(का Þसंकलन ) òहदी...

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समि समि समि समि (कासंकलन ) हदी अनुवाद

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  • समिसमिसमिसमि

    (का संकलन ) हदी अनुवाद

  • समि�ट

    1

    अनु मअनु मअनु मअनु म

    कथन

    1. समि 2. श दालंकार 3. आकाश 4. धरती 5. बीज 6. श बूक (घ घ)े 7. धीरे धीरे 8. बुढापा 9. ती ारस 10. मालवी 11. मकान क छत पर बगीचा 12. देवदीपावली 13. प थर के नगर म 14. द ली-मे ो म 15. बरगद 16. ना रयल 17. अधोगमन 18. अिन ा 19. सं कृत के अगाध सरोवर म 20. को कल 21. पि डत और आधुिनक का संवाद 22. मु ता ित 23. यह कहने क बात नह 24. हम

  • समि�ट

    2

    25. चाय पीते समय 26. हमेबग म िहमपात 27. धूप क क म 28. थूहर 29. नई नाियका 30. नववषमंगल

    ���

  • समि�ट

    3

    कथनकथनकथनकथन स धानम् (1989), गीतधीवरम् (1996), लहरीदशकम ् (1986, 2003),

    स लवः (2000), संसरणम् (2009) - इन पूव कािशत का सं ह के म म समि ः मेरा छठा सं कृतका संकलन ह।ै पहले सं ह स धानम् म 1988 तक िलखी किवताएँ संकिलत थ , पाँचव संसरणम् म 2001 से 2009 तक क किवताएँ। समि ः म 2010 के बाद क ही किवताएँ ह। िवगत चार वष म मने सं कृत म तीन उप यास पूरे कये – अिभनवशुकसा रका, अ य तथा ता डवम।् मेरी सं कृत म िलखी कहािनय का सं ह भी ि मतरेखा के नाम से इस बीच छपा। का रचना इस अविध म कादािच क प से होती रही। फर भी म समझता ँ क जो थोड़ी सी किवताएँ समि म संकिलत ह, उससे मेरे भावबोध, अिभ ि कार तथा िच तनसरिण म आय ेप रवतन तथा उनक िविवधता को सुधीजन तथा अनुसंधाता पहचान सकेग। संभवतः इन किवता से आजकल के सािह य से मेरी रचनाधारा का संवाद िवशेष

    प से प रलि त कया जा सकेगा। समि म संकिलत सभी तीस किवताएँ मेरे वयं के हदी अनुवाद के साथ

    कट हो रही ह – इससे मुझे िवशषे संतोष ह।ै इसके पहले मेरी 51 सं कृतकिवता के हदी अनुवाद का सं ह - चतुर - सािह य अकादमेी के ारा 2006 म कािशत आ था, तथा उसके आगे पीछे िविभ पि का म मेरी किवता के हदी, पंजाबी,

    गुजराती तथा अं ेजी म अनुवाद छपते रह ेह। लहरीदशकम ्के ि तीय सं करण म दस लहरीका के हदी ग ानुवाद थे। आशा है क इस संकलन क किवता तथा उनके अनुवाद से सं कृत और हदी के सािह य क पार प रकता भी सुधीजन समझ सकेग।

    दवेवाणीप रषद ् के वतक, सं कृतसेवा ती, कृती प ी महाकिव रमाका त शु ल जी के अनु ह से समि ः कािशत हो रही है। उनके ित हा दक कृत ता ािपत करता ँ।

    आचाय भागीरिथ नंद ने इस पु तक क मु त ित के संशोधन म ब मू य सहयोग दया, वे मेरे अशेष ध यवाद के पा ह।

    राधाव लभ

  • समि�ट

    4

    समिसमिसमिसमि

    कतनी कतनी लहर

    गलबाह कर टकरा कतने भँवर घूम गये कतने िववत बन े

    इन सब क समि म कभी शायद बन सका बुलबुला एक। बुलबुले का जीवन ही कतना लहर से लहर आवत से आवत िववत से िववत इन सबक िमलन ेसे वह बन सकता ह,ै नह भी बन सकता ह ै बन भी जाये तो एक ण ठहरता ह ैबस इन सब के बीच फर फूट कर िवलीन हो जाता ह।ै

    कदािचत् कभी ऐसा भी हो जाता ह ै क एक ण के िलये टक गये बुलबुल ेको

    पलक क झपक के बराबर समय के िलये सूरज अपनी करण से छू भर देता ह ै तब आधे ण के िलये बुलबुल ेके भीतर रच जाता ह ै सतरंगी आभा वाला इं धनुष। काल का अज यह जो महानद ह ैबह रहा इसम पता नह कन संयोग से बना और एक ण टका

  • समि�ट

    5

    बुलबुला ँम मुझे ज म देने के िलये कतने बादल बरसे कतनी धाराएँ बह

    बुलबुले क औकात या? एक ण का उसका जीवन। पर एक ण मेरे टके रहने पर देवता ऊपर मु काते ह स हो कर। उनक मु कान क सतरंगी आभा म पं दत होता ह ैमेरे भीतर

    एक ण का और जीवन कई क प क आयु से बड़ा एक ण।

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  • समि�ट

    6

    श दाश दाश दाश दालकंारलकंारलकंारलकंार

    श द क नसेनी पर चढ कर म प चँता ँउस िखड़क तक िजसके पार दखता ह ैअन त।

    दीपक करत ेह उजाला कुछ दरू साथ चलने वाला श द के दये मन क देहली पर धरे भरते ह उजास भीतर बाहर क दोन दिुनया म धीरे धीरे यह उजास फैलती ह ै आसपास, िनकट, परे और ब त दरू गहने सजात ेह देह श द बनते ह अलंकार िजनसे सँवरता ह ैसंसार

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  • समि�ट

    7

    आकाशआकाशआकाशआकाश

    या करे यह आकाश?

