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ि िवदे Videha িবেদহ िवदेह ᮧथम मैिथली पािक ई पिका Videha Ist Maithili Fortnightly e Magazine िवह õथम िथली पािक पिñका १५ जनवरी २००९ (वष २ मास १३ अंक २६) http://www.videha.co.in / मानुषीिमह संकृताम् 1 िवह २६ अ ंक १५ जनवरी २००९ (वष मास १३ अ ंक २६) एिह अिछ:- एिह अ ंक िवष:- ख ुलल द ृिस ँ निह भऽ रहल अिछ समीा : राजहन झा भाइ-साब राजहन झा ँ õध सķान २००९ जएतिħ। एिह अवसरपर विर पñकार िवनीत उbल नकासँ आइ-धिरक सभसँ साा^ार लिħ। चना: िवहक िथली-ɔजी ɔजी िथली (टरƨटपर पिहल सच -िडTनरी) एम.एस. एस.Ùू.एल. सव आधािरत -Based on ms -sql ser ver Mai thi l i -Engl i sh and Engl i sh-Mai thi l i Di ct i onar y .िवहक भाषापाक- रचनाखन Łंभ। .संपादकीय स ंश

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  • िव दे ह िवदेह Videha িবেদহ िवदहे थम मैिथली पािक्षक ई पि का Videha Ist Maithili Fortnightly e Magazine िवदेह थम मैिथली पािक्षक ई पि का १५ जनवरी २००९ (वषर्

    २ मास १३ अकं २६) http://www.videha.co.in/ मानषुीिमह संस्कृताम ्

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    िवदेह २६ म अकं १५ जनवरी २००९ (वष र् २ मास १३ अकं २६)

    एिह अकंमे अिछ:-

    एिह अकंमे िवशेष:-

    खलुल दिृ स ँनिह भऽ रहल अिछ समीक्षा : राजमोहन झा भाइ-साहेब राजमोहन झाकँे बोध स ान २००९ देल जएति । एिह अवसरपर विर प कार िवनीत उ ल हनुकास ँआइ-धिरक सभस ँपैघ

    साक्षा ार लेलि ।

    सचूना: िवदेहक मैिथली-अं जी आ अं जी मैिथली कोष (इटंर टपर पिहल बेर सच र्-िड नरी) एम.एस. एस. ू.एल. सव र्र आधािरत -Based on ms -sql ser ver Mai t hi l i -Engl i sh and Engl i sh-Mai t hi l i Di ct i onar y .िवदेहक भाषापाक- रचनालेखन भंमे।

    १.सपंादकीय सदंेश

  • िव दे ह िवदेह Videha িবেদহ िवदहे थम मैिथली पािक्षक ई पि का Videha Ist Maithili Fortnightly e Magazine िवदेह थम मैिथली पािक्षक ई पि का १५ जनवरी २००९ (वषर्

    २ मास १३ अकं २६) http://www.videha.co.in/ मानषुीिमह संस्कृताम ्

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    २.ग

    २.१. १. एकाकी-सुभाषच यादव २. कबई-इ ा अनलकातं (कथा)

    २.२. ामसु र शिश- ाजंिलआह उमा ! वाह उमा !

    २.३.भाग रौ (सपंणू र् मैिथली नाटक)-लेिखका - िवभा रानी

    २.४. िरपोता र्ज-नवे ु कुमार झा

    २.५. राजमोहन झा ( बोध स ान २००९) स ँिवनीत उ लक साक्षा ार

    २.६. सुशातं झा-हमर सपना केर िमिथला

    ३.प ३.१. धीरे मिष र्

    ३.२. ी गगंेश गुजंनक- राधा (आठम खेप)

    ३.३. कुमार म ज क प

    ३.४. ोित

    ३.५. पकंज पराशर

    ३.६. पेश झा " ोँथ"

    ३.७.िबनीत ठाकुर

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    ४. बालाना ंकृते- ोित झा चौधरी

    ५. भाषापाक रचना-लेखन

    ६. VI DEHA FOR NON RESI DENT MAI THI LS Fest i val s of Mi t hi l a( dat e-l i st )-

    ६ 1. .Or i gi nal Mai t hi l i shor t st or y of Devshankar Naveen t r ansl at ed i nt o Engl i sh by GAJENDRA THAKUR

    ७. VI DEHA MAI THI LI SAMSKRI T EDUCATI ON (cont d.)

    िवदेह ई-पि काक सभटा पुरान अकं ( ितरहतुा आ देवनागरी दनु ूिलिपमे ) पी.डी.एफ. डाउनलोडक लेल नीचाकँ िलकंपर उपल अिछ। Al l t he ol d i ssues of Vi deha e j our nal i n Ti r hut a and Devanagar i ( ver si ons bot h ar e avai l abl e f or pdf downl oad at t he ) f ol l owi ng l i nk .

    िवदेह ई-पि काक सभटा पुरान अकं ितरहतुा आ देवनागरी दनु ू पमे

    Vi deha e j our nal 's al l ol d i ssues i n Ti r hut a and Devanagar i ver si o ns

    १.सपंादकीय

    ि य पाठकगण,

  • िव दे ह िवदेह Videha িবেদহ िवदहे थम मैिथली पािक्षक ई पि का Videha Ist Maithili Fortnightly e Magazine िवदेह थम मैिथली पािक्षक ई पि का १५ जनवरी २००९ (वषर्

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    िवदेहक नव अकं ई पिब्लश भऽ गेल अिछ। एिह हेतु ल◌ॉग ऑन क ht t p wwwvi deha co i n:// . . . |

    रामा य झा “रामरगं” िस अिभनव भातख े जीक म ृ ु रामा य झा “रामरगं” िस अिभनव भातख े जीक म ृ ु- िह ु ानी सगंीतक गायक, िशक्षक आ वा कार/ शास् कार ी रामा झा “रामरगं” जीक म ृ ु १ जनवरी २००९ कँे कोलकातामे भऽ गेलि । ओ ८० बरखक छलाह। सगंीत नाटक अकादेमी, नई िद ीक २००५ मे पुर ार ा ी रामरगं कँे य.ूपी. सगंीत नाटकक फेलोिशप सेहो दान कएल गेल छलि । ी रामा य झा “रामरगं”क ज १९२८ ई. मे मधबुनी िजलाक खजरुा गाममे भेलि । िहनका सगंीतक ारि क िशक्षा अपन िपता सुखदेव झा स ँभेटलि । बादमे ओ वाराणसीमे नाटक क नीमे बहतु िदन धिर सगंीत देलि फेर प ंभोलाराम भ स ँएलाहाबादमे सगंीतक िशक्षा ा कएलि । एलाहाबाद िव िव ालयक सगंीत िवभागमे ई ोफेसर आ हेड रहलाह। रामरगं ढेर रास खयाल रचना बनओलि आ कतेक रास नव रागक िनमा र्ण कएलि । िहनकर पाचँ ख मे नव आ पुरान रागक वण र्न आ समालोचना “अिभनव गीता िल” िहनक ब िसि दान कएलकि आ ई “अिभनव भातख े” नामस ँ िस भऽ गेलाह। अपन ुपद आ खयाल रचनाक आधारपर ी “रामरगं” ह मानकँे समिप र्त “सगंीत रामायण”क रचना सेहो कएलि । मैिथलीमे “िवदेह” ई पि का लेल पठाओल िहनकर “राग िव ापित क ाण”, “राग तीरभुि ”, “राग वैदेही भैरव” आिद नव राग आ ओिहपर आधािरत मैिथली भाषाक रचना पाठकक मोनमे एख अिछ। हनुकर रण: एिह पिं क लेखकक सगं वाता र्लापमे रामरगं जी अपन जीवनक सम अ भव किह सु रहिथ। रामरगं जीकँे हजारो रचना

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    कंठ मोन छलि मुदा बादमे हनुकर हाथ थरथड़◌ाइत छलि आ ओ वाता र्क ममे कहनिहओ छलाह जे- के सीखत आ के िलखत।

