोह म फसात ह | परत जस सभी तरग जल ःवरप ही ह उसी कार सभी पदाथर वःततः न र ःवभाव वाल ह |

बालक की क पना स आकाश म य और िपशाच िदखन लगत ह परनत बि मान मनय क िलए उन य और िपशाच का कोई अथर नही | इसी कार अ ानी क िच म यह जगत सतय हो ऐसा लगता ह जबिक हमार जस ािनय क िलय यह जगत कछ भी नही | यह समम िव पतथर पर बनी हई पतिलय की सना की तरह रपालोक तथा अतर-बा िवषय स शनय ह | इसम सतयता कसी परनत अ ािनय को यह िव सतय लगता ह |rdquo विश जी बोल ldquoौी राम जगत को सतय ःवरप म जानना यह ाित ह मढ़ता ह | उस िमथया अथारत कि पत समझना यही उिचत समझ ह | ह राघव तव ा अहता आिद सब िवम-िवलास शात िशवःवरप श ःवरप ही ह | इसिलय मझ तो क अितिर और कछ भी नही िदखता | आकाश म जस जगल नही वस ही म जगत नही ह | ह राम ार ध वश ा कम स िजस परष की च ा कठपतली की तरह ई छाशनय और याकलतारिहत होती ह वह शानत मनवाला परष जीवनम मिन ह | ऐस जीवनम ानी को इस

जगत का जीवन बास की तरह बाहर-भीतर स शनय रसहीन और वासना-रिहत लगता ह | इस य पच म िजस रिच नही दय म िचनमाऽ अ य ही अ छा लगता ह ऐस परष न

भीतर तथा बाहर शािनत ा कर ली ह और इस भवसागर स पार हो गया ह | रघनदन श व ा कहत ह िक मन का ई छारिहत होना यही समािध ह कय िक ई छाओ का तयाग करन स मन को जसी शािनत िमलती ह ऐसी शािनत सकड़ उपदश स भी नही िमलती | ई छा की उतपि स जसा दःख ा होता ह ऐसा दःख तो नरक म भी नही | ई छाओ की शािनत

स जसा सख होता ह ऐसा सख ःवगर तो कया लोक म भी नही होता | अतः समःत शा तपःया यम और िनयम का िनचोड़ यही ह िक ई छामाऽ दःखदायी ह और ई छा का शमन मो ह | ाणी क दय म जसी-जसी और िजतनी-िजतनी ई छाय उतपनन होती ह उतना ही दख स वह

ड़रता रहता ह | िववक-िवचार ारा ई छाय जस-जस शानत होती जाती ह वस-वस दखरपी छत की बीमारी िमटती जाती ह |

आसि क कारण सासािरक िवषय की ई छाय य - य गहनीभत होती जाती ह तय -तय

दःख की िवषली तरग बढ़ती जाती ह | अपन परषाथर क बल स इस ई छारपी यािध का उपचार यिद नही िकया जाय तो इस यािध स छटन क िलय अनय कोई औषिध नही ह ऐसा म ढ़तापवरक

मानता ह | एक साथ सभी ई छाओ का स पणर तयाग ना हो सक तो थोड़ी-थोड़ी ई छाओ का धीर-धीर तयाग

करना चािहय परत रहना चािहय ई छा क तयाग म रत कय िक सनमागर का पिथक दखी नही होता | जो नराधम अपनी वासना और अहकार को ीण करन का य नही करता वह िदन -िदन अपन

को रावण की तरह अधर कऐ म ढ़कल रहा ह | ई छा ही दख की जनमदाऽी इस ससाररपी बल का बीज ह | यिद इस बीज को आतम ानरपी अि न स ठ क-ठ क जला िदया तो पनः यह अकिरत नही होता | रघकलभषण राम ई छामाऽ ससार ह और ई छाओ का अभाव ही िनवारण ह | अतः अनक कार की माथाप ची म ना पड़कर कवल ऐसा य करना चािहय िक ई छा उतपनन ना हो | अपनी बि स ई छा का िवनाश करन को जो ततपर नही ऐस अभाग को शा और गर का उपदश

भी कया करगा जस अपनी जनमभमी जगल म िहरणी की मतय िनि त ह उसी कार अनकिवध दख का िवःतार कारनवाल ई छारपी िवषय-िवकार स य इस जगत म मनय की मतय िनि त ह | यिद मानव ई छाओ क कारण ब च -सा मढ़ ना बन तो उस आतम ान क िलय अ प य ही करना पड़ | इसिलय सभी कार स ई छाओ को शानत करना चािहय | ई छा क शमन स परम पद की ाि होती ह | ई छारिहत हो जाना यही िनवारण ह और ई छाय

होना ही बधन ह | अतः यथाशि ई छा को जीतना चािहय | भला इतना करन म कया किठनाई ह जनम जरा यािध और मतयरपी कटीली झािड़य और खर क व - समह की जड़ भी ई छा ही ह

| अतः शमरपी अि न स अदर-ही-अदर बीज को जला ड़ालना चािहय| जहा ई छाओ का अभाव ह

वहा मि िनि त ह |

िववक वरा य आिद साधन स ई छा का सवरथा िवनाश करना चािहय | ई छा का सबध जहा-जहा ह वहा-वहा पाप प य दखरािशया और ल बी पीड़ाओ स य बधन को हािज़र ही समझो | परष

की आतिरक ई छा य - य शानत होती जाती ह तय -तय मो क िलय उसका क याणकारक

साधन बढ़ता जाता ह | िववकहीन ई छा को पोसना उस पणर करना यह तो ससाररपी िवष व को पानी स सीचन क समान ह |rdquo

- ौीयोगविश महारामायण

आतमबल का आवाहन कया आप अपन-आपको दबरल मानत हो लघतामथी म उलझ कर पिरिःतिथय स िपस रह हो

अपना जीवन दीन-हीन बना बठ हो hellipतो अपन भीतर सष आतमबल को जगाओ | शरीर चाह ी का हो चाह परष का कित क साा य म जो जीत ह व सब ी ह और कित क बनधन स पार अपन ःवरप की पहचान िजनह न कर ली ह अपन मन की गलामी की बिड़या तोड़कर िजनह न फ क दी ह व परष ह | ी या परष शरीर एव मानयताए होती ह | तम तो तन-मन स पार िनमरल आतमा हो | जागोhellipउठोhellipअपन भीतर सोय हय िन यबल को जगाओ | सवरदश सवरकाल म सव म

आतमबल को िवकिसत करो | आतमा म अथाह सामथयर ह | अपन को दीन-हीन मान बठ तो िव म ऐसी कोई स ा नही जो त ह ऊपर उठा सक | अपन आतमःवरप म िति त हो गय तो िऽलोकी म ऐसी कोई हःती नही जो त ह दबा सक | भौितक जगत म वाप की शि ईलकशोिनक शि िव त की शि गरतवाकषरण की शि बड़ी मानी जाती ह लिकन आतमबल उन सब शि य का सचालक बल ह | आतमबल क सािननधय म आकर पग ार ध को पर िमल जात ह दव की दीनता पलायन हो जाती ह ितकल पिरिःतिथया अनकल हो जाती ह | आतमबल सवर िरि -िसि य का िपता ह |

आतमबल कस जगाय हररोज़ तःकाल ज दी उठकर सय दय स पवर ःनानािद स िनवत हो जाओ | ःव छ पिवऽ ःथान

म आसन िबछाकर पवारिभमख होकर प ासन या सखासन म बठ जाओ | शानत और सनन वि

धारण करो | मन म ढ भावना करो िक म कित-िनिमरत इस शरीर क सब अभाव को पार करक सब

मिलनताओ-दबरलताओ स िप ड़ छड़ाकर आतमा की मिहमा म जागकर ही रहगा |

आख आधी खली आधी बद रखो | अब फ़फ़ड़ म खब ास भरो और भावना करो की ास क साथ

म सयर का िद य ओज भीतर भर रहा ह | ास को यथाशि अनदर िटकाय रखो | िफ़र lsquoॐhelliprsquo का ल बा उ चारण करत हए ास को धीर-धीर छोड़त जाओ | ास क खाली होन क बाद तरत ास ना लो | यथाशि िबना ास रहो और भीतर ही भीतर lsquoहिर ॐhelliprsquo lsquoहिर ॐhelliprsquo का मानिसक

जाप करो | िफ़र स फ़फ़ड़ म ास भरो | पव रीित स ास यथाशि अनदर िटकाकर बाद म धीर-धीर छोड़त हए lsquoॐhelliprsquo का गजन करो | दस-पिह िमनट ऐस ाणायाम सिहत उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo की धविन करक शानत हो जाओ | सब

यास छोड़ दो | वि य को आकाश की ओर फ़लन दो | आकाश क अनदर पथवी ह | पथवी पर अनक दश अनक समि एव अनक लोग ह | उनम स एक

आपका शरीर आसन पर बठा हआ ह | इस पर य को आप मानिसक आख स भावना स दखत

रहो | आप शरीर नही हो बि क अनक शरीर दश सागर पथवी मह न ऽ सयर चनि एव पर ा ड़ क

ा हो सा ी हो | इस सा ी भाव म जाग जाओ | थोड़ी दर क बाद िफ़र स ाणायाम सिहत lsquoॐhelliprsquo का जाप करो और शानत होकर अपन िवचार को दखत रहो | इस अवःथा म ढ़ िन य करो िक lsquoम जसा चहता ह वसा होकर रहगा |rsquo िवषयसख स ा धन-

दौलत इतयािद की इ छा न करो कय िक िन यबल या आतमबलरपी हाथी क पदिच म और सभी क पदिच समािव हो ही जायग | आतमानदरपी सयर क उदय होन क बाद िम टी क तल क दीय क ाकाश रपी शि सखाभास की गलामी कौन कर

िकसी भी भावना को साकार करन क िलय दय को करद ड़ाल ऐसी िन यातमक बिल वि होनी आवशयक ह | अनतःकरण क गहर-स-गहर दश म चोट कर ऐसा ाण भरक िन बल का आवाहन करो | सीना तानकर खड़ हो जाओ अपन मन की दीन-हीन दखद मानयताओ को कचल

ड़ालन क िलय | सदा ःमरण रह की इधर-उधर भटकती वि य क साथ त हारी शि भी िबखरती रहती ह | अतः वि य को बहकाओ नही | तमाम वि य को एकिऽत करक साधनाकाल म आतमिचनतन म लगाओ और यवहारकाल म जो कायर करत हो उसम लगाओ | द िच होकर हरक कायर करो | अपन ःवभाव म स आवश को सवरथा िनमरल कर दो | आवश म आकर कोई िनणरय मत लो कोई िबया मत करो | सदा शानत वि धारण करन का अ यास करो | िवचारशील एव सनन रहो | ःवय अचल रहकर सागर की तरह सब वि य की तरग को अपन

भीतर समालो | जीवमाऽ को अपना ःवरप समझो | सबस ःनह रखो | िदल को यापक रखो | सकिच ता का िनवारण करत रहो | ख ड़ातमक वि का सवरथा तयाग करो | िजनको ानी महापरष का सतसग और अधयातमिव ा का लाभ िमल जाता ह उसक जीवन स

दःख िवदा होन लगत ह | ॐ आननद आतमिन ा म जाग हए महापरष क सतसग एव सतसािहतय स जीवन को भि और वदात स प

एव पलिकत करो | कछ ही िदन क इस सघन योग क बाद अनभव होन लगगा िक भतकाल क

नकारतमक ःवभाव सशयातमक-हािनकारक क पनाओ न जीवन को कचल ड़ाला था िवषला कर िदया था | अब िन यबल क चमतकार का पता चला | अततरम म आिवरभत िद य खज़ाना अब

िमला | ार ध की बिड़या अब टटन लगी | ठ क ह न करोग ना िह मत पढ़कर रख मत दना इस पिःतका को | जीवन म इसको बार-बार पढ़त रहो | एक िदन म यह पणर ना होगा | बार-बार अ यास करो | त हार िलय यह एक ही पिःतका काफ़ी ह | अनय कचराप टी ना पड़ोग तो चलगा | शाबाश वीर शाबाश

  • परसतावना
  • जीवन रसायन
  • गर भकति एक अमोघ साधना
  • शरी राम-वशिषठ सवाद
  • आतमबल का आवाहन
  • आतमबल कस जगाय
Page 6: जीवन रसायन - HariOmGroup · ‘जीवन रसायन’ का यह िदय कटोरा आत्मरस के िपपासुओं हाथ

मत करो | 14) िजस ण आप सासािरक पदाथ म सख की खोज करना छोड़ दग और ःवाधीन हो जायग अपन अनदर की वाःतिवकता का अनभव करग उसी ण आपको ई र क पास जाना नही पड़गा | ई र ःवय आपक पास आयग | यही दवी िवधान ह | 15) बोधी यिद आपको शाप द और आप समतव म िःथर रहो कछ न बोलो तो उसका शाप आशीवारद म बदल जायगा | 16) जब हम ई र स िवमख होत ह तब हम कोई मागर नही िदखता और घोर दःख सहना पड़ता ह | जब हम ई र म तनमय होत ह तब यो य उपाय यो य वित यो य वाह अपन-आप हमार दय म उठन लगता ह | 17) जब तक मनय िचनताओ स उि न रहता ह इ छा एव वासना का भत उस बठन नही दता तब तक बि का चमतकार कट नही होता | जजीर स जकड़ी हई बि िहलडल नही सकती | िचनताए इ छाए और वासनाए शात होन स ःवतऽ वायमडल का अिवभारव होता ह | उसम बि को िवकिसत होन का अवकाश िमलता ह | पचभौितक बनधन कट जात ह और श आतमा अपन पणर काश म चमकन लगता ह | 18) ओ सज़ा क भय स भयभीत होन वाल अपराधी नयायधीश जब तरी सज़ा का हकम िलखन क िलय कलम लकर ततपर हो उस समय यिद एक पल भर भी त परमाननद म डब जाय तो नयायधीश अपना िनणरय भल िबना नही रह सकता | िफ़र उसकी कलम स वही िलखा जायगा जो परमातमा क साथ तरी नतन िःथित क अनकल होगा | 19) पिवऽता और स चाई िव ास और भलाई स भरा हआ मनय उननित का झ डा हाथ म लकर जब आग बढ़ता ह तब िकसकी मजाल िक बीच म खड़ा रह यिद आपक िदल म पिवऽता स चाई और िव ास ह तो आपकी ि लोह क पद को भी चीर सकगी | आपक िवचार की ठोकर स पहाड़-क-पहाड़ भी चकनाचर हो सक ग | ओ जगत क बादशाह आग स हट जाओ | यह िदल का बादशाह पधार रहा ह | 20) यिद आप ससार क लोभन एव धमिकय स न िहल तो ससार को अवय िहला दग | इसम जो सनदह करता ह वह मदमित ह मखर ह |

21) वदानत का यह िस ात ह िक हम ब नही ह बि क िनतय म ह | इतना ही नही lsquoब हrsquo यह सोचना भी अिन कारी ह म ह | य ही आपन सोचा िक lsquoम ब हhellip

दबरल हhellip असहाय हhelliprsquo तय ही अपना दभार य शर हआ समझो | आपन अपन पर म एक जजीर और बाध दी | अतः सदा म होन का िवचार करो और मि का अनभव करो | 22) राःत चलत जब िकसी िति त यि को दखो चाह वह इ लड़ का सवारधीश हो चाह अमिरका का lsquoिसड़टrsquo हो रस का सवसवार हो चाह चीन का lsquoिड़कटटरrsquo हो- तब अपन मन म िकसी कार की ईयार या भय क िवचार मत आन दो | उनकी शाही नज़र को अपनी ही नज़र समझकर मज़ा लटो िक lsquoम ही वह ह |rsquo जब आप ऐसा अनभव करन की च ा करग तब आपका अनभव ही िस कर दगा िक सब एक ही ह | 23) यिद हमारा मन ईयार- ष स रिहत िब कल श हो तो जगत की कोई वःत हम नकसान नही पहचा सकती | आनद और शाित स भरपर ऐस महातमाओ क पास बोध की मितर जसा मनय भी पानी क समान तरल हो जाता ह | ऐस महातमाओ को दख कर जगल क िसह और भड़ भी मिव ल हो जात ह | साप-िब छ भी अपना द ःवभाव भल जात ह | 24) अिव ास और धोख स भरा ससार वाःतव म सदाचारी और सतयिन साधक का कछ िबगाड़ नही सकता | 25) lsquoस पणर िव मरा शरीर हrsquo ऐसा जो कह सकता ह वही आवागमन क चककर स म ह | वह

तो अननत ह | िफ़र कहा स आयगा और कहा जायगा सारा ा ड़ उसी म ह | 26) िकसी भी सग को मन म लाकर हषर-शोक क वशीभत नही होना | lsquoम अजर हhellip अमर हhellip मरा जनम नहीhellip मरी मतय नहीhellip म िनिलर आतमा हhelliprsquo यह भाव ढ़ता स दय म धारण करक जीवन जीयो | इसी भाव का िनरनतर सवन करो | इसीम सदा त लीन रहो | 27) बा सदभ क बार म सोचकर अपनी मानिसक शाित को भग कभी न होन दो | 28) जब इिनिया िवषय की ओर जान क िलय जबरदःती करन लग तब उनह लाल आख

िदखाकर चप कर दो | जो आतमानद क आःवादन की इ छा स आतमिचतन म लगा रह वही स चा धीर ह |

29) िकसी भी चीज़ को ई र स अिधक म यवान मत समझो | 30) यिद हम दहािभमान को तयागकर सा ात ई र को अपन शरीर म कायर करन द तो भगवान

ब या जीसस बाईःट हो जाना इतना सरल ह िजतना िनधरन पाल (Poor Paul) होना | 31) मन को वश करन का उपाय मन को अपना नौकर समझकर ःवय को उसका भ मानो | हम अपन नौकर मन की उप ा करग तो कछ ही िदन म वह हमार वश म हो जायगा | मन क

चचल भाव को ना दखकर अपन शानत ःवरप की ओर धयान दग तो कछ ही िदन म मन न

होन लगगा | इस कार साधक अपन आनदःवरप म म न हो सकता ह | 32) समम ससार क ततव ान िव ान गिणत का य और कला आपकी आतमा म स िनकलत ह

और िनकलत रहग | 33) ओ खदा को खोजनवाल तमन अपनी खोजबीन म खदा को ल कर िदया ह | य रपी तरग म अनत सामथयररपी समि को छपा िदया ह | 34) परमातमा की शािनत को भग करन का सामथयर भला िकसम ह यिद आप सचमच

परमातम-शािनत म िःथत हो जाओ तो समम ससार उलटा होकर टग जाय िफ़र भी आपकी शािनत

भग नही हो सकती | 35) महातमा वही ह जो िच को ड़ावाड़ोल करनवाल सग आय िफ़र भी िच को वश म रख बोध

और शोक को िव न होन द | 36) वित यिद आतमःवरप म लीन होती ह तो उस सतसग ःवाधयाय या अनय िकसी भी काम क िलय बाहर नही लाना चिहय | 37) स ढ़ अचल सक प शि क आग मसीबत इस कार भागती ह जस आधी-तफ़ान स बादल

िबखर जात ह | 38) सषि (गहरी नीद) आपको बलात अनभव कराती ह िक जामत का जगत चाह िकतना ही यारा और सदर लगता हो पर उस भल िबना शािनत नही िमलती | सषि म बलात िवःमरण हो उसकी सतयता भल जाय तो छः घट िनिा की शािनत िमल | जामत म उसकी सतयता का अभाव

लगन लग तो परम शािनत को ा ा परष बन जाय | िनिा रोज़ाना सीख दती ह िक यह ठोस

जगत जो आपक िच को िमत कर रहा ह वह समय की धारा म सरकता जा रहा ह | घबराओ

नही िचिनतत मत हो तम बात म िच को िमत मत करो | सब कछ ःव न म सरकता जा रहा ह | जगत की सतयता क म को भगा दो | ओ शि मान आतमा अपन अतरतम को िनहार ॐ का गजन कर दबरल िवचार एव िचताओ को कचल ड़ाल दबरल एव त छ िवचार तथा जगत को सतय मानन क कारण तन बहत-बहत

सहन िकया ह | अब उसका अत कर द | 39) ान क किठनमागर पर चलत व आपक सामन जब भारी क एव दख आय तब आप उस

सख समझो कय िक इस मागर म क एव दख ही िनतयानद ा करन म िनिम बनत ह | अतः उन क दख और आघात स िकसी भी कार साहसहीन मत बनो िनराश मत बनो | सदव आग

बढ़त रहो | जब तक अपन सतयःवरप को यथाथर रप स न जान लो तब तक रको नही | 40) ःवपनावःथा म आप शर को दखत ह और ड़रत ह िक वह आपको खा जायगा | परत आप

िजसको दखत ह वह शर नही आप ःवय ह | शर आपकी क पना क अितिर और कछ नही | इस

कार जामतावःथा म भी आपका घोर-स-घोर शऽ भी ःवय आप ही ह दसरा कोई नही | थकतव

अलगाव क िवचार को अपन दय स दर हटा दो | आपस िभनन कोई िमऽ या शऽ होना कवल

ःव न-म ह | 41) अशभ का िवरोध मत करो | सदा शात रहो | जो कछ सामन आय उसका ःवागत करो चाह

आपकी इ छा की धारा स िवपरीत भी हो | तब आप दखग िक तय बराई भलाई म बदल

जायगी | 42) रािऽ म िनिाधीन होन स पहल िबःतर पर सीध सखपवरक बठ जाओ | आख बद करो | नाक

स ास लकर फ़फ़ड़ को भरपर भर दो | िफ़र उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo का लबा उ चारण करो | िफ़र स

गहरा ःवास लकर lsquoॐhelliprsquo का लबा उ चारण करो | इस कार दस िमनट तक करो | कछ ही िदन

क िनयिमत योग क बाद इसक चमतकार का अनभव होगा | रािऽ की नीद साधना म पिरणत हो जायगी | िदल-िदमाग म शाित एव आनद की वषार होगी | आपकी लौिकक िनिा योगिनिा म बदल

जयगी | 43) हट जाओ ओ सक प और इ छाओ हट जाओ तम ससार की णभगर शसा एव धन-

स पि क साथ स बध रखती हो | शरीर चाह कसी भी दशा म रह उसक साथ मरा कोई सरोकार नही | सब शरीर मर ही ह | 44) िकसी भी तरह समय िबतान क िलय मज़दर की भाित काम मत करो | आनद क िलय

उपयोगी कसरत समझकर सख बीड़ा या मनोरजक खल समझकर एक कलीन राजकमार की भाित काम करो | दब हए कचल हए िदल स कभी कोई काम हाथ म मत लो | 45) समम ससार को जो अपना शरीर समझत ह तयक यि को जो अपना आतमःवरप

समझत ह ऐस ानी िकसस असनन ह ग उनक िलय िव प कहा रहा 46) ससार की तमाम वःतऐ सखद ह या भयानक वाःतव म तो त हारी फ़लता और आनद क

िलय ही कित न बनाई ह | उनस ड़रन स कया लाभ त हारी नादानी ही त ह चककर म ड़ालती ह

| अनयथा त ह नीचा िदखान वाला कोई नही | पकका िन य रखो िक यह जगत त हार िकसी शऽ न नही बनाया | त हार ही आतमदव का यह सब िवलास ह | 47) महातमा व ह िजनकी िवशाल सहानभित एव िजनका मातवत दय सब पािपय को दीन-

दिखय को म स अपनी गोद म ःथान दता ह | 48) यह िनयम ह िक भयभीत ाणी ही दसर को भयभीत करता ह | भयरिहत हए िबना अिभननता आ नही सकती अिभननता क िबना वासनाओ का अत स भव नही ह और िनवारसिनकता क िबना िनवरता समता मिदता आिद िद य गण कट नही होत | जो बल दसर

की दबरलता को दर ना कर सक वह वाःतव म बल नही | 49) धयान म बठन स पहल अपना समम मानिसक िचतन तथा बाहर की तमाम स पि ई र क

या सदगर क चरण म अपरण करक शात हो जाओ | इसस आपको कोई हािन नही होगी | ई र आपकी स पि दह ाण और मन की र ा करग | ई र अपरण बि स कभी हािन नही होती |

इतना ही नही दह ाण म नवजीवन का िसचन होता ह | इसस आप शाित व आनद का ोत

बनकर जीवन को साथरक कर सक ग | आपकी और पर िव की वाःतिवक उननित होगी | 50) कित सननिच एव उ ोगी कायरकतार को हर कार स सहायता करती ह | 51) सननमख रहना यह मोितय का खज़ाना दन स भी उ म ह | 52) चाह करोड़ सयर का लय हो जाय चाह अस य चनिमा िपघलकर न हो जाय परत ानी महापरष अटल एव अचल रहत ह | 53) भौितक पदाथ को सतय समझना उनम आसि रखना दख-ददर व िचताओ को आमऽण

दन क समान ह | अतः बा नाम-रप पर अपनी शि व समय को न करना यह बड़ी गलती ह |

54) जब आपन यि तव िवषयक िवचार का सवरथा तयाग कर िदया जाता ह तब उसक समान

अनय कोई सख नही उसक समान ौ अनय कोई अवःथा नही | 55) जो लोग आपको सबस अिधक हािन पहचान का यास करत ह उन पर कपापणर होकर ममय िचतन कर | व आपक ही आतमःवरप ह | 56) ससार म कवल एक ही रोग ह | सतय जगिनमथया - इस वदाितक िनयम का भग ही सवर यािधय का मल ह | वह कभी एक दख का रप लता ह तो कभी दसर दख का | इन सवर यािधय

की एक ही दवा ह अपन वाःतिवक ःवरप तव म जाग जाना | 57) ब धयानःथ बठ थ | पहाड़ पर स एक िशलाखड़ लढ़कता हआ आ रहा था | ब पर िगर इसस पहल ही वह एक दसर िशलाखड़ क साथ टकराया | भयकर आवाज़ क साथ उसक दो भाग

हो गय | उसन अपना मागर बदल िलया | धयानःथ ब की दोन तरफ़ स दोन भाग गज़र गय |

ब बच गय | कवल एक छोटा सा ककड़ उनक पर म लगा | पर स थोड़ा खन बहा | ब ःवःथता स उठ खड़ हए और िशय स कहा ldquoभी ओ स यक समािध का यह वलत माण ह | म यिद धयान-समािध म ना होता तो िशलाखड़ न मझ कचल िदया होता | लिकन ऐसा ना होकर उसक दो भाग हो गय | उसम स िसफ़र एक छोटा-सा ककड़ ऊछलकर मर पर म लगा | यह जो छोटा-सा ज़ म हआ ह वह धयान की पणरता म रही हई कछ नयनता का पिरणाम ह | यिद धयान पणर होता तो इतना भी ना लगता |rdquo 58) कहा ह वह तलवार जो मझ मार सक कहा ह वह श जो मझ घायल कर सक कहा ह वह

िवपि जो मरी सननता को िबगाड़ सक कहा ह वह दख जो मर सख म िव न ड़ाल सक मर सब भय भाग गय | सब सशय कट गय | मरा िवजय-ाि का िदन आ पहचा ह | कोई ससािरक

तरग मर िनछल िच को आदोिलत नही कर सकती | इन तरग स मझ ना कोई लाभ ह ना हािन

ह | मझ शऽ स ष नही िमऽ स राग नही | मझ मौत का भय नही नाश का ड़र नही जीन की वासना नही सख की इ छा नही और दख स ष नही कय िक यह सब मन म रहता ह और मन

िमथया क पना ह | 59) स पणर ःवाःथय की अजीब यि रोज सबह तलसी क पाच प चबाकर एक लास बासी पानी पी लो | िफ़र जरा घम लो दौड़ लो या कमर म ही पज क बल थोड़ा कद लो | नहा-धोकर ःवःथ शानत होकर एकात म बठ जाओ | दस बारह गहर-गहर ास लो | आग-पीछ क कतर य

स िनि त हो जाओ | आरो यता आनद सख शािनत दान करनवाली िवचारधारा को िच म बहन दो | िबमारी क िवचार को हटाकर इस कार की भावना पर मन को ढ़ता स एकाम करो िक

मर अदर आरो यता व आनद का अनत ोत वािहत हो रहा हhellip मर अतराल म िद यामत का महासागर लहरा रहा ह | म अनभव कर रहा ह िक समम सख आरो यता शि मर भीतर ह | मर मन म अननत शि और सामथयर ह | म ःवःथ ह | पणर सनन ह | मर अदर-बाहर सवरऽ

परमातमा का काश फ़ला हआ ह | म िव प रिहत ह | सब नद स म ह | ःवग य सख मर अदर ह | मरा दय परमातमा का ग दश ह | िफ़र रोग-शोक वहा कस रह सकत ह म दवी ओज क मड़ल म िव हो चका ह | वह मर ःवाःथय का दश ह | म तज का पज ह | आरो यता का अवतार ह | याद रखो आपक अतःकरण म ःवाःथय सख आनद और शािनत ई रीय वरदान क रप म िव मान ह | अपन अतःकरण की आवाज़ सनकर िनशक जीवन यतीत करो | मन म स कि पत

रोग क िवचार को िनकाल दो | तयक िवचार भाव श द और कायर को ई रीय शि स पिरपणर रखो | ॐकार का सतत गजन करो | सबह-शाम उपरो िवचार का िचतन-मनन करन स िवशष लाभ होगा | ॐ आनदhellip ॐ शाितhellip

पणर ःवःथhellip पणर सननhellip 60) भय कवल अ ान की छाया ह दोष की काया ह मनय को धमरमागर स िगरान वाली आसरी माया ह | 61) याद रखो चाह समम ससार क तमाम पऽकार िननदक एकिऽत होकर आपक िवरध

आलोचन कर िफ़र भी आपका कछ िबगाड़ नही सकत | ह अमर आतमा ःवःथ रहो | 62) लोग ायः िजनस घणा करत ह ऐस िनधरन रोगी इतयािद को सा ात ई र समझकर उनकी सवा करना यह अननय भि एव आतम ान का वाःतिवक ःवरप ह | 63) रोज ातः काल उठत ही ॐकार का गान करो | ऐसी भावना स िच को सराबोर कर दो िक

lsquoम शरीर नही ह | सब ाणी कीट पतग गनधवर म मरा ही आतमा िवलास कर रहा ह | अर उनक

रप म म ही िवलास कर रहा ह | rsquo भया हर रोज ऐसा अ यास करन स यह िस ात दय म िःथर हो जायगा | 64) मी आग-पीछ का िचनतन नही करता | वह न तो िकसी आशका स भयभीत होता ह और न

व रमान पिरिःथित म माःपद म ीित क िसवाय अनय कही आराम पाता ह |

65) जस बालक ितिब ब क आौयभत दपरण की ओर धयान न दकर ितिब ब क साथ खलता ह जस पामर लोग यह समम ःथल पच क आौयभत आकाश की ओर धयान न दकर कवल

ःथल पच की ओर धयान दत ह वस ही नाम-रप क भ ःथल ि क लोग अपन दभार य क

कारण समम ससार क आौय सि चदाननद परमातमा का धयान न करक ससार क पीछ पागल

होकर भटकत रहत ह | 66) इस स पणर जगत को पानी क बलबल की तरह णभगर जानकर तम आतमा म िःथर हो जाओ | तम अ त ि वाल को शोक और मोह कस 67) एक आदमी आपको दजरन कहकर पिरि छनन करता ह तो दसरा आपको स जन कहकर भी पिरि छनन ही करता ह | कोई आपकी ःतित करक फला दता ह तो कोई िननदा करक िसकड़ा दता ह | य दोन आपको पिरि छनन बनात ह | भा यवान तो वह परष ह जो तमाम बनधन क िवर

खड़ा होकर अपन दवतव की अपन ई रतव की घोषणा करता ह अपन आतमःवरप का अनभव

करता ह | जो परष ई र क साथ अपनी अभदता पहचान सकता ह और अपन इदरिगदर क लोग क

सम समम ससार क सम िनडर होकर ई रतव का िनरपण कर सकता ह उस परष को ई र मानन क िलय सारा ससार बाधय हो जाता ह | परी सि उस अवय परमातमा मानती ह | 68) यह ःथल भौितक पदाथर इिनिय की ाित क िसवाय और कछ नही ह | जो नाम व रप पर भरोसा रखता ह उस सफलता नही िमलती | सआम िस ात अथारत सतय आतम-ततव पर िनभरर रहना ही सफलता की कजी ह | उस महण करो उसका मनन करो और यवहार करो | िफर नाम-

रप आपको खोजत िफरग | 69) सख का रहःय यह ह आप य - य पदाथ को खोजत-िफरत हो तय -तय उनको खोत

जात हो | आप िजतन कामना स पर होत हो उतन आवयकताओ स भी पर हो जात हो और पदाथर भी आपका पीछा करत हए आत ह | 70) आननद स ही सबकी उतपि आननद म ही सबकी िःथित एव आननद म ही सबकी लीनता दखन स आननद की पणरता का अनभव होता ह | 71) हम बोलना चहत ह तभी श दो चारण होता ह बोलना न चाह तो नही होता | हम दखना चाह तभी बाहर का य िदखता ह नऽ बद कर ल तो नही िदखता | हम जानना चाह तभी पदाथर का ान होता ह जानना नही चाह तो ान नही होता | अतः जो कोई पदाथर दखन सनन या जानन म

आता ह उसको बािधत करक बािधत करनवाली ानरपी बि की वि को भी बािधत कर दो | उसक बाद जो शष रह वह ाता ह | ाततव धमररिहत श ःवरप ाता ही िनतय सि चदाननद

ह | िनरतर ऐसा िववक करत हए ान व यरिहत कवल िचनमय िनतय िव ानाननदघनरप

म िःथर रहो | 72) यिद आप सवागपणर जीवन का आननद लना चाहत हो तो कल की िचनता छोड़ो | अपन चार

ओर जीवन क बीज बोओ | भिवय म सनहर ःवपन साकार होत दखन की आदत बनाओ | सदा क

िलय मन म यह बात पककी बठा दो िक आपका आनवाला कल अतयनत काशमय आननदमय

एव मधर होगा | कल आप अपन को आज स भी अिधक भा यवान पायग | आपका मन

सजरनातमक शि स भर जायगा | जीवन ऐ यरपणर हो जायगा | आपम इतनी शि ह िक िव न

आपस भयभीत होकर भाग खड़ ह ग | ऐसी िवचारधारा स िनि त रप स क याण होगा | आपक

सशय िमट जायग | 73) ओ मानव त ही अपनी चतना स सब वःतओ को आकषरक बना दता ह | अपनी यार भरी ि उन पर डालता ह तब तरी ही चमक उन पर चढ़ जाती ह औरhellipिफर त ही उनक यार म फ़स जाता ह | 74) मन िविचऽ एव अटपट माग ारा ऐस ततव की खोज की जो मझ परमातमा तक पहचा सक | लिकन म िजस-िजस नय मागर पर चला उन सब माग स पता चला िक म परमातमा स दर चला गया | िफर मन बि म ा एव िव ा स परमातमा की खोज की िफर भी परमातमा स अलग रहा | मनथालय एव िव ालय न मर िवचार म उ टी गड़बड़ कर दी | म थककर बठ गया | िनःत ध हो गया | सयोगवश अपन भीतर ही झाका धयान िकया तो उस अनत रि स मझ सवरःव िमला िजसकी खोज म बाहर कर रहा था | मरा आतमःवरप सवरऽ या हो रहा ह | 75) जस सामानय मनय को पतथर गाय भस ःवाभािवक रीित स ि गोचर होत ह वस ही ानी को िनजाननद का ःवाभािवक अनभव होता ह | 76) वदानत का यह अनभव ह िक नीच नराधम िपशाच शऽ कोई ह ही नही | पिवऽ ःवरप ही सवर रप म हर समय शोभायमान ह | अपन-आपका कोई अिन नही करता |

मर िसवा और कछ ह ही नही तो मरा अिन करन वाला कौन ह मझ अपन-आपस भय कसा 77) यह चराचर सि रपी त तब तक भासता ह जब तक उस दखनवाला मन बठा ह |

मन शात होत ही त की गध तक नही रहती |

78) िजस कार एक धाग म उ म मधयम और किन फल िपरोय हए ह उसी कार मर आतमःवरप म उ म मधयम और किन शरीर िपरोय हए ह | जस फल की गणव ा का भाव धाग पर नही पड़ता वस ही शरीर की गणव ा का भाव मरी सवर यापकता नही पड़ता | जस सब फल क िवनाश स धाग को कोई हािन नही वस शरीर क िवनाश स मझ सवरगत आतमा को कोई हािन नही होती | 79) म िनमरल िन ल अननत श अजर अमर ह | म असतयःवरप दह नही | िस परष इसीको lsquo ानrsquo कहत ह | 80) म भी नही और मझस अलग अनय भी कछ नही | सा ात आननद स पिरपणर कवल िनरनतर और सवरऽ एक ही ह | उ ग छोड़कर कवल यही उपासना सतत करत रहो | 81) जब आप जान लग िक दसर का िहत अपना ही िहत करन क बराबर ह और दसर का अिहत करना अपना ही अिहत करन क बराबर ह तब आपको धमर क ःवरप का सा तकार हो जायगा | 82) आप आतम-ित ा दलबनदी और ईयार को सदा क िलए छोड़ दो | पथवी माता की तरह सहनशील हो जाओ | ससार आपक कदम म नयोछावर होन का इतज़ार कर रहा ह | 83) म िनगरण िनिबय िनतय म और अ यत ह | म असतयःवरप दह नही ह | िस परष इसीको lsquo ानrsquo कहत ह | 84) जो दसर का सहारा खोजता ह वह सतयःवरप ई र की सवा नही कर सकता | 85) सतयःवरप महापरष का म सख-दःख म समान रहता ह सब अवःथाओ म हमार अनकल रहता ह | दय का एकमाऽ िवौामःथल वह म ह | व ावःथा उस आतमरस को सखा नही सकती | समय बदल जान स वह बदलता नही | कोई िवरला भा यवान ही ऐस िद य म का भाजन बन सकता ह | 86) शोक और मोह का कारण ह ािणय म िविभनन भाव का अधयारोप करना | मनय जब एक को सख दनवाला यारा स द समझता ह और दसर को दःख दनवाला शऽ समझकर उसस ष करता ह तब उसक दय म शोक और मोह का उदय होना अिनवायर

ह | वह जब सवर ािणय म एक अख ड स ा का अनभव करन लगगा ािणमाऽ को भ का पऽ समझकर उस आतमभाव स यार करगा तब उस साधक क दय म शोक और मोह का नामोिनशान नही रह जायगा | वह सदा सनन रहगा | ससार म उसक िलय न ही कोई शऽ रहगा और न ही कोई िमऽ | उसको कोई कलश नही पहचायगा | उसक सामन िवषधर नाग भी अपना ःवभाव भल जायगा | 87) िजसको अपन ाण की परवाह नही मतय का नाम सनकर िवचिलत न होकर उसका ःवागत करन क िलए जो सदा ततपर ह उसक िलए ससार म कोई कायर असाधय नही | उस िकसी बा श की जररत नही साहस ही उसका श ह | उस श स वह अनयाय का प लनवाल को परािजत कर दता ह िफर भी उनक िलए बर िवचार का सवन नही करता | 88) िचनता ही आननद व उ लास का िवधवस करनवाली रा सी ह | 89) कभी-कभी मधयरािऽ को जाग जाओ | उस समय इिनिया अपन िवषय क ित चचल नही रहती | बिहमरख ःफरण की गित मनद होती ह | इस अवःथा का लाभ लकर इिनियातीत अपन िचदाकाश ःवरप का अनभव करो | जगत शरीर व इिनिय क अभाव म भी अपन अख ड अिःततव को जानो | 90) य म ीित नही रहना ही असली वरा य ह | 91) रोग हम दबाना चाहता ह | उसस हमार िवचार भी मनद हो जात ह | अतः रोग की िनवित करनी चिहए | लिकन जो िवचारवान परष ह वह कवल रोगिनवित क पीछ ही नही लग जाता | वह तो यह िनगरानी रखता ह िक भयकर दःख क समय भी अपना िवचार छट तो नही गया ऐसा परष lsquoहाय-हायrsquo करक ाण नही तयागता कय िक वह जानता ह िक रोग उसका दास ह | रोग कसा भी भय िदखाय लिकन िवचारवान परष इसस भािवत नही होता | 92) िजस साधक क पास धारणा की ढ़ता एव उ य की पिवऽता य दो गण ह ग वह अवय िवजता होगा | इन दो शा स ससि जत साधक समःत िव न-बाधाओ का सामना करक आिखर म िवजयपताका फहरायगा | 93) जब तक हमार मन म इस बात का पकका िन य नही होगा िक सि शभ ह तब तक मन एकाम नही होगा | जब तक हम समझत रहग िक सि िबगड़ी हई ह तब तक

मन सशक ि स चार ओर दौड़ता रहगा | सवरऽ मगलमय ि रखन स मन अपन-आप शात होन लगगा | 94) आसन िःथर करन क िलए सक प कर िक जस पथवी को धारण करत हए भी शषजी िब कल अचल रहत ह वस म भी अचल रहगा | म शरीर और ाण का ा ह | 95) lsquoससार िमथया हrsquo - यह मद ानी की धारणा ह | lsquoससार ःव नवत हrsquo - यह मधयम ानी की धारणा ह | lsquoससार का अतयनत अभाव ह ससार की उतपि कभी हई ही नहीrsquo -

यह उ म ानी की धारणा ह | 96) आप यिद भि मागर म ह तो सारी सि भगवान की ह इसिलए िकसीकी भी िननदा करना ठ क नही | आप यिद ानमागर म ह तो यह सि अपना ही ःवरप ह | आप अपनी ही िननदा कस कर सकत ह इस कार द नो माग म परिननदा का अवकाश ही नही ह | 97) य म ा का भान एव ा म य का भान हो रहा ह | इस गड़बड़ का नाम ही अिववक या अ ान ह | ा को ा तथा य को य समझना ही िववक या ान ह | 98) आसन व ाण िःथर होन स शरीर म िव त पदा होती ह | शरीर क ारा जब भी िबया की जाती ह तब वह िव त बाहर िनकल जाती ह | इस िव त को शरीर म रोक लन स शरीर िनरोगी बन जाता ह | 99) ःव न की सि अ पकालीन और िविचऽ होती ह | मनय जब जागता ह तब जानता ह िक म पलग पर सोया ह | मझ ःव न आया | ःव न म पदाथर दश काल िबया इतयािद परी सि का सजरन हआ | लिकन मर िसवाय और कछ भी न था | ःव न की सि झठ थी | इसी कार ततव ानी परष अ ानरपी िनिा स ानरपी जामत अवःथा को ा हए ह | व कहत ह िक एक क िसवा अनय कछ ह ही नही | जस ःव न स जागन क बाद हम ःव न की सि िमथया लगती ह वस ही ानवान को यह जगत िमथया लगता ह | 100) शारीिरक क पड़ तब ऐसी भावना हो जाय िक lsquoयह क मर यार भ की ओर स हhelliprsquo तो वह क तप का फल दता ह | 101) चलत-चलत पर म छाल पड़ गय ह भख याकल कर रही हो बि िवचार

करन म िशिथल हो गई हो िकसी पड़ क नीच पड़ ह जीवन अस भव हो रहा हो मतय का आगमन हो रहा हो तब भी अनदर स वही िनभरय धविन उठ lsquoसोऽहमhellipसोऽहमhellipमझ भय नहीhellipमरी मतय नहीhellipमझ भख नहीhellip यास नहीhellip कित की कोई भी यथा मझ न नही कर सकतीhellipम वही हhellipवही हhelliprsquo 102) िजनक आग िय-अिय अनकल-ितकल सख-दःख और भत-भिवय एक समान ह ऐस ानी आतमव ा महापरष ही स च धनवान ह | 103) दःख म दःखी और सख म सखी होन वाल लोह जस होत ह | दःख म सखी रहन वाल सोन जस होत ह | सख-दःख म समान रहन वाल र जस होत ह परनत जो सख-दःख की भावना स पर रहत ह व ही स च साट ह | 104) ःव न स जाग कर जस ःव न को भल जात ह वस जामत स जागकर थोड़ी दर क

िलए जामत को भल जाओ | रोज ातः काल म पनिह िमनट इस कार ससार को भल जान की आदत डालन स आतमा का अनसधान हो सकगा | इस योग स सहजावःथा ा होगी | 105) तयाग और म स यथाथर ान होता ह | दःखी ाणी म तयाग व म िवचार स आत ह

| सखी ाणी म तयाग व म सवा स आत ह कय िक जो ःवय दःखी ह वह सवा नही कर सकता पर िवचार कर सकता ह | जो सखी ह वह सख म आस होन क कारण उसम िवचार का उदय नही हो सकता लिकन वह सवा कर सकता ह | 106) लोग की पजा व णाम स जसी सननता होती ह वसी ही सननता जब मार पड़

तब भी होती हो तो ही मन य िभ ानन महण करन का स चा अिधकारी माना जाता ह | 107) हरक साधक को िब कल नय अनभव की िदशा म आग बढ़ना ह | इसक िलय

ानी महातमा की अतयनत आवयकता होती ह | िजसको स ची िज ासा हो उस ऐस

महातमा िमल ही जात ह | ढ़ िज ासा स िशय को गर क पास जान की इ छा होती ह | यो य

िज ास को समथर गर ःवय दशरन दत ह | 108) बीत हए समय को याद न करना भिवय की िचनता न करना और व रमान म ा

सख-दःखािद म सम रहना य जीवनम परष क ल ण ह | 109) जब बि एव दय एक हो जात ह तब सारा जीवन साधना बन जाता ह |

110) बि मान परष ससार की िचनता नही करत लिकन अपनी मि क बार म सोचत ह |

मि का िवचार ही तयागी दानी सवापरायण बनाता ह | मो की इ छा स सब सदगण आ जात ह

| ससार की इ छा स सब दगरण आ जात ह | 111) पिरिःथित िजतनी किठन होती ह वातावरण िजतना पीड़ाकारक होता ह उसस

गजरन वाला उतना ही बलवान बन जाता ह | अतः बा क और िचनताओ का ःवागत करो | ऐसी पिरिःथित म भी वदानत को आचरण म लाओ | जब आप वदानती जीवन यतीत करग तब दखग

िक समःत वातावरण और पिरिःथितया आपक वश म हो रही ह आपक िलय उपयोगी िस हो रही ह | 112) हरक पदाथर पर स अपन मोह को हटा लो और एक सतय पर एक तथय पर अपन

ई र पर समम धयान को किनित करो | तरनत आपको आतम-सा ातकार होगा | 113) जस बड़ होत-होत बचपन क खलकद छोड़ दत हो वस ही ससार क खलकद छोड़कर आतमाननद का उपभोग करना चािहय | जस अनन व जल का सवन करत हो वस ही आतम-

िचनतन का िनरनतर सवन करना चािहय | भोजन ठ क स होता ह तो ति की डकार आती ह वस

ही यथाथर आतमिचनतन होत ही आतमानभव की डकार आयगी आतमाननद म मःत ह ग |

आतम ान क िसवा शाित का कोई उपाय नही | 114) आतम ानी क हकम स सयर काशता ह | उनक िलय इनि पानी बरसाता ह | उनही क

िलय पवन दत बनकर गमनागमन करता ह | उनही क आग समि रत म अपना िसर रगड़ता ह | 115) यिद आप अपन आतमःवरप को परमातमा समझो और अनभव करो तो आपक सब

िवचार व मनोरथ सफल ह ग उसी ण पणर ह ग | 116) राजा-महाराजा दवी-दवता वद-पराण आिद जो कछ ह व आतमदश क सक पमाऽ

ह | 117) जो लोग ितकलता को अपनात ह ई र उनक स मख रहत ह | ई र िजनह अपन

स दर रखना चाहत ह उनह अनकल पिरिःथितया दत ह | िजसको सब वःतए अनकल एव पिवऽ

सब घटनाए लाभकारी सब िदन शभ सब मनय दवता क रप म िदखत ह वही परष ततवदश ह | 118) समता क िवचार स िच ज दी वश म होता ह हठ स नही |

119) ऐस लोग स स बनध रखो िक िजसस आपकी सहनशि बढ़ समझ की शि बढ़

जीवन म आन वाल सख-दःख की तरग का आपक भीतर शमन करन की ताकत आय समता बढ़

जीवन तजःवी बन | 120) लोग बोलत ह िक धयान व आतमिचनतन क िलए हम फरसत नही िमलती | लिकन

भल मनय जब नीद आती ह तब सब महतवपणर काम भी छोड़कर सो जाना पड़ता ह िक नही

जस नीद को महतव दत हो वस ही चौबीस घनट म स कछ समय धयान व आतमिचनतन म भी िबताओ | तभी जीवन साथरक होगा | अनयथा कछ भी हाथ नही लगगा | 121) भल जाओ िक तम मनय हो अमक जाित हो अमक उ हो अमक िड़मीवाल हो अमक धनधवाल हो | तम िनगरण िनराकार सा ीरप हो ऐसा ढ़ िन य करो | इसीम तमाम

कार की साधनाए िबयाए योगािद समािव हो जात ह | आप सवर यापक अख ड चतनय हो | सार ान का यह मल ह | 122) दोष तभी िदखता जब हमार लोचन म क अभावरप पीिलया रोग स मःत होत ह | 123) साधक यिद अ यास क मागर पर उसी कार आग बढ़ता जाय िजस कार ार भ

म इस मागर पर चलन क िलए उतसाहपवरक कदम रखा था तो आयरपी सयर अःत होन स पहल

जीवनरपी िदन रहत ही अवय सोऽहम िसि क ःथान तक पहच जाय | 124) लोग ज दी स उननित कय नही करत कय िक बाहर क अिभाय एव िवचारधाराओ का बहत बड़ा बोझ िहमालय की तरह उनकी पीठ पर लदा हआ ह | 125) अपन ित होन वाल अनयाय को सहन करत हए अनयायकतार को यिद मा कर िदया जाय तो ष म म पिरणत हो जाता ह | 126) साधना की शरआत ौ ा स होती ह लिकन समाि ान स होनी चािहय | ान मान

ःवयसिहत सवर ःवरप ह ऐसा अपरो अनभव | 127) अपन शरीर क रोम-रोम म स ॐ का उ चारण करो | पहल धीम ःवर म ार भ

करो | शर म धविन गल स िनकलगी िफर छाती स िफर नािभ स और अनत म रीढ़ की ह डी क

आिखरी छोर स िनकलगी | तब िव त क धकक स सष ना नाड़ी तरनत खलगी | सब कीटाणसिहत

तमाम रोग भाग खड़ ह ग | िनभरयता िह मत और आननद का फ वारा छटगा | हर रोज ातःकाल

म ःनानािद करक सय दय क समय िकसी एक िनयत ःथान म आसन पर पवारिभमख बठकर

कम-स-कम आधा घनटा करक तो दखो | 128) आप जगत क भ बनो अनयथा जगत आप पर भतव जमा लगा | ान क

मतािबक जीवन बनाओ अनयथा जीवन क मतािबक ान हो जायगा | िफर यग की याऽा स भी दःख का अनत नही आयगा | 129) वाःतिवक िश ण का ारभ तो तभी होता ह जब मनय सब कार की सहायताओ स िवमख होकर अपन भीतर क अननत ॐोत की तरफ अमसर होता ह | 130) य पच की िनवित क िलए अनतःकरण को आननद म सरोबार रखन क िलए

कोई भी कायर करत समय िवचार करो म कौन ह और कायर कौन कर रहा ह भीतर स जवाब

िमलगा मन और शरीर कायर करत ह | म सा ीःवरप ह | ऐसा करन स कतारपन का अह

िपघलगा सख-दःख क आघात मनद ह ग | 131) राग- ष की िनवित का कया उपाय ह उपाय यही ह िक सार जगत-पच को मनोरा य समझो | िननदा-ःतित स राग- ष स पच म सतयता ढ़ होती ह | 132) जब कोई खनी हाथ आपकी गरदन पकड़ ल कोई श धारी आपको कतल करन क

िलए ततपर हो जाय तब यिद आप उसक िलए सननता स तयार रह दय म िकसी कार का भय

या िवषाद उतपनन न हो तो समझना िक आपन राग- ष पर िवजय ा कर िलया ह | जब आपकी ि पड़त ही िसहािद िहसक जीव की िहसावित गायब हो जाय तब समझना िक अब राग- ष का अभाव हआ ह | 133) आतमा क िसवाय अनय कछ भी नही ह - ऐसी समझ रखना ही आतमिन ा ह | 134) आप ःव न ा ह और यह जगत आपका ही ःव न ह | बस िजस ण यह ान हो जायगा उसी ण आप म हो जाएग | 135) िदन क चौबीस घ ट को साधनामय बनान क िलय िनक मा होकर यथर िवचार करत हए मन को बार-बार सावधान करक आतमिचतन म लगाओ | ससार म सल न मन को वहा स उठा कर आतमा म लगात रहो | 136) एक बार सागर की एक बड़ी तरग एक बलबल की िता पर हसन लगी | बलबल न

कहा ओ तरग म तो छोटा ह िफर भी बहत सखी ह | कछ ही दर म मरी दह टट जायगी िबखर

जायगी | म जल क साथ जल हो जाऊगा | वामन िमटकर िवराट बन जाऊगा | मरी मि बहत

नजदीक ह | मझ आपकी िःथित पर दया आती ह | आप इतनी बड़ी हई हो | आपका छटकारा ज दी नही होगा | आप भाग-भागकर सामनवाली च टान स टकराओगी | अनक छोटी-छोटी तरग

म िवभ हो जाओगी | उन अस य तरग म स अननत-अननत बलबल क रप म पिरवितरत हो जाओगी | य सब बलबल फटग तब आपका छटकारा होगा | बड़ पन का गवर कय करती हो जगत की उपलि धय का अिभमान करक परमातमा स दर मत जाओ | बलबल की तरह सरल

रहकर परमातमा क साथ एकता का अनभव करो | 137) जब आप ईयार ष िछिानवषण दोषारोपण घणा और िननदा क िवचार िकसीक

ित भजत ह तब साथ-ही-साथ वस ही िवचार को आमिऽत भी करत ह | जब आप अपन भाई की आख म ितनका भ कत ह तब अपनी आख म भी आप ताड़ भ क रह ह | 138) शरीर अनक ह आतमा एक ह | वह आतमा-परमातमा मझस अलग नही | म ही कतार सा ी व नयायधीश ह | म ही ककर श आलोचक ह और म ही मधर शसक ह | मर िलय तयक

यि ःवतऽ व ःव छनद ह | बनधन पिरि छननता और दोष मरी ि म आत ही नही | म म

हपरम म ह और अनय लोग भी ःवतऽ ह | ई र म ही ह | आप भी वही हो | 139) िजस कार बालक अपनी परछा म बताल की क पना कर भय पाता ह उसी कार जीव अपन ही सक प स भयभीत होता ह और क पाता ह | 140) कभी-कभी ऐसी भावना करो िक आपक सामन चतनय का एक महासागर लहरा रहा ह | उसक िकनार खड़ रह कर आप आनद स उस दख रह ह | आपका शरीर सागर की सतह पर घमन गया ह | आपक दखत ही दखत वह सागर म डब गया | इस समःत पिरिःथित को दखन वाल आप सा ी आतमा शष रहत ह | इस कार सा ी रप म अपना अनभव करो | 141) यिद हम चाहत ह िक भगवान हमार सब अपराध माफ कर तो इसक िलए सगम साधना यही ह िक हम भी अपन सबिधत सब लोग क सब अपराध माफ कर द |

कभी िकसी क दोष या अपराध पर ि न डाल कय िक वाःतव म सब रप म हमारा यारा ई दव ही बीड़ा कर रहा ह |

142) पणर पिवऽता का अथर ह बा भाव स भािवत न होना | सासािरक मनोहरता एव घणा स पर रहना राजी-नाराजगी स अिवचल िकसी म भद न दखना और आतमानभव क ारा आकषरण व तयाग स अिल रहना | यही वदानत का उपिनषद का

रहःय ह | 143) ई र सा ातकार तभी होगा जब ससार की ि स तीत होन वाल बड़-स-बड़ विरय को भी मा करन का आपका ःवभाव बन जायगा | 144) चाल यवहार म स एकदम उपराम होकर दो िमनट क िलए िवराम लो |

सोचो िक lsquo म कौन ह सद -गम शरीर को लगती ह | भख- यास ाण को लगती ह |

अनकलता-ितकलता मन को लगती ह | शभ-अशभ एव पाप-प य का िनणरय बि करती ह | म न शरीर ह न ाण ह न मन ह न बि ह | म तो ह इन सबको स ा दन वाला इन सबस नयारा िनलप आतमा |rsquo 145) जो मनय िनरतर lsquoम म हhelliprsquo ऐसी भावना करता ह वह म ही ह और lsquoम ब हhelliprsquo ऐसी भावना करनवाला ब ही ह | 146) आप िनभरय ह िनभरय ह िनभरय ह | भय ही मतय ह | भय ही पाप ह | भय ही नकर ह | भय ही अधमर ह | भय ही यिभचार ह | जगत म िजतन असत या िमथया भाव ह व सब इस भयरपी शतान स पदा हए ह | 147) परिहत क िलए थोड़ा काम करन स भी भीतर की शि या जागत होती ह |

दसर क क याण क िवचारमाऽ स दय म एक िसह क समान बल आ जाता ह | 148) हम यिद िनभरय ह ग तो शर को भी जीतकर उस पाल सक ग | यिद डरग तो क ा भी हम फ़ाड़ खायगा | 149) तयक िबया तयक यवहार तयक ाणी ःवरप िदख यही सहज समािध ह | 150) जब किठनाईया आय तब ऐसा मानना िक मझ म सहन शि बढ़ान क िलए ई र न य सयोग भज ह | किठन सयोग म िह मत रहगी तो सयोग बदलन लगग |

िवषय म राग- ष रह गया होगा तो वह िवषय कसौटी क रप म आग आयग और उनस पार होना पड़गा | 151) ततव ि स न तो आपन जनम िलया न कभी लग | आप तो अनत ह सवर यापी ह िनतयम अजर-अमर अिवनाशी ह | जनम-मतय का ही गलत ह महा-

मखरतापणर ह | जहा जनम ही नही हआ वहा मतय हो ही कस सकती ह 152) आप ही इस जगत क ई र हो | आपको कौन दबरल बना सकता ह जगत म आप ही एकमाऽ स ा हो | आपको िकसका भय खड़ हो जाओ | म हो जाओ | ठ क स समझ लो िक जो कोई िवचार या श द आपको दबरल बनाता ह वही एकमाऽ अशभ ह | मनय को दबरल व भयभीत करनवाला जो कछ इस ससार म ह वह पाप ह | 153) आप अपना कायर या कतर य करो लिकन न उसक िलए कोई िचनता रह न ही कोई

इ छा | अपन कायर म सख का अनभव करो कय िक आपका कायर ःवय सख या िवौाम ह | आपका कायर आतमानभव का ही दसरा नाम ह | कायर म लग रहो | कायर आपको आतमानभव कराता ह |

िकसी अनय हत स कायर न करो | ःवतऽ वि स अपन कायर पर डट जाओ | अपन को ःवतऽ

समझो िकसीक कदी नही | 154) यिद आप सतय क मागर स नही हटत तो शि का वाह आपक साथ ह समय आपक

साथ ह ऽ आपक साथ ह | लोग को उनक भतकाल की मिहमा पर फलन दो भिवयकाल की स पणर मिहमा आपक हाथ म ह | 155) जब आप िद य म क साथ चा डाल म चोर म पापी म अ यागत म और सबम भ क दशरन करग तब आप भगवान ौी कण क मपाऽ बन जायग | 156) आचायर गौड़पाद न ःप कहा आप सब आपस म भल ही लड़त रह लिकन मर साथ नही लड़ सक ग | आप सब लोग मर पट म ह | म आतमःवरप स सवर या ह | 157) मनय सभी ािणय म ौ ह सब दवताओ स भी ौ ह | दवताओ को भी िफर स

धरती पर आना पड़गा और मनय शरीर ा करक मि ा करनी होगी | 158) िनि नतता क दो सऽ जो कायर करना जररी ह उस परा कर दो | जो िबनजररी ह

उस भल जाओ | 159) सवा-म-तयाग ही मनय क िवकास का मल मऽ ह | अगर यह मऽ आपको जच

जाय तो सभी क ित सदभाव रखो और शरीर स िकसी-न-िकसी यि को िबना िकसी मतलब क

सहयोग दत रहो | यह नही िक जब मरी बात मानग तब म सवा करगा | अगर बनधक मरी बात

नही मानत तो म सवा नही करगा |

भाई तब तो तम सवा नही कर पाओग | तब तो तम अपनी बात मनवा कर अपन अह की पजा ही

करोग | 160) जस ःव न िमथया ह वस ही यह जामत अवःथा भी ःव नवत ही ह िमथया ह | हरक

को अपन इस ःव न स जागना ह | सदगर बार-बार जगा रह ह लिकन जाग कर वापस सो न जाए ऐसा परषाथर तो हम ही करना होगा | 161) सदा सननमख रहो | मख को कभी मिलन मत करो | िन य कर लो िक आपक

िलय शोक न इस जगत म जनम नही िलया ह | आननदःवरप म िचनता का ःथान ही कहा ह 162) समम ा ड एक शरीर ह | समम ससार एक शरीर ह | जब तक आप तयक क

साथ एकता का अनभव करत रहग तब तक सब पिरिःथितया और आस-पास की चीज़ हवा और समि की लहर भी आपक प म रहगी | 163) आपको जो कछ शरीर स बि स या आतमा स कमजोर बनाय उसको िवष की तरह

ततकाल तयाग दो | वह कभी सतय नही हो सकता | सतय तो बलद होता ह पावन होता ह

ानःवरप होता ह | सतय वह ह जो शि द | 164) साधना म हमारी अिभरिच होनी चािहय साधना की तीो माग होनी चािहय | 165) दसर क दोष की चचार मत करो चाह व िकतन भी बड़ ह | िकसी क दोष की चचार करक आप उसका िकसी भी कार भला नही करत बि क उस आघात पहचात ह और साथ-ही-साथ अपन आपको भी | 166) इस ससार को सतय समझना ही मौत ह | आपका असली ःवरप तो आननदःवरप

आतमा ह | आतमा क िसवा ससार जसी कोई चीज ही नही ह | जस सोया हआ मनय ःव न म अपनी एकता नही जानता अिपत अपन को अनक करक दखता ह वस ही आननदःवरप आतमा जामत ःव न और सषि - इन तीन ःवरप को दखत हए अपनी एकता अि तीयता का अनभव

नही करता | 167) मनोजय का उपाय ह अ यास और वरा य | अ यास मान य पवरक मन को बार-बार परमातम-िचतन म लगाना और वरा य मान मन को ससार क पदाथ की ओर स वापस

लौटाना | 168) िकसी स कछ मत मागो | दन क िलय लोग आपक पीछ-पीछ घमग | मान नही

चाहोग तो मान िमलगा | ःवगर नही चाहोग तो ःवगर क दत आपक िलय िवमान लकर आयग |

उसको भी ःवीकार नही करोग तो ई र आपको अपन दय स लगायग | 169) कभी-कभी उदय या अःत होत हए सयर की ओर चलो | नदी सरोवर या समि क तट

पर अकल घमन जाओ | ऐस ःथान की मलाकात लो जहा शीतल पवन मनद-मनद चल रही हो | वहा परमातमा क साथ एकःवर होन की स भावना क ार खलत ह | 170) आप य -ही इ छा स ऊपर उठत हो तय -ही आपका इि छत पदाथर आपको खोजन

लगता ह | अतः पदाथर स ऊपर उठो | यही िनयम ह | य - य आप इ छक िभ क याचक का भाव धारण करत हो तय -तय आप ठकराय जात हो | 171) कित क तयक पदाथर को दखन क िलय काश जररी ह | इसी कार मन बि

इिनिय को अपन-अपन कायर करन क िलय आतम-काश की आवयकता ह कय िक बाहर का कोई काश मन बि इिनिय ाणािद को चतन करन म समथर नही | 172) जस ःव न ा परष को जागन क बाद ःव न क सख-दःख जनम-मरण पाप-प य

धमर-अधमर आिद ःपशर नही करत कय िक वह सब खद ही ह | खद क िसवाय ःव न म दसरा कछ

था ही नही | वस ही जीवनम ानवान परष को सख-दःख जनम-मरण पाप-प य धमर-अधमर ःपशर नही करत कय िक व सब आतमःवरप ही ह | 173) वही भमा नामक आतम योित क म रह कर भ क रही ह सअर म रह कर घर रही ह गध म रह कर रक रही ह लिकन मखर लोग शरीर पर ही ि रखत ह चतनय ततव पर नही | 174) मनय िजस ण भत-भिवय की िचनता का तयाग कर दता ह दह को सीिमत और उतपि -िवनाशशील जानकर दहािभमान को तयाग दता ह उसी ण वह एक उ चतर अवःथा म पहच जाता ह | िपजर स छटकर गगनिवहार करत हए प ी की तरह मि का अनभव करता ह | 175) समःत भय एव िचनताए आपकी इ छाओ का णाम ह | आपको भय कय लगता ह

कय िक आपको आशका रहती ह िक अमक चीज कही चली न जाय | लोग क हाःय स आप डरत

ह कय िक आपको यश की अिभलाषा ह कीितर म आसि ह | इ छाओ को ितलाजिल द दो | िफर दखो मजा कोई िज मदारी नहीकोई भय नही | 176) दखन म अतयत करप काला-कलटा कबड़ा और तज ःवभाव का मनय भी आपका ही ःवरप ह | आप इस तथय स म नही | िफर घणा कसी कोई लाव यमयी सदरी सि की

शोभा क समान अित िवलासभरी अ सरा भी आपका ही ःवरप ह | िफर आसि िकसकी

आपकी ानिनिया उनको आपस अलग करक िदखाती ह | य इिनिया झठ बोलनवाली ह | उनका कभी िव ास मत करो | अतः सब कछ आप ही हो | 177) मानव क नात हम साधक ह | साधक होन क नात सतय को ःवीकर करना हमारा ःवधमर ह | सतय यही ह िक बल दसर क िलय ह ान अपन िलय ह और िव ास परमातमा स

स बनध जोड़न क िलय ह | 178) अपनी आतमा म डब जाना यह सबस बड़ा परोपकार ह | 179) आप सदव म ह ऐसा िव ास ढ़ करो तो आप िव क उ ारक हो जात हो | आप

यिद वदानत क ःवर क साथ ःवर िमलाकर िन य करो आप कभी शरीर न थ | आप िनतय श

ब आतमा हो तो अिखल ा ड क मो दाता हो जात हो | 180) कपा करक उन ःवाथरमय उपाय और अिभाय को दर फ क दो जो आपको पिरि छनन रखत ह | सब वासनाए राग ह | यि गत या शरीरगत म आसि ह | उस फ क दो | ःवय पिवऽ हो जाओ | आपका शरीर ःवःथ और बि पणरःवरप हो जायगी | 181) यिद ससार क सख व पदाथर ा ह तो आपको कहना चािहय ओ शतान हट जा मर सामन स | तर हाथ स मझ कछ नही चािहय | तब दखो िक आप कस सखी हो जात हो परमातमा-ा िकसी महापरष पर िव ास रखकर अपनी जीवनडोरी िनःशक बन उनक चरण म सदा क िलय रख दो | िनभरयता आपक चरण की दासी बन जायगी | 182) िजसन एक बार ठ क स जान िलया िक जगत िमथया ह और ािनत स इसकी तीित

हो रही ह उसको कभी दःख नही होता | जगत म कभी आसि नही होती | जगत क िमथयातव क

िन य का नाम ही जगत का नाश ह | 183) अपन ःवरप म लीन होन माऽ स आप ससार क साट बन जायग | यह साटपद

कवल इस ससार का ही नही समःत लोक-परलोक का साटपद होगा | 184) ह जनक चाह दवािधदव महादव आकर आपको उपदश द या भगवान िवण आकर उपदश द अथवा ाजी आकर उपदश द लिकन आपको कदािप सख न होगा | जब िवषय का तयाग करोग तभी स ची शाित व आनद ा ह ग |

185) िजस भ न हम मानव जीवन दकर ःवाधीनता दी िक हम जब चाह तब धमारतमा होकर भ होकर जीवनम होकर कतकतय हो सकत ह- उस भ की मिहमा गाओ | गाओ नही तो सनो | सनो भी नही गाओ भी नही तो ःवीकार कर लो | 186) चाह समि क गहर तल म जाना पड़ सा ात मतय का मकाबला करना पड़ अपन

आतमाि क उ य की पितर क िलय अिडग रहो | उठो साहसी बनो शि मान बनो | आपको जो बल व सहायता चािहय वह आपक भीतर ही ह | 187) जब-जब जीवन स बनधी शोक और िचनता घरन लग तब-तब अपन आननदःवरप

का गान करत-करत उस मोह-माया को भगा दो | 188) जब शरीर म कोई पीड़ा या अग म ज म हो तब म आकाशवत आकाशरिहत चतन

ह ऐसा ढ़ िन य करक पीड़ा को भल जाओ | 189) जब दिनया क िकसी चककर म फस जाओ तब म िनलप िनतय म ह ऐसा ढ़

िन य करक उस चककर स िनकल जाओ | 190) जब घर-बार स बनधी कोई किठन समःया याकल कर तब उस मदारी का खल

समझकर ःवय को िनःसग जानकर उस बोझ को ह का कर दो | 191) जब बोध क आवश म आकर कोई अपमानय वचन कह तब अपन शाितमय

ःवरप म िःथर होकर मन म िकसी भी ोभ को पदा न होन दो | 192) उ म अिधकारी िज ास को चािहय िक वह व ा सदगर क पास जाकर ौ ा पवरक महावाकय सन | उसका मनन व िनिदधयासन करक अपन आतमःवरप को जान | जब

आतमःवरप का सा ातकार होता ह तब ही परम िवौािनत िमल सकती ह अनयथा नही | जब तक

व ा महापरष स महावाकय ा न हो तब तक वह मनद अिधकारी ह | वह अपन दयकमल म परमातमा का धयान कर ःमरण कर जप कर | इस धयान-जपािद क साद स उस व ा सदगर

ा ह ग | 193) मन बि िच अहकार छाया की तरह जड़ ह णभगर ह कय िक व उतपनन होत

ह और लीन भी हो जात ह | िजस चतनय की छाया उसम पड़ती ह वह परम चतनय सबका आतमा ह | मन बि िच अहकार का अभाव हो जाता ह लिकन उसका अनभव करनवाल का अभाव

कदािप नही होता |

194) आप अपनी शि को उ चाितउ च िवषय की ओर बहन दो | इसस आपक पास व

बात सोचन का समय ही नही िमलगा िजसस कामकता की गध आती हो | 195) अपराध क अनक नाम ह बालहतया नरहतया मातहतया गौहतया इतयािद |

परनत तयक ाणी म ई र का अनभव न करक आप ई रहतया का सबस बड़ा अपराध करत ह | 196) सवा करन की ःवाधीनता मनयमाऽ को ा ह | अगर वह करना ही न चाह तो अलग बात ह | सवा का अथर ह मन-वाणी-कमर स बराईरिहत हो जाना यह िव की सवा हो गई |

यथाशि भलाई कर दो यह समाज की सवा हो गई | भलाई का फल छोड़ दो यह अपनी सवा हो गई

| भ को अपना मानकर ःमित और म जगा लो यह भ की सवा हो गई | इस कार मनय

अपनी सवा भी कर सकता ह समाज की सवा भी कर सकता ह िव की सवा भी कर सकता ह

और िव र की सवा भी कर सकता ह | 197) आतमा स बाहर मत भटको अपन कनि म िःथर रहो अनयथा िगर पड़ोग | अपन-

आपम पणर िव ास रखो | आतम-कनि पर अचल रहो | िफर कोई भी चीज आपको िवचिलत नही कर सकती | 198) सदा शात िनिवरकार और सम रहो | जगत को खलमाऽ समझो | जगत स भािवत

मत हो | इसस आप हमशा सखी रहोग | िफर कछ बढ़ान की इ छा नही होगी और कछ कम होन स

दःख नही होगा | 199) समथर सदगर क सम सदा फल क भाित िखल हए रहो | इसस उनक अनदर सक प

होगा िक यह तो बहत उतसाही साधक ह सदा सनन रहता ह | उनक सामथयरवान सक प स

आपकी वह किऽम सननता भी वाःतिवक सननता म बदल जायगी | 200) यिद रोग को भी ई र का िदया मानो तो ार ध-भोग भी हो जाता ह और क तप का फल दता ह | इसस ई र-कपा की ाि होती ह | याकल मत हो | क सल और इनजकशन

आधीन मत हो | 201) साधक को चािहय िक अपन लआय को ि म रखकर साधना-पथ पर तीर की तरह

सीधा चला जाय | न इधर दख न उधर | ि यिद इधर-उधर जाती हो तो समझना िक िन ा िःथर नही ह |

202) आपन अपन जीवन म हजार ःव न दख ह ग लिकन व आपक जीवन क अश नही बन जात | इसी कार य जामत जगत क आड बर आपकी आतमा क सम कोई मह व नही रखत | 203) एक आतमा को ही जानो अनय बात को छोड़ो | धीर साधक को चािहय िक वह

सावधान होकर आतमिन ा बढ़ाय अनक श द का िचनतन व भाषण न कर कय िक वह तो कवल

मन-वाणी को पिरौम दनवाला ह असली साधना नही ह | 204) जो परष जन-समह स ऐस डर जस साप स डरता ह स मान स ऐस डर जस नकर स

डरता ह ि य स ऐस डर जस मद स डरता ह उस परष को दवतागण ा ण मानत ह | 205) जस अपन शरीर क अग पर बोध नही आता वस शऽ िमऽ व अपनी दह म एक ही आतमा को दखनवाल िववकी परष को कदािप बोध नही आता | 206) मन तो शरीर को ई रापरण कर िदया ह | अब उसकी भख- यास स मझ कया

समिपरत वःत म आस होना महा पाप ह | 207) आप यिद िद य ि पाना चहत हो तो आपको इिनिय क ऽ का तयाग करना होगा | 208) लयकाल क मघ की गजरना हो समि उमड़ पड बारह सयर तपायमान हो जाय पहाड़ स पहाड़ टकरा कर भयानक आवाज हो तो भी ानी क िन य म त नही भासता कय िक

त ह ही नही | त तो अ ानी को भासता ह | 209) सतय को ःवीकार करन स शाित िमलगी | कछ लोग यो यता क आधार पर शाित

खरीदना चाहत ह | यो यता स शाित नही िमलगी यो यता क सदपयोग स शाित िमलगी | कछ

लोग स पि क आधार पर शाित सरि त रखना चाहत ह | स पि स शाित नही िमलगी स पि

क सदपयोग स शाित िमलगी वस ही िवपि क सदपयोग स शाित िमलगी | 210) त छ हािन-लाभ पर आपका धयान इतना कय रहता ह िजसस अनत आननदःवरप

आतमा पर स धयान हट जाता ह | 211) अपन अनदर ही आननद ा करना य िप किठन ह परनत बा िवषय स आननद

ा करना तो अस भव ही ह |

212) म ससार का काश ह | काश क रप म म ही सब वःतओ म या ह | िनतय इन

िवचार का िचनतन करत रहो | य पिवऽ िवचार आपको परम पिवऽ बना दग | 213) जो वःत कमर स ा होती ह उसक िलय ससार की सहायता तथा भिवय की आशा की आवयकता होती ह परनत जो वःत तयाग स ा होती ह उसक िलय न ससार की सहायता चािहय न भिवय की आशा | 214) आपको जब तक बाहर चोर िदखता ह तब तक जरर भीतर चोर ह | जब दसर लोग

स िभनन अयो य खराब सधारन यो य िदखत ह तब तक ओ सधार का बीड़ा उठान वाल त अपनी िचिकतसा कर | 215) सफल व ही होत ह जो सदव नतमःतक एव सननमख रहत ह | िचनतातर-शोकातर लोग की उननित नही हो सकती | तयक कायर को िह मत व शाित स करो | िफर दखो िक यह

कायर शरीर मन और बि स हआ | म उन सबको स ा दनवाला चतनयःवरप ह | ॐ ॐ का पावन गान करो | 216) िकसी भी पिरिःथित म मन को यिथत न होन दो | आतमा पर िव ास करक

आतमिन बन जाओ | िनभरयता आपकी दासी बन कर रहगी | 217) सतसग स मनय को साधना ा होती ह चाह वह शाित क रप म हो चाह मि क

रप म चाह सवा क रप म हो म क रप म हो चाह तयाग क रप म हो | 218) भला-बरा वही दखता ह िजसक अनदर भला-बरा ह | दसर क शरीर को वही दखता ह

जो खद को शरीर मानता ह | 219) खबरदार आपन यिद अपन शरीर क िलय ऐश-आराम की इ छा की िवलािसता एव इिनिय-सख म अपना समय बरबाद िकया तो आपकी खर नही | ठ क स कायर करत रहन की नीित

अपनाओ | सफलता का पहला िस ात ह कायरिवौामरिहत कायरसा ी भाव स कायर | इस

िस ात को जीवन म चिरताथर करोग तो पता चलगा िक छोटा होना िजतना सरल ह उतना ही बड़ा होना भी सहज ह | 220) भतकाल पर िखनन हए िबना भिवय की िचनता िकय िबना व रमान म कायर करो | यह भाव आपको हर अवःथा म सनन रखगा हम जो कछ ा ह उसका सदपयोग ही अिधक

काश पान का साधन ह |

221) जब आप सफलता की ओर पीठ कर लत हो पिरणाम की िचनता का तयाग कर दत

हो स मख आय हए क र य पर अपनी उ ोगशि एकाम करत हो तब सफलता आपक पीछ-पीछ

आ जाती ह | अतः सफलता आपको खोजगी | 222) वि तब तक एकाम नही होगी जब तक मन म कभी एक आशा रहगी तो कभी दसरी | शात वही हो सकता ह िजस कोई क र य या आवयकता घसीट न रही हो | अतः परम शाित पान

क िलय जीवन की आशा भी तयाग कर मन ाननद म डबो दो | आज स समझ लो िक यह शरीर ह ही नही | कवल ाननद का सागर लहरा रहा ह | 223) िजसकी पककी िन ा ह िक म आतमा हrsquo उसक िलय ऐसी कौन सी मिथ ह जो खल

न सक ऐसी कोई ताकत नही जो उसक िवर जा सक | 224) मर भा य म नही थाई र की मज आजकल सतसग ा नही होताजगत

खराब ह ऐस वचन हमारी कायरता व अनतःकरण की मिलनता क कारण िनकलत ह | अतः नकारातमक ःवभाव और दसर पर दोषारोपण करन की वि स बचो | 225) आप जब भीतरवाल स नाराज होत हो तब जगत आपस नाराज रहता ह | जब आप

भीतर अनतयारमी बन बठ तो जगतरपी पतलीघर म िफर गड़बड़ कसी 226) िजस ण हम ससार क सधारक बन खड़ होत ह उसी ण हम ससार को िबगाड़नवाल बन जात ह | श परमातमा को दखन क बजाय जगत को िबगड़ा हआ दखन की ि बनती ह | सधारक लोग मानत ह िक lsquoभगवान न जो जगत बनाया ह वह िबगड़ा हआ ह और हम उस सधार रह ह |rsquo वाह वाह धनयवाद सधारक अपन िदल को सधारो पहल | सवरऽ िनरजन का दीदार करो | तब आपकी उपिःथित माऽ स आपकी ि माऽ स अर यार आपको छकर बहती हवा माऽ स अननत जीव को शाित िमलगी और अननत सधार होगा | नानक कबीर महावीर ब और लीलाशाह बाप जस महापरष न यही कजी अपनायी थी | 227) वदानत म हमशा कमर का अथर होता ह वाःतिवक आतमा क साथ एक होकर च ा करना अिखल िव क साथ एकःवर हो जाना | उस अि तीय परम ततव क साथ िनःःवाथर सयोग ा करना ही एकमाऽ स चा कमर ह बाकी सब बोझ की गठिरया उठाना ह |

228) अपनी व रमान अवःथा चाह कसी भी हो उसको सव च मानन स ही आपक दय म आतम ान ान का अनायास उदय होन लगगा | आतम-सा ातकार को मील दर की कोई चीज समझकर उसक पीछ दौड़ना नही ह िचिनतत होना नही ह |

िचनता की गठरी उठाकर यिथत होन की जररत नही ह | िजस ण आप िनि नतता म गोता मारोग उसी ण आपका आतमःवरप गट हो जायगा | अर गट कया होगा आप ःवय आतमःवरप हो ही | अनातमा को छोड़ दो तो आतमःवरप तो हो ही | 229) सदा ॐकार का गान करो | जब भय व िचनता क िवचार आय तब िकसी मःत सत-फकीर महातमा क सािननधय का ःमरण करो | जब िननदा-शसा क सग आय तब महापरष क जीवन का अवलोकन करो | 230) िजनको आप भयानक घटनाए एव भयकर आघात समझ बठ हो वाःतव म व आपक ियतम आतमदव की ही करतत ह | समःत भयजनक तथा ाणनाशक घटनाओ क नाम-रप तो िवष क ह लिकन व बनी ह अमत स | 231) मन म यिद भय न हो तो बाहर चाह कसी भी भय की साममी उपिःथत हो जाय आपका कछ िबगाड़ नही सकती | मन म यिद भय होगा तो तरनत बाहर भी भयजनक पिरिःथया न होत हए भी उपिःथत हो जायगी | व क तन म भी भत िदखन लगगा | 232) िकसी भी पिरिःथित म िदखती हई कठोरता व भयानकता स भयभीत नही होना चािहए | क क काल बादल क पीछ पणर काशमय एकरस परम स ा सयर की तरह सदा िव मान ह | 233) आप अपन पर कदािप अिव ास मत करो | इस जगत म आप सब कछ कर सकत हो | अपन को कभी दबरल मत मानो | आपक अनदर तमाम शि या छपी हई ह | 234) यिद कोई मन य आपकी कोई चीज़ को चरा लता ह तो ड़रत कय हो वह मनय

और आप एक ह | िजस चीज़ को वह चराता ह वह चीज़ आपकी और उसकी द न की ह | 235) जो खद क िसवाय दसरा कछ दखता नही सनता नही जानता नही वह अननत ह |

जब तक खद क िसवाय और िकसी वःत का भान होता ह वह वःत स ची लगती ह तब तक आप

सीिमत व शात ह असीम और अनत नही |

236) ससार मझ कया आनद द सकता ह स पणर आनद मर भीतर स आया ह | म ही स पणर आननद ह स पणर मिहमा एव स पणर सख ह | 237) जीवन की समःत आवयकताए जीवन म उपिःथत ह परनत जीवन को जब हम

बा रग म रग दत ह तब जीवन का वाःतिवक रप हम नही जान पात | 238) िननदक की िननदा स म कय मरझाऊ शसक की शसा स म कय फल िननदा स म घटता नही और शसा स म बढ़ता नही | जसा ह वसा ही रहता ह | िफर िननदा-ःतित स

खटक कसी 239) ससार व ससार की समःयाओ म जो सबस अिधक फस हए ह उनही को वदानत की सबस अिधक आवयकता ह | बीमार को ही औषिध की यादा आवयकता ह | कय जी ठ क ह न 240) जगत क पाप व अतयाचार की बात मत करो लिकन अब भी आपको जगत म पाप

िदखता ह इसिलय रोओ | 241) हम यिद जान ल िक जगत म आतमा क िसवाय दसरा कछ ह ही नही और जो कछ

िदखता ह वह ःव नमाऽ ह तो इस जगत क दःख-दािरिय पाप-प य कछ भी हम अशात नही कर सकत | 242) िव ान दाशरिनक व आचाय की धमकी तथा अनमह आलोचना या अनमित

ानी पर कोई भाव नही ड़ाल सकती | 243) ह यि रप अननत आप अपन पर पर खड़ रहन का साहस करो समःत िव का बोझ आप िखलौन की तरह उठा लोग | 244) िसह की गजरना व नरिसह की ललकार तलवार की धार व साप की फफकार तपःवी की धमकी व नयायधीश की फटकारइन सबम आपका ही काश चमक रहा ह | आप इनस

भयभीत कय होत हो उलझन कय महसस करत हो मरी िब ली मझको याऊ वाली बात कय

होन दत हो 245) ससार हमारा िसफ़र िखलोना ही ह और कछ नही | अबोध बालक ही िखलौन स

भयभीत होता ह आसि करता ह िवचारशील यि नही |

246) जब तक अिव ा दर नही होगी तब तक चोरी जआ दार यिभचार कभी बद न

ह ग चाह लाख कोिशश करो | 247) आप हमशा अदर का धयान रखो | पहल हमारा भीतरी पतन होता ह | बा पतन तो इसका पिरणाम माऽ ह | 248) तयाग स हमशा आनद िमलता ह | जब तक आपक पास एक भी चीज़ बाकी ह तब

तक आप उस चीज़ क बधन म बध रहोग | आघात व तयाघात हमशा समान िवरोधी होत ह | 249) िनि तता ही आरो यता की सबस बड़ी दवाई ह | 250) सख अपन िसर पर दख का मकट पहन कर आता ह | जो सख को अपनायगा उस

दख को भी ःवीकार करना पड़गा | 251) म (आतमा) सबका ा ह | मरा ा कोई नही | 252) हजार म स कोई एक परष भीतर स शात िच वाला रहकर बाहर स ससारी जसा यवहार कर सकता ह | 253) सतय क िलए यिद शरीर का तयाग करना पड़ तो कर दना | यही आिखरी ममता ह जो हम तोड़नी होगी | 254) भय िचनता बचनी स ऊपर उठो | आपको ान का अनभव होगा | 255) आपको कोई भी हािन नही पहचा सकता | कवल आपक खयालात ही आपक पीछ पड़ ह | 256) म का अथर ह अपन पड़ोसी तथा सपकर म आनवाल क साथ अपनी वाःतिवक अभदता का अनभव करना | 257) ओ यार अपन खोय हए आतमा को एक बार खोज लो | धरती व आसमान क शासक आप ही हो | 258) सदव सम और सनन रहना ई र की सव पिर भि ह |

259) जब तक िच म ढ़ता न आ जाय िक शा की िविधय का पालन छोड़ दन स भी दय का यथाथर भि भाव न नही होगा तब तक शा की िविधय को पालत रहो |

गर भि एक अमोघ साधना 1 जनम मरण क िवषचब स म होन का कोई मागर नही ह कया सख-दःख हषर-शोक लाभ-

हािन मान-अपमान की थ पड़ स बचन का कोई उपाय नही ह कया

हअवय ह | ह िय आतमन नाशवान पदाथ स अपना मन वािपस लाकर सदगर क

चरणकमल म लगाओ | गरभि योग का आौय लो | गरसवा ऐसा अमोघ साधन ह िजसस

व रमान जीवन आननदमय बनता ह और शा त सख क ार खलत ह |

गर सवत त नर धनय यहा | ितनक नही दःख यहा न वहा || 2 स च सदगर की की हई भि िशय म सासािरक पदाथ क वरा य एव अनासि जगाती ह

परमातमा क ित म क पप महकाती ह | 3 तयक िशय सदगर की सवा करना चाहता ह लिकन अपन ढग स | सदगर चाह उस ढग स

सवा करन को कोई ततपर नही | जो िवरला साधक गर चाह उस ढ़ग स सवा कर सकता ह उस कोई कमी नही रहती |

िन सदगर की सवा स उनकी कपा ा होती ह और उस कपा स न िमल सक ऐसा तीन लोक म कछ भी नही ह | 4 गर िशय का स बनध पिवऽतम स बनध ह | ससार क तमाम बनधन स छड़ाकर वह मि क मागर पर ःथान कराता ह | यह स बनध जीवनपयरनत का स बनध ह | यह बात अपन दय की डायरी म सवणर-अ र स िलख लो | 5 उ ल सयर क काश क अिःततव को मान या न मान िफर भी सयर हमशा काशता ह | चचल मन का मनय मान या न मान लिकन सदगर की परमक याणकारी कपा सदव बरसती ही रहती ह | 6 सदगर की चरणरज म ःनान िकय िबना कवल किठन तप यार करन स या वद का

अधयन करन स वदानत का रहःय कट नही होता आतमानद का अमत नही िमलता | 7 दशरन शा क चाह िकतन मनथ पढ़ो हजार वष तक िहमालय की गफा म तप करो वष तक ाणायाम करो जीवनपयरनत शीषारसन करो समम िव म वास करक याखान दो िफर भी सदगर की कपा क िबना आतम ान नही होता | अतः िनरािभमानी सरल िनजाननद म मःत दयाल ःवभाव क आतम-सा ातकारी सदगर क चरण म जाओ | जीवन को धनय बनाओ | 8 सदगर की सवा िकय िबना शा का अधयन करना मम साधक क िलय समय बरबाद करन क बराबर ह | 9 िजसको सदगर ा हए ह ऐस िशय क िलय इस िव म कछ भी अा य नही ह | सदगर िशय को िमली हई परमातमा की अम य भट ह | अर नहीhellipनही व तो िशय क सम साकार रप म कट हए परमातमा ःवय ह | 10 सदगर क साथ एक ण िकया हआ सतसग लाख वष क तप स अननत गना ौ ह | आख क िनमषमाऽ म सदगर की अमतवष ि िशय क जनम-जनम क पाप को जला सकती ह | 11 सदगर जसा मपणर कपाल िहतिचनतक िव भर म दसरा कोई नही ह | 12 बाढ़ क समय याऽी यिद तफानी नदी को िबना नाव क पार कर सक तो साधक भी िबना सदगर क अपन जीवन क आिखरी लआय को िस कर सकता ह | यानी य दोन बात स भव ह |

अतः यार साधक मनमखी साधना की िज करना छोड़ दो | गरमखी साधना करन म ही सार ह | 13 सदगर क चरणकमल का आौय लन स िजस आननद का अनभव होता ह उसक आग िऽलोकी का साा य त छ ह | 14 आतम-सा ातकार क मागर म सबस महान शऽ अहभाव का नाश करन क िलए सदगर की आ ा का पालन अमोघ श ह | 15 रसोई सीखन क िलय कोई िसखानवाला चािहय िव ान और गिणत सीखन क िलय

अधयापक चािहय तो कया िव ा सदगर क िबना ही सीख लोग 16 सदगरकपा की स पि जसा दसरा कोई खजाना िव भर म नही | 17 सदगर की आ ा का उ लघन करना यह अपनी क खोदन क बराबर ह | 18 सदगर क कायर को शका की ि स दखना महापातक ह | 19 गरभि व गरसवा - य साधनारपी नौका की दो पतवार ह | उनकी मदद स िशय ससारसागर को पार कर सकता ह | 20 सदगर की कसौटी करना असभव ह | एक िववकाननद ही दसर िववकाननद को पहचान सकत ह | ब को जानन क िलय दसर ब की आवयकता रहती ह | एक रामतीथर का रहःय दसर रामतीथर ही पा सकत ह |

अतः सदगर की कसौटी करन की च ा छोड़कर उनको पिरपणर पर परमातमा मानो |

तभी जीवन म वाःतिवक लाभ होगा | 21 गरभि योग का आौय लकर आप अपनी खोई हई िद यता को पनः ा करो सख-दःख जनम-मतय आिद सब न स पार हो जाओ | 22 गरभि योग मान गर की सवा क ारा मन और िवकार पर िनयऽण एव पनः सःकरण | 23 िशय अपन गर क चरणकमल म णाम करता ह | उन पर ौ फल की वषार करक उनकी ःतित करता ह ldquoह परम प य पिवऽ गरदव मझ सव च सख ा हआ ह | म िन ा स जनम-मतय की पर परा स म हआ ह | म िनिवरक प समािध का श सख भोग रहा ह | जगत क िकसी भी कोन म म म ता स िवचरण कर सकता ह | सब पर मरी सम ि ह | मन ाकत मन का तयाग िकया ह | मन सब सक प एव रिच-अरिच का तयाग िकया ह | अब म अख ड शाित म िवौाित पा रहा ह hellip आननदमय हो रहा ह | म इस पणर अवःथा का वणरन नही कर पाता | ह प य गरदव म आवाक बन गया ह | इस दःतर भवसागर को पार करन म आपन

मझ सहायता की ह | अब तक मझ कवल अपन शरीर म ही स पणर िव ास था | मन िविभनन योिनय म अस य जनम िलय | ऐसी सव च िनभरय अवःथा मझ कौन स पिवऽ कम क कारण ा हई ह यह म नही जानता | सचमच यह एक दलरभ भा य ह |

यह एक महान उतक लाभ ह | अब म आननद स नाचता ह | मर सब दःख न हो गय | मर सब मनोरथ पणर हए ह |

मर कायर स पनन हए ह | मन सब वािछत वःतए ा की ह | मरी इ छा पिरपणर हई ह | आप मर स च माता-िपता हो | मरी व रमान िःथित म म दसर क सम िकस कार कट कर सक सवरऽ सख और आननद का अननत सागर मझ लहराता हआ िदख रहा ह | मर अतःच िजसस खल गय वह महावाकय lsquoत वमिसrsquo ह | उपिनषद एव वदानतसऽ को भी धनयवाद | िजनह न िन गर का एव उपिनषद क महावाकय का रप धारण िकया ह | ऐस ौी यासजी को णाम ौी शकराचायर को णाम सासािरक मनय क िसर पर गर क चरणामत का एक िबनद भी िगर तो भी उसक ःब दःख का नाश होता ह | यिद एक िन परष को व पहनाय जाय तो सार िव को व पहनान एव भोजन करवान क बराबर ह कय िक िन परष सचराचर िव म या ह | सबम व ही ह |rdquo

ॐhellip ॐ hellip ॐ hellip

ःवामी िशवानद जी

ौी राम-विश सवाद ौी विश जी कहत ह ldquoह रघकलभषण ौी राम अनथर ःवरप िजतन सासािरक पदाथर ह व सब जल म तरग क समान िविवध रप धारण करक चमतकार उतपनन करत ह अथारत ई छाए उतपनन करक जीव को मोह म फसात ह | परत जस सभी तरग जल ःवरप ही ह उसी कार सभी पदाथर वःततः न र ःवभाव वाल ह |

बालक की क पना स आकाश म य और िपशाच िदखन लगत ह परनत बि मान मनय क िलए उन य और िपशाच का कोई अथर नही | इसी कार अ ानी क िच म यह जगत सतय हो ऐसा लगता ह जबिक हमार जस ािनय क िलय यह जगत कछ भी नही | यह समम िव पतथर पर बनी हई पतिलय की सना की तरह रपालोक तथा अतर-बा िवषय स शनय ह | इसम सतयता कसी परनत अ ािनय को यह िव सतय लगता ह |rdquo विश जी बोल ldquoौी राम जगत को सतय ःवरप म जानना यह ाित ह मढ़ता ह | उस िमथया अथारत कि पत समझना यही उिचत समझ ह | ह राघव तव ा अहता आिद सब िवम-िवलास शात िशवःवरप श ःवरप ही ह | इसिलय मझ तो क अितिर और कछ भी नही िदखता | आकाश म जस जगल नही वस ही म जगत नही ह | ह राम ार ध वश ा कम स िजस परष की च ा कठपतली की तरह ई छाशनय और याकलतारिहत होती ह वह शानत मनवाला परष जीवनम मिन ह | ऐस जीवनम ानी को इस

जगत का जीवन बास की तरह बाहर-भीतर स शनय रसहीन और वासना-रिहत लगता ह | इस य पच म िजस रिच नही दय म िचनमाऽ अ य ही अ छा लगता ह ऐस परष न

भीतर तथा बाहर शािनत ा कर ली ह और इस भवसागर स पार हो गया ह | रघनदन श व ा कहत ह िक मन का ई छारिहत होना यही समािध ह कय िक ई छाओ का तयाग करन स मन को जसी शािनत िमलती ह ऐसी शािनत सकड़ उपदश स भी नही िमलती | ई छा की उतपि स जसा दःख ा होता ह ऐसा दःख तो नरक म भी नही | ई छाओ की शािनत

स जसा सख होता ह ऐसा सख ःवगर तो कया लोक म भी नही होता | अतः समःत शा तपःया यम और िनयम का िनचोड़ यही ह िक ई छामाऽ दःखदायी ह और ई छा का शमन मो ह | ाणी क दय म जसी-जसी और िजतनी-िजतनी ई छाय उतपनन होती ह उतना ही दख स वह

ड़रता रहता ह | िववक-िवचार ारा ई छाय जस-जस शानत होती जाती ह वस-वस दखरपी छत की बीमारी िमटती जाती ह |

आसि क कारण सासािरक िवषय की ई छाय य - य गहनीभत होती जाती ह तय -तय

दःख की िवषली तरग बढ़ती जाती ह | अपन परषाथर क बल स इस ई छारपी यािध का उपचार यिद नही िकया जाय तो इस यािध स छटन क िलय अनय कोई औषिध नही ह ऐसा म ढ़तापवरक

मानता ह | एक साथ सभी ई छाओ का स पणर तयाग ना हो सक तो थोड़ी-थोड़ी ई छाओ का धीर-धीर तयाग

करना चािहय परत रहना चािहय ई छा क तयाग म रत कय िक सनमागर का पिथक दखी नही होता | जो नराधम अपनी वासना और अहकार को ीण करन का य नही करता वह िदन -िदन अपन

को रावण की तरह अधर कऐ म ढ़कल रहा ह | ई छा ही दख की जनमदाऽी इस ससाररपी बल का बीज ह | यिद इस बीज को आतम ानरपी अि न स ठ क-ठ क जला िदया तो पनः यह अकिरत नही होता | रघकलभषण राम ई छामाऽ ससार ह और ई छाओ का अभाव ही िनवारण ह | अतः अनक कार की माथाप ची म ना पड़कर कवल ऐसा य करना चािहय िक ई छा उतपनन ना हो | अपनी बि स ई छा का िवनाश करन को जो ततपर नही ऐस अभाग को शा और गर का उपदश

भी कया करगा जस अपनी जनमभमी जगल म िहरणी की मतय िनि त ह उसी कार अनकिवध दख का िवःतार कारनवाल ई छारपी िवषय-िवकार स य इस जगत म मनय की मतय िनि त ह | यिद मानव ई छाओ क कारण ब च -सा मढ़ ना बन तो उस आतम ान क िलय अ प य ही करना पड़ | इसिलय सभी कार स ई छाओ को शानत करना चािहय | ई छा क शमन स परम पद की ाि होती ह | ई छारिहत हो जाना यही िनवारण ह और ई छाय

होना ही बधन ह | अतः यथाशि ई छा को जीतना चािहय | भला इतना करन म कया किठनाई ह जनम जरा यािध और मतयरपी कटीली झािड़य और खर क व - समह की जड़ भी ई छा ही ह

| अतः शमरपी अि न स अदर-ही-अदर बीज को जला ड़ालना चािहय| जहा ई छाओ का अभाव ह

वहा मि िनि त ह |

िववक वरा य आिद साधन स ई छा का सवरथा िवनाश करना चािहय | ई छा का सबध जहा-जहा ह वहा-वहा पाप प य दखरािशया और ल बी पीड़ाओ स य बधन को हािज़र ही समझो | परष

की आतिरक ई छा य - य शानत होती जाती ह तय -तय मो क िलय उसका क याणकारक

साधन बढ़ता जाता ह | िववकहीन ई छा को पोसना उस पणर करना यह तो ससाररपी िवष व को पानी स सीचन क समान ह |rdquo

- ौीयोगविश महारामायण

आतमबल का आवाहन कया आप अपन-आपको दबरल मानत हो लघतामथी म उलझ कर पिरिःतिथय स िपस रह हो

अपना जीवन दीन-हीन बना बठ हो hellipतो अपन भीतर सष आतमबल को जगाओ | शरीर चाह ी का हो चाह परष का कित क साा य म जो जीत ह व सब ी ह और कित क बनधन स पार अपन ःवरप की पहचान िजनह न कर ली ह अपन मन की गलामी की बिड़या तोड़कर िजनह न फ क दी ह व परष ह | ी या परष शरीर एव मानयताए होती ह | तम तो तन-मन स पार िनमरल आतमा हो | जागोhellipउठोhellipअपन भीतर सोय हय िन यबल को जगाओ | सवरदश सवरकाल म सव म

आतमबल को िवकिसत करो | आतमा म अथाह सामथयर ह | अपन को दीन-हीन मान बठ तो िव म ऐसी कोई स ा नही जो त ह ऊपर उठा सक | अपन आतमःवरप म िति त हो गय तो िऽलोकी म ऐसी कोई हःती नही जो त ह दबा सक | भौितक जगत म वाप की शि ईलकशोिनक शि िव त की शि गरतवाकषरण की शि बड़ी मानी जाती ह लिकन आतमबल उन सब शि य का सचालक बल ह | आतमबल क सािननधय म आकर पग ार ध को पर िमल जात ह दव की दीनता पलायन हो जाती ह ितकल पिरिःतिथया अनकल हो जाती ह | आतमबल सवर िरि -िसि य का िपता ह |

आतमबल कस जगाय हररोज़ तःकाल ज दी उठकर सय दय स पवर ःनानािद स िनवत हो जाओ | ःव छ पिवऽ ःथान

म आसन िबछाकर पवारिभमख होकर प ासन या सखासन म बठ जाओ | शानत और सनन वि

धारण करो | मन म ढ भावना करो िक म कित-िनिमरत इस शरीर क सब अभाव को पार करक सब

मिलनताओ-दबरलताओ स िप ड़ छड़ाकर आतमा की मिहमा म जागकर ही रहगा |

आख आधी खली आधी बद रखो | अब फ़फ़ड़ म खब ास भरो और भावना करो की ास क साथ

म सयर का िद य ओज भीतर भर रहा ह | ास को यथाशि अनदर िटकाय रखो | िफ़र lsquoॐhelliprsquo का ल बा उ चारण करत हए ास को धीर-धीर छोड़त जाओ | ास क खाली होन क बाद तरत ास ना लो | यथाशि िबना ास रहो और भीतर ही भीतर lsquoहिर ॐhelliprsquo lsquoहिर ॐhelliprsquo का मानिसक

जाप करो | िफ़र स फ़फ़ड़ म ास भरो | पव रीित स ास यथाशि अनदर िटकाकर बाद म धीर-धीर छोड़त हए lsquoॐhelliprsquo का गजन करो | दस-पिह िमनट ऐस ाणायाम सिहत उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo की धविन करक शानत हो जाओ | सब

यास छोड़ दो | वि य को आकाश की ओर फ़लन दो | आकाश क अनदर पथवी ह | पथवी पर अनक दश अनक समि एव अनक लोग ह | उनम स एक

आपका शरीर आसन पर बठा हआ ह | इस पर य को आप मानिसक आख स भावना स दखत

रहो | आप शरीर नही हो बि क अनक शरीर दश सागर पथवी मह न ऽ सयर चनि एव पर ा ड़ क

ा हो सा ी हो | इस सा ी भाव म जाग जाओ | थोड़ी दर क बाद िफ़र स ाणायाम सिहत lsquoॐhelliprsquo का जाप करो और शानत होकर अपन िवचार को दखत रहो | इस अवःथा म ढ़ िन य करो िक lsquoम जसा चहता ह वसा होकर रहगा |rsquo िवषयसख स ा धन-

दौलत इतयािद की इ छा न करो कय िक िन यबल या आतमबलरपी हाथी क पदिच म और सभी क पदिच समािव हो ही जायग | आतमानदरपी सयर क उदय होन क बाद िम टी क तल क दीय क ाकाश रपी शि सखाभास की गलामी कौन कर

िकसी भी भावना को साकार करन क िलय दय को करद ड़ाल ऐसी िन यातमक बिल वि होनी आवशयक ह | अनतःकरण क गहर-स-गहर दश म चोट कर ऐसा ाण भरक िन बल का आवाहन करो | सीना तानकर खड़ हो जाओ अपन मन की दीन-हीन दखद मानयताओ को कचल

ड़ालन क िलय | सदा ःमरण रह की इधर-उधर भटकती वि य क साथ त हारी शि भी िबखरती रहती ह | अतः वि य को बहकाओ नही | तमाम वि य को एकिऽत करक साधनाकाल म आतमिचनतन म लगाओ और यवहारकाल म जो कायर करत हो उसम लगाओ | द िच होकर हरक कायर करो | अपन ःवभाव म स आवश को सवरथा िनमरल कर दो | आवश म आकर कोई िनणरय मत लो कोई िबया मत करो | सदा शानत वि धारण करन का अ यास करो | िवचारशील एव सनन रहो | ःवय अचल रहकर सागर की तरह सब वि य की तरग को अपन

भीतर समालो | जीवमाऽ को अपना ःवरप समझो | सबस ःनह रखो | िदल को यापक रखो | सकिच ता का िनवारण करत रहो | ख ड़ातमक वि का सवरथा तयाग करो | िजनको ानी महापरष का सतसग और अधयातमिव ा का लाभ िमल जाता ह उसक जीवन स

दःख िवदा होन लगत ह | ॐ आननद आतमिन ा म जाग हए महापरष क सतसग एव सतसािहतय स जीवन को भि और वदात स प

एव पलिकत करो | कछ ही िदन क इस सघन योग क बाद अनभव होन लगगा िक भतकाल क

नकारतमक ःवभाव सशयातमक-हािनकारक क पनाओ न जीवन को कचल ड़ाला था िवषला कर िदया था | अब िन यबल क चमतकार का पता चला | अततरम म आिवरभत िद य खज़ाना अब

िमला | ार ध की बिड़या अब टटन लगी | ठ क ह न करोग ना िह मत पढ़कर रख मत दना इस पिःतका को | जीवन म इसको बार-बार पढ़त रहो | एक िदन म यह पणर ना होगा | बार-बार अ यास करो | त हार िलय यह एक ही पिःतका काफ़ी ह | अनय कचराप टी ना पड़ोग तो चलगा | शाबाश वीर शाबाश

  • परसतावना
  • जीवन रसायन
  • गर भकति एक अमोघ साधना
  • शरी राम-वशिषठ सवाद
  • आतमबल का आवाहन
  • आतमबल कस जगाय
Page 7: जीवन रसायन - HariOmGroup · ‘जीवन रसायन’ का यह िदय कटोरा आत्मरस के िपपासुओं हाथ

21) वदानत का यह िस ात ह िक हम ब नही ह बि क िनतय म ह | इतना ही नही lsquoब हrsquo यह सोचना भी अिन कारी ह म ह | य ही आपन सोचा िक lsquoम ब हhellip

दबरल हhellip असहाय हhelliprsquo तय ही अपना दभार य शर हआ समझो | आपन अपन पर म एक जजीर और बाध दी | अतः सदा म होन का िवचार करो और मि का अनभव करो | 22) राःत चलत जब िकसी िति त यि को दखो चाह वह इ लड़ का सवारधीश हो चाह अमिरका का lsquoिसड़टrsquo हो रस का सवसवार हो चाह चीन का lsquoिड़कटटरrsquo हो- तब अपन मन म िकसी कार की ईयार या भय क िवचार मत आन दो | उनकी शाही नज़र को अपनी ही नज़र समझकर मज़ा लटो िक lsquoम ही वह ह |rsquo जब आप ऐसा अनभव करन की च ा करग तब आपका अनभव ही िस कर दगा िक सब एक ही ह | 23) यिद हमारा मन ईयार- ष स रिहत िब कल श हो तो जगत की कोई वःत हम नकसान नही पहचा सकती | आनद और शाित स भरपर ऐस महातमाओ क पास बोध की मितर जसा मनय भी पानी क समान तरल हो जाता ह | ऐस महातमाओ को दख कर जगल क िसह और भड़ भी मिव ल हो जात ह | साप-िब छ भी अपना द ःवभाव भल जात ह | 24) अिव ास और धोख स भरा ससार वाःतव म सदाचारी और सतयिन साधक का कछ िबगाड़ नही सकता | 25) lsquoस पणर िव मरा शरीर हrsquo ऐसा जो कह सकता ह वही आवागमन क चककर स म ह | वह

तो अननत ह | िफ़र कहा स आयगा और कहा जायगा सारा ा ड़ उसी म ह | 26) िकसी भी सग को मन म लाकर हषर-शोक क वशीभत नही होना | lsquoम अजर हhellip अमर हhellip मरा जनम नहीhellip मरी मतय नहीhellip म िनिलर आतमा हhelliprsquo यह भाव ढ़ता स दय म धारण करक जीवन जीयो | इसी भाव का िनरनतर सवन करो | इसीम सदा त लीन रहो | 27) बा सदभ क बार म सोचकर अपनी मानिसक शाित को भग कभी न होन दो | 28) जब इिनिया िवषय की ओर जान क िलय जबरदःती करन लग तब उनह लाल आख

िदखाकर चप कर दो | जो आतमानद क आःवादन की इ छा स आतमिचतन म लगा रह वही स चा धीर ह |

29) िकसी भी चीज़ को ई र स अिधक म यवान मत समझो | 30) यिद हम दहािभमान को तयागकर सा ात ई र को अपन शरीर म कायर करन द तो भगवान

ब या जीसस बाईःट हो जाना इतना सरल ह िजतना िनधरन पाल (Poor Paul) होना | 31) मन को वश करन का उपाय मन को अपना नौकर समझकर ःवय को उसका भ मानो | हम अपन नौकर मन की उप ा करग तो कछ ही िदन म वह हमार वश म हो जायगा | मन क

चचल भाव को ना दखकर अपन शानत ःवरप की ओर धयान दग तो कछ ही िदन म मन न

होन लगगा | इस कार साधक अपन आनदःवरप म म न हो सकता ह | 32) समम ससार क ततव ान िव ान गिणत का य और कला आपकी आतमा म स िनकलत ह

और िनकलत रहग | 33) ओ खदा को खोजनवाल तमन अपनी खोजबीन म खदा को ल कर िदया ह | य रपी तरग म अनत सामथयररपी समि को छपा िदया ह | 34) परमातमा की शािनत को भग करन का सामथयर भला िकसम ह यिद आप सचमच

परमातम-शािनत म िःथत हो जाओ तो समम ससार उलटा होकर टग जाय िफ़र भी आपकी शािनत

भग नही हो सकती | 35) महातमा वही ह जो िच को ड़ावाड़ोल करनवाल सग आय िफ़र भी िच को वश म रख बोध

और शोक को िव न होन द | 36) वित यिद आतमःवरप म लीन होती ह तो उस सतसग ःवाधयाय या अनय िकसी भी काम क िलय बाहर नही लाना चिहय | 37) स ढ़ अचल सक प शि क आग मसीबत इस कार भागती ह जस आधी-तफ़ान स बादल

िबखर जात ह | 38) सषि (गहरी नीद) आपको बलात अनभव कराती ह िक जामत का जगत चाह िकतना ही यारा और सदर लगता हो पर उस भल िबना शािनत नही िमलती | सषि म बलात िवःमरण हो उसकी सतयता भल जाय तो छः घट िनिा की शािनत िमल | जामत म उसकी सतयता का अभाव

लगन लग तो परम शािनत को ा ा परष बन जाय | िनिा रोज़ाना सीख दती ह िक यह ठोस

जगत जो आपक िच को िमत कर रहा ह वह समय की धारा म सरकता जा रहा ह | घबराओ

नही िचिनतत मत हो तम बात म िच को िमत मत करो | सब कछ ःव न म सरकता जा रहा ह | जगत की सतयता क म को भगा दो | ओ शि मान आतमा अपन अतरतम को िनहार ॐ का गजन कर दबरल िवचार एव िचताओ को कचल ड़ाल दबरल एव त छ िवचार तथा जगत को सतय मानन क कारण तन बहत-बहत

सहन िकया ह | अब उसका अत कर द | 39) ान क किठनमागर पर चलत व आपक सामन जब भारी क एव दख आय तब आप उस

सख समझो कय िक इस मागर म क एव दख ही िनतयानद ा करन म िनिम बनत ह | अतः उन क दख और आघात स िकसी भी कार साहसहीन मत बनो िनराश मत बनो | सदव आग

बढ़त रहो | जब तक अपन सतयःवरप को यथाथर रप स न जान लो तब तक रको नही | 40) ःवपनावःथा म आप शर को दखत ह और ड़रत ह िक वह आपको खा जायगा | परत आप

िजसको दखत ह वह शर नही आप ःवय ह | शर आपकी क पना क अितिर और कछ नही | इस

कार जामतावःथा म भी आपका घोर-स-घोर शऽ भी ःवय आप ही ह दसरा कोई नही | थकतव

अलगाव क िवचार को अपन दय स दर हटा दो | आपस िभनन कोई िमऽ या शऽ होना कवल

ःव न-म ह | 41) अशभ का िवरोध मत करो | सदा शात रहो | जो कछ सामन आय उसका ःवागत करो चाह

आपकी इ छा की धारा स िवपरीत भी हो | तब आप दखग िक तय बराई भलाई म बदल

जायगी | 42) रािऽ म िनिाधीन होन स पहल िबःतर पर सीध सखपवरक बठ जाओ | आख बद करो | नाक

स ास लकर फ़फ़ड़ को भरपर भर दो | िफ़र उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo का लबा उ चारण करो | िफ़र स

गहरा ःवास लकर lsquoॐhelliprsquo का लबा उ चारण करो | इस कार दस िमनट तक करो | कछ ही िदन

क िनयिमत योग क बाद इसक चमतकार का अनभव होगा | रािऽ की नीद साधना म पिरणत हो जायगी | िदल-िदमाग म शाित एव आनद की वषार होगी | आपकी लौिकक िनिा योगिनिा म बदल

जयगी | 43) हट जाओ ओ सक प और इ छाओ हट जाओ तम ससार की णभगर शसा एव धन-

स पि क साथ स बध रखती हो | शरीर चाह कसी भी दशा म रह उसक साथ मरा कोई सरोकार नही | सब शरीर मर ही ह | 44) िकसी भी तरह समय िबतान क िलय मज़दर की भाित काम मत करो | आनद क िलय

उपयोगी कसरत समझकर सख बीड़ा या मनोरजक खल समझकर एक कलीन राजकमार की भाित काम करो | दब हए कचल हए िदल स कभी कोई काम हाथ म मत लो | 45) समम ससार को जो अपना शरीर समझत ह तयक यि को जो अपना आतमःवरप

समझत ह ऐस ानी िकसस असनन ह ग उनक िलय िव प कहा रहा 46) ससार की तमाम वःतऐ सखद ह या भयानक वाःतव म तो त हारी फ़लता और आनद क

िलय ही कित न बनाई ह | उनस ड़रन स कया लाभ त हारी नादानी ही त ह चककर म ड़ालती ह

| अनयथा त ह नीचा िदखान वाला कोई नही | पकका िन य रखो िक यह जगत त हार िकसी शऽ न नही बनाया | त हार ही आतमदव का यह सब िवलास ह | 47) महातमा व ह िजनकी िवशाल सहानभित एव िजनका मातवत दय सब पािपय को दीन-

दिखय को म स अपनी गोद म ःथान दता ह | 48) यह िनयम ह िक भयभीत ाणी ही दसर को भयभीत करता ह | भयरिहत हए िबना अिभननता आ नही सकती अिभननता क िबना वासनाओ का अत स भव नही ह और िनवारसिनकता क िबना िनवरता समता मिदता आिद िद य गण कट नही होत | जो बल दसर

की दबरलता को दर ना कर सक वह वाःतव म बल नही | 49) धयान म बठन स पहल अपना समम मानिसक िचतन तथा बाहर की तमाम स पि ई र क

या सदगर क चरण म अपरण करक शात हो जाओ | इसस आपको कोई हािन नही होगी | ई र आपकी स पि दह ाण और मन की र ा करग | ई र अपरण बि स कभी हािन नही होती |

इतना ही नही दह ाण म नवजीवन का िसचन होता ह | इसस आप शाित व आनद का ोत

बनकर जीवन को साथरक कर सक ग | आपकी और पर िव की वाःतिवक उननित होगी | 50) कित सननिच एव उ ोगी कायरकतार को हर कार स सहायता करती ह | 51) सननमख रहना यह मोितय का खज़ाना दन स भी उ म ह | 52) चाह करोड़ सयर का लय हो जाय चाह अस य चनिमा िपघलकर न हो जाय परत ानी महापरष अटल एव अचल रहत ह | 53) भौितक पदाथ को सतय समझना उनम आसि रखना दख-ददर व िचताओ को आमऽण

दन क समान ह | अतः बा नाम-रप पर अपनी शि व समय को न करना यह बड़ी गलती ह |

54) जब आपन यि तव िवषयक िवचार का सवरथा तयाग कर िदया जाता ह तब उसक समान

अनय कोई सख नही उसक समान ौ अनय कोई अवःथा नही | 55) जो लोग आपको सबस अिधक हािन पहचान का यास करत ह उन पर कपापणर होकर ममय िचतन कर | व आपक ही आतमःवरप ह | 56) ससार म कवल एक ही रोग ह | सतय जगिनमथया - इस वदाितक िनयम का भग ही सवर यािधय का मल ह | वह कभी एक दख का रप लता ह तो कभी दसर दख का | इन सवर यािधय

की एक ही दवा ह अपन वाःतिवक ःवरप तव म जाग जाना | 57) ब धयानःथ बठ थ | पहाड़ पर स एक िशलाखड़ लढ़कता हआ आ रहा था | ब पर िगर इसस पहल ही वह एक दसर िशलाखड़ क साथ टकराया | भयकर आवाज़ क साथ उसक दो भाग

हो गय | उसन अपना मागर बदल िलया | धयानःथ ब की दोन तरफ़ स दोन भाग गज़र गय |

ब बच गय | कवल एक छोटा सा ककड़ उनक पर म लगा | पर स थोड़ा खन बहा | ब ःवःथता स उठ खड़ हए और िशय स कहा ldquoभी ओ स यक समािध का यह वलत माण ह | म यिद धयान-समािध म ना होता तो िशलाखड़ न मझ कचल िदया होता | लिकन ऐसा ना होकर उसक दो भाग हो गय | उसम स िसफ़र एक छोटा-सा ककड़ ऊछलकर मर पर म लगा | यह जो छोटा-सा ज़ म हआ ह वह धयान की पणरता म रही हई कछ नयनता का पिरणाम ह | यिद धयान पणर होता तो इतना भी ना लगता |rdquo 58) कहा ह वह तलवार जो मझ मार सक कहा ह वह श जो मझ घायल कर सक कहा ह वह

िवपि जो मरी सननता को िबगाड़ सक कहा ह वह दख जो मर सख म िव न ड़ाल सक मर सब भय भाग गय | सब सशय कट गय | मरा िवजय-ाि का िदन आ पहचा ह | कोई ससािरक

तरग मर िनछल िच को आदोिलत नही कर सकती | इन तरग स मझ ना कोई लाभ ह ना हािन

ह | मझ शऽ स ष नही िमऽ स राग नही | मझ मौत का भय नही नाश का ड़र नही जीन की वासना नही सख की इ छा नही और दख स ष नही कय िक यह सब मन म रहता ह और मन

िमथया क पना ह | 59) स पणर ःवाःथय की अजीब यि रोज सबह तलसी क पाच प चबाकर एक लास बासी पानी पी लो | िफ़र जरा घम लो दौड़ लो या कमर म ही पज क बल थोड़ा कद लो | नहा-धोकर ःवःथ शानत होकर एकात म बठ जाओ | दस बारह गहर-गहर ास लो | आग-पीछ क कतर य

स िनि त हो जाओ | आरो यता आनद सख शािनत दान करनवाली िवचारधारा को िच म बहन दो | िबमारी क िवचार को हटाकर इस कार की भावना पर मन को ढ़ता स एकाम करो िक

मर अदर आरो यता व आनद का अनत ोत वािहत हो रहा हhellip मर अतराल म िद यामत का महासागर लहरा रहा ह | म अनभव कर रहा ह िक समम सख आरो यता शि मर भीतर ह | मर मन म अननत शि और सामथयर ह | म ःवःथ ह | पणर सनन ह | मर अदर-बाहर सवरऽ

परमातमा का काश फ़ला हआ ह | म िव प रिहत ह | सब नद स म ह | ःवग य सख मर अदर ह | मरा दय परमातमा का ग दश ह | िफ़र रोग-शोक वहा कस रह सकत ह म दवी ओज क मड़ल म िव हो चका ह | वह मर ःवाःथय का दश ह | म तज का पज ह | आरो यता का अवतार ह | याद रखो आपक अतःकरण म ःवाःथय सख आनद और शािनत ई रीय वरदान क रप म िव मान ह | अपन अतःकरण की आवाज़ सनकर िनशक जीवन यतीत करो | मन म स कि पत

रोग क िवचार को िनकाल दो | तयक िवचार भाव श द और कायर को ई रीय शि स पिरपणर रखो | ॐकार का सतत गजन करो | सबह-शाम उपरो िवचार का िचतन-मनन करन स िवशष लाभ होगा | ॐ आनदhellip ॐ शाितhellip

पणर ःवःथhellip पणर सननhellip 60) भय कवल अ ान की छाया ह दोष की काया ह मनय को धमरमागर स िगरान वाली आसरी माया ह | 61) याद रखो चाह समम ससार क तमाम पऽकार िननदक एकिऽत होकर आपक िवरध

आलोचन कर िफ़र भी आपका कछ िबगाड़ नही सकत | ह अमर आतमा ःवःथ रहो | 62) लोग ायः िजनस घणा करत ह ऐस िनधरन रोगी इतयािद को सा ात ई र समझकर उनकी सवा करना यह अननय भि एव आतम ान का वाःतिवक ःवरप ह | 63) रोज ातः काल उठत ही ॐकार का गान करो | ऐसी भावना स िच को सराबोर कर दो िक

lsquoम शरीर नही ह | सब ाणी कीट पतग गनधवर म मरा ही आतमा िवलास कर रहा ह | अर उनक

रप म म ही िवलास कर रहा ह | rsquo भया हर रोज ऐसा अ यास करन स यह िस ात दय म िःथर हो जायगा | 64) मी आग-पीछ का िचनतन नही करता | वह न तो िकसी आशका स भयभीत होता ह और न

व रमान पिरिःथित म माःपद म ीित क िसवाय अनय कही आराम पाता ह |

65) जस बालक ितिब ब क आौयभत दपरण की ओर धयान न दकर ितिब ब क साथ खलता ह जस पामर लोग यह समम ःथल पच क आौयभत आकाश की ओर धयान न दकर कवल

ःथल पच की ओर धयान दत ह वस ही नाम-रप क भ ःथल ि क लोग अपन दभार य क

कारण समम ससार क आौय सि चदाननद परमातमा का धयान न करक ससार क पीछ पागल

होकर भटकत रहत ह | 66) इस स पणर जगत को पानी क बलबल की तरह णभगर जानकर तम आतमा म िःथर हो जाओ | तम अ त ि वाल को शोक और मोह कस 67) एक आदमी आपको दजरन कहकर पिरि छनन करता ह तो दसरा आपको स जन कहकर भी पिरि छनन ही करता ह | कोई आपकी ःतित करक फला दता ह तो कोई िननदा करक िसकड़ा दता ह | य दोन आपको पिरि छनन बनात ह | भा यवान तो वह परष ह जो तमाम बनधन क िवर

खड़ा होकर अपन दवतव की अपन ई रतव की घोषणा करता ह अपन आतमःवरप का अनभव

करता ह | जो परष ई र क साथ अपनी अभदता पहचान सकता ह और अपन इदरिगदर क लोग क

सम समम ससार क सम िनडर होकर ई रतव का िनरपण कर सकता ह उस परष को ई र मानन क िलय सारा ससार बाधय हो जाता ह | परी सि उस अवय परमातमा मानती ह | 68) यह ःथल भौितक पदाथर इिनिय की ाित क िसवाय और कछ नही ह | जो नाम व रप पर भरोसा रखता ह उस सफलता नही िमलती | सआम िस ात अथारत सतय आतम-ततव पर िनभरर रहना ही सफलता की कजी ह | उस महण करो उसका मनन करो और यवहार करो | िफर नाम-

रप आपको खोजत िफरग | 69) सख का रहःय यह ह आप य - य पदाथ को खोजत-िफरत हो तय -तय उनको खोत

जात हो | आप िजतन कामना स पर होत हो उतन आवयकताओ स भी पर हो जात हो और पदाथर भी आपका पीछा करत हए आत ह | 70) आननद स ही सबकी उतपि आननद म ही सबकी िःथित एव आननद म ही सबकी लीनता दखन स आननद की पणरता का अनभव होता ह | 71) हम बोलना चहत ह तभी श दो चारण होता ह बोलना न चाह तो नही होता | हम दखना चाह तभी बाहर का य िदखता ह नऽ बद कर ल तो नही िदखता | हम जानना चाह तभी पदाथर का ान होता ह जानना नही चाह तो ान नही होता | अतः जो कोई पदाथर दखन सनन या जानन म

आता ह उसको बािधत करक बािधत करनवाली ानरपी बि की वि को भी बािधत कर दो | उसक बाद जो शष रह वह ाता ह | ाततव धमररिहत श ःवरप ाता ही िनतय सि चदाननद

ह | िनरतर ऐसा िववक करत हए ान व यरिहत कवल िचनमय िनतय िव ानाननदघनरप

म िःथर रहो | 72) यिद आप सवागपणर जीवन का आननद लना चाहत हो तो कल की िचनता छोड़ो | अपन चार

ओर जीवन क बीज बोओ | भिवय म सनहर ःवपन साकार होत दखन की आदत बनाओ | सदा क

िलय मन म यह बात पककी बठा दो िक आपका आनवाला कल अतयनत काशमय आननदमय

एव मधर होगा | कल आप अपन को आज स भी अिधक भा यवान पायग | आपका मन

सजरनातमक शि स भर जायगा | जीवन ऐ यरपणर हो जायगा | आपम इतनी शि ह िक िव न

आपस भयभीत होकर भाग खड़ ह ग | ऐसी िवचारधारा स िनि त रप स क याण होगा | आपक

सशय िमट जायग | 73) ओ मानव त ही अपनी चतना स सब वःतओ को आकषरक बना दता ह | अपनी यार भरी ि उन पर डालता ह तब तरी ही चमक उन पर चढ़ जाती ह औरhellipिफर त ही उनक यार म फ़स जाता ह | 74) मन िविचऽ एव अटपट माग ारा ऐस ततव की खोज की जो मझ परमातमा तक पहचा सक | लिकन म िजस-िजस नय मागर पर चला उन सब माग स पता चला िक म परमातमा स दर चला गया | िफर मन बि म ा एव िव ा स परमातमा की खोज की िफर भी परमातमा स अलग रहा | मनथालय एव िव ालय न मर िवचार म उ टी गड़बड़ कर दी | म थककर बठ गया | िनःत ध हो गया | सयोगवश अपन भीतर ही झाका धयान िकया तो उस अनत रि स मझ सवरःव िमला िजसकी खोज म बाहर कर रहा था | मरा आतमःवरप सवरऽ या हो रहा ह | 75) जस सामानय मनय को पतथर गाय भस ःवाभािवक रीित स ि गोचर होत ह वस ही ानी को िनजाननद का ःवाभािवक अनभव होता ह | 76) वदानत का यह अनभव ह िक नीच नराधम िपशाच शऽ कोई ह ही नही | पिवऽ ःवरप ही सवर रप म हर समय शोभायमान ह | अपन-आपका कोई अिन नही करता |

मर िसवा और कछ ह ही नही तो मरा अिन करन वाला कौन ह मझ अपन-आपस भय कसा 77) यह चराचर सि रपी त तब तक भासता ह जब तक उस दखनवाला मन बठा ह |

मन शात होत ही त की गध तक नही रहती |

78) िजस कार एक धाग म उ म मधयम और किन फल िपरोय हए ह उसी कार मर आतमःवरप म उ म मधयम और किन शरीर िपरोय हए ह | जस फल की गणव ा का भाव धाग पर नही पड़ता वस ही शरीर की गणव ा का भाव मरी सवर यापकता नही पड़ता | जस सब फल क िवनाश स धाग को कोई हािन नही वस शरीर क िवनाश स मझ सवरगत आतमा को कोई हािन नही होती | 79) म िनमरल िन ल अननत श अजर अमर ह | म असतयःवरप दह नही | िस परष इसीको lsquo ानrsquo कहत ह | 80) म भी नही और मझस अलग अनय भी कछ नही | सा ात आननद स पिरपणर कवल िनरनतर और सवरऽ एक ही ह | उ ग छोड़कर कवल यही उपासना सतत करत रहो | 81) जब आप जान लग िक दसर का िहत अपना ही िहत करन क बराबर ह और दसर का अिहत करना अपना ही अिहत करन क बराबर ह तब आपको धमर क ःवरप का सा तकार हो जायगा | 82) आप आतम-ित ा दलबनदी और ईयार को सदा क िलए छोड़ दो | पथवी माता की तरह सहनशील हो जाओ | ससार आपक कदम म नयोछावर होन का इतज़ार कर रहा ह | 83) म िनगरण िनिबय िनतय म और अ यत ह | म असतयःवरप दह नही ह | िस परष इसीको lsquo ानrsquo कहत ह | 84) जो दसर का सहारा खोजता ह वह सतयःवरप ई र की सवा नही कर सकता | 85) सतयःवरप महापरष का म सख-दःख म समान रहता ह सब अवःथाओ म हमार अनकल रहता ह | दय का एकमाऽ िवौामःथल वह म ह | व ावःथा उस आतमरस को सखा नही सकती | समय बदल जान स वह बदलता नही | कोई िवरला भा यवान ही ऐस िद य म का भाजन बन सकता ह | 86) शोक और मोह का कारण ह ािणय म िविभनन भाव का अधयारोप करना | मनय जब एक को सख दनवाला यारा स द समझता ह और दसर को दःख दनवाला शऽ समझकर उसस ष करता ह तब उसक दय म शोक और मोह का उदय होना अिनवायर

ह | वह जब सवर ािणय म एक अख ड स ा का अनभव करन लगगा ािणमाऽ को भ का पऽ समझकर उस आतमभाव स यार करगा तब उस साधक क दय म शोक और मोह का नामोिनशान नही रह जायगा | वह सदा सनन रहगा | ससार म उसक िलय न ही कोई शऽ रहगा और न ही कोई िमऽ | उसको कोई कलश नही पहचायगा | उसक सामन िवषधर नाग भी अपना ःवभाव भल जायगा | 87) िजसको अपन ाण की परवाह नही मतय का नाम सनकर िवचिलत न होकर उसका ःवागत करन क िलए जो सदा ततपर ह उसक िलए ससार म कोई कायर असाधय नही | उस िकसी बा श की जररत नही साहस ही उसका श ह | उस श स वह अनयाय का प लनवाल को परािजत कर दता ह िफर भी उनक िलए बर िवचार का सवन नही करता | 88) िचनता ही आननद व उ लास का िवधवस करनवाली रा सी ह | 89) कभी-कभी मधयरािऽ को जाग जाओ | उस समय इिनिया अपन िवषय क ित चचल नही रहती | बिहमरख ःफरण की गित मनद होती ह | इस अवःथा का लाभ लकर इिनियातीत अपन िचदाकाश ःवरप का अनभव करो | जगत शरीर व इिनिय क अभाव म भी अपन अख ड अिःततव को जानो | 90) य म ीित नही रहना ही असली वरा य ह | 91) रोग हम दबाना चाहता ह | उसस हमार िवचार भी मनद हो जात ह | अतः रोग की िनवित करनी चिहए | लिकन जो िवचारवान परष ह वह कवल रोगिनवित क पीछ ही नही लग जाता | वह तो यह िनगरानी रखता ह िक भयकर दःख क समय भी अपना िवचार छट तो नही गया ऐसा परष lsquoहाय-हायrsquo करक ाण नही तयागता कय िक वह जानता ह िक रोग उसका दास ह | रोग कसा भी भय िदखाय लिकन िवचारवान परष इसस भािवत नही होता | 92) िजस साधक क पास धारणा की ढ़ता एव उ य की पिवऽता य दो गण ह ग वह अवय िवजता होगा | इन दो शा स ससि जत साधक समःत िव न-बाधाओ का सामना करक आिखर म िवजयपताका फहरायगा | 93) जब तक हमार मन म इस बात का पकका िन य नही होगा िक सि शभ ह तब तक मन एकाम नही होगा | जब तक हम समझत रहग िक सि िबगड़ी हई ह तब तक

मन सशक ि स चार ओर दौड़ता रहगा | सवरऽ मगलमय ि रखन स मन अपन-आप शात होन लगगा | 94) आसन िःथर करन क िलए सक प कर िक जस पथवी को धारण करत हए भी शषजी िब कल अचल रहत ह वस म भी अचल रहगा | म शरीर और ाण का ा ह | 95) lsquoससार िमथया हrsquo - यह मद ानी की धारणा ह | lsquoससार ःव नवत हrsquo - यह मधयम ानी की धारणा ह | lsquoससार का अतयनत अभाव ह ससार की उतपि कभी हई ही नहीrsquo -

यह उ म ानी की धारणा ह | 96) आप यिद भि मागर म ह तो सारी सि भगवान की ह इसिलए िकसीकी भी िननदा करना ठ क नही | आप यिद ानमागर म ह तो यह सि अपना ही ःवरप ह | आप अपनी ही िननदा कस कर सकत ह इस कार द नो माग म परिननदा का अवकाश ही नही ह | 97) य म ा का भान एव ा म य का भान हो रहा ह | इस गड़बड़ का नाम ही अिववक या अ ान ह | ा को ा तथा य को य समझना ही िववक या ान ह | 98) आसन व ाण िःथर होन स शरीर म िव त पदा होती ह | शरीर क ारा जब भी िबया की जाती ह तब वह िव त बाहर िनकल जाती ह | इस िव त को शरीर म रोक लन स शरीर िनरोगी बन जाता ह | 99) ःव न की सि अ पकालीन और िविचऽ होती ह | मनय जब जागता ह तब जानता ह िक म पलग पर सोया ह | मझ ःव न आया | ःव न म पदाथर दश काल िबया इतयािद परी सि का सजरन हआ | लिकन मर िसवाय और कछ भी न था | ःव न की सि झठ थी | इसी कार ततव ानी परष अ ानरपी िनिा स ानरपी जामत अवःथा को ा हए ह | व कहत ह िक एक क िसवा अनय कछ ह ही नही | जस ःव न स जागन क बाद हम ःव न की सि िमथया लगती ह वस ही ानवान को यह जगत िमथया लगता ह | 100) शारीिरक क पड़ तब ऐसी भावना हो जाय िक lsquoयह क मर यार भ की ओर स हhelliprsquo तो वह क तप का फल दता ह | 101) चलत-चलत पर म छाल पड़ गय ह भख याकल कर रही हो बि िवचार

करन म िशिथल हो गई हो िकसी पड़ क नीच पड़ ह जीवन अस भव हो रहा हो मतय का आगमन हो रहा हो तब भी अनदर स वही िनभरय धविन उठ lsquoसोऽहमhellipसोऽहमhellipमझ भय नहीhellipमरी मतय नहीhellipमझ भख नहीhellip यास नहीhellip कित की कोई भी यथा मझ न नही कर सकतीhellipम वही हhellipवही हhelliprsquo 102) िजनक आग िय-अिय अनकल-ितकल सख-दःख और भत-भिवय एक समान ह ऐस ानी आतमव ा महापरष ही स च धनवान ह | 103) दःख म दःखी और सख म सखी होन वाल लोह जस होत ह | दःख म सखी रहन वाल सोन जस होत ह | सख-दःख म समान रहन वाल र जस होत ह परनत जो सख-दःख की भावना स पर रहत ह व ही स च साट ह | 104) ःव न स जाग कर जस ःव न को भल जात ह वस जामत स जागकर थोड़ी दर क

िलए जामत को भल जाओ | रोज ातः काल म पनिह िमनट इस कार ससार को भल जान की आदत डालन स आतमा का अनसधान हो सकगा | इस योग स सहजावःथा ा होगी | 105) तयाग और म स यथाथर ान होता ह | दःखी ाणी म तयाग व म िवचार स आत ह

| सखी ाणी म तयाग व म सवा स आत ह कय िक जो ःवय दःखी ह वह सवा नही कर सकता पर िवचार कर सकता ह | जो सखी ह वह सख म आस होन क कारण उसम िवचार का उदय नही हो सकता लिकन वह सवा कर सकता ह | 106) लोग की पजा व णाम स जसी सननता होती ह वसी ही सननता जब मार पड़

तब भी होती हो तो ही मन य िभ ानन महण करन का स चा अिधकारी माना जाता ह | 107) हरक साधक को िब कल नय अनभव की िदशा म आग बढ़ना ह | इसक िलय

ानी महातमा की अतयनत आवयकता होती ह | िजसको स ची िज ासा हो उस ऐस

महातमा िमल ही जात ह | ढ़ िज ासा स िशय को गर क पास जान की इ छा होती ह | यो य

िज ास को समथर गर ःवय दशरन दत ह | 108) बीत हए समय को याद न करना भिवय की िचनता न करना और व रमान म ा

सख-दःखािद म सम रहना य जीवनम परष क ल ण ह | 109) जब बि एव दय एक हो जात ह तब सारा जीवन साधना बन जाता ह |

110) बि मान परष ससार की िचनता नही करत लिकन अपनी मि क बार म सोचत ह |

मि का िवचार ही तयागी दानी सवापरायण बनाता ह | मो की इ छा स सब सदगण आ जात ह

| ससार की इ छा स सब दगरण आ जात ह | 111) पिरिःथित िजतनी किठन होती ह वातावरण िजतना पीड़ाकारक होता ह उसस

गजरन वाला उतना ही बलवान बन जाता ह | अतः बा क और िचनताओ का ःवागत करो | ऐसी पिरिःथित म भी वदानत को आचरण म लाओ | जब आप वदानती जीवन यतीत करग तब दखग

िक समःत वातावरण और पिरिःथितया आपक वश म हो रही ह आपक िलय उपयोगी िस हो रही ह | 112) हरक पदाथर पर स अपन मोह को हटा लो और एक सतय पर एक तथय पर अपन

ई र पर समम धयान को किनित करो | तरनत आपको आतम-सा ातकार होगा | 113) जस बड़ होत-होत बचपन क खलकद छोड़ दत हो वस ही ससार क खलकद छोड़कर आतमाननद का उपभोग करना चािहय | जस अनन व जल का सवन करत हो वस ही आतम-

िचनतन का िनरनतर सवन करना चािहय | भोजन ठ क स होता ह तो ति की डकार आती ह वस

ही यथाथर आतमिचनतन होत ही आतमानभव की डकार आयगी आतमाननद म मःत ह ग |

आतम ान क िसवा शाित का कोई उपाय नही | 114) आतम ानी क हकम स सयर काशता ह | उनक िलय इनि पानी बरसाता ह | उनही क

िलय पवन दत बनकर गमनागमन करता ह | उनही क आग समि रत म अपना िसर रगड़ता ह | 115) यिद आप अपन आतमःवरप को परमातमा समझो और अनभव करो तो आपक सब

िवचार व मनोरथ सफल ह ग उसी ण पणर ह ग | 116) राजा-महाराजा दवी-दवता वद-पराण आिद जो कछ ह व आतमदश क सक पमाऽ

ह | 117) जो लोग ितकलता को अपनात ह ई र उनक स मख रहत ह | ई र िजनह अपन

स दर रखना चाहत ह उनह अनकल पिरिःथितया दत ह | िजसको सब वःतए अनकल एव पिवऽ

सब घटनाए लाभकारी सब िदन शभ सब मनय दवता क रप म िदखत ह वही परष ततवदश ह | 118) समता क िवचार स िच ज दी वश म होता ह हठ स नही |

119) ऐस लोग स स बनध रखो िक िजसस आपकी सहनशि बढ़ समझ की शि बढ़

जीवन म आन वाल सख-दःख की तरग का आपक भीतर शमन करन की ताकत आय समता बढ़

जीवन तजःवी बन | 120) लोग बोलत ह िक धयान व आतमिचनतन क िलए हम फरसत नही िमलती | लिकन

भल मनय जब नीद आती ह तब सब महतवपणर काम भी छोड़कर सो जाना पड़ता ह िक नही

जस नीद को महतव दत हो वस ही चौबीस घनट म स कछ समय धयान व आतमिचनतन म भी िबताओ | तभी जीवन साथरक होगा | अनयथा कछ भी हाथ नही लगगा | 121) भल जाओ िक तम मनय हो अमक जाित हो अमक उ हो अमक िड़मीवाल हो अमक धनधवाल हो | तम िनगरण िनराकार सा ीरप हो ऐसा ढ़ िन य करो | इसीम तमाम

कार की साधनाए िबयाए योगािद समािव हो जात ह | आप सवर यापक अख ड चतनय हो | सार ान का यह मल ह | 122) दोष तभी िदखता जब हमार लोचन म क अभावरप पीिलया रोग स मःत होत ह | 123) साधक यिद अ यास क मागर पर उसी कार आग बढ़ता जाय िजस कार ार भ

म इस मागर पर चलन क िलए उतसाहपवरक कदम रखा था तो आयरपी सयर अःत होन स पहल

जीवनरपी िदन रहत ही अवय सोऽहम िसि क ःथान तक पहच जाय | 124) लोग ज दी स उननित कय नही करत कय िक बाहर क अिभाय एव िवचारधाराओ का बहत बड़ा बोझ िहमालय की तरह उनकी पीठ पर लदा हआ ह | 125) अपन ित होन वाल अनयाय को सहन करत हए अनयायकतार को यिद मा कर िदया जाय तो ष म म पिरणत हो जाता ह | 126) साधना की शरआत ौ ा स होती ह लिकन समाि ान स होनी चािहय | ान मान

ःवयसिहत सवर ःवरप ह ऐसा अपरो अनभव | 127) अपन शरीर क रोम-रोम म स ॐ का उ चारण करो | पहल धीम ःवर म ार भ

करो | शर म धविन गल स िनकलगी िफर छाती स िफर नािभ स और अनत म रीढ़ की ह डी क

आिखरी छोर स िनकलगी | तब िव त क धकक स सष ना नाड़ी तरनत खलगी | सब कीटाणसिहत

तमाम रोग भाग खड़ ह ग | िनभरयता िह मत और आननद का फ वारा छटगा | हर रोज ातःकाल

म ःनानािद करक सय दय क समय िकसी एक िनयत ःथान म आसन पर पवारिभमख बठकर

कम-स-कम आधा घनटा करक तो दखो | 128) आप जगत क भ बनो अनयथा जगत आप पर भतव जमा लगा | ान क

मतािबक जीवन बनाओ अनयथा जीवन क मतािबक ान हो जायगा | िफर यग की याऽा स भी दःख का अनत नही आयगा | 129) वाःतिवक िश ण का ारभ तो तभी होता ह जब मनय सब कार की सहायताओ स िवमख होकर अपन भीतर क अननत ॐोत की तरफ अमसर होता ह | 130) य पच की िनवित क िलए अनतःकरण को आननद म सरोबार रखन क िलए

कोई भी कायर करत समय िवचार करो म कौन ह और कायर कौन कर रहा ह भीतर स जवाब

िमलगा मन और शरीर कायर करत ह | म सा ीःवरप ह | ऐसा करन स कतारपन का अह

िपघलगा सख-दःख क आघात मनद ह ग | 131) राग- ष की िनवित का कया उपाय ह उपाय यही ह िक सार जगत-पच को मनोरा य समझो | िननदा-ःतित स राग- ष स पच म सतयता ढ़ होती ह | 132) जब कोई खनी हाथ आपकी गरदन पकड़ ल कोई श धारी आपको कतल करन क

िलए ततपर हो जाय तब यिद आप उसक िलए सननता स तयार रह दय म िकसी कार का भय

या िवषाद उतपनन न हो तो समझना िक आपन राग- ष पर िवजय ा कर िलया ह | जब आपकी ि पड़त ही िसहािद िहसक जीव की िहसावित गायब हो जाय तब समझना िक अब राग- ष का अभाव हआ ह | 133) आतमा क िसवाय अनय कछ भी नही ह - ऐसी समझ रखना ही आतमिन ा ह | 134) आप ःव न ा ह और यह जगत आपका ही ःव न ह | बस िजस ण यह ान हो जायगा उसी ण आप म हो जाएग | 135) िदन क चौबीस घ ट को साधनामय बनान क िलय िनक मा होकर यथर िवचार करत हए मन को बार-बार सावधान करक आतमिचतन म लगाओ | ससार म सल न मन को वहा स उठा कर आतमा म लगात रहो | 136) एक बार सागर की एक बड़ी तरग एक बलबल की िता पर हसन लगी | बलबल न

कहा ओ तरग म तो छोटा ह िफर भी बहत सखी ह | कछ ही दर म मरी दह टट जायगी िबखर

जायगी | म जल क साथ जल हो जाऊगा | वामन िमटकर िवराट बन जाऊगा | मरी मि बहत

नजदीक ह | मझ आपकी िःथित पर दया आती ह | आप इतनी बड़ी हई हो | आपका छटकारा ज दी नही होगा | आप भाग-भागकर सामनवाली च टान स टकराओगी | अनक छोटी-छोटी तरग

म िवभ हो जाओगी | उन अस य तरग म स अननत-अननत बलबल क रप म पिरवितरत हो जाओगी | य सब बलबल फटग तब आपका छटकारा होगा | बड़ पन का गवर कय करती हो जगत की उपलि धय का अिभमान करक परमातमा स दर मत जाओ | बलबल की तरह सरल

रहकर परमातमा क साथ एकता का अनभव करो | 137) जब आप ईयार ष िछिानवषण दोषारोपण घणा और िननदा क िवचार िकसीक

ित भजत ह तब साथ-ही-साथ वस ही िवचार को आमिऽत भी करत ह | जब आप अपन भाई की आख म ितनका भ कत ह तब अपनी आख म भी आप ताड़ भ क रह ह | 138) शरीर अनक ह आतमा एक ह | वह आतमा-परमातमा मझस अलग नही | म ही कतार सा ी व नयायधीश ह | म ही ककर श आलोचक ह और म ही मधर शसक ह | मर िलय तयक

यि ःवतऽ व ःव छनद ह | बनधन पिरि छननता और दोष मरी ि म आत ही नही | म म

हपरम म ह और अनय लोग भी ःवतऽ ह | ई र म ही ह | आप भी वही हो | 139) िजस कार बालक अपनी परछा म बताल की क पना कर भय पाता ह उसी कार जीव अपन ही सक प स भयभीत होता ह और क पाता ह | 140) कभी-कभी ऐसी भावना करो िक आपक सामन चतनय का एक महासागर लहरा रहा ह | उसक िकनार खड़ रह कर आप आनद स उस दख रह ह | आपका शरीर सागर की सतह पर घमन गया ह | आपक दखत ही दखत वह सागर म डब गया | इस समःत पिरिःथित को दखन वाल आप सा ी आतमा शष रहत ह | इस कार सा ी रप म अपना अनभव करो | 141) यिद हम चाहत ह िक भगवान हमार सब अपराध माफ कर तो इसक िलए सगम साधना यही ह िक हम भी अपन सबिधत सब लोग क सब अपराध माफ कर द |

कभी िकसी क दोष या अपराध पर ि न डाल कय िक वाःतव म सब रप म हमारा यारा ई दव ही बीड़ा कर रहा ह |

142) पणर पिवऽता का अथर ह बा भाव स भािवत न होना | सासािरक मनोहरता एव घणा स पर रहना राजी-नाराजगी स अिवचल िकसी म भद न दखना और आतमानभव क ारा आकषरण व तयाग स अिल रहना | यही वदानत का उपिनषद का

रहःय ह | 143) ई र सा ातकार तभी होगा जब ससार की ि स तीत होन वाल बड़-स-बड़ विरय को भी मा करन का आपका ःवभाव बन जायगा | 144) चाल यवहार म स एकदम उपराम होकर दो िमनट क िलए िवराम लो |

सोचो िक lsquo म कौन ह सद -गम शरीर को लगती ह | भख- यास ाण को लगती ह |

अनकलता-ितकलता मन को लगती ह | शभ-अशभ एव पाप-प य का िनणरय बि करती ह | म न शरीर ह न ाण ह न मन ह न बि ह | म तो ह इन सबको स ा दन वाला इन सबस नयारा िनलप आतमा |rsquo 145) जो मनय िनरतर lsquoम म हhelliprsquo ऐसी भावना करता ह वह म ही ह और lsquoम ब हhelliprsquo ऐसी भावना करनवाला ब ही ह | 146) आप िनभरय ह िनभरय ह िनभरय ह | भय ही मतय ह | भय ही पाप ह | भय ही नकर ह | भय ही अधमर ह | भय ही यिभचार ह | जगत म िजतन असत या िमथया भाव ह व सब इस भयरपी शतान स पदा हए ह | 147) परिहत क िलए थोड़ा काम करन स भी भीतर की शि या जागत होती ह |

दसर क क याण क िवचारमाऽ स दय म एक िसह क समान बल आ जाता ह | 148) हम यिद िनभरय ह ग तो शर को भी जीतकर उस पाल सक ग | यिद डरग तो क ा भी हम फ़ाड़ खायगा | 149) तयक िबया तयक यवहार तयक ाणी ःवरप िदख यही सहज समािध ह | 150) जब किठनाईया आय तब ऐसा मानना िक मझ म सहन शि बढ़ान क िलए ई र न य सयोग भज ह | किठन सयोग म िह मत रहगी तो सयोग बदलन लगग |

िवषय म राग- ष रह गया होगा तो वह िवषय कसौटी क रप म आग आयग और उनस पार होना पड़गा | 151) ततव ि स न तो आपन जनम िलया न कभी लग | आप तो अनत ह सवर यापी ह िनतयम अजर-अमर अिवनाशी ह | जनम-मतय का ही गलत ह महा-

मखरतापणर ह | जहा जनम ही नही हआ वहा मतय हो ही कस सकती ह 152) आप ही इस जगत क ई र हो | आपको कौन दबरल बना सकता ह जगत म आप ही एकमाऽ स ा हो | आपको िकसका भय खड़ हो जाओ | म हो जाओ | ठ क स समझ लो िक जो कोई िवचार या श द आपको दबरल बनाता ह वही एकमाऽ अशभ ह | मनय को दबरल व भयभीत करनवाला जो कछ इस ससार म ह वह पाप ह | 153) आप अपना कायर या कतर य करो लिकन न उसक िलए कोई िचनता रह न ही कोई

इ छा | अपन कायर म सख का अनभव करो कय िक आपका कायर ःवय सख या िवौाम ह | आपका कायर आतमानभव का ही दसरा नाम ह | कायर म लग रहो | कायर आपको आतमानभव कराता ह |

िकसी अनय हत स कायर न करो | ःवतऽ वि स अपन कायर पर डट जाओ | अपन को ःवतऽ

समझो िकसीक कदी नही | 154) यिद आप सतय क मागर स नही हटत तो शि का वाह आपक साथ ह समय आपक

साथ ह ऽ आपक साथ ह | लोग को उनक भतकाल की मिहमा पर फलन दो भिवयकाल की स पणर मिहमा आपक हाथ म ह | 155) जब आप िद य म क साथ चा डाल म चोर म पापी म अ यागत म और सबम भ क दशरन करग तब आप भगवान ौी कण क मपाऽ बन जायग | 156) आचायर गौड़पाद न ःप कहा आप सब आपस म भल ही लड़त रह लिकन मर साथ नही लड़ सक ग | आप सब लोग मर पट म ह | म आतमःवरप स सवर या ह | 157) मनय सभी ािणय म ौ ह सब दवताओ स भी ौ ह | दवताओ को भी िफर स

धरती पर आना पड़गा और मनय शरीर ा करक मि ा करनी होगी | 158) िनि नतता क दो सऽ जो कायर करना जररी ह उस परा कर दो | जो िबनजररी ह

उस भल जाओ | 159) सवा-म-तयाग ही मनय क िवकास का मल मऽ ह | अगर यह मऽ आपको जच

जाय तो सभी क ित सदभाव रखो और शरीर स िकसी-न-िकसी यि को िबना िकसी मतलब क

सहयोग दत रहो | यह नही िक जब मरी बात मानग तब म सवा करगा | अगर बनधक मरी बात

नही मानत तो म सवा नही करगा |

भाई तब तो तम सवा नही कर पाओग | तब तो तम अपनी बात मनवा कर अपन अह की पजा ही

करोग | 160) जस ःव न िमथया ह वस ही यह जामत अवःथा भी ःव नवत ही ह िमथया ह | हरक

को अपन इस ःव न स जागना ह | सदगर बार-बार जगा रह ह लिकन जाग कर वापस सो न जाए ऐसा परषाथर तो हम ही करना होगा | 161) सदा सननमख रहो | मख को कभी मिलन मत करो | िन य कर लो िक आपक

िलय शोक न इस जगत म जनम नही िलया ह | आननदःवरप म िचनता का ःथान ही कहा ह 162) समम ा ड एक शरीर ह | समम ससार एक शरीर ह | जब तक आप तयक क

साथ एकता का अनभव करत रहग तब तक सब पिरिःथितया और आस-पास की चीज़ हवा और समि की लहर भी आपक प म रहगी | 163) आपको जो कछ शरीर स बि स या आतमा स कमजोर बनाय उसको िवष की तरह

ततकाल तयाग दो | वह कभी सतय नही हो सकता | सतय तो बलद होता ह पावन होता ह

ानःवरप होता ह | सतय वह ह जो शि द | 164) साधना म हमारी अिभरिच होनी चािहय साधना की तीो माग होनी चािहय | 165) दसर क दोष की चचार मत करो चाह व िकतन भी बड़ ह | िकसी क दोष की चचार करक आप उसका िकसी भी कार भला नही करत बि क उस आघात पहचात ह और साथ-ही-साथ अपन आपको भी | 166) इस ससार को सतय समझना ही मौत ह | आपका असली ःवरप तो आननदःवरप

आतमा ह | आतमा क िसवा ससार जसी कोई चीज ही नही ह | जस सोया हआ मनय ःव न म अपनी एकता नही जानता अिपत अपन को अनक करक दखता ह वस ही आननदःवरप आतमा जामत ःव न और सषि - इन तीन ःवरप को दखत हए अपनी एकता अि तीयता का अनभव

नही करता | 167) मनोजय का उपाय ह अ यास और वरा य | अ यास मान य पवरक मन को बार-बार परमातम-िचतन म लगाना और वरा य मान मन को ससार क पदाथ की ओर स वापस

लौटाना | 168) िकसी स कछ मत मागो | दन क िलय लोग आपक पीछ-पीछ घमग | मान नही

चाहोग तो मान िमलगा | ःवगर नही चाहोग तो ःवगर क दत आपक िलय िवमान लकर आयग |

उसको भी ःवीकार नही करोग तो ई र आपको अपन दय स लगायग | 169) कभी-कभी उदय या अःत होत हए सयर की ओर चलो | नदी सरोवर या समि क तट

पर अकल घमन जाओ | ऐस ःथान की मलाकात लो जहा शीतल पवन मनद-मनद चल रही हो | वहा परमातमा क साथ एकःवर होन की स भावना क ार खलत ह | 170) आप य -ही इ छा स ऊपर उठत हो तय -ही आपका इि छत पदाथर आपको खोजन

लगता ह | अतः पदाथर स ऊपर उठो | यही िनयम ह | य - य आप इ छक िभ क याचक का भाव धारण करत हो तय -तय आप ठकराय जात हो | 171) कित क तयक पदाथर को दखन क िलय काश जररी ह | इसी कार मन बि

इिनिय को अपन-अपन कायर करन क िलय आतम-काश की आवयकता ह कय िक बाहर का कोई काश मन बि इिनिय ाणािद को चतन करन म समथर नही | 172) जस ःव न ा परष को जागन क बाद ःव न क सख-दःख जनम-मरण पाप-प य

धमर-अधमर आिद ःपशर नही करत कय िक वह सब खद ही ह | खद क िसवाय ःव न म दसरा कछ

था ही नही | वस ही जीवनम ानवान परष को सख-दःख जनम-मरण पाप-प य धमर-अधमर ःपशर नही करत कय िक व सब आतमःवरप ही ह | 173) वही भमा नामक आतम योित क म रह कर भ क रही ह सअर म रह कर घर रही ह गध म रह कर रक रही ह लिकन मखर लोग शरीर पर ही ि रखत ह चतनय ततव पर नही | 174) मनय िजस ण भत-भिवय की िचनता का तयाग कर दता ह दह को सीिमत और उतपि -िवनाशशील जानकर दहािभमान को तयाग दता ह उसी ण वह एक उ चतर अवःथा म पहच जाता ह | िपजर स छटकर गगनिवहार करत हए प ी की तरह मि का अनभव करता ह | 175) समःत भय एव िचनताए आपकी इ छाओ का णाम ह | आपको भय कय लगता ह

कय िक आपको आशका रहती ह िक अमक चीज कही चली न जाय | लोग क हाःय स आप डरत

ह कय िक आपको यश की अिभलाषा ह कीितर म आसि ह | इ छाओ को ितलाजिल द दो | िफर दखो मजा कोई िज मदारी नहीकोई भय नही | 176) दखन म अतयत करप काला-कलटा कबड़ा और तज ःवभाव का मनय भी आपका ही ःवरप ह | आप इस तथय स म नही | िफर घणा कसी कोई लाव यमयी सदरी सि की

शोभा क समान अित िवलासभरी अ सरा भी आपका ही ःवरप ह | िफर आसि िकसकी

आपकी ानिनिया उनको आपस अलग करक िदखाती ह | य इिनिया झठ बोलनवाली ह | उनका कभी िव ास मत करो | अतः सब कछ आप ही हो | 177) मानव क नात हम साधक ह | साधक होन क नात सतय को ःवीकर करना हमारा ःवधमर ह | सतय यही ह िक बल दसर क िलय ह ान अपन िलय ह और िव ास परमातमा स

स बनध जोड़न क िलय ह | 178) अपनी आतमा म डब जाना यह सबस बड़ा परोपकार ह | 179) आप सदव म ह ऐसा िव ास ढ़ करो तो आप िव क उ ारक हो जात हो | आप

यिद वदानत क ःवर क साथ ःवर िमलाकर िन य करो आप कभी शरीर न थ | आप िनतय श

ब आतमा हो तो अिखल ा ड क मो दाता हो जात हो | 180) कपा करक उन ःवाथरमय उपाय और अिभाय को दर फ क दो जो आपको पिरि छनन रखत ह | सब वासनाए राग ह | यि गत या शरीरगत म आसि ह | उस फ क दो | ःवय पिवऽ हो जाओ | आपका शरीर ःवःथ और बि पणरःवरप हो जायगी | 181) यिद ससार क सख व पदाथर ा ह तो आपको कहना चािहय ओ शतान हट जा मर सामन स | तर हाथ स मझ कछ नही चािहय | तब दखो िक आप कस सखी हो जात हो परमातमा-ा िकसी महापरष पर िव ास रखकर अपनी जीवनडोरी िनःशक बन उनक चरण म सदा क िलय रख दो | िनभरयता आपक चरण की दासी बन जायगी | 182) िजसन एक बार ठ क स जान िलया िक जगत िमथया ह और ािनत स इसकी तीित

हो रही ह उसको कभी दःख नही होता | जगत म कभी आसि नही होती | जगत क िमथयातव क

िन य का नाम ही जगत का नाश ह | 183) अपन ःवरप म लीन होन माऽ स आप ससार क साट बन जायग | यह साटपद

कवल इस ससार का ही नही समःत लोक-परलोक का साटपद होगा | 184) ह जनक चाह दवािधदव महादव आकर आपको उपदश द या भगवान िवण आकर उपदश द अथवा ाजी आकर उपदश द लिकन आपको कदािप सख न होगा | जब िवषय का तयाग करोग तभी स ची शाित व आनद ा ह ग |

185) िजस भ न हम मानव जीवन दकर ःवाधीनता दी िक हम जब चाह तब धमारतमा होकर भ होकर जीवनम होकर कतकतय हो सकत ह- उस भ की मिहमा गाओ | गाओ नही तो सनो | सनो भी नही गाओ भी नही तो ःवीकार कर लो | 186) चाह समि क गहर तल म जाना पड़ सा ात मतय का मकाबला करना पड़ अपन

आतमाि क उ य की पितर क िलय अिडग रहो | उठो साहसी बनो शि मान बनो | आपको जो बल व सहायता चािहय वह आपक भीतर ही ह | 187) जब-जब जीवन स बनधी शोक और िचनता घरन लग तब-तब अपन आननदःवरप

का गान करत-करत उस मोह-माया को भगा दो | 188) जब शरीर म कोई पीड़ा या अग म ज म हो तब म आकाशवत आकाशरिहत चतन

ह ऐसा ढ़ िन य करक पीड़ा को भल जाओ | 189) जब दिनया क िकसी चककर म फस जाओ तब म िनलप िनतय म ह ऐसा ढ़

िन य करक उस चककर स िनकल जाओ | 190) जब घर-बार स बनधी कोई किठन समःया याकल कर तब उस मदारी का खल

समझकर ःवय को िनःसग जानकर उस बोझ को ह का कर दो | 191) जब बोध क आवश म आकर कोई अपमानय वचन कह तब अपन शाितमय

ःवरप म िःथर होकर मन म िकसी भी ोभ को पदा न होन दो | 192) उ म अिधकारी िज ास को चािहय िक वह व ा सदगर क पास जाकर ौ ा पवरक महावाकय सन | उसका मनन व िनिदधयासन करक अपन आतमःवरप को जान | जब

आतमःवरप का सा ातकार होता ह तब ही परम िवौािनत िमल सकती ह अनयथा नही | जब तक

व ा महापरष स महावाकय ा न हो तब तक वह मनद अिधकारी ह | वह अपन दयकमल म परमातमा का धयान कर ःमरण कर जप कर | इस धयान-जपािद क साद स उस व ा सदगर

ा ह ग | 193) मन बि िच अहकार छाया की तरह जड़ ह णभगर ह कय िक व उतपनन होत

ह और लीन भी हो जात ह | िजस चतनय की छाया उसम पड़ती ह वह परम चतनय सबका आतमा ह | मन बि िच अहकार का अभाव हो जाता ह लिकन उसका अनभव करनवाल का अभाव

कदािप नही होता |

194) आप अपनी शि को उ चाितउ च िवषय की ओर बहन दो | इसस आपक पास व

बात सोचन का समय ही नही िमलगा िजसस कामकता की गध आती हो | 195) अपराध क अनक नाम ह बालहतया नरहतया मातहतया गौहतया इतयािद |

परनत तयक ाणी म ई र का अनभव न करक आप ई रहतया का सबस बड़ा अपराध करत ह | 196) सवा करन की ःवाधीनता मनयमाऽ को ा ह | अगर वह करना ही न चाह तो अलग बात ह | सवा का अथर ह मन-वाणी-कमर स बराईरिहत हो जाना यह िव की सवा हो गई |

यथाशि भलाई कर दो यह समाज की सवा हो गई | भलाई का फल छोड़ दो यह अपनी सवा हो गई

| भ को अपना मानकर ःमित और म जगा लो यह भ की सवा हो गई | इस कार मनय

अपनी सवा भी कर सकता ह समाज की सवा भी कर सकता ह िव की सवा भी कर सकता ह

और िव र की सवा भी कर सकता ह | 197) आतमा स बाहर मत भटको अपन कनि म िःथर रहो अनयथा िगर पड़ोग | अपन-

आपम पणर िव ास रखो | आतम-कनि पर अचल रहो | िफर कोई भी चीज आपको िवचिलत नही कर सकती | 198) सदा शात िनिवरकार और सम रहो | जगत को खलमाऽ समझो | जगत स भािवत

मत हो | इसस आप हमशा सखी रहोग | िफर कछ बढ़ान की इ छा नही होगी और कछ कम होन स

दःख नही होगा | 199) समथर सदगर क सम सदा फल क भाित िखल हए रहो | इसस उनक अनदर सक प

होगा िक यह तो बहत उतसाही साधक ह सदा सनन रहता ह | उनक सामथयरवान सक प स

आपकी वह किऽम सननता भी वाःतिवक सननता म बदल जायगी | 200) यिद रोग को भी ई र का िदया मानो तो ार ध-भोग भी हो जाता ह और क तप का फल दता ह | इसस ई र-कपा की ाि होती ह | याकल मत हो | क सल और इनजकशन

आधीन मत हो | 201) साधक को चािहय िक अपन लआय को ि म रखकर साधना-पथ पर तीर की तरह

सीधा चला जाय | न इधर दख न उधर | ि यिद इधर-उधर जाती हो तो समझना िक िन ा िःथर नही ह |

202) आपन अपन जीवन म हजार ःव न दख ह ग लिकन व आपक जीवन क अश नही बन जात | इसी कार य जामत जगत क आड बर आपकी आतमा क सम कोई मह व नही रखत | 203) एक आतमा को ही जानो अनय बात को छोड़ो | धीर साधक को चािहय िक वह

सावधान होकर आतमिन ा बढ़ाय अनक श द का िचनतन व भाषण न कर कय िक वह तो कवल

मन-वाणी को पिरौम दनवाला ह असली साधना नही ह | 204) जो परष जन-समह स ऐस डर जस साप स डरता ह स मान स ऐस डर जस नकर स

डरता ह ि य स ऐस डर जस मद स डरता ह उस परष को दवतागण ा ण मानत ह | 205) जस अपन शरीर क अग पर बोध नही आता वस शऽ िमऽ व अपनी दह म एक ही आतमा को दखनवाल िववकी परष को कदािप बोध नही आता | 206) मन तो शरीर को ई रापरण कर िदया ह | अब उसकी भख- यास स मझ कया

समिपरत वःत म आस होना महा पाप ह | 207) आप यिद िद य ि पाना चहत हो तो आपको इिनिय क ऽ का तयाग करना होगा | 208) लयकाल क मघ की गजरना हो समि उमड़ पड बारह सयर तपायमान हो जाय पहाड़ स पहाड़ टकरा कर भयानक आवाज हो तो भी ानी क िन य म त नही भासता कय िक

त ह ही नही | त तो अ ानी को भासता ह | 209) सतय को ःवीकार करन स शाित िमलगी | कछ लोग यो यता क आधार पर शाित

खरीदना चाहत ह | यो यता स शाित नही िमलगी यो यता क सदपयोग स शाित िमलगी | कछ

लोग स पि क आधार पर शाित सरि त रखना चाहत ह | स पि स शाित नही िमलगी स पि

क सदपयोग स शाित िमलगी वस ही िवपि क सदपयोग स शाित िमलगी | 210) त छ हािन-लाभ पर आपका धयान इतना कय रहता ह िजसस अनत आननदःवरप

आतमा पर स धयान हट जाता ह | 211) अपन अनदर ही आननद ा करना य िप किठन ह परनत बा िवषय स आननद

ा करना तो अस भव ही ह |

212) म ससार का काश ह | काश क रप म म ही सब वःतओ म या ह | िनतय इन

िवचार का िचनतन करत रहो | य पिवऽ िवचार आपको परम पिवऽ बना दग | 213) जो वःत कमर स ा होती ह उसक िलय ससार की सहायता तथा भिवय की आशा की आवयकता होती ह परनत जो वःत तयाग स ा होती ह उसक िलय न ससार की सहायता चािहय न भिवय की आशा | 214) आपको जब तक बाहर चोर िदखता ह तब तक जरर भीतर चोर ह | जब दसर लोग

स िभनन अयो य खराब सधारन यो य िदखत ह तब तक ओ सधार का बीड़ा उठान वाल त अपनी िचिकतसा कर | 215) सफल व ही होत ह जो सदव नतमःतक एव सननमख रहत ह | िचनतातर-शोकातर लोग की उननित नही हो सकती | तयक कायर को िह मत व शाित स करो | िफर दखो िक यह

कायर शरीर मन और बि स हआ | म उन सबको स ा दनवाला चतनयःवरप ह | ॐ ॐ का पावन गान करो | 216) िकसी भी पिरिःथित म मन को यिथत न होन दो | आतमा पर िव ास करक

आतमिन बन जाओ | िनभरयता आपकी दासी बन कर रहगी | 217) सतसग स मनय को साधना ा होती ह चाह वह शाित क रप म हो चाह मि क

रप म चाह सवा क रप म हो म क रप म हो चाह तयाग क रप म हो | 218) भला-बरा वही दखता ह िजसक अनदर भला-बरा ह | दसर क शरीर को वही दखता ह

जो खद को शरीर मानता ह | 219) खबरदार आपन यिद अपन शरीर क िलय ऐश-आराम की इ छा की िवलािसता एव इिनिय-सख म अपना समय बरबाद िकया तो आपकी खर नही | ठ क स कायर करत रहन की नीित

अपनाओ | सफलता का पहला िस ात ह कायरिवौामरिहत कायरसा ी भाव स कायर | इस

िस ात को जीवन म चिरताथर करोग तो पता चलगा िक छोटा होना िजतना सरल ह उतना ही बड़ा होना भी सहज ह | 220) भतकाल पर िखनन हए िबना भिवय की िचनता िकय िबना व रमान म कायर करो | यह भाव आपको हर अवःथा म सनन रखगा हम जो कछ ा ह उसका सदपयोग ही अिधक

काश पान का साधन ह |

221) जब आप सफलता की ओर पीठ कर लत हो पिरणाम की िचनता का तयाग कर दत

हो स मख आय हए क र य पर अपनी उ ोगशि एकाम करत हो तब सफलता आपक पीछ-पीछ

आ जाती ह | अतः सफलता आपको खोजगी | 222) वि तब तक एकाम नही होगी जब तक मन म कभी एक आशा रहगी तो कभी दसरी | शात वही हो सकता ह िजस कोई क र य या आवयकता घसीट न रही हो | अतः परम शाित पान

क िलय जीवन की आशा भी तयाग कर मन ाननद म डबो दो | आज स समझ लो िक यह शरीर ह ही नही | कवल ाननद का सागर लहरा रहा ह | 223) िजसकी पककी िन ा ह िक म आतमा हrsquo उसक िलय ऐसी कौन सी मिथ ह जो खल

न सक ऐसी कोई ताकत नही जो उसक िवर जा सक | 224) मर भा य म नही थाई र की मज आजकल सतसग ा नही होताजगत

खराब ह ऐस वचन हमारी कायरता व अनतःकरण की मिलनता क कारण िनकलत ह | अतः नकारातमक ःवभाव और दसर पर दोषारोपण करन की वि स बचो | 225) आप जब भीतरवाल स नाराज होत हो तब जगत आपस नाराज रहता ह | जब आप

भीतर अनतयारमी बन बठ तो जगतरपी पतलीघर म िफर गड़बड़ कसी 226) िजस ण हम ससार क सधारक बन खड़ होत ह उसी ण हम ससार को िबगाड़नवाल बन जात ह | श परमातमा को दखन क बजाय जगत को िबगड़ा हआ दखन की ि बनती ह | सधारक लोग मानत ह िक lsquoभगवान न जो जगत बनाया ह वह िबगड़ा हआ ह और हम उस सधार रह ह |rsquo वाह वाह धनयवाद सधारक अपन िदल को सधारो पहल | सवरऽ िनरजन का दीदार करो | तब आपकी उपिःथित माऽ स आपकी ि माऽ स अर यार आपको छकर बहती हवा माऽ स अननत जीव को शाित िमलगी और अननत सधार होगा | नानक कबीर महावीर ब और लीलाशाह बाप जस महापरष न यही कजी अपनायी थी | 227) वदानत म हमशा कमर का अथर होता ह वाःतिवक आतमा क साथ एक होकर च ा करना अिखल िव क साथ एकःवर हो जाना | उस अि तीय परम ततव क साथ िनःःवाथर सयोग ा करना ही एकमाऽ स चा कमर ह बाकी सब बोझ की गठिरया उठाना ह |

228) अपनी व रमान अवःथा चाह कसी भी हो उसको सव च मानन स ही आपक दय म आतम ान ान का अनायास उदय होन लगगा | आतम-सा ातकार को मील दर की कोई चीज समझकर उसक पीछ दौड़ना नही ह िचिनतत होना नही ह |

िचनता की गठरी उठाकर यिथत होन की जररत नही ह | िजस ण आप िनि नतता म गोता मारोग उसी ण आपका आतमःवरप गट हो जायगा | अर गट कया होगा आप ःवय आतमःवरप हो ही | अनातमा को छोड़ दो तो आतमःवरप तो हो ही | 229) सदा ॐकार का गान करो | जब भय व िचनता क िवचार आय तब िकसी मःत सत-फकीर महातमा क सािननधय का ःमरण करो | जब िननदा-शसा क सग आय तब महापरष क जीवन का अवलोकन करो | 230) िजनको आप भयानक घटनाए एव भयकर आघात समझ बठ हो वाःतव म व आपक ियतम आतमदव की ही करतत ह | समःत भयजनक तथा ाणनाशक घटनाओ क नाम-रप तो िवष क ह लिकन व बनी ह अमत स | 231) मन म यिद भय न हो तो बाहर चाह कसी भी भय की साममी उपिःथत हो जाय आपका कछ िबगाड़ नही सकती | मन म यिद भय होगा तो तरनत बाहर भी भयजनक पिरिःथया न होत हए भी उपिःथत हो जायगी | व क तन म भी भत िदखन लगगा | 232) िकसी भी पिरिःथित म िदखती हई कठोरता व भयानकता स भयभीत नही होना चािहए | क क काल बादल क पीछ पणर काशमय एकरस परम स ा सयर की तरह सदा िव मान ह | 233) आप अपन पर कदािप अिव ास मत करो | इस जगत म आप सब कछ कर सकत हो | अपन को कभी दबरल मत मानो | आपक अनदर तमाम शि या छपी हई ह | 234) यिद कोई मन य आपकी कोई चीज़ को चरा लता ह तो ड़रत कय हो वह मनय

और आप एक ह | िजस चीज़ को वह चराता ह वह चीज़ आपकी और उसकी द न की ह | 235) जो खद क िसवाय दसरा कछ दखता नही सनता नही जानता नही वह अननत ह |

जब तक खद क िसवाय और िकसी वःत का भान होता ह वह वःत स ची लगती ह तब तक आप

सीिमत व शात ह असीम और अनत नही |

236) ससार मझ कया आनद द सकता ह स पणर आनद मर भीतर स आया ह | म ही स पणर आननद ह स पणर मिहमा एव स पणर सख ह | 237) जीवन की समःत आवयकताए जीवन म उपिःथत ह परनत जीवन को जब हम

बा रग म रग दत ह तब जीवन का वाःतिवक रप हम नही जान पात | 238) िननदक की िननदा स म कय मरझाऊ शसक की शसा स म कय फल िननदा स म घटता नही और शसा स म बढ़ता नही | जसा ह वसा ही रहता ह | िफर िननदा-ःतित स

खटक कसी 239) ससार व ससार की समःयाओ म जो सबस अिधक फस हए ह उनही को वदानत की सबस अिधक आवयकता ह | बीमार को ही औषिध की यादा आवयकता ह | कय जी ठ क ह न 240) जगत क पाप व अतयाचार की बात मत करो लिकन अब भी आपको जगत म पाप

िदखता ह इसिलय रोओ | 241) हम यिद जान ल िक जगत म आतमा क िसवाय दसरा कछ ह ही नही और जो कछ

िदखता ह वह ःव नमाऽ ह तो इस जगत क दःख-दािरिय पाप-प य कछ भी हम अशात नही कर सकत | 242) िव ान दाशरिनक व आचाय की धमकी तथा अनमह आलोचना या अनमित

ानी पर कोई भाव नही ड़ाल सकती | 243) ह यि रप अननत आप अपन पर पर खड़ रहन का साहस करो समःत िव का बोझ आप िखलौन की तरह उठा लोग | 244) िसह की गजरना व नरिसह की ललकार तलवार की धार व साप की फफकार तपःवी की धमकी व नयायधीश की फटकारइन सबम आपका ही काश चमक रहा ह | आप इनस

भयभीत कय होत हो उलझन कय महसस करत हो मरी िब ली मझको याऊ वाली बात कय

होन दत हो 245) ससार हमारा िसफ़र िखलोना ही ह और कछ नही | अबोध बालक ही िखलौन स

भयभीत होता ह आसि करता ह िवचारशील यि नही |

246) जब तक अिव ा दर नही होगी तब तक चोरी जआ दार यिभचार कभी बद न

ह ग चाह लाख कोिशश करो | 247) आप हमशा अदर का धयान रखो | पहल हमारा भीतरी पतन होता ह | बा पतन तो इसका पिरणाम माऽ ह | 248) तयाग स हमशा आनद िमलता ह | जब तक आपक पास एक भी चीज़ बाकी ह तब

तक आप उस चीज़ क बधन म बध रहोग | आघात व तयाघात हमशा समान िवरोधी होत ह | 249) िनि तता ही आरो यता की सबस बड़ी दवाई ह | 250) सख अपन िसर पर दख का मकट पहन कर आता ह | जो सख को अपनायगा उस

दख को भी ःवीकार करना पड़गा | 251) म (आतमा) सबका ा ह | मरा ा कोई नही | 252) हजार म स कोई एक परष भीतर स शात िच वाला रहकर बाहर स ससारी जसा यवहार कर सकता ह | 253) सतय क िलए यिद शरीर का तयाग करना पड़ तो कर दना | यही आिखरी ममता ह जो हम तोड़नी होगी | 254) भय िचनता बचनी स ऊपर उठो | आपको ान का अनभव होगा | 255) आपको कोई भी हािन नही पहचा सकता | कवल आपक खयालात ही आपक पीछ पड़ ह | 256) म का अथर ह अपन पड़ोसी तथा सपकर म आनवाल क साथ अपनी वाःतिवक अभदता का अनभव करना | 257) ओ यार अपन खोय हए आतमा को एक बार खोज लो | धरती व आसमान क शासक आप ही हो | 258) सदव सम और सनन रहना ई र की सव पिर भि ह |

259) जब तक िच म ढ़ता न आ जाय िक शा की िविधय का पालन छोड़ दन स भी दय का यथाथर भि भाव न नही होगा तब तक शा की िविधय को पालत रहो |

गर भि एक अमोघ साधना 1 जनम मरण क िवषचब स म होन का कोई मागर नही ह कया सख-दःख हषर-शोक लाभ-

हािन मान-अपमान की थ पड़ स बचन का कोई उपाय नही ह कया

हअवय ह | ह िय आतमन नाशवान पदाथ स अपना मन वािपस लाकर सदगर क

चरणकमल म लगाओ | गरभि योग का आौय लो | गरसवा ऐसा अमोघ साधन ह िजसस

व रमान जीवन आननदमय बनता ह और शा त सख क ार खलत ह |

गर सवत त नर धनय यहा | ितनक नही दःख यहा न वहा || 2 स च सदगर की की हई भि िशय म सासािरक पदाथ क वरा य एव अनासि जगाती ह

परमातमा क ित म क पप महकाती ह | 3 तयक िशय सदगर की सवा करना चाहता ह लिकन अपन ढग स | सदगर चाह उस ढग स

सवा करन को कोई ततपर नही | जो िवरला साधक गर चाह उस ढ़ग स सवा कर सकता ह उस कोई कमी नही रहती |

िन सदगर की सवा स उनकी कपा ा होती ह और उस कपा स न िमल सक ऐसा तीन लोक म कछ भी नही ह | 4 गर िशय का स बनध पिवऽतम स बनध ह | ससार क तमाम बनधन स छड़ाकर वह मि क मागर पर ःथान कराता ह | यह स बनध जीवनपयरनत का स बनध ह | यह बात अपन दय की डायरी म सवणर-अ र स िलख लो | 5 उ ल सयर क काश क अिःततव को मान या न मान िफर भी सयर हमशा काशता ह | चचल मन का मनय मान या न मान लिकन सदगर की परमक याणकारी कपा सदव बरसती ही रहती ह | 6 सदगर की चरणरज म ःनान िकय िबना कवल किठन तप यार करन स या वद का

अधयन करन स वदानत का रहःय कट नही होता आतमानद का अमत नही िमलता | 7 दशरन शा क चाह िकतन मनथ पढ़ो हजार वष तक िहमालय की गफा म तप करो वष तक ाणायाम करो जीवनपयरनत शीषारसन करो समम िव म वास करक याखान दो िफर भी सदगर की कपा क िबना आतम ान नही होता | अतः िनरािभमानी सरल िनजाननद म मःत दयाल ःवभाव क आतम-सा ातकारी सदगर क चरण म जाओ | जीवन को धनय बनाओ | 8 सदगर की सवा िकय िबना शा का अधयन करना मम साधक क िलय समय बरबाद करन क बराबर ह | 9 िजसको सदगर ा हए ह ऐस िशय क िलय इस िव म कछ भी अा य नही ह | सदगर िशय को िमली हई परमातमा की अम य भट ह | अर नहीhellipनही व तो िशय क सम साकार रप म कट हए परमातमा ःवय ह | 10 सदगर क साथ एक ण िकया हआ सतसग लाख वष क तप स अननत गना ौ ह | आख क िनमषमाऽ म सदगर की अमतवष ि िशय क जनम-जनम क पाप को जला सकती ह | 11 सदगर जसा मपणर कपाल िहतिचनतक िव भर म दसरा कोई नही ह | 12 बाढ़ क समय याऽी यिद तफानी नदी को िबना नाव क पार कर सक तो साधक भी िबना सदगर क अपन जीवन क आिखरी लआय को िस कर सकता ह | यानी य दोन बात स भव ह |

अतः यार साधक मनमखी साधना की िज करना छोड़ दो | गरमखी साधना करन म ही सार ह | 13 सदगर क चरणकमल का आौय लन स िजस आननद का अनभव होता ह उसक आग िऽलोकी का साा य त छ ह | 14 आतम-सा ातकार क मागर म सबस महान शऽ अहभाव का नाश करन क िलए सदगर की आ ा का पालन अमोघ श ह | 15 रसोई सीखन क िलय कोई िसखानवाला चािहय िव ान और गिणत सीखन क िलय

अधयापक चािहय तो कया िव ा सदगर क िबना ही सीख लोग 16 सदगरकपा की स पि जसा दसरा कोई खजाना िव भर म नही | 17 सदगर की आ ा का उ लघन करना यह अपनी क खोदन क बराबर ह | 18 सदगर क कायर को शका की ि स दखना महापातक ह | 19 गरभि व गरसवा - य साधनारपी नौका की दो पतवार ह | उनकी मदद स िशय ससारसागर को पार कर सकता ह | 20 सदगर की कसौटी करना असभव ह | एक िववकाननद ही दसर िववकाननद को पहचान सकत ह | ब को जानन क िलय दसर ब की आवयकता रहती ह | एक रामतीथर का रहःय दसर रामतीथर ही पा सकत ह |

अतः सदगर की कसौटी करन की च ा छोड़कर उनको पिरपणर पर परमातमा मानो |

तभी जीवन म वाःतिवक लाभ होगा | 21 गरभि योग का आौय लकर आप अपनी खोई हई िद यता को पनः ा करो सख-दःख जनम-मतय आिद सब न स पार हो जाओ | 22 गरभि योग मान गर की सवा क ारा मन और िवकार पर िनयऽण एव पनः सःकरण | 23 िशय अपन गर क चरणकमल म णाम करता ह | उन पर ौ फल की वषार करक उनकी ःतित करता ह ldquoह परम प य पिवऽ गरदव मझ सव च सख ा हआ ह | म िन ा स जनम-मतय की पर परा स म हआ ह | म िनिवरक प समािध का श सख भोग रहा ह | जगत क िकसी भी कोन म म म ता स िवचरण कर सकता ह | सब पर मरी सम ि ह | मन ाकत मन का तयाग िकया ह | मन सब सक प एव रिच-अरिच का तयाग िकया ह | अब म अख ड शाित म िवौाित पा रहा ह hellip आननदमय हो रहा ह | म इस पणर अवःथा का वणरन नही कर पाता | ह प य गरदव म आवाक बन गया ह | इस दःतर भवसागर को पार करन म आपन

मझ सहायता की ह | अब तक मझ कवल अपन शरीर म ही स पणर िव ास था | मन िविभनन योिनय म अस य जनम िलय | ऐसी सव च िनभरय अवःथा मझ कौन स पिवऽ कम क कारण ा हई ह यह म नही जानता | सचमच यह एक दलरभ भा य ह |

यह एक महान उतक लाभ ह | अब म आननद स नाचता ह | मर सब दःख न हो गय | मर सब मनोरथ पणर हए ह |

मर कायर स पनन हए ह | मन सब वािछत वःतए ा की ह | मरी इ छा पिरपणर हई ह | आप मर स च माता-िपता हो | मरी व रमान िःथित म म दसर क सम िकस कार कट कर सक सवरऽ सख और आननद का अननत सागर मझ लहराता हआ िदख रहा ह | मर अतःच िजसस खल गय वह महावाकय lsquoत वमिसrsquo ह | उपिनषद एव वदानतसऽ को भी धनयवाद | िजनह न िन गर का एव उपिनषद क महावाकय का रप धारण िकया ह | ऐस ौी यासजी को णाम ौी शकराचायर को णाम सासािरक मनय क िसर पर गर क चरणामत का एक िबनद भी िगर तो भी उसक ःब दःख का नाश होता ह | यिद एक िन परष को व पहनाय जाय तो सार िव को व पहनान एव भोजन करवान क बराबर ह कय िक िन परष सचराचर िव म या ह | सबम व ही ह |rdquo

ॐhellip ॐ hellip ॐ hellip

ःवामी िशवानद जी

ौी राम-विश सवाद ौी विश जी कहत ह ldquoह रघकलभषण ौी राम अनथर ःवरप िजतन सासािरक पदाथर ह व सब जल म तरग क समान िविवध रप धारण करक चमतकार उतपनन करत ह अथारत ई छाए उतपनन करक जीव को मोह म फसात ह | परत जस सभी तरग जल ःवरप ही ह उसी कार सभी पदाथर वःततः न र ःवभाव वाल ह |

बालक की क पना स आकाश म य और िपशाच िदखन लगत ह परनत बि मान मनय क िलए उन य और िपशाच का कोई अथर नही | इसी कार अ ानी क िच म यह जगत सतय हो ऐसा लगता ह जबिक हमार जस ािनय क िलय यह जगत कछ भी नही | यह समम िव पतथर पर बनी हई पतिलय की सना की तरह रपालोक तथा अतर-बा िवषय स शनय ह | इसम सतयता कसी परनत अ ािनय को यह िव सतय लगता ह |rdquo विश जी बोल ldquoौी राम जगत को सतय ःवरप म जानना यह ाित ह मढ़ता ह | उस िमथया अथारत कि पत समझना यही उिचत समझ ह | ह राघव तव ा अहता आिद सब िवम-िवलास शात िशवःवरप श ःवरप ही ह | इसिलय मझ तो क अितिर और कछ भी नही िदखता | आकाश म जस जगल नही वस ही म जगत नही ह | ह राम ार ध वश ा कम स िजस परष की च ा कठपतली की तरह ई छाशनय और याकलतारिहत होती ह वह शानत मनवाला परष जीवनम मिन ह | ऐस जीवनम ानी को इस

जगत का जीवन बास की तरह बाहर-भीतर स शनय रसहीन और वासना-रिहत लगता ह | इस य पच म िजस रिच नही दय म िचनमाऽ अ य ही अ छा लगता ह ऐस परष न

भीतर तथा बाहर शािनत ा कर ली ह और इस भवसागर स पार हो गया ह | रघनदन श व ा कहत ह िक मन का ई छारिहत होना यही समािध ह कय िक ई छाओ का तयाग करन स मन को जसी शािनत िमलती ह ऐसी शािनत सकड़ उपदश स भी नही िमलती | ई छा की उतपि स जसा दःख ा होता ह ऐसा दःख तो नरक म भी नही | ई छाओ की शािनत

स जसा सख होता ह ऐसा सख ःवगर तो कया लोक म भी नही होता | अतः समःत शा तपःया यम और िनयम का िनचोड़ यही ह िक ई छामाऽ दःखदायी ह और ई छा का शमन मो ह | ाणी क दय म जसी-जसी और िजतनी-िजतनी ई छाय उतपनन होती ह उतना ही दख स वह

ड़रता रहता ह | िववक-िवचार ारा ई छाय जस-जस शानत होती जाती ह वस-वस दखरपी छत की बीमारी िमटती जाती ह |

आसि क कारण सासािरक िवषय की ई छाय य - य गहनीभत होती जाती ह तय -तय

दःख की िवषली तरग बढ़ती जाती ह | अपन परषाथर क बल स इस ई छारपी यािध का उपचार यिद नही िकया जाय तो इस यािध स छटन क िलय अनय कोई औषिध नही ह ऐसा म ढ़तापवरक

मानता ह | एक साथ सभी ई छाओ का स पणर तयाग ना हो सक तो थोड़ी-थोड़ी ई छाओ का धीर-धीर तयाग

करना चािहय परत रहना चािहय ई छा क तयाग म रत कय िक सनमागर का पिथक दखी नही होता | जो नराधम अपनी वासना और अहकार को ीण करन का य नही करता वह िदन -िदन अपन

को रावण की तरह अधर कऐ म ढ़कल रहा ह | ई छा ही दख की जनमदाऽी इस ससाररपी बल का बीज ह | यिद इस बीज को आतम ानरपी अि न स ठ क-ठ क जला िदया तो पनः यह अकिरत नही होता | रघकलभषण राम ई छामाऽ ससार ह और ई छाओ का अभाव ही िनवारण ह | अतः अनक कार की माथाप ची म ना पड़कर कवल ऐसा य करना चािहय िक ई छा उतपनन ना हो | अपनी बि स ई छा का िवनाश करन को जो ततपर नही ऐस अभाग को शा और गर का उपदश

भी कया करगा जस अपनी जनमभमी जगल म िहरणी की मतय िनि त ह उसी कार अनकिवध दख का िवःतार कारनवाल ई छारपी िवषय-िवकार स य इस जगत म मनय की मतय िनि त ह | यिद मानव ई छाओ क कारण ब च -सा मढ़ ना बन तो उस आतम ान क िलय अ प य ही करना पड़ | इसिलय सभी कार स ई छाओ को शानत करना चािहय | ई छा क शमन स परम पद की ाि होती ह | ई छारिहत हो जाना यही िनवारण ह और ई छाय

होना ही बधन ह | अतः यथाशि ई छा को जीतना चािहय | भला इतना करन म कया किठनाई ह जनम जरा यािध और मतयरपी कटीली झािड़य और खर क व - समह की जड़ भी ई छा ही ह

| अतः शमरपी अि न स अदर-ही-अदर बीज को जला ड़ालना चािहय| जहा ई छाओ का अभाव ह

वहा मि िनि त ह |

िववक वरा य आिद साधन स ई छा का सवरथा िवनाश करना चािहय | ई छा का सबध जहा-जहा ह वहा-वहा पाप प य दखरािशया और ल बी पीड़ाओ स य बधन को हािज़र ही समझो | परष

की आतिरक ई छा य - य शानत होती जाती ह तय -तय मो क िलय उसका क याणकारक

साधन बढ़ता जाता ह | िववकहीन ई छा को पोसना उस पणर करना यह तो ससाररपी िवष व को पानी स सीचन क समान ह |rdquo

- ौीयोगविश महारामायण

आतमबल का आवाहन कया आप अपन-आपको दबरल मानत हो लघतामथी म उलझ कर पिरिःतिथय स िपस रह हो

अपना जीवन दीन-हीन बना बठ हो hellipतो अपन भीतर सष आतमबल को जगाओ | शरीर चाह ी का हो चाह परष का कित क साा य म जो जीत ह व सब ी ह और कित क बनधन स पार अपन ःवरप की पहचान िजनह न कर ली ह अपन मन की गलामी की बिड़या तोड़कर िजनह न फ क दी ह व परष ह | ी या परष शरीर एव मानयताए होती ह | तम तो तन-मन स पार िनमरल आतमा हो | जागोhellipउठोhellipअपन भीतर सोय हय िन यबल को जगाओ | सवरदश सवरकाल म सव म

आतमबल को िवकिसत करो | आतमा म अथाह सामथयर ह | अपन को दीन-हीन मान बठ तो िव म ऐसी कोई स ा नही जो त ह ऊपर उठा सक | अपन आतमःवरप म िति त हो गय तो िऽलोकी म ऐसी कोई हःती नही जो त ह दबा सक | भौितक जगत म वाप की शि ईलकशोिनक शि िव त की शि गरतवाकषरण की शि बड़ी मानी जाती ह लिकन आतमबल उन सब शि य का सचालक बल ह | आतमबल क सािननधय म आकर पग ार ध को पर िमल जात ह दव की दीनता पलायन हो जाती ह ितकल पिरिःतिथया अनकल हो जाती ह | आतमबल सवर िरि -िसि य का िपता ह |

आतमबल कस जगाय हररोज़ तःकाल ज दी उठकर सय दय स पवर ःनानािद स िनवत हो जाओ | ःव छ पिवऽ ःथान

म आसन िबछाकर पवारिभमख होकर प ासन या सखासन म बठ जाओ | शानत और सनन वि

धारण करो | मन म ढ भावना करो िक म कित-िनिमरत इस शरीर क सब अभाव को पार करक सब

मिलनताओ-दबरलताओ स िप ड़ छड़ाकर आतमा की मिहमा म जागकर ही रहगा |

आख आधी खली आधी बद रखो | अब फ़फ़ड़ म खब ास भरो और भावना करो की ास क साथ

म सयर का िद य ओज भीतर भर रहा ह | ास को यथाशि अनदर िटकाय रखो | िफ़र lsquoॐhelliprsquo का ल बा उ चारण करत हए ास को धीर-धीर छोड़त जाओ | ास क खाली होन क बाद तरत ास ना लो | यथाशि िबना ास रहो और भीतर ही भीतर lsquoहिर ॐhelliprsquo lsquoहिर ॐhelliprsquo का मानिसक

जाप करो | िफ़र स फ़फ़ड़ म ास भरो | पव रीित स ास यथाशि अनदर िटकाकर बाद म धीर-धीर छोड़त हए lsquoॐhelliprsquo का गजन करो | दस-पिह िमनट ऐस ाणायाम सिहत उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo की धविन करक शानत हो जाओ | सब

यास छोड़ दो | वि य को आकाश की ओर फ़लन दो | आकाश क अनदर पथवी ह | पथवी पर अनक दश अनक समि एव अनक लोग ह | उनम स एक

आपका शरीर आसन पर बठा हआ ह | इस पर य को आप मानिसक आख स भावना स दखत

रहो | आप शरीर नही हो बि क अनक शरीर दश सागर पथवी मह न ऽ सयर चनि एव पर ा ड़ क

ा हो सा ी हो | इस सा ी भाव म जाग जाओ | थोड़ी दर क बाद िफ़र स ाणायाम सिहत lsquoॐhelliprsquo का जाप करो और शानत होकर अपन िवचार को दखत रहो | इस अवःथा म ढ़ िन य करो िक lsquoम जसा चहता ह वसा होकर रहगा |rsquo िवषयसख स ा धन-

दौलत इतयािद की इ छा न करो कय िक िन यबल या आतमबलरपी हाथी क पदिच म और सभी क पदिच समािव हो ही जायग | आतमानदरपी सयर क उदय होन क बाद िम टी क तल क दीय क ाकाश रपी शि सखाभास की गलामी कौन कर

िकसी भी भावना को साकार करन क िलय दय को करद ड़ाल ऐसी िन यातमक बिल वि होनी आवशयक ह | अनतःकरण क गहर-स-गहर दश म चोट कर ऐसा ाण भरक िन बल का आवाहन करो | सीना तानकर खड़ हो जाओ अपन मन की दीन-हीन दखद मानयताओ को कचल

ड़ालन क िलय | सदा ःमरण रह की इधर-उधर भटकती वि य क साथ त हारी शि भी िबखरती रहती ह | अतः वि य को बहकाओ नही | तमाम वि य को एकिऽत करक साधनाकाल म आतमिचनतन म लगाओ और यवहारकाल म जो कायर करत हो उसम लगाओ | द िच होकर हरक कायर करो | अपन ःवभाव म स आवश को सवरथा िनमरल कर दो | आवश म आकर कोई िनणरय मत लो कोई िबया मत करो | सदा शानत वि धारण करन का अ यास करो | िवचारशील एव सनन रहो | ःवय अचल रहकर सागर की तरह सब वि य की तरग को अपन

भीतर समालो | जीवमाऽ को अपना ःवरप समझो | सबस ःनह रखो | िदल को यापक रखो | सकिच ता का िनवारण करत रहो | ख ड़ातमक वि का सवरथा तयाग करो | िजनको ानी महापरष का सतसग और अधयातमिव ा का लाभ िमल जाता ह उसक जीवन स

दःख िवदा होन लगत ह | ॐ आननद आतमिन ा म जाग हए महापरष क सतसग एव सतसािहतय स जीवन को भि और वदात स प

एव पलिकत करो | कछ ही िदन क इस सघन योग क बाद अनभव होन लगगा िक भतकाल क

नकारतमक ःवभाव सशयातमक-हािनकारक क पनाओ न जीवन को कचल ड़ाला था िवषला कर िदया था | अब िन यबल क चमतकार का पता चला | अततरम म आिवरभत िद य खज़ाना अब

िमला | ार ध की बिड़या अब टटन लगी | ठ क ह न करोग ना िह मत पढ़कर रख मत दना इस पिःतका को | जीवन म इसको बार-बार पढ़त रहो | एक िदन म यह पणर ना होगा | बार-बार अ यास करो | त हार िलय यह एक ही पिःतका काफ़ी ह | अनय कचराप टी ना पड़ोग तो चलगा | शाबाश वीर शाबाश

  • परसतावना
  • जीवन रसायन
  • गर भकति एक अमोघ साधना
  • शरी राम-वशिषठ सवाद
  • आतमबल का आवाहन
  • आतमबल कस जगाय
Page 8: जीवन रसायन - HariOmGroup · ‘जीवन रसायन’ का यह िदय कटोरा आत्मरस के िपपासुओं हाथ

29) िकसी भी चीज़ को ई र स अिधक म यवान मत समझो | 30) यिद हम दहािभमान को तयागकर सा ात ई र को अपन शरीर म कायर करन द तो भगवान

ब या जीसस बाईःट हो जाना इतना सरल ह िजतना िनधरन पाल (Poor Paul) होना | 31) मन को वश करन का उपाय मन को अपना नौकर समझकर ःवय को उसका भ मानो | हम अपन नौकर मन की उप ा करग तो कछ ही िदन म वह हमार वश म हो जायगा | मन क

चचल भाव को ना दखकर अपन शानत ःवरप की ओर धयान दग तो कछ ही िदन म मन न

होन लगगा | इस कार साधक अपन आनदःवरप म म न हो सकता ह | 32) समम ससार क ततव ान िव ान गिणत का य और कला आपकी आतमा म स िनकलत ह

और िनकलत रहग | 33) ओ खदा को खोजनवाल तमन अपनी खोजबीन म खदा को ल कर िदया ह | य रपी तरग म अनत सामथयररपी समि को छपा िदया ह | 34) परमातमा की शािनत को भग करन का सामथयर भला िकसम ह यिद आप सचमच

परमातम-शािनत म िःथत हो जाओ तो समम ससार उलटा होकर टग जाय िफ़र भी आपकी शािनत

भग नही हो सकती | 35) महातमा वही ह जो िच को ड़ावाड़ोल करनवाल सग आय िफ़र भी िच को वश म रख बोध

और शोक को िव न होन द | 36) वित यिद आतमःवरप म लीन होती ह तो उस सतसग ःवाधयाय या अनय िकसी भी काम क िलय बाहर नही लाना चिहय | 37) स ढ़ अचल सक प शि क आग मसीबत इस कार भागती ह जस आधी-तफ़ान स बादल

िबखर जात ह | 38) सषि (गहरी नीद) आपको बलात अनभव कराती ह िक जामत का जगत चाह िकतना ही यारा और सदर लगता हो पर उस भल िबना शािनत नही िमलती | सषि म बलात िवःमरण हो उसकी सतयता भल जाय तो छः घट िनिा की शािनत िमल | जामत म उसकी सतयता का अभाव

लगन लग तो परम शािनत को ा ा परष बन जाय | िनिा रोज़ाना सीख दती ह िक यह ठोस

जगत जो आपक िच को िमत कर रहा ह वह समय की धारा म सरकता जा रहा ह | घबराओ

नही िचिनतत मत हो तम बात म िच को िमत मत करो | सब कछ ःव न म सरकता जा रहा ह | जगत की सतयता क म को भगा दो | ओ शि मान आतमा अपन अतरतम को िनहार ॐ का गजन कर दबरल िवचार एव िचताओ को कचल ड़ाल दबरल एव त छ िवचार तथा जगत को सतय मानन क कारण तन बहत-बहत

सहन िकया ह | अब उसका अत कर द | 39) ान क किठनमागर पर चलत व आपक सामन जब भारी क एव दख आय तब आप उस

सख समझो कय िक इस मागर म क एव दख ही िनतयानद ा करन म िनिम बनत ह | अतः उन क दख और आघात स िकसी भी कार साहसहीन मत बनो िनराश मत बनो | सदव आग

बढ़त रहो | जब तक अपन सतयःवरप को यथाथर रप स न जान लो तब तक रको नही | 40) ःवपनावःथा म आप शर को दखत ह और ड़रत ह िक वह आपको खा जायगा | परत आप

िजसको दखत ह वह शर नही आप ःवय ह | शर आपकी क पना क अितिर और कछ नही | इस

कार जामतावःथा म भी आपका घोर-स-घोर शऽ भी ःवय आप ही ह दसरा कोई नही | थकतव

अलगाव क िवचार को अपन दय स दर हटा दो | आपस िभनन कोई िमऽ या शऽ होना कवल

ःव न-म ह | 41) अशभ का िवरोध मत करो | सदा शात रहो | जो कछ सामन आय उसका ःवागत करो चाह

आपकी इ छा की धारा स िवपरीत भी हो | तब आप दखग िक तय बराई भलाई म बदल

जायगी | 42) रािऽ म िनिाधीन होन स पहल िबःतर पर सीध सखपवरक बठ जाओ | आख बद करो | नाक

स ास लकर फ़फ़ड़ को भरपर भर दो | िफ़र उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo का लबा उ चारण करो | िफ़र स

गहरा ःवास लकर lsquoॐhelliprsquo का लबा उ चारण करो | इस कार दस िमनट तक करो | कछ ही िदन

क िनयिमत योग क बाद इसक चमतकार का अनभव होगा | रािऽ की नीद साधना म पिरणत हो जायगी | िदल-िदमाग म शाित एव आनद की वषार होगी | आपकी लौिकक िनिा योगिनिा म बदल

जयगी | 43) हट जाओ ओ सक प और इ छाओ हट जाओ तम ससार की णभगर शसा एव धन-

स पि क साथ स बध रखती हो | शरीर चाह कसी भी दशा म रह उसक साथ मरा कोई सरोकार नही | सब शरीर मर ही ह | 44) िकसी भी तरह समय िबतान क िलय मज़दर की भाित काम मत करो | आनद क िलय

उपयोगी कसरत समझकर सख बीड़ा या मनोरजक खल समझकर एक कलीन राजकमार की भाित काम करो | दब हए कचल हए िदल स कभी कोई काम हाथ म मत लो | 45) समम ससार को जो अपना शरीर समझत ह तयक यि को जो अपना आतमःवरप

समझत ह ऐस ानी िकसस असनन ह ग उनक िलय िव प कहा रहा 46) ससार की तमाम वःतऐ सखद ह या भयानक वाःतव म तो त हारी फ़लता और आनद क

िलय ही कित न बनाई ह | उनस ड़रन स कया लाभ त हारी नादानी ही त ह चककर म ड़ालती ह

| अनयथा त ह नीचा िदखान वाला कोई नही | पकका िन य रखो िक यह जगत त हार िकसी शऽ न नही बनाया | त हार ही आतमदव का यह सब िवलास ह | 47) महातमा व ह िजनकी िवशाल सहानभित एव िजनका मातवत दय सब पािपय को दीन-

दिखय को म स अपनी गोद म ःथान दता ह | 48) यह िनयम ह िक भयभीत ाणी ही दसर को भयभीत करता ह | भयरिहत हए िबना अिभननता आ नही सकती अिभननता क िबना वासनाओ का अत स भव नही ह और िनवारसिनकता क िबना िनवरता समता मिदता आिद िद य गण कट नही होत | जो बल दसर

की दबरलता को दर ना कर सक वह वाःतव म बल नही | 49) धयान म बठन स पहल अपना समम मानिसक िचतन तथा बाहर की तमाम स पि ई र क

या सदगर क चरण म अपरण करक शात हो जाओ | इसस आपको कोई हािन नही होगी | ई र आपकी स पि दह ाण और मन की र ा करग | ई र अपरण बि स कभी हािन नही होती |

इतना ही नही दह ाण म नवजीवन का िसचन होता ह | इसस आप शाित व आनद का ोत

बनकर जीवन को साथरक कर सक ग | आपकी और पर िव की वाःतिवक उननित होगी | 50) कित सननिच एव उ ोगी कायरकतार को हर कार स सहायता करती ह | 51) सननमख रहना यह मोितय का खज़ाना दन स भी उ म ह | 52) चाह करोड़ सयर का लय हो जाय चाह अस य चनिमा िपघलकर न हो जाय परत ानी महापरष अटल एव अचल रहत ह | 53) भौितक पदाथ को सतय समझना उनम आसि रखना दख-ददर व िचताओ को आमऽण

दन क समान ह | अतः बा नाम-रप पर अपनी शि व समय को न करना यह बड़ी गलती ह |

54) जब आपन यि तव िवषयक िवचार का सवरथा तयाग कर िदया जाता ह तब उसक समान

अनय कोई सख नही उसक समान ौ अनय कोई अवःथा नही | 55) जो लोग आपको सबस अिधक हािन पहचान का यास करत ह उन पर कपापणर होकर ममय िचतन कर | व आपक ही आतमःवरप ह | 56) ससार म कवल एक ही रोग ह | सतय जगिनमथया - इस वदाितक िनयम का भग ही सवर यािधय का मल ह | वह कभी एक दख का रप लता ह तो कभी दसर दख का | इन सवर यािधय

की एक ही दवा ह अपन वाःतिवक ःवरप तव म जाग जाना | 57) ब धयानःथ बठ थ | पहाड़ पर स एक िशलाखड़ लढ़कता हआ आ रहा था | ब पर िगर इसस पहल ही वह एक दसर िशलाखड़ क साथ टकराया | भयकर आवाज़ क साथ उसक दो भाग

हो गय | उसन अपना मागर बदल िलया | धयानःथ ब की दोन तरफ़ स दोन भाग गज़र गय |

ब बच गय | कवल एक छोटा सा ककड़ उनक पर म लगा | पर स थोड़ा खन बहा | ब ःवःथता स उठ खड़ हए और िशय स कहा ldquoभी ओ स यक समािध का यह वलत माण ह | म यिद धयान-समािध म ना होता तो िशलाखड़ न मझ कचल िदया होता | लिकन ऐसा ना होकर उसक दो भाग हो गय | उसम स िसफ़र एक छोटा-सा ककड़ ऊछलकर मर पर म लगा | यह जो छोटा-सा ज़ म हआ ह वह धयान की पणरता म रही हई कछ नयनता का पिरणाम ह | यिद धयान पणर होता तो इतना भी ना लगता |rdquo 58) कहा ह वह तलवार जो मझ मार सक कहा ह वह श जो मझ घायल कर सक कहा ह वह

िवपि जो मरी सननता को िबगाड़ सक कहा ह वह दख जो मर सख म िव न ड़ाल सक मर सब भय भाग गय | सब सशय कट गय | मरा िवजय-ाि का िदन आ पहचा ह | कोई ससािरक

तरग मर िनछल िच को आदोिलत नही कर सकती | इन तरग स मझ ना कोई लाभ ह ना हािन

ह | मझ शऽ स ष नही िमऽ स राग नही | मझ मौत का भय नही नाश का ड़र नही जीन की वासना नही सख की इ छा नही और दख स ष नही कय िक यह सब मन म रहता ह और मन

िमथया क पना ह | 59) स पणर ःवाःथय की अजीब यि रोज सबह तलसी क पाच प चबाकर एक लास बासी पानी पी लो | िफ़र जरा घम लो दौड़ लो या कमर म ही पज क बल थोड़ा कद लो | नहा-धोकर ःवःथ शानत होकर एकात म बठ जाओ | दस बारह गहर-गहर ास लो | आग-पीछ क कतर य

स िनि त हो जाओ | आरो यता आनद सख शािनत दान करनवाली िवचारधारा को िच म बहन दो | िबमारी क िवचार को हटाकर इस कार की भावना पर मन को ढ़ता स एकाम करो िक

मर अदर आरो यता व आनद का अनत ोत वािहत हो रहा हhellip मर अतराल म िद यामत का महासागर लहरा रहा ह | म अनभव कर रहा ह िक समम सख आरो यता शि मर भीतर ह | मर मन म अननत शि और सामथयर ह | म ःवःथ ह | पणर सनन ह | मर अदर-बाहर सवरऽ

परमातमा का काश फ़ला हआ ह | म िव प रिहत ह | सब नद स म ह | ःवग य सख मर अदर ह | मरा दय परमातमा का ग दश ह | िफ़र रोग-शोक वहा कस रह सकत ह म दवी ओज क मड़ल म िव हो चका ह | वह मर ःवाःथय का दश ह | म तज का पज ह | आरो यता का अवतार ह | याद रखो आपक अतःकरण म ःवाःथय सख आनद और शािनत ई रीय वरदान क रप म िव मान ह | अपन अतःकरण की आवाज़ सनकर िनशक जीवन यतीत करो | मन म स कि पत

रोग क िवचार को िनकाल दो | तयक िवचार भाव श द और कायर को ई रीय शि स पिरपणर रखो | ॐकार का सतत गजन करो | सबह-शाम उपरो िवचार का िचतन-मनन करन स िवशष लाभ होगा | ॐ आनदhellip ॐ शाितhellip

पणर ःवःथhellip पणर सननhellip 60) भय कवल अ ान की छाया ह दोष की काया ह मनय को धमरमागर स िगरान वाली आसरी माया ह | 61) याद रखो चाह समम ससार क तमाम पऽकार िननदक एकिऽत होकर आपक िवरध

आलोचन कर िफ़र भी आपका कछ िबगाड़ नही सकत | ह अमर आतमा ःवःथ रहो | 62) लोग ायः िजनस घणा करत ह ऐस िनधरन रोगी इतयािद को सा ात ई र समझकर उनकी सवा करना यह अननय भि एव आतम ान का वाःतिवक ःवरप ह | 63) रोज ातः काल उठत ही ॐकार का गान करो | ऐसी भावना स िच को सराबोर कर दो िक

lsquoम शरीर नही ह | सब ाणी कीट पतग गनधवर म मरा ही आतमा िवलास कर रहा ह | अर उनक

रप म म ही िवलास कर रहा ह | rsquo भया हर रोज ऐसा अ यास करन स यह िस ात दय म िःथर हो जायगा | 64) मी आग-पीछ का िचनतन नही करता | वह न तो िकसी आशका स भयभीत होता ह और न

व रमान पिरिःथित म माःपद म ीित क िसवाय अनय कही आराम पाता ह |

65) जस बालक ितिब ब क आौयभत दपरण की ओर धयान न दकर ितिब ब क साथ खलता ह जस पामर लोग यह समम ःथल पच क आौयभत आकाश की ओर धयान न दकर कवल

ःथल पच की ओर धयान दत ह वस ही नाम-रप क भ ःथल ि क लोग अपन दभार य क

कारण समम ससार क आौय सि चदाननद परमातमा का धयान न करक ससार क पीछ पागल

होकर भटकत रहत ह | 66) इस स पणर जगत को पानी क बलबल की तरह णभगर जानकर तम आतमा म िःथर हो जाओ | तम अ त ि वाल को शोक और मोह कस 67) एक आदमी आपको दजरन कहकर पिरि छनन करता ह तो दसरा आपको स जन कहकर भी पिरि छनन ही करता ह | कोई आपकी ःतित करक फला दता ह तो कोई िननदा करक िसकड़ा दता ह | य दोन आपको पिरि छनन बनात ह | भा यवान तो वह परष ह जो तमाम बनधन क िवर

खड़ा होकर अपन दवतव की अपन ई रतव की घोषणा करता ह अपन आतमःवरप का अनभव

करता ह | जो परष ई र क साथ अपनी अभदता पहचान सकता ह और अपन इदरिगदर क लोग क

सम समम ससार क सम िनडर होकर ई रतव का िनरपण कर सकता ह उस परष को ई र मानन क िलय सारा ससार बाधय हो जाता ह | परी सि उस अवय परमातमा मानती ह | 68) यह ःथल भौितक पदाथर इिनिय की ाित क िसवाय और कछ नही ह | जो नाम व रप पर भरोसा रखता ह उस सफलता नही िमलती | सआम िस ात अथारत सतय आतम-ततव पर िनभरर रहना ही सफलता की कजी ह | उस महण करो उसका मनन करो और यवहार करो | िफर नाम-

रप आपको खोजत िफरग | 69) सख का रहःय यह ह आप य - य पदाथ को खोजत-िफरत हो तय -तय उनको खोत

जात हो | आप िजतन कामना स पर होत हो उतन आवयकताओ स भी पर हो जात हो और पदाथर भी आपका पीछा करत हए आत ह | 70) आननद स ही सबकी उतपि आननद म ही सबकी िःथित एव आननद म ही सबकी लीनता दखन स आननद की पणरता का अनभव होता ह | 71) हम बोलना चहत ह तभी श दो चारण होता ह बोलना न चाह तो नही होता | हम दखना चाह तभी बाहर का य िदखता ह नऽ बद कर ल तो नही िदखता | हम जानना चाह तभी पदाथर का ान होता ह जानना नही चाह तो ान नही होता | अतः जो कोई पदाथर दखन सनन या जानन म

आता ह उसको बािधत करक बािधत करनवाली ानरपी बि की वि को भी बािधत कर दो | उसक बाद जो शष रह वह ाता ह | ाततव धमररिहत श ःवरप ाता ही िनतय सि चदाननद

ह | िनरतर ऐसा िववक करत हए ान व यरिहत कवल िचनमय िनतय िव ानाननदघनरप

म िःथर रहो | 72) यिद आप सवागपणर जीवन का आननद लना चाहत हो तो कल की िचनता छोड़ो | अपन चार

ओर जीवन क बीज बोओ | भिवय म सनहर ःवपन साकार होत दखन की आदत बनाओ | सदा क

िलय मन म यह बात पककी बठा दो िक आपका आनवाला कल अतयनत काशमय आननदमय

एव मधर होगा | कल आप अपन को आज स भी अिधक भा यवान पायग | आपका मन

सजरनातमक शि स भर जायगा | जीवन ऐ यरपणर हो जायगा | आपम इतनी शि ह िक िव न

आपस भयभीत होकर भाग खड़ ह ग | ऐसी िवचारधारा स िनि त रप स क याण होगा | आपक

सशय िमट जायग | 73) ओ मानव त ही अपनी चतना स सब वःतओ को आकषरक बना दता ह | अपनी यार भरी ि उन पर डालता ह तब तरी ही चमक उन पर चढ़ जाती ह औरhellipिफर त ही उनक यार म फ़स जाता ह | 74) मन िविचऽ एव अटपट माग ारा ऐस ततव की खोज की जो मझ परमातमा तक पहचा सक | लिकन म िजस-िजस नय मागर पर चला उन सब माग स पता चला िक म परमातमा स दर चला गया | िफर मन बि म ा एव िव ा स परमातमा की खोज की िफर भी परमातमा स अलग रहा | मनथालय एव िव ालय न मर िवचार म उ टी गड़बड़ कर दी | म थककर बठ गया | िनःत ध हो गया | सयोगवश अपन भीतर ही झाका धयान िकया तो उस अनत रि स मझ सवरःव िमला िजसकी खोज म बाहर कर रहा था | मरा आतमःवरप सवरऽ या हो रहा ह | 75) जस सामानय मनय को पतथर गाय भस ःवाभािवक रीित स ि गोचर होत ह वस ही ानी को िनजाननद का ःवाभािवक अनभव होता ह | 76) वदानत का यह अनभव ह िक नीच नराधम िपशाच शऽ कोई ह ही नही | पिवऽ ःवरप ही सवर रप म हर समय शोभायमान ह | अपन-आपका कोई अिन नही करता |

मर िसवा और कछ ह ही नही तो मरा अिन करन वाला कौन ह मझ अपन-आपस भय कसा 77) यह चराचर सि रपी त तब तक भासता ह जब तक उस दखनवाला मन बठा ह |

मन शात होत ही त की गध तक नही रहती |

78) िजस कार एक धाग म उ म मधयम और किन फल िपरोय हए ह उसी कार मर आतमःवरप म उ म मधयम और किन शरीर िपरोय हए ह | जस फल की गणव ा का भाव धाग पर नही पड़ता वस ही शरीर की गणव ा का भाव मरी सवर यापकता नही पड़ता | जस सब फल क िवनाश स धाग को कोई हािन नही वस शरीर क िवनाश स मझ सवरगत आतमा को कोई हािन नही होती | 79) म िनमरल िन ल अननत श अजर अमर ह | म असतयःवरप दह नही | िस परष इसीको lsquo ानrsquo कहत ह | 80) म भी नही और मझस अलग अनय भी कछ नही | सा ात आननद स पिरपणर कवल िनरनतर और सवरऽ एक ही ह | उ ग छोड़कर कवल यही उपासना सतत करत रहो | 81) जब आप जान लग िक दसर का िहत अपना ही िहत करन क बराबर ह और दसर का अिहत करना अपना ही अिहत करन क बराबर ह तब आपको धमर क ःवरप का सा तकार हो जायगा | 82) आप आतम-ित ा दलबनदी और ईयार को सदा क िलए छोड़ दो | पथवी माता की तरह सहनशील हो जाओ | ससार आपक कदम म नयोछावर होन का इतज़ार कर रहा ह | 83) म िनगरण िनिबय िनतय म और अ यत ह | म असतयःवरप दह नही ह | िस परष इसीको lsquo ानrsquo कहत ह | 84) जो दसर का सहारा खोजता ह वह सतयःवरप ई र की सवा नही कर सकता | 85) सतयःवरप महापरष का म सख-दःख म समान रहता ह सब अवःथाओ म हमार अनकल रहता ह | दय का एकमाऽ िवौामःथल वह म ह | व ावःथा उस आतमरस को सखा नही सकती | समय बदल जान स वह बदलता नही | कोई िवरला भा यवान ही ऐस िद य म का भाजन बन सकता ह | 86) शोक और मोह का कारण ह ािणय म िविभनन भाव का अधयारोप करना | मनय जब एक को सख दनवाला यारा स द समझता ह और दसर को दःख दनवाला शऽ समझकर उसस ष करता ह तब उसक दय म शोक और मोह का उदय होना अिनवायर

ह | वह जब सवर ािणय म एक अख ड स ा का अनभव करन लगगा ािणमाऽ को भ का पऽ समझकर उस आतमभाव स यार करगा तब उस साधक क दय म शोक और मोह का नामोिनशान नही रह जायगा | वह सदा सनन रहगा | ससार म उसक िलय न ही कोई शऽ रहगा और न ही कोई िमऽ | उसको कोई कलश नही पहचायगा | उसक सामन िवषधर नाग भी अपना ःवभाव भल जायगा | 87) िजसको अपन ाण की परवाह नही मतय का नाम सनकर िवचिलत न होकर उसका ःवागत करन क िलए जो सदा ततपर ह उसक िलए ससार म कोई कायर असाधय नही | उस िकसी बा श की जररत नही साहस ही उसका श ह | उस श स वह अनयाय का प लनवाल को परािजत कर दता ह िफर भी उनक िलए बर िवचार का सवन नही करता | 88) िचनता ही आननद व उ लास का िवधवस करनवाली रा सी ह | 89) कभी-कभी मधयरािऽ को जाग जाओ | उस समय इिनिया अपन िवषय क ित चचल नही रहती | बिहमरख ःफरण की गित मनद होती ह | इस अवःथा का लाभ लकर इिनियातीत अपन िचदाकाश ःवरप का अनभव करो | जगत शरीर व इिनिय क अभाव म भी अपन अख ड अिःततव को जानो | 90) य म ीित नही रहना ही असली वरा य ह | 91) रोग हम दबाना चाहता ह | उसस हमार िवचार भी मनद हो जात ह | अतः रोग की िनवित करनी चिहए | लिकन जो िवचारवान परष ह वह कवल रोगिनवित क पीछ ही नही लग जाता | वह तो यह िनगरानी रखता ह िक भयकर दःख क समय भी अपना िवचार छट तो नही गया ऐसा परष lsquoहाय-हायrsquo करक ाण नही तयागता कय िक वह जानता ह िक रोग उसका दास ह | रोग कसा भी भय िदखाय लिकन िवचारवान परष इसस भािवत नही होता | 92) िजस साधक क पास धारणा की ढ़ता एव उ य की पिवऽता य दो गण ह ग वह अवय िवजता होगा | इन दो शा स ससि जत साधक समःत िव न-बाधाओ का सामना करक आिखर म िवजयपताका फहरायगा | 93) जब तक हमार मन म इस बात का पकका िन य नही होगा िक सि शभ ह तब तक मन एकाम नही होगा | जब तक हम समझत रहग िक सि िबगड़ी हई ह तब तक

मन सशक ि स चार ओर दौड़ता रहगा | सवरऽ मगलमय ि रखन स मन अपन-आप शात होन लगगा | 94) आसन िःथर करन क िलए सक प कर िक जस पथवी को धारण करत हए भी शषजी िब कल अचल रहत ह वस म भी अचल रहगा | म शरीर और ाण का ा ह | 95) lsquoससार िमथया हrsquo - यह मद ानी की धारणा ह | lsquoससार ःव नवत हrsquo - यह मधयम ानी की धारणा ह | lsquoससार का अतयनत अभाव ह ससार की उतपि कभी हई ही नहीrsquo -

यह उ म ानी की धारणा ह | 96) आप यिद भि मागर म ह तो सारी सि भगवान की ह इसिलए िकसीकी भी िननदा करना ठ क नही | आप यिद ानमागर म ह तो यह सि अपना ही ःवरप ह | आप अपनी ही िननदा कस कर सकत ह इस कार द नो माग म परिननदा का अवकाश ही नही ह | 97) य म ा का भान एव ा म य का भान हो रहा ह | इस गड़बड़ का नाम ही अिववक या अ ान ह | ा को ा तथा य को य समझना ही िववक या ान ह | 98) आसन व ाण िःथर होन स शरीर म िव त पदा होती ह | शरीर क ारा जब भी िबया की जाती ह तब वह िव त बाहर िनकल जाती ह | इस िव त को शरीर म रोक लन स शरीर िनरोगी बन जाता ह | 99) ःव न की सि अ पकालीन और िविचऽ होती ह | मनय जब जागता ह तब जानता ह िक म पलग पर सोया ह | मझ ःव न आया | ःव न म पदाथर दश काल िबया इतयािद परी सि का सजरन हआ | लिकन मर िसवाय और कछ भी न था | ःव न की सि झठ थी | इसी कार ततव ानी परष अ ानरपी िनिा स ानरपी जामत अवःथा को ा हए ह | व कहत ह िक एक क िसवा अनय कछ ह ही नही | जस ःव न स जागन क बाद हम ःव न की सि िमथया लगती ह वस ही ानवान को यह जगत िमथया लगता ह | 100) शारीिरक क पड़ तब ऐसी भावना हो जाय िक lsquoयह क मर यार भ की ओर स हhelliprsquo तो वह क तप का फल दता ह | 101) चलत-चलत पर म छाल पड़ गय ह भख याकल कर रही हो बि िवचार

करन म िशिथल हो गई हो िकसी पड़ क नीच पड़ ह जीवन अस भव हो रहा हो मतय का आगमन हो रहा हो तब भी अनदर स वही िनभरय धविन उठ lsquoसोऽहमhellipसोऽहमhellipमझ भय नहीhellipमरी मतय नहीhellipमझ भख नहीhellip यास नहीhellip कित की कोई भी यथा मझ न नही कर सकतीhellipम वही हhellipवही हhelliprsquo 102) िजनक आग िय-अिय अनकल-ितकल सख-दःख और भत-भिवय एक समान ह ऐस ानी आतमव ा महापरष ही स च धनवान ह | 103) दःख म दःखी और सख म सखी होन वाल लोह जस होत ह | दःख म सखी रहन वाल सोन जस होत ह | सख-दःख म समान रहन वाल र जस होत ह परनत जो सख-दःख की भावना स पर रहत ह व ही स च साट ह | 104) ःव न स जाग कर जस ःव न को भल जात ह वस जामत स जागकर थोड़ी दर क

िलए जामत को भल जाओ | रोज ातः काल म पनिह िमनट इस कार ससार को भल जान की आदत डालन स आतमा का अनसधान हो सकगा | इस योग स सहजावःथा ा होगी | 105) तयाग और म स यथाथर ान होता ह | दःखी ाणी म तयाग व म िवचार स आत ह

| सखी ाणी म तयाग व म सवा स आत ह कय िक जो ःवय दःखी ह वह सवा नही कर सकता पर िवचार कर सकता ह | जो सखी ह वह सख म आस होन क कारण उसम िवचार का उदय नही हो सकता लिकन वह सवा कर सकता ह | 106) लोग की पजा व णाम स जसी सननता होती ह वसी ही सननता जब मार पड़

तब भी होती हो तो ही मन य िभ ानन महण करन का स चा अिधकारी माना जाता ह | 107) हरक साधक को िब कल नय अनभव की िदशा म आग बढ़ना ह | इसक िलय

ानी महातमा की अतयनत आवयकता होती ह | िजसको स ची िज ासा हो उस ऐस

महातमा िमल ही जात ह | ढ़ िज ासा स िशय को गर क पास जान की इ छा होती ह | यो य

िज ास को समथर गर ःवय दशरन दत ह | 108) बीत हए समय को याद न करना भिवय की िचनता न करना और व रमान म ा

सख-दःखािद म सम रहना य जीवनम परष क ल ण ह | 109) जब बि एव दय एक हो जात ह तब सारा जीवन साधना बन जाता ह |

110) बि मान परष ससार की िचनता नही करत लिकन अपनी मि क बार म सोचत ह |

मि का िवचार ही तयागी दानी सवापरायण बनाता ह | मो की इ छा स सब सदगण आ जात ह

| ससार की इ छा स सब दगरण आ जात ह | 111) पिरिःथित िजतनी किठन होती ह वातावरण िजतना पीड़ाकारक होता ह उसस

गजरन वाला उतना ही बलवान बन जाता ह | अतः बा क और िचनताओ का ःवागत करो | ऐसी पिरिःथित म भी वदानत को आचरण म लाओ | जब आप वदानती जीवन यतीत करग तब दखग

िक समःत वातावरण और पिरिःथितया आपक वश म हो रही ह आपक िलय उपयोगी िस हो रही ह | 112) हरक पदाथर पर स अपन मोह को हटा लो और एक सतय पर एक तथय पर अपन

ई र पर समम धयान को किनित करो | तरनत आपको आतम-सा ातकार होगा | 113) जस बड़ होत-होत बचपन क खलकद छोड़ दत हो वस ही ससार क खलकद छोड़कर आतमाननद का उपभोग करना चािहय | जस अनन व जल का सवन करत हो वस ही आतम-

िचनतन का िनरनतर सवन करना चािहय | भोजन ठ क स होता ह तो ति की डकार आती ह वस

ही यथाथर आतमिचनतन होत ही आतमानभव की डकार आयगी आतमाननद म मःत ह ग |

आतम ान क िसवा शाित का कोई उपाय नही | 114) आतम ानी क हकम स सयर काशता ह | उनक िलय इनि पानी बरसाता ह | उनही क

िलय पवन दत बनकर गमनागमन करता ह | उनही क आग समि रत म अपना िसर रगड़ता ह | 115) यिद आप अपन आतमःवरप को परमातमा समझो और अनभव करो तो आपक सब

िवचार व मनोरथ सफल ह ग उसी ण पणर ह ग | 116) राजा-महाराजा दवी-दवता वद-पराण आिद जो कछ ह व आतमदश क सक पमाऽ

ह | 117) जो लोग ितकलता को अपनात ह ई र उनक स मख रहत ह | ई र िजनह अपन

स दर रखना चाहत ह उनह अनकल पिरिःथितया दत ह | िजसको सब वःतए अनकल एव पिवऽ

सब घटनाए लाभकारी सब िदन शभ सब मनय दवता क रप म िदखत ह वही परष ततवदश ह | 118) समता क िवचार स िच ज दी वश म होता ह हठ स नही |

119) ऐस लोग स स बनध रखो िक िजसस आपकी सहनशि बढ़ समझ की शि बढ़

जीवन म आन वाल सख-दःख की तरग का आपक भीतर शमन करन की ताकत आय समता बढ़

जीवन तजःवी बन | 120) लोग बोलत ह िक धयान व आतमिचनतन क िलए हम फरसत नही िमलती | लिकन

