गाँधी‐गंगाल& भ ई म. पट ल ५. ‘द श€ क ट दय ʼ ६....

134

Upload: others

Post on 01-Sep-2020

17 views

Category:

Documents


0 download

TRANSCRIPT

  • गाँधी‐गंगा (दोनो ंभाग म� से चुने �ए अंशो ंका िह�ी अनुवाद)

    संपादक महे� मेघाणी

    अनुवाद

    डॉ. नीरा कांितलाल नाहटा

    पहली आवृि�, !ित ५,०००, जून २००९

    मु)क और !काशक

    िववेक िजते, देसाई

    नवजीवन मु�णालय

    अहमदाबाद‐३८० ०१४

    फोन: ०७९‐२७५४०६३५ | २७५४२६३४

    E‐mail : [email protected] | Website : www.navajivantrust.org

  • गाँधीगाँधीगाँधीगाँधी----गंगागंगागंगागंगा | www....mkgandhi....org

    �काशक का िनवेदन

    पुMको ंके !सार को 'पुO के Pापार' का दजाQ देनेवाले Rी महे,भाई मेघाणी !ितिदन

    नई योजनाओ ंके Wारा अXी पुMको ंके !सार का, पुO के Pापार का काम आजीवन

    करते रहे हY।

    वे अXे अनुवादक और तट\थ संपादक भी हY। उनका वाचन िवशाल है और पसंदगी

    बेिमसाल है। इसके पaरपाक bcप हम� 'गाँधी‐गंगा' के दो भाग उनसे िमले। गाँधीजी के

    समकालीन, सािथयो,ं गाँधी घराने के लेखको ंतथा गुजराती भाषा के नामी सािहhकारो ंने

    गाँधीजी के बारे म� संiरणो ंके bcप म�, !संगो ंके bcप म�, काP के cप म�, कथा‐

    कहानी के cप म�, ढेर सारी बात� िलखी हY। उसम� से हँस चारा चरता हो इस तरह

    महे,भाई ने कुल बह�र पुMको ंम� से तीनसौ से अिधक iरणीय !संग, संiरण, काP,

    कथा‐कहानी ‘गाँधी‐गंगाʼ के दो भाग म� हम� संपािदत करके िदये हY

    नई पीढ़ी को गाँधीजी के जीवन और कायQ का पaरचय हो, व गाँधी‐सािहh वह पढ़े, इस

    हेतु से नवजीवन टo p, गूजरात िवqापीठ और बsई सवtदय मंडल के सहयोग से हर साल

    शाला‐कािलजो ंम� ‘गाँधी जीवन झाँकी', ‘गाँधी िवचार !वेश' तथा ‘गाँधी िवचार पaरचय'

    परीwाएँ ली जाती हY। !संगो ंऔर संiरणो ंके Wारा गाँधीजी की बात� िवqािथQयो ंको अिधक

    याद रहती हY, इस xिy से इन परीwाओ ंके िलए 'गाँधी‐गंगा' के दो भागो ंम� से चुने �ए ८८

    !संगो‐ंसंiरणो ंका यह संzरण तैयार िकया गया है। इस तरह, यह संzरण 'गाँधी‐

    गंगा' का आचमन कराता है।

    ‘गाँधी‐गंगाʼ का आचमन भले ही पा{पुMक के cप म� तैयार िकया हो, सामा| वाचक

    के िलए भी उसका वाचन गंगाजल के आचमन के बराबर होगा और इसे वाचको ंका उिचत

    स}ार िमलेगा, ऐसी हम� पूरी Rा है।

    इस संzरण को तैयार करके इसका !काशन करने की अनुमित देने के िलए Rी

    महे,भाई मेघाणी के हम आभारी हY।

  • गाँधीगाँधीगाँधीगाँधी----गंगागंगागंगागंगा | www....mkgandhi....org

    अनु"मिणका

    मो. क. गाँधी १. ितरzार िवनोबा भावे २. 'िजस गाँधी को मYने जाना' ३. ‘उजाला हो गया हैʼ ४. ‘मलयिगaर का गौरक‐गान'

    ल&ुभाई म. पटेल ५. ‘दो श काट िदयेʼ ६. 'घी का दीपक' ७. 'भाषण के पहले का कामʼ ८. एक अनोखा धोबी ९. ‘ग़रीबी से काँप रहा ँʼ

    िमली )ेहाम पोलाक १०. जोहनेसबगQ की सभा ११. 'सी का \थानʼ

    उमाशंकर जोशी १२. ‘बचत पर नज़र' १३. 'राजा के अितिथʼ १४. 'िकस मँुह से यह पी सकता ँ ?ʼ १५. ‘ग़रीबो ंकी बाʼ १६. 'अनमोल अधेला' १७. 'पहले मेरा िसर फोड़ो !' १८. ‘दोनो ंचुपचाप बैठे रहे' १९. ‘महाा' न कहोʼ

    काका कालेलकर २०. ‘गीता कंठ\थ की' २१. 'चालीस हज़ार वापस लौटाए' २२. 'अृता की शतQ पर तो....ʼ २३. 'धमQयु का िनयम' २४. 'कड़ी सज़ाʼ २५. 'पापी का भी !ितिनिध' २६. ‘माँ‐जैसा वा' २७. राजनैितक क़ैदी

    २८. ‘बिढ़या खलाड़ी' २९. 'तीन तप (युग) की bरा‐सेवा' ३०. 'सhिन की पूजा' ३१. 'सनातनी लेिकन सुधारक' ३२. साबरमती से यरवडा ३३. 'जेल के दौरान अयनʼ ३४. 'लँगड़ाते द�ोबा' ३५. ‘मराठी की िशwाʼ ३६. ‘िबदाई'

    जुगतराम दवे ३७. आRम‐जीवन ३८. 'नवजीवनʼ

    शाहनवाज़ ख़ां ३९. 'िजंदगी भर गँूजते रह�गे....ʼ

    रिवशंकर (महाराज) /ास ४०. ‘िजतना है उतना तो उपयोग कीिजए |ʼ

    रामनारायण िव. पाठक ४१. 'िवरोधी शि�ो ंका समयʼ

    शंकरलाल ब2कर ४२. 'सयाना कूटनीित' ४३. ‘ा यह कँ िक िफ म बनाओ ?ʼ ४४. ‘िवािम ऐसा कैसे कर सकते हY ?ʼ

    नरह3र परीख ४५. महादेवभाई की डायरी'

    घन5ामदास िबरला ४६. ‘बीमार की मृhुशैया परʼ

    बलवंतिसंह ४७. 'िचिड़याँ चुग गई खेत' ४८. ‘िनःbाथQ सेवा से ही दय‐शQ हो सकता है।'

    6ेयर शे3रडन ४९. भP सादगी'

  • गाँधीगाँधीगाँधीगाँधी----गंगागंगागंगागंगा | www....mkgandhi....org

    धी7भाई ठाकर ५०. 'भPोल जीवन की िचर!िता'

    इ9ुलाल याि:क ५१. 'ऐितहािसक सभाʼ

    तनसुख भ; ५२. ‘अिहंसा का अलग !कार'

    मुकुलभाई कलाथ= ५३. ‘बापू‐मोची' ५४. ‘भूल‐चूक माफ़ करनाʼ ५५. ‘सही तरीक़े से गाया न जाए तो....|ʼ ५६. ‘इतने घबरा यो ंगए ?ʼ ५७. 'आा‐पालनʼ ५८. ‘मY होती तो फ़क़Q पड़ता' ५९. ‘आप ? और मुझसे डरते हY !ʼ ६०. ‘बा न खाय�, तो मY खाऊँगा'

    रावजीभाई म. पटेल ६१. 'गीताजी का गूढ़ाथQʼ ६२. 'सबके बापू'

    ह3र�साद >. देसाई ६३. ‘नयी पीढ़ी जमानी है'

    गुणवंत शाह ६४. 'जटायु जीवंत �आ'

    महे� मेघाणी ६५. 'िबखरी महिफ़ल के पतंगे' ६६. ‘गाँधी‐दय म� पड़ी छिवयाँ'

    केशुभाई भावसार ६७. 'यह समयʼ

    मनुबहन गाँधी ६८. 'कहने की अपेwा करना अXा' ६९. ‘(रेल के िडे के) दो िवभाग का पaर ह'

    आदम घोड़ीवाला ७०. ‘ा हम !ासंिगक हY ?ʼ

    जगदीश चावडा ७१. 'आफ़ताब' (सूयQ)

    जुगतराम दवे ७२. 'आRम‐जीवनʼ ७३. 'िडा ही घर‐िडा ही आRमʼ ७४. 'आनंदी सhा ही'

