गाांधी बाबा - m. k. gandhiग ध ब ब | द शब द क ई एक स...

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Page 1: गाांधी बाबा - M. K. Gandhiग ध ब ब | द शब द क ई एक स ल ह आ क दत तसय ज द न म झ स इस त तकत ब
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गााधी बाबा

लखक

कदसिया जदी

दो शबद

पासित जवाहरलाल नहर

पहली आवतति, अकतबर १९५२

मदरक और परकाशक

ततववक ततितनदर दसाई

नवजीवन मदरणालय

अहमदाबाद - ३८० ०१४

फोन : ०७९ - २७५४०६३५, २७५४२६३४

E-mail : [email protected] | Website : www.navajivantrust.org

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अपनी बात

महातमा गााधी क िीवन, उनक ततवचारोा और उनक आदशो का बगम कदततसया जदी

क ततदल और ततदमाग पर बहत ही गहरा असर पडा ह। वह महातमा गााधी की सचची कदरदाा

और अननय भकत ह। उनोान यह ततकताब कहानी की शकल म ततलखी ह। एक माा अपन

बचच को गााधी बाबा की कहानी सना रही ह। भाषा बहत ही सनदर, महावरदार और बोल

चाल की ततहनदी ह। हम ततवशवास ह ततक यह दश क लाखोा बचचोा को महातमा गााधी क िीवन

और उनक बततलदान का सचचा पाठ पढा सकगी और बरसोा पढाती रहगी। ततकताब बहत

ततदनोा स छप कर पडी हई थी। पाततित िवाहरलाल नहर न उसक ततलय दो शबद ततलखन

का वादा ततकया था। उसी इनतजार म यह रकी रही। अब उनक दो शबदोा क साथ यह

छोटी-सी पर मारक की ततकताब गााधी ियनती क इस शभ अवसर पर ततहनदी सासार और

खास कर दश क बचचोा को भट की िा रही ह।

इलाहाबाद िनदरलाल

2 अकतबर 1952 सकरटरी, ततहनदसतानी कलचर सोसाइटी

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दो शबद

कोई एक साल हआ कदततसया जदी न मझ स इस ततकताब क ततलय िो बचचोा क

वासत ततलखी गई ह चनद शबद ततलखन की फरमाइश की थी। मन उजर ततकया ततक मर पास

वकत नही ा ह और ऐसी फरमाइश परी करन को िी भी नही ा चाहता। मगर वह आगरह

करती रही ा ततक दर सवर स कछ ततलख जरर दीततिय। मर ततलय इनकार करना मशततकल

होता गया। मन दखा ततक उनोान यह छोटी सी ततकताब सचच ततदल स ततलखी ह। वह इस

ततसफ एक ततकताब नही ा समझती ह। यह भी जाततहर था ततक उनक ततलय गााधीिी की कहानी

एक बहत ही महततव की और पयारी चीज ह।

इस ततकताब का मसौदा मर पास एक साल रहा। इस दख कर बार बार याद आता

रहा ततक मझ स एक फरमाइश की गई ह और इस परा करन म मझ साकोच ह।

आततखरकार म इस मसौद को अपन साथ सोनामग ल गया िहाा स कशमीर क दररया ततसनध

की घाटी शर होती ह। वहाा ऊा च पहाडोा और बरफानी घाततटयोा क पडोस म बठ कर मन

“गााधी बाबा” की कहानी को ततफर दखा।

मझ आततखर इस क बार म कछ ततलखन म साकोच कोा था? यह बात मरी अपनी

समझ म भी नही ा आती। बस इतना िानता हा ततक िब कभी गााधीिी का खयाल आता ह

तो मझ अपनी कततमयाा और तरततटयाा बहत महसस होन लगती ह। गााधीिी क बार म कछ

ततलखना चाहता हा तो धीर धीर यकीन हो िाता ह ततक इस मजमन का हक अदा न कर

सका गा। हमम स वह लोग ततिन गााधीिी की शखसीयत क साए म रहना और परवररश

पाना नसीब हआ और ततिनोान उनकी महानता और उनकी उस शकतकत क िलव दख िो

तरह तरह स जाततहर हई थी वह अपनी क ततफयत दसरोा स बयान नही ा कर सकत। हमम

स हर एक क ततदल पर अलग और ऐसा गहरा असर ह ततक हमारी सारी ततजनदगी उसक राग

म राग गई ह। अब इस असर को ततिस अपना ही ततदल िानता ह बयान क स ततकया िाय।

िो शबद ततलकतखय रोजमरा का और हलका मालम होता ह। िो बात कततहय व-हकीकत

लगती ह, और तततबयत बचन रहती ह ततक मतलब अदा नही ा हो सका।

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मगर ततफर यह भी ह ततक इस नसल क लोग ततिनोान गााधीिी को दखा था, उनक

पााव छए थ और उनकी शखसीयत क ततकसी न ततकसी पहल स वाततकफ हो गए थ चल दग,

बकति हमार सामन चल िा रह ह। गााधीिी की याद ताजा रखन क ततलय कछ यादगार रह

िाएा गी, कछ लख और कछ ततकताब और वह ररवायत िो हर कौम क इतततहास म बडा

महततव रखती ह।

गााधीिी को हम स िदा हए साढ चार बरस हो गए ह। अब उनकी िगह ततहनदसतान

क इतततहास ही म नही ा उसक परानोा और कथाओा म ह। वह उन शानदार शखसीयतोा म

शाततमल हो गए ह िो इनसाततनयत क रासत को रोशन करन, ततदलोा म शराफत का नर और

इनसान म एक नई िान िालन क ततलय िनम लती रहती ह।

अचछा हो ततक हमार लडक और पोत और परपोत बचपन ही म उनकी कहानी को

सन। इसम यदध की कहानी की सी क ततफयत ह। और अगरच हमार बचचोा को अब गााधीिी

को िीत िागत दखना नसीब नही ा हो सकता मगर उन गााधीिी की ततजनदगी क हालात

और उनकी तालीम का कछ जञान हो िायगा और उस पराचीन ततहनदसताततनयत को भी समझ

सक ग ततिसकी एक आला ततमसाल गााधीिी की शखसीयत थी और उस सनदश को सन

सक ग िो ततहनदसतान अपन सनतोा और सततफयोा की जबानी दततनया को पहाचा रहा ह और

िो गााधीिी का सनदश था।

मझ खशी ह ततक यह ततकताब ततलखी गई ह और मझ उममीद ह ततक यह कामयाब

होगी।

नई ततदल ली जवाहरलाल नहर

१ ततसतमबर १९५२

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गााधी बाबा

हरर अपन घर लौटा तो शाम क छः बि रह थ। उसन दखा ततक सारा घर सनसान

ह। न दादािी बठ हकका गडगडा रह ह और न मातािी रसोई म रोटी बना रही ह। इतना

सननाटा दख कर हरर को िर सा लगन लगा। उसन मातािी को इधर उधर ढाढा तो दखा

ततक वह एक कोन म बठी रो रही ह।

हरर न इसस पहल अपनी माा को कभी रोत नही ा दखा था। उन ततबलखत दख कर

उसका ततदल भर आया और वह भी रोन लगा। थोडी दर बाद उसन भराई हई आवाज म

पछा – “अममा, का हआ, रो क योा रही हो ?” िब उनोान रक रक कर कहा – “गाा...,

गााधी...बाबा... मर गए।” तब हरर का ततदल धक स रह गया। उसन कहा – “अममा ! क स

मर गए गााधी बाबा ? म तो कल ही ततपतािी क साथ उनकी पराथना म गया था। िब मन

िाकर उनक पााव छए, तब उनोान बड पयार स मर गाल को छकर कहा, 'कोािी, अब तो

तम दागा नही ा करत ?” अममा ! कल तक तो ततबलकल अचछ थ गााधी बाबा !” यह सन कर

हरर की माा और फट फट कर रोन लगी। हरर न ततससततकयाा लत हए ततफर पछा – “अममा,

वह क स मर गए ?”

माा – “हरर ! म का बताऊा क स मर गए, ततकसी नीच पापी न उन गोली मार दी।”

हरर – “मातािी ! भला उसका गााधी बाबा न का ततबगाडा था। वह तो इतन अचछ

थ ततक उतन अचछ तो दादा भी नही ा।”

माा – “हाा बटा ! यह ऐसी ही दततनया ह। यहाा सच बोलन वाल और भगवान क भकत

बर लोगोा को नही ा भात। सचची बात सदा कडवी लगती ह। बटा ! लोग उस सनन को तयार

नही ा होत।“

हरर – “अममा ! आप मझ ततपतािी की बनदक द द। म अभी उस पापी को िान स

मार िालागा ततिसन हमार गााधी बाबा को हम स छीन ततलया।“ हरर िोश म आकर बोला।

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माा – “नही ा, हरर ! यह बरी बात ह। गााधी बाबा न हम यही तो ततसखाया ह ततक ततकसी

की िान लना पाप ह। तमन कवल उनको दखा ही दखा ह, पहचाना नही ा। आओ, म

तमको बताऊा ततक वह कौन थ। तमह बडा अचमभा होगा, हरर ! िब म तमह यह बताऊा गी

ततक गााधी बाबा बचपन म ततबलकल तमहार ही िस लडक थ, पर उनोान अपनी अनक

अथक कोततशशोा स अपन आपको कहाा स कहाा पहाचा ततदया। परम और सवा क बल, वह

गौतम बदध की तरह महातमा बन गए। वह इस दश क सबस बड सवक और बताि क

बादशाह थ। वह यहाा क चालीस करोड वाततसयोा क ततदलोा पर राि करत थ। उनक सामन

लोग ततसर ही नही ा झकात थ, उनस सचच ततदल स परम भी करत थ। इस दश का बड स बडा

और छोट स छोटा आदमी उन अपना बाप समझता था और सब उन बाप कहत थ,

कोाततक गााधी बाबा का ततदल लोगोा क दख क साथ दखता और उनक सख क साथ सखी

होता था। वह गरीबोा स बहत परम करत थ, उनी ा की तरह रहत और उनी ा की तरह खददर

की एक धोती बााधत और खददर की एक चादर ओढत थ। बकरी का दध पीत थ और

उबली हई तरकाररयाा खाया करत थ। वह एक महातमा थ, बटा !”

हरर – “अममा ! और गााधी बाबा बचचोा स ततकतना परम करत थ ! कभी उनको हासात,

कभी उनस अचछी अचछी बात करत, कभी उनको साथ लकर टहलन िात, ऐसा मालम

होता था ततक वह भी एक बचचा ह। अममा, मझ शर स गााधी बाबा की कहानी सनाइय।”

माा – “अचछा बटा ! िो िो मझ याद आता िायगा सनाती िाऊा गी। आि रसोई तो

बनानी नही ा, खाना ततकसस खाया िायगा ! तमहार दादािी पडोस क एक घर म गए ह ततक

रततियो स कछ और पता चल। िब तक व आएा तब तक म तमको बाप का हाल सनाती

हा ततक इसी स कछ ततदल हलका हो।“

हरर की माा न बाप की अमर कहानी या शर की।

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“बमबई स उिर की तरफ काततठयावाड क एक रिवाड का नाम पोरबनदर ह, वहाा

इसी नाम का एक बनदरगाह ह। वही उस रिवाड की रािधानी ह। बरसोा हए िब तमहार

दादािी तम स भी छोट थ, पोरबनदर म एक कमचनद गााधी रहा करत थ। वह थ तो िात

क बततनय पर उनक कनब क लोग अचछ पढ ततलख थ। उस घरान म तीन पीततढयोा स बाप

क बाद बटा काततठयावाड क रिवाडोा म दीवान होता आया था।“

“कमचनद बहत सचच, बहादर और दानी थ। लोग उनकी बडी इजजजत करत थ और

उनक कहन को पतथर की लकीर मानत थ। ततमजाि क कछ कडव थ, इसस लोगोा पर

उनका बडा रोब था। वह काततठयावाड क रािोा महारािोा क झगड ततनपटाया करत थ।

सदा सच बोलन और खरी बात कहन क कारन लोग उन आदर की ततनगाह स दखत थ।“

“कमचनद कई साल पोरबनदर म रह, ततफर वहाा का हाल ततबगडन पर रािकोट चल

गए। रािकोट भी काततठयावाड की एक ररयासत ह। बल गाडी म पोरबनदर स रािकोट

िान म पााच ततदन लगत थ। रािकोट क रािा ततिन वहाा क लोग ठाकर साहब कहत ह

कमचनद को बहत मानत थ। कछ बरस म ही उनोान कमचनद को अपना दीवन बना

ततलया।“

“एक मामल म बचार कमचनद का भाग बडा खोटा था। उनोान एक क बाद एक

तीन शाततदयाा की ा। पर, इशवर की मरजी, तीनोा बीततवयाा परलोक ततसधारी ा। चालीस बरस की

उमर म उनोान चौथी शादी पतली बाई स की। उस भगवान न एक बटी और तीन बट

ततदय।“

“कमचनद और पतली बाई अपन धम म पकक और बहत नक थ। दोनोा रोज माततदर

िाकर पिा करत और फल चढात। कमचनद स कही ा बढकर पतली बाई धम की पाबनद

थी ा। कोई ततदन ऐसा न था ततक ततिस ततदन वह माततदर न िाती ा। तयोहारोा पर बरत रखती ा। अगर

कभी बीमार हो िाती ा तो भी बरत न छोडती ा। बरत क ततसलततसल म व अपन ऊपर तरह तरह

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क बनधन लगा लती ा। िस बरसात क ततदनोा म िब तक सरि को आाख स न दख लती ा,

खाना न खाती ा। हरर ! तम िानत तो हो ततक बरसात क मौसम म सरि कई कई ततदन तक

बादलोा म माह ततछपाए रहता ह। अकसर ऐसा होता ततक वह ततकसी काम म होती ा और उनक

बचच आागन म खड आसमान की तरफ आाख लगाए रहत ततक कब सरि बादलोा म स

ततनकल और कब व अपनी माा को बलाकर लाएा । िस ही सरि को दखत, भाग भाग िात

और माा को खबर करत। मगर अकसर माा क आत आत बरसात का चाचल सरि आाख

ततमचौली सी खलता हआ बदली क पीछ ततछप िाता। िब वह आती ा और सरि को न दख

पाती ा तो यह कहती हई वाततपस लौट िाती ‘भगवान की मरजी ह ततक म आि भी कछ न

खाऊा .’ ततफर उसी तरह घर क काम धनधोा म लग िाती ा। पतली बाई बहत दीनदार होन क

साथ साथ बडी समझदार भी थी ा। रािकोट क महल की सब राततनयाा उनकी बडी इजजजत

करती ा और रािमाता तो उनक ततबना पछ कोई काम ही न करती थी ा।“

“पतली बाई क चारोा बचचोा म स सबस बड और सबस छोट म छ: साल की छटाई

बडाई थी। सबस छोटा आि स कोई अससी बरस उधर १८६९ ई० म पदा हआ था। दखन

म बहत सनदर तो न था, पर न िान कोा कमचनद, पतली बाई और तीनोा बचच उस दखकर

फल न समात। सब बचच बार बार नन ह को दखन आत, नना आाख खोल, अागठा माह म

िाल सब को तका करता।“

“नन क ततपतािी न एक शभ ततदन दख कर उसका नाम मोहनदास रकखा और

काततठयावाड क ररवाि क अनसार बाप का नाम कमचनद और घरान का नाम गााधी, साथ

ततमल गया। इस तरह बचच का परा नाम मोहनदास कमचनद गााधी पड गया।“

“मोहनदास पााच बरस का हआ तब उस सकल भिा गया। सबक तो वह ततकसी न

ततकसी तरह याद कर ही ततलया करता था पर पहाड उस ततकसी सरत याद न हो पात। इधर

याद ततकय उधर ततफर साफ।“

“मोहन दास की उमर कोई सात बरस की होगी िब कमचनद को नौकरी क

ततसलततसल म पोरबनदर छोड कर रािकोट आना पडा। पराना घर छटन का सब बचचोा को

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बडा राि था। पर रािकोट पहाचत ही दो-चार ततदन म व अपन परान घर को भल गए और

नए घर म चन स रहन लग।“

“मोहनदास की मातािी परान ढाग की थी ा। छत छात का बडा खयाल रखती थी ा।

मोहनदास को हमशा बताती रहती ा ततक अगर ततकसी अछत को छ लो तो फौरन नहा धोकर

कपड बदल िालो। मोहनदास क घर म उनक भागी का लडका ओका सफाई करन आया

करता। अगर मोहनदास कभी भल कर उस छ लता तो फौरन उसकी मातािी उसको

नहलवाती ा। मोहनदास नहान को तो नहा लता पर यह बात उसकी समझ म न आती ततक

ओका नीच और अछत क स हो सकता ह। धीर धीर उसका ततदल चाहन लगा ततक म भी

ततकसी तरह अछत बन िाऊा और ततफर अछत को बराहमण क बराबर ऊा चा कर ततदखाऊा ।“

“मोहनदास योा तो हर तरह मामली बचचोा िसा था पर उसम खास बात यह थी ततक

वह सदा सच बोलता था चाह सच बोलन क कारन उस कछ ही क योा न सहना पड। एक

ततदन की बात ह। मोहनदास अागरिी का परचा कर रहा था। एक अागरज साहब इमतहान

लन आए थ। ततकसी शबद क ततहजज मोहनदास न ठीक न ततलख। मासटर िी न इशारोा स

मोहनदास को समझाना चाहा ततक वह अपन साथ वाल लडक की कापी स नकल कर ल।

िब मासटर िी इशार करत करत ताग आ गए तो उनोान अपन ित की नोक बचार

मोहनदास क पााव पर इस जोर स रकखी ततक गरीब ततबलततबला उठा। पर उसक साफ और

सचच ततदल म यह बात आ ही न सकी ततक मासटर साहब उस नकल करन का इशारा कर

रह थ।“

हरर – “अममा ! मासटर साहब भी खब थ ततक लडकोा को नकल करन को उकसात

थ। हमार मासटर साहब हम नकल करत दख ल तो कान पकड कर बाहर ततनकाल द।”

माा – “हाा बटा ! ठीक ह पर यह तो दखो ततक मोहनदास न ततकतनी ईमानदारी स

काम ततलया।”

हरर – “अचछा, मातािी ! ततफर का हआ ?”

