samarthya srot

82

Upload: gurusewa

Post on 29-Jun-2015

320 views

Category:

Documents


27 download

TRANSCRIPT

Page 1: Samarthya srot
Page 2: Samarthya srot

प्रात् स्भयणीम ऩूज्मऩाद वॊत श्री आवायाभजी फाऩू के

वत्वॊग-प्रलचन

वाभर्थमय स्रोत

ननलेदन

ऩूज्म फाऩू की वशज फोरचार भईऄ अनुबल वॊऩन्न गीतासान की भाधमुयता इव प्रकाय ननखय आती शै कक वलद्रान इवभईऄ तत्त्ल-अभतृ ननशाय वकते शैं, वाधक काभ-वॊकल्ऩ के काॉटों को चनुकय पईऄ क वकते शैं। वॊवायी जीलन जीने लारे वत्म की वाधना ऩय अग्रवय शोने को उत्वुक शो वकते शैं।

वमभनत ने ऩूज्म फाऩू की वशज फोरचार की धाया को वॊग्रशीत कयके ऩुस्तक के रूऩ भईऄ आऩके कयकभरों तक ऩशुॉचाने का फारमत्न ककमा शै। गुणग्राशी दृवद्श वे इवका राब उठाने की कृऩा कयईऄ। वनातन धभय के उच्च मळखयों के अनुबल वॊऩन्न इन वॊत की अभतृलाणी औयों तक ऩशुॉचाकय ऩुण्म के बागी फनईऄ।

वलनीत, श्री मोग लेदान्त वेला वमभनत

अभदालाद आश्रभ

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

अनुक्रभ ननलेदन ............................................................................................................................................... 2

वाभर्थमय स्रोत ....................................................................................................................................... 3

बूऴणों का बूऴण् ळीर ......................................................................................................................... 9

वत्वॊग-वुधा ...................................................................................................................................... 24

ळीर का दान ................................................................................................................................ 24

चतुयाई चूल्शे ऩडी........ .................................................................................................................. 27

गीता वे आत्भसान ऩामा ................................................................................................................ 31

ऩाॉच आद्ळमय .................................................................................................................................. 34

आठ ऩाऩों का घडा......................................................................................................................... 37

वत्वॊग-भहशभा ............................................................................................................................... 37

वलधेमात्भक जीलनदृवद्श .................................................................................................................... 40

Page 3: Samarthya srot

तीन दरुयब चीजईऄ ................................................................................................................................ 41

गीता भईऄ भधुय जीलन का भागय ............................................................................................................ 49

वुख का स्रोत अऩने आऩ भईऄ ............................................................................................................... 81

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

वाभर्थमय स्रोत

यालण के जभाने भईऄ एक फड ेवदाचायी, ळीर को धायण कयने लारे याजा चक्ललेण शुए। फडा वादा जीलन था उनका। याजऩाट शोते शुए बी मोगी का जीलन जीते थे। प्रजा वे जो कय आता था, उवको प्रजा का खनू-वा वभझते थे। उवका उऩमोग व्मक्तिगत वुख, ऐद्वमय, स्लाथय मा वलराव भईऄ बफल्कुर नशीॊ शोने देते थे। याजभशर के ऩीछे खरुी जभीन थी, उवभईऄ खेती कयके अऩना गुजाया कय रेते थे। शर जोतने के मरए फैर कशाॉ वे रामईऄ ? खजाना तो याज्म का था, अऩना नशीॊ था। उवभईऄ वे तो खचय नशीॊ कयना चाहशए। .....तो याजा स्लमॊ फैर की जगश जुत जाते थे औय उनकी ऩत्नी ककवान की जगश। इव प्रकाय ऩनत ऩत्नी खेती कयते औय जो पवर शोती उववे गुजाया कयते। कऩाव फो देते। कपय घय भईऄ ताना-फुनी कयके कऩड ेफना रेते, खद्दय वे बी भोटे।

चक्ललेण याजा के याज्म भईऄ ककवी की अकार भतृ्मु नशीॊ शोती थी, अकार नशीॊ ऩडता था, प्रजा भईऄ ईभानदायी थी, वुख-ळान्न्त थी। प्रजा अऩने याजा-यानी को वाषात ्मळल-ऩालयती का अलताय भानती थी। ऩलय त्मौशाय के हदनों भईऄ नगय के रोग इनके दळयन कयने आते थे।

ऩलय के हदन थे। कुछ धनाढ्म भहशरामईऄ वज धजकय याजभशर भईऄ गईं। यानी वे मभरीॊ। यानी के लस्त्र तो वादे, घय की ताना-फुनी कयके फनामे शुए भोटे-भोटे। अॊग ऩय कोई शीये-जलाशयात, वुलणय-अरॊकाय आहद कुछ नशीॊ। कीभती लस्त्र-आबूऴणों वे, वुलणय-अरॊकायों वे वजीधजी फड ेघयाने की भहशराएॉ कशने रगीॊ- "अये यानी वाहशफा ! आऩ तो शभायी रक्ष्भी जी शैं। शभाये याज्म की भशायानी ऩलय के हदनों भईऄ ऐवे कऩड ेऩशनईऄ ? शभईऄ फडा दु् ख शोता शै। आऩ इतनी भशान वलबूनत की धभयऩत्नी ! .....औय इतने वादे, चचथड ेजैवे कऩड े! ऐवे कऩड ेतो शभ नौकयानी को बी ऩशनने को नशीॊ देते। आऩ ऐवा जीलन बफताती शो ? शभईऄ तो आऩकी न्जन्दगी ऩय फशुत दु् ख शोता शै।"

आदभी जैवा वुनता शै, देय वलेय उवका प्रबाल चचत्त ऩय ऩडता शी शै। अगय वालधान न यशे तो कुवॊग का यॊग रग शी जाता शै। शल्के वॊग का यॊग जल्दी रगता शै। अत् वालधान यशईऄ। कुवॊग वत्ऩथ वे वलचमरत कय देता शै।

Page 4: Samarthya srot

दवूयी भहशरा ने कशा् "देखो जी ! शभाये मे शीये कैवे चभक यशे शैं ! .... औय शभ तो आऩकी प्रजा शैं। आऩ शभायी यानी वाहशफा शैं। आऩके ऩाव तो शभवे बी ज्मादा कीभती लस्त्रारॊकाय शोने चाहशए ?"

तीवयी ने अऩनी अॊगूठी हदखामी। चौथी ने अऩने जेलय हदखामे। चक्ललेण की ऩत्नी तो एक औय उवको फशकाने लारी अनेक। उनके द्वावोच्छालाव, उनके वलरावी लामब्रेळन वे यानी हशर गई। ले न्स्त्रमाॉ तो चरी गईं रेककन चक्ललेण के घय भईऄ आग रग गई।

यानी ने फार खोर हदमे औय स्त्रीचरयत्र भईऄ उतय आई। याजा याज-दयफाय वे रौटे। देखा तो देली जी का रूद्र स्लरूऩ ! ऩूछा्

"क्मा फात शै देली ?"

"आऩ भुझ ेभूखय फना यशे शैं। भैं आऩकी यानी कैवी ? आऩ ऐवे भशान ्वम्राट औय भैं आऩ जैवे वम्राट की ऩत्नी ऐवी दरयद्र ? भेये मे शार ?"

"तुझ ेक्मा चाहशए ?"

"ऩशरे लचन दो।"

"शाॉ, लचन देता शूॉ। भाॉग।"

"वुलणय-अरॊकाय, शीये जलाशयात, कीभती लस्त्र-आबूऴण..... जैवे भशायाननमों के ऩाव शोते शैं, लैवी शी भेयी व्मलस्था शोनी चाहशए।"

याजा लस्तुन्स्थनत वे सात शुए। ले वभझ गमे कक् "लस्त्रारॊकाय औय पैळन की गुराभ भहशराओॊ ने इवभईऄ अऩनी वलरामवता का कचया बय हदमा शै। अऩना अन्त्कयण वजाने के फजाम शाड-भाॊव को वजाने लारी अल्ऩभनत भाइमों ने इवे प्रबावलत कय हदमा शै। भेया उऩदेळ भानेगी नशीॊ।

इवके मरमे शीये-जलाशयात, गशने-कऩड ेकशाॉ वे राऊॉ ? याज्म का खजाना तो प्रजा का खनू शै। प्रजा के खनू का ळोऴण कयके, स्त्री का गुराभ शोकय, उववे उवको गशने ऩशनाऊॉ ? इतना नारामक भुझ ेशोना नशीॊ शै। प्रजा का ळोऴण कयके औयत को आबूऴण दूॉ ? धन कशाॉ वे राऊॉ ? नीनत क्मा कशती शै ?

नीनत कशती शै कक अऩने वे जो फरलान ्शो, धनलान शो औय ददु्श शो तो उवका धन रे रेने वे कोई ऩाऩ नशीॊ रगता। धन तो भुझ ेचाहशए। नीनतमुि धन शोना चाहशए।'

याजा वोचने रगे् "धनलान औय ददु्श रोग तो भेये याज्म भईऄ बी शोंगे रेककन ले भुझवे फरलान नशीॊ शैं। ले भेये याज्म के आचश्रत शैं। दफुयर का धन छीनना ठीक नशीॊ।"

वलचाय कयते-कयते अडोव-ऩडोव के याजाओॊ ऩय नजय गई। ले धनलान तो शोंगे, फेईभान बी शोंगे रेककन फरलान बी नशीॊ थे। आखखय माद आमा कक यालण ऐवा शै। धनलान बी शै, फरलान बी शै औय ददु्श बी शो गमा शै। उवका धन रेना नीनतमुि शै।

Page 5: Samarthya srot

अऩने वे फरलान ्औय उवका धन ? माचना कयके नशीॊ, भाॉगकय नशीॊ, उधाय नशीॊ, दान नशीॊ, चोयी कयके नशीॊ, मुक्ति वे औय शुक्भ वे रेना शै।

याजा ने एक चतुय लजीय को फुरामा औय कशा् "जाकय याजा यालण को कश दो कक दो भन वोना दे दे। दान-धभय के रूऩ भईऄ नशीॊ, ऋण के रूऩ भईऄ नशीॊ। याजा चक्ललेण का शुक्भ शै कक 'कय' के रूऩ भईऄ दो भन वोना दे दे।"

लजीय गमा यालण की वबा भईऄ औय फोरा् "रॊकेळ ! याजा चक्ललेण का आदेळ शै, ध्मान वे वुनो।"

यालण् "देल, दानल, भानल, मष, ककन्नय, गन्धलय आहद वफ ऩय रॊकाऩनत यालण का आदेळ चरता शै औय उव यालण ऩय याजा चक्ललेण का आदेळ ! शूॉऽऽऽ...." यालण गयज उठा।

वलबीऴण आहद ने कशा् "याजन ! कुछ बी शो, लश वन्देळलाशक शै, दतू शै। उवकी फात वुननी चाहशए।"

यालण् "शाॉ, क्मा फोरते शो ?" यालण ने स्लीकृनत दी। लजीय् "दान के रूऩ भईऄ नशीॊ, ऋण के रूऩ भईऄ नशीॊ, रेककन याजा चक्ललेण का आदेळ शै

कक 'कय' के रूऩ भईऄ दो भन वोना दो, नशीॊ तो ठीक नशीॊ यशेगा। रॊका का याज्म खतये भईऄ ऩड जामेगा।" चक्ललेण के लजीय ने अऩने स्लाभी का आदेळ वुना हदमा।

यालण् "अये भच्छय ! इव यालण वे फड-ेफड ेचक्रलती डयते शैं औय लश जया वा चक्ललेण याजा ! भुझ ऩय 'कय' ? शूॉऽऽऽ..... अये ! इवको फाॉध दो, कैद भईऄ डार दो।" यालण आगफफूरा शो गमा।

वफने वराश दी् "भशायाज ! मश तो फेचाया अनुचय शै, चचट्ठी का चाकय। इवको कैद कयना नीनत के वलरूद्ध शै। आऩ वोना न दईऄ, कोई शजय नशीॊ ककन्तु इवको छोड दईऄ। शभने याजा चक्ललेण का नाभ वुना शै। लश फडा ळीरवम्ऩन्न याजा शै। फडा वज्जन, वदाचायी शै। उवके ऩाव मोग-वाभर्थमय, वूक्ष्भ जगत का वाभर्थमय फशुत शै।"

"तो यालण क्मा कभ शै ?"

"रॊकेळ ! आऩ बी कभ नशी शै। रेककन लश याजा ळीर का ऩारन कयता शै।"

"वफकी क्मा याम शै ?" ऩूये भॊबत्रभण्डर ऩय यालण ने नजय डारते शुए ऩूछा। "मा तो दो भन वोना दे दईऄ......"

"भैं वोना दे दूॉ ?" वराशकायों की फात फीच वे शी काटते शुए यालण गयज उठा। "माचक बीख भाॉगने आमे तो दे दूॉ रेककन भेये ऊऩय 'कय' ? भेये ऊऩय आदेळ ? मश नशीॊ शोगा।" मवय धनुकय यालण फोरा।

"अच्छा, तो दतू को फाशय ननकार दो।"

चक्ललेण के लजीय को फाशय ननकार हदमा गमा। यालण भशर भईऄ गमा तो लात्तायराऩ कयता शुआ भन्दोदयी वे फोरा्

Page 6: Samarthya srot

"वप्रमे ! दनुनमाॉ भईऄ ऐवे भूखय बी याज्म कयते शैं। देल, दानल, भानल, मष, ककन्नय, गन्धलय आहद वफके वफ न्जववे बम खाते शैं, उव रॊकाऩनत यालण को ककवी भूखय चक्ललेण ने आदेळ बेज हदमा कक 'कय' के रूऩ भईऄ दो भन वोना दे दो। 'अये भन्दोदयी ! कैवे कैवे ऩागर याजा शैं दनुनमाॉ भईऄ !"

"नाथ ! चक्ललेण याजा फड ेवदाचायी आदभी शैं। ळीरलान ्नयेळ शैं। आऩने क्मा ककमा ? दो भन वोना नशीॊ बेजा उनको ?" भन्दोदयी वलनीत बाल वे फोरी।

"क्मा 'कय' के रूऩ भईऄ वोना दे दूॉ ? रॊकेळ वे ऊॉ चा लश शोगा ?" यालण का क्रोध बबक उठा।

"स्लाभी ! दे देते तो अच्छा शोता। उनका याज्म बरे छोटा शै, आऩके ऩाव वलळार वाम्राज्म शै, फाह्य ळक्तिमाॉ शैं, रेककन उनके ऩाव ईद्वयीम ळक्तिमाॉ शैं, आत्भ-वलश्रान्न्त वे प्राद्ऱ अदबुत वाभर्थमय शै।"

"अये भूखय स्त्री ! यालण के वाथ यशकय बी यालण का वाभर्थमय वभझने की अक्र नशीॊ आई ? ऩागर कशीॊ की !" यालण ने भन्दोदयी की फात उडा दी।

कशानी कशती शै कक दवूये हदन वुफश भन्दोदयी ने यालण को छोटा वा चभत्काय हदखामा। योज वुफश कफूतयों को ज्लाय के दाने डारने के मरए याजभशर की छत ऩय जाती थी। उव हदन यालण को बी वाथ रे गई औय फोरी्

"भशायाज ! देल, दानल, भानल, मष, गॊधलय, ककन्नय आहद वफ आऩकी आसा भानते शैं तो अऩने प्रबाल का आज जया अनुबल कय रो। देखो, इन ऩक्षषमों ऩय आऩका ककतना प्रबाल शै ?"

ऩक्षषमों को दाने डारकय भन्दोदयी उन्शईऄ कशने रगी् "शे वलशॊग ! याजा रॊकेळ की दशुाई शै कक जो दाने खामेगा, उवकी गयदन झुक जामेगी

औय लश भय जामेगा।" वफ ऩषी दाने खाते यशे। उन्शईऄ कुछ नशीॊ शुआ। भन्दोदयी फोरी् "प्राणेळ ! आऩकी दशुाई का प्रबाल ऩक्षषमों ऩय कुछ नशीॊ ऩडा।"

"भूखय औयत ! ऩक्षषमों को क्मा ऩता कक भैं रॊकेळ शूॉ ?"

"स्लाभी ! ऐवा नशीॊ शै। अफ देखखए।" कपय वे दाने डारकय यानी ऩक्षषमों वे फोरी् "याजा चक्ललेण की दशुाई शै। दाने चगुने फन्द कय दो। जो दाने चगेुगा, याजा चक्ललेण की दशुाई वे उवकी गयदन टेढी शो जाएगी औय लश भय जाएगा।"

ऩक्षषमों ने दाना चगुना फन्द कय हदमा। ऩाऴाण की भूनत यलत ्ले न्स्थय शो गमे। एक फशये कफूतय ने वुना नशीॊ था। लश दाने चगुता यशा तो उवकी गयदन टेढी शो गई, लश भय गमा। यालण देखता शी यश गमा ! अऩनी स्त्री के द्राया अऩने शी वाभर्थमय की अलशेरना वश न वका। उवको डाॉटते शुए लश कशने रगा।

"इवभईऄ तेया कोई स्त्रीचरयत्र शोगा। शभ ऐवे अन्धवलद्वाव को नशीॊ भानते। न्जवके घय भईऄ स्लमॊ लरूणदेल ऩानी बय यशे शैं, ऩलनदेल ऩॊखा झर यशे शैं, अन्ननदेल यवोई ऩका यशे शैं, ग्रश नषत्र

Page 7: Samarthya srot

चौकी कय यशे शैं उव भशाफरी बत्रबुलन के वलजेता यालण को तू क्मा मवखा यशी शै ?" कु्रद्ध शोकय यालण लशाॉ वे चर हदमा।

इधय, याजा चक्ललेण के भॊत्री ने वभुद्र के ककनाये एक नकरी रॊका की यचना की। काजर के वभान अत्मन्त भशीन मभट्टी को वभुद्र के जर भईऄ घोरकय यफडी की तयश फना मरमा तथा तट की जगश को चौयव फनाकय उव ऩय उव मभट्टी वे एक छोटे आकाय भईऄ रॊका नगयी की यचना की। घुरी शुई मभट्टी की फूॉदों को टऩका-टऩकाकय उवी वे रॊका के ऩयकोटे, फुजय औय दयलाजों आहद की यचना की। ऩयकोटों के चायों ओय कॊ गूये बी काटे एलॊ उव ऩयकोटे के बीतय रॊका की याजधानी औय नगय के प्रमवद्ध फड-ेफड ेभकानों को बी छोटे आकाय भईऄ यचना कयके हदखामा। मश वफ कयने के फाद लश ऩुन् यालण की वबा भईऄ गमा। उवे देखकय यालण चौंक उठा औय फोरा्

"क्मों जी ! तुभ कपय मशाॉ ककवमरमे आमे शो ?"

"भैं आऩको एक कौतूशर हदखराना चाशता शूॉ।"

"क्मा कौतूशर हदखामेगा ये ? अबी-अबी एक कौतूशर भन्दोदयी ने भुझ ेहदखामा शै। वफ भूखों की कशाननमाॉ शैं। उऩशाव कयते शुए यालण फोरा।

"भैंने वभुद्रतट ऩय आऩकी ऩूयी रॊका नगयी वजामी शै। आऩ चरकय तो देखखमे !"

यालण उवके वाथ वभुद्रतट ऩय गमा। लजीय ने अऩनी कायीगयी हदखामी् "देखखमे, मश ठीक-ठीक आऩकी रॊका की नकर शै न ?"

यालण ने उवकी अदबुत कायीगयी देखी औय कशा् "शाॉ ठीक शै। मशी हदखाने के मरए भुझ ेमशाॉ रामा शै क्मा ?"

"याजन ! धमैय यखो। इव छोटी वी रॊका वे भैं आऩको एक कौतूशर हदखाता शूॉ। देखखमे, रॊका के ऩूलय का ऩयकोटा, दयलाजा, फुजय औय कॊ गूये वाप-वाप ज्मों-के-त्मों हदख यशे शैं न ?"

"शाॉ हदख यशे शैं।"

"भेयी यची शुई रॊका के ऩूलय द्राय के कॊ गूयों को भैं याजा चक्ललेण की दशुाई देकय जया वा हशराता शूॉ, इवके वाथ शी आऩ अऩनी रॊका के ऩूलय द्राय के कॊ गूये हशरते शुए ऩामईऄगे।"

इतना कशकय भॊत्री ने याजा चक्ललेण की दशुाई देकय अऩनी यची शुई रॊका के ऩूलय द्राय के कॊ गूये हशरामे तो उवके वाथ-शी-वाथ अवरी रॊका के कॊ गूये बी डोरामभान शोते हदखाई हदमे। मश देखकय यालण को फडा आद्ळमय शुआ। उवे भन्दोदयी की फात माद आ गई। चक्ललेण के लजीय ने फायी-फायी वे औय बी कॊ गूये, ऩयकोटे के द्राय, फुजय आहद हशराकय हदखामा। इवे देखकय यालण दॊग यश गमा। आखखय लजीय ने कशा्

"याजन ! अबी दो भन वोना देकय जान छुडा रो तो ठीक शै। भैं तो अऩने स्लाभी याजा चक्ललेण का छोटा वा लजीय शूॉ। उनकी दशुाई वे इन छोटे रूऩ भईऄ फनी शुई रॊका को उजाडूॉगा तो तुम्शायी रॊका भईऄ बी उजाड शोने रगेगा। वलद्वाव न आता शो तो अबी हदखा दूॉ।"

Page 8: Samarthya srot

आखखय यालण बी फडा वलद्रान था। अगभ अगोचय जगत वलऴमक ळास्त्रों ऩरयचचत था। वभझ गमा फात। लजीय वे फोरा् "चर, दो भन वोना रे जा। ककवी वे कशना भत।"

दो भन वोना रेकय लजीय याजा के ऩाव ऩशुॉचा। चक्ललेण ने कशा् "रॊकेळ जैवे शठी औय भशा अशॊकायी ने 'कय' के रूऩ भईऄ दो भन वोना दे हदमा ? तूने माचना तो नशीॊ की ?"

"नशीॊ, नशीॊ प्रबु ! भेये वम्राट की ओय वे माचना ? कदावऩ नशीॊ शो वकती।" लजीय गौयल वे भस्तक ऊॉ चा कयके फोरा।

"कपय कैवे वोना रामा ?" याजा ने ऩूछा। यानी बी ध्मानऩूलयक वुन यशी थी। "भशायाज ! आऩकी दशुाई का प्रबाल हदखामा। ऩशरे तो भुझ ेकैद भईऄ बेज यशा था, कपय

भॊबत्रमों ने वभझामा तो भुझ ेदतू वभझकय छोड हदमा। भैंने यातबय भईऄ छोटे-छोटे घयौंदे वागय के तट ऩय फनामे.... ककरा, झयोखे, प्रलेळद्राय आहद वफ। उवकी रॊका की प्रनतभूनत य खडी कय दी। कपय उवको रे जाकय वफ हदखामा। आऩकी दशुाई देकय खखरौने की रॊका का भुख्म प्रलेळद्राय जया-वा हशरामा तो उवकी अवरी रॊका का द्राय डोरामभान शो गमा। थोड ेभईऄ शी यालण आऩकी दशुाई का औय आऩके वाभर्थमय का प्रबाल वभझ गमा एलॊ चऩुचाऩ दो भन वोना दे हदमा। दमा-धभय कयके नशीॊ हदमा लयन ्जफ देखा कक मशाॉ का डण्डा भजफूत शै, तबी हदमा।"

यानी वफ फात एकाग्र शोकय वुन यशी थी। उवको आद्ळमय शुआ कक् "रॊकेळ जैवा भशाफरी ! भशा उद्दण्ड ! देलयाज इन्द्र वहशत वफ देलता, मभ, कुफेय, लरूण, अन्नन, लाम,ु मष, ककन्नय, गन्धलय, दानल, भानल, नाग आहद वफ न्जववे काॉऩते शैं, ऐवे यालण ऩय बी भेये ऩनतदेल के ळीर-वदाचाय का इतना प्रबाल औय भैं ऐवे ऩनत की फात न भानकय वलरावी न्स्त्रमों की फातों भईऄ आ गई ? पैळनेफर फनने के चक्कय भईऄ ऩड गई ? चधक्काय शै भुझ ेऔय भेयी षुद्र माचना को ! ऐवे हदव्म ऩनत को भैंने तॊग ककमा !"

यानी का रृदम ऩद्ळाताऩ वे बय गमा। स्लाभी के चयणों भईऄ चगय ऩडी् "प्राणनाथ ! भुझ ेषभा कीन्जए। भैं याश चकू गई थी। आऩके ळीर-वदाचाय के भागय की भहशभा बूर गई थी इवीमरए नादानी कय फैठी। भुझ ेभाप कय दीन्जए। अऩना मोग भुझ ेमवखाइमे, अऩना ध्मान भुझ ेमवखाइमे, अऩना आत्भशीया भुझ ेबी प्राद्ऱ कयाइमे। भुझ ेफाशय के शीये जलाशयात कुछ नशीॊ चाहशए। जर जाने लारे इव ळयीय को वजाने का भेया भोश दयू शो गमा।"

"तो इतनी वायी खटऩट कयलामी ?"

"नशीॊ.... नशीॊ... भुझ ेयालण के वोने का गशना ऩशनकय वुखी नशीॊ शोना शै। आऩने जो ळीर का गशना ऩशना शै, आत्भ-ळाॊनत का, मोग की वलश्राॊनत का जो गशना ऩशना शै, लशी भुझ ेदीन्जए।"

"अच्छा..... तो लजीय ! जाओ। मश वोना यालण को लाऩव दे आओ। उवको फता देना कक यानी को गशना ऩशनने की लावना शो आई थी, इवमरए आदभी बेजा था। अफ लावना ननलतृ्त शो गई शै। अत् वोना लाऩव रे रो।"

Page 9: Samarthya srot

लावनालारे को शी ऩयेळानी शोती शै। जो ळीर का ऩारन कयता शै, उवकी लावनाएॉ ननमॊबत्रत शोकय ननलतृ्त शोती शैं। न्जवकी लावनाएॉ ननलतृ्त शो जाती शैं लश वाषात ्नायामण का अॊग शो जाता शै। ळीर का ऩारन कयते शुए याजा चक्ललेण नायामणस्लरूऩ भईऄ न्स्थय शुए। उनकी अधाांचगनी बी उनके ऩवलत्र ऩदचचह्नों ऩय चरकय वदगनत को प्राद्ऱ शुई।

ळीरलान ्बोग भईऄ बी मोग फना रेता शै। मशी नशीॊ, नद्वय वॊवाय भईऄ ळाद्वत ्स्लरूऩ का वाषात्काय बी कय वकता शै।

अनुक्रभ

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

बूऴणों का बूऴण् ळीर

ककॊ बूऴणाद् बूऴणभन्स्त ळीरभ ् तीथां ऩयॊ ककॊ स्लभनो वलळुद्धभ।् ककभत्र शेमॊ कनकॊ च कान्ता

श्राव्मॊ वदा ककॊ गुरूलेदलाक्मभ।्। 'उत्तभ-वे-उत्तभ बूऴण क्मा शै ? ळीर। उत्तभ तीथय क्मा शै ? अऩना ननभयर भन शी ऩयभ

तीथय शै। इव जगत भईऄ त्मागने मोनम क्मा शै ? कनक औय कान्ता (वुलणय औय स्त्री)। शभेळा वुनने मोनम क्मा शै ? वदगुरू औय लेद के लचन।'

श्री ळॊकयाचामयवलयचचत 'भखणयत्नभारा' का मश आठलाॉ द्ऴोक शै। फाशय की वफ वॊऩवत्त ऩाकय बी आदभी लश वुख, लश चनै, लश ळाॊनत, लश कल्माण नशीॊ

ऩा वकता, जो ळीर वे ऩा वकता शै। इन्द्र को स्लगय के याज-लैबल, नन्दनलन आहद शोते शुए बी लश आनन्द, लश प्रवन्नता न थी, जो प्रशराद के ऩाव थी। इन्द्र ने अऩने गुरू फशृस्ऩनत वे मश फात ऩूछी थी।

प्रह्लाद के जीलन भईऄ ळीर था इवमरए लश वाधनों के नशीॊ शोने के फालजूद बी वुखी यश वका। न्जवके ऩाव ळीर शै उवके ऩाव वाधन न शों तो बी लश वुखी यश वकता शै। न्जवके जीलन भईऄ ळीर नशीॊ शै लश वाधन शोते शुए बी ऩयेळान शै।

....तो बूऴणों का बूऴण क्मा शै ? ळीर। कई रोग वोने-चाॉदी के गशने ऩशनते शैं, गरे भईऄ वुलणय की जॊजीय, ऩग भईऄ झाॉझन, कण्ठ भईऄ चन्दनशाय, शाथ-ऩैयों भईऄ कड,े कानों भईऄ कणयपूर, उॉगरी भईऄ अॉगूठी, नाक भईऄ नथ इत्माहद ऩशनते शैं औय वभझते शैं कक गशने-आबूऴण ऩशनने वे शभ वुळोमबत शोते शैं। रेककन ळास्त्रकायों का कशना शै, फुवद्धभानों का अनुबल शै कक गशने ऩशनने वे शभ वुळोमबत नशीॊ शोते। गशने आबूऴण व ेशभाया शाड-भाॊव-चाभलारा देश थोडा वा वुळोमबत शो वकता शै, रेककन शभायी ळोबा इनभईऄ नशीॊ शै। इन अरॊकायों वे तो शभायी ळोबा दफ जाती शै।

Page 10: Samarthya srot

शभायी अवरी ळोबा जो ननखयनी चाहशए, लश देश का रारन-ऩारन औय फाशयी हटऩ-टॉऩ कयने की लवृत्त वे दफ जाती शै। फाशयी बूऴणों वे शाड-चाभलारे देश की कृबत्रभ चभक-दभक हदखती शै। शभायी ळोबा बूऴणों वे नशीॊ शै, शभायी ळोबा शै ळीर वे। ळीरलान ्ऩुरूऴ शो मा स्त्री, उवका प्रकाळ कुटुम्फ, भोशल्रे, जानत आहद भईऄ जैवा ऩडता शै, लैवा प्रकाळ वोने-चाॊदी के आबूऴणों का नशीॊ ऩडता। ककवी ने चाशे उऩयोि वफ आबूऴणों को धायण ककमा शो, महद ळीर न शो तो ले वफ व्मथय शैं।

भन, लचन औय कभय वे अमोनम कक्रमा न कयना, देळ-कार के अनुवाय मोनमता वे, वयरता वे वलचायऩूलयक फतयना-इव आचयण को ळास्त्र भईऄ 'ळीरव्रत' कशा गमा शै। उन्ननत का भागय ळीर शी शै। गीता भईऄ फतामे शुए दैली वॊऩवत्त के रषण ळीरलारे व्मक्ति भईऄ शोते शैं। महद आत्भसान न बी शो औय ळीर शो तो भनुष्म नीच गनत को प्राद्ऱ नशीॊ शोता। ळीरलान शी आत्भफोध प्राद्ऱ कयके भुि शो वकता शै। ळीरयहशत ऩुरूऴ को कडा, कुण्डर आहद गशने ऊऩय की ळोबा बरे शी देते शों, ऩयन्तु वज्जन ऩुरूऴों का तो ळीर शी बूऴण शै।

ळीरयहशत भूखय को कडा, कुण्डर आहद फोझरूऩ शैं। मे बूऴण जील को जोखखभ भईऄ डारने लारे औय बम के कायण शै, जफकक ळीररूऩी बूऴण रोक औय ऩयरोक भईऄ उत्तभ प्रकाय का वुख देने लारा शै, इव रोक भईऄ ळोबा औय कीनतय फढानेलारा शै, ऩयरोक भईऄ अषम वुख को प्राद्ऱ कयाता शै। भूखय ऩशने शुए गशनों को बी रजा देता शै जफकक ळीरलान ्ऩशने शुए बूऴणों को ळोबा देता शै।

एक याजऩुत्र ने अऩने वऩता की इच्छा के वलरूद्ध एक स्त्री के वाथ वललाश कय मरमा था औय गुद्ऱ स्थान भईऄ उवके वाथ यशा कयता था। याजा को जफ मश वभाचाय मभरा कक भेया ऩुत्र भेये ळत्र ुकी ऩुत्री के वाथ वललाश कयके गुभ शो गमा शै तो लश फशुत दु् खी शुआ। ऩुत्र की मश कामयलाशी उवे मोनम न रगी इवमरए दु् खी शोते शुए भयण के वभीऩ आ गमा। उवको एक शी ऩुत्र था। भयने के वभम उवने कुॉ लय को फुराने के मरए आदभी बेजे औय अऩनी ऩरयन्स्थनत के वभाचाय कशरलामे।

कुॉ लय ने अऩनी ऩत्नी वे कशा् "वऩता जी भयने की तैमायी भईऄ शैं। भुझ ेउन्शोंने अऩने ऩाव फुरामा शै। इव वभम भुझ ेजाना शी चाहशए। भेये जाने वे ले स्लस्थ शो जामईऄगे तो भुझ ऩय प्रवन्न शोंगे। अगय ले चर फवईऄगे तो भैं याजा फन जाऊॉ गा।"

ऩत्नी फोरी् "तुभ याजा फन जाओगे तो भेया क्मा शोगा ?"

"भैं तुझ ेलशाॉ फुरा रूॉगा औय ऩटयानी फनाऊॉ गा।" मश कशकय याजकुभाय ने अऩनी नाभलारी अॉगूठी अऩनी उॉगरी वे उतायक ऩत्नी को ऩशनाई औय स्लमॊ याजधानी को चर हदमा।

लशाॉ आकय देखा तो याजा भतृ्मुळैय्मा ऩय ऩडा था। कुॉ लय को देखकय याजा प्रवन्न शुआ औय फोरा् "भैं तुझवे एक फात कशना चाशता शूॉ। महद तू भेयी फात भान रेगा तो भेये प्राण वुख

Page 11: Samarthya srot

वे ननकरईऄगे। वऩता के लचन ऩुत्र को भानने चाहशए। श्रीयाभ, देलव्रत बीष्भ आहद ऩुत्रों ने भाने शैं। महद तू भानना स्लीकाय कये तो कशूॉ।"

"वऩताजी ! भैं आऩकी अन्त वभम की आसा का ऩारन करूॉ गा।" कुॉ लय ने स्लीकृनत दी।

याजा ने कशा् "शे वुऩुत्र ! तू भेये मभत्र गॊधलययाज की कन्मा वे वललाश कयना स्लीकाय कय।"

कुॉ लय ने फात भान री। याजा का प्राणाॊत शो गमा। कुॉ लय ने गॊधलययाज की कन्मा वे वललाश कय मरमा। लश याजा शोकय याज्म कयने रगा औय अऩनी ऩूलय ऩत्नी वे जो फात कशकय आमा था, उवको अत्मन्त वुख भईऄ बूर गमा।

प्रथभलारी याजकन्मा ने वुना कक भेये द्ववुय का देशान्त शो गमा शै, भेया ऩनत याजा शो गमा शै औय उवने एक दवूयी याजकन्मा वे वललाश कय मरमा शै। इव याजकन्मा के ऩाव एक फशुत चतुय दावी थी। याजकुॉ लय की भुराकात के मरए लश तीन औय कन्माओॊ को रे आई औय उवने याजकन्मा वहशत चायों को ऩुरूऴ की ऩोळाक ऩशनाकय याजकुॉ लय के ऩाव नौकयी कयने को बेजा। कुॉ लय चायों मुलान ऩुरूऴों को देखकय प्रवन्न शुआ औय चायों को अऩने यषकों की नौकयी ऩय यख मरमा।

कुॉ लय को देखकय याजकन्मा के फाय-फाय आॉवू चगया कयते थे। कुॉ लय ने कई फाय ऩूछा, ऩयन्तु उवने कुछ उत्तय न हदमा।

एक हदन कुॉ लय अकेरा उद्यान भईऄ फैठा था तो लश अॊगयषक उदावी वे शाथ जोडकय उवके वाभने जा फैठा। कुभाय ने उवकी उॉगरी ऩय अऩने नाभलारी अॉगूठी देखी तो वलस्भम वे ऩूछा्

"शे मभत्र ! मश अॉगूठी तुझ ेकशाॉ वे प्राद्ऱ शुई ?"

"आऩके ऩाव वे।"

"भैंने मश अॉगूठी तुझ ेकफ दी थी ?" याजकुभाय का आद्ळमय फढ गमा। "जफ तुभ भुझ ेछोडकय आमे औय याजा फने तफ।"

यशस्म खरु गमा। लश वभझ गमा कक मश भेयी प्राणेद्वयी याजकन्मा शै। वप्रमा वे षभा भाॉगते शुए उवने अऩने वऩता की अन्न्तभ वभम की आसा की वायी फात कशी। तफ याजकन्मा फोरी्

"आऩने वऩता की आसानुवाय जो वललाश ककमा शै, उववे भैं प्रवन्न शूॉ। ऩयन्तु आऩ भेया त्माग न कीन्जए। अऩने ननलाव भईऄ दावी के वभान यशने दीन्जए न्जववे भैं ननत्म आऩके दळयन कय वकूॉ ।" कुॉ लय ने स्लीकाय कय मरमा औय अन्म तीनों को ऩुयस्काय देकय वलदा ककमा।

गॊधलययाज की कन्मा मश वललाश वलऴमक फात वुनकय कुॉ लय वे फोरी् "आऩने न्जवके वाथ ऩूलय भईऄ वललाश ककमा शै, उवका शक भाया जामे मश भैं नशीॊ चाशती। लशी आऩकी ऩटयानी शोने की अचधकारयणी शै। भैं उवकी छोटी फशन के वभान यशूॉगी।"

Page 12: Samarthya srot

इव प्रकाय दोनों ऩमत्नमाॉ प्रेभऩूलयक फशनों के वभान यशने रगीॊ। इन दोनों ने शी ळीर का अनुवयण ककमा इवमरए दोनों शी वुखी शुईं। एक दवूये का आदय कयके वाभने लारे के अचधकाय की यषा कयने रगीॊ।

जैवे बयतजी कशते थे कक याज्म फड ेबाई श्रीयाभ का शै औय याभजी कशते थे कक वऩता की आसानुवाय याज्म का अचधकाय बयत का शै। मश शै ळीर।

वाव वोच ेकी फशू को वुख कैवे मभरे, उवका कल्माण कैवे शो औय फशू चाशे कक भाता जी का रृदम प्रवन्न यशे.... तो मश ळीर शै।

अगय वाव चाशे कक घय भईऄ भेया कशना शी शो औय फशू चाशे कक भेया कशना शी शो, देलयानी चाशे भेया कशना शी शो औय जेठानी चाशे भेया कशना शी शो – ऐवा लातालयण शोगा तो देश ऩय चाशे ककतने शी गशने रदे शों, कपय बी जीलन भईऄ वच्चा यव नशीॊ मभरेगा। वच्चा गशना तो ळीर शै।

वत्म फोरना, वप्रम फोरना, भधयु फोरना, हशतालश फोरना औय कभ फोरना, जीलन भईऄ व्रत यखना, ऩयहशत के कामय कयना इववे ळुद्ध अन्त्कयण का ननभायण शोता शै। न्जवके ळुद्ध अन्त्कयण का ननभायण नशीॊ शुआ लश चाशे अऩनी स्थरू कामा को ककतने शी ऩप-ऩाऊडय-रारी औय लस्त्रारॊकायों वे वुवन्ज्जत कय दे, रेककन बीतय की तनृद्ऱ नशीॊ मभरेगी, रृदम का आनन्द नशीॊ मभरेगा।

स्लाभी याभतीथय अभेरयका गमे थे। उनके प्रलचन वुनने के मरए रोग इकटे्ठ शो जाते। एक फाय एक भहशरा आई। उवके अॊग ऩय राखों रूऩमे के शीये जक्तडत अरॊकाय रदे थे। कपय बी लश भहशरा फडी दु् खी थी। प्रलचन ऩूया शोते शी लश स्लाभी याभतीथय के ऩाव ऩशुॉची औय चयणों भईऄ चगय ऩडी। फोरी्

"भुझ ेळान्न्त दो..... भैं फशुत दु् खी शूॉ। कृऩा कयो।"

स्लाभी याभतीथय ने ऩूछा् "इतने भूल्मलान, वुन्दय तेये गशन,े लस्त्र-आबूऴण ! तू इतनी धनलान ! कपय तू दु् खी कैवे ?"

