aumkar.com · श्री कृष्ण स्तुतत (श्री...

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  •            अंबा मेरी बन्नो  

    खेला खेल खेलो आँखों के आंगन में झूला झूले झूलो िदल की धड़कन में   अबें ओ मेरी प्यारी बन्नो 

     

    नहीं सामने तो क्या हुआ तू हैं मेरे जहन में नहीं रूबरू तो क्या हुआ तू हैं बसी मेरे मन में  अबें ओ मेरी प्यारी बन्नो 

      

    सोते जागते हर पल या सपनों में गाता हँू तेरे गीत मैं तेरे कानो में  अबें ओ मेरी प्यारी बन्नो 

     

    चलता हँू साथ तेरे एक ही ताल में पास नहीं तो क्या जी लेता हँू तेरी याद में    अबें ओ मेरी प्यारी बन्नो   

                                                                                                         ‐ताताई                                                                                               ०२/२९/'०९ 

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  • श्री कृष्ण स्तुतत (श्री शॊकयाचामय वियतचत सॊस्कृत स्तोत्र का बािानिुाद)

    मभुना तट ऩय िनृ्दािन भं भनबािन एक फाग हयी कल्ऩद्रभु तरे खड़े हं उसभं ऩैय भयोड़े श्माभ हरय घन:श्माभ हरय

    चन्दन कऩुयय उटी भं तरऩटा तन कटी ऩीताम्फय सोहे बमा उजिमाया विश्व मे साया तेिस्िी प्रबु काॊतत से

    कभर नमन आकणय कणय भं कुण्डर सुन्दय दो रटके भुसकान भन्द भुख की भोहे चभके कौस्तुब सीने ऩे

    दभके अॊगुठी अॊगुरी भं झूरे िनभारा गरे देखत तेि भहा प्रबु का काऩन कतर कार बी रागे

    हृविकेश कुॊ तर से तनकरे गॊध से भोहहत गूॉिे बॊियं गोऩ सॊग श्माभ कुञ्ि भं िेिे आओ प्रबु को नभन कयं

    बये सुगॊध भॊदाय सभाॊ भं आनॊहदत भन आनॊद दाता से गॊगाऩद आनॊद तनतध को कयं प्रणाभ भहा ऩुरुि को

    पैरे प्रीत दश हदशाओॊ भं गोवप्रम गोऩार की काॊतत से देिवप्रम दैत्मारय हरय के हं नत भस्तक ऩद मुग्मभं भं

    - नायामण ०५/२३/०९

  • नासमझ

    तु ह पा के रहगे

    ठान ली थी हम ने

    पा के ना खोएंगे

    आन ली थी हमने

    दया भगवान की

    हुए क़ािबल इस म

    पास होत ेभी दरूी

    सह ये मिु कल कैसे

    प्रभु को देखा

    तुम ने मझु म

    और पाई मुिक्त

    म ने तुझ म

    इक पल की उस

    ख़ुशी को हम

    समझ ना ये

    दोहराएँ कैसे

    - नारायण

    ०६/०७/०९

  • एक

    एक है िपत एक माता

    एक है बंधू क भिगनी ए

    एक है सखी एक साजन

    एक है प्रकाश एक छाया

    तुम ही आ मा तुम परमा मा

    -नारायण

    एक है राम एक सीता

    क है िवठू एक िक्मणी

    एक है राधा एक मोहन

    एक है महेश एक माया

    सबही है एक ना ही कोई दजूा

    ०६/२१/०९ (Father’s Day)

  • खडी हँू

    िमु तले खडी हँू कब से ँयाम आन िमलो अब मुझ से दरू गगन में मेघा गरजे डर लागे िबजुिरयाँ चमके इत िदखत सूरज डूबते उत चाँद िदखे उभरते इस पल चाहँू तू ूकटे पड जायेंगे दोनों िफकें तुम देखन िजयरा तरसे िबन देखत नयना बरसे िछन इसी आओ लगो गले से जान है िनकलने को तन से

    - नारायण ०९/१६/०९

  • नाम ही श्ाम छोड़ गए मोहे श्ाम ज े रो रो ूखे मेरे नैन तज े जात अ ज �फर �ई ्ह कै े जने आग आं ू और भी जर े

    िजरह अगन म� ्ूं म� झुल ी झेल िज ली ले ै े तुल ी ढेर भई �फर भी म� उछली कण कण म� तोहे पा के गाती

    जावरी म� ्ह मझ न पाई ज े हो नाम म� श्ाम तुम ही छोड़ोग ेतुम ना मोह ेकभी भी ि ऊँ ्ा म�ँ र�ँ तुमहरे पा ही

    - नारा्ण ०४/२५/१०

  • सब ही कहत ह� सुिमरन करो कहे कोई न कैसे कर� कैसे कर�

    सुिमरन

    कोई कहत ह ै जप ेरहो माला �फर काम दजेू कैसे कर� कैसे कर�

    कोई कहे बोलो हरी नाम सदा और करो काम जो चाह� जो चाह�

    मुख से माला से सुिमरन होव ेना सुिमरन मन से मन ही म� कर� मन ही म� कर�

    - नारायण ०४/३०/१०

  • -

  • मंझझल चलते ही जाना

    आगे ही बढ़ना

    झिछे नहं मुड़ना

    चलते ही जाना

    समां हो सुहाना

    या सर्द मझहना

    करो ना बहाना

    चलते ही जाना

    यहां वहां र्खेो ना

    ऐर गैर सोचो ना

    मंझझल झसर्द हो झनशाना

    चलते ही जाना मंझझल ह ैश्याम सलोना

    चाल श्याम नाम जिना

    उसी के झलय ेही जीना

    चलते ही जाना

    -नारायण

    ०६/१५/१०

  • सयूयाम्बय

    मेरी प्ययरी प्ययरी अंबय

    मेरी रयज दलुयरी अंबय

    ह ूँ फ़िदय मैं तमु पर अंबय

    जयऊूँ वयरी वयरी अंबय

    आई ह ैत ूघर जब से

    भयगी हर आफत हम से

    फ़मलती ह ैत ूजो गले से

    झरती ह ैप्रीफ़त नयनों से

    उछलो कूदो खेलो सदय

    फूलो फलो पढ़ो हमेशय

    सरूज तमु हो अभी उभरतय

    ढलो कभी नय यही प्रयर्ानय

    - तयतयई

    ०८/३१/१०

  • सूर-सलील नदिया की धारा बहे जैसे सूर संगीत के िौड़ ेवैसे

    जीवन पले जल धारा से उमड़ ेमन सूर माला से सललल बबना सूखा जीवन सूर बबना रहे रूखा मन

    सुखी िखुी भोगी त्यागी रंक राजा तन्िरुुस्त रोगी जल के प्यासे हैं सब ही और िीवाने सूर के भी

    - नारायण १२/१९/१०

  • बज्रकडी मन से ऩढ़ कर ध्यान ऱगा कर ख़ूब कमाओ इतना ज्ञान अऩना ही नहीीं कुऱ का सारे जिससे बढ़ाओ तुम सम्मान

    माना धन से भी है ममऱती शोहरत शान बड़ी बड़ा नाम और हाथ में गर हो सत्ता ऩ ही ममऱे नाम सींग दाम

    मगर करो सायास जितने ही ममऱे न सत्ता बबना नसीब ऩर है ननभभर मसर्भ तुम ही ऩर ऩाना ज्ञान िो है करीब

    भूऱो मत इससे भी बढ़ कर बात एक है बेहतर बड़ी धन सत्ता तो वे िावे सींग रहे ज्ञान िैसे बज्रकडी

