गाांvmजmकt पावw प्रसांग ३ · गाांvmजmकt पावw...

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गा धीजीके पावन स लेखक लल भाई मकनजी अन वादक सोमेर प रोहित नवजीवन काशन महदिर अहमदाबाद - १४

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  • गाांधीजीके पावन प्रसांग

    लेखक

    लल्लुभाई मकनजी

    अनुवादक

    सोमेश्वर पुरोहित

    नवजीवन प्रकाशन महदिर

    अहमदाबाद - १४

  • गाांधीजीके पावन प्रसांग - ३|

    प्रकाशकका हनवेिन

    १९४७ के बाद हमारा ध्यान समाज-शिक्षणकी ओर शविषे रूपस ेगया ह ै| और हमारे दिेमें लोग ऐसी

    पसु्तकें तयैार करन ेलग ेहैं, जो समाज-शिक्षणके काययमें उपयोगी शसद्ध हों | हमारी सरकारन ेभी इस काययके

    महत्त्वको समझकर इस ेगशत देनकेे शलए अच्छी पसु्तकों पर लखेकोंको पाररतोशषक दनेा आरांभ शकया ह ै |

    इसस ेसमाज-शिक्षणका साशहत्य तजेीस ेबढ़न ेलगा ह ै|

    नवजीवन ट्रस्टने आरांभस े ही इस काययका महत्त्व समझा ह ैऔर इसमें यथािशि सहयोग दनेकेे शलए

    समाज-शिक्षणकी पसु्तकें तयैार करवाई ह ै| श्री जगुतरामभाई दव ेतथा श्री नरहररभाई परीखन ेशमलकर इसी

    हतेकेु शलए बहुत पहल े गजुरातीमें ‘लोकपोथी’ की रचना की थी | उसके बाद तो ऐसी अनके उपयोगी

    पसु्तकें इस सांस्थान ेप्रकाशित की हैं | अनभुवस ेयह शसद्ध हो चुका ह ैकी श्री लल्लभुाईकी पसु्तकें समाज-

    शिक्षणके शलए अच्छा काम द ेसकती हैं | ‘गाांधीजीके पावन प्रसांग’ िीषयकस ेउन्होंन ेजो पसु्तकें तयैार की हैं,

    उनमें यह तीसरी पसु्तक ह ै| पहल ेऔर दसुरे भागकी तरह इस तीसरे भागमें भी उन्होंन ेगाांधीजीके जीवनके

    शवशवध पहलओु ांका दियन करानवेाल ेबोधप्रद प्रसांग सादी और सरल भाषामें शचशित शकये हैं | समाज-शिक्षण

    लनेवेाल ेप्रौढ़जनोंके शसवा बालकोंके शलए भी ये पसु्तकें उपयोगी साशबत हुई हैं | इस पसु्तकमालाकी पहली

    पसु्तकको बाल-साशहत्यके जीवन-चररि शवभागकी उत्तम पसु्तक घोशषत करके बम्बई-सरकारन ेलखेकको

    प्रथम पाररतोशषक प्रदान शकया ह ै| यह बात इस मालाकी उपयोशगताको भलीभाांशत शसद्ध कर दतेी ह ै|

    गजुरातीस ेशहन्दी अनवुाद हमारे शहन्दी-शवभागके श्री सोमशे्वर परुोशहतन ेशकया ह ै|

    आिा ह ैसमाज-शिक्षण लनेवेाल ेप्रौढ़जनों और बालकोंके शलए यह पसु्तक भी लाभदायी साशबत होगी|

    १५-३-१९६०

  • गाांधीजीके पावन प्रसांग - ३|

    अनुक्रमहिका

    प्रकािकका शनवदेन

    १. प्रेमका जादू

    २. एक चालाक मवुशककल

    ३. चोरके शलए नाश्ता

    ४. ‘आजस ेघूांघट हटाता ह ां’

    ५. वीरको िोभा देनवेाली मतृ्यु

    ६. नमक ही खारापन छोड़ द ेतो?

    ७. गरमीमें ही मझु ेशपघलन ेदीशजये

    ८. सावयजाशनक व्यवहारके शनयम

    ९. सवेाग्राममें गाांधी-जयन्ती

    १०. व ेभव्य वचन

    ११. यह िरीर लोकसवेाके शलए ह ै

    १२. पोिाकमें क्राशन्त

  • गाांधीजीके पावन प्रसांग - ३|

    पे्रमका जािू

    दिेकी स्वतांिताके शलए गाांधीजीन ेशिशटि हुकूमतके साथ जसैी सख्त लड़ाईयाां लड़ीं, वसैी और शकसी

    नतेान ेनहीं लड़ीं | शिशटि सरकारको ‘ितैानी सरकार’ कहनवेाल ेगाांधीजीके मनमें हरएक अांग्रेजके शलए पे्रम

    भरा था | गाांधीजी अधमयका शवरोध करत े थ,े अधमी मनषु्यका नहीं | कयोंशक अधमीके शलए जीवनमें

    पररवतयन – सधुार करनकेी गुांजाईि रहती ह ै | गाांधीजीके जीवनकी शविषेता ही इस बातमें थी शक शजसके

    शखलाफ व ेलड़ाई छेड़त ेथ,े उस पर भी अपना प्रेम बरसाय ेशबना रह ही नहीं सकत ेथ े| जनरल स्मट्स जसैे

    िशििाली शवरोधीको भी उन्होंन ेअपन ेऐस ेही प्रेमस ेजीत शलया था | भारतमें जब राजद्रोहके अपराधमें उन्हें

    ६ वषयकी जलेकी सजा हुई, तब सजा दनेवेाल े न्यायाधीि भी यह कह े शबना नहीं रह सके: “भारतका

    राजनीशतक वातावरण बदल जान ेपर यह सजा परूी शकये शबना ही आप जलेस ेररहा कर शदए जायें, तो मझुस े

    ज्यादा आनन्द और शकसीको नहीं होगा |” दशुनयाके मिह र मकुदमोंके इशतहासमें ऐसा एक भी उदाहरण

    दखेनकेो नहीं शमलता, शजसमें अपराधीको सजा दते ेसमय न्यायाधीिन ेऐस ेवचन कह ेहों | शिशटि सम्राटके

    एक अशधकारीके नात ेन्यायाधीिन ेअपना फर्य तो अदा शकया, परन्त ुगाांधीजीके शलए उनके मनमें जो आदर

    था उस ेव ेशछपा न सके |

    जलेमें भी जलेके अशधकाररयोंकी यही हालत थी | गाांधीजीके समान एक सन्त परुुषके व ेजलेर हैं, यह

    बात उनके मनमें खटकती थी | गाांधीजीकी अांशतम जलेयािाका समय आगाखान महलमें बीता था | उन

    शदनों श्री कटेली जेल-सपुररन्टेन्डन्ट थे | गाांधीजी दो बरसस ेकुछ अशधक समय तक आगाखान महलमें बन्द

    रह े| उस बीच श्री कटेली गाांधीजीके जले-पररवारके एक सदस्य जसै ेबन गये थ े| जब गाांधीजीको ररहा कर

    दनेकेा हुकम उन्हें शमला, उस समय उनके मनकी कया दिा हुई होगी ? कैस ेकैस ेभाव उनके हृदयमें उठे होंग?े

    छुटनकेे बाद गाांधीजीकी ७५वीं जन्म-जयन्ती आनवेाली थी | सरकारी नौकरीके बन्धनोंके कारण श्री कटेली

    जयन्ती उत्सवमें भाग नहीं ल ेसकत ेथे | परन्त ुउनका शदल तो यह जयन्ती मनानकेे शलए बड़ा उत्सकु था |

    उन्होंन े ७५ वीं जयन्तीके अवसर पर ७५ रुपयेकी एक छोटीसी थैली गाांधीजीको अपयण करनकेा शनश्चय

    शकया|

    गाांधीजीके पास आकर व े बोल े : “कल सवरेे जब आप इस महलस े शबदा होंग,े तब सम्राटके एक

    नौकरका फर्य अदा करनकेे शलए मैं अपन ेगणविेमें खड़ा रह ांगा | इस कारणसे मैं अभी आपके आिीवायद

    लने ेआया ह ां |”

  • गाांधीजीके पावन प्रसांग - ३|

    महात्माजी एक कैदीके रूपमें जले- सपुररन्टेन्डन्टके यह वचन सनु रह ेथ े| व ेकुछ बोलें इसके पहल ेही

    जले- सपुररन्टेन्डन्टन ेआग ेकहा : “महात्माजी, बाहर जाने पर तो आपको अनके थैशलयाां अपयण की जायेंगी|

    परन्त ुकटेलीकी इस छोटीसी थैलीको स्वीकार करके आप इस ेपहली थैली बननकेा मौका दीशजये |”

    गाांधीजीन ेहांसत ेहांसत ेउनकी थैली स्वीकार की | एक जले-अशधकारी अपन ेकैदीका ऐसा सम्मान करे,

    यह घटना भी कया दशुनयाके इशतहासमें अनोखी नहीं कही जाएगी ?

