भारत की हिन्दी सेवी संस्थाएं · web viewभ रत...

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भभभभ भभ भभभभभभ भभभभ भभभभभभभभ भभभभभ भभभभ भभभभभभ , भभ भभभभभभ भभभभभभ भभभभ , भभभभभभभभभ ( भभभभभभभभ ) भभभभभभभ भभभभभभ भभभभभ , भभभभभभ भभभभ भभभभभभ भभभभभभभभभभभ भभभभभभ भभभभभ , भभभभभ ( . भभभ .) भभभभभभभभभभभ भभभभभभ भभभभभ , भभभभभ ( भभभभभभभभभभ ) भभभभभभभ भभभभभ भभभभभभ भभभभ भभभभभ , भभभभभभभ ( भभभभभभभ ) भभभभभभभभभ भभभभभभभ भभभभभभ भभभभभभ , भभ भभभभभभ भभभभभ भभभभभभ भभभभभभभभभ , भभभभभ ( भभभभभभभभभभ ) भभभभ भभभभभभ भभभभभभ भभभ , भभभभभभभभभभभभ भभभभभ भभभभभभ भभभभभभ भभभभभभ , भभभभभभ भभभभभभ भभभभभभ भभभभभभ , भभभभभभ भभभभ भभभभभभ भभभभ - भभभभभभभ - भभभभभभभ , भभभभ भभभभभभभभ भभभभभभभभभभ भभभभभभ भभभभभ , भभभभभ ( भभभभभ ) भभभभभभभभभ भभभभभभभभभभ भभभभभभ , भभभभभभ ( . भभभ .) भभभभभभ भभभभभभभ भभभभभभभ , भभभभभभ भभभभ - भभभभभभ भभभभभभभ भभभभभभ , भभभभभभ भभभभभभभभभ भभभभभभ भभभभभभ , भभभभ भभभभभभ भभभभभभ भभभ , भभभभभभभभ ( भभभभभ भभभभभभ ) भभभभभभ भभभभ भभभभभभ भभभभभभ भभभ , भभभभभभ भभभभ भभभभभभ भभभभभभ भभभभभभ भभभ , भभ भभभभभभ भभभभ भभभभभभ भभभभभभभ भभभ भभभ , भभभभभभभभभ ( . भभभ . ) भभभभभभ भभभभ भभभभभभभभभभभ भभभभभभभभभ भभभभभभ , भभभभभभ ( भभभभभभभभभभ ) भभभभभ भभभभ भभभभभभ, भभ भभभभभभ ससससससस : ससस १९७५ स. सससससस सससस सस ससससससससससस सस ससस १९७५ ससस 'ससससस सससस सससससस, सस सससससस' सस ससससससस ससस भभभभभभभभ : सस सससससस सस ससससस सससससससस सस - सससससस सससससस सस सस

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Page 1: भारत की हिन्दी सेवी संस्थाएं · Web viewभ रत म मह त म ग ध क ह न द प रच र आ द लन क पर

भारत की हि�न्दी सेवी संस्थाएंनागरी लि�हि� �रिरषद् , नई दिदल्�ी स ााहि�त्य मंड� , नाथद्वारा ( राजस्थान )

राजभाषा संघष( समिमहित , दिदल्�ी मध्य प्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिमहित , भो�ा� ( म . प्र .)

राष्ट्रभाषा प्रचार समिमहित , वर्धाा( ( म�ाराष्ट्र ) कना(टक महि��ा हि�न्दी सेवा समिमहित , बेंग�ूर ( कना(टक )

केन्द्रीय सलिचवा�य हि�न्दी �रिरषद् , नई दिदल्�ी मंुबई हि�न्दी हिवद्या�ीठ , मंुबई ( म�ाराष्ट्र ) केर� हि�न्दी प्रचार सभा , हितरुवन्त�ुरम मैसूर हि�न्दी प्रचार �रिरषद् , बेग�ौर मणि=�ुर हि�न्दी �रिरषद् , इम्फा� अखिB� भारतीय भाषा - साहि�त्य - सम्मे�न , �टना अंगे्रजी अहिनवाय(ता हिवरोर्धाी समिमहित , नकोदर ( �ंजाब )

राष्ट्रीय हि�न्दीसेवी म�ासंघ , इन्दौर ( म . प्र .)

हि�न्दी साहि�त्य सम्मे�न , प्रयाग भारत - एणिशयाई साहि�त्य अकादमी , दिदल्�ी राष्ट्रीय हि�न्दी �रिरषद् , मेरठ हि�न्दी प्रचार सभा , �ैदराबाद ( आंध्र प्रदेश ) दणिG= भारत हि�न्दी प्रचार सभा , चैन्नई अखिB� भारतीय हि�न्दी संस्था संघ , नई दिदल्�ी

अखिB� भारतीय साहि�त्य क�ा मंच , मुरादाबाद ( उ . प्र . )

भारतीय भाषा प्रहितष्ठा�न राष्ट्रीय �रिरषद् , मुम्बई ( म�ाराष्ट्र )

 

नागरी लि�हि� �रिरषद,् नई दिदल्�ीस्थापना : सन् १९७५ ई.

       वि नोबा भा े के सत्प्रयासों से सन् १९७५ में 'नागरी लि�विप परिरषद,् नई दिदल्�ी' की स्थापना हुई।उदे्दश्य :       इस संस्था का मुख्य उदे्दश्य है - भारतीय भाषाओं को एक सूत्र में बॉंधने हेतु नागरी का संपक6 लि�विप के रूप में वि कास करना, इस परिरषद ्का मुख्य ध्येय है। नागरी लि�विप की उपयोविगता और उसकी सर�ता की ओर �ोगों का ध्यान आकृष्ट करना। परिरषद ्इस बात पर भी जोर देती है विक बोलि�यों और प्रादेलि@क भाषाओं की प्रस्तुवित नागरी लि�विप के माध्यम से हो। भारतीय भाषाओं और वि दे@ी भाषाओं को नागरी के माध्यम से लिसखाने के लि�ए परिरषद ्ने अनेक पुस्तकें भी प्रकालि@त की हैं। इसके अवितरिरक्त परिरषद ्द्वारा कई राष्ट्रीय स्तर के सम्मे�न भी आयोजिजत विकये हैं।

प्रकाणिशत �हिMका : नागरी संगम,(तै्रमालिसक), प्रधान संपादक : डॉ. परमानन्द पांचा��ता : नागरी लि�विप परिरषद,् १९, गांधी स्मारक विनधिध, राजघाट, नई दिदल्�ी-११०००२     

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साहि�त्य मंड�, नाथद्वारा(राजस्थान)स्थापना : सन् १९३७ ई.

उदे्दश्य :        विहन्दी से ी संस्थाओं में साविहत्य मंड�, नाथद्वारा का महत् पूर्ण6 स्थान है। इस संस्था ने विहन्दी के उन्नयन तथा विहन्दी सेवि यों को जोड़ने का स्तुत्य प्रयास विकया है। प्रवित ष6 १४ लिसतम्बर को आयोजिजत 'अंग्रेजी हटाओ' आंदो�न से विहन्दी जगत को जगाने हेतु 'उठो, जागो और अपने आपको पहचानो' मू� मंत्र का @ंखनाद विकया जाता है। अष्टछापीय कवि यों की संपूर्ण6 ार्णी तथा समीक्षाऍं पुस्तकाकार रूप में छापकर इस संस्था ने एक नया कीर्तित̀मान स्थाविपत विकया है। तै्रमालिसक पवित्रका 'हरसिस̀गार' के माध्यम से यह संस्था विहन्दी की अभूतपू 6 से ा कर रही है।संस्था की गहितशी� प्रवृलिPयॉं :       संस्था के केन्द्रीय पुस्तका�य में �गभग ५०,००० पुस्तकों, अनेक हस्तलि�खिखत ग्रथों ए ं साप्ताविहक, पाक्षिक्षक, मालिसक पत्र-पवित्रकाओं से वि विनर्मिम`त जिजल्दों का अपू 6 संग्रह है। इसके अवितरिरक्त चौपाटी पर संचालि�त बा� पुस्तका�य में �गभग १३००० पुस्तकें हैं। इसके अवितरिरक्त संस्था के ाचना�य में सम्पूर्ण6 दे@ से आने ा�ी, वि क्षिभन्न वि षयों से वि भूविषत �गभग २०० से भी अधिधक पत्र-पवित्रकाओं से युक्त श्रीनाथद्वारा का यह अनोखा संग्रह है। इसके अ�ा ा संस्था द्वारा रंगमंचीय काय6क्रम, ब्रजभाषा समारोह, साविहत्य संगोष्ठी, आदिद आयोजिजत कराए जाते हैं। संस्था का अष्टछाप कक्ष, पवित्रका कक्ष, साविहत्यकार कक्ष, पवित्रका प्रद@6नी कक्ष भी ज्ञान ध6क और द@6नीय है।       संस्था द्वारा प्रवित ष6 १४ लिसतम्बर के अ सर पर दे@ के राष्ट्रभाषा के प्रचार-प्रसार से जुडे़ विहन्दीसेवि यों, साविहत्यकारों ए ं संपादकों को सम्मान विकया जाता है। इस अ सर पर संस्था द्वारा आयोजिजत वि @ा� रै�ी प्रमुख आकष6र्ण का केन्द्र रहती है। इसमें वि द्या�य के बच्चे, लि@क्षक, लि@क्षिक्षकाओं, संस्था के काय6कता6ओं के अवितरिरक्त सारे दे@ से पधारे हुए अवितलिथगर्ण ए ं श्रीनाथद्वारा के गर्णमान्य नागरिरक सम्मिम्मलि�त रहते हैं। इस वि @ा� रै�ी का नेतृत् संस्था के प्रधानमंत्री श्री भग तीप्रसाद दे पुरा करते हैं। यह वि @ा� रै�ी वि द्या�य के बा�-बैंड की अगुआई में श्रीनाथद्वारा का भ्रमर्ण कर राष्ट्रभाषा अपनाने ए ं अंग्रेजी से मुलिक्त का संदे@ देती है।       संस्था का एक वि द्या�य भी है। इसके कक्षा-कक्ष फनsचर, वि दु्यत पंखों आदिद से सुव्य स्थिस्थत हैं तथा परिरसर सुरम्य ादिटका ए ं खे� मैदानों से युक्त है।

