पाठ...स _द स ]ध_ तथ क ल \ वन ओ क पयक प त रण कन व...

16

Upload: others

Post on 14-Feb-2020

23 views

Category:

Documents


0 download

TRANSCRIPT

  • पाठ 1- पद

    प्रश्न अभ्यास

    1. गोपपयों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहन ेमें क्या व्यंग्य पनपहत ह?ै

    उत्तर

    गोपपयों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहन ेमें यह व्यंग्य पनपहत ह ैपक उद्धव वास्तव में भाग्यवान न होकर अपत

    भाग्यहीन हैं। वे कृष्णरूपी सौन्दयय तथा प्रेम-रस के सागर के सापनध्य में रहते हुए भी उस असीम आनंद से वपंित

    हैं। व ेप्रेम बंधन में बँधने एव ंमन के प्रेम में अनरुक्त होने की सखुद अनभुपूत से पणूयतया अपररपित हैं।

    2. उद्धव के व्यवहार की तलुना पकस-पकस से की गई ह?ै

    उत्तर

    गोपपयों ने उद्धव के व्यवहार की तलुना पनम्नपलपखत उदाहरणों से की ह ै-

    (1)गोपपयों ने उद्धव के व्यवहार की तलुना कमल के पत्ते से की ह ैजो नदी के जल में रहते हुए भी जल की ऊपरी

    सतह पर ही रहता ह।ै अथायत ्जल का प्रभाव उस पर नहीं पड़ता। श्री कृष्ण का सापनध्य पाकर भी वह श्री

    कृष्ण के प्रभाव से मकु्त हैं।

    (2)वह जल के मध्य रखे तेल के गागर (मटके) की भाँपत हैं, पजस पर जल की एक बूँद भी पटक नहीं पाती।

    उद्धव पर श्री कृष्ण का प्रेम अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाया ह,ै जो ज्ञापनयों की तरह व्यवहार कर रह ेहैं।

    3. गोपपयों ने पकन-पकन उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने पदए हैं?

    उत्तर

    गोपपयों ने कमल के पत्त,े तेल की मटकी और प्रेम की नदी के उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने पदए हैं।

    उनका कहना ह ैकी वे कृष्ण के साथ रहते हुए भी प्रेमरूपी नदी में उतरे ही नहीं, अथायत साक्षात प्रेमस्वरूप श्रीकृष्ण

    के पास रहकर भी व ेउनके प्रमे से वपंित हैं ।

    http://www.ncrtsolutions.in/http://www.studyrankers.com/2014/12/khitiz-chapter-1-class-10th-ncert-solutions.html

  • 4. उद्धव द्वारा पदए गए योग के संदशे ने गोपपयों की पवरहापग्न में घी का काम कैसे पकया?

    उत्तर

    गोपपयाँ कृष्ण के आगमन की आशा में पदन पगनती जा रही थीं। व ेअपने तन-मन की व्यथा को िपुिाप सहती हुई

    कृष्ण के प्रेम रस में डूबी हुई थीं। कृष्ण को आना था परन्त ुउन्हों ने योग का संदशे दनेे के पलए उद्धव को भजे

    पदया। पवरह की अपग्न में जलती हुई गोपपयों को जब उद्धव ने कृष्ण को भलू जान ेऔर योग-साधना करन ेका

    उपदशे दनेा प्रारम्भ पकया, तब गोपपयों की पवरह वदेना और भी बढ़ गयी । इस प्रकार उद्धव द्वारा पदए गए योग के

    संदशे न ेगोपपयों की पवरह अपग्न में घी का काम पकया।

    5. 'मरजादा न लही' के माध्यम से कौन-सी मयायदा न रहन ेकी बात की जा रही ह?ै

    उत्तर

    'मरजादा न लही' के माध्यम से प्रेम की मयायदा न रहन ेकी बात की जा रही ह।ै कृष्ण के मथरुा िल ेजाने पर

    गोपपयाँ उनके पवयोग में जल रही थीं। कृष्ण के आने पर ही उनकी पवरह-वदेना पमट सकती थी, परन्त ुकृष्ण ने

    स्वयं न आकर उद्धव को यह संदशे दकेर भजे पदया की गोपपयाँ कृष्ण का प्रेम भलूकर योग-साधना में लग जाए ँ।

    प्रेम के बदल ेप्रेम का प्रपतदान ही प्रेम की मयायदा ह,ै लेपकन कृष्ण ने गोपपयों की प्रेम रस के उत्तर मैं योग की शषु्क

    धारा भजे दी । इस प्रकार कृष्ण ने प्रेम की मयायदा नहीं रखी । वापस लौटने का विन दकेर भी वे गोपपयों से पमलने

    नहीं आए ।

    6. कृष्ण के प्रपत अपने अनन्य प्रेम को गोपपयों ने पकस प्रकार अपभव्यक्त पकया ह ै?

