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DIPLOMA IN yOgA AND NAturOPAthy CODE DYn-03 Ĥाकृ Ǔतक चक×सा वध[मान महावीर खुला विæवधालय , कोटा (राजèथान)

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  • DIPLOMA IN yOgA AND NAturOPAthy CODE DYn-03

    ाकृ तक च क सा

    वधमान महावीर खुला वि वधालय, कोटा (राज थान)

  • DYN-03

    VMOU Page 1

    पाठ्य म अिभक प सिमित

    ो. िवनय कुमार पाठक ो. एलआर गुजर डॉ. अनुराधा दु बे कुलपित अ य उप िनदेशक, िव ान एवं तकनीक वधमान महावीर खलुा िव विव ालय, कोटा वमखिुव, कोटा वमखिुव , कोटा

    संयोजक एवं सद य संयोजक डॉ. िन यानंद शमा योग एवं वा य िश ा िवभाग वधमान महावीर खलुा िव विव ालय, कोटा

    सद य 1. डॉ. डी. एन. शमा, उ राखंड 2. डॉ. ओ. एन. ितवारी, छ ीसगढ़ 3. डॉ. भान ुजोशी, ह ानी 4. डॉ. बी. पी. गौड़, जोधपरु 5. डॉ. मता चौधरी, वीएमओय ू,कोटा

    6. डॉ. जयिसहं यादव , जोधपरु 7. वै ा ीमती अंजना शमा , कोटा

    पाठ लेखन एवं संपादन

    पाठ लेखक पाठ एवं भाषा संपादक िनसगाचाय डॉ. डी. एन. शमा, (1,2,4,5,9) डॉ. िन यान द शमा, सहायक आचाय, योग एवं ाकृितक िचिक सा िवशेष , नई िद ली योग एवं वा य िश ा िवभाग, डॉ. नागे कुमार नीरज (3,6,7,8) वधमान महावीर खलुा िव विव ालय, योग एवं ाकृितक िचिक सा िवशेष , ह र ार, उ राखंड कोटा योगाचाय नीत ू ीवा तव (10,11,12) योग एवं ाकृितक िचिक सा िवशेष , शाहदरा, िद ली

    अकादिमक एवं शासिनक यव था

    ो. िवनय कुमार पाठक ो. एलआर गुजर ो. करन िसंह डॉ. सुबोध कुमार कुलपित िनदशेक अकादिमक िनदशेक, एमपीडी अित र त िनदेशक, एमपीडी वमखिुव, कोटा वमखिुव, कोटा वमखिुव, कोटा वमखिुव, कोटा

    उ पादन – मु ण जनवरी 2015

    इस साम ी के िकसी भी अंश क वमखिुव, कोटा क िलिखत अनमुित के िबना िकसी भी प म िमिमयो ाफ (च मु ण) ारा

    या अ यक पनु : ततु करने क अनमुित नह ह।ै

    वमखुिव, कोटा के िलए कुलसिचव वमखुिव, कोटा (राज.) ारा मुि त एवं कािशत।

  • 1

    इकाइ - 1: ाकृितक िचिक सा क प रभाषा एव ंिस ा त

    इकाइ - 2: ाकृितक िचिक सा का इितहास

    इकाइ - 3 : ाकृितक िचिक सा का योग एव ंआयवुद स ेसंबंध

    इकाइ - 4 : िवजातीय य का िस ांत एव ंरोग के कारण

    इकाइ - 5: वा य एव ंरोग का अथ एव ंप रभाषा

    इकाइ - 6: शारी रक, मानिसक, एव ंआ याि मक वा य म ाकृितक िचिक सा का योगदान

    इकाइ - 7 : ाण ऊजा एव ं ितरोधक मता का अथ एव ंसंबंध

    इकाइ - 8 : ितरोधक मता बढ़ान ेके सू एव ंउपाय

    इकाइ - 9 : रोग िनदान (आकृित - मल - मू - पसीना एव ंिज हा)

    इकाइ - 10 : ाकृितक िचिक सा उपचार िविधय का सामा य प रचय (मािलश इ यािद)

    इकाइ - 11: चु बक िचिक सा

    इकाइ - 12: ए यु ेशर िचिक सा

  • 2

    इकाइ - 1

    ाकृितक िचिक सा क प रभाषा एव ंिस ा त इकाइ क परेखा

    1.0 उ े य

    1.1 तावना

    1.2 ाकृितक जीवन शैली

    1.3 ाकृितक िचिक सा का अथ

    1.4 ाकृितक िचिक सा क प रभाषाऐ ं

    1.5 ाकृितक िचिक सा के मलूभतू िस ा त

    1.6 बोध

    1.7 संदभ ं थ

    1.0 उ े य

    ततु इकाइ म

    ाकृितक जीवन शैली का अ ययन करगे।

    ाकृितक िचिक सा का अथ व प रभाषाओ ंका अ ययन करगे।

    ाकृितक िचिक सा म मलूभतू िस ा त का अ ययन करगे।

    1.1 तावना

    य य मनु य कृित स ेदरू होता गया य य रोग एव ंद:ुख म िघरता गया। ाकृितक जीवन शैली को आज के भागदौड़ के यगु म समझना एव ंउसका अनसुरण करना अ ु त कला, िव ान एव ंबिु म ा का िवषय ह।ै ततु इकाइ म ाकृितक िचिक सा स बि धत मलूभतू िस ा त का प रचय ा कर सकेग।

    1.2 ाकृितक जीवन शैली

    ाकृितक जीवन शैली से अिभ ाय कृित के िनयम का पालन करते हए व थ जीवन का यापन करना ह।ै कृित के िनयम के अनसुार आहार िवहार करना और अपन े वा थ का र ण करना ही ाकृितक जीवन शैली का अगं ह।ै ाकृितक जीवन के कुछ िनयम होते ह।ै िजनका पालन करके सदैव आरो य को

  • 3

    ा िकया जा सकता ह।ै ाचीन समय म इस कार का ाकृितक जीवन िबतान ेके कारण मनु य को रोगी होन ेअवसर ही नह िमलता था और यिद िकसी कारण वश ाकृितक िनयम का उ लघंन करन ेके फल व प यिद कोइ अ व थ हो जाता था तो उपवासािद ाकृितक िनयम का व उपाय का पालन कर वह पनु: व थ हो जाता था य िक मनु य एक ाकृितक जीव ह ैइसिलए कृित के साथ साम ज य थािपत करके ही वह व थ रह सकता ह ैठीक समय पर उठना, ठीक समय पर सोना, िदन म भोजन का

    िनि त समय होना तथा स तिुलत मा ा म भोजन हण करना, प र म व यायाम करना पया मा ा म जल का सेवन कर िवजातीय य को शरीर से बाहर फकन ेम मदद करना, ाकृितक आहार ही हण करना, सा ािहक उपवास करना, आव यक आराम करना, ाथना करना, उिचत िचंतन करना, चय का पालन करना, बैमले के आहार स ेबचना, शारी रक थकावट व मानिसक तनाव स ेबचना, भखूे न रहना, आल य का याग करना आिद कुछ ाकृितक िनयम के अ तगत आते ह ैिजनका पालन मनु य को अव य करना चािहए।

    1.3 ाकृितक िचिक सा का अथ

    ाकृितक िचिक सा जीवन यापन करन ेक कला का ही दसूरा नाम ह।ै ाकृितक िचिक सा के अ तगत जो िस ा त और िनयम का पालन रोग क अव था म िकया जाता ह ैठीक उ ही िस ा त व िनयम का पालन व थ दीघाय ुिबतान ेके िलए भी िकया जाता ह।ै दोन के िलए समान िनयम और िस ा त का पालन िकया जाता ह।ै

    ाकृितक िचिक सा को त व िचिक सा के नाम स े भी जाना जाता ह।ै िजसके अ तगत पंच त व आकाश त व, वाय ुत व, अि न त व, जल त व एव ंपृ वी त व के ारा सभी रोग क िचिक सा क जाती ह।ै इन पचं त व के अित र एक छठा त व राम नाम भी इसम शािमल िकया जाता ह।ै इ ही छ: त व के ारा शारी रक, मानिसक व भावना मक तर पर होने वाले रोग का उपचार िकया जाता ह।ै

