वािषकीर् वष 2013र् - 6 · 2018-03-08 · माता की...

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वािषकी 2013 अंक - 6 अंतिर उपयोग कɅ तथा िवकास एवं शैिक संचार िनट अहमदाबाद िदी गह पिका िहदी पिका भारतीय अंतिर अन संधान संगठन

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  • वािषर्की वषर् 2013 अंक - 6

    अतंिरक्ष उपयोग कद्र तथा

    िवकास एवं शैिक्षक सचंार यूिनट अहमदाबाद

    िहदंी गहपित्रकािहदी गहृ पित्रका

    भारतीय अंतिरक्ष अनुसंधान संगठन

  • अतंिरक्ष उपयोग कद्र को वषर्े ौ र् े2010-11 के दौरान सवर् े ठ

    राजभाषा कायार् वयन के िलए प्रथम पुर कार प्रा त करने के उपल य म कायार्लय को प्रद त शी ड

    अतंिरक्ष उपयोग कद्र को वषर् 2010-11 के दौरान सवर् े ठ राजभाषा कायार् वयन के िलए प्रथम पुर कार प्रा त करने के उपल य म विर ठ िहदंीउपल य म विर ठ िहदीअिधकारी को प्रद त शी ड

  • अिभ यिक्त िहदंी पित्रका, वािषर्की 2013 

    1

    अिभ यिक्त िहदंी गहृ पित्रका

    अतंिरक्ष उपयोग कद्र तथा

    िवकास एवं शिैक्षक संचार यूिनट अहमदाबाद

    वािषर्की वषर्ः 2013

    अकंः 6

    परम संरक्षक ी आ.सी.िकरण कुमार, िनदेशक, सकै एवं अ यक्ष, राजभाषा कायार् वयन सिमित, सैक

    संरक्षक

    ी िवलास पलसुले, िनदेशक, डकूे एवं अ यक्ष, राजभाषा कायार् वयन सिमित, डकूे

    मागर्दशर्न

    ी डी.बी.भट्ट, िनयंत्रक, सकै एवं सह-अ यक्ष, राजभाषा कायार् वयन सिमित, सकै

    सलाहकार मंडल

    ी सी.एन.लाल, प्रधान-ईक्यूसीडी डॉ.मनीष कुमार पं या, वैज्ञा./अिभ.-एसएफ

    ी धमश भट्ट, वैज्ञा./अिभ.-एसएफ

    प्रधान संपादक ी बी.आर.राजपूत

    विर ठ िहदंी अिधकारी

    सह संपादक ीमती नीलू एस.सेठ िहदंी अिधकारी

    प्रबंध संपादक ी सोनू जैन

    किन ठ िहदंी अनुवादक

    सहयोग सु ी रजनी सेमवाल

    विर ठ िहदंी अनुवादक, एवं ी जी.एल.ित्रवेदी विर ठ सहायक

    मुद्रण

    पु तकालय एवं प्रलेखन प्रभाग

    छायांकन फोटोलेब-ईपीएसए-एटीडीजी-आरएसीएफ

    अनुक्रमिणका संपादकीय 2संदेशः िनदेशक, सैक 3संदेशः िनदेशक, डकूे 4संदेशः िनयंत्रक, सैक 5क्यूं छोड़ दूँ? (किवता) 6सैक/डकूे म राजभाषा कायार् वयन 7उ मा नली : एक पिरचय 9समय की समझ (किवता) 14क्य पड़ती ह मकान म दरार 15सजृन, आमंत्रण और िनयंत्रण (किवता) 16हमारे ब चे भिव य की धरोहर 17छंद (किवता) 19इंसान (किवता) 20एहसास (किवता) 20वकृ्ष की आ मकथा 21क्या खोया, क्या पाया 22माता की आज्ञा का पालन संतान का परम कतर् य 23वह भयानक रात.... 24कहानी 26गु सा अ छे-भले आदमी को भी िववेकहीन......... 28जवान 29संघ की राजभाषा नीित से संबंिधत मह वपूणर् िबदंु 30समय मानो थम सा गया..... 31अंतमर्न (किवता) 32एक पत्र भगवान को 33एक पे्ररणा ोत (किवता) 34सारथी (किवता) 35िग लू िगलहरी (किवता) 37भारतीय अंतिरक्ष कायर्क्रम की झलिकयां: िरपोटर् 38िहदंी तकनीकी संगो ठीः िरपोटर् 41िहदंी माह-2012: िरपोटर् 43

    -***-

    नोटः यह आव यक नहीं है िक संपादक मंडल पित्रका म प्रकािशत लेखक के िवचार और और उनके वारा प्र तुत त य से सहमत हो।

  • अिभ यिक्त िहदंी पित्रका, वािषर्की 2013 

    2

    संपादकीय............ मानव समाज म भाषा का प्र न हमेशा मह वपूणर् रहा है। हम िकसी अपिरिचत यिक्त के मखु से िनकले श द से उसका पिरचय प्रा त कर लेते ह, उसके रहन-सहन और यवहार का भी अनुमान लगा सकते ह। सकं्षेप म कहा जाए तो हमारी भाषा हमारी पहचान है, शायद इसीिलए भाषा का प्र न इतना सवेंदनशील भी है। सिंवधान िनमार्ताओं ने िहदंी को राजभाषा के प म चुना, िहदंी का चुनाव शोषक की भाषा - अगें्रजी के िव द्ध था, क्षेत्रीय भाषाओं के िव द्ध नहीं। व तुतः हर भारतीय भाषा का चुनाव अगें्रजी के िव द्ध होना चािहए था, िकंतु आज िहदंी और क्षेत्रीय भाषाओं को एक-दसूरे का प्रित पधीर् और िवरोधी के प म प्रचािरत िकया जाता है, भाषी अि मता के नाम पर हम अपनी ही भाषाओं को एक-दसूरे के सामने खड़ा कर देते ह।

    सभी अगें्रजी म ही अपना वतर्मान और भिव य देखते ह। यिद गहराई से िवचार िकया जाए तो देश के िबगड़ ेहुए भाषायी समीकरण, नई पीढ़ी को भाषायी कुपोषण का िशकार बना रहे ह। िजसका घातक पिरणाम आज देश की अिधकांश जनता भगुत रही है और भिव य म भी िहदंी या क्षते्रीय भाषा म िशिक्षत नयी पीढ़ी को भुगतना पड़गेा। इस भाषा-समीकरण ने देश म शासक और शािसत के बीच एक बड़ी खाई बना दी है, िजसका पिरणाम भ्र टाचार और शोषण के प म हमारे सामने है। हम सबको िमलकर इस सम या का समाधान खोजना होगा।

    िहदंी भले ही हमम से सभी की मातभृाषा न हो, लेिकन घर के बाहर हमारा अिधकांश िवचार िविनमय िहदंी के मा यम से होता है। उपयोिगता की ि ट से िवचार िकया जाए तो िहदंी भाषा भारत के अिधकांश लोग के मनोरंजन, यापार और अ य आव यक गितिविधय का अिनवायर् अगं है। औपचािरक िशक्षा और ज्ञान-िवज्ञान, प्रबंधन एवं कामकाज के पिर य म िहदंी हम कमजोर प्रतीत होती है, लेिकन ऐसा है नहीं। दिुनयां के अिधकांश देश अपनी वदेशी भाषा के बल पर ही प्रगित के सोपान चढ़ रहे ह।