    जोसेफ डोक ७५. 'कथानायक'

    जीवतराम कृपालानी ७६. 'ा गाँधीजी आधुिनक थे ?ʼ

    िमज़ाD इEाइल ७७. 'संत, राजनीित, राyo िवधायकʼ

    व&भभाई पटेल ७८. 'आंगन म� बहती गंगा'

    जॉन हेF होG ७९. 'एक नरो�मʼ

    अमृतलाल बेगड़ ८०. ‘अिहंसा को यु के मैदान म� लानेवाले'

    नगीनदास संघवी ८१. 'कान की एक बूटीʼ

    चं�शेखर �ा. शु6 ८२. ‘ग़रीबी को भी पीछे छोड़ने वाली !ʼ ८३. bXताका पाठ

    महादेव देसाई ८४. 'िवयोग‐दुख'

    रवी�नाथ ठाकुर ८५. ‘कलेजे म� ¡ालामुखी, आँखो ं म� अमृतधार'

    लुई िफशर ८६. ‘गाँधीजी और टैगोरʼ

    Hारेलाल नैJर ८७. ‘छोटी‐छोटी बातो ं के माम से जीवन‐गढ़नʼ ८८. 'अंितम िदन'

  • गाँधीगाँधीगाँधीगाँधी----गंगागंगागंगागंगा | www....mkgandhi....org

    मो. क. गाँधी

    १. ितरLार

    इस संसार म� िकसी का भी ितरzार करने म� bयं को असमथQ पाता ँ। ईर‐परायणता

    की खाितर, ब�त संयम रखकर चालीस वषQ से मYने िकसी से भी Wेष करना छोड़ िदया है।

    मY जानता ँ िक यह ब�त बड़ा दावा है, िफर भी िवन¢ता से मY इसे सबके समw कर रहा

    ँ। लेिकन जहाँ‐जहाँ दु£मQ होते हो,ं वहाँ‐वहाँ मY उसे िध कारने म� तो समथQ ँ ही और

    िध¤ारता भी ँ। अं ेजो ं ने भारत म� जो शासन!णाली अपनाई, उसे मY िध¤ारता ँ,

    उससे घृणा करता ँ। अं ेज़‐वगQ भारत म� जो ज़बरदMी कर रहा है उसका मY पूणQतः Wेषी

    ँ। भारत का िनदQयता से शोषण करने की उनकी नीित को मY दय से िध¤ारता ँ। इसी

    !कार िजस घृिणत !था के करोड़ो ंिहंदू जवाबदार बन गये हY उस अृता की !था को

    भी मY िध¤ारता ँ। पर¥ु मY नही ंिध¤ारता िसरजोरी करनेवाले अं ेज़ को और न ही

    िहंदू को। मुझसे जो कुछ संभव हो सकता है उन उपायो ंWारा मY उ¦� सुधारने का !यास

    करता ँ।

  • गाँधीगाँधीगाँधीगाँधी----गंगागंगागंगागंगा | www....mkgandhi....org

    िवनोबा भावे

    २. ‘िजस गाँधी को म2ने जानाʼ

    गाँधीजी को सम  देश बापू कहता रहा, पर मुझे लगता है िक वे िपता से अिधक माता थे।

    जब हम उनका iरण करते हY तब उनके अनेक गुणो ंकी अपेwा उनका वा ही

    अिधक याद आता है। !ाचीन पर§रा के फलcप और नूतन पर§रा के बीजcप एक

    वल माता के समान महापु¨ष के दशQन हमने बापू म� िकए हY।

    *

    'गीता' के कमQयोग का !hw आचरण मYने बापू म� देखा। \थत! के लwण िजस पर लागू

    पड़ते हो ं– ऐसा शरीरधारी ढँूढ़ने पर भी मु«ल से िमलता है, पर¥ु इन लwणो ंके ब�त

    नज़दीक प�ँचे �ए महापु¨ष को मYने अपनी आँखो ंसे देखा है। मY मानता ँ िक मेरा जीवन

    ध| बन गया ोिंक उनके आRय म� रहने का अवसर मुझे िमला। उनकी शरण म�

    जानेवाले !hेक P¬ को ऐसा ही अनुभव होता था िक वह bयं बुरा था, अXा बन गया;