�हिMका प्रकाशन : हरसिस̀गार(तै्रमालिसक), संपादक : श्री भग तीप्रसाद दे पुरा।

�ता : प्रधानमंत्री, साविहत्य-मण्ड�, श्रीनाथद्वारा-३१३३०१(राजस्थान)

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राजभाषा संघष( समिमहित, दिदल्�ी

स्था�ना : राजभाषा संघष6 सधिमवित की स्थापना का वि चार बुराड़ी (दिदल्�ी) में आयोजिजत अखिख� भारतीय आय6 ीर द� महासम्मे�न के अ सर पर दिदनांक ४.१०.९८ को तथा इसका औपचारिरक गठन और काय6कारिरर्णी की वि धिध त् घोषर्णा दिदनांक ११.१०.९८ को श्री आनन्द स् रूप गग6 के विन ास स्थान पर की

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गई थी।         स्थापना की पृष्ठभूधिम : दिदल्�ी में श्री साविहब सिस̀ह मा6 की विन त6मान भाजपा सरकार के अनेक आश्वासनों और घोषर्णाओं के बा जूद केन्द्रीय गृहमन्त्री श्री �ा�कृष्र्ण आड ार्णी के विनदz@ पर दिदल्�ी राजभाषा वि धेयक सत्र वि धानसभा के अन्तिन्तम दिदन दिदनांक ३०.९.९८ को भी प्रस्तुत न करके जब जनभाषा की उपेक्षा की, तो दिदल्�ी में हिह`दी के लि�ए अहर्तिन`@ समर्तिप̀त काय6कर्त्ताा6ओं ने अपने को भाजपा द्वारा ठगा हुआ महसूस विकया और उनके मन में अपने ही �ोगों के प्रवित उफान आना स् ाभावि क था। इस काय6 को अग�ी सरकार से कर ाने के ए ं @ासन के हर स्तर पर राजभाषा विहन्दी �ागू कर ाने के उदे्दश्य से इस सधिमवित की स्थापना की गई।उदे्दश्य :१. भारत राष्ट्र और उसके समस्त नागरिरकों के आर्थिथक̀, सामाजिजक और @ैक्षिक्षक कल्यार्ण को बढ़ा ा देना।२. भारत संघ के अधीन स्थाविपत कें द्र सरकार, राज्य सरकारों, संघ @ालिसत के्षत्रों, �ोकसभा, राज्यसभा, वि धानसभाओं, वि धानपरिरषदों, उच्चतम ए ं उच्च न्याया�यों, जिज�ा सत्र अदा�तों, दूता ासों, लि@क्षर्ण-संस्थाओं तथा अन्य समस्त राज्य-@ालिसत, अध6राज्य-@ालिसत सरकारी सहायता अथ ा अनुदान प्राप्त स् @ासी विनकायों, विनगमों, आयोगों, परिरषदों, उपक्रमों, प्रवितष्ठानों, संस्थानों, प्राधिधकरर्णों, बोड�, न्यायाधिधकरर्णों, वि श्ववि द्या�यों, लि@क्षा संस्थानों, औषधा�यों, अनुसंधान @ा�ाओं तथा विकसी भी सा 6जविनक, प्र@ासविनक, @ैक्षक्षिर्णक ए ं अन्य सभी प्रकार के काय� में विहन्दी तथा/अथ ा अन्य भारतीय भाषाओं को राजभाषा और लि@क्षर्ण प्रलि@क्षर्ण की भाषा के रूप में स्थापना, प्रवितष्ठा और प्रसार ृजि� के लि�ए ैधाविनक उपायों द्वारा प्रयत्न@ी� रहना तथा सब प्रकार की सहायक गवितवि धिधयों का संचा�न करना।

प्रकाणिशत �हिMका : राजभाषा चेतना (तै्रमालिसक), संपादक : प्रो.जयदे आय6।

�ता : राजभाषा संघष6 सधिमवित (पंजी.), ए-४/१५३, सैक्टर-४, रोविहर्णी, दिदल्�ी-११००८५

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मध्य प्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिमहित, भो�ा� (म.प्र.)स्था�ना : १ जु�ाई, १९५४

       मध्य प्रदे@ राष्ट्रभाषा प्रचार सधिमवित यद्यविप पांच द@क पुरानी संस्था है, �ेविकन उसके अस्तिस्तत् का बीजारोपर्ण सन् १९१८ ई. में इन्दौर में सम्पन्न हुए विहन्दी साविहत्य सम्मे�न के साथ ही हो गया था। इस सम्मे�न को संबोधिधत करते हुए गांधी जी ने स् ाधीनता के लि�ए राष्ट्रभाषा का औलिचत्य प्रवितपादिदत विकया था। आपने कहा था- 'यदिद दे@ के लि�ए स् तंत्रता प्राप्त करनी है तो हमें एक राष्ट्रभाषा भी स् ीकार करनी होगी। यह भाषा के � विहन्दी ही हो सकती है। इसके द्वारा हम दे@ की चारों दिद@ाओं को एकता के सूत्र में बांध सकें गे। राष्ट्रविपता की इस स 6कालि�क अपेक्षा की पूर्तित̀ के लि�ए विहन्दी साविहत्य सम्मे�न के नागपुर अधिध े@न (सन् १९३६) में राष्ट्रभाषा प्रचार सधिमवित की स्थापना हुई। प्रस्ता गांधीजी का ही था। राजेन्द्र बाबू तब सधिमवित के संस्थापक अध्यक्ष बने थे। विहन्दी को राष्ट्रभाषा बनाना है, इस ध्येय को पाने के लि�ए दे@ स्तर पर एक आंदो�न के रूप में अक्षिभयान प्रारम्भ हुआ। इसकी चुनौतीपूर्ण6 ध् विन मा� ा अंच� में आदरर्णीय श्री बैजनाथ प्रसाद दुबे के माध्यम से पहुंची और विहन्दी के प्रचार-प्रसार और प्रयोग को सुविनयोजिजत रूप से आगे बढ़ाने हेतु आदरर्णीय दुबेजी ने एक ज�ुाई १९५४ को महू में राष्ट्रभाषा प्रचार सधिमवित का काया6�य प्रारम्भ विकया। तत्पश्चात महाराजकुमार, डॉ.रघु ीरसिस̀ह, सीतामऊ प्रथम अध्यक्ष बने।

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       जब एक न म्बर १९५६ को नया मध्य प्रदे@ बना और पं. रवि @ंकर @ुक्� प्रथम मुख्यमंत्री बने, तो राष्ट्रभाषा प्रचार सधिमवित के लि�ए तेजी से अनुकू� स्थिस्थवितयां बनती च�ी गईं। का�ांतर में म.प्र. के जो राज्यपा� और मुख्यमंत्री आए, उन सबसे म.प्र. राष्ट्रभाषा प्रचार सधिमवित को अपेक्षानुसार स्नेह और सहयोग धिम�ा। @नै: @नै: विहन्दी पे्रमी �ोग भी सधिमवित की गवितवि धिधयों से जिज�ा और राज्य स्तर पर जुड़ते च�े गए। आज जिजस आत्मविनभ6र और सम्मानजनक स्थिस्थवित में म.प्र.राष्ट्रभाषा प्रचार सधिमवित और उसका सहयोगी विहन्दी भ न न्यास खड़ा है, ह राष्ट्रभाषा के विहत साधन हेतु उठे उदार हाथों, विहन्दी पे्रधिमयों और साविहत्यकारों के अथक प्रयासों का ही प्रवितफ� है।उ�ेश्य :         राष्ट्रभाषा विहन्दी का व्यापक स्तर पर प्रचार-प्रसार तथा बैंकों, @ासकीय/अ@ासकीय काया6�यों, प्रवितष्ठानों और @ैक्षक्षिर्णक संस्थाओं में हिह`दी के अधिधकाधिधक प्रयोग को बढ़ा ा देने के लि�ए प्रोत्साहनकारी और सहयोगी गवितवि धिधयों का संचा�न ही म.प्र. राष्ट्रभाषा प्रचार सधिमवित का प्रमुख दाधियत् है। सधिमवित ने इस काम में छात्र ग6 को सहभागी बनाने की पह� भी प्रवितभा प्रोत्साहन प्रवितयोविगताओं के रूप में की गई है।       विहन्दी के अधिधक से अधिधक प्रयोग के संदे@ को �ोगों तक पहुँचाने के लि�ए सधिमवित हर सा� लिसतम्बर माह में विहन्दी मास, वि @ेषकर विहन्दी दिद स के अ सर पर पूरा �ाभ उठाकर ऐसे समन्तिन् त प्रयास करती है, जिजसकी मदद से विहन्दी मास के दौरान प्रवितष्ठानों, संस्थाओं तथा मीविडया में विहन्दी की गंूज रहती है। जो व्यलिक्त विहन्दी और विहन्दी साविहत्य के सं �6न के लि�ए समर्तिप̀त भा से काम कर रहे हैं उन्हें सम्माविनत करने का दाधियत् सधिमवित ने स् त:सू्फत6 भा ना से स् ीकार विकया है। इस प्रयोजन के लि�ए पं.रवि @ंकर @ुक्� विहन्दी भ न न्यास के सहयोग से सधिमवित द्वारा अक्षिभन काय6क्रम संचालि�त हैं। अविहन्दी भाषी �ेखकों की विहन्दी कृवितयों को पुरस्कृत करने के पीछे भारतीय भाषाओं के बीच सद्भा का सेतु ही उदे्दश्य है।       सधिमवित द्वारा व्याख्यानमा�ाओं का आयोजन करना, सात संकल्पों ा�ा 'हम भारतीय अक्षिभयान', विहन्दी भ न न्यास के सहयोग से अ सरों के अनुकू� सांस्कृवितक प्रस्तुवितयां आयोजिजत करना भी सधिमवित के वि लि@ष्ट काय6क्रम हैं।        सधिमवित की एक वि लि@ष्ट उप�स्ति� विहन्दी प्रदे@ के पह�े साविहत्यकार-विन ास का विनमा6र्ण विकया जाना है। विकसी भी स् ैस्थि�क साविहन्तित्यक संस्था द्वारा अपने स्त्रोतों से इस तरह का विनमा6र्ण-काय6 दे@ में पह�ी बार सम्पन्न हुआ है। अब भोपा� आकर साविहत्यकार प्रतीकात्मक रालि@ देकर यहां रहकर अपना अध्ययन और �ेखन कर सकें गे।प्रकालि@त पवित्रका : अक्षरा(तै्रमालिसक), संपादक : श्री वि जय कुमार दे ।पता : मंत्री/संचा�क, म.प्र.राष्ट्रभाषा प्रचार सधिमवित, विहन्दी भ न, श्याम�ा विहल्स, भोपा�-४६२००२(म.प्र.)