    इसस ेरोग को ठीक करन ेके िलए अथात ्िवजातीय य को बाहर िनकालन ेके िलए उपवास िचिक सा जल िचिक सा, अि न िचिक सा तथा आहार िचिक सा का योग िकया जाता ह।ै ाकृितक िचिक सा को केवल रोग उपचार क प ित समझना अ ानता होगा। ाकृितक िचिक सा, असल म जीवन यापन क सही प ित को कहते ह ै िजन त व का योग कर रोगी को िनरोगी िकया जाता ह।ै उ ही त व के

    योग के ारा वा य को सरुि त रखन ेके िलए काम म लाया जाता ह।ै दोन अव थाओ ंम िनयम एक ही और िब कुल एक ही होते ह।ै एक ही कार के ाकृितक िनयम का पालन करके इस िचिक सा

    णाली म मनु य अपन े वा य को सरुि त भी रख सकता ह ैऔर उन िनयम का न पालन करन ेके फल व प रोगी होन ेपर वह उ ही ाकृितक िनयम का समझदारी के साथ आ य लेकर पनु: वा य लाभ भी ा कर सकता ह।ै इसम रहन सहन का वाभािवक ढंग और उस ढंग को सीखन ेक िविध भी ह।ै

    या, कब, िकस तरह, या खाना पीना चािहए यह भी बताया जाता ह।ै इसम िसखाया जाता ह ैिक कैसे सोया जाता ह ै य पसीना िनकलना ज री ह ैऔर वह िकस कार िनकाला जाता ह।ै जीवन यापन का

    ाकृितक िनयम व ढंग िकस कार का होना चािहए ये िसखाया जाता ह।ै

  • 4

    बड़े बड़े िव ान ने तथा अ य िचिक सा प ितय क अपे ा ाकृितक िचिक सा प ित को ही सव च माना ह।ै य िक मनु य एक ाकृितक ाणी ह ैऔर ाकृितक िनयम का पालन करन ेपर वह कभी भी रोगी नह हो सकता ह।ै अ य जीव ज त ुसदैव ाकृितक िनयम का पालन करते हए ही जीवन यापन करते ह ैऔर कृित क गोद म ही रहते ह।ै इसिलए वह सु दर शरीर, सगुिठत तथ मोहक शरीर वाले होते ह।ै ाकृितक शीतल जल पीते ह,ै खलेु आकाश तथा सयू के काश म रहते ह,ै शु वाय ुसेवन करते ह,ै भोजन म फल-फूल, प ,े घास आिद ाकृितक पदाथ पर ही जीवन िनवाह करते ह।ै इसिलए वह सदवै व थ रहते ह ै यिद कभी भी वह अ व थ हो जाते ह ै तो वह कोइ औषिध नही लेते न ही िकसी

    अ पताल क शरण लेते ह ैवरन ् ाकृितक िनयम का पालन कर वय ंही व थ हो जाते ह।ै

    ाकृितक िचिक सा णली अित ाचीन ह ैयह कहना संभव नह िक इसक उ पित कब हइ पर त ुयह तब से जब से वय ं कृित। इसिलए यह िचिक सा णाली अ य िचिक सा णािलय म परुानी तथा उनको ज म देन ेवाली ह।ै ाकृितक िचिक सा क चचा हमारे वेद, उपिनषद ेगीता व परुाण म भी देखने को िमलती ह।ै

    वेिदक काल के प ात ्परुाण काल म ाकृितक िचिक सा प ित ही चिलत थी ारि भक काल म केवल ाकृितक िचिक सा के ारा ही रोगी क िचिक सा क जाती थी य िक उस समय म िकसी भी

    कार क औषिध िचिक सा नही थी। उस समय म उपवास ही अचकू िचिक सा समझी जाती थी।

    कृित म पाये जान ेवाले पचं त व के ारा क जाने वाली िचिक सा ही ाकृितक िचिक सा प ित ह,ै जो शरीर म इक ा हए िवजातीय य को ाकृितक ढंगस ेिनकालन ेम मदद एव ंजीवन शि को उ नत करना ही इस प ित का उ े य ह।ै ाकृितक िचिक सा कोइ िचिक सा प ित नह वरन ्जीवन जीने क कला ह।ै ाकृितक िचिक सा सरल, सहज, स चा अनरुागी बन जाता ह।ै ाकृितक िचिक सा रोग को जड़ स ेबाहर िनकाल फैकती ह।ै िजसस ेशी ही आराम होन ेलगता ह।ै ाकृितक िचिक सा म सभी रोग को एक ही माना जाता ह ैतथा उनके होन ेका कारण भी एक ही माना जाता ह ैऔर इसी िस ा त के आधार पर िचिक सा क जाती ह ैऔर इसी के अनसुार मनु य शरीर का िनमाण पंच त व से हआ ह।ै जब यह त व शरीर म सा याव था म रहते ह ैतो मनु य व थ रहता ह ैपर त ुजब अ ाकृितक आहार िवहार के कारण पंच त व म ेअस तलुन होन ेलगता ह ैतो मनु य रोगी हो जाता ह।ै इन रोग का मु य कारण शरीर म िवजातीय य का इक ा होना माना जाता ह।ै इसे शरीर से बाहर करन ेके िलए इ ह पंच त व क सहायता ली जाती ह ैऔर पंच त व से िफर स ेसंतलुन थािपत कर शरीर को पनु: व थ िकया जाता ह।ै यह प ित पणू प म औषिध िवहीन प ित ह।ै इसम िकसी भी औषिध का योग नही िकया जाता।

    1.4 ाकृितक िचिक सा क प रभाषाऐ ं

    1 पंच त व क िचिक सा ही ाकृितक िचिक सा कहलाती ह।ै

    2 ाकृितक िनयम का पालन करते हए जीवन यापन करनी ही ाकृितक िचिक सा ह।ै

  • 5

    3 आकाश त व, वाय ुत व, अि न त व, जल त व तथ पृ वी त व का योग कर रोग को ठीक रकन ेक प ित को ाकृितक िचिक सा कहते ह।ै

    4 ाकृितक िनयम व िस ा त का पालन कर रोग को दरू करना ही ाकृितक िचिक सा ह।ै

    5 आकाश, वाय,ु अि न, जल, पृ वी तथा राम नाम इन त व क िचिक सा ाकृितक िचिक सा ह।ै

    6 कृित क गोद म रहकर जीवन जीना ही ाकृितक िचिक सा ह।ै

    7 शरीर म पंच त व के अस तलुन को िजस िचिक सा प ित ारा पनु: संतिुलत िकया जाता ह ैउस े ाकृितक िचिक सा कहते ह।ै

    8 गांधी जी ारा अपनाइ गइ िचिक सा को ाकृितक िचिक सा कहते ह।ै

    9 पणूत: कृित पर िनभर रहन ेवाली िचिक सा ही ाकृितक िचिक सा ह।ै

    10 कुदरती उपचार को ही ाकृितक िचिक सा कहा जाता ह।ै

    11 ाकृितक जीवन, ाकृितक आहार-िवहार, िन य यायाम, शारी रक व आतं रक व छता व सफाइ पर िनभरता ही ाकृितक िचिक सा ह।ै

    12 ाकृितक िचिक सा कृित के िनमाणकारी िस ा त के अनसुार शारी रक, मानिसक, नैितक, भावना मक व आ याि मक धरातल पर संतलुन थािपत करन े के साथ मानव िनमाण क यव था ह।ै

    13 औषिध रिहत िचिक सा को ाकृितक िचिक सा कहते ह।ै

    14 िवजातीय य को शरीर से बाहर िनकालकर जीवन शि म विृ करन ेवाली िचिक सा को ाकृितक िचिक सा कहते ह।ै

    According to ‘’C.C.R.Y.N.”

    Naturopathy is a system of own building in harmony with the constructive principles of nature on physical, mental, moral and spiritual planes of living. it has great health promotive, disease preventive and curative as well as restorative potential.