    हवा क तरह वह बह नह सकता आग क तरह जला नह सकता पानी क तरह धारा म नह बँट पाता धरती क तरह नह उठा सकता बोझ हवा म पश ह ैआग म प ह ैपानी म ह ैरस धरती म रमी ह ैगंध पर आकाश म ह ैही या? उसका तो होना, न कुछ होन ेम ही वह भी ललचता ह ै पश के िलये वह भी चाहता ह ै प उसे भी गम चािहये वह भी माँगता ह ैरस ग ध का लोभ उसम वह घट घट म घुसता ह ैमठ मठ म करता ह ै वेश पर नह िमलती उसे अलग पहचान कहते ह पि डतजन घटाकाश हो या मठाकाश आकाश तो ह ैकेवल आकाश गगनचु बी इमारत के जंगल म वह भटकता ह ैबदहवास उसे सब ओर से पीस रह ह इमारत क घनी पाँत डराता ह ैउसे धआु ँपाइप से फूटता

  • समि�ट

    8

    आकाश ढँूढता फरता ह ैअपना खुद का आकाश आकाश के िलये कह नह ह ैअवकाश या करे िबचारा आकाश?

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  • समि�ट

    9

    धरतीधरतीधरतीधरती

    या करे यह धरती?

    इस सागर का यह या करे? िजतना गंभीर और िवशाल धरती से कई गुना बड़ा इसका आकार पर उसके िलये तो वह िनरा ब ा ही था उसके पाँव पर पड़ा खेलता रहता फेन के पुंज म िखलिखलाता वह इसे खेलता देख खुश हो लेती थी किवजन कहते हमारी यह धरती - सागररशना । कभी कभी शरारत पर उतर आता सागर वह लहर के हाथ उठा उठा कर धरती को छूना चाहता उसे नहला देता। धरती उसके खेल से भी खुश ही होती सागर उसके आग ेिथरकता कभी कभी दु साहस कर बैठता सागर धरती के पु क नौकाएँ डुबो देता धरती उदास देखती रह जाती जहाज डूब जात.े... पर ऐसा तो पहले नह आ क सागर ददुात दानव क तरह इसे िनगल लेन ेको दौड़ लगाये यह सागर तो पहचाना आ नह इसका ऐसा िवकराल प पहल ेदेखा नह इस सागर का या करे यह धरती?

  • समि�ट

    10

    बीजबीजबीजबीज

    कुछ ऐसे बीज थे जो गोदाम म पडे पड़े अकुलात ेरह गये क हम भी डाल दया होता कसी यारी म कोई हम हाथ म उठाता और खेत म उछाल कर फकता, हम भी अँकुरा लते ेहम म होत ेनये पात हम अपन ेआप को फसल म िबखेर पात ेऔर हम फर से बीज हो जाते। उनके सपने दवा व बन कर रह गये। कुछ बीज थे जो कूड़े म फक दये गये वे उसी म कुकरमु जैसे उग पड़े जब तक वे देखना शु करते कोई सपना तब तक नगरपािलका का वाहन आ कर उखाड़ ल ेगया उ ह। कुछ ऐसे भी थे बीज िजनका बीज होना ही बिधया दया गया

    योगशाला म िनव य बने ए वे बीज फर से बीज होना चाहत ेरह गये

    मुि कल ही होता ह ैबीज हो सकना। उससे यादा मुि कल होता ह ैबीज का अंकुर बनना- अंकुर का शाखा म और प म िव तार लेना। चाहता ह ैहर बीज

  • समि�ट

    11

    बोया जाना, अंकुराना, शाखा म प म, फसल म लहलहाना, सारे के सारे बीज क कामनाएँ फल जाएँ ऐसा हो नह पाता। और उन बीज का या जो मन के कोन ेम पड़े रह गये?

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  • समि�ट

    12

    शबंकू शबंकू शबंकू शबंकू ((((घ घेघ घेघ घेघ घे))))

    शंबूक ह हम सीिपयाँ ह हमारी काया आ मा क तरह हम इनम समाये िवकट संकट क मार म हम भीतर समा जात ेह अपनी काया म बचाये रखते ह खुद को मरने िबखरन ेसे सीिपय के भीतर रह कर हम िवचरते ह सागर के अपार ग वर म बटोरते ह मोती जानते ह हम क जब चल ेजाएँग अपनी कायाएं छोड़

    तब ल ेजायेग लोग इ ह बटोर सीिपयाँ जो हमारे शव ह, उनम वे खोजग ेमोती शंख भी ह हमारे ही देह इ ह जब छोड़ कर जब हम करते ह महा याण जब िनज व हमारे देह उठा उठा कर घुमा फरा कर फँूक मार कर गाल फुला कर बजाते रहत ेह इ ह लोग िजनके भीतर हम नह होत.े.

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  • समि�ट

    13

    धीरे धीरेधीरे धीरेधीरे धीरेधीरे धीरे

    जीवनसर के तट पर िपया अंजिल भर भर कर रस जो यास कभी थी गहरी बुझी वह धीरे धीरे मेरे मानस पर छाया सु दरता क उतरी मानसरोवर पर जैसे सं या उतरे धीरे धीरे आकां ा क म दरा पी कर आवाजाही क ब तेरी खुमारी उसक पर अब चुक रही वह धीरे धीरे रजनी वह भोर ई छँट रहा ह ैअँिधयारा ओस क पाँत िबखरती जा रही वह धीरे धीरे झंझा मंथर ई

    भंजन न ेथम कर एक साँस भरी मनोरथ क लगाम मन ेख ची ह ैअभी धीरे धीरे भाग दौड़ से या होगा या होगा उतावली से

    िशिथलता इक आभा िबखेरती छाई मुझ पर धीरे धीरे

  • समि�ट

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    आ था क पतवार पकड़ कर संक प के ड गी म सवार हो दु तर जीवन नदी को मन े कया ह ैपार

    धीरे धीरे जैसे साँप कचुल उतार कर नई कचुल धरता ह ैधीरे धीरे ऐसे ही अपना पुराना चोला उतार कर नया धारण करता म धीरे धीरे

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  • समि�ट

    15

    बढुापाबढुापाबढुापाबढुापा

    चमड़ी पर बढती झु रय के साथ समतल होती जाएँ जब सलवट से भरी िशकन जदगी क , सफेद होते चले जा रह ेकेश के साथ िमटत जाएँ जब मन पर पतु कािलख क परत; आँख क मंद होती योित के चलत ेभी भीतर क आँख म झलक उठ जब साफ साफ वे सारे पड़ाव जो पीछे छूट गये, और - जो आगे ह वे साफ झलकने लग; दखने लग े

