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गगगगग गग गगगगग-गगगगग गगगगगग : गग. गगगगगग गगगगगग गगगगगगगगगगगग गगगगगग गगग गगगगगग गगगगगगग गगगगगगग गगगगग गगगगगगगग गगगगगग गगगगगग गग गगगगगगगगग ISBN 81-902-4358-6 पपपपपपप गगगग गगगगग गगगगग, गगगगगगग ग गगगग गगगग गगगगगगगगगगगग गगगगगग गगग गगगगगगग गगगगग गगगगगगगग गगगगगगगग 7 गगगगगग गगगगग गगग, गगगगग 400002 गगगगगगगग गग गग गगगग गगगगगगगगग गग गगग गग गग 'गगगगगगगगगगगग गगगगगग गगग' गगगगगग गगगगगगगग 'गगगगगगगगगगगग गगगगग' गगगगगगग गगग गगग गगगगगगगगग गगगगगगग गग गगगगगग गगगगगगग गगगगग गग गगग गग 'गगगगग गग गगगगग-गगगगग' गगगगगग गग गगग गगग गगगगगग गगगग गगग गग

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गाधी और गाधी-माग सपादक : डॉ. सशीला गपता

  हि�नदसतानी परचार सभा दवारा सचालि�त

म�ातमा गाधी ममोरिरय� रिरसच सणटर की परसतहित

     ISBN 81-902-4358-6परकाशक

शरी सभाष समपत, टरसटी व मानद सलिचव हि�नदसतानी परचार सभा

म�ातमा गाधी ममोरिरय� हि)लडि+ग7 नताजी सभाष रोड, म)ई 400002सदभावना क दो शबद

परसननता की )ात � हिक ' हि�नदसतानी परचार सभा' दवारा परकालिशत ' हि�नदसतानी ज)ान' पहि6का म छप गाधीवादी हिवचारो पर आधारिरत अधिधकाश �खो को अ�ग स ' गाधी और गाधी-माग' पसतक क रप म

सकलि�त हिकया गया �। म�ातमा गाधी क हिवचारो की जिजतनी पनरावततिC �ोती �, उतनी �ी ग�राई स व �मार दिद�ो- दिदमाग म

उतरत �। पसतकाकार परकालिशत �खो की पनरावततिC पाठको क सामन नय सदश परसतत करगी, मरा य� परा हिवशवास �।

हिवडम)ना य� � हिक आज अ�गाववाद और आतकवाद की जड ग�राई स फ�ती जा र�ी � और �ोग � हिक व गाधीजी क )ताय आसान रासत पर च�न स पर�ज करन �ग �। भारत �ी न�ी, भारततर

दशो क नवजवान गमरा� �ो र� �। उनको जीवन का मो� समझानवा�ा और उनक �ाथो म हिववक की मशा� पकडानवा�ा एकमा6 रासता उनकी आखो क सामन �, परनत उनकी आखो पर पटटी )धी हई

�। इसका नतीजा �मार सामन �। सतय और अहि�सा जस सशकत शस6ो क �ोत हए भी �म असरकषा क लिशकार �ोत जा र� �। �मारी सामाजिजक और राजनीहितक सरचना खोख�ी लिसदध �ोन �गी �। म�ातमा गाधी क सदशो की खालिसयत य� � हिक �म उन पर अम� करक अपना �ी न�ी, दसरो का भी

जीवन सवार सकत �, सामाजिजक चतना �ा सकत �, दश क उदधार म मददगार साहि)त �ो सकत �। )लकि\क म तो य�ा तक कहगा हिक मासम जिजनदहिगयो को मानवीय गरिरमा परदान करन की दिदशा म गाधी-

माग क अ�ावा और कोई माग � �ी न�ी। आज करीहितयो और हिवसगहितयो स �डन का एकमा6 रासता गाधी- माग �ी तो �!