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राष्ट्रभाषा प्रचार समिमहित, वर्धाा( (म�ाराष्ट्र)स्थापना : सन् १९३६ ई.

       राष्ट्रभाषा प्रचार सधिमवित के संस्थापकों में राष्ट्रविपता महात्मा गाँधी, डॉ.राजेन्द्रप्रसाद, राजर्तिष̀ पुरुषोर्त्तामदास टंडन, पं.ज ाहर�ा� नेहरू, श्री सुभाषचन्द्र बोस, आचाय6 नरेन्द्र दे , आचाय6 काका का�े�कर, सेठ जमना�ा� बजाज, बाबा राघ दास, श्री @ंकरदे , पं. माखन�ा� चतु zदी, श्री हरिरहर @मा6, पं. वि योगी हरी, श्री नाथसिस`ह, श्री श्रीमन्नारायर्ण अग्र ा�, बृज�ा� विबयार्णी ए ं श्री नम6दाप्रसाद सिस̀ह

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प्रमुख थे।संस्था के प्रमुख उ�ेश्य :        दे@ ए ं वि दे@ में राष्ट्रभाषा विहन्दी का प्रचार-प्रसार कर विहन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्थाविपत करने हेतु परीक्षाओं के माध्यम से तथा अन्य योजनाओं से भारत के जन-जन तक राष्ट्रभाषा विहन्दी का सन्दे@ पहुँचाना। उन्हें भाषा लिसखाना। प्रचार ए ं संपक6 हेतु ''राष्ट्रभाषा`` मालिसक पवित्रका का विनयधिमत प्रका@न। धा6 में वि श्व विहन्दी वि द्यापीठ की स्थापना हेतु कदिटब�। मुफ्त पुस्तका�य द्वारा जनसे ा। राष्ट्रभाषा महावि द्या�य द्वारा पू ा�च�, असम, मक्षिर्णपुर, धिमजोरम, वित्रपुरा, अरुर्णाच�, मेघा�य, नागा�ैण्ड के छात्रों के लि�ए विहन्दी माध्यम के ग6 च�ाना। विक@ोर भारतीय नई पीढ़ी को राष्ट्रभाषा का अ�ा ज्ञान प्रदान कराने हेतु विहन्दी माध्यम से लि@क्षा देना।संस्था द्वारा विकए गए प्रमुख काय� का संक्षिक्षप्त वि रर्ण :       दे@ के वि क्षिभन्न प्रदे@ों के अ�ा ा दक्षिक्षर्ण अफ्रीका, पू 6 अफ्रीका, श्री�ंका, बमा6, मारी@स, विफजी, थाई�ैण्ड, सूरीनाम, नीदर�ैंड, वित्रविननाड, इंग्�ेण्ड, अमेरिरका आदिद दे@ा में वि क्षिभन्न परीक्षाओं का आयोजन विकया गया। प्रथम वि श्व विहन्दी सम्मे�न नागपुर ए ं तृतीय वि श्व विहन्दी सम्मे�न का नई दिदल्�ी में आयोजन विकया गया। संस्था का एक वि @ा� पुस्तका�य है, जिजसमें २० हजार से अधिधक वि वि ध वि षयों की पुस्तकें उप�� हैं। संस्था की स् यं की पे्रस है। संस्था द्वारा 'हम चा�ीस` अक्षिभयान का संचा�न ए ं राष्ट्रभाषा पवित्रका का प्रका@न १९४२ से अब तक हो रहा है। इसके अवितरिरक्त संस्था ने राष्ट्रभाषा कोष ए ं कई गं्रथमा�ाओं का प्रका@न विकया है।प्रकालि@त पवित्रका : राष्ट्रभाषा (मालिसक), प्रधान संपादक : प्रा.अनन्तराम वित्रपाठी।पता : राष्ट्रभाषा प्रचार सधिमवित, धा6 ४४२००३(महाराष्ट्र)

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कना(टक महि��ा हि�न्दी सेवा समिमहित, बेंग�ूर-१८ (कना(टक)स्थापना : सन् १९५३ ई.

संस्था के प्रमुख उ�ेश्य : विहन्दी प्रचार के साथ भारत की एकता बनाये रखना सधिमवित का प्रधान �क्ष्य है। प्रांतीय भाषा के सहयोग से विहन्दी का वि कास करना उसका प्रमुख काय6क्रम है। जनता में विहन्दी प्रचार करना और उसके लि�ए उलिचत सामग्री जुटाना सधिमवित के विनरंतर लिचन्तन का वि षय है।काय6 : संस्था १९५३ से विनरंतर विहन्दी के प्रचार में सं�ग्न है। संस्था द्वारा विहन्दी प्रचार ार्णी नामक पवित्रका का विनयधिमत प्रका@न विकया जा रहा है। इसके अ�ा ा कना6टक साविहत्य से संबंधिधत �ेख, परीक्षार्थिथ`यों के उपयोगी �ेख, पुस्तक समीक्षा, प्रश्नोर्त्तार, सभा समारोह आदिद का आयोजन विकया जाता है। पवित्रका के लि�ए करीब पाँच हजार प्रचारकों ने आजी न प्रचारक चंदा जुटाकर इसके प्रका@न को विनयधिमत करने में सहयोग दिदया है। संस्था द्वारा �ी जाने ा�ी परीक्षाओं के लि�ए पाठ्यक्रमानुसार पुस्तकें तैयार करने के लि�ए साविहत्य वि भाग काय6रत है। भारत सरकार से वि क्षिभन्न परीक्षाओं के लि�ए स् ीकृत पाठ्यक्रमानुसार पुस्तकें तैयार करने के लि�ए वि द्वानों को आमंवित्रत विकया जाता है, उनसे परीक्षा स्तर को ध्यान में रखकर पुस्तकों को तैयार विकया जाता है। अब तक �गभग ११२ पुस्तकों का प्रका@न विकया जा चुका है। पाठ्यपुस्तकों के अ�ा ा वि वि ध वि श्ववि द्या�यों के पाठ्यक्रमों को ध्यान में रखकर पुस्तकों का विनमा6र्ण विकया जाता है। परस्पर आदान-प्रदान हेतु कन्नड़ के रिरष्ठ वि द्वानों की कृवितयों को अनु ाद कराने ए ं प्रकालि@त कराने का काय6 भी च�ता रहता है।

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प्रकालि@त पवित्रका : विहन्दी प्रचार ार्णी,(मालिसक), प्रधान संपादक : श्रीमती बी.एस.@ांताबाई।पता : कना6टक मविह�ा विहन्दी से ा सधिमवित, १७८, ४ मैन रोड, चामराजपेट, बेंग�ूर-१८ (कना6टक)

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केन्द्रीय सलिचवा�य हि�न्दी �रिरषद,् नई दिदल्�ीस्थापना : ३ मई १९६० ई.

उ�ेश्य : केन्द्रीय सरकारी काया6�यों और सम्ब� काया6�यों में विहन्दी भाषा और साविहत्य के प्रवित अक्षिभरुलिच उत्पन्न करना, विहन्दी को आगे बढ़ाने का माग6 प्र@स्त करना तथा उस दिद@ा में विकए जाने ा�े काय� में सहयोग देना। साविहन्तित्यक ए ं सांस्कृवितक काय6क्रमों का आयोजन करना।काय6 : केन्द्रीय सलिच ा�य विहन्दी परिरषद की स्थापना ३ मई, १९६० को नई दिदल्�ी में हुई थी। इसके संस्थापक दूर-द्रष्टा स् . श्री हरिर बाबू कंस� थे। केन्द्रीय सरकारी काया6�यों, भारतीय रिरज 6 बैंक, भारतीय स्टेट बैंक तथा अन्य राष्ट्रीयकृत बैंकों, जी न बीमा, खादी ग्रामोद्योग तथा केन्द्रीय सरकार के अन्तग6त विनगमों और अन्य स् ायर्त्ता संस्थाओं के कम6चारी/अधिधकारी इसके सदस्य बन सकते हैं। दिदल्�ी के अवितरिरक्त दे@ के अनेक नगरों में सैंकड़ों @ाखाए ंस्थाविपत हो चुकी हैं, जिजनमें हजारों सदस्य हैं। परिरषद ने वि क्षिभन्न मंत्रा�यों, वि भागों और काया6�यों के कम6चारिरयों की सुवि धा के लि�ए अनेक प्रका@न विनका�े हैं जिजनकी सहायता से काया6�यों में विहन्दी का प्रयोग बहुत आसान हो गया है। ैज्ञाविनक और तकनीकी काय6 के लि�ए भी काफी साविहत्य प्रकालि@त कराया है। वि क्षिभन्न वि भागों में प्रयुक्त होने ा�ी @ब्दा लि�यों के दी ारों पर टांगे जाने ा�े चाट6 और पुस्तिस्तकाए ंभी प्रकालि@त की गई हैं।       केन्द्रीय सरकारी कम6चारिरयों में विहन्दी प्रयोग के प्रवित रुलिच उत्पन्न करने की और उनकी प्र ीर्णता बढ़ाने की दृधिष्ट से हर ष6 अखिख�-भारतीय स्तर पर विहन्दी में टाइहिप`ग, आ@ुलि�विप, दिटप्पर्ण तथा प्रारूप �ेखन, व्य हार, विनबन्ध तथा ाक् प्रवितयोविगताए ंआयोजिजत की जाती रही हैं। और इनमें सफ�ता प्राप्त करने ा�ों को वि वि ध पदक, पुरस्कार, प्र@स्तिस्त-पत्र आदिद दिदए जाते हैं। ैज्ञाविनक तथा साविहन्तित्यक गोधिष्ठयों, विहन्दी व्य हार प्रदर्थि@`विनयों, ैज्ञाविनक तथा तकनीकी भाषर्ण-मा�ा आदिद के आयोजन भी कराए जाते हैं। ैज्ञाविनक तथा तकनीकी विनबन्ध प्रवितयोविगता द्वारा ैज्ञाविनक ए ं तकनीकी के्षत्रों में विहन्दी के प्रयोग को बढ़ाने का प्रयास जारी है।भारत सरकार के वि क्षिभन्न काया6�यों में राजभाषा नीवित के सफ� काया6न् यन के लि�ए हर समय सहयोग तथा सुझा तो परिरषद द्वारा दिदए ही जाते हैं, साथ ही अधिधकारिरयों और कम6चारिरयों की अ�ग-अ�ग अथ ा सम्मिम्मलि�त गोधिष्ठयां आयोजिजत करके उनकी कदिठनाइयों का व्या हारिरक ह� विनका�ने का प्रयास भी विकया जाता है। विहन्दी परिरषद के सुझा ठोस और सहस होते हैं इसीलि�ए उसे सभी स्तर के काया6�यों में सभी भाषा-भाषी अधिधकारिरयों और कम6चारिरयों का सहयोग धिम� रहा है।अन्य काय6 : तकनीकी और ैज्ञाविनक काय� में विहन्दी का प्रयोग बढ़ाने हेतु प्रयास, भतs और वि भागीय पदोन्नवित की परीक्षाओं का माध्यम विहन्दी में कराने हेतु प्रयास, वि क्षिभन्न तकनीकी परीक्षाओं का माध्यम विहन्दी कराने हेतु प्रयास।केन्द्रीय सलिच ा�य विहन्दी परिरषद की विहन्दी को ही सरकारी कामकाज की मानक विहन्दी माना जाता है।प्रकालि@त पवित्रका : विहन्दी परिरचय(विद्वमालिसक), संपादक : श्री मोहन डबरा�।पता : केन्द्रीय सलिच ा�य विहन्दी परिरषद,् एक्स ाई-६८, सरोजनी नगर, नई दिदल्�ी-११००२३