    उत्तर

    गोपपयों ने कृष्ण के प्रपत अपने अनन्य प्रेम को हाररल पक्षी के उदाहरण के माध्यम से अपभव्यक्त पकया ह।ै वे

    अपनों को हाररल पक्षी व श्रीकृष्ण को लकड़ी की भाँपत बताया ह।ै पजस प्रकार हाररल पक्षी सदवै अपने पंज ेमें

    कोई लकड़ी अथवा पतनका पकडे़ रहता ह,ै उसे पकसी भी दशा में नहीं छोड़ता। उसी प्रकार गोपपयों ने भी मन,

    कमय और विन से कृष्ण को अपने ह्रदय में दृढ़तापवूयक बसा पलया ह।ै व ेजागते, सोते स्वप्नावस्था में, पदन-रात

    कृष्ण-कृष्ण की ही रट लगाती रहती हैं। साथ ही गोपपयों ने अपनी तलुना उन िीपटयों के साथ की ह ैजो गडु़

    (श्रीकृष्ण भपक्त) पर आसक्त होकर उससे पिपट जाती ह ैऔर पिर स्वयं को छुड़ा न पाने के कारण वहीं प्राण

    http://www.ncrtsolutions.in/

  • त्याग दतेी ह।ै

    7. गोपपयों ने उद्धव से योग की पशक्षा कैसे लोगों को दने ेकी बात कही ह ै?

    उत्तर

    गोपपयों ने उद्धव से योग की पशक्षा ऐसे लोगों को दनेे की बात कही ह ैपजनका मन िंिल ह ैऔर इधर-उधर

    भटकता ह।ै उद्धव अपने योग के संदशे में मन की एकाग्रता का उपदशे दतेें हैं, परन्त ुगोपपयों का मन तो कृष्ण के

    अनन्य प्रेम में पहले से ही एकाग्र ह।ै इस प्रकार योग-साधना का उपदशे उनके पलए पनरथयक ह।ै योग की

    आवश्यकता तो उन्हें ह ैपजनका मन पस्थर नहीं हो पाता, इसीपलये गोपपयाँ िंिल मन वाल ेलोगों को योग का

    उपदशे दनेे की बात कहती हैं।

    8. प्रस्ततु पदों के आधार पर गोपपयों का योग-साधना के प्रपत दृपिकोण स्पि करें।

    उत्तर

    प्रस्ततु पदों में योग साधना के ज्ञान को पनरथयक बताया गया ह।ै यह ज्ञान गोपपयों के अनुसार अव्यवाहररक और

    अनपुयकु्त ह।ै उनके अनसुार यह ज्ञान उनके पलए कड़वी ककड़ी के समान ह ैपजस ेपनगलना बड़ा ही मपुश्कल ह।ै

    सरूदास जी गोपपयों के माध्यम से आग ेकहते हैं पक ये एक बीमारी ह।ै वो भी ऐसा रोग पजसके बारे में तो उन्होंने

    पहले कभी न सनुा ह ैऔर न दखेा ह।ै इसपलए उन्हें इस ज्ञान की आवश्यकता नहीं ह।ै उन्हें योग का आश्रय तभी

    लेना पडे़गा जब उनका पित्त एकाग्र नहीं होगा। परन्त ुकृष्णमय होकर यह योग पशक्षा तो उनके पलए अनपुयोगी ह।ै

    उनके अनसुार कृष्ण के प्रपत एकाग्र भाव से भपक्त करन ेवाले को योग की ज़रूरत नहीं होती।

    9. गोपपयों के अनसुार राजा का धमय क्या होना िापहए ?

    उत्तर

    गोपपयों के अनसुार राजा का धमय उनकी प्रजा की हर तरह से रक्षा करना तथा नीपत से राजधमय का पालन करना

    होता ह।ै एक राजा तभी अच्छा कहलाता ह ैजब वह अनीती का साथ न दकेर नीती का साथ द।े

    10. गोपपयों को कृष्ण में ऐसे कौन सा पररवतयन पदखाई पदए पजनके कारण वे अपना मन वापस पा लेन ेकी बात

    कहती हैं ?

    http://www.ncrtsolutions.in/

  • उत्तर

    गोपपयों को लगता ह ैपक कृष्ण ने अब राजनीपत पसख ली ह।ै उनकी बपुद्ध पहले से भी अपधक ितरु हो गयी ह।ै

    पहले व ेप्रेम का बदला प्रेम से िकुाते थे, परंत ुअब प्रेम की मयायदा भलूकर योग का संदशे दनेे लगे हैं। कृष्ण पहले

    दसूरों के कल्याण के पलए समपपयत रहते थे, परंत ुअब अपना भला ही दखे रह ेहैं। उन्होंने पहले दसूरों के अन्याय

    से लोगों को मपुक्त पदलाई ह,ै परंत ुअब नहीं। श्रीकृष्ण गोपपयों से पमलने के बजाय योग के पशक्षा दने ेके पलए

    उद्धव को भजे पदए हैं। श्रीकृष्ण के इस कदम से गोपपयों के मन और भी आहत हुआ ह।ै कृष्ण में आये इन्ही

    पररवतयनों को दखेकर गोपपयाँ अपनों को श्रीकृष्ण के अनरुाग से वापस लेना िाहती ह।ै

    11. गोपपयों ने अपने वाक्िातयुय के आधार पर ज्ञानी उद्धव को परास्त कर पदया, उनके वाक्िातयुय की पवशेषताएँ

    पलपखए?

