ववक क न ज क छ कक , इसक उस ह त ख श थ । और च द फ...

25
अनोखी तरकीब और चद फू ट गय गलू सियर ललच चलकी फल बजी बड दन पथर ही पथर घमंडी कौव िभगवन के भरोिे ददजी पू ... गौरव और हथी एक िभले दो www.motivationalstoriesinhindi.in

Upload: others

Post on 21-Feb-2020

29 views

Category:

Documents


0 download

TRANSCRIPT

Page 1: ववक क न ज क छ कक , इसक उस ह त ख श थ । और च द फ ट गय आश ष औ दहत क घ आपस मल ह ए थ । ववव

अनोखी तरकीब

और च ाँद फूट गय

गल्ल ूसिय र क ल लच

च ल की क फल

बेंजी क बड ददन

पत्थर ही पत्थर

घमडंी कौव

िरै

भगव न के भरोि ेद द जी क पपद्द.ू.. गौरव और ह थी

एक िे भले दो

www.motivationalstoriesinhindi.in

Page 2: ववक क न ज क छ कक , इसक उस ह त ख श थ । और च द फ ट गय आश ष औ दहत क घ आपस मल ह ए थ । ववव

अनोखी तरकीब बहुत पुरानी बात है। एक अमीर व्यापारी के यहााँ चोरी हो गयी। बहुत तलाश करने के बावजूद सामान न ममला और न ही चोर का पता चला। तब अमीर व्यापारी शहर के काजी के पास पहुाँचा और चोरी के बारे में बताया।

सबकुछ सुनन ेके बाद काजी न ेव्यापारी के सारे नौकरों और ममत्रों को बुलाया। जब सब सामने पहुाँच गए तो काजी न ेसब को एक-एक छडी दी। सभी छडडयााँ बराबर थीीं। न कोई छोटी न बडी।

सब को छडी देने के बाद काजी बोला, "इन छडडयों को आप सब अपने अपने घर ले जाएाँ और कल सुबह वापस ले

आएाँ। इन सभी छडडयों की खामसयत यह है कक यह चोर के पास जा कर ये एक उाँगली के बराबर अपने आप बढ़

जाती हैं। जो चोर नहीीं होता, उस की छडी ऐसी की ऐसी रहती है। न बढ़ती है, न घटती है। इस तरह मैं चोर और

बेगुनाह की पहचान कर लेता हूाँ।"

काजी की बात सुन कर सभी अपनी अपनी छडी ले कर अपने अपने घर चल ददए।

उनहीीं में व्यापारी के यहााँ चोरी करन ेवाला चोर भी था। जब वह अपने घर पहुाँचा तो उस न ेसोचा, "अगर कल

सुबह काजी के सामने मेरी छडी एक उाँगली बडी ननकली तो वह मुझे तुरींत पकड लेंगे। किर न जाने वह सब के

सामने कैसी सजा दें।

इसमलए क्यों न इस ववचचत्र छडी को एक उाँगली काट ददया जाााए। ताकक काजी को कुछ भी पता नहीीं चले।'

चोर यह सोच बहुत खशु हुआ और किर उस ने तुरींत छडी को एक उाँगली के बराबर काट ददया। किर उसे नघसनघस

कर ऐसा कर ददया कक पता ही न चले कक वह काटी गई है।

अपनी इस चालाकी पर चोर बहुत खशु था और खशुीखशुी चादर तान कर सो गया। सुबह चोर अपनी छडी ले कर

खशुी खशुी काजी के यहााँ पहुाँचा। वहााँ पहले से कािी लोग जमा थे।

काजी १-१ कर छडी देखने लगे। जब चोर की छडी देखी तो वह १ उाँगली छोटी पाई गई। उस ने तुरींत चोर को पकड

मलया। और किर उस से व्यापारी का सारा माल ननकलवा मलया। चोर को जेल में डाल ददया गया।

सभी काजी की इस अनोखी तरकीब की प्रशींसा कर रहे थे।

Page 3: ववक क न ज क छ कक , इसक उस ह त ख श थ । और च द फ ट गय आश ष औ दहत क घ आपस मल ह ए थ । ववव

ईम नद री

ववक्की अपन ेस्कूल में होने वाले स्वतींत्रता ददवस समारोह को ले कर बहुत उत्सादहत था। वह भी परेड में दहस्सा ले रहा था। दसूरे ददन वह एकदम सुबह जग गया लेककन घर में अजीब सी शाींनत थी। वह दादी के कमरे में गया, लेककन वह ददखाई नहीीं पडी।

"मााँ, दादीजी कहााँ हैं?" उसने पूछा।

"रात को वह बहुत बीमार हो गई थीीं। तुम्हारे वपताजी उनहें अस्पताल ले गए थे, वह अभी वहीीं हैं उनकी हालत कािी खराब है। ववक्की एकाएक उदास हो गया। उसकी मााँ ने पूछा, "क्या तुम मेरे साथ दादी जी को देखने चलोगे? चार बज ेमैं अस्पताल जा रही हूाँ।" ववक्की अपनी दादी को बहुत प्यार करता था। उसने तुरींत कहा, "हााँ, मैं आप के साथ चलूाँगा।" वह स्कूल और स्वतींत्रता ददवस के समारोह के बारे में सब कुछ भूल गया। स्कूल में स्वतींत्रता ददवस समारोह बहुत अच्छी तरह सींपनन हो गया। लेककन प्राचायय खशु नहीीं थे। उनहोंने ध्यान ददया कक बहुत से छात्र आज अनुपस्स्थत हैं। उनहोंने दसूरे ददन सभी अध्यापकों को बुलाया और कहा, "मुझे उन ववद्याचथययों के नामों की सूची चादहए जो समारोह के ददन अनुपस्स्थत थे।" आधे घींटे के अींदर सभी कक्षाओीं के ववद्याचथययों की सूची उन की मेज पर थी। कक्षा छे की सूची बहुत लींबी थी। अत: वह पहले उसी तरि मुड।े

Page 4: ववक क न ज क छ कक , इसक उस ह त ख श थ । और च द फ ट गय आश ष औ दहत क घ आपस मल ह ए थ । ववव

जैसे ही उनहोंने कक्षा छे में कदम रखे, वहााँ चपु्पी सी छा गई। उनहोंने कठोरतापूवयक कहा, "मैंने परसों क्या कहा था?"

"यही कक हम सब को स्वतींत्रता ददवस समारोह में उपस्स्थत होना चादहए," गोलमटोल उषा ने जवाब ददया।

"तब बहुत सारे बच्चे अनुपस्स्थत क्यों थे?" उनहोंने नामों की सूची हवा में दहलात ेहुए पूछा। किर उनहोंने अनुपस्स्थत हुए ववद्याचथययों के नाम पुकारे, उनहें डााँटा और अपने डींड ेस ेउनकी हथमेलयों पर मार लगाई।

"अगर तुम लोग राष्ट्रीय समारोह के प्रनत इतन ेलापरवाह हो तो इसका मतलब यही है कक तुम लोगों को अपनी मातभृूमम से प्यार नहीीं है। अगली बार अगर ऐसा हुआ तो मैं तुम सबके नाम स्कूल के रस्जस्टर स ेकाट दूाँगा।" इतना कह कर वह जाने के मलए मुड ेतभी ववक्की आ कर उन के सामने खडा हो गया। "क्या बात है?"

"महोदय, ववक्की भयभीत पर दृढ़ था, मैं भी स्वतींत्रता ददवस समारोह में अनुपस्स्थत था, पर आप ने मेरा नाम नहीीं पुकारा।" कहते हुए ववक्की ने अपनी हथेमलयााँ प्राचायय महोदय के सामने िैला दी। सारी कक्षा सााँस रोक कर उसे देख रही थी। प्राचायय कई क्षणों तक उसे देखते रहे। उनका कठोर चहेरा नमय हो गया और उन के स्वर में क्रोध गायब हो गया।

"तुम सजा के हकदार नहीीं हो, क्योंकक तुम में सच्चाई कहने की दहम्मत है। मैं तुम से कारण नहीीं पूछूाँगा, लेककन तुम्हें वचन देना होगा कक अगली बार राष्ट्रीय समारोह को नहीीं भूलोगे। अब तुम अपनी सीट पर जाओ।

Page 5: ववक क न ज क छ कक , इसक उस ह त ख श थ । और च द फ ट गय आश ष औ दहत क घ आपस मल ह ए थ । ववव

ववक्की ने जो कुछ ककया, इसकी उसे बहुत खशुी थी।

और च ाँद फूट गय आशीष और रोदहत के घर आपस में ममले हुए थे। रवववार के ददन वे दोनों बड ेसवेरे उठते ही बगीच ेमें आ पहुाँच।े

" तो आज कौन सा खेल खेलें ?" रोदहत ने पूछा। वह छह वषय का था और पहली कक्षा में पढ़ता था।

"कैरम स ेतो मेरा मन भर गया। क्यों न हम कक्रकेट खेलें ?" आशीष न ेकहा। वह भी रोदहत के साथ पढ़ता था।

"मगर उसके मलये तो ढेर सारे साचथयों की ज़रूरत होगी और यहााँ हमारे तुम्हारे मसवा कोई है ही नहीीं।" रोदहत

बोला।

वे कुछ देर तक सोचते रहे किर आशीष ने कहा, "चलो गप्पें खेलते हैं।"

"गप्पें? भ़ला यह कैसा खेल होता है?" रोदहत को कुछ भी समझ में न आया।

"देखो मैं बताता हूाँ आ़शीष ने कहा, "हम एक से बढ़ कर एक मज़ेदार गप्प हााँकें गे। ऐसी गप्पें जो कहीीं स ेभी सच

न हों। बडा मज़ा आता है इस खेल में। चलो मैं ही शुरू करता हूाँ यह जो सामने अशोक का पेड है ना रात में बगीच े

के तालाब की मछमलयााँ इस पर लटक कर झूला झूल रही थीीं। रींग बबरींगी मछमलयों से यह पेड ऐसा जगमगा रहा था मानो लाल परी का राजमहल।"

अच्छा! रोदहत न ेआश्चयय से कहा, "और मेरे बगीच ेमें जो यूकेमलप्टस का पेड है ना इस़ पर चााँद सो रहा था। चारों ओर ऐसी प्यारी रोशनी झर रही थी कक तुम्हारे अशोक के पेड पर झूला झूलती मछमलयों ने गाना गाना शुरू कर

ददया।"

"अच्छा! कौन सा गाना?" आशीष न ेपूछा। "वही चींदामामा दरू के पुए पकाएाँ बूर के।" रोदहत ने जवाब ददया।

"अच्छा! किर क्या हुआ?"