"स्लाभी जी ! मे गशने तो जैवे गधी ऩय फोझ रदा शो ऐवे भुझ ऩय रदे शैं। भुझ ेबीतय वे ळाॊनत नशीॊ शै।"

अगय ळीररूऩी बूऴण शभाये ऩाव नशीॊ शै तो फाशय के लस्त्रारॊकाय, कोट-ऩैन्ट-टाई आहद वफ पाॉवी जैवे काभ कयते शैं। चचत्त भईऄ आत्भ-प्रवाद शै, बीतय प्रवन्नता शै तो लश ळीर व,े वदगुणों वे। ऩयहशत के मरए ककमा शुआ थोडा वा वॊकल्ऩ, ऩयोऩकायाथय ककमा शुआ थोडा-वा काभ रृदम भईऄ ळान्न्त, आनन्द औय वाशव रे आता शै।

अगय अनत उत्तभ वाधक शै तो उवे तीन हदन भईऄ आत्भ-वाषात्काय शो वकता शै। तीन हदन के बीतय शी ऩयभात्भ तत्त्ल की अनुबूनत शो वकती शै। जन्भ-भतृ्मु के चक्कय को तोडकय

Page 13: Samarthya srot

पईऄ क वकता शै। ऩरृ्थली जैवी वशनळीरता उवभईऄ शोनी चाहशए। ऐवा नशीॊ कक इधय-उधय की थोडी वी फात वुनकय बागता कपये।

ऩरृ्थली जैवी वशनळक्ति औय वुभन जैवा वौयब, वूमय जैवा प्रकाळ औय मवॊश जैवी ननबीकता, गुरूओॊ जैवी उदायता औय आकाळ जैवी व्माऩकता। ऩानी भईऄ ककवी का गरा घोंटकय दफामे यखे औय उवे फाशय आने की जैवी तडऩ शोती शै ऐवी न्जवकी वॊवाय वे फाशय ननकरने की तीव्र तडऩ शो, उवको जफ वदगुरू मभर जाम तो तीन हदन भईऄ काभ फन जाम। ऐवी तैमायी न शो तो कपय उऩावना, वाधना कयते-कयते ळुद्ध अन्त्कयण का ननभायण कयना शोगा।

लेद के दो वलबाग शै- प्रभाण वलबाग औय ननभायण वलबाग। जीलात्भा का लास्तवलक स्लरूऩ क्मा शै ? इवका जो सान शै उवे 'लेदान्त' कशते शैं। मश शै प्रभाण वलबाग। दमा, भैत्री, करूणा, भुहदता, दान, मस, तऩ, स्भयण, ऩयहशत, स्लाध्माम, आचामय-उऩावना, इद्श-उऩावना आहद जो कभय शैं मे ळुद्ध अन्त्कयण का ननभायण कयते शैं। न्जवके ळुद्ध अन्त्कयण का ननभायण नशीॊ शुआ लश प्रभाण वलबाग का आनन्द नशीॊ रे ऩाता। वत्कभय, वाधन, आचामोऩावना आहद कयते-कयते वाधक प्रभाण वलबाग का अचधकायी फन जाता शै।

आज कर शभ रोग प्राम् ननभायण वलबाग के अचधकायी शैं। कीतयनाहद वे ळुद्ध अन्त्कयण का ननभायण शोता शै, वदबाल बाल का ननभायण शोता शै। वदबाल कशाॉ वे शोता शै ? ळुद्ध अन्त्कयण वे। वोने-चाॉदी के गशनों वे देश की वजालट शोती शै औय कीतयन आहद वे ळुद्ध अन्त्कयण का ननभायण शोता शै। देश की अऩेषा अन्त्कयण शभाये ज्मादा नजदीक शै। फाशय के गशने खतया ऩैदा कय देते शैं जफकक कीतयन, ध्मानरूऩी गशने खतयों को बी खतया ऩशुॉचा देते शैं। अत् ळुद्ध अन्त्कयण का ननभायण कयने लारा ळीर शी वच्चा आबूऴण शै।

ळीर भईऄ क्मा आता शै ? वत्म, तऩ, व्रत, वहशष्णुता, उदायता आहद वदगुण। आऩ जैवा अऩने मरए चाशते शैं, लैवा दवूयों के वाथ व्मलशाय कयईऄ। अऩना अऩभान नशीॊ

चाशते तो दवूयों का अऩभान कयने का वोचईऄ तक नशीॊ। आऩको कोई ठग रे, ऐवा नशीॊ चाशते तो दवूयों को ठगने का वलचाय नशीॊ कयईऄ। आऩ ककवी वे दु् खी शोना नशीॊ चाशते तो अऩने भन, लचन, कभय वे दवूया दु् खी न शो इवका ख्मार यखईऄ।

प्राखणभात्र भईऄ ऩयभात्भा को ननशायने का अभ्माव कयके ळुद्ध अन्त्कयण का ननभायण कयना मश ळीर शै। मश भशा धन शै। स्लगय की वॊऩवत्त मभर जाम, स्लगय भईऄ यशने को मभर जाम रेककन लशाॉ ईष्माय शै, ऩुण्मषीणता शै, बम शै। न्जवको जीलन भईऄ ळीर शोता शै उवको ईष्माय, ऩुण्मषीणता मा बम नशीॊ शोता। ळीर आबूऴणों का बी आबूऴण शै।

भीया के ऩाव कौन-वे फाह्य आबूऴण थे ? ळफयी ने ककतने गशने ऩशन ेशोंगे ? लनलाव क वभम द्रोऩदी ने कौन-वे गशने वजामे शोंगे ? ळीर के कायण शी आज ले इनतशाव को जगभगा यशी शैं।

Page 14: Samarthya srot

उदायता देखनी शो तो यॊनतदेल की देखो। दान कयते-कयते अककॊ चन शो गमे। जॊगर भईऄ ऩड ेशैं बूखे-प्मावे। कापी वभम के फाद कुछ बोजन मभरा औय ज्मों शी ग्राव भुख तक ऩशुॉचा कक बूखा अनतचथ आ गमा। स्लमॊ बूखे यशकय उवे तदृ्ऱ ककमा। दवूयों की षुधाननलवृत्त के मरए अऩने ळयीय का भाॊव बी काट-काटकय देने रगे। कैवी अदबुत दानलीयता औय उदायता !

वाधक भईऄ यॊनतदेल जैवी दानलीयता औय उदायता शोनी चाहशए।

उदायता ऩदाथों की बी शोती शै औय वलचायों की बी शोती शै। ककवी ने कुछ कश हदमा, अऩभान कय हदमा तो फात को ऩकड भत यखखमे। जो फीत गई वो फीत गई। उववे छुटकाया नशीॊ ऩाएॉगे तो अऩने को शी दु् खी शोना ऩडगेा। जगत को वुधायने का ठेका शभने-आऩने नशीॊ मरमा शै। अऩने को शी वुधायने के मरए शभाया आऩका जन्भ शुआ शै। भाॉ के ऩेट वे जन्भ मरमा, गुरू के चयणों भईऄ गमा औय ऩूया वुधय गमा ऐवा नशीॊ शोता। जीलन के अनुबलों वे गुजयते-गुजयते आदभी वुधयता शै, ऩायॊगत शोता शै औय वॊवाय-वागय वे ऩाय शो जाता शै। व्मक्ति भईऄ अगय कोई दोऴ न यशे तो उवे अबी ननवलयकल्ऩ वभाचध रग जाम औय लश ब्रह्मरीन शो जाम।

याभकृष्ण ऩयभशॊव फाय-फाय वत्वॊग वे उठकय यवोईघय भईऄ चरे जाते औय फने शुए व्मॊजन ऩकलानों के फाये भईऄ ऩूछताछ कयते। ळायदा भाॉ कशतीॊ-

"आऩ तत्त्लचचन्तन की ऊॉ ची फात कयते शैं औय कपय तुयन्त दार, वब्जी, चटनी की खफय रेने आ जाते शैं ! रोग क्मा कशईऄगे ?"

याभकृष्ण फोरे् "मश भाॉ की कोई रीरा शै। भेयी जीलन-नाल तो ब्रह्मानॊद-वागय की ऐवी भझधाय भईऄ शै कक कोई उवभईऄ फैठ न वके। इवीमरए भाॉ ने भेये चचत्त को न्जह्वा के यव भईऄ ळामद रगा हदमा शै। न्जह्वायव के जरयमे भैं फाशय के जगत भईऄ आ जाता शूॉ। न्जव हदन मश न्जह्वायव छूटा तो वभझ रेना... उवी हदन शभायी जीलन-नाल ककनाया छोडकय वागय की भझधाय भईऄ ऩशुॉच जाएगी। कपय मश देश हटकेगी नशीॊ।"

....औय शुआ बी ऐवा शी। एक हदन ळायदाभखण देली बोजन की थारी वजाकय याभकृष्ण देल के वभष रामी। थारी को देखकय ऩयभशॊव जी ने भुॉश पेय मरमा। ळायदा भाॉ को उनकी फात माद आ गमी.... शाथ वे थारी चगय ऩडी। ढाई-तीन हदन भईऄ शी उव भशान ्वलबूनत ने अऩनी जीलनरीरा वभेट री।

शभ रोगों भईऄ कोई-न-कोई दोऴ यशता शै, आवक्ति यशती शै। दोऴों वे देश जकडा यशता शै। अगय दोऴ अनेक शोंगे तो अनेक जन्भों की मात्रा कयलामईऄगे। दोऴों के वाथ न्जतना तादात्म्म शोगा, उतने शभ दोऴों वे प्रबावलत शोंगे। ईद्वय के वाथ शभाया न्जतना तादात्म्म शोगा, आत्भदेल के वाथ न्जतना तादात्म्म शोगा, ळीर के स्लबाल वे न्जतना तादात्म्म शोगा, इतने मे दोऴ ननदोवऴता भईऄ फदरते जाएॉगे।

धन का रोब, वत्ता का रोब, मळ का रोब, काभ का वलकाय मे वफ शैं तो केलर लवृत्त.... केलर वॊवलत।् धन के प्रनत काभना जगती शै तो लश रोब फनती शै, व्मक्ति के प्रनत काभना

Page 15: Samarthya srot

जगती शै तो लश काभ फनती शै। शै लश एक शी वॊवलत।् लश वॊवलत ्अगय चतैन्मघन ऩयभात्भा के चचन्तन भईऄ रग जाम तो फेडा ऩाय कय दे। कपय काभ, क्रोध, रोब का प्रबाल तुम्शईऄ प्रबावलत नशीॊ कय वकेगा। कपय खाते शुए बी बोजन के स्लाद भईऄ फॉधोगे नशीॊ। रेते-देते शुए बी रेन-देन के कत्तृयत्ल अमबभान भईऄ फॉधोगे नशीॊ। तुम्शाये ळुद्ध अन्त्कयण का ननभायण शोता जाएगा। ऐवा कयते-कयते आत्भस्लरूऩ का फोध शो गमा तो अन्त्कयण फाचधत शो जामेगा। खा यशे शैं कपय बी नशीॊ खाते, रेन-देन कय यशे शैं कपय बी कुछ नशीॊ कयते।

ळीर आहद वदगुणों द्राया ळुद्ध अन्त्कयण का ननभायण ककमा जाता शै। कल्माण का दवूया उऩाम शै अन्त्कयण वे वम्फन्ध-वलच्छेद कयने का। अन्त्कयण वे वम्फन्ध-वलच्छेद कयने भईऄ वपर शो गमे तो लेदान्त दळयन के वलोच्च आदळों का वाषात्काय शो वकता शै। ळुद्ध अन्त्कयण का ननभायण कयने भईऄ वपर शो गमे तो बक्ति-दळयन के भधयु अभतृ का आस्लाद प्राद्ऱ शो जाता शै। ळुद्ध अन्त्कयण का ननभायण ईद्वय-बक्ति भईऄ फडी वशाम कयता शै औय ईद्वय-तत्त्ल के वाषात्काय भईऄ वशामक शोता शै।

व्मक्ति अगय धामभयक शो तो अऩने मरए शी नशीॊ, ऩरयलाय औय वभाज के मरए बी उऩमोगी शोता शै। न्जवके जीलन भईऄ धभय नशीॊ शै, उव ऩय अळाॊनत के फादर नघये यशते शैं। न्जवके जीलन भईऄ धभय शै, उवके जीलन भईऄ वाधना, वशनळक्ति, वाशव के गुण ननखयते यशते शैं। रडकी धामभयक शै तो भाॉ-फाऩ को तवल्री यशती शै। ववुयारलारे उव ऩय वलद्वाव कयते शैं. व्मक्ति धामभयक शै तो वफ रोग उव ऩय वलद्वाव कयते शैं। इव प्रकाय धामभयकता, वच्चाई, ळीर आहद ऩयभाथय भईऄ तो वशामक शैं शी, शभाये व्मलशाय-जगत भईऄ बी उऩमोगी शै। ककवी व्मक्ति के ऩाव धन शो, लैबल शो, रेककन ळीर औय वन्तोऴ न शो तो ककतना बी फडा व्मक्ति ळयाफ-कफाफ आहद भईऄ पॉ व जाता शै।

......तो उत्तभ वे उत्तभ बूऴण शै ळीर। कपय ळॊकयाचामय जी आगे कशते शैं कक उत्तभ वे उत्तभ तीथय क्मा शै ? अऩना वलळुद्ध भन

शी उत्तभ तीथय शै। गॊगा, मभुना, गोदालयी, नभयदा, काळी, भथयुा, ऩुष्कय आहद वफ तीथय तो शैं रेककन ले फाशय के तीथय शैं। वलळुद्ध शुआ भन जफ ऩयभात्भदेल भईऄ डूफता शै तफ लश उत्तभ वे उत्तभ तीथय भईऄ स्नान कयता शै। मश तीथय बी उवे उत्तभ तीथय भईऄ अथायत ्ऩयभात्भदेल भईऄ डूफे शुए वॊत भशाऩुरूऴों के द्राया मभरता शै। तात्ऩमय मश शै कक उत्तभ वे उत्तभ तीथय अऩना वलळुद्ध भन शै।

वुनी शै एक कशानी् एक वऩता के दो फेटे थे। वऩता का स्लगयलाव शुआ। छोटे फेटे ने अऩने बाई वे कशा् "भैं

तीथायटन कयने जा यशा शूॉ। वऩता जी की वॊऩवत्त शभ आधी-आधी फाॉट रेलईऄ।"

फडा बाई वशभत शोते शुए फोरा् "अच्छा बैमा ! तीथयमात्रा कयने जाता शै तो बरे जा। भेया मश तुम्फा बी वाथ भईऄ रेते जा। उवे वफ तीथों भईऄ घुभाना, वफ जगश स्नान कयाना, देल-दळयन कयाना। भेये फदरे भेया मश तुम्फा शी तीथायटन कय आएगा। तीथयमात्रा भईऄ जो खचय शोगा, आधा भैं दूॉगा।"

Page 16: Samarthya srot

छोटा बाई फड ेबाई का तुम्फा रे गमा। तीथों भईऄ घुभात,े ऩवलत्र स्थानों भईऄ नशराते, देलदळयन कयाते शुए घय लाऩव रौटा तो फड ेबाई ने अऩना तुम्फा लाऩव मरमा औय खचय का आधा हशस्वा चकुा हदमा। कपय तुम्फे को छीरा औय बीतय वे थोडा चखा तो कडला शी कडला। लश छोटे बाई वे फोरा्

"मश तुम्फा इतने तीथों भईऄ घूभा, वरयताओॊ भईऄ नशामा, देलदळयन ककमे, कपय बी कडला शी यशा। अबी भधयुता नशीॊ आई। मश तो फाशय वे शी नशामा। बीतय इवका स्नान नशीॊ शुआ। इवके बीतय जो चीज यखईऄगे लश बी कडली शो जामेगी।"

फडा बाई चतुय था। तुम्फे को कॊ कड-मभट्टी-याख आहद डारकय खफू यगडा। कपय ऩानी वे अच्छी तयश धोमा तो उवकी कडलशाट दयू शो गमी। अफ तुम्फे भईऄ जो कुछ यखे लश चीज लैवी शी ळुद्ध फनी यशे। छोटा बाई वभझ गमा कक देश को फाशय के तीथों भईऄ स्नान कयाना ठीक शै, अच्छा शै रेककन अऩने बीतय ळुद्धीकयण वे शी वच्चा तीथयत्ल भशवूव शोता शै।

भन एक तुम्फा शै। ळीर, शरयनाभरूऩी ऩाऊडय, कानमक-लाचचक-भानमवक वत्कभयरूऩी कॊ कड औय प्रब-ुप्रेभरूऩी ऩानी उवभईऄ डारकय उवे अच्छी तयश धो डारो। कपय वाषीबाल की ननगाश वे उवे वुखाओ। मश भनरूऩी तुम्फा जफ ठीक तयश वे धरुकय कपय वूख जाता शै तफ वफ लस्तुएॉ उवभईऄ अभतृ जैवी यशती शैं। भनरूऩी तुम्फा जफ ऩवलत्र शो जाता शै तफ अभतृभम जीलन का अनुबल कया देता शै।

....तो वफ तीथों भईऄ उत्तभ तीथय शै अऩना अन्तभुयख भन, आत्भाकाय लवृत्तलारा भन। अऩने भन के ऩवलत्र शोने ऩय तीथों भईऄ जाएॉगे तो भशाऩुण्म शोगा। भन ऩवलत्र नशीॊ तो तीथय भईऄ जाने का ऩूया राब नशीॊ शोगा।

ऩवलत्र भनलारा भनुष्म भशाऩुरूऴों के ऩाव जाते शी तत्त्लसान भईऄ ऩशुॉच वकता शै। अऩवलत्र भनलारा ळॊकाळीर आदभी घणृा वे मुि शोकय वत्वॊग भईऄ फहढमा-व-ेफहढमा फात वुनेगा तो बी उवको यॊग नशीॊ रगेगा। शभाया चचत्त न्जतना ऩवलत्र औय ननदोऴ शोता शै उतना शी शभईऄ तीथय का बी राब शोता शै।

तीवयी फात् जगत भईऄ त्मागने मोनम क्मा शै ? कनक औय कान्ता। कनक भाने वुलणय अथायत ्धन औय कान्ता भाने स्त्री। त्मागी, वलयि वॊन्मावी के मरए मे दोनों चीजईऄ भूर वे औय बाल वे त्माग देने मोनम शैं। गशृस्थ इन दोनों को भूर वे नशीॊ त्माग वकता क्मोंकक इन दोनों के बफना गशृस्थ जीलन हटकेगा नशीॊ। अत् इनकी आवक्ति त्मागईऄ। 'कनक-कान्ता के बफना भैं जी नशीॊ वकता' – ऐवी धायणा जो घुव गई शै उवका बीतय वे त्माग कयईऄ। लास्तल भईऄ, शभ वफ चीजों के बफना बी जी वकते शैं, ऩयन्तु अऩने चतैन्मस्लरूऩ आत्भदेल के बफना नशीॊ जी वकते।

कनक औय कान्ता का आकऴयण जील को उन्ननत वे चगया देता शै। इव आकऴयण ने कई जऩी-तऩी-मोगी-त्माचगमों को चगयाकय यख हदमा शै। चगय जाना मश प्रभाद शै, रेककन चगयकय न उठना मश ऩाऩ शै।

Page 17: Samarthya srot

अन्त्कयण की अलस्थाएॉ फदरती यशती शैं। जो अन्त्कयण की अलस्थाओॊ वे ऩाय गमे शैं उन भशाऩुरूऴों की फात ननयारी शै, रेककन अन्त्कयण के दामये भईऄ जीने लारे शभ रोगों को ळीर औय सान का अनत आदय कयके वालधान शोकय यशना चाहशए।

ऩुरूऴ वाधक के मरए स्त्री का आकऴयण छोडना आलश्मक शै औय भहशरा वाधक के मरए ऩुरूऴ का आकऴयण छोडना आलश्मक शै। जफ तक देश के वलकायी आकऴयणों भईऄ चचत्त डूफता यशेगा, तफ तक न वॊवाय भईऄ यव मभरेगा औय न तत्त्लसान भईऄ यव मभरेगा। फाह्य आकऴयण का यव न्जतना कभ शोता जामेगा उतना आन्तरयक यव ळुरू शोता जामेगा। न्जतना आन्तरयक यव फढेगा उतना फाह्य आकऴयण नशीॊ यशेगा। तफ तुभ वॊवाय भईऄ हदखोगे, व्माऩाय-धन्धा-योजगाय कयने लारे हदखोगे, वन्तान को जन्भ देने लारे हदखोगे, दवूयों की नजयों भईऄ तभाभ कक्रमा-कराऩ कयते शुए हदखोगे रेककन लास्तल भईऄ तुभ कशाॉ शो मश तुम्शी जानोगे अथला कोई औय ब्रह्मलेत्ता जानईऄगे।

अऩने वलऴम भईऄ सान शोता शै औय दवूये के वलऴम भईऄ अनुभान शोता शै। अनुभान वे बरे कोई फुया कश दे रेककन तुम्शाये हदर भईऄ दु् ख नशीॊ शोगा। तुम्शईऄ कोई बरा कश दे रेककन बीतय वे बरा नशीॊ शो तो दवूयों का बरा कशना बी तुम्शईऄ तवल्री नशीॊ देगा। कोई तुम्शईऄ बरा कश दे इववे इतना बरा नशीॊ शोता न्जतना तुम्शाया भन न्स्थय शोने वे तुम्शाया बरा शोता शै। कोई तुम्शईऄ फुया कय दे इववे इतना फुया नशीॊ शोता न्जतना तुम्शाया भन अन्स्थय, वलकायी शोने वे तुम्शाया फुया शोता शै। अऩनी आत्भननद्षा औय अऩना स्लरूऩ शी कल्माण का धाभ शै। देश को वजाना, उवे ठीक यखना, देश की भतृ्मु वे बमबीत शोना, ननन्दा वे बमबीत शोना, प्रळॊवा के मरए रारानमत शोना, मे वफ कल्माण वे लॊचचत कयने लारी फातईऄ शैं। इनभईऄ उरझ ेशुए रोग ऩयेळान यशते शैं।

षभा, ळौच, न्जतेन्न्द्रमता मे वफ वदगुण ळीर के अन्तगयत आते शैं, दैली वॊऩवत्त के अॊतगयत आते शैं। ईद्वय प्रानद्ऱ की तीव्र इच्छा व ेआधी वाधना शो जाती शै, तभाभ दोऴ दयू शोने रगते शैं। जगत के बोग ऩाने की इच्छाभात्र वे आधी वाधना नद्श शो जाती शै, अन्त्कयण भमरन शोने रगता शै।

'श्रीमोगलामळद्ष भशायाभामण' भईऄ मरखा शै् "इव जील की इच्छा न्जतनी-न्जतनी फढती शै उतना-उतना लश छोटा शो जाता शै। न्जतनी इच्छा औय तषृ्णाओॊ का त्माग कयता शै उतना लश भशान ्शो जाता शै।"

वॊवाय के वुख ऩाने की इच्छा दोऴ रे आती शै औय आत्भवुख ऩाने की इच्छा वदगुण रे आती शै। ऐवा कोई दगुुयण नशीॊ जो वॊवाय के बोग की इच्छा वे ऩैदा न शो। व्मक्ति फुवद्धभान शो, रेककन बोग की इच्छा उवभईऄ दगुुयण रे आमेगी। चाशे ककतना बी फुद्धू शो, रेककन ईद्वय प्रानद्ऱ की इच्छा उवभईऄ वदगुण रे आएगी।

फशुत बोचगमों के फीच वाधक जाता शै तो फशुतों के वॊकल्ऩ, द्वावोच्छलाव वाधक को नीच ेरे आते शैं। उवका ऩुयाना अभ्माव कपय उवे वालधान कय देता शै। अत् मोगाभ्मावी वाधकों को चाहशए कक ले बोचगमों के वॊऩकय वे अऩने को फचाते यशईऄ , आदय वे ळीर का ऩारन कयते यशईऄ।

Page 18: Samarthya srot

ळीर को शी अऩना जीलन फना रईऄ। इववे वाधना की यषा शोगी। .....ओय चरते-चरते कौन नशीॊ चगया ? चगयालट के, ऩतन के कई प्रवॊग जीलन भईऄ आ जाते शैं। चगयकय कपय वॉबर जाने लारा वाधक कल्माण के भागय ऩय आगे फढ वकता शै।

एक वलधला थी। काभातुय शोकय ककवी के वाथ वॊवाय व्मलशाय कय मरमा। फात खरु गई तो गाॉललारों ने उवे दयुाचारयणी घोवऴत कय हदमा। गाॉल के भुखखमा ने शुक्भ कय हदमा कक कर इव ऩावऩनी को वजा देने के मरए गाॉल केवबी रोग एकबत्रत शोंगे औय एक-एक ऩत्थय उठाकय भायईऄगे।

वफ रोग शाथ भईऄ ऩत्थय रेकय भायने के मरए तैमाय शो गमे तो एक कवल ने फुरन्द आलाज भईऄ गामा कक् "इव अऩयाचधनी को अऩयाध की वजा तो लशी देगा, जो स्लमॊ ननयऩयाध शो। न्जवने अऩने जीलन भईऄ कबी कोई अऩयाध न ककमा शो लशी इवको ऩत्थय भायेगा।"

वफके शाथ वे ऩत्थय एक-एक कयके नीच ेचगय ऩड।े अऩयाचधनी नायी ने ऩद्ळाताऩ के ऩालन झयने भईऄ नशाकय अऩना ऩाऩ धो मरमा।

'वाभने लारे व्मक्ति भईऄ बी भैं शी शूॉ' ऐवा वोच-वभझकय उवको वुधयने का भौका देना चाहशए। स्लाभी याभतीथय फोरते थे् "कुछ रोग अल्ऩ फुवद्ध के शोते शैं जो दवूयों के दोऴ शी देखते यशते शैं। 'पराना आदभी ऐवा शै....लैवा शै....' इव दोऴदृवद्श के कीचड वे फाशय शी नशीॊ ननकरते। गुणों को छोडकय दोऴों ऩय शी उनकी दृवद्श हटकती शै। 'घोडा दधू नशीॊ देती शै इवमरए लश फेकाय शै औय गाम वलायी के काभ नशीॊ आती इवमरए फेकाय शै। शाथी चौकी नशीॊ कयता इवमरए फेकाय शै औय कुते्त ऩय ळोबामात्रा नशीॊ ननकारी जाती इवमरए फेकाय शै....' आहद आहद।"

अये बैमा ! घोड ेवे वलायी का काभ रे रो औय गाम वे दधू ऩा रो। शाथी ळोबामात्रा भईऄ रे रो औय कुते्त वे चौकी कयलाओ। वफ उऩमोगी शैं। अऩनी-अऩनी जगश वफ फहढमा शैं।

ककवी भईऄ वौ गुण शों औय एक अलगुण शो तो इव अलगुण के कायण उवकी अलशेरना कयना मश तो अऩने शी जीलन वलकाव की अलशेरना कयने के फयाफय शै। तुझ ेजो अच्छा रगे लश रे रे, फुये के मरए लश न्जम्भेदाय शै। दवूयों की फुयाई का चचन्तन कयने वे अन्त्कयण तेया भमरन शोगा बैमा ! उव अलगुण के कायण उवका अन्त्कयण तो भमरन शुआ शी शै रेककन तू उवका चचन्तन कयके अऩना हदर क्मों खयाफ कयता शै ?

बगलान फुद्ध के ऩाव दो मभत्र आमे औय फोरे् "बगलान ! मश भेया वाथी कुते्त को वदा वाथ यखता शै। वदा 'टीऩू-टीऩू' ककमा कयता शै। वोता शै तो बी वाथ भईऄ वुराता शै। ...तो फताइमे, भयते वभम तक टीऩू का शी चचन्तन कयेगा तो कुत्ता फनेगा कक नशीॊ ?"

दवूये मभत्र ने कशा् "बन्ते ! भेयी फात बी वुननमे। भेया मश मभत्र बफल्री को वदा वाथ भईऄ यखता शै, खखराता-वऩराता शै, घुभाता शै, अऩने वाथ वुराता शै औय वदा 'भीनी-भीनी' ककमा कयता शै। ....तो फताइमे, लश बफल्री फनेगा कक नशीॊ ?"

Page 19: Samarthya srot

फुद्ध भुस्कुयाकय फोरे् 'नशीॊ, लश बफल्री नशीॊ फनेगा। बफल्री तू फनेगा क्मोंकक उवकी बफल्री का चचन्तन तू ज्मादा कयता शै। लश तेये कुते्त का चचन्तन कयता शै इवमरए लश कुत्ता फनेगा।"

ककवी के दोऴ देखकय शभ उवके दोऴों का चचन्तन कयते शैं। शो वकता शै, लश इतना उन दोऴों का अऩयाधी न शो न्जतना शभाया अन्त्कयण शो जामेगा। इवमरए अऩने अन्त्कयण की वुयषा कयनी चाहशए, उवके ळुद्धीकयण भईऄ रगे यशना चाहशए। ळीर औय वन्तोऴरूऩी बूऴण वे उवे वजाना चाहशए। ळीर शी फहढमा वे फहढमा आबूऴण शै। फाशय के आबूऴण खतया ऩैदा कयते शैं, फाशय के आबूऴण ईष्माय ऩैदा कयते शैं।

फुद्ध एक वलळार भठ भईऄ ऩाॉच भाव तक ठशये शुए थे। गाॉल के रोग ळाभ के वभम उनकी लाणी वुनने आ जाते। वत्वॊग ऩूया शोता तो रोग फुद्ध के वभीऩ आ जाते। उनके वभष अऩनी वभस्माएॉ यख देते। ककवी को फेटा चाहशए तो ककवी को धन्धा चाहशए, ककवी को योग का इराज चाहशए तो ककवी को ळत्र ुका उऩाम चाहशए। ककवी को कुछ ऩयेळानी, ककवी को कुछ औय। मबषुक आनन्द ने ऩूछा्

"बगलन ्! मशाॉ श्रीभान रोग बी आते शैं, भध्मभ लगय के रोग बी आते शैं औय छोटे-छोटे रोग बी आते शैं। वफ दु् खी-शी-दु् खी। इनभईऄ कोई वुखी शोगा ?"

"शाॉ, एक आदभी वुखी शै।"

"फताइमे, कौन शै लश ?"

"जो आकय ऩीछे चऩुचाऩ फैठ जाता शै औय ळाॊनत वे वुनकय चरा जाता शै। कर बी आएगा। उवकी ओय वॊकेत कयके फता दूॉगा।"

दवूये हदन फुद्ध ने इळाये वे फतामा। आनन्द वलन्स्भत शोकय फोरा् "बन्ते ! लश तो भजदयू शै। कऩडों का हठकाना नशीॊ औय झोंऩडी भईऄ यशता शै। लश वुखी कैवे ?"

"आनन्द ! अफ तू शी देख रेना।"

फुद्ध ने वफ रोगों वे ऩूछा् "आऩको क्मा चाहशए ?"

वफने अऩनी-अऩनी चाश फतामी। ककवी को धन चाहशए, ककवी को वत्ता चाहशए, ककवी को मळ चाहशए, ककवी को वलद्रता चाहशए। न्जवके ऩाव धन था, वत्ता थी उवको ळाॊनत चाहशए। वफ रोग ककवी-न-ककवी ऩयेळानी वे ग्रस्त थे। उनके अन्त्कयण खदफदाते थे। आखखय भईऄ उव भजदयू को फुराकय ऩूछा गमा्

"तुझ ेक्मा चाहशए ? क्मा शोना शै तुझ े?"

भजदयू प्रणाभ कयते शुए फोरा् "प्रबो ! भुझ ेकुछ चाहशए बी नशीॊ औय कुछ शोना बी नशीॊ। जो शै, जैवा शै, प्रायब्ध फीत यशा शै। धन भईऄ मा धन के त्माग भईऄ, लस्त्र औय आबूऴणों भईऄ वुख नशीॊ शै। वुख तो शै वभता के मवॊशावन ऩय औय शे बन्ते ! लश आऩकी कृऩा वे भुझ ेप्राद्ऱ शो यशा शै।"

Page 20: Samarthya srot

भुझ ेमश ऩाना शै..... मश कयना शै..... मश फनना शै.... ऐवी खट-खट न्जवकी दयू शो गई शो, लश अऩने याभ भईऄ आयाभ ऩा रेता शै।

चौथी फात् "शभेळा वुनने मोनम क्मा शै ? वदगुरू औय लेद के लचन। वागय वलळार जरयामळ वे बया शै रेककन शभ उव जर वे न चाम फना वकते शैं, न

खखचडी ऩका वकते शैं। लशी वागय का ऩानी वूमय-प्रकाळ वे ऊऩय उठकय फादर फन जाता शै। स्लानत नषत्र की फूॉद फनकय फयवता शै तो वीऩ भईऄ भोती फन जाता शै।

ऐवे शी लेद के लचनों की अऩेषा ब्रह्मसानी वदगुरूओॊ के लचन ज्मादा भूल्मलान शोते शैं। लेद वागय शै तो ब्रह्मसानी गुरू का लचन फादर शै। वदगुरू लेदों भईऄ वे, ळास्त्रईऄ भईऄ वे लाक्म रेकय अऩने अनुबल की मभठाव मभराकय वाधक के रृदम को ऩयभात्भ यव वे ऩरयतदृ्ऱ कयते शैं। ले शी लचन वाधक रृदम भईऄ ऩचकय भोती फन जाते शैं।

ईळकृऩा बफन गुरू नशीॊ, गुरू बफना नशीॊ सान। सान बफना आत्भा नशीॊ, गालहशॊ लेदऩुयान।।

ब्रह्म भन एल इन्न्द्रमों वे ऩये शै। ब्रह्मसानी वदगुरू जफ भैं उऩदेळ दे यशा शूॉ.. इव बाल वे बी ऩये शोते शैं तफ उनका सान वाधक के रृदम भईऄ अऩयोष शोता शै। लेद की ऋचाएॉ ऩवलत्र शैं, लेद का सान ऩवलत्र शै, रेककन ब्रह्मलेत्ता आत्भसानी भशाऩुरूऴ के लचन तो ऩयभ ऩवलत्र शैं। ले वाधक को आत्भानुबूनत भईऄ ऩशुॉचा देते शैं।

लेद ऩढने वे ककवी को आत्भ-वाषात्काय शो जाम मश गायॊटी नशीॊ रेककन वदगुरू के लचनों वे आत्भ-वाषात्काय शो जाम मश कइमों के जीलन भईऄ घहटत शुआ शै। इवीमरए नानकजी ने कशा शै कक्

गुरू की फानी फानी गुय। फानी फीच अभतृ वाया।।

गुरुओॊ की लाणी शी गुरू शै। उनकी लाणी भईऄ शी वाया अभतृ बया यशता शै। ....शभेळा वुनने मोनम क्मा शै ? वदगुरू औय लेद के लचन। मे लचन अगय जीलन भईऄ आ

जामईऄ तो जीलन फडा ननबीक, ननद्रयन्द्र औय ननन्द्ळॊत फन जाता शै। द्रन्द्रों के फीच बमों के फीच, चचन्ताओॊ के फीच जीते शुए बी जीलन ननन्द्ळॊत शोता शै।

भनुष्म अऩनी आगाभी न्स्थनत का आऩ ननभायता शै, अऩने बानम का आऩ वलधाता शै। लश जो कुछ वोचता शै, फोरता शै, वुनता शै, देखता शै उवका प्रबाल उवके जीलन भईऄ प्रनतबफन्म्फत शोता शै।

ध्लनन के प्रबाल का ननयीषण कयने के मरए कुछ प्रमोग ककमे गमे। एक कागज ऩय फायीक येती के कण बफछा हदमे गमे। कागज के नीच ेवलमबन्न प्रकाय के ळब्द औय ध्लनन ककमे गमे। शयेक ळब्द ल ध्लनन के प्रबाल वे कागज ऩय बफछे शुए फायीक कणों भईऄ अरग-अरग

Page 21: Samarthya srot

आकृनतमाॉ फनती देखी गईं। जैवे ॐ का उच्चायण, याभ की धनु, अल्रा शो अकफय... की फाॉग, कोई वॊगीत की तजय, गन्दी गारी इत्माहद। वूक्ष्भ मॊत्रों वे मश ननयीषण ककमा गमा।

येत के कण ऩय ध्लनन का प्रबाल ऩडता शै तो शभाये यिकणों ऩय, दे्वतकणों ऩय, भन ऩय, फुवद्ध ऩय, ध्लनन के प्रबाल ऩड ेइवभईऄ क्मा वन्देश शै ? वलमबन्न ध्लननमों के प्रबाल वे शभायी जीलन-ळक्ति का वलकाव मा वलनाळ अलश्म शोता शै। मश लैसाननक वत्म शै।

बायत के प्रमवद्ध वॊगीत काय ओभकायनाथ ठाकुय देळ के प्रनतननचध के रूऩ भईऄ इटरी गमे शुए थे। बोजन वभायॊब के वभम लशाॉ के ळावक भुवोमरनी ने उनवे ऩूछा्

"भैंने वुना शै कक बायत भईऄ श्रीकृष्ण नाभक गामईऄ चयाने लारा चयलामा फॊवी भईऄ पूॉ क भायता औय अॊगुमरमाॉ घुभाता तो गामईऄ एकतान खडी यश जातीॊ, फछड ेचथयकने रगते, भोय ऩॊख पैराकय नाचने रगते, अनऩढ नलारफार औय गोवऩमाॉ आनन्द वे झूभने रगतीॊ। भेयी वभझ भईऄ नशीॊ आता। क्मा मश वच शै ? भुझ ेइन फातों भईऄ वलद्वाव नशीॊ शोता। इवके खखराप भैंने कई लिव्म हदमे शैं। आऩ बायत वे आमे शईऄ। इव वलऴम भईऄ आऩका क्मा कशना शै ?"

ककवी की वभझ भईऄ आ जामे लशी वत्म शोता शै क्मा ? वत्म अवीभ शै औय वभझने लारी फुवद्ध वीमभत शै। कपय फुवद्ध बी वत्त्लप्रधान, यजोप्रधान, तभोप्रधान शुआ कयती शै। तभोप्रधान फुवद्ध की अऩनी वीभा शोती शै, तुच्छ। यजोप्रधान फुवद्ध की अऩनी वीभा शोती शै, कुछ-कुछ। वत्त्लप्रधान फुवद्ध की अऩनी वीभा शोती शै, कुछ ठीक-ठीक रेककन अवीभ नशीॊ शोती।

फुवद्ध भाने भनत। भनत वे जो ननणयम मा मवद्धान्त ननन्द्ळत ककमे जाते शैं उन्शईऄ भत कशते शैं। भनतमाॉ फदरती यशती शैं, भत-भतान्तय शोते यशते शैं रेककन वत्म अफदर शै। उव अफदर वत्म भईऄ जो वुप्रनतवद्षत शैं ऐवे श्रीकृष्ण जफ फॊवी फजाते शोंगे तो फॊवी की ध्लनन, फॊवी का वॊगीत उव वत्म को छूकय गोऩ-गोवऩमों को झुभाने रगे, इवभईऄ क्मा आद्ळमय शै ?

ओभकायनाथ ठाकुय ने कशा् "श्रीकृष्ण जैवी शैमवमत तो भैं नशीॊ यखता। उनकी चयणयज के फयाफय बी भैं नशीॊ शूॉ। उनके वलऴम भईऄ फोरना भेये वाशव के ऩये की फात शै। रेककन शाॉ...... ळब्द की, ध्लनन की अऩनी गरयभा शोती शै। वान्त्त्लक वाज औय वॊगीत भईऄ शभायी वुऴुद्ऱ ळक्तिमों को आन्दोमरत कयने की षभता शोती शै। अबी तो मशाॉ बोजन कय यशे शैं। वॊगीत के कोई वाज-लाज नशीॊ शै औय भैं कोई अच्छा वॊगीतकाय बी नशीॊ शूॉ, अन्मथा कुछ प्रमोग कयते....." इव प्रकाय उन्शोंने भुवोमरनी को फातों भईऄ रगामा। वाभने टेफर ऩय कोई लाद्य नशीॊ था, चीनी की प्रेटईऄ औय छुयी काॉटे, चम्भच आहद ऩड ेथे। ओभकायनाथ ने फातों-फातों भईऄ उन चम्भच काॉटों वे प्रेटों को धीये-धीये तारफद्ध रूऩ वे फजानी ळुरू की। फातईऄ फन्द शोती गईं.... वॊगीत की भशकपर जभती गई। कुछ शी मभनटों भईऄ लशाॉ उऩन्स्थत वफ अनतचथगण वॊगीत के वाथ एकतान शो गमे। स्लमॊ भुवोमरनी बी झूभने रग गमा। वॊगीतस ने अऩने वाजों को औय यॊग हदमा। लातालयण भईऄ भानो कोई वलरषण नळा वा छा गमा। भुवोमरनी का मवय झूभते झूभते टेफर ऩय टकयाने रगा। ओभकायनाथ ने ऐवा फजामा कक उवका मवय रशूरुशान शोने रगा। तफ भुवोमरनी चचल्रा ऩडा्

Page 22: Samarthya srot

"फव.... फव.... फन्द कयो अऩना फजाना।"

ठाकुय ने कशा् "अऩने मवय को योक दो, झूभना फन्द कयो।"

"अफ योका नशीॊ जाता। मवय वे खनू फश यशा शै.... वशा नशीॊ जाता।"

ओभकायनाथ ने वॊगीत फन्द कय हदमा। लातालयण ळान्त शो गमा। भुवोमरनी स्लस्थ शुआ तो ओभकायनाथ ने प्माय बयी ननगाशों वे ननशायते शुए उववे कशा् "भेये जूठे चम्भचों औय प्रेटों के वॊगीत वे तुम्शायी जीलन ळक्ति आनन्न्दत शोकय तीव्रता वे आन्दोमरत शो वकती शै तो ऩयभात्भस्लरूऩ श्रीकृष्ण फॊवी फजाते शुए नुयानी नजयों वे गोऩ गोवऩमों को ननशायकय आनन्द वे झुभा दईऄ तो इवभईऄ क्मा आद्ळमय शै ?"