    उत्तर

    गोपपयों के वाक्िातयुय की पवशषेताएँ इस प्रकार ह ै-

    (1) तानों द्वारा (उपालंभ द्वारा) - गोपपयाँ उद्धव को अपने तानों के द्वारा िपु करा दतेी हैं। उद्धव के पास उनका

    कोई जवाब नहीं होता। वे कृष्ण तक को उपालंभ द ेडालती हैं। उदाहरण के पलए -

    इक अपत ितरु हुते पपहलैं ही, अब गरुु ग्रंथ पढ़ाए।

    बढ़ी बपुद्ध जानी जो उनकी, जोग-सँदसे पठाए।

    (2) तकय क्षमता - गोपपयों ने अपनी बात तकय पणूय ढंग से कही ह।ै वह स्थान-स्थान पर तकय दकेर उद्धव को

    पनरुत्तर कर दतेी हैं। उदाहरण के पलए -

    "सनुत जोग लागत ह ैऐसौ, ज्यौं करुई ककरी।"

    स ुतौ ब्यापध हमकौं लै आए, दखेी सनुी न करी।

    यह तौ 'सरू' पतनपह लै सौंपौ, पजनके मन िकरी।।

    (3) व्यंग्यात्मकता - गोपपयों में व्यंग्य करन ेकी अदु्भत क्षमता ह।ै वह अपने व्यंग्य बाणों द्वारा उद्धव को घायल

    कर दतेी हैं। उनके द्वारा उद्धव को भाग्यवान बताना उसका उपहास उड़ाना था।

    (4) तीखे प्रहारों द्वारा - गोपपयों ने तीख ेप्रहारों द्वारा उद्धव को प्रताड़ना दी ह।ै

    12. संकपलत पदों को ध्यान में रखते हुए सरू के भ्रमरगीत की मखु्य पवशेषताएँ बताइये।

    उत्तर

    http://www.ncrtsolutions.in/

  • सरूदास मधरु तथा कोमल भावनाओ ंका मापमयक पित्रण करने वाले महाकपव हैं। सरू के 'भ्रमरगीत' में अनभुपूत और

    पशल्प दोनों का ही मपण-कांिन संयोग हुआ ह।ै इसकी मखु्य पवशेषताएँ इसप्रकार हैं -

    भाव-पक्ष - 'भ्रमरगीत' एक भाव-प्रधान गीपतकाव्य ह।ै इसमें उदात्त भावनाओ ंका मनोवैज्ञापनक पित्रण हुआ ह।ै

    भ्रमरगीत में गोपपयों ने भौंरें को माध्यम बनाकर ज्ञान पर भपक्त की श्रेष्ठता का प्रपतपादन पकया ह।ै अपनी विन-

    वक्रता, सरलता, मापमयकता, उपालंभ, व्यगात्म्कथा, तकय शपक्त आपद के द्वारा उन्होंने उद्धव के ज्ञान योग को तचु्छ

    पसद्ध कर पदया ह।ै 'भ्रमरगीत' में सरूदास ने पवरह के समस्त भावों की स्वाभापवक एव ंमापमयक व्यंजना की हैं।

    कला-पक्ष - 'भ्रमरगीत' की कला-पक्ष अत्यंत सशक्त, प्रभावशाली और रमणीय ह।ै

    भाषा-शलैी - 'भ्रमरगीत' में शदु्ध सापहपत्यक ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ ह।ै

    अलंकार - सरूदास ने 'भ्रमरगीत' में अनपु्रास, उपमा, दृिांत, रूपक, व्यपतरेक, पवभावना, अपतशयोपक्त आपद

    अनेक अलंकारों का सनु्दर प्रयोग पकया ह।ै

    छंद-पवधान - 'भ्रमरगीत' की रिना 'पद' छंद में हुई ह।ै इसके पद स्वयं में स्वतंत्र भी हैं और परस्पर सम्बंपधत भी

    हैं।

    संगीतात्म्कथा - सरूदास कपव होने के साथ-साथ सपु्रपसद्ध गायक भी थे। यही कारण ह ैपक 'भ्रमरगीत' में भी

    संगीतात्म्कथा का गणु सहज ही दृपिगत होता ह।ै

    रिना और अपभव्यपक्त

    14. उद्धव ज्ञानी थे, नीपत की बातें जानते थ;े गोपपयों के पास ऐसी कौन-सी शपक्त थी जो उनके वाक्िातयुय में

    मपुखरत हो उठी?

    उत्तर

    गोपपयों के पास श्री कृष्ण के प्रपत सच्िे प्रेम तथा भपक्त की शपक्त थी पजस कारण उन्होंने उद्धव जसैे ज्ञानी तथा

    नीपतज्ञ को भी अपने वाक्िातुयय से परास्त कर पदया।

    15. गोपपयों ने यह क्यों कहा पक हरर अब राजनीपत पढ़ आए हैं? क्या आपको गोपपयों के इस कथन का पवस्तार

    http://www.ncrtsolutions.in/

  • समकालीन राजनीपत में नज़र आता ह,ै स्पि कीपजए।

    उत्तर

    गोपपयों ने ऐसा इसपलए कहा ह ैक्योंपक श्री कृष्ण ने सीधी सरल बातें ना करके रहस्यातमक ढंग से उद्धव के

    माध्यम से अपनी बात गोपपयों तक पहुिाई ह।ै

    गोपपयों का कथन पक हरर अब राजनीपत पढ़ आए हैं आजकल की राजनीपत में नजर आ रहा ह।ै आज के नेता भी

    अपने बातों को घमुा पिरा कर कहते हैं पजस तरह कृष्ण ने उद्धव द्वारा कहना िाहा। व ेसीधे-सीधे मदु्द ेऔर काम

    को स्पि नही करते बपल्क इतना घमुा दतेे हैं पक जनता समझ नही पाता। दसूरी तरि यहाँ गोपपयों ने राजनीपत शब्द

    को व्यंग के रूप में कहा ह।ै आज के समय में भी राजनीपत शब्द का अथय व्यंग के रूप में पलया जाता ह।ै

    http://www.ncrtsolutions.in/

  • पाठ 2- राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

    पषृ्ठ संख्या: 14

    प्रश्न अभ्यास

    1. परशरुाम के क्रोध करन ेपर लक्ष्मण न ेधनषु के टूट जान ेके ललए कौन-कौन से तकक लिए?