    इसरो का अतंिरक्ष उपयोग कद्र तथा िवकास एवं शैिक्षक सचंार यूिनट भाषा के सदंभर् म अपने उ तरदािय व को समझते हुए िवगत कई वष से अतंिरक्ष िवज्ञान के क्षेत्र म कायर् करते हुए, िहदंी के मा यम से अपने कायर्क्रम , अनुसधंान व िवकास और अपनी मह वपूणर् उपलि धय से देश को अवगत कराता रहा है। कद्र वारा प्रित वषर् गजुरात के िपछड़ ेिजल के िव यािथर्य के िलए ‘भारतीय अतंिरक्ष कायर्क्रम की झलिकयां’ नामक कायर्क्रम आयोिजत िकया जाता है, िजसका प्रमखु उ े य िव यािथर्य म अतंिरक्ष िवज्ञान के प्रित िच जागतृ करना है। ‘अिभ यिक्त’ पित्रका का प्रकाशन भी िहदंी के प्रचार-प्रसार और उसकी लोकिप्रयता को बढ़ाने की िदशा म एक लघु प्रयास है। हमारे इस प्रयास को िवगत वष म पाठक ने पसदं िकया और हमारा उ साहवधर्न िकया। आशा है िक ‘अिभ यिक्त’ के इस अकं को िवगत अकं जैसा ही प्रितसाद िमलेगा।

    -सपंादक

  • अिभ यिक्त िहदंी पित्रका, वािषर्की 2013 

    3

    आ.सी.िकरण कुमार, िनदेशक, सैक एवं अ यक्ष, राजभाषा कायार् वयन सिमित, सैक

    संदेश िहदंी भारत की भाषा ही नहीं, अिपतु भारतवािसय के िदल की धड़कन है। सिंवधान ने भारतवािसय की इसी धड़कन को सनुकर िहदंी को सघं की राजभाषा बनने का गौरव प्रदान िकया, सघं सरकार के अधीन कायर्रत सभी सं थाओं को िहदंी के प्रचार प्रसार का उ तरदािय व स पा। मझु ेबड़ी प्रस नता है िक अतंिरक्ष उपयोग कद्र, अहमदाबाद पूरी िन ठा और समपर्ण के साथ राजभाषा के प्रित अपने कतर् य का िनवर्हन कर रहा है। भारतीय अतंिरक्ष अनसुधंान सगंठन के अहमदाबाद ि थत इस कद्र के कमर्चारी अतंिरक्ष अनुप्रयोग से जड़ु ेअनसुधंान एवं िवकास काय म य तता के बावजदू, जब भी उ ह अवसर िमलता है तब वे िहदंी से जड़ुी गितिविधय म भी पूरा उ साह िदखाते ह। सकै/ डकूे की िहदंी वािषर्की ‘अिभ यिक्त’ कद्र म हो रहीं राजभाषा सबंंधी गितिविधय की न केवल झलक देती है, अिपतु सकै/ डकूे के कमर्चािरय के िहदंी म अिभ यक्त िवचार को भी थान देती है। मझु ेइस बात की बेहद खुशी है िक इस पित्रका के िपछले सभी अकं को पाठक का उ साहवधर्क प्रितसाद िमलता रहा है। आगे भी म आशा रखता हँू िक नये प-रंग म प्रकािशत हो रहा ‘अिभ यिक्त’ का यह अकं सभी को खूब पसदं आएगा। मेरी ओर से पित्रका की सफलता के िलए बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

    (आ.सी.िकरण कुमार)

  • अिभ यिक्त िहदंी पित्रका, वािषर्की 2013 

    4

    िवलास पलसलेु, िनदेशक, डकूे एवं अ यक्ष, राजभाषा कायार् वयन सिमित, डकूे

    संदेश मझु े यह जानकर अ यिधक प्रस नता हो रही है, सकै/ डकूे अपनी िहदंी गहृपित्रका “अिभ यिक्त” के छठव अकं का प्रकाशन करने जा रहा है। अतंिरक्ष प्रौ योिगकी के क्षेत्र म कायर्रत भारतीय अतंिरक्ष अनुसधंान सगंठन जसैी सं था म कायर् करने वाले अिधकांश कािमर्क के पास अपने मखु्य धारा के तकनीकी काय म िहदंी के प्रयोग के अवसर प्रायः कम होते ह और जो अवसर सिृजत भी िकए जाते ह वे काफी कृित्रम और सीिमत होते ह। “अिभ यिक्त” के मा यम से ऐसा मचं प्रदान िकया जाता है, जहां सजृनशील मि त क दैनि दन कायार्लयीन कामकाज से अलग अपनी अिभ यिक्तय को िहदंी भाषा के मा यम से मतूर् प प्रदान कर सकते ह। भाषा अिभ यिक्त का सशक्त मा यम है और भाषा ही वह कारक है जो प्राणी जगत म मनु य को सवर् े ठ बनाती है। अनौपचािरक अिभ यिक्तय की भाषा हमारी प्राकृितक भाषा होती है। िजन श द के मा यम से मन िवचार को बुनता है और िजन वाक्य म सवार्िधक प्रभावशाली ढंग से अिभ यक्त करता है, वे श द और वाक्य हमारी िनज भाषा/ मात ृभाषा के ही हो सकते ह। ज्ञान-िवज्ञान और िवकास की भाषा कुछ भी हो लेिकन िकसी भी यिक्त के िलए उसकी िनज भाषा से अिधक कायर्कारी नहीं हो सकती है। “अिभ यिक्त” के मा यम से हम सघं सरकार की राजभाषा नीित के अनुपालन म तो अपना योगदान देत े ही ह, साथ ही अपने सजृनशील वभाव को तुि ट प्रदान करते हुए अपने िवचार के मा यम से िवशाल जनमानस से जड़ुते ह। मझु ेआशा है िक पित्रका अपने िपछले अकं की तरह इस बार भी सफलता का परचम लहराएगी। पित्रका के सफल प्रकाशन के िलए मेरी ओर से हािदर्क शुभकामनाएं।

    (िवलास पलसलेु)

  • अिभ यिक्त िहदंी पित्रका, वािषर्की 2013 

    5

    डी.बी.भट्ट िनयंत्रक, एवं सह-अ यक्ष, राजभाषा कायार् वयन सिमित, सैक

    संदेश

    अतंिरक्ष उपयोग कद्र/ िवकास एवं शैिक्षक सचंार यूिनट राजभाषा िहदंी से जड़ुी हर गितिविध को बड़ी गंभीरता और िन ठा के साथ सचंािलत करता रहा है। इसीिलए िवगत वष म ससंदीय राजभाषा सिमित ने अपने िनरीक्षण के दौरान कद्र म हो रहे राजभाषा कायार् वयन की सराहना की है। नगर राजभाषा कायार् वयन सिमित अहमदाबाद भी कद्र को े ठ कायार् वयन के िलए पुर कृत करती रही है। िहदंी के प्रचार-प्रसार के िलए वैसे तो कद्र म वषर् भर कायर्क्रम आयोिजत िकए जाते ह और कमर्चािरय के उ साहवधर्न के िलए पे्ररणा और प्रो साहन की नीित पर अमल िकया जाता है, लेिकन पित्रका के मा यम से सभी को अपने िवचार िहदंी म यक्त करने के िलए आमिंत्रत करना और गिरमापूणर् ढ़ंग से उ ह पित्रका म प्रकािशत करना राजभाषा कायार् वयन के क्षेत्र म एक िविश ट कायर् है। िहदंी वािषर्की ‘अिभ यिक्त’ का प्रकाशन लगभग िवगत छह वष से िनयिमत प से हो रहा है। पाठक ने हमेशा इस पित्रका की सराहना की है। मुझ ेखुशी होती है जब तकनीकी एवं वैज्ञािनक प्रकृित के काय म सलंग्न रहने वाले इस कद्र के कमर्चारी िहदंी म िविवध लेख, कहािनयां और किवताएं प्र तुत करते ह। सािहि यक सजृनशीलता मि त क को सीमाओं के परे सोचने की शिक्त से भर देती है। िनि चत प से इस प्रकार की सजृना मकता उ ह उनके मखु्यधारा के काय के िलए फूित र् प्रदान करती होगी। म पित्रका की सफलता के िलए दय से शुभकामनाएं देता हँू। जय िहदं।

    (डी.बी.भट्ट)

  • अिभ यिक्त िहदंी पित्रका, वािषर्की 2013 

    6

    ‘क्यंू छोड़ दूँ’ दीपक यादव, वैज्ञा./अिभ

    कभी मेरा एक पु तैनी िभखारी हुआ करता था, सौगात म म पये दस-बीस अक्सर िदया करता था। जाने अनजाने नज़र अब भी उससे चार हुआ करती ह, लेिकन देने के नाम पर अब पया भी बड़ी मुि कल से िनकलता है।

    उसने एक बार बोला भी, िदन िदन मेरा टडडर् िगर रहा है िक आपका? मने बोला- पहले म कंवारा था, अब सैिट ड हँू, एक बीबी है मेरी, एक बेटी है मेरी। जैसे-तैसे अपना पिरवार चला रहा हँू, बेटी के िलए दहेज जुटा रहा हँू।

    अ छा, मेरे पैस से अपना पिरवार चला रहे हो, दहेज जुटा रहे हो, पर उसका क्या जो मेरा टडडर् िगरा रहे हो?