भल मनय जब नीद आती ह तब सब महतवपणर काम भी छोड़कर सो जाना पड़ता ह िक नही

जस नीद को महतव दत हो वस ही चौबीस घनट म स कछ समय धयान व आतमिचनतन म भी िबताओ | तभी जीवन साथरक होगा | अनयथा कछ भी हाथ नही लगगा | 121) भल जाओ िक तम मनय हो अमक जाित हो अमक उ हो अमक िड़मीवाल हो अमक धनधवाल हो | तम िनगरण िनराकार सा ीरप हो ऐसा ढ़ िन य करो | इसीम तमाम

कार की साधनाए िबयाए योगािद समािव हो जात ह | आप सवर यापक अख ड चतनय हो | सार ान का यह मल ह | 122) दोष तभी िदखता जब हमार लोचन म क अभावरप पीिलया रोग स मःत होत ह | 123) साधक यिद अ यास क मागर पर उसी कार आग बढ़ता जाय िजस कार ार भ

म इस मागर पर चलन क िलए उतसाहपवरक कदम रखा था तो आयरपी सयर अःत होन स पहल

जीवनरपी िदन रहत ही अवय सोऽहम िसि क ःथान तक पहच जाय | 124) लोग ज दी स उननित कय नही करत कय िक बाहर क अिभाय एव िवचारधाराओ का बहत बड़ा बोझ िहमालय की तरह उनकी पीठ पर लदा हआ ह | 125) अपन ित होन वाल अनयाय को सहन करत हए अनयायकतार को यिद मा कर िदया जाय तो ष म म पिरणत हो जाता ह | 126) साधना की शरआत ौ ा स होती ह लिकन समाि ान स होनी चािहय | ान मान

ःवयसिहत सवर ःवरप ह ऐसा अपरो अनभव | 127) अपन शरीर क रोम-रोम म स ॐ का उ चारण करो | पहल धीम ःवर म ार भ

करो | शर म धविन गल स िनकलगी िफर छाती स िफर नािभ स और अनत म रीढ़ की ह डी क

आिखरी छोर स िनकलगी | तब िव त क धकक स सष ना नाड़ी तरनत खलगी | सब कीटाणसिहत

तमाम रोग भाग खड़ ह ग | िनभरयता िह मत और आननद का फ वारा छटगा | हर रोज ातःकाल

म ःनानािद करक सय दय क समय िकसी एक िनयत ःथान म आसन पर पवारिभमख बठकर

कम-स-कम आधा घनटा करक तो दखो | 128) आप जगत क भ बनो अनयथा जगत आप पर भतव जमा लगा | ान क

मतािबक जीवन बनाओ अनयथा जीवन क मतािबक ान हो जायगा | िफर यग की याऽा स भी दःख का अनत नही आयगा | 129) वाःतिवक िश ण का ारभ तो तभी होता ह जब मनय सब कार की सहायताओ स िवमख होकर अपन भीतर क अननत ॐोत की तरफ अमसर होता ह | 130) य पच की िनवित क िलए अनतःकरण को आननद म सरोबार रखन क िलए

कोई भी कायर करत समय िवचार करो म कौन ह और कायर कौन कर रहा ह भीतर स जवाब

िमलगा मन और शरीर कायर करत ह | म सा ीःवरप ह | ऐसा करन स कतारपन का अह

िपघलगा सख-दःख क आघात मनद ह ग | 131) राग- ष की िनवित का कया उपाय ह उपाय यही ह िक सार जगत-पच को मनोरा य समझो | िननदा-ःतित स राग- ष स पच म सतयता ढ़ होती ह | 132) जब कोई खनी हाथ आपकी गरदन पकड़ ल कोई श धारी आपको कतल करन क

िलए ततपर हो जाय तब यिद आप उसक िलए सननता स तयार रह दय म िकसी कार का भय

या िवषाद उतपनन न हो तो समझना िक आपन राग- ष पर िवजय ा कर िलया ह | जब आपकी ि पड़त ही िसहािद िहसक जीव की िहसावित गायब हो जाय तब समझना िक अब राग- ष का अभाव हआ ह | 133) आतमा क िसवाय अनय कछ भी नही ह - ऐसी समझ रखना ही आतमिन ा ह | 134) आप ःव न ा ह और यह जगत आपका ही ःव न ह | बस िजस ण यह ान हो जायगा उसी ण आप म हो जाएग | 135) िदन क चौबीस घ ट को साधनामय बनान क िलय िनक मा होकर यथर िवचार करत हए मन को बार-बार सावधान करक आतमिचतन म लगाओ | ससार म सल न मन को वहा स उठा कर आतमा म लगात रहो | 136) एक बार सागर की एक बड़ी तरग एक बलबल की िता पर हसन लगी | बलबल न

कहा ओ तरग म तो छोटा ह िफर भी बहत सखी ह | कछ ही दर म मरी दह टट जायगी िबखर

जायगी | म जल क साथ जल हो जाऊगा | वामन िमटकर िवराट बन जाऊगा | मरी मि बहत

नजदीक ह | मझ आपकी िःथित पर दया आती ह | आप इतनी बड़ी हई हो | आपका छटकारा ज दी नही होगा | आप भाग-भागकर सामनवाली च टान स टकराओगी | अनक छोटी-छोटी तरग

म िवभ हो जाओगी | उन अस य तरग म स अननत-अननत बलबल क रप म पिरवितरत हो जाओगी | य सब बलबल फटग तब आपका छटकारा होगा | बड़ पन का गवर कय करती हो जगत की उपलि धय का अिभमान करक परमातमा स दर मत जाओ | बलबल की तरह सरल

रहकर परमातमा क साथ एकता का अनभव करो | 137) जब आप ईयार ष िछिानवषण दोषारोपण घणा और िननदा क िवचार िकसीक

ित भजत ह तब साथ-ही-साथ वस ही िवचार को आमिऽत भी करत ह | जब आप अपन भाई की आख म ितनका भ कत ह तब अपनी आख म भी आप ताड़ भ क रह ह | 138) शरीर अनक ह आतमा एक ह | वह आतमा-परमातमा मझस अलग नही | म ही कतार सा ी व नयायधीश ह | म ही ककर श आलोचक ह और म ही मधर शसक ह | मर िलय तयक

यि ःवतऽ व ःव छनद ह | बनधन पिरि छननता और दोष मरी ि म आत ही नही | म म

हपरम म ह और अनय लोग भी ःवतऽ ह | ई र म ही ह | आप भी वही हो | 139) िजस कार बालक अपनी परछा म बताल की क पना कर भय पाता ह उसी कार जीव अपन ही सक प स भयभीत होता ह और क पाता ह | 140) कभी-कभी ऐसी भावना करो िक आपक सामन चतनय का एक महासागर लहरा रहा ह | उसक िकनार खड़ रह कर आप आनद स उस दख रह ह | आपका शरीर सागर की सतह पर घमन गया ह | आपक दखत ही दखत वह सागर म डब गया | इस समःत पिरिःथित को दखन वाल आप सा ी आतमा शष रहत ह | इस कार सा ी रप म अपना अनभव करो | 141) यिद हम चाहत ह िक भगवान हमार सब अपराध माफ कर तो इसक िलए सगम साधना यही ह िक हम भी अपन सबिधत सब लोग क सब अपराध माफ कर द |

कभी िकसी क दोष या अपराध पर ि न डाल कय िक वाःतव म सब रप म हमारा यारा ई दव ही बीड़ा कर रहा ह |

142) पणर पिवऽता का अथर ह बा भाव स भािवत न होना | सासािरक मनोहरता एव घणा स पर रहना राजी-नाराजगी स अिवचल िकसी म भद न दखना और आतमानभव क ारा आकषरण व तयाग स अिल रहना | यही वदानत का उपिनषद का

रहःय ह | 143) ई र सा ातकार तभी होगा जब ससार की ि स तीत होन वाल बड़-स-बड़ विरय को भी मा करन का आपका ःवभाव बन जायगा | 144) चाल यवहार म स एकदम उपराम होकर दो िमनट क िलए िवराम लो |

सोचो िक lsquo म कौन ह सद -गम शरीर को लगती ह | भख- यास ाण को लगती ह |

अनकलता-ितकलता मन को लगती ह | शभ-अशभ एव पाप-प य का िनणरय बि करती ह | म न शरीर ह न ाण ह न मन ह न बि ह | म तो ह इन सबको स ा दन वाला इन सबस नयारा िनलप आतमा |rsquo 145) जो मनय िनरतर lsquoम म हhelliprsquo ऐसी भावना करता ह वह म ही ह और lsquoम ब हhelliprsquo ऐसी भावना करनवाला ब ही ह | 146) आप िनभरय ह िनभरय ह िनभरय ह | भय ही मतय ह | भय ही पाप ह | भय ही नकर ह | भय ही अधमर ह | भय ही यिभचार ह | जगत म िजतन असत या िमथया भाव ह व सब इस भयरपी शतान स पदा हए ह | 147) परिहत क िलए थोड़ा काम करन स भी भीतर की शि या जागत होती ह |

दसर क क याण क िवचारमाऽ स दय म एक िसह क समान बल आ जाता ह | 148) हम यिद िनभरय ह ग तो शर को भी जीतकर उस पाल सक ग | यिद डरग तो क ा भी हम फ़ाड़ खायगा | 149) तयक िबया तयक यवहार तयक ाणी ःवरप िदख यही सहज समािध ह | 150) जब किठनाईया आय तब ऐसा मानना िक मझ म सहन शि बढ़ान क िलए ई र न य सयोग भज ह | किठन सयोग म िह मत रहगी तो सयोग बदलन लगग |

िवषय म राग- ष रह गया होगा तो वह िवषय कसौटी क रप म आग आयग और उनस पार होना पड़गा | 151) ततव ि स न तो आपन जनम िलया न कभी लग | आप तो अनत ह सवर यापी ह िनतयम अजर-अमर अिवनाशी ह | जनम-मतय का ही गलत ह महा-

मखरतापणर ह | जहा जनम ही नही हआ वहा मतय हो ही कस सकती ह 152) आप ही इस जगत क ई र हो | आपको कौन दबरल बना सकता ह जगत म आप ही एकमाऽ स ा हो | आपको िकसका भय खड़ हो जाओ | म हो जाओ | ठ क स समझ लो िक जो कोई िवचार या श द आपको दबरल बनाता ह वही एकमाऽ अशभ ह | मनय को दबरल व भयभीत करनवाला जो कछ इस ससार म ह वह पाप ह | 153) आप अपना कायर या कतर य करो लिकन न उसक िलए कोई िचनता रह न ही कोई

इ छा | अपन कायर म सख का अनभव करो कय िक आपका कायर ःवय सख या िवौाम ह | आपका कायर आतमानभव का ही दसरा नाम ह | कायर म लग रहो | कायर आपको आतमानभव कराता ह |

िकसी अनय हत स कायर न करो | ःवतऽ वि स अपन कायर पर डट जाओ | अपन को ःवतऽ

समझो िकसीक कदी नही | 154) यिद आप सतय क मागर स नही हटत तो शि का वाह आपक साथ ह समय आपक

साथ ह ऽ आपक साथ ह | लोग को उनक भतकाल की मिहमा पर फलन दो भिवयकाल की स पणर मिहमा आपक हाथ म ह | 155) जब आप िद य म क साथ चा डाल म चोर म पापी म अ यागत म और सबम भ क दशरन करग तब आप भगवान ौी कण क मपाऽ बन जायग | 156) आचायर गौड़पाद न ःप कहा आप सब आपस म भल ही लड़त रह लिकन मर साथ नही लड़ सक ग | आप सब लोग मर पट म ह | म आतमःवरप स सवर या ह | 157) मनय सभी ािणय म ौ ह सब दवताओ स भी ौ ह | दवताओ को भी िफर स

धरती पर आना पड़गा और मनय शरीर ा करक मि ा करनी होगी | 158) िनि नतता क दो सऽ जो कायर करना जररी ह उस परा कर दो | जो िबनजररी ह

उस भल जाओ | 159) सवा-म-तयाग ही मनय क िवकास का मल मऽ ह | अगर यह मऽ आपको जच

जाय तो सभी क ित सदभाव रखो और शरीर स िकसी-न-िकसी यि को िबना िकसी मतलब क

सहयोग दत रहो | यह नही िक जब मरी बात मानग तब म सवा करगा | अगर बनधक मरी बात

नही मानत तो म सवा नही करगा |

भाई तब तो तम सवा नही कर पाओग | तब तो तम अपनी बात मनवा कर अपन अह की पजा ही

करोग | 160) जस ःव न िमथया ह वस ही यह जामत अवःथा भी ःव नवत ही ह िमथया ह | हरक

को अपन इस ःव न स जागना ह | सदगर बार-बार जगा रह ह लिकन जाग कर वापस सो न जाए ऐसा परषाथर तो हम ही करना होगा | 161) सदा सननमख रहो | मख को कभी मिलन मत करो | िन य कर लो िक आपक

िलय शोक न इस जगत म जनम नही िलया ह | आननदःवरप म िचनता का ःथान ही कहा ह 162) समम ा ड एक शरीर ह | समम ससार एक शरीर ह | जब तक आप तयक क

साथ एकता का अनभव करत रहग तब तक सब पिरिःथितया और आस-पास की चीज़ हवा और समि की लहर भी आपक प म रहगी | 163) आपको जो कछ शरीर स बि स या आतमा स कमजोर बनाय उसको िवष की तरह

ततकाल तयाग दो | वह कभी सतय नही हो सकता | सतय तो बलद होता ह पावन होता ह

ानःवरप होता ह | सतय वह ह जो शि द | 164) साधना म हमारी अिभरिच होनी चािहय साधना की तीो माग होनी चािहय | 165) दसर क दोष की चचार मत करो चाह व िकतन भी बड़ ह | िकसी क दोष की चचार करक आप उसका िकसी भी कार भला नही करत बि क उस आघात पहचात ह और साथ-ही-साथ अपन आपको भी | 166) इस ससार को सतय समझना ही मौत ह | आपका असली ःवरप तो आननदःवरप

आतमा ह | आतमा क िसवा ससार जसी कोई चीज ही नही ह | जस सोया हआ मनय ःव न म अपनी एकता नही जानता अिपत अपन को अनक करक दखता ह वस ही आननदःवरप आतमा जामत ःव न और सषि - इन तीन ःवरप को दखत हए अपनी एकता अि तीयता का अनभव

नही करता | 167) मनोजय का उपाय ह अ यास और वरा य | अ यास मान य पवरक मन को बार-बार परमातम-िचतन म लगाना और वरा य मान मन को ससार क पदाथ की ओर स वापस

लौटाना | 168) िकसी स कछ मत मागो | दन क िलय लोग आपक पीछ-पीछ घमग | मान नही

चाहोग तो मान िमलगा | ःवगर नही चाहोग तो ःवगर क दत आपक िलय िवमान लकर आयग |

उसको भी ःवीकार नही करोग तो ई र आपको अपन दय स लगायग | 169) कभी-कभी उदय या अःत होत हए सयर की ओर चलो | नदी सरोवर या समि क तट

पर अकल घमन जाओ | ऐस ःथान की मलाकात लो जहा शीतल पवन मनद-मनद चल रही हो | वहा परमातमा क साथ एकःवर होन की स भावना क ार खलत ह | 170) आप य -ही इ छा स ऊपर उठत हो तय -ही आपका इि छत पदाथर आपको खोजन

लगता ह | अतः पदाथर स ऊपर उठो | यही िनयम ह | य - य आप इ छक िभ क याचक का भाव धारण करत हो तय -तय आप ठकराय जात हो | 171) कित क तयक पदाथर को दखन क िलय काश जररी ह | इसी कार मन बि

इिनिय को अपन-अपन कायर करन क िलय आतम-काश की आवयकता ह कय िक बाहर का कोई काश मन बि इिनिय ाणािद को चतन करन म समथर नही | 172) जस ःव न ा परष को जागन क बाद ःव न क सख-दःख जनम-मरण पाप-प य

धमर-अधमर आिद ःपशर नही करत कय िक वह सब खद ही ह | खद क िसवाय ःव न म दसरा कछ

था ही नही | वस ही जीवनम ानवान परष को सख-दःख जनम-मरण पाप-प य धमर-अधमर ःपशर नही करत कय िक व सब आतमःवरप ही ह | 173) वही भमा नामक आतम योित क म रह कर भ क रही ह सअर म रह कर घर रही ह गध म रह कर रक रही ह लिकन मखर लोग शरीर पर ही ि रखत ह चतनय ततव पर नही | 174) मनय िजस ण भत-भिवय की िचनता का तयाग कर दता ह दह को सीिमत और उतपि -िवनाशशील जानकर दहािभमान को तयाग दता ह उसी ण वह एक उ चतर अवःथा म पहच जाता ह | िपजर स छटकर गगनिवहार करत हए प ी की तरह मि का अनभव करता ह | 175) समःत भय एव िचनताए आपकी इ छाओ का णाम ह | आपको भय कय लगता ह

कय िक आपको आशका रहती ह िक अमक चीज कही चली न जाय | लोग क हाःय स आप डरत

ह कय िक आपको यश की अिभलाषा ह कीितर म आसि ह | इ छाओ को ितलाजिल द दो | िफर दखो मजा कोई िज मदारी नहीकोई भय नही | 176) दखन म अतयत करप काला-कलटा कबड़ा और तज ःवभाव का मनय भी आपका ही ःवरप ह | आप इस तथय स म नही | िफर घणा कसी कोई लाव यमयी सदरी सि की

शोभा क समान अित िवलासभरी अ सरा भी आपका ही ःवरप ह | िफर आसि िकसकी

आपकी ानिनिया उनको आपस अलग करक िदखाती ह | य इिनिया झठ बोलनवाली ह | उनका कभी िव ास मत करो | अतः सब कछ आप ही हो | 177) मानव क नात हम साधक ह | साधक होन क नात सतय को ःवीकर करना हमारा ःवधमर ह | सतय यही ह िक बल दसर क िलय ह ान अपन िलय ह और िव ास परमातमा स

स बनध जोड़न क िलय ह | 178) अपनी आतमा म डब जाना यह सबस बड़ा परोपकार ह | 179) आप सदव म ह ऐसा िव ास ढ़ करो तो आप िव क उ ारक हो जात हो | आप

यिद वदानत क ःवर क साथ ःवर िमलाकर िन य करो आप कभी शरीर न थ | आप िनतय श

ब आतमा हो तो अिखल ा ड क मो दाता हो जात हो | 180) कपा करक उन ःवाथरमय उपाय और अिभाय को दर फ क दो जो आपको पिरि छनन रखत ह | सब वासनाए राग ह | यि गत या शरीरगत म आसि ह | उस फ क दो | ःवय पिवऽ हो जाओ | आपका शरीर ःवःथ और बि पणरःवरप हो जायगी | 181) यिद ससार क सख व पदाथर ा ह तो आपको कहना चािहय ओ शतान हट जा मर सामन स | तर हाथ स मझ कछ नही चािहय | तब दखो िक आप कस सखी हो जात हो परमातमा-ा िकसी महापरष पर िव ास रखकर अपनी जीवनडोरी िनःशक बन उनक चरण म सदा क िलय रख दो | िनभरयता आपक चरण की दासी बन जायगी | 182) िजसन एक बार ठ क स जान िलया िक जगत िमथया ह और ािनत स इसकी तीित

हो रही ह उसको कभी दःख नही होता | जगत म कभी आसि नही होती | जगत क िमथयातव क

िन य का नाम ही जगत का नाश ह | 183) अपन ःवरप म लीन होन माऽ स आप ससार क साट बन जायग | यह साटपद

कवल इस ससार का ही नही समःत लोक-परलोक का साटपद होगा | 184) ह जनक चाह दवािधदव महादव आकर आपको उपदश द या भगवान िवण आकर उपदश द अथवा ाजी आकर उपदश द लिकन आपको कदािप सख न होगा | जब िवषय का तयाग करोग तभी स ची शाित व आनद ा ह ग |

185) िजस भ न हम मानव जीवन दकर ःवाधीनता दी िक हम जब चाह तब धमारतमा होकर भ होकर जीवनम होकर कतकतय हो सकत ह- उस भ की मिहमा गाओ | गाओ नही तो सनो | सनो भी नही गाओ भी नही तो ःवीकार कर लो | 186) चाह समि क गहर तल म जाना पड़ सा ात मतय का मकाबला करना पड़ अपन

आतमाि क उ य की पितर क िलय अिडग रहो | उठो साहसी बनो शि मान बनो | आपको जो बल व सहायता चािहय वह आपक भीतर ही ह | 187) जब-जब जीवन स बनधी शोक और िचनता घरन लग तब-तब अपन आननदःवरप

का गान करत-करत उस मोह-माया को भगा दो | 188) जब शरीर म कोई पीड़ा या अग म ज म हो तब म आकाशवत आकाशरिहत चतन

ह ऐसा ढ़ िन य करक पीड़ा को भल जाओ | 189) जब दिनया क िकसी चककर म फस जाओ तब म िनलप िनतय म ह ऐसा ढ़

िन य करक उस चककर स िनकल जाओ | 190) जब घर-बार स बनधी कोई किठन समःया याकल कर तब उस मदारी का खल

समझकर ःवय को िनःसग जानकर उस बोझ को ह का कर दो | 191) जब बोध क आवश म आकर कोई अपमानय वचन कह तब अपन शाितमय

ःवरप म िःथर होकर मन म िकसी भी ोभ को पदा न होन दो | 192) उ म अिधकारी िज ास को चािहय िक वह व ा सदगर क पास जाकर ौ ा पवरक महावाकय सन | उसका मनन व िनिदधयासन करक अपन आतमःवरप को जान | जब

आतमःवरप का सा ातकार होता ह तब ही परम िवौािनत िमल सकती ह अनयथा नही | जब तक

व ा महापरष स महावाकय ा न हो तब तक वह मनद अिधकारी ह | वह अपन दयकमल म परमातमा का धयान कर ःमरण कर जप कर | इस धयान-जपािद क साद स उस व ा सदगर

ा ह ग | 193) मन बि िच अहकार छाया की तरह जड़ ह णभगर ह कय िक व उतपनन होत

ह और लीन भी हो जात ह | िजस चतनय की छाया उसम पड़ती ह वह परम चतनय सबका आतमा ह | मन बि िच अहकार का अभाव हो जाता ह लिकन उसका अनभव करनवाल का अभाव

कदािप नही होता |

194) आप अपनी शि को उ चाितउ च िवषय की ओर बहन दो | इसस आपक पास व

बात सोचन का समय ही नही िमलगा िजसस कामकता की गध आती हो | 195) अपराध क अनक नाम ह बालहतया नरहतया मातहतया गौहतया इतयािद |

परनत तयक ाणी म ई र का अनभव न करक आप ई रहतया का सबस बड़ा अपराध करत ह | 196) सवा करन की ःवाधीनता मनयमाऽ को ा ह | अगर वह करना ही न चाह तो अलग बात ह | सवा का अथर ह मन-वाणी-कमर स बराईरिहत हो जाना यह िव की सवा हो गई |

यथाशि भलाई कर दो यह समाज की सवा हो गई | भलाई का फल छोड़ दो यह अपनी सवा हो गई

| भ को अपना मानकर ःमित और म जगा लो यह भ की सवा हो गई | इस कार मनय

अपनी सवा भी कर सकता ह समाज की सवा भी कर सकता ह िव की सवा भी कर सकता ह

और िव र की सवा भी कर सकता ह | 197) आतमा स बाहर मत भटको अपन कनि म िःथर रहो अनयथा िगर पड़ोग | अपन-

आपम पणर िव ास रखो | आतम-कनि पर अचल रहो | िफर कोई भी चीज आपको िवचिलत नही कर सकती | 198) सदा शात िनिवरकार और सम रहो | जगत को खलमाऽ समझो | जगत स भािवत

मत हो | इसस आप हमशा सखी रहोग | िफर कछ बढ़ान की इ छा नही होगी और कछ कम होन स

दःख नही होगा | 199) समथर सदगर क सम सदा फल क भाित िखल हए रहो | इसस उनक अनदर सक प

होगा िक यह तो बहत उतसाही साधक ह सदा सनन रहता ह | उनक सामथयरवान सक प स

आपकी वह किऽम सननता भी वाःतिवक सननता म बदल जायगी | 200) यिद रोग को भी ई र का िदया मानो तो ार ध-भोग भी हो जाता ह और क तप का फल दता ह | इसस ई र-कपा की ाि होती ह | याकल मत हो | क सल और इनजकशन

आधीन मत हो | 201) साधक को चािहय िक अपन लआय को ि म रखकर साधना-पथ पर तीर की तरह

सीधा चला जाय | न इधर दख न उधर | ि यिद इधर-उधर जाती हो तो समझना िक िन ा िःथर नही ह |

202) आपन अपन जीवन म हजार ःव न दख ह ग लिकन व आपक जीवन क अश नही बन जात | इसी कार य जामत जगत क आड बर आपकी आतमा क सम कोई मह व नही रखत | 203) एक आतमा को ही जानो अनय बात को छोड़ो | धीर साधक को चािहय िक वह

सावधान होकर आतमिन ा बढ़ाय अनक श द का िचनतन व भाषण न कर कय िक वह तो कवल

मन-वाणी को पिरौम दनवाला ह असली साधना नही ह | 204) जो परष जन-समह स ऐस डर जस साप स डरता ह स मान स ऐस डर जस नकर स

डरता ह ि य स ऐस डर जस मद स डरता ह उस परष को दवतागण ा ण मानत ह | 205) जस अपन शरीर क अग पर बोध नही आता वस शऽ िमऽ व अपनी दह म एक ही आतमा को दखनवाल िववकी परष को कदािप बोध नही आता | 206) मन तो शरीर को ई रापरण कर िदया ह | अब उसकी भख- यास स मझ कया

समिपरत वःत म आस होना महा पाप ह | 207) आप यिद िद य ि पाना चहत हो तो आपको इिनिय क ऽ का तयाग करना होगा | 208) लयकाल क मघ की गजरना हो समि उमड़ पड बारह सयर तपायमान हो जाय पहाड़ स पहाड़ टकरा कर भयानक आवाज हो तो भी ानी क िन य म त नही भासता कय िक

त ह ही नही | त तो अ ानी को भासता ह | 209) सतय को ःवीकार करन स शाित िमलगी | कछ लोग यो यता क आधार पर शाित

खरीदना चाहत ह | यो यता स शाित नही िमलगी यो यता क सदपयोग स शाित िमलगी | कछ

लोग स पि क आधार पर शाित सरि त रखना चाहत ह | स पि स शाित नही िमलगी स पि

क सदपयोग स शाित िमलगी वस ही िवपि क सदपयोग स शाित िमलगी | 210) त छ हािन-लाभ पर आपका धयान इतना कय रहता ह िजसस अनत आननदःवरप

आतमा पर स धयान हट जाता ह | 211) अपन अनदर ही आननद ा करना य िप किठन ह परनत बा िवषय स आननद

ा करना तो अस भव ही ह |

212) म ससार का काश ह | काश क रप म म ही सब वःतओ म या ह | िनतय इन

िवचार का िचनतन करत रहो | य पिवऽ िवचार आपको परम पिवऽ बना दग | 213) जो वःत कमर स ा होती ह उसक िलय ससार की सहायता तथा भिवय की आशा की आवयकता होती ह परनत जो वःत तयाग स ा होती ह उसक िलय न ससार की सहायता चािहय न भिवय की आशा | 214) आपको जब तक बाहर चोर िदखता ह तब तक जरर भीतर चोर ह | जब दसर लोग

स िभनन अयो य खराब सधारन यो य िदखत ह तब तक ओ सधार का बीड़ा उठान वाल त अपनी िचिकतसा कर | 215) सफल व ही होत ह जो सदव नतमःतक एव सननमख रहत ह | िचनतातर-शोकातर लोग की उननित नही हो सकती | तयक कायर को िह मत व शाित स करो | िफर दखो िक यह

कायर शरीर मन और बि स हआ | म उन सबको स ा दनवाला चतनयःवरप ह | ॐ ॐ का पावन गान करो | 216) िकसी भी पिरिःथित म मन को यिथत न होन दो | आतमा पर िव ास करक

आतमिन बन जाओ | िनभरयता आपकी दासी बन कर रहगी | 217) सतसग स मनय को साधना ा होती ह चाह वह शाित क रप म हो चाह मि क

रप म चाह सवा क रप म हो म क रप म हो चाह तयाग क रप म हो | 218) भला-बरा वही दखता ह िजसक अनदर भला-बरा ह | दसर क शरीर को वही दखता ह

जो खद को शरीर मानता ह | 219) खबरदार आपन यिद अपन शरीर क िलय ऐश-आराम की इ छा की िवलािसता एव इिनिय-सख म अपना समय बरबाद िकया तो आपकी खर नही | ठ क स कायर करत रहन की नीित

अपनाओ | सफलता का पहला िस ात ह कायरिवौामरिहत कायरसा ी भाव स कायर | इस

िस ात को जीवन म चिरताथर करोग तो पता चलगा िक छोटा होना िजतना सरल ह उतना ही बड़ा होना भी सहज ह | 220) भतकाल पर िखनन हए िबना भिवय की िचनता िकय िबना व रमान म कायर करो | यह भाव आपको हर अवःथा म सनन रखगा हम जो कछ ा ह उसका सदपयोग ही अिधक

काश पान का साधन ह |

221) जब आप सफलता की ओर पीठ कर लत हो पिरणाम की िचनता का तयाग कर दत

हो स मख आय हए क र य पर अपनी उ ोगशि एकाम करत हो तब सफलता आपक पीछ-पीछ

आ जाती ह | अतः सफलता आपको खोजगी | 222) वि तब तक एकाम नही होगी जब तक मन म कभी एक आशा रहगी तो कभी दसरी | शात वही हो सकता ह िजस कोई क र य या आवयकता घसीट न रही हो | अतः परम शाित पान

क िलय जीवन की आशा भी तयाग कर मन ाननद म डबो दो | आज स समझ लो िक यह शरीर ह ही नही | कवल ाननद का सागर लहरा रहा ह | 223) िजसकी पककी िन ा ह िक म आतमा हrsquo उसक िलय ऐसी कौन सी मिथ ह जो खल

न सक ऐसी कोई ताकत नही जो उसक िवर जा सक | 224) मर भा य म नही थाई र की मज आजकल सतसग ा नही होताजगत

खराब ह ऐस वचन हमारी कायरता व अनतःकरण की मिलनता क कारण िनकलत ह | अतः नकारातमक ःवभाव और दसर पर दोषारोपण करन की वि स बचो | 225) आप जब भीतरवाल स नाराज होत हो तब जगत आपस नाराज रहता ह | जब आप

भीतर अनतयारमी बन बठ तो जगतरपी पतलीघर म िफर गड़बड़ कसी 226) िजस ण हम ससार क सधारक बन खड़ होत ह उसी ण हम ससार को िबगाड़नवाल बन जात ह | श परमातमा को दखन क बजाय जगत को िबगड़ा हआ दखन की ि बनती ह | सधारक लोग मानत ह िक lsquoभगवान न जो जगत बनाया ह वह िबगड़ा हआ ह और हम उस सधार रह ह |rsquo वाह वाह धनयवाद सधारक अपन िदल को सधारो पहल | सवरऽ िनरजन का दीदार करो | तब आपकी उपिःथित माऽ स आपकी ि माऽ स अर यार आपको छकर बहती हवा माऽ स अननत जीव को शाित िमलगी और अननत सधार होगा | नानक कबीर महावीर ब और लीलाशाह बाप जस महापरष न यही कजी अपनायी थी | 227) वदानत म हमशा कमर का अथर होता ह वाःतिवक आतमा क साथ एक होकर च ा करना अिखल िव क साथ एकःवर हो जाना | उस अि तीय परम ततव क साथ िनःःवाथर सयोग ा करना ही एकमाऽ स चा कमर ह बाकी सब बोझ की गठिरया उठाना ह |

228) अपनी व रमान अवःथा चाह कसी भी हो उसको सव च मानन स ही आपक दय म आतम ान ान का अनायास उदय होन लगगा | आतम-सा ातकार को मील दर की कोई चीज समझकर उसक पीछ दौड़ना नही ह िचिनतत होना नही ह |

िचनता की गठरी उठाकर यिथत होन की जररत नही ह | िजस ण आप िनि नतता म गोता मारोग उसी ण आपका आतमःवरप गट हो जायगा | अर गट कया होगा आप ःवय आतमःवरप हो ही | अनातमा को छोड़ दो तो आतमःवरप तो हो ही | 229) सदा ॐकार का गान करो | जब भय व िचनता क िवचार आय तब िकसी मःत सत-फकीर महातमा क सािननधय का ःमरण करो | जब िननदा-शसा क सग आय तब महापरष क जीवन का अवलोकन करो | 230) िजनको आप भयानक घटनाए एव भयकर आघात समझ बठ हो वाःतव म व आपक ियतम आतमदव की ही करतत ह | समःत भयजनक तथा ाणनाशक घटनाओ क नाम-रप तो िवष क ह लिकन व बनी ह अमत स | 231) मन म यिद भय न हो तो बाहर चाह कसी भी भय की साममी उपिःथत हो जाय आपका कछ िबगाड़ नही सकती | मन म यिद भय होगा तो तरनत बाहर भी भयजनक पिरिःथया न होत हए भी उपिःथत हो जायगी | व क तन म भी भत िदखन लगगा | 232) िकसी भी पिरिःथित म िदखती हई कठोरता व भयानकता स भयभीत नही होना चािहए | क क काल बादल क पीछ पणर काशमय एकरस परम स ा सयर की तरह सदा िव मान ह | 233) आप अपन पर कदािप अिव ास मत करो | इस जगत म आप सब कछ कर सकत हो | अपन को कभी दबरल मत मानो | आपक अनदर तमाम शि या छपी हई ह | 234) यिद कोई मन य आपकी कोई चीज़ को चरा लता ह तो ड़रत कय हो वह मनय

और आप एक ह | िजस चीज़ को वह चराता ह वह चीज़ आपकी और उसकी द न की ह | 235) जो खद क िसवाय दसरा कछ दखता नही सनता नही जानता नही वह अननत ह |

जब तक खद क िसवाय और िकसी वःत का भान होता ह वह वःत स ची लगती ह तब तक आप

सीिमत व शात ह असीम और अनत नही |

236) ससार मझ कया आनद द सकता ह स पणर आनद मर भीतर स आया ह | म ही स पणर आननद ह स पणर मिहमा एव स पणर सख ह | 237) जीवन की समःत आवयकताए जीवन म उपिःथत ह परनत जीवन को जब हम

बा रग म रग दत ह तब जीवन का वाःतिवक रप हम नही जान पात | 238) िननदक की िननदा स म कय मरझाऊ शसक की शसा स म कय फल िननदा स म घटता नही और शसा स म बढ़ता नही | जसा ह वसा ही रहता ह | िफर िननदा-ःतित स

खटक कसी 239) ससार व ससार की समःयाओ म जो सबस अिधक फस हए ह उनही को वदानत की सबस अिधक आवयकता ह | बीमार को ही औषिध की यादा आवयकता ह | कय जी ठ क ह न 240) जगत क पाप व अतयाचार की बात मत करो लिकन अब भी आपको जगत म पाप

िदखता ह इसिलय रोओ | 241) हम यिद जान ल िक जगत म आतमा क िसवाय दसरा कछ ह ही नही और जो कछ

िदखता ह वह ःव नमाऽ ह तो इस जगत क दःख-दािरिय पाप-प य कछ भी हम अशात नही कर सकत | 242) िव ान दाशरिनक व आचाय की धमकी तथा अनमह आलोचना या अनमित

ानी पर कोई भाव नही ड़ाल सकती | 243) ह यि रप अननत आप अपन पर पर खड़ रहन का साहस करो समःत िव का बोझ आप िखलौन की तरह उठा लोग | 244) िसह की गजरना व नरिसह की ललकार तलवार की धार व साप की फफकार तपःवी की धमकी व नयायधीश की फटकारइन सबम आपका ही काश चमक रहा ह | आप इनस

भयभीत कय होत हो उलझन कय महसस करत हो मरी िब ली मझको याऊ वाली बात कय

होन दत हो 245) ससार हमारा िसफ़र िखलोना ही ह और कछ नही | अबोध बालक ही िखलौन स

भयभीत होता ह आसि करता ह िवचारशील यि नही |

246) जब तक अिव ा दर नही होगी तब तक चोरी जआ दार यिभचार कभी बद न

ह ग चाह लाख कोिशश करो | 247) आप हमशा अदर का धयान रखो | पहल हमारा भीतरी पतन होता ह | बा पतन तो इसका पिरणाम माऽ ह | 248) तयाग स हमशा आनद िमलता ह | जब तक आपक पास एक भी चीज़ बाकी ह तब

तक आप उस चीज़ क बधन म बध रहोग | आघात व तयाघात हमशा समान िवरोधी होत ह | 249) िनि तता ही आरो यता की सबस बड़ी दवाई ह | 250) सख अपन िसर पर दख का मकट पहन कर आता ह | जो सख को अपनायगा उस

दख को भी ःवीकार करना पड़गा | 251) म (आतमा) सबका ा ह | मरा ा कोई नही | 252) हजार म स कोई एक परष भीतर स शात िच वाला रहकर बाहर स ससारी जसा यवहार कर सकता ह | 253) सतय क िलए यिद शरीर का तयाग करना पड़ तो कर दना | यही आिखरी ममता ह जो हम तोड़नी होगी | 254) भय िचनता बचनी स ऊपर उठो | आपको ान का अनभव होगा | 255) आपको कोई भी हािन नही पहचा सकता | कवल आपक खयालात ही आपक पीछ पड़ ह | 256) म का अथर ह अपन पड़ोसी तथा सपकर म आनवाल क साथ अपनी वाःतिवक अभदता का अनभव करना | 257) ओ यार अपन खोय हए आतमा को एक बार खोज लो | धरती व आसमान क शासक आप ही हो | 258) सदव सम और सनन रहना ई र की सव पिर भि ह |

259) जब तक िच म ढ़ता न आ जाय िक शा की िविधय का पालन छोड़ दन स भी दय का यथाथर भि भाव न नही होगा तब तक शा की िविधय को पालत रहो |

गर भि एक अमोघ साधना 1 जनम मरण क िवषचब स म होन का कोई मागर नही ह कया सख-दःख हषर-शोक लाभ-

हािन मान-अपमान की थ पड़ स बचन का कोई उपाय नही ह कया

हअवय ह | ह िय आतमन नाशवान पदाथ स अपना मन वािपस लाकर सदगर क

चरणकमल म लगाओ | गरभि योग का आौय लो | गरसवा ऐसा अमोघ साधन ह िजसस

व रमान जीवन आननदमय बनता ह और शा त सख क ार खलत ह |

गर सवत त नर धनय यहा | ितनक नही दःख यहा न वहा || 2 स च सदगर की की हई भि िशय म सासािरक पदाथ क वरा य एव अनासि जगाती ह

परमातमा क ित म क पप महकाती ह | 3 तयक िशय सदगर की सवा करना चाहता ह लिकन अपन ढग स | सदगर चाह उस ढग स

सवा करन को कोई ततपर नही | जो िवरला साधक गर चाह उस ढ़ग स सवा कर सकता ह उस कोई कमी नही रहती |

िन सदगर की सवा स उनकी कपा ा होती ह और उस कपा स न िमल सक ऐसा तीन लोक म कछ भी नही ह | 4 गर िशय का स बनध पिवऽतम स बनध ह | ससार क तमाम बनधन स छड़ाकर वह मि क मागर पर ःथान कराता ह | यह स बनध जीवनपयरनत का स बनध ह | यह बात अपन दय की डायरी म सवणर-अ र स िलख लो | 5 उ ल सयर क काश क अिःततव को मान या न मान िफर भी सयर हमशा काशता ह | चचल मन का मनय मान या न मान लिकन सदगर की परमक याणकारी कपा सदव बरसती ही रहती ह | 6 सदगर की चरणरज म ःनान िकय िबना कवल किठन तप यार करन स या वद का

अधयन करन स वदानत का रहःय कट नही होता आतमानद का अमत नही िमलता | 7 दशरन शा क चाह िकतन मनथ पढ़ो हजार वष तक िहमालय की गफा म तप करो वष तक ाणायाम करो जीवनपयरनत शीषारसन करो समम िव म वास करक याखान दो िफर भी सदगर की कपा क िबना आतम ान नही होता | अतः िनरािभमानी सरल िनजाननद म मःत दयाल ःवभाव क आतम-सा ातकारी सदगर क चरण म जाओ | जीवन को धनय बनाओ | 8 सदगर की सवा िकय िबना शा का अधयन करना मम साधक क िलय समय बरबाद करन क बराबर ह | 9 िजसको सदगर ा हए ह ऐस िशय क िलय इस िव म कछ भी अा य नही ह | सदगर िशय को िमली हई परमातमा की अम य भट ह | अर नहीhellipनही व तो िशय क सम साकार रप म कट हए परमातमा ःवय ह | 10 सदगर क साथ एक ण िकया हआ सतसग लाख वष क तप स अननत गना ौ ह | आख क िनमषमाऽ म सदगर की अमतवष ि िशय क जनम-जनम क पाप को जला सकती ह | 11 सदगर जसा मपणर कपाल िहतिचनतक िव भर म दसरा कोई नही ह | 12 बाढ़ क समय याऽी यिद तफानी नदी को िबना नाव क पार कर सक तो साधक भी िबना सदगर क अपन जीवन क आिखरी लआय को िस कर सकता ह | यानी य दोन बात स भव ह |

अतः यार साधक मनमखी साधना की िज करना छोड़ दो | गरमखी साधना करन म ही सार ह | 13 सदगर क चरणकमल का आौय लन स िजस आननद का अनभव होता ह उसक आग िऽलोकी का साा य त छ ह | 14 आतम-सा ातकार क मागर म सबस महान शऽ अहभाव का नाश करन क िलए सदगर की आ ा का पालन अमोघ श ह | 15 रसोई सीखन क िलय कोई िसखानवाला चािहय िव ान और गिणत सीखन क िलय

अधयापक चािहय तो कया िव ा सदगर क िबना ही सीख लोग 16 सदगरकपा की स पि जसा दसरा कोई खजाना िव भर म नही | 17 सदगर की आ ा का उ लघन करना यह अपनी क खोदन क बराबर ह | 18 सदगर क कायर को शका की ि स दखना महापातक ह | 19 गरभि व गरसवा - य साधनारपी नौका की दो पतवार ह | उनकी मदद स िशय ससारसागर को पार कर सकता ह | 20 सदगर की कसौटी करना असभव ह | एक िववकाननद ही दसर िववकाननद को पहचान सकत ह | ब को जानन क िलय दसर ब की आवयकता रहती ह | एक रामतीथर का रहःय दसर रामतीथर ही पा सकत ह |

अतः सदगर की कसौटी करन की च ा छोड़कर उनको पिरपणर पर परमातमा मानो |

तभी जीवन म वाःतिवक लाभ होगा | 21 गरभि योग का आौय लकर आप अपनी खोई हई िद यता को पनः ा करो सख-दःख जनम-मतय आिद सब न स पार हो जाओ | 22 गरभि योग मान गर की सवा क ारा मन और िवकार पर िनयऽण एव पनः सःकरण | 23 िशय अपन गर क चरणकमल म णाम करता ह | उन पर ौ फल की वषार करक उनकी ःतित करता ह ldquoह परम प य पिवऽ गरदव मझ सव च सख ा हआ ह | म िन ा स जनम-मतय की पर परा स म हआ ह | म िनिवरक प समािध का श सख भोग रहा ह | जगत क िकसी भी कोन म म म ता स िवचरण कर सकता ह | सब पर मरी सम ि ह | मन ाकत मन का तयाग िकया ह | मन सब सक प एव रिच-अरिच का तयाग िकया ह | अब म अख ड शाित म िवौाित पा रहा ह hellip आननदमय हो रहा ह | म इस पणर अवःथा का वणरन नही कर पाता | ह प य गरदव म आवाक बन गया ह | इस दःतर भवसागर को पार करन म आपन

मझ सहायता की ह | अब तक मझ कवल अपन शरीर म ही स पणर िव ास था | मन िविभनन योिनय म अस य जनम िलय | ऐसी सव च िनभरय अवःथा मझ कौन स पिवऽ कम क कारण ा हई ह यह म नही जानता | सचमच यह एक दलरभ भा य ह |

यह एक महान उतक लाभ ह | अब म आननद स नाचता ह | मर सब दःख न हो गय | मर सब मनोरथ पणर हए ह |

मर कायर स पनन हए ह | मन सब वािछत वःतए ा की ह | मरी इ छा पिरपणर हई ह | आप मर स च माता-िपता हो | मरी व रमान िःथित म म दसर क सम िकस कार कट कर सक सवरऽ सख और आननद का अननत सागर मझ लहराता हआ िदख रहा ह | मर अतःच िजसस खल गय वह महावाकय lsquoत वमिसrsquo ह | उपिनषद एव वदानतसऽ को भी धनयवाद | िजनह न िन गर का एव उपिनषद क महावाकय का रप धारण िकया ह | ऐस ौी यासजी को णाम ौी शकराचायर को णाम सासािरक मनय क िसर पर गर क चरणामत का एक िबनद भी िगर तो भी उसक ःब दःख का नाश होता ह | यिद एक िन परष को व पहनाय जाय तो सार िव को व पहनान एव भोजन करवान क बराबर ह कय िक िन परष सचराचर िव म या ह | सबम व ही ह |rdquo

ॐhellip ॐ hellip ॐ hellip

ःवामी िशवानद जी

ौी राम-विश सवाद ौी विश जी कहत ह ldquoह रघकलभषण ौी राम अनथर ःवरप िजतन सासािरक पदाथर ह व सब जल म तरग क समान िविवध रप धारण करक चमतकार उतपनन करत ह अथारत ई छाए उतपनन करक जीव को मोह म फसात ह | परत जस सभी तरग जल ःवरप ही ह उसी कार सभी पदाथर वःततः न र ःवभाव वाल ह |

बालक की क पना स आकाश म य और िपशाच िदखन लगत ह परनत बि मान मनय क िलए उन य और िपशाच का कोई अथर नही | इसी कार अ ानी क िच म यह जगत सतय हो ऐसा लगता ह जबिक हमार जस ािनय क िलय यह जगत कछ भी नही | यह समम िव पतथर पर बनी हई पतिलय की सना की तरह रपालोक तथा अतर-बा िवषय स शनय ह | इसम सतयता कसी परनत अ ािनय को यह िव सतय लगता ह |rdquo विश जी बोल ldquoौी राम जगत को सतय ःवरप म जानना यह ाित ह मढ़ता ह | उस िमथया अथारत कि पत समझना यही उिचत समझ ह | ह राघव तव ा अहता आिद सब िवम-िवलास शात िशवःवरप श ःवरप ही ह | इसिलय मझ तो क अितिर और कछ भी नही िदखता | आकाश म जस जगल नही वस ही म जगत नही ह | ह राम ार ध वश ा कम स िजस परष की च ा कठपतली की तरह ई छाशनय और याकलतारिहत होती ह वह शानत मनवाला परष जीवनम मिन ह | ऐस जीवनम ानी को इस

जगत का जीवन बास की तरह बाहर-भीतर स शनय रसहीन और वासना-रिहत लगता ह | इस य पच म िजस रिच नही दय म िचनमाऽ अ य ही अ छा लगता ह ऐस परष न

भीतर तथा बाहर शािनत ा कर ली ह और इस भवसागर स पार हो गया ह | रघनदन श व ा कहत ह िक मन का ई छारिहत होना यही समािध ह कय िक ई छाओ का तयाग करन स मन को जसी शािनत िमलती ह ऐसी शािनत सकड़ उपदश स भी नही िमलती | ई छा की उतपि स जसा दःख ा होता ह ऐसा दःख तो नरक म भी नही | ई छाओ की शािनत

स जसा सख होता ह ऐसा सख ःवगर तो कया लोक म भी नही होता | अतः समःत शा तपःया यम और िनयम का िनचोड़ यही ह िक ई छामाऽ दःखदायी ह और ई छा का शमन मो ह | ाणी क दय म जसी-जसी और िजतनी-िजतनी ई छाय उतपनन होती ह उतना ही दख स वह

ड़रता रहता ह | िववक-िवचार ारा ई छाय जस-जस शानत होती जाती ह वस-वस दखरपी छत की बीमारी िमटती जाती ह |

आसि क कारण सासािरक िवषय की ई छाय य - य गहनीभत होती जाती ह तय -तय

दःख की िवषली तरग बढ़ती जाती ह | अपन परषाथर क बल स इस ई छारपी यािध का उपचार यिद नही िकया जाय तो इस यािध स छटन क िलय अनय कोई औषिध नही ह ऐसा म ढ़तापवरक

मानता ह | एक साथ सभी ई छाओ का स पणर तयाग ना हो सक तो थोड़ी-थोड़ी ई छाओ का धीर-धीर तयाग

करना चािहय परत रहना चािहय ई छा क तयाग म रत कय िक सनमागर का पिथक दखी नही होता | जो नराधम अपनी वासना और अहकार को ीण करन का य नही करता वह िदन -िदन अपन

को रावण की तरह अधर कऐ म ढ़कल रहा ह | ई छा ही दख की जनमदाऽी इस ससाररपी बल का बीज ह | यिद इस बीज को आतम ानरपी अि न स ठ क-ठ क जला िदया तो पनः यह अकिरत नही होता | रघकलभषण राम ई छामाऽ ससार ह और ई छाओ का अभाव ही िनवारण ह | अतः अनक कार की माथाप ची म ना पड़कर कवल ऐसा य करना चािहय िक ई छा उतपनन ना हो | अपनी बि स ई छा का िवनाश करन को जो ततपर नही ऐस अभाग को शा और गर का उपदश

भी कया करगा जस अपनी जनमभमी जगल म िहरणी की मतय िनि त ह उसी कार अनकिवध दख का िवःतार कारनवाल ई छारपी िवषय-िवकार स य इस जगत म मनय की मतय िनि त ह | यिद मानव ई छाओ क कारण ब च -सा मढ़ ना बन तो उस आतम ान क िलय अ प य ही करना पड़ | इसिलय सभी कार स ई छाओ को शानत करना चािहय | ई छा क शमन स परम पद की ाि होती ह | ई छारिहत हो जाना यही िनवारण ह और ई छाय

होना ही बधन ह | अतः यथाशि ई छा को जीतना चािहय | भला इतना करन म कया किठनाई ह जनम जरा यािध और मतयरपी कटीली झािड़य और खर क व - समह की जड़ भी ई छा ही ह

| अतः शमरपी अि न स अदर-ही-अदर बीज को जला ड़ालना चािहय| जहा ई छाओ का अभाव ह

वहा मि िनि त ह |

िववक वरा य आिद साधन स ई छा का सवरथा िवनाश करना चािहय | ई छा का सबध जहा-जहा ह वहा-वहा पाप प य दखरािशया और ल बी पीड़ाओ स य बधन को हािज़र ही समझो | परष

की आतिरक ई छा य - य शानत होती जाती ह तय -तय मो क िलय उसका क याणकारक

साधन बढ़ता जाता ह | िववकहीन ई छा को पोसना उस पणर करना यह तो ससाररपी िवष व को पानी स सीचन क समान ह |rdquo

- ौीयोगविश महारामायण

आतमबल का आवाहन कया आप अपन-आपको दबरल मानत हो लघतामथी म उलझ कर पिरिःतिथय स िपस रह हो

अपना जीवन दीन-हीन बना बठ हो hellipतो अपन भीतर सष आतमबल को जगाओ | शरीर चाह ी का हो चाह परष का कित क साा य म जो जीत ह व सब ी ह और कित क बनधन स पार अपन ःवरप की पहचान िजनह न कर ली ह अपन मन की गलामी की बिड़या तोड़कर िजनह न फ क दी ह व परष ह | ी या परष शरीर एव मानयताए होती ह | तम तो तन-मन स पार िनमरल आतमा हो | जागोhellipउठोhellipअपन भीतर सोय हय िन यबल को जगाओ | सवरदश सवरकाल म सव म

आतमबल को िवकिसत करो | आतमा म अथाह सामथयर ह | अपन को दीन-हीन मान बठ तो िव म ऐसी कोई स ा नही जो त ह ऊपर उठा सक | अपन आतमःवरप म िति त हो गय तो िऽलोकी म ऐसी कोई हःती नही जो त ह दबा सक | भौितक जगत म वाप की शि ईलकशोिनक शि िव त की शि गरतवाकषरण की शि बड़ी मानी जाती ह लिकन आतमबल उन सब शि य का सचालक बल ह | आतमबल क सािननधय म आकर पग ार ध को पर िमल जात ह दव की दीनता पलायन हो जाती ह ितकल पिरिःतिथया अनकल हो जाती ह | आतमबल सवर िरि -िसि य का िपता ह |

आतमबल कस जगाय हररोज़ तःकाल ज दी उठकर सय दय स पवर ःनानािद स िनवत हो जाओ | ःव छ पिवऽ ःथान

म आसन िबछाकर पवारिभमख होकर प ासन या सखासन म बठ जाओ | शानत और सनन वि

धारण करो | मन म ढ भावना करो िक म कित-िनिमरत इस शरीर क सब अभाव को पार करक सब

मिलनताओ-दबरलताओ स िप ड़ छड़ाकर आतमा की मिहमा म जागकर ही रहगा |

आख आधी खली आधी बद रखो | अब फ़फ़ड़ म खब ास भरो और भावना करो की ास क साथ

म सयर का िद य ओज भीतर भर रहा ह | ास को यथाशि अनदर िटकाय रखो | िफ़र lsquoॐhelliprsquo का ल बा उ चारण करत हए ास को धीर-धीर छोड़त जाओ | ास क खाली होन क बाद तरत ास ना लो | यथाशि िबना ास रहो और भीतर ही भीतर lsquoहिर ॐhelliprsquo lsquoहिर ॐhelliprsquo का मानिसक

जाप करो | िफ़र स फ़फ़ड़ म ास भरो | पव रीित स ास यथाशि अनदर िटकाकर बाद म धीर-धीर छोड़त हए lsquoॐhelliprsquo का गजन करो | दस-पिह िमनट ऐस ाणायाम सिहत उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo की धविन करक शानत हो जाओ | सब

यास छोड़ दो | वि य को आकाश की ओर फ़लन दो | आकाश क अनदर पथवी ह | पथवी पर अनक दश अनक समि एव अनक लोग ह | उनम स एक

आपका शरीर आसन पर बठा हआ ह | इस पर य को आप मानिसक आख स भावना स दखत

रहो | आप शरीर नही हो बि क अनक शरीर दश सागर पथवी मह न ऽ सयर चनि एव पर ा ड़ क

ा हो सा ी हो | इस सा ी भाव म जाग जाओ | थोड़ी दर क बाद िफ़र स ाणायाम सिहत lsquoॐhelliprsquo का जाप करो और शानत होकर अपन िवचार को दखत रहो | इस अवःथा म ढ़ िन य करो िक lsquoम जसा चहता ह वसा होकर रहगा |rsquo िवषयसख स ा धन-

दौलत इतयािद की इ छा न करो कय िक िन यबल या आतमबलरपी हाथी क पदिच म और सभी क पदिच समािव हो ही जायग | आतमानदरपी सयर क उदय होन क बाद िम टी क तल क दीय क ाकाश रपी शि सखाभास की गलामी कौन कर

िकसी भी भावना को साकार करन क िलय दय को करद ड़ाल ऐसी िन यातमक बिल वि होनी आवशयक ह | अनतःकरण क गहर-स-गहर दश म चोट कर ऐसा ाण भरक िन बल का आवाहन करो | सीना तानकर खड़ हो जाओ अपन मन की दीन-हीन दखद मानयताओ को कचल

ड़ालन क िलय | सदा ःमरण रह की इधर-उधर भटकती वि य क साथ त हारी शि भी िबखरती रहती ह | अतः वि य को बहकाओ नही | तमाम वि य को एकिऽत करक साधनाकाल म आतमिचनतन म लगाओ और यवहारकाल म जो कायर करत हो उसम लगाओ | द िच होकर हरक कायर करो | अपन ःवभाव म स आवश को सवरथा िनमरल कर दो | आवश म आकर कोई िनणरय मत लो कोई िबया मत करो | सदा शानत वि धारण करन का अ यास करो | िवचारशील एव सनन रहो | ःवय अचल रहकर सागर की तरह सब वि य की तरग को अपन

भीतर समालो | जीवमाऽ को अपना ःवरप समझो | सबस ःनह रखो | िदल को यापक रखो | सकिच ता का िनवारण करत रहो | ख ड़ातमक वि का सवरथा तयाग करो | िजनको ानी महापरष का सतसग और अधयातमिव ा का लाभ िमल जाता ह उसक जीवन स

दःख िवदा होन लगत ह | ॐ आननद आतमिन ा म जाग हए महापरष क सतसग एव सतसािहतय स जीवन को भि और वदात स प

एव पलिकत करो | कछ ही िदन क इस सघन योग क बाद अनभव होन लगगा िक भतकाल क

नकारतमक ःवभाव सशयातमक-हािनकारक क पनाओ न जीवन को कचल ड़ाला था िवषला कर िदया था | अब िन यबल क चमतकार का पता चला | अततरम म आिवरभत िद य खज़ाना अब

िमला | ार ध की बिड़या अब टटन लगी | ठ क ह न करोग ना िह मत पढ़कर रख मत दना इस पिःतका को | जीवन म इसको बार-बार पढ़त रहो | एक िदन म यह पणर ना होगा | बार-बार अ यास करो | त हार िलय यह एक ही पिःतका काफ़ी ह | अनय कचराप टी ना पड़ोग तो चलगा | शाबाश वीर शाबाश

  • परसतावना
  • जीवन रसायन
  • गर भकति एक अमोघ साधना
  • शरी राम-वशिषठ सवाद
  • आतमबल का आवाहन
  • आतमबल कस जगाय
Page 9: जीवन रसायन - HariOmGroup · ‘जीवन रसायन’ का यह िदय कटोरा आत्मरस के िपपासुओं हाथ

नही िचिनतत मत हो तम बात म िच को िमत मत करो | सब कछ ःव न म सरकता जा रहा ह | जगत की सतयता क म को भगा दो | ओ शि मान आतमा अपन अतरतम को िनहार ॐ का गजन कर दबरल िवचार एव िचताओ को कचल ड़ाल दबरल एव त छ िवचार तथा जगत को सतय मानन क कारण तन बहत-बहत

सहन िकया ह | अब उसका अत कर द | 39) ान क किठनमागर पर चलत व आपक सामन जब भारी क एव दख आय तब आप उस

सख समझो कय िक इस मागर म क एव दख ही िनतयानद ा करन म िनिम बनत ह | अतः उन क दख और आघात स िकसी भी कार साहसहीन मत बनो िनराश मत बनो | सदव आग

बढ़त रहो | जब तक अपन सतयःवरप को यथाथर रप स न जान लो तब तक रको नही | 40) ःवपनावःथा म आप शर को दखत ह और ड़रत ह िक वह आपको खा जायगा | परत आप

िजसको दखत ह वह शर नही आप ःवय ह | शर आपकी क पना क अितिर और कछ नही | इस

कार जामतावःथा म भी आपका घोर-स-घोर शऽ भी ःवय आप ही ह दसरा कोई नही | थकतव

अलगाव क िवचार को अपन दय स दर हटा दो | आपस िभनन कोई िमऽ या शऽ होना कवल

ःव न-म ह | 41) अशभ का िवरोध मत करो | सदा शात रहो | जो कछ सामन आय उसका ःवागत करो चाह

आपकी इ छा की धारा स िवपरीत भी हो | तब आप दखग िक तय बराई भलाई म बदल

जायगी | 42) रािऽ म िनिाधीन होन स पहल िबःतर पर सीध सखपवरक बठ जाओ | आख बद करो | नाक

स ास लकर फ़फ़ड़ को भरपर भर दो | िफ़र उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo का लबा उ चारण करो | िफ़र स

गहरा ःवास लकर lsquoॐhelliprsquo का लबा उ चारण करो | इस कार दस िमनट तक करो | कछ ही िदन

क िनयिमत योग क बाद इसक चमतकार का अनभव होगा | रािऽ की नीद साधना म पिरणत हो जायगी | िदल-िदमाग म शाित एव आनद की वषार होगी | आपकी लौिकक िनिा योगिनिा म बदल

जयगी | 43) हट जाओ ओ सक प और इ छाओ हट जाओ तम ससार की णभगर शसा एव धन-

स पि क साथ स बध रखती हो | शरीर चाह कसी भी दशा म रह उसक साथ मरा कोई सरोकार नही | सब शरीर मर ही ह | 44) िकसी भी तरह समय िबतान क िलय मज़दर की भाित काम मत करो | आनद क िलय

उपयोगी कसरत समझकर सख बीड़ा या मनोरजक खल समझकर एक कलीन राजकमार की भाित काम करो | दब हए कचल हए िदल स कभी कोई काम हाथ म मत लो | 45) समम ससार को जो अपना शरीर समझत ह तयक यि को जो अपना आतमःवरप

समझत ह ऐस ानी िकसस असनन ह ग उनक िलय िव प कहा रहा 46) ससार की तमाम वःतऐ सखद ह या भयानक वाःतव म तो त हारी फ़लता और आनद क

िलय ही कित न बनाई ह | उनस ड़रन स कया लाभ त हारी नादानी ही त ह चककर म ड़ालती ह

| अनयथा त ह नीचा िदखान वाला कोई नही | पकका िन य रखो िक यह जगत त हार िकसी शऽ न नही बनाया | त हार ही आतमदव का यह सब िवलास ह | 47) महातमा व ह िजनकी िवशाल सहानभित एव िजनका मातवत दय सब पािपय को दीन-

दिखय को म स अपनी गोद म ःथान दता ह | 48) यह िनयम ह िक भयभीत ाणी ही दसर को भयभीत करता ह | भयरिहत हए िबना अिभननता आ नही सकती अिभननता क िबना वासनाओ का अत स भव नही ह और िनवारसिनकता क िबना िनवरता समता मिदता आिद िद य गण कट नही होत | जो बल दसर

की दबरलता को दर ना कर सक वह वाःतव म बल नही | 49) धयान म बठन स पहल अपना समम मानिसक िचतन तथा बाहर की तमाम स पि ई र क

या सदगर क चरण म अपरण करक शात हो जाओ | इसस आपको कोई हािन नही होगी | ई र आपकी स पि दह ाण और मन की र ा करग | ई र अपरण बि स कभी हािन नही होती |

इतना ही नही दह ाण म नवजीवन का िसचन होता ह | इसस आप शाित व आनद का ोत

बनकर जीवन को साथरक कर सक ग | आपकी और पर िव की वाःतिवक उननित होगी | 50) कित सननिच एव उ ोगी कायरकतार को हर कार स सहायता करती ह | 51) सननमख रहना यह मोितय का खज़ाना दन स भी उ म ह | 52) चाह करोड़ सयर का लय हो जाय चाह अस य चनिमा िपघलकर न हो जाय परत ानी महापरष अटल एव अचल रहत ह | 53) भौितक पदाथ को सतय समझना उनम आसि रखना दख-ददर व िचताओ को आमऽण

दन क समान ह | अतः बा नाम-रप पर अपनी शि व समय को न करना यह बड़ी गलती ह |

54) जब आपन यि तव िवषयक िवचार का सवरथा तयाग कर िदया जाता ह तब उसक समान

अनय कोई सख नही उसक समान ौ अनय कोई अवःथा नही | 55) जो लोग आपको सबस अिधक हािन पहचान का यास करत ह उन पर कपापणर होकर ममय िचतन कर | व आपक ही आतमःवरप ह | 56) ससार म कवल एक ही रोग ह | सतय जगिनमथया - इस वदाितक िनयम का भग ही सवर यािधय का मल ह | वह कभी एक दख का रप लता ह तो कभी दसर दख का | इन सवर यािधय

की एक ही दवा ह अपन वाःतिवक ःवरप तव म जाग जाना | 57) ब धयानःथ बठ थ | पहाड़ पर स एक िशलाखड़ लढ़कता हआ आ रहा था | ब पर िगर इसस पहल ही वह एक दसर िशलाखड़ क साथ टकराया | भयकर आवाज़ क साथ उसक दो भाग

हो गय | उसन अपना मागर बदल िलया | धयानःथ ब की दोन तरफ़ स दोन भाग गज़र गय |

ब बच गय | कवल एक छोटा सा ककड़ उनक पर म लगा | पर स थोड़ा खन बहा | ब ःवःथता स उठ खड़ हए और िशय स कहा ldquoभी ओ स यक समािध का यह वलत माण ह | म यिद धयान-समािध म ना होता तो िशलाखड़ न मझ कचल िदया होता | लिकन ऐसा ना होकर उसक दो भाग हो गय | उसम स िसफ़र एक छोटा-सा ककड़ ऊछलकर मर पर म लगा | यह जो छोटा-सा ज़ म हआ ह वह धयान की पणरता म रही हई कछ नयनता का पिरणाम ह | यिद धयान पणर होता तो इतना भी ना लगता |rdquo 58) कहा ह वह तलवार जो मझ मार सक कहा ह वह श जो मझ घायल कर सक कहा ह वह

िवपि जो मरी सननता को िबगाड़ सक कहा ह वह दख जो मर सख म िव न ड़ाल सक मर सब भय भाग गय | सब सशय कट गय | मरा िवजय-ाि का िदन आ पहचा ह | कोई ससािरक

तरग मर िनछल िच को आदोिलत नही कर सकती | इन तरग स मझ ना कोई लाभ ह ना हािन

ह | मझ शऽ स ष नही िमऽ स राग नही | मझ मौत का भय नही नाश का ड़र नही जीन की वासना नही सख की इ छा नही और दख स ष नही कय िक यह सब मन म रहता ह और मन

िमथया क पना ह | 59) स पणर ःवाःथय की अजीब यि रोज सबह तलसी क पाच प चबाकर एक लास बासी पानी पी लो | िफ़र जरा घम लो दौड़ लो या कमर म ही पज क बल थोड़ा कद लो | नहा-धोकर ःवःथ शानत होकर एकात म बठ जाओ | दस बारह गहर-गहर ास लो | आग-पीछ क कतर य

स िनि त हो जाओ | आरो यता आनद सख शािनत दान करनवाली िवचारधारा को िच म बहन दो | िबमारी क िवचार को हटाकर इस कार की भावना पर मन को ढ़ता स एकाम करो िक

मर अदर आरो यता व आनद का अनत ोत वािहत हो रहा हhellip मर अतराल म िद यामत का महासागर लहरा रहा ह | म अनभव कर रहा ह िक समम सख आरो यता शि मर भीतर ह | मर मन म अननत शि और सामथयर ह | म ःवःथ ह | पणर सनन ह | मर अदर-बाहर सवरऽ

परमातमा का काश फ़ला हआ ह | म िव प रिहत ह | सब नद स म ह | ःवग य सख मर अदर ह | मरा दय परमातमा का ग दश ह | िफ़र रोग-शोक वहा कस रह सकत ह म दवी ओज क मड़ल म िव हो चका ह | वह मर ःवाःथय का दश ह | म तज का पज ह | आरो यता का अवतार ह | याद रखो आपक अतःकरण म ःवाःथय सख आनद और शािनत ई रीय वरदान क रप म िव मान ह | अपन अतःकरण की आवाज़ सनकर िनशक जीवन यतीत करो | मन म स कि पत

रोग क िवचार को िनकाल दो | तयक िवचार भाव श द और कायर को ई रीय शि स पिरपणर रखो | ॐकार का सतत गजन करो | सबह-शाम उपरो िवचार का िचतन-मनन करन स िवशष लाभ होगा | ॐ आनदhellip ॐ शाितhellip

पणर ःवःथhellip पणर सननhellip 60) भय कवल अ ान की छाया ह दोष की काया ह मनय को धमरमागर स िगरान वाली आसरी माया ह | 61) याद रखो चाह समम ससार क तमाम पऽकार िननदक एकिऽत होकर आपक िवरध

आलोचन कर िफ़र भी आपका कछ िबगाड़ नही सकत | ह अमर आतमा ःवःथ रहो | 62) लोग ायः िजनस घणा करत ह ऐस िनधरन रोगी इतयािद को सा ात ई र समझकर उनकी सवा करना यह अननय भि एव आतम ान का वाःतिवक ःवरप ह | 63) रोज ातः काल उठत ही ॐकार का गान करो | ऐसी भावना स िच को सराबोर कर दो िक

lsquoम शरीर नही ह | सब ाणी कीट पतग गनधवर म मरा ही आतमा िवलास कर रहा ह | अर उनक

रप म म ही िवलास कर रहा ह | rsquo भया हर रोज ऐसा अ यास करन स यह िस ात दय म िःथर हो जायगा | 64) मी आग-पीछ का िचनतन नही करता | वह न तो िकसी आशका स भयभीत होता ह और न

व रमान पिरिःथित म माःपद म ीित क िसवाय अनय कही आराम पाता ह |

65) जस बालक ितिब ब क आौयभत दपरण की ओर धयान न दकर ितिब ब क साथ खलता ह जस पामर लोग यह समम ःथल पच क आौयभत आकाश की ओर धयान न दकर कवल

ःथल पच की ओर धयान दत ह वस ही नाम-रप क भ ःथल ि क लोग अपन दभार य क

कारण समम ससार क आौय सि चदाननद परमातमा का धयान न करक ससार क पीछ पागल

होकर भटकत रहत ह | 66) इस स पणर जगत को पानी क बलबल की तरह णभगर जानकर तम आतमा म िःथर हो जाओ | तम अ त ि वाल को शोक और मोह कस 67) एक आदमी आपको दजरन कहकर पिरि छनन करता ह तो दसरा आपको स जन कहकर भी पिरि छनन ही करता ह | कोई आपकी ःतित करक फला दता ह तो कोई िननदा करक िसकड़ा दता ह | य दोन आपको पिरि छनन बनात ह | भा यवान तो वह परष ह जो तमाम बनधन क िवर

खड़ा होकर अपन दवतव की अपन ई रतव की घोषणा करता ह अपन आतमःवरप का अनभव

करता ह | जो परष ई र क साथ अपनी अभदता पहचान सकता ह और अपन इदरिगदर क लोग क

सम समम ससार क सम िनडर होकर ई रतव का िनरपण कर सकता ह उस परष को ई र मानन क िलय सारा ससार बाधय हो जाता ह | परी सि उस अवय परमातमा मानती ह | 68) यह ःथल भौितक पदाथर इिनिय की ाित क िसवाय और कछ नही ह | जो नाम व रप पर भरोसा रखता ह उस सफलता नही िमलती | सआम िस ात अथारत सतय आतम-ततव पर िनभरर रहना ही सफलता की कजी ह | उस महण करो उसका मनन करो और यवहार करो | िफर नाम-

रप आपको खोजत िफरग | 69) सख का रहःय यह ह आप य - य पदाथ को खोजत-िफरत हो तय -तय उनको खोत

जात हो | आप िजतन कामना स पर होत हो उतन आवयकताओ स भी पर हो जात हो और पदाथर भी आपका पीछा करत हए आत ह | 70) आननद स ही सबकी उतपि आननद म ही सबकी िःथित एव आननद म ही सबकी लीनता दखन स आननद की पणरता का अनभव होता ह | 71) हम बोलना चहत ह तभी श दो चारण होता ह बोलना न चाह तो नही होता | हम दखना चाह तभी बाहर का य िदखता ह नऽ बद कर ल तो नही िदखता | हम जानना चाह तभी पदाथर का ान होता ह जानना नही चाह तो ान नही होता | अतः जो कोई पदाथर दखन सनन या जानन म

आता ह उसको बािधत करक बािधत करनवाली ानरपी बि की वि को भी बािधत कर दो | उसक बाद जो शष रह वह ाता ह | ाततव धमररिहत श ःवरप ाता ही िनतय सि चदाननद

ह | िनरतर ऐसा िववक करत हए ान व यरिहत कवल िचनमय िनतय िव ानाननदघनरप

म िःथर रहो | 72) यिद आप सवागपणर जीवन का आननद लना चाहत हो तो कल की िचनता छोड़ो | अपन चार

ओर जीवन क बीज बोओ | भिवय म सनहर ःवपन साकार होत दखन की आदत बनाओ | सदा क

िलय मन म यह बात पककी बठा दो िक आपका आनवाला कल अतयनत काशमय आननदमय

एव मधर होगा | कल आप अपन को आज स भी अिधक भा यवान पायग | आपका मन

सजरनातमक शि स भर जायगा | जीवन ऐ यरपणर हो जायगा | आपम इतनी शि ह िक िव न

आपस भयभीत होकर भाग खड़ ह ग | ऐसी िवचारधारा स िनि त रप स क याण होगा | आपक

सशय िमट जायग | 73) ओ मानव त ही अपनी चतना स सब वःतओ को आकषरक बना दता ह | अपनी यार भरी ि उन पर डालता ह तब तरी ही चमक उन पर चढ़ जाती ह औरhellipिफर त ही उनक यार म फ़स जाता ह | 74) मन िविचऽ एव अटपट माग ारा ऐस ततव की खोज की जो मझ परमातमा तक पहचा सक | लिकन म िजस-िजस नय मागर पर चला उन सब माग स पता चला िक म परमातमा स दर चला गया | िफर मन बि म ा एव िव ा स परमातमा की खोज की िफर भी परमातमा स अलग रहा | मनथालय एव िव ालय न मर िवचार म उ टी गड़बड़ कर दी | म थककर बठ गया | िनःत ध हो गया | सयोगवश अपन भीतर ही झाका धयान िकया तो उस अनत रि स मझ सवरःव िमला िजसकी खोज म बाहर कर रहा था | मरा आतमःवरप सवरऽ या हो रहा ह | 75) जस सामानय मनय को पतथर गाय भस ःवाभािवक रीित स ि गोचर होत ह वस ही ानी को िनजाननद का ःवाभािवक अनभव होता ह | 76) वदानत का यह अनभव ह िक नीच नराधम िपशाच शऽ कोई ह ही नही | पिवऽ ःवरप ही सवर रप म हर समय शोभायमान ह | अपन-आपका कोई अिन नही करता |

मर िसवा और कछ ह ही नही तो मरा अिन करन वाला कौन ह मझ अपन-आपस भय कसा 77) यह चराचर सि रपी त तब तक भासता ह जब तक उस दखनवाला मन बठा ह |

मन शात होत ही त की गध तक नही रहती |

78) िजस कार एक धाग म उ म मधयम और किन फल िपरोय हए ह उसी कार मर आतमःवरप म उ म मधयम और किन शरीर िपरोय हए ह | जस फल की गणव ा का भाव धाग पर नही पड़ता वस ही शरीर की गणव ा का भाव मरी सवर यापकता नही पड़ता | जस सब फल क िवनाश स धाग को कोई हािन नही वस शरीर क िवनाश स मझ सवरगत आतमा को कोई हािन नही होती | 79) म िनमरल िन ल अननत श अजर अमर ह | म असतयःवरप दह नही | िस परष इसीको lsquo ानrsquo कहत ह | 80) म भी नही और मझस अलग अनय भी कछ नही | सा ात आननद स पिरपणर कवल िनरनतर और सवरऽ एक ही ह | उ ग छोड़कर कवल यही उपासना सतत करत रहो | 81) जब आप जान लग िक दसर का िहत अपना ही िहत करन क बराबर ह और दसर का अिहत करना अपना ही अिहत करन क बराबर ह तब आपको धमर क ःवरप का सा तकार हो जायगा | 82) आप आतम-ित ा दलबनदी और ईयार को सदा क िलए छोड़ दो | पथवी माता की तरह सहनशील हो जाओ | ससार आपक कदम म नयोछावर होन का इतज़ार कर रहा ह | 83) म िनगरण िनिबय िनतय म और अ यत ह | म असतयःवरप दह नही ह | िस परष इसीको lsquo ानrsquo कहत ह | 84) जो दसर का सहारा खोजता ह वह सतयःवरप ई र की सवा नही कर सकता | 85) सतयःवरप महापरष का म सख-दःख म समान रहता ह सब अवःथाओ म हमार अनकल रहता ह | दय का एकमाऽ िवौामःथल वह म ह | व ावःथा उस आतमरस को सखा नही सकती | समय बदल जान स वह बदलता नही | कोई िवरला भा यवान ही ऐस िद य म का भाजन बन सकता ह | 86) शोक और मोह का कारण ह ािणय म िविभनन भाव का अधयारोप करना | मनय जब एक को सख दनवाला यारा स द समझता ह और दसर को दःख दनवाला शऽ समझकर उसस ष करता ह तब उसक दय म शोक और मोह का उदय होना अिनवायर

ह | वह जब सवर ािणय म एक अख ड स ा का अनभव करन लगगा ािणमाऽ को भ का पऽ समझकर उस आतमभाव स यार करगा तब उस साधक क दय म शोक और मोह का नामोिनशान नही रह जायगा | वह सदा सनन रहगा | ससार म उसक िलय न ही कोई शऽ रहगा और न ही कोई िमऽ | उसको कोई कलश नही पहचायगा | उसक सामन िवषधर नाग भी अपना ःवभाव भल जायगा | 87) िजसको अपन ाण की परवाह नही मतय का नाम सनकर िवचिलत न होकर उसका ःवागत करन क िलए जो सदा ततपर ह उसक िलए ससार म कोई कायर असाधय नही | उस िकसी बा श की जररत नही साहस ही उसका श ह | उस श स वह अनयाय का प लनवाल को परािजत कर दता ह िफर भी उनक िलए बर िवचार का सवन नही करता | 88) िचनता ही आननद व उ लास का िवधवस करनवाली रा सी ह | 89) कभी-कभी मधयरािऽ को जाग जाओ | उस समय इिनिया अपन िवषय क ित चचल नही रहती | बिहमरख ःफरण की गित मनद होती ह | इस अवःथा का लाभ लकर इिनियातीत अपन िचदाकाश ःवरप का अनभव करो | जगत शरीर व इिनिय क अभाव म भी अपन अख ड अिःततव को जानो | 90) य म ीित नही रहना ही असली वरा य ह | 91) रोग हम दबाना चाहता ह | उसस हमार िवचार भी मनद हो जात ह | अतः रोग की िनवित करनी चिहए | लिकन जो िवचारवान परष ह वह कवल रोगिनवित क पीछ ही नही लग जाता | वह तो यह िनगरानी रखता ह िक भयकर दःख क समय भी अपना िवचार छट तो नही गया ऐसा परष lsquoहाय-हायrsquo करक ाण नही तयागता कय िक वह जानता ह िक रोग उसका दास ह | रोग कसा भी भय िदखाय लिकन िवचारवान परष इसस भािवत नही होता | 92) िजस साधक क पास धारणा की ढ़ता एव उ य की पिवऽता य दो गण ह ग वह अवय िवजता होगा | इन दो शा स ससि जत साधक समःत िव न-बाधाओ का सामना करक आिखर म िवजयपताका फहरायगा | 93) जब तक हमार मन म इस बात का पकका िन य नही होगा िक सि शभ ह तब तक मन एकाम नही होगा | जब तक हम समझत रहग िक सि िबगड़ी हई ह तब तक

मन सशक ि स चार ओर दौड़ता रहगा | सवरऽ मगलमय ि रखन स मन अपन-आप शात होन लगगा | 94) आसन िःथर करन क िलए सक प कर िक जस पथवी को धारण करत हए भी शषजी िब कल अचल रहत ह वस म भी अचल रहगा | म शरीर और ाण का ा ह | 95) lsquoससार िमथया हrsquo - यह मद ानी की धारणा ह | lsquoससार ःव नवत हrsquo - यह मधयम ानी की धारणा ह | lsquoससार का अतयनत अभाव ह ससार की उतपि कभी हई ही नहीrsquo -

यह उ म ानी की धारणा ह | 96) आप यिद भि मागर म ह तो सारी सि भगवान की ह इसिलए िकसीकी भी िननदा करना ठ क नही | आप यिद ानमागर म ह तो यह सि अपना ही ःवरप ह | आप अपनी ही िननदा कस कर सकत ह इस कार द नो माग म परिननदा का अवकाश ही नही ह | 97) य म ा का भान एव ा म य का भान हो रहा ह | इस गड़बड़ का नाम ही अिववक या अ ान ह | ा को ा तथा य को य समझना ही िववक या ान ह | 98) आसन व ाण िःथर होन स शरीर म िव त पदा होती ह | शरीर क ारा जब भी िबया की जाती ह तब वह िव त बाहर िनकल जाती ह | इस िव त को शरीर म रोक लन स शरीर िनरोगी बन जाता ह | 99) ःव न की सि अ पकालीन और िविचऽ होती ह | मनय जब जागता ह तब जानता ह िक म पलग पर सोया ह | मझ ःव न आया | ःव न म पदाथर दश काल िबया इतयािद परी सि का सजरन हआ | लिकन मर िसवाय और कछ भी न था | ःव न की सि झठ थी | इसी कार ततव ानी परष अ ानरपी िनिा स ानरपी जामत अवःथा को ा हए ह | व कहत ह िक एक क िसवा अनय कछ ह ही नही | जस ःव न स जागन क बाद हम ःव न की सि िमथया लगती ह वस ही ानवान को यह जगत िमथया लगता ह | 100) शारीिरक क पड़ तब ऐसी भावना हो जाय िक lsquoयह क मर यार भ की ओर स हhelliprsquo तो वह क तप का फल दता ह | 101) चलत-चलत पर म छाल पड़ गय ह भख याकल कर रही हो बि िवचार

करन म िशिथल हो गई हो िकसी पड़ क नीच पड़ ह जीवन अस भव हो रहा हो मतय का आगमन हो रहा हो तब भी अनदर स वही िनभरय धविन उठ lsquoसोऽहमhellipसोऽहमhellipमझ भय नहीhellipमरी मतय नहीhellipमझ भख नहीhellip यास नहीhellip कित की कोई भी यथा मझ न नही कर सकतीhellipम वही हhellipवही हhelliprsquo 102) िजनक आग िय-अिय अनकल-ितकल सख-दःख और भत-भिवय एक समान ह ऐस ानी आतमव ा महापरष ही स च धनवान ह | 103) दःख म दःखी और सख म सखी होन वाल लोह जस होत ह | दःख म सखी रहन वाल सोन जस होत ह | सख-दःख म समान रहन वाल र जस होत ह परनत जो सख-दःख की भावना स पर रहत ह व ही स च साट ह | 104) ःव न स जाग कर जस ःव न को भल जात ह वस जामत स जागकर थोड़ी दर क

िलए जामत को भल जाओ | रोज ातः काल म पनिह िमनट इस कार ससार को भल जान की आदत डालन स आतमा का अनसधान हो सकगा | इस योग स सहजावःथा ा होगी | 105) तयाग और म स यथाथर ान होता ह | दःखी ाणी म तयाग व म िवचार स आत ह

| सखी ाणी म तयाग व म सवा स आत ह कय िक जो ःवय दःखी ह वह सवा नही कर सकता पर िवचार कर सकता ह | जो सखी ह वह सख म आस होन क कारण उसम िवचार का उदय नही हो सकता लिकन वह सवा कर सकता ह | 106) लोग की पजा व णाम स जसी सननता होती ह वसी ही सननता जब मार पड़

तब भी होती हो तो ही मन य िभ ानन महण करन का स चा अिधकारी माना जाता ह | 107) हरक साधक को िब कल नय अनभव की िदशा म आग बढ़ना ह | इसक िलय

ानी महातमा की अतयनत आवयकता होती ह | िजसको स ची िज ासा हो उस ऐस

महातमा िमल ही जात ह | ढ़ िज ासा स िशय को गर क पास जान की इ छा होती ह | यो य

िज ास को समथर गर ःवय दशरन दत ह | 108) बीत हए समय को याद न करना भिवय की िचनता न करना और व रमान म ा

सख-दःखािद म सम रहना य जीवनम परष क ल ण ह | 109) जब बि एव दय एक हो जात ह तब सारा जीवन साधना बन जाता ह |

110) बि मान परष ससार की िचनता नही करत लिकन अपनी मि क बार म सोचत ह |

मि का िवचार ही तयागी दानी सवापरायण बनाता ह | मो की इ छा स सब सदगण आ जात ह

| ससार की इ छा स सब दगरण आ जात ह | 111) पिरिःथित िजतनी किठन होती ह वातावरण िजतना पीड़ाकारक होता ह उसस

गजरन वाला उतना ही बलवान बन जाता ह | अतः बा क और िचनताओ का ःवागत करो | ऐसी पिरिःथित म भी वदानत को आचरण म लाओ | जब आप वदानती जीवन यतीत करग तब दखग

िक समःत वातावरण और पिरिःथितया आपक वश म हो रही ह आपक िलय उपयोगी िस हो रही ह | 112) हरक पदाथर पर स अपन मोह को हटा लो और एक सतय पर एक तथय पर अपन

ई र पर समम धयान को किनित करो | तरनत आपको आतम-सा ातकार होगा | 113) जस बड़ होत-होत बचपन क खलकद छोड़ दत हो वस ही ससार क खलकद छोड़कर आतमाननद का उपभोग करना चािहय | जस अनन व जल का सवन करत हो वस ही आतम-

िचनतन का िनरनतर सवन करना चािहय | भोजन ठ क स होता ह तो ति की डकार आती ह वस

ही यथाथर आतमिचनतन होत ही आतमानभव की डकार आयगी आतमाननद म मःत ह ग |

आतम ान क िसवा शाित का कोई उपाय नही | 114) आतम ानी क हकम स सयर काशता ह | उनक िलय इनि पानी बरसाता ह | उनही क

िलय पवन दत बनकर गमनागमन करता ह | उनही क आग समि रत म अपना िसर रगड़ता ह | 115) यिद आप अपन आतमःवरप को परमातमा समझो और अनभव करो तो आपक सब

िवचार व मनोरथ सफल ह ग उसी ण पणर ह ग | 116) राजा-महाराजा दवी-दवता वद-पराण आिद जो कछ ह व आतमदश क सक पमाऽ

ह | 117) जो लोग ितकलता को अपनात ह ई र उनक स मख रहत ह | ई र िजनह अपन

स दर रखना चाहत ह उनह अनकल पिरिःथितया दत ह | िजसको सब वःतए अनकल एव पिवऽ

सब घटनाए लाभकारी सब िदन शभ सब मनय दवता क रप म िदखत ह वही परष ततवदश ह | 118) समता क िवचार स िच ज दी वश म होता ह हठ स नही |

119) ऐस लोग स स बनध रखो िक िजसस आपकी सहनशि बढ़ समझ की शि बढ़

जीवन म आन वाल सख-दःख की तरग का आपक भीतर शमन करन की ताकत आय समता बढ़

जीवन तजःवी बन | 120) लोग बोलत ह िक धयान व आतमिचनतन क िलए हम फरसत नही िमलती | लिकन

भल मनय जब नीद आती ह तब सब महतवपणर काम भी छोड़कर सो जाना पड़ता ह िक नही

जस नीद को महतव दत हो वस ही चौबीस घनट म स कछ समय धयान व आतमिचनतन म भी िबताओ | तभी जीवन साथरक होगा | अनयथा कछ भी हाथ नही लगगा | 121) भल जाओ िक तम मनय हो अमक जाित हो अमक उ हो अमक िड़मीवाल हो अमक धनधवाल हो | तम िनगरण िनराकार सा ीरप हो ऐसा ढ़ िन य करो | इसीम तमाम

कार की साधनाए िबयाए योगािद समािव हो जात ह | आप सवर यापक अख ड चतनय हो | सार ान का यह मल ह | 122) दोष तभी िदखता जब हमार लोचन म क अभावरप पीिलया रोग स मःत होत ह | 123) साधक यिद अ यास क मागर पर उसी कार आग बढ़ता जाय िजस कार ार भ

म इस मागर पर चलन क िलए उतसाहपवरक कदम रखा था तो आयरपी सयर अःत होन स पहल

जीवनरपी िदन रहत ही अवय सोऽहम िसि क ःथान तक पहच जाय | 124) लोग ज दी स उननित कय नही करत कय िक बाहर क अिभाय एव िवचारधाराओ का बहत बड़ा बोझ िहमालय की तरह उनकी पीठ पर लदा हआ ह | 125) अपन ित होन वाल अनयाय को सहन करत हए अनयायकतार को यिद मा कर िदया जाय तो ष म म पिरणत हो जाता ह | 126) साधना की शरआत ौ ा स होती ह लिकन समाि ान स होनी चािहय | ान मान

ःवयसिहत सवर ःवरप ह ऐसा अपरो अनभव | 127) अपन शरीर क रोम-रोम म स ॐ का उ चारण करो | पहल धीम ःवर म ार भ

करो | शर म धविन गल स िनकलगी िफर छाती स िफर नािभ स और अनत म रीढ़ की ह डी क

आिखरी छोर स िनकलगी | तब िव त क धकक स सष ना नाड़ी तरनत खलगी | सब कीटाणसिहत

तमाम रोग भाग खड़ ह ग | िनभरयता िह मत और आननद का फ वारा छटगा | हर रोज ातःकाल

म ःनानािद करक सय दय क समय िकसी एक िनयत ःथान म आसन पर पवारिभमख बठकर

कम-स-कम आधा घनटा करक तो दखो | 128) आप जगत क भ बनो अनयथा जगत आप पर भतव जमा लगा | ान क

मतािबक जीवन बनाओ अनयथा जीवन क मतािबक ान हो जायगा | िफर यग की याऽा स भी दःख का अनत नही आयगा | 129) वाःतिवक िश ण का ारभ तो तभी होता ह जब मनय सब कार की सहायताओ स िवमख होकर अपन भीतर क अननत ॐोत की तरफ अमसर होता ह | 130) य पच की िनवित क िलए अनतःकरण को आननद म सरोबार रखन क िलए

कोई भी कायर करत समय िवचार करो म कौन ह और कायर कौन कर रहा ह भीतर स जवाब

िमलगा मन और शरीर कायर करत ह | म सा ीःवरप ह | ऐसा करन स कतारपन का अह

िपघलगा सख-दःख क आघात मनद ह ग | 131) राग- ष की िनवित का कया उपाय ह उपाय यही ह िक सार जगत-पच को मनोरा य समझो | िननदा-ःतित स राग- ष स पच म सतयता ढ़ होती ह | 132) जब कोई खनी हाथ आपकी गरदन पकड़ ल कोई श धारी आपको कतल करन क

िलए ततपर हो जाय तब यिद आप उसक िलए सननता स तयार रह दय म िकसी कार का भय

या िवषाद उतपनन न हो तो समझना िक आपन राग- ष पर िवजय ा कर िलया ह | जब आपकी ि पड़त ही िसहािद िहसक जीव की िहसावित गायब हो जाय तब समझना िक अब राग- ष का अभाव हआ ह | 133) आतमा क िसवाय अनय कछ भी नही ह - ऐसी समझ रखना ही आतमिन ा ह | 134) आप ःव न ा ह और यह जगत आपका ही ःव न ह | बस िजस ण यह ान हो जायगा उसी ण आप म हो जाएग | 135) िदन क चौबीस घ ट को साधनामय बनान क िलय िनक मा होकर यथर िवचार करत हए मन को बार-बार सावधान करक आतमिचतन म लगाओ | ससार म सल न मन को वहा स उठा कर आतमा म लगात रहो | 136) एक बार सागर की एक बड़ी तरग एक बलबल की िता पर हसन लगी | बलबल न

कहा ओ तरग म तो छोटा ह िफर भी बहत सखी ह | कछ ही दर म मरी दह टट जायगी िबखर

जायगी | म जल क साथ जल हो जाऊगा | वामन िमटकर िवराट बन जाऊगा | मरी मि बहत

नजदीक ह | मझ आपकी िःथित पर दया आती ह | आप इतनी बड़ी हई हो | आपका छटकारा ज दी नही होगा | आप भाग-भागकर सामनवाली च टान स टकराओगी | अनक छोटी-छोटी तरग

म िवभ हो जाओगी | उन अस य तरग म स अननत-अननत बलबल क रप म पिरवितरत हो जाओगी | य सब बलबल फटग तब आपका छटकारा होगा | बड़ पन का गवर कय करती हो जगत की उपलि धय का अिभमान करक परमातमा स दर मत जाओ | बलबल की तरह सरल

रहकर परमातमा क साथ एकता का अनभव करो | 137) जब आप ईयार ष िछिानवषण दोषारोपण घणा और िननदा क िवचार िकसीक

ित भजत ह तब साथ-ही-साथ वस ही िवचार को आमिऽत भी करत ह | जब आप अपन भाई की आख म ितनका भ कत ह तब अपनी आख म भी आप ताड़ भ क रह ह | 138) शरीर अनक ह आतमा एक ह | वह आतमा-परमातमा मझस अलग नही | म ही कतार सा ी व नयायधीश ह | म ही ककर श आलोचक ह और म ही मधर शसक ह | मर िलय तयक

यि ःवतऽ व ःव छनद ह | बनधन पिरि छननता और दोष मरी ि म आत ही नही | म म

हपरम म ह और अनय लोग भी ःवतऽ ह | ई र म ही ह | आप भी वही हो | 139) िजस कार बालक अपनी परछा म बताल की क पना कर भय पाता ह उसी कार जीव अपन ही सक प स भयभीत होता ह और क पाता ह | 140) कभी-कभी ऐसी भावना करो िक आपक सामन चतनय का एक महासागर लहरा रहा ह | उसक िकनार खड़ रह कर आप आनद स उस दख रह ह | आपका शरीर सागर की सतह पर घमन गया ह | आपक दखत ही दखत वह सागर म डब गया | इस समःत पिरिःथित को दखन वाल आप सा ी आतमा शष रहत ह | इस कार सा ी रप म अपना अनभव करो | 141) यिद हम चाहत ह िक भगवान हमार सब अपराध माफ कर तो इसक िलए सगम साधना यही ह िक हम भी अपन सबिधत सब लोग क सब अपराध माफ कर द |

कभी िकसी क दोष या अपराध पर ि न डाल कय िक वाःतव म सब रप म हमारा यारा ई दव ही बीड़ा कर रहा ह |

142) पणर पिवऽता का अथर ह बा भाव स भािवत न होना | सासािरक मनोहरता एव घणा स पर रहना राजी-नाराजगी स अिवचल िकसी म भद न दखना और आतमानभव क ारा आकषरण व तयाग स अिल रहना | यही वदानत का उपिनषद का

रहःय ह | 143) ई र सा ातकार तभी होगा जब ससार की ि स तीत होन वाल बड़-स-बड़ विरय को भी मा करन का आपका ःवभाव बन जायगा | 144) चाल यवहार म स एकदम उपराम होकर दो िमनट क िलए िवराम लो |

सोचो िक lsquo म कौन ह सद -गम शरीर को लगती ह | भख- यास ाण को लगती ह |

अनकलता-ितकलता मन को लगती ह | शभ-अशभ एव पाप-प य का िनणरय बि करती ह | म न शरीर ह न ाण ह न मन ह न बि ह | म तो ह इन सबको स ा दन वाला इन सबस नयारा िनलप आतमा |rsquo 145) जो मनय िनरतर lsquoम म हhelliprsquo ऐसी भावना करता ह वह म ही ह और lsquoम ब हhelliprsquo ऐसी भावना करनवाला ब ही ह | 146) आप िनभरय ह िनभरय ह िनभरय ह | भय ही मतय ह | भय ही पाप ह | भय ही नकर ह | भय ही अधमर ह | भय ही यिभचार ह | जगत म िजतन असत या िमथया भाव ह व सब इस भयरपी शतान स पदा हए ह | 147) परिहत क िलए थोड़ा काम करन स भी भीतर की शि या जागत होती ह |

दसर क क याण क िवचारमाऽ स दय म एक िसह क समान बल आ जाता ह | 148) हम यिद िनभरय ह ग तो शर को भी जीतकर उस पाल सक ग | यिद डरग तो क ा भी हम फ़ाड़ खायगा | 149) तयक िबया तयक यवहार तयक ाणी ःवरप िदख यही सहज समािध ह | 150) जब किठनाईया आय तब ऐसा मानना िक मझ म सहन शि बढ़ान क िलए ई र न य सयोग भज ह | किठन सयोग म िह मत रहगी तो सयोग बदलन लगग |

िवषय म राग- ष रह गया होगा तो वह िवषय कसौटी क रप म आग आयग और उनस पार होना पड़गा | 151) ततव ि स न तो आपन जनम िलया न कभी लग | आप तो अनत ह सवर यापी ह िनतयम अजर-अमर अिवनाशी ह | जनम-मतय का ही गलत ह महा-

मखरतापणर ह | जहा जनम ही नही हआ वहा मतय हो ही कस सकती ह 152) आप ही इस जगत क ई र हो | आपको कौन दबरल बना सकता ह जगत म आप ही एकमाऽ स ा हो | आपको िकसका भय खड़ हो जाओ | म हो जाओ | ठ क स समझ लो िक जो कोई िवचार या श द आपको दबरल बनाता ह वही एकमाऽ अशभ ह | मनय को दबरल व भयभीत करनवाला जो कछ इस ससार म ह वह पाप ह | 153) आप अपना कायर या कतर य करो लिकन न उसक िलए कोई िचनता रह न ही कोई

इ छा | अपन कायर म सख का अनभव करो कय िक आपका कायर ःवय सख या िवौाम ह | आपका कायर आतमानभव का ही दसरा नाम ह | कायर म लग रहो | कायर आपको आतमानभव कराता ह |

िकसी अनय हत स कायर न करो | ःवतऽ वि स अपन कायर पर डट जाओ | अपन को ःवतऽ

समझो िकसीक कदी नही | 154) यिद आप सतय क मागर स नही हटत तो शि का वाह आपक साथ ह समय आपक

साथ ह ऽ आपक साथ ह | लोग को उनक भतकाल की मिहमा पर फलन दो भिवयकाल की स पणर मिहमा आपक हाथ म ह | 155) जब आप िद य म क साथ चा डाल म चोर म पापी म अ यागत म और सबम भ क दशरन करग तब आप भगवान ौी कण क मपाऽ बन जायग | 156) आचायर गौड़पाद न ःप कहा आप सब आपस म भल ही लड़त रह लिकन मर साथ नही लड़ सक ग | आप सब लोग मर पट म ह | म आतमःवरप स सवर या ह | 157) मनय सभी ािणय म ौ ह सब दवताओ स भी ौ ह | दवताओ को भी िफर स

धरती पर आना पड़गा और मनय शरीर ा करक मि ा करनी होगी | 158) िनि नतता क दो सऽ जो कायर करना जररी ह उस परा कर दो | जो िबनजररी ह

उस भल जाओ | 159) सवा-म-तयाग ही मनय क िवकास का मल मऽ ह | अगर यह मऽ आपको जच

जाय तो सभी क ित सदभाव रखो और शरीर स िकसी-न-िकसी यि को िबना िकसी मतलब क

सहयोग दत रहो | यह नही िक जब मरी बात मानग तब म सवा करगा | अगर बनधक मरी बात

नही मानत तो म सवा नही करगा |

भाई तब तो तम सवा नही कर पाओग | तब तो तम अपनी बात मनवा कर अपन अह की पजा ही

करोग | 160) जस ःव न िमथया ह वस ही यह जामत अवःथा भी ःव नवत ही ह िमथया ह | हरक

को अपन इस ःव न स जागना ह | सदगर बार-बार जगा रह ह लिकन जाग कर वापस सो न जाए ऐसा परषाथर तो हम ही करना होगा | 161) सदा सननमख रहो | मख को कभी मिलन मत करो | िन य कर लो िक आपक

िलय शोक न इस जगत म जनम नही िलया ह | आननदःवरप म िचनता का ःथान ही कहा ह 162) समम ा ड एक शरीर ह | समम ससार एक शरीर ह | जब तक आप तयक क

साथ एकता का अनभव करत रहग तब तक सब पिरिःथितया और आस-पास की चीज़ हवा और समि की लहर भी आपक प म रहगी | 163) आपको जो कछ शरीर स बि स या आतमा स कमजोर बनाय उसको िवष की तरह

ततकाल तयाग दो | वह कभी सतय नही हो सकता | सतय तो बलद होता ह पावन होता ह

ानःवरप होता ह | सतय वह ह जो शि द | 164) साधना म हमारी अिभरिच होनी चािहय साधना की तीो माग होनी चािहय | 165) दसर क दोष की चचार मत करो चाह व िकतन भी बड़ ह | िकसी क दोष की चचार करक आप उसका िकसी भी कार भला नही करत बि क उस आघात पहचात ह और साथ-ही-साथ अपन आपको भी | 166) इस ससार को सतय समझना ही मौत ह | आपका असली ःवरप तो आननदःवरप

आतमा ह | आतमा क िसवा ससार जसी कोई चीज ही नही ह | जस सोया हआ मनय ःव न म अपनी एकता नही जानता अिपत अपन को अनक करक दखता ह वस ही आननदःवरप आतमा जामत ःव न और सषि - इन तीन ःवरप को दखत हए अपनी एकता अि तीयता का अनभव

नही करता | 167) मनोजय का उपाय ह अ यास और वरा य | अ यास मान य पवरक मन को बार-बार परमातम-िचतन म लगाना और वरा य मान मन को ससार क पदाथ की ओर स वापस

लौटाना | 168) िकसी स कछ मत मागो | दन क िलय लोग आपक पीछ-पीछ घमग | मान नही

चाहोग तो मान िमलगा | ःवगर नही चाहोग तो ःवगर क दत आपक िलय िवमान लकर आयग |

उसको भी ःवीकार नही करोग तो ई र आपको अपन दय स लगायग | 169) कभी-कभी उदय या अःत होत हए सयर की ओर चलो | नदी सरोवर या समि क तट

पर अकल घमन जाओ | ऐस ःथान की मलाकात लो जहा शीतल पवन मनद-मनद चल रही हो | वहा परमातमा क साथ एकःवर होन की स भावना क ार खलत ह | 170) आप य -ही इ छा स ऊपर उठत हो तय -ही आपका इि छत पदाथर आपको खोजन

लगता ह | अतः पदाथर स ऊपर उठो | यही िनयम ह | य - य आप इ छक िभ क याचक का भाव धारण करत हो तय -तय आप ठकराय जात हो | 171) कित क तयक पदाथर को दखन क िलय काश जररी ह | इसी कार मन बि

इिनिय को अपन-अपन कायर करन क िलय आतम-काश की आवयकता ह कय िक बाहर का कोई काश मन बि इिनिय ाणािद को चतन करन म समथर नही | 172) जस ःव न ा परष को जागन क बाद ःव न क सख-दःख जनम-मरण पाप-प य

धमर-अधमर आिद ःपशर नही करत कय िक वह सब खद ही ह | खद क िसवाय ःव न म दसरा कछ

था ही नही | वस ही जीवनम ानवान परष को सख-दःख जनम-मरण पाप-प य धमर-अधमर ःपशर नही करत कय िक व सब आतमःवरप ही ह | 173) वही भमा नामक आतम योित क म रह कर भ क रही ह सअर म रह कर घर रही ह गध म रह कर रक रही ह लिकन मखर लोग शरीर पर ही ि रखत ह चतनय ततव पर नही | 174) मनय िजस ण भत-भिवय की िचनता का तयाग कर दता ह दह को सीिमत और उतपि -िवनाशशील जानकर दहािभमान को तयाग दता ह उसी ण वह एक उ चतर अवःथा म पहच जाता ह | िपजर स छटकर गगनिवहार करत हए प ी की तरह मि का अनभव करता ह | 175) समःत भय एव िचनताए आपकी इ छाओ का णाम ह | आपको भय कय लगता ह

कय िक आपको आशका रहती ह िक अमक चीज कही चली न जाय | लोग क हाःय स आप डरत

ह कय िक आपको यश की अिभलाषा ह कीितर म आसि ह | इ छाओ को ितलाजिल द दो | िफर दखो मजा कोई िज मदारी नहीकोई भय नही | 176) दखन म अतयत करप काला-कलटा कबड़ा और तज ःवभाव का मनय भी आपका ही ःवरप ह | आप इस तथय स म नही | िफर घणा कसी कोई लाव यमयी सदरी सि की

शोभा क समान अित िवलासभरी अ सरा भी आपका ही ःवरप ह | िफर आसि िकसकी

आपकी ानिनिया उनको आपस अलग करक िदखाती ह | य इिनिया झठ बोलनवाली ह | उनका कभी िव ास मत करो | अतः सब कछ आप ही हो | 177) मानव क नात हम साधक ह | साधक होन क नात सतय को ःवीकर करना हमारा ःवधमर ह | सतय यही ह िक बल दसर क िलय ह ान अपन िलय ह और िव ास परमातमा स

स बनध जोड़न क िलय ह | 178) अपनी आतमा म डब जाना यह सबस बड़ा परोपकार ह | 179) आप सदव म ह ऐसा िव ास ढ़ करो तो आप िव क उ ारक हो जात हो | आप

यिद वदानत क ःवर क साथ ःवर िमलाकर िन य करो आप कभी शरीर न थ | आप िनतय श

ब आतमा हो तो अिखल ा ड क मो दाता हो जात हो | 180) कपा करक उन ःवाथरमय उपाय और अिभाय को दर फ क दो जो आपको पिरि छनन रखत ह | सब वासनाए राग ह | यि गत या शरीरगत म आसि ह | उस फ क दो | ःवय पिवऽ हो जाओ | आपका शरीर ःवःथ और बि पणरःवरप हो जायगी | 181) यिद ससार क सख व पदाथर ा ह तो आपको कहना चािहय ओ शतान हट जा मर सामन स | तर हाथ स मझ कछ नही चािहय | तब दखो िक आप कस सखी हो जात हो परमातमा-ा िकसी महापरष पर िव ास रखकर अपनी जीवनडोरी िनःशक बन उनक चरण म सदा क िलय रख दो | िनभरयता आपक चरण की दासी बन जायगी | 182) िजसन एक बार ठ क स जान िलया िक जगत िमथया ह और ािनत स इसकी तीित

हो रही ह उसको कभी दःख नही होता | जगत म कभी आसि नही होती | जगत क िमथयातव क

िन य का नाम ही जगत का नाश ह | 183) अपन ःवरप म लीन होन माऽ स आप ससार क साट बन जायग | यह साटपद

कवल इस ससार का ही नही समःत लोक-परलोक का साटपद होगा | 184) ह जनक चाह दवािधदव महादव आकर आपको उपदश द या भगवान िवण आकर उपदश द अथवा ाजी आकर उपदश द लिकन आपको कदािप सख न होगा | जब िवषय का तयाग करोग तभी स ची शाित व आनद ा ह ग |

185) िजस भ न हम मानव जीवन दकर ःवाधीनता दी िक हम जब चाह तब धमारतमा होकर भ होकर जीवनम होकर कतकतय हो सकत ह- उस भ की मिहमा गाओ | गाओ नही तो सनो | सनो भी नही गाओ भी नही तो ःवीकार कर लो | 186) चाह समि क गहर तल म जाना पड़ सा ात मतय का मकाबला करना पड़ अपन

आतमाि क उ य की पितर क िलय अिडग रहो | उठो साहसी बनो शि मान बनो | आपको जो बल व सहायता चािहय वह आपक भीतर ही ह | 187) जब-जब जीवन स बनधी शोक और िचनता घरन लग तब-तब अपन आननदःवरप

का गान करत-करत उस मोह-माया को भगा दो | 188) जब शरीर म कोई पीड़ा या अग म ज म हो तब म आकाशवत आकाशरिहत चतन

ह ऐसा ढ़ िन य करक पीड़ा को भल जाओ | 189) जब दिनया क िकसी चककर म फस जाओ तब म िनलप िनतय म ह ऐसा ढ़

िन य करक उस चककर स िनकल जाओ | 190) जब घर-बार स बनधी कोई किठन समःया याकल कर तब उस मदारी का खल

समझकर ःवय को िनःसग जानकर उस बोझ को ह का कर दो | 191) जब बोध क आवश म आकर कोई अपमानय वचन कह तब अपन शाितमय

ःवरप म िःथर होकर मन म िकसी भी ोभ को पदा न होन दो | 192) उ म अिधकारी िज ास को चािहय िक वह व ा सदगर क पास जाकर ौ ा पवरक महावाकय सन | उसका मनन व िनिदधयासन करक अपन आतमःवरप को जान | जब

आतमःवरप का सा ातकार होता ह तब ही परम िवौािनत िमल सकती ह अनयथा नही | जब तक

व ा महापरष स महावाकय ा न हो तब तक वह मनद अिधकारी ह | वह अपन दयकमल म परमातमा का धयान कर ःमरण कर जप कर | इस धयान-जपािद क साद स उस व ा सदगर

ा ह ग | 193) मन बि िच अहकार छाया की तरह जड़ ह णभगर ह कय िक व उतपनन होत

ह और लीन भी हो जात ह | िजस चतनय की छाया उसम पड़ती ह वह परम चतनय सबका आतमा ह | मन बि िच अहकार का अभाव हो जाता ह लिकन उसका अनभव करनवाल का अभाव

कदािप नही होता |

194) आप अपनी शि को उ चाितउ च िवषय की ओर बहन दो | इसस आपक पास व

बात सोचन का समय ही नही िमलगा िजसस कामकता की गध आती हो | 195) अपराध क अनक नाम ह बालहतया नरहतया मातहतया गौहतया इतयािद |

परनत तयक ाणी म ई र का अनभव न करक आप ई रहतया का सबस बड़ा अपराध करत ह | 196) सवा करन की ःवाधीनता मनयमाऽ को ा ह | अगर वह करना ही न चाह तो अलग बात ह | सवा का अथर ह मन-वाणी-कमर स बराईरिहत हो जाना यह िव की सवा हो गई |

यथाशि भलाई कर दो यह समाज की सवा हो गई | भलाई का फल छोड़ दो यह अपनी सवा हो गई

| भ को अपना मानकर ःमित और म जगा लो यह भ की सवा हो गई | इस कार मनय

अपनी सवा भी कर सकता ह समाज की सवा भी कर सकता ह िव की सवा भी कर सकता ह

और िव र की सवा भी कर सकता ह | 197) आतमा स बाहर मत भटको अपन कनि म िःथर रहो अनयथा िगर पड़ोग | अपन-

आपम पणर िव ास रखो | आतम-कनि पर अचल रहो | िफर कोई भी चीज आपको िवचिलत नही कर सकती | 198) सदा शात िनिवरकार और सम रहो | जगत को खलमाऽ समझो | जगत स भािवत

मत हो | इसस आप हमशा सखी रहोग | िफर कछ बढ़ान की इ छा नही होगी और कछ कम होन स

दःख नही होगा | 199) समथर सदगर क सम सदा फल क भाित िखल हए रहो | इसस उनक अनदर सक प

होगा िक यह तो बहत उतसाही साधक ह सदा सनन रहता ह | उनक सामथयरवान सक प स

आपकी वह किऽम सननता भी वाःतिवक सननता म बदल जायगी | 200) यिद रोग को भी ई र का िदया मानो तो ार ध-भोग भी हो जाता ह और क तप का फल दता ह | इसस ई र-कपा की ाि होती ह | याकल मत हो | क सल और इनजकशन

आधीन मत हो | 201) साधक को चािहय िक अपन लआय को ि म रखकर साधना-पथ पर तीर की तरह

सीधा चला जाय | न इधर दख न उधर | ि यिद इधर-उधर जाती हो तो समझना िक िन ा िःथर नही ह |

202) आपन अपन जीवन म हजार ःव न दख ह ग लिकन व आपक जीवन क अश नही बन जात | इसी कार य जामत जगत क आड बर आपकी आतमा क सम कोई मह व नही रखत | 203) एक आतमा को ही जानो अनय बात को छोड़ो | धीर साधक को चािहय िक वह

सावधान होकर आतमिन ा बढ़ाय अनक श द का िचनतन व भाषण न कर कय िक वह तो कवल

मन-वाणी को पिरौम दनवाला ह असली साधना नही ह | 204) जो परष जन-समह स ऐस डर जस साप स डरता ह स मान स ऐस डर जस नकर स

डरता ह ि य स ऐस डर जस मद स डरता ह उस परष को दवतागण ा ण मानत ह | 205) जस अपन शरीर क अग पर बोध नही आता वस शऽ िमऽ व अपनी दह म एक ही आतमा को दखनवाल िववकी परष को कदािप बोध नही आता | 206) मन तो शरीर को ई रापरण कर िदया ह | अब उसकी भख- यास स मझ कया

समिपरत वःत म आस होना महा पाप ह | 207) आप यिद िद य ि पाना चहत हो तो आपको इिनिय क ऽ का तयाग करना होगा | 208) लयकाल क मघ की गजरना हो समि उमड़ पड बारह सयर तपायमान हो जाय पहाड़ स पहाड़ टकरा कर भयानक आवाज हो तो भी ानी क िन य म त नही भासता कय िक

त ह ही नही | त तो अ ानी को भासता ह | 209) सतय को ःवीकार करन स शाित िमलगी | कछ लोग यो यता क आधार पर शाित

खरीदना चाहत ह | यो यता स शाित नही िमलगी यो यता क सदपयोग स शाित िमलगी | कछ

लोग स पि क आधार पर शाित सरि त रखना चाहत ह | स पि स शाित नही िमलगी स पि

क सदपयोग स शाित िमलगी वस ही िवपि क सदपयोग स शाित िमलगी | 210) त छ हािन-लाभ पर आपका धयान इतना कय रहता ह िजसस अनत आननदःवरप

आतमा पर स धयान हट जाता ह | 211) अपन अनदर ही आननद ा करना य िप किठन ह परनत बा िवषय स आननद

ा करना तो अस भव ही ह |

212) म ससार का काश ह | काश क रप म म ही सब वःतओ म या ह | िनतय इन

िवचार का िचनतन करत रहो | य पिवऽ िवचार आपको परम पिवऽ बना दग | 213) जो वःत कमर स ा होती ह उसक िलय ससार की सहायता तथा भिवय की आशा की आवयकता होती ह परनत जो वःत तयाग स ा होती ह उसक िलय न ससार की सहायता चािहय न भिवय की आशा | 214) आपको जब तक बाहर चोर िदखता ह तब तक जरर भीतर चोर ह | जब दसर लोग

स िभनन अयो य खराब सधारन यो य िदखत ह तब तक ओ सधार का बीड़ा उठान वाल त अपनी िचिकतसा कर | 215) सफल व ही होत ह जो सदव नतमःतक एव सननमख रहत ह | िचनतातर-शोकातर लोग की उननित नही हो सकती | तयक कायर को िह मत व शाित स करो | िफर दखो िक यह

कायर शरीर मन और बि स हआ | म उन सबको स ा दनवाला चतनयःवरप ह | ॐ ॐ का पावन गान करो | 216) िकसी भी पिरिःथित म मन को यिथत न होन दो | आतमा पर िव ास करक

आतमिन बन जाओ | िनभरयता आपकी दासी बन कर रहगी | 217) सतसग स मनय को साधना ा होती ह चाह वह शाित क रप म हो चाह मि क

रप म चाह सवा क रप म हो म क रप म हो चाह तयाग क रप म हो | 218) भला-बरा वही दखता ह िजसक अनदर भला-बरा ह | दसर क शरीर को वही दखता ह

जो खद को शरीर मानता ह | 219) खबरदार आपन यिद अपन शरीर क िलय ऐश-आराम की इ छा की िवलािसता एव इिनिय-सख म अपना समय बरबाद िकया तो आपकी खर नही | ठ क स कायर करत रहन की नीित

अपनाओ | सफलता का पहला िस ात ह कायरिवौामरिहत कायरसा ी भाव स कायर | इस

िस ात को जीवन म चिरताथर करोग तो पता चलगा िक छोटा होना िजतना सरल ह उतना ही बड़ा होना भी सहज ह | 220) भतकाल पर िखनन हए िबना भिवय की िचनता िकय िबना व रमान म कायर करो | यह भाव आपको हर अवःथा म सनन रखगा हम जो कछ ा ह उसका सदपयोग ही अिधक

काश पान का साधन ह |

221) जब आप सफलता की ओर पीठ कर लत हो पिरणाम की िचनता का तयाग कर दत

हो स मख आय हए क र य पर अपनी उ ोगशि एकाम करत हो तब सफलता आपक पीछ-पीछ

आ जाती ह | अतः सफलता आपको खोजगी | 222) वि तब तक एकाम नही होगी जब तक मन म कभी एक आशा रहगी तो कभी दसरी | शात वही हो सकता ह िजस कोई क र य या आवयकता घसीट न रही हो | अतः परम शाित पान

क िलय जीवन की आशा भी तयाग कर मन ाननद म डबो दो | आज स समझ लो िक यह शरीर ह ही नही | कवल ाननद का सागर लहरा रहा ह | 223) िजसकी पककी िन ा ह िक म आतमा हrsquo उसक िलय ऐसी कौन सी मिथ ह जो खल

न सक ऐसी कोई ताकत नही जो उसक िवर जा सक | 224) मर भा य म नही थाई र की मज आजकल सतसग ा नही होताजगत

खराब ह ऐस वचन हमारी कायरता व अनतःकरण की मिलनता क कारण िनकलत ह | अतः नकारातमक ःवभाव और दसर पर दोषारोपण करन की वि स बचो | 225) आप जब भीतरवाल स नाराज होत हो तब जगत आपस नाराज रहता ह | जब आप

भीतर अनतयारमी बन बठ तो जगतरपी पतलीघर म िफर गड़बड़ कसी 226) िजस ण हम ससार क सधारक बन खड़ होत ह उसी ण हम ससार को िबगाड़नवाल बन जात ह | श परमातमा को दखन क बजाय जगत को िबगड़ा हआ दखन की ि बनती ह | सधारक लोग मानत ह िक lsquoभगवान न जो जगत बनाया ह वह िबगड़ा हआ ह और हम उस सधार रह ह |rsquo वाह वाह धनयवाद सधारक अपन िदल को सधारो पहल | सवरऽ िनरजन का दीदार करो | तब आपकी उपिःथित माऽ स आपकी ि माऽ स अर यार आपको छकर बहती हवा माऽ स अननत जीव को शाित िमलगी और अननत सधार होगा | नानक कबीर महावीर ब और लीलाशाह बाप जस महापरष न यही कजी अपनायी थी | 227) वदानत म हमशा कमर का अथर होता ह वाःतिवक आतमा क साथ एक होकर च ा करना अिखल िव क साथ एकःवर हो जाना | उस अि तीय परम ततव क साथ िनःःवाथर सयोग ा करना ही एकमाऽ स चा कमर ह बाकी सब बोझ की गठिरया उठाना ह |

228) अपनी व रमान अवःथा चाह कसी भी हो उसको सव च मानन स ही आपक दय म आतम ान ान का अनायास उदय होन लगगा | आतम-सा ातकार को मील दर की कोई चीज समझकर उसक पीछ दौड़ना नही ह िचिनतत होना नही ह |

िचनता की गठरी उठाकर यिथत होन की जररत नही ह | िजस ण आप िनि नतता म गोता मारोग उसी ण आपका आतमःवरप गट हो जायगा | अर गट कया होगा आप ःवय आतमःवरप हो ही | अनातमा को छोड़ दो तो आतमःवरप तो हो ही | 229) सदा ॐकार का गान करो | जब भय व िचनता क िवचार आय तब िकसी मःत सत-फकीर महातमा क सािननधय का ःमरण करो | जब िननदा-शसा क सग आय तब महापरष क जीवन का अवलोकन करो | 230) िजनको आप भयानक घटनाए एव भयकर आघात समझ बठ हो वाःतव म व आपक ियतम आतमदव की ही करतत ह | समःत भयजनक तथा ाणनाशक घटनाओ क नाम-रप तो िवष क ह लिकन व बनी ह अमत स | 231) मन म यिद भय न हो तो बाहर चाह कसी भी भय की साममी उपिःथत हो जाय आपका कछ िबगाड़ नही सकती | मन म यिद भय होगा तो तरनत बाहर भी भयजनक पिरिःथया न होत हए भी उपिःथत हो जायगी | व क तन म भी भत िदखन लगगा | 232) िकसी भी पिरिःथित म िदखती हई कठोरता व भयानकता स भयभीत नही होना चािहए | क क काल बादल क पीछ पणर काशमय एकरस परम स ा सयर की तरह सदा िव मान ह | 233) आप अपन पर कदािप अिव ास मत करो | इस जगत म आप सब कछ कर सकत हो | अपन को कभी दबरल मत मानो | आपक अनदर तमाम शि या छपी हई ह | 234) यिद कोई मन य आपकी कोई चीज़ को चरा लता ह तो ड़रत कय हो वह मनय

और आप एक ह | िजस चीज़ को वह चराता ह वह चीज़ आपकी और उसकी द न की ह | 235) जो खद क िसवाय दसरा कछ दखता नही सनता नही जानता नही वह अननत ह |

जब तक खद क िसवाय और िकसी वःत का भान होता ह वह वःत स ची लगती ह तब तक आप

सीिमत व शात ह असीम और अनत नही |

236) ससार मझ कया आनद द सकता ह स पणर आनद मर भीतर स आया ह | म ही स पणर आननद ह स पणर मिहमा एव स पणर सख ह | 237) जीवन की समःत आवयकताए जीवन म उपिःथत ह परनत जीवन को जब हम

बा रग म रग दत ह तब जीवन का वाःतिवक रप हम नही जान पात | 238) िननदक की िननदा स म कय मरझाऊ शसक की शसा स म कय फल िननदा स म घटता नही और शसा स म बढ़ता नही | जसा ह वसा ही रहता ह | िफर िननदा-ःतित स

खटक कसी 239) ससार व ससार की समःयाओ म जो सबस अिधक फस हए ह उनही को वदानत की सबस अिधक आवयकता ह | बीमार को ही औषिध की यादा आवयकता ह | कय जी ठ क ह न 240) जगत क पाप व अतयाचार की बात मत करो लिकन अब भी आपको जगत म पाप

िदखता ह इसिलय रोओ | 241) हम यिद जान ल िक जगत म आतमा क िसवाय दसरा कछ ह ही नही और जो कछ

िदखता ह वह ःव नमाऽ ह तो इस जगत क दःख-दािरिय पाप-प य कछ भी हम अशात नही कर सकत | 242) िव ान दाशरिनक व आचाय की धमकी तथा अनमह आलोचना या अनमित

ानी पर कोई भाव नही ड़ाल सकती | 243) ह यि रप अननत आप अपन पर पर खड़ रहन का साहस करो समःत िव का बोझ आप िखलौन की तरह उठा लोग | 244) िसह की गजरना व नरिसह की ललकार तलवार की धार व साप की फफकार तपःवी की धमकी व नयायधीश की फटकारइन सबम आपका ही काश चमक रहा ह | आप इनस

भयभीत कय होत हो उलझन कय महसस करत हो मरी िब ली मझको याऊ वाली बात कय

होन दत हो 245) ससार हमारा िसफ़र िखलोना ही ह और कछ नही | अबोध बालक ही िखलौन स

भयभीत होता ह आसि करता ह िवचारशील यि नही |

246) जब तक अिव ा दर नही होगी तब तक चोरी जआ दार यिभचार कभी बद न

ह ग चाह लाख कोिशश करो | 247) आप हमशा अदर का धयान रखो | पहल हमारा भीतरी पतन होता ह | बा पतन तो इसका पिरणाम माऽ ह | 248) तयाग स हमशा आनद िमलता ह | जब तक आपक पास एक भी चीज़ बाकी ह तब

तक आप उस चीज़ क बधन म बध रहोग | आघात व तयाघात हमशा समान िवरोधी होत ह | 249) िनि तता ही आरो यता की सबस बड़ी दवाई ह | 250) सख अपन िसर पर दख का मकट पहन कर आता ह | जो सख को अपनायगा उस

दख को भी ःवीकार करना पड़गा | 251) म (आतमा) सबका ा ह | मरा ा कोई नही | 252) हजार म स कोई एक परष भीतर स शात िच वाला रहकर बाहर स ससारी जसा यवहार कर सकता ह | 253) सतय क िलए यिद शरीर का तयाग करना पड़ तो कर दना | यही आिखरी ममता ह जो हम तोड़नी होगी | 254) भय िचनता बचनी स ऊपर उठो | आपको ान का अनभव होगा | 255) आपको कोई भी हािन नही पहचा सकता | कवल आपक खयालात ही आपक पीछ पड़ ह | 256) म का अथर ह अपन पड़ोसी तथा सपकर म आनवाल क साथ अपनी वाःतिवक अभदता का अनभव करना | 257) ओ यार अपन खोय हए आतमा को एक बार खोज लो | धरती व आसमान क शासक आप ही हो | 258) सदव सम और सनन रहना ई र की सव पिर भि ह |

259) जब तक िच म ढ़ता न आ जाय िक शा की िविधय का पालन छोड़ दन स भी दय का यथाथर भि भाव न नही होगा तब तक शा की िविधय को पालत रहो |

गर भि एक अमोघ साधना 1 जनम मरण क िवषचब स म होन का कोई मागर नही ह कया सख-दःख हषर-शोक लाभ-

हािन मान-अपमान की थ पड़ स बचन का कोई उपाय नही ह कया

हअवय ह | ह िय आतमन नाशवान पदाथ स अपना मन वािपस लाकर सदगर क

चरणकमल म लगाओ | गरभि योग का आौय लो | गरसवा ऐसा अमोघ साधन ह िजसस

व रमान जीवन आननदमय बनता ह और शा त सख क ार खलत ह |

गर सवत त नर धनय यहा | ितनक नही दःख यहा न वहा || 2 स च सदगर की की हई भि िशय म सासािरक पदाथ क वरा य एव अनासि जगाती ह

परमातमा क ित म क पप महकाती ह | 3 तयक िशय सदगर की सवा करना चाहता ह लिकन अपन ढग स | सदगर चाह उस ढग स

सवा करन को कोई ततपर नही | जो िवरला साधक गर चाह उस ढ़ग स सवा कर सकता ह उस कोई कमी नही रहती |

िन सदगर की सवा स उनकी कपा ा होती ह और उस कपा स न िमल सक ऐसा तीन लोक म कछ भी नही ह | 4 गर िशय का स बनध पिवऽतम स बनध ह | ससार क तमाम बनधन स छड़ाकर वह मि क मागर पर ःथान कराता ह | यह स बनध जीवनपयरनत का स बनध ह | यह बात अपन दय की डायरी म सवणर-अ र स िलख लो | 5 उ ल सयर क काश क अिःततव को मान या न मान िफर भी सयर हमशा काशता ह | चचल मन का मनय मान या न मान लिकन सदगर की परमक याणकारी कपा सदव बरसती ही रहती ह | 6 सदगर की चरणरज म ःनान िकय िबना कवल किठन तप यार करन स या वद का

अधयन करन स वदानत का रहःय कट नही होता आतमानद का अमत नही िमलता | 7 दशरन शा क चाह िकतन मनथ पढ़ो हजार वष तक िहमालय की गफा म तप करो वष तक ाणायाम करो जीवनपयरनत शीषारसन करो समम िव म वास करक याखान दो िफर भी सदगर की कपा क िबना आतम ान नही होता | अतः िनरािभमानी सरल िनजाननद म मःत दयाल ःवभाव क आतम-सा ातकारी सदगर क चरण म जाओ | जीवन को धनय बनाओ | 8 सदगर की सवा िकय िबना शा का अधयन करना मम साधक क िलय समय बरबाद करन क बराबर ह | 9 िजसको सदगर ा हए ह ऐस िशय क िलय इस िव म कछ भी अा य नही ह | सदगर िशय को िमली हई परमातमा की अम य भट ह | अर नहीhellipनही व तो िशय क सम साकार रप म कट हए परमातमा ःवय ह | 10 सदगर क साथ एक ण िकया हआ सतसग लाख वष क तप स अननत गना ौ ह | आख क िनमषमाऽ म सदगर की अमतवष ि िशय क जनम-जनम क पाप को जला सकती ह | 11 सदगर जसा मपणर कपाल िहतिचनतक िव भर म दसरा कोई नही ह | 12 बाढ़ क समय याऽी यिद तफानी नदी को िबना नाव क पार कर सक तो साधक भी िबना सदगर क अपन जीवन क आिखरी लआय को िस कर सकता ह | यानी य दोन बात स भव ह |

अतः यार साधक मनमखी साधना की िज करना छोड़ दो | गरमखी साधना करन म ही सार ह | 13 सदगर क चरणकमल का आौय लन स िजस आननद का अनभव होता ह उसक आग िऽलोकी का साा य त छ ह | 14 आतम-सा ातकार क मागर म सबस महान शऽ अहभाव का नाश करन क िलए सदगर की आ ा का पालन अमोघ श ह | 15 रसोई सीखन क िलय कोई िसखानवाला चािहय िव ान और गिणत सीखन क िलय

अधयापक चािहय तो कया िव ा सदगर क िबना ही सीख लोग 16 सदगरकपा की स पि जसा दसरा कोई खजाना िव भर म नही | 17 सदगर की आ ा का उ लघन करना यह अपनी क खोदन क बराबर ह | 18 सदगर क कायर को शका की ि स दखना महापातक ह | 19 गरभि व गरसवा - य साधनारपी नौका की दो पतवार ह | उनकी मदद स िशय ससारसागर को पार कर सकता ह | 20 सदगर की कसौटी करना असभव ह | एक िववकाननद ही दसर िववकाननद को पहचान सकत ह | ब को जानन क िलय दसर ब की आवयकता रहती ह | एक रामतीथर का रहःय दसर रामतीथर ही पा सकत ह |

अतः सदगर की कसौटी करन की च ा छोड़कर उनको पिरपणर पर परमातमा मानो |

तभी जीवन म वाःतिवक लाभ होगा | 21 गरभि योग का आौय लकर आप अपनी खोई हई िद यता को पनः ा करो सख-दःख जनम-मतय आिद सब न स पार हो जाओ | 22 गरभि योग मान गर की सवा क ारा मन और िवकार पर िनयऽण एव पनः सःकरण | 23 िशय अपन गर क चरणकमल म णाम करता ह | उन पर ौ फल की वषार करक उनकी ःतित करता ह ldquoह परम प य पिवऽ गरदव मझ सव च सख ा हआ ह | म िन ा स जनम-मतय की पर परा स म हआ ह | म िनिवरक प समािध का श सख भोग रहा ह | जगत क िकसी भी कोन म म म ता स िवचरण कर सकता ह | सब पर मरी सम ि ह | मन ाकत मन का तयाग िकया ह | मन सब सक प एव रिच-अरिच का तयाग िकया ह | अब म अख ड शाित म िवौाित पा रहा ह hellip आननदमय हो रहा ह | म इस पणर अवःथा का वणरन नही कर पाता | ह प य गरदव म आवाक बन गया ह | इस दःतर भवसागर को पार करन म आपन

मझ सहायता की ह | अब तक मझ कवल अपन शरीर म ही स पणर िव ास था | मन िविभनन योिनय म अस य जनम िलय | ऐसी सव च िनभरय अवःथा मझ कौन स पिवऽ कम क कारण ा हई ह यह म नही जानता | सचमच यह एक दलरभ भा य ह |

यह एक महान उतक लाभ ह | अब म आननद स नाचता ह | मर सब दःख न हो गय | मर सब मनोरथ पणर हए ह |

मर कायर स पनन हए ह | मन सब वािछत वःतए ा की ह | मरी इ छा पिरपणर हई ह | आप मर स च माता-िपता हो | मरी व रमान िःथित म म दसर क सम िकस कार कट कर सक सवरऽ सख और आननद का अननत सागर मझ लहराता हआ िदख रहा ह | मर अतःच िजसस खल गय वह महावाकय lsquoत वमिसrsquo ह | उपिनषद एव वदानतसऽ को भी धनयवाद | िजनह न िन गर का एव उपिनषद क महावाकय का रप धारण िकया ह | ऐस ौी यासजी को णाम ौी शकराचायर को णाम सासािरक मनय क िसर पर गर क चरणामत का एक िबनद भी िगर तो भी उसक ःब दःख का नाश होता ह | यिद एक िन परष को व पहनाय जाय तो सार िव को व पहनान एव भोजन करवान क बराबर ह कय िक िन परष सचराचर िव म या ह | सबम व ही ह |rdquo

ॐhellip ॐ hellip ॐ hellip

ःवामी िशवानद जी

ौी राम-विश सवाद ौी विश जी कहत ह ldquoह रघकलभषण ौी राम अनथर ःवरप िजतन सासािरक पदाथर ह व सब जल म तरग क समान िविवध रप धारण करक चमतकार उतपनन करत ह अथारत ई छाए उतपनन करक जीव को मोह म फसात ह | परत जस सभी तरग जल ःवरप ही ह उसी कार सभी पदाथर वःततः न र ःवभाव वाल ह |

बालक की क पना स आकाश म य और िपशाच िदखन लगत ह परनत बि मान मनय क िलए उन य और िपशाच का कोई अथर नही | इसी कार अ ानी क िच म यह जगत सतय हो ऐसा लगता ह जबिक हमार जस ािनय क िलय यह जगत कछ भी नही | यह समम िव पतथर पर बनी हई पतिलय की सना की तरह रपालोक तथा अतर-बा िवषय स शनय ह | इसम सतयता कसी परनत अ ािनय को यह िव सतय लगता ह |rdquo विश जी बोल ldquoौी राम जगत को सतय ःवरप म जानना यह ाित ह मढ़ता ह | उस िमथया अथारत कि पत समझना यही उिचत समझ ह | ह राघव तव ा अहता आिद सब िवम-िवलास शात िशवःवरप श ःवरप ही ह | इसिलय मझ तो क अितिर और कछ भी नही िदखता | आकाश म जस जगल नही वस ही म जगत नही ह | ह राम ार ध वश ा कम स िजस परष की च ा कठपतली की तरह ई छाशनय और याकलतारिहत होती ह वह शानत मनवाला परष जीवनम मिन ह | ऐस जीवनम ानी को इस

जगत का जीवन बास की तरह बाहर-भीतर स शनय रसहीन और वासना-रिहत लगता ह | इस य पच म िजस रिच नही दय म िचनमाऽ अ य ही अ छा लगता ह ऐस परष न

भीतर तथा बाहर शािनत ा कर ली ह और इस भवसागर स पार हो गया ह | रघनदन श व ा कहत ह िक मन का ई छारिहत होना यही समािध ह कय िक ई छाओ का तयाग करन स मन को जसी शािनत िमलती ह ऐसी शािनत सकड़ उपदश स भी नही िमलती | ई छा की उतपि स जसा दःख ा होता ह ऐसा दःख तो नरक म भी नही | ई छाओ की शािनत

स जसा सख होता ह ऐसा सख ःवगर तो कया लोक म भी नही होता | अतः समःत शा तपःया यम और िनयम का िनचोड़ यही ह िक ई छामाऽ दःखदायी ह और ई छा का शमन मो ह | ाणी क दय म जसी-जसी और िजतनी-िजतनी ई छाय उतपनन होती ह उतना ही दख स वह

ड़रता रहता ह | िववक-िवचार ारा ई छाय जस-जस शानत होती जाती ह वस-वस दखरपी छत की बीमारी िमटती जाती ह |

आसि क कारण सासािरक िवषय की ई छाय य - य गहनीभत होती जाती ह तय -तय

दःख की िवषली तरग बढ़ती जाती ह | अपन परषाथर क बल स इस ई छारपी यािध का उपचार यिद नही िकया जाय तो इस यािध स छटन क िलय अनय कोई औषिध नही ह ऐसा म ढ़तापवरक

मानता ह | एक साथ सभी ई छाओ का स पणर तयाग ना हो सक तो थोड़ी-थोड़ी ई छाओ का धीर-धीर तयाग

करना चािहय परत रहना चािहय ई छा क तयाग म रत कय िक सनमागर का पिथक दखी नही होता | जो नराधम अपनी वासना और अहकार को ीण करन का य नही करता वह िदन -िदन अपन

को रावण की तरह अधर कऐ म ढ़कल रहा ह | ई छा ही दख की जनमदाऽी इस ससाररपी बल का बीज ह | यिद इस बीज को आतम ानरपी अि न स ठ क-ठ क जला िदया तो पनः यह अकिरत नही होता | रघकलभषण राम ई छामाऽ ससार ह और ई छाओ का अभाव ही िनवारण ह | अतः अनक कार की माथाप ची म ना पड़कर कवल ऐसा य करना चािहय िक ई छा उतपनन ना हो | अपनी बि स ई छा का िवनाश करन को जो ततपर नही ऐस अभाग को शा और गर का उपदश

भी कया करगा जस अपनी जनमभमी जगल म िहरणी की मतय िनि त ह उसी कार अनकिवध दख का िवःतार कारनवाल ई छारपी िवषय-िवकार स य इस जगत म मनय की मतय िनि त ह | यिद मानव ई छाओ क कारण ब च -सा मढ़ ना बन तो उस आतम ान क िलय अ प य ही करना पड़ | इसिलय सभी कार स ई छाओ को शानत करना चािहय | ई छा क शमन स परम पद की ाि होती ह | ई छारिहत हो जाना यही िनवारण ह और ई छाय

होना ही बधन ह | अतः यथाशि ई छा को जीतना चािहय | भला इतना करन म कया किठनाई ह जनम जरा यािध और मतयरपी कटीली झािड़य और खर क व - समह की जड़ भी ई छा ही ह

| अतः शमरपी अि न स अदर-ही-अदर बीज को जला ड़ालना चािहय| जहा ई छाओ का अभाव ह

वहा मि िनि त ह |

िववक वरा य आिद साधन स ई छा का सवरथा िवनाश करना चािहय | ई छा का सबध जहा-जहा ह वहा-वहा पाप प य दखरािशया और ल बी पीड़ाओ स य बधन को हािज़र ही समझो | परष

की आतिरक ई छा य - य शानत होती जाती ह तय -तय मो क िलय उसका क याणकारक

साधन बढ़ता जाता ह | िववकहीन ई छा को पोसना उस पणर करना यह तो ससाररपी िवष व को पानी स सीचन क समान ह |rdquo

- ौीयोगविश महारामायण

आतमबल का आवाहन कया आप अपन-आपको दबरल मानत हो लघतामथी म उलझ कर पिरिःतिथय स िपस रह हो

अपना जीवन दीन-हीन बना बठ हो hellipतो अपन भीतर सष आतमबल को जगाओ | शरीर चाह ी का हो चाह परष का कित क साा य म जो जीत ह व सब ी ह और कित क बनधन स पार अपन ःवरप की पहचान िजनह न कर ली ह अपन मन की गलामी की बिड़या तोड़कर िजनह न फ क दी ह व परष ह | ी या परष शरीर एव मानयताए होती ह | तम तो तन-मन स पार िनमरल आतमा हो | जागोhellipउठोhellipअपन भीतर सोय हय िन यबल को जगाओ | सवरदश सवरकाल म सव म

आतमबल को िवकिसत करो | आतमा म अथाह सामथयर ह | अपन को दीन-हीन मान बठ तो िव म ऐसी कोई स ा नही जो त ह ऊपर उठा सक | अपन आतमःवरप म िति त हो गय तो िऽलोकी म ऐसी कोई हःती नही जो त ह दबा सक | भौितक जगत म वाप की शि ईलकशोिनक शि िव त की शि गरतवाकषरण की शि बड़ी मानी जाती ह लिकन आतमबल उन सब शि य का सचालक बल ह | आतमबल क सािननधय म आकर पग ार ध को पर िमल जात ह दव की दीनता पलायन हो जाती ह ितकल पिरिःतिथया अनकल हो जाती ह | आतमबल सवर िरि -िसि य का िपता ह |

आतमबल कस जगाय हररोज़ तःकाल ज दी उठकर सय दय स पवर ःनानािद स िनवत हो जाओ | ःव छ पिवऽ ःथान

म आसन िबछाकर पवारिभमख होकर प ासन या सखासन म बठ जाओ | शानत और सनन वि

धारण करो | मन म ढ भावना करो िक म कित-िनिमरत इस शरीर क सब अभाव को पार करक सब

मिलनताओ-दबरलताओ स िप ड़ छड़ाकर आतमा की मिहमा म जागकर ही रहगा |

आख आधी खली आधी बद रखो | अब फ़फ़ड़ म खब ास भरो और भावना करो की ास क साथ

म सयर का िद य ओज भीतर भर रहा ह | ास को यथाशि अनदर िटकाय रखो | िफ़र lsquoॐhelliprsquo का ल बा उ चारण करत हए ास को धीर-धीर छोड़त जाओ | ास क खाली होन क बाद तरत ास ना लो | यथाशि िबना ास रहो और भीतर ही भीतर lsquoहिर ॐhelliprsquo lsquoहिर ॐhelliprsquo का मानिसक

जाप करो | िफ़र स फ़फ़ड़ म ास भरो | पव रीित स ास यथाशि अनदर िटकाकर बाद म धीर-धीर छोड़त हए lsquoॐhelliprsquo का गजन करो | दस-पिह िमनट ऐस ाणायाम सिहत उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo की धविन करक शानत हो जाओ | सब

यास छोड़ दो | वि य को आकाश की ओर फ़लन दो | आकाश क अनदर पथवी ह | पथवी पर अनक दश अनक समि एव अनक लोग ह | उनम स एक

आपका शरीर आसन पर बठा हआ ह | इस पर य को आप मानिसक आख स भावना स दखत

रहो | आप शरीर नही हो बि क अनक शरीर दश सागर पथवी मह न ऽ सयर चनि एव पर ा ड़ क

ा हो सा ी हो | इस सा ी भाव म जाग जाओ | थोड़ी दर क बाद िफ़र स ाणायाम सिहत lsquoॐhelliprsquo का जाप करो और शानत होकर अपन िवचार को दखत रहो | इस अवःथा म ढ़ िन य करो िक lsquoम जसा चहता ह वसा होकर रहगा |rsquo िवषयसख स ा धन-

दौलत इतयािद की इ छा न करो कय िक िन यबल या आतमबलरपी हाथी क पदिच म और सभी क पदिच समािव हो ही जायग | आतमानदरपी सयर क उदय होन क बाद िम टी क तल क दीय क ाकाश रपी शि सखाभास की गलामी कौन कर

िकसी भी भावना को साकार करन क िलय दय को करद ड़ाल ऐसी िन यातमक बिल वि होनी आवशयक ह | अनतःकरण क गहर-स-गहर दश म चोट कर ऐसा ाण भरक िन बल का आवाहन करो | सीना तानकर खड़ हो जाओ अपन मन की दीन-हीन दखद मानयताओ को कचल

ड़ालन क िलय | सदा ःमरण रह की इधर-उधर भटकती वि य क साथ त हारी शि भी िबखरती रहती ह | अतः वि य को बहकाओ नही | तमाम वि य को एकिऽत करक साधनाकाल म आतमिचनतन म लगाओ और यवहारकाल म जो कायर करत हो उसम लगाओ | द िच होकर हरक कायर करो | अपन ःवभाव म स आवश को सवरथा िनमरल कर दो | आवश म आकर कोई िनणरय मत लो कोई िबया मत करो | सदा शानत वि धारण करन का अ यास करो | िवचारशील एव सनन रहो | ःवय अचल रहकर सागर की तरह सब वि य की तरग को अपन

भीतर समालो | जीवमाऽ को अपना ःवरप समझो | सबस ःनह रखो | िदल को यापक रखो | सकिच ता का िनवारण करत रहो | ख ड़ातमक वि का सवरथा तयाग करो | िजनको ानी महापरष का सतसग और अधयातमिव ा का लाभ िमल जाता ह उसक जीवन स

दःख िवदा होन लगत ह | ॐ आननद आतमिन ा म जाग हए महापरष क सतसग एव सतसािहतय स जीवन को भि और वदात स प

एव पलिकत करो | कछ ही िदन क इस सघन योग क बाद अनभव होन लगगा िक भतकाल क

नकारतमक ःवभाव सशयातमक-हािनकारक क पनाओ न जीवन को कचल ड़ाला था िवषला कर िदया था | अब िन यबल क चमतकार का पता चला | अततरम म आिवरभत िद य खज़ाना अब

िमला | ार ध की बिड़या अब टटन लगी | ठ क ह न करोग ना िह मत पढ़कर रख मत दना इस पिःतका को | जीवन म इसको बार-बार पढ़त रहो | एक िदन म यह पणर ना होगा | बार-बार अ यास करो | त हार िलय यह एक ही पिःतका काफ़ी ह | अनय कचराप टी ना पड़ोग तो चलगा | शाबाश वीर शाबाश

  • परसतावना
  • जीवन रसायन
  • गर भकति एक अमोघ साधना
  • शरी राम-वशिषठ सवाद
  • आतमबल का आवाहन
  • आतमबल कस जगाय
Page 10: जीवन रसायन - HariOmGroup · ‘जीवन रसायन’ का यह िदय कटोरा आत्मरस के िपपासुओं हाथ

उपयोगी कसरत समझकर सख बीड़ा या मनोरजक खल समझकर एक कलीन राजकमार की भाित काम करो | दब हए कचल हए िदल स कभी कोई काम हाथ म मत लो | 45) समम ससार को जो अपना शरीर समझत ह तयक यि को जो अपना आतमःवरप

समझत ह ऐस ानी िकसस असनन ह ग उनक िलय िव प कहा रहा 46) ससार की तमाम वःतऐ सखद ह या भयानक वाःतव म तो त हारी फ़लता और आनद क

िलय ही कित न बनाई ह | उनस ड़रन स कया लाभ त हारी नादानी ही त ह चककर म ड़ालती ह

| अनयथा त ह नीचा िदखान वाला कोई नही | पकका िन य रखो िक यह जगत त हार िकसी शऽ न नही बनाया | त हार ही आतमदव का यह सब िवलास ह | 47) महातमा व ह िजनकी िवशाल सहानभित एव िजनका मातवत दय सब पािपय को दीन-

दिखय को म स अपनी गोद म ःथान दता ह | 48) यह िनयम ह िक भयभीत ाणी ही दसर को भयभीत करता ह | भयरिहत हए िबना अिभननता आ नही सकती अिभननता क िबना वासनाओ का अत स भव नही ह और िनवारसिनकता क िबना िनवरता समता मिदता आिद िद य गण कट नही होत | जो बल दसर

की दबरलता को दर ना कर सक वह वाःतव म बल नही | 49) धयान म बठन स पहल अपना समम मानिसक िचतन तथा बाहर की तमाम स पि ई र क

या सदगर क चरण म अपरण करक शात हो जाओ | इसस आपको कोई हािन नही होगी | ई र आपकी स पि दह ाण और मन की र ा करग | ई र अपरण बि स कभी हािन नही होती |

इतना ही नही दह ाण म नवजीवन का िसचन होता ह | इसस आप शाित व आनद का ोत

बनकर जीवन को साथरक कर सक ग | आपकी और पर िव की वाःतिवक उननित होगी | 50) कित सननिच एव उ ोगी कायरकतार को हर कार स सहायता करती ह | 51) सननमख रहना यह मोितय का खज़ाना दन स भी उ म ह | 52) चाह करोड़ सयर का लय हो जाय चाह अस य चनिमा िपघलकर न हो जाय परत ानी महापरष अटल एव अचल रहत ह | 53) भौितक पदाथ को सतय समझना उनम आसि रखना दख-ददर व िचताओ को आमऽण

दन क समान ह | अतः बा नाम-रप पर अपनी शि व समय को न करना यह बड़ी गलती ह |

54) जब आपन यि तव िवषयक िवचार का सवरथा तयाग कर िदया जाता ह तब उसक समान

अनय कोई सख नही उसक समान ौ अनय कोई अवःथा नही | 55) जो लोग आपको सबस अिधक हािन पहचान का यास करत ह उन पर कपापणर होकर ममय िचतन कर | व आपक ही आतमःवरप ह | 56) ससार म कवल एक ही रोग ह | सतय जगिनमथया - इस वदाितक िनयम का भग ही सवर यािधय का मल ह | वह कभी एक दख का रप लता ह तो कभी दसर दख का | इन सवर यािधय

की एक ही दवा ह अपन वाःतिवक ःवरप तव म जाग जाना | 57) ब धयानःथ बठ थ | पहाड़ पर स एक िशलाखड़ लढ़कता हआ आ रहा था | ब पर िगर इसस पहल ही वह एक दसर िशलाखड़ क साथ टकराया | भयकर आवाज़ क साथ उसक दो भाग

हो गय | उसन अपना मागर बदल िलया | धयानःथ ब की दोन तरफ़ स दोन भाग गज़र गय |

ब बच गय | कवल एक छोटा सा ककड़ उनक पर म लगा | पर स थोड़ा खन बहा | ब ःवःथता स उठ खड़ हए और िशय स कहा ldquoभी ओ स यक समािध का यह वलत माण ह | म यिद धयान-समािध म ना होता तो िशलाखड़ न मझ कचल िदया होता | लिकन ऐसा ना होकर उसक दो भाग हो गय | उसम स िसफ़र एक छोटा-सा ककड़ ऊछलकर मर पर म लगा | यह जो छोटा-सा ज़ म हआ ह वह धयान की पणरता म रही हई कछ नयनता का पिरणाम ह | यिद धयान पणर होता तो इतना भी ना लगता |rdquo 58) कहा ह वह तलवार जो मझ मार सक कहा ह वह श जो मझ घायल कर सक कहा ह वह

िवपि जो मरी सननता को िबगाड़ सक कहा ह वह दख जो मर सख म िव न ड़ाल सक मर सब भय भाग गय | सब सशय कट गय | मरा िवजय-ाि का िदन आ पहचा ह | कोई ससािरक

तरग मर िनछल िच को आदोिलत नही कर सकती | इन तरग स मझ ना कोई लाभ ह ना हािन

ह | मझ शऽ स ष नही िमऽ स राग नही | मझ मौत का भय नही नाश का ड़र नही जीन की वासना नही सख की इ छा नही और दख स ष नही कय िक यह सब मन म रहता ह और मन

िमथया क पना ह | 59) स पणर ःवाःथय की अजीब यि रोज सबह तलसी क पाच प चबाकर एक लास बासी पानी पी लो | िफ़र जरा घम लो दौड़ लो या कमर म ही पज क बल थोड़ा कद लो | नहा-धोकर ःवःथ शानत होकर एकात म बठ जाओ | दस बारह गहर-गहर ास लो | आग-पीछ क कतर य

स िनि त हो जाओ | आरो यता आनद सख शािनत दान करनवाली िवचारधारा को िच म बहन दो | िबमारी क िवचार को हटाकर इस कार की भावना पर मन को ढ़ता स एकाम करो िक

मर अदर आरो यता व आनद का अनत ोत वािहत हो रहा हhellip मर अतराल म िद यामत का महासागर लहरा रहा ह | म अनभव कर रहा ह िक समम सख आरो यता शि मर भीतर ह | मर मन म अननत शि और सामथयर ह | म ःवःथ ह | पणर सनन ह | मर अदर-बाहर सवरऽ

परमातमा का काश फ़ला हआ ह | म िव प रिहत ह | सब नद स म ह | ःवग य सख मर अदर ह | मरा दय परमातमा का ग दश ह | िफ़र रोग-शोक वहा कस रह सकत ह म दवी ओज क मड़ल म िव हो चका ह | वह मर ःवाःथय का दश ह | म तज का पज ह | आरो यता का अवतार ह | याद रखो आपक अतःकरण म ःवाःथय सख आनद और शािनत ई रीय वरदान क रप म िव मान ह | अपन अतःकरण की आवाज़ सनकर िनशक जीवन यतीत करो | मन म स कि पत

रोग क िवचार को िनकाल दो | तयक िवचार भाव श द और कायर को ई रीय शि स पिरपणर रखो | ॐकार का सतत गजन करो | सबह-शाम उपरो िवचार का िचतन-मनन करन स िवशष लाभ होगा | ॐ आनदhellip ॐ शाितhellip

पणर ःवःथhellip पणर सननhellip 60) भय कवल अ ान की छाया ह दोष की काया ह मनय को धमरमागर स िगरान वाली आसरी माया ह | 61) याद रखो चाह समम ससार क तमाम पऽकार िननदक एकिऽत होकर आपक िवरध

आलोचन कर िफ़र भी आपका कछ िबगाड़ नही सकत | ह अमर आतमा ःवःथ रहो | 62) लोग ायः िजनस घणा करत ह ऐस िनधरन रोगी इतयािद को सा ात ई र समझकर उनकी सवा करना यह अननय भि एव आतम ान का वाःतिवक ःवरप ह | 63) रोज ातः काल उठत ही ॐकार का गान करो | ऐसी भावना स िच को सराबोर कर दो िक

lsquoम शरीर नही ह | सब ाणी कीट पतग गनधवर म मरा ही आतमा िवलास कर रहा ह | अर उनक

रप म म ही िवलास कर रहा ह | rsquo भया हर रोज ऐसा अ यास करन स यह िस ात दय म िःथर हो जायगा | 64) मी आग-पीछ का िचनतन नही करता | वह न तो िकसी आशका स भयभीत होता ह और न

व रमान पिरिःथित म माःपद म ीित क िसवाय अनय कही आराम पाता ह |

65) जस बालक ितिब ब क आौयभत दपरण की ओर धयान न दकर ितिब ब क साथ खलता ह जस पामर लोग यह समम ःथल पच क आौयभत आकाश की ओर धयान न दकर कवल

ःथल पच की ओर धयान दत ह वस ही नाम-रप क भ ःथल ि क लोग अपन दभार य क

कारण समम ससार क आौय सि चदाननद परमातमा का धयान न करक ससार क पीछ पागल

होकर भटकत रहत ह | 66) इस स पणर जगत को पानी क बलबल की तरह णभगर जानकर तम आतमा म िःथर हो जाओ | तम अ त ि वाल को शोक और मोह कस 67) एक आदमी आपको दजरन कहकर पिरि छनन करता ह तो दसरा आपको स जन कहकर भी पिरि छनन ही करता ह | कोई आपकी ःतित करक फला दता ह तो कोई िननदा करक िसकड़ा दता ह | य दोन आपको पिरि छनन बनात ह | भा यवान तो वह परष ह जो तमाम बनधन क िवर

खड़ा होकर अपन दवतव की अपन ई रतव की घोषणा करता ह अपन आतमःवरप का अनभव

करता ह | जो परष ई र क साथ अपनी अभदता पहचान सकता ह और अपन इदरिगदर क लोग क

सम समम ससार क सम िनडर होकर ई रतव का िनरपण कर सकता ह उस परष को ई र मानन क िलय सारा ससार बाधय हो जाता ह | परी सि उस अवय परमातमा मानती ह | 68) यह ःथल भौितक पदाथर इिनिय की ाित क िसवाय और कछ नही ह | जो नाम व रप पर भरोसा रखता ह उस सफलता नही िमलती | सआम िस ात अथारत सतय आतम-ततव पर िनभरर रहना ही सफलता की कजी ह | उस महण करो उसका मनन करो और यवहार करो | िफर नाम-

रप आपको खोजत िफरग | 69) सख का रहःय यह ह आप य - य पदाथ को खोजत-िफरत हो तय -तय उनको खोत

जात हो | आप िजतन कामना स पर होत हो उतन आवयकताओ स भी पर हो जात हो और पदाथर भी आपका पीछा करत हए आत ह | 70) आननद स ही सबकी उतपि आननद म ही सबकी िःथित एव आननद म ही सबकी लीनता दखन स आननद की पणरता का अनभव होता ह | 71) हम बोलना चहत ह तभी श दो चारण होता ह बोलना न चाह तो नही होता | हम दखना चाह तभी बाहर का य िदखता ह नऽ बद कर ल तो नही िदखता | हम जानना चाह तभी पदाथर का ान होता ह जानना नही चाह तो ान नही होता | अतः जो कोई पदाथर दखन सनन या जानन म

आता ह उसको बािधत करक बािधत करनवाली ानरपी बि की वि को भी बािधत कर दो | उसक बाद जो शष रह वह ाता ह | ाततव धमररिहत श ःवरप ाता ही िनतय सि चदाननद

ह | िनरतर ऐसा िववक करत हए ान व यरिहत कवल िचनमय िनतय िव ानाननदघनरप

म िःथर रहो | 72) यिद आप सवागपणर जीवन का आननद लना चाहत हो तो कल की िचनता छोड़ो | अपन चार

ओर जीवन क बीज बोओ | भिवय म सनहर ःवपन साकार होत दखन की आदत बनाओ | सदा क

िलय मन म यह बात पककी बठा दो िक आपका आनवाला कल अतयनत काशमय आननदमय

एव मधर होगा | कल आप अपन को आज स भी अिधक भा यवान पायग | आपका मन

सजरनातमक शि स भर जायगा | जीवन ऐ यरपणर हो जायगा | आपम इतनी शि ह िक िव न

आपस भयभीत होकर भाग खड़ ह ग | ऐसी िवचारधारा स िनि त रप स क याण होगा | आपक

सशय िमट जायग | 73) ओ मानव त ही अपनी चतना स सब वःतओ को आकषरक बना दता ह | अपनी यार भरी ि उन पर डालता ह तब तरी ही चमक उन पर चढ़ जाती ह औरhellipिफर त ही उनक यार म फ़स जाता ह | 74) मन िविचऽ एव अटपट माग ारा ऐस ततव की खोज की जो मझ परमातमा तक पहचा सक | लिकन म िजस-िजस नय मागर पर चला उन सब माग स पता चला िक म परमातमा स दर चला गया | िफर मन बि म ा एव िव ा स परमातमा की खोज की िफर भी परमातमा स अलग रहा | मनथालय एव िव ालय न मर िवचार म उ टी गड़बड़ कर दी | म थककर बठ गया | िनःत ध हो गया | सयोगवश अपन भीतर ही झाका धयान िकया तो उस अनत रि स मझ सवरःव िमला िजसकी खोज म बाहर कर रहा था | मरा आतमःवरप सवरऽ या हो रहा ह | 75) जस सामानय मनय को पतथर गाय भस ःवाभािवक रीित स ि गोचर होत ह वस ही ानी को िनजाननद का ःवाभािवक अनभव होता ह | 76) वदानत का यह अनभव ह िक नीच नराधम िपशाच शऽ कोई ह ही नही | पिवऽ ःवरप ही सवर रप म हर समय शोभायमान ह | अपन-आपका कोई अिन नही करता |

मर िसवा और कछ ह ही नही तो मरा अिन करन वाला कौन ह मझ अपन-आपस भय कसा 77) यह चराचर सि रपी त तब तक भासता ह जब तक उस दखनवाला मन बठा ह |

मन शात होत ही त की गध तक नही रहती |

78) िजस कार एक धाग म उ म मधयम और किन फल िपरोय हए ह उसी कार मर आतमःवरप म उ म मधयम और किन शरीर िपरोय हए ह | जस फल की गणव ा का भाव धाग पर नही पड़ता वस ही शरीर की गणव ा का भाव मरी सवर यापकता नही पड़ता | जस सब फल क िवनाश स धाग को कोई हािन नही वस शरीर क िवनाश स मझ सवरगत आतमा को कोई हािन नही होती | 79) म िनमरल िन ल अननत श अजर अमर ह | म असतयःवरप दह नही | िस परष इसीको lsquo ानrsquo कहत ह | 80) म भी नही और मझस अलग अनय भी कछ नही | सा ात आननद स पिरपणर कवल िनरनतर और सवरऽ एक ही ह | उ ग छोड़कर कवल यही उपासना सतत करत रहो | 81) जब आप जान लग िक दसर का िहत अपना ही िहत करन क बराबर ह और दसर का अिहत करना अपना ही अिहत करन क बराबर ह तब आपको धमर क ःवरप का सा तकार हो जायगा | 82) आप आतम-ित ा दलबनदी और ईयार को सदा क िलए छोड़ दो | पथवी माता की तरह सहनशील हो जाओ | ससार आपक कदम म नयोछावर होन का इतज़ार कर रहा ह | 83) म िनगरण िनिबय िनतय म और अ यत ह | म असतयःवरप दह नही ह | िस परष इसीको lsquo ानrsquo कहत ह | 84) जो दसर का सहारा खोजता ह वह सतयःवरप ई र की सवा नही कर सकता | 85) सतयःवरप महापरष का म सख-दःख म समान रहता ह सब अवःथाओ म हमार अनकल रहता ह | दय का एकमाऽ िवौामःथल वह म ह | व ावःथा उस आतमरस को सखा नही सकती | समय बदल जान स वह बदलता नही | कोई िवरला भा यवान ही ऐस िद य म का भाजन बन सकता ह | 86) शोक और मोह का कारण ह ािणय म िविभनन भाव का अधयारोप करना | मनय जब एक को सख दनवाला यारा स द समझता ह और दसर को दःख दनवाला शऽ समझकर उसस ष करता ह तब उसक दय म शोक और मोह का उदय होना अिनवायर

ह | वह जब सवर ािणय म एक अख ड स ा का अनभव करन लगगा ािणमाऽ को भ का पऽ समझकर उस आतमभाव स यार करगा तब उस साधक क दय म शोक और मोह का नामोिनशान नही रह जायगा | वह सदा सनन रहगा | ससार म उसक िलय न ही कोई शऽ रहगा और न ही कोई िमऽ | उसको कोई कलश नही पहचायगा | उसक सामन िवषधर नाग भी अपना ःवभाव भल जायगा | 87) िजसको अपन ाण की परवाह नही मतय का नाम सनकर िवचिलत न होकर उसका ःवागत करन क िलए जो सदा ततपर ह उसक िलए ससार म कोई कायर असाधय नही | उस िकसी बा श की जररत नही साहस ही उसका श ह | उस श स वह अनयाय का प लनवाल को परािजत कर दता ह िफर भी उनक िलए बर िवचार का सवन नही करता | 88) िचनता ही आननद व उ लास का िवधवस करनवाली रा सी ह | 89) कभी-कभी मधयरािऽ को जाग जाओ | उस समय इिनिया अपन िवषय क ित चचल नही रहती | बिहमरख ःफरण की गित मनद होती ह | इस अवःथा का लाभ लकर इिनियातीत अपन िचदाकाश ःवरप का अनभव करो | जगत शरीर व इिनिय क अभाव म भी अपन अख ड अिःततव को जानो | 90) य म ीित नही रहना ही असली वरा य ह | 91) रोग हम दबाना चाहता ह | उसस हमार िवचार भी मनद हो जात ह | अतः रोग की िनवित करनी चिहए | लिकन जो िवचारवान परष ह वह कवल रोगिनवित क पीछ ही नही लग जाता | वह तो यह िनगरानी रखता ह िक भयकर दःख क समय भी अपना िवचार छट तो नही गया ऐसा परष lsquoहाय-हायrsquo करक ाण नही तयागता कय िक वह जानता ह िक रोग उसका दास ह | रोग कसा भी भय िदखाय लिकन िवचारवान परष इसस भािवत नही होता | 92) िजस साधक क पास धारणा की ढ़ता एव उ य की पिवऽता य दो गण ह ग वह अवय िवजता होगा | इन दो शा स ससि जत साधक समःत िव न-बाधाओ का सामना करक आिखर म िवजयपताका फहरायगा | 93) जब तक हमार मन म इस बात का पकका िन य नही होगा िक सि शभ ह तब तक मन एकाम नही होगा | जब तक हम समझत रहग िक सि िबगड़ी हई ह तब तक

मन सशक ि स चार ओर दौड़ता रहगा | सवरऽ मगलमय ि रखन स मन अपन-आप शात होन लगगा | 94) आसन िःथर करन क िलए सक प कर िक जस पथवी को धारण करत हए भी शषजी िब कल अचल रहत ह वस म भी अचल रहगा | म शरीर और ाण का ा ह | 95) lsquoससार िमथया हrsquo - यह मद ानी की धारणा ह | lsquoससार ःव नवत हrsquo - यह मधयम ानी की धारणा ह | lsquoससार का अतयनत अभाव ह ससार की उतपि कभी हई ही नहीrsquo -

यह उ म ानी की धारणा ह | 96) आप यिद भि मागर म ह तो सारी सि भगवान की ह इसिलए िकसीकी भी िननदा करना ठ क नही | आप यिद ानमागर म ह तो यह सि अपना ही ःवरप ह | आप अपनी ही िननदा कस कर सकत ह इस कार द नो माग म परिननदा का अवकाश ही नही ह | 97) य म ा का भान एव ा म य का भान हो रहा ह | इस गड़बड़ का नाम ही अिववक या अ ान ह | ा को ा तथा य को य समझना ही िववक या ान ह | 98) आसन व ाण िःथर होन स शरीर म िव त पदा होती ह | शरीर क ारा जब भी िबया की जाती ह तब वह िव त बाहर िनकल जाती ह | इस िव त को शरीर म रोक लन स शरीर िनरोगी बन जाता ह | 99) ःव न की सि अ पकालीन और िविचऽ होती ह | मनय जब जागता ह तब जानता ह िक म पलग पर सोया ह | मझ ःव न आया | ःव न म पदाथर दश काल िबया इतयािद परी सि का सजरन हआ | लिकन मर िसवाय और कछ भी न था | ःव न की सि झठ थी | इसी कार ततव ानी परष अ ानरपी िनिा स ानरपी जामत अवःथा को ा हए ह | व कहत ह िक एक क िसवा अनय कछ ह ही नही | जस ःव न स जागन क बाद हम ःव न की सि िमथया लगती ह वस ही ानवान को यह जगत िमथया लगता ह | 100) शारीिरक क पड़ तब ऐसी भावना हो जाय िक lsquoयह क मर यार भ की ओर स हhelliprsquo तो वह क तप का फल दता ह | 101) चलत-चलत पर म छाल पड़ गय ह भख याकल कर रही हो बि िवचार

करन म िशिथल हो गई हो िकसी पड़ क नीच पड़ ह जीवन अस भव हो रहा हो मतय का आगमन हो रहा हो तब भी अनदर स वही िनभरय धविन उठ lsquoसोऽहमhellipसोऽहमhellipमझ भय नहीhellipमरी मतय नहीhellipमझ भख नहीhellip यास नहीhellip कित की कोई भी यथा मझ न नही कर सकतीhellipम वही हhellipवही हhelliprsquo 102) िजनक आग िय-अिय अनकल-ितकल सख-दःख और भत-भिवय एक समान ह ऐस ानी आतमव ा महापरष ही स च धनवान ह | 103) दःख म दःखी और सख म सखी होन वाल लोह जस होत ह | दःख म सखी रहन वाल सोन जस होत ह | सख-दःख म समान रहन वाल र जस होत ह परनत जो सख-दःख की भावना स पर रहत ह व ही स च साट ह | 104) ःव न स जाग कर जस ःव न को भल जात ह वस जामत स जागकर थोड़ी दर क

िलए जामत को भल जाओ | रोज ातः काल म पनिह िमनट इस कार ससार को भल जान की आदत डालन स आतमा का अनसधान हो सकगा | इस योग स सहजावःथा ा होगी | 105) तयाग और म स यथाथर ान होता ह | दःखी ाणी म तयाग व म िवचार स आत ह

| सखी ाणी म तयाग व म सवा स आत ह कय िक जो ःवय दःखी ह वह सवा नही कर सकता पर िवचार कर सकता ह | जो सखी ह वह सख म आस होन क कारण उसम िवचार का उदय नही हो सकता लिकन वह सवा कर सकता ह | 106) लोग की पजा व णाम स जसी सननता होती ह वसी ही सननता जब मार पड़

तब भी होती हो तो ही मन य िभ ानन महण करन का स चा अिधकारी माना जाता ह | 107) हरक साधक को िब कल नय अनभव की िदशा म आग बढ़ना ह | इसक िलय

ानी महातमा की अतयनत आवयकता होती ह | िजसको स ची िज ासा हो उस ऐस

महातमा िमल ही जात ह | ढ़ िज ासा स िशय को गर क पास जान की इ छा होती ह | यो य

िज ास को समथर गर ःवय दशरन दत ह | 108) बीत हए समय को याद न करना भिवय की िचनता न करना और व रमान म ा

सख-दःखािद म सम रहना य जीवनम परष क ल ण ह | 109) जब बि एव दय एक हो जात ह तब सारा जीवन साधना बन जाता ह |

110) बि मान परष ससार की िचनता नही करत लिकन अपनी मि क बार म सोचत ह |

मि का िवचार ही तयागी दानी सवापरायण बनाता ह | मो की इ छा स सब सदगण आ जात ह

| ससार की इ छा स सब दगरण आ जात ह | 111) पिरिःथित िजतनी किठन होती ह वातावरण िजतना पीड़ाकारक होता ह उसस

गजरन वाला उतना ही बलवान बन जाता ह | अतः बा क और िचनताओ का ःवागत करो | ऐसी पिरिःथित म भी वदानत को आचरण म लाओ | जब आप वदानती जीवन यतीत करग तब दखग

िक समःत वातावरण और पिरिःथितया आपक वश म हो रही ह आपक िलय उपयोगी िस हो रही ह | 112) हरक पदाथर पर स अपन मोह को हटा लो और एक सतय पर एक तथय पर अपन

ई र पर समम धयान को किनित करो | तरनत आपको आतम-सा ातकार होगा | 113) जस बड़ होत-होत बचपन क खलकद छोड़ दत हो वस ही ससार क खलकद छोड़कर आतमाननद का उपभोग करना चािहय | जस अनन व जल का सवन करत हो वस ही आतम-

िचनतन का िनरनतर सवन करना चािहय | भोजन ठ क स होता ह तो ति की डकार आती ह वस

ही यथाथर आतमिचनतन होत ही आतमानभव की डकार आयगी आतमाननद म मःत ह ग |

आतम ान क िसवा शाित का कोई उपाय नही | 114) आतम ानी क हकम स सयर काशता ह | उनक िलय इनि पानी बरसाता ह | उनही क

िलय पवन दत बनकर गमनागमन करता ह | उनही क आग समि रत म अपना िसर रगड़ता ह | 115) यिद आप अपन आतमःवरप को परमातमा समझो और अनभव करो तो आपक सब

िवचार व मनोरथ सफल ह ग उसी ण पणर ह ग | 116) राजा-महाराजा दवी-दवता वद-पराण आिद जो कछ ह व आतमदश क सक पमाऽ

ह | 117) जो लोग ितकलता को अपनात ह ई र उनक स मख रहत ह | ई र िजनह अपन

स दर रखना चाहत ह उनह अनकल पिरिःथितया दत ह | िजसको सब वःतए अनकल एव पिवऽ

सब घटनाए लाभकारी सब िदन शभ सब मनय दवता क रप म िदखत ह वही परष ततवदश ह | 118) समता क िवचार स िच ज दी वश म होता ह हठ स नही |

119) ऐस लोग स स बनध रखो िक िजसस आपकी सहनशि बढ़ समझ की शि बढ़

जीवन म आन वाल सख-दःख की तरग का आपक भीतर शमन करन की ताकत आय समता बढ़

जीवन तजःवी बन | 120) लोग बोलत ह िक धयान व आतमिचनतन क िलए हम फरसत नही िमलती | लिकन

भल मनय जब नीद आती ह तब सब महतवपणर काम भी छोड़कर सो जाना पड़ता ह िक नही

जस नीद को महतव दत हो वस ही चौबीस घनट म स कछ समय धयान व आतमिचनतन म भी िबताओ | तभी जीवन साथरक होगा | अनयथा कछ भी हाथ नही लगगा | 121) भल जाओ िक तम मनय हो अमक जाित हो अमक उ हो अमक िड़मीवाल हो अमक धनधवाल हो | तम िनगरण िनराकार सा ीरप हो ऐसा ढ़ िन य करो | इसीम तमाम

कार की साधनाए िबयाए योगािद समािव हो जात ह | आप सवर यापक अख ड चतनय हो | सार ान का यह मल ह | 122) दोष तभी िदखता जब हमार लोचन म क अभावरप पीिलया रोग स मःत होत ह | 123) साधक यिद अ यास क मागर पर उसी कार आग बढ़ता जाय िजस कार ार भ

म इस मागर पर चलन क िलए उतसाहपवरक कदम रखा था तो आयरपी सयर अःत होन स पहल

जीवनरपी िदन रहत ही अवय सोऽहम िसि क ःथान तक पहच जाय | 124) लोग ज दी स उननित कय नही करत कय िक बाहर क अिभाय एव िवचारधाराओ का बहत बड़ा बोझ िहमालय की तरह उनकी पीठ पर लदा हआ ह | 125) अपन ित होन वाल अनयाय को सहन करत हए अनयायकतार को यिद मा कर िदया जाय तो ष म म पिरणत हो जाता ह | 126) साधना की शरआत ौ ा स होती ह लिकन समाि ान स होनी चािहय | ान मान

ःवयसिहत सवर ःवरप ह ऐसा अपरो अनभव | 127) अपन शरीर क रोम-रोम म स ॐ का उ चारण करो | पहल धीम ःवर म ार भ

करो | शर म धविन गल स िनकलगी िफर छाती स िफर नािभ स और अनत म रीढ़ की ह डी क

आिखरी छोर स िनकलगी | तब िव त क धकक स सष ना नाड़ी तरनत खलगी | सब कीटाणसिहत

तमाम रोग भाग खड़ ह ग | िनभरयता िह मत और आननद का फ वारा छटगा | हर रोज ातःकाल

म ःनानािद करक सय दय क समय िकसी एक िनयत ःथान म आसन पर पवारिभमख बठकर

कम-स-कम आधा घनटा करक तो दखो | 128) आप जगत क भ बनो अनयथा जगत आप पर भतव जमा लगा | ान क

मतािबक जीवन बनाओ अनयथा जीवन क मतािबक ान हो जायगा | िफर यग की याऽा स भी दःख का अनत नही आयगा | 129) वाःतिवक िश ण का ारभ तो तभी होता ह जब मनय सब कार की सहायताओ स िवमख होकर अपन भीतर क अननत ॐोत की तरफ अमसर होता ह | 130) य पच की िनवित क िलए अनतःकरण को आननद म सरोबार रखन क िलए

कोई भी कायर करत समय िवचार करो म कौन ह और कायर कौन कर रहा ह भीतर स जवाब

िमलगा मन और शरीर कायर करत ह | म सा ीःवरप ह | ऐसा करन स कतारपन का अह

िपघलगा सख-दःख क आघात मनद ह ग | 131) राग- ष की िनवित का कया उपाय ह उपाय यही ह िक सार जगत-पच को मनोरा य समझो | िननदा-ःतित स राग- ष स पच म सतयता ढ़ होती ह | 132) जब कोई खनी हाथ आपकी गरदन पकड़ ल कोई श धारी आपको कतल करन क

िलए ततपर हो जाय तब यिद आप उसक िलए सननता स तयार रह दय म िकसी कार का भय

या िवषाद उतपनन न हो तो समझना िक आपन राग- ष पर िवजय ा कर िलया ह | जब आपकी ि पड़त ही िसहािद िहसक जीव की िहसावित गायब हो जाय तब समझना िक अब राग- ष का अभाव हआ ह | 133) आतमा क िसवाय अनय कछ भी नही ह - ऐसी समझ रखना ही आतमिन ा ह | 134) आप ःव न ा ह और यह जगत आपका ही ःव न ह | बस िजस ण यह ान हो जायगा उसी ण आप म हो जाएग | 135) िदन क चौबीस घ ट को साधनामय बनान क िलय िनक मा होकर यथर िवचार करत हए मन को बार-बार सावधान करक आतमिचतन म लगाओ | ससार म सल न मन को वहा स उठा कर आतमा म लगात रहो | 136) एक बार सागर की एक बड़ी तरग एक बलबल की िता पर हसन लगी | बलबल न

कहा ओ तरग म तो छोटा ह िफर भी बहत सखी ह | कछ ही दर म मरी दह टट जायगी िबखर

जायगी | म जल क साथ जल हो जाऊगा | वामन िमटकर िवराट बन जाऊगा | मरी मि बहत

नजदीक ह | मझ आपकी िःथित पर दया आती ह | आप इतनी बड़ी हई हो | आपका छटकारा ज दी नही होगा | आप भाग-भागकर सामनवाली च टान स टकराओगी | अनक छोटी-छोटी तरग

म िवभ हो जाओगी | उन अस य तरग म स अननत-अननत बलबल क रप म पिरवितरत हो जाओगी | य सब बलबल फटग तब आपका छटकारा होगा | बड़ पन का गवर कय करती हो जगत की उपलि धय का अिभमान करक परमातमा स दर मत जाओ | बलबल की तरह सरल

रहकर परमातमा क साथ एकता का अनभव करो | 137) जब आप ईयार ष िछिानवषण दोषारोपण घणा और िननदा क िवचार िकसीक

ित भजत ह तब साथ-ही-साथ वस ही िवचार को आमिऽत भी करत ह | जब आप अपन भाई की आख म ितनका भ कत ह तब अपनी आख म भी आप ताड़ भ क रह ह | 138) शरीर अनक ह आतमा एक ह | वह आतमा-परमातमा मझस अलग नही | म ही कतार सा ी व नयायधीश ह | म ही ककर श आलोचक ह और म ही मधर शसक ह | मर िलय तयक

यि ःवतऽ व ःव छनद ह | बनधन पिरि छननता और दोष मरी ि म आत ही नही | म म

हपरम म ह और अनय लोग भी ःवतऽ ह | ई र म ही ह | आप भी वही हो | 139) िजस कार बालक अपनी परछा म बताल की क पना कर भय पाता ह उसी कार जीव अपन ही सक प स भयभीत होता ह और क पाता ह | 140) कभी-कभी ऐसी भावना करो िक आपक सामन चतनय का एक महासागर लहरा रहा ह | उसक िकनार खड़ रह कर आप आनद स उस दख रह ह | आपका शरीर सागर की सतह पर घमन गया ह | आपक दखत ही दखत वह सागर म डब गया | इस समःत पिरिःथित को दखन वाल आप सा ी आतमा शष रहत ह | इस कार सा ी रप म अपना अनभव करो | 141) यिद हम चाहत ह िक भगवान हमार सब अपराध माफ कर तो इसक िलए सगम साधना यही ह िक हम भी अपन सबिधत सब लोग क सब अपराध माफ कर द |

कभी िकसी क दोष या अपराध पर ि न डाल कय िक वाःतव म सब रप म हमारा यारा ई दव ही बीड़ा कर रहा ह |

142) पणर पिवऽता का अथर ह बा भाव स भािवत न होना | सासािरक मनोहरता एव घणा स पर रहना राजी-नाराजगी स अिवचल िकसी म भद न दखना और आतमानभव क ारा आकषरण व तयाग स अिल रहना | यही वदानत का उपिनषद का

रहःय ह | 143) ई र सा ातकार तभी होगा जब ससार की ि स तीत होन वाल बड़-स-बड़ विरय को भी मा करन का आपका ःवभाव बन जायगा | 144) चाल यवहार म स एकदम उपराम होकर दो िमनट क िलए िवराम लो |

सोचो िक lsquo म कौन ह सद -गम शरीर को लगती ह | भख- यास ाण को लगती ह |

अनकलता-ितकलता मन को लगती ह | शभ-अशभ एव पाप-प य का िनणरय बि करती ह | म न शरीर ह न ाण ह न मन ह न बि ह | म तो ह इन सबको स ा दन वाला इन सबस नयारा िनलप आतमा |rsquo 145) जो मनय िनरतर lsquoम म हhelliprsquo ऐसी भावना करता ह वह म ही ह और lsquoम ब हhelliprsquo ऐसी भावना करनवाला ब ही ह | 146) आप िनभरय ह िनभरय ह िनभरय ह | भय ही मतय ह | भय ही पाप ह | भय ही नकर ह | भय ही अधमर ह | भय ही यिभचार ह | जगत म िजतन असत या िमथया भाव ह व सब इस भयरपी शतान स पदा हए ह | 147) परिहत क िलए थोड़ा काम करन स भी भीतर की शि या जागत होती ह |

दसर क क याण क िवचारमाऽ स दय म एक िसह क समान बल आ जाता ह | 148) हम यिद िनभरय ह ग तो शर को भी जीतकर उस पाल सक ग | यिद डरग तो क ा भी हम फ़ाड़ खायगा | 149) तयक िबया तयक यवहार तयक ाणी ःवरप िदख यही सहज समािध ह | 150) जब किठनाईया आय तब ऐसा मानना िक मझ म सहन शि बढ़ान क िलए ई र न य सयोग भज ह | किठन सयोग म िह मत रहगी तो सयोग बदलन लगग |

िवषय म राग- ष रह गया होगा तो वह िवषय कसौटी क रप म आग आयग और उनस पार होना पड़गा | 151) ततव ि स न तो आपन जनम िलया न कभी लग | आप तो अनत ह सवर यापी ह िनतयम अजर-अमर अिवनाशी ह | जनम-मतय का ही गलत ह महा-

मखरतापणर ह | जहा जनम ही नही हआ वहा मतय हो ही कस सकती ह 152) आप ही इस जगत क ई र हो | आपको कौन दबरल बना सकता ह जगत म आप ही एकमाऽ स ा हो | आपको िकसका भय खड़ हो जाओ | म हो जाओ | ठ क स समझ लो िक जो कोई िवचार या श द आपको दबरल बनाता ह वही एकमाऽ अशभ ह | मनय को दबरल व भयभीत करनवाला जो कछ इस ससार म ह वह पाप ह | 153) आप अपना कायर या कतर य करो लिकन न उसक िलए कोई िचनता रह न ही कोई

इ छा | अपन कायर म सख का अनभव करो कय िक आपका कायर ःवय सख या िवौाम ह | आपका कायर आतमानभव का ही दसरा नाम ह | कायर म लग रहो | कायर आपको आतमानभव कराता ह |

िकसी अनय हत स कायर न करो | ःवतऽ वि स अपन कायर पर डट जाओ | अपन को ःवतऽ

समझो िकसीक कदी नही | 154) यिद आप सतय क मागर स नही हटत तो शि का वाह आपक साथ ह समय आपक

साथ ह ऽ आपक साथ ह | लोग को उनक भतकाल की मिहमा पर फलन दो भिवयकाल की स पणर मिहमा आपक हाथ म ह | 155) जब आप िद य म क साथ चा डाल म चोर म पापी म अ यागत म और सबम भ क दशरन करग तब आप भगवान ौी कण क मपाऽ बन जायग | 156) आचायर गौड़पाद न ःप कहा आप सब आपस म भल ही लड़त रह लिकन मर साथ नही लड़ सक ग | आप सब लोग मर पट म ह | म आतमःवरप स सवर या ह | 157) मनय सभी ािणय म ौ ह सब दवताओ स भी ौ ह | दवताओ को भी िफर स

धरती पर आना पड़गा और मनय शरीर ा करक मि ा करनी होगी | 158) िनि नतता क दो सऽ जो कायर करना जररी ह उस परा कर दो | जो िबनजररी ह

उस भल जाओ | 159) सवा-म-तयाग ही मनय क िवकास का मल मऽ ह | अगर यह मऽ आपको जच

जाय तो सभी क ित सदभाव रखो और शरीर स िकसी-न-िकसी यि को िबना िकसी मतलब क

सहयोग दत रहो | यह नही िक जब मरी बात मानग तब म सवा करगा | अगर बनधक मरी बात

नही मानत तो म सवा नही करगा |

भाई तब तो तम सवा नही कर पाओग | तब तो तम अपनी बात मनवा कर अपन अह की पजा ही

करोग | 160) जस ःव न िमथया ह वस ही यह जामत अवःथा भी ःव नवत ही ह िमथया ह | हरक

को अपन इस ःव न स जागना ह | सदगर बार-बार जगा रह ह लिकन जाग कर वापस सो न जाए ऐसा परषाथर तो हम ही करना होगा | 161) सदा सननमख रहो | मख को कभी मिलन मत करो | िन य कर लो िक आपक

िलय शोक न इस जगत म जनम नही िलया ह | आननदःवरप म िचनता का ःथान ही कहा ह 162) समम ा ड एक शरीर ह | समम ससार एक शरीर ह | जब तक आप तयक क

साथ एकता का अनभव करत रहग तब तक सब पिरिःथितया और आस-पास की चीज़ हवा और समि की लहर भी आपक प म रहगी | 163) आपको जो कछ शरीर स बि स या आतमा स कमजोर बनाय उसको िवष की तरह

ततकाल तयाग दो | वह कभी सतय नही हो सकता | सतय तो बलद होता ह पावन होता ह

ानःवरप होता ह | सतय वह ह जो शि द | 164) साधना म हमारी अिभरिच होनी चािहय साधना की तीो माग होनी चािहय | 165) दसर क दोष की चचार मत करो चाह व िकतन भी बड़ ह | िकसी क दोष की चचार करक आप उसका िकसी भी कार भला नही करत बि क उस आघात पहचात ह और साथ-ही-साथ अपन आपको भी | 166) इस ससार को सतय समझना ही मौत ह | आपका असली ःवरप तो आननदःवरप

आतमा ह | आतमा क िसवा ससार जसी कोई चीज ही नही ह | जस सोया हआ मनय ःव न म अपनी एकता नही जानता अिपत अपन को अनक करक दखता ह वस ही आननदःवरप आतमा जामत ःव न और सषि - इन तीन ःवरप को दखत हए अपनी एकता अि तीयता का अनभव

नही करता | 167) मनोजय का उपाय ह अ यास और वरा य | अ यास मान य पवरक मन को बार-बार परमातम-िचतन म लगाना और वरा य मान मन को ससार क पदाथ की ओर स वापस

लौटाना | 168) िकसी स कछ मत मागो | दन क िलय लोग आपक पीछ-पीछ घमग | मान नही

चाहोग तो मान िमलगा | ःवगर नही चाहोग तो ःवगर क दत आपक िलय िवमान लकर आयग |

उसको भी ःवीकार नही करोग तो ई र आपको अपन दय स लगायग | 169) कभी-कभी उदय या अःत होत हए सयर की ओर चलो | नदी सरोवर या समि क तट

पर अकल घमन जाओ | ऐस ःथान की मलाकात लो जहा शीतल पवन मनद-मनद चल रही हो | वहा परमातमा क साथ एकःवर होन की स भावना क ार खलत ह | 170) आप य -ही इ छा स ऊपर उठत हो तय -ही आपका इि छत पदाथर आपको खोजन

लगता ह | अतः पदाथर स ऊपर उठो | यही िनयम ह | य - य आप इ छक िभ क याचक का भाव धारण करत हो तय -तय आप ठकराय जात हो | 171) कित क तयक पदाथर को दखन क िलय काश जररी ह | इसी कार मन बि

इिनिय को अपन-अपन कायर करन क िलय आतम-काश की आवयकता ह कय िक बाहर का कोई काश मन बि इिनिय ाणािद को चतन करन म समथर नही | 172) जस ःव न ा परष को जागन क बाद ःव न क सख-दःख जनम-मरण पाप-प य

धमर-अधमर आिद ःपशर नही करत कय िक वह सब खद ही ह | खद क िसवाय ःव न म दसरा कछ

था ही नही | वस ही जीवनम ानवान परष को सख-दःख जनम-मरण पाप-प य धमर-अधमर ःपशर नही करत कय िक व सब आतमःवरप ही ह | 173) वही भमा नामक आतम योित क म रह कर भ क रही ह सअर म रह कर घर रही ह गध म रह कर रक रही ह लिकन मखर लोग शरीर पर ही ि रखत ह चतनय ततव पर नही | 174) मनय िजस ण भत-भिवय की िचनता का तयाग कर दता ह दह को सीिमत और उतपि -िवनाशशील जानकर दहािभमान को तयाग दता ह उसी ण वह एक उ चतर अवःथा म पहच जाता ह | िपजर स छटकर गगनिवहार करत हए प ी की तरह मि का अनभव करता ह | 175) समःत भय एव िचनताए आपकी इ छाओ का णाम ह | आपको भय कय लगता ह

कय िक आपको आशका रहती ह िक अमक चीज कही चली न जाय | लोग क हाःय स आप डरत

ह कय िक आपको यश की अिभलाषा ह कीितर म आसि ह | इ छाओ को ितलाजिल द दो | िफर दखो मजा कोई िज मदारी नहीकोई भय नही | 176) दखन म अतयत करप काला-कलटा कबड़ा और तज ःवभाव का मनय भी आपका ही ःवरप ह | आप इस तथय स म नही | िफर घणा कसी कोई लाव यमयी सदरी सि की

शोभा क समान अित िवलासभरी अ सरा भी आपका ही ःवरप ह | िफर आसि िकसकी

आपकी ानिनिया उनको आपस अलग करक िदखाती ह | य इिनिया झठ बोलनवाली ह | उनका कभी िव ास मत करो | अतः सब कछ आप ही हो | 177) मानव क नात हम साधक ह | साधक होन क नात सतय को ःवीकर करना हमारा ःवधमर ह | सतय यही ह िक बल दसर क िलय ह ान अपन िलय ह और िव ास परमातमा स

स बनध जोड़न क िलय ह | 178) अपनी आतमा म डब जाना यह सबस बड़ा परोपकार ह | 179) आप सदव म ह ऐसा िव ास ढ़ करो तो आप िव क उ ारक हो जात हो | आप

यिद वदानत क ःवर क साथ ःवर िमलाकर िन य करो आप कभी शरीर न थ | आप िनतय श

ब आतमा हो तो अिखल ा ड क मो दाता हो जात हो | 180) कपा करक उन ःवाथरमय उपाय और अिभाय को दर फ क दो जो आपको पिरि छनन रखत ह | सब वासनाए राग ह | यि गत या शरीरगत म आसि ह | उस फ क दो | ःवय पिवऽ हो जाओ | आपका शरीर ःवःथ और बि पणरःवरप हो जायगी | 181) यिद ससार क सख व पदाथर ा ह तो आपको कहना चािहय ओ शतान हट जा मर सामन स | तर हाथ स मझ कछ नही चािहय | तब दखो िक आप कस सखी हो जात हो परमातमा-ा िकसी महापरष पर िव ास रखकर अपनी जीवनडोरी िनःशक बन उनक चरण म सदा क िलय रख दो | िनभरयता आपक चरण की दासी बन जायगी | 182) िजसन एक बार ठ क स जान िलया िक जगत िमथया ह और ािनत स इसकी तीित

हो रही ह उसको कभी दःख नही होता | जगत म कभी आसि नही होती | जगत क िमथयातव क

िन य का नाम ही जगत का नाश ह | 183) अपन ःवरप म लीन होन माऽ स आप ससार क साट बन जायग | यह साटपद

कवल इस ससार का ही नही समःत लोक-परलोक का साटपद होगा | 184) ह जनक चाह दवािधदव महादव आकर आपको उपदश द या भगवान िवण आकर उपदश द अथवा ाजी आकर उपदश द लिकन आपको कदािप सख न होगा | जब िवषय का तयाग करोग तभी स ची शाित व आनद ा ह ग |

185) िजस भ न हम मानव जीवन दकर ःवाधीनता दी िक हम जब चाह तब धमारतमा होकर भ होकर जीवनम होकर कतकतय हो सकत ह- उस भ की मिहमा गाओ | गाओ नही तो सनो | सनो भी नही गाओ भी नही तो ःवीकार कर लो | 186) चाह समि क गहर तल म जाना पड़ सा ात मतय का मकाबला करना पड़ अपन

आतमाि क उ य की पितर क िलय अिडग रहो | उठो साहसी बनो शि मान बनो | आपको जो बल व सहायता चािहय वह आपक भीतर ही ह | 187) जब-जब जीवन स बनधी शोक और िचनता घरन लग तब-तब अपन आननदःवरप

का गान करत-करत उस मोह-माया को भगा दो | 188) जब शरीर म कोई पीड़ा या अग म ज म हो तब म आकाशवत आकाशरिहत चतन

ह ऐसा ढ़ िन य करक पीड़ा को भल जाओ | 189) जब दिनया क िकसी चककर म फस जाओ तब म िनलप िनतय म ह ऐसा ढ़

िन य करक उस चककर स िनकल जाओ | 190) जब घर-बार स बनधी कोई किठन समःया याकल कर तब उस मदारी का खल

समझकर ःवय को िनःसग जानकर उस बोझ को ह का कर दो | 191) जब बोध क आवश म आकर कोई अपमानय वचन कह तब अपन शाितमय

ःवरप म िःथर होकर मन म िकसी भी ोभ को पदा न होन दो | 192) उ म अिधकारी िज ास को चािहय िक वह व ा सदगर क पास जाकर ौ ा पवरक महावाकय सन | उसका मनन व िनिदधयासन करक अपन आतमःवरप को जान | जब

आतमःवरप का सा ातकार होता ह तब ही परम िवौािनत िमल सकती ह अनयथा नही | जब तक

व ा महापरष स महावाकय ा न हो तब तक वह मनद अिधकारी ह | वह अपन दयकमल म परमातमा का धयान कर ःमरण कर जप कर | इस धयान-जपािद क साद स उस व ा सदगर

ा ह ग | 193) मन बि िच अहकार छाया की तरह जड़ ह णभगर ह कय िक व उतपनन होत

ह और लीन भी हो जात ह | िजस चतनय की छाया उसम पड़ती ह वह परम चतनय सबका आतमा ह | मन बि िच अहकार का अभाव हो जाता ह लिकन उसका अनभव करनवाल का अभाव

कदािप नही होता |

194) आप अपनी शि को उ चाितउ च िवषय की ओर बहन दो | इसस आपक पास व

बात सोचन का समय ही नही िमलगा िजसस कामकता की गध आती हो | 195) अपराध क अनक नाम ह बालहतया नरहतया मातहतया गौहतया इतयािद |

परनत तयक ाणी म ई र का अनभव न करक आप ई रहतया का सबस बड़ा अपराध करत ह | 196) सवा करन की ःवाधीनता मनयमाऽ को ा ह | अगर वह करना ही न चाह तो अलग बात ह | सवा का अथर ह मन-वाणी-कमर स बराईरिहत हो जाना यह िव की सवा हो गई |

यथाशि भलाई कर दो यह समाज की सवा हो गई | भलाई का फल छोड़ दो यह अपनी सवा हो गई

| भ को अपना मानकर ःमित और म जगा लो यह भ की सवा हो गई | इस कार मनय

अपनी सवा भी कर सकता ह समाज की सवा भी कर सकता ह िव की सवा भी कर सकता ह

और िव र की सवा भी कर सकता ह | 197) आतमा स बाहर मत भटको अपन कनि म िःथर रहो अनयथा िगर पड़ोग | अपन-

आपम पणर िव ास रखो | आतम-कनि पर अचल रहो | िफर कोई भी चीज आपको िवचिलत नही कर सकती | 198) सदा शात िनिवरकार और सम रहो | जगत को खलमाऽ समझो | जगत स भािवत

मत हो | इसस आप हमशा सखी रहोग | िफर कछ बढ़ान की इ छा नही होगी और कछ कम होन स

दःख नही होगा | 199) समथर सदगर क सम सदा फल क भाित िखल हए रहो | इसस उनक अनदर सक प

होगा िक यह तो बहत उतसाही साधक ह सदा सनन रहता ह | उनक सामथयरवान सक प स

आपकी वह किऽम सननता भी वाःतिवक सननता म बदल जायगी | 200) यिद रोग को भी ई र का िदया मानो तो ार ध-भोग भी हो जाता ह और क तप का फल दता ह | इसस ई र-कपा की ाि होती ह | याकल मत हो | क सल और इनजकशन

आधीन मत हो | 201) साधक को चािहय िक अपन लआय को ि म रखकर साधना-पथ पर तीर की तरह

सीधा चला जाय | न इधर दख न उधर | ि यिद इधर-उधर जाती हो तो समझना िक िन ा िःथर नही ह |

202) आपन अपन जीवन म हजार ःव न दख ह ग लिकन व आपक जीवन क अश नही बन जात | इसी कार य जामत जगत क आड बर आपकी आतमा क सम कोई मह व नही रखत | 203) एक आतमा को ही जानो अनय बात को छोड़ो | धीर साधक को चािहय िक वह

सावधान होकर आतमिन ा बढ़ाय अनक श द का िचनतन व भाषण न कर कय िक वह तो कवल

मन-वाणी को पिरौम दनवाला ह असली साधना नही ह | 204) जो परष जन-समह स ऐस डर जस साप स डरता ह स मान स ऐस डर जस नकर स

डरता ह ि य स ऐस डर जस मद स डरता ह उस परष को दवतागण ा ण मानत ह | 205) जस अपन शरीर क अग पर बोध नही आता वस शऽ िमऽ व अपनी दह म एक ही आतमा को दखनवाल िववकी परष को कदािप बोध नही आता | 206) मन तो शरीर को ई रापरण कर िदया ह | अब उसकी भख- यास स मझ कया

समिपरत वःत म आस होना महा पाप ह | 207) आप यिद िद य ि पाना चहत हो तो आपको इिनिय क ऽ का तयाग करना होगा | 208) लयकाल क मघ की गजरना हो समि उमड़ पड बारह सयर तपायमान हो जाय पहाड़ स पहाड़ टकरा कर भयानक आवाज हो तो भी ानी क िन य म त नही भासता कय िक

त ह ही नही | त तो अ ानी को भासता ह | 209) सतय को ःवीकार करन स शाित िमलगी | कछ लोग यो यता क आधार पर शाित

खरीदना चाहत ह | यो यता स शाित नही िमलगी यो यता क सदपयोग स शाित िमलगी | कछ

लोग स पि क आधार पर शाित सरि त रखना चाहत ह | स पि स शाित नही िमलगी स पि

क सदपयोग स शाित िमलगी वस ही िवपि क सदपयोग स शाित िमलगी | 210) त छ हािन-लाभ पर आपका धयान इतना कय रहता ह िजसस अनत आननदःवरप

आतमा पर स धयान हट जाता ह | 211) अपन अनदर ही आननद ा करना य िप किठन ह परनत बा िवषय स आननद

ा करना तो अस भव ही ह |

212) म ससार का काश ह | काश क रप म म ही सब वःतओ म या ह | िनतय इन

िवचार का िचनतन करत रहो | य पिवऽ िवचार आपको परम पिवऽ बना दग | 213) जो वःत कमर स ा होती ह उसक िलय ससार की सहायता तथा भिवय की आशा की आवयकता होती ह परनत जो वःत तयाग स ा होती ह उसक िलय न ससार की सहायता चािहय न भिवय की आशा | 214) आपको जब तक बाहर चोर िदखता ह तब तक जरर भीतर चोर ह | जब दसर लोग

स िभनन अयो य खराब सधारन यो य िदखत ह तब तक ओ सधार का बीड़ा उठान वाल त अपनी िचिकतसा कर | 215) सफल व ही होत ह जो सदव नतमःतक एव सननमख रहत ह | िचनतातर-शोकातर लोग की उननित नही हो सकती | तयक कायर को िह मत व शाित स करो | िफर दखो िक यह

कायर शरीर मन और बि स हआ | म उन सबको स ा दनवाला चतनयःवरप ह | ॐ ॐ का पावन गान करो | 216) िकसी भी पिरिःथित म मन को यिथत न होन दो | आतमा पर िव ास करक

आतमिन बन जाओ | िनभरयता आपकी दासी बन कर रहगी | 217) सतसग स मनय को साधना ा होती ह चाह वह शाित क रप म हो चाह मि क

रप म चाह सवा क रप म हो म क रप म हो चाह तयाग क रप म हो | 218) भला-बरा वही दखता ह िजसक अनदर भला-बरा ह | दसर क शरीर को वही दखता ह

जो खद को शरीर मानता ह | 219) खबरदार आपन यिद अपन शरीर क िलय ऐश-आराम की इ छा की िवलािसता एव इिनिय-सख म अपना समय बरबाद िकया तो आपकी खर नही | ठ क स कायर करत रहन की नीित

अपनाओ | सफलता का पहला िस ात ह कायरिवौामरिहत कायरसा ी भाव स कायर | इस

िस ात को जीवन म चिरताथर करोग तो पता चलगा िक छोटा होना िजतना सरल ह उतना ही बड़ा होना भी सहज ह | 220) भतकाल पर िखनन हए िबना भिवय की िचनता िकय िबना व रमान म कायर करो | यह भाव आपको हर अवःथा म सनन रखगा हम जो कछ ा ह उसका सदपयोग ही अिधक

काश पान का साधन ह |

221) जब आप सफलता की ओर पीठ कर लत हो पिरणाम की िचनता का तयाग कर दत

हो स मख आय हए क र य पर अपनी उ ोगशि एकाम करत हो तब सफलता आपक पीछ-पीछ

आ जाती ह | अतः सफलता आपको खोजगी | 222) वि तब तक एकाम नही होगी जब तक मन म कभी एक आशा रहगी तो कभी दसरी | शात वही हो सकता ह िजस कोई क र य या आवयकता घसीट न रही हो | अतः परम शाित पान

क िलय जीवन की आशा भी तयाग कर मन ाननद म डबो दो | आज स समझ लो िक यह शरीर ह ही नही | कवल ाननद का सागर लहरा रहा ह | 223) िजसकी पककी िन ा ह िक म आतमा हrsquo उसक िलय ऐसी कौन सी मिथ ह जो खल

न सक ऐसी कोई ताकत नही जो उसक िवर जा सक | 224) मर भा य म नही थाई र की मज आजकल सतसग ा नही होताजगत

खराब ह ऐस वचन हमारी कायरता व अनतःकरण की मिलनता क कारण िनकलत ह | अतः नकारातमक ःवभाव और दसर पर दोषारोपण करन की वि स बचो | 225) आप जब भीतरवाल स नाराज होत हो तब जगत आपस नाराज रहता ह | जब आप

भीतर अनतयारमी बन बठ तो जगतरपी पतलीघर म िफर गड़बड़ कसी 226) िजस ण हम ससार क सधारक बन खड़ होत ह उसी ण हम ससार को िबगाड़नवाल बन जात ह | श परमातमा को दखन क बजाय जगत को िबगड़ा हआ दखन की ि बनती ह | सधारक लोग मानत ह िक lsquoभगवान न जो जगत बनाया ह वह िबगड़ा हआ ह और हम उस सधार रह ह |rsquo वाह वाह धनयवाद सधारक अपन िदल को सधारो पहल | सवरऽ िनरजन का दीदार करो | तब आपकी उपिःथित माऽ स आपकी ि माऽ स अर यार आपको छकर बहती हवा माऽ स अननत जीव को शाित िमलगी और अननत सधार होगा | नानक कबीर महावीर ब और लीलाशाह बाप जस महापरष न यही कजी अपनायी थी | 227) वदानत म हमशा कमर का अथर होता ह वाःतिवक आतमा क साथ एक होकर च ा करना अिखल िव क साथ एकःवर हो जाना | उस अि तीय परम ततव क साथ िनःःवाथर सयोग ा करना ही एकमाऽ स चा कमर ह बाकी सब बोझ की गठिरया उठाना ह |

228) अपनी व रमान अवःथा चाह कसी भी हो उसको सव च मानन स ही आपक दय म आतम ान ान का अनायास उदय होन लगगा | आतम-सा ातकार को मील दर की कोई चीज समझकर उसक पीछ दौड़ना नही ह िचिनतत होना नही ह |

िचनता की गठरी उठाकर यिथत होन की जररत नही ह | िजस ण आप िनि नतता म गोता मारोग उसी ण आपका आतमःवरप गट हो जायगा | अर गट कया होगा आप ःवय आतमःवरप हो ही | अनातमा को छोड़ दो तो आतमःवरप तो हो ही | 229) सदा ॐकार का गान करो | जब भय व िचनता क िवचार आय तब िकसी मःत सत-फकीर महातमा क सािननधय का ःमरण करो | जब िननदा-शसा क सग आय तब महापरष क जीवन का अवलोकन करो | 230) िजनको आप भयानक घटनाए एव भयकर आघात समझ बठ हो वाःतव म व आपक ियतम आतमदव की ही करतत ह | समःत भयजनक तथा ाणनाशक घटनाओ क नाम-रप तो िवष क ह लिकन व बनी ह अमत स | 231) मन म यिद भय न हो तो बाहर चाह कसी भी भय की साममी उपिःथत हो जाय आपका कछ िबगाड़ नही सकती | मन म यिद भय होगा तो तरनत बाहर भी भयजनक पिरिःथया न होत हए भी उपिःथत हो जायगी | व क तन म भी भत िदखन लगगा | 232) िकसी भी पिरिःथित म िदखती हई कठोरता व भयानकता स भयभीत नही होना चािहए | क क काल बादल क पीछ पणर काशमय एकरस परम स ा सयर की तरह सदा िव मान ह | 233) आप अपन पर कदािप अिव ास मत करो | इस जगत म आप सब कछ कर सकत हो | अपन को कभी दबरल मत मानो | आपक अनदर तमाम शि या छपी हई ह | 234) यिद कोई मन य आपकी कोई चीज़ को चरा लता ह तो ड़रत कय हो वह मनय

और आप एक ह | िजस चीज़ को वह चराता ह वह चीज़ आपकी और उसकी द न की ह | 235) जो खद क िसवाय दसरा कछ दखता नही सनता नही जानता नही वह अननत ह |

जब तक खद क िसवाय और िकसी वःत का भान होता ह वह वःत स ची लगती ह तब तक आप

सीिमत व शात ह असीम और अनत नही |

236) ससार मझ कया आनद द सकता ह स पणर आनद मर भीतर स आया ह | म ही स पणर आननद ह स पणर मिहमा एव स पणर सख ह | 237) जीवन की समःत आवयकताए जीवन म उपिःथत ह परनत जीवन को जब हम

बा रग म रग दत ह तब जीवन का वाःतिवक रप हम नही जान पात | 238) िननदक की िननदा स म कय मरझाऊ शसक की शसा स म कय फल िननदा स म घटता नही और शसा स म बढ़ता नही | जसा ह वसा ही रहता ह | िफर िननदा-ःतित स

खटक कसी 239) ससार व ससार की समःयाओ म जो सबस अिधक फस हए ह उनही को वदानत की सबस अिधक आवयकता ह | बीमार को ही औषिध की यादा आवयकता ह | कय जी ठ क ह न 240) जगत क पाप व अतयाचार की बात मत करो लिकन अब भी आपको जगत म पाप

िदखता ह इसिलय रोओ | 241) हम यिद जान ल िक जगत म आतमा क िसवाय दसरा कछ ह ही नही और जो कछ

िदखता ह वह ःव नमाऽ ह तो इस जगत क दःख-दािरिय पाप-प य कछ भी हम अशात नही कर सकत | 242) िव ान दाशरिनक व आचाय की धमकी तथा अनमह आलोचना या अनमित

ानी पर कोई भाव नही ड़ाल सकती | 243) ह यि रप अननत आप अपन पर पर खड़ रहन का साहस करो समःत िव का बोझ आप िखलौन की तरह उठा लोग | 244) िसह की गजरना व नरिसह की ललकार तलवार की धार व साप की फफकार तपःवी की धमकी व नयायधीश की फटकारइन सबम आपका ही काश चमक रहा ह | आप इनस

भयभीत कय होत हो उलझन कय महसस करत हो मरी िब ली मझको याऊ वाली बात कय

होन दत हो 245) ससार हमारा िसफ़र िखलोना ही ह और कछ नही | अबोध बालक ही िखलौन स

भयभीत होता ह आसि करता ह िवचारशील यि नही |

246) जब तक अिव ा दर नही होगी तब तक चोरी जआ दार यिभचार कभी बद न

ह ग चाह लाख कोिशश करो | 247) आप हमशा अदर का धयान रखो | पहल हमारा भीतरी पतन होता ह | बा पतन तो इसका पिरणाम माऽ ह | 248) तयाग स हमशा आनद िमलता ह | जब तक आपक पास एक भी चीज़ बाकी ह तब

तक आप उस चीज़ क बधन म बध रहोग | आघात व तयाघात हमशा समान िवरोधी होत ह | 249) िनि तता ही आरो यता की सबस बड़ी दवाई ह | 250) सख अपन िसर पर दख का मकट पहन कर आता ह | जो सख को अपनायगा उस

दख को भी ःवीकार करना पड़गा | 251) म (आतमा) सबका ा ह | मरा ा कोई नही | 252) हजार म स कोई एक परष भीतर स शात िच वाला रहकर बाहर स ससारी जसा यवहार कर सकता ह | 253) सतय क िलए यिद शरीर का तयाग करना पड़ तो कर दना | यही आिखरी ममता ह जो हम तोड़नी होगी | 254) भय िचनता बचनी स ऊपर उठो | आपको ान का अनभव होगा | 255) आपको कोई भी हािन नही पहचा सकता | कवल आपक खयालात ही आपक पीछ पड़ ह | 256) म का अथर ह अपन पड़ोसी तथा सपकर म आनवाल क साथ अपनी वाःतिवक अभदता का अनभव करना | 257) ओ यार अपन खोय हए आतमा को एक बार खोज लो | धरती व आसमान क शासक आप ही हो | 258) सदव सम और सनन रहना ई र की सव पिर भि ह |

259) जब तक िच म ढ़ता न आ जाय िक शा की िविधय का पालन छोड़ दन स भी दय का यथाथर भि भाव न नही होगा तब तक शा की िविधय को पालत रहो |

गर भि एक अमोघ साधना 1 जनम मरण क िवषचब स म होन का कोई मागर नही ह कया सख-दःख हषर-शोक लाभ-

हािन मान-अपमान की थ पड़ स बचन का कोई उपाय नही ह कया

हअवय ह | ह िय आतमन नाशवान पदाथ स अपना मन वािपस लाकर सदगर क

चरणकमल म लगाओ | गरभि योग का आौय लो | गरसवा ऐसा अमोघ साधन ह िजसस

व रमान जीवन आननदमय बनता ह और शा त सख क ार खलत ह |

गर सवत त नर धनय यहा | ितनक नही दःख यहा न वहा || 2 स च सदगर की की हई भि िशय म सासािरक पदाथ क वरा य एव अनासि जगाती ह

परमातमा क ित म क पप महकाती ह | 3 तयक िशय सदगर की सवा करना चाहता ह लिकन अपन ढग स | सदगर चाह उस ढग स

सवा करन को कोई ततपर नही | जो िवरला साधक गर चाह उस ढ़ग स सवा कर सकता ह उस कोई कमी नही रहती |

िन सदगर की सवा स उनकी कपा ा होती ह और उस कपा स न िमल सक ऐसा तीन लोक म कछ भी नही ह | 4 गर िशय का स बनध पिवऽतम स बनध ह | ससार क तमाम बनधन स छड़ाकर वह मि क मागर पर ःथान कराता ह | यह स बनध जीवनपयरनत का स बनध ह | यह बात अपन दय की डायरी म सवणर-अ र स िलख लो | 5 उ ल सयर क काश क अिःततव को मान या न मान िफर भी सयर हमशा काशता ह | चचल मन का मनय मान या न मान लिकन सदगर की परमक याणकारी कपा सदव बरसती ही रहती ह | 6 सदगर की चरणरज म ःनान िकय िबना कवल किठन तप यार करन स या वद का

अधयन करन स वदानत का रहःय कट नही होता आतमानद का अमत नही िमलता | 7 दशरन शा क चाह िकतन मनथ पढ़ो हजार वष तक िहमालय की गफा म तप करो वष तक ाणायाम करो जीवनपयरनत शीषारसन करो समम िव म वास करक याखान दो िफर भी सदगर की कपा क िबना आतम ान नही होता | अतः िनरािभमानी सरल िनजाननद म मःत दयाल ःवभाव क आतम-सा ातकारी सदगर क चरण म जाओ | जीवन को धनय बनाओ | 8 सदगर की सवा िकय िबना शा का अधयन करना मम साधक क िलय समय बरबाद करन क बराबर ह | 9 िजसको सदगर ा हए ह ऐस िशय क िलय इस िव म कछ भी अा य नही ह | सदगर िशय को िमली हई परमातमा की अम य भट ह | अर नहीhellipनही व तो िशय क सम साकार रप म कट हए परमातमा ःवय ह | 10 सदगर क साथ एक ण िकया हआ सतसग लाख वष क तप स अननत गना ौ ह | आख क िनमषमाऽ म सदगर की अमतवष ि िशय क जनम-जनम क पाप को जला सकती ह | 11 सदगर जसा मपणर कपाल िहतिचनतक िव भर म दसरा कोई नही ह | 12 बाढ़ क समय याऽी यिद तफानी नदी को िबना नाव क पार कर सक तो साधक भी िबना सदगर क अपन जीवन क आिखरी लआय को िस कर सकता ह | यानी य दोन बात स भव ह |

अतः यार साधक मनमखी साधना की िज करना छोड़ दो | गरमखी साधना करन म ही सार ह | 13 सदगर क चरणकमल का आौय लन स िजस आननद का अनभव होता ह उसक आग िऽलोकी का साा य त छ ह | 14 आतम-सा ातकार क मागर म सबस महान शऽ अहभाव का नाश करन क िलए सदगर की आ ा का पालन अमोघ श ह | 15 रसोई सीखन क िलय कोई िसखानवाला चािहय िव ान और गिणत सीखन क िलय

अधयापक चािहय तो कया िव ा सदगर क िबना ही सीख लोग 16 सदगरकपा की स पि जसा दसरा कोई खजाना िव भर म नही | 17 सदगर की आ ा का उ लघन करना यह अपनी क खोदन क बराबर ह | 18 सदगर क कायर को शका की ि स दखना महापातक ह | 19 गरभि व गरसवा - य साधनारपी नौका की दो पतवार ह | उनकी मदद स िशय ससारसागर को पार कर सकता ह | 20 सदगर की कसौटी करना असभव ह | एक िववकाननद ही दसर िववकाननद को पहचान सकत ह | ब को जानन क िलय दसर ब की आवयकता रहती ह | एक रामतीथर का रहःय दसर रामतीथर ही पा सकत ह |

अतः सदगर की कसौटी करन की च ा छोड़कर उनको पिरपणर पर परमातमा मानो |

तभी जीवन म वाःतिवक लाभ होगा | 21 गरभि योग का आौय लकर आप अपनी खोई हई िद यता को पनः ा करो सख-दःख जनम-मतय आिद सब न स पार हो जाओ | 22 गरभि योग मान गर की सवा क ारा मन और िवकार पर िनयऽण एव पनः सःकरण | 23 िशय अपन गर क चरणकमल म णाम करता ह | उन पर ौ फल की वषार करक उनकी ःतित करता ह ldquoह परम प य पिवऽ गरदव मझ सव च सख ा हआ ह | म िन ा स जनम-मतय की पर परा स म हआ ह | म िनिवरक प समािध का श सख भोग रहा ह | जगत क िकसी भी कोन म म म ता स िवचरण कर सकता ह | सब पर मरी सम ि ह | मन ाकत मन का तयाग िकया ह | मन सब सक प एव रिच-अरिच का तयाग िकया ह | अब म अख ड शाित म िवौाित पा रहा ह hellip आननदमय हो रहा ह | म इस पणर अवःथा का वणरन नही कर पाता | ह प य गरदव म आवाक बन गया ह | इस दःतर भवसागर को पार करन म आपन

मझ सहायता की ह | अब तक मझ कवल अपन शरीर म ही स पणर िव ास था | मन िविभनन योिनय म अस य जनम िलय | ऐसी सव च िनभरय अवःथा मझ कौन स पिवऽ कम क कारण ा हई ह यह म नही जानता | सचमच यह एक दलरभ भा य ह |

यह एक महान उतक लाभ ह | अब म आननद स नाचता ह | मर सब दःख न हो गय | मर सब मनोरथ पणर हए ह |

मर कायर स पनन हए ह | मन सब वािछत वःतए ा की ह | मरी इ छा पिरपणर हई ह | आप मर स च माता-िपता हो | मरी व रमान िःथित म म दसर क सम िकस कार कट कर सक सवरऽ सख और आननद का अननत सागर मझ लहराता हआ िदख रहा ह | मर अतःच िजसस खल गय वह महावाकय lsquoत वमिसrsquo ह | उपिनषद एव वदानतसऽ को भी धनयवाद | िजनह न िन गर का एव उपिनषद क महावाकय का रप धारण िकया ह | ऐस ौी यासजी को णाम ौी शकराचायर को णाम सासािरक मनय क िसर पर गर क चरणामत का एक िबनद भी िगर तो भी उसक ःब दःख का नाश होता ह | यिद एक िन परष को व पहनाय जाय तो सार िव को व पहनान एव भोजन करवान क बराबर ह कय िक िन परष सचराचर िव म या ह | सबम व ही ह |rdquo

ॐhellip ॐ hellip ॐ hellip

ःवामी िशवानद जी

ौी राम-विश सवाद ौी विश जी कहत ह ldquoह रघकलभषण ौी राम अनथर ःवरप िजतन सासािरक पदाथर ह व सब जल म तरग क समान िविवध रप धारण करक चमतकार उतपनन करत ह अथारत ई छाए उतपनन करक जीव को मोह म फसात ह | परत जस सभी तरग जल ःवरप ही ह उसी कार सभी पदाथर वःततः न र ःवभाव वाल ह |

बालक की क पना स आकाश म य और िपशाच िदखन लगत ह परनत बि मान मनय क िलए उन य और िपशाच का कोई अथर नही | इसी कार अ ानी क िच म यह जगत सतय हो ऐसा लगता ह जबिक हमार जस ािनय क िलय यह जगत कछ भी नही | यह समम िव पतथर पर बनी हई पतिलय की सना की तरह रपालोक तथा अतर-बा िवषय स शनय ह | इसम सतयता कसी परनत अ ािनय को यह िव सतय लगता ह |rdquo विश जी बोल ldquoौी राम जगत को सतय ःवरप म जानना यह ाित ह मढ़ता ह | उस िमथया अथारत कि पत समझना यही उिचत समझ ह | ह राघव तव ा अहता आिद सब िवम-िवलास शात िशवःवरप श ःवरप ही ह | इसिलय मझ तो क अितिर और कछ भी नही िदखता | आकाश म जस जगल नही वस ही म जगत नही ह | ह राम ार ध वश ा कम स िजस परष की च ा कठपतली की तरह ई छाशनय और याकलतारिहत होती ह वह शानत मनवाला परष जीवनम मिन ह | ऐस जीवनम ानी को इस

जगत का जीवन बास की तरह बाहर-भीतर स शनय रसहीन और वासना-रिहत लगता ह | इस य पच म िजस रिच नही दय म िचनमाऽ अ य ही अ छा लगता ह ऐस परष न

भीतर तथा बाहर शािनत ा कर ली ह और इस भवसागर स पार हो गया ह | रघनदन श व ा कहत ह िक मन का ई छारिहत होना यही समािध ह कय िक ई छाओ का तयाग करन स मन को जसी शािनत िमलती ह ऐसी शािनत सकड़ उपदश स भी नही िमलती | ई छा की उतपि स जसा दःख ा होता ह ऐसा दःख तो नरक म भी नही | ई छाओ की शािनत

स जसा सख होता ह ऐसा सख ःवगर तो कया लोक म भी नही होता | अतः समःत शा तपःया यम और िनयम का िनचोड़ यही ह िक ई छामाऽ दःखदायी ह और ई छा का शमन मो ह | ाणी क दय म जसी-जसी और िजतनी-िजतनी ई छाय उतपनन होती ह उतना ही दख स वह

ड़रता रहता ह | िववक-िवचार ारा ई छाय जस-जस शानत होती जाती ह वस-वस दखरपी छत की बीमारी िमटती जाती ह |

आसि क कारण सासािरक िवषय की ई छाय य - य गहनीभत होती जाती ह तय -तय

दःख की िवषली तरग बढ़ती जाती ह | अपन परषाथर क बल स इस ई छारपी यािध का उपचार यिद नही िकया जाय तो इस यािध स छटन क िलय अनय कोई औषिध नही ह ऐसा म ढ़तापवरक

मानता ह | एक साथ सभी ई छाओ का स पणर तयाग ना हो सक तो थोड़ी-थोड़ी ई छाओ का धीर-धीर तयाग

करना चािहय परत रहना चािहय ई छा क तयाग म रत कय िक सनमागर का पिथक दखी नही होता | जो नराधम अपनी वासना और अहकार को ीण करन का य नही करता वह िदन -िदन अपन

को रावण की तरह अधर कऐ म ढ़कल रहा ह | ई छा ही दख की जनमदाऽी इस ससाररपी बल का बीज ह | यिद इस बीज को आतम ानरपी अि न स ठ क-ठ क जला िदया तो पनः यह अकिरत नही होता | रघकलभषण राम ई छामाऽ ससार ह और ई छाओ का अभाव ही िनवारण ह | अतः अनक कार की माथाप ची म ना पड़कर कवल ऐसा य करना चािहय िक ई छा उतपनन ना हो | अपनी बि स ई छा का िवनाश करन को जो ततपर नही ऐस अभाग को शा और गर का उपदश

भी कया करगा जस अपनी जनमभमी जगल म िहरणी की मतय िनि त ह उसी कार अनकिवध दख का िवःतार कारनवाल ई छारपी िवषय-िवकार स य इस जगत म मनय की मतय िनि त ह | यिद मानव ई छाओ क कारण ब च -सा मढ़ ना बन तो उस आतम ान क िलय अ प य ही करना पड़ | इसिलय सभी कार स ई छाओ को शानत करना चािहय | ई छा क शमन स परम पद की ाि होती ह | ई छारिहत हो जाना यही िनवारण ह और ई छाय

होना ही बधन ह | अतः यथाशि ई छा को जीतना चािहय | भला इतना करन म कया किठनाई ह जनम जरा यािध और मतयरपी कटीली झािड़य और खर क व - समह की जड़ भी ई छा ही ह

| अतः शमरपी अि न स अदर-ही-अदर बीज को जला ड़ालना चािहय| जहा ई छाओ का अभाव ह

वहा मि िनि त ह |

िववक वरा य आिद साधन स ई छा का सवरथा िवनाश करना चािहय | ई छा का सबध जहा-जहा ह वहा-वहा पाप प य दखरािशया और ल बी पीड़ाओ स य बधन को हािज़र ही समझो | परष

की आतिरक ई छा य - य शानत होती जाती ह तय -तय मो क िलय उसका क याणकारक

साधन बढ़ता जाता ह | िववकहीन ई छा को पोसना उस पणर करना यह तो ससाररपी िवष व को पानी स सीचन क समान ह |rdquo

- ौीयोगविश महारामायण

आतमबल का आवाहन कया आप अपन-आपको दबरल मानत हो लघतामथी म उलझ कर पिरिःतिथय स िपस रह हो

अपना जीवन दीन-हीन बना बठ हो hellipतो अपन भीतर सष आतमबल को जगाओ | शरीर चाह ी का हो चाह परष का कित क साा य म जो जीत ह व सब ी ह और कित क बनधन स पार अपन ःवरप की पहचान िजनह न कर ली ह अपन मन की गलामी की बिड़या तोड़कर िजनह न फ क दी ह व परष ह | ी या परष शरीर एव मानयताए होती ह | तम तो तन-मन स पार िनमरल आतमा हो | जागोhellipउठोhellipअपन भीतर सोय हय िन यबल को जगाओ | सवरदश सवरकाल म सव म

आतमबल को िवकिसत करो | आतमा म अथाह सामथयर ह | अपन को दीन-हीन मान बठ तो िव म ऐसी कोई स ा नही जो त ह ऊपर उठा सक | अपन आतमःवरप म िति त हो गय तो िऽलोकी म ऐसी कोई हःती नही जो त ह दबा सक | भौितक जगत म वाप की शि ईलकशोिनक शि िव त की शि गरतवाकषरण की शि बड़ी मानी जाती ह लिकन आतमबल उन सब शि य का सचालक बल ह | आतमबल क सािननधय म आकर पग ार ध को पर िमल जात ह दव की दीनता पलायन हो जाती ह ितकल पिरिःतिथया अनकल हो जाती ह | आतमबल सवर िरि -िसि य का िपता ह |

आतमबल कस जगाय हररोज़ तःकाल ज दी उठकर सय दय स पवर ःनानािद स िनवत हो जाओ | ःव छ पिवऽ ःथान

म आसन िबछाकर पवारिभमख होकर प ासन या सखासन म बठ जाओ | शानत और सनन वि

धारण करो | मन म ढ भावना करो िक म कित-िनिमरत इस शरीर क सब अभाव को पार करक सब

मिलनताओ-दबरलताओ स िप ड़ छड़ाकर आतमा की मिहमा म जागकर ही रहगा |

आख आधी खली आधी बद रखो | अब फ़फ़ड़ म खब ास भरो और भावना करो की ास क साथ

म सयर का िद य ओज भीतर भर रहा ह | ास को यथाशि अनदर िटकाय रखो | िफ़र lsquoॐhelliprsquo का ल बा उ चारण करत हए ास को धीर-धीर छोड़त जाओ | ास क खाली होन क बाद तरत ास ना लो | यथाशि िबना ास रहो और भीतर ही भीतर lsquoहिर ॐhelliprsquo lsquoहिर ॐhelliprsquo का मानिसक

जाप करो | िफ़र स फ़फ़ड़ म ास भरो | पव रीित स ास यथाशि अनदर िटकाकर बाद म धीर-धीर छोड़त हए lsquoॐhelliprsquo का गजन करो | दस-पिह िमनट ऐस ाणायाम सिहत उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo की धविन करक शानत हो जाओ | सब

यास छोड़ दो | वि य को आकाश की ओर फ़लन दो | आकाश क अनदर पथवी ह | पथवी पर अनक दश अनक समि एव अनक लोग ह | उनम स एक

आपका शरीर आसन पर बठा हआ ह | इस पर य को आप मानिसक आख स भावना स दखत

रहो | आप शरीर नही हो बि क अनक शरीर दश सागर पथवी मह न ऽ सयर चनि एव पर ा ड़ क

ा हो सा ी हो | इस सा ी भाव म जाग जाओ | थोड़ी दर क बाद िफ़र स ाणायाम सिहत lsquoॐhelliprsquo का जाप करो और शानत होकर अपन िवचार को दखत रहो | इस अवःथा म ढ़ िन य करो िक lsquoम जसा चहता ह वसा होकर रहगा |rsquo िवषयसख स ा धन-

दौलत इतयािद की इ छा न करो कय िक िन यबल या आतमबलरपी हाथी क पदिच म और सभी क पदिच समािव हो ही जायग | आतमानदरपी सयर क उदय होन क बाद िम टी क तल क दीय क ाकाश रपी शि सखाभास की गलामी कौन कर

िकसी भी भावना को साकार करन क िलय दय को करद ड़ाल ऐसी िन यातमक बिल वि होनी आवशयक ह | अनतःकरण क गहर-स-गहर दश म चोट कर ऐसा ाण भरक िन बल का आवाहन करो | सीना तानकर खड़ हो जाओ अपन मन की दीन-हीन दखद मानयताओ को कचल

ड़ालन क िलय | सदा ःमरण रह की इधर-उधर भटकती वि य क साथ त हारी शि भी िबखरती रहती ह | अतः वि य को बहकाओ नही | तमाम वि य को एकिऽत करक साधनाकाल म आतमिचनतन म लगाओ और यवहारकाल म जो कायर करत हो उसम लगाओ | द िच होकर हरक कायर करो | अपन ःवभाव म स आवश को सवरथा िनमरल कर दो | आवश म आकर कोई िनणरय मत लो कोई िबया मत करो | सदा शानत वि धारण करन का अ यास करो | िवचारशील एव सनन रहो | ःवय अचल रहकर सागर की तरह सब वि य की तरग को अपन

भीतर समालो | जीवमाऽ को अपना ःवरप समझो | सबस ःनह रखो | िदल को यापक रखो | सकिच ता का िनवारण करत रहो | ख ड़ातमक वि का सवरथा तयाग करो | िजनको ानी महापरष का सतसग और अधयातमिव ा का लाभ िमल जाता ह उसक जीवन स

दःख िवदा होन लगत ह | ॐ आननद आतमिन ा म जाग हए महापरष क सतसग एव सतसािहतय स जीवन को भि और वदात स प

एव पलिकत करो | कछ ही िदन क इस सघन योग क बाद अनभव होन लगगा िक भतकाल क

नकारतमक ःवभाव सशयातमक-हािनकारक क पनाओ न जीवन को कचल ड़ाला था िवषला कर िदया था | अब िन यबल क चमतकार का पता चला | अततरम म आिवरभत िद य खज़ाना अब

िमला | ार ध की बिड़या अब टटन लगी | ठ क ह न करोग ना िह मत पढ़कर रख मत दना इस पिःतका को | जीवन म इसको बार-बार पढ़त रहो | एक िदन म यह पणर ना होगा | बार-बार अ यास करो | त हार िलय यह एक ही पिःतका काफ़ी ह | अनय कचराप टी ना पड़ोग तो चलगा | शाबाश वीर शाबाश

  • परसतावना
  • जीवन रसायन
  • गर भकति एक अमोघ साधना
  • शरी राम-वशिषठ सवाद
  • आतमबल का आवाहन
  • आतमबल कस जगाय
Page 11: जीवन रसायन - HariOmGroup · ‘जीवन रसायन’ का यह िदय कटोरा आत्मरस के िपपासुओं हाथ

54) जब आपन यि तव िवषयक िवचार का सवरथा तयाग कर िदया जाता ह तब उसक समान

अनय कोई सख नही उसक समान ौ अनय कोई अवःथा नही | 55) जो लोग आपको सबस अिधक हािन पहचान का यास करत ह उन पर कपापणर होकर ममय िचतन कर | व आपक ही आतमःवरप ह | 56) ससार म कवल एक ही रोग ह | सतय जगिनमथया - इस वदाितक िनयम का भग ही सवर यािधय का मल ह | वह कभी एक दख का रप लता ह तो कभी दसर दख का | इन सवर यािधय