    छोटा था, बड़ा बन गया। उ¦ोनें हज़ारो ंका मह® बढ़ाया।

    *

    गाँधीजी के कुछ िवचार कई लोगो ंको पसंद नही ंआते थे। तब कोई तो उनसे कहते भी थे

    िक अब आप िहमालय पर चले जाय� तो अXा ! यह सुनकर बापू हँसते �ए कहते िक यिद

    आप लोग िहमालय पर जाय�गे तो मY भी आपके पीछे‐पीछे आऊँगा, और यिद यही ंरह�गे

    तो आपका यह सेवक भी यही ंरहेगा। जहाँ bामी वहाँ सेवक। वे तो यह भी कहते िक मेरी

    तप¯ा का िहमालय तो वहाँ है जहाँ अबतक दaर)ता है, जहाँ से शोषण हटाना है, दुख‐

    िनवारण करना है।

    *

    एक नैितक आवाज़ उठे और सारा देश उसका अनुसरण करे, ऐसी कोई सं\था या ऐसा

    P¬ आज देश म� िदखाई नही ंदेता। िविभ° न पwो ंके नेता जनता के समw जाकर एक‐

    दूसरे की बातो ंका ख±न करते हY। इससे जनता म� िकसी !कार की कायQशीलता उ²³

    नही ंहोती। जनता असमंजस की \थित म� है और समझ नही ंपा रही िक कहाँ जाय�, या

    कर� ? देश म� िन´यता, शू|ता और ख़ालीपन भर गया है |

  • गाँधीगाँधीगाँधीगाँधी----गंगागंगागंगागंगा | www....mkgandhi....org

    ३. ‘उजाला हो गया हैʼ

    bरा िमला और परमेर ने गाँधीजी को उठा िलया। परमेर का हेतु समझना मनु¶

    के िलए मु«ल है िफर भी िचंतन Wारा इसका अनुमान िकया जा सकता है।

    हमारे देश को संपूणQ bरा िमले, इससे कुछ कम की इXा यिद ईर की होती तो उसने

    गाँधीजी को हमारे म रहने ही नही ंिदया होता। पर¥ु लगता है िक उसकी इXा है िक

    देश हर !कार की पराधीनता से मु¬ हो जाये। अं ेजो ंके चले जाने से बाहरी दबाव ख़

    �आ। गाँधीजी को उठा लेकर ईर ने हमारी बु को झकझोर िदया है। मानो हम� यह

    कहते हो ंिक अब तुम सब हर तरह से bतं हो, bतं बु स� िवचार करो और सही

    अथQ म� bतं बनो।

    मनु¶, चाहे िजतना महान हो पर ा वह संपूणQ देश को bरा िदला सकता

    है ? अपनी नीदं जैसे मुझे ही लेनी पड़ती है वैसे ही अपना bरा मुझे ही !ा· करना

    चािहए। यह नही ंकहा जा सकता िक परमेर हमेशा हमारे िलए महापु¨ष भेजता रहे तो

    उससे हमारी उ³ित ही होगी। भगवान बार‐बार अवतार नही ंलेता इसे भी उसकी कृपा

    ही समझनी चािहए।

    लोग कहते हY िक गाँधीजी के जाने से चारो ंओर अँधेरा छा गया है। मY कहता ँ िक अभी

    तो उजाला �आ है, आँख� खोिलए तो समझ म� आयेगा। गाँधीजी बार‐बार कहते थे िक मY

    जो कुछ कहता ँ उस पर आप bतं बु से िवचार कीिजए और वह आपको उिचत

    लगे तभी उस पर अमल कीिजए। पर¥ु हम िवचार करने की तक़लीफ़ उठाये िबना उनके

    पीछे‐पीछे चलते रहते थे। इसिलए ईर ने तय िकया िक इन लोगो ंको िवचार करने की

    तक़लीफ़ देनी ही पड़ेगी।

  • गाँधीगाँधीगाँधीगाँधी----गंगागंगागंगागंगा | www....mkgandhi....org

    ४. 'मलयिग3र का गौरव‐गानʼ

    वटवृw की छाया म� छोटे पौधो ंकी वृ कंुिठत हो जाती है, ोिंक उस छोटे पौधे को

    िमलनेवाला पोषण वटवृw ही  हण कर लेता है। इस उदाहरण के Wारा कहा जाता है िक

    बड़े लोगो ंके आRय म� छोटे लोग पनप नही ंसकते।

    पर¥ु बड़े लोग और महापु¨ष म� अंतर होता है। महापु¨ष महा®ाकांwी हो ंपर bाथ¸

    नही ंहोते, वे महान ही होते हY। वे दूसरो ंका पोषण खानेवाले नही ंब¹ दूसरो ंको पोषण

    !दान करनेवाले होते हY। उ¦� वला गाय की उपमा दी जा सकती है। गाय अपना दूध

    िपलाकर बछड़े को पालती‐पोसती है, तभी बछड़ा !ितिदन बढ़ता जाता है। महापु¨षो ंकी

    यही आकांwा होती है िक उनके Wारा सभी की उ³ित हो। दूसरो ंको ऊपर उठाने के िलए

    वे bयं नीचे झुकते हY।

    बापू के जीवन म� हमने गो‐व‐|ाय का उदाहरण देखा है। उनका आRय लेनेवाले सभी

    छोटे थे तो बड़े बन गये, बुरे थे तो अXे बन गये, कठोर थे तो कोमल बन गये। बापू के

    साथ अपने संबंध की गाथा यिद कोई िलखने बैठेगा तो इसी अनुभव को P¬ करेगा।

    किव भी इन शो ंम� गवाही देते हY िक, “िजसके आRय म� रहनेवाले वृw वैसे के वैसे रहते

    हY, वह सुवणQिगaर या रजतिगaर यो ंन हो, उसका गौरव हम नही ंगाते। हम तो गौरव‐गान

    करते हY, उस मलय‐िगaर का िजसके आRय म� सामा| वृw भी चंदन बन जाता है।”

  • गाँधीगाँधीगाँधीगाँधी----गंगागंगागंगागंगा | www....mkgandhi....org

    ल&ुभाई म. पटेल

    ५. ‘दो शU काट िदयेʼ

    कलक�ा म� िहंदू‐मु¼म दंगा चल रहा था। एक उप)वी टोली ने तो गाँधीजी के िनवास

    पर हमला करके दरवाज़े‐खड़िकयो ंके काँच फोड़ डाले और फिनQचर को भी नुकसान

    प�ँचाया। गाँधीजी पर भी ईंट फ� की गई पर¥ु स½ा¾ से उ¦� कोई चोट नही ंआयी।

    इन घटनाओ ंसे वे गहरे मंथन म� डूब गये। असहाय बनकर देखते रहना तो उनका bभाव

    ही नही ंथा। अंत म� उपवास करने का िनणQय उ¦ोनें ज़ािहर िकया।

    उ¦ोनें लोगो ंसे कहा िक अपनी समझ और सुध‐बुध भूले कलक�ा को िठकाने पर लाने

    के िलए मY उपवास कर रहा ँ। मेरा धमQ तो घर‐घर घूमकर उ¦� अपने मतभेद भूल कर,

    एक होकर शांितपूवQक रहने के िलए समझाना है पर¥ु इस उ¢ म� मY यह नही ंकर पाऊँगा,

    इसिलए मYने उपवास का आRय िलया है।

    उपवास के दौरान पानी, सोडा और नीबू का रस लेने का िनणQय उ¦ोनें अपने िनवेदन म�

    P¬ िकया था। राजाजी उस समय बंगाल के गवQनर थे। उ¦� लगा िक गाँधीजी ने नीबू

    का रस लेना bीकार िकया है तो अब भी गाँधीजी को उपवास न करने के िलए समझाने

    का अवकाश है।

    राजाजी गाँधीजी के पास प�ँचे और अपनी दलील� !Mुत करने लगे। लेिकन गाँधीजी को

    उपवास के अितaर¬ कोई अ| मागQ नही ंसूझ रहा था। अंधकार म� से !काश ढँूढ़ने का

    यही मागQ उ¦� उिचत लगता था।

    दलील� करते �ए, अंत म� राजाजी का धीरज खूटने लगा। वे बोल उठेः 'उपवास ही करना

    हो तो यह नीबू का रस िकसिलए ?ʼ

    तुरंत गाँधीजी ने िनमQल बाबू की ओर देखा तथा कहा, 'मेरा िनवेदन आपने पढ़ा तब यह

    यो ंनही ंदेखा ? राजाजी मुझे वष¿ से जानते हY इसिलए उ¦ोनें झट मेरी कमज़ोरी पकड़

  • गाँधीगाँधीगाँधीगाँधी----गंगागंगागंगागंगा | www....mkgandhi....org

    ली, वे िबलकुल सही कह रहे हY। ोिंक मुझम� कही ंगहरी यह आशा थी िक मY उपवास

    से पार उतर जाऊँगा, इसीिलए मYने नीबू का उÀेख िकया था। पर¥ु राजाजी ने मेरी

    दुबQलता पकड़ ली है।'

    इतना कह कर पास पड़ी पेÁल उठाकर 'नीबू का रस” श िनवेदन से काट िदया।

  • गाँधीगाँधीगाँधीगाँधी----गंगागंगागंगागंगा | www....mkgandhi....org

    ६. ‘घी का दीपकʼ

    उस िदन सेवा ाम म� िनh‐संा!ाथQना के पÂात् बापू !वचन करनेवाले थे। गाँधी जयंती

    का िदन होने के कारण आस‐पास के गाँवो ंके लोग भी !ाथQना म� उप\थत थे। गाँधीजी के

    बैठने के िलए एक ऊँचा \थान बनाया गया था। आसपास कोई Rंृगार या सजावट नही ंथी।

    सफेद खादी की गÄी से बैठक सुशोिभत थी। थोड़ी दूरी पर एक घी का िदया जल रहा था।

    गाँधीजी वहाँ आये। उनका ान उस दीपक की ओर गया। उ¦ोनें आँख� बंद की,ं !ाथQना

    शुc हो गई।

    !ाथQना के पÂात्, !वचन करने से पहले बापू ने !Å िकया‐‐'यह दीपक कौन लाया ?ʼ

    बा बोली,ं ‘इसे म� लायी ँ।'

    गाँधीजी ने पूछा, 'कहाँ से मँगवाया ?ʼ

    बा ने कहा—‘गाँव से !ʼ

    wणभर गाँधीजी बा की ओर देखते रहे। दीपक जला के अपने पित के bाÇ और दीघाQयु

    के िलए !भु से !ाथQना करना िहंदु Èी का धमQ है – यह मानकर कMूरबा ने यह दीपक

    मँगवाकर जलाया था। पर बापू ने यह !Å ो ंपूछा, बा समझ न सकी।ं

    िफर गाँधीजी बोले: आज यिद सबसे ख़राब कुछ �आ है तो यह िक बा ने दीया मँगवाकर

    घी का दीपक जलाया है। आज मेरा जÉिदन है, या इसीिलए घी का दीया जलाया गया

    है ? मेरे आस‐पास के गाँवो ंम� रहनेवालो ंका जीवन मY रोज़ देखता ँ। उ¦� रोटी म� चुपड़ने

    के िलए तेल की दो बँूद तक नही ंिमलती और मेरे आRम म� आज घी जल रहा है। मेरा

    जÉिदन है तो ा �आ ? आज के िदन स}मQ करना चािहए, पाप नही।ं ग़रीब िकसान

    को जो चीज़ नही ंिमलती, ‐ उसका इस !कार दु¨पयोग हमसे कैसे िकया जाए ?

  • गाँधीगाँधीगाँधीगाँधी----गंगागंगागंगागंगा | www....mkgandhi....org

    ७. 'भाषण के पहले का कामʼ

    एक बार गाँधीजी दिwण अिÊका से लंदन गये �ए थे। अिÊका के महान िह�ुMानी नेता

    के cप म� उनकी Ëाित लंदन म� भी फैली थी। उस समय ब�त‐से िहंदुMानी लंदन म�

    रहते थे। उनम� कुछ Ìांितकारी युवा थे और कुछ िवqाथ¸। सभी देश की आज़ादी की

    ललक से भरे �ए थे। गाँधीजी की उप\थित का लाभ लेकर उ¦ोनें लंदन म� एक समारोह

    आयोिजत करने का िवचार िकया। समारोह म� बस इतना ही कायQÌम था िक पहले भोजन

    और त²Âात् भाषण।

    युवाओ ंने गाँधीजी से अw‐पद bीकार करने की िवनती की। गाँधीजी ने इस शतQ पर

    bीकृित दी िक भोजन शाकाहारी होगा तथा उसम� मq (शराब) का समावेश नही ंहोगा !