Page 6: ववक क न ज क छ कक , इसक उस ह त ख श थ । और च द फ ट गय आश ष औ दहत क घ आपस मल ह ए थ । ववव

"किर क्या होता, मछमलयााँ इतन ेज़ोर से गा रही थीीं कक चााँद की नीींद टूट गयी और वह धडाम से मेरी छत पर चगर

गया।"

"किर?"

"किर क्या था, वह तो चगरत ेही िूट गया।"

"हाय, सच! चााँद िूट गया तो किर उसके टुकड ेकहााँ गये?" आशीष न ेपूछा।

वे तो सब सुबह-सुबह सूरज न ेआकर जोड ेऔर उनपर काले रींग का मलहम लगा ददया। ववश्वास न हो तो रात में देख लेना चााँद पर काले धब्बे ज़रूर ददखाई देंगे।"

अच्छा ठीक है मैं रात में देखने की कोमशश करूाँ गा।" आशीष न ेकहा। वह एक नयी गप्प सोच रहा था।

"हााँ याद आया, आशीष बोला, "वपछले साल जब तुम्हारे पापा का राींसिर यहााँ नहीीं हुआ था तो एक ददन खबू

ज़ोरों की बाररश हुई। इतनी बाररश कक पानी बूाँदों की बजाय रस्से की तरह चगर रहा था। पहले तो मैं उसमें नहाया किर पानी का रस्सा पकड कर ऊपर चढ़ गया। पता है वहााँ क्या था?"

"क्या था?" रोदहत ने आश्चयय से पूछा।

"वहााँ धपू खखली हुई थी। धपू में ननहें ननहें घर थे, इनरधनुष के बने हुए। एक घर के बगीच ेमें सूरज आराम से हरी-हरी घास पर लेटा आराम कर रहा था और ननहीं-ननहें मसतारे धमाचौकडी मचा रहे थे "

"मसतारे भी कभी धमाचौकडी मचा सकत ेहैं?" रानी दीदी न ेटोंक ददया। न जाने वो कब आशीष और रोदहत के

पास आ खडी हुई थीीं और उनकी बातें सुन रही थीीं।

"अरे दीदी, हम कोई सच बात थोडी कह रहे हैं।" रोदहत ने सिाई दी।

"अच्छा तो तुम झूठ बोल रहे हो?" रानी न ेधमकाया।

Page 7: ववक क न ज क छ कक , इसक उस ह त ख श थ । और च द फ ट गय आश ष औ दहत क घ आपस मल ह ए थ । ववव

"नहीीं दीदी, हम तो गप्पें खेल रहे हैं और हम खशुी के मलये खेल रहे हैं, ककसी का नुक्सान नहीीं कर रहे हैं।" आशीष

ने कहा।

"भला ऐसी गप्पें हााँकने से क्या िायदा स्जससे ककसी का उपकार न हो। मैने एक गप्प हााँकी और दो बच्चों का उपकार भी ककया।"

"वो कैसे ?" दोनों बच्चों न ेएक साथ पूछा।

अभी अभी तुम दोनों की मस्म्मयााँ तुम्हें नाश्ते के मलये बुला रही थीीं। उनहें लगा कक तुम लोग बगीच ेमें खेल रहे

होगे लेककन मैने गप्प मारी कक वे लोग तो मेरे घर में बैठे पढ़ाई कर रहे हैं। उनहोंने मुझसे तुम दोनों को भेजने के

मलये कहा हैं।

यह सुनत ेही आशीष और रोदहत गप्पें भूल कर अपने-अपने घर भागे। उनहें डर लग रहा था कक मम्मी उनकी वपटाई कर देंगी लेककन मस्म्मयों न ेतो उनहें प्यार ककया और सुबह-सुबह पढ़ाई करने के मलये शाबशी भी दी।

रानी दीदी की गप्प को व ेसच मान बैठी थीीं।

गल्ल ूसिय र क ल लच मल्लू और गल्ल ूमसयार भाई-भाई थे। मल्लू सीधा-सादा और भोला था। वह बडा ही नेकददल और दयावान था।

दसूरी ओर गल्लू एक नम्बर का धतूय और चालबाज मसयार था। वह ककसी भी भोले-भाले जानवर को अपनी चालाकी स ेबहलाकर उसका काम तमाम कर देता था।

एक ददन गल्ल ूमसयार जींगल में घूम रहा था कक उसे रास्ते में एक चादर ममली। जाड ेके ददन नज़दीक थे इसीमलए

उसने चादर को उठाकर रख मलया। उसके बाद वह घर की ओर चल ददया।

अगले ददन गल्लू मसयार मल्लू के घर गया। ठण्ड की वजह से दरवाजा खोला लेककन जैसे ही गल्लू अनदर जाने लगा, तो मल्ल ूने दरवाजा बनद कर मलया। गल्लू को अपने भाई की यह हरकत बहुत बुरी लगी। उसे अपने भाई

पर बडा क्रोध आया।

भाई के घर से आने के बाद गल्लू नहान ेके मलए नदी पर गया। उसको देखकर बडा आश्चयय हो रहा था कक आज

सारे मोटे-मोटे जानवर बड ेबेकिक्र होकर बबना ककसी डर के उसके पास स ेगुजर रहे थे। उसके पानी में घुसने से पहले जैसे ही चादर को उतारा, उसके आश्चयय का दठकाना न रहा। सारे छोटे-मोटे जानवर अपनी-अपनी जान

Page 8: ववक क न ज क छ कक , इसक उस ह त ख श थ । और च द फ ट गय आश ष औ दहत क घ आपस मल ह ए थ । ववव

बचाने के मलए इधर-उधर भागने लगे। चारों ओर हाहाकार मच गया। गल्लू को लगा कक जरूर इस चादर का चमत्कार है। उसके मन में ववचार आया कक कहीीं यह जादईु तो नहीीं। स्जसको ओढ़ते ही वह अदृश्य हो जाता हो।

तभी उसे याद आया कक मल्लू न ेभी दरवाजा खटखटाने की आवाज सुनकर दरवाजा खोला और एकाएक बनद

भी कर मलया, मानो दरवाज ेपर कोई हो ही नहीीं।

अब उसका शक यकीन में बदल गया और उसे मल्लू पर ककसी तरह का क्रोध भी नहीीं रहा। वह नहाकर जल्दी स े

जल्दी अपन ेभाई मल्लू मसयार के पास पहुाँचना चाहता था। अत: लम्बे डग भरता हुआ उसके घर जा पहुाँचा।

उसने मल्ल ूको वह चादर ददखाई और प्रसनन होत ेहुए बोला --

"देखो भाई, इस जादईु चादर को ओढ़त ेही ओढ़ने वाला अदृश्य हो जाता है। मैंने सोच है कक क्यों न इसकी मदद

स ेमैं जींगल के राजा को मारकर खदु जींगल का राजा बन जाऊाँ । अगर तुम मेरा साथ दोगे तो मैं तुम्हें महामींत्री का पद दूींगा।

"भाई गल्ल,ू मुझे महामींत्री पद का कोई लालच नहीीं। यदद तुम मुझे राजा भी बना दोगे तो भी मैं नहीीं बनूाँगा क्योंकक अपन ेस्वामी से गद्दारी में नहीीं कर सकता। मैं तो तुम्हें भी यही सलाह दूींगा कक तुम्हें इस चादर का दरुूपयोग नहीीं करना चादहए।"

"अपनी सलाह अपने पास ही रखो। मैं भी ककतना मूखय हूाँ जो इस काम में तुम्हारी सहायता लेने की सोच बैठा,"

गुस्से में भुनभुनात ेहुए गल्लू मसयार वहााँ से चला गया पर मल्लू सोच में डूब गया।

"अगर गल्ल ूजींगल का राजा बन बैठा तब तो अनथय हो जाएगा। एक मसयार को जींगल का राजा बना देखकर

पडोसी राजा हम पर आक्रमण कर देगा। शस्क्तशाली राजा के अभाव में हम अवश्य ही हार जायेंगे और हमारी स्वतींत्रता खतरे में पड जाएगी। यह सोच कर मल्लू मसयार मसहर उठा और उसने मन ही मन गल्लू की चाल को असिल बनाने की एक योजना बना डाली।

रात के समय जब सब सो रहे थे तब मल्लू अपने घर से ननकला और चपुचाप खखडकी के रास्ते गल्लू के मकान में घुस गया। उसने देखा कक गल्लू की चादर उसके पास रखी हुई है। उसने बडी ही सावधानी से उसको उठाया और

उसके स्थान पर वैसी ही एक अनय चादर रख दी जो कक बबल्कुल वैसी थी। इसके बाद वह अपने घर आ गया।

सुबह उठकर नहा-धो कर गल्लू मसयार शरे को मारने के मलए चादर ओढ़कर प्रसननतापूवयक उसकी मााँद की ओर

चल पडा। आज उसके पााँव धरती पर नहीीं पड रहे थे। आखखर वह अपने को भावी राजा समझ रहा था। मााँद में पहुाँचकर उसने देखा कक शरे अभी सो रहा था। गल्लू न ेगवय से उसको एक लात मारी और उसको जगा कर

गामलयााँ देने लगा। शरे चौंक कर उठ गया। वह भूखा तो था ही, उपर से गल्लू ने उसको क्रोध भी ददलाया था, सो उसने एक ही बार में गल्लू का काम तमाम कर ददया।