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माा - 'मोहनदास पर दो कहाततनयोा का बडा असर पडा। उनम स एक रािा हररशचादर

की कहानी थी ततिसका नाटक मोहनदास बार बार िाकर दखा करता था और दसरी

शरवणकमार की। पहली कहानी यह ह -

रािा हररशचादर और साध

“कहत ह हिारोा बरस पहल दश म एक बहत सचचा और दानी रािा था। एक बार

उसकी नगरी म बडा भारी अकाल पडा। रािा न अपना सब कछ बच बच कर परिा की

सवा म लगा ततदया और खद कौडी कौडी को मोहताि हो गया। इशवर की करनी, दवताओा

को भी उसी घडी रािा क धम और सचचाई को परखन की सझी। एक दवता साध का भस

बदलकर रािा स भीख माागन आया। घर म िो कछ था रािा न लाकर ततभखारी को द

ततदया। ततभखारी न ततफर सवाल ततकया, तब रािा न अपन दास दासी बच कर दाम ततभखारी

क हाथ पर रख ततदय।“

“ततभखारी न ततफर कहा – ‘महाराि ! मरा काम इतन म नही ा चलगा। तम कहो तो

पास ही िो िोम रहता ह उसस िाकर भीख माागा , पर मझ शरम आती ह ततक रािा क

दर का ततभखारी िोम क सामन हाथ फ लाए।‘ इस बात को सनत ही रािा हररशचादर खद

साध क साथ उस िोम क घर गया और उसन अपन आप को िोम क पास ततगरवी रख

कर साध की मााग परी की। साध न तो अपन घर की राह ली और िोम न रािा को मरघट

पर नौकरी बिान भि ततदया। वहाा वह ततचता क ततलय आग दता था और िो लोग मरद

लकर िलान आत उनस टकस ततलया करता था।“

“कछ ततदन बाद रािा हररशचादर का इकलौता बटा रोततहताशव मर गया। उस िलान क

ततलय रानी मरघट पहाचकर ततचता तयार कर रही थी। रािा न बढ कर टकस माागा। रानी न

आाखोा म आास भर कर कहा - सवामी ! मर पास तो तन की इस धोती क ततसवा और कछ

भी नही ा। रािा का ततदल ततहल गया, पर उसक पााव नही ा िगमगाए। वह ततहममत स काम

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लकर बोला – ‘रानी ! म मिबर हा। मर सवामी का हकम ह ततक ततचता क ततलय आग दन स

पहल टकस वसल कर लो। यह धम ततनबाहना मर ततलय जररी ह।‘ िस ही रानी न धोती क

अाचल पर हाथ िाला वस ही रािा और रानी की सचचाई, उनका बरत और ततहममत दख कर

दवता लोग कााप उठ। वह फौरन उडन खटोल पर बठ कर आ पहाच। उनोान रािा क

बट म ततफर स िान िाल दी और रािा, रानी और बटा तीनोा को िोम समत वकनठ ल

गए।“

“बटा हरर ! यह कहानी मोहनदास क ततदल म घर कर गई, उसका िी चाहता था

ततक परमातमा उस ततहममत द ततक वह भी सचचाई की कसौटी पर हररशचनदर की तरह परा

उतर। बड होकर मोहनदास न सचमच सचचाई क ततलय अपनी िान की बाजी लगा दी

और कसौटी पर ऐसा खरा उतरा ततक दततनया दाग रह गई।”

कहानी सनात सनात हरर की माता की आवाज भरा गई, थोडी दर बाद रक कर

ततफर उनोान या कहना शर ततकया -

“दसरी कहानी शरवण कमार की थी। ततिस पढ कर मोहनदास न लोगोा की सवा

करनी सीखी। शरवण कमार क माा बाप दोनोा बढ और अाध थ। वह उन हर िगह बहागी

म उठाए उठाए ततफरता। महनत मजदरी करक वह उनका पट पालता और हर तरह सवा

करता। कररसमत का ततलखा, दशरथ महाराि एक ततदन िागल म ततशकार खलन ततनकल।

शरवण नदी क ततकनार अपन माा बाप क ततलय पानी भर रहा था। दशरथ न दर स शरवन को

हररण समझ कर उस पर तीर चला ततदया, बचारा घायल होकर दद स तडपन और कराहन

लगा। पर उस वक त भी उस अपन बढ माता ततपता का ततवचार सता रहा था। मरन स पहल

उसन दशरथ ही क हाथ उन पानी ततभिवाया और कहा, िब पानी ततपला चको तब मर

मरन की खबर सनाना, दशरथ न ऐसा ही ततकया। िब वह पानी पी चक, तब दशरथ न

शरवण कमार क मरन की सचना दी। बचार, बढ और कमजोर तो थ ही, इतना रोए और

इतना राि ततकया ततक वही ा ठनड हो गए। दशरथ न शरवण कमार की ततचता क साथ ही साथ

उसक माा बाप की ततचताएा भी तयार की ा और तीनोा को आग क सपद कर ततदया।”

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हरर - “अममा ततफर दशरथ िी का का हआ ?”

माा - “बटा ! दशरथ भी अपन बट क ततवयोग म मर।”

हरर - “अचछा अममा, गााधी बाबा न यह कहानी पढकर का ततकया ?”

माा - “बालक मोहन न यह कहाततनयाा सनकर हररशचादर की तरह सदा सच बोलन

और शरवण कमार की तरह दकतखयोा की सवा करन की ठान ली। हररशचादर और शरवण कमार

अब हमशा उसकी आाखोा क सामन रहन लग। शरवण कमार न तो माा बाप ही की सवा की,

पर मोहनदास न बड होकर करोडोा इनसानोा की सवा म अपना तन मन धन सब कछ

नयोछावर कर ततदया। चालीस करोड इनसान, ततिसम मद भी थ और औरत भी, बचच भी थ

और बढ भी, मसलमान भी थ और ततहनद भी, बराहमण भी थ और हररिन भी, रािा भी थ

और ततभखारी भी, सब उसक ततलय एक थ, उसक ततदल म सब क ततलय एक सा परम था।”

हरर मरत बना कहानी सन रहा था। माता िी को यह दख कर बडा आननद हआ,

ततक उस पर इतना असर हो रहा ह, िस एक एक बात उसक ततदल म उतर रही हो। उनोान

उठ कर कतखडकी बनद की ततिसम स बडी ठा िी हवा आ रही थी और ततफर कहना शर

ततकया।

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“मोहनदास क माता ततपता न उसकी जञादी लडकपन ही म, पोरबनदर की एक

लडकी, कसतरा बाई स कर दी थी। उस वक त तो मोहनदास क मन म लिि फट रह थ

ततक शादी क बाद अचछ अचछ कपड पहनन को ततमलग और एक नई लडकी साथ खलन

को, पर िब मोहनदास बडा हो गया तब उसन लडकपन की शादी को बरा बताया। और

हमशा ऐसी शाततदयोा क ततवरदध रह।“

“ततववाह होत ही मोहनदास न बचारी भोली भाली अबोध कसतरा बाई पर सकतियाा

करनी शर कर दी ा-यहाा मत िाओ, वहाा मत िाओ, इस सहली स मत ततमलो, उसस मत

ततमलो। मोहनदास की इन उलटी सीधी बातोा स कसतरा बाई का नाक म दम आ गया।

ततितना वह कसतरा बाई को बिा दबाना चाहता, उतना ही वह उसका मकाबला करती

कई बार तो इन बातोा पर इतनी खटपट हो िाती और कतखाचाव इतना बढ िाता ततक दोनोा

की बोल चाल तक बनद रहती।“

हरर - “अममा, मोहनदास ऐसा क योा करत थ ?”

माा- “बात यह थी ततक वह उस लडाई झगड ही को परम की ततनशानी समझता था।

शादी क झाझट म फा स कर भी मोहनदाजजस का सकल िाना बनद नही ा हआ। इतना ही नही ा,

ऊपर क दिो म पहाच कर तो वह कलास क होततशयार लडकोा म ततगना िान लगा। उसन

सदा यह परयतन ततकया ततक लोग उस सचचा और अपनी बात का धनी समझ। अगर कभी

हासी म भी कोई उस झठा कह बठता तो उसक ततदल पर बहत चोट लगती और वह घाटोा

रोया करता था।“

“मोहनदास को एक शौक यह भी था ततक वह अपन भटक हए साततथयोा को खी ाच

कर सचचाई और नकी क सीध रासत पर लान की कोततशश करता था। कभी-कभी

कामयाबी भी हो िाती थी। इसी शौक की विह स लडकपन म उसन एक बहत ही बर

और आवारा लडक स ततमतरता कर ली। कसतरी बाई न, यहाा तक ततक मोहनदास क माता

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ततपता न भी हजारोा बार रोका ततक वह उस लडक स ततमलना छोड द, पर मोहनदास न सनी

अनसनी कर दी।“

“उसका दोसत खब िानता था ततक मोहनदास बडा िरपोक और दबब ह, कभी

अाधर कमर म नही ा िाता पर चाहता यह ह ततक ततकसी तरह बडा बलवान और बहादर बन

िाय। उसन मोहनदास स कहा – ‘मोहन ! बहादर बनन का एक ही उपाय ह और वह यह

ह ततक तम गोशत खाना शर कर दो। दख लो, अागरज ततहनदसतानी स कही ा बढ कर हटटा-

कटटा और बलवान होता ह 'और गोशत खान क कारण ही ततनबल ततहनदसताततनयोा पर राि

करता ह।” भोल-भाल और बहादरी की धन क मतवाल, मोहनदास न इस सच मान ततलया

और वह गोशत खान को तयार हो गया।“

“यह तो तम िानत ही हो हरर, ततक वषणव धम म गोशत खाना मना ह। मोहनदास

गोशत खाता तो क स खाता, उसक घर म तो गोशत आता ही न था। बस उसक दोसत न यह

तप ततकया ततक वह मोहनदास की दावत करगा, और उसक घरवालोा स छपाकर मोहनदास

को गोशत कतखलाएगा।“

“दावत क ततदन शाम को मोहनदास अपन दोसत क घर पहाचा और सब खाना खान

बठ। उसन हजार कोततशश की ततक गोशत की बोटी उसक गल स उतर िाय पर न उतरी।

आततखर बचार को क हो गई और वह मिबर होकर उठ खडा हआ। घर पहाच कर

मोहनदास का बरा हाल हआ, सोत िागत उस ऐसा लगता िस बकरी उसक पट क

अनदर ततमततमया रही ह। उस क बाद भी मोहनदास न कई बार माास खान की कोततशश की,

पर उस कभी माास नही ा भाया।“

“माास की दावतोा क बाद मोहनदास सदा दर स घर पहाचता और हर बार उस

अपन घर वालोा स झठ बोलना पडता। दो चार बार तो दर स घर आन की झठी सचची

विह बता दी, पर एक ततदन उस एकाएक सझा ततक माता ततपता स झठ बोल कर और उन

धोखा दकर अगर म बहादर और बलवान हो भी िाऊा तो ततकस काम का । यह सोचत ही

उसन ठान ततलया ततक माास कभी नही ा खाऊा गा और हमशा सच बोलागा चाह म ततकतना ही

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कमजोर और िरपोक क योा न रह िाऊा । माता ततपता स झठ बोल कर और उन धोका

दकर ततनिर और बलवान होना बकार ह।”

हरर न ततनिर हो कर पछा - “तो ततफर माा वह इतन ततनिर और बहादर क स बन

गए?”

माा - “झठ बोलना तो मोहनदास न छोड ततदया। पर ततनिर और बहादर बनन की

लगन उसक ततदल म लगी रही। मोहनदास क घर म राभा नाम की एक बततढया दासी थी,

वह िानती थी ततक मोहनदास को अाधर स ततकतना िर लगता ह। राभा न एक ततदन बातोा-

बातोा म मोहनदास स कहा – ‘िब भी, तमह अाधर म िर लग या कोई कततठनाई आन पड

तब तरनत राम का नाम िपन लगो, इस नाम क लन स तमहारा िर िाता रहगा।“

हरर - “अममा, तो का सचमच राम नाम िपन स उनक ततदल का िर िाता रहा ?”

माा - “इस नाम म बड गण ह, अगर कोई भगवान को सचच ततदल स पकार तो

भगवान उसकी अवशय सनत ह।'”

हरर - “म भी राम नाम िपा करा गा, मझ भी तो अाधर कमर म िात िर लगता

ह।“

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“माास खान की धन तो मोहन न अपन बडोा की खातततर छोड दी पर अब िलदी स

बडा होन की लगन उस ततदन रात सताती। अब बचचोा को बडा होन की लालसा सताती ह

तो उन तरह तरह की सझती ह। वह बडोा की नकल उतार कर बड होन की आशा परी

करत ह। िब कभी मोहनदास अपन चाचा को माह स धय क बादल उडात दखता तो

उसका भी ततदल मचलता ततक उनकी तरह ततसगरट पीकर माह और नाक म स धआा ततनकाल।

मोहनदास न ऐसा ही करन की ठानी और यह तय ततकया ततक वह और उसका एक दोसत

ततसगरट ततपया कर ग। पर पीत तो कहाा स पीत िब म तो फटी कौडी भी न थी। िब

मोहनदास क चाचा उठकर चल िात तब मोहनदास और उसका दोसत चपक स आत

और इधर उधर पड हए ततसगरट क अधिल टकड उठा ल िात और ततछप ततछप कर खब

ततपया करत। मगर थोड ततदनोा क बाद िब इसस उनकी तसलली न हई तब ततफर नौकरोा

की िब म स पस ततनकाल कर ततसगरट मोल लन लग | लततकन इस तरह छप छप कर

ततसगरट पीन स उनका िी परसन न न होता। एक ततदन दोनोा बहत उदास बठ सोच रह थ ततक

यह िीना भी कोई िीना ह ततक हम खल कर बडोा की तरह ततसगरट भी न पी सक । इसका

ततवचार करत ही उनका और भी िी घटन लगा। दोनोा क मन म समाई ततक चलो चल कर

कही ा दोनोा पराण द द। यह ठान कर उनोान िाकर धतर क बीि िमा ततकय और इस ‘शभ

काम’ क ततलय शाम का समय चना। व बीि खान को ही थ ततक खयाल आया ततक अगर यह

खाकर भी न मर तो का होगा। यह सोचत ही उनोान मरन का ततवचार छोड ततदक। और

ततसगरट न पीन का परण ततकया।“

हरर - “अममा, मोहनदास न बड होकर तो ततसगरट ततपया ही होगा।”

अममा - “नही ा बटा वह ततदन सो आि का ततदन, उसन कभी ततसगरट माह स नही ा

लगाया।“

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“िान दन का ततवचार भलत ही उन दोनोा क ततदल पर स बोझ सा उतर गया और

ततजनदगी उन ततफर पहल ही िसी सहावनी लगन लगी।“

“एक ततदन मोहनदास घर म बठा कछ ततलख पढ रहा था ततक उसका भाई घबराया

हआ आया, और उसक पास बठ कर चपक चपक कान म कछ कहन लगा। बात यह थी

ततक मोहनदास क भाई पर बीस पचचीस रपए ततकसी क उधार हो गए थ, वह उस रकम

को चकान क ततलय अपन भाई की मदद चाहता था। मोहनदास न बहत सोचा और बहत

सोचन क बाद एक उपाय ततनकाला। मौका पाकर मोहनदास चपक स गया और रात क

समय अपन दसर भाई क बािबनद म स थोडा सा सोना उडा लाया। और उस बच कर

उधार चका ततदया।”

हरर - “अममा ! आप तो कहती ह चोरी करना बरी बात ह, ततफर मोहनदास न चोरी

कोा की ?”

माा - “बटा हरर ! भल स ऐस काम सब ही बचच कर बठत ह। पर नक बचच वह ह

िो भल करन क बाद पछताएा और ततफर उमर भर वसी भल न कर |”

मोहनदास न एक भाई क कारण दसर भाई की चोरी करन को तो करली पर अब

उसक ततदल को चन कहाा, समझ म न आता था ततक कर तो का कर। बहत सोच ततवचार

करन क बाद उसन चपक स अपन ततपता िी को एक ततचटठी ततलखी ततिसम चोरी का हाल

था। चोरी न करन का वचन और सजा का ततनवदन था, और यह भी ततलखा था ततक ततपतािी

ततितनी कडी सजा चाह द , पर अपना ततदल न दखाए। मोहनदास क ततपता इन ततदनोा बीमार

थ वह सार ततदन लट रहत थ। मोहनदास न ततचटठी ल िाकर उनक हाथ म द दी और उनक

पास ही पलाग पर चपचाप बठ गया।

“मोहनदास क ततपतािी न बठ कर ततचटठी पढी तो उनकी आाखोा स आासओा की झडी

लग गई। जोा जोा आास ततगरत थ मोहनदास क ततदल का पाप धलता िा रहा था। मोहनदास

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पर उन अनमोल आासओा का इतना परभाव हआ ततक उसका िीवन बदल गया और वह

पहल स कही ा बढ कर अचछा लडका बन गया |”

हरर - “अममा, मोहनदास क ततपतािी रोय क योा ? उनोान मोहनदास को पीटा क योा

नही ा ?”

माा - “बटा ! मोहनदास की सचचाई और ततहममत दख कर उसक ततपतािी का ततदल

भर आया, अगर वह मोहनदास को मारत तो उस पर वह असर न होता िो उनोान

मोहनदास को मार पीट ततबना सवया अपन ततदल को दखाकर पदा ततकया। मोहनदास पर

उस परम का असर मारपीट स कही ा अततधक हआ।“

“मोहनदास की ततजनदगी म अततहासा का यह पहला उपदश था। बड हो िान पर

उसन इसी अततहासा क बल पर अागरजोा स लड ततबना, उनको उनक घर पहाचा ततदया और

अपन दश को सवतनतर कर ततलया।“

“दो चार ततदन म चोरी की बात आई गई हई । हाा, इसक बादस इतना अवशय हआ

ततक मोहनदास क ततपतािी उस पहल स भी अततधक चाहन लग, और कोा न चाहत, वह था

भी तो बडा सचचा और नक लडका।”

हरर - “अममा ! म भी अब सदा सच बोला करा गा, तो मझ भी ततपतािी पहल स

जादह पयार करन लगग।”

माा - “हाा बटा ! एक तमहार ततपतािी का, सभी पयार कर ग।”

हरर - “अचछा अममा। ततफर क या हआ ?”

माा - “भगवान की करनी, उनी ा ततदनोा मोहनदास क ततपतािी बहत बीमार रहन लग।

सब घरवाल उनकी दख भाल म लग रहत। मोहनदास उनकी सवा सब स अततधक करता

था। वह सकल क बाद िलदी घर आता और सार वक त अपन ततपतािी क पास बठा रहता।

उनको दवा ततपलाता, कपड बदलवाता और घाटोा बठ कर उनक पााव दबाया करता। एक

रात को पााव दबान क बाद वह ततकसी काम स अपन कमर म गया ही था ततक नौकर न

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आकर दरवाजा खटखटाया और खबर दी की ततपतािी चल बस। मोहनदास को उस समय

उनक पास न रहन का राि मरत दम तक रहा।”

हरर - “हाय ! हाय ! ततकतना रोया होगा बचारा !”