    युवाओ ंने गाँधीजी की शतQ सहषQ मान ली।

    अिÊका‐आंदोलन के िवजेता गाँधीजी अw के cप म� आय�गे यह सोचकर युवा वगQ

    अित !स° न था और एक संुदर भाषण की अपेwा कर रहा था । सभी लोग उाह से काम

    म� लग गये। थािलयाँ साफ़ करना, साग‐भाजी काटना आिद कायQ उ¦ोनें bयं ही बाँट

    िलए। गाँधीजी भी समारोह के समय से लगभग ६ घंटे पहले प�ँच गये और उन सब युवको ं

    के साथ काम करने लगे। िकसी को पता तक न चला िक समारोह के अw गाँधीजी भी

    उ¦ी ंके साथ बैठ कर बतQन साफ़ कर रहे हY।

    समारोह का समय होने आया। !मुख कायQकताQ और नेतागण गाँधीजी के bागत के िलए

    दरवाज़े के पास आ खड़े �ए। पर¥ु गाँधीजी नही ंआये। िकसी ने सुझाव िदया िक िम.

    गाँधी को आज िवलs हो रहा है अतः हम पहले भोजन की Pव\था देख ल�। इस उÄे

    से एक नेता अंदर गये। एक दुबला युवा अ| युवको ंके साथ बैठा रसोई का काम कर रहा

    था, उस पर xिy पड़ते ही, अचंिभत नज़रो ंसे वे एक‐टक देखते रह गये। दूसरो ंको संदेह

    �आ िक कही ंकोई सी.आई.डी. तो नही ंघुस गया है ? आिख़र िहÍत करके उ¦ोनें पूछा‐

    'ये कौन हY?ʼ

  • गाँधीगाँधीगाँधीगाँधी----गंगागंगागंगागंगा | www....mkgandhi....org

    'िम. गाँधी, आज के हमारे समारोह के अw bयं यहाँ हY। उस नेताने लÎत होते �ए

    कहा।'

    कानोकंान बात फैली और समारोह के िलए पधारे सभी को ात हो गया िक हम सब

    िजनकी !तीwा कर रहे हY, वे अितिथ तो रसोई म� काम कर रहे हY। सभी के िदल म� खलबली

    मच गयी।

    'अरे, िम. गाँधी से ऐसे काम करवाने चािहए या ?ʼ िकतने ही बोल पड़े।

    Ìांितकारी युवा गाँधीजी का यह तरीका देख िवiत थे। वे उनके पास दौड़े और हाथ

    जोड़कर काम बंद करने की िवनती करने लगे।

    गाँधीजी ने कहा, 'नही,ं अब पूरा कायQ करके ही उठ� गे।'

    कायQ पूरा �आ। िफर थािलयाँ परोसी गईं। गाँधीजी ने परोसने म� भी भाग िलया और भोजन

    के पÂात् अwपद से भाषण भी िदया।

  • गाँधीगाँधीगाँधीगाँधी----गंगागंगागंगागंगा | www....mkgandhi....org

    ८. एक अनोखा धोबी

    दिwण अिÊका म� गाँधीजी के नेतृÏ म� िह�ुMािनयो ंने सhा ह आंदोलन िकया था। बड़ी

    संËा म� लोग जेल गये। उनम� से कुछ ऐसे भी थे िजनके कुटुs की देखभाल करनेवाला

    उनके िसवाय कोई न था। ऐसे पaरवारो ं के िलए गाँधीजी के आRम टालpॉय फामQ म�

    Pव\था की गई।

    गाँधीजी जेल से छूटकर आने के बाद काम म� ब�त PM रहते थे िफर भी समय

    िनकालकर इन पaरवारो ंकी बहनो ंसे िमलना, उ¦� आM करना म� चूकते नही ंथे। उनके

    घरेलू काय¿ म� भी कई बार मदद करते थे।

    एक िदन गाँधीजी अपने कपड़े धोने नदी की ओर जा रहे थे। छोटे‐छोटे बालको ं की

    माताओ ंकी तकलीफ़ का ख़याल कर वे उनके पास जाकर बोले, ‘आज आप सबके कपड़े

    मY धो डालँूगा। नदी काफ़ी दूर है और आपको इन न¦े‐मु³ो ंको संभालना होता है। बÑो ं

    के मलʼ‐मू वाले कपड़े हो ंतो वह भी मुझे दे दीिजए।'

    ‘अरे, गाँधीभाई को भला ऐसे कपड़े धोने के िलए िदये जा सकते हY ा ! यह तो देर‐सबेर

    हम ही धो डाल�गी।' !ेम और संकोचिमिRत आीयता से बहन� बोली।ं

    पर गाँधीजी हार मानने वाले नही ंथे। उ¦ोनें कपड़े ले जाने का आ ह जारी रखा। बहनो ं

    के संकोच का पार न था। पर¥ु अंत म� !ेम की िवजय �ई। सारे कपड़ो ंका एक बड़ा गÒर

    बाँधा और पीठ पर लादकर गाँधीभाई नदी की ओर चल पड़े।

    वहाँ प�ँचकर !ेमपूवQक सारे कपड़े धोये, नदीतट पर सुखाये। उनकी तह करके 'फामQʼ म�

    ले आये और घर‐घर घूमकर बहनो ंको उनके कपड़े प�ँचाये। ऐसे धोबी Wारा धुले वÈ

    पहनते �ए बहनो ंने कैसी‐कैसी आीय भावनाएँ अनुभव की होगंी।

  • गाँधीगाँधीगाँधीगाँधी----गंगागंगागंगागंगा | www....mkgandhi....org

    ९. 'ग़रीबी से काँप रहा ]ँʼ

    िदÀी म� कड़ाके की सद¸ के िदन थे। गाँधीजी उस समय िबरला‐भवन म� रहते थे। सुबह

    की !ाथQना के िलए वे ज़Óी उठते और हाथ जम जाये ऐसे ठंडे पानी से अपना मँुह धोते

    थे। इस x को देखने वाले के मन म� तुरंत यह Ëाल आता िक बापू गमQ पानी ल� तो

    िकतना अXा ! िहंदुMान की ग़रीबी से िनर¥र )िवत उनका अंतर कहता िक पानी गमQ

    करने का बोझ मY अपने इस ग़रीब देश पर ो ंलादँू ?

    ऐसी ही सद¸ म�, एक िदन सुबह की !ाथQना के बाद वे काम म� जुट गये। डाक से आयी

    िचिÒयो ंके ख़ाली िलफ़ाफ़ो ंका ढेर उ¦ोनें कमरे म� देखा। हाथ म� कY ची लेकर िलफ़ाफ़े

    काटने लगे। एक ओर का कोरा कागज़, एक पर एक रखकर वे िलखने के िलए पैड बना

    रहे थे। इस ग़रीब देश म� कागज़ यो ंबेकार चला जाये –यह उ¦� सहन नही ंहो रहा था।

    लेिकन िलफ़ाफ़े को काटते �ए उनके हाथ काँप रहे थे। इतनी ठंडी म� गाँधीजी यह काम

    बंद कर द� तो अXा – यह सोचकर एक ने उनसे कहा, 'बापू ! आप सद¸ से काँप रहे हY।'

    गाँधीजी: 'नही ं! सद¸ से नही ंकाँप रहा ँ। कुदरती सद¸ तो शरीर के िलए लाभ!द है। मY

    तो िहंद की मूक जनता की ग़रीबी और िनराधारता के िवचार से काँप रहा ँ। इस ग़रीबी

    का अंत कब आयेगा ?ʼ

    िलफ़ाफ़े काटने का अपना कायQ उ¦ोनें जारी रखा।

  • गाँधीगाँधीगाँधीगाँधी----गंगागंगागंगागंगा | www....mkgandhi....org

    िमली )ेहाम पोलाक

    १०. जोहनेसबगD की सभा

    जोहनेसबगQ की एक शाम। भारतीयो ंतथा गाँधीजी के !ित समभाव रखनेवालो ंकी एक

    िवशाल सभा का आयोजन था। हॉल खचाखच भरा था, ितल‐भर जगह नही ंबची थी और

    लोगो ंको दरवाजे के बाहर तथा बरामदे म� खड़े रहना पड़ा। गाँधीजी मुË व¬ा थे। वे

    जहाँ‐जहाँ जाते, हर जगह उ¦� सुनने के िलए लोग उमड़ पड़ते थे। सभा के समा· होने

    पर गाँधीजी Pासपीठ से उतरे और कुछ लोगो ंके साथ कुछ बात� की।ं िफर मY और वे

    साथ‐साथ बाहर िनकले। हम दरवाजे तक प�ँचे िक मYने अंधेरे म� खड़े एक P¬ को

    देखा। ऐसा लगा िक गाँधीजी की नज़र भी उस पर पड़ी, ोिंक वे सीधे उस आदमी के

    पास गये, उसके हाथ पर अपना हाथ धरा और शांत, b\थ तथा गंभीर आवाज़ म� उसे

    कुछ कहने लगे। वह wणभर को िझझका, िफर मुड़कर गाँधीजी के साथ चलने लगा। मY

    उनके दूसरी ओर चलने लगी। इस तरह चलते �ए हमने पूरा मुहÀा पार िकया। वे दोनो ं

    ा बात� कर रहे थे, यिद मY सुन पाती तो भी समझती नही।ं पर मY वह सुन ही नही ंपा रही

    थी ोिंक दोनो ंब�त ही धीमी आवाज़ म� बोल रहे थे। मुहÀे का छोर आया तो उस

    आदमी ने गाँधीजी के हाथ म� कुछ पकड़ाया और चलता बना। इस पूरी घटना से मY कुछ

    P  हो गई। उसके जाने पर मYने गाँधीजी से पूछा: 'इसे कया चािहए था – कुछ ख़ास माँगने

    आया था?ʼ

    गाँधीजी बोले, 'हाँ ! वह मेरी जान लेने आया था।'