    - नारायण १२/३०/१०

  • अंजन

    आनंद कंद नन्द नंदन

    मन मोहन मन भावन

    मेरे प्रभ ुयशोदा नंदन

    मेरे स्वामी मेरे मनरंजन

    गोप गोपी रम ेउनके संग

    राधा मन ही मन मं रह ेदगं

    हो ना सपना सहुाना कहं भगं

    हौले झलुाए ंश्याम उसके झलून

    यमनुा म ंकाललया मददन

    गोकुल मं करं हय मददन

    मथरुा मं करं कंस कंदन

    सारा लवश्व उन्हंके शरण

    श्याम सनु्दर मंलदर मेरा मन

    बनाओ बसे रहो लदन रैन

    पजूा तमु्हरं यही मेरा जीवन

    श्याम रंग नयनं मं अजंन

    - सौ. कल्याणी

    ०५/०७/११

  • चकमा चऱो सख ॊयों पनिया भरि को जमिुा को आवे हैं श्याम श्याम को मिावेंगे ऐसे मरुऱी वाऱे को सतावेंगे कभी िा फिर हम को

    आओ आओ कान्हा जी मारो कॊ कर दे ो िूटेगी एक भी िा गागर मार मार के जाए जब जी भर दीजो बचि ऱौटोगे िा फिर

    क्या हुआ माटी की िहीॊ गगररया चऱो हम ही मारत हैं कॊ कररयाॊ इसी ताऱ पे बजाओ मुरलऱया सॊग िाचेंगी लमऱ के सभी गोपपयाॉ

    रास रचाएॊगे हम सारी रैिा फिर चाहे सारा ददि कऱ सोिा सवेरे जाएॉगे हम बजररया ऱे के माटी की माथे पे गगररयाॊ

    - िारायण ०५/११/११

  • भूत अदू्भत

    पंढरी का भतू बड़ा, पंढरी का भतू बड़ा

    पास गया जो गया पकड़ा

    पंढरी का भतू बड़ा, पंढरी का भतू बड़ा ||ध.ृ||

    खेत यहाँ के हरे बहुत, खते यहाँ के हरे बहुत

    भये भंस मन रह ेचरत, मन भसं रह े चरत

    करे जाद ूवो ही भतू, जाद ूकरे वो ही भतू

    रह कर ईट पर खड़ा

    पंढरी का भतू बड़ा, पास गया जो गया पकड़ा ||१||

    वहाँ जाना नहं कोई, अरे भाई, जाना नहं कोई

    गर गये तो नहं वापसी, जी हाँ, गये तो नहं वापसी

    चले ना ककसी की कोई, चले ना ककसी की भी कोई

    चाह ेहो ककतना ही तगड़ा

    पंढरी का भतू बड़ा, पास गया जो गया पकड़ा ||२||

    तकुा गया था पंढरी को, संत तकुा गया था पंढरी को

    पता उसका नहं ककसी को, अभी तक पता नहं ककसी को

    कौन ह ैजो जाए पछेू भतू को, भला कौन जाए पछेू भतू को

    कजसने ना संत को भी छोड़ा

    पंढरी का भतू बड़ा, पास गया जो गया पकड़ा ||३||

    - नारायण

    (आषाढ़ी एकादशी )

    ०७/११/११

  • सह� गलत

    कर भला तो हो भला कर बुरा तो ना भुला

    जैसी करनी वैसी भरनी गर करे ना तो भी वरनी

    चक रजिजगी का ाे चले आए हात जाए �फसले

    आए कहाँ से जाना कहाँ जाने कोई ना ढूिढा जहाँ

    करो पेर ना ाालो बैर गाओ शाार के ुओ ाैर

    बुरा भला सारे गर खु�शााँ सरझ ेवो ह� सह� गलत काा

    - नारााण ७/१५/३१

  • शिक्षापाठ

    गरुूजी ने पछूा आज अच्छा क्या काम शकया

    पशूछये मत गरुूजी सबुह से क्या क्या हुआ

    आज एक अंध ेको रास्ता पार मैं ने कराया

    बढ़ेू पडोसी को दकुान से सामान ला शदया

    एक बीमार के साथ जा के उसे दवा लाया

    एक भखूे को हलवाई से खाना शखलाया

    वाह वाह शवद्याथी सारे कहने लगे

    साध ूसाध ूकहा गरुूजी ने तो शखल उठे

    सन्नाटा छाया पर जब उनके तेवर चढ़े

    बोले आए कहााँसे पैसे हलवाई के

    होने लगी त त प प रह गया मैं भौचक्का

    करेंगे वगग के बाहर मार कर धक्का

    कहेंगे सहपाठी अरे यह डींगमार लचु्चा

    हाँसेंगे और बोलेंगे शमला दण्ड अच्छा

    ठान ली तब अब ना मैं रोऊाँ गा

    हुआ जो भी कुछ सच सच बता दूाँगा

    बटुवे से शपताजी के शनकाले पैसे

    क्यों शक न वे न माताजी भी थी घर में

    चलो अच्छा शकया हाँस कर गरुूजी बोले

    भलूो ना बताओ शपताजी को घर जा के

    - नारायण

    ०८/०४/११

  • भाग्य

    किया मैं ने जो सब िुछ िरना

    नसीब में शायद यही था किखा

    सही नहीं यह किचारधारा

    या आधी सही चिो यह माना

    भाग्य तो था भतू ने किखा

    िततमान तो ह ैतमु्हें किखना

    याद िरो क्या िर्त ने िहा

    जन्म न हाथ ह ैपरुुषाथतता

    जानो यही ह ैिास्तकििता

    िमत िी जड़ ह ैमानकसिता

    भाग्य पर चिे प्रभ ुिी सत्ता

    प्रभ ुपर ही फि िी कनभतरता

    - नारायर्

    १०/०६/११

  • ज्ञान कैसा है ये अजब तमाशा देखा घी न देखा बड़गा ||ध.ृ||

    पास बुला गुरू जी बोले हैं बंद मन के झरोंके ज्ञान अगर तुझ ेचाहहये खोलना उनको होगा देखा घी न ... ||१||

    हौले हौले ककये सायास धीरे धीरे खोले नयन घुस आया ज्ञान के साथ अंदर एक दशु्मन भी बड़ा देखा घी न ... ||२||

    खोज पाता जो कुछ भी ज्ञान खोट वहााँ देखें शक दशु्मन झगडत हैं दोनो रात हदन समझ न आवे कौन है खरा देखा घी न ... ||३||