Page 9: ववक क न ज क छ कक , इसक उस ह त ख श थ । और च द फ ट गय आश ष औ दहत क घ आपस मल ह ए थ । ववव

मल्लू मसयार को जब अपन ेभाई की यह खबर ममली तो उसको बडा दखु हुआ पर उसने सोचा कक इसके अलावा जींगल की स्वतींत्रता को बचाने का कोई रास्ता भी तो नहीीं था। उसकी आाँखों में आाँस ूआ गए, वह उठा और उसने उस जादईु चादर को जला डाला ताकक वह ककसी और के हाथ में न पड जाए।

मल्लू ने अपन ेभाई की जान देकर अपने राजा के प्राण बचाए थे और जींगल की स्वतींत्रता भी।

च ल की क फल एक थी बदुढ़या, बेहद बढू़ी परेू नब्बे साल की। एक तो बेचारी को ठीक से ददखाई नहीीं पडता था ऊपर से उसकी मचुगययााँ चराने

वाली लडकी नौकरी छोड कर भाग गयी।

बेचारी बदुढ़या! सबुह मचुगययों को चराने के मलये खोलती तो वे पींख िडिडाती हुई सारी की सारी बदुढया के घर की चारदीवारी िााँद कर अडोस पडोस के घरों में भाग जातीीं और 'कों कों कुडकुड' करती हुई सारे मोहल्ले में हल्ला मचाती हुई

घमूतीीं। कभी वे पडोमसयों की सस्ब्जयााँ खा जातीीं तो कभी पडोसी काट कर उनहीीं की सब्जी बना डालत।े दोनों ही हालतों में नकुसान बेचारी बदुढ़या का होता। स्जसकी सब्जी बरबाद होती वह बदुढ़या को भला बरुा कहता और स्जसके घर में मगुी पकती उससे बदुढ़या की हमेशा की दशु्मनी हो जाती।

हार कर बदुढ़या ने सोचा कक बबना नौकर के मचुगययााँ पालना उसकी जैसी कमज़ोर बदुढ़या के बस की बात नहीीं। भला वो कहााँ तक डींडा लेकर एक एक मगुी हााँकती किरे? ज़रा सा काम करने में ही तो उसका दम िूल जाता था। और बदुढ़या ननकल पडी लाठी टेकती नौकर की तलाश में।

पहले तो उसने अपनी परुानी मचुगययााँ चराने वाली लडकी को ढूाँढा। लेककन उसका कहीीं पता नहीीं लगा। यहााँ तक कक उसके

मााँ बाप को भी नहीीं मालमू था कक लडकी आखखर गयी तो गयी कहााँ? "नालायक और दषु्ट्ट लडकी! कहीीं ऐसे भी भागा जाता है? न अता न पता सबको परेशान कर के रख ददया।" बदुढ़या बडबडायी और आग ेबढ़ गयी।

थोडी दरू पर एक भाल ूने बदुढ़या को बडबडात ेहुए सनुा तो वह घमू कर सडक पर आ गया और बदुढ़या को रोक कर बोला, "

ग ुरय र , बदुढ़या नानी नमस्कार! आज सबुह सबुह कहााँ जा रही हो? सनुा है तमु्हारी मचुगययााँ चराने वाली लडकी नौकरी छोड

कर भाग गयी है। न हो तो मझु ेही नौकर रख लो। खूब देखभाल करूाँ गा तमु्हारी मचुगययों की।"

"अरे हट्टो, तमु भी क्या बात करत ेहो? बदुढ़या ने खखमसया कर उत्तर ददया, " एक तो ननरे काल ेमोटे बदसरूत हो मचुगययााँ तो तमु्हारी सरूत देखत ेही भाग खडी होंगी। किर तमु्हारी बेसरुी आवाज़ उनके कानों में पडी तो वे मडुकर दडबे की ओर आएाँगी भी नहीीं। एक तो मचुगययों के कारण महुल्ले भर से मेरी दशु्मनी हो गयी है, दसूरा तमु्हारे जैसा जींगली जानवर और पाल लूाँ तो मेरा जीना भी मसु्श्कल हो जाए। छोडो मेरा रास्ता मैं खुद ही ढूाँढ लूाँगी अपने काम की नौकरानी।"

Page 10: ववक क न ज क छ कक , इसक उस ह त ख श थ । और च द फ ट गय आश ष औ दहत क घ आपस मल ह ए थ । ववव

बदुढ़या आग ेबढ़ी तो थोडी ही दरू पर एक मसयार ममला और बोला, "हुआाँ हुआाँ राम राम बदुढ़या नानी ककसे खोज रही हो?

बदुढ़या खखमसया कर बोली, अरे खोज रहीीं हूाँ एक भली सी नौकरानी जो मेरी मचुगययों की देखभाल कर सके। देखो भला मेरी परुानी नौकरानी इतनी दषु्ट्ट छोरी ननकली कक बबना बताए कहीीं भाग गयी अब मैं मचुगययों की देखभाल कैस ेकरूाँ ? कोई

कायदे की लडकी बताओ जो सौ तक चगनती चगन सके ताकक मेरी सौ मचुगययों को चगन कर दडब ेमें बनद कर सकें ।"

यह सनु कर मसयार बोला, "हुआाँ हुआाँ, बदुढ़या नानी ये कौन सी बडी बात है? चलो अभी मैं तमु्हें एक लडकी से ममलवाता हूाँ।

मेरे पडोस में ही रहती है। रोज़ जींगल के स्कूल में पढ़ने जाती है इस मलये सौ तक चगनती उस ेजरूर आती होगी। अकल भी उसकी खूब अच्छी है। शरे की मौसी है वो, आओ तमु्हें ममलवा ही दूाँ उससे।

बदुढ़या लडकी की तारीि सनु कर बडी खुश होकर बोली, "जुग जुग स्जयो बेटा, जल्दी बलुाओ उस ेकामकाज समझा दूाँ। अब

मेरा सारा झींझट दरू हो जाएगा। लडकी मचुगययों की देखभाल करेगी और मैं आराम से बठैकर मक्खन बबलोया करूाँ गी।"

मसयार भाग कर गया और अपने पडोस में रहने वाली चालाक पसूी बबल्ली को साथ लेकर लौटा। पसूी बबल्ली बदुढ़या को देखत ेही बोली, "म्याऊाँ , बदुढ़या नानी नमस्त।े मैं कैसी रहूाँगी तमु्हारी नौकरानी के काम के मलये?" नौकरानी के मलये

लडकी जगह बबल्ली को देखकर बदुढ़या चौंक गयी। बबगड कर बोली, "हे भगवान कहीीं जानवर भी घरों में नौकर हुआ करत े

हैं? तमु्हें तो अपना काम भी सलीके से करना नहीीं आता होगा। तमु मेरा काम क्या करोगी?"

लेककन पसूी बबल्ली बडी चालाक थी। आवाज को मीठी बना कर मसु्कुरा कर बोली, "अरे बदुढ़या नानी तमु तो बेकार ही परेशान होती हो। कोई खाना पकाने का काम तो है नहीीं जो मैं न कर सकाँ ाू। आखखर मचुगययों की ही देखभाल करनी है न? वो तो मैं खूब अच्छी तरह कर लेती हूाँ। मेरी मााँ ने तो खुद ही मचुगययााँ पाल रखी हैं। परूी सौ हैं। चगनकर मैं ही चराती हूाँ और मैं ही चगनकर बनद करती हूाँ। ववश्वास न हो तो मेरे घर चलकर देख लो।"

एक तो पसूी बबल्ली बडी अच्छी तरह बात कर रही थी और दसूरे बदुढ़या कािी थक भी गयी थी इसमलये उसने ज्यादा बहस

नहीीं की और पसूी बबल्ली को नौकरी पर रख मलया।

पसूी बबल्ली ने पहल ेददन मचुगययों को दडबे में से ननकाला और खूब भाग दौड कर पडोस में जाने से रोका। बदुढ़या पसूी बबल्ली की इस भाग-दौड से सींतषु्ट्ट होकर घर के भीतर आराम करने चली गयी। कई ददनों से दौडत ेभागत ेबेचारी कािी थक गयी थी तो उस ेनीींद भी आ गयी।

इधर पसूी बबल्ली ने मौका देखकर पहले ही ददन छे मचुगययों को मारा और चट कर गयी। बदुढ़या जब शाम को जागी तो उस े

पसूी की इस हरकत का कुछ भी पता न लगा। एक तो उस ेठीक से ददखाई नहीीं देता था और उस ेसौ तक चगनती भी नहीीं आती थी। किर भला वह इतनी चालाक पसूी बबल्ली की शरारत कैस ेजान पाती?

अपनी मीठी मीठी बातोंस ेबदुढ़या को खुश रखती और आराम से मचुगययााँ चट करती जाती। पडोमसयों से अब बदुढ़या की लडाई नहीीं होती थी क्योंकक मचुगययााँ अब उनके आहात ेमें घसु कर शोरगलु नहीीं करती थीीं। बदुढ़या को पसूी बबल्ली पर

इतना ववश्वास हो गया कक उसने मचुगययों के दडबे की तरि जाना छोड ददया।

Page 11: ववक क न ज क छ कक , इसक उस ह त ख श थ । और च द फ ट गय आश ष औ दहत क घ आपस मल ह ए थ । ववव

धीरे धीरे एक ददन ऐसा आया जब दडबे में बीस पच्चीस मचुगययााँ ही बचीीं। उसी समय बदुढ़या भी टहलती हुई उधर ही आ

ननकली। इतनी क़म मचुगययााँ देखकर उसने पसूी बबल्ली से पछूा, "क्यों री पसूी, बाकी मचुगययों को तनेू चरने के मलये कहााँ भेज ददया?" पसूी बबल्ली ने झट से बात बनाई, " अरे और कहााँ भेजाँाूगी बदुढ़या नानी। सब पहाड के ऊपर चली गयी हैं। मैंने

बहुत बलुाया लेककन वे इतनी शरारती हैं कक वापस आती ही नहीीं।"

"ओि् ओि् ! ये शरारती मचुगययााँ।" बदुढ़या का बडबडाना किर शरुू हो गया, "अभी जाकर देखती हूाँ कक ये इतनी ढीठ कैस ेहो गयी हैं? पहाड के ऊपर खुले में घमू रही हैं। कहीीं कोई शरे या भेडडया आ ले गया तो बस!"