    गाांधीजीको आगाखान महलस े शबदा करनकेे शलए अनके लोग आये थे | उनमें जेल- सपुररन्टेन्डन्टकी

    पत्नी भी थी | शबदाके समय गाांधीजीको प्रणाम करके श्रीमती कटेली बोलीं : “महात्माजी, भशवष्यमें आप

    शफरस ेजले जानकेा शवचार करें, तो कृपया पहलसे ेही हमें सचूना कर दीशजयेगा, शजसस ेमरेे पशत नौकरीस े

    छुट्टी ल ेलें |”

    गाांधीजीके जलेवासके अरसमेें उनके पशत जले-सपुररन्टेन्डन्ट रहें, इस शवचारस े ही श्रीमती कटेलीको

    लज्जा आती थी|

    सांतके पे्रमका जाद ू कैसा अनोखा था ? शवरोधी हुकूमतके नौकर और उनके पररवारके लोग भी

    गाांधीजीके अपन ेआदमी बन गये थे !

  • गाांधीजीके पावन प्रसांग - ३|

    एक चालाक मुवहककल

    श्री हनेरी पोलाक गाांधीजीके शमि, भि और दशक्षण अफ्रीकाके एक साथी थे | स्वावलम्बी जीवनके नए

    नए प्रयोगोंमें भी व ेगाांधीजीके साथ ही रहत ेथे | दशक्षण अफ्रीकामें गाांधीजी जब वकालत करत ेथे, तब श्री

    पोलाक भी कुछ समय उनके दफ्तरमें काम करनकेे शलए रह ेथे | उनका खास काम आमद-खचयका शहसाब

    रखना था | यह काम तो व ेअत्यन्त सावधानीस ेकरत े ही थे, परन्त ु गाांधीजीके मवुशककलोंस े पसै े वसूल

    करनकेा काम भी व ेबड़ी कुिलतास ेकरत ेथे |

    एक बार गाांधीजीका एक चालक मवुशककलस ेसाबका पड़ गया | उसके वकीलका काम करत ेकरत ेएक

    बड़ी रकम गाांधीजीकी उस पर चढ़ गयी | परन्त ुशहसाब श्री पोलाक रखत ेथे, इसशलए गाांधीजीन ेइस बात पर

    ध्यान नहीं शदया शक मवुशककल पर उनकी शकतनी रकम चढ़ गयी ह ै| श्री पोलाकन ेबार बार उसस ेपैसोंका

    तकाजा शकया, परन्त ुएक या दसूरा बहाना बनाकर वह पसै ेदनेमेें आनाकानी करता रहा | अब श्री पोलाकका

    धीरज खूटन ेलगा | व ेपरेिान हो गये | समझाने-बुझानसे ेयह मामला शनबटेगा, ऐसा उन्हें लगता नहीं था |

    गाांधीजीके साथ भी बेईमानी करनवेाल ेमवुशककलको अब कोटयमें घसीटनकेा आशखरी रास्ता लनेकेा उन्होंन े

    शवचार शकया | इसके शलए उन्होंन े एक नोशटस तयैार शकया | उसमें मवुशककलको बताया शक : ”बार बार

    तकाजा करन ेपर भी आपन ेपसै ेदनेमेें आनाकानी की ह ै| अब अगर आप पसैोंकी अदायगी नहीं करेंग,े तो

    अदालतमें आप पर दावा शकया जायेगा |”

    अन्तमें गाांधीजीके सामन े सही करनकेे शलए वह नोशटस रखा गया | मवुशककलको दावकेी धमकी

    दनेवेाला नोशटस पढ़कर गाांधीजीको हांसी आ गयी | उस पर अपनी सही न करके गाांधीजीन ेउस े टेबल पर

    एक ओर रख शदया |

    श्री पोलाक खड़े खड़े यह सब दखेत ेरह े | अन्तमें व ेबोल े : “दावा न शकया गया तो पसैे वसलू होना

    कशठन ह ै|”

    गाांधीजी – तो हम पसै ेछोड़ देंग े| लशेकन दावा नहीं करेंग े|

    श्री पोलाक – लशेकन दावा करनमेें हजय कया ह ै? पैस ेवसूल करनकेे शलए तो आप कई मवुशककलोंके

    मक़ुदम ेलढ़ चुके हैं |

  • गाांधीजीके पावन प्रसांग - ३|

    गाांधीजी – मवुशककलोंके कहनसे ेउनकी ओरस ेमैं भल ेकुछ भी करूां | लशेकन कया आप अभी भी नहीं

    जानत े की अपन े पसै े वसलू करनकेे शलए मैं कभी काननूका सहारा नहीं लेता? धमकी दकेर या जोर-

    र्बरदस्तीका सहारा लकेर मनषु्यको कभी ईमानदार नहीं बनाया जा सकता | मुवशककलने अपनी इच्छास े

    मरेी फीस न दी, तो मझु े उसी समय उसस ेफीस वसूल कर लनेी चाशहए थी | इसमें मैंने जो गलती और

    असावधानी की उसका फल मझु ेभोगना ही होगा |

    श्री पोलाक चुपचाप गाांधीजीकी बातें सनुत े रह े | वह नोशटस आशखर कचरे की टोकरीमें गया और

    गाांधीजी दसूरे कागर्-पि पढ़नमेें मिगलू हो गये |

    दफ्तरस ेबाहर शनकलत ेसमय गाांधीजीका यह वाकय श्री पोलाकके मनमें गूांजन ेलगा : “धमकी या जोर-

    र्बरदस्तीस ेमनषु्यको कभी ईमानदार नहीं बनाया जा सकता |”

    उनका हृदय गवाही द ेरहा था : “कभी नहीं |”

  • गाांधीजीके पावन प्रसांग - ३|

    चोरके हलए नाश्ता !

    अपन ेउपकारी पर पे्रम रखनवेाल ेतथा उसका भला करनवेाल ेलोग तो सांसारमें बहुतरेे दखेे जात े हैं |

    परन्त ुअपना अपकार करनवेालकेा भी भला चाहनवेाल ेतथा उस पर उपकार करनवेाल ेआदमी दशुनयामें

    इनशेगन ेही होत ेहैं | गाांधीजी सांसारके ऐस ेही शबरल ेमहापरुुष थे |

    दशक्षण अफ्रीकामें अपन ेऊपर हमला करनवेाल ेमीर आलमको क्षमा करके उस पर मकुदमा न चलानकेा

    आग्रह गाांधीजीन े रखा था | अपनी मतृ्युस े कुछ शदन पहल े शदल्लीमें प्राथयना-सभाके नजदीक बम

    फोड़नवेालकेे बारेमें भी गाांधीजीन ेपे्रमके ही वचन शनकाल ेथे | व ेहमिेा कहा करत ेथे शक “मनषु्यमािके प्रशत

    – बुरे और भलकेे प्रशत, धमी और अधमीके प्रशत पे्रमका व हमददीका भाव रखना चाशहए | परन्त ुअधमयके

    प्रशत कभी ऐसा भाव नहीं रखना चाशहए |” अधमयका तो गाांधीजीन ेजीवनभर शवरोध शकया था |

    “अपकारका बदला अपकार नहीं, लशेकन उपकार ही हो सकता है” – यह शसद्धान्त गाांधीजीका जीवन-

    मांि बन गया था | एक रातको आश्रमके रसोईघरमें एक चोर घसु गया | वह भखूा होनकेे कारण रसोईघरमें

    घसुा या दसुरे शकसी कारणस,े यह शकसीको समझमें नहीं आया | परन्त ु कुछ आश्रमवाशसयोंन े उस े पकड़

    शलया और एक कोठरीमें बांद कर शदया | उनका शवचार उस ेसवरेे गाांधीजीके सामन ेल ेजाना था |

    सवरेे शनत्य कमोस ेशनबट कर गाांधीजी नाश्ता करन ेबठेै, तब उस चोरको उनके सामन ेपिे शकया गया |

    शकन पररशस्थशतयोंमें चोरको पकड़ा गया, इसका सारा शकस्सा उन्हें सनुाया गया | गाांधीजीन ेचुपचाप सब कुछ

    सनु शलया | अन्तमें व ेबोल े:

    “इस भाईको नाश्ता कराया या नहीं ?”