ज�ा- ज�ा गाधी क हिवचार �, गाधी क लिसदधानत �, गाधी की वाणी �, व�ा तक �म �ोग ' हि�नदसतानी परचार सभा' क माधयम स पहचन का हिनरनतर परयास करत �। पसतक का सपादन 'सभा' की हिनदशक डॉ. सशी�ा गपता न )डी कश�ता स हिकया �, म उन� )धाई

दता ह।- डॉ. इसहाक जमखानावा�ाकायाधयकष, हि�नदसतानी परचार सभाम)ई4 लिसत)र 2006

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परसतावना' हि�नदसतानी परचार सभा' दवारा परकालिशत हिदवभाषी ( हि�नदी और उद) 6मालिसक पहि6का ' हि�नदसतानी ज)ान' म समय- समय पर म�ातमा गाधी पर आधारिरत �ख छपत र� �। इनम कछ म�ततवपण �खो को ' गाधी

और गाधी-माग' पसतक म सकलि�त हिकया गया �। य �ख सपरलिसदध �खको, शोधारथिथयो और पराधयापको क परिरशरम क परिरणाम �।

म�ातमा गाधी यग- परष थ। उन� स�सराबदी- परष माना गया। उन�ोन अपन जीवन को परयोगो स जोडा। व जिजनदगी- भर परयोग करत र� और अपन आप को परीकषाओ की कसौदिटयो पर कसत र�। व एक

ग�सथ थ, एक सत थ, एक धारमिमक परष थ और राजनीहित क माग पर च�नवा�, सतय और अहि�सा जसी ताकतो स ससजज योदधा थ। व क� धिम�ाकर ऐस साधक थ, जो अपनी साधना को क�हिषत न�ी

कर सकत थ। साधन की पहिव6ता क सामन व अपन पराणो को तचछ समझत थ। गाधीजी न साधन की पहिव6ता की रकषा करत हए अपन जीवन का माग हिनधारिरत हिकया। उद क शायर

अश मलसि\सयानी न उनक मज)त इरादो क )ार म लि�खा �, " ऊच पर)त, ग�र सागर दख क � �रान / उड सकता � हिकतना ऊचा / जा सकता � हिकतना ग�रा / धन का पकका, )ात का सचचा एक कमजोर

इनसान।'' इस धन क पकक इनसान न जिजस तरफ रख हिकया, जन- सागर उमड पडा। उन�ोन सवदशी और सवभाषा

आनदो�न च�ाया और असपशयता-हिनवारण, दलि�त-चतना, मदिदर- परवश और यगोपयोगी लिशकषा क लि�ए �ोगो म चतना जगायी और ठोस कायकरम )नाय एव कई ससथाओ की सथापना की।

इस पसतक म कछ धिम�ाकर 28 �ख सगर�ीत �, जो ' हि�नदसतानी ज)ान' पहि6का म सन 1996 स �कर सन 2005 क )ीच छप �।

गाधीवादी हिवचारो और लिसदधानतो पर आधारिरत य �ख हिवहिवध आयामी �। अहिवनाश अधिधकारी का �ख' शोध गाधी का' उनक वयलिकतगत अनभवो पर आधारिरत �, परोअ धनजय वमा न असपशयता- हिनवारण क

कष6 म गाधीजी क सघष का वणन हिकया �। वतमान हिवसगहितयो और गाधीवादी चतना पर डॉ. एस. ज�ीर अ�ी और परोअ लिसदधशवर परसाद न अपन हिवचार वयकत हिकय �। डॉअ सरनदर वमा न आधहिनक समाज म गाधीवादी म\यो की परासहिगकता पर परकाश डा�ा �।

डॉअ मो�लिसन खान न म�ातमा गाधी क मानवतावादी दधि}कोण पर रोशन डा�ी �। �ष शमा न गाधीवाद की वजञाहिनक वयाखया की �। हि�नदी उपनयास म गाधीवाद क परभाव पर डॉ. चनदरकात

)ादिदवडकर का �ख उ\�खनीय �। मन कछ �ी �खो का जिजकर हिकया �, �हिकन मानी हए )ात � हिक सभी �खो म हिवषय क साथ हिवदवान

�खको न परा- परा नयाय हिकया �, जिजनस पाठको को गाधीवादी लिसदधानत और साहि�तय को समझन म मदद धिम�गी।

म�ातमा गाधी का सारा धयान मनषय की हिकरयाशी�ता पर था। उन�ोन क�ा था हिक " गाधीवाद जसी कोई हिवचारधारा न�ी �।''..." गाधीवाद नाम की कोई वसत � �ी न�ी और न म अपन पीछ कोई सपरदाय

छोड जाना चा�ता ह। मरा य� दावा भी न�ी � हिक मन कोई नय तततव या लिसदधानत का आहिवषकार हिकया �। मन तो कव� जो शाशवत सतय �, उसको अपन हिनतय क जीवन और परशनो पर अपन ढग स उतारन का परयास हिकया �।'' ( क�ाहिनयो म सतय की साधना - डॉ. हिवनय) गाधीजी ख� हिवचारो क थ,