    राजमोहन झा कँे एिह बख र्क बोध स ान

    ी राजमोहन झा कँे एिह बख र्क बोध स ान देल जएति । मैिथली सािह सभस ँ िति त स ानमे एक लाख भा. . देल जाइत छैक। ी राजमोहन झाक जीक ज २७ अग १९३४ कँे । िशक्षा- म िवज्ञानमे एम.ए. । कृित : “एक आिद : एक अ ” (१९६५) , “झठू साचँ” (१९७२) , “एक टा तेसर” (१९८४) , “आइ काि परस”ू (१९९३) , “अ ल ” (१९९६) कथा स ं ह आ “गल्तीनामा” (१९८३) , “िट णी ािद” (१९९२) , “भनिह िव ापित” (१९९२) , आलोचना क िनब स ं ह कािशत। ायः तीन गोट पोथी जोगर लेख , स ं रण , िट णी आिद प -पि कामे िछइआयल छि । “आइ काि परस”ू कथा स ं हपर १९९६ क सािह अकादेमी पुर ारक अलावा वैदेही पुर ार एव ंकथा एवाडर् ा । मैिथली पि का “आर ” केर स ादक । हनुकर रण : २४-२५ साल पिहलका हनुकर सुनाएल ृितक ृित मोन पड़◌ैत अिछ। राजमोहन जी अपन िपता हिरमोहन झा जीक ृित सुना रहल छलाह। हिरमोहन बाब ूअपन गाम बािजतपुर जाऽ रहल छलाह। बसमे एक गोटे पुछलिख , - “अहा ँडी.पी. मे कतए जाऽ रहल छी”। हिरमोहन बाबकँूे डी.पी. केर फलु फ◌ॉम र् निह बझुल रहि से पुछलिख - “डी.पी. मा की”। ओ स न उ र देलिख - “डी.पी. मा दगुा र्पजूा”। हिरमोहन बाब ूअब उ र देलिख - “हम डी.पी. मे बी.पी. जाऽ रहल छी”।

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    आब ओ स न केलिख - “बी.पी. मा की”? हिरमोहन बाब ूउ र देलिख - “बािजतपुर”। बोध नारायण िसहं 1924( -2005) क ृितमे देल जाएबला बोध स ान ाि फाउंडेशन ारा हनुका जीवन कालिहमे 2004 स ँशु कएल गेल । एिह पुर ारकँे ा केिनहार छिथ: बोध स ान 2004- ीमित िलली रे 1933( - ) बोध स ान 2005- ी महे मलिंगया 1946( - ) बोध स ान 2006- ी गोिव झा 1923( - ) बोध स ान 2007- ी मायान िम 1934( - ) बोध स ान 2008- ी मोहन भार ाज 1943( - ) बोध स ान 2009- ी राजमोहन झा 1934( - )

    ी म ं र झाकँे एिह बेरक सािह अकादमी पुर ार

    ी म ं र झाकँे एिह बेरक मैिथलीक सािह अकादमी पुर ार देबाक घोषणा भेल अिछ। ी म ं र झा भारतीय शासिनक सेवास ँअवकाश हण कए छिथ। िहनकर ज ६ जनवरी १९४४ ई. ाम-लालगजं, िजला-मधबुनीमे भेलि । िहनकर कािशत कृित छि : खािध, अि चनहार गाम, बहसल राितक इजोत (किवता स ं ह); एक बटे द ू(कथा स ं ह), ओझा लेखे गाम बताह (लिलत िनब )। मैिथली कथा स ं हक िह ी अ वाद “कंुडली” नामस ँसेहो कािशत छि ।

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    िद फू पैराडाइज अं जीमे लिलत िनब क स ं ह छि । "कतेक डािर पर" पोथी िहनक आ कथा छि । सािह अकादेमी पुर ार- मैिथली १९६६- यशोधर झा (िमिथला वैभव, दश र्न) १९६८- या ी (प हीन न गाछ, प ) १९६९- उपे नाथ झा “ ास” (द ूप , उप ास) १९७०- काशीका िम “मधपु” (राधा िवरह, महाका ) १९७१- सुरे झा “सुमन” (पयि नी, प ) १९७३- जिकशोर वमा र् “मिणप ” ( का बिनजारा, उप ास) १९७५- िगरी मोहन िम (िकछु देखल िकछु सुनल, स ं रण) १९७६- वै नाथ मि क “िवध ु” (सीतायन, महाका ) १९७७- राजे र झा (अवह : उ व ओ िवकास, समालोचना) १९७८- उपे ठाकुर “मोहन” (बािज उठल मुरली, प ) १९७९- त नाथ झा (कृ चिरत, महाका ) १९८०- सुधाशंु शेखर चौधरी (ई बतहा ससंार, उप ास) १९८१- माकर् ेय वासी (अगस् ाियनी, महाका ) १९८२- िलली रे (मरीिचका, उप ास) १९८३- च नाथ िम “अमर” (मैिथली प कािरताक इितहास) १९८४- आरसी साद िसहं (सयू र्मुखी, प ) १९८५- हिरमोहन झा (जीवन या ा, आ कथा) १९८६- सुभ झा (नाितक प क उ र, िनब ) १९८७- उमानाथ झा (अतीत, कथा) १९८८- मायान िम (म ं पु , उप ास) १९८९- का ीनाथ झा “िकरण” (पराशर, महाका ) १९९०- भास कुमार चौधरी ( भासक कथा, कथा) १९९१- रामदेव झा (पिसझैत पाथर, एकाकंी)

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    १९९२- भीमनाथ झा (िविवधा, िनब ) १९९३- गोिव झा (सामाक पौती, कथा) १९९४- गगंेश गुजंन (उिचतव ा, कथा) १९९५- जयम िम (किवता कुसुमाजंिल, प ) १९९६- राजमोहन झा (आइ काि परस)ू १९९७- कीितर् नारायण िम ( होइत शाि ूप, प ) १९९८- जीवका (तकै अिछ िचड़◌ै, प ) १९९९- साकेतान (गणनायक, कथा) २०००- रमान रे (कतेक रास बात, प ) २००१- बबआुजी झा “अज्ञात” ( ितज्ञा पा व, महाका ) २००२- सोमदेव (सह मुखी चौक पर, प ) २००३- नीरजा रे (ऋत रा, कथा) २००४- च भा िसहं (शकु ला, महाका ) २००५- िववेकान ठाकुर (चानन घन गिछया, प ) २००६- िवभूित आन (काठ, कथा) २००७- दीप िबहारी (सरोकार, कथा २००८- म र झा (कतेक डािर पर, आ कथा)) सािह अकादेमी मैिथली अ वाद पुर ार १९९२- शलैे मोहन झा (शरतच ि आ कलाकार-सुबोधच सेन, अं जी) १९९३- गोिव झा ( पाली सािह क इितहास- कुमार धान, अं जी) १९९४- रामदेव झा (सगाइ- रािज र िसहं बेदी, उद ू र्) १९९५- सुरे झा “सुमन” (रवी नाटकावली- रवी नाथ टैगोर, बा ं ा) १९९६- फजलुर रहमान हासमी (अबलुकलाम आजाद- अ ुलकवी देसनवी, उद ू र्)

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    १९९७- नवीन चौधरी (मािट मगंल- िशवराम कारतं, क ड) १९९८- च नाथ िम “अमर” (परशुरामक बीछल बेरायल कथा- राजशेखर बसु, बा ं ा) १९९९- मुरारी मधसुदून ठाकुर (आरो िनकेतन- िवभूित भूषण, बा ं ा) २०००- ड◌ॉ. अमरेश पाठक, (तमस- भी साहनी, िह ी) २००१- सुरे र झा (अ िरक्षमे िव ोट- जय िव ु नालीर्कर, मराठी) २००२- ड◌ॉ. बोध नारायण िसहं (पतझडक र- कुतुर्ल ऐन हैदर, उद ू र्) २००३- उपे दोषी (कथा किहनी- म ज दास, उड़ि◌या) २००४- ड◌ॉ. फु कुमार िसहं “मौन” ( मच की कहानी- मच , िह ी) २००५- ड◌ॉ. योगान झा (िबहारक लोककथा- पी.सी.राय चौधरी, अं जी) २००६- राजन झा (कालबेला- समरेश मजमुदार, बा ं ा) २००७- अन िबहारी लाल दास “इ ु” (यु आ यो ा-अगम िसहं िगिर, पाली)

    सगंिह "िवदेह" कँे एखन धिर (१ जनवरी २००८ स ँ१४ जनवरी २००८) ७१ देशक ६९२ ठामस ँ१,४१,००९ बेर देखल गेल अिछ (गगूल ए लेिट डाटा)- ध वाद पाठकगण।

    अप क रचना आ िति याक तीक्षामे।

    गजे ठाकुर, नई िद ी। फोन-09911382078

    ggaj endr a vi deha co i n@ . . ggaj endr a yahoo co i n@ . .