शभाये जीलन भईऄ फशुत वायी वॊबालनाएॉ वोमी शुई ऩडी शैं। शभ न्जव जगत भईऄ जी यशे शैं, जो कुछ जान यशे शैं लश जगत फशुत छोटा शै। शभ तो एक शी वूमय को देख यशे शैं रेककन इव वूमय वे बी राखों गुना फड-ेफड ेवूमय औय ताये आकाळगॊगा भईऄ शैं। ऐवी कई आकाळगॊगाएॉ एक ब्रह्माण्ड भईऄ शैं। ऐवे कई ब्रह्माण्डों को मथावलचध चरानेलारी जो वत्ता शै, लशी वत्ता शभाये ळयीय भईऄ फार उगाती शै, ऩैयों को ऩवायने की ताकत देती शै, भन को पुयने औय फुवद्ध को ननणयम कयने की ळक्ति देती शै। वलयत्र व्माऩक वत्ता एक शी शै। भन औय फुवद्ध न्जतने प्रभाण भईऄ उवभईऄ वलश्राॊनत ऩाते शईऄ उतने ले हदव्म शो जाते शैं। इव व्माऩक वत्ता भईऄ वलयथा वलश्राभ ऩाने का मत्न कयना चाहशए। श्रीकृष्ण कशते शैं-

अभ्मावमोगमुिेन चेतवा नान्मगामभना। ऩयभॊ ऩुरूऴॊ हदव्मॊ मानत ऩाथायनुचचन्तमन।्।

'शे ऩाथय ! ऩयभेद्वय के ध्मान के अभ्मावरूऩ मोग वे मुि, दवूयी ओय न जाने लारे चचत्त वे ननयन्तय चचन्तन कयता शुआ भनुष्म ऩयभ प्रकाळरूऩ हदव्म ऩुरूऴ को अथायत ्ऩयभेद्वय को शी प्राद्ऱ शोता शै।'

(गीता् 8.8) अभ्माव तो वफ कयते शैं। झाडू रगाने का अभ्माव नौकयानी बी कयती शै औय भतॊग

ऋवऴ के आश्रभ भईऄ ळफयी बी कयती शै। योटी फनाने का अभ्माव फालची बी कयता शै, भाॉ बी कयती शै औय गुरू के आश्रभ भईऄ मळष्म बी कयता शै। फालची का योटी फनाना नौकयी शो जाता शै, भाॉ का योटी फनाना वेला शो जाती शै औय मळष्म का योटी फनाना बक्ति शो जाती शै। नौकयानी का झाडू रगाना नौकयी शो जाती शै औय ळफयी का झाडू रगाना फन्दगी शो जाती शै।

अभ्माव तो शभ कयते शैं रेककन अभ्माव भईऄ मोग को मभरा दो। न्जव अभ्माव का प्रमोजन ईद्वय प्रानद्ऱ शै, इद्श की प्रवन्नता शै, वदगुरू की प्रवन्नता शै लश अभ्माव मोग शो जाता शै। न्जव अभ्माव का प्रमोजन वलकायों की तनृद्ऱ शै, लश अभ्माव वॊवाय शो जाता शै।

जीलन दोधायी तरलाय जैवा शै। अऩने कक्रमा-कराऩों वे भोषभागय भईऄ आने लारे वलघ्नों को बी काट वकते शैं औय आत्भोत्थान कयने लारे गुणों को बी काट वकते शैं, षीण कय वकते शैं।

Page 23: Samarthya srot

वॊगीत के वाधनों का उऩमोग 'योक एण्ड योर' भईऄ कयके जीलन ळक्ति का ह्राव बी कय वकते शैं औय बक्तिभम धनु-कीतयन भईऄ कयके जीलन ळक्ति का वलकाव बी कय वकते शैं। देलवऴय नायदजी ने 'बक्तिवूत्र' भईऄ कशा शै् तत ्कीतयनात।्

कीतयन, ध्मान औय वत्वॊग जीलन-ळक्ति का वलकाव कयके जीलनदाता भईऄ मभर जाने के मरए ऩयभ शे्रद्ष वाधन शैं। ब्रह्मलेत्ता वॊत-भशाऩुरूऴ-वदगुरू के वान्न्नध्म भईऄ मश हदव्म काभ वशजता वे शो जाता कयता शै। इवीमरए कफीयजी कशते शैं-

वत्वॊग की आधी घडी वुमभयन लऴय ऩचाव। लऴाय लयवे एक घडी अयट कपये फायों भाव।। वुख देले दु् ख को शये कये ऩाऩ का अन्त। कश कफीय ले कफ मभरईऄ, ऩयभ स्नेशी वॊत।।

ऩयभ के वाथ न्जनका स्नेश शै ऐवे वॊत जफ मभरते शैं तफ जीलन-ळक्ति का वलकाव शोता शै। कफीय जी की मश वैंकडों लऴय ऩूलय की शै, ळॊकयाचामयजी की फात वहदमों ऩूलय की शै, ळास्त्रों की फात शजायों-राखों लऴय ऩूलय की शे। इवी फात को आज के मुग भईऄ डॉ. डॉमभण्ड ने रयवचय (अनुवॊधान) कयके मवद्ध ककमा तो रोग वलद्वाव कयने रगे शैं।

वत्म ककवी रयवचय का वलऴम नशीॊ शोता, अवऩतु वाया रयवचय उव वत्म के आधाय ऩय शोता शै। वाभान्जक वत्म रयवचय का वलऴम शो वकता शै, प्राकृनतक यशस्म रयवचय का वलऴम शो वकता शै, रेककन वनातन वत्म ककवी रयवचय का वलऴम नशीॊ शो वकता। वाये रयवचय का जशाॉ अन्त आ जाता शै, लशाॉ वे वनातन वत्म का श्रीगणेळ शोता शै।

भत भनत के शोते शैं, इवमरए भतान्तय शो वकते शैं। शभाया इद्श भनत नशीॊ, शभाया इद्श भत नशीॊ रेककन कयोडों-कयोडों भनतमाॉ न्जव वन्च्चदानॊदघन ऩयभात्भा भईऄ प्रकट शोकय रीन शो जाती शैं, लश इद्श शभाया याभ..... शभाया अऩना आत्भा शै। मश शै वनातन वत्म की फात। इवी को लेद बगलान ने कशा् वत्मॊ सानॊ अनन्तॊ ब्रह्म। लश वत्मस्लरूऩ शै, सानस्लरूऩ शै।

भच्छय को कौन वे स्कूर कारेज भईऄ मळषा दी गई कक मशाॉ ऩय फैठोगे तो खाना मभरेगा ? ककवी ने मवखामा तो नशी। जशाॉ यि था लशीॊ ऩय लश फैठा। .....तो ऩयभात्भा की सान वत्ता वूक्ष्भ जीलों भईऄ बी शै। खान-ेऩीने की औय अऩनी ऩाटी की यषा कयने की फुवद्ध अगय ककवी व्मक्ति भईऄ शै तो इव फुवद्ध का कोई वलळऴे पामदा नशीॊ। इतनी फुवद्ध तो फैक्टेरयमा (जीलाणुओॊ) भईऄ बी शै। अऩनी ऩाटीलारे भईऄ औय दवूयी ऩाटीलारे भईऄ बी जो वत्म शै उव वनातन वत्म को स्लीकाय कयके अऩने अशॊकाय का आग्रश छोडकय जो जीलन की मात्रा कयता शै, लश वच्चा धनी शै, वच्चा फुवद्धभान शै, वच्चा ळीरलान ्शै। फाशय के आबूऴण वच्च ेआबूऴण नशीॊ शैं। वच्चा आबूऴण तो व्मक्ति का आन्तरयक जीलन शै। फाशय के आबूऴण तो फाशय के ळयीय को थोडी चभक-दभक दे वकते शईऄ, रेककन तुभको ले नशीॊ चभकाते। तुम्शायी लास्तवलक चभक को ले दफाते शईऄ औय अशॊकाय को जगाते शैं। श्री ळॊकयाचामय कशते शईऄ- "वच्चा आबूऴण ळीर शै औय ननत्म कत्तयव्म वत्वॊग शै।"

Page 24: Samarthya srot

लेदलचन, ळास्त्रलचन की अऩेषा जीलन्भुि ब्रह्मलेत्ता के लचन वाधक के मरए अचधक हशतालश शै। अऩौरूऴेम वनातन तत्त्ल भईऄ फठैकय ब्रह्मलेत्ता जफ फोरते शैं तफ उनकी लाणी शभायी जीलन-ळक्ति का वलकाव कयके जीलनदाता वे भुराकात कया देती शै। रृदम की गशयाई वे आने लारे उनके अनुबलननद्ष लचन शभाये कानों के द्राया रृदम की गशयाई भईऄ ऩशुॉच जाते शैं... चचत्त भईऄ वलश्रान्न्त मभरती शै.... जीलन भईऄ आनन्द, उल्राव औय भधयुता छा जाती शै।

अनुक्रभ

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

वत्वॊग-वुधा ळीर का दान

न्जव भनुष्म भईऄ ळीर शै लश वफ चीजों का अचधकायी शै। उवके ऩाव ळीर के वाथ धभय, वत्म, वदाचाय, फर औय रक्ष्भी फयाफय ननलाव कयते शैं। लश शभेळा अऩने ळीर के प्रबाल वे वाये वॊवाय भईऄ शे्रम ऩाता शै। उवे शय व्मक्ति लन्दन कयता शै। उवके ऩाव की इतनी फडी ळक्ति शभेळा उवका वाथ देती शै न्जववे कक उवके वलचायों भईऄ कोई दवुलधा उत्ऩन्न नशीॊ शोती। लश ककवी वे बी ईष्माय, दे्रऴ औय याग नशीॊ कयता, न तो ककवी ऩय क्रोध कयता शै, न ककवी वे उहद्रनन शोता शै। अऩने सान के फर ऩय लश दवूयों वे वदव्मलशाय शी कयता शै। न्जव देळ मा वभाज भईऄ ऐवे भशाऩुरूऴ शोते शैं, लश देळ मा वभाज धन्म शो जाता शै।

भशाबायत का प्रवॊग शै् इन्द्रप्रस्थ भईऄ याजा मुचधवद्षय ने याजवूम मस ककमा। उव वभम वबाभण्डऩ को नाना प्रकाय

के उऩकयणों वे वजामा गमा। उन्शईऄ देखकय दमुोधन को फडा वन्ताऩ शुआ। लशाॉ वे रौटने ऩय अऩने वऩता धतृयाद्स वे उवने मे वफ फातईऄ कशीॊ। तफ धतृयाद्स ने कशा्

"फेटा ! महद तुभ मुचधवद्षय की बाॉनत मा उनवे बी आगे फढकय याजरक्ष्भी ऩाना चाशते शो तो ळीरलान ्फनो। ळीर वे तीनों रोक जीते जा वकते शैं। ळीरलानों के मरए इव वॊवाय भईऄ कोई बी लस्तु दरुयब नशीॊ शै। भशाबाग ने वात यातों भईऄ, जन्भेजम ने तीन यातों भईऄ औय भान्धाता ने एक शी यात भईऄ इव ऩरृ्थली का याज्म प्राद्ऱ ककमा था। ले वबी याजा ळीरलान ्तथा दमारु थे। अत् उनके द्राया गुणों के भोर खयीदी शुई मश ऩरृ्थली स्लमॊ शी उनके ऩाव आ गई थी।''

दमुोधन ने ऩूछा् "भशायाज ! न्जवके द्राया उन याजाओॊ ने ळीघ्र शी बूभण्डर का याज्म ऩा मरमा, लश ळीर कैवे प्राद्ऱ शोता शै ?"

धतृयाद्स फोरे् "लत्व ! इवके वलऴम भईऄ एक इनतशाव शै, न्जवे नायदजी ने वुनामा था। प्राचीन वभम की फात शै। दैत्मयाज प्रह्लाद ने अऩने ळीर के प्रबाल वे इन्द्र का याज्म रे

मरमा औय तीनों रोगों को अऩने लळ भईऄ कय ळावन कयने रगा। उव वभम इन्द्र ने फशृस्ऩनत जी

Page 25: Samarthya srot

के ऩाव जाकय उनवे ऐद्वमय-प्रानद्ऱ का उऩाम ऩूछा औय फशृस्ऩनत ने उन्शईऄ इव वलऴम का वलळऴे सान प्राद्ऱ कयने के मरए ळुक्राचामय के ऩाव जाने की आसा दी। इन्द्र ने प्रवन्नताऩूलयक ळुक्राचामय के ऩाव जाकय कपय लशी प्रद्ल दोशयामा। ळुक्राचामय जी फोरे् "इवका वलळऴे सान भशात्भा प्रह्लाद को शी शै।"

मश वुनकय इन्द्र फशुत खळु शुए औय ब्राह्मण का रूऩ धायण कय प्रह्लाद के ऩाव गमे। लशाॉ ऩशुॉचकय उन्शोंने कशा्

"याजन ! भैं शे्रम प्रानद्ऱ का उऩाम जानना चाशता शूॉ। आऩ फताने की कृऩा कयईऄ।"

प्रह्लाद ने कशा् "वलप्रलय ! भैं तीनों रोकों के याज्मों का प्रफन्ध कयने भईऄ व्मस्त यशता शूॉ इवमरए भेये ऩाव आऩका उऩदेळ देने का वभम नशीॊ शै।"

ब्राह्मण ने कशा् "भशायाज ! जफ वभम मभरे तबी भैं आऩवे उत्तभ आचयण का उऩदेळ रेना चाशता शूॉ।"

ब्राह्मण की वच्ची ननद्षा देखकय प्रह्लाद फड ेप्रवन्न शुए औय ळुब वभम आने ऩय उन्शोंने उवे सान का तत्त्ल वभझामा। ब्राह्मण ने बी अऩनी उत्तभ गुरूबक्ति का ऩरयचम हदमा। उवने प्रशराद की इच्छानुवाय न्मामोचचत यीनत वे बरीबाॉनत उनकी वेला की। कपय वभम ऩाकय उनवे अनेकों फाय मश प्रद्ल ककमा्

"बत्रबुलन का उत्तभ याज्म आऩको कैवे मभरा ? इवका यशस्म फताइमे।"

प्रह्लाद ने कशा् "वलप्रलय ! भैं याजा शूॉ, इव अमबभान भईऄ आकय ककवी ब्राह्मण की ननन्दा नशीॊ कयता। ळुक्राचामय जफ भुझ ेनीनत का उऩदेळ कयते शैं उव वभम भैं वॊमभऩूलयक उनकी फातईऄ वुनता शूॉ, उनकी आसा को मवय ऩय धायण कयता शूॉ। ळुक्राचामय जी के फतामे शुए नीनतभागय ऩय मथा ळक्ति चरता शूॉ। ब्राह्मणों की वेला कयता शूॉ। क्रोध को जीतकय भन को काफू भईऄ यखकय इन्न्द्रमों को बी वदा लळ भईऄ ककमे यशता शूॉ। भेये इव फतायल को जानकय शी वलद्रान भुझ ेअच्छे-अच्छे उऩदेळ हदमा कयते शैं औय भैं उनके लचनाभतृ का ऩान कयता यशता शूॉ। इवमरए जैवे चन्द्रभा नषत्रों ऩय ळावन कयते शैं उवी प्रकाय भैं बी अऩने जानतलारों ऩय याज्म कयता शूॉ। ळुक्राचामय जी का नीनतळास्त्र शी इव बूभण्डर का अभतृ शै, मश उत्तभ नेत्र शै औय मशी शे्रम-प्रानद्ऱ का उत्तभ उऩाम शै।"

प्रह्लाद वे इव प्रकाय उऩदेळ ऩाकय बी लश ब्राह्मण उनकी वेला भईऄ रगा शी यशा। तफ प्रह्लाद ने कशा्

"वलप्रलय ! तुभने गुरू के रूऩ भईऄ भेयी वेला की शै। तुम्शाये इव फतायल वे प्रवन्न शोकय भैं तुम्शईऄ लय देना चाशता शूॉ। तुम्शायी जो इच्छा शो लश भाॉग रो, भैं उवे अलश्म ऩूणय करूॉ गा।"

ब्राह्मण लेळ भईऄ छुऩे शुए इन्द्र ने कशा् "भशायाज ! महद आऩ प्रवन्न शैं औय भेया वप्रम कयना चाशते शईऄ तो भुझ ेआऩका शी ळीर ग्रशण कयने की इच्छा शै। लशी लय दीन्जए।"

Page 26: Samarthya srot

मश वुनकय प्रह्लाद को फडा आद्ळमय शुआ। उन्शोंने वोचा् "मश कोई वाधायण भनुष्म नशीॊ शोगा।" कपय बी तथास्तु कशकय उवे लय दे हदमा। लय ऩाकय वलप्र-लेळधायी इन्द्र तो चरे गमे, ऩयन्तु प्रह्लाद के भन भईऄ फडी चचन्ता शुई। वोचने वगे कक क्मा कयना चाहशए भगय ककवी ननद्ळम ऩय नशीॊ ऩशुॉच वके। इतने भईऄ उनके ळयीय वे एक ऩयभ काॊनतभान,् तेजस्ली औय भूनत यभान छामा प्रकट शुई। उवे देखकय प्रह्लाद ने ऩूछा्

"आऩ कौन शैं ?"

"भैं ळीर शूॉ। तुभने भुझ ेत्माग हदमा इवमरए जा यशा शूॉ। अफ उवी ब्राह्मण के ळयीय भईऄ ननलाव करूॉ गा जो तुम्शाया मळष्म फनकय एकाग्र चचत्त वे वेलाऩयामण शो मशाॉ यशा कयता था।" मश कशकय लश तेज लशाॉ वे अदृश्म शो गमा औय इन्द्र के ळयीय भईऄ प्रलेळ कय गमा।

उवके अदृश्म शोते शी उवी तयश का दवूया तेज प्रह्लाद के ळयीय वे प्रकट शुआ। प्रह्लाद ने ऩूछा् "आऩ कौन शैं ?"

"प्रह्लाद ! भुझ ेधभय वभझो। भैं बी उव शे्रद्ष ब्राह्मण के ऩाव जा यशा शूॉ, क्मोंकक जशाॉ ळीर शोता शै, लशीॊ भैं बी यशता शूॉ।"

लश वलदा शुआ तो तीवया तेजोभम वलग्रश प्रकट शुआ। उववे बी प्रद्ल ऩूछा गमा् "आऩ कौन शैं ?"

"अवुयेन्द्र ! भैं वत्म शूॉ औय धभय के ऩीछे जा यशा शूॉ।

वत्म के जाने ऩय एक औय भशाफरी ऩुरूऴ प्रकट शुआ औय ऩूछने ऩय उवने कशा- "प्रह्लाद ! भुझ ेवदाचाय कशते शैं। जशाॉ वत्म शो लशीॊ भैं बी यशता शूॉ।"

उवके चरे जाने ऩय प्रह्लाद के ळयीय वे फडी गजयना कयता शुआ एक तेजस्ली ऩुरूऴ प्रकट शुआ। ऩूछने ऩय उवने फतामा्

"भैं फर शूॉ औय जशाॉ वदाचाय गमा शै लशीॊ स्लमॊ भैं बी जा यशा शूॉ।" लश चरा गमा।

तत्ऩद्ळात प्रह्लाद के ळयीय वे एक प्रबाभमी देली प्रकट शुई। ऩूछने ऩय उन्शोंने फतामा् "भैं रक्ष्भी शूॉ। तुभने भुझ ेत्माग हदमा शै इवमरए मशाॉ वे जा यशी शूॉ क्मोंकक जशाॉ फर

यशता शै, लशीॊ भैं बी यशती शूॉ। प्रह्लाद ने ऩुन् ऩूछा् "देली आऩ कशाॉ जाती शैं ? लश शे्रद्ष ब्राह्मण कौन था ? भैं इवका

यशस्म जानना चाशता शूॉ। रक्ष्भी फोरी् "तुभने न्जवे उऩदेळ हदमा शै उव ब्राह्मण के रूऩ भईऄ वाषात इन्द्र थे। तीनों

रोकों भईऄ जो तमु्शाया ऐद्वमय पैरा शुआ था, लश उन्शोंने शय मरमा। शे धभयस ! तुभने ळीर के द्राया तीनों रोकों ऩय वलजम ऩामी थी, मश जानकय इन्द्र ने तुम्शाये ळीर का अऩशयण ककमा शै। धभय, वत्म, वदाचाय, फर औय भैं (रक्ष्भी) मश वफ ळीर के शी आधाय ऩय यशते शैं। ळीर शी वफका भूर शै।"

मश कशकय रक्ष्भी आहद वफ ळीर के ऩीछे चरे गमे।

Page 27: Samarthya srot

इव कथा को वुनकय दमुोधन ने ऩुन् अऩने वऩता वे ऩूछा् "शे तात ! भैं ळीर का तत्त्ल जानना चाशता शूॉ। भुझ ेवभझाइमे औय न्जव तयश उवकी

प्रानद्ऱ शो वके लश उऩाम बी फताइमे।"

धतृयाद्स ने कशा् "ळीर का स्लरूऩ औय उवे ऩाने का उऩाम मे दोनों फातईऄ भशात्भा प्रह्लाद की कथा वे ऩशरे शी प्रकट शुई शैं। भैं वॊषेऩ भईऄ ळीर की प्रानद्ऱ का उऩामभात्र फता यशा शूॉ। ध्मान देकय वुनो।

भन, लाणी औय ळयीय वे ककवी बी प्राणी के वाथ द्रोश न कयो। वफ ऩय दमा कयो। अऩनी ळक्ति के अनुवाय दान दो। ऩयस्त्री को भाता के वभान वभझो। ऐवा कामय कयो कक चाय वत्ऩुरूऴईऄ की वबा भईऄ प्रळॊवा शो। ऐवा कामय कबी न कयो कक चाय वत्ऩुरूऴों की वबा भईऄ मवय नीचा कयना ऩड।े गुरूजनों का आदय कयो। मशी लश उत्तभ ळीर शै न्जवकी वफ रोग प्रळॊवा कयते शैं। अऩने न्जव ककवी कामय मा ऩुरूऴाथय वे दवूयों का हशत न शोता शो तथा न्जवे कयनईऄ भईऄ वॊकोच का वाभना कयना ऩड ेलश वफ ककवी तयश बी नशीॊ कयना चाहशए। न्जव काभ को न्जव तयश कयने वे भानल-वभाज भईऄ प्रळॊवा शो, भानल-वभाज का कल्माण शो, उवी तयश कयना चाहशए। इव तत्त्ल को ठीक वे वभझ रो। महद मुचधवद्षय वे बी अच्छी वम्ऩवत्त ऩाना चाशते शो तो ळीरलान ्फनो।"

इव कथा वे ळीर का भशत्त्ल प्रकट शोता शै। भनुष्म अऩने ळीर को कबी न छोडते शुए वफ प्राखणमों का हशत चाशे, दवूयों के वॊकट भईऄ वशामक फने औय अऩने भन वे उदायता का फतायल कये, फडों का वम्भान कये, गुणीजनों की ऩूजा कये औय ळीर का भशत्त्ल वभझकय अऩने को प्राणीभात्र का वेलक वभझ।े

अनुक्रभ

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

चतुयाई चूल्शे ऩडी........ बि का रृदम बि की ओय स्लाबावलक रूऩ वे आकवऴयत शोता शै औय दजुयन भनुष्म का

भन दजुयन की ओय शी भुडता शै। बि यैदाव जी की ख्मानत उनके वभकारीन भशान ्तुरवीदावजी के कानों तक ऩशुॉची तो

वॊत तुरवीदाव जी के हदर भईऄ यैदावजी के मभरने की उत्कण्ठा शो गमी। ले जानते नशीॊ थे कक बि यैदावजी चभाय जानत भईऄ उत्ऩन्न शुए शैं औय अऩनी जानत का व्मलवाम कयते शुए शी प्रबु बजन भईऄ तल्रीन यशते शैं। ले अऩन ेमळष्मलनृ्द के वाथ यैदावजी वे मभरने के मरए चर ऩड।े

यैदावजी के गाॉल भईऄ आकय तुरवीदाव जी रूके औय लशाॉ यशने लारे अऩने एक बि ब्राह्मण को फुरलाकय ऩूछा्

"मशाॉ यैदावजी नाभ के ऩयभ बि कशाॉ यशते शैं ?"

Page 28: Samarthya srot

ब्राह्मण ने शाथ जोडकय कशा् "भशायाज जी ! मशाॉ यैदाव नाभ का कोई वॊत-भशात्भा मा ब्राह्मण बि नशीॊ यशता। शाॉ, यैदाव नाभ का एक ळूद्र(चभाय) शै। लश ळामरग्राभ की ऩूजा कयता शै। थोडा फशुत प्रमवद्ध बी शो गमा शै रेककन आऩ जैवे भशात्भा का लशाॉ जाना उचचत नशीॊ। लश चभाय ककतना बी ळुद्ध शो, कपय बी आऩ जैवे वॊत-भशात्भा के फयाफय नशीॊ शै।"

बिप्रलय यैदावजी चभाय जानत के शैं, मश जानकय तुरवीदाव जी के चचत्त भईऄ वॊकोच शुआ। इतनी दयू तक उन्शीॊ वे मभरने आमे शैं, अफ मभरे बफना कैवे रौट जामईऄ ? गोस्लाभी जी अन्म तभाभ मळष्मों को छोडकय शरयदाव नाभ के एक अल्ऩफुवद्ध मळष्म को वाथ रेकय यैदाव जी की ऩणयकुटी की ओय चर ऩड।े ज्मादा चतुय मळष्म तो कशीॊ गडफड बी कय वकता शै। फुद्धू कशीॊ फोरेगा नशीॊ। फोरेगा बी तो कोई उवकी फात ऩय ध्मान नशीॊ देगा। अत् ऐवे नाजुक प्रवॊग भईऄ फुद्धू मळष्म शरयदाव शी वाथ भईऄ यशे तो ठीक शै।

मोगानुमोग ऐवा शुआ कक जफ ले उनकी कुटी तक ऩशुॉच ेतो यैदाव जी अऩने आॉगन भईऄ भये शुए फैर का चाभ उताय यशे थे। ऩयभात्भा भईऄ चचत्त रगाकय, याग-दे्रऴ वे यहशत शोकय ले अऩना कुरधभय, स्लाबावलक कत्तयव्म कभय ननबा यशे थे। कय भईऄ काभ औय भुख भईऄ याभ। उनके शाथ फैर के यि वे यॊगे शुए थे औय रृदम प्रबु की बक्ति भईऄ यॉगा था।

गोस्लाभी जी को दयू वे शी यैदाव जी ने ऩशचान मरमा। यैदावजी के रृदम भईऄ उनके मरए फडा आदयबाल था। 'आज अनामाव शी ले अऩने घय ऩधाय यशे शैं....' मश देखकय यैदावजी का आन्त्भक प्मायबया हदर उभड ऩडा। प्रेभालेळ भईऄ आकय ले क्मा कय यशे शैं मश न वोचकय शचथमाय पईऄ क हदमे.... ऐवे शी यॉगे शाथ वाभने दौड गमे औय गोस्लाभी जी को आमरॊगन कयने गमे ऩयन्तु गोस्लाभी दो-चाय कदभ ऩीछे शट गमे। अत् यैदाव जी ने चयणों भईऄ प्रणाभ ककमा। ले तुरवीदाव जी का वॊकोच वभझ गमे। भन भईऄ अऩनी ऐवी दळा के कायण थोडी नरानन शुई रेककन अफ क्मा कयईऄ ? जो शो गमा वो शो गमा। ऩरबय दोनों भौन यशे औय दोनों ने बीतय शी बीतय इव घटना का वभाधान ऩा मरमा। चचत्तलवृत्त के वॊकोच को रेकय तुरवीदावजी का चचत्त थोडा अप्रवन्न शुआ कपय बी मथामोनम लात्तायराऩ कयके यैदाव जी वे वलदा भाॉगी। दण्डलत ्प्रणाभ कयके यैदाव जी षभा भाॉगी औय गोस्लाभी जी को वलदा ककमा। अऩने मळष्मों को रेकय तुरवीदावजी लाऩव रौटे।

यैदावजी फैर के यि वे यॉगे शुए शाथों वे जफ आमरॊगन कयने के मरए आगे दौड आमे तफ तुरवीदाव जी वॊकोच कयके दो चाय कदभ ऩीछे खखवक गमे थे कपय बी यि की कुछ फूॉदईऄ उनके लस्त्र ऩय ऩड गईं थीॊ। यास्ते भईऄ ताराफ ऩय उन्शोंने स्नान कय मरमा, लस्त्र फदर मरमे। लस्त्र ऩय रगे यि के धब्फे धो डारने के मरए अऩने अल्ऩफुवद्ध मळष्म शरयदाव को लश लस्त्र दे हदमा औय जो घटना घटी थी उवे गुद्ऱ यखने की आसा देकय अऩने ननलाव ऩय रौट आमे।

शरयदाव ज्मों-ज्मों लस्त्र धोता गमा, त्मों-त्मों यॊग वुयॊग शोता गमा। कुछ बी कये रेककन दाग मभटते शी नशीॊ थे। मळष्म ऩयेळान शो गमा। गुरूदेल की वेला औय आसा को शी वफ कुछ

Page 29: Samarthya srot

भाननेलारा लश शरयदाव वोच भईऄ ऩड गमा। अफ क्मा ककमा जाम ? कामय ऩूया ककमे बफना गुरूदेल के वाभने बी कैवे जामईऄ ?

वॊत भशात्भा वदगुरू की वेला फड ेबानम वे मभरती शै। अबागे आदभी को तो वॊत की वेला मभरती शी नशीॊ। उवे वॊत दळयन की रूचच बी नशीॊ शोती।

तुरवी ऩूलय के ऩाऩ वे शरयचचाय न वुशाम। कोई ऩुण्मात्भा शै कक दयुात्भा, इवकी कवौटी कयना शै तो उवे रे जाओ ककवी वच्च े

वॊतऩुरूऴ के ऩाव। अगय लश आता शै तो तुभ उवे न्जतना ऩाऩी वभझते शो उतना लश ऩाऩी नशीॊ शै। अगय नशीॊ आता शै तो तुभ उवे न्जतना धभायत्भा भानते शो उतना लश धभायत्भा नशीॊ शै। ळास्त्रलेत्ता कशते शैं कक वात जन्भ के ऩुण्म जफ जोय भायते शैं तफ वॊत दळयन की इच्छा शोती शै। रेककन इच्छा ऩूयी शोत-ेशोते वभम ऩूया शो जाता शै।

फुद्ध जफ भशाननलायण को जा यशे थे तफ कोई अबागा व्मक्ति बागता-बागता आमा औय फोरा् "वऩछरे चारीव वार वे भैंने बगलान फुद्ध की ख्मानत वुनी थी। आज जाऊॉ , कर जाऊॉ .... ऐवा कयते-कयते वभम फीत गमा। कपय उनके वलऴम भईऄ अपलाशईऄ वुनने को मभरीॊ तो अऩने को योक हदमा। कबी शोता कक दळयन करूॉ औय कबी शोता कक नशीॊ जाना शै। ऐवा कयते-कयते चारीव लऴय गुजय गमे। अफ भुझ ेउनके दळयन कयने शैं।"

फुद्ध के वलळऴे मळष्म आनन्द ने कशा् "अफ वभम ऩूया शो गमा। बगलान फुद्ध अफ भशाननलायण को जा यशे शैं। दळयन नशीॊ शो वकते।"

वात जन्भों के ऩुण्मों के जोय वे वॊतदळयन की इच्छा शोती शै रेककन जील दळयन कय नशीॊ ऩाता। दवूये वात जन्भों के वत्कृत्म जफ जोय भायईऄगे तफ दळयन के द्राय ऩय ऩशुॉचगेे कपय दळयन नशीॊ कय ऩामईऄगे। तीवये वात जन्भों के ऩुण्म जफ जोय ऩकडते शैं तफ वॊत का वान्न्नध्म औय उनके अभतृ लचन वुनने को मभरते शैं।

मळष्म शरयदाव श्रीशरय वे प्राथयना कयने रगा् "शे प्रबो ! गुरूदेल की वेला कयने का वदबानम मभरा शै रेककन भैं वेला कय नशीॊ ऩा यशा

शईः। गुरूजी का फतामा शुआ मश छोटा वा काभ बी नशीॊ कय ऩाता शूॉ। क्मा करूॉ कक मे रार धब्फे दयू शों ? शे नाथ ! तू शी भागय फता।" मळष्म की आॉखईऄ डफडफा आईं। गरा रूॉ धने रगा। प्राथयना ने जोय ऩकडा। उवे शुआ कक लस्त्र का दाग भुॉश भईऄ डारकय चवूूॉ तो ळामद ननकर जाम।

आसाऩारन औय वेला की धनु भईऄ ळुवद्ध-अळुवद्ध का वोच वलचाय न कयके शरयदाव लस्त्र भईऄ रगे शुए यि के दाग भुॉश भईऄ डारकय चवूने रगा। फाशय का दाग तो मभटता गमा, वाथ-शी-वाथ अन्त्कयण का भैर बी धरुता गमा। रृदम भईऄ बत्रकारसान का प्रकाळ शो गमा। अनुऩभ हदव्म दृवद्श खरु गई। उवने लस्त्र को ळुद्ध जर भईऄ कपय वे धोकय वुखा हदमा औय गुरूजी के ऩाव ऩशुॉचा हदमा।

Page 30: Samarthya srot

वॊध्मा का वभम था। शजायों बिों के फीच गोस्लाभी श्री तुरवीदाव याभामण की कथा वुना यशे थे। प्रनतहदन शोने लारे इव वत्वॊग कथा प्रलचन भईऄ दयू दयू वे रोग आते थे औय बि कवल वॊत श्री की कथा वुनते थे।

यैदावजी वे मभरकय काळी भईऄ लाऩव रौटने के फाद मश ऩशरी फाय शी कथा शो यशी थी। कापी रोग कथा वुनने के मरए इकटे्ठ शो गमे थे। कथा का प्रवॊग था् लनलाव वे अमोध्मा लाऩव रौटने के फाद वीताजी का वफ फन्दयों को लस्त्रारॊकाय, बईऄट वौगात औय वलमबन्न प्रकाय के बोजन-ऩकलान देना। वीता जी ने शनुभान को अऩना अभूल्म भखणशाय बईऄट ककमा। शनुभान शाय के एक-एक भखण को भुॉश भईऄ डारकय दाॉतों वे तोडने रगे। मश देखकय वबा के रोग वोचने रगे कक शनुभान कैवे बी शों रेककन आखखय फन्दय जानत के ठशये ! उनको ऐवे अभूल्म शाय का भूल्म कैवे ऩता चरे !

मशाॉ तक कथा प्रवॊग चरने के फाद गोस्लाभी जी को अबी अबी का यैदावलारा प्रवॊग माद आ गमा। जानत स्लबाल ऩय वलळऴे वललेचना कयने की इच्छा उनको शो आई। जीलन भईऄ चतुयाई औय आचाय वलचाय की आलश्मकता शै। यैदाव ने जो ककमा, लश फेशूदा था। यैदाव के फाये भईऄ लश प्रवॊग फोरने का लश वोच शी यशे थे तो उनकाय लश फुद्धू मळष्म शरयदाव खडा शुआ औय शाथ जोडकय फड ेवलनम बाल वे तुरवीदावजी के कान भईऄ धीये वे फोरा्

"गुरूदेल ! अफ आगे जो फात आऩ फोरने लारे शैं लश कृऩा कयने न फोरईऄ तो अच्छा शै।"

"कौन-वी फात ?" तुरवी दाव जी ने चककत शोकय ऩैनी दृवद्श डारते शुए ऩूछा। "स्लाभी जी ! आऩ करलारी घटना रेकय बियाज यैदाव की जानत वलऴमक, उनके आचाय

वलऴमक जो वललेचना कयना चाशते शईऄ, उवभईऄ बक्ति की ननन्दा औय जानत की स्तुनत शोगी। मश शोना उचचत नशीॊ।" शरयदाव ने चभचभाता शुआ वत्म प्रकट ककमा।

शरयदाव का लचन वुनकय गोस्लाभी जी आद्ळमयभुनध शो गमे। भेये भन की फात मश फुवद्धशीन मळष्म कैवे जान गमा ! उनको कुछ वभझ भईऄ नशीॊ आ यशा था। ऩूछा्

"फेटा ! भेये बीतय की फात तूने कैवे जान री।"

"गुरू भशायाज ! आऩकी शी कृऩा वे। आऩका हदमा शुआ लश लस्त्र धोते-धोते एलॊ उव ऩय ऩड ेरार दाग चवूत-ेचवूके ले मभट गमे औय वाथ शी वाथ भेये हदर के दाग बी धरु गमे। आऩकी कृऩा वे भुझ ेबत्रकारसान की हदव्म दृवद्श प्राद्ऱ शो गई शै।"

मश वुनकय तुरवीदावजी को रगा कक शभने वॊत यैदावजी को ऩशचानने भईऄ बूर की शै। आचाय भईऄ उनके वाथ अन्माम शो गमा शै। यैदावजी के प्रनत जातीम घणृा के स्थान ऩय उनके बक्तिबाल, वफके प्रनत आत्भबाल औय अऩने ननभयर आत्भस्लरूऩ भईऄ न्स्थनत लारी उनकी अलस्था ऩय तुरवीदाव जी को प्माय उभड आमा। उनकी आत्भननद्षा का प्रबाल ले ऩशचान गमे। उवी वभम उन्शोंने कथा भईऄ कशा्

चतुयाई चूल्शे ऩडी, ऩूय ऩमो आचाय।

Page 31: Samarthya srot

तुरवी शरय के बजन बफन, चायों लणय चभाय।। कथा वभाद्ऱ शुई। अफ यैदाव जी को ऩूणय प्रेभ वे आमरॊगन कयने के मरए गोस्लाभी तडऩ

उठे। उन्शोंने ऐवे बिप्रलय का भानो अऩभान शी ककमा था। लश प्रवॊग उनके हदर भईऄ चबुने रगा। भशात्भाओॊ के ननद्ळम अक्तडग शुआ कयते शैं। ननद्ळम शो जाने के फाद ले वभम खोते नशीॊ।

गोस्लाभी जी अऩने वाये मळष्मों को वाथ भईऄ रेकय यैदाव जी वे मभरने के मरए चर ऩडे। इव फाय बी यैदावजी उनका स्लागत कयते शुए वाभने दौड ेआमे। तुरवीदाव जी उनवे मभरने के मरए आतुय थे रेककन यैदाव जी ने दयू वे शी दण्डलत ्प्रणाभ ककमा औय ळीघ्र शी लाऩव ऩधायने का कायण ऩूछा। गोस्लाभी जी ने वाया लतृ्तान्त कश वुनामा औय अऩने प्मायऩूणय फाशुऩाळ भईऄ यैदावजी को जकडने की शाहदयक आकाॊषा बी व्मि कयते शुए ले फोरे्

"यैदाव जी ! भैंने आऩको नशीॊ ऩशचाना। षभा कयना। अफ एक फाय आऩको गरे रगाना चाशता शूॉ।"

यैदाव जी ने शाथ जोडकय कशा् "प्रथभ फाय भुझभईऄ जो प्रेभबाल उभडा था, लश स्लाबावलक था। अफ आऩ कशो तो दव फाय गरे रगूॉ रेककन लश आनन्द नशीॊ आएगा। गरे रगने लारा भौजूद यशेगा। उव वभम भैं नशीॊ था, अनन्त था। तफ भैं गरे रगता तो फैर का यि बी ऩालन कयने लारा शोता। अफ भैं गॊगास्नान कयके बी गरे रगूॉगा तो बी आनन्द नशीॊ आमेगा। कपय जैवी आऩकी भजी !"

एक कक्रमा अऩने आऩ स्पुरयत शोती शै, दवूयी कक्रमा की जाती शै। जो शोती शै लश स्लाबावलक शै, नैवचगयक शै। जो की जाती शै, उवभईऄ कत्ताय आगे आ जाता शै, अशॊ खडा शो जाता शै, अनन्त चतैन्म नतयोहशत शो जाता शै।

अनुक्रभ

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

गीता वे आत्भसान ऩामा प्राचीन वभम भईऄ कुन्दनऩुय ळशय के ऩाव गॊगा ककनाये ब्रह्मा, वलष्णु औय भशेळ की नगरयमों

के वभान थोडी-थोडी दयूी ऩय तीन आश्रभ थे। जॊगर भईऄ न्स्थत इन आश्रभों भईऄ एक था त्मागाश्रभ। लशाॉ वलळऴे कयके त्मागी रोग शी यशते थे। त्मागाश्रभ भईऄ त्मागवहशत सानोऩदेळ शुआ कयता था। लशाॉ वे थोड ेशी दयू ऋवऴआश्रभ था, जशाॉ ऋवऴ रोग मसाहद कक्रमाएॉ ककमा कयते थे। तीवये आश्रभ भईऄ तऩस्ली रोग तऩ, उऩावना भईऄ रगे यशते थे। मे तीनों स्थान फड ेशी यभणीम थे।

ऩाव शी एक फडा ळशय कुन्दनऩुय था। लशाॉ के याजा औय प्रजा धामभयक थे, ईद्वय प्रेभी थे। उनवे तीनों आश्रभों का ननलायश बरी प्रकाय शोता था। तीनों आश्रभों वे ककवी को बी ळशय नशीॊ जाना ऩडता था। न्जन-न्जन लस्तुओॊ की आलश्कता शोती थी, ळशय के बालुक रोग प्रेभ वे ऩशुॉचा हदमा कयते थे। कई बालुक बिजन प्रनतहदन दळयन कयने आश्रभों भईऄ आमा कयते थे औय वॊक्राॊनत

Page 32: Samarthya srot

आहद ळुब ऩलों भईऄ लशाॉ का स्थान ळशयलारों वे बय जामा कयता था, भेरा रग जाता थाऴ तीनों आश्रभलारे अऩने स्थान औय अचधकाय के अनुवाय चदे्शा भईऄ प्रलतृ्त यशते थे। तऩन्स्लमों के स्थान भईऄ ळान्न्त का वाम्राज्म था, ऋवऴमों के आश्रभ भईऄ लेद की ध्लनन शुआ कयती थी औय मस की वुगन्ध पैरती यशती थी। त्माचगमों के स्थान भईऄ भशालाक्मों का श्रलण, भनन औय ननहदध्मावन शुआ कयता था। लशाॉ कई ब्रह्मननद्ष भशात्भा वलयाजते थे। उनके वान्न्नध्म वे वत्त्लगुण का प्रबाल फढता जाता था। इव स्थान ऩय यागी औय त्मागी फायॊफाय आते जाते यशते थे।

त्माचगमों के आश्रभ भईऄ आने लारों भईऄ एक ऩुरूऴ कुछ वलरषण प्रकृनत का था। उवके ऊऩय ब्रह्मानन्द नाभ के ब्रह्मननद्ष वॊत की वलळऴे कृऩादृवद्श थी। ब्रह्मानन्दजी के ऩाव धनी, प्रनतवद्षत औय ओशदेदाय फशुत वे रोग आते थेऴ ऩयन्तु एक वाभान्म भनुष्म के ऊऩय कृऩा औय स्लाबावलक प्रेभ शोने का कायण स्लमॊ ब्रह्मानन्दजी बी नशीॊ जानते थे।

लश आदभी षबत्रम कुर भईऄ उत्ऩन्न शुआ था, गयीफ था औय आजीवलका के मरए खेती कयता था। उवके घय भईऄ उवकी स्त्री, एक ऩुत्र औय एक ऩुत्री थी। गयीफी भईऄ लश अऩना गुजाया कयता था औय वन्तुद्श यशता था। उवकी स्त्री बी वन्तोऴी थी। ऩुत्र-ऩुत्री भईऄ बी भाता-वऩता के वन्तोऴ गुण का प्रबाल ऩडा था। अत् गयीफ शोने ऩय बी लश कुटुम्फ वुखी था।

खेती वे जफ-जफ उवे अलकाळ मभरता था तफ लश त्मागाश्रभ आहद आश्रभों भईऄ जामा कयता था। प्रणाभ कयके चऩुचाऩ फैठ जामा कयता था, कुछ फोरता चारता न था। कक्रमाओॊ को देखता औय जो वुनने को शोता, उवे वुना कयता। उवका चचत्त शभेळा प्रवन्न यशता था। मथावलचध वफ प्रकाय के व्मलशाय कयता शुआ बी व्मालशारयक भनुष्मों के अचधक वॊवगय भईऄ नशीॊ आता था औय व्मलशाय भईऄ बी कभ फोरता था। लश अऩने भागय भईऄ शी चरने लारा वीधावादा भनुष्म था। लश ब्रह्मानन्दजी के ऩाव बी आमा कयता था। ब्रह्मानन्द जी उवका वलळऴे ऩरयचम ऩाना चाशते थे कक लश कुछ फोरे ऩयन्तु लश फोरता न था।

एक हदन ब्रह्मानन्द ने शी कशा् "शे बालुक ! भैं तेया वलळऴे ऩरयचम जानना चाशता शूॉ। तेये भुख की प्रवन्नता, तेयी वभ्मता औय तेया लस्त्राहद का ऩशनना भुझ ेवलरषण भारूभ शोता शै।"

लश फोरा् "स्लाभी जी ! भुझभईऄ वलरषणता कुछ नशीॊ शै। भैं एक गयीफ याजऩूत शूॉ। भेया नाभ ऩचथकचन्द शै। छोटी वी खेती कयके अऩना गुजाया कयता शूॉ।"

ब्रह्मानन्दजी फोरे् "नशीॊ, नशीॊ.....तेया चशेया नशीॊ कशता कक तू गयीफ शै। गशृन्स्थमों भईऄ तेयी गयीफी बरे वलख्मात शो, ऩयन्तु भेयी दृवद्श भईऄ तू गयीफ नशीॊ शै, श्रीभान शै। सान की प्रबा तेये भस्तक ऩय वलयाजभान शै। तेया गशृस्थ व्मलशाय कैवा बी शो, लश भुझ ेऩूछना नशीॊ शै। भैं मश जानना चाशता शूॉ कक तूने कौन-कौन वे ळास्त्र ऩढे शैं ? तेया ननद्ळम क्मा शै ? कौन-वे ऩदाथय की प्रानद्ऱ वे तुझ ेइव प्रकाय की अखन्ण्डत प्रवन्नता शै ? भैं देखता शूॉ कक याग-दे्रऴलारे ऩदाथों भईऄ बी तेया चचत्त वलकाय को नशीॊ प्राद्ऱ शोता शै। तू भूखय शै, ऐवा बी नशीॊ शै। तुझभईऄ कुछ वलळऴेता हदखती शै। भैं ऩूछता शूॉ, तू क्मा जानता शै ?"