ऊपर पहुाँच कर बदुढ़या को मचुगययााँ तो नहीीं ममलीीं। ममलीीं मसिय उनकी हडि्डयााँ और पींखों का ढे़र! बदुढ़या को समझत ेदेर न

लगी कक यह सारी करततू पसूी बबल्ली की है। वो तजेी से नीच ेघर की ओर लौटी।

इधर पसूी बबल्ली ने सोचा कक बदुढ़या तो पहाड पर गयी अब वहााँ मसर पकड कर रोएगी जल्दी आएगी नहीीं। तब तक क्यों न

मैं बची-बचाई मचुगययााँ भी चट कर लूाँ? यह सोच कर उसने बाकी मचुगययों को भी मार डाला। अभी वह बठैी उनहें खा ही रही थी कक बदुढ़या वापस लौट आई।

पसूी बबल्ली को मचुगययााँ खात ेदेखकर वह गसु्से से आग बबलूा हो गयी और उसने पास पडी कोयलों की टोकरी उठा कर

पसूी के मसर पर दे मारी। पसूी बबल्ली को चोट तो लगी ही, उसका चमकीला सिेद रींग भी काला हो गया। अपनी बदसरूती को देखकर वह रोने लगी।

आज भी लोग इस घटना को नही भलेू हैं और रोती हुई काली बबल्ली को डींडा लेकर भगात ेहैं। चालाकी का उपयोग बरेु कामों में करने वालों को पसूी बबल्ली जैसा िल भोगना पडता है।

बेंजी क बड ददन

बड ेददन की पवूय सींध्या थी। गमलयााँ और बाजार पररयों की नगरी जैस ेसज ेहुए थे। बाजार में सब दकुानों पर लाल, नीली, हरी, पीली बस्त्तयााँ तारों की तरह दटमदटमा रही थीीं। सभी दकुानें जगमगा रही थीीं। उनमें सजाया हुआ बड ेददन का सामान

मन को लभुा रहा था।

वहााँ तीन दकुानें ऐसी थीीं जो कक्रस्मस पेड बेच रहीीं थीीं। छोटे, बड ेसभी तरह के पेड थे। उनमें कुछ असली थे, कुछ बनावटी भी थे। ये पेड बड ेआकषयक ढाँग से सज ेहुए थे। सब चााँदी और सोने के ररबनों, रींगीन चमकदार गेंदों से सज ेखझलममला रहे

थे।

Page 12: ववक क न ज क छ कक , इसक उस ह त ख श थ । और च द फ ट गय आश ष औ दहत क घ आपस मल ह ए थ । ववव

बेंजी एक दकुान के बाहर खडा होकर एक पेड को देखन ेलगा। उसने सोचा, 'काश! ककसी तरह मझु ेयह पेड ममल जाये। समैी और रूथ पेड पाकर ककतनी खुश होंगी। किर उनका यह सबसे बेहतर कक्रस्मस होगा।' उस ेध्यान आया उस पेड का जो उसने

सबसे बडी दकुान में देखा था। 'मझु ेवही खरीदना है' यह सोचकर वह अनदर गया। उसने मामलक से उस पेड की ओर इशारा करत ेहुए दाम पछेू। दकुान के मामलक मोटे और गींजे मम. अब्राहम ने पहल ेऊपर से नीच ेतक बेंजी को देखा। किर बेंजी की कमीज के दाई ओर पर बने छेद को एकटक देखन ेलगा। उस पर पडती दकुानदार की नजर बेंजी से नछपी नहीीं रही। उसने

अपने दोनों हाथ कुछ इस मरुा में उठाए कक दाएाँ हाथ के नीचे वह छेद दब गया। 'वसै ेभी।' उसने सोचा, "मेरे पास परेू

अठ्ठाईस रूपये हैं। इससे क्या िकय पडता है कक मेरी कमीज में एक छेद है'।

"यह पैंतीस रूपये का है। क्या तमु खरीदना चाहत ेहो?" दकुानदार के मुाँह से यह बात सनुकर बेंजी का सारा ववश्वास नछनन-

मभनन हो गया। उस ेयह अहसास हो गया था जो पेड उस ेइतना पसनद आया है उस ेवह खरीद नहीीं सकता है। ये अठ्ठाईस

रूपये जो उसने परेू सप्ताह नकु्कड के ढाब ेपर कदठन पररश्रम करके कमाए थे वे कािी नहीीं थे।

उसने घींटो तक सैंकडो ग्राहकों को भाग-भाग कर भोजन परोसा था। वह अपनी छोटी बहनों समैी और रूथ के मलए पेड

खरीदना चाहता था। वह तो समझ रहा था कक पेड पच्चीस रूपये में ही आ जाएगा। बाकी तीन रूपये उस ेऔर सजाने में काम आएाँगे।

"क्या कह रहे हैं, मम. अब्राहम, वपछली बार तो यह केवल पच्चीस रूपये का ही था," बेंजी ने खझझकत ेहुए कहा।

"जरूर था। वपछल ेसाल पच्चीस रूपये का ही था। पर तमु्हें मालमू है न तब से अब तक महाँगाई ककतनी बढ़ गई है। मेरी दकुान में कोई भी पेड पैंतीस रूपये से कम नहीीं हैं।" मम. अब्राहम से कहा और पछूा, "जल्दी बोलो, तमु्हें लेना है या नहीीं?"

दकुानदार की बात सनुकर बेंजी का चेहरा शमय से लाल हो गया। ' ककतना कठोर आदमी है' सोचत ेहुए वह खखनन मन से

बाहर ननकल आया। अपनी परेशानी में दरवाज ेके पास रखी रेत की बालटी से भी टकरात-ेटकरात ेबचा। जब दकुान में लोग

उसके सारे पेड खरीद रहे हैं तो ऐसे में दकुानदार भला उसकी क्या परवाह करेगा। दकुान में भीड थी। माता-वपता और बच्चे आपस में चचल्लाकर बात कर रहे थ ेकक उनहें कौन-सा पेड पसनद है।

"अब मैं कहााँ से बाकी के सात रूपये लाऊाँ " बेंजी ने सोचा। उस ेदखु यह था कक इस बार उसके छोटे से घर में कोई पेड नहीीं होगा। उस ेअपनी बहनों का ववचार भी परेशान कर रहा था। उसने उनहें अब की बार बड ेददन का पेड लाने और उस ेखूब

सजाने के मलए, पणूय ववश्वास के साथ, सामान लाने का वायदा ककया था। यदद वह पेड नहीीं ले गया तो उनके मन पर क्या बीतगेी। बस्ल्क उसने तो अपने ममत्रों को भी आज रात खान ेपर आने का ननमींत्रण ददया था। पेड के बबना वह क्या मुाँह लेकर

घर जाएगा, और क्या अपने ममत्रों को ददखाएगा।

Page 13: ववक क न ज क छ कक , इसक उस ह त ख श थ । और च द फ ट गय आश ष औ दहत क घ आपस मल ह ए थ । ववव

शहर के दसूरे छोर पर बेंजी का छोटा-सा दो कमरों का घर था। वहााँ ऐसी दकुानों और सजावट कहााँ थी। बेंजी उदास मन

मलए जेब में हाथ डाल ेजूत ेसे पत्थरों को ठोकर मरता हुआ इधर से उधर घमूने लगा। बाज़ार के एक मसरे पर एक आधी बनी हुई इमारत खडी थी। शाम होने के कारण वहााँ बहुत वीरानी छाई हुई थी। बेंजी थोडी देर के मलए एक रेत के टीले पर जा बठैा। ठींड के मारे वह कााँप रहा था। किर उठकर बाजार में आ गया। सोचा, दबुारा पछेू। हो सकता है उनहोंने दाम गलत बता ददये हों। पर तभी ददमाग ने झटका ददया कक नहीीं। वास्तव में सबसे छोटे पेड का मलू्य पैंतीस रूपये ही था।

'बस सात ही रूपये तो कम थे। मैंने क्यों नहीीं वपछल ेहफ्त ेऔर सात रूपये कमा मलये? और दो-चार ददन ढाब ेमें ज्यादा काम कर लेता तो कमा ही लेता। इसी तरह अपने ऊपर झल्लात,े परै पटकत,े उसने किर अपने आपको उसी दकुान के

सामने खड ेपाया। उसने खखडकी में से देखा, वह पेड अभी तक वहीीं खडा था।

अचानक, उसने ममस्टर अब्राहम को दकुान से बाहर आत ेहुए देखा। वह अपने दोनों हाथ खुशी से मल रहे थ ेऔर कािी सनतषु्ट्ट लग रहे थे। वह दकुान के बाहर खड ेहोकर लोगों को आत-ेजात ेहुए देखन ेलगे।

जैसे ही बेंजी ने उधर देखा, दकुान के ऊपर लगा बडा ननऑन साईन बोडय जो हरे और लाल रींग में दटमदटमा, दटमदटमा कर

कह रहा था 'पेड बबक्री के मलए' वह धीरे-धीरे नीच ेसरक रहा है। बेंजी ने आव देखा न ताव, उछल कर ममस्टर अब्राहम को धक्का ददया और उनहें पीछे की ओर धकेल ददया। इस गतु्थम-गतु्था में दोनों जमीन पर लोटपोट हो गए। तभी वह बोडय धडाम से चगरा और टुकड-ेटुकड ेहो बबखर गया।

"क्या हुआ क्या ? दकुानदार एकदम घबरा गया था।

"ओह," बेंजी चचल्लाया, "तारों में से चचनगारी ननकल रही है।" जैस ेही वह कूदा तार एक गत्त ेके डडब्बे से छू गये जो वहीीं पड े

