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  • if=kdk osQ ckjs easप्राथमिकमिक्षक राष्ट्रीय शकै्षिक अनसुंधान और प्रक्शषिण पररषद ्की एक त्ैमाक्सक पक्त्का ह।ै इस पक्त्का का मखुय उद्देशय ह,ै क्शषिकों और संबद्ध प्रशासकों तक कें द्रीय सरकार की क्शषिा नरीक्तयों सदे संबंक्धत जानकाररयाँ पहुचँाना, उनहें कषिा में प्रयोग में लाई जा सकनदे वालरी सार्थक और संबद्ध सामग्री प्रदान करना और ददेश भर कदे क्वक्भनन कें द्ों में चल रहदे पाठ्यक्रमों और काय्थक्रमों आक्द कदे बारदे में समय-समय पर अवगत करातदे रहना। क्शषिा जगत में होनदे वालरी गक्तक्वक्धयों पर क्वचारों कदे आदान-प्रदान कदे क्लए भरी यह पक्त्का एक मचं प्रदान करतरी ह।ै

    पक्त्का में प्रकाक्शत लदेखों में वयक्त क्कए गए क्वचार लदेखकों कदे अपनदे होतदे हैं। अत: यह आवशयक नहीं ह ैक्क प्रतयदेक क्चतंन में पररषद ्की नरीक्तयों को हरी प्रसततु क्कया गया हो। इसक्लए पररषद ्का कोई उत्तरदाक्यतव नहीं ह।ै

    © 2017. पत्रिका में प्रकात्शत लेखों का रा.शै.अ.प्र.प. द्ारा सरावात्िकार सरुत्षित है, रा.शै.अ.प्र.प. की पूरवा अनुमत्त के त्बना, लेखों का पुनमुवाद्रण त्कसी भी रूप में मान्य नहीं होगा।

    मूल्य एक प्रत्त ` 65.00 रात्रवाक ` 260.00

    एन.सी.ई.आर.टी. के प्रकाशन प्रभाग के कायावालय

    एन.सरी.ई.आर.टरी. कैं पसश्री अरक्वंद माग्थनयी त्िल्ली 110 016 फोन : 011-26562708

    108, 100 फीट रोडहोसकदे रदे हललरी एक्सटेंशनबनाशकंररी ।।। सटदेजबेंगलुरु 560 085 फोन : 080-26725740

    नवजरीवन ट्सट भवनडाकघर नवजरीवनअहमिाबाि 380 014 फोन : 079-27541446

    सरी. डब्लययू. सरी. कैं पसधनकल बस सटटॉप कदे सामनदेपक्नहटरीकोलकाता 700 114 फोन : 033-25530454

    सरी. डब्लययू. सरी. कटॉम्पलैक्समालरीगाँवगुराहाटी 781 021 फोन : 0361-2674869

    सलाहकार सत्मत्त मनदिेक, एन.सरी.ई.आर.टरी. : हृक्षकदे श सदेनापक्त अध्यक्ष, डरी.ई.ई. : अनयूप कुमार राजपयूत अध्यक्ष, प्रकाशन प्रभाग : एम. क्सराज अनवर

    सपंािकीय सत्मत्त अकरादमिकसंपरादक : पद्म्ा यादव उषा शमा्थ िखु्यसंपरादक : शवदेता उपपल

    प्रकाशन मंडल िखु्यवयरापरारप्बंधक : गौतम गांगलुरी िखु्यउतपरादनअमधकरारी : अरुण क्चतकारा (प्रभाररी)

    संपरादक : रदेखा अग्वाल सहरायकउतपरादनअमधकरारी : जहान लाल

    आररणअक्मत श्रीवासतव

    त्िरिमखुय पषृ्ठ − कें द्रीय क्वद्ालय, एन.सरी.ई.आर.टरी., नयरी क्दललरी

    अकं्तम पषृ्ठ − कें द्रीय क्वद्ालय, एन.सरी.ई.आर.टरी., नयरी क्दललरी

    अध्यषि, प्रकाशन प्रभाग द्ारा राष्ट्रीय शकै्षिक अनसुंधान और प्रक्शषिण पररषद,् श्री अरक्वंद माग्थ, नयरी क्दललरी 110 016 कदे क्लए प्रकाक्शत तरा चनद्प्रभयू ऑफसदेट क्पं्रक्टंग वक्स्थ प्रा. क्ल., सरी-40, सैक्टर 8, नोएडा 201 301 द्ारा मकु्द्त।

    Cover 2&3 - Jan 20117.indd 2 11/28/2017 4:54:58 PM

  • 1‘बरखा’ क्रमिक पसु्तकिाला — जेंडर के िदु्े

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    इस अंक में

    सवंाद 3

    लेख

    1. ‘बरखा’ क्रमिक पसु्तकिाला उषा शिामा 5 जेंडर के िदु्े

    2. लैंमिक सिान्ता की अवधारणा और िमिला मशक्षक मित्ा मसंि 16 की भमूिका

    3. कक्षा िें बोल कर पढ़ने से सिझने ्तक सावन कुिारी 25

    4. मिजभुारमा बधकेा की मश क्षण पद्धम्त याँ मत्भवुन मिश्ा 28 प्ाथमिक मश क्षा के मवशषे संदभमा िें सीिा मसंि

    5. पवूमा प्ाथमिक मश क्षा पद्ि्ा यादव 39 भार्तीय संदभमा िें आवशयक्ता

    6. पवूमा बालयावसथा िें सािामजक संवेिातिक मवकास सनैुना मित्तल 51

    7. प्ारंमभक स्तर पर नाटकों के िाधयि से भाषा-मशक्षण ििेराज अली 55

    8. भाषा के मवकास िें कठप्ुतली के खलेों का िित्तव पनूि 60

    9. मशक्षा िें सिूना और जनसंिार प्रौद्ोमिकी का उपयोि पारस यादव 65

    बाल कहानी

    10. साँप और िींटी मवपलु 70

    बालमन कुछ कहता है

    11. िझु ेसकूल जाना अच्ा लि्ता ि ै मदलशाद 72

    ISSN 0970-9312

    प्ाथममक मिक्षकवर्ष 41 अंक 1 जनवरी 2017

    Chapters Jan- 2017.indd 1 11/28/2017 5:05:22 PM

  • फाम्ष 4(मनयि 8 दमेख ए)प्ाथमि क मशक्षक

    1. प्काशन सथान नयी मदलली

    2. प्काशन अवमध त्ैिामस क

    3. िदु्रक का नाि अमभषके जैन िन्द्रप्भ ूऑफ़सेट मपं्मटंि वरसमा प्ा.मल. (रया भार्त का नािरर क ि?ै) िाँ (यमद मवदशेी ि ै्तो िलू दशे का प्ता लाि ूनिीं िो्ता प्ता सी–40, सैरटर–8, नोएडा 201 301

    4. प्काशक का नाि एि. मसराज अनवर (रया भार्त का नािरर क ि?ै) िाँ (यमद मवदशेी ि ै्तो िलू दशे का प्ता लाि ूनिीं िो्ता प्ता राष्टीय शमैक्षक अनसुंधान और प्मश क्षण पररषद,् श्ी अरमव ंद िािमा नयी मद लली 110 016

    5. अकादमिक िखु्य संपादक का नाि पद्ि्ा यादव (रया भार्त का नािरर क ि?ै) िाँ (यमद मवदशेी ि ै्तो िलू दशे का प्ता लाि ूनिीं िो्ता प्ता राष्टीय शमैक्षक अनसुंधान और प्मश क्षण पररषद,् श्ी अरमव ंद िािमा नयी मद लली 110 016

    6. उन व्यमर्त यों के नाि व प्ेत जो अधयक्ष, प्काशन प्भाि सिािार-पत् के सवािी िों ्तथा राष्टीय शमैक्षक अनसुंधान और प्मश क्षण सिस्त पूंजी के एक प्म्त श्त से पररषद,् श्ी अरमव ंद िािमा, नयी मद लली 110 016 अमध क के साझदेार या मिससेदार िों (िानव संसाधन मवकास ितं्ालय की सवायत्त संसथा)