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    २.सदंेश

    १. ी ो. उदय नारायण िसहं "निचकेता"- जे काज अहा ँकए रहल छी तकर चरचा एक िदन मैिथली भाषाक इितहासमे होएत। आन भए रहल अिछ, ई जािन कए जे एतेक गोट मैिथल "िवदेह" ई जन र्लकँे पढ़ि◌ रहल छिथ।

    २. ी ड◌ॉ. गगंेश गुजंन- एिह िवदेह-कम र्मे लािग रहल अहाकँ स ेदनशील मन, मैिथलीक ित समिप र्त मेहनितक अमतृ रगं, इितहास मे एक टा िविश फराक अ ाय आरभं करत, हमरा िव ास अिछ। अशेष शुभकामना आ बधाइक स , स ेह|

    ३. ी रामा य झा "रामरगं"- "अपना" िमिथलास ँसबंिंधत...िवषय व ुस ँअवगत भेलह ुँ।...शेष सभ कुशल अिछ।

    ४. ी जे ि पाठी, सािह अकादमी- इटंर ट पर थम मैिथली पािक्षक पि का "िवदेह" केर लेल बाधाई आऽ शुभकामना ीकार क ।

    ५. ी फु कुमार िसहं "मौन"- थम मैिथली पािक्षक पि का "िवदेह" क काशनक समाचार जािन क क चिकत मुदा बेसी आ ािदत भेलह ुँ। कालच कँे पकड़ि◌ जािह दरूदिृ क पिरचय देलह ुँ , ओिह लेल हमर मगंलकामना।

    ६. ी ड◌ॉ. िशव साद यादव- ई जािन अपार हष र् भए रहल अिछ, जे नव सचूना-ाि क मे मैिथली प कािरताकँे वेश िदअएबाक साहिसक कदम उठाओल अिछ। प कािरतामे एिह कारक नव योगक हम ागत करैत छी, सगंिह "िवदेह"क सफलताक शुभकामना।

    ७. ी आ ाचरण झा- को प -पि काक काशन- ताहूमे मैिथली पि काक काशनमे के कतेक सहयोग करताह- ई तऽ भिव कहत। ई हमर ८८ वष र्मे ७५ वष र्क अ भव रहल। एतेक पैघ महान यज्ञमे हमर ापणू र् आहिुत ा होयत- यावत ठीक-ठाक छी/ रहब।

    ८. ी िवजय ठाकुर, िमिशगन िव िव ालय- "िवदेह" पि काक अकं देखलह ुँ , स ूण र् टीम बधाईक पा अिछ। पि काक मगंल भिव हेतु हमर शुभकामना ीकार कएल जाओ।

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    ९. ी सुभाषच यादव- ई-पि का ’िवदेह’ क बारेमे जािन स ता भेल। ’िवदेह’ िनर र प िवत-पुि त हो आऽ चतुिद र्क अपन सुगधं पसारय से कामना अिछ।

    १०. ी मैिथलीपु दीप- ई-पि का ’िवदेह’ केर सफलताक भगवतीस ँकामना। हमर पणू र् सहयोग रहत।

    ११.ड◌ॉ. ी भीमनाथ झा- ’िवदेह’ इ टर ट पर अिछ तँे ’िवदेह’ नाम उिचत आर कतेक पे ँएकर िववरण भए सकैत अिछ। आइ-काि मोनमे उ ेग रहैत अिछ, मुदा शी पणू र् सहयोग देब।

    १२. ी रामभरोस कापड़ि◌ मर, जनकपुरधाम- "िवदेह" ऑनलाइन देिख रहल छी। मैिथलीकँे अ रा र्ष् ीय जगतमे पह ुँचेलह ुँ तकरा लेल हािद र्क बधाई। िमिथला र सभक सकंलन अपवू र्। पालोक सहयोग भेटत से िव ास करी।

    १३. ी राजन न लालदास- ’िवदेह’ ई-पि काक मा मस ँबड नीक काज कए रहल छी, नाितक एिहठाम देखलह ुँ। एकर वािष र्क अ ंक जखन ि ट िनकालब तँ हमरा पठायब। कलक ामे बहतु गोटेकँे हम साइटक पता िलखाए दे िछयि । मोन तँ होइत अिछ जे िद ी आिब कए आशीवा र्द दैतह ुँ , मुदा उमर आब बेशी भए गेल। शुभकामना देश-िवदेशक मैिथलकँे जोडबाक लेल।

    १४. ड◌ॉ. ी मशकंर िसहं- अहा ँमैिथलीमे इटंर टपर पिहल पि का "िवदेह" कािशत कए अपन अ ुत मा भाषा रागक पिरचय देल अिछ, अहाकँ िनः ाथ र् मा भाषा रागस ँ िरत छी, एकर िनिम जे हमर सेवाक योजन हो, तँ सिूचत करी। इटंर टपर आ ोपातं पि का देखल, मन फिु त भ' गेल।

    २.ग

    २.१. १. एकाकी-सुभाषच यादव २. कबई-इ ा अनलकातं (कथा)

    २.२. ामसु र शिश- ाजंिलआह उमा ! वाह उमा !

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    २.३.भाग रौ (सपंणू र् मैिथली नाटक)-लेिखका - िवभा रानी

    २.४. िरपोता र्ज-नवे ु कुमार झा

    २.५. राजमोहन झा ( बोध स ान २००९) स ँिवनीत उ लक साक्षा ार

    २.६. सुशातं झा-हमर सपना केर िमिथला

    २.१. १. एकाकी-सुभाषच यादव २. कबई-इ ा अनलकातं (कथा)

    एकाकी

    आब को चीजक को ठेकान निह रहलै । कुसेसर सोचैत रहय जे डा रराउ पर एतै तऽ अ तालक एिह नरकस ँफारकती लऽ कऽ ओ घर चल जायत । भोरे स ँओकर मन खनहन बझुाइत रहै । ओकरा दोसरे सन बझुाइत रहै जेनाआब ओ नीके भऽ गेल हअुय । भतीर् भेल छल तखन बहतु तेज बोखार रहै आहोइ जे निह बचब । जाधिर बेसोह रहल, घरनी रहलै । बोखार क उतरलै तऽ चल गेिल । घर पर छोट-छोट ब ा रहै ।

    अ तालमे अटकब कुसेसरकँे आब नीक निह लागैत रहै । घर जेबाक आसमेिबछौन पर पडल-पडल परूा िदन बीत गेलै । साझँ पड़ि◌ गेलै तइयो डा र निह एलै । ओकरा बझुेलै जे आब आइयो ओकरा निह जा भेलै । ओकर मनभारी आ उदास भऽ गेलै ।

    भादोक ाह अ ार पसिर गेलै । सब चीज रह मय आ भयाओन बझुाय लगलै । एकटा रोगी निह जािन किहया स ँबेहोस पडल छलै । ओकरा पािन चढ़◌ैत रहै । एकटा बढू, जकरा खाली हाड़◌े टा बचल रहै, अथबल भेल पडल छलै ।पता निह ओकरा कोन रोग रहै ।