    -नारायण ११/२५/११

  • कालिया मर्दन

    बात नहीं मानत मैया की कान्हा

    डाट नहीं जानत भैया की कान्हा

    अरज करत मााँ जमनुा ना जा

    डराव े भाई डसेगा कालिया

    बाट र्खेत अब श्याम होने आई

    आहट श्याम की कुछ र् ेन सनुाई

    गगन में बर्ररयााँ भर भर आई

    आंगन में मााँ की आाँखें भर आई

    अगिे ही पि भये प्रकट कन्हयैा

    डािे गिे बाहें बोिे र्खेो प्यारी मैया

    हमेशा की तरह मैंने मानी तेरी बलतया

    िौटा ह ाँ जल्र् पर मार कर कालिया

    हाँस ुया रोऊाँ ना समझे कह ेयशोमलत

    ल ंता प्रभ ुकी कैसी मैं ही ह ाँ मढूमलत

    - सौ. कल्याणी

    ०१/०२/१२

  • आदत

    पड़ गयी ह ैतमु्हरी हमें श्याम बहुत आदत

    पलभर भी बबना तमु्हरे कछु ना ही भावत ||ध.ृ||

    पहले आन बसा मखु में नाम तमु्हारा मधरु

    दोहराऊँ बितना बने मीठे रसभरे अधर

    बदन-ब-बदन िबुान पर मधरुरमा िाएँ बढ़त

    पड़ गयी ह ैतमु्हरी हमें श्याम बहुत आदत ||१||

    बाद में लगे यह झरने नयन सबुह श्याम

    तड़प ूं मैं बदन रैन गया मेरे मन का भी चैन

    दखे ूं बकसी ओर भी बदख ेतेरी सुूंदर म रत

    पड़ गयी ह ैतमु्हरी हमें श्याम बहुत आदत ||२||

    घटु रहा ह ै अब दम आन बमलो प्यारे मोहन

    लगा लो गले से उठा के बाहों में अपनी कोमल

    बिऊँ या मरँ पर बगरँ तेरी चरणों में ह ैये चाहत

    पड़ गयी ह ैतमु्हरी हमें श्याम बहुत आदत ||३||

    - सौ. कल्याणी

    ०१/१७/१२

  • श्यामधयामम

    सुबहमऔरमश्याममजपूमउसकयमनयाममसोचूम्ेमह�मपलम�छनममलौटेमकबमश्यामधयामम

    श्यामश्यामरटतमेरटतमेमा�महँूमग्ीमपगलयईममढंूडूमअबमकैसेमउसेममवोमतोमबड़यमहरजयईमम

    हरमएकमगो�पमगो�पमरयधयममहँसमकेमकहेमरयधेश्याममहरमएकमधयामधयामाेरयममआओमढंूडोमबोलेमश्यामम

    जयतमेउसकेमपीछेमपीछेममछोड़यमाेरयमधयामा�मनेममबनीमहँूमा�मअबमजोगनममदेखूमँिजसेम�दखेमाोहनमम

    लेतमेलेतमेश्यामनयाममभईमभयषयमभीमश्यामम�ालेमअबमजोमश्यामधयाममलँूमनमलौटनेमकयमनयामम

    -मसौमकल्याीमममम०४/०१/१२म

  • श्याम उजियारा सखी सुन श्याम नह ीं आएँ ढल श्याम श्याम नह ीं आएँ पल पल जिया घबराएँ हर दम दम घुटा िाएँ

    भोर भए कहें िमनुा िाऊीं गोप सींग कुछ गेंद खेल ीं बाद गैययाँ गोवर्धन चराऊीं ढलते स रि वापस आऊीं

    सुनी घींट गौएँ घर लौट बिी बींसी लौटे गोप गोपी पेडों पे भी स नसान पींछी बस गायब स रत ह साींवर

    दैय्या र अब उजियारा कैसे सखी छोड़ चचींता श्याम आएँ

    - नारायण ०४/०३/१२

  • मल्म

    जब जब िदल का ददर उभरे तो करो मल्म ्री नाम का नाम क� मि्मा बड़ी ् ै इतनी ्ोवे र्म पभर राम का

    जय जय राम रघरराम जय जय राम िसयाराम

    लेिकन िदल का ददर िमटे तो भरो न उसमे लालच कोर लगे र्ो पभर क� भि� मे ्ोगा शीघ ्ी आतमबोर

    जय जय राम रघरराम जय जय राम िसयाराम

    र् के मगन ्री के सरिमरन मे िसफर करो कतर्य पालन ररम ग्थ सब्ी ् ै क्त ्ोगा तरर्त पाप �ालन

    जय जय राम रघरराम जय जय राम िसयाराम

    - नारायण ०४/१०/१२

  • चयन कर आबंटन कर्म फलों का अखिल र्ानव जाती र्ें ह ूँ लौटी तो होगा जाना उसी कार् पर पल भर र्ें

    करत ेपालन भक्तों का और क्षालन उनके पापों का र्ुझ ेही तो है ना करना भी ननर्ामलन सारे र्षु्टों का

    रहती ह ूँ र्ैं ऐसे र्गन अववरत अपने कार्ों र्ें लगी रहे हर नारी जैसे ककसी न ककसी ननत कार् र्ें

    नर नारी र्ें भेर् है इसका रे्िो एक उर्ाहरण र्ुक्क्त नहीं स्त्री को कार्ों से नर करें कार्ों का चयन

    इसी ललए लेत ेहैं अवतार जब जी चाहे भगवान ऊपर कहते ले लो थोडा ववश्रार् अरी ओ भागवान

    - नारायण ०४/१३/१२

  • हर हर जब प्यास लगे तो जो है पानी पपलाता वो है शंकर सांब सदाशशव महादेव गर भूक लगे तो जो है अन्न खिलाता वो है शंकर सांब सदाशशव महादेव तन बीमार होए तो बीमारी को हटाता वो है शंकर सांब सदाशशव महादेव मन क्षुब्ध होए तो शांतत प्रदान करता वो है शंकर सांब सदाशशव महादेव लगे जो भस्म बभूती भाल पे बालों में रंग जाओगे पल में उसके ही रंगों में शमटे हर च तंा गर रहो हर के च तंन में सुि पाओगे सारे शशव जी के रणों में

    जय जय शंकर सांब सदाशशव महादेव ॐ नम: शशवाय बोलो हर हर महादेव

    - नारायण ०४/१७/१२

  • गीता वचन कृष्ण ने कहा अर्जनु कभी ना डर साथ मैं ह ूँ ना तो काहे की फिकर

    र्हाूँ से र्ब र्ब धरम होए गायब बार बार अवतार लेता ह ूँ मैं तब

    धमपुजनर्सथाुपन सज्र्नसरंक्षण कामों में मेरे शाममल दजष्टननवारण

    चजना है तजमने र्ो करते रहो वो काम हाथ में तजम्हारे नह ं उसका पररणाम

    होता है र्ग में र्ो भी है मेर मरर्ी हर एक वर्सतज प्राणी हाथ में मेरे पजरर्ी

    लेफकन र्ो कोई भी आए शरण में मेर र्ीवन उसका सारा है मेर जर्म्मेवार

    समार्ों ये रहर्सय अर्जनु है भक्त ह भगवान लागे माया से मभन्न पर वार्सतव में सब समान

    -नारायण ०४/२८/१२

  • ना डर

    जो िजस से �मला लौटाया हमने लौटा ना सके वो लुटाया हमने लालच ना हवस कभी द� रहने धन दौलत कया �नकले जान देने

    भगवान क� देन है जो कुछ है �मले या छूटे वो उसका ह� है िजए जो बनाए उनसे �रशत े पर गए जो उनसे तोड़ ेनात े

    हर दम जो सीने म� सांस भरे सुख दखु म� हमारे साथ रहे �दन रात अगर उसे ह� भजे तो डर काहे का कयय �चतंा भले

    - नारायण ०५/१७/१२

  • प र्भप्याभभभ

    जबभप्याभप्रभभुभसे यभसाभभवेभभयँभ�भम�भआभबभ यभसाभआखँ�भभुभपयनीभझा यभसाभभमरखभभुभसा�भनयमभउ्ा यभसाभभ

    मनभम�भईशभसमारभसे यभसाभभ�रभम�भदरखभसारभसे यभसाभभ�दलभम�भवेभज्े भजगय यभसाभभचया�भओाभपुमभफा लय यभसाभभ

    पुमभमयभजयदाभचल यभसाभभाभभ्िक भमयभबस यभसाभभजीवभजीवभ�शवभसेभजय यभसाभभसाभ�दलभ�फाभ�खलभउठ यभसाभभभ