थे और तरुींत ही आग भडक उठी। "ओह, ओह, आग! आग," सहम ेसे मम. अब्राहम चचल्लाये। वह अभी तक जमीन पर बठेै

थे।

'आग' शब्द सनुत ेही कुछ ही क्षणों में भीड एकबत्रत हो गई। बेंजी एक झटके से उठा। उस ेदकुान के पास रखी रेत की बालटी का ध्यान आया। वही बालटी स्जससे वह पहल ेभी टकराया था। उसने बालटी की रेत आग पर िें कनी शरुू कर दी और लोगों ने भी ऐसी ही बालदटयााँ उठा लीीं। कई लोग चचल्ला भी रहे थे कक "आग बझुाने वालों को बलुाओ।" इतनी भागदौड और

गडबडी के बाद खतरा टल गया। लोग उत्तसे्जत होकर बात कर रहे थे। ककसी की आवाज सनुाई पडी, "यह वही लडका है

स्जसने ममस्टर अब्राहम की जान बचाई। ककतना चतरु है यह।" इशारा बेंजी की ओर था।

"और आग बझुाने में भी इसने ककतनी िुती से काम मलया, " ककसी दसूरे ने कहा।

Page 14: ववक क न ज क छ कक , इसक उस ह त ख श थ । और च द फ ट गय आश ष औ दहत क घ आपस मल ह ए थ । ववव

सारी बात सनु समझ कर ममस्टर अब्राहम भी मन ही मन बेंजी का गणुगान कर रहे थे।

भारी मन से उनहोंने बेंजी का कीं धा दबा ददया। बोले, "मैं तमु्हारा ककस तरह से धनयवाद करूाँ । तमुने आज मेरी जान बचाई

है।"

"नहीीं, नहीीं, ऐसा न कदहए ममस्टर अब्राहम, आप सरुक्षक्षत है यही मेरे मलए बहुत खुशी की बात है।" वह कुछ-कुछ शममयनदा महससू कर रहा था। "अब मझु ेघर जाने की अनमुनत दे," वह मडुने ही लगा था कक मम. अब्राहम ने शाींत स्वर में कहा, "मझुे याद है, तमु कुछ घींटे पहल ेयहााँ आये थे।" जो पेड बेंजी लेना चाहता था उसी की ओर इशारा करत ेहुए उनहोंने पछूा, "तमु

यही पेड लेना चाहत ेथे न?" बेंजी चुप था। "मैं तमु्हें यह पेड उपहार स्वरूप देना चाहता हूाँ। देखो इसे स्वीकार कर लो। इससे

मझु ेबहुत खुशी होगी।"

बेंजी को अपने कानों पर ववश्वास नहीीं हो रहा था। अपने शरीर पर उसने दो-तीन जगह चचकोटी काट कर देखा कक वह

सपना तो नहीीं देख रहा था। उसकी आाँखों में चमक आ गई। "धनयवाद सर, पर आप को यह पसै ेअवश्य लेने पडेंग ेऔर

बाकी पसै ेमैं कुछ ही ददनों मे लौटा दूाँगा।"

"नहीीं, नहीीं पसै ेकी बात करके तमु मझु ेशममयनदा मत करो, "मम. अब्राहम ने कहा। "मैं तमु्हें इस ेउपहार के रूप में देना चाहता हूाँ। मैं जानता हूाँ मेरी जान बचाने के बदल ेयह कुछ भी नहीीं है, पर क्योंकक तमु्हें यह पसनद आया था इसीमलए, "

कहत-ेकहत ेवह रूक गए।

"ओह धनयवाद सर, मेरी छोटी बहनें बहुत खुश होंगी। मैंने उनको आज रात पेड लाकर देने का वायदा ककया था।"

"तब तो तमु्हें अवश्य ही उनहें ननराश नहीीं करना चादहए, "मम. अब्राहम ने मसु्करात ेहुए कहा। "एक ममनट रूको," कहत ेहुए

वह अपनी दकुान के पीछे बने एक छोटे से कमरे में गायब हो गये। अगल ेही क्षण वह अपने हाथ में एक गत्ते का डडब्बा लेकर वापस आये। "इस ेभी पेड के साथ ले जाओ, इसमें कुछ सजावट का सामान है। और मेरी गाडी तमु्हें तमु्हारे घर तक

छोड आयेगी। नहीीं तो किर कोई समस्या आ खडी होगी।"

बेंजी जब घर पहुाँचा तो उस ेलगा जो गली अभी कुछ घींटों पहल ेतक ठींडी व वीरान लग रही थी अब खुमशयों से भर गई है।

उसे लगा कक हरी और लाल बस्त्तयााँ उसके हृदय को छू रही हैं। पेड उतारने के बाद, बेंजी ने ड्राइवर को एक पल के मलए

रूकने को कहा, "मैं मम. अब्राहम के मलए कुछ भेजना चाहता हूाँ।" घर के अनदर तजेी से जा कर बेंजी ने एक कागज पर कुछ

मलखा और एक मलिािे में डालकर उस ेबींद कर ददया और मम. अब्राहम को देने के मलए ड्राइवर को दे ददया। किर सखु की साींस ली।

Page 15: ववक क न ज क छ कक , इसक उस ह त ख श थ । और च द फ ट गय आश ष औ दहत क घ आपस मल ह ए थ । ववव

उस रात जब अमर और राहुल चले गये, और उसकी दोनों बहनें शाम के उत्साह से भरी सो गई, तब बेंजी उस पेड को देखने

लगा स्जसका प्रकाश परेू कमरे में िैल रहा था। इतनी सारी सजावट थी, सनुहरी और चाींदी के रींग के कााँच के गोले, लाल,

नीली, हरी और पीली बस्त्तयााँ, रींग-बबरींग ेररबन। पर सबसे अच्छा तो उस ेचमकीला मसतारा लगा था जो उनहें उस गत्त ेके

डडब्ब ेमें ममला था। जब भी वह खझलममलाता था तो लगता कह रहा हो, "मैं यहााँ खुश हूाँ।"

जब मम. अब्राहम ने वह मलिािा खोला तो उनहें उसमें कुछ रूपये और एक पजुाय ममला। "कृपया यह अठ्ठाईस रूपये स्वीकार

कीस्जयेगा। वपछल ेसाल पेड की यही कीमत थी। मैंने ज्यादा काम नहीीं ककया था, आपका बहुत-बहुत धनयवाद। कक्रस्मस

की बधाई।

पत्थर ही पत्थर

न जाने कौन बुद्धू होगा स्जसने ‘िस्टय अप्रैल िूल’ बनान ेका ररवाज चलाया होगा। मुझ ेऐसी बातें बबल्कुल अच्छी नहीीं लगतीीं।

वीनू ने वपछले साल मुझ ेमूखय बनाया था। बडी पक्की सहेली की दमु बनती है। सारे में मेरी, वह खखल्ली उडवाई

थी कक मैं महीने भर वीनू से बोली नहीीं। वह तो वीनू का

‘बथय ड’े न आता तो मैं उससे तब भी न बोलती।

मालूम है, उसने क्या ककया था? उसने न जाने कैसे एक कागज पर गध ेकी तस्वीर बनाकर मेरी ड्रसे के पीछे

चचपका दी थी। उस पर मलखा था-“मैं पत्थर हूाँ। बच के ननकलना!” सारे ददन सब बच्च ेमेरा मजाक बनात ेरहे-

‘भई, बच के चलो, कहीीं लग न जाए!’ और शाम को घर जाने पर मम्मी ने वह कागज ननकालकर मुझ ेददखाया था। यह बहादरेु का बच्चा है न हमारा नौकर, मुझे देखकर हाँसते-हाँसते लोटपोट हो गया था। बदतमीज कहीीं का! मुझ ेऐसा रोना आया था कक क्या बताऊाँ !

वीनू और इन सबने मुझे तींग न ककया होता, तो मैं कभी भी इन सबको ‘अप्रैल िूल’ बनाने की न सोचती। मैं हरचगज ऐसी बुद्धूपने की बातों में न पडती, पर क्या बताऊाँ ....।

Page 16: ववक क न ज क छ कक , इसक उस ह त ख श थ । और च द फ ट गय आश ष औ दहत क घ आपस मल ह ए थ । ववव

जनवरी में हमारे पडोस की कोठी में एक एस.डी.ओ. साहब बदली हो कर आए थे। उनकी लडकी रेवा उम्र में हमारे

ही बराबर है। पर वह मथरुा में ही अपनी बुआ के पास रह गई थी। लेककन होली पर वह अपने पापा-मम्मी के पास

आ गई थी। स्जस ददन मथरुा लौटने वाली थी, उसी ददन उसे तेज बुखार आ गया और टायिायड हो गया। अब

ठीक होकर वह चार-पााँच अप्रैल को वापस मथरुा जाने वाली थी।

मैंने भी सोचा कक रेवा के जनमददन के बहाने वपछले साल का बदला सबस ेएक साथ मलया जाए- ऐसा बदला कक

सारे के सारे हमेशा याद रखें!

पापा के एक दोस्त नाई की मींडी में रहत ेहैं। उनका लडका परेश तेरह साल का है, मुझसे तीन-चार साल बडा। मैंने उसी को अपना हमराज बनाया। उसने बड ेसुींदर-सुींदर अक्षरों में एक ननमींत्रण पत्र मलखा-रेवा की मम्मी की तरि

स,े कक सब बच्चों को रेवा के जनमददन के उपलक्ष में पहली अप्रैल को चाय का ननमींत्रण है। सभी बच्च ेजरुर-जरुर

आएाँ। नीच ेननमींबत्रत बच्चों के नाम थे, स्जनमें सबस ेऊपर मेरा नाम था। (स्जसस ेककसी को मेरे ऊपर शक न हो) नीच ेएक छोटी-सी सूचना भी थी कक कोई भी रेवा से इसका स्जक्र न करें क्योंकक अचानक सबको देखकर उसे बडी प्रसननता होगी। यह सब मलखवाने और ककसी से न कहने के मलए परेश को पूरे डढे़ रुपये वाली चाकलेट की घूस

देनी पडी। मैंने सोचा था, आधी चाकलेट तो वह मुझे देगा ही और इस तरह मेरे आधे पैसे वसूल हो जाएाँगे, पर

उसने मसिय एक चौकोर टुकडा मेरे हाथ में थमा ददया, बाकी सब खदु हडप गया। नदीदा कहीीं का!