    मने बोला- देखो, हमारे चार तरफ िकतना बदलाव आ गया है क्या तु ह कुछ नजर नही ंआ रहा है? पहले टेिलफोन का िबल यादा लगता था, अब आटे-दाल का भाव भारी पड़ने लगा है।

    पहले आदरणीय लोग बीपीएल की बात करते थे, अब आईपीएल से जुड़ने को आतुर िदखते ह। सीबीआई यिद कभी करे पूछताछ, कुछ याद नहीं ये कहते ह, िसिवल म एडिमट रहते ह।

    पहले चार-छः भाई भी एक साथ एक घर म रहा करते थे, अब एक बेटा-बहू, माँ-बाप बीच दो चू हा जला करते ह।

    पहले नम्र प्रणाम का चलन था, चरण पशर्, गले िमला करते थे। अब फोन कर के आना कह, हम पीछा छुड़ाया करते ह।

    और कुछ ऐसी हवा चली है िक- साली का बथर् ड ेयाद रहा, माँ की दवाई भूल गए, बीबी से वायदा याद रहा, बापू की रज़ाई भूल गए।

    मेरी िफ़जूल की बात सुन, वह पूरे फामर् म आ गया, पु तैनी िभखारी होने का तमग़ा िनकाल फैक िदया। और मुझ ेनसीहत देने लगा, अपनी लाइन म बदला लेने लगा - ज़लज़ल से डर कर क्या घर बनाना छोड़ दूँ? हादस के डर से क्या सड़क पर िनकलना छोड़ दूँ?

    इ क है, िसर पर प थर तो पड़गे ही, िबछड़ जाने के डर से क्या िदल लगाना छोड़ दूँ? सफेदपोश है, कुछ कािलख तो रहेगी आसपास, उनकी दग़ा की डर से क्या उ मीद का दामन छोड़ दूँ?

    दिरया है तो तफूा ंइसकी िफतरत म है, डूब जाने के डर से क्या इसम उतरना छोड़ दूँ? िज़ंदगी है, उतार-चढ़ाव तो आने ही ह, िगरने के डर क्या बुलंिदय को छूना छोड़ दूँ?

    सफलता है, ये तो करेगी आँख िमचौली, हार जाने के डर से क्या भाग लेना छोड़ दूँ? कुछ बड़ा सोचने को, ख्याली पुलाव कहते ह लोग, टूट जाने के डर से क्या सपने देखना छोड़ दूँ? ***

  • अिभ यिक्त िहदंी पित्रका, वािषर्की 2013 

    7

    अंतिरक्ष उपयोग कद्र/ िवकास एवं शैिक्षक संचार यूिनट म राजभाषा कायार् वयन

    िसतंबर 2011 से िदसबंर 2012 तक सकै/ डकूे म राजभाषा कायार् वयन से संबंिधत गितिविधय का सुचा ढ़ंग से सचंालन िकया गया; िजनका संिक्ष त योरा यहाँ प्र तुत हैः-

    उपलि धयां नराकास, अहमदाबाद वारा सैक/ इसरो को सवर् े ठ िहदंी कायार् वयन के िलए वषर् 2010-11 के िलए प्रथम

    पुर कार से स मािनत िकया गया। ी िवलास पलसुले, िनदेशक, डकूे ने 28 माचर् 2012 को आयोिजत नगर राजभाषा कायार् वयन सिमित की बैठक म आयकर आयुक्त के कर कमल से शी ड एवं प्रमाणपत्र ग्रहण िकया। इस अवसर पर विर.िहदंी अिधकारी, सैक को भी शी ड एवं प्रमाणपत्र प्रदान िकया गया।

    िहदंी संगो ठी सेमी कंडक्टर लेबोरेटरी, चंडीगढ़ म 27 अपै्रल 2012 को संप न अंतर कद्र िहदंी तकनीकी संगो ठी म सकै,

    अहमदाबाद के दो आलेख प्र तुत िकए गए, िजनम ी कमलेश कुमार बराया, वैज्ञा/अिभ-एसई को े ठ प्र तुतीकरण के िलए िवतीय पुर कार प्रदान िकया गया।

    27 जून 2012 को ी डी.बी. भट्ट, िनयंत्रक, सैक की अ यक्षता म "भारतीय अंतिरक्ष कायर्क्रम म वदेशी उ योग एवं सं थाओं का योगदान" िवषय पर एक िदवसीय िह दी तकनीकी संगो ठी का आयोजन िकया गया। संगो ठी के उ घाटन समारोह म डॉ.र ने वर झा, डीन, लाजमा अनुसधंान सं थान (आईपीआर), गाँधीनगर मुख्य अितिथ के प म उपि थत रहे और कायर्क्रम की अ यक्षता ी िवलास पलसुले, िनदेशक, डकूे ने की। मुख्य अितिथ के कर-कमल से लेखसंग्रह का िवमोचन िकया गया। लेखसंग्रह की सीडी का िवमोचन िनदेशक, डकूे वारा िकया गया। संगो ठी म कुल 30 लेख प्र तुत िकये गए। े ठ प्र तुितय के िलए प्रथम, िवतीय एवं ततृीय पुर कार की घोषणा की गई।

    बनासकांठा िजले के िव यािथर्य के िलए पालनपुर शहर म 30 जनवरी 2012 को “भारतीय अंतिरक्ष कायर्क्रम की झलिकया”ँ नामक कायर्क्रम का आयोजन िकया गया। इस दौरान छात्र के िलए अंतिरक्ष प्रदशर्नी का भी आयोजन िकया गया, िजसका 3000 से भी अिधक िव यािथर्य ने लाभ िलया।

    िहदंी अिभमुखीकरण कायर्क्रम अग त 23-24, 2012 को आईआईएसटी, ित वन तपुरम म आयोिजत राजभाषा अिभमुखीकरण कायर्क्रम म

    इस कद्र की ओर से िहदंी अनुभाग के तीन टाफ सद य वारा लेख प्र तुत िकए गए। इसके अितिरक्त ी सी.एन.लाल, प्रधान, ईक्यूसीडी, सकै ने सकै के िक्रयाकलाप पर िहदंी म आमंित्रत याख्यान िदया।

    िहदंी माह सैक म िसतंबर 2012 के दौरान िहदंी माह का आयोजन िकया गया। 3 िसतंबर 2012 को ी िवलास

    पलसुले, िनदेशक, डकूे ने िहदंी माह के उ घाटन समारोह की अ यक्षता की। समारोह की मुख्य अितिथ के प म डॉ रंजना अरगड़,े अ यक्ष, िहदंी िवभाग, गुजरात युिनविसर्टी आमंित्रत थीं। उ घाटन समारोह के

    प चात ् िनदेशक, डकूे ने सकै पु तकालय म इस अवसर पर आयोिजत िहदंी पु तक की प्रदशर्नी का उ घाटन िकया।