की एक ही दवा ह अपन वाःतिवक ःवरप तव म जाग जाना | 57) ब धयानःथ बठ थ | पहाड़ पर स एक िशलाखड़ लढ़कता हआ आ रहा था | ब पर िगर इसस पहल ही वह एक दसर िशलाखड़ क साथ टकराया | भयकर आवाज़ क साथ उसक दो भाग

हो गय | उसन अपना मागर बदल िलया | धयानःथ ब की दोन तरफ़ स दोन भाग गज़र गय |

ब बच गय | कवल एक छोटा सा ककड़ उनक पर म लगा | पर स थोड़ा खन बहा | ब ःवःथता स उठ खड़ हए और िशय स कहा ldquoभी ओ स यक समािध का यह वलत माण ह | म यिद धयान-समािध म ना होता तो िशलाखड़ न मझ कचल िदया होता | लिकन ऐसा ना होकर उसक दो भाग हो गय | उसम स िसफ़र एक छोटा-सा ककड़ ऊछलकर मर पर म लगा | यह जो छोटा-सा ज़ म हआ ह वह धयान की पणरता म रही हई कछ नयनता का पिरणाम ह | यिद धयान पणर होता तो इतना भी ना लगता |rdquo 58) कहा ह वह तलवार जो मझ मार सक कहा ह वह श जो मझ घायल कर सक कहा ह वह

िवपि जो मरी सननता को िबगाड़ सक कहा ह वह दख जो मर सख म िव न ड़ाल सक मर सब भय भाग गय | सब सशय कट गय | मरा िवजय-ाि का िदन आ पहचा ह | कोई ससािरक

तरग मर िनछल िच को आदोिलत नही कर सकती | इन तरग स मझ ना कोई लाभ ह ना हािन

ह | मझ शऽ स ष नही िमऽ स राग नही | मझ मौत का भय नही नाश का ड़र नही जीन की वासना नही सख की इ छा नही और दख स ष नही कय िक यह सब मन म रहता ह और मन

िमथया क पना ह | 59) स पणर ःवाःथय की अजीब यि रोज सबह तलसी क पाच प चबाकर एक लास बासी पानी पी लो | िफ़र जरा घम लो दौड़ लो या कमर म ही पज क बल थोड़ा कद लो | नहा-धोकर ःवःथ शानत होकर एकात म बठ जाओ | दस बारह गहर-गहर ास लो | आग-पीछ क कतर य

स िनि त हो जाओ | आरो यता आनद सख शािनत दान करनवाली िवचारधारा को िच म बहन दो | िबमारी क िवचार को हटाकर इस कार की भावना पर मन को ढ़ता स एकाम करो िक

मर अदर आरो यता व आनद का अनत ोत वािहत हो रहा हhellip मर अतराल म िद यामत का महासागर लहरा रहा ह | म अनभव कर रहा ह िक समम सख आरो यता शि मर भीतर ह | मर मन म अननत शि और सामथयर ह | म ःवःथ ह | पणर सनन ह | मर अदर-बाहर सवरऽ

परमातमा का काश फ़ला हआ ह | म िव प रिहत ह | सब नद स म ह | ःवग य सख मर अदर ह | मरा दय परमातमा का ग दश ह | िफ़र रोग-शोक वहा कस रह सकत ह म दवी ओज क मड़ल म िव हो चका ह | वह मर ःवाःथय का दश ह | म तज का पज ह | आरो यता का अवतार ह | याद रखो आपक अतःकरण म ःवाःथय सख आनद और शािनत ई रीय वरदान क रप म िव मान ह | अपन अतःकरण की आवाज़ सनकर िनशक जीवन यतीत करो | मन म स कि पत

रोग क िवचार को िनकाल दो | तयक िवचार भाव श द और कायर को ई रीय शि स पिरपणर रखो | ॐकार का सतत गजन करो | सबह-शाम उपरो िवचार का िचतन-मनन करन स िवशष लाभ होगा | ॐ आनदhellip ॐ शाितhellip

पणर ःवःथhellip पणर सननhellip 60) भय कवल अ ान की छाया ह दोष की काया ह मनय को धमरमागर स िगरान वाली आसरी माया ह | 61) याद रखो चाह समम ससार क तमाम पऽकार िननदक एकिऽत होकर आपक िवरध

आलोचन कर िफ़र भी आपका कछ िबगाड़ नही सकत | ह अमर आतमा ःवःथ रहो | 62) लोग ायः िजनस घणा करत ह ऐस िनधरन रोगी इतयािद को सा ात ई र समझकर उनकी सवा करना यह अननय भि एव आतम ान का वाःतिवक ःवरप ह | 63) रोज ातः काल उठत ही ॐकार का गान करो | ऐसी भावना स िच को सराबोर कर दो िक

lsquoम शरीर नही ह | सब ाणी कीट पतग गनधवर म मरा ही आतमा िवलास कर रहा ह | अर उनक

रप म म ही िवलास कर रहा ह | rsquo भया हर रोज ऐसा अ यास करन स यह िस ात दय म िःथर हो जायगा | 64) मी आग-पीछ का िचनतन नही करता | वह न तो िकसी आशका स भयभीत होता ह और न

व रमान पिरिःथित म माःपद म ीित क िसवाय अनय कही आराम पाता ह |

65) जस बालक ितिब ब क आौयभत दपरण की ओर धयान न दकर ितिब ब क साथ खलता ह जस पामर लोग यह समम ःथल पच क आौयभत आकाश की ओर धयान न दकर कवल

ःथल पच की ओर धयान दत ह वस ही नाम-रप क भ ःथल ि क लोग अपन दभार य क

कारण समम ससार क आौय सि चदाननद परमातमा का धयान न करक ससार क पीछ पागल

होकर भटकत रहत ह | 66) इस स पणर जगत को पानी क बलबल की तरह णभगर जानकर तम आतमा म िःथर हो जाओ | तम अ त ि वाल को शोक और मोह कस 67) एक आदमी आपको दजरन कहकर पिरि छनन करता ह तो दसरा आपको स जन कहकर भी पिरि छनन ही करता ह | कोई आपकी ःतित करक फला दता ह तो कोई िननदा करक िसकड़ा दता ह | य दोन आपको पिरि छनन बनात ह | भा यवान तो वह परष ह जो तमाम बनधन क िवर

खड़ा होकर अपन दवतव की अपन ई रतव की घोषणा करता ह अपन आतमःवरप का अनभव

करता ह | जो परष ई र क साथ अपनी अभदता पहचान सकता ह और अपन इदरिगदर क लोग क

सम समम ससार क सम िनडर होकर ई रतव का िनरपण कर सकता ह उस परष को ई र मानन क िलय सारा ससार बाधय हो जाता ह | परी सि उस अवय परमातमा मानती ह | 68) यह ःथल भौितक पदाथर इिनिय की ाित क िसवाय और कछ नही ह | जो नाम व रप पर भरोसा रखता ह उस सफलता नही िमलती | सआम िस ात अथारत सतय आतम-ततव पर िनभरर रहना ही सफलता की कजी ह | उस महण करो उसका मनन करो और यवहार करो | िफर नाम-

रप आपको खोजत िफरग | 69) सख का रहःय यह ह आप य - य पदाथ को खोजत-िफरत हो तय -तय उनको खोत

जात हो | आप िजतन कामना स पर होत हो उतन आवयकताओ स भी पर हो जात हो और पदाथर भी आपका पीछा करत हए आत ह | 70) आननद स ही सबकी उतपि आननद म ही सबकी िःथित एव आननद म ही सबकी लीनता दखन स आननद की पणरता का अनभव होता ह | 71) हम बोलना चहत ह तभी श दो चारण होता ह बोलना न चाह तो नही होता | हम दखना चाह तभी बाहर का य िदखता ह नऽ बद कर ल तो नही िदखता | हम जानना चाह तभी पदाथर का ान होता ह जानना नही चाह तो ान नही होता | अतः जो कोई पदाथर दखन सनन या जानन म

आता ह उसको बािधत करक बािधत करनवाली ानरपी बि की वि को भी बािधत कर दो | उसक बाद जो शष रह वह ाता ह | ाततव धमररिहत श ःवरप ाता ही िनतय सि चदाननद

ह | िनरतर ऐसा िववक करत हए ान व यरिहत कवल िचनमय िनतय िव ानाननदघनरप

म िःथर रहो | 72) यिद आप सवागपणर जीवन का आननद लना चाहत हो तो कल की िचनता छोड़ो | अपन चार

ओर जीवन क बीज बोओ | भिवय म सनहर ःवपन साकार होत दखन की आदत बनाओ | सदा क

िलय मन म यह बात पककी बठा दो िक आपका आनवाला कल अतयनत काशमय आननदमय

एव मधर होगा | कल आप अपन को आज स भी अिधक भा यवान पायग | आपका मन

सजरनातमक शि स भर जायगा | जीवन ऐ यरपणर हो जायगा | आपम इतनी शि ह िक िव न

आपस भयभीत होकर भाग खड़ ह ग | ऐसी िवचारधारा स िनि त रप स क याण होगा | आपक

सशय िमट जायग | 73) ओ मानव त ही अपनी चतना स सब वःतओ को आकषरक बना दता ह | अपनी यार भरी ि उन पर डालता ह तब तरी ही चमक उन पर चढ़ जाती ह औरhellipिफर त ही उनक यार म फ़स जाता ह | 74) मन िविचऽ एव अटपट माग ारा ऐस ततव की खोज की जो मझ परमातमा तक पहचा सक | लिकन म िजस-िजस नय मागर पर चला उन सब माग स पता चला िक म परमातमा स दर चला गया | िफर मन बि म ा एव िव ा स परमातमा की खोज की िफर भी परमातमा स अलग रहा | मनथालय एव िव ालय न मर िवचार म उ टी गड़बड़ कर दी | म थककर बठ गया | िनःत ध हो गया | सयोगवश अपन भीतर ही झाका धयान िकया तो उस अनत रि स मझ सवरःव िमला िजसकी खोज म बाहर कर रहा था | मरा आतमःवरप सवरऽ या हो रहा ह | 75) जस सामानय मनय को पतथर गाय भस ःवाभािवक रीित स ि गोचर होत ह वस ही ानी को िनजाननद का ःवाभािवक अनभव होता ह | 76) वदानत का यह अनभव ह िक नीच नराधम िपशाच शऽ कोई ह ही नही | पिवऽ ःवरप ही सवर रप म हर समय शोभायमान ह | अपन-आपका कोई अिन नही करता |

मर िसवा और कछ ह ही नही तो मरा अिन करन वाला कौन ह मझ अपन-आपस भय कसा 77) यह चराचर सि रपी त तब तक भासता ह जब तक उस दखनवाला मन बठा ह |

मन शात होत ही त की गध तक नही रहती |

78) िजस कार एक धाग म उ म मधयम और किन फल िपरोय हए ह उसी कार मर आतमःवरप म उ म मधयम और किन शरीर िपरोय हए ह | जस फल की गणव ा का भाव धाग पर नही पड़ता वस ही शरीर की गणव ा का भाव मरी सवर यापकता नही पड़ता | जस सब फल क िवनाश स धाग को कोई हािन नही वस शरीर क िवनाश स मझ सवरगत आतमा को कोई हािन नही होती | 79) म िनमरल िन ल अननत श अजर अमर ह | म असतयःवरप दह नही | िस परष इसीको lsquo ानrsquo कहत ह | 80) म भी नही और मझस अलग अनय भी कछ नही | सा ात आननद स पिरपणर कवल िनरनतर और सवरऽ एक ही ह | उ ग छोड़कर कवल यही उपासना सतत करत रहो | 81) जब आप जान लग िक दसर का िहत अपना ही िहत करन क बराबर ह और दसर का अिहत करना अपना ही अिहत करन क बराबर ह तब आपको धमर क ःवरप का सा तकार हो जायगा | 82) आप आतम-ित ा दलबनदी और ईयार को सदा क िलए छोड़ दो | पथवी माता की तरह सहनशील हो जाओ | ससार आपक कदम म नयोछावर होन का इतज़ार कर रहा ह | 83) म िनगरण िनिबय िनतय म और अ यत ह | म असतयःवरप दह नही ह | िस परष इसीको lsquo ानrsquo कहत ह | 84) जो दसर का सहारा खोजता ह वह सतयःवरप ई र की सवा नही कर सकता | 85) सतयःवरप महापरष का म सख-दःख म समान रहता ह सब अवःथाओ म हमार अनकल रहता ह | दय का एकमाऽ िवौामःथल वह म ह | व ावःथा उस आतमरस को सखा नही सकती | समय बदल जान स वह बदलता नही | कोई िवरला भा यवान ही ऐस िद य म का भाजन बन सकता ह | 86) शोक और मोह का कारण ह ािणय म िविभनन भाव का अधयारोप करना | मनय जब एक को सख दनवाला यारा स द समझता ह और दसर को दःख दनवाला शऽ समझकर उसस ष करता ह तब उसक दय म शोक और मोह का उदय होना अिनवायर

ह | वह जब सवर ािणय म एक अख ड स ा का अनभव करन लगगा ािणमाऽ को भ का पऽ समझकर उस आतमभाव स यार करगा तब उस साधक क दय म शोक और मोह का नामोिनशान नही रह जायगा | वह सदा सनन रहगा | ससार म उसक िलय न ही कोई शऽ रहगा और न ही कोई िमऽ | उसको कोई कलश नही पहचायगा | उसक सामन िवषधर नाग भी अपना ःवभाव भल जायगा | 87) िजसको अपन ाण की परवाह नही मतय का नाम सनकर िवचिलत न होकर उसका ःवागत करन क िलए जो सदा ततपर ह उसक िलए ससार म कोई कायर असाधय नही | उस िकसी बा श की जररत नही साहस ही उसका श ह | उस श स वह अनयाय का प लनवाल को परािजत कर दता ह िफर भी उनक िलए बर िवचार का सवन नही करता | 88) िचनता ही आननद व उ लास का िवधवस करनवाली रा सी ह | 89) कभी-कभी मधयरािऽ को जाग जाओ | उस समय इिनिया अपन िवषय क ित चचल नही रहती | बिहमरख ःफरण की गित मनद होती ह | इस अवःथा का लाभ लकर इिनियातीत अपन िचदाकाश ःवरप का अनभव करो | जगत शरीर व इिनिय क अभाव म भी अपन अख ड अिःततव को जानो | 90) य म ीित नही रहना ही असली वरा य ह | 91) रोग हम दबाना चाहता ह | उसस हमार िवचार भी मनद हो जात ह | अतः रोग की िनवित करनी चिहए | लिकन जो िवचारवान परष ह वह कवल रोगिनवित क पीछ ही नही लग जाता | वह तो यह िनगरानी रखता ह िक भयकर दःख क समय भी अपना िवचार छट तो नही गया ऐसा परष lsquoहाय-हायrsquo करक ाण नही तयागता कय िक वह जानता ह िक रोग उसका दास ह | रोग कसा भी भय िदखाय लिकन िवचारवान परष इसस भािवत नही होता | 92) िजस साधक क पास धारणा की ढ़ता एव उ य की पिवऽता य दो गण ह ग वह अवय िवजता होगा | इन दो शा स ससि जत साधक समःत िव न-बाधाओ का सामना करक आिखर म िवजयपताका फहरायगा | 93) जब तक हमार मन म इस बात का पकका िन य नही होगा िक सि शभ ह तब तक मन एकाम नही होगा | जब तक हम समझत रहग िक सि िबगड़ी हई ह तब तक

मन सशक ि स चार ओर दौड़ता रहगा | सवरऽ मगलमय ि रखन स मन अपन-आप शात होन लगगा | 94) आसन िःथर करन क िलए सक प कर िक जस पथवी को धारण करत हए भी शषजी िब कल अचल रहत ह वस म भी अचल रहगा | म शरीर और ाण का ा ह | 95) lsquoससार िमथया हrsquo - यह मद ानी की धारणा ह | lsquoससार ःव नवत हrsquo - यह मधयम ानी की धारणा ह | lsquoससार का अतयनत अभाव ह ससार की उतपि कभी हई ही नहीrsquo -

यह उ म ानी की धारणा ह | 96) आप यिद भि मागर म ह तो सारी सि भगवान की ह इसिलए िकसीकी भी िननदा करना ठ क नही | आप यिद ानमागर म ह तो यह सि अपना ही ःवरप ह | आप अपनी ही िननदा कस कर सकत ह इस कार द नो माग म परिननदा का अवकाश ही नही ह | 97) य म ा का भान एव ा म य का भान हो रहा ह | इस गड़बड़ का नाम ही अिववक या अ ान ह | ा को ा तथा य को य समझना ही िववक या ान ह | 98) आसन व ाण िःथर होन स शरीर म िव त पदा होती ह | शरीर क ारा जब भी िबया की जाती ह तब वह िव त बाहर िनकल जाती ह | इस िव त को शरीर म रोक लन स शरीर िनरोगी बन जाता ह | 99) ःव न की सि अ पकालीन और िविचऽ होती ह | मनय जब जागता ह तब जानता ह िक म पलग पर सोया ह | मझ ःव न आया | ःव न म पदाथर दश काल िबया इतयािद परी सि का सजरन हआ | लिकन मर िसवाय और कछ भी न था | ःव न की सि झठ थी | इसी कार ततव ानी परष अ ानरपी िनिा स ानरपी जामत अवःथा को ा हए ह | व कहत ह िक एक क िसवा अनय कछ ह ही नही | जस ःव न स जागन क बाद हम ःव न की सि िमथया लगती ह वस ही ानवान को यह जगत िमथया लगता ह | 100) शारीिरक क पड़ तब ऐसी भावना हो जाय िक lsquoयह क मर यार भ की ओर स हhelliprsquo तो वह क तप का फल दता ह | 101) चलत-चलत पर म छाल पड़ गय ह भख याकल कर रही हो बि िवचार

करन म िशिथल हो गई हो िकसी पड़ क नीच पड़ ह जीवन अस भव हो रहा हो मतय का आगमन हो रहा हो तब भी अनदर स वही िनभरय धविन उठ lsquoसोऽहमhellipसोऽहमhellipमझ भय नहीhellipमरी मतय नहीhellipमझ भख नहीhellip यास नहीhellip कित की कोई भी यथा मझ न नही कर सकतीhellipम वही हhellipवही हhelliprsquo 102) िजनक आग िय-अिय अनकल-ितकल सख-दःख और भत-भिवय एक समान ह ऐस ानी आतमव ा महापरष ही स च धनवान ह | 103) दःख म दःखी और सख म सखी होन वाल लोह जस होत ह | दःख म सखी रहन वाल सोन जस होत ह | सख-दःख म समान रहन वाल र जस होत ह परनत जो सख-दःख की भावना स पर रहत ह व ही स च साट ह | 104) ःव न स जाग कर जस ःव न को भल जात ह वस जामत स जागकर थोड़ी दर क

िलए जामत को भल जाओ | रोज ातः काल म पनिह िमनट इस कार ससार को भल जान की आदत डालन स आतमा का अनसधान हो सकगा | इस योग स सहजावःथा ा होगी | 105) तयाग और म स यथाथर ान होता ह | दःखी ाणी म तयाग व म िवचार स आत ह

| सखी ाणी म तयाग व म सवा स आत ह कय िक जो ःवय दःखी ह वह सवा नही कर सकता पर िवचार कर सकता ह | जो सखी ह वह सख म आस होन क कारण उसम िवचार का उदय नही हो सकता लिकन वह सवा कर सकता ह | 106) लोग की पजा व णाम स जसी सननता होती ह वसी ही सननता जब मार पड़

तब भी होती हो तो ही मन य िभ ानन महण करन का स चा अिधकारी माना जाता ह | 107) हरक साधक को िब कल नय अनभव की िदशा म आग बढ़ना ह | इसक िलय

ानी महातमा की अतयनत आवयकता होती ह | िजसको स ची िज ासा हो उस ऐस

महातमा िमल ही जात ह | ढ़ िज ासा स िशय को गर क पास जान की इ छा होती ह | यो य

िज ास को समथर गर ःवय दशरन दत ह | 108) बीत हए समय को याद न करना भिवय की िचनता न करना और व रमान म ा

सख-दःखािद म सम रहना य जीवनम परष क ल ण ह | 109) जब बि एव दय एक हो जात ह तब सारा जीवन साधना बन जाता ह |

110) बि मान परष ससार की िचनता नही करत लिकन अपनी मि क बार म सोचत ह |

मि का िवचार ही तयागी दानी सवापरायण बनाता ह | मो की इ छा स सब सदगण आ जात ह

| ससार की इ छा स सब दगरण आ जात ह | 111) पिरिःथित िजतनी किठन होती ह वातावरण िजतना पीड़ाकारक होता ह उसस

गजरन वाला उतना ही बलवान बन जाता ह | अतः बा क और िचनताओ का ःवागत करो | ऐसी पिरिःथित म भी वदानत को आचरण म लाओ | जब आप वदानती जीवन यतीत करग तब दखग

िक समःत वातावरण और पिरिःथितया आपक वश म हो रही ह आपक िलय उपयोगी िस हो रही ह | 112) हरक पदाथर पर स अपन मोह को हटा लो और एक सतय पर एक तथय पर अपन

ई र पर समम धयान को किनित करो | तरनत आपको आतम-सा ातकार होगा | 113) जस बड़ होत-होत बचपन क खलकद छोड़ दत हो वस ही ससार क खलकद छोड़कर आतमाननद का उपभोग करना चािहय | जस अनन व जल का सवन करत हो वस ही आतम-

िचनतन का िनरनतर सवन करना चािहय | भोजन ठ क स होता ह तो ति की डकार आती ह वस

ही यथाथर आतमिचनतन होत ही आतमानभव की डकार आयगी आतमाननद म मःत ह ग |

आतम ान क िसवा शाित का कोई उपाय नही | 114) आतम ानी क हकम स सयर काशता ह | उनक िलय इनि पानी बरसाता ह | उनही क

िलय पवन दत बनकर गमनागमन करता ह | उनही क आग समि रत म अपना िसर रगड़ता ह | 115) यिद आप अपन आतमःवरप को परमातमा समझो और अनभव करो तो आपक सब

िवचार व मनोरथ सफल ह ग उसी ण पणर ह ग | 116) राजा-महाराजा दवी-दवता वद-पराण आिद जो कछ ह व आतमदश क सक पमाऽ

ह | 117) जो लोग ितकलता को अपनात ह ई र उनक स मख रहत ह | ई र िजनह अपन

स दर रखना चाहत ह उनह अनकल पिरिःथितया दत ह | िजसको सब वःतए अनकल एव पिवऽ

सब घटनाए लाभकारी सब िदन शभ सब मनय दवता क रप म िदखत ह वही परष ततवदश ह | 118) समता क िवचार स िच ज दी वश म होता ह हठ स नही |

119) ऐस लोग स स बनध रखो िक िजसस आपकी सहनशि बढ़ समझ की शि बढ़

जीवन म आन वाल सख-दःख की तरग का आपक भीतर शमन करन की ताकत आय समता बढ़

जीवन तजःवी बन | 120) लोग बोलत ह िक धयान व आतमिचनतन क िलए हम फरसत नही िमलती | लिकन

भल मनय जब नीद आती ह तब सब महतवपणर काम भी छोड़कर सो जाना पड़ता ह िक नही

जस नीद को महतव दत हो वस ही चौबीस घनट म स कछ समय धयान व आतमिचनतन म भी िबताओ | तभी जीवन साथरक होगा | अनयथा कछ भी हाथ नही लगगा | 121) भल जाओ िक तम मनय हो अमक जाित हो अमक उ हो अमक िड़मीवाल हो अमक धनधवाल हो | तम िनगरण िनराकार सा ीरप हो ऐसा ढ़ िन य करो | इसीम तमाम

कार की साधनाए िबयाए योगािद समािव हो जात ह | आप सवर यापक अख ड चतनय हो | सार ान का यह मल ह | 122) दोष तभी िदखता जब हमार लोचन म क अभावरप पीिलया रोग स मःत होत ह | 123) साधक यिद अ यास क मागर पर उसी कार आग बढ़ता जाय िजस कार ार भ

म इस मागर पर चलन क िलए उतसाहपवरक कदम रखा था तो आयरपी सयर अःत होन स पहल

जीवनरपी िदन रहत ही अवय सोऽहम िसि क ःथान तक पहच जाय | 124) लोग ज दी स उननित कय नही करत कय िक बाहर क अिभाय एव िवचारधाराओ का बहत बड़ा बोझ िहमालय की तरह उनकी पीठ पर लदा हआ ह | 125) अपन ित होन वाल अनयाय को सहन करत हए अनयायकतार को यिद मा कर िदया जाय तो ष म म पिरणत हो जाता ह | 126) साधना की शरआत ौ ा स होती ह लिकन समाि ान स होनी चािहय | ान मान

ःवयसिहत सवर ःवरप ह ऐसा अपरो अनभव | 127) अपन शरीर क रोम-रोम म स ॐ का उ चारण करो | पहल धीम ःवर म ार भ

करो | शर म धविन गल स िनकलगी िफर छाती स िफर नािभ स और अनत म रीढ़ की ह डी क

आिखरी छोर स िनकलगी | तब िव त क धकक स सष ना नाड़ी तरनत खलगी | सब कीटाणसिहत

तमाम रोग भाग खड़ ह ग | िनभरयता िह मत और आननद का फ वारा छटगा | हर रोज ातःकाल

म ःनानािद करक सय दय क समय िकसी एक िनयत ःथान म आसन पर पवारिभमख बठकर

कम-स-कम आधा घनटा करक तो दखो | 128) आप जगत क भ बनो अनयथा जगत आप पर भतव जमा लगा | ान क

मतािबक जीवन बनाओ अनयथा जीवन क मतािबक ान हो जायगा | िफर यग की याऽा स भी दःख का अनत नही आयगा | 129) वाःतिवक िश ण का ारभ तो तभी होता ह जब मनय सब कार की सहायताओ स िवमख होकर अपन भीतर क अननत ॐोत की तरफ अमसर होता ह | 130) य पच की िनवित क िलए अनतःकरण को आननद म सरोबार रखन क िलए

कोई भी कायर करत समय िवचार करो म कौन ह और कायर कौन कर रहा ह भीतर स जवाब

िमलगा मन और शरीर कायर करत ह | म सा ीःवरप ह | ऐसा करन स कतारपन का अह

िपघलगा सख-दःख क आघात मनद ह ग | 131) राग- ष की िनवित का कया उपाय ह उपाय यही ह िक सार जगत-पच को मनोरा य समझो | िननदा-ःतित स राग- ष स पच म सतयता ढ़ होती ह | 132) जब कोई खनी हाथ आपकी गरदन पकड़ ल कोई श धारी आपको कतल करन क

िलए ततपर हो जाय तब यिद आप उसक िलए सननता स तयार रह दय म िकसी कार का भय

या िवषाद उतपनन न हो तो समझना िक आपन राग- ष पर िवजय ा कर िलया ह | जब आपकी ि पड़त ही िसहािद िहसक जीव की िहसावित गायब हो जाय तब समझना िक अब राग- ष का अभाव हआ ह | 133) आतमा क िसवाय अनय कछ भी नही ह - ऐसी समझ रखना ही आतमिन ा ह | 134) आप ःव न ा ह और यह जगत आपका ही ःव न ह | बस िजस ण यह ान हो जायगा उसी ण आप म हो जाएग | 135) िदन क चौबीस घ ट को साधनामय बनान क िलय िनक मा होकर यथर िवचार करत हए मन को बार-बार सावधान करक आतमिचतन म लगाओ | ससार म सल न मन को वहा स उठा कर आतमा म लगात रहो | 136) एक बार सागर की एक बड़ी तरग एक बलबल की िता पर हसन लगी | बलबल न

कहा ओ तरग म तो छोटा ह िफर भी बहत सखी ह | कछ ही दर म मरी दह टट जायगी िबखर

जायगी | म जल क साथ जल हो जाऊगा | वामन िमटकर िवराट बन जाऊगा | मरी मि बहत

नजदीक ह | मझ आपकी िःथित पर दया आती ह | आप इतनी बड़ी हई हो | आपका छटकारा ज दी नही होगा | आप भाग-भागकर सामनवाली च टान स टकराओगी | अनक छोटी-छोटी तरग

म िवभ हो जाओगी | उन अस य तरग म स अननत-अननत बलबल क रप म पिरवितरत हो जाओगी | य सब बलबल फटग तब आपका छटकारा होगा | बड़ पन का गवर कय करती हो जगत की उपलि धय का अिभमान करक परमातमा स दर मत जाओ | बलबल की तरह सरल

रहकर परमातमा क साथ एकता का अनभव करो | 137) जब आप ईयार ष िछिानवषण दोषारोपण घणा और िननदा क िवचार िकसीक

ित भजत ह तब साथ-ही-साथ वस ही िवचार को आमिऽत भी करत ह | जब आप अपन भाई की आख म ितनका भ कत ह तब अपनी आख म भी आप ताड़ भ क रह ह | 138) शरीर अनक ह आतमा एक ह | वह आतमा-परमातमा मझस अलग नही | म ही कतार सा ी व नयायधीश ह | म ही ककर श आलोचक ह और म ही मधर शसक ह | मर िलय तयक

यि ःवतऽ व ःव छनद ह | बनधन पिरि छननता और दोष मरी ि म आत ही नही | म म

हपरम म ह और अनय लोग भी ःवतऽ ह | ई र म ही ह | आप भी वही हो | 139) िजस कार बालक अपनी परछा म बताल की क पना कर भय पाता ह उसी कार जीव अपन ही सक प स भयभीत होता ह और क पाता ह | 140) कभी-कभी ऐसी भावना करो िक आपक सामन चतनय का एक महासागर लहरा रहा ह | उसक िकनार खड़ रह कर आप आनद स उस दख रह ह | आपका शरीर सागर की सतह पर घमन गया ह | आपक दखत ही दखत वह सागर म डब गया | इस समःत पिरिःथित को दखन वाल आप सा ी आतमा शष रहत ह | इस कार सा ी रप म अपना अनभव करो | 141) यिद हम चाहत ह िक भगवान हमार सब अपराध माफ कर तो इसक िलए सगम साधना यही ह िक हम भी अपन सबिधत सब लोग क सब अपराध माफ कर द |

कभी िकसी क दोष या अपराध पर ि न डाल कय िक वाःतव म सब रप म हमारा यारा ई दव ही बीड़ा कर रहा ह |

142) पणर पिवऽता का अथर ह बा भाव स भािवत न होना | सासािरक मनोहरता एव घणा स पर रहना राजी-नाराजगी स अिवचल िकसी म भद न दखना और आतमानभव क ारा आकषरण व तयाग स अिल रहना | यही वदानत का उपिनषद का

रहःय ह | 143) ई र सा ातकार तभी होगा जब ससार की ि स तीत होन वाल बड़-स-बड़ विरय को भी मा करन का आपका ःवभाव बन जायगा | 144) चाल यवहार म स एकदम उपराम होकर दो िमनट क िलए िवराम लो |

सोचो िक lsquo म कौन ह सद -गम शरीर को लगती ह | भख- यास ाण को लगती ह |

अनकलता-ितकलता मन को लगती ह | शभ-अशभ एव पाप-प य का िनणरय बि करती ह | म न शरीर ह न ाण ह न मन ह न बि ह | म तो ह इन सबको स ा दन वाला इन सबस नयारा िनलप आतमा |rsquo 145) जो मनय िनरतर lsquoम म हhelliprsquo ऐसी भावना करता ह वह म ही ह और lsquoम ब हhelliprsquo ऐसी भावना करनवाला ब ही ह | 146) आप िनभरय ह िनभरय ह िनभरय ह | भय ही मतय ह | भय ही पाप ह | भय ही नकर ह | भय ही अधमर ह | भय ही यिभचार ह | जगत म िजतन असत या िमथया भाव ह व सब इस भयरपी शतान स पदा हए ह | 147) परिहत क िलए थोड़ा काम करन स भी भीतर की शि या जागत होती ह |

दसर क क याण क िवचारमाऽ स दय म एक िसह क समान बल आ जाता ह | 148) हम यिद िनभरय ह ग तो शर को भी जीतकर उस पाल सक ग | यिद डरग तो क ा भी हम फ़ाड़ खायगा | 149) तयक िबया तयक यवहार तयक ाणी ःवरप िदख यही सहज समािध ह | 150) जब किठनाईया आय तब ऐसा मानना िक मझ म सहन शि बढ़ान क िलए ई र न य सयोग भज ह | किठन सयोग म िह मत रहगी तो सयोग बदलन लगग |

िवषय म राग- ष रह गया होगा तो वह िवषय कसौटी क रप म आग आयग और उनस पार होना पड़गा | 151) ततव ि स न तो आपन जनम िलया न कभी लग | आप तो अनत ह सवर यापी ह िनतयम अजर-अमर अिवनाशी ह | जनम-मतय का ही गलत ह महा-

मखरतापणर ह | जहा जनम ही नही हआ वहा मतय हो ही कस सकती ह 152) आप ही इस जगत क ई र हो | आपको कौन दबरल बना सकता ह जगत म आप ही एकमाऽ स ा हो | आपको िकसका भय खड़ हो जाओ | म हो जाओ | ठ क स समझ लो िक जो कोई िवचार या श द आपको दबरल बनाता ह वही एकमाऽ अशभ ह | मनय को दबरल व भयभीत करनवाला जो कछ इस ससार म ह वह पाप ह | 153) आप अपना कायर या कतर य करो लिकन न उसक िलए कोई िचनता रह न ही कोई

इ छा | अपन कायर म सख का अनभव करो कय िक आपका कायर ःवय सख या िवौाम ह | आपका कायर आतमानभव का ही दसरा नाम ह | कायर म लग रहो | कायर आपको आतमानभव कराता ह |

िकसी अनय हत स कायर न करो | ःवतऽ वि स अपन कायर पर डट जाओ | अपन को ःवतऽ

समझो िकसीक कदी नही | 154) यिद आप सतय क मागर स नही हटत तो शि का वाह आपक साथ ह समय आपक

साथ ह ऽ आपक साथ ह | लोग को उनक भतकाल की मिहमा पर फलन दो भिवयकाल की स पणर मिहमा आपक हाथ म ह | 155) जब आप िद य म क साथ चा डाल म चोर म पापी म अ यागत म और सबम भ क दशरन करग तब आप भगवान ौी कण क मपाऽ बन जायग | 156) आचायर गौड़पाद न ःप कहा आप सब आपस म भल ही लड़त रह लिकन मर साथ नही लड़ सक ग | आप सब लोग मर पट म ह | म आतमःवरप स सवर या ह | 157) मनय सभी ािणय म ौ ह सब दवताओ स भी ौ ह | दवताओ को भी िफर स

धरती पर आना पड़गा और मनय शरीर ा करक मि ा करनी होगी | 158) िनि नतता क दो सऽ जो कायर करना जररी ह उस परा कर दो | जो िबनजररी ह

उस भल जाओ | 159) सवा-म-तयाग ही मनय क िवकास का मल मऽ ह | अगर यह मऽ आपको जच

जाय तो सभी क ित सदभाव रखो और शरीर स िकसी-न-िकसी यि को िबना िकसी मतलब क

सहयोग दत रहो | यह नही िक जब मरी बात मानग तब म सवा करगा | अगर बनधक मरी बात

नही मानत तो म सवा नही करगा |

भाई तब तो तम सवा नही कर पाओग | तब तो तम अपनी बात मनवा कर अपन अह की पजा ही

करोग | 160) जस ःव न िमथया ह वस ही यह जामत अवःथा भी ःव नवत ही ह िमथया ह | हरक

को अपन इस ःव न स जागना ह | सदगर बार-बार जगा रह ह लिकन जाग कर वापस सो न जाए ऐसा परषाथर तो हम ही करना होगा | 161) सदा सननमख रहो | मख को कभी मिलन मत करो | िन य कर लो िक आपक

िलय शोक न इस जगत म जनम नही िलया ह | आननदःवरप म िचनता का ःथान ही कहा ह 162) समम ा ड एक शरीर ह | समम ससार एक शरीर ह | जब तक आप तयक क

साथ एकता का अनभव करत रहग तब तक सब पिरिःथितया और आस-पास की चीज़ हवा और समि की लहर भी आपक प म रहगी | 163) आपको जो कछ शरीर स बि स या आतमा स कमजोर बनाय उसको िवष की तरह

ततकाल तयाग दो | वह कभी सतय नही हो सकता | सतय तो बलद होता ह पावन होता ह

ानःवरप होता ह | सतय वह ह जो शि द | 164) साधना म हमारी अिभरिच होनी चािहय साधना की तीो माग होनी चािहय | 165) दसर क दोष की चचार मत करो चाह व िकतन भी बड़ ह | िकसी क दोष की चचार करक आप उसका िकसी भी कार भला नही करत बि क उस आघात पहचात ह और साथ-ही-साथ अपन आपको भी | 166) इस ससार को सतय समझना ही मौत ह | आपका असली ःवरप तो आननदःवरप

आतमा ह | आतमा क िसवा ससार जसी कोई चीज ही नही ह | जस सोया हआ मनय ःव न म अपनी एकता नही जानता अिपत अपन को अनक करक दखता ह वस ही आननदःवरप आतमा जामत ःव न और सषि - इन तीन ःवरप को दखत हए अपनी एकता अि तीयता का अनभव

नही करता | 167) मनोजय का उपाय ह अ यास और वरा य | अ यास मान य पवरक मन को बार-बार परमातम-िचतन म लगाना और वरा य मान मन को ससार क पदाथ की ओर स वापस

लौटाना | 168) िकसी स कछ मत मागो | दन क िलय लोग आपक पीछ-पीछ घमग | मान नही

चाहोग तो मान िमलगा | ःवगर नही चाहोग तो ःवगर क दत आपक िलय िवमान लकर आयग |

उसको भी ःवीकार नही करोग तो ई र आपको अपन दय स लगायग | 169) कभी-कभी उदय या अःत होत हए सयर की ओर चलो | नदी सरोवर या समि क तट

पर अकल घमन जाओ | ऐस ःथान की मलाकात लो जहा शीतल पवन मनद-मनद चल रही हो | वहा परमातमा क साथ एकःवर होन की स भावना क ार खलत ह | 170) आप य -ही इ छा स ऊपर उठत हो तय -ही आपका इि छत पदाथर आपको खोजन

लगता ह | अतः पदाथर स ऊपर उठो | यही िनयम ह | य - य आप इ छक िभ क याचक का भाव धारण करत हो तय -तय आप ठकराय जात हो | 171) कित क तयक पदाथर को दखन क िलय काश जररी ह | इसी कार मन बि

इिनिय को अपन-अपन कायर करन क िलय आतम-काश की आवयकता ह कय िक बाहर का कोई काश मन बि इिनिय ाणािद को चतन करन म समथर नही | 172) जस ःव न ा परष को जागन क बाद ःव न क सख-दःख जनम-मरण पाप-प य

धमर-अधमर आिद ःपशर नही करत कय िक वह सब खद ही ह | खद क िसवाय ःव न म दसरा कछ

था ही नही | वस ही जीवनम ानवान परष को सख-दःख जनम-मरण पाप-प य धमर-अधमर ःपशर नही करत कय िक व सब आतमःवरप ही ह | 173) वही भमा नामक आतम योित क म रह कर भ क रही ह सअर म रह कर घर रही ह गध म रह कर रक रही ह लिकन मखर लोग शरीर पर ही ि रखत ह चतनय ततव पर नही | 174) मनय िजस ण भत-भिवय की िचनता का तयाग कर दता ह दह को सीिमत और उतपि -िवनाशशील जानकर दहािभमान को तयाग दता ह उसी ण वह एक उ चतर अवःथा म पहच जाता ह | िपजर स छटकर गगनिवहार करत हए प ी की तरह मि का अनभव करता ह | 175) समःत भय एव िचनताए आपकी इ छाओ का णाम ह | आपको भय कय लगता ह

कय िक आपको आशका रहती ह िक अमक चीज कही चली न जाय | लोग क हाःय स आप डरत

ह कय िक आपको यश की अिभलाषा ह कीितर म आसि ह | इ छाओ को ितलाजिल द दो | िफर दखो मजा कोई िज मदारी नहीकोई भय नही | 176) दखन म अतयत करप काला-कलटा कबड़ा और तज ःवभाव का मनय भी आपका ही ःवरप ह | आप इस तथय स म नही | िफर घणा कसी कोई लाव यमयी सदरी सि की

शोभा क समान अित िवलासभरी अ सरा भी आपका ही ःवरप ह | िफर आसि िकसकी

आपकी ानिनिया उनको आपस अलग करक िदखाती ह | य इिनिया झठ बोलनवाली ह | उनका कभी िव ास मत करो | अतः सब कछ आप ही हो | 177) मानव क नात हम साधक ह | साधक होन क नात सतय को ःवीकर करना हमारा ःवधमर ह | सतय यही ह िक बल दसर क िलय ह ान अपन िलय ह और िव ास परमातमा स

स बनध जोड़न क िलय ह | 178) अपनी आतमा म डब जाना यह सबस बड़ा परोपकार ह | 179) आप सदव म ह ऐसा िव ास ढ़ करो तो आप िव क उ ारक हो जात हो | आप

यिद वदानत क ःवर क साथ ःवर िमलाकर िन य करो आप कभी शरीर न थ | आप िनतय श

ब आतमा हो तो अिखल ा ड क मो दाता हो जात हो | 180) कपा करक उन ःवाथरमय उपाय और अिभाय को दर फ क दो जो आपको पिरि छनन रखत ह | सब वासनाए राग ह | यि गत या शरीरगत म आसि ह | उस फ क दो | ःवय पिवऽ हो जाओ | आपका शरीर ःवःथ और बि पणरःवरप हो जायगी | 181) यिद ससार क सख व पदाथर ा ह तो आपको कहना चािहय ओ शतान हट जा मर सामन स | तर हाथ स मझ कछ नही चािहय | तब दखो िक आप कस सखी हो जात हो परमातमा-ा िकसी महापरष पर िव ास रखकर अपनी जीवनडोरी िनःशक बन उनक चरण म सदा क िलय रख दो | िनभरयता आपक चरण की दासी बन जायगी | 182) िजसन एक बार ठ क स जान िलया िक जगत िमथया ह और ािनत स इसकी तीित

हो रही ह उसको कभी दःख नही होता | जगत म कभी आसि नही होती | जगत क िमथयातव क

िन य का नाम ही जगत का नाश ह | 183) अपन ःवरप म लीन होन माऽ स आप ससार क साट बन जायग | यह साटपद

कवल इस ससार का ही नही समःत लोक-परलोक का साटपद होगा | 184) ह जनक चाह दवािधदव महादव आकर आपको उपदश द या भगवान िवण आकर उपदश द अथवा ाजी आकर उपदश द लिकन आपको कदािप सख न होगा | जब िवषय का तयाग करोग तभी स ची शाित व आनद ा ह ग |

185) िजस भ न हम मानव जीवन दकर ःवाधीनता दी िक हम जब चाह तब धमारतमा होकर भ होकर जीवनम होकर कतकतय हो सकत ह- उस भ की मिहमा गाओ | गाओ नही तो सनो | सनो भी नही गाओ भी नही तो ःवीकार कर लो | 186) चाह समि क गहर तल म जाना पड़ सा ात मतय का मकाबला करना पड़ अपन

आतमाि क उ य की पितर क िलय अिडग रहो | उठो साहसी बनो शि मान बनो | आपको जो बल व सहायता चािहय वह आपक भीतर ही ह | 187) जब-जब जीवन स बनधी शोक और िचनता घरन लग तब-तब अपन आननदःवरप

का गान करत-करत उस मोह-माया को भगा दो | 188) जब शरीर म कोई पीड़ा या अग म ज म हो तब म आकाशवत आकाशरिहत चतन

ह ऐसा ढ़ िन य करक पीड़ा को भल जाओ | 189) जब दिनया क िकसी चककर म फस जाओ तब म िनलप िनतय म ह ऐसा ढ़

िन य करक उस चककर स िनकल जाओ | 190) जब घर-बार स बनधी कोई किठन समःया याकल कर तब उस मदारी का खल

समझकर ःवय को िनःसग जानकर उस बोझ को ह का कर दो | 191) जब बोध क आवश म आकर कोई अपमानय वचन कह तब अपन शाितमय

ःवरप म िःथर होकर मन म िकसी भी ोभ को पदा न होन दो | 192) उ म अिधकारी िज ास को चािहय िक वह व ा सदगर क पास जाकर ौ ा पवरक महावाकय सन | उसका मनन व िनिदधयासन करक अपन आतमःवरप को जान | जब

आतमःवरप का सा ातकार होता ह तब ही परम िवौािनत िमल सकती ह अनयथा नही | जब तक

व ा महापरष स महावाकय ा न हो तब तक वह मनद अिधकारी ह | वह अपन दयकमल म परमातमा का धयान कर ःमरण कर जप कर | इस धयान-जपािद क साद स उस व ा सदगर

ा ह ग | 193) मन बि िच अहकार छाया की तरह जड़ ह णभगर ह कय िक व उतपनन होत

ह और लीन भी हो जात ह | िजस चतनय की छाया उसम पड़ती ह वह परम चतनय सबका आतमा ह | मन बि िच अहकार का अभाव हो जाता ह लिकन उसका अनभव करनवाल का अभाव

कदािप नही होता |

194) आप अपनी शि को उ चाितउ च िवषय की ओर बहन दो | इसस आपक पास व

बात सोचन का समय ही नही िमलगा िजसस कामकता की गध आती हो | 195) अपराध क अनक नाम ह बालहतया नरहतया मातहतया गौहतया इतयािद |

परनत तयक ाणी म ई र का अनभव न करक आप ई रहतया का सबस बड़ा अपराध करत ह | 196) सवा करन की ःवाधीनता मनयमाऽ को ा ह | अगर वह करना ही न चाह तो अलग बात ह | सवा का अथर ह मन-वाणी-कमर स बराईरिहत हो जाना यह िव की सवा हो गई |

यथाशि भलाई कर दो यह समाज की सवा हो गई | भलाई का फल छोड़ दो यह अपनी सवा हो गई

| भ को अपना मानकर ःमित और म जगा लो यह भ की सवा हो गई | इस कार मनय

अपनी सवा भी कर सकता ह समाज की सवा भी कर सकता ह िव की सवा भी कर सकता ह

और िव र की सवा भी कर सकता ह | 197) आतमा स बाहर मत भटको अपन कनि म िःथर रहो अनयथा िगर पड़ोग | अपन-

आपम पणर िव ास रखो | आतम-कनि पर अचल रहो | िफर कोई भी चीज आपको िवचिलत नही कर सकती | 198) सदा शात िनिवरकार और सम रहो | जगत को खलमाऽ समझो | जगत स भािवत

मत हो | इसस आप हमशा सखी रहोग | िफर कछ बढ़ान की इ छा नही होगी और कछ कम होन स

दःख नही होगा | 199) समथर सदगर क सम सदा फल क भाित िखल हए रहो | इसस उनक अनदर सक प

होगा िक यह तो बहत उतसाही साधक ह सदा सनन रहता ह | उनक सामथयरवान सक प स

आपकी वह किऽम सननता भी वाःतिवक सननता म बदल जायगी | 200) यिद रोग को भी ई र का िदया मानो तो ार ध-भोग भी हो जाता ह और क तप का फल दता ह | इसस ई र-कपा की ाि होती ह | याकल मत हो | क सल और इनजकशन

आधीन मत हो | 201) साधक को चािहय िक अपन लआय को ि म रखकर साधना-पथ पर तीर की तरह

सीधा चला जाय | न इधर दख न उधर | ि यिद इधर-उधर जाती हो तो समझना िक िन ा िःथर नही ह |

202) आपन अपन जीवन म हजार ःव न दख ह ग लिकन व आपक जीवन क अश नही बन जात | इसी कार य जामत जगत क आड बर आपकी आतमा क सम कोई मह व नही रखत | 203) एक आतमा को ही जानो अनय बात को छोड़ो | धीर साधक को चािहय िक वह

सावधान होकर आतमिन ा बढ़ाय अनक श द का िचनतन व भाषण न कर कय िक वह तो कवल

मन-वाणी को पिरौम दनवाला ह असली साधना नही ह | 204) जो परष जन-समह स ऐस डर जस साप स डरता ह स मान स ऐस डर जस नकर स

डरता ह ि य स ऐस डर जस मद स डरता ह उस परष को दवतागण ा ण मानत ह | 205) जस अपन शरीर क अग पर बोध नही आता वस शऽ िमऽ व अपनी दह म एक ही आतमा को दखनवाल िववकी परष को कदािप बोध नही आता | 206) मन तो शरीर को ई रापरण कर िदया ह | अब उसकी भख- यास स मझ कया

समिपरत वःत म आस होना महा पाप ह | 207) आप यिद िद य ि पाना चहत हो तो आपको इिनिय क ऽ का तयाग करना होगा | 208) लयकाल क मघ की गजरना हो समि उमड़ पड बारह सयर तपायमान हो जाय पहाड़ स पहाड़ टकरा कर भयानक आवाज हो तो भी ानी क िन य म त नही भासता कय िक

त ह ही नही | त तो अ ानी को भासता ह | 209) सतय को ःवीकार करन स शाित िमलगी | कछ लोग यो यता क आधार पर शाित

खरीदना चाहत ह | यो यता स शाित नही िमलगी यो यता क सदपयोग स शाित िमलगी | कछ

लोग स पि क आधार पर शाित सरि त रखना चाहत ह | स पि स शाित नही िमलगी स पि

क सदपयोग स शाित िमलगी वस ही िवपि क सदपयोग स शाित िमलगी | 210) त छ हािन-लाभ पर आपका धयान इतना कय रहता ह िजसस अनत आननदःवरप

आतमा पर स धयान हट जाता ह | 211) अपन अनदर ही आननद ा करना य िप किठन ह परनत बा िवषय स आननद

ा करना तो अस भव ही ह |

212) म ससार का काश ह | काश क रप म म ही सब वःतओ म या ह | िनतय इन

िवचार का िचनतन करत रहो | य पिवऽ िवचार आपको परम पिवऽ बना दग | 213) जो वःत कमर स ा होती ह उसक िलय ससार की सहायता तथा भिवय की आशा की आवयकता होती ह परनत जो वःत तयाग स ा होती ह उसक िलय न ससार की सहायता चािहय न भिवय की आशा | 214) आपको जब तक बाहर चोर िदखता ह तब तक जरर भीतर चोर ह | जब दसर लोग

स िभनन अयो य खराब सधारन यो य िदखत ह तब तक ओ सधार का बीड़ा उठान वाल त अपनी िचिकतसा कर | 215) सफल व ही होत ह जो सदव नतमःतक एव सननमख रहत ह | िचनतातर-शोकातर लोग की उननित नही हो सकती | तयक कायर को िह मत व शाित स करो | िफर दखो िक यह

कायर शरीर मन और बि स हआ | म उन सबको स ा दनवाला चतनयःवरप ह | ॐ ॐ का पावन गान करो | 216) िकसी भी पिरिःथित म मन को यिथत न होन दो | आतमा पर िव ास करक

आतमिन बन जाओ | िनभरयता आपकी दासी बन कर रहगी | 217) सतसग स मनय को साधना ा होती ह चाह वह शाित क रप म हो चाह मि क

रप म चाह सवा क रप म हो म क रप म हो चाह तयाग क रप म हो | 218) भला-बरा वही दखता ह िजसक अनदर भला-बरा ह | दसर क शरीर को वही दखता ह

जो खद को शरीर मानता ह | 219) खबरदार आपन यिद अपन शरीर क िलय ऐश-आराम की इ छा की िवलािसता एव इिनिय-सख म अपना समय बरबाद िकया तो आपकी खर नही | ठ क स कायर करत रहन की नीित

अपनाओ | सफलता का पहला िस ात ह कायरिवौामरिहत कायरसा ी भाव स कायर | इस

िस ात को जीवन म चिरताथर करोग तो पता चलगा िक छोटा होना िजतना सरल ह उतना ही बड़ा होना भी सहज ह | 220) भतकाल पर िखनन हए िबना भिवय की िचनता िकय िबना व रमान म कायर करो | यह भाव आपको हर अवःथा म सनन रखगा हम जो कछ ा ह उसका सदपयोग ही अिधक

काश पान का साधन ह |

221) जब आप सफलता की ओर पीठ कर लत हो पिरणाम की िचनता का तयाग कर दत

हो स मख आय हए क र य पर अपनी उ ोगशि एकाम करत हो तब सफलता आपक पीछ-पीछ

आ जाती ह | अतः सफलता आपको खोजगी | 222) वि तब तक एकाम नही होगी जब तक मन म कभी एक आशा रहगी तो कभी दसरी | शात वही हो सकता ह िजस कोई क र य या आवयकता घसीट न रही हो | अतः परम शाित पान

क िलय जीवन की आशा भी तयाग कर मन ाननद म डबो दो | आज स समझ लो िक यह शरीर ह ही नही | कवल ाननद का सागर लहरा रहा ह | 223) िजसकी पककी िन ा ह िक म आतमा हrsquo उसक िलय ऐसी कौन सी मिथ ह जो खल

न सक ऐसी कोई ताकत नही जो उसक िवर जा सक | 224) मर भा य म नही थाई र की मज आजकल सतसग ा नही होताजगत

खराब ह ऐस वचन हमारी कायरता व अनतःकरण की मिलनता क कारण िनकलत ह | अतः नकारातमक ःवभाव और दसर पर दोषारोपण करन की वि स बचो | 225) आप जब भीतरवाल स नाराज होत हो तब जगत आपस नाराज रहता ह | जब आप

भीतर अनतयारमी बन बठ तो जगतरपी पतलीघर म िफर गड़बड़ कसी 226) िजस ण हम ससार क सधारक बन खड़ होत ह उसी ण हम ससार को िबगाड़नवाल बन जात ह | श परमातमा को दखन क बजाय जगत को िबगड़ा हआ दखन की ि बनती ह | सधारक लोग मानत ह िक lsquoभगवान न जो जगत बनाया ह वह िबगड़ा हआ ह और हम उस सधार रह ह |rsquo वाह वाह धनयवाद सधारक अपन िदल को सधारो पहल | सवरऽ िनरजन का दीदार करो | तब आपकी उपिःथित माऽ स आपकी ि माऽ स अर यार आपको छकर बहती हवा माऽ स अननत जीव को शाित िमलगी और अननत सधार होगा | नानक कबीर महावीर ब और लीलाशाह बाप जस महापरष न यही कजी अपनायी थी | 227) वदानत म हमशा कमर का अथर होता ह वाःतिवक आतमा क साथ एक होकर च ा करना अिखल िव क साथ एकःवर हो जाना | उस अि तीय परम ततव क साथ िनःःवाथर सयोग ा करना ही एकमाऽ स चा कमर ह बाकी सब बोझ की गठिरया उठाना ह |

228) अपनी व रमान अवःथा चाह कसी भी हो उसको सव च मानन स ही आपक दय म आतम ान ान का अनायास उदय होन लगगा | आतम-सा ातकार को मील दर की कोई चीज समझकर उसक पीछ दौड़ना नही ह िचिनतत होना नही ह |

िचनता की गठरी उठाकर यिथत होन की जररत नही ह | िजस ण आप िनि नतता म गोता मारोग उसी ण आपका आतमःवरप गट हो जायगा | अर गट कया होगा आप ःवय आतमःवरप हो ही | अनातमा को छोड़ दो तो आतमःवरप तो हो ही | 229) सदा ॐकार का गान करो | जब भय व िचनता क िवचार आय तब िकसी मःत सत-फकीर महातमा क सािननधय का ःमरण करो | जब िननदा-शसा क सग आय तब महापरष क जीवन का अवलोकन करो | 230) िजनको आप भयानक घटनाए एव भयकर आघात समझ बठ हो वाःतव म व आपक ियतम आतमदव की ही करतत ह | समःत भयजनक तथा ाणनाशक घटनाओ क नाम-रप तो िवष क ह लिकन व बनी ह अमत स | 231) मन म यिद भय न हो तो बाहर चाह कसी भी भय की साममी उपिःथत हो जाय आपका कछ िबगाड़ नही सकती | मन म यिद भय होगा तो तरनत बाहर भी भयजनक पिरिःथया न होत हए भी उपिःथत हो जायगी | व क तन म भी भत िदखन लगगा | 232) िकसी भी पिरिःथित म िदखती हई कठोरता व भयानकता स भयभीत नही होना चािहए | क क काल बादल क पीछ पणर काशमय एकरस परम स ा सयर की तरह सदा िव मान ह | 233) आप अपन पर कदािप अिव ास मत करो | इस जगत म आप सब कछ कर सकत हो | अपन को कभी दबरल मत मानो | आपक अनदर तमाम शि या छपी हई ह | 234) यिद कोई मन य आपकी कोई चीज़ को चरा लता ह तो ड़रत कय हो वह मनय

और आप एक ह | िजस चीज़ को वह चराता ह वह चीज़ आपकी और उसकी द न की ह | 235) जो खद क िसवाय दसरा कछ दखता नही सनता नही जानता नही वह अननत ह |

जब तक खद क िसवाय और िकसी वःत का भान होता ह वह वःत स ची लगती ह तब तक आप

सीिमत व शात ह असीम और अनत नही |

236) ससार मझ कया आनद द सकता ह स पणर आनद मर भीतर स आया ह | म ही स पणर आननद ह स पणर मिहमा एव स पणर सख ह | 237) जीवन की समःत आवयकताए जीवन म उपिःथत ह परनत जीवन को जब हम

बा रग म रग दत ह तब जीवन का वाःतिवक रप हम नही जान पात | 238) िननदक की िननदा स म कय मरझाऊ शसक की शसा स म कय फल िननदा स म घटता नही और शसा स म बढ़ता नही | जसा ह वसा ही रहता ह | िफर िननदा-ःतित स

खटक कसी 239) ससार व ससार की समःयाओ म जो सबस अिधक फस हए ह उनही को वदानत की सबस अिधक आवयकता ह | बीमार को ही औषिध की यादा आवयकता ह | कय जी ठ क ह न 240) जगत क पाप व अतयाचार की बात मत करो लिकन अब भी आपको जगत म पाप

िदखता ह इसिलय रोओ | 241) हम यिद जान ल िक जगत म आतमा क िसवाय दसरा कछ ह ही नही और जो कछ

िदखता ह वह ःव नमाऽ ह तो इस जगत क दःख-दािरिय पाप-प य कछ भी हम अशात नही कर सकत | 242) िव ान दाशरिनक व आचाय की धमकी तथा अनमह आलोचना या अनमित

ानी पर कोई भाव नही ड़ाल सकती | 243) ह यि रप अननत आप अपन पर पर खड़ रहन का साहस करो समःत िव का बोझ आप िखलौन की तरह उठा लोग | 244) िसह की गजरना व नरिसह की ललकार तलवार की धार व साप की फफकार तपःवी की धमकी व नयायधीश की फटकारइन सबम आपका ही काश चमक रहा ह | आप इनस

भयभीत कय होत हो उलझन कय महसस करत हो मरी िब ली मझको याऊ वाली बात कय

होन दत हो 245) ससार हमारा िसफ़र िखलोना ही ह और कछ नही | अबोध बालक ही िखलौन स

भयभीत होता ह आसि करता ह िवचारशील यि नही |

246) जब तक अिव ा दर नही होगी तब तक चोरी जआ दार यिभचार कभी बद न

ह ग चाह लाख कोिशश करो | 247) आप हमशा अदर का धयान रखो | पहल हमारा भीतरी पतन होता ह | बा पतन तो इसका पिरणाम माऽ ह | 248) तयाग स हमशा आनद िमलता ह | जब तक आपक पास एक भी चीज़ बाकी ह तब

तक आप उस चीज़ क बधन म बध रहोग | आघात व तयाघात हमशा समान िवरोधी होत ह | 249) िनि तता ही आरो यता की सबस बड़ी दवाई ह | 250) सख अपन िसर पर दख का मकट पहन कर आता ह | जो सख को अपनायगा उस

दख को भी ःवीकार करना पड़गा | 251) म (आतमा) सबका ा ह | मरा ा कोई नही | 252) हजार म स कोई एक परष भीतर स शात िच वाला रहकर बाहर स ससारी जसा यवहार कर सकता ह | 253) सतय क िलए यिद शरीर का तयाग करना पड़ तो कर दना | यही आिखरी ममता ह जो हम तोड़नी होगी | 254) भय िचनता बचनी स ऊपर उठो | आपको ान का अनभव होगा | 255) आपको कोई भी हािन नही पहचा सकता | कवल आपक खयालात ही आपक पीछ पड़ ह | 256) म का अथर ह अपन पड़ोसी तथा सपकर म आनवाल क साथ अपनी वाःतिवक अभदता का अनभव करना | 257) ओ यार अपन खोय हए आतमा को एक बार खोज लो | धरती व आसमान क शासक आप ही हो | 258) सदव सम और सनन रहना ई र की सव पिर भि ह |

259) जब तक िच म ढ़ता न आ जाय िक शा की िविधय का पालन छोड़ दन स भी दय का यथाथर भि भाव न नही होगा तब तक शा की िविधय को पालत रहो |

गर भि एक अमोघ साधना 1 जनम मरण क िवषचब स म होन का कोई मागर नही ह कया सख-दःख हषर-शोक लाभ-

हािन मान-अपमान की थ पड़ स बचन का कोई उपाय नही ह कया

हअवय ह | ह िय आतमन नाशवान पदाथ स अपना मन वािपस लाकर सदगर क

चरणकमल म लगाओ | गरभि योग का आौय लो | गरसवा ऐसा अमोघ साधन ह िजसस

व रमान जीवन आननदमय बनता ह और शा त सख क ार खलत ह |

गर सवत त नर धनय यहा | ितनक नही दःख यहा न वहा || 2 स च सदगर की की हई भि िशय म सासािरक पदाथ क वरा य एव अनासि जगाती ह

परमातमा क ित म क पप महकाती ह | 3 तयक िशय सदगर की सवा करना चाहता ह लिकन अपन ढग स | सदगर चाह उस ढग स

सवा करन को कोई ततपर नही | जो िवरला साधक गर चाह उस ढ़ग स सवा कर सकता ह उस कोई कमी नही रहती |

िन सदगर की सवा स उनकी कपा ा होती ह और उस कपा स न िमल सक ऐसा तीन लोक म कछ भी नही ह | 4 गर िशय का स बनध पिवऽतम स बनध ह | ससार क तमाम बनधन स छड़ाकर वह मि क मागर पर ःथान कराता ह | यह स बनध जीवनपयरनत का स बनध ह | यह बात अपन दय की डायरी म सवणर-अ र स िलख लो | 5 उ ल सयर क काश क अिःततव को मान या न मान िफर भी सयर हमशा काशता ह | चचल मन का मनय मान या न मान लिकन सदगर की परमक याणकारी कपा सदव बरसती ही रहती ह | 6 सदगर की चरणरज म ःनान िकय िबना कवल किठन तप यार करन स या वद का

अधयन करन स वदानत का रहःय कट नही होता आतमानद का अमत नही िमलता | 7 दशरन शा क चाह िकतन मनथ पढ़ो हजार वष तक िहमालय की गफा म तप करो वष तक ाणायाम करो जीवनपयरनत शीषारसन करो समम िव म वास करक याखान दो िफर भी सदगर की कपा क िबना आतम ान नही होता | अतः िनरािभमानी सरल िनजाननद म मःत दयाल ःवभाव क आतम-सा ातकारी सदगर क चरण म जाओ | जीवन को धनय बनाओ | 8 सदगर की सवा िकय िबना शा का अधयन करना मम साधक क िलय समय बरबाद करन क बराबर ह | 9 िजसको सदगर ा हए ह ऐस िशय क िलय इस िव म कछ भी अा य नही ह | सदगर िशय को िमली हई परमातमा की अम य भट ह | अर नहीhellipनही व तो िशय क सम साकार रप म कट हए परमातमा ःवय ह | 10 सदगर क साथ एक ण िकया हआ सतसग लाख वष क तप स अननत गना ौ ह | आख क िनमषमाऽ म सदगर की अमतवष ि िशय क जनम-जनम क पाप को जला सकती ह | 11 सदगर जसा मपणर कपाल िहतिचनतक िव भर म दसरा कोई नही ह | 12 बाढ़ क समय याऽी यिद तफानी नदी को िबना नाव क पार कर सक तो साधक भी िबना सदगर क अपन जीवन क आिखरी लआय को िस कर सकता ह | यानी य दोन बात स भव ह |

अतः यार साधक मनमखी साधना की िज करना छोड़ दो | गरमखी साधना करन म ही सार ह | 13 सदगर क चरणकमल का आौय लन स िजस आननद का अनभव होता ह उसक आग िऽलोकी का साा य त छ ह | 14 आतम-सा ातकार क मागर म सबस महान शऽ अहभाव का नाश करन क िलए सदगर की आ ा का पालन अमोघ श ह | 15 रसोई सीखन क िलय कोई िसखानवाला चािहय िव ान और गिणत सीखन क िलय

अधयापक चािहय तो कया िव ा सदगर क िबना ही सीख लोग 16 सदगरकपा की स पि जसा दसरा कोई खजाना िव भर म नही | 17 सदगर की आ ा का उ लघन करना यह अपनी क खोदन क बराबर ह | 18 सदगर क कायर को शका की ि स दखना महापातक ह | 19 गरभि व गरसवा - य साधनारपी नौका की दो पतवार ह | उनकी मदद स िशय ससारसागर को पार कर सकता ह | 20 सदगर की कसौटी करना असभव ह | एक िववकाननद ही दसर िववकाननद को पहचान सकत ह | ब को जानन क िलय दसर ब की आवयकता रहती ह | एक रामतीथर का रहःय दसर रामतीथर ही पा सकत ह |

अतः सदगर की कसौटी करन की च ा छोड़कर उनको पिरपणर पर परमातमा मानो |

तभी जीवन म वाःतिवक लाभ होगा | 21 गरभि योग का आौय लकर आप अपनी खोई हई िद यता को पनः ा करो सख-दःख जनम-मतय आिद सब न स पार हो जाओ | 22 गरभि योग मान गर की सवा क ारा मन और िवकार पर िनयऽण एव पनः सःकरण | 23 िशय अपन गर क चरणकमल म णाम करता ह | उन पर ौ फल की वषार करक उनकी ःतित करता ह ldquoह परम प य पिवऽ गरदव मझ सव च सख ा हआ ह | म िन ा स जनम-मतय की पर परा स म हआ ह | म िनिवरक प समािध का श सख भोग रहा ह | जगत क िकसी भी कोन म म म ता स िवचरण कर सकता ह | सब पर मरी सम ि ह | मन ाकत मन का तयाग िकया ह | मन सब सक प एव रिच-अरिच का तयाग िकया ह | अब म अख ड शाित म िवौाित पा रहा ह hellip आननदमय हो रहा ह | म इस पणर अवःथा का वणरन नही कर पाता | ह प य गरदव म आवाक बन गया ह | इस दःतर भवसागर को पार करन म आपन

मझ सहायता की ह | अब तक मझ कवल अपन शरीर म ही स पणर िव ास था | मन िविभनन योिनय म अस य जनम िलय | ऐसी सव च िनभरय अवःथा मझ कौन स पिवऽ कम क कारण ा हई ह यह म नही जानता | सचमच यह एक दलरभ भा य ह |

यह एक महान उतक लाभ ह | अब म आननद स नाचता ह | मर सब दःख न हो गय | मर सब मनोरथ पणर हए ह |

मर कायर स पनन हए ह | मन सब वािछत वःतए ा की ह | मरी इ छा पिरपणर हई ह | आप मर स च माता-िपता हो | मरी व रमान िःथित म म दसर क सम िकस कार कट कर सक सवरऽ सख और आननद का अननत सागर मझ लहराता हआ िदख रहा ह | मर अतःच िजसस खल गय वह महावाकय lsquoत वमिसrsquo ह | उपिनषद एव वदानतसऽ को भी धनयवाद | िजनह न िन गर का एव उपिनषद क महावाकय का रप धारण िकया ह | ऐस ौी यासजी को णाम ौी शकराचायर को णाम सासािरक मनय क िसर पर गर क चरणामत का एक िबनद भी िगर तो भी उसक ःब दःख का नाश होता ह | यिद एक िन परष को व पहनाय जाय तो सार िव को व पहनान एव भोजन करवान क बराबर ह कय िक िन परष सचराचर िव म या ह | सबम व ही ह |rdquo

ॐhellip ॐ hellip ॐ hellip

ःवामी िशवानद जी

ौी राम-विश सवाद ौी विश जी कहत ह ldquoह रघकलभषण ौी राम अनथर ःवरप िजतन सासािरक पदाथर ह व सब जल म तरग क समान िविवध रप धारण करक चमतकार उतपनन करत ह अथारत ई छाए उतपनन करक जीव को मोह म फसात ह | परत जस सभी तरग जल ःवरप ही ह उसी कार सभी पदाथर वःततः न र ःवभाव वाल ह |

बालक की क पना स आकाश म य और िपशाच िदखन लगत ह परनत बि मान मनय क िलए उन य और िपशाच का कोई अथर नही | इसी कार अ ानी क िच म यह जगत सतय हो ऐसा लगता ह जबिक हमार जस ािनय क िलय यह जगत कछ भी नही | यह समम िव पतथर पर बनी हई पतिलय की सना की तरह रपालोक तथा अतर-बा िवषय स शनय ह | इसम सतयता कसी परनत अ ािनय को यह िव सतय लगता ह |rdquo विश जी बोल ldquoौी राम जगत को सतय ःवरप म जानना यह ाित ह मढ़ता ह | उस िमथया अथारत कि पत समझना यही उिचत समझ ह | ह राघव तव ा अहता आिद सब िवम-िवलास शात िशवःवरप श ःवरप ही ह | इसिलय मझ तो क अितिर और कछ भी नही िदखता | आकाश म जस जगल नही वस ही म जगत नही ह | ह राम ार ध वश ा कम स िजस परष की च ा कठपतली की तरह ई छाशनय और याकलतारिहत होती ह वह शानत मनवाला परष जीवनम मिन ह | ऐस जीवनम ानी को इस

जगत का जीवन बास की तरह बाहर-भीतर स शनय रसहीन और वासना-रिहत लगता ह | इस य पच म िजस रिच नही दय म िचनमाऽ अ य ही अ छा लगता ह ऐस परष न

भीतर तथा बाहर शािनत ा कर ली ह और इस भवसागर स पार हो गया ह | रघनदन श व ा कहत ह िक मन का ई छारिहत होना यही समािध ह कय िक ई छाओ का तयाग करन स मन को जसी शािनत िमलती ह ऐसी शािनत सकड़ उपदश स भी नही िमलती | ई छा की उतपि स जसा दःख ा होता ह ऐसा दःख तो नरक म भी नही | ई छाओ की शािनत

स जसा सख होता ह ऐसा सख ःवगर तो कया लोक म भी नही होता | अतः समःत शा तपःया यम और िनयम का िनचोड़ यही ह िक ई छामाऽ दःखदायी ह और ई छा का शमन मो ह | ाणी क दय म जसी-जसी और िजतनी-िजतनी ई छाय उतपनन होती ह उतना ही दख स वह

ड़रता रहता ह | िववक-िवचार ारा ई छाय जस-जस शानत होती जाती ह वस-वस दखरपी छत की बीमारी िमटती जाती ह |

आसि क कारण सासािरक िवषय की ई छाय य - य गहनीभत होती जाती ह तय -तय

दःख की िवषली तरग बढ़ती जाती ह | अपन परषाथर क बल स इस ई छारपी यािध का उपचार यिद नही िकया जाय तो इस यािध स छटन क िलय अनय कोई औषिध नही ह ऐसा म ढ़तापवरक

मानता ह | एक साथ सभी ई छाओ का स पणर तयाग ना हो सक तो थोड़ी-थोड़ी ई छाओ का धीर-धीर तयाग

करना चािहय परत रहना चािहय ई छा क तयाग म रत कय िक सनमागर का पिथक दखी नही होता | जो नराधम अपनी वासना और अहकार को ीण करन का य नही करता वह िदन -िदन अपन

को रावण की तरह अधर कऐ म ढ़कल रहा ह | ई छा ही दख की जनमदाऽी इस ससाररपी बल का बीज ह | यिद इस बीज को आतम ानरपी अि न स ठ क-ठ क जला िदया तो पनः यह अकिरत नही होता | रघकलभषण राम ई छामाऽ ससार ह और ई छाओ का अभाव ही िनवारण ह | अतः अनक कार की माथाप ची म ना पड़कर कवल ऐसा य करना चािहय िक ई छा उतपनन ना हो | अपनी बि स ई छा का िवनाश करन को जो ततपर नही ऐस अभाग को शा और गर का उपदश

भी कया करगा जस अपनी जनमभमी जगल म िहरणी की मतय िनि त ह उसी कार अनकिवध दख का िवःतार कारनवाल ई छारपी िवषय-िवकार स य इस जगत म मनय की मतय िनि त ह | यिद मानव ई छाओ क कारण ब च -सा मढ़ ना बन तो उस आतम ान क िलय अ प य ही करना पड़ | इसिलय सभी कार स ई छाओ को शानत करना चािहय | ई छा क शमन स परम पद की ाि होती ह | ई छारिहत हो जाना यही िनवारण ह और ई छाय

होना ही बधन ह | अतः यथाशि ई छा को जीतना चािहय | भला इतना करन म कया किठनाई ह जनम जरा यािध और मतयरपी कटीली झािड़य और खर क व - समह की जड़ भी ई छा ही ह

| अतः शमरपी अि न स अदर-ही-अदर बीज को जला ड़ालना चािहय| जहा ई छाओ का अभाव ह

वहा मि िनि त ह |

िववक वरा य आिद साधन स ई छा का सवरथा िवनाश करना चािहय | ई छा का सबध जहा-जहा ह वहा-वहा पाप प य दखरािशया और ल बी पीड़ाओ स य बधन को हािज़र ही समझो | परष

की आतिरक ई छा य - य शानत होती जाती ह तय -तय मो क िलय उसका क याणकारक

साधन बढ़ता जाता ह | िववकहीन ई छा को पोसना उस पणर करना यह तो ससाररपी िवष व को पानी स सीचन क समान ह |rdquo

- ौीयोगविश महारामायण

आतमबल का आवाहन कया आप अपन-आपको दबरल मानत हो लघतामथी म उलझ कर पिरिःतिथय स िपस रह हो

अपना जीवन दीन-हीन बना बठ हो hellipतो अपन भीतर सष आतमबल को जगाओ | शरीर चाह ी का हो चाह परष का कित क साा य म जो जीत ह व सब ी ह और कित क बनधन स पार अपन ःवरप की पहचान िजनह न कर ली ह अपन मन की गलामी की बिड़या तोड़कर िजनह न फ क दी ह व परष ह | ी या परष शरीर एव मानयताए होती ह | तम तो तन-मन स पार िनमरल आतमा हो | जागोhellipउठोhellipअपन भीतर सोय हय िन यबल को जगाओ | सवरदश सवरकाल म सव म

आतमबल को िवकिसत करो | आतमा म अथाह सामथयर ह | अपन को दीन-हीन मान बठ तो िव म ऐसी कोई स ा नही जो त ह ऊपर उठा सक | अपन आतमःवरप म िति त हो गय तो िऽलोकी म ऐसी कोई हःती नही जो त ह दबा सक | भौितक जगत म वाप की शि ईलकशोिनक शि िव त की शि गरतवाकषरण की शि बड़ी मानी जाती ह लिकन आतमबल उन सब शि य का सचालक बल ह | आतमबल क सािननधय म आकर पग ार ध को पर िमल जात ह दव की दीनता पलायन हो जाती ह ितकल पिरिःतिथया अनकल हो जाती ह | आतमबल सवर िरि -िसि य का िपता ह |

आतमबल कस जगाय हररोज़ तःकाल ज दी उठकर सय दय स पवर ःनानािद स िनवत हो जाओ | ःव छ पिवऽ ःथान

म आसन िबछाकर पवारिभमख होकर प ासन या सखासन म बठ जाओ | शानत और सनन वि

धारण करो | मन म ढ भावना करो िक म कित-िनिमरत इस शरीर क सब अभाव को पार करक सब

मिलनताओ-दबरलताओ स िप ड़ छड़ाकर आतमा की मिहमा म जागकर ही रहगा |

आख आधी खली आधी बद रखो | अब फ़फ़ड़ म खब ास भरो और भावना करो की ास क साथ

म सयर का िद य ओज भीतर भर रहा ह | ास को यथाशि अनदर िटकाय रखो | िफ़र lsquoॐhelliprsquo का ल बा उ चारण करत हए ास को धीर-धीर छोड़त जाओ | ास क खाली होन क बाद तरत ास ना लो | यथाशि िबना ास रहो और भीतर ही भीतर lsquoहिर ॐhelliprsquo lsquoहिर ॐhelliprsquo का मानिसक

जाप करो | िफ़र स फ़फ़ड़ म ास भरो | पव रीित स ास यथाशि अनदर िटकाकर बाद म धीर-धीर छोड़त हए lsquoॐhelliprsquo का गजन करो | दस-पिह िमनट ऐस ाणायाम सिहत उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo की धविन करक शानत हो जाओ | सब

यास छोड़ दो | वि य को आकाश की ओर फ़लन दो | आकाश क अनदर पथवी ह | पथवी पर अनक दश अनक समि एव अनक लोग ह | उनम स एक

आपका शरीर आसन पर बठा हआ ह | इस पर य को आप मानिसक आख स भावना स दखत

रहो | आप शरीर नही हो बि क अनक शरीर दश सागर पथवी मह न ऽ सयर चनि एव पर ा ड़ क

ा हो सा ी हो | इस सा ी भाव म जाग जाओ | थोड़ी दर क बाद िफ़र स ाणायाम सिहत lsquoॐhelliprsquo का जाप करो और शानत होकर अपन िवचार को दखत रहो | इस अवःथा म ढ़ िन य करो िक lsquoम जसा चहता ह वसा होकर रहगा |rsquo िवषयसख स ा धन-

दौलत इतयािद की इ छा न करो कय िक िन यबल या आतमबलरपी हाथी क पदिच म और सभी क पदिच समािव हो ही जायग | आतमानदरपी सयर क उदय होन क बाद िम टी क तल क दीय क ाकाश रपी शि सखाभास की गलामी कौन कर

िकसी भी भावना को साकार करन क िलय दय को करद ड़ाल ऐसी िन यातमक बिल वि होनी आवशयक ह | अनतःकरण क गहर-स-गहर दश म चोट कर ऐसा ाण भरक िन बल का आवाहन करो | सीना तानकर खड़ हो जाओ अपन मन की दीन-हीन दखद मानयताओ को कचल

ड़ालन क िलय | सदा ःमरण रह की इधर-उधर भटकती वि य क साथ त हारी शि भी िबखरती रहती ह | अतः वि य को बहकाओ नही | तमाम वि य को एकिऽत करक साधनाकाल म आतमिचनतन म लगाओ और यवहारकाल म जो कायर करत हो उसम लगाओ | द िच होकर हरक कायर करो | अपन ःवभाव म स आवश को सवरथा िनमरल कर दो | आवश म आकर कोई िनणरय मत लो कोई िबया मत करो | सदा शानत वि धारण करन का अ यास करो | िवचारशील एव सनन रहो | ःवय अचल रहकर सागर की तरह सब वि य की तरग को अपन

भीतर समालो | जीवमाऽ को अपना ःवरप समझो | सबस ःनह रखो | िदल को यापक रखो | सकिच ता का िनवारण करत रहो | ख ड़ातमक वि का सवरथा तयाग करो | िजनको ानी महापरष का सतसग और अधयातमिव ा का लाभ िमल जाता ह उसक जीवन स

दःख िवदा होन लगत ह | ॐ आननद आतमिन ा म जाग हए महापरष क सतसग एव सतसािहतय स जीवन को भि और वदात स प

एव पलिकत करो | कछ ही िदन क इस सघन योग क बाद अनभव होन लगगा िक भतकाल क

नकारतमक ःवभाव सशयातमक-हािनकारक क पनाओ न जीवन को कचल ड़ाला था िवषला कर िदया था | अब िन यबल क चमतकार का पता चला | अततरम म आिवरभत िद य खज़ाना अब

िमला | ार ध की बिड़या अब टटन लगी | ठ क ह न करोग ना िह मत पढ़कर रख मत दना इस पिःतका को | जीवन म इसको बार-बार पढ़त रहो | एक िदन म यह पणर ना होगा | बार-बार अ यास करो | त हार िलय यह एक ही पिःतका काफ़ी ह | अनय कचराप टी ना पड़ोग तो चलगा | शाबाश वीर शाबाश

  • परसतावना
  • जीवन रसायन
  • गर भकति एक अमोघ साधना
  • शरी राम-वशिषठ सवाद
  • आतमबल का आवाहन
  • आतमबल कस जगाय
Page 12: जीवन रसायन - HariOmGroup · ‘जीवन रसायन’ का यह िदय कटोरा आत्मरस के िपपासुओं हाथ

मर अदर आरो यता व आनद का अनत ोत वािहत हो रहा हhellip मर अतराल म िद यामत का महासागर लहरा रहा ह | म अनभव कर रहा ह िक समम सख आरो यता शि मर भीतर ह | मर मन म अननत शि और सामथयर ह | म ःवःथ ह | पणर सनन ह | मर अदर-बाहर सवरऽ

परमातमा का काश फ़ला हआ ह | म िव प रिहत ह | सब नद स म ह | ःवग य सख मर अदर ह | मरा दय परमातमा का ग दश ह | िफ़र रोग-शोक वहा कस रह सकत ह म दवी ओज क मड़ल म िव हो चका ह | वह मर ःवाःथय का दश ह | म तज का पज ह | आरो यता का अवतार ह | याद रखो आपक अतःकरण म ःवाःथय सख आनद और शािनत ई रीय वरदान क रप म िव मान ह | अपन अतःकरण की आवाज़ सनकर िनशक जीवन यतीत करो | मन म स कि पत

रोग क िवचार को िनकाल दो | तयक िवचार भाव श द और कायर को ई रीय शि स पिरपणर रखो | ॐकार का सतत गजन करो | सबह-शाम उपरो िवचार का िचतन-मनन करन स िवशष लाभ होगा | ॐ आनदhellip ॐ शाितhellip

पणर ःवःथhellip पणर सननhellip 60) भय कवल अ ान की छाया ह दोष की काया ह मनय को धमरमागर स िगरान वाली आसरी माया ह | 61) याद रखो चाह समम ससार क तमाम पऽकार िननदक एकिऽत होकर आपक िवरध

आलोचन कर िफ़र भी आपका कछ िबगाड़ नही सकत | ह अमर आतमा ःवःथ रहो | 62) लोग ायः िजनस घणा करत ह ऐस िनधरन रोगी इतयािद को सा ात ई र समझकर उनकी सवा करना यह अननय भि एव आतम ान का वाःतिवक ःवरप ह | 63) रोज ातः काल उठत ही ॐकार का गान करो | ऐसी भावना स िच को सराबोर कर दो िक

lsquoम शरीर नही ह | सब ाणी कीट पतग गनधवर म मरा ही आतमा िवलास कर रहा ह | अर उनक

रप म म ही िवलास कर रहा ह | rsquo भया हर रोज ऐसा अ यास करन स यह िस ात दय म िःथर हो जायगा | 64) मी आग-पीछ का िचनतन नही करता | वह न तो िकसी आशका स भयभीत होता ह और न

व रमान पिरिःथित म माःपद म ीित क िसवाय अनय कही आराम पाता ह |

65) जस बालक ितिब ब क आौयभत दपरण की ओर धयान न दकर ितिब ब क साथ खलता ह जस पामर लोग यह समम ःथल पच क आौयभत आकाश की ओर धयान न दकर कवल

ःथल पच की ओर धयान दत ह वस ही नाम-रप क भ ःथल ि क लोग अपन दभार य क

कारण समम ससार क आौय सि चदाननद परमातमा का धयान न करक ससार क पीछ पागल

होकर भटकत रहत ह | 66) इस स पणर जगत को पानी क बलबल की तरह णभगर जानकर तम आतमा म िःथर हो जाओ | तम अ त ि वाल को शोक और मोह कस 67) एक आदमी आपको दजरन कहकर पिरि छनन करता ह तो दसरा आपको स जन कहकर भी पिरि छनन ही करता ह | कोई आपकी ःतित करक फला दता ह तो कोई िननदा करक िसकड़ा दता ह | य दोन आपको पिरि छनन बनात ह | भा यवान तो वह परष ह जो तमाम बनधन क िवर

खड़ा होकर अपन दवतव की अपन ई रतव की घोषणा करता ह अपन आतमःवरप का अनभव

करता ह | जो परष ई र क साथ अपनी अभदता पहचान सकता ह और अपन इदरिगदर क लोग क

सम समम ससार क सम िनडर होकर ई रतव का िनरपण कर सकता ह उस परष को ई र मानन क िलय सारा ससार बाधय हो जाता ह | परी सि उस अवय परमातमा मानती ह | 68) यह ःथल भौितक पदाथर इिनिय की ाित क िसवाय और कछ नही ह | जो नाम व रप पर भरोसा रखता ह उस सफलता नही िमलती | सआम िस ात अथारत सतय आतम-ततव पर िनभरर रहना ही सफलता की कजी ह | उस महण करो उसका मनन करो और यवहार करो | िफर नाम-

रप आपको खोजत िफरग | 69) सख का रहःय यह ह आप य - य पदाथ को खोजत-िफरत हो तय -तय उनको खोत

जात हो | आप िजतन कामना स पर होत हो उतन आवयकताओ स भी पर हो जात हो और पदाथर भी आपका पीछा करत हए आत ह | 70) आननद स ही सबकी उतपि आननद म ही सबकी िःथित एव आननद म ही सबकी लीनता दखन स आननद की पणरता का अनभव होता ह | 71) हम बोलना चहत ह तभी श दो चारण होता ह बोलना न चाह तो नही होता | हम दखना चाह तभी बाहर का य िदखता ह नऽ बद कर ल तो नही िदखता | हम जानना चाह तभी पदाथर का ान होता ह जानना नही चाह तो ान नही होता | अतः जो कोई पदाथर दखन सनन या जानन म

आता ह उसको बािधत करक बािधत करनवाली ानरपी बि की वि को भी बािधत कर दो | उसक बाद जो शष रह वह ाता ह | ाततव धमररिहत श ःवरप ाता ही िनतय सि चदाननद

ह | िनरतर ऐसा िववक करत हए ान व यरिहत कवल िचनमय िनतय िव ानाननदघनरप

म िःथर रहो | 72) यिद आप सवागपणर जीवन का आननद लना चाहत हो तो कल की िचनता छोड़ो | अपन चार

ओर जीवन क बीज बोओ | भिवय म सनहर ःवपन साकार होत दखन की आदत बनाओ | सदा क

िलय मन म यह बात पककी बठा दो िक आपका आनवाला कल अतयनत काशमय आननदमय

एव मधर होगा | कल आप अपन को आज स भी अिधक भा यवान पायग | आपका मन

सजरनातमक शि स भर जायगा | जीवन ऐ यरपणर हो जायगा | आपम इतनी शि ह िक िव न

आपस भयभीत होकर भाग खड़ ह ग | ऐसी िवचारधारा स िनि त रप स क याण होगा | आपक

सशय िमट जायग | 73) ओ मानव त ही अपनी चतना स सब वःतओ को आकषरक बना दता ह | अपनी यार भरी ि उन पर डालता ह तब तरी ही चमक उन पर चढ़ जाती ह औरhellipिफर त ही उनक यार म फ़स जाता ह | 74) मन िविचऽ एव अटपट माग ारा ऐस ततव की खोज की जो मझ परमातमा तक पहचा सक | लिकन म िजस-िजस नय मागर पर चला उन सब माग स पता चला िक म परमातमा स दर चला गया | िफर मन बि म ा एव िव ा स परमातमा की खोज की िफर भी परमातमा स अलग रहा | मनथालय एव िव ालय न मर िवचार म उ टी गड़बड़ कर दी | म थककर बठ गया | िनःत ध हो गया | सयोगवश अपन भीतर ही झाका धयान िकया तो उस अनत रि स मझ सवरःव िमला िजसकी खोज म बाहर कर रहा था | मरा आतमःवरप सवरऽ या हो रहा ह | 75) जस सामानय मनय को पतथर गाय भस ःवाभािवक रीित स ि गोचर होत ह वस ही ानी को िनजाननद का ःवाभािवक अनभव होता ह | 76) वदानत का यह अनभव ह िक नीच नराधम िपशाच शऽ कोई ह ही नही | पिवऽ ःवरप ही सवर रप म हर समय शोभायमान ह | अपन-आपका कोई अिन नही करता |

मर िसवा और कछ ह ही नही तो मरा अिन करन वाला कौन ह मझ अपन-आपस भय कसा 77) यह चराचर सि रपी त तब तक भासता ह जब तक उस दखनवाला मन बठा ह |

मन शात होत ही त की गध तक नही रहती |

78) िजस कार एक धाग म उ म मधयम और किन फल िपरोय हए ह उसी कार मर आतमःवरप म उ म मधयम और किन शरीर िपरोय हए ह | जस फल की गणव ा का भाव धाग पर नही पड़ता वस ही शरीर की गणव ा का भाव मरी सवर यापकता नही पड़ता | जस सब फल क िवनाश स धाग को कोई हािन नही वस शरीर क िवनाश स मझ सवरगत आतमा को कोई हािन नही होती | 79) म िनमरल िन ल अननत श अजर अमर ह | म असतयःवरप दह नही | िस परष इसीको lsquo ानrsquo कहत ह | 80) म भी नही और मझस अलग अनय भी कछ नही | सा ात आननद स पिरपणर कवल िनरनतर और सवरऽ एक ही ह | उ ग छोड़कर कवल यही उपासना सतत करत रहो | 81) जब आप जान लग िक दसर का िहत अपना ही िहत करन क बराबर ह और दसर का अिहत करना अपना ही अिहत करन क बराबर ह तब आपको धमर क ःवरप का सा तकार हो जायगा | 82) आप आतम-ित ा दलबनदी और ईयार को सदा क िलए छोड़ दो | पथवी माता की तरह सहनशील हो जाओ | ससार आपक कदम म नयोछावर होन का इतज़ार कर रहा ह | 83) म िनगरण िनिबय िनतय म और अ यत ह | म असतयःवरप दह नही ह | िस परष इसीको lsquo ानrsquo कहत ह | 84) जो दसर का सहारा खोजता ह वह सतयःवरप ई र की सवा नही कर सकता | 85) सतयःवरप महापरष का म सख-दःख म समान रहता ह सब अवःथाओ म हमार अनकल रहता ह | दय का एकमाऽ िवौामःथल वह म ह | व ावःथा उस आतमरस को सखा नही सकती | समय बदल जान स वह बदलता नही | कोई िवरला भा यवान ही ऐस िद य म का भाजन बन सकता ह | 86) शोक और मोह का कारण ह ािणय म िविभनन भाव का अधयारोप करना | मनय जब एक को सख दनवाला यारा स द समझता ह और दसर को दःख दनवाला शऽ समझकर उसस ष करता ह तब उसक दय म शोक और मोह का उदय होना अिनवायर

ह | वह जब सवर ािणय म एक अख ड स ा का अनभव करन लगगा ािणमाऽ को भ का पऽ समझकर उस आतमभाव स यार करगा तब उस साधक क दय म शोक और मोह का नामोिनशान नही रह जायगा | वह सदा सनन रहगा | ससार म उसक िलय न ही कोई शऽ रहगा और न ही कोई िमऽ | उसको कोई कलश नही पहचायगा | उसक सामन िवषधर नाग भी अपना ःवभाव भल जायगा | 87) िजसको अपन ाण की परवाह नही मतय का नाम सनकर िवचिलत न होकर उसका ःवागत करन क िलए जो सदा ततपर ह उसक िलए ससार म कोई कायर असाधय नही | उस िकसी बा श की जररत नही साहस ही उसका श ह | उस श स वह अनयाय का प लनवाल को परािजत कर दता ह िफर भी उनक िलए बर िवचार का सवन नही करता | 88) िचनता ही आननद व उ लास का िवधवस करनवाली रा सी ह | 89) कभी-कभी मधयरािऽ को जाग जाओ | उस समय इिनिया अपन िवषय क ित चचल नही रहती | बिहमरख ःफरण की गित मनद होती ह | इस अवःथा का लाभ लकर इिनियातीत अपन िचदाकाश ःवरप का अनभव करो | जगत शरीर व इिनिय क अभाव म भी अपन अख ड अिःततव को जानो | 90) य म ीित नही रहना ही असली वरा य ह | 91) रोग हम दबाना चाहता ह | उसस हमार िवचार भी मनद हो जात ह | अतः रोग की िनवित करनी चिहए | लिकन जो िवचारवान परष ह वह कवल रोगिनवित क पीछ ही नही लग जाता | वह तो यह िनगरानी रखता ह िक भयकर दःख क समय भी अपना िवचार छट तो नही गया ऐसा परष lsquoहाय-हायrsquo करक ाण नही तयागता कय िक वह जानता ह िक रोग उसका दास ह | रोग कसा भी भय िदखाय लिकन िवचारवान परष इसस भािवत नही होता | 92) िजस साधक क पास धारणा की ढ़ता एव उ य की पिवऽता य दो गण ह ग वह अवय िवजता होगा | इन दो शा स ससि जत साधक समःत िव न-बाधाओ का सामना करक आिखर म िवजयपताका फहरायगा | 93) जब तक हमार मन म इस बात का पकका िन य नही होगा िक सि शभ ह तब तक मन एकाम नही होगा | जब तक हम समझत रहग िक सि िबगड़ी हई ह तब तक

मन सशक ि स चार ओर दौड़ता रहगा | सवरऽ मगलमय ि रखन स मन अपन-आप शात होन लगगा | 94) आसन िःथर करन क िलए सक प कर िक जस पथवी को धारण करत हए भी शषजी िब कल अचल रहत ह वस म भी अचल रहगा | म शरीर और ाण का ा ह | 95) lsquoससार िमथया हrsquo - यह मद ानी की धारणा ह | lsquoससार ःव नवत हrsquo - यह मधयम ानी की धारणा ह | lsquoससार का अतयनत अभाव ह ससार की उतपि कभी हई ही नहीrsquo -

यह उ म ानी की धारणा ह | 96) आप यिद भि मागर म ह तो सारी सि भगवान की ह इसिलए िकसीकी भी िननदा करना ठ क नही | आप यिद ानमागर म ह तो यह सि अपना ही ःवरप ह | आप अपनी ही िननदा कस कर सकत ह इस कार द नो माग म परिननदा का अवकाश ही नही ह | 97) य म ा का भान एव ा म य का भान हो रहा ह | इस गड़बड़ का नाम ही अिववक या अ ान ह | ा को ा तथा य को य समझना ही िववक या ान ह | 98) आसन व ाण िःथर होन स शरीर म िव त पदा होती ह | शरीर क ारा जब भी िबया की जाती ह तब वह िव त बाहर िनकल जाती ह | इस िव त को शरीर म रोक लन स शरीर िनरोगी बन जाता ह | 99) ःव न की सि अ पकालीन और िविचऽ होती ह | मनय जब जागता ह तब जानता ह िक म पलग पर सोया ह | मझ ःव न आया | ःव न म पदाथर दश काल िबया इतयािद परी सि का सजरन हआ | लिकन मर िसवाय और कछ भी न था | ःव न की सि झठ थी | इसी कार ततव ानी परष अ ानरपी िनिा स ानरपी जामत अवःथा को ा हए ह | व कहत ह िक एक क िसवा अनय कछ ह ही नही | जस ःव न स जागन क बाद हम ःव न की सि िमथया लगती ह वस ही ानवान को यह जगत िमथया लगता ह | 100) शारीिरक क पड़ तब ऐसी भावना हो जाय िक lsquoयह क मर यार भ की ओर स हhelliprsquo तो वह क तप का फल दता ह | 101) चलत-चलत पर म छाल पड़ गय ह भख याकल कर रही हो बि िवचार

करन म िशिथल हो गई हो िकसी पड़ क नीच पड़ ह जीवन अस भव हो रहा हो मतय का आगमन हो रहा हो तब भी अनदर स वही िनभरय धविन उठ lsquoसोऽहमhellipसोऽहमhellipमझ भय नहीhellipमरी मतय नहीhellipमझ भख नहीhellip यास नहीhellip कित की कोई भी यथा मझ न नही कर सकतीhellipम वही हhellipवही हhelliprsquo 102) िजनक आग िय-अिय अनकल-ितकल सख-दःख और भत-भिवय एक समान ह ऐस ानी आतमव ा महापरष ही स च धनवान ह | 103) दःख म दःखी और सख म सखी होन वाल लोह जस होत ह | दःख म सखी रहन वाल सोन जस होत ह | सख-दःख म समान रहन वाल र जस होत ह परनत जो सख-दःख की भावना स पर रहत ह व ही स च साट ह | 104) ःव न स जाग कर जस ःव न को भल जात ह वस जामत स जागकर थोड़ी दर क

िलए जामत को भल जाओ | रोज ातः काल म पनिह िमनट इस कार ससार को भल जान की आदत डालन स आतमा का अनसधान हो सकगा | इस योग स सहजावःथा ा होगी | 105) तयाग और म स यथाथर ान होता ह | दःखी ाणी म तयाग व म िवचार स आत ह

| सखी ाणी म तयाग व म सवा स आत ह कय िक जो ःवय दःखी ह वह सवा नही कर सकता पर िवचार कर सकता ह | जो सखी ह वह सख म आस होन क कारण उसम िवचार का उदय नही हो सकता लिकन वह सवा कर सकता ह | 106) लोग की पजा व णाम स जसी सननता होती ह वसी ही सननता जब मार पड़

तब भी होती हो तो ही मन य िभ ानन महण करन का स चा अिधकारी माना जाता ह | 107) हरक साधक को िब कल नय अनभव की िदशा म आग बढ़ना ह | इसक िलय

ानी महातमा की अतयनत आवयकता होती ह | िजसको स ची िज ासा हो उस ऐस

महातमा िमल ही जात ह | ढ़ िज ासा स िशय को गर क पास जान की इ छा होती ह | यो य

िज ास को समथर गर ःवय दशरन दत ह | 108) बीत हए समय को याद न करना भिवय की िचनता न करना और व रमान म ा

सख-दःखािद म सम रहना य जीवनम परष क ल ण ह | 109) जब बि एव दय एक हो जात ह तब सारा जीवन साधना बन जाता ह |

110) बि मान परष ससार की िचनता नही करत लिकन अपनी मि क बार म सोचत ह |

मि का िवचार ही तयागी दानी सवापरायण बनाता ह | मो की इ छा स सब सदगण आ जात ह

| ससार की इ छा स सब दगरण आ जात ह | 111) पिरिःथित िजतनी किठन होती ह वातावरण िजतना पीड़ाकारक होता ह उसस

गजरन वाला उतना ही बलवान बन जाता ह | अतः बा क और िचनताओ का ःवागत करो | ऐसी पिरिःथित म भी वदानत को आचरण म लाओ | जब आप वदानती जीवन यतीत करग तब दखग

िक समःत वातावरण और पिरिःथितया आपक वश म हो रही ह आपक िलय उपयोगी िस हो रही ह | 112) हरक पदाथर पर स अपन मोह को हटा लो और एक सतय पर एक तथय पर अपन

ई र पर समम धयान को किनित करो | तरनत आपको आतम-सा ातकार होगा | 113) जस बड़ होत-होत बचपन क खलकद छोड़ दत हो वस ही ससार क खलकद छोड़कर आतमाननद का उपभोग करना चािहय | जस अनन व जल का सवन करत हो वस ही आतम-

िचनतन का िनरनतर सवन करना चािहय | भोजन ठ क स होता ह तो ति की डकार आती ह वस

ही यथाथर आतमिचनतन होत ही आतमानभव की डकार आयगी आतमाननद म मःत ह ग |

आतम ान क िसवा शाित का कोई उपाय नही | 114) आतम ानी क हकम स सयर काशता ह | उनक िलय इनि पानी बरसाता ह | उनही क

िलय पवन दत बनकर गमनागमन करता ह | उनही क आग समि रत म अपना िसर रगड़ता ह | 115) यिद आप अपन आतमःवरप को परमातमा समझो और अनभव करो तो आपक सब

िवचार व मनोरथ सफल ह ग उसी ण पणर ह ग | 116) राजा-महाराजा दवी-दवता वद-पराण आिद जो कछ ह व आतमदश क सक पमाऽ

ह | 117) जो लोग ितकलता को अपनात ह ई र उनक स मख रहत ह | ई र िजनह अपन

स दर रखना चाहत ह उनह अनकल पिरिःथितया दत ह | िजसको सब वःतए अनकल एव पिवऽ

सब घटनाए लाभकारी सब िदन शभ सब मनय दवता क रप म िदखत ह वही परष ततवदश ह | 118) समता क िवचार स िच ज दी वश म होता ह हठ स नही |

119) ऐस लोग स स बनध रखो िक िजसस आपकी सहनशि बढ़ समझ की शि बढ़

जीवन म आन वाल सख-दःख की तरग का आपक भीतर शमन करन की ताकत आय समता बढ़

जीवन तजःवी बन | 120) लोग बोलत ह िक धयान व आतमिचनतन क िलए हम फरसत नही िमलती | लिकन

भल मनय जब नीद आती ह तब सब महतवपणर काम भी छोड़कर सो जाना पड़ता ह िक नही

जस नीद को महतव दत हो वस ही चौबीस घनट म स कछ समय धयान व आतमिचनतन म भी िबताओ | तभी जीवन साथरक होगा | अनयथा कछ भी हाथ नही लगगा | 121) भल जाओ िक तम मनय हो अमक जाित हो अमक उ हो अमक िड़मीवाल हो अमक धनधवाल हो | तम िनगरण िनराकार सा ीरप हो ऐसा ढ़ िन य करो | इसीम तमाम

कार की साधनाए िबयाए योगािद समािव हो जात ह | आप सवर यापक अख ड चतनय हो | सार ान का यह मल ह | 122) दोष तभी िदखता जब हमार लोचन म क अभावरप पीिलया रोग स मःत होत ह | 123) साधक यिद अ यास क मागर पर उसी कार आग बढ़ता जाय िजस कार ार भ

म इस मागर पर चलन क िलए उतसाहपवरक कदम रखा था तो आयरपी सयर अःत होन स पहल

जीवनरपी िदन रहत ही अवय सोऽहम िसि क ःथान तक पहच जाय | 124) लोग ज दी स उननित कय नही करत कय िक बाहर क अिभाय एव िवचारधाराओ का बहत बड़ा बोझ िहमालय की तरह उनकी पीठ पर लदा हआ ह | 125) अपन ित होन वाल अनयाय को सहन करत हए अनयायकतार को यिद मा कर िदया जाय तो ष म म पिरणत हो जाता ह | 126) साधना की शरआत ौ ा स होती ह लिकन समाि ान स होनी चािहय | ान मान

ःवयसिहत सवर ःवरप ह ऐसा अपरो अनभव | 127) अपन शरीर क रोम-रोम म स ॐ का उ चारण करो | पहल धीम ःवर म ार भ

करो | शर म धविन गल स िनकलगी िफर छाती स िफर नािभ स और अनत म रीढ़ की ह डी क

आिखरी छोर स िनकलगी | तब िव त क धकक स सष ना नाड़ी तरनत खलगी | सब कीटाणसिहत

तमाम रोग भाग खड़ ह ग | िनभरयता िह मत और आननद का फ वारा छटगा | हर रोज ातःकाल

म ःनानािद करक सय दय क समय िकसी एक िनयत ःथान म आसन पर पवारिभमख बठकर

कम-स-कम आधा घनटा करक तो दखो | 128) आप जगत क भ बनो अनयथा जगत आप पर भतव जमा लगा | ान क

मतािबक जीवन बनाओ अनयथा जीवन क मतािबक ान हो जायगा | िफर यग की याऽा स भी दःख का अनत नही आयगा | 129) वाःतिवक िश ण का ारभ तो तभी होता ह जब मनय सब कार की सहायताओ स िवमख होकर अपन भीतर क अननत ॐोत की तरफ अमसर होता ह | 130) य पच की िनवित क िलए अनतःकरण को आननद म सरोबार रखन क िलए

कोई भी कायर करत समय िवचार करो म कौन ह और कायर कौन कर रहा ह भीतर स जवाब

िमलगा मन और शरीर कायर करत ह | म सा ीःवरप ह | ऐसा करन स कतारपन का अह

िपघलगा सख-दःख क आघात मनद ह ग | 131) राग- ष की िनवित का कया उपाय ह उपाय यही ह िक सार जगत-पच को मनोरा य समझो | िननदा-ःतित स राग- ष स पच म सतयता ढ़ होती ह | 132) जब कोई खनी हाथ आपकी गरदन पकड़ ल कोई श धारी आपको कतल करन क

िलए ततपर हो जाय तब यिद आप उसक िलए सननता स तयार रह दय म िकसी कार का भय

या िवषाद उतपनन न हो तो समझना िक आपन राग- ष पर िवजय ा कर िलया ह | जब आपकी ि पड़त ही िसहािद िहसक जीव की िहसावित गायब हो जाय तब समझना िक अब राग- ष का अभाव हआ ह | 133) आतमा क िसवाय अनय कछ भी नही ह - ऐसी समझ रखना ही आतमिन ा ह | 134) आप ःव न ा ह और यह जगत आपका ही ःव न ह | बस िजस ण यह ान हो जायगा उसी ण आप म हो जाएग | 135) िदन क चौबीस घ ट को साधनामय बनान क िलय िनक मा होकर यथर िवचार करत हए मन को बार-बार सावधान करक आतमिचतन म लगाओ | ससार म सल न मन को वहा स उठा कर आतमा म लगात रहो | 136) एक बार सागर की एक बड़ी तरग एक बलबल की िता पर हसन लगी | बलबल न

कहा ओ तरग म तो छोटा ह िफर भी बहत सखी ह | कछ ही दर म मरी दह टट जायगी िबखर

जायगी | म जल क साथ जल हो जाऊगा | वामन िमटकर िवराट बन जाऊगा | मरी मि बहत

नजदीक ह | मझ आपकी िःथित पर दया आती ह | आप इतनी बड़ी हई हो | आपका छटकारा ज दी नही होगा | आप भाग-भागकर सामनवाली च टान स टकराओगी | अनक छोटी-छोटी तरग

म िवभ हो जाओगी | उन अस य तरग म स अननत-अननत बलबल क रप म पिरवितरत हो जाओगी | य सब बलबल फटग तब आपका छटकारा होगा | बड़ पन का गवर कय करती हो जगत की उपलि धय का अिभमान करक परमातमा स दर मत जाओ | बलबल की तरह सरल

रहकर परमातमा क साथ एकता का अनभव करो | 137) जब आप ईयार ष िछिानवषण दोषारोपण घणा और िननदा क िवचार िकसीक

ित भजत ह तब साथ-ही-साथ वस ही िवचार को आमिऽत भी करत ह | जब आप अपन भाई की आख म ितनका भ कत ह तब अपनी आख म भी आप ताड़ भ क रह ह | 138) शरीर अनक ह आतमा एक ह | वह आतमा-परमातमा मझस अलग नही | म ही कतार सा ी व नयायधीश ह | म ही ककर श आलोचक ह और म ही मधर शसक ह | मर िलय तयक

यि ःवतऽ व ःव छनद ह | बनधन पिरि छननता और दोष मरी ि म आत ही नही | म म

हपरम म ह और अनय लोग भी ःवतऽ ह | ई र म ही ह | आप भी वही हो | 139) िजस कार बालक अपनी परछा म बताल की क पना कर भय पाता ह उसी कार जीव अपन ही सक प स भयभीत होता ह और क पाता ह | 140) कभी-कभी ऐसी भावना करो िक आपक सामन चतनय का एक महासागर लहरा रहा ह | उसक िकनार खड़ रह कर आप आनद स उस दख रह ह | आपका शरीर सागर की सतह पर घमन गया ह | आपक दखत ही दखत वह सागर म डब गया | इस समःत पिरिःथित को दखन वाल आप सा ी आतमा शष रहत ह | इस कार सा ी रप म अपना अनभव करो | 141) यिद हम चाहत ह िक भगवान हमार सब अपराध माफ कर तो इसक िलए सगम साधना यही ह िक हम भी अपन सबिधत सब लोग क सब अपराध माफ कर द |

कभी िकसी क दोष या अपराध पर ि न डाल कय िक वाःतव म सब रप म हमारा यारा ई दव ही बीड़ा कर रहा ह |

142) पणर पिवऽता का अथर ह बा भाव स भािवत न होना | सासािरक मनोहरता एव घणा स पर रहना राजी-नाराजगी स अिवचल िकसी म भद न दखना और आतमानभव क ारा आकषरण व तयाग स अिल रहना | यही वदानत का उपिनषद का

रहःय ह | 143) ई र सा ातकार तभी होगा जब ससार की ि स तीत होन वाल बड़-स-बड़ विरय को भी मा करन का आपका ःवभाव बन जायगा | 144) चाल यवहार म स एकदम उपराम होकर दो िमनट क िलए िवराम लो |

सोचो िक lsquo म कौन ह सद -गम शरीर को लगती ह | भख- यास ाण को लगती ह |

अनकलता-ितकलता मन को लगती ह | शभ-अशभ एव पाप-प य का िनणरय बि करती ह | म न शरीर ह न ाण ह न मन ह न बि ह | म तो ह इन सबको स ा दन वाला इन सबस नयारा िनलप आतमा |rsquo 145) जो मनय िनरतर lsquoम म हhelliprsquo ऐसी भावना करता ह वह म ही ह और lsquoम ब हhelliprsquo ऐसी भावना करनवाला ब ही ह | 146) आप िनभरय ह िनभरय ह िनभरय ह | भय ही मतय ह | भय ही पाप ह | भय ही नकर ह | भय ही अधमर ह | भय ही यिभचार ह | जगत म िजतन असत या िमथया भाव ह व सब इस भयरपी शतान स पदा हए ह | 147) परिहत क िलए थोड़ा काम करन स भी भीतर की शि या जागत होती ह |

दसर क क याण क िवचारमाऽ स दय म एक िसह क समान बल आ जाता ह | 148) हम यिद िनभरय ह ग तो शर को भी जीतकर उस पाल सक ग | यिद डरग तो क ा भी हम फ़ाड़ खायगा | 149) तयक िबया तयक यवहार तयक ाणी ःवरप िदख यही सहज समािध ह | 150) जब किठनाईया आय तब ऐसा मानना िक मझ म सहन शि बढ़ान क िलए ई र न य सयोग भज ह | किठन सयोग म िह मत रहगी तो सयोग बदलन लगग |

िवषय म राग- ष रह गया होगा तो वह िवषय कसौटी क रप म आग आयग और उनस पार होना पड़गा | 151) ततव ि स न तो आपन जनम िलया न कभी लग | आप तो अनत ह सवर यापी ह िनतयम अजर-अमर अिवनाशी ह | जनम-मतय का ही गलत ह महा-

मखरतापणर ह | जहा जनम ही नही हआ वहा मतय हो ही कस सकती ह 152) आप ही इस जगत क ई र हो | आपको कौन दबरल बना सकता ह जगत म आप ही एकमाऽ स ा हो | आपको िकसका भय खड़ हो जाओ | म हो जाओ | ठ क स समझ लो िक जो कोई िवचार या श द आपको दबरल बनाता ह वही एकमाऽ अशभ ह | मनय को दबरल व भयभीत करनवाला जो कछ इस ससार म ह वह पाप ह | 153) आप अपना कायर या कतर य करो लिकन न उसक िलए कोई िचनता रह न ही कोई

इ छा | अपन कायर म सख का अनभव करो कय िक आपका कायर ःवय सख या िवौाम ह | आपका कायर आतमानभव का ही दसरा नाम ह | कायर म लग रहो | कायर आपको आतमानभव कराता ह |

िकसी अनय हत स कायर न करो | ःवतऽ वि स अपन कायर पर डट जाओ | अपन को ःवतऽ

समझो िकसीक कदी नही | 154) यिद आप सतय क मागर स नही हटत तो शि का वाह आपक साथ ह समय आपक

साथ ह ऽ आपक साथ ह | लोग को उनक भतकाल की मिहमा पर फलन दो भिवयकाल की स पणर मिहमा आपक हाथ म ह | 155) जब आप िद य म क साथ चा डाल म चोर म पापी म अ यागत म और सबम भ क दशरन करग तब आप भगवान ौी कण क मपाऽ बन जायग | 156) आचायर गौड़पाद न ःप कहा आप सब आपस म भल ही लड़त रह लिकन मर साथ नही लड़ सक ग | आप सब लोग मर पट म ह | म आतमःवरप स सवर या ह | 157) मनय सभी ािणय म ौ ह सब दवताओ स भी ौ ह | दवताओ को भी िफर स

धरती पर आना पड़गा और मनय शरीर ा करक मि ा करनी होगी | 158) िनि नतता क दो सऽ जो कायर करना जररी ह उस परा कर दो | जो िबनजररी ह

उस भल जाओ | 159) सवा-म-तयाग ही मनय क िवकास का मल मऽ ह | अगर यह मऽ आपको जच

जाय तो सभी क ित सदभाव रखो और शरीर स िकसी-न-िकसी यि को िबना िकसी मतलब क

सहयोग दत रहो | यह नही िक जब मरी बात मानग तब म सवा करगा | अगर बनधक मरी बात

नही मानत तो म सवा नही करगा |

भाई तब तो तम सवा नही कर पाओग | तब तो तम अपनी बात मनवा कर अपन अह की पजा ही

करोग | 160) जस ःव न िमथया ह वस ही यह जामत अवःथा भी ःव नवत ही ह िमथया ह | हरक

को अपन इस ःव न स जागना ह | सदगर बार-बार जगा रह ह लिकन जाग कर वापस सो न जाए ऐसा परषाथर तो हम ही करना होगा | 161) सदा सननमख रहो | मख को कभी मिलन मत करो | िन य कर लो िक आपक

िलय शोक न इस जगत म जनम नही िलया ह | आननदःवरप म िचनता का ःथान ही कहा ह 162) समम ा ड एक शरीर ह | समम ससार एक शरीर ह | जब तक आप तयक क

साथ एकता का अनभव करत रहग तब तक सब पिरिःथितया और आस-पास की चीज़ हवा और समि की लहर भी आपक प म रहगी | 163) आपको जो कछ शरीर स बि स या आतमा स कमजोर बनाय उसको िवष की तरह

ततकाल तयाग दो | वह कभी सतय नही हो सकता | सतय तो बलद होता ह पावन होता ह

ानःवरप होता ह | सतय वह ह जो शि द | 164) साधना म हमारी अिभरिच होनी चािहय साधना की तीो माग होनी चािहय | 165) दसर क दोष की चचार मत करो चाह व िकतन भी बड़ ह | िकसी क दोष की चचार करक आप उसका िकसी भी कार भला नही करत बि क उस आघात पहचात ह और साथ-ही-साथ अपन आपको भी | 166) इस ससार को सतय समझना ही मौत ह | आपका असली ःवरप तो आननदःवरप

आतमा ह | आतमा क िसवा ससार जसी कोई चीज ही नही ह | जस सोया हआ मनय ःव न म अपनी एकता नही जानता अिपत अपन को अनक करक दखता ह वस ही आननदःवरप आतमा जामत ःव न और सषि - इन तीन ःवरप को दखत हए अपनी एकता अि तीयता का अनभव

नही करता | 167) मनोजय का उपाय ह अ यास और वरा य | अ यास मान य पवरक मन को बार-बार परमातम-िचतन म लगाना और वरा य मान मन को ससार क पदाथ की ओर स वापस

लौटाना | 168) िकसी स कछ मत मागो | दन क िलय लोग आपक पीछ-पीछ घमग | मान नही

चाहोग तो मान िमलगा | ःवगर नही चाहोग तो ःवगर क दत आपक िलय िवमान लकर आयग |

उसको भी ःवीकार नही करोग तो ई र आपको अपन दय स लगायग | 169) कभी-कभी उदय या अःत होत हए सयर की ओर चलो | नदी सरोवर या समि क तट

पर अकल घमन जाओ | ऐस ःथान की मलाकात लो जहा शीतल पवन मनद-मनद चल रही हो | वहा परमातमा क साथ एकःवर होन की स भावना क ार खलत ह | 170) आप य -ही इ छा स ऊपर उठत हो तय -ही आपका इि छत पदाथर आपको खोजन

लगता ह | अतः पदाथर स ऊपर उठो | यही िनयम ह | य - य आप इ छक िभ क याचक का भाव धारण करत हो तय -तय आप ठकराय जात हो | 171) कित क तयक पदाथर को दखन क िलय काश जररी ह | इसी कार मन बि

इिनिय को अपन-अपन कायर करन क िलय आतम-काश की आवयकता ह कय िक बाहर का कोई काश मन बि इिनिय ाणािद को चतन करन म समथर नही | 172) जस ःव न ा परष को जागन क बाद ःव न क सख-दःख जनम-मरण पाप-प य

धमर-अधमर आिद ःपशर नही करत कय िक वह सब खद ही ह | खद क िसवाय ःव न म दसरा कछ

था ही नही | वस ही जीवनम ानवान परष को सख-दःख जनम-मरण पाप-प य धमर-अधमर ःपशर नही करत कय िक व सब आतमःवरप ही ह | 173) वही भमा नामक आतम योित क म रह कर भ क रही ह सअर म रह कर घर रही ह गध म रह कर रक रही ह लिकन मखर लोग शरीर पर ही ि रखत ह चतनय ततव पर नही | 174) मनय िजस ण भत-भिवय की िचनता का तयाग कर दता ह दह को सीिमत और उतपि -िवनाशशील जानकर दहािभमान को तयाग दता ह उसी ण वह एक उ चतर अवःथा म पहच जाता ह | िपजर स छटकर गगनिवहार करत हए प ी की तरह मि का अनभव करता ह | 175) समःत भय एव िचनताए आपकी इ छाओ का णाम ह | आपको भय कय लगता ह

कय िक आपको आशका रहती ह िक अमक चीज कही चली न जाय | लोग क हाःय स आप डरत

ह कय िक आपको यश की अिभलाषा ह कीितर म आसि ह | इ छाओ को ितलाजिल द दो | िफर दखो मजा कोई िज मदारी नहीकोई भय नही | 176) दखन म अतयत करप काला-कलटा कबड़ा और तज ःवभाव का मनय भी आपका ही ःवरप ह | आप इस तथय स म नही | िफर घणा कसी कोई लाव यमयी सदरी सि की

शोभा क समान अित िवलासभरी अ सरा भी आपका ही ःवरप ह | िफर आसि िकसकी

आपकी ानिनिया उनको आपस अलग करक िदखाती ह | य इिनिया झठ बोलनवाली ह | उनका कभी िव ास मत करो | अतः सब कछ आप ही हो | 177) मानव क नात हम साधक ह | साधक होन क नात सतय को ःवीकर करना हमारा ःवधमर ह | सतय यही ह िक बल दसर क िलय ह ान अपन िलय ह और िव ास परमातमा स

स बनध जोड़न क िलय ह | 178) अपनी आतमा म डब जाना यह सबस बड़ा परोपकार ह | 179) आप सदव म ह ऐसा िव ास ढ़ करो तो आप िव क उ ारक हो जात हो | आप

यिद वदानत क ःवर क साथ ःवर िमलाकर िन य करो आप कभी शरीर न थ | आप िनतय श

ब आतमा हो तो अिखल ा ड क मो दाता हो जात हो | 180) कपा करक उन ःवाथरमय उपाय और अिभाय को दर फ क दो जो आपको पिरि छनन रखत ह | सब वासनाए राग ह | यि गत या शरीरगत म आसि ह | उस फ क दो | ःवय पिवऽ हो जाओ | आपका शरीर ःवःथ और बि पणरःवरप हो जायगी | 181) यिद ससार क सख व पदाथर ा ह तो आपको कहना चािहय ओ शतान हट जा मर सामन स | तर हाथ स मझ कछ नही चािहय | तब दखो िक आप कस सखी हो जात हो परमातमा-ा िकसी महापरष पर िव ास रखकर अपनी जीवनडोरी िनःशक बन उनक चरण म सदा क िलय रख दो | िनभरयता आपक चरण की दासी बन जायगी | 182) िजसन एक बार ठ क स जान िलया िक जगत िमथया ह और ािनत स इसकी तीित

हो रही ह उसको कभी दःख नही होता | जगत म कभी आसि नही होती | जगत क िमथयातव क

िन य का नाम ही जगत का नाश ह | 183) अपन ःवरप म लीन होन माऽ स आप ससार क साट बन जायग | यह साटपद

कवल इस ससार का ही नही समःत लोक-परलोक का साटपद होगा | 184) ह जनक चाह दवािधदव महादव आकर आपको उपदश द या भगवान िवण आकर उपदश द अथवा ाजी आकर उपदश द लिकन आपको कदािप सख न होगा | जब िवषय का तयाग करोग तभी स ची शाित व आनद ा ह ग |

185) िजस भ न हम मानव जीवन दकर ःवाधीनता दी िक हम जब चाह तब धमारतमा होकर भ होकर जीवनम होकर कतकतय हो सकत ह- उस भ की मिहमा गाओ | गाओ नही तो सनो | सनो भी नही गाओ भी नही तो ःवीकार कर लो | 186) चाह समि क गहर तल म जाना पड़ सा ात मतय का मकाबला करना पड़ अपन

आतमाि क उ य की पितर क िलय अिडग रहो | उठो साहसी बनो शि मान बनो | आपको जो बल व सहायता चािहय वह आपक भीतर ही ह | 187) जब-जब जीवन स बनधी शोक और िचनता घरन लग तब-तब अपन आननदःवरप

का गान करत-करत उस मोह-माया को भगा दो | 188) जब शरीर म कोई पीड़ा या अग म ज म हो तब म आकाशवत आकाशरिहत चतन

ह ऐसा ढ़ िन य करक पीड़ा को भल जाओ | 189) जब दिनया क िकसी चककर म फस जाओ तब म िनलप िनतय म ह ऐसा ढ़

िन य करक उस चककर स िनकल जाओ | 190) जब घर-बार स बनधी कोई किठन समःया याकल कर तब उस मदारी का खल

समझकर ःवय को िनःसग जानकर उस बोझ को ह का कर दो | 191) जब बोध क आवश म आकर कोई अपमानय वचन कह तब अपन शाितमय

ःवरप म िःथर होकर मन म िकसी भी ोभ को पदा न होन दो | 192) उ म अिधकारी िज ास को चािहय िक वह व ा सदगर क पास जाकर ौ ा पवरक महावाकय सन | उसका मनन व िनिदधयासन करक अपन आतमःवरप को जान | जब

आतमःवरप का सा ातकार होता ह तब ही परम िवौािनत िमल सकती ह अनयथा नही | जब तक

व ा महापरष स महावाकय ा न हो तब तक वह मनद अिधकारी ह | वह अपन दयकमल म परमातमा का धयान कर ःमरण कर जप कर | इस धयान-जपािद क साद स उस व ा सदगर

ा ह ग | 193) मन बि िच अहकार छाया की तरह जड़ ह णभगर ह कय िक व उतपनन होत

ह और लीन भी हो जात ह | िजस चतनय की छाया उसम पड़ती ह वह परम चतनय सबका आतमा ह | मन बि िच अहकार का अभाव हो जाता ह लिकन उसका अनभव करनवाल का अभाव

कदािप नही होता |

194) आप अपनी शि को उ चाितउ च िवषय की ओर बहन दो | इसस आपक पास व

बात सोचन का समय ही नही िमलगा िजसस कामकता की गध आती हो | 195) अपराध क अनक नाम ह बालहतया नरहतया मातहतया गौहतया इतयािद |

परनत तयक ाणी म ई र का अनभव न करक आप ई रहतया का सबस बड़ा अपराध करत ह | 196) सवा करन की ःवाधीनता मनयमाऽ को ा ह | अगर वह करना ही न चाह तो अलग बात ह | सवा का अथर ह मन-वाणी-कमर स बराईरिहत हो जाना यह िव की सवा हो गई |

यथाशि भलाई कर दो यह समाज की सवा हो गई | भलाई का फल छोड़ दो यह अपनी सवा हो गई

| भ को अपना मानकर ःमित और म जगा लो यह भ की सवा हो गई | इस कार मनय

अपनी सवा भी कर सकता ह समाज की सवा भी कर सकता ह िव की सवा भी कर सकता ह

और िव र की सवा भी कर सकता ह | 197) आतमा स बाहर मत भटको अपन कनि म िःथर रहो अनयथा िगर पड़ोग | अपन-

आपम पणर िव ास रखो | आतम-कनि पर अचल रहो | िफर कोई भी चीज आपको िवचिलत नही कर सकती | 198) सदा शात िनिवरकार और सम रहो | जगत को खलमाऽ समझो | जगत स भािवत

मत हो | इसस आप हमशा सखी रहोग | िफर कछ बढ़ान की इ छा नही होगी और कछ कम होन स

दःख नही होगा | 199) समथर सदगर क सम सदा फल क भाित िखल हए रहो | इसस उनक अनदर सक प

होगा िक यह तो बहत उतसाही साधक ह सदा सनन रहता ह | उनक सामथयरवान सक प स

आपकी वह किऽम सननता भी वाःतिवक सननता म बदल जायगी | 200) यिद रोग को भी ई र का िदया मानो तो ार ध-भोग भी हो जाता ह और क तप का फल दता ह | इसस ई र-कपा की ाि होती ह | याकल मत हो | क सल और इनजकशन

आधीन मत हो | 201) साधक को चािहय िक अपन लआय को ि म रखकर साधना-पथ पर तीर की तरह

सीधा चला जाय | न इधर दख न उधर | ि यिद इधर-उधर जाती हो तो समझना िक िन ा िःथर नही ह |

202) आपन अपन जीवन म हजार ःव न दख ह ग लिकन व आपक जीवन क अश नही बन जात | इसी कार य जामत जगत क आड बर आपकी आतमा क सम कोई मह व नही रखत | 203) एक आतमा को ही जानो अनय बात को छोड़ो | धीर साधक को चािहय िक वह

सावधान होकर आतमिन ा बढ़ाय अनक श द का िचनतन व भाषण न कर कय िक वह तो कवल

मन-वाणी को पिरौम दनवाला ह असली साधना नही ह | 204) जो परष जन-समह स ऐस डर जस साप स डरता ह स मान स ऐस डर जस नकर स

डरता ह ि य स ऐस डर जस मद स डरता ह उस परष को दवतागण ा ण मानत ह | 205) जस अपन शरीर क अग पर बोध नही आता वस शऽ िमऽ व अपनी दह म एक ही आतमा को दखनवाल िववकी परष को कदािप बोध नही आता | 206) मन तो शरीर को ई रापरण कर िदया ह | अब उसकी भख- यास स मझ कया

समिपरत वःत म आस होना महा पाप ह | 207) आप यिद िद य ि पाना चहत हो तो आपको इिनिय क ऽ का तयाग करना होगा | 208) लयकाल क मघ की गजरना हो समि उमड़ पड बारह सयर तपायमान हो जाय पहाड़ स पहाड़ टकरा कर भयानक आवाज हो तो भी ानी क िन य म त नही भासता कय िक

त ह ही नही | त तो अ ानी को भासता ह | 209) सतय को ःवीकार करन स शाित िमलगी | कछ लोग यो यता क आधार पर शाित

खरीदना चाहत ह | यो यता स शाित नही िमलगी यो यता क सदपयोग स शाित िमलगी | कछ

लोग स पि क आधार पर शाित सरि त रखना चाहत ह | स पि स शाित नही िमलगी स पि

क सदपयोग स शाित िमलगी वस ही िवपि क सदपयोग स शाित िमलगी | 210) त छ हािन-लाभ पर आपका धयान इतना कय रहता ह िजसस अनत आननदःवरप

आतमा पर स धयान हट जाता ह | 211) अपन अनदर ही आननद ा करना य िप किठन ह परनत बा िवषय स आननद

ा करना तो अस भव ही ह |

212) म ससार का काश ह | काश क रप म म ही सब वःतओ म या ह | िनतय इन

िवचार का िचनतन करत रहो | य पिवऽ िवचार आपको परम पिवऽ बना दग | 213) जो वःत कमर स ा होती ह उसक िलय ससार की सहायता तथा भिवय की आशा की आवयकता होती ह परनत जो वःत तयाग स ा होती ह उसक िलय न ससार की सहायता चािहय न भिवय की आशा | 214) आपको जब तक बाहर चोर िदखता ह तब तक जरर भीतर चोर ह | जब दसर लोग

स िभनन अयो य खराब सधारन यो य िदखत ह तब तक ओ सधार का बीड़ा उठान वाल त अपनी िचिकतसा कर | 215) सफल व ही होत ह जो सदव नतमःतक एव सननमख रहत ह | िचनतातर-शोकातर लोग की उननित नही हो सकती | तयक कायर को िह मत व शाित स करो | िफर दखो िक यह

कायर शरीर मन और बि स हआ | म उन सबको स ा दनवाला चतनयःवरप ह | ॐ ॐ का पावन गान करो | 216) िकसी भी पिरिःथित म मन को यिथत न होन दो | आतमा पर िव ास करक

आतमिन बन जाओ | िनभरयता आपकी दासी बन कर रहगी | 217) सतसग स मनय को साधना ा होती ह चाह वह शाित क रप म हो चाह मि क

रप म चाह सवा क रप म हो म क रप म हो चाह तयाग क रप म हो | 218) भला-बरा वही दखता ह िजसक अनदर भला-बरा ह | दसर क शरीर को वही दखता ह

जो खद को शरीर मानता ह | 219) खबरदार आपन यिद अपन शरीर क िलय ऐश-आराम की इ छा की िवलािसता एव इिनिय-सख म अपना समय बरबाद िकया तो आपकी खर नही | ठ क स कायर करत रहन की नीित

अपनाओ | सफलता का पहला िस ात ह कायरिवौामरिहत कायरसा ी भाव स कायर | इस

िस ात को जीवन म चिरताथर करोग तो पता चलगा िक छोटा होना िजतना सरल ह उतना ही बड़ा होना भी सहज ह | 220) भतकाल पर िखनन हए िबना भिवय की िचनता िकय िबना व रमान म कायर करो | यह भाव आपको हर अवःथा म सनन रखगा हम जो कछ ा ह उसका सदपयोग ही अिधक

काश पान का साधन ह |

221) जब आप सफलता की ओर पीठ कर लत हो पिरणाम की िचनता का तयाग कर दत

हो स मख आय हए क र य पर अपनी उ ोगशि एकाम करत हो तब सफलता आपक पीछ-पीछ

आ जाती ह | अतः सफलता आपको खोजगी | 222) वि तब तक एकाम नही होगी जब तक मन म कभी एक आशा रहगी तो कभी दसरी | शात वही हो सकता ह िजस कोई क र य या आवयकता घसीट न रही हो | अतः परम शाित पान

क िलय जीवन की आशा भी तयाग कर मन ाननद म डबो दो | आज स समझ लो िक यह शरीर ह ही नही | कवल ाननद का सागर लहरा रहा ह | 223) िजसकी पककी िन ा ह िक म आतमा हrsquo उसक िलय ऐसी कौन सी मिथ ह जो खल

न सक ऐसी कोई ताकत नही जो उसक िवर जा सक | 224) मर भा य म नही थाई र की मज आजकल सतसग ा नही होताजगत

खराब ह ऐस वचन हमारी कायरता व अनतःकरण की मिलनता क कारण िनकलत ह | अतः नकारातमक ःवभाव और दसर पर दोषारोपण करन की वि स बचो | 225) आप जब भीतरवाल स नाराज होत हो तब जगत आपस नाराज रहता ह | जब आप

भीतर अनतयारमी बन बठ तो जगतरपी पतलीघर म िफर गड़बड़ कसी 226) िजस ण हम ससार क सधारक बन खड़ होत ह उसी ण हम ससार को िबगाड़नवाल बन जात ह | श परमातमा को दखन क बजाय जगत को िबगड़ा हआ दखन की ि बनती ह | सधारक लोग मानत ह िक lsquoभगवान न जो जगत बनाया ह वह िबगड़ा हआ ह और हम उस सधार रह ह |rsquo वाह वाह धनयवाद सधारक अपन िदल को सधारो पहल | सवरऽ िनरजन का दीदार करो | तब आपकी उपिःथित माऽ स आपकी ि माऽ स अर यार आपको छकर बहती हवा माऽ स अननत जीव को शाित िमलगी और अननत सधार होगा | नानक कबीर महावीर ब और लीलाशाह बाप जस महापरष न यही कजी अपनायी थी | 227) वदानत म हमशा कमर का अथर होता ह वाःतिवक आतमा क साथ एक होकर च ा करना अिखल िव क साथ एकःवर हो जाना | उस अि तीय परम ततव क साथ िनःःवाथर सयोग ा करना ही एकमाऽ स चा कमर ह बाकी सब बोझ की गठिरया उठाना ह |

228) अपनी व रमान अवःथा चाह कसी भी हो उसको सव च मानन स ही आपक दय म आतम ान ान का अनायास उदय होन लगगा | आतम-सा ातकार को मील दर की कोई चीज समझकर उसक पीछ दौड़ना नही ह िचिनतत होना नही ह |

िचनता की गठरी उठाकर यिथत होन की जररत नही ह | िजस ण आप िनि नतता म गोता मारोग उसी ण आपका आतमःवरप गट हो जायगा | अर गट कया होगा आप ःवय आतमःवरप हो ही | अनातमा को छोड़ दो तो आतमःवरप तो हो ही | 229) सदा ॐकार का गान करो | जब भय व िचनता क िवचार आय तब िकसी मःत सत-फकीर महातमा क सािननधय का ःमरण करो | जब िननदा-शसा क सग आय तब महापरष क जीवन का अवलोकन करो | 230) िजनको आप भयानक घटनाए एव भयकर आघात समझ बठ हो वाःतव म व आपक ियतम आतमदव की ही करतत ह | समःत भयजनक तथा ाणनाशक घटनाओ क नाम-रप तो िवष क ह लिकन व बनी ह अमत स | 231) मन म यिद भय न हो तो बाहर चाह कसी भी भय की साममी उपिःथत हो जाय आपका कछ िबगाड़ नही सकती | मन म यिद भय होगा तो तरनत बाहर भी भयजनक पिरिःथया न होत हए भी उपिःथत हो जायगी | व क तन म भी भत िदखन लगगा | 232) िकसी भी पिरिःथित म िदखती हई कठोरता व भयानकता स भयभीत नही होना चािहए | क क काल बादल क पीछ पणर काशमय एकरस परम स ा सयर की तरह सदा िव मान ह | 233) आप अपन पर कदािप अिव ास मत करो | इस जगत म आप सब कछ कर सकत हो | अपन को कभी दबरल मत मानो | आपक अनदर तमाम शि या छपी हई ह | 234) यिद कोई मन य आपकी कोई चीज़ को चरा लता ह तो ड़रत कय हो वह मनय

और आप एक ह | िजस चीज़ को वह चराता ह वह चीज़ आपकी और उसकी द न की ह | 235) जो खद क िसवाय दसरा कछ दखता नही सनता नही जानता नही वह अननत ह |

जब तक खद क िसवाय और िकसी वःत का भान होता ह वह वःत स ची लगती ह तब तक आप

सीिमत व शात ह असीम और अनत नही |

236) ससार मझ कया आनद द सकता ह स पणर आनद मर भीतर स आया ह | म ही स पणर आननद ह स पणर मिहमा एव स पणर सख ह | 237) जीवन की समःत आवयकताए जीवन म उपिःथत ह परनत जीवन को जब हम

बा रग म रग दत ह तब जीवन का वाःतिवक रप हम नही जान पात | 238) िननदक की िननदा स म कय मरझाऊ शसक की शसा स म कय फल िननदा स म घटता नही और शसा स म बढ़ता नही | जसा ह वसा ही रहता ह | िफर िननदा-ःतित स

खटक कसी 239) ससार व ससार की समःयाओ म जो सबस अिधक फस हए ह उनही को वदानत की सबस अिधक आवयकता ह | बीमार को ही औषिध की यादा आवयकता ह | कय जी ठ क ह न 240) जगत क पाप व अतयाचार की बात मत करो लिकन अब भी आपको जगत म पाप

िदखता ह इसिलय रोओ | 241) हम यिद जान ल िक जगत म आतमा क िसवाय दसरा कछ ह ही नही और जो कछ

िदखता ह वह ःव नमाऽ ह तो इस जगत क दःख-दािरिय पाप-प य कछ भी हम अशात नही कर सकत | 242) िव ान दाशरिनक व आचाय की धमकी तथा अनमह आलोचना या अनमित

ानी पर कोई भाव नही ड़ाल सकती | 243) ह यि रप अननत आप अपन पर पर खड़ रहन का साहस करो समःत िव का बोझ आप िखलौन की तरह उठा लोग | 244) िसह की गजरना व नरिसह की ललकार तलवार की धार व साप की फफकार तपःवी की धमकी व नयायधीश की फटकारइन सबम आपका ही काश चमक रहा ह | आप इनस

भयभीत कय होत हो उलझन कय महसस करत हो मरी िब ली मझको याऊ वाली बात कय

होन दत हो 245) ससार हमारा िसफ़र िखलोना ही ह और कछ नही | अबोध बालक ही िखलौन स

भयभीत होता ह आसि करता ह िवचारशील यि नही |

246) जब तक अिव ा दर नही होगी तब तक चोरी जआ दार यिभचार कभी बद न

ह ग चाह लाख कोिशश करो | 247) आप हमशा अदर का धयान रखो | पहल हमारा भीतरी पतन होता ह | बा पतन तो इसका पिरणाम माऽ ह | 248) तयाग स हमशा आनद िमलता ह | जब तक आपक पास एक भी चीज़ बाकी ह तब

तक आप उस चीज़ क बधन म बध रहोग | आघात व तयाघात हमशा समान िवरोधी होत ह | 249) िनि तता ही आरो यता की सबस बड़ी दवाई ह | 250) सख अपन िसर पर दख का मकट पहन कर आता ह | जो सख को अपनायगा उस

दख को भी ःवीकार करना पड़गा | 251) म (आतमा) सबका ा ह | मरा ा कोई नही | 252) हजार म स कोई एक परष भीतर स शात िच वाला रहकर बाहर स ससारी जसा यवहार कर सकता ह | 253) सतय क िलए यिद शरीर का तयाग करना पड़ तो कर दना | यही आिखरी ममता ह जो हम तोड़नी होगी | 254) भय िचनता बचनी स ऊपर उठो | आपको ान का अनभव होगा | 255) आपको कोई भी हािन नही पहचा सकता | कवल आपक खयालात ही आपक पीछ पड़ ह | 256) म का अथर ह अपन पड़ोसी तथा सपकर म आनवाल क साथ अपनी वाःतिवक अभदता का अनभव करना | 257) ओ यार अपन खोय हए आतमा को एक बार खोज लो | धरती व आसमान क शासक आप ही हो | 258) सदव सम और सनन रहना ई र की सव पिर भि ह |

259) जब तक िच म ढ़ता न आ जाय िक शा की िविधय का पालन छोड़ दन स भी दय का यथाथर भि भाव न नही होगा तब तक शा की िविधय को पालत रहो |

गर भि एक अमोघ साधना 1 जनम मरण क िवषचब स म होन का कोई मागर नही ह कया सख-दःख हषर-शोक लाभ-

हािन मान-अपमान की थ पड़ स बचन का कोई उपाय नही ह कया

हअवय ह | ह िय आतमन नाशवान पदाथ स अपना मन वािपस लाकर सदगर क

चरणकमल म लगाओ | गरभि योग का आौय लो | गरसवा ऐसा अमोघ साधन ह िजसस

व रमान जीवन आननदमय बनता ह और शा त सख क ार खलत ह |

गर सवत त नर धनय यहा | ितनक नही दःख यहा न वहा || 2 स च सदगर की की हई भि िशय म सासािरक पदाथ क वरा य एव अनासि जगाती ह

परमातमा क ित म क पप महकाती ह | 3 तयक िशय सदगर की सवा करना चाहता ह लिकन अपन ढग स | सदगर चाह उस ढग स

सवा करन को कोई ततपर नही | जो िवरला साधक गर चाह उस ढ़ग स सवा कर सकता ह उस कोई कमी नही रहती |

िन सदगर की सवा स उनकी कपा ा होती ह और उस कपा स न िमल सक ऐसा तीन लोक म कछ भी नही ह | 4 गर िशय का स बनध पिवऽतम स बनध ह | ससार क तमाम बनधन स छड़ाकर वह मि क मागर पर ःथान कराता ह | यह स बनध जीवनपयरनत का स बनध ह | यह बात अपन दय की डायरी म सवणर-अ र स िलख लो | 5 उ ल सयर क काश क अिःततव को मान या न मान िफर भी सयर हमशा काशता ह | चचल मन का मनय मान या न मान लिकन सदगर की परमक याणकारी कपा सदव बरसती ही रहती ह | 6 सदगर की चरणरज म ःनान िकय िबना कवल किठन तप यार करन स या वद का

अधयन करन स वदानत का रहःय कट नही होता आतमानद का अमत नही िमलता | 7 दशरन शा क चाह िकतन मनथ पढ़ो हजार वष तक िहमालय की गफा म तप करो वष तक ाणायाम करो जीवनपयरनत शीषारसन करो समम िव म वास करक याखान दो िफर भी सदगर की कपा क िबना आतम ान नही होता | अतः िनरािभमानी सरल िनजाननद म मःत दयाल ःवभाव क आतम-सा ातकारी सदगर क चरण म जाओ | जीवन को धनय बनाओ | 8 सदगर की सवा िकय िबना शा का अधयन करना मम साधक क िलय समय बरबाद करन क बराबर ह | 9 िजसको सदगर ा हए ह ऐस िशय क िलय इस िव म कछ भी अा य नही ह | सदगर िशय को िमली हई परमातमा की अम य भट ह | अर नहीhellipनही व तो िशय क सम साकार रप म कट हए परमातमा ःवय ह | 10 सदगर क साथ एक ण िकया हआ सतसग लाख वष क तप स अननत गना ौ ह | आख क िनमषमाऽ म सदगर की अमतवष ि िशय क जनम-जनम क पाप को जला सकती ह | 11 सदगर जसा मपणर कपाल िहतिचनतक िव भर म दसरा कोई नही ह | 12 बाढ़ क समय याऽी यिद तफानी नदी को िबना नाव क पार कर सक तो साधक भी िबना सदगर क अपन जीवन क आिखरी लआय को िस कर सकता ह | यानी य दोन बात स भव ह |

अतः यार साधक मनमखी साधना की िज करना छोड़ दो | गरमखी साधना करन म ही सार ह | 13 सदगर क चरणकमल का आौय लन स िजस आननद का अनभव होता ह उसक आग िऽलोकी का साा य त छ ह | 14 आतम-सा ातकार क मागर म सबस महान शऽ अहभाव का नाश करन क िलए सदगर की आ ा का पालन अमोघ श ह | 15 रसोई सीखन क िलय कोई िसखानवाला चािहय िव ान और गिणत सीखन क िलय

अधयापक चािहय तो कया िव ा सदगर क िबना ही सीख लोग 16 सदगरकपा की स पि जसा दसरा कोई खजाना िव भर म नही | 17 सदगर की आ ा का उ लघन करना यह अपनी क खोदन क बराबर ह | 18 सदगर क कायर को शका की ि स दखना महापातक ह | 19 गरभि व गरसवा - य साधनारपी नौका की दो पतवार ह | उनकी मदद स िशय ससारसागर को पार कर सकता ह | 20 सदगर की कसौटी करना असभव ह | एक िववकाननद ही दसर िववकाननद को पहचान सकत ह | ब को जानन क िलय दसर ब की आवयकता रहती ह | एक रामतीथर का रहःय दसर रामतीथर ही पा सकत ह |

अतः सदगर की कसौटी करन की च ा छोड़कर उनको पिरपणर पर परमातमा मानो |

तभी जीवन म वाःतिवक लाभ होगा | 21 गरभि योग का आौय लकर आप अपनी खोई हई िद यता को पनः ा करो सख-दःख जनम-मतय आिद सब न स पार हो जाओ | 22 गरभि योग मान गर की सवा क ारा मन और िवकार पर िनयऽण एव पनः सःकरण | 23 िशय अपन गर क चरणकमल म णाम करता ह | उन पर ौ फल की वषार करक उनकी ःतित करता ह ldquoह परम प य पिवऽ गरदव मझ सव च सख ा हआ ह | म िन ा स जनम-मतय की पर परा स म हआ ह | म िनिवरक प समािध का श सख भोग रहा ह | जगत क िकसी भी कोन म म म ता स िवचरण कर सकता ह | सब पर मरी सम ि ह | मन ाकत मन का तयाग िकया ह | मन सब सक प एव रिच-अरिच का तयाग िकया ह | अब म अख ड शाित म िवौाित पा रहा ह hellip आननदमय हो रहा ह | म इस पणर अवःथा का वणरन नही कर पाता | ह प य गरदव म आवाक बन गया ह | इस दःतर भवसागर को पार करन म आपन

मझ सहायता की ह | अब तक मझ कवल अपन शरीर म ही स पणर िव ास था | मन िविभनन योिनय म अस य जनम िलय | ऐसी सव च िनभरय अवःथा मझ कौन स पिवऽ कम क कारण ा हई ह यह म नही जानता | सचमच यह एक दलरभ भा य ह |

यह एक महान उतक लाभ ह | अब म आननद स नाचता ह | मर सब दःख न हो गय | मर सब मनोरथ पणर हए ह |

मर कायर स पनन हए ह | मन सब वािछत वःतए ा की ह | मरी इ छा पिरपणर हई ह | आप मर स च माता-िपता हो | मरी व रमान िःथित म म दसर क सम िकस कार कट कर सक सवरऽ सख और आननद का अननत सागर मझ लहराता हआ िदख रहा ह | मर अतःच िजसस खल गय वह महावाकय lsquoत वमिसrsquo ह | उपिनषद एव वदानतसऽ को भी धनयवाद | िजनह न िन गर का एव उपिनषद क महावाकय का रप धारण िकया ह | ऐस ौी यासजी को णाम ौी शकराचायर को णाम सासािरक मनय क िसर पर गर क चरणामत का एक िबनद भी िगर तो भी उसक ःब दःख का नाश होता ह | यिद एक िन परष को व पहनाय जाय तो सार िव को व पहनान एव भोजन करवान क बराबर ह कय िक िन परष सचराचर िव म या ह | सबम व ही ह |rdquo

ॐhellip ॐ hellip ॐ hellip

ःवामी िशवानद जी

ौी राम-विश सवाद ौी विश जी कहत ह ldquoह रघकलभषण ौी राम अनथर ःवरप िजतन सासािरक पदाथर ह व सब जल म तरग क समान िविवध रप धारण करक चमतकार उतपनन करत ह अथारत ई छाए उतपनन करक जीव को मोह म फसात ह | परत जस सभी तरग जल ःवरप ही ह उसी कार सभी पदाथर वःततः न र ःवभाव वाल ह |

बालक की क पना स आकाश म य और िपशाच िदखन लगत ह परनत बि मान मनय क िलए उन य और िपशाच का कोई अथर नही | इसी कार अ ानी क िच म यह जगत सतय हो ऐसा लगता ह जबिक हमार जस ािनय क िलय यह जगत कछ भी नही | यह समम िव पतथर पर बनी हई पतिलय की सना की तरह रपालोक तथा अतर-बा िवषय स शनय ह | इसम सतयता कसी परनत अ ािनय को यह िव सतय लगता ह |rdquo विश जी बोल ldquoौी राम जगत को सतय ःवरप म जानना यह ाित ह मढ़ता ह | उस िमथया अथारत कि पत समझना यही उिचत समझ ह | ह राघव तव ा अहता आिद सब िवम-िवलास शात िशवःवरप श ःवरप ही ह | इसिलय मझ तो क अितिर और कछ भी नही िदखता | आकाश म जस जगल नही वस ही म जगत नही ह | ह राम ार ध वश ा कम स िजस परष की च ा कठपतली की तरह ई छाशनय और याकलतारिहत होती ह वह शानत मनवाला परष जीवनम मिन ह | ऐस जीवनम ानी को इस

जगत का जीवन बास की तरह बाहर-भीतर स शनय रसहीन और वासना-रिहत लगता ह | इस य पच म िजस रिच नही दय म िचनमाऽ अ य ही अ छा लगता ह ऐस परष न

भीतर तथा बाहर शािनत ा कर ली ह और इस भवसागर स पार हो गया ह | रघनदन श व ा कहत ह िक मन का ई छारिहत होना यही समािध ह कय िक ई छाओ का तयाग करन स मन को जसी शािनत िमलती ह ऐसी शािनत सकड़ उपदश स भी नही िमलती | ई छा की उतपि स जसा दःख ा होता ह ऐसा दःख तो नरक म भी नही | ई छाओ की शािनत

स जसा सख होता ह ऐसा सख ःवगर तो कया लोक म भी नही होता | अतः समःत शा तपःया यम और िनयम का िनचोड़ यही ह िक ई छामाऽ दःखदायी ह और ई छा का शमन मो ह | ाणी क दय म जसी-जसी और िजतनी-िजतनी ई छाय उतपनन होती ह उतना ही दख स वह

ड़रता रहता ह | िववक-िवचार ारा ई छाय जस-जस शानत होती जाती ह वस-वस दखरपी छत की बीमारी िमटती जाती ह |

आसि क कारण सासािरक िवषय की ई छाय य - य गहनीभत होती जाती ह तय -तय

दःख की िवषली तरग बढ़ती जाती ह | अपन परषाथर क बल स इस ई छारपी यािध का उपचार यिद नही िकया जाय तो इस यािध स छटन क िलय अनय कोई औषिध नही ह ऐसा म ढ़तापवरक

मानता ह | एक साथ सभी ई छाओ का स पणर तयाग ना हो सक तो थोड़ी-थोड़ी ई छाओ का धीर-धीर तयाग

करना चािहय परत रहना चािहय ई छा क तयाग म रत कय िक सनमागर का पिथक दखी नही होता | जो नराधम अपनी वासना और अहकार को ीण करन का य नही करता वह िदन -िदन अपन

को रावण की तरह अधर कऐ म ढ़कल रहा ह | ई छा ही दख की जनमदाऽी इस ससाररपी बल का बीज ह | यिद इस बीज को आतम ानरपी अि न स ठ क-ठ क जला िदया तो पनः यह अकिरत नही होता | रघकलभषण राम ई छामाऽ ससार ह और ई छाओ का अभाव ही िनवारण ह | अतः अनक कार की माथाप ची म ना पड़कर कवल ऐसा य करना चािहय िक ई छा उतपनन ना हो | अपनी बि स ई छा का िवनाश करन को जो ततपर नही ऐस अभाग को शा और गर का उपदश

भी कया करगा जस अपनी जनमभमी जगल म िहरणी की मतय िनि त ह उसी कार अनकिवध दख का िवःतार कारनवाल ई छारपी िवषय-िवकार स य इस जगत म मनय की मतय िनि त ह | यिद मानव ई छाओ क कारण ब च -सा मढ़ ना बन तो उस आतम ान क िलय अ प य ही करना पड़ | इसिलय सभी कार स ई छाओ को शानत करना चािहय | ई छा क शमन स परम पद की ाि होती ह | ई छारिहत हो जाना यही िनवारण ह और ई छाय

होना ही बधन ह | अतः यथाशि ई छा को जीतना चािहय | भला इतना करन म कया किठनाई ह जनम जरा यािध और मतयरपी कटीली झािड़य और खर क व - समह की जड़ भी ई छा ही ह

| अतः शमरपी अि न स अदर-ही-अदर बीज को जला ड़ालना चािहय| जहा ई छाओ का अभाव ह

वहा मि िनि त ह |

िववक वरा य आिद साधन स ई छा का सवरथा िवनाश करना चािहय | ई छा का सबध जहा-जहा ह वहा-वहा पाप प य दखरािशया और ल बी पीड़ाओ स य बधन को हािज़र ही समझो | परष

की आतिरक ई छा य - य शानत होती जाती ह तय -तय मो क िलय उसका क याणकारक

साधन बढ़ता जाता ह | िववकहीन ई छा को पोसना उस पणर करना यह तो ससाररपी िवष व को पानी स सीचन क समान ह |rdquo

- ौीयोगविश महारामायण

आतमबल का आवाहन कया आप अपन-आपको दबरल मानत हो लघतामथी म उलझ कर पिरिःतिथय स िपस रह हो

अपना जीवन दीन-हीन बना बठ हो hellipतो अपन भीतर सष आतमबल को जगाओ | शरीर चाह ी का हो चाह परष का कित क साा य म जो जीत ह व सब ी ह और कित क बनधन स पार अपन ःवरप की पहचान िजनह न कर ली ह अपन मन की गलामी की बिड़या तोड़कर िजनह न फ क दी ह व परष ह | ी या परष शरीर एव मानयताए होती ह | तम तो तन-मन स पार िनमरल आतमा हो | जागोhellipउठोhellipअपन भीतर सोय हय िन यबल को जगाओ | सवरदश सवरकाल म सव म

आतमबल को िवकिसत करो | आतमा म अथाह सामथयर ह | अपन को दीन-हीन मान बठ तो िव म ऐसी कोई स ा नही जो त ह ऊपर उठा सक | अपन आतमःवरप म िति त हो गय तो िऽलोकी म ऐसी कोई हःती नही जो त ह दबा सक | भौितक जगत म वाप की शि ईलकशोिनक शि िव त की शि गरतवाकषरण की शि बड़ी मानी जाती ह लिकन आतमबल उन सब शि य का सचालक बल ह | आतमबल क सािननधय म आकर पग ार ध को पर िमल जात ह दव की दीनता पलायन हो जाती ह ितकल पिरिःतिथया अनकल हो जाती ह | आतमबल सवर िरि -िसि य का िपता ह |

आतमबल कस जगाय हररोज़ तःकाल ज दी उठकर सय दय स पवर ःनानािद स िनवत हो जाओ | ःव छ पिवऽ ःथान

म आसन िबछाकर पवारिभमख होकर प ासन या सखासन म बठ जाओ | शानत और सनन वि

धारण करो | मन म ढ भावना करो िक म कित-िनिमरत इस शरीर क सब अभाव को पार करक सब

मिलनताओ-दबरलताओ स िप ड़ छड़ाकर आतमा की मिहमा म जागकर ही रहगा |

आख आधी खली आधी बद रखो | अब फ़फ़ड़ म खब ास भरो और भावना करो की ास क साथ

म सयर का िद य ओज भीतर भर रहा ह | ास को यथाशि अनदर िटकाय रखो | िफ़र lsquoॐhelliprsquo का ल बा उ चारण करत हए ास को धीर-धीर छोड़त जाओ | ास क खाली होन क बाद तरत ास ना लो | यथाशि िबना ास रहो और भीतर ही भीतर lsquoहिर ॐhelliprsquo lsquoहिर ॐhelliprsquo का मानिसक

जाप करो | िफ़र स फ़फ़ड़ म ास भरो | पव रीित स ास यथाशि अनदर िटकाकर बाद म धीर-धीर छोड़त हए lsquoॐhelliprsquo का गजन करो | दस-पिह िमनट ऐस ाणायाम सिहत उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo की धविन करक शानत हो जाओ | सब

यास छोड़ दो | वि य को आकाश की ओर फ़लन दो | आकाश क अनदर पथवी ह | पथवी पर अनक दश अनक समि एव अनक लोग ह | उनम स एक

आपका शरीर आसन पर बठा हआ ह | इस पर य को आप मानिसक आख स भावना स दखत

रहो | आप शरीर नही हो बि क अनक शरीर दश सागर पथवी मह न ऽ सयर चनि एव पर ा ड़ क

ा हो सा ी हो | इस सा ी भाव म जाग जाओ | थोड़ी दर क बाद िफ़र स ाणायाम सिहत lsquoॐhelliprsquo का जाप करो और शानत होकर अपन िवचार को दखत रहो | इस अवःथा म ढ़ िन य करो िक lsquoम जसा चहता ह वसा होकर रहगा |rsquo िवषयसख स ा धन-

दौलत इतयािद की इ छा न करो कय िक िन यबल या आतमबलरपी हाथी क पदिच म और सभी क पदिच समािव हो ही जायग | आतमानदरपी सयर क उदय होन क बाद िम टी क तल क दीय क ाकाश रपी शि सखाभास की गलामी कौन कर

िकसी भी भावना को साकार करन क िलय दय को करद ड़ाल ऐसी िन यातमक बिल वि होनी आवशयक ह | अनतःकरण क गहर-स-गहर दश म चोट कर ऐसा ाण भरक िन बल का आवाहन करो | सीना तानकर खड़ हो जाओ अपन मन की दीन-हीन दखद मानयताओ को कचल

ड़ालन क िलय | सदा ःमरण रह की इधर-उधर भटकती वि य क साथ त हारी शि भी िबखरती रहती ह | अतः वि य को बहकाओ नही | तमाम वि य को एकिऽत करक साधनाकाल म आतमिचनतन म लगाओ और यवहारकाल म जो कायर करत हो उसम लगाओ | द िच होकर हरक कायर करो | अपन ःवभाव म स आवश को सवरथा िनमरल कर दो | आवश म आकर कोई िनणरय मत लो कोई िबया मत करो | सदा शानत वि धारण करन का अ यास करो | िवचारशील एव सनन रहो | ःवय अचल रहकर सागर की तरह सब वि य की तरग को अपन

भीतर समालो | जीवमाऽ को अपना ःवरप समझो | सबस ःनह रखो | िदल को यापक रखो | सकिच ता का िनवारण करत रहो | ख ड़ातमक वि का सवरथा तयाग करो | िजनको ानी महापरष का सतसग और अधयातमिव ा का लाभ िमल जाता ह उसक जीवन स

दःख िवदा होन लगत ह | ॐ आननद आतमिन ा म जाग हए महापरष क सतसग एव सतसािहतय स जीवन को भि और वदात स प

एव पलिकत करो | कछ ही िदन क इस सघन योग क बाद अनभव होन लगगा िक भतकाल क

नकारतमक ःवभाव सशयातमक-हािनकारक क पनाओ न जीवन को कचल ड़ाला था िवषला कर िदया था | अब िन यबल क चमतकार का पता चला | अततरम म आिवरभत िद य खज़ाना अब

िमला | ार ध की बिड़या अब टटन लगी | ठ क ह न करोग ना िह मत पढ़कर रख मत दना इस पिःतका को | जीवन म इसको बार-बार पढ़त रहो | एक िदन म यह पणर ना होगा | बार-बार अ यास करो | त हार िलय यह एक ही पिःतका काफ़ी ह | अनय कचराप टी ना पड़ोग तो चलगा | शाबाश वीर शाबाश

  • परसतावना
  • जीवन रसायन
  • गर भकति एक अमोघ साधना
  • शरी राम-वशिषठ सवाद
  • आतमबल का आवाहन
  • आतमबल कस जगाय
Page 13: जीवन रसायन - HariOmGroup · ‘जीवन रसायन’ का यह िदय कटोरा आत्मरस के िपपासुओं हाथ

65) जस बालक ितिब ब क आौयभत दपरण की ओर धयान न दकर ितिब ब क साथ खलता ह जस पामर लोग यह समम ःथल पच क आौयभत आकाश की ओर धयान न दकर कवल

ःथल पच की ओर धयान दत ह वस ही नाम-रप क भ ःथल ि क लोग अपन दभार य क

कारण समम ससार क आौय सि चदाननद परमातमा का धयान न करक ससार क पीछ पागल

होकर भटकत रहत ह | 66) इस स पणर जगत को पानी क बलबल की तरह णभगर जानकर तम आतमा म िःथर हो जाओ | तम अ त ि वाल को शोक और मोह कस 67) एक आदमी आपको दजरन कहकर पिरि छनन करता ह तो दसरा आपको स जन कहकर भी पिरि छनन ही करता ह | कोई आपकी ःतित करक फला दता ह तो कोई िननदा करक िसकड़ा दता ह | य दोन आपको पिरि छनन बनात ह | भा यवान तो वह परष ह जो तमाम बनधन क िवर

खड़ा होकर अपन दवतव की अपन ई रतव की घोषणा करता ह अपन आतमःवरप का अनभव

करता ह | जो परष ई र क साथ अपनी अभदता पहचान सकता ह और अपन इदरिगदर क लोग क

सम समम ससार क सम िनडर होकर ई रतव का िनरपण कर सकता ह उस परष को ई र मानन क िलय सारा ससार बाधय हो जाता ह | परी सि उस अवय परमातमा मानती ह | 68) यह ःथल भौितक पदाथर इिनिय की ाित क िसवाय और कछ नही ह | जो नाम व रप पर भरोसा रखता ह उस सफलता नही िमलती | सआम िस ात अथारत सतय आतम-ततव पर िनभरर रहना ही सफलता की कजी ह | उस महण करो उसका मनन करो और यवहार करो | िफर नाम-

रप आपको खोजत िफरग | 69) सख का रहःय यह ह आप य - य पदाथ को खोजत-िफरत हो तय -तय उनको खोत

जात हो | आप िजतन कामना स पर होत हो उतन आवयकताओ स भी पर हो जात हो और पदाथर भी आपका पीछा करत हए आत ह | 70) आननद स ही सबकी उतपि आननद म ही सबकी िःथित एव आननद म ही सबकी लीनता दखन स आननद की पणरता का अनभव होता ह | 71) हम बोलना चहत ह तभी श दो चारण होता ह बोलना न चाह तो नही होता | हम दखना चाह तभी बाहर का य िदखता ह नऽ बद कर ल तो नही िदखता | हम जानना चाह तभी पदाथर का ान होता ह जानना नही चाह तो ान नही होता | अतः जो कोई पदाथर दखन सनन या जानन म

आता ह उसको बािधत करक बािधत करनवाली ानरपी बि की वि को भी बािधत कर दो | उसक बाद जो शष रह वह ाता ह | ाततव धमररिहत श ःवरप ाता ही िनतय सि चदाननद

ह | िनरतर ऐसा िववक करत हए ान व यरिहत कवल िचनमय िनतय िव ानाननदघनरप

म िःथर रहो | 72) यिद आप सवागपणर जीवन का आननद लना चाहत हो तो कल की िचनता छोड़ो | अपन चार

ओर जीवन क बीज बोओ | भिवय म सनहर ःवपन साकार होत दखन की आदत बनाओ | सदा क

िलय मन म यह बात पककी बठा दो िक आपका आनवाला कल अतयनत काशमय आननदमय

एव मधर होगा | कल आप अपन को आज स भी अिधक भा यवान पायग | आपका मन

सजरनातमक शि स भर जायगा | जीवन ऐ यरपणर हो जायगा | आपम इतनी शि ह िक िव न

आपस भयभीत होकर भाग खड़ ह ग | ऐसी िवचारधारा स िनि त रप स क याण होगा | आपक

सशय िमट जायग | 73) ओ मानव त ही अपनी चतना स सब वःतओ को आकषरक बना दता ह | अपनी यार भरी ि उन पर डालता ह तब तरी ही चमक उन पर चढ़ जाती ह औरhellipिफर त ही उनक यार म फ़स जाता ह | 74) मन िविचऽ एव अटपट माग ारा ऐस ततव की खोज की जो मझ परमातमा तक पहचा सक | लिकन म िजस-िजस नय मागर पर चला उन सब माग स पता चला िक म परमातमा स दर चला गया | िफर मन बि म ा एव िव ा स परमातमा की खोज की िफर भी परमातमा स अलग रहा | मनथालय एव िव ालय न मर िवचार म उ टी गड़बड़ कर दी | म थककर बठ गया | िनःत ध हो गया | सयोगवश अपन भीतर ही झाका धयान िकया तो उस अनत रि स मझ सवरःव िमला िजसकी खोज म बाहर कर रहा था | मरा आतमःवरप सवरऽ या हो रहा ह | 75) जस सामानय मनय को पतथर गाय भस ःवाभािवक रीित स ि गोचर होत ह वस ही ानी को िनजाननद का ःवाभािवक अनभव होता ह | 76) वदानत का यह अनभव ह िक नीच नराधम िपशाच शऽ कोई ह ही नही | पिवऽ ःवरप ही सवर रप म हर समय शोभायमान ह | अपन-आपका कोई अिन नही करता |

मर िसवा और कछ ह ही नही तो मरा अिन करन वाला कौन ह मझ अपन-आपस भय कसा 77) यह चराचर सि रपी त तब तक भासता ह जब तक उस दखनवाला मन बठा ह |

मन शात होत ही त की गध तक नही रहती |

78) िजस कार एक धाग म उ म मधयम और किन फल िपरोय हए ह उसी कार मर आतमःवरप म उ म मधयम और किन शरीर िपरोय हए ह | जस फल की गणव ा का भाव धाग पर नही पड़ता वस ही शरीर की गणव ा का भाव मरी सवर यापकता नही पड़ता | जस सब फल क िवनाश स धाग को कोई हािन नही वस शरीर क िवनाश स मझ सवरगत आतमा को कोई हािन नही होती | 79) म िनमरल िन ल अननत श अजर अमर ह | म असतयःवरप दह नही | िस परष इसीको lsquo ानrsquo कहत ह | 80) म भी नही और मझस अलग अनय भी कछ नही | सा ात आननद स पिरपणर कवल िनरनतर और सवरऽ एक ही ह | उ ग छोड़कर कवल यही उपासना सतत करत रहो | 81) जब आप जान लग िक दसर का िहत अपना ही िहत करन क बराबर ह और दसर का अिहत करना अपना ही अिहत करन क बराबर ह तब आपको धमर क ःवरप का सा तकार हो जायगा | 82) आप आतम-ित ा दलबनदी और ईयार को सदा क िलए छोड़ दो | पथवी माता की तरह सहनशील हो जाओ | ससार आपक कदम म नयोछावर होन का इतज़ार कर रहा ह | 83) म िनगरण िनिबय िनतय म और अ यत ह | म असतयःवरप दह नही ह | िस परष इसीको lsquo ानrsquo कहत ह | 84) जो दसर का सहारा खोजता ह वह सतयःवरप ई र की सवा नही कर सकता | 85) सतयःवरप महापरष का म सख-दःख म समान रहता ह सब अवःथाओ म हमार अनकल रहता ह | दय का एकमाऽ िवौामःथल वह म ह | व ावःथा उस आतमरस को सखा नही सकती | समय बदल जान स वह बदलता नही | कोई िवरला भा यवान ही ऐस िद य म का भाजन बन सकता ह | 86) शोक और मोह का कारण ह ािणय म िविभनन भाव का अधयारोप करना | मनय जब एक को सख दनवाला यारा स द समझता ह और दसर को दःख दनवाला शऽ समझकर उसस ष करता ह तब उसक दय म शोक और मोह का उदय होना अिनवायर

ह | वह जब सवर ािणय म एक अख ड स ा का अनभव करन लगगा ािणमाऽ को भ का पऽ समझकर उस आतमभाव स यार करगा तब उस साधक क दय म शोक और मोह का नामोिनशान नही रह जायगा | वह सदा सनन रहगा | ससार म उसक िलय न ही कोई शऽ रहगा और न ही कोई िमऽ | उसको कोई कलश नही पहचायगा | उसक सामन िवषधर नाग भी अपना ःवभाव भल जायगा | 87) िजसको अपन ाण की परवाह नही मतय का नाम सनकर िवचिलत न होकर उसका ःवागत करन क िलए जो सदा ततपर ह उसक िलए ससार म कोई कायर असाधय नही | उस िकसी बा श की जररत नही साहस ही उसका श ह | उस श स वह अनयाय का प लनवाल को परािजत कर दता ह िफर भी उनक िलए बर िवचार का सवन नही करता | 88) िचनता ही आननद व उ लास का िवधवस करनवाली रा सी ह | 89) कभी-कभी मधयरािऽ को जाग जाओ | उस समय इिनिया अपन िवषय क ित चचल नही रहती | बिहमरख ःफरण की गित मनद होती ह | इस अवःथा का लाभ लकर इिनियातीत अपन िचदाकाश ःवरप का अनभव करो | जगत शरीर व इिनिय क अभाव म भी अपन अख ड अिःततव को जानो | 90) य म ीित नही रहना ही असली वरा य ह | 91) रोग हम दबाना चाहता ह | उसस हमार िवचार भी मनद हो जात ह | अतः रोग की िनवित करनी चिहए | लिकन जो िवचारवान परष ह वह कवल रोगिनवित क पीछ ही नही लग जाता | वह तो यह िनगरानी रखता ह िक भयकर दःख क समय भी अपना िवचार छट तो नही गया ऐसा परष lsquoहाय-हायrsquo करक ाण नही तयागता कय िक वह जानता ह िक रोग उसका दास ह | रोग कसा भी भय िदखाय लिकन िवचारवान परष इसस भािवत नही होता | 92) िजस साधक क पास धारणा की ढ़ता एव उ य की पिवऽता य दो गण ह ग वह अवय िवजता होगा | इन दो शा स ससि जत साधक समःत िव न-बाधाओ का सामना करक आिखर म िवजयपताका फहरायगा | 93) जब तक हमार मन म इस बात का पकका िन य नही होगा िक सि शभ ह तब तक मन एकाम नही होगा | जब तक हम समझत रहग िक सि िबगड़ी हई ह तब तक

मन सशक ि स चार ओर दौड़ता रहगा | सवरऽ मगलमय ि रखन स मन अपन-आप शात होन लगगा | 94) आसन िःथर करन क िलए सक प कर िक जस पथवी को धारण करत हए भी शषजी िब कल अचल रहत ह वस म भी अचल रहगा | म शरीर और ाण का ा ह | 95) lsquoससार िमथया हrsquo - यह मद ानी की धारणा ह | lsquoससार ःव नवत हrsquo - यह मधयम ानी की धारणा ह | lsquoससार का अतयनत अभाव ह ससार की उतपि कभी हई ही नहीrsquo -

यह उ म ानी की धारणा ह | 96) आप यिद भि मागर म ह तो सारी सि भगवान की ह इसिलए िकसीकी भी िननदा करना ठ क नही | आप यिद ानमागर म ह तो यह सि अपना ही ःवरप ह | आप अपनी ही िननदा कस कर सकत ह इस कार द नो माग म परिननदा का अवकाश ही नही ह | 97) य म ा का भान एव ा म य का भान हो रहा ह | इस गड़बड़ का नाम ही अिववक या अ ान ह | ा को ा तथा य को य समझना ही िववक या ान ह | 98) आसन व ाण िःथर होन स शरीर म िव त पदा होती ह | शरीर क ारा जब भी िबया की जाती ह तब वह िव त बाहर िनकल जाती ह | इस िव त को शरीर म रोक लन स शरीर िनरोगी बन जाता ह | 99) ःव न की सि अ पकालीन और िविचऽ होती ह | मनय जब जागता ह तब जानता ह िक म पलग पर सोया ह | मझ ःव न आया | ःव न म पदाथर दश काल िबया इतयािद परी सि का सजरन हआ | लिकन मर िसवाय और कछ भी न था | ःव न की सि झठ थी | इसी कार ततव ानी परष अ ानरपी िनिा स ानरपी जामत अवःथा को ा हए ह | व कहत ह िक एक क िसवा अनय कछ ह ही नही | जस ःव न स जागन क बाद हम ःव न की सि िमथया लगती ह वस ही ानवान को यह जगत िमथया लगता ह | 100) शारीिरक क पड़ तब ऐसी भावना हो जाय िक lsquoयह क मर यार भ की ओर स हhelliprsquo तो वह क तप का फल दता ह | 101) चलत-चलत पर म छाल पड़ गय ह भख याकल कर रही हो बि िवचार

करन म िशिथल हो गई हो िकसी पड़ क नीच पड़ ह जीवन अस भव हो रहा हो मतय का आगमन हो रहा हो तब भी अनदर स वही िनभरय धविन उठ lsquoसोऽहमhellipसोऽहमhellipमझ भय नहीhellipमरी मतय नहीhellipमझ भख नहीhellip यास नहीhellip कित की कोई भी यथा मझ न नही कर सकतीhellipम वही हhellipवही हhelliprsquo 102) िजनक आग िय-अिय अनकल-ितकल सख-दःख और भत-भिवय एक समान ह ऐस ानी आतमव ा महापरष ही स च धनवान ह | 103) दःख म दःखी और सख म सखी होन वाल लोह जस होत ह | दःख म सखी रहन वाल सोन जस होत ह | सख-दःख म समान रहन वाल र जस होत ह परनत जो सख-दःख की भावना स पर रहत ह व ही स च साट ह | 104) ःव न स जाग कर जस ःव न को भल जात ह वस जामत स जागकर थोड़ी दर क

िलए जामत को भल जाओ | रोज ातः काल म पनिह िमनट इस कार ससार को भल जान की आदत डालन स आतमा का अनसधान हो सकगा | इस योग स सहजावःथा ा होगी | 105) तयाग और म स यथाथर ान होता ह | दःखी ाणी म तयाग व म िवचार स आत ह

| सखी ाणी म तयाग व म सवा स आत ह कय िक जो ःवय दःखी ह वह सवा नही कर सकता पर िवचार कर सकता ह | जो सखी ह वह सख म आस होन क कारण उसम िवचार का उदय नही हो सकता लिकन वह सवा कर सकता ह | 106) लोग की पजा व णाम स जसी सननता होती ह वसी ही सननता जब मार पड़

तब भी होती हो तो ही मन य िभ ानन महण करन का स चा अिधकारी माना जाता ह | 107) हरक साधक को िब कल नय अनभव की िदशा म आग बढ़ना ह | इसक िलय

ानी महातमा की अतयनत आवयकता होती ह | िजसको स ची िज ासा हो उस ऐस

महातमा िमल ही जात ह | ढ़ िज ासा स िशय को गर क पास जान की इ छा होती ह | यो य

िज ास को समथर गर ःवय दशरन दत ह | 108) बीत हए समय को याद न करना भिवय की िचनता न करना और व रमान म ा

सख-दःखािद म सम रहना य जीवनम परष क ल ण ह | 109) जब बि एव दय एक हो जात ह तब सारा जीवन साधना बन जाता ह |

110) बि मान परष ससार की िचनता नही करत लिकन अपनी मि क बार म सोचत ह |

मि का िवचार ही तयागी दानी सवापरायण बनाता ह | मो की इ छा स सब सदगण आ जात ह

| ससार की इ छा स सब दगरण आ जात ह | 111) पिरिःथित िजतनी किठन होती ह वातावरण िजतना पीड़ाकारक होता ह उसस

गजरन वाला उतना ही बलवान बन जाता ह | अतः बा क और िचनताओ का ःवागत करो | ऐसी पिरिःथित म भी वदानत को आचरण म लाओ | जब आप वदानती जीवन यतीत करग तब दखग

िक समःत वातावरण और पिरिःथितया आपक वश म हो रही ह आपक िलय उपयोगी िस हो रही ह | 112) हरक पदाथर पर स अपन मोह को हटा लो और एक सतय पर एक तथय पर अपन

ई र पर समम धयान को किनित करो | तरनत आपको आतम-सा ातकार होगा | 113) जस बड़ होत-होत बचपन क खलकद छोड़ दत हो वस ही ससार क खलकद छोड़कर आतमाननद का उपभोग करना चािहय | जस अनन व जल का सवन करत हो वस ही आतम-

िचनतन का िनरनतर सवन करना चािहय | भोजन ठ क स होता ह तो ति की डकार आती ह वस

ही यथाथर आतमिचनतन होत ही आतमानभव की डकार आयगी आतमाननद म मःत ह ग |

आतम ान क िसवा शाित का कोई उपाय नही | 114) आतम ानी क हकम स सयर काशता ह | उनक िलय इनि पानी बरसाता ह | उनही क

िलय पवन दत बनकर गमनागमन करता ह | उनही क आग समि रत म अपना िसर रगड़ता ह | 115) यिद आप अपन आतमःवरप को परमातमा समझो और अनभव करो तो आपक सब

िवचार व मनोरथ सफल ह ग उसी ण पणर ह ग | 116) राजा-महाराजा दवी-दवता वद-पराण आिद जो कछ ह व आतमदश क सक पमाऽ

ह | 117) जो लोग ितकलता को अपनात ह ई र उनक स मख रहत ह | ई र िजनह अपन

स दर रखना चाहत ह उनह अनकल पिरिःथितया दत ह | िजसको सब वःतए अनकल एव पिवऽ

सब घटनाए लाभकारी सब िदन शभ सब मनय दवता क रप म िदखत ह वही परष ततवदश ह | 118) समता क िवचार स िच ज दी वश म होता ह हठ स नही |

119) ऐस लोग स स बनध रखो िक िजसस आपकी सहनशि बढ़ समझ की शि बढ़

जीवन म आन वाल सख-दःख की तरग का आपक भीतर शमन करन की ताकत आय समता बढ़

जीवन तजःवी बन | 120) लोग बोलत ह िक धयान व आतमिचनतन क िलए हम फरसत नही िमलती | लिकन

भल मनय जब नीद आती ह तब सब महतवपणर काम भी छोड़कर सो जाना पड़ता ह िक नही

जस नीद को महतव दत हो वस ही चौबीस घनट म स कछ समय धयान व आतमिचनतन म भी िबताओ | तभी जीवन साथरक होगा | अनयथा कछ भी हाथ नही लगगा | 121) भल जाओ िक तम मनय हो अमक जाित हो अमक उ हो अमक िड़मीवाल हो अमक धनधवाल हो | तम िनगरण िनराकार सा ीरप हो ऐसा ढ़ िन य करो | इसीम तमाम

कार की साधनाए िबयाए योगािद समािव हो जात ह | आप सवर यापक अख ड चतनय हो | सार ान का यह मल ह | 122) दोष तभी िदखता जब हमार लोचन म क अभावरप पीिलया रोग स मःत होत ह | 123) साधक यिद अ यास क मागर पर उसी कार आग बढ़ता जाय िजस कार ार भ

म इस मागर पर चलन क िलए उतसाहपवरक कदम रखा था तो आयरपी सयर अःत होन स पहल

जीवनरपी िदन रहत ही अवय सोऽहम िसि क ःथान तक पहच जाय | 124) लोग ज दी स उननित कय नही करत कय िक बाहर क अिभाय एव िवचारधाराओ का बहत बड़ा बोझ िहमालय की तरह उनकी पीठ पर लदा हआ ह | 125) अपन ित होन वाल अनयाय को सहन करत हए अनयायकतार को यिद मा कर िदया जाय तो ष म म पिरणत हो जाता ह | 126) साधना की शरआत ौ ा स होती ह लिकन समाि ान स होनी चािहय | ान मान

ःवयसिहत सवर ःवरप ह ऐसा अपरो अनभव | 127) अपन शरीर क रोम-रोम म स ॐ का उ चारण करो | पहल धीम ःवर म ार भ

करो | शर म धविन गल स िनकलगी िफर छाती स िफर नािभ स और अनत म रीढ़ की ह डी क

आिखरी छोर स िनकलगी | तब िव त क धकक स सष ना नाड़ी तरनत खलगी | सब कीटाणसिहत

तमाम रोग भाग खड़ ह ग | िनभरयता िह मत और आननद का फ वारा छटगा | हर रोज ातःकाल

म ःनानािद करक सय दय क समय िकसी एक िनयत ःथान म आसन पर पवारिभमख बठकर

कम-स-कम आधा घनटा करक तो दखो | 128) आप जगत क भ बनो अनयथा जगत आप पर भतव जमा लगा | ान क

मतािबक जीवन बनाओ अनयथा जीवन क मतािबक ान हो जायगा | िफर यग की याऽा स भी दःख का अनत नही आयगा | 129) वाःतिवक िश ण का ारभ तो तभी होता ह जब मनय सब कार की सहायताओ स िवमख होकर अपन भीतर क अननत ॐोत की तरफ अमसर होता ह | 130) य पच की िनवित क िलए अनतःकरण को आननद म सरोबार रखन क िलए

कोई भी कायर करत समय िवचार करो म कौन ह और कायर कौन कर रहा ह भीतर स जवाब

िमलगा मन और शरीर कायर करत ह | म सा ीःवरप ह | ऐसा करन स कतारपन का अह

िपघलगा सख-दःख क आघात मनद ह ग | 131) राग- ष की िनवित का कया उपाय ह उपाय यही ह िक सार जगत-पच को मनोरा य समझो | िननदा-ःतित स राग- ष स पच म सतयता ढ़ होती ह | 132) जब कोई खनी हाथ आपकी गरदन पकड़ ल कोई श धारी आपको कतल करन क

िलए ततपर हो जाय तब यिद आप उसक िलए सननता स तयार रह दय म िकसी कार का भय

या िवषाद उतपनन न हो तो समझना िक आपन राग- ष पर िवजय ा कर िलया ह | जब आपकी ि पड़त ही िसहािद िहसक जीव की िहसावित गायब हो जाय तब समझना िक अब राग- ष का अभाव हआ ह | 133) आतमा क िसवाय अनय कछ भी नही ह - ऐसी समझ रखना ही आतमिन ा ह | 134) आप ःव न ा ह और यह जगत आपका ही ःव न ह | बस िजस ण यह ान हो जायगा उसी ण आप म हो जाएग | 135) िदन क चौबीस घ ट को साधनामय बनान क िलय िनक मा होकर यथर िवचार करत हए मन को बार-बार सावधान करक आतमिचतन म लगाओ | ससार म सल न मन को वहा स उठा कर आतमा म लगात रहो | 136) एक बार सागर की एक बड़ी तरग एक बलबल की िता पर हसन लगी | बलबल न

कहा ओ तरग म तो छोटा ह िफर भी बहत सखी ह | कछ ही दर म मरी दह टट जायगी िबखर

जायगी | म जल क साथ जल हो जाऊगा | वामन िमटकर िवराट बन जाऊगा | मरी मि बहत

नजदीक ह | मझ आपकी िःथित पर दया आती ह | आप इतनी बड़ी हई हो | आपका छटकारा ज दी नही होगा | आप भाग-भागकर सामनवाली च टान स टकराओगी | अनक छोटी-छोटी तरग

म िवभ हो जाओगी | उन अस य तरग म स अननत-अननत बलबल क रप म पिरवितरत हो जाओगी | य सब बलबल फटग तब आपका छटकारा होगा | बड़ पन का गवर कय करती हो जगत की उपलि धय का अिभमान करक परमातमा स दर मत जाओ | बलबल की तरह सरल

रहकर परमातमा क साथ एकता का अनभव करो | 137) जब आप ईयार ष िछिानवषण दोषारोपण घणा और िननदा क िवचार िकसीक

ित भजत ह तब साथ-ही-साथ वस ही िवचार को आमिऽत भी करत ह | जब आप अपन भाई की आख म ितनका भ कत ह तब अपनी आख म भी आप ताड़ भ क रह ह | 138) शरीर अनक ह आतमा एक ह | वह आतमा-परमातमा मझस अलग नही | म ही कतार सा ी व नयायधीश ह | म ही ककर श आलोचक ह और म ही मधर शसक ह | मर िलय तयक

यि ःवतऽ व ःव छनद ह | बनधन पिरि छननता और दोष मरी ि म आत ही नही | म म

हपरम म ह और अनय लोग भी ःवतऽ ह | ई र म ही ह | आप भी वही हो | 139) िजस कार बालक अपनी परछा म बताल की क पना कर भय पाता ह उसी कार जीव अपन ही सक प स भयभीत होता ह और क पाता ह | 140) कभी-कभी ऐसी भावना करो िक आपक सामन चतनय का एक महासागर लहरा रहा ह | उसक िकनार खड़ रह कर आप आनद स उस दख रह ह | आपका शरीर सागर की सतह पर घमन गया ह | आपक दखत ही दखत वह सागर म डब गया | इस समःत पिरिःथित को दखन वाल आप सा ी आतमा शष रहत ह | इस कार सा ी रप म अपना अनभव करो | 141) यिद हम चाहत ह िक भगवान हमार सब अपराध माफ कर तो इसक िलए सगम साधना यही ह िक हम भी अपन सबिधत सब लोग क सब अपराध माफ कर द |

कभी िकसी क दोष या अपराध पर ि न डाल कय िक वाःतव म सब रप म हमारा यारा ई दव ही बीड़ा कर रहा ह |

142) पणर पिवऽता का अथर ह बा भाव स भािवत न होना | सासािरक मनोहरता एव घणा स पर रहना राजी-नाराजगी स अिवचल िकसी म भद न दखना और आतमानभव क ारा आकषरण व तयाग स अिल रहना | यही वदानत का उपिनषद का

रहःय ह | 143) ई र सा ातकार तभी होगा जब ससार की ि स तीत होन वाल बड़-स-बड़ विरय को भी मा करन का आपका ःवभाव बन जायगा | 144) चाल यवहार म स एकदम उपराम होकर दो िमनट क िलए िवराम लो |

सोचो िक lsquo म कौन ह सद -गम शरीर को लगती ह | भख- यास ाण को लगती ह |

अनकलता-ितकलता मन को लगती ह | शभ-अशभ एव पाप-प य का िनणरय बि करती ह | म न शरीर ह न ाण ह न मन ह न बि ह | म तो ह इन सबको स ा दन वाला इन सबस नयारा िनलप आतमा |rsquo 145) जो मनय िनरतर lsquoम म हhelliprsquo ऐसी भावना करता ह वह म ही ह और lsquoम ब हhelliprsquo ऐसी भावना करनवाला ब ही ह | 146) आप िनभरय ह िनभरय ह िनभरय ह | भय ही मतय ह | भय ही पाप ह | भय ही नकर ह | भय ही अधमर ह | भय ही यिभचार ह | जगत म िजतन असत या िमथया भाव ह व सब इस भयरपी शतान स पदा हए ह | 147) परिहत क िलए थोड़ा काम करन स भी भीतर की शि या जागत होती ह |

दसर क क याण क िवचारमाऽ स दय म एक िसह क समान बल आ जाता ह | 148) हम यिद िनभरय ह ग तो शर को भी जीतकर उस पाल सक ग | यिद डरग तो क ा भी हम फ़ाड़ खायगा | 149) तयक िबया तयक यवहार तयक ाणी ःवरप िदख यही सहज समािध ह | 150) जब किठनाईया आय तब ऐसा मानना िक मझ म सहन शि बढ़ान क िलए ई र न य सयोग भज ह | किठन सयोग म िह मत रहगी तो सयोग बदलन लगग |

िवषय म राग- ष रह गया होगा तो वह िवषय कसौटी क रप म आग आयग और उनस पार होना पड़गा | 151) ततव ि स न तो आपन जनम िलया न कभी लग | आप तो अनत ह सवर यापी ह िनतयम अजर-अमर अिवनाशी ह | जनम-मतय का ही गलत ह महा-

मखरतापणर ह | जहा जनम ही नही हआ वहा मतय हो ही कस सकती ह 152) आप ही इस जगत क ई र हो | आपको कौन दबरल बना सकता ह जगत म आप ही एकमाऽ स ा हो | आपको िकसका भय खड़ हो जाओ | म हो जाओ | ठ क स समझ लो िक जो कोई िवचार या श द आपको दबरल बनाता ह वही एकमाऽ अशभ ह | मनय को दबरल व भयभीत करनवाला जो कछ इस ससार म ह वह पाप ह | 153) आप अपना कायर या कतर य करो लिकन न उसक िलए कोई िचनता रह न ही कोई

इ छा | अपन कायर म सख का अनभव करो कय िक आपका कायर ःवय सख या िवौाम ह | आपका कायर आतमानभव का ही दसरा नाम ह | कायर म लग रहो | कायर आपको आतमानभव कराता ह |

िकसी अनय हत स कायर न करो | ःवतऽ वि स अपन कायर पर डट जाओ | अपन को ःवतऽ

समझो िकसीक कदी नही | 154) यिद आप सतय क मागर स नही हटत तो शि का वाह आपक साथ ह समय आपक

साथ ह ऽ आपक साथ ह | लोग को उनक भतकाल की मिहमा पर फलन दो भिवयकाल की स पणर मिहमा आपक हाथ म ह | 155) जब आप िद य म क साथ चा डाल म चोर म पापी म अ यागत म और सबम भ क दशरन करग तब आप भगवान ौी कण क मपाऽ बन जायग | 156) आचायर गौड़पाद न ःप कहा आप सब आपस म भल ही लड़त रह लिकन मर साथ नही लड़ सक ग | आप सब लोग मर पट म ह | म आतमःवरप स सवर या ह | 157) मनय सभी ािणय म ौ ह सब दवताओ स भी ौ ह | दवताओ को भी िफर स

धरती पर आना पड़गा और मनय शरीर ा करक मि ा करनी होगी | 158) िनि नतता क दो सऽ जो कायर करना जररी ह उस परा कर दो | जो िबनजररी ह

उस भल जाओ | 159) सवा-म-तयाग ही मनय क िवकास का मल मऽ ह | अगर यह मऽ आपको जच

जाय तो सभी क ित सदभाव रखो और शरीर स िकसी-न-िकसी यि को िबना िकसी मतलब क

सहयोग दत रहो | यह नही िक जब मरी बात मानग तब म सवा करगा | अगर बनधक मरी बात

नही मानत तो म सवा नही करगा |

भाई तब तो तम सवा नही कर पाओग | तब तो तम अपनी बात मनवा कर अपन अह की पजा ही

करोग | 160) जस ःव न िमथया ह वस ही यह जामत अवःथा भी ःव नवत ही ह िमथया ह | हरक

को अपन इस ःव न स जागना ह | सदगर बार-बार जगा रह ह लिकन जाग कर वापस सो न जाए ऐसा परषाथर तो हम ही करना होगा | 161) सदा सननमख रहो | मख को कभी मिलन मत करो | िन य कर लो िक आपक

िलय शोक न इस जगत म जनम नही िलया ह | आननदःवरप म िचनता का ःथान ही कहा ह 162) समम ा ड एक शरीर ह | समम ससार एक शरीर ह | जब तक आप तयक क

साथ एकता का अनभव करत रहग तब तक सब पिरिःथितया और आस-पास की चीज़ हवा और समि की लहर भी आपक प म रहगी | 163) आपको जो कछ शरीर स बि स या आतमा स कमजोर बनाय उसको िवष की तरह

ततकाल तयाग दो | वह कभी सतय नही हो सकता | सतय तो बलद होता ह पावन होता ह

ानःवरप होता ह | सतय वह ह जो शि द | 164) साधना म हमारी अिभरिच होनी चािहय साधना की तीो माग होनी चािहय | 165) दसर क दोष की चचार मत करो चाह व िकतन भी बड़ ह | िकसी क दोष की चचार करक आप उसका िकसी भी कार भला नही करत बि क उस आघात पहचात ह और साथ-ही-साथ अपन आपको भी | 166) इस ससार को सतय समझना ही मौत ह | आपका असली ःवरप तो आननदःवरप

आतमा ह | आतमा क िसवा ससार जसी कोई चीज ही नही ह | जस सोया हआ मनय ःव न म अपनी एकता नही जानता अिपत अपन को अनक करक दखता ह वस ही आननदःवरप आतमा जामत ःव न और सषि - इन तीन ःवरप को दखत हए अपनी एकता अि तीयता का अनभव

नही करता | 167) मनोजय का उपाय ह अ यास और वरा य | अ यास मान य पवरक मन को बार-बार परमातम-िचतन म लगाना और वरा य मान मन को ससार क पदाथ की ओर स वापस

लौटाना | 168) िकसी स कछ मत मागो | दन क िलय लोग आपक पीछ-पीछ घमग | मान नही

चाहोग तो मान िमलगा | ःवगर नही चाहोग तो ःवगर क दत आपक िलय िवमान लकर आयग |

उसको भी ःवीकार नही करोग तो ई र आपको अपन दय स लगायग | 169) कभी-कभी उदय या अःत होत हए सयर की ओर चलो | नदी सरोवर या समि क तट

पर अकल घमन जाओ | ऐस ःथान की मलाकात लो जहा शीतल पवन मनद-मनद चल रही हो | वहा परमातमा क साथ एकःवर होन की स भावना क ार खलत ह | 170) आप य -ही इ छा स ऊपर उठत हो तय -ही आपका इि छत पदाथर आपको खोजन

लगता ह | अतः पदाथर स ऊपर उठो | यही िनयम ह | य - य आप इ छक िभ क याचक का भाव धारण करत हो तय -तय आप ठकराय जात हो | 171) कित क तयक पदाथर को दखन क िलय काश जररी ह | इसी कार मन बि

इिनिय को अपन-अपन कायर करन क िलय आतम-काश की आवयकता ह कय िक बाहर का कोई काश मन बि इिनिय ाणािद को चतन करन म समथर नही | 172) जस ःव न ा परष को जागन क बाद ःव न क सख-दःख जनम-मरण पाप-प य

धमर-अधमर आिद ःपशर नही करत कय िक वह सब खद ही ह | खद क िसवाय ःव न म दसरा कछ

था ही नही | वस ही जीवनम ानवान परष को सख-दःख जनम-मरण पाप-प य धमर-अधमर ःपशर नही करत कय िक व सब आतमःवरप ही ह | 173) वही भमा नामक आतम योित क म रह कर भ क रही ह सअर म रह कर घर रही ह गध म रह कर रक रही ह लिकन मखर लोग शरीर पर ही ि रखत ह चतनय ततव पर नही | 174) मनय िजस ण भत-भिवय की िचनता का तयाग कर दता ह दह को सीिमत और उतपि -िवनाशशील जानकर दहािभमान को तयाग दता ह उसी ण वह एक उ चतर अवःथा म पहच जाता ह | िपजर स छटकर गगनिवहार करत हए प ी की तरह मि का अनभव करता ह | 175) समःत भय एव िचनताए आपकी इ छाओ का णाम ह | आपको भय कय लगता ह

कय िक आपको आशका रहती ह िक अमक चीज कही चली न जाय | लोग क हाःय स आप डरत

ह कय िक आपको यश की अिभलाषा ह कीितर म आसि ह | इ छाओ को ितलाजिल द दो | िफर दखो मजा कोई िज मदारी नहीकोई भय नही | 176) दखन म अतयत करप काला-कलटा कबड़ा और तज ःवभाव का मनय भी आपका ही ःवरप ह | आप इस तथय स म नही | िफर घणा कसी कोई लाव यमयी सदरी सि की

शोभा क समान अित िवलासभरी अ सरा भी आपका ही ःवरप ह | िफर आसि िकसकी

आपकी ानिनिया उनको आपस अलग करक िदखाती ह | य इिनिया झठ बोलनवाली ह | उनका कभी िव ास मत करो | अतः सब कछ आप ही हो | 177) मानव क नात हम साधक ह | साधक होन क नात सतय को ःवीकर करना हमारा ःवधमर ह | सतय यही ह िक बल दसर क िलय ह ान अपन िलय ह और िव ास परमातमा स

स बनध जोड़न क िलय ह | 178) अपनी आतमा म डब जाना यह सबस बड़ा परोपकार ह | 179) आप सदव म ह ऐसा िव ास ढ़ करो तो आप िव क उ ारक हो जात हो | आप

यिद वदानत क ःवर क साथ ःवर िमलाकर िन य करो आप कभी शरीर न थ | आप िनतय श

ब आतमा हो तो अिखल ा ड क मो दाता हो जात हो | 180) कपा करक उन ःवाथरमय उपाय और अिभाय को दर फ क दो जो आपको पिरि छनन रखत ह | सब वासनाए राग ह | यि गत या शरीरगत म आसि ह | उस फ क दो | ःवय पिवऽ हो जाओ | आपका शरीर ःवःथ और बि पणरःवरप हो जायगी | 181) यिद ससार क सख व पदाथर ा ह तो आपको कहना चािहय ओ शतान हट जा मर सामन स | तर हाथ स मझ कछ नही चािहय | तब दखो िक आप कस सखी हो जात हो परमातमा-ा िकसी महापरष पर िव ास रखकर अपनी जीवनडोरी िनःशक बन उनक चरण म सदा क िलय रख दो | िनभरयता आपक चरण की दासी बन जायगी | 182) िजसन एक बार ठ क स जान िलया िक जगत िमथया ह और ािनत स इसकी तीित

हो रही ह उसको कभी दःख नही होता | जगत म कभी आसि नही होती | जगत क िमथयातव क

िन य का नाम ही जगत का नाश ह | 183) अपन ःवरप म लीन होन माऽ स आप ससार क साट बन जायग | यह साटपद

कवल इस ससार का ही नही समःत लोक-परलोक का साटपद होगा | 184) ह जनक चाह दवािधदव महादव आकर आपको उपदश द या भगवान िवण आकर उपदश द अथवा ाजी आकर उपदश द लिकन आपको कदािप सख न होगा | जब िवषय का तयाग करोग तभी स ची शाित व आनद ा ह ग |

185) िजस भ न हम मानव जीवन दकर ःवाधीनता दी िक हम जब चाह तब धमारतमा होकर भ होकर जीवनम होकर कतकतय हो सकत ह- उस भ की मिहमा गाओ | गाओ नही तो सनो | सनो भी नही गाओ भी नही तो ःवीकार कर लो | 186) चाह समि क गहर तल म जाना पड़ सा ात मतय का मकाबला करना पड़ अपन

आतमाि क उ य की पितर क िलय अिडग रहो | उठो साहसी बनो शि मान बनो | आपको जो बल व सहायता चािहय वह आपक भीतर ही ह | 187) जब-जब जीवन स बनधी शोक और िचनता घरन लग तब-तब अपन आननदःवरप

का गान करत-करत उस मोह-माया को भगा दो | 188) जब शरीर म कोई पीड़ा या अग म ज म हो तब म आकाशवत आकाशरिहत चतन

ह ऐसा ढ़ िन य करक पीड़ा को भल जाओ | 189) जब दिनया क िकसी चककर म फस जाओ तब म िनलप िनतय म ह ऐसा ढ़

िन य करक उस चककर स िनकल जाओ | 190) जब घर-बार स बनधी कोई किठन समःया याकल कर तब उस मदारी का खल

समझकर ःवय को िनःसग जानकर उस बोझ को ह का कर दो | 191) जब बोध क आवश म आकर कोई अपमानय वचन कह तब अपन शाितमय

ःवरप म िःथर होकर मन म िकसी भी ोभ को पदा न होन दो | 192) उ म अिधकारी िज ास को चािहय िक वह व ा सदगर क पास जाकर ौ ा पवरक महावाकय सन | उसका मनन व िनिदधयासन करक अपन आतमःवरप को जान | जब

आतमःवरप का सा ातकार होता ह तब ही परम िवौािनत िमल सकती ह अनयथा नही | जब तक

व ा महापरष स महावाकय ा न हो तब तक वह मनद अिधकारी ह | वह अपन दयकमल म परमातमा का धयान कर ःमरण कर जप कर | इस धयान-जपािद क साद स उस व ा सदगर

ा ह ग | 193) मन बि िच अहकार छाया की तरह जड़ ह णभगर ह कय िक व उतपनन होत

ह और लीन भी हो जात ह | िजस चतनय की छाया उसम पड़ती ह वह परम चतनय सबका आतमा ह | मन बि िच अहकार का अभाव हो जाता ह लिकन उसका अनभव करनवाल का अभाव

कदािप नही होता |

194) आप अपनी शि को उ चाितउ च िवषय की ओर बहन दो | इसस आपक पास व

बात सोचन का समय ही नही िमलगा िजसस कामकता की गध आती हो | 195) अपराध क अनक नाम ह बालहतया नरहतया मातहतया गौहतया इतयािद |

परनत तयक ाणी म ई र का अनभव न करक आप ई रहतया का सबस बड़ा अपराध करत ह | 196) सवा करन की ःवाधीनता मनयमाऽ को ा ह | अगर वह करना ही न चाह तो अलग बात ह | सवा का अथर ह मन-वाणी-कमर स बराईरिहत हो जाना यह िव की सवा हो गई |

यथाशि भलाई कर दो यह समाज की सवा हो गई | भलाई का फल छोड़ दो यह अपनी सवा हो गई

| भ को अपना मानकर ःमित और म जगा लो यह भ की सवा हो गई | इस कार मनय

अपनी सवा भी कर सकता ह समाज की सवा भी कर सकता ह िव की सवा भी कर सकता ह

और िव र की सवा भी कर सकता ह | 197) आतमा स बाहर मत भटको अपन कनि म िःथर रहो अनयथा िगर पड़ोग | अपन-

आपम पणर िव ास रखो | आतम-कनि पर अचल रहो | िफर कोई भी चीज आपको िवचिलत नही कर सकती | 198) सदा शात िनिवरकार और सम रहो | जगत को खलमाऽ समझो | जगत स भािवत

मत हो | इसस आप हमशा सखी रहोग | िफर कछ बढ़ान की इ छा नही होगी और कछ कम होन स

दःख नही होगा | 199) समथर सदगर क सम सदा फल क भाित िखल हए रहो | इसस उनक अनदर सक प

होगा िक यह तो बहत उतसाही साधक ह सदा सनन रहता ह | उनक सामथयरवान सक प स

आपकी वह किऽम सननता भी वाःतिवक सननता म बदल जायगी | 200) यिद रोग को भी ई र का िदया मानो तो ार ध-भोग भी हो जाता ह और क तप का फल दता ह | इसस ई र-कपा की ाि होती ह | याकल मत हो | क सल और इनजकशन

आधीन मत हो | 201) साधक को चािहय िक अपन लआय को ि म रखकर साधना-पथ पर तीर की तरह

सीधा चला जाय | न इधर दख न उधर | ि यिद इधर-उधर जाती हो तो समझना िक िन ा िःथर नही ह |

202) आपन अपन जीवन म हजार ःव न दख ह ग लिकन व आपक जीवन क अश नही बन जात | इसी कार य जामत जगत क आड बर आपकी आतमा क सम कोई मह व नही रखत | 203) एक आतमा को ही जानो अनय बात को छोड़ो | धीर साधक को चािहय िक वह

सावधान होकर आतमिन ा बढ़ाय अनक श द का िचनतन व भाषण न कर कय िक वह तो कवल

मन-वाणी को पिरौम दनवाला ह असली साधना नही ह | 204) जो परष जन-समह स ऐस डर जस साप स डरता ह स मान स ऐस डर जस नकर स

डरता ह ि य स ऐस डर जस मद स डरता ह उस परष को दवतागण ा ण मानत ह | 205) जस अपन शरीर क अग पर बोध नही आता वस शऽ िमऽ व अपनी दह म एक ही आतमा को दखनवाल िववकी परष को कदािप बोध नही आता | 206) मन तो शरीर को ई रापरण कर िदया ह | अब उसकी भख- यास स मझ कया

समिपरत वःत म आस होना महा पाप ह | 207) आप यिद िद य ि पाना चहत हो तो आपको इिनिय क ऽ का तयाग करना होगा | 208) लयकाल क मघ की गजरना हो समि उमड़ पड बारह सयर तपायमान हो जाय पहाड़ स पहाड़ टकरा कर भयानक आवाज हो तो भी ानी क िन य म त नही भासता कय िक

त ह ही नही | त तो अ ानी को भासता ह | 209) सतय को ःवीकार करन स शाित िमलगी | कछ लोग यो यता क आधार पर शाित

खरीदना चाहत ह | यो यता स शाित नही िमलगी यो यता क सदपयोग स शाित िमलगी | कछ

लोग स पि क आधार पर शाित सरि त रखना चाहत ह | स पि स शाित नही िमलगी स पि

क सदपयोग स शाित िमलगी वस ही िवपि क सदपयोग स शाित िमलगी | 210) त छ हािन-लाभ पर आपका धयान इतना कय रहता ह िजसस अनत आननदःवरप

आतमा पर स धयान हट जाता ह | 211) अपन अनदर ही आननद ा करना य िप किठन ह परनत बा िवषय स आननद

ा करना तो अस भव ही ह |

212) म ससार का काश ह | काश क रप म म ही सब वःतओ म या ह | िनतय इन

िवचार का िचनतन करत रहो | य पिवऽ िवचार आपको परम पिवऽ बना दग | 213) जो वःत कमर स ा होती ह उसक िलय ससार की सहायता तथा भिवय की आशा की आवयकता होती ह परनत जो वःत तयाग स ा होती ह उसक िलय न ससार की सहायता चािहय न भिवय की आशा | 214) आपको जब तक बाहर चोर िदखता ह तब तक जरर भीतर चोर ह | जब दसर लोग

स िभनन अयो य खराब सधारन यो य िदखत ह तब तक ओ सधार का बीड़ा उठान वाल त अपनी िचिकतसा कर | 215) सफल व ही होत ह जो सदव नतमःतक एव सननमख रहत ह | िचनतातर-शोकातर लोग की उननित नही हो सकती | तयक कायर को िह मत व शाित स करो | िफर दखो िक यह

कायर शरीर मन और बि स हआ | म उन सबको स ा दनवाला चतनयःवरप ह | ॐ ॐ का पावन गान करो | 216) िकसी भी पिरिःथित म मन को यिथत न होन दो | आतमा पर िव ास करक

आतमिन बन जाओ | िनभरयता आपकी दासी बन कर रहगी | 217) सतसग स मनय को साधना ा होती ह चाह वह शाित क रप म हो चाह मि क

रप म चाह सवा क रप म हो म क रप म हो चाह तयाग क रप म हो | 218) भला-बरा वही दखता ह िजसक अनदर भला-बरा ह | दसर क शरीर को वही दखता ह

जो खद को शरीर मानता ह | 219) खबरदार आपन यिद अपन शरीर क िलय ऐश-आराम की इ छा की िवलािसता एव इिनिय-सख म अपना समय बरबाद िकया तो आपकी खर नही | ठ क स कायर करत रहन की नीित

अपनाओ | सफलता का पहला िस ात ह कायरिवौामरिहत कायरसा ी भाव स कायर | इस

िस ात को जीवन म चिरताथर करोग तो पता चलगा िक छोटा होना िजतना सरल ह उतना ही बड़ा होना भी सहज ह | 220) भतकाल पर िखनन हए िबना भिवय की िचनता िकय िबना व रमान म कायर करो | यह भाव आपको हर अवःथा म सनन रखगा हम जो कछ ा ह उसका सदपयोग ही अिधक

काश पान का साधन ह |

221) जब आप सफलता की ओर पीठ कर लत हो पिरणाम की िचनता का तयाग कर दत

हो स मख आय हए क र य पर अपनी उ ोगशि एकाम करत हो तब सफलता आपक पीछ-पीछ

आ जाती ह | अतः सफलता आपको खोजगी | 222) वि तब तक एकाम नही होगी जब तक मन म कभी एक आशा रहगी तो कभी दसरी | शात वही हो सकता ह िजस कोई क र य या आवयकता घसीट न रही हो | अतः परम शाित पान

क िलय जीवन की आशा भी तयाग कर मन ाननद म डबो दो | आज स समझ लो िक यह शरीर ह ही नही | कवल ाननद का सागर लहरा रहा ह | 223) िजसकी पककी िन ा ह िक म आतमा हrsquo उसक िलय ऐसी कौन सी मिथ ह जो खल

न सक ऐसी कोई ताकत नही जो उसक िवर जा सक | 224) मर भा य म नही थाई र की मज आजकल सतसग ा नही होताजगत

खराब ह ऐस वचन हमारी कायरता व अनतःकरण की मिलनता क कारण िनकलत ह | अतः नकारातमक ःवभाव और दसर पर दोषारोपण करन की वि स बचो | 225) आप जब भीतरवाल स नाराज होत हो तब जगत आपस नाराज रहता ह | जब आप

भीतर अनतयारमी बन बठ तो जगतरपी पतलीघर म िफर गड़बड़ कसी 226) िजस ण हम ससार क सधारक बन खड़ होत ह उसी ण हम ससार को िबगाड़नवाल बन जात ह | श परमातमा को दखन क बजाय जगत को िबगड़ा हआ दखन की ि बनती ह | सधारक लोग मानत ह िक lsquoभगवान न जो जगत बनाया ह वह िबगड़ा हआ ह और हम उस सधार रह ह |rsquo वाह वाह धनयवाद सधारक अपन िदल को सधारो पहल | सवरऽ िनरजन का दीदार करो | तब आपकी उपिःथित माऽ स आपकी ि माऽ स अर यार आपको छकर बहती हवा माऽ स अननत जीव को शाित िमलगी और अननत सधार होगा | नानक कबीर महावीर ब और लीलाशाह बाप जस महापरष न यही कजी अपनायी थी | 227) वदानत म हमशा कमर का अथर होता ह वाःतिवक आतमा क साथ एक होकर च ा करना अिखल िव क साथ एकःवर हो जाना | उस अि तीय परम ततव क साथ िनःःवाथर सयोग ा करना ही एकमाऽ स चा कमर ह बाकी सब बोझ की गठिरया उठाना ह |

228) अपनी व रमान अवःथा चाह कसी भी हो उसको सव च मानन स ही आपक दय म आतम ान ान का अनायास उदय होन लगगा | आतम-सा ातकार को मील दर की कोई चीज समझकर उसक पीछ दौड़ना नही ह िचिनतत होना नही ह |

िचनता की गठरी उठाकर यिथत होन की जररत नही ह | िजस ण आप िनि नतता म गोता मारोग उसी ण आपका आतमःवरप गट हो जायगा | अर गट कया होगा आप ःवय आतमःवरप हो ही | अनातमा को छोड़ दो तो आतमःवरप तो हो ही | 229) सदा ॐकार का गान करो | जब भय व िचनता क िवचार आय तब िकसी मःत सत-फकीर महातमा क सािननधय का ःमरण करो | जब िननदा-शसा क सग आय तब महापरष क जीवन का अवलोकन करो | 230) िजनको आप भयानक घटनाए एव भयकर आघात समझ बठ हो वाःतव म व आपक ियतम आतमदव की ही करतत ह | समःत भयजनक तथा ाणनाशक घटनाओ क नाम-रप तो िवष क ह लिकन व बनी ह अमत स | 231) मन म यिद भय न हो तो बाहर चाह कसी भी भय की साममी उपिःथत हो जाय आपका कछ िबगाड़ नही सकती | मन म यिद भय होगा तो तरनत बाहर भी भयजनक पिरिःथया न होत हए भी उपिःथत हो जायगी | व क तन म भी भत िदखन लगगा | 232) िकसी भी पिरिःथित म िदखती हई कठोरता व भयानकता स भयभीत नही होना चािहए | क क काल बादल क पीछ पणर काशमय एकरस परम स ा सयर की तरह सदा िव मान ह | 233) आप अपन पर कदािप अिव ास मत करो | इस जगत म आप सब कछ कर सकत हो | अपन को कभी दबरल मत मानो | आपक अनदर तमाम शि या छपी हई ह | 234) यिद कोई मन य आपकी कोई चीज़ को चरा लता ह तो ड़रत कय हो वह मनय

और आप एक ह | िजस चीज़ को वह चराता ह वह चीज़ आपकी और उसकी द न की ह | 235) जो खद क िसवाय दसरा कछ दखता नही सनता नही जानता नही वह अननत ह |

जब तक खद क िसवाय और िकसी वःत का भान होता ह वह वःत स ची लगती ह तब तक आप

सीिमत व शात ह असीम और अनत नही |

236) ससार मझ कया आनद द सकता ह स पणर आनद मर भीतर स आया ह | म ही स पणर आननद ह स पणर मिहमा एव स पणर सख ह | 237) जीवन की समःत आवयकताए जीवन म उपिःथत ह परनत जीवन को जब हम

बा रग म रग दत ह तब जीवन का वाःतिवक रप हम नही जान पात | 238) िननदक की िननदा स म कय मरझाऊ शसक की शसा स म कय फल िननदा स म घटता नही और शसा स म बढ़ता नही | जसा ह वसा ही रहता ह | िफर िननदा-ःतित स

खटक कसी 239) ससार व ससार की समःयाओ म जो सबस अिधक फस हए ह उनही को वदानत की सबस अिधक आवयकता ह | बीमार को ही औषिध की यादा आवयकता ह | कय जी ठ क ह न 240) जगत क पाप व अतयाचार की बात मत करो लिकन अब भी आपको जगत म पाप

िदखता ह इसिलय रोओ | 241) हम यिद जान ल िक जगत म आतमा क िसवाय दसरा कछ ह ही नही और जो कछ

िदखता ह वह ःव नमाऽ ह तो इस जगत क दःख-दािरिय पाप-प य कछ भी हम अशात नही कर सकत | 242) िव ान दाशरिनक व आचाय की धमकी तथा अनमह आलोचना या अनमित

ानी पर कोई भाव नही ड़ाल सकती | 243) ह यि रप अननत आप अपन पर पर खड़ रहन का साहस करो समःत िव का बोझ आप िखलौन की तरह उठा लोग | 244) िसह की गजरना व नरिसह की ललकार तलवार की धार व साप की फफकार तपःवी की धमकी व नयायधीश की फटकारइन सबम आपका ही काश चमक रहा ह | आप इनस

भयभीत कय होत हो उलझन कय महसस करत हो मरी िब ली मझको याऊ वाली बात कय

होन दत हो 245) ससार हमारा िसफ़र िखलोना ही ह और कछ नही | अबोध बालक ही िखलौन स

भयभीत होता ह आसि करता ह िवचारशील यि नही |

246) जब तक अिव ा दर नही होगी तब तक चोरी जआ दार यिभचार कभी बद न

ह ग चाह लाख कोिशश करो | 247) आप हमशा अदर का धयान रखो | पहल हमारा भीतरी पतन होता ह | बा पतन तो इसका पिरणाम माऽ ह | 248) तयाग स हमशा आनद िमलता ह | जब तक आपक पास एक भी चीज़ बाकी ह तब

तक आप उस चीज़ क बधन म बध रहोग | आघात व तयाघात हमशा समान िवरोधी होत ह | 249) िनि तता ही आरो यता की सबस बड़ी दवाई ह | 250) सख अपन िसर पर दख का मकट पहन कर आता ह | जो सख को अपनायगा उस

दख को भी ःवीकार करना पड़गा | 251) म (आतमा) सबका ा ह | मरा ा कोई नही | 252) हजार म स कोई एक परष भीतर स शात िच वाला रहकर बाहर स ससारी जसा यवहार कर सकता ह | 253) सतय क िलए यिद शरीर का तयाग करना पड़ तो कर दना | यही आिखरी ममता ह जो हम तोड़नी होगी | 254) भय िचनता बचनी स ऊपर उठो | आपको ान का अनभव होगा | 255) आपको कोई भी हािन नही पहचा सकता | कवल आपक खयालात ही आपक पीछ पड़ ह | 256) म का अथर ह अपन पड़ोसी तथा सपकर म आनवाल क साथ अपनी वाःतिवक अभदता का अनभव करना | 257) ओ यार अपन खोय हए आतमा को एक बार खोज लो | धरती व आसमान क शासक आप ही हो | 258) सदव सम और सनन रहना ई र की सव पिर भि ह |

259) जब तक िच म ढ़ता न आ जाय िक शा की िविधय का पालन छोड़ दन स भी दय का यथाथर भि भाव न नही होगा तब तक शा की िविधय को पालत रहो |

गर भि एक अमोघ साधना 1 जनम मरण क िवषचब स म होन का कोई मागर नही ह कया सख-दःख हषर-शोक लाभ-

हािन मान-अपमान की थ पड़ स बचन का कोई उपाय नही ह कया

हअवय ह | ह िय आतमन नाशवान पदाथ स अपना मन वािपस लाकर सदगर क

चरणकमल म लगाओ | गरभि योग का आौय लो | गरसवा ऐसा अमोघ साधन ह िजसस

व रमान जीवन आननदमय बनता ह और शा त सख क ार खलत ह |

गर सवत त नर धनय यहा | ितनक नही दःख यहा न वहा || 2 स च सदगर की की हई भि िशय म सासािरक पदाथ क वरा य एव अनासि जगाती ह

परमातमा क ित म क पप महकाती ह | 3 तयक िशय सदगर की सवा करना चाहता ह लिकन अपन ढग स | सदगर चाह उस ढग स

सवा करन को कोई ततपर नही | जो िवरला साधक गर चाह उस ढ़ग स सवा कर सकता ह उस कोई कमी नही रहती |

िन सदगर की सवा स उनकी कपा ा होती ह और उस कपा स न िमल सक ऐसा तीन लोक म कछ भी नही ह | 4 गर िशय का स बनध पिवऽतम स बनध ह | ससार क तमाम बनधन स छड़ाकर वह मि क मागर पर ःथान कराता ह | यह स बनध जीवनपयरनत का स बनध ह | यह बात अपन दय की डायरी म सवणर-अ र स िलख लो | 5 उ ल सयर क काश क अिःततव को मान या न मान िफर भी सयर हमशा काशता ह | चचल मन का मनय मान या न मान लिकन सदगर की परमक याणकारी कपा सदव बरसती ही रहती ह | 6 सदगर की चरणरज म ःनान िकय िबना कवल किठन तप यार करन स या वद का

अधयन करन स वदानत का रहःय कट नही होता आतमानद का अमत नही िमलता | 7 दशरन शा क चाह िकतन मनथ पढ़ो हजार वष तक िहमालय की गफा म तप करो वष तक ाणायाम करो जीवनपयरनत शीषारसन करो समम िव म वास करक याखान दो िफर भी सदगर की कपा क िबना आतम ान नही होता | अतः िनरािभमानी सरल िनजाननद म मःत दयाल ःवभाव क आतम-सा ातकारी सदगर क चरण म जाओ | जीवन को धनय बनाओ | 8 सदगर की सवा िकय िबना शा का अधयन करना मम साधक क िलय समय बरबाद करन क बराबर ह | 9 िजसको सदगर ा हए ह ऐस िशय क िलय इस िव म कछ भी अा य नही ह | सदगर िशय को िमली हई परमातमा की अम य भट ह | अर नहीhellipनही व तो िशय क सम साकार रप म कट हए परमातमा ःवय ह | 10 सदगर क साथ एक ण िकया हआ सतसग लाख वष क तप स अननत गना ौ ह | आख क िनमषमाऽ म सदगर की अमतवष ि िशय क जनम-जनम क पाप को जला सकती ह | 11 सदगर जसा मपणर कपाल िहतिचनतक िव भर म दसरा कोई नही ह | 12 बाढ़ क समय याऽी यिद तफानी नदी को िबना नाव क पार कर सक तो साधक भी िबना सदगर क अपन जीवन क आिखरी लआय को िस कर सकता ह | यानी य दोन बात स भव ह |

अतः यार साधक मनमखी साधना की िज करना छोड़ दो | गरमखी साधना करन म ही सार ह | 13 सदगर क चरणकमल का आौय लन स िजस आननद का अनभव होता ह उसक आग िऽलोकी का साा य त छ ह | 14 आतम-सा ातकार क मागर म सबस महान शऽ अहभाव का नाश करन क िलए सदगर की आ ा का पालन अमोघ श ह | 15 रसोई सीखन क िलय कोई िसखानवाला चािहय िव ान और गिणत सीखन क िलय

अधयापक चािहय तो कया िव ा सदगर क िबना ही सीख लोग 16 सदगरकपा की स पि जसा दसरा कोई खजाना िव भर म नही | 17 सदगर की आ ा का उ लघन करना यह अपनी क खोदन क बराबर ह | 18 सदगर क कायर को शका की ि स दखना महापातक ह | 19 गरभि व गरसवा - य साधनारपी नौका की दो पतवार ह | उनकी मदद स िशय ससारसागर को पार कर सकता ह | 20 सदगर की कसौटी करना असभव ह | एक िववकाननद ही दसर िववकाननद को पहचान सकत ह | ब को जानन क िलय दसर ब की आवयकता रहती ह | एक रामतीथर का रहःय दसर रामतीथर ही पा सकत ह |

अतः सदगर की कसौटी करन की च ा छोड़कर उनको पिरपणर पर परमातमा मानो |

तभी जीवन म वाःतिवक लाभ होगा | 21 गरभि योग का आौय लकर आप अपनी खोई हई िद यता को पनः ा करो सख-दःख जनम-मतय आिद सब न स पार हो जाओ | 22 गरभि योग मान गर की सवा क ारा मन और िवकार पर िनयऽण एव पनः सःकरण | 23 िशय अपन गर क चरणकमल म णाम करता ह | उन पर ौ फल की वषार करक उनकी ःतित करता ह ldquoह परम प य पिवऽ गरदव मझ सव च सख ा हआ ह | म िन ा स जनम-मतय की पर परा स म हआ ह | म िनिवरक प समािध का श सख भोग रहा ह | जगत क िकसी भी कोन म म म ता स िवचरण कर सकता ह | सब पर मरी सम ि ह | मन ाकत मन का तयाग िकया ह | मन सब सक प एव रिच-अरिच का तयाग िकया ह | अब म अख ड शाित म िवौाित पा रहा ह hellip आननदमय हो रहा ह | म इस पणर अवःथा का वणरन नही कर पाता | ह प य गरदव म आवाक बन गया ह | इस दःतर भवसागर को पार करन म आपन

मझ सहायता की ह | अब तक मझ कवल अपन शरीर म ही स पणर िव ास था | मन िविभनन योिनय म अस य जनम िलय | ऐसी सव च िनभरय अवःथा मझ कौन स पिवऽ कम क कारण ा हई ह यह म नही जानता | सचमच यह एक दलरभ भा य ह |

यह एक महान उतक लाभ ह | अब म आननद स नाचता ह | मर सब दःख न हो गय | मर सब मनोरथ पणर हए ह |

मर कायर स पनन हए ह | मन सब वािछत वःतए ा की ह | मरी इ छा पिरपणर हई ह | आप मर स च माता-िपता हो | मरी व रमान िःथित म म दसर क सम िकस कार कट कर सक सवरऽ सख और आननद का अननत सागर मझ लहराता हआ िदख रहा ह | मर अतःच िजसस खल गय वह महावाकय lsquoत वमिसrsquo ह | उपिनषद एव वदानतसऽ को भी धनयवाद | िजनह न िन गर का एव उपिनषद क महावाकय का रप धारण िकया ह | ऐस ौी यासजी को णाम ौी शकराचायर को णाम सासािरक मनय क िसर पर गर क चरणामत का एक िबनद भी िगर तो भी उसक ःब दःख का नाश होता ह | यिद एक िन परष को व पहनाय जाय तो सार िव को व पहनान एव भोजन करवान क बराबर ह कय िक िन परष सचराचर िव म या ह | सबम व ही ह |rdquo

ॐhellip ॐ hellip ॐ hellip

ःवामी िशवानद जी

ौी राम-विश सवाद ौी विश जी कहत ह ldquoह रघकलभषण ौी राम अनथर ःवरप िजतन सासािरक पदाथर ह व सब जल म तरग क समान िविवध रप धारण करक चमतकार उतपनन करत ह अथारत ई छाए उतपनन करक जीव को मोह म फसात ह | परत जस सभी तरग जल ःवरप ही ह उसी कार सभी पदाथर वःततः न र ःवभाव वाल ह |

बालक की क पना स आकाश म य और िपशाच िदखन लगत ह परनत बि मान मनय क िलए उन य और िपशाच का कोई अथर नही | इसी कार अ ानी क िच म यह जगत सतय हो ऐसा लगता ह जबिक हमार जस ािनय क िलय यह जगत कछ भी नही | यह समम िव पतथर पर बनी हई पतिलय की सना की तरह रपालोक तथा अतर-बा िवषय स शनय ह | इसम सतयता कसी परनत अ ािनय को यह िव सतय लगता ह |rdquo विश जी बोल ldquoौी राम जगत को सतय ःवरप म जानना यह ाित ह मढ़ता ह | उस िमथया अथारत कि पत समझना यही उिचत समझ ह | ह राघव तव ा अहता आिद सब िवम-िवलास शात िशवःवरप श ःवरप ही ह | इसिलय मझ तो क अितिर और कछ भी नही िदखता | आकाश म जस जगल नही वस ही म जगत नही ह | ह राम ार ध वश ा कम स िजस परष की च ा कठपतली की तरह ई छाशनय और याकलतारिहत होती ह वह शानत मनवाला परष जीवनम मिन ह | ऐस जीवनम ानी को इस

जगत का जीवन बास की तरह बाहर-भीतर स शनय रसहीन और वासना-रिहत लगता ह | इस य पच म िजस रिच नही दय म िचनमाऽ अ य ही अ छा लगता ह ऐस परष न

भीतर तथा बाहर शािनत ा कर ली ह और इस भवसागर स पार हो गया ह | रघनदन श व ा कहत ह िक मन का ई छारिहत होना यही समािध ह कय िक ई छाओ का तयाग करन स मन को जसी शािनत िमलती ह ऐसी शािनत सकड़ उपदश स भी नही िमलती | ई छा की उतपि स जसा दःख ा होता ह ऐसा दःख तो नरक म भी नही | ई छाओ की शािनत

स जसा सख होता ह ऐसा सख ःवगर तो कया लोक म भी नही होता | अतः समःत शा तपःया यम और िनयम का िनचोड़ यही ह िक ई छामाऽ दःखदायी ह और ई छा का शमन मो ह | ाणी क दय म जसी-जसी और िजतनी-िजतनी ई छाय उतपनन होती ह उतना ही दख स वह

ड़रता रहता ह | िववक-िवचार ारा ई छाय जस-जस शानत होती जाती ह वस-वस दखरपी छत की बीमारी िमटती जाती ह |

आसि क कारण सासािरक िवषय की ई छाय य - य गहनीभत होती जाती ह तय -तय

दःख की िवषली तरग बढ़ती जाती ह | अपन परषाथर क बल स इस ई छारपी यािध का उपचार यिद नही िकया जाय तो इस यािध स छटन क िलय अनय कोई औषिध नही ह ऐसा म ढ़तापवरक

मानता ह | एक साथ सभी ई छाओ का स पणर तयाग ना हो सक तो थोड़ी-थोड़ी ई छाओ का धीर-धीर तयाग

करना चािहय परत रहना चािहय ई छा क तयाग म रत कय िक सनमागर का पिथक दखी नही होता | जो नराधम अपनी वासना और अहकार को ीण करन का य नही करता वह िदन -िदन अपन

को रावण की तरह अधर कऐ म ढ़कल रहा ह | ई छा ही दख की जनमदाऽी इस ससाररपी बल का बीज ह | यिद इस बीज को आतम ानरपी अि न स ठ क-ठ क जला िदया तो पनः यह अकिरत नही होता | रघकलभषण राम ई छामाऽ ससार ह और ई छाओ का अभाव ही िनवारण ह | अतः अनक कार की माथाप ची म ना पड़कर कवल ऐसा य करना चािहय िक ई छा उतपनन ना हो | अपनी बि स ई छा का िवनाश करन को जो ततपर नही ऐस अभाग को शा और गर का उपदश

भी कया करगा जस अपनी जनमभमी जगल म िहरणी की मतय िनि त ह उसी कार अनकिवध दख का िवःतार कारनवाल ई छारपी िवषय-िवकार स य इस जगत म मनय की मतय िनि त ह | यिद मानव ई छाओ क कारण ब च -सा मढ़ ना बन तो उस आतम ान क िलय अ प य ही करना पड़ | इसिलय सभी कार स ई छाओ को शानत करना चािहय | ई छा क शमन स परम पद की ाि होती ह | ई छारिहत हो जाना यही िनवारण ह और ई छाय

होना ही बधन ह | अतः यथाशि ई छा को जीतना चािहय | भला इतना करन म कया किठनाई ह जनम जरा यािध और मतयरपी कटीली झािड़य और खर क व - समह की जड़ भी ई छा ही ह

| अतः शमरपी अि न स अदर-ही-अदर बीज को जला ड़ालना चािहय| जहा ई छाओ का अभाव ह

वहा मि िनि त ह |

िववक वरा य आिद साधन स ई छा का सवरथा िवनाश करना चािहय | ई छा का सबध जहा-जहा ह वहा-वहा पाप प य दखरािशया और ल बी पीड़ाओ स य बधन को हािज़र ही समझो | परष

की आतिरक ई छा य - य शानत होती जाती ह तय -तय मो क िलय उसका क याणकारक

साधन बढ़ता जाता ह | िववकहीन ई छा को पोसना उस पणर करना यह तो ससाररपी िवष व को पानी स सीचन क समान ह |rdquo

- ौीयोगविश महारामायण

आतमबल का आवाहन कया आप अपन-आपको दबरल मानत हो लघतामथी म उलझ कर पिरिःतिथय स िपस रह हो

अपना जीवन दीन-हीन बना बठ हो hellipतो अपन भीतर सष आतमबल को जगाओ | शरीर चाह ी का हो चाह परष का कित क साा य म जो जीत ह व सब ी ह और कित क बनधन स पार अपन ःवरप की पहचान िजनह न कर ली ह अपन मन की गलामी की बिड़या तोड़कर िजनह न फ क दी ह व परष ह | ी या परष शरीर एव मानयताए होती ह | तम तो तन-मन स पार िनमरल आतमा हो | जागोhellipउठोhellipअपन भीतर सोय हय िन यबल को जगाओ | सवरदश सवरकाल म सव म