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मंुबई हि�न्दी हिवद्या�ीठ, मंुबई(म�ाराष्ट्र)स्थापना : १२ अक्टूबर सन् १९३८ ई.

       बम्बई नगर में राजबहादुर सिस̀ह ठाकुर, डॉ. मोती चन्द्र, श्री भानु कुमार आदिद के सहयोग से 'बम्बई विहन्दी वि द्यापीठ' की स्थापना हुई। वि द्यापीठ का अपना एक मुद्रर्णा�य और वि @ा� भ न है। प्रथमा, मध्यमा, उर्त्तामा, भाषारत्न और साविहत्य-सुधाकर वि द्यापीठ की परीक्षाए ँविनधा6रिरत हैं, जिजसकी मान्यता मैदि¡क, इण्टर और बी.ए. के समकक्ष हैं। इसका काय6के्षत्र अखिख� भारतीय है। प्रवित ष6 वि क्षिभन्न के्षत्रों में संस्था की ओर से प्रचार-लि@वि रों ए ं सम्मे�नों का आयोजन विकया जाता है। वि द्यापीठ का मालिसक मुख्यपत्र 'भारती' विनयधिमत रूप से प्रकालि@त हो रहा है।प्रकालि@त पवित्रका : भारती (मालिसक), संपादक : श्री दर्त्ताात्रय क्षिभ. गुज6र।पता : मुम्बई विहन्दी-वि द्यापीठ, उद्योग मजिन्दर, धम6 ीर संभाजीराजे माग6, माविहम, मुम्बई-१६ (महाराष्ट्र)

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केर� हि�न्दी प्रचार सभा, हितरुवन्त�ुरमस्थापना : सन् १९३९ ई.

       इस सभा की स्थापना के. ासुदे न विपल्�े ने की। केर� राज्य में राष्ट्रभाषा विहन्दी का प्रचार-प्रसार करने के लि�ए विहन्दी की छोटी-बड़ी सभी परीक्षाओं को संचालि�त करना, विहन्दी की पुस्तकें ए ं पत्र-पवित्रकाए ँप्रकालि@त करना तथा विहन्दी नाटकों को अक्षिभनीत करना इस सभा के मुख्य उदे्दश्य रहे हैं। सन् १९४८ ई. से 'केर� विहन्दी प्रचार सभा' स् तंत्र रूप से अपनी परीक्षाए ँविहन्दी प्रथमा, विहन्दी प्र े@, विहन्दी भूषर्ण और साविहत्याचाय6 संचालि�त करती है। विहन्दी म�या�म और तधिम� भाषाओं में सामंजस्य स्थापना करने के प्रयोजन से 'राष्ट्र ार्णी' नाम की एक वित्रभाषा साप्ताविहक पवित्रका का प्रका@न विकया गया। इसके अवितरिरक्त 'केर� ज्योवित' नामक एक मालिसक पवित्रका का प्रका@न भी हो रहा है। सभा भ न में एक केन्द्रीय विहन्दी महावि द्या�य काय6 कर रहा है। सभा का प्रका@न वि भाग भी सुचारू रूप से च� रहा है।प्रकालि@त पवित्रका : केर� ज्योवित (मालिसक), संपादक : डॉ.एस.राधाकृष्र्ण विपल्�ै।पता : केर� विहन्दी प्रचार सभा, वितरु नन्तपुरम-६९५०१४

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मैसूर हि�न्दी प्रचार �रिरषद,् बेग�ौरस्थापना : सन् १९४२ ई.

उदे्दश्य : मैसूर राज्य में अविहन्दी भाषी के्षत्रों में विहन्दी के प्रचार के उदे्दश्य से इस परिरषद की स्थापना हुई। परिरषद की तीन परीक्षाए ँप्र े@, उर्त्तामा, रतन क्रम@: मैदि¡क, आई.ए. और बी.ए. के समकक्ष हैं, जिजन्हें मैसूर राज्य सरकार तथा भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त है। परिरषद का अपना केन्द्रीय पुस्तका�य है जिजसमें

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विहन्दी की �गभग पाँच हजार से भी अधिधक पुस्तकें हैं। विनजी संवि धान के द्वारा परिरषद ्की परीक्षाए,ँ प्रचार के काय6 ए ं प्रका@न आदिद संचालि�त विकए जाते हैं।प्रकालि@त पवित्रका : मैसूर विहन्दी प्रचार परिरषद ्पवित्रका (मालिसक), प्रधान संपादक : डॉ.विब.रामसंजी रयापता : मैसूर विहन्दी प्रचार परिरषद, ५८, ेस्ट आफ काड6 रोड, राजाजी नगर, बैंग�ूर-१०(कना6टक)

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मणि=�ुर हि�न्दी �रिरषद,् इम्फा�स्थापना : सन् १९५३ ई.

       मक्षिर्णपुर में राष्ट्रभाषा विहन्दी का प्रचार सन् १९४४ से ही प्रारंभ हो गया था विकन्तु सन् १९५३ ई. में मक्षिर्णपुर के कुछ विहन्दी पे्रमी उत्साही व्यलिक्तयों ने 'मक्षिर्णपुर विहन्दी परिरषद'् की इम्फा�-नगर में स्थापना की। अपने वि धान और विनयमानुसार परिरषद ्द्वारा विहन्दी को स 6विप्रय बनाने के लि�ए विहन्दी प्रारंक्षिभक, विहन्दी प्र े@, विहन्दी परिरचय, विहन्दी प्रबोध, विहन्दी वि @ारद ए ं विहन्दी रत्न, इन छह परीक्षाओं का संचा�न हुआ, जिजन्हें केन्द्र ए ं राज्य सरकार से मान्यता प्राप्त है। परिरषद ्के पुस्तका�य में डेढ़ हजार से अधिधक पुस्तकें हैं। समय-समय पर परिरषद ्साविहन्तित्यक समारोहों का भी आयोजन करती है, जिजसमें पद ी-दान, पुरस्कार वि तरर्ण और प्रवितष्ठादान जैसे काय6 सम्पन्न विकए जाते हैं।प्रकालि@त पवित्रका : महीप पवित्रका (तै्रमालिसक), संपादक : श्री दे राज।पता : मक्षिर्णपुर विहन्दी परिरषद,् इम्फा�(मक्षिर्णपुर)

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अखिB� भारतीय भाषा-साहि�त्य-सम्मे�न, �टनास्थापना : सन् १९६३ ई.।

       १९६३ में अमरा ती में एक स 6भाषा समागम सभा हुई थी, जिजसमें प्रो. हुमायंुु कबीर, राजा महेन्द्रप्रताप, पी. ी. नरसिस`हरा , डॉ. सरोजिजनी मविहषी, डॉ. रमर्ण ए�ेडम, सी.एस. कान ी आदिद वि द्वान एकवित्रत हुए थ ेऔर इस समागम में भारतीय भाषाओं के माध्यम से राष्ट्रीय एकता ब� ती करने पर वि चार हुआ था। इसमें मध्य प्रदे@ के प्रवितविनधिध प्रख्यात �ेखक कवि श्री सती@ चतु zदी भी थे। इसी से पे्ररर्णा �ेकर श्री सती@ चतु zदी ने १९६६ में अखिख� भारतीय भाषा साविहत्य सम्मे�न की स्थापना की, जिजसे श्री कन्हैया�ा� माक्षिर्णक�ा� मुं@ी का आ@ी ा6द प्राप्त था और उन्हीं की पे्ररर्णा से संस्था का यह नामकरर्ण भी हुआ।       पंविडत कंुजी�ा� दुबे की अध्यक्षता में संपन्न प्रथम समागम में दे@ के वि क्षिभन्न प्रांतों के साविहत्यकारों ने इसमें भाग लि�या। इसके बाद सम्मे�न प्रौढ़ होता गया। दे@ के वि ख्यात साविहत्य ेर्त्ताा, �ेखक, कवि और कहानीकार इससे जुड़ते गये। भारत के �गभग सभी राज्यों में यह संस्था काय6रत है, जिजसमें विबहार सबसे आगे है। अभी तक इसके राष्ट्रीय अधिध े@न भोपा�, दिदल्�ी, अमरा ती, बेंग�ोर, हैदराबाद, को�काता, पटना, केर�, इंदौर आदिद में सम्पन्न हो चुके हैं।       दे@ के स 6भाषा साविहत्य सज6कों की यह संस्था संपूर्ण6 दे@ में काय6रत है और �गभग तीन हजार साविहत्यकार इसके सविक्रय सदस्य हैं। दे@ के �गभग समस्त मूध6न्य साविहत्यकारों को भी इस संस्था ने