    िैं, एि. मसराज अनवर अधयक्ष, प्काशन प्भाि ए्तद ्द्ारा घोमष्त कर्ता िू ँमक िरेी अमधक्ति जानकारी एवं मवशवास के अनसुार ऊपर मलख ेमववरण सतय िैं।

    एि. मसराज अनवरप्रकाशन प्रभाग

    Chapters Jan- 2017.indd 2 11/28/2017 5:05:23 PM

  • संवाद

    जेंडर सिान्ता के क्षेत् िें मशक्षा िितवपूण्मा भमूिका मनभा सक्ती ि।ै जेंडर सिान्ता का ि्तलब यि निीं िोना िामिए मक सत्ी और परुुष एकसिान िो जाए,ँ बमलक यि िोना िामिए मक मवकास के अवसर सत्ी या परुुष िोने पर आधारर्त न िों। जेंडर सं बंधी भदेभाव और रससे जडुी रूमढ़ वादी िानमसक्ता एक जमटल िनुरौ्ती ि।ै रसे सिाप््त करने के मलए यि ज़रूरी ि ैमक िि बिपन से िी बचिों को संवेदनशील बनाए।ँ पढ़ना-पढ़ाना, सीखना-मसखाना यि कक्षा का िितवपूण्मा मिससा ि।ै पढ़ना और सिझना दोनों आवशयक िैं। दसूरे शबदों िें पढ़ना िी सिझना ि।ै कई मशक्षकों का िानना ि ैमक कक्षा िें बचिों द्ारा बोलकर पढ़ना, पढ़ना मसखाने के मलए बिु्त उपयोिी ्तरीका ि।ै रससे बचि ेदखेकर, बोलकर और सनुकर पढ़ना सीख्ेत िैं और उन्िें पढ़ना सीखने के साथमाक अवसर मिल्ेत िैं। मिजभुाई बधकेा एक ििान मशक्षामवद ्थे। मिजभुाई बधकेा ने 20वीं श्ताबदी के आरंमभक दशकों िें मशक्षा के क्षेत् िें िजुरा्त िें अनठेू प्योि मकए। आज मशक्षा बाल-कें मद्र्त िोने की ओर अग्रसर ि।ै रस मदशा िें मिजभुाई बधकेा ने सालों पिले प्योि मकए थे जो उनकी पसु्तक ददवासवपन से िालिू िो्ेत िैं। उनका बाल-सामितय भी व्यापक था। बचिों के प्म्त उनकी सिझ उनिें साफ़ झलक्ती थी। मिजभुाई बधकेा िाररया िांटेसरी के कायमा से बिु्त प्भामव्त थे। बाल मवकास और मशक्षा िें उनकी काफ़ी रुमि थी। उन्िोंने 1920 िें भावनिर िें ‘बाल िमंदर’ पवूमा प्ाथमिक मवद्ालयों की सथापना की।

    जन्ि से आठ वषमा की आय ुकी मशक्षा व दखेभाल को प्ारंमभक बाल दखेभाल एवं मशक्षा या पवूमा प्ाथमिक मशक्षा किा जा्ता ि।ै आज रस ्तथय को अब सभी सवीकार कर्ेत िैं मक बचिों के सवाांिीण मवकास के मलए, मवशषे रूप से अपवंमि्त विमा के बचिों के मवकास के मलए प्ारंमभक बाल दखेभाल एवं मशक्षा एक िितवपूण्मा साधन ि।ै राष्टीय मशक्षा नीम्त 1986 ने प्ारंमभक बाल दखेभाल एवं मशक्षा को व्यमर्ततव के सवाांिीण मवकास ्तथा प्ाथमिक कक्षाओ ंिें बचिों के नािांकन और अवधारणा क्षि्ता िें वमृद्ध करने वाले िितवपूण्मा साधन के रूप िें सवीकार मकया ि।ै प्ारंमभक बाल दखेभाल एवं मशक्षा का उद्शेय संपणूमा बाल मवकास करना ि।ै रसके मलए आवशयक ि ैमक बाल मशक्षा िें सािामजक एवं संवेिातिक मवकास, शारीररक मवकास, िानमसक मवकास, भाषा मवकास रतयामद के मलए अनभुव

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  • 4 प्राथदिक दशक्षक / जनवरी 2017

    सम्िमल्त िों। नाटक, कठप्ुतली के खले, किामनयाँ, कमव्ताए ँन केवल भाषायी मवकास कर्ती िैं बमलक बचिों को पढ़ने के मलए ्ैतयार कर्ती िैं। आज मशक्षा के क्षेत् िें काफ़ी प्योि मकए जा रि ेिैं। बढ़्ती ्तकनीकी समुवधाओ ंके साथ अब मशक्षा िें भी संिार-साधनों का प्योि िो रिा ि,ै मजससे न केवल सीखना आसान िो रिा ि ैबमलक अब मशक्षा, मक्ताबों, मवद्ालयों और अधयापकों ्तक िी सीमि्त निीं रिी ि,ै रटंरनेट ने भी मशक्षा का मवस्तार कर मदया ि।ै आजकल दिदजटल इदंिया के ्ति्त ई-पाठशाला, ई-बस्ता आमद की बा्त िो रिी ि।ै रन्िीं सारे मवषयों से संबंमध्त लेख प्स्त्ुत प्मत्का िें शामिल मकए िए िैं। आशा ि ैमक आपको यि अकं पसंद आएिा।

    शभुकािनाओ ंसमि्त... अकाददिक संपादक

    Chapters Jan- 2017.indd 4 11/28/2017 5:05:23 PM

  • भाषा और जेंडर के िदु्े बेिद अिि िैं। वि रसमलए रयोंमक भाषा अपने िाधयि से बिु्त कु् संपे्मष्त कर्ती ि ैऔर वि अपने ‘बिाने’ ऐसा बिु्त कु् ‘किने’ की भी सािथयमा रख्ती ि ैजो स्तिी ्तरौर पर आसानी से नज़र आने वाला निीं ि।ै ‘पंमर्तयों के बीि पढ़ना’ रसी को कि्ेत िैं। जेंडर संबंधी संवेदनशील्ता या असंवेदनशील्ता भी रस भाषा के िाधयि से ‘किी’ जा्ती ि।ै एन.सी.ई.आर.टी. द्ारा मवकमस्त ‘बरखा’ क्रमिक पुस्तकिाला बचिों िें पठन कुशल्ता, मिं्तन-क्षि्ता का मवकास और मवमभन्न िदु्ों के संदभमा िें अपने ‘मिससे’ का अथमा िढ़ने की मदशा प्शस्त कर्ती ि।ै प्स्तु्त लेख जेंडर संबंधी मविशमा का मवस्तार ि ैमक ‘बरखा’ क्रमिक पुस्तकिाला की िालीस किामनयों िें जेंडर की व्यामप््त मकस प्कार िुई ि ैऔर मकस प्कार से मकसी जेंडर मवशेष से जुडी रूमढ़वामद्ता को ्तोडने का सफल प्यास मकया िया िै — रसकी जाँि करने की कोमशश की िई ि।ै बबली, जी्त, काजल, िाधव, रानी, जिाल, मिली आमद सभी पात्ों की अमसि्ता और पििान को बरकरार रखने की संवेदना का सपंदन रन सभी किामनयों िें बखबूी मकया जा सक्ता ि।ै सिावेशी मशक्षा के संदभमा िें जेंडर संवेदनशील्ता को ‘बरखा’ क्रमिक पुस्तकिाला िें टटोलने का प्यास रस लेख िें मकया िया ि।ै

    1

    ‘बरखा’ क्रममक पुसतकमाला जेंडर के मुदे्

    उषा शिामा*

    पषृ्ठभूमम ‘मशक्षा का अमधकार’ ने बचिों की मशक्षा को अनेक प्कार से प्भामव्त मकया ि।ै उन्िें शाला िें दामखल िोने का अमधकार मदया और रस बिाने उन्िें सिाज की िखु्य धारा िें शामिल िोने का अमधकार भी मिल िया। ििारे संमवधान िें भी एसेे अनेक प्ावधान िैं जो सिान्ता का सिथमान कर्ेत िैं और रस संबंध