    अव ारभसा�भमयभजबभसे यभसाभभवय यवारभशयं� म्भबन यभसाभभ

    -भनयाय्रभभभ०५/१८/१२भ

  • सुनो मन म� तुम्हार ाहम भ ाहाव भ �दखहनह �कसर छुपहनह जहनो तुम ्�

    जभान सहाह ्ै तुम्हा� ्� ाहमहाव उलटर नहम जप कह ्ै सहाह पहाहाव

    लुटरार ाहल� ्ो तुम ्� ऋ�ष ाहिलमकक सपूत शहाव तुम ्ो दशाथ तुम ्�

    महतह कौसलाह कैकाभ तुम ्� सुुममह मंदोदा� मंथाह ्ो तुम ्� सभतह महतह

    तुम ्� ्ो शबा� तुम शुपरनखह शत्कककतर महंमाभ तुम ्� उुमरलह

    ्ो बंधु तुम ात लखन शमरुन बजांग अंगद तुम ्� ्ो �ब भषन

    इसभुलए क्तह ्ँू सुनो हई ब्नो तुम्हार ्� ्हथ म� �् लह बाुह दोनो

    - नहाहाव ०५/२३/१२

  • सौदा बजरिया चल पडी सािी गोपपयााँ बेच के माखन लाने पैका रुपपया

    उलट ददसा में लौट आई िाधा मन में ले के कुछ औि इिादा

    बेचना कमाना तो है लेना औि देना फिि कययूं ना बेच के पाए जो है पाना

    झटपट पहुाँची जमनुा फकनािे ढय ूंढत ममले कहाूं श्याम सााँविे

    ममले तो बोली हय ाँ जानत तुम्हिा धूंदा चोिी सीनाजोिी है सब छोडो ये िूं दा

    समझाती हय ाँ मैं सुनो बेहति सौदा बेचो खुद को मझु ेऔि खिीदो िाधा

    मुसकाएाँ श्याम देख के िायदा खट्टा है माखन तो मीठी है िाधा

    - नािायण ०६/०३/१२

  • श्यामहरी

    भयएमन्नोमकोमइतनेमश्यामसयंवरेम चयहतमदखेनमउनहहमहीमश्यामसवेरेम

    धनुम बंसरुीमक�म लयगेमाधरुमइतनीम ायंगेमनमसनुनमशवरमदजूयमकछूमभीम

    सोहमे कटी पीतयंबर ा्रू पंखम ायथेम पेम ालुय्ामदोनोमभीमनयमज्यदयमबयलोमसेमहरीमकेम

    लयएमदधूमदहीमश्यामफोडमगगरीम खयएमगवयलेमालईमझठूीमहरीमक�म

    आवेमगोिप्यँम बजयवत पैजिन्यँम खेलेमश्यामसंगमसबमहीमरंगरिल्यँम

    िचतय�माैमानमाहम्ेमछिब्यँमसयरीम हरमदाम जबुयनमसे जप ु हरीम हरीम

    - नयरय्र ०६/१३/१२

  • पुनित बस एक ही हमरा काम

    जपिा हर दम प्रभ ुका िाम कृपाल ुइति ेहमरे राम रहेंगे हर ददि हमरे धाम

    अब रहे डर हमें काहे का संग जब हो पनत सीता का चला िा कुछ भी दशमखु का चलेगा कैसे और ककसी का

    कहो िा हमें दीि दललत या किर पापी और पनतत प्रभ ुिा देखें हमरा अतीत रामिाम से हम हैं पिुीत

    - िारायण ०७/०४/१२

  • तमु्हें प्रणाम

    पिनाकहस्ते दवेी माते तमु्हें प्रणाम

    मयरुारुढ सरस्वती मााँ तमु्हें प्रणाम

    सकल कलाओ ंकी स्वापमनी तमु्हें प्रणाम

    अपिल पवश्व की त ूजननी तमु्हें प्रणाम

    दवेी लक्ष्मी जी की ह ैत ूज्येष्ठ भपिनी मैया

    िणशे जी की भी त ूही ह ैबपुि दात्री मयैा

    छोटा बड़ा जो भी आता शरण तमु्हारी मयैा

    िाता िल में ज्ञान भडंार सारे जि का मयैा

    आया ह ाँ मैं बालक तेरा चरणों में तमु्हरी माता

    मांि ून कुछ आओ पबराजो अतंर में मरेी माता

    - नारायण

    ०७/०७/१२

  • सहारा

    बन पखेरू पड़ ेहैं मेरे प्राण तन के पपिंजड़ ेमें या फिर फिरते हैं बन बन्नो बाबुल की हवेली में

    भाएँ न घर गली नगर देस या पपिंजड़ा ये सोने का चाहें उड़ उड़ मन जाना परदेस करने दीदार ददलबर का

    बाबुल मैया भैया सखखयाँ सब ही हैं देखत पर ना समझत बन्नो बेली हरर भरी है डिंवरत क्यों मन ही मन फिर जाएँ सुकत

    जान ँ मैं जवानी हुस्न हररयाली सब है ददखावा पल भर का िुल िलुिंगी मैं तब ही ममले जब सहारा पी का मुझें उम्र भर का

    - नारायण ०७/१५/१२

  • रास नर्तन

    झन झन झन झन पैंजना बाज े

    खन खन खन खन कंगना बाजे

    र्नाण र्नाण र्ण वीणा बाज े

    र्णू र्णू र्ूण र्नुर्ुणा बाज े

    रुण झणु रुण झणु घुंगरा बाज े

    टप झमु टप झमु मजंीरा बाज े

    भनु भनु भनु भनु बाजा पेटी बाज े

    ककण ककण ककण ककण घटंी बाज े

    घु ंह ूँ फूूँ ह ूँ बंसरुी बाज े

    र् ू र् ू र् ू र्रु्ारी बाज े

    कर्रकट कर्रकट मदृगं बाज े

    दीड धा दीड धा ढोलक बाज े

    श्याम घरेे गोप गोपी फेर धरे

    बीच नाचे राधा कमर मरोड़े

    कड़ाड़ कड़ाड़ दखे कबजरी चमके

    धड़ाड़ धड़ाड़ मघे बदरी बजाव े

    धरर्ी चाूँद आूँख कमचौली खेले

    सनन सनन पवन सगुधं फैले

    श्याम श्याम राधे गोप गोपी गाव े

    गोकुल सारा श्याम नाम में झमू े

    - नारायण

    ०७/१८/१२

  • रंग रोशनी

    सरूज की रोशनी जगमगाती

    जगत को सारे करे उजजयारा

    बन तमु ज्योजत जिमजिमाती

    करे उजजयारा घर हमारा

    नस नस में भरे जोश अपने

    हस हस के झलेे दखु तमुने

    आचं ना हमें कभी दी लगने

    भड़के शोले आग के जकतने

    रंग बदलती दजुनया में

    तमुने भी तो रंग बदले

    पर ना कभी अपने जलए

    सब थे व ेअपनों के जलए

    - नारायण

    ०७/२६/१२

    Happy Birthday to Sau.