आतमबल को िवकिसत करो | आतमा म अथाह सामथयर ह | अपन को दीन-हीन मान बठ तो िव म ऐसी कोई स ा नही जो त ह ऊपर उठा सक | अपन आतमःवरप म िति त हो गय तो िऽलोकी म ऐसी कोई हःती नही जो त ह दबा सक | भौितक जगत म वाप की शि ईलकशोिनक शि िव त की शि गरतवाकषरण की शि बड़ी मानी जाती ह लिकन आतमबल उन सब शि य का सचालक बल ह | आतमबल क सािननधय म आकर पग ार ध को पर िमल जात ह दव की दीनता पलायन हो जाती ह ितकल पिरिःतिथया अनकल हो जाती ह | आतमबल सवर िरि -िसि य का िपता ह |

आतमबल कस जगाय हररोज़ तःकाल ज दी उठकर सय दय स पवर ःनानािद स िनवत हो जाओ | ःव छ पिवऽ ःथान

म आसन िबछाकर पवारिभमख होकर प ासन या सखासन म बठ जाओ | शानत और सनन वि

धारण करो | मन म ढ भावना करो िक म कित-िनिमरत इस शरीर क सब अभाव को पार करक सब

मिलनताओ-दबरलताओ स िप ड़ छड़ाकर आतमा की मिहमा म जागकर ही रहगा |

आख आधी खली आधी बद रखो | अब फ़फ़ड़ म खब ास भरो और भावना करो की ास क साथ

म सयर का िद य ओज भीतर भर रहा ह | ास को यथाशि अनदर िटकाय रखो | िफ़र lsquoॐhelliprsquo का ल बा उ चारण करत हए ास को धीर-धीर छोड़त जाओ | ास क खाली होन क बाद तरत ास ना लो | यथाशि िबना ास रहो और भीतर ही भीतर lsquoहिर ॐhelliprsquo lsquoहिर ॐhelliprsquo का मानिसक

जाप करो | िफ़र स फ़फ़ड़ म ास भरो | पव रीित स ास यथाशि अनदर िटकाकर बाद म धीर-धीर छोड़त हए lsquoॐhelliprsquo का गजन करो | दस-पिह िमनट ऐस ाणायाम सिहत उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo की धविन करक शानत हो जाओ | सब

यास छोड़ दो | वि य को आकाश की ओर फ़लन दो | आकाश क अनदर पथवी ह | पथवी पर अनक दश अनक समि एव अनक लोग ह | उनम स एक

आपका शरीर आसन पर बठा हआ ह | इस पर य को आप मानिसक आख स भावना स दखत

रहो | आप शरीर नही हो बि क अनक शरीर दश सागर पथवी मह न ऽ सयर चनि एव पर ा ड़ क

ा हो सा ी हो | इस सा ी भाव म जाग जाओ | थोड़ी दर क बाद िफ़र स ाणायाम सिहत lsquoॐhelliprsquo का जाप करो और शानत होकर अपन िवचार को दखत रहो | इस अवःथा म ढ़ िन य करो िक lsquoम जसा चहता ह वसा होकर रहगा |rsquo िवषयसख स ा धन-

दौलत इतयािद की इ छा न करो कय िक िन यबल या आतमबलरपी हाथी क पदिच म और सभी क पदिच समािव हो ही जायग | आतमानदरपी सयर क उदय होन क बाद िम टी क तल क दीय क ाकाश रपी शि सखाभास की गलामी कौन कर

िकसी भी भावना को साकार करन क िलय दय को करद ड़ाल ऐसी िन यातमक बिल वि होनी आवशयक ह | अनतःकरण क गहर-स-गहर दश म चोट कर ऐसा ाण भरक िन बल का आवाहन करो | सीना तानकर खड़ हो जाओ अपन मन की दीन-हीन दखद मानयताओ को कचल

ड़ालन क िलय | सदा ःमरण रह की इधर-उधर भटकती वि य क साथ त हारी शि भी िबखरती रहती ह | अतः वि य को बहकाओ नही | तमाम वि य को एकिऽत करक साधनाकाल म आतमिचनतन म लगाओ और यवहारकाल म जो कायर करत हो उसम लगाओ | द िच होकर हरक कायर करो | अपन ःवभाव म स आवश को सवरथा िनमरल कर दो | आवश म आकर कोई िनणरय मत लो कोई िबया मत करो | सदा शानत वि धारण करन का अ यास करो | िवचारशील एव सनन रहो | ःवय अचल रहकर सागर की तरह सब वि य की तरग को अपन

भीतर समालो | जीवमाऽ को अपना ःवरप समझो | सबस ःनह रखो | िदल को यापक रखो | सकिच ता का िनवारण करत रहो | ख ड़ातमक वि का सवरथा तयाग करो | िजनको ानी महापरष का सतसग और अधयातमिव ा का लाभ िमल जाता ह उसक जीवन स

दःख िवदा होन लगत ह | ॐ आननद आतमिन ा म जाग हए महापरष क सतसग एव सतसािहतय स जीवन को भि और वदात स प

एव पलिकत करो | कछ ही िदन क इस सघन योग क बाद अनभव होन लगगा िक भतकाल क

नकारतमक ःवभाव सशयातमक-हािनकारक क पनाओ न जीवन को कचल ड़ाला था िवषला कर िदया था | अब िन यबल क चमतकार का पता चला | अततरम म आिवरभत िद य खज़ाना अब

िमला | ार ध की बिड़या अब टटन लगी | ठ क ह न करोग ना िह मत पढ़कर रख मत दना इस पिःतका को | जीवन म इसको बार-बार पढ़त रहो | एक िदन म यह पणर ना होगा | बार-बार अ यास करो | त हार िलय यह एक ही पिःतका काफ़ी ह | अनय कचराप टी ना पड़ोग तो चलगा | शाबाश वीर शाबाश

  • परसतावना
  • जीवन रसायन
  • गर भकति एक अमोघ साधना
  • शरी राम-वशिषठ सवाद
  • आतमबल का आवाहन
  • आतमबल कस जगाय
Page 14: जीवन रसायन - HariOmGroup · ‘जीवन रसायन’ का यह िदय कटोरा आत्मरस के िपपासुओं हाथ

ह | िनरतर ऐसा िववक करत हए ान व यरिहत कवल िचनमय िनतय िव ानाननदघनरप

म िःथर रहो | 72) यिद आप सवागपणर जीवन का आननद लना चाहत हो तो कल की िचनता छोड़ो | अपन चार

ओर जीवन क बीज बोओ | भिवय म सनहर ःवपन साकार होत दखन की आदत बनाओ | सदा क

िलय मन म यह बात पककी बठा दो िक आपका आनवाला कल अतयनत काशमय आननदमय

एव मधर होगा | कल आप अपन को आज स भी अिधक भा यवान पायग | आपका मन

सजरनातमक शि स भर जायगा | जीवन ऐ यरपणर हो जायगा | आपम इतनी शि ह िक िव न

आपस भयभीत होकर भाग खड़ ह ग | ऐसी िवचारधारा स िनि त रप स क याण होगा | आपक

सशय िमट जायग | 73) ओ मानव त ही अपनी चतना स सब वःतओ को आकषरक बना दता ह | अपनी यार भरी ि उन पर डालता ह तब तरी ही चमक उन पर चढ़ जाती ह औरhellipिफर त ही उनक यार म फ़स जाता ह | 74) मन िविचऽ एव अटपट माग ारा ऐस ततव की खोज की जो मझ परमातमा तक पहचा सक | लिकन म िजस-िजस नय मागर पर चला उन सब माग स पता चला िक म परमातमा स दर चला गया | िफर मन बि म ा एव िव ा स परमातमा की खोज की िफर भी परमातमा स अलग रहा | मनथालय एव िव ालय न मर िवचार म उ टी गड़बड़ कर दी | म थककर बठ गया | िनःत ध हो गया | सयोगवश अपन भीतर ही झाका धयान िकया तो उस अनत रि स मझ सवरःव िमला िजसकी खोज म बाहर कर रहा था | मरा आतमःवरप सवरऽ या हो रहा ह | 75) जस सामानय मनय को पतथर गाय भस ःवाभािवक रीित स ि गोचर होत ह वस ही ानी को िनजाननद का ःवाभािवक अनभव होता ह | 76) वदानत का यह अनभव ह िक नीच नराधम िपशाच शऽ कोई ह ही नही | पिवऽ ःवरप ही सवर रप म हर समय शोभायमान ह | अपन-आपका कोई अिन नही करता |

मर िसवा और कछ ह ही नही तो मरा अिन करन वाला कौन ह मझ अपन-आपस भय कसा 77) यह चराचर सि रपी त तब तक भासता ह जब तक उस दखनवाला मन बठा ह |

मन शात होत ही त की गध तक नही रहती |

78) िजस कार एक धाग म उ म मधयम और किन फल िपरोय हए ह उसी कार मर आतमःवरप म उ म मधयम और किन शरीर िपरोय हए ह | जस फल की गणव ा का भाव धाग पर नही पड़ता वस ही शरीर की गणव ा का भाव मरी सवर यापकता नही पड़ता | जस सब फल क िवनाश स धाग को कोई हािन नही वस शरीर क िवनाश स मझ सवरगत आतमा को कोई हािन नही होती | 79) म िनमरल िन ल अननत श अजर अमर ह | म असतयःवरप दह नही | िस परष इसीको lsquo ानrsquo कहत ह | 80) म भी नही और मझस अलग अनय भी कछ नही | सा ात आननद स पिरपणर कवल िनरनतर और सवरऽ एक ही ह | उ ग छोड़कर कवल यही उपासना सतत करत रहो | 81) जब आप जान लग िक दसर का िहत अपना ही िहत करन क बराबर ह और दसर का अिहत करना अपना ही अिहत करन क बराबर ह तब आपको धमर क ःवरप का सा तकार हो जायगा | 82) आप आतम-ित ा दलबनदी और ईयार को सदा क िलए छोड़ दो | पथवी माता की तरह सहनशील हो जाओ | ससार आपक कदम म नयोछावर होन का इतज़ार कर रहा ह | 83) म िनगरण िनिबय िनतय म और अ यत ह | म असतयःवरप दह नही ह | िस परष इसीको lsquo ानrsquo कहत ह | 84) जो दसर का सहारा खोजता ह वह सतयःवरप ई र की सवा नही कर सकता | 85) सतयःवरप महापरष का म सख-दःख म समान रहता ह सब अवःथाओ म हमार अनकल रहता ह | दय का एकमाऽ िवौामःथल वह म ह | व ावःथा उस आतमरस को सखा नही सकती | समय बदल जान स वह बदलता नही | कोई िवरला भा यवान ही ऐस िद य म का भाजन बन सकता ह | 86) शोक और मोह का कारण ह ािणय म िविभनन भाव का अधयारोप करना | मनय जब एक को सख दनवाला यारा स द समझता ह और दसर को दःख दनवाला शऽ समझकर उसस ष करता ह तब उसक दय म शोक और मोह का उदय होना अिनवायर

ह | वह जब सवर ािणय म एक अख ड स ा का अनभव करन लगगा ािणमाऽ को भ का पऽ समझकर उस आतमभाव स यार करगा तब उस साधक क दय म शोक और मोह का नामोिनशान नही रह जायगा | वह सदा सनन रहगा | ससार म उसक िलय न ही कोई शऽ रहगा और न ही कोई िमऽ | उसको कोई कलश नही पहचायगा | उसक सामन िवषधर नाग भी अपना ःवभाव भल जायगा | 87) िजसको अपन ाण की परवाह नही मतय का नाम सनकर िवचिलत न होकर उसका ःवागत करन क िलए जो सदा ततपर ह उसक िलए ससार म कोई कायर असाधय नही | उस िकसी बा श की जररत नही साहस ही उसका श ह | उस श स वह अनयाय का प लनवाल को परािजत कर दता ह िफर भी उनक िलए बर िवचार का सवन नही करता | 88) िचनता ही आननद व उ लास का िवधवस करनवाली रा सी ह | 89) कभी-कभी मधयरािऽ को जाग जाओ | उस समय इिनिया अपन िवषय क ित चचल नही रहती | बिहमरख ःफरण की गित मनद होती ह | इस अवःथा का लाभ लकर इिनियातीत अपन िचदाकाश ःवरप का अनभव करो | जगत शरीर व इिनिय क अभाव म भी अपन अख ड अिःततव को जानो | 90) य म ीित नही रहना ही असली वरा य ह | 91) रोग हम दबाना चाहता ह | उसस हमार िवचार भी मनद हो जात ह | अतः रोग की िनवित करनी चिहए | लिकन जो िवचारवान परष ह वह कवल रोगिनवित क पीछ ही नही लग जाता | वह तो यह िनगरानी रखता ह िक भयकर दःख क समय भी अपना िवचार छट तो नही गया ऐसा परष lsquoहाय-हायrsquo करक ाण नही तयागता कय िक वह जानता ह िक रोग उसका दास ह | रोग कसा भी भय िदखाय लिकन िवचारवान परष इसस भािवत नही होता | 92) िजस साधक क पास धारणा की ढ़ता एव उ य की पिवऽता य दो गण ह ग वह अवय िवजता होगा | इन दो शा स ससि जत साधक समःत िव न-बाधाओ का सामना करक आिखर म िवजयपताका फहरायगा | 93) जब तक हमार मन म इस बात का पकका िन य नही होगा िक सि शभ ह तब तक मन एकाम नही होगा | जब तक हम समझत रहग िक सि िबगड़ी हई ह तब तक

मन सशक ि स चार ओर दौड़ता रहगा | सवरऽ मगलमय ि रखन स मन अपन-आप शात होन लगगा | 94) आसन िःथर करन क िलए सक प कर िक जस पथवी को धारण करत हए भी शषजी िब कल अचल रहत ह वस म भी अचल रहगा | म शरीर और ाण का ा ह | 95) lsquoससार िमथया हrsquo - यह मद ानी की धारणा ह | lsquoससार ःव नवत हrsquo - यह मधयम ानी की धारणा ह | lsquoससार का अतयनत अभाव ह ससार की उतपि कभी हई ही नहीrsquo -

यह उ म ानी की धारणा ह | 96) आप यिद भि मागर म ह तो सारी सि भगवान की ह इसिलए िकसीकी भी िननदा करना ठ क नही | आप यिद ानमागर म ह तो यह सि अपना ही ःवरप ह | आप अपनी ही िननदा कस कर सकत ह इस कार द नो माग म परिननदा का अवकाश ही नही ह | 97) य म ा का भान एव ा म य का भान हो रहा ह | इस गड़बड़ का नाम ही अिववक या अ ान ह | ा को ा तथा य को य समझना ही िववक या ान ह | 98) आसन व ाण िःथर होन स शरीर म िव त पदा होती ह | शरीर क ारा जब भी िबया की जाती ह तब वह िव त बाहर िनकल जाती ह | इस िव त को शरीर म रोक लन स शरीर िनरोगी बन जाता ह | 99) ःव न की सि अ पकालीन और िविचऽ होती ह | मनय जब जागता ह तब जानता ह िक म पलग पर सोया ह | मझ ःव न आया | ःव न म पदाथर दश काल िबया इतयािद परी सि का सजरन हआ | लिकन मर िसवाय और कछ भी न था | ःव न की सि झठ थी | इसी कार ततव ानी परष अ ानरपी िनिा स ानरपी जामत अवःथा को ा हए ह | व कहत ह िक एक क िसवा अनय कछ ह ही नही | जस ःव न स जागन क बाद हम ःव न की सि िमथया लगती ह वस ही ानवान को यह जगत िमथया लगता ह | 100) शारीिरक क पड़ तब ऐसी भावना हो जाय िक lsquoयह क मर यार भ की ओर स हhelliprsquo तो वह क तप का फल दता ह | 101) चलत-चलत पर म छाल पड़ गय ह भख याकल कर रही हो बि िवचार

करन म िशिथल हो गई हो िकसी पड़ क नीच पड़ ह जीवन अस भव हो रहा हो मतय का आगमन हो रहा हो तब भी अनदर स वही िनभरय धविन उठ lsquoसोऽहमhellipसोऽहमhellipमझ भय नहीhellipमरी मतय नहीhellipमझ भख नहीhellip यास नहीhellip कित की कोई भी यथा मझ न नही कर सकतीhellipम वही हhellipवही हhelliprsquo 102) िजनक आग िय-अिय अनकल-ितकल सख-दःख और भत-भिवय एक समान ह ऐस ानी आतमव ा महापरष ही स च धनवान ह | 103) दःख म दःखी और सख म सखी होन वाल लोह जस होत ह | दःख म सखी रहन वाल सोन जस होत ह | सख-दःख म समान रहन वाल र जस होत ह परनत जो सख-दःख की भावना स पर रहत ह व ही स च साट ह | 104) ःव न स जाग कर जस ःव न को भल जात ह वस जामत स जागकर थोड़ी दर क

िलए जामत को भल जाओ | रोज ातः काल म पनिह िमनट इस कार ससार को भल जान की आदत डालन स आतमा का अनसधान हो सकगा | इस योग स सहजावःथा ा होगी | 105) तयाग और म स यथाथर ान होता ह | दःखी ाणी म तयाग व म िवचार स आत ह

| सखी ाणी म तयाग व म सवा स आत ह कय िक जो ःवय दःखी ह वह सवा नही कर सकता पर िवचार कर सकता ह | जो सखी ह वह सख म आस होन क कारण उसम िवचार का उदय नही हो सकता लिकन वह सवा कर सकता ह | 106) लोग की पजा व णाम स जसी सननता होती ह वसी ही सननता जब मार पड़

तब भी होती हो तो ही मन य िभ ानन महण करन का स चा अिधकारी माना जाता ह | 107) हरक साधक को िब कल नय अनभव की िदशा म आग बढ़ना ह | इसक िलय

ानी महातमा की अतयनत आवयकता होती ह | िजसको स ची िज ासा हो उस ऐस

महातमा िमल ही जात ह | ढ़ िज ासा स िशय को गर क पास जान की इ छा होती ह | यो य

िज ास को समथर गर ःवय दशरन दत ह | 108) बीत हए समय को याद न करना भिवय की िचनता न करना और व रमान म ा

सख-दःखािद म सम रहना य जीवनम परष क ल ण ह | 109) जब बि एव दय एक हो जात ह तब सारा जीवन साधना बन जाता ह |

110) बि मान परष ससार की िचनता नही करत लिकन अपनी मि क बार म सोचत ह |

मि का िवचार ही तयागी दानी सवापरायण बनाता ह | मो की इ छा स सब सदगण आ जात ह

| ससार की इ छा स सब दगरण आ जात ह | 111) पिरिःथित िजतनी किठन होती ह वातावरण िजतना पीड़ाकारक होता ह उसस

गजरन वाला उतना ही बलवान बन जाता ह | अतः बा क और िचनताओ का ःवागत करो | ऐसी पिरिःथित म भी वदानत को आचरण म लाओ | जब आप वदानती जीवन यतीत करग तब दखग

िक समःत वातावरण और पिरिःथितया आपक वश म हो रही ह आपक िलय उपयोगी िस हो रही ह | 112) हरक पदाथर पर स अपन मोह को हटा लो और एक सतय पर एक तथय पर अपन

ई र पर समम धयान को किनित करो | तरनत आपको आतम-सा ातकार होगा | 113) जस बड़ होत-होत बचपन क खलकद छोड़ दत हो वस ही ससार क खलकद छोड़कर आतमाननद का उपभोग करना चािहय | जस अनन व जल का सवन करत हो वस ही आतम-

िचनतन का िनरनतर सवन करना चािहय | भोजन ठ क स होता ह तो ति की डकार आती ह वस

ही यथाथर आतमिचनतन होत ही आतमानभव की डकार आयगी आतमाननद म मःत ह ग |

आतम ान क िसवा शाित का कोई उपाय नही | 114) आतम ानी क हकम स सयर काशता ह | उनक िलय इनि पानी बरसाता ह | उनही क

िलय पवन दत बनकर गमनागमन करता ह | उनही क आग समि रत म अपना िसर रगड़ता ह | 115) यिद आप अपन आतमःवरप को परमातमा समझो और अनभव करो तो आपक सब

िवचार व मनोरथ सफल ह ग उसी ण पणर ह ग | 116) राजा-महाराजा दवी-दवता वद-पराण आिद जो कछ ह व आतमदश क सक पमाऽ

ह | 117) जो लोग ितकलता को अपनात ह ई र उनक स मख रहत ह | ई र िजनह अपन

स दर रखना चाहत ह उनह अनकल पिरिःथितया दत ह | िजसको सब वःतए अनकल एव पिवऽ

सब घटनाए लाभकारी सब िदन शभ सब मनय दवता क रप म िदखत ह वही परष ततवदश ह | 118) समता क िवचार स िच ज दी वश म होता ह हठ स नही |

119) ऐस लोग स स बनध रखो िक िजसस आपकी सहनशि बढ़ समझ की शि बढ़

जीवन म आन वाल सख-दःख की तरग का आपक भीतर शमन करन की ताकत आय समता बढ़

जीवन तजःवी बन | 120) लोग बोलत ह िक धयान व आतमिचनतन क िलए हम फरसत नही िमलती | लिकन

भल मनय जब नीद आती ह तब सब महतवपणर काम भी छोड़कर सो जाना पड़ता ह िक नही

जस नीद को महतव दत हो वस ही चौबीस घनट म स कछ समय धयान व आतमिचनतन म भी िबताओ | तभी जीवन साथरक होगा | अनयथा कछ भी हाथ नही लगगा | 121) भल जाओ िक तम मनय हो अमक जाित हो अमक उ हो अमक िड़मीवाल हो अमक धनधवाल हो | तम िनगरण िनराकार सा ीरप हो ऐसा ढ़ िन य करो | इसीम तमाम

कार की साधनाए िबयाए योगािद समािव हो जात ह | आप सवर यापक अख ड चतनय हो | सार ान का यह मल ह | 122) दोष तभी िदखता जब हमार लोचन म क अभावरप पीिलया रोग स मःत होत ह | 123) साधक यिद अ यास क मागर पर उसी कार आग बढ़ता जाय िजस कार ार भ

म इस मागर पर चलन क िलए उतसाहपवरक कदम रखा था तो आयरपी सयर अःत होन स पहल

जीवनरपी िदन रहत ही अवय सोऽहम िसि क ःथान तक पहच जाय | 124) लोग ज दी स उननित कय नही करत कय िक बाहर क अिभाय एव िवचारधाराओ का बहत बड़ा बोझ िहमालय की तरह उनकी पीठ पर लदा हआ ह | 125) अपन ित होन वाल अनयाय को सहन करत हए अनयायकतार को यिद मा कर िदया जाय तो ष म म पिरणत हो जाता ह | 126) साधना की शरआत ौ ा स होती ह लिकन समाि ान स होनी चािहय | ान मान

ःवयसिहत सवर ःवरप ह ऐसा अपरो अनभव | 127) अपन शरीर क रोम-रोम म स ॐ का उ चारण करो | पहल धीम ःवर म ार भ

करो | शर म धविन गल स िनकलगी िफर छाती स िफर नािभ स और अनत म रीढ़ की ह डी क

आिखरी छोर स िनकलगी | तब िव त क धकक स सष ना नाड़ी तरनत खलगी | सब कीटाणसिहत

तमाम रोग भाग खड़ ह ग | िनभरयता िह मत और आननद का फ वारा छटगा | हर रोज ातःकाल

म ःनानािद करक सय दय क समय िकसी एक िनयत ःथान म आसन पर पवारिभमख बठकर

कम-स-कम आधा घनटा करक तो दखो | 128) आप जगत क भ बनो अनयथा जगत आप पर भतव जमा लगा | ान क

मतािबक जीवन बनाओ अनयथा जीवन क मतािबक ान हो जायगा | िफर यग की याऽा स भी दःख का अनत नही आयगा | 129) वाःतिवक िश ण का ारभ तो तभी होता ह जब मनय सब कार की सहायताओ स िवमख होकर अपन भीतर क अननत ॐोत की तरफ अमसर होता ह | 130) य पच की िनवित क िलए अनतःकरण को आननद म सरोबार रखन क िलए

कोई भी कायर करत समय िवचार करो म कौन ह और कायर कौन कर रहा ह भीतर स जवाब

िमलगा मन और शरीर कायर करत ह | म सा ीःवरप ह | ऐसा करन स कतारपन का अह

िपघलगा सख-दःख क आघात मनद ह ग | 131) राग- ष की िनवित का कया उपाय ह उपाय यही ह िक सार जगत-पच को मनोरा य समझो | िननदा-ःतित स राग- ष स पच म सतयता ढ़ होती ह | 132) जब कोई खनी हाथ आपकी गरदन पकड़ ल कोई श धारी आपको कतल करन क

िलए ततपर हो जाय तब यिद आप उसक िलए सननता स तयार रह दय म िकसी कार का भय

या िवषाद उतपनन न हो तो समझना िक आपन राग- ष पर िवजय ा कर िलया ह | जब आपकी ि पड़त ही िसहािद िहसक जीव की िहसावित गायब हो जाय तब समझना िक अब राग- ष का अभाव हआ ह | 133) आतमा क िसवाय अनय कछ भी नही ह - ऐसी समझ रखना ही आतमिन ा ह | 134) आप ःव न ा ह और यह जगत आपका ही ःव न ह | बस िजस ण यह ान हो जायगा उसी ण आप म हो जाएग | 135) िदन क चौबीस घ ट को साधनामय बनान क िलय िनक मा होकर यथर िवचार करत हए मन को बार-बार सावधान करक आतमिचतन म लगाओ | ससार म सल न मन को वहा स उठा कर आतमा म लगात रहो | 136) एक बार सागर की एक बड़ी तरग एक बलबल की िता पर हसन लगी | बलबल न

कहा ओ तरग म तो छोटा ह िफर भी बहत सखी ह | कछ ही दर म मरी दह टट जायगी िबखर

जायगी | म जल क साथ जल हो जाऊगा | वामन िमटकर िवराट बन जाऊगा | मरी मि बहत

नजदीक ह | मझ आपकी िःथित पर दया आती ह | आप इतनी बड़ी हई हो | आपका छटकारा ज दी नही होगा | आप भाग-भागकर सामनवाली च टान स टकराओगी | अनक छोटी-छोटी तरग

म िवभ हो जाओगी | उन अस य तरग म स अननत-अननत बलबल क रप म पिरवितरत हो जाओगी | य सब बलबल फटग तब आपका छटकारा होगा | बड़ पन का गवर कय करती हो जगत की उपलि धय का अिभमान करक परमातमा स दर मत जाओ | बलबल की तरह सरल

रहकर परमातमा क साथ एकता का अनभव करो | 137) जब आप ईयार ष िछिानवषण दोषारोपण घणा और िननदा क िवचार िकसीक

ित भजत ह तब साथ-ही-साथ वस ही िवचार को आमिऽत भी करत ह | जब आप अपन भाई की आख म ितनका भ कत ह तब अपनी आख म भी आप ताड़ भ क रह ह | 138) शरीर अनक ह आतमा एक ह | वह आतमा-परमातमा मझस अलग नही | म ही कतार सा ी व नयायधीश ह | म ही ककर श आलोचक ह और म ही मधर शसक ह | मर िलय तयक

यि ःवतऽ व ःव छनद ह | बनधन पिरि छननता और दोष मरी ि म आत ही नही | म म

हपरम म ह और अनय लोग भी ःवतऽ ह | ई र म ही ह | आप भी वही हो | 139) िजस कार बालक अपनी परछा म बताल की क पना कर भय पाता ह उसी कार जीव अपन ही सक प स भयभीत होता ह और क पाता ह | 140) कभी-कभी ऐसी भावना करो िक आपक सामन चतनय का एक महासागर लहरा रहा ह | उसक िकनार खड़ रह कर आप आनद स उस दख रह ह | आपका शरीर सागर की सतह पर घमन गया ह | आपक दखत ही दखत वह सागर म डब गया | इस समःत पिरिःथित को दखन वाल आप सा ी आतमा शष रहत ह | इस कार सा ी रप म अपना अनभव करो | 141) यिद हम चाहत ह िक भगवान हमार सब अपराध माफ कर तो इसक िलए सगम साधना यही ह िक हम भी अपन सबिधत सब लोग क सब अपराध माफ कर द |

कभी िकसी क दोष या अपराध पर ि न डाल कय िक वाःतव म सब रप म हमारा यारा ई दव ही बीड़ा कर रहा ह |

142) पणर पिवऽता का अथर ह बा भाव स भािवत न होना | सासािरक मनोहरता एव घणा स पर रहना राजी-नाराजगी स अिवचल िकसी म भद न दखना और आतमानभव क ारा आकषरण व तयाग स अिल रहना | यही वदानत का उपिनषद का

रहःय ह | 143) ई र सा ातकार तभी होगा जब ससार की ि स तीत होन वाल बड़-स-बड़ विरय को भी मा करन का आपका ःवभाव बन जायगा | 144) चाल यवहार म स एकदम उपराम होकर दो िमनट क िलए िवराम लो |

सोचो िक lsquo म कौन ह सद -गम शरीर को लगती ह | भख- यास ाण को लगती ह |

अनकलता-ितकलता मन को लगती ह | शभ-अशभ एव पाप-प य का िनणरय बि करती ह | म न शरीर ह न ाण ह न मन ह न बि ह | म तो ह इन सबको स ा दन वाला इन सबस नयारा िनलप आतमा |rsquo 145) जो मनय िनरतर lsquoम म हhelliprsquo ऐसी भावना करता ह वह म ही ह और lsquoम ब हhelliprsquo ऐसी भावना करनवाला ब ही ह | 146) आप िनभरय ह िनभरय ह िनभरय ह | भय ही मतय ह | भय ही पाप ह | भय ही नकर ह | भय ही अधमर ह | भय ही यिभचार ह | जगत म िजतन असत या िमथया भाव ह व सब इस भयरपी शतान स पदा हए ह | 147) परिहत क िलए थोड़ा काम करन स भी भीतर की शि या जागत होती ह |

दसर क क याण क िवचारमाऽ स दय म एक िसह क समान बल आ जाता ह | 148) हम यिद िनभरय ह ग तो शर को भी जीतकर उस पाल सक ग | यिद डरग तो क ा भी हम फ़ाड़ खायगा | 149) तयक िबया तयक यवहार तयक ाणी ःवरप िदख यही सहज समािध ह | 150) जब किठनाईया आय तब ऐसा मानना िक मझ म सहन शि बढ़ान क िलए ई र न य सयोग भज ह | किठन सयोग म िह मत रहगी तो सयोग बदलन लगग |

िवषय म राग- ष रह गया होगा तो वह िवषय कसौटी क रप म आग आयग और उनस पार होना पड़गा | 151) ततव ि स न तो आपन जनम िलया न कभी लग | आप तो अनत ह सवर यापी ह िनतयम अजर-अमर अिवनाशी ह | जनम-मतय का ही गलत ह महा-

मखरतापणर ह | जहा जनम ही नही हआ वहा मतय हो ही कस सकती ह 152) आप ही इस जगत क ई र हो | आपको कौन दबरल बना सकता ह जगत म आप ही एकमाऽ स ा हो | आपको िकसका भय खड़ हो जाओ | म हो जाओ | ठ क स समझ लो िक जो कोई िवचार या श द आपको दबरल बनाता ह वही एकमाऽ अशभ ह | मनय को दबरल व भयभीत करनवाला जो कछ इस ससार म ह वह पाप ह | 153) आप अपना कायर या कतर य करो लिकन न उसक िलए कोई िचनता रह न ही कोई

इ छा | अपन कायर म सख का अनभव करो कय िक आपका कायर ःवय सख या िवौाम ह | आपका कायर आतमानभव का ही दसरा नाम ह | कायर म लग रहो | कायर आपको आतमानभव कराता ह |

िकसी अनय हत स कायर न करो | ःवतऽ वि स अपन कायर पर डट जाओ | अपन को ःवतऽ

समझो िकसीक कदी नही | 154) यिद आप सतय क मागर स नही हटत तो शि का वाह आपक साथ ह समय आपक

साथ ह ऽ आपक साथ ह | लोग को उनक भतकाल की मिहमा पर फलन दो भिवयकाल की स पणर मिहमा आपक हाथ म ह | 155) जब आप िद य म क साथ चा डाल म चोर म पापी म अ यागत म और सबम भ क दशरन करग तब आप भगवान ौी कण क मपाऽ बन जायग | 156) आचायर गौड़पाद न ःप कहा आप सब आपस म भल ही लड़त रह लिकन मर साथ नही लड़ सक ग | आप सब लोग मर पट म ह | म आतमःवरप स सवर या ह | 157) मनय सभी ािणय म ौ ह सब दवताओ स भी ौ ह | दवताओ को भी िफर स

धरती पर आना पड़गा और मनय शरीर ा करक मि ा करनी होगी | 158) िनि नतता क दो सऽ जो कायर करना जररी ह उस परा कर दो | जो िबनजररी ह

उस भल जाओ | 159) सवा-म-तयाग ही मनय क िवकास का मल मऽ ह | अगर यह मऽ आपको जच

जाय तो सभी क ित सदभाव रखो और शरीर स िकसी-न-िकसी यि को िबना िकसी मतलब क

सहयोग दत रहो | यह नही िक जब मरी बात मानग तब म सवा करगा | अगर बनधक मरी बात

नही मानत तो म सवा नही करगा |

भाई तब तो तम सवा नही कर पाओग | तब तो तम अपनी बात मनवा कर अपन अह की पजा ही

करोग | 160) जस ःव न िमथया ह वस ही यह जामत अवःथा भी ःव नवत ही ह िमथया ह | हरक

को अपन इस ःव न स जागना ह | सदगर बार-बार जगा रह ह लिकन जाग कर वापस सो न जाए ऐसा परषाथर तो हम ही करना होगा | 161) सदा सननमख रहो | मख को कभी मिलन मत करो | िन य कर लो िक आपक

िलय शोक न इस जगत म जनम नही िलया ह | आननदःवरप म िचनता का ःथान ही कहा ह 162) समम ा ड एक शरीर ह | समम ससार एक शरीर ह | जब तक आप तयक क

साथ एकता का अनभव करत रहग तब तक सब पिरिःथितया और आस-पास की चीज़ हवा और समि की लहर भी आपक प म रहगी | 163) आपको जो कछ शरीर स बि स या आतमा स कमजोर बनाय उसको िवष की तरह

ततकाल तयाग दो | वह कभी सतय नही हो सकता | सतय तो बलद होता ह पावन होता ह

ानःवरप होता ह | सतय वह ह जो शि द | 164) साधना म हमारी अिभरिच होनी चािहय साधना की तीो माग होनी चािहय | 165) दसर क दोष की चचार मत करो चाह व िकतन भी बड़ ह | िकसी क दोष की चचार करक आप उसका िकसी भी कार भला नही करत बि क उस आघात पहचात ह और साथ-ही-साथ अपन आपको भी | 166) इस ससार को सतय समझना ही मौत ह | आपका असली ःवरप तो आननदःवरप

आतमा ह | आतमा क िसवा ससार जसी कोई चीज ही नही ह | जस सोया हआ मनय ःव न म अपनी एकता नही जानता अिपत अपन को अनक करक दखता ह वस ही आननदःवरप आतमा जामत ःव न और सषि - इन तीन ःवरप को दखत हए अपनी एकता अि तीयता का अनभव

नही करता | 167) मनोजय का उपाय ह अ यास और वरा य | अ यास मान य पवरक मन को बार-बार परमातम-िचतन म लगाना और वरा य मान मन को ससार क पदाथ की ओर स वापस

लौटाना | 168) िकसी स कछ मत मागो | दन क िलय लोग आपक पीछ-पीछ घमग | मान नही

चाहोग तो मान िमलगा | ःवगर नही चाहोग तो ःवगर क दत आपक िलय िवमान लकर आयग |

उसको भी ःवीकार नही करोग तो ई र आपको अपन दय स लगायग | 169) कभी-कभी उदय या अःत होत हए सयर की ओर चलो | नदी सरोवर या समि क तट

पर अकल घमन जाओ | ऐस ःथान की मलाकात लो जहा शीतल पवन मनद-मनद चल रही हो | वहा परमातमा क साथ एकःवर होन की स भावना क ार खलत ह | 170) आप य -ही इ छा स ऊपर उठत हो तय -ही आपका इि छत पदाथर आपको खोजन

लगता ह | अतः पदाथर स ऊपर उठो | यही िनयम ह | य - य आप इ छक िभ क याचक का भाव धारण करत हो तय -तय आप ठकराय जात हो | 171) कित क तयक पदाथर को दखन क िलय काश जररी ह | इसी कार मन बि

इिनिय को अपन-अपन कायर करन क िलय आतम-काश की आवयकता ह कय िक बाहर का कोई काश मन बि इिनिय ाणािद को चतन करन म समथर नही | 172) जस ःव न ा परष को जागन क बाद ःव न क सख-दःख जनम-मरण पाप-प य

धमर-अधमर आिद ःपशर नही करत कय िक वह सब खद ही ह | खद क िसवाय ःव न म दसरा कछ

था ही नही | वस ही जीवनम ानवान परष को सख-दःख जनम-मरण पाप-प य धमर-अधमर ःपशर नही करत कय िक व सब आतमःवरप ही ह | 173) वही भमा नामक आतम योित क म रह कर भ क रही ह सअर म रह कर घर रही ह गध म रह कर रक रही ह लिकन मखर लोग शरीर पर ही ि रखत ह चतनय ततव पर नही | 174) मनय िजस ण भत-भिवय की िचनता का तयाग कर दता ह दह को सीिमत और उतपि -िवनाशशील जानकर दहािभमान को तयाग दता ह उसी ण वह एक उ चतर अवःथा म पहच जाता ह | िपजर स छटकर गगनिवहार करत हए प ी की तरह मि का अनभव करता ह | 175) समःत भय एव िचनताए आपकी इ छाओ का णाम ह | आपको भय कय लगता ह

कय िक आपको आशका रहती ह िक अमक चीज कही चली न जाय | लोग क हाःय स आप डरत

ह कय िक आपको यश की अिभलाषा ह कीितर म आसि ह | इ छाओ को ितलाजिल द दो | िफर दखो मजा कोई िज मदारी नहीकोई भय नही | 176) दखन म अतयत करप काला-कलटा कबड़ा और तज ःवभाव का मनय भी आपका ही ःवरप ह | आप इस तथय स म नही | िफर घणा कसी कोई लाव यमयी सदरी सि की

शोभा क समान अित िवलासभरी अ सरा भी आपका ही ःवरप ह | िफर आसि िकसकी

आपकी ानिनिया उनको आपस अलग करक िदखाती ह | य इिनिया झठ बोलनवाली ह | उनका कभी िव ास मत करो | अतः सब कछ आप ही हो | 177) मानव क नात हम साधक ह | साधक होन क नात सतय को ःवीकर करना हमारा ःवधमर ह | सतय यही ह िक बल दसर क िलय ह ान अपन िलय ह और िव ास परमातमा स

स बनध जोड़न क िलय ह | 178) अपनी आतमा म डब जाना यह सबस बड़ा परोपकार ह | 179) आप सदव म ह ऐसा िव ास ढ़ करो तो आप िव क उ ारक हो जात हो | आप

यिद वदानत क ःवर क साथ ःवर िमलाकर िन य करो आप कभी शरीर न थ | आप िनतय श

ब आतमा हो तो अिखल ा ड क मो दाता हो जात हो | 180) कपा करक उन ःवाथरमय उपाय और अिभाय को दर फ क दो जो आपको पिरि छनन रखत ह | सब वासनाए राग ह | यि गत या शरीरगत म आसि ह | उस फ क दो | ःवय पिवऽ हो जाओ | आपका शरीर ःवःथ और बि पणरःवरप हो जायगी | 181) यिद ससार क सख व पदाथर ा ह तो आपको कहना चािहय ओ शतान हट जा मर सामन स | तर हाथ स मझ कछ नही चािहय | तब दखो िक आप कस सखी हो जात हो परमातमा-ा िकसी महापरष पर िव ास रखकर अपनी जीवनडोरी िनःशक बन उनक चरण म सदा क िलय रख दो | िनभरयता आपक चरण की दासी बन जायगी | 182) िजसन एक बार ठ क स जान िलया िक जगत िमथया ह और ािनत स इसकी तीित

हो रही ह उसको कभी दःख नही होता | जगत म कभी आसि नही होती | जगत क िमथयातव क

िन य का नाम ही जगत का नाश ह | 183) अपन ःवरप म लीन होन माऽ स आप ससार क साट बन जायग | यह साटपद

कवल इस ससार का ही नही समःत लोक-परलोक का साटपद होगा | 184) ह जनक चाह दवािधदव महादव आकर आपको उपदश द या भगवान िवण आकर उपदश द अथवा ाजी आकर उपदश द लिकन आपको कदािप सख न होगा | जब िवषय का तयाग करोग तभी स ची शाित व आनद ा ह ग |

185) िजस भ न हम मानव जीवन दकर ःवाधीनता दी िक हम जब चाह तब धमारतमा होकर भ होकर जीवनम होकर कतकतय हो सकत ह- उस भ की मिहमा गाओ | गाओ नही तो सनो | सनो भी नही गाओ भी नही तो ःवीकार कर लो | 186) चाह समि क गहर तल म जाना पड़ सा ात मतय का मकाबला करना पड़ अपन

आतमाि क उ य की पितर क िलय अिडग रहो | उठो साहसी बनो शि मान बनो | आपको जो बल व सहायता चािहय वह आपक भीतर ही ह | 187) जब-जब जीवन स बनधी शोक और िचनता घरन लग तब-तब अपन आननदःवरप

का गान करत-करत उस मोह-माया को भगा दो | 188) जब शरीर म कोई पीड़ा या अग म ज म हो तब म आकाशवत आकाशरिहत चतन

ह ऐसा ढ़ िन य करक पीड़ा को भल जाओ | 189) जब दिनया क िकसी चककर म फस जाओ तब म िनलप िनतय म ह ऐसा ढ़

िन य करक उस चककर स िनकल जाओ | 190) जब घर-बार स बनधी कोई किठन समःया याकल कर तब उस मदारी का खल

समझकर ःवय को िनःसग जानकर उस बोझ को ह का कर दो | 191) जब बोध क आवश म आकर कोई अपमानय वचन कह तब अपन शाितमय

ःवरप म िःथर होकर मन म िकसी भी ोभ को पदा न होन दो | 192) उ म अिधकारी िज ास को चािहय िक वह व ा सदगर क पास जाकर ौ ा पवरक महावाकय सन | उसका मनन व िनिदधयासन करक अपन आतमःवरप को जान | जब

आतमःवरप का सा ातकार होता ह तब ही परम िवौािनत िमल सकती ह अनयथा नही | जब तक

व ा महापरष स महावाकय ा न हो तब तक वह मनद अिधकारी ह | वह अपन दयकमल म परमातमा का धयान कर ःमरण कर जप कर | इस धयान-जपािद क साद स उस व ा सदगर

ा ह ग | 193) मन बि िच अहकार छाया की तरह जड़ ह णभगर ह कय िक व उतपनन होत

ह और लीन भी हो जात ह | िजस चतनय की छाया उसम पड़ती ह वह परम चतनय सबका आतमा ह | मन बि िच अहकार का अभाव हो जाता ह लिकन उसका अनभव करनवाल का अभाव

कदािप नही होता |

194) आप अपनी शि को उ चाितउ च िवषय की ओर बहन दो | इसस आपक पास व

बात सोचन का समय ही नही िमलगा िजसस कामकता की गध आती हो | 195) अपराध क अनक नाम ह बालहतया नरहतया मातहतया गौहतया इतयािद |

परनत तयक ाणी म ई र का अनभव न करक आप ई रहतया का सबस बड़ा अपराध करत ह | 196) सवा करन की ःवाधीनता मनयमाऽ को ा ह | अगर वह करना ही न चाह तो अलग बात ह | सवा का अथर ह मन-वाणी-कमर स बराईरिहत हो जाना यह िव की सवा हो गई |

यथाशि भलाई कर दो यह समाज की सवा हो गई | भलाई का फल छोड़ दो यह अपनी सवा हो गई

| भ को अपना मानकर ःमित और म जगा लो यह भ की सवा हो गई | इस कार मनय

अपनी सवा भी कर सकता ह समाज की सवा भी कर सकता ह िव की सवा भी कर सकता ह

और िव र की सवा भी कर सकता ह | 197) आतमा स बाहर मत भटको अपन कनि म िःथर रहो अनयथा िगर पड़ोग | अपन-

आपम पणर िव ास रखो | आतम-कनि पर अचल रहो | िफर कोई भी चीज आपको िवचिलत नही कर सकती | 198) सदा शात िनिवरकार और सम रहो | जगत को खलमाऽ समझो | जगत स भािवत

मत हो | इसस आप हमशा सखी रहोग | िफर कछ बढ़ान की इ छा नही होगी और कछ कम होन स

दःख नही होगा | 199) समथर सदगर क सम सदा फल क भाित िखल हए रहो | इसस उनक अनदर सक प

होगा िक यह तो बहत उतसाही साधक ह सदा सनन रहता ह | उनक सामथयरवान सक प स

आपकी वह किऽम सननता भी वाःतिवक सननता म बदल जायगी | 200) यिद रोग को भी ई र का िदया मानो तो ार ध-भोग भी हो जाता ह और क तप का फल दता ह | इसस ई र-कपा की ाि होती ह | याकल मत हो | क सल और इनजकशन

आधीन मत हो | 201) साधक को चािहय िक अपन लआय को ि म रखकर साधना-पथ पर तीर की तरह

सीधा चला जाय | न इधर दख न उधर | ि यिद इधर-उधर जाती हो तो समझना िक िन ा िःथर नही ह |

202) आपन अपन जीवन म हजार ःव न दख ह ग लिकन व आपक जीवन क अश नही बन जात | इसी कार य जामत जगत क आड बर आपकी आतमा क सम कोई मह व नही रखत | 203) एक आतमा को ही जानो अनय बात को छोड़ो | धीर साधक को चािहय िक वह

सावधान होकर आतमिन ा बढ़ाय अनक श द का िचनतन व भाषण न कर कय िक वह तो कवल

मन-वाणी को पिरौम दनवाला ह असली साधना नही ह | 204) जो परष जन-समह स ऐस डर जस साप स डरता ह स मान स ऐस डर जस नकर स

डरता ह ि य स ऐस डर जस मद स डरता ह उस परष को दवतागण ा ण मानत ह | 205) जस अपन शरीर क अग पर बोध नही आता वस शऽ िमऽ व अपनी दह म एक ही आतमा को दखनवाल िववकी परष को कदािप बोध नही आता | 206) मन तो शरीर को ई रापरण कर िदया ह | अब उसकी भख- यास स मझ कया

समिपरत वःत म आस होना महा पाप ह | 207) आप यिद िद य ि पाना चहत हो तो आपको इिनिय क ऽ का तयाग करना होगा | 208) लयकाल क मघ की गजरना हो समि उमड़ पड बारह सयर तपायमान हो जाय पहाड़ स पहाड़ टकरा कर भयानक आवाज हो तो भी ानी क िन य म त नही भासता कय िक

त ह ही नही | त तो अ ानी को भासता ह | 209) सतय को ःवीकार करन स शाित िमलगी | कछ लोग यो यता क आधार पर शाित

खरीदना चाहत ह | यो यता स शाित नही िमलगी यो यता क सदपयोग स शाित िमलगी | कछ

लोग स पि क आधार पर शाित सरि त रखना चाहत ह | स पि स शाित नही िमलगी स पि

क सदपयोग स शाित िमलगी वस ही िवपि क सदपयोग स शाित िमलगी | 210) त छ हािन-लाभ पर आपका धयान इतना कय रहता ह िजसस अनत आननदःवरप

आतमा पर स धयान हट जाता ह | 211) अपन अनदर ही आननद ा करना य िप किठन ह परनत बा िवषय स आननद

ा करना तो अस भव ही ह |

212) म ससार का काश ह | काश क रप म म ही सब वःतओ म या ह | िनतय इन

िवचार का िचनतन करत रहो | य पिवऽ िवचार आपको परम पिवऽ बना दग | 213) जो वःत कमर स ा होती ह उसक िलय ससार की सहायता तथा भिवय की आशा की आवयकता होती ह परनत जो वःत तयाग स ा होती ह उसक िलय न ससार की सहायता चािहय न भिवय की आशा | 214) आपको जब तक बाहर चोर िदखता ह तब तक जरर भीतर चोर ह | जब दसर लोग

स िभनन अयो य खराब सधारन यो य िदखत ह तब तक ओ सधार का बीड़ा उठान वाल त अपनी िचिकतसा कर | 215) सफल व ही होत ह जो सदव नतमःतक एव सननमख रहत ह | िचनतातर-शोकातर लोग की उननित नही हो सकती | तयक कायर को िह मत व शाित स करो | िफर दखो िक यह

कायर शरीर मन और बि स हआ | म उन सबको स ा दनवाला चतनयःवरप ह | ॐ ॐ का पावन गान करो | 216) िकसी भी पिरिःथित म मन को यिथत न होन दो | आतमा पर िव ास करक

आतमिन बन जाओ | िनभरयता आपकी दासी बन कर रहगी | 217) सतसग स मनय को साधना ा होती ह चाह वह शाित क रप म हो चाह मि क

रप म चाह सवा क रप म हो म क रप म हो चाह तयाग क रप म हो | 218) भला-बरा वही दखता ह िजसक अनदर भला-बरा ह | दसर क शरीर को वही दखता ह

जो खद को शरीर मानता ह | 219) खबरदार आपन यिद अपन शरीर क िलय ऐश-आराम की इ छा की िवलािसता एव इिनिय-सख म अपना समय बरबाद िकया तो आपकी खर नही | ठ क स कायर करत रहन की नीित

अपनाओ | सफलता का पहला िस ात ह कायरिवौामरिहत कायरसा ी भाव स कायर | इस

िस ात को जीवन म चिरताथर करोग तो पता चलगा िक छोटा होना िजतना सरल ह उतना ही बड़ा होना भी सहज ह | 220) भतकाल पर िखनन हए िबना भिवय की िचनता िकय िबना व रमान म कायर करो | यह भाव आपको हर अवःथा म सनन रखगा हम जो कछ ा ह उसका सदपयोग ही अिधक

काश पान का साधन ह |

221) जब आप सफलता की ओर पीठ कर लत हो पिरणाम की िचनता का तयाग कर दत

हो स मख आय हए क र य पर अपनी उ ोगशि एकाम करत हो तब सफलता आपक पीछ-पीछ

आ जाती ह | अतः सफलता आपको खोजगी | 222) वि तब तक एकाम नही होगी जब तक मन म कभी एक आशा रहगी तो कभी दसरी | शात वही हो सकता ह िजस कोई क र य या आवयकता घसीट न रही हो | अतः परम शाित पान

क िलय जीवन की आशा भी तयाग कर मन ाननद म डबो दो | आज स समझ लो िक यह शरीर ह ही नही | कवल ाननद का सागर लहरा रहा ह | 223) िजसकी पककी िन ा ह िक म आतमा हrsquo उसक िलय ऐसी कौन सी मिथ ह जो खल

न सक ऐसी कोई ताकत नही जो उसक िवर जा सक | 224) मर भा य म नही थाई र की मज आजकल सतसग ा नही होताजगत

खराब ह ऐस वचन हमारी कायरता व अनतःकरण की मिलनता क कारण िनकलत ह | अतः नकारातमक ःवभाव और दसर पर दोषारोपण करन की वि स बचो | 225) आप जब भीतरवाल स नाराज होत हो तब जगत आपस नाराज रहता ह | जब आप

भीतर अनतयारमी बन बठ तो जगतरपी पतलीघर म िफर गड़बड़ कसी 226) िजस ण हम ससार क सधारक बन खड़ होत ह उसी ण हम ससार को िबगाड़नवाल बन जात ह | श परमातमा को दखन क बजाय जगत को िबगड़ा हआ दखन की ि बनती ह | सधारक लोग मानत ह िक lsquoभगवान न जो जगत बनाया ह वह िबगड़ा हआ ह और हम उस सधार रह ह |rsquo वाह वाह धनयवाद सधारक अपन िदल को सधारो पहल | सवरऽ िनरजन का दीदार करो | तब आपकी उपिःथित माऽ स आपकी ि माऽ स अर यार आपको छकर बहती हवा माऽ स अननत जीव को शाित िमलगी और अननत सधार होगा | नानक कबीर महावीर ब और लीलाशाह बाप जस महापरष न यही कजी अपनायी थी | 227) वदानत म हमशा कमर का अथर होता ह वाःतिवक आतमा क साथ एक होकर च ा करना अिखल िव क साथ एकःवर हो जाना | उस अि तीय परम ततव क साथ िनःःवाथर सयोग ा करना ही एकमाऽ स चा कमर ह बाकी सब बोझ की गठिरया उठाना ह |

228) अपनी व रमान अवःथा चाह कसी भी हो उसको सव च मानन स ही आपक दय म आतम ान ान का अनायास उदय होन लगगा | आतम-सा ातकार को मील दर की कोई चीज समझकर उसक पीछ दौड़ना नही ह िचिनतत होना नही ह |

िचनता की गठरी उठाकर यिथत होन की जररत नही ह | िजस ण आप िनि नतता म गोता मारोग उसी ण आपका आतमःवरप गट हो जायगा | अर गट कया होगा आप ःवय आतमःवरप हो ही | अनातमा को छोड़ दो तो आतमःवरप तो हो ही | 229) सदा ॐकार का गान करो | जब भय व िचनता क िवचार आय तब िकसी मःत सत-फकीर महातमा क सािननधय का ःमरण करो | जब िननदा-शसा क सग आय तब महापरष क जीवन का अवलोकन करो | 230) िजनको आप भयानक घटनाए एव भयकर आघात समझ बठ हो वाःतव म व आपक ियतम आतमदव की ही करतत ह | समःत भयजनक तथा ाणनाशक घटनाओ क नाम-रप तो िवष क ह लिकन व बनी ह अमत स | 231) मन म यिद भय न हो तो बाहर चाह कसी भी भय की साममी उपिःथत हो जाय आपका कछ िबगाड़ नही सकती | मन म यिद भय होगा तो तरनत बाहर भी भयजनक पिरिःथया न होत हए भी उपिःथत हो जायगी | व क तन म भी भत िदखन लगगा | 232) िकसी भी पिरिःथित म िदखती हई कठोरता व भयानकता स भयभीत नही होना चािहए | क क काल बादल क पीछ पणर काशमय एकरस परम स ा सयर की तरह सदा िव मान ह | 233) आप अपन पर कदािप अिव ास मत करो | इस जगत म आप सब कछ कर सकत हो | अपन को कभी दबरल मत मानो | आपक अनदर तमाम शि या छपी हई ह | 234) यिद कोई मन य आपकी कोई चीज़ को चरा लता ह तो ड़रत कय हो वह मनय

और आप एक ह | िजस चीज़ को वह चराता ह वह चीज़ आपकी और उसकी द न की ह | 235) जो खद क िसवाय दसरा कछ दखता नही सनता नही जानता नही वह अननत ह |

जब तक खद क िसवाय और िकसी वःत का भान होता ह वह वःत स ची लगती ह तब तक आप

सीिमत व शात ह असीम और अनत नही |

236) ससार मझ कया आनद द सकता ह स पणर आनद मर भीतर स आया ह | म ही स पणर आननद ह स पणर मिहमा एव स पणर सख ह | 237) जीवन की समःत आवयकताए जीवन म उपिःथत ह परनत जीवन को जब हम

बा रग म रग दत ह तब जीवन का वाःतिवक रप हम नही जान पात | 238) िननदक की िननदा स म कय मरझाऊ शसक की शसा स म कय फल िननदा स म घटता नही और शसा स म बढ़ता नही | जसा ह वसा ही रहता ह | िफर िननदा-ःतित स

खटक कसी 239) ससार व ससार की समःयाओ म जो सबस अिधक फस हए ह उनही को वदानत की सबस अिधक आवयकता ह | बीमार को ही औषिध की यादा आवयकता ह | कय जी ठ क ह न 240) जगत क पाप व अतयाचार की बात मत करो लिकन अब भी आपको जगत म पाप

िदखता ह इसिलय रोओ | 241) हम यिद जान ल िक जगत म आतमा क िसवाय दसरा कछ ह ही नही और जो कछ

िदखता ह वह ःव नमाऽ ह तो इस जगत क दःख-दािरिय पाप-प य कछ भी हम अशात नही कर सकत | 242) िव ान दाशरिनक व आचाय की धमकी तथा अनमह आलोचना या अनमित

ानी पर कोई भाव नही ड़ाल सकती | 243) ह यि रप अननत आप अपन पर पर खड़ रहन का साहस करो समःत िव का बोझ आप िखलौन की तरह उठा लोग | 244) िसह की गजरना व नरिसह की ललकार तलवार की धार व साप की फफकार तपःवी की धमकी व नयायधीश की फटकारइन सबम आपका ही काश चमक रहा ह | आप इनस

भयभीत कय होत हो उलझन कय महसस करत हो मरी िब ली मझको याऊ वाली बात कय

होन दत हो 245) ससार हमारा िसफ़र िखलोना ही ह और कछ नही | अबोध बालक ही िखलौन स

भयभीत होता ह आसि करता ह िवचारशील यि नही |

246) जब तक अिव ा दर नही होगी तब तक चोरी जआ दार यिभचार कभी बद न

ह ग चाह लाख कोिशश करो | 247) आप हमशा अदर का धयान रखो | पहल हमारा भीतरी पतन होता ह | बा पतन तो इसका पिरणाम माऽ ह | 248) तयाग स हमशा आनद िमलता ह | जब तक आपक पास एक भी चीज़ बाकी ह तब

तक आप उस चीज़ क बधन म बध रहोग | आघात व तयाघात हमशा समान िवरोधी होत ह | 249) िनि तता ही आरो यता की सबस बड़ी दवाई ह | 250) सख अपन िसर पर दख का मकट पहन कर आता ह | जो सख को अपनायगा उस

दख को भी ःवीकार करना पड़गा | 251) म (आतमा) सबका ा ह | मरा ा कोई नही | 252) हजार म स कोई एक परष भीतर स शात िच वाला रहकर बाहर स ससारी जसा यवहार कर सकता ह | 253) सतय क िलए यिद शरीर का तयाग करना पड़ तो कर दना | यही आिखरी ममता ह जो हम तोड़नी होगी | 254) भय िचनता बचनी स ऊपर उठो | आपको ान का अनभव होगा | 255) आपको कोई भी हािन नही पहचा सकता | कवल आपक खयालात ही आपक पीछ पड़ ह | 256) म का अथर ह अपन पड़ोसी तथा सपकर म आनवाल क साथ अपनी वाःतिवक अभदता का अनभव करना | 257) ओ यार अपन खोय हए आतमा को एक बार खोज लो | धरती व आसमान क शासक आप ही हो | 258) सदव सम और सनन रहना ई र की सव पिर भि ह |

259) जब तक िच म ढ़ता न आ जाय िक शा की िविधय का पालन छोड़ दन स भी दय का यथाथर भि भाव न नही होगा तब तक शा की िविधय को पालत रहो |

गर भि एक अमोघ साधना 1 जनम मरण क िवषचब स म होन का कोई मागर नही ह कया सख-दःख हषर-शोक लाभ-

हािन मान-अपमान की थ पड़ स बचन का कोई उपाय नही ह कया

हअवय ह | ह िय आतमन नाशवान पदाथ स अपना मन वािपस लाकर सदगर क

चरणकमल म लगाओ | गरभि योग का आौय लो | गरसवा ऐसा अमोघ साधन ह िजसस

व रमान जीवन आननदमय बनता ह और शा त सख क ार खलत ह |

गर सवत त नर धनय यहा | ितनक नही दःख यहा न वहा || 2 स च सदगर की की हई भि िशय म सासािरक पदाथ क वरा य एव अनासि जगाती ह

परमातमा क ित म क पप महकाती ह | 3 तयक िशय सदगर की सवा करना चाहता ह लिकन अपन ढग स | सदगर चाह उस ढग स

सवा करन को कोई ततपर नही | जो िवरला साधक गर चाह उस ढ़ग स सवा कर सकता ह उस कोई कमी नही रहती |

िन सदगर की सवा स उनकी कपा ा होती ह और उस कपा स न िमल सक ऐसा तीन लोक म कछ भी नही ह | 4 गर िशय का स बनध पिवऽतम स बनध ह | ससार क तमाम बनधन स छड़ाकर वह मि क मागर पर ःथान कराता ह | यह स बनध जीवनपयरनत का स बनध ह | यह बात अपन दय की डायरी म सवणर-अ र स िलख लो | 5 उ ल सयर क काश क अिःततव को मान या न मान िफर भी सयर हमशा काशता ह | चचल मन का मनय मान या न मान लिकन सदगर की परमक याणकारी कपा सदव बरसती ही रहती ह | 6 सदगर की चरणरज म ःनान िकय िबना कवल किठन तप यार करन स या वद का

अधयन करन स वदानत का रहःय कट नही होता आतमानद का अमत नही िमलता | 7 दशरन शा क चाह िकतन मनथ पढ़ो हजार वष तक िहमालय की गफा म तप करो वष तक ाणायाम करो जीवनपयरनत शीषारसन करो समम िव म वास करक याखान दो िफर भी सदगर की कपा क िबना आतम ान नही होता | अतः िनरािभमानी सरल िनजाननद म मःत दयाल ःवभाव क आतम-सा ातकारी सदगर क चरण म जाओ | जीवन को धनय बनाओ | 8 सदगर की सवा िकय िबना शा का अधयन करना मम साधक क िलय समय बरबाद करन क बराबर ह | 9 िजसको सदगर ा हए ह ऐस िशय क िलय इस िव म कछ भी अा य नही ह | सदगर िशय को िमली हई परमातमा की अम य भट ह | अर नहीhellipनही व तो िशय क सम साकार रप म कट हए परमातमा ःवय ह | 10 सदगर क साथ एक ण िकया हआ सतसग लाख वष क तप स अननत गना ौ ह | आख क िनमषमाऽ म सदगर की अमतवष ि िशय क जनम-जनम क पाप को जला सकती ह | 11 सदगर जसा मपणर कपाल िहतिचनतक िव भर म दसरा कोई नही ह | 12 बाढ़ क समय याऽी यिद तफानी नदी को िबना नाव क पार कर सक तो साधक भी िबना सदगर क अपन जीवन क आिखरी लआय को िस कर सकता ह | यानी य दोन बात स भव ह |

अतः यार साधक मनमखी साधना की िज करना छोड़ दो | गरमखी साधना करन म ही सार ह | 13 सदगर क चरणकमल का आौय लन स िजस आननद का अनभव होता ह उसक आग िऽलोकी का साा य त छ ह | 14 आतम-सा ातकार क मागर म सबस महान शऽ अहभाव का नाश करन क िलए सदगर की आ ा का पालन अमोघ श ह | 15 रसोई सीखन क िलय कोई िसखानवाला चािहय िव ान और गिणत सीखन क िलय

अधयापक चािहय तो कया िव ा सदगर क िबना ही सीख लोग 16 सदगरकपा की स पि जसा दसरा कोई खजाना िव भर म नही | 17 सदगर की आ ा का उ लघन करना यह अपनी क खोदन क बराबर ह | 18 सदगर क कायर को शका की ि स दखना महापातक ह | 19 गरभि व गरसवा - य साधनारपी नौका की दो पतवार ह | उनकी मदद स िशय ससारसागर को पार कर सकता ह | 20 सदगर की कसौटी करना असभव ह | एक िववकाननद ही दसर िववकाननद को पहचान सकत ह | ब को जानन क िलय दसर ब की आवयकता रहती ह | एक रामतीथर का रहःय दसर रामतीथर ही पा सकत ह |

अतः सदगर की कसौटी करन की च ा छोड़कर उनको पिरपणर पर परमातमा मानो |

तभी जीवन म वाःतिवक लाभ होगा | 21 गरभि योग का आौय लकर आप अपनी खोई हई िद यता को पनः ा करो सख-दःख जनम-मतय आिद सब न स पार हो जाओ | 22 गरभि योग मान गर की सवा क ारा मन और िवकार पर िनयऽण एव पनः सःकरण | 23 िशय अपन गर क चरणकमल म णाम करता ह | उन पर ौ फल की वषार करक उनकी ःतित करता ह ldquoह परम प य पिवऽ गरदव मझ सव च सख ा हआ ह | म िन ा स जनम-मतय की पर परा स म हआ ह | म िनिवरक प समािध का श सख भोग रहा ह | जगत क िकसी भी कोन म म म ता स िवचरण कर सकता ह | सब पर मरी सम ि ह | मन ाकत मन का तयाग िकया ह | मन सब सक प एव रिच-अरिच का तयाग िकया ह | अब म अख ड शाित म िवौाित पा रहा ह hellip आननदमय हो रहा ह | म इस पणर अवःथा का वणरन नही कर पाता | ह प य गरदव म आवाक बन गया ह | इस दःतर भवसागर को पार करन म आपन

मझ सहायता की ह | अब तक मझ कवल अपन शरीर म ही स पणर िव ास था | मन िविभनन योिनय म अस य जनम िलय | ऐसी सव च िनभरय अवःथा मझ कौन स पिवऽ कम क कारण ा हई ह यह म नही जानता | सचमच यह एक दलरभ भा य ह |

यह एक महान उतक लाभ ह | अब म आननद स नाचता ह | मर सब दःख न हो गय | मर सब मनोरथ पणर हए ह |

मर कायर स पनन हए ह | मन सब वािछत वःतए ा की ह | मरी इ छा पिरपणर हई ह | आप मर स च माता-िपता हो | मरी व रमान िःथित म म दसर क सम िकस कार कट कर सक सवरऽ सख और आननद का अननत सागर मझ लहराता हआ िदख रहा ह | मर अतःच िजसस खल गय वह महावाकय lsquoत वमिसrsquo ह | उपिनषद एव वदानतसऽ को भी धनयवाद | िजनह न िन गर का एव उपिनषद क महावाकय का रप धारण िकया ह | ऐस ौी यासजी को णाम ौी शकराचायर को णाम सासािरक मनय क िसर पर गर क चरणामत का एक िबनद भी िगर तो भी उसक ःब दःख का नाश होता ह | यिद एक िन परष को व पहनाय जाय तो सार िव को व पहनान एव भोजन करवान क बराबर ह कय िक िन परष सचराचर िव म या ह | सबम व ही ह |rdquo

ॐhellip ॐ hellip ॐ hellip

ःवामी िशवानद जी

ौी राम-विश सवाद ौी विश जी कहत ह ldquoह रघकलभषण ौी राम अनथर ःवरप िजतन सासािरक पदाथर ह व सब जल म तरग क समान िविवध रप धारण करक चमतकार उतपनन करत ह अथारत ई छाए उतपनन करक जीव को मोह म फसात ह | परत जस सभी तरग जल ःवरप ही ह उसी कार सभी पदाथर वःततः न र ःवभाव वाल ह |

बालक की क पना स आकाश म य और िपशाच िदखन लगत ह परनत बि मान मनय क िलए उन य और िपशाच का कोई अथर नही | इसी कार अ ानी क िच म यह जगत सतय हो ऐसा लगता ह जबिक हमार जस ािनय क िलय यह जगत कछ भी नही | यह समम िव पतथर पर बनी हई पतिलय की सना की तरह रपालोक तथा अतर-बा िवषय स शनय ह | इसम सतयता कसी परनत अ ािनय को यह िव सतय लगता ह |rdquo विश जी बोल ldquoौी राम जगत को सतय ःवरप म जानना यह ाित ह मढ़ता ह | उस िमथया अथारत कि पत समझना यही उिचत समझ ह | ह राघव तव ा अहता आिद सब िवम-िवलास शात िशवःवरप श ःवरप ही ह | इसिलय मझ तो क अितिर और कछ भी नही िदखता | आकाश म जस जगल नही वस ही म जगत नही ह | ह राम ार ध वश ा कम स िजस परष की च ा कठपतली की तरह ई छाशनय और याकलतारिहत होती ह वह शानत मनवाला परष जीवनम मिन ह | ऐस जीवनम ानी को इस

जगत का जीवन बास की तरह बाहर-भीतर स शनय रसहीन और वासना-रिहत लगता ह | इस य पच म िजस रिच नही दय म िचनमाऽ अ य ही अ छा लगता ह ऐस परष न

भीतर तथा बाहर शािनत ा कर ली ह और इस भवसागर स पार हो गया ह | रघनदन श व ा कहत ह िक मन का ई छारिहत होना यही समािध ह कय िक ई छाओ का तयाग करन स मन को जसी शािनत िमलती ह ऐसी शािनत सकड़ उपदश स भी नही िमलती | ई छा की उतपि स जसा दःख ा होता ह ऐसा दःख तो नरक म भी नही | ई छाओ की शािनत

स जसा सख होता ह ऐसा सख ःवगर तो कया लोक म भी नही होता | अतः समःत शा तपःया यम और िनयम का िनचोड़ यही ह िक ई छामाऽ दःखदायी ह और ई छा का शमन मो ह | ाणी क दय म जसी-जसी और िजतनी-िजतनी ई छाय उतपनन होती ह उतना ही दख स वह

ड़रता रहता ह | िववक-िवचार ारा ई छाय जस-जस शानत होती जाती ह वस-वस दखरपी छत की बीमारी िमटती जाती ह |

आसि क कारण सासािरक िवषय की ई छाय य - य गहनीभत होती जाती ह तय -तय

दःख की िवषली तरग बढ़ती जाती ह | अपन परषाथर क बल स इस ई छारपी यािध का उपचार यिद नही िकया जाय तो इस यािध स छटन क िलय अनय कोई औषिध नही ह ऐसा म ढ़तापवरक

मानता ह | एक साथ सभी ई छाओ का स पणर तयाग ना हो सक तो थोड़ी-थोड़ी ई छाओ का धीर-धीर तयाग

करना चािहय परत रहना चािहय ई छा क तयाग म रत कय िक सनमागर का पिथक दखी नही होता | जो नराधम अपनी वासना और अहकार को ीण करन का य नही करता वह िदन -िदन अपन

को रावण की तरह अधर कऐ म ढ़कल रहा ह | ई छा ही दख की जनमदाऽी इस ससाररपी बल का बीज ह | यिद इस बीज को आतम ानरपी अि न स ठ क-ठ क जला िदया तो पनः यह अकिरत नही होता | रघकलभषण राम ई छामाऽ ससार ह और ई छाओ का अभाव ही िनवारण ह | अतः अनक कार की माथाप ची म ना पड़कर कवल ऐसा य करना चािहय िक ई छा उतपनन ना हो | अपनी बि स ई छा का िवनाश करन को जो ततपर नही ऐस अभाग को शा और गर का उपदश

भी कया करगा जस अपनी जनमभमी जगल म िहरणी की मतय िनि त ह उसी कार अनकिवध दख का िवःतार कारनवाल ई छारपी िवषय-िवकार स य इस जगत म मनय की मतय िनि त ह | यिद मानव ई छाओ क कारण ब च -सा मढ़ ना बन तो उस आतम ान क िलय अ प य ही करना पड़ | इसिलय सभी कार स ई छाओ को शानत करना चािहय | ई छा क शमन स परम पद की ाि होती ह | ई छारिहत हो जाना यही िनवारण ह और ई छाय

होना ही बधन ह | अतः यथाशि ई छा को जीतना चािहय | भला इतना करन म कया किठनाई ह जनम जरा यािध और मतयरपी कटीली झािड़य और खर क व - समह की जड़ भी ई छा ही ह

| अतः शमरपी अि न स अदर-ही-अदर बीज को जला ड़ालना चािहय| जहा ई छाओ का अभाव ह

वहा मि िनि त ह |

िववक वरा य आिद साधन स ई छा का सवरथा िवनाश करना चािहय | ई छा का सबध जहा-जहा ह वहा-वहा पाप प य दखरािशया और ल बी पीड़ाओ स य बधन को हािज़र ही समझो | परष

की आतिरक ई छा य - य शानत होती जाती ह तय -तय मो क िलय उसका क याणकारक

साधन बढ़ता जाता ह | िववकहीन ई छा को पोसना उस पणर करना यह तो ससाररपी िवष व को पानी स सीचन क समान ह |rdquo

- ौीयोगविश महारामायण

आतमबल का आवाहन कया आप अपन-आपको दबरल मानत हो लघतामथी म उलझ कर पिरिःतिथय स िपस रह हो

अपना जीवन दीन-हीन बना बठ हो hellipतो अपन भीतर सष आतमबल को जगाओ | शरीर चाह ी का हो चाह परष का कित क साा य म जो जीत ह व सब ी ह और कित क बनधन स पार अपन ःवरप की पहचान िजनह न कर ली ह अपन मन की गलामी की बिड़या तोड़कर िजनह न फ क दी ह व परष ह | ी या परष शरीर एव मानयताए होती ह | तम तो तन-मन स पार िनमरल आतमा हो | जागोhellipउठोhellipअपन भीतर सोय हय िन यबल को जगाओ | सवरदश सवरकाल म सव म

आतमबल को िवकिसत करो | आतमा म अथाह सामथयर ह | अपन को दीन-हीन मान बठ तो िव म ऐसी कोई स ा नही जो त ह ऊपर उठा सक | अपन आतमःवरप म िति त हो गय तो िऽलोकी म ऐसी कोई हःती नही जो त ह दबा सक | भौितक जगत म वाप की शि ईलकशोिनक शि िव त की शि गरतवाकषरण की शि बड़ी मानी जाती ह लिकन आतमबल उन सब शि य का सचालक बल ह | आतमबल क सािननधय म आकर पग ार ध को पर िमल जात ह दव की दीनता पलायन हो जाती ह ितकल पिरिःतिथया अनकल हो जाती ह | आतमबल सवर िरि -िसि य का िपता ह |

आतमबल कस जगाय हररोज़ तःकाल ज दी उठकर सय दय स पवर ःनानािद स िनवत हो जाओ | ःव छ पिवऽ ःथान

म आसन िबछाकर पवारिभमख होकर प ासन या सखासन म बठ जाओ | शानत और सनन वि

धारण करो | मन म ढ भावना करो िक म कित-िनिमरत इस शरीर क सब अभाव को पार करक सब

मिलनताओ-दबरलताओ स िप ड़ छड़ाकर आतमा की मिहमा म जागकर ही रहगा |

आख आधी खली आधी बद रखो | अब फ़फ़ड़ म खब ास भरो और भावना करो की ास क साथ

म सयर का िद य ओज भीतर भर रहा ह | ास को यथाशि अनदर िटकाय रखो | िफ़र lsquoॐhelliprsquo का ल बा उ चारण करत हए ास को धीर-धीर छोड़त जाओ | ास क खाली होन क बाद तरत ास ना लो | यथाशि िबना ास रहो और भीतर ही भीतर lsquoहिर ॐhelliprsquo lsquoहिर ॐhelliprsquo का मानिसक

जाप करो | िफ़र स फ़फ़ड़ म ास भरो | पव रीित स ास यथाशि अनदर िटकाकर बाद म धीर-धीर छोड़त हए lsquoॐhelliprsquo का गजन करो | दस-पिह िमनट ऐस ाणायाम सिहत उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo की धविन करक शानत हो जाओ | सब

यास छोड़ दो | वि य को आकाश की ओर फ़लन दो | आकाश क अनदर पथवी ह | पथवी पर अनक दश अनक समि एव अनक लोग ह | उनम स एक

आपका शरीर आसन पर बठा हआ ह | इस पर य को आप मानिसक आख स भावना स दखत

रहो | आप शरीर नही हो बि क अनक शरीर दश सागर पथवी मह न ऽ सयर चनि एव पर ा ड़ क

ा हो सा ी हो | इस सा ी भाव म जाग जाओ | थोड़ी दर क बाद िफ़र स ाणायाम सिहत lsquoॐhelliprsquo का जाप करो और शानत होकर अपन िवचार को दखत रहो | इस अवःथा म ढ़ िन य करो िक lsquoम जसा चहता ह वसा होकर रहगा |rsquo िवषयसख स ा धन-

दौलत इतयािद की इ छा न करो कय िक िन यबल या आतमबलरपी हाथी क पदिच म और सभी क पदिच समािव हो ही जायग | आतमानदरपी सयर क उदय होन क बाद िम टी क तल क दीय क ाकाश रपी शि सखाभास की गलामी कौन कर

िकसी भी भावना को साकार करन क िलय दय को करद ड़ाल ऐसी िन यातमक बिल वि होनी आवशयक ह | अनतःकरण क गहर-स-गहर दश म चोट कर ऐसा ाण भरक िन बल का आवाहन करो | सीना तानकर खड़ हो जाओ अपन मन की दीन-हीन दखद मानयताओ को कचल

ड़ालन क िलय | सदा ःमरण रह की इधर-उधर भटकती वि य क साथ त हारी शि भी िबखरती रहती ह | अतः वि य को बहकाओ नही | तमाम वि य को एकिऽत करक साधनाकाल म आतमिचनतन म लगाओ और यवहारकाल म जो कायर करत हो उसम लगाओ | द िच होकर हरक कायर करो | अपन ःवभाव म स आवश को सवरथा िनमरल कर दो | आवश म आकर कोई िनणरय मत लो कोई िबया मत करो | सदा शानत वि धारण करन का अ यास करो | िवचारशील एव सनन रहो | ःवय अचल रहकर सागर की तरह सब वि य की तरग को अपन

भीतर समालो | जीवमाऽ को अपना ःवरप समझो | सबस ःनह रखो | िदल को यापक रखो | सकिच ता का िनवारण करत रहो | ख ड़ातमक वि का सवरथा तयाग करो | िजनको ानी महापरष का सतसग और अधयातमिव ा का लाभ िमल जाता ह उसक जीवन स

दःख िवदा होन लगत ह | ॐ आननद आतमिन ा म जाग हए महापरष क सतसग एव सतसािहतय स जीवन को भि और वदात स प

एव पलिकत करो | कछ ही िदन क इस सघन योग क बाद अनभव होन लगगा िक भतकाल क

नकारतमक ःवभाव सशयातमक-हािनकारक क पनाओ न जीवन को कचल ड़ाला था िवषला कर िदया था | अब िन यबल क चमतकार का पता चला | अततरम म आिवरभत िद य खज़ाना अब

िमला | ार ध की बिड़या अब टटन लगी | ठ क ह न करोग ना िह मत पढ़कर रख मत दना इस पिःतका को | जीवन म इसको बार-बार पढ़त रहो | एक िदन म यह पणर ना होगा | बार-बार अ यास करो | त हार िलय यह एक ही पिःतका काफ़ी ह | अनय कचराप टी ना पड़ोग तो चलगा | शाबाश वीर शाबाश

  • परसतावना
  • जीवन रसायन
  • गर भकति एक अमोघ साधना
  • शरी राम-वशिषठ सवाद
  • आतमबल का आवाहन
  • आतमबल कस जगाय
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78) िजस कार एक धाग म उ म मधयम और किन फल िपरोय हए ह उसी कार मर आतमःवरप म उ म मधयम और किन शरीर िपरोय हए ह | जस फल की गणव ा का भाव धाग पर नही पड़ता वस ही शरीर की गणव ा का भाव मरी सवर यापकता नही पड़ता | जस सब फल क िवनाश स धाग को कोई हािन नही वस शरीर क िवनाश स मझ सवरगत आतमा को कोई हािन नही होती | 79) म िनमरल िन ल अननत श अजर अमर ह | म असतयःवरप दह नही | िस परष इसीको lsquo ानrsquo कहत ह | 80) म भी नही और मझस अलग अनय भी कछ नही | सा ात आननद स पिरपणर कवल िनरनतर और सवरऽ एक ही ह | उ ग छोड़कर कवल यही उपासना सतत करत रहो | 81) जब आप जान लग िक दसर का िहत अपना ही िहत करन क बराबर ह और दसर का अिहत करना अपना ही अिहत करन क बराबर ह तब आपको धमर क ःवरप का सा तकार हो जायगा | 82) आप आतम-ित ा दलबनदी और ईयार को सदा क िलए छोड़ दो | पथवी माता की तरह सहनशील हो जाओ | ससार आपक कदम म नयोछावर होन का इतज़ार कर रहा ह | 83) म िनगरण िनिबय िनतय म और अ यत ह | म असतयःवरप दह नही ह | िस परष इसीको lsquo ानrsquo कहत ह | 84) जो दसर का सहारा खोजता ह वह सतयःवरप ई र की सवा नही कर सकता | 85) सतयःवरप महापरष का म सख-दःख म समान रहता ह सब अवःथाओ म हमार अनकल रहता ह | दय का एकमाऽ िवौामःथल वह म ह | व ावःथा उस आतमरस को सखा नही सकती | समय बदल जान स वह बदलता नही | कोई िवरला भा यवान ही ऐस िद य म का भाजन बन सकता ह | 86) शोक और मोह का कारण ह ािणय म िविभनन भाव का अधयारोप करना | मनय जब एक को सख दनवाला यारा स द समझता ह और दसर को दःख दनवाला शऽ समझकर उसस ष करता ह तब उसक दय म शोक और मोह का उदय होना अिनवायर

ह | वह जब सवर ािणय म एक अख ड स ा का अनभव करन लगगा ािणमाऽ को भ का पऽ समझकर उस आतमभाव स यार करगा तब उस साधक क दय म शोक और मोह का नामोिनशान नही रह जायगा | वह सदा सनन रहगा | ससार म उसक िलय न ही कोई शऽ रहगा और न ही कोई िमऽ | उसको कोई कलश नही पहचायगा | उसक सामन िवषधर नाग भी अपना ःवभाव भल जायगा | 87) िजसको अपन ाण की परवाह नही मतय का नाम सनकर िवचिलत न होकर उसका ःवागत करन क िलए जो सदा ततपर ह उसक िलए ससार म कोई कायर असाधय नही | उस िकसी बा श की जररत नही साहस ही उसका श ह | उस श स वह अनयाय का प लनवाल को परािजत कर दता ह िफर भी उनक िलए बर िवचार का सवन नही करता | 88) िचनता ही आननद व उ लास का िवधवस करनवाली रा सी ह | 89) कभी-कभी मधयरािऽ को जाग जाओ | उस समय इिनिया अपन िवषय क ित चचल नही रहती | बिहमरख ःफरण की गित मनद होती ह | इस अवःथा का लाभ लकर इिनियातीत अपन िचदाकाश ःवरप का अनभव करो | जगत शरीर व इिनिय क अभाव म भी अपन अख ड अिःततव को जानो | 90) य म ीित नही रहना ही असली वरा य ह | 91) रोग हम दबाना चाहता ह | उसस हमार िवचार भी मनद हो जात ह | अतः रोग की िनवित करनी चिहए | लिकन जो िवचारवान परष ह वह कवल रोगिनवित क पीछ ही नही लग जाता | वह तो यह िनगरानी रखता ह िक भयकर दःख क समय भी अपना िवचार छट तो नही गया ऐसा परष lsquoहाय-हायrsquo करक ाण नही तयागता कय िक वह जानता ह िक रोग उसका दास ह | रोग कसा भी भय िदखाय लिकन िवचारवान परष इसस भािवत नही होता | 92) िजस साधक क पास धारणा की ढ़ता एव उ य की पिवऽता य दो गण ह ग वह अवय िवजता होगा | इन दो शा स ससि जत साधक समःत िव न-बाधाओ का सामना करक आिखर म िवजयपताका फहरायगा | 93) जब तक हमार मन म इस बात का पकका िन य नही होगा िक सि शभ ह तब तक मन एकाम नही होगा | जब तक हम समझत रहग िक सि िबगड़ी हई ह तब तक

मन सशक ि स चार ओर दौड़ता रहगा | सवरऽ मगलमय ि रखन स मन अपन-आप शात होन लगगा | 94) आसन िःथर करन क िलए सक प कर िक जस पथवी को धारण करत हए भी शषजी िब कल अचल रहत ह वस म भी अचल रहगा | म शरीर और ाण का ा ह | 95) lsquoससार िमथया हrsquo - यह मद ानी की धारणा ह | lsquoससार ःव नवत हrsquo - यह मधयम ानी की धारणा ह | lsquoससार का अतयनत अभाव ह ससार की उतपि कभी हई ही नहीrsquo -

यह उ म ानी की धारणा ह | 96) आप यिद भि मागर म ह तो सारी सि भगवान की ह इसिलए िकसीकी भी िननदा करना ठ क नही | आप यिद ानमागर म ह तो यह सि अपना ही ःवरप ह | आप अपनी ही िननदा कस कर सकत ह इस कार द नो माग म परिननदा का अवकाश ही नही ह | 97) य म ा का भान एव ा म य का भान हो रहा ह | इस गड़बड़ का नाम ही अिववक या अ ान ह | ा को ा तथा य को य समझना ही िववक या ान ह | 98) आसन व ाण िःथर होन स शरीर म िव त पदा होती ह | शरीर क ारा जब भी िबया की जाती ह तब वह िव त बाहर िनकल जाती ह | इस िव त को शरीर म रोक लन स शरीर िनरोगी बन जाता ह | 99) ःव न की सि अ पकालीन और िविचऽ होती ह | मनय जब जागता ह तब जानता ह िक म पलग पर सोया ह | मझ ःव न आया | ःव न म पदाथर दश काल िबया इतयािद परी सि का सजरन हआ | लिकन मर िसवाय और कछ भी न था | ःव न की सि झठ थी | इसी कार ततव ानी परष अ ानरपी िनिा स ानरपी जामत अवःथा को ा हए ह | व कहत ह िक एक क िसवा अनय कछ ह ही नही | जस ःव न स जागन क बाद हम ःव न की सि िमथया लगती ह वस ही ानवान को यह जगत िमथया लगता ह | 100) शारीिरक क पड़ तब ऐसी भावना हो जाय िक lsquoयह क मर यार भ की ओर स हhelliprsquo तो वह क तप का फल दता ह | 101) चलत-चलत पर म छाल पड़ गय ह भख याकल कर रही हो बि िवचार

करन म िशिथल हो गई हो िकसी पड़ क नीच पड़ ह जीवन अस भव हो रहा हो मतय का आगमन हो रहा हो तब भी अनदर स वही िनभरय धविन उठ lsquoसोऽहमhellipसोऽहमhellipमझ भय नहीhellipमरी मतय नहीhellipमझ भख नहीhellip यास नहीhellip कित की कोई भी यथा मझ न नही कर सकतीhellipम वही हhellipवही हhelliprsquo 102) िजनक आग िय-अिय अनकल-ितकल सख-दःख और भत-भिवय एक समान ह ऐस ानी आतमव ा महापरष ही स च धनवान ह | 103) दःख म दःखी और सख म सखी होन वाल लोह जस होत ह | दःख म सखी रहन वाल सोन जस होत ह | सख-दःख म समान रहन वाल र जस होत ह परनत जो सख-दःख की भावना स पर रहत ह व ही स च साट ह | 104) ःव न स जाग कर जस ःव न को भल जात ह वस जामत स जागकर थोड़ी दर क

िलए जामत को भल जाओ | रोज ातः काल म पनिह िमनट इस कार ससार को भल जान की आदत डालन स आतमा का अनसधान हो सकगा | इस योग स सहजावःथा ा होगी | 105) तयाग और म स यथाथर ान होता ह | दःखी ाणी म तयाग व म िवचार स आत ह

| सखी ाणी म तयाग व म सवा स आत ह कय िक जो ःवय दःखी ह वह सवा नही कर सकता पर िवचार कर सकता ह | जो सखी ह वह सख म आस होन क कारण उसम िवचार का उदय नही हो सकता लिकन वह सवा कर सकता ह | 106) लोग की पजा व णाम स जसी सननता होती ह वसी ही सननता जब मार पड़

तब भी होती हो तो ही मन य िभ ानन महण करन का स चा अिधकारी माना जाता ह | 107) हरक साधक को िब कल नय अनभव की िदशा म आग बढ़ना ह | इसक िलय

ानी महातमा की अतयनत आवयकता होती ह | िजसको स ची िज ासा हो उस ऐस

महातमा िमल ही जात ह | ढ़ िज ासा स िशय को गर क पास जान की इ छा होती ह | यो य

िज ास को समथर गर ःवय दशरन दत ह | 108) बीत हए समय को याद न करना भिवय की िचनता न करना और व रमान म ा

सख-दःखािद म सम रहना य जीवनम परष क ल ण ह | 109) जब बि एव दय एक हो जात ह तब सारा जीवन साधना बन जाता ह |

110) बि मान परष ससार की िचनता नही करत लिकन अपनी मि क बार म सोचत ह |

मि का िवचार ही तयागी दानी सवापरायण बनाता ह | मो की इ छा स सब सदगण आ जात ह

| ससार की इ छा स सब दगरण आ जात ह | 111) पिरिःथित िजतनी किठन होती ह वातावरण िजतना पीड़ाकारक होता ह उसस

गजरन वाला उतना ही बलवान बन जाता ह | अतः बा क और िचनताओ का ःवागत करो | ऐसी पिरिःथित म भी वदानत को आचरण म लाओ | जब आप वदानती जीवन यतीत करग तब दखग

िक समःत वातावरण और पिरिःथितया आपक वश म हो रही ह आपक िलय उपयोगी िस हो रही ह | 112) हरक पदाथर पर स अपन मोह को हटा लो और एक सतय पर एक तथय पर अपन

ई र पर समम धयान को किनित करो | तरनत आपको आतम-सा ातकार होगा | 113) जस बड़ होत-होत बचपन क खलकद छोड़ दत हो वस ही ससार क खलकद छोड़कर आतमाननद का उपभोग करना चािहय | जस अनन व जल का सवन करत हो वस ही आतम-

िचनतन का िनरनतर सवन करना चािहय | भोजन ठ क स होता ह तो ति की डकार आती ह वस

ही यथाथर आतमिचनतन होत ही आतमानभव की डकार आयगी आतमाननद म मःत ह ग |

आतम ान क िसवा शाित का कोई उपाय नही | 114) आतम ानी क हकम स सयर काशता ह | उनक िलय इनि पानी बरसाता ह | उनही क

िलय पवन दत बनकर गमनागमन करता ह | उनही क आग समि रत म अपना िसर रगड़ता ह | 115) यिद आप अपन आतमःवरप को परमातमा समझो और अनभव करो तो आपक सब

िवचार व मनोरथ सफल ह ग उसी ण पणर ह ग | 116) राजा-महाराजा दवी-दवता वद-पराण आिद जो कछ ह व आतमदश क सक पमाऽ

ह | 117) जो लोग ितकलता को अपनात ह ई र उनक स मख रहत ह | ई र िजनह अपन

स दर रखना चाहत ह उनह अनकल पिरिःथितया दत ह | िजसको सब वःतए अनकल एव पिवऽ

सब घटनाए लाभकारी सब िदन शभ सब मनय दवता क रप म िदखत ह वही परष ततवदश ह | 118) समता क िवचार स िच ज दी वश म होता ह हठ स नही |

119) ऐस लोग स स बनध रखो िक िजसस आपकी सहनशि बढ़ समझ की शि बढ़

जीवन म आन वाल सख-दःख की तरग का आपक भीतर शमन करन की ताकत आय समता बढ़

जीवन तजःवी बन | 120) लोग बोलत ह िक धयान व आतमिचनतन क िलए हम फरसत नही िमलती | लिकन

भल मनय जब नीद आती ह तब सब महतवपणर काम भी छोड़कर सो जाना पड़ता ह िक नही

जस नीद को महतव दत हो वस ही चौबीस घनट म स कछ समय धयान व आतमिचनतन म भी िबताओ | तभी जीवन साथरक होगा | अनयथा कछ भी हाथ नही लगगा | 121) भल जाओ िक तम मनय हो अमक जाित हो अमक उ हो अमक िड़मीवाल हो अमक धनधवाल हो | तम िनगरण िनराकार सा ीरप हो ऐसा ढ़ िन य करो | इसीम तमाम

कार की साधनाए िबयाए योगािद समािव हो जात ह | आप सवर यापक अख ड चतनय हो | सार ान का यह मल ह | 122) दोष तभी िदखता जब हमार लोचन म क अभावरप पीिलया रोग स मःत होत ह | 123) साधक यिद अ यास क मागर पर उसी कार आग बढ़ता जाय िजस कार ार भ

म इस मागर पर चलन क िलए उतसाहपवरक कदम रखा था तो आयरपी सयर अःत होन स पहल

जीवनरपी िदन रहत ही अवय सोऽहम िसि क ःथान तक पहच जाय | 124) लोग ज दी स उननित कय नही करत कय िक बाहर क अिभाय एव िवचारधाराओ का बहत बड़ा बोझ िहमालय की तरह उनकी पीठ पर लदा हआ ह | 125) अपन ित होन वाल अनयाय को सहन करत हए अनयायकतार को यिद मा कर िदया जाय तो ष म म पिरणत हो जाता ह | 126) साधना की शरआत ौ ा स होती ह लिकन समाि ान स होनी चािहय | ान मान

ःवयसिहत सवर ःवरप ह ऐसा अपरो अनभव | 127) अपन शरीर क रोम-रोम म स ॐ का उ चारण करो | पहल धीम ःवर म ार भ

करो | शर म धविन गल स िनकलगी िफर छाती स िफर नािभ स और अनत म रीढ़ की ह डी क

आिखरी छोर स िनकलगी | तब िव त क धकक स सष ना नाड़ी तरनत खलगी | सब कीटाणसिहत

तमाम रोग भाग खड़ ह ग | िनभरयता िह मत और आननद का फ वारा छटगा | हर रोज ातःकाल

म ःनानािद करक सय दय क समय िकसी एक िनयत ःथान म आसन पर पवारिभमख बठकर

कम-स-कम आधा घनटा करक तो दखो | 128) आप जगत क भ बनो अनयथा जगत आप पर भतव जमा लगा | ान क

मतािबक जीवन बनाओ अनयथा जीवन क मतािबक ान हो जायगा | िफर यग की याऽा स भी दःख का अनत नही आयगा | 129) वाःतिवक िश ण का ारभ तो तभी होता ह जब मनय सब कार की सहायताओ स िवमख होकर अपन भीतर क अननत ॐोत की तरफ अमसर होता ह | 130) य पच की िनवित क िलए अनतःकरण को आननद म सरोबार रखन क िलए

कोई भी कायर करत समय िवचार करो म कौन ह और कायर कौन कर रहा ह भीतर स जवाब

िमलगा मन और शरीर कायर करत ह | म सा ीःवरप ह | ऐसा करन स कतारपन का अह

िपघलगा सख-दःख क आघात मनद ह ग | 131) राग- ष की िनवित का कया उपाय ह उपाय यही ह िक सार जगत-पच को मनोरा य समझो | िननदा-ःतित स राग- ष स पच म सतयता ढ़ होती ह | 132) जब कोई खनी हाथ आपकी गरदन पकड़ ल कोई श धारी आपको कतल करन क

िलए ततपर हो जाय तब यिद आप उसक िलए सननता स तयार रह दय म िकसी कार का भय

या िवषाद उतपनन न हो तो समझना िक आपन राग- ष पर िवजय ा कर िलया ह | जब आपकी ि पड़त ही िसहािद िहसक जीव की िहसावित गायब हो जाय तब समझना िक अब राग- ष का अभाव हआ ह | 133) आतमा क िसवाय अनय कछ भी नही ह - ऐसी समझ रखना ही आतमिन ा ह | 134) आप ःव न ा ह और यह जगत आपका ही ःव न ह | बस िजस ण यह ान हो जायगा उसी ण आप म हो जाएग | 135) िदन क चौबीस घ ट को साधनामय बनान क िलय िनक मा होकर यथर िवचार करत हए मन को बार-बार सावधान करक आतमिचतन म लगाओ | ससार म सल न मन को वहा स उठा कर आतमा म लगात रहो | 136) एक बार सागर की एक बड़ी तरग एक बलबल की िता पर हसन लगी | बलबल न

कहा ओ तरग म तो छोटा ह िफर भी बहत सखी ह | कछ ही दर म मरी दह टट जायगी िबखर

जायगी | म जल क साथ जल हो जाऊगा | वामन िमटकर िवराट बन जाऊगा | मरी मि बहत

नजदीक ह | मझ आपकी िःथित पर दया आती ह | आप इतनी बड़ी हई हो | आपका छटकारा ज दी नही होगा | आप भाग-भागकर सामनवाली च टान स टकराओगी | अनक छोटी-छोटी तरग

म िवभ हो जाओगी | उन अस य तरग म स अननत-अननत बलबल क रप म पिरवितरत हो जाओगी | य सब बलबल फटग तब आपका छटकारा होगा | बड़ पन का गवर कय करती हो जगत की उपलि धय का अिभमान करक परमातमा स दर मत जाओ | बलबल की तरह सरल

रहकर परमातमा क साथ एकता का अनभव करो | 137) जब आप ईयार ष िछिानवषण दोषारोपण घणा और िननदा क िवचार िकसीक

ित भजत ह तब साथ-ही-साथ वस ही िवचार को आमिऽत भी करत ह | जब आप अपन भाई की आख म ितनका भ कत ह तब अपनी आख म भी आप ताड़ भ क रह ह | 138) शरीर अनक ह आतमा एक ह | वह आतमा-परमातमा मझस अलग नही | म ही कतार सा ी व नयायधीश ह | म ही ककर श आलोचक ह और म ही मधर शसक ह | मर िलय तयक

यि ःवतऽ व ःव छनद ह | बनधन पिरि छननता और दोष मरी ि म आत ही नही | म म

हपरम म ह और अनय लोग भी ःवतऽ ह | ई र म ही ह | आप भी वही हो | 139) िजस कार बालक अपनी परछा म बताल की क पना कर भय पाता ह उसी कार जीव अपन ही सक प स भयभीत होता ह और क पाता ह | 140) कभी-कभी ऐसी भावना करो िक आपक सामन चतनय का एक महासागर लहरा रहा ह | उसक िकनार खड़ रह कर आप आनद स उस दख रह ह | आपका शरीर सागर की सतह पर घमन गया ह | आपक दखत ही दखत वह सागर म डब गया | इस समःत पिरिःथित को दखन वाल आप सा ी आतमा शष रहत ह | इस कार सा ी रप म अपना अनभव करो | 141) यिद हम चाहत ह िक भगवान हमार सब अपराध माफ कर तो इसक िलए सगम साधना यही ह िक हम भी अपन सबिधत सब लोग क सब अपराध माफ कर द |

कभी िकसी क दोष या अपराध पर ि न डाल कय िक वाःतव म सब रप म हमारा यारा ई दव ही बीड़ा कर रहा ह |

142) पणर पिवऽता का अथर ह बा भाव स भािवत न होना | सासािरक मनोहरता एव घणा स पर रहना राजी-नाराजगी स अिवचल िकसी म भद न दखना और आतमानभव क ारा आकषरण व तयाग स अिल रहना | यही वदानत का उपिनषद का

रहःय ह | 143) ई र सा ातकार तभी होगा जब ससार की ि स तीत होन वाल बड़-स-बड़ विरय को भी मा करन का आपका ःवभाव बन जायगा | 144) चाल यवहार म स एकदम उपराम होकर दो िमनट क िलए िवराम लो |

सोचो िक lsquo म कौन ह सद -गम शरीर को लगती ह | भख- यास ाण को लगती ह |

अनकलता-ितकलता मन को लगती ह | शभ-अशभ एव पाप-प य का िनणरय बि करती ह | म न शरीर ह न ाण ह न मन ह न बि ह | म तो ह इन सबको स ा दन वाला इन सबस नयारा िनलप आतमा |rsquo 145) जो मनय िनरतर lsquoम म हhelliprsquo ऐसी भावना करता ह वह म ही ह और lsquoम ब हhelliprsquo ऐसी भावना करनवाला ब ही ह | 146) आप िनभरय ह िनभरय ह िनभरय ह | भय ही मतय ह | भय ही पाप ह | भय ही नकर ह | भय ही अधमर ह | भय ही यिभचार ह | जगत म िजतन असत या िमथया भाव ह व सब इस भयरपी शतान स पदा हए ह | 147) परिहत क िलए थोड़ा काम करन स भी भीतर की शि या जागत होती ह |

दसर क क याण क िवचारमाऽ स दय म एक िसह क समान बल आ जाता ह | 148) हम यिद िनभरय ह ग तो शर को भी जीतकर उस पाल सक ग | यिद डरग तो क ा भी हम फ़ाड़ खायगा | 149) तयक िबया तयक यवहार तयक ाणी ःवरप िदख यही सहज समािध ह | 150) जब किठनाईया आय तब ऐसा मानना िक मझ म सहन शि बढ़ान क िलए ई र न य सयोग भज ह | किठन सयोग म िह मत रहगी तो सयोग बदलन लगग |

िवषय म राग- ष रह गया होगा तो वह िवषय कसौटी क रप म आग आयग और उनस पार होना पड़गा | 151) ततव ि स न तो आपन जनम िलया न कभी लग | आप तो अनत ह सवर यापी ह िनतयम अजर-अमर अिवनाशी ह | जनम-मतय का ही गलत ह महा-

मखरतापणर ह | जहा जनम ही नही हआ वहा मतय हो ही कस सकती ह 152) आप ही इस जगत क ई र हो | आपको कौन दबरल बना सकता ह जगत म आप ही एकमाऽ स ा हो | आपको िकसका भय खड़ हो जाओ | म हो जाओ | ठ क स समझ लो िक जो कोई िवचार या श द आपको दबरल बनाता ह वही एकमाऽ अशभ ह | मनय को दबरल व भयभीत करनवाला जो कछ इस ससार म ह वह पाप ह | 153) आप अपना कायर या कतर य करो लिकन न उसक िलए कोई िचनता रह न ही कोई

इ छा | अपन कायर म सख का अनभव करो कय िक आपका कायर ःवय सख या िवौाम ह | आपका कायर आतमानभव का ही दसरा नाम ह | कायर म लग रहो | कायर आपको आतमानभव कराता ह |

िकसी अनय हत स कायर न करो | ःवतऽ वि स अपन कायर पर डट जाओ | अपन को ःवतऽ

समझो िकसीक कदी नही | 154) यिद आप सतय क मागर स नही हटत तो शि का वाह आपक साथ ह समय आपक

साथ ह ऽ आपक साथ ह | लोग को उनक भतकाल की मिहमा पर फलन दो भिवयकाल की स पणर मिहमा आपक हाथ म ह | 155) जब आप िद य म क साथ चा डाल म चोर म पापी म अ यागत म और सबम भ क दशरन करग तब आप भगवान ौी कण क मपाऽ बन जायग | 156) आचायर गौड़पाद न ःप कहा आप सब आपस म भल ही लड़त रह लिकन मर साथ नही लड़ सक ग | आप सब लोग मर पट म ह | म आतमःवरप स सवर या ह | 157) मनय सभी ािणय म ौ ह सब दवताओ स भी ौ ह | दवताओ को भी िफर स

धरती पर आना पड़गा और मनय शरीर ा करक मि ा करनी होगी | 158) िनि नतता क दो सऽ जो कायर करना जररी ह उस परा कर दो | जो िबनजररी ह

उस भल जाओ | 159) सवा-म-तयाग ही मनय क िवकास का मल मऽ ह | अगर यह मऽ आपको जच

जाय तो सभी क ित सदभाव रखो और शरीर स िकसी-न-िकसी यि को िबना िकसी मतलब क

सहयोग दत रहो | यह नही िक जब मरी बात मानग तब म सवा करगा | अगर बनधक मरी बात

नही मानत तो म सवा नही करगा |

भाई तब तो तम सवा नही कर पाओग | तब तो तम अपनी बात मनवा कर अपन अह की पजा ही

करोग | 160) जस ःव न िमथया ह वस ही यह जामत अवःथा भी ःव नवत ही ह िमथया ह | हरक

को अपन इस ःव न स जागना ह | सदगर बार-बार जगा रह ह लिकन जाग कर वापस सो न जाए ऐसा परषाथर तो हम ही करना होगा | 161) सदा सननमख रहो | मख को कभी मिलन मत करो | िन य कर लो िक आपक

िलय शोक न इस जगत म जनम नही िलया ह | आननदःवरप म िचनता का ःथान ही कहा ह 162) समम ा ड एक शरीर ह | समम ससार एक शरीर ह | जब तक आप तयक क

साथ एकता का अनभव करत रहग तब तक सब पिरिःथितया और आस-पास की चीज़ हवा और समि की लहर भी आपक प म रहगी | 163) आपको जो कछ शरीर स बि स या आतमा स कमजोर बनाय उसको िवष की तरह

ततकाल तयाग दो | वह कभी सतय नही हो सकता | सतय तो बलद होता ह पावन होता ह

ानःवरप होता ह | सतय वह ह जो शि द | 164) साधना म हमारी अिभरिच होनी चािहय साधना की तीो माग होनी चािहय | 165) दसर क दोष की चचार मत करो चाह व िकतन भी बड़ ह | िकसी क दोष की चचार करक आप उसका िकसी भी कार भला नही करत बि क उस आघात पहचात ह और साथ-ही-साथ अपन आपको भी | 166) इस ससार को सतय समझना ही मौत ह | आपका असली ःवरप तो आननदःवरप

आतमा ह | आतमा क िसवा ससार जसी कोई चीज ही नही ह | जस सोया हआ मनय ःव न म अपनी एकता नही जानता अिपत अपन को अनक करक दखता ह वस ही आननदःवरप आतमा जामत ःव न और सषि - इन तीन ःवरप को दखत हए अपनी एकता अि तीयता का अनभव

नही करता | 167) मनोजय का उपाय ह अ यास और वरा य | अ यास मान य पवरक मन को बार-बार परमातम-िचतन म लगाना और वरा य मान मन को ससार क पदाथ की ओर स वापस

लौटाना | 168) िकसी स कछ मत मागो | दन क िलय लोग आपक पीछ-पीछ घमग | मान नही

चाहोग तो मान िमलगा | ःवगर नही चाहोग तो ःवगर क दत आपक िलय िवमान लकर आयग |

उसको भी ःवीकार नही करोग तो ई र आपको अपन दय स लगायग | 169) कभी-कभी उदय या अःत होत हए सयर की ओर चलो | नदी सरोवर या समि क तट

पर अकल घमन जाओ | ऐस ःथान की मलाकात लो जहा शीतल पवन मनद-मनद चल रही हो | वहा परमातमा क साथ एकःवर होन की स भावना क ार खलत ह | 170) आप य -ही इ छा स ऊपर उठत हो तय -ही आपका इि छत पदाथर आपको खोजन

लगता ह | अतः पदाथर स ऊपर उठो | यही िनयम ह | य - य आप इ छक िभ क याचक का भाव धारण करत हो तय -तय आप ठकराय जात हो | 171) कित क तयक पदाथर को दखन क िलय काश जररी ह | इसी कार मन बि

इिनिय को अपन-अपन कायर करन क िलय आतम-काश की आवयकता ह कय िक बाहर का कोई काश मन बि इिनिय ाणािद को चतन करन म समथर नही | 172) जस ःव न ा परष को जागन क बाद ःव न क सख-दःख जनम-मरण पाप-प य

धमर-अधमर आिद ःपशर नही करत कय िक वह सब खद ही ह | खद क िसवाय ःव न म दसरा कछ

था ही नही | वस ही जीवनम ानवान परष को सख-दःख जनम-मरण पाप-प य धमर-अधमर ःपशर नही करत कय िक व सब आतमःवरप ही ह | 173) वही भमा नामक आतम योित क म रह कर भ क रही ह सअर म रह कर घर रही ह गध म रह कर रक रही ह लिकन मखर लोग शरीर पर ही ि रखत ह चतनय ततव पर नही | 174) मनय िजस ण भत-भिवय की िचनता का तयाग कर दता ह दह को सीिमत और उतपि -िवनाशशील जानकर दहािभमान को तयाग दता ह उसी ण वह एक उ चतर अवःथा म पहच जाता ह | िपजर स छटकर गगनिवहार करत हए प ी की तरह मि का अनभव करता ह | 175) समःत भय एव िचनताए आपकी इ छाओ का णाम ह | आपको भय कय लगता ह

कय िक आपको आशका रहती ह िक अमक चीज कही चली न जाय | लोग क हाःय स आप डरत

ह कय िक आपको यश की अिभलाषा ह कीितर म आसि ह | इ छाओ को ितलाजिल द दो | िफर दखो मजा कोई िज मदारी नहीकोई भय नही | 176) दखन म अतयत करप काला-कलटा कबड़ा और तज ःवभाव का मनय भी आपका ही ःवरप ह | आप इस तथय स म नही | िफर घणा कसी कोई लाव यमयी सदरी सि की

शोभा क समान अित िवलासभरी अ सरा भी आपका ही ःवरप ह | िफर आसि िकसकी

आपकी ानिनिया उनको आपस अलग करक िदखाती ह | य इिनिया झठ बोलनवाली ह | उनका कभी िव ास मत करो | अतः सब कछ आप ही हो | 177) मानव क नात हम साधक ह | साधक होन क नात सतय को ःवीकर करना हमारा ःवधमर ह | सतय यही ह िक बल दसर क िलय ह ान अपन िलय ह और िव ास परमातमा स

स बनध जोड़न क िलय ह | 178) अपनी आतमा म डब जाना यह सबस बड़ा परोपकार ह | 179) आप सदव म ह ऐसा िव ास ढ़ करो तो आप िव क उ ारक हो जात हो | आप

यिद वदानत क ःवर क साथ ःवर िमलाकर िन य करो आप कभी शरीर न थ | आप िनतय श

ब आतमा हो तो अिखल ा ड क मो दाता हो जात हो | 180) कपा करक उन ःवाथरमय उपाय और अिभाय को दर फ क दो जो आपको पिरि छनन रखत ह | सब वासनाए राग ह | यि गत या शरीरगत म आसि ह | उस फ क दो | ःवय पिवऽ हो जाओ | आपका शरीर ःवःथ और बि पणरःवरप हो जायगी | 181) यिद ससार क सख व पदाथर ा ह तो आपको कहना चािहय ओ शतान हट जा मर सामन स | तर हाथ स मझ कछ नही चािहय | तब दखो िक आप कस सखी हो जात हो परमातमा-ा िकसी महापरष पर िव ास रखकर अपनी जीवनडोरी िनःशक बन उनक चरण म सदा क िलय रख दो | िनभरयता आपक चरण की दासी बन जायगी | 182) िजसन एक बार ठ क स जान िलया िक जगत िमथया ह और ािनत स इसकी तीित

हो रही ह उसको कभी दःख नही होता | जगत म कभी आसि नही होती | जगत क िमथयातव क

िन य का नाम ही जगत का नाश ह | 183) अपन ःवरप म लीन होन माऽ स आप ससार क साट बन जायग | यह साटपद

कवल इस ससार का ही नही समःत लोक-परलोक का साटपद होगा | 184) ह जनक चाह दवािधदव महादव आकर आपको उपदश द या भगवान िवण आकर उपदश द अथवा ाजी आकर उपदश द लिकन आपको कदािप सख न होगा | जब िवषय का तयाग करोग तभी स ची शाित व आनद ा ह ग |

185) िजस भ न हम मानव जीवन दकर ःवाधीनता दी िक हम जब चाह तब धमारतमा होकर भ होकर जीवनम होकर कतकतय हो सकत ह- उस भ की मिहमा गाओ | गाओ नही तो सनो | सनो भी नही गाओ भी नही तो ःवीकार कर लो | 186) चाह समि क गहर तल म जाना पड़ सा ात मतय का मकाबला करना पड़ अपन

आतमाि क उ य की पितर क िलय अिडग रहो | उठो साहसी बनो शि मान बनो | आपको जो बल व सहायता चािहय वह आपक भीतर ही ह | 187) जब-जब जीवन स बनधी शोक और िचनता घरन लग तब-तब अपन आननदःवरप

का गान करत-करत उस मोह-माया को भगा दो | 188) जब शरीर म कोई पीड़ा या अग म ज म हो तब म आकाशवत आकाशरिहत चतन

ह ऐसा ढ़ िन य करक पीड़ा को भल जाओ | 189) जब दिनया क िकसी चककर म फस जाओ तब म िनलप िनतय म ह ऐसा ढ़

िन य करक उस चककर स िनकल जाओ | 190) जब घर-बार स बनधी कोई किठन समःया याकल कर तब उस मदारी का खल

समझकर ःवय को िनःसग जानकर उस बोझ को ह का कर दो | 191) जब बोध क आवश म आकर कोई अपमानय वचन कह तब अपन शाितमय

ःवरप म िःथर होकर मन म िकसी भी ोभ को पदा न होन दो | 192) उ म अिधकारी िज ास को चािहय िक वह व ा सदगर क पास जाकर ौ ा पवरक महावाकय सन | उसका मनन व िनिदधयासन करक अपन आतमःवरप को जान | जब

आतमःवरप का सा ातकार होता ह तब ही परम िवौािनत िमल सकती ह अनयथा नही | जब तक

व ा महापरष स महावाकय ा न हो तब तक वह मनद अिधकारी ह | वह अपन दयकमल म परमातमा का धयान कर ःमरण कर जप कर | इस धयान-जपािद क साद स उस व ा सदगर

ा ह ग | 193) मन बि िच अहकार छाया की तरह जड़ ह णभगर ह कय िक व उतपनन होत

ह और लीन भी हो जात ह | िजस चतनय की छाया उसम पड़ती ह वह परम चतनय सबका आतमा ह | मन बि िच अहकार का अभाव हो जाता ह लिकन उसका अनभव करनवाल का अभाव

कदािप नही होता |

194) आप अपनी शि को उ चाितउ च िवषय की ओर बहन दो | इसस आपक पास व

बात सोचन का समय ही नही िमलगा िजसस कामकता की गध आती हो | 195) अपराध क अनक नाम ह बालहतया नरहतया मातहतया गौहतया इतयािद |

परनत तयक ाणी म ई र का अनभव न करक आप ई रहतया का सबस बड़ा अपराध करत ह | 196) सवा करन की ःवाधीनता मनयमाऽ को ा ह | अगर वह करना ही न चाह तो अलग बात ह | सवा का अथर ह मन-वाणी-कमर स बराईरिहत हो जाना यह िव की सवा हो गई |

यथाशि भलाई कर दो यह समाज की सवा हो गई | भलाई का फल छोड़ दो यह अपनी सवा हो गई

| भ को अपना मानकर ःमित और म जगा लो यह भ की सवा हो गई | इस कार मनय

अपनी सवा भी कर सकता ह समाज की सवा भी कर सकता ह िव की सवा भी कर सकता ह

और िव र की सवा भी कर सकता ह | 197) आतमा स बाहर मत भटको अपन कनि म िःथर रहो अनयथा िगर पड़ोग | अपन-

आपम पणर िव ास रखो | आतम-कनि पर अचल रहो | िफर कोई भी चीज आपको िवचिलत नही कर सकती | 198) सदा शात िनिवरकार और सम रहो | जगत को खलमाऽ समझो | जगत स भािवत

मत हो | इसस आप हमशा सखी रहोग | िफर कछ बढ़ान की इ छा नही होगी और कछ कम होन स

दःख नही होगा | 199) समथर सदगर क सम सदा फल क भाित िखल हए रहो | इसस उनक अनदर सक प

होगा िक यह तो बहत उतसाही साधक ह सदा सनन रहता ह | उनक सामथयरवान सक प स

आपकी वह किऽम सननता भी वाःतिवक सननता म बदल जायगी | 200) यिद रोग को भी ई र का िदया मानो तो ार ध-भोग भी हो जाता ह और क तप का फल दता ह | इसस ई र-कपा की ाि होती ह | याकल मत हो | क सल और इनजकशन

आधीन मत हो | 201) साधक को चािहय िक अपन लआय को ि म रखकर साधना-पथ पर तीर की तरह

सीधा चला जाय | न इधर दख न उधर | ि यिद इधर-उधर जाती हो तो समझना िक िन ा िःथर नही ह |

202) आपन अपन जीवन म हजार ःव न दख ह ग लिकन व आपक जीवन क अश नही बन जात | इसी कार य जामत जगत क आड बर आपकी आतमा क सम कोई मह व नही रखत | 203) एक आतमा को ही जानो अनय बात को छोड़ो | धीर साधक को चािहय िक वह

सावधान होकर आतमिन ा बढ़ाय अनक श द का िचनतन व भाषण न कर कय िक वह तो कवल

मन-वाणी को पिरौम दनवाला ह असली साधना नही ह | 204) जो परष जन-समह स ऐस डर जस साप स डरता ह स मान स ऐस डर जस नकर स

डरता ह ि य स ऐस डर जस मद स डरता ह उस परष को दवतागण ा ण मानत ह | 205) जस अपन शरीर क अग पर बोध नही आता वस शऽ िमऽ व अपनी दह म एक ही आतमा को दखनवाल िववकी परष को कदािप बोध नही आता | 206) मन तो शरीर को ई रापरण कर िदया ह | अब उसकी भख- यास स मझ कया

समिपरत वःत म आस होना महा पाप ह | 207) आप यिद िद य ि पाना चहत हो तो आपको इिनिय क ऽ का तयाग करना होगा | 208) लयकाल क मघ की गजरना हो समि उमड़ पड बारह सयर तपायमान हो जाय पहाड़ स पहाड़ टकरा कर भयानक आवाज हो तो भी ानी क िन य म त नही भासता कय िक

त ह ही नही | त तो अ ानी को भासता ह | 209) सतय को ःवीकार करन स शाित िमलगी | कछ लोग यो यता क आधार पर शाित

खरीदना चाहत ह | यो यता स शाित नही िमलगी यो यता क सदपयोग स शाित िमलगी | कछ

लोग स पि क आधार पर शाित सरि त रखना चाहत ह | स पि स शाित नही िमलगी स पि

क सदपयोग स शाित िमलगी वस ही िवपि क सदपयोग स शाित िमलगी | 210) त छ हािन-लाभ पर आपका धयान इतना कय रहता ह िजसस अनत आननदःवरप

आतमा पर स धयान हट जाता ह | 211) अपन अनदर ही आननद ा करना य िप किठन ह परनत बा िवषय स आननद

ा करना तो अस भव ही ह |

212) म ससार का काश ह | काश क रप म म ही सब वःतओ म या ह | िनतय इन

िवचार का िचनतन करत रहो | य पिवऽ िवचार आपको परम पिवऽ बना दग | 213) जो वःत कमर स ा होती ह उसक िलय ससार की सहायता तथा भिवय की आशा की आवयकता होती ह परनत जो वःत तयाग स ा होती ह उसक िलय न ससार की सहायता चािहय न भिवय की आशा | 214) आपको जब तक बाहर चोर िदखता ह तब तक जरर भीतर चोर ह | जब दसर लोग

स िभनन अयो य खराब सधारन यो य िदखत ह तब तक ओ सधार का बीड़ा उठान वाल त अपनी िचिकतसा कर | 215) सफल व ही होत ह जो सदव नतमःतक एव सननमख रहत ह | िचनतातर-शोकातर लोग की उननित नही हो सकती | तयक कायर को िह मत व शाित स करो | िफर दखो िक यह

कायर शरीर मन और बि स हआ | म उन सबको स ा दनवाला चतनयःवरप ह | ॐ ॐ का पावन गान करो | 216) िकसी भी पिरिःथित म मन को यिथत न होन दो | आतमा पर िव ास करक

आतमिन बन जाओ | िनभरयता आपकी दासी बन कर रहगी | 217) सतसग स मनय को साधना ा होती ह चाह वह शाित क रप म हो चाह मि क

रप म चाह सवा क रप म हो म क रप म हो चाह तयाग क रप म हो | 218) भला-बरा वही दखता ह िजसक अनदर भला-बरा ह | दसर क शरीर को वही दखता ह

जो खद को शरीर मानता ह | 219) खबरदार आपन यिद अपन शरीर क िलय ऐश-आराम की इ छा की िवलािसता एव इिनिय-सख म अपना समय बरबाद िकया तो आपकी खर नही | ठ क स कायर करत रहन की नीित

अपनाओ | सफलता का पहला िस ात ह कायरिवौामरिहत कायरसा ी भाव स कायर | इस

िस ात को जीवन म चिरताथर करोग तो पता चलगा िक छोटा होना िजतना सरल ह उतना ही बड़ा होना भी सहज ह | 220) भतकाल पर िखनन हए िबना भिवय की िचनता िकय िबना व रमान म कायर करो | यह भाव आपको हर अवःथा म सनन रखगा हम जो कछ ा ह उसका सदपयोग ही अिधक

काश पान का साधन ह |

221) जब आप सफलता की ओर पीठ कर लत हो पिरणाम की िचनता का तयाग कर दत

हो स मख आय हए क र य पर अपनी उ ोगशि एकाम करत हो तब सफलता आपक पीछ-पीछ

आ जाती ह | अतः सफलता आपको खोजगी | 222) वि तब तक एकाम नही होगी जब तक मन म कभी एक आशा रहगी तो कभी दसरी | शात वही हो सकता ह िजस कोई क र य या आवयकता घसीट न रही हो | अतः परम शाित पान

क िलय जीवन की आशा भी तयाग कर मन ाननद म डबो दो | आज स समझ लो िक यह शरीर ह ही नही | कवल ाननद का सागर लहरा रहा ह | 223) िजसकी पककी िन ा ह िक म आतमा हrsquo उसक िलय ऐसी कौन सी मिथ ह जो खल

न सक ऐसी कोई ताकत नही जो उसक िवर जा सक | 224) मर भा य म नही थाई र की मज आजकल सतसग ा नही होताजगत

खराब ह ऐस वचन हमारी कायरता व अनतःकरण की मिलनता क कारण िनकलत ह | अतः नकारातमक ःवभाव और दसर पर दोषारोपण करन की वि स बचो | 225) आप जब भीतरवाल स नाराज होत हो तब जगत आपस नाराज रहता ह | जब आप

भीतर अनतयारमी बन बठ तो जगतरपी पतलीघर म िफर गड़बड़ कसी 226) िजस ण हम ससार क सधारक बन खड़ होत ह उसी ण हम ससार को िबगाड़नवाल बन जात ह | श परमातमा को दखन क बजाय जगत को िबगड़ा हआ दखन की ि बनती ह | सधारक लोग मानत ह िक lsquoभगवान न जो जगत बनाया ह वह िबगड़ा हआ ह और हम उस सधार रह ह |rsquo वाह वाह धनयवाद सधारक अपन िदल को सधारो पहल | सवरऽ िनरजन का दीदार करो | तब आपकी उपिःथित माऽ स आपकी ि माऽ स अर यार आपको छकर बहती हवा माऽ स अननत जीव को शाित िमलगी और अननत सधार होगा | नानक कबीर महावीर ब और लीलाशाह बाप जस महापरष न यही कजी अपनायी थी | 227) वदानत म हमशा कमर का अथर होता ह वाःतिवक आतमा क साथ एक होकर च ा करना अिखल िव क साथ एकःवर हो जाना | उस अि तीय परम ततव क साथ िनःःवाथर सयोग ा करना ही एकमाऽ स चा कमर ह बाकी सब बोझ की गठिरया उठाना ह |

228) अपनी व रमान अवःथा चाह कसी भी हो उसको सव च मानन स ही आपक दय म आतम ान ान का अनायास उदय होन लगगा | आतम-सा ातकार को मील दर की कोई चीज समझकर उसक पीछ दौड़ना नही ह िचिनतत होना नही ह |

िचनता की गठरी उठाकर यिथत होन की जररत नही ह | िजस ण आप िनि नतता म गोता मारोग उसी ण आपका आतमःवरप गट हो जायगा | अर गट कया होगा आप ःवय आतमःवरप हो ही | अनातमा को छोड़ दो तो आतमःवरप तो हो ही | 229) सदा ॐकार का गान करो | जब भय व िचनता क िवचार आय तब िकसी मःत सत-फकीर महातमा क सािननधय का ःमरण करो | जब िननदा-शसा क सग आय तब महापरष क जीवन का अवलोकन करो | 230) िजनको आप भयानक घटनाए एव भयकर आघात समझ बठ हो वाःतव म व आपक ियतम आतमदव की ही करतत ह | समःत भयजनक तथा ाणनाशक घटनाओ क नाम-रप तो िवष क ह लिकन व बनी ह अमत स | 231) मन म यिद भय न हो तो बाहर चाह कसी भी भय की साममी उपिःथत हो जाय आपका कछ िबगाड़ नही सकती | मन म यिद भय होगा तो तरनत बाहर भी भयजनक पिरिःथया न होत हए भी उपिःथत हो जायगी | व क तन म भी भत िदखन लगगा | 232) िकसी भी पिरिःथित म िदखती हई कठोरता व भयानकता स भयभीत नही होना चािहए | क क काल बादल क पीछ पणर काशमय एकरस परम स ा सयर की तरह सदा िव मान ह | 233) आप अपन पर कदािप अिव ास मत करो | इस जगत म आप सब कछ कर सकत हो | अपन को कभी दबरल मत मानो | आपक अनदर तमाम शि या छपी हई ह | 234) यिद कोई मन य आपकी कोई चीज़ को चरा लता ह तो ड़रत कय हो वह मनय

और आप एक ह | िजस चीज़ को वह चराता ह वह चीज़ आपकी और उसकी द न की ह | 235) जो खद क िसवाय दसरा कछ दखता नही सनता नही जानता नही वह अननत ह |

जब तक खद क िसवाय और िकसी वःत का भान होता ह वह वःत स ची लगती ह तब तक आप

सीिमत व शात ह असीम और अनत नही |

236) ससार मझ कया आनद द सकता ह स पणर आनद मर भीतर स आया ह | म ही स पणर आननद ह स पणर मिहमा एव स पणर सख ह | 237) जीवन की समःत आवयकताए जीवन म उपिःथत ह परनत जीवन को जब हम

बा रग म रग दत ह तब जीवन का वाःतिवक रप हम नही जान पात | 238) िननदक की िननदा स म कय मरझाऊ शसक की शसा स म कय फल िननदा स म घटता नही और शसा स म बढ़ता नही | जसा ह वसा ही रहता ह | िफर िननदा-ःतित स

खटक कसी 239) ससार व ससार की समःयाओ म जो सबस अिधक फस हए ह उनही को वदानत की सबस अिधक आवयकता ह | बीमार को ही औषिध की यादा आवयकता ह | कय जी ठ क ह न 240) जगत क पाप व अतयाचार की बात मत करो लिकन अब भी आपको जगत म पाप

िदखता ह इसिलय रोओ | 241) हम यिद जान ल िक जगत म आतमा क िसवाय दसरा कछ ह ही नही और जो कछ

िदखता ह वह ःव नमाऽ ह तो इस जगत क दःख-दािरिय पाप-प य कछ भी हम अशात नही कर सकत | 242) िव ान दाशरिनक व आचाय की धमकी तथा अनमह आलोचना या अनमित

ानी पर कोई भाव नही ड़ाल सकती | 243) ह यि रप अननत आप अपन पर पर खड़ रहन का साहस करो समःत िव का बोझ आप िखलौन की तरह उठा लोग | 244) िसह की गजरना व नरिसह की ललकार तलवार की धार व साप की फफकार तपःवी की धमकी व नयायधीश की फटकारइन सबम आपका ही काश चमक रहा ह | आप इनस

भयभीत कय होत हो उलझन कय महसस करत हो मरी िब ली मझको याऊ वाली बात कय

होन दत हो 245) ससार हमारा िसफ़र िखलोना ही ह और कछ नही | अबोध बालक ही िखलौन स

भयभीत होता ह आसि करता ह िवचारशील यि नही |

246) जब तक अिव ा दर नही होगी तब तक चोरी जआ दार यिभचार कभी बद न

ह ग चाह लाख कोिशश करो | 247) आप हमशा अदर का धयान रखो | पहल हमारा भीतरी पतन होता ह | बा पतन तो इसका पिरणाम माऽ ह | 248) तयाग स हमशा आनद िमलता ह | जब तक आपक पास एक भी चीज़ बाकी ह तब

तक आप उस चीज़ क बधन म बध रहोग | आघात व तयाघात हमशा समान िवरोधी होत ह | 249) िनि तता ही आरो यता की सबस बड़ी दवाई ह | 250) सख अपन िसर पर दख का मकट पहन कर आता ह | जो सख को अपनायगा उस

दख को भी ःवीकार करना पड़गा | 251) म (आतमा) सबका ा ह | मरा ा कोई नही | 252) हजार म स कोई एक परष भीतर स शात िच वाला रहकर बाहर स ससारी जसा यवहार कर सकता ह | 253) सतय क िलए यिद शरीर का तयाग करना पड़ तो कर दना | यही आिखरी ममता ह जो हम तोड़नी होगी | 254) भय िचनता बचनी स ऊपर उठो | आपको ान का अनभव होगा | 255) आपको कोई भी हािन नही पहचा सकता | कवल आपक खयालात ही आपक पीछ पड़ ह | 256) म का अथर ह अपन पड़ोसी तथा सपकर म आनवाल क साथ अपनी वाःतिवक अभदता का अनभव करना | 257) ओ यार अपन खोय हए आतमा को एक बार खोज लो | धरती व आसमान क शासक आप ही हो | 258) सदव सम और सनन रहना ई र की सव पिर भि ह |

259) जब तक िच म ढ़ता न आ जाय िक शा की िविधय का पालन छोड़ दन स भी दय का यथाथर भि भाव न नही होगा तब तक शा की िविधय को पालत रहो |

गर भि एक अमोघ साधना 1 जनम मरण क िवषचब स म होन का कोई मागर नही ह कया सख-दःख हषर-शोक लाभ-

हािन मान-अपमान की थ पड़ स बचन का कोई उपाय नही ह कया

हअवय ह | ह िय आतमन नाशवान पदाथ स अपना मन वािपस लाकर सदगर क

चरणकमल म लगाओ | गरभि योग का आौय लो | गरसवा ऐसा अमोघ साधन ह िजसस

व रमान जीवन आननदमय बनता ह और शा त सख क ार खलत ह |

गर सवत त नर धनय यहा | ितनक नही दःख यहा न वहा || 2 स च सदगर की की हई भि िशय म सासािरक पदाथ क वरा य एव अनासि जगाती ह

परमातमा क ित म क पप महकाती ह | 3 तयक िशय सदगर की सवा करना चाहता ह लिकन अपन ढग स | सदगर चाह उस ढग स

सवा करन को कोई ततपर नही | जो िवरला साधक गर चाह उस ढ़ग स सवा कर सकता ह उस कोई कमी नही रहती |

िन सदगर की सवा स उनकी कपा ा होती ह और उस कपा स न िमल सक ऐसा तीन लोक म कछ भी नही ह | 4 गर िशय का स बनध पिवऽतम स बनध ह | ससार क तमाम बनधन स छड़ाकर वह मि क मागर पर ःथान कराता ह | यह स बनध जीवनपयरनत का स बनध ह | यह बात अपन दय की डायरी म सवणर-अ र स िलख लो | 5 उ ल सयर क काश क अिःततव को मान या न मान िफर भी सयर हमशा काशता ह | चचल मन का मनय मान या न मान लिकन सदगर की परमक याणकारी कपा सदव बरसती ही रहती ह | 6 सदगर की चरणरज म ःनान िकय िबना कवल किठन तप यार करन स या वद का

अधयन करन स वदानत का रहःय कट नही होता आतमानद का अमत नही िमलता | 7 दशरन शा क चाह िकतन मनथ पढ़ो हजार वष तक िहमालय की गफा म तप करो वष तक ाणायाम करो जीवनपयरनत शीषारसन करो समम िव म वास करक याखान दो िफर भी सदगर की कपा क िबना आतम ान नही होता | अतः िनरािभमानी सरल िनजाननद म मःत दयाल ःवभाव क आतम-सा ातकारी सदगर क चरण म जाओ | जीवन को धनय बनाओ | 8 सदगर की सवा िकय िबना शा का अधयन करना मम साधक क िलय समय बरबाद करन क बराबर ह | 9 िजसको सदगर ा हए ह ऐस िशय क िलय इस िव म कछ भी अा य नही ह | सदगर िशय को िमली हई परमातमा की अम य भट ह | अर नहीhellipनही व तो िशय क सम साकार रप म कट हए परमातमा ःवय ह | 10 सदगर क साथ एक ण िकया हआ सतसग लाख वष क तप स अननत गना ौ ह | आख क िनमषमाऽ म सदगर की अमतवष ि िशय क जनम-जनम क पाप को जला सकती ह | 11 सदगर जसा मपणर कपाल िहतिचनतक िव भर म दसरा कोई नही ह | 12 बाढ़ क समय याऽी यिद तफानी नदी को िबना नाव क पार कर सक तो साधक भी िबना सदगर क अपन जीवन क आिखरी लआय को िस कर सकता ह | यानी य दोन बात स भव ह |

अतः यार साधक मनमखी साधना की िज करना छोड़ दो | गरमखी साधना करन म ही सार ह | 13 सदगर क चरणकमल का आौय लन स िजस आननद का अनभव होता ह उसक आग िऽलोकी का साा य त छ ह | 14 आतम-सा ातकार क मागर म सबस महान शऽ अहभाव का नाश करन क िलए सदगर की आ ा का पालन अमोघ श ह | 15 रसोई सीखन क िलय कोई िसखानवाला चािहय िव ान और गिणत सीखन क िलय

अधयापक चािहय तो कया िव ा सदगर क िबना ही सीख लोग 16 सदगरकपा की स पि जसा दसरा कोई खजाना िव भर म नही | 17 सदगर की आ ा का उ लघन करना यह अपनी क खोदन क बराबर ह | 18 सदगर क कायर को शका की ि स दखना महापातक ह | 19 गरभि व गरसवा - य साधनारपी नौका की दो पतवार ह | उनकी मदद स िशय ससारसागर को पार कर सकता ह | 20 सदगर की कसौटी करना असभव ह | एक िववकाननद ही दसर िववकाननद को पहचान सकत ह | ब को जानन क िलय दसर ब की आवयकता रहती ह | एक रामतीथर का रहःय दसर रामतीथर ही पा सकत ह |

अतः सदगर की कसौटी करन की च ा छोड़कर उनको पिरपणर पर परमातमा मानो |

तभी जीवन म वाःतिवक लाभ होगा | 21 गरभि योग का आौय लकर आप अपनी खोई हई िद यता को पनः ा करो सख-दःख जनम-मतय आिद सब न स पार हो जाओ | 22 गरभि योग मान गर की सवा क ारा मन और िवकार पर िनयऽण एव पनः सःकरण | 23 िशय अपन गर क चरणकमल म णाम करता ह | उन पर ौ फल की वषार करक उनकी ःतित करता ह ldquoह परम प य पिवऽ गरदव मझ सव च सख ा हआ ह | म िन ा स जनम-मतय की पर परा स म हआ ह | म िनिवरक प समािध का श सख भोग रहा ह | जगत क िकसी भी कोन म म म ता स िवचरण कर सकता ह | सब पर मरी सम ि ह | मन ाकत मन का तयाग िकया ह | मन सब सक प एव रिच-अरिच का तयाग िकया ह | अब म अख ड शाित म िवौाित पा रहा ह hellip आननदमय हो रहा ह | म इस पणर अवःथा का वणरन नही कर पाता | ह प य गरदव म आवाक बन गया ह | इस दःतर भवसागर को पार करन म आपन

मझ सहायता की ह | अब तक मझ कवल अपन शरीर म ही स पणर िव ास था | मन िविभनन योिनय म अस य जनम िलय | ऐसी सव च िनभरय अवःथा मझ कौन स पिवऽ कम क कारण ा हई ह यह म नही जानता | सचमच यह एक दलरभ भा य ह |

यह एक महान उतक लाभ ह | अब म आननद स नाचता ह | मर सब दःख न हो गय | मर सब मनोरथ पणर हए ह |

मर कायर स पनन हए ह | मन सब वािछत वःतए ा की ह | मरी इ छा पिरपणर हई ह | आप मर स च माता-िपता हो | मरी व रमान िःथित म म दसर क सम िकस कार कट कर सक सवरऽ सख और आननद का अननत सागर मझ लहराता हआ िदख रहा ह | मर अतःच िजसस खल गय वह महावाकय lsquoत वमिसrsquo ह | उपिनषद एव वदानतसऽ को भी धनयवाद | िजनह न िन गर का एव उपिनषद क महावाकय का रप धारण िकया ह | ऐस ौी यासजी को णाम ौी शकराचायर को णाम सासािरक मनय क िसर पर गर क चरणामत का एक िबनद भी िगर तो भी उसक ःब दःख का नाश होता ह | यिद एक िन परष को व पहनाय जाय तो सार िव को व पहनान एव भोजन करवान क बराबर ह कय िक िन परष सचराचर िव म या ह | सबम व ही ह |rdquo

ॐhellip ॐ hellip ॐ hellip

ःवामी िशवानद जी

ौी राम-विश सवाद ौी विश जी कहत ह ldquoह रघकलभषण ौी राम अनथर ःवरप िजतन सासािरक पदाथर ह व सब जल म तरग क समान िविवध रप धारण करक चमतकार उतपनन करत ह अथारत ई छाए उतपनन करक जीव को मोह म फसात ह | परत जस सभी तरग जल ःवरप ही ह उसी कार सभी पदाथर वःततः न र ःवभाव वाल ह |

बालक की क पना स आकाश म य और िपशाच िदखन लगत ह परनत बि मान मनय क िलए उन य और िपशाच का कोई अथर नही | इसी कार अ ानी क िच म यह जगत सतय हो ऐसा लगता ह जबिक हमार जस ािनय क िलय यह जगत कछ भी नही | यह समम िव पतथर पर बनी हई पतिलय की सना की तरह रपालोक तथा अतर-बा िवषय स शनय ह | इसम सतयता कसी परनत अ ािनय को यह िव सतय लगता ह |rdquo विश जी बोल ldquoौी राम जगत को सतय ःवरप म जानना यह ाित ह मढ़ता ह | उस िमथया अथारत कि पत समझना यही उिचत समझ ह | ह राघव तव ा अहता आिद सब िवम-िवलास शात िशवःवरप श ःवरप ही ह | इसिलय मझ तो क अितिर और कछ भी नही िदखता | आकाश म जस जगल नही वस ही म जगत नही ह | ह राम ार ध वश ा कम स िजस परष की च ा कठपतली की तरह ई छाशनय और याकलतारिहत होती ह वह शानत मनवाला परष जीवनम मिन ह | ऐस जीवनम ानी को इस

जगत का जीवन बास की तरह बाहर-भीतर स शनय रसहीन और वासना-रिहत लगता ह | इस य पच म िजस रिच नही दय म िचनमाऽ अ य ही अ छा लगता ह ऐस परष न

भीतर तथा बाहर शािनत ा कर ली ह और इस भवसागर स पार हो गया ह | रघनदन श व ा कहत ह िक मन का ई छारिहत होना यही समािध ह कय िक ई छाओ का तयाग करन स मन को जसी शािनत िमलती ह ऐसी शािनत सकड़ उपदश स भी नही िमलती | ई छा की उतपि स जसा दःख ा होता ह ऐसा दःख तो नरक म भी नही | ई छाओ की शािनत

स जसा सख होता ह ऐसा सख ःवगर तो कया लोक म भी नही होता | अतः समःत शा तपःया यम और िनयम का िनचोड़ यही ह िक ई छामाऽ दःखदायी ह और ई छा का शमन मो ह | ाणी क दय म जसी-जसी और िजतनी-िजतनी ई छाय उतपनन होती ह उतना ही दख स वह

ड़रता रहता ह | िववक-िवचार ारा ई छाय जस-जस शानत होती जाती ह वस-वस दखरपी छत की बीमारी िमटती जाती ह |

आसि क कारण सासािरक िवषय की ई छाय य - य गहनीभत होती जाती ह तय -तय

दःख की िवषली तरग बढ़ती जाती ह | अपन परषाथर क बल स इस ई छारपी यािध का उपचार यिद नही िकया जाय तो इस यािध स छटन क िलय अनय कोई औषिध नही ह ऐसा म ढ़तापवरक

मानता ह | एक साथ सभी ई छाओ का स पणर तयाग ना हो सक तो थोड़ी-थोड़ी ई छाओ का धीर-धीर तयाग

करना चािहय परत रहना चािहय ई छा क तयाग म रत कय िक सनमागर का पिथक दखी नही होता | जो नराधम अपनी वासना और अहकार को ीण करन का य नही करता वह िदन -िदन अपन

को रावण की तरह अधर कऐ म ढ़कल रहा ह | ई छा ही दख की जनमदाऽी इस ससाररपी बल का बीज ह | यिद इस बीज को आतम ानरपी अि न स ठ क-ठ क जला िदया तो पनः यह अकिरत नही होता | रघकलभषण राम ई छामाऽ ससार ह और ई छाओ का अभाव ही िनवारण ह | अतः अनक कार की माथाप ची म ना पड़कर कवल ऐसा य करना चािहय िक ई छा उतपनन ना हो | अपनी बि स ई छा का िवनाश करन को जो ततपर नही ऐस अभाग को शा और गर का उपदश

भी कया करगा जस अपनी जनमभमी जगल म िहरणी की मतय िनि त ह उसी कार अनकिवध दख का िवःतार कारनवाल ई छारपी िवषय-िवकार स य इस जगत म मनय की मतय िनि त ह | यिद मानव ई छाओ क कारण ब च -सा मढ़ ना बन तो उस आतम ान क िलय अ प य ही करना पड़ | इसिलय सभी कार स ई छाओ को शानत करना चािहय | ई छा क शमन स परम पद की ाि होती ह | ई छारिहत हो जाना यही िनवारण ह और ई छाय

होना ही बधन ह | अतः यथाशि ई छा को जीतना चािहय | भला इतना करन म कया किठनाई ह जनम जरा यािध और मतयरपी कटीली झािड़य और खर क व - समह की जड़ भी ई छा ही ह

| अतः शमरपी अि न स अदर-ही-अदर बीज को जला ड़ालना चािहय| जहा ई छाओ का अभाव ह

वहा मि िनि त ह |

िववक वरा य आिद साधन स ई छा का सवरथा िवनाश करना चािहय | ई छा का सबध जहा-जहा ह वहा-वहा पाप प य दखरािशया और ल बी पीड़ाओ स य बधन को हािज़र ही समझो | परष

की आतिरक ई छा य - य शानत होती जाती ह तय -तय मो क िलय उसका क याणकारक

साधन बढ़ता जाता ह | िववकहीन ई छा को पोसना उस पणर करना यह तो ससाररपी िवष व को पानी स सीचन क समान ह |rdquo

- ौीयोगविश महारामायण

आतमबल का आवाहन कया आप अपन-आपको दबरल मानत हो लघतामथी म उलझ कर पिरिःतिथय स िपस रह हो

अपना जीवन दीन-हीन बना बठ हो hellipतो अपन भीतर सष आतमबल को जगाओ | शरीर चाह ी का हो चाह परष का कित क साा य म जो जीत ह व सब ी ह और कित क बनधन स पार अपन ःवरप की पहचान िजनह न कर ली ह अपन मन की गलामी की बिड़या तोड़कर िजनह न फ क दी ह व परष ह | ी या परष शरीर एव मानयताए होती ह | तम तो तन-मन स पार िनमरल आतमा हो | जागोhellipउठोhellipअपन भीतर सोय हय िन यबल को जगाओ | सवरदश सवरकाल म सव म

आतमबल को िवकिसत करो | आतमा म अथाह सामथयर ह | अपन को दीन-हीन मान बठ तो िव म ऐसी कोई स ा नही जो त ह ऊपर उठा सक | अपन आतमःवरप म िति त हो गय तो िऽलोकी म ऐसी कोई हःती नही जो त ह दबा सक | भौितक जगत म वाप की शि ईलकशोिनक शि िव त की शि गरतवाकषरण की शि बड़ी मानी जाती ह लिकन आतमबल उन सब शि य का सचालक बल ह | आतमबल क सािननधय म आकर पग ार ध को पर िमल जात ह दव की दीनता पलायन हो जाती ह ितकल पिरिःतिथया अनकल हो जाती ह | आतमबल सवर िरि -िसि य का िपता ह |

आतमबल कस जगाय हररोज़ तःकाल ज दी उठकर सय दय स पवर ःनानािद स िनवत हो जाओ | ःव छ पिवऽ ःथान

म आसन िबछाकर पवारिभमख होकर प ासन या सखासन म बठ जाओ | शानत और सनन वि

धारण करो | मन म ढ भावना करो िक म कित-िनिमरत इस शरीर क सब अभाव को पार करक सब

मिलनताओ-दबरलताओ स िप ड़ छड़ाकर आतमा की मिहमा म जागकर ही रहगा |

आख आधी खली आधी बद रखो | अब फ़फ़ड़ म खब ास भरो और भावना करो की ास क साथ

म सयर का िद य ओज भीतर भर रहा ह | ास को यथाशि अनदर िटकाय रखो | िफ़र lsquoॐhelliprsquo का ल बा उ चारण करत हए ास को धीर-धीर छोड़त जाओ | ास क खाली होन क बाद तरत ास ना लो | यथाशि िबना ास रहो और भीतर ही भीतर lsquoहिर ॐhelliprsquo lsquoहिर ॐhelliprsquo का मानिसक

जाप करो | िफ़र स फ़फ़ड़ म ास भरो | पव रीित स ास यथाशि अनदर िटकाकर बाद म धीर-धीर छोड़त हए lsquoॐhelliprsquo का गजन करो | दस-पिह िमनट ऐस ाणायाम सिहत उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo की धविन करक शानत हो जाओ | सब

यास छोड़ दो | वि य को आकाश की ओर फ़लन दो | आकाश क अनदर पथवी ह | पथवी पर अनक दश अनक समि एव अनक लोग ह | उनम स एक

आपका शरीर आसन पर बठा हआ ह | इस पर य को आप मानिसक आख स भावना स दखत

रहो | आप शरीर नही हो बि क अनक शरीर दश सागर पथवी मह न ऽ सयर चनि एव पर ा ड़ क

ा हो सा ी हो | इस सा ी भाव म जाग जाओ | थोड़ी दर क बाद िफ़र स ाणायाम सिहत lsquoॐhelliprsquo का जाप करो और शानत होकर अपन िवचार को दखत रहो | इस अवःथा म ढ़ िन य करो िक lsquoम जसा चहता ह वसा होकर रहगा |rsquo िवषयसख स ा धन-

दौलत इतयािद की इ छा न करो कय िक िन यबल या आतमबलरपी हाथी क पदिच म और सभी क पदिच समािव हो ही जायग | आतमानदरपी सयर क उदय होन क बाद िम टी क तल क दीय क ाकाश रपी शि सखाभास की गलामी कौन कर

िकसी भी भावना को साकार करन क िलय दय को करद ड़ाल ऐसी िन यातमक बिल वि होनी आवशयक ह | अनतःकरण क गहर-स-गहर दश म चोट कर ऐसा ाण भरक िन बल का आवाहन करो | सीना तानकर खड़ हो जाओ अपन मन की दीन-हीन दखद मानयताओ को कचल

ड़ालन क िलय | सदा ःमरण रह की इधर-उधर भटकती वि य क साथ त हारी शि भी िबखरती रहती ह | अतः वि य को बहकाओ नही | तमाम वि य को एकिऽत करक साधनाकाल म आतमिचनतन म लगाओ और यवहारकाल म जो कायर करत हो उसम लगाओ | द िच होकर हरक कायर करो | अपन ःवभाव म स आवश को सवरथा िनमरल कर दो | आवश म आकर कोई िनणरय मत लो कोई िबया मत करो | सदा शानत वि धारण करन का अ यास करो | िवचारशील एव सनन रहो | ःवय अचल रहकर सागर की तरह सब वि य की तरग को अपन

भीतर समालो | जीवमाऽ को अपना ःवरप समझो | सबस ःनह रखो | िदल को यापक रखो | सकिच ता का िनवारण करत रहो | ख ड़ातमक वि का सवरथा तयाग करो | िजनको ानी महापरष का सतसग और अधयातमिव ा का लाभ िमल जाता ह उसक जीवन स

दःख िवदा होन लगत ह | ॐ आननद आतमिन ा म जाग हए महापरष क सतसग एव सतसािहतय स जीवन को भि और वदात स प

एव पलिकत करो | कछ ही िदन क इस सघन योग क बाद अनभव होन लगगा िक भतकाल क

नकारतमक ःवभाव सशयातमक-हािनकारक क पनाओ न जीवन को कचल ड़ाला था िवषला कर िदया था | अब िन यबल क चमतकार का पता चला | अततरम म आिवरभत िद य खज़ाना अब

िमला | ार ध की बिड़या अब टटन लगी | ठ क ह न करोग ना िह मत पढ़कर रख मत दना इस पिःतका को | जीवन म इसको बार-बार पढ़त रहो | एक िदन म यह पणर ना होगा | बार-बार अ यास करो | त हार िलय यह एक ही पिःतका काफ़ी ह | अनय कचराप टी ना पड़ोग तो चलगा | शाबाश वीर शाबाश

  • परसतावना
  • जीवन रसायन
  • गर भकति एक अमोघ साधना
  • शरी राम-वशिषठ सवाद
  • आतमबल का आवाहन
  • आतमबल कस जगाय
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ह | वह जब सवर ािणय म एक अख ड स ा का अनभव करन लगगा ािणमाऽ को भ का पऽ समझकर उस आतमभाव स यार करगा तब उस साधक क दय म शोक और मोह का नामोिनशान नही रह जायगा | वह सदा सनन रहगा | ससार म उसक िलय न ही कोई शऽ रहगा और न ही कोई िमऽ | उसको कोई कलश नही पहचायगा | उसक सामन िवषधर नाग भी अपना ःवभाव भल जायगा | 87) िजसको अपन ाण की परवाह नही मतय का नाम सनकर िवचिलत न होकर उसका ःवागत करन क िलए जो सदा ततपर ह उसक िलए ससार म कोई कायर असाधय नही | उस िकसी बा श की जररत नही साहस ही उसका श ह | उस श स वह अनयाय का प लनवाल को परािजत कर दता ह िफर भी उनक िलए बर िवचार का सवन नही करता | 88) िचनता ही आननद व उ लास का िवधवस करनवाली रा सी ह | 89) कभी-कभी मधयरािऽ को जाग जाओ | उस समय इिनिया अपन िवषय क ित चचल नही रहती | बिहमरख ःफरण की गित मनद होती ह | इस अवःथा का लाभ लकर इिनियातीत अपन िचदाकाश ःवरप का अनभव करो | जगत शरीर व इिनिय क अभाव म भी अपन अख ड अिःततव को जानो | 90) य म ीित नही रहना ही असली वरा य ह | 91) रोग हम दबाना चाहता ह | उसस हमार िवचार भी मनद हो जात ह | अतः रोग की िनवित करनी चिहए | लिकन जो िवचारवान परष ह वह कवल रोगिनवित क पीछ ही नही लग जाता | वह तो यह िनगरानी रखता ह िक भयकर दःख क समय भी अपना िवचार छट तो नही गया ऐसा परष lsquoहाय-हायrsquo करक ाण नही तयागता कय िक वह जानता ह िक रोग उसका दास ह | रोग कसा भी भय िदखाय लिकन िवचारवान परष इसस भािवत नही होता | 92) िजस साधक क पास धारणा की ढ़ता एव उ य की पिवऽता य दो गण ह ग वह अवय िवजता होगा | इन दो शा स ससि जत साधक समःत िव न-बाधाओ का सामना करक आिखर म िवजयपताका फहरायगा | 93) जब तक हमार मन म इस बात का पकका िन य नही होगा िक सि शभ ह तब तक मन एकाम नही होगा | जब तक हम समझत रहग िक सि िबगड़ी हई ह तब तक

मन सशक ि स चार ओर दौड़ता रहगा | सवरऽ मगलमय ि रखन स मन अपन-आप शात होन लगगा | 94) आसन िःथर करन क िलए सक प कर िक जस पथवी को धारण करत हए भी शषजी िब कल अचल रहत ह वस म भी अचल रहगा | म शरीर और ाण का ा ह | 95) lsquoससार िमथया हrsquo - यह मद ानी की धारणा ह | lsquoससार ःव नवत हrsquo - यह मधयम ानी की धारणा ह | lsquoससार का अतयनत अभाव ह ससार की उतपि कभी हई ही नहीrsquo -

यह उ म ानी की धारणा ह | 96) आप यिद भि मागर म ह तो सारी सि भगवान की ह इसिलए िकसीकी भी िननदा करना ठ क नही | आप यिद ानमागर म ह तो यह सि अपना ही ःवरप ह | आप अपनी ही िननदा कस कर सकत ह इस कार द नो माग म परिननदा का अवकाश ही नही ह | 97) य म ा का भान एव ा म य का भान हो रहा ह | इस गड़बड़ का नाम ही अिववक या अ ान ह | ा को ा तथा य को य समझना ही िववक या ान ह | 98) आसन व ाण िःथर होन स शरीर म िव त पदा होती ह | शरीर क ारा जब भी िबया की जाती ह तब वह िव त बाहर िनकल जाती ह | इस िव त को शरीर म रोक लन स शरीर िनरोगी बन जाता ह | 99) ःव न की सि अ पकालीन और िविचऽ होती ह | मनय जब जागता ह तब जानता ह िक म पलग पर सोया ह | मझ ःव न आया | ःव न म पदाथर दश काल िबया इतयािद परी सि का सजरन हआ | लिकन मर िसवाय और कछ भी न था | ःव न की सि झठ थी | इसी कार ततव ानी परष अ ानरपी िनिा स ानरपी जामत अवःथा को ा हए ह | व कहत ह िक एक क िसवा अनय कछ ह ही नही | जस ःव न स जागन क बाद हम ःव न की सि िमथया लगती ह वस ही ानवान को यह जगत िमथया लगता ह | 100) शारीिरक क पड़ तब ऐसी भावना हो जाय िक lsquoयह क मर यार भ की ओर स हhelliprsquo तो वह क तप का फल दता ह | 101) चलत-चलत पर म छाल पड़ गय ह भख याकल कर रही हो बि िवचार

करन म िशिथल हो गई हो िकसी पड़ क नीच पड़ ह जीवन अस भव हो रहा हो मतय का आगमन हो रहा हो तब भी अनदर स वही िनभरय धविन उठ lsquoसोऽहमhellipसोऽहमhellipमझ भय नहीhellipमरी मतय नहीhellipमझ भख नहीhellip यास नहीhellip कित की कोई भी यथा मझ न नही कर सकतीhellipम वही हhellipवही हhelliprsquo 102) िजनक आग िय-अिय अनकल-ितकल सख-दःख और भत-भिवय एक समान ह ऐस ानी आतमव ा महापरष ही स च धनवान ह | 103) दःख म दःखी और सख म सखी होन वाल लोह जस होत ह | दःख म सखी रहन वाल सोन जस होत ह | सख-दःख म समान रहन वाल र जस होत ह परनत जो सख-दःख की भावना स पर रहत ह व ही स च साट ह | 104) ःव न स जाग कर जस ःव न को भल जात ह वस जामत स जागकर थोड़ी दर क

िलए जामत को भल जाओ | रोज ातः काल म पनिह िमनट इस कार ससार को भल जान की आदत डालन स आतमा का अनसधान हो सकगा | इस योग स सहजावःथा ा होगी | 105) तयाग और म स यथाथर ान होता ह | दःखी ाणी म तयाग व म िवचार स आत ह

| सखी ाणी म तयाग व म सवा स आत ह कय िक जो ःवय दःखी ह वह सवा नही कर सकता पर िवचार कर सकता ह | जो सखी ह वह सख म आस होन क कारण उसम िवचार का उदय नही हो सकता लिकन वह सवा कर सकता ह | 106) लोग की पजा व णाम स जसी सननता होती ह वसी ही सननता जब मार पड़

तब भी होती हो तो ही मन य िभ ानन महण करन का स चा अिधकारी माना जाता ह | 107) हरक साधक को िब कल नय अनभव की िदशा म आग बढ़ना ह | इसक िलय

ानी महातमा की अतयनत आवयकता होती ह | िजसको स ची िज ासा हो उस ऐस

महातमा िमल ही जात ह | ढ़ िज ासा स िशय को गर क पास जान की इ छा होती ह | यो य

िज ास को समथर गर ःवय दशरन दत ह | 108) बीत हए समय को याद न करना भिवय की िचनता न करना और व रमान म ा

सख-दःखािद म सम रहना य जीवनम परष क ल ण ह | 109) जब बि एव दय एक हो जात ह तब सारा जीवन साधना बन जाता ह |

110) बि मान परष ससार की िचनता नही करत लिकन अपनी मि क बार म सोचत ह |

मि का िवचार ही तयागी दानी सवापरायण बनाता ह | मो की इ छा स सब सदगण आ जात ह

| ससार की इ छा स सब दगरण आ जात ह | 111) पिरिःथित िजतनी किठन होती ह वातावरण िजतना पीड़ाकारक होता ह उसस

गजरन वाला उतना ही बलवान बन जाता ह | अतः बा क और िचनताओ का ःवागत करो | ऐसी पिरिःथित म भी वदानत को आचरण म लाओ | जब आप वदानती जीवन यतीत करग तब दखग

िक समःत वातावरण और पिरिःथितया आपक वश म हो रही ह आपक िलय उपयोगी िस हो रही ह | 112) हरक पदाथर पर स अपन मोह को हटा लो और एक सतय पर एक तथय पर अपन

ई र पर समम धयान को किनित करो | तरनत आपको आतम-सा ातकार होगा | 113) जस बड़ होत-होत बचपन क खलकद छोड़ दत हो वस ही ससार क खलकद छोड़कर आतमाननद का उपभोग करना चािहय | जस अनन व जल का सवन करत हो वस ही आतम-

िचनतन का िनरनतर सवन करना चािहय | भोजन ठ क स होता ह तो ति की डकार आती ह वस

ही यथाथर आतमिचनतन होत ही आतमानभव की डकार आयगी आतमाननद म मःत ह ग |

आतम ान क िसवा शाित का कोई उपाय नही | 114) आतम ानी क हकम स सयर काशता ह | उनक िलय इनि पानी बरसाता ह | उनही क

िलय पवन दत बनकर गमनागमन करता ह | उनही क आग समि रत म अपना िसर रगड़ता ह | 115) यिद आप अपन आतमःवरप को परमातमा समझो और अनभव करो तो आपक सब

िवचार व मनोरथ सफल ह ग उसी ण पणर ह ग | 116) राजा-महाराजा दवी-दवता वद-पराण आिद जो कछ ह व आतमदश क सक पमाऽ

ह | 117) जो लोग ितकलता को अपनात ह ई र उनक स मख रहत ह | ई र िजनह अपन

स दर रखना चाहत ह उनह अनकल पिरिःथितया दत ह | िजसको सब वःतए अनकल एव पिवऽ

सब घटनाए लाभकारी सब िदन शभ सब मनय दवता क रप म िदखत ह वही परष ततवदश ह | 118) समता क िवचार स िच ज दी वश म होता ह हठ स नही |

119) ऐस लोग स स बनध रखो िक िजसस आपकी सहनशि बढ़ समझ की शि बढ़

जीवन म आन वाल सख-दःख की तरग का आपक भीतर शमन करन की ताकत आय समता बढ़

जीवन तजःवी बन | 120) लोग बोलत ह िक धयान व आतमिचनतन क िलए हम फरसत नही िमलती | लिकन

भल मनय जब नीद आती ह तब सब महतवपणर काम भी छोड़कर सो जाना पड़ता ह िक नही

जस नीद को महतव दत हो वस ही चौबीस घनट म स कछ समय धयान व आतमिचनतन म भी िबताओ | तभी जीवन साथरक होगा | अनयथा कछ भी हाथ नही लगगा | 121) भल जाओ िक तम मनय हो अमक जाित हो अमक उ हो अमक िड़मीवाल हो अमक धनधवाल हो | तम िनगरण िनराकार सा ीरप हो ऐसा ढ़ िन य करो | इसीम तमाम

कार की साधनाए िबयाए योगािद समािव हो जात ह | आप सवर यापक अख ड चतनय हो | सार ान का यह मल ह | 122) दोष तभी िदखता जब हमार लोचन म क अभावरप पीिलया रोग स मःत होत ह | 123) साधक यिद अ यास क मागर पर उसी कार आग बढ़ता जाय िजस कार ार भ

म इस मागर पर चलन क िलए उतसाहपवरक कदम रखा था तो आयरपी सयर अःत होन स पहल

जीवनरपी िदन रहत ही अवय सोऽहम िसि क ःथान तक पहच जाय | 124) लोग ज दी स उननित कय नही करत कय िक बाहर क अिभाय एव िवचारधाराओ का बहत बड़ा बोझ िहमालय की तरह उनकी पीठ पर लदा हआ ह | 125) अपन ित होन वाल अनयाय को सहन करत हए अनयायकतार को यिद मा कर िदया जाय तो ष म म पिरणत हो जाता ह | 126) साधना की शरआत ौ ा स होती ह लिकन समाि ान स होनी चािहय | ान मान

ःवयसिहत सवर ःवरप ह ऐसा अपरो अनभव | 127) अपन शरीर क रोम-रोम म स ॐ का उ चारण करो | पहल धीम ःवर म ार भ

करो | शर म धविन गल स िनकलगी िफर छाती स िफर नािभ स और अनत म रीढ़ की ह डी क

आिखरी छोर स िनकलगी | तब िव त क धकक स सष ना नाड़ी तरनत खलगी | सब कीटाणसिहत

तमाम रोग भाग खड़ ह ग | िनभरयता िह मत और आननद का फ वारा छटगा | हर रोज ातःकाल

म ःनानािद करक सय दय क समय िकसी एक िनयत ःथान म आसन पर पवारिभमख बठकर

कम-स-कम आधा घनटा करक तो दखो | 128) आप जगत क भ बनो अनयथा जगत आप पर भतव जमा लगा | ान क

मतािबक जीवन बनाओ अनयथा जीवन क मतािबक ान हो जायगा | िफर यग की याऽा स भी दःख का अनत नही आयगा | 129) वाःतिवक िश ण का ारभ तो तभी होता ह जब मनय सब कार की सहायताओ स िवमख होकर अपन भीतर क अननत ॐोत की तरफ अमसर होता ह | 130) य पच की िनवित क िलए अनतःकरण को आननद म सरोबार रखन क िलए

कोई भी कायर करत समय िवचार करो म कौन ह और कायर कौन कर रहा ह भीतर स जवाब

िमलगा मन और शरीर कायर करत ह | म सा ीःवरप ह | ऐसा करन स कतारपन का अह

िपघलगा सख-दःख क आघात मनद ह ग | 131) राग- ष की िनवित का कया उपाय ह उपाय यही ह िक सार जगत-पच को मनोरा य समझो | िननदा-ःतित स राग- ष स पच म सतयता ढ़ होती ह | 132) जब कोई खनी हाथ आपकी गरदन पकड़ ल कोई श धारी आपको कतल करन क

िलए ततपर हो जाय तब यिद आप उसक िलए सननता स तयार रह दय म िकसी कार का भय

या िवषाद उतपनन न हो तो समझना िक आपन राग- ष पर िवजय ा कर िलया ह | जब आपकी ि पड़त ही िसहािद िहसक जीव की िहसावित गायब हो जाय तब समझना िक अब राग- ष का अभाव हआ ह | 133) आतमा क िसवाय अनय कछ भी नही ह - ऐसी समझ रखना ही आतमिन ा ह | 134) आप ःव न ा ह और यह जगत आपका ही ःव न ह | बस िजस ण यह ान हो जायगा उसी ण आप म हो जाएग | 135) िदन क चौबीस घ ट को साधनामय बनान क िलय िनक मा होकर यथर िवचार करत हए मन को बार-बार सावधान करक आतमिचतन म लगाओ | ससार म सल न मन को वहा स उठा कर आतमा म लगात रहो | 136) एक बार सागर की एक बड़ी तरग एक बलबल की िता पर हसन लगी | बलबल न

कहा ओ तरग म तो छोटा ह िफर भी बहत सखी ह | कछ ही दर म मरी दह टट जायगी िबखर

जायगी | म जल क साथ जल हो जाऊगा | वामन िमटकर िवराट बन जाऊगा | मरी मि बहत

नजदीक ह | मझ आपकी िःथित पर दया आती ह | आप इतनी बड़ी हई हो | आपका छटकारा ज दी नही होगा | आप भाग-भागकर सामनवाली च टान स टकराओगी | अनक छोटी-छोटी तरग

म िवभ हो जाओगी | उन अस य तरग म स अननत-अननत बलबल क रप म पिरवितरत हो जाओगी | य सब बलबल फटग तब आपका छटकारा होगा | बड़ पन का गवर कय करती हो जगत की उपलि धय का अिभमान करक परमातमा स दर मत जाओ | बलबल की तरह सरल

रहकर परमातमा क साथ एकता का अनभव करो | 137) जब आप ईयार ष िछिानवषण दोषारोपण घणा और िननदा क िवचार िकसीक

ित भजत ह तब साथ-ही-साथ वस ही िवचार को आमिऽत भी करत ह | जब आप अपन भाई की आख म ितनका भ कत ह तब अपनी आख म भी आप ताड़ भ क रह ह | 138) शरीर अनक ह आतमा एक ह | वह आतमा-परमातमा मझस अलग नही | म ही कतार सा ी व नयायधीश ह | म ही ककर श आलोचक ह और म ही मधर शसक ह | मर िलय तयक

यि ःवतऽ व ःव छनद ह | बनधन पिरि छननता और दोष मरी ि म आत ही नही | म म

हपरम म ह और अनय लोग भी ःवतऽ ह | ई र म ही ह | आप भी वही हो | 139) िजस कार बालक अपनी परछा म बताल की क पना कर भय पाता ह उसी कार जीव अपन ही सक प स भयभीत होता ह और क पाता ह | 140) कभी-कभी ऐसी भावना करो िक आपक सामन चतनय का एक महासागर लहरा रहा ह | उसक िकनार खड़ रह कर आप आनद स उस दख रह ह | आपका शरीर सागर की सतह पर घमन गया ह | आपक दखत ही दखत वह सागर म डब गया | इस समःत पिरिःथित को दखन वाल आप सा ी आतमा शष रहत ह | इस कार सा ी रप म अपना अनभव करो | 141) यिद हम चाहत ह िक भगवान हमार सब अपराध माफ कर तो इसक िलए सगम साधना यही ह िक हम भी अपन सबिधत सब लोग क सब अपराध माफ कर द |

कभी िकसी क दोष या अपराध पर ि न डाल कय िक वाःतव म सब रप म हमारा यारा ई दव ही बीड़ा कर रहा ह |

142) पणर पिवऽता का अथर ह बा भाव स भािवत न होना | सासािरक मनोहरता एव घणा स पर रहना राजी-नाराजगी स अिवचल िकसी म भद न दखना और आतमानभव क ारा आकषरण व तयाग स अिल रहना | यही वदानत का उपिनषद का

रहःय ह | 143) ई र सा ातकार तभी होगा जब ससार की ि स तीत होन वाल बड़-स-बड़ विरय को भी मा करन का आपका ःवभाव बन जायगा | 144) चाल यवहार म स एकदम उपराम होकर दो िमनट क िलए िवराम लो |

सोचो िक lsquo म कौन ह सद -गम शरीर को लगती ह | भख- यास ाण को लगती ह |

अनकलता-ितकलता मन को लगती ह | शभ-अशभ एव पाप-प य का िनणरय बि करती ह | म न शरीर ह न ाण ह न मन ह न बि ह | म तो ह इन सबको स ा दन वाला इन सबस नयारा िनलप आतमा |rsquo 145) जो मनय िनरतर lsquoम म हhelliprsquo ऐसी भावना करता ह वह म ही ह और lsquoम ब हhelliprsquo ऐसी भावना करनवाला ब ही ह | 146) आप िनभरय ह िनभरय ह िनभरय ह | भय ही मतय ह | भय ही पाप ह | भय ही नकर ह | भय ही अधमर ह | भय ही यिभचार ह | जगत म िजतन असत या िमथया भाव ह व सब इस भयरपी शतान स पदा हए ह | 147) परिहत क िलए थोड़ा काम करन स भी भीतर की शि या जागत होती ह |

दसर क क याण क िवचारमाऽ स दय म एक िसह क समान बल आ जाता ह | 148) हम यिद िनभरय ह ग तो शर को भी जीतकर उस पाल सक ग | यिद डरग तो क ा भी हम फ़ाड़ खायगा | 149) तयक िबया तयक यवहार तयक ाणी ःवरप िदख यही सहज समािध ह | 150) जब किठनाईया आय तब ऐसा मानना िक मझ म सहन शि बढ़ान क िलए ई र न य सयोग भज ह | किठन सयोग म िह मत रहगी तो सयोग बदलन लगग |

िवषय म राग- ष रह गया होगा तो वह िवषय कसौटी क रप म आग आयग और उनस पार होना पड़गा | 151) ततव ि स न तो आपन जनम िलया न कभी लग | आप तो अनत ह सवर यापी ह िनतयम अजर-अमर अिवनाशी ह | जनम-मतय का ही गलत ह महा-

मखरतापणर ह | जहा जनम ही नही हआ वहा मतय हो ही कस सकती ह 152) आप ही इस जगत क ई र हो | आपको कौन दबरल बना सकता ह जगत म आप ही एकमाऽ स ा हो | आपको िकसका भय खड़ हो जाओ | म हो जाओ | ठ क स समझ लो िक जो कोई िवचार या श द आपको दबरल बनाता ह वही एकमाऽ अशभ ह | मनय को दबरल व भयभीत करनवाला जो कछ इस ससार म ह वह पाप ह | 153) आप अपना कायर या कतर य करो लिकन न उसक िलए कोई िचनता रह न ही कोई

इ छा | अपन कायर म सख का अनभव करो कय िक आपका कायर ःवय सख या िवौाम ह | आपका कायर आतमानभव का ही दसरा नाम ह | कायर म लग रहो | कायर आपको आतमानभव कराता ह |

िकसी अनय हत स कायर न करो | ःवतऽ वि स अपन कायर पर डट जाओ | अपन को ःवतऽ

समझो िकसीक कदी नही | 154) यिद आप सतय क मागर स नही हटत तो शि का वाह आपक साथ ह समय आपक

साथ ह ऽ आपक साथ ह | लोग को उनक भतकाल की मिहमा पर फलन दो भिवयकाल की स पणर मिहमा आपक हाथ म ह | 155) जब आप िद य म क साथ चा डाल म चोर म पापी म अ यागत म और सबम भ क दशरन करग तब आप भगवान ौी कण क मपाऽ बन जायग | 156) आचायर गौड़पाद न ःप कहा आप सब आपस म भल ही लड़त रह लिकन मर साथ नही लड़ सक ग | आप सब लोग मर पट म ह | म आतमःवरप स सवर या ह | 157) मनय सभी ािणय म ौ ह सब दवताओ स भी ौ ह | दवताओ को भी िफर स

धरती पर आना पड़गा और मनय शरीर ा करक मि ा करनी होगी | 158) िनि नतता क दो सऽ जो कायर करना जररी ह उस परा कर दो | जो िबनजररी ह

उस भल जाओ | 159) सवा-म-तयाग ही मनय क िवकास का मल मऽ ह | अगर यह मऽ आपको जच

जाय तो सभी क ित सदभाव रखो और शरीर स िकसी-न-िकसी यि को िबना िकसी मतलब क

सहयोग दत रहो | यह नही िक जब मरी बात मानग तब म सवा करगा | अगर बनधक मरी बात

नही मानत तो म सवा नही करगा |

भाई तब तो तम सवा नही कर पाओग | तब तो तम अपनी बात मनवा कर अपन अह की पजा ही

करोग | 160) जस ःव न िमथया ह वस ही यह जामत अवःथा भी ःव नवत ही ह िमथया ह | हरक

को अपन इस ःव न स जागना ह | सदगर बार-बार जगा रह ह लिकन जाग कर वापस सो न जाए ऐसा परषाथर तो हम ही करना होगा | 161) सदा सननमख रहो | मख को कभी मिलन मत करो | िन य कर लो िक आपक

िलय शोक न इस जगत म जनम नही िलया ह | आननदःवरप म िचनता का ःथान ही कहा ह 162) समम ा ड एक शरीर ह | समम ससार एक शरीर ह | जब तक आप तयक क

साथ एकता का अनभव करत रहग तब तक सब पिरिःथितया और आस-पास की चीज़ हवा और समि की लहर भी आपक प म रहगी | 163) आपको जो कछ शरीर स बि स या आतमा स कमजोर बनाय उसको िवष की तरह

ततकाल तयाग दो | वह कभी सतय नही हो सकता | सतय तो बलद होता ह पावन होता ह

ानःवरप होता ह | सतय वह ह जो शि द | 164) साधना म हमारी अिभरिच होनी चािहय साधना की तीो माग होनी चािहय | 165) दसर क दोष की चचार मत करो चाह व िकतन भी बड़ ह | िकसी क दोष की चचार करक आप उसका िकसी भी कार भला नही करत बि क उस आघात पहचात ह और साथ-ही-साथ अपन आपको भी | 166) इस ससार को सतय समझना ही मौत ह | आपका असली ःवरप तो आननदःवरप

आतमा ह | आतमा क िसवा ससार जसी कोई चीज ही नही ह | जस सोया हआ मनय ःव न म अपनी एकता नही जानता अिपत अपन को अनक करक दखता ह वस ही आननदःवरप आतमा जामत ःव न और सषि - इन तीन ःवरप को दखत हए अपनी एकता अि तीयता का अनभव

नही करता | 167) मनोजय का उपाय ह अ यास और वरा य | अ यास मान य पवरक मन को बार-बार परमातम-िचतन म लगाना और वरा य मान मन को ससार क पदाथ की ओर स वापस

लौटाना | 168) िकसी स कछ मत मागो | दन क िलय लोग आपक पीछ-पीछ घमग | मान नही

चाहोग तो मान िमलगा | ःवगर नही चाहोग तो ःवगर क दत आपक िलय िवमान लकर आयग |

उसको भी ःवीकार नही करोग तो ई र आपको अपन दय स लगायग | 169) कभी-कभी उदय या अःत होत हए सयर की ओर चलो | नदी सरोवर या समि क तट

पर अकल घमन जाओ | ऐस ःथान की मलाकात लो जहा शीतल पवन मनद-मनद चल रही हो | वहा परमातमा क साथ एकःवर होन की स भावना क ार खलत ह | 170) आप य -ही इ छा स ऊपर उठत हो तय -ही आपका इि छत पदाथर आपको खोजन

लगता ह | अतः पदाथर स ऊपर उठो | यही िनयम ह | य - य आप इ छक िभ क याचक का भाव धारण करत हो तय -तय आप ठकराय जात हो | 171) कित क तयक पदाथर को दखन क िलय काश जररी ह | इसी कार मन बि

इिनिय को अपन-अपन कायर करन क िलय आतम-काश की आवयकता ह कय िक बाहर का कोई काश मन बि इिनिय ाणािद को चतन करन म समथर नही | 172) जस ःव न ा परष को जागन क बाद ःव न क सख-दःख जनम-मरण पाप-प य

धमर-अधमर आिद ःपशर नही करत कय िक वह सब खद ही ह | खद क िसवाय ःव न म दसरा कछ

था ही नही | वस ही जीवनम ानवान परष को सख-दःख जनम-मरण पाप-प य धमर-अधमर ःपशर नही करत कय िक व सब आतमःवरप ही ह | 173) वही भमा नामक आतम योित क म रह कर भ क रही ह सअर म रह कर घर रही ह गध म रह कर रक रही ह लिकन मखर लोग शरीर पर ही ि रखत ह चतनय ततव पर नही | 174) मनय िजस ण भत-भिवय की िचनता का तयाग कर दता ह दह को सीिमत और उतपि -िवनाशशील जानकर दहािभमान को तयाग दता ह उसी ण वह एक उ चतर अवःथा म पहच जाता ह | िपजर स छटकर गगनिवहार करत हए प ी की तरह मि का अनभव करता ह | 175) समःत भय एव िचनताए आपकी इ छाओ का णाम ह | आपको भय कय लगता ह

कय िक आपको आशका रहती ह िक अमक चीज कही चली न जाय | लोग क हाःय स आप डरत

ह कय िक आपको यश की अिभलाषा ह कीितर म आसि ह | इ छाओ को ितलाजिल द दो | िफर दखो मजा कोई िज मदारी नहीकोई भय नही | 176) दखन म अतयत करप काला-कलटा कबड़ा और तज ःवभाव का मनय भी आपका ही ःवरप ह | आप इस तथय स म नही | िफर घणा कसी कोई लाव यमयी सदरी सि की

शोभा क समान अित िवलासभरी अ सरा भी आपका ही ःवरप ह | िफर आसि िकसकी

आपकी ानिनिया उनको आपस अलग करक िदखाती ह | य इिनिया झठ बोलनवाली ह | उनका कभी िव ास मत करो | अतः सब कछ आप ही हो | 177) मानव क नात हम साधक ह | साधक होन क नात सतय को ःवीकर करना हमारा ःवधमर ह | सतय यही ह िक बल दसर क िलय ह ान अपन िलय ह और िव ास परमातमा स

स बनध जोड़न क िलय ह | 178) अपनी आतमा म डब जाना यह सबस बड़ा परोपकार ह | 179) आप सदव म ह ऐसा िव ास ढ़ करो तो आप िव क उ ारक हो जात हो | आप

यिद वदानत क ःवर क साथ ःवर िमलाकर िन य करो आप कभी शरीर न थ | आप िनतय श

ब आतमा हो तो अिखल ा ड क मो दाता हो जात हो | 180) कपा करक उन ःवाथरमय उपाय और अिभाय को दर फ क दो जो आपको पिरि छनन रखत ह | सब वासनाए राग ह | यि गत या शरीरगत म आसि ह | उस फ क दो | ःवय पिवऽ हो जाओ | आपका शरीर ःवःथ और बि पणरःवरप हो जायगी | 181) यिद ससार क सख व पदाथर ा ह तो आपको कहना चािहय ओ शतान हट जा मर सामन स | तर हाथ स मझ कछ नही चािहय | तब दखो िक आप कस सखी हो जात हो परमातमा-ा िकसी महापरष पर िव ास रखकर अपनी जीवनडोरी िनःशक बन उनक चरण म सदा क िलय रख दो | िनभरयता आपक चरण की दासी बन जायगी | 182) िजसन एक बार ठ क स जान िलया िक जगत िमथया ह और ािनत स इसकी तीित

हो रही ह उसको कभी दःख नही होता | जगत म कभी आसि नही होती | जगत क िमथयातव क

िन य का नाम ही जगत का नाश ह | 183) अपन ःवरप म लीन होन माऽ स आप ससार क साट बन जायग | यह साटपद

कवल इस ससार का ही नही समःत लोक-परलोक का साटपद होगा | 184) ह जनक चाह दवािधदव महादव आकर आपको उपदश द या भगवान िवण आकर उपदश द अथवा ाजी आकर उपदश द लिकन आपको कदािप सख न होगा | जब िवषय का तयाग करोग तभी स ची शाित व आनद ा ह ग |

185) िजस भ न हम मानव जीवन दकर ःवाधीनता दी िक हम जब चाह तब धमारतमा होकर भ होकर जीवनम होकर कतकतय हो सकत ह- उस भ की मिहमा गाओ | गाओ नही तो सनो | सनो भी नही गाओ भी नही तो ःवीकार कर लो | 186) चाह समि क गहर तल म जाना पड़ सा ात मतय का मकाबला करना पड़ अपन

आतमाि क उ य की पितर क िलय अिडग रहो | उठो साहसी बनो शि मान बनो | आपको जो बल व सहायता चािहय वह आपक भीतर ही ह | 187) जब-जब जीवन स बनधी शोक और िचनता घरन लग तब-तब अपन आननदःवरप

का गान करत-करत उस मोह-माया को भगा दो | 188) जब शरीर म कोई पीड़ा या अग म ज म हो तब म आकाशवत आकाशरिहत चतन

ह ऐसा ढ़ िन य करक पीड़ा को भल जाओ | 189) जब दिनया क िकसी चककर म फस जाओ तब म िनलप िनतय म ह ऐसा ढ़

िन य करक उस चककर स िनकल जाओ | 190) जब घर-बार स बनधी कोई किठन समःया याकल कर तब उस मदारी का खल

समझकर ःवय को िनःसग जानकर उस बोझ को ह का कर दो | 191) जब बोध क आवश म आकर कोई अपमानय वचन कह तब अपन शाितमय

ःवरप म िःथर होकर मन म िकसी भी ोभ को पदा न होन दो | 192) उ म अिधकारी िज ास को चािहय िक वह व ा सदगर क पास जाकर ौ ा पवरक महावाकय सन | उसका मनन व िनिदधयासन करक अपन आतमःवरप को जान | जब

आतमःवरप का सा ातकार होता ह तब ही परम िवौािनत िमल सकती ह अनयथा नही | जब तक

व ा महापरष स महावाकय ा न हो तब तक वह मनद अिधकारी ह | वह अपन दयकमल म परमातमा का धयान कर ःमरण कर जप कर | इस धयान-जपािद क साद स उस व ा सदगर

ा ह ग | 193) मन बि िच अहकार छाया की तरह जड़ ह णभगर ह कय िक व उतपनन होत

ह और लीन भी हो जात ह | िजस चतनय की छाया उसम पड़ती ह वह परम चतनय सबका आतमा ह | मन बि िच अहकार का अभाव हो जाता ह लिकन उसका अनभव करनवाल का अभाव

कदािप नही होता |

194) आप अपनी शि को उ चाितउ च िवषय की ओर बहन दो | इसस आपक पास व

बात सोचन का समय ही नही िमलगा िजसस कामकता की गध आती हो | 195) अपराध क अनक नाम ह बालहतया नरहतया मातहतया गौहतया इतयािद |

परनत तयक ाणी म ई र का अनभव न करक आप ई रहतया का सबस बड़ा अपराध करत ह | 196) सवा करन की ःवाधीनता मनयमाऽ को ा ह | अगर वह करना ही न चाह तो अलग बात ह | सवा का अथर ह मन-वाणी-कमर स बराईरिहत हो जाना यह िव की सवा हो गई |

यथाशि भलाई कर दो यह समाज की सवा हो गई | भलाई का फल छोड़ दो यह अपनी सवा हो गई

| भ को अपना मानकर ःमित और म जगा लो यह भ की सवा हो गई | इस कार मनय

अपनी सवा भी कर सकता ह समाज की सवा भी कर सकता ह िव की सवा भी कर सकता ह

और िव र की सवा भी कर सकता ह | 197) आतमा स बाहर मत भटको अपन कनि म िःथर रहो अनयथा िगर पड़ोग | अपन-

आपम पणर िव ास रखो | आतम-कनि पर अचल रहो | िफर कोई भी चीज आपको िवचिलत नही कर सकती | 198) सदा शात िनिवरकार और सम रहो | जगत को खलमाऽ समझो | जगत स भािवत

मत हो | इसस आप हमशा सखी रहोग | िफर कछ बढ़ान की इ छा नही होगी और कछ कम होन स

दःख नही होगा | 199) समथर सदगर क सम सदा फल क भाित िखल हए रहो | इसस उनक अनदर सक प

होगा िक यह तो बहत उतसाही साधक ह सदा सनन रहता ह | उनक सामथयरवान सक प स

आपकी वह किऽम सननता भी वाःतिवक सननता म बदल जायगी | 200) यिद रोग को भी ई र का िदया मानो तो ार ध-भोग भी हो जाता ह और क तप का फल दता ह | इसस ई र-कपा की ाि होती ह | याकल मत हो | क सल और इनजकशन

आधीन मत हो | 201) साधक को चािहय िक अपन लआय को ि म रखकर साधना-पथ पर तीर की तरह

सीधा चला जाय | न इधर दख न उधर | ि यिद इधर-उधर जाती हो तो समझना िक िन ा िःथर नही ह |

202) आपन अपन जीवन म हजार ःव न दख ह ग लिकन व आपक जीवन क अश नही बन जात | इसी कार य जामत जगत क आड बर आपकी आतमा क सम कोई मह व नही रखत | 203) एक आतमा को ही जानो अनय बात को छोड़ो | धीर साधक को चािहय िक वह

सावधान होकर आतमिन ा बढ़ाय अनक श द का िचनतन व भाषण न कर कय िक वह तो कवल

मन-वाणी को पिरौम दनवाला ह असली साधना नही ह | 204) जो परष जन-समह स ऐस डर जस साप स डरता ह स मान स ऐस डर जस नकर स

डरता ह ि य स ऐस डर जस मद स डरता ह उस परष को दवतागण ा ण मानत ह | 205) जस अपन शरीर क अग पर बोध नही आता वस शऽ िमऽ व अपनी दह म एक ही आतमा को दखनवाल िववकी परष को कदािप बोध नही आता | 206) मन तो शरीर को ई रापरण कर िदया ह | अब उसकी भख- यास स मझ कया

समिपरत वःत म आस होना महा पाप ह | 207) आप यिद िद य ि पाना चहत हो तो आपको इिनिय क ऽ का तयाग करना होगा | 208) लयकाल क मघ की गजरना हो समि उमड़ पड बारह सयर तपायमान हो जाय पहाड़ स पहाड़ टकरा कर भयानक आवाज हो तो भी ानी क िन य म त नही भासता कय िक

त ह ही नही | त तो अ ानी को भासता ह | 209) सतय को ःवीकार करन स शाित िमलगी | कछ लोग यो यता क आधार पर शाित

खरीदना चाहत ह | यो यता स शाित नही िमलगी यो यता क सदपयोग स शाित िमलगी | कछ

लोग स पि क आधार पर शाित सरि त रखना चाहत ह | स पि स शाित नही िमलगी स पि

क सदपयोग स शाित िमलगी वस ही िवपि क सदपयोग स शाित िमलगी | 210) त छ हािन-लाभ पर आपका धयान इतना कय रहता ह िजसस अनत आननदःवरप

आतमा पर स धयान हट जाता ह | 211) अपन अनदर ही आननद ा करना य िप किठन ह परनत बा िवषय स आननद

ा करना तो अस भव ही ह |

212) म ससार का काश ह | काश क रप म म ही सब वःतओ म या ह | िनतय इन

िवचार का िचनतन करत रहो | य पिवऽ िवचार आपको परम पिवऽ बना दग | 213) जो वःत कमर स ा होती ह उसक िलय ससार की सहायता तथा भिवय की आशा की आवयकता होती ह परनत जो वःत तयाग स ा होती ह उसक िलय न ससार की सहायता चािहय न भिवय की आशा | 214) आपको जब तक बाहर चोर िदखता ह तब तक जरर भीतर चोर ह | जब दसर लोग

स िभनन अयो य खराब सधारन यो य िदखत ह तब तक ओ सधार का बीड़ा उठान वाल त अपनी िचिकतसा कर | 215) सफल व ही होत ह जो सदव नतमःतक एव सननमख रहत ह | िचनतातर-शोकातर लोग की उननित नही हो सकती | तयक कायर को िह मत व शाित स करो | िफर दखो िक यह

कायर शरीर मन और बि स हआ | म उन सबको स ा दनवाला चतनयःवरप ह | ॐ ॐ का पावन गान करो | 216) िकसी भी पिरिःथित म मन को यिथत न होन दो | आतमा पर िव ास करक

आतमिन बन जाओ | िनभरयता आपकी दासी बन कर रहगी | 217) सतसग स मनय को साधना ा होती ह चाह वह शाित क रप म हो चाह मि क

रप म चाह सवा क रप म हो म क रप म हो चाह तयाग क रप म हो | 218) भला-बरा वही दखता ह िजसक अनदर भला-बरा ह | दसर क शरीर को वही दखता ह

जो खद को शरीर मानता ह | 219) खबरदार आपन यिद अपन शरीर क िलय ऐश-आराम की इ छा की िवलािसता एव इिनिय-सख म अपना समय बरबाद िकया तो आपकी खर नही | ठ क स कायर करत रहन की नीित

अपनाओ | सफलता का पहला िस ात ह कायरिवौामरिहत कायरसा ी भाव स कायर | इस

िस ात को जीवन म चिरताथर करोग तो पता चलगा िक छोटा होना िजतना सरल ह उतना ही बड़ा होना भी सहज ह | 220) भतकाल पर िखनन हए िबना भिवय की िचनता िकय िबना व रमान म कायर करो | यह भाव आपको हर अवःथा म सनन रखगा हम जो कछ ा ह उसका सदपयोग ही अिधक

काश पान का साधन ह |

221) जब आप सफलता की ओर पीठ कर लत हो पिरणाम की िचनता का तयाग कर दत

हो स मख आय हए क र य पर अपनी उ ोगशि एकाम करत हो तब सफलता आपक पीछ-पीछ

आ जाती ह | अतः सफलता आपको खोजगी | 222) वि तब तक एकाम नही होगी जब तक मन म कभी एक आशा रहगी तो कभी दसरी | शात वही हो सकता ह िजस कोई क र य या आवयकता घसीट न रही हो | अतः परम शाित पान

क िलय जीवन की आशा भी तयाग कर मन ाननद म डबो दो | आज स समझ लो िक यह शरीर ह ही नही | कवल ाननद का सागर लहरा रहा ह | 223) िजसकी पककी िन ा ह िक म आतमा हrsquo उसक िलय ऐसी कौन सी मिथ ह जो खल

न सक ऐसी कोई ताकत नही जो उसक िवर जा सक | 224) मर भा य म नही थाई र की मज आजकल सतसग ा नही होताजगत

खराब ह ऐस वचन हमारी कायरता व अनतःकरण की मिलनता क कारण िनकलत ह | अतः नकारातमक ःवभाव और दसर पर दोषारोपण करन की वि स बचो | 225) आप जब भीतरवाल स नाराज होत हो तब जगत आपस नाराज रहता ह | जब आप

भीतर अनतयारमी बन बठ तो जगतरपी पतलीघर म िफर गड़बड़ कसी 226) िजस ण हम ससार क सधारक बन खड़ होत ह उसी ण हम ससार को िबगाड़नवाल बन जात ह | श परमातमा को दखन क बजाय जगत को िबगड़ा हआ दखन की ि बनती ह | सधारक लोग मानत ह िक lsquoभगवान न जो जगत बनाया ह वह िबगड़ा हआ ह और हम उस सधार रह ह |rsquo वाह वाह धनयवाद सधारक अपन िदल को सधारो पहल | सवरऽ िनरजन का दीदार करो | तब आपकी उपिःथित माऽ स आपकी ि माऽ स अर यार आपको छकर बहती हवा माऽ स अननत जीव को शाित िमलगी और अननत सधार होगा | नानक कबीर महावीर ब और लीलाशाह बाप जस महापरष न यही कजी अपनायी थी | 227) वदानत म हमशा कमर का अथर होता ह वाःतिवक आतमा क साथ एक होकर च ा करना अिखल िव क साथ एकःवर हो जाना | उस अि तीय परम ततव क साथ िनःःवाथर सयोग ा करना ही एकमाऽ स चा कमर ह बाकी सब बोझ की गठिरया उठाना ह |

228) अपनी व रमान अवःथा चाह कसी भी हो उसको सव च मानन स ही आपक दय म आतम ान ान का अनायास उदय होन लगगा | आतम-सा ातकार को मील दर की कोई चीज समझकर उसक पीछ दौड़ना नही ह िचिनतत होना नही ह |

िचनता की गठरी उठाकर यिथत होन की जररत नही ह | िजस ण आप िनि नतता म गोता मारोग उसी ण आपका आतमःवरप गट हो जायगा | अर गट कया होगा आप ःवय आतमःवरप हो ही | अनातमा को छोड़ दो तो आतमःवरप तो हो ही | 229) सदा ॐकार का गान करो | जब भय व िचनता क िवचार आय तब िकसी मःत सत-फकीर महातमा क सािननधय का ःमरण करो | जब िननदा-शसा क सग आय तब महापरष क जीवन का अवलोकन करो | 230) िजनको आप भयानक घटनाए एव भयकर आघात समझ बठ हो वाःतव म व आपक ियतम आतमदव की ही करतत ह | समःत भयजनक तथा ाणनाशक घटनाओ क नाम-रप तो िवष क ह लिकन व बनी ह अमत स | 231) मन म यिद भय न हो तो बाहर चाह कसी भी भय की साममी उपिःथत हो जाय आपका कछ िबगाड़ नही सकती | मन म यिद भय होगा तो तरनत बाहर भी भयजनक पिरिःथया न होत हए भी उपिःथत हो जायगी | व क तन म भी भत िदखन लगगा | 232) िकसी भी पिरिःथित म िदखती हई कठोरता व भयानकता स भयभीत नही होना चािहए | क क काल बादल क पीछ पणर काशमय एकरस परम स ा सयर की तरह सदा िव मान ह | 233) आप अपन पर कदािप अिव ास मत करो | इस जगत म आप सब कछ कर सकत हो | अपन को कभी दबरल मत मानो | आपक अनदर तमाम शि या छपी हई ह | 234) यिद कोई मन य आपकी कोई चीज़ को चरा लता ह तो ड़रत कय हो वह मनय

और आप एक ह | िजस चीज़ को वह चराता ह वह चीज़ आपकी और उसकी द न की ह | 235) जो खद क िसवाय दसरा कछ दखता नही सनता नही जानता नही वह अननत ह |

जब तक खद क िसवाय और िकसी वःत का भान होता ह वह वःत स ची लगती ह तब तक आप

सीिमत व शात ह असीम और अनत नही |

236) ससार मझ कया आनद द सकता ह स पणर आनद मर भीतर स आया ह | म ही स पणर आननद ह स पणर मिहमा एव स पणर सख ह | 237) जीवन की समःत आवयकताए जीवन म उपिःथत ह परनत जीवन को जब हम

बा रग म रग दत ह तब जीवन का वाःतिवक रप हम नही जान पात | 238) िननदक की िननदा स म कय मरझाऊ शसक की शसा स म कय फल िननदा स म घटता नही और शसा स म बढ़ता नही | जसा ह वसा ही रहता ह | िफर िननदा-ःतित स

खटक कसी 239) ससार व ससार की समःयाओ म जो सबस अिधक फस हए ह उनही को वदानत की सबस अिधक आवयकता ह | बीमार को ही औषिध की यादा आवयकता ह | कय जी ठ क ह न 240) जगत क पाप व अतयाचार की बात मत करो लिकन अब भी आपको जगत म पाप

िदखता ह इसिलय रोओ | 241) हम यिद जान ल िक जगत म आतमा क िसवाय दसरा कछ ह ही नही और जो कछ

िदखता ह वह ःव नमाऽ ह तो इस जगत क दःख-दािरिय पाप-प य कछ भी हम अशात नही कर सकत | 242) िव ान दाशरिनक व आचाय की धमकी तथा अनमह आलोचना या अनमित

ानी पर कोई भाव नही ड़ाल सकती | 243) ह यि रप अननत आप अपन पर पर खड़ रहन का साहस करो समःत िव का बोझ आप िखलौन की तरह उठा लोग | 244) िसह की गजरना व नरिसह की ललकार तलवार की धार व साप की फफकार तपःवी की धमकी व नयायधीश की फटकारइन सबम आपका ही काश चमक रहा ह | आप इनस

भयभीत कय होत हो उलझन कय महसस करत हो मरी िब ली मझको याऊ वाली बात कय

होन दत हो 245) ससार हमारा िसफ़र िखलोना ही ह और कछ नही | अबोध बालक ही िखलौन स

भयभीत होता ह आसि करता ह िवचारशील यि नही |

246) जब तक अिव ा दर नही होगी तब तक चोरी जआ दार यिभचार कभी बद न

ह ग चाह लाख कोिशश करो | 247) आप हमशा अदर का धयान रखो | पहल हमारा भीतरी पतन होता ह | बा पतन तो इसका पिरणाम माऽ ह | 248) तयाग स हमशा आनद िमलता ह | जब तक आपक पास एक भी चीज़ बाकी ह तब

तक आप उस चीज़ क बधन म बध रहोग | आघात व तयाघात हमशा समान िवरोधी होत ह | 249) िनि तता ही आरो यता की सबस बड़ी दवाई ह | 250) सख अपन िसर पर दख का मकट पहन कर आता ह | जो सख को अपनायगा उस

दख को भी ःवीकार करना पड़गा | 251) म (आतमा) सबका ा ह | मरा ा कोई नही | 252) हजार म स कोई एक परष भीतर स शात िच वाला रहकर बाहर स ससारी जसा यवहार कर सकता ह | 253) सतय क िलए यिद शरीर का तयाग करना पड़ तो कर दना | यही आिखरी ममता ह जो हम तोड़नी होगी | 254) भय िचनता बचनी स ऊपर उठो | आपको ान का अनभव होगा | 255) आपको कोई भी हािन नही पहचा सकता | कवल आपक खयालात ही आपक पीछ पड़ ह | 256) म का अथर ह अपन पड़ोसी तथा सपकर म आनवाल क साथ अपनी वाःतिवक अभदता का अनभव करना | 257) ओ यार अपन खोय हए आतमा को एक बार खोज लो | धरती व आसमान क शासक आप ही हो | 258) सदव सम और सनन रहना ई र की सव पिर भि ह |

259) जब तक िच म ढ़ता न आ जाय िक शा की िविधय का पालन छोड़ दन स भी दय का यथाथर भि भाव न नही होगा तब तक शा की िविधय को पालत रहो |

गर भि एक अमोघ साधना 1 जनम मरण क िवषचब स म होन का कोई मागर नही ह कया सख-दःख हषर-शोक लाभ-

हािन मान-अपमान की थ पड़ स बचन का कोई उपाय नही ह कया

हअवय ह | ह िय आतमन नाशवान पदाथ स अपना मन वािपस लाकर सदगर क

चरणकमल म लगाओ | गरभि योग का आौय लो | गरसवा ऐसा अमोघ साधन ह िजसस

व रमान जीवन आननदमय बनता ह और शा त सख क ार खलत ह |

गर सवत त नर धनय यहा | ितनक नही दःख यहा न वहा || 2 स च सदगर की की हई भि िशय म सासािरक पदाथ क वरा य एव अनासि जगाती ह

परमातमा क ित म क पप महकाती ह | 3 तयक िशय सदगर की सवा करना चाहता ह लिकन अपन ढग स | सदगर चाह उस ढग स

सवा करन को कोई ततपर नही | जो िवरला साधक गर चाह उस ढ़ग स सवा कर सकता ह उस कोई कमी नही रहती |

िन सदगर की सवा स उनकी कपा ा होती ह और उस कपा स न िमल सक ऐसा तीन लोक म कछ भी नही ह | 4 गर िशय का स बनध पिवऽतम स बनध ह | ससार क तमाम बनधन स छड़ाकर वह मि क मागर पर ःथान कराता ह | यह स बनध जीवनपयरनत का स बनध ह | यह बात अपन दय की डायरी म सवणर-अ र स िलख लो | 5 उ ल सयर क काश क अिःततव को मान या न मान िफर भी सयर हमशा काशता ह | चचल मन का मनय मान या न मान लिकन सदगर की परमक याणकारी कपा सदव बरसती ही रहती ह | 6 सदगर की चरणरज म ःनान िकय िबना कवल किठन तप यार करन स या वद का

अधयन करन स वदानत का रहःय कट नही होता आतमानद का अमत नही िमलता | 7 दशरन शा क चाह िकतन मनथ पढ़ो हजार वष तक िहमालय की गफा म तप करो वष तक ाणायाम करो जीवनपयरनत शीषारसन करो समम िव म वास करक याखान दो िफर भी सदगर की कपा क िबना आतम ान नही होता | अतः िनरािभमानी सरल िनजाननद म मःत दयाल ःवभाव क आतम-सा ातकारी सदगर क चरण म जाओ | जीवन को धनय बनाओ | 8 सदगर की सवा िकय िबना शा का अधयन करना मम साधक क िलय समय बरबाद करन क बराबर ह | 9 िजसको सदगर ा हए ह ऐस िशय क िलय इस िव म कछ भी अा य नही ह | सदगर िशय को िमली हई परमातमा की अम य भट ह | अर नहीhellipनही व तो िशय क सम साकार रप म कट हए परमातमा ःवय ह | 10 सदगर क साथ एक ण िकया हआ सतसग लाख वष क तप स अननत गना ौ ह | आख क िनमषमाऽ म सदगर की अमतवष ि िशय क जनम-जनम क पाप को जला सकती ह | 11 सदगर जसा मपणर कपाल िहतिचनतक िव भर म दसरा कोई नही ह | 12 बाढ़ क समय याऽी यिद तफानी नदी को िबना नाव क पार कर सक तो साधक भी िबना सदगर क अपन जीवन क आिखरी लआय को िस कर सकता ह | यानी य दोन बात स भव ह |

अतः यार साधक मनमखी साधना की िज करना छोड़ दो | गरमखी साधना करन म ही सार ह | 13 सदगर क चरणकमल का आौय लन स िजस आननद का अनभव होता ह उसक आग िऽलोकी का साा य त छ ह | 14 आतम-सा ातकार क मागर म सबस महान शऽ अहभाव का नाश करन क िलए सदगर की आ ा का पालन अमोघ श ह | 15 रसोई सीखन क िलय कोई िसखानवाला चािहय िव ान और गिणत सीखन क िलय

अधयापक चािहय तो कया िव ा सदगर क िबना ही सीख लोग 16 सदगरकपा की स पि जसा दसरा कोई खजाना िव भर म नही | 17 सदगर की आ ा का उ लघन करना यह अपनी क खोदन क बराबर ह | 18 सदगर क कायर को शका की ि स दखना महापातक ह | 19 गरभि व गरसवा - य साधनारपी नौका की दो पतवार ह | उनकी मदद स िशय ससारसागर को पार कर सकता ह | 20 सदगर की कसौटी करना असभव ह | एक िववकाननद ही दसर िववकाननद को पहचान सकत ह | ब को जानन क िलय दसर ब की आवयकता रहती ह | एक रामतीथर का रहःय दसर रामतीथर ही पा सकत ह |

अतः सदगर की कसौटी करन की च ा छोड़कर उनको पिरपणर पर परमातमा मानो |

तभी जीवन म वाःतिवक लाभ होगा | 21 गरभि योग का आौय लकर आप अपनी खोई हई िद यता को पनः ा करो सख-दःख जनम-मतय आिद सब न स पार हो जाओ | 22 गरभि योग मान गर की सवा क ारा मन और िवकार पर िनयऽण एव पनः सःकरण | 23 िशय अपन गर क चरणकमल म णाम करता ह | उन पर ौ फल की वषार करक उनकी ःतित करता ह ldquoह परम प य पिवऽ गरदव मझ सव च सख ा हआ ह | म िन ा स जनम-मतय की पर परा स म हआ ह | म िनिवरक प समािध का श सख भोग रहा ह | जगत क िकसी भी कोन म म म ता स िवचरण कर सकता ह | सब पर मरी सम ि ह | मन ाकत मन का तयाग िकया ह | मन सब सक प एव रिच-अरिच का तयाग िकया ह | अब म अख ड शाित म िवौाित पा रहा ह hellip आननदमय हो रहा ह | म इस पणर अवःथा का वणरन नही कर पाता | ह प य गरदव म आवाक बन गया ह | इस दःतर भवसागर को पार करन म आपन

मझ सहायता की ह | अब तक मझ कवल अपन शरीर म ही स पणर िव ास था | मन िविभनन योिनय म अस य जनम िलय | ऐसी सव च िनभरय अवःथा मझ कौन स पिवऽ कम क कारण ा हई ह यह म नही जानता | सचमच यह एक दलरभ भा य ह |

यह एक महान उतक लाभ ह | अब म आननद स नाचता ह | मर सब दःख न हो गय | मर सब मनोरथ पणर हए ह |

मर कायर स पनन हए ह | मन सब वािछत वःतए ा की ह | मरी इ छा पिरपणर हई ह | आप मर स च माता-िपता हो | मरी व रमान िःथित म म दसर क सम िकस कार कट कर सक सवरऽ सख और आननद का अननत सागर मझ लहराता हआ िदख रहा ह | मर अतःच िजसस खल गय वह महावाकय lsquoत वमिसrsquo ह | उपिनषद एव वदानतसऽ को भी धनयवाद | िजनह न िन गर का एव उपिनषद क महावाकय का रप धारण िकया ह | ऐस ौी यासजी को णाम ौी शकराचायर को णाम सासािरक मनय क िसर पर गर क चरणामत का एक िबनद भी िगर तो भी उसक ःब दःख का नाश होता ह | यिद एक िन परष को व पहनाय जाय तो सार िव को व पहनान एव भोजन करवान क बराबर ह कय िक िन परष सचराचर िव म या ह | सबम व ही ह |rdquo

ॐhellip ॐ hellip ॐ hellip

ःवामी िशवानद जी

ौी राम-विश सवाद ौी विश जी कहत ह ldquoह रघकलभषण ौी राम अनथर ःवरप िजतन सासािरक पदाथर ह व सब जल म तरग क समान िविवध रप धारण करक चमतकार उतपनन करत ह अथारत ई छाए उतपनन करक जीव को मोह म फसात ह | परत जस सभी तरग जल ःवरप ही ह उसी कार सभी पदाथर वःततः न र ःवभाव वाल ह |

बालक की क पना स आकाश म य और िपशाच िदखन लगत ह परनत बि मान मनय क िलए उन य और िपशाच का कोई अथर नही | इसी कार अ ानी क िच म यह जगत सतय हो ऐसा लगता ह जबिक हमार जस ािनय क िलय यह जगत कछ भी नही | यह समम िव पतथर पर बनी हई पतिलय की सना की तरह रपालोक तथा अतर-बा िवषय स शनय ह | इसम सतयता कसी परनत अ ािनय को यह िव सतय लगता ह |rdquo विश जी बोल ldquoौी राम जगत को सतय ःवरप म जानना यह ाित ह मढ़ता ह | उस िमथया अथारत कि पत समझना यही उिचत समझ ह | ह राघव तव ा अहता आिद सब िवम-िवलास शात िशवःवरप श ःवरप ही ह | इसिलय मझ तो क अितिर और कछ भी नही िदखता | आकाश म जस जगल नही वस ही म जगत नही ह | ह राम ार ध वश ा कम स िजस परष की च ा कठपतली की तरह ई छाशनय और याकलतारिहत होती ह वह शानत मनवाला परष जीवनम मिन ह | ऐस जीवनम ानी को इस

जगत का जीवन बास की तरह बाहर-भीतर स शनय रसहीन और वासना-रिहत लगता ह | इस य पच म िजस रिच नही दय म िचनमाऽ अ य ही अ छा लगता ह ऐस परष न

भीतर तथा बाहर शािनत ा कर ली ह और इस भवसागर स पार हो गया ह | रघनदन श व ा कहत ह िक मन का ई छारिहत होना यही समािध ह कय िक ई छाओ का तयाग करन स मन को जसी शािनत िमलती ह ऐसी शािनत सकड़ उपदश स भी नही िमलती | ई छा की उतपि स जसा दःख ा होता ह ऐसा दःख तो नरक म भी नही | ई छाओ की शािनत

स जसा सख होता ह ऐसा सख ःवगर तो कया लोक म भी नही होता | अतः समःत शा तपःया यम और िनयम का िनचोड़ यही ह िक ई छामाऽ दःखदायी ह और ई छा का शमन मो ह | ाणी क दय म जसी-जसी और िजतनी-िजतनी ई छाय उतपनन होती ह उतना ही दख स वह

ड़रता रहता ह | िववक-िवचार ारा ई छाय जस-जस शानत होती जाती ह वस-वस दखरपी छत की बीमारी िमटती जाती ह |

आसि क कारण सासािरक िवषय की ई छाय य - य गहनीभत होती जाती ह तय -तय

दःख की िवषली तरग बढ़ती जाती ह | अपन परषाथर क बल स इस ई छारपी यािध का उपचार यिद नही िकया जाय तो इस यािध स छटन क िलय अनय कोई औषिध नही ह ऐसा म ढ़तापवरक

मानता ह | एक साथ सभी ई छाओ का स पणर तयाग ना हो सक तो थोड़ी-थोड़ी ई छाओ का धीर-धीर तयाग

करना चािहय परत रहना चािहय ई छा क तयाग म रत कय िक सनमागर का पिथक दखी नही होता | जो नराधम अपनी वासना और अहकार को ीण करन का य नही करता वह िदन -िदन अपन

को रावण की तरह अधर कऐ म ढ़कल रहा ह | ई छा ही दख की जनमदाऽी इस ससाररपी बल का बीज ह | यिद इस बीज को आतम ानरपी अि न स ठ क-ठ क जला िदया तो पनः यह अकिरत नही होता | रघकलभषण राम ई छामाऽ ससार ह और ई छाओ का अभाव ही िनवारण ह | अतः अनक कार की माथाप ची म ना पड़कर कवल ऐसा य करना चािहय िक ई छा उतपनन ना हो | अपनी बि स ई छा का िवनाश करन को जो ततपर नही ऐस अभाग को शा और गर का उपदश

भी कया करगा जस अपनी जनमभमी जगल म िहरणी की मतय िनि त ह उसी कार अनकिवध दख का िवःतार कारनवाल ई छारपी िवषय-िवकार स य इस जगत म मनय की मतय िनि त ह | यिद मानव ई छाओ क कारण ब च -सा मढ़ ना बन तो उस आतम ान क िलय अ प य ही करना पड़ | इसिलय सभी कार स ई छाओ को शानत करना चािहय | ई छा क शमन स परम पद की ाि होती ह | ई छारिहत हो जाना यही िनवारण ह और ई छाय

होना ही बधन ह | अतः यथाशि ई छा को जीतना चािहय | भला इतना करन म कया किठनाई ह जनम जरा यािध और मतयरपी कटीली झािड़य और खर क व - समह की जड़ भी ई छा ही ह

| अतः शमरपी अि न स अदर-ही-अदर बीज को जला ड़ालना चािहय| जहा ई छाओ का अभाव ह

वहा मि िनि त ह |

िववक वरा य आिद साधन स ई छा का सवरथा िवनाश करना चािहय | ई छा का सबध जहा-जहा ह वहा-वहा पाप प य दखरािशया और ल बी पीड़ाओ स य बधन को हािज़र ही समझो | परष

की आतिरक ई छा य - य शानत होती जाती ह तय -तय मो क िलय उसका क याणकारक

साधन बढ़ता जाता ह | िववकहीन ई छा को पोसना उस पणर करना यह तो ससाररपी िवष व को पानी स सीचन क समान ह |rdquo

- ौीयोगविश महारामायण

आतमबल का आवाहन कया आप अपन-आपको दबरल मानत हो लघतामथी म उलझ कर पिरिःतिथय स िपस रह हो

अपना जीवन दीन-हीन बना बठ हो hellipतो अपन भीतर सष आतमबल को जगाओ | शरीर चाह ी का हो चाह परष का कित क साा य म जो जीत ह व सब ी ह और कित क बनधन स पार अपन ःवरप की पहचान िजनह न कर ली ह अपन मन की गलामी की बिड़या तोड़कर िजनह न फ क दी ह व परष ह | ी या परष शरीर एव मानयताए होती ह | तम तो तन-मन स पार िनमरल आतमा हो | जागोhellipउठोhellipअपन भीतर सोय हय िन यबल को जगाओ | सवरदश सवरकाल म सव म

आतमबल को िवकिसत करो | आतमा म अथाह सामथयर ह | अपन को दीन-हीन मान बठ तो िव म ऐसी कोई स ा नही जो त ह ऊपर उठा सक | अपन आतमःवरप म िति त हो गय तो िऽलोकी म ऐसी कोई हःती नही जो त ह दबा सक | भौितक जगत म वाप की शि ईलकशोिनक शि िव त की शि गरतवाकषरण की शि बड़ी मानी जाती ह लिकन आतमबल उन सब शि य का सचालक बल ह | आतमबल क सािननधय म आकर पग ार ध को पर िमल जात ह दव की दीनता पलायन हो जाती ह ितकल पिरिःतिथया अनकल हो जाती ह | आतमबल सवर िरि -िसि य का िपता ह |

आतमबल कस जगाय हररोज़ तःकाल ज दी उठकर सय दय स पवर ःनानािद स िनवत हो जाओ | ःव छ पिवऽ ःथान

म आसन िबछाकर पवारिभमख होकर प ासन या सखासन म बठ जाओ | शानत और सनन वि

धारण करो | मन म ढ भावना करो िक म कित-िनिमरत इस शरीर क सब अभाव को पार करक सब

मिलनताओ-दबरलताओ स िप ड़ छड़ाकर आतमा की मिहमा म जागकर ही रहगा |

आख आधी खली आधी बद रखो | अब फ़फ़ड़ म खब ास भरो और भावना करो की ास क साथ

म सयर का िद य ओज भीतर भर रहा ह | ास को यथाशि अनदर िटकाय रखो | िफ़र lsquoॐhelliprsquo का ल बा उ चारण करत हए ास को धीर-धीर छोड़त जाओ | ास क खाली होन क बाद तरत ास ना लो | यथाशि िबना ास रहो और भीतर ही भीतर lsquoहिर ॐhelliprsquo lsquoहिर ॐhelliprsquo का मानिसक

जाप करो | िफ़र स फ़फ़ड़ म ास भरो | पव रीित स ास यथाशि अनदर िटकाकर बाद म धीर-धीर छोड़त हए lsquoॐhelliprsquo का गजन करो | दस-पिह िमनट ऐस ाणायाम सिहत उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo की धविन करक शानत हो जाओ | सब

यास छोड़ दो | वि य को आकाश की ओर फ़लन दो | आकाश क अनदर पथवी ह | पथवी पर अनक दश अनक समि एव अनक लोग ह | उनम स एक

आपका शरीर आसन पर बठा हआ ह | इस पर य को आप मानिसक आख स भावना स दखत

रहो | आप शरीर नही हो बि क अनक शरीर दश सागर पथवी मह न ऽ सयर चनि एव पर ा ड़ क

ा हो सा ी हो | इस सा ी भाव म जाग जाओ | थोड़ी दर क बाद िफ़र स ाणायाम सिहत lsquoॐhelliprsquo का जाप करो और शानत होकर अपन िवचार को दखत रहो | इस अवःथा म ढ़ िन य करो िक lsquoम जसा चहता ह वसा होकर रहगा |rsquo िवषयसख स ा धन-

दौलत इतयािद की इ छा न करो कय िक िन यबल या आतमबलरपी हाथी क पदिच म और सभी क पदिच समािव हो ही जायग | आतमानदरपी सयर क उदय होन क बाद िम टी क तल क दीय क ाकाश रपी शि सखाभास की गलामी कौन कर

िकसी भी भावना को साकार करन क िलय दय को करद ड़ाल ऐसी िन यातमक बिल वि होनी आवशयक ह | अनतःकरण क गहर-स-गहर दश म चोट कर ऐसा ाण भरक िन बल का आवाहन करो | सीना तानकर खड़ हो जाओ अपन मन की दीन-हीन दखद मानयताओ को कचल

ड़ालन क िलय | सदा ःमरण रह की इधर-उधर भटकती वि य क साथ त हारी शि भी िबखरती रहती ह | अतः वि य को बहकाओ नही | तमाम वि य को एकिऽत करक साधनाकाल म आतमिचनतन म लगाओ और यवहारकाल म जो कायर करत हो उसम लगाओ | द िच होकर हरक कायर करो | अपन ःवभाव म स आवश को सवरथा िनमरल कर दो | आवश म आकर कोई िनणरय मत लो कोई िबया मत करो | सदा शानत वि धारण करन का अ यास करो | िवचारशील एव सनन रहो | ःवय अचल रहकर सागर की तरह सब वि य की तरग को अपन

भीतर समालो | जीवमाऽ को अपना ःवरप समझो | सबस ःनह रखो | िदल को यापक रखो | सकिच ता का िनवारण करत रहो | ख ड़ातमक वि का सवरथा तयाग करो | िजनको ानी महापरष का सतसग और अधयातमिव ा का लाभ िमल जाता ह उसक जीवन स

दःख िवदा होन लगत ह | ॐ आननद आतमिन ा म जाग हए महापरष क सतसग एव सतसािहतय स जीवन को भि और वदात स प

एव पलिकत करो | कछ ही िदन क इस सघन योग क बाद अनभव होन लगगा िक भतकाल क

नकारतमक ःवभाव सशयातमक-हािनकारक क पनाओ न जीवन को कचल ड़ाला था िवषला कर िदया था | अब िन यबल क चमतकार का पता चला | अततरम म आिवरभत िद य खज़ाना अब

िमला | ार ध की बिड़या अब टटन लगी | ठ क ह न करोग ना िह मत पढ़कर रख मत दना इस पिःतका को | जीवन म इसको बार-बार पढ़त रहो | एक िदन म यह पणर ना होगा | बार-बार अ यास करो | त हार िलय यह एक ही पिःतका काफ़ी ह | अनय कचराप टी ना पड़ोग तो चलगा | शाबाश वीर शाबाश

  • परसतावना
  • जीवन रसायन
  • गर भकति एक अमोघ साधना
  • शरी राम-वशिषठ सवाद
  • आतमबल का आवाहन
  • आतमबल कस जगाय
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मन सशक ि स चार ओर दौड़ता रहगा | सवरऽ मगलमय ि रखन स मन अपन-आप शात होन लगगा | 94) आसन िःथर करन क िलए सक प कर िक जस पथवी को धारण करत हए भी शषजी िब कल अचल रहत ह वस म भी अचल रहगा | म शरीर और ाण का ा ह | 95) lsquoससार िमथया हrsquo - यह मद ानी की धारणा ह | lsquoससार ःव नवत हrsquo - यह मधयम ानी की धारणा ह | lsquoससार का अतयनत अभाव ह ससार की उतपि कभी हई ही नहीrsquo -

यह उ म ानी की धारणा ह | 96) आप यिद भि मागर म ह तो सारी सि भगवान की ह इसिलए िकसीकी भी िननदा करना ठ क नही | आप यिद ानमागर म ह तो यह सि अपना ही ःवरप ह | आप अपनी ही िननदा कस कर सकत ह इस कार द नो माग म परिननदा का अवकाश ही नही ह | 97) य म ा का भान एव ा म य का भान हो रहा ह | इस गड़बड़ का नाम ही अिववक या अ ान ह | ा को ा तथा य को य समझना ही िववक या ान ह | 98) आसन व ाण िःथर होन स शरीर म िव त पदा होती ह | शरीर क ारा जब भी िबया की जाती ह तब वह िव त बाहर िनकल जाती ह | इस िव त को शरीर म रोक लन स शरीर िनरोगी बन जाता ह | 99) ःव न की सि अ पकालीन और िविचऽ होती ह | मनय जब जागता ह तब जानता ह िक म पलग पर सोया ह | मझ ःव न आया | ःव न म पदाथर दश काल िबया इतयािद परी सि का सजरन हआ | लिकन मर िसवाय और कछ भी न था | ःव न की सि झठ थी | इसी कार ततव ानी परष अ ानरपी िनिा स ानरपी जामत अवःथा को ा हए ह | व कहत ह िक एक क िसवा अनय कछ ह ही नही | जस ःव न स जागन क बाद हम ःव न की सि िमथया लगती ह वस ही ानवान को यह जगत िमथया लगता ह | 100) शारीिरक क पड़ तब ऐसी भावना हो जाय िक lsquoयह क मर यार भ की ओर स हhelliprsquo तो वह क तप का फल दता ह | 101) चलत-चलत पर म छाल पड़ गय ह भख याकल कर रही हो बि िवचार

करन म िशिथल हो गई हो िकसी पड़ क नीच पड़ ह जीवन अस भव हो रहा हो मतय का आगमन हो रहा हो तब भी अनदर स वही िनभरय धविन उठ lsquoसोऽहमhellipसोऽहमhellipमझ भय नहीhellipमरी मतय नहीhellipमझ भख नहीhellip यास नहीhellip कित की कोई भी यथा मझ न नही कर सकतीhellipम वही हhellipवही हhelliprsquo 102) िजनक आग िय-अिय अनकल-ितकल सख-दःख और भत-भिवय एक समान ह ऐस ानी आतमव ा महापरष ही स च धनवान ह | 103) दःख म दःखी और सख म सखी होन वाल लोह जस होत ह | दःख म सखी रहन वाल सोन जस होत ह | सख-दःख म समान रहन वाल र जस होत ह परनत जो सख-दःख की भावना स पर रहत ह व ही स च साट ह | 104) ःव न स जाग कर जस ःव न को भल जात ह वस जामत स जागकर थोड़ी दर क

िलए जामत को भल जाओ | रोज ातः काल म पनिह िमनट इस कार ससार को भल जान की आदत डालन स आतमा का अनसधान हो सकगा | इस योग स सहजावःथा ा होगी | 105) तयाग और म स यथाथर ान होता ह | दःखी ाणी म तयाग व म िवचार स आत ह

| सखी ाणी म तयाग व म सवा स आत ह कय िक जो ःवय दःखी ह वह सवा नही कर सकता पर िवचार कर सकता ह | जो सखी ह वह सख म आस होन क कारण उसम िवचार का उदय नही हो सकता लिकन वह सवा कर सकता ह | 106) लोग की पजा व णाम स जसी सननता होती ह वसी ही सननता जब मार पड़

तब भी होती हो तो ही मन य िभ ानन महण करन का स चा अिधकारी माना जाता ह | 107) हरक साधक को िब कल नय अनभव की िदशा म आग बढ़ना ह | इसक िलय

ानी महातमा की अतयनत आवयकता होती ह | िजसको स ची िज ासा हो उस ऐस

महातमा िमल ही जात ह | ढ़ िज ासा स िशय को गर क पास जान की इ छा होती ह | यो य

िज ास को समथर गर ःवय दशरन दत ह | 108) बीत हए समय को याद न करना भिवय की िचनता न करना और व रमान म ा

सख-दःखािद म सम रहना य जीवनम परष क ल ण ह | 109) जब बि एव दय एक हो जात ह तब सारा जीवन साधना बन जाता ह |

110) बि मान परष ससार की िचनता नही करत लिकन अपनी मि क बार म सोचत ह |

मि का िवचार ही तयागी दानी सवापरायण बनाता ह | मो की इ छा स सब सदगण आ जात ह

| ससार की इ छा स सब दगरण आ जात ह | 111) पिरिःथित िजतनी किठन होती ह वातावरण िजतना पीड़ाकारक होता ह उसस

गजरन वाला उतना ही बलवान बन जाता ह | अतः बा क और िचनताओ का ःवागत करो | ऐसी पिरिःथित म भी वदानत को आचरण म लाओ | जब आप वदानती जीवन यतीत करग तब दखग

िक समःत वातावरण और पिरिःथितया आपक वश म हो रही ह आपक िलय उपयोगी िस हो रही ह | 112) हरक पदाथर पर स अपन मोह को हटा लो और एक सतय पर एक तथय पर अपन

ई र पर समम धयान को किनित करो | तरनत आपको आतम-सा ातकार होगा | 113) जस बड़ होत-होत बचपन क खलकद छोड़ दत हो वस ही ससार क खलकद छोड़कर आतमाननद का उपभोग करना चािहय | जस अनन व जल का सवन करत हो वस ही आतम-

िचनतन का िनरनतर सवन करना चािहय | भोजन ठ क स होता ह तो ति की डकार आती ह वस

ही यथाथर आतमिचनतन होत ही आतमानभव की डकार आयगी आतमाननद म मःत ह ग |

आतम ान क िसवा शाित का कोई उपाय नही | 114) आतम ानी क हकम स सयर काशता ह | उनक िलय इनि पानी बरसाता ह | उनही क

िलय पवन दत बनकर गमनागमन करता ह | उनही क आग समि रत म अपना िसर रगड़ता ह | 115) यिद आप अपन आतमःवरप को परमातमा समझो और अनभव करो तो आपक सब

िवचार व मनोरथ सफल ह ग उसी ण पणर ह ग | 116) राजा-महाराजा दवी-दवता वद-पराण आिद जो कछ ह व आतमदश क सक पमाऽ

ह | 117) जो लोग ितकलता को अपनात ह ई र उनक स मख रहत ह | ई र िजनह अपन

स दर रखना चाहत ह उनह अनकल पिरिःथितया दत ह | िजसको सब वःतए अनकल एव पिवऽ

सब घटनाए लाभकारी सब िदन शभ सब मनय दवता क रप म िदखत ह वही परष ततवदश ह | 118) समता क िवचार स िच ज दी वश म होता ह हठ स नही |

119) ऐस लोग स स बनध रखो िक िजसस आपकी सहनशि बढ़ समझ की शि बढ़

जीवन म आन वाल सख-दःख की तरग का आपक भीतर शमन करन की ताकत आय समता बढ़

जीवन तजःवी बन | 120) लोग बोलत ह िक धयान व आतमिचनतन क िलए हम फरसत नही िमलती | लिकन

भल मनय जब नीद आती ह तब सब महतवपणर काम भी छोड़कर सो जाना पड़ता ह िक नही

जस नीद को महतव दत हो वस ही चौबीस घनट म स कछ समय धयान व आतमिचनतन म भी िबताओ | तभी जीवन साथरक होगा | अनयथा कछ भी हाथ नही लगगा | 121) भल जाओ िक तम मनय हो अमक जाित हो अमक उ हो अमक िड़मीवाल हो अमक धनधवाल हो | तम िनगरण िनराकार सा ीरप हो ऐसा ढ़ िन य करो | इसीम तमाम

कार की साधनाए िबयाए योगािद समािव हो जात ह | आप सवर यापक अख ड चतनय हो | सार ान का यह मल ह | 122) दोष तभी िदखता जब हमार लोचन म क अभावरप पीिलया रोग स मःत होत ह | 123) साधक यिद अ यास क मागर पर उसी कार आग बढ़ता जाय िजस कार ार भ

म इस मागर पर चलन क िलए उतसाहपवरक कदम रखा था तो आयरपी सयर अःत होन स पहल

जीवनरपी िदन रहत ही अवय सोऽहम िसि क ःथान तक पहच जाय | 124) लोग ज दी स उननित कय नही करत कय िक बाहर क अिभाय एव िवचारधाराओ का बहत बड़ा बोझ िहमालय की तरह उनकी पीठ पर लदा हआ ह | 125) अपन ित होन वाल अनयाय को सहन करत हए अनयायकतार को यिद मा कर िदया जाय तो ष म म पिरणत हो जाता ह | 126) साधना की शरआत ौ ा स होती ह लिकन समाि ान स होनी चािहय | ान मान

ःवयसिहत सवर ःवरप ह ऐसा अपरो अनभव | 127) अपन शरीर क रोम-रोम म स ॐ का उ चारण करो | पहल धीम ःवर म ार भ

करो | शर म धविन गल स िनकलगी िफर छाती स िफर नािभ स और अनत म रीढ़ की ह डी क

आिखरी छोर स िनकलगी | तब िव त क धकक स सष ना नाड़ी तरनत खलगी | सब कीटाणसिहत

तमाम रोग भाग खड़ ह ग | िनभरयता िह मत और आननद का फ वारा छटगा | हर रोज ातःकाल

म ःनानािद करक सय दय क समय िकसी एक िनयत ःथान म आसन पर पवारिभमख बठकर

कम-स-कम आधा घनटा करक तो दखो | 128) आप जगत क भ बनो अनयथा जगत आप पर भतव जमा लगा | ान क

मतािबक जीवन बनाओ अनयथा जीवन क मतािबक ान हो जायगा | िफर यग की याऽा स भी दःख का अनत नही आयगा | 129) वाःतिवक िश ण का ारभ तो तभी होता ह जब मनय सब कार की सहायताओ स िवमख होकर अपन भीतर क अननत ॐोत की तरफ अमसर होता ह | 130) य पच की िनवित क िलए अनतःकरण को आननद म सरोबार रखन क िलए

कोई भी कायर करत समय िवचार करो म कौन ह और कायर कौन कर रहा ह भीतर स जवाब

िमलगा मन और शरीर कायर करत ह | म सा ीःवरप ह | ऐसा करन स कतारपन का अह

िपघलगा सख-दःख क आघात मनद ह ग | 131) राग- ष की िनवित का कया उपाय ह उपाय यही ह िक सार जगत-पच को मनोरा य समझो | िननदा-ःतित स राग- ष स पच म सतयता ढ़ होती ह | 132) जब कोई खनी हाथ आपकी गरदन पकड़ ल कोई श धारी आपको कतल करन क

िलए ततपर हो जाय तब यिद आप उसक िलए सननता स तयार रह दय म िकसी कार का भय

या िवषाद उतपनन न हो तो समझना िक आपन राग- ष पर िवजय ा कर िलया ह | जब आपकी ि पड़त ही िसहािद िहसक जीव की िहसावित गायब हो जाय तब समझना िक अब राग- ष का अभाव हआ ह | 133) आतमा क िसवाय अनय कछ भी नही ह - ऐसी समझ रखना ही आतमिन ा ह | 134) आप ःव न ा ह और यह जगत आपका ही ःव न ह | बस िजस ण यह ान हो जायगा उसी ण आप म हो जाएग | 135) िदन क चौबीस घ ट को साधनामय बनान क िलय िनक मा होकर यथर िवचार करत हए मन को बार-बार सावधान करक आतमिचतन म लगाओ | ससार म सल न मन को वहा स उठा कर आतमा म लगात रहो | 136) एक बार सागर की एक बड़ी तरग एक बलबल की िता पर हसन लगी | बलबल न