    घटंी भेलै । वाडर्क मँुहथिर पर रोगी सभक खाइक एलै । एकटा असक आ रोगीदािल लेबाक खाितर कुसेसर स ँिगलास मािँग कऽ लऽ गेलै । सगरे ततेक िघनायलआ गधं टटुैत रहै जे कुसेसरकँे अ तालमे मन निह बस ै। ओ खाइक निह लेलक

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    । िबछौन पर पडल रहल । ओकरा कमजोरी रहै । बेसी काल बैस डाडँ दखुाय लगै ।

    को चीज ो देखऽ वला निह छै । ओ घर गेल िक नरक मे पडल अिछ, तािहस ँककरा कोन मतलब छै । इएह सभ सोचैत ओ खौझंायल चल जाइत रहय िक तख एकटा िम एलै । िम कै ँदेिख ओकरा अतीव स ता भेलै । िम कैकबेर जेबा ले उठलै, लेिकन कुसेसर ओकरा रोिक लैत रहै । ओकरा होइ िम कजाइते जेना सभ चीज छूिट जेतै । बैसल-बैसल िम अक भऽ गेलै । तखन िम क सगं ओहो िवदा भेल। सोचलक को दोकानमे िकछु खा-पी लेत आ ओतबा काल अ ताल स ँदरू रहत ।

    िम कँे िवदा कऽ कऽ जखन ओ दोकानस ँघरूल तऽ राितक एगारह बजैत रहै । सभ सिूत गेल छलै । द-ूतीन गोटय जागल रहै। मेघौन आ गुमकी कऽ देछलै । कुसेसर लोहाक पलगं कँे घीच कऽ िखडकीक बीचोबीच केलक । िबछौनठीक केलक । एतबे स ँओ थािक गेल आ ओकरा िपयास लािग गेलै। पािन दरूस ँआनय पड़◌ैत रहै । अ ार आ थाल-कीच मे ओतेक दरूस ँपािन आनब अबहू बझुाइतरहै । एिहठाम वाडर् मे ओ ककरा कहतै आ के आिन देतै। की करय-ओ सोचैत रहल । राित भिर िपयासल रिह जाय ? ओकरा बझुेलै जेना ओ एकदम असकर पड़ि◌ गेल हअुय।

    दोकान स ँजखन ओ घरूल रहय तऽ वाडर्मे ढिुकते ओकरा भेलै ओ बेकारे अ ताल मे रिह गेल । ओकरा तख चिल जेबाक चाही छल जखन साझँ कँे डा र राउपर निह एलै । अ तालमे रिह कऽ ओ की कऽ रहल अिछ । आब कोन बेमारी ओ ठीक कराओत ? डा रस ँदेखे िबना जँ ओ चिल जाइत तऽ की भऽ जइितऐक। ओ मिर थोड़◌े जाइत । ई सभ बात ओकरा पिह िकएक निह फरुेलै ? कुसेसर बहतु पछताय लागल ।

    ओकर घर डेढ कोस पर रहै ।आब एतेक राितकँे घर जेबाक समय निह रहलै ।िर ो निह भेटतै ।

    कुसेसर कछमछ कऽ रहल छल । म र कल निह पडय दैत रहै । पािन रिहतैक तऽ िन वला गोटी खा कऽ ओ सिूत रहैत । द-ूतीन बेर मँुह-तँुह झािँप ओ सुतबाक कोिशश केलक । लेिकन गुमार लागऽ लगैक आ होइ जेना दम औनाय जायत ।

    कुसेसर वाडर्स ँ बाहर िनकिल आयल । पािन-थाल टपैत कल पर गेल । पािन पीलक । फेर घमूल । लेिकन वाडर् िदस घ ुिमते ओकर मन भारी भऽ गेलै । ओ

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    ठमिक गेल । चा कात िहयासलक । दरू एकटा िर ा अभरलै । कुसेसर बड़ ी काल धिर ठाढ भेल सोचैत रहल । द ूबिज गेल हेतै । तीन घटंामे भोर भऽजेतै । आब एतबा काल ले की हेतै । ओकरा िबलिम जेबाक चाही । ओ वाडर्िदस घमूल । लेिकन ओकरा बझुेलै जेना ो पयर छािन ले हो । घर जेबाके छै तऽ िबलिम कऽ की करत ?

    ओ िर ा लग पह ुँचल । िर ावला िर े पर घोकंड़ ी लगे िनसभेर सतूल छलै । िहला—डोला कऽ जगेलक, लेिकन जेबा ले तैयार निह भेलै। ओकरा भेलै पयरेचल जाय । सामान काि आिब कऽ ो लऽ जेतै । एिह अ ार गु राितमे असकर एतेक दरू जायब ओकरा भयाओन बझुेलै । ओ दिुवधामे पडल बढल चलजाइत छल, लेिकन बहतु धीरे –धीरे जेना टहिल रहल हो । ओकरा अख िव ासनिह रहै जे ओ ठीके घर चल जायत । सडक कातक को —को दोकानमे िढबरी बरैत रहै । दरूस ँबझुाइ जेना ओ सभ खजूल हो । लेिकन सभ िनसबद आ बेजान रहै।

    अचानक पािन िझिसआइ लागलै । चेहरा पर पड़◌ैत फूही ओकरा बहतु शीतल आ सुखद बझुेलै । भेलै एकदम िभजैत चल जाय । लेिकन भीज गेला पर सदीर् भऽ जेतै आ ओ फेर दिुखत पड़ि◌ जायत । ओ आपस वाडर् चिल आयल ।

    वाडर्मे िभनसरबाक िन ता छलै । पािन िझिसआइत रहै आ हवा िसहकैत रहै । एक-आध टा म र अख लागैत रहै । कुसेसर मड़ू ी गोिंत कऽ सुतबाक चे ा करऽ लागल । िन जेना अलोिपत भऽ गेल रहै।

    पता निह कते काल एना रहलै । ो कानब शु केलकै । कुसेसर अका तरहल । बझुाइत निह रहै आवाज कतऽ स ँआिब रहल छै । ो मि म रमे का त रहै । ओकर कानबमे तेहन वेदना छलै जे कुसेसर िवचिलत भऽ गेल ।जेना िखचंायल चल जा रहल हो तिहना िबछौन छोड़ि◌ आवाजक िदशामे ओ िवदा भऽ गेल । मि म रक कार बझुाइ जेना कतौ दरूमे ो कािन रहल हो। लेिकन ओ वाडर्क मँुहे लग छलै । एकटा अधेड स् ी का त रहै । मँुह-तँुह झािँप कऽ ओ िच पडिल छलै । देख स ँलगै जेना सतूल हो ।

    एिह स् ीकँे की भेल छै ? वाडर्क मँुहथिर पर ठाढ भेल कुसेसरकँे छगु ा भेलै । बड़◌ी कालक बाद ओिह बाटे जाइत आदमी कहलकै---ओकर घरवला मिर गेल छै । ओकर झापँल—तोपल लहास वाडर्क गेटे लग कुसेसरक बगलमे पडल छलै । ओिह रोगीकँे िदनमे एक बेर कुसेसर देख रहै । ओकर जजर्र शरीर कँे देिखतेकुसेसरकँे अपन िपता मोन पडल छलै ।

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    जखन ओ दोकान चल गेल रहय ओही बीच ओ मरल हेतै । कुसेसरकँे एकदम पतानिह चललै । एगारह बजे राितमे जखन ओ घरूल रहय तख लहासक बगले देगेल रहय, लेिकन ओकर ान निह गेलै । तख लहास झापँल रहै आ नीचामेधपूब ी जरैत रहै ।

    एना होइत छै । सोगमे लोग का त—का त सिूत रहैत अिछ आ िन टिुटते फेर कानय लगैत अिछ । ओिह स् ीक िवलाप एह रहै ।

    कुसेसर अवस आ उदास भेल ठाढ छल । पािनमे तीतल जड़◌ौन हवाक झोकं आिब रहल छलै । स् ीक िवलाप पािन—बनुी वला ओिह कारी ाह भदविरया राितकँे और भारी बना रहल छलै । स् ीक िवलाप कुसेसरक कोढंक भीतरी तहमे पैिस रहल छलै आ ओकरा भेलै जेना आब ओ फािट जेतै। ओ ओिहठामस ँहिट गेल । लेिकन अपन िबछौन धिर जाइत—जाइत ओकर बकु भािंग गेलै । ओ िबलखय लागल । फेर अपनाकँे स ारलक । चपु भेल । भोर भऽ रहल छलै आ ओकरा घर जेबाक रहै ।