अब सवाल था, कक यह ननमींत्रण ककससे मभजवाया जाए। सो मैंने रेवा के घर की महरी को पकडा और खबू समझा ददया कक मसवाय रेवा के वह सबके पास इस चचट्ठी को देकर दस्तखत करा लाए। पर वह क्यों करने लगी मुफ्त में मेरा काम? और उसको भी पूरा एक रुपया इस काम के मलए देना पडा। मेरी गुल्लक में सवा तीन रुपये जमा हुए

थे, उसी में से यह सब खचाय ककया था मैंने।

अब वीन,ू वपींकी, छुननू, दीना, पााँच ूसभी बड ेखशु। मैं भी बडी खशु। इसी के मलए तो ढ़ाई रुपये खचय ककए थे। जब

भी सब ममले, तो यही बातें हुईं कक कौन क्या पहन कर पाटी में जाएगा। रेवा के मलए कौन क्या उपहार ले जाएगा?

वपींकी िाउीं टेन पेन दे रही थी। वीनू की मााँ एक राइदटींग पैड और मलिािे लाई थी- यह सोचकर कक रेवा मथरुा में रहती है मााँ-बाप को चचट्ठी मलखने के काम आएगा। साथ में तस्वीरों वाले पोस्ट काडों का सेट भी था। छुननू ने एक

ग्लोब खरीदा था। दीना और पााँच ूक्या ले जाएाँगे, पता नहीीं था, क्योंकक उन दोनों ही के पापा अभी तक कुछ लाए

नहीीं थे। मैंने भी कह ददया कक ‘मेरेपापा ने कहा है कक कोई बदढ़या चीज लाएाँगे, देखों क्या लाकर देत ेहैं? मन ही मन मुझे बडी हाँसी आ रही थी कक सारे के सारे खबू उल्लू बन रहे हैं।

Page 17: ववक क न ज क छ कक , इसक उस ह त ख श थ । और च द फ ट गय आश ष औ दहत क घ आपस मल ह ए थ । ववव

दसूरे ददन ही पहली अप्रैल थी। सुबह से मेरे मन में शाम का नजारा देखने की बेचनैी थी। जब कक सबके सब

अपने-अपन ेप्रेजेंट लेकर जाएाँगे और रेवा और उसकी मम्मी परेशान-सी सब के मुाँह ताकें गी और घबडा कर

कहेंगी कक ‘अरे, हमने तो ककसी को नहीीं बुलाया था। रेवा का जनम ददन तो आज है भी नहीीं।‘ उस समय सबकी खखमसयानी सूरतें देखने काबबल होंगी। वाह, क्या मजा आएगा! सारे के सारे नदीदे ममठाई खाने के बदले वपटा-सा मुाँह लेकर लौटेंगे।

कल वपींकी कह रही थी कक कहीीं हमें ‘अप्रैल िूल’ तो नहीीं बनाया जा रहा है, तो पााँच ूऔर दीना दोनों ही बोले-“वाह,

रेवा की मम्मी हमें क्यों बेवकूि बनाने लगीीं? यदद रेवा बुलाती तो कोई बात थी सोचने की।“ सभी न ेयह बात

मान ली थी।

सारे ददन स्कूल में मेरा मन नहीीं लगा। लेककन एक बात सबसे मुस्श्कल थी। वह यह कक मुझ ेतो मालूम ही है कक

सबको बेवकूि बनाया जा रहा है, इसमलए मैं जाऊाँ या नहीीं। बबना गए सब की खखमसयानी सूरतें देखूाँगी तो कैसे?

जाऊाँ तो कुछ प्रेजेंट ले जाना चादहए या नहीीं?

शाम को घर आकर मैंने जल्दी से एक डडब्बा मलया। उसमें खबू से कागज भरे, बीच में कागज मलपटा एक पत्थर

रखा। उस पर मलखा ‘िस ्यट अप्रैल िूल!’ किर डडब्बे पर एक लाल कागज चढ़ाया और सादी-सी फ्रॉक पहन कर

रेवा के घर चल दी। सोचा था बाहर से ही रेवा को दे दूाँगी कक मुझ ेजरुरी काम से जाना है, मैं आ न सकूाँ गी।

रास्ते में सोचती जा रही थी कक ये लोग लौटते हुए या रेवा के घर से ननकलते हुए ददखाई दे जाएाँ, तो ही मजा रहे।

पर न तो मुझ ेरास्ते में कोई ददखा, न रेवा के घर से ननकलता हुआ ही ममला। हाय राम! कहीीं ऐसा तो नहीीं कक वे लोग आए ही न हों और सबको पता लग गया हो कक वे बुद्धू बनाए जा रहे हैं।

इसी उलझन में मैं बाहर के दरवाजे तक पहुाँची, तो सामने महरी बैठी तमाख ूखा रही थी। मुझे देखते ही काली-काली बत्तीसी ननपोरकर बोली“आवौ्, ममननी रानी, आवौ। सबकै सब खाय रहे हैं। तुमहु जावौ, माल उडावौ।

तुम्हार चचदठया ने तो खबू काम बनावौ।“

“क्या सब खा रहे हैं?” मैं हैरान-सी महरी का मुाँह ताकती रह गई। “क्या कह रही है तू?”

Page 18: ववक क न ज क छ कक , इसक उस ह त ख श थ । और च द फ ट गय आश ष औ दहत क घ आपस मल ह ए थ । ववव

तभी रेवा मुझ ेदरवाज ेपर देखकर भागती हुई आई। “आओ, ममननी, आओ। तुमन ेबडी देर कर दी। तुम्हारा इींतजार करते-करते अभी-अभी खाना शुरु ककया है।“

मैं घबडा गई। “क्या तेरा सचमुच आज जनम ददन है।“

“अरे हााँ, सच ही तो है। और तू क्या मजाक समझ रही थी कक आज सबको ‘अप्रैल िूल’ बनाया जा रहा है?”

तभी पााँचू हाथ में ममठाई-नमकीन भरी प्लेट लेकर बाहर आ गया। (हाय! ककतनी सारी चीजें थीीं उसमें- सब मेरी पसींद की!)

मुाँह में रसगुल्ला ठूाँसत ेहुए पााँच ूबोला, “वाह, ममननी रानी, इतनी देर कर दी तुमन!े मैं तो रेवा से कह रहा था कक

ममननी नहीीं आएगी। उसकी प्लेट भी मुझ ेही दे दो।“ किर मेरे हाथ के डडब्ब ेपर झूकत ेहुए बोला, “वाह, बडा भारी प्रेजेंट ले कर आई हो तुम तो! क्या लाई हो इसमें?”

पत्थर लाई हूाँ- मैंने मन ही मन कहा और रेवा जो मुझ ेपकड कर अींदर खीींच रही थी, उसके हाथों स ेअपने को छुडाकर मैंने एकदम घबडाकर कहा, “रेवा, मैं तो समझी थी कक हमें बुद्ध ूबनाया जा रहा है।“

“हट पगली कहीीं की, मम्मी भी तुम लोगों को बुद्धू बना सकती हैं क्या? पर देखो न, हर साल मम्मी से कहती थी पर उनहोंने कभी मेरा जनम-ददन नहीीं मनाया। कह देती थी- “पहली अप्रैल’ को कोई नहीीं आएगाय सब समझेंगे

“अप्रैल िूल” बना रहे हैं। अब की देखो, मम्मी ने बबना मुझ ेबताए ही सबको बुला मलया। सच, मम्मी बहुत

अच्छी हैं.....अच्छा, अब चलो न.....” उसने अब किर मेरा हाथ पकड मलया। पर मैं अपना हाथ छुडा कर तेजी से बाहर भागी- “रेवा, मैं बाद में आऊाँ गी ....” कहती हुई मैं भाग चली। रास्ते में किर महरी ददख गई। बोली, “क्यों, रानी, लौट काहे आई? अरे, तुम्हारी चचदठया बहू जी न ेपढ़ी थी, वो तुम स ेबहुत खुश हैं। जावौ तुम्हें डबल दहस्सा ममलेगा।“

तो यह बात है! इस महरी की बच्ची न ेही सारी गडबड की..... पर रेवा का तो सचमुच आज ही जनम-ददन है। नछिः आज का ददन कोई पैदा होने का ददन होता है। तभी बुद्ध ूजैसी ददखती है..... पर...हाय! ककतनी बदढ़या-बदढ़या चीजें थी पााँच ूकी प्लेट में!

Page 19: ववक क न ज क छ कक , इसक उस ह त ख श थ । और च द फ ट गय आश ष औ दहत क घ आपस मल ह ए थ । ववव

मम्मी घर में होतीीं, तो उनसे ही जल्दी से घर में से ही कुछ ननकलवा कर रेवा के मलए ले जाती, पर उनहें भी पाटी में आज ही जाना था। साथ में दटींकू को भी ले गईं.... मैं यहााँ.... भगवान करे वह भी वहााँ खबू बुद्धू बनाई जाएाँ!

मुझ ेइतना रोना आया कक पलींग पर चगरकर खबू रोई। तभी बहादरेु ने आ कर पूरा पैकेट खोल डाला” ममननी, यह

क्या है? क्या लाई है त.ू...?”

“मसर लाई हूाँ तेरा!” मैंने पैकेट उसके हाथ से झपटना चाहा कक उसमें से खलुकर सारे कागज और पत्थर भी नीचे चगर पड,े स्जन पर मलखा था “अप्रैल िूल!”