    िहदंी माह के अंतगर्त िविभ न प्रितयोिगताओं का आयोजन िकया गया जैसे िक िहदंी िनबंध, िहदंी टेनोग्राफी, िहदंी टाइिपगं, िहदंी ुतलेखन, िहदंी िट पण व आलेखन, िहदंी आशुभाषण, िहदंी सरल लेखन, िहदंी प्र न मचं, िहदंी अनुवाद, िहदंी श दज्ञान, िहदंी वगर् पहेली, िहदंी कहानी लेखन, िहदंी का यपाठ तथा टाफ के पिरवार के सद य के िलए भी िविभ न प्रितयोिगताओं का आयोजन िकया गया। िजसम िववािहितय के िलए अंताक्षरी एवं ब च के िलए सुलेखन, ुतलेखन, आशुभाषण एवं वाद िववाद प्रितयोिगताओं का आयोजन िकया गया। िहदंी माह की िविवध प्रितयोिगताओं म लगभग 1200 टाफ सद य ने भाग िलया। िहदंी माह की िव ततृ िरपोटर् “िहदंी माह – 2012” शीषर्क से प्रकािशत है।

    िहदंी माह के अंतगर्त ही िदनांक 21 िसत बर, 2012 को सैक याख्यान माला के अंतगर्त “रा ट्र िनमार्ण म डॉ.बी.आर.अंबेडकर साहब का योगदान” िवषय पर ी जागीश सोमकंुवर, सुपिरटडट अिभयंता, ओएनजीसी के याख्यान का आयोजन िकया गया।

    िव व िहदंी िदवस 10 जनवरी, 2012 को कद्र म िव व िहदंी िदवस का आयोजन िकया गया। िविभ न िवषय पर िहदंी एवं

    िहदंीतर भाषी कमर्चािरय के िलए िहदंी िनबंध लेखन प्रितयोिगता आयोिजत की गई।

  • अिभ यिक्त िहदंी पित्रका, वािषर्की 2013 

    8

    राभाकास बैठक वषर् के दौरान राभाकास बैठक िनयिमत प से आयोिजत की गईं। बैठक म राजभाषा कायार् वयन से

    संबंिधत मह वपूणर् िबदंओंु पर चचार् की गई एवं िनणर्य िलए गए तथा िलए गए िनणर्य पर कारर्वाई िरपोटर् की भी समीक्षा की गई।

    राजभाषा कायर्शाला िरपोटर् अविध के दौरान िनयिमत प से राजभाषा कायर्शालाओं का आयोजन िकया गया, िजनम िविभ न

    वग के अिधकािरय / कमर्चािरय को िहदंी नीित िनयम से अवगत कराया गया एवं कं यूटर पर िहदंी श द संसाधन का ज्ञान कराया गया।

    वािषर्क िहदंी प्रो साहन योजना अंतिरक्ष उपयोग कद्र/ िवकास एवं शैिक्षक सचंार यूिनट म वषर् 2011-2012 के िलए लागू वािषर्क िहदंी

    प्रो साहन योजना के अंतगर्त िन निलिखत कमर्चािरय को पुर कृत िकया गयाः प्रथम पुर कार : ीमती जसपाल कौर भािटया तथा सु ी चंपा बी.ठक्करिवतीय पुर कार : ी धम द्र एम.मािहतकर, ी बीनु देवपालन नायर , ी वेद प्रकाश,

    ी वी.के. जनै, ी आर.वी. शा त्री, ी िवनोद चौधरी, ी अपूवर् बी.प्रजापित तथा ी िकशोर डी.वाघेला

    ततृीय पुर कार : डॉ. पुनीत व प , ी कमलेश कुमार बराया, ी जिैमन कुमार डी. शाह, ीमती सरला एन.चावला तथा ी िनमेश मनोजकुमार के.

    उक्त योजना वाहन चालक , कटीन टाफ तथा एंटडट वगर् के कमर्चािरय के िलए भी लागू की गई, िजसका पिरणाम इस प्रकार रहाः-

    प्रथम पुर कार : ी राम सेवक, िद ली भू-कद्र तथा ी दवे िनकंुज देवे द्रभाई िवतीय पुर कार : ी आर के राजपूत, वाहन चालक, िद ली भ-ूकद्र

    तकनीकी प्रभाग के िलए िहदंी प्रो साहन योजना अंतिरक्ष उपयोग कद्र/ िवकास एवं शैिक्षक सचंार यूिनट, अहमदाबाद म तकनीकी काय म िहदंी को बढ़ावा

    देने के िलए िवशेष िहदंी प्रो साहन योजना चलाई जाती है। वषर् 2010-11 के िलए लागू इस योजना के अंतगर्त िन निलिखत तकनीकी प्रभाग को डॉ.रं.रा.नवलगंुद, िनदेशक, सकै ने 26 जनवरी 2012 को गणतंत्र िदवस समारोह के दौरान वैजंयती (शी ड) प्रदान कीः-

    िहदंी प्रिशक्षण िह दी िशक्षण योजना के अंतगर्त 11/07/2012 को आयकर कायार्लय, अहमदाबाद म संप न िह दी टंकण

    परीक्षा म सकै से 16 कमर्चािरय ने भाग िलया। अनुवाद कद्र की मािसक प्रगित िरपोटर् (एमपीआर) का समयबद्ध िहदंी अनुवाद अिग्रम कारर्वाई हेतु संबंिधत प्रभाग को

    उपल ध कराया गया। अंतिरक्ष िवभाग वारा पे्रिषत अंतिरक्ष िवभाग एवं एनईसैक की वािषर्क िरपोटर् के कुछ अ याय का अनुवाद

    िहदंी अनुभाग, सैक वारा िकया गया। “आरआईसैट-समकक्ष म प्रथम”, “चेिजंग द एिक्ल स-सोलर एिक्ल स”, “व स इन ए ल ू मनू-सोलर

    एिक्ल स”, “अ िवतीय-रोमांिसगं द क्लाउ स” एवं “चाँद हमारे आगोश म” आिद डकूे के 05 कायर्क्रम का िहदंी सं करण भी तैयार िकया गया।

    “क पना मोनोग्राफ”, आरआईसैट से संबंिधत िविभ न आलेख को िवभाषी म तैयार िकया गया। प्रकाशन फरवरी 2012 म सकै पु तकालय म उपल ध िह दी पु तक की अ यतन गं्रथ सचूी तैयार की गई तथा

    माचर् 2012 म कद्र की गहृ पित्रका “अिभ यिक्त” के पाचँवे अंक का प्रकाशन िकया गया। वेबसाइट सैक की आिधकािरक वेबसाइट का नया सं करण ‘ योम’ िवभाषी प म इंटरनेट पर िवमोिचत िकया गया

    तथा इसके अंगे्रजी अपडटे िनयिमत प से िहदंी पांतरण के साथ अपलोड िकए जाते ह। सैक पु तकालय की वेबसाइट भी िहदंी म उपल ध है।

    ****

    प्रथम पुर कार िवतीय पुर कार िवतीय पुर कार प्रो साहन पुर कार संरचना एवं तापीय िव लेषण प्रभाग पु तकालय प्रभाग ईएफपी प्रभाग एओसी प्रभाग

  • अिभ यिक्त िहदंी पित्रका, वािषर्की 2013 

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    ऊ मा नली (Heat Pipe): एक पिरचय लेखक ने यांित्रकी अिभयांित्रकी म नातक, भारतीय प्रौ योिगकी सं थान मुंबई से तापीय एवं तरल अिभयांित्रकी म नातको तर एवं जवाहरलाल नेह िव विव यालय, नई िद ली से इटािलयन भाषा म प्रवीणता का िड लोमा की िशक्षा ग्रहण की है। वतर्मान म अतंिरक्ष उपयोग के द्र के संरचना एवं तापीय िव लेषण प्रभाग म वैज्ञािनक / अिभयंता - एसई के पद पर कायर्रत है। के द्रीय सिचवालय िहदंी पिरषद, नई िद ली वारा आयोिजत अिखल भारतीय वजै्ञािनक तथा तकनीकी िवषय पर आपके लेख दो बार आचायर् स येन पुर कार से स मािनत िकए गए ह।