Page 33: Samarthya srot

ऩचथकचन्द फोरा् "भशायाज ! भैं अऩने भागय ऩय चर यशा शूॉ। जशाॉ जाना शै, उवके रक्ष्म वे वीधे भागय ऩय चर यशा शूॉ। भागय के ऩदाथय भुझ ेफाधा नशीॊ देते। भैं वॊत भशात्भा नशीॊ शूॉ, ळास्त्रों का ऩठन बी भैंने नशी ककमा शै। जफ भैं छोटा था तफ शभाये मशाॉ एक वॊत आमा कयते थे। उन्शोंने भुझ ेगीता का अध्ममन कयामा था औय मश बी कश हदमा कक् "आत्भसान के ळास्त्रों के मवलाम औय कोई ऩुस्तक ऩढना नशीॊ। तुभने जो आत्भसान भुझवे ऩढा-वभझा शै, उन्शी वलचायों भईऄ दृढ शोते जाना। कबी कुछ देखा, कबी कुछ वीखा औय दनुनमाब का कचया भन्स्तष्क भईऄ बया तो आत्भ-वाषात्काय शोना कहठन शो जामेगा।

गीता के उऩदेळ के अनुवाय शी भैं अऩना फतायल कयता शूॉ। ऩूयी गीता वे भैंने जो वाय ग्रशण ककमा, लश मश शै।

भैं वफ प्रकाय के व्मालशारयक धभों के बाल वे यहशत शोकय तन, भन औय धन वे ईद्वयाऩयण शो चकुा शूॉ। ककवी कामय भईऄ बी भैं अऩने को कत्ताय बोिा नशीॊ भानता। भैं अऩनी वत्ता ईद्वय वे फाशय नशीॊ भानता। इवी वे भैं वलकाययहशत शूॉ। जफ भैं ईद्वय वे ऩथृक नशीॊ शूॉ तफ काभ, क्रोध, रोब, भोश आहद वलकाय भुझभईऄ ककव प्रकाय शों ? भैं वभझता शूॉ कक कभय भईऄ भेया अचधकाय शै, पर भईऄ नशीॊ शै, क्मोंकक कभय के मरए शी भेया ळयीय ऩैदा शुआ शै, इवमरए ऩूलय-प्रायब्ध के प्रलाश के अनुवाय ळुद्ध फुवद्ध वे वलचायऩूलयक ळयीय वे कभय शोते यशते शैं। कभय के वॊस्कायों को औय पर के वॊस्कायों को भैं अऩने वाथ नशीॊ जोडता। जफ भैं ईद्वय वे ऩथृक नशी शूॉ तो ईद्वय वे ऩथृक कभयपर की इच्छा भुझ ेककव प्रकाय शो ? मश बाल शभेळा फना यशता शै। कत्ताय-बोिा वलळऴे अशॊबाल हटकने नशीॊ देता शूॉ। इवमरए ळाॊत औय प्रवन्न यशता शूॉ। भुझ ेत्माग अथला याग भईऄ बी अचधकता अथला न्मूनता नशीॊ हदखती। मश भेया वच्चा लतृ्तान्त शैं।"

इतना वुनकय ब्रह्मानन्दजी ने अनत प्रवन्न शोकय स्लाबावलकता वे शी ऩचथकचन्द को प्रणाभ कय हदमा। ऩचथकचन्द ऩीछे शटते शुए वलनमऩूलयक फोरा्

"भशायाज जी ! व्मलशाय दृवद्श वे आऩका मश कामय उचचत नशीॊ कशा जा वकता।"

ब्रह्मानन्दजी फोरे् "बाई ! व्मालशारयक दृवद्श वे भुझ ेक्मा ? गशृस्थ हदखते शुए बी तुम्शायी ब्रह्मननद्षा भुझ त्मागी वे अचधक प्रफर शै। तुभ श्रीभदबगलदगीताभम फन गमे शो। जफ तुम्शईऄ गीता वप्रम शै तो गीता की प्रत्मष भूनत य तुभ भुझ ेवप्रम क्मों न शो ? मश तो शोना शी चाहशए।"

लाश लाश ! श्रीभदबगलदगीता तो गीता शी शै ! न्जवने गीता के यशस्म को जान मरमा लश कृताथय शुआ।

मोगेद्वयी भाता गीता के मरए इॊनरैंड के एक वलदेळी वलद्रान एप. एभ. भोरेभ कशते शैं- "फाईफर का भैंने मथाथय अभ्माव ककमा शै। उवभईऄ जो मरखा शै लश केलर गीता के वायरूऩ

भईऄ शी शै। जो सान गीता भईऄ शै, लश ईवाई मा मशूदी फाईफर भईऄ नशीॊ शै। भुझ ेमशी आद्ळमय शोता शै कक बायतीम नलमुलक मशाॉ इॊगरैण्ड तक ऩदाथय वलसान वीखने

क्मों आते शैं ? नन्वन्देश ऩाद्ळात्मों के प्रनत उनका भोश शी इवका कायण शै। उनके बोरेबारे

Page 34: Samarthya srot

रृदमों ने अबी ननदयम औय अवलनम्र ऩन्द्ळभलामवमों के हदर ऩशचाने नशीॊ शैं। इवीमरए उनकी मळषा व ेमभरने लारे ऩदों की रारच वे ले उन स्लाचथयमों के इन्द्रजार भईऄ पॉ वते शैं। अन्मथा तो, न्जव देळ मा वभाज को गुराभी वे छूटना शी उवके मरए तो मश अधोगनत का शी भागय शै।

भैं ईवाई शोते शुए बी गीता के प्रनत इतना आदय-भान इवमरए यखता शूॉ कक न्जन गूढ प्रद्लों का शर ऩाद्ळात्म लैसाननक अबी तक नशीॊ कय ऩामे उनका शर इव गीता ग्रॊथ ने ळुद्ध औय वयर यीनत वे दे हदमा शै। गीता भईऄ ककतने शी वूत्र अरौककक उऩदेळों वे बयऩूय देखे। इवी कायण भेये मरए गीता जी वाषात ्मोगेद्वयी भाता फन यशी शैं। वलद्वयबय के वाये धन वे बी न मभर वके, मश बायतलऴय का ऐवा एक अभूल्म खजाना शै।"

अनुक्रभ

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

ऩाॉच आद्ळमय भशाबायत का मुद्ध ऩूया शुआ। ऩाण्डल वलजमी शुए। कौयलों का वॊशाय शुआ। बगलान

श्रीकृष्ण ने मुचधवद्षय वे कशा् "धभययाज ! मुद्ध ऩूया शुआ शै। धभय कक वलजम शुई शै। अधमभयमों का नाळ शुआ शै। अफ तुभ

याज्मामबऴेक की तैमायी कयो। याज्म की फागडोय वॉबारो।"

मुचधवद्षय ने कशा् "प्रबु ! शजायों-राखों षबत्रम मुलकों का यि फशा शै। अऩने ककतने शी स्लजन इव मुद्ध भईऄ स्लाशा शो गमे शैं। अफ भुझ ेलैयानम आ गमा शै। याजगद्दी ऩय फैठना भुझ ेरूचता नशीॊ। वोचता शूॉ- कुछ हदन के मरए गॊगा ककनाये चरा जाऊॉ । एकान्त भईऄ यशकय तऩस्मा करूॉ , ध्मान-बजन करूॉ , प्रामन्द्ळत कयके अऩने कल्भऴ धोऊॉ । ननभयर शोकय आऊॉ कपय ळाॊनत वे याज्म करूॉ ।"

श्रीकृष्ण भुस्कुयामे। फोरे् "ऩाण्डुऩुत्र ! कपय तुभ ळाॊनत वे याज्म नशीॊ कय वकते क्मोंकक फ कमरमुग का प्रलेळ शो यशा शै। उवके रषणों की झाॉकी कयनी शो तो तुभ ऩाॉचों बाई मबन्न-मबन्न हदळाओॊ भईऄ घूभने चरे जाओ। लशाॉ ऩाॉचों को कुछ न कुछ अरग-अरग आद्ळमय हदखईऄगे। जाकय आओ। ळाभ को इवके फाये भईऄ फात कयईऄगे।"

ऩाॉचों ऩाण्डल घूभने चरे गमे। मुचधवद्षय ने देखा कक एक शाथी खडा शै। उवकी दो वूॉड शै। आद्ळमय ! दो वूॉडलारा शाथी !

देखकय धभययाज दॊग यश गमे। अजुयन ने दवूया आद्ळमय देखा। उत्तय हदळा भईऄ एक ऩषी शै। उवके ऩॊख ऩय लेद भॊत्र औय

धभय की गाथाएॉ मरखी शैं, रेककन लश ऩषी भुदे का भाॊव खा यशा शै। बीभ ने तीवया आद्ळमय देखा। एक गाम अऩनी नलजात फछडी को इव प्रकाय चाट यशी शै

कक फछडी रशूरुशान शो यशी शै। कपय बी गाम चाटना छोडती नशीॊ।

Page 35: Samarthya srot

वशदेल ने चौथा आद्ळमय देखा। ऩाॉच-छ् कुएॉ शैं। इदयचगदय के वबी कुओॊ भईऄ छरोछर ऩानी बया शै औय फीचलारा कुआॉ बफल्कुर खारी शै।

नकुर ने ऩाॉचलाॉ आद्ळमय देखा। एक ऩशाड वे चट्टान चगय यशी शै। ऩेडों वे टकयाई रेककन रूकी नशीॊ। दवूयी चट्टानों वे आ रगी, रेककन ले उवे योक नशीॊ ऩाईँ।आखखय लश चट्टान रुढकती-रुढकती नीच ेआत-ेआते एक नतनके के वशाये रूक गई। न्जवे ऩेड न थाभ वके, चट्टानईऄ न थाभ वकीॊ उवे एक छोटे वे नतनके ने थाभ मरमा। फडा आद्ळमय !

ऩाॉचों बाई इव प्रकाय ऩाॉच आद्ळमय देखकय ळाभ को श्रीकृष्ण के ऩाव आमे औय अऩनी-अऩनी फात फताई। मुचधवद्षय के द्राया देखे गमे दो वूॉडलारों शाथी के फाये भईऄ फताते शुए श्रीकृष्ण फोरे्

"दो वूॉडलारा शाथी भाने कमरमुग भईऄ दोनों तयप वे ळोऴण कयने लारे ळावक शोंगे। दवूया आद्ळमय कक ऩषी के ऩॊख ऩय ळास्त्र मरखे शों औय लश ऩषी भुदे का भाॊव खा यशा शो। इवका भतरफ शै कक कमरमुग भईऄ भत, ऩॊथ, वम्प्रदाम आहद ळास्त्र की फातईऄ कयनेलारे फशुत रोग शोंगे, रेककन ले भुदे वलऴमों की काभनालारे ज्मादा शोंगे।

तीवया आद्ळमय कक गाम अऩनी फछडी को चाट-चाटकय रशूरुशान कय यशी थी अथायत ्कमरमुग भईऄ आदभी ऩुत्र-ऩरयलाय को इतना भोश कयेगा, इतनी भभता कयेगा कक फच्च ेअऩने ऩैयों ऩय खड ेशो जामईऄ, अऩने आत्भवलद्वाव भईऄ हटक जामईऄ, ऐवी मोनमता शी नद्श कय देगा। फच्चों को जया छोड देना चाहशए, उन्शईऄ अऩने ऩैयों ऩय खड ेशोने देना चाहशए। भोश-भभता कयके उनका न्जतना अचधक रारन-ऩारन कयोगे, ऐळ-आयाभ भईऄ यखोगे, उतनी शी उनकी जीलन-ळक्ति कुन्ण्ठत यश जाएगी।

चौथा आद्ळमय कक चायों ओय के कुओॊ भईऄ ऩानी औय फीच का कुआॉ खारी। इवका भतरफ मश शै कक कमरमुग के धनलान, लैबललान, वत्तालान, वाधन-वम्ऩन्न श्रीभान ्रोग ळादी-ब्माश, ऩाहटयमों भईऄ राखों रूऩमे खचय कय डारईऄगे रेककन ऩडोव भईऄ शी कोई दीन-दखुखमा यशता शो, अस्त-व्मस्त जीलन बफता यशा शो, बूखा-प्मावा हदन काट यशा शो तो उवके घय भईऄ वशमोग कयने की फात नशीॊ वोचईऄगे, वशामरूऩ नशीॊ फनईऄगे। हदखाले भईऄ तो राखों रूऩमे पूॉ क भायईऄगे रेककन फुझते शुए जीलनदीऩ भईऄ तेर नशीॊ डारईऄगे। अऩनी घय की दीलारी तो वफ भनाते शैं, रेककन कबी-कबी वाधनों वे यहशत ऩडोमवमों के घय भईऄ बी दीलारी भनाना चाहशए। उनके फच्चों वे स्नेशकयना चाहशए, उनको मभठाई खखराना चाहशए, आचथयक वशाम कयना चाहशए।

ऩाॉचलाॉ आद्ळमय मश था कक ऩशाडों वे चट्टान चगयी न्जवको फड-ेफड ेऩेड न थाभ वके, दवूयी चट्टाने न थाभ वकीॊ औय घाव के छोटे वे नतनके ने थाभ मरमा। इवका भतरफ मश शै कक कमरमुग भईऄ आदभी के ऩाव धन औय वत्ता की व्मलस्था कपय बी उवका ऩतन धन मा वत्ता वे रूकेगा नशीॊ। उवका भन नीच ेके केन्द्रों भईऄ चगयता यशेगा। धन के ढेय उवे थाभ नशीॊ वकईऄ गे। वत्ता

Page 36: Samarthya srot

का प्रबाल उवे थाभ नशीॊ वकेगा, रेककन याभनाभ का छोटा वा नतनका बी चगयते शुए भन को थाभ रेगा।"

ईद्वय-नाभ वॊकीतयन की फडी भहशभा शै ! कीतयन कयते-कयते कपय थोडी देय ळान्त शो जाना चाहशए। जऩ कयते-कयते उवके अथय भईऄ रीन शो जाना चाहशए। वत्वॊग की ऩुस्तक ऩढते-ऩढते आनन्द आ जामे तो ऩढना योक दो, जऩ कयना योक दो औय आनन्दस्लरूऩ ईद्वय भईऄ खो जाओ, अऩने आत्भस्लरूऩ भईऄ गोता भायो।

याबत्र को वोते वभम बी कोई अच्छी ऩुस्तक ऩढकय वोओ। तुम्शाये अचतेन भन भईऄ आत्भयव आमेगा। वत्वॊग-ध्मान की कैवेट वुनते-वुनते वो जाओ, तुम्शायी ननद्रा मोगननद्रा भईऄ फदरने रगेगी। जीलन भधयु औय वुख ळाॊनत वे वभदृ्ध शोने रगेगा।

वुफश उठते शी वदा उम्दा वलचाय कयो। शभ रोग तो दवूयों की चीजों को देखकय ईष्माय कयते शैं औय ऐवी चीजईऄ शभाये ऩाव आ जामईऄ..... ऐवी काभना कयते शैं। अये बोरे भशेळ ! प्रायब्ध भईऄ शोगा औय ऩुरूऴाथय जुडगेा तो ले नद्वय चीजईऄ आकय शी यशईऄगी। तू उनकी चचन्ता औय काभना भत कय। तू तो अऩने आऩभईऄ शी डट जा।

भानल ! तुझे नशीॊ माद क्मा ? तू ब्रह्म का शी अॊळ शै। कुर गोत्र तेया ब्रह्म शै, वदब्रह्म तेया लॊळ शै।।

चैतन्म शै तू अज अभर शै, वशज शी वुखयामळ शै। जन्भे नशीॊ भयता नशीॊ, कूटस्थ शै अवलनाळी शै।।

जो आध्मान्त्भक उन्ननत कयता शै, उवकी बौनतक उन्ननत वशज भईऄ शोने रगती शै। वुख बीतय की चीज शै औय बौनतक चीज फाशय की शै। वुख औय बौनतक चीजों भईऄ कोई वलळऴे वम्फन्ध नशीॊ शै।

दरयद्र कौन शै ? जो दवूयों वे वुख चाशता शै, लश दरयद्र शै। भूखय कौन शै ? जो इव वॊवाय को वत्म भानकय उव ऩय वलद्वाव कयता शै, लश भूखय शै। वॊवाय के स्लाभी जगदीद्वय को नशीॊ खोजता शै, लश भशाभूखय शै।

अऩनी भनोलाॊनछत इच्छाओॊ के भुताबफक काम्म ऩदाथय ऩाकय जो वुखी शोना चाशता शै लश वुख औय वलघ्न-फाधाओॊ के फीच दु् खी शोते-शोते जीलन ऩूया कय देता शै।

वभम फीत जामेगा औय काभ अधयूा यश जामेगा। आखखय ऩद्ळाताऩ शाथ रगेगा। उववे ऩशरे ईद्वय के याश की मात्रा ळुरू कय दो। याबत्र भईऄ चरते-चरते ठोकयईऄ खानी ऩडे, इववे अच्छा शै कक हदन दशाड ेचर रो फुढाऩा आ जाम, फुवद्ध षीण शो जाम, इन्न्द्रमाॉ कभजोय शो जामईऄ, देश काॉऩने रगे, कुटुम्फीजन भुॉश भोड रईऄ, रोग अथी भईऄ फाॉधकय 'याभ फोरो बाई याभ...' कयते शुए श्भळान भईऄ रे जामईऄ उववे ऩशरे अऩने आऩको ळाद्वत भईऄ ऩशुॉचा दो तो फेडा ऩाय शो जाम।

अनुक्रभ

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

Page 37: Samarthya srot

आठ ऩाऩों का घडा एक फाय कवल कामरदाव फाजाय भईऄ घूभने ननकरे। एक भहशरा घडा औय कुछ कटोरयमाॉ

रेकय फैठी थी ग्राशकों के इॊतजाय भईऄ कवलयाज को कौतूशर शुआ कक मश भहशरा क्मा फेचती शै ! ऩाव जाकय ऩूछा्

"फशन ! तुभ क्मा फेचती शो ?"

"भैं ऩाऩ फेचती शूॉ। भैं स्लमॊ रोगों वे कशती शूॉ कक भेये ऩाव ऩाऩ शैं, भजी शो तो रे रो। कपय बी रोग चाशऩूलयक ऩाऩ रे जाते शैं।" भहशरा ने कुछ अजीफ वी फात कशी। कामरदाव उरझन भईऄ ऩड गमे। ऩछूा्

"घड ेभईऄ कोई ऩाऩ शोता शै ?"

"शाॉ... शाॉ.... शोता शै, जरूय शोता शै। देखो जी, भेये इव घड ेभईऄ आठ ऩाऩ बये शुए शैं- फुवद्धनाळ, ऩागरऩन, रडाई-झगड,े फेशोळी, वललेक का नाळ, वदगुण का नाळ, वुखों का अन्त औय नयक भईऄ रे जाने लारे तभाभ दषु्कृत्म।"

"अये फशन ! इतने वाये ऩाऩ फताती शै, तो आखखय शै क्मा तेये घड ेभईऄ ? स्ऩद्शता वे फता तो कुछ वभझ भईऄ आले।" कामरदाव की उत्वुकता फढ यशी थी।

लश भहशरा फोरी् "ळयाफ ! ळयाफ !! ळयाफ !!! मश ळयाफ शी उन वफ ऩाऩों की जननी शै। जो ळयाफ ऩीता शै लश उन आठों ऩाऩों का मळकाय फनता शै।"

कामरदाव उव भहशरा की चतुयाई ऩय खळु शो गमे। अनुक्रभ

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

वत्वॊग-भहशभा एक था भजदयू। भजदयू तो था, वाथ शी वाथ ककवी वॊत भशात्भा का प्माया बी था।

वत्वॊग का प्रेभी था। उवने ळऩथ खाई थी् "भैं उवी का फोझ उठाऊॉ गा, उवी की भजदयूी करूॉ गा, जो वत्वॊग वुने अथला भुझ ेवुनामे।' प्रायम्ब भईऄ शी मश ळतय यख देता था। जो वशभत शोता, उवका काभ कयता।

एक फाय कोई वेठ आमा तो इव भजदयू ने उवका वाभान उठामा औय वेठ के वाथ लश चरने रगा। जल्दी-जल्दी भईऄ ळतय की फात कयना बूर गमा। आधा यास्ता कट गमा तो फात माद आ गई। उवने वाभान यख हदमा औय वेठ वे फोरा्

"वेठ जी ! भेया ननमभ शै कक भैं उन्शीॊ का वाभान उठाऊॉ गा, जो कथा वुनालईऄ मा वुनईऄ। अत् आऩ भुझ ेवुनाओ मा वुनो।"

वेठ को जया जल्दी थी। लश फोरा् "तुभ शी वुनाओ।"

Page 38: Samarthya srot

भजदयू के लेळ भईऄ छुऩे शुए वतॊ की लाक्धाया फश चरी। भागय तम शोता गमा। वेठ के घय ऩशुॉच ेतो वेठ ने भजदयूी के ऩैवे दे हदमे। भजदयू ने ऩूछा्

"क्मों वेठजी ! वत्वॊग माद यशा ?"

"शभने तो कुछ वुना नशीॊ। शभको तो जल्दी थी औय आधे यास्ते भईऄ दवूया कशाॉ ढूॉढने जाऊॉ ? इवमरए ळतय भान री औय ऐवे शी 'शाॉ... शूॉ.....' कयता आमा। शभको तो काभ वे भतरफ था, कथा वे नशीॊ।"

बि भजदयू ने वोचा कक कैवा अबागा शै ! भुफ्त भईऄ वत्वॊग मभर यशा था औय वुना नशीॊ ! मश ऩाऩी भनुष्म की ऩशचान शै।

तुरवी ऩूलय के ऩाऩ वे शरयचचाय नशीॊ वुशाम। जैवे ज्लय के जोय वे बूख वलदा शो जाम।।

लश जभाना था कक याजा रोग याजऩाट छोडकय चगरय गुपाओॊ भईऄ गुरूओॊ को खोजकय उनके वत्वॊग का राब उठामा कयते थे।

बि को फडा आद्ळमय शुआ ! उवने बीतय गोता भाया। जशाॉ वे वलद्वबय के फरलानों को फर मभरता शै, धनलानों को धन वॉबारने की मोनमता मभरती शै, फुवद्धभानों को फौवद्धक मोनमता मभरती शै उव खजाने भईऄ गोता रगामा। कपय वेठ की ओय देखा.... गशयी वाॉव री औय कशा्

"वेठ ! कर ळाभ को वात फजे आऩ वदा के मरए इव दनुनमा वे वलदा शो जाओगे। अगय वाढे वात फजे तक जीवलत यशईऄ तो भेया मवय कटला देना।"

वेठ काॉऩने रगा। बि की लाणी भईऄ ओज था। वेठ बि की वच्चाई वभझ गमा..... ऩैय ऩकड मरमा। बि ने कशा्

"वेठ ! जफ आऩ मभऩुयी भईऄ जाएॉगे तफ आऩके ऩाव औय ऩुण्म का रेखा जोखा शोगा, हशवाफ देखा जाएगा। आऩके जीलन भईऄ ऩाऩ ज्मादा शैं, ऩुण्म कभ शैं। अबी यास्ते भईऄ जो वत्वॊग वुना, थोडा फशुत उवका ऩुण्म बी शोगा। आऩवे ऩूछा जामेगा कक कौन वा पर ऩशरे बोगना शै ? ऩाऩ का मा ऩुण्म का ?.....तो मभयाज के आगे स्लीकाय कय रेना कक ऩाऩ का पर बोगने को तैमाय शूॉ, ऩय ऩुण्म का पर बोगना नशीॊ शै, देखना शै। ऩुण्म का पर बोगने की इच्छा भत यखना।

जीलन भईऄ वुखी यशना शै तो दवूयों की की शुई फुयाई औय अऩनी की शुई बराई को बूर जाओ। आऩ वुखी शो जाओगे। शभईऄ अऩनी गल्ती शोती शै तो गुस्वा नशीॊ आता, रेककन दवूयों की गल्ती देखकय गुस्वा आता। दवूयों भईऄ बी अऩना-आऩ हदख जामे तो फेडा ऩाय शो जामे।

वेठ ऩशुॉच ेमभऩुयी भईऄ। चचत्रगुद्ऱ ने हशवाफ ऩेळ ककमा। मभयाज के ऩूछने ऩय वेठ ने कशा् "भैं ऩुण्म का पर बोगना नशीॊ चाशता औय ऩाऩ का पर बोगने वे इन्काय नशीॊ कयता। कृऩा कयके फताइमे कक वत्वॊग के ऩुण्म का पर क्मा शोता शै ? भैं लश देखना चाशता शूॉ।"

Page 39: Samarthya srot

ऩुण्म का पर देखने की तो कोई व्मलस्था मभऩुयी भईऄ नशीॊ थी। ऩाऩ-ऩुण्म के पर बुगताए जाते शैं, हदखामे नशीॊ जाते। मभयाज को कुछ वभझ भईऄ नशीॊ आमा। ऐवा भाभरा तो मभऩुयी भईऄ ऩशरी फाय आमा था। मभयाज उवे रे गमे इन्द्र के ऩाव। इन्द्र ने कशा् "ऩुण्म का पर तो बुगतलामा जाता शै, हदखामा नशीॊ जाता।"

वेठ फोरा् "नशीॊ वत्वॊग के ऩुण्म का पर भैं बोगना नशीॊ चाशता, मवपय देखना चाशता शूॉ।"

इन्द्र बी उरझन भईऄ ऩड गमे। चचत्रगुद्ऱ, मभयाज औय इन्द्र तीनों वेठ को रे गमे बगलान आहद नायामण के वभष। इन्द्र ने ऩूया लणयन ककमा। बगलान भॊद-भॊद भुस्कुयाने रगे। तीनों वे फोरे् "ठीक शै, जाओ..... अऩना-अऩना काभ वॉबारो।"

वेठ को वाभने खडा यशने हदमा। वेठ फोरा् "प्रबो ! भुझ ेवत्वॊग के ऩुण्म का पर बोगना नशीॊ शै, अवऩतु देखना शै।"

प्रबु फोरे् "चचत्रगुद्ऱ, मभयाज औय इन्द्र जैवे देल आदयवहशत तुझ ेमशाॉ रे आमे औय तू भुझ ेवाषात देख यशा शै, इववे अचधक औय क्मा देखना शै ?"

एक घडी आधी घडी, आधी भईऄ ऩुनन आध। तुरवी वत्वॊग वाध की, शये कोहट अऩयाध।।

जो चाय कदभ चरकय ब्रह्मसान के वत्वॊग भईऄ जाता शै, तो मभयाज की बी ताकत नशीॊ उवे शाथ रगाने की। ब्रह्मसान का वत्वॊग-श्रलण इतना भशान शै !

ऐवा वत्वॊग वुनने वे ऩाऩ-ताऩ कभ शो जाते शैं। ऩाऩ कयने की रूचच बी कभ शो जाती शै। वत्वॊग भईऄ फर फढता शै। वायी दफुयरताएॉ दयू शोने रगती शैं।

तुरवीदाव जी को जफ ऩत्नी ने ताना भया, तफ उनका लैयानम जग आमा। ले बगलान वे प्राथयना कयने रगे्

"शे प्रबो ! भैं तेया बि फनने का अचधकायी नशीॊ शूॉ, क्मोंकक भैं कुहटर शूॉ, काभी शूॉ, खर शूॉ। भैं तेये बि के घय की गाम शी फना देना स्लाभी ! तेये वेलक तक भेया दधू ऩशुॉचगेा तफ बी भेया कल्माण शो जाएगा। गाम फनने की मोनमता बी नशीॊ शो तो तेये बि के घय का घोडा फनूॉ। तेयी चचाय शोगी, लशाॉ आने-जाने भईऄ भेया उऩमोग शोगा तफ बी भैं धन्म शो जाऊॉ गा। घोडा फनने की बी ऩुण्माई नशीॊ तो भुझ ेउवके घय का कुत्ता शी फना देना नाथ ! उवके शाथ का रूखा-वूखा टुकडा बी मभर जाएगा तो भैं ऩवलत्र शो जाऊॉ गा औय तेयी बक्ति बी शो जाएगी।"

तुरवीदावजी ने वच्च ेरृदम वे बगलान वे प्राथयना की। बगलान वे नाता जुड गमा। अन्तभुयखता फढी तो बगलान ने उनको तुरवीदाव वे बि कवल वॊत तुरवीदाव फना हदमा।

तुरवी तुरवी क्मा कयो, तुरवी फन की घाव। कृऩा बमी यघुनाथ की, तो शो गमे तुरवीदाव।।

Page 40: Samarthya srot

बगलान को अऩना भानना औय अऩने को बगलान का भानना मश अन्तभुयखता शै। व्रत कयने वे, तऩ कयने वे, तीथायटन कयने वे जो राब शोता शै, उववे कई गुना राब बगलान वे अऩनेऩन की बालना वे शोता शै। ईद्वय आऩका शै औय आऩ ईद्वय के शैं, मश दृढ बालना यखखमे। जीलन भईऄ इव फात को चरयताथय कय रीन्जए, फेडा ऩाय शो जामेगा।

ऩयभात्भा वलयत्र शै, वुरब शैं, रेककन ऐवे ऩयभात्भा का अनुबल कयानेलारे भशात्भा दरुयब शैं। ऐवे भशात्भा का वॊग मभर जाम तो जीलन भईऄ यॊग आ जामे।

अनुक्रभ

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

वलधेमात्भक जीलनदृवद्श

एक फाय वॊत एकनाथ, वॊत तुकायाभ औय बि कवल नयमवॊश भेशता वलठोफा के दळयनाथय ऩॊढयऩुय के भॊहदय भईऄ ऩशुॉच।े तुकायाभ जी भॊहदय भईऄ प्रवलद्श शो यशे थे, तफ एकनाथजी दळयन कयके फाशय ननकर यशे थे। ले अबी बगलान वे प्राथयना कयके आमे थे, धन्मलाद देकय आमे थे्

"शे प्रबु ! तूने भुझ ेअनुकूर धभयऩत्नी दी शै इवीमरए भैं तेयी बक्ति कय वकता शूॉ। तेया कैवा उऩकाय शै नाथ ! तू ऐवी ऩत्नी न देता तो भैं कैवे तेयी बक्ति कय वकता ? लाश प्रबु ! तेयी करूणा का कोई ऩाय नशीॊ।"

एकनाथजी फाशय ननकरे तो तुकायाभजी बगलान के वभष ऩशुॉच।े उनके वान्न्नध्म भईऄ खड ेयशे। एकटक नमनों वे बगलान के नमनभनोशय भुखायवलन्द को ननशाय यशे थे। आॉखों वे आॉवू फश यशे थे। रृदम भईऄ बक्तिबाल उभड यशा था। शाथ जोडकय गदगद कण्ठ शोकय बगलान वे प्राथयना कय यशे थे्

"लाश भेये वलट्ठर ! क्मा तेयी करूणा शै ! तूने भुझ ेऐवी ककय ळा औय झगडारू ऩत्नी देकय भुझ ऩय ककतना भशान ्उऩकाय ककमा शै ! महद ऐवी ऩत्नी तू न देता तो भैं तेयी बक्ति कैवे कयता ? भुझ ेअनुकूर औय वुन्दय ऩत्नी देता तो ळामद भैं उवी की बक्ति भईऄ रग जाता। ळामद उवी के भोशऩाळ भईऄ पॉ वकय जीलन को फयफाद कयता। तू ककतना दमाननचध शै ! शे कृऩामवन्धो ! भुझ ेककय ळा नायी ऩत्नी के रूऩ भईऄ देकय तूने भुझ ेअऩनी ओय आकवऴयत कय मरमा शै। भेया चचत्त ऩत्नी भईऄ न उरझकय ननयन्तय तेये स्भयण भईऄ भधयु शो यशा शै। लाश प्रबु ! प्रनतकूर ऩत्नी के कायण शी भैं अऩने प्माये वलट्ठर की बक्ति कय वकता शूॉ। खफू-खफू धन्मलाद प्रबो !"

तुकायाभजी फाशय आमे औय नयमवॊश भेशता ऩशुॉच ेश्रीवलग्रश के वभष। बगलान के दळयन कयके नमन ऩुरककत शो उठे। चयणों भईऄ मवय झुकामा। कपय बालवलबोय शोकय तन-भन चथयकाते शुए नतृ्म कयने रगे। शाथ भईऄ कयतार तार दे यशी थी। कण्ठ वे भधयु गीत ननकर यशा था्

बरुॊ थमुॊ बाॊगी जॊजाऱ.... वुखे बजीळुॊ श्रीगोऩाऱ।

Page 41: Samarthya srot

नयमवॊश भेशता की ऩत्नी का देशालवान शो चकुा था। बियाज उव घटना को बाॊगी जॊजार भानते शैं। ले वलठोफा वे प्राथयना कयने रगे्

शे श्रीशरय ! ऩत्नी चर फवी, अच्छा शुआ। अफ वाॊवारयक न्जम्भेदारयमों वे भुि शोकय अचधक आनन्दऩूलयक तेयी बक्ति भईऄ ननभनन शो वकूॉ गा। भेये वॊवाय की खटऩट तूने दयू कय दी, फडा उऩकाय ककमा दीनानाथ !"

एकनाथ जी की ऩत्नी अनुकूर थी।

तुकायाभ जी की ऩत्नी प्रनतकूर थी। नयमवॊश भेशता की ऩत्नी चर फवी थी। तीनों ने इन तीनों अरग-अरग ऩरयन्स्थनतमों भईऄ ईद्वय की कृऩा का शी अनुबल ककमा।

भन भईऄ ळाॊनत औय वम्ऩूणय वन्तोऴ धायण ककमा। चॊचर भन को ईद्वयदत्त कैवी बी ऩरयन्स्थनत भईऄ ळाॊत यखना मश बी जीलन का एक भशान ्कामय शै। तीनों वॊत-भशाऩुरूऴों के जीलन भईऄ मश चरयताथय शुआ शै।

फाशय की मबन्न-मबन्न ऩरयन्स्थनतमाॉ तो आती यशईऄगी, जाती यशईऄगी। तुभ अऩनी दृवद्श वलधेमात्भक फनाते शो, धन्मलादात्भक फनाते शो तो शय ऩरयन्स्थनत भईऄ तुभ वभ औय वुखी यश वकते शो.... आध्मान्त्भक उन्ननत कय वकते शो।

अनुक्रभ

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

तीन दरुयब चीजईऄ ककॊ दरुयबॊ वदगुरूयन्स्त रोके

वत्वॊगनतयब्रह्मवलचायणा च। त्मागो हश वलयस्म ननजात्भफोध ्

ककॊ दजुयमॊ वलयजनैभयनोज्।। 'जगत भईऄ दरुयब क्मा शै ? वदगुरू, वत्वॊगनत औय ब्रह्मवलचाय। वफके त्माग का शेतु क्मा शै

? अऩनी आत्भा का फोध। वफ भनुष्मों वे जीता न जामे लश कौन शै ? भनोज अथायत ्काभ।' (भखणयत्नभारा)

जगत भईऄ न्जव ऩदाथय की प्रानद्ऱ इच्छा कये औय उवके मरए मोनम प्रमत्न कये तो लश ऩदाथय मभर वकता शै ऩयन्तु जगत भईऄ फशुत कहठनाई वे मभरने लारा, शय ककवी को प्राद्ऱ नशीॊ शोता ऐवा ऩदाथय कौन वा शै ? वदगुरू, वत्वॊगनत औय ब्रह्मवलचाय।

जगत भईऄ वाॊवारयक ऩदाथों की प्रानद्ऱ वशज भईऄ शोना वॊबल शै, ऩयन्तु मे तीन ऩदाथय जगत भईऄ शोते शुए बी जगतके रौककक बाल वे मबन्न शैं इवमरए जगत भईऄ जन्भ रेने लारों को मे तीनों

Page 42: Samarthya srot

कहठनाई वे प्राद्ऱ शोते शैं। वदगुरू, वत्वॊगनत औय ब्रह्मवलचाय जगत भईऄ शोते शुए जगत के फाशय के तत्त्ल वे वम्फन्ध यखने लारे शैं। मे तीनों केलर इव जगत भईऄ शी प्राद्ऱ शोने दरुयब शों, ऐवा नशीॊ शै ककन्तु तीनों रोकों भईऄ प्राद्ऱ शोने कहठन शैं क्मोंकक न्जव ऩय आत्भकृऩा शुई तो उवे शी गुरू औय गुरूकृऩा की प्रानद्ऱ शोती शै। ननभयर औय तीव्र फुवद्ध के बफना आत्भवलचाय नशीॊ शो वकता। मे वफ वॊमोग प्राद्ऱ शोने कहठन शैं।

जो वच्च ेभागय को हदखरालईऄ, असान-अन्धकाय को दयू कयईऄ , ले वदगुरू शैं। न्जववे वत ्का वॊग शो लश वत्वॊगनत शै, चाशे लश इळाये वे शो, चदे्शा वे शो अथला कथन वे शो। वन्च्चदानॊदरूऩ जो ब्रह्म शै, न्जवे ळास्त्र भईऄ अचचन्तनीम कशा शै, न्जवका वलचाय-चचन्तन कयना अत्मन्त कहठन शै, जो अरौककक शै, उवके वलचाय को ब्रह्मवलचाय कशते शैं।

कोई कशेगा् "गुरू का मभरना कहठन शो गमा शी क्मा शै ? शभको गुरू मभरे शैं। शभ ब्रह्मवलचाय कयते शैं।'

ऐवा कथन कयने लारे बरे अऩने भन वे भान रईऄ, उनको योकने लारा कौन शै ? रेककन वदगुरू की प्रानद्ऱ औय ब्रह्मवलचाय का शोना कोई वाभान्म फात नशी शै, फच्चों का खेर नशीॊ शै। जफ वदगुरू की प्रानद्ऱ शो औय मळष्म मळष्म बाल के रषणों वे मुि शो, तफ ऩयभ ऩद की प्रानद्ऱ भईऄ वलरम्फ नशीॊ शोता। भात्र कण्ठी फाॉधनेलारा अथला भात्र लेळधायी वदगुरू नशीॊ शोता। ळास्त्र भईऄ वदगुरू के रषण फताते शुए कशा शै्

ब्रह्मानन्दॊ ऩयभ वुखदॊ केलरॊ सानभूनतां द्रन्द्रातीतॊ गगनवदृळॊ तत्त्लभस्माहदरक्ष्मभ।् एकॊ ननत्मॊ वलभरभचरॊ वलयधीवाषीबूतभ ् बालातीतॊ बत्रगुणयहशतॊ वदगुरूॊ तॊ नभामभ।।

'जो स्लमॊ ब्रह्मानन्दस्लरूऩ शैं, ऩयभ वुख देने लारे शैं, सान की भूनत य शैं, शऴय-ळोकाहद द्रन्द्रों वे यहशत शैं, आकाळ के वभान ननरेऩ शै, 'तत्त्लभमव' भशालाक्मों वे जान ेजा वकईऄ ऐवे गूढ शैं, ननत्म शैं, वलभर शैं, अचर शैं, ननयन्तय वाषीरूऩ शैं, कल्ऩना भईऄ न आलईऄ ऐवे शैं, तीनों गुणों वे ऩये शैं, ले शी वदगुरू शैं। ऐवे गुरू बानमलळ शी प्राद्ऱ शोते शैं।

ऊऩय वे धभय के ठेकेदाय फने शुए फशुत शैं। ले स्लमॊ नयक भईऄ जाते शैं औय वभाज को बी नयक भईऄ ऩटकते शैं। इवमरए जो ऩगायलारों को यखकय ऩॊथ चरा यशे शैं, वनातन धभय भईऄ घुन की नाईं रगे शुए शैं ऐवे ऩाखन्ण्डमों वे फचना चाहशए। दॊबी, ढोंगी औय वलधमभयमों के कुप्रचाय के जार भईऄ नशीॊ पॉ वना चाहशए।