    उत्तर

    परशरुाम के क्रोध करन ेपर लक्ष्मण न ेधनषु के टूट जान ेपर लनम्नलललित तकक लिए -

    1. हमें तो यह असाधारण लशव धनुष साधारण धनषु की भााँलत लगा।

    2. श्री राम को तो ये धनषु, नए धनषु के समान लगा।

    3. श्री राम न ेइसे तोडा नहीं बस उनके छूते ही धनषु स्वत: टूट गया।

    4. इस धनषु को तोडते हुए उन्होंने लकसी लाभ व हालन के लवषय में नहीं सोचा था।

    5. उन्होंन ेऐसे अनेक धनषुों को बालपन में यूाँ ही तोड लिया था। इसललए यही सोचकर उनसे यह कायक हो गया।

    2. परशरुाम के क्रोध करन ेपर राम और लक्ष्मण की जो प्रलतलक्रयाएाँ हुई ंउनके आधार पर िोनों के स्वभाव की लवशेषताएाँ अपन े

    शब्िों में लललिए।

    उत्तर

    परशरुाम के क्रोध करन ेपर श्री राम न ेधीरज से काम ललया। उन्होंन ेनम्रता पणूक वचनों का सहारा लेकर परशरुाम के क्रोध को शांत

    करन ेका प्रयास लकया। परशरुाम जी क्रोधी स्वभाव के थे। श्री राम उनके क्रोध पर शीतल जल के समान शब्िों व आचरण का

    आश्रय ले रह ेथे। यही कारण था लक उन्होंन ेस्वयं को उनका सेवक बताया व उनसे अपन ेललए आज्ञा करन ेका लनवेिन लकया।

    उनकी भाषा अत्यंत कोमल व मीठी थी और परशरुाम के क्रोलधत होन ेपर भी वह अपनी कोमलता को नहीं छोडते थे। इसके

    लवपरीत लक्ष्मण परशरुाम की भााँलत ही क्रोधी स्वभाव के हैं। लनडरता तो जैसे उनके स्वभाव में कूट-कूट कर भरी थी। इसललए

    परशरुाम का फरसा व क्रोध उनमें भय उत्पन्न नहीं कर पाता। लक्ष्मण परशरुाम जी के साथ व्यंग्यपणूक वचनों का सहारा लेकर अपनी

    बात को उनके समक्ष प्रस्तुत करत ेहैं। तलनक भी इस बात की परवाह लकए लबना लक परशरुाम कहीं और क्रोलधत न हो जाएाँ। वे

    परशरुाम के क्रोध को न्यायपणूक नहीं मानते। इसललए परशरुाम के अन्याय के लवरोध में िडे हो जाते हैं। जहााँ राम लवनम्र, धैयकवान,

    मिृभुाषी व बलुिमान व्यलि हैं वहीं िसूरी ओर लक्ष्मण लनडर, साहसी, क्रोधी तथा अन्याय लवरोधी स्वभाव के हैं। ये िोनों गणु इन्हें

    अपन-ेअपन ेस्थान पर उच्च स्थान प्राप्त करवात ेहैं।

    पषृ्ठ संख्या: 15

    3. लक्ष्मण और परशरुाम के संवाि का जो अंश आपको सबसे अच्छा लगा उसे अपन ेशब्िों में संवाि शैली में लललिए।

    http://www.ncrtsolutions.in/http://www.studyrankers.com/2014/12/kshitiz-chapter-2-class-10th-ncert-solutions.html

  • उत्तर

    लक्ष्मण - ह ेमलुन! बचपन में हमन ेिेल-िेल में ऐसे बहुत से धनषु तोडे हैं तब तो आप कभी क्रोलधत नहीं हुए थे। लफर इस धनषु

    के टूटन ेपर इतना क्रोध क्यों कर रह ेहैं?

    परशरुाम - अरे, राजपतु्र! त ूकाल के वश में आकर ऐसा बोल रहा ह।ै यह लशव जी का धनषु ह।ै

    4. परशरुाम न ेअपन ेलवषय में सभा में क्या-क्या कहा, लनम्न पद्ांश के आधार पर लललिए -

    बाल ब्रह्मचारी अलत कोही। लबस्वलबलित क्षलत्रयकुल द्रोही||

    भजुबल भलूम भपू लबन ुकीन्ही। लबपलु बार मलहिवेन्ह िीन्ही||

    सहसबाहुभजु छेिलनहारा। परस ुलबलोकु महीपकुमारा||

    मात ुलपतलह जलन सोचबस करलस महीसलकसोर।

    गभकन्ह के अभकक िलन परस ुमोर अलत घोर||

    उत्तर

    परशरुाम न ेअपन ेलवषय में ये कहा लक वे बाल ब्रह्मचारी हैं और क्रोधी स्वभाव के हैं। समस्त लवश्व में क्षलत्रय कुल के लवद्रोही के रुप