    कमलेश कुमार बराया

    प्र तावना ऊ मा, ऊजार् का एक प है जो अिधक तापमान से कम तापमान की ओर वतः थानांतिरत हो जाती है। जब हम सामा य लंबाई के लकड़ी के डडं ेके एक िसरे को हाथ म पकड़कर, दसूरे िसरे को आग म रखते ह, तो हम महसूस करते ह िक हाथ म पकड़ा हुआ िसरा सामा य तापमान पर ही रहता है। लेिकन ऐसा ही प्रयोग हम उसी आकार की इ पात की बनी छड़ से करते ह तो हम पाते ह िक इ पात की छड़ का हाथ म पकड़ ेहुए िसरे का तापमान सामा य से थोड़ा अिधक होता है। अब हम इ पात के बजाय समान आकार के तांबे की छड़ लेते ह, तांबे की छड़ का हाथ म पकड़ा हुआ िसरा इतना अिधक गमर् हो जाता है िक उसे थोड़ ेसमय बाद हाथ से पकड़ना ही संभव नहीं होता है। हमन देखा िक हम लकड़ी, इ पात और तांबे के साथ तापमान के िभ न अनुभव होते ह। ऐसा इसिलए होता है िक तीन पदाथ के ऊ मीय गुणधमर् िभ न है। लकड़ी ऊ मा की कुचालक है, जबिक इ पात उ मा का चालक है और तांबा ऊ मा के े ठ चालक म से एक है। लकड़ी, उसके दोन िसर के तापमान म काफी अतंर के बावजदू भी ऊ मा को एक िसरे से दसूरे िसरे तक थानांतिरत करने म सक्षम नहीं है, जबिक इ पात और तांबे की छड़ ऊ मा को एक िसरे से दसूरे िसरे तक अपने-अपने गुणधम के अनुसार िभ न दर से ऊ मा को थानांतिरत कर देते ह। तांब म ऊ मा थानांतरण करने का गुणधमर् इ पात से बेहतर होने के कारण तांबा तेजी से ऊ मा का थानांतरण करता है। पदाथ मे उ मा थानांतरण के इस गुणधमर् को ऊ मीय चालकता कहा जाता है। ऊ मा थानांतरण के िलए हम े ठ ऊ मीय चालकता वाले पदाथ की आव यकता होती है। कई प्रयुिक्तय एवं उपकरण के प्रचालन के िलए हम तांबे से भी कई गुना बेहतर ऊ मीय चालक की आव यकता होती है, तांबे जसैी सामा य धातु हमारी आव कताओ ंके िलए पयार् त नही होते ह। ऐसी पिरि थितय मे ऊ मा नली को एक दक्ष िवक प के प म उपयोग कर सकते ह। ऊ मा नली एक ऐसी प्रभावी प्रयुिक्त है जो ऊ मा को लंबी दिूरय पर भी बहुत अिधक दक्षता के साथ उ मा के त्रोत एवं िसकं के तापमान म बहुत कम अतंर रखते हुए तेजी से थानांतिरत कर देती है। दसूरे श द मे हम कह सकते ह िक ऊ मा नली एक बहुत अिधक ऊ मीय चालकता वाली प्रयिुक्त है, जो ऊ मा थानांतरण के साथ लगभग समतापीय पिरि थितयां उ प न कर देती है। ऊ मा नली की ऊ मीय चालकता तांबे जसेै े ठ सुचालक से भी कई गुना अिधक होती है। ऊ मा नली की संरचना सरल होने के साथ-साथ इसके प्रचालन के िलए कोई बा य शिक्त की आव यकता नहीं होती है। उ मा थानांतरण के पारंपिरक तरीक की तुलना म उ मा नली के उपयोग का लाभ यह है िक बहुत अिधक मात्रा की ऊ मा को भी लंबी दिूरय तक अपेक्षाकृत छोटे अनुप्र थ काट वाले क्षेत्र के जिरए िबना कोई अितिरक्त शिक्त िनवेश से दक्षतापूणर् थानांतिरत कर िदया जाता है। ऊ मा नली धात ुकी एक बंद नली होती है िजसकी आतंिरक सतह पर केिशका ब ती के प म अक्षीय िदशा म बारीक खांच बने होते ह या धातु अथवा कपड़ ेकी जाली का भी केिशका ब ती के प म उपयोग होता है। केिशका ब ती म एक उपयुर्क्त द्रव भरा होता है, यह नली परूी तरह से सील बंद एवं वायुरिहत होती है। ऊ मा नली म तेजी से ऊ मा थानांतरण मुख्य प से ऊ मा के चालन, प्रचालन द्रव की प्राव था पिरवतर्न, तरल प्रवाह एवं केिशक व बल की संयुक्त िक्रयाओ ंके कारण संभव होता है।

    ऊ मा नली का इितहास ऊ मा नली का पूवर्वतीर् उपकरण ऊ मीय साइफन है, िजसे जेकब पिकर् स ने 1836 म पिकर् स नली के नाम से पेटे ट करवाया था। ऊ मीय साइफन एक तरह की गु व आधािरत ऊ मा नली है। धातु की एक नली म िनवार्त उ प न करने के बाद थोड़ी मात्रा म द्रव की मात्रा भर के उसे सील बंद कर िदया जाता है। ऊ मीय साइफन के प्रचालन के िलए साइफन को गु व की िदशा म इस प्रकार रखना होता है िक उसका गमर् िसरा नीचे रहे। नली के नीचे के िसरे को जब ऊ मा के त्रोत के संपकर् म रखा जाता है तो उसम उपि थत द्रव प्राव था पिरवतर्न की गु त ऊ मा अवशोिषत करके वा प म बदल कर वा प के प म नली के उपरी िसरे पर चली जाता है, वहाँ अिधक दाब और कम तापमान के कारण वा प, संघनन की प्रिक्रया वारा द्रव म पिरवितर्त हो जाती है, यह द्रव गु व के प्रभाव के कारण वापस नीचे के िसरे पर आ जाता है, जो ऊ मा के त्रोत के संपकर् म है। इस तरह साइफन वारा नली के नीचे के िसरे से उपरी िसरे पर ऊ मा का थानांतरण होता रहता है। ऊ मीय साइफन म ऊ मा थानांतरण की प्रिक्रया उसम उपि थत द्रव के प्राव था पिरवतर्न के कारण संभव

  • अिभ यिक्त िहदंी पित्रका, वािषर्की 2013 

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    होती है। ऊ मा नली की क पना सवर्प्रथम जनरल मोटसर् के गॉगलर ने 1944 म की थी। गॉगंलर उस समय प्रशीतन की सम या पर काम कर रहे थे। उ ह ने एक ऐसी प्रयुिक्त की क पना की थी िजसम द्रव के वा पीकरण का थान, संघनन वाले थान से ऊंचाई पर ि थत होगा। उनकी प्रयुिक्त एक धात ुकी नली की बनी हुई थी, िजसके दोनो िसरे बंद थे। इस नली म द्रव एक थान पर ऊ मा अवशोिषत करके वा प म पिरवितर्त हो जाता था। वा प नीचे की ओर प्रवािहत होकर वापस द्रव म सघंिनत हो जाता था। द्रव को वापस ऊंचाई के थान पर लाने के िलए गॉगलर ने िसटंिरत लोहे की ब ती वाली केिशक व संरचना के उपयोग का सुझाव िदया। 1962 म ग्रोवर ने इस प्रयुिक्त के िवचार को अतंिरक्ष अिभयान म उपयोग के िलए पुनजीर्िवत िकया। ग्रोवर ने इस तरह की प्रयुिक्त के कई प्रोटोटाइप िनमार्ण िकए और उ ह ने 1966 म अमरीकी परमाणु शिक्त आयोग की ओर से पेटे ट के िलए आवेदन िकया। ग्रोवर ने इस प्रयुिक्त का नाम ऊ मा नली रखा जो लगभग उसी तरह की थी जसैी िक गॉगलर ने अिभक पना की थी। ग्रोवर ने ऊ मा नली म सोिडयम, लीिथयम एवं िस वर को कायर्कारी या प्रचालन द्रव तथा जाली की ब ती को केिशक व संरचना के प म उपयोग िकया। 1965 म कोटर ने ऊ मा नली के प्रारंिभक िसद्धांत को प्रकािशत करके इसे एक िव वसनीय ऊ मीय प्रयुिक्त के प म थािपत िकया। उसके बाद िविभ न तरह की ऊ मा निलय पर अनुसंधान का काम तेजी से शु हुआ। ऊ मा नली सू म गु व के क्षेत्र म भी केिशक व बल की प्रिक्रया के वारा िबना कोई बाहरी शिक्त के भी आसानी से काम कर सकती है, इसिलए प्रारंभ म इसका अतंिरक्ष अिभयान के िलए िवकास िकया गया। लेिकन शीघ्र ही िवकिसत देश ने ऊजार् संरक्षण एवं अिभक पनाओं की दक्षता बढ़ाने के िलए ऊ मा नली के मह व को पहचान िलया। आज सभी िवकिसत देश एवं कई िवकासशील देश जैसे भारत म इसके अनुसंधान, िवकास एवं यवसायीकरण पर तेजी से काम हो रहा है।