    जो कुछ आ हािसल उसके आर पार जब कोई िशिथल धीमे कदम से जीवन भर के तप क खरी कमाई साथ िलये चल ेतो उसके बूढा आ जानो। अिभशाप नह ह ैबुढापा ब त आसान भी नह ह ैबूढा हो पाना; उ बीत जाने पर भी बूढे होने से रह जात ेह कतन े कतने लोग ऋिष मुिन ओ ानी जन

  • समि�ट

    16

    इसी कामना म गुजारत ेह जीवन क वे बूढे हो सक;

    जब क कई पंिडत जन मृ यु के ार तक आ कर भी पोसते रह जाते ह बदरंग हो चुका िम या यौवन कतने अभाग ेह देवता क वे बूढे हो नह सकत;े

    वे अपन ेआकाश से हसरत के साथ िनहारत ेरहते ह मृ युलोक के कुछ उन बूढ को िजनके कमजोर ए कंध पर धरती टक ई ह ै य क अलका से कतनी अ छी ह ैयह धरा हमारी

    िजसम बूढा हो पाना अभी भी संभावना ह ैक े फल पक कर छोड़ देते ह अपना वंृत यौवन का वंृत छोड़ कर और मधुर होता जाता ह ै जीवन का फल बुढापे के पकाव म बूढे आदमी के ऊपर के ओठ पर मृ यु और अधर पर अमृत रहता ह ै दोन के बीच जो ब त पतली रेखा ह ैमु कान क वह उसका जीवन ह।ै

  • समि�ट

    17

    आदमी िजतना िजतना बूढा होता ह ैउतना उतना ब ा बनता जाता ह ैमृ यु माँ क तरह आती ह ैऔर उसे अपने अंक म उठा लेती ह।ै मृ यु इसे अपने अंक म िलये िलये झुलाती ई ल ेचलती ह ैकहाँ ले जा रही हो मुझे? - बूढा आदमी जो अब ब ा बन चुका ह,ै पछूता ह ैउससे अन त क महास रता के कनारे ऊँची च ान के आिखरी छोर पर खड़ी ठठोली करती करती पूछती ह ैउससे मृ यु

    अब छोड़ दू,ँ अब छोड़ दू?ँ या मृ यु जानती ह,ै क उसक भुजा के बंधन से छूट कर

    छ प से िजस अन त ग वर म बूढा िगरेगा वह अमृत का सागर ह।ै मृ यु को सामने देख कर मु काता ह ैबूढा आदमी मृ यु उससे लुकािछपी करने लगती ह ैअपन ेसामने मृ यु को ला य म िथरकती देखता ह ैबूढा आदमी और मु काता ह।ै या बूढा आदमी

    अपनी इस मु कान क सारी अनोखी भ ता के साथ खड़ा हो सकेगा अपनी उन संतान के सामने जो उसे जबरन् वृ ा म छोड़ आने के िलये बेताब ह या उसक संतान समझ सकेग क उसका होना

    उनके िलये अिभशाप नह जीवन के अमृत से भरे आशीवाद का वषा ह?ै

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  • समि�ट

    18

    ती ारसती ारसती ारसती ारस

    रात भर सुख से सोया, मँुह अँधरेे न द खुली। कुछ देर ती ा म रहा क क शायद न द फर से चली आये

    न द या टूटी क दरू से एकाक कसी कौवे क काँव काँव कान म पड़ी कतना कोमल मृदलु नाद कौवे क काँव काँव का

    अ सर ऐसे मौक पर लगता रहा ह ै क वह यह म यान रख कर अपने कंठ म काँव का वर भरता ह ै क भोर क अलसाहट म आप कुछ और सोना चाहते ह , तो सो ही ल

    आप जागन ेजागन ेको ह , तो जग कर उठ ही ल माताएँ इसी तरह ब को जगात ह इसी तरह न द से उठान ेके िलये पुकारत ेह िपतर । आज तो चाय बनान ेम भी कोई गड़बड़ी नह ई िजस च मच से भर कर चाय क प ी डालता ँ वह सही जगह पर िमल भी गया शकर भी सही पड़ी न यादा न कम, उतनी ही शकर, उतनी ही चाय प ी उतना ही दधू िजतना रोज होता ह,ै पर चाय म ही वाद कुछ अिधक लगा बाहर बेहद घना कोहरा था, मन मे आशंका थी क

  • समि�ट

    19

    कोहरे के कारण शायद मुझे एयरपोट प चँान ेके िलये टै सी व पर आ न पाये, पर यह आ ि त भी क - उड़ान ही समय पर कहाँ चल रही होग । कुछ देर से ही सही टै सी आई तो, इतने घन ेकोहरे म

    ायवर गाडी कैसे चला पायेगा कई कार कोहरे के कारण सड़क के कनारे खड़ी कर सो गये थे ायवर, पा कग क बि याँ जला कर कोहरे म िवलंब आ, इस सारे िवलंब के भीतर से समय पर एयरपोट प चँ गया भीतर जा कर पाया क िवमान तो समय पर ह ैसमय पर चलन ेवाला िवमान थोड़े िवलंब से ही चला थोड़ा िवलंब आ, थोड़ी ती ा करनी पड़ी पर िवमान म समय पर बैठ ही गया अब सु ता िलया थोड़ा िवलंब आ, थोड़ी ती ा करनी पड़ी पर यह बुि मेरी बुि म आई तो क अंत पर प चँ कर

    सब कुछ ठीक और समय पर हो सकता ह।ै थोड़ा िवलंब आ थोड़ी ती ा करनी पड़ी इस िवलंब म और ती ा म जो रस बसा था वह बचा आ ह।ै

    ���

  • समि�ट

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    मालवीमालवीमालवीमालवी

    सेवािनवृि क सी ढय से उतरते ए धरती को छू रह ेह पाँव वान थ और सं यास क संिध पर खड़े मेरे मन के कई आवरण टूट रह ेह तो

    सू शांकरभा य के पृथुलकाय थ के नीचे दबी का काश क कताब के पीछे िजस कसी कोने म िछपी मेरी असावधानी के एक ण म लौट आई अक मात् मेरे पास - मालवी। जैसे चप ी के वध पर किव का शोक

    ोके म फूटा आ। कोई दो तीन वा य मालवी के प ी से बात करते ए सहसा मेरे मँुह से िनकल गये। अब सोचता ँ कौन ह ैवह जो इस तरह अचानक मालवी बोल पड़ा ह ै वह इन साठ साल म कहाँ था म अपने भीतर झाँकता ँ उसे पहचानने के िलये।