    'आपकी जान लेने? मY चौकं उठी, ‘आपकी जान लेने ? िकतना भयानक ! ा वह पागल

    है?ʼ

    “नही,ं वह यह मानता है िक मY अपने लोगो ंके साथ दग़ा कर रहा ँ। मY सरकार के षड़यं

    म� जुड़कर भारतीयो ंका अिहत करना चाहता ँ, िफर भी उनका िम और नेता होने का

    िदखावा करता ँ।”

  • गाँधीगाँधीगाँधीगाँधी----गंगागंगागंगागंगा | www....mkgandhi....org

    “पर¥ु ऐसा मानना िनरी दुyता है, यह भयानक बात है।” – मY ज़ोर से बोली, “इसे तो पुिलस

    के हाथो ंपकड़वाना चािहए। आपने इसे इस तरह जाने यो ंिदया ? पागल ही होगा वह।”

    गाँधीजी ने कहा, “नही ंपागल नही ं है, मा वहम से भरा �आ है। आपने देखा िक मYने

    उसके साथ बात� की ंउसके बाद उसने छुरी मेरे हाथ म� दे दी। उसने इसी छुरी का वार

    मुझ पर करने का िनणQय िकया था।”

    “उसने यिद अंधेरे म� !हार िकया होता तो....मY....”

    गाँधीजी बीच म� ही बोल उठे : “इतना घबराओ मत। उसके मन म� तो था िक इसे माcँ,

    पर ऐसा करने की पूरी िहÍत उसम� नही ंथी। उसने मुझे जैसा माना, यिद मY उतना बुरा

    होऊँ तो मारने लायक ही माना जाऊँगा। अब वह इस िवषय म� अिधक िचंता नही ंकरेगा।

    यह िकÔा तो यही ंख़ �आ। मY नही ंमानता िक वह अब दोबारा मुझे घायल करने का

    !यÕ करेगा। यिद मYने उसे पुिलस के हाथो ंपकड़वाया होता तो वह मेरा शु बन जाता।

    पर अब तो वह मेरा िम बनेगा।”

  • गाँधीगाँधीगाँधीगाँधी----गंगागंगागंगागंगा | www....mkgandhi....org

    ११. '_ी का `थानʼ

    एक अ| !संग म� Èयो ंकी \थित से संबंिधत चचाQ चल रही थी, उसम� गाँधीजी ने कहा

    िक पिÂम म� Èी को जो \थान िमला है उसकी अपेwा ऊँचा \थान पूवQ म� उसे िदया गया

    है।

    मYने कहा: 'यह बात मेरे गले नही ंउतरती। पूवQ ने ही इसे पु¨षो ंका ताबेदार बनाया है।

    वहाँ तो Èी के अपने P¬गत जीवन जैसा कुछ भी xिyगत नही ंहोता।

    गाँधीजी बोले, 'आप भूल रही हY। पूवQ ने Èी को पू माना है।'

    मY बोली, 'पर¥ु पूवQ म� मुझे यह पूजी जाती नही ंिदखती। मY तो इ¦� िकसी न िकसी पु¨ष

    की भोगवृि� को संतुy करने म� लगी देखती ँ।'

    गाँधीजी ने कहा, 'जीवन के मह®पूणQ िवषयो ंम� वह पु¨षो ंके समान और उससे बढ़ी‐चढ़ी

    भी है। छोटी‐छोटी बातो ंम� कदािचत् वह पु¨ष की सेवा करती होगी।'

    मYने पूछा: 'पर¥ु पु¨ष कुस¸ पर बैठकर खाये और Èी पीछे खड़ी रहे; ऐसा aरवाज हो तो,

    ा कहा जा सकता है भला िक पु¨ष Èी को अपने समान मानता है ?ʼ

    गाँधीजी ने सहज iत के साथ कहा: 'यह सच है िक पु¨ष उस आदशQ तक नही ंप�ँचे

    हY। पर¥ु लगभग सभी पु¨षो ंके मन म� इसका भान भी रहता ही है।'

  • गाँधीगाँधीगाँधीगाँधी----गंगागंगागंगागंगा | www....mkgandhi....org

    उमाशंकर जोशी

    १२. ‘बचत पर नज़रʼ

    यरवडा जेल म� गाँधीजी के कपड़े उनके साथी शंकरलालभाई धोते थे। एक िदन गाँधीजी

    ने धीरे से उनसे कहा, 'कपड़े धोने का काम रहने दो, म� धो लँूगा।'

    शंकरलालभाई ने पूछा: 'कपड़े ठीक नही ंधुल रहे हY ा ?ʼ गाँधीजी ने संतोष से कहा:

    'कपड़े तो बराबर धुलते हY, पर मुझे लगता है िक साबुन कुछ Öादा लग जाता है। मY इतना

    साबुन इससे दुगुने िदन चला लँू।'

    शंकरलालभाई ने कहा: 'अब िकफ़ायत से इMेमाल कcँगा।' उ¦� लगता था िक साबुन

    भले ही थोड़ा Öादा लगे पर कपड़ा बराबर bX होना चािहए। अब उ¦� िमतPियता की

    xिy िमली।

    एक सुबह गाँधीजी कहने लगे : 'शंकरलाल, आज िसगड़ी नही ंसुलगाना। पानी गरम नही ं

    करना है।'

    शंकरलालभाई ने पूछा: 'ो ं?ʼ

    गाँधीजी ने कहा: 'रात को कमरे म� लालटेन रहती है। मुझे िवचार आया िक उस पर पानी

    भर कर मग रख� तो सुबह तक पानी गमQ हो जायेगा। !योग सफल �आ। पानी मेरे पीने

    िजतना गमQ हो गया है।'

    शंकरलालभाई को बुरा लगा। वे बोले, 'भोर म� ज़Óी उठकर िसगड़ी सुलगाने म� मुझे Rम

    पड़ रहा होगा, यह मान कर तो आप ऐसा नही ंकर रहे हY ना ? मुझे लगता है मY आपको

    संतोष !दान नही ंकर सकता।'

    गाँधीजी ने कहा : ‘आप तो अXी तरह तैयार करते रहे हY। पर यह तो एक !योग करके

    देखा िक इस तरह सुलगते लालटेन पर पानी गमQ कर ल� तो कैसा रहे ? इतना कोयला बच

    गया। इसम� बुरा मानने जैसी कोई बात नही ंहै।'

  • गाँधीगाँधीगाँधीगाँधी----गंगागंगागंगागंगा | www....mkgandhi....org

    १३. ‘राजा के अितिथ'