कहा ओ तरग म तो छोटा ह िफर भी बहत सखी ह | कछ ही दर म मरी दह टट जायगी िबखर

जायगी | म जल क साथ जल हो जाऊगा | वामन िमटकर िवराट बन जाऊगा | मरी मि बहत

नजदीक ह | मझ आपकी िःथित पर दया आती ह | आप इतनी बड़ी हई हो | आपका छटकारा ज दी नही होगा | आप भाग-भागकर सामनवाली च टान स टकराओगी | अनक छोटी-छोटी तरग

म िवभ हो जाओगी | उन अस य तरग म स अननत-अननत बलबल क रप म पिरवितरत हो जाओगी | य सब बलबल फटग तब आपका छटकारा होगा | बड़ पन का गवर कय करती हो जगत की उपलि धय का अिभमान करक परमातमा स दर मत जाओ | बलबल की तरह सरल

रहकर परमातमा क साथ एकता का अनभव करो | 137) जब आप ईयार ष िछिानवषण दोषारोपण घणा और िननदा क िवचार िकसीक

ित भजत ह तब साथ-ही-साथ वस ही िवचार को आमिऽत भी करत ह | जब आप अपन भाई की आख म ितनका भ कत ह तब अपनी आख म भी आप ताड़ भ क रह ह | 138) शरीर अनक ह आतमा एक ह | वह आतमा-परमातमा मझस अलग नही | म ही कतार सा ी व नयायधीश ह | म ही ककर श आलोचक ह और म ही मधर शसक ह | मर िलय तयक

यि ःवतऽ व ःव छनद ह | बनधन पिरि छननता और दोष मरी ि म आत ही नही | म म

हपरम म ह और अनय लोग भी ःवतऽ ह | ई र म ही ह | आप भी वही हो | 139) िजस कार बालक अपनी परछा म बताल की क पना कर भय पाता ह उसी कार जीव अपन ही सक प स भयभीत होता ह और क पाता ह | 140) कभी-कभी ऐसी भावना करो िक आपक सामन चतनय का एक महासागर लहरा रहा ह | उसक िकनार खड़ रह कर आप आनद स उस दख रह ह | आपका शरीर सागर की सतह पर घमन गया ह | आपक दखत ही दखत वह सागर म डब गया | इस समःत पिरिःथित को दखन वाल आप सा ी आतमा शष रहत ह | इस कार सा ी रप म अपना अनभव करो | 141) यिद हम चाहत ह िक भगवान हमार सब अपराध माफ कर तो इसक िलए सगम साधना यही ह िक हम भी अपन सबिधत सब लोग क सब अपराध माफ कर द |

कभी िकसी क दोष या अपराध पर ि न डाल कय िक वाःतव म सब रप म हमारा यारा ई दव ही बीड़ा कर रहा ह |

142) पणर पिवऽता का अथर ह बा भाव स भािवत न होना | सासािरक मनोहरता एव घणा स पर रहना राजी-नाराजगी स अिवचल िकसी म भद न दखना और आतमानभव क ारा आकषरण व तयाग स अिल रहना | यही वदानत का उपिनषद का

रहःय ह | 143) ई र सा ातकार तभी होगा जब ससार की ि स तीत होन वाल बड़-स-बड़ विरय को भी मा करन का आपका ःवभाव बन जायगा | 144) चाल यवहार म स एकदम उपराम होकर दो िमनट क िलए िवराम लो |

सोचो िक lsquo म कौन ह सद -गम शरीर को लगती ह | भख- यास ाण को लगती ह |

अनकलता-ितकलता मन को लगती ह | शभ-अशभ एव पाप-प य का िनणरय बि करती ह | म न शरीर ह न ाण ह न मन ह न बि ह | म तो ह इन सबको स ा दन वाला इन सबस नयारा िनलप आतमा |rsquo 145) जो मनय िनरतर lsquoम म हhelliprsquo ऐसी भावना करता ह वह म ही ह और lsquoम ब हhelliprsquo ऐसी भावना करनवाला ब ही ह | 146) आप िनभरय ह िनभरय ह िनभरय ह | भय ही मतय ह | भय ही पाप ह | भय ही नकर ह | भय ही अधमर ह | भय ही यिभचार ह | जगत म िजतन असत या िमथया भाव ह व सब इस भयरपी शतान स पदा हए ह | 147) परिहत क िलए थोड़ा काम करन स भी भीतर की शि या जागत होती ह |

दसर क क याण क िवचारमाऽ स दय म एक िसह क समान बल आ जाता ह | 148) हम यिद िनभरय ह ग तो शर को भी जीतकर उस पाल सक ग | यिद डरग तो क ा भी हम फ़ाड़ खायगा | 149) तयक िबया तयक यवहार तयक ाणी ःवरप िदख यही सहज समािध ह | 150) जब किठनाईया आय तब ऐसा मानना िक मझ म सहन शि बढ़ान क िलए ई र न य सयोग भज ह | किठन सयोग म िह मत रहगी तो सयोग बदलन लगग |

िवषय म राग- ष रह गया होगा तो वह िवषय कसौटी क रप म आग आयग और उनस पार होना पड़गा | 151) ततव ि स न तो आपन जनम िलया न कभी लग | आप तो अनत ह सवर यापी ह िनतयम अजर-अमर अिवनाशी ह | जनम-मतय का ही गलत ह महा-

मखरतापणर ह | जहा जनम ही नही हआ वहा मतय हो ही कस सकती ह 152) आप ही इस जगत क ई र हो | आपको कौन दबरल बना सकता ह जगत म आप ही एकमाऽ स ा हो | आपको िकसका भय खड़ हो जाओ | म हो जाओ | ठ क स समझ लो िक जो कोई िवचार या श द आपको दबरल बनाता ह वही एकमाऽ अशभ ह | मनय को दबरल व भयभीत करनवाला जो कछ इस ससार म ह वह पाप ह | 153) आप अपना कायर या कतर य करो लिकन न उसक िलए कोई िचनता रह न ही कोई

इ छा | अपन कायर म सख का अनभव करो कय िक आपका कायर ःवय सख या िवौाम ह | आपका कायर आतमानभव का ही दसरा नाम ह | कायर म लग रहो | कायर आपको आतमानभव कराता ह |

िकसी अनय हत स कायर न करो | ःवतऽ वि स अपन कायर पर डट जाओ | अपन को ःवतऽ

समझो िकसीक कदी नही | 154) यिद आप सतय क मागर स नही हटत तो शि का वाह आपक साथ ह समय आपक

साथ ह ऽ आपक साथ ह | लोग को उनक भतकाल की मिहमा पर फलन दो भिवयकाल की स पणर मिहमा आपक हाथ म ह | 155) जब आप िद य म क साथ चा डाल म चोर म पापी म अ यागत म और सबम भ क दशरन करग तब आप भगवान ौी कण क मपाऽ बन जायग | 156) आचायर गौड़पाद न ःप कहा आप सब आपस म भल ही लड़त रह लिकन मर साथ नही लड़ सक ग | आप सब लोग मर पट म ह | म आतमःवरप स सवर या ह | 157) मनय सभी ािणय म ौ ह सब दवताओ स भी ौ ह | दवताओ को भी िफर स

धरती पर आना पड़गा और मनय शरीर ा करक मि ा करनी होगी | 158) िनि नतता क दो सऽ जो कायर करना जररी ह उस परा कर दो | जो िबनजररी ह

उस भल जाओ | 159) सवा-म-तयाग ही मनय क िवकास का मल मऽ ह | अगर यह मऽ आपको जच

जाय तो सभी क ित सदभाव रखो और शरीर स िकसी-न-िकसी यि को िबना िकसी मतलब क

सहयोग दत रहो | यह नही िक जब मरी बात मानग तब म सवा करगा | अगर बनधक मरी बात

नही मानत तो म सवा नही करगा |

भाई तब तो तम सवा नही कर पाओग | तब तो तम अपनी बात मनवा कर अपन अह की पजा ही

करोग | 160) जस ःव न िमथया ह वस ही यह जामत अवःथा भी ःव नवत ही ह िमथया ह | हरक

को अपन इस ःव न स जागना ह | सदगर बार-बार जगा रह ह लिकन जाग कर वापस सो न जाए ऐसा परषाथर तो हम ही करना होगा | 161) सदा सननमख रहो | मख को कभी मिलन मत करो | िन य कर लो िक आपक

िलय शोक न इस जगत म जनम नही िलया ह | आननदःवरप म िचनता का ःथान ही कहा ह 162) समम ा ड एक शरीर ह | समम ससार एक शरीर ह | जब तक आप तयक क

साथ एकता का अनभव करत रहग तब तक सब पिरिःथितया और आस-पास की चीज़ हवा और समि की लहर भी आपक प म रहगी | 163) आपको जो कछ शरीर स बि स या आतमा स कमजोर बनाय उसको िवष की तरह

ततकाल तयाग दो | वह कभी सतय नही हो सकता | सतय तो बलद होता ह पावन होता ह

ानःवरप होता ह | सतय वह ह जो शि द | 164) साधना म हमारी अिभरिच होनी चािहय साधना की तीो माग होनी चािहय | 165) दसर क दोष की चचार मत करो चाह व िकतन भी बड़ ह | िकसी क दोष की चचार करक आप उसका िकसी भी कार भला नही करत बि क उस आघात पहचात ह और साथ-ही-साथ अपन आपको भी | 166) इस ससार को सतय समझना ही मौत ह | आपका असली ःवरप तो आननदःवरप

आतमा ह | आतमा क िसवा ससार जसी कोई चीज ही नही ह | जस सोया हआ मनय ःव न म अपनी एकता नही जानता अिपत अपन को अनक करक दखता ह वस ही आननदःवरप आतमा जामत ःव न और सषि - इन तीन ःवरप को दखत हए अपनी एकता अि तीयता का अनभव

नही करता | 167) मनोजय का उपाय ह अ यास और वरा य | अ यास मान य पवरक मन को बार-बार परमातम-िचतन म लगाना और वरा य मान मन को ससार क पदाथ की ओर स वापस

लौटाना | 168) िकसी स कछ मत मागो | दन क िलय लोग आपक पीछ-पीछ घमग | मान नही

चाहोग तो मान िमलगा | ःवगर नही चाहोग तो ःवगर क दत आपक िलय िवमान लकर आयग |

उसको भी ःवीकार नही करोग तो ई र आपको अपन दय स लगायग | 169) कभी-कभी उदय या अःत होत हए सयर की ओर चलो | नदी सरोवर या समि क तट

पर अकल घमन जाओ | ऐस ःथान की मलाकात लो जहा शीतल पवन मनद-मनद चल रही हो | वहा परमातमा क साथ एकःवर होन की स भावना क ार खलत ह | 170) आप य -ही इ छा स ऊपर उठत हो तय -ही आपका इि छत पदाथर आपको खोजन

लगता ह | अतः पदाथर स ऊपर उठो | यही िनयम ह | य - य आप इ छक िभ क याचक का भाव धारण करत हो तय -तय आप ठकराय जात हो | 171) कित क तयक पदाथर को दखन क िलय काश जररी ह | इसी कार मन बि

इिनिय को अपन-अपन कायर करन क िलय आतम-काश की आवयकता ह कय िक बाहर का कोई काश मन बि इिनिय ाणािद को चतन करन म समथर नही | 172) जस ःव न ा परष को जागन क बाद ःव न क सख-दःख जनम-मरण पाप-प य

धमर-अधमर आिद ःपशर नही करत कय िक वह सब खद ही ह | खद क िसवाय ःव न म दसरा कछ

था ही नही | वस ही जीवनम ानवान परष को सख-दःख जनम-मरण पाप-प य धमर-अधमर ःपशर नही करत कय िक व सब आतमःवरप ही ह | 173) वही भमा नामक आतम योित क म रह कर भ क रही ह सअर म रह कर घर रही ह गध म रह कर रक रही ह लिकन मखर लोग शरीर पर ही ि रखत ह चतनय ततव पर नही | 174) मनय िजस ण भत-भिवय की िचनता का तयाग कर दता ह दह को सीिमत और उतपि -िवनाशशील जानकर दहािभमान को तयाग दता ह उसी ण वह एक उ चतर अवःथा म पहच जाता ह | िपजर स छटकर गगनिवहार करत हए प ी की तरह मि का अनभव करता ह | 175) समःत भय एव िचनताए आपकी इ छाओ का णाम ह | आपको भय कय लगता ह

कय िक आपको आशका रहती ह िक अमक चीज कही चली न जाय | लोग क हाःय स आप डरत

ह कय िक आपको यश की अिभलाषा ह कीितर म आसि ह | इ छाओ को ितलाजिल द दो | िफर दखो मजा कोई िज मदारी नहीकोई भय नही | 176) दखन म अतयत करप काला-कलटा कबड़ा और तज ःवभाव का मनय भी आपका ही ःवरप ह | आप इस तथय स म नही | िफर घणा कसी कोई लाव यमयी सदरी सि की

शोभा क समान अित िवलासभरी अ सरा भी आपका ही ःवरप ह | िफर आसि िकसकी

आपकी ानिनिया उनको आपस अलग करक िदखाती ह | य इिनिया झठ बोलनवाली ह | उनका कभी िव ास मत करो | अतः सब कछ आप ही हो | 177) मानव क नात हम साधक ह | साधक होन क नात सतय को ःवीकर करना हमारा ःवधमर ह | सतय यही ह िक बल दसर क िलय ह ान अपन िलय ह और िव ास परमातमा स

स बनध जोड़न क िलय ह | 178) अपनी आतमा म डब जाना यह सबस बड़ा परोपकार ह | 179) आप सदव म ह ऐसा िव ास ढ़ करो तो आप िव क उ ारक हो जात हो | आप

यिद वदानत क ःवर क साथ ःवर िमलाकर िन य करो आप कभी शरीर न थ | आप िनतय श

ब आतमा हो तो अिखल ा ड क मो दाता हो जात हो | 180) कपा करक उन ःवाथरमय उपाय और अिभाय को दर फ क दो जो आपको पिरि छनन रखत ह | सब वासनाए राग ह | यि गत या शरीरगत म आसि ह | उस फ क दो | ःवय पिवऽ हो जाओ | आपका शरीर ःवःथ और बि पणरःवरप हो जायगी | 181) यिद ससार क सख व पदाथर ा ह तो आपको कहना चािहय ओ शतान हट जा मर सामन स | तर हाथ स मझ कछ नही चािहय | तब दखो िक आप कस सखी हो जात हो परमातमा-ा िकसी महापरष पर िव ास रखकर अपनी जीवनडोरी िनःशक बन उनक चरण म सदा क िलय रख दो | िनभरयता आपक चरण की दासी बन जायगी | 182) िजसन एक बार ठ क स जान िलया िक जगत िमथया ह और ािनत स इसकी तीित

हो रही ह उसको कभी दःख नही होता | जगत म कभी आसि नही होती | जगत क िमथयातव क

िन य का नाम ही जगत का नाश ह | 183) अपन ःवरप म लीन होन माऽ स आप ससार क साट बन जायग | यह साटपद

कवल इस ससार का ही नही समःत लोक-परलोक का साटपद होगा | 184) ह जनक चाह दवािधदव महादव आकर आपको उपदश द या भगवान िवण आकर उपदश द अथवा ाजी आकर उपदश द लिकन आपको कदािप सख न होगा | जब िवषय का तयाग करोग तभी स ची शाित व आनद ा ह ग |

185) िजस भ न हम मानव जीवन दकर ःवाधीनता दी िक हम जब चाह तब धमारतमा होकर भ होकर जीवनम होकर कतकतय हो सकत ह- उस भ की मिहमा गाओ | गाओ नही तो सनो | सनो भी नही गाओ भी नही तो ःवीकार कर लो | 186) चाह समि क गहर तल म जाना पड़ सा ात मतय का मकाबला करना पड़ अपन

आतमाि क उ य की पितर क िलय अिडग रहो | उठो साहसी बनो शि मान बनो | आपको जो बल व सहायता चािहय वह आपक भीतर ही ह | 187) जब-जब जीवन स बनधी शोक और िचनता घरन लग तब-तब अपन आननदःवरप

का गान करत-करत उस मोह-माया को भगा दो | 188) जब शरीर म कोई पीड़ा या अग म ज म हो तब म आकाशवत आकाशरिहत चतन

ह ऐसा ढ़ िन य करक पीड़ा को भल जाओ | 189) जब दिनया क िकसी चककर म फस जाओ तब म िनलप िनतय म ह ऐसा ढ़

िन य करक उस चककर स िनकल जाओ | 190) जब घर-बार स बनधी कोई किठन समःया याकल कर तब उस मदारी का खल

समझकर ःवय को िनःसग जानकर उस बोझ को ह का कर दो | 191) जब बोध क आवश म आकर कोई अपमानय वचन कह तब अपन शाितमय

ःवरप म िःथर होकर मन म िकसी भी ोभ को पदा न होन दो | 192) उ म अिधकारी िज ास को चािहय िक वह व ा सदगर क पास जाकर ौ ा पवरक महावाकय सन | उसका मनन व िनिदधयासन करक अपन आतमःवरप को जान | जब

आतमःवरप का सा ातकार होता ह तब ही परम िवौािनत िमल सकती ह अनयथा नही | जब तक

व ा महापरष स महावाकय ा न हो तब तक वह मनद अिधकारी ह | वह अपन दयकमल म परमातमा का धयान कर ःमरण कर जप कर | इस धयान-जपािद क साद स उस व ा सदगर

ा ह ग | 193) मन बि िच अहकार छाया की तरह जड़ ह णभगर ह कय िक व उतपनन होत

ह और लीन भी हो जात ह | िजस चतनय की छाया उसम पड़ती ह वह परम चतनय सबका आतमा ह | मन बि िच अहकार का अभाव हो जाता ह लिकन उसका अनभव करनवाल का अभाव

कदािप नही होता |

194) आप अपनी शि को उ चाितउ च िवषय की ओर बहन दो | इसस आपक पास व

बात सोचन का समय ही नही िमलगा िजसस कामकता की गध आती हो | 195) अपराध क अनक नाम ह बालहतया नरहतया मातहतया गौहतया इतयािद |

परनत तयक ाणी म ई र का अनभव न करक आप ई रहतया का सबस बड़ा अपराध करत ह | 196) सवा करन की ःवाधीनता मनयमाऽ को ा ह | अगर वह करना ही न चाह तो अलग बात ह | सवा का अथर ह मन-वाणी-कमर स बराईरिहत हो जाना यह िव की सवा हो गई |

यथाशि भलाई कर दो यह समाज की सवा हो गई | भलाई का फल छोड़ दो यह अपनी सवा हो गई

| भ को अपना मानकर ःमित और म जगा लो यह भ की सवा हो गई | इस कार मनय

अपनी सवा भी कर सकता ह समाज की सवा भी कर सकता ह िव की सवा भी कर सकता ह

और िव र की सवा भी कर सकता ह | 197) आतमा स बाहर मत भटको अपन कनि म िःथर रहो अनयथा िगर पड़ोग | अपन-

आपम पणर िव ास रखो | आतम-कनि पर अचल रहो | िफर कोई भी चीज आपको िवचिलत नही कर सकती | 198) सदा शात िनिवरकार और सम रहो | जगत को खलमाऽ समझो | जगत स भािवत

मत हो | इसस आप हमशा सखी रहोग | िफर कछ बढ़ान की इ छा नही होगी और कछ कम होन स

दःख नही होगा | 199) समथर सदगर क सम सदा फल क भाित िखल हए रहो | इसस उनक अनदर सक प

होगा िक यह तो बहत उतसाही साधक ह सदा सनन रहता ह | उनक सामथयरवान सक प स

आपकी वह किऽम सननता भी वाःतिवक सननता म बदल जायगी | 200) यिद रोग को भी ई र का िदया मानो तो ार ध-भोग भी हो जाता ह और क तप का फल दता ह | इसस ई र-कपा की ाि होती ह | याकल मत हो | क सल और इनजकशन

आधीन मत हो | 201) साधक को चािहय िक अपन लआय को ि म रखकर साधना-पथ पर तीर की तरह

सीधा चला जाय | न इधर दख न उधर | ि यिद इधर-उधर जाती हो तो समझना िक िन ा िःथर नही ह |

202) आपन अपन जीवन म हजार ःव न दख ह ग लिकन व आपक जीवन क अश नही बन जात | इसी कार य जामत जगत क आड बर आपकी आतमा क सम कोई मह व नही रखत | 203) एक आतमा को ही जानो अनय बात को छोड़ो | धीर साधक को चािहय िक वह

सावधान होकर आतमिन ा बढ़ाय अनक श द का िचनतन व भाषण न कर कय िक वह तो कवल

मन-वाणी को पिरौम दनवाला ह असली साधना नही ह | 204) जो परष जन-समह स ऐस डर जस साप स डरता ह स मान स ऐस डर जस नकर स

डरता ह ि य स ऐस डर जस मद स डरता ह उस परष को दवतागण ा ण मानत ह | 205) जस अपन शरीर क अग पर बोध नही आता वस शऽ िमऽ व अपनी दह म एक ही आतमा को दखनवाल िववकी परष को कदािप बोध नही आता | 206) मन तो शरीर को ई रापरण कर िदया ह | अब उसकी भख- यास स मझ कया

समिपरत वःत म आस होना महा पाप ह | 207) आप यिद िद य ि पाना चहत हो तो आपको इिनिय क ऽ का तयाग करना होगा | 208) लयकाल क मघ की गजरना हो समि उमड़ पड बारह सयर तपायमान हो जाय पहाड़ स पहाड़ टकरा कर भयानक आवाज हो तो भी ानी क िन य म त नही भासता कय िक

त ह ही नही | त तो अ ानी को भासता ह | 209) सतय को ःवीकार करन स शाित िमलगी | कछ लोग यो यता क आधार पर शाित

खरीदना चाहत ह | यो यता स शाित नही िमलगी यो यता क सदपयोग स शाित िमलगी | कछ

लोग स पि क आधार पर शाित सरि त रखना चाहत ह | स पि स शाित नही िमलगी स पि

क सदपयोग स शाित िमलगी वस ही िवपि क सदपयोग स शाित िमलगी | 210) त छ हािन-लाभ पर आपका धयान इतना कय रहता ह िजसस अनत आननदःवरप

आतमा पर स धयान हट जाता ह | 211) अपन अनदर ही आननद ा करना य िप किठन ह परनत बा िवषय स आननद

ा करना तो अस भव ही ह |

212) म ससार का काश ह | काश क रप म म ही सब वःतओ म या ह | िनतय इन

िवचार का िचनतन करत रहो | य पिवऽ िवचार आपको परम पिवऽ बना दग | 213) जो वःत कमर स ा होती ह उसक िलय ससार की सहायता तथा भिवय की आशा की आवयकता होती ह परनत जो वःत तयाग स ा होती ह उसक िलय न ससार की सहायता चािहय न भिवय की आशा | 214) आपको जब तक बाहर चोर िदखता ह तब तक जरर भीतर चोर ह | जब दसर लोग

स िभनन अयो य खराब सधारन यो य िदखत ह तब तक ओ सधार का बीड़ा उठान वाल त अपनी िचिकतसा कर | 215) सफल व ही होत ह जो सदव नतमःतक एव सननमख रहत ह | िचनतातर-शोकातर लोग की उननित नही हो सकती | तयक कायर को िह मत व शाित स करो | िफर दखो िक यह

कायर शरीर मन और बि स हआ | म उन सबको स ा दनवाला चतनयःवरप ह | ॐ ॐ का पावन गान करो | 216) िकसी भी पिरिःथित म मन को यिथत न होन दो | आतमा पर िव ास करक

आतमिन बन जाओ | िनभरयता आपकी दासी बन कर रहगी | 217) सतसग स मनय को साधना ा होती ह चाह वह शाित क रप म हो चाह मि क

रप म चाह सवा क रप म हो म क रप म हो चाह तयाग क रप म हो | 218) भला-बरा वही दखता ह िजसक अनदर भला-बरा ह | दसर क शरीर को वही दखता ह

जो खद को शरीर मानता ह | 219) खबरदार आपन यिद अपन शरीर क िलय ऐश-आराम की इ छा की िवलािसता एव इिनिय-सख म अपना समय बरबाद िकया तो आपकी खर नही | ठ क स कायर करत रहन की नीित

अपनाओ | सफलता का पहला िस ात ह कायरिवौामरिहत कायरसा ी भाव स कायर | इस

िस ात को जीवन म चिरताथर करोग तो पता चलगा िक छोटा होना िजतना सरल ह उतना ही बड़ा होना भी सहज ह | 220) भतकाल पर िखनन हए िबना भिवय की िचनता िकय िबना व रमान म कायर करो | यह भाव आपको हर अवःथा म सनन रखगा हम जो कछ ा ह उसका सदपयोग ही अिधक

काश पान का साधन ह |

221) जब आप सफलता की ओर पीठ कर लत हो पिरणाम की िचनता का तयाग कर दत

हो स मख आय हए क र य पर अपनी उ ोगशि एकाम करत हो तब सफलता आपक पीछ-पीछ

आ जाती ह | अतः सफलता आपको खोजगी | 222) वि तब तक एकाम नही होगी जब तक मन म कभी एक आशा रहगी तो कभी दसरी | शात वही हो सकता ह िजस कोई क र य या आवयकता घसीट न रही हो | अतः परम शाित पान

क िलय जीवन की आशा भी तयाग कर मन ाननद म डबो दो | आज स समझ लो िक यह शरीर ह ही नही | कवल ाननद का सागर लहरा रहा ह | 223) िजसकी पककी िन ा ह िक म आतमा हrsquo उसक िलय ऐसी कौन सी मिथ ह जो खल

न सक ऐसी कोई ताकत नही जो उसक िवर जा सक | 224) मर भा य म नही थाई र की मज आजकल सतसग ा नही होताजगत

खराब ह ऐस वचन हमारी कायरता व अनतःकरण की मिलनता क कारण िनकलत ह | अतः नकारातमक ःवभाव और दसर पर दोषारोपण करन की वि स बचो | 225) आप जब भीतरवाल स नाराज होत हो तब जगत आपस नाराज रहता ह | जब आप

भीतर अनतयारमी बन बठ तो जगतरपी पतलीघर म िफर गड़बड़ कसी 226) िजस ण हम ससार क सधारक बन खड़ होत ह उसी ण हम ससार को िबगाड़नवाल बन जात ह | श परमातमा को दखन क बजाय जगत को िबगड़ा हआ दखन की ि बनती ह | सधारक लोग मानत ह िक lsquoभगवान न जो जगत बनाया ह वह िबगड़ा हआ ह और हम उस सधार रह ह |rsquo वाह वाह धनयवाद सधारक अपन िदल को सधारो पहल | सवरऽ िनरजन का दीदार करो | तब आपकी उपिःथित माऽ स आपकी ि माऽ स अर यार आपको छकर बहती हवा माऽ स अननत जीव को शाित िमलगी और अननत सधार होगा | नानक कबीर महावीर ब और लीलाशाह बाप जस महापरष न यही कजी अपनायी थी | 227) वदानत म हमशा कमर का अथर होता ह वाःतिवक आतमा क साथ एक होकर च ा करना अिखल िव क साथ एकःवर हो जाना | उस अि तीय परम ततव क साथ िनःःवाथर सयोग ा करना ही एकमाऽ स चा कमर ह बाकी सब बोझ की गठिरया उठाना ह |

228) अपनी व रमान अवःथा चाह कसी भी हो उसको सव च मानन स ही आपक दय म आतम ान ान का अनायास उदय होन लगगा | आतम-सा ातकार को मील दर की कोई चीज समझकर उसक पीछ दौड़ना नही ह िचिनतत होना नही ह |

िचनता की गठरी उठाकर यिथत होन की जररत नही ह | िजस ण आप िनि नतता म गोता मारोग उसी ण आपका आतमःवरप गट हो जायगा | अर गट कया होगा आप ःवय आतमःवरप हो ही | अनातमा को छोड़ दो तो आतमःवरप तो हो ही | 229) सदा ॐकार का गान करो | जब भय व िचनता क िवचार आय तब िकसी मःत सत-फकीर महातमा क सािननधय का ःमरण करो | जब िननदा-शसा क सग आय तब महापरष क जीवन का अवलोकन करो | 230) िजनको आप भयानक घटनाए एव भयकर आघात समझ बठ हो वाःतव म व आपक ियतम आतमदव की ही करतत ह | समःत भयजनक तथा ाणनाशक घटनाओ क नाम-रप तो िवष क ह लिकन व बनी ह अमत स | 231) मन म यिद भय न हो तो बाहर चाह कसी भी भय की साममी उपिःथत हो जाय आपका कछ िबगाड़ नही सकती | मन म यिद भय होगा तो तरनत बाहर भी भयजनक पिरिःथया न होत हए भी उपिःथत हो जायगी | व क तन म भी भत िदखन लगगा | 232) िकसी भी पिरिःथित म िदखती हई कठोरता व भयानकता स भयभीत नही होना चािहए | क क काल बादल क पीछ पणर काशमय एकरस परम स ा सयर की तरह सदा िव मान ह | 233) आप अपन पर कदािप अिव ास मत करो | इस जगत म आप सब कछ कर सकत हो | अपन को कभी दबरल मत मानो | आपक अनदर तमाम शि या छपी हई ह | 234) यिद कोई मन य आपकी कोई चीज़ को चरा लता ह तो ड़रत कय हो वह मनय

और आप एक ह | िजस चीज़ को वह चराता ह वह चीज़ आपकी और उसकी द न की ह | 235) जो खद क िसवाय दसरा कछ दखता नही सनता नही जानता नही वह अननत ह |

जब तक खद क िसवाय और िकसी वःत का भान होता ह वह वःत स ची लगती ह तब तक आप

सीिमत व शात ह असीम और अनत नही |

236) ससार मझ कया आनद द सकता ह स पणर आनद मर भीतर स आया ह | म ही स पणर आननद ह स पणर मिहमा एव स पणर सख ह | 237) जीवन की समःत आवयकताए जीवन म उपिःथत ह परनत जीवन को जब हम

बा रग म रग दत ह तब जीवन का वाःतिवक रप हम नही जान पात | 238) िननदक की िननदा स म कय मरझाऊ शसक की शसा स म कय फल िननदा स म घटता नही और शसा स म बढ़ता नही | जसा ह वसा ही रहता ह | िफर िननदा-ःतित स

खटक कसी 239) ससार व ससार की समःयाओ म जो सबस अिधक फस हए ह उनही को वदानत की सबस अिधक आवयकता ह | बीमार को ही औषिध की यादा आवयकता ह | कय जी ठ क ह न 240) जगत क पाप व अतयाचार की बात मत करो लिकन अब भी आपको जगत म पाप

िदखता ह इसिलय रोओ | 241) हम यिद जान ल िक जगत म आतमा क िसवाय दसरा कछ ह ही नही और जो कछ

िदखता ह वह ःव नमाऽ ह तो इस जगत क दःख-दािरिय पाप-प य कछ भी हम अशात नही कर सकत | 242) िव ान दाशरिनक व आचाय की धमकी तथा अनमह आलोचना या अनमित

ानी पर कोई भाव नही ड़ाल सकती | 243) ह यि रप अननत आप अपन पर पर खड़ रहन का साहस करो समःत िव का बोझ आप िखलौन की तरह उठा लोग | 244) िसह की गजरना व नरिसह की ललकार तलवार की धार व साप की फफकार तपःवी की धमकी व नयायधीश की फटकारइन सबम आपका ही काश चमक रहा ह | आप इनस

भयभीत कय होत हो उलझन कय महसस करत हो मरी िब ली मझको याऊ वाली बात कय

होन दत हो 245) ससार हमारा िसफ़र िखलोना ही ह और कछ नही | अबोध बालक ही िखलौन स

भयभीत होता ह आसि करता ह िवचारशील यि नही |

246) जब तक अिव ा दर नही होगी तब तक चोरी जआ दार यिभचार कभी बद न

ह ग चाह लाख कोिशश करो | 247) आप हमशा अदर का धयान रखो | पहल हमारा भीतरी पतन होता ह | बा पतन तो इसका पिरणाम माऽ ह | 248) तयाग स हमशा आनद िमलता ह | जब तक आपक पास एक भी चीज़ बाकी ह तब

तक आप उस चीज़ क बधन म बध रहोग | आघात व तयाघात हमशा समान िवरोधी होत ह | 249) िनि तता ही आरो यता की सबस बड़ी दवाई ह | 250) सख अपन िसर पर दख का मकट पहन कर आता ह | जो सख को अपनायगा उस

दख को भी ःवीकार करना पड़गा | 251) म (आतमा) सबका ा ह | मरा ा कोई नही | 252) हजार म स कोई एक परष भीतर स शात िच वाला रहकर बाहर स ससारी जसा यवहार कर सकता ह | 253) सतय क िलए यिद शरीर का तयाग करना पड़ तो कर दना | यही आिखरी ममता ह जो हम तोड़नी होगी | 254) भय िचनता बचनी स ऊपर उठो | आपको ान का अनभव होगा | 255) आपको कोई भी हािन नही पहचा सकता | कवल आपक खयालात ही आपक पीछ पड़ ह | 256) म का अथर ह अपन पड़ोसी तथा सपकर म आनवाल क साथ अपनी वाःतिवक अभदता का अनभव करना | 257) ओ यार अपन खोय हए आतमा को एक बार खोज लो | धरती व आसमान क शासक आप ही हो | 258) सदव सम और सनन रहना ई र की सव पिर भि ह |

259) जब तक िच म ढ़ता न आ जाय िक शा की िविधय का पालन छोड़ दन स भी दय का यथाथर भि भाव न नही होगा तब तक शा की िविधय को पालत रहो |

गर भि एक अमोघ साधना 1 जनम मरण क िवषचब स म होन का कोई मागर नही ह कया सख-दःख हषर-शोक लाभ-

हािन मान-अपमान की थ पड़ स बचन का कोई उपाय नही ह कया

हअवय ह | ह िय आतमन नाशवान पदाथ स अपना मन वािपस लाकर सदगर क

चरणकमल म लगाओ | गरभि योग का आौय लो | गरसवा ऐसा अमोघ साधन ह िजसस

व रमान जीवन आननदमय बनता ह और शा त सख क ार खलत ह |

गर सवत त नर धनय यहा | ितनक नही दःख यहा न वहा || 2 स च सदगर की की हई भि िशय म सासािरक पदाथ क वरा य एव अनासि जगाती ह

परमातमा क ित म क पप महकाती ह | 3 तयक िशय सदगर की सवा करना चाहता ह लिकन अपन ढग स | सदगर चाह उस ढग स

सवा करन को कोई ततपर नही | जो िवरला साधक गर चाह उस ढ़ग स सवा कर सकता ह उस कोई कमी नही रहती |

िन सदगर की सवा स उनकी कपा ा होती ह और उस कपा स न िमल सक ऐसा तीन लोक म कछ भी नही ह | 4 गर िशय का स बनध पिवऽतम स बनध ह | ससार क तमाम बनधन स छड़ाकर वह मि क मागर पर ःथान कराता ह | यह स बनध जीवनपयरनत का स बनध ह | यह बात अपन दय की डायरी म सवणर-अ र स िलख लो | 5 उ ल सयर क काश क अिःततव को मान या न मान िफर भी सयर हमशा काशता ह | चचल मन का मनय मान या न मान लिकन सदगर की परमक याणकारी कपा सदव बरसती ही रहती ह | 6 सदगर की चरणरज म ःनान िकय िबना कवल किठन तप यार करन स या वद का

अधयन करन स वदानत का रहःय कट नही होता आतमानद का अमत नही िमलता | 7 दशरन शा क चाह िकतन मनथ पढ़ो हजार वष तक िहमालय की गफा म तप करो वष तक ाणायाम करो जीवनपयरनत शीषारसन करो समम िव म वास करक याखान दो िफर भी सदगर की कपा क िबना आतम ान नही होता | अतः िनरािभमानी सरल िनजाननद म मःत दयाल ःवभाव क आतम-सा ातकारी सदगर क चरण म जाओ | जीवन को धनय बनाओ | 8 सदगर की सवा िकय िबना शा का अधयन करना मम साधक क िलय समय बरबाद करन क बराबर ह | 9 िजसको सदगर ा हए ह ऐस िशय क िलय इस िव म कछ भी अा य नही ह | सदगर िशय को िमली हई परमातमा की अम य भट ह | अर नहीhellipनही व तो िशय क सम साकार रप म कट हए परमातमा ःवय ह | 10 सदगर क साथ एक ण िकया हआ सतसग लाख वष क तप स अननत गना ौ ह | आख क िनमषमाऽ म सदगर की अमतवष ि िशय क जनम-जनम क पाप को जला सकती ह | 11 सदगर जसा मपणर कपाल िहतिचनतक िव भर म दसरा कोई नही ह | 12 बाढ़ क समय याऽी यिद तफानी नदी को िबना नाव क पार कर सक तो साधक भी िबना सदगर क अपन जीवन क आिखरी लआय को िस कर सकता ह | यानी य दोन बात स भव ह |

अतः यार साधक मनमखी साधना की िज करना छोड़ दो | गरमखी साधना करन म ही सार ह | 13 सदगर क चरणकमल का आौय लन स िजस आननद का अनभव होता ह उसक आग िऽलोकी का साा य त छ ह | 14 आतम-सा ातकार क मागर म सबस महान शऽ अहभाव का नाश करन क िलए सदगर की आ ा का पालन अमोघ श ह | 15 रसोई सीखन क िलय कोई िसखानवाला चािहय िव ान और गिणत सीखन क िलय

अधयापक चािहय तो कया िव ा सदगर क िबना ही सीख लोग 16 सदगरकपा की स पि जसा दसरा कोई खजाना िव भर म नही | 17 सदगर की आ ा का उ लघन करना यह अपनी क खोदन क बराबर ह | 18 सदगर क कायर को शका की ि स दखना महापातक ह | 19 गरभि व गरसवा - य साधनारपी नौका की दो पतवार ह | उनकी मदद स िशय ससारसागर को पार कर सकता ह | 20 सदगर की कसौटी करना असभव ह | एक िववकाननद ही दसर िववकाननद को पहचान सकत ह | ब को जानन क िलय दसर ब की आवयकता रहती ह | एक रामतीथर का रहःय दसर रामतीथर ही पा सकत ह |

अतः सदगर की कसौटी करन की च ा छोड़कर उनको पिरपणर पर परमातमा मानो |

तभी जीवन म वाःतिवक लाभ होगा | 21 गरभि योग का आौय लकर आप अपनी खोई हई िद यता को पनः ा करो सख-दःख जनम-मतय आिद सब न स पार हो जाओ | 22 गरभि योग मान गर की सवा क ारा मन और िवकार पर िनयऽण एव पनः सःकरण | 23 िशय अपन गर क चरणकमल म णाम करता ह | उन पर ौ फल की वषार करक उनकी ःतित करता ह ldquoह परम प य पिवऽ गरदव मझ सव च सख ा हआ ह | म िन ा स जनम-मतय की पर परा स म हआ ह | म िनिवरक प समािध का श सख भोग रहा ह | जगत क िकसी भी कोन म म म ता स िवचरण कर सकता ह | सब पर मरी सम ि ह | मन ाकत मन का तयाग िकया ह | मन सब सक प एव रिच-अरिच का तयाग िकया ह | अब म अख ड शाित म िवौाित पा रहा ह hellip आननदमय हो रहा ह | म इस पणर अवःथा का वणरन नही कर पाता | ह प य गरदव म आवाक बन गया ह | इस दःतर भवसागर को पार करन म आपन

मझ सहायता की ह | अब तक मझ कवल अपन शरीर म ही स पणर िव ास था | मन िविभनन योिनय म अस य जनम िलय | ऐसी सव च िनभरय अवःथा मझ कौन स पिवऽ कम क कारण ा हई ह यह म नही जानता | सचमच यह एक दलरभ भा य ह |

यह एक महान उतक लाभ ह | अब म आननद स नाचता ह | मर सब दःख न हो गय | मर सब मनोरथ पणर हए ह |

मर कायर स पनन हए ह | मन सब वािछत वःतए ा की ह | मरी इ छा पिरपणर हई ह | आप मर स च माता-िपता हो | मरी व रमान िःथित म म दसर क सम िकस कार कट कर सक सवरऽ सख और आननद का अननत सागर मझ लहराता हआ िदख रहा ह | मर अतःच िजसस खल गय वह महावाकय lsquoत वमिसrsquo ह | उपिनषद एव वदानतसऽ को भी धनयवाद | िजनह न िन गर का एव उपिनषद क महावाकय का रप धारण िकया ह | ऐस ौी यासजी को णाम ौी शकराचायर को णाम सासािरक मनय क िसर पर गर क चरणामत का एक िबनद भी िगर तो भी उसक ःब दःख का नाश होता ह | यिद एक िन परष को व पहनाय जाय तो सार िव को व पहनान एव भोजन करवान क बराबर ह कय िक िन परष सचराचर िव म या ह | सबम व ही ह |rdquo

ॐhellip ॐ hellip ॐ hellip

ःवामी िशवानद जी

ौी राम-विश सवाद ौी विश जी कहत ह ldquoह रघकलभषण ौी राम अनथर ःवरप िजतन सासािरक पदाथर ह व सब जल म तरग क समान िविवध रप धारण करक चमतकार उतपनन करत ह अथारत ई छाए उतपनन करक जीव को मोह म फसात ह | परत जस सभी तरग जल ःवरप ही ह उसी कार सभी पदाथर वःततः न र ःवभाव वाल ह |

बालक की क पना स आकाश म य और िपशाच िदखन लगत ह परनत बि मान मनय क िलए उन य और िपशाच का कोई अथर नही | इसी कार अ ानी क िच म यह जगत सतय हो ऐसा लगता ह जबिक हमार जस ािनय क िलय यह जगत कछ भी नही | यह समम िव पतथर पर बनी हई पतिलय की सना की तरह रपालोक तथा अतर-बा िवषय स शनय ह | इसम सतयता कसी परनत अ ािनय को यह िव सतय लगता ह |rdquo विश जी बोल ldquoौी राम जगत को सतय ःवरप म जानना यह ाित ह मढ़ता ह | उस िमथया अथारत कि पत समझना यही उिचत समझ ह | ह राघव तव ा अहता आिद सब िवम-िवलास शात िशवःवरप श ःवरप ही ह | इसिलय मझ तो क अितिर और कछ भी नही िदखता | आकाश म जस जगल नही वस ही म जगत नही ह | ह राम ार ध वश ा कम स िजस परष की च ा कठपतली की तरह ई छाशनय और याकलतारिहत होती ह वह शानत मनवाला परष जीवनम मिन ह | ऐस जीवनम ानी को इस

जगत का जीवन बास की तरह बाहर-भीतर स शनय रसहीन और वासना-रिहत लगता ह | इस य पच म िजस रिच नही दय म िचनमाऽ अ य ही अ छा लगता ह ऐस परष न

भीतर तथा बाहर शािनत ा कर ली ह और इस भवसागर स पार हो गया ह | रघनदन श व ा कहत ह िक मन का ई छारिहत होना यही समािध ह कय िक ई छाओ का तयाग करन स मन को जसी शािनत िमलती ह ऐसी शािनत सकड़ उपदश स भी नही िमलती | ई छा की उतपि स जसा दःख ा होता ह ऐसा दःख तो नरक म भी नही | ई छाओ की शािनत

स जसा सख होता ह ऐसा सख ःवगर तो कया लोक म भी नही होता | अतः समःत शा तपःया यम और िनयम का िनचोड़ यही ह िक ई छामाऽ दःखदायी ह और ई छा का शमन मो ह | ाणी क दय म जसी-जसी और िजतनी-िजतनी ई छाय उतपनन होती ह उतना ही दख स वह

ड़रता रहता ह | िववक-िवचार ारा ई छाय जस-जस शानत होती जाती ह वस-वस दखरपी छत की बीमारी िमटती जाती ह |

आसि क कारण सासािरक िवषय की ई छाय य - य गहनीभत होती जाती ह तय -तय

दःख की िवषली तरग बढ़ती जाती ह | अपन परषाथर क बल स इस ई छारपी यािध का उपचार यिद नही िकया जाय तो इस यािध स छटन क िलय अनय कोई औषिध नही ह ऐसा म ढ़तापवरक

मानता ह | एक साथ सभी ई छाओ का स पणर तयाग ना हो सक तो थोड़ी-थोड़ी ई छाओ का धीर-धीर तयाग

करना चािहय परत रहना चािहय ई छा क तयाग म रत कय िक सनमागर का पिथक दखी नही होता | जो नराधम अपनी वासना और अहकार को ीण करन का य नही करता वह िदन -िदन अपन

को रावण की तरह अधर कऐ म ढ़कल रहा ह | ई छा ही दख की जनमदाऽी इस ससाररपी बल का बीज ह | यिद इस बीज को आतम ानरपी अि न स ठ क-ठ क जला िदया तो पनः यह अकिरत नही होता | रघकलभषण राम ई छामाऽ ससार ह और ई छाओ का अभाव ही िनवारण ह | अतः अनक कार की माथाप ची म ना पड़कर कवल ऐसा य करना चािहय िक ई छा उतपनन ना हो | अपनी बि स ई छा का िवनाश करन को जो ततपर नही ऐस अभाग को शा और गर का उपदश

भी कया करगा जस अपनी जनमभमी जगल म िहरणी की मतय िनि त ह उसी कार अनकिवध दख का िवःतार कारनवाल ई छारपी िवषय-िवकार स य इस जगत म मनय की मतय िनि त ह | यिद मानव ई छाओ क कारण ब च -सा मढ़ ना बन तो उस आतम ान क िलय अ प य ही करना पड़ | इसिलय सभी कार स ई छाओ को शानत करना चािहय | ई छा क शमन स परम पद की ाि होती ह | ई छारिहत हो जाना यही िनवारण ह और ई छाय

होना ही बधन ह | अतः यथाशि ई छा को जीतना चािहय | भला इतना करन म कया किठनाई ह जनम जरा यािध और मतयरपी कटीली झािड़य और खर क व - समह की जड़ भी ई छा ही ह

| अतः शमरपी अि न स अदर-ही-अदर बीज को जला ड़ालना चािहय| जहा ई छाओ का अभाव ह

वहा मि िनि त ह |

िववक वरा य आिद साधन स ई छा का सवरथा िवनाश करना चािहय | ई छा का सबध जहा-जहा ह वहा-वहा पाप प य दखरािशया और ल बी पीड़ाओ स य बधन को हािज़र ही समझो | परष

की आतिरक ई छा य - य शानत होती जाती ह तय -तय मो क िलय उसका क याणकारक

साधन बढ़ता जाता ह | िववकहीन ई छा को पोसना उस पणर करना यह तो ससाररपी िवष व को पानी स सीचन क समान ह |rdquo

- ौीयोगविश महारामायण

आतमबल का आवाहन कया आप अपन-आपको दबरल मानत हो लघतामथी म उलझ कर पिरिःतिथय स िपस रह हो

अपना जीवन दीन-हीन बना बठ हो hellipतो अपन भीतर सष आतमबल को जगाओ | शरीर चाह ी का हो चाह परष का कित क साा य म जो जीत ह व सब ी ह और कित क बनधन स पार अपन ःवरप की पहचान िजनह न कर ली ह अपन मन की गलामी की बिड़या तोड़कर िजनह न फ क दी ह व परष ह | ी या परष शरीर एव मानयताए होती ह | तम तो तन-मन स पार िनमरल आतमा हो | जागोhellipउठोhellipअपन भीतर सोय हय िन यबल को जगाओ | सवरदश सवरकाल म सव म

आतमबल को िवकिसत करो | आतमा म अथाह सामथयर ह | अपन को दीन-हीन मान बठ तो िव म ऐसी कोई स ा नही जो त ह ऊपर उठा सक | अपन आतमःवरप म िति त हो गय तो िऽलोकी म ऐसी कोई हःती नही जो त ह दबा सक | भौितक जगत म वाप की शि ईलकशोिनक शि िव त की शि गरतवाकषरण की शि बड़ी मानी जाती ह लिकन आतमबल उन सब शि य का सचालक बल ह | आतमबल क सािननधय म आकर पग ार ध को पर िमल जात ह दव की दीनता पलायन हो जाती ह ितकल पिरिःतिथया अनकल हो जाती ह | आतमबल सवर िरि -िसि य का िपता ह |

आतमबल कस जगाय हररोज़ तःकाल ज दी उठकर सय दय स पवर ःनानािद स िनवत हो जाओ | ःव छ पिवऽ ःथान

म आसन िबछाकर पवारिभमख होकर प ासन या सखासन म बठ जाओ | शानत और सनन वि

धारण करो | मन म ढ भावना करो िक म कित-िनिमरत इस शरीर क सब अभाव को पार करक सब

मिलनताओ-दबरलताओ स िप ड़ छड़ाकर आतमा की मिहमा म जागकर ही रहगा |

आख आधी खली आधी बद रखो | अब फ़फ़ड़ म खब ास भरो और भावना करो की ास क साथ

म सयर का िद य ओज भीतर भर रहा ह | ास को यथाशि अनदर िटकाय रखो | िफ़र lsquoॐhelliprsquo का ल बा उ चारण करत हए ास को धीर-धीर छोड़त जाओ | ास क खाली होन क बाद तरत ास ना लो | यथाशि िबना ास रहो और भीतर ही भीतर lsquoहिर ॐhelliprsquo lsquoहिर ॐhelliprsquo का मानिसक

जाप करो | िफ़र स फ़फ़ड़ म ास भरो | पव रीित स ास यथाशि अनदर िटकाकर बाद म धीर-धीर छोड़त हए lsquoॐhelliprsquo का गजन करो | दस-पिह िमनट ऐस ाणायाम सिहत उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo की धविन करक शानत हो जाओ | सब

यास छोड़ दो | वि य को आकाश की ओर फ़लन दो | आकाश क अनदर पथवी ह | पथवी पर अनक दश अनक समि एव अनक लोग ह | उनम स एक

आपका शरीर आसन पर बठा हआ ह | इस पर य को आप मानिसक आख स भावना स दखत

रहो | आप शरीर नही हो बि क अनक शरीर दश सागर पथवी मह न ऽ सयर चनि एव पर ा ड़ क

ा हो सा ी हो | इस सा ी भाव म जाग जाओ | थोड़ी दर क बाद िफ़र स ाणायाम सिहत lsquoॐhelliprsquo का जाप करो और शानत होकर अपन िवचार को दखत रहो | इस अवःथा म ढ़ िन य करो िक lsquoम जसा चहता ह वसा होकर रहगा |rsquo िवषयसख स ा धन-

दौलत इतयािद की इ छा न करो कय िक िन यबल या आतमबलरपी हाथी क पदिच म और सभी क पदिच समािव हो ही जायग | आतमानदरपी सयर क उदय होन क बाद िम टी क तल क दीय क ाकाश रपी शि सखाभास की गलामी कौन कर

िकसी भी भावना को साकार करन क िलय दय को करद ड़ाल ऐसी िन यातमक बिल वि होनी आवशयक ह | अनतःकरण क गहर-स-गहर दश म चोट कर ऐसा ाण भरक िन बल का आवाहन करो | सीना तानकर खड़ हो जाओ अपन मन की दीन-हीन दखद मानयताओ को कचल

ड़ालन क िलय | सदा ःमरण रह की इधर-उधर भटकती वि य क साथ त हारी शि भी िबखरती रहती ह | अतः वि य को बहकाओ नही | तमाम वि य को एकिऽत करक साधनाकाल म आतमिचनतन म लगाओ और यवहारकाल म जो कायर करत हो उसम लगाओ | द िच होकर हरक कायर करो | अपन ःवभाव म स आवश को सवरथा िनमरल कर दो | आवश म आकर कोई िनणरय मत लो कोई िबया मत करो | सदा शानत वि धारण करन का अ यास करो | िवचारशील एव सनन रहो | ःवय अचल रहकर सागर की तरह सब वि य की तरग को अपन

भीतर समालो | जीवमाऽ को अपना ःवरप समझो | सबस ःनह रखो | िदल को यापक रखो | सकिच ता का िनवारण करत रहो | ख ड़ातमक वि का सवरथा तयाग करो | िजनको ानी महापरष का सतसग और अधयातमिव ा का लाभ िमल जाता ह उसक जीवन स

दःख िवदा होन लगत ह | ॐ आननद आतमिन ा म जाग हए महापरष क सतसग एव सतसािहतय स जीवन को भि और वदात स प

एव पलिकत करो | कछ ही िदन क इस सघन योग क बाद अनभव होन लगगा िक भतकाल क

नकारतमक ःवभाव सशयातमक-हािनकारक क पनाओ न जीवन को कचल ड़ाला था िवषला कर िदया था | अब िन यबल क चमतकार का पता चला | अततरम म आिवरभत िद य खज़ाना अब

िमला | ार ध की बिड़या अब टटन लगी | ठ क ह न करोग ना िह मत पढ़कर रख मत दना इस पिःतका को | जीवन म इसको बार-बार पढ़त रहो | एक िदन म यह पणर ना होगा | बार-बार अ यास करो | त हार िलय यह एक ही पिःतका काफ़ी ह | अनय कचराप टी ना पड़ोग तो चलगा | शाबाश वीर शाबाश

  • परसतावना
  • जीवन रसायन
  • गर भकति एक अमोघ साधना
  • शरी राम-वशिषठ सवाद
  • आतमबल का आवाहन
  • आतमबल कस जगाय
Page 18: जीवन रसायन - HariOmGroup · ‘जीवन रसायन’ का यह िदय कटोरा आत्मरस के िपपासुओं हाथ

करन म िशिथल हो गई हो िकसी पड़ क नीच पड़ ह जीवन अस भव हो रहा हो मतय का आगमन हो रहा हो तब भी अनदर स वही िनभरय धविन उठ lsquoसोऽहमhellipसोऽहमhellipमझ भय नहीhellipमरी मतय नहीhellipमझ भख नहीhellip यास नहीhellip कित की कोई भी यथा मझ न नही कर सकतीhellipम वही हhellipवही हhelliprsquo 102) िजनक आग िय-अिय अनकल-ितकल सख-दःख और भत-भिवय एक समान ह ऐस ानी आतमव ा महापरष ही स च धनवान ह | 103) दःख म दःखी और सख म सखी होन वाल लोह जस होत ह | दःख म सखी रहन वाल सोन जस होत ह | सख-दःख म समान रहन वाल र जस होत ह परनत जो सख-दःख की भावना स पर रहत ह व ही स च साट ह | 104) ःव न स जाग कर जस ःव न को भल जात ह वस जामत स जागकर थोड़ी दर क

िलए जामत को भल जाओ | रोज ातः काल म पनिह िमनट इस कार ससार को भल जान की आदत डालन स आतमा का अनसधान हो सकगा | इस योग स सहजावःथा ा होगी | 105) तयाग और म स यथाथर ान होता ह | दःखी ाणी म तयाग व म िवचार स आत ह

| सखी ाणी म तयाग व म सवा स आत ह कय िक जो ःवय दःखी ह वह सवा नही कर सकता पर िवचार कर सकता ह | जो सखी ह वह सख म आस होन क कारण उसम िवचार का उदय नही हो सकता लिकन वह सवा कर सकता ह | 106) लोग की पजा व णाम स जसी सननता होती ह वसी ही सननता जब मार पड़

तब भी होती हो तो ही मन य िभ ानन महण करन का स चा अिधकारी माना जाता ह | 107) हरक साधक को िब कल नय अनभव की िदशा म आग बढ़ना ह | इसक िलय

ानी महातमा की अतयनत आवयकता होती ह | िजसको स ची िज ासा हो उस ऐस

महातमा िमल ही जात ह | ढ़ िज ासा स िशय को गर क पास जान की इ छा होती ह | यो य

िज ास को समथर गर ःवय दशरन दत ह | 108) बीत हए समय को याद न करना भिवय की िचनता न करना और व रमान म ा

सख-दःखािद म सम रहना य जीवनम परष क ल ण ह | 109) जब बि एव दय एक हो जात ह तब सारा जीवन साधना बन जाता ह |

110) बि मान परष ससार की िचनता नही करत लिकन अपनी मि क बार म सोचत ह |

मि का िवचार ही तयागी दानी सवापरायण बनाता ह | मो की इ छा स सब सदगण आ जात ह

| ससार की इ छा स सब दगरण आ जात ह | 111) पिरिःथित िजतनी किठन होती ह वातावरण िजतना पीड़ाकारक होता ह उसस

गजरन वाला उतना ही बलवान बन जाता ह | अतः बा क और िचनताओ का ःवागत करो | ऐसी पिरिःथित म भी वदानत को आचरण म लाओ | जब आप वदानती जीवन यतीत करग तब दखग

िक समःत वातावरण और पिरिःथितया आपक वश म हो रही ह आपक िलय उपयोगी िस हो रही ह | 112) हरक पदाथर पर स अपन मोह को हटा लो और एक सतय पर एक तथय पर अपन

ई र पर समम धयान को किनित करो | तरनत आपको आतम-सा ातकार होगा | 113) जस बड़ होत-होत बचपन क खलकद छोड़ दत हो वस ही ससार क खलकद छोड़कर आतमाननद का उपभोग करना चािहय | जस अनन व जल का सवन करत हो वस ही आतम-

िचनतन का िनरनतर सवन करना चािहय | भोजन ठ क स होता ह तो ति की डकार आती ह वस

ही यथाथर आतमिचनतन होत ही आतमानभव की डकार आयगी आतमाननद म मःत ह ग |

आतम ान क िसवा शाित का कोई उपाय नही | 114) आतम ानी क हकम स सयर काशता ह | उनक िलय इनि पानी बरसाता ह | उनही क

िलय पवन दत बनकर गमनागमन करता ह | उनही क आग समि रत म अपना िसर रगड़ता ह | 115) यिद आप अपन आतमःवरप को परमातमा समझो और अनभव करो तो आपक सब

िवचार व मनोरथ सफल ह ग उसी ण पणर ह ग | 116) राजा-महाराजा दवी-दवता वद-पराण आिद जो कछ ह व आतमदश क सक पमाऽ

ह | 117) जो लोग ितकलता को अपनात ह ई र उनक स मख रहत ह | ई र िजनह अपन

स दर रखना चाहत ह उनह अनकल पिरिःथितया दत ह | िजसको सब वःतए अनकल एव पिवऽ

सब घटनाए लाभकारी सब िदन शभ सब मनय दवता क रप म िदखत ह वही परष ततवदश ह | 118) समता क िवचार स िच ज दी वश म होता ह हठ स नही |

119) ऐस लोग स स बनध रखो िक िजसस आपकी सहनशि बढ़ समझ की शि बढ़

जीवन म आन वाल सख-दःख की तरग का आपक भीतर शमन करन की ताकत आय समता बढ़

जीवन तजःवी बन | 120) लोग बोलत ह िक धयान व आतमिचनतन क िलए हम फरसत नही िमलती | लिकन

भल मनय जब नीद आती ह तब सब महतवपणर काम भी छोड़कर सो जाना पड़ता ह िक नही

जस नीद को महतव दत हो वस ही चौबीस घनट म स कछ समय धयान व आतमिचनतन म भी िबताओ | तभी जीवन साथरक होगा | अनयथा कछ भी हाथ नही लगगा | 121) भल जाओ िक तम मनय हो अमक जाित हो अमक उ हो अमक िड़मीवाल हो अमक धनधवाल हो | तम िनगरण िनराकार सा ीरप हो ऐसा ढ़ िन य करो | इसीम तमाम

कार की साधनाए िबयाए योगािद समािव हो जात ह | आप सवर यापक अख ड चतनय हो | सार ान का यह मल ह | 122) दोष तभी िदखता जब हमार लोचन म क अभावरप पीिलया रोग स मःत होत ह | 123) साधक यिद अ यास क मागर पर उसी कार आग बढ़ता जाय िजस कार ार भ

म इस मागर पर चलन क िलए उतसाहपवरक कदम रखा था तो आयरपी सयर अःत होन स पहल

जीवनरपी िदन रहत ही अवय सोऽहम िसि क ःथान तक पहच जाय | 124) लोग ज दी स उननित कय नही करत कय िक बाहर क अिभाय एव िवचारधाराओ का बहत बड़ा बोझ िहमालय की तरह उनकी पीठ पर लदा हआ ह | 125) अपन ित होन वाल अनयाय को सहन करत हए अनयायकतार को यिद मा कर िदया जाय तो ष म म पिरणत हो जाता ह | 126) साधना की शरआत ौ ा स होती ह लिकन समाि ान स होनी चािहय | ान मान

ःवयसिहत सवर ःवरप ह ऐसा अपरो अनभव | 127) अपन शरीर क रोम-रोम म स ॐ का उ चारण करो | पहल धीम ःवर म ार भ

करो | शर म धविन गल स िनकलगी िफर छाती स िफर नािभ स और अनत म रीढ़ की ह डी क

आिखरी छोर स िनकलगी | तब िव त क धकक स सष ना नाड़ी तरनत खलगी | सब कीटाणसिहत

तमाम रोग भाग खड़ ह ग | िनभरयता िह मत और आननद का फ वारा छटगा | हर रोज ातःकाल

म ःनानािद करक सय दय क समय िकसी एक िनयत ःथान म आसन पर पवारिभमख बठकर

कम-स-कम आधा घनटा करक तो दखो | 128) आप जगत क भ बनो अनयथा जगत आप पर भतव जमा लगा | ान क

मतािबक जीवन बनाओ अनयथा जीवन क मतािबक ान हो जायगा | िफर यग की याऽा स भी दःख का अनत नही आयगा | 129) वाःतिवक िश ण का ारभ तो तभी होता ह जब मनय सब कार की सहायताओ स िवमख होकर अपन भीतर क अननत ॐोत की तरफ अमसर होता ह | 130) य पच की िनवित क िलए अनतःकरण को आननद म सरोबार रखन क िलए

कोई भी कायर करत समय िवचार करो म कौन ह और कायर कौन कर रहा ह भीतर स जवाब

िमलगा मन और शरीर कायर करत ह | म सा ीःवरप ह | ऐसा करन स कतारपन का अह

िपघलगा सख-दःख क आघात मनद ह ग | 131) राग- ष की िनवित का कया उपाय ह उपाय यही ह िक सार जगत-पच को मनोरा य समझो | िननदा-ःतित स राग- ष स पच म सतयता ढ़ होती ह | 132) जब कोई खनी हाथ आपकी गरदन पकड़ ल कोई श धारी आपको कतल करन क

िलए ततपर हो जाय तब यिद आप उसक िलए सननता स तयार रह दय म िकसी कार का भय

या िवषाद उतपनन न हो तो समझना िक आपन राग- ष पर िवजय ा कर िलया ह | जब आपकी ि पड़त ही िसहािद िहसक जीव की िहसावित गायब हो जाय तब समझना िक अब राग- ष का अभाव हआ ह | 133) आतमा क िसवाय अनय कछ भी नही ह - ऐसी समझ रखना ही आतमिन ा ह | 134) आप ःव न ा ह और यह जगत आपका ही ःव न ह | बस िजस ण यह ान हो जायगा उसी ण आप म हो जाएग | 135) िदन क चौबीस घ ट को साधनामय बनान क िलय िनक मा होकर यथर िवचार करत हए मन को बार-बार सावधान करक आतमिचतन म लगाओ | ससार म सल न मन को वहा स उठा कर आतमा म लगात रहो | 136) एक बार सागर की एक बड़ी तरग एक बलबल की िता पर हसन लगी | बलबल न

कहा ओ तरग म तो छोटा ह िफर भी बहत सखी ह | कछ ही दर म मरी दह टट जायगी िबखर

जायगी | म जल क साथ जल हो जाऊगा | वामन िमटकर िवराट बन जाऊगा | मरी मि बहत

नजदीक ह | मझ आपकी िःथित पर दया आती ह | आप इतनी बड़ी हई हो | आपका छटकारा ज दी नही होगा | आप भाग-भागकर सामनवाली च टान स टकराओगी | अनक छोटी-छोटी तरग

म िवभ हो जाओगी | उन अस य तरग म स अननत-अननत बलबल क रप म पिरवितरत हो जाओगी | य सब बलबल फटग तब आपका छटकारा होगा | बड़ पन का गवर कय करती हो जगत की उपलि धय का अिभमान करक परमातमा स दर मत जाओ | बलबल की तरह सरल

रहकर परमातमा क साथ एकता का अनभव करो | 137) जब आप ईयार ष िछिानवषण दोषारोपण घणा और िननदा क िवचार िकसीक

ित भजत ह तब साथ-ही-साथ वस ही िवचार को आमिऽत भी करत ह | जब आप अपन भाई की आख म ितनका भ कत ह तब अपनी आख म भी आप ताड़ भ क रह ह | 138) शरीर अनक ह आतमा एक ह | वह आतमा-परमातमा मझस अलग नही | म ही कतार सा ी व नयायधीश ह | म ही ककर श आलोचक ह और म ही मधर शसक ह | मर िलय तयक

यि ःवतऽ व ःव छनद ह | बनधन पिरि छननता और दोष मरी ि म आत ही नही | म म

हपरम म ह और अनय लोग भी ःवतऽ ह | ई र म ही ह | आप भी वही हो | 139) िजस कार बालक अपनी परछा म बताल की क पना कर भय पाता ह उसी कार जीव अपन ही सक प स भयभीत होता ह और क पाता ह | 140) कभी-कभी ऐसी भावना करो िक आपक सामन चतनय का एक महासागर लहरा रहा ह | उसक िकनार खड़ रह कर आप आनद स उस दख रह ह | आपका शरीर सागर की सतह पर घमन गया ह | आपक दखत ही दखत वह सागर म डब गया | इस समःत पिरिःथित को दखन वाल आप सा ी आतमा शष रहत ह | इस कार सा ी रप म अपना अनभव करो | 141) यिद हम चाहत ह िक भगवान हमार सब अपराध माफ कर तो इसक िलए सगम साधना यही ह िक हम भी अपन सबिधत सब लोग क सब अपराध माफ कर द |

कभी िकसी क दोष या अपराध पर ि न डाल कय िक वाःतव म सब रप म हमारा यारा ई दव ही बीड़ा कर रहा ह |

142) पणर पिवऽता का अथर ह बा भाव स भािवत न होना | सासािरक मनोहरता एव घणा स पर रहना राजी-नाराजगी स अिवचल िकसी म भद न दखना और आतमानभव क ारा आकषरण व तयाग स अिल रहना | यही वदानत का उपिनषद का

रहःय ह | 143) ई र सा ातकार तभी होगा जब ससार की ि स तीत होन वाल बड़-स-बड़ विरय को भी मा करन का आपका ःवभाव बन जायगा | 144) चाल यवहार म स एकदम उपराम होकर दो िमनट क िलए िवराम लो |

सोचो िक lsquo म कौन ह सद -गम शरीर को लगती ह | भख- यास ाण को लगती ह |

अनकलता-ितकलता मन को लगती ह | शभ-अशभ एव पाप-प य का िनणरय बि करती ह | म न शरीर ह न ाण ह न मन ह न बि ह | म तो ह इन सबको स ा दन वाला इन सबस नयारा िनलप आतमा |rsquo 145) जो मनय िनरतर lsquoम म हhelliprsquo ऐसी भावना करता ह वह म ही ह और lsquoम ब हhelliprsquo ऐसी भावना करनवाला ब ही ह | 146) आप िनभरय ह िनभरय ह िनभरय ह | भय ही मतय ह | भय ही पाप ह | भय ही नकर ह | भय ही अधमर ह | भय ही यिभचार ह | जगत म िजतन असत या िमथया भाव ह व सब इस भयरपी शतान स पदा हए ह | 147) परिहत क िलए थोड़ा काम करन स भी भीतर की शि या जागत होती ह |

दसर क क याण क िवचारमाऽ स दय म एक िसह क समान बल आ जाता ह | 148) हम यिद िनभरय ह ग तो शर को भी जीतकर उस पाल सक ग | यिद डरग तो क ा भी हम फ़ाड़ खायगा | 149) तयक िबया तयक यवहार तयक ाणी ःवरप िदख यही सहज समािध ह | 150) जब किठनाईया आय तब ऐसा मानना िक मझ म सहन शि बढ़ान क िलए ई र न य सयोग भज ह | किठन सयोग म िह मत रहगी तो सयोग बदलन लगग |

िवषय म राग- ष रह गया होगा तो वह िवषय कसौटी क रप म आग आयग और उनस पार होना पड़गा | 151) ततव ि स न तो आपन जनम िलया न कभी लग | आप तो अनत ह सवर यापी ह िनतयम अजर-अमर अिवनाशी ह | जनम-मतय का ही गलत ह महा-

मखरतापणर ह | जहा जनम ही नही हआ वहा मतय हो ही कस सकती ह 152) आप ही इस जगत क ई र हो | आपको कौन दबरल बना सकता ह जगत म आप ही एकमाऽ स ा हो | आपको िकसका भय खड़ हो जाओ | म हो जाओ | ठ क स समझ लो िक जो कोई िवचार या श द आपको दबरल बनाता ह वही एकमाऽ अशभ ह | मनय को दबरल व भयभीत करनवाला जो कछ इस ससार म ह वह पाप ह | 153) आप अपना कायर या कतर य करो लिकन न उसक िलए कोई िचनता रह न ही कोई

इ छा | अपन कायर म सख का अनभव करो कय िक आपका कायर ःवय सख या िवौाम ह | आपका कायर आतमानभव का ही दसरा नाम ह | कायर म लग रहो | कायर आपको आतमानभव कराता ह |

िकसी अनय हत स कायर न करो | ःवतऽ वि स अपन कायर पर डट जाओ | अपन को ःवतऽ

समझो िकसीक कदी नही | 154) यिद आप सतय क मागर स नही हटत तो शि का वाह आपक साथ ह समय आपक

साथ ह ऽ आपक साथ ह | लोग को उनक भतकाल की मिहमा पर फलन दो भिवयकाल की स पणर मिहमा आपक हाथ म ह | 155) जब आप िद य म क साथ चा डाल म चोर म पापी म अ यागत म और सबम भ क दशरन करग तब आप भगवान ौी कण क मपाऽ बन जायग | 156) आचायर गौड़पाद न ःप कहा आप सब आपस म भल ही लड़त रह लिकन मर साथ नही लड़ सक ग | आप सब लोग मर पट म ह | म आतमःवरप स सवर या ह | 157) मनय सभी ािणय म ौ ह सब दवताओ स भी ौ ह | दवताओ को भी िफर स

धरती पर आना पड़गा और मनय शरीर ा करक मि ा करनी होगी | 158) िनि नतता क दो सऽ जो कायर करना जररी ह उस परा कर दो | जो िबनजररी ह

उस भल जाओ | 159) सवा-म-तयाग ही मनय क िवकास का मल मऽ ह | अगर यह मऽ आपको जच

जाय तो सभी क ित सदभाव रखो और शरीर स िकसी-न-िकसी यि को िबना िकसी मतलब क

सहयोग दत रहो | यह नही िक जब मरी बात मानग तब म सवा करगा | अगर बनधक मरी बात

नही मानत तो म सवा नही करगा |

भाई तब तो तम सवा नही कर पाओग | तब तो तम अपनी बात मनवा कर अपन अह की पजा ही

करोग | 160) जस ःव न िमथया ह वस ही यह जामत अवःथा भी ःव नवत ही ह िमथया ह | हरक

को अपन इस ःव न स जागना ह | सदगर बार-बार जगा रह ह लिकन जाग कर वापस सो न जाए ऐसा परषाथर तो हम ही करना होगा | 161) सदा सननमख रहो | मख को कभी मिलन मत करो | िन य कर लो िक आपक

िलय शोक न इस जगत म जनम नही िलया ह | आननदःवरप म िचनता का ःथान ही कहा ह 162) समम ा ड एक शरीर ह | समम ससार एक शरीर ह | जब तक आप तयक क

साथ एकता का अनभव करत रहग तब तक सब पिरिःथितया और आस-पास की चीज़ हवा और समि की लहर भी आपक प म रहगी | 163) आपको जो कछ शरीर स बि स या आतमा स कमजोर बनाय उसको िवष की तरह

ततकाल तयाग दो | वह कभी सतय नही हो सकता | सतय तो बलद होता ह पावन होता ह

ानःवरप होता ह | सतय वह ह जो शि द | 164) साधना म हमारी अिभरिच होनी चािहय साधना की तीो माग होनी चािहय | 165) दसर क दोष की चचार मत करो चाह व िकतन भी बड़ ह | िकसी क दोष की चचार करक आप उसका िकसी भी कार भला नही करत बि क उस आघात पहचात ह और साथ-ही-साथ अपन आपको भी | 166) इस ससार को सतय समझना ही मौत ह | आपका असली ःवरप तो आननदःवरप

आतमा ह | आतमा क िसवा ससार जसी कोई चीज ही नही ह | जस सोया हआ मनय ःव न म अपनी एकता नही जानता अिपत अपन को अनक करक दखता ह वस ही आननदःवरप आतमा जामत ःव न और सषि - इन तीन ःवरप को दखत हए अपनी एकता अि तीयता का अनभव

नही करता | 167) मनोजय का उपाय ह अ यास और वरा य | अ यास मान य पवरक मन को बार-बार परमातम-िचतन म लगाना और वरा य मान मन को ससार क पदाथ की ओर स वापस

लौटाना | 168) िकसी स कछ मत मागो | दन क िलय लोग आपक पीछ-पीछ घमग | मान नही

चाहोग तो मान िमलगा | ःवगर नही चाहोग तो ःवगर क दत आपक िलय िवमान लकर आयग |

उसको भी ःवीकार नही करोग तो ई र आपको अपन दय स लगायग | 169) कभी-कभी उदय या अःत होत हए सयर की ओर चलो | नदी सरोवर या समि क तट

पर अकल घमन जाओ | ऐस ःथान की मलाकात लो जहा शीतल पवन मनद-मनद चल रही हो | वहा परमातमा क साथ एकःवर होन की स भावना क ार खलत ह | 170) आप य -ही इ छा स ऊपर उठत हो तय -ही आपका इि छत पदाथर आपको खोजन

लगता ह | अतः पदाथर स ऊपर उठो | यही िनयम ह | य - य आप इ छक िभ क याचक का भाव धारण करत हो तय -तय आप ठकराय जात हो | 171) कित क तयक पदाथर को दखन क िलय काश जररी ह | इसी कार मन बि

इिनिय को अपन-अपन कायर करन क िलय आतम-काश की आवयकता ह कय िक बाहर का कोई काश मन बि इिनिय ाणािद को चतन करन म समथर नही | 172) जस ःव न ा परष को जागन क बाद ःव न क सख-दःख जनम-मरण पाप-प य

धमर-अधमर आिद ःपशर नही करत कय िक वह सब खद ही ह | खद क िसवाय ःव न म दसरा कछ

था ही नही | वस ही जीवनम ानवान परष को सख-दःख जनम-मरण पाप-प य धमर-अधमर ःपशर नही करत कय िक व सब आतमःवरप ही ह | 173) वही भमा नामक आतम योित क म रह कर भ क रही ह सअर म रह कर घर रही ह गध म रह कर रक रही ह लिकन मखर लोग शरीर पर ही ि रखत ह चतनय ततव पर नही | 174) मनय िजस ण भत-भिवय की िचनता का तयाग कर दता ह दह को सीिमत और उतपि -िवनाशशील जानकर दहािभमान को तयाग दता ह उसी ण वह एक उ चतर अवःथा म पहच जाता ह | िपजर स छटकर गगनिवहार करत हए प ी की तरह मि का अनभव करता ह | 175) समःत भय एव िचनताए आपकी इ छाओ का णाम ह | आपको भय कय लगता ह

कय िक आपको आशका रहती ह िक अमक चीज कही चली न जाय | लोग क हाःय स आप डरत

ह कय िक आपको यश की अिभलाषा ह कीितर म आसि ह | इ छाओ को ितलाजिल द दो | िफर दखो मजा कोई िज मदारी नहीकोई भय नही | 176) दखन म अतयत करप काला-कलटा कबड़ा और तज ःवभाव का मनय भी आपका ही ःवरप ह | आप इस तथय स म नही | िफर घणा कसी कोई लाव यमयी सदरी सि की

शोभा क समान अित िवलासभरी अ सरा भी आपका ही ःवरप ह | िफर आसि िकसकी

आपकी ानिनिया उनको आपस अलग करक िदखाती ह | य इिनिया झठ बोलनवाली ह | उनका कभी िव ास मत करो | अतः सब कछ आप ही हो | 177) मानव क नात हम साधक ह | साधक होन क नात सतय को ःवीकर करना हमारा ःवधमर ह | सतय यही ह िक बल दसर क िलय ह ान अपन िलय ह और िव ास परमातमा स

स बनध जोड़न क िलय ह | 178) अपनी आतमा म डब जाना यह सबस बड़ा परोपकार ह | 179) आप सदव म ह ऐसा िव ास ढ़ करो तो आप िव क उ ारक हो जात हो | आप

यिद वदानत क ःवर क साथ ःवर िमलाकर िन य करो आप कभी शरीर न थ | आप िनतय श

ब आतमा हो तो अिखल ा ड क मो दाता हो जात हो | 180) कपा करक उन ःवाथरमय उपाय और अिभाय को दर फ क दो जो आपको पिरि छनन रखत ह | सब वासनाए राग ह | यि गत या शरीरगत म आसि ह | उस फ क दो | ःवय पिवऽ हो जाओ | आपका शरीर ःवःथ और बि पणरःवरप हो जायगी | 181) यिद ससार क सख व पदाथर ा ह तो आपको कहना चािहय ओ शतान हट जा मर सामन स | तर हाथ स मझ कछ नही चािहय | तब दखो िक आप कस सखी हो जात हो परमातमा-ा िकसी महापरष पर िव ास रखकर अपनी जीवनडोरी िनःशक बन उनक चरण म सदा क िलय रख दो | िनभरयता आपक चरण की दासी बन जायगी | 182) िजसन एक बार ठ क स जान िलया िक जगत िमथया ह और ािनत स इसकी तीित

हो रही ह उसको कभी दःख नही होता | जगत म कभी आसि नही होती | जगत क िमथयातव क

िन य का नाम ही जगत का नाश ह | 183) अपन ःवरप म लीन होन माऽ स आप ससार क साट बन जायग | यह साटपद

कवल इस ससार का ही नही समःत लोक-परलोक का साटपद होगा | 184) ह जनक चाह दवािधदव महादव आकर आपको उपदश द या भगवान िवण आकर उपदश द अथवा ाजी आकर उपदश द लिकन आपको कदािप सख न होगा | जब िवषय का तयाग करोग तभी स ची शाित व आनद ा ह ग |

185) िजस भ न हम मानव जीवन दकर ःवाधीनता दी िक हम जब चाह तब धमारतमा होकर भ होकर जीवनम होकर कतकतय हो सकत ह- उस भ की मिहमा गाओ | गाओ नही तो सनो | सनो भी नही गाओ भी नही तो ःवीकार कर लो | 186) चाह समि क गहर तल म जाना पड़ सा ात मतय का मकाबला करना पड़ अपन

आतमाि क उ य की पितर क िलय अिडग रहो | उठो साहसी बनो शि मान बनो | आपको जो बल व सहायता चािहय वह आपक भीतर ही ह | 187) जब-जब जीवन स बनधी शोक और िचनता घरन लग तब-तब अपन आननदःवरप

का गान करत-करत उस मोह-माया को भगा दो | 188) जब शरीर म कोई पीड़ा या अग म ज म हो तब म आकाशवत आकाशरिहत चतन

ह ऐसा ढ़ िन य करक पीड़ा को भल जाओ | 189) जब दिनया क िकसी चककर म फस जाओ तब म िनलप िनतय म ह ऐसा ढ़

िन य करक उस चककर स िनकल जाओ | 190) जब घर-बार स बनधी कोई किठन समःया याकल कर तब उस मदारी का खल

समझकर ःवय को िनःसग जानकर उस बोझ को ह का कर दो | 191) जब बोध क आवश म आकर कोई अपमानय वचन कह तब अपन शाितमय

ःवरप म िःथर होकर मन म िकसी भी ोभ को पदा न होन दो | 192) उ म अिधकारी िज ास को चािहय िक वह व ा सदगर क पास जाकर ौ ा पवरक महावाकय सन | उसका मनन व िनिदधयासन करक अपन आतमःवरप को जान | जब

आतमःवरप का सा ातकार होता ह तब ही परम िवौािनत िमल सकती ह अनयथा नही | जब तक

व ा महापरष स महावाकय ा न हो तब तक वह मनद अिधकारी ह | वह अपन दयकमल म परमातमा का धयान कर ःमरण कर जप कर | इस धयान-जपािद क साद स उस व ा सदगर

ा ह ग | 193) मन बि िच अहकार छाया की तरह जड़ ह णभगर ह कय िक व उतपनन होत

ह और लीन भी हो जात ह | िजस चतनय की छाया उसम पड़ती ह वह परम चतनय सबका आतमा ह | मन बि िच अहकार का अभाव हो जाता ह लिकन उसका अनभव करनवाल का अभाव

कदािप नही होता |

194) आप अपनी शि को उ चाितउ च िवषय की ओर बहन दो | इसस आपक पास व

बात सोचन का समय ही नही िमलगा िजसस कामकता की गध आती हो | 195) अपराध क अनक नाम ह बालहतया नरहतया मातहतया गौहतया इतयािद |

परनत तयक ाणी म ई र का अनभव न करक आप ई रहतया का सबस बड़ा अपराध करत ह | 196) सवा करन की ःवाधीनता मनयमाऽ को ा ह | अगर वह करना ही न चाह तो अलग बात ह | सवा का अथर ह मन-वाणी-कमर स बराईरिहत हो जाना यह िव की सवा हो गई |

यथाशि भलाई कर दो यह समाज की सवा हो गई | भलाई का फल छोड़ दो यह अपनी सवा हो गई

| भ को अपना मानकर ःमित और म जगा लो यह भ की सवा हो गई | इस कार मनय

अपनी सवा भी कर सकता ह समाज की सवा भी कर सकता ह िव की सवा भी कर सकता ह

और िव र की सवा भी कर सकता ह | 197) आतमा स बाहर मत भटको अपन कनि म िःथर रहो अनयथा िगर पड़ोग | अपन-

आपम पणर िव ास रखो | आतम-कनि पर अचल रहो | िफर कोई भी चीज आपको िवचिलत नही कर सकती | 198) सदा शात िनिवरकार और सम रहो | जगत को खलमाऽ समझो | जगत स भािवत

मत हो | इसस आप हमशा सखी रहोग | िफर कछ बढ़ान की इ छा नही होगी और कछ कम होन स

दःख नही होगा | 199) समथर सदगर क सम सदा फल क भाित िखल हए रहो | इसस उनक अनदर सक प

होगा िक यह तो बहत उतसाही साधक ह सदा सनन रहता ह | उनक सामथयरवान सक प स

आपकी वह किऽम सननता भी वाःतिवक सननता म बदल जायगी | 200) यिद रोग को भी ई र का िदया मानो तो ार ध-भोग भी हो जाता ह और क तप का फल दता ह | इसस ई र-कपा की ाि होती ह | याकल मत हो | क सल और इनजकशन

आधीन मत हो | 201) साधक को चािहय िक अपन लआय को ि म रखकर साधना-पथ पर तीर की तरह

सीधा चला जाय | न इधर दख न उधर | ि यिद इधर-उधर जाती हो तो समझना िक िन ा िःथर नही ह |

202) आपन अपन जीवन म हजार ःव न दख ह ग लिकन व आपक जीवन क अश नही बन जात | इसी कार य जामत जगत क आड बर आपकी आतमा क सम कोई मह व नही रखत | 203) एक आतमा को ही जानो अनय बात को छोड़ो | धीर साधक को चािहय िक वह

सावधान होकर आतमिन ा बढ़ाय अनक श द का िचनतन व भाषण न कर कय िक वह तो कवल

मन-वाणी को पिरौम दनवाला ह असली साधना नही ह | 204) जो परष जन-समह स ऐस डर जस साप स डरता ह स मान स ऐस डर जस नकर स

डरता ह ि य स ऐस डर जस मद स डरता ह उस परष को दवतागण ा ण मानत ह | 205) जस अपन शरीर क अग पर बोध नही आता वस शऽ िमऽ व अपनी दह म एक ही आतमा को दखनवाल िववकी परष को कदािप बोध नही आता | 206) मन तो शरीर को ई रापरण कर िदया ह | अब उसकी भख- यास स मझ कया

समिपरत वःत म आस होना महा पाप ह | 207) आप यिद िद य ि पाना चहत हो तो आपको इिनिय क ऽ का तयाग करना होगा | 208) लयकाल क मघ की गजरना हो समि उमड़ पड बारह सयर तपायमान हो जाय पहाड़ स पहाड़ टकरा कर भयानक आवाज हो तो भी ानी क िन य म त नही भासता कय िक

त ह ही नही | त तो अ ानी को भासता ह | 209) सतय को ःवीकार करन स शाित िमलगी | कछ लोग यो यता क आधार पर शाित

खरीदना चाहत ह | यो यता स शाित नही िमलगी यो यता क सदपयोग स शाित िमलगी | कछ

लोग स पि क आधार पर शाित सरि त रखना चाहत ह | स पि स शाित नही िमलगी स पि

क सदपयोग स शाित िमलगी वस ही िवपि क सदपयोग स शाित िमलगी | 210) त छ हािन-लाभ पर आपका धयान इतना कय रहता ह िजसस अनत आननदःवरप

आतमा पर स धयान हट जाता ह | 211) अपन अनदर ही आननद ा करना य िप किठन ह परनत बा िवषय स आननद

ा करना तो अस भव ही ह |

212) म ससार का काश ह | काश क रप म म ही सब वःतओ म या ह | िनतय इन

िवचार का िचनतन करत रहो | य पिवऽ िवचार आपको परम पिवऽ बना दग | 213) जो वःत कमर स ा होती ह उसक िलय ससार की सहायता तथा भिवय की आशा की आवयकता होती ह परनत जो वःत तयाग स ा होती ह उसक िलय न ससार की सहायता चािहय न भिवय की आशा | 214) आपको जब तक बाहर चोर िदखता ह तब तक जरर भीतर चोर ह | जब दसर लोग

स िभनन अयो य खराब सधारन यो य िदखत ह तब तक ओ सधार का बीड़ा उठान वाल त अपनी िचिकतसा कर | 215) सफल व ही होत ह जो सदव नतमःतक एव सननमख रहत ह | िचनतातर-शोकातर लोग की उननित नही हो सकती | तयक कायर को िह मत व शाित स करो | िफर दखो िक यह

कायर शरीर मन और बि स हआ | म उन सबको स ा दनवाला चतनयःवरप ह | ॐ ॐ का पावन गान करो | 216) िकसी भी पिरिःथित म मन को यिथत न होन दो | आतमा पर िव ास करक

आतमिन बन जाओ | िनभरयता आपकी दासी बन कर रहगी | 217) सतसग स मनय को साधना ा होती ह चाह वह शाित क रप म हो चाह मि क

रप म चाह सवा क रप म हो म क रप म हो चाह तयाग क रप म हो | 218) भला-बरा वही दखता ह िजसक अनदर भला-बरा ह | दसर क शरीर को वही दखता ह

जो खद को शरीर मानता ह | 219) खबरदार आपन यिद अपन शरीर क िलय ऐश-आराम की इ छा की िवलािसता एव इिनिय-सख म अपना समय बरबाद िकया तो आपकी खर नही | ठ क स कायर करत रहन की नीित

अपनाओ | सफलता का पहला िस ात ह कायरिवौामरिहत कायरसा ी भाव स कायर | इस

िस ात को जीवन म चिरताथर करोग तो पता चलगा िक छोटा होना िजतना सरल ह उतना ही बड़ा होना भी सहज ह | 220) भतकाल पर िखनन हए िबना भिवय की िचनता िकय िबना व रमान म कायर करो | यह भाव आपको हर अवःथा म सनन रखगा हम जो कछ ा ह उसका सदपयोग ही अिधक

काश पान का साधन ह |

221) जब आप सफलता की ओर पीठ कर लत हो पिरणाम की िचनता का तयाग कर दत

हो स मख आय हए क र य पर अपनी उ ोगशि एकाम करत हो तब सफलता आपक पीछ-पीछ

आ जाती ह | अतः सफलता आपको खोजगी | 222) वि तब तक एकाम नही होगी जब तक मन म कभी एक आशा रहगी तो कभी दसरी | शात वही हो सकता ह िजस कोई क र य या आवयकता घसीट न रही हो | अतः परम शाित पान

क िलय जीवन की आशा भी तयाग कर मन ाननद म डबो दो | आज स समझ लो िक यह शरीर ह ही नही | कवल ाननद का सागर लहरा रहा ह | 223) िजसकी पककी िन ा ह िक म आतमा हrsquo उसक िलय ऐसी कौन सी मिथ ह जो खल

न सक ऐसी कोई ताकत नही जो उसक िवर जा सक | 224) मर भा य म नही थाई र की मज आजकल सतसग ा नही होताजगत

खराब ह ऐस वचन हमारी कायरता व अनतःकरण की मिलनता क कारण िनकलत ह | अतः नकारातमक ःवभाव और दसर पर दोषारोपण करन की वि स बचो | 225) आप जब भीतरवाल स नाराज होत हो तब जगत आपस नाराज रहता ह | जब आप

भीतर अनतयारमी बन बठ तो जगतरपी पतलीघर म िफर गड़बड़ कसी 226) िजस ण हम ससार क सधारक बन खड़ होत ह उसी ण हम ससार को िबगाड़नवाल बन जात ह | श परमातमा को दखन क बजाय जगत को िबगड़ा हआ दखन की ि बनती ह | सधारक लोग मानत ह िक lsquoभगवान न जो जगत बनाया ह वह िबगड़ा हआ ह और हम उस सधार रह ह |rsquo वाह वाह धनयवाद सधारक अपन िदल को सधारो पहल | सवरऽ िनरजन का दीदार करो | तब आपकी उपिःथित माऽ स आपकी ि माऽ स अर यार आपको छकर बहती हवा माऽ स अननत जीव को शाित िमलगी और अननत सधार होगा | नानक कबीर महावीर ब और लीलाशाह बाप जस महापरष न यही कजी अपनायी थी | 227) वदानत म हमशा कमर का अथर होता ह वाःतिवक आतमा क साथ एक होकर च ा करना अिखल िव क साथ एकःवर हो जाना | उस अि तीय परम ततव क साथ िनःःवाथर सयोग ा करना ही एकमाऽ स चा कमर ह बाकी सब बोझ की गठिरया उठाना ह |

228) अपनी व रमान अवःथा चाह कसी भी हो उसको सव च मानन स ही आपक दय म आतम ान ान का अनायास उदय होन लगगा | आतम-सा ातकार को मील दर की कोई चीज समझकर उसक पीछ दौड़ना नही ह िचिनतत होना नही ह |

िचनता की गठरी उठाकर यिथत होन की जररत नही ह | िजस ण आप िनि नतता म गोता मारोग उसी ण आपका आतमःवरप गट हो जायगा | अर गट कया होगा आप ःवय आतमःवरप हो ही | अनातमा को छोड़ दो तो आतमःवरप तो हो ही | 229) सदा ॐकार का गान करो | जब भय व िचनता क िवचार आय तब िकसी मःत सत-फकीर महातमा क सािननधय का ःमरण करो | जब िननदा-शसा क सग आय तब महापरष क जीवन का अवलोकन करो | 230) िजनको आप भयानक घटनाए एव भयकर आघात समझ बठ हो वाःतव म व आपक ियतम आतमदव की ही करतत ह | समःत भयजनक तथा ाणनाशक घटनाओ क नाम-रप तो िवष क ह लिकन व बनी ह अमत स | 231) मन म यिद भय न हो तो बाहर चाह कसी भी भय की साममी उपिःथत हो जाय आपका कछ िबगाड़ नही सकती | मन म यिद भय होगा तो तरनत बाहर भी भयजनक पिरिःथया न होत हए भी उपिःथत हो जायगी | व क तन म भी भत िदखन लगगा | 232) िकसी भी पिरिःथित म िदखती हई कठोरता व भयानकता स भयभीत नही होना चािहए | क क काल बादल क पीछ पणर काशमय एकरस परम स ा सयर की तरह सदा िव मान ह | 233) आप अपन पर कदािप अिव ास मत करो | इस जगत म आप सब कछ कर सकत हो | अपन को कभी दबरल मत मानो | आपक अनदर तमाम शि या छपी हई ह | 234) यिद कोई मन य आपकी कोई चीज़ को चरा लता ह तो ड़रत कय हो वह मनय

और आप एक ह | िजस चीज़ को वह चराता ह वह चीज़ आपकी और उसकी द न की ह | 235) जो खद क िसवाय दसरा कछ दखता नही सनता नही जानता नही वह अननत ह |

जब तक खद क िसवाय और िकसी वःत का भान होता ह वह वःत स ची लगती ह तब तक आप

सीिमत व शात ह असीम और अनत नही |

236) ससार मझ कया आनद द सकता ह स पणर आनद मर भीतर स आया ह | म ही स पणर आननद ह स पणर मिहमा एव स पणर सख ह | 237) जीवन की समःत आवयकताए जीवन म उपिःथत ह परनत जीवन को जब हम

बा रग म रग दत ह तब जीवन का वाःतिवक रप हम नही जान पात | 238) िननदक की िननदा स म कय मरझाऊ शसक की शसा स म कय फल िननदा स म घटता नही और शसा स म बढ़ता नही | जसा ह वसा ही रहता ह | िफर िननदा-ःतित स

खटक कसी 239) ससार व ससार की समःयाओ म जो सबस अिधक फस हए ह उनही को वदानत की सबस अिधक आवयकता ह | बीमार को ही औषिध की यादा आवयकता ह | कय जी ठ क ह न 240) जगत क पाप व अतयाचार की बात मत करो लिकन अब भी आपको जगत म पाप

िदखता ह इसिलय रोओ | 241) हम यिद जान ल िक जगत म आतमा क िसवाय दसरा कछ ह ही नही और जो कछ

िदखता ह वह ःव नमाऽ ह तो इस जगत क दःख-दािरिय पाप-प य कछ भी हम अशात नही कर सकत | 242) िव ान दाशरिनक व आचाय की धमकी तथा अनमह आलोचना या अनमित

ानी पर कोई भाव नही ड़ाल सकती | 243) ह यि रप अननत आप अपन पर पर खड़ रहन का साहस करो समःत िव का बोझ आप िखलौन की तरह उठा लोग | 244) िसह की गजरना व नरिसह की ललकार तलवार की धार व साप की फफकार तपःवी की धमकी व नयायधीश की फटकारइन सबम आपका ही काश चमक रहा ह | आप इनस

भयभीत कय होत हो उलझन कय महसस करत हो मरी िब ली मझको याऊ वाली बात कय

होन दत हो 245) ससार हमारा िसफ़र िखलोना ही ह और कछ नही | अबोध बालक ही िखलौन स

भयभीत होता ह आसि करता ह िवचारशील यि नही |

246) जब तक अिव ा दर नही होगी तब तक चोरी जआ दार यिभचार कभी बद न

ह ग चाह लाख कोिशश करो | 247) आप हमशा अदर का धयान रखो | पहल हमारा भीतरी पतन होता ह | बा पतन तो इसका पिरणाम माऽ ह | 248) तयाग स हमशा आनद िमलता ह | जब तक आपक पास एक भी चीज़ बाकी ह तब

तक आप उस चीज़ क बधन म बध रहोग | आघात व तयाघात हमशा समान िवरोधी होत ह | 249) िनि तता ही आरो यता की सबस बड़ी दवाई ह | 250) सख अपन िसर पर दख का मकट पहन कर आता ह | जो सख को अपनायगा उस

दख को भी ःवीकार करना पड़गा | 251) म (आतमा) सबका ा ह | मरा ा कोई नही | 252) हजार म स कोई एक परष भीतर स शात िच वाला रहकर बाहर स ससारी जसा यवहार कर सकता ह | 253) सतय क िलए यिद शरीर का तयाग करना पड़ तो कर दना | यही आिखरी ममता ह जो हम तोड़नी होगी | 254) भय िचनता बचनी स ऊपर उठो | आपको ान का अनभव होगा | 255) आपको कोई भी हािन नही पहचा सकता | कवल आपक खयालात ही आपक पीछ पड़ ह | 256) म का अथर ह अपन पड़ोसी तथा सपकर म आनवाल क साथ अपनी वाःतिवक अभदता का अनभव करना | 257) ओ यार अपन खोय हए आतमा को एक बार खोज लो | धरती व आसमान क शासक आप ही हो | 258) सदव सम और सनन रहना ई र की सव पिर भि ह |

259) जब तक िच म ढ़ता न आ जाय िक शा की िविधय का पालन छोड़ दन स भी दय का यथाथर भि भाव न नही होगा तब तक शा की िविधय को पालत रहो |

गर भि एक अमोघ साधना 1 जनम मरण क िवषचब स म होन का कोई मागर नही ह कया सख-दःख हषर-शोक लाभ-

हािन मान-अपमान की थ पड़ स बचन का कोई उपाय नही ह कया

हअवय ह | ह िय आतमन नाशवान पदाथ स अपना मन वािपस लाकर सदगर क

चरणकमल म लगाओ | गरभि योग का आौय लो | गरसवा ऐसा अमोघ साधन ह िजसस

व रमान जीवन आननदमय बनता ह और शा त सख क ार खलत ह |

गर सवत त नर धनय यहा | ितनक नही दःख यहा न वहा || 2 स च सदगर की की हई भि िशय म सासािरक पदाथ क वरा य एव अनासि जगाती ह

परमातमा क ित म क पप महकाती ह | 3 तयक िशय सदगर की सवा करना चाहता ह लिकन अपन ढग स | सदगर चाह उस ढग स

सवा करन को कोई ततपर नही | जो िवरला साधक गर चाह उस ढ़ग स सवा कर सकता ह उस कोई कमी नही रहती |

िन सदगर की सवा स उनकी कपा ा होती ह और उस कपा स न िमल सक ऐसा तीन लोक म कछ भी नही ह | 4 गर िशय का स बनध पिवऽतम स बनध ह | ससार क तमाम बनधन स छड़ाकर वह मि क मागर पर ःथान कराता ह | यह स बनध जीवनपयरनत का स बनध ह | यह बात अपन दय की डायरी म सवणर-अ र स िलख लो | 5 उ ल सयर क काश क अिःततव को मान या न मान िफर भी सयर हमशा काशता ह | चचल मन का मनय मान या न मान लिकन सदगर की परमक याणकारी कपा सदव बरसती ही रहती ह | 6 सदगर की चरणरज म ःनान िकय िबना कवल किठन तप यार करन स या वद का

अधयन करन स वदानत का रहःय कट नही होता आतमानद का अमत नही िमलता | 7 दशरन शा क चाह िकतन मनथ पढ़ो हजार वष तक िहमालय की गफा म तप करो वष तक ाणायाम करो जीवनपयरनत शीषारसन करो समम िव म वास करक याखान दो िफर भी सदगर की कपा क िबना आतम ान नही होता | अतः िनरािभमानी सरल िनजाननद म मःत दयाल ःवभाव क आतम-सा ातकारी सदगर क चरण म जाओ | जीवन को धनय बनाओ | 8 सदगर की सवा िकय िबना शा का अधयन करना मम साधक क िलय समय बरबाद करन क बराबर ह | 9 िजसको सदगर ा हए ह ऐस िशय क िलय इस िव म कछ भी अा य नही ह | सदगर िशय को िमली हई परमातमा की अम य भट ह | अर नहीhellipनही व तो िशय क सम साकार रप म कट हए परमातमा ःवय ह | 10 सदगर क साथ एक ण िकया हआ सतसग लाख वष क तप स अननत गना ौ ह | आख क िनमषमाऽ म सदगर की अमतवष ि िशय क जनम-जनम क पाप को जला सकती ह | 11 सदगर जसा मपणर कपाल िहतिचनतक िव भर म दसरा कोई नही ह | 12 बाढ़ क समय याऽी यिद तफानी नदी को िबना नाव क पार कर सक तो साधक भी िबना सदगर क अपन जीवन क आिखरी लआय को िस कर सकता ह | यानी य दोन बात स भव ह |

अतः यार साधक मनमखी साधना की िज करना छोड़ दो | गरमखी साधना करन म ही सार ह | 13 सदगर क चरणकमल का आौय लन स िजस आननद का अनभव होता ह उसक आग िऽलोकी का साा य त छ ह | 14 आतम-सा ातकार क मागर म सबस महान शऽ अहभाव का नाश करन क िलए सदगर की आ ा का पालन अमोघ श ह | 15 रसोई सीखन क िलय कोई िसखानवाला चािहय िव ान और गिणत सीखन क िलय

अधयापक चािहय तो कया िव ा सदगर क िबना ही सीख लोग 16 सदगरकपा की स पि जसा दसरा कोई खजाना िव भर म नही | 17 सदगर की आ ा का उ लघन करना यह अपनी क खोदन क बराबर ह | 18 सदगर क कायर को शका की ि स दखना महापातक ह | 19 गरभि व गरसवा - य साधनारपी नौका की दो पतवार ह | उनकी मदद स िशय ससारसागर को पार कर सकता ह | 20 सदगर की कसौटी करना असभव ह | एक िववकाननद ही दसर िववकाननद को पहचान सकत ह | ब को जानन क िलय दसर ब की आवयकता रहती ह | एक रामतीथर का रहःय दसर रामतीथर ही पा सकत ह |

अतः सदगर की कसौटी करन की च ा छोड़कर उनको पिरपणर पर परमातमा मानो |

तभी जीवन म वाःतिवक लाभ होगा | 21 गरभि योग का आौय लकर आप अपनी खोई हई िद यता को पनः ा करो सख-दःख जनम-मतय आिद सब न स पार हो जाओ | 22 गरभि योग मान गर की सवा क ारा मन और िवकार पर िनयऽण एव पनः सःकरण | 23 िशय अपन गर क चरणकमल म णाम करता ह | उन पर ौ फल की वषार करक उनकी ःतित करता ह ldquoह परम प य पिवऽ गरदव मझ सव च सख ा हआ ह | म िन ा स जनम-मतय की पर परा स म हआ ह | म िनिवरक प समािध का श सख भोग रहा ह | जगत क िकसी भी कोन म म म ता स िवचरण कर सकता ह | सब पर मरी सम ि ह | मन ाकत मन का तयाग िकया ह | मन सब सक प एव रिच-अरिच का तयाग िकया ह | अब म अख ड शाित म िवौाित पा रहा ह hellip आननदमय हो रहा ह | म इस पणर अवःथा का वणरन नही कर पाता | ह प य गरदव म आवाक बन गया ह | इस दःतर भवसागर को पार करन म आपन

मझ सहायता की ह | अब तक मझ कवल अपन शरीर म ही स पणर िव ास था | मन िविभनन योिनय म अस य जनम िलय | ऐसी सव च िनभरय अवःथा मझ कौन स पिवऽ कम क कारण ा हई ह यह म नही जानता | सचमच यह एक दलरभ भा य ह |

यह एक महान उतक लाभ ह | अब म आननद स नाचता ह | मर सब दःख न हो गय | मर सब मनोरथ पणर हए ह |

मर कायर स पनन हए ह | मन सब वािछत वःतए ा की ह | मरी इ छा पिरपणर हई ह | आप मर स च माता-िपता हो | मरी व रमान िःथित म म दसर क सम िकस कार कट कर सक सवरऽ सख और आननद का अननत सागर मझ लहराता हआ िदख रहा ह | मर अतःच िजसस खल गय वह महावाकय lsquoत वमिसrsquo ह | उपिनषद एव वदानतसऽ को भी धनयवाद | िजनह न िन गर का एव उपिनषद क महावाकय का रप धारण िकया ह | ऐस ौी यासजी को णाम ौी शकराचायर को णाम सासािरक मनय क िसर पर गर क चरणामत का एक िबनद भी िगर तो भी उसक ःब दःख का नाश होता ह | यिद एक िन परष को व पहनाय जाय तो सार िव को व पहनान एव भोजन करवान क बराबर ह कय िक िन परष सचराचर िव म या ह | सबम व ही ह |rdquo

ॐhellip ॐ hellip ॐ hellip

ःवामी िशवानद जी

ौी राम-विश सवाद ौी विश जी कहत ह ldquoह रघकलभषण ौी राम अनथर ःवरप िजतन सासािरक पदाथर ह व सब जल म तरग क समान िविवध रप धारण करक चमतकार उतपनन करत ह अथारत ई छाए उतपनन करक जीव को मोह म फसात ह | परत जस सभी तरग जल ःवरप ही ह उसी कार सभी पदाथर वःततः न र ःवभाव वाल ह |

बालक की क पना स आकाश म य और िपशाच िदखन लगत ह परनत बि मान मनय क िलए उन य और िपशाच का कोई अथर नही | इसी कार अ ानी क िच म यह जगत सतय हो ऐसा लगता ह जबिक हमार जस ािनय क िलय यह जगत कछ भी नही | यह समम िव पतथर पर बनी हई पतिलय की सना की तरह रपालोक तथा अतर-बा िवषय स शनय ह | इसम सतयता कसी परनत अ ािनय को यह िव सतय लगता ह |rdquo विश जी बोल ldquoौी राम जगत को सतय ःवरप म जानना यह ाित ह मढ़ता ह | उस िमथया अथारत कि पत समझना यही उिचत समझ ह | ह राघव तव ा अहता आिद सब िवम-िवलास शात िशवःवरप श ःवरप ही ह | इसिलय मझ तो क अितिर और कछ भी नही िदखता | आकाश म जस जगल नही वस ही म जगत नही ह | ह राम ार ध वश ा कम स िजस परष की च ा कठपतली की तरह ई छाशनय और याकलतारिहत होती ह वह शानत मनवाला परष जीवनम मिन ह | ऐस जीवनम ानी को इस

जगत का जीवन बास की तरह बाहर-भीतर स शनय रसहीन और वासना-रिहत लगता ह | इस य पच म िजस रिच नही दय म िचनमाऽ अ य ही अ छा लगता ह ऐस परष न

भीतर तथा बाहर शािनत ा कर ली ह और इस भवसागर स पार हो गया ह | रघनदन श व ा कहत ह िक मन का ई छारिहत होना यही समािध ह कय िक ई छाओ का तयाग करन स मन को जसी शािनत िमलती ह ऐसी शािनत सकड़ उपदश स भी नही िमलती | ई छा की उतपि स जसा दःख ा होता ह ऐसा दःख तो नरक म भी नही | ई छाओ की शािनत

स जसा सख होता ह ऐसा सख ःवगर तो कया लोक म भी नही होता | अतः समःत शा तपःया यम और िनयम का िनचोड़ यही ह िक ई छामाऽ दःखदायी ह और ई छा का शमन मो ह | ाणी क दय म जसी-जसी और िजतनी-िजतनी ई छाय उतपनन होती ह उतना ही दख स वह

ड़रता रहता ह | िववक-िवचार ारा ई छाय जस-जस शानत होती जाती ह वस-वस दखरपी छत की बीमारी िमटती जाती ह |

आसि क कारण सासािरक िवषय की ई छाय य - य गहनीभत होती जाती ह तय -तय

दःख की िवषली तरग बढ़ती जाती ह | अपन परषाथर क बल स इस ई छारपी यािध का उपचार यिद नही िकया जाय तो इस यािध स छटन क िलय अनय कोई औषिध नही ह ऐसा म ढ़तापवरक

मानता ह | एक साथ सभी ई छाओ का स पणर तयाग ना हो सक तो थोड़ी-थोड़ी ई छाओ का धीर-धीर तयाग

करना चािहय परत रहना चािहय ई छा क तयाग म रत कय िक सनमागर का पिथक दखी नही होता | जो नराधम अपनी वासना और अहकार को ीण करन का य नही करता वह िदन -िदन अपन

को रावण की तरह अधर कऐ म ढ़कल रहा ह | ई छा ही दख की जनमदाऽी इस ससाररपी बल का बीज ह | यिद इस बीज को आतम ानरपी अि न स ठ क-ठ क जला िदया तो पनः यह अकिरत नही होता | रघकलभषण राम ई छामाऽ ससार ह और ई छाओ का अभाव ही िनवारण ह | अतः अनक कार की माथाप ची म ना पड़कर कवल ऐसा य करना चािहय िक ई छा उतपनन ना हो | अपनी बि स ई छा का िवनाश करन को जो ततपर नही ऐस अभाग को शा और गर का उपदश

भी कया करगा जस अपनी जनमभमी जगल म िहरणी की मतय िनि त ह उसी कार अनकिवध दख का िवःतार कारनवाल ई छारपी िवषय-िवकार स य इस जगत म मनय की मतय िनि त ह | यिद मानव ई छाओ क कारण ब च -सा मढ़ ना बन तो उस आतम ान क िलय अ प य ही करना पड़ | इसिलय सभी कार स ई छाओ को शानत करना चािहय | ई छा क शमन स परम पद की ाि होती ह | ई छारिहत हो जाना यही िनवारण ह और ई छाय

होना ही बधन ह | अतः यथाशि ई छा को जीतना चािहय | भला इतना करन म कया किठनाई ह जनम जरा यािध और मतयरपी कटीली झािड़य और खर क व - समह की जड़ भी ई छा ही ह

| अतः शमरपी अि न स अदर-ही-अदर बीज को जला ड़ालना चािहय| जहा ई छाओ का अभाव ह

वहा मि िनि त ह |

िववक वरा य आिद साधन स ई छा का सवरथा िवनाश करना चािहय | ई छा का सबध जहा-जहा ह वहा-वहा पाप प य दखरािशया और ल बी पीड़ाओ स य बधन को हािज़र ही समझो | परष

की आतिरक ई छा य - य शानत होती जाती ह तय -तय मो क िलय उसका क याणकारक

साधन बढ़ता जाता ह | िववकहीन ई छा को पोसना उस पणर करना यह तो ससाररपी िवष व को पानी स सीचन क समान ह |rdquo

- ौीयोगविश महारामायण

आतमबल का आवाहन कया आप अपन-आपको दबरल मानत हो लघतामथी म उलझ कर पिरिःतिथय स िपस रह हो

अपना जीवन दीन-हीन बना बठ हो hellipतो अपन भीतर सष आतमबल को जगाओ | शरीर चाह ी का हो चाह परष का कित क साा य म जो जीत ह व सब ी ह और कित क बनधन स पार अपन ःवरप की पहचान िजनह न कर ली ह अपन मन की गलामी की बिड़या तोड़कर िजनह न फ क दी ह व परष ह | ी या परष शरीर एव मानयताए होती ह | तम तो तन-मन स पार िनमरल आतमा हो | जागोhellipउठोhellipअपन भीतर सोय हय िन यबल को जगाओ | सवरदश सवरकाल म सव म

आतमबल को िवकिसत करो | आतमा म अथाह सामथयर ह | अपन को दीन-हीन मान बठ तो िव म ऐसी कोई स ा नही जो त ह ऊपर उठा सक | अपन आतमःवरप म िति त हो गय तो िऽलोकी म ऐसी कोई हःती नही जो त ह दबा सक | भौितक जगत म वाप की शि ईलकशोिनक शि िव त की शि गरतवाकषरण की शि बड़ी मानी जाती ह लिकन आतमबल उन सब शि य का सचालक बल ह | आतमबल क सािननधय म आकर पग ार ध को पर िमल जात ह दव की दीनता पलायन हो जाती ह ितकल पिरिःतिथया अनकल हो जाती ह | आतमबल सवर िरि -िसि य का िपता ह |

आतमबल कस जगाय हररोज़ तःकाल ज दी उठकर सय दय स पवर ःनानािद स िनवत हो जाओ | ःव छ पिवऽ ःथान

म आसन िबछाकर पवारिभमख होकर प ासन या सखासन म बठ जाओ | शानत और सनन वि

धारण करो | मन म ढ भावना करो िक म कित-िनिमरत इस शरीर क सब अभाव को पार करक सब

मिलनताओ-दबरलताओ स िप ड़ छड़ाकर आतमा की मिहमा म जागकर ही रहगा |

आख आधी खली आधी बद रखो | अब फ़फ़ड़ म खब ास भरो और भावना करो की ास क साथ

म सयर का िद य ओज भीतर भर रहा ह | ास को यथाशि अनदर िटकाय रखो | िफ़र lsquoॐhelliprsquo का ल बा उ चारण करत हए ास को धीर-धीर छोड़त जाओ | ास क खाली होन क बाद तरत ास ना लो | यथाशि िबना ास रहो और भीतर ही भीतर lsquoहिर ॐhelliprsquo lsquoहिर ॐhelliprsquo का मानिसक

जाप करो | िफ़र स फ़फ़ड़ म ास भरो | पव रीित स ास यथाशि अनदर िटकाकर बाद म धीर-धीर छोड़त हए lsquoॐhelliprsquo का गजन करो | दस-पिह िमनट ऐस ाणायाम सिहत उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo की धविन करक शानत हो जाओ | सब

यास छोड़ दो | वि य को आकाश की ओर फ़लन दो | आकाश क अनदर पथवी ह | पथवी पर अनक दश अनक समि एव अनक लोग ह | उनम स एक

आपका शरीर आसन पर बठा हआ ह | इस पर य को आप मानिसक आख स भावना स दखत

रहो | आप शरीर नही हो बि क अनक शरीर दश सागर पथवी मह न ऽ सयर चनि एव पर ा ड़ क

ा हो सा ी हो | इस सा ी भाव म जाग जाओ | थोड़ी दर क बाद िफ़र स ाणायाम सिहत lsquoॐhelliprsquo का जाप करो और शानत होकर अपन िवचार को दखत रहो | इस अवःथा म ढ़ िन य करो िक lsquoम जसा चहता ह वसा होकर रहगा |rsquo िवषयसख स ा धन-

दौलत इतयािद की इ छा न करो कय िक िन यबल या आतमबलरपी हाथी क पदिच म और सभी क पदिच समािव हो ही जायग | आतमानदरपी सयर क उदय होन क बाद िम टी क तल क दीय क ाकाश रपी शि सखाभास की गलामी कौन कर

िकसी भी भावना को साकार करन क िलय दय को करद ड़ाल ऐसी िन यातमक बिल वि होनी आवशयक ह | अनतःकरण क गहर-स-गहर दश म चोट कर ऐसा ाण भरक िन बल का आवाहन करो | सीना तानकर खड़ हो जाओ अपन मन की दीन-हीन दखद मानयताओ को कचल

ड़ालन क िलय | सदा ःमरण रह की इधर-उधर भटकती वि य क साथ त हारी शि भी िबखरती रहती ह | अतः वि य को बहकाओ नही | तमाम वि य को एकिऽत करक साधनाकाल म आतमिचनतन म लगाओ और यवहारकाल म जो कायर करत हो उसम लगाओ | द िच होकर हरक कायर करो | अपन ःवभाव म स आवश को सवरथा िनमरल कर दो | आवश म आकर कोई िनणरय मत लो कोई िबया मत करो | सदा शानत वि धारण करन का अ यास करो | िवचारशील एव सनन रहो | ःवय अचल रहकर सागर की तरह सब वि य की तरग को अपन

भीतर समालो | जीवमाऽ को अपना ःवरप समझो | सबस ःनह रखो | िदल को यापक रखो | सकिच ता का िनवारण करत रहो | ख ड़ातमक वि का सवरथा तयाग करो | िजनको ानी महापरष का सतसग और अधयातमिव ा का लाभ िमल जाता ह उसक जीवन स

दःख िवदा होन लगत ह | ॐ आननद आतमिन ा म जाग हए महापरष क सतसग एव सतसािहतय स जीवन को भि और वदात स प

एव पलिकत करो | कछ ही िदन क इस सघन योग क बाद अनभव होन लगगा िक भतकाल क

नकारतमक ःवभाव सशयातमक-हािनकारक क पनाओ न जीवन को कचल ड़ाला था िवषला कर िदया था | अब िन यबल क चमतकार का पता चला | अततरम म आिवरभत िद य खज़ाना अब

िमला | ार ध की बिड़या अब टटन लगी | ठ क ह न करोग ना िह मत पढ़कर रख मत दना इस पिःतका को | जीवन म इसको बार-बार पढ़त रहो | एक िदन म यह पणर ना होगा | बार-बार अ यास करो | त हार िलय यह एक ही पिःतका काफ़ी ह | अनय कचराप टी ना पड़ोग तो चलगा | शाबाश वीर शाबाश

  • परसतावना
  • जीवन रसायन
  • गर भकति एक अमोघ साधना
  • शरी राम-वशिषठ सवाद
  • आतमबल का आवाहन
  • आतमबल कस जगाय
Page 19: जीवन रसायन - HariOmGroup · ‘जीवन रसायन’ का यह िदय कटोरा आत्मरस के िपपासुओं हाथ

110) बि मान परष ससार की िचनता नही करत लिकन अपनी मि क बार म सोचत ह |

मि का िवचार ही तयागी दानी सवापरायण बनाता ह | मो की इ छा स सब सदगण आ जात ह

| ससार की इ छा स सब दगरण आ जात ह | 111) पिरिःथित िजतनी किठन होती ह वातावरण िजतना पीड़ाकारक होता ह उसस

गजरन वाला उतना ही बलवान बन जाता ह | अतः बा क और िचनताओ का ःवागत करो | ऐसी पिरिःथित म भी वदानत को आचरण म लाओ | जब आप वदानती जीवन यतीत करग तब दखग

िक समःत वातावरण और पिरिःथितया आपक वश म हो रही ह आपक िलय उपयोगी िस हो रही ह | 112) हरक पदाथर पर स अपन मोह को हटा लो और एक सतय पर एक तथय पर अपन

ई र पर समम धयान को किनित करो | तरनत आपको आतम-सा ातकार होगा | 113) जस बड़ होत-होत बचपन क खलकद छोड़ दत हो वस ही ससार क खलकद छोड़कर आतमाननद का उपभोग करना चािहय | जस अनन व जल का सवन करत हो वस ही आतम-

िचनतन का िनरनतर सवन करना चािहय | भोजन ठ क स होता ह तो ति की डकार आती ह वस

ही यथाथर आतमिचनतन होत ही आतमानभव की डकार आयगी आतमाननद म मःत ह ग |

आतम ान क िसवा शाित का कोई उपाय नही | 114) आतम ानी क हकम स सयर काशता ह | उनक िलय इनि पानी बरसाता ह | उनही क

िलय पवन दत बनकर गमनागमन करता ह | उनही क आग समि रत म अपना िसर रगड़ता ह | 115) यिद आप अपन आतमःवरप को परमातमा समझो और अनभव करो तो आपक सब

िवचार व मनोरथ सफल ह ग उसी ण पणर ह ग | 116) राजा-महाराजा दवी-दवता वद-पराण आिद जो कछ ह व आतमदश क सक पमाऽ

ह | 117) जो लोग ितकलता को अपनात ह ई र उनक स मख रहत ह | ई र िजनह अपन

स दर रखना चाहत ह उनह अनकल पिरिःथितया दत ह | िजसको सब वःतए अनकल एव पिवऽ

सब घटनाए लाभकारी सब िदन शभ सब मनय दवता क रप म िदखत ह वही परष ततवदश ह | 118) समता क िवचार स िच ज दी वश म होता ह हठ स नही |

119) ऐस लोग स स बनध रखो िक िजसस आपकी सहनशि बढ़ समझ की शि बढ़

जीवन म आन वाल सख-दःख की तरग का आपक भीतर शमन करन की ताकत आय समता बढ़

जीवन तजःवी बन | 120) लोग बोलत ह िक धयान व आतमिचनतन क िलए हम फरसत नही िमलती | लिकन

भल मनय जब नीद आती ह तब सब महतवपणर काम भी छोड़कर सो जाना पड़ता ह िक नही

जस नीद को महतव दत हो वस ही चौबीस घनट म स कछ समय धयान व आतमिचनतन म भी िबताओ | तभी जीवन साथरक होगा | अनयथा कछ भी हाथ नही लगगा | 121) भल जाओ िक तम मनय हो अमक जाित हो अमक उ हो अमक िड़मीवाल हो अमक धनधवाल हो | तम िनगरण िनराकार सा ीरप हो ऐसा ढ़ िन य करो | इसीम तमाम

कार की साधनाए िबयाए योगािद समािव हो जात ह | आप सवर यापक अख ड चतनय हो | सार ान का यह मल ह | 122) दोष तभी िदखता जब हमार लोचन म क अभावरप पीिलया रोग स मःत होत ह | 123) साधक यिद अ यास क मागर पर उसी कार आग बढ़ता जाय िजस कार ार भ

म इस मागर पर चलन क िलए उतसाहपवरक कदम रखा था तो आयरपी सयर अःत होन स पहल

जीवनरपी िदन रहत ही अवय सोऽहम िसि क ःथान तक पहच जाय | 124) लोग ज दी स उननित कय नही करत कय िक बाहर क अिभाय एव िवचारधाराओ का बहत बड़ा बोझ िहमालय की तरह उनकी पीठ पर लदा हआ ह | 125) अपन ित होन वाल अनयाय को सहन करत हए अनयायकतार को यिद मा कर िदया जाय तो ष म म पिरणत हो जाता ह | 126) साधना की शरआत ौ ा स होती ह लिकन समाि ान स होनी चािहय | ान मान

ःवयसिहत सवर ःवरप ह ऐसा अपरो अनभव | 127) अपन शरीर क रोम-रोम म स ॐ का उ चारण करो | पहल धीम ःवर म ार भ

करो | शर म धविन गल स िनकलगी िफर छाती स िफर नािभ स और अनत म रीढ़ की ह डी क

आिखरी छोर स िनकलगी | तब िव त क धकक स सष ना नाड़ी तरनत खलगी | सब कीटाणसिहत

तमाम रोग भाग खड़ ह ग | िनभरयता िह मत और आननद का फ वारा छटगा | हर रोज ातःकाल

म ःनानािद करक सय दय क समय िकसी एक िनयत ःथान म आसन पर पवारिभमख बठकर

कम-स-कम आधा घनटा करक तो दखो | 128) आप जगत क भ बनो अनयथा जगत आप पर भतव जमा लगा | ान क

मतािबक जीवन बनाओ अनयथा जीवन क मतािबक ान हो जायगा | िफर यग की याऽा स भी दःख का अनत नही आयगा | 129) वाःतिवक िश ण का ारभ तो तभी होता ह जब मनय सब कार की सहायताओ स िवमख होकर अपन भीतर क अननत ॐोत की तरफ अमसर होता ह | 130) य पच की िनवित क िलए अनतःकरण को आननद म सरोबार रखन क िलए

कोई भी कायर करत समय िवचार करो म कौन ह और कायर कौन कर रहा ह भीतर स जवाब

िमलगा मन और शरीर कायर करत ह | म सा ीःवरप ह | ऐसा करन स कतारपन का अह

िपघलगा सख-दःख क आघात मनद ह ग | 131) राग- ष की िनवित का कया उपाय ह उपाय यही ह िक सार जगत-पच को मनोरा य समझो | िननदा-ःतित स राग- ष स पच म सतयता ढ़ होती ह | 132) जब कोई खनी हाथ आपकी गरदन पकड़ ल कोई श धारी आपको कतल करन क

िलए ततपर हो जाय तब यिद आप उसक िलए सननता स तयार रह दय म िकसी कार का भय

या िवषाद उतपनन न हो तो समझना िक आपन राग- ष पर िवजय ा कर िलया ह | जब आपकी ि पड़त ही िसहािद िहसक जीव की िहसावित गायब हो जाय तब समझना िक अब राग- ष का अभाव हआ ह | 133) आतमा क िसवाय अनय कछ भी नही ह - ऐसी समझ रखना ही आतमिन ा ह | 134) आप ःव न ा ह और यह जगत आपका ही ःव न ह | बस िजस ण यह ान हो जायगा उसी ण आप म हो जाएग | 135) िदन क चौबीस घ ट को साधनामय बनान क िलय िनक मा होकर यथर िवचार करत हए मन को बार-बार सावधान करक आतमिचतन म लगाओ | ससार म सल न मन को वहा स उठा कर आतमा म लगात रहो | 136) एक बार सागर की एक बड़ी तरग एक बलबल की िता पर हसन लगी | बलबल न

कहा ओ तरग म तो छोटा ह िफर भी बहत सखी ह | कछ ही दर म मरी दह टट जायगी िबखर

जायगी | म जल क साथ जल हो जाऊगा | वामन िमटकर िवराट बन जाऊगा | मरी मि बहत

नजदीक ह | मझ आपकी िःथित पर दया आती ह | आप इतनी बड़ी हई हो | आपका छटकारा ज दी नही होगा | आप भाग-भागकर सामनवाली च टान स टकराओगी | अनक छोटी-छोटी तरग

म िवभ हो जाओगी | उन अस य तरग म स अननत-अननत बलबल क रप म पिरवितरत हो जाओगी | य सब बलबल फटग तब आपका छटकारा होगा | बड़ पन का गवर कय करती हो जगत की उपलि धय का अिभमान करक परमातमा स दर मत जाओ | बलबल की तरह सरल

रहकर परमातमा क साथ एकता का अनभव करो | 137) जब आप ईयार ष िछिानवषण दोषारोपण घणा और िननदा क िवचार िकसीक

ित भजत ह तब साथ-ही-साथ वस ही िवचार को आमिऽत भी करत ह | जब आप अपन भाई की आख म ितनका भ कत ह तब अपनी आख म भी आप ताड़ भ क रह ह | 138) शरीर अनक ह आतमा एक ह | वह आतमा-परमातमा मझस अलग नही | म ही कतार सा ी व नयायधीश ह | म ही ककर श आलोचक ह और म ही मधर शसक ह | मर िलय तयक

यि ःवतऽ व ःव छनद ह | बनधन पिरि छननता और दोष मरी ि म आत ही नही | म म

हपरम म ह और अनय लोग भी ःवतऽ ह | ई र म ही ह | आप भी वही हो | 139) िजस कार बालक अपनी परछा म बताल की क पना कर भय पाता ह उसी कार जीव अपन ही सक प स भयभीत होता ह और क पाता ह | 140) कभी-कभी ऐसी भावना करो िक आपक सामन चतनय का एक महासागर लहरा रहा ह | उसक िकनार खड़ रह कर आप आनद स उस दख रह ह | आपका शरीर सागर की सतह पर घमन गया ह | आपक दखत ही दखत वह सागर म डब गया | इस समःत पिरिःथित को दखन वाल आप सा ी आतमा शष रहत ह | इस कार सा ी रप म अपना अनभव करो | 141) यिद हम चाहत ह िक भगवान हमार सब अपराध माफ कर तो इसक िलए सगम साधना यही ह िक हम भी अपन सबिधत सब लोग क सब अपराध माफ कर द |

कभी िकसी क दोष या अपराध पर ि न डाल कय िक वाःतव म सब रप म हमारा यारा ई दव ही बीड़ा कर रहा ह |

142) पणर पिवऽता का अथर ह बा भाव स भािवत न होना | सासािरक मनोहरता एव घणा स पर रहना राजी-नाराजगी स अिवचल िकसी म भद न दखना और आतमानभव क ारा आकषरण व तयाग स अिल रहना | यही वदानत का उपिनषद का

रहःय ह | 143) ई र सा ातकार तभी होगा जब ससार की ि स तीत होन वाल बड़-स-बड़ विरय को भी मा करन का आपका ःवभाव बन जायगा | 144) चाल यवहार म स एकदम उपराम होकर दो िमनट क िलए िवराम लो |

सोचो िक lsquo म कौन ह सद -गम शरीर को लगती ह | भख- यास ाण को लगती ह |

अनकलता-ितकलता मन को लगती ह | शभ-अशभ एव पाप-प य का िनणरय बि करती ह | म न शरीर ह न ाण ह न मन ह न बि ह | म तो ह इन सबको स ा दन वाला इन सबस नयारा िनलप आतमा |rsquo 145) जो मनय िनरतर lsquoम म हhelliprsquo ऐसी भावना करता ह वह म ही ह और lsquoम ब हhelliprsquo ऐसी भावना करनवाला ब ही ह | 146) आप िनभरय ह िनभरय ह िनभरय ह | भय ही मतय ह | भय ही पाप ह | भय ही नकर ह | भय ही अधमर ह | भय ही यिभचार ह | जगत म िजतन असत या िमथया भाव ह व सब इस भयरपी शतान स पदा हए ह | 147) परिहत क िलए थोड़ा काम करन स भी भीतर की शि या जागत होती ह |

दसर क क याण क िवचारमाऽ स दय म एक िसह क समान बल आ जाता ह | 148) हम यिद िनभरय ह ग तो शर को भी जीतकर उस पाल सक ग | यिद डरग तो क ा भी हम फ़ाड़ खायगा | 149) तयक िबया तयक यवहार तयक ाणी ःवरप िदख यही सहज समािध ह | 150) जब किठनाईया आय तब ऐसा मानना िक मझ म सहन शि बढ़ान क िलए ई र न य सयोग भज ह | किठन सयोग म िह मत रहगी तो सयोग बदलन लगग |

िवषय म राग- ष रह गया होगा तो वह िवषय कसौटी क रप म आग आयग और उनस पार होना पड़गा | 151) ततव ि स न तो आपन जनम िलया न कभी लग | आप तो अनत ह सवर यापी ह िनतयम अजर-अमर अिवनाशी ह | जनम-मतय का ही गलत ह महा-

मखरतापणर ह | जहा जनम ही नही हआ वहा मतय हो ही कस सकती ह 152) आप ही इस जगत क ई र हो | आपको कौन दबरल बना सकता ह जगत म आप ही एकमाऽ स ा हो | आपको िकसका भय खड़ हो जाओ | म हो जाओ | ठ क स समझ लो िक जो कोई िवचार या श द आपको दबरल बनाता ह वही एकमाऽ अशभ ह | मनय को दबरल व भयभीत करनवाला जो कछ इस ससार म ह वह पाप ह | 153) आप अपना कायर या कतर य करो लिकन न उसक िलए कोई िचनता रह न ही कोई

इ छा | अपन कायर म सख का अनभव करो कय िक आपका कायर ःवय सख या िवौाम ह | आपका कायर आतमानभव का ही दसरा नाम ह | कायर म लग रहो | कायर आपको आतमानभव कराता ह |

िकसी अनय हत स कायर न करो | ःवतऽ वि स अपन कायर पर डट जाओ | अपन को ःवतऽ

समझो िकसीक कदी नही | 154) यिद आप सतय क मागर स नही हटत तो शि का वाह आपक साथ ह समय आपक

साथ ह ऽ आपक साथ ह | लोग को उनक भतकाल की मिहमा पर फलन दो भिवयकाल की स पणर मिहमा आपक हाथ म ह | 155) जब आप िद य म क साथ चा डाल म चोर म पापी म अ यागत म और सबम भ क दशरन करग तब आप भगवान ौी कण क मपाऽ बन जायग | 156) आचायर गौड़पाद न ःप कहा आप सब आपस म भल ही लड़त रह लिकन मर साथ नही लड़ सक ग | आप सब लोग मर पट म ह | म आतमःवरप स सवर या ह | 157) मनय सभी ािणय म ौ ह सब दवताओ स भी ौ ह | दवताओ को भी िफर स

धरती पर आना पड़गा और मनय शरीर ा करक मि ा करनी होगी | 158) िनि नतता क दो सऽ जो कायर करना जररी ह उस परा कर दो | जो िबनजररी ह

उस भल जाओ | 159) सवा-म-तयाग ही मनय क िवकास का मल मऽ ह | अगर यह मऽ आपको जच

जाय तो सभी क ित सदभाव रखो और शरीर स िकसी-न-िकसी यि को िबना िकसी मतलब क

सहयोग दत रहो | यह नही िक जब मरी बात मानग तब म सवा करगा | अगर बनधक मरी बात

नही मानत तो म सवा नही करगा |

भाई तब तो तम सवा नही कर पाओग | तब तो तम अपनी बात मनवा कर अपन अह की पजा ही

करोग | 160) जस ःव न िमथया ह वस ही यह जामत अवःथा भी ःव नवत ही ह िमथया ह | हरक

को अपन इस ःव न स जागना ह | सदगर बार-बार जगा रह ह लिकन जाग कर वापस सो न जाए ऐसा परषाथर तो हम ही करना होगा | 161) सदा सननमख रहो | मख को कभी मिलन मत करो | िन य कर लो िक आपक

िलय शोक न इस जगत म जनम नही िलया ह | आननदःवरप म िचनता का ःथान ही कहा ह 162) समम ा ड एक शरीर ह | समम ससार एक शरीर ह | जब तक आप तयक क

साथ एकता का अनभव करत रहग तब तक सब पिरिःथितया और आस-पास की चीज़ हवा और समि की लहर भी आपक प म रहगी | 163) आपको जो कछ शरीर स बि स या आतमा स कमजोर बनाय उसको िवष की तरह

ततकाल तयाग दो | वह कभी सतय नही हो सकता | सतय तो बलद होता ह पावन होता ह

ानःवरप होता ह | सतय वह ह जो शि द | 164) साधना म हमारी अिभरिच होनी चािहय साधना की तीो माग होनी चािहय | 165) दसर क दोष की चचार मत करो चाह व िकतन भी बड़ ह | िकसी क दोष की चचार करक आप उसका िकसी भी कार भला नही करत बि क उस आघात पहचात ह और साथ-ही-साथ अपन आपको भी | 166) इस ससार को सतय समझना ही मौत ह | आपका असली ःवरप तो आननदःवरप

आतमा ह | आतमा क िसवा ससार जसी कोई चीज ही नही ह | जस सोया हआ मनय ःव न म अपनी एकता नही जानता अिपत अपन को अनक करक दखता ह वस ही आननदःवरप आतमा जामत ःव न और सषि - इन तीन ःवरप को दखत हए अपनी एकता अि तीयता का अनभव

नही करता | 167) मनोजय का उपाय ह अ यास और वरा य | अ यास मान य पवरक मन को बार-बार परमातम-िचतन म लगाना और वरा य मान मन को ससार क पदाथ की ओर स वापस

लौटाना | 168) िकसी स कछ मत मागो | दन क िलय लोग आपक पीछ-पीछ घमग | मान नही

चाहोग तो मान िमलगा | ःवगर नही चाहोग तो ःवगर क दत आपक िलय िवमान लकर आयग |

उसको भी ःवीकार नही करोग तो ई र आपको अपन दय स लगायग | 169) कभी-कभी उदय या अःत होत हए सयर की ओर चलो | नदी सरोवर या समि क तट

पर अकल घमन जाओ | ऐस ःथान की मलाकात लो जहा शीतल पवन मनद-मनद चल रही हो | वहा परमातमा क साथ एकःवर होन की स भावना क ार खलत ह | 170) आप य -ही इ छा स ऊपर उठत हो तय -ही आपका इि छत पदाथर आपको खोजन

लगता ह | अतः पदाथर स ऊपर उठो | यही िनयम ह | य - य आप इ छक िभ क याचक का भाव धारण करत हो तय -तय आप ठकराय जात हो | 171) कित क तयक पदाथर को दखन क िलय काश जररी ह | इसी कार मन बि

इिनिय को अपन-अपन कायर करन क िलय आतम-काश की आवयकता ह कय िक बाहर का कोई काश मन बि इिनिय ाणािद को चतन करन म समथर नही | 172) जस ःव न ा परष को जागन क बाद ःव न क सख-दःख जनम-मरण पाप-प य

धमर-अधमर आिद ःपशर नही करत कय िक वह सब खद ही ह | खद क िसवाय ःव न म दसरा कछ

था ही नही | वस ही जीवनम ानवान परष को सख-दःख जनम-मरण पाप-प य धमर-अधमर ःपशर नही करत कय िक व सब आतमःवरप ही ह | 173) वही भमा नामक आतम योित क म रह कर भ क रही ह सअर म रह कर घर रही ह गध म रह कर रक रही ह लिकन मखर लोग शरीर पर ही ि रखत ह चतनय ततव पर नही | 174) मनय िजस ण भत-भिवय की िचनता का तयाग कर दता ह दह को सीिमत और उतपि -िवनाशशील जानकर दहािभमान को तयाग दता ह उसी ण वह एक उ चतर अवःथा म पहच जाता ह | िपजर स छटकर गगनिवहार करत हए प ी की तरह मि का अनभव करता ह | 175) समःत भय एव िचनताए आपकी इ छाओ का णाम ह | आपको भय कय लगता ह

कय िक आपको आशका रहती ह िक अमक चीज कही चली न जाय | लोग क हाःय स आप डरत

ह कय िक आपको यश की अिभलाषा ह कीितर म आसि ह | इ छाओ को ितलाजिल द दो | िफर दखो मजा कोई िज मदारी नहीकोई भय नही | 176) दखन म अतयत करप काला-कलटा कबड़ा और तज ःवभाव का मनय भी आपका ही ःवरप ह | आप इस तथय स म नही | िफर घणा कसी कोई लाव यमयी सदरी सि की

शोभा क समान अित िवलासभरी अ सरा भी आपका ही ःवरप ह | िफर आसि िकसकी

आपकी ानिनिया उनको आपस अलग करक िदखाती ह | य इिनिया झठ बोलनवाली ह | उनका कभी िव ास मत करो | अतः सब कछ आप ही हो | 177) मानव क नात हम साधक ह | साधक होन क नात सतय को ःवीकर करना हमारा ःवधमर ह | सतय यही ह िक बल दसर क िलय ह ान अपन िलय ह और िव ास परमातमा स

स बनध जोड़न क िलय ह | 178) अपनी आतमा म डब जाना यह सबस बड़ा परोपकार ह | 179) आप सदव म ह ऐसा िव ास ढ़ करो तो आप िव क उ ारक हो जात हो | आप

यिद वदानत क ःवर क साथ ःवर िमलाकर िन य करो आप कभी शरीर न थ | आप िनतय श

ब आतमा हो तो अिखल ा ड क मो दाता हो जात हो | 180) कपा करक उन ःवाथरमय उपाय और अिभाय को दर फ क दो जो आपको पिरि छनन रखत ह | सब वासनाए राग ह | यि गत या शरीरगत म आसि ह | उस फ क दो | ःवय पिवऽ हो जाओ | आपका शरीर ःवःथ और बि पणरःवरप हो जायगी | 181) यिद ससार क सख व पदाथर ा ह तो आपको कहना चािहय ओ शतान हट जा मर सामन स | तर हाथ स मझ कछ नही चािहय | तब दखो िक आप कस सखी हो जात हो परमातमा-ा िकसी महापरष पर िव ास रखकर अपनी जीवनडोरी िनःशक बन उनक चरण म सदा क िलय रख दो | िनभरयता आपक चरण की दासी बन जायगी | 182) िजसन एक बार ठ क स जान िलया िक जगत िमथया ह और ािनत स इसकी तीित

हो रही ह उसको कभी दःख नही होता | जगत म कभी आसि नही होती | जगत क िमथयातव क

िन य का नाम ही जगत का नाश ह | 183) अपन ःवरप म लीन होन माऽ स आप ससार क साट बन जायग | यह साटपद

कवल इस ससार का ही नही समःत लोक-परलोक का साटपद होगा | 184) ह जनक चाह दवािधदव महादव आकर आपको उपदश द या भगवान िवण आकर उपदश द अथवा ाजी आकर उपदश द लिकन आपको कदािप सख न होगा | जब िवषय का तयाग करोग तभी स ची शाित व आनद ा ह ग |

185) िजस भ न हम मानव जीवन दकर ःवाधीनता दी िक हम जब चाह तब धमारतमा होकर भ होकर जीवनम होकर कतकतय हो सकत ह- उस भ की मिहमा गाओ | गाओ नही तो सनो | सनो भी नही गाओ भी नही तो ःवीकार कर लो | 186) चाह समि क गहर तल म जाना पड़ सा ात मतय का मकाबला करना पड़ अपन

आतमाि क उ य की पितर क िलय अिडग रहो | उठो साहसी बनो शि मान बनो | आपको जो बल व सहायता चािहय वह आपक भीतर ही ह | 187) जब-जब जीवन स बनधी शोक और िचनता घरन लग तब-तब अपन आननदःवरप

का गान करत-करत उस मोह-माया को भगा दो | 188) जब शरीर म कोई पीड़ा या अग म ज म हो तब म आकाशवत आकाशरिहत चतन

ह ऐसा ढ़ िन य करक पीड़ा को भल जाओ | 189) जब दिनया क िकसी चककर म फस जाओ तब म िनलप िनतय म ह ऐसा ढ़

िन य करक उस चककर स िनकल जाओ | 190) जब घर-बार स बनधी कोई किठन समःया याकल कर तब उस मदारी का खल

समझकर ःवय को िनःसग जानकर उस बोझ को ह का कर दो | 191) जब बोध क आवश म आकर कोई अपमानय वचन कह तब अपन शाितमय

ःवरप म िःथर होकर मन म िकसी भी ोभ को पदा न होन दो | 192) उ म अिधकारी िज ास को चािहय िक वह व ा सदगर क पास जाकर ौ ा पवरक महावाकय सन | उसका मनन व िनिदधयासन करक अपन आतमःवरप को जान | जब

आतमःवरप का सा ातकार होता ह तब ही परम िवौािनत िमल सकती ह अनयथा नही | जब तक

व ा महापरष स महावाकय ा न हो तब तक वह मनद अिधकारी ह | वह अपन दयकमल म परमातमा का धयान कर ःमरण कर जप कर | इस धयान-जपािद क साद स उस व ा सदगर

ा ह ग | 193) मन बि िच अहकार छाया की तरह जड़ ह णभगर ह कय िक व उतपनन होत

ह और लीन भी हो जात ह | िजस चतनय की छाया उसम पड़ती ह वह परम चतनय सबका आतमा ह | मन बि िच अहकार का अभाव हो जाता ह लिकन उसका अनभव करनवाल का अभाव

कदािप नही होता |

194) आप अपनी शि को उ चाितउ च िवषय की ओर बहन दो | इसस आपक पास व

बात सोचन का समय ही नही िमलगा िजसस कामकता की गध आती हो | 195) अपराध क अनक नाम ह बालहतया नरहतया मातहतया गौहतया इतयािद |

परनत तयक ाणी म ई र का अनभव न करक आप ई रहतया का सबस बड़ा अपराध करत ह | 196) सवा करन की ःवाधीनता मनयमाऽ को ा ह | अगर वह करना ही न चाह तो अलग बात ह | सवा का अथर ह मन-वाणी-कमर स बराईरिहत हो जाना यह िव की सवा हो गई |

यथाशि भलाई कर दो यह समाज की सवा हो गई | भलाई का फल छोड़ दो यह अपनी सवा हो गई

| भ को अपना मानकर ःमित और म जगा लो यह भ की सवा हो गई | इस कार मनय

अपनी सवा भी कर सकता ह समाज की सवा भी कर सकता ह िव की सवा भी कर सकता ह

और िव र की सवा भी कर सकता ह | 197) आतमा स बाहर मत भटको अपन कनि म िःथर रहो अनयथा िगर पड़ोग | अपन-

आपम पणर िव ास रखो | आतम-कनि पर अचल रहो | िफर कोई भी चीज आपको िवचिलत नही कर सकती | 198) सदा शात िनिवरकार और सम रहो | जगत को खलमाऽ समझो | जगत स भािवत

मत हो | इसस आप हमशा सखी रहोग | िफर कछ बढ़ान की इ छा नही होगी और कछ कम होन स

दःख नही होगा | 199) समथर सदगर क सम सदा फल क भाित िखल हए रहो | इसस उनक अनदर सक प

होगा िक यह तो बहत उतसाही साधक ह सदा सनन रहता ह | उनक सामथयरवान सक प स

आपकी वह किऽम सननता भी वाःतिवक सननता म बदल जायगी | 200) यिद रोग को भी ई र का िदया मानो तो ार ध-भोग भी हो जाता ह और क तप का फल दता ह | इसस ई र-कपा की ाि होती ह | याकल मत हो | क सल और इनजकशन

आधीन मत हो | 201) साधक को चािहय िक अपन लआय को ि म रखकर साधना-पथ पर तीर की तरह

सीधा चला जाय | न इधर दख न उधर | ि यिद इधर-उधर जाती हो तो समझना िक िन ा िःथर नही ह |

202) आपन अपन जीवन म हजार ःव न दख ह ग लिकन व आपक जीवन क अश नही बन जात | इसी कार य जामत जगत क आड बर आपकी आतमा क सम कोई मह व नही रखत | 203) एक आतमा को ही जानो अनय बात को छोड़ो | धीर साधक को चािहय िक वह

सावधान होकर आतमिन ा बढ़ाय अनक श द का िचनतन व भाषण न कर कय िक वह तो कवल

मन-वाणी को पिरौम दनवाला ह असली साधना नही ह | 204) जो परष जन-समह स ऐस डर जस साप स डरता ह स मान स ऐस डर जस नकर स

डरता ह ि य स ऐस डर जस मद स डरता ह उस परष को दवतागण ा ण मानत ह | 205) जस अपन शरीर क अग पर बोध नही आता वस शऽ िमऽ व अपनी दह म एक ही आतमा को दखनवाल िववकी परष को कदािप बोध नही आता | 206) मन तो शरीर को ई रापरण कर िदया ह | अब उसकी भख- यास स मझ कया

समिपरत वःत म आस होना महा पाप ह | 207) आप यिद िद य ि पाना चहत हो तो आपको इिनिय क ऽ का तयाग करना होगा | 208) लयकाल क मघ की गजरना हो समि उमड़ पड बारह सयर तपायमान हो जाय पहाड़ स पहाड़ टकरा कर भयानक आवाज हो तो भी ानी क िन य म त नही भासता कय िक

त ह ही नही | त तो अ ानी को भासता ह | 209) सतय को ःवीकार करन स शाित िमलगी | कछ लोग यो यता क आधार पर शाित

खरीदना चाहत ह | यो यता स शाित नही िमलगी यो यता क सदपयोग स शाित िमलगी | कछ

लोग स पि क आधार पर शाित सरि त रखना चाहत ह | स पि स शाित नही िमलगी स पि

क सदपयोग स शाित िमलगी वस ही िवपि क सदपयोग स शाित िमलगी | 210) त छ हािन-लाभ पर आपका धयान इतना कय रहता ह िजसस अनत आननदःवरप

आतमा पर स धयान हट जाता ह | 211) अपन अनदर ही आननद ा करना य िप किठन ह परनत बा िवषय स आननद

ा करना तो अस भव ही ह |

212) म ससार का काश ह | काश क रप म म ही सब वःतओ म या ह | िनतय इन

िवचार का िचनतन करत रहो | य पिवऽ िवचार आपको परम पिवऽ बना दग | 213) जो वःत कमर स ा होती ह उसक िलय ससार की सहायता तथा भिवय की आशा की आवयकता होती ह परनत जो वःत तयाग स ा होती ह उसक िलय न ससार की सहायता चािहय न भिवय की आशा | 214) आपको जब तक बाहर चोर िदखता ह तब तक जरर भीतर चोर ह | जब दसर लोग

स िभनन अयो य खराब सधारन यो य िदखत ह तब तक ओ सधार का बीड़ा उठान वाल त अपनी िचिकतसा कर | 215) सफल व ही होत ह जो सदव नतमःतक एव सननमख रहत ह | िचनतातर-शोकातर लोग की उननित नही हो सकती | तयक कायर को िह मत व शाित स करो | िफर दखो िक यह

कायर शरीर मन और बि स हआ | म उन सबको स ा दनवाला चतनयःवरप ह | ॐ ॐ का पावन गान करो | 216) िकसी भी पिरिःथित म मन को यिथत न होन दो | आतमा पर िव ास करक

आतमिन बन जाओ | िनभरयता आपकी दासी बन कर रहगी | 217) सतसग स मनय को साधना ा होती ह चाह वह शाित क रप म हो चाह मि क

रप म चाह सवा क रप म हो म क रप म हो चाह तयाग क रप म हो | 218) भला-बरा वही दखता ह िजसक अनदर भला-बरा ह | दसर क शरीर को वही दखता ह

जो खद को शरीर मानता ह | 219) खबरदार आपन यिद अपन शरीर क िलय ऐश-आराम की इ छा की िवलािसता एव इिनिय-सख म अपना समय बरबाद िकया तो आपकी खर नही | ठ क स कायर करत रहन की नीित

अपनाओ | सफलता का पहला िस ात ह कायरिवौामरिहत कायरसा ी भाव स कायर | इस

िस ात को जीवन म चिरताथर करोग तो पता चलगा िक छोटा होना िजतना सरल ह उतना ही बड़ा होना भी सहज ह | 220) भतकाल पर िखनन हए िबना भिवय की िचनता िकय िबना व रमान म कायर करो | यह भाव आपको हर अवःथा म सनन रखगा हम जो कछ ा ह उसका सदपयोग ही अिधक

काश पान का साधन ह |

221) जब आप सफलता की ओर पीठ कर लत हो पिरणाम की िचनता का तयाग कर दत

हो स मख आय हए क र य पर अपनी उ ोगशि एकाम करत हो तब सफलता आपक पीछ-पीछ

आ जाती ह | अतः सफलता आपको खोजगी | 222) वि तब तक एकाम नही होगी जब तक मन म कभी एक आशा रहगी तो कभी दसरी | शात वही हो सकता ह िजस कोई क र य या आवयकता घसीट न रही हो | अतः परम शाित पान

क िलय जीवन की आशा भी तयाग कर मन ाननद म डबो दो | आज स समझ लो िक यह शरीर ह ही नही | कवल ाननद का सागर लहरा रहा ह | 223) िजसकी पककी िन ा ह िक म आतमा हrsquo उसक िलय ऐसी कौन सी मिथ ह जो खल

न सक ऐसी कोई ताकत नही जो उसक िवर जा सक | 224) मर भा य म नही थाई र की मज आजकल सतसग ा नही होताजगत

खराब ह ऐस वचन हमारी कायरता व अनतःकरण की मिलनता क कारण िनकलत ह | अतः नकारातमक ःवभाव और दसर पर दोषारोपण करन की वि स बचो | 225) आप जब भीतरवाल स नाराज होत हो तब जगत आपस नाराज रहता ह | जब आप

भीतर अनतयारमी बन बठ तो जगतरपी पतलीघर म िफर गड़बड़ कसी 226) िजस ण हम ससार क सधारक बन खड़ होत ह उसी ण हम ससार को िबगाड़नवाल बन जात ह | श परमातमा को दखन क बजाय जगत को िबगड़ा हआ दखन की ि बनती ह | सधारक लोग मानत ह िक lsquoभगवान न जो जगत बनाया ह वह िबगड़ा हआ ह और हम उस सधार रह ह |rsquo वाह वाह धनयवाद सधारक अपन िदल को सधारो पहल | सवरऽ िनरजन का दीदार करो | तब आपकी उपिःथित माऽ स आपकी ि माऽ स अर यार आपको छकर बहती हवा माऽ स अननत जीव को शाित िमलगी और अननत सधार होगा | नानक कबीर महावीर ब और लीलाशाह बाप जस महापरष न यही कजी अपनायी थी | 227) वदानत म हमशा कमर का अथर होता ह वाःतिवक आतमा क साथ एक होकर च ा करना अिखल िव क साथ एकःवर हो जाना | उस अि तीय परम ततव क साथ िनःःवाथर सयोग ा करना ही एकमाऽ स चा कमर ह बाकी सब बोझ की गठिरया उठाना ह |

228) अपनी व रमान अवःथा चाह कसी भी हो उसको सव च मानन स ही आपक दय म आतम ान ान का अनायास उदय होन लगगा | आतम-सा ातकार को मील दर की कोई चीज समझकर उसक पीछ दौड़ना नही ह िचिनतत होना नही ह |

िचनता की गठरी उठाकर यिथत होन की जररत नही ह | िजस ण आप िनि नतता म गोता मारोग उसी ण आपका आतमःवरप गट हो जायगा | अर गट कया होगा आप ःवय आतमःवरप हो ही | अनातमा को छोड़ दो तो आतमःवरप तो हो ही | 229) सदा ॐकार का गान करो | जब भय व िचनता क िवचार आय तब िकसी मःत सत-फकीर महातमा क सािननधय का ःमरण करो | जब िननदा-शसा क सग आय तब महापरष क जीवन का अवलोकन करो | 230) िजनको आप भयानक घटनाए एव भयकर आघात समझ बठ हो वाःतव म व आपक ियतम आतमदव की ही करतत ह | समःत भयजनक तथा ाणनाशक घटनाओ क नाम-रप तो िवष क ह लिकन व बनी ह अमत स | 231) मन म यिद भय न हो तो बाहर चाह कसी भी भय की साममी उपिःथत हो जाय आपका कछ िबगाड़ नही सकती | मन म यिद भय होगा तो तरनत बाहर भी भयजनक पिरिःथया न होत हए भी उपिःथत हो जायगी | व क तन म भी भत िदखन लगगा | 232) िकसी भी पिरिःथित म िदखती हई कठोरता व भयानकता स भयभीत नही होना चािहए | क क काल बादल क पीछ पणर काशमय एकरस परम स ा सयर की तरह सदा िव मान ह | 233) आप अपन पर कदािप अिव ास मत करो | इस जगत म आप सब कछ कर सकत हो | अपन को कभी दबरल मत मानो | आपक अनदर तमाम शि या छपी हई ह | 234) यिद कोई मन य आपकी कोई चीज़ को चरा लता ह तो ड़रत कय हो वह मनय

और आप एक ह | िजस चीज़ को वह चराता ह वह चीज़ आपकी और उसकी द न की ह | 235) जो खद क िसवाय दसरा कछ दखता नही सनता नही जानता नही वह अननत ह |

जब तक खद क िसवाय और िकसी वःत का भान होता ह वह वःत स ची लगती ह तब तक आप

सीिमत व शात ह असीम और अनत नही |

236) ससार मझ कया आनद द सकता ह स पणर आनद मर भीतर स आया ह | म ही स पणर आननद ह स पणर मिहमा एव स पणर सख ह | 237) जीवन की समःत आवयकताए जीवन म उपिःथत ह परनत जीवन को जब हम

बा रग म रग दत ह तब जीवन का वाःतिवक रप हम नही जान पात | 238) िननदक की िननदा स म कय मरझाऊ शसक की शसा स म कय फल िननदा स म घटता नही और शसा स म बढ़ता नही | जसा ह वसा ही रहता ह | िफर िननदा-ःतित स

खटक कसी 239) ससार व ससार की समःयाओ म जो सबस अिधक फस हए ह उनही को वदानत की सबस अिधक आवयकता ह | बीमार को ही औषिध की यादा आवयकता ह | कय जी ठ क ह न 240) जगत क पाप व अतयाचार की बात मत करो लिकन अब भी आपको जगत म पाप

िदखता ह इसिलय रोओ | 241) हम यिद जान ल िक जगत म आतमा क िसवाय दसरा कछ ह ही नही और जो कछ

िदखता ह वह ःव नमाऽ ह तो इस जगत क दःख-दािरिय पाप-प य कछ भी हम अशात नही कर सकत | 242) िव ान दाशरिनक व आचाय की धमकी तथा अनमह आलोचना या अनमित

ानी पर कोई भाव नही ड़ाल सकती | 243) ह यि रप अननत आप अपन पर पर खड़ रहन का साहस करो समःत िव का बोझ आप िखलौन की तरह उठा लोग | 244) िसह की गजरना व नरिसह की ललकार तलवार की धार व साप की फफकार तपःवी की धमकी व नयायधीश की फटकारइन सबम आपका ही काश चमक रहा ह | आप इनस

भयभीत कय होत हो उलझन कय महसस करत हो मरी िब ली मझको याऊ वाली बात कय

होन दत हो 245) ससार हमारा िसफ़र िखलोना ही ह और कछ नही | अबोध बालक ही िखलौन स

भयभीत होता ह आसि करता ह िवचारशील यि नही |

246) जब तक अिव ा दर नही होगी तब तक चोरी जआ दार यिभचार कभी बद न

ह ग चाह लाख कोिशश करो | 247) आप हमशा अदर का धयान रखो | पहल हमारा भीतरी पतन होता ह | बा पतन तो इसका पिरणाम माऽ ह | 248) तयाग स हमशा आनद िमलता ह | जब तक आपक पास एक भी चीज़ बाकी ह तब

तक आप उस चीज़ क बधन म बध रहोग | आघात व तयाघात हमशा समान िवरोधी होत ह | 249) िनि तता ही आरो यता की सबस बड़ी दवाई ह | 250) सख अपन िसर पर दख का मकट पहन कर आता ह | जो सख को अपनायगा उस

दख को भी ःवीकार करना पड़गा | 251) म (आतमा) सबका ा ह | मरा ा कोई नही | 252) हजार म स कोई एक परष भीतर स शात िच वाला रहकर बाहर स ससारी जसा यवहार कर सकता ह | 253) सतय क िलए यिद शरीर का तयाग करना पड़ तो कर दना | यही आिखरी ममता ह जो हम तोड़नी होगी | 254) भय िचनता बचनी स ऊपर उठो | आपको ान का अनभव होगा | 255) आपको कोई भी हािन नही पहचा सकता | कवल आपक खयालात ही आपक पीछ पड़ ह | 256) म का अथर ह अपन पड़ोसी तथा सपकर म आनवाल क साथ अपनी वाःतिवक अभदता का अनभव करना | 257) ओ यार अपन खोय हए आतमा को एक बार खोज लो | धरती व आसमान क शासक आप ही हो | 258) सदव सम और सनन रहना ई र की सव पिर भि ह |

259) जब तक िच म ढ़ता न आ जाय िक शा की िविधय का पालन छोड़ दन स भी दय का यथाथर भि भाव न नही होगा तब तक शा की िविधय को पालत रहो |

गर भि एक अमोघ साधना 1 जनम मरण क िवषचब स म होन का कोई मागर नही ह कया सख-दःख हषर-शोक लाभ-

हािन मान-अपमान की थ पड़ स बचन का कोई उपाय नही ह कया

हअवय ह | ह िय आतमन नाशवान पदाथ स अपना मन वािपस लाकर सदगर क

चरणकमल म लगाओ | गरभि योग का आौय लो | गरसवा ऐसा अमोघ साधन ह िजसस

व रमान जीवन आननदमय बनता ह और शा त सख क ार खलत ह |

गर सवत त नर धनय यहा | ितनक नही दःख यहा न वहा || 2 स च सदगर की की हई भि िशय म सासािरक पदाथ क वरा य एव अनासि जगाती ह

परमातमा क ित म क पप महकाती ह | 3 तयक िशय सदगर की सवा करना चाहता ह लिकन अपन ढग स | सदगर चाह उस ढग स

सवा करन को कोई ततपर नही | जो िवरला साधक गर चाह उस ढ़ग स सवा कर सकता ह उस कोई कमी नही रहती |

िन सदगर की सवा स उनकी कपा ा होती ह और उस कपा स न िमल सक ऐसा तीन लोक म कछ भी नही ह | 4 गर िशय का स बनध पिवऽतम स बनध ह | ससार क तमाम बनधन स छड़ाकर वह मि क मागर पर ःथान कराता ह | यह स बनध जीवनपयरनत का स बनध ह | यह बात अपन दय की डायरी म सवणर-अ र स िलख लो | 5 उ ल सयर क काश क अिःततव को मान या न मान िफर भी सयर हमशा काशता ह | चचल मन का मनय मान या न मान लिकन सदगर की परमक याणकारी कपा सदव बरसती ही रहती ह | 6 सदगर की चरणरज म ःनान िकय िबना कवल किठन तप यार करन स या वद का

अधयन करन स वदानत का रहःय कट नही होता आतमानद का अमत नही िमलता | 7 दशरन शा क चाह िकतन मनथ पढ़ो हजार वष तक िहमालय की गफा म तप करो वष तक ाणायाम करो जीवनपयरनत शीषारसन करो समम िव म वास करक याखान दो िफर भी सदगर की कपा क िबना आतम ान नही होता | अतः िनरािभमानी सरल िनजाननद म मःत दयाल ःवभाव क आतम-सा ातकारी सदगर क चरण म जाओ | जीवन को धनय बनाओ | 8 सदगर की सवा िकय िबना शा का अधयन करना मम साधक क िलय समय बरबाद करन क बराबर ह | 9 िजसको सदगर ा हए ह ऐस िशय क िलय इस िव म कछ भी अा य नही ह | सदगर िशय को िमली हई परमातमा की अम य भट ह | अर नहीhellipनही व तो िशय क सम साकार रप म कट हए परमातमा ःवय ह | 10 सदगर क साथ एक ण िकया हआ सतसग लाख वष क तप स अननत गना ौ ह | आख क िनमषमाऽ म सदगर की अमतवष ि िशय क जनम-जनम क पाप को जला सकती ह | 11 सदगर जसा मपणर कपाल िहतिचनतक िव भर म दसरा कोई नही ह | 12 बाढ़ क समय याऽी यिद तफानी नदी को िबना नाव क पार कर सक तो साधक भी िबना सदगर क अपन जीवन क आिखरी लआय को िस कर सकता ह | यानी य दोन बात स भव ह |

अतः यार साधक मनमखी साधना की िज करना छोड़ दो | गरमखी साधना करन म ही सार ह | 13 सदगर क चरणकमल का आौय लन स िजस आननद का अनभव होता ह उसक आग िऽलोकी का साा य त छ ह | 14 आतम-सा ातकार क मागर म सबस महान शऽ अहभाव का नाश करन क िलए सदगर की आ ा का पालन अमोघ श ह | 15 रसोई सीखन क िलय कोई िसखानवाला चािहय िव ान और गिणत सीखन क िलय

अधयापक चािहय तो कया िव ा सदगर क िबना ही सीख लोग 16 सदगरकपा की स पि जसा दसरा कोई खजाना िव भर म नही | 17 सदगर की आ ा का उ लघन करना यह अपनी क खोदन क बराबर ह | 18 सदगर क कायर को शका की ि स दखना महापातक ह | 19 गरभि व गरसवा - य साधनारपी नौका की दो पतवार ह | उनकी मदद स िशय ससारसागर को पार कर सकता ह | 20 सदगर की कसौटी करना असभव ह | एक िववकाननद ही दसर िववकाननद को पहचान सकत ह | ब को जानन क िलय दसर ब की आवयकता रहती ह | एक रामतीथर का रहःय दसर रामतीथर ही पा सकत ह |

अतः सदगर की कसौटी करन की च ा छोड़कर उनको पिरपणर पर परमातमा मानो |

तभी जीवन म वाःतिवक लाभ होगा | 21 गरभि योग का आौय लकर आप अपनी खोई हई िद यता को पनः ा करो सख-दःख जनम-मतय आिद सब न स पार हो जाओ | 22 गरभि योग मान गर की सवा क ारा मन और िवकार पर िनयऽण एव पनः सःकरण | 23 िशय अपन गर क चरणकमल म णाम करता ह | उन पर ौ फल की वषार करक उनकी ःतित करता ह ldquoह परम प य पिवऽ गरदव मझ सव च सख ा हआ ह | म िन ा स जनम-मतय की पर परा स म हआ ह | म िनिवरक प समािध का श सख भोग रहा ह | जगत क िकसी भी कोन म म म ता स िवचरण कर सकता ह | सब पर मरी सम ि ह | मन ाकत मन का तयाग िकया ह | मन सब सक प एव रिच-अरिच का तयाग िकया ह | अब म अख ड शाित म िवौाित पा रहा ह hellip आननदमय हो रहा ह | म इस पणर अवःथा का वणरन नही कर पाता | ह प य गरदव म आवाक बन गया ह | इस दःतर भवसागर को पार करन म आपन

मझ सहायता की ह | अब तक मझ कवल अपन शरीर म ही स पणर िव ास था | मन िविभनन योिनय म अस य जनम िलय | ऐसी सव च िनभरय अवःथा मझ कौन स पिवऽ कम क कारण ा हई ह यह म नही जानता | सचमच यह एक दलरभ भा य ह |

यह एक महान उतक लाभ ह | अब म आननद स नाचता ह | मर सब दःख न हो गय | मर सब मनोरथ पणर हए ह |

मर कायर स पनन हए ह | मन सब वािछत वःतए ा की ह | मरी इ छा पिरपणर हई ह | आप मर स च माता-िपता हो | मरी व रमान िःथित म म दसर क सम िकस कार कट कर सक सवरऽ सख और आननद का अननत सागर मझ लहराता हआ िदख रहा ह | मर अतःच िजसस खल गय वह महावाकय lsquoत वमिसrsquo ह | उपिनषद एव वदानतसऽ को भी धनयवाद | िजनह न िन गर का एव उपिनषद क महावाकय का रप धारण िकया ह | ऐस ौी यासजी को णाम ौी शकराचायर को णाम सासािरक मनय क िसर पर गर क चरणामत का एक िबनद भी िगर तो भी उसक ःब दःख का नाश होता ह | यिद एक िन परष को व पहनाय जाय तो सार िव को व पहनान एव भोजन करवान क बराबर ह कय िक िन परष सचराचर िव म या ह | सबम व ही ह |rdquo

ॐhellip ॐ hellip ॐ hellip

ःवामी िशवानद जी

ौी राम-विश सवाद ौी विश जी कहत ह ldquoह रघकलभषण ौी राम अनथर ःवरप िजतन सासािरक पदाथर ह व सब जल म तरग क समान िविवध रप धारण करक चमतकार उतपनन करत ह अथारत ई छाए उतपनन करक जीव को मोह म फसात ह | परत जस सभी तरग जल ःवरप ही ह उसी कार सभी पदाथर वःततः न र ःवभाव वाल ह |

बालक की क पना स आकाश म य और िपशाच िदखन लगत ह परनत बि मान मनय क िलए उन य और िपशाच का कोई अथर नही | इसी कार अ ानी क िच म यह जगत सतय हो ऐसा लगता ह जबिक हमार जस ािनय क िलय यह जगत कछ भी नही | यह समम िव पतथर पर बनी हई पतिलय की सना की तरह रपालोक तथा अतर-बा िवषय स शनय ह | इसम सतयता कसी परनत अ ािनय को यह िव सतय लगता ह |rdquo विश जी बोल ldquoौी राम जगत को सतय ःवरप म जानना यह ाित ह मढ़ता ह | उस िमथया अथारत कि पत समझना यही उिचत समझ ह | ह राघव तव ा अहता आिद सब िवम-िवलास शात िशवःवरप श ःवरप ही ह | इसिलय मझ तो क अितिर और कछ भी नही िदखता | आकाश म जस जगल नही वस ही म जगत नही ह | ह राम ार ध वश ा कम स िजस परष की च ा कठपतली की तरह ई छाशनय और याकलतारिहत होती ह वह शानत मनवाला परष जीवनम मिन ह | ऐस जीवनम ानी को इस

जगत का जीवन बास की तरह बाहर-भीतर स शनय रसहीन और वासना-रिहत लगता ह | इस य पच म िजस रिच नही दय म िचनमाऽ अ य ही अ छा लगता ह ऐस परष न

भीतर तथा बाहर शािनत ा कर ली ह और इस भवसागर स पार हो गया ह | रघनदन श व ा कहत ह िक मन का ई छारिहत होना यही समािध ह कय िक ई छाओ का तयाग करन स मन को जसी शािनत िमलती ह ऐसी शािनत सकड़ उपदश स भी नही िमलती | ई छा की उतपि स जसा दःख ा होता ह ऐसा दःख तो नरक म भी नही | ई छाओ की शािनत

स जसा सख होता ह ऐसा सख ःवगर तो कया लोक म भी नही होता | अतः समःत शा तपःया यम और िनयम का िनचोड़ यही ह िक ई छामाऽ दःखदायी ह और ई छा का शमन मो ह | ाणी क दय म जसी-जसी और िजतनी-िजतनी ई छाय उतपनन होती ह उतना ही दख स वह

ड़रता रहता ह | िववक-िवचार ारा ई छाय जस-जस शानत होती जाती ह वस-वस दखरपी छत की बीमारी िमटती जाती ह |

आसि क कारण सासािरक िवषय की ई छाय य - य गहनीभत होती जाती ह तय -तय

दःख की िवषली तरग बढ़ती जाती ह | अपन परषाथर क बल स इस ई छारपी यािध का उपचार यिद नही िकया जाय तो इस यािध स छटन क िलय अनय कोई औषिध नही ह ऐसा म ढ़तापवरक

मानता ह | एक साथ सभी ई छाओ का स पणर तयाग ना हो सक तो थोड़ी-थोड़ी ई छाओ का धीर-धीर तयाग

करना चािहय परत रहना चािहय ई छा क तयाग म रत कय िक सनमागर का पिथक दखी नही होता | जो नराधम अपनी वासना और अहकार को ीण करन का य नही करता वह िदन -िदन अपन

को रावण की तरह अधर कऐ म ढ़कल रहा ह | ई छा ही दख की जनमदाऽी इस ससाररपी बल का बीज ह | यिद इस बीज को आतम ानरपी अि न स ठ क-ठ क जला िदया तो पनः यह अकिरत नही होता | रघकलभषण राम ई छामाऽ ससार ह और ई छाओ का अभाव ही िनवारण ह | अतः अनक कार की माथाप ची म ना पड़कर कवल ऐसा य करना चािहय िक ई छा उतपनन ना हो | अपनी बि स ई छा का िवनाश करन को जो ततपर नही ऐस अभाग को शा और गर का उपदश

भी कया करगा जस अपनी जनमभमी जगल म िहरणी की मतय िनि त ह उसी कार अनकिवध दख का िवःतार कारनवाल ई छारपी िवषय-िवकार स य इस जगत म मनय की मतय िनि त ह | यिद मानव ई छाओ क कारण ब च -सा मढ़ ना बन तो उस आतम ान क िलय अ प य ही करना पड़ | इसिलय सभी कार स ई छाओ को शानत करना चािहय | ई छा क शमन स परम पद की ाि होती ह | ई छारिहत हो जाना यही िनवारण ह और ई छाय

होना ही बधन ह | अतः यथाशि ई छा को जीतना चािहय | भला इतना करन म कया किठनाई ह जनम जरा यािध और मतयरपी कटीली झािड़य और खर क व - समह की जड़ भी ई छा ही ह

| अतः शमरपी अि न स अदर-ही-अदर बीज को जला ड़ालना चािहय| जहा ई छाओ का अभाव ह

वहा मि िनि त ह |

िववक वरा य आिद साधन स ई छा का सवरथा िवनाश करना चािहय | ई छा का सबध जहा-जहा ह वहा-वहा पाप प य दखरािशया और ल बी पीड़ाओ स य बधन को हािज़र ही समझो | परष

की आतिरक ई छा य - य शानत होती जाती ह तय -तय मो क िलय उसका क याणकारक

साधन बढ़ता जाता ह | िववकहीन ई छा को पोसना उस पणर करना यह तो ससाररपी िवष व को पानी स सीचन क समान ह |rdquo

- ौीयोगविश महारामायण

आतमबल का आवाहन कया आप अपन-आपको दबरल मानत हो लघतामथी म उलझ कर पिरिःतिथय स िपस रह हो

अपना जीवन दीन-हीन बना बठ हो hellipतो अपन भीतर सष आतमबल को जगाओ | शरीर चाह ी का हो चाह परष का कित क साा य म जो जीत ह व सब ी ह और कित क बनधन स पार अपन ःवरप की पहचान िजनह न कर ली ह अपन मन की गलामी की बिड़या तोड़कर िजनह न फ क दी ह व परष ह | ी या परष शरीर एव मानयताए होती ह | तम तो तन-मन स पार िनमरल आतमा हो | जागोhellipउठोhellipअपन भीतर सोय हय िन यबल को जगाओ | सवरदश सवरकाल म सव म

आतमबल को िवकिसत करो | आतमा म अथाह सामथयर ह | अपन को दीन-हीन मान बठ तो िव म ऐसी कोई स ा नही जो त ह ऊपर उठा सक | अपन आतमःवरप म िति त हो गय तो िऽलोकी म ऐसी कोई हःती नही जो त ह दबा सक | भौितक जगत म वाप की शि ईलकशोिनक शि िव त की शि गरतवाकषरण की शि बड़ी मानी जाती ह लिकन आतमबल उन सब शि य का सचालक बल ह | आतमबल क सािननधय म आकर पग ार ध को पर िमल जात ह दव की दीनता पलायन हो जाती ह ितकल पिरिःतिथया अनकल हो जाती ह | आतमबल सवर िरि -िसि य का िपता ह |

आतमबल कस जगाय हररोज़ तःकाल ज दी उठकर सय दय स पवर ःनानािद स िनवत हो जाओ | ःव छ पिवऽ ःथान

म आसन िबछाकर पवारिभमख होकर प ासन या सखासन म बठ जाओ | शानत और सनन वि

धारण करो | मन म ढ भावना करो िक म कित-िनिमरत इस शरीर क सब अभाव को पार करक सब

मिलनताओ-दबरलताओ स िप ड़ छड़ाकर आतमा की मिहमा म जागकर ही रहगा |

आख आधी खली आधी बद रखो | अब फ़फ़ड़ म खब ास भरो और भावना करो की ास क साथ

म सयर का िद य ओज भीतर भर रहा ह | ास को यथाशि अनदर िटकाय रखो | िफ़र lsquoॐhelliprsquo का ल बा उ चारण करत हए ास को धीर-धीर छोड़त जाओ | ास क खाली होन क बाद तरत ास ना लो | यथाशि िबना ास रहो और भीतर ही भीतर lsquoहिर ॐhelliprsquo lsquoहिर ॐhelliprsquo का मानिसक

जाप करो | िफ़र स फ़फ़ड़ म ास भरो | पव रीित स ास यथाशि अनदर िटकाकर बाद म धीर-धीर छोड़त हए lsquoॐhelliprsquo का गजन करो | दस-पिह िमनट ऐस ाणायाम सिहत उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo की धविन करक शानत हो जाओ | सब

यास छोड़ दो | वि य को आकाश की ओर फ़लन दो | आकाश क अनदर पथवी ह | पथवी पर अनक दश अनक समि एव अनक लोग ह | उनम स एक

आपका शरीर आसन पर बठा हआ ह | इस पर य को आप मानिसक आख स भावना स दखत

रहो | आप शरीर नही हो बि क अनक शरीर दश सागर पथवी मह न ऽ सयर चनि एव पर ा ड़ क

ा हो सा ी हो | इस सा ी भाव म जाग जाओ | थोड़ी दर क बाद िफ़र स ाणायाम सिहत lsquoॐhelliprsquo का जाप करो और शानत होकर अपन िवचार को दखत रहो | इस अवःथा म ढ़ िन य करो िक lsquoम जसा चहता ह वसा होकर रहगा |rsquo िवषयसख स ा धन-

दौलत इतयािद की इ छा न करो कय िक िन यबल या आतमबलरपी हाथी क पदिच म और सभी क पदिच समािव हो ही जायग | आतमानदरपी सयर क उदय होन क बाद िम टी क तल क दीय क ाकाश रपी शि सखाभास की गलामी कौन कर

िकसी भी भावना को साकार करन क िलय दय को करद ड़ाल ऐसी िन यातमक बिल वि होनी आवशयक ह | अनतःकरण क गहर-स-गहर दश म चोट कर ऐसा ाण भरक िन बल का आवाहन करो | सीना तानकर खड़ हो जाओ अपन मन की दीन-हीन दखद मानयताओ को कचल

ड़ालन क िलय | सदा ःमरण रह की इधर-उधर भटकती वि य क साथ त हारी शि भी िबखरती रहती ह | अतः वि य को बहकाओ नही | तमाम वि य को एकिऽत करक साधनाकाल म आतमिचनतन म लगाओ और यवहारकाल म जो कायर करत हो उसम लगाओ | द िच होकर हरक कायर करो | अपन ःवभाव म स आवश को सवरथा िनमरल कर दो | आवश म आकर कोई िनणरय मत लो कोई िबया मत करो | सदा शानत वि धारण करन का अ यास करो | िवचारशील एव सनन रहो | ःवय अचल रहकर सागर की तरह सब वि य की तरग को अपन

भीतर समालो | जीवमाऽ को अपना ःवरप समझो | सबस ःनह रखो | िदल को यापक रखो | सकिच ता का िनवारण करत रहो | ख ड़ातमक वि का सवरथा तयाग करो | िजनको ानी महापरष का सतसग और अधयातमिव ा का लाभ िमल जाता ह उसक जीवन स

दःख िवदा होन लगत ह | ॐ आननद आतमिन ा म जाग हए महापरष क सतसग एव सतसािहतय स जीवन को भि और वदात स प

एव पलिकत करो | कछ ही िदन क इस सघन योग क बाद अनभव होन लगगा िक भतकाल क

नकारतमक ःवभाव सशयातमक-हािनकारक क पनाओ न जीवन को कचल ड़ाला था िवषला कर िदया था | अब िन यबल क चमतकार का पता चला | अततरम म आिवरभत िद य खज़ाना अब

िमला | ार ध की बिड़या अब टटन लगी | ठ क ह न करोग ना िह मत पढ़कर रख मत दना इस पिःतका को | जीवन म इसको बार-बार पढ़त रहो | एक िदन म यह पणर ना होगा | बार-बार अ यास करो | त हार िलय यह एक ही पिःतका काफ़ी ह | अनय कचराप टी ना पड़ोग तो चलगा | शाबाश वीर शाबाश

  • परसतावना
  • जीवन रसायन
  • गर भकति एक अमोघ साधना
  • शरी राम-वशिषठ सवाद
  • आतमबल का आवाहन
  • आतमबल कस जगाय
Page 20: जीवन रसायन - HariOmGroup · ‘जीवन रसायन’ का यह िदय कटोरा आत्मरस के िपपासुओं हाथ

119) ऐस लोग स स बनध रखो िक िजसस आपकी सहनशि बढ़ समझ की शि बढ़

जीवन म आन वाल सख-दःख की तरग का आपक भीतर शमन करन की ताकत आय समता बढ़

जीवन तजःवी बन | 120) लोग बोलत ह िक धयान व आतमिचनतन क िलए हम फरसत नही िमलती | लिकन

भल मनय जब नीद आती ह तब सब महतवपणर काम भी छोड़कर सो जाना पड़ता ह िक नही

जस नीद को महतव दत हो वस ही चौबीस घनट म स कछ समय धयान व आतमिचनतन म भी िबताओ | तभी जीवन साथरक होगा | अनयथा कछ भी हाथ नही लगगा | 121) भल जाओ िक तम मनय हो अमक जाित हो अमक उ हो अमक िड़मीवाल हो अमक धनधवाल हो | तम िनगरण िनराकार सा ीरप हो ऐसा ढ़ िन य करो | इसीम तमाम

कार की साधनाए िबयाए योगािद समािव हो जात ह | आप सवर यापक अख ड चतनय हो | सार ान का यह मल ह | 122) दोष तभी िदखता जब हमार लोचन म क अभावरप पीिलया रोग स मःत होत ह | 123) साधक यिद अ यास क मागर पर उसी कार आग बढ़ता जाय िजस कार ार भ

म इस मागर पर चलन क िलए उतसाहपवरक कदम रखा था तो आयरपी सयर अःत होन स पहल

जीवनरपी िदन रहत ही अवय सोऽहम िसि क ःथान तक पहच जाय | 124) लोग ज दी स उननित कय नही करत कय िक बाहर क अिभाय एव िवचारधाराओ का बहत बड़ा बोझ िहमालय की तरह उनकी पीठ पर लदा हआ ह | 125) अपन ित होन वाल अनयाय को सहन करत हए अनयायकतार को यिद मा कर िदया जाय तो ष म म पिरणत हो जाता ह | 126) साधना की शरआत ौ ा स होती ह लिकन समाि ान स होनी चािहय | ान मान

ःवयसिहत सवर ःवरप ह ऐसा अपरो अनभव | 127) अपन शरीर क रोम-रोम म स ॐ का उ चारण करो | पहल धीम ःवर म ार भ

करो | शर म धविन गल स िनकलगी िफर छाती स िफर नािभ स और अनत म रीढ़ की ह डी क

आिखरी छोर स िनकलगी | तब िव त क धकक स सष ना नाड़ी तरनत खलगी | सब कीटाणसिहत

तमाम रोग भाग खड़ ह ग | िनभरयता िह मत और आननद का फ वारा छटगा | हर रोज ातःकाल

म ःनानािद करक सय दय क समय िकसी एक िनयत ःथान म आसन पर पवारिभमख बठकर

कम-स-कम आधा घनटा करक तो दखो | 128) आप जगत क भ बनो अनयथा जगत आप पर भतव जमा लगा | ान क

मतािबक जीवन बनाओ अनयथा जीवन क मतािबक ान हो जायगा | िफर यग की याऽा स भी दःख का अनत नही आयगा | 129) वाःतिवक िश ण का ारभ तो तभी होता ह जब मनय सब कार की सहायताओ स िवमख होकर अपन भीतर क अननत ॐोत की तरफ अमसर होता ह | 130) य पच की िनवित क िलए अनतःकरण को आननद म सरोबार रखन क िलए

कोई भी कायर करत समय िवचार करो म कौन ह और कायर कौन कर रहा ह भीतर स जवाब

िमलगा मन और शरीर कायर करत ह | म सा ीःवरप ह | ऐसा करन स कतारपन का अह

िपघलगा सख-दःख क आघात मनद ह ग | 131) राग- ष की िनवित का कया उपाय ह उपाय यही ह िक सार जगत-पच को मनोरा य समझो | िननदा-ःतित स राग- ष स पच म सतयता ढ़ होती ह | 132) जब कोई खनी हाथ आपकी गरदन पकड़ ल कोई श धारी आपको कतल करन क

िलए ततपर हो जाय तब यिद आप उसक िलए सननता स तयार रह दय म िकसी कार का भय

या िवषाद उतपनन न हो तो समझना िक आपन राग- ष पर िवजय ा कर िलया ह | जब आपकी ि पड़त ही िसहािद िहसक जीव की िहसावित गायब हो जाय तब समझना िक अब राग- ष का अभाव हआ ह | 133) आतमा क िसवाय अनय कछ भी नही ह - ऐसी समझ रखना ही आतमिन ा ह | 134) आप ःव न ा ह और यह जगत आपका ही ःव न ह | बस िजस ण यह ान हो जायगा उसी ण आप म हो जाएग | 135) िदन क चौबीस घ ट को साधनामय बनान क िलय िनक मा होकर यथर िवचार करत हए मन को बार-बार सावधान करक आतमिचतन म लगाओ | ससार म सल न मन को वहा स उठा कर आतमा म लगात रहो | 136) एक बार सागर की एक बड़ी तरग एक बलबल की िता पर हसन लगी | बलबल न

कहा ओ तरग म तो छोटा ह िफर भी बहत सखी ह | कछ ही दर म मरी दह टट जायगी िबखर

जायगी | म जल क साथ जल हो जाऊगा | वामन िमटकर िवराट बन जाऊगा | मरी मि बहत

नजदीक ह | मझ आपकी िःथित पर दया आती ह | आप इतनी बड़ी हई हो | आपका छटकारा ज दी नही होगा | आप भाग-भागकर सामनवाली च टान स टकराओगी | अनक छोटी-छोटी तरग

म िवभ हो जाओगी | उन अस य तरग म स अननत-अननत बलबल क रप म पिरवितरत हो जाओगी | य सब बलबल फटग तब आपका छटकारा होगा | बड़ पन का गवर कय करती हो जगत की उपलि धय का अिभमान करक परमातमा स दर मत जाओ | बलबल की तरह सरल

रहकर परमातमा क साथ एकता का अनभव करो | 137) जब आप ईयार ष िछिानवषण दोषारोपण घणा और िननदा क िवचार िकसीक

ित भजत ह तब साथ-ही-साथ वस ही िवचार को आमिऽत भी करत ह | जब आप अपन भाई की आख म ितनका भ कत ह तब अपनी आख म भी आप ताड़ भ क रह ह | 138) शरीर अनक ह आतमा एक ह | वह आतमा-परमातमा मझस अलग नही | म ही कतार सा ी व नयायधीश ह | म ही ककर श आलोचक ह और म ही मधर शसक ह | मर िलय तयक

यि ःवतऽ व ःव छनद ह | बनधन पिरि छननता और दोष मरी ि म आत ही नही | म म

हपरम म ह और अनय लोग भी ःवतऽ ह | ई र म ही ह | आप भी वही हो | 139) िजस कार बालक अपनी परछा म बताल की क पना कर भय पाता ह उसी कार जीव अपन ही सक प स भयभीत होता ह और क पाता ह | 140) कभी-कभी ऐसी भावना करो िक आपक सामन चतनय का एक महासागर लहरा रहा ह | उसक िकनार खड़ रह कर आप आनद स उस दख रह ह | आपका शरीर सागर की सतह पर घमन गया ह | आपक दखत ही दखत वह सागर म डब गया | इस समःत पिरिःथित को दखन वाल आप सा ी आतमा शष रहत ह | इस कार सा ी रप म अपना अनभव करो | 141) यिद हम चाहत ह िक भगवान हमार सब अपराध माफ कर तो इसक िलए सगम साधना यही ह िक हम भी अपन सबिधत सब लोग क सब अपराध माफ कर द |

कभी िकसी क दोष या अपराध पर ि न डाल कय िक वाःतव म सब रप म हमारा यारा ई दव ही बीड़ा कर रहा ह |

142) पणर पिवऽता का अथर ह बा भाव स भािवत न होना | सासािरक मनोहरता एव घणा स पर रहना राजी-नाराजगी स अिवचल िकसी म भद न दखना और आतमानभव क ारा आकषरण व तयाग स अिल रहना | यही वदानत का उपिनषद का

रहःय ह | 143) ई र सा ातकार तभी होगा जब ससार की ि स तीत होन वाल बड़-स-बड़ विरय को भी मा करन का आपका ःवभाव बन जायगा | 144) चाल यवहार म स एकदम उपराम होकर दो िमनट क िलए िवराम लो |

सोचो िक lsquo म कौन ह सद -गम शरीर को लगती ह | भख- यास ाण को लगती ह |

अनकलता-ितकलता मन को लगती ह | शभ-अशभ एव पाप-प य का िनणरय बि करती ह | म न शरीर ह न ाण ह न मन ह न बि ह | म तो ह इन सबको स ा दन वाला इन सबस नयारा िनलप आतमा |rsquo 145) जो मनय िनरतर lsquoम म हhelliprsquo ऐसी भावना करता ह वह म ही ह और lsquoम ब हhelliprsquo ऐसी भावना करनवाला ब ही ह | 146) आप िनभरय ह िनभरय ह िनभरय ह | भय ही मतय ह | भय ही पाप ह | भय ही नकर ह | भय ही अधमर ह | भय ही यिभचार ह | जगत म िजतन असत या िमथया भाव ह व सब इस भयरपी शतान स पदा हए ह | 147) परिहत क िलए थोड़ा काम करन स भी भीतर की शि या जागत होती ह |

दसर क क याण क िवचारमाऽ स दय म एक िसह क समान बल आ जाता ह | 148) हम यिद िनभरय ह ग तो शर को भी जीतकर उस पाल सक ग | यिद डरग तो क ा भी हम फ़ाड़ खायगा | 149) तयक िबया तयक यवहार तयक ाणी ःवरप िदख यही सहज समािध ह | 150) जब किठनाईया आय तब ऐसा मानना िक मझ म सहन शि बढ़ान क िलए ई र न य सयोग भज ह | किठन सयोग म िह मत रहगी तो सयोग बदलन लगग |

िवषय म राग- ष रह गया होगा तो वह िवषय कसौटी क रप म आग आयग और उनस पार होना पड़गा | 151) ततव ि स न तो आपन जनम िलया न कभी लग | आप तो अनत ह सवर यापी ह िनतयम अजर-अमर अिवनाशी ह | जनम-मतय का ही गलत ह महा-

मखरतापणर ह | जहा जनम ही नही हआ वहा मतय हो ही कस सकती ह 152) आप ही इस जगत क ई र हो | आपको कौन दबरल बना सकता ह जगत म आप ही एकमाऽ स ा हो | आपको िकसका भय खड़ हो जाओ | म हो जाओ | ठ क स समझ लो िक जो कोई िवचार या श द आपको दबरल बनाता ह वही एकमाऽ अशभ ह | मनय को दबरल व भयभीत करनवाला जो कछ इस ससार म ह वह पाप ह | 153) आप अपना कायर या कतर य करो लिकन न उसक िलए कोई िचनता रह न ही कोई

इ छा | अपन कायर म सख का अनभव करो कय िक आपका कायर ःवय सख या िवौाम ह | आपका कायर आतमानभव का ही दसरा नाम ह | कायर म लग रहो | कायर आपको आतमानभव कराता ह |

िकसी अनय हत स कायर न करो | ःवतऽ वि स अपन कायर पर डट जाओ | अपन को ःवतऽ

समझो िकसीक कदी नही | 154) यिद आप सतय क मागर स नही हटत तो शि का वाह आपक साथ ह समय आपक

साथ ह ऽ आपक साथ ह | लोग को उनक भतकाल की मिहमा पर फलन दो भिवयकाल की स पणर मिहमा आपक हाथ म ह | 155) जब आप िद य म क साथ चा डाल म चोर म पापी म अ यागत म और सबम भ क दशरन करग तब आप भगवान ौी कण क मपाऽ बन जायग | 156) आचायर गौड़पाद न ःप कहा आप सब आपस म भल ही लड़त रह लिकन मर साथ नही लड़ सक ग | आप सब लोग मर पट म ह | म आतमःवरप स सवर या ह | 157) मनय सभी ािणय म ौ ह सब दवताओ स भी ौ ह | दवताओ को भी िफर स

धरती पर आना पड़गा और मनय शरीर ा करक मि ा करनी होगी | 158) िनि नतता क दो सऽ जो कायर करना जररी ह उस परा कर दो | जो िबनजररी ह

उस भल जाओ | 159) सवा-म-तयाग ही मनय क िवकास का मल मऽ ह | अगर यह मऽ आपको जच

जाय तो सभी क ित सदभाव रखो और शरीर स िकसी-न-िकसी यि को िबना िकसी मतलब क

सहयोग दत रहो | यह नही िक जब मरी बात मानग तब म सवा करगा | अगर बनधक मरी बात

नही मानत तो म सवा नही करगा |

भाई तब तो तम सवा नही कर पाओग | तब तो तम अपनी बात मनवा कर अपन अह की पजा ही

करोग | 160) जस ःव न िमथया ह वस ही यह जामत अवःथा भी ःव नवत ही ह िमथया ह | हरक

को अपन इस ःव न स जागना ह | सदगर बार-बार जगा रह ह लिकन जाग कर वापस सो न जाए ऐसा परषाथर तो हम ही करना होगा | 161) सदा सननमख रहो | मख को कभी मिलन मत करो | िन य कर लो िक आपक

िलय शोक न इस जगत म जनम नही िलया ह | आननदःवरप म िचनता का ःथान ही कहा ह 162) समम ा ड एक शरीर ह | समम ससार एक शरीर ह | जब तक आप तयक क

साथ एकता का अनभव करत रहग तब तक सब पिरिःथितया और आस-पास की चीज़ हवा और समि की लहर भी आपक प म रहगी | 163) आपको जो कछ शरीर स बि स या आतमा स कमजोर बनाय उसको िवष की तरह

ततकाल तयाग दो | वह कभी सतय नही हो सकता | सतय तो बलद होता ह पावन होता ह

ानःवरप होता ह | सतय वह ह जो शि द | 164) साधना म हमारी अिभरिच होनी चािहय साधना की तीो माग होनी चािहय | 165) दसर क दोष की चचार मत करो चाह व िकतन भी बड़ ह | िकसी क दोष की चचार करक आप उसका िकसी भी कार भला नही करत बि क उस आघात पहचात ह और साथ-ही-साथ अपन आपको भी | 166) इस ससार को सतय समझना ही मौत ह | आपका असली ःवरप तो आननदःवरप

आतमा ह | आतमा क िसवा ससार जसी कोई चीज ही नही ह | जस सोया हआ मनय ःव न म अपनी एकता नही जानता अिपत अपन को अनक करक दखता ह वस ही आननदःवरप आतमा जामत ःव न और सषि - इन तीन ःवरप को दखत हए अपनी एकता अि तीयता का अनभव

नही करता | 167) मनोजय का उपाय ह अ यास और वरा य | अ यास मान य पवरक मन को बार-बार परमातम-िचतन म लगाना और वरा य मान मन को ससार क पदाथ की ओर स वापस

लौटाना | 168) िकसी स कछ मत मागो | दन क िलय लोग आपक पीछ-पीछ घमग | मान नही

चाहोग तो मान िमलगा | ःवगर नही चाहोग तो ःवगर क दत आपक िलय िवमान लकर आयग |

उसको भी ःवीकार नही करोग तो ई र आपको अपन दय स लगायग | 169) कभी-कभी उदय या अःत होत हए सयर की ओर चलो | नदी सरोवर या समि क तट

पर अकल घमन जाओ | ऐस ःथान की मलाकात लो जहा शीतल पवन मनद-मनद चल रही हो | वहा परमातमा क साथ एकःवर होन की स भावना क ार खलत ह | 170) आप य -ही इ छा स ऊपर उठत हो तय -ही आपका इि छत पदाथर आपको खोजन

लगता ह | अतः पदाथर स ऊपर उठो | यही िनयम ह | य - य आप इ छक िभ क याचक का भाव धारण करत हो तय -तय आप ठकराय जात हो | 171) कित क तयक पदाथर को दखन क िलय काश जररी ह | इसी कार मन बि

इिनिय को अपन-अपन कायर करन क िलय आतम-काश की आवयकता ह कय िक बाहर का कोई काश मन बि इिनिय ाणािद को चतन करन म समथर नही | 172) जस ःव न ा परष को जागन क बाद ःव न क सख-दःख जनम-मरण पाप-प य

धमर-अधमर आिद ःपशर नही करत कय िक वह सब खद ही ह | खद क िसवाय ःव न म दसरा कछ

था ही नही | वस ही जीवनम ानवान परष को सख-दःख जनम-मरण पाप-प य धमर-अधमर ःपशर नही करत कय िक व सब आतमःवरप ही ह | 173) वही भमा नामक आतम योित क म रह कर भ क रही ह सअर म रह कर घर रही ह गध म रह कर रक रही ह लिकन मखर लोग शरीर पर ही ि रखत ह चतनय ततव पर नही | 174) मनय िजस ण भत-भिवय की िचनता का तयाग कर दता ह दह को सीिमत और उतपि -िवनाशशील जानकर दहािभमान को तयाग दता ह उसी ण वह एक उ चतर अवःथा म पहच जाता ह | िपजर स छटकर गगनिवहार करत हए प ी की तरह मि का अनभव करता ह | 175) समःत भय एव िचनताए आपकी इ छाओ का णाम ह | आपको भय कय लगता ह

कय िक आपको आशका रहती ह िक अमक चीज कही चली न जाय | लोग क हाःय स आप डरत

ह कय िक आपको यश की अिभलाषा ह कीितर म आसि ह | इ छाओ को ितलाजिल द दो | िफर दखो मजा कोई िज मदारी नहीकोई भय नही | 176) दखन म अतयत करप काला-कलटा कबड़ा और तज ःवभाव का मनय भी आपका ही ःवरप ह | आप इस तथय स म नही | िफर घणा कसी कोई लाव यमयी सदरी सि की

शोभा क समान अित िवलासभरी अ सरा भी आपका ही ःवरप ह | िफर आसि िकसकी

आपकी ानिनिया उनको आपस अलग करक िदखाती ह | य इिनिया झठ बोलनवाली ह | उनका कभी िव ास मत करो | अतः सब कछ आप ही हो | 177) मानव क नात हम साधक ह | साधक होन क नात सतय को ःवीकर करना हमारा ःवधमर ह | सतय यही ह िक बल दसर क िलय ह ान अपन िलय ह और िव ास परमातमा स

स बनध जोड़न क िलय ह | 178) अपनी आतमा म डब जाना यह सबस बड़ा परोपकार ह | 179) आप सदव म ह ऐसा िव ास ढ़ करो तो आप िव क उ ारक हो जात हो | आप

यिद वदानत क ःवर क साथ ःवर िमलाकर िन य करो आप कभी शरीर न थ | आप िनतय श

ब आतमा हो तो अिखल ा ड क मो दाता हो जात हो | 180) कपा करक उन ःवाथरमय उपाय और अिभाय को दर फ क दो जो आपको पिरि छनन रखत ह | सब वासनाए राग ह | यि गत या शरीरगत म आसि ह | उस फ क दो | ःवय पिवऽ हो जाओ | आपका शरीर ःवःथ और बि पणरःवरप हो जायगी | 181) यिद ससार क सख व पदाथर ा ह तो आपको कहना चािहय ओ शतान हट जा मर सामन स | तर हाथ स मझ कछ नही चािहय | तब दखो िक आप कस सखी हो जात हो परमातमा-ा िकसी महापरष पर िव ास रखकर अपनी जीवनडोरी िनःशक बन उनक चरण म सदा क िलय रख दो | िनभरयता आपक चरण की दासी बन जायगी | 182) िजसन एक बार ठ क स जान िलया िक जगत िमथया ह और ािनत स इसकी तीित

हो रही ह उसको कभी दःख नही होता | जगत म कभी आसि नही होती | जगत क िमथयातव क

िन य का नाम ही जगत का नाश ह | 183) अपन ःवरप म लीन होन माऽ स आप ससार क साट बन जायग | यह साटपद

कवल इस ससार का ही नही समःत लोक-परलोक का साटपद होगा | 184) ह जनक चाह दवािधदव महादव आकर आपको उपदश द या भगवान िवण आकर उपदश द अथवा ाजी आकर उपदश द लिकन आपको कदािप सख न होगा | जब िवषय का तयाग करोग तभी स ची शाित व आनद ा ह ग |

185) िजस भ न हम मानव जीवन दकर ःवाधीनता दी िक हम जब चाह तब धमारतमा होकर भ होकर जीवनम होकर कतकतय हो सकत ह- उस भ की मिहमा गाओ | गाओ नही तो सनो | सनो भी नही गाओ भी नही तो ःवीकार कर लो | 186) चाह समि क गहर तल म जाना पड़ सा ात मतय का मकाबला करना पड़ अपन

आतमाि क उ य की पितर क िलय अिडग रहो | उठो साहसी बनो शि मान बनो | आपको जो बल व सहायता चािहय वह आपक भीतर ही ह | 187) जब-जब जीवन स बनधी शोक और िचनता घरन लग तब-तब अपन आननदःवरप

का गान करत-करत उस मोह-माया को भगा दो | 188) जब शरीर म कोई पीड़ा या अग म ज म हो तब म आकाशवत आकाशरिहत चतन

ह ऐसा ढ़ िन य करक पीड़ा को भल जाओ | 189) जब दिनया क िकसी चककर म फस जाओ तब म िनलप िनतय म ह ऐसा ढ़

िन य करक उस चककर स िनकल जाओ | 190) जब घर-बार स बनधी कोई किठन समःया याकल कर तब उस मदारी का खल

समझकर ःवय को िनःसग जानकर उस बोझ को ह का कर दो | 191) जब बोध क आवश म आकर कोई अपमानय वचन कह तब अपन शाितमय

ःवरप म िःथर होकर मन म िकसी भी ोभ को पदा न होन दो | 192) उ म अिधकारी िज ास को चािहय िक वह व ा सदगर क पास जाकर ौ ा पवरक महावाकय सन | उसका मनन व िनिदधयासन करक अपन आतमःवरप को जान | जब

आतमःवरप का सा ातकार होता ह तब ही परम िवौािनत िमल सकती ह अनयथा नही | जब तक

व ा महापरष स महावाकय ा न हो तब तक वह मनद अिधकारी ह | वह अपन दयकमल म परमातमा का धयान कर ःमरण कर जप कर | इस धयान-जपािद क साद स उस व ा सदगर

ा ह ग | 193) मन बि िच अहकार छाया की तरह जड़ ह णभगर ह कय िक व उतपनन होत

ह और लीन भी हो जात ह | िजस चतनय की छाया उसम पड़ती ह वह परम चतनय सबका आतमा ह | मन बि िच अहकार का अभाव हो जाता ह लिकन उसका अनभव करनवाल का अभाव

कदािप नही होता |

194) आप अपनी शि को उ चाितउ च िवषय की ओर बहन दो | इसस आपक पास व

बात सोचन का समय ही नही िमलगा िजसस कामकता की गध आती हो | 195) अपराध क अनक नाम ह बालहतया नरहतया मातहतया गौहतया इतयािद |

परनत तयक ाणी म ई र का अनभव न करक आप ई रहतया का सबस बड़ा अपराध करत ह | 196) सवा करन की ःवाधीनता मनयमाऽ को ा ह | अगर वह करना ही न चाह तो अलग बात ह | सवा का अथर ह मन-वाणी-कमर स बराईरिहत हो जाना यह िव की सवा हो गई |

यथाशि भलाई कर दो यह समाज की सवा हो गई | भलाई का फल छोड़ दो यह अपनी सवा हो गई

| भ को अपना मानकर ःमित और म जगा लो यह भ की सवा हो गई | इस कार मनय

अपनी सवा भी कर सकता ह समाज की सवा भी कर सकता ह िव की सवा भी कर सकता ह

और िव र की सवा भी कर सकता ह | 197) आतमा स बाहर मत भटको अपन कनि म िःथर रहो अनयथा िगर पड़ोग | अपन-

आपम पणर िव ास रखो | आतम-कनि पर अचल रहो | िफर कोई भी चीज आपको िवचिलत नही कर सकती | 198) सदा शात िनिवरकार और सम रहो | जगत को खलमाऽ समझो | जगत स भािवत

मत हो | इसस आप हमशा सखी रहोग | िफर कछ बढ़ान की इ छा नही होगी और कछ कम होन स

दःख नही होगा | 199) समथर सदगर क सम सदा फल क भाित िखल हए रहो | इसस उनक अनदर सक प

होगा िक यह तो बहत उतसाही साधक ह सदा सनन रहता ह | उनक सामथयरवान सक प स

आपकी वह किऽम सननता भी वाःतिवक सननता म बदल जायगी | 200) यिद रोग को भी ई र का िदया मानो तो ार ध-भोग भी हो जाता ह और क तप का फल दता ह | इसस ई र-कपा की ाि होती ह | याकल मत हो | क सल और इनजकशन

आधीन मत हो | 201) साधक को चािहय िक अपन लआय को ि म रखकर साधना-पथ पर तीर की तरह

सीधा चला जाय | न इधर दख न उधर | ि यिद इधर-उधर जाती हो तो समझना िक िन ा िःथर नही ह |

202) आपन अपन जीवन म हजार ःव न दख ह ग लिकन व आपक जीवन क अश नही बन जात | इसी कार य जामत जगत क आड बर आपकी आतमा क सम कोई मह व नही रखत | 203) एक आतमा को ही जानो अनय बात को छोड़ो | धीर साधक को चािहय िक वह

सावधान होकर आतमिन ा बढ़ाय अनक श द का िचनतन व भाषण न कर कय िक वह तो कवल

मन-वाणी को पिरौम दनवाला ह असली साधना नही ह | 204) जो परष जन-समह स ऐस डर जस साप स डरता ह स मान स ऐस डर जस नकर स

डरता ह ि य स ऐस डर जस मद स डरता ह उस परष को दवतागण ा ण मानत ह | 205) जस अपन शरीर क अग पर बोध नही आता वस शऽ िमऽ व अपनी दह म एक ही आतमा को दखनवाल िववकी परष को कदािप बोध नही आता | 206) मन तो शरीर को ई रापरण कर िदया ह | अब उसकी भख- यास स मझ कया

समिपरत वःत म आस होना महा पाप ह | 207) आप यिद िद य ि पाना चहत हो तो आपको इिनिय क ऽ का तयाग करना होगा | 208) लयकाल क मघ की गजरना हो समि उमड़ पड बारह सयर तपायमान हो जाय पहाड़ स पहाड़ टकरा कर भयानक आवाज हो तो भी ानी क िन य म त नही भासता कय िक

त ह ही नही | त तो अ ानी को भासता ह | 209) सतय को ःवीकार करन स शाित िमलगी | कछ लोग यो यता क आधार पर शाित

खरीदना चाहत ह | यो यता स शाित नही िमलगी यो यता क सदपयोग स शाित िमलगी | कछ

लोग स पि क आधार पर शाित सरि त रखना चाहत ह | स पि स शाित नही िमलगी स पि

क सदपयोग स शाित िमलगी वस ही िवपि क सदपयोग स शाित िमलगी | 210) त छ हािन-लाभ पर आपका धयान इतना कय रहता ह िजसस अनत आननदःवरप

आतमा पर स धयान हट जाता ह | 211) अपन अनदर ही आननद ा करना य िप किठन ह परनत बा िवषय स आननद

ा करना तो अस भव ही ह |

212) म ससार का काश ह | काश क रप म म ही सब वःतओ म या ह | िनतय इन

िवचार का िचनतन करत रहो | य पिवऽ िवचार आपको परम पिवऽ बना दग | 213) जो वःत कमर स ा होती ह उसक िलय ससार की सहायता तथा भिवय की आशा की आवयकता होती ह परनत जो वःत तयाग स ा होती ह उसक िलय न ससार की सहायता चािहय न भिवय की आशा | 214) आपको जब तक बाहर चोर िदखता ह तब तक जरर भीतर चोर ह | जब दसर लोग

स िभनन अयो य खराब सधारन यो य िदखत ह तब तक ओ सधार का बीड़ा उठान वाल त अपनी िचिकतसा कर | 215) सफल व ही होत ह जो सदव नतमःतक एव सननमख रहत ह | िचनतातर-शोकातर लोग की उननित नही हो सकती | तयक कायर को िह मत व शाित स करो | िफर दखो िक यह

कायर शरीर मन और बि स हआ | म उन सबको स ा दनवाला चतनयःवरप ह | ॐ ॐ का पावन गान करो | 216) िकसी भी पिरिःथित म मन को यिथत न होन दो | आतमा पर िव ास करक

आतमिन बन जाओ | िनभरयता आपकी दासी बन कर रहगी | 217) सतसग स मनय को साधना ा होती ह चाह वह शाित क रप म हो चाह मि क

रप म चाह सवा क रप म हो म क रप म हो चाह तयाग क रप म हो | 218) भला-बरा वही दखता ह िजसक अनदर भला-बरा ह | दसर क शरीर को वही दखता ह

जो खद को शरीर मानता ह | 219) खबरदार आपन यिद अपन शरीर क िलय ऐश-आराम की इ छा की िवलािसता एव इिनिय-सख म अपना समय बरबाद िकया तो आपकी खर नही | ठ क स कायर करत रहन की नीित

अपनाओ | सफलता का पहला िस ात ह कायरिवौामरिहत कायरसा ी भाव स कायर | इस

िस ात को जीवन म चिरताथर करोग तो पता चलगा िक छोटा होना िजतना सरल ह उतना ही बड़ा होना भी सहज ह | 220) भतकाल पर िखनन हए िबना भिवय की िचनता िकय िबना व रमान म कायर करो | यह भाव आपको हर अवःथा म सनन रखगा हम जो कछ ा ह उसका सदपयोग ही अिधक

काश पान का साधन ह |

221) जब आप सफलता की ओर पीठ कर लत हो पिरणाम की िचनता का तयाग कर दत

हो स मख आय हए क र य पर अपनी उ ोगशि एकाम करत हो तब सफलता आपक पीछ-पीछ

आ जाती ह | अतः सफलता आपको खोजगी | 222) वि तब तक एकाम नही होगी जब तक मन म कभी एक आशा रहगी तो कभी दसरी | शात वही हो सकता ह िजस कोई क र य या आवयकता घसीट न रही हो | अतः परम शाित पान

क िलय जीवन की आशा भी तयाग कर मन ाननद म डबो दो | आज स समझ लो िक यह शरीर ह ही नही | कवल ाननद का सागर लहरा रहा ह | 223) िजसकी पककी िन ा ह िक म आतमा हrsquo उसक िलय ऐसी कौन सी मिथ ह जो खल

न सक ऐसी कोई ताकत नही जो उसक िवर जा सक | 224) मर भा य म नही थाई र की मज आजकल सतसग ा नही होताजगत

खराब ह ऐस वचन हमारी कायरता व अनतःकरण की मिलनता क कारण िनकलत ह | अतः नकारातमक ःवभाव और दसर पर दोषारोपण करन की वि स बचो | 225) आप जब भीतरवाल स नाराज होत हो तब जगत आपस नाराज रहता ह | जब आप

भीतर अनतयारमी बन बठ तो जगतरपी पतलीघर म िफर गड़बड़ कसी 226) िजस ण हम ससार क सधारक बन खड़ होत ह उसी ण हम ससार को िबगाड़नवाल बन जात ह | श परमातमा को दखन क बजाय जगत को िबगड़ा हआ दखन की ि बनती ह | सधारक लोग मानत ह िक lsquoभगवान न जो जगत बनाया ह वह िबगड़ा हआ ह और हम उस सधार रह ह |rsquo वाह वाह धनयवाद सधारक अपन िदल को सधारो पहल | सवरऽ िनरजन का दीदार करो | तब आपकी उपिःथित माऽ स आपकी ि माऽ स अर यार आपको छकर बहती हवा माऽ स अननत जीव को शाित िमलगी और अननत सधार होगा | नानक कबीर महावीर ब और लीलाशाह बाप जस महापरष न यही कजी अपनायी थी | 227) वदानत म हमशा कमर का अथर होता ह वाःतिवक आतमा क साथ एक होकर च ा करना अिखल िव क साथ एकःवर हो जाना | उस अि तीय परम ततव क साथ िनःःवाथर सयोग ा करना ही एकमाऽ स चा कमर ह बाकी सब बोझ की गठिरया उठाना ह |

228) अपनी व रमान अवःथा चाह कसी भी हो उसको सव च मानन स ही आपक दय म आतम ान ान का अनायास उदय होन लगगा | आतम-सा ातकार को मील दर की कोई चीज समझकर उसक पीछ दौड़ना नही ह िचिनतत होना नही ह |

िचनता की गठरी उठाकर यिथत होन की जररत नही ह | िजस ण आप िनि नतता म गोता मारोग उसी ण आपका आतमःवरप गट हो जायगा | अर गट कया होगा आप ःवय आतमःवरप हो ही | अनातमा को छोड़ दो तो आतमःवरप तो हो ही | 229) सदा ॐकार का गान करो | जब भय व िचनता क िवचार आय तब िकसी मःत सत-फकीर महातमा क सािननधय का ःमरण करो | जब िननदा-शसा क सग आय तब महापरष क जीवन का अवलोकन करो | 230) िजनको आप भयानक घटनाए एव भयकर आघात समझ बठ हो वाःतव म व आपक ियतम आतमदव की ही करतत ह | समःत भयजनक तथा ाणनाशक घटनाओ क नाम-रप तो िवष क ह लिकन व बनी ह अमत स | 231) मन म यिद भय न हो तो बाहर चाह कसी भी भय की साममी उपिःथत हो जाय आपका कछ िबगाड़ नही सकती | मन म यिद भय होगा तो तरनत बाहर भी भयजनक पिरिःथया न होत हए भी उपिःथत हो जायगी | व क तन म भी भत िदखन लगगा | 232) िकसी भी पिरिःथित म िदखती हई कठोरता व भयानकता स भयभीत नही होना चािहए | क क काल बादल क पीछ पणर काशमय एकरस परम स ा सयर की तरह सदा िव मान ह | 233) आप अपन पर कदािप अिव ास मत करो | इस जगत म आप सब कछ कर सकत हो | अपन को कभी दबरल मत मानो | आपक अनदर तमाम शि या छपी हई ह | 234) यिद कोई मन य आपकी कोई चीज़ को चरा लता ह तो ड़रत कय हो वह मनय

और आप एक ह | िजस चीज़ को वह चराता ह वह चीज़ आपकी और उसकी द न की ह | 235) जो खद क िसवाय दसरा कछ दखता नही सनता नही जानता नही वह अननत ह |

जब तक खद क िसवाय और िकसी वःत का भान होता ह वह वःत स ची लगती ह तब तक आप

सीिमत व शात ह असीम और अनत नही |

236) ससार मझ कया आनद द सकता ह स पणर आनद मर भीतर स आया ह | म ही स पणर आननद ह स पणर मिहमा एव स पणर सख ह | 237) जीवन की समःत आवयकताए जीवन म उपिःथत ह परनत जीवन को जब हम

बा रग म रग दत ह तब जीवन का वाःतिवक रप हम नही जान पात | 238) िननदक की िननदा स म कय मरझाऊ शसक की शसा स म कय फल िननदा स म घटता नही और शसा स म बढ़ता नही | जसा ह वसा ही रहता ह | िफर िननदा-ःतित स

खटक कसी 239) ससार व ससार की समःयाओ म जो सबस अिधक फस हए ह उनही को वदानत की सबस अिधक आवयकता ह | बीमार को ही औषिध की यादा आवयकता ह | कय जी ठ क ह न 240) जगत क पाप व अतयाचार की बात मत करो लिकन अब भी आपको जगत म पाप

िदखता ह इसिलय रोओ | 241) हम यिद जान ल िक जगत म आतमा क िसवाय दसरा कछ ह ही नही और जो कछ

िदखता ह वह ःव नमाऽ ह तो इस जगत क दःख-दािरिय पाप-प य कछ भी हम अशात नही कर सकत | 242) िव ान दाशरिनक व आचाय की धमकी तथा अनमह आलोचना या अनमित

ानी पर कोई भाव नही ड़ाल सकती | 243) ह यि रप अननत आप अपन पर पर खड़ रहन का साहस करो समःत िव का बोझ आप िखलौन की तरह उठा लोग | 244) िसह की गजरना व नरिसह की ललकार तलवार की धार व साप की फफकार तपःवी की धमकी व नयायधीश की फटकारइन सबम आपका ही काश चमक रहा ह | आप इनस

भयभीत कय होत हो उलझन कय महसस करत हो मरी िब ली मझको याऊ वाली बात कय

होन दत हो 245) ससार हमारा िसफ़र िखलोना ही ह और कछ नही | अबोध बालक ही िखलौन स

भयभीत होता ह आसि करता ह िवचारशील यि नही |

246) जब तक अिव ा दर नही होगी तब तक चोरी जआ दार यिभचार कभी बद न

ह ग चाह लाख कोिशश करो | 247) आप हमशा अदर का धयान रखो | पहल हमारा भीतरी पतन होता ह | बा पतन तो इसका पिरणाम माऽ ह | 248) तयाग स हमशा आनद िमलता ह | जब तक आपक पास एक भी चीज़ बाकी ह तब

तक आप उस चीज़ क बधन म बध रहोग | आघात व तयाघात हमशा समान िवरोधी होत ह | 249) िनि तता ही आरो यता की सबस बड़ी दवाई ह | 250) सख अपन िसर पर दख का मकट पहन कर आता ह | जो सख को अपनायगा उस

दख को भी ःवीकार करना पड़गा | 251) म (आतमा) सबका ा ह | मरा ा कोई नही | 252) हजार म स कोई एक परष भीतर स शात िच वाला रहकर बाहर स ससारी जसा यवहार कर सकता ह | 253) सतय क िलए यिद शरीर का तयाग करना पड़ तो कर दना | यही आिखरी ममता ह जो हम तोड़नी होगी | 254) भय िचनता बचनी स ऊपर उठो | आपको ान का अनभव होगा | 255) आपको कोई भी हािन नही पहचा सकता | कवल आपक खयालात ही आपक पीछ पड़ ह | 256) म का अथर ह अपन पड़ोसी तथा सपकर म आनवाल क साथ अपनी वाःतिवक अभदता का अनभव करना | 257) ओ यार अपन खोय हए आतमा को एक बार खोज लो | धरती व आसमान क शासक आप ही हो | 258) सदव सम और सनन रहना ई र की सव पिर भि ह |

259) जब तक िच म ढ़ता न आ जाय िक शा की िविधय का पालन छोड़ दन स भी दय का यथाथर भि भाव न नही होगा तब तक शा की िविधय को पालत रहो |

गर भि एक अमोघ साधना 1 जनम मरण क िवषचब स म होन का कोई मागर नही ह कया सख-दःख हषर-शोक लाभ-

हािन मान-अपमान की थ पड़ स बचन का कोई उपाय नही ह कया

हअवय ह | ह िय आतमन नाशवान पदाथ स अपना मन वािपस लाकर सदगर क

चरणकमल म लगाओ | गरभि योग का आौय लो | गरसवा ऐसा अमोघ साधन ह िजसस

व रमान जीवन आननदमय बनता ह और शा त सख क ार खलत ह |

गर सवत त नर धनय यहा | ितनक नही दःख यहा न वहा || 2 स च सदगर की की हई भि िशय म सासािरक पदाथ क वरा य एव अनासि जगाती ह

परमातमा क ित म क पप महकाती ह | 3 तयक िशय सदगर की सवा करना चाहता ह लिकन अपन ढग स | सदगर चाह उस ढग स

सवा करन को कोई ततपर नही | जो िवरला साधक गर चाह उस ढ़ग स सवा कर सकता ह उस कोई कमी नही रहती |

िन सदगर की सवा स उनकी कपा ा होती ह और उस कपा स न िमल सक ऐसा तीन लोक म कछ भी नही ह | 4 गर िशय का स बनध पिवऽतम स बनध ह | ससार क तमाम बनधन स छड़ाकर वह मि क मागर पर ःथान कराता ह | यह स बनध जीवनपयरनत का स बनध ह | यह बात अपन दय की डायरी म सवणर-अ र स िलख लो | 5 उ ल सयर क काश क अिःततव को मान या न मान िफर भी सयर हमशा काशता ह | चचल मन का मनय मान या न मान लिकन सदगर की परमक याणकारी कपा सदव बरसती ही रहती ह | 6 सदगर की चरणरज म ःनान िकय िबना कवल किठन तप यार करन स या वद का

अधयन करन स वदानत का रहःय कट नही होता आतमानद का अमत नही िमलता | 7 दशरन शा क चाह िकतन मनथ पढ़ो हजार वष तक िहमालय की गफा म तप करो वष तक ाणायाम करो जीवनपयरनत शीषारसन करो समम िव म वास करक याखान दो िफर भी सदगर की कपा क िबना आतम ान नही होता | अतः िनरािभमानी सरल िनजाननद म मःत दयाल ःवभाव क आतम-सा ातकारी सदगर क चरण म जाओ | जीवन को धनय बनाओ | 8 सदगर की सवा िकय िबना शा का अधयन करना मम साधक क िलय समय बरबाद करन क बराबर ह | 9 िजसको सदगर ा हए ह ऐस िशय क िलय इस िव म कछ भी अा य नही ह | सदगर िशय को िमली हई परमातमा की अम य भट ह | अर नहीhellipनही व तो िशय क सम साकार रप म कट हए परमातमा ःवय ह | 10 सदगर क साथ एक ण िकया हआ सतसग लाख वष क तप स अननत गना ौ ह | आख क िनमषमाऽ म सदगर की अमतवष ि िशय क जनम-जनम क पाप को जला सकती ह | 11 सदगर जसा मपणर कपाल िहतिचनतक िव भर म दसरा कोई नही ह | 12 बाढ़ क समय याऽी यिद तफानी नदी को िबना नाव क पार कर सक तो साधक भी िबना सदगर क अपन जीवन क आिखरी लआय को िस कर सकता ह | यानी य दोन बात स भव ह |

अतः यार साधक मनमखी साधना की िज करना छोड़ दो | गरमखी साधना करन म ही सार ह | 13 सदगर क चरणकमल का आौय लन स िजस आननद का अनभव होता ह उसक आग िऽलोकी का साा य त छ ह | 14 आतम-सा ातकार क मागर म सबस महान शऽ अहभाव का नाश करन क िलए सदगर की आ ा का पालन अमोघ श ह | 15 रसोई सीखन क िलय कोई िसखानवाला चािहय िव ान और गिणत सीखन क िलय

अधयापक चािहय तो कया िव ा सदगर क िबना ही सीख लोग 16 सदगरकपा की स पि जसा दसरा कोई खजाना िव भर म नही | 17 सदगर की आ ा का उ लघन करना यह अपनी क खोदन क बराबर ह | 18 सदगर क कायर को शका की ि स दखना महापातक ह | 19 गरभि व गरसवा - य साधनारपी नौका की दो पतवार ह | उनकी मदद स िशय ससारसागर को पार कर सकता ह | 20 सदगर की कसौटी करना असभव ह | एक िववकाननद ही दसर िववकाननद को पहचान सकत ह | ब को जानन क िलय दसर ब की आवयकता रहती ह | एक रामतीथर का रहःय दसर रामतीथर ही पा सकत ह |

अतः सदगर की कसौटी करन की च ा छोड़कर उनको पिरपणर पर परमातमा मानो |

तभी जीवन म वाःतिवक लाभ होगा | 21 गरभि योग का आौय लकर आप अपनी खोई हई िद यता को पनः ा करो सख-दःख जनम-मतय आिद सब न स पार हो जाओ | 22 गरभि योग मान गर की सवा क ारा मन और िवकार पर िनयऽण एव पनः सःकरण | 23 िशय अपन गर क चरणकमल म णाम करता ह | उन पर ौ फल की वषार करक उनकी ःतित करता ह ldquoह परम प य पिवऽ गरदव मझ सव च सख ा हआ ह | म िन ा स जनम-मतय की पर परा स म हआ ह | म िनिवरक प समािध का श सख भोग रहा ह | जगत क िकसी भी कोन म म म ता स िवचरण कर सकता ह | सब पर मरी सम ि ह | मन ाकत मन का तयाग िकया ह | मन सब सक प एव रिच-अरिच का तयाग िकया ह | अब म अख ड शाित म िवौाित पा रहा ह hellip आननदमय हो रहा ह | म इस पणर अवःथा का वणरन नही कर पाता | ह प य गरदव म आवाक बन गया ह | इस दःतर भवसागर को पार करन म आपन

मझ सहायता की ह | अब तक मझ कवल अपन शरीर म ही स पणर िव ास था | मन िविभनन योिनय म अस य जनम िलय | ऐसी सव च िनभरय अवःथा मझ कौन स पिवऽ कम क कारण ा हई ह यह म नही जानता | सचमच यह एक दलरभ भा य ह |

यह एक महान उतक लाभ ह | अब म आननद स नाचता ह | मर सब दःख न हो गय | मर सब मनोरथ पणर हए ह |

मर कायर स पनन हए ह | मन सब वािछत वःतए ा की ह | मरी इ छा पिरपणर हई ह | आप मर स च माता-िपता हो | मरी व रमान िःथित म म दसर क सम िकस कार कट कर सक सवरऽ सख और आननद का अननत सागर मझ लहराता हआ िदख रहा ह | मर अतःच िजसस खल गय वह महावाकय lsquoत वमिसrsquo ह | उपिनषद एव वदानतसऽ को भी धनयवाद | िजनह न िन गर का एव उपिनषद क महावाकय का रप धारण िकया ह | ऐस ौी यासजी को णाम ौी शकराचायर को णाम सासािरक मनय क िसर पर गर क चरणामत का एक िबनद भी िगर तो भी उसक ःब दःख का नाश होता ह | यिद एक िन परष को व पहनाय जाय तो सार िव को व पहनान एव भोजन करवान क बराबर ह कय िक िन परष सचराचर िव म या ह | सबम व ही ह |rdquo

ॐhellip ॐ hellip ॐ hellip

ःवामी िशवानद जी

ौी राम-विश सवाद ौी विश जी कहत ह ldquoह रघकलभषण ौी राम अनथर ःवरप िजतन सासािरक पदाथर ह व सब जल म तरग क समान िविवध रप धारण करक चमतकार उतपनन करत ह अथारत ई छाए उतपनन करक जीव को मोह म फसात ह | परत जस सभी तरग जल ःवरप ही ह उसी कार सभी पदाथर वःततः न र ःवभाव वाल ह |

बालक की क पना स आकाश म य और िपशाच िदखन लगत ह परनत बि मान मनय क िलए उन य और िपशाच का कोई अथर नही | इसी कार अ ानी क िच म यह जगत सतय हो ऐसा लगता ह जबिक हमार जस ािनय क िलय यह जगत कछ भी नही | यह समम िव पतथर पर बनी हई पतिलय की सना की तरह रपालोक तथा अतर-बा िवषय स शनय ह | इसम सतयता कसी परनत अ ािनय को यह िव सतय लगता ह |rdquo विश जी बोल ldquoौी राम जगत को सतय ःवरप म जानना यह ाित ह मढ़ता ह | उस िमथया अथारत कि पत समझना यही उिचत समझ ह | ह राघव तव ा अहता आिद सब िवम-िवलास शात िशवःवरप श ःवरप ही ह | इसिलय मझ तो क अितिर और कछ भी नही िदखता | आकाश म जस जगल नही वस ही म जगत नही ह | ह राम ार ध वश ा कम स िजस परष की च ा कठपतली की तरह ई छाशनय और याकलतारिहत होती ह वह शानत मनवाला परष जीवनम मिन ह | ऐस जीवनम ानी को इस

जगत का जीवन बास की तरह बाहर-भीतर स शनय रसहीन और वासना-रिहत लगता ह | इस य पच म िजस रिच नही दय म िचनमाऽ अ य ही अ छा लगता ह ऐस परष न

भीतर तथा बाहर शािनत ा कर ली ह और इस भवसागर स पार हो गया ह | रघनदन श व ा कहत ह िक मन का ई छारिहत होना यही समािध ह कय िक ई छाओ का तयाग करन स मन को जसी शािनत िमलती ह ऐसी शािनत सकड़ उपदश स भी नही िमलती | ई छा की उतपि स जसा दःख ा होता ह ऐसा दःख तो नरक म भी नही | ई छाओ की शािनत

स जसा सख होता ह ऐसा सख ःवगर तो कया लोक म भी नही होता | अतः समःत शा तपःया यम और िनयम का िनचोड़ यही ह िक ई छामाऽ दःखदायी ह और ई छा का शमन मो ह | ाणी क दय म जसी-जसी और िजतनी-िजतनी ई छाय उतपनन होती ह उतना ही दख स वह

ड़रता रहता ह | िववक-िवचार ारा ई छाय जस-जस शानत होती जाती ह वस-वस दखरपी छत की बीमारी िमटती जाती ह |

आसि क कारण सासािरक िवषय की ई छाय य - य गहनीभत होती जाती ह तय -तय

दःख की िवषली तरग बढ़ती जाती ह | अपन परषाथर क बल स इस ई छारपी यािध का उपचार यिद नही िकया जाय तो इस यािध स छटन क िलय अनय कोई औषिध नही ह ऐसा म ढ़तापवरक

मानता ह | एक साथ सभी ई छाओ का स पणर तयाग ना हो सक तो थोड़ी-थोड़ी ई छाओ का धीर-धीर तयाग

करना चािहय परत रहना चािहय ई छा क तयाग म रत कय िक सनमागर का पिथक दखी नही होता | जो नराधम अपनी वासना और अहकार को ीण करन का य नही करता वह िदन -िदन अपन

को रावण की तरह अधर कऐ म ढ़कल रहा ह | ई छा ही दख की जनमदाऽी इस ससाररपी बल का बीज ह | यिद इस बीज को आतम ानरपी अि न स ठ क-ठ क जला िदया तो पनः यह अकिरत नही होता | रघकलभषण राम ई छामाऽ ससार ह और ई छाओ का अभाव ही िनवारण ह | अतः अनक कार की माथाप ची म ना पड़कर कवल ऐसा य करना चािहय िक ई छा उतपनन ना हो | अपनी बि स ई छा का िवनाश करन को जो ततपर नही ऐस अभाग को शा और गर का उपदश

भी कया करगा जस अपनी जनमभमी जगल म िहरणी की मतय िनि त ह उसी कार अनकिवध दख का िवःतार कारनवाल ई छारपी िवषय-िवकार स य इस जगत म मनय की मतय िनि त ह | यिद मानव ई छाओ क कारण ब च -सा मढ़ ना बन तो उस आतम ान क िलय अ प य ही करना पड़ | इसिलय सभी कार स ई छाओ को शानत करना चािहय | ई छा क शमन स परम पद की ाि होती ह | ई छारिहत हो जाना यही िनवारण ह और ई छाय

होना ही बधन ह | अतः यथाशि ई छा को जीतना चािहय | भला इतना करन म कया किठनाई ह जनम जरा यािध और मतयरपी कटीली झािड़य और खर क व - समह की जड़ भी ई छा ही ह

| अतः शमरपी अि न स अदर-ही-अदर बीज को जला ड़ालना चािहय| जहा ई छाओ का अभाव ह

वहा मि िनि त ह |

िववक वरा य आिद साधन स ई छा का सवरथा िवनाश करना चािहय | ई छा का सबध जहा-जहा ह वहा-वहा पाप प य दखरािशया और ल बी पीड़ाओ स य बधन को हािज़र ही समझो | परष

की आतिरक ई छा य - य शानत होती जाती ह तय -तय मो क िलय उसका क याणकारक

साधन बढ़ता जाता ह | िववकहीन ई छा को पोसना उस पणर करना यह तो ससाररपी िवष व को पानी स सीचन क समान ह |rdquo