    ���

  • समि�ट

    21

    घर क छत पर बगीचाघर क छत पर बगीचाघर क छत पर बगीचाघर क छत पर बगीचा

    छोटा सा घर घर पर छत भी छोटी सी पानी भी थोड़ा सा, इस थोड़े म समाया आ थोड़ा सा अन त -- गमल म और टोक रय म लगाये पौधे। छत पर न दन कानन उतर आयेगा ऐसी तो दरू-दरू तक कभी कोई संभावना नह रही। ये ठहरे छत पर लगे पौध ेये ब त थोड़े म संतु हो जात ेह थोड़े म रीझ जात ेह थोड़ी हवा का झ का, थोड़े पानी क फुहार इसी म खुश-वुश हो लेत ेह। इनको ेम से नहला दो ये ब क तरह हसँते लगत ेह उसके बाद अपे ा से ताकते ए क इसके आगे या?

    बोगनबेिलया क बेल इन से कुछ दरू ऊपर उठने क कोिशश म अ यमन क सी कहती ह ैअपने संिगय से जहाँ ऊँचे ऊँचे मकान का जंगल फैला ह ै वहाँ पहले सचमुच का जंगल था इस जंगल म मेरी नानी थी जब मुझे उखाड़ कर यहाँ लाया गया तो वह उदास ब त ई अब जंगल वहाँ नह ह ैवह पता नह कहाँ होगी

  • समि�ट

    22

    एक गमले म वटवृ काटछाँट कर लगाया आ िसकुड़ा िसकुड़ा कसी तरह साँस लतेा आ

    उसका क देख कर गमल ेम लगे दसूरे पौध े हसँ कर उसे ताकते वह उन पर िचढता आ कहता -- अरे देखत े या हो? तुम लोग ने मेरा िवराट् प नह देखा मुझे इस गमल ेसे िनकाल कर खुली धरती म लग जाने दो तब म सब ओर फैली अपनी जड़ से

    ांक ट के इस जंगल को ही व त कर दू!ँ गमल म बैठे बाक पौधे उसक घुड़क से चुप रह जाते कोयल कूकती, वे ब त उ लिसत न होते वे पाठशाला म गु जी के डंडे से डरे ए ब क तरह गुमसुम बैठे रहते। गृह वामी सोचता अभी तक इ ह पानी तो देते रह े जब छत पर पानी नह चढेगा तो या होगा?

    ���

  • समि�ट

    23

    दवेदीपावलीदवेदीपावलीदवेदीपावलीदवेदीपावली

    का तक क पू णमा के उ सव पर काशी म गगंा के तट पर िव नाथ के घर के आग े जब मनती ह ैदेवदीपावली गंगा अपनी लहर पर ितरत ेअसं य पावन दीप से आरती उतारत ह ैशंकर महादेव क । दय क पाँत लहर पर सरकती ह

    अगिणत दीप क िझलिमलाहट म जैसे आकाश से उतर आता ह ैन का च वाल गंगा के तल पर। फर तो आकाश के मंडप के नीचे

    गंगा तट के रंगमंच पर शंख और नगाड़ क ती वादन म अधनारी र ला य और तांडव एक साथ करते ह नौका म बैठे िवदेशी सैलानी च कत हो कर ताकते रह जात ेह एक और गंगा के जल म िबछती चाँदनी चाँदी के सेतु दोन पाट को जोड़ते उनके आसपास फैली दीप क कतार और उनके बीच सरकती सकड़ो नौकाएँ

    ((((और एक अशं और एक अशं और एक अशं और एक अशं िििि भीभीभीभी)))) कोई जुआ खेल कर, कोई म दरा पी कर कोई पटाखे चला कर कोई िबजली क रोशिनय के िवतान रच कर

  • समि�ट

    24

    कुछ और लोग पूजामंगल के शभुसंभार लजा कर दीपो सव का आयोजन करत ेह िज होने अपने आप को दीपक बना िलया ह ै उनके िलये तो िन य दीपावली ह।ै

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  • समि�ट

    25

    प थर के नगर मप थर के नगर मप थर के नगर मप थर के नगर म

    पिथक, िबछावन (िब तर, शा ) नह ह ै

    प थर से भरे हमारे गाँव म1 (गाथास शती- 873) शा क शैया पर किवता के त कये पर टक कर अब लोग यहाँ बैठे नह दखते प थर के नगर म सभी कुछ ह ैपथराया आ प थर के उ ान प थर के मकान प थर के शरीर प थर के मन जहाँ देखो प थर पड़े ए बुि पर, मन पर प थर क ितमाएँ प थर क समािधयाँ बुत बनाने के िलये प थर के ढेर प थर के भार तल े कराहती धरती धरती क काया पर प थर फकते लोग । जो धरती ऊँचे ऊँचे िवशाल पहाड़ के भार से बेहाल न ई 1 ाकृतमूल - पंथअ, ण ए थ संथरमि थ मणं प थर थले गामे।

  • समि�ट

    26

    यहाँ उसके िलये एक एक प थर झेलना आ दभूर अब अपराध मापण तो रचन ेवाले सुकिवजन भी नह जो उससे कह क ह ेमाँ धरती, प थर से हमने तु हारी काया, जो तिव त कर दी इस पाप के िलये हम मा करना हमारे पास के तो श द भी हो चुके पथराये पथराये

    ���

  • समि�ट

    27

    दददद लीमे ो म चार दृ यलीमे ो म चार दृ यलीमे ो म चार दृ यलीमे ो म चार दृ य

    ((((दृ यदृ यदृ यदृ य 1 1 1 1 )))) (इस दृ य से पदा ब सव शता दी के आिखरी वष क कसी ितिथ म उठता ह)ै म कौतुकवश मन बहलाव के िलये मे ो म चढ गया था एकदम िचकना िचकना नया कंपाटमट सब कुछ संुदर, नवीन वि थत सारे संसार म कह कह ही िमलेगी इतनी ब ढया व था मे ो क गव अनुभव करता आ म आराम से एक सीट पर बैठा मन म बार बार ध यवाद दया मे ोमानुष ीयुत ीधरन् जी को िजनका पौ ष ह ै क यहाँ बैठे बैठे लगता ह ै य पे रस या िवयना म ह और गव से माथा ऊँचा कर कर सकते ह हम!