    १९३१ म� गोलमेज पaरषद म� शािमल होने बापू लंदन गये थे। एक िदन राजा पंचम जॉजQ ने

    सभी सद¯ो ंके िलए सां‐भोज का आयोजन िकया था। िह�ुMान के वज़ीर सर सेमुअल

    होर गाँधीजी को िनमंित करने के बारे म� िचंितत थे। पहला तो यह िक राजा ऐसे बाग़ी से

    भ�ट कर� गे ? दूसरा, भ�ट करे तो भी गाँधीजी की वेशभूषा समारंभ Ìे अनुcप नही ंहोगी।

    उ¦ोनें राजा से बात की तो राजा ने पहले तो Ìोिधत होकर कहा: 'ा ? मेरे वफ़ादार

    अिधकाaरयो ंपर हमला करने के इसके कुकृh के बाद भी, इस बाग़ी फ़क़ीर को अपने

    महल म� बुलाऊँ ?ʼ थोड़ी देर बाद उ¦ोनें िफर से 'खुले घुटने वाले और यो¾ िलबास रिहत

    छोटे आदमी' के !ित अपनी अ¨िच जतायी। परंतु अंत म� तय �आ िक पहनावे के बारे म�

    कोई शतQ रखे िबना गाँधीजी को िनमंित िकया जाय।

    समारंभ म� उिचत समय पर राजा के समw गाँधीजी को लाने का काम वज़ीर ने bयं अपने

    िज़Íे रखा। उ¦ोनें गाँधीजी को राजा से िमलवाया और पaरचय करवाया। वह wण ब�त

    किठन था। गाँधीजी की बग़ावत भूलना राजा के िलए संभव न था। िपछला पूरा वषQ गाँधीजी

    ने िह�ुMान म� !चंड सhा ह चलाया था। पर¥ु दोनो ंएक बार बात� करने लगे तो बड़ी

    सरलता से उनकी गाड़ी चलने लगी। राजा सदय मनु¶ थे और गाँधीजी की

    Pावहाaरकता का पूछना ही ा ! बातचीत के दरिमयान एक बार राजा की xिy गाँधीजी

    के घुटनो ंपर wण‐भर के िलए ¨की, तब वज़ीर के सीने म� धड़कन बढ़ गई।

    बातचीत पूरी होने आयी। पंचम जॉजQ अपने दाियÏ को समझनेवाले राजा थे। िवदाई के

    समय उ¦ोनें गाँधीजी को चेतावनी दी : 'iरण रखए िम. गाँधी, अपने सा¢ा पर कोई

    आÌमण मY बदाQ× नही ंकcँगा।'

    िहंद के वज़ीर की साँस अटक गई िक अब ट¤र होगी ा ?

    पर¥ु गाँधीजी की सÎनता ने बात बना ली। उ¦ोनें उ�र िदया: 'आप जैसे माननीय का

    आितØ अनुभव करने के पÂात् मुझे आप के साथ राजनैितक िववाद म� नही ं पड़ना

    चािहए।'

  • गाँधीगाँधीगाँधीगाँधी----गंगागंगागंगागंगा | www....mkgandhi....org

    और िमता के वातावरण म� दोनो ंने एक दूसरे से िवदा ली।

    िहंद के वज़ीर ने छुटकारे की साँस ली।

  • गाँधीगाँधीगाँधीगाँधी----गंगागंगागंगागंगा | www....mkgandhi....org

    १४. ‘िकस मँुह से यह पी सकता ]ँ ?ʼ

    १९४७ की गिमQयो ंम� िबहार म� फैले क़ौमी दावानल को शांत करने के िलए बापू कायQरत

    थे। वहाँ से िद ली आये। उन िदनो ंउनकी खुराक ब�त कम हो गई थी।

    एक सुबह मनुबहन ने भोजन के समय एक Ùाला आमरस िदया। बापू ने कहा, मालूम

    करके, पहले मुझे बताओ िक आम का दाम कया है?

    मनुबहन ने सोचा िक बापू िवनोद कर रहे हY। वह तो ज़cरी लेखो ंकी नक़ल करने म� जुट

    गई। थोड़ी देर बाद देखा तो बापू ने रस नही ंिलया था। उसने उ¦�  हण करने के िलए

    कहा।

    बापू बोले : मY तो समझ रहा था िक तू आम की क़ीमत पूछकर ही आयेगी। आम भ�ट म�

    िमला हो, तो भी तुझे उसका दाम जानने के पÂात् ही मुझे खाने देना चािहए। यह तो तूने

    िकया नही ंऔर पूछने पर भी जवाब नही ंिदया। आम का फल, मYने सुना है िक एक नग

    दस आने म� िमलता है। यह फल खाये िबना मY जी सकता ँ। ऐसे फल लेने से मेरे शरीर

    म� ल बढ़ता नही ंउÚे घटता है। ऐसी असÛ महँगाई और तक़लीफ़ के समय म� तूने मुझे

    चार आम के रस से अXा‐ख़ासा भरा िगलास िदया अथाQत् अढ़ाई ¨पये का वह Ùाला

    �आ। भला मY िकस मँुह से यह पी सकता ँ ?

    उसी समय बापू के दशQन करने एक‐दो िनरािRत बहन� अपने बालको ंके साथ आईं। बापू

    ने तुरंत दो कटोaरयो ंम� दोनो ंबालको ंको रस पीने के िलए दे िदया। उ¦ोनें आM की

    साँस ली। मनुबहन से कहने लगे : ईर मेरा सहायक बना �आ है – इसका यह साwात्

    उदाहरण है। !भु ने इन बालको ंको िभजवाया और वह भी जैसे बालको ंकी मY इXा

    रखता था वैसे ही बालक आये। ज़रा देख तो तू, ईर की कैसी कृपा है।'

  • गाँधीगाँधीगाँधीगाँधी----गंगागंगागंगागंगा | www....mkgandhi....org

    १५. ‘ग़रीबो ंकी बाʼ

    एक बार बापू सेवा ाम म� थे, तब बा दूसरे शहर से आने वाली थी।ं सब पूछने लगे, बा कब

    आय�गी ? िकस गाड़ी से आय�गी ?

    सूरत की ओर गई �ई थी,ं वहाँ से मंुबई प�ँच कर, वधाQ आ सकती थी।ं पर¥ु यह राMा

    लंबा और महँगा था। सूरत जाकर 'ता·ी वैली' टo ेन म� भुसावल के राMे से आने पर ख़चQ

    कम लगेगा।

    एक बहन िवशेष cप से बा से िमलने के िलए ¨की �ई थी। मंुबई की ओर से आनेवाली

    गाड़ी का समय हो गया था, अतः उ¦ोनें पूछा, 'बा अभी आ जाय�गी ना ?ʼ

    बापू ने कहा, 'यिद वे धनवानो ंकी बा होगंी तो अभी आ जाय�गी और ग़रीबो ंको बा होगंी

    तो सूरत होकर 'ता·ी वैली' से सुबह आय�गी।'

    और बा, ग़रीबो ंकी बा, सचमुच दूसर िदन सुबह आयी।ं

    इस अनोखे द§ती के िम हॉरेस एलेÜ�डर ने अपनी िटÝणी देते �ए कहा िक बा और

    बापू एक घर म� हो,ं पास‐पास के कमरे म� हो,ं एक दूसरे से ख़ास कुछ वोलत नही ंतो भी

    हम� सदैव लगता रहता है िक दोनो ंएक‐दूसरे को बड़ी गहराई से समझते हY।

  • गाँधीगाँधीगाँधीगाँधी----गंगागंगागंगागंगा | www....mkgandhi....org

    १६. 'अनमोल अधेलाʼ

    खादी के काम के िलए चंदा इकÒा करने गाँधीजी उड़ीसा की याा पर थे।

    एक सभा म� गाँधीजी बैठे थे िक एक अh¥ वृा बहन आई। उसके बाल ेत पूनी जैसे

    थे, कमर झुकी थी। bयंसेवको ंसे झगड़ कर वह गाँधीजी के पास आ प�ँची थी।

    ‘आपके दशQन करना है' – कहकर उसने गाँधीजी के चरणो ंम� िगरकर नमzार िकया।

    अपनी अंटी से एक अधेला िनकालकर गाँधीजी के चरणो ंम� धरा। त²Âात् शांत‐भाव से

    लौट गई।

    वृा Wारा रखा गया अधेला गाँधीजी ने त²रता से उठाया और अपनी ट�ट म� खोसं िलया।

    सारा िहसाब रखनेवाले सेठ जमनालाल बजाज पास ही बैठे थे, बोले : 'यह अधेला मुझे दे

    दीिजए।' गाँधीजी ने कहा, 'यह आपको नही ंिदया जा सकेगा।

    जमनालालजी : 'चरखा‐संघ का हज़ारो ंका चेक मY लेता ँ और इस अधेले के िलए आप

    मेरा िवास नही ंकर रहे हY ?ʼ

    गाँधीजी बोले : 'यह अधेला तो अनमोल है। आदमी के पास लाखो ंहो ंउसम� से हज़ार दे दे

    तो कोई बड़ी बात नही।ं पर¥ु इस वृ, ग़रीब फटेहाल बहन ने यह अधेला िदया है, उसका

    दय िकतना उदार होगा ! उसका यह अधेला तो करोड़ो ंसे भी बढ़कर है |

  • गाँधीगाँधीगाँधीगाँधी----गंगागंगागंगागंगा | www....mkgandhi....org

    १७. 'पहले मेरा िसर फोड़ो !'