    आश्रमवासी – नहीं बाप ू|

    गाांधीजी – पहल ेइस ेनाश्ता कराओ; शफर मरेे पास लाना |

    पास ही खड़े कुछ भाई मनमें गनुगनुाये : “अरे, चोरको नाश्ता !”

    चोर भी मनषु्य ह ै; उस ेभी भखू लगी होगी; जो आदमी हमारे बन्धनमें हो, उस ेखाना शखलाना हमारा

    धमय ह;ै ऐसी ऊां ची कल्पना उनके मनमें उठी ही नहीं थी | परन्त ुएक चोरके प्रशत भी गाांधीजीका ऐसा मानव-

    धमय दखेकर आश्रमवासीयोंको प्रेमधमयकी अनोखी दीक्षा शमली |

  • गाांधीजीके पावन प्रसांग - ३|

    चोरको नाश्ता कराया गया | बादमें उस े दबुारा गाांधीजीके पास लाया गया | गाांधीजीन े उस े पे्रमस े

    समझाया : “भाई, तमु्हें इस तरह चोरी नहीं करनी चाशहए | चोरी करना पाप ह ै| गरीबीके कारण अगर तमु्हें

    चोरी करनी पड़ती हो, तो हम तमु्हें आश्रममें काम देंग े|”

    शवश्वके एक वन्दनीय महात्मा चोरका न्याय कर रह ेथे | चोरके मनमें उस समय कैस ेभाव उठ रह ेहोंग े?

    अन्तमें गाांधीजीन े हुकम शदया शक चोरको पशुलसके हवाल ेन करके उस ेछोड़ शदया जाय | चोरको बड़ा

    अचरच हुआ | उस े इस बातका भान हुआ शक वह शकसके यहाां चोरी करन ेआया ह ै | चोरी न करनकेा

    गाांधीजीका उपदिे सुनकर वह आश्रमस ेचला गया |

    समाजमें शजसन ेचोरीको अपना कतयव्य माना ह,ै उसकी चोरीको सह लनेा, उसके मनमें यह भावना पदैा

    करना शक वह हमारा भाई ह ैऔर उसके जीवनको बदलना यही पे्रमका मागय ह ै | गाांधीजी ऐस े पे्रममागय पर

    जीवनभर चल ेऔर उसीमें उन्होंन ेअपन ेजीवनकी धन्यता मानी |

  • गाांधीजीके पावन प्रसांग - ३|

    ‘आजसे घूांघट िटाता ि ां’

    इस घटनाके समय गाांधीजी सवेाग्राममें रहत ेथे | घमूनकेी कसरत उन्हें बहुत शप्रय थी | इसशलए व ेसबुह-

    िाम शबना चूके घमून ेजात ेथे | उनके साथ आश्रमके भी कुछ लोग रहत ेही थे | कभी कभी बालक भी इस

    मांडलीमें िाशमल हो जात ेथे |

    एक शदन अपन ेशनयमके मतुाशबक गाांधीजी िामको घमून ेशनकल े| रास्तमेें एक धनी व्यापारी गाांधीजीसे

    शमलनकेी इच्छास ेखड़े थे | परन्त ुव ेसमझ नहीं पा रह ेथे शक शकस तरह शमला जाय | गाांधीजी तजे चालसे

    चलत ेचलत ेउनके पासस े गजुर गये | उनके पीछे कुछ आश्रमवासी चल रह ेथे | व े व्यापारी सज्जन भी

    आश्रमवाशसयोंके साथ गाांधीजीके पीछे पीछे चलन ेलग े| गाांधीजीकी मांडलीमें नए िाशमल होनवेाल ेव्यापारी

    शमिकी ओर एक भाईन ेस्वाभाशवक कुतहूलस ेदखेा | उनका ध्यान अपनी ओर शखांचा दखेकर व्यापारी शमिन े

    कहा : “कुछ ही शदन पहल ेमरेे पिुका शववाह हुआ है | मरेी और मरेी पत्नीकी इच्छा ह ैशक हमारा पिु और

    पिुवध ूगाांधीजीके चरणोंमें प्रणाम करें और गाांधीजी उन्हें आिीवायद दें | इसके शलए गाांधीजी कुछ शमनटका

    समय दें तो हमारा अहोभाग्य होगा |”

    आश्रमवासीन े उन्हें सलाह दी शक “बापजूी कल सवरेे इसी रास्ते पर घमून े शनकलेंग े | उस समय आप

    दोनों वर-वधकूो साथ ल ेआईये | बापजूी आपस ेजरूर शमलेंग े|”

    व्यापारी – लशेकन गाांधीजी रास्त ेपर शमलनकेा समय देंग ेभी ?

    आश्रमवासी – जरूर देंग े| आप दोनोंको लकेर सबुह यहीं आ जाईये |

    व्यापारी – गाांधीजी नाराज तो नहीं होंग ेन ?

    आश्रमवासी – िायद हममें स ेकोई नाराज हो जाय; परन्त ुबापजूी कभी नाराज नहीं होत े|

    व्यापारी – तब तो मैं कल सवरेे जरूर दोनोंको लकेर आ जाऊँगा |

    हमारी मनकी इच्छा परूी होगी, ऐस ेसांतोषके साथ व ेअपन ेगाांवको लौट गये | रातको घरके सब लोगोंको

    यह बात सनुायी और सवरेे जल्दी उठनकेी सचूना दकेर सो गये | कब रात बीत ेऔर कब सवरेा हो, यही

    शवचार उनके मनमें घटुता रहा | व ेअधीर हो उठे | अच्छी तरह सो भी नहीं सके | सबुह सब लोग जल्दी

    तयैार हो गये | दोनों व्यापारी पशत-पत्नी, उनका पिु और पिुवध ूसब सवेाग्राम जानकेो शनकल पड़े | और

    शनयत शकये हुए स्थान पर जाकर आतरुतास ेगाांधीजीके आनकेी राह दखेन ेलगे े|

  • गाांधीजीके पावन प्रसांग - ३|

    पक्षीगण जाग उठे थे | आसपासके वकृ्षों पर उनका मधरु कलरव सनुायी पड़ता था | उषाके सनुहल ेरांगसे

    पवूय शदिा चमक उठी थी | दरूस ेमहात्माजीकी शखलशखलाहटकी आवाज सनुायी द े रही थी | समचूी सशृि

    मानो आनन्द और उल्लासस ेभर गयी थी | करोड़ोंके तारनहार महात्मा तजे चालस ेचल ेआ रह ेथे |

    “ दखेो, महात्माजी आ रह े हैं | तरुांत उनके चरणोंमें दोनों प्रणाम करना |” भशिभावस े व्यापारीन े वर-

    वधसू ेकहा |

    गाांधीजी घमूत ेघमूत ेउस स्थान पर आ पहुांचे | व्यापारी पशत-पत्नीन ेभशिस ेउन्हें प्रणाम शकया | वर-वधनू े

    उनके पशवि चरणोंमें मस्तक नवाया | दोनोंकी पीठ पर सन्त परुुषन ेवरद हस्त फेरकर उन्हें आिीवायद शदया