    ((((दृ यम्दृ यम्दृ यम्दृ यम्----2222)))) इस दृ य से पदा इ सव शता दी के पहले दशक म कसी ितिथ पर उठता ह)ै मे ो म सब कुछ सुख कर ह ै आवाजाही पहले से यादा ह,ै पर भीड़ भड़ ड़ नह म घुसता ँतो कोई सीट खाली नह लड़के लड़ कयाँ, व थ युवकयुवितयाँ कािबज सारी सीट पर पर मुझे आया देखते ही व र नाग रक के िलये आरि त सीट पर से उनम से कोई उठा और बै ठये अंकल कह कर खड़ा आ म स

  • समि�ट

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    सुख से बैठा....

    ((((दृ यम्दृ यम्दृ यम्दृ यम् ----3333)))) इस दृ य से पदा इ सव शता दी के दसूरे दशकक कसी ितिथ पर उठता ह)ै ब त अिधक भीड़भाड़ और रेल पेल म कंधे पर पर टकरात े कसी तरह िड बे म घुस पाया

    हाथ म सामान के थलेे भी थ ेऔर थका शा पहले क तरह नया नया सा धलुा धलुा सा िचकना नह लगा कंपाटनट व र नाग रक के िलये आरि त सीट तक प चँ कर अपे ा से मने एक लड़के को देखा जो उस सीट पर कािबज था उसने उपे ा के साथ उड़ती सी दिृ मुझ पर डाली और हाथ के मोबाइल म डुबो दी म वीतराग क तरह खड़ा रहा..

    दृ यदृ यदृ यदृ य ---- 4444

    (इस दृ य से पदा भिव य म इ सव शता दी के तीसरे दशकक कसी ितिथ पर उठेगा) घुसना लगभग असंभव मेरे जैसे बूढे आदमी के िलये पर जाना तो था घुसा नह भीड़ के रेल ेके साथ कंपाटमट म ठेल दया गया यहाँ से वहाँ धकेला गया पर चलो कसी तरह भीतर आ तो गया हाथ के मोबाइल म डूबे या एक दसूरे गिपयात े लड़के और लड़ कयाँ

  • समि�ट

    29

    मुझे देखते और हसँते उनम से कसी ने कहा - अरे यह बूढा!... यह अभी तक जीिवत ह ै कतने दन और बोझ बना जीता रहगेा यह?

    ���

  • समि�ट

    30

    बरगदबरगदबरगदबरगद

    राजमाग के बगल म अकेला खड़ा ह ै यह बरगद का पड़े पहले ब त से पड़े रह ेह ग उसके आसपास, सब ओर और िनकट बंधुबांधव क तरह उसे घेरे ए। एक एक कर के वे उसे छोड़ कर चल ेगये राजमाग के िव तार क बड़ी योजना के या वयन के समय यह दय पर प थर रख कर देखता रहा अपन ेबंधु जन का िनघणृ वध। इसी शहर म इितहासिवद ्मेरे एक िम रहत ेह वे इस बरगद के पेड़ का इितहास कुछ य बतलात ेह यह पहल ेकभी सह शीषा सह ा सह चरण सह बा पु षक तरह था हजार लोग का सभागृह व छ अपनी छाया म यह रच देता था

    गाँव के लोग इसक छाया म बैठ कर गपशप करते, क से सुनाते या िमल कर गात े यह सुनता रहता। गपशप, कथा या गायन सुनने के लालच म देवता आसमान से उतर कर इसक घनी शाखा म िछप कर बैठ जात े साँझ होने पर दरू से उठती िसयार क आँ आ ँया भालु क थू कार उ लु के घू कार

  • समि�ट

    31

    कभी मोर क आकुल केका विनयाँ बीच बीच म पवत के व ः थल चीरते हािथय क चघाड़ और सह के गजन सुनाई पड़ते। असल म वे पशुप ी गाँववाल क कथा म कँारी देते थ ेया उनके गायन म कभी नगाड़े क थाप, कभी मँजीरे के शिजत से संगत करत ेथ ेएक बार एक महान ्गायक राजसभा म दु क दरुिभसंिध के कारण िनवािसत हो कर यहाँ से िनकल े और इसक छाया म बैठ उ ह न ेिव ाम कया फर बैठे बैठे उ होने य ही भैरवराग गाया

    तब इस वरगद क हर शाखा म वीणाएं िनकल आ और यह महान ्गायक क संगित म एक साथ एक हजार वीणाएं बजाता रहा अपनी दस हजार भुजाएँ कंिपत करता झूमता आ इस अ भुत दृ य को देखन ेके िलये देवता ुलोक से अ त र तक आये और फूल बरसाने लगे इस पर मेरे इितहासिवद ्िम अपनी ये सारी कथाएँ अपने साथ िलये िपछल ेसाल गुजर गये

    भोर होने पर कभी कभी म इस रा ते से िनकलता ँ और बरगद के पेड़ को धुएँ म िलपटा धूिलधूस रत और उदास देखता ।ँ अब कुछ लोग मानते ह क पेड़ म मृित भी होती ह ै या याद करता होगा यह बरगद या अपन ेबंधु बांधव उन पड़े को

    िजनक घनी पाँत ेइसके आसपास चार तरफ फैल थी?

  • समि�ट

    32

    इसके प रसर को अपनी चहचहाहट से गुँजान ेवाले पि य को या उन व यपशु को िजनक चघाड़े, गजन इसके प रसर म गूँजते थ?े या उस गायक को िजसके गायन क संगत म इसन े एक साथ हजार वीणाएँ बजा थ ?