  • चनुाव

    सनुो आई ह ै खशुखबरी

    लगाओ नारे बजाओ ताली

    जीते ताजा चनुाव नेता जी

    मनाओ आज दजूी दीवाली

    सोएगा ना अब कोई भखूा

    ममलेगा ना एक भी कोई नंगा

    पढ़ा मलखा हर एक इन्सान होगा

    फैलेगी चारों ओर खशुहाली

    नेता जी ने द ेदी ह ैगारंटी

    अब वर्ाा समय पर होगी

    सखूा ना होगा कहीं भी कभी

    जहां तहां मदखगेी हररयाली

    - नारायण

    ०७/२९/१२

  • बात

    सताओ ना डरावो ना बताओ ना जो ह ै हुआ

    चिल्लाओ ना रुलाओ ना कहो ना जो भी ह ैहुआ

    जो भी करती ह ूँ मैं करती तमु्हारे ही चलए तो ह ै

    िकू भलू लेना दनेा लाला जी भी कहत ये ह ै

    बात ब्योपार में जो िले सच्िी वो हो क्यों न प्यार में

    बेवजह क्यूूँ बदले यूूँ छोटी राई को पहाड़ में

    मन में मरेे बात एक आती दसूरी ह ैजबुाां पर

    काश इतना समझ पाते मन में मरेे ही रह कर

    - नारायण

    ०८/०५/१२

  • धनु

    दखेा हाथ मार के हमन े धन दौलत पर

    आया समझ में अतं में हाथ न लाग ेकुछ

    जाने ककतनी कोकििें की कमाने की ताकद

    वक्त पे न काम आयी गयी खाली महेनत

    खदु को भी डाला बेच पाने को सच्चा प्यार

    बदले में पड़े झलेने कदल पे सौ सौ वार

    लेककन कमली िांकत हमें जब जा कगरे प्रभ ुचरणों में

    अब तो बस हैं हरी की धनु ध्यास हरी का ही मन में

    - नारायण

    ०८/२०/१२

  • श्याम प्यारे

    श्याम मझुे हैं क्यों इतने प्यारे

    ररश्ते दिलों के हैं दकतने गहरे ||ध.ृ||

    क्यों की बसें हैं वे मेरे मन में

    लागे ना कभी भी उन्हें बलुाने

    बनती पड़ती ह ै जो मझु पे

    िखेते हैं वे दबन कुछ बोले

    श्याम मझुे हैं ... ||१||

    सोती ह ूँ तो हैं सपनों में आते

    गोप गोदपयाूँ राधा संग लाते

    रास खेलने मझु ेभी बलुाते

    बनी दबगड़ी वे सब भलुाते

    श्याम मझुे हैं ... ||२||

    अब तो हो गयी ह ैमझु ेआित

    सपने ही िखे ूँ जब ह ूँ जागत

    रह ूँ श्याम धनु में श्याम िखेत

    भ लत सखु भी ििद भी जग के

    श्याम मझुे हैं ... ||३||

    - सौ. कल्याणी

    ०९/१६/१२

  • अजीब प्यार

    लगा फूल जजस डाली पे ह ैऊँची

    पह चँे ना हाथ जाओ ले आओ जी

    सनुते ही मारी छलाांग आसमाां में

    ले आए तोड़ तारा तमु मेरे जलए

    चाहती ह ँमैं रह ँसदा करीब तमु्हारे

    कहा तो आन बसे तमु मेरे ही मन में

    झटूी दी धमकी छोड़ तमु्हें जाने की

    हथेली पे मेरी अपनी जान थमा दी

    मनाया रुको ले जाओ जो चाह ेवो

    तो ले जलया उखाड़ मेरे कलेजे को

    लेजकन दखेी जब तडफडाहट मेरी

    द ेजदया कलेजा काट मझुें अपना भी

    कैसा ह ैये प्यार तमु्हारा अजीब

    समझूँ ना कयूँ ह आ मेरे नसीब

    - नारायण

    १०/१३/१२

  • आगमन

    पधारे शिव साांब भोले

    भक्तों के भाग खलेु || ध.ृ ||

    आकाि में ग्रह तारे

    आशित्य सोम सारे

    चराचर भशूम के

    सब ही सांतषु्ट हुए || १ ||

    शिव िशक्त सांग आए

    िोनों पतु्र साथ लाए

    जटा गांग िेष गले

    धीरे धीरे नांिी चले || २ ||

    डम डम डम डमरू बोले

    मधरु िांख नाि गूूँज े

    वीणा मिृांग बाज े

    शिवमय शवश्व डोल े|| ३ ||

    - नारायण

    ०१/११/१३

  • जय जानकी

    शान ह ैवो राम जी की जान की

    कहलाए इसीललए जानकी

    सतुा राजा जनक की जानकी

    माता भलूम की ह ैपतु्री जानकी

    शान ह ैवो राम जी की जान की

    समान वल्कल रेशमी वसन

    माने वो लसिंहासन वनगमन

    साथ हो जब कौसल्यानिंदन

    तमा न रेत या निंदनवन की

    शान ह ैवो राम जी की जान की

    भलूम से आ कर भलूम में गई

    शािंत भ ूपर जल कर भी रही

    प्रभा उस पलतव्रता की उजली

    इतनी की खाक हुई लिंका की

    शान ह ैवो राम जी की जान की

    आदशश था हर ररश्ता नाता

    सतुा स्नषुा भाबी पलनन माता

    जगु जगु जग गाएिं सीता गाथा

    बन ू सीता चाह हर नारी की

    शान ह ैवो राम जी की जान की

    -नारायण

    ०५/२९/१३

  • नाम घर

    माधरुी तेरे नाम की भगवन ककतनी अपरंपार

    मााँगे चखे जो एक बार वो मखु उसे बारंबार

    ... मखु उसे बारंबार

    सरु असरु नर वानर तो क्या पत्थर तर गए सागर

    मकिमा तेरे नाम िी का ि ै कारण उसका प्रभवुर

    ... कारण उसका प्रभवुर

    जाने सब तमु ब्रह्म िो प्रभ ु रिें शेष कवश्व भर कर

    जाने कौन पर शेष बसा ि ैप्रभनुाम में घर बसा कर

    ... प्रभनुाम में घर बसा कर

    - नारायण

    ०५/२८/१३

  • प्रभ ुवचन

    कह गए खदु प्रभ ुगीता में यह