    में लवख्यात हैं। वे आग,े बढ ेअलभमान से अपन ेलवषय में बताते हुए कहते हैं लक उन्होंन ेअनेकों बार पथृ्वी को क्षलत्रयों से लवहीन

    कर इस पथृ्वी को ब्राह्मणों को िान में लिया ह ैऔर अपन ेहाथ में धारण इस फरसे से सहस्त्रबाहु के बाहों को काट डाला ह।ै इसललए

    ह ेनरेश पतु्र! मेरे इस फरसे को भली भााँलत ििे ले।राजकुमार! त ूक्यों अपन ेमाता-लपता को सोचन ेपर लववश कर रहा ह।ै मेरे इस

    फरसे की भयानकता गभक में पल रह ेलशशओु ंको भी नष्ट कर ितेी ह।ै

    5. लक्ष्मण न ेवीर योिा की क्या-क्या लवशेषताएाँ बताई?

    उत्तर

    लक्ष्मण न ेवीर योिा की लनम्नलललित लवशेषताएाँ बताई ह ै-

    1. वीर परुुष स्वयं अपनी वीरता का बिान नहीं करत ेअलपत ुवीरता पणूक कायक स्वयं वीरों का बिान करत ेहैं।

    2. वीर परुुष स्वयं पर कभी अलभमान नहीं करते। वीरता का व्रत धारण करन ेवाले वीर परुुष धैयकवान और क्षोभरलहत होते हैं।

    3. वीर परुुष लकसी के लवरुि गलत शब्िों का प्रयोग नहीं करते। अथाकत ्िसूरों को सिवै समान रुप से आिर व सम्मान ितेे हैं।

    4. वीर परुुष िीन-हीन, ब्राह्मण व गायों, िबुकल व्यलियों पर अपनी वीरता का प्रिशकन नहीं करत ेहैं। उनसे हारना व उनको मारना

    वीर परुुषों के ललए वीरता का प्रिशकन न होकर पाप का भागीिार होना ह।ै

    5. वीर परुुषों को चालहए लक अन्याय के लवरुि हमेशा लनडर भाव से िडे रह।े

    6. लकसी के ललकारन ेपर वीर परुुष कभी पीछे किम नहीं रिते अथाकत ्वह यह नहीं ििेते लक उनके आग ेकौन ह ैवह लनडरता

    पवूकक उसका जवाब ितेे हैं।

    http://www.ncrtsolutions.in/

  • 6. साहस और शलि के साथ लवनम्रता हो तो बेहतर ह।ै इस कथन पर अपन ेलवचार लललिए।

    उत्तर

    साहस और शलि ये िो गणु एक व्यलि को वीर बनाते हैं। यलि लकसी व्यलि में साहस लवद्मान ह ैतो शलि स्वयं ही उसके

    आचरण में आ जाएगी परन्त ुजहााँ तक एक व्यलि को वीर बनान ेमें सहायक गणु होते हैं वहीं िसूरी ओर इनकी अलधकता एक

    व्यलि को अलभमानी व उद्दडं बना ितेी ह।ै कारणवश या अकारण ही वे इनका प्रयोग करन ेलगते हैं। परन्त ुयलि लवन्रमता इन गणुों

    के साथ आकर लमल जाती ह ैतो वह उस व्यलि को श्रेष्ठतम वीर की श्रेणी में ला ितेी ह ैजो साहस और शलि में अहकंार का

    समावेश करती ह।ै लवनम्रता उसमें सिाचार व मधरुता भर ितेी ह,ैवह लकसी भी लस्थलत को सरलता पवूकक शांत कर सकती ह।ै जहााँ

    परशरुाम जी साहस व शलि का संगम ह।ै वहीं राम लवनम्रता, साहस व शलि का संगम ह।ै उनकी लवनम्रता के आगे परशरुाम जी के

    अहकंार को भी नतमस्तक होना पडा नहीं तो लक्ष्मण जी के द्वारा परशरुाम जी को शांत करना सम्भव नहीं था।

    7. भाव स्पष्ट कीलजए -

    (क) लबहलस लिन ुबोल ेमिृ ुबानी। अहो मनुीस ुमहाभट मानी||

    पलुन पलुन मोलह ििेाव कुठारू। चहत उडावन फूाँ लक पहारू||

    उत्तर

    प्रसंग - प्रस्तुत पंलियााँ तुलसीिास द्वारा रलचत रामचररतमानस से ली गई हैं। उि पंलियों में लक्ष्मण जी द्वारा परशरुाम जी के बोल े

    हुए अपशब्िों का प्रलतउत्तर लिया गया ह।ै

    भाव - भाव यह ह ैलक लक्ष्मण जी मसु्कराते हुए मधरु वाणी में परशरुाम पर व्यंग्य कसते हुए कहते हैं लक ह ेमलुन आप अपन े

    अलभमान के वश में हैं। मैं इस संसार का श्रेष्ठ योिा ह ाँ। आप मझेु बार-बार अपना फरसा लििाकर डरा रह ेहैं। आपको ििेकर तो

    ऐसा लगता ह ैमानो फूाँ क से पहाड उडाने का प्रयास कर रह ेहों। अथाकत ्लजस तरह एक फूाँ क से पहाड नहीं उड सकता उसी प्रकार