- ौीयोगविश महारामायण

आतमबल का आवाहन कया आप अपन-आपको दबरल मानत हो लघतामथी म उलझ कर पिरिःतिथय स िपस रह हो

अपना जीवन दीन-हीन बना बठ हो hellipतो अपन भीतर सष आतमबल को जगाओ | शरीर चाह ी का हो चाह परष का कित क साा य म जो जीत ह व सब ी ह और कित क बनधन स पार अपन ःवरप की पहचान िजनह न कर ली ह अपन मन की गलामी की बिड़या तोड़कर िजनह न फ क दी ह व परष ह | ी या परष शरीर एव मानयताए होती ह | तम तो तन-मन स पार िनमरल आतमा हो | जागोhellipउठोhellipअपन भीतर सोय हय िन यबल को जगाओ | सवरदश सवरकाल म सव म

आतमबल को िवकिसत करो | आतमा म अथाह सामथयर ह | अपन को दीन-हीन मान बठ तो िव म ऐसी कोई स ा नही जो त ह ऊपर उठा सक | अपन आतमःवरप म िति त हो गय तो िऽलोकी म ऐसी कोई हःती नही जो त ह दबा सक | भौितक जगत म वाप की शि ईलकशोिनक शि िव त की शि गरतवाकषरण की शि बड़ी मानी जाती ह लिकन आतमबल उन सब शि य का सचालक बल ह | आतमबल क सािननधय म आकर पग ार ध को पर िमल जात ह दव की दीनता पलायन हो जाती ह ितकल पिरिःतिथया अनकल हो जाती ह | आतमबल सवर िरि -िसि य का िपता ह |

आतमबल कस जगाय हररोज़ तःकाल ज दी उठकर सय दय स पवर ःनानािद स िनवत हो जाओ | ःव छ पिवऽ ःथान

म आसन िबछाकर पवारिभमख होकर प ासन या सखासन म बठ जाओ | शानत और सनन वि

धारण करो | मन म ढ भावना करो िक म कित-िनिमरत इस शरीर क सब अभाव को पार करक सब

मिलनताओ-दबरलताओ स िप ड़ छड़ाकर आतमा की मिहमा म जागकर ही रहगा |

आख आधी खली आधी बद रखो | अब फ़फ़ड़ म खब ास भरो और भावना करो की ास क साथ

म सयर का िद य ओज भीतर भर रहा ह | ास को यथाशि अनदर िटकाय रखो | िफ़र lsquoॐhelliprsquo का ल बा उ चारण करत हए ास को धीर-धीर छोड़त जाओ | ास क खाली होन क बाद तरत ास ना लो | यथाशि िबना ास रहो और भीतर ही भीतर lsquoहिर ॐhelliprsquo lsquoहिर ॐhelliprsquo का मानिसक

जाप करो | िफ़र स फ़फ़ड़ म ास भरो | पव रीित स ास यथाशि अनदर िटकाकर बाद म धीर-धीर छोड़त हए lsquoॐhelliprsquo का गजन करो | दस-पिह िमनट ऐस ाणायाम सिहत उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo की धविन करक शानत हो जाओ | सब

यास छोड़ दो | वि य को आकाश की ओर फ़लन दो | आकाश क अनदर पथवी ह | पथवी पर अनक दश अनक समि एव अनक लोग ह | उनम स एक

आपका शरीर आसन पर बठा हआ ह | इस पर य को आप मानिसक आख स भावना स दखत

रहो | आप शरीर नही हो बि क अनक शरीर दश सागर पथवी मह न ऽ सयर चनि एव पर ा ड़ क

ा हो सा ी हो | इस सा ी भाव म जाग जाओ | थोड़ी दर क बाद िफ़र स ाणायाम सिहत lsquoॐhelliprsquo का जाप करो और शानत होकर अपन िवचार को दखत रहो | इस अवःथा म ढ़ िन य करो िक lsquoम जसा चहता ह वसा होकर रहगा |rsquo िवषयसख स ा धन-

दौलत इतयािद की इ छा न करो कय िक िन यबल या आतमबलरपी हाथी क पदिच म और सभी क पदिच समािव हो ही जायग | आतमानदरपी सयर क उदय होन क बाद िम टी क तल क दीय क ाकाश रपी शि सखाभास की गलामी कौन कर

िकसी भी भावना को साकार करन क िलय दय को करद ड़ाल ऐसी िन यातमक बिल वि होनी आवशयक ह | अनतःकरण क गहर-स-गहर दश म चोट कर ऐसा ाण भरक िन बल का आवाहन करो | सीना तानकर खड़ हो जाओ अपन मन की दीन-हीन दखद मानयताओ को कचल

ड़ालन क िलय | सदा ःमरण रह की इधर-उधर भटकती वि य क साथ त हारी शि भी िबखरती रहती ह | अतः वि य को बहकाओ नही | तमाम वि य को एकिऽत करक साधनाकाल म आतमिचनतन म लगाओ और यवहारकाल म जो कायर करत हो उसम लगाओ | द िच होकर हरक कायर करो | अपन ःवभाव म स आवश को सवरथा िनमरल कर दो | आवश म आकर कोई िनणरय मत लो कोई िबया मत करो | सदा शानत वि धारण करन का अ यास करो | िवचारशील एव सनन रहो | ःवय अचल रहकर सागर की तरह सब वि य की तरग को अपन

भीतर समालो | जीवमाऽ को अपना ःवरप समझो | सबस ःनह रखो | िदल को यापक रखो | सकिच ता का िनवारण करत रहो | ख ड़ातमक वि का सवरथा तयाग करो | िजनको ानी महापरष का सतसग और अधयातमिव ा का लाभ िमल जाता ह उसक जीवन स

दःख िवदा होन लगत ह | ॐ आननद आतमिन ा म जाग हए महापरष क सतसग एव सतसािहतय स जीवन को भि और वदात स प

एव पलिकत करो | कछ ही िदन क इस सघन योग क बाद अनभव होन लगगा िक भतकाल क

नकारतमक ःवभाव सशयातमक-हािनकारक क पनाओ न जीवन को कचल ड़ाला था िवषला कर िदया था | अब िन यबल क चमतकार का पता चला | अततरम म आिवरभत िद य खज़ाना अब

िमला | ार ध की बिड़या अब टटन लगी | ठ क ह न करोग ना िह मत पढ़कर रख मत दना इस पिःतका को | जीवन म इसको बार-बार पढ़त रहो | एक िदन म यह पणर ना होगा | बार-बार अ यास करो | त हार िलय यह एक ही पिःतका काफ़ी ह | अनय कचराप टी ना पड़ोग तो चलगा | शाबाश वीर शाबाश

  • परसतावना
  • जीवन रसायन
  • गर भकति एक अमोघ साधना
  • शरी राम-वशिषठ सवाद
  • आतमबल का आवाहन
  • आतमबल कस जगाय
Page 21: जीवन रसायन - HariOmGroup · ‘जीवन रसायन’ का यह िदय कटोरा आत्मरस के िपपासुओं हाथ

कम-स-कम आधा घनटा करक तो दखो | 128) आप जगत क भ बनो अनयथा जगत आप पर भतव जमा लगा | ान क

मतािबक जीवन बनाओ अनयथा जीवन क मतािबक ान हो जायगा | िफर यग की याऽा स भी दःख का अनत नही आयगा | 129) वाःतिवक िश ण का ारभ तो तभी होता ह जब मनय सब कार की सहायताओ स िवमख होकर अपन भीतर क अननत ॐोत की तरफ अमसर होता ह | 130) य पच की िनवित क िलए अनतःकरण को आननद म सरोबार रखन क िलए

कोई भी कायर करत समय िवचार करो म कौन ह और कायर कौन कर रहा ह भीतर स जवाब

िमलगा मन और शरीर कायर करत ह | म सा ीःवरप ह | ऐसा करन स कतारपन का अह

िपघलगा सख-दःख क आघात मनद ह ग | 131) राग- ष की िनवित का कया उपाय ह उपाय यही ह िक सार जगत-पच को मनोरा य समझो | िननदा-ःतित स राग- ष स पच म सतयता ढ़ होती ह | 132) जब कोई खनी हाथ आपकी गरदन पकड़ ल कोई श धारी आपको कतल करन क

िलए ततपर हो जाय तब यिद आप उसक िलए सननता स तयार रह दय म िकसी कार का भय

या िवषाद उतपनन न हो तो समझना िक आपन राग- ष पर िवजय ा कर िलया ह | जब आपकी ि पड़त ही िसहािद िहसक जीव की िहसावित गायब हो जाय तब समझना िक अब राग- ष का अभाव हआ ह | 133) आतमा क िसवाय अनय कछ भी नही ह - ऐसी समझ रखना ही आतमिन ा ह | 134) आप ःव न ा ह और यह जगत आपका ही ःव न ह | बस िजस ण यह ान हो जायगा उसी ण आप म हो जाएग | 135) िदन क चौबीस घ ट को साधनामय बनान क िलय िनक मा होकर यथर िवचार करत हए मन को बार-बार सावधान करक आतमिचतन म लगाओ | ससार म सल न मन को वहा स उठा कर आतमा म लगात रहो | 136) एक बार सागर की एक बड़ी तरग एक बलबल की िता पर हसन लगी | बलबल न

कहा ओ तरग म तो छोटा ह िफर भी बहत सखी ह | कछ ही दर म मरी दह टट जायगी िबखर

जायगी | म जल क साथ जल हो जाऊगा | वामन िमटकर िवराट बन जाऊगा | मरी मि बहत

नजदीक ह | मझ आपकी िःथित पर दया आती ह | आप इतनी बड़ी हई हो | आपका छटकारा ज दी नही होगा | आप भाग-भागकर सामनवाली च टान स टकराओगी | अनक छोटी-छोटी तरग

म िवभ हो जाओगी | उन अस य तरग म स अननत-अननत बलबल क रप म पिरवितरत हो जाओगी | य सब बलबल फटग तब आपका छटकारा होगा | बड़ पन का गवर कय करती हो जगत की उपलि धय का अिभमान करक परमातमा स दर मत जाओ | बलबल की तरह सरल

रहकर परमातमा क साथ एकता का अनभव करो | 137) जब आप ईयार ष िछिानवषण दोषारोपण घणा और िननदा क िवचार िकसीक

ित भजत ह तब साथ-ही-साथ वस ही िवचार को आमिऽत भी करत ह | जब आप अपन भाई की आख म ितनका भ कत ह तब अपनी आख म भी आप ताड़ भ क रह ह | 138) शरीर अनक ह आतमा एक ह | वह आतमा-परमातमा मझस अलग नही | म ही कतार सा ी व नयायधीश ह | म ही ककर श आलोचक ह और म ही मधर शसक ह | मर िलय तयक

यि ःवतऽ व ःव छनद ह | बनधन पिरि छननता और दोष मरी ि म आत ही नही | म म

हपरम म ह और अनय लोग भी ःवतऽ ह | ई र म ही ह | आप भी वही हो | 139) िजस कार बालक अपनी परछा म बताल की क पना कर भय पाता ह उसी कार जीव अपन ही सक प स भयभीत होता ह और क पाता ह | 140) कभी-कभी ऐसी भावना करो िक आपक सामन चतनय का एक महासागर लहरा रहा ह | उसक िकनार खड़ रह कर आप आनद स उस दख रह ह | आपका शरीर सागर की सतह पर घमन गया ह | आपक दखत ही दखत वह सागर म डब गया | इस समःत पिरिःथित को दखन वाल आप सा ी आतमा शष रहत ह | इस कार सा ी रप म अपना अनभव करो | 141) यिद हम चाहत ह िक भगवान हमार सब अपराध माफ कर तो इसक िलए सगम साधना यही ह िक हम भी अपन सबिधत सब लोग क सब अपराध माफ कर द |

कभी िकसी क दोष या अपराध पर ि न डाल कय िक वाःतव म सब रप म हमारा यारा ई दव ही बीड़ा कर रहा ह |

142) पणर पिवऽता का अथर ह बा भाव स भािवत न होना | सासािरक मनोहरता एव घणा स पर रहना राजी-नाराजगी स अिवचल िकसी म भद न दखना और आतमानभव क ारा आकषरण व तयाग स अिल रहना | यही वदानत का उपिनषद का

रहःय ह | 143) ई र सा ातकार तभी होगा जब ससार की ि स तीत होन वाल बड़-स-बड़ विरय को भी मा करन का आपका ःवभाव बन जायगा | 144) चाल यवहार म स एकदम उपराम होकर दो िमनट क िलए िवराम लो |

सोचो िक lsquo म कौन ह सद -गम शरीर को लगती ह | भख- यास ाण को लगती ह |

अनकलता-ितकलता मन को लगती ह | शभ-अशभ एव पाप-प य का िनणरय बि करती ह | म न शरीर ह न ाण ह न मन ह न बि ह | म तो ह इन सबको स ा दन वाला इन सबस नयारा िनलप आतमा |rsquo 145) जो मनय िनरतर lsquoम म हhelliprsquo ऐसी भावना करता ह वह म ही ह और lsquoम ब हhelliprsquo ऐसी भावना करनवाला ब ही ह | 146) आप िनभरय ह िनभरय ह िनभरय ह | भय ही मतय ह | भय ही पाप ह | भय ही नकर ह | भय ही अधमर ह | भय ही यिभचार ह | जगत म िजतन असत या िमथया भाव ह व सब इस भयरपी शतान स पदा हए ह | 147) परिहत क िलए थोड़ा काम करन स भी भीतर की शि या जागत होती ह |

दसर क क याण क िवचारमाऽ स दय म एक िसह क समान बल आ जाता ह | 148) हम यिद िनभरय ह ग तो शर को भी जीतकर उस पाल सक ग | यिद डरग तो क ा भी हम फ़ाड़ खायगा | 149) तयक िबया तयक यवहार तयक ाणी ःवरप िदख यही सहज समािध ह | 150) जब किठनाईया आय तब ऐसा मानना िक मझ म सहन शि बढ़ान क िलए ई र न य सयोग भज ह | किठन सयोग म िह मत रहगी तो सयोग बदलन लगग |

िवषय म राग- ष रह गया होगा तो वह िवषय कसौटी क रप म आग आयग और उनस पार होना पड़गा | 151) ततव ि स न तो आपन जनम िलया न कभी लग | आप तो अनत ह सवर यापी ह िनतयम अजर-अमर अिवनाशी ह | जनम-मतय का ही गलत ह महा-

मखरतापणर ह | जहा जनम ही नही हआ वहा मतय हो ही कस सकती ह 152) आप ही इस जगत क ई र हो | आपको कौन दबरल बना सकता ह जगत म आप ही एकमाऽ स ा हो | आपको िकसका भय खड़ हो जाओ | म हो जाओ | ठ क स समझ लो िक जो कोई िवचार या श द आपको दबरल बनाता ह वही एकमाऽ अशभ ह | मनय को दबरल व भयभीत करनवाला जो कछ इस ससार म ह वह पाप ह | 153) आप अपना कायर या कतर य करो लिकन न उसक िलए कोई िचनता रह न ही कोई

इ छा | अपन कायर म सख का अनभव करो कय िक आपका कायर ःवय सख या िवौाम ह | आपका कायर आतमानभव का ही दसरा नाम ह | कायर म लग रहो | कायर आपको आतमानभव कराता ह |

िकसी अनय हत स कायर न करो | ःवतऽ वि स अपन कायर पर डट जाओ | अपन को ःवतऽ

समझो िकसीक कदी नही | 154) यिद आप सतय क मागर स नही हटत तो शि का वाह आपक साथ ह समय आपक

साथ ह ऽ आपक साथ ह | लोग को उनक भतकाल की मिहमा पर फलन दो भिवयकाल की स पणर मिहमा आपक हाथ म ह | 155) जब आप िद य म क साथ चा डाल म चोर म पापी म अ यागत म और सबम भ क दशरन करग तब आप भगवान ौी कण क मपाऽ बन जायग | 156) आचायर गौड़पाद न ःप कहा आप सब आपस म भल ही लड़त रह लिकन मर साथ नही लड़ सक ग | आप सब लोग मर पट म ह | म आतमःवरप स सवर या ह | 157) मनय सभी ािणय म ौ ह सब दवताओ स भी ौ ह | दवताओ को भी िफर स

धरती पर आना पड़गा और मनय शरीर ा करक मि ा करनी होगी | 158) िनि नतता क दो सऽ जो कायर करना जररी ह उस परा कर दो | जो िबनजररी ह

उस भल जाओ | 159) सवा-म-तयाग ही मनय क िवकास का मल मऽ ह | अगर यह मऽ आपको जच

जाय तो सभी क ित सदभाव रखो और शरीर स िकसी-न-िकसी यि को िबना िकसी मतलब क

सहयोग दत रहो | यह नही िक जब मरी बात मानग तब म सवा करगा | अगर बनधक मरी बात

नही मानत तो म सवा नही करगा |

भाई तब तो तम सवा नही कर पाओग | तब तो तम अपनी बात मनवा कर अपन अह की पजा ही

करोग | 160) जस ःव न िमथया ह वस ही यह जामत अवःथा भी ःव नवत ही ह िमथया ह | हरक

को अपन इस ःव न स जागना ह | सदगर बार-बार जगा रह ह लिकन जाग कर वापस सो न जाए ऐसा परषाथर तो हम ही करना होगा | 161) सदा सननमख रहो | मख को कभी मिलन मत करो | िन य कर लो िक आपक

िलय शोक न इस जगत म जनम नही िलया ह | आननदःवरप म िचनता का ःथान ही कहा ह 162) समम ा ड एक शरीर ह | समम ससार एक शरीर ह | जब तक आप तयक क

साथ एकता का अनभव करत रहग तब तक सब पिरिःथितया और आस-पास की चीज़ हवा और समि की लहर भी आपक प म रहगी | 163) आपको जो कछ शरीर स बि स या आतमा स कमजोर बनाय उसको िवष की तरह

ततकाल तयाग दो | वह कभी सतय नही हो सकता | सतय तो बलद होता ह पावन होता ह

ानःवरप होता ह | सतय वह ह जो शि द | 164) साधना म हमारी अिभरिच होनी चािहय साधना की तीो माग होनी चािहय | 165) दसर क दोष की चचार मत करो चाह व िकतन भी बड़ ह | िकसी क दोष की चचार करक आप उसका िकसी भी कार भला नही करत बि क उस आघात पहचात ह और साथ-ही-साथ अपन आपको भी | 166) इस ससार को सतय समझना ही मौत ह | आपका असली ःवरप तो आननदःवरप

आतमा ह | आतमा क िसवा ससार जसी कोई चीज ही नही ह | जस सोया हआ मनय ःव न म अपनी एकता नही जानता अिपत अपन को अनक करक दखता ह वस ही आननदःवरप आतमा जामत ःव न और सषि - इन तीन ःवरप को दखत हए अपनी एकता अि तीयता का अनभव

नही करता | 167) मनोजय का उपाय ह अ यास और वरा य | अ यास मान य पवरक मन को बार-बार परमातम-िचतन म लगाना और वरा य मान मन को ससार क पदाथ की ओर स वापस

लौटाना | 168) िकसी स कछ मत मागो | दन क िलय लोग आपक पीछ-पीछ घमग | मान नही

चाहोग तो मान िमलगा | ःवगर नही चाहोग तो ःवगर क दत आपक िलय िवमान लकर आयग |

उसको भी ःवीकार नही करोग तो ई र आपको अपन दय स लगायग | 169) कभी-कभी उदय या अःत होत हए सयर की ओर चलो | नदी सरोवर या समि क तट

पर अकल घमन जाओ | ऐस ःथान की मलाकात लो जहा शीतल पवन मनद-मनद चल रही हो | वहा परमातमा क साथ एकःवर होन की स भावना क ार खलत ह | 170) आप य -ही इ छा स ऊपर उठत हो तय -ही आपका इि छत पदाथर आपको खोजन

लगता ह | अतः पदाथर स ऊपर उठो | यही िनयम ह | य - य आप इ छक िभ क याचक का भाव धारण करत हो तय -तय आप ठकराय जात हो | 171) कित क तयक पदाथर को दखन क िलय काश जररी ह | इसी कार मन बि

इिनिय को अपन-अपन कायर करन क िलय आतम-काश की आवयकता ह कय िक बाहर का कोई काश मन बि इिनिय ाणािद को चतन करन म समथर नही | 172) जस ःव न ा परष को जागन क बाद ःव न क सख-दःख जनम-मरण पाप-प य

धमर-अधमर आिद ःपशर नही करत कय िक वह सब खद ही ह | खद क िसवाय ःव न म दसरा कछ

था ही नही | वस ही जीवनम ानवान परष को सख-दःख जनम-मरण पाप-प य धमर-अधमर ःपशर नही करत कय िक व सब आतमःवरप ही ह | 173) वही भमा नामक आतम योित क म रह कर भ क रही ह सअर म रह कर घर रही ह गध म रह कर रक रही ह लिकन मखर लोग शरीर पर ही ि रखत ह चतनय ततव पर नही | 174) मनय िजस ण भत-भिवय की िचनता का तयाग कर दता ह दह को सीिमत और उतपि -िवनाशशील जानकर दहािभमान को तयाग दता ह उसी ण वह एक उ चतर अवःथा म पहच जाता ह | िपजर स छटकर गगनिवहार करत हए प ी की तरह मि का अनभव करता ह | 175) समःत भय एव िचनताए आपकी इ छाओ का णाम ह | आपको भय कय लगता ह

कय िक आपको आशका रहती ह िक अमक चीज कही चली न जाय | लोग क हाःय स आप डरत

ह कय िक आपको यश की अिभलाषा ह कीितर म आसि ह | इ छाओ को ितलाजिल द दो | िफर दखो मजा कोई िज मदारी नहीकोई भय नही | 176) दखन म अतयत करप काला-कलटा कबड़ा और तज ःवभाव का मनय भी आपका ही ःवरप ह | आप इस तथय स म नही | िफर घणा कसी कोई लाव यमयी सदरी सि की

शोभा क समान अित िवलासभरी अ सरा भी आपका ही ःवरप ह | िफर आसि िकसकी

आपकी ानिनिया उनको आपस अलग करक िदखाती ह | य इिनिया झठ बोलनवाली ह | उनका कभी िव ास मत करो | अतः सब कछ आप ही हो | 177) मानव क नात हम साधक ह | साधक होन क नात सतय को ःवीकर करना हमारा ःवधमर ह | सतय यही ह िक बल दसर क िलय ह ान अपन िलय ह और िव ास परमातमा स

स बनध जोड़न क िलय ह | 178) अपनी आतमा म डब जाना यह सबस बड़ा परोपकार ह | 179) आप सदव म ह ऐसा िव ास ढ़ करो तो आप िव क उ ारक हो जात हो | आप

यिद वदानत क ःवर क साथ ःवर िमलाकर िन य करो आप कभी शरीर न थ | आप िनतय श

ब आतमा हो तो अिखल ा ड क मो दाता हो जात हो | 180) कपा करक उन ःवाथरमय उपाय और अिभाय को दर फ क दो जो आपको पिरि छनन रखत ह | सब वासनाए राग ह | यि गत या शरीरगत म आसि ह | उस फ क दो | ःवय पिवऽ हो जाओ | आपका शरीर ःवःथ और बि पणरःवरप हो जायगी | 181) यिद ससार क सख व पदाथर ा ह तो आपको कहना चािहय ओ शतान हट जा मर सामन स | तर हाथ स मझ कछ नही चािहय | तब दखो िक आप कस सखी हो जात हो परमातमा-ा िकसी महापरष पर िव ास रखकर अपनी जीवनडोरी िनःशक बन उनक चरण म सदा क िलय रख दो | िनभरयता आपक चरण की दासी बन जायगी | 182) िजसन एक बार ठ क स जान िलया िक जगत िमथया ह और ािनत स इसकी तीित

हो रही ह उसको कभी दःख नही होता | जगत म कभी आसि नही होती | जगत क िमथयातव क

िन य का नाम ही जगत का नाश ह | 183) अपन ःवरप म लीन होन माऽ स आप ससार क साट बन जायग | यह साटपद

कवल इस ससार का ही नही समःत लोक-परलोक का साटपद होगा | 184) ह जनक चाह दवािधदव महादव आकर आपको उपदश द या भगवान िवण आकर उपदश द अथवा ाजी आकर उपदश द लिकन आपको कदािप सख न होगा | जब िवषय का तयाग करोग तभी स ची शाित व आनद ा ह ग |

185) िजस भ न हम मानव जीवन दकर ःवाधीनता दी िक हम जब चाह तब धमारतमा होकर भ होकर जीवनम होकर कतकतय हो सकत ह- उस भ की मिहमा गाओ | गाओ नही तो सनो | सनो भी नही गाओ भी नही तो ःवीकार कर लो | 186) चाह समि क गहर तल म जाना पड़ सा ात मतय का मकाबला करना पड़ अपन

आतमाि क उ य की पितर क िलय अिडग रहो | उठो साहसी बनो शि मान बनो | आपको जो बल व सहायता चािहय वह आपक भीतर ही ह | 187) जब-जब जीवन स बनधी शोक और िचनता घरन लग तब-तब अपन आननदःवरप

का गान करत-करत उस मोह-माया को भगा दो | 188) जब शरीर म कोई पीड़ा या अग म ज म हो तब म आकाशवत आकाशरिहत चतन

ह ऐसा ढ़ िन य करक पीड़ा को भल जाओ | 189) जब दिनया क िकसी चककर म फस जाओ तब म िनलप िनतय म ह ऐसा ढ़

िन य करक उस चककर स िनकल जाओ | 190) जब घर-बार स बनधी कोई किठन समःया याकल कर तब उस मदारी का खल

समझकर ःवय को िनःसग जानकर उस बोझ को ह का कर दो | 191) जब बोध क आवश म आकर कोई अपमानय वचन कह तब अपन शाितमय

ःवरप म िःथर होकर मन म िकसी भी ोभ को पदा न होन दो | 192) उ म अिधकारी िज ास को चािहय िक वह व ा सदगर क पास जाकर ौ ा पवरक महावाकय सन | उसका मनन व िनिदधयासन करक अपन आतमःवरप को जान | जब

आतमःवरप का सा ातकार होता ह तब ही परम िवौािनत िमल सकती ह अनयथा नही | जब तक

व ा महापरष स महावाकय ा न हो तब तक वह मनद अिधकारी ह | वह अपन दयकमल म परमातमा का धयान कर ःमरण कर जप कर | इस धयान-जपािद क साद स उस व ा सदगर

ा ह ग | 193) मन बि िच अहकार छाया की तरह जड़ ह णभगर ह कय िक व उतपनन होत

ह और लीन भी हो जात ह | िजस चतनय की छाया उसम पड़ती ह वह परम चतनय सबका आतमा ह | मन बि िच अहकार का अभाव हो जाता ह लिकन उसका अनभव करनवाल का अभाव

कदािप नही होता |

194) आप अपनी शि को उ चाितउ च िवषय की ओर बहन दो | इसस आपक पास व

बात सोचन का समय ही नही िमलगा िजसस कामकता की गध आती हो | 195) अपराध क अनक नाम ह बालहतया नरहतया मातहतया गौहतया इतयािद |

परनत तयक ाणी म ई र का अनभव न करक आप ई रहतया का सबस बड़ा अपराध करत ह | 196) सवा करन की ःवाधीनता मनयमाऽ को ा ह | अगर वह करना ही न चाह तो अलग बात ह | सवा का अथर ह मन-वाणी-कमर स बराईरिहत हो जाना यह िव की सवा हो गई |

यथाशि भलाई कर दो यह समाज की सवा हो गई | भलाई का फल छोड़ दो यह अपनी सवा हो गई

| भ को अपना मानकर ःमित और म जगा लो यह भ की सवा हो गई | इस कार मनय

अपनी सवा भी कर सकता ह समाज की सवा भी कर सकता ह िव की सवा भी कर सकता ह

और िव र की सवा भी कर सकता ह | 197) आतमा स बाहर मत भटको अपन कनि म िःथर रहो अनयथा िगर पड़ोग | अपन-

आपम पणर िव ास रखो | आतम-कनि पर अचल रहो | िफर कोई भी चीज आपको िवचिलत नही कर सकती | 198) सदा शात िनिवरकार और सम रहो | जगत को खलमाऽ समझो | जगत स भािवत

मत हो | इसस आप हमशा सखी रहोग | िफर कछ बढ़ान की इ छा नही होगी और कछ कम होन स

दःख नही होगा | 199) समथर सदगर क सम सदा फल क भाित िखल हए रहो | इसस उनक अनदर सक प

होगा िक यह तो बहत उतसाही साधक ह सदा सनन रहता ह | उनक सामथयरवान सक प स

आपकी वह किऽम सननता भी वाःतिवक सननता म बदल जायगी | 200) यिद रोग को भी ई र का िदया मानो तो ार ध-भोग भी हो जाता ह और क तप का फल दता ह | इसस ई र-कपा की ाि होती ह | याकल मत हो | क सल और इनजकशन

आधीन मत हो | 201) साधक को चािहय िक अपन लआय को ि म रखकर साधना-पथ पर तीर की तरह

सीधा चला जाय | न इधर दख न उधर | ि यिद इधर-उधर जाती हो तो समझना िक िन ा िःथर नही ह |

202) आपन अपन जीवन म हजार ःव न दख ह ग लिकन व आपक जीवन क अश नही बन जात | इसी कार य जामत जगत क आड बर आपकी आतमा क सम कोई मह व नही रखत | 203) एक आतमा को ही जानो अनय बात को छोड़ो | धीर साधक को चािहय िक वह

सावधान होकर आतमिन ा बढ़ाय अनक श द का िचनतन व भाषण न कर कय िक वह तो कवल

मन-वाणी को पिरौम दनवाला ह असली साधना नही ह | 204) जो परष जन-समह स ऐस डर जस साप स डरता ह स मान स ऐस डर जस नकर स

डरता ह ि य स ऐस डर जस मद स डरता ह उस परष को दवतागण ा ण मानत ह | 205) जस अपन शरीर क अग पर बोध नही आता वस शऽ िमऽ व अपनी दह म एक ही आतमा को दखनवाल िववकी परष को कदािप बोध नही आता | 206) मन तो शरीर को ई रापरण कर िदया ह | अब उसकी भख- यास स मझ कया

समिपरत वःत म आस होना महा पाप ह | 207) आप यिद िद य ि पाना चहत हो तो आपको इिनिय क ऽ का तयाग करना होगा | 208) लयकाल क मघ की गजरना हो समि उमड़ पड बारह सयर तपायमान हो जाय पहाड़ स पहाड़ टकरा कर भयानक आवाज हो तो भी ानी क िन य म त नही भासता कय िक

त ह ही नही | त तो अ ानी को भासता ह | 209) सतय को ःवीकार करन स शाित िमलगी | कछ लोग यो यता क आधार पर शाित

खरीदना चाहत ह | यो यता स शाित नही िमलगी यो यता क सदपयोग स शाित िमलगी | कछ

लोग स पि क आधार पर शाित सरि त रखना चाहत ह | स पि स शाित नही िमलगी स पि

क सदपयोग स शाित िमलगी वस ही िवपि क सदपयोग स शाित िमलगी | 210) त छ हािन-लाभ पर आपका धयान इतना कय रहता ह िजसस अनत आननदःवरप

आतमा पर स धयान हट जाता ह | 211) अपन अनदर ही आननद ा करना य िप किठन ह परनत बा िवषय स आननद

ा करना तो अस भव ही ह |

212) म ससार का काश ह | काश क रप म म ही सब वःतओ म या ह | िनतय इन

िवचार का िचनतन करत रहो | य पिवऽ िवचार आपको परम पिवऽ बना दग | 213) जो वःत कमर स ा होती ह उसक िलय ससार की सहायता तथा भिवय की आशा की आवयकता होती ह परनत जो वःत तयाग स ा होती ह उसक िलय न ससार की सहायता चािहय न भिवय की आशा | 214) आपको जब तक बाहर चोर िदखता ह तब तक जरर भीतर चोर ह | जब दसर लोग

स िभनन अयो य खराब सधारन यो य िदखत ह तब तक ओ सधार का बीड़ा उठान वाल त अपनी िचिकतसा कर | 215) सफल व ही होत ह जो सदव नतमःतक एव सननमख रहत ह | िचनतातर-शोकातर लोग की उननित नही हो सकती | तयक कायर को िह मत व शाित स करो | िफर दखो िक यह

कायर शरीर मन और बि स हआ | म उन सबको स ा दनवाला चतनयःवरप ह | ॐ ॐ का पावन गान करो | 216) िकसी भी पिरिःथित म मन को यिथत न होन दो | आतमा पर िव ास करक

आतमिन बन जाओ | िनभरयता आपकी दासी बन कर रहगी | 217) सतसग स मनय को साधना ा होती ह चाह वह शाित क रप म हो चाह मि क

रप म चाह सवा क रप म हो म क रप म हो चाह तयाग क रप म हो | 218) भला-बरा वही दखता ह िजसक अनदर भला-बरा ह | दसर क शरीर को वही दखता ह

जो खद को शरीर मानता ह | 219) खबरदार आपन यिद अपन शरीर क िलय ऐश-आराम की इ छा की िवलािसता एव इिनिय-सख म अपना समय बरबाद िकया तो आपकी खर नही | ठ क स कायर करत रहन की नीित

अपनाओ | सफलता का पहला िस ात ह कायरिवौामरिहत कायरसा ी भाव स कायर | इस

िस ात को जीवन म चिरताथर करोग तो पता चलगा िक छोटा होना िजतना सरल ह उतना ही बड़ा होना भी सहज ह | 220) भतकाल पर िखनन हए िबना भिवय की िचनता िकय िबना व रमान म कायर करो | यह भाव आपको हर अवःथा म सनन रखगा हम जो कछ ा ह उसका सदपयोग ही अिधक

काश पान का साधन ह |

221) जब आप सफलता की ओर पीठ कर लत हो पिरणाम की िचनता का तयाग कर दत

हो स मख आय हए क र य पर अपनी उ ोगशि एकाम करत हो तब सफलता आपक पीछ-पीछ

आ जाती ह | अतः सफलता आपको खोजगी | 222) वि तब तक एकाम नही होगी जब तक मन म कभी एक आशा रहगी तो कभी दसरी | शात वही हो सकता ह िजस कोई क र य या आवयकता घसीट न रही हो | अतः परम शाित पान

क िलय जीवन की आशा भी तयाग कर मन ाननद म डबो दो | आज स समझ लो िक यह शरीर ह ही नही | कवल ाननद का सागर लहरा रहा ह | 223) िजसकी पककी िन ा ह िक म आतमा हrsquo उसक िलय ऐसी कौन सी मिथ ह जो खल

न सक ऐसी कोई ताकत नही जो उसक िवर जा सक | 224) मर भा य म नही थाई र की मज आजकल सतसग ा नही होताजगत

खराब ह ऐस वचन हमारी कायरता व अनतःकरण की मिलनता क कारण िनकलत ह | अतः नकारातमक ःवभाव और दसर पर दोषारोपण करन की वि स बचो | 225) आप जब भीतरवाल स नाराज होत हो तब जगत आपस नाराज रहता ह | जब आप

भीतर अनतयारमी बन बठ तो जगतरपी पतलीघर म िफर गड़बड़ कसी 226) िजस ण हम ससार क सधारक बन खड़ होत ह उसी ण हम ससार को िबगाड़नवाल बन जात ह | श परमातमा को दखन क बजाय जगत को िबगड़ा हआ दखन की ि बनती ह | सधारक लोग मानत ह िक lsquoभगवान न जो जगत बनाया ह वह िबगड़ा हआ ह और हम उस सधार रह ह |rsquo वाह वाह धनयवाद सधारक अपन िदल को सधारो पहल | सवरऽ िनरजन का दीदार करो | तब आपकी उपिःथित माऽ स आपकी ि माऽ स अर यार आपको छकर बहती हवा माऽ स अननत जीव को शाित िमलगी और अननत सधार होगा | नानक कबीर महावीर ब और लीलाशाह बाप जस महापरष न यही कजी अपनायी थी | 227) वदानत म हमशा कमर का अथर होता ह वाःतिवक आतमा क साथ एक होकर च ा करना अिखल िव क साथ एकःवर हो जाना | उस अि तीय परम ततव क साथ िनःःवाथर सयोग ा करना ही एकमाऽ स चा कमर ह बाकी सब बोझ की गठिरया उठाना ह |

228) अपनी व रमान अवःथा चाह कसी भी हो उसको सव च मानन स ही आपक दय म आतम ान ान का अनायास उदय होन लगगा | आतम-सा ातकार को मील दर की कोई चीज समझकर उसक पीछ दौड़ना नही ह िचिनतत होना नही ह |

िचनता की गठरी उठाकर यिथत होन की जररत नही ह | िजस ण आप िनि नतता म गोता मारोग उसी ण आपका आतमःवरप गट हो जायगा | अर गट कया होगा आप ःवय आतमःवरप हो ही | अनातमा को छोड़ दो तो आतमःवरप तो हो ही | 229) सदा ॐकार का गान करो | जब भय व िचनता क िवचार आय तब िकसी मःत सत-फकीर महातमा क सािननधय का ःमरण करो | जब िननदा-शसा क सग आय तब महापरष क जीवन का अवलोकन करो | 230) िजनको आप भयानक घटनाए एव भयकर आघात समझ बठ हो वाःतव म व आपक ियतम आतमदव की ही करतत ह | समःत भयजनक तथा ाणनाशक घटनाओ क नाम-रप तो िवष क ह लिकन व बनी ह अमत स | 231) मन म यिद भय न हो तो बाहर चाह कसी भी भय की साममी उपिःथत हो जाय आपका कछ िबगाड़ नही सकती | मन म यिद भय होगा तो तरनत बाहर भी भयजनक पिरिःथया न होत हए भी उपिःथत हो जायगी | व क तन म भी भत िदखन लगगा | 232) िकसी भी पिरिःथित म िदखती हई कठोरता व भयानकता स भयभीत नही होना चािहए | क क काल बादल क पीछ पणर काशमय एकरस परम स ा सयर की तरह सदा िव मान ह | 233) आप अपन पर कदािप अिव ास मत करो | इस जगत म आप सब कछ कर सकत हो | अपन को कभी दबरल मत मानो | आपक अनदर तमाम शि या छपी हई ह | 234) यिद कोई मन य आपकी कोई चीज़ को चरा लता ह तो ड़रत कय हो वह मनय

और आप एक ह | िजस चीज़ को वह चराता ह वह चीज़ आपकी और उसकी द न की ह | 235) जो खद क िसवाय दसरा कछ दखता नही सनता नही जानता नही वह अननत ह |

जब तक खद क िसवाय और िकसी वःत का भान होता ह वह वःत स ची लगती ह तब तक आप

सीिमत व शात ह असीम और अनत नही |

236) ससार मझ कया आनद द सकता ह स पणर आनद मर भीतर स आया ह | म ही स पणर आननद ह स पणर मिहमा एव स पणर सख ह | 237) जीवन की समःत आवयकताए जीवन म उपिःथत ह परनत जीवन को जब हम

बा रग म रग दत ह तब जीवन का वाःतिवक रप हम नही जान पात | 238) िननदक की िननदा स म कय मरझाऊ शसक की शसा स म कय फल िननदा स म घटता नही और शसा स म बढ़ता नही | जसा ह वसा ही रहता ह | िफर िननदा-ःतित स

खटक कसी 239) ससार व ससार की समःयाओ म जो सबस अिधक फस हए ह उनही को वदानत की सबस अिधक आवयकता ह | बीमार को ही औषिध की यादा आवयकता ह | कय जी ठ क ह न 240) जगत क पाप व अतयाचार की बात मत करो लिकन अब भी आपको जगत म पाप

िदखता ह इसिलय रोओ | 241) हम यिद जान ल िक जगत म आतमा क िसवाय दसरा कछ ह ही नही और जो कछ

िदखता ह वह ःव नमाऽ ह तो इस जगत क दःख-दािरिय पाप-प य कछ भी हम अशात नही कर सकत | 242) िव ान दाशरिनक व आचाय की धमकी तथा अनमह आलोचना या अनमित

ानी पर कोई भाव नही ड़ाल सकती | 243) ह यि रप अननत आप अपन पर पर खड़ रहन का साहस करो समःत िव का बोझ आप िखलौन की तरह उठा लोग | 244) िसह की गजरना व नरिसह की ललकार तलवार की धार व साप की फफकार तपःवी की धमकी व नयायधीश की फटकारइन सबम आपका ही काश चमक रहा ह | आप इनस

भयभीत कय होत हो उलझन कय महसस करत हो मरी िब ली मझको याऊ वाली बात कय

होन दत हो 245) ससार हमारा िसफ़र िखलोना ही ह और कछ नही | अबोध बालक ही िखलौन स

भयभीत होता ह आसि करता ह िवचारशील यि नही |

246) जब तक अिव ा दर नही होगी तब तक चोरी जआ दार यिभचार कभी बद न

ह ग चाह लाख कोिशश करो | 247) आप हमशा अदर का धयान रखो | पहल हमारा भीतरी पतन होता ह | बा पतन तो इसका पिरणाम माऽ ह | 248) तयाग स हमशा आनद िमलता ह | जब तक आपक पास एक भी चीज़ बाकी ह तब

तक आप उस चीज़ क बधन म बध रहोग | आघात व तयाघात हमशा समान िवरोधी होत ह | 249) िनि तता ही आरो यता की सबस बड़ी दवाई ह | 250) सख अपन िसर पर दख का मकट पहन कर आता ह | जो सख को अपनायगा उस

दख को भी ःवीकार करना पड़गा | 251) म (आतमा) सबका ा ह | मरा ा कोई नही | 252) हजार म स कोई एक परष भीतर स शात िच वाला रहकर बाहर स ससारी जसा यवहार कर सकता ह | 253) सतय क िलए यिद शरीर का तयाग करना पड़ तो कर दना | यही आिखरी ममता ह जो हम तोड़नी होगी | 254) भय िचनता बचनी स ऊपर उठो | आपको ान का अनभव होगा | 255) आपको कोई भी हािन नही पहचा सकता | कवल आपक खयालात ही आपक पीछ पड़ ह | 256) म का अथर ह अपन पड़ोसी तथा सपकर म आनवाल क साथ अपनी वाःतिवक अभदता का अनभव करना | 257) ओ यार अपन खोय हए आतमा को एक बार खोज लो | धरती व आसमान क शासक आप ही हो | 258) सदव सम और सनन रहना ई र की सव पिर भि ह |

259) जब तक िच म ढ़ता न आ जाय िक शा की िविधय का पालन छोड़ दन स भी दय का यथाथर भि भाव न नही होगा तब तक शा की िविधय को पालत रहो |

गर भि एक अमोघ साधना 1 जनम मरण क िवषचब स म होन का कोई मागर नही ह कया सख-दःख हषर-शोक लाभ-

हािन मान-अपमान की थ पड़ स बचन का कोई उपाय नही ह कया

हअवय ह | ह िय आतमन नाशवान पदाथ स अपना मन वािपस लाकर सदगर क

चरणकमल म लगाओ | गरभि योग का आौय लो | गरसवा ऐसा अमोघ साधन ह िजसस

व रमान जीवन आननदमय बनता ह और शा त सख क ार खलत ह |

गर सवत त नर धनय यहा | ितनक नही दःख यहा न वहा || 2 स च सदगर की की हई भि िशय म सासािरक पदाथ क वरा य एव अनासि जगाती ह

परमातमा क ित म क पप महकाती ह | 3 तयक िशय सदगर की सवा करना चाहता ह लिकन अपन ढग स | सदगर चाह उस ढग स

सवा करन को कोई ततपर नही | जो िवरला साधक गर चाह उस ढ़ग स सवा कर सकता ह उस कोई कमी नही रहती |

िन सदगर की सवा स उनकी कपा ा होती ह और उस कपा स न िमल सक ऐसा तीन लोक म कछ भी नही ह | 4 गर िशय का स बनध पिवऽतम स बनध ह | ससार क तमाम बनधन स छड़ाकर वह मि क मागर पर ःथान कराता ह | यह स बनध जीवनपयरनत का स बनध ह | यह बात अपन दय की डायरी म सवणर-अ र स िलख लो | 5 उ ल सयर क काश क अिःततव को मान या न मान िफर भी सयर हमशा काशता ह | चचल मन का मनय मान या न मान लिकन सदगर की परमक याणकारी कपा सदव बरसती ही रहती ह | 6 सदगर की चरणरज म ःनान िकय िबना कवल किठन तप यार करन स या वद का

अधयन करन स वदानत का रहःय कट नही होता आतमानद का अमत नही िमलता | 7 दशरन शा क चाह िकतन मनथ पढ़ो हजार वष तक िहमालय की गफा म तप करो वष तक ाणायाम करो जीवनपयरनत शीषारसन करो समम िव म वास करक याखान दो िफर भी सदगर की कपा क िबना आतम ान नही होता | अतः िनरािभमानी सरल िनजाननद म मःत दयाल ःवभाव क आतम-सा ातकारी सदगर क चरण म जाओ | जीवन को धनय बनाओ | 8 सदगर की सवा िकय िबना शा का अधयन करना मम साधक क िलय समय बरबाद करन क बराबर ह | 9 िजसको सदगर ा हए ह ऐस िशय क िलय इस िव म कछ भी अा य नही ह | सदगर िशय को िमली हई परमातमा की अम य भट ह | अर नहीhellipनही व तो िशय क सम साकार रप म कट हए परमातमा ःवय ह | 10 सदगर क साथ एक ण िकया हआ सतसग लाख वष क तप स अननत गना ौ ह | आख क िनमषमाऽ म सदगर की अमतवष ि िशय क जनम-जनम क पाप को जला सकती ह | 11 सदगर जसा मपणर कपाल िहतिचनतक िव भर म दसरा कोई नही ह | 12 बाढ़ क समय याऽी यिद तफानी नदी को िबना नाव क पार कर सक तो साधक भी िबना सदगर क अपन जीवन क आिखरी लआय को िस कर सकता ह | यानी य दोन बात स भव ह |

अतः यार साधक मनमखी साधना की िज करना छोड़ दो | गरमखी साधना करन म ही सार ह | 13 सदगर क चरणकमल का आौय लन स िजस आननद का अनभव होता ह उसक आग िऽलोकी का साा य त छ ह | 14 आतम-सा ातकार क मागर म सबस महान शऽ अहभाव का नाश करन क िलए सदगर की आ ा का पालन अमोघ श ह | 15 रसोई सीखन क िलय कोई िसखानवाला चािहय िव ान और गिणत सीखन क िलय

अधयापक चािहय तो कया िव ा सदगर क िबना ही सीख लोग 16 सदगरकपा की स पि जसा दसरा कोई खजाना िव भर म नही | 17 सदगर की आ ा का उ लघन करना यह अपनी क खोदन क बराबर ह | 18 सदगर क कायर को शका की ि स दखना महापातक ह | 19 गरभि व गरसवा - य साधनारपी नौका की दो पतवार ह | उनकी मदद स िशय ससारसागर को पार कर सकता ह | 20 सदगर की कसौटी करना असभव ह | एक िववकाननद ही दसर िववकाननद को पहचान सकत ह | ब को जानन क िलय दसर ब की आवयकता रहती ह | एक रामतीथर का रहःय दसर रामतीथर ही पा सकत ह |

अतः सदगर की कसौटी करन की च ा छोड़कर उनको पिरपणर पर परमातमा मानो |

तभी जीवन म वाःतिवक लाभ होगा | 21 गरभि योग का आौय लकर आप अपनी खोई हई िद यता को पनः ा करो सख-दःख जनम-मतय आिद सब न स पार हो जाओ | 22 गरभि योग मान गर की सवा क ारा मन और िवकार पर िनयऽण एव पनः सःकरण | 23 िशय अपन गर क चरणकमल म णाम करता ह | उन पर ौ फल की वषार करक उनकी ःतित करता ह ldquoह परम प य पिवऽ गरदव मझ सव च सख ा हआ ह | म िन ा स जनम-मतय की पर परा स म हआ ह | म िनिवरक प समािध का श सख भोग रहा ह | जगत क िकसी भी कोन म म म ता स िवचरण कर सकता ह | सब पर मरी सम ि ह | मन ाकत मन का तयाग िकया ह | मन सब सक प एव रिच-अरिच का तयाग िकया ह | अब म अख ड शाित म िवौाित पा रहा ह hellip आननदमय हो रहा ह | म इस पणर अवःथा का वणरन नही कर पाता | ह प य गरदव म आवाक बन गया ह | इस दःतर भवसागर को पार करन म आपन

मझ सहायता की ह | अब तक मझ कवल अपन शरीर म ही स पणर िव ास था | मन िविभनन योिनय म अस य जनम िलय | ऐसी सव च िनभरय अवःथा मझ कौन स पिवऽ कम क कारण ा हई ह यह म नही जानता | सचमच यह एक दलरभ भा य ह |

यह एक महान उतक लाभ ह | अब म आननद स नाचता ह | मर सब दःख न हो गय | मर सब मनोरथ पणर हए ह |

मर कायर स पनन हए ह | मन सब वािछत वःतए ा की ह | मरी इ छा पिरपणर हई ह | आप मर स च माता-िपता हो | मरी व रमान िःथित म म दसर क सम िकस कार कट कर सक सवरऽ सख और आननद का अननत सागर मझ लहराता हआ िदख रहा ह | मर अतःच िजसस खल गय वह महावाकय lsquoत वमिसrsquo ह | उपिनषद एव वदानतसऽ को भी धनयवाद | िजनह न िन गर का एव उपिनषद क महावाकय का रप धारण िकया ह | ऐस ौी यासजी को णाम ौी शकराचायर को णाम सासािरक मनय क िसर पर गर क चरणामत का एक िबनद भी िगर तो भी उसक ःब दःख का नाश होता ह | यिद एक िन परष को व पहनाय जाय तो सार िव को व पहनान एव भोजन करवान क बराबर ह कय िक िन परष सचराचर िव म या ह | सबम व ही ह |rdquo

ॐhellip ॐ hellip ॐ hellip

ःवामी िशवानद जी

ौी राम-विश सवाद ौी विश जी कहत ह ldquoह रघकलभषण ौी राम अनथर ःवरप िजतन सासािरक पदाथर ह व सब जल म तरग क समान िविवध रप धारण करक चमतकार उतपनन करत ह अथारत ई छाए उतपनन करक जीव को मोह म फसात ह | परत जस सभी तरग जल ःवरप ही ह उसी कार सभी पदाथर वःततः न र ःवभाव वाल ह |

बालक की क पना स आकाश म य और िपशाच िदखन लगत ह परनत बि मान मनय क िलए उन य और िपशाच का कोई अथर नही | इसी कार अ ानी क िच म यह जगत सतय हो ऐसा लगता ह जबिक हमार जस ािनय क िलय यह जगत कछ भी नही | यह समम िव पतथर पर बनी हई पतिलय की सना की तरह रपालोक तथा अतर-बा िवषय स शनय ह | इसम सतयता कसी परनत अ ािनय को यह िव सतय लगता ह |rdquo विश जी बोल ldquoौी राम जगत को सतय ःवरप म जानना यह ाित ह मढ़ता ह | उस िमथया अथारत कि पत समझना यही उिचत समझ ह | ह राघव तव ा अहता आिद सब िवम-िवलास शात िशवःवरप श ःवरप ही ह | इसिलय मझ तो क अितिर और कछ भी नही िदखता | आकाश म जस जगल नही वस ही म जगत नही ह | ह राम ार ध वश ा कम स िजस परष की च ा कठपतली की तरह ई छाशनय और याकलतारिहत होती ह वह शानत मनवाला परष जीवनम मिन ह | ऐस जीवनम ानी को इस

जगत का जीवन बास की तरह बाहर-भीतर स शनय रसहीन और वासना-रिहत लगता ह | इस य पच म िजस रिच नही दय म िचनमाऽ अ य ही अ छा लगता ह ऐस परष न

भीतर तथा बाहर शािनत ा कर ली ह और इस भवसागर स पार हो गया ह | रघनदन श व ा कहत ह िक मन का ई छारिहत होना यही समािध ह कय िक ई छाओ का तयाग करन स मन को जसी शािनत िमलती ह ऐसी शािनत सकड़ उपदश स भी नही िमलती | ई छा की उतपि स जसा दःख ा होता ह ऐसा दःख तो नरक म भी नही | ई छाओ की शािनत

स जसा सख होता ह ऐसा सख ःवगर तो कया लोक म भी नही होता | अतः समःत शा तपःया यम और िनयम का िनचोड़ यही ह िक ई छामाऽ दःखदायी ह और ई छा का शमन मो ह | ाणी क दय म जसी-जसी और िजतनी-िजतनी ई छाय उतपनन होती ह उतना ही दख स वह

ड़रता रहता ह | िववक-िवचार ारा ई छाय जस-जस शानत होती जाती ह वस-वस दखरपी छत की बीमारी िमटती जाती ह |

आसि क कारण सासािरक िवषय की ई छाय य - य गहनीभत होती जाती ह तय -तय

दःख की िवषली तरग बढ़ती जाती ह | अपन परषाथर क बल स इस ई छारपी यािध का उपचार यिद नही िकया जाय तो इस यािध स छटन क िलय अनय कोई औषिध नही ह ऐसा म ढ़तापवरक

मानता ह | एक साथ सभी ई छाओ का स पणर तयाग ना हो सक तो थोड़ी-थोड़ी ई छाओ का धीर-धीर तयाग

करना चािहय परत रहना चािहय ई छा क तयाग म रत कय िक सनमागर का पिथक दखी नही होता | जो नराधम अपनी वासना और अहकार को ीण करन का य नही करता वह िदन -िदन अपन

को रावण की तरह अधर कऐ म ढ़कल रहा ह | ई छा ही दख की जनमदाऽी इस ससाररपी बल का बीज ह | यिद इस बीज को आतम ानरपी अि न स ठ क-ठ क जला िदया तो पनः यह अकिरत नही होता | रघकलभषण राम ई छामाऽ ससार ह और ई छाओ का अभाव ही िनवारण ह | अतः अनक कार की माथाप ची म ना पड़कर कवल ऐसा य करना चािहय िक ई छा उतपनन ना हो | अपनी बि स ई छा का िवनाश करन को जो ततपर नही ऐस अभाग को शा और गर का उपदश

भी कया करगा जस अपनी जनमभमी जगल म िहरणी की मतय िनि त ह उसी कार अनकिवध दख का िवःतार कारनवाल ई छारपी िवषय-िवकार स य इस जगत म मनय की मतय िनि त ह | यिद मानव ई छाओ क कारण ब च -सा मढ़ ना बन तो उस आतम ान क िलय अ प य ही करना पड़ | इसिलय सभी कार स ई छाओ को शानत करना चािहय | ई छा क शमन स परम पद की ाि होती ह | ई छारिहत हो जाना यही िनवारण ह और ई छाय

होना ही बधन ह | अतः यथाशि ई छा को जीतना चािहय | भला इतना करन म कया किठनाई ह जनम जरा यािध और मतयरपी कटीली झािड़य और खर क व - समह की जड़ भी ई छा ही ह

| अतः शमरपी अि न स अदर-ही-अदर बीज को जला ड़ालना चािहय| जहा ई छाओ का अभाव ह

वहा मि िनि त ह |

िववक वरा य आिद साधन स ई छा का सवरथा िवनाश करना चािहय | ई छा का सबध जहा-जहा ह वहा-वहा पाप प य दखरािशया और ल बी पीड़ाओ स य बधन को हािज़र ही समझो | परष

की आतिरक ई छा य - य शानत होती जाती ह तय -तय मो क िलय उसका क याणकारक

साधन बढ़ता जाता ह | िववकहीन ई छा को पोसना उस पणर करना यह तो ससाररपी िवष व को पानी स सीचन क समान ह |rdquo

- ौीयोगविश महारामायण

आतमबल का आवाहन कया आप अपन-आपको दबरल मानत हो लघतामथी म उलझ कर पिरिःतिथय स िपस रह हो

अपना जीवन दीन-हीन बना बठ हो hellipतो अपन भीतर सष आतमबल को जगाओ | शरीर चाह ी का हो चाह परष का कित क साा य म जो जीत ह व सब ी ह और कित क बनधन स पार अपन ःवरप की पहचान िजनह न कर ली ह अपन मन की गलामी की बिड़या तोड़कर िजनह न फ क दी ह व परष ह | ी या परष शरीर एव मानयताए होती ह | तम तो तन-मन स पार िनमरल आतमा हो | जागोhellipउठोhellipअपन भीतर सोय हय िन यबल को जगाओ | सवरदश सवरकाल म सव म

आतमबल को िवकिसत करो | आतमा म अथाह सामथयर ह | अपन को दीन-हीन मान बठ तो िव म ऐसी कोई स ा नही जो त ह ऊपर उठा सक | अपन आतमःवरप म िति त हो गय तो िऽलोकी म ऐसी कोई हःती नही जो त ह दबा सक | भौितक जगत म वाप की शि ईलकशोिनक शि िव त की शि गरतवाकषरण की शि बड़ी मानी जाती ह लिकन आतमबल उन सब शि य का सचालक बल ह | आतमबल क सािननधय म आकर पग ार ध को पर िमल जात ह दव की दीनता पलायन हो जाती ह ितकल पिरिःतिथया अनकल हो जाती ह | आतमबल सवर िरि -िसि य का िपता ह |

आतमबल कस जगाय हररोज़ तःकाल ज दी उठकर सय दय स पवर ःनानािद स िनवत हो जाओ | ःव छ पिवऽ ःथान

म आसन िबछाकर पवारिभमख होकर प ासन या सखासन म बठ जाओ | शानत और सनन वि

धारण करो | मन म ढ भावना करो िक म कित-िनिमरत इस शरीर क सब अभाव को पार करक सब

मिलनताओ-दबरलताओ स िप ड़ छड़ाकर आतमा की मिहमा म जागकर ही रहगा |

आख आधी खली आधी बद रखो | अब फ़फ़ड़ म खब ास भरो और भावना करो की ास क साथ

म सयर का िद य ओज भीतर भर रहा ह | ास को यथाशि अनदर िटकाय रखो | िफ़र lsquoॐhelliprsquo का ल बा उ चारण करत हए ास को धीर-धीर छोड़त जाओ | ास क खाली होन क बाद तरत ास ना लो | यथाशि िबना ास रहो और भीतर ही भीतर lsquoहिर ॐhelliprsquo lsquoहिर ॐhelliprsquo का मानिसक

जाप करो | िफ़र स फ़फ़ड़ म ास भरो | पव रीित स ास यथाशि अनदर िटकाकर बाद म धीर-धीर छोड़त हए lsquoॐhelliprsquo का गजन करो | दस-पिह िमनट ऐस ाणायाम सिहत उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo की धविन करक शानत हो जाओ | सब

यास छोड़ दो | वि य को आकाश की ओर फ़लन दो | आकाश क अनदर पथवी ह | पथवी पर अनक दश अनक समि एव अनक लोग ह | उनम स एक

आपका शरीर आसन पर बठा हआ ह | इस पर य को आप मानिसक आख स भावना स दखत

रहो | आप शरीर नही हो बि क अनक शरीर दश सागर पथवी मह न ऽ सयर चनि एव पर ा ड़ क

ा हो सा ी हो | इस सा ी भाव म जाग जाओ | थोड़ी दर क बाद िफ़र स ाणायाम सिहत lsquoॐhelliprsquo का जाप करो और शानत होकर अपन िवचार को दखत रहो | इस अवःथा म ढ़ िन य करो िक lsquoम जसा चहता ह वसा होकर रहगा |rsquo िवषयसख स ा धन-

दौलत इतयािद की इ छा न करो कय िक िन यबल या आतमबलरपी हाथी क पदिच म और सभी क पदिच समािव हो ही जायग | आतमानदरपी सयर क उदय होन क बाद िम टी क तल क दीय क ाकाश रपी शि सखाभास की गलामी कौन कर

िकसी भी भावना को साकार करन क िलय दय को करद ड़ाल ऐसी िन यातमक बिल वि होनी आवशयक ह | अनतःकरण क गहर-स-गहर दश म चोट कर ऐसा ाण भरक िन बल का आवाहन करो | सीना तानकर खड़ हो जाओ अपन मन की दीन-हीन दखद मानयताओ को कचल

ड़ालन क िलय | सदा ःमरण रह की इधर-उधर भटकती वि य क साथ त हारी शि भी िबखरती रहती ह | अतः वि य को बहकाओ नही | तमाम वि य को एकिऽत करक साधनाकाल म आतमिचनतन म लगाओ और यवहारकाल म जो कायर करत हो उसम लगाओ | द िच होकर हरक कायर करो | अपन ःवभाव म स आवश को सवरथा िनमरल कर दो | आवश म आकर कोई िनणरय मत लो कोई िबया मत करो | सदा शानत वि धारण करन का अ यास करो | िवचारशील एव सनन रहो | ःवय अचल रहकर सागर की तरह सब वि य की तरग को अपन

भीतर समालो | जीवमाऽ को अपना ःवरप समझो | सबस ःनह रखो | िदल को यापक रखो | सकिच ता का िनवारण करत रहो | ख ड़ातमक वि का सवरथा तयाग करो | िजनको ानी महापरष का सतसग और अधयातमिव ा का लाभ िमल जाता ह उसक जीवन स

दःख िवदा होन लगत ह | ॐ आननद आतमिन ा म जाग हए महापरष क सतसग एव सतसािहतय स जीवन को भि और वदात स प

एव पलिकत करो | कछ ही िदन क इस सघन योग क बाद अनभव होन लगगा िक भतकाल क

नकारतमक ःवभाव सशयातमक-हािनकारक क पनाओ न जीवन को कचल ड़ाला था िवषला कर िदया था | अब िन यबल क चमतकार का पता चला | अततरम म आिवरभत िद य खज़ाना अब

िमला | ार ध की बिड़या अब टटन लगी | ठ क ह न करोग ना िह मत पढ़कर रख मत दना इस पिःतका को | जीवन म इसको बार-बार पढ़त रहो | एक िदन म यह पणर ना होगा | बार-बार अ यास करो | त हार िलय यह एक ही पिःतका काफ़ी ह | अनय कचराप टी ना पड़ोग तो चलगा | शाबाश वीर शाबाश

  • परसतावना
  • जीवन रसायन
  • गर भकति एक अमोघ साधना
  • शरी राम-वशिषठ सवाद
  • आतमबल का आवाहन
  • आतमबल कस जगाय
Page 22: जीवन रसायन - HariOmGroup · ‘जीवन रसायन’ का यह िदय कटोरा आत्मरस के िपपासुओं हाथ

जायगी | म जल क साथ जल हो जाऊगा | वामन िमटकर िवराट बन जाऊगा | मरी मि बहत

नजदीक ह | मझ आपकी िःथित पर दया आती ह | आप इतनी बड़ी हई हो | आपका छटकारा ज दी नही होगा | आप भाग-भागकर सामनवाली च टान स टकराओगी | अनक छोटी-छोटी तरग

म िवभ हो जाओगी | उन अस य तरग म स अननत-अननत बलबल क रप म पिरवितरत हो जाओगी | य सब बलबल फटग तब आपका छटकारा होगा | बड़ पन का गवर कय करती हो जगत की उपलि धय का अिभमान करक परमातमा स दर मत जाओ | बलबल की तरह सरल

रहकर परमातमा क साथ एकता का अनभव करो | 137) जब आप ईयार ष िछिानवषण दोषारोपण घणा और िननदा क िवचार िकसीक

ित भजत ह तब साथ-ही-साथ वस ही िवचार को आमिऽत भी करत ह | जब आप अपन भाई की आख म ितनका भ कत ह तब अपनी आख म भी आप ताड़ भ क रह ह | 138) शरीर अनक ह आतमा एक ह | वह आतमा-परमातमा मझस अलग नही | म ही कतार सा ी व नयायधीश ह | म ही ककर श आलोचक ह और म ही मधर शसक ह | मर िलय तयक

यि ःवतऽ व ःव छनद ह | बनधन पिरि छननता और दोष मरी ि म आत ही नही | म म

हपरम म ह और अनय लोग भी ःवतऽ ह | ई र म ही ह | आप भी वही हो | 139) िजस कार बालक अपनी परछा म बताल की क पना कर भय पाता ह उसी कार जीव अपन ही सक प स भयभीत होता ह और क पाता ह | 140) कभी-कभी ऐसी भावना करो िक आपक सामन चतनय का एक महासागर लहरा रहा ह | उसक िकनार खड़ रह कर आप आनद स उस दख रह ह | आपका शरीर सागर की सतह पर घमन गया ह | आपक दखत ही दखत वह सागर म डब गया | इस समःत पिरिःथित को दखन वाल आप सा ी आतमा शष रहत ह | इस कार सा ी रप म अपना अनभव करो | 141) यिद हम चाहत ह िक भगवान हमार सब अपराध माफ कर तो इसक िलए सगम साधना यही ह िक हम भी अपन सबिधत सब लोग क सब अपराध माफ कर द |

कभी िकसी क दोष या अपराध पर ि न डाल कय िक वाःतव म सब रप म हमारा यारा ई दव ही बीड़ा कर रहा ह |

142) पणर पिवऽता का अथर ह बा भाव स भािवत न होना | सासािरक मनोहरता एव घणा स पर रहना राजी-नाराजगी स अिवचल िकसी म भद न दखना और आतमानभव क ारा आकषरण व तयाग स अिल रहना | यही वदानत का उपिनषद का

रहःय ह | 143) ई र सा ातकार तभी होगा जब ससार की ि स तीत होन वाल बड़-स-बड़ विरय को भी मा करन का आपका ःवभाव बन जायगा | 144) चाल यवहार म स एकदम उपराम होकर दो िमनट क िलए िवराम लो |

सोचो िक lsquo म कौन ह सद -गम शरीर को लगती ह | भख- यास ाण को लगती ह |

अनकलता-ितकलता मन को लगती ह | शभ-अशभ एव पाप-प य का िनणरय बि करती ह | म न शरीर ह न ाण ह न मन ह न बि ह | म तो ह इन सबको स ा दन वाला इन सबस नयारा िनलप आतमा |rsquo 145) जो मनय िनरतर lsquoम म हhelliprsquo ऐसी भावना करता ह वह म ही ह और lsquoम ब हhelliprsquo ऐसी भावना करनवाला ब ही ह | 146) आप िनभरय ह िनभरय ह िनभरय ह | भय ही मतय ह | भय ही पाप ह | भय ही नकर ह | भय ही अधमर ह | भय ही यिभचार ह | जगत म िजतन असत या िमथया भाव ह व सब इस भयरपी शतान स पदा हए ह | 147) परिहत क िलए थोड़ा काम करन स भी भीतर की शि या जागत होती ह |

दसर क क याण क िवचारमाऽ स दय म एक िसह क समान बल आ जाता ह | 148) हम यिद िनभरय ह ग तो शर को भी जीतकर उस पाल सक ग | यिद डरग तो क ा भी हम फ़ाड़ खायगा | 149) तयक िबया तयक यवहार तयक ाणी ःवरप िदख यही सहज समािध ह | 150) जब किठनाईया आय तब ऐसा मानना िक मझ म सहन शि बढ़ान क िलए ई र न य सयोग भज ह | किठन सयोग म िह मत रहगी तो सयोग बदलन लगग |

िवषय म राग- ष रह गया होगा तो वह िवषय कसौटी क रप म आग आयग और उनस पार होना पड़गा | 151) ततव ि स न तो आपन जनम िलया न कभी लग | आप तो अनत ह सवर यापी ह िनतयम अजर-अमर अिवनाशी ह | जनम-मतय का ही गलत ह महा-

मखरतापणर ह | जहा जनम ही नही हआ वहा मतय हो ही कस सकती ह 152) आप ही इस जगत क ई र हो | आपको कौन दबरल बना सकता ह जगत म आप ही एकमाऽ स ा हो | आपको िकसका भय खड़ हो जाओ | म हो जाओ | ठ क स समझ लो िक जो कोई िवचार या श द आपको दबरल बनाता ह वही एकमाऽ अशभ ह | मनय को दबरल व भयभीत करनवाला जो कछ इस ससार म ह वह पाप ह | 153) आप अपना कायर या कतर य करो लिकन न उसक िलए कोई िचनता रह न ही कोई

इ छा | अपन कायर म सख का अनभव करो कय िक आपका कायर ःवय सख या िवौाम ह | आपका कायर आतमानभव का ही दसरा नाम ह | कायर म लग रहो | कायर आपको आतमानभव कराता ह |

िकसी अनय हत स कायर न करो | ःवतऽ वि स अपन कायर पर डट जाओ | अपन को ःवतऽ

समझो िकसीक कदी नही | 154) यिद आप सतय क मागर स नही हटत तो शि का वाह आपक साथ ह समय आपक

साथ ह ऽ आपक साथ ह | लोग को उनक भतकाल की मिहमा पर फलन दो भिवयकाल की स पणर मिहमा आपक हाथ म ह | 155) जब आप िद य म क साथ चा डाल म चोर म पापी म अ यागत म और सबम भ क दशरन करग तब आप भगवान ौी कण क मपाऽ बन जायग | 156) आचायर गौड़पाद न ःप कहा आप सब आपस म भल ही लड़त रह लिकन मर साथ नही लड़ सक ग | आप सब लोग मर पट म ह | म आतमःवरप स सवर या ह | 157) मनय सभी ािणय म ौ ह सब दवताओ स भी ौ ह | दवताओ को भी िफर स

धरती पर आना पड़गा और मनय शरीर ा करक मि ा करनी होगी | 158) िनि नतता क दो सऽ जो कायर करना जररी ह उस परा कर दो | जो िबनजररी ह

उस भल जाओ | 159) सवा-म-तयाग ही मनय क िवकास का मल मऽ ह | अगर यह मऽ आपको जच

जाय तो सभी क ित सदभाव रखो और शरीर स िकसी-न-िकसी यि को िबना िकसी मतलब क

सहयोग दत रहो | यह नही िक जब मरी बात मानग तब म सवा करगा | अगर बनधक मरी बात

नही मानत तो म सवा नही करगा |

भाई तब तो तम सवा नही कर पाओग | तब तो तम अपनी बात मनवा कर अपन अह की पजा ही

करोग | 160) जस ःव न िमथया ह वस ही यह जामत अवःथा भी ःव नवत ही ह िमथया ह | हरक

को अपन इस ःव न स जागना ह | सदगर बार-बार जगा रह ह लिकन जाग कर वापस सो न जाए ऐसा परषाथर तो हम ही करना होगा | 161) सदा सननमख रहो | मख को कभी मिलन मत करो | िन य कर लो िक आपक

िलय शोक न इस जगत म जनम नही िलया ह | आननदःवरप म िचनता का ःथान ही कहा ह 162) समम ा ड एक शरीर ह | समम ससार एक शरीर ह | जब तक आप तयक क

साथ एकता का अनभव करत रहग तब तक सब पिरिःथितया और आस-पास की चीज़ हवा और समि की लहर भी आपक प म रहगी | 163) आपको जो कछ शरीर स बि स या आतमा स कमजोर बनाय उसको िवष की तरह

ततकाल तयाग दो | वह कभी सतय नही हो सकता | सतय तो बलद होता ह पावन होता ह

ानःवरप होता ह | सतय वह ह जो शि द | 164) साधना म हमारी अिभरिच होनी चािहय साधना की तीो माग होनी चािहय | 165) दसर क दोष की चचार मत करो चाह व िकतन भी बड़ ह | िकसी क दोष की चचार करक आप उसका िकसी भी कार भला नही करत बि क उस आघात पहचात ह और साथ-ही-साथ अपन आपको भी | 166) इस ससार को सतय समझना ही मौत ह | आपका असली ःवरप तो आननदःवरप

आतमा ह | आतमा क िसवा ससार जसी कोई चीज ही नही ह | जस सोया हआ मनय ःव न म अपनी एकता नही जानता अिपत अपन को अनक करक दखता ह वस ही आननदःवरप आतमा जामत ःव न और सषि - इन तीन ःवरप को दखत हए अपनी एकता अि तीयता का अनभव

नही करता | 167) मनोजय का उपाय ह अ यास और वरा य | अ यास मान य पवरक मन को बार-बार परमातम-िचतन म लगाना और वरा य मान मन को ससार क पदाथ की ओर स वापस

लौटाना | 168) िकसी स कछ मत मागो | दन क िलय लोग आपक पीछ-पीछ घमग | मान नही

चाहोग तो मान िमलगा | ःवगर नही चाहोग तो ःवगर क दत आपक िलय िवमान लकर आयग |

उसको भी ःवीकार नही करोग तो ई र आपको अपन दय स लगायग | 169) कभी-कभी उदय या अःत होत हए सयर की ओर चलो | नदी सरोवर या समि क तट

पर अकल घमन जाओ | ऐस ःथान की मलाकात लो जहा शीतल पवन मनद-मनद चल रही हो | वहा परमातमा क साथ एकःवर होन की स भावना क ार खलत ह | 170) आप य -ही इ छा स ऊपर उठत हो तय -ही आपका इि छत पदाथर आपको खोजन

लगता ह | अतः पदाथर स ऊपर उठो | यही िनयम ह | य - य आप इ छक िभ क याचक का भाव धारण करत हो तय -तय आप ठकराय जात हो | 171) कित क तयक पदाथर को दखन क िलय काश जररी ह | इसी कार मन बि

इिनिय को अपन-अपन कायर करन क िलय आतम-काश की आवयकता ह कय िक बाहर का कोई काश मन बि इिनिय ाणािद को चतन करन म समथर नही | 172) जस ःव न ा परष को जागन क बाद ःव न क सख-दःख जनम-मरण पाप-प य

धमर-अधमर आिद ःपशर नही करत कय िक वह सब खद ही ह | खद क िसवाय ःव न म दसरा कछ

था ही नही | वस ही जीवनम ानवान परष को सख-दःख जनम-मरण पाप-प य धमर-अधमर ःपशर नही करत कय िक व सब आतमःवरप ही ह | 173) वही भमा नामक आतम योित क म रह कर भ क रही ह सअर म रह कर घर रही ह गध म रह कर रक रही ह लिकन मखर लोग शरीर पर ही ि रखत ह चतनय ततव पर नही | 174) मनय िजस ण भत-भिवय की िचनता का तयाग कर दता ह दह को सीिमत और उतपि -िवनाशशील जानकर दहािभमान को तयाग दता ह उसी ण वह एक उ चतर अवःथा म पहच जाता ह | िपजर स छटकर गगनिवहार करत हए प ी की तरह मि का अनभव करता ह | 175) समःत भय एव िचनताए आपकी इ छाओ का णाम ह | आपको भय कय लगता ह

कय िक आपको आशका रहती ह िक अमक चीज कही चली न जाय | लोग क हाःय स आप डरत

ह कय िक आपको यश की अिभलाषा ह कीितर म आसि ह | इ छाओ को ितलाजिल द दो | िफर दखो मजा कोई िज मदारी नहीकोई भय नही | 176) दखन म अतयत करप काला-कलटा कबड़ा और तज ःवभाव का मनय भी आपका ही ःवरप ह | आप इस तथय स म नही | िफर घणा कसी कोई लाव यमयी सदरी सि की

शोभा क समान अित िवलासभरी अ सरा भी आपका ही ःवरप ह | िफर आसि िकसकी

आपकी ानिनिया उनको आपस अलग करक िदखाती ह | य इिनिया झठ बोलनवाली ह | उनका कभी िव ास मत करो | अतः सब कछ आप ही हो | 177) मानव क नात हम साधक ह | साधक होन क नात सतय को ःवीकर करना हमारा ःवधमर ह | सतय यही ह िक बल दसर क िलय ह ान अपन िलय ह और िव ास परमातमा स

स बनध जोड़न क िलय ह | 178) अपनी आतमा म डब जाना यह सबस बड़ा परोपकार ह | 179) आप सदव म ह ऐसा िव ास ढ़ करो तो आप िव क उ ारक हो जात हो | आप

यिद वदानत क ःवर क साथ ःवर िमलाकर िन य करो आप कभी शरीर न थ | आप िनतय श

ब आतमा हो तो अिखल ा ड क मो दाता हो जात हो | 180) कपा करक उन ःवाथरमय उपाय और अिभाय को दर फ क दो जो आपको पिरि छनन रखत ह | सब वासनाए राग ह | यि गत या शरीरगत म आसि ह | उस फ क दो | ःवय पिवऽ हो जाओ | आपका शरीर ःवःथ और बि पणरःवरप हो जायगी | 181) यिद ससार क सख व पदाथर ा ह तो आपको कहना चािहय ओ शतान हट जा मर सामन स | तर हाथ स मझ कछ नही चािहय | तब दखो िक आप कस सखी हो जात हो परमातमा-ा िकसी महापरष पर िव ास रखकर अपनी जीवनडोरी िनःशक बन उनक चरण म सदा क िलय रख दो | िनभरयता आपक चरण की दासी बन जायगी | 182) िजसन एक बार ठ क स जान िलया िक जगत िमथया ह और ािनत स इसकी तीित

हो रही ह उसको कभी दःख नही होता | जगत म कभी आसि नही होती | जगत क िमथयातव क

िन य का नाम ही जगत का नाश ह | 183) अपन ःवरप म लीन होन माऽ स आप ससार क साट बन जायग | यह साटपद

कवल इस ससार का ही नही समःत लोक-परलोक का साटपद होगा | 184) ह जनक चाह दवािधदव महादव आकर आपको उपदश द या भगवान िवण आकर उपदश द अथवा ाजी आकर उपदश द लिकन आपको कदािप सख न होगा | जब िवषय का तयाग करोग तभी स ची शाित व आनद ा ह ग |

185) िजस भ न हम मानव जीवन दकर ःवाधीनता दी िक हम जब चाह तब धमारतमा होकर भ होकर जीवनम होकर कतकतय हो सकत ह- उस भ की मिहमा गाओ | गाओ नही तो सनो | सनो भी नही गाओ भी नही तो ःवीकार कर लो | 186) चाह समि क गहर तल म जाना पड़ सा ात मतय का मकाबला करना पड़ अपन

आतमाि क उ य की पितर क िलय अिडग रहो | उठो साहसी बनो शि मान बनो | आपको जो बल व सहायता चािहय वह आपक भीतर ही ह | 187) जब-जब जीवन स बनधी शोक और िचनता घरन लग तब-तब अपन आननदःवरप

का गान करत-करत उस मोह-माया को भगा दो | 188) जब शरीर म कोई पीड़ा या अग म ज म हो तब म आकाशवत आकाशरिहत चतन

ह ऐसा ढ़ िन य करक पीड़ा को भल जाओ | 189) जब दिनया क िकसी चककर म फस जाओ तब म िनलप िनतय म ह ऐसा ढ़

िन य करक उस चककर स िनकल जाओ | 190) जब घर-बार स बनधी कोई किठन समःया याकल कर तब उस मदारी का खल

समझकर ःवय को िनःसग जानकर उस बोझ को ह का कर दो | 191) जब बोध क आवश म आकर कोई अपमानय वचन कह तब अपन शाितमय

ःवरप म िःथर होकर मन म िकसी भी ोभ को पदा न होन दो | 192) उ म अिधकारी िज ास को चािहय िक वह व ा सदगर क पास जाकर ौ ा पवरक महावाकय सन | उसका मनन व िनिदधयासन करक अपन आतमःवरप को जान | जब

आतमःवरप का सा ातकार होता ह तब ही परम िवौािनत िमल सकती ह अनयथा नही | जब तक

व ा महापरष स महावाकय ा न हो तब तक वह मनद अिधकारी ह | वह अपन दयकमल म परमातमा का धयान कर ःमरण कर जप कर | इस धयान-जपािद क साद स उस व ा सदगर

ा ह ग | 193) मन बि िच अहकार छाया की तरह जड़ ह णभगर ह कय िक व उतपनन होत

ह और लीन भी हो जात ह | िजस चतनय की छाया उसम पड़ती ह वह परम चतनय सबका आतमा ह | मन बि िच अहकार का अभाव हो जाता ह लिकन उसका अनभव करनवाल का अभाव

कदािप नही होता |

194) आप अपनी शि को उ चाितउ च िवषय की ओर बहन दो | इसस आपक पास व

बात सोचन का समय ही नही िमलगा िजसस कामकता की गध आती हो | 195) अपराध क अनक नाम ह बालहतया नरहतया मातहतया गौहतया इतयािद |

परनत तयक ाणी म ई र का अनभव न करक आप ई रहतया का सबस बड़ा अपराध करत ह | 196) सवा करन की ःवाधीनता मनयमाऽ को ा ह | अगर वह करना ही न चाह तो अलग बात ह | सवा का अथर ह मन-वाणी-कमर स बराईरिहत हो जाना यह िव की सवा हो गई |

यथाशि भलाई कर दो यह समाज की सवा हो गई | भलाई का फल छोड़ दो यह अपनी सवा हो गई

| भ को अपना मानकर ःमित और म जगा लो यह भ की सवा हो गई | इस कार मनय

अपनी सवा भी कर सकता ह समाज की सवा भी कर सकता ह िव की सवा भी कर सकता ह

और िव र की सवा भी कर सकता ह | 197) आतमा स बाहर मत भटको अपन कनि म िःथर रहो अनयथा िगर पड़ोग | अपन-

आपम पणर िव ास रखो | आतम-कनि पर अचल रहो | िफर कोई भी चीज आपको िवचिलत नही कर सकती | 198) सदा शात िनिवरकार और सम रहो | जगत को खलमाऽ समझो | जगत स भािवत

मत हो | इसस आप हमशा सखी रहोग | िफर कछ बढ़ान की इ छा नही होगी और कछ कम होन स

दःख नही होगा | 199) समथर सदगर क सम सदा फल क भाित िखल हए रहो | इसस उनक अनदर सक प

होगा िक यह तो बहत उतसाही साधक ह सदा सनन रहता ह | उनक सामथयरवान सक प स

आपकी वह किऽम सननता भी वाःतिवक सननता म बदल जायगी | 200) यिद रोग को भी ई र का िदया मानो तो ार ध-भोग भी हो जाता ह और क तप का फल दता ह | इसस ई र-कपा की ाि होती ह | याकल मत हो | क सल और इनजकशन

आधीन मत हो | 201) साधक को चािहय िक अपन लआय को ि म रखकर साधना-पथ पर तीर की तरह

सीधा चला जाय | न इधर दख न उधर | ि यिद इधर-उधर जाती हो तो समझना िक िन ा िःथर नही ह |

202) आपन अपन जीवन म हजार ःव न दख ह ग लिकन व आपक जीवन क अश नही बन जात | इसी कार य जामत जगत क आड बर आपकी आतमा क सम कोई मह व नही रखत | 203) एक आतमा को ही जानो अनय बात को छोड़ो | धीर साधक को चािहय िक वह

सावधान होकर आतमिन ा बढ़ाय अनक श द का िचनतन व भाषण न कर कय िक वह तो कवल

मन-वाणी को पिरौम दनवाला ह असली साधना नही ह | 204) जो परष जन-समह स ऐस डर जस साप स डरता ह स मान स ऐस डर जस नकर स

डरता ह ि य स ऐस डर जस मद स डरता ह उस परष को दवतागण ा ण मानत ह | 205) जस अपन शरीर क अग पर बोध नही आता वस शऽ िमऽ व अपनी दह म एक ही आतमा को दखनवाल िववकी परष को कदािप बोध नही आता | 206) मन तो शरीर को ई रापरण कर िदया ह | अब उसकी भख- यास स मझ कया

समिपरत वःत म आस होना महा पाप ह | 207) आप यिद िद य ि पाना चहत हो तो आपको इिनिय क ऽ का तयाग करना होगा | 208) लयकाल क मघ की गजरना हो समि उमड़ पड बारह सयर तपायमान हो जाय पहाड़ स पहाड़ टकरा कर भयानक आवाज हो तो भी ानी क िन य म त नही भासता कय िक

त ह ही नही | त तो अ ानी को भासता ह | 209) सतय को ःवीकार करन स शाित िमलगी | कछ लोग यो यता क आधार पर शाित

खरीदना चाहत ह | यो यता स शाित नही िमलगी यो यता क सदपयोग स शाित िमलगी | कछ

लोग स पि क आधार पर शाित सरि त रखना चाहत ह | स पि स शाित नही िमलगी स पि

क सदपयोग स शाित िमलगी वस ही िवपि क सदपयोग स शाित िमलगी | 210) त छ हािन-लाभ पर आपका धयान इतना कय रहता ह िजसस अनत आननदःवरप

आतमा पर स धयान हट जाता ह | 211) अपन अनदर ही आननद ा करना य िप किठन ह परनत बा िवषय स आननद

ा करना तो अस भव ही ह |

212) म ससार का काश ह | काश क रप म म ही सब वःतओ म या ह | िनतय इन

िवचार का िचनतन करत रहो | य पिवऽ िवचार आपको परम पिवऽ बना दग | 213) जो वःत कमर स ा होती ह उसक िलय ससार की सहायता तथा भिवय की आशा की आवयकता होती ह परनत जो वःत तयाग स ा होती ह उसक िलय न ससार की सहायता चािहय न भिवय की आशा | 214) आपको जब तक बाहर चोर िदखता ह तब तक जरर भीतर चोर ह | जब दसर लोग

स िभनन अयो य खराब सधारन यो य िदखत ह तब तक ओ सधार का बीड़ा उठान वाल त अपनी िचिकतसा कर | 215) सफल व ही होत ह जो सदव नतमःतक एव सननमख रहत ह | िचनतातर-शोकातर लोग की उननित नही हो सकती | तयक कायर को िह मत व शाित स करो | िफर दखो िक यह

कायर शरीर मन और बि स हआ | म उन सबको स ा दनवाला चतनयःवरप ह | ॐ ॐ का पावन गान करो | 216) िकसी भी पिरिःथित म मन को यिथत न होन दो | आतमा पर िव ास करक

आतमिन बन जाओ | िनभरयता आपकी दासी बन कर रहगी | 217) सतसग स मनय को साधना ा होती ह चाह वह शाित क रप म हो चाह मि क

रप म चाह सवा क रप म हो म क रप म हो चाह तयाग क रप म हो | 218) भला-बरा वही दखता ह िजसक अनदर भला-बरा ह | दसर क शरीर को वही दखता ह

जो खद को शरीर मानता ह | 219) खबरदार आपन यिद अपन शरीर क िलय ऐश-आराम की इ छा की िवलािसता एव इिनिय-सख म अपना समय बरबाद िकया तो आपकी खर नही | ठ क स कायर करत रहन की नीित

अपनाओ | सफलता का पहला िस ात ह कायरिवौामरिहत कायरसा ी भाव स कायर | इस

िस ात को जीवन म चिरताथर करोग तो पता चलगा िक छोटा होना िजतना सरल ह उतना ही बड़ा होना भी सहज ह | 220) भतकाल पर िखनन हए िबना भिवय की िचनता िकय िबना व रमान म कायर करो | यह भाव आपको हर अवःथा म सनन रखगा हम जो कछ ा ह उसका सदपयोग ही अिधक

काश पान का साधन ह |

221) जब आप सफलता की ओर पीठ कर लत हो पिरणाम की िचनता का तयाग कर दत

हो स मख आय हए क र य पर अपनी उ ोगशि एकाम करत हो तब सफलता आपक पीछ-पीछ

आ जाती ह | अतः सफलता आपको खोजगी | 222) वि तब तक एकाम नही होगी जब तक मन म कभी एक आशा रहगी तो कभी दसरी | शात वही हो सकता ह िजस कोई क र य या आवयकता घसीट न रही हो | अतः परम शाित पान

क िलय जीवन की आशा भी तयाग कर मन ाननद म डबो दो | आज स समझ लो िक यह शरीर ह ही नही | कवल ाननद का सागर लहरा रहा ह | 223) िजसकी पककी िन ा ह िक म आतमा हrsquo उसक िलय ऐसी कौन सी मिथ ह जो खल

न सक ऐसी कोई ताकत नही जो उसक िवर जा सक | 224) मर भा य म नही थाई र की मज आजकल सतसग ा नही होताजगत

खराब ह ऐस वचन हमारी कायरता व अनतःकरण की मिलनता क कारण िनकलत ह | अतः नकारातमक ःवभाव और दसर पर दोषारोपण करन की वि स बचो | 225) आप जब भीतरवाल स नाराज होत हो तब जगत आपस नाराज रहता ह | जब आप

भीतर अनतयारमी बन बठ तो जगतरपी पतलीघर म िफर गड़बड़ कसी 226) िजस ण हम ससार क सधारक बन खड़ होत ह उसी ण हम ससार को िबगाड़नवाल बन जात ह | श परमातमा को दखन क बजाय जगत को िबगड़ा हआ दखन की ि बनती ह | सधारक लोग मानत ह िक lsquoभगवान न जो जगत बनाया ह वह िबगड़ा हआ ह और हम उस सधार रह ह |rsquo वाह वाह धनयवाद सधारक अपन िदल को सधारो पहल | सवरऽ िनरजन का दीदार करो | तब आपकी उपिःथित माऽ स आपकी ि माऽ स अर यार आपको छकर बहती हवा माऽ स अननत जीव को शाित िमलगी और अननत सधार होगा | नानक कबीर महावीर ब और लीलाशाह बाप जस महापरष न यही कजी अपनायी थी | 227) वदानत म हमशा कमर का अथर होता ह वाःतिवक आतमा क साथ एक होकर च ा करना अिखल िव क साथ एकःवर हो जाना | उस अि तीय परम ततव क साथ िनःःवाथर सयोग ा करना ही एकमाऽ स चा कमर ह बाकी सब बोझ की गठिरया उठाना ह |

228) अपनी व रमान अवःथा चाह कसी भी हो उसको सव च मानन स ही आपक दय म आतम ान ान का अनायास उदय होन लगगा | आतम-सा ातकार को मील दर की कोई चीज समझकर उसक पीछ दौड़ना नही ह िचिनतत होना नही ह |

िचनता की गठरी उठाकर यिथत होन की जररत नही ह | िजस ण आप िनि नतता म गोता मारोग उसी ण आपका आतमःवरप गट हो जायगा | अर गट कया होगा आप ःवय आतमःवरप हो ही | अनातमा को छोड़ दो तो आतमःवरप तो हो ही | 229) सदा ॐकार का गान करो | जब भय व िचनता क िवचार आय तब िकसी मःत सत-फकीर महातमा क सािननधय का ःमरण करो | जब िननदा-शसा क सग आय तब महापरष क जीवन का अवलोकन करो | 230) िजनको आप भयानक घटनाए एव भयकर आघात समझ बठ हो वाःतव म व आपक ियतम आतमदव की ही करतत ह | समःत भयजनक तथा ाणनाशक घटनाओ क नाम-रप तो िवष क ह लिकन व बनी ह अमत स | 231) मन म यिद भय न हो तो बाहर चाह कसी भी भय की साममी उपिःथत हो जाय आपका कछ िबगाड़ नही सकती | मन म यिद भय होगा तो तरनत बाहर भी भयजनक पिरिःथया न होत हए भी उपिःथत हो जायगी | व क तन म भी भत िदखन लगगा | 232) िकसी भी पिरिःथित म िदखती हई कठोरता व भयानकता स भयभीत नही होना चािहए | क क काल बादल क पीछ पणर काशमय एकरस परम स ा सयर की तरह सदा िव मान ह | 233) आप अपन पर कदािप अिव ास मत करो | इस जगत म आप सब कछ कर सकत हो | अपन को कभी दबरल मत मानो | आपक अनदर तमाम शि या छपी हई ह | 234) यिद कोई मन य आपकी कोई चीज़ को चरा लता ह तो ड़रत कय हो वह मनय

और आप एक ह | िजस चीज़ को वह चराता ह वह चीज़ आपकी और उसकी द न की ह | 235) जो खद क िसवाय दसरा कछ दखता नही सनता नही जानता नही वह अननत ह |

जब तक खद क िसवाय और िकसी वःत का भान होता ह वह वःत स ची लगती ह तब तक आप

सीिमत व शात ह असीम और अनत नही |

236) ससार मझ कया आनद द सकता ह स पणर आनद मर भीतर स आया ह | म ही स पणर आननद ह स पणर मिहमा एव स पणर सख ह | 237) जीवन की समःत आवयकताए जीवन म उपिःथत ह परनत जीवन को जब हम

बा रग म रग दत ह तब जीवन का वाःतिवक रप हम नही जान पात | 238) िननदक की िननदा स म कय मरझाऊ शसक की शसा स म कय फल िननदा स म घटता नही और शसा स म बढ़ता नही | जसा ह वसा ही रहता ह | िफर िननदा-ःतित स

खटक कसी 239) ससार व ससार की समःयाओ म जो सबस अिधक फस हए ह उनही को वदानत की सबस अिधक आवयकता ह | बीमार को ही औषिध की यादा आवयकता ह | कय जी ठ क ह न 240) जगत क पाप व अतयाचार की बात मत करो लिकन अब भी आपको जगत म पाप

िदखता ह इसिलय रोओ | 241) हम यिद जान ल िक जगत म आतमा क िसवाय दसरा कछ ह ही नही और जो कछ

िदखता ह वह ःव नमाऽ ह तो इस जगत क दःख-दािरिय पाप-प य कछ भी हम अशात नही कर सकत | 242) िव ान दाशरिनक व आचाय की धमकी तथा अनमह आलोचना या अनमित

ानी पर कोई भाव नही ड़ाल सकती | 243) ह यि रप अननत आप अपन पर पर खड़ रहन का साहस करो समःत िव का बोझ आप िखलौन की तरह उठा लोग | 244) िसह की गजरना व नरिसह की ललकार तलवार की धार व साप की फफकार तपःवी की धमकी व नयायधीश की फटकारइन सबम आपका ही काश चमक रहा ह | आप इनस

भयभीत कय होत हो उलझन कय महसस करत हो मरी िब ली मझको याऊ वाली बात कय

होन दत हो 245) ससार हमारा िसफ़र िखलोना ही ह और कछ नही | अबोध बालक ही िखलौन स

भयभीत होता ह आसि करता ह िवचारशील यि नही |

246) जब तक अिव ा दर नही होगी तब तक चोरी जआ दार यिभचार कभी बद न

ह ग चाह लाख कोिशश करो | 247) आप हमशा अदर का धयान रखो | पहल हमारा भीतरी पतन होता ह | बा पतन तो इसका पिरणाम माऽ ह | 248) तयाग स हमशा आनद िमलता ह | जब तक आपक पास एक भी चीज़ बाकी ह तब

तक आप उस चीज़ क बधन म बध रहोग | आघात व तयाघात हमशा समान िवरोधी होत ह | 249) िनि तता ही आरो यता की सबस बड़ी दवाई ह | 250) सख अपन िसर पर दख का मकट पहन कर आता ह | जो सख को अपनायगा उस

दख को भी ःवीकार करना पड़गा | 251) म (आतमा) सबका ा ह | मरा ा कोई नही | 252) हजार म स कोई एक परष भीतर स शात िच वाला रहकर बाहर स ससारी जसा यवहार कर सकता ह | 253) सतय क िलए यिद शरीर का तयाग करना पड़ तो कर दना | यही आिखरी ममता ह जो हम तोड़नी होगी | 254) भय िचनता बचनी स ऊपर उठो | आपको ान का अनभव होगा | 255) आपको कोई भी हािन नही पहचा सकता | कवल आपक खयालात ही आपक पीछ पड़ ह | 256) म का अथर ह अपन पड़ोसी तथा सपकर म आनवाल क साथ अपनी वाःतिवक अभदता का अनभव करना | 257) ओ यार अपन खोय हए आतमा को एक बार खोज लो | धरती व आसमान क शासक आप ही हो | 258) सदव सम और सनन रहना ई र की सव पिर भि ह |

259) जब तक िच म ढ़ता न आ जाय िक शा की िविधय का पालन छोड़ दन स भी दय का यथाथर भि भाव न नही होगा तब तक शा की िविधय को पालत रहो |

गर भि एक अमोघ साधना 1 जनम मरण क िवषचब स म होन का कोई मागर नही ह कया सख-दःख हषर-शोक लाभ-

हािन मान-अपमान की थ पड़ स बचन का कोई उपाय नही ह कया

हअवय ह | ह िय आतमन नाशवान पदाथ स अपना मन वािपस लाकर सदगर क

चरणकमल म लगाओ | गरभि योग का आौय लो | गरसवा ऐसा अमोघ साधन ह िजसस

व रमान जीवन आननदमय बनता ह और शा त सख क ार खलत ह |

गर सवत त नर धनय यहा | ितनक नही दःख यहा न वहा || 2 स च सदगर की की हई भि िशय म सासािरक पदाथ क वरा य एव अनासि जगाती ह

परमातमा क ित म क पप महकाती ह | 3 तयक िशय सदगर की सवा करना चाहता ह लिकन अपन ढग स | सदगर चाह उस ढग स

सवा करन को कोई ततपर नही | जो िवरला साधक गर चाह उस ढ़ग स सवा कर सकता ह उस कोई कमी नही रहती |

िन सदगर की सवा स उनकी कपा ा होती ह और उस कपा स न िमल सक ऐसा तीन लोक म कछ भी नही ह | 4 गर िशय का स बनध पिवऽतम स बनध ह | ससार क तमाम बनधन स छड़ाकर वह मि क मागर पर ःथान कराता ह | यह स बनध जीवनपयरनत का स बनध ह | यह बात अपन दय की डायरी म सवणर-अ र स िलख लो | 5 उ ल सयर क काश क अिःततव को मान या न मान िफर भी सयर हमशा काशता ह | चचल मन का मनय मान या न मान लिकन सदगर की परमक याणकारी कपा सदव बरसती ही रहती ह | 6 सदगर की चरणरज म ःनान िकय िबना कवल किठन तप यार करन स या वद का

अधयन करन स वदानत का रहःय कट नही होता आतमानद का अमत नही िमलता | 7 दशरन शा क चाह िकतन मनथ पढ़ो हजार वष तक िहमालय की गफा म तप करो वष तक ाणायाम करो जीवनपयरनत शीषारसन करो समम िव म वास करक याखान दो िफर भी सदगर की कपा क िबना आतम ान नही होता | अतः िनरािभमानी सरल िनजाननद म मःत दयाल ःवभाव क आतम-सा ातकारी सदगर क चरण म जाओ | जीवन को धनय बनाओ | 8 सदगर की सवा िकय िबना शा का अधयन करना मम साधक क िलय समय बरबाद करन क बराबर ह | 9 िजसको सदगर ा हए ह ऐस िशय क िलय इस िव म कछ भी अा य नही ह | सदगर िशय को िमली हई परमातमा की अम य भट ह | अर नहीhellipनही व तो िशय क सम साकार रप म कट हए परमातमा ःवय ह | 10 सदगर क साथ एक ण िकया हआ सतसग लाख वष क तप स अननत गना ौ ह | आख क िनमषमाऽ म सदगर की अमतवष ि िशय क जनम-जनम क पाप को जला सकती ह | 11 सदगर जसा मपणर कपाल िहतिचनतक िव भर म दसरा कोई नही ह | 12 बाढ़ क समय याऽी यिद तफानी नदी को िबना नाव क पार कर सक तो साधक भी िबना सदगर क अपन जीवन क आिखरी लआय को िस कर सकता ह | यानी य दोन बात स भव ह |

अतः यार साधक मनमखी साधना की िज करना छोड़ दो | गरमखी साधना करन म ही सार ह | 13 सदगर क चरणकमल का आौय लन स िजस आननद का अनभव होता ह उसक आग िऽलोकी का साा य त छ ह | 14 आतम-सा ातकार क मागर म सबस महान शऽ अहभाव का नाश करन क िलए सदगर की आ ा का पालन अमोघ श ह | 15 रसोई सीखन क िलय कोई िसखानवाला चािहय िव ान और गिणत सीखन क िलय

अधयापक चािहय तो कया िव ा सदगर क िबना ही सीख लोग 16 सदगरकपा की स पि जसा दसरा कोई खजाना िव भर म नही | 17 सदगर की आ ा का उ लघन करना यह अपनी क खोदन क बराबर ह | 18 सदगर क कायर को शका की ि स दखना महापातक ह | 19 गरभि व गरसवा - य साधनारपी नौका की दो पतवार ह | उनकी मदद स िशय ससारसागर को पार कर सकता ह | 20 सदगर की कसौटी करना असभव ह | एक िववकाननद ही दसर िववकाननद को पहचान सकत ह | ब को जानन क िलय दसर ब की आवयकता रहती ह | एक रामतीथर का रहःय दसर रामतीथर ही पा सकत ह |

अतः सदगर की कसौटी करन की च ा छोड़कर उनको पिरपणर पर परमातमा मानो |

तभी जीवन म वाःतिवक लाभ होगा | 21 गरभि योग का आौय लकर आप अपनी खोई हई िद यता को पनः ा करो सख-दःख जनम-मतय आिद सब न स पार हो जाओ | 22 गरभि योग मान गर की सवा क ारा मन और िवकार पर िनयऽण एव पनः सःकरण | 23 िशय अपन गर क चरणकमल म णाम करता ह | उन पर ौ फल की वषार करक उनकी ःतित करता ह ldquoह परम प य पिवऽ गरदव मझ सव च सख ा हआ ह | म िन ा स जनम-मतय की पर परा स म हआ ह | म िनिवरक प समािध का श सख भोग रहा ह | जगत क िकसी भी कोन म म म ता स िवचरण कर सकता ह | सब पर मरी सम ि ह | मन ाकत मन का तयाग िकया ह | मन सब सक प एव रिच-अरिच का तयाग िकया ह | अब म अख ड शाित म िवौाित पा रहा ह hellip आननदमय हो रहा ह | म इस पणर अवःथा का वणरन नही कर पाता | ह प य गरदव म आवाक बन गया ह | इस दःतर भवसागर को पार करन म आपन

मझ सहायता की ह | अब तक मझ कवल अपन शरीर म ही स पणर िव ास था | मन िविभनन योिनय म अस य जनम िलय | ऐसी सव च िनभरय अवःथा मझ कौन स पिवऽ कम क कारण ा हई ह यह म नही जानता | सचमच यह एक दलरभ भा य ह |

यह एक महान उतक लाभ ह | अब म आननद स नाचता ह | मर सब दःख न हो गय | मर सब मनोरथ पणर हए ह |

मर कायर स पनन हए ह | मन सब वािछत वःतए ा की ह | मरी इ छा पिरपणर हई ह | आप मर स च माता-िपता हो | मरी व रमान िःथित म म दसर क सम िकस कार कट कर सक सवरऽ सख और आननद का अननत सागर मझ लहराता हआ िदख रहा ह | मर अतःच िजसस खल गय वह महावाकय lsquoत वमिसrsquo ह | उपिनषद एव वदानतसऽ को भी धनयवाद | िजनह न िन गर का एव उपिनषद क महावाकय का रप धारण िकया ह | ऐस ौी यासजी को णाम ौी शकराचायर को णाम सासािरक मनय क िसर पर गर क चरणामत का एक िबनद भी िगर तो भी उसक ःब दःख का नाश होता ह | यिद एक िन परष को व पहनाय जाय तो सार िव को व पहनान एव भोजन करवान क बराबर ह कय िक िन परष सचराचर िव म या ह | सबम व ही ह |rdquo

ॐhellip ॐ hellip ॐ hellip

ःवामी िशवानद जी

ौी राम-विश सवाद ौी विश जी कहत ह ldquoह रघकलभषण ौी राम अनथर ःवरप िजतन सासािरक पदाथर ह व सब जल म तरग क समान िविवध रप धारण करक चमतकार उतपनन करत ह अथारत ई छाए उतपनन करक जीव को मोह म फसात ह | परत जस सभी तरग जल ःवरप ही ह उसी कार सभी पदाथर वःततः न र ःवभाव वाल ह |

बालक की क पना स आकाश म य और िपशाच िदखन लगत ह परनत बि मान मनय क िलए उन य और िपशाच का कोई अथर नही | इसी कार अ ानी क िच म यह जगत सतय हो ऐसा लगता ह जबिक हमार जस ािनय क िलय यह जगत कछ भी नही | यह समम िव पतथर पर बनी हई पतिलय की सना की तरह रपालोक तथा अतर-बा िवषय स शनय ह | इसम सतयता कसी परनत अ ािनय को यह िव सतय लगता ह |rdquo विश जी बोल ldquoौी राम जगत को सतय ःवरप म जानना यह ाित ह मढ़ता ह | उस िमथया अथारत कि पत समझना यही उिचत समझ ह | ह राघव तव ा अहता आिद सब िवम-िवलास शात िशवःवरप श ःवरप ही ह | इसिलय मझ तो क अितिर और कछ भी नही िदखता | आकाश म जस जगल नही वस ही म जगत नही ह | ह राम ार ध वश ा कम स िजस परष की च ा कठपतली की तरह ई छाशनय और याकलतारिहत होती ह वह शानत मनवाला परष जीवनम मिन ह | ऐस जीवनम ानी को इस

जगत का जीवन बास की तरह बाहर-भीतर स शनय रसहीन और वासना-रिहत लगता ह | इस य पच म िजस रिच नही दय म िचनमाऽ अ य ही अ छा लगता ह ऐस परष न

भीतर तथा बाहर शािनत ा कर ली ह और इस भवसागर स पार हो गया ह | रघनदन श व ा कहत ह िक मन का ई छारिहत होना यही समािध ह कय िक ई छाओ का तयाग करन स मन को जसी शािनत िमलती ह ऐसी शािनत सकड़ उपदश स भी नही िमलती | ई छा की उतपि स जसा दःख ा होता ह ऐसा दःख तो नरक म भी नही | ई छाओ की शािनत

स जसा सख होता ह ऐसा सख ःवगर तो कया लोक म भी नही होता | अतः समःत शा तपःया यम और िनयम का िनचोड़ यही ह िक ई छामाऽ दःखदायी ह और ई छा का शमन मो ह | ाणी क दय म जसी-जसी और िजतनी-िजतनी ई छाय उतपनन होती ह उतना ही दख स वह

ड़रता रहता ह | िववक-िवचार ारा ई छाय जस-जस शानत होती जाती ह वस-वस दखरपी छत की बीमारी िमटती जाती ह |

आसि क कारण सासािरक िवषय की ई छाय य - य गहनीभत होती जाती ह तय -तय

दःख की िवषली तरग बढ़ती जाती ह | अपन परषाथर क बल स इस ई छारपी यािध का उपचार यिद नही िकया जाय तो इस यािध स छटन क िलय अनय कोई औषिध नही ह ऐसा म ढ़तापवरक

मानता ह | एक साथ सभी ई छाओ का स पणर तयाग ना हो सक तो थोड़ी-थोड़ी ई छाओ का धीर-धीर तयाग

करना चािहय परत रहना चािहय ई छा क तयाग म रत कय िक सनमागर का पिथक दखी नही होता | जो नराधम अपनी वासना और अहकार को ीण करन का य नही करता वह िदन -िदन अपन

को रावण की तरह अधर कऐ म ढ़कल रहा ह | ई छा ही दख की जनमदाऽी इस ससाररपी बल का बीज ह | यिद इस बीज को आतम ानरपी अि न स ठ क-ठ क जला िदया तो पनः यह अकिरत नही होता | रघकलभषण राम ई छामाऽ ससार ह और ई छाओ का अभाव ही िनवारण ह | अतः अनक कार की माथाप ची म ना पड़कर कवल ऐसा य करना चािहय िक ई छा उतपनन ना हो | अपनी बि स ई छा का िवनाश करन को जो ततपर नही ऐस अभाग को शा और गर का उपदश

भी कया करगा जस अपनी जनमभमी जगल म िहरणी की मतय िनि त ह उसी कार अनकिवध दख का िवःतार कारनवाल ई छारपी िवषय-िवकार स य इस जगत म मनय की मतय िनि त ह | यिद मानव ई छाओ क कारण ब च -सा मढ़ ना बन तो उस आतम ान क िलय अ प य ही करना पड़ | इसिलय सभी कार स ई छाओ को शानत करना चािहय | ई छा क शमन स परम पद की ाि होती ह | ई छारिहत हो जाना यही िनवारण ह और ई छाय

होना ही बधन ह | अतः यथाशि ई छा को जीतना चािहय | भला इतना करन म कया किठनाई ह जनम जरा यािध और मतयरपी कटीली झािड़य और खर क व - समह की जड़ भी ई छा ही ह

| अतः शमरपी अि न स अदर-ही-अदर बीज को जला ड़ालना चािहय| जहा ई छाओ का अभाव ह

वहा मि िनि त ह |

िववक वरा य आिद साधन स ई छा का सवरथा िवनाश करना चािहय | ई छा का सबध जहा-जहा ह वहा-वहा पाप प य दखरािशया और ल बी पीड़ाओ स य बधन को हािज़र ही समझो | परष

की आतिरक ई छा य - य शानत होती जाती ह तय -तय मो क िलय उसका क याणकारक

साधन बढ़ता जाता ह | िववकहीन ई छा को पोसना उस पणर करना यह तो ससाररपी िवष व को पानी स सीचन क समान ह |rdquo

- ौीयोगविश महारामायण

आतमबल का आवाहन कया आप अपन-आपको दबरल मानत हो लघतामथी म उलझ कर पिरिःतिथय स िपस रह हो

अपना जीवन दीन-हीन बना बठ हो hellipतो अपन भीतर सष आतमबल को जगाओ | शरीर चाह ी का हो चाह परष का कित क साा य म जो जीत ह व सब ी ह और कित क बनधन स पार अपन ःवरप की पहचान िजनह न कर ली ह अपन मन की गलामी की बिड़या तोड़कर िजनह न फ क दी ह व परष ह | ी या परष शरीर एव मानयताए होती ह | तम तो तन-मन स पार िनमरल आतमा हो | जागोhellipउठोhellipअपन भीतर सोय हय िन यबल को जगाओ | सवरदश सवरकाल म सव म

आतमबल को िवकिसत करो | आतमा म अथाह सामथयर ह | अपन को दीन-हीन मान बठ तो िव म ऐसी कोई स ा नही जो त ह ऊपर उठा सक | अपन आतमःवरप म िति त हो गय तो िऽलोकी म ऐसी कोई हःती नही जो त ह दबा सक | भौितक जगत म वाप की शि ईलकशोिनक शि िव त की शि गरतवाकषरण की शि बड़ी मानी जाती ह लिकन आतमबल उन सब शि य का सचालक बल ह | आतमबल क सािननधय म आकर पग ार ध को पर िमल जात ह दव की दीनता पलायन हो जाती ह ितकल पिरिःतिथया अनकल हो जाती ह | आतमबल सवर िरि -िसि य का िपता ह |

आतमबल कस जगाय हररोज़ तःकाल ज दी उठकर सय दय स पवर ःनानािद स िनवत हो जाओ | ःव छ पिवऽ ःथान

म आसन िबछाकर पवारिभमख होकर प ासन या सखासन म बठ जाओ | शानत और सनन वि

धारण करो | मन म ढ भावना करो िक म कित-िनिमरत इस शरीर क सब अभाव को पार करक सब

मिलनताओ-दबरलताओ स िप ड़ छड़ाकर आतमा की मिहमा म जागकर ही रहगा |

आख आधी खली आधी बद रखो | अब फ़फ़ड़ म खब ास भरो और भावना करो की ास क साथ

म सयर का िद य ओज भीतर भर रहा ह | ास को यथाशि अनदर िटकाय रखो | िफ़र lsquoॐhelliprsquo का ल बा उ चारण करत हए ास को धीर-धीर छोड़त जाओ | ास क खाली होन क बाद तरत ास ना लो | यथाशि िबना ास रहो और भीतर ही भीतर lsquoहिर ॐhelliprsquo lsquoहिर ॐhelliprsquo का मानिसक

जाप करो | िफ़र स फ़फ़ड़ म ास भरो | पव रीित स ास यथाशि अनदर िटकाकर बाद म धीर-धीर छोड़त हए lsquoॐhelliprsquo का गजन करो | दस-पिह िमनट ऐस ाणायाम सिहत उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo की धविन करक शानत हो जाओ | सब

यास छोड़ दो | वि य को आकाश की ओर फ़लन दो | आकाश क अनदर पथवी ह | पथवी पर अनक दश अनक समि एव अनक लोग ह | उनम स एक

आपका शरीर आसन पर बठा हआ ह | इस पर य को आप मानिसक आख स भावना स दखत

रहो | आप शरीर नही हो बि क अनक शरीर दश सागर पथवी मह न ऽ सयर चनि एव पर ा ड़ क

ा हो सा ी हो | इस सा ी भाव म जाग जाओ | थोड़ी दर क बाद िफ़र स ाणायाम सिहत lsquoॐhelliprsquo का जाप करो और शानत होकर अपन िवचार को दखत रहो | इस अवःथा म ढ़ िन य करो िक lsquoम जसा चहता ह वसा होकर रहगा |rsquo िवषयसख स ा धन-

दौलत इतयािद की इ छा न करो कय िक िन यबल या आतमबलरपी हाथी क पदिच म और सभी क पदिच समािव हो ही जायग | आतमानदरपी सयर क उदय होन क बाद िम टी क तल क दीय क ाकाश रपी शि सखाभास की गलामी कौन कर

िकसी भी भावना को साकार करन क िलय दय को करद ड़ाल ऐसी िन यातमक बिल वि होनी आवशयक ह | अनतःकरण क गहर-स-गहर दश म चोट कर ऐसा ाण भरक िन बल का आवाहन करो | सीना तानकर खड़ हो जाओ अपन मन की दीन-हीन दखद मानयताओ को कचल

ड़ालन क िलय | सदा ःमरण रह की इधर-उधर भटकती वि य क साथ त हारी शि भी िबखरती रहती ह | अतः वि य को बहकाओ नही | तमाम वि य को एकिऽत करक साधनाकाल म आतमिचनतन म लगाओ और यवहारकाल म जो कायर करत हो उसम लगाओ | द िच होकर हरक कायर करो | अपन ःवभाव म स आवश को सवरथा िनमरल कर दो | आवश म आकर कोई िनणरय मत लो कोई िबया मत करो | सदा शानत वि धारण करन का अ यास करो | िवचारशील एव सनन रहो | ःवय अचल रहकर सागर की तरह सब वि य की तरग को अपन

भीतर समालो | जीवमाऽ को अपना ःवरप समझो | सबस ःनह रखो | िदल को यापक रखो | सकिच ता का िनवारण करत रहो | ख ड़ातमक वि का सवरथा तयाग करो | िजनको ानी महापरष का सतसग और अधयातमिव ा का लाभ िमल जाता ह उसक जीवन स

दःख िवदा होन लगत ह | ॐ आननद आतमिन ा म जाग हए महापरष क सतसग एव सतसािहतय स जीवन को भि और वदात स प

एव पलिकत करो | कछ ही िदन क इस सघन योग क बाद अनभव होन लगगा िक भतकाल क

नकारतमक ःवभाव सशयातमक-हािनकारक क पनाओ न जीवन को कचल ड़ाला था िवषला कर िदया था | अब िन यबल क चमतकार का पता चला | अततरम म आिवरभत िद य खज़ाना अब

िमला | ार ध की बिड़या अब टटन लगी | ठ क ह न करोग ना िह मत पढ़कर रख मत दना इस पिःतका को | जीवन म इसको बार-बार पढ़त रहो | एक िदन म यह पणर ना होगा | बार-बार अ यास करो | त हार िलय यह एक ही पिःतका काफ़ी ह | अनय कचराप टी ना पड़ोग तो चलगा | शाबाश वीर शाबाश

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रहःय ह | 143) ई र सा ातकार तभी होगा जब ससार की ि स तीत होन वाल बड़-स-बड़ विरय को भी मा करन का आपका ःवभाव बन जायगा | 144) चाल यवहार म स एकदम उपराम होकर दो िमनट क िलए िवराम लो |

सोचो िक lsquo म कौन ह सद -गम शरीर को लगती ह | भख- यास ाण को लगती ह |

अनकलता-ितकलता मन को लगती ह | शभ-अशभ एव पाप-प य का िनणरय बि करती ह | म न शरीर ह न ाण ह न मन ह न बि ह | म तो ह इन सबको स ा दन वाला इन सबस नयारा िनलप आतमा |rsquo 145) जो मनय िनरतर lsquoम म हhelliprsquo ऐसी भावना करता ह वह म ही ह और lsquoम ब हhelliprsquo ऐसी भावना करनवाला ब ही ह | 146) आप िनभरय ह िनभरय ह िनभरय ह | भय ही मतय ह | भय ही पाप ह | भय ही नकर ह | भय ही अधमर ह | भय ही यिभचार ह | जगत म िजतन असत या िमथया भाव ह व सब इस भयरपी शतान स पदा हए ह | 147) परिहत क िलए थोड़ा काम करन स भी भीतर की शि या जागत होती ह |

दसर क क याण क िवचारमाऽ स दय म एक िसह क समान बल आ जाता ह | 148) हम यिद िनभरय ह ग तो शर को भी जीतकर उस पाल सक ग | यिद डरग तो क ा भी हम फ़ाड़ खायगा | 149) तयक िबया तयक यवहार तयक ाणी ःवरप िदख यही सहज समािध ह | 150) जब किठनाईया आय तब ऐसा मानना िक मझ म सहन शि बढ़ान क िलए ई र न य सयोग भज ह | किठन सयोग म िह मत रहगी तो सयोग बदलन लगग |

िवषय म राग- ष रह गया होगा तो वह िवषय कसौटी क रप म आग आयग और उनस पार होना पड़गा | 151) ततव ि स न तो आपन जनम िलया न कभी लग | आप तो अनत ह सवर यापी ह िनतयम अजर-अमर अिवनाशी ह | जनम-मतय का ही गलत ह महा-

मखरतापणर ह | जहा जनम ही नही हआ वहा मतय हो ही कस सकती ह 152) आप ही इस जगत क ई र हो | आपको कौन दबरल बना सकता ह जगत म आप ही एकमाऽ स ा हो | आपको िकसका भय खड़ हो जाओ | म हो जाओ | ठ क स समझ लो िक जो कोई िवचार या श द आपको दबरल बनाता ह वही एकमाऽ अशभ ह | मनय को दबरल व भयभीत करनवाला जो कछ इस ससार म ह वह पाप ह | 153) आप अपना कायर या कतर य करो लिकन न उसक िलए कोई िचनता रह न ही कोई

इ छा | अपन कायर म सख का अनभव करो कय िक आपका कायर ःवय सख या िवौाम ह | आपका कायर आतमानभव का ही दसरा नाम ह | कायर म लग रहो | कायर आपको आतमानभव कराता ह |

िकसी अनय हत स कायर न करो | ःवतऽ वि स अपन कायर पर डट जाओ | अपन को ःवतऽ

समझो िकसीक कदी नही | 154) यिद आप सतय क मागर स नही हटत तो शि का वाह आपक साथ ह समय आपक

साथ ह ऽ आपक साथ ह | लोग को उनक भतकाल की मिहमा पर फलन दो भिवयकाल की स पणर मिहमा आपक हाथ म ह | 155) जब आप िद य म क साथ चा डाल म चोर म पापी म अ यागत म और सबम भ क दशरन करग तब आप भगवान ौी कण क मपाऽ बन जायग | 156) आचायर गौड़पाद न ःप कहा आप सब आपस म भल ही लड़त रह लिकन मर साथ नही लड़ सक ग | आप सब लोग मर पट म ह | म आतमःवरप स सवर या ह | 157) मनय सभी ािणय म ौ ह सब दवताओ स भी ौ ह | दवताओ को भी िफर स

धरती पर आना पड़गा और मनय शरीर ा करक मि ा करनी होगी | 158) िनि नतता क दो सऽ जो कायर करना जररी ह उस परा कर दो | जो िबनजररी ह

उस भल जाओ | 159) सवा-म-तयाग ही मनय क िवकास का मल मऽ ह | अगर यह मऽ आपको जच

जाय तो सभी क ित सदभाव रखो और शरीर स िकसी-न-िकसी यि को िबना िकसी मतलब क

सहयोग दत रहो | यह नही िक जब मरी बात मानग तब म सवा करगा | अगर बनधक मरी बात

नही मानत तो म सवा नही करगा |

भाई तब तो तम सवा नही कर पाओग | तब तो तम अपनी बात मनवा कर अपन अह की पजा ही

करोग | 160) जस ःव न िमथया ह वस ही यह जामत अवःथा भी ःव नवत ही ह िमथया ह | हरक

को अपन इस ःव न स जागना ह | सदगर बार-बार जगा रह ह लिकन जाग कर वापस सो न जाए ऐसा परषाथर तो हम ही करना होगा | 161) सदा सननमख रहो | मख को कभी मिलन मत करो | िन य कर लो िक आपक

िलय शोक न इस जगत म जनम नही िलया ह | आननदःवरप म िचनता का ःथान ही कहा ह 162) समम ा ड एक शरीर ह | समम ससार एक शरीर ह | जब तक आप तयक क

साथ एकता का अनभव करत रहग तब तक सब पिरिःथितया और आस-पास की चीज़ हवा और समि की लहर भी आपक प म रहगी | 163) आपको जो कछ शरीर स बि स या आतमा स कमजोर बनाय उसको िवष की तरह

ततकाल तयाग दो | वह कभी सतय नही हो सकता | सतय तो बलद होता ह पावन होता ह

ानःवरप होता ह | सतय वह ह जो शि द | 164) साधना म हमारी अिभरिच होनी चािहय साधना की तीो माग होनी चािहय | 165) दसर क दोष की चचार मत करो चाह व िकतन भी बड़ ह | िकसी क दोष की चचार करक आप उसका िकसी भी कार भला नही करत बि क उस आघात पहचात ह और साथ-ही-साथ अपन आपको भी | 166) इस ससार को सतय समझना ही मौत ह | आपका असली ःवरप तो आननदःवरप

आतमा ह | आतमा क िसवा ससार जसी कोई चीज ही नही ह | जस सोया हआ मनय ःव न म अपनी एकता नही जानता अिपत अपन को अनक करक दखता ह वस ही आननदःवरप आतमा जामत ःव न और सषि - इन तीन ःवरप को दखत हए अपनी एकता अि तीयता का अनभव

नही करता | 167) मनोजय का उपाय ह अ यास और वरा य | अ यास मान य पवरक मन को बार-बार परमातम-िचतन म लगाना और वरा य मान मन को ससार क पदाथ की ओर स वापस

लौटाना | 168) िकसी स कछ मत मागो | दन क िलय लोग आपक पीछ-पीछ घमग | मान नही

चाहोग तो मान िमलगा | ःवगर नही चाहोग तो ःवगर क दत आपक िलय िवमान लकर आयग |

उसको भी ःवीकार नही करोग तो ई र आपको अपन दय स लगायग | 169) कभी-कभी उदय या अःत होत हए सयर की ओर चलो | नदी सरोवर या समि क तट

पर अकल घमन जाओ | ऐस ःथान की मलाकात लो जहा शीतल पवन मनद-मनद चल रही हो | वहा परमातमा क साथ एकःवर होन की स भावना क ार खलत ह | 170) आप य -ही इ छा स ऊपर उठत हो तय -ही आपका इि छत पदाथर आपको खोजन

लगता ह | अतः पदाथर स ऊपर उठो | यही िनयम ह | य - य आप इ छक िभ क याचक का भाव धारण करत हो तय -तय आप ठकराय जात हो | 171) कित क तयक पदाथर को दखन क िलय काश जररी ह | इसी कार मन बि

इिनिय को अपन-अपन कायर करन क िलय आतम-काश की आवयकता ह कय िक बाहर का कोई काश मन बि इिनिय ाणािद को चतन करन म समथर नही | 172) जस ःव न ा परष को जागन क बाद ःव न क सख-दःख जनम-मरण पाप-प य

धमर-अधमर आिद ःपशर नही करत कय िक वह सब खद ही ह | खद क िसवाय ःव न म दसरा कछ

था ही नही | वस ही जीवनम ानवान परष को सख-दःख जनम-मरण पाप-प य धमर-अधमर ःपशर नही करत कय िक व सब आतमःवरप ही ह | 173) वही भमा नामक आतम योित क म रह कर भ क रही ह सअर म रह कर घर रही ह गध म रह कर रक रही ह लिकन मखर लोग शरीर पर ही ि रखत ह चतनय ततव पर नही | 174) मनय िजस ण भत-भिवय की िचनता का तयाग कर दता ह दह को सीिमत और उतपि -िवनाशशील जानकर दहािभमान को तयाग दता ह उसी ण वह एक उ चतर अवःथा म पहच जाता ह | िपजर स छटकर गगनिवहार करत हए प ी की तरह मि का अनभव करता ह | 175) समःत भय एव िचनताए आपकी इ छाओ का णाम ह | आपको भय कय लगता ह

कय िक आपको आशका रहती ह िक अमक चीज कही चली न जाय | लोग क हाःय स आप डरत

ह कय िक आपको यश की अिभलाषा ह कीितर म आसि ह | इ छाओ को ितलाजिल द दो | िफर दखो मजा कोई िज मदारी नहीकोई भय नही | 176) दखन म अतयत करप काला-कलटा कबड़ा और तज ःवभाव का मनय भी आपका ही ःवरप ह | आप इस तथय स म नही | िफर घणा कसी कोई लाव यमयी सदरी सि की

शोभा क समान अित िवलासभरी अ सरा भी आपका ही ःवरप ह | िफर आसि िकसकी

आपकी ानिनिया उनको आपस अलग करक िदखाती ह | य इिनिया झठ बोलनवाली ह | उनका कभी िव ास मत करो | अतः सब कछ आप ही हो | 177) मानव क नात हम साधक ह | साधक होन क नात सतय को ःवीकर करना हमारा ःवधमर ह | सतय यही ह िक बल दसर क िलय ह ान अपन िलय ह और िव ास परमातमा स

स बनध जोड़न क िलय ह | 178) अपनी आतमा म डब जाना यह सबस बड़ा परोपकार ह | 179) आप सदव म ह ऐसा िव ास ढ़ करो तो आप िव क उ ारक हो जात हो | आप

यिद वदानत क ःवर क साथ ःवर िमलाकर िन य करो आप कभी शरीर न थ | आप िनतय श

ब आतमा हो तो अिखल ा ड क मो दाता हो जात हो | 180) कपा करक उन ःवाथरमय उपाय और अिभाय को दर फ क दो जो आपको पिरि छनन रखत ह | सब वासनाए राग ह | यि गत या शरीरगत म आसि ह | उस फ क दो | ःवय पिवऽ हो जाओ | आपका शरीर ःवःथ और बि पणरःवरप हो जायगी | 181) यिद ससार क सख व पदाथर ा ह तो आपको कहना चािहय ओ शतान हट जा मर सामन स | तर हाथ स मझ कछ नही चािहय | तब दखो िक आप कस सखी हो जात हो परमातमा-ा िकसी महापरष पर िव ास रखकर अपनी जीवनडोरी िनःशक बन उनक चरण म सदा क िलय रख दो | िनभरयता आपक चरण की दासी बन जायगी | 182) िजसन एक बार ठ क स जान िलया िक जगत िमथया ह और ािनत स इसकी तीित

हो रही ह उसको कभी दःख नही होता | जगत म कभी आसि नही होती | जगत क िमथयातव क

िन य का नाम ही जगत का नाश ह | 183) अपन ःवरप म लीन होन माऽ स आप ससार क साट बन जायग | यह साटपद

कवल इस ससार का ही नही समःत लोक-परलोक का साटपद होगा | 184) ह जनक चाह दवािधदव महादव आकर आपको उपदश द या भगवान िवण आकर उपदश द अथवा ाजी आकर उपदश द लिकन आपको कदािप सख न होगा | जब िवषय का तयाग करोग तभी स ची शाित व आनद ा ह ग |

185) िजस भ न हम मानव जीवन दकर ःवाधीनता दी िक हम जब चाह तब धमारतमा होकर भ होकर जीवनम होकर कतकतय हो सकत ह- उस भ की मिहमा गाओ | गाओ नही तो सनो | सनो भी नही गाओ भी नही तो ःवीकार कर लो | 186) चाह समि क गहर तल म जाना पड़ सा ात मतय का मकाबला करना पड़ अपन

आतमाि क उ य की पितर क िलय अिडग रहो | उठो साहसी बनो शि मान बनो | आपको जो बल व सहायता चािहय वह आपक भीतर ही ह | 187) जब-जब जीवन स बनधी शोक और िचनता घरन लग तब-तब अपन आननदःवरप

का गान करत-करत उस मोह-माया को भगा दो | 188) जब शरीर म कोई पीड़ा या अग म ज म हो तब म आकाशवत आकाशरिहत चतन

ह ऐसा ढ़ िन य करक पीड़ा को भल जाओ | 189) जब दिनया क िकसी चककर म फस जाओ तब म िनलप िनतय म ह ऐसा ढ़

िन य करक उस चककर स िनकल जाओ | 190) जब घर-बार स बनधी कोई किठन समःया याकल कर तब उस मदारी का खल

समझकर ःवय को िनःसग जानकर उस बोझ को ह का कर दो | 191) जब बोध क आवश म आकर कोई अपमानय वचन कह तब अपन शाितमय

ःवरप म िःथर होकर मन म िकसी भी ोभ को पदा न होन दो | 192) उ म अिधकारी िज ास को चािहय िक वह व ा सदगर क पास जाकर ौ ा पवरक महावाकय सन | उसका मनन व िनिदधयासन करक अपन आतमःवरप को जान | जब

आतमःवरप का सा ातकार होता ह तब ही परम िवौािनत िमल सकती ह अनयथा नही | जब तक

व ा महापरष स महावाकय ा न हो तब तक वह मनद अिधकारी ह | वह अपन दयकमल म परमातमा का धयान कर ःमरण कर जप कर | इस धयान-जपािद क साद स उस व ा सदगर

ा ह ग | 193) मन बि िच अहकार छाया की तरह जड़ ह णभगर ह कय िक व उतपनन होत

ह और लीन भी हो जात ह | िजस चतनय की छाया उसम पड़ती ह वह परम चतनय सबका आतमा ह | मन बि िच अहकार का अभाव हो जाता ह लिकन उसका अनभव करनवाल का अभाव

कदािप नही होता |

194) आप अपनी शि को उ चाितउ च िवषय की ओर बहन दो | इसस आपक पास व

बात सोचन का समय ही नही िमलगा िजसस कामकता की गध आती हो | 195) अपराध क अनक नाम ह बालहतया नरहतया मातहतया गौहतया इतयािद |

परनत तयक ाणी म ई र का अनभव न करक आप ई रहतया का सबस बड़ा अपराध करत ह | 196) सवा करन की ःवाधीनता मनयमाऽ को ा ह | अगर वह करना ही न चाह तो अलग बात ह | सवा का अथर ह मन-वाणी-कमर स बराईरिहत हो जाना यह िव की सवा हो गई |

यथाशि भलाई कर दो यह समाज की सवा हो गई | भलाई का फल छोड़ दो यह अपनी सवा हो गई

| भ को अपना मानकर ःमित और म जगा लो यह भ की सवा हो गई | इस कार मनय

अपनी सवा भी कर सकता ह समाज की सवा भी कर सकता ह िव की सवा भी कर सकता ह

और िव र की सवा भी कर सकता ह | 197) आतमा स बाहर मत भटको अपन कनि म िःथर रहो अनयथा िगर पड़ोग | अपन-

आपम पणर िव ास रखो | आतम-कनि पर अचल रहो | िफर कोई भी चीज आपको िवचिलत नही कर सकती | 198) सदा शात िनिवरकार और सम रहो | जगत को खलमाऽ समझो | जगत स भािवत

मत हो | इसस आप हमशा सखी रहोग | िफर कछ बढ़ान की इ छा नही होगी और कछ कम होन स

दःख नही होगा | 199) समथर सदगर क सम सदा फल क भाित िखल हए रहो | इसस उनक अनदर सक प

होगा िक यह तो बहत उतसाही साधक ह सदा सनन रहता ह | उनक सामथयरवान सक प स

आपकी वह किऽम सननता भी वाःतिवक सननता म बदल जायगी | 200) यिद रोग को भी ई र का िदया मानो तो ार ध-भोग भी हो जाता ह और क तप का फल दता ह | इसस ई र-कपा की ाि होती ह | याकल मत हो | क सल और इनजकशन

आधीन मत हो | 201) साधक को चािहय िक अपन लआय को ि म रखकर साधना-पथ पर तीर की तरह

सीधा चला जाय | न इधर दख न उधर | ि यिद इधर-उधर जाती हो तो समझना िक िन ा िःथर नही ह |

202) आपन अपन जीवन म हजार ःव न दख ह ग लिकन व आपक जीवन क अश नही बन जात | इसी कार य जामत जगत क आड बर आपकी आतमा क सम कोई मह व नही रखत | 203) एक आतमा को ही जानो अनय बात को छोड़ो | धीर साधक को चािहय िक वह

सावधान होकर आतमिन ा बढ़ाय अनक श द का िचनतन व भाषण न कर कय िक वह तो कवल

मन-वाणी को पिरौम दनवाला ह असली साधना नही ह | 204) जो परष जन-समह स ऐस डर जस साप स डरता ह स मान स ऐस डर जस नकर स

डरता ह ि य स ऐस डर जस मद स डरता ह उस परष को दवतागण ा ण मानत ह | 205) जस अपन शरीर क अग पर बोध नही आता वस शऽ िमऽ व अपनी दह म एक ही आतमा को दखनवाल िववकी परष को कदािप बोध नही आता | 206) मन तो शरीर को ई रापरण कर िदया ह | अब उसकी भख- यास स मझ कया

समिपरत वःत म आस होना महा पाप ह | 207) आप यिद िद य ि पाना चहत हो तो आपको इिनिय क ऽ का तयाग करना होगा | 208) लयकाल क मघ की गजरना हो समि उमड़ पड बारह सयर तपायमान हो जाय पहाड़ स पहाड़ टकरा कर भयानक आवाज हो तो भी ानी क िन य म त नही भासता कय िक

त ह ही नही | त तो अ ानी को भासता ह | 209) सतय को ःवीकार करन स शाित िमलगी | कछ लोग यो यता क आधार पर शाित

खरीदना चाहत ह | यो यता स शाित नही िमलगी यो यता क सदपयोग स शाित िमलगी | कछ

लोग स पि क आधार पर शाित सरि त रखना चाहत ह | स पि स शाित नही िमलगी स पि

क सदपयोग स शाित िमलगी वस ही िवपि क सदपयोग स शाित िमलगी | 210) त छ हािन-लाभ पर आपका धयान इतना कय रहता ह िजसस अनत आननदःवरप

आतमा पर स धयान हट जाता ह | 211) अपन अनदर ही आननद ा करना य िप किठन ह परनत बा िवषय स आननद

ा करना तो अस भव ही ह |

212) म ससार का काश ह | काश क रप म म ही सब वःतओ म या ह | िनतय इन

िवचार का िचनतन करत रहो | य पिवऽ िवचार आपको परम पिवऽ बना दग | 213) जो वःत कमर स ा होती ह उसक िलय ससार की सहायता तथा भिवय की आशा की आवयकता होती ह परनत जो वःत तयाग स ा होती ह उसक िलय न ससार की सहायता चािहय न भिवय की आशा | 214) आपको जब तक बाहर चोर िदखता ह तब तक जरर भीतर चोर ह | जब दसर लोग

स िभनन अयो य खराब सधारन यो य िदखत ह तब तक ओ सधार का बीड़ा उठान वाल त अपनी िचिकतसा कर | 215) सफल व ही होत ह जो सदव नतमःतक एव सननमख रहत ह | िचनतातर-शोकातर लोग की उननित नही हो सकती | तयक कायर को िह मत व शाित स करो | िफर दखो िक यह

कायर शरीर मन और बि स हआ | म उन सबको स ा दनवाला चतनयःवरप ह | ॐ ॐ का पावन गान करो | 216) िकसी भी पिरिःथित म मन को यिथत न होन दो | आतमा पर िव ास करक

आतमिन बन जाओ | िनभरयता आपकी दासी बन कर रहगी | 217) सतसग स मनय को साधना ा होती ह चाह वह शाित क रप म हो चाह मि क

रप म चाह सवा क रप म हो म क रप म हो चाह तयाग क रप म हो | 218) भला-बरा वही दखता ह िजसक अनदर भला-बरा ह | दसर क शरीर को वही दखता ह

जो खद को शरीर मानता ह | 219) खबरदार आपन यिद अपन शरीर क िलय ऐश-आराम की इ छा की िवलािसता एव इिनिय-सख म अपना समय बरबाद िकया तो आपकी खर नही | ठ क स कायर करत रहन की नीित

अपनाओ | सफलता का पहला िस ात ह कायरिवौामरिहत कायरसा ी भाव स कायर | इस

िस ात को जीवन म चिरताथर करोग तो पता चलगा िक छोटा होना िजतना सरल ह उतना ही बड़ा होना भी सहज ह | 220) भतकाल पर िखनन हए िबना भिवय की िचनता िकय िबना व रमान म कायर करो | यह भाव आपको हर अवःथा म सनन रखगा हम जो कछ ा ह उसका सदपयोग ही अिधक

काश पान का साधन ह |

221) जब आप सफलता की ओर पीठ कर लत हो पिरणाम की िचनता का तयाग कर दत

हो स मख आय हए क र य पर अपनी उ ोगशि एकाम करत हो तब सफलता आपक पीछ-पीछ

आ जाती ह | अतः सफलता आपको खोजगी | 222) वि तब तक एकाम नही होगी जब तक मन म कभी एक आशा रहगी तो कभी दसरी | शात वही हो सकता ह िजस कोई क र य या आवयकता घसीट न रही हो | अतः परम शाित पान

क िलय जीवन की आशा भी तयाग कर मन ाननद म डबो दो | आज स समझ लो िक यह शरीर ह ही नही | कवल ाननद का सागर लहरा रहा ह | 223) िजसकी पककी िन ा ह िक म आतमा हrsquo उसक िलय ऐसी कौन सी मिथ ह जो खल

न सक ऐसी कोई ताकत नही जो उसक िवर जा सक | 224) मर भा य म नही थाई र की मज आजकल सतसग ा नही होताजगत

खराब ह ऐस वचन हमारी कायरता व अनतःकरण की मिलनता क कारण िनकलत ह | अतः नकारातमक ःवभाव और दसर पर दोषारोपण करन की वि स बचो | 225) आप जब भीतरवाल स नाराज होत हो तब जगत आपस नाराज रहता ह | जब आप

भीतर अनतयारमी बन बठ तो जगतरपी पतलीघर म िफर गड़बड़ कसी 226) िजस ण हम ससार क सधारक बन खड़ होत ह उसी ण हम ससार को िबगाड़नवाल बन जात ह | श परमातमा को दखन क बजाय जगत को िबगड़ा हआ दखन की ि बनती ह | सधारक लोग मानत ह िक lsquoभगवान न जो जगत बनाया ह वह िबगड़ा हआ ह और हम उस सधार रह ह |rsquo वाह वाह धनयवाद सधारक अपन िदल को सधारो पहल | सवरऽ िनरजन का दीदार करो | तब आपकी उपिःथित माऽ स आपकी ि माऽ स अर यार आपको छकर बहती हवा माऽ स अननत जीव को शाित िमलगी और अननत सधार होगा | नानक कबीर महावीर ब और लीलाशाह बाप जस महापरष न यही कजी अपनायी थी | 227) वदानत म हमशा कमर का अथर होता ह वाःतिवक आतमा क साथ एक होकर च ा करना अिखल िव क साथ एकःवर हो जाना | उस अि तीय परम ततव क साथ िनःःवाथर सयोग ा करना ही एकमाऽ स चा कमर ह बाकी सब बोझ की गठिरया उठाना ह |

228) अपनी व रमान अवःथा चाह कसी भी हो उसको सव च मानन स ही आपक दय म आतम ान ान का अनायास उदय होन लगगा | आतम-सा ातकार को मील दर की कोई चीज समझकर उसक पीछ दौड़ना नही ह िचिनतत होना नही ह |

िचनता की गठरी उठाकर यिथत होन की जररत नही ह | िजस ण आप िनि नतता म गोता मारोग उसी ण आपका आतमःवरप गट हो जायगा | अर गट कया होगा आप ःवय आतमःवरप हो ही | अनातमा को छोड़ दो तो आतमःवरप तो हो ही | 229) सदा ॐकार का गान करो | जब भय व िचनता क िवचार आय तब िकसी मःत सत-फकीर महातमा क सािननधय का ःमरण करो | जब िननदा-शसा क सग आय तब महापरष क जीवन का अवलोकन करो | 230) िजनको आप भयानक घटनाए एव भयकर आघात समझ बठ हो वाःतव म व आपक ियतम आतमदव की ही करतत ह | समःत भयजनक तथा ाणनाशक घटनाओ क नाम-रप तो िवष क ह लिकन व बनी ह अमत स | 231) मन म यिद भय न हो तो बाहर चाह कसी भी भय की साममी उपिःथत हो जाय आपका कछ िबगाड़ नही सकती | मन म यिद भय होगा तो तरनत बाहर भी भयजनक पिरिःथया न होत हए भी उपिःथत हो जायगी | व क तन म भी भत िदखन लगगा | 232) िकसी भी पिरिःथित म िदखती हई कठोरता व भयानकता स भयभीत नही होना चािहए | क क काल बादल क पीछ पणर काशमय एकरस परम स ा सयर की तरह सदा िव मान ह | 233) आप अपन पर कदािप अिव ास मत करो | इस जगत म आप सब कछ कर सकत हो | अपन को कभी दबरल मत मानो | आपक अनदर तमाम शि या छपी हई ह | 234) यिद कोई मन य आपकी कोई चीज़ को चरा लता ह तो ड़रत कय हो वह मनय

और आप एक ह | िजस चीज़ को वह चराता ह वह चीज़ आपकी और उसकी द न की ह | 235) जो खद क िसवाय दसरा कछ दखता नही सनता नही जानता नही वह अननत ह |

जब तक खद क िसवाय और िकसी वःत का भान होता ह वह वःत स ची लगती ह तब तक आप

सीिमत व शात ह असीम और अनत नही |

236) ससार मझ कया आनद द सकता ह स पणर आनद मर भीतर स आया ह | म ही स पणर आननद ह स पणर मिहमा एव स पणर सख ह | 237) जीवन की समःत आवयकताए जीवन म उपिःथत ह परनत जीवन को जब हम

बा रग म रग दत ह तब जीवन का वाःतिवक रप हम नही जान पात | 238) िननदक की िननदा स म कय मरझाऊ शसक की शसा स म कय फल िननदा स म घटता नही और शसा स म बढ़ता नही | जसा ह वसा ही रहता ह | िफर िननदा-ःतित स

खटक कसी 239) ससार व ससार की समःयाओ म जो सबस अिधक फस हए ह उनही को वदानत की सबस अिधक आवयकता ह | बीमार को ही औषिध की यादा आवयकता ह | कय जी ठ क ह न 240) जगत क पाप व अतयाचार की बात मत करो लिकन अब भी आपको जगत म पाप

िदखता ह इसिलय रोओ | 241) हम यिद जान ल िक जगत म आतमा क िसवाय दसरा कछ ह ही नही और जो कछ

िदखता ह वह ःव नमाऽ ह तो इस जगत क दःख-दािरिय पाप-प य कछ भी हम अशात नही कर सकत | 242) िव ान दाशरिनक व आचाय की धमकी तथा अनमह आलोचना या अनमित

ानी पर कोई भाव नही ड़ाल सकती | 243) ह यि रप अननत आप अपन पर पर खड़ रहन का साहस करो समःत िव का बोझ आप िखलौन की तरह उठा लोग | 244) िसह की गजरना व नरिसह की ललकार तलवार की धार व साप की फफकार तपःवी की धमकी व नयायधीश की फटकारइन सबम आपका ही काश चमक रहा ह | आप इनस

भयभीत कय होत हो उलझन कय महसस करत हो मरी िब ली मझको याऊ वाली बात कय

होन दत हो 245) ससार हमारा िसफ़र िखलोना ही ह और कछ नही | अबोध बालक ही िखलौन स

भयभीत होता ह आसि करता ह िवचारशील यि नही |

246) जब तक अिव ा दर नही होगी तब तक चोरी जआ दार यिभचार कभी बद न

ह ग चाह लाख कोिशश करो | 247) आप हमशा अदर का धयान रखो | पहल हमारा भीतरी पतन होता ह | बा पतन तो इसका पिरणाम माऽ ह | 248) तयाग स हमशा आनद िमलता ह | जब तक आपक पास एक भी चीज़ बाकी ह तब

तक आप उस चीज़ क बधन म बध रहोग | आघात व तयाघात हमशा समान िवरोधी होत ह | 249) िनि तता ही आरो यता की सबस बड़ी दवाई ह | 250) सख अपन िसर पर दख का मकट पहन कर आता ह | जो सख को अपनायगा उस

दख को भी ःवीकार करना पड़गा | 251) म (आतमा) सबका ा ह | मरा ा कोई नही | 252) हजार म स कोई एक परष भीतर स शात िच वाला रहकर बाहर स ससारी जसा यवहार कर सकता ह | 253) सतय क िलए यिद शरीर का तयाग करना पड़ तो कर दना | यही आिखरी ममता ह जो हम तोड़नी होगी | 254) भय िचनता बचनी स ऊपर उठो | आपको ान का अनभव होगा | 255) आपको कोई भी हािन नही पहचा सकता | कवल आपक खयालात ही आपक पीछ पड़ ह | 256) म का अथर ह अपन पड़ोसी तथा सपकर म आनवाल क साथ अपनी वाःतिवक अभदता का अनभव करना | 257) ओ यार अपन खोय हए आतमा को एक बार खोज लो | धरती व आसमान क शासक आप ही हो | 258) सदव सम और सनन रहना ई र की सव पिर भि ह |

259) जब तक िच म ढ़ता न आ जाय िक शा की िविधय का पालन छोड़ दन स भी दय का यथाथर भि भाव न नही होगा तब तक शा की िविधय को पालत रहो |

गर भि एक अमोघ साधना 1 जनम मरण क िवषचब स म होन का कोई मागर नही ह कया सख-दःख हषर-शोक लाभ-

हािन मान-अपमान की थ पड़ स बचन का कोई उपाय नही ह कया

हअवय ह | ह िय आतमन नाशवान पदाथ स अपना मन वािपस लाकर सदगर क

चरणकमल म लगाओ | गरभि योग का आौय लो | गरसवा ऐसा अमोघ साधन ह िजसस

व रमान जीवन आननदमय बनता ह और शा त सख क ार खलत ह |

गर सवत त नर धनय यहा | ितनक नही दःख यहा न वहा || 2 स च सदगर की की हई भि िशय म सासािरक पदाथ क वरा य एव अनासि जगाती ह

परमातमा क ित म क पप महकाती ह | 3 तयक िशय सदगर की सवा करना चाहता ह लिकन अपन ढग स | सदगर चाह उस ढग स

सवा करन को कोई ततपर नही | जो िवरला साधक गर चाह उस ढ़ग स सवा कर सकता ह उस कोई कमी नही रहती |

िन सदगर की सवा स उनकी कपा ा होती ह और उस कपा स न िमल सक ऐसा तीन लोक म कछ भी नही ह | 4 गर िशय का स बनध पिवऽतम स बनध ह | ससार क तमाम बनधन स छड़ाकर वह मि क मागर पर ःथान कराता ह | यह स बनध जीवनपयरनत का स बनध ह | यह बात अपन दय की डायरी म सवणर-अ र स िलख लो | 5 उ ल सयर क काश क अिःततव को मान या न मान िफर भी सयर हमशा काशता ह | चचल मन का मनय मान या न मान लिकन सदगर की परमक याणकारी कपा सदव बरसती ही रहती ह | 6 सदगर की चरणरज म ःनान िकय िबना कवल किठन तप यार करन स या वद का

अधयन करन स वदानत का रहःय कट नही होता आतमानद का अमत नही िमलता | 7 दशरन शा क चाह िकतन मनथ पढ़ो हजार वष तक िहमालय की गफा म तप करो वष तक ाणायाम करो जीवनपयरनत शीषारसन करो समम िव म वास करक याखान दो िफर भी सदगर की कपा क िबना आतम ान नही होता | अतः िनरािभमानी सरल िनजाननद म मःत दयाल ःवभाव क आतम-सा ातकारी सदगर क चरण म जाओ | जीवन को धनय बनाओ | 8 सदगर की सवा िकय िबना शा का अधयन करना मम साधक क िलय समय बरबाद करन क बराबर ह | 9 िजसको सदगर ा हए ह ऐस िशय क िलय इस िव म कछ भी अा य नही ह | सदगर िशय को िमली हई परमातमा की अम य भट ह | अर नहीhellipनही व तो िशय क सम साकार रप म कट हए परमातमा ःवय ह | 10 सदगर क साथ एक ण िकया हआ सतसग लाख वष क तप स अननत गना ौ ह | आख क िनमषमाऽ म सदगर की अमतवष ि िशय क जनम-जनम क पाप को जला सकती ह | 11 सदगर जसा मपणर कपाल िहतिचनतक िव भर म दसरा कोई नही ह | 12 बाढ़ क समय याऽी यिद तफानी नदी को िबना नाव क पार कर सक तो साधक भी िबना सदगर क अपन जीवन क आिखरी लआय को िस कर सकता ह | यानी य दोन बात स भव ह |

अतः यार साधक मनमखी साधना की िज करना छोड़ दो | गरमखी साधना करन म ही सार ह | 13 सदगर क चरणकमल का आौय लन स िजस आननद का अनभव होता ह उसक आग िऽलोकी का साा य त छ ह | 14 आतम-सा ातकार क मागर म सबस महान शऽ अहभाव का नाश करन क िलए सदगर की आ ा का पालन अमोघ श ह | 15 रसोई सीखन क िलय कोई िसखानवाला चािहय िव ान और गिणत सीखन क िलय

अधयापक चािहय तो कया िव ा सदगर क िबना ही सीख लोग 16 सदगरकपा की स पि जसा दसरा कोई खजाना िव भर म नही | 17 सदगर की आ ा का उ लघन करना यह अपनी क खोदन क बराबर ह | 18 सदगर क कायर को शका की ि स दखना महापातक ह | 19 गरभि व गरसवा - य साधनारपी नौका की दो पतवार ह | उनकी मदद स िशय ससारसागर को पार कर सकता ह | 20 सदगर की कसौटी करना असभव ह | एक िववकाननद ही दसर िववकाननद को पहचान सकत ह | ब को जानन क िलय दसर ब की आवयकता रहती ह | एक रामतीथर का रहःय दसर रामतीथर ही पा सकत ह |

अतः सदगर की कसौटी करन की च ा छोड़कर उनको पिरपणर पर परमातमा मानो |

तभी जीवन म वाःतिवक लाभ होगा | 21 गरभि योग का आौय लकर आप अपनी खोई हई िद यता को पनः ा करो सख-दःख जनम-मतय आिद सब न स पार हो जाओ | 22 गरभि योग मान गर की सवा क ारा मन और िवकार पर िनयऽण एव पनः सःकरण | 23 िशय अपन गर क चरणकमल म णाम करता ह | उन पर ौ फल की वषार करक उनकी ःतित करता ह ldquoह परम प य पिवऽ गरदव मझ सव च सख ा हआ ह | म िन ा स जनम-मतय की पर परा स म हआ ह | म िनिवरक प समािध का श सख भोग रहा ह | जगत क िकसी भी कोन म म म ता स िवचरण कर सकता ह | सब पर मरी सम ि ह | मन ाकत मन का तयाग िकया ह | मन सब सक प एव रिच-अरिच का तयाग िकया ह | अब म अख ड शाित म िवौाित पा रहा ह hellip आननदमय हो रहा ह | म इस पणर अवःथा का वणरन नही कर पाता | ह प य गरदव म आवाक बन गया ह | इस दःतर भवसागर को पार करन म आपन

मझ सहायता की ह | अब तक मझ कवल अपन शरीर म ही स पणर िव ास था | मन िविभनन योिनय म अस य जनम िलय | ऐसी सव च िनभरय अवःथा मझ कौन स पिवऽ कम क कारण ा हई ह यह म नही जानता | सचमच यह एक दलरभ भा य ह |

यह एक महान उतक लाभ ह | अब म आननद स नाचता ह | मर सब दःख न हो गय | मर सब मनोरथ पणर हए ह |

मर कायर स पनन हए ह | मन सब वािछत वःतए ा की ह | मरी इ छा पिरपणर हई ह | आप मर स च माता-िपता हो | मरी व रमान िःथित म म दसर क सम िकस कार कट कर सक सवरऽ सख और आननद का अननत सागर मझ लहराता हआ िदख रहा ह | मर अतःच िजसस खल गय वह महावाकय lsquoत वमिसrsquo ह | उपिनषद एव वदानतसऽ को भी धनयवाद | िजनह न िन गर का एव उपिनषद क महावाकय का रप धारण िकया ह | ऐस ौी यासजी को णाम ौी शकराचायर को णाम सासािरक मनय क िसर पर गर क चरणामत का एक िबनद भी िगर तो भी उसक ःब दःख का नाश होता ह | यिद एक िन परष को व पहनाय जाय तो सार िव को व पहनान एव भोजन करवान क बराबर ह कय िक िन परष सचराचर िव म या ह | सबम व ही ह |rdquo

ॐhellip ॐ hellip ॐ hellip

ःवामी िशवानद जी

ौी राम-विश सवाद ौी विश जी कहत ह ldquoह रघकलभषण ौी राम अनथर ःवरप िजतन सासािरक पदाथर ह व सब जल म तरग क समान िविवध रप धारण करक चमतकार उतपनन करत ह अथारत ई छाए उतपनन करक जीव को मोह म फसात ह | परत जस सभी तरग जल ःवरप ही ह उसी कार सभी पदाथर वःततः न र ःवभाव वाल ह |

बालक की क पना स आकाश म य और िपशाच िदखन लगत ह परनत बि मान मनय क िलए उन य और िपशाच का कोई अथर नही | इसी कार अ ानी क िच म यह जगत सतय हो ऐसा लगता ह जबिक हमार जस ािनय क िलय यह जगत कछ भी नही | यह समम िव पतथर पर बनी हई पतिलय की सना की तरह रपालोक तथा अतर-बा िवषय स शनय ह | इसम सतयता कसी परनत अ ािनय को यह िव सतय लगता ह |rdquo विश जी बोल ldquoौी राम जगत को सतय ःवरप म जानना यह ाित ह मढ़ता ह | उस िमथया अथारत कि पत समझना यही उिचत समझ ह | ह राघव तव ा अहता आिद सब िवम-िवलास शात िशवःवरप श ःवरप ही ह | इसिलय मझ तो क अितिर और कछ भी नही िदखता | आकाश म जस जगल नही वस ही म जगत नही ह | ह राम ार ध वश ा कम स िजस परष की च ा कठपतली की तरह ई छाशनय और याकलतारिहत होती ह वह शानत मनवाला परष जीवनम मिन ह | ऐस जीवनम ानी को इस

जगत का जीवन बास की तरह बाहर-भीतर स शनय रसहीन और वासना-रिहत लगता ह | इस य पच म िजस रिच नही दय म िचनमाऽ अ य ही अ छा लगता ह ऐस परष न

भीतर तथा बाहर शािनत ा कर ली ह और इस भवसागर स पार हो गया ह | रघनदन श व ा कहत ह िक मन का ई छारिहत होना यही समािध ह कय िक ई छाओ का तयाग करन स मन को जसी शािनत िमलती ह ऐसी शािनत सकड़ उपदश स भी नही िमलती | ई छा की उतपि स जसा दःख ा होता ह ऐसा दःख तो नरक म भी नही | ई छाओ की शािनत

स जसा सख होता ह ऐसा सख ःवगर तो कया लोक म भी नही होता | अतः समःत शा तपःया यम और िनयम का िनचोड़ यही ह िक ई छामाऽ दःखदायी ह और ई छा का शमन मो ह | ाणी क दय म जसी-जसी और िजतनी-िजतनी ई छाय उतपनन होती ह उतना ही दख स वह

ड़रता रहता ह | िववक-िवचार ारा ई छाय जस-जस शानत होती जाती ह वस-वस दखरपी छत की बीमारी िमटती जाती ह |

आसि क कारण सासािरक िवषय की ई छाय य - य गहनीभत होती जाती ह तय -तय

दःख की िवषली तरग बढ़ती जाती ह | अपन परषाथर क बल स इस ई छारपी यािध का उपचार यिद नही िकया जाय तो इस यािध स छटन क िलय अनय कोई औषिध नही ह ऐसा म ढ़तापवरक

मानता ह | एक साथ सभी ई छाओ का स पणर तयाग ना हो सक तो थोड़ी-थोड़ी ई छाओ का धीर-धीर तयाग

करना चािहय परत रहना चािहय ई छा क तयाग म रत कय िक सनमागर का पिथक दखी नही होता | जो नराधम अपनी वासना और अहकार को ीण करन का य नही करता वह िदन -िदन अपन

को रावण की तरह अधर कऐ म ढ़कल रहा ह | ई छा ही दख की जनमदाऽी इस ससाररपी बल का बीज ह | यिद इस बीज को आतम ानरपी अि न स ठ क-ठ क जला िदया तो पनः यह अकिरत नही होता | रघकलभषण राम ई छामाऽ ससार ह और ई छाओ का अभाव ही िनवारण ह | अतः अनक कार की माथाप ची म ना पड़कर कवल ऐसा य करना चािहय िक ई छा उतपनन ना हो | अपनी बि स ई छा का िवनाश करन को जो ततपर नही ऐस अभाग को शा और गर का उपदश

भी कया करगा जस अपनी जनमभमी जगल म िहरणी की मतय िनि त ह उसी कार अनकिवध दख का िवःतार कारनवाल ई छारपी िवषय-िवकार स य इस जगत म मनय की मतय िनि त ह | यिद मानव ई छाओ क कारण ब च -सा मढ़ ना बन तो उस आतम ान क िलय अ प य ही करना पड़ | इसिलय सभी कार स ई छाओ को शानत करना चािहय | ई छा क शमन स परम पद की ाि होती ह | ई छारिहत हो जाना यही िनवारण ह और ई छाय

होना ही बधन ह | अतः यथाशि ई छा को जीतना चािहय | भला इतना करन म कया किठनाई ह जनम जरा यािध और मतयरपी कटीली झािड़य और खर क व - समह की जड़ भी ई छा ही ह

| अतः शमरपी अि न स अदर-ही-अदर बीज को जला ड़ालना चािहय| जहा ई छाओ का अभाव ह

वहा मि िनि त ह |

िववक वरा य आिद साधन स ई छा का सवरथा िवनाश करना चािहय | ई छा का सबध जहा-जहा ह वहा-वहा पाप प य दखरािशया और ल बी पीड़ाओ स य बधन को हािज़र ही समझो | परष

की आतिरक ई छा य - य शानत होती जाती ह तय -तय मो क िलय उसका क याणकारक

साधन बढ़ता जाता ह | िववकहीन ई छा को पोसना उस पणर करना यह तो ससाररपी िवष व को पानी स सीचन क समान ह |rdquo

- ौीयोगविश महारामायण

आतमबल का आवाहन कया आप अपन-आपको दबरल मानत हो लघतामथी म उलझ कर पिरिःतिथय स िपस रह हो

अपना जीवन दीन-हीन बना बठ हो hellipतो अपन भीतर सष आतमबल को जगाओ | शरीर चाह ी का हो चाह परष का कित क साा य म जो जीत ह व सब ी ह और कित क बनधन स पार अपन ःवरप की पहचान िजनह न कर ली ह अपन मन की गलामी की बिड़या तोड़कर िजनह न फ क दी ह व परष ह | ी या परष शरीर एव मानयताए होती ह | तम तो तन-मन स पार िनमरल आतमा हो | जागोhellipउठोhellipअपन भीतर सोय हय िन यबल को जगाओ | सवरदश सवरकाल म सव म

आतमबल को िवकिसत करो | आतमा म अथाह सामथयर ह | अपन को दीन-हीन मान बठ तो िव म ऐसी कोई स ा नही जो त ह ऊपर उठा सक | अपन आतमःवरप म िति त हो गय तो िऽलोकी म ऐसी कोई हःती नही जो त ह दबा सक | भौितक जगत म वाप की शि ईलकशोिनक शि िव त की शि गरतवाकषरण की शि बड़ी मानी जाती ह लिकन आतमबल उन सब शि य का सचालक बल ह | आतमबल क सािननधय म आकर पग ार ध को पर िमल जात ह दव की दीनता पलायन हो जाती ह ितकल पिरिःतिथया अनकल हो जाती ह | आतमबल सवर िरि -िसि य का िपता ह |

आतमबल कस जगाय हररोज़ तःकाल ज दी उठकर सय दय स पवर ःनानािद स िनवत हो जाओ | ःव छ पिवऽ ःथान

म आसन िबछाकर पवारिभमख होकर प ासन या सखासन म बठ जाओ | शानत और सनन वि

धारण करो | मन म ढ भावना करो िक म कित-िनिमरत इस शरीर क सब अभाव को पार करक सब

मिलनताओ-दबरलताओ स िप ड़ छड़ाकर आतमा की मिहमा म जागकर ही रहगा |

आख आधी खली आधी बद रखो | अब फ़फ़ड़ म खब ास भरो और भावना करो की ास क साथ

म सयर का िद य ओज भीतर भर रहा ह | ास को यथाशि अनदर िटकाय रखो | िफ़र lsquoॐhelliprsquo का ल बा उ चारण करत हए ास को धीर-धीर छोड़त जाओ | ास क खाली होन क बाद तरत ास ना लो | यथाशि िबना ास रहो और भीतर ही भीतर lsquoहिर ॐhelliprsquo lsquoहिर ॐhelliprsquo का मानिसक

जाप करो | िफ़र स फ़फ़ड़ म ास भरो | पव रीित स ास यथाशि अनदर िटकाकर बाद म धीर-धीर छोड़त हए lsquoॐhelliprsquo का गजन करो | दस-पिह िमनट ऐस ाणायाम सिहत उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo की धविन करक शानत हो जाओ | सब

यास छोड़ दो | वि य को आकाश की ओर फ़लन दो | आकाश क अनदर पथवी ह | पथवी पर अनक दश अनक समि एव अनक लोग ह | उनम स एक

आपका शरीर आसन पर बठा हआ ह | इस पर य को आप मानिसक आख स भावना स दखत

रहो | आप शरीर नही हो बि क अनक शरीर दश सागर पथवी मह न ऽ सयर चनि एव पर ा ड़ क

ा हो सा ी हो | इस सा ी भाव म जाग जाओ | थोड़ी दर क बाद िफ़र स ाणायाम सिहत lsquoॐhelliprsquo का जाप करो और शानत होकर अपन िवचार को दखत रहो | इस अवःथा म ढ़ िन य करो िक lsquoम जसा चहता ह वसा होकर रहगा |rsquo िवषयसख स ा धन-

दौलत इतयािद की इ छा न करो कय िक िन यबल या आतमबलरपी हाथी क पदिच म और सभी क पदिच समािव हो ही जायग | आतमानदरपी सयर क उदय होन क बाद िम टी क तल क दीय क ाकाश रपी शि सखाभास की गलामी कौन कर

िकसी भी भावना को साकार करन क िलय दय को करद ड़ाल ऐसी िन यातमक बिल वि होनी आवशयक ह | अनतःकरण क गहर-स-गहर दश म चोट कर ऐसा ाण भरक िन बल का आवाहन करो | सीना तानकर खड़ हो जाओ अपन मन की दीन-हीन दखद मानयताओ को कचल

ड़ालन क िलय | सदा ःमरण रह की इधर-उधर भटकती वि य क साथ त हारी शि भी िबखरती रहती ह | अतः वि य को बहकाओ नही | तमाम वि य को एकिऽत करक साधनाकाल म आतमिचनतन म लगाओ और यवहारकाल म जो कायर करत हो उसम लगाओ | द िच होकर हरक कायर करो | अपन ःवभाव म स आवश को सवरथा िनमरल कर दो | आवश म आकर कोई िनणरय मत लो कोई िबया मत करो | सदा शानत वि धारण करन का अ यास करो | िवचारशील एव सनन रहो | ःवय अचल रहकर सागर की तरह सब वि य की तरग को अपन

भीतर समालो | जीवमाऽ को अपना ःवरप समझो | सबस ःनह रखो | िदल को यापक रखो | सकिच ता का िनवारण करत रहो | ख ड़ातमक वि का सवरथा तयाग करो | िजनको ानी महापरष का सतसग और अधयातमिव ा का लाभ िमल जाता ह उसक जीवन स

दःख िवदा होन लगत ह | ॐ आननद आतमिन ा म जाग हए महापरष क सतसग एव सतसािहतय स जीवन को भि और वदात स प

एव पलिकत करो | कछ ही िदन क इस सघन योग क बाद अनभव होन लगगा िक भतकाल क

नकारतमक ःवभाव सशयातमक-हािनकारक क पनाओ न जीवन को कचल ड़ाला था िवषला कर िदया था | अब िन यबल क चमतकार का पता चला | अततरम म आिवरभत िद य खज़ाना अब

िमला | ार ध की बिड़या अब टटन लगी | ठ क ह न करोग ना िह मत पढ़कर रख मत दना इस पिःतका को | जीवन म इसको बार-बार पढ़त रहो | एक िदन म यह पणर ना होगा | बार-बार अ यास करो | त हार िलय यह एक ही पिःतका काफ़ी ह | अनय कचराप टी ना पड़ोग तो चलगा | शाबाश वीर शाबाश

  • परसतावना
  • जीवन रसायन
  • गर भकति एक अमोघ साधना
  • शरी राम-वशिषठ सवाद
  • आतमबल का आवाहन
  • आतमबल कस जगाय
Page 24: जीवन रसायन - HariOmGroup · ‘जीवन रसायन’ का यह िदय कटोरा आत्मरस के िपपासुओं हाथ

मखरतापणर ह | जहा जनम ही नही हआ वहा मतय हो ही कस सकती ह 152) आप ही इस जगत क ई र हो | आपको कौन दबरल बना सकता ह जगत म आप ही एकमाऽ स ा हो | आपको िकसका भय खड़ हो जाओ | म हो जाओ | ठ क स समझ लो िक जो कोई िवचार या श द आपको दबरल बनाता ह वही एकमाऽ अशभ ह | मनय को दबरल व भयभीत करनवाला जो कछ इस ससार म ह वह पाप ह | 153) आप अपना कायर या कतर य करो लिकन न उसक िलए कोई िचनता रह न ही कोई

इ छा | अपन कायर म सख का अनभव करो कय िक आपका कायर ःवय सख या िवौाम ह | आपका कायर आतमानभव का ही दसरा नाम ह | कायर म लग रहो | कायर आपको आतमानभव कराता ह |

िकसी अनय हत स कायर न करो | ःवतऽ वि स अपन कायर पर डट जाओ | अपन को ःवतऽ

समझो िकसीक कदी नही | 154) यिद आप सतय क मागर स नही हटत तो शि का वाह आपक साथ ह समय आपक

साथ ह ऽ आपक साथ ह | लोग को उनक भतकाल की मिहमा पर फलन दो भिवयकाल की स पणर मिहमा आपक हाथ म ह | 155) जब आप िद य म क साथ चा डाल म चोर म पापी म अ यागत म और सबम भ क दशरन करग तब आप भगवान ौी कण क मपाऽ बन जायग | 156) आचायर गौड़पाद न ःप कहा आप सब आपस म भल ही लड़त रह लिकन मर साथ नही लड़ सक ग | आप सब लोग मर पट म ह | म आतमःवरप स सवर या ह | 157) मनय सभी ािणय म ौ ह सब दवताओ स भी ौ ह | दवताओ को भी िफर स

धरती पर आना पड़गा और मनय शरीर ा करक मि ा करनी होगी | 158) िनि नतता क दो सऽ जो कायर करना जररी ह उस परा कर दो | जो िबनजररी ह

उस भल जाओ | 159) सवा-म-तयाग ही मनय क िवकास का मल मऽ ह | अगर यह मऽ आपको जच

जाय तो सभी क ित सदभाव रखो और शरीर स िकसी-न-िकसी यि को िबना िकसी मतलब क

सहयोग दत रहो | यह नही िक जब मरी बात मानग तब म सवा करगा | अगर बनधक मरी बात

नही मानत तो म सवा नही करगा |

भाई तब तो तम सवा नही कर पाओग | तब तो तम अपनी बात मनवा कर अपन अह की पजा ही

करोग | 160) जस ःव न िमथया ह वस ही यह जामत अवःथा भी ःव नवत ही ह िमथया ह | हरक

को अपन इस ःव न स जागना ह | सदगर बार-बार जगा रह ह लिकन जाग कर वापस सो न जाए ऐसा परषाथर तो हम ही करना होगा | 161) सदा सननमख रहो | मख को कभी मिलन मत करो | िन य कर लो िक आपक

िलय शोक न इस जगत म जनम नही िलया ह | आननदःवरप म िचनता का ःथान ही कहा ह 162) समम ा ड एक शरीर ह | समम ससार एक शरीर ह | जब तक आप तयक क

साथ एकता का अनभव करत रहग तब तक सब पिरिःथितया और आस-पास की चीज़ हवा और समि की लहर भी आपक प म रहगी | 163) आपको जो कछ शरीर स बि स या आतमा स कमजोर बनाय उसको िवष की तरह

ततकाल तयाग दो | वह कभी सतय नही हो सकता | सतय तो बलद होता ह पावन होता ह

ानःवरप होता ह | सतय वह ह जो शि द | 164) साधना म हमारी अिभरिच होनी चािहय साधना की तीो माग होनी चािहय | 165) दसर क दोष की चचार मत करो चाह व िकतन भी बड़ ह | िकसी क दोष की चचार करक आप उसका िकसी भी कार भला नही करत बि क उस आघात पहचात ह और साथ-ही-साथ अपन आपको भी | 166) इस ससार को सतय समझना ही मौत ह | आपका असली ःवरप तो आननदःवरप

आतमा ह | आतमा क िसवा ससार जसी कोई चीज ही नही ह | जस सोया हआ मनय ःव न म अपनी एकता नही जानता अिपत अपन को अनक करक दखता ह वस ही आननदःवरप आतमा जामत ःव न और सषि - इन तीन ःवरप को दखत हए अपनी एकता अि तीयता का अनभव

नही करता | 167) मनोजय का उपाय ह अ यास और वरा य | अ यास मान य पवरक मन को बार-बार परमातम-िचतन म लगाना और वरा य मान मन को ससार क पदाथ की ओर स वापस

लौटाना | 168) िकसी स कछ मत मागो | दन क िलय लोग आपक पीछ-पीछ घमग | मान नही

चाहोग तो मान िमलगा | ःवगर नही चाहोग तो ःवगर क दत आपक िलय िवमान लकर आयग |

उसको भी ःवीकार नही करोग तो ई र आपको अपन दय स लगायग | 169) कभी-कभी उदय या अःत होत हए सयर की ओर चलो | नदी सरोवर या समि क तट

पर अकल घमन जाओ | ऐस ःथान की मलाकात लो जहा शीतल पवन मनद-मनद चल रही हो | वहा परमातमा क साथ एकःवर होन की स भावना क ार खलत ह | 170) आप य -ही इ छा स ऊपर उठत हो तय -ही आपका इि छत पदाथर आपको खोजन

लगता ह | अतः पदाथर स ऊपर उठो | यही िनयम ह | य - य आप इ छक िभ क याचक का भाव धारण करत हो तय -तय आप ठकराय जात हो | 171) कित क तयक पदाथर को दखन क िलय काश जररी ह | इसी कार मन बि

इिनिय को अपन-अपन कायर करन क िलय आतम-काश की आवयकता ह कय िक बाहर का कोई काश मन बि इिनिय ाणािद को चतन करन म समथर नही | 172) जस ःव न ा परष को जागन क बाद ःव न क सख-दःख जनम-मरण पाप-प य

धमर-अधमर आिद ःपशर नही करत कय िक वह सब खद ही ह | खद क िसवाय ःव न म दसरा कछ

था ही नही | वस ही जीवनम ानवान परष को सख-दःख जनम-मरण पाप-प य धमर-अधमर ःपशर नही करत कय िक व सब आतमःवरप ही ह | 173) वही भमा नामक आतम योित क म रह कर भ क रही ह सअर म रह कर घर रही ह गध म रह कर रक रही ह लिकन मखर लोग शरीर पर ही ि रखत ह चतनय ततव पर नही | 174) मनय िजस ण भत-भिवय की िचनता का तयाग कर दता ह दह को सीिमत और उतपि -िवनाशशील जानकर दहािभमान को तयाग दता ह उसी ण वह एक उ चतर अवःथा म पहच जाता ह | िपजर स छटकर गगनिवहार करत हए प ी की तरह मि का अनभव करता ह | 175) समःत भय एव िचनताए आपकी इ छाओ का णाम ह | आपको भय कय लगता ह

कय िक आपको आशका रहती ह िक अमक चीज कही चली न जाय | लोग क हाःय स आप डरत

ह कय िक आपको यश की अिभलाषा ह कीितर म आसि ह | इ छाओ को ितलाजिल द दो | िफर दखो मजा कोई िज मदारी नहीकोई भय नही | 176) दखन म अतयत करप काला-कलटा कबड़ा और तज ःवभाव का मनय भी आपका ही ःवरप ह | आप इस तथय स म नही | िफर घणा कसी कोई लाव यमयी सदरी सि की

शोभा क समान अित िवलासभरी अ सरा भी आपका ही ःवरप ह | िफर आसि िकसकी

आपकी ानिनिया उनको आपस अलग करक िदखाती ह | य इिनिया झठ बोलनवाली ह | उनका कभी िव ास मत करो | अतः सब कछ आप ही हो | 177) मानव क नात हम साधक ह | साधक होन क नात सतय को ःवीकर करना हमारा ःवधमर ह | सतय यही ह िक बल दसर क िलय ह ान अपन िलय ह और िव ास परमातमा स

स बनध जोड़न क िलय ह | 178) अपनी आतमा म डब जाना यह सबस बड़ा परोपकार ह | 179) आप सदव म ह ऐसा िव ास ढ़ करो तो आप िव क उ ारक हो जात हो | आप

यिद वदानत क ःवर क साथ ःवर िमलाकर िन य करो आप कभी शरीर न थ | आप िनतय श

ब आतमा हो तो अिखल ा ड क मो दाता हो जात हो | 180) कपा करक उन ःवाथरमय उपाय और अिभाय को दर फ क दो जो आपको पिरि छनन रखत ह | सब वासनाए राग ह | यि गत या शरीरगत म आसि ह | उस फ क दो | ःवय पिवऽ हो जाओ | आपका शरीर ःवःथ और बि पणरःवरप हो जायगी | 181) यिद ससार क सख व पदाथर ा ह तो आपको कहना चािहय ओ शतान हट जा मर सामन स | तर हाथ स मझ कछ नही चािहय | तब दखो िक आप कस सखी हो जात हो परमातमा-ा िकसी महापरष पर िव ास रखकर अपनी जीवनडोरी िनःशक बन उनक चरण म सदा क िलय रख दो | िनभरयता आपक चरण की दासी बन जायगी | 182) िजसन एक बार ठ क स जान िलया िक जगत िमथया ह और ािनत स इसकी तीित

हो रही ह उसको कभी दःख नही होता | जगत म कभी आसि नही होती | जगत क िमथयातव क

िन य का नाम ही जगत का नाश ह | 183) अपन ःवरप म लीन होन माऽ स आप ससार क साट बन जायग | यह साटपद

कवल इस ससार का ही नही समःत लोक-परलोक का साटपद होगा | 184) ह जनक चाह दवािधदव महादव आकर आपको उपदश द या भगवान िवण आकर उपदश द अथवा ाजी आकर उपदश द लिकन आपको कदािप सख न होगा | जब िवषय का तयाग करोग तभी स ची शाित व आनद ा ह ग |

185) िजस भ न हम मानव जीवन दकर ःवाधीनता दी िक हम जब चाह तब धमारतमा होकर भ होकर जीवनम होकर कतकतय हो सकत ह- उस भ की मिहमा गाओ | गाओ नही तो सनो | सनो भी नही गाओ भी नही तो ःवीकार कर लो | 186) चाह समि क गहर तल म जाना पड़ सा ात मतय का मकाबला करना पड़ अपन

आतमाि क उ य की पितर क िलय अिडग रहो | उठो साहसी बनो शि मान बनो | आपको जो बल व सहायता चािहय वह आपक भीतर ही ह | 187) जब-जब जीवन स बनधी शोक और िचनता घरन लग तब-तब अपन आननदःवरप

का गान करत-करत उस मोह-माया को भगा दो | 188) जब शरीर म कोई पीड़ा या अग म ज म हो तब म आकाशवत आकाशरिहत चतन

ह ऐसा ढ़ िन य करक पीड़ा को भल जाओ | 189) जब दिनया क िकसी चककर म फस जाओ तब म िनलप िनतय म ह ऐसा ढ़

िन य करक उस चककर स िनकल जाओ | 190) जब घर-बार स बनधी कोई किठन समःया याकल कर तब उस मदारी का खल

समझकर ःवय को िनःसग जानकर उस बोझ को ह का कर दो | 191) जब बोध क आवश म आकर कोई अपमानय वचन कह तब अपन शाितमय

ःवरप म िःथर होकर मन म िकसी भी ोभ को पदा न होन दो | 192) उ म अिधकारी िज ास को चािहय िक वह व ा सदगर क पास जाकर ौ ा पवरक महावाकय सन | उसका मनन व िनिदधयासन करक अपन आतमःवरप को जान | जब

आतमःवरप का सा ातकार होता ह तब ही परम िवौािनत िमल सकती ह अनयथा नही | जब तक

व ा महापरष स महावाकय ा न हो तब तक वह मनद अिधकारी ह | वह अपन दयकमल म परमातमा का धयान कर ःमरण कर जप कर | इस धयान-जपािद क साद स उस व ा सदगर

ा ह ग | 193) मन बि िच अहकार छाया की तरह जड़ ह णभगर ह कय िक व उतपनन होत

ह और लीन भी हो जात ह | िजस चतनय की छाया उसम पड़ती ह वह परम चतनय सबका आतमा ह | मन बि िच अहकार का अभाव हो जाता ह लिकन उसका अनभव करनवाल का अभाव

कदािप नही होता |

194) आप अपनी शि को उ चाितउ च िवषय की ओर बहन दो | इसस आपक पास व

बात सोचन का समय ही नही िमलगा िजसस कामकता की गध आती हो | 195) अपराध क अनक नाम ह बालहतया नरहतया मातहतया गौहतया इतयािद |

परनत तयक ाणी म ई र का अनभव न करक आप ई रहतया का सबस बड़ा अपराध करत ह | 196) सवा करन की ःवाधीनता मनयमाऽ को ा ह | अगर वह करना ही न चाह तो अलग बात ह | सवा का अथर ह मन-वाणी-कमर स बराईरिहत हो जाना यह िव की सवा हो गई |

यथाशि भलाई कर दो यह समाज की सवा हो गई | भलाई का फल छोड़ दो यह अपनी सवा हो गई

| भ को अपना मानकर ःमित और म जगा लो यह भ की सवा हो गई | इस कार मनय

अपनी सवा भी कर सकता ह समाज की सवा भी कर सकता ह िव की सवा भी कर सकता ह

और िव र की सवा भी कर सकता ह | 197) आतमा स बाहर मत भटको अपन कनि म िःथर रहो अनयथा िगर पड़ोग | अपन-

आपम पणर िव ास रखो | आतम-कनि पर अचल रहो | िफर कोई भी चीज आपको िवचिलत नही कर सकती | 198) सदा शात िनिवरकार और सम रहो | जगत को खलमाऽ समझो | जगत स भािवत

मत हो | इसस आप हमशा सखी रहोग | िफर कछ बढ़ान की इ छा नही होगी और कछ कम होन स

दःख नही होगा | 199) समथर सदगर क सम सदा फल क भाित िखल हए रहो | इसस उनक अनदर सक प

होगा िक यह तो बहत उतसाही साधक ह सदा सनन रहता ह | उनक सामथयरवान सक प स

आपकी वह किऽम सननता भी वाःतिवक सननता म बदल जायगी | 200) यिद रोग को भी ई र का िदया मानो तो ार ध-भोग भी हो जाता ह और क तप का फल दता ह | इसस ई र-कपा की ाि होती ह | याकल मत हो | क सल और इनजकशन

आधीन मत हो | 201) साधक को चािहय िक अपन लआय को ि म रखकर साधना-पथ पर तीर की तरह

सीधा चला जाय | न इधर दख न उधर | ि यिद इधर-उधर जाती हो तो समझना िक िन ा िःथर नही ह |

202) आपन अपन जीवन म हजार ःव न दख ह ग लिकन व आपक जीवन क अश नही बन जात | इसी कार य जामत जगत क आड बर आपकी आतमा क सम कोई मह व नही रखत | 203) एक आतमा को ही जानो अनय बात को छोड़ो | धीर साधक को चािहय िक वह

सावधान होकर आतमिन ा बढ़ाय अनक श द का िचनतन व भाषण न कर कय िक वह तो कवल

मन-वाणी को पिरौम दनवाला ह असली साधना नही ह | 204) जो परष जन-समह स ऐस डर जस साप स डरता ह स मान स ऐस डर जस नकर स

डरता ह ि य स ऐस डर जस मद स डरता ह उस परष को दवतागण ा ण मानत ह | 205) जस अपन शरीर क अग पर बोध नही आता वस शऽ िमऽ व अपनी दह म एक ही आतमा को दखनवाल िववकी परष को कदािप बोध नही आता | 206) मन तो शरीर को ई रापरण कर िदया ह | अब उसकी भख- यास स मझ कया

समिपरत वःत म आस होना महा पाप ह | 207) आप यिद िद य ि पाना चहत हो तो आपको इिनिय क ऽ का तयाग करना होगा | 208) लयकाल क मघ की गजरना हो समि उमड़ पड बारह सयर तपायमान हो जाय पहाड़ स पहाड़ टकरा कर भयानक आवाज हो तो भी ानी क िन य म त नही भासता कय िक

त ह ही नही | त तो अ ानी को भासता ह | 209) सतय को ःवीकार करन स शाित िमलगी | कछ लोग यो यता क आधार पर शाित

खरीदना चाहत ह | यो यता स शाित नही िमलगी यो यता क सदपयोग स शाित िमलगी | कछ

लोग स पि क आधार पर शाित सरि त रखना चाहत ह | स पि स शाित नही िमलगी स पि

क सदपयोग स शाित िमलगी वस ही िवपि क सदपयोग स शाित िमलगी | 210) त छ हािन-लाभ पर आपका धयान इतना कय रहता ह िजसस अनत आननदःवरप

आतमा पर स धयान हट जाता ह | 211) अपन अनदर ही आननद ा करना य िप किठन ह परनत बा िवषय स आननद

ा करना तो अस भव ही ह |

212) म ससार का काश ह | काश क रप म म ही सब वःतओ म या ह | िनतय इन

िवचार का िचनतन करत रहो | य पिवऽ िवचार आपको परम पिवऽ बना दग | 213) जो वःत कमर स ा होती ह उसक िलय ससार की सहायता तथा भिवय की आशा की आवयकता होती ह परनत जो वःत तयाग स ा होती ह उसक िलय न ससार की सहायता चािहय न भिवय की आशा | 214) आपको जब तक बाहर चोर िदखता ह तब तक जरर भीतर चोर ह | जब दसर लोग

स िभनन अयो य खराब सधारन यो य िदखत ह तब तक ओ सधार का बीड़ा उठान वाल त अपनी िचिकतसा कर | 215) सफल व ही होत ह जो सदव नतमःतक एव सननमख रहत ह | िचनतातर-शोकातर लोग की उननित नही हो सकती | तयक कायर को िह मत व शाित स करो | िफर दखो िक यह

कायर शरीर मन और बि स हआ | म उन सबको स ा दनवाला चतनयःवरप ह | ॐ ॐ का पावन गान करो | 216) िकसी भी पिरिःथित म मन को यिथत न होन दो | आतमा पर िव ास करक

आतमिन बन जाओ | िनभरयता आपकी दासी बन कर रहगी | 217) सतसग स मनय को साधना ा होती ह चाह वह शाित क रप म हो चाह मि क

रप म चाह सवा क रप म हो म क रप म हो चाह तयाग क रप म हो | 218) भला-बरा वही दखता ह िजसक अनदर भला-बरा ह | दसर क शरीर को वही दखता ह

जो खद को शरीर मानता ह | 219) खबरदार आपन यिद अपन शरीर क िलय ऐश-आराम की इ छा की िवलािसता एव इिनिय-सख म अपना समय बरबाद िकया तो आपकी खर नही | ठ क स कायर करत रहन की नीित

अपनाओ | सफलता का पहला िस ात ह कायरिवौामरिहत कायरसा ी भाव स कायर | इस

िस ात को जीवन म चिरताथर करोग तो पता चलगा िक छोटा होना िजतना सरल ह उतना ही बड़ा होना भी सहज ह | 220) भतकाल पर िखनन हए िबना भिवय की िचनता िकय िबना व रमान म कायर करो | यह भाव आपको हर अवःथा म सनन रखगा हम जो कछ ा ह उसका सदपयोग ही अिधक

काश पान का साधन ह |

221) जब आप सफलता की ओर पीठ कर लत हो पिरणाम की िचनता का तयाग कर दत

हो स मख आय हए क र य पर अपनी उ ोगशि एकाम करत हो तब सफलता आपक पीछ-पीछ

आ जाती ह | अतः सफलता आपको खोजगी | 222) वि तब तक एकाम नही होगी जब तक मन म कभी एक आशा रहगी तो कभी दसरी | शात वही हो सकता ह िजस कोई क र य या आवयकता घसीट न रही हो | अतः परम शाित पान

क िलय जीवन की आशा भी तयाग कर मन ाननद म डबो दो | आज स समझ लो िक यह शरीर ह ही नही | कवल ाननद का सागर लहरा रहा ह | 223) िजसकी पककी िन ा ह िक म आतमा हrsquo उसक िलय ऐसी कौन सी मिथ ह जो खल

न सक ऐसी कोई ताकत नही जो उसक िवर जा सक | 224) मर भा य म नही थाई र की मज आजकल सतसग ा नही होताजगत

खराब ह ऐस वचन हमारी कायरता व अनतःकरण की मिलनता क कारण िनकलत ह | अतः नकारातमक ःवभाव और दसर पर दोषारोपण करन की वि स बचो | 225) आप जब भीतरवाल स नाराज होत हो तब जगत आपस नाराज रहता ह | जब आप

भीतर अनतयारमी बन बठ तो जगतरपी पतलीघर म िफर गड़बड़ कसी 226) िजस ण हम ससार क सधारक बन खड़ होत ह उसी ण हम ससार को िबगाड़नवाल बन जात ह | श परमातमा को दखन क बजाय जगत को िबगड़ा हआ दखन की ि बनती ह | सधारक लोग मानत ह िक lsquoभगवान न जो जगत बनाया ह वह िबगड़ा हआ ह और हम उस सधार रह ह |rsquo वाह वाह धनयवाद सधारक अपन िदल को सधारो पहल | सवरऽ िनरजन का दीदार करो | तब आपकी उपिःथित माऽ स आपकी ि माऽ स अर यार आपको छकर बहती हवा माऽ स अननत जीव को शाित िमलगी और अननत सधार होगा | नानक कबीर महावीर ब और लीलाशाह बाप जस महापरष न यही कजी अपनायी थी | 227) वदानत म हमशा कमर का अथर होता ह वाःतिवक आतमा क साथ एक होकर च ा करना अिखल िव क साथ एकःवर हो जाना | उस अि तीय परम ततव क साथ िनःःवाथर सयोग ा करना ही एकमाऽ स चा कमर ह बाकी सब बोझ की गठिरया उठाना ह |

228) अपनी व रमान अवःथा चाह कसी भी हो उसको सव च मानन स ही आपक दय म आतम ान ान का अनायास उदय होन लगगा | आतम-सा ातकार को मील दर की कोई चीज समझकर उसक पीछ दौड़ना नही ह िचिनतत होना नही ह |

िचनता की गठरी उठाकर यिथत होन की जररत नही ह | िजस ण आप िनि नतता म गोता मारोग उसी ण आपका आतमःवरप गट हो जायगा | अर गट कया होगा आप ःवय आतमःवरप हो ही | अनातमा को छोड़ दो तो आतमःवरप तो हो ही | 229) सदा ॐकार का गान करो | जब भय व िचनता क िवचार आय तब िकसी मःत सत-फकीर महातमा क सािननधय का ःमरण करो | जब िननदा-शसा क सग आय तब महापरष क जीवन का अवलोकन करो | 230) िजनको आप भयानक घटनाए एव भयकर आघात समझ बठ हो वाःतव म व आपक ियतम आतमदव की ही करतत ह | समःत भयजनक तथा ाणनाशक घटनाओ क नाम-रप तो िवष क ह लिकन व बनी ह अमत स | 231) मन म यिद भय न हो तो बाहर चाह कसी भी भय की साममी उपिःथत हो जाय आपका कछ िबगाड़ नही सकती | मन म यिद भय होगा तो तरनत बाहर भी भयजनक पिरिःथया न होत हए भी उपिःथत हो जायगी | व क तन म भी भत िदखन लगगा | 232) िकसी भी पिरिःथित म िदखती हई कठोरता व भयानकता स भयभीत नही होना चािहए | क क काल बादल क पीछ पणर काशमय एकरस परम स ा सयर की तरह सदा िव मान ह | 233) आप अपन पर कदािप अिव ास मत करो | इस जगत म आप सब कछ कर सकत हो | अपन को कभी दबरल मत मानो | आपक अनदर तमाम शि या छपी हई ह | 234) यिद कोई मन य आपकी कोई चीज़ को चरा लता ह तो ड़रत कय हो वह मनय

और आप एक ह | िजस चीज़ को वह चराता ह वह चीज़ आपकी और उसकी द न की ह | 235) जो खद क िसवाय दसरा कछ दखता नही सनता नही जानता नही वह अननत ह |

जब तक खद क िसवाय और िकसी वःत का भान होता ह वह वःत स ची लगती ह तब तक आप

सीिमत व शात ह असीम और अनत नही |

236) ससार मझ कया आनद द सकता ह स पणर आनद मर भीतर स आया ह | म ही स पणर आननद ह स पणर मिहमा एव स पणर सख ह | 237) जीवन की समःत आवयकताए जीवन म उपिःथत ह परनत जीवन को जब हम

बा रग म रग दत ह तब जीवन का वाःतिवक रप हम नही जान पात | 238) िननदक की िननदा स म कय मरझाऊ शसक की शसा स म कय फल िननदा स म घटता नही और शसा स म बढ़ता नही | जसा ह वसा ही रहता ह | िफर िननदा-ःतित स

खटक कसी 239) ससार व ससार की समःयाओ म जो सबस अिधक फस हए ह उनही को वदानत की सबस अिधक आवयकता ह | बीमार को ही औषिध की यादा आवयकता ह | कय जी ठ क ह न 240) जगत क पाप व अतयाचार की बात मत करो लिकन अब भी आपको जगत म पाप

िदखता ह इसिलय रोओ | 241) हम यिद जान ल िक जगत म आतमा क िसवाय दसरा कछ ह ही नही और जो कछ

िदखता ह वह ःव नमाऽ ह तो इस जगत क दःख-दािरिय पाप-प य कछ भी हम अशात नही कर सकत | 242) िव ान दाशरिनक व आचाय की धमकी तथा अनमह आलोचना या अनमित

ानी पर कोई भाव नही ड़ाल सकती | 243) ह यि रप अननत आप अपन पर पर खड़ रहन का साहस करो समःत िव का बोझ आप िखलौन की तरह उठा लोग | 244) िसह की गजरना व नरिसह की ललकार तलवार की धार व साप की फफकार तपःवी की धमकी व नयायधीश की फटकारइन सबम आपका ही काश चमक रहा ह | आप इनस

भयभीत कय होत हो उलझन कय महसस करत हो मरी िब ली मझको याऊ वाली बात कय

होन दत हो 245) ससार हमारा िसफ़र िखलोना ही ह और कछ नही | अबोध बालक ही िखलौन स

भयभीत होता ह आसि करता ह िवचारशील यि नही |

246) जब तक अिव ा दर नही होगी तब तक चोरी जआ दार यिभचार कभी बद न

ह ग चाह लाख कोिशश करो | 247) आप हमशा अदर का धयान रखो | पहल हमारा भीतरी पतन होता ह | बा पतन तो इसका पिरणाम माऽ ह | 248) तयाग स हमशा आनद िमलता ह | जब तक आपक पास एक भी चीज़ बाकी ह तब

तक आप उस चीज़ क बधन म बध रहोग | आघात व तयाघात हमशा समान िवरोधी होत ह | 249) िनि तता ही आरो यता की सबस बड़ी दवाई ह | 250) सख अपन िसर पर दख का मकट पहन कर आता ह | जो सख को अपनायगा उस

दख को भी ःवीकार करना पड़गा | 251) म (आतमा) सबका ा ह | मरा ा कोई नही | 252) हजार म स कोई एक परष भीतर स शात िच वाला रहकर बाहर स ससारी जसा यवहार कर सकता ह | 253) सतय क िलए यिद शरीर का तयाग करना पड़ तो कर दना | यही आिखरी ममता ह जो हम तोड़नी होगी | 254) भय िचनता बचनी स ऊपर उठो | आपको ान का अनभव होगा | 255) आपको कोई भी हािन नही पहचा सकता | कवल आपक खयालात ही आपक पीछ पड़ ह | 256) म का अथर ह अपन पड़ोसी तथा सपकर म आनवाल क साथ अपनी वाःतिवक अभदता का अनभव करना | 257) ओ यार अपन खोय हए आतमा को एक बार खोज लो | धरती व आसमान क शासक आप ही हो | 258) सदव सम और सनन रहना ई र की सव पिर भि ह |

259) जब तक िच म ढ़ता न आ जाय िक शा की िविधय का पालन छोड़ दन स भी दय का यथाथर भि भाव न नही होगा तब तक शा की िविधय को पालत रहो |

गर भि एक अमोघ साधना 1 जनम मरण क िवषचब स म होन का कोई मागर नही ह कया सख-दःख हषर-शोक लाभ-

हािन मान-अपमान की थ पड़ स बचन का कोई उपाय नही ह कया

हअवय ह | ह िय आतमन नाशवान पदाथ स अपना मन वािपस लाकर सदगर क

चरणकमल म लगाओ | गरभि योग का आौय लो | गरसवा ऐसा अमोघ साधन ह िजसस

व रमान जीवन आननदमय बनता ह और शा त सख क ार खलत ह |

गर सवत त नर धनय यहा | ितनक नही दःख यहा न वहा || 2 स च सदगर की की हई भि िशय म सासािरक पदाथ क वरा य एव अनासि जगाती ह

परमातमा क ित म क पप महकाती ह | 3 तयक िशय सदगर की सवा करना चाहता ह लिकन अपन ढग स | सदगर चाह उस ढग स

सवा करन को कोई ततपर नही | जो िवरला साधक गर चाह उस ढ़ग स सवा कर सकता ह उस कोई कमी नही रहती |

िन सदगर की सवा स उनकी कपा ा होती ह और उस कपा स न िमल सक ऐसा तीन लोक म कछ भी नही ह | 4 गर िशय का स बनध पिवऽतम स बनध ह | ससार क तमाम बनधन स छड़ाकर वह मि क मागर पर ःथान कराता ह | यह स बनध जीवनपयरनत का स बनध ह | यह बात अपन दय की डायरी म सवणर-अ र स िलख लो | 5 उ ल सयर क काश क अिःततव को मान या न मान िफर भी सयर हमशा काशता ह | चचल मन का मनय मान या न मान लिकन सदगर की परमक याणकारी कपा सदव बरसती ही रहती ह | 6 सदगर की चरणरज म ःनान िकय िबना कवल किठन तप यार करन स या वद का

अधयन करन स वदानत का रहःय कट नही होता आतमानद का अमत नही िमलता | 7 दशरन शा क चाह िकतन मनथ पढ़ो हजार वष तक िहमालय की गफा म तप करो वष तक ाणायाम करो जीवनपयरनत शीषारसन करो समम िव म वास करक याखान दो िफर भी सदगर की कपा क िबना आतम ान नही होता | अतः िनरािभमानी सरल िनजाननद म मःत दयाल ःवभाव क आतम-सा ातकारी सदगर क चरण म जाओ | जीवन को धनय बनाओ | 8 सदगर की सवा िकय िबना शा का अधयन करना मम साधक क िलय समय बरबाद करन क बराबर ह | 9 िजसको सदगर ा हए ह ऐस िशय क िलय इस िव म कछ भी अा य नही ह | सदगर िशय को िमली हई परमातमा की अम य भट ह | अर नहीhellipनही व तो िशय क सम साकार रप म कट हए परमातमा ःवय ह | 10 सदगर क साथ एक ण िकया हआ सतसग लाख वष क तप स अननत गना ौ ह | आख क िनमषमाऽ म सदगर की अमतवष ि िशय क जनम-जनम क पाप को जला सकती ह | 11 सदगर जसा मपणर कपाल िहतिचनतक िव भर म दसरा कोई नही ह | 12 बाढ़ क समय याऽी यिद तफानी नदी को िबना नाव क पार कर सक तो साधक भी िबना सदगर क अपन जीवन क आिखरी लआय को िस कर सकता ह | यानी य दोन बात स भव ह |

अतः यार साधक मनमखी साधना की िज करना छोड़ दो | गरमखी साधना करन म ही सार ह | 13 सदगर क चरणकमल का आौय लन स िजस आननद का अनभव होता ह उसक आग िऽलोकी का साा य त छ ह | 14 आतम-सा ातकार क मागर म सबस महान शऽ अहभाव का नाश करन क िलए सदगर की आ ा का पालन अमोघ श ह | 15 रसोई सीखन क िलय कोई िसखानवाला चािहय िव ान और गिणत सीखन क िलय

अधयापक चािहय तो कया िव ा सदगर क िबना ही सीख लोग 16 सदगरकपा की स पि जसा दसरा कोई खजाना िव भर म नही | 17 सदगर की आ ा का उ लघन करना यह अपनी क खोदन क बराबर ह | 18 सदगर क कायर को शका की ि स दखना महापातक ह | 19 गरभि व गरसवा - य साधनारपी नौका की दो पतवार ह | उनकी मदद स िशय ससारसागर को पार कर सकता ह | 20 सदगर की कसौटी करना असभव ह | एक िववकाननद ही दसर िववकाननद को पहचान सकत ह | ब को जानन क िलय दसर ब की आवयकता रहती ह | एक रामतीथर का रहःय दसर रामतीथर ही पा सकत ह |

अतः सदगर की कसौटी करन की च ा छोड़कर उनको पिरपणर पर परमातमा मानो |

तभी जीवन म वाःतिवक लाभ होगा | 21 गरभि योग का आौय लकर आप अपनी खोई हई िद यता को पनः ा करो सख-दःख जनम-मतय आिद सब न स पार हो जाओ | 22 गरभि योग मान गर की सवा क ारा मन और िवकार पर िनयऽण एव पनः सःकरण | 23 िशय अपन गर क चरणकमल म णाम करता ह | उन पर ौ फल की वषार करक उनकी ःतित करता ह ldquoह परम प य पिवऽ गरदव मझ सव च सख ा हआ ह | म िन ा स जनम-मतय की पर परा स म हआ ह | म िनिवरक प समािध का श सख भोग रहा ह | जगत क िकसी भी कोन म म म ता स िवचरण कर सकता ह | सब पर मरी सम ि ह | मन ाकत मन का तयाग िकया ह | मन सब सक प एव रिच-अरिच का तयाग िकया ह | अब म अख ड शाित म िवौाित पा रहा ह hellip आननदमय हो रहा ह | म इस पणर अवःथा का वणरन नही कर पाता | ह प य गरदव म आवाक बन गया ह | इस दःतर भवसागर को पार करन म आपन

मझ सहायता की ह | अब तक मझ कवल अपन शरीर म ही स पणर िव ास था | मन िविभनन योिनय म अस य जनम िलय | ऐसी सव च िनभरय अवःथा मझ कौन स पिवऽ कम क कारण ा हई ह यह म नही जानता | सचमच यह एक दलरभ भा य ह |

यह एक महान उतक लाभ ह | अब म आननद स नाचता ह | मर सब दःख न हो गय | मर सब मनोरथ पणर हए ह |

मर कायर स पनन हए ह | मन सब वािछत वःतए ा की ह | मरी इ छा पिरपणर हई ह | आप मर स च माता-िपता हो | मरी व रमान िःथित म म दसर क सम िकस कार कट कर सक सवरऽ सख और आननद का अननत सागर मझ लहराता हआ िदख रहा ह | मर अतःच िजसस खल गय वह महावाकय lsquoत वमिसrsquo ह | उपिनषद एव वदानतसऽ को भी धनयवाद | िजनह न िन गर का एव उपिनषद क महावाकय का रप धारण िकया ह | ऐस ौी यासजी को णाम ौी शकराचायर को णाम सासािरक मनय क िसर पर गर क चरणामत का एक िबनद भी िगर तो भी उसक ःब दःख का नाश होता ह | यिद एक िन परष को व पहनाय जाय तो सार िव को व पहनान एव भोजन करवान क बराबर ह कय िक िन परष सचराचर िव म या ह | सबम व ही ह |rdquo

ॐhellip ॐ hellip ॐ hellip

ःवामी िशवानद जी

ौी राम-विश सवाद ौी विश जी कहत ह ldquoह रघकलभषण ौी राम अनथर ःवरप िजतन सासािरक पदाथर ह व सब जल म तरग क समान िविवध रप धारण करक चमतकार उतपनन करत ह अथारत ई छाए उतपनन करक जीव को मोह म फसात ह | परत जस सभी तरग जल ःवरप ही ह उसी कार सभी पदाथर वःततः न र ःवभाव वाल ह |

बालक की क पना स आकाश म य और िपशाच िदखन लगत ह परनत बि मान मनय क िलए उन य और िपशाच का कोई अथर नही | इसी कार अ ानी क िच म यह जगत सतय हो ऐसा लगता ह जबिक हमार जस ािनय क िलय यह जगत कछ भी नही | यह समम िव पतथर पर बनी हई पतिलय की सना की तरह रपालोक तथा अतर-बा िवषय स शनय ह | इसम सतयता कसी परनत अ ािनय को यह िव सतय लगता ह |rdquo विश जी बोल ldquoौी राम जगत को सतय ःवरप म जानना यह ाित ह मढ़ता ह | उस िमथया अथारत कि पत समझना यही उिचत समझ ह | ह राघव तव ा अहता आिद सब िवम-िवलास शात िशवःवरप श ःवरप ही ह | इसिलय मझ तो क अितिर और कछ भी नही िदखता | आकाश म जस जगल नही वस ही म जगत नही ह | ह राम ार ध वश ा कम स िजस परष की च ा कठपतली की तरह ई छाशनय और याकलतारिहत होती ह वह शानत मनवाला परष जीवनम मिन ह | ऐस जीवनम ानी को इस

जगत का जीवन बास की तरह बाहर-भीतर स शनय रसहीन और वासना-रिहत लगता ह | इस य पच म िजस रिच नही दय म िचनमाऽ अ य ही अ छा लगता ह ऐस परष न

भीतर तथा बाहर शािनत ा कर ली ह और इस भवसागर स पार हो गया ह | रघनदन श व ा कहत ह िक मन का ई छारिहत होना यही समािध ह कय िक ई छाओ का तयाग करन स मन को जसी शािनत िमलती ह ऐसी शािनत सकड़ उपदश स भी नही िमलती | ई छा की उतपि स जसा दःख ा होता ह ऐसा दःख तो नरक म भी नही | ई छाओ की शािनत

स जसा सख होता ह ऐसा सख ःवगर तो कया लोक म भी नही होता | अतः समःत शा तपःया यम और िनयम का िनचोड़ यही ह िक ई छामाऽ दःखदायी ह और ई छा का शमन मो ह | ाणी क दय म जसी-जसी और िजतनी-िजतनी ई छाय उतपनन होती ह उतना ही दख स वह

ड़रता रहता ह | िववक-िवचार ारा ई छाय जस-जस शानत होती जाती ह वस-वस दखरपी छत की बीमारी िमटती जाती ह |

आसि क कारण सासािरक िवषय की ई छाय य - य गहनीभत होती जाती ह तय -तय

दःख की िवषली तरग बढ़ती जाती ह | अपन परषाथर क बल स इस ई छारपी यािध का उपचार यिद नही िकया जाय तो इस यािध स छटन क िलय अनय कोई औषिध नही ह ऐसा म ढ़तापवरक

मानता ह | एक साथ सभी ई छाओ का स पणर तयाग ना हो सक तो थोड़ी-थोड़ी ई छाओ का धीर-धीर तयाग

करना चािहय परत रहना चािहय ई छा क तयाग म रत कय िक सनमागर का पिथक दखी नही होता | जो नराधम अपनी वासना और अहकार को ीण करन का य नही करता वह िदन -िदन अपन

को रावण की तरह अधर कऐ म ढ़कल रहा ह | ई छा ही दख की जनमदाऽी इस ससाररपी बल का बीज ह | यिद इस बीज को आतम ानरपी अि न स ठ क-ठ क जला िदया तो पनः यह अकिरत नही होता | रघकलभषण राम ई छामाऽ ससार ह और ई छाओ का अभाव ही िनवारण ह | अतः अनक कार की माथाप ची म ना पड़कर कवल ऐसा य करना चािहय िक ई छा उतपनन ना हो | अपनी बि स ई छा का िवनाश करन को जो ततपर नही ऐस अभाग को शा और गर का उपदश

भी कया करगा जस अपनी जनमभमी जगल म िहरणी की मतय िनि त ह उसी कार अनकिवध दख का िवःतार कारनवाल ई छारपी िवषय-िवकार स य इस जगत म मनय की मतय िनि त ह | यिद मानव ई छाओ क कारण ब च -सा मढ़ ना बन तो उस आतम ान क िलय अ प य ही करना पड़ | इसिलय सभी कार स ई छाओ को शानत करना चािहय | ई छा क शमन स परम पद की ाि होती ह | ई छारिहत हो जाना यही िनवारण ह और ई छाय

होना ही बधन ह | अतः यथाशि ई छा को जीतना चािहय | भला इतना करन म कया किठनाई ह जनम जरा यािध और मतयरपी कटीली झािड़य और खर क व - समह की जड़ भी ई छा ही ह

| अतः शमरपी अि न स अदर-ही-अदर बीज को जला ड़ालना चािहय| जहा ई छाओ का अभाव ह

वहा मि िनि त ह |

िववक वरा य आिद साधन स ई छा का सवरथा िवनाश करना चािहय | ई छा का सबध जहा-जहा ह वहा-वहा पाप प य दखरािशया और ल बी पीड़ाओ स य बधन को हािज़र ही समझो | परष

की आतिरक ई छा य - य शानत होती जाती ह तय -तय मो क िलय उसका क याणकारक

साधन बढ़ता जाता ह | िववकहीन ई छा को पोसना उस पणर करना यह तो ससाररपी िवष व को पानी स सीचन क समान ह |rdquo

- ौीयोगविश महारामायण

आतमबल का आवाहन कया आप अपन-आपको दबरल मानत हो लघतामथी म उलझ कर पिरिःतिथय स िपस रह हो

अपना जीवन दीन-हीन बना बठ हो hellipतो अपन भीतर सष आतमबल को जगाओ | शरीर चाह ी का हो चाह परष का कित क साा य म जो जीत ह व सब ी ह और कित क बनधन स पार अपन ःवरप की पहचान िजनह न कर ली ह अपन मन की गलामी की बिड़या तोड़कर िजनह न फ क दी ह व परष ह | ी या परष शरीर एव मानयताए होती ह | तम तो तन-मन स पार िनमरल आतमा हो | जागोhellipउठोhellipअपन भीतर सोय हय िन यबल को जगाओ | सवरदश सवरकाल म सव म

आतमबल को िवकिसत करो | आतमा म अथाह सामथयर ह | अपन को दीन-हीन मान बठ तो िव म ऐसी कोई स ा नही जो त ह ऊपर उठा सक | अपन आतमःवरप म िति त हो गय तो िऽलोकी म ऐसी कोई हःती नही जो त ह दबा सक | भौितक जगत म वाप की शि ईलकशोिनक शि िव त की शि गरतवाकषरण की शि बड़ी मानी जाती ह लिकन आतमबल उन सब शि य का सचालक बल ह | आतमबल क सािननधय म आकर पग ार ध को पर िमल जात ह दव की दीनता पलायन हो जाती ह ितकल पिरिःतिथया अनकल हो जाती ह | आतमबल सवर िरि -िसि य का िपता ह |

आतमबल कस जगाय हररोज़ तःकाल ज दी उठकर सय दय स पवर ःनानािद स िनवत हो जाओ | ःव छ पिवऽ ःथान

म आसन िबछाकर पवारिभमख होकर प ासन या सखासन म बठ जाओ | शानत और सनन वि

धारण करो | मन म ढ भावना करो िक म कित-िनिमरत इस शरीर क सब अभाव को पार करक सब

मिलनताओ-दबरलताओ स िप ड़ छड़ाकर आतमा की मिहमा म जागकर ही रहगा |

आख आधी खली आधी बद रखो | अब फ़फ़ड़ म खब ास भरो और भावना करो की ास क साथ

म सयर का िद य ओज भीतर भर रहा ह | ास को यथाशि अनदर िटकाय रखो | िफ़र lsquoॐhelliprsquo का ल बा उ चारण करत हए ास को धीर-धीर छोड़त जाओ | ास क खाली होन क बाद तरत ास ना लो | यथाशि िबना ास रहो और भीतर ही भीतर lsquoहिर ॐhelliprsquo lsquoहिर ॐhelliprsquo का मानिसक

जाप करो | िफ़र स फ़फ़ड़ म ास भरो | पव रीित स ास यथाशि अनदर िटकाकर बाद म धीर-धीर छोड़त हए lsquoॐhelliprsquo का गजन करो | दस-पिह िमनट ऐस ाणायाम सिहत उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo की धविन करक शानत हो जाओ | सब

यास छोड़ दो | वि य को आकाश की ओर फ़लन दो | आकाश क अनदर पथवी ह | पथवी पर अनक दश अनक समि एव अनक लोग ह | उनम स एक

आपका शरीर आसन पर बठा हआ ह | इस पर य को आप मानिसक आख स भावना स दखत

रहो | आप शरीर नही हो बि क अनक शरीर दश सागर पथवी मह न ऽ सयर चनि एव पर ा ड़ क

ा हो सा ी हो | इस सा ी भाव म जाग जाओ | थोड़ी दर क बाद िफ़र स ाणायाम सिहत lsquoॐhelliprsquo का जाप करो और शानत होकर अपन िवचार को दखत रहो | इस अवःथा म ढ़ िन य करो िक lsquoम जसा चहता ह वसा होकर रहगा |rsquo िवषयसख स ा धन-

दौलत इतयािद की इ छा न करो कय िक िन यबल या आतमबलरपी हाथी क पदिच म और सभी क पदिच समािव हो ही जायग | आतमानदरपी सयर क उदय होन क बाद िम टी क तल क दीय क ाकाश रपी शि सखाभास की गलामी कौन कर

िकसी भी भावना को साकार करन क िलय दय को करद ड़ाल ऐसी िन यातमक बिल वि होनी आवशयक ह | अनतःकरण क गहर-स-गहर दश म चोट कर ऐसा ाण भरक िन बल का आवाहन करो | सीना तानकर खड़ हो जाओ अपन मन की दीन-हीन दखद मानयताओ को कचल

ड़ालन क िलय | सदा ःमरण रह की इधर-उधर भटकती वि य क साथ त हारी शि भी िबखरती रहती ह | अतः वि य को बहकाओ नही | तमाम वि य को एकिऽत करक साधनाकाल म आतमिचनतन म लगाओ और यवहारकाल म जो कायर करत हो उसम लगाओ | द िच होकर हरक कायर करो | अपन ःवभाव म स आवश को सवरथा िनमरल कर दो | आवश म आकर कोई िनणरय मत लो कोई िबया मत करो | सदा शानत वि धारण करन का अ यास करो | िवचारशील एव सनन रहो | ःवय अचल रहकर सागर की तरह सब वि य की तरग को अपन

भीतर समालो | जीवमाऽ को अपना ःवरप समझो | सबस ःनह रखो | िदल को यापक रखो | सकिच ता का िनवारण करत रहो | ख ड़ातमक वि का सवरथा तयाग करो | िजनको ानी महापरष का सतसग और अधयातमिव ा का लाभ िमल जाता ह उसक जीवन स

दःख िवदा होन लगत ह | ॐ आननद आतमिन ा म जाग हए महापरष क सतसग एव सतसािहतय स जीवन को भि और वदात स प

एव पलिकत करो | कछ ही िदन क इस सघन योग क बाद अनभव होन लगगा िक भतकाल क

नकारतमक ःवभाव सशयातमक-हािनकारक क पनाओ न जीवन को कचल ड़ाला था िवषला कर िदया था | अब िन यबल क चमतकार का पता चला | अततरम म आिवरभत िद य खज़ाना अब

िमला | ार ध की बिड़या अब टटन लगी | ठ क ह न करोग ना िह मत पढ़कर रख मत दना इस पिःतका को | जीवन म इसको बार-बार पढ़त रहो | एक िदन म यह पणर ना होगा | बार-बार अ यास करो | त हार िलय यह एक ही पिःतका काफ़ी ह | अनय कचराप टी ना पड़ोग तो चलगा | शाबाश वीर शाबाश

  • परसतावना
  • जीवन रसायन
  • गर भकति एक अमोघ साधना
  • शरी राम-वशिषठ सवाद
  • आतमबल का आवाहन
  • आतमबल कस जगाय
Page 25: जीवन रसायन - HariOmGroup · ‘जीवन रसायन’ का यह िदय कटोरा आत्मरस के िपपासुओं हाथ

करोग | 160) जस ःव न िमथया ह वस ही यह जामत अवःथा भी ःव नवत ही ह िमथया ह | हरक

को अपन इस ःव न स जागना ह | सदगर बार-बार जगा रह ह लिकन जाग कर वापस सो न जाए ऐसा परषाथर तो हम ही करना होगा | 161) सदा सननमख रहो | मख को कभी मिलन मत करो | िन य कर लो िक आपक

िलय शोक न इस जगत म जनम नही िलया ह | आननदःवरप म िचनता का ःथान ही कहा ह 162) समम ा ड एक शरीर ह | समम ससार एक शरीर ह | जब तक आप तयक क

साथ एकता का अनभव करत रहग तब तक सब पिरिःथितया और आस-पास की चीज़ हवा और समि की लहर भी आपक प म रहगी | 163) आपको जो कछ शरीर स बि स या आतमा स कमजोर बनाय उसको िवष की तरह

ततकाल तयाग दो | वह कभी सतय नही हो सकता | सतय तो बलद होता ह पावन होता ह

ानःवरप होता ह | सतय वह ह जो शि द | 164) साधना म हमारी अिभरिच होनी चािहय साधना की तीो माग होनी चािहय | 165) दसर क दोष की चचार मत करो चाह व िकतन भी बड़ ह | िकसी क दोष की चचार करक आप उसका िकसी भी कार भला नही करत बि क उस आघात पहचात ह और साथ-ही-साथ अपन आपको भी | 166) इस ससार को सतय समझना ही मौत ह | आपका असली ःवरप तो आननदःवरप

आतमा ह | आतमा क िसवा ससार जसी कोई चीज ही नही ह | जस सोया हआ मनय ःव न म अपनी एकता नही जानता अिपत अपन को अनक करक दखता ह वस ही आननदःवरप आतमा जामत ःव न और सषि - इन तीन ःवरप को दखत हए अपनी एकता अि तीयता का अनभव

नही करता | 167) मनोजय का उपाय ह अ यास और वरा य | अ यास मान य पवरक मन को बार-बार परमातम-िचतन म लगाना और वरा य मान मन को ससार क पदाथ की ओर स वापस

लौटाना | 168) िकसी स कछ मत मागो | दन क िलय लोग आपक पीछ-पीछ घमग | मान नही

चाहोग तो मान िमलगा | ःवगर नही चाहोग तो ःवगर क दत आपक िलय िवमान लकर आयग |

उसको भी ःवीकार नही करोग तो ई र आपको अपन दय स लगायग | 169) कभी-कभी उदय या अःत होत हए सयर की ओर चलो | नदी सरोवर या समि क तट

पर अकल घमन जाओ | ऐस ःथान की मलाकात लो जहा शीतल पवन मनद-मनद चल रही हो | वहा परमातमा क साथ एकःवर होन की स भावना क ार खलत ह | 170) आप य -ही इ छा स ऊपर उठत हो तय -ही आपका इि छत पदाथर आपको खोजन

लगता ह | अतः पदाथर स ऊपर उठो | यही िनयम ह | य - य आप इ छक िभ क याचक का भाव धारण करत हो तय -तय आप ठकराय जात हो | 171) कित क तयक पदाथर को दखन क िलय काश जररी ह | इसी कार मन बि

इिनिय को अपन-अपन कायर करन क िलय आतम-काश की आवयकता ह कय िक बाहर का कोई काश मन बि इिनिय ाणािद को चतन करन म समथर नही | 172) जस ःव न ा परष को जागन क बाद ःव न क सख-दःख जनम-मरण पाप-प य

धमर-अधमर आिद ःपशर नही करत कय िक वह सब खद ही ह | खद क िसवाय ःव न म दसरा कछ

था ही नही | वस ही जीवनम ानवान परष को सख-दःख जनम-मरण पाप-प य धमर-अधमर ःपशर नही करत कय िक व सब आतमःवरप ही ह | 173) वही भमा नामक आतम योित क म रह कर भ क रही ह सअर म रह कर घर रही ह गध म रह कर रक रही ह लिकन मखर लोग शरीर पर ही ि रखत ह चतनय ततव पर नही | 174) मनय िजस ण भत-भिवय की िचनता का तयाग कर दता ह दह को सीिमत और उतपि -िवनाशशील जानकर दहािभमान को तयाग दता ह उसी ण वह एक उ चतर अवःथा म पहच जाता ह | िपजर स छटकर गगनिवहार करत हए प ी की तरह मि का अनभव करता ह | 175) समःत भय एव िचनताए आपकी इ छाओ का णाम ह | आपको भय कय लगता ह

कय िक आपको आशका रहती ह िक अमक चीज कही चली न जाय | लोग क हाःय स आप डरत

ह कय िक आपको यश की अिभलाषा ह कीितर म आसि ह | इ छाओ को ितलाजिल द दो | िफर दखो मजा कोई िज मदारी नहीकोई भय नही | 176) दखन म अतयत करप काला-कलटा कबड़ा और तज ःवभाव का मनय भी आपका ही ःवरप ह | आप इस तथय स म नही | िफर घणा कसी कोई लाव यमयी सदरी सि की

शोभा क समान अित िवलासभरी अ सरा भी आपका ही ःवरप ह | िफर आसि िकसकी

आपकी ानिनिया उनको आपस अलग करक िदखाती ह | य इिनिया झठ बोलनवाली ह | उनका कभी िव ास मत करो | अतः सब कछ आप ही हो | 177) मानव क नात हम साधक ह | साधक होन क नात सतय को ःवीकर करना हमारा ःवधमर ह | सतय यही ह िक बल दसर क िलय ह ान अपन िलय ह और िव ास परमातमा स

स बनध जोड़न क िलय ह | 178) अपनी आतमा म डब जाना यह सबस बड़ा परोपकार ह | 179) आप सदव म ह ऐसा िव ास ढ़ करो तो आप िव क उ ारक हो जात हो | आप

यिद वदानत क ःवर क साथ ःवर िमलाकर िन य करो आप कभी शरीर न थ | आप िनतय श

ब आतमा हो तो अिखल ा ड क मो दाता हो जात हो | 180) कपा करक उन ःवाथरमय उपाय और अिभाय को दर फ क दो जो आपको पिरि छनन रखत ह | सब वासनाए राग ह | यि गत या शरीरगत म आसि ह | उस फ क दो | ःवय पिवऽ हो जाओ | आपका शरीर ःवःथ और बि पणरःवरप हो जायगी | 181) यिद ससार क सख व पदाथर ा ह तो आपको कहना चािहय ओ शतान हट जा मर सामन स | तर हाथ स मझ कछ नही चािहय | तब दखो िक आप कस सखी हो जात हो परमातमा-ा िकसी महापरष पर िव ास रखकर अपनी जीवनडोरी िनःशक बन उनक चरण म सदा क िलय रख दो | िनभरयता आपक चरण की दासी बन जायगी | 182) िजसन एक बार ठ क स जान िलया िक जगत िमथया ह और ािनत स इसकी तीित

हो रही ह उसको कभी दःख नही होता | जगत म कभी आसि नही होती | जगत क िमथयातव क

िन य का नाम ही जगत का नाश ह | 183) अपन ःवरप म लीन होन माऽ स आप ससार क साट बन जायग | यह साटपद

कवल इस ससार का ही नही समःत लोक-परलोक का साटपद होगा | 184) ह जनक चाह दवािधदव महादव आकर आपको उपदश द या भगवान िवण आकर उपदश द अथवा ाजी आकर उपदश द लिकन आपको कदािप सख न होगा | जब िवषय का तयाग करोग तभी स ची शाित व आनद ा ह ग |

185) िजस भ न हम मानव जीवन दकर ःवाधीनता दी िक हम जब चाह तब धमारतमा होकर भ होकर जीवनम होकर कतकतय हो सकत ह- उस भ की मिहमा गाओ | गाओ नही तो सनो | सनो भी नही गाओ भी नही तो ःवीकार कर लो | 186) चाह समि क गहर तल म जाना पड़ सा ात मतय का मकाबला करना पड़ अपन

आतमाि क उ य की पितर क िलय अिडग रहो | उठो साहसी बनो शि मान बनो | आपको जो बल व सहायता चािहय वह आपक भीतर ही ह | 187) जब-जब जीवन स बनधी शोक और िचनता घरन लग तब-तब अपन आननदःवरप

का गान करत-करत उस मोह-माया को भगा दो | 188) जब शरीर म कोई पीड़ा या अग म ज म हो तब म आकाशवत आकाशरिहत चतन

ह ऐसा ढ़ िन य करक पीड़ा को भल जाओ | 189) जब दिनया क िकसी चककर म फस जाओ तब म िनलप िनतय म ह ऐसा ढ़

िन य करक उस चककर स िनकल जाओ | 190) जब घर-बार स बनधी कोई किठन समःया याकल कर तब उस मदारी का खल

समझकर ःवय को िनःसग जानकर उस बोझ को ह का कर दो | 191) जब बोध क आवश म आकर कोई अपमानय वचन कह तब अपन शाितमय

ःवरप म िःथर होकर मन म िकसी भी ोभ को पदा न होन दो | 192) उ म अिधकारी िज ास को चािहय िक वह व ा सदगर क पास जाकर ौ ा पवरक महावाकय सन | उसका मनन व िनिदधयासन करक अपन आतमःवरप को जान | जब

आतमःवरप का सा ातकार होता ह तब ही परम िवौािनत िमल सकती ह अनयथा नही | जब तक

व ा महापरष स महावाकय ा न हो तब तक वह मनद अिधकारी ह | वह अपन दयकमल म परमातमा का धयान कर ःमरण कर जप कर | इस धयान-जपािद क साद स उस व ा सदगर

ा ह ग | 193) मन बि िच अहकार छाया की तरह जड़ ह णभगर ह कय िक व उतपनन होत

ह और लीन भी हो जात ह | िजस चतनय की छाया उसम पड़ती ह वह परम चतनय सबका आतमा ह | मन बि िच अहकार का अभाव हो जाता ह लिकन उसका अनभव करनवाल का अभाव

कदािप नही होता |

194) आप अपनी शि को उ चाितउ च िवषय की ओर बहन दो | इसस आपक पास व

बात सोचन का समय ही नही िमलगा िजसस कामकता की गध आती हो | 195) अपराध क अनक नाम ह बालहतया नरहतया मातहतया गौहतया इतयािद |

परनत तयक ाणी म ई र का अनभव न करक आप ई रहतया का सबस बड़ा अपराध करत ह | 196) सवा करन की ःवाधीनता मनयमाऽ को ा ह | अगर वह करना ही न चाह तो अलग बात ह | सवा का अथर ह मन-वाणी-कमर स बराईरिहत हो जाना यह िव की सवा हो गई |

यथाशि भलाई कर दो यह समाज की सवा हो गई | भलाई का फल छोड़ दो यह अपनी सवा हो गई

| भ को अपना मानकर ःमित और म जगा लो यह भ की सवा हो गई | इस कार मनय

अपनी सवा भी कर सकता ह समाज की सवा भी कर सकता ह िव की सवा भी कर सकता ह

और िव र की सवा भी कर सकता ह | 197) आतमा स बाहर मत भटको अपन कनि म िःथर रहो अनयथा िगर पड़ोग | अपन-

आपम पणर िव ास रखो | आतम-कनि पर अचल रहो | िफर कोई भी चीज आपको िवचिलत नही कर सकती | 198) सदा शात िनिवरकार और सम रहो | जगत को खलमाऽ समझो | जगत स भािवत

मत हो | इसस आप हमशा सखी रहोग | िफर कछ बढ़ान की इ छा नही होगी और कछ कम होन स

दःख नही होगा | 199) समथर सदगर क सम सदा फल क भाित िखल हए रहो | इसस उनक अनदर सक प

होगा िक यह तो बहत उतसाही साधक ह सदा सनन रहता ह | उनक सामथयरवान सक प स

आपकी वह किऽम सननता भी वाःतिवक सननता म बदल जायगी | 200) यिद रोग को भी ई र का िदया मानो तो ार ध-भोग भी हो जाता ह और क तप का फल दता ह | इसस ई र-कपा की ाि होती ह | याकल मत हो | क सल और इनजकशन

आधीन मत हो | 201) साधक को चािहय िक अपन लआय को ि म रखकर साधना-पथ पर तीर की तरह

सीधा चला जाय | न इधर दख न उधर | ि यिद इधर-उधर जाती हो तो समझना िक िन ा िःथर नही ह |

202) आपन अपन जीवन म हजार ःव न दख ह ग लिकन व आपक जीवन क अश नही बन जात | इसी कार य जामत जगत क आड बर आपकी आतमा क सम कोई मह व नही रखत | 203) एक आतमा को ही जानो अनय बात को छोड़ो | धीर साधक को चािहय िक वह

सावधान होकर आतमिन ा बढ़ाय अनक श द का िचनतन व भाषण न कर कय िक वह तो कवल

मन-वाणी को पिरौम दनवाला ह असली साधना नही ह | 204) जो परष जन-समह स ऐस डर जस साप स डरता ह स मान स ऐस डर जस नकर स

डरता ह ि य स ऐस डर जस मद स डरता ह उस परष को दवतागण ा ण मानत ह | 205) जस अपन शरीर क अग पर बोध नही आता वस शऽ िमऽ व अपनी दह म एक ही आतमा को दखनवाल िववकी परष को कदािप बोध नही आता | 206) मन तो शरीर को ई रापरण कर िदया ह | अब उसकी भख- यास स मझ कया

समिपरत वःत म आस होना महा पाप ह | 207) आप यिद िद य ि पाना चहत हो तो आपको इिनिय क ऽ का तयाग करना होगा | 208) लयकाल क मघ की गजरना हो समि उमड़ पड बारह सयर तपायमान हो जाय पहाड़ स पहाड़ टकरा कर भयानक आवाज हो तो भी ानी क िन य म त नही भासता कय िक

त ह ही नही | त तो अ ानी को भासता ह | 209) सतय को ःवीकार करन स शाित िमलगी | कछ लोग यो यता क आधार पर शाित

खरीदना चाहत ह | यो यता स शाित नही िमलगी यो यता क सदपयोग स शाित िमलगी | कछ

लोग स पि क आधार पर शाित सरि त रखना चाहत ह | स पि स शाित नही िमलगी स पि

क सदपयोग स शाित िमलगी वस ही िवपि क सदपयोग स शाित िमलगी | 210) त छ हािन-लाभ पर आपका धयान इतना कय रहता ह िजसस अनत आननदःवरप

आतमा पर स धयान हट जाता ह | 211) अपन अनदर ही आननद ा करना य िप किठन ह परनत बा िवषय स आननद

ा करना तो अस भव ही ह |

212) म ससार का काश ह | काश क रप म म ही सब वःतओ म या ह | िनतय इन

िवचार का िचनतन करत रहो | य पिवऽ िवचार आपको परम पिवऽ बना दग | 213) जो वःत कमर स ा होती ह उसक िलय ससार की सहायता तथा भिवय की आशा की आवयकता होती ह परनत जो वःत तयाग स ा होती ह उसक िलय न ससार की सहायता चािहय न भिवय की आशा | 214) आपको जब तक बाहर चोर िदखता ह तब तक जरर भीतर चोर ह | जब दसर लोग