माा -“हाा बटा ! और आि सवया उसक ततलय सारा ततहनदसतान बकति सारी दततनया रो

रही ह।“

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“अठारह वष की उमर म मोहनदास न दसवी ा ककषा पास कर ली। उसक ततपतािी क

एक बड परान ततमतर क कहन पर मोहनदास क बड भाई न उस बररसटरी पास करन

ततवलायत भि ततदया। उन ततदनोा लोग समझत थ ततक ततवलायत म रह कर धम का पालन नही ा

हो सकता। इसीततलय मोहनदास क घर वाल उस ततवलायत भिन पर कततठनता स राजी

हए।“

“वहाा भिन स पहल उसकी माता न मोहनदास स तीन वचन ततलय। पहला यह, ततक

गोशत नही ा खाऊा गा। दसरा यह, ततक शराब नही ा ततपयागा। और तीसरा यह, ततक सब लडततकयोा

को अपनी बहन की तरह समझागा। मोहनदास न सचच ततदल स सब वचन ततदय और अपनी

मातािी, भाई और बडोा का आशीवाद लकर ततवलायत ततसधारा।“

“िान स पहल मोहनदास न बहत स अागरजी कपड ततसलवाय, चमकदार ित और

राग ततबरागी टाइयाा खरीदी ा। पहल पहल तो मोहनदास को टाई बााधन का ढाग न आता था

पर िब बााधनी आ गई तो अागरजी कपडोा म टाई उस सब स जादह अचछी लगती।“

“ततिस ततदन िहाि अागरजी बनदरगाह म िाकर लगा। मोहनदास न सोचा ततक

इाकतिसतान की भततम पर पहली बार पााव रखन क ततलय सब स बततढया कपड पततहनना

आवशयक ह। तरनत बकस खोल कर सफद फलालन का सट ततनकाला और बड ठाठ स

उस पहन कर िहाज स उतरा। अब िो आाख उठा कर दखता ह तो इधर स उधर तक

सब लोग गहर रागोा क सट पहन हए ह, वह अकला सफद सट पहन ह। और सब उस

अचाभ स दख रह ह। शम क मार मोहनदास को पसीना आ गया । जोा तयोा कर क होटल

पहाचा। दभागयवश दसर ततदन इतवार था। और दफतर बनद होन क कारन बादरगाह स

सामान नही ा आ सकता था। बचारा मोहनदास तीन ततदन तक वही सफद सट पहन रहा पर

िहाा तक हो सका होटल स बाहर न ततनकला।“

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“ततवलायत म मोहनदास न दखा ततक फ शन वाल सब लोग ऊा चा हट पहनत ह। उस

भी शौक चढा ततक वह भी ऊा चा हट खरीद। शमीला तो था ही। बडी ततहममत कर क हटवाल

की दकान पर पहाचा और िो हट सब स पहल नजर आया उसी को खरीद कर घर आ

गया। घर आकर िो हट पहना तो मालम हआ ततसर स एक ऊा गल भर रहा ह। वह तो योा

कहो ततक उसक बड बड कान उस वकत उसक काम आ गय नही ा तो हट ततखसक कर

नाक पर आ िाता और कछ भी न सझता।”

हरर - “अममा, छोटा सा लडका बडा हट पहन कर क सा अिीब लगता

होगा ? म वहाा होता तो अपन कमर स उसकी तसवीर खच लता।”

माा -“हाा बटा, अिीब तो लगता ही होगा। दसर ततहनदसतानी लडकोा की तरह

मोहनदास न भी ततवलायत िाकर पहल ततदल खोल कर खच ततकया। नाचना सीखा। वायलन

बिाना सीखा। बततढया बततढया दकानोा स पकड ततसलवाय। बडी बततढया सोन की घडी

खरीदी। मतलब यह ततक िी भर कर रपया फ का। पर एक बात मोहनदास म बहत अचछी

थी। वह सदा पाई पाई का ततहसाब ततलखता था। एक ततदन मोहनदास को खयाल आया ततक

अगर म खल तमाशोा और ततदखाव क कामोा म लगा रहा। तो पढागा क स और कब तक

मर बड भाई मझ रपया भित रहग। यह ततवचार आत ही मोहनदास न अपन खच की

ततकताब ततनकाली और िो िो चीज उस माहगी और ततनकममी लगी ा उसन उन छोड दन की

ठान ली। िहाा तक हो सका मोहनदास न बसोा म बठना कम कर ततदया। उसन ससता मगर

सहत क ततलय अचछा खाना पकाना सीखा और दो बड बड कमरोा की िगह एक छोट स

कमर म रहन लगा।“

“अपनी पढाई क साथ साथ ततवलायत म उस दसर धमो की ततकताब पढन और

समझन का भी मौका ततमला। लडकपन म उसक ततपतािी क पास िन, ततहनद, बौदध, पारसी,

ईसाई और मसलमान सब आया करत थ और घाटोा सब धमो क बार म बातचीत हआ

करती थी। मोहनदास चपचाप बठा सब सना करता था। तब ही स यह सब धमो को आदर

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की ततनगाह स दखता था। उसन लडकपन ही स यह तय कर ततलया था ततक नकी सब धमो

की िड ह और ततबना सचचाई। आदमी नक नही ा बन सकता |”

“ततवलायत ही म उस रोततगयोा की सवा करन की भी धन सवार हई। एक िाकटर की

मदद स उसन कोततढयोा की दख-भाल करनी सीखी। थोड ही ततदन क अनदर वह इस काम

म ऐसा होततशयार हो गया ततक दखन वालोा को अचाभा होता था।”

हरर - “माा ! इतनी िलदी उसन यह काम क स सीख ततलया ?”

माा -“बटा ! ततकसी बात की भी िी म लगन लग िाय, तो वह काम िलदी आिाता

ह। ततफर मोहनदास का ततदल, गरीबोा की तरह रह कर और दकतखयोा की सवा करक बहत

परसन न होता था।“

“मोहनदास न अपन बहत स साततथयोा को पररस शहर की परशासा करत सना था,

ततक पररस शहर बहत बडा, सनदर और साफ सथरा ह। उसक ततहनदसतान लौटन स कछ

महीन पततहल पररस म एक बहत बडी नमायश की तयाररयाा हो रही थी ा। उसन सोचा चलो

एक ही बार म पररस का शहर और वहाा की नमायश दोनोा दख ल। पररस म नमायश

मदान क बीचोा बीच लोह का एक बहत ऊा चा मीनार बनाया गया था। यह मीनार ततदल ली

की कतब की लाट स कोई तततगना ऊा चा था। नमायश दखन वाल मीनार पर जरर चढत

थ। उसी मीनार म एक होटल भी था िहाा लोग खाना खात थ और वही ा बठ बठ नमायश

की सर भी करत थ। मोहनदास न भी मीनार का ततटकट ततलया और उसी होटल म बठ कर

खाना खाया।“

“नमायश दखन क बाद मोहनदास न पररस की सब बडी बडी मशहर िगह दखी।

सबस अततधक उस वहाा क परान ततगरि पसनद आय और नौतरदाम का ततगरिा तो उस

बहत ही अचछा लगा।”

हरर - “लोह की ऊा ची लाट भी उस बहत ही अचछी लगी होगी ?”

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माा - “न िान क योा वही उस पसनद नही ा आई, मगर हाा, पररस की परानी इमारत

उस बहत अचछी लगी ा।“

मोहनदास न बररसटरी पास करन क बाद ततहनदसतान लौटन की तयारी की। िलाई

क महीन म समदर क तफान और हवा का सामना करता हआ उसका िहाि बमबई म

आकर रका।

“बनदरगाह पर उसक बड भाई उस लन आय थ। मोहनदास रासत भर अपनी

मातािी स ततमलन क ततलय बचन था। पर िब बमबई पहाचकर उसन अपन भाई स सना

ततक उसकी माता भगवान की शरण म पहाच चकी ह और िब वह घर पहाचगा तो माा उस

गल लगान और पयार करन क ततलय दरवाज पर खडी नही ा ततमलगी, तो उसकी आाखोा तल

अाधरा आ गया। पर मोहनदास ततदल का बहत पकका था। आास पीकर रह गया और उफ

तक न की।”

हरर - “हाय, उसस क स चप रहा गया, और कोई होता तो रो रो कर आाख सिा

लता।“

माा - “पर वह और कोई थोड ही था, वह तो मोहनदास करमचनद गााधी था।”

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मोहनदास क भाई न उसक दफतर क ततलय पहल ही स एक मकान ततकराय पर ल

रखा था। मोहनदास न उस पर मोहनदास करमचनद गााधी का बोि लगा कर बररसटर ी का

काम शर कर ततदया। पर उसका काम बमबई म न चल सका। छः महीन की िी तोड

महनत करन क बाद वहाा का दफतर बनद करक वह रािकोट चला गया, और वहाा िाकर

दफतर खोला। रािकोट म उसका काम अचछा चल ततनकला पर वहाा गााधी का ततदल

ततबलकल न लगा। वहाा क लोगोा म झट और मककारी दख दख कर उसका ततदल उचाट हो

गया।

“पोरबनदर म गााधी घरान स, दादा अबदलला कमपनी वालोा का बहत ततमलना िलना

था। भगवान की करनी, उनी ा ततदनोा दादा अबदलला कमपनी का बहत बडा मकदमा

दकतकखनी अफरीका म चल रहा था। उनोान गााधी को उस मकदम की परवी क ततलय िरबन

ततभिवा ततदया।“

“गााधी-अर-र-नही ा अब गााधी िी, दकतकखनी अफरीका पहाच तो दखा ततक वहाा की

दततनया ही दसरी ह। वहाा काल लोगोा को ततफरागी (योरपीन) तरह तरह स ताग करत थ। हर

ततहनदसतानी को, चाह वह बररसटर हो या सौदागर, मजदर हो या नौकर, “कली” कह कर

पकारत। और िो काल लोग सचमच कली का काम करत थ, उनक साथ तो िानवरोा स

भी बरा वयवहार ततकया िाता था।“

“कोई काला आदमी ततकसी होटल म नही ा घस सकता था, ठहरना तो दर रहा वह

सडक की पटरी पर ततकसी गोर आदमी क साथ नही ा चल सकता था। पटरी पर स धकका

दकर ततहनदसतानी को हटा दना एक मामली बात थी। ततकसी ततहनदसतानी की मिाल नही ा थी

ततक वह ततकसी अागरज क सामन पगडी पहन कर िा सक। वह रल क ततिबब या घोडा गाडी

म अागरज क साथ नही ा बठ सकता था। इसी तरह की और भी बहत सी बात थी ा।“

हरर - “अममा, तो ततफर गााधी िी का वहाा रहना मकतिल हो गया होगा ?”

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माा - “म तमह उनकी वहाा की एक कहानी सनाती हा ततिसस तमह पता चलगा ततक

गााधी िी को आफरीका म ततकन ततकन मसीबतोा का सामना करना पडा।“

“एक बार गााधीिी िबन स परीटोररया िान क ततलए ततकराय की घोडा गाडी म सवार

होना चाहत थ, ततक गाडी क गाि न उन आकर रोका और गाडी क अनदर अागरि मसाततफरोा

क साथ ततबठान स इनकार कर ततदया। गााधीिी को ततकसी न ततकसी तरह परीटोररया पहाचना

जररी था, इसततलए वह कोचवान क पास बाहर वाली सीट पर बठ गय। गाि सवया गाडी

क अनदर बठा और गाडी चल दी। थोिी दर म गाि ततफर आया और गााधीिी को कोचवान

क पााव क पास सीट स नीच बठन का हकम ततदया। उनोान वहाा बठन स इनकार कर ततदया।

गाि भला काल आदमी की बात का सनता, उसन आव दखा न ताव, बचार गााधीिी पर

मककोा और गाततलयोा की बौछार शर कर दी; और ततफर हाथ पकड कर गाडी स नीच

ततगरान की कोततशश करन लगा। गााधीिी भी परी ततहममत स गाडी का हततिल पकड लटक

रह। गाि बराबर बददी स उन मारता रहा और गाततलयाा दता रहा। गोर मसाततफर कछ

दर तक तो यह तमाशा दखत रह पर िब उनस न रहा गया तो वह गाि को िााटन लग।

गाि न िब दखा ततक गोर आदमी भी उस काल आदमी का साथ द रह ह, तो वह गााधीिी

का पीछा छोड कर चपचाप साईस क पास िाकर बठ गया। बचार गााधीिी की िान बच

गई और उन कोचवान क पास वाली सीट पर ततफर स बठन को ततमल गया।“

“अर, तम तो रोन लग, बस इतना ही नना सा ततदल ह तमहारा। हरर, गााधीिी न तो

औरोा क ततलए इसस भी बड बड दख सह ह, और कभी आह तक न की, िब लोग उन पर

अतयाचार करत तो उन कभी झाझलाहट न होती। उन राि जरर होता था पर वह तमहारी

तरह न थ।”

हरर न झट करत क कोन स आास पोाछ िाल।

“गााधीिी न िब दकतकखनी अफरीका म ततहनदसताततनयोा की बरी गततत बनत दखा तो

उनोान तय ततकया ततक वहाा क ततहनद, मसलमान, ततसख, ईसाई और पाससी सब को ततमल कर

अपनी ततशकायत वहाा क सरकारी अफसरोा तक पहाचानी चाततहय। यह िी म ठान कर

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उनोान सब लोगोा को एक ततकया और उनकी कोततशश स दकतकखनी अफरीका म काागरस न

िनम ततलया। सब ततहनदसतानी का अमीर और का गरीब तन, मन, धन स काागरस की मदद

करत थ। धीर धीर वहाा क अफसर ततहनदसताततनयोा की छोटी मोटी ततशकायतोा पर कान भी

धरन लग।“

“हरर ! शायद तम यह सोचत होग ततक आततखर गााधीिी क अफरीका िान स पहल

भी तो ततहनदसतानी वहाा बसत थ और उन पर ततफरागी यह सब िलम भी करत थ; ततफर कीसी

और को इस तरह उनकी हालत सधारन की क योा नही ा सझी ? बात यह ह ततक ततकसी क

पास ऐसा ततदल न था िो दसरोा की ततवपता दख कर कााप उठता। अपनी िान िोकतखम म

िाल कर गााधीिी बलवान क मकाबल म, ततनबल का साथ दत थ। यही कारन था ततक

अफरीका म उनोान कमजोर और दखी ततहनदसताततनयोा का साथ ततदया।“

“लोगोा की इस तरह सवा करन स गााधीिी का नाम बचच बचच की िबान पर चढ

गया। वहाा क ततहनदसतानी उन आदर और पयार स गााधीभाई पकारन लग। नाम क साथ

साथ उनकी बररसटरी भी चमक उठी।“

“अब वहाा क लोगोा न दखा ततक गााधीिी क ततबना उनका काम नही ा चलगा और न

उनक दख दर हो सक ग। इसततलए सबन ततमलकर गााधीिी स कहा ततक वह यही ा बस िाय,

अपनी बररसटरी भी कर और अपन ततहनदसतानी भाइयोा की सवा भी। गााधीिी न भी इस को

मनाततसब समझा और वह अफरीका म बसन को तयार हो गय और ६ महीन की छटटी ली

ततक ततहनदसतान िाकर अपन बीबी बचचोा को ल आय।“

“अफरीका स ततहनदसतान आन म उन ततदनोा चौवीस पचीस ततदन लगत थ। गााधीिी

का िी िहाि पर बकार बठ बठ घबरान लगा। उनोान साथी मसाततफरोा म स एक माशीिी

को ढाढ ततनकाला और उनस उद पढना शर कर ततदया।“

“ततहनदसतान पहाचत ही गााधीिी न अखबारोा और लकचरोा की मदद स अफरीका क

ततहनदसताततनयोा का सचचा सचचा हाल सार दश को बताया। सर फीरोिशाह महता और

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गोखल िस बड बड लीिरोा न उनकी बातोा पर परा धयान ततदया और मदद दन का परण

ततकया।“

“अभी वह यहाा लोगोा को तयार कर ही रह थ ततक दकतकखनी अफरीका स बलाव का

तार आ गया। गााधीिी अपन बाल बचचोा को लकर अफरीका चल ततदय। रासत म समदरी

तफान की मसीबत झलत और दसर मसाततफरोा की सवा करत करत वह िरबन वापस

लौट।”

हरर – “अचछा अममा ततफर का हआ ?”

माा – “हरर, अब तम भख होग, दोपहर का खाना रकखा ह, म गम ततकय दती हा, तम

पहल खाना खा लो ततफर बाकी कहानी सन लना”

हरर – “नही ा अममा, घर म कोई खाना नही ा खायगा तो म भी नही ा खाऊा गा। आप

कहानी सनाय िाइय।”

माा – “ना मर चााद, थोडा सा तो खा लो।”

हरर – “नही ा अममा, मझ ततबलकल भख नही ा, म तो कहानी सनागा।”

माा – “अचछा तो िसी तमहारी मरजी, लो ततफर सनो।”

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“इधर तो गााधीिी ततहनदसतान क लोगोा को बता रह थ ततक दकतकखनी अफरीका म

ततहनदसताततनयोा को गोरोा क हाथोा का दख पहाच रह ह , और उधर दकतकखनी अफरीका क

अखबारोा म यह सब खबर बढा चढा कर छापी िा रही थी ा। वहाा क गोर इसस और भी

ततचढ गय। उनका बस चलता तो वह न िान गााधीिी क साथ का सलक करत। पर मारन

वाल स बचान वाला अततधक बलवान होता ह। गााधीिी िहाज स उतर ही थ ततक कछ

ततफरागी लडकोा और गनडोा न उन घर ततलया और उन पर पतथरोा, गाद अािोा, घासोा और लातोा

की बौछार शर कर दी। बचार गााधीिी ततनढाल होकर वही ा एक िागल स लग कर खड

हो गय। भगवान की करनी, उनक एक अागरि ततमतर की बीबी उधर स िा रही थी ततक

अचानक उनकी नजर गााधीिी पर पडी। वह भीड को चीरती हई आई और उनक सामन

खडी हो गई। िब भीड कम हई तो उस अागरि औरत न उन उनक ततमतर रसतमिी क

यहाा पहाचा ततदया। शाम को कछ ततफरा ततगयोा न रसतमिी का घर घर ततलया। सारी भीड गला

फाड फाड कर कहन लगी —

“खटट सब क पड पर गााधीिी को फाासी दो।”

“गााधीिी क ततमतरोा न ततकसी न ततकसी तरह उन दसरी िगह पहाचा ततदया।“

“गााधीिी चाहत तो उन गनडोा पर मकदमा चला सकत थ और उनको सजा भी

ततदलवा सकत थ। पर नही ा, उन अपन ततपतािी का बताया हआ परम का पाठ याद था।

उनोान बड धय स काम ततलया, ताततक गोर बलवाई अपन ततकय पर आप पछताय। गााधीिी

की इस बात का वहाा क ततफरा ततगयोा पर बडा अचछा असर हआ और उनक ततदलोा म

ततहनदसताततनयोा क ततलए थोडी सी िगह हो गई।“

“अफरीका म िब बोअर लोगोा और अागरिोा म यदध हआ तो गााधीिी न अागरजोा का

साथ ततदया। कोई और होता तो अागरजोा स उनक बर वताव का बदला लता, पर ऐसा होता

तो क स। गााधीिी का तो सदा का ततनयम था, बराई का बदला भलाई स दो और दशमन का

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ततदल परम और महोबबत स िीत लो। इसी हततथयार स काम लकर गााधीिी न अागरजोा क

ततदलोा पर अपनी और अपन साथ अफरीका क दसर ततहनदसताततनयोा की सचचाई और नकी

की गहरी छाप लगा दी।“

“गााधीिी क घर म भगवान का ततदया सब कछ था। पतनी, बचच, रपया, पसा। पर

ततफर भी उनक ततदल को चन न था। गौतम बदध की तरह उन भी दततनया का ऐश आराम

बरा लगन लगा। बहत सोच ततवचार क बाद उनोान यह ठान ततलया ततक, दततनया का ऐश

आराम छोड कर सरल िीवन म ही उनको आननद ततमल सकता ह। यह तय करन क बाद

गााधीिी न अपना सारा काम अपन आप करना शर कर ततदया। कपड धोना, झाि दना,

पाखाना साफ करना, खाना पकाना, इस परकार धीर धीर सब काम वह अपन हाथोा स

करन लग।“

“एक ततदन वह ततकसी अागरज नाई की दकान पर बाल कटवान गय। तम िानो, उन

ततदनोा काल आदमी स अागरजोा को घणा तो थी ही, उस नाई न गााधीिी क बाल काटन स

इनकार कर ततदया। वह ततबना कछ कह सन घर लौट आय और अपन अागरजी ढाग क लमब

लमब बाल काट कर छोट कर ततलय। इसस पहल उनोान अपन बाल अपन हाथ स भला

काह को काट होाग, इसततलए ऐस छोट बड कट ततक िस सोत म चह न कतर ततलय होा।

दसर ततदन िब गााधीिी कचहरी गय तब साततथयोा न खब हासी उडाई पर िब उनोान बताया

ततक ततकस तरह ताग आकर उन अपन बाल आप काटन पड, तब वह सब चप रह गय।

इसक बाद गााधीिी न अागरजी ढाग क बाल रखना छोड ततदया और हमशा अपन बाल आप

काटा करत थ।”

हरर – “अममा ! अपन बाल काट कर िब गााधीिी न शीश म अपनी सरत दखी

होगी तब उन बडी हासी आई होगी ?”