    According to the manifesto of British naturopathic association, “ Naturopathy is a system of treatment which recognizes the existence of the vital curative force within the body.

    Medical definition of naturopathy

  • 6

    A system of treatment of disease that avoid drugs and surgery and emphasizes the use of natural agents (as air, water, and herbs) and physical means (as tissue manipulation and electrotherapy).

    ाकृितक िचिक सा प ित न होकर व थ जीवन जीन ेक कला ह ैतथा जीवन क सम िव ान क कंुजी ह।ै िवषलैी दवाओ ंके थान पर पहाड़ क शु वाय,ु झरन से िगरता पानी, व छ वातावरण म यायाम शु और साि वक आहार एव ंउपवास का सम वय तथा कृित प से सयू क िकरणेा ंम उपजे

    िविभ न कार के फल व सि जया ंतथा िविभ न कार के खा ा न का यवहा रक जीवन म समावेश ही ाकृितक िचिक सा ह।ै

    यह प ित सव थम स य समाज म औषिध िवहीन होन ेके कारण भािवत करती हइ िजस ेजमन के औषिध िव े ता हान, कून,े जलुाहा, द तकार, पादरी फादर नीप, डॉ. हने रच लेमने। िश क एडो फ ज ट यायाम प ित केजनक टनवेटर जनू ि सनीज के उ साही िश य अनगुामी बन गए िज ह न े

    ाकृितक िचिक सा क िविभ न शाखा िवशेष पर अपनी द ता बनाइ। िकसी न ेआहार पर िकसी ने जलो पचार पर िकसी ने वाय ुअथवा सयू के काश पर िकसी न ेिम ी व चु बक पर िकसी ने मानिसक उपचार अथवा सधुारा मक यायाम पर तथा वान िपकली न ेआखं क पतुली के िनदान पर योग िकए।

    अमे रका म भी ययूाक के डॉ. ाल, डैनिवली वैटल क के डॉ. केलाग तथा अ य कइ अ णी एव ंउ साही िचिक सक भी इसस े भािवत हए िबना नही रह।े

    1.5 ाकृितक िचिक सा के मूलभूत िस ा त

    ाकृितक िचिक सा प ित भी अ य प ितय क भांती हो अ तगत िकसी रोग क िचिक सा के िलए अपन ेिस ा त पर आधा रत रहती ह।ै इस प ित के भी अपन ेमलू िस ा त ह ैिजसको आधार मानकर िकसी भी रोग क िचिक सा संभव होती ह।ै यह िस ा त ाकृितक प ित म बहत ही मह वपणू मान ेगए ह।ै उपचारक को ाकृितक िचिक सा करन ेसे पवू इनका ान होना आव यक ह ैयह िस ा त इस मान ेगए ह ैजो िन निलिखत ह ै-

    1 कृित वय ंिचिक सक ह।ै

    2 सभी रोग एक ह,ै उनका कारण एक ह ैऔर िनवारण एक ह।ै

    3 ती रोग श ुनह वरन िम ह।ै

    4 रोग के िनदान क आव यकता नह होती।

    5 इस िचिक सा प ित म औषिध नह योग होती।

    6 इसम िचिक सा रोग क नही बि क रोगी के शरीर क होती ह।ै

    7 इसम दबे रोग उभरते ह।ै

    8 जीण रोग के उपचार म समय अिधक लगता ह।ै

  • 7

    9 रोग का कारण क टाण ुनही होते।

    10 शरीर, मन और आ मा क िचिक सा ह।ै

    1.5.1 कृित वय ंिचिक सक है -

    मनु य शरीर के भीतर वाभािवक काय सदैव चलते रहते ह ैजैसे पाचन, पोषण, िन कासन तथा र ा मक ि याए ं आिद, शरीर क विृ के िलए तथा शरीर ारा िविभ न तं के काय के िलए ऊजा क आव यकता होती ह।ै

    िजसक पिूत आहार तथा इ र ारा िनिमत रसोइ से ा पदाथ जैसे फल, सि जया ंतथा ाकि त प म उपल ध खा पदाथ स ेहोती ह।ै ाकृितक आहार हण करने से जीवनी शि म विृ होती ह।ै जो रोग से लड़न ेतथा व थ रहन ेम मदद करता ह,ै इस जीवनी शि म विृ उपवास के ारा तथा ाकृितक आहार िवहार के ारा िकया जा सकता ह।ै य िक जब हम अ ाकृितक आहर हण करते ह ैतो शरीर के पाचन तं को उसके पाचन म अिधक ऊजा का यय करना पड़ता ह ैतथा उस आहार से ा होन ेवाले पोषक त व क मा ा भी शरीर को कम ा होती ह।ै पाचन तं को अिधक ऊजा यय करनी पड़ती ह ैिजसस ेजीवन शि का भी हस होता ह ैऐसा ल बे समय तक बार बार करन ेपर मनु य को रोगी बनाता ह ैइन आदत के कारण शरीर म िवजातीय य इ टठे होन ेलगते ह ैिजसस ेवह शरीर म रोग को िनयं ण देते ह।ै इसके िवपरीत जब ाकृितक आहार, तथा फल और सि जय का सेवन िकया जाता ह ैतो उसका पाचन शी ता स ेहो जाता ह ैतथा उसस ेअिधकतम मा ा म शरीर को पोषक त व भी ा होते ह ैिजसस ेजीवनी शि म विृ होती ह।ै

    इसिलए ाकृितक पदाथ और उनके ारा शरीर म िनिहत जीवनी शि के ारा रोग िनवारण िकया जाना अ य त सरल और आ कृितक आहार िवहार और रहन सहन के कारण रोग उ प न हो जाते ह ैतो उ ह

    ाकृितक िनयम का पालन कर जीवनी शि को पनु: िवकिसत कर शरीर म इ ा हआ मल (िवजातीय य) बाहर करके शरीर को पनु: व थ करना शरीर को ाकि त वभाव कहलाता ह।ै यह शरीर ारा

    वय ंको रोग मु करन ेका तरीका ह।ै ाकृितक िचिक सा हम ान कराती ह।ै

    इस ेकुछ उदाहरण ारा सरलता स ेसमझा जा सकता ह।ै जैसे िकसी मनु य के ाकृितक आहार िवहार के कारण उसक जीवनी शि अिधक बल बनी होन ेके कारण जब िकसी कारण वश भोजन के साथ कुछ िवषलेै त व शरीर म जान ेके कारण उसे तरंुत उ टी और द त होना ही शरीर ारा वय ंिचिक सा करना ह ैशरीर का र ा मक तं उस समय ि याशील होकर तरु त शरीर म आए िवश के पाचन न होन ेदेन ेम उ टी द त होन ेपर वह तरु त ठीक हो जाता ह।ै

    अ य उदाहरण जैसे वाय ु के साथ ास लेते समय कुछ भी अनिै छक त व जैसे धलू के कण आिद नािसका म वेश करते ह ैतरु त छीक आना तथा पानी पीते समय पानी हवा क नली म चला जाता ह ैतो तरु त जोर क खांसी होन ेलगती ह ैशरीर म रोगाण ुया िवषाण ुउ प न होन ेपर शरीर ारा तेज शरीर म विृ के िलए कृित का यास ही ह।ै अत: यह सदैव मरण रखना चािहए क रोगी को रोग से मिु अपन ेआपस ेही िमलती ह ैअथात ्रोगी के रोग का िनवारण उसक शरीर वय ंही करता ह।ै रोग मिु क

  • 8

    स भावना चाह ेिकतनी ही कम य न हो कृित उसक मदद के िलये कोइ कमी नह रखती और रोगी के आखरी दम तक य नशील रहती ह।ै

    1.5.2 सभी रोग एक है, उसका कारण एक है और उनका िनवारण एक है।

    ाकृितक िचिक सा का वह दसूरा मह वपणू िस ा त ह।ै इसके अनसुार सभी रोग एक ही मान ेजाते ह।ै ाकृितक िचिक सा म रोग को उसके नाम स ेन जान कर केवल शरीर म सं िचत मल िजस ेिवजातीय य