    िें अमधकार भी द्ेेत िैं। धिमा, मलंि, विमा, वंश, जाम्त, भाषा आमद के आधार पर सभी को सिान्ता का अमधकार ि।ै रस अमधकार की ‘उपमसथम्त’ और ‘अनपुमसथम्त’ दोनों के िी उदािरण ििें दखेने को मिल्ेत िैं। लडमकयों और मसत्यों को भी रस अमधकार के ्ति्त अनेक प्कार से लाभ पिुिँा ि।ै उनकी मसथम्त िें भी सकारातिक पररव्तमान आया ि।ै सिाज के िर क्षते्

    * प्ररोफ़े सर, प्ारंमभक मशक्षा मवभाि, एन.सी.ई.आर.टी., नयी मदलली

    लेख

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  • प्राथमिक मिक्षक/ जनवरी 20176

    िें उनकी उपमसथम्त और उपलमबध के प्तयक्ष दशमान िो्ेत िैं। लेमकन मफर भी अनेक बार ऐसे उदािारण दखेने को मिल्ेत िैं मजनसे रस बा्त के संके्त मिल्ेत िैं मक लडमकयों और मसत्यों के प्म्त ििारी सोि अभी भी नकारातिक, संकीणमा और मप्डी िुई ि।ै उन्िें मकन्िीं कायमा मवशषे ्तक सीमि्त कर दनेा अथवा उनसे मकसी व्यविार मवशषे की अपेक्षा करना रसी संकीणमा्ता के संके्त िैं। र्तना िी निीं ििारी अनेक सािामजक िान्य्ताए,ँ परंपराए ँऔर रीम्त-ररवाज़ रस ्तरि के िैं मजनिें जेंडर संबंधी भदेभाव झलक्ता ि।ै लडके-लडमकयों के बीि काययों का मवभाजन भी रसी संकीणमा सोि का पररणाि ि।ै यि भदेभाव और रस भदेभाव को प्तयक्ष्तः व्यर्त करने वाली भाषा, मजसे िि सिज िानकर उस पर धयान निीं द्ेेत, लडमकयों के सिावेशन को बामध्त कर्ती ि।ै रस ओर धयान दनेे और रसे पररवम्तमा्त करने की आवशयक्ता ि।ै जेंडर संबंधी भदेभाव और रससे जडुी रूमढ़ वादी िान्य्ताए,ँ िानमसक्ता एक जमटल िनुरौ्ती ि।ै रन्िें सिाप््त करने के मलए मशक्षा, मशक्षाशासत् और रनसे संबद्ध पठन सािग्री को आधार बनाया जा सक्ता ि।ै पाठ्यियामा, पाठ्यक्रि ्तथा पाठ्यपसु्तकों िें भी रस बा्त का मवशषे रूप से धयान रखा जा रिा ि ैमक जेंडर संबंधी सवेंदनशील्ता का मवकास करने वाली मवषय सािग्री का सिावेश रनिें मकया जाए। रस संदभमा िें भाषा एक अिि िदु्ा ि,ै रयोंमक अनेक बार पाठ्य सािग्री की भाषा िी जेंडर संबंधी भदेभाव को प्तयक्ष अथवा अप्तयक्ष रूप से संपे्मष्त कर्ती ि ैऔर अपना ििरा प्भाव ्ोड जा्ती ि।ै उस मसथम्त िें सिाज का एक विमा सवयं को असिावेमश्त ििससू कर्ता ि।ै रस ओर

    धयान मदए जाने की और कु् ठोस कदि उठाने की आवशयक्ता ि।ै

    िि जान्ेत िैं मक बचिों की दमुनया िें िी एक विमा ऐसा भी ि ैजो मकन्िीं कारणों से सििूी मशक्षा-प्मक्रया से बािर ि ैया मफर बािर िो जा्ता ि।ै यि विमा ि ैउन बमचियों का जो सिाज के पटल पर किीं मकसी कोने िें अपना सथान पा्ती िैं। उनकी खमूबयों और उनके िन के भी्तर की उललमस्त उििं को भी सथान, स्िान दनेे की आवशयक्ता ि।ै बचिों के ऐसे विमा को भी मशक्षा की िखु्य धारा िें सिामवष्ट करने की ज़रूर्त ि।ै एक लंबे सिय ्तक सिावेशी मशक्षा का दायरा केवल मनःशर्त या उन बचिों ्तक सीमि्त था मजन्िें मकसी प्कार की कोई सिसया ि।ै कु् सिय बाद सिावेशी मशक्षा के सदंभमा िें िोने वाली ििामाओ ंिें मवशषे आवशयक्ता वाले बचिों का मज़ क्र आने लिा। लेमकन रन्िें भी मनःशर्त बचिों के साथ जोडकर दखेा िया। जबमक सभी बचि ेमवशषे िो्ेत िैं और उन सभी की आवशयक्ताए ँभी मवशषे िी िो्ती िैं। मफर मवशषे आवशयक्ता वाले बचि े— रस संबोधन की आवशयक्ता िी किाँ रि जा्ती ि।ै सिावेशन सभी बचिों के सिावेशन की ििामा कर्ता ि।ै रस संदभमा िें ििारी पाठ्यपसु्तकें और मवमभन्न प्कार की पठन सािग्री मकस प्कार सभी बचिों के सिावेशन की आवशयक्ता को संबोमध्त कर्ती िैं — यि शोध का मवषय ि।ै

    बच्े और भारा कभी मकसी ्ोटे बचि ेके पास बैठकर मसफ़मा उसकी बा्तें सनुना और बा्तें किने के ्तरीके को ‘मनिारना’ सिििु बचिों के भाषा-संसार का दरवाज़ा खोल

    Chapters Jan- 2017.indd 6 11/28/2017 5:05:23 PM

  • 7‘बरखा’ क्रमिक पसु्तकिाला — जेंडर के िदु्े

    द्ेता ि।ै बचिों की अपनी भाषा, अपने शबद िो्ेत िैं जो उनके मलए काि की िीज़ िो्ेत िैं। एक व्यमर्त जो बचिों की भाषा से ििरा पे्ि रख्ता िै — उसके मलए ्तो यि एक अनिोल कंुजी ि ै जो बचिों के भाषा संसार का रिसयोद्घ्ाटन कर्ती ि।ै मकसी भी उम्र के बचिों के शबदों िें एक प्कार की आतिीय्ता और लिाव म्पा िो्ता ि,ै रयोंमक वि सवयं उनका मनिामाण कर्ता ि,ै अपने ्तरीके से रस्ेतिाल कर्ता ि।ै बचिों की भाषा िें आप-िि वे सभी रंि दखे सक्ेत िैं मज्तने रंिों से सराबोर उनकी अपनी दमुनया िो्ती ि।ै उनकी दमुनया के ये मवमवध रंि उनकी बा्तों िें भी नज़र आ्ेत िैं जब वे दादी की िोद िें जा म्पने की बा्त कर्ेत िैं या िािा से पैसे लेकर िसुकी खरीदने की बा्त कर्ेत िैं। उनकी दमुनया िें ्तो पडोस के िदं ूसे आसिान िें नज़र आने वाले िाँद की बा्तें िो्ती िैं, नानी की किानी, िािी की साडी का ्ंतब,ू दीदी की मक्ताबें, िोट खाए ्तो्ेत और मपलले, बाररश के पानी िें ्पाका िारना — और भी न जाने रया-रया! िि और आप ्तो केवल उन ल्िों के साक्षी िी बन सक्ेत िैं जब बचि ेअपनी नन्िीं-सी दमुनया के बारे िें बडी-बडी बा्तें कर्ेत िैं। बचि ेजब अपनी मज़ंदिी के ्ुए-अन्ुए पिलओु ंके बारे िें ‘बडों’ की सी बा्तें कर्ेत िैं ्तो उनके िन-िमस्तष्क िें ििलकदिी कर्ेत िुए मविारों की झलक भी मिल जा्ती ि।ै रसका प्िखु कारण यि ि ैमक भाषा और मविार के बीि बिु्त ििरा संबंध िो्ता ि।ै एक ओर ्तो भाषा ििारे मविारों को बनुने का काि कर्ती ि ै्तो दसूरी ओर भाषा ििारे उन मविारों की बनुावट िें मवस्तार करने, उनिें कु् नया जोडने या फेरबदल करने का काि