    रहा होगा इसके आसपास पहल ेघना जंगल अब यहाँ कां ट का जंगल ह ै गपशप, कथाएँ, गायन सब अतीत का कथाएँ रह ग अब यहाँ िसयार क आँ आँ नह सुनाई पड़ती भालु क थू कार नह उठती न उ लु के घू कार। मोर क आकुल केका विनयाँ पवत के व ः थल चीरती हािथय क चघाड़ और सह के गजन ये सब अतीत ए उनक जगह कान फोड़ते सायरन के वर ह या गािड़य के हान क ची कार।

    अब कोई आशा नह रही क इस बरगद के आसपास हसेँग भोल ेपौधे िखलिखलायगे फूल मु कायगे कसलय कतना समय हो गया इसन ेफूल नह देखे

    इसके खुद फल भी सूख रह ेह न क पले अब उसम आती नह पुराने जीण प े भर इसक काया पर ह वे प ी अब नह

  • समि�ट

    33

    जो इसक हजार शाखा म दबुके अपनी चहचहाहट से बजाते थे एक साथ असं य वीणाएँ उ ह के कारण तो यह कवदंती वृ बना अब इसक कवदंितयाँ भी सूखे प क तरह झर ग । उनक ममर विन भी अब नह सुन पड़ती। एक बार इस बरगद के पास के चौराह ेपर आमसभा म नतेा जीका भाषण आ अरे देखो देखो – नेताजी ने कहा – इस बरगद के आसपास कुछ नह उगता यह शोषक ह ै केवल अपनी ही जड़ का पोषक ह ै हम िमटाने ह ग ेऐसे बरगद कतना तो थान इसके थ फैलाव न ेघेर रखा ह ै

    इसक जगह तो हमारे ि य नेता ीमान् शीकामुरा जी क ितमा होनी थी ..

    मुझे लगा क बरगद का पेड़ यह सब सुनते सुनते और उदास आ ह।ै नेता जी भाषण कर के चुप न रह े उ होने मंि मंडल क बैठक बुलाई बरगद को हटा कर उसके थान पर शीकामुरा जी क ितमा थािपत क जाये यह ताव पा रत कराया। कुछ िसर फर को यह ताव अ छा न लगा उ ह ने उ यायालय म यािचका दािखल क क ितमा क थापना िनर त क जाये

    उनक िजरह सुनन ेके बाद उ यायालय न े थगन आदेश दे दया ।

  • समि�ट

    34

    अगले दन मन ेसुबह के अखबार म शीकामुरा जी क ितमा थापना पर थगन आदेश क खबर पढी फर बाहर िनकला

    वरगद के पास से िनकलत े ए मुझे लगा क बरगद हसँ रहा ह ै

    ���

  • समि�ट

    35

    ना रयलना रयलना रयलना रयल

    पेड़ तो वह एक ही था ना रयल का अनेक शाखा शाखा से भरा पूरा उसके उ दा फल क कोई एक ढेरी देवता के मि दर म चढाई गई फर भु का साद बन कर

    एक हाथ से दसूरे हाथ म बँटती चली गई एक और ढेरी उसी के फल क िववाह के मंगल म कसी के वागत स मान म अ पत ई।

    एक ढेरी वह थी िजसक जटाएँ उतारी ग गुँथ और र सी बनी कोई और ढेरी आ ित बन कर आग म जली और कोई इंधन बन कर चू ह ेम कोई ग र के ग र लादी गई यान और जहाज म ले जाई गई एक देश से दसूरे देश फर कहाँ गुम ई या पता?

    कोई और ढेरी थी जो पीस दी गई िनदयता के साथ और िनकाल िलया गया िजसका तलै तैल हो कर वह खो गई संुद रय के काले केश म अँधेर के क ह कोन म।

  • समि�ट

    36

    एक और ढेरी थी जो िनचोड़ ली गई िवलािसय के िलये म दरा बनने को और फक दी गई थूक ई व तु क तरह कोई और ढेरी वा द ंजन बन कर सजी, कोई बन कर रह गई चटपटी चटनी बस। ना रयल क कुछ और ढे रयाँ शीतल पेय क लालसा म लोलपु घोर ताप से सूख रह ेओठ वाल ेऔर पसीने से लथपथ तृ णातुर लोग के ारा चूमी ग भोग ली गई ितर कृत और उपेि त फक दी गई फर गिलय म कह ..

    ���

  • समि�ट

    37

    अधोगमनअधोगमनअधोगमनअधोगमन

    भरत के सौ बेट ने िपता से ना िव ा सीखी कुछ समय के बाद वे गँवा िश पक करन ेलग े उस िश पक म ऋिषय पर रहता था ं य दरुाचार का िवचार

    ा यधम के साथ कया गया, िन ुर थी वह तुित और अ तुत भी। --- अरे अरे यह तो उपहास ह ैहमारा हमने कतना तप कया उसका यह हम दु वपाक िमला यह कहते ए भयंकर रोष म फनफनाते

    ोध म जलते ऋिषय ने उन भरतपु से कहा - या अ छी बात ह ैयह

    हमारी इस तरह िख ली उड़ाना? यह हम न सहगे। तुम लोग ा य हो जाओग े तुम होम नह कर पाओगे तुम सब शू ाचार हो जाओगे तुम सब हो जाओग ेअपां े य और कुि सत यह शाप सुना उ तेज वाले मुिनय का िख ए नट और िपता भरत के पास आये बोले उनसे – आपन ेतो हमारा करा दया स यानाश यह नाटक नह था, भूल थी हमारी हम इससे हो गये शू ाचार भरत न ेकहा – भोले हो तुम सब

  • समि�ट

    38

    यह शाप नह था मुिनय का यह तो था आशीवाद और वर यह ना को सारी धरती पर फैलाने का एक अवसर उनके आदेश से नट िहमालय से नीचे उतरे और भरतपु के ारा इस तरह ना का अवतरण भू पर आ भरत का उनसे वंश चला और भिव य भी ।।2

    ���

    2 यह किवता ना शा य के अंितम अ याय पर आधा रत ह।ै अि तम दो पंि याँ ना शा

    से उ धृत।

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    39

    अिन ाअिन ाअिन ाअिन ा

    अिन ा से म कई साल ब त परेशान रहा वह पूतना क तरह आती और मुझे गोद म ल ेकर अपना िवषा तन मेरे मँुह म दे देती वह एक म थल रच देती िजसके िनरविध िव तार म यासा म दौड़ता रहता

    वह कुलटा क तरह कुवचन के साथ कौर कौर मुझे चबाती जाती अब मन ेउसे वीकार कर िलया ह ै वह हसँती ई आती ह ै, म उसके साथ िवहरता ँ िन ा दरू खड़ी ताकती रहती ह ै म एक अगाध नद िन ा और अिन ा के दोन तट के बीच बहता ँ दोन को आ लािवत कर मेरे साथ बहने को तरसत ेरहत ेह दोन ये कनारे ।