जफ ळुद्ध सानलान वभदळी वदगुरू वे उऩदेळ मरमा जाता शै तबी ब्रह्मवलचाय शो वकता शै। वाधक स्लमॊ महद अचधकायी नशीॊ शोगा, तो ळुद्ध गुरू वे बी ऩूया राब नशीॊ रे ऩामेगा।

Page 43: Samarthya srot

वदगुरू वे ळास्त्र-श्रलण कयना, वत्ऩुरूऴों का वभागभ कयना औय उनवे फोध रेना, वॊवाय भईऄ ननयन्तय लैयानम की दृवद्श यखना, न्जवभईऄ वत ्तत्त्ल का वॊग शो ऐवी वत्वॊगनत कयना औय ब्रह्मवलचाय कयना....... भनुष्म जन्भ का वफवे वलळऴे कत्तयव्म मशी शै।

आत्भा-अनात्भा का वलचाय कयके ब्रह्मस्लरूऩ को जानना, श्रलण, भनन औय ननहदध्मावन भईऄ भनन यशना, मश ब्रह्मवलचाय शै। ब्रह्मवलचाय भतृ्मुरोक के मवलाम अन्म ककवी रोक भईऄ नशीॊ शो वकता। अत् अऩने कल्माण के मरए भनुष्म को ऐवा दरुयब ब्रह्मवलचाय अलश्म कयना चाहशए।

फशुत देळों की बाऴाएॉ वीखने वे, ळास्त्रों के सान वे, व्मलशाय की कुळरता वे अथला फशुत ळब्दों के सान वे तत्त्लसान नशीॊ शोता, ककन्तु अनुबलवहशत जो तत्त्लफोध शै लशी मथाथय तत्त्लसान शै। महद जानने वे शी सान शोता शै तो अठायश ऩुयाणों के कत्ताय भशात्भा श्री लेदव्मावजी को अऩनी वलद्या के सान वे शी ननन्द्ळॊतता प्राद्ऱ शो जाती। ऩयन्तु उन्शईऄ जफ देलवऴय नायदजी वे फोध प्राद्ऱ शुआ तबी ले ऩूणयता को प्राद्ऱ शुए।

जफ तक ईद्वय का अनुग्रश नशी शोता, तफ तक वदगुरू औय वत्ळास्त्र नशीॊ मभरते। जफ तक आत्भकृऩा नशीॊ शोती, तफ तक ईद्वय का अनुग्रश नशीॊ शोता। वत ्की खोज औय जगत की नद्वयता के वलचाय के बफना आत्भकृऩा नशीॊ शोती।

आयोनमता ऩा रेना दरुयब नशीॊ, फुवद्धभता ऩा रेना दरुयब नशीॊ। दरुयब तो ले शैं जो वत ्का फोध कया दईऄ।

जगत का फोध कया दईऄ ऐवे कई रोग मभरईऄगे रेककन जगदीद्वय तत्त्ल का फोध कया दईऄ ऐवे वदगुरू की प्रानद्ऱ दरुयब शै। रोक-रोकान्तय, स्लगय मा लैकुण्ठ की प्रानद्ऱ नशीॊ रेककन अऩने आऩका फोध कया दईऄ ऐवे आत्भलेत्ता वदगुरू की प्रानद्ऱ दरुयब शै।

दवूयी दरुयब चीज शै वत्वॊगनत। न्जन लस्तुओॊ वे, न्जन चदे्शाओॊ वे, न्जन वॊकेतों वे, ध्मान व,े वलचाय वे शभ वत ्की नजदीक जामईऄ ले चीजईऄ मभरनी दरुयब शैं। ब्रह्मलेत्ता औय ब्रह्मलेत्ता को वभझने लारे दरुयब शैं। ऩतन की तयप जाने की चीजईऄ तो फडी आवानी वे मभरती शैं।

ळायीरयक फीभारयमाॉ दयू कयने के मरए तो कई औऴधारम मा दलाखाने, अस्ऩतार, आऩयेळन चथमेटय आहद शैं। रेककन इन व्माचधमों का भूर शै आचध। आचध भन को शोती शै, व्माचध तन को शोती शै। भन जफ नीच ेके केन्द्रों भईऄ शोता शै, तुच्छ शोता शै तफ खाने की रारच, बोगने की रारच कयके बफनजरूयी व्माचधमों को अनजाने भईऄ शी आभॊबत्रत कय रेता शै। व्माचध ननलतृ्त कयने के फशुत वाधन शैं शभ रोगों के ऩाव रेककन आचध दयू कयने के मरए इतने वाधन नशीॊ शैं।

आचध, व्माचध औय उऩाचध, इन तीनों योगों को ननलतृ्त कय दे, ऐवी वत्वॊगनत प्राद्ऱ शोना फडा दरुयब शै।

वत्वॊगनत की प्रानद्ऱ शो जाम, वत्वॊग मभर जाम रेककन उव वत्वॊग भईऄ ब्रह्मवलचाय शोना अत्मॊत दरुयब शै। रोक-रोकान्तय के वलचाय, स्लगय-नयक के वलचाय, ऩाऩ-ऩुण्म के वलचाय तो

Page 44: Samarthya srot

वत्वॊग भईऄ शो शी जाते शैं, रेककन इन वफको फाचधत कयके ब्रह्मवलचाय शो, ऐवे वत्वॊग की प्रानद्ऱ फडी दरुयब शै। वज्जनों का वलचाय, ळूयलीयों का वलचाय, त्मागी-तऩन्स्लमों का वलचाय, वदाचायी औय शे्रद्ष ऩुरूऴों का वलचाय.... मे तो वत्वॊगों भईऄ, कथाओॊ भईऄ, कशाननमों भईऄ आता शै रेककन ऐवा वत्वॊग दरुयब शै न्जव वत्वॊग भईऄ ब्रह्म-ऩयभात्भा का वलचाय शो। ऩयभात्भा के श्रीवलग्रश क रीरा, ऩयभात्भा के अलतायों का लणयन, ववृद्श के क्रभ का लणयन, उत्ऩवत्त-न्स्थनत-प्ररम का लणयन, मे वफ ठीक शैं, रेककन जो ब्रह्मवलचायलारा वत्वॊग शै, लश मभरना दरुयब शै।

ब्रह्मवलचाय-प्रधान जो वत्वॊग शै, लश वत्वॊग जैवे-तैवे नशीॊ मभरता। अनचधकायी आदभी उव वत्वॊग भईऄ फैठ नशीॊ वकता। न्जवका जऩ, तऩ, वेला, ऩूजा, कुछ न कुछ उव अन्तमायभी ऩयभात्भा को, ईद्वय को स्लीकाय शो गमा शै लशी आदभी वदगुरू की प्रानद्ऱ कय वकता शै, वत्वॊगनत की प्रानद्ऱ कय वकता शै। अन्मथा उवको कथा अथला कशाननमाॉ, चटुकुरे शी मभरकय यश जाएॉगे। कथा-लाताय तो वाधायण आदभी को बी मभर जाती शै। रेककन वत्स्लरूऩ ऩयभात्भा का वॊग शो जामे, फोध शो जाम ऐवा वत्वॊग मभरना दरुयब शै।

व्माख्मानदाता फन जाना फडी फात नशीॊ, जगत भईऄ वफवे फडा धनलान फन जाना फडी फात नशीॊ, फडी-भईऄ-फडी वत्ता का अचधकायी फन जाना फडी फात नशीॊ, स्लगय का याजा फनना बी फडी फात नशीॊ, रेककन आत्भ-वाषात्काय कय रेना वफवे फडी फात शै। आत्भ-वाषात्काय जैवी ऊॉ ची कोई चीज नशीॊ। मशाॉ तक कक बगलान के वाथ खेरना बी फडी फात नशीॊ। भॊहदय भईऄ जाओ औय ठाकुयजी प्रकट शो जामईऄ – मशाॉ तक बी कोई ऩशुॉच जाम कपय बी जफ तक ब्रह्मवलचाय नशी शोगा, तफ तक बगलत्तत्ल का वाषात्काय नशीॊ शोगा। भॊहदय के बगलान आमईऄगे औय कपय अदृश्म शो जामईऄगे, रेककन वलयव्माऩी शरय का दीदाय नशीॊ शोगा।

ब्रह्मवलद्या ऐवी शै कक मुद्ध के भैदान भईऄ बी प्रकट शो वकती शै, याज्म के तख्त ऩय बी प्रकट शो वकती शै औय ळादी की तैमायी के लि बी प्रकट शो वकती शै। मुद्ध के भैदान भईऄ अजुयन के आगे मश ब्रह्मवलद्या प्रकट शुई औय काभ-काज भईऄ व्मस्त जनक के आगे बी इव ब्रह्मवलद्या ने चभत्काय हदखा हदमा।

'श्रीमोगलामळद्ष भशायाभामण' का प्राकटम कैवे शुआ ? बगलान श्रीयाभचन्द्रजी वोरश लऴय के शुए, वॊवाय भईऄ प्रवलद्श शोने के कयीफ शुए उव वभम मुलालस्था भईऄ ब्रह्मवलचाय उत्ऩन्न शुआ। इव ब्रह्मवलचाय के मरए, इव वत्वॊगनत के मरए, इव वाध-ुवभागभ के मरए फुढाऩे का इन्तजाय भत कयो। 'फूढे शोंगे कपय वत्वॊगनत कयईऄगे.... फुवद्ध जीणय-ळीणय शो जामेगी, वॊवाय का कचया नाऩते-तोरते फुवद्ध षीण शो जामेगी तफ उवभईऄ ब्रह्म वलचाय का यव बयईऄगे....' ऐवा भत वोचो। जफ वे जागो तफ वे शी चर ऩडो ब्रह्मवलचाय की ओय। मश दरुयब चीज शै। लमळद्षजी भशायाज फोरते शैं-

"तेयश ननभेऴ अथायत ्आॉख के तेयश ऩरकायईऄ ऩडईऄ, उतनी देय बी इव ब्रह्मवलचाय भईऄ अगय हटक गमे तो जगतदान कयने का पर मभरता शै।"

Page 45: Samarthya srot

ननज आत्भा का फोध दरुयब शै। ऐवी दरुयब चीज को ऩाना शी भनुष्म जीलन का ऩयभ ऩुरूऴाथय शै।

वॊवाय का त्माग कय हदमा, पकीयी कभाई, ऩाव भईऄ कुछ नशीॊ यखते, एक दम़डी कौडी बी नशीॊ शै, शला ऩीकय यशते शैं, रेककन आत्भवलचाय नशीॊ शै, ब्रह्मवलचाय नशीॊ शै तो जो भधयु मात्रा शोनी चाहशए लश नशीॊ शोती।

एक चक्रलती याजा वलयस्ल त्माग कयके बफल्कुर त्मागी शो गमे, मबषुक शो गमे। भशात्मागी ! जाकय चगयी-कन्दया भईऄ फैठे। जफ बूख वताती तफ फस्ती भईऄ आते, रूखा वूखा रे जाते, धो-धोकय ळुद्ध कयके चफाते औय कपय अऩने ध्मान बजन भईऄ रग जाते। मोगी भच्छन्दयनाथ घूभते घूभते उव नगय भईऄ आमे तो रोगों ने प्रळॊवा की कक नगय के बूतऩूलय नयेळ अफ भशान ्त्मागी तऩस्ली फन गमे शैं। भच्छन्दयनाथ ने ऩूछा् "भशान ्त्मागी तो शैं, रेककन त्माग का पर जो ब्रह्मवलचाय शै, उवभईऄ रीन शैं कक नशीॊ ?"

रोगों ने कशा् "भशायाज ! ब्रह्मवलचाय क्मा शोता शै, शभको ऩता नशीॊ।"

"याजा वे भशायाज शो गमे, उनके दळयन तो कय यशे शो रेककन याजा वे भशायाज शोना न्जवके मरए शै उव ब्रह्मवलचाय का तुभको ऩता शी नशीॊ, ऩागरों ! भैं उव त्मागी वे भुराकात करूॉ गा।" भच्छन्दयनाथ नगय भईऄ ठशय गमे।

दवूये हदन ले त्मागी नगय भईऄ आमे औय मबषा रेकय वलदा शुए तो भच्छन्दय नाथ उनके वाथ चरने रगे। यास्ते भईऄ जाते-जाते उनको एक कोशनी भाय दी। त्मागी वम्राट ने कशा्

"भशायाज ! आऩकी कोशनी रगने वे भैं कु्रद्ध नशीॊ शोऊॉ गा। भैंने वलयस्ल त्माग हदमा शै। भैंने भान का बी त्माग कय हदमा शै।"

भच्छन्दयनाथ ने कोई उत्तय नशीॊ हदमा। दोनों आगे चरे। कपय भच्छन्दयनाथ ने छेडखानी की। इव फाय ऐवा धक्का भाया कक त्मागी के शाथ वे मबषाऩात्र चगय गमा। त्मागी फोरे्

"भशायाज ! ऐवा कयके आऩ भुझ ेगुस्वा हदराते शैं, रेककन भैं गुस्वे शोने लारा नशीॊ शूॉ।"

कपय दोनों आगे फढे। भच्छन्दयनाथ ने तीवया प्रमोग ककमा। भशान ्त्मागी फन फैठे बूतऩूलय याजा को जफ तीवया धक्का भाया तो त्मागी जी फोर उठे्

"आखखय आऩ क्मा कयना चाशते शैं ?"

"भैं तुम्शईऄ मश वभझाना चाशता शूॉ कक तुभने त्माग तो ककमा रेककन तुभ कौन शो ? इवका वलचाय तुभने नशीॊ ककमा। बफना इवको जाने तुम्शाये बीतय भईऄ यशेगा कक भैं ऩशरे याजा था, चक्रलती वम्राट था, अफ भैं मबषुक शूॉ, त्मागी शूॉ। देश की ऩरयन्च्छन्नता भौजूद यशेगी। त्माग का पर जो अनन्त ब्रह्माण्ड भईऄ व्माऩक वन्च्चदानन्दघन ऩयभात्भा की प्रानद्ऱ शै, उववे तुभ लॊचचत यश जाओगे। इवके मरए ब्रह्मवलचाय की दनुनमा भईऄ प्रलेळ कयना शोगा।"

अकेरा त्माग ऩमायद्ऱ नशीॊ शै। अकेरा त्माग ऩमायद्ऱ शोता, अकेरे त्माग वे अगय ईद्वय मभर जाते तो उव याजा का काभ फन जाता। उवके ऩाव तो मबषाऩात्र था, रेककन ऩषी ऐवे त्मागी शैं

Page 46: Samarthya srot

कक उनके ऩाव मबषाऩात्र तक नशीॊ शोता। याजा तो ककवी के घय की फनी-फनामी मबषा रेते शैं, जफकक ऩक्षषमों, ऩळुओॊ, कुत्तों आहद को तो रूखा-वूखा मभरता शै, बफल्कुर अऩभाननत शोकय मभरता शै। कपय बी उनको अऩभान नशीॊ रगता। इन त्मागी को तो एक-दो धक्के रगे रेककन कुत्तों को ककतने दण्ड रगते शैं ! अगय त्माचगमों भईऄ तुरना की जाम ऩळु-ऩक्षषमों के त्माग के फयाफय भनुष्म का त्माग नशीॊ शै। मे ऩळु-ऩषी फेचाये कबी लस्त्र बी नशीॊ ऩशनते। त्मागी पकीय कभ वे कभ रॊगोटी तो ऩशनता शै ! ऩषी ककवी गुपा भईऄ नशीॊ यशते कबी ककवी डार ऩय तो कबी ककवी डार ऩय जी रेते शैं।

भनुष्म ककतना बी त्मागी शो, रेककन ब्रह्मवलचाय नशीॊ ककमा तो त्माग का पर नशीॊ ऩामा। फड ेभईऄ फडा त्माग ककवने ककमा ? न्जवने आत्भऩद ऩामा उवने फड ेभईऄ फडा त्माग ककमा।

मश कैवे ?

आत्भऩद को ऩाने लारे ने अनन्त-अनन्त ब्रह्माण्डों की आवक्ति, स्लगय के वुख की रोरुऩता, लैकुण्ठ का आकऴयण, मळ-भान का आकऴयण आहद वफका त्माग कय हदमा। उवने देश का बी त्माग कय हदमा।

देश छताॊ जेनी दळा लयते देशातीत। ते सानीना चयणभाॊ शो लॊदन अगणीत।।

इव ऩद ऩय जो ऩशुॉच गमा उवने वफवे फडा त्माग कय हदमा। चाशे लश याजा जनक के मवॊशावन ऩय फैठा शो चाशे ळुकदेल जी भुनन की व्मावऩीठ ऩय वलयाजभान शो, चाशे भदारवा की तयश घय भईऄ कामययत शो। लश भशान त्मागी शै न्जवने ब्रह्मवलचाय कयके अऩना देशाध्माव मभटा हदमा।

मश अनत दरुयब चीज शै। बगलान श्रीयाभ ने बी लमळद्षजी वे ऩूछा् "शे भुननळादूयर ! बत्रबुलन भईऄ वफवे उत्तभ चीज

कौन वी शै, उत्तभ ऩद कौन वा शै औय उत्तभ ऩुरूऴ कौन वा शै ?"

लमळद्षजी ने कशा् "शे याभचन्द्रजी ! इन्न्द्रमों के बोग भईऄ मरद्ऱ शोकय, भान फडाई की जॊजीयों भईऄ पॉ वकय जील फेचाये चशुॉ ओय बटकते शैं। कोई-कोई वलयरा इन आकऴयणों वे फचकय ऩयभ ऩद को ऩाता शै, आत्भसान को ऩाता शै औय लशी उत्तभ शै।

भेये भत भईऄ देलता उत्तभ नशीॊ शै, क्मोंकक ले बोग की खाई भईऄ ऩड ेशैं औय अऩने को बानमलान भानते शैं। ऩुण्मनाळ शोने के फाद, बोग नद्श शोने के फाद ले दु् खी शोते शैं। कपय उन्शईऄ नीच ेआना ऩडता शै। भेये भत भईऄ ले गन्धलय बी उत्तभ नशीॊ शैं, क्मोंकक उन्शईऄ आत्भसान की तो गन्ध बी नशीॊ शै। ले रूऩ फदर वकते शैं, वुलणय के वलभान भईऄ जा वकते शैं, इधय उधय की गनत कय वकते शैं रेककन न्जववे गनत शोती शै, उव गनतदाता की भुराकात नशीॊ कयते। उन गन्धलों को चधक्काय शै ! उन वलद्याधयों को बी चधक्काय शै जो लेदों की वलद्या तो जानते शैं, ऋचाएॉ तो फोर रेते शैं, रेककन आत्भवलद्या भईऄ उनको यव नशीॊ शै। लेद के रक्ष्म का अभतृ न्जनको प्राद्ऱ नशीॊ

Page 47: Samarthya srot

शुआ, उन वलद्याधयों का चधक्काय शै ! मष औय मक्षषखणमों को बी चधक्काय शै जो आत्भऩद वे लॊचचत शोकय इधय-उधय नाचगान भईऄ, रूऩ-रालण्म भईऄ औय वलऴम-लावना भईऄ जीलन फयफाद कय यशे शैं। ऩातार रोक भईऄ जो नाग यशते शैं ले वुॊदय नाचगननमों के ऩीछे भोशाॊध शो जाते शैं। उन नागों को बी चधक्काय शै जो आत्भयव वे लॊचचत शोकय काभ-वलकायों भईऄ अऩना जीलन नद्श कय यशे शैं।

शे याभ जी ! भनुष्मों को तो तुभ जानते शी शो। 'भेया अऩना घय शो जामे.... गशृ फवाऊॉ ..... धन्धा ऩाऊॉ .... धन फढाऊॉ ..... ऩुत्रों को ऩाऊॉ ...... इवी चचन्ता भईऄ फेचाये चयू शैं। ले नयाधभ मश नशीॊ जानते कक न्जव आत्भऩद को जानने के मरए जीलन मभरा शै उवकी ऩशचान कयनी चाहशए। ले ब्रह्मवलचाय नशीॊ कयते। घय अऩना शो, ऩत्नी वुन्दय शो, ऩुत्र आसाकायी शो, ऩडोवी अच्छा शो, इधय ऐवा शो, उधय लैवा शो...... इन वलचायों भईऄ तो न्जन्दगी नद्श कय देते शैं, रेककन ब्रह्मवलचाय के मरए वभम नशीॊ मभरता।

कोई-कोई वलयरा शी शै जो ब्रह्मवलचाय के अभतृ तक ऩशुॉचता शै। वागय भईऄ जन्तु फशुत शोते शैं, घोंघे फशुत शोते शैं। वीऩ तो कशीॊ-कशीॊ शोती शै, जो भोती ऩकाती शै। ऐव ेशी वॊवाय वागय भईऄ असानी भूढ तो फशुत शोते शैं। कोई-कोई वलयरा शोता शै जो अऩने हदर भईऄ ब्रह्मवलचाय कयके आत्भ-वाषात्काय कय रेता शै। उवको भेया नभस्काय शै !

ऐवे कोई याजवऴय शैं, न्जन्शोंने ब्रह्मवलचाय ककमा, कोई भुनन शैं, न्जन्शोंने ब्रह्मवलचाय ककमा। कोई नारयमों के रूऩ भईऄ शै, न्जन्शोंने ब्रह्मवलचाय ककमा औय ब्रह्मऩद को ऩामा। उनको भेया धन्मलाद शै..... उवको भेया नभस्काय शै ! देलरोक भईऄ बी ब्रह्म, वलष्णु, भशेळ, वूमय, चन्द्र, कुफेय, लरूण, इन्द्र, मभयाज..... औय बी कई देल, फशृस्ऩनत आहद आत्भवलचाय कयके आत्भऩद को ऩामे शुए शैं। फाकी के वफ इधय उधय के चक्कय भईऄ शैं। नागों भईऄ लावुकी नाग ने आत्भसान ऩामा शै। भुनीद्वयों भईऄ कवऩर भुनन न,े अॊगीया, ऩयाळय आहद फशुत वाये भुननमों ने आत्भऩद ऩामा शै। भनुष्मों भईऄ बी न्जन्शोंने ऩामा, उनको भेया धन्मलाद शै ! फाकी तो वलऴम लावना वे, 'तेयी-भेयी' की लवृत्त वे जील वॊवाय भईऄ नयक फनाकय, दु् ख की आग जराकय उवभईऄ अऩने आऩको बूनते यशते शैं। अऩने शी वलचायों वे याग औय दे्रऴ की अन्नन जराकय अऩने आऩको झुरवा यशे शैं। न्जवने आत्भवलचाय ककमा शै, उवने लश अन्नन फुझाकय ब्रह्मयव का ऩान ककमा शै।"

बगलान ळॊकयाचामय द्ऴोक भईऄ कशते शैं- ककॊ दरुयबॊ ? वदगुरू, वत्वॊगनत औय ब्रह्मवलचाय। वदगुरू मभर जामईऄ औय भनुष्म की अऩनी मोनमता न शो तो वदगुरू वे ब्रह्मवलचाय,

ब्रह्मचचाय, ब्रह्मध्मान, ऩयभात्भ-वाषात्काय नशीॊ कय ऩामेगा। वदगुरू मभर गमे रेककन अऩनी मोनमता नशीॊ शै, तत्ऩयता नशीॊ शै तो भनुष्म उनवे बी ईंट, चनूा, रोशा, रक्हड आहद वॊवाय की तुच्छ चीजईऄ चाशता शै। न्जवकी अऩनी कुछ आध्मान्त्भक कभाई शै, अऩने कुछ ऩुण्म शैं लश वदगुरू वे वत ्तत्त्ल की न्जसावा कयेगा। वॊवायका फन्धन कैवे छूटे ? आॉख वदा के मरए फन्द शो जामे, इन नेत्रों की ज्मोनत कभ शो जामे उवके ऩशरे आत्भ-ज्मोनत की जगभगाशट कैवे शो ? कुटुम्फीजन भुॉश भोड रईऄ उवके ऩशरे अऩने वलेद्वयस्लरूऩ की भुराकात कैवे शो ? ऐवा प्रद्ल कयने

Page 48: Samarthya srot

लारा, आत्भवलचाय औय आत्भ-प्माव वे बया शुआ जो वाधक शै, लशी वदगुरू का ऩूया राब उठाता शै। फाकी के रोग क्मा कयते शैं ? जैवे कोई वम्राट प्रवन्न शो जाम औय उववे चना-चडूा औय चाय ऩैवे की चइुॊगभ-चॉकरेट भाॉगे, लैवे शी ब्रह्मलेत्ता वदगुरू प्राद्ऱ शो जामईऄ औय उनवे वॊवाय की चीजईऄ प्राद्ऱ कयके अऩने को बानमलान भान रे लश नन्शईऄ-भुन्ने फच्च ेजैवा शै जो तुच्छ खखरौनों भईऄ खळु शो जाता शै।

ऩाताररोक, भतृ्मुरोक औय स्लगयरोक-इन तीनों रोकों भईऄ वदगुरू, वत्वॊगनत औय ब्रह्मवलचाय की प्रानद्ऱ दरुयब शै। मे तीन चीजईऄ न्जवे मभर गईं, चाशे औय कुछ नशीॊ मभरा, कपय बी लश वफवे ज्मादा बानमलान शै। फाशय की वफ चीजईऄ शो, केलर मे तीन चीजईऄ नशीॊ शों तो बरे चाय हदन के मरए उवे बानमलान भान रो, वाभान्जक दृवद्श वे उवे फडा भान रो, रेककन लास्तल भईऄ उवने जीलन का पर नशीॊ ऩामा।

लमळद्षजी कशते शैं-"शे याभ जी ! रोगों की नजय भे जो ऊॉ च ेहदखते शैं, ले बी बोग के कीचड भईऄ खदफदाते शैं। रोगों की दृवद्श वे जो फड ेऩद ऩय शैं, फडी वत्ता ऩय शैं, धन की यामळ के स्लाभी शैं, रोगों की दृवद्श वे भान देने मोनम शैं, ऐवे रोग बी इन्न्द्रमों के वलऴमों भईऄ तऩते शैं। कोई वलयरा शै, जो इन्न्द्रमातीत, देळातीत, कारातीत तत्त्ल को ऩाकय अऩना जन्भ वाथयक कयता शै।

इन्न्द्रमों वे जो बी ऩकड भईऄ आमेगा, लश वॊमोगजन्म वुख शोगा। वॊमोगजन्म जो कुछ बी वुख शोगा, लश वुख बोिा की ळक्ति को षीण कयेगा। वभम फयफाद कयेगा। लास्तल भईऄ वुख इनके वॊमोग वे नशीॊ आता, ळुद्ध चतैन्म वे आता शै रेककन इन्न्द्रमों औय वलऴमों भईऄ ळुद्ध चतैन्म के वुख को शभ बफखेय देते शैं।

श्रीभद् याजचन्द्रजी के मळष्म रल्रू जी ने उनवे कशा् "बगलन ्! भैंने दो ऩमत्नमाॉ त्मागीॊ, ऩुत्र त्मागे, ऩरयलाय त्मागा, लैबल-वॊऩवत्त त्मागी रेककन

त्माग का जो पर शै लश आत्भळाॊनत प्रकट नशीॊ शुई।"

याजचन्द्रजी ने कशा् "रल्रू ! तू ठीक वे ध्मान कयके देख वलचाय कयके देख। तूने एक घय को त्मागा, रेककन दव घयों के वाथ तेया वम्फन्ध शै कक नशीॊ ? फातचीत शै कक नशीॊ ? तूने अऩने ऩुत्र त्मागे औय ऩचावों ऩुत्रों के आगे अच्छा कशराने की इच्छा शै कक नशीॊ ? त्माग नत ककमा रेककन त्मागने के फाद याग बी तेया उतना शी फना यशा। जो फाशय का त्माग कयके कपय फाशय वे शी वुख रेना चाशता शै, उवके त्माग का पर नशी उऩजता। ठीक वे वलचाय कय।"

आखखय रल्रूजी ननकट का मळष्म था। मवय नीचा शो गमा। फोरा् "गुरूदेल ! फात वभझ भईऄ आ गई।"

ळॊकयाचामयजी इवीमरए फोरते शै् ऐवे वदगुरू की प्रानद्ऱ दरुयब शै। ले देखते शैं कक शभ वाधना भईऄ कशाॉ रूके शैं। रूकना शभाया ऩुयाना स्लबाल शै। मुगों की आदत शै। इन्न्द्रमजन्म वुखों

Page 49: Samarthya srot

भईऄ, लाश-लाशी भईऄ, कशीॊ न कशीॊ रूक जाते शैं। कोई प्रनतकूरता आमी तो रूक गमे, कोई अनुकूरता आमी तो रूक गमे। अऩभान शुआ तो रूक गमे औय कशीॊ वलळऴे भान मभर गमा तो रूक गमे।

वत्वॊग के भागय भईऄ कबी अऩभान शो जाता शै, तबी बी शभ रूक जाते शैं। मे चीजईऄ जीलन भईऄ फरात ्आती शी शैं। इवमरए वत्वॊग को जीलन भईऄ फाय-फाय राना चाहशए। वुने शुए अभतृलचनों का फाय-फाय स्भयण कयना चाहशए। वुना शुआ वत्वॊग कबी-न-कबी, कशीॊ-न-कशीॊ काभ आ शी जाता शै।

दरुयब शै वत्वॊग, दरुयब शै वत्ऩुरूऴों का वान्न्नध्म औय दरुयब शै ब्रह्मवलचाय। अनुक्रभ

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

गीता भईऄ भधुय जीलन का भागय मस्म वले वभायम्बा् काभवॊकल्ऩलन्जयता्। सानान्ननदनधकभायणॊ तभाशु् ऩन्ण्डतॊ फुधा्।।

'न्जवके वम्ऩूणय कामय काभना औय वॊकल्ऩों वे यहशत शो गमे शैं तथा सानान्नन वे वभस्त कभय दनध शो गमे शैं, उवको फोधलान ्ऩुरूऴ तत्त्ललेत्ता ऩॊक्तडत कशते शैं।'

(बगलद् गीता्4.19) कभय तो कयता शै रेककन काभना यहशत शोकय, वॊकल्ऩयहशत शोकय, ऐवा जो फुवद्धभान शै

लश तत्त्ललेत्ता शै। उवकी अनुऩभ ळक्तिमाॉ वलकमवत शो गईं, उवकी वलरषण मोनमता गई। उवने जीने का पर ऩा मरमा। भानल जन्भ धायण कयने का पर ऩा मरमा, काभना औय वॊकल्ऩ वे यहशत शोकय धन्म शो गमा।

काभनाएॉ औय वॊकल्ऩ शभाये जीलनयव को अन्धाधुॊधी वे फशा देते शैं। बवलष्म भईऄ वलऴम बोगों के द्राया वुख ऩाने की जो मोजना फुवद्ध भईऄ शै, उवे काभना कशते शैं। जो आदभी बवलष्म भईऄ वलऴमों ल बोगों वे वुखी शोने की मोजना फनाकय, वॊकल्ऩ फाॉधकय काभनालारा शोकय कभय कयता शै लश अऩने को लत्तयभान की मोनमता औय लत्तयभान के आनन्द वे उठाकय दयू पईऄ क देता शै। अऩने को चचन्ता,बम, घणृा, ईष्माय, याग-दे्रऴ, अमबननलेळ की दगुयभ खाई भईऄ चगया देता शै। जो बवलष्म भईऄ वुखबोग कयने का आमोजन कयता शै, लत्तयभान भईऄ उवकी मोनमताएॉ षीण शो जाती शैं।

गीता शभवे कभय नशीॊ छुडाती, गीता शभवे वॊवाय नशीॊ छुडाती, गीता शभवे व्मलशाय नशीॊ छुडाती, रेककन व्मलशाय भईऄ जो फेलकूपी कयके शभ फन्धन फना रेते शैं लश फन्धन छुडाती शै। व्मलशाय छोडकय अजुयन जा यशा था औय गीता वुनकय धभयमुद्ध कयने को तैमाय शो गमा।

काभवॊकल्ऩलन्जयता्। काभनाओॊ औय वॊकल्ऩों का त्माग।

Page 50: Samarthya srot

प्रद्ल शोगा कक काभना औय वॊकल्ऩों के बफना आदभी न्जमेगा कैवे ? काभना औय वॊकल्ऩों के वाथ आदभी कैवे जी यशा शै, मश बी तो देखो ! वुखबोग की न्जतनी काभना शै, वुखबोग का वॊकल्ऩ न्जतना तीव्र शै, आदभी का जीलन उतना शी खखन्नता वे, वलकायों वे, अळान्न्त वे, उदे्रग वे बया शुआ शै।

काभना छोडकय जीने का ढॊग अगय आ जाम तो भनुष्म का जीलन भधयु शो जामे। लश आदभी तत्त्ललेत्ता शो जाम। लश अऩनी लत्तयभान अलस्था भईऄ ऩूणय प्रवन्न शो जाम औय वलऴम वुख ऩाकय मा कशीॊ जाकय वुख ऩाने की उवकी दृवद्श शी फदर जाम।

ऩूये शैं लशी भदय जो शय शार भईऄ खुळ शैं। जो पुक्र1 ऩूये शैं, लश शय शार भईऄ खुळ शैं।।

शय काभ भईऄ, शय दाभ2 भईऄ, शय चार भईऄ खुळ शैं। गय भार हदमा माय न,े तो भार भईऄ खुळ शैं।। फेजय3 जो ककमा, तो उवी अशलार4 भईऄ खुळ शैं। इपराव5 भईऄ, अदफाय6, इकफार7 भईऄ खुळ शैं। ऩूये शैं लशी भदय जो शय शार भईऄ खुळ शैं।।1।।

गय उवने हदमा गभ, तो उव गभ भईऄ यशे खुळ। भातभ8 जो हदमा, तो उवी भातभ भईऄ यशे खुळ।। खाने को मभरा कभ, तो उवी कभ भईऄ यशे खुळ।। न्जव तयश यखा उवन,े उव आरभ9 भईऄ यशे खुळ।। दु् ख ददय भईऄ, आपात10 भईऄ, जॊजार भईऄ खुळ शैं। ऩूये शैं लशी भदय जो शय शार भईऄ खुळ शैं।।2।। गय उवने उढामा, तो मरमा ओढ दोळारा11। कम्फर जो हदमा तो लशी काॉधे ऩै वॊबारा।। चादय जो ओढाई तो लशी शो गई फारा12। फॉधलाई रॊगोटी तो लशी शॉव वे कशा, 'रा'।। ऩोळाक भईऄ दस्ताय13 भईऄ, रूभार भईऄ खुळ शै। ऩूये शैं लशी भदय जो शय शार भईऄ खुळ शैं।।3।। गय खाट बफछाने को मभरी, खाट भईऄ वोमे। दकूों भईऄ वुरामा, तो उवी शाट भईऄ वोमे।। यास्ते भईऄ कशा 'वो' तो लशी फाट भईऄ वोमे। गय टाट बफछाने को हदम, टाट भईऄ वोमे।।

औय खार बफछा दी, तो उवी खार भे खळु शैं। ऩूये शैं लशी भदय जो शय शार भईऄ खुळ शै।।4।।

Page 51: Samarthya srot

ऩानी जो मभरा, ऩी मरमा न्जव तौय का ऩामा। योटी जो मभरी, तो ककमा योटी भईऄ गुजाया।। गय कुछ न हदमा माय न,े तो बूख को भाया। हदर ळाद यशे, कयके कडाके ऩै कडाका14।। औय छार चफाई, तो उवी छार भईऄ खुळ शैं। ऩूये शैं लशी भदय जो शय शार भईऄ खुळ शै।।5।।

1. पकीयी। 2. भूल्म। 3. ननधयन। 4. शारत। 5. गयीफी। 6. अबानम। 7. जगत का लैबल भान प्रनतद्षा। 8. योना-ऩीटना। 9. शारत। 10. भुवीफत। 11. वुन्दय लस्त्र। 12. वुन्दय। 13. ऩगडी। 14. उऩलाव।

ऐवे ऩुरूऴ को टाट आहद वे अथला भशर वे खळुी नशी, उवकी अऩनी ननजी खळुी शै जो शय शार भईऄ अमबव्मि शोती यशती शै। न्जवको अऩनी ननजी खळुी, ननजी वुख, ननजी जीलन नशीॊ प्राद्ऱ शुआ लश फडा दु् खी शोता शै। काभ-क्रोध वे आक्रान्त व्मक्ति ऩयाधीन शै औय काभ-वॊकल्ऩलन्जयत व्मक्ति स्लाधीन शै।

ऐवी स्लाधीनता ऩाने के मरए क्मा ककमा जामे ?

अगय काभनाएॉ शैं तो ऩयहशत की काभना फना दो। वॊकल्ऩ शैं तो वत्मस्लरूऩ ऩयभात्भा को ऩाने का वॊकल्ऩ फना दो। काभना औय वॊकल्ऩ के बफना अगय काभ नशीॊ चरता शो तो फशुजनहशतम..... फशुजनवुखाम काभना कयो औय अऩने स्लरूऩ भईऄ ठशयने का वॊकल्ऩ कयो।

काभनाओॊ के कायण व्मक्ति की मोनमताएॉ कुन्ण्ठत शो जाती शैं। काभना यहशत व्मक्ति की मोनमताएॉ वलकमवत शोती शै। काभना छूटती नशीॊ तो ऩयहशत की काभना कयो। इववे अऩनी मोनमता वलकमवत शोगी। व्मक्तिगत बोग की काभना मोनमत को षीण कय देती शै। अबी वलऴम-वुख, बोग-वुख नशीॊ मभरता, बवलष्म भईऄ मभरेगा कक नशी, इवकी चचन्ता, बम औय वन्देश व्मक्ति की मोनमताओॊ को खा जाते शैं। अगय काम्म ऩदाथय व्मक्ति को मभर जाते शैं तो बोग लावना के कायण लश उन काम्म ऩदाथों फद्ध शो जाता शै। बोगने ऩय काम्म ऩदाथय नद्श शो जाते शैं अथला बोगते वभम शी कुछ गडफडी ऩैदा कय देत ेशैं।

सानेद्वय भशायाज 'सानेद्वयी गीता' भईऄ कशते शैं- "अजगय का मवयशाना फनाकय अगय कोई वुख वे वो वकता शै तो वलऴम बोग वे भनुष्म

वुखी यश वकता शै। यीछ को कम्फर भानकय आमरॊगन कयके कोई अऩनी ठण्ड उडा वकता शै तो काम्म ऩदाथों वे भनुष्म वुखी शो वकता शै।"

ऩानी को खफू ठण्डा कयके फपय फना दो तो ऩान का लश ळीतर स्लरूऩ कृबत्रभ शै। फपय को ऐवे शी छोड दो तो लश वऩघरकय अऩने अवरी स्लरूऩ भईऄ आ जामेगा, ऩानी फन जामेगा।

ऩानी को उफारकय लाष्ऩ फना दो तो ऩानी का लश उष्ण स्लरूऩ कृबत्रभ शै। उव लाष्ऩ को ऐवे शी छोड दो तो लश ठण्डा शोकय कपय अऩने अवरी स्लरूऩ भईऄ आ जाएगा, ऩानी फन जाएगा।

Page 52: Samarthya srot

कृबत्रभ स्लरूऩ फना शुआ शै, लश हटकेगा नशीॊ। वशज स्लाबावलक स्लरूऩ शी लास्तवलक शै, हटकने लारा शै, वुखदामक शै, वुखस्लरूऩ शै।

लातानुकूर मॊत्र वे कभया ठण्डा शो जाता शै। मॊत्र फन्द कय दो तो कभया लैवे का लैवा फन जाता शै। जो रोग लातानुकूर कभये के आदी फन जाते शैं ले उवके अबाल भईऄ ऩयेळान शो जाते शैं। काम्म ऩदाथों को रेकय वुखी शोने लारे रोग ऩयेळानी भोर रे रेते शैं, क्मोंकक काम्म ऩदाथय तो कबी मभरे न मभरे। अगय वदा मभरते शी यशे तो बोिा के आमुष्म, फर, तेज, ओज, फुवद्ध को नद्श कयके चरे जाते शैं।

काम्म ऩदाथों वे वुख रेने की इच्छा व्मक्ति की अवमरमत को ढक देती शै। इन्न्द्रम वुख भईऄ जीलन यभ जाता शै। इन्न्द्रम वुख बोगते बोगते रोरुऩता फढती जाती शै। कपय आगे चर कय इन्न्द्रमाॉ तो मळचथर शो जाती शैं औय वुख की रोरुऩत भजफूत शो जाती शै। अन्त्कयण भईऄ वुख बोग की गशयी रकीयईऄ ऩड जाती शैं। भयने ऩय लश रोरुऩता, वुख बोग की इच्छा-लावना वाथ भईऄ चरती शै। उव लावना को तदृ्ऱ कयने के मरए जील को उवी प्रकाय की मोननमों भईऄ जाना ऩडता शै। गद्दी तककमो के वुख की आदत ऩड गई तो दवूये जन्भ भईऄ उवे तदृ्ऱ कयने के मरए लैळाखनन्दन (गधा) फनना ऩडता शै। काभ-वुख की रोरुऩता जोय भायती शै तो दवूये जन्भ भे कूकय-ळूकय, फकया आहद फनना ऩडता शै। फाह्य वौंदमय देखने की रोरुऩता यश गई, आॉखों के द्राया फाशय के दृश्म का गुराभ फन गमा तो रूऩ की प्रधानतालारी मोनन मभरेगी, जील नततरी फन जामेगा, ऩतॊगा फन जामेग औय रूऩ के वुख के ऩीछे भय जामेगा। इव प्रकाय इन्न्द्रम औय वलऴम के वॊमोग वे मभरने लारा वुख अगय बोिा यशा, ऐवे वुख की काभना कयता यशा तो जील उवी प्रकाय की मोननमों भईऄ जन्भ रे रेता शै।

जो व्मक्ति बवलष्म भईऄ वलऴम-वुख की काभना नशीॊ कयता, लत्तयभान भईऄ बी वलऴम वुख की काभना नशीॊ यखता लश सानी शै। लश अऩना कत्तयव्म कभय कयता शै। उव कभय भईऄ उवकी शेम-उऩादेम फुवद्ध नशीॊ शोती। 'भैं कभय भईऄ पॉ व गमा शूॉ......' ऐवा गशयाई वे लश नशीॊ भानता। 'भैं भुि शो गमा शूॉ......' ऐवा ऩरयन्च्छन्न बाल बी उवभईऄ नशीॊ यशता। रोगों की नजयों भईऄ तो लश फशुत वाये कामों का आयम्ब कयता शुआ हदखेगा रेककन लास्लत भईऄ लश वुख रूऩी भोष-भॊहदय भईऄ वलयाजता शै औय आत्भानन्द के ऩकलान खाता शै। रोगों की नजय भईऄ लश बोगता शुआ, खाता शुआ, रेता शुआ, देता शुआ, फशुत प्रलवृत्त कयता शुआ हदखता शै रेककन अऩनी ओय वे उवको कोई काभना नशीॊ यशती। वलऴम वुख बोगने की इच्छा लावन काभना नशीॊ शै तो लश वाषात ्वलष्णु का अॊग शै। लश तो चरता-कपयता नतृ्म कयता शुआ ब्रह्म शै, कपय चाशे जनक के रूऩ भईऄ शो चाशे ळुकदेलजी के रूऩ शो, चाशे गागी के रूऩ भईऄ शो चाशे भदारवा के रूऩ भईऄ शो। वलऴम बोग भईऄ वे न्जवकी काभनाफुवद्ध, वुखफुवद्ध उठ गई, लश अऩने 'स्ल' मानन आत्भा के वुख भईऄ आ गमा, ननजस्लरूऩ भईऄ आ गमा। लश स्लतन्त्र शै। जो ऩय मानन फाह्य वलऴम बोग के वुख की इच्छा कयता यशा, लश ऩयाधीन शै। इन्न्द्रमों का ऐवा कोई वुख नशी न्जवभईऄ ऩयाधीनता न शो। आॉख का वुख रेना शै तो

Page 53: Samarthya srot

रूऩ की गुराभी, नामवका का वुख रेना शै तो गन्ध की गुराभी, न्जह्वा का वुख रेना शै तो यव की गुराभी, त्लचा का वुख रेना शै तो स्ऩळय की गुराभी।

गुराभी वे आक्रान्त जो वुख शै, लश वुख काभनाओॊ औय वॊकल्ऩों को फढाता शै, ऩयाधीनता को फढाता शै। उववे फुवद्ध धुॉधरी शो जाती शै। काभना औय वॊकल्ऩ छोडने वे जो वुख मभरता शै लश स्लाधीनता को फढाता शै औय फुवद्ध ओजस्ली शोती शै। रृदम ळुद्ध शोता शै। व्मक्ति ळुद्ध स्लरूऩ भईऄ प्रनतवद्षत शो जाता शै। भुि व्मक्ति भईऄ औय फद्ध व्मक्ति भईऄ मशी पकय शै कक भुि व्मक्ति की काभन औय वॊकल्ऩ छूट गमे शैं जफकक फद्ध व्मक्ति काभना औय वॊकल्ऩ के ऩीछे अऩना वलयस्ल नद्श कय यशा शै। उवकी कोई काभना ऩूयी शोती शै, कोई नशीॊ शोती, कोई अधयदनध यश जाती शै।

भजे की फात मश शै कक सान वे न्जवकी काभना मभट गई, जर गई उवके जीलन भईऄ बी जो अन्न, जर, लस्त्र, ननलाव-स्थान, ऩुत्र-ऩरयलाय, त्माग-बोग जो बी आता शै लश अऩने आऩ आता शै। 'मश वफ चरा न जाए....' ऐवा बम उवको नशीॊ शोता। 'मे चीजईऄ छूट न जामे.....' ऐवा बम बोगी को यशता शै। 'अभुक काम्म ऩदाथय मभरे.....' इवकी काभना औय चचन्ता उवे यशती शै। व्मक्ति, लस्तु, प्राणी, ऩदाथय आहद के मरए लश अऩनी ओय वे फॉधता जाता शै। उवके चचत्त भईऄ गशयी भान्मताएॉ औय ऩकड ेशोती शैं।

ऩाॉच रूऩमे औय गधा कोई लैश्म बि खफू आदय बाल वे वाध-ुवॊतो की वेला कयता था। घूभते घाभते कोई

बत्रकार सानी वॊत उवके घय भईऄ अनतचथ शो गमे। बि की बक्ति बालना देखकय उनका चचत्त प्रवन्न शुआ। उन्शोंने बि के नन्शईऄ-भुन्ने फेटे की शस्तयेखा देखी औय कशा् "बियाज ! तुम्शाये फेटे की येखाएॉ ऐवा कश यशी शैं कक इवके बानम भईऄ ऩाॉच रूऩमे औय गधा वदा यशेगा।"

बि ने कशा् "जो बी यशे, स्लाभी जी ! प्रायब्ध लेग वे शय जील आता शै। उवके बानम जो शो, वो ठीक शै। जैवी प्रबु की भजी !"