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भारत भाषा भूषर्ण, साविहत्यश्री ए ं समन् यश्री के अ�ंकरर्णों से वि भूविषत विकया है।प्रकालि@त पवित्रका : भाषा-भारती-सं ाद, प्रधान संपादक : श्री नृपेन्द्र नाथ गुप्तपता : अखिख� भारतीय भाषा-साविहत्य-सम्मे�न, श्री उदिदत आयतन, @ेखपुरा, पटना-८०००१४(विबहार)

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अंगे्रजी अहिनवाय(ता हिवरोर्धाी समिमहित, नकोदर (�ंजाब)उ�ेश्य : अपने आपमें एक अनूठा प्रयास। मौलि�क सिच̀तन। एक आन्दो�न।        गांधी, @ास्त्री जयन्ती- २ अकू्तबर, १९९९ को 'स् ागत पवित्रका' के नाम से �ोकसभा सदस्यों को अक्षिभनन्दन रूप में ए ं अन्य नेताओं को प्रसाद रूप में 'अस्तिस्मता का @ंखनाद' सादर समर्तिप̀त करते हुए इस पवित्रका की संपादिदका प्रो. विप्रतपा� 'ब�' ने अपने प्राक्कथन में �ेख विकया : हटाओ और धिमटाओ में आका@-पाता� का अन्तर है। इस अन्तर को न समझ पाने से बहुत से �ोग अंग्रेजी हटाओ का नाम सुनते ही आपे से बाहर हो जाते हैं और इस सधिमवित के सदस्यों को पाग� की पद ी से सु@ोक्षिभत करने �गते हैं। अपना पाग�पन हमें स् ीकार है। पर यह पाग�पन बुजि� का दिद ालि�यापन न होकर ठीक ैसा है, जिजसके बारे में सूफी फकीर ने कहा है- 'पा ग� अस�ी, पाग� हो जा।'       हम पाग� हैं राष्ट्रीयता के लि�ए, दे@ की अस्तिस्मता के लि�ए, दे@ के नन्हें-मुन्नों की बुजि� से हो रहे ब�ात्कार की रोकथाम के लि�ए, भारत के मस्तिस्तष्क को वि दे@ी सड़ांघ से बचाने के लि�ए, दे@ के स् तंत्र लिचन्तन को न उभरने देने ा�े आ रर्ण को हटाने के लि�ए। हम अंग्रेजी भाषा के या उसे पढ़ाने के वि रोधी नहीं हैं। अंग्रेजी की अविन ाय6ता के तथा अंग्रेजी माध्यम की अविन ाय6ता के और अंग्रेजी के सा 6जविनक प्रयोग के वि रोधी हैं। हम अंग्रेजी को हटाना चाहते हैं, धिमटाना नहीं चाहते। उस स्थान से हटाना चाहते हैं जहाँ रहकर ह हाविन पहुँचा रही है। जहाँ विहत कर सकती है हां आदर पू 6क रखना चाहते हैं। आज विहन्दुस्तान में उसने जो जगह हलिथया रखी है, उसके कारर्ण विहन्दुस्तानी बच्चे के दिदमाग को �क ा मार रहा है, विहन्दुस्तानी यु कों का मौलि�क लिचन्तन ध् स्त हो रहा है।       हमसे कहा जाता है विक माँ बाप को क्यों नहीं समझाते विक े अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के स्कू�ों में न पढ़ा ें। इस बारे में हम इतना ही कहेंगे विक आज अंग्रेजी के साथ इज्जत जुड़ी है, रुतबा जुड़ा है और नौकरी जुड़ी है। अत: कौन माँ-बाप अपनी संतान को इनसे ंलिचत रखना चाहेगा ? हमारी चोट सरकार की उस दुनsवित पर है जिजसके कारर्ण दे@ी भाषाओं को अपनाने ा�ा न प्रवितष्ठा का पात्र बन पा रहा है और न भी माने जाने ा�ी आजीवि का का।       हमसे यह भी कहा जाता है विक जब आप अंग्रेजी माध्यम स्कू�ों के वि रोधी हैं तो आय6समाज, सनातनधम6, जवैिनयों, लिसक्खों आदिद की ओर से बडे़ पैमाने पर खो�े जा रहे अंग्रेजी माध्यम के पस्थिब्�क स्कू�ों की विनन्दा क्यों नहीं करते ? इनके खिख�ाफ आ ाज क्यों नहीं उठाते ?       इस संबंध में हमारा मानना है विक ये सभी स्कू� सरकारी दुनsवित की उपज हैं। ये संस्थाए ँस् े�ा से इन स्कू�ों को नहीं खो� रहीं। सरकार की दुनsवित से उन ईसाई धिम@नरिरयों के स्कू�ों को बढ़ा ा धिम� रहा था जो अंग्रेजी तथा अंग्रेजिजयत दोनों के पक्ष में हैं। ये स्कू� उन ईसाई स्कू�ों के दुष्परिरर्णाम को कम करने के लि�ए स्थाविपत विकये जा रहे हैं। सरकारी नीवित बद�ते ही इन सबका माध्यम �ोकभाषा हो जायेगा, ऐसा हमें वि श्वास है। हम सरकार के न ोदय स्कू�ों के अ श्य वि रु� हैं क्योंविक ये अंग्रेजी के प्रवित रुझान बढ़ा रहे हैं। हम देहरादूनी @ै�ी के अंग्रेजी स्कू�ों के घोर वि रोधी हैं, क्योंविक ये स्कू� अंग्रेजी और अंग्रेजिजयत के प्रचारक हैं।

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हमारे ईसाई भाई अंग्रेजी के साथ अपना रिरश्ता जोड़कर अपने आपको गैरविहन्दुस्तानी प्रमाक्षिर्णत कर रहे हैं। ईसा मसीह की भाषा अंग्रेजी नहीं थी। उसने अपना उपदे@ अरमैक भाषा में दिदया था। आज ह भाषा मर चुकी है पर ह विहन्दुस्तानी भाषाओं के ज्यादा नजदीक थी।       हम अंग्रेजी की पढ़ाई विबल्कु� बंद करना नहीं चाहते। हम चाहते हैं विक अंग्रेजी के साथ रूसी, चीनी, अरबी, फारसी, जम6दा आदिद वि दे@ी भाषाओं का वि कल्प रहे। वि द्याथs इ�ानुसार वि दे@ी भाषा चुन सके। वि दे@ी भाषा की लि@क्षा ैज्ञाविनक ढंग से तथा यहाँ की �ोकभाषाओं के माध्यम से दी जाये। उसमें भाषा ज्ञान अथा6त् समझने समझाने की @लिक्त पर ब� हो, साविहत्य पर नहीं। उसे परीक्षा का माध्यम न बनाया जाये। यहाँ की नौकरी के लि�ए उसका ज्ञान अपेक्षिक्षत न हो।        हम वि दे@ी भाषाओं को राष्ट्रभ न की खिखड़विकयाँ मानते हैं। कोईर् भी समझदार गृहस्थ अपने भ न में एक ही खिखड़की नहीं बनाता। विकन्तु हमारे दे@ के नेताओं ने इस राष्ट्रभ न में अंग्रेजी के अ�ा ा विकसी अन्य खिखड़की को बनाया ही नहीं। उन्होंने तो राष्ट्रभाषा की ड्यौढ़ी तथा �ोकभाषाओं के दर ाजों को भी बन्द करके अके�ी अंग्रेजी की खिखड़की के द्वारा ही यहाँ के नागरिरकों को गतागत कराने में गौर समझा है।       आईये इस राष्ट्रीय अक्षिभयान में हमारा साथ दीजिजए। अपने अपने के्षत्रों में इस प्रकार के संगठन बनाकर अपने ढंग से अंग्रेजी के दुग6 को ढाने का प्रयत्न कीजिजए।उन ढोंगी नेताओं को नकारिरये जो संसद अथ ा वि धान सभा में अथ ा सा 6जविनक मंच पर अंग्रेजी में बो�ने को @ान समझते हैं।प्रकालि@त पवित्रका : 'स् ागत पवित्रका' अस्तिस्मता का @ंखनाद, संपादिदका : प्रो. विप्रतपा� 'ब�'पता : अंग्रेजी अविन ाय6ता वि रोधी सधिमवित, नकोदर-१४४०४० (पंजाब)

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राष्ट्रीय हि�न्दीसेवी म�ासंघ, इन्दौर (म.प्र.)स्थापना : सन् १९९७ ई.

उदे्दश्य :         संकल्प -दे@ ालिसयों में भा ात्मक एकता, परस्पर सद्भा भाषाई सौहाद6, विहन्दी सविहत सभी भारतीय भाषाओं को समुलिचत सम्मान प्रवितष्ठा, विहन्दीसेवि यों के विहतों का संरक्षर्ण, एकजुटता, समन्तिन् त प्रयास, साथ6क पह�।       �क्ष्य ए ं काय6 : विहन्दी के व्यापक प्रसार के विनधिमर्त्ता राष्ट्रव्यापी विहन्दी के पक्षधरों को एकजुट करने, विहन्दीसे ी संस्थाओं में समन् य बनाने और धिम�कर अक्षिभयान च�ाने तथा विहन्दी सेवि यों के विहतों के संरक्षर्ण के लि�ए उपाय करने तथा बैठकें , गोधिष्ठयाँ, वि वि ध समारोह और सम्मे�न आयोजिजत करना, मुखपत्र/पवित्रका तथा अन्य सम्ब� प्रका@न करना और सभी प्रकार से पह� करना।प्रकालि@त पवित्रका : ाग्धारा (मालिसक), संपादक : राज केसर ानी।पता : महासलिच , राष्ट्रीय विहन्दीसे ी महासंघ, ३, ४-सेन्¡� एक्साइज कॉ�ोनी, रेसीडेंसी एरिरया, इन्दौर-४५२००१ (म.प्र.)

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हि�न्दी साहि�त्य सम्मे�न, प्रयागस्थापना : १ मई १९१० ई.