    ���

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    40

    संससंंसं कृतकृतकृतकृत के के के के अगाध सरोअगाध सरोअगाध सरोअगाध सरोवर मवर मवर मवर म

    सं कृत एक अगाध सरोवर म उसम ब त छोटी सी मछली यदा कदा अपनी मंुडी बाहर िनकाल कर उ मु आकाश को भी देख िलया करता ँ सं कृत के अगाध इस सरोवर से कतनी ही न दयाँ िनकल कतनी िनकल कर लु हो ग

    कुछ अभी तक बहती ह सरोवर अभी भी कायम ह ै सं कृत के अगाध इस सरोवर म ठहरा आ वाह फूटती ह ैसड़ी दगुध कुछ लोग इसके कनारे खड़े शा के िववत िगन रह ेह कुछ माप रह ेह इसक गहराई कुछ इसे देखे िबना ऊपर मुख कये कर रह ेह वचन देख रह ेह मु त या बाँच रह ेह ीस यनारायणकथा उ ह यह दगुध नह आती।

    ���

  • समि�ट

    41

    को कलको कलको कलको कल

    इन दन बावला हो गया ह ैको कल कब कूक भरना ह ैयह उसे यान नह रहता पुरख के ारा बनाये गये सारे िनयम का इस ससुरे न ेस यानाश कर के रख दया। जब वस त का कोई नामोिनशान न हो तो यह कूजता रहगेा ब त तीखा कूजेगा इस तरह क जैसे कान ही फाड़ डालेगा

    यह भी यान नह रहता इसे क पंचम टूट कर कभी धैवत म तो कभी िनषाद म घुस कर बेसुरा हो रहा ह ैकोई पूछे इससे क भैया काह ेकूकते हो-

    ऐसे हालात म – जब हालात तु हारे बस के नह रह?े या समझते हो तु हारे कूक भरने से

    उतर कर चला आयेगा वसंत? ितस पर तुरा यह क , जब बीत चुका होता ह ैवसंत तब दु यह कूक भर रहा होता ह ैकोई पूछे इससे क या गुजर चुके वसंत के िलये

    शोकगीत गा रह ेहो? रही होगी कभी इसके वर म िमठास रह होग कभी ाचीन काल म इसक काकली क अपनी खूिबयाँ

  • समि�ट

    42

    अब तो उसक तान ताने मारती लगती ह ैया फर िख ली उड़ाती.. अब यह एक और िवडंबना देिखये क वसंत आ चुका

    अब इसको कूजना था तो यह िसर झुकाये ढीला ढाला बैठा आ ह ैआम क डाल पर कोई पूछे इससे क भैया बात या ई इस तरह च च लटकाये काह ेबैठे रह गये?

    ���

  • समि�ट

    43

    पि डत और आधिुनक का सवंादपि डत और आधिुनक का सवंादपि डत और आधिुनक का सवंादपि डत और आधिुनक का सवंाद

    आधिुनआधिुनआधिुनआधिुनक का क का क का क का ---- पािणिनशा का पान कया

    ाितशा य तो जानो पूरा का परूा हजम कया पर ह ेप गा पंिडत! ेम का ाकरण भी या कुछ जाना? सृि के रह य जाने, तं युि य क चचा क घ ट िलया सब का सब वेदा त याय पढा, वेदांत गुना और मीमांसा रट डाली या उसका हाल जाना

    घर म कलप रही ह ै वह जो तु हारी घरवाली? पंपपंंपंिडिडिडिडतततत का उ र का उ र का उ र का उ र ह ेआधुिनक!

    थ गव मत कर छँूछे घड़े क तरह मत बज तेरे वभाव म घलुी ई ह ैउ ंखलता

    ेह नह ह,ै ितल से तलै िनकल जान ेके बाद बची तू खली क डली ह ैमेरी गृिहणी क चता तुझको य परपु षशीलिवदारणपरायण अपनी ही ी को सँभाल ल े मेरे चार ओर जो सरक रहा ह ैसंसार म उसे सही देख लेता ँअपने शा क आँख से तू अपनी आँख का च मा उतार कर अपनी दिृ माँज ले।

    ���

  • समि�ट

    44

    मु ता ितमु ता ितमु ता ितमु ता ित3333 (स मा य शूकर से मा ाथनासिहत) या? या?? करना ही या ह ैहमको

    जग क चता से आकुल हो कर या लेना देना ह ै हमको उनसे, ककत िवमूढ ए बैठे ह जो नर

    ठेका हमने िलया नह ह ै क कर डालेग सारी दिुनया का उ ार संतु ह हम शूकर, करत ेचले आ रह े मु ता ित िबना िवचार। या करना उसको याद

    सतयुग म आ कभी जो पूवज हमारा रसातल म डूब चुक धरती को इक झटके से िजसने था उ ारा हमारा क चड़ म िलथड़ा सा ा य, उसीम घुसा कर थूथन संतु हम शूकर कर रह े मु ता ित हो कर मगन। फट पड़े आकाश, िगरे वह धरती पर, धरती िगर कर डूबे सागर म सारे के सारे सागर और नदी नद चाह ेडूब मर गोबर के ग े म

    3 मु ता ितः – सूअर के ारा क चड़ म थूथन घुसा कर भोजनकरने क या। यह किवता

    कािलदास क पंि “िव धं यतां वराहतितिभमु ता ितः प वले” पर म मट के ारा कये गये संशोधन “िव धं रचय तु शूकरवरा मु ता त प वले” के अंितम दो श द क सम यापू त ह।ै

  • समि�ट

    45

    अरे हमारा या जान ेवाला ह ै काल के गाल म चाह ेसारा जग समाये हम ह े शूकर, करेग मु ता ित, जो हम करत ेआये

    ���

  • समि�ट

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    ववववह सब कहन ेक बात नहह सब कहन ेक बात नहह सब कहन ेक बात नहह सब कहन ेक बात नह 4444