माा – “अवशय, तमन तो दखा था वह क स हासमख आदमी थ।“

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“अचछा तो अागरजोा और बोअरोा क यदध क बाद सन १९०२ म िब शाकतनत हई, तब

गााधीिी को ततहनदसतान की याद सतान लगी और यहाा आकर दश की सवा करन की लगन

न उन गदगदाया। सामान बाधन लगा और ततहनदसतान लौट चलन की तयाररयाा होन लगी ा।

चलत समय गााधीिी को अफरीका क ततहनदसताततनयोा न उनकी सवाओा क बदल म बड

बड करीमती तोहफ ततदय। और कसतरबा को एक हीरोा का हार ततदया। गााधीिी न यह सब

चीज काागरस क दफतर म िमा करा दी ा ततक उनस लोगोा की सवा हो सक। गााधीिी का

कहना था ततक िनता क सवकोा को ऐसी चीजोा क लन या रखन का कोई हक नही ा।“

“सन १९०६ ई० म िब गााधीिी ततहनदसतान लौट तो कलकि म काागरस की तयाररयाा

बड जोरोा पर थी ा। सब ततहनदसताततनयोा क ततदलोा को आजादी की लगन लगी हई थी। गााधीिी

न दखा ततक ततहनदसताततनयोा म आजादी का िोश तो ह पर ततमल िल कर काम करन की

आदत नही ा ह। हर आदमी अपना काम दसरोा पर िालना चाहता ह और छोट छोट काम

करन म लोग, अपनी हतक समझत ह। यह दख कर गााधीिी न काागरस क कामोा का बीडा

उठाया और िलस म महमानोा क कमरोा की सफाई का काम अपन हाथ म ततलया। उनको

दख कर और लोग भी उनका हाथ बटान लग। इस क बाद गााधीिी काागरस सकरटर ी क

नीच मनशी का काम करन लग। उसी िलस म उनोान ततहनदसतान क लीिरोा को अफरीका

क ततहनदसताततनयोा का हाल सनाया और काागरस की हमददी हाततसल की।“

“काागरस का िलसा समापत होन पर िब वह घर लौट तो तीसर दरि म आय। वह

ततदन सो आि का ततदन, गााधीिी बराबर तीसर दरि म ही सफर करत रह। इस कारन स

एक तो उनका खच कम होता था दसर गरीबोा क साथ बठ कर उनस बात कर सकत थ।

गााधीिी कलकि स बनारस, आगरा, ियपर और पालनपर होत हए रािकोट पहाच, और

इस सार सफर म उनोान कल इकिीस रपय खच ततकय। वह सामान भी बहत थोडा साथ

लकर चलत थ, उनक साथ खाना रखन क ततलए टीन का एक कटोरदान हआ करता था

िो उन शरी गोखल न ततदया था, और एक मामली थल म एक गरम कोट, एक धोती, एक

कमीज और एक तौततलया।“

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हरर – “अममा ! उनक थल म साबन और दाात माािन का बरश भी तो होता होगा ?”

अममा – “नही ा बटा, वह अपन दाात कदरती बरश स साफ करत थ ततिस दातन कहत

ह।”

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“शरी गोखल, ततिनका नाम मन अभी ततलया था, ततहनदसतान क बहत बड लीिर थ।

वह गााधीिी को अपन छोट भाई की तरह समझत थ। उनक ही कहन पर गााधीिी न

बमबई म ततफर बररसटर ी शर की। अभी तीन चार महीन ही हए होाग ततक अफरीका स ततफर

बलाव क तार आन शर हो गय। वहाा क ततहनदसतानी चाहत थ ततक अफररका आ कर

गााधीिी अागरज विीर, ततमसटर चमबरलन स ततमल और ततहनदसताततनयोा की ततशकायत दर

कराय। गााधीिी न दखा ततक यह एक बडा काम ह ततिसक ततलए उनका अफरीका िाना

जररी ह। वह फौरन अफरीका चल ततदय, वहाा पहाच कर उनोान बररसटर ी छोड दी और

एक अखबार ततनकाला। पलग क बीमारोा की दख भाल की, मजदरोा की सवा करक उनकी

हालत सधारी और ततहनदसताततनयोा को बराबरी क हक ततदलान क ततलय इस बार उनोान और

जोर शोर स काम ततकया। उनी ा ततदनोा गााधीिी न अपन मन को पततवतर करन क ततलए बरत

रकख और गीता क तरह अधयाय माह जबानी याद ततकय। उनक ततदल म यह अचछी तरह स

िम गया था ततक दततनया क ठाठ बाट और ऐश आराम छोड कर ही आदमी भगवान क

रासत पर चल सकता ह।“

“उनोान समझ ततलया था ततक सासार क सब आदमी बराबर ह, कोई ततकसी स छोटा

बडा नही ा, गरीबोा म गरीब बन कर और घल ततमल कर ही रहना चाततहय। इसततलय वह एक

छोट स गााव म िाकर बस गय, वही ा अखबार का काम शर कर ततदया और गााव वालोा की

सी सादी ततजनदगी बसर करन लग। गााधीिी क अागरज ततमतरोा पर उनकी इन बातोा का इतना

गहरा असर हआ ततक तीन अागरज उनक साथ उसी गााव म आकर रहन लग।“

“उनी ा ततदनोा एततशया क लोगोा क ततवरदध अफरीका म नय नय कड कानन बनाय

गय। गााधीिी की सममततत स लोगोा न उन काननोा को तोडन क ततलय इस बार सतयागरह

शर कर ततदया। अततहासा की लडाई म गााधीिी का यही सब स बडा हततथयार था।

ततहनदसताततनयोा न सरकार की गोली और लाठी का उिर शाकतनत, अततहासा और बततलदान स

ततदया। िल िाना बचचोा का खल हो गया। गााधीिी सन १९०८ ई० म पहली बार कानन

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तोडन क ततलए िल भि गय। बीस ततदन क बाद गााधीिी को वहाा क बड वजीर िनरल

समटस न समझौत क ततलय परीटोररया बलाया। गााधीनी न यह शत रकखी ततक िब मर सब

साथी क द स छोड ततदय िायग तब म हकमत स समझौत की बात चीत करा गा। सब साथी

छोड ततदय गय और िोहाासबग की मकतिद म एक बडा िलसा हआ और सब न ततमल कर

यह तय ततकया ततक हकमत स समझौता होना चाततहय। पर कछ िोशील पठानोा को यह बात

अचछी नही ा लगी। यहाा तक ततक एक पठान न गााधीिी को पीटा भी ततिस स उनक ततसर म

बडी चोट आई।”

हरर – “अममा। तो ततफर गााधीिी न पठान को सजा नही ा ततदलवाई ?”

माा – “नही ा बटा, उनोान उस पर मकदमा चलान स इनकार कर ततदया और कहा –

'मर घाव की पटटी स मर शतर भी मरी ततमतरता क बाधन म बाध िायग।‘ और बटा, सचमच

ऐसा ही हआ। िब उस पठान न यह सना तो वह अपन ततकय पर बहत पछताया, गााधीिी

स माफी माागी और हमशा क ततलय उनका दोसत बन गया।“

“सन १९१४ ई० म दततनया म चारोा तरफ लडाई क बादल छाय हए थ। चार अगसत

को इागततलसतान न िमनी स लडाई का एलान कर ततदया और बड जोरोा स यदध ततछड गया।

गााधीिी न अब यह सोचा ततक इन ततदनोा मर दश को मरी सवा की जररत होगी। वह पहल

अफरीका स लादन गय और ततफर कछ ततदन वहाा रह कर ततहनदसतान आय। ९ िनवरी सन

१९१५ ई० को वह बमबई पहाच। उस समय वह ततहनदसतानी ततमल क बन हए कपड

काततठयावाडी कोट पगडी और धोती पहन हय थ।”

हरर – “कोट पहन कर वह बड अचछ लगत होाग। ततफर उनोान यह कपड पहनना

कब और क योा छोि ततदया ?”

माा – “हाा अचछ तो लगत ही थ। सन १९१९ ई० म िब उनोान दखा ततक दश म बहत

स गरीबोा को कोट का, करता भी पहनन को नही ा ततमलता तो उनोान यही पहनना शर

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कर ततदया िो ततहनदसतान का गरीब स गरीब आदमी पहनता ह। तब ही स वह एक छोटी

सी धोती पहनन लग और करत और कोट की िगह कभी कभी चादर ओढ लत थ।”

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“सन १९१५ ई० म गााधीिी न शरी गोखल की राय स गिरात क एक छोट स गााव

कोचरब म एक आशरम खोला। आशरम क हर ममबर को यह सौगनध खानी पडती थी ततक,

म कभी झठ नही ा बोलागा, अततहासा को मानागा, सादा खाना खाऊा गा, चोरी नही ा करा गा,

अपन ततलय रपया पसा िमा नही ा करा गा, ततकसी स िरा गा नही ा, सवदशी चीज बरतागा,

हाथ का कता और हाथ का बना खददर पहनागा, ततहनदसतानी बोली म ततवदया फ लान और

छतछात ततमटान की कोततशश करा गा।“

“कोचरब आशरम म अछत िाततत क लोग और ऊा ची िाततत वाल सब एक साथ रहत

सहत, उठत बठत और खात पीत थ। वहाा सब लोग बराबर थ, कोई ततकसी स ऊा चा या

नीचा न था। पहल तो आशरम वालोा को यह चीज कछ अदभत सी लगी पर धीर धीर आदत

हो गई। हमार दश म इस स पहल ऐसी बात भला काह को हई थी। बहत स लोगोा न इस

बरा समझा, यहाा तक ततक अमीर लोगोा न रपय पस स आशरम की मदद करनी बनद कर

दी। एक ततदन िब गााधीिी को पता चला ततक आशरम को चलान क ततलए एक कौडी भी नही ा

रही तो वह बड सोच म पड गय। शाम क समय वह उदास स बठ थ और हरान थ ततक

क या करा ततक इतन म यकायक एक अिनबी आदमी आशरम म आया और गााधीिी को

सोलह हिार रपय दकर चला गया। सब इशवर क सचच भकतोा और अललाह वालोा क ततलय

इसी तरह सामान पदा हो िाया करत ह।“

“गााधीिी क काम, उनकी सचचाई, उनकी नकी और उनक तयाग को दख कर

रवीनदरनाथ टगोर न उन 'महातमा' कहना शर कर ततदया। और ततफर सारा दश उन महातमा

क नाम स पकारन लगा। महातमािी िहाा िात सकडोा हजारोा लोग उनक दशन को आत,

उनक पााव छत और उनक हाथ चमत थ।“

“उस समय दश म अागरजोा स घणा बढती िा रही थी और लोग उनस ताग आ चक

थ। महातमािी चाहत थ ततक ततहममत और िोश तो बना रह पर ततकसी तरह घणा ततदलोा स

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धल िाय। वह यह भी खब िानत थ ततक अागरज की हकमत स टककर लना कोई खल नही ा।

इसक ततलय उनको सारी िनता को साथ लना होगा। बस उनोान गरीबोा, मजदरोा और

ततकसानोा क ततलय अपन आप को ति ततदया और उनकी हालत सधारन क ततलय सब तरह

की कोततशश करन लग।“

“इागततलसतान और िमनी की लडाई उन ततदनोा जोरोा पर थी और अागरजोा को इस

लडाई म ततहनदसताततनयोा की मदद की बडी जररत थी। उनोान गााधीिी को तयार कर

ततलया, ततक वह उनकी मदद कर। कोई दसरा होता, तो अागरजोा का बताव ततहनदसताततनयोा

क साथ दखत हए कभी अागरजोा की मदद न करता। पर गााधीिी का ततनयम था ततक शतर

की मसीबत स लाभ नही ा उठाना चाततहय, ततफर वह भला अागरज की मसीबत स लाभ क स

उठात। वह तो उन पर अहसान का बोझ िाल कर ततहनदसतान को उनक हाथोा स सवतातर

कराना चाहत थ। दसर, गााधीिी यह समझत थ ततक अागरज िो अतयाचार हम पर करत ह

यह उस कौम की घटटी म नही ा ह बकति कछ घततटया अागरज अफसरोा की, िो ततहनदसतान

म आकर राि करत ह, उनकी नासमझी क कारण ऐसा होता ह, और हम अागरज कौम

को अपन परम स मोह सकत ह। इसीततलय गााधीिी सवया गााव गााव गय और लोगोा स फौि

म भरती होन को कहा। इस काम म उनोान न ततदन दखा न रात, इतनी िान खपाई ततक

वह बीमार पड गय। अभी बीमार ही थ ततक खबर आई ततक लडाई खतम हो गई और साथ

ही भरती का काम भी बनद हो गया। इसी बीमारी म गााधीिी न बकरी का दध पीना शर

ततकया और मरत दम तक उबली हई तरकाररयोा और बकरी क दध पर बसर करत रह।”

हरर – “लडाई बनद हो िान स महातमािी और दश क सब लोग बहत खश हए

होाग?”

माा – “हाा, खश तो जरर हए ततक सासार म मारकाट बनद हो गई, पर हमार दश का

उस समय अदभत हाल था। लडाई बनद होन पर सब लोग समझत थ ततक अब अमन, चन,

उननततत और खशहाली क ततदन आयग। हमन अागरजोा क ततलय िो बततलदान ततकय थ, उनक

बदल म हम थोडी बहत आजादी ततमलगी। पर ततकसकी आजादी और क सी शाकतनत !

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अागरजोा न तो हम पर पहल स भी अततधक अतयाचार करना शर कर ततदया। ऐस नए नए

कानन बनाय ततिनस वह हमार बड स बड लीिरोा को छोटी स छोटी बात पर पकड कर

िल म ठा स सकत थ। ततफर का था, ऐसा अनधर दख कर कलकि स कराची और कशमीर

स रास कमारी तक गसस और िसस की एक लहर दौड गई। मि क कोन कोन म सभाय

हई, भाषण हए और हमार दश का बचचा और बढा, मद और औरत, ततहनद और मसलमान

कानन तोडन और दश क ततलय िान की बाजी लगान पर तल गया।“

“महातमा गााधी उठ खड हए और उनोान परम की जोततत िला कर अाधर दश म

उिाला कर ततदया। सार दश क लोगोा न एक िबान हो कर अागरज स सवराि माागना शर

ततकया। गााधीिी सब क लीिर बन। उनोान सब स पहली शत यह लगाई ततक अागरजी राि

स लडन म ततसफ अततहासा और शाकतनत स काम ततलया िाय, मारपीट का नाम तक न हो,

मसलमान और ततहाद का ध स का धा िोड कर अागरि सरकार स लडन क ततलय खड हो

गय। महातमा गााधी न एक ततदन ऐसा रकखा, िब दश क चपप चपप म हडताल की गई। सब

कारोबार बनद हो गय, मसलमानोा न रोज और ततहनदओन बरत रख, मकतनदरोा, मकतिदोा और

गरदवारोा म दआय माागी गई ततक भगवान हमार दश को सवतातर करा द।“

“हडताल की सचना सार मि म फ ल गई, भला सरकार को यह बात क स अचछी

लगती। उसन हम दबान क ततलय हम पर तरह तरह क अतयाचार शर कर ततदय। अमतसर

म िततलयाावाला बाग म िलसा करन वालोा पर िनरल िायर न गोली चलान का हकम

ततदया। सकडोा ततनहतथ मद, औरत, बचच, िवान और बढ थोडी सी दर म भन िाल गय।

पािाबभर म हजारोा को िलोा म ठा स ततदया गया।“

“िाक, सवा तार सब बनद थ। पािाब की खबर महातमा गााधी तक पहाच तो कोा कर

पहाच। पर ऐसी बात भला कब तक छप सकती थी। थोड ततदन बाद ततकसी न ततकसी तरह

पािाब की ततवपता की खबर महातमािी तक पहाच ही गई। यह दःखभरी कहानी सन कर

उनका ततदल भर आया, तडप कर पािाब वालोा की मदद क ततलय चल ततनकल। वह अमतसर

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पहाचन भी न पाय थ ततक रासत ही म सरकार न उनको पकड कर लौटा ततदया और यह