    कहते ह।ै सभी रोग का कारण यह िवजतीय य ही माना जाता ह।ै

    गलत ढग स ेआहार िवहार करन ेके कारण जब शरीर म मल इ ा होन ेलगते ह ैतो रोग का प ले लेते ह ैऔर शरीर अपनी जीवन शि क मदद से शरीर के िविभ न भाग से उस ेिनकालन ेक ि या करता ह ैिबना िकसी दवा के सभी रोग केवल जीवनी शि के ारा ही ठीक िकए जा सकते ह।ै पर त ुजब गलत आहार िवहार अथात ्आ कृितक जीवन शैली को ही ल बे समय तक अपनाया जाता ह ैतो जीवनी शि का हस होन ेलगता ह ैऔर यह कमजोर हो जाती ह ैिजसके कारण शरीर को आव यकता होन ेपर वह उसक मदद नह कर पाती िजसस े शरीर म इ े होन े वाले मल का जमाव होन े लगता ह ै शरीर िवजातीय य से लद जान ेके कारण रोग का प ले लेता ह।ै शरीर के िजस भाग म िवजातीय द य इ ा होते ह ैउस भाग का काय क जाता ह ैतथा वहा ंिवकार उ प न होन ेलगते ह।ै उस अवयव के पहचान के प म अलग - अलग नाम द ेिदये जाते ह।ै पर त ुसभी रोग के कारण मा शरीर म सं िचत िवजातीय

    य होता ह।ै इसिलए शरीर के अलग अलग अगं म आये िवकार देखन ेम भले ही िभ न िभ न हो पर त ुउ ह उ प न करन ेवाले िवजातीय य ही ह।ै इसिलए ाकृितक िचिक सा म सभी रोग को एक ही माना जाता ह ैतथा इन रोगी के होन ेका एक ही कारण ह ैवह ह ैिवजातीय य। इस कार रोग के िनवारण का उपाय भी एक ही ह ै वह ह ै िवजातीय य को शरीर से बाहर िनकालन े के ारा अथात ् उपवास या यु ाहार से जीवनी शि को बढाना तथा जनोपचार, िम ी क प ी, एिनमा, मािलश आिद से शरीर के मल माग को पणूत: खोलकर उनको ि याशील कर देना तािक वे शरीर के मल का बिह कार करन ेम सफल रहा।

    इस कार सभी रोग एक ह ैउनका कारण एक ह ैतथा उनका िनवारण भी एक ही ह।ै

    1.5.3 ती रोग श ुनह है वरन िम है -

    ाकृितक िचिक सा म ेती रोग को श ुके प म न देखकर िम के प म े◌ंदेखा जाता ह ैइसका कारण शरीर म िवकार जमा होन ेलगे ह ैतो उन िवकार अथात मल को शरीर से बाहर िनकालन ेके िलए शरीर क र ा मक णाली यास करती ह ैिजसे हम जीवनी शि के नाम स ेजानते ह।ै

    जब जीवनी शि मल को बाहर फकन ेक चे टा करती ह ैतो उस ेही रोग क सं ा दी जाती ह ैशरीर के िजस भाग म मल सं िचत होता उसी भाग म िवकार या रोग के ल ण िदखाइ देते ह ैजैसे पेट के खराब होन ेपर द त के प म िवजातीय य को बाहर िनकाल िदया जाता ह ैया पाचन तं का ठीक काम न करन ेपर उ टी होना ही कृित ारा मल को िनकालन ेका य न करना ह।ै

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    इस तरह िक ि या शरीर के िहत के िलये ही होती ह।ै अत: द त क ि थित म एिनमा देकर उसस ेहोन ेवाले क से बचा जा सकता ह ैइसी कार जब ास णाली म िवजातीय य सं िचत हो जाते ह ैतो

    कृित नाम स ेउसे बलगम के प म बाहर िनकाल देती ह ैिजसे जकुाम का नाम द ेिदया जाता ह ैदेखा जाए तो जकुाम शरीर के िहत म कृित क चे टा ह ैिजसस ेहम शरीर क मदद करनी चािहए जल नेित या भाप लेन ेसे हम ेइसे ज दी ही शरीर स ेबाहर कर सकते ह।ै शरीर म रोग क वय ंउपचार करन ेक

    ाकृितक िवधा ह ै रोग नाम हमन े अपनी सिुवधा के िलए िदया ह ै वैस े शरीर म जमा हआ िवकार िनकालन ेक ि या ही रोग ह,ै इसिलए रोग श ुनही िम ह।ै

    1.5.4 रोग िनदान क आव यकता नही होती है

    ाकृितक िचिक सा म रोग होन ेका कारण िवजातीय य ही होता ह।ै इसिलए केवल िवजातीय य को बाहर िनकालकर शरीर शिु करण करन ेमा स ेही रोग ठीक होन ेलगते ह ैयही कारण ह ै िक रोग के उपचार के िलए रोग िनदान क आव यकता नह होती केवल ल ण के आधार पर उपचार हो जाता ह।ै

    ाकृितक िचिक सा म ेअ य प ितय क भां ित रोग िनदान आव यक शत नह होती य िक उपचार तो शरीर का ही होता ह ैओर रोग का कारण शरीर म जमा मल ही िनदान के िलये एक ाकृितक िचिक सक को केवल यह देखना होता ह ैिक वह य शरीर के िकस भाग म सं िचत ह ैसामन,े पीछे या सम त शरीर म आिद उस ेदेखकर वह शरीर क जीवनी शि क मदद ाकृितक िचिक सा के ारा कर सकता ह।ै

    रोगी के शरीर के िजस िवशेष भाग पर िवजातीय य का भार अिधक होता ह ैिजस ेसू म ि स ेदेखन ेसे न केवल एक ाकृितक िचिक सक अिपत ुकोइ भी देख सकता ह ैऔर देखकर उिचत उपचार सोच सकता ह।ै इस तरह हम यह कह सकते ह ैिक ाकृितक िचिक सा क िविभ न िविध िजसम ेभटकन ेऔर बहकन ेका भय ही नह । ाकृितक िचिक सा के ारा शरीर के भीतर सं िचत मल जो बहत समय से शरीर म इ ा रह कर रोग को शरीर म फैलाता रहता ह,ै को बाहर करन ेका एक सरल, सहज और स ता उपाय ह।ै ाकृितक उपचार के ारा शरीर का िवजातीय य बाहर िनकाल कर जीवनी शि को िवकिसत िकया जा सकता ह।ै ाकृितक िचिक सा के अनसुार शरीर म सं िचत मल ही सभी रोग का कारण ह ैअत: इस कारण अथात ्िवजातीय य को शरीर से बाहर िनकालना ही रोग का िनवारण ह ैइसिलए सभी रोग क केवल एक ही िचिक सा होती ह ैवह मल को बाहर करना इसिलए िकसी भी रोग के होन ेपर उसके िनदान क िवशेष आव यकता इस उपचार प ित म नह पड़ती । इस िचिक सा िनदान होन ेके प ात भी रोग का उपचार समान ही होता ह।ै य िक उपचार तो शरीर रोग का होता ह ैऔर रोग का कारण शरीर म मल का संचय होना होता ह।ै िवकार िमलते ही रोगी को िवकार िमलना ार भ हो जाता ह,ै ाकृितक िचिक सा म रोगी का मन क स तिु हते ु िनदान कर िलया जाता ह ैपर त ुआव यकता

    तीत नह होती।

    1.5.5 इस िचिक सा प ित म औषिध नह योग होती है

    ाकृितक िचिक सा प ित अ य त सरल और सहज ह।ै इस प ित म िकसी कार क भी औषिध का योग नह िकया जाता। ाकृितक िचिक सा म केवल 5 त व के ारा ही सभी रोग का उपचार िकया

    जाता ह।ै मनु य के शरीर का िनमाण भी पचं त व िम ी, पानी, धपू, हवा और आकाश स ेिमलकर होता