    कथा

    कबइ-इ ा अनलकातं

    अग , १९९२

    ीका क दोकान मे सभ साझँ छोट-मोट महिफल जमैत छलै । जािहमे ओिह बीचलगातार तीन िदन धिर आरएल उफ र् रतन लाल सेहो, सझँकुा पहर बलुै लेल बहराय तँ, शािमल भ’ जाइ छल ।

    साल-द ूसाल पर आरएल जिहया किहया किहयो ए र अबै छल, एिह महिफलक शोभा बड़◌ेबाक अवसिर ओकरा ाय: भेिट जाइ छलै । एिह बेर क बेसी आिनयिमत छल । से एहू लेल जे एक तँ बेसी िदन पर आयल छल, दोसर सासुरक ि ित सेहो बदिल गेल छलै । दनु ू सारक बीच बाटँ-बखरा भ’ गेल छलै । करजाईन बजारक पुरना दोकान जािह मे रेिडयो-टीवी मर ितक काज होइ छलै जेठका ीका क फाटँ मे आयल छलै । छोटका मदन अपन नव आ भइलेक् ◌ॉिन क दोकान नवे िजला बनल शहर सुपौल मे शु कयलाक बाद सपिरवारओतिह रह लागल छल । करजाईन बजारक सटले गाम गोसपुर स ँमदनक स टूिट जका ँगेल छलै। साल मे द-ूएक बेर आम-कटहर आिक उपजाक िह ा लेव’ सन काज स ँअबैत रहै । ीका क पिरवार गामे छलै । ओ िन भोरे घर स ँदोकान

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    अबैत आ खबू राित कँे घर घरुैत ।

    इलाहाबाद मे बैिस गेल आरएल सन खानदानी दरभंिगया िबना योज एते दरूसासुर जाइवला कहा ँ! ई तँ ओकर सासुक अचानक गभंीर पे ँअसक पडब आ किनया ँ िवभाक फालतू िजदक कार ँ आब’ पडल रहै । ओना िवभाक िजदक मोकािबला क’ सकबा जोग बहाना तँ बना सकैत छल ओ, मुदा एक टा गलती उ ाहवश अनजा मे ओकरे स ँभ’् गेल छलै । भेलै ई जे एक िदन ऑिफस िवदा होइ काल वोभा एक िकलो एअसगु ाक फरमाइश क’ देलकै । त ाल तँ ओ को ढंगक उतारा धिर नइ ँ द’ सकलै, मुदा साझँ मे घरुल तँ द ूिकलो रसगु ाक सगं !...

    महँगी आ तंगी स ँगडबड गिणतक चलते जे आिथ र्क िकच-िकच आ कृपणता ाइ भाव बिन गेल छलै ओिह मे आरएलक ई अ िशत उदारता दघु र्टना सािबत भ’गेलै । बहस आ आरोप- ारोप मया र्दाक सभ सीमा नािँघ गेलै आ आधा राित धिरकानब-खीजब, सब-फलुब सगं चलैत वाक्-यु क कार ँरातुक भोजन सेहो िगत भ’ गेलै । ई सभ सिह क’ भुखलो सुित सकै छल ओ, मुदा सुतैत काल िवभा तेना नाक सुडकैत िहचकब शु कयलकै जे ओकरा आ -समप र्ण करिह टा पडलै । एह क्षण मे कयल करारक कार ँ सासुक िजज्ञासा मे सासुएअक ई या ा आरएलक कपार बथायल छलै । देह-धम र् लेल िनरोध-स ी खच र् पर जे बीस बेर मनन करैत हो, तकरा लेल एिह या ाक खच र् !...

    जे-से, सासुर अबै आिक एिह स ँ पिह क घटना सभ आरएल लेलरहल-खेहल छलै । सार सभक बीच भेल बाटँ-बखरा आिक सासुक असक पडलाक बाद सुरक रगं-रभस मेभेल गित सेहो को नव बात नइ ँछलै । िवभा तँकीितर्मान ब बे कयलक, मुदा ओकरा बझुैक शि , नव ऊजा र् आ उ ेजना जािह स् ी स ँआरएल कँे भेटलै तकरा ओ कख िबसिर नइ ँसकल ।

    भेलै ई जे आरएलक पह ुँचला पर पिहल साझँ दा आ मुरग ाइक खच र् उठब’वला जािह द ूटा िच न मु ा कँे फसँाक’ ीका अन छल, ओ दनु ूदएू पेग मे बहक’ लगलै । द ूपीस पिहनिह एक टा खाकी िलफाफ मे फराक क’ कतह ुपठा दे छलै ीका । बाकी मे सभ क -क टोगं छल िक ेट मे बचल अिंतम टकुड़◌ी लेल सभ एक-दोसरा कँे ’अहा ँिलअ’ अहा ँिलअ’?...’क अनाव क आ ह कर’लागल । तािह पर पिहल मु ा दोसर स ँकहलकै, “एख एक ेट आरो आिब जाइ तँ सभ स ँपिह टागँ तोकीं घीचमे!ं”

    “खाय नइ ँसकै छी, से तँ नइ ँकहिलयौ हम ? आधा िकलो तँ आराम स ँआरो खा सकेते छी!” दोसर गु ा बजलै ।

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    “हम तीन पाव आरो ख सकै छी ।“ पिहल कहलकै ।

    “हम तँ सवा िकलो मे ए ो टकु नइ ँछोड़ि◌ सकै छी ।चािट-पोिछ क’ ख क’ देबौ । नइ ँ खा सकबौ तँ एक सय टाका जमुा र्ना ! जाचँ कर’क हौअ ककरो तँ ऑडर्र द’ सकै छंे!” ीका कहलकै ।

    “हम द ूिकलो मे ए ो टा पातर सन द ी धिर नइ ँफेकब । नइ ँखाय सकलौ तँ प ह िदन मुफ्त खटब ।...चल ूपरूा महीनाक दरमाहा कािट लेब ।“ मेवालाल चहकैत बाजल ।

    “चपु हरामी! द ूिकलो मुरगा एक थारी मे परसल किहयो देखबो केलही ?”ीका डािँट कँे बरजलक ।

    सभक अ कु्षधाक ान रािख आरएल सन म ीचूसोक मन कयलकै जे एक टे अपना िदस स ँमगँवा दै । मुदा नमरी बहरेला पर ए ो पाइ वापस नइ ँभेटबाक आशकंा स ँ ओ चु े रहल । दोसरो केओ साहस नइकँ’ सकल ।...सभक मन छोहायलै रहलै ।

    दोसर साझँ एक टा बढूवा मु ा कँे फसँौ छल ीका आ दा क सगं डेढ िकलो रेवा-बचबा माछ ाइ करबाओल गेल छलै । आरएल अझ ेदेखलक, िकछु माछ एक टा खाकी िलफाफ मे रािखक’ ीका य ंदोकानक पछुआड िदस गेल छल । घिरक’पेग ब लक आ सभ गोटे कौआ-िच ा जका ँबेसी स ँबेसी माछ झपटैत दा कघोटं लेब लागल । जखन िगलास- ेट साफ भ’ गेलै, तँ काज-धधंाक सगं ग हँकैक दौर शु भेलै । ग क िवषयक ओना तँ को सीमा नइ ँछलै—गाम-घर आ बजारक बदहाली स ँराज ताक दलाली धिरक चचा र् एक समान भ रहल छलै—मुदा बेसी बात घ ुिम-िफिरक’ खायबे-पीब पर आिब जाइ छलै । सहसा तख सभ स ँबेसीमाछ उदर क चकुल ख ू ट बढूवा कहलकै, “एिह पर स ँरसगु ा भेिट जाइत, तँ आन आिब जाइत !...पचास तँ एक सासँ मे गटकल जा सकै छै ।“