घमडंी कौव हींसों का एक झुण्ड समुर तट के ऊपर से गुज़र रहा था, उसी जगह एक कौवा भी मौज मस्ती कर रहा था। उसने हींसों को उपेक्षा भरी नज़रों से देखा “तुम लोग ककतनी अच्छी उडान भर लेते हो !” कौवा मज़ाक के लहजे में बोला, “तुम लोग और कर ही क्या सकते हो बस अपना पींख िडिडा कर उडान भर सकते हो !!! क्या तुम मेरी तरह िूती से उड सकते हो ??? मेरी तरह हवा में कलाबास्जयाीं ददखा सकते हो ??? नहीीं, तुम तो ठीक से जानते भी नहीीं कक उडना ककसे कहत ेहैं !” घमींडी कौवा

कौवे की बात सुनकर एक वदृ्ध हींस बोला,” ये अच्छी बात है कक तुम ये सब कर लेत ेहो, लेककन तुम्हे इस बात पर

घमींड नहीीं करना चादहए।”

” मैं घमींड – वमींड नहीीं जानता, अगर तुम में से कोई भी मेरा मुकाबला कर सकत है तो सामने आये और मुझे हरा कर ददखाए।”

एक युवा नर हींस न ेकौवे की चनुौती स्वीकार कर ली। यह तय हुआ कक प्रनतयोचगता दो चरणों में होगी, पहले

चरण में कौवा अपने करतब ददखायेगा और हींस को भी वही करके ददखाना होगा और दसूरे चरण में कौवे को हींस

के करतब दोहराने होंगे।

Page 20: ववक क न ज क छ कक , इसक उस ह त ख श थ । और च द फ ट गय आश ष औ दहत क घ आपस मल ह ए थ । ववव

प्रनतयोचगता शुरू हुई, पहले चरण की शुरुआत कौवे ने की और एक से बढ़कर एक कलाबस्जया ददखाने लगा, वह

कभी गोल-गोल चक्कर खाता तो कभी ज़मीन छूत े हुए ऊपर उड जाता। वहीीँ हींस उसके मुकाबले कुछ खास नहीीं कर पाया। कौवा अब और भी बढ़-चढ़ कर बोलने लगा,” मैं तो पहले ही कह रहा था कक तमु लोगों को और कुछ भी नहीीं आता…ही ही ही…”

किर दसूरा चरण शुरू हुआ, हींस न ेउडान भरी और समुर की तरि उडने लगा। कौवा भी उसके पीछे हो मलया,” ये

कौन सा कमाल ददखा रहे हो, भला सीधे -सीधे उडना भी कोई चनुौती है ??? सच में तुम मूखय हो !”, कौवा बोला।

पर हींस ने कोई ज़वाब नही ददया और चपु-चाप उडता रहा, धीरे-धीरे वे ज़मीन स ेबहुत दरू होत े गए और कौवे का बडबडाना भी कम होता गया, और कुछ देर में बबलकुल ही बींद हो गया। कौवा अब बुरी तरह थक चकुा था, इतना कक अब उसके मलए खदु को हवा में रखना भी मुस्श्कल हो रहा था और वो बार -बार पानी के करीब पहुच जा रहा था। हींस कौवे की स्स्थनत समझ रहा था, पर उसने अनजान बनत ेहुए कहा,” तुम बार-बार पानी क्यों छू रहे हो, क्या ये भी तुम्हारा कोई करतब है ?””नहीीं ” कौवा बोला,” मुझे माफ़ कर दो, मैं अब बबलकुल थक चकूा हूाँ और

यदद तुमन ेमेरी मदद नहीीं की तो मैं यहीीं दम तोड दूींगा…मुझ ेबचा लो मैं कभी घमींड नहीीं ददखाऊीं गा….”

हींस को कौवे पर दया आ गयी, उसने सोचा कक चलो कौवा सबक तो सीख ही चकुा है, अब उसकी जान बचाना ही ठीक होगा,और वह कौव ेको अपने पीठ पर बैठा कर वापस तट की और उड चला।

िरै रवववार का ददन था। सबकी छुट्टी थी। आसमान साि था और ठींडी-ठींडी हवा बह रही थी। सूरज की ककरणें शहर के ऊपर बबखरी थीीं। धपू में गरमी नहीीं थी। मौसम सुहावना था। बबलकुल वैसा जैसा एक वपकननक के मलए होना चादहये। मननू सोचने लगा, काश! आज हम कहीीं घूमन ेजा सकते।

मननू रसोई में आया। मााँ बेमसन में बतयन धो रही थी।

"मााँ क्या आज हम कहीीं घूमने चल सकते हैं?" मननू ने पूछा।

"क्यों नही, अगर तुम्हारा स्कूल का काम पूरा हो गया तो हम ज़रूर घूमने चलेंगे।" मााँ न ेकहा।

Page 21: ववक क न ज क छ कक , इसक उस ह त ख श थ । और च द फ ट गय आश ष औ दहत क घ आपस मल ह ए थ । ववव

"मैं आधे घींटे के अींदर स्कूल का काम पूरा कर सकता हूाँ।" मननू ने कहा।

मननू स्कूल का काम करने बैठ गया।

"हम कहााँ घूमन ेचलेंगे?" मननू न ेपूछा।

"बाबा और मुननी ने गाींधी पाकय का काययक्रम बनाया है।" मााँ ने बताया।

"यह पाकय तो हमने पहले कभी नहीीं देखा?" मननू न ेपूछा।

"हााँ, इसीमलये तो।" मााँ ने उत्तर ददया।

मननू काम पूरा कर के बाहर आ गया।

"क्या गाींधी पाकय बहुत दरू है?" मुननी न ेपूछा।

"हााँ, हमें कार से लम्बा सिर करना होगा।" बाबा ने बताया।

सुबह के काम पूरे कर के सब लोग तैयार हुए। मााँ ने खाने पीन ेकी कुछ चीज़ें साथ में ली और वे सब कार में बैठ

कर सैर को ननकल पड।े

रास्ता मज़ेदार था। सडक के दोनो ओर पेड थे। हरी घास सुींदर ददखती थी। सडक पर यातायात बहुत कम था। सफे़द रींग के बादल आसमान में उड रहे थे। बाबा कार चला रहे थे। मुननी ने मीठी वपपरममींट सबको बाींट दी। कार में गाने सुनत ेहुए रास्ता कब पार हो गया उनहें पता ही नहीीं चला। बाबा न ेकार रोकी। मााँ न ेकहा सामान बाहर ननकालो अब हम उतरेंगे।

गाींधी पाकय में अींदर जा कर मुननी ने देखा चारों तरि हररयाली थी। वह इधर-उधर घूमने लगी। बहुत स ेपेड थे। कुछ दरू पर एक नहर भी थी। नहर के ऊपर पुल था। उसने पुल के ऊपर चढ़ कर देखा। बडा सा बाग था। एक तरि िूलों की क्याररयााँ थीीं। थोडा आगे चल कर मुननी ने देखा गााँधी जी की एक मूनतय भी थी।

घूमत-ेघूमत ेमुननी को प्यास लगन ेलगी। मााँ ने मुननी को चगलास में सींतरे का जूस ददया। मााँ और बाबा पाकय के बीच में बने लींबे रास्ते पर टहलने लगे। मुननी िूलों की क्याररयों के पास नततमलयााँ पकडने लगी। नततमलयााँ तेज़ी से उडती थीीं और आसानी से पकड में नहीीं आती थीीं। नततमलयों के पीछे दौडते-दौडत ेजब वह थक गयी तो एक पेड के नीचे सुस्तान ेबैठ गयी।

उसने देखा पाकय में थोडी दरू पर झूले लगे थे। मननू एक किसलपट्टी के ऊपर स ेमुननी को पुकार रहा था,

"मुननी मुननी यहााँ आकर देखो ककतना मज़ा आ रहा है।"

मुननी आराम करना भूल कर झूलों के पास चली गयी। वे दोनों अलग अलग तरह के झूलों का मज़ा लेत ेरहे।

Page 22: ववक क न ज क छ कक , इसक उस ह त ख श थ । और च द फ ट गय आश ष औ दहत क घ आपस मल ह ए थ । ववव

"मननू - मुननी बहुत देर हो गयी? घर नहीीं चलना है क्या?"

मााँ और बाबा बच्चों से पूछ रहे थे।

दोनों बच्चे भाग कर पास आ गए।

"पाकय कैसा लगा बच्चों?" मााँ ने पूछा।

"बहुत बदढ़या" मननू और मुननी ने कहा। वे खशु ददखाई देते थे।

चलो, अब वापस चलें, किर ककसी ददन दबुारा आ जाएाँगे।" बाबा न ेकहा।

सिर मज़ेदार था। ददन सिल हो गया। बच्चों ने सोचा।

सब लोग कार में बैठ गए। बाबा ने कार मोडी और घर की ओर ले ली। मौसम अभी भी बदढ़या था। मुननी किर से सबको मीठी वपपरममींट देना नहीीं भूली। सैर की सिलता के बाद सब घर लौट रहे थे।

भगव न के भरोिे सूयय अस्त हो चला था। आकाश में बादल छाए हुए थे। नीम के एक पेड पर ढेर सारे कौवे रात बबताने के मलए बैठे

हुए थे। कौव ेअपनी आदत के अनुसार, आपस में एक-दसूरे से कााँव-कााँव करते हुए झगड रहे थे। उसी समय एक

मैना आई और रात बबताने के मलए नीम के उस पेड की एक डाल पर बैठ गई। मैना को देखकर सभी कौवे उसकी ओर देखने लगे।

बेचारी मैना सहम गई। डरत ेहुए बोली, "अाँधेरा हो गया है। आसमान म ेबादल छाए हुए है। ककसी भी समय पानी बरस सकता है। मैं अपना दठकाना भूल गई हूाँ। आज रात भर मुझ ेभी इस पेड की एक डाल के एक कोने में रात

बबता लेने दो।"

कौवे भला कब उसकी बात मानते। उनहोंने कहा, "यह नहीीं हो सकता। यह पेड हमारा है। तुम इस पेड नहीीं बैठ

सकती हो। भागो यहााँ से।"