स िभनन अयो य खराब सधारन यो य िदखत ह तब तक ओ सधार का बीड़ा उठान वाल त अपनी िचिकतसा कर | 215) सफल व ही होत ह जो सदव नतमःतक एव सननमख रहत ह | िचनतातर-शोकातर लोग की उननित नही हो सकती | तयक कायर को िह मत व शाित स करो | िफर दखो िक यह

कायर शरीर मन और बि स हआ | म उन सबको स ा दनवाला चतनयःवरप ह | ॐ ॐ का पावन गान करो | 216) िकसी भी पिरिःथित म मन को यिथत न होन दो | आतमा पर िव ास करक

आतमिन बन जाओ | िनभरयता आपकी दासी बन कर रहगी | 217) सतसग स मनय को साधना ा होती ह चाह वह शाित क रप म हो चाह मि क

रप म चाह सवा क रप म हो म क रप म हो चाह तयाग क रप म हो | 218) भला-बरा वही दखता ह िजसक अनदर भला-बरा ह | दसर क शरीर को वही दखता ह

जो खद को शरीर मानता ह | 219) खबरदार आपन यिद अपन शरीर क िलय ऐश-आराम की इ छा की िवलािसता एव इिनिय-सख म अपना समय बरबाद िकया तो आपकी खर नही | ठ क स कायर करत रहन की नीित

अपनाओ | सफलता का पहला िस ात ह कायरिवौामरिहत कायरसा ी भाव स कायर | इस

िस ात को जीवन म चिरताथर करोग तो पता चलगा िक छोटा होना िजतना सरल ह उतना ही बड़ा होना भी सहज ह | 220) भतकाल पर िखनन हए िबना भिवय की िचनता िकय िबना व रमान म कायर करो | यह भाव आपको हर अवःथा म सनन रखगा हम जो कछ ा ह उसका सदपयोग ही अिधक

काश पान का साधन ह |

221) जब आप सफलता की ओर पीठ कर लत हो पिरणाम की िचनता का तयाग कर दत

हो स मख आय हए क र य पर अपनी उ ोगशि एकाम करत हो तब सफलता आपक पीछ-पीछ

आ जाती ह | अतः सफलता आपको खोजगी | 222) वि तब तक एकाम नही होगी जब तक मन म कभी एक आशा रहगी तो कभी दसरी | शात वही हो सकता ह िजस कोई क र य या आवयकता घसीट न रही हो | अतः परम शाित पान

क िलय जीवन की आशा भी तयाग कर मन ाननद म डबो दो | आज स समझ लो िक यह शरीर ह ही नही | कवल ाननद का सागर लहरा रहा ह | 223) िजसकी पककी िन ा ह िक म आतमा हrsquo उसक िलय ऐसी कौन सी मिथ ह जो खल

न सक ऐसी कोई ताकत नही जो उसक िवर जा सक | 224) मर भा य म नही थाई र की मज आजकल सतसग ा नही होताजगत

खराब ह ऐस वचन हमारी कायरता व अनतःकरण की मिलनता क कारण िनकलत ह | अतः नकारातमक ःवभाव और दसर पर दोषारोपण करन की वि स बचो | 225) आप जब भीतरवाल स नाराज होत हो तब जगत आपस नाराज रहता ह | जब आप

भीतर अनतयारमी बन बठ तो जगतरपी पतलीघर म िफर गड़बड़ कसी 226) िजस ण हम ससार क सधारक बन खड़ होत ह उसी ण हम ससार को िबगाड़नवाल बन जात ह | श परमातमा को दखन क बजाय जगत को िबगड़ा हआ दखन की ि बनती ह | सधारक लोग मानत ह िक lsquoभगवान न जो जगत बनाया ह वह िबगड़ा हआ ह और हम उस सधार रह ह |rsquo वाह वाह धनयवाद सधारक अपन िदल को सधारो पहल | सवरऽ िनरजन का दीदार करो | तब आपकी उपिःथित माऽ स आपकी ि माऽ स अर यार आपको छकर बहती हवा माऽ स अननत जीव को शाित िमलगी और अननत सधार होगा | नानक कबीर महावीर ब और लीलाशाह बाप जस महापरष न यही कजी अपनायी थी | 227) वदानत म हमशा कमर का अथर होता ह वाःतिवक आतमा क साथ एक होकर च ा करना अिखल िव क साथ एकःवर हो जाना | उस अि तीय परम ततव क साथ िनःःवाथर सयोग ा करना ही एकमाऽ स चा कमर ह बाकी सब बोझ की गठिरया उठाना ह |

228) अपनी व रमान अवःथा चाह कसी भी हो उसको सव च मानन स ही आपक दय म आतम ान ान का अनायास उदय होन लगगा | आतम-सा ातकार को मील दर की कोई चीज समझकर उसक पीछ दौड़ना नही ह िचिनतत होना नही ह |

िचनता की गठरी उठाकर यिथत होन की जररत नही ह | िजस ण आप िनि नतता म गोता मारोग उसी ण आपका आतमःवरप गट हो जायगा | अर गट कया होगा आप ःवय आतमःवरप हो ही | अनातमा को छोड़ दो तो आतमःवरप तो हो ही | 229) सदा ॐकार का गान करो | जब भय व िचनता क िवचार आय तब िकसी मःत सत-फकीर महातमा क सािननधय का ःमरण करो | जब िननदा-शसा क सग आय तब महापरष क जीवन का अवलोकन करो | 230) िजनको आप भयानक घटनाए एव भयकर आघात समझ बठ हो वाःतव म व आपक ियतम आतमदव की ही करतत ह | समःत भयजनक तथा ाणनाशक घटनाओ क नाम-रप तो िवष क ह लिकन व बनी ह अमत स | 231) मन म यिद भय न हो तो बाहर चाह कसी भी भय की साममी उपिःथत हो जाय आपका कछ िबगाड़ नही सकती | मन म यिद भय होगा तो तरनत बाहर भी भयजनक पिरिःथया न होत हए भी उपिःथत हो जायगी | व क तन म भी भत िदखन लगगा | 232) िकसी भी पिरिःथित म िदखती हई कठोरता व भयानकता स भयभीत नही होना चािहए | क क काल बादल क पीछ पणर काशमय एकरस परम स ा सयर की तरह सदा िव मान ह | 233) आप अपन पर कदािप अिव ास मत करो | इस जगत म आप सब कछ कर सकत हो | अपन को कभी दबरल मत मानो | आपक अनदर तमाम शि या छपी हई ह | 234) यिद कोई मन य आपकी कोई चीज़ को चरा लता ह तो ड़रत कय हो वह मनय

और आप एक ह | िजस चीज़ को वह चराता ह वह चीज़ आपकी और उसकी द न की ह | 235) जो खद क िसवाय दसरा कछ दखता नही सनता नही जानता नही वह अननत ह |

जब तक खद क िसवाय और िकसी वःत का भान होता ह वह वःत स ची लगती ह तब तक आप

सीिमत व शात ह असीम और अनत नही |

236) ससार मझ कया आनद द सकता ह स पणर आनद मर भीतर स आया ह | म ही स पणर आननद ह स पणर मिहमा एव स पणर सख ह | 237) जीवन की समःत आवयकताए जीवन म उपिःथत ह परनत जीवन को जब हम

बा रग म रग दत ह तब जीवन का वाःतिवक रप हम नही जान पात | 238) िननदक की िननदा स म कय मरझाऊ शसक की शसा स म कय फल िननदा स म घटता नही और शसा स म बढ़ता नही | जसा ह वसा ही रहता ह | िफर िननदा-ःतित स

खटक कसी 239) ससार व ससार की समःयाओ म जो सबस अिधक फस हए ह उनही को वदानत की सबस अिधक आवयकता ह | बीमार को ही औषिध की यादा आवयकता ह | कय जी ठ क ह न 240) जगत क पाप व अतयाचार की बात मत करो लिकन अब भी आपको जगत म पाप

िदखता ह इसिलय रोओ | 241) हम यिद जान ल िक जगत म आतमा क िसवाय दसरा कछ ह ही नही और जो कछ

िदखता ह वह ःव नमाऽ ह तो इस जगत क दःख-दािरिय पाप-प य कछ भी हम अशात नही कर सकत | 242) िव ान दाशरिनक व आचाय की धमकी तथा अनमह आलोचना या अनमित

ानी पर कोई भाव नही ड़ाल सकती | 243) ह यि रप अननत आप अपन पर पर खड़ रहन का साहस करो समःत िव का बोझ आप िखलौन की तरह उठा लोग | 244) िसह की गजरना व नरिसह की ललकार तलवार की धार व साप की फफकार तपःवी की धमकी व नयायधीश की फटकारइन सबम आपका ही काश चमक रहा ह | आप इनस

भयभीत कय होत हो उलझन कय महसस करत हो मरी िब ली मझको याऊ वाली बात कय

होन दत हो 245) ससार हमारा िसफ़र िखलोना ही ह और कछ नही | अबोध बालक ही िखलौन स

भयभीत होता ह आसि करता ह िवचारशील यि नही |

246) जब तक अिव ा दर नही होगी तब तक चोरी जआ दार यिभचार कभी बद न

ह ग चाह लाख कोिशश करो | 247) आप हमशा अदर का धयान रखो | पहल हमारा भीतरी पतन होता ह | बा पतन तो इसका पिरणाम माऽ ह | 248) तयाग स हमशा आनद िमलता ह | जब तक आपक पास एक भी चीज़ बाकी ह तब

तक आप उस चीज़ क बधन म बध रहोग | आघात व तयाघात हमशा समान िवरोधी होत ह | 249) िनि तता ही आरो यता की सबस बड़ी दवाई ह | 250) सख अपन िसर पर दख का मकट पहन कर आता ह | जो सख को अपनायगा उस

दख को भी ःवीकार करना पड़गा | 251) म (आतमा) सबका ा ह | मरा ा कोई नही | 252) हजार म स कोई एक परष भीतर स शात िच वाला रहकर बाहर स ससारी जसा यवहार कर सकता ह | 253) सतय क िलए यिद शरीर का तयाग करना पड़ तो कर दना | यही आिखरी ममता ह जो हम तोड़नी होगी | 254) भय िचनता बचनी स ऊपर उठो | आपको ान का अनभव होगा | 255) आपको कोई भी हािन नही पहचा सकता | कवल आपक खयालात ही आपक पीछ पड़ ह | 256) म का अथर ह अपन पड़ोसी तथा सपकर म आनवाल क साथ अपनी वाःतिवक अभदता का अनभव करना | 257) ओ यार अपन खोय हए आतमा को एक बार खोज लो | धरती व आसमान क शासक आप ही हो | 258) सदव सम और सनन रहना ई र की सव पिर भि ह |

259) जब तक िच म ढ़ता न आ जाय िक शा की िविधय का पालन छोड़ दन स भी दय का यथाथर भि भाव न नही होगा तब तक शा की िविधय को पालत रहो |

गर भि एक अमोघ साधना 1 जनम मरण क िवषचब स म होन का कोई मागर नही ह कया सख-दःख हषर-शोक लाभ-

हािन मान-अपमान की थ पड़ स बचन का कोई उपाय नही ह कया

हअवय ह | ह िय आतमन नाशवान पदाथ स अपना मन वािपस लाकर सदगर क

चरणकमल म लगाओ | गरभि योग का आौय लो | गरसवा ऐसा अमोघ साधन ह िजसस

व रमान जीवन आननदमय बनता ह और शा त सख क ार खलत ह |

गर सवत त नर धनय यहा | ितनक नही दःख यहा न वहा || 2 स च सदगर की की हई भि िशय म सासािरक पदाथ क वरा य एव अनासि जगाती ह

परमातमा क ित म क पप महकाती ह | 3 तयक िशय सदगर की सवा करना चाहता ह लिकन अपन ढग स | सदगर चाह उस ढग स

सवा करन को कोई ततपर नही | जो िवरला साधक गर चाह उस ढ़ग स सवा कर सकता ह उस कोई कमी नही रहती |

िन सदगर की सवा स उनकी कपा ा होती ह और उस कपा स न िमल सक ऐसा तीन लोक म कछ भी नही ह | 4 गर िशय का स बनध पिवऽतम स बनध ह | ससार क तमाम बनधन स छड़ाकर वह मि क मागर पर ःथान कराता ह | यह स बनध जीवनपयरनत का स बनध ह | यह बात अपन दय की डायरी म सवणर-अ र स िलख लो | 5 उ ल सयर क काश क अिःततव को मान या न मान िफर भी सयर हमशा काशता ह | चचल मन का मनय मान या न मान लिकन सदगर की परमक याणकारी कपा सदव बरसती ही रहती ह | 6 सदगर की चरणरज म ःनान िकय िबना कवल किठन तप यार करन स या वद का

अधयन करन स वदानत का रहःय कट नही होता आतमानद का अमत नही िमलता | 7 दशरन शा क चाह िकतन मनथ पढ़ो हजार वष तक िहमालय की गफा म तप करो वष तक ाणायाम करो जीवनपयरनत शीषारसन करो समम िव म वास करक याखान दो िफर भी सदगर की कपा क िबना आतम ान नही होता | अतः िनरािभमानी सरल िनजाननद म मःत दयाल ःवभाव क आतम-सा ातकारी सदगर क चरण म जाओ | जीवन को धनय बनाओ | 8 सदगर की सवा िकय िबना शा का अधयन करना मम साधक क िलय समय बरबाद करन क बराबर ह | 9 िजसको सदगर ा हए ह ऐस िशय क िलय इस िव म कछ भी अा य नही ह | सदगर िशय को िमली हई परमातमा की अम य भट ह | अर नहीhellipनही व तो िशय क सम साकार रप म कट हए परमातमा ःवय ह | 10 सदगर क साथ एक ण िकया हआ सतसग लाख वष क तप स अननत गना ौ ह | आख क िनमषमाऽ म सदगर की अमतवष ि िशय क जनम-जनम क पाप को जला सकती ह | 11 सदगर जसा मपणर कपाल िहतिचनतक िव भर म दसरा कोई नही ह | 12 बाढ़ क समय याऽी यिद तफानी नदी को िबना नाव क पार कर सक तो साधक भी िबना सदगर क अपन जीवन क आिखरी लआय को िस कर सकता ह | यानी य दोन बात स भव ह |

अतः यार साधक मनमखी साधना की िज करना छोड़ दो | गरमखी साधना करन म ही सार ह | 13 सदगर क चरणकमल का आौय लन स िजस आननद का अनभव होता ह उसक आग िऽलोकी का साा य त छ ह | 14 आतम-सा ातकार क मागर म सबस महान शऽ अहभाव का नाश करन क िलए सदगर की आ ा का पालन अमोघ श ह | 15 रसोई सीखन क िलय कोई िसखानवाला चािहय िव ान और गिणत सीखन क िलय

अधयापक चािहय तो कया िव ा सदगर क िबना ही सीख लोग 16 सदगरकपा की स पि जसा दसरा कोई खजाना िव भर म नही | 17 सदगर की आ ा का उ लघन करना यह अपनी क खोदन क बराबर ह | 18 सदगर क कायर को शका की ि स दखना महापातक ह | 19 गरभि व गरसवा - य साधनारपी नौका की दो पतवार ह | उनकी मदद स िशय ससारसागर को पार कर सकता ह | 20 सदगर की कसौटी करना असभव ह | एक िववकाननद ही दसर िववकाननद को पहचान सकत ह | ब को जानन क िलय दसर ब की आवयकता रहती ह | एक रामतीथर का रहःय दसर रामतीथर ही पा सकत ह |

अतः सदगर की कसौटी करन की च ा छोड़कर उनको पिरपणर पर परमातमा मानो |

तभी जीवन म वाःतिवक लाभ होगा | 21 गरभि योग का आौय लकर आप अपनी खोई हई िद यता को पनः ा करो सख-दःख जनम-मतय आिद सब न स पार हो जाओ | 22 गरभि योग मान गर की सवा क ारा मन और िवकार पर िनयऽण एव पनः सःकरण | 23 िशय अपन गर क चरणकमल म णाम करता ह | उन पर ौ फल की वषार करक उनकी ःतित करता ह ldquoह परम प य पिवऽ गरदव मझ सव च सख ा हआ ह | म िन ा स जनम-मतय की पर परा स म हआ ह | म िनिवरक प समािध का श सख भोग रहा ह | जगत क िकसी भी कोन म म म ता स िवचरण कर सकता ह | सब पर मरी सम ि ह | मन ाकत मन का तयाग िकया ह | मन सब सक प एव रिच-अरिच का तयाग िकया ह | अब म अख ड शाित म िवौाित पा रहा ह hellip आननदमय हो रहा ह | म इस पणर अवःथा का वणरन नही कर पाता | ह प य गरदव म आवाक बन गया ह | इस दःतर भवसागर को पार करन म आपन

मझ सहायता की ह | अब तक मझ कवल अपन शरीर म ही स पणर िव ास था | मन िविभनन योिनय म अस य जनम िलय | ऐसी सव च िनभरय अवःथा मझ कौन स पिवऽ कम क कारण ा हई ह यह म नही जानता | सचमच यह एक दलरभ भा य ह |

यह एक महान उतक लाभ ह | अब म आननद स नाचता ह | मर सब दःख न हो गय | मर सब मनोरथ पणर हए ह |

मर कायर स पनन हए ह | मन सब वािछत वःतए ा की ह | मरी इ छा पिरपणर हई ह | आप मर स च माता-िपता हो | मरी व रमान िःथित म म दसर क सम िकस कार कट कर सक सवरऽ सख और आननद का अननत सागर मझ लहराता हआ िदख रहा ह | मर अतःच िजसस खल गय वह महावाकय lsquoत वमिसrsquo ह | उपिनषद एव वदानतसऽ को भी धनयवाद | िजनह न िन गर का एव उपिनषद क महावाकय का रप धारण िकया ह | ऐस ौी यासजी को णाम ौी शकराचायर को णाम सासािरक मनय क िसर पर गर क चरणामत का एक िबनद भी िगर तो भी उसक ःब दःख का नाश होता ह | यिद एक िन परष को व पहनाय जाय तो सार िव को व पहनान एव भोजन करवान क बराबर ह कय िक िन परष सचराचर िव म या ह | सबम व ही ह |rdquo

ॐhellip ॐ hellip ॐ hellip

ःवामी िशवानद जी

ौी राम-विश सवाद ौी विश जी कहत ह ldquoह रघकलभषण ौी राम अनथर ःवरप िजतन सासािरक पदाथर ह व सब जल म तरग क समान िविवध रप धारण करक चमतकार उतपनन करत ह अथारत ई छाए उतपनन करक जीव को मोह म फसात ह | परत जस सभी तरग जल ःवरप ही ह उसी कार सभी पदाथर वःततः न र ःवभाव वाल ह |

बालक की क पना स आकाश म य और िपशाच िदखन लगत ह परनत बि मान मनय क िलए उन य और िपशाच का कोई अथर नही | इसी कार अ ानी क िच म यह जगत सतय हो ऐसा लगता ह जबिक हमार जस ािनय क िलय यह जगत कछ भी नही | यह समम िव पतथर पर बनी हई पतिलय की सना की तरह रपालोक तथा अतर-बा िवषय स शनय ह | इसम सतयता कसी परनत अ ािनय को यह िव सतय लगता ह |rdquo विश जी बोल ldquoौी राम जगत को सतय ःवरप म जानना यह ाित ह मढ़ता ह | उस िमथया अथारत कि पत समझना यही उिचत समझ ह | ह राघव तव ा अहता आिद सब िवम-िवलास शात िशवःवरप श ःवरप ही ह | इसिलय मझ तो क अितिर और कछ भी नही िदखता | आकाश म जस जगल नही वस ही म जगत नही ह | ह राम ार ध वश ा कम स िजस परष की च ा कठपतली की तरह ई छाशनय और याकलतारिहत होती ह वह शानत मनवाला परष जीवनम मिन ह | ऐस जीवनम ानी को इस

जगत का जीवन बास की तरह बाहर-भीतर स शनय रसहीन और वासना-रिहत लगता ह | इस य पच म िजस रिच नही दय म िचनमाऽ अ य ही अ छा लगता ह ऐस परष न

भीतर तथा बाहर शािनत ा कर ली ह और इस भवसागर स पार हो गया ह | रघनदन श व ा कहत ह िक मन का ई छारिहत होना यही समािध ह कय िक ई छाओ का तयाग करन स मन को जसी शािनत िमलती ह ऐसी शािनत सकड़ उपदश स भी नही िमलती | ई छा की उतपि स जसा दःख ा होता ह ऐसा दःख तो नरक म भी नही | ई छाओ की शािनत

स जसा सख होता ह ऐसा सख ःवगर तो कया लोक म भी नही होता | अतः समःत शा तपःया यम और िनयम का िनचोड़ यही ह िक ई छामाऽ दःखदायी ह और ई छा का शमन मो ह | ाणी क दय म जसी-जसी और िजतनी-िजतनी ई छाय उतपनन होती ह उतना ही दख स वह

ड़रता रहता ह | िववक-िवचार ारा ई छाय जस-जस शानत होती जाती ह वस-वस दखरपी छत की बीमारी िमटती जाती ह |

आसि क कारण सासािरक िवषय की ई छाय य - य गहनीभत होती जाती ह तय -तय

दःख की िवषली तरग बढ़ती जाती ह | अपन परषाथर क बल स इस ई छारपी यािध का उपचार यिद नही िकया जाय तो इस यािध स छटन क िलय अनय कोई औषिध नही ह ऐसा म ढ़तापवरक

मानता ह | एक साथ सभी ई छाओ का स पणर तयाग ना हो सक तो थोड़ी-थोड़ी ई छाओ का धीर-धीर तयाग

करना चािहय परत रहना चािहय ई छा क तयाग म रत कय िक सनमागर का पिथक दखी नही होता | जो नराधम अपनी वासना और अहकार को ीण करन का य नही करता वह िदन -िदन अपन

को रावण की तरह अधर कऐ म ढ़कल रहा ह | ई छा ही दख की जनमदाऽी इस ससाररपी बल का बीज ह | यिद इस बीज को आतम ानरपी अि न स ठ क-ठ क जला िदया तो पनः यह अकिरत नही होता | रघकलभषण राम ई छामाऽ ससार ह और ई छाओ का अभाव ही िनवारण ह | अतः अनक कार की माथाप ची म ना पड़कर कवल ऐसा य करना चािहय िक ई छा उतपनन ना हो | अपनी बि स ई छा का िवनाश करन को जो ततपर नही ऐस अभाग को शा और गर का उपदश

भी कया करगा जस अपनी जनमभमी जगल म िहरणी की मतय िनि त ह उसी कार अनकिवध दख का िवःतार कारनवाल ई छारपी िवषय-िवकार स य इस जगत म मनय की मतय िनि त ह | यिद मानव ई छाओ क कारण ब च -सा मढ़ ना बन तो उस आतम ान क िलय अ प य ही करना पड़ | इसिलय सभी कार स ई छाओ को शानत करना चािहय | ई छा क शमन स परम पद की ाि होती ह | ई छारिहत हो जाना यही िनवारण ह और ई छाय

होना ही बधन ह | अतः यथाशि ई छा को जीतना चािहय | भला इतना करन म कया किठनाई ह जनम जरा यािध और मतयरपी कटीली झािड़य और खर क व - समह की जड़ भी ई छा ही ह

| अतः शमरपी अि न स अदर-ही-अदर बीज को जला ड़ालना चािहय| जहा ई छाओ का अभाव ह

वहा मि िनि त ह |

िववक वरा य आिद साधन स ई छा का सवरथा िवनाश करना चािहय | ई छा का सबध जहा-जहा ह वहा-वहा पाप प य दखरािशया और ल बी पीड़ाओ स य बधन को हािज़र ही समझो | परष

की आतिरक ई छा य - य शानत होती जाती ह तय -तय मो क िलय उसका क याणकारक

साधन बढ़ता जाता ह | िववकहीन ई छा को पोसना उस पणर करना यह तो ससाररपी िवष व को पानी स सीचन क समान ह |rdquo

- ौीयोगविश महारामायण

आतमबल का आवाहन कया आप अपन-आपको दबरल मानत हो लघतामथी म उलझ कर पिरिःतिथय स िपस रह हो

अपना जीवन दीन-हीन बना बठ हो hellipतो अपन भीतर सष आतमबल को जगाओ | शरीर चाह ी का हो चाह परष का कित क साा य म जो जीत ह व सब ी ह और कित क बनधन स पार अपन ःवरप की पहचान िजनह न कर ली ह अपन मन की गलामी की बिड़या तोड़कर िजनह न फ क दी ह व परष ह | ी या परष शरीर एव मानयताए होती ह | तम तो तन-मन स पार िनमरल आतमा हो | जागोhellipउठोhellipअपन भीतर सोय हय िन यबल को जगाओ | सवरदश सवरकाल म सव म

आतमबल को िवकिसत करो | आतमा म अथाह सामथयर ह | अपन को दीन-हीन मान बठ तो िव म ऐसी कोई स ा नही जो त ह ऊपर उठा सक | अपन आतमःवरप म िति त हो गय तो िऽलोकी म ऐसी कोई हःती नही जो त ह दबा सक | भौितक जगत म वाप की शि ईलकशोिनक शि िव त की शि गरतवाकषरण की शि बड़ी मानी जाती ह लिकन आतमबल उन सब शि य का सचालक बल ह | आतमबल क सािननधय म आकर पग ार ध को पर िमल जात ह दव की दीनता पलायन हो जाती ह ितकल पिरिःतिथया अनकल हो जाती ह | आतमबल सवर िरि -िसि य का िपता ह |

आतमबल कस जगाय हररोज़ तःकाल ज दी उठकर सय दय स पवर ःनानािद स िनवत हो जाओ | ःव छ पिवऽ ःथान

म आसन िबछाकर पवारिभमख होकर प ासन या सखासन म बठ जाओ | शानत और सनन वि

धारण करो | मन म ढ भावना करो िक म कित-िनिमरत इस शरीर क सब अभाव को पार करक सब

मिलनताओ-दबरलताओ स िप ड़ छड़ाकर आतमा की मिहमा म जागकर ही रहगा |

आख आधी खली आधी बद रखो | अब फ़फ़ड़ म खब ास भरो और भावना करो की ास क साथ

म सयर का िद य ओज भीतर भर रहा ह | ास को यथाशि अनदर िटकाय रखो | िफ़र lsquoॐhelliprsquo का ल बा उ चारण करत हए ास को धीर-धीर छोड़त जाओ | ास क खाली होन क बाद तरत ास ना लो | यथाशि िबना ास रहो और भीतर ही भीतर lsquoहिर ॐhelliprsquo lsquoहिर ॐhelliprsquo का मानिसक

जाप करो | िफ़र स फ़फ़ड़ म ास भरो | पव रीित स ास यथाशि अनदर िटकाकर बाद म धीर-धीर छोड़त हए lsquoॐhelliprsquo का गजन करो | दस-पिह िमनट ऐस ाणायाम सिहत उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo की धविन करक शानत हो जाओ | सब

यास छोड़ दो | वि य को आकाश की ओर फ़लन दो | आकाश क अनदर पथवी ह | पथवी पर अनक दश अनक समि एव अनक लोग ह | उनम स एक

आपका शरीर आसन पर बठा हआ ह | इस पर य को आप मानिसक आख स भावना स दखत

रहो | आप शरीर नही हो बि क अनक शरीर दश सागर पथवी मह न ऽ सयर चनि एव पर ा ड़ क

ा हो सा ी हो | इस सा ी भाव म जाग जाओ | थोड़ी दर क बाद िफ़र स ाणायाम सिहत lsquoॐhelliprsquo का जाप करो और शानत होकर अपन िवचार को दखत रहो | इस अवःथा म ढ़ िन य करो िक lsquoम जसा चहता ह वसा होकर रहगा |rsquo िवषयसख स ा धन-

दौलत इतयािद की इ छा न करो कय िक िन यबल या आतमबलरपी हाथी क पदिच म और सभी क पदिच समािव हो ही जायग | आतमानदरपी सयर क उदय होन क बाद िम टी क तल क दीय क ाकाश रपी शि सखाभास की गलामी कौन कर

िकसी भी भावना को साकार करन क िलय दय को करद ड़ाल ऐसी िन यातमक बिल वि होनी आवशयक ह | अनतःकरण क गहर-स-गहर दश म चोट कर ऐसा ाण भरक िन बल का आवाहन करो | सीना तानकर खड़ हो जाओ अपन मन की दीन-हीन दखद मानयताओ को कचल

ड़ालन क िलय | सदा ःमरण रह की इधर-उधर भटकती वि य क साथ त हारी शि भी िबखरती रहती ह | अतः वि य को बहकाओ नही | तमाम वि य को एकिऽत करक साधनाकाल म आतमिचनतन म लगाओ और यवहारकाल म जो कायर करत हो उसम लगाओ | द िच होकर हरक कायर करो | अपन ःवभाव म स आवश को सवरथा िनमरल कर दो | आवश म आकर कोई िनणरय मत लो कोई िबया मत करो | सदा शानत वि धारण करन का अ यास करो | िवचारशील एव सनन रहो | ःवय अचल रहकर सागर की तरह सब वि य की तरग को अपन

भीतर समालो | जीवमाऽ को अपना ःवरप समझो | सबस ःनह रखो | िदल को यापक रखो | सकिच ता का िनवारण करत रहो | ख ड़ातमक वि का सवरथा तयाग करो | िजनको ानी महापरष का सतसग और अधयातमिव ा का लाभ िमल जाता ह उसक जीवन स

दःख िवदा होन लगत ह | ॐ आननद आतमिन ा म जाग हए महापरष क सतसग एव सतसािहतय स जीवन को भि और वदात स प

एव पलिकत करो | कछ ही िदन क इस सघन योग क बाद अनभव होन लगगा िक भतकाल क

नकारतमक ःवभाव सशयातमक-हािनकारक क पनाओ न जीवन को कचल ड़ाला था िवषला कर िदया था | अब िन यबल क चमतकार का पता चला | अततरम म आिवरभत िद य खज़ाना अब

िमला | ार ध की बिड़या अब टटन लगी | ठ क ह न करोग ना िह मत पढ़कर रख मत दना इस पिःतका को | जीवन म इसको बार-बार पढ़त रहो | एक िदन म यह पणर ना होगा | बार-बार अ यास करो | त हार िलय यह एक ही पिःतका काफ़ी ह | अनय कचराप टी ना पड़ोग तो चलगा | शाबाश वीर शाबाश

  • परसतावना
  • जीवन रसायन
  • गर भकति एक अमोघ साधना
  • शरी राम-वशिषठ सवाद
  • आतमबल का आवाहन
  • आतमबल कस जगाय
Page 26: जीवन रसायन - HariOmGroup · ‘जीवन रसायन’ का यह िदय कटोरा आत्मरस के िपपासुओं हाथ

चाहोग तो मान िमलगा | ःवगर नही चाहोग तो ःवगर क दत आपक िलय िवमान लकर आयग |

उसको भी ःवीकार नही करोग तो ई र आपको अपन दय स लगायग | 169) कभी-कभी उदय या अःत होत हए सयर की ओर चलो | नदी सरोवर या समि क तट

पर अकल घमन जाओ | ऐस ःथान की मलाकात लो जहा शीतल पवन मनद-मनद चल रही हो | वहा परमातमा क साथ एकःवर होन की स भावना क ार खलत ह | 170) आप य -ही इ छा स ऊपर उठत हो तय -ही आपका इि छत पदाथर आपको खोजन

लगता ह | अतः पदाथर स ऊपर उठो | यही िनयम ह | य - य आप इ छक िभ क याचक का भाव धारण करत हो तय -तय आप ठकराय जात हो | 171) कित क तयक पदाथर को दखन क िलय काश जररी ह | इसी कार मन बि

इिनिय को अपन-अपन कायर करन क िलय आतम-काश की आवयकता ह कय िक बाहर का कोई काश मन बि इिनिय ाणािद को चतन करन म समथर नही | 172) जस ःव न ा परष को जागन क बाद ःव न क सख-दःख जनम-मरण पाप-प य

धमर-अधमर आिद ःपशर नही करत कय िक वह सब खद ही ह | खद क िसवाय ःव न म दसरा कछ

था ही नही | वस ही जीवनम ानवान परष को सख-दःख जनम-मरण पाप-प य धमर-अधमर ःपशर नही करत कय िक व सब आतमःवरप ही ह | 173) वही भमा नामक आतम योित क म रह कर भ क रही ह सअर म रह कर घर रही ह गध म रह कर रक रही ह लिकन मखर लोग शरीर पर ही ि रखत ह चतनय ततव पर नही | 174) मनय िजस ण भत-भिवय की िचनता का तयाग कर दता ह दह को सीिमत और उतपि -िवनाशशील जानकर दहािभमान को तयाग दता ह उसी ण वह एक उ चतर अवःथा म पहच जाता ह | िपजर स छटकर गगनिवहार करत हए प ी की तरह मि का अनभव करता ह | 175) समःत भय एव िचनताए आपकी इ छाओ का णाम ह | आपको भय कय लगता ह

कय िक आपको आशका रहती ह िक अमक चीज कही चली न जाय | लोग क हाःय स आप डरत

ह कय िक आपको यश की अिभलाषा ह कीितर म आसि ह | इ छाओ को ितलाजिल द दो | िफर दखो मजा कोई िज मदारी नहीकोई भय नही | 176) दखन म अतयत करप काला-कलटा कबड़ा और तज ःवभाव का मनय भी आपका ही ःवरप ह | आप इस तथय स म नही | िफर घणा कसी कोई लाव यमयी सदरी सि की

शोभा क समान अित िवलासभरी अ सरा भी आपका ही ःवरप ह | िफर आसि िकसकी

आपकी ानिनिया उनको आपस अलग करक िदखाती ह | य इिनिया झठ बोलनवाली ह | उनका कभी िव ास मत करो | अतः सब कछ आप ही हो | 177) मानव क नात हम साधक ह | साधक होन क नात सतय को ःवीकर करना हमारा ःवधमर ह | सतय यही ह िक बल दसर क िलय ह ान अपन िलय ह और िव ास परमातमा स

स बनध जोड़न क िलय ह | 178) अपनी आतमा म डब जाना यह सबस बड़ा परोपकार ह | 179) आप सदव म ह ऐसा िव ास ढ़ करो तो आप िव क उ ारक हो जात हो | आप

यिद वदानत क ःवर क साथ ःवर िमलाकर िन य करो आप कभी शरीर न थ | आप िनतय श

ब आतमा हो तो अिखल ा ड क मो दाता हो जात हो | 180) कपा करक उन ःवाथरमय उपाय और अिभाय को दर फ क दो जो आपको पिरि छनन रखत ह | सब वासनाए राग ह | यि गत या शरीरगत म आसि ह | उस फ क दो | ःवय पिवऽ हो जाओ | आपका शरीर ःवःथ और बि पणरःवरप हो जायगी | 181) यिद ससार क सख व पदाथर ा ह तो आपको कहना चािहय ओ शतान हट जा मर सामन स | तर हाथ स मझ कछ नही चािहय | तब दखो िक आप कस सखी हो जात हो परमातमा-ा िकसी महापरष पर िव ास रखकर अपनी जीवनडोरी िनःशक बन उनक चरण म सदा क िलय रख दो | िनभरयता आपक चरण की दासी बन जायगी | 182) िजसन एक बार ठ क स जान िलया िक जगत िमथया ह और ािनत स इसकी तीित

हो रही ह उसको कभी दःख नही होता | जगत म कभी आसि नही होती | जगत क िमथयातव क

िन य का नाम ही जगत का नाश ह | 183) अपन ःवरप म लीन होन माऽ स आप ससार क साट बन जायग | यह साटपद

कवल इस ससार का ही नही समःत लोक-परलोक का साटपद होगा | 184) ह जनक चाह दवािधदव महादव आकर आपको उपदश द या भगवान िवण आकर उपदश द अथवा ाजी आकर उपदश द लिकन आपको कदािप सख न होगा | जब िवषय का तयाग करोग तभी स ची शाित व आनद ा ह ग |

185) िजस भ न हम मानव जीवन दकर ःवाधीनता दी िक हम जब चाह तब धमारतमा होकर भ होकर जीवनम होकर कतकतय हो सकत ह- उस भ की मिहमा गाओ | गाओ नही तो सनो | सनो भी नही गाओ भी नही तो ःवीकार कर लो | 186) चाह समि क गहर तल म जाना पड़ सा ात मतय का मकाबला करना पड़ अपन

आतमाि क उ य की पितर क िलय अिडग रहो | उठो साहसी बनो शि मान बनो | आपको जो बल व सहायता चािहय वह आपक भीतर ही ह | 187) जब-जब जीवन स बनधी शोक और िचनता घरन लग तब-तब अपन आननदःवरप

का गान करत-करत उस मोह-माया को भगा दो | 188) जब शरीर म कोई पीड़ा या अग म ज म हो तब म आकाशवत आकाशरिहत चतन

ह ऐसा ढ़ िन य करक पीड़ा को भल जाओ | 189) जब दिनया क िकसी चककर म फस जाओ तब म िनलप िनतय म ह ऐसा ढ़

िन य करक उस चककर स िनकल जाओ | 190) जब घर-बार स बनधी कोई किठन समःया याकल कर तब उस मदारी का खल

समझकर ःवय को िनःसग जानकर उस बोझ को ह का कर दो | 191) जब बोध क आवश म आकर कोई अपमानय वचन कह तब अपन शाितमय

ःवरप म िःथर होकर मन म िकसी भी ोभ को पदा न होन दो | 192) उ म अिधकारी िज ास को चािहय िक वह व ा सदगर क पास जाकर ौ ा पवरक महावाकय सन | उसका मनन व िनिदधयासन करक अपन आतमःवरप को जान | जब

आतमःवरप का सा ातकार होता ह तब ही परम िवौािनत िमल सकती ह अनयथा नही | जब तक

व ा महापरष स महावाकय ा न हो तब तक वह मनद अिधकारी ह | वह अपन दयकमल म परमातमा का धयान कर ःमरण कर जप कर | इस धयान-जपािद क साद स उस व ा सदगर

ा ह ग | 193) मन बि िच अहकार छाया की तरह जड़ ह णभगर ह कय िक व उतपनन होत

ह और लीन भी हो जात ह | िजस चतनय की छाया उसम पड़ती ह वह परम चतनय सबका आतमा ह | मन बि िच अहकार का अभाव हो जाता ह लिकन उसका अनभव करनवाल का अभाव

कदािप नही होता |

194) आप अपनी शि को उ चाितउ च िवषय की ओर बहन दो | इसस आपक पास व

बात सोचन का समय ही नही िमलगा िजसस कामकता की गध आती हो | 195) अपराध क अनक नाम ह बालहतया नरहतया मातहतया गौहतया इतयािद |

परनत तयक ाणी म ई र का अनभव न करक आप ई रहतया का सबस बड़ा अपराध करत ह | 196) सवा करन की ःवाधीनता मनयमाऽ को ा ह | अगर वह करना ही न चाह तो अलग बात ह | सवा का अथर ह मन-वाणी-कमर स बराईरिहत हो जाना यह िव की सवा हो गई |

यथाशि भलाई कर दो यह समाज की सवा हो गई | भलाई का फल छोड़ दो यह अपनी सवा हो गई

| भ को अपना मानकर ःमित और म जगा लो यह भ की सवा हो गई | इस कार मनय

अपनी सवा भी कर सकता ह समाज की सवा भी कर सकता ह िव की सवा भी कर सकता ह

और िव र की सवा भी कर सकता ह | 197) आतमा स बाहर मत भटको अपन कनि म िःथर रहो अनयथा िगर पड़ोग | अपन-

आपम पणर िव ास रखो | आतम-कनि पर अचल रहो | िफर कोई भी चीज आपको िवचिलत नही कर सकती | 198) सदा शात िनिवरकार और सम रहो | जगत को खलमाऽ समझो | जगत स भािवत

मत हो | इसस आप हमशा सखी रहोग | िफर कछ बढ़ान की इ छा नही होगी और कछ कम होन स

दःख नही होगा | 199) समथर सदगर क सम सदा फल क भाित िखल हए रहो | इसस उनक अनदर सक प

होगा िक यह तो बहत उतसाही साधक ह सदा सनन रहता ह | उनक सामथयरवान सक प स

आपकी वह किऽम सननता भी वाःतिवक सननता म बदल जायगी | 200) यिद रोग को भी ई र का िदया मानो तो ार ध-भोग भी हो जाता ह और क तप का फल दता ह | इसस ई र-कपा की ाि होती ह | याकल मत हो | क सल और इनजकशन

आधीन मत हो | 201) साधक को चािहय िक अपन लआय को ि म रखकर साधना-पथ पर तीर की तरह

सीधा चला जाय | न इधर दख न उधर | ि यिद इधर-उधर जाती हो तो समझना िक िन ा िःथर नही ह |

202) आपन अपन जीवन म हजार ःव न दख ह ग लिकन व आपक जीवन क अश नही बन जात | इसी कार य जामत जगत क आड बर आपकी आतमा क सम कोई मह व नही रखत | 203) एक आतमा को ही जानो अनय बात को छोड़ो | धीर साधक को चािहय िक वह

सावधान होकर आतमिन ा बढ़ाय अनक श द का िचनतन व भाषण न कर कय िक वह तो कवल

मन-वाणी को पिरौम दनवाला ह असली साधना नही ह | 204) जो परष जन-समह स ऐस डर जस साप स डरता ह स मान स ऐस डर जस नकर स

डरता ह ि य स ऐस डर जस मद स डरता ह उस परष को दवतागण ा ण मानत ह | 205) जस अपन शरीर क अग पर बोध नही आता वस शऽ िमऽ व अपनी दह म एक ही आतमा को दखनवाल िववकी परष को कदािप बोध नही आता | 206) मन तो शरीर को ई रापरण कर िदया ह | अब उसकी भख- यास स मझ कया

समिपरत वःत म आस होना महा पाप ह | 207) आप यिद िद य ि पाना चहत हो तो आपको इिनिय क ऽ का तयाग करना होगा | 208) लयकाल क मघ की गजरना हो समि उमड़ पड बारह सयर तपायमान हो जाय पहाड़ स पहाड़ टकरा कर भयानक आवाज हो तो भी ानी क िन य म त नही भासता कय िक

त ह ही नही | त तो अ ानी को भासता ह | 209) सतय को ःवीकार करन स शाित िमलगी | कछ लोग यो यता क आधार पर शाित

खरीदना चाहत ह | यो यता स शाित नही िमलगी यो यता क सदपयोग स शाित िमलगी | कछ

लोग स पि क आधार पर शाित सरि त रखना चाहत ह | स पि स शाित नही िमलगी स पि

क सदपयोग स शाित िमलगी वस ही िवपि क सदपयोग स शाित िमलगी | 210) त छ हािन-लाभ पर आपका धयान इतना कय रहता ह िजसस अनत आननदःवरप

आतमा पर स धयान हट जाता ह | 211) अपन अनदर ही आननद ा करना य िप किठन ह परनत बा िवषय स आननद

ा करना तो अस भव ही ह |

212) म ससार का काश ह | काश क रप म म ही सब वःतओ म या ह | िनतय इन

िवचार का िचनतन करत रहो | य पिवऽ िवचार आपको परम पिवऽ बना दग | 213) जो वःत कमर स ा होती ह उसक िलय ससार की सहायता तथा भिवय की आशा की आवयकता होती ह परनत जो वःत तयाग स ा होती ह उसक िलय न ससार की सहायता चािहय न भिवय की आशा | 214) आपको जब तक बाहर चोर िदखता ह तब तक जरर भीतर चोर ह | जब दसर लोग

स िभनन अयो य खराब सधारन यो य िदखत ह तब तक ओ सधार का बीड़ा उठान वाल त अपनी िचिकतसा कर | 215) सफल व ही होत ह जो सदव नतमःतक एव सननमख रहत ह | िचनतातर-शोकातर लोग की उननित नही हो सकती | तयक कायर को िह मत व शाित स करो | िफर दखो िक यह

कायर शरीर मन और बि स हआ | म उन सबको स ा दनवाला चतनयःवरप ह | ॐ ॐ का पावन गान करो | 216) िकसी भी पिरिःथित म मन को यिथत न होन दो | आतमा पर िव ास करक

आतमिन बन जाओ | िनभरयता आपकी दासी बन कर रहगी | 217) सतसग स मनय को साधना ा होती ह चाह वह शाित क रप म हो चाह मि क

रप म चाह सवा क रप म हो म क रप म हो चाह तयाग क रप म हो | 218) भला-बरा वही दखता ह िजसक अनदर भला-बरा ह | दसर क शरीर को वही दखता ह

जो खद को शरीर मानता ह | 219) खबरदार आपन यिद अपन शरीर क िलय ऐश-आराम की इ छा की िवलािसता एव इिनिय-सख म अपना समय बरबाद िकया तो आपकी खर नही | ठ क स कायर करत रहन की नीित

अपनाओ | सफलता का पहला िस ात ह कायरिवौामरिहत कायरसा ी भाव स कायर | इस

िस ात को जीवन म चिरताथर करोग तो पता चलगा िक छोटा होना िजतना सरल ह उतना ही बड़ा होना भी सहज ह | 220) भतकाल पर िखनन हए िबना भिवय की िचनता िकय िबना व रमान म कायर करो | यह भाव आपको हर अवःथा म सनन रखगा हम जो कछ ा ह उसका सदपयोग ही अिधक

काश पान का साधन ह |

221) जब आप सफलता की ओर पीठ कर लत हो पिरणाम की िचनता का तयाग कर दत

हो स मख आय हए क र य पर अपनी उ ोगशि एकाम करत हो तब सफलता आपक पीछ-पीछ

आ जाती ह | अतः सफलता आपको खोजगी | 222) वि तब तक एकाम नही होगी जब तक मन म कभी एक आशा रहगी तो कभी दसरी | शात वही हो सकता ह िजस कोई क र य या आवयकता घसीट न रही हो | अतः परम शाित पान

क िलय जीवन की आशा भी तयाग कर मन ाननद म डबो दो | आज स समझ लो िक यह शरीर ह ही नही | कवल ाननद का सागर लहरा रहा ह | 223) िजसकी पककी िन ा ह िक म आतमा हrsquo उसक िलय ऐसी कौन सी मिथ ह जो खल

न सक ऐसी कोई ताकत नही जो उसक िवर जा सक | 224) मर भा य म नही थाई र की मज आजकल सतसग ा नही होताजगत

खराब ह ऐस वचन हमारी कायरता व अनतःकरण की मिलनता क कारण िनकलत ह | अतः नकारातमक ःवभाव और दसर पर दोषारोपण करन की वि स बचो | 225) आप जब भीतरवाल स नाराज होत हो तब जगत आपस नाराज रहता ह | जब आप

भीतर अनतयारमी बन बठ तो जगतरपी पतलीघर म िफर गड़बड़ कसी 226) िजस ण हम ससार क सधारक बन खड़ होत ह उसी ण हम ससार को िबगाड़नवाल बन जात ह | श परमातमा को दखन क बजाय जगत को िबगड़ा हआ दखन की ि बनती ह | सधारक लोग मानत ह िक lsquoभगवान न जो जगत बनाया ह वह िबगड़ा हआ ह और हम उस सधार रह ह |rsquo वाह वाह धनयवाद सधारक अपन िदल को सधारो पहल | सवरऽ िनरजन का दीदार करो | तब आपकी उपिःथित माऽ स आपकी ि माऽ स अर यार आपको छकर बहती हवा माऽ स अननत जीव को शाित िमलगी और अननत सधार होगा | नानक कबीर महावीर ब और लीलाशाह बाप जस महापरष न यही कजी अपनायी थी | 227) वदानत म हमशा कमर का अथर होता ह वाःतिवक आतमा क साथ एक होकर च ा करना अिखल िव क साथ एकःवर हो जाना | उस अि तीय परम ततव क साथ िनःःवाथर सयोग ा करना ही एकमाऽ स चा कमर ह बाकी सब बोझ की गठिरया उठाना ह |

228) अपनी व रमान अवःथा चाह कसी भी हो उसको सव च मानन स ही आपक दय म आतम ान ान का अनायास उदय होन लगगा | आतम-सा ातकार को मील दर की कोई चीज समझकर उसक पीछ दौड़ना नही ह िचिनतत होना नही ह |

िचनता की गठरी उठाकर यिथत होन की जररत नही ह | िजस ण आप िनि नतता म गोता मारोग उसी ण आपका आतमःवरप गट हो जायगा | अर गट कया होगा आप ःवय आतमःवरप हो ही | अनातमा को छोड़ दो तो आतमःवरप तो हो ही | 229) सदा ॐकार का गान करो | जब भय व िचनता क िवचार आय तब िकसी मःत सत-फकीर महातमा क सािननधय का ःमरण करो | जब िननदा-शसा क सग आय तब महापरष क जीवन का अवलोकन करो | 230) िजनको आप भयानक घटनाए एव भयकर आघात समझ बठ हो वाःतव म व आपक ियतम आतमदव की ही करतत ह | समःत भयजनक तथा ाणनाशक घटनाओ क नाम-रप तो िवष क ह लिकन व बनी ह अमत स | 231) मन म यिद भय न हो तो बाहर चाह कसी भी भय की साममी उपिःथत हो जाय आपका कछ िबगाड़ नही सकती | मन म यिद भय होगा तो तरनत बाहर भी भयजनक पिरिःथया न होत हए भी उपिःथत हो जायगी | व क तन म भी भत िदखन लगगा | 232) िकसी भी पिरिःथित म िदखती हई कठोरता व भयानकता स भयभीत नही होना चािहए | क क काल बादल क पीछ पणर काशमय एकरस परम स ा सयर की तरह सदा िव मान ह | 233) आप अपन पर कदािप अिव ास मत करो | इस जगत म आप सब कछ कर सकत हो | अपन को कभी दबरल मत मानो | आपक अनदर तमाम शि या छपी हई ह | 234) यिद कोई मन य आपकी कोई चीज़ को चरा लता ह तो ड़रत कय हो वह मनय

और आप एक ह | िजस चीज़ को वह चराता ह वह चीज़ आपकी और उसकी द न की ह | 235) जो खद क िसवाय दसरा कछ दखता नही सनता नही जानता नही वह अननत ह |

जब तक खद क िसवाय और िकसी वःत का भान होता ह वह वःत स ची लगती ह तब तक आप

सीिमत व शात ह असीम और अनत नही |

236) ससार मझ कया आनद द सकता ह स पणर आनद मर भीतर स आया ह | म ही स पणर आननद ह स पणर मिहमा एव स पणर सख ह | 237) जीवन की समःत आवयकताए जीवन म उपिःथत ह परनत जीवन को जब हम

बा रग म रग दत ह तब जीवन का वाःतिवक रप हम नही जान पात | 238) िननदक की िननदा स म कय मरझाऊ शसक की शसा स म कय फल िननदा स म घटता नही और शसा स म बढ़ता नही | जसा ह वसा ही रहता ह | िफर िननदा-ःतित स

खटक कसी 239) ससार व ससार की समःयाओ म जो सबस अिधक फस हए ह उनही को वदानत की सबस अिधक आवयकता ह | बीमार को ही औषिध की यादा आवयकता ह | कय जी ठ क ह न 240) जगत क पाप व अतयाचार की बात मत करो लिकन अब भी आपको जगत म पाप

िदखता ह इसिलय रोओ | 241) हम यिद जान ल िक जगत म आतमा क िसवाय दसरा कछ ह ही नही और जो कछ

िदखता ह वह ःव नमाऽ ह तो इस जगत क दःख-दािरिय पाप-प य कछ भी हम अशात नही कर सकत | 242) िव ान दाशरिनक व आचाय की धमकी तथा अनमह आलोचना या अनमित

ानी पर कोई भाव नही ड़ाल सकती | 243) ह यि रप अननत आप अपन पर पर खड़ रहन का साहस करो समःत िव का बोझ आप िखलौन की तरह उठा लोग | 244) िसह की गजरना व नरिसह की ललकार तलवार की धार व साप की फफकार तपःवी की धमकी व नयायधीश की फटकारइन सबम आपका ही काश चमक रहा ह | आप इनस

भयभीत कय होत हो उलझन कय महसस करत हो मरी िब ली मझको याऊ वाली बात कय

होन दत हो 245) ससार हमारा िसफ़र िखलोना ही ह और कछ नही | अबोध बालक ही िखलौन स

भयभीत होता ह आसि करता ह िवचारशील यि नही |

246) जब तक अिव ा दर नही होगी तब तक चोरी जआ दार यिभचार कभी बद न

ह ग चाह लाख कोिशश करो | 247) आप हमशा अदर का धयान रखो | पहल हमारा भीतरी पतन होता ह | बा पतन तो इसका पिरणाम माऽ ह | 248) तयाग स हमशा आनद िमलता ह | जब तक आपक पास एक भी चीज़ बाकी ह तब

तक आप उस चीज़ क बधन म बध रहोग | आघात व तयाघात हमशा समान िवरोधी होत ह | 249) िनि तता ही आरो यता की सबस बड़ी दवाई ह | 250) सख अपन िसर पर दख का मकट पहन कर आता ह | जो सख को अपनायगा उस

दख को भी ःवीकार करना पड़गा | 251) म (आतमा) सबका ा ह | मरा ा कोई नही | 252) हजार म स कोई एक परष भीतर स शात िच वाला रहकर बाहर स ससारी जसा यवहार कर सकता ह | 253) सतय क िलए यिद शरीर का तयाग करना पड़ तो कर दना | यही आिखरी ममता ह जो हम तोड़नी होगी | 254) भय िचनता बचनी स ऊपर उठो | आपको ान का अनभव होगा | 255) आपको कोई भी हािन नही पहचा सकता | कवल आपक खयालात ही आपक पीछ पड़ ह | 256) म का अथर ह अपन पड़ोसी तथा सपकर म आनवाल क साथ अपनी वाःतिवक अभदता का अनभव करना | 257) ओ यार अपन खोय हए आतमा को एक बार खोज लो | धरती व आसमान क शासक आप ही हो | 258) सदव सम और सनन रहना ई र की सव पिर भि ह |

259) जब तक िच म ढ़ता न आ जाय िक शा की िविधय का पालन छोड़ दन स भी दय का यथाथर भि भाव न नही होगा तब तक शा की िविधय को पालत रहो |

गर भि एक अमोघ साधना 1 जनम मरण क िवषचब स म होन का कोई मागर नही ह कया सख-दःख हषर-शोक लाभ-

हािन मान-अपमान की थ पड़ स बचन का कोई उपाय नही ह कया

हअवय ह | ह िय आतमन नाशवान पदाथ स अपना मन वािपस लाकर सदगर क

चरणकमल म लगाओ | गरभि योग का आौय लो | गरसवा ऐसा अमोघ साधन ह िजसस

व रमान जीवन आननदमय बनता ह और शा त सख क ार खलत ह |

गर सवत त नर धनय यहा | ितनक नही दःख यहा न वहा || 2 स च सदगर की की हई भि िशय म सासािरक पदाथ क वरा य एव अनासि जगाती ह

परमातमा क ित म क पप महकाती ह | 3 तयक िशय सदगर की सवा करना चाहता ह लिकन अपन ढग स | सदगर चाह उस ढग स

सवा करन को कोई ततपर नही | जो िवरला साधक गर चाह उस ढ़ग स सवा कर सकता ह उस कोई कमी नही रहती |

िन सदगर की सवा स उनकी कपा ा होती ह और उस कपा स न िमल सक ऐसा तीन लोक म कछ भी नही ह | 4 गर िशय का स बनध पिवऽतम स बनध ह | ससार क तमाम बनधन स छड़ाकर वह मि क मागर पर ःथान कराता ह | यह स बनध जीवनपयरनत का स बनध ह | यह बात अपन दय की डायरी म सवणर-अ र स िलख लो | 5 उ ल सयर क काश क अिःततव को मान या न मान िफर भी सयर हमशा काशता ह | चचल मन का मनय मान या न मान लिकन सदगर की परमक याणकारी कपा सदव बरसती ही रहती ह | 6 सदगर की चरणरज म ःनान िकय िबना कवल किठन तप यार करन स या वद का

अधयन करन स वदानत का रहःय कट नही होता आतमानद का अमत नही िमलता | 7 दशरन शा क चाह िकतन मनथ पढ़ो हजार वष तक िहमालय की गफा म तप करो वष तक ाणायाम करो जीवनपयरनत शीषारसन करो समम िव म वास करक याखान दो िफर भी सदगर की कपा क िबना आतम ान नही होता | अतः िनरािभमानी सरल िनजाननद म मःत दयाल ःवभाव क आतम-सा ातकारी सदगर क चरण म जाओ | जीवन को धनय बनाओ | 8 सदगर की सवा िकय िबना शा का अधयन करना मम साधक क िलय समय बरबाद करन क बराबर ह | 9 िजसको सदगर ा हए ह ऐस िशय क िलय इस िव म कछ भी अा य नही ह | सदगर िशय को िमली हई परमातमा की अम य भट ह | अर नहीhellipनही व तो िशय क सम साकार रप म कट हए परमातमा ःवय ह | 10 सदगर क साथ एक ण िकया हआ सतसग लाख वष क तप स अननत गना ौ ह | आख क िनमषमाऽ म सदगर की अमतवष ि िशय क जनम-जनम क पाप को जला सकती ह | 11 सदगर जसा मपणर कपाल िहतिचनतक िव भर म दसरा कोई नही ह | 12 बाढ़ क समय याऽी यिद तफानी नदी को िबना नाव क पार कर सक तो साधक भी िबना सदगर क अपन जीवन क आिखरी लआय को िस कर सकता ह | यानी य दोन बात स भव ह |

अतः यार साधक मनमखी साधना की िज करना छोड़ दो | गरमखी साधना करन म ही सार ह | 13 सदगर क चरणकमल का आौय लन स िजस आननद का अनभव होता ह उसक आग िऽलोकी का साा य त छ ह | 14 आतम-सा ातकार क मागर म सबस महान शऽ अहभाव का नाश करन क िलए सदगर की आ ा का पालन अमोघ श ह | 15 रसोई सीखन क िलय कोई िसखानवाला चािहय िव ान और गिणत सीखन क िलय

अधयापक चािहय तो कया िव ा सदगर क िबना ही सीख लोग 16 सदगरकपा की स पि जसा दसरा कोई खजाना िव भर म नही | 17 सदगर की आ ा का उ लघन करना यह अपनी क खोदन क बराबर ह | 18 सदगर क कायर को शका की ि स दखना महापातक ह | 19 गरभि व गरसवा - य साधनारपी नौका की दो पतवार ह | उनकी मदद स िशय ससारसागर को पार कर सकता ह | 20 सदगर की कसौटी करना असभव ह | एक िववकाननद ही दसर िववकाननद को पहचान सकत ह | ब को जानन क िलय दसर ब की आवयकता रहती ह | एक रामतीथर का रहःय दसर रामतीथर ही पा सकत ह |

अतः सदगर की कसौटी करन की च ा छोड़कर उनको पिरपणर पर परमातमा मानो |

तभी जीवन म वाःतिवक लाभ होगा | 21 गरभि योग का आौय लकर आप अपनी खोई हई िद यता को पनः ा करो सख-दःख जनम-मतय आिद सब न स पार हो जाओ | 22 गरभि योग मान गर की सवा क ारा मन और िवकार पर िनयऽण एव पनः सःकरण | 23 िशय अपन गर क चरणकमल म णाम करता ह | उन पर ौ फल की वषार करक उनकी ःतित करता ह ldquoह परम प य पिवऽ गरदव मझ सव च सख ा हआ ह | म िन ा स जनम-मतय की पर परा स म हआ ह | म िनिवरक प समािध का श सख भोग रहा ह | जगत क िकसी भी कोन म म म ता स िवचरण कर सकता ह | सब पर मरी सम ि ह | मन ाकत मन का तयाग िकया ह | मन सब सक प एव रिच-अरिच का तयाग िकया ह | अब म अख ड शाित म िवौाित पा रहा ह hellip आननदमय हो रहा ह | म इस पणर अवःथा का वणरन नही कर पाता | ह प य गरदव म आवाक बन गया ह | इस दःतर भवसागर को पार करन म आपन

मझ सहायता की ह | अब तक मझ कवल अपन शरीर म ही स पणर िव ास था | मन िविभनन योिनय म अस य जनम िलय | ऐसी सव च िनभरय अवःथा मझ कौन स पिवऽ कम क कारण ा हई ह यह म नही जानता | सचमच यह एक दलरभ भा य ह |

यह एक महान उतक लाभ ह | अब म आननद स नाचता ह | मर सब दःख न हो गय | मर सब मनोरथ पणर हए ह |

मर कायर स पनन हए ह | मन सब वािछत वःतए ा की ह | मरी इ छा पिरपणर हई ह | आप मर स च माता-िपता हो | मरी व रमान िःथित म म दसर क सम िकस कार कट कर सक सवरऽ सख और आननद का अननत सागर मझ लहराता हआ िदख रहा ह | मर अतःच िजसस खल गय वह महावाकय lsquoत वमिसrsquo ह | उपिनषद एव वदानतसऽ को भी धनयवाद | िजनह न िन गर का एव उपिनषद क महावाकय का रप धारण िकया ह | ऐस ौी यासजी को णाम ौी शकराचायर को णाम सासािरक मनय क िसर पर गर क चरणामत का एक िबनद भी िगर तो भी उसक ःब दःख का नाश होता ह | यिद एक िन परष को व पहनाय जाय तो सार िव को व पहनान एव भोजन करवान क बराबर ह कय िक िन परष सचराचर िव म या ह | सबम व ही ह |rdquo

ॐhellip ॐ hellip ॐ hellip

ःवामी िशवानद जी

ौी राम-विश सवाद ौी विश जी कहत ह ldquoह रघकलभषण ौी राम अनथर ःवरप िजतन सासािरक पदाथर ह व सब जल म तरग क समान िविवध रप धारण करक चमतकार उतपनन करत ह अथारत ई छाए उतपनन करक जीव को मोह म फसात ह | परत जस सभी तरग जल ःवरप ही ह उसी कार सभी पदाथर वःततः न र ःवभाव वाल ह |

बालक की क पना स आकाश म य और िपशाच िदखन लगत ह परनत बि मान मनय क िलए उन य और िपशाच का कोई अथर नही | इसी कार अ ानी क िच म यह जगत सतय हो ऐसा लगता ह जबिक हमार जस ािनय क िलय यह जगत कछ भी नही | यह समम िव पतथर पर बनी हई पतिलय की सना की तरह रपालोक तथा अतर-बा िवषय स शनय ह | इसम सतयता कसी परनत अ ािनय को यह िव सतय लगता ह |rdquo विश जी बोल ldquoौी राम जगत को सतय ःवरप म जानना यह ाित ह मढ़ता ह | उस िमथया अथारत कि पत समझना यही उिचत समझ ह | ह राघव तव ा अहता आिद सब िवम-िवलास शात िशवःवरप श ःवरप ही ह | इसिलय मझ तो क अितिर और कछ भी नही िदखता | आकाश म जस जगल नही वस ही म जगत नही ह | ह राम ार ध वश ा कम स िजस परष की च ा कठपतली की तरह ई छाशनय और याकलतारिहत होती ह वह शानत मनवाला परष जीवनम मिन ह | ऐस जीवनम ानी को इस

जगत का जीवन बास की तरह बाहर-भीतर स शनय रसहीन और वासना-रिहत लगता ह | इस य पच म िजस रिच नही दय म िचनमाऽ अ य ही अ छा लगता ह ऐस परष न

भीतर तथा बाहर शािनत ा कर ली ह और इस भवसागर स पार हो गया ह | रघनदन श व ा कहत ह िक मन का ई छारिहत होना यही समािध ह कय िक ई छाओ का तयाग करन स मन को जसी शािनत िमलती ह ऐसी शािनत सकड़ उपदश स भी नही िमलती | ई छा की उतपि स जसा दःख ा होता ह ऐसा दःख तो नरक म भी नही | ई छाओ की शािनत

स जसा सख होता ह ऐसा सख ःवगर तो कया लोक म भी नही होता | अतः समःत शा तपःया यम और िनयम का िनचोड़ यही ह िक ई छामाऽ दःखदायी ह और ई छा का शमन मो ह | ाणी क दय म जसी-जसी और िजतनी-िजतनी ई छाय उतपनन होती ह उतना ही दख स वह

ड़रता रहता ह | िववक-िवचार ारा ई छाय जस-जस शानत होती जाती ह वस-वस दखरपी छत की बीमारी िमटती जाती ह |

आसि क कारण सासािरक िवषय की ई छाय य - य गहनीभत होती जाती ह तय -तय

दःख की िवषली तरग बढ़ती जाती ह | अपन परषाथर क बल स इस ई छारपी यािध का उपचार यिद नही िकया जाय तो इस यािध स छटन क िलय अनय कोई औषिध नही ह ऐसा म ढ़तापवरक

मानता ह | एक साथ सभी ई छाओ का स पणर तयाग ना हो सक तो थोड़ी-थोड़ी ई छाओ का धीर-धीर तयाग

करना चािहय परत रहना चािहय ई छा क तयाग म रत कय िक सनमागर का पिथक दखी नही होता | जो नराधम अपनी वासना और अहकार को ीण करन का य नही करता वह िदन -िदन अपन

को रावण की तरह अधर कऐ म ढ़कल रहा ह | ई छा ही दख की जनमदाऽी इस ससाररपी बल का बीज ह | यिद इस बीज को आतम ानरपी अि न स ठ क-ठ क जला िदया तो पनः यह अकिरत नही होता | रघकलभषण राम ई छामाऽ ससार ह और ई छाओ का अभाव ही िनवारण ह | अतः अनक कार की माथाप ची म ना पड़कर कवल ऐसा य करना चािहय िक ई छा उतपनन ना हो | अपनी बि स ई छा का िवनाश करन को जो ततपर नही ऐस अभाग को शा और गर का उपदश

भी कया करगा जस अपनी जनमभमी जगल म िहरणी की मतय िनि त ह उसी कार अनकिवध दख का िवःतार कारनवाल ई छारपी िवषय-िवकार स य इस जगत म मनय की मतय िनि त ह | यिद मानव ई छाओ क कारण ब च -सा मढ़ ना बन तो उस आतम ान क िलय अ प य ही करना पड़ | इसिलय सभी कार स ई छाओ को शानत करना चािहय | ई छा क शमन स परम पद की ाि होती ह | ई छारिहत हो जाना यही िनवारण ह और ई छाय

होना ही बधन ह | अतः यथाशि ई छा को जीतना चािहय | भला इतना करन म कया किठनाई ह जनम जरा यािध और मतयरपी कटीली झािड़य और खर क व - समह की जड़ भी ई छा ही ह

| अतः शमरपी अि न स अदर-ही-अदर बीज को जला ड़ालना चािहय| जहा ई छाओ का अभाव ह

वहा मि िनि त ह |

िववक वरा य आिद साधन स ई छा का सवरथा िवनाश करना चािहय | ई छा का सबध जहा-जहा ह वहा-वहा पाप प य दखरािशया और ल बी पीड़ाओ स य बधन को हािज़र ही समझो | परष

की आतिरक ई छा य - य शानत होती जाती ह तय -तय मो क िलय उसका क याणकारक

साधन बढ़ता जाता ह | िववकहीन ई छा को पोसना उस पणर करना यह तो ससाररपी िवष व को पानी स सीचन क समान ह |rdquo

- ौीयोगविश महारामायण

आतमबल का आवाहन कया आप अपन-आपको दबरल मानत हो लघतामथी म उलझ कर पिरिःतिथय स िपस रह हो

अपना जीवन दीन-हीन बना बठ हो hellipतो अपन भीतर सष आतमबल को जगाओ | शरीर चाह ी का हो चाह परष का कित क साा य म जो जीत ह व सब ी ह और कित क बनधन स पार अपन ःवरप की पहचान िजनह न कर ली ह अपन मन की गलामी की बिड़या तोड़कर िजनह न फ क दी ह व परष ह | ी या परष शरीर एव मानयताए होती ह | तम तो तन-मन स पार िनमरल आतमा हो | जागोhellipउठोhellipअपन भीतर सोय हय िन यबल को जगाओ | सवरदश सवरकाल म सव म

आतमबल को िवकिसत करो | आतमा म अथाह सामथयर ह | अपन को दीन-हीन मान बठ तो िव म ऐसी कोई स ा नही जो त ह ऊपर उठा सक | अपन आतमःवरप म िति त हो गय तो िऽलोकी म ऐसी कोई हःती नही जो त ह दबा सक | भौितक जगत म वाप की शि ईलकशोिनक शि िव त की शि गरतवाकषरण की शि बड़ी मानी जाती ह लिकन आतमबल उन सब शि य का सचालक बल ह | आतमबल क सािननधय म आकर पग ार ध को पर िमल जात ह दव की दीनता पलायन हो जाती ह ितकल पिरिःतिथया अनकल हो जाती ह | आतमबल सवर िरि -िसि य का िपता ह |

आतमबल कस जगाय हररोज़ तःकाल ज दी उठकर सय दय स पवर ःनानािद स िनवत हो जाओ | ःव छ पिवऽ ःथान

म आसन िबछाकर पवारिभमख होकर प ासन या सखासन म बठ जाओ | शानत और सनन वि

धारण करो | मन म ढ भावना करो िक म कित-िनिमरत इस शरीर क सब अभाव को पार करक सब

मिलनताओ-दबरलताओ स िप ड़ छड़ाकर आतमा की मिहमा म जागकर ही रहगा |

आख आधी खली आधी बद रखो | अब फ़फ़ड़ म खब ास भरो और भावना करो की ास क साथ

म सयर का िद य ओज भीतर भर रहा ह | ास को यथाशि अनदर िटकाय रखो | िफ़र lsquoॐhelliprsquo का ल बा उ चारण करत हए ास को धीर-धीर छोड़त जाओ | ास क खाली होन क बाद तरत ास ना लो | यथाशि िबना ास रहो और भीतर ही भीतर lsquoहिर ॐhelliprsquo lsquoहिर ॐhelliprsquo का मानिसक

जाप करो | िफ़र स फ़फ़ड़ म ास भरो | पव रीित स ास यथाशि अनदर िटकाकर बाद म धीर-धीर छोड़त हए lsquoॐhelliprsquo का गजन करो | दस-पिह िमनट ऐस ाणायाम सिहत उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo की धविन करक शानत हो जाओ | सब

यास छोड़ दो | वि य को आकाश की ओर फ़लन दो | आकाश क अनदर पथवी ह | पथवी पर अनक दश अनक समि एव अनक लोग ह | उनम स एक

आपका शरीर आसन पर बठा हआ ह | इस पर य को आप मानिसक आख स भावना स दखत

रहो | आप शरीर नही हो बि क अनक शरीर दश सागर पथवी मह न ऽ सयर चनि एव पर ा ड़ क

ा हो सा ी हो | इस सा ी भाव म जाग जाओ | थोड़ी दर क बाद िफ़र स ाणायाम सिहत lsquoॐhelliprsquo का जाप करो और शानत होकर अपन िवचार को दखत रहो | इस अवःथा म ढ़ िन य करो िक lsquoम जसा चहता ह वसा होकर रहगा |rsquo िवषयसख स ा धन-

दौलत इतयािद की इ छा न करो कय िक िन यबल या आतमबलरपी हाथी क पदिच म और सभी क पदिच समािव हो ही जायग | आतमानदरपी सयर क उदय होन क बाद िम टी क तल क दीय क ाकाश रपी शि सखाभास की गलामी कौन कर

िकसी भी भावना को साकार करन क िलय दय को करद ड़ाल ऐसी िन यातमक बिल वि होनी आवशयक ह | अनतःकरण क गहर-स-गहर दश म चोट कर ऐसा ाण भरक िन बल का आवाहन करो | सीना तानकर खड़ हो जाओ अपन मन की दीन-हीन दखद मानयताओ को कचल

ड़ालन क िलय | सदा ःमरण रह की इधर-उधर भटकती वि य क साथ त हारी शि भी िबखरती रहती ह | अतः वि य को बहकाओ नही | तमाम वि य को एकिऽत करक साधनाकाल म आतमिचनतन म लगाओ और यवहारकाल म जो कायर करत हो उसम लगाओ | द िच होकर हरक कायर करो | अपन ःवभाव म स आवश को सवरथा िनमरल कर दो | आवश म आकर कोई िनणरय मत लो कोई िबया मत करो | सदा शानत वि धारण करन का अ यास करो | िवचारशील एव सनन रहो | ःवय अचल रहकर सागर की तरह सब वि य की तरग को अपन

भीतर समालो | जीवमाऽ को अपना ःवरप समझो | सबस ःनह रखो | िदल को यापक रखो | सकिच ता का िनवारण करत रहो | ख ड़ातमक वि का सवरथा तयाग करो | िजनको ानी महापरष का सतसग और अधयातमिव ा का लाभ िमल जाता ह उसक जीवन स

दःख िवदा होन लगत ह | ॐ आननद आतमिन ा म जाग हए महापरष क सतसग एव सतसािहतय स जीवन को भि और वदात स प

एव पलिकत करो | कछ ही िदन क इस सघन योग क बाद अनभव होन लगगा िक भतकाल क

नकारतमक ःवभाव सशयातमक-हािनकारक क पनाओ न जीवन को कचल ड़ाला था िवषला कर िदया था | अब िन यबल क चमतकार का पता चला | अततरम म आिवरभत िद य खज़ाना अब

िमला | ार ध की बिड़या अब टटन लगी | ठ क ह न करोग ना िह मत पढ़कर रख मत दना इस पिःतका को | जीवन म इसको बार-बार पढ़त रहो | एक िदन म यह पणर ना होगा | बार-बार अ यास करो | त हार िलय यह एक ही पिःतका काफ़ी ह | अनय कचराप टी ना पड़ोग तो चलगा | शाबाश वीर शाबाश

  • परसतावना
  • जीवन रसायन
  • गर भकति एक अमोघ साधना
  • शरी राम-वशिषठ सवाद
  • आतमबल का आवाहन
  • आतमबल कस जगाय
Page 27: जीवन रसायन - HariOmGroup · ‘जीवन रसायन’ का यह िदय कटोरा आत्मरस के िपपासुओं हाथ

शोभा क समान अित िवलासभरी अ सरा भी आपका ही ःवरप ह | िफर आसि िकसकी

आपकी ानिनिया उनको आपस अलग करक िदखाती ह | य इिनिया झठ बोलनवाली ह | उनका कभी िव ास मत करो | अतः सब कछ आप ही हो | 177) मानव क नात हम साधक ह | साधक होन क नात सतय को ःवीकर करना हमारा ःवधमर ह | सतय यही ह िक बल दसर क िलय ह ान अपन िलय ह और िव ास परमातमा स

स बनध जोड़न क िलय ह | 178) अपनी आतमा म डब जाना यह सबस बड़ा परोपकार ह | 179) आप सदव म ह ऐसा िव ास ढ़ करो तो आप िव क उ ारक हो जात हो | आप

यिद वदानत क ःवर क साथ ःवर िमलाकर िन य करो आप कभी शरीर न थ | आप िनतय श

ब आतमा हो तो अिखल ा ड क मो दाता हो जात हो | 180) कपा करक उन ःवाथरमय उपाय और अिभाय को दर फ क दो जो आपको पिरि छनन रखत ह | सब वासनाए राग ह | यि गत या शरीरगत म आसि ह | उस फ क दो | ःवय पिवऽ हो जाओ | आपका शरीर ःवःथ और बि पणरःवरप हो जायगी | 181) यिद ससार क सख व पदाथर ा ह तो आपको कहना चािहय ओ शतान हट जा मर सामन स | तर हाथ स मझ कछ नही चािहय | तब दखो िक आप कस सखी हो जात हो परमातमा-ा िकसी महापरष पर िव ास रखकर अपनी जीवनडोरी िनःशक बन उनक चरण म सदा क िलय रख दो | िनभरयता आपक चरण की दासी बन जायगी | 182) िजसन एक बार ठ क स जान िलया िक जगत िमथया ह और ािनत स इसकी तीित

हो रही ह उसको कभी दःख नही होता | जगत म कभी आसि नही होती | जगत क िमथयातव क

िन य का नाम ही जगत का नाश ह | 183) अपन ःवरप म लीन होन माऽ स आप ससार क साट बन जायग | यह साटपद

कवल इस ससार का ही नही समःत लोक-परलोक का साटपद होगा | 184) ह जनक चाह दवािधदव महादव आकर आपको उपदश द या भगवान िवण आकर उपदश द अथवा ाजी आकर उपदश द लिकन आपको कदािप सख न होगा | जब िवषय का तयाग करोग तभी स ची शाित व आनद ा ह ग |

185) िजस भ न हम मानव जीवन दकर ःवाधीनता दी िक हम जब चाह तब धमारतमा होकर भ होकर जीवनम होकर कतकतय हो सकत ह- उस भ की मिहमा गाओ | गाओ नही तो सनो | सनो भी नही गाओ भी नही तो ःवीकार कर लो | 186) चाह समि क गहर तल म जाना पड़ सा ात मतय का मकाबला करना पड़ अपन

आतमाि क उ य की पितर क िलय अिडग रहो | उठो साहसी बनो शि मान बनो | आपको जो बल व सहायता चािहय वह आपक भीतर ही ह | 187) जब-जब जीवन स बनधी शोक और िचनता घरन लग तब-तब अपन आननदःवरप

का गान करत-करत उस मोह-माया को भगा दो | 188) जब शरीर म कोई पीड़ा या अग म ज म हो तब म आकाशवत आकाशरिहत चतन

ह ऐसा ढ़ िन य करक पीड़ा को भल जाओ | 189) जब दिनया क िकसी चककर म फस जाओ तब म िनलप िनतय म ह ऐसा ढ़

िन य करक उस चककर स िनकल जाओ | 190) जब घर-बार स बनधी कोई किठन समःया याकल कर तब उस मदारी का खल

समझकर ःवय को िनःसग जानकर उस बोझ को ह का कर दो | 191) जब बोध क आवश म आकर कोई अपमानय वचन कह तब अपन शाितमय

ःवरप म िःथर होकर मन म िकसी भी ोभ को पदा न होन दो | 192) उ म अिधकारी िज ास को चािहय िक वह व ा सदगर क पास जाकर ौ ा पवरक महावाकय सन | उसका मनन व िनिदधयासन करक अपन आतमःवरप को जान | जब

आतमःवरप का सा ातकार होता ह तब ही परम िवौािनत िमल सकती ह अनयथा नही | जब तक

व ा महापरष स महावाकय ा न हो तब तक वह मनद अिधकारी ह | वह अपन दयकमल म परमातमा का धयान कर ःमरण कर जप कर | इस धयान-जपािद क साद स उस व ा सदगर

ा ह ग | 193) मन बि िच अहकार छाया की तरह जड़ ह णभगर ह कय िक व उतपनन होत

ह और लीन भी हो जात ह | िजस चतनय की छाया उसम पड़ती ह वह परम चतनय सबका आतमा ह | मन बि िच अहकार का अभाव हो जाता ह लिकन उसका अनभव करनवाल का अभाव

कदािप नही होता |

194) आप अपनी शि को उ चाितउ च िवषय की ओर बहन दो | इसस आपक पास व

बात सोचन का समय ही नही िमलगा िजसस कामकता की गध आती हो | 195) अपराध क अनक नाम ह बालहतया नरहतया मातहतया गौहतया इतयािद |

परनत तयक ाणी म ई र का अनभव न करक आप ई रहतया का सबस बड़ा अपराध करत ह | 196) सवा करन की ःवाधीनता मनयमाऽ को ा ह | अगर वह करना ही न चाह तो अलग बात ह | सवा का अथर ह मन-वाणी-कमर स बराईरिहत हो जाना यह िव की सवा हो गई |

यथाशि भलाई कर दो यह समाज की सवा हो गई | भलाई का फल छोड़ दो यह अपनी सवा हो गई

| भ को अपना मानकर ःमित और म जगा लो यह भ की सवा हो गई | इस कार मनय

अपनी सवा भी कर सकता ह समाज की सवा भी कर सकता ह िव की सवा भी कर सकता ह

और िव र की सवा भी कर सकता ह | 197) आतमा स बाहर मत भटको अपन कनि म िःथर रहो अनयथा िगर पड़ोग | अपन-

आपम पणर िव ास रखो | आतम-कनि पर अचल रहो | िफर कोई भी चीज आपको िवचिलत नही कर सकती | 198) सदा शात िनिवरकार और सम रहो | जगत को खलमाऽ समझो | जगत स भािवत

मत हो | इसस आप हमशा सखी रहोग | िफर कछ बढ़ान की इ छा नही होगी और कछ कम होन स

दःख नही होगा | 199) समथर सदगर क सम सदा फल क भाित िखल हए रहो | इसस उनक अनदर सक प

होगा िक यह तो बहत उतसाही साधक ह सदा सनन रहता ह | उनक सामथयरवान सक प स

आपकी वह किऽम सननता भी वाःतिवक सननता म बदल जायगी | 200) यिद रोग को भी ई र का िदया मानो तो ार ध-भोग भी हो जाता ह और क तप का फल दता ह | इसस ई र-कपा की ाि होती ह | याकल मत हो | क सल और इनजकशन

आधीन मत हो | 201) साधक को चािहय िक अपन लआय को ि म रखकर साधना-पथ पर तीर की तरह

सीधा चला जाय | न इधर दख न उधर | ि यिद इधर-उधर जाती हो तो समझना िक िन ा िःथर नही ह |

202) आपन अपन जीवन म हजार ःव न दख ह ग लिकन व आपक जीवन क अश नही बन जात | इसी कार य जामत जगत क आड बर आपकी आतमा क सम कोई मह व नही रखत | 203) एक आतमा को ही जानो अनय बात को छोड़ो | धीर साधक को चािहय िक वह

सावधान होकर आतमिन ा बढ़ाय अनक श द का िचनतन व भाषण न कर कय िक वह तो कवल

मन-वाणी को पिरौम दनवाला ह असली साधना नही ह | 204) जो परष जन-समह स ऐस डर जस साप स डरता ह स मान स ऐस डर जस नकर स

डरता ह ि य स ऐस डर जस मद स डरता ह उस परष को दवतागण ा ण मानत ह | 205) जस अपन शरीर क अग पर बोध नही आता वस शऽ िमऽ व अपनी दह म एक ही आतमा को दखनवाल िववकी परष को कदािप बोध नही आता | 206) मन तो शरीर को ई रापरण कर िदया ह | अब उसकी भख- यास स मझ कया

समिपरत वःत म आस होना महा पाप ह | 207) आप यिद िद य ि पाना चहत हो तो आपको इिनिय क ऽ का तयाग करना होगा | 208) लयकाल क मघ की गजरना हो समि उमड़ पड बारह सयर तपायमान हो जाय पहाड़ स पहाड़ टकरा कर भयानक आवाज हो तो भी ानी क िन य म त नही भासता कय िक

त ह ही नही | त तो अ ानी को भासता ह | 209) सतय को ःवीकार करन स शाित िमलगी | कछ लोग यो यता क आधार पर शाित

खरीदना चाहत ह | यो यता स शाित नही िमलगी यो यता क सदपयोग स शाित िमलगी | कछ

लोग स पि क आधार पर शाित सरि त रखना चाहत ह | स पि स शाित नही िमलगी स पि

क सदपयोग स शाित िमलगी वस ही िवपि क सदपयोग स शाित िमलगी | 210) त छ हािन-लाभ पर आपका धयान इतना कय रहता ह िजसस अनत आननदःवरप

आतमा पर स धयान हट जाता ह | 211) अपन अनदर ही आननद ा करना य िप किठन ह परनत बा िवषय स आननद

ा करना तो अस भव ही ह |

212) म ससार का काश ह | काश क रप म म ही सब वःतओ म या ह | िनतय इन

िवचार का िचनतन करत रहो | य पिवऽ िवचार आपको परम पिवऽ बना दग | 213) जो वःत कमर स ा होती ह उसक िलय ससार की सहायता तथा भिवय की आशा की आवयकता होती ह परनत जो वःत तयाग स ा होती ह उसक िलय न ससार की सहायता चािहय न भिवय की आशा | 214) आपको जब तक बाहर चोर िदखता ह तब तक जरर भीतर चोर ह | जब दसर लोग

स िभनन अयो य खराब सधारन यो य िदखत ह तब तक ओ सधार का बीड़ा उठान वाल त अपनी िचिकतसा कर | 215) सफल व ही होत ह जो सदव नतमःतक एव सननमख रहत ह | िचनतातर-शोकातर लोग की उननित नही हो सकती | तयक कायर को िह मत व शाित स करो | िफर दखो िक यह

कायर शरीर मन और बि स हआ | म उन सबको स ा दनवाला चतनयःवरप ह | ॐ ॐ का पावन गान करो | 216) िकसी भी पिरिःथित म मन को यिथत न होन दो | आतमा पर िव ास करक

आतमिन बन जाओ | िनभरयता आपकी दासी बन कर रहगी | 217) सतसग स मनय को साधना ा होती ह चाह वह शाित क रप म हो चाह मि क

रप म चाह सवा क रप म हो म क रप म हो चाह तयाग क रप म हो | 218) भला-बरा वही दखता ह िजसक अनदर भला-बरा ह | दसर क शरीर को वही दखता ह

जो खद को शरीर मानता ह | 219) खबरदार आपन यिद अपन शरीर क िलय ऐश-आराम की इ छा की िवलािसता एव इिनिय-सख म अपना समय बरबाद िकया तो आपकी खर नही | ठ क स कायर करत रहन की नीित

अपनाओ | सफलता का पहला िस ात ह कायरिवौामरिहत कायरसा ी भाव स कायर | इस

िस ात को जीवन म चिरताथर करोग तो पता चलगा िक छोटा होना िजतना सरल ह उतना ही बड़ा होना भी सहज ह | 220) भतकाल पर िखनन हए िबना भिवय की िचनता िकय िबना व रमान म कायर करो | यह भाव आपको हर अवःथा म सनन रखगा हम जो कछ ा ह उसका सदपयोग ही अिधक

काश पान का साधन ह |

221) जब आप सफलता की ओर पीठ कर लत हो पिरणाम की िचनता का तयाग कर दत

हो स मख आय हए क र य पर अपनी उ ोगशि एकाम करत हो तब सफलता आपक पीछ-पीछ

आ जाती ह | अतः सफलता आपको खोजगी | 222) वि तब तक एकाम नही होगी जब तक मन म कभी एक आशा रहगी तो कभी दसरी | शात वही हो सकता ह िजस कोई क र य या आवयकता घसीट न रही हो | अतः परम शाित पान

क िलय जीवन की आशा भी तयाग कर मन ाननद म डबो दो | आज स समझ लो िक यह शरीर ह ही नही | कवल ाननद का सागर लहरा रहा ह | 223) िजसकी पककी िन ा ह िक म आतमा हrsquo उसक िलय ऐसी कौन सी मिथ ह जो खल

न सक ऐसी कोई ताकत नही जो उसक िवर जा सक | 224) मर भा य म नही थाई र की मज आजकल सतसग ा नही होताजगत

खराब ह ऐस वचन हमारी कायरता व अनतःकरण की मिलनता क कारण िनकलत ह | अतः नकारातमक ःवभाव और दसर पर दोषारोपण करन की वि स बचो | 225) आप जब भीतरवाल स नाराज होत हो तब जगत आपस नाराज रहता ह | जब आप

भीतर अनतयारमी बन बठ तो जगतरपी पतलीघर म िफर गड़बड़ कसी 226) िजस ण हम ससार क सधारक बन खड़ होत ह उसी ण हम ससार को िबगाड़नवाल बन जात ह | श परमातमा को दखन क बजाय जगत को िबगड़ा हआ दखन की ि बनती ह | सधारक लोग मानत ह िक lsquoभगवान न जो जगत बनाया ह वह िबगड़ा हआ ह और हम उस सधार रह ह |rsquo वाह वाह धनयवाद सधारक अपन िदल को सधारो पहल | सवरऽ िनरजन का दीदार करो | तब आपकी उपिःथित माऽ स आपकी ि माऽ स अर यार आपको छकर बहती हवा माऽ स अननत जीव को शाित िमलगी और अननत सधार होगा | नानक कबीर महावीर ब और लीलाशाह बाप जस महापरष न यही कजी अपनायी थी | 227) वदानत म हमशा कमर का अथर होता ह वाःतिवक आतमा क साथ एक होकर च ा करना अिखल िव क साथ एकःवर हो जाना | उस अि तीय परम ततव क साथ िनःःवाथर सयोग ा करना ही एकमाऽ स चा कमर ह बाकी सब बोझ की गठिरया उठाना ह |

228) अपनी व रमान अवःथा चाह कसी भी हो उसको सव च मानन स ही आपक दय म आतम ान ान का अनायास उदय होन लगगा | आतम-सा ातकार को मील दर की कोई चीज समझकर उसक पीछ दौड़ना नही ह िचिनतत होना नही ह |

िचनता की गठरी उठाकर यिथत होन की जररत नही ह | िजस ण आप िनि नतता म गोता मारोग उसी ण आपका आतमःवरप गट हो जायगा | अर गट कया होगा आप ःवय आतमःवरप हो ही | अनातमा को छोड़ दो तो आतमःवरप तो हो ही | 229) सदा ॐकार का गान करो | जब भय व िचनता क िवचार आय तब िकसी मःत सत-फकीर महातमा क सािननधय का ःमरण करो | जब िननदा-शसा क सग आय तब महापरष क जीवन का अवलोकन करो | 230) िजनको आप भयानक घटनाए एव भयकर आघात समझ बठ हो वाःतव म व आपक ियतम आतमदव की ही करतत ह | समःत भयजनक तथा ाणनाशक घटनाओ क नाम-रप तो िवष क ह लिकन व बनी ह अमत स | 231) मन म यिद भय न हो तो बाहर चाह कसी भी भय की साममी उपिःथत हो जाय आपका कछ िबगाड़ नही सकती | मन म यिद भय होगा तो तरनत बाहर भी भयजनक पिरिःथया न होत हए भी उपिःथत हो जायगी | व क तन म भी भत िदखन लगगा | 232) िकसी भी पिरिःथित म िदखती हई कठोरता व भयानकता स भयभीत नही होना चािहए | क क काल बादल क पीछ पणर काशमय एकरस परम स ा सयर की तरह सदा िव मान ह | 233) आप अपन पर कदािप अिव ास मत करो | इस जगत म आप सब कछ कर सकत हो | अपन को कभी दबरल मत मानो | आपक अनदर तमाम शि या छपी हई ह | 234) यिद कोई मन य आपकी कोई चीज़ को चरा लता ह तो ड़रत कय हो वह मनय

और आप एक ह | िजस चीज़ को वह चराता ह वह चीज़ आपकी और उसकी द न की ह | 235) जो खद क िसवाय दसरा कछ दखता नही सनता नही जानता नही वह अननत ह |

जब तक खद क िसवाय और िकसी वःत का भान होता ह वह वःत स ची लगती ह तब तक आप

सीिमत व शात ह असीम और अनत नही |

236) ससार मझ कया आनद द सकता ह स पणर आनद मर भीतर स आया ह | म ही स पणर आननद ह स पणर मिहमा एव स पणर सख ह | 237) जीवन की समःत आवयकताए जीवन म उपिःथत ह परनत जीवन को जब हम

बा रग म रग दत ह तब जीवन का वाःतिवक रप हम नही जान पात | 238) िननदक की िननदा स म कय मरझाऊ शसक की शसा स म कय फल िननदा स म घटता नही और शसा स म बढ़ता नही | जसा ह वसा ही रहता ह | िफर िननदा-ःतित स

खटक कसी 239) ससार व ससार की समःयाओ म जो सबस अिधक फस हए ह उनही को वदानत की सबस अिधक आवयकता ह | बीमार को ही औषिध की यादा आवयकता ह | कय जी ठ क ह न 240) जगत क पाप व अतयाचार की बात मत करो लिकन अब भी आपको जगत म पाप

िदखता ह इसिलय रोओ | 241) हम यिद जान ल िक जगत म आतमा क िसवाय दसरा कछ ह ही नही और जो कछ

िदखता ह वह ःव नमाऽ ह तो इस जगत क दःख-दािरिय पाप-प य कछ भी हम अशात नही कर सकत | 242) िव ान दाशरिनक व आचाय की धमकी तथा अनमह आलोचना या अनमित

ानी पर कोई भाव नही ड़ाल सकती | 243) ह यि रप अननत आप अपन पर पर खड़ रहन का साहस करो समःत िव का बोझ आप िखलौन की तरह उठा लोग | 244) िसह की गजरना व नरिसह की ललकार तलवार की धार व साप की फफकार तपःवी की धमकी व नयायधीश की फटकारइन सबम आपका ही काश चमक रहा ह | आप इनस

भयभीत कय होत हो उलझन कय महसस करत हो मरी िब ली मझको याऊ वाली बात कय

होन दत हो 245) ससार हमारा िसफ़र िखलोना ही ह और कछ नही | अबोध बालक ही िखलौन स

भयभीत होता ह आसि करता ह िवचारशील यि नही |

246) जब तक अिव ा दर नही होगी तब तक चोरी जआ दार यिभचार कभी बद न

ह ग चाह लाख कोिशश करो | 247) आप हमशा अदर का धयान रखो | पहल हमारा भीतरी पतन होता ह | बा पतन तो इसका पिरणाम माऽ ह | 248) तयाग स हमशा आनद िमलता ह | जब तक आपक पास एक भी चीज़ बाकी ह तब

तक आप उस चीज़ क बधन म बध रहोग | आघात व तयाघात हमशा समान िवरोधी होत ह | 249) िनि तता ही आरो यता की सबस बड़ी दवाई ह | 250) सख अपन िसर पर दख का मकट पहन कर आता ह | जो सख को अपनायगा उस

दख को भी ःवीकार करना पड़गा | 251) म (आतमा) सबका ा ह | मरा ा कोई नही | 252) हजार म स कोई एक परष भीतर स शात िच वाला रहकर बाहर स ससारी जसा यवहार कर सकता ह | 253) सतय क िलए यिद शरीर का तयाग करना पड़ तो कर दना | यही आिखरी ममता ह जो हम तोड़नी होगी | 254) भय िचनता बचनी स ऊपर उठो | आपको ान का अनभव होगा | 255) आपको कोई भी हािन नही पहचा सकता | कवल आपक खयालात ही आपक पीछ पड़ ह | 256) म का अथर ह अपन पड़ोसी तथा सपकर म आनवाल क साथ अपनी वाःतिवक अभदता का अनभव करना | 257) ओ यार अपन खोय हए आतमा को एक बार खोज लो | धरती व आसमान क शासक आप ही हो | 258) सदव सम और सनन रहना ई र की सव पिर भि ह |

259) जब तक िच म ढ़ता न आ जाय िक शा की िविधय का पालन छोड़ दन स भी दय का यथाथर भि भाव न नही होगा तब तक शा की िविधय को पालत रहो |

गर भि एक अमोघ साधना 1 जनम मरण क िवषचब स म होन का कोई मागर नही ह कया सख-दःख हषर-शोक लाभ-

हािन मान-अपमान की थ पड़ स बचन का कोई उपाय नही ह कया

हअवय ह | ह िय आतमन नाशवान पदाथ स अपना मन वािपस लाकर सदगर क

चरणकमल म लगाओ | गरभि योग का आौय लो | गरसवा ऐसा अमोघ साधन ह िजसस

व रमान जीवन आननदमय बनता ह और शा त सख क ार खलत ह |

गर सवत त नर धनय यहा | ितनक नही दःख यहा न वहा || 2 स च सदगर की की हई भि िशय म सासािरक पदाथ क वरा य एव अनासि जगाती ह

परमातमा क ित म क पप महकाती ह | 3 तयक िशय सदगर की सवा करना चाहता ह लिकन अपन ढग स | सदगर चाह उस ढग स

सवा करन को कोई ततपर नही | जो िवरला साधक गर चाह उस ढ़ग स सवा कर सकता ह उस कोई कमी नही रहती |

िन सदगर की सवा स उनकी कपा ा होती ह और उस कपा स न िमल सक ऐसा तीन लोक म कछ भी नही ह | 4 गर िशय का स बनध पिवऽतम स बनध ह | ससार क तमाम बनधन स छड़ाकर वह मि क मागर पर ःथान कराता ह | यह स बनध जीवनपयरनत का स बनध ह | यह बात अपन दय की डायरी म सवणर-अ र स िलख लो | 5 उ ल सयर क काश क अिःततव को मान या न मान िफर भी सयर हमशा काशता ह | चचल मन का मनय मान या न मान लिकन सदगर की परमक याणकारी कपा सदव बरसती ही रहती ह | 6 सदगर की चरणरज म ःनान िकय िबना कवल किठन तप यार करन स या वद का

अधयन करन स वदानत का रहःय कट नही होता आतमानद का अमत नही िमलता | 7 दशरन शा क चाह िकतन मनथ पढ़ो हजार वष तक िहमालय की गफा म तप करो वष तक ाणायाम करो जीवनपयरनत शीषारसन करो समम िव म वास करक याखान दो िफर भी सदगर की कपा क िबना आतम ान नही होता | अतः िनरािभमानी सरल िनजाननद म मःत दयाल ःवभाव क आतम-सा ातकारी सदगर क चरण म जाओ | जीवन को धनय बनाओ | 8 सदगर की सवा िकय िबना शा का अधयन करना मम साधक क िलय समय बरबाद करन क बराबर ह | 9 िजसको सदगर ा हए ह ऐस िशय क िलय इस िव म कछ भी अा य नही ह | सदगर िशय को िमली हई परमातमा की अम य भट ह | अर नहीhellipनही व तो िशय क सम साकार रप म कट हए परमातमा ःवय ह | 10 सदगर क साथ एक ण िकया हआ सतसग लाख वष क तप स अननत गना ौ ह | आख क िनमषमाऽ म सदगर की अमतवष ि िशय क जनम-जनम क पाप को जला सकती ह | 11 सदगर जसा मपणर कपाल िहतिचनतक िव भर म दसरा कोई नही ह | 12 बाढ़ क समय याऽी यिद तफानी नदी को िबना नाव क पार कर सक तो साधक भी िबना सदगर क अपन जीवन क आिखरी लआय को िस कर सकता ह | यानी य दोन बात स भव ह |

अतः यार साधक मनमखी साधना की िज करना छोड़ दो | गरमखी साधना करन म ही सार ह | 13 सदगर क चरणकमल का आौय लन स िजस आननद का अनभव होता ह उसक आग िऽलोकी का साा य त छ ह | 14 आतम-सा ातकार क मागर म सबस महान शऽ अहभाव का नाश करन क िलए सदगर की आ ा का पालन अमोघ श ह | 15 रसोई सीखन क िलय कोई िसखानवाला चािहय िव ान और गिणत सीखन क िलय

अधयापक चािहय तो कया िव ा सदगर क िबना ही सीख लोग 16 सदगरकपा की स पि जसा दसरा कोई खजाना िव भर म नही | 17 सदगर की आ ा का उ लघन करना यह अपनी क खोदन क बराबर ह | 18 सदगर क कायर को शका की ि स दखना महापातक ह | 19 गरभि व गरसवा - य साधनारपी नौका की दो पतवार ह | उनकी मदद स िशय ससारसागर को पार कर सकता ह | 20 सदगर की कसौटी करना असभव ह | एक िववकाननद ही दसर िववकाननद को पहचान सकत ह | ब को जानन क िलय दसर ब की आवयकता रहती ह | एक रामतीथर का रहःय दसर रामतीथर ही पा सकत ह |

अतः सदगर की कसौटी करन की च ा छोड़कर उनको पिरपणर पर परमातमा मानो |

तभी जीवन म वाःतिवक लाभ होगा | 21 गरभि योग का आौय लकर आप अपनी खोई हई िद यता को पनः ा करो सख-दःख जनम-मतय आिद सब न स पार हो जाओ | 22 गरभि योग मान गर की सवा क ारा मन और िवकार पर िनयऽण एव पनः सःकरण | 23 िशय अपन गर क चरणकमल म णाम करता ह | उन पर ौ फल की वषार करक उनकी ःतित करता ह ldquoह परम प य पिवऽ गरदव मझ सव च सख ा हआ ह | म िन ा स जनम-मतय की पर परा स म हआ ह | म िनिवरक प समािध का श सख भोग रहा ह | जगत क िकसी भी कोन म म म ता स िवचरण कर सकता ह | सब पर मरी सम ि ह | मन ाकत मन का तयाग िकया ह | मन सब सक प एव रिच-अरिच का तयाग िकया ह | अब म अख ड शाित म िवौाित पा रहा ह hellip आननदमय हो रहा ह | म इस पणर अवःथा का वणरन नही कर पाता | ह प य गरदव म आवाक बन गया ह | इस दःतर भवसागर को पार करन म आपन

मझ सहायता की ह | अब तक मझ कवल अपन शरीर म ही स पणर िव ास था | मन िविभनन योिनय म अस य जनम िलय | ऐसी सव च िनभरय अवःथा मझ कौन स पिवऽ कम क कारण ा हई ह यह म नही जानता | सचमच यह एक दलरभ भा य ह |

यह एक महान उतक लाभ ह | अब म आननद स नाचता ह | मर सब दःख न हो गय | मर सब मनोरथ पणर हए ह |

मर कायर स पनन हए ह | मन सब वािछत वःतए ा की ह | मरी इ छा पिरपणर हई ह | आप मर स च माता-िपता हो | मरी व रमान िःथित म म दसर क सम िकस कार कट कर सक सवरऽ सख और आननद का अननत सागर मझ लहराता हआ िदख रहा ह | मर अतःच िजसस खल गय वह महावाकय lsquoत वमिसrsquo ह | उपिनषद एव वदानतसऽ को भी धनयवाद | िजनह न िन गर का एव उपिनषद क महावाकय का रप धारण िकया ह | ऐस ौी यासजी को णाम ौी शकराचायर को णाम सासािरक मनय क िसर पर गर क चरणामत का एक िबनद भी िगर तो भी उसक ःब दःख का नाश होता ह | यिद एक िन परष को व पहनाय जाय तो सार िव को व पहनान एव भोजन करवान क बराबर ह कय िक िन परष सचराचर िव म या ह | सबम व ही ह |rdquo

ॐhellip ॐ hellip ॐ hellip

ःवामी िशवानद जी

ौी राम-विश सवाद ौी विश जी कहत ह ldquoह रघकलभषण ौी राम अनथर ःवरप िजतन सासािरक पदाथर ह व सब जल म तरग क समान िविवध रप धारण करक चमतकार उतपनन करत ह अथारत ई छाए उतपनन करक जीव को मोह म फसात ह | परत जस सभी तरग जल ःवरप ही ह उसी कार सभी पदाथर वःततः न र ःवभाव वाल ह |

बालक की क पना स आकाश म य और िपशाच िदखन लगत ह परनत बि मान मनय क िलए उन य और िपशाच का कोई अथर नही | इसी कार अ ानी क िच म यह जगत सतय हो ऐसा लगता ह जबिक हमार जस ािनय क िलय यह जगत कछ भी नही | यह समम िव पतथर पर बनी हई पतिलय की सना की तरह रपालोक तथा अतर-बा िवषय स शनय ह | इसम सतयता कसी परनत अ ािनय को यह िव सतय लगता ह |rdquo विश जी बोल ldquoौी राम जगत को सतय ःवरप म जानना यह ाित ह मढ़ता ह | उस िमथया अथारत कि पत समझना यही उिचत समझ ह | ह राघव तव ा अहता आिद सब िवम-िवलास शात िशवःवरप श ःवरप ही ह | इसिलय मझ तो क अितिर और कछ भी नही िदखता | आकाश म जस जगल नही वस ही म जगत नही ह | ह राम ार ध वश ा कम स िजस परष की च ा कठपतली की तरह ई छाशनय और याकलतारिहत होती ह वह शानत मनवाला परष जीवनम मिन ह | ऐस जीवनम ानी को इस

जगत का जीवन बास की तरह बाहर-भीतर स शनय रसहीन और वासना-रिहत लगता ह | इस य पच म िजस रिच नही दय म िचनमाऽ अ य ही अ छा लगता ह ऐस परष न

भीतर तथा बाहर शािनत ा कर ली ह और इस भवसागर स पार हो गया ह | रघनदन श व ा कहत ह िक मन का ई छारिहत होना यही समािध ह कय िक ई छाओ का तयाग करन स मन को जसी शािनत िमलती ह ऐसी शािनत सकड़ उपदश स भी नही िमलती | ई छा की उतपि स जसा दःख ा होता ह ऐसा दःख तो नरक म भी नही | ई छाओ की शािनत

स जसा सख होता ह ऐसा सख ःवगर तो कया लोक म भी नही होता | अतः समःत शा तपःया यम और िनयम का िनचोड़ यही ह िक ई छामाऽ दःखदायी ह और ई छा का शमन मो ह | ाणी क दय म जसी-जसी और िजतनी-िजतनी ई छाय उतपनन होती ह उतना ही दख स वह

ड़रता रहता ह | िववक-िवचार ारा ई छाय जस-जस शानत होती जाती ह वस-वस दखरपी छत की बीमारी िमटती जाती ह |

आसि क कारण सासािरक िवषय की ई छाय य - य गहनीभत होती जाती ह तय -तय

दःख की िवषली तरग बढ़ती जाती ह | अपन परषाथर क बल स इस ई छारपी यािध का उपचार यिद नही िकया जाय तो इस यािध स छटन क िलय अनय कोई औषिध नही ह ऐसा म ढ़तापवरक

मानता ह | एक साथ सभी ई छाओ का स पणर तयाग ना हो सक तो थोड़ी-थोड़ी ई छाओ का धीर-धीर तयाग

करना चािहय परत रहना चािहय ई छा क तयाग म रत कय िक सनमागर का पिथक दखी नही होता | जो नराधम अपनी वासना और अहकार को ीण करन का य नही करता वह िदन -िदन अपन

को रावण की तरह अधर कऐ म ढ़कल रहा ह | ई छा ही दख की जनमदाऽी इस ससाररपी बल का बीज ह | यिद इस बीज को आतम ानरपी अि न स ठ क-ठ क जला िदया तो पनः यह अकिरत नही होता | रघकलभषण राम ई छामाऽ ससार ह और ई छाओ का अभाव ही िनवारण ह | अतः अनक कार की माथाप ची म ना पड़कर कवल ऐसा य करना चािहय िक ई छा उतपनन ना हो | अपनी बि स ई छा का िवनाश करन को जो ततपर नही ऐस अभाग को शा और गर का उपदश

भी कया करगा जस अपनी जनमभमी जगल म िहरणी की मतय िनि त ह उसी कार अनकिवध दख का िवःतार कारनवाल ई छारपी िवषय-िवकार स य इस जगत म मनय की मतय िनि त ह | यिद मानव ई छाओ क कारण ब च -सा मढ़ ना बन तो उस आतम ान क िलय अ प य ही करना पड़ | इसिलय सभी कार स ई छाओ को शानत करना चािहय | ई छा क शमन स परम पद की ाि होती ह | ई छारिहत हो जाना यही िनवारण ह और ई छाय

होना ही बधन ह | अतः यथाशि ई छा को जीतना चािहय | भला इतना करन म कया किठनाई ह जनम जरा यािध और मतयरपी कटीली झािड़य और खर क व - समह की जड़ भी ई छा ही ह

| अतः शमरपी अि न स अदर-ही-अदर बीज को जला ड़ालना चािहय| जहा ई छाओ का अभाव ह

वहा मि िनि त ह |

िववक वरा य आिद साधन स ई छा का सवरथा िवनाश करना चािहय | ई छा का सबध जहा-जहा ह वहा-वहा पाप प य दखरािशया और ल बी पीड़ाओ स य बधन को हािज़र ही समझो | परष

की आतिरक ई छा य - य शानत होती जाती ह तय -तय मो क िलय उसका क याणकारक

साधन बढ़ता जाता ह | िववकहीन ई छा को पोसना उस पणर करना यह तो ससाररपी िवष व को पानी स सीचन क समान ह |rdquo

- ौीयोगविश महारामायण

आतमबल का आवाहन कया आप अपन-आपको दबरल मानत हो लघतामथी म उलझ कर पिरिःतिथय स िपस रह हो

अपना जीवन दीन-हीन बना बठ हो hellipतो अपन भीतर सष आतमबल को जगाओ | शरीर चाह ी का हो चाह परष का कित क साा य म जो जीत ह व सब ी ह और कित क बनधन स पार अपन ःवरप की पहचान िजनह न कर ली ह अपन मन की गलामी की बिड़या तोड़कर िजनह न फ क दी ह व परष ह | ी या परष शरीर एव मानयताए होती ह | तम तो तन-मन स पार िनमरल आतमा हो | जागोhellipउठोhellipअपन भीतर सोय हय िन यबल को जगाओ | सवरदश सवरकाल म सव म

आतमबल को िवकिसत करो | आतमा म अथाह सामथयर ह | अपन को दीन-हीन मान बठ तो िव म ऐसी कोई स ा नही जो त ह ऊपर उठा सक | अपन आतमःवरप म िति त हो गय तो िऽलोकी म ऐसी कोई हःती नही जो त ह दबा सक | भौितक जगत म वाप की शि ईलकशोिनक शि िव त की शि गरतवाकषरण की शि बड़ी मानी जाती ह लिकन आतमबल उन सब शि य का सचालक बल ह | आतमबल क सािननधय म आकर पग ार ध को पर िमल जात ह दव की दीनता पलायन हो जाती ह ितकल पिरिःतिथया अनकल हो जाती ह | आतमबल सवर िरि -िसि य का िपता ह |

आतमबल कस जगाय हररोज़ तःकाल ज दी उठकर सय दय स पवर ःनानािद स िनवत हो जाओ | ःव छ पिवऽ ःथान

म आसन िबछाकर पवारिभमख होकर प ासन या सखासन म बठ जाओ | शानत और सनन वि

धारण करो | मन म ढ भावना करो िक म कित-िनिमरत इस शरीर क सब अभाव को पार करक सब

मिलनताओ-दबरलताओ स िप ड़ छड़ाकर आतमा की मिहमा म जागकर ही रहगा |

आख आधी खली आधी बद रखो | अब फ़फ़ड़ म खब ास भरो और भावना करो की ास क साथ

म सयर का िद य ओज भीतर भर रहा ह | ास को यथाशि अनदर िटकाय रखो | िफ़र lsquoॐhelliprsquo का ल बा उ चारण करत हए ास को धीर-धीर छोड़त जाओ | ास क खाली होन क बाद तरत ास ना लो | यथाशि िबना ास रहो और भीतर ही भीतर lsquoहिर ॐhelliprsquo lsquoहिर ॐhelliprsquo का मानिसक

जाप करो | िफ़र स फ़फ़ड़ म ास भरो | पव रीित स ास यथाशि अनदर िटकाकर बाद म धीर-धीर छोड़त हए lsquoॐhelliprsquo का गजन करो | दस-पिह िमनट ऐस ाणायाम सिहत उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo की धविन करक शानत हो जाओ | सब

यास छोड़ दो | वि य को आकाश की ओर फ़लन दो | आकाश क अनदर पथवी ह | पथवी पर अनक दश अनक समि एव अनक लोग ह | उनम स एक

आपका शरीर आसन पर बठा हआ ह | इस पर य को आप मानिसक आख स भावना स दखत

रहो | आप शरीर नही हो बि क अनक शरीर दश सागर पथवी मह न ऽ सयर चनि एव पर ा ड़ क

ा हो सा ी हो | इस सा ी भाव म जाग जाओ | थोड़ी दर क बाद िफ़र स ाणायाम सिहत lsquoॐhelliprsquo का जाप करो और शानत होकर अपन िवचार को दखत रहो | इस अवःथा म ढ़ िन य करो िक lsquoम जसा चहता ह वसा होकर रहगा |rsquo िवषयसख स ा धन-

दौलत इतयािद की इ छा न करो कय िक िन यबल या आतमबलरपी हाथी क पदिच म और सभी क पदिच समािव हो ही जायग | आतमानदरपी सयर क उदय होन क बाद िम टी क तल क दीय क ाकाश रपी शि सखाभास की गलामी कौन कर

िकसी भी भावना को साकार करन क िलय दय को करद ड़ाल ऐसी िन यातमक बिल वि होनी आवशयक ह | अनतःकरण क गहर-स-गहर दश म चोट कर ऐसा ाण भरक िन बल का आवाहन करो | सीना तानकर खड़ हो जाओ अपन मन की दीन-हीन दखद मानयताओ को कचल

ड़ालन क िलय | सदा ःमरण रह की इधर-उधर भटकती वि य क साथ त हारी शि भी िबखरती रहती ह | अतः वि य को बहकाओ नही | तमाम वि य को एकिऽत करक साधनाकाल म आतमिचनतन म लगाओ और यवहारकाल म जो कायर करत हो उसम लगाओ | द िच होकर हरक कायर करो | अपन ःवभाव म स आवश को सवरथा िनमरल कर दो | आवश म आकर कोई िनणरय मत लो कोई िबया मत करो | सदा शानत वि धारण करन का अ यास करो | िवचारशील एव सनन रहो | ःवय अचल रहकर सागर की तरह सब वि य की तरग को अपन

भीतर समालो | जीवमाऽ को अपना ःवरप समझो | सबस ःनह रखो | िदल को यापक रखो | सकिच ता का िनवारण करत रहो | ख ड़ातमक वि का सवरथा तयाग करो | िजनको ानी महापरष का सतसग और अधयातमिव ा का लाभ िमल जाता ह उसक जीवन स

दःख िवदा होन लगत ह | ॐ आननद आतमिन ा म जाग हए महापरष क सतसग एव सतसािहतय स जीवन को भि और वदात स प

एव पलिकत करो | कछ ही िदन क इस सघन योग क बाद अनभव होन लगगा िक भतकाल क

नकारतमक ःवभाव सशयातमक-हािनकारक क पनाओ न जीवन को कचल ड़ाला था िवषला कर िदया था | अब िन यबल क चमतकार का पता चला | अततरम म आिवरभत िद य खज़ाना अब

िमला | ार ध की बिड़या अब टटन लगी | ठ क ह न करोग ना िह मत पढ़कर रख मत दना इस पिःतका को | जीवन म इसको बार-बार पढ़त रहो | एक िदन म यह पणर ना होगा | बार-बार अ यास करो | त हार िलय यह एक ही पिःतका काफ़ी ह | अनय कचराप टी ना पड़ोग तो चलगा | शाबाश वीर शाबाश

  • परसतावना
  • जीवन रसायन
  • गर भकति एक अमोघ साधना
  • शरी राम-वशिषठ सवाद
  • आतमबल का आवाहन
  • आतमबल कस जगाय
Page 28: जीवन रसायन - HariOmGroup · ‘जीवन रसायन’ का यह िदय कटोरा आत्मरस के िपपासुओं हाथ

185) िजस भ न हम मानव जीवन दकर ःवाधीनता दी िक हम जब चाह तब धमारतमा होकर भ होकर जीवनम होकर कतकतय हो सकत ह- उस भ की मिहमा गाओ | गाओ नही तो सनो | सनो भी नही गाओ भी नही तो ःवीकार कर लो | 186) चाह समि क गहर तल म जाना पड़ सा ात मतय का मकाबला करना पड़ अपन

आतमाि क उ य की पितर क िलय अिडग रहो | उठो साहसी बनो शि मान बनो | आपको जो बल व सहायता चािहय वह आपक भीतर ही ह | 187) जब-जब जीवन स बनधी शोक और िचनता घरन लग तब-तब अपन आननदःवरप

का गान करत-करत उस मोह-माया को भगा दो | 188) जब शरीर म कोई पीड़ा या अग म ज म हो तब म आकाशवत आकाशरिहत चतन

ह ऐसा ढ़ िन य करक पीड़ा को भल जाओ | 189) जब दिनया क िकसी चककर म फस जाओ तब म िनलप िनतय म ह ऐसा ढ़

िन य करक उस चककर स िनकल जाओ | 190) जब घर-बार स बनधी कोई किठन समःया याकल कर तब उस मदारी का खल

समझकर ःवय को िनःसग जानकर उस बोझ को ह का कर दो | 191) जब बोध क आवश म आकर कोई अपमानय वचन कह तब अपन शाितमय

ःवरप म िःथर होकर मन म िकसी भी ोभ को पदा न होन दो | 192) उ म अिधकारी िज ास को चािहय िक वह व ा सदगर क पास जाकर ौ ा पवरक महावाकय सन | उसका मनन व िनिदधयासन करक अपन आतमःवरप को जान | जब

आतमःवरप का सा ातकार होता ह तब ही परम िवौािनत िमल सकती ह अनयथा नही | जब तक

व ा महापरष स महावाकय ा न हो तब तक वह मनद अिधकारी ह | वह अपन दयकमल म परमातमा का धयान कर ःमरण कर जप कर | इस धयान-जपािद क साद स उस व ा सदगर

ा ह ग | 193) मन बि िच अहकार छाया की तरह जड़ ह णभगर ह कय िक व उतपनन होत

ह और लीन भी हो जात ह | िजस चतनय की छाया उसम पड़ती ह वह परम चतनय सबका आतमा ह | मन बि िच अहकार का अभाव हो जाता ह लिकन उसका अनभव करनवाल का अभाव

कदािप नही होता |

194) आप अपनी शि को उ चाितउ च िवषय की ओर बहन दो | इसस आपक पास व

बात सोचन का समय ही नही िमलगा िजसस कामकता की गध आती हो | 195) अपराध क अनक नाम ह बालहतया नरहतया मातहतया गौहतया इतयािद |

परनत तयक ाणी म ई र का अनभव न करक आप ई रहतया का सबस बड़ा अपराध करत ह | 196) सवा करन की ःवाधीनता मनयमाऽ को ा ह | अगर वह करना ही न चाह तो अलग बात ह | सवा का अथर ह मन-वाणी-कमर स बराईरिहत हो जाना यह िव की सवा हो गई |

यथाशि भलाई कर दो यह समाज की सवा हो गई | भलाई का फल छोड़ दो यह अपनी सवा हो गई

| भ को अपना मानकर ःमित और म जगा लो यह भ की सवा हो गई | इस कार मनय

अपनी सवा भी कर सकता ह समाज की सवा भी कर सकता ह िव की सवा भी कर सकता ह

और िव र की सवा भी कर सकता ह | 197) आतमा स बाहर मत भटको अपन कनि म िःथर रहो अनयथा िगर पड़ोग | अपन-

आपम पणर िव ास रखो | आतम-कनि पर अचल रहो | िफर कोई भी चीज आपको िवचिलत नही कर सकती | 198) सदा शात िनिवरकार और सम रहो | जगत को खलमाऽ समझो | जगत स भािवत

मत हो | इसस आप हमशा सखी रहोग | िफर कछ बढ़ान की इ छा नही होगी और कछ कम होन स

दःख नही होगा | 199) समथर सदगर क सम सदा फल क भाित िखल हए रहो | इसस उनक अनदर सक प

होगा िक यह तो बहत उतसाही साधक ह सदा सनन रहता ह | उनक सामथयरवान सक प स

आपकी वह किऽम सननता भी वाःतिवक सननता म बदल जायगी | 200) यिद रोग को भी ई र का िदया मानो तो ार ध-भोग भी हो जाता ह और क तप का फल दता ह | इसस ई र-कपा की ाि होती ह | याकल मत हो | क सल और इनजकशन

आधीन मत हो | 201) साधक को चािहय िक अपन लआय को ि म रखकर साधना-पथ पर तीर की तरह

सीधा चला जाय | न इधर दख न उधर | ि यिद इधर-उधर जाती हो तो समझना िक िन ा िःथर नही ह |

202) आपन अपन जीवन म हजार ःव न दख ह ग लिकन व आपक जीवन क अश नही बन जात | इसी कार य जामत जगत क आड बर आपकी आतमा क सम कोई मह व नही रखत | 203) एक आतमा को ही जानो अनय बात को छोड़ो | धीर साधक को चािहय िक वह

सावधान होकर आतमिन ा बढ़ाय अनक श द का िचनतन व भाषण न कर कय िक वह तो कवल

मन-वाणी को पिरौम दनवाला ह असली साधना नही ह | 204) जो परष जन-समह स ऐस डर जस साप स डरता ह स मान स ऐस डर जस नकर स

डरता ह ि य स ऐस डर जस मद स डरता ह उस परष को दवतागण ा ण मानत ह | 205) जस अपन शरीर क अग पर बोध नही आता वस शऽ िमऽ व अपनी दह म एक ही आतमा को दखनवाल िववकी परष को कदािप बोध नही आता | 206) मन तो शरीर को ई रापरण कर िदया ह | अब उसकी भख- यास स मझ कया

समिपरत वःत म आस होना महा पाप ह | 207) आप यिद िद य ि पाना चहत हो तो आपको इिनिय क ऽ का तयाग करना होगा | 208) लयकाल क मघ की गजरना हो समि उमड़ पड बारह सयर तपायमान हो जाय पहाड़ स पहाड़ टकरा कर भयानक आवाज हो तो भी ानी क िन य म त नही भासता कय िक

त ह ही नही | त तो अ ानी को भासता ह | 209) सतय को ःवीकार करन स शाित िमलगी | कछ लोग यो यता क आधार पर शाित

खरीदना चाहत ह | यो यता स शाित नही िमलगी यो यता क सदपयोग स शाित िमलगी | कछ

लोग स पि क आधार पर शाित सरि त रखना चाहत ह | स पि स शाित नही िमलगी स पि

क सदपयोग स शाित िमलगी वस ही िवपि क सदपयोग स शाित िमलगी | 210) त छ हािन-लाभ पर आपका धयान इतना कय रहता ह िजसस अनत आननदःवरप

आतमा पर स धयान हट जाता ह | 211) अपन अनदर ही आननद ा करना य िप किठन ह परनत बा िवषय स आननद

ा करना तो अस भव ही ह |

212) म ससार का काश ह | काश क रप म म ही सब वःतओ म या ह | िनतय इन

िवचार का िचनतन करत रहो | य पिवऽ िवचार आपको परम पिवऽ बना दग | 213) जो वःत कमर स ा होती ह उसक िलय ससार की सहायता तथा भिवय की आशा की आवयकता होती ह परनत जो वःत तयाग स ा होती ह उसक िलय न ससार की सहायता चािहय न भिवय की आशा | 214) आपको जब तक बाहर चोर िदखता ह तब तक जरर भीतर चोर ह | जब दसर लोग

स िभनन अयो य खराब सधारन यो य िदखत ह तब तक ओ सधार का बीड़ा उठान वाल त अपनी िचिकतसा कर | 215) सफल व ही होत ह जो सदव नतमःतक एव सननमख रहत ह | िचनतातर-शोकातर लोग की उननित नही हो सकती | तयक कायर को िह मत व शाित स करो | िफर दखो िक यह

कायर शरीर मन और बि स हआ | म उन सबको स ा दनवाला चतनयःवरप ह | ॐ ॐ का पावन गान करो | 216) िकसी भी पिरिःथित म मन को यिथत न होन दो | आतमा पर िव ास करक

आतमिन बन जाओ | िनभरयता आपकी दासी बन कर रहगी | 217) सतसग स मनय को साधना ा होती ह चाह वह शाित क रप म हो चाह मि क

रप म चाह सवा क रप म हो म क रप म हो चाह तयाग क रप म हो | 218) भला-बरा वही दखता ह िजसक अनदर भला-बरा ह | दसर क शरीर को वही दखता ह

जो खद को शरीर मानता ह | 219) खबरदार आपन यिद अपन शरीर क िलय ऐश-आराम की इ छा की िवलािसता एव इिनिय-सख म अपना समय बरबाद िकया तो आपकी खर नही | ठ क स कायर करत रहन की नीित

अपनाओ | सफलता का पहला िस ात ह कायरिवौामरिहत कायरसा ी भाव स कायर | इस

िस ात को जीवन म चिरताथर करोग तो पता चलगा िक छोटा होना िजतना सरल ह उतना ही बड़ा होना भी सहज ह | 220) भतकाल पर िखनन हए िबना भिवय की िचनता िकय िबना व रमान म कायर करो | यह भाव आपको हर अवःथा म सनन रखगा हम जो कछ ा ह उसका सदपयोग ही अिधक

काश पान का साधन ह |

221) जब आप सफलता की ओर पीठ कर लत हो पिरणाम की िचनता का तयाग कर दत

हो स मख आय हए क र य पर अपनी उ ोगशि एकाम करत हो तब सफलता आपक पीछ-पीछ

आ जाती ह | अतः सफलता आपको खोजगी | 222) वि तब तक एकाम नही होगी जब तक मन म कभी एक आशा रहगी तो कभी दसरी | शात वही हो सकता ह िजस कोई क र य या आवयकता घसीट न रही हो | अतः परम शाित पान

क िलय जीवन की आशा भी तयाग कर मन ाननद म डबो दो | आज स समझ लो िक यह शरीर ह ही नही | कवल ाननद का सागर लहरा रहा ह | 223) िजसकी पककी िन ा ह िक म आतमा हrsquo उसक िलय ऐसी कौन सी मिथ ह जो खल

न सक ऐसी कोई ताकत नही जो उसक िवर जा सक | 224) मर भा य म नही थाई र की मज आजकल सतसग ा नही होताजगत

खराब ह ऐस वचन हमारी कायरता व अनतःकरण की मिलनता क कारण िनकलत ह | अतः नकारातमक ःवभाव और दसर पर दोषारोपण करन की वि स बचो | 225) आप जब भीतरवाल स नाराज होत हो तब जगत आपस नाराज रहता ह | जब आप

भीतर अनतयारमी बन बठ तो जगतरपी पतलीघर म िफर गड़बड़ कसी 226) िजस ण हम ससार क सधारक बन खड़ होत ह उसी ण हम ससार को िबगाड़नवाल बन जात ह | श परमातमा को दखन क बजाय जगत को िबगड़ा हआ दखन की ि बनती ह | सधारक लोग मानत ह िक lsquoभगवान न जो जगत बनाया ह वह िबगड़ा हआ ह और हम उस सधार रह ह |rsquo वाह वाह धनयवाद सधारक अपन िदल को सधारो पहल | सवरऽ िनरजन का दीदार करो | तब आपकी उपिःथित माऽ स आपकी ि माऽ स अर यार आपको छकर बहती हवा माऽ स अननत जीव को शाित िमलगी और अननत सधार होगा | नानक कबीर महावीर ब और लीलाशाह बाप जस महापरष न यही कजी अपनायी थी | 227) वदानत म हमशा कमर का अथर होता ह वाःतिवक आतमा क साथ एक होकर च ा करना अिखल िव क साथ एकःवर हो जाना | उस अि तीय परम ततव क साथ िनःःवाथर सयोग ा करना ही एकमाऽ स चा कमर ह बाकी सब बोझ की गठिरया उठाना ह |

228) अपनी व रमान अवःथा चाह कसी भी हो उसको सव च मानन स ही आपक दय म आतम ान ान का अनायास उदय होन लगगा | आतम-सा ातकार को मील दर की कोई चीज समझकर उसक पीछ दौड़ना नही ह िचिनतत होना नही ह |

िचनता की गठरी उठाकर यिथत होन की जररत नही ह | िजस ण आप िनि नतता म गोता मारोग उसी ण आपका आतमःवरप गट हो जायगा | अर गट कया होगा आप ःवय आतमःवरप हो ही | अनातमा को छोड़ दो तो आतमःवरप तो हो ही | 229) सदा ॐकार का गान करो | जब भय व िचनता क िवचार आय तब िकसी मःत सत-फकीर महातमा क सािननधय का ःमरण करो | जब िननदा-शसा क सग आय तब महापरष क जीवन का अवलोकन करो | 230) िजनको आप भयानक घटनाए एव भयकर आघात समझ बठ हो वाःतव म व आपक ियतम आतमदव की ही करतत ह | समःत भयजनक तथा ाणनाशक घटनाओ क नाम-रप तो िवष क ह लिकन व बनी ह अमत स | 231) मन म यिद भय न हो तो बाहर चाह कसी भी भय की साममी उपिःथत हो जाय आपका कछ िबगाड़ नही सकती | मन म यिद भय होगा तो तरनत बाहर भी भयजनक पिरिःथया न होत हए भी उपिःथत हो जायगी | व क तन म भी भत िदखन लगगा | 232) िकसी भी पिरिःथित म िदखती हई कठोरता व भयानकता स भयभीत नही होना चािहए | क क काल बादल क पीछ पणर काशमय एकरस परम स ा सयर की तरह सदा िव मान ह | 233) आप अपन पर कदािप अिव ास मत करो | इस जगत म आप सब कछ कर सकत हो | अपन को कभी दबरल मत मानो | आपक अनदर तमाम शि या छपी हई ह | 234) यिद कोई मन य आपकी कोई चीज़ को चरा लता ह तो ड़रत कय हो वह मनय

और आप एक ह | िजस चीज़ को वह चराता ह वह चीज़ आपकी और उसकी द न की ह | 235) जो खद क िसवाय दसरा कछ दखता नही सनता नही जानता नही वह अननत ह |

जब तक खद क िसवाय और िकसी वःत का भान होता ह वह वःत स ची लगती ह तब तक आप

सीिमत व शात ह असीम और अनत नही |

236) ससार मझ कया आनद द सकता ह स पणर आनद मर भीतर स आया ह | म ही स पणर आननद ह स पणर मिहमा एव स पणर सख ह | 237) जीवन की समःत आवयकताए जीवन म उपिःथत ह परनत जीवन को जब हम

बा रग म रग दत ह तब जीवन का वाःतिवक रप हम नही जान पात | 238) िननदक की िननदा स म कय मरझाऊ शसक की शसा स म कय फल िननदा स म घटता नही और शसा स म बढ़ता नही | जसा ह वसा ही रहता ह | िफर िननदा-ःतित स

खटक कसी 239) ससार व ससार की समःयाओ म जो सबस अिधक फस हए ह उनही को वदानत की सबस अिधक आवयकता ह | बीमार को ही औषिध की यादा आवयकता ह | कय जी ठ क ह न 240) जगत क पाप व अतयाचार की बात मत करो लिकन अब भी आपको जगत म पाप

िदखता ह इसिलय रोओ | 241) हम यिद जान ल िक जगत म आतमा क िसवाय दसरा कछ ह ही नही और जो कछ

िदखता ह वह ःव नमाऽ ह तो इस जगत क दःख-दािरिय पाप-प य कछ भी हम अशात नही कर सकत | 242) िव ान दाशरिनक व आचाय की धमकी तथा अनमह आलोचना या अनमित

ानी पर कोई भाव नही ड़ाल सकती | 243) ह यि रप अननत आप अपन पर पर खड़ रहन का साहस करो समःत िव का बोझ आप िखलौन की तरह उठा लोग | 244) िसह की गजरना व नरिसह की ललकार तलवार की धार व साप की फफकार तपःवी की धमकी व नयायधीश की फटकारइन सबम आपका ही काश चमक रहा ह | आप इनस

भयभीत कय होत हो उलझन कय महसस करत हो मरी िब ली मझको याऊ वाली बात कय

होन दत हो 245) ससार हमारा िसफ़र िखलोना ही ह और कछ नही | अबोध बालक ही िखलौन स

भयभीत होता ह आसि करता ह िवचारशील यि नही |

246) जब तक अिव ा दर नही होगी तब तक चोरी जआ दार यिभचार कभी बद न

ह ग चाह लाख कोिशश करो | 247) आप हमशा अदर का धयान रखो | पहल हमारा भीतरी पतन होता ह | बा पतन तो इसका पिरणाम माऽ ह | 248) तयाग स हमशा आनद िमलता ह | जब तक आपक पास एक भी चीज़ बाकी ह तब

तक आप उस चीज़ क बधन म बध रहोग | आघात व तयाघात हमशा समान िवरोधी होत ह | 249) िनि तता ही आरो यता की सबस बड़ी दवाई ह | 250) सख अपन िसर पर दख का मकट पहन कर आता ह | जो सख को अपनायगा उस

दख को भी ःवीकार करना पड़गा | 251) म (आतमा) सबका ा ह | मरा ा कोई नही | 252) हजार म स कोई एक परष भीतर स शात िच वाला रहकर बाहर स ससारी जसा यवहार कर सकता ह | 253) सतय क िलए यिद शरीर का तयाग करना पड़ तो कर दना | यही आिखरी ममता ह जो हम तोड़नी होगी | 254) भय िचनता बचनी स ऊपर उठो | आपको ान का अनभव होगा | 255) आपको कोई भी हािन नही पहचा सकता | कवल आपक खयालात ही आपक पीछ पड़ ह | 256) म का अथर ह अपन पड़ोसी तथा सपकर म आनवाल क साथ अपनी वाःतिवक अभदता का अनभव करना | 257) ओ यार अपन खोय हए आतमा को एक बार खोज लो | धरती व आसमान क शासक आप ही हो | 258) सदव सम और सनन रहना ई र की सव पिर भि ह |

259) जब तक िच म ढ़ता न आ जाय िक शा की िविधय का पालन छोड़ दन स भी दय का यथाथर भि भाव न नही होगा तब तक शा की िविधय को पालत रहो |

गर भि एक अमोघ साधना 1 जनम मरण क िवषचब स म होन का कोई मागर नही ह कया सख-दःख हषर-शोक लाभ-

हािन मान-अपमान की थ पड़ स बचन का कोई उपाय नही ह कया

हअवय ह | ह िय आतमन नाशवान पदाथ स अपना मन वािपस लाकर सदगर क

चरणकमल म लगाओ | गरभि योग का आौय लो | गरसवा ऐसा अमोघ साधन ह िजसस

व रमान जीवन आननदमय बनता ह और शा त सख क ार खलत ह |

गर सवत त नर धनय यहा | ितनक नही दःख यहा न वहा || 2 स च सदगर की की हई भि िशय म सासािरक पदाथ क वरा य एव अनासि जगाती ह

परमातमा क ित म क पप महकाती ह | 3 तयक िशय सदगर की सवा करना चाहता ह लिकन अपन ढग स | सदगर चाह उस ढग स

सवा करन को कोई ततपर नही | जो िवरला साधक गर चाह उस ढ़ग स सवा कर सकता ह उस कोई कमी नही रहती |

िन सदगर की सवा स उनकी कपा ा होती ह और उस कपा स न िमल सक ऐसा तीन लोक म कछ भी नही ह | 4 गर िशय का स बनध पिवऽतम स बनध ह | ससार क तमाम बनधन स छड़ाकर वह मि क मागर पर ःथान कराता ह | यह स बनध जीवनपयरनत का स बनध ह | यह बात अपन दय की डायरी म सवणर-अ र स िलख लो | 5 उ ल सयर क काश क अिःततव को मान या न मान िफर भी सयर हमशा काशता ह | चचल मन का मनय मान या न मान लिकन सदगर की परमक याणकारी कपा सदव बरसती ही रहती ह | 6 सदगर की चरणरज म ःनान िकय िबना कवल किठन तप यार करन स या वद का

अधयन करन स वदानत का रहःय कट नही होता आतमानद का अमत नही िमलता | 7 दशरन शा क चाह िकतन मनथ पढ़ो हजार वष तक िहमालय की गफा म तप करो वष तक ाणायाम करो जीवनपयरनत शीषारसन करो समम िव म वास करक याखान दो िफर भी सदगर की कपा क िबना आतम ान नही होता | अतः िनरािभमानी सरल िनजाननद म मःत दयाल ःवभाव क आतम-सा ातकारी सदगर क चरण म जाओ | जीवन को धनय बनाओ | 8 सदगर की सवा िकय िबना शा का अधयन करना मम साधक क िलय समय बरबाद करन क बराबर ह | 9 िजसको सदगर ा हए ह ऐस िशय क िलय इस िव म कछ भी अा य नही ह | सदगर िशय को िमली हई परमातमा की अम य भट ह | अर नहीhellipनही व तो िशय क सम साकार रप म कट हए परमातमा ःवय ह | 10 सदगर क साथ एक ण िकया हआ सतसग लाख वष क तप स अननत गना ौ ह | आख क िनमषमाऽ म सदगर की अमतवष ि िशय क जनम-जनम क पाप को जला सकती ह | 11 सदगर जसा मपणर कपाल िहतिचनतक िव भर म दसरा कोई नही ह | 12 बाढ़ क समय याऽी यिद तफानी नदी को िबना नाव क पार कर सक तो साधक भी िबना सदगर क अपन जीवन क आिखरी लआय को िस कर सकता ह | यानी य दोन बात स भव ह |

अतः यार साधक मनमखी साधना की िज करना छोड़ दो | गरमखी साधना करन म ही सार ह | 13 सदगर क चरणकमल का आौय लन स िजस आननद का अनभव होता ह उसक आग िऽलोकी का साा य त छ ह | 14 आतम-सा ातकार क मागर म सबस महान शऽ अहभाव का नाश करन क िलए सदगर की आ ा का पालन अमोघ श ह | 15 रसोई सीखन क िलय कोई िसखानवाला चािहय िव ान और गिणत सीखन क िलय

अधयापक चािहय तो कया िव ा सदगर क िबना ही सीख लोग 16 सदगरकपा की स पि जसा दसरा कोई खजाना िव भर म नही | 17 सदगर की आ ा का उ लघन करना यह अपनी क खोदन क बराबर ह | 18 सदगर क कायर को शका की ि स दखना महापातक ह | 19 गरभि व गरसवा - य साधनारपी नौका की दो पतवार ह | उनकी मदद स िशय ससारसागर को पार कर सकता ह | 20 सदगर की कसौटी करना असभव ह | एक िववकाननद ही दसर िववकाननद को पहचान सकत ह | ब को जानन क िलय दसर ब की आवयकता रहती ह | एक रामतीथर का रहःय दसर रामतीथर ही पा सकत ह |

अतः सदगर की कसौटी करन की च ा छोड़कर उनको पिरपणर पर परमातमा मानो |

तभी जीवन म वाःतिवक लाभ होगा | 21 गरभि योग का आौय लकर आप अपनी खोई हई िद यता को पनः ा करो सख-दःख जनम-मतय आिद सब न स पार हो जाओ | 22 गरभि योग मान गर की सवा क ारा मन और िवकार पर िनयऽण एव पनः सःकरण | 23 िशय अपन गर क चरणकमल म णाम करता ह | उन पर ौ फल की वषार करक उनकी ःतित करता ह ldquoह परम प य पिवऽ गरदव मझ सव च सख ा हआ ह | म िन ा स जनम-मतय की पर परा स म हआ ह | म िनिवरक प समािध का श सख भोग रहा ह | जगत क िकसी भी कोन म म म ता स िवचरण कर सकता ह | सब पर मरी सम ि ह | मन ाकत मन का तयाग िकया ह | मन सब सक प एव रिच-अरिच का तयाग िकया ह | अब म अख ड शाित म िवौाित पा रहा ह hellip आननदमय हो रहा ह | म इस पणर अवःथा का वणरन नही कर पाता | ह प य गरदव म आवाक बन गया ह | इस दःतर भवसागर को पार करन म आपन

मझ सहायता की ह | अब तक मझ कवल अपन शरीर म ही स पणर िव ास था | मन िविभनन योिनय म अस य जनम िलय | ऐसी सव च िनभरय अवःथा मझ कौन स पिवऽ कम क कारण ा हई ह यह म नही जानता | सचमच यह एक दलरभ भा य ह |

यह एक महान उतक लाभ ह | अब म आननद स नाचता ह | मर सब दःख न हो गय | मर सब मनोरथ पणर हए ह |

मर कायर स पनन हए ह | मन सब वािछत वःतए ा की ह | मरी इ छा पिरपणर हई ह | आप मर स च माता-िपता हो | मरी व रमान िःथित म म दसर क सम िकस कार कट कर सक सवरऽ सख और आननद का अननत सागर मझ लहराता हआ िदख रहा ह | मर अतःच िजसस खल गय वह महावाकय lsquoत वमिसrsquo ह | उपिनषद एव वदानतसऽ को भी धनयवाद | िजनह न िन गर का एव उपिनषद क महावाकय का रप धारण िकया ह | ऐस ौी यासजी को णाम ौी शकराचायर को णाम सासािरक मनय क िसर पर गर क चरणामत का एक िबनद भी िगर तो भी उसक ःब दःख का नाश होता ह | यिद एक िन परष को व पहनाय जाय तो सार िव को व पहनान एव भोजन करवान क बराबर ह कय िक िन परष सचराचर िव म या ह | सबम व ही ह |rdquo

ॐhellip ॐ hellip ॐ hellip

ःवामी िशवानद जी

ौी राम-विश सवाद ौी विश जी कहत ह ldquoह रघकलभषण ौी राम अनथर ःवरप िजतन सासािरक पदाथर ह व सब जल म तरग क समान िविवध रप धारण करक चमतकार उतपनन करत ह अथारत ई छाए उतपनन करक जीव को मोह म फसात ह | परत जस सभी तरग जल ःवरप ही ह उसी कार सभी पदाथर वःततः न र ःवभाव वाल ह |

बालक की क पना स आकाश म य और िपशाच िदखन लगत ह परनत बि मान मनय क िलए उन य और िपशाच का कोई अथर नही | इसी कार अ ानी क िच म यह जगत सतय हो ऐसा लगता ह जबिक हमार जस ािनय क िलय यह जगत कछ भी नही | यह समम िव पतथर पर बनी हई पतिलय की सना की तरह रपालोक तथा अतर-बा िवषय स शनय ह | इसम सतयता कसी परनत अ ािनय को यह िव सतय लगता ह |rdquo विश जी बोल ldquoौी राम जगत को सतय ःवरप म जानना यह ाित ह मढ़ता ह | उस िमथया अथारत कि पत समझना यही उिचत समझ ह | ह राघव तव ा अहता आिद सब िवम-िवलास शात िशवःवरप श ःवरप ही ह | इसिलय मझ तो क अितिर और कछ भी नही िदखता | आकाश म जस जगल नही वस ही म जगत नही ह | ह राम ार ध वश ा कम स िजस परष की च ा कठपतली की तरह ई छाशनय और याकलतारिहत होती ह वह शानत मनवाला परष जीवनम मिन ह | ऐस जीवनम ानी को इस

जगत का जीवन बास की तरह बाहर-भीतर स शनय रसहीन और वासना-रिहत लगता ह | इस य पच म िजस रिच नही दय म िचनमाऽ अ य ही अ छा लगता ह ऐस परष न

भीतर तथा बाहर शािनत ा कर ली ह और इस भवसागर स पार हो गया ह | रघनदन श व ा कहत ह िक मन का ई छारिहत होना यही समािध ह कय िक ई छाओ का तयाग करन स मन को जसी शािनत िमलती ह ऐसी शािनत सकड़ उपदश स भी नही िमलती | ई छा की उतपि स जसा दःख ा होता ह ऐसा दःख तो नरक म भी नही | ई छाओ की शािनत

स जसा सख होता ह ऐसा सख ःवगर तो कया लोक म भी नही होता | अतः समःत शा तपःया यम और िनयम का िनचोड़ यही ह िक ई छामाऽ दःखदायी ह और ई छा का शमन मो ह | ाणी क दय म जसी-जसी और िजतनी-िजतनी ई छाय उतपनन होती ह उतना ही दख स वह

ड़रता रहता ह | िववक-िवचार ारा ई छाय जस-जस शानत होती जाती ह वस-वस दखरपी छत की बीमारी िमटती जाती ह |

आसि क कारण सासािरक िवषय की ई छाय य - य गहनीभत होती जाती ह तय -तय

दःख की िवषली तरग बढ़ती जाती ह | अपन परषाथर क बल स इस ई छारपी यािध का उपचार यिद नही िकया जाय तो इस यािध स छटन क िलय अनय कोई औषिध नही ह ऐसा म ढ़तापवरक

मानता ह | एक साथ सभी ई छाओ का स पणर तयाग ना हो सक तो थोड़ी-थोड़ी ई छाओ का धीर-धीर तयाग

करना चािहय परत रहना चािहय ई छा क तयाग म रत कय िक सनमागर का पिथक दखी नही होता | जो नराधम अपनी वासना और अहकार को ीण करन का य नही करता वह िदन -िदन अपन

को रावण की तरह अधर कऐ म ढ़कल रहा ह | ई छा ही दख की जनमदाऽी इस ससाररपी बल का बीज ह | यिद इस बीज को आतम ानरपी अि न स ठ क-ठ क जला िदया तो पनः यह अकिरत नही होता | रघकलभषण राम ई छामाऽ ससार ह और ई छाओ का अभाव ही िनवारण ह | अतः अनक कार की माथाप ची म ना पड़कर कवल ऐसा य करना चािहय िक ई छा उतपनन ना हो | अपनी बि स ई छा का िवनाश करन को जो ततपर नही ऐस अभाग को शा और गर का उपदश

भी कया करगा जस अपनी जनमभमी जगल म िहरणी की मतय िनि त ह उसी कार अनकिवध दख का िवःतार कारनवाल ई छारपी िवषय-िवकार स य इस जगत म मनय की मतय िनि त ह | यिद मानव ई छाओ क कारण ब च -सा मढ़ ना बन तो उस आतम ान क िलय अ प य ही करना पड़ | इसिलय सभी कार स ई छाओ को शानत करना चािहय | ई छा क शमन स परम पद की ाि होती ह | ई छारिहत हो जाना यही िनवारण ह और ई छाय

होना ही बधन ह | अतः यथाशि ई छा को जीतना चािहय | भला इतना करन म कया किठनाई ह जनम जरा यािध और मतयरपी कटीली झािड़य और खर क व - समह की जड़ भी ई छा ही ह

| अतः शमरपी अि न स अदर-ही-अदर बीज को जला ड़ालना चािहय| जहा ई छाओ का अभाव ह

वहा मि िनि त ह |

िववक वरा य आिद साधन स ई छा का सवरथा िवनाश करना चािहय | ई छा का सबध जहा-जहा ह वहा-वहा पाप प य दखरािशया और ल बी पीड़ाओ स य बधन को हािज़र ही समझो | परष

की आतिरक ई छा य - य शानत होती जाती ह तय -तय मो क िलय उसका क याणकारक

साधन बढ़ता जाता ह | िववकहीन ई छा को पोसना उस पणर करना यह तो ससाररपी िवष व को पानी स सीचन क समान ह |rdquo

- ौीयोगविश महारामायण

आतमबल का आवाहन कया आप अपन-आपको दबरल मानत हो लघतामथी म उलझ कर पिरिःतिथय स िपस रह हो

अपना जीवन दीन-हीन बना बठ हो hellipतो अपन भीतर सष आतमबल को जगाओ | शरीर चाह ी का हो चाह परष का कित क साा य म जो जीत ह व सब ी ह और कित क बनधन स पार अपन ःवरप की पहचान िजनह न कर ली ह अपन मन की गलामी की बिड़या तोड़कर िजनह न फ क दी ह व परष ह | ी या परष शरीर एव मानयताए होती ह | तम तो तन-मन स पार िनमरल आतमा हो | जागोhellipउठोhellipअपन भीतर सोय हय िन यबल को जगाओ | सवरदश सवरकाल म सव म

आतमबल को िवकिसत करो | आतमा म अथाह सामथयर ह | अपन को दीन-हीन मान बठ तो िव म ऐसी कोई स ा नही जो त ह ऊपर उठा सक | अपन आतमःवरप म िति त हो गय तो िऽलोकी म ऐसी कोई हःती नही जो त ह दबा सक | भौितक जगत म वाप की शि ईलकशोिनक शि िव त की शि गरतवाकषरण की शि बड़ी मानी जाती ह लिकन आतमबल उन सब शि य का सचालक बल ह | आतमबल क सािननधय म आकर पग ार ध को पर िमल जात ह दव की दीनता पलायन हो जाती ह ितकल पिरिःतिथया अनकल हो जाती ह | आतमबल सवर िरि -िसि य का िपता ह |

आतमबल कस जगाय हररोज़ तःकाल ज दी उठकर सय दय स पवर ःनानािद स िनवत हो जाओ | ःव छ पिवऽ ःथान

म आसन िबछाकर पवारिभमख होकर प ासन या सखासन म बठ जाओ | शानत और सनन वि

धारण करो | मन म ढ भावना करो िक म कित-िनिमरत इस शरीर क सब अभाव को पार करक सब

मिलनताओ-दबरलताओ स िप ड़ छड़ाकर आतमा की मिहमा म जागकर ही रहगा |

आख आधी खली आधी बद रखो | अब फ़फ़ड़ म खब ास भरो और भावना करो की ास क साथ

म सयर का िद य ओज भीतर भर रहा ह | ास को यथाशि अनदर िटकाय रखो | िफ़र lsquoॐhelliprsquo का ल बा उ चारण करत हए ास को धीर-धीर छोड़त जाओ | ास क खाली होन क बाद तरत ास ना लो | यथाशि िबना ास रहो और भीतर ही भीतर lsquoहिर ॐhelliprsquo lsquoहिर ॐhelliprsquo का मानिसक

जाप करो | िफ़र स फ़फ़ड़ म ास भरो | पव रीित स ास यथाशि अनदर िटकाकर बाद म धीर-धीर छोड़त हए lsquoॐhelliprsquo का गजन करो | दस-पिह िमनट ऐस ाणायाम सिहत उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo की धविन करक शानत हो जाओ | सब

यास छोड़ दो | वि य को आकाश की ओर फ़लन दो | आकाश क अनदर पथवी ह | पथवी पर अनक दश अनक समि एव अनक लोग ह | उनम स एक

आपका शरीर आसन पर बठा हआ ह | इस पर य को आप मानिसक आख स भावना स दखत

रहो | आप शरीर नही हो बि क अनक शरीर दश सागर पथवी मह न ऽ सयर चनि एव पर ा ड़ क

ा हो सा ी हो | इस सा ी भाव म जाग जाओ | थोड़ी दर क बाद िफ़र स ाणायाम सिहत lsquoॐhelliprsquo का जाप करो और शानत होकर अपन िवचार को दखत रहो | इस अवःथा म ढ़ िन य करो िक lsquoम जसा चहता ह वसा होकर रहगा |rsquo िवषयसख स ा धन-

दौलत इतयािद की इ छा न करो कय िक िन यबल या आतमबलरपी हाथी क पदिच म और सभी क पदिच समािव हो ही जायग | आतमानदरपी सयर क उदय होन क बाद िम टी क तल क दीय क ाकाश रपी शि सखाभास की गलामी कौन कर

िकसी भी भावना को साकार करन क िलय दय को करद ड़ाल ऐसी िन यातमक बिल वि होनी आवशयक ह | अनतःकरण क गहर-स-गहर दश म चोट कर ऐसा ाण भरक िन बल का आवाहन करो | सीना तानकर खड़ हो जाओ अपन मन की दीन-हीन दखद मानयताओ को कचल

ड़ालन क िलय | सदा ःमरण रह की इधर-उधर भटकती वि य क साथ त हारी शि भी िबखरती रहती ह | अतः वि य को बहकाओ नही | तमाम वि य को एकिऽत करक साधनाकाल म आतमिचनतन म लगाओ और यवहारकाल म जो कायर करत हो उसम लगाओ | द िच होकर हरक कायर करो | अपन ःवभाव म स आवश को सवरथा िनमरल कर दो | आवश म आकर कोई िनणरय मत लो कोई िबया मत करो | सदा शानत वि धारण करन का अ यास करो | िवचारशील एव सनन रहो | ःवय अचल रहकर सागर की तरह सब वि य की तरग को अपन

भीतर समालो | जीवमाऽ को अपना ःवरप समझो | सबस ःनह रखो | िदल को यापक रखो | सकिच ता का िनवारण करत रहो | ख ड़ातमक वि का सवरथा तयाग करो | िजनको ानी महापरष का सतसग और अधयातमिव ा का लाभ िमल जाता ह उसक जीवन स

दःख िवदा होन लगत ह | ॐ आननद आतमिन ा म जाग हए महापरष क सतसग एव सतसािहतय स जीवन को भि और वदात स प

एव पलिकत करो | कछ ही िदन क इस सघन योग क बाद अनभव होन लगगा िक भतकाल क

नकारतमक ःवभाव सशयातमक-हािनकारक क पनाओ न जीवन को कचल ड़ाला था िवषला कर िदया था | अब िन यबल क चमतकार का पता चला | अततरम म आिवरभत िद य खज़ाना अब

िमला | ार ध की बिड़या अब टटन लगी | ठ क ह न करोग ना िह मत पढ़कर रख मत दना इस पिःतका को | जीवन म इसको बार-बार पढ़त रहो | एक िदन म यह पणर ना होगा | बार-बार अ यास करो | त हार िलय यह एक ही पिःतका काफ़ी ह | अनय कचराप टी ना पड़ोग तो चलगा | शाबाश वीर शाबाश

  • परसतावना
  • जीवन रसायन
  • गर भकति एक अमोघ साधना
  • शरी राम-वशिषठ सवाद
  • आतमबल का आवाहन
  • आतमबल कस जगाय
Page 29: जीवन रसायन - HariOmGroup · ‘जीवन रसायन’ का यह िदय कटोरा आत्मरस के िपपासुओं हाथ

194) आप अपनी शि को उ चाितउ च िवषय की ओर बहन दो | इसस आपक पास व

बात सोचन का समय ही नही िमलगा िजसस कामकता की गध आती हो | 195) अपराध क अनक नाम ह बालहतया नरहतया मातहतया गौहतया इतयािद |

परनत तयक ाणी म ई र का अनभव न करक आप ई रहतया का सबस बड़ा अपराध करत ह | 196) सवा करन की ःवाधीनता मनयमाऽ को ा ह | अगर वह करना ही न चाह तो अलग बात ह | सवा का अथर ह मन-वाणी-कमर स बराईरिहत हो जाना यह िव की सवा हो गई |

यथाशि भलाई कर दो यह समाज की सवा हो गई | भलाई का फल छोड़ दो यह अपनी सवा हो गई

| भ को अपना मानकर ःमित और म जगा लो यह भ की सवा हो गई | इस कार मनय

अपनी सवा भी कर सकता ह समाज की सवा भी कर सकता ह िव की सवा भी कर सकता ह

और िव र की सवा भी कर सकता ह | 197) आतमा स बाहर मत भटको अपन कनि म िःथर रहो अनयथा िगर पड़ोग | अपन-

आपम पणर िव ास रखो | आतम-कनि पर अचल रहो | िफर कोई भी चीज आपको िवचिलत नही कर सकती | 198) सदा शात िनिवरकार और सम रहो | जगत को खलमाऽ समझो | जगत स भािवत

मत हो | इसस आप हमशा सखी रहोग | िफर कछ बढ़ान की इ छा नही होगी और कछ कम होन स

दःख नही होगा | 199) समथर सदगर क सम सदा फल क भाित िखल हए रहो | इसस उनक अनदर सक प

होगा िक यह तो बहत उतसाही साधक ह सदा सनन रहता ह | उनक सामथयरवान सक प स

आपकी वह किऽम सननता भी वाःतिवक सननता म बदल जायगी | 200) यिद रोग को भी ई र का िदया मानो तो ार ध-भोग भी हो जाता ह और क तप का फल दता ह | इसस ई र-कपा की ाि होती ह | याकल मत हो | क सल और इनजकशन

आधीन मत हो | 201) साधक को चािहय िक अपन लआय को ि म रखकर साधना-पथ पर तीर की तरह

सीधा चला जाय | न इधर दख न उधर | ि यिद इधर-उधर जाती हो तो समझना िक िन ा िःथर नही ह |

202) आपन अपन जीवन म हजार ःव न दख ह ग लिकन व आपक जीवन क अश नही बन जात | इसी कार य जामत जगत क आड बर आपकी आतमा क सम कोई मह व नही रखत | 203) एक आतमा को ही जानो अनय बात को छोड़ो | धीर साधक को चािहय िक वह

सावधान होकर आतमिन ा बढ़ाय अनक श द का िचनतन व भाषण न कर कय िक वह तो कवल

मन-वाणी को पिरौम दनवाला ह असली साधना नही ह | 204) जो परष जन-समह स ऐस डर जस साप स डरता ह स मान स ऐस डर जस नकर स

डरता ह ि य स ऐस डर जस मद स डरता ह उस परष को दवतागण ा ण मानत ह | 205) जस अपन शरीर क अग पर बोध नही आता वस शऽ िमऽ व अपनी दह म एक ही आतमा को दखनवाल िववकी परष को कदािप बोध नही आता | 206) मन तो शरीर को ई रापरण कर िदया ह | अब उसकी भख- यास स मझ कया

समिपरत वःत म आस होना महा पाप ह | 207) आप यिद िद य ि पाना चहत हो तो आपको इिनिय क ऽ का तयाग करना होगा | 208) लयकाल क मघ की गजरना हो समि उमड़ पड बारह सयर तपायमान हो जाय पहाड़ स पहाड़ टकरा कर भयानक आवाज हो तो भी ानी क िन य म त नही भासता कय िक

त ह ही नही | त तो अ ानी को भासता ह | 209) सतय को ःवीकार करन स शाित िमलगी | कछ लोग यो यता क आधार पर शाित

खरीदना चाहत ह | यो यता स शाित नही िमलगी यो यता क सदपयोग स शाित िमलगी | कछ

लोग स पि क आधार पर शाित सरि त रखना चाहत ह | स पि स शाित नही िमलगी स पि

क सदपयोग स शाित िमलगी वस ही िवपि क सदपयोग स शाित िमलगी | 210) त छ हािन-लाभ पर आपका धयान इतना कय रहता ह िजसस अनत आननदःवरप

आतमा पर स धयान हट जाता ह | 211) अपन अनदर ही आननद ा करना य िप किठन ह परनत बा िवषय स आननद

ा करना तो अस भव ही ह |

212) म ससार का काश ह | काश क रप म म ही सब वःतओ म या ह | िनतय इन

िवचार का िचनतन करत रहो | य पिवऽ िवचार आपको परम पिवऽ बना दग | 213) जो वःत कमर स ा होती ह उसक िलय ससार की सहायता तथा भिवय की आशा की आवयकता होती ह परनत जो वःत तयाग स ा होती ह उसक िलय न ससार की सहायता चािहय न भिवय की आशा | 214) आपको जब तक बाहर चोर िदखता ह तब तक जरर भीतर चोर ह | जब दसर लोग

स िभनन अयो य खराब सधारन यो य िदखत ह तब तक ओ सधार का बीड़ा उठान वाल त अपनी िचिकतसा कर | 215) सफल व ही होत ह जो सदव नतमःतक एव सननमख रहत ह | िचनतातर-शोकातर लोग की उननित नही हो सकती | तयक कायर को िह मत व शाित स करो | िफर दखो िक यह

कायर शरीर मन और बि स हआ | म उन सबको स ा दनवाला चतनयःवरप ह | ॐ ॐ का पावन गान करो | 216) िकसी भी पिरिःथित म मन को यिथत न होन दो | आतमा पर िव ास करक

आतमिन बन जाओ | िनभरयता आपकी दासी बन कर रहगी | 217) सतसग स मनय को साधना ा होती ह चाह वह शाित क रप म हो चाह मि क

रप म चाह सवा क रप म हो म क रप म हो चाह तयाग क रप म हो | 218) भला-बरा वही दखता ह िजसक अनदर भला-बरा ह | दसर क शरीर को वही दखता ह

जो खद को शरीर मानता ह | 219) खबरदार आपन यिद अपन शरीर क िलय ऐश-आराम की इ छा की िवलािसता एव इिनिय-सख म अपना समय बरबाद िकया तो आपकी खर नही | ठ क स कायर करत रहन की नीित

अपनाओ | सफलता का पहला िस ात ह कायरिवौामरिहत कायरसा ी भाव स कायर | इस

िस ात को जीवन म चिरताथर करोग तो पता चलगा िक छोटा होना िजतना सरल ह उतना ही बड़ा होना भी सहज ह | 220) भतकाल पर िखनन हए िबना भिवय की िचनता िकय िबना व रमान म कायर करो | यह भाव आपको हर अवःथा म सनन रखगा हम जो कछ ा ह उसका सदपयोग ही अिधक

काश पान का साधन ह |

221) जब आप सफलता की ओर पीठ कर लत हो पिरणाम की िचनता का तयाग कर दत

हो स मख आय हए क र य पर अपनी उ ोगशि एकाम करत हो तब सफलता आपक पीछ-पीछ

आ जाती ह | अतः सफलता आपको खोजगी | 222) वि तब तक एकाम नही होगी जब तक मन म कभी एक आशा रहगी तो कभी दसरी | शात वही हो सकता ह िजस कोई क र य या आवयकता घसीट न रही हो | अतः परम शाित पान

क िलय जीवन की आशा भी तयाग कर मन ाननद म डबो दो | आज स समझ लो िक यह शरीर ह ही नही | कवल ाननद का सागर लहरा रहा ह | 223) िजसकी पककी िन ा ह िक म आतमा हrsquo उसक िलय ऐसी कौन सी मिथ ह जो खल

न सक ऐसी कोई ताकत नही जो उसक िवर जा सक | 224) मर भा य म नही थाई र की मज आजकल सतसग ा नही होताजगत

खराब ह ऐस वचन हमारी कायरता व अनतःकरण की मिलनता क कारण िनकलत ह | अतः नकारातमक ःवभाव और दसर पर दोषारोपण करन की वि स बचो | 225) आप जब भीतरवाल स नाराज होत हो तब जगत आपस नाराज रहता ह | जब आप

भीतर अनतयारमी बन बठ तो जगतरपी पतलीघर म िफर गड़बड़ कसी 226) िजस ण हम ससार क सधारक बन खड़ होत ह उसी ण हम ससार को िबगाड़नवाल बन जात ह | श परमातमा को दखन क बजाय जगत को िबगड़ा हआ दखन की ि बनती ह | सधारक लोग मानत ह िक lsquoभगवान न जो जगत बनाया ह वह िबगड़ा हआ ह और हम उस सधार रह ह |rsquo वाह वाह धनयवाद सधारक अपन िदल को सधारो पहल | सवरऽ िनरजन का दीदार करो | तब आपकी उपिःथित माऽ स आपकी ि माऽ स अर यार आपको छकर बहती हवा माऽ स अननत जीव को शाित िमलगी और अननत सधार होगा | नानक कबीर महावीर ब और लीलाशाह बाप जस महापरष न यही कजी अपनायी थी | 227) वदानत म हमशा कमर का अथर होता ह वाःतिवक आतमा क साथ एक होकर च ा करना अिखल िव क साथ एकःवर हो जाना | उस अि तीय परम ततव क साथ िनःःवाथर सयोग ा करना ही एकमाऽ स चा कमर ह बाकी सब बोझ की गठिरया उठाना ह |

228) अपनी व रमान अवःथा चाह कसी भी हो उसको सव च मानन स ही आपक दय म आतम ान ान का अनायास उदय होन लगगा | आतम-सा ातकार को मील दर की कोई चीज समझकर उसक पीछ दौड़ना नही ह िचिनतत होना नही ह |

िचनता की गठरी उठाकर यिथत होन की जररत नही ह | िजस ण आप िनि नतता म गोता मारोग उसी ण आपका आतमःवरप गट हो जायगा | अर गट कया होगा आप ःवय आतमःवरप हो ही | अनातमा को छोड़ दो तो आतमःवरप तो हो ही | 229) सदा ॐकार का गान करो | जब भय व िचनता क िवचार आय तब िकसी मःत सत-फकीर महातमा क सािननधय का ःमरण करो | जब िननदा-शसा क सग आय तब महापरष क जीवन का अवलोकन करो | 230) िजनको आप भयानक घटनाए एव भयकर आघात समझ बठ हो वाःतव म व आपक ियतम आतमदव की ही करतत ह | समःत भयजनक तथा ाणनाशक घटनाओ क नाम-रप तो िवष क ह लिकन व बनी ह अमत स | 231) मन म यिद भय न हो तो बाहर चाह कसी भी भय की साममी उपिःथत हो जाय आपका कछ िबगाड़ नही सकती | मन म यिद भय होगा तो तरनत बाहर भी भयजनक पिरिःथया न होत हए भी उपिःथत हो जायगी | व क तन म भी भत िदखन लगगा | 232) िकसी भी पिरिःथित म िदखती हई कठोरता व भयानकता स भयभीत नही होना चािहए | क क काल बादल क पीछ पणर काशमय एकरस परम स ा सयर की तरह सदा िव मान ह | 233) आप अपन पर कदािप अिव ास मत करो | इस जगत म आप सब कछ कर सकत हो | अपन को कभी दबरल मत मानो | आपक अनदर तमाम शि या छपी हई ह | 234) यिद कोई मन य आपकी कोई चीज़ को चरा लता ह तो ड़रत कय हो वह मनय

और आप एक ह | िजस चीज़ को वह चराता ह वह चीज़ आपकी और उसकी द न की ह | 235) जो खद क िसवाय दसरा कछ दखता नही सनता नही जानता नही वह अननत ह |

जब तक खद क िसवाय और िकसी वःत का भान होता ह वह वःत स ची लगती ह तब तक आप

सीिमत व शात ह असीम और अनत नही |

236) ससार मझ कया आनद द सकता ह स पणर आनद मर भीतर स आया ह | म ही स पणर आननद ह स पणर मिहमा एव स पणर सख ह | 237) जीवन की समःत आवयकताए जीवन म उपिःथत ह परनत जीवन को जब हम

बा रग म रग दत ह तब जीवन का वाःतिवक रप हम नही जान पात | 238) िननदक की िननदा स म कय मरझाऊ शसक की शसा स म कय फल िननदा स म घटता नही और शसा स म बढ़ता नही | जसा ह वसा ही रहता ह | िफर िननदा-ःतित स

खटक कसी 239) ससार व ससार की समःयाओ म जो सबस अिधक फस हए ह उनही को वदानत की सबस अिधक आवयकता ह | बीमार को ही औषिध की यादा आवयकता ह | कय जी ठ क ह न 240) जगत क पाप व अतयाचार की बात मत करो लिकन अब भी आपको जगत म पाप

िदखता ह इसिलय रोओ | 241) हम यिद जान ल िक जगत म आतमा क िसवाय दसरा कछ ह ही नही और जो कछ

िदखता ह वह ःव नमाऽ ह तो इस जगत क दःख-दािरिय पाप-प य कछ भी हम अशात नही कर सकत | 242) िव ान दाशरिनक व आचाय की धमकी तथा अनमह आलोचना या अनमित

ानी पर कोई भाव नही ड़ाल सकती | 243) ह यि रप अननत आप अपन पर पर खड़ रहन का साहस करो समःत िव का बोझ आप िखलौन की तरह उठा लोग | 244) िसह की गजरना व नरिसह की ललकार तलवार की धार व साप की फफकार तपःवी की धमकी व नयायधीश की फटकारइन सबम आपका ही काश चमक रहा ह | आप इनस

भयभीत कय होत हो उलझन कय महसस करत हो मरी िब ली मझको याऊ वाली बात कय

होन दत हो 245) ससार हमारा िसफ़र िखलोना ही ह और कछ नही | अबोध बालक ही िखलौन स

भयभीत होता ह आसि करता ह िवचारशील यि नही |

246) जब तक अिव ा दर नही होगी तब तक चोरी जआ दार यिभचार कभी बद न

ह ग चाह लाख कोिशश करो | 247) आप हमशा अदर का धयान रखो | पहल हमारा भीतरी पतन होता ह | बा पतन तो इसका पिरणाम माऽ ह | 248) तयाग स हमशा आनद िमलता ह | जब तक आपक पास एक भी चीज़ बाकी ह तब

तक आप उस चीज़ क बधन म बध रहोग | आघात व तयाघात हमशा समान िवरोधी होत ह | 249) िनि तता ही आरो यता की सबस बड़ी दवाई ह | 250) सख अपन िसर पर दख का मकट पहन कर आता ह | जो सख को अपनायगा उस

दख को भी ःवीकार करना पड़गा | 251) म (आतमा) सबका ा ह | मरा ा कोई नही | 252) हजार म स कोई एक परष भीतर स शात िच वाला रहकर बाहर स ससारी जसा यवहार कर सकता ह | 253) सतय क िलए यिद शरीर का तयाग करना पड़ तो कर दना | यही आिखरी ममता ह जो हम तोड़नी होगी | 254) भय िचनता बचनी स ऊपर उठो | आपको ान का अनभव होगा | 255) आपको कोई भी हािन नही पहचा सकता | कवल आपक खयालात ही आपक पीछ पड़ ह | 256) म का अथर ह अपन पड़ोसी तथा सपकर म आनवाल क साथ अपनी वाःतिवक अभदता का अनभव करना | 257) ओ यार अपन खोय हए आतमा को एक बार खोज लो | धरती व आसमान क शासक आप ही हो | 258) सदव सम और सनन रहना ई र की सव पिर भि ह |

259) जब तक िच म ढ़ता न आ जाय िक शा की िविधय का पालन छोड़ दन स भी दय का यथाथर भि भाव न नही होगा तब तक शा की िविधय को पालत रहो |

गर भि एक अमोघ साधना 1 जनम मरण क िवषचब स म होन का कोई मागर नही ह कया सख-दःख हषर-शोक लाभ-

हािन मान-अपमान की थ पड़ स बचन का कोई उपाय नही ह कया

हअवय ह | ह िय आतमन नाशवान पदाथ स अपना मन वािपस लाकर सदगर क

चरणकमल म लगाओ | गरभि योग का आौय लो | गरसवा ऐसा अमोघ साधन ह िजसस

व रमान जीवन आननदमय बनता ह और शा त सख क ार खलत ह |

गर सवत त नर धनय यहा | ितनक नही दःख यहा न वहा || 2 स च सदगर की की हई भि िशय म सासािरक पदाथ क वरा य एव अनासि जगाती ह

परमातमा क ित म क पप महकाती ह | 3 तयक िशय सदगर की सवा करना चाहता ह लिकन अपन ढग स | सदगर चाह उस ढग स

सवा करन को कोई ततपर नही | जो िवरला साधक गर चाह उस ढ़ग स सवा कर सकता ह उस कोई कमी नही रहती |

िन सदगर की सवा स उनकी कपा ा होती ह और उस कपा स न िमल सक ऐसा तीन लोक म कछ भी नही ह | 4 गर िशय का स बनध पिवऽतम स बनध ह | ससार क तमाम बनधन स छड़ाकर वह मि क मागर पर ःथान कराता ह | यह स बनध जीवनपयरनत का स बनध ह | यह बात अपन दय की डायरी म सवणर-अ र स िलख लो | 5 उ ल सयर क काश क अिःततव को मान या न मान िफर भी सयर हमशा काशता ह | चचल मन का मनय मान या न मान लिकन सदगर की परमक याणकारी कपा सदव बरसती ही रहती ह | 6 सदगर की चरणरज म ःनान िकय िबना कवल किठन तप यार करन स या वद का

अधयन करन स वदानत का रहःय कट नही होता आतमानद का अमत नही िमलता | 7 दशरन शा क चाह िकतन मनथ पढ़ो हजार वष तक िहमालय की गफा म तप करो वष तक ाणायाम करो जीवनपयरनत शीषारसन करो समम िव म वास करक याखान दो िफर भी सदगर की कपा क िबना आतम ान नही होता | अतः िनरािभमानी सरल िनजाननद म मःत दयाल ःवभाव क आतम-सा ातकारी सदगर क चरण म जाओ | जीवन को धनय बनाओ | 8 सदगर की सवा िकय िबना शा का अधयन करना मम साधक क िलय समय बरबाद करन क बराबर ह | 9 िजसको सदगर ा हए ह ऐस िशय क िलय इस िव म कछ भी अा य नही ह | सदगर िशय को िमली हई परमातमा की अम य भट ह | अर नहीhellipनही व तो िशय क सम साकार रप म कट हए परमातमा ःवय ह | 10 सदगर क साथ एक ण िकया हआ सतसग लाख वष क तप स अननत गना ौ ह | आख क िनमषमाऽ म सदगर की अमतवष ि िशय क जनम-जनम क पाप को जला सकती ह | 11 सदगर जसा मपणर कपाल िहतिचनतक िव भर म दसरा कोई नही ह | 12 बाढ़ क समय याऽी यिद तफानी नदी को िबना नाव क पार कर सक तो साधक भी िबना सदगर क अपन जीवन क आिखरी लआय को िस कर सकता ह | यानी य दोन बात स भव ह |

अतः यार साधक मनमखी साधना की िज करना छोड़ दो | गरमखी साधना करन म ही सार ह | 13 सदगर क चरणकमल का आौय लन स िजस आननद का अनभव होता ह उसक आग िऽलोकी का साा य त छ ह | 14 आतम-सा ातकार क मागर म सबस महान शऽ अहभाव का नाश करन क िलए सदगर की आ ा का पालन अमोघ श ह | 15 रसोई सीखन क िलय कोई िसखानवाला चािहय िव ान और गिणत सीखन क िलय

अधयापक चािहय तो कया िव ा सदगर क िबना ही सीख लोग 16 सदगरकपा की स पि जसा दसरा कोई खजाना िव भर म नही | 17 सदगर की आ ा का उ लघन करना यह अपनी क खोदन क बराबर ह | 18 सदगर क कायर को शका की ि स दखना महापातक ह | 19 गरभि व गरसवा - य साधनारपी नौका की दो पतवार ह | उनकी मदद स िशय ससारसागर को पार कर सकता ह | 20 सदगर की कसौटी करना असभव ह | एक िववकाननद ही दसर िववकाननद को पहचान सकत ह | ब को जानन क िलय दसर ब की आवयकता रहती ह | एक रामतीथर का रहःय दसर रामतीथर ही पा सकत ह |

अतः सदगर की कसौटी करन की च ा छोड़कर उनको पिरपणर पर परमातमा मानो |

तभी जीवन म वाःतिवक लाभ होगा | 21 गरभि योग का आौय लकर आप अपनी खोई हई िद यता को पनः ा करो सख-दःख जनम-मतय आिद सब न स पार हो जाओ | 22 गरभि योग मान गर की सवा क ारा मन और िवकार पर िनयऽण एव पनः सःकरण | 23 िशय अपन गर क चरणकमल म णाम करता ह | उन पर ौ फल की वषार करक उनकी ःतित करता ह ldquoह परम प य पिवऽ गरदव मझ सव च सख ा हआ ह | म िन ा स जनम-मतय की पर परा स म हआ ह | म िनिवरक प समािध का श सख भोग रहा ह | जगत क िकसी भी कोन म म म ता स िवचरण कर सकता ह | सब पर मरी सम ि ह | मन ाकत मन का तयाग िकया ह | मन सब सक प एव रिच-अरिच का तयाग िकया ह | अब म अख ड शाित म िवौाित पा रहा ह hellip आननदमय हो रहा ह | म इस पणर अवःथा का वणरन नही कर पाता | ह प य गरदव म आवाक बन गया ह | इस दःतर भवसागर को पार करन म आपन

मझ सहायता की ह | अब तक मझ कवल अपन शरीर म ही स पणर िव ास था | मन िविभनन योिनय म अस य जनम िलय | ऐसी सव च िनभरय अवःथा मझ कौन स पिवऽ कम क कारण ा हई ह यह म नही जानता | सचमच यह एक दलरभ भा य ह |

यह एक महान उतक लाभ ह | अब म आननद स नाचता ह | मर सब दःख न हो गय | मर सब मनोरथ पणर हए ह |

मर कायर स पनन हए ह | मन सब वािछत वःतए ा की ह | मरी इ छा पिरपणर हई ह | आप मर स च माता-िपता हो | मरी व रमान िःथित म म दसर क सम िकस कार कट कर सक सवरऽ सख और आननद का अननत सागर मझ लहराता हआ िदख रहा ह | मर अतःच िजसस खल गय वह महावाकय lsquoत वमिसrsquo ह | उपिनषद एव वदानतसऽ को भी धनयवाद | िजनह न िन गर का एव उपिनषद क महावाकय का रप धारण िकया ह | ऐस ौी यासजी को णाम ौी शकराचायर को णाम सासािरक मनय क िसर पर गर क चरणामत का एक िबनद भी िगर तो भी उसक ःब दःख का नाश होता ह | यिद एक िन परष को व पहनाय जाय तो सार िव को व पहनान एव भोजन करवान क बराबर ह कय िक िन परष सचराचर िव म या ह | सबम व ही ह |rdquo

ॐhellip ॐ hellip ॐ hellip

ःवामी िशवानद जी

ौी राम-विश सवाद ौी विश जी कहत ह ldquoह रघकलभषण ौी राम अनथर ःवरप िजतन सासािरक पदाथर ह व सब जल म तरग क समान िविवध रप धारण करक चमतकार उतपनन करत ह अथारत ई छाए उतपनन करक जीव को मोह म फसात ह | परत जस सभी तरग जल ःवरप ही ह उसी कार सभी पदाथर वःततः न र ःवभाव वाल ह |

बालक की क पना स आकाश म य और िपशाच िदखन लगत ह परनत बि मान मनय क िलए उन य और िपशाच का कोई अथर नही | इसी कार अ ानी क िच म यह जगत सतय हो ऐसा लगता ह जबिक हमार जस ािनय क िलय यह जगत कछ भी नही | यह समम िव पतथर पर बनी हई पतिलय की सना की तरह रपालोक तथा अतर-बा िवषय स शनय ह | इसम सतयता कसी परनत अ ािनय को यह िव सतय लगता ह |rdquo विश जी बोल ldquoौी राम जगत को सतय ःवरप म जानना यह ाित ह मढ़ता ह | उस िमथया अथारत कि पत समझना यही उिचत समझ ह | ह राघव तव ा अहता आिद सब िवम-िवलास शात िशवःवरप श ःवरप ही ह | इसिलय मझ तो क अितिर और कछ भी नही िदखता | आकाश म जस जगल नही वस ही म जगत नही ह | ह राम ार ध वश ा कम स िजस परष की च ा कठपतली की तरह ई छाशनय और याकलतारिहत होती ह वह शानत मनवाला परष जीवनम मिन ह | ऐस जीवनम ानी को इस

जगत का जीवन बास की तरह बाहर-भीतर स शनय रसहीन और वासना-रिहत लगता ह | इस य पच म िजस रिच नही दय म िचनमाऽ अ य ही अ छा लगता ह ऐस परष न

भीतर तथा बाहर शािनत ा कर ली ह और इस भवसागर स पार हो गया ह | रघनदन श व ा कहत ह िक मन का ई छारिहत होना यही समािध ह कय िक ई छाओ का तयाग करन स मन को जसी शािनत िमलती ह ऐसी शािनत सकड़ उपदश स भी नही िमलती | ई छा की उतपि स जसा दःख ा होता ह ऐसा दःख तो नरक म भी नही | ई छाओ की शािनत

स जसा सख होता ह ऐसा सख ःवगर तो कया लोक म भी नही होता | अतः समःत शा तपःया यम और िनयम का िनचोड़ यही ह िक ई छामाऽ दःखदायी ह और ई छा का शमन मो ह | ाणी क दय म जसी-जसी और िजतनी-िजतनी ई छाय उतपनन होती ह उतना ही दख स वह

ड़रता रहता ह | िववक-िवचार ारा ई छाय जस-जस शानत होती जाती ह वस-वस दखरपी छत की बीमारी िमटती जाती ह |

आसि क कारण सासािरक िवषय की ई छाय य - य गहनीभत होती जाती ह तय -तय

दःख की िवषली तरग बढ़ती जाती ह | अपन परषाथर क बल स इस ई छारपी यािध का उपचार यिद नही िकया जाय तो इस यािध स छटन क िलय अनय कोई औषिध नही ह ऐसा म ढ़तापवरक

मानता ह | एक साथ सभी ई छाओ का स पणर तयाग ना हो सक तो थोड़ी-थोड़ी ई छाओ का धीर-धीर तयाग

करना चािहय परत रहना चािहय ई छा क तयाग म रत कय िक सनमागर का पिथक दखी नही होता | जो नराधम अपनी वासना और अहकार को ीण करन का य नही करता वह िदन -िदन अपन

को रावण की तरह अधर कऐ म ढ़कल रहा ह | ई छा ही दख की जनमदाऽी इस ससाररपी बल का बीज ह | यिद इस बीज को आतम ानरपी अि न स ठ क-ठ क जला िदया तो पनः यह अकिरत नही होता | रघकलभषण राम ई छामाऽ ससार ह और ई छाओ का अभाव ही िनवारण ह | अतः अनक कार की माथाप ची म ना पड़कर कवल ऐसा य करना चािहय िक ई छा उतपनन ना हो | अपनी बि स ई छा का िवनाश करन को जो ततपर नही ऐस अभाग को शा और गर का उपदश

भी कया करगा जस अपनी जनमभमी जगल म िहरणी की मतय िनि त ह उसी कार अनकिवध दख का िवःतार कारनवाल ई छारपी िवषय-िवकार स य इस जगत म मनय की मतय िनि त ह | यिद मानव ई छाओ क कारण ब च -सा मढ़ ना बन तो उस आतम ान क िलय अ प य ही करना पड़ | इसिलय सभी कार स ई छाओ को शानत करना चािहय | ई छा क शमन स परम पद की ाि होती ह | ई छारिहत हो जाना यही िनवारण ह और ई छाय

होना ही बधन ह | अतः यथाशि ई छा को जीतना चािहय | भला इतना करन म कया किठनाई ह जनम जरा यािध और मतयरपी कटीली झािड़य और खर क व - समह की जड़ भी ई छा ही ह

| अतः शमरपी अि न स अदर-ही-अदर बीज को जला ड़ालना चािहय| जहा ई छाओ का अभाव ह

वहा मि िनि त ह |

िववक वरा य आिद साधन स ई छा का सवरथा िवनाश करना चािहय | ई छा का सबध जहा-जहा ह वहा-वहा पाप प य दखरािशया और ल बी पीड़ाओ स य बधन को हािज़र ही समझो | परष

की आतिरक ई छा य - य शानत होती जाती ह तय -तय मो क िलय उसका क याणकारक

साधन बढ़ता जाता ह | िववकहीन ई छा को पोसना उस पणर करना यह तो ससाररपी िवष व को पानी स सीचन क समान ह |rdquo

- ौीयोगविश महारामायण

आतमबल का आवाहन कया आप अपन-आपको दबरल मानत हो लघतामथी म उलझ कर पिरिःतिथय स िपस रह हो

अपना जीवन दीन-हीन बना बठ हो hellipतो अपन भीतर सष आतमबल को जगाओ | शरीर चाह ी का हो चाह परष का कित क साा य म जो जीत ह व सब ी ह और कित क बनधन स पार अपन ःवरप की पहचान िजनह न कर ली ह अपन मन की गलामी की बिड़या तोड़कर िजनह न फ क दी ह व परष ह | ी या परष शरीर एव मानयताए होती ह | तम तो तन-मन स पार िनमरल आतमा हो | जागोhellipउठोhellipअपन भीतर सोय हय िन यबल को जगाओ | सवरदश सवरकाल म सव म

आतमबल को िवकिसत करो | आतमा म अथाह सामथयर ह | अपन को दीन-हीन मान बठ तो िव म ऐसी कोई स ा नही जो त ह ऊपर उठा सक | अपन आतमःवरप म िति त हो गय तो िऽलोकी म ऐसी कोई हःती नही जो त ह दबा सक | भौितक जगत म वाप की शि ईलकशोिनक शि िव त की शि गरतवाकषरण की शि बड़ी मानी जाती ह लिकन आतमबल उन सब शि य का सचालक बल ह | आतमबल क सािननधय म आकर पग ार ध को पर िमल जात ह दव की दीनता पलायन हो जाती ह ितकल पिरिःतिथया अनकल हो जाती ह | आतमबल सवर िरि -िसि य का िपता ह |

आतमबल कस जगाय हररोज़ तःकाल ज दी उठकर सय दय स पवर ःनानािद स िनवत हो जाओ | ःव छ पिवऽ ःथान

म आसन िबछाकर पवारिभमख होकर प ासन या सखासन म बठ जाओ | शानत और सनन वि

धारण करो | मन म ढ भावना करो िक म कित-िनिमरत इस शरीर क सब अभाव को पार करक सब

मिलनताओ-दबरलताओ स िप ड़ छड़ाकर आतमा की मिहमा म जागकर ही रहगा |

आख आधी खली आधी बद रखो | अब फ़फ़ड़ म खब ास भरो और भावना करो की ास क साथ

म सयर का िद य ओज भीतर भर रहा ह | ास को यथाशि अनदर िटकाय रखो | िफ़र lsquoॐhelliprsquo का ल बा उ चारण करत हए ास को धीर-धीर छोड़त जाओ | ास क खाली होन क बाद तरत ास ना लो | यथाशि िबना ास रहो और भीतर ही भीतर lsquoहिर ॐhelliprsquo lsquoहिर ॐhelliprsquo का मानिसक

जाप करो | िफ़र स फ़फ़ड़ म ास भरो | पव रीित स ास यथाशि अनदर िटकाकर बाद म धीर-धीर छोड़त हए lsquoॐhelliprsquo का गजन करो | दस-पिह िमनट ऐस ाणायाम सिहत उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo की धविन करक शानत हो जाओ | सब

यास छोड़ दो | वि य को आकाश की ओर फ़लन दो | आकाश क अनदर पथवी ह | पथवी पर अनक दश अनक समि एव अनक लोग ह | उनम स एक

आपका शरीर आसन पर बठा हआ ह | इस पर य को आप मानिसक आख स भावना स दखत

रहो | आप शरीर नही हो बि क अनक शरीर दश सागर पथवी मह न ऽ सयर चनि एव पर ा ड़ क

ा हो सा ी हो | इस सा ी भाव म जाग जाओ | थोड़ी दर क बाद िफ़र स ाणायाम सिहत lsquoॐhelliprsquo का जाप करो और शानत होकर अपन िवचार को दखत रहो | इस अवःथा म ढ़ िन य करो िक lsquoम जसा चहता ह वसा होकर रहगा |rsquo िवषयसख स ा धन-

दौलत इतयािद की इ छा न करो कय िक िन यबल या आतमबलरपी हाथी क पदिच म और सभी क पदिच समािव हो ही जायग | आतमानदरपी सयर क उदय होन क बाद िम टी क तल क दीय क ाकाश रपी शि सखाभास की गलामी कौन कर

िकसी भी भावना को साकार करन क िलय दय को करद ड़ाल ऐसी िन यातमक बिल वि होनी आवशयक ह | अनतःकरण क गहर-स-गहर दश म चोट कर ऐसा ाण भरक िन बल का आवाहन करो | सीना तानकर खड़ हो जाओ अपन मन की दीन-हीन दखद मानयताओ को कचल

ड़ालन क िलय | सदा ःमरण रह की इधर-उधर भटकती वि य क साथ त हारी शि भी िबखरती रहती ह | अतः वि य को बहकाओ नही | तमाम वि य को एकिऽत करक साधनाकाल म आतमिचनतन म लगाओ और यवहारकाल म जो कायर करत हो उसम लगाओ | द िच होकर हरक कायर करो | अपन ःवभाव म स आवश को सवरथा िनमरल कर दो | आवश म आकर कोई िनणरय मत लो कोई िबया मत करो | सदा शानत वि धारण करन का अ यास करो | िवचारशील एव सनन रहो | ःवय अचल रहकर सागर की तरह सब वि य की तरग को अपन

भीतर समालो | जीवमाऽ को अपना ःवरप समझो | सबस ःनह रखो | िदल को यापक रखो | सकिच ता का िनवारण करत रहो | ख ड़ातमक वि का सवरथा तयाग करो | िजनको ानी महापरष का सतसग और अधयातमिव ा का लाभ िमल जाता ह उसक जीवन स

दःख िवदा होन लगत ह | ॐ आननद आतमिन ा म जाग हए महापरष क सतसग एव सतसािहतय स जीवन को भि और वदात स प

एव पलिकत करो | कछ ही िदन क इस सघन योग क बाद अनभव होन लगगा िक भतकाल क

नकारतमक ःवभाव सशयातमक-हािनकारक क पनाओ न जीवन को कचल ड़ाला था िवषला कर िदया था | अब िन यबल क चमतकार का पता चला | अततरम म आिवरभत िद य खज़ाना अब

िमला | ार ध की बिड़या अब टटन लगी | ठ क ह न करोग ना िह मत पढ़कर रख मत दना इस पिःतका को | जीवन म इसको बार-बार पढ़त रहो | एक िदन म यह पणर ना होगा | बार-बार अ यास करो | त हार िलय यह एक ही पिःतका काफ़ी ह | अनय कचराप टी ना पड़ोग तो चलगा | शाबाश वीर शाबाश

  • परसतावना
  • जीवन रसायन
  • गर भकति एक अमोघ साधना
  • शरी राम-वशिषठ सवाद
  • आतमबल का आवाहन
  • आतमबल कस जगाय
Page 30: जीवन रसायन - HariOmGroup · ‘जीवन रसायन’ का यह िदय कटोरा आत्मरस के िपपासुओं हाथ

202) आपन अपन जीवन म हजार ःव न दख ह ग लिकन व आपक जीवन क अश नही बन जात | इसी कार य जामत जगत क आड बर आपकी आतमा क सम कोई मह व नही रखत | 203) एक आतमा को ही जानो अनय बात को छोड़ो | धीर साधक को चािहय िक वह

सावधान होकर आतमिन ा बढ़ाय अनक श द का िचनतन व भाषण न कर कय िक वह तो कवल

मन-वाणी को पिरौम दनवाला ह असली साधना नही ह | 204) जो परष जन-समह स ऐस डर जस साप स डरता ह स मान स ऐस डर जस नकर स

डरता ह ि य स ऐस डर जस मद स डरता ह उस परष को दवतागण ा ण मानत ह | 205) जस अपन शरीर क अग पर बोध नही आता वस शऽ िमऽ व अपनी दह म एक ही आतमा को दखनवाल िववकी परष को कदािप बोध नही आता | 206) मन तो शरीर को ई रापरण कर िदया ह | अब उसकी भख- यास स मझ कया

समिपरत वःत म आस होना महा पाप ह | 207) आप यिद िद य ि पाना चहत हो तो आपको इिनिय क ऽ का तयाग करना होगा | 208) लयकाल क मघ की गजरना हो समि उमड़ पड बारह सयर तपायमान हो जाय पहाड़ स पहाड़ टकरा कर भयानक आवाज हो तो भी ानी क िन य म त नही भासता कय िक

त ह ही नही | त तो अ ानी को भासता ह | 209) सतय को ःवीकार करन स शाित िमलगी | कछ लोग यो यता क आधार पर शाित

खरीदना चाहत ह | यो यता स शाित नही िमलगी यो यता क सदपयोग स शाित िमलगी | कछ

लोग स पि क आधार पर शाित सरि त रखना चाहत ह | स पि स शाित नही िमलगी स पि

क सदपयोग स शाित िमलगी वस ही िवपि क सदपयोग स शाित िमलगी | 210) त छ हािन-लाभ पर आपका धयान इतना कय रहता ह िजसस अनत आननदःवरप

आतमा पर स धयान हट जाता ह | 211) अपन अनदर ही आननद ा करना य िप किठन ह परनत बा िवषय स आननद

ा करना तो अस भव ही ह |

212) म ससार का काश ह | काश क रप म म ही सब वःतओ म या ह | िनतय इन

िवचार का िचनतन करत रहो | य पिवऽ िवचार आपको परम पिवऽ बना दग | 213) जो वःत कमर स ा होती ह उसक िलय ससार की सहायता तथा भिवय की आशा की आवयकता होती ह परनत जो वःत तयाग स ा होती ह उसक िलय न ससार की सहायता चािहय न भिवय की आशा | 214) आपको जब तक बाहर चोर िदखता ह तब तक जरर भीतर चोर ह | जब दसर लोग

स िभनन अयो य खराब सधारन यो य िदखत ह तब तक ओ सधार का बीड़ा उठान वाल त अपनी िचिकतसा कर | 215) सफल व ही होत ह जो सदव नतमःतक एव सननमख रहत ह | िचनतातर-शोकातर लोग की उननित नही हो सकती | तयक कायर को िह मत व शाित स करो | िफर दखो िक यह

कायर शरीर मन और बि स हआ | म उन सबको स ा दनवाला चतनयःवरप ह | ॐ ॐ का पावन गान करो | 216) िकसी भी पिरिःथित म मन को यिथत न होन दो | आतमा पर िव ास करक

आतमिन बन जाओ | िनभरयता आपकी दासी बन कर रहगी | 217) सतसग स मनय को साधना ा होती ह चाह वह शाित क रप म हो चाह मि क

रप म चाह सवा क रप म हो म क रप म हो चाह तयाग क रप म हो | 218) भला-बरा वही दखता ह िजसक अनदर भला-बरा ह | दसर क शरीर को वही दखता ह

जो खद को शरीर मानता ह | 219) खबरदार आपन यिद अपन शरीर क िलय ऐश-आराम की इ छा की िवलािसता एव इिनिय-सख म अपना समय बरबाद िकया तो आपकी खर नही | ठ क स कायर करत रहन की नीित

अपनाओ | सफलता का पहला िस ात ह कायरिवौामरिहत कायरसा ी भाव स कायर | इस

िस ात को जीवन म चिरताथर करोग तो पता चलगा िक छोटा होना िजतना सरल ह उतना ही बड़ा होना भी सहज ह | 220) भतकाल पर िखनन हए िबना भिवय की िचनता िकय िबना व रमान म कायर करो | यह भाव आपको हर अवःथा म सनन रखगा हम जो कछ ा ह उसका सदपयोग ही अिधक

काश पान का साधन ह |

221) जब आप सफलता की ओर पीठ कर लत हो पिरणाम की िचनता का तयाग कर दत

हो स मख आय हए क र य पर अपनी उ ोगशि एकाम करत हो तब सफलता आपक पीछ-पीछ

आ जाती ह | अतः सफलता आपको खोजगी | 222) वि तब तक एकाम नही होगी जब तक मन म कभी एक आशा रहगी तो कभी दसरी | शात वही हो सकता ह िजस कोई क र य या आवयकता घसीट न रही हो | अतः परम शाित पान

क िलय जीवन की आशा भी तयाग कर मन ाननद म डबो दो | आज स समझ लो िक यह शरीर ह ही नही | कवल ाननद का सागर लहरा रहा ह | 223) िजसकी पककी िन ा ह िक म आतमा हrsquo उसक िलय ऐसी कौन सी मिथ ह जो खल

न सक ऐसी कोई ताकत नही जो उसक िवर जा सक | 224) मर भा य म नही थाई र की मज आजकल सतसग ा नही होताजगत

खराब ह ऐस वचन हमारी कायरता व अनतःकरण की मिलनता क कारण िनकलत ह | अतः नकारातमक ःवभाव और दसर पर दोषारोपण करन की वि स बचो | 225) आप जब भीतरवाल स नाराज होत हो तब जगत आपस नाराज रहता ह | जब आप

भीतर अनतयारमी बन बठ तो जगतरपी पतलीघर म िफर गड़बड़ कसी 226) िजस ण हम ससार क सधारक बन खड़ होत ह उसी ण हम ससार को िबगाड़नवाल बन जात ह | श परमातमा को दखन क बजाय जगत को िबगड़ा हआ दखन की ि बनती ह | सधारक लोग मानत ह िक lsquoभगवान न जो जगत बनाया ह वह िबगड़ा हआ ह और हम उस सधार रह ह |rsquo वाह वाह धनयवाद सधारक अपन िदल को सधारो पहल | सवरऽ िनरजन का दीदार करो | तब आपकी उपिःथित माऽ स आपकी ि माऽ स अर यार आपको छकर बहती हवा माऽ स अननत जीव को शाित िमलगी और अननत सधार होगा | नानक कबीर महावीर ब और लीलाशाह बाप जस महापरष न यही कजी अपनायी थी | 227) वदानत म हमशा कमर का अथर होता ह वाःतिवक आतमा क साथ एक होकर च ा करना अिखल िव क साथ एकःवर हो जाना | उस अि तीय परम ततव क साथ िनःःवाथर सयोग ा करना ही एकमाऽ स चा कमर ह बाकी सब बोझ की गठिरया उठाना ह |

228) अपनी व रमान अवःथा चाह कसी भी हो उसको सव च मानन स ही आपक दय म आतम ान ान का अनायास उदय होन लगगा | आतम-सा ातकार को मील दर की कोई चीज समझकर उसक पीछ दौड़ना नही ह िचिनतत होना नही ह |

िचनता की गठरी उठाकर यिथत होन की जररत नही ह | िजस ण आप िनि नतता म गोता मारोग उसी ण आपका आतमःवरप गट हो जायगा | अर गट कया होगा आप ःवय आतमःवरप हो ही | अनातमा को छोड़ दो तो आतमःवरप तो हो ही | 229) सदा ॐकार का गान करो | जब भय व िचनता क िवचार आय तब िकसी मःत सत-फकीर महातमा क सािननधय का ःमरण करो | जब िननदा-शसा क सग आय तब महापरष क जीवन का अवलोकन करो | 230) िजनको आप भयानक घटनाए एव भयकर आघात समझ बठ हो वाःतव म व आपक ियतम आतमदव की ही करतत ह | समःत भयजनक तथा ाणनाशक घटनाओ क नाम-रप तो िवष क ह लिकन व बनी ह अमत स | 231) मन म यिद भय न हो तो बाहर चाह कसी भी भय की साममी उपिःथत हो जाय आपका कछ िबगाड़ नही सकती | मन म यिद भय होगा तो तरनत बाहर भी भयजनक पिरिःथया न होत हए भी उपिःथत हो जायगी | व क तन म भी भत िदखन लगगा | 232) िकसी भी पिरिःथित म िदखती हई कठोरता व भयानकता स भयभीत नही होना चािहए | क क काल बादल क पीछ पणर काशमय एकरस परम स ा सयर की तरह सदा िव मान ह | 233) आप अपन पर कदािप अिव ास मत करो | इस जगत म आप सब कछ कर सकत हो | अपन को कभी दबरल मत मानो | आपक अनदर तमाम शि या छपी हई ह | 234) यिद कोई मन य आपकी कोई चीज़ को चरा लता ह तो ड़रत कय हो वह मनय

और आप एक ह | िजस चीज़ को वह चराता ह वह चीज़ आपकी और उसकी द न की ह | 235) जो खद क िसवाय दसरा कछ दखता नही सनता नही जानता नही वह अननत ह |

जब तक खद क िसवाय और िकसी वःत का भान होता ह वह वःत स ची लगती ह तब तक आप

सीिमत व शात ह असीम और अनत नही |

236) ससार मझ कया आनद द सकता ह स पणर आनद मर भीतर स आया ह | म ही स पणर आननद ह स पणर मिहमा एव स पणर सख ह | 237) जीवन की समःत आवयकताए जीवन म उपिःथत ह परनत जीवन को जब हम

बा रग म रग दत ह तब जीवन का वाःतिवक रप हम नही जान पात | 238) िननदक की िननदा स म कय मरझाऊ शसक की शसा स म कय फल िननदा स म घटता नही और शसा स म बढ़ता नही | जसा ह वसा ही रहता ह | िफर िननदा-ःतित स

खटक कसी 239) ससार व ससार की समःयाओ म जो सबस अिधक फस हए ह उनही को वदानत की सबस अिधक आवयकता ह | बीमार को ही औषिध की यादा आवयकता ह | कय जी ठ क ह न 240) जगत क पाप व अतयाचार की बात मत करो लिकन अब भी आपको जगत म पाप

िदखता ह इसिलय रोओ | 241) हम यिद जान ल िक जगत म आतमा क िसवाय दसरा कछ ह ही नही और जो कछ

िदखता ह वह ःव नमाऽ ह तो इस जगत क दःख-दािरिय पाप-प य कछ भी हम अशात नही कर सकत | 242) िव ान दाशरिनक व आचाय की धमकी तथा अनमह आलोचना या अनमित

ानी पर कोई भाव नही ड़ाल सकती | 243) ह यि रप अननत आप अपन पर पर खड़ रहन का साहस करो समःत िव का बोझ आप िखलौन की तरह उठा लोग | 244) िसह की गजरना व नरिसह की ललकार तलवार की धार व साप की फफकार तपःवी की धमकी व नयायधीश की फटकारइन सबम आपका ही काश चमक रहा ह | आप इनस

भयभीत कय होत हो उलझन कय महसस करत हो मरी िब ली मझको याऊ वाली बात कय

होन दत हो 245) ससार हमारा िसफ़र िखलोना ही ह और कछ नही | अबोध बालक ही िखलौन स

भयभीत होता ह आसि करता ह िवचारशील यि नही |

246) जब तक अिव ा दर नही होगी तब तक चोरी जआ दार यिभचार कभी बद न

ह ग चाह लाख कोिशश करो | 247) आप हमशा अदर का धयान रखो | पहल हमारा भीतरी पतन होता ह | बा पतन तो इसका पिरणाम माऽ ह | 248) तयाग स हमशा आनद िमलता ह | जब तक आपक पास एक भी चीज़ बाकी ह तब

तक आप उस चीज़ क बधन म बध रहोग | आघात व तयाघात हमशा समान िवरोधी होत ह | 249) िनि तता ही आरो यता की सबस बड़ी दवाई ह | 250) सख अपन िसर पर दख का मकट पहन कर आता ह | जो सख को अपनायगा उस

दख को भी ःवीकार करना पड़गा | 251) म (आतमा) सबका ा ह | मरा ा कोई नही | 252) हजार म स कोई एक परष भीतर स शात िच वाला रहकर बाहर स ससारी जसा यवहार कर सकता ह | 253) सतय क िलए यिद शरीर का तयाग करना पड़ तो कर दना | यही आिखरी ममता ह जो हम तोड़नी होगी | 254) भय िचनता बचनी स ऊपर उठो | आपको ान का अनभव होगा | 255) आपको कोई भी हािन नही पहचा सकता | कवल आपक खयालात ही आपक पीछ पड़ ह | 256) म का अथर ह अपन पड़ोसी तथा सपकर म आनवाल क साथ अपनी वाःतिवक अभदता का अनभव करना | 257) ओ यार अपन खोय हए आतमा को एक बार खोज लो | धरती व आसमान क शासक आप ही हो | 258) सदव सम और सनन रहना ई र की सव पिर भि ह |

259) जब तक िच म ढ़ता न आ जाय िक शा की िविधय का पालन छोड़ दन स भी दय का यथाथर भि भाव न नही होगा तब तक शा की िविधय को पालत रहो |

गर भि एक अमोघ साधना 1 जनम मरण क िवषचब स म होन का कोई मागर नही ह कया सख-दःख हषर-शोक लाभ-

हािन मान-अपमान की थ पड़ स बचन का कोई उपाय नही ह कया

हअवय ह | ह िय आतमन नाशवान पदाथ स अपना मन वािपस लाकर सदगर क

चरणकमल म लगाओ | गरभि योग का आौय लो | गरसवा ऐसा अमोघ साधन ह िजसस

व रमान जीवन आननदमय बनता ह और शा त सख क ार खलत ह |

गर सवत त नर धनय यहा | ितनक नही दःख यहा न वहा || 2 स च सदगर की की हई भि िशय म सासािरक पदाथ क वरा य एव अनासि जगाती ह

परमातमा क ित म क पप महकाती ह | 3 तयक िशय सदगर की सवा करना चाहता ह लिकन अपन ढग स | सदगर चाह उस ढग स

सवा करन को कोई ततपर नही | जो िवरला साधक गर चाह उस ढ़ग स सवा कर सकता ह उस कोई कमी नही रहती |

िन सदगर की सवा स उनकी कपा ा होती ह और उस कपा स न िमल सक ऐसा तीन लोक म कछ भी नही ह | 4 गर िशय का स बनध पिवऽतम स बनध ह | ससार क तमाम बनधन स छड़ाकर वह मि क मागर पर ःथान कराता ह | यह स बनध जीवनपयरनत का स बनध ह | यह बात अपन दय की डायरी म सवणर-अ र स िलख लो | 5 उ ल सयर क काश क अिःततव को मान या न मान िफर भी सयर हमशा काशता ह | चचल मन का मनय मान या न मान लिकन सदगर की परमक याणकारी कपा सदव बरसती ही रहती ह | 6 सदगर की चरणरज म ःनान िकय िबना कवल किठन तप यार करन स या वद का

अधयन करन स वदानत का रहःय कट नही होता आतमानद का अमत नही िमलता | 7 दशरन शा क चाह िकतन मनथ पढ़ो हजार वष तक िहमालय की गफा म तप करो वष तक ाणायाम करो जीवनपयरनत शीषारसन करो समम िव म वास करक याखान दो िफर भी सदगर की कपा क िबना आतम ान नही होता | अतः िनरािभमानी सरल िनजाननद म मःत दयाल ःवभाव क आतम-सा ातकारी सदगर क चरण म जाओ | जीवन को धनय बनाओ | 8 सदगर की सवा िकय िबना शा का अधयन करना मम साधक क िलय समय बरबाद करन क बराबर ह | 9 िजसको सदगर ा हए ह ऐस िशय क िलय इस िव म कछ भी अा य नही ह | सदगर िशय को िमली हई परमातमा की अम य भट ह | अर नहीhellipनही व तो िशय क सम साकार रप म कट हए परमातमा ःवय ह | 10 सदगर क साथ एक ण िकया हआ सतसग लाख वष क तप स अननत गना ौ ह | आख क िनमषमाऽ म सदगर की अमतवष ि िशय क जनम-जनम क पाप को जला सकती ह | 11 सदगर जसा मपणर कपाल िहतिचनतक िव भर म दसरा कोई नही ह | 12 बाढ़ क समय याऽी यिद तफानी नदी को िबना नाव क पार कर सक तो साधक भी िबना सदगर क अपन जीवन क आिखरी लआय को िस कर सकता ह | यानी य दोन बात स भव ह |

अतः यार साधक मनमखी साधना की िज करना छोड़ दो | गरमखी साधना करन म ही सार ह | 13 सदगर क चरणकमल का आौय लन स िजस आननद का अनभव होता ह उसक आग िऽलोकी का साा य त छ ह | 14 आतम-सा ातकार क मागर म सबस महान शऽ अहभाव का नाश करन क िलए सदगर की आ ा का पालन अमोघ श ह | 15 रसोई सीखन क िलय कोई िसखानवाला चािहय िव ान और गिणत सीखन क िलय

अधयापक चािहय तो कया िव ा सदगर क िबना ही सीख लोग 16 सदगरकपा की स पि जसा दसरा कोई खजाना िव भर म नही | 17 सदगर की आ ा का उ लघन करना यह अपनी क खोदन क बराबर ह | 18 सदगर क कायर को शका की ि स दखना महापातक ह | 19 गरभि व गरसवा - य साधनारपी नौका की दो पतवार ह | उनकी मदद स िशय ससारसागर को पार कर सकता ह | 20 सदगर की कसौटी करना असभव ह | एक िववकाननद ही दसर िववकाननद को पहचान सकत ह | ब को जानन क िलय दसर ब की आवयकता रहती ह | एक रामतीथर का रहःय दसर रामतीथर ही पा सकत ह |

अतः सदगर की कसौटी करन की च ा छोड़कर उनको पिरपणर पर परमातमा मानो |

तभी जीवन म वाःतिवक लाभ होगा | 21 गरभि योग का आौय लकर आप अपनी खोई हई िद यता को पनः ा करो सख-दःख जनम-मतय आिद सब न स पार हो जाओ | 22 गरभि योग मान गर की सवा क ारा मन और िवकार पर िनयऽण एव पनः सःकरण | 23 िशय अपन गर क चरणकमल म णाम करता ह | उन पर ौ फल की वषार करक उनकी ःतित करता ह ldquoह परम प य पिवऽ गरदव मझ सव च सख ा हआ ह | म िन ा स जनम-मतय की पर परा स म हआ ह | म िनिवरक प समािध का श सख भोग रहा ह | जगत क िकसी भी कोन म म म ता स िवचरण कर सकता ह | सब पर मरी सम ि ह | मन ाकत मन का तयाग िकया ह | मन सब सक प एव रिच-अरिच का तयाग िकया ह | अब म अख ड शाित म िवौाित पा रहा ह hellip आननदमय हो रहा ह | म इस पणर अवःथा का वणरन नही कर पाता | ह प य गरदव म आवाक बन गया ह | इस दःतर भवसागर को पार करन म आपन

मझ सहायता की ह | अब तक मझ कवल अपन शरीर म ही स पणर िव ास था | मन िविभनन योिनय म अस य जनम िलय | ऐसी सव च िनभरय अवःथा मझ कौन स पिवऽ कम क कारण ा हई ह यह म नही जानता | सचमच यह एक दलरभ भा य ह |

यह एक महान उतक लाभ ह | अब म आननद स नाचता ह | मर सब दःख न हो गय | मर सब मनोरथ पणर हए ह |

मर कायर स पनन हए ह | मन सब वािछत वःतए ा की ह | मरी इ छा पिरपणर हई ह | आप मर स च माता-िपता हो | मरी व रमान िःथित म म दसर क सम िकस कार कट कर सक सवरऽ सख और आननद का अननत सागर मझ लहराता हआ िदख रहा ह | मर अतःच िजसस खल गय वह महावाकय lsquoत वमिसrsquo ह | उपिनषद एव वदानतसऽ को भी धनयवाद | िजनह न िन गर का एव उपिनषद क महावाकय का रप धारण िकया ह | ऐस ौी यासजी को णाम ौी शकराचायर को णाम सासािरक मनय क िसर पर गर क चरणामत का एक िबनद भी िगर तो भी उसक ःब दःख का नाश होता ह | यिद एक िन परष को व पहनाय जाय तो सार िव को व पहनान एव भोजन करवान क बराबर ह कय िक िन परष सचराचर िव म या ह | सबम व ही ह |rdquo

ॐhellip ॐ hellip ॐ hellip

ःवामी िशवानद जी

ौी राम-विश सवाद ौी विश जी कहत ह ldquoह रघकलभषण ौी राम अनथर ःवरप िजतन सासािरक पदाथर ह व सब जल म तरग क समान िविवध रप धारण करक चमतकार उतपनन करत ह अथारत ई छाए उतपनन करक जीव को मोह म फसात ह | परत जस सभी तरग जल ःवरप ही ह उसी कार सभी पदाथर वःततः न र ःवभाव वाल ह |

बालक की क पना स आकाश म य और िपशाच िदखन लगत ह परनत बि मान मनय क िलए उन य और िपशाच का कोई अथर नही | इसी कार अ ानी क िच म यह जगत सतय हो ऐसा लगता ह जबिक हमार जस ािनय क िलय यह जगत कछ भी नही | यह समम िव पतथर पर बनी हई पतिलय की सना की तरह रपालोक तथा अतर-बा िवषय स शनय ह | इसम सतयता कसी परनत अ ािनय को यह िव सतय लगता ह |rdquo विश जी बोल ldquoौी राम जगत को सतय ःवरप म जानना यह ाित ह मढ़ता ह | उस िमथया अथारत कि पत समझना यही उिचत समझ ह | ह राघव तव ा अहता आिद सब िवम-िवलास शात िशवःवरप श ःवरप ही ह | इसिलय मझ तो क अितिर और कछ भी नही िदखता | आकाश म जस जगल नही वस ही म जगत नही ह | ह राम ार ध वश ा कम स िजस परष की च ा कठपतली की तरह ई छाशनय और याकलतारिहत होती ह वह शानत मनवाला परष जीवनम मिन ह | ऐस जीवनम ानी को इस

जगत का जीवन बास की तरह बाहर-भीतर स शनय रसहीन और वासना-रिहत लगता ह | इस य पच म िजस रिच नही दय म िचनमाऽ अ य ही अ छा लगता ह ऐस परष न

भीतर तथा बाहर शािनत ा कर ली ह और इस भवसागर स पार हो गया ह | रघनदन श व ा कहत ह िक मन का ई छारिहत होना यही समािध ह कय िक ई छाओ का तयाग करन स मन को जसी शािनत िमलती ह ऐसी शािनत सकड़ उपदश स भी नही िमलती | ई छा की उतपि स जसा दःख ा होता ह ऐसा दःख तो नरक म भी नही | ई छाओ की शािनत

स जसा सख होता ह ऐसा सख ःवगर तो कया लोक म भी नही होता | अतः समःत शा तपःया यम और िनयम का िनचोड़ यही ह िक ई छामाऽ दःखदायी ह और ई छा का शमन मो ह | ाणी क दय म जसी-जसी और िजतनी-िजतनी ई छाय उतपनन होती ह उतना ही दख स वह

ड़रता रहता ह | िववक-िवचार ारा ई छाय जस-जस शानत होती जाती ह वस-वस दखरपी छत की बीमारी िमटती जाती ह |

आसि क कारण सासािरक िवषय की ई छाय य - य गहनीभत होती जाती ह तय -तय

दःख की िवषली तरग बढ़ती जाती ह | अपन परषाथर क बल स इस ई छारपी यािध का उपचार यिद नही िकया जाय तो इस यािध स छटन क िलय अनय कोई औषिध नही ह ऐसा म ढ़तापवरक

मानता ह | एक साथ सभी ई छाओ का स पणर तयाग ना हो सक तो थोड़ी-थोड़ी ई छाओ का धीर-धीर तयाग

करना चािहय परत रहना चािहय ई छा क तयाग म रत कय िक सनमागर का पिथक दखी नही होता | जो नराधम अपनी वासना और अहकार को ीण करन का य नही करता वह िदन -िदन अपन

को रावण की तरह अधर कऐ म ढ़कल रहा ह | ई छा ही दख की जनमदाऽी इस ससाररपी बल का बीज ह | यिद इस बीज को आतम ानरपी अि न स ठ क-ठ क जला िदया तो पनः यह अकिरत नही होता | रघकलभषण राम ई छामाऽ ससार ह और ई छाओ का अभाव ही िनवारण ह | अतः अनक कार की माथाप ची म ना पड़कर कवल ऐसा य करना चािहय िक ई छा उतपनन ना हो | अपनी बि स ई छा का िवनाश करन को जो ततपर नही ऐस अभाग को शा और गर का उपदश

भी कया करगा जस अपनी जनमभमी जगल म िहरणी की मतय िनि त ह उसी कार अनकिवध दख का िवःतार कारनवाल ई छारपी िवषय-िवकार स य इस जगत म मनय की मतय िनि त ह | यिद मानव ई छाओ क कारण ब च -सा मढ़ ना बन तो उस आतम ान क िलय अ प य ही करना पड़ | इसिलय सभी कार स ई छाओ को शानत करना चािहय | ई छा क शमन स परम पद की ाि होती ह | ई छारिहत हो जाना यही िनवारण ह और ई छाय

होना ही बधन ह | अतः यथाशि ई छा को जीतना चािहय | भला इतना करन म कया किठनाई ह जनम जरा यािध और मतयरपी कटीली झािड़य और खर क व - समह की जड़ भी ई छा ही ह

| अतः शमरपी अि न स अदर-ही-अदर बीज को जला ड़ालना चािहय| जहा ई छाओ का अभाव ह

वहा मि िनि त ह |

िववक वरा य आिद साधन स ई छा का सवरथा िवनाश करना चािहय | ई छा का सबध जहा-जहा ह वहा-वहा पाप प य दखरािशया और ल बी पीड़ाओ स य बधन को हािज़र ही समझो | परष

की आतिरक ई छा य - य शानत होती जाती ह तय -तय मो क िलय उसका क याणकारक

साधन बढ़ता जाता ह | िववकहीन ई छा को पोसना उस पणर करना यह तो ससाररपी िवष व को पानी स सीचन क समान ह |rdquo

- ौीयोगविश महारामायण

आतमबल का आवाहन कया आप अपन-आपको दबरल मानत हो लघतामथी म उलझ कर पिरिःतिथय स िपस रह हो

अपना जीवन दीन-हीन बना बठ हो hellipतो अपन भीतर सष आतमबल को जगाओ | शरीर चाह ी का हो चाह परष का कित क साा य म जो जीत ह व सब ी ह और कित क बनधन स पार अपन ःवरप की पहचान िजनह न कर ली ह अपन मन की गलामी की बिड़या तोड़कर िजनह न फ क दी ह व परष ह | ी या परष शरीर एव मानयताए होती ह | तम तो तन-मन स पार िनमरल आतमा हो | जागोhellipउठोhellipअपन भीतर सोय हय िन यबल को जगाओ | सवरदश सवरकाल म सव म

आतमबल को िवकिसत करो | आतमा म अथाह सामथयर ह | अपन को दीन-हीन मान बठ तो िव म ऐसी कोई स ा नही जो त ह ऊपर उठा सक | अपन आतमःवरप म िति त हो गय तो िऽलोकी म ऐसी कोई हःती नही जो त ह दबा सक | भौितक जगत म वाप की शि ईलकशोिनक शि िव त की शि गरतवाकषरण की शि बड़ी मानी जाती ह लिकन आतमबल उन सब शि य का सचालक बल ह | आतमबल क सािननधय म आकर पग ार ध को पर िमल जात ह दव की दीनता पलायन हो जाती ह ितकल पिरिःतिथया अनकल हो जाती ह | आतमबल सवर िरि -िसि य का िपता ह |

आतमबल कस जगाय हररोज़ तःकाल ज दी उठकर सय दय स पवर ःनानािद स िनवत हो जाओ | ःव छ पिवऽ ःथान

म आसन िबछाकर पवारिभमख होकर प ासन या सखासन म बठ जाओ | शानत और सनन वि

धारण करो | मन म ढ भावना करो िक म कित-िनिमरत इस शरीर क सब अभाव को पार करक सब

मिलनताओ-दबरलताओ स िप ड़ छड़ाकर आतमा की मिहमा म जागकर ही रहगा |

आख आधी खली आधी बद रखो | अब फ़फ़ड़ म खब ास भरो और भावना करो की ास क साथ

म सयर का िद य ओज भीतर भर रहा ह | ास को यथाशि अनदर िटकाय रखो | िफ़र lsquoॐhelliprsquo का ल बा उ चारण करत हए ास को धीर-धीर छोड़त जाओ | ास क खाली होन क बाद तरत ास ना लो | यथाशि िबना ास रहो और भीतर ही भीतर lsquoहिर ॐhelliprsquo lsquoहिर ॐhelliprsquo का मानिसक

जाप करो | िफ़र स फ़फ़ड़ म ास भरो | पव रीित स ास यथाशि अनदर िटकाकर बाद म धीर-धीर छोड़त हए lsquoॐhelliprsquo का गजन करो | दस-पिह िमनट ऐस ाणायाम सिहत उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo की धविन करक शानत हो जाओ | सब

यास छोड़ दो | वि य को आकाश की ओर फ़लन दो | आकाश क अनदर पथवी ह | पथवी पर अनक दश अनक समि एव अनक लोग ह | उनम स एक

आपका शरीर आसन पर बठा हआ ह | इस पर य को आप मानिसक आख स भावना स दखत

रहो | आप शरीर नही हो बि क अनक शरीर दश सागर पथवी मह न ऽ सयर चनि एव पर ा ड़ क

ा हो सा ी हो | इस सा ी भाव म जाग जाओ | थोड़ी दर क बाद िफ़र स ाणायाम सिहत lsquoॐhelliprsquo का जाप करो और शानत होकर अपन िवचार को दखत रहो | इस अवःथा म ढ़ िन य करो िक lsquoम जसा चहता ह वसा होकर रहगा |rsquo िवषयसख स ा धन-

दौलत इतयािद की इ छा न करो कय िक िन यबल या आतमबलरपी हाथी क पदिच म और सभी क पदिच समािव हो ही जायग | आतमानदरपी सयर क उदय होन क बाद िम टी क तल क दीय क ाकाश रपी शि सखाभास की गलामी कौन कर

िकसी भी भावना को साकार करन क िलय दय को करद ड़ाल ऐसी िन यातमक बिल वि होनी आवशयक ह | अनतःकरण क गहर-स-गहर दश म चोट कर ऐसा ाण भरक िन बल का आवाहन करो | सीना तानकर खड़ हो जाओ अपन मन की दीन-हीन दखद मानयताओ को कचल

ड़ालन क िलय | सदा ःमरण रह की इधर-उधर भटकती वि य क साथ त हारी शि भी िबखरती रहती ह | अतः वि य को बहकाओ नही | तमाम वि य को एकिऽत करक साधनाकाल म आतमिचनतन म लगाओ और यवहारकाल म जो कायर करत हो उसम लगाओ | द िच होकर हरक कायर करो | अपन ःवभाव म स आवश को सवरथा िनमरल कर दो | आवश म आकर कोई िनणरय मत लो कोई िबया मत करो | सदा शानत वि धारण करन का अ यास करो | िवचारशील एव सनन रहो | ःवय अचल रहकर सागर की तरह सब वि य की तरग को अपन

भीतर समालो | जीवमाऽ को अपना ःवरप समझो | सबस ःनह रखो | िदल को यापक रखो | सकिच ता का िनवारण करत रहो | ख ड़ातमक वि का सवरथा तयाग करो | िजनको ानी महापरष का सतसग और अधयातमिव ा का लाभ िमल जाता ह उसक जीवन स

दःख िवदा होन लगत ह | ॐ आननद आतमिन ा म जाग हए महापरष क सतसग एव सतसािहतय स जीवन को भि और वदात स प

एव पलिकत करो | कछ ही िदन क इस सघन योग क बाद अनभव होन लगगा िक भतकाल क

नकारतमक ःवभाव सशयातमक-हािनकारक क पनाओ न जीवन को कचल ड़ाला था िवषला कर िदया था | अब िन यबल क चमतकार का पता चला | अततरम म आिवरभत िद य खज़ाना अब

िमला | ार ध की बिड़या अब टटन लगी | ठ क ह न करोग ना िह मत पढ़कर रख मत दना इस पिःतका को | जीवन म इसको बार-बार पढ़त रहो | एक िदन म यह पणर ना होगा | बार-बार अ यास करो | त हार िलय यह एक ही पिःतका काफ़ी ह | अनय कचराप टी ना पड़ोग तो चलगा | शाबाश वीर शाबाश

  • परसतावना
  • जीवन रसायन
  • गर भकति एक अमोघ साधना
  • शरी राम-वशिषठ सवाद
  • आतमबल का आवाहन
  • आतमबल कस जगाय
Page 31: जीवन रसायन - HariOmGroup · ‘जीवन रसायन’ का यह िदय कटोरा आत्मरस के िपपासुओं हाथ

212) म ससार का काश ह | काश क रप म म ही सब वःतओ म या ह | िनतय इन

िवचार का िचनतन करत रहो | य पिवऽ िवचार आपको परम पिवऽ बना दग | 213) जो वःत कमर स ा होती ह उसक िलय ससार की सहायता तथा भिवय की आशा की आवयकता होती ह परनत जो वःत तयाग स ा होती ह उसक िलय न ससार की सहायता चािहय न भिवय की आशा | 214) आपको जब तक बाहर चोर िदखता ह तब तक जरर भीतर चोर ह | जब दसर लोग

स िभनन अयो य खराब सधारन यो य िदखत ह तब तक ओ सधार का बीड़ा उठान वाल त अपनी िचिकतसा कर | 215) सफल व ही होत ह जो सदव नतमःतक एव सननमख रहत ह | िचनतातर-शोकातर लोग की उननित नही हो सकती | तयक कायर को िह मत व शाित स करो | िफर दखो िक यह

कायर शरीर मन और बि स हआ | म उन सबको स ा दनवाला चतनयःवरप ह | ॐ ॐ का पावन गान करो | 216) िकसी भी पिरिःथित म मन को यिथत न होन दो | आतमा पर िव ास करक

आतमिन बन जाओ | िनभरयता आपकी दासी बन कर रहगी | 217) सतसग स मनय को साधना ा होती ह चाह वह शाित क रप म हो चाह मि क

रप म चाह सवा क रप म हो म क रप म हो चाह तयाग क रप म हो | 218) भला-बरा वही दखता ह िजसक अनदर भला-बरा ह | दसर क शरीर को वही दखता ह

जो खद को शरीर मानता ह | 219) खबरदार आपन यिद अपन शरीर क िलय ऐश-आराम की इ छा की िवलािसता एव इिनिय-सख म अपना समय बरबाद िकया तो आपकी खर नही | ठ क स कायर करत रहन की नीित

अपनाओ | सफलता का पहला िस ात ह कायरिवौामरिहत कायरसा ी भाव स कायर | इस

िस ात को जीवन म चिरताथर करोग तो पता चलगा िक छोटा होना िजतना सरल ह उतना ही बड़ा होना भी सहज ह | 220) भतकाल पर िखनन हए िबना भिवय की िचनता िकय िबना व रमान म कायर करो | यह भाव आपको हर अवःथा म सनन रखगा हम जो कछ ा ह उसका सदपयोग ही अिधक

काश पान का साधन ह |

221) जब आप सफलता की ओर पीठ कर लत हो पिरणाम की िचनता का तयाग कर दत

हो स मख आय हए क र य पर अपनी उ ोगशि एकाम करत हो तब सफलता आपक पीछ-पीछ

आ जाती ह | अतः सफलता आपको खोजगी | 222) वि तब तक एकाम नही होगी जब तक मन म कभी एक आशा रहगी तो कभी दसरी | शात वही हो सकता ह िजस कोई क र य या आवयकता घसीट न रही हो | अतः परम शाित पान

क िलय जीवन की आशा भी तयाग कर मन ाननद म डबो दो | आज स समझ लो िक यह शरीर ह ही नही | कवल ाननद का सागर लहरा रहा ह | 223) िजसकी पककी िन ा ह िक म आतमा हrsquo उसक िलय ऐसी कौन सी मिथ ह जो खल

न सक ऐसी कोई ताकत नही जो उसक िवर जा सक | 224) मर भा य म नही थाई र की मज आजकल सतसग ा नही होताजगत

खराब ह ऐस वचन हमारी कायरता व अनतःकरण की मिलनता क कारण िनकलत ह | अतः नकारातमक ःवभाव और दसर पर दोषारोपण करन की वि स बचो | 225) आप जब भीतरवाल स नाराज होत हो तब जगत आपस नाराज रहता ह | जब आप

भीतर अनतयारमी बन बठ तो जगतरपी पतलीघर म िफर गड़बड़ कसी 226) िजस ण हम ससार क सधारक बन खड़ होत ह उसी ण हम ससार को िबगाड़नवाल बन जात ह | श परमातमा को दखन क बजाय जगत को िबगड़ा हआ दखन की ि बनती ह | सधारक लोग मानत ह िक lsquoभगवान न जो जगत बनाया ह वह िबगड़ा हआ ह और हम उस सधार रह ह |rsquo वाह वाह धनयवाद सधारक अपन िदल को सधारो पहल | सवरऽ िनरजन का दीदार करो | तब आपकी उपिःथित माऽ स आपकी ि माऽ स अर यार आपको छकर बहती हवा माऽ स अननत जीव को शाित िमलगी और अननत सधार होगा | नानक कबीर महावीर ब और लीलाशाह बाप जस महापरष न यही कजी अपनायी थी | 227) वदानत म हमशा कमर का अथर होता ह वाःतिवक आतमा क साथ एक होकर च ा करना अिखल िव क साथ एकःवर हो जाना | उस अि तीय परम ततव क साथ िनःःवाथर सयोग ा करना ही एकमाऽ स चा कमर ह बाकी सब बोझ की गठिरया उठाना ह |

228) अपनी व रमान अवःथा चाह कसी भी हो उसको सव च मानन स ही आपक दय म आतम ान ान का अनायास उदय होन लगगा | आतम-सा ातकार को मील दर की कोई चीज समझकर उसक पीछ दौड़ना नही ह िचिनतत होना नही ह |

िचनता की गठरी उठाकर यिथत होन की जररत नही ह | िजस ण आप िनि नतता म गोता मारोग उसी ण आपका आतमःवरप गट हो जायगा | अर गट कया होगा आप ःवय आतमःवरप हो ही | अनातमा को छोड़ दो तो आतमःवरप तो हो ही | 229) सदा ॐकार का गान करो | जब भय व िचनता क िवचार आय तब िकसी मःत सत-फकीर महातमा क सािननधय का ःमरण करो | जब िननदा-शसा क सग आय तब महापरष क जीवन का अवलोकन करो | 230) िजनको आप भयानक घटनाए एव भयकर आघात समझ बठ हो वाःतव म व आपक ियतम आतमदव की ही करतत ह | समःत भयजनक तथा ाणनाशक घटनाओ क नाम-रप तो िवष क ह लिकन व बनी ह अमत स | 231) मन म यिद भय न हो तो बाहर चाह कसी भी भय की साममी उपिःथत हो जाय आपका कछ िबगाड़ नही सकती | मन म यिद भय होगा तो तरनत बाहर भी भयजनक पिरिःथया न होत हए भी उपिःथत हो जायगी | व क तन म भी भत िदखन लगगा | 232) िकसी भी पिरिःथित म िदखती हई कठोरता व भयानकता स भयभीत नही होना चािहए | क क काल बादल क पीछ पणर काशमय एकरस परम स ा सयर की तरह सदा िव मान ह | 233) आप अपन पर कदािप अिव ास मत करो | इस जगत म आप सब कछ कर सकत हो | अपन को कभी दबरल मत मानो | आपक अनदर तमाम शि या छपी हई ह | 234) यिद कोई मन य आपकी कोई चीज़ को चरा लता ह तो ड़रत कय हो वह मनय

और आप एक ह | िजस चीज़ को वह चराता ह वह चीज़ आपकी और उसकी द न की ह | 235) जो खद क िसवाय दसरा कछ दखता नही सनता नही जानता नही वह अननत ह |