    “हम तँ पचह िर धिर ए र-ओ र नइ ँताकब ।“ ीका लेर खसबैत बाजल ।

    “हम एक सय नइ ँखाय गेलौ तँ एक मास मुफ्ते खटब ।“ मेवालाल उ ाह स ँभिरक’ कहलकैओ ।

    “चपु हरामी ! हरदम हमरा स ँबढ़ि◌ए क’ बाजत !...किहयो एक सय रसगु ा देखबो कयलही?” ीका दहाडलक ।

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    आरएल गौर कय छल जे एहन ग जखन-जखन िछड़◌ैत, मेवालाल सिरपह ुँ सभ स ँबड़ि◌क’ बाजी लगबै छल आ ीका कख डाटँब िबसरैत नइ ँछल ।

    ओिह साझँ घर घरुैत काल र ा मे मेवालालक मादे ीका स ँफैल स ँपछूताछ कय छल आरएल । शु मे तँ ीका गु ी लाध रहलै, मुदा फेर नीक जका ँबतौनह ुँ छलै, “आसल मे मेवालाल आदमी तँ बड काजक यए! खबू हनुरमदं सेहो, मुदा वहार स ँतेह चटोर आ अहदी!...चलबैऐ भिर िदन िर ा, मुदा दा आ नीक-िनकुत तरल-बघारल रोज चाहीएकरा । घरवाली आ तीन-तीन टा बेटी छै, तकर िच े ए ोर ी !...ई तँ मदनक कृपा जे आइ ओ हमरा सगं ऐश क’रहकऐ !...”

    िकछु क्षण िबलिम ल’ भेद खोललक, “भेलै ई जे एक िदन ओ हमरा दोकान आयल आ एक टा एहन रेिडयो जकरा ठीक करैत हम हािर गेल रही, ओ पाचँे िमनट मे चाल ूक’ देलकै । हम पुछिलऐ, ई काज किहया सीखलही ?’ तँ बतेलक जे मदनक दगं उठैत-बैसतै िकछु गुण पािब गेिलऐ भैया!’...असल मे पिह हम तँ कमे दोकान पर बैसतै रिहऐ । बाबजूीक बाद मद स ार रहै ई परूा कारबार । बीन भेलाक बाद कपार पर अयलै, तँ...। तैयो की? हम तँ एख कमे काज ठीक-ठीक क’ सकै िछऐ । एिह हरामी मेवालाल कँे हमरा स ँबेसी इ आ अ भव छै, मुदा से पता आ िव ास नइ ँछै ओकरा ।“ एही सगं अनायास खबू जोरगर ठहाका मारलक ीका आ ध खटोलीवला मोड पारक फेर कह’ लागल, “...तँे हम साझँ टा कँे तीन घटंा अपना सगं बैसायब शु कयलह ुँ , ता र्न-चािर मास स ँ। प ह टके रोज, उपर स ँदा -नाश्ता ी!...मगंल-मगंल हाटरोज एकर घरवाली एक सय पाचँ टाका ल’ जाइ छै । िदन भिर िर ा स ँजे होइ छै, सेहो दा मे नइ ँ उड़◌ै छै आब! िदन घ ुिर रहल छै ।...”

    “तीन घटा मे अहा ँकँे ई रोज कतेक लाभ दै यए?” आरएल पछूलकै ।

    “रोज ए े रगं तँ नइ ँहोइ छै, तखन ई बिुझयौ जे डेढ-द ूसयक एकन कज क’ए दै छै जकरा पिह हम घरुा दै छिलऐ ।“ ीका सहज ढंगे ँकहलकै ।

    “तखन होलटाइम िकऐ नइ ँरािख लै िछऐ?” तह धिर जयबा लेल आरएल आरो कुरेदलक ।

    “असल मे त र कैक टा कारण छै । एक तँ छोट बजार, ओतेक काजे नइ ँअबै छै । दोसर, सभ स ँपैघ बात ई जे िदन भिर काज कय एकरा पताचिल जयतै जे ई हमर कतेक काज करै छै। आ ईहो जे कतेक ज छै ।

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    तखन भ’ सकै छै जे बेसी पाइ मागँय आिक मदन स ँमीिलक’ अलग काज शु क’िदअ’ आिक ओकरे लग चिल जाय तँे हम एकरा ाहक स ँ नइ ँ बितयाब’ दै िछऐ, नइिँदन मे काज लै िछऐ आ िबना दा क सेहो नइ।ँ दा पीिब ई की बाजै आ करै छै से हमरा ज त बाद मे एकरा मन नइ ँरहै छै ।...”

    आरएल आरो िकछु पछू’ चाहै छल, ताबत घर आिब गेल रहै ।

    तेसर साझँक महिफल मे थानाक हवलदारक सगं एक टा ानीय ता सेहो छलै जे िवधानसभाक िटकट लेल एक सगं कतेको पाटी मे जोर अजमाय रहल छलै। एिह साझँक खच र् ीका े कँे उठब’ पडल छलै। एहू साझँ आरएल ान दे छल जे जलखै मे मगँाओल आमलेट-भूजा आ सलाद-पकौड़ ी मे स ँ िकछु अशं ओही िलफाफ मे अलग कÕ पैकेट ीका य ंपछुआड िदस ल’ गेल छल महिफल समा भेला पर पान खयलाक बाद ता आ हवलदारक सगं लागल ीका जखन थाना िदसचिल गेल, तँ मौका पािब ओ मेवालाल स ँपछूलक, “अहा ँस ँएक-द ूटा बात पछू’क मन होइ यए । जँ अहा ँबेजाय नइ ँमानी तँ...?

    “यौ मेहमानजी, अहा ँतँ चौह ीबा ’ लागिलऐ ! सोझे मँुहँे पछूू , जँ फूिस कही तँ बिहन चोद होइ, देह काज नइ ँआबय!” मेवालाल कडिक क’ बाजल ।

    “तीन ूसाझँ देखलह ुमुरगा, माछ, अडंा जे िकछु आयल, तकर एक िह ा एक टा िलफाफ मे अलग क’ ीका जी पछुआड लÕ गेलिथ। से ककरा लेल ?” आरएल नहएु पछूलकै । अिगला पर जाइ लेल शु आत यैह ठीक लगलै ओकरा ।

    मेदालाल कान लग फसुफसुाक’ बाजल, “एिह मकानक मालिकन पिछला साल भरल जवानी मे िवधवा भ’ गेिल । पित फौज मे रहै, बोडर्र पर बफ र् मे गुम भ’गेलै । बेचारी ाहाणी ई सभ कोना बना-खाय सकतै?तँे ीका जी चोरा-का...” आओ मुि आब’ लागल ।

    िकछु क्षण बाद फेर हीं -हीं करैत ओ आरएल िदस तकलक, “एक टा बात कही, म मे कमीना स ँ कमीना ाणी सेहो म भ’ जाइ छै!...नइ ँ बझुिलऐ

    मेहमानजी?”

    “बझुलह ुँ-बझुलह ुँ!” कटत: तँ आरएल मुि आ दे छलै, मुदा भीतर स ँसरिक गेल रहय । िकछु क्षण पिह धिर ओिहस् ीक ित आरएलक भीतर जे भाव छलै, से अनायास बदिल गेलै । सहसा ओिह स् ीक ित स ान स ँभिर गेल छल ओ । फेर पछू छल, “अ ा, एक टा आर बात कहू ! तीन ू िदन हम देखलह ुँ जे अहा ँमुरगा, माछ, रसगु ा सब मे सभ स ँबेसी खाइक बाजी लगा लैत छी । ई कहू जे

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    घर मे रोज कते खाइ िछऐ ?”