    मझेु बालक समझन ेकी भलू मत लकलजए लक मैं आपके इस फरसे को ििेकर डर जाऊाँ गा।

    (ि) इहााँ कुम्हडबलतया कोउ नाहीं। जे तरजनी िलेि मरर जाहीं||

    िलेि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सलहत अलभमाना||

    उत्तर

    प्रसंग - प्रस्तुत पंलियााँ तुलसीिास द्वारा रलचत रामचररतमानस से ली गई हैं। उि पंलियों में लक्ष्मण जी द्वारा परशरुाम जी के बोल े

    हुए अपशब्िों का प्रलतउत्तर लिया गया ह।ै

    भाव - भाव यह ह ैलक लक्ष्मण जी अपनी वीरता और अलभमान का पररचय ितेे हुए कहते हैं लक हम भी कोई कुम्हडबलतया नहीं ह ै

    जो लकसी की भी तजकनी ििेकर मरुझा जाएाँ। मैंन ेफरसे और धनषु-बाण को अच्छी तरह से ििे ललया ह।ै इसललए ये सब आपस े

    अलभमान सलहत कह रहा ह ाँ। अथाकत् हम कोमल पषु्पों की भााँलत नहीं हैं जो ज़रा से छून ेमात्र से ही मरुझा जाते हैं। हम बालक

    http://www.ncrtsolutions.in/

  • अवश्य हैं परन्त ुफरसे और धनषु-बाण हमन ेभी बहुत ििे ेहैं इसललए हमें नािान बालक समझन ेका प्रयास न करें।

    (ग) गालधस ून ुकह हृिय हलस मलुनलह हररयरे सझू।

    अयमय िााँड न ऊिमय अजहुाँ न बझू अबझू||

    उत्तर

    प्रसंग - प्रस्तुत पंलियााँ तुलसीिास द्वारा रलचत रामचररतमानस से ली गई हैं। उि पंलियााँ में परशरुाम जी द्वारा बोले गए वचनों को

    सनुकर लवश्वालमत्र मन ही मन परशरुाम जी की बलुि और समझ पर तरस िाते हैं।

    भाव - भाव यह ह ैलक लवश्वालमत्र अपन ेहृिय में मसु्कुराते हुए परशरुाम की बलुि पर तरस िाते हुए मन ही मन कहते हैं लक गलध-

    पतु्र अथाकत ्परशरुाम जी को चारों ओर हरा ही हरा लििाई ि ेरहा ह ैतभी तो वह िशरथ पतु्रों को (राम व लक्ष्मण) साधारण क्षलत्रय

    बालकों की तरह ही ले रह ेहैं। लजन्हें ये गन्न ेकी िााँड समझ रह ेहैं वे तो लोह ेसे बनी तलवार (िडग) की भााँलत हैं। अथाकत ्वे

    भगवान लवष्ण ुके रुप राम व लक्ष्मण को साधारण मानव बालकों की भााँलत ले रह ेहैं। वे ये नहीं जानत ेलक लजन्हें वह गन्न ेकी िााँड

    की तरह कमज़ोर समझ रह ेहैं पल भर में वे इनको अपन ेफरसे से काट डालेंगे। यह नहीं जानत ेलक ये लोह ेसे बनी तलवार की

    भााँलत हैं। इस समय परशरुाम की लस्थलत सावन के अंधे की भााँलत हो गई ह।ै लजन्हें चारों ओर हरा ही हरा लििाई ि ेरहा ह ैअथाकत ्

    उनकी समझ अभी क्रोध व अहकंार के वश में ह।ै

    8. पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा सौंियक पर िस पंलियााँ लललिए।

    उत्तर

    तुलसीिास द्वारा लललित रामचररतमानस अवधी भाषा में ललिी गई ह।ै यह काव्यांश रामचररतमानस के बालकांड से ली गई ह।ै

    इसमें अवधी भाषा का शिु रुप में प्रयोग ििेने को लमलता ह।ै तुलसीिास न ेइसमें िोहा, छंि, चौपाई का बहुत ही सुंिर प्रयोग

    लकया ह।ै लजसके कारण काव्य के सौंियक तथा आनंि में वलृि हुई ह ैऔर भाषा में लयबिता बनी रही ह।ै तुलसीिास जी न े

    अलंकारो के सटीक प्रयोग से इसकी भाषा को और भी सुंिर व संगीतात्मक बना लिया ह।ै इसकी भाषा में अनपु्रास अलंकार, रुपक

    अलंकार, उत्प्रेक्षा अलंकार, व पनुरुलि अलंकार की अलधकता लमलती ह।ै इस काव्यााँश की भाषा में व्यंग्यात्मकता का सुंिर

    संयोजन हुआ ह।ै

    9. इस परेू प्रसंग में व्यंग्य का अनठूा सौंियक ह।ै उिाहरण के साथ स्पष्ट कीलजए।

    उत्तर

    तुलसीिास द्वारा रलचत परशरुाम - लक्ष्मण संवाि मलू रूप से व्यंग्य काव्य ह।ै उिाहरण के ललए -

    (1) बहु धनहुी तोरी लररकाई।ं

    कबहुाँ न अलस ररसकीलन्ह गोसाई|ं|

    लक्ष्मण जी परशरुाम जी से धनषु को तोडन ेका व्यंग्य करते हुए कहते हैं लक हमन ेअपन ेबालपन में ऐसे अनेकों धनषु तोडे हैं तब

    http://www.ncrtsolutions.in/

  • हम पर कभी क्रोध नहीं लकया।

    (2) मात ुलपतलह जलन सोचबस करलस महीसलकसोर। गभकन्ह के अभकक िलन परस ुमोर अलत घोर॥ परशरुाम जी क्रोलधत होकर