    कर्ती ि।ै रन सब िें ििारे पवूमा अनभुवों का सबसे बडा योिदान िो्ता ि।ै सिदृ्ध अनभुवों की रसी पूँजी के आधार पर िि जीवन-जि्त को अथमा द्ेेत-ले्ेत िैं। यिी कारण ि ैमक एक किानी अलि-अलि संदभयों िें, अलि-अलि पाठकों के मलए अलि अथमा या िायने रख्ती ि।ै पे्ििदं की किानी ‘दो बैलों की कथा’ एक नन्ि ेपाठक के मलए ििज़ दो बैलों की किानी ि।ै लेमकन एक वयसक पाठक के मलए वि किानी सव्ंतत््ता संग्राि िें भािीदार ‘नरि दल’ और ‘िरि दल’ का प््तीकातिक मववरण ि।ै ऐसे िी उनकी किानी ‘बडे भाई सािब’ भी दखेी जा सक्ती ि।ै बचिों की िमैसय्त से पढ़ेंिे ्तो बिु्त िज़ेदार लिेिी और कई जिि बाल सलुभ सवाल भी अनभु्ूत िोंिे। लेमकन जब रसे वयसक और उसिें भी मशक्षक की िमैसय्त से पढ़ेंिे ्तो यिी किानी िरौजदूा मशक्षा-व्यवसथा पर कई प्िार और सवाल खडे कर्ेत िुए बेिद िभंीर मविशमा से ओ्त-प्ो्त लिेिी। ऐस ेअनेक उदािरण ििारे-आपके आस-पास मिल जाएिँे जो रस मबंद ुका सिथमान करेंिे मक अलि-अलि पाठ्य-सािग्री अलि-अलि रूपों िें ििारे िन-िमस्तष्क को प्भामव्त कर्ती ि।ै बचि ेरसका अपवाद निीं िैं! शबदों का जाद ू्तो िर शख्स के मसर िढ़कर बोल्ता िी ि!ै

    भारा और जेंडर सवेंदनिीलताभाषा और जेंडर के िदु् ेबेिद अिि िैं। वि रसमलए रयोंमक भाषा अपने िाधयि से बिु्त कु् संपे्मष्त कर्ती ि ै और वि अपने ‘बिाने’ ऐसा बिु्त कु् ‘किने’ की भी सािथयमा रख्ती ि ैजो स्तिी ्तरौर पर आसानी से नज़र आने वाला निीं ि।ै ‘पंमर्तयों के

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    बीि पढ़ना’ रसी को कि्ेत िैं और पाठक की यिी कुशल्ता उसे बिु्त कु् ऐसा ‘सिझा’ जा्ती ि ैजो वास्तव िें ‘सिझने-परखने’ लायक ि।ै जेंडर संबंधी संवेदनशील्ता या असंवेदनशील्ता भी रस भाषा के िाधयि से ‘किी’ जा्ती ि।ै आरए, कु् ऐसे िी उदािरणों को ले्ेत िैं जिाँ मकसी सामिमतयक कृम्त अथवा पाठ्य-सािग्री की भाषा अपना रंि ्ोड्ती ि ैऔर उस भाषा का जाद ूििारे मविारों को िाि-ेबिाि ेप्भामव्त कर्ता ि ै—“कल हिाऱे यहाँ इसंप़ेकटर था। िैंऩे खबू अच ़्े जवाब ददए तरो इसंप़ेकटर साहब ऩे िझु़े शाबाशी दी और सर ऩे भी!”“शाबाश! लरो हिऩे भी शाबाशी द़े दी!” और पापा ऩे उसकी पीठ थपथपा दी। “और ख़ेल कौन-कौन-स़े ख़ेलत़े हरो?”“ताश, लिूरो, कैरि...”“कया कहा, ताश, लिूरो, कैरि — धत़्ेऱे की! यह भी कोई खेल हुए, लड़ककयों के। करिकेट खेलो, हॉकी खेलो, कबड्डी खेलो, लड़कों वाले खेल खेलो। घर से बाहर किकलकर भागिे-दौड़िे वाले...अच्ा, “ प़ेड़ पर चढ़ सकत़े हरो?...”“तैरना सीखा? ...”“साइदकल चलाना आता ह?ै...”“छी-छी, इतिे बडे़ होकर भी मममी के कबिा िहीं रह सकते। यह गंदी बात है, बेटे! अब तमुहें िमिी क़े दबना रहऩे की आदत िालनी चादहए। तुम कया लड़की हो जो मममी से किपटे-किपटे किरते हो?”

    (आपका बंटी – िन्न ूभडंारी)काकी का नाि जनकदलुारी ह।ै परूब िें काकी

    चाची करो कहत़े हैं। ... काकी की शादी पहल़े कहीं और हुई थी। आदिी उिर िें थरोड़ा पकका था। पू् ऩे

    पर काकी ऩे बताया — “उदिर तरो रह ैहिका गरोद िें लैक़े दखलावै क़े और करैं सक-सबुहा! कौनरो सखु नहीं जाना! जैस़े कनता घर रह़े वैस़े रह़े दबद़ेस। दाना न घास खरहरा दरोनों जनू। हि रहैं िजबूत — भादग आए िायक़े । बाप ऩे सिझ दलया, बरोल़े — “ तुम कबकटया िहीं बेटवा हो, घर का काम करो और रहौ ... ररशत़ेदार जरो खार खाए बैठ़े थ़े, थाऩेदार करो कु् सुँघाया — सरकार इसकी ब़ेटी भी जादलि ह,ै नाक कटाकर िायक़े िें किाती ह।ै थाऩेदार बरोला — कयों जी, बलुाओ जनकदलुारी करो — द़ेखें कैसी ह।ै दसपाही घर पहुचँ़े तरो काकी ऩे कहा —“थाऩेदार होंग़े अपऩे घर क़े । ....” दसपादहयों ऩे कहा —“जयादा नखरा न बघाररो, चार हटंर पड़़ेगा तरो नशा दहरन हरो जाएगा। सीधी िला िहीं तो झोटा पकड़कर ले जाएगेँ।” (जनकदलुारी हिाऱे गाँव की – मवशवनाथ मत्पाठी)्रोटी-सी लड़की थी वह। करीब दस साल की। एक बड़़े साँप का पी्ा कर रही थी। िैं उसक़े पी ़्े भागी और उसकी चरोटी पकड़कर उस़े ल़े आई। “ना, िरोइना ना” िैं उस पर दचललाई।“कयूँ?” उसऩे पू् ा —

    “कयूँ? कयूँ दू ँ उस़े धनयवाद? उसकी गरोशाला धरोती हू,ँ हजारों काि करती हू।ँ उसक़े दलए कभी धनयवाद द़ेता ह ैिझु़े? िैं कयूँ उस़े धनयवाद दू?ँ”

    िरोइना अपऩे काि पर भाग गई। खीरी सर दहलाती रह गई। दिर िझुस़े बरोली — “ऐसी लड़की िहीं देखी कभी। बस कयय?ँ कयय?ँ की रट लगाए रहती है।”गाँव क़े परोसटिासटर ऩे तरो उसका नाि ही ‘कयूँ-कयूँ ्रोरी’ रख ददया ह।ै“िरोइना िझु़े तरो अच्ी लगती ह।ै” िैंऩे खीरी स़े कहा। —“कयय ँ मुझे बाबय की बकररयाँ िरािी पड़ती हैं? उसके लड़के खुद कयय ँिहीं िराते?” ि्दलयाँ बरोल

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    कयूँ नहीं पातीं? अगर कई ताऱे सरूज स़े बड़़े हैं तरो व़े इतऩे ्रोट़े कयूँ नजर आत़े हैं?