ऩन्द्रश वार के फाद ले फाफा जी घूभते घाभते कपय उवी बि के द्राय ऩय ऩधाये। बि तो देल शो गमे थे, उनका फेटा घय ऩय था। जलान शो गमा था औय धन्धा कय यशा था। फाफाजी ने कशा्

"तुम्शाये वऩताजी फड ेवाधुवेली थे, बि थे। शभ ऩशरे बी आ चकेु शै। इव फाय बी दो चाय हदन मशाॉ यशना चाशते शैं।"

फेटा बी फडा वॊतप्रेभी था। उत्वाश वे लश फोरा् "शाॉ शाॉ भशायाज ! खफू आनन्द वे यहशए, कृऩा कीन्जए। मश घय आऩ शी की वेला के मरए शै। शभाया अशोबानम शै कक आऩ जैवे वॊत भशात्भा की चयणयज वे मश आॉगन ऩालन शुआ।"

Page 54: Samarthya srot

लश रडका कुछ बी धन्धा कयता, कभाता तो उवके ऩाव आम-व्मम भईऄ जभा-उधाय कयके ऩाॉच रूऩमे औय एक गधा फचता था। फाफाजी आमे, बोजन-ऩानी का खचय फढा कपय बी आखखय भईऄ ऩाच रूऩमे औय गधा शी फचा।

फाफाजी ने कशा् "तेये ऩाव जो ऩाॉच रूऩमे शैं उवका तू बण्डाया कय दे। अन्म वाध ुवॊतों को बोजन कया दे।"

उवने ऩाॉच रूऩमे का बण्डाया कय हदमा। दवूये हदन बी कभामा औय खचय ककमा तो ऩाॉच रूऩमे औय गधा फचा। फाफाजी ने कशा् "मश गधा फेच दे औय ऩाॉच रूऩमे बी खचय कय डार।" उवने लैवा शी ककमा। ळाभ को उवके ऩाव कुछ न यशा।

वुफश उठा तो वाभने कोई व्मक्ति मभरा औय फोरा् ''यात को भुझ ेएक स्लप्न आमा औय ककवी देल ने कशा कक वुफश-वुफश जो कोई मभरे

उवको ऩाॉच रूऩमे औय गधा बईऄट कय दो। अफ कृऩा कयके आऩ इवे स्लीकाय कयो।"

रडके ने जाकय फाफाजी को फतामा। फाफाजी फोरे् "मश तो देल को कयना शी ऩडगेा। तेये बानम भईऄ मरखा शै तो देल को व्मलस्था कयनी शी

ऩडगेी।"

"फाफाजी ! अफ क्मा करूॉ ?"

"तेये ऩाव जो कुछ आले उवे खचय कय दे, दान कय दे। कुछ बी कय, रेककन अऩने ऩाव कुछ भत यख।"

लश रडका ऐवा शी कयने रगा। लश योज-योज वफ रुटा देता औय दवूये हदन ऩाॉच रूऩमे औय गधा उवे मभर शी जाता। प्रनतहदन ऐवा शोने रगा। आखखय उव रडके का बानम वाकाय रूऩ रेकय फाफाजी के वाभने प्रकट शो गमा औय फोरा्

"मश कैवी मुक्ति आऩने रडाई ! शभायी नाक भईऄ दभ आ गमा इवके ऩाॉच रूऩमे औय गधे की व्मलस्था कयने भईऄ। लश रुटा देता शै औय भुझ ेककवी न ककवी को ननमभत्त फना कय उवे ऩाॉच रूऩमे औय गधा हदराना ऩडता शै। कृऩा कयके आऩ ऐवी वीख इवको भत दीन्जए। रोगों को प्रेयणा कयते-कयते औय इवका फरेैन्व ठीक यखते-यखते शभ थक गमे।"

फाफाजी ने कशा् "तो इवका इतना छोटा फैरेन्व क्मों फनामा ? फडा फना दो।"

बानम ने अऩनी शाय स्लीकाय कय री। रडके का बानम श्रीभॊत वेठ की नाईं शो गमा। इव कशानी वे ऩता चरता शै कक जो अलश्मॊबाली शै, लश शोकय शी यशता शै। जो खान-

ऩान, ऩत्नी-ऩुत्र-ऩरयलाय, धन-मळ आहद जो प्रायब्ध भईऄ शोगा, लश आकय शी यशेगा तो शभ उवकी काभना क्मों कयईऄ ? काभना कयके अऩनी इज्जत क्मों बफगाडईऄ ? जो शोना शै वो शोना शै, जो ऩाना शै वो ऩाना शै, जो खोना शै वो खोना शै। वफ वूत्र प्रबु के शाथों भईऄ.... नाशक कयनी का फोझ उठाना ? कफीय जी कशते शै-

भेयो चचन्त्मो शोत नशीॊ, शरय के चचन्त्मो शोत।

Page 55: Samarthya srot

शरय को चचन्त्मो शरय कये, भैं यशूॉ ननन्द्ळन्त।। कई फाय ऐवे प्रवॊग देखे गमे शैं- भाता वऩता फशुत रारानमत यशते शैं कक अऩनी रडकी की

भॉगनी शो जाम, रेककन नशीॊ शोती। कपय थककय छोड देते शैं..... जैवी बगलान की भजी ! जो बी शोगा, ठीक शै। तफ अऩने आऩ कामय ननऩट जाता शै, अच्छी जगश घय मभर जाता शै, फच्ची वुखी शोती शै।

अऩने कयने वे वफ कामय अगय शो जाते, अऩनी काभना के भुताबफक वफ शोता यशता तो वॊवाय भईऄ कोई दु् खी यशता शी नशीॊ। काभनाओॊ औय इच्छाओॊ वे काम्म लस्तुएॉ मभर जातीॊ औय हटक जातीॊ तो वफ रोग वुखी शोते। वॊवाय भईऄ देखा जाम तो आत्भसानयहशत जो बी शैं, ले दु् खी शैं।

कोई कामय, कोई वॊकल्ऩ ऩूया शो बी जाता शै तो उवभईऄ केलर आऩका ऩुरूऴाथय शी कायणबूत नशीॊ शोता। कभय की मववद्ध भईऄ कायणबूत ऩाॉच फातईऄ बगलदगीता भईऄ फताई गई शैं-

अचधद्षानॊ तथा कताय कयणॊ च ऩथृन्नलधभ।् वलवलधाद्ळ ऩरृ्थकचेद्शा दैलॊ चैलात्र ऩॊचभभ।्।

"कभों की मववद्ध भईऄ अचधद्षान, कत्ताय, कयण, नाना प्रकाय की चदे्शाएॉ औय देल मे ऩाॉच शेतु शैं।"

(बगलद् गीता् 18.4) कामय की मववद्ध के मरए मत्न तो कयो रेककन वुख बोगने की काभना भत कयो। कोई

लस्तु मभरने लारी शो तो ऩशरे प्रायब्ध का वॊमोग चाहशए, अऩना ऩुरूऴाथय चाहशए, उचचत हदळा भईऄ ऩुरूऴाथय का वललेक चाहशए।

चूशे का ऩुरूऴाथय एक फाय चशूों की वबा शुई त भुखखमा चशेू ने कशा् "ऩुरूऴाथय ऩयभ देल शै। खफू उत्वाश वे ऩुरूऴाथय कयना चाहशए। जाओ, रोगों के घय भईऄ

घुवकय कुछ-न-कुछ ऩुरूऴाथय कयने भईऄ रग जाओ।"

वफ चशेू बागे। कोई शरलाई के लशाॉ ऩशुॉचा, कोई ककयाने की दकुान भईऄ घुवा, कोई अनाज के बण्डाय गमा। एक चशूा ऩशुॉच गम भदायी के घय। फाॉव की भजफूत टोकयी भईऄ वाॉऩ फन्द ऩडा था। चशेू ने उव टोकयी भईऄ छेद कयना चारू कय हदम। फाॉव की कडी वराइमाॉ ! जल्दी कटे कैवे ! चशेू के भुॉश वे यि फशने रग। रेककन भुखखमा की ररकाय माद आमी् "ऩुरूऴाथय कयो। खारी शाथ लाऩव भत आना।"

चशूा ऩुरूऴाथय भईऄ रगा यशा। आखखय वपर शो गमा। टोकयी भईऄ छेद कयके अन्दय गमा त यात बय का बूखा वाॉऩ उवका इन्तजाय शी कय यशा था। लश चशेू को स्लाशा कय गमा।

चशेू की काभना थी, इच्छा थी काम्म ऩदाथय ऩाकय वुख बोगने की। ऩुरूऴाथय बी ककमा रेककन हदळा गरत थी।

Page 56: Samarthya srot

ककवी को ऐवी इच्छा नशी शोती कक अऩनी भतृ्मु शो, इच्छा नशीॊ शोती कक अऩना अऩभान शो, इच्छा नशी शोती कक शभ फीभाय शों, कपय बी मे ऩरयन्स्थनतमाॉ आ शी जाती शै। रेन-देन के व्मलशाय भईऄ कई वलऴाद बये प्रवॊग खड ेशो जाते शैं। इव फात को वमाने व्मक्ति जानते शै। इवमरए ले रेन-देन का कजाय चकुाते यशते शैं औय नमे वॊकल्ऩ कयने वे फचते यशते शैं। वाधायण आदभी अनुकूरता वे चचऩकने की कोमळळ कयता शै, प्रनतकूरता वे उहद्रनन शोता शै। इव प्रकाय लश लत्तयभान को धुॉधरा फना देता शै।

कच की वेला बालना फशृस्ऩनत के ऩुत्र कच ने देखा कक वऩता जी ब्रह्मवलद्या भईऄ ऩूणय शैं, रेककन शभाये ऩाव

वॊजीलनी वलद्या नशीॊ शै। केलर दैत्मों के गुरू ळुक्राचामय शी मश वलद्या जानते शैं। कैवे बी शो, मश वलद्या वीखनी शी चाहशए।

कच आमे ळुक्राचामय के ऩाव औय वलनीत बाल वे फोरे् "भैं आऩकी ळयण आमा शूॉ। भुझ ेकोई वेला फताइमे।"

"वेला कयनी शो तो इव गाम की वेला प्रेभऩूलयक कयो। उववे वभम मभरे तफ भेयी ऩुत्री देलमानी जो फताले लश काभ कयो, उवके आसाऩारन भईऄ यशो।" ळुक्राचामय ने कच को यख मरमा।

कच अऩनी काभना तनृद्ऱ के मरए नशीॊ फन्ल्क ऩयहशत के मरए वेला भईऄ रग गमे। व्मक्तिगत वुख की काभना को फदरना शो तो फशुजनहशताम.... फशुजनवुखाम का वॊकल्ऩ कयो। ऩयोऩकायाथय वॊकल्ऩ शोते शी औय व्मक्तिगत वुख का वॊकल्ऩ घटते शी आऩकी वलळारता फढेगी। आऩको अऩने आऩ वुख मभरेगा।

मा लै बूभा तत्वुखॊ नाल्ऩे वुखभन्स्त। जो ननतान्त छोटे शैं, ले व्मक्तिगत वुख के मरए उरझते शैं। जो उनवे थोड ेवलकमवत शैं ले

ऩरयलाय के वुख का मत्न कयते शैं। उनवे औय थोड ेवलकमवत शैं ले ऩडोव के वुख का मत्न कयते शै। उनवे बी जो वलकमवत शैं ले क्रभळ् तशवीर के वुख का, याज्म के वुख का, याद्स के वुख का औय वलद्व के वुख का मत्न कयते शै। उन वफवे जो अचधक वलकमवत शैं ले वलदे्वद्वयस्लरूऩ भईऄ हटकने का प्रमत्न कयते शैं। अऩने वलचायों का दामया न्जतना फडा शोगा, उतनी शी लवृत्तमाॉ वलळार शोंगी। लवृत्तमाॉ न्जतनी वलळार शोंगी, उतना शी आदभी वुखी शोगा। लवृत्तमाॉ न्जतनी वॊकीणय शोंगी, उतना शी आदभी दु् खी शोगा। कुटुम्फ भईऄ बी जो व्मक्ति व्मक्तिगत वॊकीणयता भईऄ जीता शै उवका आदय नशीॊ शोता। कुटुम्फ के दामये भईऄ जो जीता शै, कुटुम्फ उवका आदय कयता शै। वभाज के दामये भईऄ जो जीता शै तो वभाज उवका आदय कयता शै। जो वलद्व का भॊगर वोचता शै, वलद्व कल्माण भईऄ प्रलतृ्त शै लश वलद्व की ककवी बी जगश भईऄ जाम तो उवकी वेला कयने लारे, वशमोग औय वशकाय देनेलारे रोग उवको प्राद्ऱ शो जाते शैं। जैवे स्लाभी वललेकानन्द, स्लाभी याभतीथय आहद भशाऩुरूऴ।

शभायी लवृत्तमों का दामया न्जतना-न्जतना फडा, उतना शी शभाया वुख फडा।

Page 57: Samarthya srot

कच आमे थे फशुजनहशताम वॊजीलनी वलद्या वीखने के मरए। तत्ऩय शो गमे वेला भईऄ। दैत्मों ने जाना कक् "मश ळत्रऩुष का शै औय वॊजीलनी वलद्या वीखने आमा शै। उवकी वेला वे गुरू वॊतुद्श भारूभ शोते शैं। वॊजीलनी वलद्या वीखकय जामगा तो ळत्रऩुष फरलान ्शो जामेगा, शभाये मरए भुवीफत शो जाएगी। क्मों न वलऴलषृ के भूर भईऄ शी कुल्शाडा भाय हदमा जामे ?"

एक फाय कच जॊगर भईऄ गमे घाव, दबय, वमभधा आहद रेने के मरए, तो दैत्मों ने उनकी शत्मा कयके उनका भाॊव कुत्तों को खखरा हदमा। ळाभ शुई। ळुक्राचामय ने देखा कक कच नशीॊ आमा। ध्मान वे जाना कक उवकी शत्मा शो गमी शै। उन्शोंने वॊजीलनी वलद्या के फर वे कच को फुरामा्

"फेटा कच ! जशाॉ बी शो, मशाॉ आ जाओ।"

कच न्जन्दा शोकय आ गमे। गुरूजी ने ऩूछा् "कशाॉ गमा था ?"

"दैत्म ऩुत्रों ने भाय डारा था औय कुत्तों को खखरा हदमा था।"

"अच्छा ! ऐवा ककमा था ?"

"शाॉ, गुरूजी !"

दैत्मों ने दवूये हदन देखा कक मश तो न्जन्दा शो गमा ! इव फाय इवको भायकय जरा हदमा, बस्भ कय हदमा औय ळुक्राचामय की वुया भईऄ लश बस्भ मभराकय ळुक्राचामय को वऩरा हदमा। देखे अफ कैवे न्जन्दा शोता शै !

याबत्र के वभम तक कच आमे नशी तो ळुक्राचामय ने वॊजीलनी वलद्या का अनुवन्धान कयके उवे फुरामा्

"कच ! कशीॊ बी शो, आ जा।"

गुरूजी के ऩेट वे कच फोरा् "गुरूजी ! आऩके ऩेट भईऄ फैठा शूॉ। आऩकी आसा वे अगय भैं फाशय आ जाता शू तो आऩकी भतृ्मु शोती शै। भैं कैवे आऊॉ ?"

"भेये ऩेट भईऄ तू कैवे आ गमा?"

कच ने वायी घटना फता दी। ळुक्राचामय ने देखा कक मळष्म फडा लपादाय शै। लश चाशता तो भेयी आसा वे ऩेट वे फाशय आ वकता था, रेककन भेये हशत की बालना वे उवका हदर बया शै। भुझ ेशानन नशीॊ ऩशुॉचामी। ऊॉ ची मोनमता शै इवकी। ब्राह्मण-ऩुत्र शै, वेला भईऄ तत्ऩय शै। लऴों तक ब्रह्मचमय-व्रत ऩारा शै, ऩयहशत भईऄ यत शै। इवको वॊजीलनी वलद्या ळोबा देगी। ले प्माय व ेफोरे्

"फेटा कच ! भैं तुझ ऩय वन्तुद्श शूॉ। तेयी लपादायी वे प्रवन्न शूॉ। ऩाॉच लऴय के फाद तुझ ेवॊजीलनी वलद्या देने लारा था, रेककन आज शी लश वलद्या तुझ ेमवखा देता शूॉ। ऩेट भईऄ फैठे-फैठे शी मश वलद्या वीख रे। कपय फाशय आ जा। भेयी भतृ्मु शो जामेगी तो तू उवी वलद्या के फर वे भुझ ेकपय जीवलत कय देना।"

कच गुरू के वप्रम ऩात्र कैवे फन ऩामे ? वॊजीलनी वलद्या कैवे ऩामी ? काभवॊकल्ऩवललन्जयता् शोकय गुरू की वेला कयने वे। उनभईऄ अऩनी लैमक्तिक काभना की अन्धाधनु्धी नशीॊ थी। फुवद्ध भईऄ

Page 58: Samarthya srot

ओज था, वलकाव था, प्रकाळ था। जफ अऩन स्लाथय शोता शै तफ दवूयों का हशताहशत बूर जाते शै, नीनत ननमभ बूर जाते शैं। अऩने व्मक्तिगत स्लाथय औय वुख के मरए काभना औय वॊकल्ऩ शोता शै तो आदभी गरती कय फैठता शै। न्जवका वॊकल्ऩ अऩने मरए नशीॊ शोता, वभवद्श के मरए शोता शै तो उवकी फुवद्ध ठीक काभ देती शै। अऩनी काभना वे जशाॉ कशीीँ वुख रेने जाते शॊ तो गडफडी शोती शै। दवूयों को वुख देन,े प्रवन्न कयन जाते शैं तो उनके वुख औय प्रवन्नता भईऄ अऩना वुख औय चचत्त की प्रवन्नता अऩने आऩ आ जाती शै। कामों भईऄ वपरता मभरती शै लश भुनापे भईऄ।

ननष्काभ गुरूवेला लैहदक कार भईऄ वुबाऴ नाभ का एक वलद्याथी अऩने गुरू के चयणों भईऄ वलद्याध्ममन कयने

गमा। वलद्या तो ऩढता था, रेककन गुरूजी की अॊगत वेला भईऄ अचधक रग गमा। ऐवी वेला की, ऐवी वेला की कक गुरूजी का हदर जीत मरमा। वलद्योऩाजयन कयके जफ घय रौट यशा था, तफ गुरूजी ने कशा्

"फेटा ! तूने भेया हदर जीत मरमा शै। शभ तो ठशये वाधायण वाध।ू शभाये ऩाव कोई धन-लैबल, याज-वत्ता नशीॊ कक तुझ ेकुछ दे वकईऄ । लत्व ! तेया कल्माण शो !" ऐवा कयके प्माये मळष्म को छाती वे रगा मरमा। कपय अऩनी छाती वे एक फार उखाडकय उवे देते शुए फोरे्

"फेटा ! रे, मश प्रवाद के रूऩ भईऄ वॉबारकय यखना। जफ तक मश तेये ऩाव यशेगा, तफ तक तुझ ेधन-लैबल-रक्ष्भी की चचन्ता नशीॊ यशेगी।"

"गुरूदेल! आऩने तो भुझ ेवफ कुछ ऩशरे वे शी दे हदमा शै।"

"वो तो शै, रेककन मश बी यख रे।"

वुबाऴ ने फड ेआदय वे लश फार अऩने ऩाव यखा। शय योज उवकी वेला-ऩूजा कयने रगा। उवके घय भईऄ वुख ळान्न्त औय वभवृद्ध का वाम्राज्म छा गमा।

वुबाऴ के ऩडोवी ने देखा कक मश बी ऩढकय आमा शै औय भैं बी ऩढकय आमा शूॉ। उववे बी अचधक ऩढा शूॉ। रेककन इवके ऩाव इतना लैबल औय भेये ऩाव कुछ नशीॊ ? इवके ऩाव धन छनाछन औय भैं शूॉ ठनठनऩार ? इवका वलयत्र भान शो यशा शै औय भुझको कोई ऩूछता तक नशीॊ ? ऐवा क्मों ?

ऩडोवी ने वुबाऴ वे ऩूछा। वुबाऴ तो यशा वज्जन, वयर रृदम लारा। उवने फता हदमा कक् "मश वफ गुरूजी की कृऩा शै। भैंने उनकी रृदमऩूलयक वेला की, उनकी कृऩा प्राद्ऱ की। भै वलदा शुआ तो उन्शोंने अऩनी छाती का फार भुझ ेहदमा। भैं योज उवकी ऩूजा कयता शूॉ। मश वफ उन्शीॊ का हदमा शुआ शै।"

ऩडोवी ने वुबाऴ के गुरूजी का ऩता ऩूछ मरमा औय ऩशुॉच गमा लशाॉ। प्रणाभ कयके फोरा् "गुरूजी ! भै वुबाऴ के ऩडोव भईऄ यशता शूॉ। आऩका नाभ वुनकय आमा शूॉ।"

"ठीक शै।" गुरूजी फोरे। "गुरू जी भशायाज ! आऩकी वेला करूॉ गा।"

Page 59: Samarthya srot

"कोई वेल नशीॊ शै।"

उवके बीतय तो धन-लैबल ऩाने की काभना खदफदा यशी थी। उवकी वेला भईऄ क्मा फयकत शोगी ? आश्रभ भईऄ इधय-उधय उछर कूद की, थोडा फशुत हदखालटी काभ ककमा। ळाभ शुई तो गुरूजी वे फोरा्

"गुरूजी ! आऩ दमारु शैं। वुबाऴ को धन्म ककमा शै। भुझ ऩय बी कृऩा कयो। भेयी इच्छा बी ऩूयी कयो।"

"क्मा इच्छा ऩूयी कयईऄ।?"

"भुझ ेबी अऩना फार उखाडकय दो।"

"अये बाई ! उवका तो कोई प्रायब्ध जोय भाय यशा था, इवमरए ऐवा शुआ। शभ कोई चभत्काय कयने लारा नशीॊ शैं।"

उव आदभी ने वोचा कक कैवा बी शो, गुरूजी की छाती के इतने छोटे-वे फार भईऄ इतनी ळक्ति शै तो जटाओॊ के रम्फे-रम्फे फारों भईऄ ककतनी ळक्ति शोगी ? लश उठा औय गुरूजी की जटाओॊ भईऄ शाथ डारा। चाय-ऩाॉच फार खीॊचकय बागा।

काभनालारा व्मक्ति अन्धा शो जाता शै। काभ औय वुख बोग के वॊकल्ऩ उवकी फुवद्ध का हदलारा ननकार देते शैं।

गुरूजी ने कशा् "तुझ ेफार इतने प्माये शैं तो जा, तुझ ेफार-शी-फार मभरईऄगे।"

लश घय गमा। बोजन कयने फैठे तो थारी भईऄ फार। ऩूजा कयने फैठे तो फार। ऩयेळान शो गमा। उवकी शारत ऐवी कैवे फनी ? काभ औय वॊकल्ऩ की आधीनता वे। वुबाऴ वुखी कैवे फना ? काभ औय वॊकल्ऩयहशत शोकय गुरूवेला भईऄ तन्भम शोने वे। काभ औय वॊकल्ऩ की ननलवृत्त की तो धन, भान, मळ, वुख औय ळाॊनत उवके ऩीछे-ऩीछे आमी।

व्मक्ति काभना कयता शै कक भैं इतना धन ऩा रूॉ, उव ऩद ऩय ऩशुॉच जाऊॉ । उवे लश वफ मभर जामे। कपय क्मा ? लश वुख ळाॊनत वे न्जमेगा ? नशीॊ, उन्शईऄ वॉबारने की चचन्ता भईऄ न्जमेगा।

न्जवकी काभनाएॉ ळाॊत शो जाती शैं उवे न्जव ऩद ऩय ऩशुॉचना शै, लशाॉ स्लाबावलक ऩशुॉच जाता शै। आदभी न्जतना-न्जतना वॊकल्ऩ औय काभनाओॊ को ऩकड यखता शै, उतनी उवकी मोनमता औय ळाॊनत षीण शो जाती शै। जो रोग काभ औय वॊकल्ऩ वे फॉधे शैं उनको कामय कयते वभम काल्ऩननक बम, चचन्ता, ळोक आहद घेय रेते शैं। सानी कभय कयते शैं तो उन्शईऄ काभना नशीॊ शोती। इवमरए उन्शईऄ व्मथय के बम, चचन्ता, ळोक आहद नशीॊ शोते। ले शय शार भईऄ भस्त यशते शैं। ऐवे साननमों की दृवद्श ऩाने के मरए बगलान अजुयन वे कशते शैं-

मस्म वले वभायम्बा् काभवॊकल्ऩवललन्जयता्। सानान्ननदनधकभायणॊ तभाशु् ऩॊक्तडतॊ फुधा।्।

शभाये जीलन भईऄ सान की अन्नन शोनी चाहशए। कोई बी काभना उठे तो वोचो कक मश काभना ऩूयी शोगी, कपय क्मा ? अभुक लस्तु मभरी कपय क्मा ? मे लस्तुएॉ न्जनको मभरी शैं,

Page 60: Samarthya srot

उनका क्मा शार शै ? ले तदृ्ऱ शैं क्मा ? अभुक ऩद ऩय ऩशुॉचईऄगे, कपय क्मा ? जो रोग उव ऩद ऩय ऩशुॉच गमे शैं, ले ऩूणय वुखी शैं क्मा ?

इवका भतरफ मश नशीॊ कक आरवी शोना शै, ऩरामनलादी शोना शै अथला एक छोटे वे दामये भईऄ ऩडा यशना शै। नशीॊ, जीलन का ऩूणय वलकाव वाधना शै ब्रह्मवलद्या के यशस्मों को आत्भवात ्कयते शुए।

जीलन भईऄ ऊॉ चा रक्ष्म नशीॊ शोता, ऊॉ ची वभझ नशीॊ शोती इवमरए आदभी नीची काभना औय नीचा वॊकल्ऩ कयके छोटे-वे दामये भईऄ पॉ वता यशता शै। जीलन भईऄ ऊॉ ची वभझ औय ऊॉ चा रक्ष्म शो तो ननष्काभता वे आदभी ऐवी ऊॉ चाई ऩय ऩशुॉचता शै कक जशाॉ इन्द्रदेल का आवन बी छोटा ऩड जाता शै।

ओखा की ळादी ऩालयती जी ने अऩने फर औय तऩ के प्रबाल वे ऩुत्र औय ऩुत्री फना हदमा। ऩुत्र का नाभ

गणऩनत यखा औय ऩुत्री का नाभ यखा ओखा। ओखा ब्माशने मोनम शुई तो मळलजी ने कोई लय ऩवॊद ककमा। उवी वभम नायद जी औय दषऩुत्र बी एक-एक लय चनुकय रामे। ऩालयतीजी को बी कोई लय ओखा के मरए फहढमा रग गमा। अफ ओखा एक औय लय आमे चाय।

काभ-वॊकल्ऩयहशत मळलजी ने अऩनी जटाओॊ भईऄ वे एक फार ननकारा औय अनुचय की बाॉनत उवे आसा दी् "जो वाभने मभरे, उन तीन कन्माओॊ को रे आ।" वाभने मभरी कुत्ती, गधी औय बफल्री। मळलजी ने दृवद्श भात्र वे उन्शईऄ ओखा जैवी शी फना हदमा। चायों कन्माओॊ को चाय लय के वाथ ब्माश हदमा। मळलजी ने न्जवे ऩवॊद ककमा था, उववे अवरी ओखा की ळादी की।

कुछ वभम के फाद नायदजी चायों कन्माओॊ के वुख-दु् ख जानने गमे, खफय ऩूछने गमे। बफल्री भईऄ वे फनी कन्म के घय गमे औय देखा तो लश बफल्री की तयश इधय-उधय कूदा कयती थी। जैवे काभना लारे ऩुरूऴ का चचत्त इधय-उधय कूदता यशता शै। कपय कुत्तों वे फनी कन्मा के घय जाकय देखा तो उवे व्मथय के वॊकल्ऩ-वलकल्ऩ कयके लत्तयभान की ळाॊनत बॊग कय देता शै। गधी भईऄ वे जो कन्मा फनी थी, उवके ऩाव कऩड ेरते्त, गशने आहद तो फशुत कुछ थे, रेककन उवका गधी का स्लबाल गमा नशीॊ था। लश जशाॉ कशीॊ रोटती ऩोटती यशती थी।

इवी प्रकाय भनुष्म ककतना बी फहढमा बानम रे आता शै, फहढमा वे फहढमा लातालयण भईऄ जन्भ रेता शै कपय बी काभना औय वॊकल्ऩरूऩी गधी जैवी लवृत्त उवको जशाॉ कशीॊ ऩटकती यशती शै। खाने ऩीने का शै, यशने का शै, गाडी शै, लाडी शै, वफ कुछ वुवलधाएॉ शैं कपय बी काभनाएॉ औय वॊकल्ऩ जील को वुख की खोज भईऄ फाशय बटकाते शै, गन्दे स्थानों भईऄ रोटऩोट कयाते शैं। ननभयर चचदाकाळस्लरूऩ आत्भदेल को इन्न्द्रमों औय वलऴम वुख की भमरन बूमभ भईऄ चगयाकय उरझाते शैं। काभना औय वॊकल्ऩ जील का करेजा जराते यशते शैं।

घोडी गई...... शुक्का यश गमा

Page 61: Samarthya srot

भैंने वुना शै एक चटुकुरा। कोई नमा-नमा चोय कशीॊ वे एक फहढमा, ऩानीदाय, आबावम्ऩन्न, तेज घोडी चयुा रामा। वोचा कक ऐवी फहढमा घोडी ऩय वलाय कयके गाॉल भईऄ घूभूॉगा तो रोग वभझ जाएॊगे औय भैं ऩकडा जाऊॉ गा। ढोय फाजाय भईऄ जाकय इवे फेच दूॉ। ऩैवे मभरईऄगे। एक दो-वाथी फना रूॉगा कपय दवूयी घोक्तडमाॉ रे आएॉगे। खफू ऩैवे कभाएॉगे।

काभना औय वॊकल्ऩ उवके फढ गमे। घोडी रेकय लश ऩशुॉचा फाजाय भईऄ। अऩयाधी भानव था। चोयी का भार था। यॊगेशाथ ऩकड े

जाने का डय था। बीतय वे खोखरा शो गमा था। दफी आलाज भईऄ धीये-धीये रोगों वे फोरता् "घोडी चाहशए घोडी ? ऩानीदाय घोडी शै।"

एक आदभी भाभरा वभझ गमा। योफ बयी आलाज भईऄ ऩूछा् "ककतने भईऄ देगा ये ?"

चोय तो वोचता यश गमा। ककतने भईऄ फेचूॉ ? घोडों की रेन-देन उवके फाऩ दादों ने बी नशीॊ की थी। लश शक्का फक्का यश गमा। लश आदभी फोरा्

"घोडी हदखती तो अच्छी शै रेककन वलायी कयके देखना ऩडगेा। तू भेया मश शुक्का ऩकड। भैं एक चक्कय रगाकय आता शूॉ।"

लश घोडी रेकय यलाना शो गमा। चोय ने लाऩव फुरामा तो उवने कशा् "न्जव बाल भईऄ तु रामा था उवी बाल भईऄ भैं मरमे जा यशा शूॉ। चचन्ता भत कय।"

चोय की घोडी तो गई, शाथ भईऄ शुक्का यश गमा। घय ऩशुॉचा तो ककवी ने ऩूछा् "तू तो घोडी फेचने गमा था ! क्मा शुआ ?"

ऩोऩरा भुॉश फनाकय चोय फोरा् "घोडी तो गई औय भेया करेजा जराने के मरम मश शुक्का यश गमा शाथ भईऄ।"

ऐवे शी वभम की धाया फशती चरी जाती शै औय करेजा जराने लारी काभनाएॉ अन्त्कयण भईऄ ऩडी यश जाती शै। देश रूऩी घोडा यलाना शो जाता शै औय वूक्ष्भ ळयीय भईऄ काभनारूऩी शुक्का करेजा जराता यशता शै। कपय जील प्रेत शोकय बटकता शै।

देश छूट जामे औय कोई काभना नशीॊ यशे तो जील वलदेशी शो जामे, ब्रह्मस्लरूऩ शो जाम। काभना यश गई औय देश छूट गई, दवूयी देश नशीॊ मभरी तो जील प्रेत शोकय बटकता शै। खाने ऩीने की लावना शै रेककन बफना देश के खा-ऩी नशीॊ वकता। बोगने की लावना शै रेककन बोग नशीॊ वकता। कपय लावना तदृ्ऱ कयने के मरए दवूयों के ळयीय भईऄ घुवता शै, लशाॉ बी झाड-पूॉ कलारे रोग उवकी वऩटाई कयते शैं।

वऩटाई ककवकी शोती शै ? इच्छा, काभना, लावना की शी वऩटाई शोती शै। ऩूजा ककवकी शोती शै ? ननष्काभता की ऩूजा शोती शै। न्जनके अन्त्कयण वे लावना-काभना ननलतृ्त शो जाती शै, ले भशाऩुरूऴ शोकय ऩूजे जाते शैं, ले वाषात ्मळलस्लरूऩ शो जाते शैं। ऐवे वत्ऩुरूऴों के मरए शी कशा शै्

Page 62: Samarthya srot

गुरूब्रयह्मा गुरूवलयष्णु् गुरूदेलो भशेद्वय्। गुरूवायषात्ऩयब्रह्म तस्भैं श्रीगुयले नभ्।।

गुरू ब्रह्म कैवे ? ले शभाये रृदम भईऄ सान बयते शै। गुरू वलष्णु कैवे ? ले शभाये सान की ऩुवद्श कयते शैं। गुरू भशेळ कैवे ? ले शभाये चचत्त भईऄ छुऩी शुई काभनाओॊ को बस्भ कयते शैं।

काभनाओॊ को शटाने का एक तो शै वलचायभागय, दवूया शै मोगभागय। मोग के बी कई प्रकाय शैं। रममोग कयते-कयते भन की काभनाएॉ कुछ कभ शो जाती शैं, वॊकल्ऩ-वलकल्ऩ कभ शो जाते शैं, बीतय का वुख फढने रगता शै। बीतय का वुख मभरने रगता शै तो फाशय की काभनाओॊ की ऩयॊऩया षीण शोने रगती शै।

ध्मानमोग के द्राया भन एकाग्र शोता शै। एकाग्रता वे बीतय का वुख मभरने रगता शै। वॊकल्ऩ भईऄ फर आने रगता शै। जो काभना की जाती शै, लश ळीघ्र पमरत शोने रगती शै। अगय मोग वाधक की वभझ फहढमा शै तो लश ककवी काभना भईऄ नशीॊ उरझगेा। वभझ भध्मभ शै तो कोई अच्छी काभना कयेगा। वभझ कननद्ष शै तो छोटी-छोटी काभनाएॉ कयके वुख बोगने रगेगा। मोग की ऩूॉजी खत्भ कय देगा।

ध्मानमोग का वाधक मोग की ऊॉ चाई ऩय जाम औय मोग के द्राया काभनाएॉ ऩूयी कयने भे रगे, काभना तदृ्ऱ कयत-ेकयते वालधान न यशे तो दवूयी काभनाएॉ जग जाती शैं औय उवके मोगाभ्माव तथा एकाग्रता की कभाई को खत्भ कय देती शै। लश वाधक भ्रद्श शो जाता शै अऩने मोगभागय वे।

मोग वाधना भईऄ एकाग्रता शोती शै। अगय कुछ शोने की, कुछ ऩाने की, व्मक्तित्ल वजाने की काभना यशी तो मोग-वाधक के भ्रद्श शोने की वॊबालना यशती शै।

सान-वाधना भईऄ शभ लास्तल भईऄ क्मा शैं ? इव तत्त्ल का ऩता चर जाता शै। एक फाय ठीक वे अऩने आत्भस्लरूऩ का ज्मों का त्मों ऩता चर जाम कपय लश वाधक मवद्ध फन जाता शै, आत्भसानी फन जाता शै। कपय सान वे भ्रद्श शोने की वॊबालना नशीॊ यशती। मोगभ्रद्श कई शुए रेककन सानभ्रद्श कोई शुआ शो, मश आज तक वुना नशीॊ। इवीमरए नयमवॊश भेशता कशते शैं-

ज्माॊ रगी आत्भतत्त्ल चीन्मो नशीॊ। त्माॊ रगी वाधना वलय झूठी।।

इवका भतरफ मश नशीॊ कक जफ तक आत्भसान न शो तफ तक वाधना कयनी शी नशीॊ चाहशए। ना..... ना.... ऐवी नावभझी कयने के मरए नयमवॊश भेशता के लचन नशीॊ शैं। कशने का तात्ऩमय मश शै कक आत्भसान के बफना वाधना ऩूणय नशीॊ शोती, इवका पर ळाद्वत नशीॊ शोता।

चचत्त भईऄ एक फाय कोई काभना घुव गमी तो कपय स्लचामरत मॊत्र की तयश आदभी काभ कयता यशता शै, जीलनबय। मशी तो वॊवाय की चक्की का चारक फर शै। कोई धन के मरए, कोई ऩत्नी के मरए, कोई फेटे के मरए, कोई फेटे के मरए, कोई अच्छा कशराने के मरए, कोई गाडी

Page 63: Samarthya srot

भोटय के मरए। ककवी-न-ककवी लावना वे फॉधकय भजदयूी कयते यशते शैं। सानी ननलायवननक शोकय व्मलशाय कयते शै।

भोटय काय की चाय अलस्थाए शोती शैं- ऩशरी अलस्था् गाडी ऩडी शै गैयेज भे, वाप-वुथयी, ज्मों-की-त्मों। गाडी बी ळाॊत, ऩहशए बी

न्स्थय औय इॊन्जन बी चऩु। ऩडी शुई गाडी को जॊग रग यशा शै, वभम फयफाद शो यशा शै। दवूयी अलस्था् इॊन्जन को चारू ककम रेककन गाडी को चगमय भईऄ नशीॊ डारा। अबी लश

गैयेज भईऄ शी शै। गनत नशीॊ कयती। ऩहशए घूभते नशीॊ। केलर इॊन्जन चर यशा शै। ऩेट्रोर जर यशा शै फेकाय भईऄ। कुछ कामय मवद्ध नशीॊ शो यशा शै।

तीवयी अलस्था् गाडी का चगमय घुभामा, गाडी गैयेज वे फाशय आमी औय वडक ऩय बाग यशी शै। इॊन्जन बी चर यशा शै, ऩहशए बी घूभ यशे शैं, गाडी बी दौड यशी शै, ऩेट्रोर बी जर यशा शै। भळीन चर-चरकय जीणय शो यशी शै।

चौथी अलस्था् यास्ते भईऄ रम्फी ढरान आमी। चतुय ड्राइलय न चगमय 'न्मूट्रर' कय हदमा, इॊन्जन फन्द कय हदम कपय बी गाडी आगे बाग यशी शै, भॊन्जर तम कय यशी शै, इॊन्जन की कोई आलाज नशीॊ, घवाया नशीॊ, ऩेट्रोर का खचय नशीॊ। भधयु मात्रा शो यशी शै।

ऐवे शी अन्त्कयण रूऩी गाडी की चाय अलस्थाएॉ शैं- ऩशरी अलस्था् कुछ जील अन्त्कयण की घनीबूत वुऴुद्ऱ अलस्था भईऄ जी यशे शैं, जैवे कक

लषृ, ऩाऴाण आहद। कोई काभना नशीॊ, कोई वॊकल्ऩ नशीॊ कपय बी दु् ख बोग यशे शैं फेचाये। ऩड-ेऩड ेतऩ यशे शैं।

दवूयी अलस्था् कुछ रोग ऐवे शोते शैं कक वॊकल्ऩ-ऩय-वॊकल्ऩ, वलकल्ऩ-ऩय-वलकल्ऩ कयते यशते शै, ऩरामनलादी शोते शैं। चाहशए तो फहढमा खाने को, फहढमा ऩशनने को, फहढम यशने को रेककन कभय नशीॊ कयते। बीतय वॊकल्ऩ-वलकल्ऩ का इॊन्जन धभाधभ चरता यशता शै रेककन ऩहशमे घूभते नशीॊ, शाथ ऩैय उचचत हदळा उचचत वभम ऩय चरते नशीॊ। ऩड ेशैं आरवी-ऩरामनलादी शोकय।

तीवयी अलस्था् कुछ रोग जैवे वॊकल्ऩ औय काभनाएॉ शोती शैं, लैवे कभय कयते शैं। उनका आमुष्मरूऩी ऩेट्रोर जर यशा शै, ळक्ति खचय शो यशी शै, जीलनरूऩी गाडी नघव यशी शै।

चौथी अलस्था् कोई कोई वलयरे सानीजन शोते शैं न्जनके बीतय काभ औय वॊकल्ऩ ननलतृ्त शो चकेु शैं। प्रायब्ध लेग के ढरान भईऄ जीलन की गाडी भधयुता वे वयक यशी शै। फड ेभजे वे मात्रा शो यशी शै।

सानी भईऄ कोई काभना औय वॊकल्ऩ नशीॊ शोता इवमरए कामों का फोझ उनको नशीॊ रगता। उनके द्राया फड-ेफड ेकामय वॊऩन्न शोते यशते शै, कपय बी ले ननरेऩ नायामण। अऩने वशज स्लाबावलक आत्भानन्द भईऄ भस्त। वॊवायी जन की एकाध दकुान बी शोती शै तो हदलारी के वभम मवय ऩय शाथ देकय चचन्ता कयने रगता शै, फोझ ेवे दफ जाता शै।

Page 64: Samarthya srot

जो रोग काभना वे आक्रान्त शैं, उनको फडी ऩयेळानी शोती शै। यालण का अध्ऩतन क्मों शुआ ? काभना वे आक्रान्त शोकय वीताजी को रे गमा। देलता रोग न्जवके मशाॉ चाकय की नाईं वेला कयईऄ, ऐवे फरलान ्यालण का अध्ऩतन काभना ने कयामा।

शनुभानजी जफ फन्धन भईऄ फॉधकय रॊकेळ के वाभने खड ेशुए, तफ रॊकेळ ने ऩूछा् "तुभ कौन शो ?"