जब तक खद क िसवाय और िकसी वःत का भान होता ह वह वःत स ची लगती ह तब तक आप

सीिमत व शात ह असीम और अनत नही |

236) ससार मझ कया आनद द सकता ह स पणर आनद मर भीतर स आया ह | म ही स पणर आननद ह स पणर मिहमा एव स पणर सख ह | 237) जीवन की समःत आवयकताए जीवन म उपिःथत ह परनत जीवन को जब हम

बा रग म रग दत ह तब जीवन का वाःतिवक रप हम नही जान पात | 238) िननदक की िननदा स म कय मरझाऊ शसक की शसा स म कय फल िननदा स म घटता नही और शसा स म बढ़ता नही | जसा ह वसा ही रहता ह | िफर िननदा-ःतित स

खटक कसी 239) ससार व ससार की समःयाओ म जो सबस अिधक फस हए ह उनही को वदानत की सबस अिधक आवयकता ह | बीमार को ही औषिध की यादा आवयकता ह | कय जी ठ क ह न 240) जगत क पाप व अतयाचार की बात मत करो लिकन अब भी आपको जगत म पाप

िदखता ह इसिलय रोओ | 241) हम यिद जान ल िक जगत म आतमा क िसवाय दसरा कछ ह ही नही और जो कछ

िदखता ह वह ःव नमाऽ ह तो इस जगत क दःख-दािरिय पाप-प य कछ भी हम अशात नही कर सकत | 242) िव ान दाशरिनक व आचाय की धमकी तथा अनमह आलोचना या अनमित

ानी पर कोई भाव नही ड़ाल सकती | 243) ह यि रप अननत आप अपन पर पर खड़ रहन का साहस करो समःत िव का बोझ आप िखलौन की तरह उठा लोग | 244) िसह की गजरना व नरिसह की ललकार तलवार की धार व साप की फफकार तपःवी की धमकी व नयायधीश की फटकारइन सबम आपका ही काश चमक रहा ह | आप इनस

भयभीत कय होत हो उलझन कय महसस करत हो मरी िब ली मझको याऊ वाली बात कय

होन दत हो 245) ससार हमारा िसफ़र िखलोना ही ह और कछ नही | अबोध बालक ही िखलौन स

भयभीत होता ह आसि करता ह िवचारशील यि नही |

246) जब तक अिव ा दर नही होगी तब तक चोरी जआ दार यिभचार कभी बद न

ह ग चाह लाख कोिशश करो | 247) आप हमशा अदर का धयान रखो | पहल हमारा भीतरी पतन होता ह | बा पतन तो इसका पिरणाम माऽ ह | 248) तयाग स हमशा आनद िमलता ह | जब तक आपक पास एक भी चीज़ बाकी ह तब

तक आप उस चीज़ क बधन म बध रहोग | आघात व तयाघात हमशा समान िवरोधी होत ह | 249) िनि तता ही आरो यता की सबस बड़ी दवाई ह | 250) सख अपन िसर पर दख का मकट पहन कर आता ह | जो सख को अपनायगा उस

दख को भी ःवीकार करना पड़गा | 251) म (आतमा) सबका ा ह | मरा ा कोई नही | 252) हजार म स कोई एक परष भीतर स शात िच वाला रहकर बाहर स ससारी जसा यवहार कर सकता ह | 253) सतय क िलए यिद शरीर का तयाग करना पड़ तो कर दना | यही आिखरी ममता ह जो हम तोड़नी होगी | 254) भय िचनता बचनी स ऊपर उठो | आपको ान का अनभव होगा | 255) आपको कोई भी हािन नही पहचा सकता | कवल आपक खयालात ही आपक पीछ पड़ ह | 256) म का अथर ह अपन पड़ोसी तथा सपकर म आनवाल क साथ अपनी वाःतिवक अभदता का अनभव करना | 257) ओ यार अपन खोय हए आतमा को एक बार खोज लो | धरती व आसमान क शासक आप ही हो | 258) सदव सम और सनन रहना ई र की सव पिर भि ह |

259) जब तक िच म ढ़ता न आ जाय िक शा की िविधय का पालन छोड़ दन स भी दय का यथाथर भि भाव न नही होगा तब तक शा की िविधय को पालत रहो |

गर भि एक अमोघ साधना 1 जनम मरण क िवषचब स म होन का कोई मागर नही ह कया सख-दःख हषर-शोक लाभ-

हािन मान-अपमान की थ पड़ स बचन का कोई उपाय नही ह कया

हअवय ह | ह िय आतमन नाशवान पदाथ स अपना मन वािपस लाकर सदगर क

चरणकमल म लगाओ | गरभि योग का आौय लो | गरसवा ऐसा अमोघ साधन ह िजसस

व रमान जीवन आननदमय बनता ह और शा त सख क ार खलत ह |

गर सवत त नर धनय यहा | ितनक नही दःख यहा न वहा || 2 स च सदगर की की हई भि िशय म सासािरक पदाथ क वरा य एव अनासि जगाती ह

परमातमा क ित म क पप महकाती ह | 3 तयक िशय सदगर की सवा करना चाहता ह लिकन अपन ढग स | सदगर चाह उस ढग स

सवा करन को कोई ततपर नही | जो िवरला साधक गर चाह उस ढ़ग स सवा कर सकता ह उस कोई कमी नही रहती |

िन सदगर की सवा स उनकी कपा ा होती ह और उस कपा स न िमल सक ऐसा तीन लोक म कछ भी नही ह | 4 गर िशय का स बनध पिवऽतम स बनध ह | ससार क तमाम बनधन स छड़ाकर वह मि क मागर पर ःथान कराता ह | यह स बनध जीवनपयरनत का स बनध ह | यह बात अपन दय की डायरी म सवणर-अ र स िलख लो | 5 उ ल सयर क काश क अिःततव को मान या न मान िफर भी सयर हमशा काशता ह | चचल मन का मनय मान या न मान लिकन सदगर की परमक याणकारी कपा सदव बरसती ही रहती ह | 6 सदगर की चरणरज म ःनान िकय िबना कवल किठन तप यार करन स या वद का

अधयन करन स वदानत का रहःय कट नही होता आतमानद का अमत नही िमलता | 7 दशरन शा क चाह िकतन मनथ पढ़ो हजार वष तक िहमालय की गफा म तप करो वष तक ाणायाम करो जीवनपयरनत शीषारसन करो समम िव म वास करक याखान दो िफर भी सदगर की कपा क िबना आतम ान नही होता | अतः िनरािभमानी सरल िनजाननद म मःत दयाल ःवभाव क आतम-सा ातकारी सदगर क चरण म जाओ | जीवन को धनय बनाओ | 8 सदगर की सवा िकय िबना शा का अधयन करना मम साधक क िलय समय बरबाद करन क बराबर ह | 9 िजसको सदगर ा हए ह ऐस िशय क िलय इस िव म कछ भी अा य नही ह | सदगर िशय को िमली हई परमातमा की अम य भट ह | अर नहीhellipनही व तो िशय क सम साकार रप म कट हए परमातमा ःवय ह | 10 सदगर क साथ एक ण िकया हआ सतसग लाख वष क तप स अननत गना ौ ह | आख क िनमषमाऽ म सदगर की अमतवष ि िशय क जनम-जनम क पाप को जला सकती ह | 11 सदगर जसा मपणर कपाल िहतिचनतक िव भर म दसरा कोई नही ह | 12 बाढ़ क समय याऽी यिद तफानी नदी को िबना नाव क पार कर सक तो साधक भी िबना सदगर क अपन जीवन क आिखरी लआय को िस कर सकता ह | यानी य दोन बात स भव ह |

अतः यार साधक मनमखी साधना की िज करना छोड़ दो | गरमखी साधना करन म ही सार ह | 13 सदगर क चरणकमल का आौय लन स िजस आननद का अनभव होता ह उसक आग िऽलोकी का साा य त छ ह | 14 आतम-सा ातकार क मागर म सबस महान शऽ अहभाव का नाश करन क िलए सदगर की आ ा का पालन अमोघ श ह | 15 रसोई सीखन क िलय कोई िसखानवाला चािहय िव ान और गिणत सीखन क िलय

अधयापक चािहय तो कया िव ा सदगर क िबना ही सीख लोग 16 सदगरकपा की स पि जसा दसरा कोई खजाना िव भर म नही | 17 सदगर की आ ा का उ लघन करना यह अपनी क खोदन क बराबर ह | 18 सदगर क कायर को शका की ि स दखना महापातक ह | 19 गरभि व गरसवा - य साधनारपी नौका की दो पतवार ह | उनकी मदद स िशय ससारसागर को पार कर सकता ह | 20 सदगर की कसौटी करना असभव ह | एक िववकाननद ही दसर िववकाननद को पहचान सकत ह | ब को जानन क िलय दसर ब की आवयकता रहती ह | एक रामतीथर का रहःय दसर रामतीथर ही पा सकत ह |

अतः सदगर की कसौटी करन की च ा छोड़कर उनको पिरपणर पर परमातमा मानो |

तभी जीवन म वाःतिवक लाभ होगा | 21 गरभि योग का आौय लकर आप अपनी खोई हई िद यता को पनः ा करो सख-दःख जनम-मतय आिद सब न स पार हो जाओ | 22 गरभि योग मान गर की सवा क ारा मन और िवकार पर िनयऽण एव पनः सःकरण | 23 िशय अपन गर क चरणकमल म णाम करता ह | उन पर ौ फल की वषार करक उनकी ःतित करता ह ldquoह परम प य पिवऽ गरदव मझ सव च सख ा हआ ह | म िन ा स जनम-मतय की पर परा स म हआ ह | म िनिवरक प समािध का श सख भोग रहा ह | जगत क िकसी भी कोन म म म ता स िवचरण कर सकता ह | सब पर मरी सम ि ह | मन ाकत मन का तयाग िकया ह | मन सब सक प एव रिच-अरिच का तयाग िकया ह | अब म अख ड शाित म िवौाित पा रहा ह hellip आननदमय हो रहा ह | म इस पणर अवःथा का वणरन नही कर पाता | ह प य गरदव म आवाक बन गया ह | इस दःतर भवसागर को पार करन म आपन

मझ सहायता की ह | अब तक मझ कवल अपन शरीर म ही स पणर िव ास था | मन िविभनन योिनय म अस य जनम िलय | ऐसी सव च िनभरय अवःथा मझ कौन स पिवऽ कम क कारण ा हई ह यह म नही जानता | सचमच यह एक दलरभ भा य ह |

यह एक महान उतक लाभ ह | अब म आननद स नाचता ह | मर सब दःख न हो गय | मर सब मनोरथ पणर हए ह |

मर कायर स पनन हए ह | मन सब वािछत वःतए ा की ह | मरी इ छा पिरपणर हई ह | आप मर स च माता-िपता हो | मरी व रमान िःथित म म दसर क सम िकस कार कट कर सक सवरऽ सख और आननद का अननत सागर मझ लहराता हआ िदख रहा ह | मर अतःच िजसस खल गय वह महावाकय lsquoत वमिसrsquo ह | उपिनषद एव वदानतसऽ को भी धनयवाद | िजनह न िन गर का एव उपिनषद क महावाकय का रप धारण िकया ह | ऐस ौी यासजी को णाम ौी शकराचायर को णाम सासािरक मनय क िसर पर गर क चरणामत का एक िबनद भी िगर तो भी उसक ःब दःख का नाश होता ह | यिद एक िन परष को व पहनाय जाय तो सार िव को व पहनान एव भोजन करवान क बराबर ह कय िक िन परष सचराचर िव म या ह | सबम व ही ह |rdquo

ॐhellip ॐ hellip ॐ hellip

ःवामी िशवानद जी

ौी राम-विश सवाद ौी विश जी कहत ह ldquoह रघकलभषण ौी राम अनथर ःवरप िजतन सासािरक पदाथर ह व सब जल म तरग क समान िविवध रप धारण करक चमतकार उतपनन करत ह अथारत ई छाए उतपनन करक जीव को मोह म फसात ह | परत जस सभी तरग जल ःवरप ही ह उसी कार सभी पदाथर वःततः न र ःवभाव वाल ह |

बालक की क पना स आकाश म य और िपशाच िदखन लगत ह परनत बि मान मनय क िलए उन य और िपशाच का कोई अथर नही | इसी कार अ ानी क िच म यह जगत सतय हो ऐसा लगता ह जबिक हमार जस ािनय क िलय यह जगत कछ भी नही | यह समम िव पतथर पर बनी हई पतिलय की सना की तरह रपालोक तथा अतर-बा िवषय स शनय ह | इसम सतयता कसी परनत अ ािनय को यह िव सतय लगता ह |rdquo विश जी बोल ldquoौी राम जगत को सतय ःवरप म जानना यह ाित ह मढ़ता ह | उस िमथया अथारत कि पत समझना यही उिचत समझ ह | ह राघव तव ा अहता आिद सब िवम-िवलास शात िशवःवरप श ःवरप ही ह | इसिलय मझ तो क अितिर और कछ भी नही िदखता | आकाश म जस जगल नही वस ही म जगत नही ह | ह राम ार ध वश ा कम स िजस परष की च ा कठपतली की तरह ई छाशनय और याकलतारिहत होती ह वह शानत मनवाला परष जीवनम मिन ह | ऐस जीवनम ानी को इस

जगत का जीवन बास की तरह बाहर-भीतर स शनय रसहीन और वासना-रिहत लगता ह | इस य पच म िजस रिच नही दय म िचनमाऽ अ य ही अ छा लगता ह ऐस परष न

भीतर तथा बाहर शािनत ा कर ली ह और इस भवसागर स पार हो गया ह | रघनदन श व ा कहत ह िक मन का ई छारिहत होना यही समािध ह कय िक ई छाओ का तयाग करन स मन को जसी शािनत िमलती ह ऐसी शािनत सकड़ उपदश स भी नही िमलती | ई छा की उतपि स जसा दःख ा होता ह ऐसा दःख तो नरक म भी नही | ई छाओ की शािनत

स जसा सख होता ह ऐसा सख ःवगर तो कया लोक म भी नही होता | अतः समःत शा तपःया यम और िनयम का िनचोड़ यही ह िक ई छामाऽ दःखदायी ह और ई छा का शमन मो ह | ाणी क दय म जसी-जसी और िजतनी-िजतनी ई छाय उतपनन होती ह उतना ही दख स वह

ड़रता रहता ह | िववक-िवचार ारा ई छाय जस-जस शानत होती जाती ह वस-वस दखरपी छत की बीमारी िमटती जाती ह |

आसि क कारण सासािरक िवषय की ई छाय य - य गहनीभत होती जाती ह तय -तय

दःख की िवषली तरग बढ़ती जाती ह | अपन परषाथर क बल स इस ई छारपी यािध का उपचार यिद नही िकया जाय तो इस यािध स छटन क िलय अनय कोई औषिध नही ह ऐसा म ढ़तापवरक

मानता ह | एक साथ सभी ई छाओ का स पणर तयाग ना हो सक तो थोड़ी-थोड़ी ई छाओ का धीर-धीर तयाग

करना चािहय परत रहना चािहय ई छा क तयाग म रत कय िक सनमागर का पिथक दखी नही होता | जो नराधम अपनी वासना और अहकार को ीण करन का य नही करता वह िदन -िदन अपन

को रावण की तरह अधर कऐ म ढ़कल रहा ह | ई छा ही दख की जनमदाऽी इस ससाररपी बल का बीज ह | यिद इस बीज को आतम ानरपी अि न स ठ क-ठ क जला िदया तो पनः यह अकिरत नही होता | रघकलभषण राम ई छामाऽ ससार ह और ई छाओ का अभाव ही िनवारण ह | अतः अनक कार की माथाप ची म ना पड़कर कवल ऐसा य करना चािहय िक ई छा उतपनन ना हो | अपनी बि स ई छा का िवनाश करन को जो ततपर नही ऐस अभाग को शा और गर का उपदश

भी कया करगा जस अपनी जनमभमी जगल म िहरणी की मतय िनि त ह उसी कार अनकिवध दख का िवःतार कारनवाल ई छारपी िवषय-िवकार स य इस जगत म मनय की मतय िनि त ह | यिद मानव ई छाओ क कारण ब च -सा मढ़ ना बन तो उस आतम ान क िलय अ प य ही करना पड़ | इसिलय सभी कार स ई छाओ को शानत करना चािहय | ई छा क शमन स परम पद की ाि होती ह | ई छारिहत हो जाना यही िनवारण ह और ई छाय

होना ही बधन ह | अतः यथाशि ई छा को जीतना चािहय | भला इतना करन म कया किठनाई ह जनम जरा यािध और मतयरपी कटीली झािड़य और खर क व - समह की जड़ भी ई छा ही ह

| अतः शमरपी अि न स अदर-ही-अदर बीज को जला ड़ालना चािहय| जहा ई छाओ का अभाव ह

वहा मि िनि त ह |

िववक वरा य आिद साधन स ई छा का सवरथा िवनाश करना चािहय | ई छा का सबध जहा-जहा ह वहा-वहा पाप प य दखरािशया और ल बी पीड़ाओ स य बधन को हािज़र ही समझो | परष

की आतिरक ई छा य - य शानत होती जाती ह तय -तय मो क िलय उसका क याणकारक

साधन बढ़ता जाता ह | िववकहीन ई छा को पोसना उस पणर करना यह तो ससाररपी िवष व को पानी स सीचन क समान ह |rdquo

- ौीयोगविश महारामायण

आतमबल का आवाहन कया आप अपन-आपको दबरल मानत हो लघतामथी म उलझ कर पिरिःतिथय स िपस रह हो

अपना जीवन दीन-हीन बना बठ हो hellipतो अपन भीतर सष आतमबल को जगाओ | शरीर चाह ी का हो चाह परष का कित क साा य म जो जीत ह व सब ी ह और कित क बनधन स पार अपन ःवरप की पहचान िजनह न कर ली ह अपन मन की गलामी की बिड़या तोड़कर िजनह न फ क दी ह व परष ह | ी या परष शरीर एव मानयताए होती ह | तम तो तन-मन स पार िनमरल आतमा हो | जागोhellipउठोhellipअपन भीतर सोय हय िन यबल को जगाओ | सवरदश सवरकाल म सव म

आतमबल को िवकिसत करो | आतमा म अथाह सामथयर ह | अपन को दीन-हीन मान बठ तो िव म ऐसी कोई स ा नही जो त ह ऊपर उठा सक | अपन आतमःवरप म िति त हो गय तो िऽलोकी म ऐसी कोई हःती नही जो त ह दबा सक | भौितक जगत म वाप की शि ईलकशोिनक शि िव त की शि गरतवाकषरण की शि बड़ी मानी जाती ह लिकन आतमबल उन सब शि य का सचालक बल ह | आतमबल क सािननधय म आकर पग ार ध को पर िमल जात ह दव की दीनता पलायन हो जाती ह ितकल पिरिःतिथया अनकल हो जाती ह | आतमबल सवर िरि -िसि य का िपता ह |

आतमबल कस जगाय हररोज़ तःकाल ज दी उठकर सय दय स पवर ःनानािद स िनवत हो जाओ | ःव छ पिवऽ ःथान

म आसन िबछाकर पवारिभमख होकर प ासन या सखासन म बठ जाओ | शानत और सनन वि

धारण करो | मन म ढ भावना करो िक म कित-िनिमरत इस शरीर क सब अभाव को पार करक सब

मिलनताओ-दबरलताओ स िप ड़ छड़ाकर आतमा की मिहमा म जागकर ही रहगा |

आख आधी खली आधी बद रखो | अब फ़फ़ड़ म खब ास भरो और भावना करो की ास क साथ

म सयर का िद य ओज भीतर भर रहा ह | ास को यथाशि अनदर िटकाय रखो | िफ़र lsquoॐhelliprsquo का ल बा उ चारण करत हए ास को धीर-धीर छोड़त जाओ | ास क खाली होन क बाद तरत ास ना लो | यथाशि िबना ास रहो और भीतर ही भीतर lsquoहिर ॐhelliprsquo lsquoहिर ॐhelliprsquo का मानिसक

जाप करो | िफ़र स फ़फ़ड़ म ास भरो | पव रीित स ास यथाशि अनदर िटकाकर बाद म धीर-धीर छोड़त हए lsquoॐhelliprsquo का गजन करो | दस-पिह िमनट ऐस ाणायाम सिहत उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo की धविन करक शानत हो जाओ | सब

यास छोड़ दो | वि य को आकाश की ओर फ़लन दो | आकाश क अनदर पथवी ह | पथवी पर अनक दश अनक समि एव अनक लोग ह | उनम स एक

आपका शरीर आसन पर बठा हआ ह | इस पर य को आप मानिसक आख स भावना स दखत

रहो | आप शरीर नही हो बि क अनक शरीर दश सागर पथवी मह न ऽ सयर चनि एव पर ा ड़ क

ा हो सा ी हो | इस सा ी भाव म जाग जाओ | थोड़ी दर क बाद िफ़र स ाणायाम सिहत lsquoॐhelliprsquo का जाप करो और शानत होकर अपन िवचार को दखत रहो | इस अवःथा म ढ़ िन य करो िक lsquoम जसा चहता ह वसा होकर रहगा |rsquo िवषयसख स ा धन-

दौलत इतयािद की इ छा न करो कय िक िन यबल या आतमबलरपी हाथी क पदिच म और सभी क पदिच समािव हो ही जायग | आतमानदरपी सयर क उदय होन क बाद िम टी क तल क दीय क ाकाश रपी शि सखाभास की गलामी कौन कर

िकसी भी भावना को साकार करन क िलय दय को करद ड़ाल ऐसी िन यातमक बिल वि होनी आवशयक ह | अनतःकरण क गहर-स-गहर दश म चोट कर ऐसा ाण भरक िन बल का आवाहन करो | सीना तानकर खड़ हो जाओ अपन मन की दीन-हीन दखद मानयताओ को कचल

ड़ालन क िलय | सदा ःमरण रह की इधर-उधर भटकती वि य क साथ त हारी शि भी िबखरती रहती ह | अतः वि य को बहकाओ नही | तमाम वि य को एकिऽत करक साधनाकाल म आतमिचनतन म लगाओ और यवहारकाल म जो कायर करत हो उसम लगाओ | द िच होकर हरक कायर करो | अपन ःवभाव म स आवश को सवरथा िनमरल कर दो | आवश म आकर कोई िनणरय मत लो कोई िबया मत करो | सदा शानत वि धारण करन का अ यास करो | िवचारशील एव सनन रहो | ःवय अचल रहकर सागर की तरह सब वि य की तरग को अपन

भीतर समालो | जीवमाऽ को अपना ःवरप समझो | सबस ःनह रखो | िदल को यापक रखो | सकिच ता का िनवारण करत रहो | ख ड़ातमक वि का सवरथा तयाग करो | िजनको ानी महापरष का सतसग और अधयातमिव ा का लाभ िमल जाता ह उसक जीवन स

दःख िवदा होन लगत ह | ॐ आननद आतमिन ा म जाग हए महापरष क सतसग एव सतसािहतय स जीवन को भि और वदात स प

एव पलिकत करो | कछ ही िदन क इस सघन योग क बाद अनभव होन लगगा िक भतकाल क

नकारतमक ःवभाव सशयातमक-हािनकारक क पनाओ न जीवन को कचल ड़ाला था िवषला कर िदया था | अब िन यबल क चमतकार का पता चला | अततरम म आिवरभत िद य खज़ाना अब

िमला | ार ध की बिड़या अब टटन लगी | ठ क ह न करोग ना िह मत पढ़कर रख मत दना इस पिःतका को | जीवन म इसको बार-बार पढ़त रहो | एक िदन म यह पणर ना होगा | बार-बार अ यास करो | त हार िलय यह एक ही पिःतका काफ़ी ह | अनय कचराप टी ना पड़ोग तो चलगा | शाबाश वीर शाबाश

  • परसतावना
  • जीवन रसायन
  • गर भकति एक अमोघ साधना
  • शरी राम-वशिषठ सवाद
  • आतमबल का आवाहन
  • आतमबल कस जगाय
Page 32: जीवन रसायन - HariOmGroup · ‘जीवन रसायन’ का यह िदय कटोरा आत्मरस के िपपासुओं हाथ

221) जब आप सफलता की ओर पीठ कर लत हो पिरणाम की िचनता का तयाग कर दत

हो स मख आय हए क र य पर अपनी उ ोगशि एकाम करत हो तब सफलता आपक पीछ-पीछ

आ जाती ह | अतः सफलता आपको खोजगी | 222) वि तब तक एकाम नही होगी जब तक मन म कभी एक आशा रहगी तो कभी दसरी | शात वही हो सकता ह िजस कोई क र य या आवयकता घसीट न रही हो | अतः परम शाित पान

क िलय जीवन की आशा भी तयाग कर मन ाननद म डबो दो | आज स समझ लो िक यह शरीर ह ही नही | कवल ाननद का सागर लहरा रहा ह | 223) िजसकी पककी िन ा ह िक म आतमा हrsquo उसक िलय ऐसी कौन सी मिथ ह जो खल

न सक ऐसी कोई ताकत नही जो उसक िवर जा सक | 224) मर भा य म नही थाई र की मज आजकल सतसग ा नही होताजगत

खराब ह ऐस वचन हमारी कायरता व अनतःकरण की मिलनता क कारण िनकलत ह | अतः नकारातमक ःवभाव और दसर पर दोषारोपण करन की वि स बचो | 225) आप जब भीतरवाल स नाराज होत हो तब जगत आपस नाराज रहता ह | जब आप

भीतर अनतयारमी बन बठ तो जगतरपी पतलीघर म िफर गड़बड़ कसी 226) िजस ण हम ससार क सधारक बन खड़ होत ह उसी ण हम ससार को िबगाड़नवाल बन जात ह | श परमातमा को दखन क बजाय जगत को िबगड़ा हआ दखन की ि बनती ह | सधारक लोग मानत ह िक lsquoभगवान न जो जगत बनाया ह वह िबगड़ा हआ ह और हम उस सधार रह ह |rsquo वाह वाह धनयवाद सधारक अपन िदल को सधारो पहल | सवरऽ िनरजन का दीदार करो | तब आपकी उपिःथित माऽ स आपकी ि माऽ स अर यार आपको छकर बहती हवा माऽ स अननत जीव को शाित िमलगी और अननत सधार होगा | नानक कबीर महावीर ब और लीलाशाह बाप जस महापरष न यही कजी अपनायी थी | 227) वदानत म हमशा कमर का अथर होता ह वाःतिवक आतमा क साथ एक होकर च ा करना अिखल िव क साथ एकःवर हो जाना | उस अि तीय परम ततव क साथ िनःःवाथर सयोग ा करना ही एकमाऽ स चा कमर ह बाकी सब बोझ की गठिरया उठाना ह |

228) अपनी व रमान अवःथा चाह कसी भी हो उसको सव च मानन स ही आपक दय म आतम ान ान का अनायास उदय होन लगगा | आतम-सा ातकार को मील दर की कोई चीज समझकर उसक पीछ दौड़ना नही ह िचिनतत होना नही ह |

िचनता की गठरी उठाकर यिथत होन की जररत नही ह | िजस ण आप िनि नतता म गोता मारोग उसी ण आपका आतमःवरप गट हो जायगा | अर गट कया होगा आप ःवय आतमःवरप हो ही | अनातमा को छोड़ दो तो आतमःवरप तो हो ही | 229) सदा ॐकार का गान करो | जब भय व िचनता क िवचार आय तब िकसी मःत सत-फकीर महातमा क सािननधय का ःमरण करो | जब िननदा-शसा क सग आय तब महापरष क जीवन का अवलोकन करो | 230) िजनको आप भयानक घटनाए एव भयकर आघात समझ बठ हो वाःतव म व आपक ियतम आतमदव की ही करतत ह | समःत भयजनक तथा ाणनाशक घटनाओ क नाम-रप तो िवष क ह लिकन व बनी ह अमत स | 231) मन म यिद भय न हो तो बाहर चाह कसी भी भय की साममी उपिःथत हो जाय आपका कछ िबगाड़ नही सकती | मन म यिद भय होगा तो तरनत बाहर भी भयजनक पिरिःथया न होत हए भी उपिःथत हो जायगी | व क तन म भी भत िदखन लगगा | 232) िकसी भी पिरिःथित म िदखती हई कठोरता व भयानकता स भयभीत नही होना चािहए | क क काल बादल क पीछ पणर काशमय एकरस परम स ा सयर की तरह सदा िव मान ह | 233) आप अपन पर कदािप अिव ास मत करो | इस जगत म आप सब कछ कर सकत हो | अपन को कभी दबरल मत मानो | आपक अनदर तमाम शि या छपी हई ह | 234) यिद कोई मन य आपकी कोई चीज़ को चरा लता ह तो ड़रत कय हो वह मनय

और आप एक ह | िजस चीज़ को वह चराता ह वह चीज़ आपकी और उसकी द न की ह | 235) जो खद क िसवाय दसरा कछ दखता नही सनता नही जानता नही वह अननत ह |

जब तक खद क िसवाय और िकसी वःत का भान होता ह वह वःत स ची लगती ह तब तक आप

सीिमत व शात ह असीम और अनत नही |

236) ससार मझ कया आनद द सकता ह स पणर आनद मर भीतर स आया ह | म ही स पणर आननद ह स पणर मिहमा एव स पणर सख ह | 237) जीवन की समःत आवयकताए जीवन म उपिःथत ह परनत जीवन को जब हम

बा रग म रग दत ह तब जीवन का वाःतिवक रप हम नही जान पात | 238) िननदक की िननदा स म कय मरझाऊ शसक की शसा स म कय फल िननदा स म घटता नही और शसा स म बढ़ता नही | जसा ह वसा ही रहता ह | िफर िननदा-ःतित स

खटक कसी 239) ससार व ससार की समःयाओ म जो सबस अिधक फस हए ह उनही को वदानत की सबस अिधक आवयकता ह | बीमार को ही औषिध की यादा आवयकता ह | कय जी ठ क ह न 240) जगत क पाप व अतयाचार की बात मत करो लिकन अब भी आपको जगत म पाप

िदखता ह इसिलय रोओ | 241) हम यिद जान ल िक जगत म आतमा क िसवाय दसरा कछ ह ही नही और जो कछ

िदखता ह वह ःव नमाऽ ह तो इस जगत क दःख-दािरिय पाप-प य कछ भी हम अशात नही कर सकत | 242) िव ान दाशरिनक व आचाय की धमकी तथा अनमह आलोचना या अनमित

ानी पर कोई भाव नही ड़ाल सकती | 243) ह यि रप अननत आप अपन पर पर खड़ रहन का साहस करो समःत िव का बोझ आप िखलौन की तरह उठा लोग | 244) िसह की गजरना व नरिसह की ललकार तलवार की धार व साप की फफकार तपःवी की धमकी व नयायधीश की फटकारइन सबम आपका ही काश चमक रहा ह | आप इनस

भयभीत कय होत हो उलझन कय महसस करत हो मरी िब ली मझको याऊ वाली बात कय

होन दत हो 245) ससार हमारा िसफ़र िखलोना ही ह और कछ नही | अबोध बालक ही िखलौन स

भयभीत होता ह आसि करता ह िवचारशील यि नही |

246) जब तक अिव ा दर नही होगी तब तक चोरी जआ दार यिभचार कभी बद न

ह ग चाह लाख कोिशश करो | 247) आप हमशा अदर का धयान रखो | पहल हमारा भीतरी पतन होता ह | बा पतन तो इसका पिरणाम माऽ ह | 248) तयाग स हमशा आनद िमलता ह | जब तक आपक पास एक भी चीज़ बाकी ह तब

तक आप उस चीज़ क बधन म बध रहोग | आघात व तयाघात हमशा समान िवरोधी होत ह | 249) िनि तता ही आरो यता की सबस बड़ी दवाई ह | 250) सख अपन िसर पर दख का मकट पहन कर आता ह | जो सख को अपनायगा उस

दख को भी ःवीकार करना पड़गा | 251) म (आतमा) सबका ा ह | मरा ा कोई नही | 252) हजार म स कोई एक परष भीतर स शात िच वाला रहकर बाहर स ससारी जसा यवहार कर सकता ह | 253) सतय क िलए यिद शरीर का तयाग करना पड़ तो कर दना | यही आिखरी ममता ह जो हम तोड़नी होगी | 254) भय िचनता बचनी स ऊपर उठो | आपको ान का अनभव होगा | 255) आपको कोई भी हािन नही पहचा सकता | कवल आपक खयालात ही आपक पीछ पड़ ह | 256) म का अथर ह अपन पड़ोसी तथा सपकर म आनवाल क साथ अपनी वाःतिवक अभदता का अनभव करना | 257) ओ यार अपन खोय हए आतमा को एक बार खोज लो | धरती व आसमान क शासक आप ही हो | 258) सदव सम और सनन रहना ई र की सव पिर भि ह |

259) जब तक िच म ढ़ता न आ जाय िक शा की िविधय का पालन छोड़ दन स भी दय का यथाथर भि भाव न नही होगा तब तक शा की िविधय को पालत रहो |

गर भि एक अमोघ साधना 1 जनम मरण क िवषचब स म होन का कोई मागर नही ह कया सख-दःख हषर-शोक लाभ-

हािन मान-अपमान की थ पड़ स बचन का कोई उपाय नही ह कया

हअवय ह | ह िय आतमन नाशवान पदाथ स अपना मन वािपस लाकर सदगर क

चरणकमल म लगाओ | गरभि योग का आौय लो | गरसवा ऐसा अमोघ साधन ह िजसस

व रमान जीवन आननदमय बनता ह और शा त सख क ार खलत ह |

गर सवत त नर धनय यहा | ितनक नही दःख यहा न वहा || 2 स च सदगर की की हई भि िशय म सासािरक पदाथ क वरा य एव अनासि जगाती ह

परमातमा क ित म क पप महकाती ह | 3 तयक िशय सदगर की सवा करना चाहता ह लिकन अपन ढग स | सदगर चाह उस ढग स

सवा करन को कोई ततपर नही | जो िवरला साधक गर चाह उस ढ़ग स सवा कर सकता ह उस कोई कमी नही रहती |

िन सदगर की सवा स उनकी कपा ा होती ह और उस कपा स न िमल सक ऐसा तीन लोक म कछ भी नही ह | 4 गर िशय का स बनध पिवऽतम स बनध ह | ससार क तमाम बनधन स छड़ाकर वह मि क मागर पर ःथान कराता ह | यह स बनध जीवनपयरनत का स बनध ह | यह बात अपन दय की डायरी म सवणर-अ र स िलख लो | 5 उ ल सयर क काश क अिःततव को मान या न मान िफर भी सयर हमशा काशता ह | चचल मन का मनय मान या न मान लिकन सदगर की परमक याणकारी कपा सदव बरसती ही रहती ह | 6 सदगर की चरणरज म ःनान िकय िबना कवल किठन तप यार करन स या वद का

अधयन करन स वदानत का रहःय कट नही होता आतमानद का अमत नही िमलता | 7 दशरन शा क चाह िकतन मनथ पढ़ो हजार वष तक िहमालय की गफा म तप करो वष तक ाणायाम करो जीवनपयरनत शीषारसन करो समम िव म वास करक याखान दो िफर भी सदगर की कपा क िबना आतम ान नही होता | अतः िनरािभमानी सरल िनजाननद म मःत दयाल ःवभाव क आतम-सा ातकारी सदगर क चरण म जाओ | जीवन को धनय बनाओ | 8 सदगर की सवा िकय िबना शा का अधयन करना मम साधक क िलय समय बरबाद करन क बराबर ह | 9 िजसको सदगर ा हए ह ऐस िशय क िलय इस िव म कछ भी अा य नही ह | सदगर िशय को िमली हई परमातमा की अम य भट ह | अर नहीhellipनही व तो िशय क सम साकार रप म कट हए परमातमा ःवय ह | 10 सदगर क साथ एक ण िकया हआ सतसग लाख वष क तप स अननत गना ौ ह | आख क िनमषमाऽ म सदगर की अमतवष ि िशय क जनम-जनम क पाप को जला सकती ह | 11 सदगर जसा मपणर कपाल िहतिचनतक िव भर म दसरा कोई नही ह | 12 बाढ़ क समय याऽी यिद तफानी नदी को िबना नाव क पार कर सक तो साधक भी िबना सदगर क अपन जीवन क आिखरी लआय को िस कर सकता ह | यानी य दोन बात स भव ह |

अतः यार साधक मनमखी साधना की िज करना छोड़ दो | गरमखी साधना करन म ही सार ह | 13 सदगर क चरणकमल का आौय लन स िजस आननद का अनभव होता ह उसक आग िऽलोकी का साा य त छ ह | 14 आतम-सा ातकार क मागर म सबस महान शऽ अहभाव का नाश करन क िलए सदगर की आ ा का पालन अमोघ श ह | 15 रसोई सीखन क िलय कोई िसखानवाला चािहय िव ान और गिणत सीखन क िलय

अधयापक चािहय तो कया िव ा सदगर क िबना ही सीख लोग 16 सदगरकपा की स पि जसा दसरा कोई खजाना िव भर म नही | 17 सदगर की आ ा का उ लघन करना यह अपनी क खोदन क बराबर ह | 18 सदगर क कायर को शका की ि स दखना महापातक ह | 19 गरभि व गरसवा - य साधनारपी नौका की दो पतवार ह | उनकी मदद स िशय ससारसागर को पार कर सकता ह | 20 सदगर की कसौटी करना असभव ह | एक िववकाननद ही दसर िववकाननद को पहचान सकत ह | ब को जानन क िलय दसर ब की आवयकता रहती ह | एक रामतीथर का रहःय दसर रामतीथर ही पा सकत ह |

अतः सदगर की कसौटी करन की च ा छोड़कर उनको पिरपणर पर परमातमा मानो |

तभी जीवन म वाःतिवक लाभ होगा | 21 गरभि योग का आौय लकर आप अपनी खोई हई िद यता को पनः ा करो सख-दःख जनम-मतय आिद सब न स पार हो जाओ | 22 गरभि योग मान गर की सवा क ारा मन और िवकार पर िनयऽण एव पनः सःकरण | 23 िशय अपन गर क चरणकमल म णाम करता ह | उन पर ौ फल की वषार करक उनकी ःतित करता ह ldquoह परम प य पिवऽ गरदव मझ सव च सख ा हआ ह | म िन ा स जनम-मतय की पर परा स म हआ ह | म िनिवरक प समािध का श सख भोग रहा ह | जगत क िकसी भी कोन म म म ता स िवचरण कर सकता ह | सब पर मरी सम ि ह | मन ाकत मन का तयाग िकया ह | मन सब सक प एव रिच-अरिच का तयाग िकया ह | अब म अख ड शाित म िवौाित पा रहा ह hellip आननदमय हो रहा ह | म इस पणर अवःथा का वणरन नही कर पाता | ह प य गरदव म आवाक बन गया ह | इस दःतर भवसागर को पार करन म आपन

मझ सहायता की ह | अब तक मझ कवल अपन शरीर म ही स पणर िव ास था | मन िविभनन योिनय म अस य जनम िलय | ऐसी सव च िनभरय अवःथा मझ कौन स पिवऽ कम क कारण ा हई ह यह म नही जानता | सचमच यह एक दलरभ भा य ह |

यह एक महान उतक लाभ ह | अब म आननद स नाचता ह | मर सब दःख न हो गय | मर सब मनोरथ पणर हए ह |

मर कायर स पनन हए ह | मन सब वािछत वःतए ा की ह | मरी इ छा पिरपणर हई ह | आप मर स च माता-िपता हो | मरी व रमान िःथित म म दसर क सम िकस कार कट कर सक सवरऽ सख और आननद का अननत सागर मझ लहराता हआ िदख रहा ह | मर अतःच िजसस खल गय वह महावाकय lsquoत वमिसrsquo ह | उपिनषद एव वदानतसऽ को भी धनयवाद | िजनह न िन गर का एव उपिनषद क महावाकय का रप धारण िकया ह | ऐस ौी यासजी को णाम ौी शकराचायर को णाम सासािरक मनय क िसर पर गर क चरणामत का एक िबनद भी िगर तो भी उसक ःब दःख का नाश होता ह | यिद एक िन परष को व पहनाय जाय तो सार िव को व पहनान एव भोजन करवान क बराबर ह कय िक िन परष सचराचर िव म या ह | सबम व ही ह |rdquo

ॐhellip ॐ hellip ॐ hellip

ःवामी िशवानद जी

ौी राम-विश सवाद ौी विश जी कहत ह ldquoह रघकलभषण ौी राम अनथर ःवरप िजतन सासािरक पदाथर ह व सब जल म तरग क समान िविवध रप धारण करक चमतकार उतपनन करत ह अथारत ई छाए उतपनन करक जीव को मोह म फसात ह | परत जस सभी तरग जल ःवरप ही ह उसी कार सभी पदाथर वःततः न र ःवभाव वाल ह |

बालक की क पना स आकाश म य और िपशाच िदखन लगत ह परनत बि मान मनय क िलए उन य और िपशाच का कोई अथर नही | इसी कार अ ानी क िच म यह जगत सतय हो ऐसा लगता ह जबिक हमार जस ािनय क िलय यह जगत कछ भी नही | यह समम िव पतथर पर बनी हई पतिलय की सना की तरह रपालोक तथा अतर-बा िवषय स शनय ह | इसम सतयता कसी परनत अ ािनय को यह िव सतय लगता ह |rdquo विश जी बोल ldquoौी राम जगत को सतय ःवरप म जानना यह ाित ह मढ़ता ह | उस िमथया अथारत कि पत समझना यही उिचत समझ ह | ह राघव तव ा अहता आिद सब िवम-िवलास शात िशवःवरप श ःवरप ही ह | इसिलय मझ तो क अितिर और कछ भी नही िदखता | आकाश म जस जगल नही वस ही म जगत नही ह | ह राम ार ध वश ा कम स िजस परष की च ा कठपतली की तरह ई छाशनय और याकलतारिहत होती ह वह शानत मनवाला परष जीवनम मिन ह | ऐस जीवनम ानी को इस

जगत का जीवन बास की तरह बाहर-भीतर स शनय रसहीन और वासना-रिहत लगता ह | इस य पच म िजस रिच नही दय म िचनमाऽ अ य ही अ छा लगता ह ऐस परष न

भीतर तथा बाहर शािनत ा कर ली ह और इस भवसागर स पार हो गया ह | रघनदन श व ा कहत ह िक मन का ई छारिहत होना यही समािध ह कय िक ई छाओ का तयाग करन स मन को जसी शािनत िमलती ह ऐसी शािनत सकड़ उपदश स भी नही िमलती | ई छा की उतपि स जसा दःख ा होता ह ऐसा दःख तो नरक म भी नही | ई छाओ की शािनत

स जसा सख होता ह ऐसा सख ःवगर तो कया लोक म भी नही होता | अतः समःत शा तपःया यम और िनयम का िनचोड़ यही ह िक ई छामाऽ दःखदायी ह और ई छा का शमन मो ह | ाणी क दय म जसी-जसी और िजतनी-िजतनी ई छाय उतपनन होती ह उतना ही दख स वह

ड़रता रहता ह | िववक-िवचार ारा ई छाय जस-जस शानत होती जाती ह वस-वस दखरपी छत की बीमारी िमटती जाती ह |

आसि क कारण सासािरक िवषय की ई छाय य - य गहनीभत होती जाती ह तय -तय

दःख की िवषली तरग बढ़ती जाती ह | अपन परषाथर क बल स इस ई छारपी यािध का उपचार यिद नही िकया जाय तो इस यािध स छटन क िलय अनय कोई औषिध नही ह ऐसा म ढ़तापवरक

मानता ह | एक साथ सभी ई छाओ का स पणर तयाग ना हो सक तो थोड़ी-थोड़ी ई छाओ का धीर-धीर तयाग

करना चािहय परत रहना चािहय ई छा क तयाग म रत कय िक सनमागर का पिथक दखी नही होता | जो नराधम अपनी वासना और अहकार को ीण करन का य नही करता वह िदन -िदन अपन

को रावण की तरह अधर कऐ म ढ़कल रहा ह | ई छा ही दख की जनमदाऽी इस ससाररपी बल का बीज ह | यिद इस बीज को आतम ानरपी अि न स ठ क-ठ क जला िदया तो पनः यह अकिरत नही होता | रघकलभषण राम ई छामाऽ ससार ह और ई छाओ का अभाव ही िनवारण ह | अतः अनक कार की माथाप ची म ना पड़कर कवल ऐसा य करना चािहय िक ई छा उतपनन ना हो | अपनी बि स ई छा का िवनाश करन को जो ततपर नही ऐस अभाग को शा और गर का उपदश

भी कया करगा जस अपनी जनमभमी जगल म िहरणी की मतय िनि त ह उसी कार अनकिवध दख का िवःतार कारनवाल ई छारपी िवषय-िवकार स य इस जगत म मनय की मतय िनि त ह | यिद मानव ई छाओ क कारण ब च -सा मढ़ ना बन तो उस आतम ान क िलय अ प य ही करना पड़ | इसिलय सभी कार स ई छाओ को शानत करना चािहय | ई छा क शमन स परम पद की ाि होती ह | ई छारिहत हो जाना यही िनवारण ह और ई छाय

होना ही बधन ह | अतः यथाशि ई छा को जीतना चािहय | भला इतना करन म कया किठनाई ह जनम जरा यािध और मतयरपी कटीली झािड़य और खर क व - समह की जड़ भी ई छा ही ह

| अतः शमरपी अि न स अदर-ही-अदर बीज को जला ड़ालना चािहय| जहा ई छाओ का अभाव ह

वहा मि िनि त ह |

िववक वरा य आिद साधन स ई छा का सवरथा िवनाश करना चािहय | ई छा का सबध जहा-जहा ह वहा-वहा पाप प य दखरािशया और ल बी पीड़ाओ स य बधन को हािज़र ही समझो | परष

की आतिरक ई छा य - य शानत होती जाती ह तय -तय मो क िलय उसका क याणकारक

साधन बढ़ता जाता ह | िववकहीन ई छा को पोसना उस पणर करना यह तो ससाररपी िवष व को पानी स सीचन क समान ह |rdquo

- ौीयोगविश महारामायण

आतमबल का आवाहन कया आप अपन-आपको दबरल मानत हो लघतामथी म उलझ कर पिरिःतिथय स िपस रह हो

अपना जीवन दीन-हीन बना बठ हो hellipतो अपन भीतर सष आतमबल को जगाओ | शरीर चाह ी का हो चाह परष का कित क साा य म जो जीत ह व सब ी ह और कित क बनधन स पार अपन ःवरप की पहचान िजनह न कर ली ह अपन मन की गलामी की बिड़या तोड़कर िजनह न फ क दी ह व परष ह | ी या परष शरीर एव मानयताए होती ह | तम तो तन-मन स पार िनमरल आतमा हो | जागोhellipउठोhellipअपन भीतर सोय हय िन यबल को जगाओ | सवरदश सवरकाल म सव म

आतमबल को िवकिसत करो | आतमा म अथाह सामथयर ह | अपन को दीन-हीन मान बठ तो िव म ऐसी कोई स ा नही जो त ह ऊपर उठा सक | अपन आतमःवरप म िति त हो गय तो िऽलोकी म ऐसी कोई हःती नही जो त ह दबा सक | भौितक जगत म वाप की शि ईलकशोिनक शि िव त की शि गरतवाकषरण की शि बड़ी मानी जाती ह लिकन आतमबल उन सब शि य का सचालक बल ह | आतमबल क सािननधय म आकर पग ार ध को पर िमल जात ह दव की दीनता पलायन हो जाती ह ितकल पिरिःतिथया अनकल हो जाती ह | आतमबल सवर िरि -िसि य का िपता ह |

आतमबल कस जगाय हररोज़ तःकाल ज दी उठकर सय दय स पवर ःनानािद स िनवत हो जाओ | ःव छ पिवऽ ःथान

म आसन िबछाकर पवारिभमख होकर प ासन या सखासन म बठ जाओ | शानत और सनन वि

धारण करो | मन म ढ भावना करो िक म कित-िनिमरत इस शरीर क सब अभाव को पार करक सब

मिलनताओ-दबरलताओ स िप ड़ छड़ाकर आतमा की मिहमा म जागकर ही रहगा |

आख आधी खली आधी बद रखो | अब फ़फ़ड़ म खब ास भरो और भावना करो की ास क साथ

म सयर का िद य ओज भीतर भर रहा ह | ास को यथाशि अनदर िटकाय रखो | िफ़र lsquoॐhelliprsquo का ल बा उ चारण करत हए ास को धीर-धीर छोड़त जाओ | ास क खाली होन क बाद तरत ास ना लो | यथाशि िबना ास रहो और भीतर ही भीतर lsquoहिर ॐhelliprsquo lsquoहिर ॐhelliprsquo का मानिसक

जाप करो | िफ़र स फ़फ़ड़ म ास भरो | पव रीित स ास यथाशि अनदर िटकाकर बाद म धीर-धीर छोड़त हए lsquoॐhelliprsquo का गजन करो | दस-पिह िमनट ऐस ाणायाम सिहत उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo की धविन करक शानत हो जाओ | सब

यास छोड़ दो | वि य को आकाश की ओर फ़लन दो | आकाश क अनदर पथवी ह | पथवी पर अनक दश अनक समि एव अनक लोग ह | उनम स एक

आपका शरीर आसन पर बठा हआ ह | इस पर य को आप मानिसक आख स भावना स दखत

रहो | आप शरीर नही हो बि क अनक शरीर दश सागर पथवी मह न ऽ सयर चनि एव पर ा ड़ क

ा हो सा ी हो | इस सा ी भाव म जाग जाओ | थोड़ी दर क बाद िफ़र स ाणायाम सिहत lsquoॐhelliprsquo का जाप करो और शानत होकर अपन िवचार को दखत रहो | इस अवःथा म ढ़ िन य करो िक lsquoम जसा चहता ह वसा होकर रहगा |rsquo िवषयसख स ा धन-

दौलत इतयािद की इ छा न करो कय िक िन यबल या आतमबलरपी हाथी क पदिच म और सभी क पदिच समािव हो ही जायग | आतमानदरपी सयर क उदय होन क बाद िम टी क तल क दीय क ाकाश रपी शि सखाभास की गलामी कौन कर

िकसी भी भावना को साकार करन क िलय दय को करद ड़ाल ऐसी िन यातमक बिल वि होनी आवशयक ह | अनतःकरण क गहर-स-गहर दश म चोट कर ऐसा ाण भरक िन बल का आवाहन करो | सीना तानकर खड़ हो जाओ अपन मन की दीन-हीन दखद मानयताओ को कचल

ड़ालन क िलय | सदा ःमरण रह की इधर-उधर भटकती वि य क साथ त हारी शि भी िबखरती रहती ह | अतः वि य को बहकाओ नही | तमाम वि य को एकिऽत करक साधनाकाल म आतमिचनतन म लगाओ और यवहारकाल म जो कायर करत हो उसम लगाओ | द िच होकर हरक कायर करो | अपन ःवभाव म स आवश को सवरथा िनमरल कर दो | आवश म आकर कोई िनणरय मत लो कोई िबया मत करो | सदा शानत वि धारण करन का अ यास करो | िवचारशील एव सनन रहो | ःवय अचल रहकर सागर की तरह सब वि य की तरग को अपन

भीतर समालो | जीवमाऽ को अपना ःवरप समझो | सबस ःनह रखो | िदल को यापक रखो | सकिच ता का िनवारण करत रहो | ख ड़ातमक वि का सवरथा तयाग करो | िजनको ानी महापरष का सतसग और अधयातमिव ा का लाभ िमल जाता ह उसक जीवन स

दःख िवदा होन लगत ह | ॐ आननद आतमिन ा म जाग हए महापरष क सतसग एव सतसािहतय स जीवन को भि और वदात स प

एव पलिकत करो | कछ ही िदन क इस सघन योग क बाद अनभव होन लगगा िक भतकाल क

नकारतमक ःवभाव सशयातमक-हािनकारक क पनाओ न जीवन को कचल ड़ाला था िवषला कर िदया था | अब िन यबल क चमतकार का पता चला | अततरम म आिवरभत िद य खज़ाना अब

िमला | ार ध की बिड़या अब टटन लगी | ठ क ह न करोग ना िह मत पढ़कर रख मत दना इस पिःतका को | जीवन म इसको बार-बार पढ़त रहो | एक िदन म यह पणर ना होगा | बार-बार अ यास करो | त हार िलय यह एक ही पिःतका काफ़ी ह | अनय कचराप टी ना पड़ोग तो चलगा | शाबाश वीर शाबाश

  • परसतावना
  • जीवन रसायन
  • गर भकति एक अमोघ साधना
  • शरी राम-वशिषठ सवाद
  • आतमबल का आवाहन
  • आतमबल कस जगाय
Page 33: जीवन रसायन - HariOmGroup · ‘जीवन रसायन’ का यह िदय कटोरा आत्मरस के िपपासुओं हाथ

228) अपनी व रमान अवःथा चाह कसी भी हो उसको सव च मानन स ही आपक दय म आतम ान ान का अनायास उदय होन लगगा | आतम-सा ातकार को मील दर की कोई चीज समझकर उसक पीछ दौड़ना नही ह िचिनतत होना नही ह |

िचनता की गठरी उठाकर यिथत होन की जररत नही ह | िजस ण आप िनि नतता म गोता मारोग उसी ण आपका आतमःवरप गट हो जायगा | अर गट कया होगा आप ःवय आतमःवरप हो ही | अनातमा को छोड़ दो तो आतमःवरप तो हो ही | 229) सदा ॐकार का गान करो | जब भय व िचनता क िवचार आय तब िकसी मःत सत-फकीर महातमा क सािननधय का ःमरण करो | जब िननदा-शसा क सग आय तब महापरष क जीवन का अवलोकन करो | 230) िजनको आप भयानक घटनाए एव भयकर आघात समझ बठ हो वाःतव म व आपक ियतम आतमदव की ही करतत ह | समःत भयजनक तथा ाणनाशक घटनाओ क नाम-रप तो िवष क ह लिकन व बनी ह अमत स | 231) मन म यिद भय न हो तो बाहर चाह कसी भी भय की साममी उपिःथत हो जाय आपका कछ िबगाड़ नही सकती | मन म यिद भय होगा तो तरनत बाहर भी भयजनक पिरिःथया न होत हए भी उपिःथत हो जायगी | व क तन म भी भत िदखन लगगा | 232) िकसी भी पिरिःथित म िदखती हई कठोरता व भयानकता स भयभीत नही होना चािहए | क क काल बादल क पीछ पणर काशमय एकरस परम स ा सयर की तरह सदा िव मान ह | 233) आप अपन पर कदािप अिव ास मत करो | इस जगत म आप सब कछ कर सकत हो | अपन को कभी दबरल मत मानो | आपक अनदर तमाम शि या छपी हई ह | 234) यिद कोई मन य आपकी कोई चीज़ को चरा लता ह तो ड़रत कय हो वह मनय

और आप एक ह | िजस चीज़ को वह चराता ह वह चीज़ आपकी और उसकी द न की ह | 235) जो खद क िसवाय दसरा कछ दखता नही सनता नही जानता नही वह अननत ह |

जब तक खद क िसवाय और िकसी वःत का भान होता ह वह वःत स ची लगती ह तब तक आप

सीिमत व शात ह असीम और अनत नही |

236) ससार मझ कया आनद द सकता ह स पणर आनद मर भीतर स आया ह | म ही स पणर आननद ह स पणर मिहमा एव स पणर सख ह | 237) जीवन की समःत आवयकताए जीवन म उपिःथत ह परनत जीवन को जब हम

बा रग म रग दत ह तब जीवन का वाःतिवक रप हम नही जान पात | 238) िननदक की िननदा स म कय मरझाऊ शसक की शसा स म कय फल िननदा स म घटता नही और शसा स म बढ़ता नही | जसा ह वसा ही रहता ह | िफर िननदा-ःतित स

खटक कसी 239) ससार व ससार की समःयाओ म जो सबस अिधक फस हए ह उनही को वदानत की सबस अिधक आवयकता ह | बीमार को ही औषिध की यादा आवयकता ह | कय जी ठ क ह न 240) जगत क पाप व अतयाचार की बात मत करो लिकन अब भी आपको जगत म पाप

िदखता ह इसिलय रोओ | 241) हम यिद जान ल िक जगत म आतमा क िसवाय दसरा कछ ह ही नही और जो कछ

िदखता ह वह ःव नमाऽ ह तो इस जगत क दःख-दािरिय पाप-प य कछ भी हम अशात नही कर सकत | 242) िव ान दाशरिनक व आचाय की धमकी तथा अनमह आलोचना या अनमित

ानी पर कोई भाव नही ड़ाल सकती | 243) ह यि रप अननत आप अपन पर पर खड़ रहन का साहस करो समःत िव का बोझ आप िखलौन की तरह उठा लोग | 244) िसह की गजरना व नरिसह की ललकार तलवार की धार व साप की फफकार तपःवी की धमकी व नयायधीश की फटकारइन सबम आपका ही काश चमक रहा ह | आप इनस

भयभीत कय होत हो उलझन कय महसस करत हो मरी िब ली मझको याऊ वाली बात कय

होन दत हो 245) ससार हमारा िसफ़र िखलोना ही ह और कछ नही | अबोध बालक ही िखलौन स

भयभीत होता ह आसि करता ह िवचारशील यि नही |

246) जब तक अिव ा दर नही होगी तब तक चोरी जआ दार यिभचार कभी बद न

ह ग चाह लाख कोिशश करो | 247) आप हमशा अदर का धयान रखो | पहल हमारा भीतरी पतन होता ह | बा पतन तो इसका पिरणाम माऽ ह | 248) तयाग स हमशा आनद िमलता ह | जब तक आपक पास एक भी चीज़ बाकी ह तब

तक आप उस चीज़ क बधन म बध रहोग | आघात व तयाघात हमशा समान िवरोधी होत ह | 249) िनि तता ही आरो यता की सबस बड़ी दवाई ह | 250) सख अपन िसर पर दख का मकट पहन कर आता ह | जो सख को अपनायगा उस

दख को भी ःवीकार करना पड़गा | 251) म (आतमा) सबका ा ह | मरा ा कोई नही | 252) हजार म स कोई एक परष भीतर स शात िच वाला रहकर बाहर स ससारी जसा यवहार कर सकता ह | 253) सतय क िलए यिद शरीर का तयाग करना पड़ तो कर दना | यही आिखरी ममता ह जो हम तोड़नी होगी | 254) भय िचनता बचनी स ऊपर उठो | आपको ान का अनभव होगा | 255) आपको कोई भी हािन नही पहचा सकता | कवल आपक खयालात ही आपक पीछ पड़ ह | 256) म का अथर ह अपन पड़ोसी तथा सपकर म आनवाल क साथ अपनी वाःतिवक अभदता का अनभव करना | 257) ओ यार अपन खोय हए आतमा को एक बार खोज लो | धरती व आसमान क शासक आप ही हो | 258) सदव सम और सनन रहना ई र की सव पिर भि ह |

259) जब तक िच म ढ़ता न आ जाय िक शा की िविधय का पालन छोड़ दन स भी दय का यथाथर भि भाव न नही होगा तब तक शा की िविधय को पालत रहो |

गर भि एक अमोघ साधना 1 जनम मरण क िवषचब स म होन का कोई मागर नही ह कया सख-दःख हषर-शोक लाभ-

हािन मान-अपमान की थ पड़ स बचन का कोई उपाय नही ह कया

हअवय ह | ह िय आतमन नाशवान पदाथ स अपना मन वािपस लाकर सदगर क

चरणकमल म लगाओ | गरभि योग का आौय लो | गरसवा ऐसा अमोघ साधन ह िजसस

व रमान जीवन आननदमय बनता ह और शा त सख क ार खलत ह |

गर सवत त नर धनय यहा | ितनक नही दःख यहा न वहा || 2 स च सदगर की की हई भि िशय म सासािरक पदाथ क वरा य एव अनासि जगाती ह

परमातमा क ित म क पप महकाती ह | 3 तयक िशय सदगर की सवा करना चाहता ह लिकन अपन ढग स | सदगर चाह उस ढग स

सवा करन को कोई ततपर नही | जो िवरला साधक गर चाह उस ढ़ग स सवा कर सकता ह उस कोई कमी नही रहती |

िन सदगर की सवा स उनकी कपा ा होती ह और उस कपा स न िमल सक ऐसा तीन लोक म कछ भी नही ह | 4 गर िशय का स बनध पिवऽतम स बनध ह | ससार क तमाम बनधन स छड़ाकर वह मि क मागर पर ःथान कराता ह | यह स बनध जीवनपयरनत का स बनध ह | यह बात अपन दय की डायरी म सवणर-अ र स िलख लो | 5 उ ल सयर क काश क अिःततव को मान या न मान िफर भी सयर हमशा काशता ह | चचल मन का मनय मान या न मान लिकन सदगर की परमक याणकारी कपा सदव बरसती ही रहती ह | 6 सदगर की चरणरज म ःनान िकय िबना कवल किठन तप यार करन स या वद का

अधयन करन स वदानत का रहःय कट नही होता आतमानद का अमत नही िमलता | 7 दशरन शा क चाह िकतन मनथ पढ़ो हजार वष तक िहमालय की गफा म तप करो वष तक ाणायाम करो जीवनपयरनत शीषारसन करो समम िव म वास करक याखान दो िफर भी सदगर की कपा क िबना आतम ान नही होता | अतः िनरािभमानी सरल िनजाननद म मःत दयाल ःवभाव क आतम-सा ातकारी सदगर क चरण म जाओ | जीवन को धनय बनाओ | 8 सदगर की सवा िकय िबना शा का अधयन करना मम साधक क िलय समय बरबाद करन क बराबर ह | 9 िजसको सदगर ा हए ह ऐस िशय क िलय इस िव म कछ भी अा य नही ह | सदगर िशय को िमली हई परमातमा की अम य भट ह | अर नहीhellipनही व तो िशय क सम साकार रप म कट हए परमातमा ःवय ह | 10 सदगर क साथ एक ण िकया हआ सतसग लाख वष क तप स अननत गना ौ ह | आख क िनमषमाऽ म सदगर की अमतवष ि िशय क जनम-जनम क पाप को जला सकती ह | 11 सदगर जसा मपणर कपाल िहतिचनतक िव भर म दसरा कोई नही ह | 12 बाढ़ क समय याऽी यिद तफानी नदी को िबना नाव क पार कर सक तो साधक भी िबना सदगर क अपन जीवन क आिखरी लआय को िस कर सकता ह | यानी य दोन बात स भव ह |

अतः यार साधक मनमखी साधना की िज करना छोड़ दो | गरमखी साधना करन म ही सार ह | 13 सदगर क चरणकमल का आौय लन स िजस आननद का अनभव होता ह उसक आग िऽलोकी का साा य त छ ह | 14 आतम-सा ातकार क मागर म सबस महान शऽ अहभाव का नाश करन क िलए सदगर की आ ा का पालन अमोघ श ह | 15 रसोई सीखन क िलय कोई िसखानवाला चािहय िव ान और गिणत सीखन क िलय

अधयापक चािहय तो कया िव ा सदगर क िबना ही सीख लोग 16 सदगरकपा की स पि जसा दसरा कोई खजाना िव भर म नही | 17 सदगर की आ ा का उ लघन करना यह अपनी क खोदन क बराबर ह | 18 सदगर क कायर को शका की ि स दखना महापातक ह | 19 गरभि व गरसवा - य साधनारपी नौका की दो पतवार ह | उनकी मदद स िशय ससारसागर को पार कर सकता ह | 20 सदगर की कसौटी करना असभव ह | एक िववकाननद ही दसर िववकाननद को पहचान सकत ह | ब को जानन क िलय दसर ब की आवयकता रहती ह | एक रामतीथर का रहःय दसर रामतीथर ही पा सकत ह |

अतः सदगर की कसौटी करन की च ा छोड़कर उनको पिरपणर पर परमातमा मानो |

तभी जीवन म वाःतिवक लाभ होगा | 21 गरभि योग का आौय लकर आप अपनी खोई हई िद यता को पनः ा करो सख-दःख जनम-मतय आिद सब न स पार हो जाओ | 22 गरभि योग मान गर की सवा क ारा मन और िवकार पर िनयऽण एव पनः सःकरण | 23 िशय अपन गर क चरणकमल म णाम करता ह | उन पर ौ फल की वषार करक उनकी ःतित करता ह ldquoह परम प य पिवऽ गरदव मझ सव च सख ा हआ ह | म िन ा स जनम-मतय की पर परा स म हआ ह | म िनिवरक प समािध का श सख भोग रहा ह | जगत क िकसी भी कोन म म म ता स िवचरण कर सकता ह | सब पर मरी सम ि ह | मन ाकत मन का तयाग िकया ह | मन सब सक प एव रिच-अरिच का तयाग िकया ह | अब म अख ड शाित म िवौाित पा रहा ह hellip आननदमय हो रहा ह | म इस पणर अवःथा का वणरन नही कर पाता | ह प य गरदव म आवाक बन गया ह | इस दःतर भवसागर को पार करन म आपन

मझ सहायता की ह | अब तक मझ कवल अपन शरीर म ही स पणर िव ास था | मन िविभनन योिनय म अस य जनम िलय | ऐसी सव च िनभरय अवःथा मझ कौन स पिवऽ कम क कारण ा हई ह यह म नही जानता | सचमच यह एक दलरभ भा य ह |

यह एक महान उतक लाभ ह | अब म आननद स नाचता ह | मर सब दःख न हो गय | मर सब मनोरथ पणर हए ह |

मर कायर स पनन हए ह | मन सब वािछत वःतए ा की ह | मरी इ छा पिरपणर हई ह | आप मर स च माता-िपता हो | मरी व रमान िःथित म म दसर क सम िकस कार कट कर सक सवरऽ सख और आननद का अननत सागर मझ लहराता हआ िदख रहा ह | मर अतःच िजसस खल गय वह महावाकय lsquoत वमिसrsquo ह | उपिनषद एव वदानतसऽ को भी धनयवाद | िजनह न िन गर का एव उपिनषद क महावाकय का रप धारण िकया ह | ऐस ौी यासजी को णाम ौी शकराचायर को णाम सासािरक मनय क िसर पर गर क चरणामत का एक िबनद भी िगर तो भी उसक ःब दःख का नाश होता ह | यिद एक िन परष को व पहनाय जाय तो सार िव को व पहनान एव भोजन करवान क बराबर ह कय िक िन परष सचराचर िव म या ह | सबम व ही ह |rdquo

ॐhellip ॐ hellip ॐ hellip

ःवामी िशवानद जी

ौी राम-विश सवाद ौी विश जी कहत ह ldquoह रघकलभषण ौी राम अनथर ःवरप िजतन सासािरक पदाथर ह व सब जल म तरग क समान िविवध रप धारण करक चमतकार उतपनन करत ह अथारत ई छाए उतपनन करक जीव को मोह म फसात ह | परत जस सभी तरग जल ःवरप ही ह उसी कार सभी पदाथर वःततः न र ःवभाव वाल ह |

बालक की क पना स आकाश म य और िपशाच िदखन लगत ह परनत बि मान मनय क िलए उन य और िपशाच का कोई अथर नही | इसी कार अ ानी क िच म यह जगत सतय हो ऐसा लगता ह जबिक हमार जस ािनय क िलय यह जगत कछ भी नही | यह समम िव पतथर पर बनी हई पतिलय की सना की तरह रपालोक तथा अतर-बा िवषय स शनय ह | इसम सतयता कसी परनत अ ािनय को यह िव सतय लगता ह |rdquo विश जी बोल ldquoौी राम जगत को सतय ःवरप म जानना यह ाित ह मढ़ता ह | उस िमथया अथारत कि पत समझना यही उिचत समझ ह | ह राघव तव ा अहता आिद सब िवम-िवलास शात िशवःवरप श ःवरप ही ह | इसिलय मझ तो क अितिर और कछ भी नही िदखता | आकाश म जस जगल नही वस ही म जगत नही ह | ह राम ार ध वश ा कम स िजस परष की च ा कठपतली की तरह ई छाशनय और याकलतारिहत होती ह वह शानत मनवाला परष जीवनम मिन ह | ऐस जीवनम ानी को इस

जगत का जीवन बास की तरह बाहर-भीतर स शनय रसहीन और वासना-रिहत लगता ह | इस य पच म िजस रिच नही दय म िचनमाऽ अ य ही अ छा लगता ह ऐस परष न

भीतर तथा बाहर शािनत ा कर ली ह और इस भवसागर स पार हो गया ह | रघनदन श व ा कहत ह िक मन का ई छारिहत होना यही समािध ह कय िक ई छाओ का तयाग करन स मन को जसी शािनत िमलती ह ऐसी शािनत सकड़ उपदश स भी नही िमलती | ई छा की उतपि स जसा दःख ा होता ह ऐसा दःख तो नरक म भी नही | ई छाओ की शािनत

स जसा सख होता ह ऐसा सख ःवगर तो कया लोक म भी नही होता | अतः समःत शा तपःया यम और िनयम का िनचोड़ यही ह िक ई छामाऽ दःखदायी ह और ई छा का शमन मो ह | ाणी क दय म जसी-जसी और िजतनी-िजतनी ई छाय उतपनन होती ह उतना ही दख स वह

ड़रता रहता ह | िववक-िवचार ारा ई छाय जस-जस शानत होती जाती ह वस-वस दखरपी छत की बीमारी िमटती जाती ह |

आसि क कारण सासािरक िवषय की ई छाय य - य गहनीभत होती जाती ह तय -तय

दःख की िवषली तरग बढ़ती जाती ह | अपन परषाथर क बल स इस ई छारपी यािध का उपचार यिद नही िकया जाय तो इस यािध स छटन क िलय अनय कोई औषिध नही ह ऐसा म ढ़तापवरक

मानता ह | एक साथ सभी ई छाओ का स पणर तयाग ना हो सक तो थोड़ी-थोड़ी ई छाओ का धीर-धीर तयाग

करना चािहय परत रहना चािहय ई छा क तयाग म रत कय िक सनमागर का पिथक दखी नही होता | जो नराधम अपनी वासना और अहकार को ीण करन का य नही करता वह िदन -िदन अपन

को रावण की तरह अधर कऐ म ढ़कल रहा ह | ई छा ही दख की जनमदाऽी इस ससाररपी बल का बीज ह | यिद इस बीज को आतम ानरपी अि न स ठ क-ठ क जला िदया तो पनः यह अकिरत नही होता | रघकलभषण राम ई छामाऽ ससार ह और ई छाओ का अभाव ही िनवारण ह | अतः अनक कार की माथाप ची म ना पड़कर कवल ऐसा य करना चािहय िक ई छा उतपनन ना हो | अपनी बि स ई छा का िवनाश करन को जो ततपर नही ऐस अभाग को शा और गर का उपदश

भी कया करगा जस अपनी जनमभमी जगल म िहरणी की मतय िनि त ह उसी कार अनकिवध दख का िवःतार कारनवाल ई छारपी िवषय-िवकार स य इस जगत म मनय की मतय िनि त ह | यिद मानव ई छाओ क कारण ब च -सा मढ़ ना बन तो उस आतम ान क िलय अ प य ही करना पड़ | इसिलय सभी कार स ई छाओ को शानत करना चािहय | ई छा क शमन स परम पद की ाि होती ह | ई छारिहत हो जाना यही िनवारण ह और ई छाय

होना ही बधन ह | अतः यथाशि ई छा को जीतना चािहय | भला इतना करन म कया किठनाई ह जनम जरा यािध और मतयरपी कटीली झािड़य और खर क व - समह की जड़ भी ई छा ही ह

| अतः शमरपी अि न स अदर-ही-अदर बीज को जला ड़ालना चािहय| जहा ई छाओ का अभाव ह

वहा मि िनि त ह |

िववक वरा य आिद साधन स ई छा का सवरथा िवनाश करना चािहय | ई छा का सबध जहा-जहा ह वहा-वहा पाप प य दखरािशया और ल बी पीड़ाओ स य बधन को हािज़र ही समझो | परष

की आतिरक ई छा य - य शानत होती जाती ह तय -तय मो क िलय उसका क याणकारक

साधन बढ़ता जाता ह | िववकहीन ई छा को पोसना उस पणर करना यह तो ससाररपी िवष व को पानी स सीचन क समान ह |rdquo

- ौीयोगविश महारामायण

आतमबल का आवाहन कया आप अपन-आपको दबरल मानत हो लघतामथी म उलझ कर पिरिःतिथय स िपस रह हो

अपना जीवन दीन-हीन बना बठ हो hellipतो अपन भीतर सष आतमबल को जगाओ | शरीर चाह ी का हो चाह परष का कित क साा य म जो जीत ह व सब ी ह और कित क बनधन स पार अपन ःवरप की पहचान िजनह न कर ली ह अपन मन की गलामी की बिड़या तोड़कर िजनह न फ क दी ह व परष ह | ी या परष शरीर एव मानयताए होती ह | तम तो तन-मन स पार िनमरल आतमा हो | जागोhellipउठोhellipअपन भीतर सोय हय िन यबल को जगाओ | सवरदश सवरकाल म सव म

आतमबल को िवकिसत करो | आतमा म अथाह सामथयर ह | अपन को दीन-हीन मान बठ तो िव म ऐसी कोई स ा नही जो त ह ऊपर उठा सक | अपन आतमःवरप म िति त हो गय तो िऽलोकी म ऐसी कोई हःती नही जो त ह दबा सक | भौितक जगत म वाप की शि ईलकशोिनक शि िव त की शि गरतवाकषरण की शि बड़ी मानी जाती ह लिकन आतमबल उन सब शि य का सचालक बल ह | आतमबल क सािननधय म आकर पग ार ध को पर िमल जात ह दव की दीनता पलायन हो जाती ह ितकल पिरिःतिथया अनकल हो जाती ह | आतमबल सवर िरि -िसि य का िपता ह |

आतमबल कस जगाय हररोज़ तःकाल ज दी उठकर सय दय स पवर ःनानािद स िनवत हो जाओ | ःव छ पिवऽ ःथान

म आसन िबछाकर पवारिभमख होकर प ासन या सखासन म बठ जाओ | शानत और सनन वि

धारण करो | मन म ढ भावना करो िक म कित-िनिमरत इस शरीर क सब अभाव को पार करक सब

मिलनताओ-दबरलताओ स िप ड़ छड़ाकर आतमा की मिहमा म जागकर ही रहगा |

आख आधी खली आधी बद रखो | अब फ़फ़ड़ म खब ास भरो और भावना करो की ास क साथ

म सयर का िद य ओज भीतर भर रहा ह | ास को यथाशि अनदर िटकाय रखो | िफ़र lsquoॐhelliprsquo का ल बा उ चारण करत हए ास को धीर-धीर छोड़त जाओ | ास क खाली होन क बाद तरत ास ना लो | यथाशि िबना ास रहो और भीतर ही भीतर lsquoहिर ॐhelliprsquo lsquoहिर ॐhelliprsquo का मानिसक

जाप करो | िफ़र स फ़फ़ड़ म ास भरो | पव रीित स ास यथाशि अनदर िटकाकर बाद म धीर-धीर छोड़त हए lsquoॐhelliprsquo का गजन करो | दस-पिह िमनट ऐस ाणायाम सिहत उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo की धविन करक शानत हो जाओ | सब

यास छोड़ दो | वि य को आकाश की ओर फ़लन दो | आकाश क अनदर पथवी ह | पथवी पर अनक दश अनक समि एव अनक लोग ह | उनम स एक

आपका शरीर आसन पर बठा हआ ह | इस पर य को आप मानिसक आख स भावना स दखत

रहो | आप शरीर नही हो बि क अनक शरीर दश सागर पथवी मह न ऽ सयर चनि एव पर ा ड़ क

ा हो सा ी हो | इस सा ी भाव म जाग जाओ | थोड़ी दर क बाद िफ़र स ाणायाम सिहत lsquoॐhelliprsquo का जाप करो और शानत होकर अपन िवचार को दखत रहो | इस अवःथा म ढ़ िन य करो िक lsquoम जसा चहता ह वसा होकर रहगा |rsquo िवषयसख स ा धन-

दौलत इतयािद की इ छा न करो कय िक िन यबल या आतमबलरपी हाथी क पदिच म और सभी क पदिच समािव हो ही जायग | आतमानदरपी सयर क उदय होन क बाद िम टी क तल क दीय क ाकाश रपी शि सखाभास की गलामी कौन कर

िकसी भी भावना को साकार करन क िलय दय को करद ड़ाल ऐसी िन यातमक बिल वि होनी आवशयक ह | अनतःकरण क गहर-स-गहर दश म चोट कर ऐसा ाण भरक िन बल का आवाहन करो | सीना तानकर खड़ हो जाओ अपन मन की दीन-हीन दखद मानयताओ को कचल

ड़ालन क िलय | सदा ःमरण रह की इधर-उधर भटकती वि य क साथ त हारी शि भी िबखरती रहती ह | अतः वि य को बहकाओ नही | तमाम वि य को एकिऽत करक साधनाकाल म आतमिचनतन म लगाओ और यवहारकाल म जो कायर करत हो उसम लगाओ | द िच होकर हरक कायर करो | अपन ःवभाव म स आवश को सवरथा िनमरल कर दो | आवश म आकर कोई िनणरय मत लो कोई िबया मत करो | सदा शानत वि धारण करन का अ यास करो | िवचारशील एव सनन रहो | ःवय अचल रहकर सागर की तरह सब वि य की तरग को अपन

भीतर समालो | जीवमाऽ को अपना ःवरप समझो | सबस ःनह रखो | िदल को यापक रखो | सकिच ता का िनवारण करत रहो | ख ड़ातमक वि का सवरथा तयाग करो | िजनको ानी महापरष का सतसग और अधयातमिव ा का लाभ िमल जाता ह उसक जीवन स

दःख िवदा होन लगत ह | ॐ आननद आतमिन ा म जाग हए महापरष क सतसग एव सतसािहतय स जीवन को भि और वदात स प

एव पलिकत करो | कछ ही िदन क इस सघन योग क बाद अनभव होन लगगा िक भतकाल क

नकारतमक ःवभाव सशयातमक-हािनकारक क पनाओ न जीवन को कचल ड़ाला था िवषला कर िदया था | अब िन यबल क चमतकार का पता चला | अततरम म आिवरभत िद य खज़ाना अब

िमला | ार ध की बिड़या अब टटन लगी | ठ क ह न करोग ना िह मत पढ़कर रख मत दना इस पिःतका को | जीवन म इसको बार-बार पढ़त रहो | एक िदन म यह पणर ना होगा | बार-बार अ यास करो | त हार िलय यह एक ही पिःतका काफ़ी ह | अनय कचराप टी ना पड़ोग तो चलगा | शाबाश वीर शाबाश

  • परसतावना
  • जीवन रसायन
  • गर भकति एक अमोघ साधना
  • शरी राम-वशिषठ सवाद
  • आतमबल का आवाहन
  • आतमबल कस जगाय
Page 34: जीवन रसायन - HariOmGroup · ‘जीवन रसायन’ का यह िदय कटोरा आत्मरस के िपपासुओं हाथ

236) ससार मझ कया आनद द सकता ह स पणर आनद मर भीतर स आया ह | म ही स पणर आननद ह स पणर मिहमा एव स पणर सख ह | 237) जीवन की समःत आवयकताए जीवन म उपिःथत ह परनत जीवन को जब हम

बा रग म रग दत ह तब जीवन का वाःतिवक रप हम नही जान पात | 238) िननदक की िननदा स म कय मरझाऊ शसक की शसा स म कय फल िननदा स म घटता नही और शसा स म बढ़ता नही | जसा ह वसा ही रहता ह | िफर िननदा-ःतित स

खटक कसी 239) ससार व ससार की समःयाओ म जो सबस अिधक फस हए ह उनही को वदानत की सबस अिधक आवयकता ह | बीमार को ही औषिध की यादा आवयकता ह | कय जी ठ क ह न 240) जगत क पाप व अतयाचार की बात मत करो लिकन अब भी आपको जगत म पाप

िदखता ह इसिलय रोओ | 241) हम यिद जान ल िक जगत म आतमा क िसवाय दसरा कछ ह ही नही और जो कछ

िदखता ह वह ःव नमाऽ ह तो इस जगत क दःख-दािरिय पाप-प य कछ भी हम अशात नही कर सकत | 242) िव ान दाशरिनक व आचाय की धमकी तथा अनमह आलोचना या अनमित

ानी पर कोई भाव नही ड़ाल सकती | 243) ह यि रप अननत आप अपन पर पर खड़ रहन का साहस करो समःत िव का बोझ आप िखलौन की तरह उठा लोग | 244) िसह की गजरना व नरिसह की ललकार तलवार की धार व साप की फफकार तपःवी की धमकी व नयायधीश की फटकारइन सबम आपका ही काश चमक रहा ह | आप इनस

भयभीत कय होत हो उलझन कय महसस करत हो मरी िब ली मझको याऊ वाली बात कय

होन दत हो 245) ससार हमारा िसफ़र िखलोना ही ह और कछ नही | अबोध बालक ही िखलौन स

भयभीत होता ह आसि करता ह िवचारशील यि नही |

246) जब तक अिव ा दर नही होगी तब तक चोरी जआ दार यिभचार कभी बद न

ह ग चाह लाख कोिशश करो | 247) आप हमशा अदर का धयान रखो | पहल हमारा भीतरी पतन होता ह | बा पतन तो इसका पिरणाम माऽ ह | 248) तयाग स हमशा आनद िमलता ह | जब तक आपक पास एक भी चीज़ बाकी ह तब

तक आप उस चीज़ क बधन म बध रहोग | आघात व तयाघात हमशा समान िवरोधी होत ह | 249) िनि तता ही आरो यता की सबस बड़ी दवाई ह | 250) सख अपन िसर पर दख का मकट पहन कर आता ह | जो सख को अपनायगा उस

दख को भी ःवीकार करना पड़गा | 251) म (आतमा) सबका ा ह | मरा ा कोई नही | 252) हजार म स कोई एक परष भीतर स शात िच वाला रहकर बाहर स ससारी जसा यवहार कर सकता ह | 253) सतय क िलए यिद शरीर का तयाग करना पड़ तो कर दना | यही आिखरी ममता ह जो हम तोड़नी होगी | 254) भय िचनता बचनी स ऊपर उठो | आपको ान का अनभव होगा | 255) आपको कोई भी हािन नही पहचा सकता | कवल आपक खयालात ही आपक पीछ पड़ ह | 256) म का अथर ह अपन पड़ोसी तथा सपकर म आनवाल क साथ अपनी वाःतिवक अभदता का अनभव करना | 257) ओ यार अपन खोय हए आतमा को एक बार खोज लो | धरती व आसमान क शासक आप ही हो | 258) सदव सम और सनन रहना ई र की सव पिर भि ह |

259) जब तक िच म ढ़ता न आ जाय िक शा की िविधय का पालन छोड़ दन स भी दय का यथाथर भि भाव न नही होगा तब तक शा की िविधय को पालत रहो |

गर भि एक अमोघ साधना 1 जनम मरण क िवषचब स म होन का कोई मागर नही ह कया सख-दःख हषर-शोक लाभ-

हािन मान-अपमान की थ पड़ स बचन का कोई उपाय नही ह कया

हअवय ह | ह िय आतमन नाशवान पदाथ स अपना मन वािपस लाकर सदगर क

चरणकमल म लगाओ | गरभि योग का आौय लो | गरसवा ऐसा अमोघ साधन ह िजसस

व रमान जीवन आननदमय बनता ह और शा त सख क ार खलत ह |

गर सवत त नर धनय यहा | ितनक नही दःख यहा न वहा || 2 स च सदगर की की हई भि िशय म सासािरक पदाथ क वरा य एव अनासि जगाती ह

परमातमा क ित म क पप महकाती ह | 3 तयक िशय सदगर की सवा करना चाहता ह लिकन अपन ढग स | सदगर चाह उस ढग स

सवा करन को कोई ततपर नही | जो िवरला साधक गर चाह उस ढ़ग स सवा कर सकता ह उस कोई कमी नही रहती |

िन सदगर की सवा स उनकी कपा ा होती ह और उस कपा स न िमल सक ऐसा तीन लोक म कछ भी नही ह | 4 गर िशय का स बनध पिवऽतम स बनध ह | ससार क तमाम बनधन स छड़ाकर वह मि क मागर पर ःथान कराता ह | यह स बनध जीवनपयरनत का स बनध ह | यह बात अपन दय की डायरी म सवणर-अ र स िलख लो | 5 उ ल सयर क काश क अिःततव को मान या न मान िफर भी सयर हमशा काशता ह | चचल मन का मनय मान या न मान लिकन सदगर की परमक याणकारी कपा सदव बरसती ही रहती ह | 6 सदगर की चरणरज म ःनान िकय िबना कवल किठन तप यार करन स या वद का

अधयन करन स वदानत का रहःय कट नही होता आतमानद का अमत नही िमलता | 7 दशरन शा क चाह िकतन मनथ पढ़ो हजार वष तक िहमालय की गफा म तप करो वष तक ाणायाम करो जीवनपयरनत शीषारसन करो समम िव म वास करक याखान दो िफर भी सदगर की कपा क िबना आतम ान नही होता | अतः िनरािभमानी सरल िनजाननद म मःत दयाल ःवभाव क आतम-सा ातकारी सदगर क चरण म जाओ | जीवन को धनय बनाओ | 8 सदगर की सवा िकय िबना शा का अधयन करना मम साधक क िलय समय बरबाद करन क बराबर ह | 9 िजसको सदगर ा हए ह ऐस िशय क िलय इस िव म कछ भी अा य नही ह | सदगर िशय को िमली हई परमातमा की अम य भट ह | अर नहीhellipनही व तो िशय क सम साकार रप म कट हए परमातमा ःवय ह | 10 सदगर क साथ एक ण िकया हआ सतसग लाख वष क तप स अननत गना ौ ह | आख क िनमषमाऽ म सदगर की अमतवष ि िशय क जनम-जनम क पाप को जला सकती ह | 11 सदगर जसा मपणर कपाल िहतिचनतक िव भर म दसरा कोई नही ह | 12 बाढ़ क समय याऽी यिद तफानी नदी को िबना नाव क पार कर सक तो साधक भी िबना सदगर क अपन जीवन क आिखरी लआय को िस कर सकता ह | यानी य दोन बात स भव ह |

अतः यार साधक मनमखी साधना की िज करना छोड़ दो | गरमखी साधना करन म ही सार ह | 13 सदगर क चरणकमल का आौय लन स िजस आननद का अनभव होता ह उसक आग िऽलोकी का साा य त छ ह | 14 आतम-सा ातकार क मागर म सबस महान शऽ अहभाव का नाश करन क िलए सदगर की आ ा का पालन अमोघ श ह | 15 रसोई सीखन क िलय कोई िसखानवाला चािहय िव ान और गिणत सीखन क िलय

अधयापक चािहय तो कया िव ा सदगर क िबना ही सीख लोग 16 सदगरकपा की स पि जसा दसरा कोई खजाना िव भर म नही | 17 सदगर की आ ा का उ लघन करना यह अपनी क खोदन क बराबर ह | 18 सदगर क कायर को शका की ि स दखना महापातक ह | 19 गरभि व गरसवा - य साधनारपी नौका की दो पतवार ह | उनकी मदद स िशय ससारसागर को पार कर सकता ह | 20 सदगर की कसौटी करना असभव ह | एक िववकाननद ही दसर िववकाननद को पहचान सकत ह | ब को जानन क िलय दसर ब की आवयकता रहती ह | एक रामतीथर का रहःय दसर रामतीथर ही पा सकत ह |

अतः सदगर की कसौटी करन की च ा छोड़कर उनको पिरपणर पर परमातमा मानो |

तभी जीवन म वाःतिवक लाभ होगा | 21 गरभि योग का आौय लकर आप अपनी खोई हई िद यता को पनः ा करो सख-दःख जनम-मतय आिद सब न स पार हो जाओ | 22 गरभि योग मान गर की सवा क ारा मन और िवकार पर िनयऽण एव पनः सःकरण | 23 िशय अपन गर क चरणकमल म णाम करता ह | उन पर ौ फल की वषार करक उनकी ःतित करता ह ldquoह परम प य पिवऽ गरदव मझ सव च सख ा हआ ह | म िन ा स जनम-मतय की पर परा स म हआ ह | म िनिवरक प समािध का श सख भोग रहा ह | जगत क िकसी भी कोन म म म ता स िवचरण कर सकता ह | सब पर मरी सम ि ह | मन ाकत मन का तयाग िकया ह | मन सब सक प एव रिच-अरिच का तयाग िकया ह | अब म अख ड शाित म िवौाित पा रहा ह hellip आननदमय हो रहा ह | म इस पणर अवःथा का वणरन नही कर पाता | ह प य गरदव म आवाक बन गया ह | इस दःतर भवसागर को पार करन म आपन

मझ सहायता की ह | अब तक मझ कवल अपन शरीर म ही स पणर िव ास था | मन िविभनन योिनय म अस य जनम िलय | ऐसी सव च िनभरय अवःथा मझ कौन स पिवऽ कम क कारण ा हई ह यह म नही जानता | सचमच यह एक दलरभ भा य ह |

यह एक महान उतक लाभ ह | अब म आननद स नाचता ह | मर सब दःख न हो गय | मर सब मनोरथ पणर हए ह |

मर कायर स पनन हए ह | मन सब वािछत वःतए ा की ह | मरी इ छा पिरपणर हई ह | आप मर स च माता-िपता हो | मरी व रमान िःथित म म दसर क सम िकस कार कट कर सक सवरऽ सख और आननद का अननत सागर मझ लहराता हआ िदख रहा ह | मर अतःच िजसस खल गय वह महावाकय lsquoत वमिसrsquo ह | उपिनषद एव वदानतसऽ को भी धनयवाद | िजनह न िन गर का एव उपिनषद क महावाकय का रप धारण िकया ह | ऐस ौी यासजी को णाम ौी शकराचायर को णाम सासािरक मनय क िसर पर गर क चरणामत का एक िबनद भी िगर तो भी उसक ःब दःख का नाश होता ह | यिद एक िन परष को व पहनाय जाय तो सार िव को व पहनान एव भोजन करवान क बराबर ह कय िक िन परष सचराचर िव म या ह | सबम व ही ह |rdquo

ॐhellip ॐ hellip ॐ hellip

ःवामी िशवानद जी

ौी राम-विश सवाद ौी विश जी कहत ह ldquoह रघकलभषण ौी राम अनथर ःवरप िजतन सासािरक पदाथर ह व सब जल म तरग क समान िविवध रप धारण करक चमतकार उतपनन करत ह अथारत ई छाए उतपनन करक जीव को मोह म फसात ह | परत जस सभी तरग जल ःवरप ही ह उसी कार सभी पदाथर वःततः न र ःवभाव वाल ह |

बालक की क पना स आकाश म य और िपशाच िदखन लगत ह परनत बि मान मनय क िलए उन य और िपशाच का कोई अथर नही | इसी कार अ ानी क िच म यह जगत सतय हो ऐसा लगता ह जबिक हमार जस ािनय क िलय यह जगत कछ भी नही | यह समम िव पतथर पर बनी हई पतिलय की सना की तरह रपालोक तथा अतर-बा िवषय स शनय ह | इसम सतयता कसी परनत अ ािनय को यह िव सतय लगता ह |rdquo विश जी बोल ldquoौी राम जगत को सतय ःवरप म जानना यह ाित ह मढ़ता ह | उस िमथया अथारत कि पत समझना यही उिचत समझ ह | ह राघव तव ा अहता आिद सब िवम-िवलास शात िशवःवरप श ःवरप ही ह | इसिलय मझ तो क अितिर और कछ भी नही िदखता | आकाश म जस जगल नही वस ही म जगत नही ह | ह राम ार ध वश ा कम स िजस परष की च ा कठपतली की तरह ई छाशनय और याकलतारिहत होती ह वह शानत मनवाला परष जीवनम मिन ह | ऐस जीवनम ानी को इस

जगत का जीवन बास की तरह बाहर-भीतर स शनय रसहीन और वासना-रिहत लगता ह | इस य पच म िजस रिच नही दय म िचनमाऽ अ य ही अ छा लगता ह ऐस परष न

भीतर तथा बाहर शािनत ा कर ली ह और इस भवसागर स पार हो गया ह | रघनदन श व ा कहत ह िक मन का ई छारिहत होना यही समािध ह कय िक ई छाओ का तयाग करन स मन को जसी शािनत िमलती ह ऐसी शािनत सकड़ उपदश स भी नही िमलती | ई छा की उतपि स जसा दःख ा होता ह ऐसा दःख तो नरक म भी नही | ई छाओ की शािनत

स जसा सख होता ह ऐसा सख ःवगर तो कया लोक म भी नही होता | अतः समःत शा तपःया यम और िनयम का िनचोड़ यही ह िक ई छामाऽ दःखदायी ह और ई छा का शमन मो ह | ाणी क दय म जसी-जसी और िजतनी-िजतनी ई छाय उतपनन होती ह उतना ही दख स वह

ड़रता रहता ह | िववक-िवचार ारा ई छाय जस-जस शानत होती जाती ह वस-वस दखरपी छत की बीमारी िमटती जाती ह |

आसि क कारण सासािरक िवषय की ई छाय य - य गहनीभत होती जाती ह तय -तय

दःख की िवषली तरग बढ़ती जाती ह | अपन परषाथर क बल स इस ई छारपी यािध का उपचार यिद नही िकया जाय तो इस यािध स छटन क िलय अनय कोई औषिध नही ह ऐसा म ढ़तापवरक

मानता ह | एक साथ सभी ई छाओ का स पणर तयाग ना हो सक तो थोड़ी-थोड़ी ई छाओ का धीर-धीर तयाग

करना चािहय परत रहना चािहय ई छा क तयाग म रत कय िक सनमागर का पिथक दखी नही होता | जो नराधम अपनी वासना और अहकार को ीण करन का य नही करता वह िदन -िदन अपन

को रावण की तरह अधर कऐ म ढ़कल रहा ह | ई छा ही दख की जनमदाऽी इस ससाररपी बल का बीज ह | यिद इस बीज को आतम ानरपी अि न स ठ क-ठ क जला िदया तो पनः यह अकिरत नही होता | रघकलभषण राम ई छामाऽ ससार ह और ई छाओ का अभाव ही िनवारण ह | अतः अनक कार की माथाप ची म ना पड़कर कवल ऐसा य करना चािहय िक ई छा उतपनन ना हो | अपनी बि स ई छा का िवनाश करन को जो ततपर नही ऐस अभाग को शा और गर का उपदश

भी कया करगा जस अपनी जनमभमी जगल म िहरणी की मतय िनि त ह उसी कार अनकिवध दख का िवःतार कारनवाल ई छारपी िवषय-िवकार स य इस जगत म मनय की मतय िनि त ह | यिद मानव ई छाओ क कारण ब च -सा मढ़ ना बन तो उस आतम ान क िलय अ प य ही करना पड़ | इसिलय सभी कार स ई छाओ को शानत करना चािहय | ई छा क शमन स परम पद की ाि होती ह | ई छारिहत हो जाना यही िनवारण ह और ई छाय

होना ही बधन ह | अतः यथाशि ई छा को जीतना चािहय | भला इतना करन म कया किठनाई ह जनम जरा यािध और मतयरपी कटीली झािड़य और खर क व - समह की जड़ भी ई छा ही ह

| अतः शमरपी अि न स अदर-ही-अदर बीज को जला ड़ालना चािहय| जहा ई छाओ का अभाव ह

वहा मि िनि त ह |

िववक वरा य आिद साधन स ई छा का सवरथा िवनाश करना चािहय | ई छा का सबध जहा-जहा ह वहा-वहा पाप प य दखरािशया और ल बी पीड़ाओ स य बधन को हािज़र ही समझो | परष

की आतिरक ई छा य - य शानत होती जाती ह तय -तय मो क िलय उसका क याणकारक

साधन बढ़ता जाता ह | िववकहीन ई छा को पोसना उस पणर करना यह तो ससाररपी िवष व को पानी स सीचन क समान ह |rdquo

- ौीयोगविश महारामायण

आतमबल का आवाहन कया आप अपन-आपको दबरल मानत हो लघतामथी म उलझ कर पिरिःतिथय स िपस रह हो

अपना जीवन दीन-हीन बना बठ हो hellipतो अपन भीतर सष आतमबल को जगाओ | शरीर चाह ी का हो चाह परष का कित क साा य म जो जीत ह व सब ी ह और कित क बनधन स पार अपन ःवरप की पहचान िजनह न कर ली ह अपन मन की गलामी की बिड़या तोड़कर िजनह न फ क दी ह व परष ह | ी या परष शरीर एव मानयताए होती ह | तम तो तन-मन स पार िनमरल आतमा हो | जागोhellipउठोhellipअपन भीतर सोय हय िन यबल को जगाओ | सवरदश सवरकाल म सव म

आतमबल को िवकिसत करो | आतमा म अथाह सामथयर ह | अपन को दीन-हीन मान बठ तो िव म ऐसी कोई स ा नही जो त ह ऊपर उठा सक | अपन आतमःवरप म िति त हो गय तो िऽलोकी म ऐसी कोई हःती नही जो त ह दबा सक | भौितक जगत म वाप की शि ईलकशोिनक शि िव त की शि गरतवाकषरण की शि बड़ी मानी जाती ह लिकन आतमबल उन सब शि य का सचालक बल ह | आतमबल क सािननधय म आकर पग ार ध को पर िमल जात ह दव की दीनता पलायन हो जाती ह ितकल पिरिःतिथया अनकल हो जाती ह | आतमबल सवर िरि -िसि य का िपता ह |

आतमबल कस जगाय हररोज़ तःकाल ज दी उठकर सय दय स पवर ःनानािद स िनवत हो जाओ | ःव छ पिवऽ ःथान

म आसन िबछाकर पवारिभमख होकर प ासन या सखासन म बठ जाओ | शानत और सनन वि

धारण करो | मन म ढ भावना करो िक म कित-िनिमरत इस शरीर क सब अभाव को पार करक सब

मिलनताओ-दबरलताओ स िप ड़ छड़ाकर आतमा की मिहमा म जागकर ही रहगा |

आख आधी खली आधी बद रखो | अब फ़फ़ड़ म खब ास भरो और भावना करो की ास क साथ

म सयर का िद य ओज भीतर भर रहा ह | ास को यथाशि अनदर िटकाय रखो | िफ़र lsquoॐhelliprsquo का ल बा उ चारण करत हए ास को धीर-धीर छोड़त जाओ | ास क खाली होन क बाद तरत ास ना लो | यथाशि िबना ास रहो और भीतर ही भीतर lsquoहिर ॐhelliprsquo lsquoहिर ॐhelliprsquo का मानिसक

जाप करो | िफ़र स फ़फ़ड़ म ास भरो | पव रीित स ास यथाशि अनदर िटकाकर बाद म धीर-धीर छोड़त हए lsquoॐhelliprsquo का गजन करो | दस-पिह िमनट ऐस ाणायाम सिहत उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo की धविन करक शानत हो जाओ | सब

यास छोड़ दो | वि य को आकाश की ओर फ़लन दो | आकाश क अनदर पथवी ह | पथवी पर अनक दश अनक समि एव अनक लोग ह | उनम स एक

आपका शरीर आसन पर बठा हआ ह | इस पर य को आप मानिसक आख स भावना स दखत

रहो | आप शरीर नही हो बि क अनक शरीर दश सागर पथवी मह न ऽ सयर चनि एव पर ा ड़ क

ा हो सा ी हो | इस सा ी भाव म जाग जाओ | थोड़ी दर क बाद िफ़र स ाणायाम सिहत lsquoॐhelliprsquo का जाप करो और शानत होकर अपन िवचार को दखत रहो | इस अवःथा म ढ़ िन य करो िक lsquoम जसा चहता ह वसा होकर रहगा |rsquo िवषयसख स ा धन-

दौलत इतयािद की इ छा न करो कय िक िन यबल या आतमबलरपी हाथी क पदिच म और सभी क पदिच समािव हो ही जायग | आतमानदरपी सयर क उदय होन क बाद िम टी क तल क दीय क ाकाश रपी शि सखाभास की गलामी कौन कर

िकसी भी भावना को साकार करन क िलय दय को करद ड़ाल ऐसी िन यातमक बिल वि होनी आवशयक ह | अनतःकरण क गहर-स-गहर दश म चोट कर ऐसा ाण भरक िन बल का आवाहन करो | सीना तानकर खड़ हो जाओ अपन मन की दीन-हीन दखद मानयताओ को कचल

ड़ालन क िलय | सदा ःमरण रह की इधर-उधर भटकती वि य क साथ त हारी शि भी िबखरती रहती ह | अतः वि य को बहकाओ नही | तमाम वि य को एकिऽत करक साधनाकाल म आतमिचनतन म लगाओ और यवहारकाल म जो कायर करत हो उसम लगाओ | द िच होकर हरक कायर करो | अपन ःवभाव म स आवश को सवरथा िनमरल कर दो | आवश म आकर कोई िनणरय मत लो कोई िबया मत करो | सदा शानत वि धारण करन का अ यास करो | िवचारशील एव सनन रहो | ःवय अचल रहकर सागर की तरह सब वि य की तरग को अपन

भीतर समालो | जीवमाऽ को अपना ःवरप समझो | सबस ःनह रखो | िदल को यापक रखो | सकिच ता का िनवारण करत रहो | ख ड़ातमक वि का सवरथा तयाग करो | िजनको ानी महापरष का सतसग और अधयातमिव ा का लाभ िमल जाता ह उसक जीवन स

दःख िवदा होन लगत ह | ॐ आननद आतमिन ा म जाग हए महापरष क सतसग एव सतसािहतय स जीवन को भि और वदात स प

एव पलिकत करो | कछ ही िदन क इस सघन योग क बाद अनभव होन लगगा िक भतकाल क

नकारतमक ःवभाव सशयातमक-हािनकारक क पनाओ न जीवन को कचल ड़ाला था िवषला कर िदया था | अब िन यबल क चमतकार का पता चला | अततरम म आिवरभत िद य खज़ाना अब

िमला | ार ध की बिड़या अब टटन लगी | ठ क ह न करोग ना िह मत पढ़कर रख मत दना इस पिःतका को | जीवन म इसको बार-बार पढ़त रहो | एक िदन म यह पणर ना होगा | बार-बार अ यास करो | त हार िलय यह एक ही पिःतका काफ़ी ह | अनय कचराप टी ना पड़ोग तो चलगा | शाबाश वीर शाबाश

  • परसतावना
  • जीवन रसायन
  • गर भकति एक अमोघ साधना
  • शरी राम-वशिषठ सवाद
  • आतमबल का आवाहन
  • आतमबल कस जगाय
Page 35: जीवन रसायन - HariOmGroup · ‘जीवन रसायन’ का यह िदय कटोरा आत्मरस के िपपासुओं हाथ

246) जब तक अिव ा दर नही होगी तब तक चोरी जआ दार यिभचार कभी बद न

ह ग चाह लाख कोिशश करो | 247) आप हमशा अदर का धयान रखो | पहल हमारा भीतरी पतन होता ह | बा पतन तो इसका पिरणाम माऽ ह | 248) तयाग स हमशा आनद िमलता ह | जब तक आपक पास एक भी चीज़ बाकी ह तब

तक आप उस चीज़ क बधन म बध रहोग | आघात व तयाघात हमशा समान िवरोधी होत ह | 249) िनि तता ही आरो यता की सबस बड़ी दवाई ह | 250) सख अपन िसर पर दख का मकट पहन कर आता ह | जो सख को अपनायगा उस

दख को भी ःवीकार करना पड़गा | 251) म (आतमा) सबका ा ह | मरा ा कोई नही | 252) हजार म स कोई एक परष भीतर स शात िच वाला रहकर बाहर स ससारी जसा यवहार कर सकता ह | 253) सतय क िलए यिद शरीर का तयाग करना पड़ तो कर दना | यही आिखरी ममता ह जो हम तोड़नी होगी | 254) भय िचनता बचनी स ऊपर उठो | आपको ान का अनभव होगा | 255) आपको कोई भी हािन नही पहचा सकता | कवल आपक खयालात ही आपक पीछ पड़ ह | 256) म का अथर ह अपन पड़ोसी तथा सपकर म आनवाल क साथ अपनी वाःतिवक अभदता का अनभव करना | 257) ओ यार अपन खोय हए आतमा को एक बार खोज लो | धरती व आसमान क शासक आप ही हो | 258) सदव सम और सनन रहना ई र की सव पिर भि ह |

259) जब तक िच म ढ़ता न आ जाय िक शा की िविधय का पालन छोड़ दन स भी दय का यथाथर भि भाव न नही होगा तब तक शा की िविधय को पालत रहो |

गर भि एक अमोघ साधना 1 जनम मरण क िवषचब स म होन का कोई मागर नही ह कया सख-दःख हषर-शोक लाभ-

हािन मान-अपमान की थ पड़ स बचन का कोई उपाय नही ह कया

हअवय ह | ह िय आतमन नाशवान पदाथ स अपना मन वािपस लाकर सदगर क

चरणकमल म लगाओ | गरभि योग का आौय लो | गरसवा ऐसा अमोघ साधन ह िजसस

व रमान जीवन आननदमय बनता ह और शा त सख क ार खलत ह |

गर सवत त नर धनय यहा | ितनक नही दःख यहा न वहा || 2 स च सदगर की की हई भि िशय म सासािरक पदाथ क वरा य एव अनासि जगाती ह

परमातमा क ित म क पप महकाती ह | 3 तयक िशय सदगर की सवा करना चाहता ह लिकन अपन ढग स | सदगर चाह उस ढग स

सवा करन को कोई ततपर नही | जो िवरला साधक गर चाह उस ढ़ग स सवा कर सकता ह उस कोई कमी नही रहती |

िन सदगर की सवा स उनकी कपा ा होती ह और उस कपा स न िमल सक ऐसा तीन लोक म कछ भी नही ह | 4 गर िशय का स बनध पिवऽतम स बनध ह | ससार क तमाम बनधन स छड़ाकर वह मि क मागर पर ःथान कराता ह | यह स बनध जीवनपयरनत का स बनध ह | यह बात अपन दय की डायरी म सवणर-अ र स िलख लो | 5 उ ल सयर क काश क अिःततव को मान या न मान िफर भी सयर हमशा काशता ह | चचल मन का मनय मान या न मान लिकन सदगर की परमक याणकारी कपा सदव बरसती ही रहती ह | 6 सदगर की चरणरज म ःनान िकय िबना कवल किठन तप यार करन स या वद का

अधयन करन स वदानत का रहःय कट नही होता आतमानद का अमत नही िमलता | 7 दशरन शा क चाह िकतन मनथ पढ़ो हजार वष तक िहमालय की गफा म तप करो वष तक ाणायाम करो जीवनपयरनत शीषारसन करो समम िव म वास करक याखान दो िफर भी सदगर की कपा क िबना आतम ान नही होता | अतः िनरािभमानी सरल िनजाननद म मःत दयाल ःवभाव क आतम-सा ातकारी सदगर क चरण म जाओ | जीवन को धनय बनाओ | 8 सदगर की सवा िकय िबना शा का अधयन करना मम साधक क िलय समय बरबाद करन क बराबर ह | 9 िजसको सदगर ा हए ह ऐस िशय क िलय इस िव म कछ भी अा य नही ह | सदगर िशय को िमली हई परमातमा की अम य भट ह | अर नहीhellipनही व तो िशय क सम साकार रप म कट हए परमातमा ःवय ह | 10 सदगर क साथ एक ण िकया हआ सतसग लाख वष क तप स अननत गना ौ ह | आख क िनमषमाऽ म सदगर की अमतवष ि िशय क जनम-जनम क पाप को जला सकती ह | 11 सदगर जसा मपणर कपाल िहतिचनतक िव भर म दसरा कोई नही ह | 12 बाढ़ क समय याऽी यिद तफानी नदी को िबना नाव क पार कर सक तो साधक भी िबना सदगर क अपन जीवन क आिखरी लआय को िस कर सकता ह | यानी य दोन बात स भव ह |

अतः यार साधक मनमखी साधना की िज करना छोड़ दो | गरमखी साधना करन म ही सार ह | 13 सदगर क चरणकमल का आौय लन स िजस आननद का अनभव होता ह उसक आग िऽलोकी का साा य त छ ह | 14 आतम-सा ातकार क मागर म सबस महान शऽ अहभाव का नाश करन क िलए सदगर की आ ा का पालन अमोघ श ह | 15 रसोई सीखन क िलय कोई िसखानवाला चािहय िव ान और गिणत सीखन क िलय

अधयापक चािहय तो कया िव ा सदगर क िबना ही सीख लोग 16 सदगरकपा की स पि जसा दसरा कोई खजाना िव भर म नही | 17 सदगर की आ ा का उ लघन करना यह अपनी क खोदन क बराबर ह | 18 सदगर क कायर को शका की ि स दखना महापातक ह | 19 गरभि व गरसवा - य साधनारपी नौका की दो पतवार ह | उनकी मदद स िशय ससारसागर को पार कर सकता ह | 20 सदगर की कसौटी करना असभव ह | एक िववकाननद ही दसर िववकाननद को पहचान सकत ह | ब को जानन क िलय दसर ब की आवयकता रहती ह | एक रामतीथर का रहःय दसर रामतीथर ही पा सकत ह |

अतः सदगर की कसौटी करन की च ा छोड़कर उनको पिरपणर पर परमातमा मानो |

तभी जीवन म वाःतिवक लाभ होगा | 21 गरभि योग का आौय लकर आप अपनी खोई हई िद यता को पनः ा करो सख-दःख जनम-मतय आिद सब न स पार हो जाओ | 22 गरभि योग मान गर की सवा क ारा मन और िवकार पर िनयऽण एव पनः सःकरण | 23 िशय अपन गर क चरणकमल म णाम करता ह | उन पर ौ फल की वषार करक उनकी ःतित करता ह ldquoह परम प य पिवऽ गरदव मझ सव च सख ा हआ ह | म िन ा स जनम-मतय की पर परा स म हआ ह | म िनिवरक प समािध का श सख भोग रहा ह | जगत क िकसी भी कोन म म म ता स िवचरण कर सकता ह | सब पर मरी सम ि ह | मन ाकत मन का तयाग िकया ह | मन सब सक प एव रिच-अरिच का तयाग िकया ह | अब म अख ड शाित म िवौाित पा रहा ह hellip आननदमय हो रहा ह | म इस पणर अवःथा का वणरन नही कर पाता | ह प य गरदव म आवाक बन गया ह | इस दःतर भवसागर को पार करन म आपन

मझ सहायता की ह | अब तक मझ कवल अपन शरीर म ही स पणर िव ास था | मन िविभनन योिनय म अस य जनम िलय | ऐसी सव च िनभरय अवःथा मझ कौन स पिवऽ कम क कारण ा हई ह यह म नही जानता | सचमच यह एक दलरभ भा य ह |

यह एक महान उतक लाभ ह | अब म आननद स नाचता ह | मर सब दःख न हो गय | मर सब मनोरथ पणर हए ह |

मर कायर स पनन हए ह | मन सब वािछत वःतए ा की ह | मरी इ छा पिरपणर हई ह | आप मर स च माता-िपता हो | मरी व रमान िःथित म म दसर क सम िकस कार कट कर सक सवरऽ सख और आननद का अननत सागर मझ लहराता हआ िदख रहा ह | मर अतःच िजसस खल गय वह महावाकय lsquoत वमिसrsquo ह | उपिनषद एव वदानतसऽ को भी धनयवाद | िजनह न िन गर का एव उपिनषद क महावाकय का रप धारण िकया ह | ऐस ौी यासजी को णाम ौी शकराचायर को णाम सासािरक मनय क िसर पर गर क चरणामत का एक िबनद भी िगर तो भी उसक ःब दःख का नाश होता ह | यिद एक िन परष को व पहनाय जाय तो सार िव को व पहनान एव भोजन करवान क बराबर ह कय िक िन परष सचराचर िव म या ह | सबम व ही ह |rdquo

ॐhellip ॐ hellip ॐ hellip

ःवामी िशवानद जी

ौी राम-विश सवाद ौी विश जी कहत ह ldquoह रघकलभषण ौी राम अनथर ःवरप िजतन सासािरक पदाथर ह व सब जल म तरग क समान िविवध रप धारण करक चमतकार उतपनन करत ह अथारत ई छाए उतपनन करक जीव को मोह म फसात ह | परत जस सभी तरग जल ःवरप ही ह उसी कार सभी पदाथर वःततः न र ःवभाव वाल ह |

बालक की क पना स आकाश म य और िपशाच िदखन लगत ह परनत बि मान मनय क िलए उन य और िपशाच का कोई अथर नही | इसी कार अ ानी क िच म यह जगत सतय हो ऐसा लगता ह जबिक हमार जस ािनय क िलय यह जगत कछ भी नही | यह समम िव पतथर पर बनी हई पतिलय की सना की तरह रपालोक तथा अतर-बा िवषय स शनय ह | इसम सतयता कसी परनत अ ािनय को यह िव सतय लगता ह |rdquo विश जी बोल ldquoौी राम जगत को सतय ःवरप म जानना यह ाित ह मढ़ता ह | उस िमथया अथारत कि पत समझना यही उिचत समझ ह | ह राघव तव ा अहता आिद सब िवम-िवलास शात िशवःवरप श ःवरप ही ह | इसिलय मझ तो क अितिर और कछ भी नही िदखता | आकाश म जस जगल नही वस ही म जगत नही ह | ह राम ार ध वश ा कम स िजस परष की च ा कठपतली की तरह ई छाशनय और याकलतारिहत होती ह वह शानत मनवाला परष जीवनम मिन ह | ऐस जीवनम ानी को इस

जगत का जीवन बास की तरह बाहर-भीतर स शनय रसहीन और वासना-रिहत लगता ह | इस य पच म िजस रिच नही दय म िचनमाऽ अ य ही अ छा लगता ह ऐस परष न

भीतर तथा बाहर शािनत ा कर ली ह और इस भवसागर स पार हो गया ह | रघनदन श व ा कहत ह िक मन का ई छारिहत होना यही समािध ह कय िक ई छाओ का तयाग करन स मन को जसी शािनत िमलती ह ऐसी शािनत सकड़ उपदश स भी नही िमलती | ई छा की उतपि स जसा दःख ा होता ह ऐसा दःख तो नरक म भी नही | ई छाओ की शािनत

स जसा सख होता ह ऐसा सख ःवगर तो कया लोक म भी नही होता | अतः समःत शा तपःया यम और िनयम का िनचोड़ यही ह िक ई छामाऽ दःखदायी ह और ई छा का शमन मो ह | ाणी क दय म जसी-जसी और िजतनी-िजतनी ई छाय उतपनन होती ह उतना ही दख स वह

ड़रता रहता ह | िववक-िवचार ारा ई छाय जस-जस शानत होती जाती ह वस-वस दखरपी छत की बीमारी िमटती जाती ह |

आसि क कारण सासािरक िवषय की ई छाय य - य गहनीभत होती जाती ह तय -तय

दःख की िवषली तरग बढ़ती जाती ह | अपन परषाथर क बल स इस ई छारपी यािध का उपचार यिद नही िकया जाय तो इस यािध स छटन क िलय अनय कोई औषिध नही ह ऐसा म ढ़तापवरक

मानता ह | एक साथ सभी ई छाओ का स पणर तयाग ना हो सक तो थोड़ी-थोड़ी ई छाओ का धीर-धीर तयाग

करना चािहय परत रहना चािहय ई छा क तयाग म रत कय िक सनमागर का पिथक दखी नही होता | जो नराधम अपनी वासना और अहकार को ीण करन का य नही करता वह िदन -िदन अपन

को रावण की तरह अधर कऐ म ढ़कल रहा ह | ई छा ही दख की जनमदाऽी इस ससाररपी बल का बीज ह | यिद इस बीज को आतम ानरपी अि न स ठ क-ठ क जला िदया तो पनः यह अकिरत नही होता | रघकलभषण राम ई छामाऽ ससार ह और ई छाओ का अभाव ही िनवारण ह | अतः अनक कार की माथाप ची म ना पड़कर कवल ऐसा य करना चािहय िक ई छा उतपनन ना हो | अपनी बि स ई छा का िवनाश करन को जो ततपर नही ऐस अभाग को शा और गर का उपदश

भी कया करगा जस अपनी जनमभमी जगल म िहरणी की मतय िनि त ह उसी कार अनकिवध दख का िवःतार कारनवाल ई छारपी िवषय-िवकार स य इस जगत म मनय की मतय िनि त ह | यिद मानव ई छाओ क कारण ब च -सा मढ़ ना बन तो उस आतम ान क िलय अ प य ही करना पड़ | इसिलय सभी कार स ई छाओ को शानत करना चािहय | ई छा क शमन स परम पद की ाि होती ह | ई छारिहत हो जाना यही िनवारण ह और ई छाय

होना ही बधन ह | अतः यथाशि ई छा को जीतना चािहय | भला इतना करन म कया किठनाई ह जनम जरा यािध और मतयरपी कटीली झािड़य और खर क व - समह की जड़ भी ई छा ही ह

| अतः शमरपी अि न स अदर-ही-अदर बीज को जला ड़ालना चािहय| जहा ई छाओ का अभाव ह

वहा मि िनि त ह |

िववक वरा य आिद साधन स ई छा का सवरथा िवनाश करना चािहय | ई छा का सबध जहा-जहा ह वहा-वहा पाप प य दखरािशया और ल बी पीड़ाओ स य बधन को हािज़र ही समझो | परष

की आतिरक ई छा य - य शानत होती जाती ह तय -तय मो क िलय उसका क याणकारक

साधन बढ़ता जाता ह | िववकहीन ई छा को पोसना उस पणर करना यह तो ससाररपी िवष व को पानी स सीचन क समान ह |rdquo

- ौीयोगविश महारामायण

आतमबल का आवाहन कया आप अपन-आपको दबरल मानत हो लघतामथी म उलझ कर पिरिःतिथय स िपस रह हो

अपना जीवन दीन-हीन बना बठ हो hellipतो अपन भीतर सष आतमबल को जगाओ | शरीर चाह ी का हो चाह परष का कित क साा य म जो जीत ह व सब ी ह और कित क बनधन स पार अपन ःवरप की पहचान िजनह न कर ली ह अपन मन की गलामी की बिड़या तोड़कर िजनह न फ क दी ह व परष ह | ी या परष शरीर एव मानयताए होती ह | तम तो तन-मन स पार िनमरल आतमा हो | जागोhellipउठोhellipअपन भीतर सोय हय िन यबल को जगाओ | सवरदश सवरकाल म सव म

आतमबल को िवकिसत करो | आतमा म अथाह सामथयर ह | अपन को दीन-हीन मान बठ तो िव म ऐसी कोई स ा नही जो त ह ऊपर उठा सक | अपन आतमःवरप म िति त हो गय तो िऽलोकी म ऐसी कोई हःती नही जो त ह दबा सक | भौितक जगत म वाप की शि ईलकशोिनक शि िव त की शि गरतवाकषरण की शि बड़ी मानी जाती ह लिकन आतमबल उन सब शि य का सचालक बल ह | आतमबल क सािननधय म आकर पग ार ध को पर िमल जात ह दव की दीनता पलायन हो जाती ह ितकल पिरिःतिथया अनकल हो जाती ह | आतमबल सवर िरि -िसि य का िपता ह |

आतमबल कस जगाय हररोज़ तःकाल ज दी उठकर सय दय स पवर ःनानािद स िनवत हो जाओ | ःव छ पिवऽ ःथान

म आसन िबछाकर पवारिभमख होकर प ासन या सखासन म बठ जाओ | शानत और सनन वि

धारण करो | मन म ढ भावना करो िक म कित-िनिमरत इस शरीर क सब अभाव को पार करक सब

मिलनताओ-दबरलताओ स िप ड़ छड़ाकर आतमा की मिहमा म जागकर ही रहगा |

आख आधी खली आधी बद रखो | अब फ़फ़ड़ म खब ास भरो और भावना करो की ास क साथ

म सयर का िद य ओज भीतर भर रहा ह | ास को यथाशि अनदर िटकाय रखो | िफ़र lsquoॐhelliprsquo का ल बा उ चारण करत हए ास को धीर-धीर छोड़त जाओ | ास क खाली होन क बाद तरत ास ना लो | यथाशि िबना ास रहो और भीतर ही भीतर lsquoहिर ॐhelliprsquo lsquoहिर ॐhelliprsquo का मानिसक

जाप करो | िफ़र स फ़फ़ड़ म ास भरो | पव रीित स ास यथाशि अनदर िटकाकर बाद म धीर-धीर छोड़त हए lsquoॐhelliprsquo का गजन करो | दस-पिह िमनट ऐस ाणायाम सिहत उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo की धविन करक शानत हो जाओ | सब

यास छोड़ दो | वि य को आकाश की ओर फ़लन दो | आकाश क अनदर पथवी ह | पथवी पर अनक दश अनक समि एव अनक लोग ह | उनम स एक

आपका शरीर आसन पर बठा हआ ह | इस पर य को आप मानिसक आख स भावना स दखत

रहो | आप शरीर नही हो बि क अनक शरीर दश सागर पथवी मह न ऽ सयर चनि एव पर ा ड़ क

ा हो सा ी हो | इस सा ी भाव म जाग जाओ | थोड़ी दर क बाद िफ़र स ाणायाम सिहत lsquoॐhelliprsquo का जाप करो और शानत होकर अपन िवचार को दखत रहो | इस अवःथा म ढ़ िन य करो िक lsquoम जसा चहता ह वसा होकर रहगा |rsquo िवषयसख स ा धन-

दौलत इतयािद की इ छा न करो कय िक िन यबल या आतमबलरपी हाथी क पदिच म और सभी क पदिच समािव हो ही जायग | आतमानदरपी सयर क उदय होन क बाद िम टी क तल क दीय क ाकाश रपी शि सखाभास की गलामी कौन कर

िकसी भी भावना को साकार करन क िलय दय को करद ड़ाल ऐसी िन यातमक बिल वि होनी आवशयक ह | अनतःकरण क गहर-स-गहर दश म चोट कर ऐसा ाण भरक िन बल का आवाहन करो | सीना तानकर खड़ हो जाओ अपन मन की दीन-हीन दखद मानयताओ को कचल

ड़ालन क िलय | सदा ःमरण रह की इधर-उधर भटकती वि य क साथ त हारी शि भी िबखरती रहती ह | अतः वि य को बहकाओ नही | तमाम वि य को एकिऽत करक साधनाकाल म आतमिचनतन म लगाओ और यवहारकाल म जो कायर करत हो उसम लगाओ | द िच होकर हरक कायर करो | अपन ःवभाव म स आवश को सवरथा िनमरल कर दो | आवश म आकर कोई िनणरय मत लो कोई िबया मत करो | सदा शानत वि धारण करन का अ यास करो | िवचारशील एव सनन रहो | ःवय अचल रहकर सागर की तरह सब वि य की तरग को अपन

भीतर समालो | जीवमाऽ को अपना ःवरप समझो | सबस ःनह रखो | िदल को यापक रखो | सकिच ता का िनवारण करत रहो | ख ड़ातमक वि का सवरथा तयाग करो | िजनको ानी महापरष का सतसग और अधयातमिव ा का लाभ िमल जाता ह उसक जीवन स

दःख िवदा होन लगत ह | ॐ आननद आतमिन ा म जाग हए महापरष क सतसग एव सतसािहतय स जीवन को भि और वदात स प

एव पलिकत करो | कछ ही िदन क इस सघन योग क बाद अनभव होन लगगा िक भतकाल क

नकारतमक ःवभाव सशयातमक-हािनकारक क पनाओ न जीवन को कचल ड़ाला था िवषला कर िदया था | अब िन यबल क चमतकार का पता चला | अततरम म आिवरभत िद य खज़ाना अब

िमला | ार ध की बिड़या अब टटन लगी | ठ क ह न करोग ना िह मत पढ़कर रख मत दना इस पिःतका को | जीवन म इसको बार-बार पढ़त रहो | एक िदन म यह पणर ना होगा | बार-बार अ यास करो | त हार िलय यह एक ही पिःतका काफ़ी ह | अनय कचराप टी ना पड़ोग तो चलगा | शाबाश वीर शाबाश

  • परसतावना
  • जीवन रसायन
  • गर भकति एक अमोघ साधना
  • शरी राम-वशिषठ सवाद
  • आतमबल का आवाहन
  • आतमबल कस जगाय
Page 36: जीवन रसायन - HariOmGroup · ‘जीवन रसायन’ का यह िदय कटोरा आत्मरस के िपपासुओं हाथ

259) जब तक िच म ढ़ता न आ जाय िक शा की िविधय का पालन छोड़ दन स भी दय का यथाथर भि भाव न नही होगा तब तक शा की िविधय को पालत रहो |

गर भि एक अमोघ साधना 1 जनम मरण क िवषचब स म होन का कोई मागर नही ह कया सख-दःख हषर-शोक लाभ-

हािन मान-अपमान की थ पड़ स बचन का कोई उपाय नही ह कया

हअवय ह | ह िय आतमन नाशवान पदाथ स अपना मन वािपस लाकर सदगर क

चरणकमल म लगाओ | गरभि योग का आौय लो | गरसवा ऐसा अमोघ साधन ह िजसस

व रमान जीवन आननदमय बनता ह और शा त सख क ार खलत ह |

गर सवत त नर धनय यहा | ितनक नही दःख यहा न वहा || 2 स च सदगर की की हई भि िशय म सासािरक पदाथ क वरा य एव अनासि जगाती ह

परमातमा क ित म क पप महकाती ह | 3 तयक िशय सदगर की सवा करना चाहता ह लिकन अपन ढग स | सदगर चाह उस ढग स

सवा करन को कोई ततपर नही | जो िवरला साधक गर चाह उस ढ़ग स सवा कर सकता ह उस कोई कमी नही रहती |

िन सदगर की सवा स उनकी कपा ा होती ह और उस कपा स न िमल सक ऐसा तीन लोक म कछ भी नही ह | 4 गर िशय का स बनध पिवऽतम स बनध ह | ससार क तमाम बनधन स छड़ाकर वह मि क मागर पर ःथान कराता ह | यह स बनध जीवनपयरनत का स बनध ह | यह बात अपन दय की डायरी म सवणर-अ र स िलख लो | 5 उ ल सयर क काश क अिःततव को मान या न मान िफर भी सयर हमशा काशता ह | चचल मन का मनय मान या न मान लिकन सदगर की परमक याणकारी कपा सदव बरसती ही रहती ह | 6 सदगर की चरणरज म ःनान िकय िबना कवल किठन तप यार करन स या वद का

अधयन करन स वदानत का रहःय कट नही होता आतमानद का अमत नही िमलता | 7 दशरन शा क चाह िकतन मनथ पढ़ो हजार वष तक िहमालय की गफा म तप करो वष तक ाणायाम करो जीवनपयरनत शीषारसन करो समम िव म वास करक याखान दो िफर भी सदगर की कपा क िबना आतम ान नही होता | अतः िनरािभमानी सरल िनजाननद म मःत दयाल ःवभाव क आतम-सा ातकारी सदगर क चरण म जाओ | जीवन को धनय बनाओ | 8 सदगर की सवा िकय िबना शा का अधयन करना मम साधक क िलय समय बरबाद करन क बराबर ह | 9 िजसको सदगर ा हए ह ऐस िशय क िलय इस िव म कछ भी अा य नही ह | सदगर िशय को िमली हई परमातमा की अम य भट ह | अर नहीhellipनही व तो िशय क सम साकार रप म कट हए परमातमा ःवय ह | 10 सदगर क साथ एक ण िकया हआ सतसग लाख वष क तप स अननत गना ौ ह | आख क िनमषमाऽ म सदगर की अमतवष ि िशय क जनम-जनम क पाप को जला सकती ह | 11 सदगर जसा मपणर कपाल िहतिचनतक िव भर म दसरा कोई नही ह | 12 बाढ़ क समय याऽी यिद तफानी नदी को िबना नाव क पार कर सक तो साधक भी िबना सदगर क अपन जीवन क आिखरी लआय को िस कर सकता ह | यानी य दोन बात स भव ह |

अतः यार साधक मनमखी साधना की िज करना छोड़ दो | गरमखी साधना करन म ही सार ह | 13 सदगर क चरणकमल का आौय लन स िजस आननद का अनभव होता ह उसक आग िऽलोकी का साा य त छ ह | 14 आतम-सा ातकार क मागर म सबस महान शऽ अहभाव का नाश करन क िलए सदगर की आ ा का पालन अमोघ श ह | 15 रसोई सीखन क िलय कोई िसखानवाला चािहय िव ान और गिणत सीखन क िलय

अधयापक चािहय तो कया िव ा सदगर क िबना ही सीख लोग 16 सदगरकपा की स पि जसा दसरा कोई खजाना िव भर म नही | 17 सदगर की आ ा का उ लघन करना यह अपनी क खोदन क बराबर ह | 18 सदगर क कायर को शका की ि स दखना महापातक ह | 19 गरभि व गरसवा - य साधनारपी नौका की दो पतवार ह | उनकी मदद स िशय ससारसागर को पार कर सकता ह | 20 सदगर की कसौटी करना असभव ह | एक िववकाननद ही दसर िववकाननद को पहचान सकत ह | ब को जानन क िलय दसर ब की आवयकता रहती ह | एक रामतीथर का रहःय दसर रामतीथर ही पा सकत ह |

अतः सदगर की कसौटी करन की च ा छोड़कर उनको पिरपणर पर परमातमा मानो |

तभी जीवन म वाःतिवक लाभ होगा | 21 गरभि योग का आौय लकर आप अपनी खोई हई िद यता को पनः ा करो सख-दःख जनम-मतय आिद सब न स पार हो जाओ | 22 गरभि योग मान गर की सवा क ारा मन और िवकार पर िनयऽण एव पनः सःकरण | 23 िशय अपन गर क चरणकमल म णाम करता ह | उन पर ौ फल की वषार करक उनकी ःतित करता ह ldquoह परम प य पिवऽ गरदव मझ सव च सख ा हआ ह | म िन ा स जनम-मतय की पर परा स म हआ ह | म िनिवरक प समािध का श सख भोग रहा ह | जगत क िकसी भी कोन म म म ता स िवचरण कर सकता ह | सब पर मरी सम ि ह | मन ाकत मन का तयाग िकया ह | मन सब सक प एव रिच-अरिच का तयाग िकया ह | अब म अख ड शाित म िवौाित पा रहा ह hellip आननदमय हो रहा ह | म इस पणर अवःथा का वणरन नही कर पाता | ह प य गरदव म आवाक बन गया ह | इस दःतर भवसागर को पार करन म आपन

मझ सहायता की ह | अब तक मझ कवल अपन शरीर म ही स पणर िव ास था | मन िविभनन योिनय म अस य जनम िलय | ऐसी सव च िनभरय अवःथा मझ कौन स पिवऽ कम क कारण ा हई ह यह म नही जानता | सचमच यह एक दलरभ भा य ह |

यह एक महान उतक लाभ ह | अब म आननद स नाचता ह | मर सब दःख न हो गय | मर सब मनोरथ पणर हए ह |

मर कायर स पनन हए ह | मन सब वािछत वःतए ा की ह | मरी इ छा पिरपणर हई ह | आप मर स च माता-िपता हो | मरी व रमान िःथित म म दसर क सम िकस कार कट कर सक सवरऽ सख और आननद का अननत सागर मझ लहराता हआ िदख रहा ह | मर अतःच िजसस खल गय वह महावाकय lsquoत वमिसrsquo ह | उपिनषद एव वदानतसऽ को भी धनयवाद | िजनह न िन गर का एव उपिनषद क महावाकय का रप धारण िकया ह | ऐस ौी यासजी को णाम ौी शकराचायर को णाम सासािरक मनय क िसर पर गर क चरणामत का एक िबनद भी िगर तो भी उसक ःब दःख का नाश होता ह | यिद एक िन परष को व पहनाय जाय तो सार िव को व पहनान एव भोजन करवान क बराबर ह कय िक िन परष सचराचर िव म या ह | सबम व ही ह |rdquo

ॐhellip ॐ hellip ॐ hellip

ःवामी िशवानद जी

ौी राम-विश सवाद ौी विश जी कहत ह ldquoह रघकलभषण ौी राम अनथर ःवरप िजतन सासािरक पदाथर ह व सब जल म तरग क समान िविवध रप धारण करक चमतकार उतपनन करत ह अथारत ई छाए उतपनन करक जीव को मोह म फसात ह | परत जस सभी तरग जल ःवरप ही ह उसी कार सभी पदाथर वःततः न र ःवभाव वाल ह |

बालक की क पना स आकाश म य और िपशाच िदखन लगत ह परनत बि मान मनय क िलए उन य और िपशाच का कोई अथर नही | इसी कार अ ानी क िच म यह जगत सतय हो ऐसा लगता ह जबिक हमार जस ािनय क िलय यह जगत कछ भी नही | यह समम िव पतथर पर बनी हई पतिलय की सना की तरह रपालोक तथा अतर-बा िवषय स शनय ह | इसम सतयता कसी परनत अ ािनय को यह िव सतय लगता ह |rdquo विश जी बोल ldquoौी राम जगत को सतय ःवरप म जानना यह ाित ह मढ़ता ह | उस िमथया अथारत कि पत समझना यही उिचत समझ ह | ह राघव तव ा अहता आिद सब िवम-िवलास शात िशवःवरप श ःवरप ही ह | इसिलय मझ तो क अितिर और कछ भी नही िदखता | आकाश म जस जगल नही वस ही म जगत नही ह | ह राम ार ध वश ा कम स िजस परष की च ा कठपतली की तरह ई छाशनय और याकलतारिहत होती ह वह शानत मनवाला परष जीवनम मिन ह | ऐस जीवनम ानी को इस

जगत का जीवन बास की तरह बाहर-भीतर स शनय रसहीन और वासना-रिहत लगता ह | इस य पच म िजस रिच नही दय म िचनमाऽ अ य ही अ छा लगता ह ऐस परष न

भीतर तथा बाहर शािनत ा कर ली ह और इस भवसागर स पार हो गया ह | रघनदन श व ा कहत ह िक मन का ई छारिहत होना यही समािध ह कय िक ई छाओ का तयाग करन स मन को जसी शािनत िमलती ह ऐसी शािनत सकड़ उपदश स भी नही िमलती | ई छा की उतपि स जसा दःख ा होता ह ऐसा दःख तो नरक म भी नही | ई छाओ की शािनत

स जसा सख होता ह ऐसा सख ःवगर तो कया लोक म भी नही होता | अतः समःत शा तपःया यम और िनयम का िनचोड़ यही ह िक ई छामाऽ दःखदायी ह और ई छा का शमन मो ह | ाणी क दय म जसी-जसी और िजतनी-िजतनी ई छाय उतपनन होती ह उतना ही दख स वह

ड़रता रहता ह | िववक-िवचार ारा ई छाय जस-जस शानत होती जाती ह वस-वस दखरपी छत की बीमारी िमटती जाती ह |

आसि क कारण सासािरक िवषय की ई छाय य - य गहनीभत होती जाती ह तय -तय

दःख की िवषली तरग बढ़ती जाती ह | अपन परषाथर क बल स इस ई छारपी यािध का उपचार यिद नही िकया जाय तो इस यािध स छटन क िलय अनय कोई औषिध नही ह ऐसा म ढ़तापवरक

मानता ह | एक साथ सभी ई छाओ का स पणर तयाग ना हो सक तो थोड़ी-थोड़ी ई छाओ का धीर-धीर तयाग

करना चािहय परत रहना चािहय ई छा क तयाग म रत कय िक सनमागर का पिथक दखी नही होता | जो नराधम अपनी वासना और अहकार को ीण करन का य नही करता वह िदन -िदन अपन

को रावण की तरह अधर कऐ म ढ़कल रहा ह | ई छा ही दख की जनमदाऽी इस ससाररपी बल का बीज ह | यिद इस बीज को आतम ानरपी अि न स ठ क-ठ क जला िदया तो पनः यह अकिरत नही होता | रघकलभषण राम ई छामाऽ ससार ह और ई छाओ का अभाव ही िनवारण ह | अतः अनक कार की माथाप ची म ना पड़कर कवल ऐसा य करना चािहय िक ई छा उतपनन ना हो | अपनी बि स ई छा का िवनाश करन को जो ततपर नही ऐस अभाग को शा और गर का उपदश

भी कया करगा जस अपनी जनमभमी जगल म िहरणी की मतय िनि त ह उसी कार अनकिवध दख का िवःतार कारनवाल ई छारपी िवषय-िवकार स य इस जगत म मनय की मतय िनि त ह | यिद मानव ई छाओ क कारण ब च -सा मढ़ ना बन तो उस आतम ान क िलय अ प य ही करना पड़ | इसिलय सभी कार स ई छाओ को शानत करना चािहय | ई छा क शमन स परम पद की ाि होती ह | ई छारिहत हो जाना यही िनवारण ह और ई छाय

होना ही बधन ह | अतः यथाशि ई छा को जीतना चािहय | भला इतना करन म कया किठनाई ह जनम जरा यािध और मतयरपी कटीली झािड़य और खर क व - समह की जड़ भी ई छा ही ह

| अतः शमरपी अि न स अदर-ही-अदर बीज को जला ड़ालना चािहय| जहा ई छाओ का अभाव ह

वहा मि िनि त ह |

िववक वरा य आिद साधन स ई छा का सवरथा िवनाश करना चािहय | ई छा का सबध जहा-जहा ह वहा-वहा पाप प य दखरािशया और ल बी पीड़ाओ स य बधन को हािज़र ही समझो | परष

की आतिरक ई छा य - य शानत होती जाती ह तय -तय मो क िलय उसका क याणकारक

साधन बढ़ता जाता ह | िववकहीन ई छा को पोसना उस पणर करना यह तो ससाररपी िवष व को पानी स सीचन क समान ह |rdquo

- ौीयोगविश महारामायण

आतमबल का आवाहन कया आप अपन-आपको दबरल मानत हो लघतामथी म उलझ कर पिरिःतिथय स िपस रह हो

अपना जीवन दीन-हीन बना बठ हो hellipतो अपन भीतर सष आतमबल को जगाओ | शरीर चाह ी का हो चाह परष का कित क साा य म जो जीत ह व सब ी ह और कित क बनधन स पार अपन ःवरप की पहचान िजनह न कर ली ह अपन मन की गलामी की बिड़या तोड़कर िजनह न फ क दी ह व परष ह | ी या परष शरीर एव मानयताए होती ह | तम तो तन-मन स पार िनमरल आतमा हो | जागोhellipउठोhellipअपन भीतर सोय हय िन यबल को जगाओ | सवरदश सवरकाल म सव म

आतमबल को िवकिसत करो | आतमा म अथाह सामथयर ह | अपन को दीन-हीन मान बठ तो िव म ऐसी कोई स ा नही जो त ह ऊपर उठा सक | अपन आतमःवरप म िति त हो गय तो िऽलोकी म ऐसी कोई हःती नही जो त ह दबा सक | भौितक जगत म वाप की शि ईलकशोिनक शि िव त की शि गरतवाकषरण की शि बड़ी मानी जाती ह लिकन आतमबल उन सब शि य का सचालक बल ह | आतमबल क सािननधय म आकर पग ार ध को पर िमल जात ह दव की दीनता पलायन हो जाती ह ितकल पिरिःतिथया अनकल हो जाती ह | आतमबल सवर िरि -िसि य का िपता ह |

आतमबल कस जगाय हररोज़ तःकाल ज दी उठकर सय दय स पवर ःनानािद स िनवत हो जाओ | ःव छ पिवऽ ःथान

म आसन िबछाकर पवारिभमख होकर प ासन या सखासन म बठ जाओ | शानत और सनन वि

धारण करो | मन म ढ भावना करो िक म कित-िनिमरत इस शरीर क सब अभाव को पार करक सब

मिलनताओ-दबरलताओ स िप ड़ छड़ाकर आतमा की मिहमा म जागकर ही रहगा |

आख आधी खली आधी बद रखो | अब फ़फ़ड़ म खब ास भरो और भावना करो की ास क साथ

म सयर का िद य ओज भीतर भर रहा ह | ास को यथाशि अनदर िटकाय रखो | िफ़र lsquoॐhelliprsquo का ल बा उ चारण करत हए ास को धीर-धीर छोड़त जाओ | ास क खाली होन क बाद तरत ास ना लो | यथाशि िबना ास रहो और भीतर ही भीतर lsquoहिर ॐhelliprsquo lsquoहिर ॐhelliprsquo का मानिसक

जाप करो | िफ़र स फ़फ़ड़ म ास भरो | पव रीित स ास यथाशि अनदर िटकाकर बाद म धीर-धीर छोड़त हए lsquoॐhelliprsquo का गजन करो | दस-पिह िमनट ऐस ाणायाम सिहत उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo की धविन करक शानत हो जाओ | सब

यास छोड़ दो | वि य को आकाश की ओर फ़लन दो | आकाश क अनदर पथवी ह | पथवी पर अनक दश अनक समि एव अनक लोग ह | उनम स एक

आपका शरीर आसन पर बठा हआ ह | इस पर य को आप मानिसक आख स भावना स दखत

रहो | आप शरीर नही हो बि क अनक शरीर दश सागर पथवी मह न ऽ सयर चनि एव पर ा ड़ क

ा हो सा ी हो | इस सा ी भाव म जाग जाओ | थोड़ी दर क बाद िफ़र स ाणायाम सिहत lsquoॐhelliprsquo का जाप करो और शानत होकर अपन िवचार को दखत रहो | इस अवःथा म ढ़ िन य करो िक lsquoम जसा चहता ह वसा होकर रहगा |rsquo िवषयसख स ा धन-

दौलत इतयािद की इ छा न करो कय िक िन यबल या आतमबलरपी हाथी क पदिच म और सभी क पदिच समािव हो ही जायग | आतमानदरपी सयर क उदय होन क बाद िम टी क तल क दीय क ाकाश रपी शि सखाभास की गलामी कौन कर

िकसी भी भावना को साकार करन क िलय दय को करद ड़ाल ऐसी िन यातमक बिल वि होनी आवशयक ह | अनतःकरण क गहर-स-गहर दश म चोट कर ऐसा ाण भरक िन बल का आवाहन करो | सीना तानकर खड़ हो जाओ अपन मन की दीन-हीन दखद मानयताओ को कचल

ड़ालन क िलय | सदा ःमरण रह की इधर-उधर भटकती वि य क साथ त हारी शि भी िबखरती रहती ह | अतः वि य को बहकाओ नही | तमाम वि य को एकिऽत करक साधनाकाल म आतमिचनतन म लगाओ और यवहारकाल म जो कायर करत हो उसम लगाओ | द िच होकर हरक कायर करो | अपन ःवभाव म स आवश को सवरथा िनमरल कर दो | आवश म आकर कोई िनणरय मत लो कोई िबया मत करो | सदा शानत वि धारण करन का अ यास करो | िवचारशील एव सनन रहो | ःवय अचल रहकर सागर की तरह सब वि य की तरग को अपन

भीतर समालो | जीवमाऽ को अपना ःवरप समझो | सबस ःनह रखो | िदल को यापक रखो | सकिच ता का िनवारण करत रहो | ख ड़ातमक वि का सवरथा तयाग करो | िजनको ानी महापरष का सतसग और अधयातमिव ा का लाभ िमल जाता ह उसक जीवन स

दःख िवदा होन लगत ह | ॐ आननद आतमिन ा म जाग हए महापरष क सतसग एव सतसािहतय स जीवन को भि और वदात स प

एव पलिकत करो | कछ ही िदन क इस सघन योग क बाद अनभव होन लगगा िक भतकाल क

नकारतमक ःवभाव सशयातमक-हािनकारक क पनाओ न जीवन को कचल ड़ाला था िवषला कर िदया था | अब िन यबल क चमतकार का पता चला | अततरम म आिवरभत िद य खज़ाना अब

िमला | ार ध की बिड़या अब टटन लगी | ठ क ह न करोग ना िह मत पढ़कर रख मत दना इस पिःतका को | जीवन म इसको बार-बार पढ़त रहो | एक िदन म यह पणर ना होगा | बार-बार अ यास करो | त हार िलय यह एक ही पिःतका काफ़ी ह | अनय कचराप टी ना पड़ोग तो चलगा | शाबाश वीर शाबाश

  • परसतावना
  • जीवन रसायन
  • गर भकति एक अमोघ साधना
  • शरी राम-वशिषठ सवाद
  • आतमबल का आवाहन
  • आतमबल कस जगाय
Page 37: जीवन रसायन - HariOmGroup · ‘जीवन रसायन’ का यह िदय कटोरा आत्मरस के िपपासुओं हाथ

अधयन करन स वदानत का रहःय कट नही होता आतमानद का अमत नही िमलता | 7 दशरन शा क चाह िकतन मनथ पढ़ो हजार वष तक िहमालय की गफा म तप करो वष तक ाणायाम करो जीवनपयरनत शीषारसन करो समम िव म वास करक याखान दो िफर भी सदगर की कपा क िबना आतम ान नही होता | अतः िनरािभमानी सरल िनजाननद म मःत दयाल ःवभाव क आतम-सा ातकारी सदगर क चरण म जाओ | जीवन को धनय बनाओ | 8 सदगर की सवा िकय िबना शा का अधयन करना मम साधक क िलय समय बरबाद करन क बराबर ह | 9 िजसको सदगर ा हए ह ऐस िशय क िलय इस िव म कछ भी अा य नही ह | सदगर िशय को िमली हई परमातमा की अम य भट ह | अर नहीhellipनही व तो िशय क सम साकार रप म कट हए परमातमा ःवय ह | 10 सदगर क साथ एक ण िकया हआ सतसग लाख वष क तप स अननत गना ौ ह | आख क िनमषमाऽ म सदगर की अमतवष ि िशय क जनम-जनम क पाप को जला सकती ह | 11 सदगर जसा मपणर कपाल िहतिचनतक िव भर म दसरा कोई नही ह | 12 बाढ़ क समय याऽी यिद तफानी नदी को िबना नाव क पार कर सक तो साधक भी िबना सदगर क अपन जीवन क आिखरी लआय को िस कर सकता ह | यानी य दोन बात स भव ह |

अतः यार साधक मनमखी साधना की िज करना छोड़ दो | गरमखी साधना करन म ही सार ह | 13 सदगर क चरणकमल का आौय लन स िजस आननद का अनभव होता ह उसक आग िऽलोकी का साा य त छ ह | 14 आतम-सा ातकार क मागर म सबस महान शऽ अहभाव का नाश करन क िलए सदगर की आ ा का पालन अमोघ श ह | 15 रसोई सीखन क िलय कोई िसखानवाला चािहय िव ान और गिणत सीखन क िलय

अधयापक चािहय तो कया िव ा सदगर क िबना ही सीख लोग 16 सदगरकपा की स पि जसा दसरा कोई खजाना िव भर म नही | 17 सदगर की आ ा का उ लघन करना यह अपनी क खोदन क बराबर ह | 18 सदगर क कायर को शका की ि स दखना महापातक ह | 19 गरभि व गरसवा - य साधनारपी नौका की दो पतवार ह | उनकी मदद स िशय ससारसागर को पार कर सकता ह | 20 सदगर की कसौटी करना असभव ह | एक िववकाननद ही दसर िववकाननद को पहचान सकत ह | ब को जानन क िलय दसर ब की आवयकता रहती ह | एक रामतीथर का रहःय दसर रामतीथर ही पा सकत ह |

अतः सदगर की कसौटी करन की च ा छोड़कर उनको पिरपणर पर परमातमा मानो |

तभी जीवन म वाःतिवक लाभ होगा | 21 गरभि योग का आौय लकर आप अपनी खोई हई िद यता को पनः ा करो सख-दःख जनम-मतय आिद सब न स पार हो जाओ | 22 गरभि योग मान गर की सवा क ारा मन और िवकार पर िनयऽण एव पनः सःकरण | 23 िशय अपन गर क चरणकमल म णाम करता ह | उन पर ौ फल की वषार करक उनकी ःतित करता ह ldquoह परम प य पिवऽ गरदव मझ सव च सख ा हआ ह | म िन ा स जनम-मतय की पर परा स म हआ ह | म िनिवरक प समािध का श सख भोग रहा ह | जगत क िकसी भी कोन म म म ता स िवचरण कर सकता ह | सब पर मरी सम ि ह | मन ाकत मन का तयाग िकया ह | मन सब सक प एव रिच-अरिच का तयाग िकया ह | अब म अख ड शाित म िवौाित पा रहा ह hellip आननदमय हो रहा ह | म इस पणर अवःथा का वणरन नही कर पाता | ह प य गरदव म आवाक बन गया ह | इस दःतर भवसागर को पार करन म आपन

मझ सहायता की ह | अब तक मझ कवल अपन शरीर म ही स पणर िव ास था | मन िविभनन योिनय म अस य जनम िलय | ऐसी सव च िनभरय अवःथा मझ कौन स पिवऽ कम क कारण ा हई ह यह म नही जानता | सचमच यह एक दलरभ भा य ह |

यह एक महान उतक लाभ ह | अब म आननद स नाचता ह | मर सब दःख न हो गय | मर सब मनोरथ पणर हए ह |

मर कायर स पनन हए ह | मन सब वािछत वःतए ा की ह | मरी इ छा पिरपणर हई ह | आप मर स च माता-िपता हो | मरी व रमान िःथित म म दसर क सम िकस कार कट कर सक सवरऽ सख और आननद का अननत सागर मझ लहराता हआ िदख रहा ह | मर अतःच िजसस खल गय वह महावाकय lsquoत वमिसrsquo ह | उपिनषद एव वदानतसऽ को भी धनयवाद | िजनह न िन गर का एव उपिनषद क महावाकय का रप धारण िकया ह | ऐस ौी यासजी को णाम ौी शकराचायर को णाम सासािरक मनय क िसर पर गर क चरणामत का एक िबनद भी िगर तो भी उसक ःब दःख का नाश होता ह | यिद एक िन परष को व पहनाय जाय तो सार िव को व पहनान एव भोजन करवान क बराबर ह कय िक िन परष सचराचर िव म या ह | सबम व ही ह |rdquo

ॐhellip ॐ hellip ॐ hellip

ःवामी िशवानद जी

ौी राम-विश सवाद ौी विश जी कहत ह ldquoह रघकलभषण ौी राम अनथर ःवरप िजतन सासािरक पदाथर ह व सब जल म तरग क समान िविवध रप धारण करक चमतकार उतपनन करत ह अथारत ई छाए उतपनन करक जीव को मोह म फसात ह | परत जस सभी तरग जल ःवरप ही ह उसी कार सभी पदाथर वःततः न र ःवभाव वाल ह |

बालक की क पना स आकाश म य और िपशाच िदखन लगत ह परनत बि मान मनय क िलए उन य और िपशाच का कोई अथर नही | इसी कार अ ानी क िच म यह जगत सतय हो ऐसा लगता ह जबिक हमार जस ािनय क िलय यह जगत कछ भी नही | यह समम िव पतथर पर बनी हई पतिलय की सना की तरह रपालोक तथा अतर-बा िवषय स शनय ह | इसम सतयता कसी परनत अ ािनय को यह िव सतय लगता ह |rdquo विश जी बोल ldquoौी राम जगत को सतय ःवरप म जानना यह ाित ह मढ़ता ह | उस िमथया अथारत कि पत समझना यही उिचत समझ ह | ह राघव तव ा अहता आिद सब िवम-िवलास शात िशवःवरप श ःवरप ही ह | इसिलय मझ तो क अितिर और कछ भी नही िदखता | आकाश म जस जगल नही वस ही म जगत नही ह | ह राम ार ध वश ा कम स िजस परष की च ा कठपतली की तरह ई छाशनय और याकलतारिहत होती ह वह शानत मनवाला परष जीवनम मिन ह | ऐस जीवनम ानी को इस

जगत का जीवन बास की तरह बाहर-भीतर स शनय रसहीन और वासना-रिहत लगता ह | इस य पच म िजस रिच नही दय म िचनमाऽ अ य ही अ छा लगता ह ऐस परष न

भीतर तथा बाहर शािनत ा कर ली ह और इस भवसागर स पार हो गया ह | रघनदन श व ा कहत ह िक मन का ई छारिहत होना यही समािध ह कय िक ई छाओ का तयाग करन स मन को जसी शािनत िमलती ह ऐसी शािनत सकड़ उपदश स भी नही िमलती | ई छा की उतपि स जसा दःख ा होता ह ऐसा दःख तो नरक म भी नही | ई छाओ की शािनत

स जसा सख होता ह ऐसा सख ःवगर तो कया लोक म भी नही होता | अतः समःत शा तपःया यम और िनयम का िनचोड़ यही ह िक ई छामाऽ दःखदायी ह और ई छा का शमन मो ह | ाणी क दय म जसी-जसी और िजतनी-िजतनी ई छाय उतपनन होती ह उतना ही दख स वह

ड़रता रहता ह | िववक-िवचार ारा ई छाय जस-जस शानत होती जाती ह वस-वस दखरपी छत की बीमारी िमटती जाती ह |

आसि क कारण सासािरक िवषय की ई छाय य - य गहनीभत होती जाती ह तय -तय

दःख की िवषली तरग बढ़ती जाती ह | अपन परषाथर क बल स इस ई छारपी यािध का उपचार यिद नही िकया जाय तो इस यािध स छटन क िलय अनय कोई औषिध नही ह ऐसा म ढ़तापवरक

मानता ह | एक साथ सभी ई छाओ का स पणर तयाग ना हो सक तो थोड़ी-थोड़ी ई छाओ का धीर-धीर तयाग

करना चािहय परत रहना चािहय ई छा क तयाग म रत कय िक सनमागर का पिथक दखी नही होता | जो नराधम अपनी वासना और अहकार को ीण करन का य नही करता वह िदन -िदन अपन

को रावण की तरह अधर कऐ म ढ़कल रहा ह | ई छा ही दख की जनमदाऽी इस ससाररपी बल का बीज ह | यिद इस बीज को आतम ानरपी अि न स ठ क-ठ क जला िदया तो पनः यह अकिरत नही होता | रघकलभषण राम ई छामाऽ ससार ह और ई छाओ का अभाव ही िनवारण ह | अतः अनक कार की माथाप ची म ना पड़कर कवल ऐसा य करना चािहय िक ई छा उतपनन ना हो | अपनी बि स ई छा का िवनाश करन को जो ततपर नही ऐस अभाग को शा और गर का उपदश

भी कया करगा जस अपनी जनमभमी जगल म िहरणी की मतय िनि त ह उसी कार अनकिवध दख का िवःतार कारनवाल ई छारपी िवषय-िवकार स य इस जगत म मनय की मतय िनि त ह | यिद मानव ई छाओ क कारण ब च -सा मढ़ ना बन तो उस आतम ान क िलय अ प य ही करना पड़ | इसिलय सभी कार स ई छाओ को शानत करना चािहय | ई छा क शमन स परम पद की ाि होती ह | ई छारिहत हो जाना यही िनवारण ह और ई छाय

होना ही बधन ह | अतः यथाशि ई छा को जीतना चािहय | भला इतना करन म कया किठनाई ह जनम जरा यािध और मतयरपी कटीली झािड़य और खर क व - समह की जड़ भी ई छा ही ह

| अतः शमरपी अि न स अदर-ही-अदर बीज को जला ड़ालना चािहय| जहा ई छाओ का अभाव ह

वहा मि िनि त ह |

िववक वरा य आिद साधन स ई छा का सवरथा िवनाश करना चािहय | ई छा का सबध जहा-जहा ह वहा-वहा पाप प य दखरािशया और ल बी पीड़ाओ स य बधन को हािज़र ही समझो | परष

की आतिरक ई छा य - य शानत होती जाती ह तय -तय मो क िलय उसका क याणकारक

साधन बढ़ता जाता ह | िववकहीन ई छा को पोसना उस पणर करना यह तो ससाररपी िवष व को पानी स सीचन क समान ह |rdquo

- ौीयोगविश महारामायण

आतमबल का आवाहन कया आप अपन-आपको दबरल मानत हो लघतामथी म उलझ कर पिरिःतिथय स िपस रह हो

अपना जीवन दीन-हीन बना बठ हो hellipतो अपन भीतर सष आतमबल को जगाओ | शरीर चाह ी का हो चाह परष का कित क साा य म जो जीत ह व सब ी ह और कित क बनधन स पार अपन ःवरप की पहचान िजनह न कर ली ह अपन मन की गलामी की बिड़या तोड़कर िजनह न फ क दी ह व परष ह | ी या परष शरीर एव मानयताए होती ह | तम तो तन-मन स पार िनमरल आतमा हो | जागोhellipउठोhellipअपन भीतर सोय हय िन यबल को जगाओ | सवरदश सवरकाल म सव म

आतमबल को िवकिसत करो | आतमा म अथाह सामथयर ह | अपन को दीन-हीन मान बठ तो िव म ऐसी कोई स ा नही जो त ह ऊपर उठा सक | अपन आतमःवरप म िति त हो गय तो िऽलोकी म ऐसी कोई हःती नही जो त ह दबा सक | भौितक जगत म वाप की शि ईलकशोिनक शि िव त की शि गरतवाकषरण की शि बड़ी मानी जाती ह लिकन आतमबल उन सब शि य का सचालक बल ह | आतमबल क सािननधय म आकर पग ार ध को पर िमल जात ह दव की दीनता पलायन हो जाती ह ितकल पिरिःतिथया अनकल हो जाती ह | आतमबल सवर िरि -िसि य का िपता ह |

आतमबल कस जगाय हररोज़ तःकाल ज दी उठकर सय दय स पवर ःनानािद स िनवत हो जाओ | ःव छ पिवऽ ःथान

म आसन िबछाकर पवारिभमख होकर प ासन या सखासन म बठ जाओ | शानत और सनन वि

धारण करो | मन म ढ भावना करो िक म कित-िनिमरत इस शरीर क सब अभाव को पार करक सब

मिलनताओ-दबरलताओ स िप ड़ छड़ाकर आतमा की मिहमा म जागकर ही रहगा |

आख आधी खली आधी बद रखो | अब फ़फ़ड़ म खब ास भरो और भावना करो की ास क साथ

म सयर का िद य ओज भीतर भर रहा ह | ास को यथाशि अनदर िटकाय रखो | िफ़र lsquoॐhelliprsquo का ल बा उ चारण करत हए ास को धीर-धीर छोड़त जाओ | ास क खाली होन क बाद तरत ास ना लो | यथाशि िबना ास रहो और भीतर ही भीतर lsquoहिर ॐhelliprsquo lsquoहिर ॐhelliprsquo का मानिसक

जाप करो | िफ़र स फ़फ़ड़ म ास भरो | पव रीित स ास यथाशि अनदर िटकाकर बाद म धीर-धीर छोड़त हए lsquoॐhelliprsquo का गजन करो | दस-पिह िमनट ऐस ाणायाम सिहत उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo की धविन करक शानत हो जाओ | सब

यास छोड़ दो | वि य को आकाश की ओर फ़लन दो | आकाश क अनदर पथवी ह | पथवी पर अनक दश अनक समि एव अनक लोग ह | उनम स एक

आपका शरीर आसन पर बठा हआ ह | इस पर य को आप मानिसक आख स भावना स दखत

रहो | आप शरीर नही हो बि क अनक शरीर दश सागर पथवी मह न ऽ सयर चनि एव पर ा ड़ क

ा हो सा ी हो | इस सा ी भाव म जाग जाओ | थोड़ी दर क बाद िफ़र स ाणायाम सिहत lsquoॐhelliprsquo का जाप करो और शानत होकर अपन िवचार को दखत रहो | इस अवःथा म ढ़ िन य करो िक lsquoम जसा चहता ह वसा होकर रहगा |rsquo िवषयसख स ा धन-

दौलत इतयािद की इ छा न करो कय िक िन यबल या आतमबलरपी हाथी क पदिच म और सभी क पदिच समािव हो ही जायग | आतमानदरपी सयर क उदय होन क बाद िम टी क तल क दीय क ाकाश रपी शि सखाभास की गलामी कौन कर

िकसी भी भावना को साकार करन क िलय दय को करद ड़ाल ऐसी िन यातमक बिल वि होनी आवशयक ह | अनतःकरण क गहर-स-गहर दश म चोट कर ऐसा ाण भरक िन बल का आवाहन करो | सीना तानकर खड़ हो जाओ अपन मन की दीन-हीन दखद मानयताओ को कचल

ड़ालन क िलय | सदा ःमरण रह की इधर-उधर भटकती वि य क साथ त हारी शि भी िबखरती रहती ह | अतः वि य को बहकाओ नही | तमाम वि य को एकिऽत करक साधनाकाल म आतमिचनतन म लगाओ और यवहारकाल म जो कायर करत हो उसम लगाओ | द िच होकर हरक कायर करो | अपन ःवभाव म स आवश को सवरथा िनमरल कर दो | आवश म आकर कोई िनणरय मत लो कोई िबया मत करो | सदा शानत वि धारण करन का अ यास करो | िवचारशील एव सनन रहो | ःवय अचल रहकर सागर की तरह सब वि य की तरग को अपन

भीतर समालो | जीवमाऽ को अपना ःवरप समझो | सबस ःनह रखो | िदल को यापक रखो | सकिच ता का िनवारण करत रहो | ख ड़ातमक वि का सवरथा तयाग करो | िजनको ानी महापरष का सतसग और अधयातमिव ा का लाभ िमल जाता ह उसक जीवन स

दःख िवदा होन लगत ह | ॐ आननद आतमिन ा म जाग हए महापरष क सतसग एव सतसािहतय स जीवन को भि और वदात स प

एव पलिकत करो | कछ ही िदन क इस सघन योग क बाद अनभव होन लगगा िक भतकाल क

नकारतमक ःवभाव सशयातमक-हािनकारक क पनाओ न जीवन को कचल ड़ाला था िवषला कर िदया था | अब िन यबल क चमतकार का पता चला | अततरम म आिवरभत िद य खज़ाना अब

िमला | ार ध की बिड़या अब टटन लगी | ठ क ह न करोग ना िह मत पढ़कर रख मत दना इस पिःतका को | जीवन म इसको बार-बार पढ़त रहो | एक िदन म यह पणर ना होगा | बार-बार अ यास करो | त हार िलय यह एक ही पिःतका काफ़ी ह | अनय कचराप टी ना पड़ोग तो चलगा | शाबाश वीर शाबाश

  • परसतावना
  • जीवन रसायन
  • गर भकति एक अमोघ साधना
  • शरी राम-वशिषठ सवाद
  • आतमबल का आवाहन
  • आतमबल कस जगाय
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अधयापक चािहय तो कया िव ा सदगर क िबना ही सीख लोग 16 सदगरकपा की स पि जसा दसरा कोई खजाना िव भर म नही | 17 सदगर की आ ा का उ लघन करना यह अपनी क खोदन क बराबर ह | 18 सदगर क कायर को शका की ि स दखना महापातक ह | 19 गरभि व गरसवा - य साधनारपी नौका की दो पतवार ह | उनकी मदद स िशय ससारसागर को पार कर सकता ह | 20 सदगर की कसौटी करना असभव ह | एक िववकाननद ही दसर िववकाननद को पहचान सकत ह | ब को जानन क िलय दसर ब की आवयकता रहती ह | एक रामतीथर का रहःय दसर रामतीथर ही पा सकत ह |

अतः सदगर की कसौटी करन की च ा छोड़कर उनको पिरपणर पर परमातमा मानो |

तभी जीवन म वाःतिवक लाभ होगा | 21 गरभि योग का आौय लकर आप अपनी खोई हई िद यता को पनः ा करो सख-दःख जनम-मतय आिद सब न स पार हो जाओ | 22 गरभि योग मान गर की सवा क ारा मन और िवकार पर िनयऽण एव पनः सःकरण | 23 िशय अपन गर क चरणकमल म णाम करता ह | उन पर ौ फल की वषार करक उनकी ःतित करता ह ldquoह परम प य पिवऽ गरदव मझ सव च सख ा हआ ह | म िन ा स जनम-मतय की पर परा स म हआ ह | म िनिवरक प समािध का श सख भोग रहा ह | जगत क िकसी भी कोन म म म ता स िवचरण कर सकता ह | सब पर मरी सम ि ह | मन ाकत मन का तयाग िकया ह | मन सब सक प एव रिच-अरिच का तयाग िकया ह | अब म अख ड शाित म िवौाित पा रहा ह hellip आननदमय हो रहा ह | म इस पणर अवःथा का वणरन नही कर पाता | ह प य गरदव म आवाक बन गया ह | इस दःतर भवसागर को पार करन म आपन

मझ सहायता की ह | अब तक मझ कवल अपन शरीर म ही स पणर िव ास था | मन िविभनन योिनय म अस य जनम िलय | ऐसी सव च िनभरय अवःथा मझ कौन स पिवऽ कम क कारण ा हई ह यह म नही जानता | सचमच यह एक दलरभ भा य ह |

यह एक महान उतक लाभ ह | अब म आननद स नाचता ह | मर सब दःख न हो गय | मर सब मनोरथ पणर हए ह |

मर कायर स पनन हए ह | मन सब वािछत वःतए ा की ह | मरी इ छा पिरपणर हई ह | आप मर स च माता-िपता हो | मरी व रमान िःथित म म दसर क सम िकस कार कट कर सक सवरऽ सख और आननद का अननत सागर मझ लहराता हआ िदख रहा ह | मर अतःच िजसस खल गय वह महावाकय lsquoत वमिसrsquo ह | उपिनषद एव वदानतसऽ को भी धनयवाद | िजनह न िन गर का एव उपिनषद क महावाकय का रप धारण िकया ह | ऐस ौी यासजी को णाम ौी शकराचायर को णाम सासािरक मनय क िसर पर गर क चरणामत का एक िबनद भी िगर तो भी उसक ःब दःख का नाश होता ह | यिद एक िन परष को व पहनाय जाय तो सार िव को व पहनान एव भोजन करवान क बराबर ह कय िक िन परष सचराचर िव म या ह | सबम व ही ह |rdquo

ॐhellip ॐ hellip ॐ hellip

ःवामी िशवानद जी

ौी राम-विश सवाद ौी विश जी कहत ह ldquoह रघकलभषण ौी राम अनथर ःवरप िजतन सासािरक पदाथर ह व सब जल म तरग क समान िविवध रप धारण करक चमतकार उतपनन करत ह अथारत ई छाए उतपनन करक जीव को मोह म फसात ह | परत जस सभी तरग जल ःवरप ही ह उसी कार सभी पदाथर वःततः न र ःवभाव वाल ह |

बालक की क पना स आकाश म य और िपशाच िदखन लगत ह परनत बि मान मनय क िलए उन य और िपशाच का कोई अथर नही | इसी कार अ ानी क िच म यह जगत सतय हो ऐसा लगता ह जबिक हमार जस ािनय क िलय यह जगत कछ भी नही | यह समम िव पतथर पर बनी हई पतिलय की सना की तरह रपालोक तथा अतर-बा िवषय स शनय ह | इसम सतयता कसी परनत अ ािनय को यह िव सतय लगता ह |rdquo विश जी बोल ldquoौी राम जगत को सतय ःवरप म जानना यह ाित ह मढ़ता ह | उस िमथया अथारत कि पत समझना यही उिचत समझ ह | ह राघव तव ा अहता आिद सब िवम-िवलास शात िशवःवरप श ःवरप ही ह | इसिलय मझ तो क अितिर और कछ भी नही िदखता | आकाश म जस जगल नही वस ही म जगत नही ह | ह राम ार ध वश ा कम स िजस परष की च ा कठपतली की तरह ई छाशनय और याकलतारिहत होती ह वह शानत मनवाला परष जीवनम मिन ह | ऐस जीवनम ानी को इस

जगत का जीवन बास की तरह बाहर-भीतर स शनय रसहीन और वासना-रिहत लगता ह | इस य पच म िजस रिच नही दय म िचनमाऽ अ य ही अ छा लगता ह ऐस परष न

भीतर तथा बाहर शािनत ा कर ली ह और इस भवसागर स पार हो गया ह | रघनदन श व ा कहत ह िक मन का ई छारिहत होना यही समािध ह कय िक ई छाओ का तयाग करन स मन को जसी शािनत िमलती ह ऐसी शािनत सकड़ उपदश स भी नही िमलती | ई छा की उतपि स जसा दःख ा होता ह ऐसा दःख तो नरक म भी नही | ई छाओ की शािनत

स जसा सख होता ह ऐसा सख ःवगर तो कया लोक म भी नही होता | अतः समःत शा तपःया यम और िनयम का िनचोड़ यही ह िक ई छामाऽ दःखदायी ह और ई छा का शमन मो ह | ाणी क दय म जसी-जसी और िजतनी-िजतनी ई छाय उतपनन होती ह उतना ही दख स वह

ड़रता रहता ह | िववक-िवचार ारा ई छाय जस-जस शानत होती जाती ह वस-वस दखरपी छत की बीमारी िमटती जाती ह |

आसि क कारण सासािरक िवषय की ई छाय य - य गहनीभत होती जाती ह तय -तय

दःख की िवषली तरग बढ़ती जाती ह | अपन परषाथर क बल स इस ई छारपी यािध का उपचार यिद नही िकया जाय तो इस यािध स छटन क िलय अनय कोई औषिध नही ह ऐसा म ढ़तापवरक

मानता ह | एक साथ सभी ई छाओ का स पणर तयाग ना हो सक तो थोड़ी-थोड़ी ई छाओ का धीर-धीर तयाग

करना चािहय परत रहना चािहय ई छा क तयाग म रत कय िक सनमागर का पिथक दखी नही होता | जो नराधम अपनी वासना और अहकार को ीण करन का य नही करता वह िदन -िदन अपन

को रावण की तरह अधर कऐ म ढ़कल रहा ह | ई छा ही दख की जनमदाऽी इस ससाररपी बल का बीज ह | यिद इस बीज को आतम ानरपी अि न स ठ क-ठ क जला िदया तो पनः यह अकिरत नही होता | रघकलभषण राम ई छामाऽ ससार ह और ई छाओ का अभाव ही िनवारण ह | अतः अनक कार की माथाप ची म ना पड़कर कवल ऐसा य करना चािहय िक ई छा उतपनन ना हो | अपनी बि स ई छा का िवनाश करन को जो ततपर नही ऐस अभाग को शा और गर का उपदश

भी कया करगा जस अपनी जनमभमी जगल म िहरणी की मतय िनि त ह उसी कार अनकिवध दख का िवःतार कारनवाल ई छारपी िवषय-िवकार स य इस जगत म मनय की मतय िनि त ह | यिद मानव ई छाओ क कारण ब च -सा मढ़ ना बन तो उस आतम ान क िलय अ प य ही करना पड़ | इसिलय सभी कार स ई छाओ को शानत करना चािहय | ई छा क शमन स परम पद की ाि होती ह | ई छारिहत हो जाना यही िनवारण ह और ई छाय

होना ही बधन ह | अतः यथाशि ई छा को जीतना चािहय | भला इतना करन म कया किठनाई ह जनम जरा यािध और मतयरपी कटीली झािड़य और खर क व - समह की जड़ भी ई छा ही ह

| अतः शमरपी अि न स अदर-ही-अदर बीज को जला ड़ालना चािहय| जहा ई छाओ का अभाव ह

वहा मि िनि त ह |

िववक वरा य आिद साधन स ई छा का सवरथा िवनाश करना चािहय | ई छा का सबध जहा-जहा ह वहा-वहा पाप प य दखरािशया और ल बी पीड़ाओ स य बधन को हािज़र ही समझो | परष

की आतिरक ई छा य - य शानत होती जाती ह तय -तय मो क िलय उसका क याणकारक

साधन बढ़ता जाता ह | िववकहीन ई छा को पोसना उस पणर करना यह तो ससाररपी िवष व को पानी स सीचन क समान ह |rdquo

- ौीयोगविश महारामायण

आतमबल का आवाहन कया आप अपन-आपको दबरल मानत हो लघतामथी म उलझ कर पिरिःतिथय स िपस रह हो

अपना जीवन दीन-हीन बना बठ हो hellipतो अपन भीतर सष आतमबल को जगाओ | शरीर चाह ी का हो चाह परष का कित क साा य म जो जीत ह व सब ी ह और कित क बनधन स पार अपन ःवरप की पहचान िजनह न कर ली ह अपन मन की गलामी की बिड़या तोड़कर िजनह न फ क दी ह व परष ह | ी या परष शरीर एव मानयताए होती ह | तम तो तन-मन स पार िनमरल आतमा हो | जागोhellipउठोhellipअपन भीतर सोय हय िन यबल को जगाओ | सवरदश सवरकाल म सव म

आतमबल को िवकिसत करो | आतमा म अथाह सामथयर ह | अपन को दीन-हीन मान बठ तो िव म ऐसी कोई स ा नही जो त ह ऊपर उठा सक | अपन आतमःवरप म िति त हो गय तो िऽलोकी म ऐसी कोई हःती नही जो त ह दबा सक | भौितक जगत म वाप की शि ईलकशोिनक शि िव त की शि गरतवाकषरण की शि बड़ी मानी जाती ह लिकन आतमबल उन सब शि य का सचालक बल ह | आतमबल क सािननधय म आकर पग ार ध को पर िमल जात ह दव की दीनता पलायन हो जाती ह ितकल पिरिःतिथया अनकल हो जाती ह | आतमबल सवर िरि -िसि य का िपता ह |

आतमबल कस जगाय हररोज़ तःकाल ज दी उठकर सय दय स पवर ःनानािद स िनवत हो जाओ | ःव छ पिवऽ ःथान

म आसन िबछाकर पवारिभमख होकर प ासन या सखासन म बठ जाओ | शानत और सनन वि

धारण करो | मन म ढ भावना करो िक म कित-िनिमरत इस शरीर क सब अभाव को पार करक सब

मिलनताओ-दबरलताओ स िप ड़ छड़ाकर आतमा की मिहमा म जागकर ही रहगा |

आख आधी खली आधी बद रखो | अब फ़फ़ड़ म खब ास भरो और भावना करो की ास क साथ

म सयर का िद य ओज भीतर भर रहा ह | ास को यथाशि अनदर िटकाय रखो | िफ़र lsquoॐhelliprsquo का ल बा उ चारण करत हए ास को धीर-धीर छोड़त जाओ | ास क खाली होन क बाद तरत ास ना लो | यथाशि िबना ास रहो और भीतर ही भीतर lsquoहिर ॐhelliprsquo lsquoहिर ॐhelliprsquo का मानिसक

जाप करो | िफ़र स फ़फ़ड़ म ास भरो | पव रीित स ास यथाशि अनदर िटकाकर बाद म धीर-धीर छोड़त हए lsquoॐhelliprsquo का गजन करो | दस-पिह िमनट ऐस ाणायाम सिहत उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo की धविन करक शानत हो जाओ | सब

यास छोड़ दो | वि य को आकाश की ओर फ़लन दो | आकाश क अनदर पथवी ह | पथवी पर अनक दश अनक समि एव अनक लोग ह | उनम स एक

आपका शरीर आसन पर बठा हआ ह | इस पर य को आप मानिसक आख स भावना स दखत

रहो | आप शरीर नही हो बि क अनक शरीर दश सागर पथवी मह न ऽ सयर चनि एव पर ा ड़ क

ा हो सा ी हो | इस सा ी भाव म जाग जाओ | थोड़ी दर क बाद िफ़र स ाणायाम सिहत lsquoॐhelliprsquo का जाप करो और शानत होकर अपन िवचार को दखत रहो | इस अवःथा म ढ़ िन य करो िक lsquoम जसा चहता ह वसा होकर रहगा |rsquo िवषयसख स ा धन-

दौलत इतयािद की इ छा न करो कय िक िन यबल या आतमबलरपी हाथी क पदिच म और सभी क पदिच समािव हो ही जायग | आतमानदरपी सयर क उदय होन क बाद िम टी क तल क दीय क ाकाश रपी शि सखाभास की गलामी कौन कर

िकसी भी भावना को साकार करन क िलय दय को करद ड़ाल ऐसी िन यातमक बिल वि होनी आवशयक ह | अनतःकरण क गहर-स-गहर दश म चोट कर ऐसा ाण भरक िन बल का आवाहन करो | सीना तानकर खड़ हो जाओ अपन मन की दीन-हीन दखद मानयताओ को कचल

ड़ालन क िलय | सदा ःमरण रह की इधर-उधर भटकती वि य क साथ त हारी शि भी िबखरती रहती ह | अतः वि य को बहकाओ नही | तमाम वि य को एकिऽत करक साधनाकाल म आतमिचनतन म लगाओ और यवहारकाल म जो कायर करत हो उसम लगाओ | द िच होकर हरक कायर करो | अपन ःवभाव म स आवश को सवरथा िनमरल कर दो | आवश म आकर कोई िनणरय मत लो कोई िबया मत करो | सदा शानत वि धारण करन का अ यास करो | िवचारशील एव सनन रहो | ःवय अचल रहकर सागर की तरह सब वि य की तरग को अपन

भीतर समालो | जीवमाऽ को अपना ःवरप समझो | सबस ःनह रखो | िदल को यापक रखो | सकिच ता का िनवारण करत रहो | ख ड़ातमक वि का सवरथा तयाग करो | िजनको ानी महापरष का सतसग और अधयातमिव ा का लाभ िमल जाता ह उसक जीवन स

दःख िवदा होन लगत ह | ॐ आननद आतमिन ा म जाग हए महापरष क सतसग एव सतसािहतय स जीवन को भि और वदात स प

एव पलिकत करो | कछ ही िदन क इस सघन योग क बाद अनभव होन लगगा िक भतकाल क

नकारतमक ःवभाव सशयातमक-हािनकारक क पनाओ न जीवन को कचल ड़ाला था िवषला कर िदया था | अब िन यबल क चमतकार का पता चला | अततरम म आिवरभत िद य खज़ाना अब

िमला | ार ध की बिड़या अब टटन लगी | ठ क ह न करोग ना िह मत पढ़कर रख मत दना इस पिःतका को | जीवन म इसको बार-बार पढ़त रहो | एक िदन म यह पणर ना होगा | बार-बार अ यास करो | त हार िलय यह एक ही पिःतका काफ़ी ह | अनय कचराप टी ना पड़ोग तो चलगा | शाबाश वीर शाबाश

  • परसतावना
  • जीवन रसायन
  • गर भकति एक अमोघ साधना
  • शरी राम-वशिषठ सवाद
  • आतमबल का आवाहन
  • आतमबल कस जगाय
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मझ सहायता की ह | अब तक मझ कवल अपन शरीर म ही स पणर िव ास था | मन िविभनन योिनय म अस य जनम िलय | ऐसी सव च िनभरय अवःथा मझ कौन स पिवऽ कम क कारण ा हई ह यह म नही जानता | सचमच यह एक दलरभ भा य ह |

यह एक महान उतक लाभ ह | अब म आननद स नाचता ह | मर सब दःख न हो गय | मर सब मनोरथ पणर हए ह |

मर कायर स पनन हए ह | मन सब वािछत वःतए ा की ह | मरी इ छा पिरपणर हई ह | आप मर स च माता-िपता हो | मरी व रमान िःथित म म दसर क सम िकस कार कट कर सक सवरऽ सख और आननद का अननत सागर मझ लहराता हआ िदख रहा ह | मर अतःच िजसस खल गय वह महावाकय lsquoत वमिसrsquo ह | उपिनषद एव वदानतसऽ को भी धनयवाद | िजनह न िन गर का एव उपिनषद क महावाकय का रप धारण िकया ह | ऐस ौी यासजी को णाम ौी शकराचायर को णाम सासािरक मनय क िसर पर गर क चरणामत का एक िबनद भी िगर तो भी उसक ःब दःख का नाश होता ह | यिद एक िन परष को व पहनाय जाय तो सार िव को व पहनान एव भोजन करवान क बराबर ह कय िक िन परष सचराचर िव म या ह | सबम व ही ह |rdquo

ॐhellip ॐ hellip ॐ hellip

ःवामी िशवानद जी

ौी राम-विश सवाद ौी विश जी कहत ह ldquoह रघकलभषण ौी राम अनथर ःवरप िजतन सासािरक पदाथर ह व सब जल म तरग क समान िविवध रप धारण करक चमतकार उतपनन करत ह अथारत ई छाए उतपनन करक जीव को मोह म फसात ह | परत जस सभी तरग जल ःवरप ही ह उसी कार सभी पदाथर वःततः न र ःवभाव वाल ह |

बालक की क पना स आकाश म य और िपशाच िदखन लगत ह परनत बि मान मनय क िलए उन य और िपशाच का कोई अथर नही | इसी कार अ ानी क िच म यह जगत सतय हो ऐसा लगता ह जबिक हमार जस ािनय क िलय यह जगत कछ भी नही | यह समम िव पतथर पर बनी हई पतिलय की सना की तरह रपालोक तथा अतर-बा िवषय स शनय ह | इसम सतयता कसी परनत अ ािनय को यह िव सतय लगता ह |rdquo विश जी बोल ldquoौी राम जगत को सतय ःवरप म जानना यह ाित ह मढ़ता ह | उस िमथया अथारत कि पत समझना यही उिचत समझ ह | ह राघव तव ा अहता आिद सब िवम-िवलास शात िशवःवरप श ःवरप ही ह | इसिलय मझ तो क अितिर और कछ भी नही िदखता | आकाश म जस जगल नही वस ही म जगत नही ह | ह राम ार ध वश ा कम स िजस परष की च ा कठपतली की तरह ई छाशनय और याकलतारिहत होती ह वह शानत मनवाला परष जीवनम मिन ह | ऐस जीवनम ानी को इस

जगत का जीवन बास की तरह बाहर-भीतर स शनय रसहीन और वासना-रिहत लगता ह | इस य पच म िजस रिच नही दय म िचनमाऽ अ य ही अ छा लगता ह ऐस परष न

भीतर तथा बाहर शािनत ा कर ली ह और इस भवसागर स पार हो गया ह | रघनदन श व ा कहत ह िक मन का ई छारिहत होना यही समािध ह कय िक ई छाओ का तयाग करन स मन को जसी शािनत िमलती ह ऐसी शािनत सकड़ उपदश स भी नही िमलती | ई छा की उतपि स जसा दःख ा होता ह ऐसा दःख तो नरक म भी नही | ई छाओ की शािनत

स जसा सख होता ह ऐसा सख ःवगर तो कया लोक म भी नही होता | अतः समःत शा तपःया यम और िनयम का िनचोड़ यही ह िक ई छामाऽ दःखदायी ह और ई छा का शमन मो ह | ाणी क दय म जसी-जसी और िजतनी-िजतनी ई छाय उतपनन होती ह उतना ही दख स वह

ड़रता रहता ह | िववक-िवचार ारा ई छाय जस-जस शानत होती जाती ह वस-वस दखरपी छत की बीमारी िमटती जाती ह |

आसि क कारण सासािरक िवषय की ई छाय य - य गहनीभत होती जाती ह तय -तय

दःख की िवषली तरग बढ़ती जाती ह | अपन परषाथर क बल स इस ई छारपी यािध का उपचार यिद नही िकया जाय तो इस यािध स छटन क िलय अनय कोई औषिध नही ह ऐसा म ढ़तापवरक

मानता ह | एक साथ सभी ई छाओ का स पणर तयाग ना हो सक तो थोड़ी-थोड़ी ई छाओ का धीर-धीर तयाग

करना चािहय परत रहना चािहय ई छा क तयाग म रत कय िक सनमागर का पिथक दखी नही होता | जो नराधम अपनी वासना और अहकार को ीण करन का य नही करता वह िदन -िदन अपन

को रावण की तरह अधर कऐ म ढ़कल रहा ह | ई छा ही दख की जनमदाऽी इस ससाररपी बल का बीज ह | यिद इस बीज को आतम ानरपी अि न स ठ क-ठ क जला िदया तो पनः यह अकिरत नही होता | रघकलभषण राम ई छामाऽ ससार ह और ई छाओ का अभाव ही िनवारण ह | अतः अनक कार की माथाप ची म ना पड़कर कवल ऐसा य करना चािहय िक ई छा उतपनन ना हो | अपनी बि स ई छा का िवनाश करन को जो ततपर नही ऐस अभाग को शा और गर का उपदश

भी कया करगा जस अपनी जनमभमी जगल म िहरणी की मतय िनि त ह उसी कार अनकिवध दख का िवःतार कारनवाल ई छारपी िवषय-िवकार स य इस जगत म मनय की मतय िनि त ह | यिद मानव ई छाओ क कारण ब च -सा मढ़ ना बन तो उस आतम ान क िलय अ प य ही करना पड़ | इसिलय सभी कार स ई छाओ को शानत करना चािहय | ई छा क शमन स परम पद की ाि होती ह | ई छारिहत हो जाना यही िनवारण ह और ई छाय

होना ही बधन ह | अतः यथाशि ई छा को जीतना चािहय | भला इतना करन म कया किठनाई ह जनम जरा यािध और मतयरपी कटीली झािड़य और खर क व - समह की जड़ भी ई छा ही ह

| अतः शमरपी अि न स अदर-ही-अदर बीज को जला ड़ालना चािहय| जहा ई छाओ का अभाव ह

वहा मि िनि त ह |

िववक वरा य आिद साधन स ई छा का सवरथा िवनाश करना चािहय | ई छा का सबध जहा-जहा ह वहा-वहा पाप प य दखरािशया और ल बी पीड़ाओ स य बधन को हािज़र ही समझो | परष

की आतिरक ई छा य - य शानत होती जाती ह तय -तय मो क िलय उसका क याणकारक

साधन बढ़ता जाता ह | िववकहीन ई छा को पोसना उस पणर करना यह तो ससाररपी िवष व को पानी स सीचन क समान ह |rdquo

- ौीयोगविश महारामायण

आतमबल का आवाहन कया आप अपन-आपको दबरल मानत हो लघतामथी म उलझ कर पिरिःतिथय स िपस रह हो

अपना जीवन दीन-हीन बना बठ हो hellipतो अपन भीतर सष आतमबल को जगाओ | शरीर चाह ी का हो चाह परष का कित क साा य म जो जीत ह व सब ी ह और कित क बनधन स पार अपन ःवरप की पहचान िजनह न कर ली ह अपन मन की गलामी की बिड़या तोड़कर िजनह न फ क दी ह व परष ह | ी या परष शरीर एव मानयताए होती ह | तम तो तन-मन स पार िनमरल आतमा हो | जागोhellipउठोhellipअपन भीतर सोय हय िन यबल को जगाओ | सवरदश सवरकाल म सव म

आतमबल को िवकिसत करो | आतमा म अथाह सामथयर ह | अपन को दीन-हीन मान बठ तो िव म ऐसी कोई स ा नही जो त ह ऊपर उठा सक | अपन आतमःवरप म िति त हो गय तो िऽलोकी म ऐसी कोई हःती नही जो त ह दबा सक | भौितक जगत म वाप की शि ईलकशोिनक शि िव त की शि गरतवाकषरण की शि बड़ी मानी जाती ह लिकन आतमबल उन सब शि य का सचालक बल ह | आतमबल क सािननधय म आकर पग ार ध को पर िमल जात ह दव की दीनता पलायन हो जाती ह ितकल पिरिःतिथया अनकल हो जाती ह | आतमबल सवर िरि -िसि य का िपता ह |

आतमबल कस जगाय हररोज़ तःकाल ज दी उठकर सय दय स पवर ःनानािद स िनवत हो जाओ | ःव छ पिवऽ ःथान

म आसन िबछाकर पवारिभमख होकर प ासन या सखासन म बठ जाओ | शानत और सनन वि

धारण करो | मन म ढ भावना करो िक म कित-िनिमरत इस शरीर क सब अभाव को पार करक सब

मिलनताओ-दबरलताओ स िप ड़ छड़ाकर आतमा की मिहमा म जागकर ही रहगा |

आख आधी खली आधी बद रखो | अब फ़फ़ड़ म खब ास भरो और भावना करो की ास क साथ

म सयर का िद य ओज भीतर भर रहा ह | ास को यथाशि अनदर िटकाय रखो | िफ़र lsquoॐhelliprsquo का ल बा उ चारण करत हए ास को धीर-धीर छोड़त जाओ | ास क खाली होन क बाद तरत ास ना लो | यथाशि िबना ास रहो और भीतर ही भीतर lsquoहिर ॐhelliprsquo lsquoहिर ॐhelliprsquo का मानिसक

जाप करो | िफ़र स फ़फ़ड़ म ास भरो | पव रीित स ास यथाशि अनदर िटकाकर बाद म धीर-धीर छोड़त हए lsquoॐhelliprsquo का गजन करो | दस-पिह िमनट ऐस ाणायाम सिहत उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo की धविन करक शानत हो जाओ | सब

यास छोड़ दो | वि य को आकाश की ओर फ़लन दो | आकाश क अनदर पथवी ह | पथवी पर अनक दश अनक समि एव अनक लोग ह | उनम स एक

आपका शरीर आसन पर बठा हआ ह | इस पर य को आप मानिसक आख स भावना स दखत

रहो | आप शरीर नही हो बि क अनक शरीर दश सागर पथवी मह न ऽ सयर चनि एव पर ा ड़ क

ा हो सा ी हो | इस सा ी भाव म जाग जाओ | थोड़ी दर क बाद िफ़र स ाणायाम सिहत lsquoॐhelliprsquo का जाप करो और शानत होकर अपन िवचार को दखत रहो | इस अवःथा म ढ़ िन य करो िक lsquoम जसा चहता ह वसा होकर रहगा |rsquo िवषयसख स ा धन-

दौलत इतयािद की इ छा न करो कय िक िन यबल या आतमबलरपी हाथी क पदिच म और सभी क पदिच समािव हो ही जायग | आतमानदरपी सयर क उदय होन क बाद िम टी क तल क दीय क ाकाश रपी शि सखाभास की गलामी कौन कर

िकसी भी भावना को साकार करन क िलय दय को करद ड़ाल ऐसी िन यातमक बिल वि होनी आवशयक ह | अनतःकरण क गहर-स-गहर दश म चोट कर ऐसा ाण भरक िन बल का आवाहन करो | सीना तानकर खड़ हो जाओ अपन मन की दीन-हीन दखद मानयताओ को कचल

ड़ालन क िलय | सदा ःमरण रह की इधर-उधर भटकती वि य क साथ त हारी शि भी िबखरती रहती ह | अतः वि य को बहकाओ नही | तमाम वि य को एकिऽत करक साधनाकाल म आतमिचनतन म लगाओ और यवहारकाल म जो कायर करत हो उसम लगाओ | द िच होकर हरक कायर करो | अपन ःवभाव म स आवश को सवरथा िनमरल कर दो | आवश म आकर कोई िनणरय मत लो कोई िबया मत करो | सदा शानत वि धारण करन का अ यास करो | िवचारशील एव सनन रहो | ःवय अचल रहकर सागर की तरह सब वि य की तरग को अपन

भीतर समालो | जीवमाऽ को अपना ःवरप समझो | सबस ःनह रखो | िदल को यापक रखो | सकिच ता का िनवारण करत रहो | ख ड़ातमक वि का सवरथा तयाग करो | िजनको ानी महापरष का सतसग और अधयातमिव ा का लाभ िमल जाता ह उसक जीवन स

दःख िवदा होन लगत ह | ॐ आननद आतमिन ा म जाग हए महापरष क सतसग एव सतसािहतय स जीवन को भि और वदात स प

एव पलिकत करो | कछ ही िदन क इस सघन योग क बाद अनभव होन लगगा िक भतकाल क

नकारतमक ःवभाव सशयातमक-हािनकारक क पनाओ न जीवन को कचल ड़ाला था िवषला कर िदया था | अब िन यबल क चमतकार का पता चला | अततरम म आिवरभत िद य खज़ाना अब

िमला | ार ध की बिड़या अब टटन लगी | ठ क ह न करोग ना िह मत पढ़कर रख मत दना इस पिःतका को | जीवन म इसको बार-बार पढ़त रहो | एक िदन म यह पणर ना होगा | बार-बार अ यास करो | त हार िलय यह एक ही पिःतका काफ़ी ह | अनय कचराप टी ना पड़ोग तो चलगा | शाबाश वीर शाबाश

  • परसतावना
  • जीवन रसायन
  • गर भकति एक अमोघ साधना
  • शरी राम-वशिषठ सवाद
  • आतमबल का आवाहन
  • आतमबल कस जगाय
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बालक की क पना स आकाश म य और िपशाच िदखन लगत ह परनत बि मान मनय क िलए उन य और िपशाच का कोई अथर नही | इसी कार अ ानी क िच म यह जगत सतय हो ऐसा लगता ह जबिक हमार जस ािनय क िलय यह जगत कछ भी नही | यह समम िव पतथर पर बनी हई पतिलय की सना की तरह रपालोक तथा अतर-बा िवषय स शनय ह | इसम सतयता कसी परनत अ ािनय को यह िव सतय लगता ह |rdquo विश जी बोल ldquoौी राम जगत को सतय ःवरप म जानना यह ाित ह मढ़ता ह | उस िमथया अथारत कि पत समझना यही उिचत समझ ह | ह राघव तव ा अहता आिद सब िवम-िवलास शात िशवःवरप श ःवरप ही ह | इसिलय मझ तो क अितिर और कछ भी नही िदखता | आकाश म जस जगल नही वस ही म जगत नही ह | ह राम ार ध वश ा कम स िजस परष की च ा कठपतली की तरह ई छाशनय और याकलतारिहत होती ह वह शानत मनवाला परष जीवनम मिन ह | ऐस जीवनम ानी को इस

जगत का जीवन बास की तरह बाहर-भीतर स शनय रसहीन और वासना-रिहत लगता ह | इस य पच म िजस रिच नही दय म िचनमाऽ अ य ही अ छा लगता ह ऐस परष न

भीतर तथा बाहर शािनत ा कर ली ह और इस भवसागर स पार हो गया ह | रघनदन श व ा कहत ह िक मन का ई छारिहत होना यही समािध ह कय िक ई छाओ का तयाग करन स मन को जसी शािनत िमलती ह ऐसी शािनत सकड़ उपदश स भी नही िमलती | ई छा की उतपि स जसा दःख ा होता ह ऐसा दःख तो नरक म भी नही | ई छाओ की शािनत

स जसा सख होता ह ऐसा सख ःवगर तो कया लोक म भी नही होता | अतः समःत शा तपःया यम और िनयम का िनचोड़ यही ह िक ई छामाऽ दःखदायी ह और ई छा का शमन मो ह | ाणी क दय म जसी-जसी और िजतनी-िजतनी ई छाय उतपनन होती ह उतना ही दख स वह

ड़रता रहता ह | िववक-िवचार ारा ई छाय जस-जस शानत होती जाती ह वस-वस दखरपी छत की बीमारी िमटती जाती ह |

आसि क कारण सासािरक िवषय की ई छाय य - य गहनीभत होती जाती ह तय -तय

दःख की िवषली तरग बढ़ती जाती ह | अपन परषाथर क बल स इस ई छारपी यािध का उपचार यिद नही िकया जाय तो इस यािध स छटन क िलय अनय कोई औषिध नही ह ऐसा म ढ़तापवरक

मानता ह | एक साथ सभी ई छाओ का स पणर तयाग ना हो सक तो थोड़ी-थोड़ी ई छाओ का धीर-धीर तयाग

करना चािहय परत रहना चािहय ई छा क तयाग म रत कय िक सनमागर का पिथक दखी नही होता | जो नराधम अपनी वासना और अहकार को ीण करन का य नही करता वह िदन -िदन अपन

को रावण की तरह अधर कऐ म ढ़कल रहा ह | ई छा ही दख की जनमदाऽी इस ससाररपी बल का बीज ह | यिद इस बीज को आतम ानरपी अि न स ठ क-ठ क जला िदया तो पनः यह अकिरत नही होता | रघकलभषण राम ई छामाऽ ससार ह और ई छाओ का अभाव ही िनवारण ह | अतः अनक कार की माथाप ची म ना पड़कर कवल ऐसा य करना चािहय िक ई छा उतपनन ना हो | अपनी बि स ई छा का िवनाश करन को जो ततपर नही ऐस अभाग को शा और गर का उपदश

भी कया करगा जस अपनी जनमभमी जगल म िहरणी की मतय िनि त ह उसी कार अनकिवध दख का िवःतार कारनवाल ई छारपी िवषय-िवकार स य इस जगत म मनय की मतय िनि त ह | यिद मानव ई छाओ क कारण ब च -सा मढ़ ना बन तो उस आतम ान क िलय अ प य ही करना पड़ | इसिलय सभी कार स ई छाओ को शानत करना चािहय | ई छा क शमन स परम पद की ाि होती ह | ई छारिहत हो जाना यही िनवारण ह और ई छाय

होना ही बधन ह | अतः यथाशि ई छा को जीतना चािहय | भला इतना करन म कया किठनाई ह जनम जरा यािध और मतयरपी कटीली झािड़य और खर क व - समह की जड़ भी ई छा ही ह

| अतः शमरपी अि न स अदर-ही-अदर बीज को जला ड़ालना चािहय| जहा ई छाओ का अभाव ह

वहा मि िनि त ह |

िववक वरा य आिद साधन स ई छा का सवरथा िवनाश करना चािहय | ई छा का सबध जहा-जहा ह वहा-वहा पाप प य दखरािशया और ल बी पीड़ाओ स य बधन को हािज़र ही समझो | परष

की आतिरक ई छा य - य शानत होती जाती ह तय -तय मो क िलय उसका क याणकारक

साधन बढ़ता जाता ह | िववकहीन ई छा को पोसना उस पणर करना यह तो ससाररपी िवष व को पानी स सीचन क समान ह |rdquo

- ौीयोगविश महारामायण

आतमबल का आवाहन कया आप अपन-आपको दबरल मानत हो लघतामथी म उलझ कर पिरिःतिथय स िपस रह हो

अपना जीवन दीन-हीन बना बठ हो hellipतो अपन भीतर सष आतमबल को जगाओ | शरीर चाह ी का हो चाह परष का कित क साा य म जो जीत ह व सब ी ह और कित क बनधन स पार अपन ःवरप की पहचान िजनह न कर ली ह अपन मन की गलामी की बिड़या तोड़कर िजनह न फ क दी ह व परष ह | ी या परष शरीर एव मानयताए होती ह | तम तो तन-मन स पार िनमरल आतमा हो | जागोhellipउठोhellipअपन भीतर सोय हय िन यबल को जगाओ | सवरदश सवरकाल म सव म

आतमबल को िवकिसत करो | आतमा म अथाह सामथयर ह | अपन को दीन-हीन मान बठ तो िव म ऐसी कोई स ा नही जो त ह ऊपर उठा सक | अपन आतमःवरप म िति त हो गय तो िऽलोकी म ऐसी कोई हःती नही जो त ह दबा सक | भौितक जगत म वाप की शि ईलकशोिनक शि िव त की शि गरतवाकषरण की शि बड़ी मानी जाती ह लिकन आतमबल उन सब शि य का सचालक बल ह | आतमबल क सािननधय म आकर पग ार ध को पर िमल जात ह दव की दीनता पलायन हो जाती ह ितकल पिरिःतिथया अनकल हो जाती ह | आतमबल सवर िरि -िसि य का िपता ह |

आतमबल कस जगाय हररोज़ तःकाल ज दी उठकर सय दय स पवर ःनानािद स िनवत हो जाओ | ःव छ पिवऽ ःथान

म आसन िबछाकर पवारिभमख होकर प ासन या सखासन म बठ जाओ | शानत और सनन वि

धारण करो | मन म ढ भावना करो िक म कित-िनिमरत इस शरीर क सब अभाव को पार करक सब

मिलनताओ-दबरलताओ स िप ड़ छड़ाकर आतमा की मिहमा म जागकर ही रहगा |

आख आधी खली आधी बद रखो | अब फ़फ़ड़ म खब ास भरो और भावना करो की ास क साथ

म सयर का िद य ओज भीतर भर रहा ह | ास को यथाशि अनदर िटकाय रखो | िफ़र lsquoॐhelliprsquo का ल बा उ चारण करत हए ास को धीर-धीर छोड़त जाओ | ास क खाली होन क बाद तरत ास ना लो | यथाशि िबना ास रहो और भीतर ही भीतर lsquoहिर ॐhelliprsquo lsquoहिर ॐhelliprsquo का मानिसक

जाप करो | िफ़र स फ़फ़ड़ म ास भरो | पव रीित स ास यथाशि अनदर िटकाकर बाद म धीर-धीर छोड़त हए lsquoॐhelliprsquo का गजन करो | दस-पिह िमनट ऐस ाणायाम सिहत उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo की धविन करक शानत हो जाओ | सब

यास छोड़ दो | वि य को आकाश की ओर फ़लन दो | आकाश क अनदर पथवी ह | पथवी पर अनक दश अनक समि एव अनक लोग ह | उनम स एक

आपका शरीर आसन पर बठा हआ ह | इस पर य को आप मानिसक आख स भावना स दखत

रहो | आप शरीर नही हो बि क अनक शरीर दश सागर पथवी मह न ऽ सयर चनि एव पर ा ड़ क

ा हो सा ी हो | इस सा ी भाव म जाग जाओ | थोड़ी दर क बाद िफ़र स ाणायाम सिहत lsquoॐhelliprsquo का जाप करो और शानत होकर अपन िवचार को दखत रहो | इस अवःथा म ढ़ िन य करो िक lsquoम जसा चहता ह वसा होकर रहगा |rsquo िवषयसख स ा धन-

दौलत इतयािद की इ छा न करो कय िक िन यबल या आतमबलरपी हाथी क पदिच म और सभी क पदिच समािव हो ही जायग | आतमानदरपी सयर क उदय होन क बाद िम टी क तल क दीय क ाकाश रपी शि सखाभास की गलामी कौन कर

िकसी भी भावना को साकार करन क िलय दय को करद ड़ाल ऐसी िन यातमक बिल वि होनी आवशयक ह | अनतःकरण क गहर-स-गहर दश म चोट कर ऐसा ाण भरक िन बल का आवाहन करो | सीना तानकर खड़ हो जाओ अपन मन की दीन-हीन दखद मानयताओ को कचल

ड़ालन क िलय | सदा ःमरण रह की इधर-उधर भटकती वि य क साथ त हारी शि भी िबखरती रहती ह | अतः वि य को बहकाओ नही | तमाम वि य को एकिऽत करक साधनाकाल म आतमिचनतन म लगाओ और यवहारकाल म जो कायर करत हो उसम लगाओ | द िच होकर हरक कायर करो | अपन ःवभाव म स आवश को सवरथा िनमरल कर दो | आवश म आकर कोई िनणरय मत लो कोई िबया मत करो | सदा शानत वि धारण करन का अ यास करो | िवचारशील एव सनन रहो | ःवय अचल रहकर सागर की तरह सब वि य की तरग को अपन

भीतर समालो | जीवमाऽ को अपना ःवरप समझो | सबस ःनह रखो | िदल को यापक रखो | सकिच ता का िनवारण करत रहो | ख ड़ातमक वि का सवरथा तयाग करो | िजनको ानी महापरष का सतसग और अधयातमिव ा का लाभ िमल जाता ह उसक जीवन स

दःख िवदा होन लगत ह | ॐ आननद आतमिन ा म जाग हए महापरष क सतसग एव सतसािहतय स जीवन को भि और वदात स प

एव पलिकत करो | कछ ही िदन क इस सघन योग क बाद अनभव होन लगगा िक भतकाल क

नकारतमक ःवभाव सशयातमक-हािनकारक क पनाओ न जीवन को कचल ड़ाला था िवषला कर िदया था | अब िन यबल क चमतकार का पता चला | अततरम म आिवरभत िद य खज़ाना अब

िमला | ार ध की बिड़या अब टटन लगी | ठ क ह न करोग ना िह मत पढ़कर रख मत दना इस पिःतका को | जीवन म इसको बार-बार पढ़त रहो | एक िदन म यह पणर ना होगा | बार-बार अ यास करो | त हार िलय यह एक ही पिःतका काफ़ी ह | अनय कचराप टी ना पड़ोग तो चलगा | शाबाश वीर शाबाश

  • परसतावना
  • जीवन रसायन
  • गर भकति एक अमोघ साधना
  • शरी राम-वशिषठ सवाद
  • आतमबल का आवाहन
  • आतमबल कस जगाय
Page 41: जीवन रसायन - HariOmGroup · ‘जीवन रसायन’ का यह िदय कटोरा आत्मरस के िपपासुओं हाथ

आसि क कारण सासािरक िवषय की ई छाय य - य गहनीभत होती जाती ह तय -तय

दःख की िवषली तरग बढ़ती जाती ह | अपन परषाथर क बल स इस ई छारपी यािध का उपचार यिद नही िकया जाय तो इस यािध स छटन क िलय अनय कोई औषिध नही ह ऐसा म ढ़तापवरक

मानता ह | एक साथ सभी ई छाओ का स पणर तयाग ना हो सक तो थोड़ी-थोड़ी ई छाओ का धीर-धीर तयाग

करना चािहय परत रहना चािहय ई छा क तयाग म रत कय िक सनमागर का पिथक दखी नही होता | जो नराधम अपनी वासना और अहकार को ीण करन का य नही करता वह िदन -िदन अपन

को रावण की तरह अधर कऐ म ढ़कल रहा ह | ई छा ही दख की जनमदाऽी इस ससाररपी बल का बीज ह | यिद इस बीज को आतम ानरपी अि न स ठ क-ठ क जला िदया तो पनः यह अकिरत नही होता | रघकलभषण राम ई छामाऽ ससार ह और ई छाओ का अभाव ही िनवारण ह | अतः अनक कार की माथाप ची म ना पड़कर कवल ऐसा य करना चािहय िक ई छा उतपनन ना हो | अपनी बि स ई छा का िवनाश करन को जो ततपर नही ऐस अभाग को शा और गर का उपदश

भी कया करगा जस अपनी जनमभमी जगल म िहरणी की मतय िनि त ह उसी कार अनकिवध दख का िवःतार कारनवाल ई छारपी िवषय-िवकार स य इस जगत म मनय की मतय िनि त ह | यिद मानव ई छाओ क कारण ब च -सा मढ़ ना बन तो उस आतम ान क िलय अ प य ही करना पड़ | इसिलय सभी कार स ई छाओ को शानत करना चािहय | ई छा क शमन स परम पद की ाि होती ह | ई छारिहत हो जाना यही िनवारण ह और ई छाय

होना ही बधन ह | अतः यथाशि ई छा को जीतना चािहय | भला इतना करन म कया किठनाई ह जनम जरा यािध और मतयरपी कटीली झािड़य और खर क व - समह की जड़ भी ई छा ही ह

| अतः शमरपी अि न स अदर-ही-अदर बीज को जला ड़ालना चािहय| जहा ई छाओ का अभाव ह

वहा मि िनि त ह |

िववक वरा य आिद साधन स ई छा का सवरथा िवनाश करना चािहय | ई छा का सबध जहा-जहा ह वहा-वहा पाप प य दखरािशया और ल बी पीड़ाओ स य बधन को हािज़र ही समझो | परष

की आतिरक ई छा य - य शानत होती जाती ह तय -तय मो क िलय उसका क याणकारक

साधन बढ़ता जाता ह | िववकहीन ई छा को पोसना उस पणर करना यह तो ससाररपी िवष व को पानी स सीचन क समान ह |rdquo

- ौीयोगविश महारामायण

आतमबल का आवाहन कया आप अपन-आपको दबरल मानत हो लघतामथी म उलझ कर पिरिःतिथय स िपस रह हो

अपना जीवन दीन-हीन बना बठ हो hellipतो अपन भीतर सष आतमबल को जगाओ | शरीर चाह ी का हो चाह परष का कित क साा य म जो जीत ह व सब ी ह और कित क बनधन स पार अपन ःवरप की पहचान िजनह न कर ली ह अपन मन की गलामी की बिड़या तोड़कर िजनह न फ क दी ह व परष ह | ी या परष शरीर एव मानयताए होती ह | तम तो तन-मन स पार िनमरल आतमा हो | जागोhellipउठोhellipअपन भीतर सोय हय िन यबल को जगाओ | सवरदश सवरकाल म सव म

आतमबल को िवकिसत करो | आतमा म अथाह सामथयर ह | अपन को दीन-हीन मान बठ तो िव म ऐसी कोई स ा नही जो त ह ऊपर उठा सक | अपन आतमःवरप म िति त हो गय तो िऽलोकी म ऐसी कोई हःती नही जो त ह दबा सक | भौितक जगत म वाप की शि ईलकशोिनक शि िव त की शि गरतवाकषरण की शि बड़ी मानी जाती ह लिकन आतमबल उन सब शि य का सचालक बल ह | आतमबल क सािननधय म आकर पग ार ध को पर िमल जात ह दव की दीनता पलायन हो जाती ह ितकल पिरिःतिथया अनकल हो जाती ह | आतमबल सवर िरि -िसि य का िपता ह |

आतमबल कस जगाय हररोज़ तःकाल ज दी उठकर सय दय स पवर ःनानािद स िनवत हो जाओ | ःव छ पिवऽ ःथान

म आसन िबछाकर पवारिभमख होकर प ासन या सखासन म बठ जाओ | शानत और सनन वि

धारण करो | मन म ढ भावना करो िक म कित-िनिमरत इस शरीर क सब अभाव को पार करक सब

मिलनताओ-दबरलताओ स िप ड़ छड़ाकर आतमा की मिहमा म जागकर ही रहगा |

आख आधी खली आधी बद रखो | अब फ़फ़ड़ म खब ास भरो और भावना करो की ास क साथ

म सयर का िद य ओज भीतर भर रहा ह | ास को यथाशि अनदर िटकाय रखो | िफ़र lsquoॐhelliprsquo का ल बा उ चारण करत हए ास को धीर-धीर छोड़त जाओ | ास क खाली होन क बाद तरत ास ना लो | यथाशि िबना ास रहो और भीतर ही भीतर lsquoहिर ॐhelliprsquo lsquoहिर ॐhelliprsquo का मानिसक

जाप करो | िफ़र स फ़फ़ड़ म ास भरो | पव रीित स ास यथाशि अनदर िटकाकर बाद म धीर-धीर छोड़त हए lsquoॐhelliprsquo का गजन करो | दस-पिह िमनट ऐस ाणायाम सिहत उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo की धविन करक शानत हो जाओ | सब

यास छोड़ दो | वि य को आकाश की ओर फ़लन दो | आकाश क अनदर पथवी ह | पथवी पर अनक दश अनक समि एव अनक लोग ह | उनम स एक

आपका शरीर आसन पर बठा हआ ह | इस पर य को आप मानिसक आख स भावना स दखत

रहो | आप शरीर नही हो बि क अनक शरीर दश सागर पथवी मह न ऽ सयर चनि एव पर ा ड़ क

ा हो सा ी हो | इस सा ी भाव म जाग जाओ | थोड़ी दर क बाद िफ़र स ाणायाम सिहत lsquoॐhelliprsquo का जाप करो और शानत होकर अपन िवचार को दखत रहो | इस अवःथा म ढ़ िन य करो िक lsquoम जसा चहता ह वसा होकर रहगा |rsquo िवषयसख स ा धन-

दौलत इतयािद की इ छा न करो कय िक िन यबल या आतमबलरपी हाथी क पदिच म और सभी क पदिच समािव हो ही जायग | आतमानदरपी सयर क उदय होन क बाद िम टी क तल क दीय क ाकाश रपी शि सखाभास की गलामी कौन कर

िकसी भी भावना को साकार करन क िलय दय को करद ड़ाल ऐसी िन यातमक बिल वि होनी आवशयक ह | अनतःकरण क गहर-स-गहर दश म चोट कर ऐसा ाण भरक िन बल का आवाहन करो | सीना तानकर खड़ हो जाओ अपन मन की दीन-हीन दखद मानयताओ को कचल

ड़ालन क िलय | सदा ःमरण रह की इधर-उधर भटकती वि य क साथ त हारी शि भी िबखरती रहती ह | अतः वि य को बहकाओ नही | तमाम वि य को एकिऽत करक साधनाकाल म आतमिचनतन म लगाओ और यवहारकाल म जो कायर करत हो उसम लगाओ | द िच होकर हरक कायर करो | अपन ःवभाव म स आवश को सवरथा िनमरल कर दो | आवश म आकर कोई िनणरय मत लो कोई िबया मत करो | सदा शानत वि धारण करन का अ यास करो | िवचारशील एव सनन रहो | ःवय अचल रहकर सागर की तरह सब वि य की तरग को अपन

भीतर समालो | जीवमाऽ को अपना ःवरप समझो | सबस ःनह रखो | िदल को यापक रखो | सकिच ता का िनवारण करत रहो | ख ड़ातमक वि का सवरथा तयाग करो | िजनको ानी महापरष का सतसग और अधयातमिव ा का लाभ िमल जाता ह उसक जीवन स

दःख िवदा होन लगत ह | ॐ आननद आतमिन ा म जाग हए महापरष क सतसग एव सतसािहतय स जीवन को भि और वदात स प

एव पलिकत करो | कछ ही िदन क इस सघन योग क बाद अनभव होन लगगा िक भतकाल क

नकारतमक ःवभाव सशयातमक-हािनकारक क पनाओ न जीवन को कचल ड़ाला था िवषला कर िदया था | अब िन यबल क चमतकार का पता चला | अततरम म आिवरभत िद य खज़ाना अब

िमला | ार ध की बिड़या अब टटन लगी | ठ क ह न करोग ना िह मत पढ़कर रख मत दना इस पिःतका को | जीवन म इसको बार-बार पढ़त रहो | एक िदन म यह पणर ना होगा | बार-बार अ यास करो | त हार िलय यह एक ही पिःतका काफ़ी ह | अनय कचराप टी ना पड़ोग तो चलगा | शाबाश वीर शाबाश

  • परसतावना
  • जीवन रसायन
  • गर भकति एक अमोघ साधना
  • शरी राम-वशिषठ सवाद
  • आतमबल का आवाहन
  • आतमबल कस जगाय
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िववक वरा य आिद साधन स ई छा का सवरथा िवनाश करना चािहय | ई छा का सबध जहा-जहा ह वहा-वहा पाप प य दखरािशया और ल बी पीड़ाओ स य बधन को हािज़र ही समझो | परष

की आतिरक ई छा य - य शानत होती जाती ह तय -तय मो क िलय उसका क याणकारक

साधन बढ़ता जाता ह | िववकहीन ई छा को पोसना उस पणर करना यह तो ससाररपी िवष व को पानी स सीचन क समान ह |rdquo

- ौीयोगविश महारामायण

आतमबल का आवाहन कया आप अपन-आपको दबरल मानत हो लघतामथी म उलझ कर पिरिःतिथय स िपस रह हो

अपना जीवन दीन-हीन बना बठ हो hellipतो अपन भीतर सष आतमबल को जगाओ | शरीर चाह ी का हो चाह परष का कित क साा य म जो जीत ह व सब ी ह और कित क बनधन स पार अपन ःवरप की पहचान िजनह न कर ली ह अपन मन की गलामी की बिड़या तोड़कर िजनह न फ क दी ह व परष ह | ी या परष शरीर एव मानयताए होती ह | तम तो तन-मन स पार िनमरल आतमा हो | जागोhellipउठोhellipअपन भीतर सोय हय िन यबल को जगाओ | सवरदश सवरकाल म सव म

आतमबल को िवकिसत करो | आतमा म अथाह सामथयर ह | अपन को दीन-हीन मान बठ तो िव म ऐसी कोई स ा नही जो त ह ऊपर उठा सक | अपन आतमःवरप म िति त हो गय तो िऽलोकी म ऐसी कोई हःती नही जो त ह दबा सक | भौितक जगत म वाप की शि ईलकशोिनक शि िव त की शि गरतवाकषरण की शि बड़ी मानी जाती ह लिकन आतमबल उन सब शि य का सचालक बल ह | आतमबल क सािननधय म आकर पग ार ध को पर िमल जात ह दव की दीनता पलायन हो जाती ह ितकल पिरिःतिथया अनकल हो जाती ह | आतमबल सवर िरि -िसि य का िपता ह |

आतमबल कस जगाय हररोज़ तःकाल ज दी उठकर सय दय स पवर ःनानािद स िनवत हो जाओ | ःव छ पिवऽ ःथान

म आसन िबछाकर पवारिभमख होकर प ासन या सखासन म बठ जाओ | शानत और सनन वि

धारण करो | मन म ढ भावना करो िक म कित-िनिमरत इस शरीर क सब अभाव को पार करक सब

मिलनताओ-दबरलताओ स िप ड़ छड़ाकर आतमा की मिहमा म जागकर ही रहगा |

आख आधी खली आधी बद रखो | अब फ़फ़ड़ म खब ास भरो और भावना करो की ास क साथ

म सयर का िद य ओज भीतर भर रहा ह | ास को यथाशि अनदर िटकाय रखो | िफ़र lsquoॐhelliprsquo का ल बा उ चारण करत हए ास को धीर-धीर छोड़त जाओ | ास क खाली होन क बाद तरत ास ना लो | यथाशि िबना ास रहो और भीतर ही भीतर lsquoहिर ॐhelliprsquo lsquoहिर ॐhelliprsquo का मानिसक

जाप करो | िफ़र स फ़फ़ड़ म ास भरो | पव रीित स ास यथाशि अनदर िटकाकर बाद म धीर-धीर छोड़त हए lsquoॐhelliprsquo का गजन करो | दस-पिह िमनट ऐस ाणायाम सिहत उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo की धविन करक शानत हो जाओ | सब

यास छोड़ दो | वि य को आकाश की ओर फ़लन दो | आकाश क अनदर पथवी ह | पथवी पर अनक दश अनक समि एव अनक लोग ह | उनम स एक

आपका शरीर आसन पर बठा हआ ह | इस पर य को आप मानिसक आख स भावना स दखत

रहो | आप शरीर नही हो बि क अनक शरीर दश सागर पथवी मह न ऽ सयर चनि एव पर ा ड़ क

ा हो सा ी हो | इस सा ी भाव म जाग जाओ | थोड़ी दर क बाद िफ़र स ाणायाम सिहत lsquoॐhelliprsquo का जाप करो और शानत होकर अपन िवचार को दखत रहो | इस अवःथा म ढ़ िन य करो िक lsquoम जसा चहता ह वसा होकर रहगा |rsquo िवषयसख स ा धन-

दौलत इतयािद की इ छा न करो कय िक िन यबल या आतमबलरपी हाथी क पदिच म और सभी क पदिच समािव हो ही जायग | आतमानदरपी सयर क उदय होन क बाद िम टी क तल क दीय क ाकाश रपी शि सखाभास की गलामी कौन कर

िकसी भी भावना को साकार करन क िलय दय को करद ड़ाल ऐसी िन यातमक बिल वि होनी आवशयक ह | अनतःकरण क गहर-स-गहर दश म चोट कर ऐसा ाण भरक िन बल का आवाहन करो | सीना तानकर खड़ हो जाओ अपन मन की दीन-हीन दखद मानयताओ को कचल

ड़ालन क िलय | सदा ःमरण रह की इधर-उधर भटकती वि य क साथ त हारी शि भी िबखरती रहती ह | अतः वि य को बहकाओ नही | तमाम वि य को एकिऽत करक साधनाकाल म आतमिचनतन म लगाओ और यवहारकाल म जो कायर करत हो उसम लगाओ | द िच होकर हरक कायर करो | अपन ःवभाव म स आवश को सवरथा िनमरल कर दो | आवश म आकर कोई िनणरय मत लो कोई िबया मत करो | सदा शानत वि धारण करन का अ यास करो | िवचारशील एव सनन रहो | ःवय अचल रहकर सागर की तरह सब वि य की तरग को अपन

भीतर समालो | जीवमाऽ को अपना ःवरप समझो | सबस ःनह रखो | िदल को यापक रखो | सकिच ता का िनवारण करत रहो | ख ड़ातमक वि का सवरथा तयाग करो | िजनको ानी महापरष का सतसग और अधयातमिव ा का लाभ िमल जाता ह उसक जीवन स

दःख िवदा होन लगत ह | ॐ आननद आतमिन ा म जाग हए महापरष क सतसग एव सतसािहतय स जीवन को भि और वदात स प

एव पलिकत करो | कछ ही िदन क इस सघन योग क बाद अनभव होन लगगा िक भतकाल क

नकारतमक ःवभाव सशयातमक-हािनकारक क पनाओ न जीवन को कचल ड़ाला था िवषला कर िदया था | अब िन यबल क चमतकार का पता चला | अततरम म आिवरभत िद य खज़ाना अब

िमला | ार ध की बिड़या अब टटन लगी | ठ क ह न करोग ना िह मत पढ़कर रख मत दना इस पिःतका को | जीवन म इसको बार-बार पढ़त रहो | एक िदन म यह पणर ना होगा | बार-बार अ यास करो | त हार िलय यह एक ही पिःतका काफ़ी ह | अनय कचराप टी ना पड़ोग तो चलगा | शाबाश वीर शाबाश

  • परसतावना
  • जीवन रसायन
  • गर भकति एक अमोघ साधना
  • शरी राम-वशिषठ सवाद
  • आतमबल का आवाहन
  • आतमबल कस जगाय
Page 43: जीवन रसायन - HariOmGroup · ‘जीवन रसायन’ का यह िदय कटोरा आत्मरस के िपपासुओं हाथ

आतमबल कस जगाय हररोज़ तःकाल ज दी उठकर सय दय स पवर ःनानािद स िनवत हो जाओ | ःव छ पिवऽ ःथान

म आसन िबछाकर पवारिभमख होकर प ासन या सखासन म बठ जाओ | शानत और सनन वि

धारण करो | मन म ढ भावना करो िक म कित-िनिमरत इस शरीर क सब अभाव को पार करक सब

मिलनताओ-दबरलताओ स िप ड़ छड़ाकर आतमा की मिहमा म जागकर ही रहगा |

आख आधी खली आधी बद रखो | अब फ़फ़ड़ म खब ास भरो और भावना करो की ास क साथ

म सयर का िद य ओज भीतर भर रहा ह | ास को यथाशि अनदर िटकाय रखो | िफ़र lsquoॐhelliprsquo का ल बा उ चारण करत हए ास को धीर-धीर छोड़त जाओ | ास क खाली होन क बाद तरत ास ना लो | यथाशि िबना ास रहो और भीतर ही भीतर lsquoहिर ॐhelliprsquo lsquoहिर ॐhelliprsquo का मानिसक

जाप करो | िफ़र स फ़फ़ड़ म ास भरो | पव रीित स ास यथाशि अनदर िटकाकर बाद म धीर-धीर छोड़त हए lsquoॐhelliprsquo का गजन करो | दस-पिह िमनट ऐस ाणायाम सिहत उ च ःवर स lsquoॐhelliprsquo की धविन करक शानत हो जाओ | सब

यास छोड़ दो | वि य को आकाश की ओर फ़लन दो | आकाश क अनदर पथवी ह | पथवी पर अनक दश अनक समि एव अनक लोग ह | उनम स एक

आपका शरीर आसन पर बठा हआ ह | इस पर य को आप मानिसक आख स भावना स दखत

रहो | आप शरीर नही हो बि क अनक शरीर दश सागर पथवी मह न ऽ सयर चनि एव पर ा ड़ क

ा हो सा ी हो | इस सा ी भाव म जाग जाओ | थोड़ी दर क बाद िफ़र स ाणायाम सिहत lsquoॐhelliprsquo का जाप करो और शानत होकर अपन िवचार को दखत रहो | इस अवःथा म ढ़ िन य करो िक lsquoम जसा चहता ह वसा होकर रहगा |rsquo िवषयसख स ा धन-

दौलत इतयािद की इ छा न करो कय िक िन यबल या आतमबलरपी हाथी क पदिच म और सभी क पदिच समािव हो ही जायग | आतमानदरपी सयर क उदय होन क बाद िम टी क तल क दीय क ाकाश रपी शि सखाभास की गलामी कौन कर

िकसी भी भावना को साकार करन क िलय दय को करद ड़ाल ऐसी िन यातमक बिल वि होनी आवशयक ह | अनतःकरण क गहर-स-गहर दश म चोट कर ऐसा ाण भरक िन बल का आवाहन करो | सीना तानकर खड़ हो जाओ अपन मन की दीन-हीन दखद मानयताओ को कचल

ड़ालन क िलय | सदा ःमरण रह की इधर-उधर भटकती वि य क साथ त हारी शि भी िबखरती रहती ह | अतः वि य को बहकाओ नही | तमाम वि य को एकिऽत करक साधनाकाल म आतमिचनतन म लगाओ और यवहारकाल म जो कायर करत हो उसम लगाओ | द िच होकर हरक कायर करो | अपन ःवभाव म स आवश को सवरथा िनमरल कर दो | आवश म आकर कोई िनणरय मत लो कोई िबया मत करो | सदा शानत वि धारण करन का अ यास करो | िवचारशील एव सनन रहो | ःवय अचल रहकर सागर की तरह सब वि य की तरग को अपन

भीतर समालो | जीवमाऽ को अपना ःवरप समझो | सबस ःनह रखो | िदल को यापक रखो | सकिच ता का िनवारण करत रहो | ख ड़ातमक वि का सवरथा तयाग करो | िजनको ानी महापरष का सतसग और अधयातमिव ा का लाभ िमल जाता ह उसक जीवन स

दःख िवदा होन लगत ह | ॐ आननद आतमिन ा म जाग हए महापरष क सतसग एव सतसािहतय स जीवन को भि और वदात स प

एव पलिकत करो | कछ ही िदन क इस सघन योग क बाद अनभव होन लगगा िक भतकाल क

नकारतमक ःवभाव सशयातमक-हािनकारक क पनाओ न जीवन को कचल ड़ाला था िवषला कर िदया था | अब िन यबल क चमतकार का पता चला | अततरम म आिवरभत िद य खज़ाना अब

िमला | ार ध की बिड़या अब टटन लगी | ठ क ह न करोग ना िह मत पढ़कर रख मत दना इस पिःतका को | जीवन म इसको बार-बार पढ़त रहो | एक िदन म यह पणर ना होगा | बार-बार अ यास करो | त हार िलय यह एक ही पिःतका काफ़ी ह | अनय कचराप टी ना पड़ोग तो चलगा | शाबाश वीर शाबाश

  • परसतावना
  • जीवन रसायन
  • गर भकति एक अमोघ साधना
  • शरी राम-वशिषठ सवाद
  • आतमबल का आवाहन
  • आतमबल कस जगाय
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िकसी भी भावना को साकार करन क िलय दय को करद ड़ाल ऐसी िन यातमक बिल वि होनी आवशयक ह | अनतःकरण क गहर-स-गहर दश म चोट कर ऐसा ाण भरक िन बल का आवाहन करो | सीना तानकर खड़ हो जाओ अपन मन की दीन-हीन दखद मानयताओ को कचल

ड़ालन क िलय | सदा ःमरण रह की इधर-उधर भटकती वि य क साथ त हारी शि भी िबखरती रहती ह | अतः वि य को बहकाओ नही | तमाम वि य को एकिऽत करक साधनाकाल म आतमिचनतन म लगाओ और यवहारकाल म जो कायर करत हो उसम लगाओ | द िच होकर हरक कायर करो | अपन ःवभाव म स आवश को सवरथा िनमरल कर दो | आवश म आकर कोई िनणरय मत लो कोई िबया मत करो | सदा शानत वि धारण करन का अ यास करो | िवचारशील एव सनन रहो | ःवय अचल रहकर सागर की तरह सब वि य की तरग को अपन

भीतर समालो | जीवमाऽ को अपना ःवरप समझो | सबस ःनह रखो | िदल को यापक रखो | सकिच ता का िनवारण करत रहो | ख ड़ातमक वि का सवरथा तयाग करो | िजनको ानी महापरष का सतसग और अधयातमिव ा का लाभ िमल जाता ह उसक जीवन स

दःख िवदा होन लगत ह | ॐ आननद आतमिन ा म जाग हए महापरष क सतसग एव सतसािहतय स जीवन को भि और वदात स प

एव पलिकत करो | कछ ही िदन क इस सघन योग क बाद अनभव होन लगगा िक भतकाल क

नकारतमक ःवभाव सशयातमक-हािनकारक क पनाओ न जीवन को कचल ड़ाला था िवषला कर िदया था | अब िन यबल क चमतकार का पता चला | अततरम म आिवरभत िद य खज़ाना अब

िमला | ार ध की बिड़या अब टटन लगी | ठ क ह न करोग ना िह मत पढ़कर रख मत दना इस पिःतका को | जीवन म इसको बार-बार पढ़त रहो | एक िदन म यह पणर ना होगा | बार-बार अ यास करो | त हार िलय यह एक ही पिःतका काफ़ी ह | अनय कचराप टी ना पड़ोग तो चलगा | शाबाश वीर शाबाश

  • परसतावना
  • जीवन रसायन
  • गर भकति एक अमोघ साधना
  • शरी राम-वशिषठ सवाद
  • आतमबल का आवाहन
  • आतमबल कस जगाय