    (कयूँ-कयूँ ्रोरी– ििाशवे्ता दवेी)रन ्तीनों उदािरणों िें यि साफ़ झलक्ता ि ैमक

    ्तीनों िें लडमकयों या सत्ी विमा की जो ्मव उकेरने की कोमशश की िई ि ै वि ििारे िानस पटल पर अलि-अलि प्भाव ्ोड्ती ि।ै पिले उदािरण िें लडके और लडकी के बीि की ििरी खाई सपष्ट रूप से नज़र आ्ती ि।ै लडके और लडमकयों द्ारा खलेे जाने वाले खलेों िें भी ‘रलीयर कट मवभाजन’ नज़र आ्ता ि।ै लडके बािर खलेे जाने वाले खले खले्ेत िैं, पेड पर िढ़्ेत िैं, ्ैतर्ेत िैं जबमक लडमकयाँ घर के भी्तर खलेे जाने वाले खले, जसेै —‘ताश, लिूरो, कैरि’ खले्ती िैं। बंटी के पापा उससे कि्ेत िैं —‘दरिक़े ट ख़ेलरो, हॉकी ख़ेलरो, कबि्िी ख़ेलरो, लड़कों वाल़े ख़ेल ख़ेलरो। घर स़े बाहर दनकलकर भागऩे-दौड़ऩे वाल़े---’ यि साफ़-साफ़ घोषणा पाठकों के िन पर अपना प्भाव ्ोड्ती ि।ै र्तना िी निीं बंटी के पापा उससे अपनी िाँ से दरू सोने, रिने की बा्त कि्ेत िैं और साथ िी उनका यि किना मक ‘ तिु कया लड़की हरो जरो िमिी स़े दचपट़े-दचपट़े दिरत़े हरो?’ लडमकयों के प्म्त सिाज िें व्याप््त रूमढ़वादी और जड िानमसक्ता का पररिायक ि।ै एक ्ोटा बचिा अपनी िाँ से लाड-दलुार का भी िकदार निीं ि?ै रया लडके और लडकी अपनी िाँ के प्म्त अपने लिाव को अलि-अलि ्तरीके से व्यर्त करने के मलए मववश िैं? रया रन दोनों के िानदडंों िें अमनवायमा्तः कोई अ्ंतर ि?ै ‘ ् ी-्ी’, ‘ गंदी बात’, ‘ दचपट़े-दचपट़े दिरना’ आमद ऐसे भाषा-प्योि िैं जो लडमकयों के प्म्त एक खास ्तरि के ‘पवूामाग्रि को खलेु

    ्तरौर पर व्यर्त कर्ेत िैं। भाषा के िाधयि से व्यर्त िोने वाला लडमकयों के प्म्त यि ‘दभुामाव’ सिाज िें बरुी ्तरि से व्याप््त ि ैऔर लडमकयाँ रस ‘दभुामाव’ से अमभशप््त िैं।

    दसूरे उदािरण िें व्यर्त भाव मक ‘तिु दबदटया नहीं ब़ेटवा हरो, घर का काि कररो और रहौ--’ साफ़ ्तरौर पर लडके और लडमकयों के बीि के अ्ंतर की घोषणा कर्ता ि।ै यमद सिाज िें लडके और लडकी सिान िो्ेत ्तो यि वारय िी बेिानी िो्ता। लेमकन प्संिवश आए रस वारय ने जेंडर से जडेु अनेक जमटल सवालों को ििारे सिक्ष रखा ि।ै जनकदलुारी अपने िायके यानी ‘मप्ता के घर’ वापस आ्ती ि ै्तो मप्ता कि्ेत िैं मक ‘्तिु मबमटया निीं बेटवा िो’। रसका सीधा-सा मनमि्ताथमा यि ि ैमक बेटे को मववाि के बाद अपने घर िें रिने का अमधकार ि,ै लेमकन बेटी को मववाि के बाद अपने घर िें रिने का अमधकार निीं ि।ै उसके द्ारा सवयं अपने घर िें रिने को ‘वैध’ ब्ताने के मलए उसे ‘बेटा’ घोमष्त करना ज़रूरी ि।ै र्तना िी निीं जनकदलुारी के मलए प्यरु्त ये वारय भी दशामा्ेत िैं मक मसत्यों के प्म्त मकस प्कार का रवैया रिा ि—ै कयों जी, बलुाओ जनकदलुारी करो—द़ेखें कैसी ह।ै/ दसपादहयों ऩे कहा— “जयादा नखरा न बघाररो, चार हटंर पड़ेंगा तरो नशा दहरन हरो जाएगा। सीधी चला नहीं तरो झरोटा पकड़कर ल़े जाएँग़े।” ये वारय मकसी भी दृमष्ट से िररिापणूमा निीं कि ेजा सक्ेत। मकसी खास विमा के मलए रस ्तरि के भाषा-प्योि उस विमा को िामशए पर लाकर ‘्ोड’ द्ेेत िैं।

    रसी ्तरि ्तीसरे उदािरण िें िोरना का िररत् एक ऐसी लडकी के रूप िें दशामाया िया ि ैजो ‘सवाल’

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    प्ू्ती ि ैऔर बिु्त सवाल प्ू्ती ि।ै सवाल प्ूने और सवाल खडे करने िें अ्ंतर िो्ता ि।ै िोरना ये दोनों काि बखबूी कर्ती ि।ै “ऐसी लड़की नहीं द़ेखी कभी। बस कयूँ? कयूँ? की रट लगाए रहती ह।ै” रसका एक अथमा यि भी मनकल्ता ि ैमक सािान्य्तः लडमकयों को सवाल प्ूने का अमधकार निीं ि ैया सवाल प्ूना उनके सवीकृ्त सवभाव का मिससा निीं ि।ै यिी कारण ि ैमक िोरना के सवाल प्ूने को र्तने आशियमा और ‘असवाभामवक’ ्तरौर पर प्स्त्ुत मकया िया ि।ै

    सामितय और उसकी भाषा िें अनेक ऐसी संभावनाएँ िैं मजन्िें जेंडर की दृमष्ट से दखेने और सिझने की ज़रूर्त ि।ै बचिों के मलए मलखा िया, रिा िया सामितय भी रसका अपवाद निीं ि।ै

    ‘बरखा’ और जेंडर सवेंदनिीलतापाठ्यपसु्तकों के अम्तररर्त अन्य प्कार की पठन सािग्री भी बचिों के अनभुव संसार को मवस्तार द्ेती ि,ै उनके अनभुव संसार का मिससा बन्ती ि ैऔर उनकी सोि को प्भामव्त कर्ती ि।ै र्तना िी निीं यि पठन सािग्री उनिें सिझकर पढ़ने की कुशल्ता का भी मवकास कर्ती ि।ै सिझकर पढ़ने का अथमा ि—ै अपने अनभुवों के साथ उस सािग्री को जोड्ेत िुए यि सिझने का प्यास करना मक वस्त्ुतः रया किने का प्यास मकया िया ि ैऔर रस पठन सािग्री िें अपने ‘मिससे’ का अथमा खोजना। यि पठन सािग्री बचिों को पढ़ने का आनंद भी द्ेती ि ैऔर उनके मि्ंतन को मवस्तार द्ेती ि।ै उनिें रस क्षि्ता का मवकास भी कर्ती ि ैमक मवमभन्न मविार-मबंदओु ंके संबंध िें अपनी राय बना सकें । राष्टीय शमैक्षक अनसुंधान और प्मशक्षण पररषद,् नयी मदलली द्ारा मवकमस्त ‘बरखा’ क्रमिक

    पसु्तकिाला एक ऐसा िी प्यास ि ैजो बचिों िें पठन कुशल्ता, मि्ंतन-क्षि्ता का मवकास और मवमभन्न िदु्ों के संदभमा िें अपने ‘मिससे’ का अथमा िढ़ने की मदशा प्शस्त कर्ती ि।ै प्स्त्ुत लेख जेंडर संबंधी मविशमा का मवस्तार ि ैमक ‘बरखा’ क्रमिक पसु्तकिाला की िालीस किामनयों िें जेंडर की व्यामप््त मकस प्कार िुई ि ैऔर मकस प्कार से मकसी जेंडर मवशषे से जडुी रूमढ़वामद्ता को ्तोडने का सफल प्यास मकया िया िै–रसकी जाँि करने की कोमशश की िई ि।ै बबली, जी्त, काजल, िाधव, रानी, जिाल, मिली आमद सभी पात्ों की अमसि्ता और पििान को बरकरार रखने की संवेदना का सपंदन रन सभी किामनयों िें बखबूी मकया जा सक्ता ि।ै सिावेशी मशक्षा के सदंभमा िें जेंडर संवेदनशील्ता को ‘बरखा’ क्रमिक पसु्तकिाला िें टटोलने का प्यास रस लेख िें मकया िया ि।ै