    लक्ष्मण से कहते ह।ै अरे राजा के बालक! त ूअपन ेमाता-लपता को सोच के वश न कर। मेरा फरसा बडा भयानक ह,ै यह गभों के

    बच्चों का भी नाश करन ेवाला ह॥ै

    (3) गालधस ून ुकह हृिय हलस मलुनलह हररयरे सझू। अयमय िााँड न ऊिमय अजहुाँ न बझू अबझू||

    यहााँ लवश्वालमत्र जी परशरुाम की बलुि पर मन ही मन व्यंग्य कसते हैं और मन ही मन कहते हैं लक परशरुाम जी राम, लक्ष्मणको

    साधारण बालक समझ रह ेहैं। उन्हें तो चारों ओर हरा ही हरा सझू रहा ह ैजो लोह ेकी तलवार को गन्ने की िााँड से तलुना कर रह े

    हैं। इस समयपरशरुाम की लस्थलत सावन के अंधे की भााँलत हो गई ह।ै लजन्हें चारों ओर हरा ही हरा लििाई ि ेरहा ह ैअथाकत ्उनकी

    समझ अभी क्रोध व अहकंार के वश में ह।ै

    10. लनम्नलललित पंलियों में प्रयिु अलंकार पहचान कर लललिए -

    (क) बालकु बोलल बधौं नलह तोही।

    अनपु्रास अलंकार - उि पंलि में 'ब' वणक की एक से अलधक बार आवलृत्त हुई ह।ै

    (ि) कोलट कुललस सम बचन ुतुम्हारा।

    1. अनपु्रास अलंकार - उि पंलि में 'क' वणक की एक से अलधक बार आवलृत्त हुई ह।ै

    2. उपमा अलंकार - कोलट कुललस सम बचन ुमें उपमा अलंकार ह।ै क्योंलक परशरुाम जी के एक-एक वचनों को वज्र के समान

    बताया गया ह।ै

    (ग) तुम्ह तौ काल ुहााँक जन ुलावा।

    बार बार मोलह लालग बोलावा||

    1. उत्प्रेक्षा अलंकार - 'काल हााँक जन ुलावा' में उत्प्रेक्षा अलंकार ह।ै यहााँ जन ुउत्प्रेक्षा का वाचक शब्ि ह।ै

    2. पनुरुलि प्रकाश अलंकार - 'बार-बार' में पनुरुलि प्रकाश अलंकार ह।ै क्योंलक बार शब्ि की िो बार आवलृत्त हुई पर अथक

    लभन्नता नहीं ह।ै

    (घ)लिन उतर आहुलत सररस भगृबुरकोप ुकृसान।ु

    बढत िलेि जल सम बचन बोल ेरघकुुलभान|ु|

    1. उपमा अलंकार

    (i) उतर आहुलत सररस भगृबुरकोप ुकृसान ुमें उपमा अलंकार ह।ै

    http://www.ncrtsolutions.in/

  • (ii) जल सम बचन में भी उपमा अलंकार ह ैक्योंलक भगवान राम के मधरु वचन जल के समान कायक रह ेहैं।

    2. रुपक अलंकार - रघकुुलभान ुमें रुपक अलंकार ह ैयहााँ श्री राम को रघकुुल का सयूक कहा गया ह।ै श्री राम के गणुों की समानता

    सयूक से की गई ह।ै

    http://www.ncrtsolutions.in/

  • पाठ 3- सवैया कववत्त

    पषृ्ठ संख्या: 23

    प्रश्न अभ्यास

    1. कवि न े'श्रीबज्रदलूह' वकसके वलए प्रयकु्त वकया ह ैऔर उन्हें ससांर रूपी मंवदर दीपक क्यों कहा ह?ै

    उत्तर

    दिे जी न े'श्रीबज्रदलूह' श्री कृष्ण भगिान के वलए प्रयकु्त वकया ह।ै कवि उन्हें संसार रूपी मंवदर का दीपक इसवलए कहा ह ैक्योंवक

    वजस प्रकार एक दीपक मंवदर में प्रकाश एिं पवित्रता का सचूक ह,ै उसी प्रकार श्रीकृष्ण भी इस संसार-रूपी मंवदर में ईश्वरीय आभा

    का प्रकाश एिं पवित्रता का संचार करत ेहैं। उन्हीं से यह संसार प्रकावशत ह।ै

    2. पहले सिैये में से उन पंवक्तयों को छााँटकर वलविए वजनमें अनपु्रास और रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ ह?ै

    उत्तर

    1. अनपु्रास अलंकार

    कवट वकंवकवन कै धवुन की मधरुाई।

    सााँिरे अगं लसै पट पीत, वहय ेहुलसै बनमाल सहुाई।

    2. रुपक अलंकार

    मंद हाँसी मिुचदं जुंहाई, जय जग-मंवदर-दीपक सनु्दर।

    3. वनम्नवलवित पंवक्तयों का काव्य-सौंदयय स्पष्ट कीवजए -पााँयवन नपूरु मंज ुबजैं, कवट वकंवकवन कै धवुन की मधरुाई।