    और प्रेमस े उन्हें खड़ा शकया | माता-शपता इस पशवि दृश्यको एकटक दखेत े रह े | हृदयकी प्रसन्नता और

    आनन्द उनके मखु पर झलक उठे |

    गाांधीजी िाांत खड़े रह े| उनके मखु पर गांभीरता छा गयी | आांखोंमें करुणाका भाव था | वाणी बांद थी |

    पिुवधकूी ओर व ेकुछ क्षण तक दखेत ेरह े| उसन ेघूांघटके भीतर अपना चेहरा शछपा शलया था | नीच ेझकुाय े

    हुए चेहरेको ऊां चा उठाकर वह उपरकी ओर दखे नहीं सकती थी | आांखें होत ेहुए भी वह अांधी बनी हुई थी |

    ररवाजकी गुलामीस ेवह ऐसी जकड़ी हुई थी शक गाांधीजी जैस ेसन्त परुुषको भी अपना मुांह नहीं शदखा सकती

    थी | भारतको गलुामीके बन्धनस ेमिु करनवेाल ेगाांधीजीस ेररवाजकी यह गलुामी कैस ेसही जाती ? नारीकी

    पशविताकी रक्षा कया घूांघटस ेकभी हो सकती ह ै ? स्वतांिताकी सखु दनेवेाली हवामें ही उस पशविताका

    शवकास हो सकता ह ै|

    करुणा-सागर गाांधीजी उस पिुवधकेू पास गय ेऔर उसके मुांह परका घूांघट उन्होंन ेहटा शदया | शफर उसके

    ससरुकी ओर दखेकर व ेगांभीर वाणीमें बोल े: “इस बालाके मुांह परका घूांघट मैं आजस ेहटाता ह ां | इसका मुांह

    हमिेा ऐसा ही प्रसन्न रहन ेदीशजये | दबुारा इसके मुांह पर घूांघट न चढ़े, इसकी सावधानी रखना आपका काम

    ह ै|”

    “जसैी आपकी आज्ञा, महात्माजी | आपकी आज्ञाके शखलाफ मैं काम नहीं करूां गा | वर-वध ूदोनों पर

    आपके आिीवायद बरसाइये |” बालाके ससरुन ेप्रणाम करके गाांधीजीको शवश्वास शदलाया |

    गाांधीजी – अच्छे काम पर भगवानके आिीवायद हमेिा बरसत ेही हैं |

    “ जा, प्रसन्नतास े रहना” – कहकर गाांधीजीन े बालाकी पीठ पर पे्रमकी एक मीठी चपत लगाई और

    तजेीस ेआग ेबढ़ गये |

  • गाांधीजीके पावन प्रसांग - ३|

    भारतको आजादी शदलानेवाल ेगाांधीजी इस बातके शलए सदा उत्सकु रहत ेथे शक दिेके हर आदमीका

    जीवन स्वतांिताके आधार पर शवकशसत हो | वह बाला बड़ी खुिनसीब थी शक बरसों परुान े ररवाजकी

    गलुामीको तोड़ कर गाांधीजीन ेउसके जीवनमें क्राांशत पदैा कर दी | न जान ेशकतन ेअज्ञात मनषु्योंके जीवनमें

    गाांधीजीन ेअनके प्रकारस ेऐसी क्राांशत पैदा की होगी |

  • गाांधीजीके पावन प्रसांग - ३|

    वीरको शोभा िेनेवाली मतृ्यु

    १९३३ में गाांधीजी यरवडा जलेमें थे | जलेमें रहत े हुए अस्पिृता-शनवारणका कायय करनकेे शलए

    गाांधीजीन ेजो सशुवधायें माांगीं, उन्हें दनेेस ेसरकारन ेइनकार कर शदया | गाांधीजी इस बातको बरदाश्त नहीं कर

    सके | इसशलए उनहोंन े उपवास िरुु कर शदया | लशेकन इस उपवासमें पाांच ही शदनमें गाांधीजीकी तबीयत

    कल्पनास ेज्यादा शबगड़ गयी | इसशलए सरकार गाांधीजीको जलेस ेहटाकर पनूाके सासनू अस्पतालमें ल ेगयी

    | लशेकन सरकार झकुना नहीं चाहती थी | इसशलए उसन ेभी कड़ा रुख अपनाया | यहाां तक शक कस्तरूबाको

    भी गाांधीजीसे स्वतांिताके साथ शमलनकेी इजाजत नहीं दी | अस्पतालमें आनकेे बाद गाांधीजीकी तबीयत

    ज्यादा नाजकु हो गयी | सरकारको यह डर लगा शक अशधक समय तक गाांधीजीको कैदमें रखनसे ेकहीं उनके

    प्राणोंके शलए खतरा न पदैा हो जाय | कैदीके रूपमें गाांधीजीकी मतृ्यु हो जानेस ेजो खतरा पैदा हो सकता था,

    उसका सामना करनकेी शहम्मत सरकारमें नहीं थी | इसशलए उसन ेगाांधीजीको शबनाितय छोड़ शदया | सासनू

    अस्पतालस ेगाांधीजीको लडेी ठाकरसीकी ‘पणयकुटी’ में ल ेजाया गया | वहाां आराम लनेसे ेउनकी तबीयतमें

    सधुार हो रहा था |

    एक शदन गाांधीजी ‘पणयकुटी’ के सुांदर बागमें िामको घमू रह ेथे | कुछ साथी भी उनके साथ घमू रह ेथे |

    गाांधीजीके मनमें यह मन्थन चल रहा था शक इस अनसोच ेछुटकारेके बाद अब कया शकया जाय | बातचीतके

    शसलशसलमेें उन्होंन ेएक साथीस ेकहा : “ मरेा यह शवश्वास नहीं था शक इस बार मझु ेररहा कर शदया जायगा |

    मैं तो ऐसा मानता था शक इस बार जलेमें ही कैदीके रूपमें सरकार मझु ेमर जान ेदगेी | इसशलए मैंन ेजलेमें

    मरनकेी परूी मानशसक तयैारी कर ली थी | छूटनसे े एक शदन पहल े ही मैंन े अपन े उपयोगकी सारी चीजें

    अस्पतालकी नसों और दसुरे लोगोंको द ेदी थी |”

    ये सब चीजें बाांट दनेकेे बाद रामनाम रटत ेरटत ेगाांधीजी चादर ओढ़कर सो गये थे | मतृ्यकेु शलए उनके

    मनमें जरा भी घबराहट नहीं थी, न कोई दुुःख ही था | वह िाांशत और धीरजस ेखुिी खुिी मृत्युका आशलांगन

    करनकेी अनोखी तयैारी थी |

    उपवासस ेजलेमें ही मरेी मतृ्यु हो जाती तो लोग कया सोचत,े ऐसा सवाल गाांधीजीन ेबातचीतके दौरानमें

    एक साथीस ेपछूा |

    साथी – बाप,ू वह तो आपकी उदात्त और भव्य मतृ्यु मानी जाती |

  • गाांधीजीके पावन प्रसांग - ३|

    “नहीं, नहीं, यह बेकारकी बात ह ै| उपवासस ेहोनवेाली मतृ्युको भव्य मतृ्यु कौन कहगेा ? उसमें कया यि

    और कया भव्यता ह ै? परन्त ुतमु मरेी जन्म-कुां डलीमें शलखी बात जानत ेहो ? उसमें शलखा ह ै शक वीरोंको

    िोभा द ेऐसी मतृ्यु मझु ेशमलगेी |” कहत ेकहत ेगाांधीजीन ेजोरका ठहाका लगाया |

    साथी – बाप,ू उपवासस े होनवेाली मतृ्यु वीरको िोभा दनेवेाली ही कही जाएगी | धीरे धीरे मतृ्युकी

    िरणमें जाना कया कोई आसान बात ह ै? इसके शलए शकतन ेबड़े आत्मबलकी जरूरत होती ह ै?