"याभजी का दतू शूॉ।"

"वागय ऩाय कयके कैवा आमा ?"

"गोऩद की तयश उवे राॉघकय।"

"भेये ऩुत्र को भाय डारा ?"

"ऐवे शी बून डारा। भायने की भेशनत नशीॊ कयनी ऩडी।"

"इतना लीय शोकय बी तू फॉधा कैवे ?"

"भैं अखण्ड फार ब्रह्मचायी शूॉ। अळोक लाहटका भईऄ उन याषमवमों ऩय अनजाने भईऄ दृवद्श ऩड गई, इवमरए फॉध गमा। भेयी तो अनजाने भईऄ नारयमों ऩय दृवद्श ऩडी औय भैं पॉ व गमा औय त ूकाभना वे प्रेरयत शोकय जान-फूझकय वीता जी को उठा रामा शै तो तेया क्मा शार शोगा मश बी तो जया ऩूछ रे ! चाशे तो भैं अकेरा तुझ ेचणूय कय वकता शूॉ, रेककन याभजी ने भेये स्लाभी ने कशा शै कक ऩता रगाकय आओ, इवमरए भैं ऩता रगाने को शी आमा शूॉ।"

"श्रीमोगलामळद्ष भशायाभामण" भईऄ भुननळादूयर लमळद्षजी कशते शैं- "शे याभजी ! ऐवा कौन वा दु् ख शै जो काभना लारे को नशीॊ बोगना ऩडता ? ऐवा दु् ख नकय भईऄ बी नशी शै जैवा काभना लारे के रृदम भईऄ शोता शै। ऐवा वुख स्लगय बी नशीॊ शै जैवा ननष्काभी व्मक्ति के रृदम भईऄ छरकता शै।"

अऩने स्लरूऩ का सान नशीॊ शै तफ तक कभय जोय भायते शैं। आत्भस्लरूऩ का सान शोते शी कभय जर जाते शै। ऐवे सानी फड-ेफड ेवलळार आमोजनों का आयम्ब कयते शुए हदखते शैं, फडी-फडी प्रलवृत्तमाॉ कयते शुए हदखते शैं कपय बी अऩनी दृवद्श भईऄ ले कुछ नशीॊ कयते। वदा अकत्ताय ऩद भईऄ ळान्त प्रनतवद्षत शैं। फाशय वे वुख रेने की रारचलारी काभनाएॉ सानान्नन भईऄ जर गई शैं। कत्तृयत्त्ल-बोिृत्त्ल बाल दनध शो जाता शै। ऩशरे की चरी शुई गाडी अफ प्रायब्धलेग वे ऐवे शी भजे वे चर यशी शै। ऩेट्रोर का खचय नशीॊ, इॊन्जन की ळाॊनत।

व्मक्तित्ल को वजाने की काभना लेदान्त के न्जसावुओॊ को अच्छी नशीॊ रगती। लेदान्त व्मक्तित्ल का श्रृॊगाय नशीॊ शै, बक्ति व्मक्तित्ल का श्रृॊगाय नशीॊ शै, मोगभागय व्मक्तित्ल का श्रृॊगाय नशीॊ शै। मश तो व्मक्तित्ल के वलवजयन की याश शै। व्मक्तित्ल के वलवजयन भईऄ काभना ननलतृ्त शोगी, आऩ वाषात ्मळलस्लरूऩ शो जाएॉगे, आनन्दस्लरूऩ शो जाएॉगे, ईद्वय-तुल्म शो जाएॉगे। कपय आऩकी जात औय खदुा की जात, आऩकी जात औय प्रबु की जात एक शो जामेगी, अगय काभना नशीॊ शै तो।

आज का द्ऴोक फडा भधयु रग यशा शा भुझ े!

Page 65: Samarthya srot

मस्म वले वभायम्बा् काभवॊकल्ऩलन्जयता्। सानान्ननदनधकभायणॊ तभाशु् ऩॊक्तडतॊ फुधा्।।

'न्जवके वम्ऩूणय कामय काभना औय वॊकल्ऩ वे यहशत शोते शैं, न्जवके वभस्त कभय सानान्नन भईऄ दनध शो गमे शै, उवको फोधलान ्ऩुरूऴ तत्त्ललेत्ता ऩॊक्तडत कशते शैं।'

न्जवने केलर तीन मभनट के मरए बी अऩने तत्त्ल को जान मरमा, अऩने आत्भस्लरूऩ को ऩशचान मरमा लश कपय गबयलाव नशीॊ कयता। लश फडा भहशभालान ्शो जाता शै। उवके वीने के फार भात्र व,े थोडी वी चयणयज भात्र वे अदबुत कामय शुआ कयते शै। काभनायहशत ऩुरूऴ की भीठी ननगाश बी कइमों का जीलन भधयु फनाने भईऄ कापी जो जाती शै। काभनायहशत ऩुरूऴ का दळयन बी कल्माणकायी फन जाता शै तो उवके अऩने कल्माण की तो फात शी क्मा शै ? काभनायहशत ऩुरूऴ के दळयन भात्र वे जो ळाॊनत मभरती शै, जो ऩुण्म मभरता शै लश चान्द्रामण व्रत कयने वे औय गॊगास्नान कयने वे बी नशीॊ मभरता। काभनायहशत सानलान ्ऩुरूऴ के दळयन वे शाये शुए देलता जीत जाते थे।

दत्तात्रमे काभनायहशत ऩुरूऴ शै। देलता रोग शायकय चगय यशे थे तो दत्तात्रमे की ळयण भईऄ गमे। उनका आळीलायद मरमा तो जीत गमे।

मश तन, धन मा कुटुम्फीजन कोई वशाया नशीॊ शै। उनको तो अऩना खेर कयना शै अऩनी-अऩनी काभनाओॊ भुताबफक। न ऩत्नी वदा वाथ यशेगी न ऩनत वदा वाथ यशेगा, न फेटा वदा वाथ यशेगा न फाऩ वदा वाथ यशेगा।

इवका भतरफ मश नशीॊ कक भाता-वऩता, ऩत्नी-ऩुत्र, ऩरयलाय की व्मलस्था न कयो, कुळरता वे कयो, वफका रारन-ऩारन-ऩोऴण मथामोनम कयो रेककन मश नावभझी न कयो कक ऩत्नी भुझ ेवुख देगी, ऩनत भुझ ेवुख देगा फेटे फड ेशोंगे तो वुख दईऄगे, बवलष्म शभाया उज्जलर कयईऄगे। नशीॊ, बवलष्म तुम्शाया अफ बी ऩयभात्भसान वे उज्जलर शोगा औय फाद भईऄ बी ऩयभात्भसान वे शी उज्जलर शोगा।

काभना ऩूयी कयने के मत्नों वे बवलष्म उज्जलर नशीॊ शोगा। काभना फढने वे बवलष्म उज्जलर नशीॊ शोगा। काभना मभटा दो तो अबी तुम्शाया लत्तयभान उज्जलर शो जाएगा। न्जवका लत्तयभान उज्जलर शै, उवके बूत औय बवलष्म बी झख भायके उज्जलर शो जाते शै। काभनाएॉ, इच्छाएॉ लत्तयभान को दफा देती शै, बूत बवलष्म की चचन्ता भईऄ आदभी को उरझाती शैं।

जशाॉ काभना शोती शै, लशाॉ कुभनत आ जाती शै। जशाॉ काभना मभटती शै, लशाॉ वुभनत आ जाती शै। याभामणकाय कशते शैं-

वुभनत कुभनत वफके उय यशहशॊ। लेद ऩुयान ननगभ अव कशहशॊ।। जशाॉ वुभनत तशाॉ वॊऩवत्त नाना।

जशाॉ कुभनत तशाॉ वलऩनत ननधाना।।

Page 66: Samarthya srot

वुभनत औय कुभनत वफके रृदम भईऄ यशती शैं। जशाॉ वुभनत शोती शै लशाॉ नाना प्रकाय की वॊऩवत्तमाॉ अऩने आऩ आ जाती शैं। जशाॉ कुभनत शोती शै लशाॉ दु् ख के ढेय खड ेशो जाते शैं। काभनालारा व्मक्ति ळुब-अळुब नशीॊ देखता। काभनाओॊ वे कुभनत शोती शो। काभनाओॊ वे यहशत शोने वे वुभनत आती शै। अन्त्कयण भ,े फुवद्ध भईऄ न्जतनी काभानाएॉ अचधक शोंगी, उतनी कुभनत अचधक शोगी। काभनाएॉ न्जतनी कभ, उतनी शी वुभनत अचधक शोगी। काभना बफल्कुर नशीॊ शै, तो वाषात नायामण का अॊग शो गमे। जशाॉ नायामण शों, लशाॉ रक्ष्भी जी का लाव अचर शोना शी शै। नायामण के मवलाम रक्ष्भी जी कशीॊ यश नशीॊ वकतीॊ। काभनायहशत शोना शो तो बगलान नायामण का अॊग शोना शै। लशाॉ न चाशने ऩय बी रक्ष्भी का लाव शोता शै।

वुभनत औय कुभनत वफके उय भईऄ यशती शै। काभना कयके तुभ कुभनत को फढाओ, भजी तुम्शायी। तुभ स्लतन्त्र शो। वुख बोगने की काभना शोती शो तो औयों को वुख ऩशुॉचाने की काभना औय मत्न कयो तो वुख बोग की काभना मभट जामेगी। भान रेने की काभना शो तो दवूयों को भान देने भे रग जाओ, भान की काभना मभट जाएगी। काभना मभटते शी आऩभईऄ अनुऩभ वलरषण मोनमता आ जाएगी। आऩकी फुवद्ध भईऄ, आऩके भन भईऄ अनुऩभ मोनमता आ जामेगी। तन-भन फुवद्ध भईऄ वलरषणता राने के मरए दवूया उऩाम मोग बी शै। आवन, प्राणामाभ, ध्मान आहद वे बी वुऴुद्ऱ ळक्तिमाॉ वलकमवत की जा वकती शैं।

गाॉधीनगय वे कुछ वज्जन आश्रभ भईऄ आमे शुए थे। ककवी वलबाग वचचल आहद थे। आयोनम खाते भईऄ नवों की टे्रननॊग स्कूर चराते शैं। ले फोर यशे थे् "फाऩू जनता की आयोनमत के मरए वयकाय इतना-इतना खचय कय यशी शै कपय बी जैवा ऩरयणाभ आना चाहशए लैवा ऩरयणाभ नशीॊ आता। कभयचारयमों भईऄ, नवों भईऄ, वेला की जैवी आन्तरयक बालना शोनी चाहशए, लश नशीॊ हदखती। ऩगाय तो रेते शैं रेककन ऩशरे जो वेला शोती थी लश अफ नशीॊ शोती। उनभईऄ वेलाबाल जग जाम, रोग ननयोगी जीलन न्जमईऄ इव वलऴम भईऄ वयकाय कुछ वोच यशी शै औय शभ रोग इव वलऴम भईऄ आऩवे भागयदळयन रेने आमे शैं।

शभाया बायतीम जन-वाधायण जीलन ऩाद्ळात्म एरोऩैथी ऩद्धनत वे इतना प्रबावलत शो गमा शै कक दु् खद ऩरयणाभों के फालजूद बी अबी तक उधय आकवऴयत शो यशा शै। डॉक्टय जया-जया वी फातों भईऄ चीय पाड कयते शैं, दलाइमाॉ औय इॊजेक्ळन मरख देते शै। ळयीय भईऄ ऩोइजन (वलऴ) बय जाता शै, वलकृनतमाॉ शो जाती शैं। राब के फदरे नुक्वान ज्मादा शो यशा शै।"

भैंने उनको फतामा कक कुछ योग औऴचधमों वे शो जाते शैं, कुछ योग भन की भधयुता वे चरे जाते शैं औय कई योग तो फुवद्ध की वलळऴेता के कायण नजदीक आते शी नशीॊ।

योग का न शोना मश कोई आयोनमता की ननळानी नशीॊ शै। लैवे शी योग का अबाल भात्र तन्दरुूस्ती नशीॊ शै। तन ननयोग शो, भन प्रवन्न शो फुवद्ध भईऄ ब्रह्मसान का प्रकाळ शो तो मश आयोनमता का ऩूया रषण शै।

Page 67: Samarthya srot

भन के योग को आचध कशते शै, तन के योग को व्माचध कशते शै। तन का योग औऴचध व,े भॊत्र वे मा आळीलायद वे मभट जाता शै। भन का योग औऴचध आहद वे नशीॊ मभटता। भन का योग मभटता शै ननष्काभता वे, काभवॊकल्ऩलन्जयता् शोने वे।

भन भईऄ आचध क्मों आती शै ? उवके ऩाव अभुक चीज शै, भेये ऩाव नशीॊ शै.... ऐवा अबाल भशवूव कयके भनुष्म बवलष्म भईऄ उव चीज का वुख बोगने का आमोजन कयने रगता शै तो उव काभना वे भन भईऄ आचध आ जाती शै। भन भईऄ आचध आती शै तो तन भईऄ व्माचध अऩने आऩ घुव जाती शै। मे दोनों ऩयस्ऩय आचश्रत शैं। तन फीभाय शो तो भन उदाव शो शी जाता शै। भन भईऄ वलऴाद, उदे्रग, उदावी शोती शै तो तन बी फीभाय ऩड जाता शै।

आचध औय व्माचध की जननी शै काभना। भन भईऄ आचध शोती शै तो तन भईऄ व्माचध रे शी आती शै। न खाने जैवा खा रेते शैं, न बोगने जैवा बोग रेते शैं औय ळयीय फीभाय शो जाता शै। अत् फुवद्ध भईऄ सान चाहशए, दृढता चाहशए।

ळयीय की व्माचध मभटाने के मरए मववलर शॉन्स्ऩटरईऄ शैं, दलाखाने शैं, आऩयेळन चथमेटय शैं रेककन ळयीय की व्माचधमाॉ जशाॉ वे आती शैं, उव भन की आचध मभटाने के मरए तो कशीॊ-कशीॊ कबी-कबी छोटे-छोटे शी वाधना-स्थान मभर ऩाते शै।

आचध औय व्माचध इन दोनों का भूर कायण शै अवलद्या, जशाॉ वे लावना, काभना उत्ऩन्न शोती शै। इन काभना-लावनाओॊ को ननभूयर कयने के मरए कबी कशीॊ वलयरे ऋवऴद्राय फशुत भुन्श्कर वे प्राद्ऱ शोते शैं। ले फोधलान ऋवऴ-भशवऴय जफ काभना के भूर कायण असान को दयू कय दईऄ तफ आचध औय व्माचध वदा के मरए प्रबालयहशत शो जाती शैं।

ऐवे बलयोग मभटाने लारे भशवऴय आत्भलेत्ता गुरूओॊ के वान्न्नध्म भईऄ जाना चाहशए। चचत्त को काभना वे यहशत फनाना चाहशए। असान मभटाकय हदनोंहदन सान की करा फढानी चाहशए। इच्छा यहशत ऩद भईऄ वलश्राभ ऩाने का अभ्माव कयना चाहशए।

चचत्त की वलश्राॊनत वाभर्थमय की जननी शै। चचत्त की वलश्राॊनत वे तन की तन्दरुूस्ती, भन की प्रवन्नता औय फुवद्ध का प्रबाल फढता शै।

चचत्त की वलश्राॊनत कैवे मभरती शै ? काभनाएॉ न्जतनी कभ शोती शैं, भन के वॊकल्ऩ-वलकल्ऩ उतने कभ शोते शै। भन के वॊकल्ऩ-वलकल्ऩ न्जतने कभ शोते शैं, फुवद्ध को उतना कभ ऩरयश्रभ कयना ऩडता शै। फुवद्ध को ऩरयश्रभ कभ कयना ऩडता शै तो लश आत्भचतेना भईऄ वलश्राभ ऩाती शै, फरलान ्फनती शै। फुवद्ध न्जतनी फरलान ्शोगी, भन उतना शी अनुगाभी फनेगा। इन्न्द्रमाॉ भन की अनुगामभनी शोंगी। इव प्रकाय इन्न्द्रमाॉ भन के ऩीछे चरईऄगी, भन फुवद्ध के ऩीछे औय फुवद्ध आत्भयव भईऄ तदृ्ऱ शोगी तो वम्ऩूणय जीलन भईऄ लश आत्भयव छरकेगा। जीलन जीने की करा आ जामेगी। इव करा वे मोगी का मोग वपर शो जाता शै, बि की बक्ति वपर शो जाती शै, तऩस्ली का तऩ वपर शो जाता शै, जऩी का जऩ वपर शो जाता शै, वलद्याथी अऩने वलद्याध्ममन भईऄ वपर शो जाता शै, वाधक अऩने आत्भसान भईऄ जग जाता शै। आत्भ-वलश्राॊनत ऐवी चीज शै।

Page 68: Samarthya srot

एकाग्रता वे वपरता मभरती शै, चचत्त की वलश्राॊनत वे वाभर्थमय आता शै, आत्भदेल तथा आत्भदेल भईऄ प्रनतवद्षत वत्ऩुरूऴ को स्नेश कयने वे चचत्त भईऄ हदव्मता आती शै। ककवी काभी व्मक्ति को स्नेश कयोगे तो काभ आमेगा, रोबी व्मक्ति को स्नेश कयोगे तो रोब फढेगा औय ऩयभात्भा वे स्नेश कयोगे तो हदव्मता आमेगी।

स्नेश ककमे बफन यश नशीॊ वकते तो ईद्वय को स्नेश कयो। कभय ककमे बफना यश नशीॊ वकते तो ननष्काभ शोकय दवूयों को वुख ऩशुॉचाने के मरए कभय कयो। काभना के बफना यश नशीॊ वकते तो ऐवी काभना कयो कक भैं जगत को स्लप्नलत कफ देखूॉगा ? भेये ऐवे हदन कफ आएॉगे कक याग औय दे्रऴ के शेतु शोने ऩय बी चचत्त भईऄ याग-दे्रऴ न ऩनऩे ? भैं ऐवा सान कफ ऩा रूॉ कक कपय भाता के गबय भईऄ न जाना ऩड,े जन्भ-भयण के चक्कय भईऄ न घूभना ऩड े? भेये ऐवे हदन कफ आएॉगे कक भैं प्रबु भईऄ मभर जाऊॉ गा ? भेये ऐवे हदन कफ आएॉगे कक अऩने ईद्वयीम स्लबाल भईऄ जग जाऊॉ गा ? भेये ऐवे हदन कफ आएॉगे कक देश यशते शुए देशातीत स्लरूऩ भईऄ जग जाऊॉ गा ?

इव प्रकाय की काभना कयोगे तो मश काभना अन्म वफ काभनाओॊ को खा जामेगी। कपय स्लमॊ बी ळाॊत शो जामेगी। अन्मथा तो वुख बोग की काभनाओॊ को ऩूयी कयते-कयते कबी अन्त नशीॊ आमेगा, जीलन का शी अन्त शो जामेगा।

महद एक बी काभना फाकी शै तो वभझो अबी कई काभनाएॉ उवके ऩीछे-ऩीछे फाकी शैं। लश एक काभना ऩूयी शोत-ेशोते दवूयी कई काभनाएॉ जग जाती शैं।

जो काभनाओॊ को ऩूया कयने भईऄ रगते शैं ले ऩयेळाननमों को आभॊत्रण देते शैं। काभनाओॊ को ननलतृ्त कयन ेके यास्ते जो चरते शै, ले मळल शोने के यास्ते चरते शैं।

काभना उठती शैं फेलकूपी वे औय ऩूयी शोती शैं भजदयूी वे। ऩूयी नशीॊ शोती तो षोब ऩैदा कयती शै। काभना को ऩूयी शोने भईऄ कोई फरलान ्आदभी वलघ्न डारता शै तो क्रोध ऩैदा शोता शै। इव प्रकाय काभना वे बम, ईष्माय औय क्रोध का जन्भ शोता शै। बम, ईष्मय औय क्रोध भईऄ मे तीनों ककवी अन्म जगश वे नशीॊ आते, अवऩतु काभना के शी ऩरयलाय शैं। काभना वे शी बम ऩैदा शोता शै, काभना वे शी ईष्मय ऩैदा शोती श, काभना वे शी क्रोध ऩैदा शोता शै, चचन्ता ऩैदा शोती शै। अगय काभना नशीॊ शै तो चचन्ता ककव फात की ?

काभना ऩूयी शो तो क्मा औय ऩूयी न शो तो बी क्मा ? काभना ऩूयी शुई तो बी आखखय मभट जाएगी, अगय ऩूयी नशीॊ शुई तो बी मभट जामेगी। क्मा ऩयलाश शै ?

कुछ रोग बूतकार भईऄ वयक जाते शैं, कुछ रग बवलष्मकार भईऄ वयक जाते शैं। लत्तयभान वे ऩीछे कपवरे तो बूत, आगे कपवरे तो बवलष्म। लत्तयभान भईऄ लावना-काभनाओॊ के दरदर भईऄ पॉ वे तो बी गडफड।

न लत्तयभान की काभनाओॊ के दरदर भईऄ पॉ वो, न वुख-दु् ख को माद कयके बूतकार भईऄ ऩीछे चगयो, न बवलष्म भईऄ वुख-दु् ख की कल्ऩना कयके आगे चगय। लत्तयभान भईऄ सान के ऊॉ च ेमळखय ऩय कदभ यखकय चरो तो फेडा ऩाय शो जाए। सान जैवा मभत्र वलद्वबय भईऄ कोई नशीॊ।

Page 69: Samarthya srot

असान जैवा ळत्र ुदनुनमा भईऄ कोई नशीॊ। जगत के वाये ळत्र ुमभरकय तुम्शाया इतना नशी बफगाड वकते न्जतना असान बफगाढता शै। दनुनमा के वफ मभत्र मभरकय बी उतना नशीॊ वॉलाय वकते न्जतना आत्भसान वॉलायता शै औय आत्भसान ऩाना तुम्शाये शाथ की फात शै। दनुनमा के वफ रोगों को मभत्र फनाना तुम्शाये शाथ की फात नशीॊ शै। अऩनी काभनाओॊ को ऩूयी कयते-कयते मुग फीत गमे कपय बी भथयुा के बॊगेक्तडमों की तयश अबी लशीॊ-के-लशीॊ शैं।

भथुया के बॊगेडी भथयुा के बॊगेडी मभुना ककनाये गमे। खफू बाॉग ऩी। नळ ेभईऄ चयू शोने रगे। वॊध्मा का

वभम था। गगन भईऄ ऩूखणयभा का चाॉद ननकर यशा था। एक बॊगेडी ने वुझाल हदमा् "चरो, आज नौका की वैय कयईऄ, प्रमाग चरईऄ।"

फाकी के तीनों वशभत शो गमे। चायों नाल भईऄ फैठे। यातबय ऩतलाय चराते यशे, ऩरयश्रभ कयते यशे। वुफश शुई। चायों वभझ ेशभ प्रमाग आ गमे। इतने भईऄ भथयुा की कोई भहशरा मभुना वे ऩानी बयने आमी। बॊगेक्तडमों की नजय बी बॊगेडी। एक ने कशा् "अये ! मश तो भेयी ऩत्नी शै। मशाॉ प्रमाग भईऄ ?" आद्ळमय बी शुआ कक शभ तो यात बय ऩतलाय चराते यशे, नाल को खेते यशे, तफ ऩशुॉच ेशैं औय मश मकामक कैवे ऩशुॉच गमी ? ......औय कपय बफना ऩूछे ? लश अऩनी ऩत्नी को गोमरमाॉ देने रगा।

कोई वज्जन आदभी लशाॉ वे गुजया। ऩूछा् "अये बाई ! क्मा फात शै ?"

बॊगेडी फोरा् "शभ कर ळाभ को भथयुा वे नाल भईऄ चरे थे तो अबी वुफश प्रमाग ऩशुॉच ेशैं औय मश भेयी औयत बफना ऩूछे शी मकामक कैवे ऩशुॉच गमी ?

वज्जन ने देखा कक चायों नाल भईऄ तो फैठे शै, ऩतलायईऄ बी यातबय चराईं रेककन नाल का रॊगय खोरा शी नशीॊ। वभझते शैं कक शभ ऩरयश्रभ कयके भथयुा वे प्रमाग ऩशुॉच गमे शैं रेककन लास्तल भईऄ ले मशीॊ-के-मशीॊ भथयुा भईऄ ऩड ेशैं। रॊगय हदखामा तफ उनका नळा उतया।

ऐवे शी शभ जीलन भईऄ खफू ऩरयश्रभ कयते शै। वभझते शैं कक शभायी जीलनमात्रा शो यशी शै रेककन लावना-काभना का रॊगय तो उठामा शी नशीॊ शै। शभायी जीलन नैमा लशीॊ की लशीॊ वॊवाय के दरदर भईऄ उरझी ऩडी शै।

एक ले रोग शैं जो ईद्वय को प्माय कयते शैं औय आलश्मकता वॊवाय की वभझते शै। दवूये ले रोग शैं जो आलश्मकता तो ईद्वय की वभझते शैं औय प्माय वॊवाय की चीजों वे कयते शैं। दोनों प्रकाय के रोग फेचाये ठगे जाते शैं।

आलश्मकता शै ईद्वय की औय प्माय कयते शैं वॊवाय को तो ले रोग ईद्वय का उऩमोग बी वॊवाय के मरए कयना चाशईऄगे।

अये बैमा ! अऩने आऩ ऩय कृऩा कयो। अऩनी आलश्मकता बी ईद्वय शो औय प्रेभास्ऩद बी ईद्वय शो मश फात न्जव हदन वभझ भईऄ आ जामेगी उव हदन वफ काभनाएॉ बी अऩने आऩ ऩूणय शोने रगईऄगी। इतना शी नशीॊ, तुम्शायी भनौती भाननेलारे का बी फेडा ऩाय शो जामेगा। तुभ केलर

Page 70: Samarthya srot

काभवॊकल्ऩलन्जयता् शो जाओ। वचभुच तभु वाषात ्नायामणस्लरूऩ फन जाओगे। जफ ईद्वय शी अऩना प्रेभास्ऩद औय ईद्वय शी अऩनी आलश्मकता फनेगा तफ शय योज भुफायकफादी के हदन शोंगे।

वदा हदलारी वॊत की, आठों प्रशय आनन्द। ननज स्लरूऩ भईऄ भस्त शै, छोड इच्छा के पन्द।।

शभ रोग तो लऴयबय भईऄ दो तीन हदन हदलारी भनाते शैं औय थक जाते शैं। वॊत ननष्काभ शोते शैं अत् उनकी शय वाॉव हदलारी शोती शै। उनकी तो हदलारी शोती शै, उनकी भशकपर भईऄ आने लारों की बी हदलारी शो जाती शै।

जगत के पन्द तफ तक पन्द नशीॊ शैं जफ तक आऩ काभ वॊकल्ऩ वे आक्रान्त नशीॊ शोते। कामय तो सानी बी कयते शैं कपय बी ननरयऩ नायामण यशते शैं। जगत के ककवी पन्दे भईऄ पॉ वते नशीॊ क्मोंकक ले ननष्काभ शैं।

लावनाएॉ शोती शै अन्त्कयण भईऄ। अन्त्कयण के वाथ वम्फन्ध-वलच्छेद कय हदमा जनक ने तो याज्म कयते शुए बी उनका कुछ नशी बफगडा। अगय शभ रोग अन्त्कयण वे जुड ेयशे तो जीलन भईऄ कबी ऊॉ चाई, कबी ननचाई, कबी चढाल, कबी उताय शोता शी यशेगा। वॊतों ने अन्त्कयण को अऩना भानना शी छोड हदमा।

अन्त्कयण के वाथ वम्फन्ध शोता शै तो उवकी एकाग्रता भईऄ अऩने को वुखी भानते शैं, अन्त्कयण की इच्छा ऩूयी शुई तो अऩने को बानमळारी भानते शैं, इच्छा अधयूी यशी तो अऩने को अबागा भानते शैं। कयोडों-कयोडों अन्त्कयण न्जवभईऄ ऩैदा शोकय रीन शो यशे शै उव लास्तवलक 'भैं' का अगय वाषात्काय कय मरमा तो फेडा ऩाय शो गमा। कपय तुम्शायी लाणी वुनकय रोग ऩालन शो जाएॉगे। ऐवी लाणी वुनने के मरए गोदालयी भाॉ नायी का रूऩ रेकय एकनाथजी भशायाज के वत्वॊग भईऄ फैठती थीॊ। ब्रह्मलेत्ताओॊ की लाणी वुनने के मरए वूक्ष्भ जगत के रोग बी आकय फैठ जाते शैं। इच्छायहशत शोने भात्र वे आऩ इतने भशान जाएॉगे। इच्छा कय-कयके तो आज तक ककतनी शी भुवीफतईऄ उठाईं। अफ इच्छायहशत शोकय देखो।

इवीमरए तुरवीदावजी ने गामा शोगा् अफ प्रबु ! कृऩा कयौं एहश बाॉती। वफ तन्ज बजन कयउॉ हदन याती।।

वफ छोडकय बजन करूॉ भाने क्मा ? खाना-ऩीना, ऩशनना-ओढना छोडकय बजन करूॉ ? नशीॊ, खाना-ऩीना आहद तो चरता यशेगा। वफ छोडने का भतरफ शै इच्छा, लावना, काभना, वॊकल्ऩ का त्माग। काभना औय वॊकल्ऩ भईऄ शी तो वफ छुऩा शै। काभना औय वॊकल्ऩ छोड दो तो हदन-यात बजन शोगा। कपय तुम्शाया नौकयी कयना बी बजन, दकुान चराना बी बजन, मुद्ध कयना बी बजन शो जामेगा। वलऴम-वुख बोगने की इच्छा शी फन्धन शै। इच्छा, लावना-काभना औय वॊकल्ऩ छोडकय वफ प्रबु का शै मश वभझकय ननष्काभ शोकय वफ व्मलशाय कयो तो वफ बजन शो जाएगा।

Page 71: Samarthya srot

मुक्ति वे काभनाओॊ को भोडो एक नगय वेठ ने वऩना देखा कक भैं फूढा शो गमा शूॉ..... दाॉत चगय गमे शै..... भुॉश खोखरा

शो गमा शै..... चशेये ऩय झुरययमाॉ ऩड गई शैं..... फार वपेद शो गमे शैं.... कभय झुक गई शै। वुफश उठा औय नगय ज्मोनतवऴमों को फुरामा। कापी ज्मोनतऴी इकटे्ठ शो गमे। फडा जाना भाना वेठ था। अऩने वऩने की फात कशी औय वऩने की परश्रनुत फताने को कशा।

उन ज्मोनतवऴमों भईऄ दो भूधयन्म ज्मोनतऴी थे। वऩने की परश्रनुत वुनाने भईऄ प्रगाढ वलद्रान थे। एक ने कशा् "वेठ जी ! आऩका वऩना फडा खतयनाक शै, फडा दु् खद शै। वऩना वॊकेत कयता शै कक आऩके शोते आऩके वाये कुटुम्फी भय जाएॉगे।

मश वुनकय वेठ तो दु् खी शो गमे। अऩने वभग्र ऩरयलाय का ऐवा करूण अॊजाभ ! शाम याभ !

दवूया ज्मोनतऴी काभ-वॊकल्ऩलन्जयत शोने के भागय ऩय था। उवने कशा् "वेठजी ! घफयाओ भत, दु् खी भत शो। इन्शोंने न्जतना फतामा उतना मश वऩना खतयनाक नशीॊ शै। तुभ फेकाय भईऄ डय यशे शो। इव वऩने की परश्रनुत वुनाने भईऄ भुझ ेजया वलचाय कयना ऩडगेा। भैं कर फताऊॉ गा। आऩ ननन्द्ळॊत शो जाओ। ळोक कयने की कोई फात शी नशीॊ शै।

वेठ का एक हदन फडी व्माकुरता वे फीता। उनको इच्छा-काभना वॊकल्ऩों ने घेय मरमा था। शाम ! भेया क्मा शोगा ? ऐवा वोचकय ळोक वागय भईऄ गोते खाने रगे।

दवूये हदन लश ज्मोनतऴी आमा औय खळुी बये स्लय भईऄ फोरा् "वेठ जी ! वेठ जी ! भैंने जैवा वोचा था ऐवा शी शुआ। आऩके फुढाऩे के दृश्मलारा वऩना

बफल्कुर अभॊगर नशीॊ शै। लश वऩना फताता शै कक आऩ दीघायमु शोंगे। आऩ इतने दीघयजीली शोंगे कक आऩके ककवी बी कुटुम्फी को आऩकी भतृ्मु देखने का अलवय शी नशीॊ आमेगा।"

फात लशी की लशी थी। कर लारे ज्मोनतऴी ने जो परश्रनुत फताई थी लशी की लशी परश्रनुत उवने ऐवी भधयुता वे कशी कक वेठ जी ने उव ज्मोनतऴी को इनाभ दे हदमा।

ऐवे शी अऩनी इच्छाओॊ को बी भोडने का तयीका शोता शै। इच्छाएॉ उठती शैं भन भईऄ, तो भन को वभझा दो, पुवरा दो मुक्ति वे। वौ इच्छाएॉ उठे तो वौ की कय दो वाठ... आधी कय दो काट.... दव दईऄगे... दव छुडामईऄगे.... दव के जोडईऄगे शाथ। अबी तो आयाभ कयने दो माय !

याभनाभ की भधयुता वऩमईऄगे, योभ-योभ भईऄ यभने लारे अन्तमायभी अऩने आत्भदेल का अभतृ वऩमोगे तो इच्छाएॉ वौ बी नशीॊ यशईऄगी औय दव बी नशीॊ यशईऄगी। जफ कोई इच्छा नशीॊ यशी तो वायी इच्छाएॉ ऩूयी कयने लारे रोग तुम्शाये इदय चगदय आकय, शाथ जोडकय वलनीत बाल वे तुम्शायी वेला भईऄ रग जाएॉगे।

आऩ तो वाषात नायामण का अॊग शै, रेककन इच्छाएॉ आऩको जील फना यशी शै। चाश चभाडी चूशडी, अनत नीच की नीच।

तू तो ऩूयन ब्रह्म था, जो चाश न शोती फीच।।

Page 72: Samarthya srot

याजव औय ताभव इच्छाएॉ दु् खदामी शैं। वान्त्त्लक इच्छाएॉ वॊतों के ऩाव रे जाती शैं। ले इच्छाएॉ जफ ऩयभात्भा को ऩाने की फन जाती शैं तफ वान्त्त्लकता की ऩयाकाद्षा शोती शै। वाधक जफ चाशयहशत शो जाता शै, चाशयहशत ऩद भईऄ ठशय जाता शै तो उवका उद्धाय शो जाता शै। कपय उवका जीलन फडा भधयु फन जाता शै। प्रायब्ध लेग वे उवको धन मभरे न मभरे, वत्ता मभरे न मभरे, योग, फुढाऩा आले तो बी भैं फीभाय शूॉ..... भेया फुढाऩा शै.... भुझ ऩय भुवीफतईऄ आमी शै.... भैं दु् खी शूॉ..... ऐवा नशीॊ भानता। लश अकत्ताय-अबोिा ऩद भईऄ न्स्थत शोकय ननरेऩ नायामण फन जाता शै। वायी काभनाएॉ औय कभय उवके कट जाते शैं।

काभनाएॉ औय वॊकल्ऩ लत्तयभान की ळाॊनत, ननन्द्ळन्तता औय आनन्द को खा जाते शैं। व्मक्ति को अळाॊत फना देते शैं। सानी लत्तयभान भईऄ काभ कयते शैं। ननष्काभ शोकय बवलष्म के वलऴम-वुख की आकाॊषा नशीॊ कयते इवमरए उनका लत्तयभान का आत्भवुख छरकता शै। उव आत्भवुख के प्रकाळ वे उनकी फुवद्ध की मोनमता जन वाधायण रोगों वे वलरषण फनी यशती शै।

काभनाएॉ शी व्मक्ति की मोनमता षीण कय देती शैं। चचन्ता, बम, ळोक, वलऴाद, मे वफ काभनाओॊ की उऩज शैं। काभनाएॉ उठती शैं असान वे, नावभझी व,े चचत्त की भमरनता वे। भमरनता वे चचत्त भईऄ काभना उठती शै औय चचत्त को औय ज्मादा भमरन कयती शै। चचत्त की ळुद्धता वे काभनाएॉ वान्त्त्लक शोती शैं औय चचत्त अचधक ळुद्ध शोता शै। चचत्तळुवद्ध कयते कयते काभनाएॉ काटी जाती शैं।

स्लाभी वललेकानन्द औय नतयकी स्लाभी वललेकानन्द का नाभ ऩशरे वलवलहदळानन्द था। ले भाउन्ट आफू गमे थे तफ खेतडी

के भशायाजा वे बईऄट शुई। स्लाभी जी वे मभरकय भशायाजा फडे प्रबावलत शुए औय उनको खेतडी आने का प्रेभबया आभॊत्रण हदमा। वलवलहदळानन्द लशाॉ गमे तो इन वलयि वॊन्मावी के स्लागत भईऄ भशायाजा ने याजनतयकी के नतृ्म का आमोजन ककमा। एक वॊन्मावी औय उनके इदयचगदय वफ नतयककमाॉ नाचगान कयने रगीॊ। वलवलहदळानन्द तो थे इच्छा यहशत, काभ-वॊकल्ऩलन्जयत। तबी तो भशायाजा ऩय प्रबाल ऩडा था। उन्शोंने वोचा् 'मश क्मा ? भैं वॊन्मावी.... भुझ ेइव नाचगान वे क्मा रेना देना ?' उठकय चर हदमे।

एक नतयकी उनको योककय चयणों भईऄ चगय ऩडी औय प्राथयना कयने रगी् "स्लाभी जी ! शभ तो ऩनतत रोग शैं। आऩ ऩनततों को ऩालन कयने लारे भशात्भा शैं। शभ तो जैवे तैवे शैं रेककन आऩ भशाऩुरूऴ शैं। आऩके श्रीचयणों भईऄ एक गीत बी ऩेळ कयने का भौका नशीॊ मभरेगा तो शभाया गाना, नाचना औय जीना व्मथय शो जामेगा। कुछ बी शो, कृऩा कयो। भैं वूयदाव जी का बजन वुनाती शूॉ। आऩ फैहठमे, स्लाभी जी ! इतनी कृऩा कीन्जए।"

भशायाजा ने बी शाथ जोडकय वलनती की। वलवलहदळानन्द आवन ऩय फैठईऄ । नतयकी ने नामब केन्द्र वे भधयु स्लय वे आराऩते शुए बजन गामा्

प्रबु ! भोये अलगुण चचत्त न धयो।

Page 73: Samarthya srot

वभदयळी शै नाभ नतशायो, चाशे तो ऩाय कयो।। एक नहदमा एक नाय कशालत भैरो शी नीय बयो।

जफ मभर कयके एक फयन बमे वुयवरय नाभ ऩमो।। इक रोशा ऩूजा भईऄ याखत, इक घय फचधक ऩमो।

ऩायव गुण अलगुण नहशॊ चचतलत, कॊ चन कयत खयो।। मश भामा भ्रभ-जार कशालत वुयदाव वगयो।

अफकी फेय भोहशॊ ऩाय उतायो, नहश प्रन जात टयो।। स्लाभी वलवलहदळानन्द का रृदम बालवलबोय शो गमा। ले आवन वे उठे औय नतयकी को

प्रणाभ कयते शुए फोरे् "भाता ! भुझ ेषभा कयना। भैं तेयी अलशेरना कयके जा यशा था। भैं बूर गमा था कक

प्राखणभात्र भईऄ कुछ न कुछ मोनमता शोती शी शै। तुझभईऄ बी कई छुऩी शुई मोनमताएॉ भैं देख यशा शूॉ।"

नतयकी ने उवी वभम कीभती लस्त्र-आबूऴण, यत्नजक्तडत अरॊकाय-गशने वफ उतायकय पईऄ क हदमे औय वॊन्माव के गेरूए लस्त्र धायण कय मरमे। वलवलहदळानन्द के दो ऩाॉच मभनटों के वॊग वे नतयकी ने याजलैबल की बईऄट वौगातईऄ, ननलाव औय लेतन वफ ठुकया हदमे औय वॊन्मामवनी फन गई।

इच्छाओॊ भईऄ दभ नशीॊ। अगय आऩका वललेक जगे तो एक ठोकय वे काभनाओॊ का ककरा धयाळामी शो वकता शै। तुरवीदाव को ऩत्नी ने ताना भाया औय ले चर ऩड ेईद्वय के भागय ऩय। बि कवल वॊत तुरवीदावजी फन गमे।

शभ रोग छोटे तफ फनते शैं जफ काभना को ऩोवने भईऄ रगते शैं। अगय जग जामईऄ तो शभायी जानत औय ईद्वय की जानत एक शी शै। लास्तल भईऄ ब्राह्मण, षबत्रम, लैश्म, ऩटेर, मवॊधी, गुजयाती, ऩॊजाफी, भायलाडी, भयाठी – मश तुम्शायी जानत नशीॊ शै, तुम्शाये ळयीय की जानत शै। मे वफ ळयीय के कुर जानत धभय शैं।

खेतडी के भशायाजा ने स्लाभी वलवलहदळानन्द वे कशा् "स्लाभी जी ! आऩका नाभ कहठन ऩडता शै फोरने भईऄ औय उवक अथय वभझने भईऄ वफ

रोग वपर नशीॊ शोंगे। नाभ कुछ वयर शोना चाहशए।"

स्लाभी जी को याजा वे स्नेश शो गमा था। ले फोरे् "जो आऩको अच्छा रगे, लश नाभ यख दो।"

भशायाजा ने कुछ वभम वोचकय कशा् "आऩका नाभ वललेकानन्द यखईऄ तो ?"