    ऊ मा नली की कायर् प्रणाली ऊ मा नली सामा यत: एलिमिनयम या अ य धातु की बनी हुई एक नली होती है िजसके दोन िसर सील बंद होते ह तथा इसकी आ तिरक सतह केिशक व ब ती (capillary wick) से भरी होती है। ऊ मा नली की आ तिरक सतह पर बहुत बारीक अक्षीय खाच वाली केिशक व संरचना बिहवधन िविध (extrusion) वारा बनाई जाती है। िचत्र-1 म एक ऊ मा नली का अनुप्र थ काट िदखाया गया है, िजसम केिशक व ब ती अक्षीय खाच के प म बनाई गई है। केिशक व ब ती के प म धातु या कपड़ ेकी छननी का उपयोग भी िकया जाता है। इस नली म थोड़ी मात्रा म प्रचालन द्रव जसेै अमोिनया, पानी इ यािद भरा होता है, तथा यह द्रव अपनी वा प के साथ सा य अव था म होता है।

    ऊ मा नली की ल बाई को िन निलिखत तीन भाग म बांटा जा सकता है, िचत्र - 2 म तीन भाग को दशार्या गया है।

    1 वा पक भाग (Evaporator) 2 ि थरो म भाग (adiabatic section)

    3 संघिनत्र भाग (condenser)

    िचत्र सं.1 अक्षीय खांच वाली ऊ मा नली

  • अिभ यिक्त िहदंी पित्रका, वािषर्की 2013 

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    िचत्र सं.2 ऊ मा नली की कायर् प्रणाली का आरेखन

    जब िकसी इलेक्ट्रॉिनक घटक के ताप िनयंत्रण के िलए ऊ मा नली का उपयोग िकया जाता है, तो ऊ मा उ प न करने वाले घटक की सतह का वा पक भाग की बाहरी सतह से ऊ मीय स पकर् कराया जाता है। ऊ मा त्रोत से उ प न ऊ मा, वा पक भाग की दीवार तथा केिशक व ब ती संरचना से सचंािलत होती हुई प्रचालन द्रव तक पहँुचकर उसे वाि पत करती है। वा प बनने के कारण वा पक म वा प का दबाब बढ़ता है, इस दबाब के कारण वा प ि थरो म भाग से गुजरती हुई संघिनत्र भाग म पहँुच जाती है, संघिनत्र भाग की सतह कम तापमान पर होती है, इस कारण से वा प अपनी गु त ऊ मा, ऊ मा अिभगम की ओर मुक्त करते हुए द्रव म संघिनत हो जाती है। वा पक भाग म वा पीकरण के कारण एक द्रव-वा प अतंरापृ ठ (liquid vapor interface) बन जाता है, तथा द्रव-वा प अतंरापृ ठ पर सतह-तनाव के कारण नवच द्रक (Meniscus) बन जाता है। वा पक भाग म द्रव का तापमान, ऊ मा के आगमन के कारण संघिनत्र के द्रव के तापमान से अिधक होता है। वा पक म वा पीकरण के कारण द्रव की मात्रा कम हो जाती है इस कारण से नवच द्रक अवनत (depress) हो जाता है। द्रव वा प अतंरापृ ठ पर नवच द्रक वारा उ प न केिशकीय दबाव के कारण कायर्कारी द्रव को पुनः सघंिनत्र क्षते्र से वा पक क्षते्र की ओर पंप कर िदया जाता है। इस तरह ऊ मा नली प्रचालन द्रव के वा पीकरण की गु त ऊ मा को िनरंतर वा पक क्षेत्र से संघिनत्र क्षेत्र की ओर थानांतिरत करती रहती है। यह प्रक्रम जब तक चलता रहता है तब तक संघिनत द्रव को वा पक की ओर पंप करने के िलए पयार् त केिशकीय दाब बना रहता है।

    वा पक म थानीय वा पीय दाब भी अिधक हो जाता है क्य िक इसे अिधक तापमान वाले द्रव के साथ संतृ त अव था म रहना पड़ता है। वा पक म वा पीकरण के कारण द्रव वा प अतंरापृ ठ पर नवच द्रक की वक्रता, संघिनत्र भाग के नवच द्रक की वक्रता से अिधक होती है। वा पक और संघिनत्र भाग के द्रव-वा प अतंरापृ ठ पर नवच द्रक की वक्रता म अ तर के कारण अक्षीय खाच म एकित्रत हुए द्रव पर ऊ मा नली की लंबाई के समानांतर िदशा म केिशक व दबाब म पिरवतर्न होता है और केिशक व खांच म उपि थत द्रव म दाबीय प्रवणता का िनमार्ण हो जाता है। द्रव म उपि थत दाबीय प्रवणता प्रचालन द्रव को संघिनत्र से वा पक भाग तक केिशक व अक्षीय खाच म खींचने के िलए काफी होती है। यह द्रव वा पक ब ती मे वाि पत हुए द्रव की आपूितर् करता है। इस तरह वा प और द्रव प्रवाह का चक्र चलता रहता है। अिधकतर प्रचालन द्रव की वा पीकरण की गु त ऊ मा अिधक होती है इसिलए बहुत अिधक ऊ मा थानांतरण के िलए भी बहुत कम मात्रा म कायर्कारी द्रव की आव यकता होती है। ऊ मानली के पिरचालन की प्रिक्रया का पे्ररक बल वा पक और संघिनत्र की बाहरी सतह के तापमान म अ तर है जो िक बहुत कम होता है, इस प्रकार ऊ मा नली लगभग समतापीय अव था म पिरचालन करती है। ऊ मा नली के प्रचालन के िलए यह आव यक है िक अिधकतम केिशकीय दबाव, ऊ मा नली म कुल दबाव के पतन से अिधक होना चािहए। गिणतीय प म इसे िन न प्रकार से िलख सकते हैः-

    ( ΔPc)max ≥ ΔPl + ΔPv + ΔPg (1)

    कुल दबाव के तीन मुख्य घटक है ΔPl द्रव को संघिनत्र से वा पक तक लौटाने के िलए दाब पतन ΔPv वा प का वा पक से संघिनत्र तक प्रवाह के दौरान दाब पतन ΔPg गु व के कारण दबाव जो िक शू य, धना मक या ऋणा मक हो सकता है

  • अिभ यिक्त िहदंी पित्रका, वािषर्की 2013 

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    िचत्र सं.3 ऊ मा नली म द्रव वा प अतंरापृ ठ का अक्षीय पिरवतर्न तथा गु व बल की अनुपि थित म िन न द्रव प्रवाह दर पर ऊ मा नली की लंबाई के समानांतर द्रव एवं वा प दाब