    नागपुर म� महासभा का अिधवेशन चल रहा था। गाँधीजी अपनी झोपंड़ी म� वÀभभाई

    आिद के साथ बात� कर रहे थे। झोपंड़ी के बाहर एक मारवाड़ी पित‐पÕी दशQन करने हेतु

    अंदर आना चाहते थे। bयंसेवको ं से उनकी झकझक हो रही थी। वÀभभाई ने उ¦�

    अंदर आने देने के िलए कहा।

    तभी एक दूसरा bयंसेवक दौड़ता �आ आया और बंगाल‐छावनी म� उप)व होने का

    समाचार लाया। गाँधीजी तेज़ी से उठकर खड़े हो गये। ताज़ी हजामत की �ई थी। सूयQ की

    िकरणो ंसे उनका माथा चमक रहा था। नज़दीक पड़ी �ई एक चादर कंधे पर डाल कर वे

    चल पड़े। बड़ी मु«ल से महााजी के दशQन की आस पूरी कर पानेवाली मिहला उ¦�

    जाते देख बोली, ‘आप ¨िकए, मुझे बात करनी है।‘ इतना कह उसने महााजी के चादर

    का िकनारा पकड़ िलया। महााजी तो जाने की ज़Óी म� थे, चादर वही ंछोड़ आगे बढ़

    गये। वÀभभाई मज़ाक म� बोल उठे: 'ऐसे !संग म� तो वे अपनी धोती भी फ� क कर दौड़ते

    हY।'

    कड़कड़ाती सद¸ म� गाँधीजी बंगाल‐छावनी म� प�ँच गये। वहाँ तो अ½ुत x था। गाँधीजी

    के असहयोग के !Mाव का िवरोध करने दासबाबू कलक�ा से लगभग २५० !ितिनिधयो ं

    को अपने ख़चQ पर लाये थे। Rी बनज¸ गाँधीजी के !Mाव के पw म� थे। दोनो ं के

    कायQकताQओ ंके बीच झड़प �ई थी।

    गाँधीजी उस टोली म� जाकर एक pूल पर खड़े हो गये। बंगािलयो ंके अितaर¬ अ| सभी

    को पहले वहाँ से चले जाने के िलए कहा। िफर बंगािलयो ंसे बोले : 'तकरार का मूल मY ँ।

    िसर फोड़ना है तो पहले मेरा िसर फोड़ो।'

    कुछ देर म� सभी शांत हो गये। दासबाबू के साथ उ¦ोनें वही बात की। पaरणाम यह �आ

    िक दासबाबू, जो उनके िव¨ थे, के Wारा ही !Mाव !Mुत करवाया।

  • गाँधीगाँधीगाँधीगाँधी----गंगागंगागंगागंगा | www....mkgandhi....org

    १८. ‘दोनो ंचुपचाप बैठे रहे'

    बापू यरवडा जेल म� थे तब बा उनसे मुलाकात करने आईं। िनिÂत समय पर जेल‐

    अिधकारी की उप\थित म� उनकी मुलाकात का बंदोबM िकया गया।

    बा‐बापू एक‐दूसरे के हाल‐चाल पूछने लगे, तो जेल अिधकारी को लगा िक इन पू

    P¬यो ंके िमलने के समय यिद मY यही ंखड़ा रँगा तो वे खुलकर बातचीत नही ंकर

    सक� गे। अतः थोडा इधर‐उधर हो जाऊँ। यह सोचकर वे दूर तक टहलने चले गये।

    जेल म� मुलाकात का समय था, आधा घंटा। समय पूरा �आ तो जेल अिधकारी हँसते �ए

    वापस लौटे। उ¦ोनें बापू से पूछा : ‘आपकी बातचीत अब तक पूरी हो गई होगी।'

    गाँधीजी : 'बातचीत ? आपके समw एक‐दूसरे का हाल‐चाल पूछा, बस वही। आपके जाने

    के बाद हम दोनो ंने एक श तक का उÑारण नही ंिकया।'

    जेल अिधकारी : 'ऐसा यो,ं बापू ?ʼ

    गाँधीजी : 'आप जेल के िनयम तो जानते हY। जेल अिधकारी की गैरहािज़री म� जेल का क़ैदी

    मुलाकाती के साथ बात नही ंकर सकता। आप बैठे थे तब तक ख़बर पूछी, पर आपके

    जाने के बाद हम दोनो ंशांत बैठे रहे हY।'

  • गाँधीगाँधीगाँधीगाँधी----गंगागंगागंगागंगा | www....mkgandhi....org

    १९.ʼमहाcाʼ न कहोʼ

    मंुबई के एÞßयर िथयेटर म� एक सभा का आयोजन, मलबार संकट िनवारण के हेतु

    िकया गया था। गाँधीजी भी उस सभा म� उप\थत थे। Rी जयकर का भाषण �आ और

    गाँधीजी को ात हो गया िक सभा उनका सÍान करने के िलए भी रखी गयी है। िविभ° न

    राजनीितक दलो ंतथा िविशy जाितयो ंका !ितिनिधÏ करते �ए, सÎन एक के बाद एक

    खड़े होकर गाँधीजी के !ित अपना àेह‐आदर !कट करने लगे। Rी जमनादास

    Wाaरकादास की बारी आई। वे भी गाँधीजी के !ित आदर और !ेम‐भाव म� िकसी से पीछे

    नही ंथे, इसी बारे म� वे कह रहे थे िक सभा म� से िकसी ने आवाज़ दी : 'महााजी किहए,

    गाँधीजी नही।ं

    जमनादासजी ने सरल भाव से समझाया िक गाँधीजी को महाा श ¨चता नही ंहै, यह

    उ¦ोनें bयं मुझे बताया है। अतः मY उनका िदल दुखाना नही ंचाहता।

    उ¦ोनें अपना भाषण आगे शुc िकया, िफर पुकार आयी। दोबारा उ¦ोनें खुलासा िकया।

    अ| सभी के भाषण �ए। अंत म� गाँधीजी के बोलने का समय आया। उ¦ोनें िबंधे दय

    से कहा, 'दो‐तीन भाइओ ंने जमनादासभाई तथा सभा के !ित अिवनय िकया है। भाई

    जमनादास ने जो कहा वह सच है। ‘महाा' के नाम से अनेक कपट के काम �ए हY। मुझे

    'महाा' श से बदबू आती है। जब कोई आ ह करता है िक सभी मुझे ‘महाा' कह�

    तब तो मY ब�त बेचैन हो जाता ँ। िजतना मY ‘महाा' श के उपयोग की मनाही करता

    ँ उतना ही अिधक उपयोग होता है। यह मY जानता ँ, इसिलए केवल जीभ से कहकर

    बैठ जाना मेरे िलए काफ़ी नही ंहोता। आRम म� तो मेरे या िकसी और के समw इस श

    का !योग न करने की आा है। भाई जमनादास ने तो मेरे िलए बड़े !शंसाक शो ंका

    !योग िकया, पर यिद उ¦ोनें कहा होता िक गाँधी जैसा दुखकारक आदमी कोई नही ंहै,

    तो भी उ¦� रोकने का िकसी को अिधकार नही।ं'

  • गाँधीगाँधीगाँधीगाँधी----गंगागंगागंगागंगा | www....mkgandhi....org

    उनके इतना कहते ही सामने की गैलरी म� से एक भाई खड़े �ए, हाथ जोड़ !णाम करके

    िसर झुकाया। गांधीजी ने कहा, 'इलना काफ़ी है। लेिकन अभी और दो‐एक भाई हY, वे

    माँफ़ी नही ंमाँग�गे ?