ततफर बमबई पहाचा ततदय गय।“

अागरि राि का सारा बल महातमा गााधी को दबान पर तला हआ था। पर इस सिी

स महातमािी की ततहामत न टटी, बकति वह पहल स भी अततधक नीिर होकर काम करन

लग। इस दश की सब िातततयोा को एक करन की कोततशश म लग गय। उनकी महनत फल

लाई और बड बड मसलमान लीिर, ततहनद लीिरोा क साथ एक ही झाि क नीच िमा हो

गय। इन दोनोा िातततयोा को एक करन क बाद भी बहत सा काम बाकी था। सचची आजादी

हाततसल करन क ततलय अभी और तयाररयाा जररी थी ा : महातमािी न ततनबल क ततदल स

बलवान का िर, गरीब क ततदल स अमीर का िर, ततकसान क ततदल स जमी ादार का िर,

हररिन क ततदल स बराहमन का िर और ततहनदसतानी क ततदल स अागरज का िर ततनकालन

क ततलय यतन करन शर ततकय। वह बार बार पकार पकार कर कहत थ ततक लोगोा क ततदलोा

स हर तरह का िर ततनकालन और उन आजाद करान क ततलय, सचाई और अततहासा सब

स अततधक जररी ह।

“आि स दो हजार बरस पहल महातमा बदध न ततहनदसताततनयोा को अततहासा का सबक

पढाया था। पर उस हम भल चक थ। महातमािी न ततफर पाठ दोहराया ततक ततकसी की िान

लना सब स बडा पाप ह। और साथ ही साथ यह भी बताया ततक हम दश की आजादी और

अपनी आजादी क ततलय लडना चाततहय। पर यह लडाई खनी हततथयारोा स नही ा लडी िायगी

बकति शाकतनत स लडी िायगी। ततहनदसतानी सो चक थ, महातमािी न हम झािोड कर

िगाया। उनोान अपन एलची गााव गााव भि ततक िनता अपन आप को सवतातर करान क

ततलय तयार हो िाय। इसी क साथ साथ उनोान यह कोततशश भी की ततक लोग पढना, ततलखना,

चखा कातना और कपडा बनना भी सीख। छतछात छोड द और शराब पीना बनद कर द।

महातमािी, िो कछ दसरोा स कराना चाहत थ वह पहल सवया करत थ। इसीततलय उनोान

चखा कातना सीखा और थोड ही ततदनोा म वह दोनोा हाथोा स कातन लग।“

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“अभी महातमािी ततहनदसतान को िगा कर होततशयार कर ही रह थ ततक इतन म सना

ततक इागततलसतान क बादशाह का बडा बटा ततहादसतान आ रहा ह। इस समय लोग ततकसी

तरह सवागत करन को तयार न थ। उनको अागरज सरकार स बडी ततशकायत थी ततक वह

उन पर रोब िालन क ततलय बादशाह क बट को यहाा बला रही ह। सबन तय ततकया ततक

वह िलस या िलस म शाततमल न होाग। एक ओर तो बादशाह क बट की सवारी बमबई क

सि हए पर सनसान बाजारोा म स ततनकल रही थी और दसरी ओर लोग ततवदशी कपडोा क

ढर लगा लगा कर उन आग लगा रह थ। इसततलय ततक सवदशी माल क परचार का उन ततदनोा

बडा जोर था।“

“यह सब कछ बडी शााततत क साथ हो रहा था ततक एक दम कछ ततसरततफरोा न िोश

म आकर अहमदाबाद और बमबई म मार-धाड शर कर दी | कछ अागरजोा पर पतथर

बरसाय। ततिन पारततसयोा न बादशाह क बट क सवागत म भाग ततलया था उनको पीटा, टर ाम

गाततडयाा तोड िाली ा और शराब की दकानोा म घस कर तोडफोड की। िब महातमािी को

इस की सचना ततमली तो वह सवया मोटर म बठ कर बमबई म िगह िगह गय। एक िगह

उनोान दखा ततक दो घायल पततलस वाल चारपाइयोा पर बहोश पड ह। िस ही महातमािी

मोटर स उतर, भीड न उन घर ततलया और हर तरफ स 'महातमािी की िय' पकारी िान

लगी। अपन नाम पर लटमार और तबाही दख कर उनक ततदल को चोट लगी। उनोान

लोगोा को बरा भला कहा और समझाया ततक इस ढाग स हकमत स लडना, गााधी और

अततहासा, दोनोा की हार ह। उनोान कहा ततक म कभी ऐसी आजादी नही ा चाहता िो ततहासा क

बाद हाथ लग। िब लोगोा न यह सना तब वह अपन ततकय पर बहत पछताय। गााधीिी न

घायल ततसपाततहयोा को वहाा स उठा कर असपताल पहाचा ततदया। अभी गााधीिी लोगोा को

समझा बझा कर ठा िा करन ही पाय थ, ततक खबर आई, शहर क ततकसी दसर ततहसस म एक

िलस पर पततलस न गोततलयाा बरसाईा। इस का सनना था ततक शहर म हलचल मच गईा।

िगह िगह लोगोा न दकान तोडी, गाततडयाा िलाईा और िो न करना था वह ततकया।“

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“गााधीिी न िब दखा ततक लोग आप स बाहर हए िा रह ह तो उनोान बरत रखन की

ठानी और कहा – ‘म लोगोा क ततकय की सजा सवया भगतागा और िब तक वह ततहनद और

मसलमान ततिनोान अततहासा का ततनयम तोडा ह िाकर उन पारसी ईसाई और यहदी भाईयोा

स ततिनको हमार हाथोा दख पहाचा ह, माफी नही ा माागग म अपना बरत नही ा खोलागा।' “

“िो कछ महातमािी चाहत थ वही हआ। सब पारततटयोा क लीिर ततमल कर उनक

पास आय और उनको यकीन ततदलाया ततक मार-पीट करन वालोा न एक एक स माफी माागी

ह और ततिनको दख पहाचा था, उनोान माफ भी कर ततदया ह, तब कही ा िाकर गााधीिी न

अपना बरत खोला। उसी ततदन स गााधीिी न अहद ततकया ततक िब तक ततहनदसतान को सवराि

नही ा ततमलगा वह हर सोमवार को मौन बरत रकखा कर ग।”

हरर - “अममा, महातमािी हर सोमवार को मौन बरत क योा रखत थ ?”

माा - “इसस महातमािी को बडा आराम ततमलता था। उन सोचन, समझन क ततलय

चौबीस घनट ततमल िात थ, और इसी ततदन वह अपन समाचार पतर क ततलय लख ततलखत थ|”

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१०

“गााधीिी सोच रह थ ततक अततहासा की लडाई को िारी रकख या छोड द। बमबई का

हाल दखकर उनको यह िर था ततक कही ा लोग िोश म आकर ततफर मारपीट शर न कर

द पर िब और शहरोा स खबर आईा ततक वहाा सतयागरह और हडताल ततबलकल शाकतनत स

हईा तो उनकी ततहममत बाधी और वह अततहासा की लडाई िारी रखन को तयार हो गय |”

“हडतालोा क बाद बहत स लोगोा न ततवदशी माल खरीदना छोड ततदया, ततिस स

इागततलसतान क कारखानोा को बहत नकसान उठाना पडा | सरकार न इस आादोलन को

दबान क ततलए हमार बड बड लीिरोा िस पाततित मोतीलाल नहर, दशबनध ततचतरािनदास,

लाला लािपतराय, मौलाना आजाद और सकडोा और दशभकतोा को पकड पकड कर

िलोा म भर ततदया |”

“कोई ओर होता तो उसका िी छट िाता और वह ततहममत हार कर बठ िाता, पर

गााधीिी सवतातरता का झािा दढता स थाम िट कर सरकार स मकाबला करत रह। उनोान

बार बार वायसराय स कहा ततक वह हमार लीडरोा को छोड द पर वायसराय इस बात पर

तयार न हए।“

“आजादी की लडाई जोरोा पर थी। मालम होता था ततक िीत हमारी ही होगी, ततक

एकाएक खबर आई ततक महातमािी न लडाई रोक दी। ततकसी की कछ समझ म न आया

ततक बात क या ह। कोई कहता महातमािी अागरिोा स िर गय, कोई कहता अागरजोा स

समझौता कर ततलया। ततितन माह उतनी बात। पर समझदार लोग िान गय ततक असली बात

का ह।'”

हरर - “अममा, वह असली बात कया थी ? महातमािी न लडाई कोा रोकी ?”

माा - “बात यह थी, महातमािी न िब दश की आजदी की लडाई शर की तो बार

बार अततहासा कर पाठ दोहराया। वह िानत थ ततक इतनी बडी सरकार स लडना आसान

काम नही ा। िब लोग सरकार का मकाबला कर ग तो सरकार लोगोा को दाि जरर दगी।

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पततलस उन पर लाततठयाा बरसायगी, गोली चलायगी। ऐस म शानत रहना ही तो अततहासा की

सचची पहचान होगी। दश म िगह-िगह लोग कानन तोड रह थ और िवाब म चपचाप

लाततठयाा खा रह थ। पर य. पी. म गोरखपर ततजल क गााव चौरीचौरा म कछ िवानोा न मार-

पीट का उिर मार-पीट स ततदया और एक पततलस चौकी को आग लगा दी। उसम इककीस

पततलस वाल िल कर मर गय। लोगोा की इस हरकत पर महातमािी को बडा दख हआ

और उनोान उसी दम लडाई बनद करन की आजञा द दी और कहा – ‘िो सवतातरता ततकसी

मनषय की िान लकर या ततकसी को दख दकर ततमल वह ततकसी काम की नही ा। ऐसी आजादी

स गलामी हजार गना अचछी ह। म िानता हा ततक भल मझ स ही हई ह। दश क लोग अभी

अततहासा का पाठ परी तरह पढ नही ा पाय। िब तक वह अततहासा को अपन असली रप म

नही ा पहचानग तब तक सतयागरह नही ा कर सकत। सतयागरह क ततलय नमी, सचचाई, सबर,

समझदारी, बरदाशत और ततमतर शतर दोनोा क ततलय परम जररी ह।' “

“सवया अपनी भल और अपन दश वालोा की भल को खललम-खलला मान लन ही

पर गााधीिी न बस नही ा की, उनोान साथ ही साथ पााच ततदन का बरत भी रखा और बमबई स

साबरमती आशरम लौट आय। वहाा स वह अततहासा का परचार दशभर म करना चाहत थ।

अभी वह साबरमती पहाच ही थ ततक चौथ ततदन सरकार न उन पकड ततलया और कसतरबा

न उनकी तरफ स दशवालोा को सनदश ततभिवाया ततक सब लोग ततवदशी कपड छोड कर

सवदशी कपड पहन, चखा कात, छतछात छोड द और दश सधार का काम कर ।“

“गााधीिी न िल की सब सकतियाा हास हास कर झली ा। रोज सवर उठ कर गीता

पढत, दोपहर को करान और शाम को एक चीनी ईसाई क साथ बाइततबल पढा करत, चखा

कातत और िो समय बचता उसम उद और ताततमल ततलखना पढना सीखत।“

“गााधीिी योा तो हमारी आाखोा स ओझल थ, मगर हमार ततदलोा म उनकी याद

हरदम रहती थी। उन िल गय दो बरस भी न बीत थ ततक वह बहत बीमार हो गय | उनकी

बीमारी की खबर सन कर सार दश म हलचल मच गई। छ: महीन बीमार रहन क बाद

िब सरकार न उनक अचछ होन की कोई और सरत न दखी, तब उन पना क सरकारी

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असपताल म भि ततदया। वहाा एक बहत बड िाकटर न उनका एपततिकस का आपरशन

ततकया। कछ ततदन बाद यह मालम हआ ततक अब वह बच िायग, तो कछ न पछो, ततहनदसतान

वाल ततकतन परसन न थ।“

“फरवरी का मततहना शर होत ही खबर ततमली ततक सरकार न गााधीिी को िल स

छोड ततदया ह। गााधीिी न िल स ततनकलत ही मौलाना मोहममद अली को, िो उन ततदनोा

काागरस क परजीिट थ, पतर ततलखा ततक इस तरह की ररहाई स मझ ततबलकल खशी नही ा और

िब तक ६ साल पर नही ा हो िायग म िल स बाहर होत हए भी अपन आप को सरकार

का क दी ही समझागा, और आजादी की लडाई म सरकार स कोई टककर नही ा लागा।“

“पना क असपताल स गााधीिी को बमबई क पास समदर क ततकनार िह भि ततदया

गया। यहाा गााधीिी धीर धीर अचछ होन लग। उनक पास आजादी क मतवाल पाततित

मोतीलाल नहर, दशबनध ततचतरािन दास और पाततित िवाहरलाल सब आत। गााधीिी उन

सबस घाटोा बठ कर सवराि की बात करत, और अब तो यह बात गााधीिी क ततदल म घर

कर गई ततक िब तक इस दश स गरीबी, मढता, छतछात और फट दर नही ा होगी, तक

तक यह दश आग नही ा बढ सकता, और सदा इसी तरह गलामोा म िकडा रहगा |”

“अचछ होत ही गााधीिी न ततहनदसतान की हालत सधारन क ततलय अनथक कोततशश

शर कर दी | िगह िगह लोगोा को सत कातना और कपडा बनना ततसखया िान लगा

ताततक व ततवदशी कपडा छोड द | शराब बनद करन और छतछात को ततमटान की कोततशश

होन लगी और फट दर करन क ततलय गााधीिी दौड धप करन लग |”

“गााधीिी न िो कछ कहा था, वही ततकया और सरकार स कोई टककर न

ली | ततफर भी सरकार को िर था ततक अगर कही ा ततहनद, मसलमान, ततसख, पारसी और ईसाई

एक ही झाि क नीच आ गय, तो बडी स बडी सरकार भी उनक सामन न िम सकगी |

यही कारण था ततक कछ सरकारी अफसरोा न गााधीिी की कोततशशोा को माततलयामट करन

क ततलय ततहनद, मसलमानोा, दोनोा को बहकाना और उनम फट िलवान की चाल चलनी

शर कर दी ा |”

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हरर – “अममा ! पर ततहनद और मसलमान उन बर अफसरोा क कहन म कोा आ

गय?”

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११

माा – “बटा हरर ! यह तो तम िानत ही हो ततक घना और कट का पाठ पढना ततकतना

आसान ह और मल महबबत और परम करना ततकतना कततठन | मख ततहनद और मसलमान

भी अपन रासत स भटक गय और गााधीिी का परम सादश भलाकर एक दसर स लडन लग

और थोड ही ततदनोा म सवतातरता की माततजल आाखोा स ओझल हो गई |”

”ततहनदओा और मसलमानोा को, एक दसर का रकत बहात दख कर महातमािी क

दख की कोई सीमा न रही | ततदलली म िब ततहनद और मसलमानोा म लडाई हई, तब

महातमािी ततदलली पहाच | वहाा उनोान इककीस ततदन का कततठन बरत रखा | वह अपन बरत

स और दआओा स लोगोा क ततदलोा म एक दसर क ततलए परम पदा करना चाहत थ |”

“बरत क गयारह ततदन तो लोगोा न ततकसी न ततकसी तरह ततबता ततदय, पर बारहव ततदन

िाकटर न कहा ततक अगर गााधीिी अब अपना बरत नही ा खोलग तो उनकी िान का िर ह।

यह खबर सनत ही सार दश पर िस अाधरा छा गया। सब ततमतर और िाकटर ततमल कर

गााधीिी पर दबाव िालन लग ततक वह बरत खोल द। उस रोज गााधीिी का मौन बरत भी था।

इसततलय उनोान एक परच पर ततलख ततदया - ‘भगवान पर भरोसा रखो, पराथना म बडी शकतकत

ह’ | वह रात बडी भयानक रात थी, सब लोग सार वकत िागत और परभ स ततगडततगडा

ततगडततगडा कर महातमािी की ततजनदगी क ततलय ततभकषा माागत रह |”

हरर - “अममा ! तो का भगवान न उनकी सन ली ?”

माा - “हाा ! उसन हमारी ततवनय सन ली और सवरा होन पर समाचार ततमला ततक

महातमािी की तततबयत पहल स बहत अचछी ह। इककीस ततदन पर होन पर िब गााधीिी न

अपना बरत खोला, तो वह बहत परसन न ततदखाई दत थ।“

“उस ततदन गााधीिी क सब ततमतर सबह चार बि पराथना क ततलय उठ। दोपहर क

बारह बि गााधीिी अपना बरत खोलन वाल थ। पहल करान पढा गया, ततफर एक ईसाई

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ततमतर न एक गीत गाया, ततफर गीता पढी गई, उसक बाद गााधीिीन सातर क रस स अपना

बरत खोला।“

“सब ततहनद और मसलमान नता, पाततित मोतीलाल नहर, दशबनध ततचतरािन दास,

मौलाना आजाद, मौलाना शौकत अली, िाकटर अासारी, मौलाना मोहममद अली, हकीम

अिमल खाा और सवामी शरदधानाद िो वहाा उपकतथथत थ, उनोान वचन ततदया ततक वह ततहनदओा

और मसलमानोा को एक करन म कोई कसर उठा न रखग। गााधीिी क बरत क कारन

बहत ततदनोा तक ततहनद और मसलमान एक रह।“

“यह दख कर गााधीिी न दसरा काम हाथ म ततलया और छतछात दर करन क परयतन

म लग गय। उनी ा ततदनोा टर ावाकोर क बराहमन, हररिनोा को खास खास सडकोा पर चलन की

आजञा नही ा दत थ। िब गााधीिीन यह सना तो वह तरनत टर ावाकोर पहाच और उनोान अपन

सतयागरह क परान हततथयार को काम म लाकर, सब सडक हररिनोा क ततलय खलवा दी ा।“

“उसी जमान म गिरात क खडा ततजल म, ततकसानोा और सरकार म लडाई ततछड

गई, िब गााधीिी को पता चला ततक सरकार ततकसानोा पर िलम कर रही ह तब उनोान

सरदार वललभभाई पटल को, ततकसानोा का नता बनाकर भिा। सरदार न अपनी होततशयारी

और अनथक कोततशशोा स सरकार क छकक छडा ततदय और ततकसानोा क ततलय खडा का

मदान िीत ततलया।“

“दश म अशाकतनत बराबर बढती िा रही थी, सारा दश महातमा गााधी की िय िय

कार स गाि रहा था। ततहनदसतान को परी सवतातरता ततदलवान क ततलय लोग िान दन और

िलोा म िान क ततलय बचन थ।“

“योा तो महातमा गााधी न सन १९२१ ई. म ही तततरा ग झाि को हमारा कौमी झािा

मान ततलया था, पर सन १९३० ई. म काागरस न उस अपना झािा बना ततलया।“

“इस झाि म सब स ऊपर का कसरी राग बहादरी का, बीच का सफद पततवतरता या

पाकीजगी का और नीच का हरा राग, सख चन और खशहाली का ततचहन ह। चखा महनत

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मिदरी की इजजत करना ततसखाता ह। यह झािा ततकसी अलग दीन धम का नही ा बकति