इसीलि�ए हिनतय क जीवन और परशनो पर हिवचार करत समय हिवरोधिधयो की )ातो को व उतना �ी म�ततव दत थ, जिजतना परशसको की )ातो का।

म�ातमा गाधी की दधि} म सतय �ी ईशवर �। व सतय क शोधक थ और उनका हिवशवास था हिक �मारा सभी कम सतय और मानव- म\यो पर आधारिरत �ोना चाहि�ए। उनका वासतहिवक धम मानव- धम था। मझ परा हिवशवास � हिक य� पसतक पाठको दवारा पसनद की जायगी, कयोहिक सभी �खो म गाधी-

सम)नधी हिवचारो पर कछ-न- कछ नवीन लिचनतन की सामगरी �। य� ऐसी पसतक �, जो सभी ससथाओ क पसतका�यो और हिनजी पसतका�यो म उप�बध करायी जानी चाहि�ए।

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कछ पर)दध पाठको न ' हि�नदसतानी परचार सभा' क पदाधिधकारिरयो स हिनवदन हिकया था हिक ' हि�नदसतानीज)ान' म परकालिशत सपादकीयो को पसतकाकार परकालिशत हिकया जाय। �मन हिवचार हिकया हिक गाधी

और गाधीवादी लिसदधानतो पर आधारिरत �खो को ( हि�नदसतानी ज)ान म परकालिशत) पसतकाकार परकालिशत करना अधिधक नयायसगत �ोगा। य� योजना स�ा�कार सधिमहित क सदसयो दवारा सवीकत हई और डॉ. सशी�ा गपता न इस योजना को कायानविनवत करन का गरतर भार उठाया। परसननता की )ात � हिक पसतक का सपादन- काय उन�ोन हिनधारिरत समय क अनदर परा हिकया। म सभा की मानद हिनदशक डॉअ सशी�ा गपता को उनक स�योग क लि�ए धनयवाद दता ह।

- परा. परमानद )ी. गोवकर टरसटी व मानद कोषाधयकष

सपादकीय म�ातमा गाधी की नीहितयो और लिसदधानतो क )ार म ज�ा क�ी मझ पठनीय सामगरी धिम�ती �, उस म

पढन क लि�ए �ा�ाधियत र�ती ह। शकरदया� सिस� दवारा सपादिदत पसतक ' म�ातमा गाधी- परथम दशन : परथम अनभहित' नामक पसतक �ाथ आयी तो म उस परा पढ गयी। इस पसतक म परकालिशत शरी परीततिकषत

मजमदार क एक �ख को मन दो)ारा पढा, जिजसम उन�ोन सन 1932 की एक घटना का वणन हिकया �। य� घटना जिजतनी माम�ी परतीत �ोती �, उतनी �ी म�ततवपण �, )हत जयादा म�ततवपण, खास तौर पर �म सभी क आतम- मथन और आतम- हिववचन क लि�ए। गाधीजी उन दिदनो यरवदा ज� म कदी क रप म सजा काट र� थ। ज� का �ी एक कदी उनक लि�ए अगीठी पर पानी गरम कर र�ा था। पानी गरम �ो जान पर जस �ी उसन )रतन उठाया, अगीठी क ज�त कोय� पर उनकी नजर पडी। उस समय व ज� क एक अफसर स )ातचीत कर र� थ। अपनी )ात )ीच म �ी )नद करत हए गाधीजी न अगीठी )झा दन क लि�ए क�ा। उस अफसर न त) मजाक म क�ा - " कोय� तो सरकारी �, आप

इतनी हिफकर कयो कर र� �?'' गाधीजी न झट स उCर दिदया - "न�ी, य तो आम जनता क पसो क कोय� �।''

क�ा गय व �ोग, जो जनता क पसो को दात स पकडत थ और ऐसा �ी करन क लि�ए दसरो को परोतसाहि�त करत थ। आज उपभोकता वसतओ क खरीदारो की सखया म तो वजिदध हई �, �हिकन जनता क

पसो का म\य समझनवा� �ोगो का भयकर अका� �ो गया �। जनता क पसो का स�ी उपयोग �ो, उन पसो म स एक भी पसा )र)ाद न �ो, इसक लि�ए गाधीजी खन- पसीना एक कर दत थ। हिकसी भी

योजना क लि�ए दान क नाम पर उनकी ख�ी �थ�ी म पस रखकर �ोग कतकतय �ो जात थ। �ोगो का उन पर इतना अटट हिवशवास था हिक खद पर भी न�ी था।