"अच्छा शै, मळयोधामय शै। " स्लाभी जी ने स्लीकृनत दी। तफवे उनका नाभ वललेकानन्द शो गमा।

Page 74: Samarthya srot

खेतडी के भशायाजा ने स्लाभी वललेकानन्द के कामों भईऄ फडा वशमोग हदमा। स्लमॊ वललेकानन्दजी ने अऩने श्रीभुख वे कशा था कक् "याजा वाशफ ने भेये वनातन धभय के वेलाकामय भईऄ फडा वशमोग हदमा शै औय भेया कामय वलकमवत शुआ शै। याजा वाशफ का फडा मोगदान शै।"

फाद भईऄ स्लाभी वललेकानन्द ने खेतडी भईऄ वॊस्था बी स्थावऩत की, न्जवका वॊचारन अफ स्लाभी याभकृष्ण भठ द्राया शोता शै।

ऐवे रोग तो चरे जाते शैं रेककन उनकी भधयु गाथा यश जाती शै। भधयुता तफ आती शै, जफ व्मक्तिगत स्लाथय षीण शो जाता शै। याजा का व्मक्तिगत स्लाथय शोता तो वललेकानन्द जी के कामों भईऄ थोड ेशी मोगदान दे वकते ! वभम औय ळक्ति का खचय कय वकते !

व्मक्ति की अऩने लैमक्तिक वुख की रारच न्जतनी षीण शोती शै, उतना लश वभाजहशत के भधयु कामय कय जाता शै।

वलद्व के जो बी फड ेफड ेकामय शुए शैं, ले साननमों के द्राया शुए शैं, ननष्काभ ऩुरुऴों के द्राया शुए शैं। असानी औय काभनालारे क्मा खाक कयईऄगे ? जो बी भधयु कामय शुए शैं, रोकहशत के कामय शुए शैं, वभाज गठन के कामय शुए शैं, वभाज को उन्नत कयने लारे कामय शुए शैं, ले अऩने लैमक्तिक वुख की काभना छोडनेलारे रोगों के द्राया शी शुए शैं।

लेदव्मावजी भशायाज ने इतने वाये ळास्त्र यचे, वॊत तुरवीदावजी, वॊत वूयदावजी, नयमवॊश भेशता आहद कवलत्ल ळक्तिलारे वॊतों ने वत्वाहशत्म प्रदान ककमा। उन्शोंने व्मक्तिगत वुख के वॊकल्ऩ छोड।े काभवॊकल्ऩलन्जयता् के भागय ऩय चरे। अऩने वॊकल्ऩ घटामे, फढामे नशीॊ।

अऩने वुख के वॊकल्ऩ घटाने के मरए दवूयों को वुख ऩशुॉचाने के वॊकल्ऩ कयो। जो दवूयों को वुख ऩशुॉचाता शै, लश स्लमॊ दु् खी कैवे यश वकता शै ? दवूयों को भान देने लारा अऩभाननत कैवे यश वकता शै ? दवूयों का भॊगर कयने लारे का अभॊगर कैवे शो वकता शै ? फाशय वे चाशे अभॊगर शोता हदखे रेककन लास्तल भईऄ ऐवा शोता नशीॊ। उवक बवलष्म फडा भॊगरभम फन जाता शै।

जगदगुरू ळॊकयाचामय वात लऴय के थे। फड ेभातबृि। उनकी भाॉ आरलाई नदी भईऄ प्रनतहदन स्नान कयने जातीॊ औय बगलान केळल के भॊहदय भईऄ जाकय उऩावना कयतीॊ। उनका मश ऩक्का ननमभ था।

एक हदन भाॉ नदी ऩय गई तो लाऩव नशीॊ आई। नन्शे ळॊकय को फडी चचन्ता शुई। यास्ते भईऄ जाकय देखा तो फुढाऩे के कायण भाॉ को चक्कय आमे औय लश चगयी ऩडी शै। फेटा भाॉ की वेला भईऄ रग गमा। भाॉ की चतेना लाऩव रौटी। फेटे ळॊकय ने बगलान वे प्राथयना की् "शे प्रब ु! नदी शभाये घय वे इतनी दयू शै औय भाॉ को तो योज जाना शी शै स्नान कयने। ......तो शे ऩयभात्भा ! तू नदी का रूख फदर दे ताकक लश शभाये घय के कयीफ वे फशे। तेये मरए अवॊबल शी क्मा शै नाथ !"

शुआ बी ऐवा शी। कुछ हदन के फाद जोयों की फारयळ आमी। नदी भईऄ फाढ आमी औय प्रलाश का रूख फदर गमा। कपय उनके घय की ओय वे नदी फशने रगी।

Page 75: Samarthya srot

प्रकृनत भईऄ जो शोनशाय शोता शै, लशी वज्जन ऩुरूऴों के रृदम वे प्राथयना के रूऩ भईऄ ननकर आता शै औय लश वपर शो जाता शै।

जो व्मक्ति काभवॊकल्ऩलन्जयता् शोता शै लश फाह्य अनुकूरता भईऄ बी वभयव यशता शै औय प्रनतकूरता भईऄ बी उवकी बीतय की न्स्थनत फडी भधयु शोती शै।

गाॊधायी औय श्रीकृष्ण

श्रीकृष्ण, धतृयाद्स, गाॊधायी आहद कशीॊ जा यशे थे। गाॊधायी ने श्रीकृष्ण वे कशा् "अगय आऩ चाशते तो कौयलों का वलनाळ रूक वकता था। भशाबायत के मुद्ध भईऄ भेये वफ ऩुत्र भाये गमे। कृष्ण ! आऩ चाशते तो मश नशीॊ शोने देते।"

लास्तल भईऄ श्रीकृष्ण के चाशने ऩय मश नशीॊ शोता, मश फात वशी शै कपय बी लावना वे आक्रान्त व्मक्तिमों के कुछ कभय ऐवे शोते शैं कक उनको फचाने के मरए श्रीकृष्ण की चाश शी नशीॊ उठती। कौयलों के ऩाऩ इतने फढ गमे थे कक उनके मरए मुद्ध शोना अननलामय शो गमा था इवीमरए श्रीकृष्ण की चाश ऩैदा नशीॊ शुई।

गाॉधायी ने श्रीकृष्ण को श्राऩ हदमा् "तुभने भेये फेटों को भशाबायत के मुद्ध भईऄ भयला हदमा तो जाओ, 36 वार के फाद तुम्शाया ऩरयलाय बी नद्श शो जामेगा।"

श्रीकृष्ण भुस्कुयामे। फोरे् "कोई फात नशीॊ। मश बी शोनशाय शै, शोने लारा शै तो इवको बी देख रईऄगे। गाॊधायी ! जो शोने लारा शै लशी तेये द्राया श्राऩ शोकय आमा शै। ठीक शै।"

श्रीकृष्ण की जगश ऩय दवूया व्मक्ति शोता तो दु् खी शो जाता। जो शोने लारा लशी ककवी के श्राऩ द्राया मा लयदान द्राया आता शै। ननमनत भईऄ ऐवा शोता

शै। ऩुरूऴाथय कयके, दृढ वॊकल्ऩ कयके ऩरयन्स्थनतमों भईऄ कुछ ऩरयलतयन तो शोता शै इवभईऄ कोई वन्देश नशीॊ। वाथ शी वाथ मश बी वभझना शोगा कक ऩरयन्स्थनतमों वे प्राद्ऱ जो वुख शै लश बी तो ऩरयलतयनळीर शै।

काभवॊकल्ऩ वे आक्रान्त लावनालान व्मक्ति ऩरयन्स्थनतमों को अनुकूर फनाने के मरए चचन्ता, बम, ळोक कयता शै, बवलष्म ऩय ननबयय कयता शै। ऩरयन्स्थनत ककतनी बी अनुकूर फनेगी, प्रनतकूर फनेगी, उवका प्रबाल तन तक यशेगा, भन तक यशेगा। तन औय भन लास्तल भईऄ शभ शैं नशीॊ। अऩने लास्तवलक स्लरूऩ ऩय ननगाश नशीॊ शै इवमरए इन वाधनों को भैं भानकय तऩ यशे शैं, बुन यशे शैं। इव प्रकाय तऩते-तऩते जीलन खत्भ शो जाता शै, ऩय वॊघऴय-वलघ्न-फाधाएॉ खत्भ नशीॊ शोतीॊ। भौत खत्भ नशीॊ शोती। लश एक ळयीय को भायकय कपय दवूया फनाती शै। उवको बी भायकय तीवया फनाती शै। इव प्रकाय ळृॊखरा चरती यशती शै।

ळयीय, भन, फुवद्ध मे अनात्भा शैं, प्रकृनत की चीजईऄ शैं। इनको ककतना बी वुख ऩशुॉचाओ, अनुकूर यखो कपय बी परयमाद फनी यशेगी, इनका ऩरयलतयन फना यशेगा। जो शभ शैं, शभाया जो लास्तवलक स्लरूऩ शै लश सानस्लरूऩ शै। लश ज्मों का त्मों यशता शै। उवभईऄ जो हटक जाते शै ले काभ-वॊकल्ऩलन्जयत शो जाते शैं। जो ळयीय भईऄ मा ऩरयन्स्थनतमों भईऄ उरझते यशते शैं उनके वॊकल्ऩों

Page 76: Samarthya srot

का, लावनाओॊ का अॊत नशीॊ आता। ळयीय का अन्त शो जाता शै तो दवूया ळयीय धायण कयने के मरए बटकना ऩडता शै। दवूया ळयीय धायण कयने के मरए बटकना ऩडता शै। दवूया ळयीय रे मरमा तो लशाॉ बी लशी चक्कय। इवीमरए ळास्त्रों भईऄ कशा् मस्म सानभमॊ तऩ्। तऩ तो कयईऄ रेककन उव तऩ भईऄ आत्भसान का प्रबाल शो। तऩ सानवॊमुि शोना चाहशए। मोगभागय का सान शो तो वाधक थोड ेशी हदनों भईऄ वाधना के ऊॉ च ेमळखय वय कय वकता शै। सान न शो तो लश लऴों तक घूभता यशता शै।

शभायी यीढ की शड्डी भईऄ वे एक नाडी जाती शैं। यीढ के आखखयी भनके वे रेकय भस्तक के ऊऩय तक। इव नाडी भईऄ अरग-अरग स्थानों ऩय वात चक्र शैं- भूराधाय, स्लाचधद्षान, भखणऩुय, अनाशत, वलळुद्धाख्म, आसा औय वशस्राय। वफवे नीच ेगुदाद्राय के ऩाव भूराधाय चक्र शै। उवकी ऩॊखकु्तडमाॉ यिलणय शैं। 1200 द्वाव चरे उतनी देय मोगाभ्मावी वाधक भूराधाय चक्र भईऄ अऩनी चचत्तलवृत्त को स्थावऩत कय दे औय द्वावों को ननशायता यशे तो ळायीरयक फर फढता शै, कुछ अॊळ भईऄ चचत्त की प्रवन्नता प्राद्ऱ शोती शै। लऴय ऩमयन्त मश अभ्माव कये तो वत्मवॊकल्ऩ आहद मववद्धमाॉ प्राद्ऱ शोती शैं।

दवूये लऴय भईऄ दवूये केन्द्र स्लाचधद्षान चक्र भईऄ ध्मान का अभ्माव कये तो कवलत्ल ळक्ति प्रकट शोती शै। दयूदळयन, दयूश्रलण आहद की मोनमताएॉ आ जाती शैं। इव प्रकाय अरग अरग चक्रों के अभ्माव का पर प्राद्ऱ शोता शै।

मोगाभ्माव भईऄ मोगमववद्ध के पर की प्रानद्ऱ का वॊकल्ऩ तो शै, काभना तो शै रेककन मश भधयु वॊकल्ऩ शै, वलऴम बोगने का तुच्छ वॊकल्ऩ नशीॊ शै। वलऴमों का वदऩुमोग कयने का वॊकल्ऩ शै। तुरवीदावजी, वूयदावजी आहद भईऄ कवलत्ल प्रकट शुआ तो इन कवलमों ने वभाज को ककतना फहढमा वाहशत्म प्रदान ककमा !

भेधाली फारक् ळॊकयाचामय ळॊकयाचामय जी वात लऴय के थे तफ उनकी प्राथयना के भुताबफक नदी का प्रलाश फदर गमा।

उनके ऩाव वॊन्मावी रोग ऩढने आते थे। ले ळास्त्रों का वुन्दय अथय रगाते थे। फारक ळॊकय की हदव्म ळक्ति की फात वुनकय केयर के याजा याजळखेय फशुत शी वलन्स्भत

शुए। याजा स्लमॊ बी एक अच्छे वलद्या-व्मावॊगी, ळास्त्रलेत्ता वलद्रान थे। इतना शी नशीॊ, वलळऴे बक्तिबालमुि बी थे औय वलद्रानों का उचचत आदय बी कयते थे। वात लऴय के एक ब्राह्मण फारक भईऄ इव प्रकाय की वलद्रता औय हदव्म ळक्ति की फात वुनकय उववे मभरने की वलळऴे इच्छा शुई। उन्शोंने उऩशाय के रूऩ भईऄ ळॊकय को देने के मरए प्रधानभॊत्री के वाथ शाथी बेजा औय याजभशर भईऄ ऩधायने के मरए ननभॊत्रण हदमा। भॊत्री ने जाकय अत्मन्त वलनम के वाथ याजा की इच्छा प्रकट की।

ळॊकय ने कशा् "शे दानलीय ! मबषा शी न्जनकी जीवलका शै, भगृचभय न्जनका लस्त्र शै, वन्ध्मालन्दन, अन्ननशोत्र, लेदाध्ममन-अध्माऩन तथा गुरूवेला शी न्जनक ननत्मव्रत शै, उन्शईऄ शाथी

Page 77: Samarthya srot

वे क्मा काभ ? शे भॊत्रीलय ! आऩ अऩने प्रबु वे भेया उत्तय फताकय कहशएगा कक ब्राह्मणाहद लणयचतुद्शम अऩन-ेअऩने धभय का आचयण कय धभयजीलन ननबा वकईऄ , उवकी व्मलस्था कयना शी याजा का प्रधान कत्तयव्म शै। प्ररोबन देकय उन्शईऄ वलऴम भईऄ आकवऴयत कयना कदावऩ याजा का कत्तयव्म नशीॊ शै।"

इतना कशकय उन्शोंने याजभशर भईऄ जाने का ननभॊत्रण अस्लीकाय कय हदमा। ळॊकय के ऐवे व्मलशाय वे रूद्श न शोकय याजा याजळखेय ळॊकय के प्रनत औय बी अचधक श्रद्धालान शुए। भॊबत्रमों के वाथ ले स्लमॊ एक हदन काराडी ग्राभ भईऄ ळॊकय के दळयनाथय उऩन्स्थत शुए। आकय देखा कक ळॊकय भगृचभय ऩशने शुए शैं। कभय भईऄ भुॊजभेखरा तथा देश ऩय ळुभ्र मसोऩलीत शै। उनके चायों ओय ब्राह्मण रोग ळास्त्रों का अध्ममन कय यशे शैं। ळॊकय ने याजा को मथा मोनम वम्भान देते शुए स्लागत ककमा। फारक शोने ऩय बी उनका व्मलशाय प्रलीण रोगों की तयश था।

केयराधीळ ळॊकय का सान देखने आमे थे। अल्ऩ वभम की ळास्त्र-वललेचना वे शी ळॊकर के गम्बीय ऩाॉक्तडत्म ऩाकय याजा फशुत वलन्स्भत शुए। स्लयचचत 'फारबायत' औय 'फारयाभामण' आहद वॊस्कृत नाटक ळॊकय को वुनामे औय उनकी वूचना के अनुवाय फशुत कुछ वॊळोधन बी कय मरमा। याजा को फडा आनन्द शुआ। आखखय भईऄ ळॊकय के चयणों भईऄ अनेक वुलणय भुद्राएॉ अवऩयत कीॊ, तो ळॊकयाचामय फोरे्

"ब्राह्मण का धन तो तऩ शै, ळास्त्रों का अध्ममन शै। प्रद्ल यशा आजीवलका का, उतना तो मभर शी जाता शै। आऩकी शजायों वुलणय भुद्राएॉ रेकय भैं कशाॉ वॉबारूॉगा ?"

याजा ने कशा् "अफ तो भैं दे चकुा। भेया दान का वॊकल्ऩ शै, आऩ स्लीकाय कीन्जए। ककवी अच्छे काभ भईऄ रगा दीन्जएगा।"

"याजन ! धन को अच्छी जगश रगाने की मोनमता तो याजा भईऄ शी शोती शै। वॊत, वाध,ू ब्राह्मण तो वलद्या को अच्छी जगश ऩय रगा वकते शैं। दान को अच्छी जगश रगाने का काभ तो याजा का शै। उतना वभम औय चचन्तन शभ उवभईऄ नशीॊ रगा वकते। आऩवे दान रेकय कपय उवका वदऩुमोग कयने के मरए अच्छी जगश खोजूॉ तो भेया वभम फयफाद शोगा। मश कामय कयना तो याजा का कत्तयव्म शै।"

वात लऴय की उम्र भईऄ शी ळॊकयाचामय काभवॊकल्ऩलन्जयता् की न्स्थनत भईऄ थे। 32 लऴय तक न्जमे औय ऐवे कामय कय गमे कक आज बी उनके नाभ की गहद्दमाॉ काभ शैं। जो वलऴमों भईऄ वुख खोजते शैं उनकी षभताएॉ औय ळक्तिमाॉ नद्श शो जाती शैं। ले बोगलादी चचन्न्तत औय बमबीत फन जाते शैं। जो काभना औय वॊकल्ऩ छोडते शैं ले ननबीक औय ननन्द्ळॊत यशते शैं। ननयनतळम वुख ऩाने की उनकी षभता वलकमवत शोती शै।

आत्भसान की प्रानद्ऱ शोती शै इच्छाओॊ औय काभनाओॊ को छोडने वे। आत्भसान की इच्छा बी इच्छा तो शै रेककन लश इच्छा अन्म इच्छाओॊ को शटाकय स्लमॊ बी अन्त भईऄ शट जाती शै औय

Page 78: Samarthya srot

आत्भस्लरूऩ प्रकट शो जाता शै। इवमरए प्रबुप्रानद्ऱ की इच्छा, इच्छा शोते शुए बी इच्छा भे नशीॊ चगनी जाती।

जील का लास्तवलक स्लरूऩ आत्भा शै। गुरूकृऩा वे उव स्लरूऩ की प्रानद्ऱ शोती शै। ऐवे सानलान के वम्ऩूणय कामय काभना औय वॊकल्ऩयहशत शोते शैं। उवके वफ कभय सानान्नन वे दनध शो जाते शैं। जैवे वूमयनायामण के उदम शोने भात्र वे जगत के कामय अऩने आऩ ळुरू शो जाते शैं लैवे शी फोधलान ्ऩुरूऴ की उऩन्स्थनत भात्र वे जीलों के कल्माण कामय स्लत् शोने रगते शै। रोगों की दृवद्श भईऄ सानी फड-ेफड ेकामय कयता शुआ हदखेगा, रेककन अऩनी दृवद्श भईऄ लश कबी कुछ नशीॊ कयता। अद्शालक्रजी कशते शैं-

अकतृयत्लॊ अबोिृत्लॊ स्लात्भनो भन्मते मदा। तदा षीणा बलन्त्मेल वभस्तान्द्ळत्तलतृ्तम्।।

मोगी जफ अकत्ताय औय अबोिा ऩद भईऄ न्स्थत शोता शै तफ उवके वाये कभय षीण शो जाते शैं। सानी के वाये-के-वाये कभय प्रकृनत भईऄ शोते शैं, अन्त्कयण भईऄ शोते शैं, वाधनों भईऄ शोते शैं, आत्भस्लरूऩ भईऄ नशीॊ शोते। लशी आत्भस्लरूऩ जीलभात्र का अऩना आऩा शै। रेककन काभना औय वॊकल्ऩ कयके लश स्लरूऩ वे फाशय बटकता शै। आत्भळाॊनतरूऩी खेत को इच्छारूऩी ओरे बफखेय देते शै। अत् न्जतना शो वके उतना अरग यशकय आत्भदृवद्श वे जीना चाहशए। सानी के वुख के आगे वाये वलद्व के वलऴमों का वुख क्मा शोता शै ? स्लगय का वाम्राज्म शो, वुन्दरयमाॉ झाडू-फुशायी कयती शों, ऊलयळी औय यम्बा जैवी अप्वयाएॉ पूरों की ळैय्मा बफछाकय कॊ ठ रगईऄ, ऩीने को अभतृ दईऄ, चयणचम्ऩी कयईऄ, इन्न्द्रमों के वफ बोग राकय यख दईऄ, उन वफको बोगते-बोगते बी उतना वुख नशीॊ शोता, न्जतना वुख सानी को कुछ न कयते शुए अऩने-आऩभईऄ मभरता शै। वुख ऩाने के मरए सानी को कुछ नशीॊ कयना ऩडता।

लेश्मा धन वे, षबत्रम फर वे, ळूद्र उम्र व,े ब्राह्मण ळास्त्रसान वे फड ेभाने जाते शैं। ब्रह्मलेत्ता ऐवे अनुबल को ऩाता शै कक एक भईऄ वफ औय वफभईऄ एक अखण्ड वत-्चचत-्आनन्दस्लरूऩ, ननत्मभुि अऩने स्ल-स्लबाल भईऄ जात-ऩाॉत, फडप्ऩन-छोटाऩन वफवे ऩाय ऩयभानन्दस्लरूऩ भईऄ जग जाते शैं। धन्म शैं ऐवे ब्रह्मलेत्ता औय धन्म शैं उनके अनुबल को अऩना अनुबल फनान ेलारे वन्त्ळष्मों को !

ळॊख, चक्र, गदा, ऩद्म धायण ककमे शुए चक्रऩाखण बगलान वलष्णु जगत का ऩारन कयते शैं, कपय बी उनको कोई फोझ भशवूव नशीॊ शोता, क्मोंकक ले वदा आत्भस्लरूऩ भईऄ भस्त शैं। वूमयनायामण आकाळ भईऄ न्स्थत शैं ननयारम्फ। ववृद्श के वाये व्मलशाय उनकी शान्जयी भात्र वे शोने रगते शैं। वूमयनायामण जीलन्भुि शैं। उनको शभाया नभस्काय ! बगलान वाम्फ वदामळल, चन्द्रळखेय, वदा अऩनी आत्भ-वभाचध भईऄ, आत्भवुख भईऄ वभाहशत शैं। ऐवे बगलान ळॊकय को नभस्काय शै !

Page 79: Samarthya srot

जीलभात्र भईऄ लशी चतेना शै ऩयन्तु जो उवभईऄ हटके शैं ले बगलत्स्लरूऩ शैं औय जो उववे वलभुख शैं, देश को भैं भानकय वॊवाय के तुच्छ वुखों भईऄ अऩना जीलन फयफाद कय देते शैं ले रोग ऩळुधभाय शैं।

उभा नतनके फडे अबाग। जे नय शरय तन्ज वलऴम बजहशॊ।।

जो रोग आत्भध्मान, आत्भवुख, शरयतत्त्ल का यव छोडकय वॊवाय के वलऴम-वलकाय भईऄ वुख खोज यशे शैं उनके फड ेअबाग शैं। ले अऩना बवलष्म अन्धकायभम फना यशे शैं। कपय ऩछताएॉगे।

वो ऩयत्र दु् ख ऩालई, मवय धुनन-धुनन ऩनछतालहशॊ। कारहशॊ कभयहशॊ ईद्वयहशॊ, मभर्थमा दोऴ रगालहशॊ।।

भतृ्मु की ळैमा ऩय ऩडईऄगे तफ वफ छूट जामगा। अकेरे जाएॉगे, ऩळुमोनन भईऄ चगयईऄगे, कोई छुडामेगा नशीॊ। लषृ फन जाएॉगे, कुल्शाड ेके प्रशाय वशईऄगे, कोई छुडाएगा नशीॊ। अत् अबी कुछ कय रो न्जववे फाद भईऄ ऩछताना न ऩड।े

गाकपर ! अजु वोचत नशीॊ, लथृा जनभ गॉलाम। तेर घटा फाती फुझी, अन्त फशुत ऩछताम।।

आमुष्मरूऩी तेर खटू जामेगा तो द्वावोच्छलावरूऩी फाती फुझ जामेगी। ळयीयरूऩी दीमा अन्धकायभम शो जामेगा। रोग उवे बस्भ कय दईऄगे। इवके ऩशरे तू वभम का वदऩुमोग कय रे बैमा !

उभा वॊत वभागभ वभ, औय न राब कछु आन। बफनु शरय कृऩा उऩजै नशीॊ, गालहशॊ लेद ऩुयान।।

मळलजी ने बगलती उभा वे ऐवा नशीॊ कशा कक 'स्लगय-वभागभ वभ'। नशीॊ। स्लगय का अभतृ ऩीने वे आदभी के ऩुण्म खत्भ शोते शैं जफकक वॊत-वभागभ वे ऩाऩ खत्भ शोते शैं औय अगय आत्भा भईऄ हटकाने लारा अभतृ मभरता शै।

न्जनकी गोद भईऄ बगलान श्रीयाभचन्द्रजी खेरे शैं ऐवी कौळल्माजी, वुमभत्रा औय कैकेमी अऩने आत्भोद्धाय के मरए एकान्तलाव भईऄ अऩना ळऴे जीलन बफताने के मरए जाती शैं। श्रीयाभचन्द्रजी कशते शैं- "भाॉ ! भैं जफ इव याज्म के कामय बाय वे थकता शूॉ, ऊफता शूॉ तफ तेयी गोद भईऄ मवय यखकय वलश्राॊनत ऩाता शूॉ। भाॉ ! तू एकान्तलाव भईऄ, अयण्म भईऄ जाने की फात भत कयना।"

तफ कौळल्माजी कशती शैं- "शे याभ ! आऩ मे भोश-भामा के लचन फोरते शैं ? आऩ तो बगलान शैं ! बगलान तो भोश-भामा वे छुडाते शैं। मे भभताऩूणय लचन फोरकय आऩ भुझ ेआद्ळमय भईऄ डारते शैं ! भनुष्म को अऩना ळऴे जीलन एकान्तलाव भईऄ बफताकय अऩना आत्भोद्धाय कयना चाहशए। अगय आऩके वऩता भशायाजश्री स्लगय भईऄ न मवधाय गमे शोते तो शभ रोग उनके वाथ लानप्रस्थ जीलन बफताने अयण्म भईऄ गमे शोते। अफ शभ रोगों को अकेरे ककवी ळाॊत, ननजयर,

Page 80: Samarthya srot

ऩवलत्र स्थान भईऄ, इव वॊवाय की भोश-भामा वे दयू, कुटुम्फ-ऩरयलाय के आकऴयणों वे दयू, ळुद्ध वान्त्त्लक स्थान भईऄ जाना शै।

शे याभ ! जील अऩन-ेअऩने कभय वे, वॊकल्ऩों वे फॉधकय वॊवाय भईऄ क्रीडा कयता शै औय आऩकी भामा ऐवा प्रतीत कयाने रगती शै कक 'इतना शो जाम तो ळाॊनत.... इतना शो जाम तो ळाॊनत.....' ऐवा कयते-कयते कार उवे कफ अऩना ग्राव फना रेता शै मश ऩता शी नशीॊ चरता शै। अत् ळीघ्रानतळीघ्र अऩना ऐहशक व्मलशाय व्मस्क फच्चों को वौंऩकय भनुष्म को अऩना उद्धाय कय रेना चाहशए।"

कौळल्माजी ने सान एलॊ लैयानमऩूणय फातईऄ कशीॊ। श्रीयाभचॊद्रजी को भाता कौळल्मा, वुमभत्रा औय कैकेमी को एकान्तलाव भईऄ बेजना ऩडा।

कौळल्माजी अमोध्मा की याजभाता थीॊ, बगलान श्रीयाभ की भाता थीॊ। अऩने वफ ऩुत्र आनॊद देने लारे एलॊ आसाऩारक थे। ऩुत्रलधएुॉ बी वेलाबाली, प्रेभऩूणय एलॊ वुख देने लारी थीॊ। नौकय-चाकय बी तत्ऩयता वे चाकयी कयने लारी थे। ऐवा कोई दनु्माली वुख मा दनु्माली लैबल न था कक जो कौळल्माजी को अप्राप्म शो। मश वफ शोने ऩय बी, आसाऩारक ऩुत्र, ऩुत्रलधएुॉ एलॊ ऩरयलाय तथा याज्म के भोश को ककनाये यखकय ले वुमभत्रा औय कैकेमी के वाथ तऩस्मा कयने के मरए लनगभन कयती शैं, याभयाज्म छोडकय आत्भयाज्म भईऄ जाती शैं।

आऩके ऩाव क्मा शै ? फड-ेफड ेचक्रलती याजा, वम्राट बी अऩना वफ कुछ छोडकय वलेद्वय ऩयभात्भा के याज्म की औय प्रमाण कयते शैं। आऩके ऩाव जो भकान-दकुान, घय-ऩरयलाय, ऩद-प्रनतद्षा, व्माऩाय-धॊधा शै लश उनकी तुरना भईऄ कुछ बी नशीॊ शै।

आऩ भाता शो मा वऩता, बाई शो मा फशन, मश वफ वॊफॊध आऩके देश के वॊफॊध शैं। लास्तल आऩ अऩने उद्धायक फनने के मरए जफ तक तत्ऩय नशीॊ फनोगे तफ तक मे वॊफॊध, व्मलवाम आऩको फाॉधते शी यशईऄगे। गुजयाती बि कवल अखाजी ने ठीक शी कशा शै्

अखो कशे अॊधायो कूलो, झगडो भटाडी कोई न भूॊओ। जगत का वफ ननऩटाकय, आज तक कोई ळाॊनत वे भया नशीॊ शै। 'वफ ननऩटाकय, वफ

व्मलन्स्थत कयके, अनुकरता कयके कपय बजन कयईऄगे.....' कुछ रोगों को ऐवा भ्रभ शोता शै। व्मलस्था कयके, अनुकूरता जुटाकय कपय बजन कयने का इन्तजाय नशीॊ कयना चाहशए। ळीघ्र शी वाधन-बजन भईऄ रग जाना चाहशए। अनुकूरता औय व्मलस्था तो शोती यशेगी। ज्मों-ज्मों बजन का प्रबाल फढेगा त्मों-त्मों अलयोध, वलघ्न दयू शोते जाएॉगे। ईद्वय के भागय भईऄ आगे फढने की अनुकूरता फनती जाएगी।

एक ईद्वय शी वाय शै औय लश अन्तमायभी आऩकी आत्भा शै। फाशय के ळोयगुर एलॊ इन्न्द्रमों के आकऴयणों वे फुवद्ध स्थरू शो गई शै। एकान्तलाव, इन्न्द्रमों को अल्ऩ बोजन, भौन, ब्रह्मवूत्र एलॊ उऩननऴदों का अलरोकन-अध्ममन कयके फुवद्ध को वूक्ष्भ फनाकय, ब्रह्मलेत्ता गुरूओॊ की कृऩा ऩचाकय, भतृ्मु के आने वे ऩूलय अऩनी अभयता का वाषात्काय कय रेना चाहशए।

Page 81: Samarthya srot

बगलान श्रीकृष्ण 70 वार की उम्र भईऄ घोय अॊचगयव ऋवऴ के आश्रभ भईऄ एकान्त भईऄ लैयानमऩूणय जीलन जीने के मरए ठशये थे। उऩननऴदों के गशन अध्ममन एलॊ वलयिता वे वाभर्थमय एलॊ तेजन्स्लता फढती शै। श्रीकृष्ण ने 13 लऴय वलयिता भईऄ बफतामे थे ऐवी कथा छाॊदोनम उऩननऴद भईऄ आती शै।

यभण भशवऴय ने बी अरूणाचरभ ्की एकान्त गुपा भईऄ कई लऴय बफतामे थे। लधयभान भशालीय फने औय मवद्धाथय गौतभ फुद्ध फने उवके ऩीछे बी लऴों का एकान्त, चचन्तन एलॊ भौन कायणबूत शै।

आत्भयाज्म भईऄ प्रलेळ कयना शै ? बलफॊधन वे अऩने को छुडाना शै ? ....तो रग जाओ। आगे-ऩीछे की ज्मादा चचन्ता भत कयो। फव, एक ईद्वय शी वत्म शै। उवके मरए प्राण तक अऩयण कयने की तत्ऩयता शोगी तो लश प्राणेद्वय आऩके प्राण के फदरे भईऄ कदभ-कदभ ऩय आऩके वाथ यशईऄगे।

अन्म तुच्छ वलचायो को आने शी न दो। 'फव, भुझ ेतो ऩयभात्भप्रानद्ऱ कयना शै.... कयना शै.... कयना शी शै।' हदन भईऄ ऩाॉच-दव फाय इन्शीॊ वलचायों को घूॉटते यशो। फर शी जीलन शै। दफुयरता शी भतृ्मु शै। दफुयर वलचाय को ननकार दो। बूतकार की गल्ती को कपय वे न शोने दो। उवे माद कयके अऩने को दफुयर बी भत फनाओ।

याबत्र को वोते वभम शभेळा ऊॉ च ेस्लय भईऄ ॐकाय का जऩ कयके अऩनी आन्त्भक ळाॊनत का प्रबाल अऩने योभ-योभ भईऄ बय दो। प्रबातकार भईऄ लशी उभदा वलचाय आऩके चचत्त भईऄ स्पुरयत शोगा। ळाॊत बाल वे अऩने चतैन्मस्लरूऩ अन्तमायभी ईद्वय को स्नेश कयो। हदन भईऄ जो कुछ बी ककमा शै उव ऩय भानमवक दृवद्शऩात कयो औय वाथ-शी-वाथ बैमा ! ऐवा वकल्ऩ कयो कक् "आज जो कुछ बी करूॉ गा लश ईद्वय की प्रानद्ऱ के मरए शी करूॉ गा। अशॊकाय फढाने के मरए अथला ककवी को नीचा हदखाने के मरए अथला भोश-भामा के ऩाळ भईऄ पॉ वने के मरए भेयी प्रलवृत्त नशीॊ शोगी। वप्रमतभ को प्रवन्न कयने के शेतु वे शी ऩरयलाय की, कुटुम्फीजनों की, स्नेशीजनो की भैं वेल करूॉ गा। वुख रेने की नशीॊ, वुख देने की दृवद्श फनाऊॉ गा।'

अनुक्रभ

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

वुख का स्रोत अऩने आऩ भईऄ फाधाएॉ ऩैयों तरे कुचरने की चीज शै। प्रेभ औय आनन्द हदर वे छरकाने की चीज शै। शे

प्रेभस्लरूऩ ! शे आनन्दस्लरूऩ ! शे वुखस्लरूऩ भानल ! वुख, प्रेभ औय आनन्द के मरए अऩने को फाशय बटका यशा शै ? झुरवा यशा शै ? खऩा यशा शै ? तऩा यशा शै ? ठशय.... रूक जा। अऩने आऩभईऄ देख ! तू ककतना भधयु शै..... ऩवलत्र शै.... प्माया शै !

Page 82: Samarthya srot

तू जफ घय आता शै तो कुत्ता तुझ ेदेखकय प्माय कयता शै.... ऩूॉछ हशराता शै..... स्नेश कयता शै। भक्खी औय भच्छय को तुझवे यव मभरता शै। तेये स्नेहशमों को तुझ ेदेखकय यव मभरता शै। ......औय तू भाये यव के वलऴमों की, वलकायों की आॉधी भईऄ दय-दय की ठोकयईऄ खा यशा शै। अऩने यवस्लरूऩ को जान..... अऩने प्रेभस्लबाल को जान।

भधयु शरयकीतयन के द्राया, शरयध्मान के द्राया अऩने आनन्दस्लरूऩ को वॉबार। तू वुख का स्रोत शै..... प्रेभ का झयना शै.... आनन्द का उदगभस्थान तू स्लमॊ शै। उठ। हशम्भत कय। अऩनी वप्रमता जगा औय फाॉटना ळुरू कय। अऩना आनन्द, अऩना आत्भ-उल्शाव, अऩना स्लतॊत्र वुख प्रकटाता जा, बफखेयता जा। वुख, प्रेभ औय भान का दाता फन, मबखायी भत फन। ळाफाळ लीय ! तेया धभय केलर भॊहदय-भन्स्जद भईऄ वभाद्ऱ नशीॊ शोता। रेते देते, व्मलशाय कयत,े मभरते-जुरते, खाते-ऩीते, वोते-जागते अऩने अवरी धभय को प्रकटाता जा। अनेकों भईऄ एक को ननशायता जा। खण्डों भईऄ अऩने अखण्ड आधाय को ऩशचानता जा। तुझवे अभयता औय वुख दयू नशीॊ।

शे भानल ! गोता भाय। अऩनी भहशभा ऩशचान। अऩने को ऩशचानने वे तू तो ननशार शो शी जाएगा, तेयी भीठी ननगाशों वे हदळाएॉ बी ननशार शो जाएॉगी। अऩने ळीरस्लबाल को देख। मश बी देख.... लश बी देख..... देखत-देखत ऐवा देख..... मभट जाम धोखा यश जाम एक।

अऩने स्लबाल को जानने के मरए कबी-कबी एकान्त औय ऩवलत्र जगश भईऄ ऩशुॉच जा। कबी कभये भईऄ अकेरा फैठ. अऩने आनन्द को जगा। अऩनी वप्रमता को जगा। ब्रह्मयव फाॉटने लारे वॊतों के वान्न्नध्म भईऄ फैठ। वत्म भईऄ गोता भाय। फाह्य वुख के ऩीछे न्जन्दगी खऩ गई रेककन लश नशीॊ मभरा। अफ तेये वुख औय आनन्दस्लबाल को ऩशचान। इतना शी ऩमायद्ऱ शै। जल्दी कय... देय भत कय। देख, वभम फीता जा यशा शै।

ऩूज्मऩाद वॊत श्री आवायाभ जी फाऩ ू

अनुक्रभ

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