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    ह ैतथा त व म अस तलुन होन ेपर ही शरीर म िवकार उ प न होन ेलगते ह।ै पंच त व के अस तलुन को इन त व के ारा ही स तिुलत िकया जाता ह।ै इस प ित म िम ी िचिक सा उपवास िचिक सा जब िचिक सा, वाय ु िचिक सा तथा आहार िचिक सा ारा ही शरीर को पनु: व थ िकया जा सकता ह ैय िक इसी के ारा पंच त व को शरीर म स तिुलत िकया जा सकता ह।ै यही एक ाकृितक उपायह।ै

    इस िचिक सा म फल, साग, स जी, अनाज आिद आहार योग िकए जाते ह ै य िक इनम भी भरपरू पाचं त व होते ह ैसंसार के सभी ािणय जीव ज तओु ंका िनमाण इ ह पंच त व स ेहआ ह ैअत: इनका नाश होन े पर भी यह इ ह त व से िमल जाते ह।ै रोगी क िचिक सा करन े स े पवू िकस त व क अिधकता ह ैऔर िकस त व क कमी इसका ान रोग के ल णो के आधार पर िकया जा सकता ह।ै उसी के आधार पर िचिक सा क जानी चािहए। ाय: रोगी इस प ित क शरण तब लेता ह ैजब वह हर तरफ से हार चकुा होता ह ैतथा बहत अिधक दवाओ ंका सेवन कर चकुा होता ह ैदवाइया ंभी रासायिनक पदाथ होन ेके कारण िवजातीय य को बढान ेवाली होती गीली लपेट आिद िदया जाता ह।ै यह शोधन क ि या कहलाती ह।ै ाकृितक िचिक सा म आने वाले रोग का िम ही कहा जाता ह।ै य िक यह रोग शरीर क जीवनी शि ारा िकया जान ेवाला यास होता ह ैजो मल को ाकृितक ढंग स ेशरीर से बाहर िनकालता ह।ै ाकृितक िचिक सा म उपवास ही सबस ेबड़़ी औषिध का काय करती ह।ै रोगी को िबना दवा िनरोग रखन े हते ु आकाश त व सबसे मह वपणू ह ै जो उपवास स े ा होता ह।ै इसक आव यकता व थता, सु दरता, आरो य व दीघाय ु ा होती ह,ै आकाश त व के सेवन का माग िनराहार रहना अि न उपवास करना होता ह।ै

    1.5.6 इसम िचिक सा रोग क नही बि क रोगी के शरीर क होती है

    ाकृितक िचिक सा म ेसभी रोगो का हते ुह ैिवजातीय य। जब शरीर म मल का संचय होन ेलगता ह ैतो वह रोग के ल ण के प म उभरन ेलगता ह।ै िजस भी शरीर के भाग म मल संचय होता ह ैवह िवकार उ प न होन ेलगते ह ैउदाहरण के तौर पर फफड़ म कफ के जमन ेके कारण से खांसी होना,खांसी होना एक ल ण ह ैपर त ुकफ फेफड़ म जमा हआ मल ह।ै िवजातीयय य ही ह।ै जब धीरे धीरे यह बढने लगता ह ैतो यह िवकार भी बढ़न ेलगता ह।ै मामलूी खांसी भी ग भीर सम या या रोग का प लेने लगती ह,ै ाकृितक िचिक सा म जब रोगी के रोग का इलाज न करके खांसी का न करके उसके स पणू शरीर का शोधन कर शरीर का शिु करण ारा ही रोग को दरू िकया जाता ह ैइसिलए िकसी िवशेष अगं का इलाज ना करके परेू शरीर का इलाज करना होता ह,ै र म जमा होन ेवाली अशिु य को ठीक करना तथा फेफड़ स ेकफ बाहर करना खांसी का इलाज ह ैिजसे कोइ दवा ठीक नह कर सकती केवल दबा सकती ह ैजबिक ाकृितक िचिक सा ारा जम ेकफ को सरलता स े िनकालकर खासी स े िनजात िमल सकती ह।ै िचिक सा क अ य प ितय म रोगी क िचिक सा पर जोर िदया जाता ह।ै पर त ु ाकृितक िचिक सा प ित म रोगी के समचूे शरीर क िचिक सा करके उसे नया बनाया जाता ह।ै िजसस ेरोग के ल ण धीरे धीरे समा होकर रोगी शरीर को व थ िकया जात ह।ै रेाग क ाकृितक िचिक सा क प रभाषा म रोग नही वरन ्रोग का ल ण ह।ै जबिक स य तो यह ह ैिक रोग तो शरीर के भीतर इ ा हआ िवजातीय य या िवश होता ह।ै इसिलए िचिक सा रोग के ल ण क न होकर वा तिवक रोग क ही होनी यिु संगत कहलाती ह।ै जो िक ाकृितक िचिक सा णाली म ही िकया जाता ह।ै

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    1.5.7 इसम दबे रोग उभरते है

    ाकृितक िचिक सा म जैसा हम जानते ह ैिक रोग का मलू कारण मल का शरीर म जमा हो जाना तथा शरीर के ारा उसे बाहर करन ेक ि या िविभ न ्रोग के नाम से आज जानी जाती ह।ै शरीर के िविभ न अगं ारा जहा ंभी मल का संचयन होता ह ैवह से शरीर क जीवनी शि उस ेबाहर िनकालन ेलगती ह ैजैसे वचा म िवजातीय य इ ा होन ेलगते ह ैतो वचा उसे जीवनी शि के ारा बाहर िनकालन ेका

    यास करती ह ैजो िक वचा के उपर फोडे के प म िनकल कर पीप बन कर िनकाल िदए जाते ह।ै पर त ुइन जोडो को देखकर इन िवकार को िनकलन ेसे रोकना ही शमन कहलाती ह ैजो िक वतमान िचिक सा प ितय म िकया जा रहा ह।ै दवाओ ं ारा रोग के ल ण को दबा कर िवकार को शरीर मे ही इ ा िकया जाता ह।ै िजसस े िवकार शरीर म कन ेपर अ य दसूरे प म भी िनकलन े का संकेत करता ह ैपर त ुअ ानता वश उस ेभी रोग समझकर शरीर के भीतर ही दवा ारा पनु: दबा िदया जाता ह।ै इस कार ल बे समय तक शरीर म िवकार को दबाते दबाते वह भंयकर प रणाम का प ले लेता ह ैतथा जीण रोग का

    प धारण कर लेता ह ैएक साथ कइ रोगो के ल ण सामन ेआने लगते ह ैजहा ंअ य प ितय न ेउभरे रोग दबा िदए जाते ह ैवह ाकृितक उपचार ारा दबे हए सभी रोग एकसाथ एक एक करके उभरन ेलगते ह ैतथा उभर कर सदा के िलए चले जाते ह।ै

    ‘उभाड’ का अथ रोग का ती प तथा उप व के नाम से जाना जाता ह।ै इसके अनसुार जब िचिक सा काल के दौरान जीण रोग का उपचार िकया जाता ह ैतो एक समिुचत समय पर दबे रोग जीवनी शि के

    भाव से उभर कर जड़ स ेचले जान ेके िलए ततु हो जाते ह ैतथा कुछ समय तब अपना भाव िदखा कर सदा के िलए चले जाते ह।ै उभाड का काल 2स ेलेकर 7 िदन तक का होता ह।ै इसम यह बात भी देखी जाती ह ैिक रोगी के शरीर म रोग को िजस म म दबाया गया होता ह ैउभाड काल म ठीक उसके िवप रत म एक एक रोग उभरते ह।ै

    ाकृितक उपचार काल म रोग का तेज कुछ समय तक बना रहता ह ैऔर यह बढन ेभी लगता ह ैजो िक उभाड के ल ण कहलाते ह।ै उभाड रोग संबंधी ाकृितक िनयम का अनसुंधान करन ेवाले िहपो े स थे। इस िस ानत पर इ ह न ेकइ बड़े रोग का उपचार कर सफलता ा क ।