    गाांधीजी – नहीं, मैं ऐसा नहीं मानता | मरेी मतृ्यु फाांसीके तख्त ेपर होनी चाशहए या शपस्तौलकी गोलीसे

    होनी चाशहए | ऐसा ही मतृ्यु सच्चे अथयमें वीरोंको िोभा देनवेाली मतृ्यु ह ै| खशटयामें पड़े पड़े उपवासस ेमरना

    वीरकी मतृ्यु नहीं ह ै|

    अपनी मतृ्युके बारेमें गाांधीजीकी यह कैसी अनोखी क्राशन्तकारी कल्पना थी | उनकी जीवन-दृशि बड़ी

    सकू्ष्म और गहरी थी | उन्होंन ेअपनी वाणी द्वारा जीवनके सदा बन ेरहनवेाल ेमलू्योंका पररचय भारतको और

    सारे जगतको कराया | लशेकन इशतहास शफरस ेदोहराया गया | वतयमान युगके एक श्रषे्ठ मानवका जीवन-सन्देि

    समझ न सकनवेले एक पागल मनुष्यकी गोलीस े बापकेू जीवनका अन्त आया | दशुनया अपन े युगके

    दवेदूतको – सन्त परुुषको पहचान न सकी, यह शकतन ेबड़ ेदुुःखकी बात ह ै| कुदरतके बड़से ेबड़ ेअनाथोंस े

    मानवके हृदयको जो आघात लगता ह,ै उसस ेभी ज्यादा गहरा आघात गाांधीजीकी मतृ्युके समाचार सनुकर

    भारतके और सारे जगतके करोड़ों लोगोंके हृदयोंको लगा था | सारी दशुनया िोक-सागरमें डूब गयी थी |

    अजात-ििुकी, अशहांसाके दतूकी मतृ्यु गोलीस े| यह एक ऐसी घटना थी शजसकी कोई कभी कल्पना भी नहीं

    कर सकता था | परन्त ुगाांधीजीकी दृशिस ेतो वह वीरोंको िोभा दनेवेाली मतृ्यु थी |

  • गाांधीजीके पावन प्रसांग - ३|

    नमक िी खारापन छोड़ िे तो ?

    मनषु्यके जीवनको गढ़नकेे शलए, उसको िदु्ध बनानकेे शलए व्रतोंके पालनकी बड़ी जरूरत रहती ह ै |

    इसशलए गाांधीजी अपन ेआश्रममें सत्य, अशहांसा, अपररग्रह आशद ग्यारा व्रतोंके पालनका आग्रह रखत ेथ े |

    इन सब व्रतोंमें उन्होंन ेस्वदेिीके व्रतको इस युगका महाव्रत माना था |

    वह कौनसा स्वदेिी धमय ह,ै शजसके थोड़े भी पालनस ेभारतके करोड़ों लोगोंकी रक्षा हो सकती ह ै? यही

    सवाल गाांधीजीको परेिान कर रहा था | परन्त ुअन्तमें इस सवालका जवाब उन्हें शमल गया – चरखा |

    तभीस ेगाांधीजीन ेचरखेको अपनाया और शनयमस ेकातनकेा व्रत शलया | शकसी शदन भोजनके शबना तो

    चल सकता ह,ै परन्त ुकताईके शबना नहीं चल सकता – ऐसी भशि, लगन तथा उत्साहस ेव ेचरखा चलात ेथ े

    | चरखेमें व े इतन े एकरूप और समरस हो जात ेथे शक अपनकेो भूल जात ेथे | उनके मनकी सबस ेबड़ी

    अशभलाषा थी : चरखा चलात ेचलात ेशकसी शदन मरेी आांखें बन्द हो जायां, तो वह मरेे जीवनकी सबस ेबड़ी

    धन्यता होगी | भल े ही बड़ेस े बड़ े महत्त्वके काम हों – काांग्रेस महासशमशतकी बैठकमें हाशजर रहना हो,

    वाइसरॉयके साथ सलाह-मिशवरा करना हो, नतेागण सलाह-सचूना और मागयदियन लने ेआये हों, बीमारोंकी

    सवेा करनी हो, ‘नवजीवन’ या ‘हररजन’ के शलए लखे शलखन ेहों या दिेके गांभीर सवालों पर शवचार करना

    हो – लशेकन गाांधीजी एक शदन भी चरखा चलाना नहीं छोड़त ेथे |

    चरखेमें ऐसी अटल श्रद्धा होनकेे कारण ही उन्होंन ेराष्ट्रके सामन ेबुलन्द आवाजमें यह घोषणा की थी शक

    चरखेको अगर सारे दिेवासी अपनायेंग,े तो सतूके धागसे ेही शहांदुस्तानको स्वराज्य शमल जायगा | कोई पछू

    सकत ेहैं शक स्वराज्य हाशसल करनकेे शलए तो शहांसक लड़ाईयाां लड़नी पड़ती हैं, हजारोंका खून बहाना पड़ता

    ह,ै जब शक गाांधीजीन े तो दिेके सामन ेबूढ़ीमाांका चरखा ही पिे शकया था | लशेकन चरखा चलाना कोई

    मामलूी और आसान बात नहीं थी | गाांधीजीकी दृशिमें चरखा चलान ेअथय था ‘खादीके मानस’ का शवकास

    करना | चरखेका काययक्रम जीवनके मौजदूा मलू्योंको बदलनकेा काययक्रम था | ‘खादीके मानस’ का शवकास

    करनकेा अथय ह ैगरीबोंके साथ तन्मय – एकरस होनकेी, प्रत्येक मनषु्यके साथ समानताका व्यवहार करनकेी,

    शकसीका िोषण न करनकेी, िनू्यवत ्बनकर सवेामय और कतयव्य-शनष्ठ जीवन शबतानकेी तथा अन्यायका

    शवरोध करनकेे शलए शसर ऊां चा रखकर जीनकेी भावनाका शवकास करना | परन्त ुगाांधीजी जो कुछ कहत ेथ े

    उस पर स्वयां अमल भी करत ेथे | जो काम व ेखुद नहीं कर सकत ेथे, उस ेकरनकेी सलाह व ेराष्ट्रको कभी

    नहीं दते ेथे |

  • गाांधीजीके पावन प्रसांग - ३|

    मसुाशफरीमें भी गाांधीजी चरखा और पशूनयाां अपन ेसाथ ही रखत ेथ ेऔर कमस ेकम तारोंकी जो सांख्या

    उन्होंन ेतय कर ली थी, उतन ेतार काटे शबना कभी सोत ेनहीं थे | ऐसा अनोखा और अटल था उनका कताई-

    व्रत !

    एक बार व ेभारतके कुछ शहस्सोंकी यािाके शलए शनकल े| घमूत ेघमूत ेव ेपनुा पहुांचे | रातमें कातन ेबैठे तो

    दखेा शक पशूनयाां ख़तम हो गयी हैं | अपन ेसामानमें स ेपशूनयाां शनकाल दनेकेी उन्होंन ेएक साथीको आज्ञा दी |

    परन्त ुसामानमें भी पशूनयाां नहीं शमलीं | उनके साशथयोंमें स े शजनके शजम्म ेयह काम था, व ेसामानके साथ

    ज्यादा पशूनयाां रखना भूल गये थे | अब कया शकया जाय? महादवेभाई शनयमस े चरखा चलात े थे | उन्हें

    बुलाकर गाांधीजीन ेपछूा : “महादवे, तमु्हारे पास तो पशूनयाां रहती ही हैं | थोड़ी पशूनयाां मझु ेदो |”

    महादवेभाई के पास पशूनयाां नहीं थीं, इसशलए व ेगाांधीजीकी बात सनुकर परेिानीमें पड़ गये | कुछ क्षण

    रुक कर व ेबोल े: “बाप ू, आज तो मरेे पास नहीं हैं | फैजपरुमें जरूर थीं |”

    गाांधीजी – कया तमुन े ऐसा मान शलया था शक फैजपरुमें कातनकेा समय शमलगेा और यािामें नहीं

    शमलगेा?