    बराितय ने जो हलकान कर डाला शोर मचाया अथिपशाच समधी न ेरा स बन कर जो दहजे माँगा चलत ेसमय देख लगे हम भी तु हारी लड़क को – यह सब जो कहा धमकाते ए लड़क वाल के िलये वह सब कहने क बात नह । उखाड़ कर दसूरी जगह लगाई जा रही बेल5 क तरह यह जो लड़क ससुराल ले जाई जा रही ह ै आतंक से आकुल इसका मन, मन को लपेटत ेभय क गुंजलक इसके दय म िलपट पड़ती आशंकाएँ और इसक माँ का दखु लड़क वाल के िलये वह सब कहने क बात नह । यह अपनी लाज अपने त बचा लगेी ससुराल म रह कर यह िजयेगी ब त बरस, य क यह हमारा जीवन ह.ै. इतना कह कर इसके आगे य द कोई बात आये भी य द जीभ क नोक पर तो उसे रोक लेना ह ैमन मार कर, लड़क वाल के िलये वह सब कहने क बात नह ।

    4 कािलदास के अिभ ानशाकु तल म क व उि ‘न खलु तद ्वा यं वधूब धुिभः’ (लड़क वाल

    को वह नह कहना ह)ै क सम यापू त। 5 उ खात ितरो यमाणा लता – यह उपमा कािलदास से साभार

  • समि�ट

    47

    ���

    हमहमहमहम आ ापालन म न िजनका सारा वैभव हम नह वे ककर जो नाचते रह िनरथक तु हारे आग ेहम नह वे क र। जो कूद तु हारे जी बहलान ेको हम नह वे वानर जो जीते ह अपन ेमान से राजन्! हम ह वे नर

    ���

  • समि�ट

    48

    चायचायचायचाय पीत े एपीत े एपीत े एपीत े ए

    कसैला मधुर वाद हर चु क म नया होता आ हाथ म िलये कप म झलकती लगती ह ैचाय के बगीच क ह रयाली दरू दरू तक घा टय म फैली आसाम, िस म या दा ज लग म पीठ पर बाँस क टोकरी टाँग े तेजी से हाथ चलाती चाय क प ी चुनन ेवाली कसी ी का अपार म जो उसने िनरंतर एक एक प ी चुनते ए कया चाय म उसक भी तो गंध घलुी ह ै मीठी और कसैली।

    ���

  • समि�ट

    49

    हमेबगहमेबगहमेबगहमेबग म म म म िहमपातिहमपातिहमपातिहमपात

    सबेरे से रात तक लगातार हमेबग म बफ िगरती रही लटकती रह आकाश नीचे नीचे उतरत सफेद चमक ली डो रयाँ या आकाश िबखरेता रहा अनंत अपने तारे र अपन ेकोश के या धरती के िलये चाँदनी म बुन ेसफेद दकूुल के प रधान? बफ के गोले ते छिव वाल े धरती पर िगरते ह आकाश का पजारे क प जी ई के फाह े ितरते ए कास के फूल क छिव और सागर के फेन के पुंज को शंख क शु कांित को धता बताती िहम क शोभा धरती पर त ध िबखरी त ध करती

    या क दधू क धार ि थर हो गई रा त पर गिलय म वाहन पर पगडंिडय पर पैर तले कुचली जाती इक ा कर कर के बुहारी जाती रािश रािश चाँदी पेड़ क शाखा पर बफ से फूल लटकत े ए

  • समि�ट

    50

    प के बीच मोितय क लिड़य क तरह या सफेद कमल क िखली िखली मालाएँ िबछ धरती पर सफेदी क चमचमाहट से आँख को मँूदती ई वणागम, वणिवपयय, वणिवकार और वणनाश ये अ य होते ह बफ का वण तो सदैव शु ।

    ���

  • समि�ट

    51

    धूप क क मधूप क क मधूप क क मधूप क क म

    धूप क कई क म होती ह गुनगुनी धूप गुलाबी धपू नम धूप तीखी धूप बदन सहलाती मुलायम धूप धूप के कई रंग होते ह सुनहरी धूप ह दी के रंग क पीली धपू पेड़ से छन कर आती हरी धूप सबसे अ छी धूप - हाड़ कँपाता जाड़ा झेलत ेगरीब का तन गरमान ेके िलये घने कोहरे को भेद कर बाहर आन ेको आकुल धूप...

  • समि�ट

    52

    थहूरथहूरथहूरथहूर

    नह ह नीम, पीपल और बड़ के बड़े बड़े पेड देवदा क तो कथा ही दरू छूट गई दरू दरू तक िचलिचलाती धपू और लीलन ेको बढा आता रेत का सागर सुरसा क तरह मँुह फैलाये। इस म थल से लड़ रहा ह ै एक अकेला थूहर

    ���

  • समि�ट

    53

    आज क आज क आज क आज क नाियकानाियकानाियकानाियका

    दपण म प अपना िनहारते ए मु ध घंट तक ि य के उपभोग के िच न नख त, दंत त... नह देखती वह आँख पर च मा लगा कर डायरी म नोट करती ह ैवह अचानक दधू या धोबी का िहसाब.. िनत ित पू यौ का उजास फैलाने वाली नाियकाएँ अब खुद वे खटती ह रसोई म भीतर के अँधरेे को धकेलती संचा रणी दीपिशखा अब वह नह रही जो हाथ म वरमाल िलये िनकल े राजा के बीच से िजसके गुजर जान ेपर उनके चेहरे फ पड़ जाय रात क पारी खतम कर वह वयं िववण मुख से भया ांत िनकलती ह ै कसी काल सटर से

    इस आशंका के साथ क उसके साथ भी कह भी वह हो सकता ह ैिजसक दहलाने वाली खबर से भरे होत ेह रोज के अखबार उसके मन के दये पर फर भी जल रही होती ह ैआशा क दीपिशखा।

    ���

  • समि�ट

    54

    नववषमगंलनववषमगंलनववषमगंलनववषमगंल

    ल ा से नीचा मँुह कये ए गजुरते ए साल ने अपना दाय स पते ए आग तुक वष को कहा – मनु य के पाप क गठरी म िलथड़ा यह दवुह भार म ढोता रहा ँजो अब तक व स, तेरे कंध पर अब म लाद रहा ।ँ व से कठोर ू र दा ण ह नरपश ु

    ित दन अबला पर करते रह ेबला कार क ा मांस खाने के आतुर जो माता के देह तक को न चत ेरह े धरती िजनसे बनती जा रही पशु से संकुल इसे बचाना और लाज अपन ेमाता के दधू क रखना जो शील हरत ेआ रह ेि य का उ ह सूली पर चढाना इस तरह बुजुग के ारा सखेद सीख दी गई िजस िशशु नववष को वह यहाँ क ि य के मंगलमय बने

    ���