    इस कार यह कह सकते ह ैिक ाकृितक िचिक सा काल म रोग उभाड होना शभु संकेत ह ैतथा अित आव यक भी िजसके उ प न होन ेपर घबराना और डरना उिचत नह ह।ै इस काल म ज दबाजी के थान पर धैयता से ही काल लेना चािहए। कृित के ारा ही धीरे धीरे इस काय को होन ेदेना तथा उसक इसम मदद करना ही रोगी के िहत म होता ह।ै जो रोगी उभाड काल म अ य त द:ुखी होते ह ैया िज ह उभाड बहत दखु देते ह ैवह उ ह के साथ होता ह ैजो िचिक सा के पहले बहत सी िवषा औषिधय का ल बे समय स ेसेवन कर रह ेहो। पर त ुइसस ेभी रोगी को घबराना नही चािहए बि क ाकृितक िचिक सक को रोगी के मन को शांत बनाए रखन ेके िलए उसस ेबात करके समझाते रहना चािहए। जो ाकृितक जीवन शैली म ही जीवन यतीत करते ह ैतथा अिधकतर तो उभाड होता ही नही या बहत ह का होता ह ैऔर वह ज दी ही व थ भी हो जाते ह।ै

    1.5.8 जीण रोगो के उपचार म समय अिधक लगता है

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    सामा यत: यह बात सनुने म आती ह ैिक ाकृितक िचिक सा प ित म रोग बहत समय म ठीक होते ह ैउनका इलाज ल बे समय तक होता ह।ै जबिक िचिक सा क अ य प ितय म आराम ज दी हो जाता ह।ै रेाग पर ज दी ही िनयं ण पा कर रोग के ल ण को तरु त समा कर िदया जाता ह।ै पर त ुडॉ टर िल ड होर न ेइस बात का िवरोध िकया। उ ह न ेकहा िक ाकृितक िचिक सा के ारा रोगी कम समय म ेही ठीक हो जाते ह।ै उ ह न ेयहा ंतक कहा क अ य िचिक सा प ितय जो वतमान म चिलत ह ैउनके सब स ेज दी रोग को दरू करन ेवाली प ित ह ै ाकृितक िचिक सा।

    पर त ुइस प ित क शरण रोगी तब लेता ह ैजब वह हर तरफ स ेिनराश हो चकुा होता ह ैरोग अपनी जड़े बहत गहराइ तक फैला चकुा होता ह।ै ऐस ेरोगी ही ाकृितक िचिक सा क शरण म आते ह।ै यिद रोगी रोग क शु आत म ही इस प ित का सहारा ले कर व थ होना चाहता ह ैतो वह कम समय म ही ठीक हो सकता ह।ै ती रोग को ि थित म ाकृितक उपचार शरीर क जीवनी शि को बल बनान ेम मदद करते ह ैिजसस ेरोगी बहत कम समय म व थ हो जाता ह।ै जबिक ऐसा नही होता वा तव म ेसब तरफ से िनराश हए रेागी ाकृितक िचिक सा क शरण हण करते ह ैउस समय तक न केवल रोग का असर उनके शरीर म होता ह ैवरन ्दवाओ ंका भी जहर होता ह।ै इसिलए ाकृितक िचिक सक को केवल वा तिवक रेाग ही उपचार नही करना पड़ता बि क अ य दवाओ ंके िवष को भी बाहर िनकालकर शरीर को पणू

    प से शु भी करना होता ह।ै यह सब काफ ल बे समय से चल रहा होता ह।ै शरीर म िवकार और दवाओ ंका भाव ल बे समय तक होन ेके कारण वह भयानक प ले लेता ह।ै िजसस ेछुटकारा पाना इतना सरल नही होता - महीना, दो महीना स ेलेकर साल भी लग सकते ह।ै इसस े रेाग के ल ण का समा होना ही सब कुछ नह ह ैबि क पणू प से स पणू शरीर को त दु त , मजबतू और शि शाली बनाना ही मु य उ े य ह।ै इस सब न ेकाफ ल बा समय लग जाता ह।ै

    उपचार काल िकतना ल बा होगा वह रोगी क ि थित पर ही िनभर करता ह।ै य िक रोग का िवकास और उसका िवनाश दोन ही धीरे - धीरे होते ह।ै अत: धैयता और पणू िव ास रख कर ही िचिक सा प ित क शरण म रहना चािहए। य िक रोग मिु पणू आरो य का केवल एक ही ाकृितक तरीका ह।ै

    1.5.9 रोग का कारण क टाण ुनह होते।

    ाकृितक िचिक सा प ित म रोग का कारण केवल एक ही माना जाता ह ैवह ह ैिवजातीय य। रोग, क टाण,ु जीवाण ुया िवषाणओु ंसे होते ह ैयह िस ानत ऐलोपैथी िचिक सा स ेमा य ह।ै िक िकटाण ुरोग उ प न करते ह ैपर त ुयह पणू स य नह ह ै य िक क टाण ुउसी शरीर म पैदा होते ह ै िजसके शरीर म क टाण ुपनपते के िलए वातावरण उपल ध होगा अथात ्क टाण ुसदैव ग दगी म ेही पनपते ह।ै इसिलए शरीर म मल इ ा होगा वहा ंक टाण ुपनपते ह।ै पर त ुिजनके शरीर शु और मल िवहीन होते ह ैतथा िजनका र शु होता ह ैउस शरीर म क टाणओु ंके पनपन ेहते ुआहार का अभाव बना रहता ह।ै मल से लदे शरीर म ेसरु ा मक शि का हास होता रहता ह ैऔर सरु ा मक यव था कमजोर होन ेपर ही िकसी बा जगत का क टाण ुशरीर पर अपना हमला कर सकन ेम सफल होता ह।ै आधिुनक िचिक सा प ित भी यही कहती ह ै िक शरीर के भीतर एक ऐसी यव था ह ैजो शरीर क बाहर और भीतर के क टाणओु ंऔर जीवाणओु ंस ेशरीर क सरु ा करती ह।ै शरीर म ेत र कण (WBC) एक ऐसी सेना

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    ह ैजो िकसी भी रोग के क टाण ुको शरीर म वेश करते ह।ै न कर देती ह।ै पर त ुयह भी तब तक ही काय करती ह।ै जब तक क यह सबल हो, ेत र ाणओु ंक फौज क सबलता र म पाये जान ेवाले शु सभी रासायिनक त व िव मान होना आव यक होता ह,ै जो संतिुलत आहार िवहार अथात ्

    ाकृितक जीवन शैली से ही शरीर क शि बढ़ान ेवाले त व बनते बढते और कायम रहते ह ैइसिलए ाकृितक जीवन होन ेस ेजीवनी शि बल रहती ह ैऔर वही रोग के क टाणओु ंसे सरु ा दान करती

    ह ैइसीिलए रोग के कारण क टाण ुपनपते नही ह।ै

    अत: हम यह कह सकते ह ैिक यिद हम िनयिमत और सही आहार करन ेके अ यासी हो तो क टाण ु- परमाण ुजो सारे संसार म फैले हये ह ैहमारे शरीर म िव ट होकर वहा ंरह ही नही सकते, बि क वे हमारे शरीर के अनिगिनत व थ कोष के प म बदल जायेगे िजनस ेशरीर का िनमाण हआ ह।ै िक त ुयिद हमारा खान पान अिनयिमत एव ं अ ाकृितक ह ै तो वे ही सव यापी परमाण ु हमारे शरीर म असं य क टाणओु ंका प धारण करके हम अव य रोगी बना देगे।

    1.5.10 शरीर, मन और आ मा क िचिक सा है।

    शरीर, मन और आ मा तीन के वा य - सामजं य ही पणू वा य ह।ै इन तीन क वा यौ नित पर ही ाकृितक उपचार म यान िदया जाता ह ैयही इस िचिक सा णाली क िवशेषता ह।ै शरीर म रोग रिहत रहना ही पणू वा य नह ह ैबि क मन और आ मा से भी वा य का संबंध ह।ै ाकृितक जीवन

    ाकृितक रहन सहन तथा ाकृितक खान पान हमारे जीवन म साि वकता लाकर हम ऊपर उठाते ह।ै मन का संयम करके हम आ या म क ओर ले जायेगे। इ र क तिुत और सदाचार का चार हर तरह क बीमारी को रोकन ेका अ छे से अ छा और स ते स ेस ता इलाज ह।ै इ र क तिुत कुदरत का सनुहरा काननू ह ैजो इसपर अमल करता ह ैवह बीमारी से बचा रहता ह।ै जो अमल नह करता वह बीमा रय से िघरा रहता ह।ै ाकृितक िचिक सक के पंच त व के अित र एक छठा त व भी इस िचिक सा प ित म िलया गया ह ैजो ह ैराम नाम। ाकृितक िचिक सा रेागी के शरीर क शिु करती ह ैतथा राम नाम के ारा मन को भी शु करती ह।ै