    सनुो सनुो ह ेधनञ्जय

    शरण में मेरी आए जो उसे

    चचिंता काह ेकी काह ेका भय

    चदखे मैं ही चजसे चवश्व में और

    दखेे जो चवश्व मझुमें सारा

    मगन जो मेरी धनु में चनरिंतर

    भक्त वह ही ह ैमेरा प्यारा

    जब जब दजुजनों का बोलबाला

    हो और जग में धमज लो

    तब तब दषु्टों का मक़ुाबला

    करने लेता ह ूँ मैं अवतार

    - नारायण

    ०६/२२/१३

  • चाहत

    बहुत दिया भगवान ने मझुे

    आंचल ही न समाए ँतो क्या करं

    ख़शुी ही ख़शुी जो बक्शी ह ैउसने

    भला क्यों अब मैं गम को पकुारं

    जब जब जो जो दजतना भी चाहा

    तब तब सभी उसने दिलाया

    इतना ही नहीं मैंने जो न माँगा

    भर भर के उसने वो भी दिया

    रोटी कपड़ा मकान

    प्यार भरा पररवार

    स्वास््य सम्पिा महान

    छोड़ी ना कोई कसर

    ऐसे कृपाल ु ियाल ुप्रभ ुके

    चाह ँ मैं रह ँ सिा चरणों में

    -नारायण

    ०८/१९/१३

  • अजीब सम ां

    ज ने ये कैस ह ैसम ां

    भल ये कैस म हौल

    तोले ममट्टी जैस ेसोन

    मबके हीर कौमिमोल

    घर तो क्य मिश्व स र

    इन्हें च ह ेस फ सथुर

    पर हट न मन क मैल

    नहीं मकसे भी गँि र

    भ गे एक के पीछे दजू

    सोचे न कोई क्य ह ैस ांच

    भोगे मनदोष यह ँ सज

    गनु्हगे र की होिे पजू

    - न र यण

    ०८/२२/१३

  • अनोखी आसं

    सनुो नन्द लाला सनुो ह ेमरुारर

    सनुो ह ेकन्हयैा सनुो गिररधारी

    जान ूँ भक्त ह ूँ मैं तमु्हरी दलुारी

    कीजो श्याम मेरी आंस एक प री

    चाह ूँ न बनना मैं राधा रानी

    ना मैं चाह ूँ बन ूँ मीरा गदवानी

    जान ूँ ना कैसे पर ह ैये ठानी

    मन में बन ूँ मैं दवेकी माई

    रहें कृष्ण भ्र ण मेरे उदर में

    भएूँ प्रकट वो गबना प्रसगुत के

    भले गिर जाएूँ संि नन्द जी के

    और जाएूँ मेरी जान गवरह में

    माूँ से बढ़ कर कोई ना महान

    माूँ परमात्मा की उससे महान

    रह ेसदा एकरूपता दोनों में

    कभी उदर में कभी ह्रदय में

    - नारायण

    ०९/०१/१३

  • ब्रह्म

    वेद उपनिषद वेद ांत

    श स्त्र परु ण धर्मग्रन्थ

    ज्ञ िी र्नुि हृनष स ध ुसांत

    पल्ले ि निसी िे ब्रह्म पडत

    िोई िह ेब्रह्म िुछ ऐस ह ै

    िोई िह ेि ि िुछ वैस ह ै

    िोई ऐस भी वैस भी र् िे

    सब ही िेनत िेनत िहत ह ै

    निर्ुमण निर ि र ब्रह्म से

    िौि ज िे जडुी र् य िैसे

    पर र्नणत िी पररभ ष र्ें

    िुछ थोड स सर्झ ये आये

    र्र ब्रह्म र्ें ब्रह्म नर्ल ये

    य ब्रह्म से ब्रह्म हट ये

    य उसिी र्णु बट्ट िरे

    उत्तर निर भी ब्रह्म ही रह े

    - ि र यण

    ०९/०३/१३

  • उजारा

    नंद जी के दखेो ये आये हैं लाल

    रोंगटे हुए हैं खड़े बाल बाल

    तेज का उनके तो ऐसा कमाल

    भस्म होए सारे मन के सवाल

    नंद जी के ... ||ध.ृ||

    अतत स दंर छतब मनहर

    कर्ण में क ण्डल म रलीधर

    वर्ण श्याम नेत्र करुर्ाकर

    प्रसन्न म ख घ गंराले बाल

    नंद जी के ... ||१||

    उनका नाम भी ह ैबहु प्यारा

    कहने स नने में मध भरा

    जाएँ गर एक बार प कारा

    हो जाए ँउजारा तवश्व सकल

    नंद जी के ... ||२||

    -नारायर्

    ०९/१२/१३

  • नसीब

    दखु आता है दखु जाता है आना जाना सुख का भी है

    धन आता है धन जाता है आना जाना ददद का भी है

    ये सारे ही एक समान है चक्र जनन मरण जैसा है

    कौन कब तक साथ रहेगा जान ेना कोई ना जान सकेगा

    नसीब का है ये खेल सब ही जान ेजो सहे सुख भी दखु भी

    - नारायण १०/१३/१३ दशहरा, मुुंबई

  • सुमिरन किया

    सुमिरन किया न िरन टला सुमिरन किया पर जीवन फुला

    सुमिरन नह ीं मसफफ नाि रटना सुमिरन िन िें राि िो बिठाना

    सुमिरन से ना िोई सुख दखु मिलें सुमिरन उन्हें भोगने कि शक्ति देवें

    सुमिरन ना िोई पाप जलाएीं सुमिरन ना िोई पुण्य ददलाएीं

    सुमिरन मसफफ अींिरींग खोलें सुमिरन से िो होवें िाि भले

    - नारायण १०/२८/१३ िुींिई

  • दर्शन सुख

    जानू ना हे भगवन हैं कितने तेरे रूप ददखें एि एि जहाां देखूां हो छााँव या धूप ||ध.ृ||

    बहता झरना उड़त ेपांछी उमड़त ेबादल उभरता सूरज डूबता चााँद नीला अांबर उमलती िललयााँ फूल माँडरात ेभाँवर िोई भी चीज या जीव झलिे जैसा तेरा मुख ||१|| जानू ना हे भगवन हैं कितने तेरे रूप

    माता पपता पत्नी पुत्र लमत्र बांधु पररजन ये तो हैं मानव सारे प्रभ ुतेरी ही सांतान अचरज िैसा गर वे ददखें तेरे ही समान िरो िृपा रहो बढ़ता ननत्य ये दर्शन सुख ||२|| जानू ना हे भगवन हैं कितने तेरे रूप