सबका ह। इस झाि का आदर करना हर ततहनदसतानी का कतवय ह।“

“दश ततनवासी आजादी पान क ततलय बचन थ मगर अागरज बार बार हमारी इस मााग

को ठकरात रह। इसी कारन गााधीिी कानन तोड कर सरकार क ततवरदध सतयागरह करना

चाहत थ। वह कोई ऐसा कानन तोडना चाहत थ ततिसक तोडन स िनता का लाभ हो।

नमक एक ऐसी चीज ह िो अमीर गरीब सब क काम म आता ह, और समदर क पानी स

और बाज िगह की ततमटटी स भी, िो चाह नमक बना सकता ह। पर सरकार न ऐसा कानन

बना रखा था ततक ततसवाय सरकार क ततकसी और को नमक बनान की आजञा नही ा थी और

सरकार ततितना चाहती उतना टकस वसल करती थी। महातमािी का ततवचार था ततक इस

टकस का बोझ अमीरोा स अततधक गरीबोा पर पडता ह। इसततलय उनोान सबस पहल नमक

ही क कानन को तोाडन की तयारी की और गिरात म िाािी िाकर, नमक बनान का

फ सला ततकया। वहाा ततसधारन स पहल उनोान बरत रखा और उन नासी साततथयोा को लकर

अपन साबरमती आशरम स पदल रवाना हए। गााधीिी आग आग और उनक साथी, तीन

तीन की कतार म पीछ पीछ थ। हर एक सतयागरही क कनध पर एक लाठी म लटकी हई

एक छोटी सी गठरी थी। िहाा िहाा महातमािी िात वहाा वहाा लोग उनक दशन को आत।

सडकोा पर ततछडकाव करत तथा फल और नाररयल लात। महातमािी िगह िगह रकत

तकरीर करत, उपदश दत बारह माच क चल हए पााच अपरल को दाािी पहाच। िाािी

गिरात का एक बनदरगाह ह िो अहमदाबाद स दो सौ मील पर ह।“

“िब महातमािी न कानन तोड कर नमक बनाया तो ऐसा मालम हआ ततक दश भर

सोत स िाग उठा | िगह िगह लोगोा न शाकतनत क साथ कानन तोड कर नमक बनाना

शर ततकया और सरकार न उतनी ही कठोरता क साथ उन दाि दना शर ततकया |”

“चार मई की रात को एक बि हततथयारबनद पततलस न आकर गााधीिी की झोापडी

को घर ततलया। गााधीिी और सब सतयागरही ब-खबर सो रह थ ततक पततलस का एक अागरज

अफसर गााधीिी पर टाच की रोशनी िालत हए बोला, 'का आप ही मोहनदास करमचाद

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गााधी ह ? गााधीिीन कहा – ‘का आप मझ लन आय ह ? ठहररय, म अभी आता हा, िरा

माह हाथ धो ला तो आपक साथ चलता हा।‘ गााधीिी न दाात मााज, माह धोया और पततलस का

अफसर उनकी गठरी हाथ म ततलय खडा रहा। माह धो लन क बाद गााधीिी न कहा -

'महरबानी कर क मझ चनद ततमनट पराथना क ततलय और द दीततिय | ततफर गााधीिी और

उनक साततथयोा न ततमल कर भिन गाय और पराथना की। सबन एक एक करक हाथ िोड

कर महातमािी को परनाम ततकया। एक पततलस वाल न खददर क दो छोट छोट थल उठाय,

ततिसम गााधीिी की जररत की चीज थी ा। ततफर आग आग वह और पीछ पीछ पततलस वाल

सब लारी म बठ गय। योा रात म चोरोा की तरह पततलस वाल आय और हमार गााधी बाबा

को उठा कर ल गय।”

हरर - “तो उनोान शोर कोा न मचा ततदया, लोग आकर उन पततलस वालोा क हाथ स

छडा लत ?”

माा - “बटा ! तम सन चक हो, वह कभी नही ा चाहत थ ततक लोग पततलस या सरकार

क मकाबल म ततहासा या जबरदसती स काम ल, और ततफर ऐसी बात पछत हो !”

हरर - “हाा ! मातािी म भल गया था। अचछा तो ततफर का हआ ?”

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१२

माा - “आठ महीन तक बाप िल म रह। िब िल स छट तो ततहनदसतान का नकशा

बदल चका था। गााधीिी का दश पर इतना असर हो चका था ततक अपन बल पर घमनड

करन वाली अागरज सरकार को अततहासा क पिारी गााधीिी स समझौता करना पडा।“

“इस समझौत क ततलय ततवलायत म एक गोल मज कानफरनस हई। काागरस न

अपनी ओर स गााधीिी को अपना परतततततनततध बना कर कानफरनस म भिा। चलत समय

महातमािी न दश वालोा स कहा – ‘म वचन दता हा ततक तमन मझ पर िो भरोसा ततकया ह

उसको म झठा नही ा होन दागा।'”

“बारह ततसतमबर को गााधीिी लादन पहाच। वहाा अखबारोा म उनकी बडी बडी तथ वीर

ततनकली ा। एक अखबार न एक मन गढात तसवीर म ततदखाया ततक महातमािी ततपरास आफ वलस

क पााव छ रह ह। बाप इस ततचतर को दख कर मसकराय और बोल - “म अपन दश क गरीब

स गरीब भागी क सामन झकन को तयार हा और मझ उस अछत क, ततिस हमन सततदयोा

कचला ह, पााव छन म इनकार नही ा, पर इा कतिसतान क रािकमार क तो का, बादशाह क

भी पााव कभी नही ा छऊा गा।“

“बाप न गोल मज कानफरनस म भाषन दत हए कहा – ‘म ततकसी तरह भी ततहनदसतान

म अागरज को जलील करना नही ा चाहता, हाा ! इतना जरर चाहता हा ततक इागततलसतान,

ततहनदसतान को अपन बराबर का समझ और िो वयवहार, अपन बराबर वालोा स ततकया

िाता ह, वह अागरज, ततहनदसताततनयोा स कर।“

“कानफरनस िब समापत हई तब बादशाह और मलका न काागरस क सब ममबरोा

को महल म ततमलन को बलाया, और सब लोग तो बततढया बततढया सट पहनकर गय पर बाप

एक मामली सा कमबल ओढ, मामली खददर की धोती पहन, चपपल पााव म िाल, इागततलसतान

क बादशाह क शानदार महल म पहाच।”

हरर - “माा ! उनोान बादशाह क महल म िात समय भी अचछ कपड नही ा

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पहन ?”

माा - “बात यह ह ततक हमार गरीब दश क परतततततनततध को गरीबोा क स कपड ही सित

थ। िब वह वहाा पहाच तो बादशाह और मलका दर तक महातमा गााधी स बात करत रह।”

हरर - “सचमच अममा !”

माा - “इागततलसतान म बाप एक गरीब अागरज औरत, ततमस ततलसटर क घर महमान

थ। वहाा वह उसी ढाग स रह ततिस ढाग स ततहनदसतान म रहत थ। सबह शाम पराथना करत

और रोज पदल घमन िात। उनकी सादगी और परम का पररणाम इागततलसतान क ततनधन

लोगोा क ततदलोा पर बहत पडा और अभी तक बाकी ह।“

“िब कोई आदमी ततकसी नय शहर या दश म िाता ह तब वहाा क नामी आदततमयोा

स ततमलन, उनक घर अवशय िाता ह। इसी रीततत क अनसार बाप, ततमसटर चरततचल स ततमलना

चाहत थ, पर ततमसटर चरततचल न हमार बाप स ततमलन स यह कह कर इनकार कर ततदया

ततक 'म उस नाग फकीर स उस समय तक ततमलन को तयार नही ा, िब तक वह ढाग क

कपड पहन कर न आय।' “

“बाप पर ततमसटर चरततचल की बदतमीजी का कछ भी असर न हआ, मगर

ततहनदसताततनयोा का ततदल ततमसटर चरततचल क इस उिर स बहत दखा।“

“िब इागततलसतान और ततहनदसतान म कोई समझोता न हो सका, तो महातमािी अपन

दश को वापस लौट। राह म वह इटली म रक और वहाा क ततिकटटर मसोततलनी स ततमल,

पोप का महल वततटकन दखा और ततदसमबर क आखीर म बमबई पहाच। उस समय दश म

चारोा ओर पकड धकड हो रही थी। सरकार हमार सब बढ बड नताओा, िस पाततित

िवाहरलाल, खान अबदल गफफार खाा और सरदार पटल को पकड पकड कर िलोा म

ठा स रही थी। कछ नही ा, तो नवव हजार आदमी उस समय तक क द हो चक थ। अागरजोा

की यह कोततशश थी ततक ततकसी न ततकसी ढाग स काागरस को खतम कर ततदया िाय। पर लोगोा

पर इसका उलटा ही असर हआ। वह सवराि की धन म और पकक होत गय। धीर धीर

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सरकार की ओर स सकतियाा बढती गईा और उसन महातमािी को ततफर पकड कर िल म

भि ततदया। सरकार का ततवचार था ततक बाप को क द म िाल कर वह सार ततहनदसतान की

ततहममत तोड सकती ह। भला यह क स हो सकता था, ततक बाप का रौशन ततकया हआ ततदया,

ऐसी आसानी स बझ िाता। बाप क िल चल िान क बाद, दश की कततठनाइयाा बढती ही

गईा। बाप क द म दश की ततवपता का हाल सन सन कर धल िात थ। अनत म ततववश होकर

उनोान सरकार की सकतियोा को रोकन क ततलय मरन बरत रकखा, तो सरकार न उन छोड

ततदया। उनोान बाहर आत ही सतयागरह रोक ततदया और अछतोदवार क काम म लग गय।”

हरर- “अममा ! अछतोा को हररिन कोा कहत ह ?”

माा- “बटा ! लोग ततिन अछत समझत ह वासतव म वही तो हरर यानी भगवान क

बनदोा की सबस अततधक सवा करत ह, इसीततलय वही भगवान को सबस बढकर पयार होन

चाततहय। यह समझ कर ही बाप न उन हररिन या भगवान क पयार कहना शर कर ततदया।

योा उनका नाम हररिन पड गया।”

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१३

“तम सन चक हो ततक बाप बचपन ही स छत छात को बरा समझत थ। वह दश म

इस बर ररवाि को दखत और ततदल ही ततदल म कढत थ। उनका कहना था ततक सब आदमी

बराबर ह, ततकसी को यह अततधकार नही ा ततक वह अपन आपको ततकसी दसर स ऊा चा समझ।

भगवान की दतति म परतयक मनषय अपन कामोा क कारन अचछा या बरा होता ह। िात पाात

सब मन गढात ढकोसल ह।“

“िो बात वह अपन दश वालोा को बताना चाहत थ उस कहत ही नही ा थ, करक भी

ततदखाया करत थ। उनोान वधा म एक आशरम खोला िो 'सवागराम आशरम क नाम स परततसदध

हो गया। यहाा हर िाततत और धम क आदमी आकर रह सकत थ। आशरम म रहन क ततलय

कछ शत थी ा, िो हर आशरम वाल को परी करनी पडती थी ा। हर एक को अपना सब काम

अपन हाथ स करना पडता था िस चककी पीसना, कपड धोना, खाना पकाना, झाड दना,

पाखाना साफ करना इतयाततद। गााधीिी और कसतरबा भी सब आशरम वालोा की तरह यह

काम अपन हाथ स करत थ। सब आशरम वालोा क ततलय एक ही थथान पर खाना पकता

और सब एक ही िगह बठ कर खाना खात थ। खाना शर करन स पहल सब भगवान

को समरण करत और ‘शाकतनत:, शाकतनत:, शाकतनत:,’ कह कर खाना शर कर दत।“

“बाप की आदत थी ततक िब तक रोज आशरम का कोना न दख लत उन चन न

आता था। यततद कही ा जरा सा भी कडा करकट दखत, झट अपन आप उस साफ करन

लगत। आशरम म कोई बीमार होता तो गााधीिी उस जरर िाकर दखत, उस हासा कर

उसका ततदल बहलात। बीमारोा की सवा और इलाि करना भी खब िानत थ।“

“एक बार का वतानत ह ततक आशरम म एक मदरासी लडक को पततचश हो गई। िब

वह कछ अचछा हो गया तो लट लट एक ततदन वह दकतकखन की मजदार काफी को याद कर

रहा था। योा तो उसन, और सब आशरम वालोा की तरह मामली उबला हआ खाना, खाना

सीख ततलया था पर उस काफी सदा याद आती थी। काफी, चाय और पान की आशरम म

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बकतनदश थी, तो ततफर यह मदरासी लडका काफी क स पी सकता था ! वह अभी काफी क

धयान म ही था ततक उस महातमा िी की खडाऊा की खटपट सनाई दी, और थोडी दर म

बाप का मसकराता हआ चहरा ततदखाई ततदया। बाप उसक पलाग क पास आकर बोल, आि

तो तम पहल स बहत अचछ मालम होत हो। अब तो तमह भख भी लगती होगी, कहो का

खाओग, दोसा खान को तो िी नही ा चाहता ?’ गााधीिी िानत थ ततक दकतकखन वालोा को दोस

पसनद होत ह।''

हरर- “अममा ! दोस का होत ह।”

माा - “यह एक परकार क नमकीन चोल होत ह, िो कवल दकतकखन म बनत ह। बाप

क माह स खान की बात सन कर लडक की आाखोा म चमक आ गई। वह ततहचततकचाया

और बोला, का म काफी पी सकता हा ?”

' "अर, परान पापी’ बाप पयार स हास कर बोल –‘अचछा यह बात ह, तो भाई

तमह काफी जरर ततमलगी, और हिी काफी तमह फायदा भी दगी, पर काफी क साथ

खाओग का ? दोस तो बन नही ा सकत, हाा गम तोस और काफी का भी िोड अचछा ह। म

अभी ततभिवाता हा।“

“यह कह कर बाप वहाा स चल गय। लडका हरान था ततक आशरम म तो चाय, काफी

की इिाजत नही ा, बाप कही ा भल स तो नही ा कह गय। उस ततवशवास न आता था ततक उसकी

इतनी अचछी ततकसमत ह, ततक आशरम म उस काफी पीन को ततमल, और वह भी बाप क हाथ

स।“

“थोडी ही दर हई होगी ततक उसन ततफर खडाऊा की खटपट सनी। बचार का ततदल

धक धक करन लगा। वह समझा बाप यह कहन आ रह ह ततक वह काफी क ततलय भल स

कह गय थ। आशरम म काफी नही ा ततमल सकती। पर िब उसन दखा ततक गााधीिी हाथ म

खददर क रमाल स ढकी हई एक थाली ततलय चल आ रह ह तो उसकी आाख खली की

खली रह गई। लडक को थाली दत हए बाप बोल, 'यह लो अपनी काफी और तोस, दखना

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म अपन हाथ स बना कर लाया हा, और तमसा दकतकखनी भी मान िायगा ततक मन क सी

अचछी काफी बनाई ह।'”

' "पर-पर’ लडका हकला हकला कर बोला –‘आपन ततकसी और स क योा न कह

ततदया,’ मर कारन आपको बहत कि हआ।'”

' "बस, बस !’ गााधीिी परम स बोल, ‘कोा बकार काफी का मजा खराब करत हो।

बा सो रही थी ा, मन उन िगाना ठीक न समझा। लो अब तम काफी ततपयो, म िाता हा।

कोई आकर बरतन ल िायगा।‘ यह कहत हए वहाा स चल आय। काफी बहत अचछी और

हलकी बनी हई थी। लडक न खब मज ल ल कर पी। काफी का थी, बाप क हाथ का

ततदया अमत था।”

हरर - “अममा ! िब आशरम म काफी और चाय कोई पीता न था, तो ततफर इतनी

िलदी काफी आ कहाा स गई ?”

माा - “बात यह थी ततक शरी रािगोपालाचाय और ततमसटर एा िर यज गााधीिी क पास

आत रहत थ। और उनक ततलय कसतरबा क पास यह चीज रकखी रहती थी ा।“

“बाप क पास सवागराम म तरह तरह क लोग आत थ। कोई अपन बीमार बचच को

इलाि क ततलय लाता, कभी पततत पतनी बाप स अपना झगडा चकवान आत कोई उनस

जमीन का झगडा तय करान आता। एक बार एक साहब आय िो कछ पागल स लगत

थ। मालम हआ ततक बड पढ ततलख आदमी ह। ततकसी कालि म परोफसर थ, ततफर कई बार

िल की हवा खाई और आततखर म िोगी हो गय। उनोान अठवारोा बरत रकख, ततफर एक ततदन

सासार क सब काम धनध छोड कर, िागल की राह ली। बरसोा नाग ततफरत रह। कई बरस

चप साध रह, यहाा तक ततक अपन होाठ तााब क तार स सी ततलय और कचचा आटा और नीम

क पि खा कर पट भरा करत।“

“ततफरत ततफरात सवाशरम आ ततनकल और महातमािी स ततमल। बाप न बड परम स

उन साधिी की दख-भाल की और उन आदततमयोा की दततनया म खच लाय।“

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“पहल पहल तो वह काम करन स घबराया करत थ पर धीर धीर वह ततदन भर म

लगातार सतरह घणट काम करन लग। आठ दस घणट चखा कातत और सात आठ घणट

आशरम म लोगोा को पढात थ। िो आदमी कभी माह सी कर ततफरा करता था अब उसक

ठटठोा स आशरम गाि उठता। अब तो वह एक छोटी सी धोती भी लपट लत थ। पर इसक

ततसवाय कोई और सामान अपन पास नही ा रखत थ। िहाा सााप ततवचछ रग रह होा वहाा वह

बधडक चल िात थ। हाा, कभी कभी िब उन ललक उठती थी तो घबराय हए महातमािी

क पास आकर उनस कएा म उलटा लटकन की आजञा माागत पर ईशवर की कपा ह ततक

बाप का कहा उनक ततलय पतथर की लकीर बन गया था, इसततलय वह कभी अपनी मनमानी

न कर पात थ।“

“उन ततदनोा बाप आशरम म बठ दश स छत-छात, िात-पाात और मढता को दर करन

म लग हए थ। उनोान चखा साघ, तालीमी साघ और गो सवा साघ बनाय। वह चाहत थ ततक

ततहनदसतान का हर गााव वाला अपन शष समय म हाथ पर हाथ धर कर न बठा रह, खती

क काम क अतततररकत कछ और भी कमा सक। चखा कात, ततनवाड बन या कोई और हाथ

का काम सीख और साथ साथ पढना ततलखना भी सीख। यही सब चीज थी ा, ततिन का परचार

करक बाप आम गााव वालोा को सवतनतरता क ततलय तयार कर रह थ। कवल अागरज की

गलामी स आजादी नही ा, बकति गरीबी, बीमारी, मढता सब स आजादी ततदलाना चाहत थ।

इन सब चीजोा का आपस म समबनध ह, इसततलय इन म स कोई एक न हो, तो सब बकार

ह। कोा हरर, का तमह नी ाद आ रही ह ? तम थक तो नही ा गय ? बस अब थोडी सी कहानी

और रह गई ह, कहो तो परी कर दा , नही ा तो ततफर कल सन लना।''