    ‘बरखा’ क्रमिक पसु्तकिाला एक मशक्षाशासत्ीय संसाधन िै जो रस मसद्धां्त पर आधारर्त िै मक बचिों िें पढ़ने-मलखने की नैसमिमाक क्षि्ताए ँ िो्ती िैं। यमद प्ारंभ से िी बचिों को पढ़ने-मलखने के साथमाक अवसर मदए जाए ँ्तो वे सिझ के साथ पढ़ना सीख सक्ेत िैं और सफल पाठक बन सक्ेत िैं। ‘बरखा’ क्रमिक पसु्तकिाला उन सभी बचिों को पढ़ना-मलखना सीखने िें िदद कर्ती ि ै जो अभी पढ़ना-मलखना सीखने के शरुुआ्ती दरौर िें िैं। ‘बरखा’ क्रमिक पसु्तकिाला िें किामनयों की कुल िालीस मक्ताबें िैं जो बचिों के मनकटीय पररवेश के रदमा-मिदमा बुनी-रिी िई िैं। रनिें बचिे अपनी दुमनया की झलक पा सक्ेत िैं। रन किामनयों के िार स्तर िैं और स्तर के अनुसार किामनयों के वारयों और

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    उपकथानक की ििन्ता बढ़्ती जा्ती ि।ै रन किामनयों िें ररश्ेत भी िैं ्तो खाने-पीने की िीज़ें भी िैं। पश-ुपक्षी, खले-मखलरौने, वाद्-यंत्, आस-पास की िीज़ें — सभी कु् रन किामनयों िें दखेने को मिल्ता ि।ै शरुुआ्ती पढ़ने-मलखने िें ये मक्ताबें िदद कर्ती िैं और बचिों को अपनी िी दमुनया से रू-ब-रू िोने का अवसर द्ेती िैं।

    ‘बरखा’ क्रमिक पसु्तकिाला िें जेंडर संबंधी संवेदनशील्ता और जेंडर-आधारर्त सिावेश को बखबूी धयान िें रखा िया ि।ै यिाँ एक बा्त सपष्ट करना ज़रूरी ि ै मक जेंडर संवेदनशील्ता की ििामा िें लडमकयों को बढ़-िढ़कर प्स्त्ुत करना या उन्िें लडकों की ्तलुना िें बेि्तर रूप िें प्स्त्ुत करना उद्शेय निीं ि ैबमलक लडमकयों को मकसी बँध-ेबँधाए साँि ेसे बािर लाने और उनके प्म्त संकीणमा िानमसक्ता को ्तोडने का प्यास मकया िया ि।ै और रस संबंध िें जो मकया िया ि ैवि बेिद सिज ि ैऔर किीं भी आरोमप्त नज़र निीं आ्ता। ‘बरखा’ क्रमिक पुस्तकिाला िें कुल दस पात् िैं मजनके रदमा-मिदमा किामनयों का ्ताना-बाना रिा िया ि।ै रनिें से ्ि पात् लडमकयाँ िैं जो मवमभन्न कथा-वस्तओु ंिें अपनी जिि बना्ती िैं। ये पात् िैं — रिा, रानी, काजल, बबली, ्तोमसया और मिली। ये सभी अपनी-अपनी खमूबयों के साथ कथा-पटल पर नज़र आ्ती िैं। जी्त, िाधव, जिाल और िदन रनके साथ िी खडे नज़र आ्ेत िैं — उनसे श्ेष्ठ या कि्तर निीं। ये सभी लडके-लडमकयाँ बचिों की सिज दमुनया का मिससा बन्ेत िैं। रनिें किीं कोई भदेभाव, मवरोध या द्दं् नज़र निीं आ्ता। सब मिले-मिले से एक-दसूरे के ‘साथ’ नज़र आ्ेत िैं। आरए, ‘बरखा’ क्रमिक पसु्तकिाला

    की किामनयों िें जेंडर-आधारर्त सिावेशन को सिझने का प्यास कर्ेत िैं।

    सािान्य्तः यि सिझा जा्ता ि ैमक प्ंति उडाना लडकों का काि ि,ै उनका खले ि ैया उनका जन्िमसद्ध अमधकार ि ैया मफर प्ंति उडाने पर उनका िी विमासव ि।ै ‘ििारी प्ंति’ शीषमाक किानी िें रस मिथक को ्तोडा िया ि।ै रस किानी िें ्तोमसया और मिली ्तथा उनकी िा्ताए ँप्ंति बना्ती िैं, प्ंति उडा्ती िैं और बिु्त ऊँिी प्ंति उडा्ती िैं। प्ंति बनाने की परूी प्मक्रया को भी बखबूी सिझाया िया ि।ै ‘दिली का िन हुआ दक वह भी पतंग उड़ाए’— यि वारय मकसी लडकी द्ारा सिाज की ररवाय्तों को अपनी मनयम्त न िानने की ओर संके्त कर्ता ि ैवरना सािान्य्तः बमचियाँ या लडमकयाँ या िमिलाए ँप्ंति उडाने की बा्त सोि्ती भी निीं िैं और ‘मदख्ती’ भी निीं िैं। मिली की िाँ बिु्त सिज भाव से उसकी रस रच्ा का िान रख्ती ि ैऔर कि्ती िै – ‘िलो प्ंति बना्ेत िैं।’ ्तोमसया भी अपनी िाँ के साथ प्ंति उडा्ती ि।ै रस किानी के िाधयि से बचिों िें यि सोि मवकमस्त िो्ती ि ैमक लडमकयाँ भी प्ंति उडा सक्ती िैं। वि मकसी खास व्यमर्त ्तक सीमि्त निीं िैं। ऐसा भी निीं ि ैमक प्ंति उडाने के संदभमा िें लडमकयों की भमूिका केवल िरखी पकडने ्तक िी सीमि्त ि।ै एक सािान्य किानी िें ऐसा भी िो सक्ता था मक लडका प्ंति उडा रिा ि ैऔर लडकी िरखी पकडकर खडी ि।ै ‘ििारी प्ंति’ किानी रस सािान्य सोि को भी ्तोड्ती ि।ै

    ििारे सिाज िें मजस ्तरि प्ंति उडाने को लेकर संकीणमा सोि ि,ै वैसी िी सोि पेड पर िढ़ने को लेकर भी ि।ै आि ्तरौर पर िि किामनयों िें लडकों को िी

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    पेडों पर िढ़्ेत िुए दखे्ेत िैं। अिर लडके-लडमकयों का सििू भी ि ै्तो भी लडके िी पेड पर िढ़ेंि।े लेमकन ‘पका आि’ किानी िें ्तोमसया अपने सकूल िें लिे आि के पेड पर से आि ्तोडने की कई प्कार से कोमशश कर्ती ि।ै वि लोि ेके फ़ाटक पर िढ़ने की कोमशश कर्ती ि,ै लेमकन निीं िढ़ पा्ती, रयोंमक लोिा िरि ि।ै वि िार निीं िान्ती और दसूरा उपाय सोिने लि्ती ि।ै वि सकूल की िारदीवारी के भी्तर से दीवार के उस पार कूद जा्ती ि ैऔर आि के पेड पर िढ़ जा्ती ि।ै ‘उसे पेड पर िढ़ना अच्ी ्तरि आ्ता था।’ यि वारय रस बा्त की घोषणा कर्ता ि ैमक पेड पर िढ़ना केवल लडकों का अमधकार निीं ि।ै लडमकयाँ भी पेड पर अच्ी ्तरि से िढ़ सक्ती िैं। ्तोमसया के िाधयि से पाठकों को यि सिझने का भी अवसर मिल्ता ि ैमक लडमकयाँ मकसी भी दृमष्ट से किज़ोर निीं िैं। वे एक बार जो ठान लें, उसे अपने बलब्ेूत पर और अपनी सझू-बझू स ेपरूा कर सक्ती िै