    - नारायण ११/०८/१३ पावस

  • श्याम मााँझी

    भव सागर ये ह ै करना पार

    नाव नाम मााँझी श्याम मरेे यार

    चाह े चले मदं धीरे से पवन

    आये या बड़ा डरावना तफूान

    चचंता काह ेकी भय चकसीका भी न

    कृष्ण चिवयैा के ह ैहाथ पतवार

    श्याम मरेे यार

    सिु दिु चमले या कष्ट आराम

    चले कमम चनत्य ना उसे चवश्राम

    अटल चनचित कमम पररणाम

    भलूो सब भजो श्याम बारंबार

    श्याम मरेे यार

    - नारायण

    ११/२८/१३

  • यवुराज

    गडबडाता ह ूँ तमु्हारे दरबार में प्रभ ु

    गगडगगडाता ह ूँ मैं तमु्हरे चरणों में प्रभ ु

    संतान तमु्हरी ह ूँ तो करो परूी गजद प्रभ ु

    दरबार में ना गोद में मझुें गबठाओ प्रभ ु

    जगमगाता चमचमाता ह ै य े दरबार

    खड़े अमात्य सेनानी साह कार सरदार

    प्रजा हो सखुी या दखुी करे जयजयकार

    चकाचौंध सब पल भर ये कैसा चमत्कार

    कारोबार होता ह ैशरुू जब अगले ही पल

    अूँधेरा सा छा जाता ह ैमचती ह ैखलबल

    धडुगसू नंगा नाच गदखात े कपट छल

    बचके उनसे माूँगे न्याय तमु से दबुबल

    दण्ड दनेा न्याय करना ये तो तमु्हरे काज

    करने दो अय्याशी मझुे ह ूँ ना मैं यवुराज

    - नारायण

    ११/३०/१३

  • प्रभ ुचरणों में

    नीले नीले पानी की एक झील तमुने बनायी

    भायी इतनी उसके जैसी ऑखंें दो मझुे बक्शी

    मंद मंद पवन धीम े चल रही थी वन में

    पकड़ हौले से तमुने बांध ली थोड़ी मटु्ठी में

    नादमय एक ताल भायी जो उसकी आवाज

    भर दी ह्रदय में मेरे जैसे सागर की गाज

    भँवर गुंजन में ममला के पंमियों की चहक

    बना मध ुवाचा डाली मुँह में मेरे भरसक

    ऊँचाई पहाड़ों की या समनु्दरों की गहराई

    समझने के मलए तमुने द ेदी कल्पना शमि

    श्रवण नयन हस्त पाद नामसकामद इमन्ियें

    अण ुरेण ुतेज वाय ुसे ऊजाा ले के चलती हैं

    जी रहा ह ँऔर जाऊँ मर भी तमु्हारे दम पे

    तो मिर ना क्यों रह ँप्रभ ुतमु्हारे ही चरणों में

    - नारायण

    १२/०५/१३

  • बेबस

    इस दिल को मनाना बस में नहीं ह ै मरेे

    टूटा जो शीशा जोडना बस में नहीं ह ैमेरे

    रो रो के धलू गया कजरा मेरी आँखों से

    दसिंगार दिर करना बस में नहीं ह ै मरेे

    कान्हा की हुई बिंसी गमु घमु घमु के

    तो और कुछ सनुना बस में नहीं ह ैमेरे

    परिसे गए क्यों वे झटूी तसल्ली ि े के

    अब कान्हा दबना जीना बस में नहीं ह ैमेरे

    - नारायण

    १२/२०/१३

  • दान ज्ञान

    दीजो दान तो दीजो उसे ही जो ह ैसत्पात्र

    पाओ ज्ञान तो पाओ उसस े जो ह ैसपुात्र

    चाहो स्वास््य तो खाओ मात्र भरे जो करपात्र

    कहता ह ूँ मैं नहीं ये सब कहते हैं शास्त्र

    दान तो ह ै महापणु्य द ेदो जो ददया प्रभ ुने

    दनेा न बाांटना सब को ही सच हो या सपने

    वैसे भी तो दनेे के दिए क्या ह ैपास अपने

    साांसे भी जीने के दिए िाएां उधार हमने

    ज्ञान की महती तो गाते हैं सारे वेद परुाण

    वो ही शे्रष्ठ ह ैगीता में ये कहते हैं भगवान

    िेदकन पाना ज्ञान तो ह ै कमम महा कदिन

    िगन चादहये उस ेजो दमिे नहीं गरुू दबन

    ज्ञान दान दोनों ही व्यर्म गर न हो तन स्वस्र्

    तांदरुुस्ती के दिए ही तो करते हैं हम भोजन

    िेदकन ह ैये जरूरी बरतना खाने में सांयम

    अदत नहीं दमत आहार ही ह ैशास्त्रों का दनयम

    - नारायण

    ०३/०२/१४

  • सीखा करो

    दनुिया में जीिा ह ैतो सीखा करो प्यारे

    क्या ह ैबरूा क्या ह ैभला दखेा करो प्यारे

    चमकते हैं जो सभी िहीं हैं वे तारे

    दमकते चााँद को भी हैं िा धब्बे कारे ||ध.ृ||

    िर िारी बालक क्या परूा सभी कुल

    ज्ञािी मनुि पंनित भी करते हैं भलू

    जािे कौि क्या ह ैघटिे अगले पल

    नजते हैं उन्होंिे भी जगं नकतिे हारे

    दमकते चााँद को भी हैं िा धब्बे कारे ||१||

    चढा ह ैजो ऊपर िीचे ह ैवो नगरिा

    नगरा ह ैजो िीच ेऊपर ह ैवो उठिा

    सब को ह ैजैसा करिा वैसा भरिा

    आये कहााँ से जािा कहााँ पता नकसे रे

    दमकते चााँद को भी हैं िा धब्बे कारे ||२||

    - िारायण

    ०३/१५/१४

  • चाहत

    चाहते हैं हम क्यों किसी िो

    िोसते हैं हम क्यों उसी िो

    वो किसे चाहें चाह ेऔर िो

    वो और चाह े किसी गैर िो

    ह ैये चाहत भी िैसी बला

    ह ै िानत इसे िौन भला

    भडिे िब इस िी ज्वाला

    िह ेचाहनेवाला फूलमाला

    हमेशा ये होवे एितरफा

    शायद ही होवे ये दतुरफा

    बक्शे ये किसी एि िो िहााँ

    दतेी ह ैपर कितनों िो दफ़ा

    - नारायण

    ०३/२८/१४

  • सीख

    नानक नाम जहाज ह ै

    वाह ेगरुू पे नाज ह ै

    ग्रन्थ साहहब का साथ ह ै

    गरुूद्वारे हनवास ह ै

    हो तमु हहन्द ुया मसुलमान

    मजहब सभी एक समान

    कहााँ हैं हहन्दसु्थान ईरान

    रहने को बस एक मकान

    रखो भाईचारा पड़ोसी से

    करो प्यार भाई बहनों से

    सहुमरन करो हकसी भाषा में

    ईश्वर अल्ला सब जानत ह ै

    हसखों की ये सीख जो सीखें

    संत बीर दोनों सरीखे

    - नारायण

    ०४/१०/१४

  • ब्रह्म समान

    विठुराया हैं हमरे आनंद वनधान

    कटे विन्दगी लेते हुए उनका ही नाम ||ध.ृ||

    संग ह ैहमरे उनके भक्तों की टोली

    सालाना िाते हैं उन्हें वमलने पंढरी

    बारी बारी की यात्रा कहलाए वदडंी

    भाए ँभक्तों की झुंड उन्हें िे पे्रम वनधान

    विठुराया हैं हमरे आनंद वनधान ||१||

    चमके चन्दन गंध विशाल भाल पे

    दमके कौस्तभु मवि उनके सीने पे

    झलके करुिा आँखों में वस्मत मखु पे

    हाथ हैं कटी पे दो चरि ब्रह्म समान

    विठुराया हैं हमरे आनंद वनधान ||२||

    - नारायि

    ०५/१४/१४

  • ह ेनाथ

    ह ेनाथ श्री नाथ तमु हो अनाथ नाथ

    जगन्नाथ विश्वनाथ तमु ही एक नाथ ||ध.ृ||

    दौड़े आते हो तमु जब बलुाते दवुियारे

    होते संग उनके भी जो कभी नहीं पकुारे

    बीमार हो या िशुहाल तमु्हें समान सारे

    बरसे मेघ सभी जगह िेत हो या रेत

    जगन्नाथ विश्वनाथ तमु ही एक नाथ ||१||

    समझ में आना ये रहस्य नहीं बड़ी बात

    करती ना माता कभी अपने बच्चों में भेद

    सररता दतेी पानी सब को गैया हो या व्याघ्र

    पाते मवुि सभी जो भज ेतमु्हें पापी या संत

    जगन्नाथ विश्वनाथ तमु ही एक नाथ ||२||

    - नारायण

    ०५/२६/१४

  • अरजी

    चरणों में गिरा ह ूँ मैं उठा लो भिवन

    खदु को मरेे हृदय में गिठा दो भिवन ||ध.ृ||

    आज तक गकया ह ैमैंने जो मरेी मरजी

    दजूों की ले ली ना खिर की खदुिरजी

    पछतावा हुआ ह ै अि करूं ये अरजी

    दया करो पापों के मरेे गमटा दो भिवन

    चरणों में ... ||१||

    अपने आप को िड़ा मैं रहा समझता

    पास आए जाए कोई तो िरज पड़ता

    लि ेिेहतर कोई भी तो उसे कोसता

    अूँधेरा ये आूँखों से मरेी हटा दो भिवन

    चरणों में ,,, ||२||

    - नारायण

    ०६/२६/१४

  • प्रभ ुके पास

    मरेा मन ह ै मरेा शरीर

    जो मन के बिना कलेवर

    पर पजूूूँ मैं जि ईश्वर

    दोनों भी होते हैं िरािर

    तन ही करें सि ही काम

    पर वो ह ैमन का गलुाम

    कर सकें ना एक भी काज

    वो मन की आज्ञा के बसवाय

    कह दतेी ह ूँ तमु्हें ये राज

    तन पे कयूूं चढ़ाती ह ूँ साज

    तन पे जो बपया करो राज

    रहन ेदो मन प्रभ ुके पास

    - नारायण

    ०७/०६/१४

  • जाद ू

    जब तमु सामने आयी

    बबजली सी चमक गयी

    अभी अभी छबब यहााँ थी

    इन्द्र धनषु बन गयी

    कोयल पेड़ पे चहकी

    ना ना तमु थी गाती

    फूल कबलयााँ महकती

    या तमु गधं बबखरेती

    कैसा अजीब ह ैजाद ू

    आग ेपीछे या बाज ू

    बजस बदशा में मैं देखू ं

    आाँखें मरोड़े खड़ी त ू

    - नारायण

    ०७/१४/१४

  • भागवान

    बड़ी बड़ी ये चंचल तरल आँखें

    लभुाती हैं उनमें डुबोने तैरने

    खलुते ममटते व ेहैं कमल जसैे

    मडँराते दो भवँर उनमें कैसे

    गोरा गोरा बरन केस काले काले

    पैरों में पैंजमनयाँ बाज ेहौले हौले

    मीठे मीठे सरुीले बोल ये तमु्हारे

    बार बार सनुने को मववश करें

    अपार प्यार ह ैमरेे मलए मदल में

    असीम प्रभ ुभमि ह ैतेरे मन में

    मसुकान से तेरी फूल सारे मखले

    भागवान हो मरेी मरेे भाग खलेु

    - नारायण

    ०७/२६/१४

    Happy Birthday to Sau.!