    अचानक मेवालाल गभंीर भ’ गेल ! िकछु क्षण चपु रिहक’ ओ बाजल “मेहमानजी हमहू अही सभ जका ँखाइ छी । क भात िक एकाध टा रोटी बेसी!...सहै, को हाथी-घोड़◌ा नइ ँ! अहा ँईहो बझु चाहै हैबै जे घर मे हमरपेट भरै छै िक नइ ँ? भरै छै मेहमानजी, भरै छै! हमहू भिर पेट खाइ छी, हमर घरवाली आ ब ा-बतु सब सेहो ।...किहयो-कालक बात छोड़ि◌ िदयौ, से बहतुो कँे होइ छै। हँ, रसगु ा आिक मुरगा सन चीज भिर मन किहयो नइ ँखेिलऐ । नइ ँजािन किहया स ँई लौलसा लागल यए, से किहयो-काल िनसा ँमे भरिमक’ िकछु बोिल दै िछऐ । मुदा कैथ-बाभन आ कँे देिखयौ, बराती मे जते खायत नइ ँ तते छुतायत । तैयो हरदम खाइ लेल लेर चूबबैत िडंग हाकँैते रहत !”

    आरएल चपुे रहल । आ ोश स ँभरल मेवालालंक ठोर कापँ’ लगलै । सोझा ँमे खजुल रेिडयोक पोइ ट्स चेक करैत, रागँा हटबैत-लगबैत, रेिडयो पर आिब रहल गीत बजैत आ बदं होइत रहलै । ओिह रेिडयोक काज परूाक’सहसा ओ फेर बाज’ लागल, “मेहमानजी, खाइ कँे ल’क’ हम गपो मारै िछऐ तँ एक मासक दरमाहा दाव पर लगा क’ । िकयो िह ती कख तैयार भ’ गेल आ हम िकनसाइत हािरयो जायब, तँ एक बेर भिर मन रसगु खाइक म रथ तँ परू भ’जायत !”

    “चल ूहम खआुबै छी । देखै छी, कते खाइ छी अहा ँ?”

    “नइ ँमेहमानजी, िबना बाजी लगौ नइ ँखायब हम । फेर आइ सयवला भूखो नइ ँयए, नइ ँतेहन मडूे ।...” ओ रेिडयो मे नजिर गड़◌ौ बाजल ।

    आरएल कँे अफसोच जका ँभेलै जे ओ बेकारे ओकर घ कोड़ि◌ आहत क’ देलक । तँे सयंत र मे पछूलकै, “आइ कते ? पचास तँ खाय लेब , िबना रस गार ?”

    “सािठ खाय ्लेब, मेहमानजी!”

    “चपु हरामी!” तख घ ुिरक’ आयल ीका अनचोके दहाडलक ।

    मुदा आरएल ह प कयलक, “ ीका जी अका ँशा रहू । आइ हम खएुबे एकरा। मगँबाउ साम क दोकान स ँ।”

    “शतर् की छै?” ीक सेरायल र मे पछूलकै ।

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    “तय क’ िलअ’!” ओ डराइते-डराइत बाजल ।

    “जँ नइ ँखाय सकल तँ एक सय बीरा रसगु ाक दास एकरा दरमाहा स ँकािटक’अपना सभ दा -मुरगा आ रसगु ा खायब । आ, जा धिर अपन सभ खायब? एकरा कान पकड़ि◌क’ उठ-बैिस करैत रहय पडतै ।...पुिछयौ, शतर् मजंरू छै?” ीका नजिर फेिरक’ बाजल।

    “मजंरू छै!” मेवालाल पवू र्वत गभंीर आ कडक आवाज बाजल, “जँ खाय गेलौ, तँ ...?”

    “इनाम मे ेशल पान!” ीका मुिश्कल स ँतामस दबवैत कहलक ।

    आरएल िकछु बाज चाहैतो प ीक जेठ भाइक िलहाज क’ चु े रहल ।

    मेवालाल सात िमनट मे छ न रसगु ा खय छल िक ओकरा आिँख स ँ र झहर’लगलै ।

    आरएल पलूकै, “िक भेल मेवालाल?”

    “मेहमानजी, पिछला दशहरा िदन हमर जेठकी बेटी रसगु ा लेल िजद पकड़ि◌ लेलकै । तमसा क’ हम द-ूतीन चाट मािर देिलऐ । पाइक तेहन िद ित रहै जे...। से ओकर माय राित भिर झगड़◌ैत रहिल जे अपना दा लेल एकरा पैसा होइ छै, बेटी कँे एक टा रसगु ाक बदला पबिनयो-ितहार कँे थपड़◌े ! अपना जीह पर सापँ नइ ँकटा होइ छै!...तिहया स ँकते बेर सोचिलऐ जे किहयो ल’जायब रसगु ा । सात मास बीित गेलै, नइ ँल’ जा सकिलऐ । जेना भेलै, हम तँ गपागप िगड़ि◌ए रहल िछऐ!...” एते कहैत-कहैत ओकर िहचकी जोर पकड़ि◌ लेलकै आ र झहरब आरो बढ़ि◌ गेलै । ेट मे बचल चारो रसगु ा अखा व ु जका ँपडल ओत’क वातावरण कँे भारी बना दे छलै ।

    “खा नइ ँसकले ं तो!ं बाजी हािर रहल छंे । आब चमुा र्ना लािग जयतौ ।” ीका ओकरा जरल पर न िछटैत बाजल । मुदा तख दोकानक बाहरदेबालक िनकट अचानके आिबक’ ठाढ़ि◌ भेिल आमक फाड़◌ा सन-सन आिँख वाली गोर-नार युवा स् ी कँे देखतिह ओकर पारा नरम भ’ गेलै । आरएल कँे सहसा खाकी िलफाफ सभक रण अयलै !... एख ओकरा ित स नक भाव स ँभरल छल ओ।

    “नइ,ँ हारलौ ंनइ!ँ ई चािर टा की, खा तँ सकै छी पाचँ-दस टा आरो। हम

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    म स ँकहलौ,ं जँ हािर नइ ँमानी तँ ई चारो रसगु ा घर लेल ल’ जाइ । तीन टा तीन ू बेटी आ एक टा...।“ मेवालालक बोली लडखड़◌ा गेलै आ सिरपह ुँ िहचिक-िहचिकक’ कानय लागल ओ । ओत’ ठाढ़ि◌ कोशी-कमलाक बाढ़ि◌ जका ँ दलमिलत करयवाली स् ी आब दोकानक भीतर मेवालालक लग आिब गेिल छिल आ िकछु बाज’जा रहिल छिल...!

    ...िक ठीक ओही क्षण गाम स ँ एक टा छौड़ं◌ा दौडल हाफँैत अयलै आ हकलाइते जेना-तेना ीक क कान मे िकछु कहलकै ।

    फेर ीका आरएल िदस तकलकै—एक सगं तामस, घणृा, िध ार, दया आ ाथ र्ना भरल नजिर स ँ!

    आरएल तखन िकछु बिुझ तँ नइ ँ सकल छलै, मुदा को पैघ अनहोनीक आशकंा ज र ओकरा कँपाब’ लागल छलै ।

    तुरतं मेवालाल कँे चाभी थमा, दोकानक सभ टा िज ेदारी ओकरा पर सौ ंिप, ीका बाहर भेल छल । ीका क पाछू-पाछू सशंय डेगे ँ आरएल सेहो बहरायल रहै ।

    गाम स ँआयल छौड़ं◌ा कँे रोिकक’ ओत’ ठाढ़ि◌ स् ी घटनाक मादे खोदबेद कर’लागिल छिल । मुदा झट-पट सभ बात उगिल छौड़ं◌ा सेहो दौड़ि◌क’ हनुके सभक पछोड ध’ ले छलै।

    दौड़ि◌क’ आयल छौड़ं◌ाक पयरक धमक पर आरएल पाछा ँ तकलक । ओकरनजिर छौड़ं◌ा कँे पार क’ दोकान मे ठाढ़ि◌ स् ी पर गेलै—ओ स् ी मेवालालक आरो लगीच जा ग करैत रोमाचंक मु ा मे ीज भ’ गेिल आरएलक ृित-पटल पर ।

    िकछुक काल बाद आरएल कँे गामक घटना मादे जानकारी दे छलै ीका ।...जे िवभा अपन मोटरकार वला बह इक सगं हनुका गाम माछ खाय लेल भािग गेल !...