    अ| दो P¬ उठे और माँफ़ी माँगी। गाँधीजी आगे बोलने लगे। तब तक एक और भाई

    भी खड़े �ए और माँफ़ी माँगी।

    गाँधीजी ने शांित का अनुभव िकया, बोले : ‘आपने जमनादासभाई का अनादर िकया, इससे

    मुझे अितशय दुख �आ। लेिकन आपने िवनयपूवQक wमा माँग ली तो यह दुख सुखcप

    बन गया। इन माँफ़ी माँगनेवालो ंका तो भला होगा ही, पर हम सब जो इस x के साwी

    हY, का भी भला होगा।'

  • गाँधीगाँधीगाँधीगाँधी----गंगागंगागंगागंगा | www....mkgandhi....org

    काका कालेलकर

    २०. ‘गीता कंठ`थ कीʼ

    स§ूणQ 'भगवáीता' कंट\थ करने का चाव बापू के मन म� दिwण अिÊका से ही था। वहाँ

    सुबह दातुन करते समय दीवार पर 'गीता' के दो‐तीन âोक िलख रखते थे और याद

    करते थे।

    यरवडा म� अXी सुिवधा और फुरसत देखकर बापू ने शु उÑारण के साथ ‘गीता' के

    âोक कंठ\थ करने का िनÂय िकया। िफर मुझसे बोले, 'काका ! ‘गीता' के âोको ंका

    उÑारण मुझे सुधारना है। आRम के बालको ंको पढ़ाते �ए मYने तुã� देखा है। तुãारे

    उÑारण पर मY मुä ँ। जहाँ मेरा उÑारण ग़लत हो वहाँ मुझे टोकना। मY बार‐बार

    बोलकर सुधार लँूगा। मY 'बड़ा' ँ, 'महाा' ँ। मुझे भला मेरी ग़लती कैसे बतायी जाये, ‐

    यह सब सोचकर यिद मेरे उÑारण म� कमी रहने दोगे तो यह पाप तुम पर होगा। मुझे

    िवqाथ¸ समझो और एक भी भूल रहने तक सुधारते जाओ।'

    हमारी गाड़ी ठीक चलने लगी। जहाँ कोई ख़ामी बताऊँ, वही ंपुMक म� प�िसल से महीन

    िनशान लगाते और उस िहÔे को बार‐बार सुनते। एक ही पं¬ या श को अनेक बार

    बोलने म� मुझे कभी ऊब नही ंहोती। ोिंक मY जानता ँ िक बार‐बार सुनाकर कान भर

    देना ही शु उÑारण िसखाने का !ाकृितक िनयम है। बालक इसी !कार से उÑारण

    और उसके साथ लहजा भी सीखते हY।

  • गाँधीगाँधीगाँधीगाँधी----गंगागंगागंगागंगा | www....mkgandhi....org

    २१. 'चालीस हज़ार वापस लौटाएʼ

    आRम के !ारåक िदनो ंकी बात है। िगरजाशंकर जोशी अÞर वहाँ आया करते थे।

    एक िदन बापू ने उनसे कहा, 'आप िनयिमत आते हY तो आRम के बालको ंको संzृत यो ं

    न पढ़ा द� ?ʼ अतः वे बालको ंको संzृत पढ़ाने लगे।

    वे फिलत ोितषी म� अXी पैठ रखते थे। अहमदाबाद के ब�त‐से धनवानो ंको उनकी

    इस िवqा के !ित िवास‐भाव था। सोमालाल नामक एक पैसेवाले के मन म� बापू को कुछ

    दान देने की भावना जगी तो जोशी के साथ िवqालय का मकान बनवाने के िलए चालीस

    हज़ार ¨पये भेजे। उन िदनो ंहम अहाते म� तंबू बनाकर और चटाई की झोपंड़ी म� रहते थे।

    मकान बनवाने का िवचार कर रहे थे िक उससे पहले अहमदाबाद म� इ°æुए़°़जा का

    !कोप फैल गया। रोज़ सौ‐दो सौ की मौत होने लगी और चारो ंओर हाहाकार मच गया।

    बापू ने जोशी से कहा, 'इस वषQ तो हम मकान नही ंबनवाय�गे और िवqालय का मकान भी

    नही ंबन सकेगा इसिलए सोमालालभाई के िदये पैसे वापस ले जाइए।' जोशी बोले, ‘उ¦ोनें

    पैसे वापस नही ंमाँगे हY।' बापू ने कहा, 'उससे या होता है ? िजस काम के िलए िदए वह

    काम अभी होनेवाला नही,ं तो िफर यह पैसा िकसिलए संभाल� ?ʼ जोशी िफर बोले, 'अभी

    नही ंतो भिव¶ म� कभी, छाालय बनवाय�गे तो सही ? उस वè पैसा काम आ जायेगा।'

    बापू का उ�र था, 'हाँ, पर¥ु जब बनवाने का !संग आयेगा तब कोई पैसा देने वाला भी

    िमल जायेगा।' जोशी ने जाकर सोमालालभाई से सारी बात बताई | उ¦ोनें कहा, ‘मYने िदया

    सो िदया, वापस नही ंलँूगा।‘

  • गाँधीगाँधीगाँधीगाँधी----गंगागंगागंगागंगा | www....mkgandhi....org

    २२. 'अdृ5ता की शतD पर तो....ʼ

    १९२१ की बात है। अहमदाबाद म� गुजरात िवqापीठ की \थापना �ई। िवqापीठ की !बंध‐

    सिमित (सेनेट) की बैठक म� िम. एéê ज़ भी शािमल �ए। उ¦ोनें !Å उठाया, 'िवqापीठ म�

    हaरजनो ंको भी !वेश िमलेगा ना ?ʼ मYने तुरंत उ�र िदया िक हाँ, हaरजनो ंको अव !वेश

    िमलेगा। परंतु हमारी !बंध‐सिमित म� कुछ ऐसे लोग भी थे जो इस मामले म� अपनी अलग

    राय रखते थे, िज¦� यह बात मंज़ूर नही ंथी। वे अपनी‐अपनी परेशािनयाँ ज़ािहर करने लगे।

    उस िदन यह !Å अिनिणQत रह गया। अंत म� बापू से पूछा गया तो उनका उ�र मेरे जवाब

    के समथQन म� था।

    समM गुजरात म� इस बात की चचाQ िछड़ गई। मंुबई के कुछ धिनक वैëवो ंने बापू के

    पास आकर कहा ‘राyo ीय िशwा का कायQ धमQ का कायQ है। इस कायQ के िलए आप िजतना

    कह� उतना धन हम !दान कर� गे। परंतु हaरजनो ंके सवाल को आप छोड़ दीिजए। यह बात

    हमारे गले नही ंउतरती।'

    वे लोग पाँच‐सात लाख ¨पये !दान करने की मंशा लेकर आये थे। बापू ने उनसे कहा,

    'िवqापीठ के फंड की बात तो दूर है, अृता बनाये रखने की शतQ पर मुझे कल कोई

    िह�ुMान का bरा दे तो मY वह भी न लँू।'

  • गाँधीगाँधीगाँधीगाँधी----गंगागंगागंगागंगा | www....mkgandhi....org

    २३. 'धमDयुe का िनयमʼ

    गाँधीजी ने छोटी‐छोटी लड़ाइयाँ लड़ने म� ही जीदंगी िबताई है। कहा जा सकता है िक

    लड़ने के िलए ही उनका जÉ �आ है। लेिकन उनका एक भी P¬ के साथ बैर नही ं

    रहा।

    दिwण अिÊका म� उनके िव¨ िवचार रखनेवाले कुछ िह�ुMानी लोगो ंका एक मंडल

    जनरल iट्स से िमलने गया। अपनी बात !भावी ढंग से कहने की भाषा का ान और

    कौशल उनम� से िकसी म� नही ंथा। उन लोगो ंने गाँधीजी से ही िवनती की िक आप हमारी

    ख़ाितर इतना काम कर दीिजए। गाँधीजी ने सहषQ bीकार िकया और उन लोगो ंको पूणQ

    संतुy भी िकया।

    इस !संग म� गाँधीजी का अजातशु cप िजतना y �आ है उतना ही िवरोधी के इस

    गुण की क़) करके उस पर संपूणQ िवास सौपंने वाले उन भाइयो ंकी Rा भी उभर कर

    िदखाई पड़ती है। अपनी िन£पट खेल‐भावना से गाँधीजी ने िकतने ही शुओ ंको िम

    बनाया है, िकतनो ंको सÎनता का पाठ पढ़ाया है और जहाँ Wेष तथा छलकपट का रा

    था वहाँ धमQयु के िनयमो ंको मा|ता िदलवाई है।

  • गाँधीगाँधीगाँधीगाँधी----गंगागंगागंगागंगा | www....mkgandhi....org

    २४. ‘कड़ी सज़ाʼ

    एक बार मY मु«ल म� पड़ गया। बापू की खुराक हो या अ| कुछ हो, सब िहसाब के

    अनुसार चलता। बाज़ार से एक सेर िकशिमश आयी। बापू बोले, 'यह आठ िदन चलनी

    चािहए। िकशिमश िगन लो और उस संËा के आठ समान भाग करने से रोज़ िकतना

    लेना है मालूम हो जायेगा।' मुझे जैसा Ëाल है िक रोज़ बीस िकशिमश देनी थी। मुझे लगा

    िक �