हरर - “नही ा अममा ! मझ नी ाद नही ा आ रही ह, बड धयान स सन रहा हा। ततबना सारी

कहानी सन, िी नही ा मानगा, आप सनाइय।“

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१४

माा - “ततहनदसतान वालोा क ततदलोा पर गााधीिी का परभाव अागररज सरकार क परभाव

स कही ा बढ चढ कर था। कछ सबोा म उनक ही साथी काागरततसयोा न हकमत की करततसयाा

साभाल रकखी थी ा। अागरज को दश की बदली हई दशा एक आाख न भाती थी, िनता का

बढता हआ िोश उन कछ बबस ततकय द रहा था।“

“हमार नताओा को हकमत की बाग िोर हाथ म ततलय, थोड ही ततदन बीत थ ततक

इागततलसतान और िमनी म लडाई ततछड गई। यह दततनया की दसरी बडी लडाई थी।

ततहनदसतान म अागरजोा न हमार नताओा स पछ ततबना ही हमार दश का माल और ततसपाही

लडाई म िमनी क ततवरदध भिन शर कर ततदय। लोगोा को इस बात स बहत दख हआ।

काागरसी नताओा न फौरन गााधीिी क कहन पर हकमत की करततसयाा छोड दी ा। गााधीिी

का ततवचार था ततक िब इतन बड मामल म हमार नताओा की परवाह न की गई तो उनका

करततसयोा पर रहना बकार ह।“

“बाप को आशरम म बठ बठ दततनया भर की सब खबर ततमलती रहती थी ा। वह िानत

थ ततक मिोा मिोा म लडाई होन स का बरबादी होती ह। उनोान िमनी क ततिकटटर

ततहटलर को एक ततचटठी ततलखी, उस ततचटठी म उनोान ततलखा ततक योा तो म सासार म ततकसी को

अपना शतर नही ा समझता पर एक तरह तम और म आिकाल एक ही दशमन यानी अागरज

स लड रह ह। का ही अचछा हो ततक तम भी मरी तरह अततहासा क हततथयार स अागरज स

लडो। कोाततक ततहासा की लडाई म दततनया की बरबादी ह और यततद अततहासा क हततथयार क

ततवषय म तम कछ िानना चाहत हो तो तमहारी फौि म एक मामली ततसपाही ह िो मर

आशरम म रह चका ह, तम उसस मालम कर सकत हो। इस समय, एक तम ही ततहासा की

लडाई को रोक सकत हो.” यह पतर गााधीिी न वायसराय क दवारा भिना चाहा पर

वायसराय न इसकी आजञा न दी। अगर वायसराय न इस पतर को िान ततदया होता और

ततहटलर महातमािी की बात मान लता, तो दततनया इस तरह नि न होती । पर वहाा तो

अागरजोा को और ततहटलर को अपन अपन बल पर घमनड था।“

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“उनी ा ततदनोा महातमािी न कई बार परयतन ततकया ततक अागरज हम शाकतनत स आजादी

द द। पर हर बार वह नाकाम रह। महातमािी लड कर और लह बहा कर आजादी लन

को तयार न थ। अगर वह चाहत तो सार दश को सरकार स लडन क ततलय मदान म लाकर

खडा कर सकत थ। पर अततहासा क पिारी को यह बात मािर न थी। उनोान सरकार स

लडाई िारी रखन का एक नया ढाग ततनकाला, और बहत स लोगोा का ततमल कर सतयागरह

करना, बनद करक, एक एक को सतयागरह क ततलय भिा। यह ऐस लोग थ िो अततहासा क

ततनयमोा को अचछी तरह समझत थ और उन पर अमल करत थ। सब स पहल बाप न शरी

ततवनोबा भाव को चना। िब वह, पकड गय तो सरकार न सकडोा दश भकतोा को, घर बठ

ततबठाय पकड ततलया। पाततित िवाहरलाल नहर को भी चार साल क ततलय िल भि ततदया।

पर थोड ही ततदन म ततहनदसताततनयोा क िोश और बचनी स घबरा कर अागरज सरकार न

हमार सब लोगोा को छोड ततदया।“

योरप की लडाई अभी जोरोा पर थी ततक खबर आई, िापान न अमरीका पर हलला

बोल ततदया और ततहनदसतान की ओर बढ कर रा गन पर कबजा कर ततलया। रा गन पर िापानी

झाि का लहराना था ततक हमको शतर दवार पर ततदखाई दन लगा। सार दश म बचनी फ ल

गई और लोग तरह तरह स सोचन लग। कोई कहता था ततक अमरीका और िापान की

लडाई म हम धन की तरह ततपस िायग, कोई चाहता था ततक िापानी बरमा स बढ कर

ततहनदसतान स अागरजोा को ततनकाल द। मतलब यह, ततक लोग आजाद होन क ततलय एकबार

ततफर रकतससयाा तडान लग।

“िब अागरजोा न मि म इतनी अततधक बचनी दखी तो उनोान लनदन स ततमसटर

ततकरपस को भिा ततक वह ततदलली िाकर ततहनदसतान और इागततलसतान म समझौता कराय।

अाधर म आशा की हलकी सी ततकरन ततदखाई दी, लोग समझ अब शायद सवतनतरता ततमल

िाय पर ऐसा न हआ। िो शत ततकरपस लाय थ वह हमार नताओा को पसाद न आई और िो

हमार नता चाहत थ, वह अागरज दन को तयार न थ। अनत म ततकरपस िस आय थ वस ही

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लौट गय। गााधीिी और दसर नताओा न तय ततकया ततक िब तक दश आजाद न होगा योरप

की लडाई म अागरज को मदद न दग।“

“बाप न दखा ततक योरप की लडाई की आग और िापान क यदध की लपट हम भसम

ततकय िालती ह और बबस ततहनदसताततनयोा की मरजी क ततवरदध उनका धन, दौलत और यवा

सनतान लडाई म काम आ रही ह, तो उनको बडा दख हआ। उनोान सब नताओा को इकटठा

ततकया और उनस कहा ततक िब तक हम अागरज क बस म ह, अागरज इसी तरह हमारा

रकत चसत रहग। आओ, हम ततमल कर अागरज को अपन दश स ततनकाल द। पर हमन

अागरज स ततहासा की लडाई लड कर उस ततनकाला, तो का ततनकाला, हम को तो एक ततदल

और एक जवान होकर बस इतना चाततहय, ततक ‘ततहनद छोड दो’, ‘ततहनद छोड दो’। गााधीिी

क माह स इतनी बात का ततनकलना था ततक चालीस करोड जवानोा स अागरिोा, ‘ततहनद छोड

दो’ की पकार सार दश म गाि उठी। अागरजोा को अपन घरोा क बाहर, सडकोा पर, दफतरोा

की मज पर, मोटर पर, यहाा तक ततक हर िगह, ‘ततहनद छोड दो’ ततलखा हआ ततदखाई दन

लगा और वह समझ गय ततक अब सचमच ततहनदसतान छोडन का समय आ गया ह।“

“महातमािी न साथ ही साथ वायसराय को एक पतर ततलखा ततक अगर अागरज

ततहनदसतान को आजाद कर द तो ततहनदसतानी, यदध म अागरजोा की मदद कर ग। यततद अागरज

इस समय भी उन आजादी नही ा द ग, तो ततफर ततहनदसतानी अपनी िान पर खल कर आजादी

लन पर मिबर हो िायग। यह टककर बडी कठोर होगी, पर होगी अततहासा क ढाग पर।”

हरर - “अममा ! वायसराय न बाप क पतर का क या उिर ततदया ?”

माा - “महातमािी को इस पतर का उिर तो वायसराय का दत, उनोान आव दखा न

ताव, हमार सब बड नताओा और काम करन वालोा को ततफर िलोा म बनद कर ततदया।“

“बाप और कसतरबा को लिाकर पना म आगा खाा क महल म नजरबनद कर ततदया।

वही ा गााधीिी क कछ साथी, िस सरोततिनी नायि, सशीला नयर और महादव दसाई भी

रकख गय।”

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१५

हरर - “महल म तो बाप बढ आराम स रहत होाग ?”

माा - “नही ा बटा, वह दकतखयोा का सहारा, गरीबोा क ततदल का उिाला, ततहनदसतान की

नया का बढा खवनहार, हमारा गरीब और दकतखयारा बाप हम सब स अलग रह कर भला

का आराम पाता ! उस शानदार महल म उन क स सख ततमल सकता था ! वहाा की ऊा ची

ऊा ची दीवार उन खान को दौडती थी ा। गरीबोा स अलग रह कर सासार की कोई चीज बाप

को अचछी न लगती थी।“

“वह महल म भी सरल ढाग स रहत थ। सबह सबर उठत, पराथना करत, ततफर थोडा

फलोा का रस पीत और काम म लग िात। सब साथी एक िगह बठ कर खाना खात।

बलबल ततहनद, सरोततिनी नायि तरह तरह क चटकलोा स बाप का ततदल बहलाती ा। शाम को

ततफर पराथना होती, ततिस क बाद दोबारा काम शर हो िाता। सारा ततदन काम करन क

बाद रात को सब िलदी ही सो िात थ।“

“अभी महातमािी को नजरबनद हए कछ ही ततदन हए थ ततक उनक पयार और परान

साथी, महादव दसाई ततदल की धडकन बनद हो िान स, यकायक परलोक ततसधार गय।

महादव भाई और गााधीिी का साथ, तीस बरस का था। बाप उन अपन बट की तरह

चाहत थ। महादवभाई न भी अपना िीवन बाप और दश क ततलय तयाग ततदया था। दोनोा

एक दसर क दख क साथी थ। बाप उनस अपन हदय की सब बात ततकया करत और वह

सदा बाप को सचची और खरी राय दत थ।“

“महादव भाई क मत शरीर को बाप न अपन हाथोा स नहलाया, अथी तयार की

और बाप की तरह सब सासकार ततकय। महल म बाग क एक कोन म ततचता को आग दी गई

और वही ा उनकी समाततध बनी। िब तक बाप महल म रह रोज उस समाततध पर फल चढान

िाया करत थ।“

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“गााधीिी क नजरबनद होन क बाद िब दश म कोई बडा नता न रहा िो िनता

को शानत रखता, तो लोग िोश म आकर ततिस तरह ततिसकी समझ म आया, सरकार स

लडत रह। कछ िोशील लोग गााधीिी का अततहासा का सबक भल गय, और छप छप कर

लोगोा को अागरजोा स ततहासा की लडाई लडवान लग। सरकार न भी लोगोा को दबान क ततलय

गोततलयाा बरसाईा। गााव क गााव िला कर राख कर ततदय। हजारोा औरत, मद और बचच मार

गय, हजारोा िलोा म ठा स ततदय गय। और इस दश की व सरदार सना, रासत स भटक गई।“

“बाप न सोचा भी न था ततक आजादी की लडाई उनक िीत िी इतना भयानक रप

धारण कर लगी और िोशील लोग उनकी ललकार क गलत मान समझ कर अपन आपको

इस तरह िोकतखम म िाल लग।“

“िल म बाप को पल पल की खबर पहाच रही थी ा। तन तो उनका अवशय िल म

था पर मन हमार साथ था। और क स न होता, आततखर वह हम सबक बाप थ। अपन बचचोा

को ठीक रासत स भटकत हए दख कर, उनका ततदल खन हो रहा था।“

“सरकार न मार-पीट और ततहासा का सारा दोष, जबरदसती बाप क का धोा पर िाल

ततदया। गााधीिी न बहत चाहा ततक सरकार कछ नताओा को छोड द ततक वह लोगोा को समझा

बझा कर मार धाड स रोक और अततहासा क ततनयम उन याद ततदलाय। पर सरकार इस बात

पर ततकसी तरह तयार न हई। िब बाप न दखा ततक सरकार उनकी बात सनन को ततकसी

तरह तयार नही ा, तो लाचार होकर उनोान दस फरवरी सन १९४३ ई० को इककीस ततदन का

बरत शर ततकया, ततिसस वह सासार को अपन ततनदोष होन का यकीन ततदलाय।“

“बरत क इककीस ततदन क ततलय सरकार बाप को छोड दना चाहती थी, पर बाप न

इस बात को सवीकार न ततकया। कसतरबा हर समय गााधीिी की सवा म लगी रहती ा। गााधीिी

ततदन पर ततदन कमजोर होत िा रह थ। सार दश पर एक एक ततदन भारी था, सब की आाख

और कान आगा खाा महल की और लग हए थ। लोग हडताल कर रह थ और दआय मााग

रह थ, दहली म सरकार क तीन ततहनदसतानी वजीर हकमत स अलग हो गय। पर सरकार

टस स मस न हई। राम राम करक इककीस ततदन पर हए और तीन माच को गााधी बाबा न

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अपना बरत खोला और कसतरबा क हाथ स सातर का रस ततपया। मीरा बहन न ईसाई धम

क भिन गाय। मसलमानोा न करान पढा, पारततसयोा, ततहनदओा और बौदधोा न अपन अपन

धम की ततकताब पढ कर बाप को सनाई।“

“िब बाप न अपना बरत खोला तो ततहनदसताततनयोा की िान म िान आई | इस बरत स

सारा दश एक आवाज होकर ‘महातमा गााधी की िय’ और ‘इनकलाब ततजनदाबाद’ पकार

उठा।“

“बाप क भागय म अभी और दख ततलख थ। उनक पयार साथी महादव दसाई क

मरन का गम अभी हरा ही था, ततक कसतरबा बीमार हो गई। सबन बहत कोततशश की ततक

वह क द म न रह बकति अपन घर वापस चली िाय पर वाह-री ततहममत, उनोान गााधीिी

का साथ न छोडा। शायद उनक ततदल को खबर हो गई थी ततक उनका समय आ पहाचा ह,

इसततलय वह अपन पततत को छोडन क ततलय तयार न हई। कसतरबा की तततबयत ततबगडती

ही गई और वह अटल घडी आन पहाची, िब गााधीिी और कसतरबा का साठ साल का

साथ छट गया और वह भगवान को पयारी हो गई।”

हरर - “अममा, गााधीिी बा क मरन पर बहत रोय होाग ?”

माा -“बटा, ऐसी बबसी म अगर यह मसीबत ततकसी और पर पडती, तो न िान

उसका का हाल होता, पर गााधीिी उस समय भी भगवान की ओर धयान लगाय रह और

बराबर अपन दश वालोा क ततलय दआय माागत रह।“

“महादव दसाई की समाततध क पास ही गााधीिी न बा की समाततध बना दी। िब तक

गााधीिी आगा खाा महल म नजरबनद रह, परतततततदन दोनोा समाततधयोा पर फल चढान और

पराथना करन िाया करत थ। अब भी हर इतवार को पना क और बाहर क भी, बहत स

लोग आगा खाा महल म यातरा को िात ह।“

“बाप की अकली िान और चारोा तरफ दखोा का घरा, आततखर बचार कब तक

सहत। कमजोर होत होत बहत ततबमार हो गय। सरकार न उनको िब अततधक बीमार दखा

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तो अपना कलयान इसी म समझा ततक गााधीिी को छोड द। ६ मई को उसन गााधीिी को

ततबना ततकसी शत क छोड ततदया और उनक साथ ही उनक साततथयोा को भी ररहा कर ततदया।

आगा खाा महल छोडन स पहल िब अकतनतम बार, बाप समाततधयोा पर फल चढान गय तो

कोई ऐसा न था ततिसकी आाखोा स आासओा की धारा न बह रही हो।”

हरर - “मातािी, यह तो मझ भी याद ह ततक िब बाप क छटन की खबर आई तो

हमार घर म बडी खशी मनाई गई थी।”

माा - “हाा बटा, एक हमार ही घर म क या, सार दश क घर घर म खशी क ततचराग

िलाय गय।”

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१६

“बाप क िल स ततनकलत ही ततहनदसताततनयोा क अाधर और उदास ततदलोा म ततफर

उजाला हो गया, सबको ऐसा मालम हआ ततक उनक दख क बटान वाला आ गया। कछ

ततदन तक तो गााधीिी पना और िह म रह ततक उनक कमजोर शरीर म कछ िान आ िाय।

िब उनम ताकत आ गई, तो वह परी ततहममत स कमर बााध कर सवतनतरता क यदध क

सनापततत बन कर खड हो गय। उनोान लोगोा को उनकी भल चक ततदखा ततदखा कर

समझाया और सरकार को भी उसकी गलतततयाा िताईा। उनोान एक बार ततफर परयतन ततकया

ततक अागरज ततहनदसतान का राि ततहनदसताततनयोा को सौाप द, पर अागरज ततहनदसतान छोडन

को तयार न थ। वह बार बार यही शत लगात ततक ततहनद और मसलमान सब ततमल कर

आजाद ततहनदसतान की हकमत साभाल, तो हम आजादी दन को तयार ह। महातमािी कहत

ततक मसलमान और ततहनद एक ही दश वासी ह, यह हमारा घरल मामला ह, आजाद होन क

बाद हम आपस म तय कर लग ततक इस मि म हम क स रहग, अागरज को हमार घरल

मामल म दखल नही ा दना चाततहय। पर उस समय तो ततबलकल वही कथा थी िो तमन सनी

होगी। एक बार दो ततबकतललयोा म एक िबल रोटी पर लडाई हई तो उनोान एक बनदर को

नयाय करन क ततलय बलाया ततक वह रोटी क टकड बराबर तौल कर बााट द। बनदर था बडा

चालाक, िो टकडा भारी ततनकलता उसम स बडा सा ततनवाला खा लता तो वह बहत हिा

हो िाता, ततफर वह बराबर करन क ततलय दसर टकड पर लपकता और उसम स भी इतना

अततधक उडा िाता ततक दसरा पलडा हिा हो िाता, सारााश इसी बहान वह सारी रोटी

खाकर चलता बना। मख ततबकतललयाा एक दसर का माह दखती की दखती रह गई।“

“इसी तरह िब ततहनद और मसलमान आपस म लडत लडत मर िा रह थ तो

हकमत क चौधररयोा न कहा, ‘आओ हम तमहार दश को दो भागोा म बााट द –एक

ततहनदसतान और दसरा पाततकसतान।‘ हमार नता तयार हो गय ततक ततकसी भाव सही, आजादी

तो ततमल। उन का मालम था ततक यह बाटवारा ही घना और फट क बीि बो दगा।“

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“दश क हर कोन स हदय ततहला दन वाल समाचार आन लग। पािाब म कछ गडबड