    कुदरती उपचार के दो पहल ूह ै- एक इ र क शि यािन राम नाम से रोग िमटाना और दसूरा ऐस ेउपाय करना िक रोग पदैा ही न हो सके। ाकृितक उपचार, शरीर सफाइ यु ाहार, यो य यायाम स ेबीमा रय को दरू करती ह।ै उसस ेिचतशिु भी होती ह।ै मन का संयम हम आ या मक क ओर ले जाता ह।ै रोगी शरीर िनबल आ मा और कुि ठत मन तीनो क िचिक सा के िलये इ र ाथना अथवा राम नाम जप जो

    ाकृितक िचिक सा का मखु अगं ह,ै रामबाण िचिक सा ह।ै ाकृितक िचिक सा मे यह िवशेषता होनी चािहये वह रोगी का मन और आ मा दोन बदलन ेका इलाज साथ साथ देते रह,े सबुह, शाम ाथना और मन क शु ता पिव ता के िलए दैवी गणु को अपन ेभीतर धरण करन ेक मता िनमाण करना रोगी को अव य बताया जाय, शरीर शु तो मन भी शु शरीर व थ तो मन भी व थ कहा भी गया ह।ै ‘‘ व थ शरीर म ही व थ मन होता ह,ै कोइ भी यि अगर मानिसक प स े व थ ह ैतो वह कभी कोइ भलू या िन न तर का काय नही करेगा इसिलए ाकृितक िचिक सा करान ेवाले रोगी को स चा

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    ाकृितक िचिक सक रोगी स ेिनरोगी और िनरोगी से देवा मा भी बना देता ह।ै अत: ाकृितक िचिक सा शरीर, मन और आ मा तीन क िचिक सा करती ह।ै

    1.6 बोध

    1 ाकृितक िचिक सा प रचय के उ े य एव ं तावना पर काश डालो।

    2 ाकृितक जीवन शैली का मानव जीवन पर या नकारा मक भाव पड़ रहा ह,ै काश डालो।

    3 ाकृितक िचिक सा क प रभाषा एव ंअथ पर काश डालो।

    4 ाकृितक िचिक सा के मलूभतू िस ा त को प करो।

    1.7 संदभ ंथ

    ाकृितक िचिक साडॉ. राकेश िजदल

    वहृद ाकृितक िचिक साडॉ. ओपी. स सेना

    कुदरती जीवन गांधी जी

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    इकाइ - 2

    ाकृितक िचिक सा का इितहास इकाइ क संरचना

    2.1 तावना

    2.2 उ े य

    2.3 ाकृितक िचिक सा का इितहास

    2.4 ाकृितक िचिक सा का भारत वष म इितहास

    2.5 ाकृितक िचिक सा का िवदेश म ेिवकास

    2.6 सारांश

    2.7 बोधा मक (अ यासाथ)

    2.8 स दभ ं थ

    2.1 तावना

    पहले के समय म िचिक सा े का जब इतना िवकास नह हआ था तब रोग को कभी देवताओ ंका अिभशाप माना जाता था तो कभी अपन े कुकम का फल मान िलया जाता था तो कभी अपन ेनजर टोटका और भतू ेत-आ मा आिद स ेजोडकर देख िलया जाता था और उसी के अनु प उपचार िदया जाता था। बीमा रय के इस कार म का उपचार भी उसी के अनु प कभी देवताओ ंको स न करके कभी भतू िपशाच क झाड फूक करके यहा ंतक क शरीर को गम लोह ेक छड आिद से जलाकर अथवा पश ुबिल चढा कर उपचार िदए जाते थे।

    उस समय शरीर म अवां िछत िवजातीय य के आने को शरीर म उपरो कार के त व का आना वीकार कर िलया जाता था। उस समय िबमारी के आने पर उसे दबाव देकर यादा भोजन करन ेको

    बा य िकया जाता था। और धारणा थी िक इस तरह के कोप म खाना नह खाने से शरीर बहत ही िनबल हो जाएगा। इसी कारण उपचार म इसी कार क लापर वािहय ाण घातक बन जाती थी। इसका वणन आज वेद म ेभी आया ह।ै ऐसी लापरवाहीय पर खडा वा य या शरीर क ची-न व क तरह कभी भी िगरन े क हालत म रहता ह ै तभी कुछ पश ु पि य जैस े ािणय स े सीखन े को िमला िक वा य खराब होन ेक ि थित म खाना छोड कर शरीर के िविभ न अगं को िव ाम देकर वा य ा

    िकया जा सकता ह।ै पश ुप ी ठीक इसी कार अपना खाना छोड देता ह।ै इन सब त य को समझन ेके प ात ात हआ िक यह शरीर पंच-त व से बना ह ैऔर पचं त व के असंतलुन स ेही वा य का खराब होना समझ म े आया। कृित म यही पंच त व मलू व प म िव मान ह।ै जब भी हम ाकृितक

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    वातावरण से दरूी बना लेते थे अथात पंच त व से िवमखु होन ेपर ही वा य िबगड जाता था िजस कार मकान क दीवार खराब होन ेपर उसक मर मत करन ेके िलए रेत, सीमे ट, इट, पानी इ यािद क

    आव यकता होती ह ैठीक उसी कार शरीर के उपचार के िलए भी पचं त व क आव यकता होती ह,ै िकसी को भी थकान करन ेपर आराम करन ेक सलाह कट जान ेपर पानी या मू से भीगे कपडे को बाधना तथा जहरीले क डे या सांप ारा काटन ेपर िम ी का लेप करना, चम रोग होन ेपर पीली िम ी का लेप करना इ यािद सभी कार के उपाय भारत म ाकृितक िचिक सा के िवकास क पहली अव था के

    प म ादभुाव माना जाता ह ैयह काल 50 0 0 वष पवू विैदक ं थ मे बताया गया ह।ै उसके प ात भारत और िवदेश म े िविभ न ग भीर रोग क उन अव था म िकसी यि िवशेष के ारा सामािजक वातावरण को छोडकर वन म ेचले जाना तथा िविभ न प ितय के िचिक सक ारा इसके योग ारा वै ािनकता िस करना आिद के साथ-साथ िवकिसत होता गया। िजन मु य भारतीय ाकृितक िचिक सक ारा इस प ित म िवकिसत िकया गया। ऐस े ाकृितक िचिक सक का आप जीवन प रचय हम इस इकाइ म अ ययन करगे।

    2.2उ े य

    ाकृितक िचिक सा के इितहास का अ ययन करना।

    ाकृितक िचिक सा के मखु सं थापक को प रचय।

    िवदशेी ाकृितक िचिक सा के णेताओ ंका जीवन प रचय का अ ययन करना।

    2.3 ाकृितक िचिक सा का इितहास

    ाकृितक िचिक सा का इितहास उतना ही परुाना ह।ै िजतना वय ं कृित का यह प ित प वी पर थम जीव के व प से ही ार भ हो गयी थी। यह िचिक सा िव ान सभी आज क िचिक सा ाणािलय से परुाना ह।ै अथवा यह भी कहा जा सकता ह ैिक यह दसूरी िचिक सा प ितय िक जननी भी ह।ै इसका वणन पौरािणक थ एव ंवेद म े िमलता ह ैअथात वेद काल के बाद पौराण काल म भी यह प ित