    ऊ मा नली म वा प के प्रवाह के दौरान वा प के दाब म पिरवतर्न मुख्य प से घषर्ण, जड़ व, वा पीकरण एवं संघनन प्रभाव के कारण होता है, जबिक द्रव के दाब म पिरवतर्न मुख्यतया केिशकीय खांच से घषर्ण के पिरणाम व प ही होता है। शू य दाबीय प्रवणता के कारण संघिनत्र क्षेत्र म िन न वा प प्रवाह दर पर द्रव वा प अतंरापृ ठ समतल होता है। िचत्र स 3 (अ) तथा (ब) म क्रमानुसार एक प्रितिनिधक द्रव वा प अतंरापृ ठ की आकृित म तथा द्रव एवं वा पीय दबाव के अक्षीय पिरवतर्न को िन न वा पीय प्रवाह दर पर िदखाया गया है। हम िचत्र स 3 (ब) म देख सकते ह िक थानीय दाब म अिधकतम अतंर वा पक के अिंतम छोर पर होता है। अिधकतम थानीय केिशकीय दाब, द्रव तथा वा प के दाब पतन के योग के तु य होना चािहए। गु व की उपि थित म द्रव के दाब का पतन और अिधक हो जाता है, ऐसी दशा म और अिधक केिशकीय दाब अपेिक्षत होता है। उ च वा प प्रवाह दर पर वा पीय दाब पतन, द्रवीय दाब पतन से अिधक हो सकता है।

    ऊ मा निलय के िलए प्रचालन द्रव

    ऊ मा नली के प्रचालन के िलए एक उिचत द्रव की आव यकता होती है, िजसके वा पीकरण एवं संघनन की प्रिक्रया वारा ऊ मा का थानांतरण होता है। ऊ मा नली के िनमार्ण की प्रिक्रया के दौरान उसे वायुरिहत करने के बाद द्रव की िनि चत मात्रा िवशषे उपकरण से उसके अदंर प्रिव ट कराई जाती है। जसेै-जसेै ऊ मा नली म द्रव प्रिव ट कराया जाता है, द्रव, वा प म पिरवितर्त होकर वा प दबाव का िनमार्ण करता है। उ मा नली म द्रव की इतनी मात्रा प्रिव ट कराई जाती है तािक केिशका ब ती के खांच म द्रव संतृ त अव था म रह। ऊ मा नली म प्रचालन के िलए उपयुर्क्त द्रव का चुनाव उसके प्रचालन के अपेिक्षत तापमान की परास पर िनभर्र करता है। ऊ मा नली के प्रचालन तापमान की परास उसम उपि थत द्रव के क्रांितक तापमान तथा ित्रक िबदं ुतापमान के बीच हो सकती है। ऊ मा नली के प्रचालन द्रव से कई अपेक्षाएं होती है िजनम से िन न मुख्य हैः-

    1.केिशका ब ती एवं ऊ मा नली की दीवार के पदाथर् से अनूकूलता

    दीवार

    दीवार

  • अिभ यिक्त िहदंी पित्रका, वािषर्की 2013 

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    2.अ छी तापीय ि थरता

    3.उ च गु त ऊ मा

    4.उ च तापीय चालकता

    5.द्रव एवं वा प की िन न यानता

    6.उ च सतह तनाव

    7.प्रचालन तापमान की परास म बहुत कम या अिधक वा प दाब न हो

    सारणी-1 ऊ मा नली के िलए िविभ न प्रचालन द्रव के तापीय प्राचल

    प्रचालन द्रव गलन िबदं*ु (˚C )

    क्वथनांक िबदं*ु(˚C )

    क्रांितक तापमान

    (˚C )

    तापमान की उपयोगी परास

    (˚C )

    अमोिनया -78 -33 1326 -60 से 100

    पानी 0 100 3743 30 से 200

    पोटेिशयम 62 774 1977 500 से 1000

    सोिड़यम 98 892 2227 600 से 1200

    िलिथयम 179 1340 3527 1000 से 1800

    *वायुम डलीय दाब पर

    ऊ मा नली के िविभ न उपयोगः

    1964 म ऊ मा निलय के प्रारंिभक िवकास से आज तक इनके उपयोग कई क्षेत्र म िकए गए ह। ऊ मा निलयां 4 से 3000 केि वन के तापमान की परास मे कायर् कर सकती है। ऊ मा निलय के कुछ मुख्य उपयोग के बारे म आगे चचार् की जा रही है।

    1. अतंिरक्ष अिभयान के िलए ऊ मा नलीः- अतंिरक्ष म भेजे जाने वाले मानव िनिमर्त उपग्रह म तापमान समानीकरण, िनयंत्रण और शीतलन के िलए ऊ मा निलयां उनके अपेक्षाकृत कम वजन, शू य अनुरक्षण और उ च िव वसनीयता के कारण एक मह वपूणर् घटक होती है। उपग्रह की संरचना का समतापीयकरण एक मह वपूणर् सम या होती है, क्य िक उपग्रह के एक भाग पर सूयर् की ती ण िकरण के िगरने के कारण अिधक तापमान होता है जबिक उसके अ य भाग को ठ ड ेअतंिरक्ष का सामना करना पड़ता है, इससे उपग्रह की संरचना के तापमान म तापीय िवषमता पैदा हो जाती है, इसके पिरणाम व प उसकी संरचना म िवकृती आ जाती है। उपग्रह के घटक मे संरचना मक िवकृती से उसके िनिदर् ट कायर् करने की क्षमता बुरी तरह से प्रभािवत हो सकती है। ऊ मा निलयां, ऊ मा को उपग्रह की गमर् सतह से ठ डी सतह पर तेजी से थानांतिरत करके संरचना को समतापीय बनाने म मदद करती है। ऊ मा निलयां उपग्रह म इलेक्ट्रॉिनक घटक वारा उ प न ऊ मा को भी उनके ऊ मा अिभगम तक दक्षता से क्षय कर देती है। अतंरार् ट्रीय पेस टेशन म उ प न ऊ मा को अतंिरक्ष म क्षय करने के िलए ऊ मा नली िविकरक का िवकास िकया गया िजनम 50 फीट तक की लंबाई की ऊ मा निलय का उपयोग िकया गया है। थमर्ल डायोड का उपयोग उपग्रह म अवरक्त संसचूक के शीतलन के िलए िकया गया है, सामा य प्रचालन की दशा म थमर्ल डायोड संसूचक को ठ डा रखता है, लेिकन बा य ऊ मा अिभवाह िगरने का दशा म संसूचक का ऊ मीय िवयोजन कर देता है, िजससे उसे तापमान की अपेिक्षत सीमाओ ंम रखना संभव हो जाता है। 2. इलेक्ट्रॉिनक एवं वै युत उपकरण का शीतलनः- इलेक्ट्रॉिनक घटक के लघुकरण के साथ ही इन घटक वारा ऊ मा अिभवाह घन व म विृद्ध के कारण ऊ मा क्षय करने वाले तंत्र पर अितिरक्त मांग बढ़ जाती है। उदाहरण के तौर पर िडिजटल कं यूटर एक कमरे के आकार के तंत्र से एक ऐसी इकाई के प म िवकिसत हो गया है िजसे एक छोटे सूटकेस म आराम से रखा जा सकता है। लेिकन, ऊ मा उ प न करने वाले इलेक्ट्रॉिनक घटक की घनी पैिकंग के कारण होने वाली