    महादवेभाई – नहीं बाप,ू ऐसा तो नहीं माना था | परन्त ुबहुत बार सामान बढ़ जानकेी वजहस ेमैं चरखा-

    पनूी साथमें नहीं लतेा | कातनमेें मझु ेआलस नहीं लगता, बशल्क मझु ेकातनकेा िौक ह ै| कामके बोझस ेथक

    जाता ह ां तब थकान उतारनकेे शलए मैं बहुत बार कताई करता ह ां | जलेमें एक शदन भी ऐसा नहीं गया जब मैंन े

    कताई न की हो | परन्त ुबाहर यािामें मैं लाचार बन जाता ह ां |

    इस जवाबस ेगाांधीजीको सांतोष नहीं हुआ | महादवेभाई अपनी इस लापरवाहीके शलए िरशमन्दा हो गये |

    गाांधीजीकी आांखस ेआांख शमलानकेे उनकी शहम्मत नहीं हो रही थी | मुांह नीचा शकये व ेगाांधीजीके सामन े

    अपराधीकी तरह खड़े रह े|

    परन्त ुगाांधीजीके मनमें एक शवश्वास था | उनकी यह श्रद्धा थी शक इतन ेबड़े पनूा िहरमें, जहाां जाने-मान े

    रचनात्मक काययकतायओ ांका बड़ा दल काम करता ह,ै पशूनयाां जरूर शमल जायेंगी | इसशलए ज्यादा दुुःख प्रकट

    शकये शबना व ेचुपचाप सो गये |

    दसूरे शदन उन्होंन े पशूनयोंकी खोज करवाई | लशेकन पशूनयाां नहीं शमलीं | इसका अथय यह था शक कोई

    रचनात्मक काययकताय शनयमस ेकताई नहीं करता था | मरेे लखेोंको शदलचस्पीस ेपढ़नवेाल ेऔर उनका प्रचार

    करनवेाल ेमरेे साथी कताईके आग्रहके बारेमें शकतन े शिशथल हैं – इसका उन्हें खयाल आया | इसस ेउनके

    शदलको बड़ी चोट लगी | व ेगांभीर बन गय ेऔर मनमें शवचार करन ेलग े : “जो काययकताय डांकेकी चोट पर

  • गाांधीजीके पावन प्रसांग - ३|

    लोगोंमें यह प्रचार करत ेहैं शक चरखेके शबना स्वराज्य नहीं शमलगेा, उनकी इस चरखा-भशिस ेकया लाभ?

    शजस टेक और श्रद्धाके शलए हम जीनकेो और मरनकेो तयैार न हों, वह टेक और श्रद्धा शकस कामकी? यह

    झठूा आचरण ह,ै शनरी आत्म-वांचना ह ै| सत्यका यह भांग उसकी हत्या कही जायगी |”

    उसी शदन कुछ काययकताय गाांधीजीस ेशमलन ेआये | कहना एक बात और करना दसूरी बात – सत्यका यह

    मजाक गाांधीजीको खटकता था | इसशलए उनके सामन े भी गाांधीजीन े पनूीका ही सवाल छेड़ा | पर

    रचनात्मक काययकताय होत ेहुए भी व ेगाांधीजीको पनूी नहीं द ेसके ! अपन ेसाशथयोंके ऐस ेव्यवहारस ेउनका

    पणु्य-प्रकोप जाग उठा | उनके मनमें शवचार आया – मझु ेखुि करनकेे शलए ही य ेलोग कातत ेमालमू होत ेहैं

    | इसशलए काययकतायओ ांके सामन ेअपन ेहृदयका दुुःख उांडेलत ेहुए व ेबोल े:

    “अगर मैं आप लोगोंस ेयह माांग न करूां तो और शकसस ेकरूां ? कया श्रीशनवास िास्त्रीस ेकरूां ? शजनका

    चरखेमें जरा भी शवश्वास नहीं ह,ै उनस ेभला मैं कया आिा रखूां? व ेतो सच्च ेहैं, ईमानदार हैं | जो कुछ व े

    कहत ेहैं वही करत ेहैं | बेईमानीका और झठूका आचरण तो हम लोग करत ेहैं, जो चरखेमें शवश्वास रखत ेहुए

    भी उसका काम नहीं करत े|”

    इस सारे प्रसांगमें गाांधीजीन ेसाशथयोंस ेज्यादा अपनकेो ही दोषी माना | उनके साथी जब कोई दोष करत ेथ े

    तब बहुत बार व ेयही कहत ेथे शक “मरेी ही अशहांसा कच्ची होगी |” उनके मनमें यह मन्थन चल रहा था : “मैं

    खुद अगर चरखेके काममें इतना शिशथल होऊां तो दूसरे शकसका दोष शनकालूां? नमक यशद अपना खारापन

    छोड़ द ेतो वह नमक कैसा?” पशूनयाां साथ न लनेकेी अपनी गलतीको उन्होंन ेसत्यकी उपासनामें शवघ्न माना|

    परन्त ुअपनी गलतीको कबूल करके शफरस ेगलती न करनकेा सांकल्प करना आत्मिशुद्धका एक प्रकार ह ै|

    सत्यको कलांक न लग े इस तरहके आचरण द्वारा अपनी आत्मिशुद्ध करके ही गाांधीजी इतन ेमहान बन े |

    गाांधीजीको महापरुुष बनानमेें सबस े बड़ा हाथ सत्य-पालनकी उस सकू्ष्म और गहरी भावनाका ही था,

    शजसका उन्होंन ेअपन ेजीवनमें सतत शवकास शकया था |

  • गाांधीजीके पावन प्रसांग - ३|

    गरमीमें िी मुझे हपघलने िीहजये

    १९४२ के ‘भारत छोड़ो‘ आन्दोलनके समय काांग्रेसके महान नतेा अहमदनगरके शकलमेें बन्द करके रख े

    गये थे | लॉडय ववेलन े३१ मासकी कैदके बाद उन्हें जेलस े ररहा शकया था और राजनीशतक मांिणाके शलए

    सबको शिमला बुलाया था | व ेजल्दी आ सकें इसके शलए रेलगाड़ीमें एक ‘एयर कां शडिन्ड’ शडब्बेकी भी

    खास व्यवस्था वाइसररॉयन ेकी थी | उसी गाड़ीमें गाांधीजी भी शिमला जा रह ेथे | परन्त ुउन्होंन ेतीसरे दजकेे

    शडब्बेमें ही बैठना पसन्द शकया था |

    आनन्दस ेपागल बनी हुई जनताके झुांडके झुांड हर स्टेिन पर गाांधीजीका स्वागत करत ेथे | उसी गाड़ीमें

    एक अमरेरकन पि-प्रशतशनशध भी यािा कर रह े थ े | लोगोंके झुांड पे्रम-दीवान े होकर गाांधीजीको जो कि

    पहुांचात े थे, वह अमरेरकन शमिस े बरदाश्त नहीं होता था | इसशलए उन्होंन े एक पि शलखकर गाांधीजीस े

    प्राथयना की : “दोपहरके बाद आप काांग्रेसी नेताओ ांके उस ठांडे शडब्बेमें यािा करें तो कया गलत होगा? उसमें

    आप हाथ-पाांव फेला कर अच्छी तरह आराम कर सकें ग े| शपछल े२४ घांटेस ेतो आप सो भी नहीं पाये हैं |

    नींदमें ऐसी बाधा पहुांचनकेे कारण शिमला जात ेजात ेआप ऐस ेपरेिान हो जायेंग ेशक वहाां पहुांच कर आप

    राजनीशतक मांिणामें मददगार होनकेे काशबल नहीं रह जायेंग े|”

    गाांधीजी : “आप इस कुदरतकी गरमीमें ही मुझ ेशपघलन ेदीशजये | इस गरमीके बाद कुदरती तौर पर ही

    ठांडक भी हो जायगी | और मैं उसका भी आनन्द लूांगा | कृपा करके मझु ेसच्च ेशहन्दसु्तानके सम्पकय में ही रहन े

    दीशजये |”

    अमीरोंके लायक आरामदहे ठांड ेशडब्बेमें बैठ कर व ेक्षणभरके शलये भी सच्च ेशहन्दसु्तानके वातावरणसे

    दरू नहीं होना चाहत ेथे | ऐसी उबानवेाली और थकानवेाली यािाके बावजदू शिमलामें एक क्षण भी बरबाद