  • बातें-यादें

    करते हो तमु बातें ककतनी मीठी

    कहते हो खकुियााँ कभी आपबीती

    सनुते भी हो ध्यान से बातें मरेी छोटी

    बातों बातों में ही ह ैअपनी प्रीत बढ़ी

    बातें बनती यादें, यादें ही क िंदगी

    खट्टी मीठी सच्ची झठूी होती हैं सभी

    बड़ा लिंबा ह ै ये सफ़र क िंदगी का

    कटे यूाँ गर हो साथ बातों यादों का

    याद रहती हैं बातें अच्छी या बरूी

    दतेी हैं व ेही गम या खकुियााँ सारी

    कमले िान िौकत उम्मीद उन से ही

    मक़सद मरने का व े व ह ीने की

    - नारायण

    ०८/१६/१४

  • अगंरक्षक

    मधशुाला थी मधुबाला थी मध ुकी मध ु मदहोशी थी

    बात ही कुछ ऐसी बनी थी

    महफिल में रात बदली थी

    नततन गान का धमाका था

    चााँद भी बदली में रुका था

    आलम हर तरि य ाँ था

    प्यार हवस में फ़कत न था

    ऐसे में तमु सामने आयी

    तोड़ डाली मय की सरुाही

    थप्पड़ साकी को भी लगायी

    मधशुाला में ध म मच गयी

    लड़खड़ाता मैं मझु ेउठाया

    दरवान को पास बलुाया

    बग्गी में मझु ेदोनों ने फलटाया

    माल म न मैं कब घर आया

    - नारायण

    ११/१४/१४

  • हे अंतरवासी ढ"ँढ" ँ!यूँ म" पंडत से म"रत मं#दर जान ेक" नह# ज़"रत !दल म" बसी है तु#हारी मूरत !दखे तू ही देखू ँम" जो भी सूरत तन मन !या कण कण म" तू ही उजाला तू ही है तू ही है िसयाही साँस ले न ले कोई तेरी मरजी एक तू ही स"ा बाक़$ ह" फरजी सामने तुम ना आएँ !भ ुतो !या सदा क" िलए अंतर म" रहना शि# तु#हारी ही करती है र"ा भि# मेरी िन#य !वीकार करना नारायण ११/०८/१४

     

  • आओ कन्हयैा

    जबसे मथरुा गये हो तुम श्याम

    गलियााँ गोकुि की हैं सनुसान

    हर चेहरे से गायब मसुकान

    बना दलुियारा हर एक मकान

    गोपी गोपी रोती ह ैमन में उदास

    गोप गोप घमु े हो के बदहवास

    म्िान गौएाँ बछडे और पश ुसारे

    मौन मयरू पंछी जमनुा लकनारे

    तमु नहीं तो कौन उठाएगा लगरी

    तमु नहीं तो कौन बजाएाँ बांसरुी

    तमु नहीं तो कौन ििेें रंग होिी

    तमु नहीं तो कौन करें रिवािी

    आओ आओ कन्हयैा िौट कर यहााँ

    तमु लबन िग ेह ै िािी सारा जहााँ

    - नारायण

    11/19/14

  • बताओ

    अटके हैं य ूँ ज िंदगी में

    मरें भी तो मरें कैसे

    आओ रा बताओ हमें

    मरें भी तो मरें कैसे

    पैर पत्थर बाूँधे ड बे गहरे पानी में

    दखे जिया जकसी ने खींचा बाहर हमें

    गया वो कुछ कह ेजबना एक ही क्षण में

    था वो कौन ये ाने कैसे

    मरें भी तो मरें कैसे

    क द ेहम खाई में नीचे ऊूँ चे पहाड से

    बीचों बीच िटक पडे वकृ्ष शाखाओ िं में

    ाने कैसे बचा जिया वन वासीयों ने

    शजुिया भी उनका करें अदा कैसे

    मरें भी तो मरें कैसे

    नहाया शरीर सारा जमट्टी के तेि में

    िगा दी जिर आग अगिे ही पि में

    भडकी ना आग थी जमिावट तेि में

    जिरते हैं अब अध िे से

    मरें भी तो मरें कैसे

    मरते हैं तो नहीं मरते

    ीना ही ह ैमरते मरते

    बताओ छ टे इससे कैसे

    मरें भी तो मरें कैसे

    - नारायण

    ११/२७/१४

  • दया करो

    दया करो दया करो दया करो स्वामी

    बतला दो भक्ति में मरेी क्तकतनी कमी

    हृदय में भर दो बस इतनी हामी

    क्तितना भी क्तिर पडू उठा लोि ेस्वामी

    दया करो

    भलूा था भटका था मैं तो पहले से ही

    आपने ही भक्ति की क्तदखाई राह सही

    कोक्तििें मैं ने की उस पर चलने की

    क्तिर भी क्यों दरू नज़र आते हो स्वामी

    दया करो

    कमल चरण पहले छू लेना चाह ूँ

    कोमल हस्त आप का क्तसर पर चाह ूँ

    सखु दखु संसार के सारे भलू िाऊूँ

    पाऊूँ अपने प्रभ ुको दो आक्तिष स्वामी

    दया करो

    - नारायण

    दत्त ियंक्तत, मुंबई, िक १९३६

    (१२/०६/१४)

  • राधेकृष्ण

    ख़ुश हुई राधा जब उसने दखेा

    कान्हाने राधा म़ुरली पे ललखा

    ख़ुश हुई राधा जब उसने दखेा

    अगं़ुठी पे श्यामने कोरा नाम राधा

    ख़ुश हुई राधा जब उसने दखेा

    हथेली पे गोंदा कन्हयैा ने राधा

    ख़ुश हुई राधा जब उसने दखेा

    नींद में रटे नंदलाल राधा राधा

    फूली न समायी राधा

    प़ुललकत हो उठी राधा

    पगलाई हर्ष से राधा

    ललखा कटारी से लदल पे कान्हा

    श्रीकृष्ण ने जब ये दखेा

    खनू नहीं प्रेम ह ैबहता

    त़ुरन्त की जीलित राधा

    राधेकृष्ण नाम अमर हुआ

    - नारायण

    ०२/०९/१५

  • मेरी पाठशाला

    मेरी पाठशाला में ह ैमााँ शारदा

    शशक्षक यहााँ के हैं दवेी दवेता

    मेरे वर्ग शमत्र सरस्वती भक्त

    मेरी शकताबें हैं जीवन गं्रथ

    पाना नहीं शसर्ग यहााँ शकताबी ज्ञान

    कला क्रीडा शवज्ञान का भी ह ैये धाम

    पढ़ना पढ़ाना ही केवल न ध्येय

    व्यशक्तत्व बनाने का चले यहााँ कायग

    चला जाऊाँ र्ा यहााँ से स्नातक हो के

    भलूा ना पाऊाँ र्ा पल पल यहााँ के

    - नारायण

    ०३/०२/१५

  • बावरी

    जब से दखेी ह ै तेरी सरूत कान्हा

    लागे ना भकू प्यास नींद भी आए ना

    आँखों मैं बसी ऐसी साँवली काया

    लागे यूँ मझुे ह ँमैं तेरी ही छाया

    कह ेसहलेी क्या कुछ ना समझ ेमझु े

    कानों में अववरत मरुली तेरी गूँजे

    मैं न रही मेरी हो गयी ह ँबावरी

    उठा ले मझुे मैं चरणों में ह ँवगरी

    - सौ. कल्याणी

    ०३/०३/१५

  • गोकुल धाम

    चाह ेहो गललयााँ गोकुल की

    या वन गोवधधन का

    मकु्त लिरती चरती ह ै

    गौएाँ गोपालों की वहााँ

    चाह ेमधबुन हो या हो तट जमनुा का

    होता रहता ह ैसंचार गोलपयों का

    भोर भए गोप चले गौएाँ ले के साथ

    जल लाने गोलपयााँ मटकी ले के हाथ

    दो पहर लगे क़तार बाजार की ओर

    गोलपयों की बेचने दधू बलतयों का शोर

    रात भए चंदा चमके लरंदाबन घाट

    रचते रास बढे गो