    आरएल कँे एतबे मन पडल छलै तखन जे ओकर साढक गामक कबइ बडमशहूर छै । वैह कबइ जे पािन स ँबहराय गाछ पर चढ़ि◌क’ हवाखोरी करैत छै!...वैह जीवट कबइ!...मुदा...।

    आ यैह सभ सोचैत कखन घर पह ुँचल आ कोना बेहोश भ’ गेल छल आरएल, से सभ िकछुओ मन नइ ँछै ओकरा !....

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    ११ अग , २००२

    आरएलक छोटकी बेटी नीनाक पिहल बथ र्-डे छलै । साझँ उतिर रहल छलै—एखन ओते सघन अ ार नइ ँभेल छलै, मुदा बाहरक ओसरा मे अ ारक आभास होअयलागल छलै । ओसराक आगा ँ ल◌ॉन मे आरएलक िपता एकसरे बैसल खािँस रहलछलाह । सालक बेटी नीरा आ पाचँ सालक बेटा ूअपन दो सभक सगंभीतरका कोठली मे चहल-पहल मचौ छल जत’ बथ र्-डेक सजाविटक सगं नीनाक साज- ृगंार सेहो भ’ रहल छलै । पड़ ोसक एक टा सहेलीक सगं िकचन मे रहलाक बादो िवभा गुनगुना रहिल छिल। मुदा बाहरक ओसरा मे कतेको साल बादभेटल अपन एक टा पुरान िम क सगं रहलाक बादो आरएल उदास छल । दस सालपुरान कैसेट जिहना समा भेलै, आरएल चपु भ’ कतह ुदरू हेरायल-हेरायल जका ँभटक’ लागल छल ।

    सहसा ओ दो आरएलक ान भंन करैत चु ी तोडलक, “मीत, ई कह’ जे एहन की बात भेलै तकरा बाद जे तो ंओिह घटनाक सदमा स ँआइ धिर उबिर नइ ँसकलह? एिह स ँबढ़ि◌या ँतँ ई होइतह जे तो ंओही समय तलाक ल’क’ अलग भ’्जयतह । एना घटु-ुघ ुिट क’ ितले-ितले मरैत रहब...?”

    िकबीचे मे दो कँे रोिकक’ आरएल बाजल, “नइ-ँनइ,ँ तो ंनइ ँबझुलह मीत ! तो ंबिुझयो नइ ँसकै छह! िबलकुले बिुझ सकलह तो ंहमर पीड़◌ा!...” फेर िकछु क्षण िकक’ ओ कहलकै, “असल मे महत् पणू र् ई नइ ँछै जे माछ खाय लेल ओभागिल आ भािगक’ कत’-कत’ गेिल !...आिक एकसरे भाइक बतँुे िकऐ नइ ँघरुलै आ घरुाब’ लेल के-के गेलै आ कोन-कोन तरहक शि क ज रित पडलै?...ई सभ को बात नइ.ँ..महत् पणू र् ई छै जे घ ुिरक’ अयलाक बाद ओकरा अपन कयल पर पछतावा आिक हीनताबोध नइ ँभेलै । महत् पणू र् ई छै जे हम दिबक’ रहलह ुँ तँ रहलह ुँ , ओकर ठसक बरकरार छै!...हम ओकरा छोड’क बात िनि ते सोिच सकै रही, मुदा नइ ँसोचलह ुँ! ज छह, िकऐ?”

    क्षणभिर िबलिम फेर वैह कह’ लगलै, “ ीका क दोकान मे जे िवधावा भेटिल छिल, ओ हमरा ई अकील देलक जे म सिरपह ुँ जीिवत अिछ तँ ओ अपनभूखक कार ँ। आ भूखक सम,्मान लेल ज री छै ओिह िदशा मे िच आ कबइसन इ ा । हमरा तँ एिह बातक गौरव अिछ जे हम ओिह स् ीक पित छी जे बदनामीक हद धिर जाक’ ओ अपन भीतरक म क िच आ इ ाक पािँख कतरब नइ ँजानलक । दखु मा एतबे जे हम एिह गौरव कँे भीतर स ँ ीकार करैतो वहार मे नइ ँआिन सकलह ुँ , तँे अपन इ ाक पािँख उठेबा मे असमथ र् होइक दडं भोगै

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    छी।“ फेर एक टा पैघ सन चु ी पसिर गेलै जकरा तोडबाक इ ा दनुकू भीतर जीिवत होइतो, साइत अपन साम र् गमा चकुल छलै। आ, दनुकू बीच टेबलु पर राखल खाली कपक अलावा नाश्ताक ेट मे द ू ितहाइ स ँबेसी बचल पकौड़◌ी सेराय गेल छलै ।

    २.२. ामसु र शिश- ाजंिलआह उमा ! वाह उमा !

    ामसु र शिश - ाजंिल

    आह उमा ! वाह उमा ! िठक् क डेढ वष र् पवू र् रेिडयो टडुेक वास ् ते काय र् म सचंालक आ समाचार वाचकके छ ट कृयाक ममे पिहल बेर जनकपुर उ ोग वािणज ् य सघंके सभाकक्षमे हमरा ओकरासगं भंेट भेल छल । ऊ ितष ् पधीर्क पमे हमरासभक साम खाढ छलीह आ हम, जनकपुर टडुेक सम ् पादक बजृकुमार यादव,सचंारकमी र् तथा सािहत् यकार रमेशरजंन झा,रेिडयो टडुेक वन ् ध िनदेर्शक अ राग िगरी एव ंप कार महासघं ध षाक वतर्मान सभापित उमेश साह परीक्षकके पमे छलह ुँ । तिहया ओ २३वष र्क छलीह मुदा आध ुिनक युगक एिह युवतीमे आध ुिनकताक नामोिनसान निह छल । मिलछाहं रगंक

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    समीज—सलवार,सामान ् य चप ् पल ,मेकअप िवहीन सादा मुदा चमकैत मुखमण ् डल,नदी िकनारमे ल िरक फूलल अ वा गुलाव जका लािग रहल छलीह ओ । ओकर सुख ् खल देहयष ् िट ओकर भीतरके पीडाके बखान क रहल छल । स ् नातकके अन ् ितम वष र्क परीक्षाक वाद ओ व ् यावसाियक जीवनमे वेश करए चाहैत छलीह । य िप एिहस ँपवू र् सेहो ओकर सचंार जगतसगं त् यक्ष आ परोक्ष सम ् बन ् ध रहैक ।छापा आ िव ुतीय सचंार सम ् बन ् धी अ कौ तािलम,सभा सेिमनारआिदमे सहभागी भ चकुल ओिह युवतीक सपना रहैक—रेिडयोक लेल समाचार सकंलन करबाक आ अपन भाषा मैिथलीमे समाचार वाचन करबाक◌�◌�◌�◌�। हमरालोकिन ओकरा ई मौका सेहो उपलब ्ध कराओल । साचँ कही त ई अवसर हमरालोकिन दयास ँनिह ओकरा अपनिह ितभाक वलपर ाप ् त भेलैक । हमरालोकिन िनिम मा बनलह ुँ । आओर बेसी कही त ितष ् पधीर्सभमध ् य ओ सबो र् म छलीह ।लगभग तीन वष र् पवू र् माओवादी ारा िपता आ भैयाके वेप ा ब लाक बादस ँओकरा बहतु िकछु कहवाक छलैक । सम ् भवतः अपन बात कहवाक वास ् ते ओ सचंार मे आवए चाहैत छलीह । अएवो कएलिह ।

    एिह तरहे अपन सादगी आ ितभाक वलपर पिहलिह भंेटमे हमरामा निह सभ परीक्षकके भािवत करएवाली ओ युवती छलीह हमर सहकमीर् आ िव ाथीर् उमा िसहं । तकराबाद एक मिह तािलम आ करीव ९मिहना ओकरासगं काज करबाक मौका भेटल । हमर आठ मिह कतार वासक ममे सेहो उमासगं बेर बेर ईन ् टर ट माफ र्त बात िचत भेल अिछ । एिह बीच ओकर