       विहन्दी साविहत्य सम्मे�न का एक आयोजन करने का विनश्चय का@ी नागरी प्रचारिरर्णी सभा, ारार्णसी की एक बैठक में, १ मई, सन् १९१० को विकया गया। इसी के विनश्चयानुसार १० अक्टूबर, १९१० को ारार्णसी में ही पस्थिण्डत मदनमोहन मा� ीय के सभापवितत् में पह�ा सम्मे�न हुआ। दूसरा सम्मे�न प्रयाग में करने का प्रस्ता स् ीकार हुआ और सन् १९११ में दूसरा सम्मे�न इ�ाहाबाद में पस्थिण्डत गोवि न्दनारायर्ण धिमश्र के सभापवितत् में सम्पन्न हुआ। दूसरे सम्मे�न के लि�ए प्रयाग में 'विहन्दी साविहत्य सम्मे�न' नाम की जो सधिमवित बनायी गयी, ही एक संस्था के रूप में, प्रयाग में आपके सम्मुख वि राजमान है, जो स् तन्त्रता-आन्दो�न के समान ही भाषा-आन्दो�न का साक्षी और राष्ट्रीय ग 6-गौर का प्रतीक है। टण्डन जी सम्मे�न के जन्म से ही मन्त्री रहे और इसके उत्थान के लि�ए जिजये, इसीलि�ए उन्हें 'सम्मे�न के प्रार्ण' के नाम से अक्षिभविहत विकया जाता है।सम्मे�न का उदे्दश्य :       विहन्दी साविहत्य सम्मे�न का उदे्दश्य है-दे@व्यापी व्य हारों और काय� में सहजता �ाने के लि�ए राष्ट्रलि�विप दे नागरी और राष्ट्रभाषा विहन्दी का प्रचार करना। विहन्दीभाषी प्रदे@ों में सरकारी तन्त्र, सरकारी, अ�6सरकारी, गैर सरकारी विनगम, प्रवितष्ठान, कारखानों, पाठ@ा�ाओं, वि श्ववि द्या�यों, नगर-विनगमों, व्यापार और न्याया�यों तथा अन्य संस्थाओं, समाजो, समूहों में दे नागरी लि�विप और विहन्दी का प्रयोग कराने का प्रयत्न करना। विहन्दी साविहत्य की श्री ृजि� के लि�ए मानवि की, समाज@ास्त्र, ाक्षिर्णज्य, वि धिध तथा वि ज्ञान और तकनीकी वि षयों की पुस्तकें लि�ख ाना और प्रकालि@त करना। विहन्दी की हस्तलि�खिखत और प्राचीन सामग्री तथा विहन्दी भाषा और साविहत्य के विनमा6ताओं के स्मृवित-लिचन्हों की खोज करना और उनका तथा प्रकालि@त पुस्तकों का संग्रह करना। अविहन्दीभाषी प्रदे@ों में हॉं की प्रदे@ सरकारों, बुजि�जीवि यों, �ेखकों, साविहत्यकारों आदिद से सम्पक6 करके उन्हें दे नागरी लि�विप में विहन्दी के प्रयोग के लि�ए तथा सम्पक6 भाषा के रूप में भी विहन्दी के प्रयोग के लि�ए पे्ररिरत करना। विहन्दीतर भाषा में उप�� साविहत्य का विहन्दी में अनु ाद कर ाने और प्रका@न करने के लि�ए हर सम्भ प्रयत्न करना और ग्रन्थकारों, �ेखकों, कवि यों, पत्र-सम्पादकों, प्रचारकों को पारिरतोविषक, प्र@ंसापत्र, पदक, उपाधिध से सम्माविनत करना।सम्मे�न से सम्ब� संस्थाऍं       सम्मे�नरूपी इस वि @ा� ट ृक्ष की अनेक @ाखाऍं, प्र@ाखाऍं पूरे दे@ में विहन्दी प्रचार में �गी हुई हैं। इनमें से कुछ संस्थाऍं सम्मे�न से सीधे सम्ब� हैं और कुछ राष्ट्रभाषा प्रचार सधिमवित, धा6 के माध्यम से जुड़ी हैं। उर्त्तारप्रदे@ीय विहन्दी साविहत्य सम्मे�न, भोपा�, हरिरयार्णा प्रादेलि@क विहन्दी साविहत्य सम्मे�न, पटना, मध्यप्रदे@ विहन्दी साविहत्य सम्मे�न, भोपा�, हरिरयार्णा प्रादेलि@क विहन्दी साविहत्य सम्मे�न, गुड़गॉं , बम्बई प्रान्तीय विहन्दी साविहत्य सम्मे�न, बम्बई, दिदल्�ी प्रान्तीय विहन्दी साविहत्य सम्मे�न, दिदल्�ी, वि न्ध्य प्रादेलि@क विहन्दी साविहत्य सम्मे�न, री ा, ग्रामोत्थान वि द्यापीठ, सॅंगरिरया, राजस्थान, मैसूर विहन्दी प्रचार परिरषद,् बैंग�ूर, मध्य भारत विहन्दी साविहत्य सधिमवित, इंदौर, भारतेन्दु सधिमवित कोटा, राजस्थान तथा साविहत्य सदन, अबोहर भी सम्मे�न से सीधे सम्ब� हैं।प्रकालि@त पवित्रका : राष्ट्रभाषा सन्दे@(मालिसक), प्रधान संपादक : श्री वि भूवित धिमश्र।पता : विहन्दी साविहत्य सम्मे�न प्रयाग, १२, सम्मे�न माग6, इ�ाहाबाद-३(उ.प्र.)

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भारत-एणिशयाई साहि�त्य अकादमी, दिदल्�ीउ�ेश्य :

       भारतीय साविहत्य (वि @ेष रूप से विहन्दी साविहत्य) तथा अन्य एलि@याई दे@ों (वि @ेषतया पड़ौसी दे@ों) के साविहत्य को उत्प्रेरिरत, विनष्पादिदत तथा प्रोत्साविहत करना। भारत तथा अन्य एलि@याई दे@ों के सृजनात्मक �ेखकों (वि @ेषत: कवि यों) के लि�ए भारतीय तथा एलि@याई साविहत्यकारों की कृवितयों की समीक्षा, परिरचचा6 ए ं संपे्रषर्ण हेतु एक मंच तैयार करना। भारत तथा अन्य एलि@याई दे@ों के कवि यों तथा सृजनात्मक �ेखकों में पारस्परिरक मैत्री, सद्भा ना, सहयोग तथा संयुक्त उद्यम को प्रोत्साविहत करना।प्रकालि@त पवित्रका : भारत-एलि@याई साविहत्य (अ�6 ार्तिष̀क), संपादक : श्री अ@ोक खन्नापता : भारत-एलि@याई साविहत्य अकादमी (पं.न्यास), ई-१०७०, सरस् ती वि हार, दिदल्�ी-११००३४(भारत)

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राष्ट्रीय हि�न्दी �रिरषद,् मेरठस्थापना : १७ जून १९८५ ई.

       @ासन का काय6 च�ाने के लि�ये जिजस भाषा की आ श्यकता होती है ह राजभाषा कह�ाती है। मुग�का� में @ासन की राजकाज की भाषा उदू6 फारसी थी। अंग्रेजों के @ासन में अंग्रेजी थी। भारत के स् ाधीन होने पर भारतीय संवि धान सभा ने १३ लिसतम्बर १९४९ को विहन्दी को राष्ट्रभाषा के लि�ये स् ीकृत विकया तथा @ासन का सम्पूर्ण6 काय6 विहन्दी में च�ाने का विनर्ण6य लि�या। विकन्तु स् ाधीनता के ५५ ष6 के बाद भी विहन्दी राजभाषा के रूप में स्थाविपत नहीं हो सकी है तथा उसके स्थान पर अंग्रेजी में ही सम्पूर्ण6 राजकाज हो रहा है। उसी के कारर्ण दे@ में चतुर्दिद̀क अंग्रेजी का बो�बा�ा हो रहा है।       सरकारी स्तर पर विहन्दी के प्रवित उदासीनता तथा उपेक्षा-भा देखकर मेरठ के प्रबु� नागरिरकों के सहयोग से सोम ार १७ जून १९८५ को राष्ट्रीय विहन्दी परिरषद ्की स्थापना की गई। संस्था का संवि धान बनते ही दे@ के कोने-कोने से प्रमुख विहन्दी वि द्वान, साविहत्यकार तथा पत्रकार इसके सदस्य बन बए तथा सम्पूर्ण6 भारत में संस्था के बु�ेदिटन द्वारा इसका प्रचार-प्रसार आरम्भ हो गया।उदे्दश्य : संस्था के विनम्नलि�खिखत तीन उदे्दश्य हैं-१. विहन्दी को सम्पूर्ण6 राष्ट्र की भाषा के रूप में वि कलिसत करना तथा उसे दे@ के बहुमुखी वि कास का साधन बनाने का प्रयास करना।२. विहन्दी के वि कास द्वारा भारतीय संस्कृवित की रक्षा करना तथा राष्ट्रीय एकता ए ं अखंडता को सुदृढ़ बनाना।३. वि दे@ों में भी विहन्दी के प्रचार-प्रसार को बढ़ाना, जिजससे विक विहन्दी अंतररा6ष्ट्रीय सम्पक6 -भाषा के रूप में वि कलिसत हो सके और संयुक्ट राष्ट्र संघ की भाषा बन सके।संस्था के काय6क्रम :विनबन्ध प्रवितयोविगता : राष्ट्रीय विहन्दी परिरषद ्अखिख� भारतीय स्तर पर तीन विनबन्ध प्रवितयोविगताऍं आयोजिजत कर चुकी है, जिजनक वि षय विनम्न प्रकार रहे हैं-१. विहन्दी से ही राष्ट्रीय एकता सम्भ है।२. भारतीय संस्कृवित की अक्षुण्र्ण धारा राष्ट्रभाषा विहन्दी से ही सुरक्षिक्षत रह सकती है।