    ‘दिली का िन भी साइदकल चलाऩे करो हुआ।---दिली ऩे िमिी स़े साइदकल दसखाऩे क़े दलए कहा। िमिी दिली करो साइदकल चलाना दसखाऩे लगीं। ----िमिी साइदकल क़े पी ़्े-पी ़्े चल रही थीं।’ मिली से जडुी एक और किानी – ‘मिली की सारमकल’ िें मिली के िाधयि से एक सािान्य लडकी की रच्ा और मिली की ि्िी के िाधयि से एक सािान्य िमिला का यि पक्ष उजािर िो्ता ि ै मक लडमकयाँ बिु्त कु् सीखना िाि्ती िैं, सीख्ती िैं और सारमकल िलाना मसखाने िें िाँ की भी भमूिका िो सक्ती ि।ै अन्यथा िि यि पा्ेत िैं मक सारमकल िलाना केवल लडकों का िी अमधकार िै और

    सािान्य्तः मप्ता िी सारमकल िलाना मसखा सक्ेत िैं। लेमकन यि किानी रस भांम्त को ्तोड्ती ि ैऔर जेंडर संबंधी सवसथ दृमष्टकोण का मवकास कर्ती ि।ै लडमकयाँ भी अपनी सव्ंतत् सोि एव ंरच्ा रख्ती िैं, उनकी भी अपनी पसंद-नापसंद िो्ती िै—रस मविार को संपे्मष्त कर्ेत िुए मिली की एक और किानी दखेी जा सक्ती िै–‘मिली के बाल’। ‘ दिली करो चरोटी बनवाना पसंद नहीं था। दिली करो बाल खलु़े रखना पसंद था। उस़े िैल़े-िैल़े बाल अच ़्े लगत़े थ़े। िमिी चरोटी गूँथती तरो दिली पऱेशान हरो जाती।... दिली करो बहुत दद्द हरोता था।’ ये पंमर्तयाँ पाठक को यि मवस्तार से जानने-सिझने का अवसर द्ेती िैं मक मिली को रया पसंद ि ैऔर रया पसंद निीं ि।ै एक मदन मिली पापा के साथ जाकर अपने बाल कटवा आ्ती ि।ै उसके बाद जो िो्ता ि ैवि सािान्य पाठक की सोि के मवपरी्त िो सक्ता ि।ै िाँ मिली को डाँटने की बजाय प्यार से उसके बालों पर िाथ फेर्ती ि ैऔर उसे िले लिा ले्ती ि।ै अब ्ेतल िलने िें मिली को कोई कष्ट निीं िो्ता। मिली के िा्ता-मप्ता का व्यविार रस ओर संके्त कर्ता ि ैमक उन्िें अपनी बेटी की रच्ाओ ंका िान रखना आ्ता ि ैऔर िान रखा जाना िामिए। ‘मिली के बाल’, ‘ मिली की सारमकल’, ‘ििारी प्ंति’ लडमकयों के सव्ंतत् अमस्ततव, उनकी सव्ंतत् सोि, रच्ा और पसंद-नापसंद की किामनयाँ िैं जो पाठक को यिी संदशे द्ेती िैं मक लडमकयाँ भी सव्ंतत् िैं और उनकी सव्ंतत््ता का स्िान मकया जाना िामिए।

    ‘ बरखा’ क्रमिक पसु्तकिाला की किामनयों िें बचिों के द्ारा खलेे जाने वाले खलेों का भी मित्ण मिल्ता ि।ै लेमकन रन किामनयों की मवशषे्ता यि ि ै

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  • 13‘बरखा’ क्रमिक पसु्तकिाला — जेंडर के िदु्े

    मक रनिें िड्ुडे-िमुडयों से खलेने वाली लडमकयों की एक आि ्मव को ्तोडने का सफल प्यास मकया िया ि।ै ‘मिलली-डंडा’ किानी िें ‘बबली करो तैरना आता था।’ वि ्तालाब िें से मिलली ला्ती ि ैऔर ‘सबक़े साथ दगलली-िंिा ख़ेलऩे लगती ह।ै’ वि ज़ोर से डंडा घिुा्ती ि ैऔर मिलली मफर से ्तालाब के पार िली जा्ती ि।ै रस किानी िें लडकों के साथ लडकी को भी मिलली-डंडा खले्ेत िुए मदखाया िया ि।ै बबली रस खले को खलेने िें मकसी भी ्तरि से किज़ोर निीं िै — रस बा्त की घोषणा ्तब िो जा्ती ि ैजब यि ब्ताया जा्ता ि ैमक ‘दगलली दिर स़े तालाब क़े पार चली गई।’ रसी ्तरि ‘्ुपन-्ुपाई’ िें जी्त अपनी बाज़ी द्ेता ि ैऔर सरौ ्तक मिनकर सबको ढँूढ़ने मनकल्ता ि।ै वि बारी-बारी से सबको खोज ले्ता ि ैलेमकन केवल नामज़या बि जा्ती ि।ै वि उसे खबू खोज्ता िै – आिँन िें, िादर के पी्े, बािर लेमकन वि किीं निीं मिल्ती। जी्त पेड के नीि ेखडे िोकर सोिने लि्ता ि ै्तभी नामज़या ऊपर से कूदकर उसे धप्पा द ेद्ेती ि ैऔर जी्त को मफर से बाज़ी दनेी पड्ती ि।ै वि मफर से मिन्ती मिनने िल पड्ता ि।ै रस किानी िें शामज़या की ि्तरुाई को दशामाया िया ि।ै रन किामनयों िें लडके और लडमकयाँ मिलकर िी खले खले्ेत िैं। मकसी को ्ोटा-बडा निीं दशामाया िया ि।ै ‘आउट’ किानी िें जी्त और बबली मिलकर कभी मिटे् खले्ेत िैं ्तो कभी रससा कूद्ेत िैं। कभी ्ुपन-्ुपाई खले्ेत िैं ्तो कभी मिलली-डंडा। मफर वे मक्रकेट खले्ेत िैं। बबली खले की अिवुाई कर्ती ि ैऔर ज़ोर का बलला घिुा्ती ि ै्तो बॉल िोमि्त के आिँन िें िली जा्ती ि।ै अब सिसया आ्ती ि ैमक िेंद कैसे

    लाए?ँ िेंद न िोने से खले रुक जा्ता ि।ै ्तब बबली अपनी सझू-बझू का पररिय द्ेेत िुए कपडे, कािज़, क्तरनों, पमन्नयों और स्ुतली की िदद से एक िेंद बना द्ेती ि।ै जब जी्त बलला घिुा्ता ि ै्तो कपडे की िेंद खलु जा्ती ि।ै रस मसथम्त िें भी बबली की ि्तरुाई के दशमान िो्ेत िैं। वि िेंद के खलु जाने पर उसके एक कपडे को पकडकर आउट-आउट मिलला्ती ि।ै जी्त अपने िाथे पर िाथ रख ले्ता ि।ै रस ्तरि रस किानी िें लडमकयों द्ारा िखु्य्तः मक्रकेट खलेे जाने और उनकी सझू-बझू का पररिय मिल्ता ि।ै

    िि अकसर दखे्ेत िैं मक लडके परुाने टायर को ठेल्ेत िुए ्ेतज़ी से िला्ेत िैं। लेमकन ‘बरखा’ क्रमिक पसु्तकिाला की ‘झलूा’ किानी िें बबली भी टायर को ्ेतज़ दरौडा्ती ि।ै जी्त के किने पर मक उसे झलूा झलूना अच्ा लि्ता ि ै्तो बबली और वि झलूा ढँूढ़ने लि्ेत िैं। वे दोनों पेड की डाली पर लटककर झलूा झलू्ेत िैं, लेमकन उन्िें िजा निीं आ्ता। मफर वे लोि ेके पारप पर लटककर झलू्ेत िैं लेमकन जी्त के िाथ िें ददमा िो रिा था। बबली को एक ्तरकीब सझू्ती ि।ै वि कि्ती ि ैमक अपने टायर से झलूा बना ले्ेत िैं। टायर को पेड पर करौन लटकाएिा — रस बा्त को लेकर दोनों िें ्ीना-झपटी िो्ती ि ै और टायर िवा िें उ्लकर पेड की डाली पर लटक जा्ता ि।ै ्तब जी्त उ्लकर टायर िें बैठ जा्ता ि ैऔर बबली टायर और जी्त को धीरे-धीरे झलुाने लि्ती ि।ै यि प्सिं भी रस आि िान्य्ता या ्मव को ्तोड्ता ि ैमक केवल लडमकयाँ िी झलूा झलू्ती िैं और लडके उनके झलेू को झलुा्ेत िैं। यिाँ बबली जी्त को झलूा झलुा्ती ि।ै रस किानी िें बबली अपने बमुद्ध-िा्तयुमा का भी पररिय द्ेती ि।ै