    सााँिरे अगं लसै पट पीत, वहय ेहुलसै बनमाल सहुाई।

    उत्तर

    भाि सौंदयय - इन पंवक्तयों में कृष्ण के अंगों एिं आभषूणों की सनु्दरता का भािपणूय वचत्रण हुआ ह।ै कृष्ण के पैरों की पैजनी एिं

    कमर में बाँधी करधनी की ध्िवन की मधरुता का सनु्दर िणयन हुआ ह।ै कृष्ण के श्यामल अंगों से वलपटे पीले िस्त्र को अत्यंत

    आकषयक बताया गया ह।ै कृष्ण का स्पशय पाकर ह्रदय में विराजमान सुंदर बनमाला भी उल्लवसत हो रही ह।ै यह वचत्रण अत्यंत

    भािपणूय ह।ै

    वशल्प-सौंदयय - दिे न ेशदु्ध सावहवत्यक ब्रजभाषा का प्रयोग वकया ह।ै पंवक्तयों में रीवतकालीन सौंदयय-वचत्रण का झलक ह।ै साथ में

    अनपु्रास अलंकार की छटा ह।ै श्रृंगार - रस की सनु्दर योजना हुई ह।ै

    http://www.ncrtsolutions.in/

  • 4. दसूरे कवित्त के आधार पर स्पष्ट करें वक ऋतरुाज िसंत के बाल-रूप का िणयन परंपरागत िसंत िणयन से वकस प्रकार वभन्न ह।ै

    उत्तर

    1. दसूरे कवियों द्वारा ऋतुराज िसंत को कामदिे मानन ेकी परंपरा रही ह ैपरन्त ुदिेदत्त जी न ेऋतरुाज िसंत को कामदिे का पतु्र

    मानकर एक बालक राजकुमार के रुप में वचवत्रत वकया ह।ै

    2. दसूरे कवियों न ेजहााँ िसन्त के मादक रुप को सराहा ह ैऔर समस्त प्रकृवत को कामदिे की मादकता से प्रभावित वदिाया ह।ै

    इसके विपरीत दिेदत्त जी न ेइसे एक बालक के रुप में वचवत्रत कर परंपरागत रीवत से वभन्न जाकर कुछ अलग वकया ह।ै

    3. िसंत के परंपरागत िणयन में फूलों का विलना, ठंडी हिाओ ंका चलना, नायक-नावयका का वमलना, झलेू झलुना आवद होता

    था। परन्त ुइसके विपरीत दिेदत्त जी न ेयहााँ प्रकृवत का वचत्रण, ममतामयी मााँ के रुप में वकया ह।ै कवि दिे न ेसमस्त प्राकृवतक

    उपादानों को बालक िसंत के लालन-पालन में सहायक बताया ह।ै

    इस आधार पर कहा जा सकता ह ैवक ऋतरुाज िसंत के बाल-रूप का िणयन परंपरागत बसंत िणयन से सियथा वभन्न ह।ै

    5. 'प्रातवह जगाित गलुाब चटकारी द'ै - इस पंवक्त का भाि स्पष्ट कीवजए।

    उत्तर

    उपयुयक्त पंवक्त के द्वारा कवि न ेिसंत ऋत ुकी सबुह के प्राकृवतक सौंदयय का िणयन वकया ह।ै िसंत ऋत ुको राजा कामदिे का पतु्र

    बताया गया ह।ै बालक िसंत को प्रातःकाल गलुाब चटुकी बजाकर जगाते हैं। िसंत ऋत ुमें सिेरे जब गलुाब के फूल विलते हैं तो

    िसंत के वदिस का प्रारंभ होता ह।ै कहन ेका आशय यह ह ैवक िसंत में प्रातः ही चारों ओर गलुाब विल जाते हैं।

    6. चााँदनी रात की सुंदरता को कवि न ेवकन-वकन रूपों में दिेा ह?ै

    उत्तर

    कवि दिे न ेआकाश में फैली चााँदनी को स्फवटक (विस्टल) नामक वशला से वनकलन ेिाली दवुधया रोशनी के समतुल्य बताकर

    उसे संसार रुपी

    मंवदर पर वछतराते हुए दिेा ह।ै कवि दिे की नज़रें जहााँ तक जाती हैं उन्हें िहााँ तक बस चााँदनी ही चााँदनी नज़र आती ह।ै यूाँ प्रतीत

    होता ह ैमानों धरती पर दही का समदु्र वहलोरे ले रहा हो।उन्होंन ेचााँदनी की रंगत को फ़शय पर फ़ैले दधू के झाग़ के समान तथा

    उसकी स्िच्छ्ता को दधू के बलुबलेु के समान झीना और पारदशी बताया ह।ै

    7. 'प्यारी रावधका को प्रवतवबंब सो लगत चंद' - इस पंवक्त का भाि स्पष्ट करत ेहुए बताएाँ वक इसमें कौन-सा अलंकार ह?ै

    उत्तर

    भाि: कवि अपन ेकल्पना में आकाश को एक दपयण के रूप में प्रस्तुत वकया ह ैऔर आकाश में चमकता हुआ चन्द्रमा उन्हें प्यारी

    http://www.ncrtsolutions.in/

  • NCERT Solutions For Class 10 HindiKshitij

    Publisher : Faculty Notes Author : Panel Of Experts

    Type the URL : http://www.kopykitab.com/product/11188

    Get this eBook

    50%OFF

    http://www.kopykitab.com/index.php?route=product/product&product_id=11188

    NCERT Solutions For Class 10 Hindi Kshitij