Page 23: ववक क न ज क छ कक , इसक उस ह त ख श थ । और च द फ ट गय आश ष औ दहत क घ आपस मल ह ए थ । ववव

कौवों की बात सुनकर बड ेही दीन स्वर में मैना बोली, "पेड तो सभी भगवान के हैं। यदद बरसात होने लगी और

ओले पडन ेलगे, तो भगवान ही सबको बचा सकता है। मैं बहुत छोटी हूाँ। तुम लोगों की बहन हूाँ। मेरे ऊपर दया करके रात बबता लेने दो।"

मैना की बात सुनकर सभी कौवे हाँसन ेलगे। किर बोले, "हम लोगों को तेरी जैसी बहन की कोई जरूरत नहीीं है। तू भगवान का नाम बहुत ले रही है, तो भगवान के सहारे यहााँ से जाती क्यों नहीीं? यदद तू यहााँ स ेनहीीं जाएगी, तो हम सब ममलकर तुझ ेमार भगाएाँगे।" और सभी कौवे मैना को मारने के मलए उसकी ओर दौड पड।े

कौवों को कााँव-कााँव करत ेहुए अपनी ओर आत ेदेखकर मैना वहााँ से जान बचाकर भागी। वहााँ स ेथोडी दरू एक

आम के पेड पर अकेले ही रात बबताने के मलए मैना एक कोने में नछपकर बैठ गई।

रात में तेज हवा चली। कुछ देर बाद बादल बरसने लगे और इसके साथ ही बड-ेबड ेओले भी पडने लगे। ओलों की मार से बहुत से कौवे घायल होकर जमीन पर चगरन ेलगे। कुछ तो मर भी गए।

मैना आम के स्जस पेड पर बैठी थी, उस पेड की एक डाल टूट गई। आम की वह डाल अनदर से खोखली थी। डाल

टूटने की वजह से डाल के अनदर के खाली स्थान में मैना नछप गई। डाल में नछप जाने की वजह से मैना को न तो हवा लगी और न ही ओले ही उसका कुछ बबगाड पाए। वह रात भर आराम स ेबैठी रही।

सवेरा होन ेपर जब सूरज ननकला, तो मैना उस खोह से ननकली और खशुी से गाती-नाचती हुई ईश्वर को प्रणाम

ककया। किर आकाश में उड चली। मैना को आराम से उडत ेहुए देखकर, जमीन पर पड ेघायल कौवों न ेकहा, "अरी मैना बहन, तुम रात को कहााँ थीीं? तुम्हें ओलों की मार से ककसने बचाया?"

मैना बोली, "मैं आम की डाली पर बैठी ईश्वर से प्राथयना कर रही थी कक हे ईश्वर! दखुी और असहाय लोगों की रक्षा करना। उसने मेरी प्राथयना सुन ली और उसी ने मेरी भी रक्षा की।"

मैना किर बोली, "हे कौवों सुनो, भगवान न ेकेवल मेरी रक्षा ही नहीीं की। वह तो जो भी उस पर ववश्वास करता है

और उसकी प्राथयना करता है, उसे याद करता है, तथा भरोसा करता है, ईश्वर उसकी रक्षा अवश्य ही करता है और

कदठन समय में उसे बचाता भी है।"

Page 24: ववक क न ज क छ कक , इसक उस ह त ख श थ । और च द फ ट गय आश ष औ दहत क घ आपस मल ह ए थ । ववव

एक िे भले दो ककसी गाींव में एक ब्राहमण रहता था| एक बार ककसी काययवश ब्राहमण को ककसी दसूरे गाींव जाना था| उसकी मााँ ने उस

से कहा कक ककसी को साथ लेले क्यूाँ कक रास्ता जींगल का था| ब्राहमण ने कहा मााँ! तमु डरो मत,मैं अकेला ही चला जाऊीं गा क्यों कक कोई साथी ममला नहीीं है| मााँ ने उसका यह ननश्चय जानकर कक वह अकेल ेही जा रहा है पास की एक नदी से मााँ एक केकडा पकड कर ले आई और बेटे को देत ेहुए बोली कक बेटा अगर तमु्हारा वहाीं जाना आवश्यक है तो इस केकड ेको ही साथ के मलए लेलो| एक से भले दो| यह तमु्हारा सहायक मसध्द होगा| पहले तो ब्राहमण को केकडा साथ लेजाना अच्छा नहीीं लगा, वह सोचने लगा कक केकडा मेरी क्या सहायता कर सकता है| किर मााँ की बात को आज्ाींरूप मान कर उसने पास

पडी एक डडब्बी में केकड ेको रख मलया| यह डब्बी कपरू की थी| उसने इस को अपने झोल ेमें डाल मलया और अपनी यात्रा के

मलए चल पडा|

कुछ दरू जाने के बाद धूप कािी तजे हो गई| गमी और धूप से परेशान होकर वह एक पेड के नीचे आराम करने

लगा| पेड की ठींडी छाया में उस ेजल्दी ही नीींद भी आगई| उस पेड के कोटर में एक साींप भी रहता था| ब्राहमण को सोता देख कर वह उस ेडसने के मलए कोटर से बाहर ननकला| जब वह ब्राहमण के करीब आया तो उस ेकपरू की सगुींध आने

लगी| वह ब्राहमण के बजाय झोल ेमें रख ेकेकड ेवाली डडब्बी की तरि हो मलया|उसने जब डब्बी को खान ेके मलए झपटा मारा तो डब्बी टूट गई स्जस से केकडा बाहर आ गया और डडब्बी साींप के दाींतों में अटक गई केकड ेने मौका पाकर साींप को गदयन से पकड कर अपने तजे नाखूनों से कस मलया|साींप वहीीँ पर ढेर हो गया| उधर नीींद खुलने पर ब्राहमण ने देखा की पास में ही एक साींप मारा पडा है| उसके दाींतों में डडबबया देख कर वह समझ गया कक इस ेकेकड ेने ही मारा है| वह सोचने

लगा कक मााँ की आज्ाीं मान लेने के कारण आज मेरे प्राणों की रक्षा हो गई, नहीीं तो यह साींप मझु ेस्जनदा नहीीं छोडता| इस

मलए हमें अपने बड,े माता ,वपता और गरुु जनों की आज्ाीं का पालन जरुर करना चादहए|

गौरव और ह थी एक जींगल में एक तमाल का पेड था| तमाल के पेड पर गौरवा पक्षक्षयों का एक जोडा रहता था| गौरवा के घौसले

में छोटे छोटे चार अींड ेथे| अण्डों में से अभी बच्च ेननकल भी नहीीं पाए थे कक एक ददन एक मतवाले हाथी ने पेड

की शाखाओीं को तोड डाला,स्जस पर गौरवा पक्षक्षयों का घौसला था| पक्षी खदु तो बच गए पर सारे अींड ेिूट गए|

गौरवी व्यचथत ह्रदय से रोने लगी, उसे ककसी प्रकार स ेशाींनत नहीीं ममली| गौरवा का एक ममत्र था कठिोडवा|

गौरवा को रोते देख कर कठिोडवा उसके नजदीक जाकर उसको तसल्ली देने लगा| गौरवा ने कहा उस दषु्ट्ट ने हमारे घौसले को तोड ददया और सारे अण्डों को िोड डाला| उसे दींड ददए बबना मेरे मन को शाींनत नहीीं ममलेगी|

Page 25: ववक क न ज क छ कक , इसक उस ह त ख श थ । और च द फ ट गय आश ष औ दहत क घ आपस मल ह ए थ । ववव

कठिोडवा न ेकहा हम उस हाथी के सामने बहुत छोटे हैं, परनत ुसींगठन में बडी ताकत होती है| हम लोग ममल

कर प्रयास कर के उस से बदला ले सकते हैं| मेरी एक सहेली है मध ुमक्खी, मैं उस स ेभी सहायता करने को कहूाँगा |

गौरवा को आश्वासन दे कर कठिोडवा मधु मक्खी के पास गया| उसने गौरवा की सारी कहानी उस को सुना दी| सुन कर मधु मक्खी भी सहायता के मलए तैयार हो गई| मधु मक्खी न ेकहा कक पहले मेरे ममत्र मेढक के

पास चलना होगा वह कािी बुवद्धमान है | उसकी योजना स ेहम हाथी को जरुर कोई दींड दे सकते हैं| और वे दोनों मेढक के पास चले गए|

कठिोडवा ओर मध ुमक्खी न े मेढक को गौरवा की सारी कहानी बताई तो मेढक ने कहा सींगठन के समक्ष

वह हाथी क्या चीज है? इस के मलए आप सब मेरी योजना अनुसार काम करें| मेढक ने बताया कल दोपहर को मध ुमक्खी हाथी के कान के पास जाकर वीणा जैसी मधरु धनु में गाएगी, स्जस ेसुन कर हाथी मुग्ध हो जाएगा और अपनी आाँखें बींद कर लेगा| ठीक उसी समय कठिोडवा हाथी की दोनों आाँखोंको अपनी तजे चौंच से िोड

देगा| अाँधा हाथी जब प्यास से ब्याकुल होगा तो मैं एक बड ेगढ्ढे के पास से अपने पररवार के साथ टरय टरय की आवाज करूाँ गा,स्जस से उसको जल का भ्रम होगा और वह उधर को भागेगा और वह गढ्ढे में चगर जाएगा|

अगले ददन उन सबने इसी प्रकार योजनाबध्द ढींग स ेहाथी को अाँधा कर के गढ्ढे में चगरा ददया और वह हाथी बाहर नहीीं ननकल सका| भूख प्यास से तडप कर वहीीँ मर गया| इसी मलए कहते हैं कक सींगठन में बडी ताकत

होती है| सींगठन से काम करने पर बड ेसे बडा काम भी सींभव हो जाता है|

vxj vki bl rjg fd vkSj cPpksa dh dgkfu;k¡ i<+uk pkgrs gSa rks gekjs

bl ladyu dks ns[ks & cky dgkfu;ksa dk vueksy laxzg

www.motivationalstoriesinhindi.in