म�ातमा गाधी पर �ोगो का हिवशवास अकारण न�ी था। व जो वादा करत थ, उस हिनभात थ। जो क�तथ, व� करत थ। उनकी कथनी और करनी एक थी। आज क राजनीहितजञ हिकतना )द� गय �! व

अपनी कथनी और करनी म अनतर रखकर �ी राजनीहितक सफ�ता �ालिस� करन का परयतन करत �।काश! उनकी दधि} म�ातमा गाधी क सव�दय लिसदधानत पर �ोती और उनका �कषय दश क अहित हिनधन

�ोगो का जीवन सवारना �ोता! आज जनता क पसो का, उसक खन- पसीन की कमाई का �ाभ उस न�ी धिम� पा र�ा �। आज तो जनता दवारा परदC आय- कर का पसा नताओ की जागीर )न गया �। गरी)-स- गरी) वयलिकत भी नता

)नत �ी अपना ठाट- )ाट इस कदर )ढा दत � हिक उनक वभव, ताम- झाम और ऊच र�न- स�न को दख हिवतणणा �ोन �गती �। कछ दिदनो पव �ी अख)ारो म पढन को धिम�ा था हिक सखा- गरसत इलाको म

तथाकलिथत दशसवको न इसलि�ए जान स इनकार कर दिदया था हिक उन� वातानकलि�त गाहिडया म�या न�ी करायी जा र�ी थी। दश- सवा का मत�) सवाथ- तयाग और )लि�दान स )द�कर सवाथ- दभ और

अपनी रोटी सकना �ोता जा र�ा �। क�ा गया म�ातमा गाधी का व� पाठ हिक ' सादा जीवन और उचचहिवचार' �ी �मार जीवन का आदश �ोना चाहि�ए, अपरिरगर� �मारा �कषय �ोना चाहि�ए।

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आज �मन अपन दश का नततव जिजनक �ाथो म सौपा �, उनक वतन, ट�ीफोन हि)�, �वाई या6ा और सरकषा- वयवसथा क नाम पर दश का पसा पानी की तर� )�ाया जाता �। जन- साधारण की सरकषा की

सारी योजनाए कव� कागजी साहि)त �ोती � और व� भयाकरात जीवन वयतीत करन क लि�ए हिववश �।श�ीद- दिदवस पर दश क नता गाधीजी क लिसदधानतो का नक�ी जामा और नक�ी टोपी धारण कर

राजघाट जायग और शरदधाजलि�- सभा म भाग �कर गाधीजी क नाम को भनान की कोलिशश करग। सौ- सौ च� खाकर हि)लसि\�या तीथया6ा पर हिनक�गी। �मार अपन दश म अ�गाववाद, आतकवाद,

नकस�वाद, उ\फावाद की आड म एक क )ाद एक शमनाक और भयकर काणड �ो र� � और समच दशवालिसयो क म� पर कालि�ख पत र�ी �।

एक )ार वधा मयहिनलिसपलि�टी की ओर स म�ातमा गाधी को अततिभननदन- प6 दन का हिनशचय हिकया गया। उन�ोन अततिभननदन प6 सवीकार करन की य� शत रखी हिक " वधा क स) कए मनषय- मा6 क लि�ए खो�

दिदय जाय।'' उनकी शत मानी गयी, उन� अततिभननदन- प6 परदान हिकया गया और कओ का ज� सभी जाहित क �ोगो क लि�ए उप�बध कराया गया। य� क�न की आवशयकता न�ी हिक गाधीजी की सारी शत�

मानव- मा6 क क\याण क लि�ए, मनषयता क उतथान क लि�ए थी। म�ातमा गाधी कोदिट- कोदिट जनता क )ीच एक मानव- आकहित �ी न�ी थ, व दीन- �ीन जनता क वजद थ, भारत की जमीन की प�चान थ, भारत की सासकहितक हिवरासत की धिमसा� थ, गौतम )दध की परमपरा की कडी थ, �ोगो की आखो को

शीत�ता और सकन पहचानवा�ी असलि�यत क परतीक थ। �नरी एसअ ए�अ पो�क न ' मानवता का पजारी' शीषक �ख म ओलि�व शरीनर क एक गदय- कावय का जिजकर हिकया �, जिजसम �खक न सतयती पकषी की खोज म �ग हए एक साधक का लिच6 खीचा � -