  • अिभ यिक्त िहदंी पित्रका, वािषर्की 2013 

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    घटक के तापमान म अ यािधक विृद्ध की सम या भी गंभीर हो गई है। इलेक्ट्रॉिनक घटक की िव वसनीयता एवं िटकाऊपन जसेै गुण उनके प्रचालन के तापमान के प्रित संवेदनशील होत ेह। इस सम या के समाधान के िलए ऊ मा निलय का उपयोग बहुत ही कारगर िसद्ध हुआ है। लेपटॉप कं यूटर तथा अ य छोटे आकार की इलेक्ट्रॉिनक प्रयुिक्तय म इलेक्ट्रॉिनक घटक के तापमान की सम याओ ंके समाधान के िलए सू म ऊ मा निलय का उपयोग यापक तर पर हो रहा है। ऐसी इलेिक्ट्रक मोटर का िनमार्ण िकया गया है िजनके रोटर की पिरिध पर ऊ मा निलय का िनवेश उनके प्रचालन के दौरान शीतलन के िलए िकया गया है। मोटर म िबयिरगं के शीतलन के िलए घूणर्नशील ऊ मानिलय का उपयोग िकया गया है। 3. िविभ न उ योग म ऊ मा नली का उपयोगः- ऊजार् की लागत म विृद्ध के कारण उ योग म उपयोग के िलए ऊजार् संरक्षण की नई तकनीक का िवकास हुआ है। ऊ मा निलय वारा बा य शिक्त खचर् िकए िबना ही दक्षता से ऊ मा थानांतरण करने की क्षमता के कारण इनका ऊ मा िविनमयक म उपयोग िकया गया है। ऊजार् उ योग म ऊ मा नली वाले ऊ मा िविनमयक का उपयोग हवा के प्राथिमक ऊ मक के प म िकया जाता है। ऊ मा नली वाले ऊ मा िविनमयक का मुख्य लाभ यह है िक प्रचालन के दौरान ये लगभर समतापीय रहते है तथा द्रव के क्षरण की संभावना नग य होती है। ऊ मा नली वाले ऊ मा िविनमयक एक ऐसे संहत अपिश ट ऊ मा पुनः प्राि त तंत्र के प म काम करते ह िजनम कोई बाहरी शिक्त खचर् नहीं होती है, दाब मे िगरावट भी कम होती है तथा इ ह थािपत करना भी आसान होता है।

    ऊ मा निलय का उपयोग खा य प्रक्रम भिट्टय म इनके िवकास के शु आती दौर से हो रहा है। साधारण भिट्टय म आग की लपट से पहले ईंट को गरम िकया जाता है, िफर ईंट ऊ मा चालन वारा पाक कक्ष म खा य पदाथर् को ऊ मा पहंुचाती है िजससे िक खा य पदाथर् दहन के उ पाद से प्रदिूषत न हो सके। भिट्टय मे उ मा निलय के उपयोग वारा ऊ मा को पाक कक्ष म ऊ मा निलय के अदंर होने वाली वा पन एवं संघनन की प्रिक्रया वारा थानांतिरत हो जाती है। इस यव था से भिट्टय म खचर् होने वाले ईंधन मे 25 प्रितशत की बचत तो हुई ही, साथ ही साथ भट्टी के पाक कक्ष मे लगभग समतापीय वातावरण बन सका। वैज्ञािनक ने यातायात वाहन म बे्रिकंग तंत्र के शीतलन के िलए ऊ मा निलय के उपयोग का प्र ताव रखा है इससे वाहन के बे्रिकंग तंत्र म तापीय प्रितबल कम ह गे तथा कम तापमान के कारण बे्रिकंग तंत्र के घटक की िव वसनीयता एवं िटकाऊपन भी बढ़ जाएगा। यातायात वाहन के ईंजन की अपिश ट ऊ मा को ऊ मा निलय वारा आसानी से पुनः चिक्रत करके यात्री केिबन के वातावरण को गमर् करने के िलए िकया जा सकता है। श य िक्रयाओ ंम अित-िन न ताप ऊ मा निलय का उपयोग मानव शरीर के हािनकारक ऊतक को न ट करने के िलए िकया जा रहा है, इससे नजदीक के व थ उतक को कम से कम हािन पहंुचती है तथा रक्त त्राव भी कम होता है।

    िन कषर्ः- हमारे जीवन के िविभ न क्षेत्र म तापीय एवं ऊजार् संरक्षण संबंिधत सम याओ ंके आसान समाधान के िलए ऊ मा निलय की मह वपूणर् भूिमका है। हमारे देश के कई सं थान म इसके िवकास एवं नवीन उपयोग पर तेजी से अनुसंधान चल रहे ह।

    संदभर्ः- 1.िगलमोर जी, पेसक्रा ट थमर्ल कंट्रोल हडबुक, ऐरो पेस काप रेशन, केिलफोिनर्या, 2002

    2.अमीर फागरी, हीट पाइप साइंस एंड टेक्नालॉजी, टेलर एंड फ्रांिसस, यूयॉकर् , 1995

    समय की समझ प्रय न करता हँू समझने का समय की क्या है मह ता, कैसा है रंग- प, कैसी है बनावट, कहा ँतक फैली है इसकी स ता? सोचते हुए अक मात,् प्रतीत होता है िक िवजय ी लग गई मेरे हाथ। नख से लेकर िशख तक, पहचान गया म आपादम तक।

    बीत रहा जो ये पल-पल है, ये विन सी, समय की ही तो कल-कल है। मन प्रस न हो इठलाता है, खुिशय से भर जाता है। इसे अब भागने न दूँगा, मुिट्ठय म इसे कैद करके रखूगँा। िक तभी आघात लगता है। इतना सोचने तक जो बीत गया,

    वही तो समय था, जो हमसे जीत गया। मन ही मन खीझता हँू, म अपनी हार पर पछताता हँू, समझने के बदले अब, समय को जीतने का प्रय न करता हँू।

    प्रणेश कुमार

  • अिभ यिक्त िहदंी पित्रका, वािषर्की 2013 

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    क्य पड़ती ह मकान म दरार

    - पु षो तम गु ता ईमेल[email protected]

    मकान म दरार का होना न केवल उनकी खूबसूरती को कम करता है वरन ्उनकी ि थरता व सुरक्षा पर भी प्र न िच ह लगा देता है। दरार के दु प्रभाव म बरसाती िरसाव होना, पे ट का उखड़ना, इ पात की छड़ मे जंग लगना, और अंतत: मकान की मज़बूती पर िवपरीत प्रभाव पड़ना - शािमल है। अत: मकान म पड़ी दरार को ग भीरता से लेना ज़ री है। इन दरार के कई कारण हो सकत ेहै। िजनम से मुख्य ह - उिचत मात्रा म तराई का न िकया जाना, कमज़ोर नींव, कमजोर संरचना, इ पात की छड़ म जंग लगना, िनमार्ण म िन न गुणव ता वाले पदाथ का उपयोग और भूक प का प्रभाव। उिचत मात्रा व सही तरीके से तराई न करने पर सीमट कंक्रीट व पल तर अपनी सही मजबूती प्रा त नही करते ह और उनम दरार आ सकती ंह। सीमट को बनाने म लगभग 80 से 85 प्रितशत तक चूने के प थर का उपयोग िकया जाता है। इस सीमट म पानी िमलाने पर कई प्रकार की जिटल रासायिनक िक्रयाएं होती ह, िजससे यह िदन-प्रितिदन मजबूत होती जाती है। साधारण सीमट तीन िदन म लगभग 50 प्रितशत, व सात िदन म 70 प्रितशत तक मजबूत हो जाती है। तराई वारा सीमट म रासायिनक िक्रया के िलए उपल ध पानी को वा पन से बचाया जाता है। भारतीय मानक के अनुसार तराई 7 िदन तक करनी चािहए। भवन के शहतीर (beam), ख भ , छत आिद की िडज़ाइन उन पर आने वाले भार के अनुसार की जाती है। कई बार, भवन बनाने के बाद िबना संरचना का अ ययन िकए, उसकी िडज़ाइन म पिरवतर्न िकया जाता है। जैसे िक छत पर पानी की अितिरक्त टंकी का िनमार्ण या टंकी को बड़ा बनाना, भवन की मंिजलो को बढ़ाना, छत पर तरणताल या लॉन का िनमार्ण आिद शािमल है। इस प्रकार के अितिरक्त िनमार्ण से भवन की संरचना पर की गई िडज़ाइन से अिधक भार पड़ता है और उसम दरार पड़ सकती ह। मकान की नींव का िडज़ाइन करने से पहले भूिम की भार