    चिलत थी। उस काल म दुध काल, फल क प, उपवास इ यािद के ारा ही व थ हो पाते थे। ऐस ेलोग जो भोग िवलासी होते थे वे उपवास इ यािद म िव ास नह करते थे। उ होन ेकुछ पेड पौध ेप इ यािद के प म औषिध का योग रामायण काल स े ार भ कर िदया था। इस कार जीव के पदापण को ही कृित एक भाग माना जाता ह।ै आधिुनक ाकृितक िचिक सा का इितहास डा. इसाफ जेिन स (Dr. Isaac Jennings) म जो अमे रका म 17 8 8 से ार भ कर िदया था। जोहन बे पले ( वीद ॅमइेल) न ेभी ठ डे पानी के नान एव ंपानी पीन ेक िविधय से उपचार देना ार भ िकया था। महाब ग नामक बोध थ म वणन आता ह ैिक एक िदन भगवान बु िभ ुको सांप न ेकाट िलया तो उस समय जहर के नाश के िलए भगवान बु न ेिचकनी िम ी, गोबर, मू आिद को योग करवाया था और दसूरे िभ ुके बीमार पडन ेपर भाप नान व उ ण गम व ठ डे जल के नान ारा िनरोग िकये जान ेका वणन 250 0 वष परुानी उपरो घटना से िस होता ह।ै

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    ाकृितक िचिक सा के साथ-2योग एव ं नान आसान का योग शारी रक एव ंआ याि मक सधुार के िलये 50 0 0 हजार वष स े चलन म आया ह ैपतंजिल योग सू इसका एक ामािणक थ ह ैइसका

    चलन केवल भारत म ही नह अिपत ुिवदेश म ेभी मखु ाकृितक िचिक सक के िवषय म यहा ंवणन करना आव यक हो जाता ह।ै य िक ाकृितक िचिक सा के इतने (परुाने इितहास के साथ) इसका िवकास ाय: लु जैसा हो गया था य । आधिुनक िचिक सा ाणािलय के आगमन व प इस

    णाली को भलूना वाभािवक भी था इस ाकृितक िचिक सा को दोबारा िति त करन ेक यांग को उठान ेवाले मु य िचिक सक म बडे नाम वाले ऐलोपैिथक डा. मु य प से िवदशेी अथात पा ातय देश का योगदान वणनीय ह।ै ये वो भावशाली यि थे जो औषिध िव ान का योग करते-2थक चकेु थे और वय ं रोगी होन े के बाद िनरोग होन े म े असहाय होते जा रह े थे। उ होन े वय ं पर ाकृितक िचिक सा के योग करते हए वय ंको व थ िकया और अपने शेष जीवन म इसी िचिक सा प ित ारा अनेक असा य रोिगय को उपचार करते हए इस िचिक सा प ित को दबुारा थािपत करन े क शु आत क । इ होन ेजीवन यापन तथा रोग उपचार को अिधक तक संगत िविधय ारा िकये जान ेका शभुार भ िकया।

    2.4 ाकृितक िचिक सा का भारत वष म इितहास

    भारत वष म ाकृितक िचिक सा के ादभुाव के िवषय म े ी डी. वकट चेलापित शमा जी ने वष 18 9 4 म डा. लइू कून ेके िस पु तक “ य ूसाइ स ऑफ हीिलंग” का तेलग ूभाषा म अनवुाद करके इसका

    ार भ िकया। इसके प ात 19 0 4 म िबजनौर िनवासी ी कृ ण व प ने इसका अनवुाद िह दी और उद ुदोन भाषाओ ंम े िकया। पु तक के आगमन के साथ-2लोग क िच और उसके अ ययन म भी विृ होनी ार भ हइ और शी ही यह िचिक सा प ित लोग म े चिलत होनी ार भ हइ। महा मा गांधी जी एडो फ जू ट क पु तक “ रटन टू नचेर कृित क और लोटे” पढकर बहत भािवत हए। उनके जीवन म यह प ित गहराइ तक चली गइ और उ होन ेतरु त भाव स ेअपन े वय ंकेशरीर तथा प रवार के लोग और आ म म े रहन ेवाले लोग पर उपचार योग ार भ िकए। अ तत: भारत जैसे गरीब देश म वा य के िलए यह प ित सव म प ित ह।ै इसका चार उ होन ेगांव-2म करन ेके साथ ही पनूा के पास उरिलकाचंन म एक ाकृितक िचिक सालय क थापना क और इस िचिक सालय के िचिक सक भी बने। उरिलकाचंन म ेपहला ाकृितक िचिक सालय थािपत होन े के कारण ही दि ण भारत म ाकृितक िचिक सा का ादभुाव सबस ेपहले हआ ह।ै

    डा. क णम ् राज ूने िवजयवाडा से थोडी दरूी पर ही एक िवशाल िचिक सालय क थापना क इसके साथ साथ देश म डा. जानक शरण वमा, डा.शरण साद, डा. महावीर साद पो ार, डा. गंगा साद गौड, डा. िव ल दास मोदी, डा. हीरालाल, महा मा जगदीशवरान द, डा. कुलर जन मखुज , डा. वी. वकट राव, डा. एस. जे. िसंह, इ यािद के यास से कइ सरकारी सं थाए ंतथा िद ली म केि य योग एव ं

    ाकृितक िचिक सा अनसुधंान प रषद ् इ यािद क थापना हते ुमु य योगदान िदया िजसके फल व प आज मा यता ा िचिक सालय प ित के प म वीकार क गइ। इनम ेस ेकुछ का जीवन प रचय इस

    कार ह।ै

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    1. डा. कुलरंजन मुखज :- ाकृितक िचिक सा के े म डा. कुलरंजन मखुज का बहत बडा योग दान रहा। बचपन से ही इ ह कृित एव ं ाकृितक िचिक सा से िवशेष ेम था। तथा िकशोराव था म इ होन े ाकृितक िचिक सा का योग रोग उपचार के िलए शु िकया। सन ्19 3 0 म डा. कुलरंजन न ेहाजरा रोड, कोलकाता म ेनेचर केयर अ पताल म ेकाय िकया। इसस ेभी पवू उ होन बां लादेश ढाका के मदारीपरू म ेनचेर केयर अ पताल के काय िकया तथा सफल परी ण ा िकए। अपन ेजीवन काल म उ होन ेहजार असा य रोिगय के रोग ठीक िकया इसी कारण उनक तलुना ऐलोपैथी के सीिनयर डा. िवधान च ा के साथ क जाती थी। गांधी जी को भी इनके ारा दी गइ उपचार प ित पर िव ास था तथा वह भी इनके पास रोिगय को भेजा करते थे। इ होन े एक पु तक भी िलखी ोटेि टव फुडस इन हे थ ए ड िडसीज। इसके अित र इ होन ेअ जी और िह दी भाषा म कइ मह वपणू पु तक भी िलखी ये पु तक आज भी सराहनीय एव ंसहायक ह।ै डा. मखुज न ेकेवल रोिगय क िचिक सा करते थे अिपत ुवह अपनी आय का 50 ितशत भाग ाकृितक िचिक सा म ेलगते थे। यह बहत ही ईमानदार तथा सरल यि व के यि थे।

    सन ्19 56 म डा. मखुज न ेअिखल भारतीय ाकृितक िचिक सा प रषद ्क थापना क इस कार इनके ारा ाकृितक िचिक सा म अदभतु चम कार िकए।

    2. ी िव लदास मोदी :- इनका ज म 25 अ लै सन ्19 12इ. म जनपद गोरखपरु म ेहआ था। इ होन े मिै क तक िश ा गोरखपरु िश ा काशी िह द ू िव िव ालय से िक। वह अ यापक बनना चाहते थे। एक बार यह भंयकर प से बीमार पड गए तथा सभी तरह क दवा ल बे समय तक लेने पर आराम नह हआ तो इ होन े ाकृितक िचिक सा ी बाले र साद िसहं के माग दशन म न केवल रोगमु हए बि क उनका वा य पहले से भी उ म हो गया इसी से ही उनक आ था और िन ा ाकृितक िचिक सा म लग गइ।

    आगे चलकर सन ्19 4 0 इ. म ेइ होन ेआरो य मिंदर ाकितक िचिक सालय क थापना क इ होन े एडो फ ज ट ारा िलखी पु तक “ रटन टू नेचर” का िह दी अनवुाद करके भारतीय

    ाकृितक िचिक सा के े म एक बडा काय िकया इ होन ेगांधी जी क रचना मक वि तय पर केि