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  • प्राथमिक मिक्षक/ जनवरी 201714

    ‘बबली का बाजा’ किानी िें बबली को घर की सफ़ाई के सिय एक मडबबा मिल्ता ि ैमजसे मिलाने पर आवाज़ आ्ती ि।ै वि मडबबा खोलकर दखे्ती ि ै्तो प्ता िल्ता ि ैमक उसके अदंर िावल िैं। वि उस मडबबे को लेकर सो जा्ती ि।ै ििूा रा्त िें िावल खा ले्ता ि।ै अिले मदन बबली िाँ से िावल िाँि्ती ि ै्तो िाँ यि कि्ेत िुए िना कर द्ेती ि ैमक िावल ्तो खाने का िो्ता ि।ै यि सनुकर बबली उदास िोकर ््त पर जा्ती ि।ै ्तभी बबली की नज़र सलवार पर पड्ती ि ैऔर वि उसका नाडा मनकालकर मडबबे के दोनों ओर ्ेदकर बाँध द्ेती ि।ै रस ्तरि बबली का बाजा यानी उसकी ढोलक बन जा्ती ि।ै बबली के िाधयि से लडमकयों की बमुद्धि्ता का संदशे पाठकों ्तक पिुिँ्ता ि।ै वे संज्ानातिक ्तरौर पर भी लडमकयों को कि निीं आकँें िे।

    ‘िलो पीपनी बनाएँ’ किानी िें भी बबली नामज़या, िदन और जी्त को पीपनी बनाना मसखा्ती ि।ै वि सभी को एक-एक करके सपष्ट रूप से मनददेश द्ेती ि ैमक पिले िठुली को धो लो, उसे साफ़ कर लो, उसका म्लका मनकाल लो और उसे थोडा-सा मघस लो। रस ्तरि सारे बचि ेबबली के मनददेशन िें आि की िठुली से पीपनी बजाना सीख्ेत िैं। रस किानी के िाधयि से लडमकयों की ने्ततृव क्षि्ता का भी पररिय मिल्ता ि।ै

    संिी्त कला को लेकर ििारे सिाज िें यि िान्य्ता रिी ि ैमक िायन लडमकयों का क्षेत् ि ैऔर वादन लडकों का और अिर लडमकयों को भलेू-से भी वादन के क्षेत् िें अवसर मदए जाए ँ्तो उन्िें मस्तार या िारिोमनयि ्तक िी सीमि्त कर मदया जा्ता ि।ै जबमक लडकों के मलए संिी्त कला के क्षेत् िें अपेक्षाकृ्त

    अमधक मवकलप िरौजदू िैं। ‘्तबला’ किानी िें जी्त मप्ताजी से ्तबला बजाना सीख्ता ि।ै एक मदन उसे ्तबला निीं मिल्ता ्तो वि परेू घर िें उसे खोज्ता ि।ै वि ््त पर जा्ता ि ै्तो दखे्ता ि ैमक बबली ्तबला बजा रिी ि।ै वि उससे ्तबला ्ीनने की कोमशश कर्ता ि ै लेमकन बबली परेू अमधकार से कि्ती ि ैमक ्तबला उसका भी ि।ै पापा दोनों की लडाई रोक्ेत िैं और कि्ेत िैं मक बबली सबुि ्तबला बजाना सीखिेी और जी्त शाि को। रस किानी के िाधयि से लडमकयों के संिी्त कला संबंधी मिथक को ्तोडा िया ि ैमक लडमकयाँ केवल िायन के मलए िी उपयरु्त पात् िैं। जी्त और बबली के मप्ता का व्यविार भी यि संदशे द्ेता ि ैमक लडका और लडकी दोनों बराबर िैं। बबली भी अपनी बा्त को परेू आतिमवशवास के साथ कि्ती ि ैमक यि ्तबला उसका भी ि।ै वि भी उन लडमकयों का प्म्तमनमधतव कर्ती ि ैजो लीक से िटकर कु् अलि करना िाि्ती िैं।

    प्ायः घर और रसोई से जडेु काि लडमकयों या मसत्यों के िी िाने जा्ेत िैं। रसका अथमा यि ि ैमक घर सँभालना और मवशेषकर िलूिा-िरौका सँभालना केवल लडमकयों की मज़्िदेारी ि।ै सािान्य्तः आपने दखेा िोिा मक मक्ताबों िें िमिला पात् िी ये सब कर्ती मदखाई दी जा्ती िैं। लेमकन ‘बरखा’ क्रमिक पसु्तकिाला की ‘िावल’, ‘िाय’, ‘भटु्ा’, ‘फूली रोटी’ किामनयों के पात् जिाल और िदन रसोई के कािों िें न केवल रुमि ले्ेत िैं बमलक उन्िें बखबूी मनभा्ेत भी िैं। ‘िावल’ किानी िें एक मदन जिाल और िदन को ज़ोर की भखू लि्ती ि ै्तो वे मिल-जलु कर िावल बनाने की योजना बना्ेत िैं। रसके मलए वे क्रिबद्ध ्तरीके से िाजर और िटर ्ील्ेत िैं,

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  • 15‘बरखा’ क्रमिक पसु्तकिाला — जेंडर के िदु्े

    आल-ूप्याज़ काट्ेत िैं और िावल बनाकर अपनी भखू मिटा्ेत िैं। रस परूी प्मक्रया िें रस बा्त का प्ता िल्ता ि ै मक रसोईघर और उसके कािों से उनका पररिय ि।ै ‘िाय’ किानी िें जब एक मदन जिाल को ज़कुाि िो जा्ता ि ैऔर उसका िन िाय पीने को कर्ता ि ै्तो िदन उसके मलए िाय बना्ता ि।ै िाय बनाने िें वि लौंि और अदरक डालकर पानी को खबू उबाल्ता ि।ै लेमकन िाय िें िाय की पत्ती और अदरक बिु्त जयादा पड जा्ेत िैं ्तो िदन दधू और िीनी डालकर िाय को दोबारा से उबाल्ता ि।ै ्तब जिाल िाय पी्ता ि।ै यि किानी रस ओर भी संके्त कर्ती ि ै मक िदन को यि प्ता ि ै मक कडवी िाय को मकस प्कार से सिी मकया जा सक्ता ि।ै ‘भटु्ा’ किानी िें जिाल के घर िदन और जिाल घर-घर खले्ेत िैं। ्तभी जिाल के घर उसके पापा के दोस्त आ्ेत िैं। वे दोनों मिलकर उनके मलए भटेु् बना्ेत िैं। जिाल भटेु् उबाल्ता ि ै और िदन भटेु् को भनू्ता ि।ै उन्िोंने अपने-अपने भटु्ों पर निक और िसाला लिाया। पापा के दोस्त और उनकी पतनी उनके भटु्ों की खबू ्तारीफ़ कर्ेत िैं। ‘फूली रोटी’ िें जिाल रोटी बनाने की कोमशश कर्ता ि।ै जब वि सिी ्तरीके से रोटी बना ले्ता ि ैऔर रोटी को सेंकने पर वि फूल जा्ती ि ै्तो वि बडे िवमा से कि्ता ि ैमक रोटी उसने बनाई ि।ै रस प्कार ‘बरखा’ क्रमिक पसु्तकिाला की किामनयाँ बचिों िें मिल-जलुकर घर के कािों को करने की अमभपे्रणा द्ेती िैं।

    रस प्कार ‘बरखा’ क्रमिक पुस्तकिाला की किामनयाँ जेंडर संवेदनशील्ता और जेंडर सिान्ता की भावना को पोमष्त कर्ती िैं। वे पाठकों का धयान बरबस रस ओर खींि िी ले्ती िैं मक लडके और लडमकयों के कािों और अवसरों िें किीं कोई भदेभाव निीं ि।ै उसके सभी पात्, िािें वे लडमकयाँ िों �