    शकये शबना स्नान और भोजनस ेशनबट कर व ेलॉडय ववेलके पास मांिणाके शलए पहुांच गये |

    वाइसररॉयन ेगाांधीजीका स्वागत शकया | गाांधीजीन ेइस स्वागतका उत्तर शवनोदमें शदया : “मैं भी आपके

    जसैा ही एक सशैनक ह ां, परन्त ुमैं हशथयार नहीं रखता |”

    ऐस ेहास्य–शवनोदके वातावरणमें दोनों राजनीशतज्ञ अपनी चचायमें लीन हो गये |

  • गाांधीजीके पावन प्रसांग - ३|

    साववजहनक व्यविारके हनयम

    आम सभाओ ांमें कभी कभी विाओ ांके मुांहस ेऐसी बातें सनुनकेो शमलती हैं, जो सुननवेालोंको पसन्द नहीं

    आती | ऐस ेसमय लोग बरदाश्त करनकेी अपनी िशि खो बैठत ेहैं, सभामें िोरगलु मचा देत ेहैं और विाके

    शलए कुछ बोलना असांभव कर दते े हैं | गाांधीजीन ेसमझ शलया था शक लोकिाहीके शनमायण और राष्ट्रके

    सावयजशनक जीवनकी दृशिस ेप्रजाकी ऐसी आदतें अच्छी नहीं कही जा सकतीं | इसशलए दूसरेके शवचारोंको

    धीरजके साथ सनुन,े उन्हें सहन करन ेऔर िान्त मनस ेउन्हें समझनकेी आवश्यकता पर व ेहमिेा जोर दते ेथे|

    एक बार एक अशधविेनमें गाांधीजी, महुम्मदअली शजन्ना, मौलाना महुम्मदअली वगरैा नतेा इकटे्ठ हुए थे|

    एक प्रस्ताव पर चचाय चल रही थी | उस प्रस्ताव पर अपन ेशवचार प्रगट करनकेे शलए शजन्ना साहब खड़ ेहुए |

    अपन े भाषणमें गाांधीजीके शलए उन्होंन े ‘शम॰ गाांधी’ िब्दका प्रयोग शकया | गाांधीजीको लोग श्रद्धा और

    भशिस े ‘महात्मा गाांधी’ कहत ेथे | इसशलए उनके नामके साथ ‘शमस्टर’ िब्दका प्रयोग उन्हें अच्छा नहीं

    लगा | लोगोंमें स ेशवरोधका स्वर सनुाई द,े इसके पहल ेही मौलाना महुम्मदअली बीचमें खड़ ेहोकर बोल े: “

    शमस्टर नहीं, महात्मा कशहये |”

    मौलानान ेलोगोंके मनकी बात कह दी | उन्हें जो चाशहए था वही शमल गया | सभामें स े‘महात्मा गाांधी

    कशहये’ की आवाजें सनुाई पड़न ेलगी | लशेकन शजन्ना साहब ऐसी आवाजोंस ेघबरानवेाले नहीं थे | उन्होंन े

    गाांधीजीको ‘महात्मा’ कहनसे ेइनकार शकया और व े ‘शमस्टर’ िब्दस ेही शचपटे रह े | सभामें भारी िोरगलु

    मच गया | लोग भड़क उठे | उन्होंन ेशजन्ना साहबकी बात सनुनसे ेइनकार कर शदया |

    सभापशतन े लोगोंस े िान्त रहनकेी अपील की, लशेकन कोई नतीजा नहीं हुआ | अब उन्होंन े सभाकी

    व्यवस्था टूटती दखेी तो शजन्ना साहबको समझानकेा प्रयत्न शकया : लोगोंकी भावनाका खयाल करके आप

    गाांधीजीके नामके पहल े ‘शमस्टर’ के बदल े ‘महात्मा’ िब्दका प्रयोग करें तो बड़ा अच्छा हो |” लशेकन

    लोगोंकी भावनाके सामन ेशजन्ना साहब एक इांच भी झकुनकेो तयैार न थे |

    सभापशत सभाको काबूमें न रख सख े | सभामें धाांधली मच गयी | गाांधीजी खामोि बठेै बैठे यह सब

    दखेत ेरह े| उन्हींके कारण सारा िोरगुल हो रहा ह,ै यह बात उन्हें अच्छी नहीं लगी | अपन ेशलए जनताकी

    ऐसी अांधी भशि दखेकर उन्हें बड़ा दुुःख हुआ | दसूरोंके शवचारोंके शलए इतनी असशहष्णतुा तथा सभामें

    अनिुासनकी इतनी कमी दखेकर गाांधीजी अकुला उठे | इसशलए वे बीचमें ही उठ खड़े हुए और लोगोंको

    उलाहना दते ेहुए बोल:े

  • गाांधीजीके पावन प्रसांग - ३|

    “मैं महात्मा नहीं ह ां, लशेकन एक मामलूी आदमी ह ां | शजन्ना साहबके शवचारोंकी स्वतांितामें रुकावट

    डालकर आप मरेा सम्मान नहीं कर सकत े| दसूरों पर अपन ेशवचार जबरन ्लाद कर हम स्वराज्य प्राप्त नहीं

    कर सकत े | जब तक कोई आदमी शिि और सभ्य भाषामें अपनी बात कहता ह,ै तब तक हर शकसीको

    दसूरोंके बारेमें अपनी राय दनेकेा अशधकार ह ै|”

    गाांधीजीकी यह बात सनुकर लोग िान्त हुए और शजन्ना साहब अपना भाषण परूा कर सके |

    इस प्रसांगके कारण गाांधीजीका महात्मा-पद अशधक चमक उठा | गाांधीजी शकतन ेनम्र हैं और दसूरोंके

    शवचारोंका शकतना आदर करत ेहैं, यह लोगोंन ेऔर गाांधीजीके साशथयोंन ेअपन ेसामन ेही दखेा | सावयजशनक

    जीवनमें कैस ेव्यवहार करना चाशहए, इसके शनयम गाांधीजीन ेऐस ेछोटे छोटे प्रसांगों द्वारा ही तैयार शकये थे |

  • गाांधीजीके पावन प्रसांग - ३|

    सेवाग्राममें गाांधी-जयांती

    भादों वदी बारसका शदन था | वह गाांधीजीका जन्मशदन था | इसशलए सारा दिे उस शदन गाांधी-जयांती

    मना रहा था | गाांधीजी सेवाग्राममें ही थे | इस बार उनकी हाजरीमें जयांती मनाई जानवेाली थी, इसशलए

    आश्रमवासी बड़े आनन्दमें थ े | आश्रममें इस मौके पर एक शविषे काययक्रम रखा गया था | लशेकन उसमें

    शकसी तरहकी धमूधाम या सजावट नहीं थी | जीवनको िदु्ध बनानकेे शलए तथा सेवा-परायण जीवन जीनकेे

    शलए आत्म-शनरीक्षण करनकेा वह पशवि शदन था | सबुहकी प्राथयनास ेउस िभु शदनका काययक्रम िरुु हुआ |

    उपवास, अखांड कताई, ग्राम-सफाई तथा िामकी प्राथयनास ेकाययक्रम परूा होनवेाला था |

    आजकल अनके छोटे-बड़े आदमी अपनी वषयगाांठ मनात ेहैं | उसमें बधाईयाां दी जाती हैं, उपहार शदये

    और शलए जात ेहैं और खान-पानके जलस ेरखे जात ेहैं | गाांधीजीन ेइस बातकी पहलसे ेही सावधानी रखी थी

    शक उनकी जयांतीके कारण समाजमें ऐस े गलत रीत-ररवाज न दाशखल हो जायां | इसशलए उन्होंन े राष्ट्रस े

    अपील की थी शक उनकी जयांतीको गाांधी-जयांती न कह कर चरखा-जयांती कहा जाय | और सारे राष्ट्रने

    उनकी यह बात स्वीकार कर ली थी | तबस ेगाांधी-जयांतीके शदन दिेके लोग चरखेकी शविषे आराधना करत े

    रह ेहैं | गाांधीजी बार बार कहत ेथे : “गाांधीका नाम भल ेइस देिके लोग भूल जायें, परन्त ुगरीबों और शदन-

    द:ुशखयोंकी सवेा करनवेाल ेचरखेको इस दिेमें कभी न भलूना चाशहए |”