सी हो रही थी ततक कलकि स खबर आई ततक वहाा मसलमान और ततहनद आपस म लड

पढ। भाई भाई का शतर बन बठा ह। गााधीिी बचन हो गय, और कलकि पहाच। िो सना

था वह ततबलकल सच ततनकला। ततहनद और मसलमान िो सकडोा साल स एक िगह रहत

और एक साथ बठत उठत आय थ, एक दसर क रकत क पयास हो गय। बाप क पहाचत

ही कलकि क मदान म एक िलसा ततकया। कहाा तो मसलमान और ततहनद एक दसर की

सरत दखना न चाहत थ, और कहाा सब लाखोा की ततगनती म बाप की बात सनन िमा हो

गय। बाप न उन सब को परम का सनदश सनाया और थोडी ही दर क अनदर घना की

काततलख ततदलोा स धल गई। बाप न अब चाहा ततक ततहनद और मसलमानोा न िो हततथयार िमा

कर रकख ह वह लाकर बाप को द द। िब लोगोा न ऐसा न ततकया तो बाप को खयाल हआ

ततक अभी एक आाच की कसर बाकी ह। ततदल का कनदन अभी दमका नही ा। इसक ततलय

उनोान बरत रकखा। िब बागाल क लोगोा न बाप क बरत की खबर सनी, तो सकडोा नौिवानोा

न हजारोा की ततगनती म हततथयार ला ला कर बाप क कदमोा म िाल ततदय और सौगनध खाईा

ततक अब हम आपस म कभी नही ा लडग, और सचमच िो कहा था वह कर ततदखाया।“

“घना की ततचनगाररयाा अभी ततबलकल बझी न थी ा। बाप मि क एक भाग म

शाकतनत करात तो ततकसी दसरी िगह आग भडक उठती। उनी ा ततदनोा पवी बागाल म

नोआखाली स सचना आई ततक मसलमान ततहनदओा क घर लट रह ह और उनको मार रह

ह। यह सनत ही दबला पतला बढा बाप, अपनी िान हथली पर रखकर चला और

नोआखाली क एक एक गााव म परम का सनदश लकर पहाचा। वह अकसर पदल दौरा करत,

और कही ा कही ा तो नाग पााव िात थ। नोआखाली म गााव वालोा क यहाा खाना खात, वही ा

उठत बठत और आराम करत थ। वह लोगोा को बला बला कर समझात। उनस छीनी हई

चीज असली माततलक को वाततपस ततदलवात। लोगोा को नय ततसर स उनक घरोा म बसात और

ततबछड हओा को ततफर ततमलवात थ।“

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“नौआखाली क बाद ततबहार की बारी आई। खबर ततमली ततक ततबहार म ततहनदओा न

मसलमानोा क गााव क गााव साफ कर ततदय। ततबहार की ततवपता सनकर बाप तडप गय, और

ततबहार पहाच। वही अपना परम का सनदश वहाा भी दोहराया, ततक ततकसी की िान लना बडा

पाप ह। ततहनद मसलमान, सब ततहनदसतानी ह, एक ह, सकडोा वषो स साथ रहत आय ह और

दोनोा को यही ा रहना ह, ततफर लड झगड कर पाप क गढ म कोा ततगर !”

“पहल पहल तो उन लोगोा न गााधीिी की बातोा पर कान न धर, पर धीर धीर सच

की धीमी आवाज का परभाव उन पर होन लगा। वह उस भयानक सवपन स चौाक, उनको

याद आ गया ततक वह भततडय नही ा, मनषय ह। अपन ततकय पर पछताय और शााततत और अमन

रखन की सौगनध खाई।“

“उन झगडोा म हमार बाप को आराम का ततवचार न था, न खान पीन की सध, न

कडाक की सरदी की परवाह, न ल क थपडोा ततक ततफकर, वह कभी नोआखाली म नाग पााव

चलत हए नजर आत, तो कभी ततबहाररयोा क घायल ततदलोा पर मरहम रखत हए ततदखाई

दत। ततहममत थी ततक हार न मानती थी, और ईमान था, ततक कततठन मसीबत झल झल कर

और ततनखरता िा रहा था।“

“अनत म वह ततदन आन पहाचा िब भारत आजाद हआ और चारोा ओर परसननता की

एक लहर दौड गई। पर सवतातरता क उिाल क साथ साथ मार धाड और पाप क काल

बादल भी चारोा तरफ उमड आय। इधर ततदल ली म िब मनषय िोश म आकर, माउनट बटन

की िय पकार रह थ तो उधर बागाल म कछ लोग हमार गााधी बाबा पर पतथर बरसा रह

थ। मढना, ततफरका परसती और पाप क धप अाधर म हम रासत स भटक गय। परम क सार

बनधन टट गय, भाई भाई का शतर हो गया। ऐसा लगता था ततक मनषय न भततडय का रप

रख ततलया ह। ततहनद, मसलमान क रकत का पयासा था और मसलमान, ततहनद की िान का

शतर। उस भयानक समय म कवल दो चार रोशततनयाा ततदखाई दती थी ा, िो अपनी परी शकतकत

स पाप क अाधर म उिाला करन का परयतन कर रही थी ा।”

हरर - “माा, यह क सी रोशततनयाा थी ा ?”

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माा - “यह थ हमार बाप, और उनक साथी। पर हमन उनकी ओर स आाख फर

रकखी थी ा। हर ओर स मारो, मारो की आवाज आ रही थी ा।”

हरर - “अममा, ‘मारो, मारो,’ कौन कह रहा था ?”

माा - “बटा, वह फसादी ततहनद, मसलमान और ततसकख थ, िो एक दसर को खाय िा

रह थ। बर लोग िो ऐस अवसरोा की खोि म रहत ह, उन सब न वह मार धाड की, बगनाहोा

पर वह अतयाचार ततकय ततक सारा सासार हमार पागलपन पर दाातोा तल उागली दबा कर रह

गया।”

हरर को य बात सन कर बहत दख हआ, वह सोच म पड गया, ततफर बोला - “अममा,

ततहनद, मसलमानोा और ततसक खोा को ऐसी बरी बरी बात करत हए दख कर बाप को तो बडा

दख होता होगा ?”

माा – “हाा बटा, वह बहत कढत थ और दखी होकर बार बार कहत – ‘ह भगवान

मझ स यह मारपीट और अतयाचार नही ा दख िात, अब तम मझ इस सासार स उठा लो।'“

“नोआखाली और ततबहार का झगडा ततनपटा कर वह पािाब िा रह थ ततक ततदल ली म

मार धाड शर हो गई। यह तो तमहार सामन की बात ह, क स भयानक ततदन थ व ! बाप

ततदल ली पहाच तो ततदल न माना, यही ा रक गय ततक पहल रािधानी को बचाय और उसक

बाद आग बढ। यहाा उनोान दखा ततक लाखोा की ततगनती म लट हय लोग पािाब स आकर

दहली म फ ल गय ह। दहली म मार काट; कहत ह, इनी ा चोट खाय हय लोगोा क कारन

हई। बाप को इन दकतखयारोा स परी सहानभततत थी, पर वह यह भी िानत थ ततक यततद मामला

एक बार ततदल ली सरकार क हाथ स ततनकल गया तो ततदलली की आग सार ततहनदसतान को

भसम कर दगी।”

हरर - “ततफर बाप न का ततकया ?”

माा - “बाप न बडी शाकतनत स बठ कर सोचा ततक का करना चाततहय। ततफर उनोान

ततदलली क बड बड अफसरोा को बलाया और समझाया ततक वह ततहनद मसलमान सब को

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एक ततनगाह स दख और सावधान और होततशयार होकर काम कर । दसरी ओर शरनाततथयोा

क पास िाकर उन ततदलासा ततदया और समझाया ततक ततदलली क मसलमानोा न तमहारा का

ततबगाडा ह। ततिन मसलमानोा न तमह, तमहार घरोा स ततनकाला ह और तमह दख पहाचाया ह,

व और लोग ह, और य और ह। उन लोगोा का बदला तम इन लोगोा स नही ा ल सकत। ततफर

मसलमानोा को समझाया ततक अपन लट हय पािाबी और ततसाधी भाइयोा की हर तरह मदद

करो। बाप अचछी तरह िानत थ ततक यततद बदला लन का ततसलततसला चला तो इस रोकना

कततठन होगा। लोगोा स कहत – ‘भगवान क ततलय समझ और सबर स काम लो। अपन ऊपर

और एक दसर पर दया करो।' “

“िब गााधीिी न दखा ततक लोगोा की सचमच मततत उलट गई ह, करोध न उनकी अकलोा

और आाखोा पर परदा िाल ततदया ह, तो बाप न बरत रकखा और कहा ततक म अपनी िान

दकर ततहनद, मसलमान और ततसकख सब को एक करक रहागा। दहली म उन ततदनोा बडी

हलचल थी। लोगोा की समझ म न आता था ततक का कर और का न कर । आततखरकार

सब धमो क नता इकटठ हो कर बाप क पास पहाच और उनोान सौगाध खाई ततक हम अपनी

िान पर खल िायग, पर ततदलली म झगडा न होन द ग। िब गााधीिी को भरोसा हो गया

ततक यह लोग िो कहत ह वह अवशय कर ग, तो उनोान अपना बरत खोल ततदया, और ततदल ली

की दशा उसी ततदन स सधरन लगी।”

हरर - “ततिस ततदन बाप न अपना बरत खोला, तो माा, लोग ततकतन परसन न थ, ऐसा मालम

होता था ततक सारी ततदलली म ततववाह रचा हआ ह !”

माा - “ठीक कह रह हो , नक और अचछ लोगोा पर तो बाप क बरत का बहत अचछा

परभाव था और वह फल नही ा समात थ। पर ऐस लोग भी थ ततिन को बाप का ततहनद मसततलम

एकता का काम एक आाख न भाता था। वह समझत थ ततक गााधीिी का यह परयतन, हम

ततनबल कर दगा। उन लोगोा का ततवचार था ततक वीर बनन क ततलय लाठी का उिर लाठी स

और गोली का उिर गोली स दना चाततहय। बराई का बदला भलाई स दना कमजोरी और

बोदापन ह। ऐस लोग यह भी िानत थ ततक िब तक बाप िीततवत ह और उनक शरीर म

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शवास बाकी ह, वह ततहनद-मसततलम-ततसकख एकता क ततलय अपना रकत पसीना एक करत

रहग। बाप क िीत िी उन लोगोा की बात पर कोई कान नही ा धरगा, इसततलय ल द कर

ऐस लोगोा क पास एक ही उपाय था, वह यह ततक बाप को मार िाल।“

“बाप की आदत थी ततक रात का खाना वह ततदन स ही खा लत और ठीक पााच बि

पराथना सभा म पहाच िात। वहाा लोग पहल स उनकी परतीकषा म िमा रहत थ। िब बाप

लोगोा क बीच स िात तो कोई उनको झक कर नमसकार करता, कोई आदाब करता और

कोई उनक पााव छता। बाप िाकर एक नीच स तखत पर बठ िात, करान और गीता पढन

वाल, उनक पास ही बठत और वही ा भिन गान वाल भी होत थ। पराथना शर होती, तो

सब स पहल करान म स कछ, आयत पढी िाती ा, ततफर गीता का पाठ होता, भिन गाय

िात और अात म बाप, लोगोा को कछ उपदश दत। उस समय की हालत और ऊा च नीच

समझात। पराथना सभा म एक भिन रोज गाया िाता था िो बाप को बहत रततचकर था।“

‘ईशवर अलला तर नाम,

सब को सममततत द भगवान।'

“इसी तरह क और कई भिन थ िो उनकी पराथना सभा म गाय िात थ।“

“गााधीिी की पराथना सभा म, दर दर स लोग आत थ और सब ततहनद और मसलमान,

अछत और बराहमन एक ही िगह बठ कर अपन परभ का समरन करत।”

हरर - “अममा, पराथना सभा म तो म भी गया था, म िानता हा वहाा का का होता था,

पर यह समझ म नही ा आया ततक बाप गीता क साथ साथ करान और बाईततबल क योा पढवात

थ ?”

माा - “बटा ! बाप कहत थ ततक सब धम सचच ह और सब धमो की पसतक भगवान

की भिी हई ह, और सब सचचाई का रासता बताती ह। वह यह भी कहत थ ततक म ततहनद

भी हा और मसलमान भी, ततसक ख भी हा और ईसाई भी, यह सब मर धम ह; कोाततक सब

धमो की िड, नकी और सचचाई ह।“

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“हाा, तो म तमह आि की बात सना रही थी। बाप िलदी िलदी कदम उठात हए

पराथना सभा म पहाच कोाततक आि उन कछ दर हो गई थी। अभी वह भीड म स ततनकल

ही रह थ ततक एक ततनदयी पााव छन क बहान स आग बढा और उसन बाप को गोततलयोा का

ततनशाना बना कर मार िाला। क सा पतथर का ततदल होगा उस पापी का, ततिसका हाथ बाप

पर उठ सका।“

“अर ! तम रो रह हो हरर ! धीरि रक खो, गााधीिी न भगवान की राह म अपनी िान

दी ह। ऐस लोग मरत नही ा, हमशा िीततवत रहत ह। तम दखोग ततक अनत म िीत उनी ा की

होगी। बाप की िीत सच की िीत ह। और सच की िीत भारतवष की िीत, पर इसक

ततलय बचचोा और बढोा, सतरी और परषोा सब को अनथक काम करना चाततहय। हम गााधीिी

क बताय हय रासत पर कवल आप ही नही ा चलना बकति अपन साततथयोा को भी चलाना ह।

यह वही रासता ह िो तीस वष स गााधीिी हम ततदखा रह थ। यह सच, परम और अततहासा का

रासता ह। िो लोग भटक कर झट, घना और अततहासा की पगिाततियोा पर पड चक ह उन

लोगोा को हाथ पकड पकड कर ठीक रासत पर लाना ह।“

“हम यह कभी नही ा सोचना चाततहय ततक हम कवल ततहनद, मसलमान, ततसक ख या ईसाई

ह, बकति सदा समरन रखना चाततहय ततक हम ततहनदसतानी ह, और सचच ततहनदसतानी हम सब

को ततहनद-मसततलम एकता क ततलय काम करना ह। ततहनदसतान और पाततकसतान दोनोा को

यह उपदश दना ह ततक सब िातततयाा एक ह। का ततहनद, का मसलमान, का ततसकख सब

को भगवान न बनाया ह और सबको आपस म परम स रहना ह।“

हरर - “अममा ! सचचा ततहनदसतानी बनन क ततलय मझ का करना चाततहय ?”

माा - “बटा ! इसक ततलय हम बाप क बताय हए रासत पर चलना चाततहय। हम

ततहनदसतान को ऐसा दश बनाना ह, िहाा ततनधनता और दख न हो, िहाा िबरदसत का ठ गा

कमजोर क ततसर पर न हो, िहाा अमीर गरीब और ततहनद मसलमान का परशन न हो, सब

बराबर हो, कोई ततकसी पर अतयाचार न कर सक, सब पढ ततलख और खशहाल होा। पर इन

वसतओा को पान क ततलय सचचाई, बततलदान, तयाग और पररशरम आवशयक ह। हम सब इस

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काम म लग िाय तो बाप की आतमा को बहत शाकतनत ततमलगी। यह आवशयक नही ा ततक हर

बार हमारा पररशरम फल ही लाय, पर इस स ततनराश हो कर कनधा िाल दना, बाप क चलोा

का काम नही ा। उनक सचच चल तो पररनाम की परवाह ततकय ततबना, ततदन रात नक काम

करन की धन म लग रहत ह और यही वासतततवक सवा ह।“

“मातािी, अभी गााधी बाबा की कहानी सना ही रही थी ततक दादा िी रततियो पर

पाततित िवाहरलाल और सरदार पटल क भाषन सन कर आय और कहन लग -

“बचार पाततितिी पर तो ऐसा मालम होता ह ततक गम क पहाड टट पड ह। उनोान

बडी भराई हई आवाज म रततियो पर कहा – ‘दोसतो और साततथयो, रोशनी गल हो गई और

हमारी ततजनदततगयोा पर अाधरा छा गया। म तम स का कहा, और क स कहा ततक हमारा नता,

हमारा बाप और इस दश का बाप, चल बसा। दश म ततवष फ ला हआ ह और इसी जहर न

लोगोा क ततदमागोा म भी ततवष भर ततदया ह। हम चाततहय ततक हम शाकतनत और ततहममत क साथ

इस ततवष क वकष को उखाड फ क। हम बडी मसीबतोा का सामना करना ह मगर उसी ढाग

स िो हमार बाप न हम ततसखाया ह। कल का सारा ततदन बरत और पराथना म ततबताना चाततहय।

कल चार बि गााधीिी की ततचता िलाई िायगी। आओ, हम सब अपन बाप की तरह अपन

िीवन को इस दश क ततलय तयाग द।“

“इसक बाद सरदार पटल बोल, उन पर भी गााधीिी की मौत का बडा परभाव था।

उनोान कहा – ‘म तम स का कहा ततक का हआ, पर िो कछ हआ, वह बड दख और

शरम की बात ह। गााधीिी कछ ततदनोा स दश की हालत स असाति थ। इसीततलय उनोान

बरत रकखा था। अब िो कछ भी हआ हम इसका राि तो अवशय करना चाततहय पर करोध

नही ा, गसस म यह िर ह ततक हम कही ा उनका ततदया हआ उपदश भल न िाय। आओ, हम

वह कर ततदखाय िो हमस बाप क िीवन म न हो सका। नही ा तो हमार नामोा पर यह धबबा

लग िायगा ततक हम बाप की नसीहत पर अमल न कर सक । आि की दख भरी घटना,

ईशवर कर, हमार नविवानोा को िगा कर उन उनका असली धम और फज समझा सक।

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ततदल छोडन की कोई बात नही ा, हम ततमल कर गााधीिी क शर ततकय हए काम को समापत

करना ह।“

“तम रो रही हो, हरर की माा !” दादा िी बोल - “रोन स कोई काम सफल नही ा होता,

यह रोन और ततसर धनन का समय नही ा। इस घडी सब ततहनदसतानी सीना तान कर खड हो

िाय और गााधीिी क शतरओा स कह – ‘आओ, हम ह बाप की ततनशानी, हम ह उनक

सततनक, आओ, मदान म उतरो, हम सचचाई का झािा, अततहासा की ढाल और आतम शकतकत

की तलवार ल कर रक त बहाय ततबना मदान िीतग, हमारी िीत अटल ह।“

“आओ, सब ततहनदसतानी उठ , अपन आास पोछ िाल और नई आशाओा क साथ

आग बढ। आओ, हम बाप की दी हई शकतकत और िलाल स काम ल और सासार को सचचाई

का यदध िीत कर ततदखा द और दततनया को बतला द , बाप का थ, और का चाहत थ।“

* * * * *