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३. विहन्दी का सभी भारतीय भाषाओं से साम्य भा है।वि क्षिभन्न प्रदे@ों के वि श्ववि द्या�यों के स्तर पर आयोजिजत इन तीनों प्रवितयोविगताओं के प्रथम १० पुरस्कृत विनबन्धों का पुस्तकों के रूप में प्रका@न विकया गया है, जिजनके नाम 'अंकुर', 'विकस�य' तथा ' ल्�री' हैं। संस्था द्वारा प्रकालि@त ये तीनों पुस्तके सभी सदस्यों की से ा में भेजी गई।इसी श्रृंख�ा में परिरषद ्के ८०० सदस्यों के फोटो तथा परिरचय सविहत 'एकता' स्मारिरका प्रकालि@त की गई, जो अपनी उत्कृष्टता तथा अनुपम सामग्री के लि�ये स 6त्र सराही गई। परिरषद ्का प्रवितमास बु�ेदिटन प्रकालि@त करने की परम्परा है, जिजसमें संस्था की प्रगवित ए ं काय6क्रमों का पूर्ण6 सलिचत्र वि रर्ण विनविहत होता है।ग्रीष्मका�ीन सम्मे�न : परिरषद ्ने जून १९८८ में प 6तों की रानी मसूरी में दो दिद सीय ग्रीष्मका�ीन विहन्दी सम्मे�न का अयोजन सनातन धम6 कन्या इन्टर कॉलि�ज, मसूरी के सभागर में विकया गया, जिजसमें वि क्षिभन्न प्रदे@ों के प्रवितविनधिधयों ने भाग लि�या। इस सम्मे�न में वि चार-गोष्ठी तथा वि राट कवि सम्मे�न का आयोजन विकया गया। पद्मश्री डॉ. रघु ीर @रर्ण धिमत्र की अध्यक्षता में तथा वि ख्यात कवि श्री हरिरओम प ार के संचा�न में आयोजिजत इस कवि सम्मे�न में काका हाथरसी, डॉ. कँु र बेचैन, सत्यदे भोंपू, ेदप्रका@ सुमन, राजेन्द्र राजन, वि जय प्र@ांत, वि ष्र्णु सरस आदिद प्रलिस� कवि यों ने भाग लि�या।दिदल्�ी सम्मे�न :दिदसम्बर १९८८,८९ तथा ९० में दिदल्�ी में ार्तिष̀क सम्मे�नों का आयोजन विकया गया, जिजनमें वि चार संगोष्ठी तथा सांस्कृवितक काय6क्रमों का आयोजन विकया गया। इन सम्मे�नों में पद्मश्री य@पा� जैन आदिद विहन्दी की अनेक वि भूवितयों ने भाग लि�या तथा विहन्दी के माग6 को प्र@स्त करने के सुझा दिदये।यादगार सम्मे�न :दिद. २८, २९ अक्टूबर, १९९१ को नई दिदल्�ी के विहमाच� भ न में दो दिद सीय राष्ट्रीय सम्मे�न का आयोजन विकया गया। इस सम्मे�न का उद्घाटन सुप्रलिस� सिच̀तक डॉ. कर्ण6सिस̀ह ने विकया तथा वि चार संगोष्ठी में भग त झा आजाद, बेक� उत्साही आदिद वि द्वानों ने भाग लि�या।दूसरे दिदन उपराष्ट्रपवित डॉ. @ंकरदया� @मा6 ने दे@ के @ीष6स्थ विहन्दी वि द्वानों को @ा�, अ�ंकरर्ण तथा प्र@स्तिस्त पत्र देकर सम्माविनत विकया। इनमें १० विहन्दी वि द्वान तधिम�नाडू से थे।मेरठ सम्मे�न :परिरषद ्की ओर से मेरठ में प्रवित ष6 कई समारोह आयोजिजत विकए जाते हैं, जिजनमें विहन्दी दिद स, हो�ी धिम�न, नौचन्दी के अ सर पर कवि सम्मे�न जिजसमें प्रलिस� @ायर ब@ीर बदर ने कवि ता पाठ विकया। प्रलिस� रूसी विहन्दी वि द्वान डॉ. ाराधिन्नको का अक्षिभनन्दन, प्रवितष्ठान समारोह तथा @पथग्रहार्ण समारोह आदिद आयोजिजत विकए गए। परिरषद ्की ओर से प्रवित ष6 १४ लिसतम्बर को विहन्दी दिद स उत्साह से मनाया जाता है जिजसमें वि चार संगोष्ठी तथा कवि सम्मे�न का अयोजन विकया जाता है।प्रकालि@त पवित्रका : एकता, प्रधान संपादक : डॉ.धिमते्र@ कुमार गुप्त।पता : राष्ट्रीय विहन्दी परिरषद, २, वित�क माग6, बेगम पु�, मेरठ-२५०००१(उ.प्र.)

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हि�न्दी प्रचार सभा, �ैदराबाद (आंध्र प्रदेश)स्थापना : सन् १९५५ ई.

       हैदराबाद राज्य में विहन्दी का प्रचार-प्रसार करने ा�ी प्राचीनतम साविहन्तित्यक-@ैक्षक्षिर्णक संस्था 'विहन्दी प्रचार सभा, हैदराबाद' की स्थापना की गई। डॉ.बी.रामकृष्र्णरा जब प्रदे@ के मुख्यमंत्री हुए तब इस सभा

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को सरकारी सहायता धिम�ना आरम्भ हुआ। सभा का अपना एक वि @ा� भ न और पे्रस है। प्रवितकू� परिरस्थिस्थवितयों में सभा ने विहन्दी का प्रचार-प्रसार कर अपना महत् पूर्ण6 स्थान बनाया। सन् १९५६ से राज्यों के पुन6संगठन के कारर्ण सभा में न ीन उत्साह का ाता रर्ण बना। हैदराबाद राज्य का वि �यन, महाराष्ट्र, आन्ध्र ए ं मैसूर के नए राज्यों में हो गया और इनमें सभा की @ाखाए ँप्रस्थाविपत हो गईं, �ेविकन मुख्या�य हैदराबाद ही रहा। राष्ट्रभाषा प्रचार सधिमवित, धा6 और विहन्दी साविहत्य सम्मे�न, प्रयाग से सभा का विनकट संबंध रहा है। भारत सरकार ने इसे अखिख� भारतीय विहन्दी संस्था संघ के सदस्य के रूप में मान्यता दी है। सभा के द्वारा विहन्दी माध्यम से वि द्या�य तो संचालि�त होते ही हैं, साथ ही साथ पाठ्यपुस्तकों के अवितरिरक्त मौलि�क और अनुदिदत गं्रथों का भी प्रका@न होता है। @ब्दकोषों का विनमा6र्ण तथा अन्य भाषाओं के इवितहासों का प्रका@न भी विकया जाता है। प्रकालि@त पवित्रका : वि रर्ण पवित्रका(मालिसक), संपादक : श्री धोण्डीरा जाध पता : सलिच , विहन्दी प्रचार सभा हैदराबाद, ए�.एन.गुप्त माग6, नामपल्�ी स्टे@न रोड, हैदराबाद-१(आंध्रप्रदे@)

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दणिG= भारत हि�न्दी प्रचार सभा, चैन्नईस्थापना : सन् १९१८ ई.

         भारत में महात्मा गांधी के विहन्दी प्रचार आंदो�न के परिरर्णाम स् रूप 'दक्षिक्षर्ण भारत विहन्दी प्रचार सभा' की स्थापना मद्रास नगर के गोख�े हॉ� में डॉ.सी.पी. रामास् ामी अरयर की अध्यक्षता में एनीबेसेन्ट ने की थी। महात्मा गांधी जो इस सभा के आजी न अध्यक्ष रहे, उन्होंने दे@ की अखंडता और एकता के लि�ए विहन्दी की आ श्यकता पर ब� देते हुए कांग्रेस द्वारा स् ीकृत चौदह रचनात्मक काय6क्रमों में राष्ट्रभाषा विहन्दी के व्यापक प्रचार-प्रसार काय6 का भी उल्�ेख है।         महात्मा गांधी के बाद दे@रत्न डॉ.राजेन्द्र प्रसाद इस संस्था के अध्यक्ष बनाए गए, जो स् यं विहन्दी के कट्टर उपासक थे। 'विहन्दी समाचार' नाम की मालिसक पवित्रका द्वारा सभा के उदे्दश्य, प्र ृक्षिर्त्ता तथा अन्यान्य काय6क�ापों की वि स्तृत सूचनाए ँप्रचारकों को धिम�ती रहती हैं। 'दक्षिक्षर्ण भारत' नामक तै्रमालिसक साविहन्तित्यक पवित्रका में दक्षिक्षर्ण भारतीय भाषाओं की रचनाओं के विहन्दी-अनु ाद और उच्चस्तर के मौलि�क साविहन्तित्यक �ेख छपते हैं। विहन्दी अध्यापकों और प्रचारकों को तैयार करने के लि�ए सभा के लि@क्षा वि भाग के माग6द@6न में 'विहन्दी प्रचार वि द्या�य' नामक प्रलि@क्षर्ण वि द्या�य तथा प्र ीर्ण वि द्या�य संचालि�त होते हैं। प्रचार काय6 को सुसंगदिठत तथा लि@क्षर्ण को क्रमब� और स्थायी बनाने के उ�ेश्य से सभा प्राथधिमक, मध्यमा, राष्ट्रभाषा प्र ेलि@का, वि @ारद, प्र ीर्ण और विहन्दी प्रलि@क्षर्ण नामक परीक्षाओं का संचा�न करती है। सभा की ओर से एक स्नातकोर्त्तार अध्ययन ए ं अनुसंधान वि भाग खो�ा गया है, जिजसमें अध्ययनाथ6 प्रोफेसरों की विनयुलिक्त होती है। पुस्तकों का प्रका@न सभा के साविहत्य वि भाग की ओर से विकया जाता है। विहन्दी के माध्यम से तधिम�, ते�गू, कन्नड़, म�या�म चारों भाषाए ँसीखने के लि�ए उपयोगी पुस्तकों ए ं को@ आदिद के प्रका@न का वि धान है।प्रकालि@त पवित्रका : विहन्दी प्रचार समाचार(मालिसक), संपादक : ज.ेएस.रामदास।पता : दक्षिक्षर्ण भारत विहन्दी प्रचार सभा, टी. नगर, पोस्ट ऑविफस, मद्रास (चेन्नै)-६०००१७

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म�ाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा, �ु=ेस्थापना : सन् १९४५ ई.