    गाांधीजीके मनमें हमिेा यह भावना बनी रहती थी शक उनका जन्मशदन गरीबों और दशुखयोंकी उत्तम

    सवेाका कारण बन े| इसशलए उस शदन थोड़ा भी गलत खचय उन्हें बरदाश्त नहीं होता था | उस शदन कोई उन्हें

    फूलोंकी माला अपयण करता, तो उस ेभी व ेस्वीकार नहीं करत ेथ े | आश्रमके बालक या शस्त्रयाां श्रद्धा और

    भशिभावस ेथोड़े फूल भी उनकी बठैकके पास रखकर उन्हें वन्दन करत,े तो गाांधीजी उन्हें भी मीठा उलाहना

    दकेर कहत े: “बापकूा नाम भलू जाओ और चरखा चलाओ |”

    उस शदन िामके काययक्रमके अनसुार सवेाग्रामके सारे आश्रमवासी प्राथयनाके शलए इकटे्ठ हुए थे | प्राथयनाके

    बाद गाांधीजी शविषे प्रवचन करनवेाल ेथे | गाांधी-जयांतीका शदन होनसे ेआसपासके ग्रामजन भी प्राथयनामें

    िाशमल हुए थे | गाांधीजीके शलए एक उांची बैठक बनाई गयी थी | बैठकके आसपास कोई सजावट नहीं की

    गयी थी | केवल खादीकी सफ़ेद गादी और तशकया ही उसकी िोभा बढ़ा रह ेथे | उसके सामन ेही थोड़ी दरू

    पर समाईमें एक घीका दीपक जल रहा था |

  • गाांधीजीके पावन प्रसांग - ३|

    गाांधीजी प्राथयनाके शलए आये | लोगोंको प्रणाम करके व ेअपन ेआसन पर बैठे | हांसत ेहांसत ेउन्होंन ेअपन े

    आसपास दखेा | तब उनका ध्यान घीके दीपककी ओर गया | खुद जलकर जगतको प्रकाि दनेवेाली बत्ती

    मानो गाांधीजीके जीवनका प्रतीक हो, इस तरह मकू भावस ेजल रही थी | गाांधीजीन ेआांखें बन्द कीं और

    प्राथयना िरुु हुई |

    प्राथयनाके बाद गाांधीजी प्रवचन करनवेाल ेथे | परन्त ुकुछ बोलनसे ेपहल ेउन्होंन ेप्रश्न शकया :

    “यह समाई कौन लाया ह ै?

    बा – मैं लायी ह ां |

    गाांधीजी – कहाांस ेमांगाई ह ै?

    बा – गाांवमें स े|

    क्षणभर गाांधीजी बाकी ओर दखेत ेरह े| घीका दीपक जलाकर अपन ेपशतके आरोग्य और दीघय जीवनके

    शलए भगवानस े प्राथयना करना शहन्द ू पत्नीका परम धमय ह,ै ऐसा मानकर बान ेखास तौर पर समाई मांगाकर

    दीपक जलाया था | गाांधीजीन ेऐसा प्रश्न कयों पछूा, यह बाके भी समझमें नहीं आया |

    बाका उत्तर सनुकर गाांधीजी बोल े : “आज अगर सबस ेबुरा कोई काम हुआ हो तो यह हुआ शक बान े

    समाई मांगाकर उसमें घीका दीपक जलाया | वह कया इसशलए जलाया गया ह ै शक आज मरेा जन्मशदन ह?ै

    सवेाग्रामके आसपासके गाांवोंमें रहनवेाल ेलोगोंके जीवनको मैं रोज दखेता ह ां | उन बेचारोंको अपनी सखूी

    रोटी पर चुपड़नकेे शलए परूा तले भी नहीं शमलता और मरेे आश्रममें आज घीका शदया जलता मैं दखे रहा ह ां|”

    शफर बाकी ओर दखेकर बोल े : “इतन ेवषय मरेे साथ रहनकेे बाद भी तमुन े यही शसखा ह?ै आज मरेा

    जन्म-शदवस ह,ै पर इसस ेकया हुआ? आज िभु काम करना चाशहए, पाप नहीं | घीका दीपक जलाना पाप ह ै|

    गरीब शकसानोंको जो चीज नसीब नहीं होती, उसको हम इस तरह कैस ेबरबाद कर सकत ेहैं?”

    घीके दीपकके बारेमें इतनी बात कहनकेे बाद उन्होंन ेअपना प्रवचन परूा शकया | परन्त ुबापकेू य ेिब्द बा

    जीवनभर नहीं भूलीं |

    गाांधीजी सदा यह मानत ेथे शक शकसानोंका सखु मरेा सखु और शकसानोंका दुुःख मरेा दुुःख ह ै | उनकी

    यह अटल श्रद्धा थी शक चरखा शकसानोंका दुुःख दरू करनमेें सफल होगा | इसीशलए व ेचरखेको शकसानकी

    कामधने ु– मनकी हर इच्छा परूी करनवेाली गाय – कहत ेथे |

  • गाांधीजीके पावन प्रसांग - ३|

    १०

    वे भव्य वचन

    भारतकी जनताके साथ अपना सम्बन्ध बढ़ानकेे शलए गाांधीजीन ेकई बार सारे दिेकी यािा की थी | एक

    बार भारतस ेबाहर व ेलांका भी गये थे | लांकामें व ेजहाां जहाां गये वहीं ‘महात्मा गाांधीकी जय’ के हषयनादस े

    लोगोंन ेउनका हाशदयक स्वागत शकया |

    परन्त ु एक जगह गाांधीजीकी राह दखे रह े एक जन-समहून े ‘माताजी आयीं, माताजी आयीं’ के नारे

    लगाये | उनका ऐसा खयाल था शक गाांधीजीके साथ उनकी माताजी भी आयी हैं | उस समहूके आग ेएक

    अांग्रेज मशहला थी | वह गाांधीजीकी मोटरके पास घसु आयी और मोटरको पकड़कर थोड़ी दरू उसके साथ

    दौड़ी भी | उसके आनन्दका पार नहीं था | मोटरको छोड़ दनेकेे बाद उसन ेगाांधीजी जैस ेमहापरुुषकी माताके

    जीभर दियन करनकेा सांतोष प्रकट शकया | गाांधीजी समझ गये शक लोग कस्तरूबाको गलतीस ेमरेी माां समझ

    रह ेहैं | लशेकन व ेखामोि बैठे रह े | ‘माताजी आयीं’ के नारे व ेसनुत ेजात ेथे और मसु्कुरात े हुए लोगोंको

    प्रणाम करत ेजात ेथे |

    गाांधीजीका स्वागत करनवेाल े सज्जन भी इस भलूस े मिु नहीं थ े | कस्तरूबाकी पहचान भी सभाको

    उन्होंन ेगाांधीजीकी माताके नामस ेही कराई | शमलत ेसमय गाांधीजीस ेउन्होंन ेपछूा : “आज आप कस्तरूबाको

    साथ कयों नहीं लाये?” अब गाांधीजीको लगा शक कस्तरूबाके शवषयमें लोगोंमें फैल ेहुए भ्रमकी हद हो गयी

    ह ै|

    लोगोंका यह भ्रम दरू करनकेा मौका व ेढूांढ ही रह ेथे | यह मौका उन्हें स्वागतका जवाब दतेे समय शमल

    गया | लोगोंको हांसानकेे बजाय उन्होंन ेशववाशहत जीवनका ऊँचेस ेऊँचा आदिय उनके सामन ेरखा और उस

    पर गहरा शवचार करनकेी प्ररेणा दी |

    व ेबोल े : “मरेी पहचान करानवेाल ेसज्जनस ेथोड़ी भलू हो गयी | मरेे साथ मरेी माता नहीं परन्त ुमरेी

    पत्नी आयी ह ै| कस्तरूबाको मरेी माां समझनमेें उनका दोष नहीं ह ै| उनस ेभलू जरूर हो गयी | लशेकन एक

    मानीमें उनका कहना सच ह ै | कुछ बरसोंस ेकस्तरूबा मरेी पत्नी शमट गयी हैं | मै