           इस सभा की स्थापना काका साविहब गाडविग�, मामा साहब दे विगरिरकर आदिद नेताओं की पे्ररर्णा और आदे@ पर राष्ट्रभाषा प्रचार का काय6 स् तंत्र रूप से आरम्भ करने के लि�ए हुई। दे@ की प्रमुख स् ैस्थि�क विहन्दी प्रचार संस्थाओं में से एक महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा, बम्बई की परीक्षाए,ँ प्रका@न, यात्राए ँभ न, मुद्रर्णा�य, गं्रथा�य और अध्यापन मंदिदर आदिद इसकी स्थायी सम्पक्षिर्त्ता हैं। सभा की प्रबोध, प्र ीर्ण, पंविडत और पद्म परीक्षाए ंकेन्द्रीय सरकार द्वारा क्रम@: मैदि¡क, इण्टर, बी.ए. और एम.ए. के समकक्ष स् ीकृत हैं। सभा ने दो सौ से अधिधक पुस्तकें प्रकालि@त की हैं, जिजनमें विहन्दी से मराठी और मराठी से विहन्दी रचनाओं का अनु ाद प्रमुख है। बृहद ्विहन्दी मराठी @ब्दको@, क ीन्द्र चजिन्द्रका, प 6ताख्यान, फू�बन तथा जगनामा आदिद प्रलिस� गं्रथ हैं।प्रकालि@त पवित्रका : राष्ट्र ार्णी (मालिसक ), संपादक : प्रा.सु.मो.@ाह।पता : महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा, पुर्णे, ३८७, नारायर्ण पेठ, पुर्णे-४११०३० (महाराष्ट्र )

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अखिB� भारतीय हि�न्दी संस्था संघ, नई दिदल्�ीस्थापना : ४ अगस्त, १९६४ ई.

भारत सरकार के लि@क्षा मंत्रा�य के प्रयत्न तथा विहन्दी प्रचार करने ा�ी परीक्षा-मान्यता प्राप्त संस्थाओं के सहयोग से दिदल्�ी में इस संघ की स्थापना की गई।उदे्दश्य : १. संवि धान की धारा ३५१ के अनुसार विहन्दी के प्रचार और वि कास के लि�ए राष्ट्रीय मंच की स्थापना करना।

२. विहन्दी के प्रचार तथा वि कास के उदे्दश्यों की पूर्तित̀ के लि�ए भारत की वि क्षिभन्न स् ैस्थि�क विहन्दी संस्थाओं के काय� में समन् य स्थाविपत करना। ३. वि क्षिभन्न स् ैस्थि�क विहन्दी संस्थाओं द्वारा संचालि�त विहन्दी परीक्षाओं के स्तर में एकात्मकता स्थाविपत करना।४. भारत सरकार तथा राज्य सरकारों अथ ा अन्य विकसी संस्था द्वारा संघ को भेज ेगए विहन्दी के प्रचार और वि कास से संबंधिधत विकसी भी माम�े पर स�ाह और सहायता देना।५. ऐसे विकसी भी अन्य काय6क�ाप को हाथ में �ेना, जो संघ की राय में विहन्दी के प्रचार और काय6 में सहायक हो।

काय6 और काय6 प�वित : संघ अपने उदे्दश्यों की पूर्तित̀ के लि�ए विनम्नलि�खिखत काय6 कर रहा है :प्रचारात्मक काय6 : क. संघ की ओर से पू 6, पक्षिश्चम, उर्त्तार और दक्षिक्षर्ण में भारत की स् ैस्थि�क विहन्दी संस्थाओं के काय6क�ापों का अध्ययन करने, उनकी समस्याओं का अध्ययन ए ं समाधान कराने, विहन्दी के प्रचार और प्रसार की दृधिष्ट से आ श्यक योजनाओं को काया6न्तिन् त करने के लि�ए के्षत्रीय विहन्दी प्रचारकों, काय6कता6ओं के लि@वि रों का

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आयोजन।ख. अखिख� भारतीय स्तर पर विहन्दी काय6कता6ओं के सम्मे�न तथा लि@वि रों का आयोजन।ग. विहन्दी तथा विहन्दीतर प्रदे@ों के वि द्वानों के भाषर्णों की व्य स्था।घ. विहन्दीतर भाषी रिरष्ठ साविहत्यकारों की विहन्दी प्रदे@ों में सद्भा ना यात्राए।ँड. स् ैस्थि�क विहन्दी संस्थाओं के काय� में समन् य स्थाविपत करना।च. विहन्दीतर भाषी �ेखकों की पुस्तकों की प्रद@6नी का आयोजन।छ. सदस्य संस्थाओं के बीच समन् य, सामंजस्य के लि�ए सद्भा ना यात्राए।ँज. गंगा@रर्ण संह अखिख� भारतीय ाक् स्पधा6 का आयोजन।लि@क्षर्ण काय6 :विहन्दी परीक्षा के माध्यम द्वारा होने ा�े प्रचार काय6 का मूल्यांकन करना। विहन्दीतर प्रदे@ों में विहन्दी लि@क्षर्ण और लि@क्षकों की कदिठनाइयों के बारे में वि चार वि विनमय। संस्थाओं द्वारा होने ा�े विहन्दी प्रचार और लि@क्षर्णात्मक काय6-नीवित के सम्बन्ध में वि चार करना।साविहन्तित्यक काय6 :           विहन्दीतर भाषी विहन्दी �ेखकों तथा विहन्दी साविहत्यकारों की संगोधिष्ठयों सम्मे�नों का आयोजन करना। विहन्दीतर भाषी विहन्दी �ेखकों तथा छात्रों का अक्षिभनन्दन करना। विहन्दीतर भाषी विहन्दी �ेखकों की रचनाओं का संस्थाओं के सहयोग से प्रका@न कराना। पवित्रका का प्रका@न करना। प्रदे@ों की परिरचयात्मक ए ं ाता6�ाप गाइडों का प्रका@न करना ए ं राष्ट्रभाषा प्रचार का इवितहास तथा अन्य प्रका@न।           इसके अवितरिरक्त नई परीक्षाओं को मान्यता दिद�ाने संबंधी काय6, विहन्दी स�ाहकार सधिमवितयां में संघ तथा उसकी सदस्य संस्थाओं के प्रवितविनधिधयों को केन्द्रीय विहन्दी सधिमवित तथा वि क्षिभन्न मंत्रा�यों में गदिठत विहन्दी स�ाहकार सधिमवितयों में नाधिमत विकया जाना, स् ैस्थि�क विहन्दी संस्थाओं द्वारा संचालि�त विहन्दी परीक्षाओं के लि�ये आद@6 पाठ्यक्रम तैयार करना ए ं तै्रमालिसक पवित्रका प्रका@न करना भी इस संस्था के महत् पूर्ण6 काय6 हैं।पता : अखिख� भारतीय विहन्दी संस्थान संघ, ३४, कोट�ा माग6, नई दिदल्�ी-११०००७.

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अखिB� भारतीय साहि�त्य क�ा मंच, मुरादाबाद (उ.प्र. )स्थापना : ४ माच6 १९८८ (चाँदपुर, विबजनौर ) में।

उदे्दश्य :१. विहन्दी का प्रचार-प्रसार करना और सामधियक गोधिष्ठयाँ आयोजिजत करना।२. साविहत्यकारों को संगदिठत ए ं प्रोत्साविहत करना।३. न ोदिदत प्रवितभाओं को प्रका@ में �ाना।४. सांस्कृवितक चेतना राष्ट्रीय सौहाद्र6 को बढ़ाना।५. अप्रकालि@त साविहत्य को प्रकालि@त कराकर उसे �ोकार्तिप̀त कराना और साविहत्य जगत में सहृदय रचनाकारों ए ं समर्तिप̀त साविहत्य-सेवि यों को विन:@ुल्क भेंट करना।६. समारोह और स्तरीय काव्य-गोधिष्ठयों में साविहत्यकारों को 'साविहत्यश्री', 'क�ाश्री' ए ं 'पत्रकारश्री' की उपाधिधयों से वि लि@ष्ट के्षत्र में योगदान के लि�ए सम्माविनत करना और विहन्दी में @ोधकाय6 कराना।७. चेतना, चरिरत ए ं एकता सं �6न पर समाज का ध्यान केजिन्द्रत करना।

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८. साविहत्यकारों के सम्मान ए ं विहन्दी के वि कास-प्रचार-प्रसार हेतु, मुख्या�य पर स्थायी विहन्दी भ न का विनमा6र्ण और कम-से-कम दस �ाख की रालि@ की एक स्थायी विहन्दी विनधिध-कोष की स्थापना और पुस्तका�यों की स्थापना।

पता : डॉ. महे@ 'दिद ाकर', अखिख� भारतीय क�ा मंच, चांदपुर (विबजनौर ), उ.प्र.

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भारतीय भाषा प्रहितष्ठा�न राष्ट्रीय �रिरषद,् मुम्बई (म�ाराष्ट्र )स्थापना : २००३

उदे्दश्य : १. भारत के संवि धान के अनु�ेद ५१ (क ) में दिदए दिद@ा विनदz@ के अनुसार मजहब, भाषा, सम्प्रदाय, जावित, ग6 का भेदभा विकए विबना भारतीय समाज के विहत के सं ध6न में सहायक होगा।२. भारत में राष्ट्रविहत ा�ी भाषा नीवित को �ागू कराने के लि�ए हर संभ प्रयास करना जिजससे सबको समान अ सर प्राप्त हों, साक्षरता बढे़ गॉं ों के वि कास ए ं राष्ट्र के संसाधनों से जुड़ा @ोध हो।३. भारतीय संवि धान की अष्टम अनुसूची में सम्मिम्मलि�त भारतीय भाषाओं में आपस में ता�-मे� बढ़ाना ए ं लि@क्षा, व्य साय, @ोध इत्यादिद सविहत जी न के हर के्षत्र में उनके प्रवितष्ठापन हेतु प्रचार, प्रसार, वि चार वि म@6 ए ं जन विहत यालिचका सविहत हर संभ प्रयास करना।४. भारतीय संवि धान की अष्टमअनुसूची में सम्मिम्मलि�त भारतीय भाषाओं के प्रवितष्ठापन के लि�ए प्रयत्न@ी� संस्थाओं की संयुक्त परिरषद के रूप में काय6 करना ए ं उनमें समन् य स्थाविपत करना है।५. परिरषद के उदे्दश्यों की पूर्तित̀ के लि�ए पत्र पवित्रका, प्रचार सामग्री प्रकालि@त करना ए ं अन्य सहायक गवितवि धिधयों जैसे संगोधिष्ठयों, बैठकों ए ं सभाओं का आयोजन ए ं संचा�न ए ं दृश्य साधनों का प्रद@6न करना।पता : भारतीय भाषा प्रवितष्ठापन राष्ट्रीय परिरषद ्(पंजी. ), एफ-६/१, सेक्टर-७ (माकz ट ), ा@ी, न ी मुम्बई-४००७०३

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