" उस उस पकषी की झ�क एक )ार दिदखायी दी। उसकी त�ाश म व� पवत- लिशखर पहचता �, ज�ा जाकर उसका शरीर छट जाता �। उसक �ाथ म उस पकषी का हिगरा हआ एक पख �, जिजस छाती पर

लिचपकाय हए व� सोया �। गाधीजी अपन जीवन- का� म जो सनदश �मार लि�ए छोड गय �, व� �मार लि�ए ऐसा �ी एक पख लिसदध �ो।''

�म उसी सनदश, उसी पख का वासता द सकत � इस पसतक क पाठको को, जिजनक लि�ए 28 हिन)नधो का य� सक�न ' गाधी और गाधी-माग' तयार हिकया गया �। इस पसतक म मरा कछ न�ी �; जो कछ

�, व� 28 हिन)नधो क हिवदवान �खको का �, जिजन�ोन ' हि�नदसतानी परचार सभा' की 6मालिसक पहि6का' हि�नदसतानी ज)ान' म परकाशनाथ समय- समय पर अपन �ख भज थ। सन 1976 स �कर सन2005 तक क ' हि�नदसतानी ज)ान' म परकालिशत कहितपय चन हए �खो का सक�न � य� पसतक' गाधी और गाधी-माग' - ' तरा तझको सौपता, का �ाग � मोर।' इसम जो कछ पठनीय, गर�णीय और

परशसनीय �, व� हिवदवान �खको का � और जो कछ उपकषणीय �, व� मरा �। इस पसतक म परकालिशत सभी �खो को ' हि�नदसतानी ज)ान' पहि6का क पननो स हिनका�कर पसतकाकार

सवरप परदान करन क पीछ 'सभा' क पदाधिधकारिरयो की आतरिरक भावना य�ी र�ी हिक साहि�तय- परधिमयो और हिवदवानो को पररणासपद गाधीवादी हिवचारधारा स दो)ारा साकषातकार कराया जा सक।

म�ातमा गाधी ममोरिरय� रिरसच सणटर (' हि�नदसतानी परचार सभा' दवारा सचालि�त) की ओर स 'सभा' की नयासी व अधयकष डॉअ आ� दसतर क परहित उनकी मग�कामना, नयासी व कायाधयकष डॉअ इसहाक

जमखानावा�ा क परहित उनक सदभावना-सदश, नयासी व कोषाधयकष पराचाय परमानद गोवकर क परहित उनकी परसतावना क लि�ए म हदय स आभारी ह। नयासी व मानद सलिचव शरी सभाषभाई समपत न पसतक

क क�वर को �ी न�ी, उसक पषठो पर अहिकत सनदशो म भी हिवशष रलिच �ी और पसतक क लि�ए परसगानक� �ख दकर अपना योगदान दिदया। इन सभी नयालिसयो व पदाधिधकारिरयो क परहित म उपकत ह।

' हि�नदसतानी परचार सभा' क अनय नयालिसयो ( शरी फरालिसस मथय, शरीमती �सा राजदा और सवअ शरी योगश मापारा (हि�.पर.स. - सन 1997 स सन 2006 तक) तथा सदसयो शरी एस. आर. शमा, डॉ. �रषिषदा

पहिडत, शरी दयानद पडया, शरी मधकात जोशी और शरी चदरकात शा�) क परहित भी �म उनक परोतसा�न क लि�ए कतजञ �। पसतक क मदरक शरी माधव भागवत ( मौज हिपरटिटग बयरो) क परहित भी �म आभारी �,

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जिजन�ोन वयलिकतगत रप स दिद�चसपी �कर इस पसतक को परकाश म �ान का काय हिकया। शरी सवहि�� नी�कठ न भी मखपषठ तयार करक �म उपकत हिकया।

मझ परा हिवशवास � हिक " गाधी और गाधी-माग'' पसतक पाठको को गाधीजी क नजदीक �ायगी और उन� गाधी- माग पर च�न की पररणा दगी।

- सशी�ा गपताम)ई15 अगसत 2006शोध गाधी काअहिवनाश धमाधिधकारी

�मारी पीढी क जनमन क एक दशक प�� �ी गाधीजी न अहितम )ार ' � राम' क�ा था और �मार �ोश सभा�न तक आस- पास स गाधीजी गम �ोत जा र� थ। लिसफ पीत� क पत�ो क रप म �ी व खड दिदखायी दत थ। उनक नाम का उपयोग करन वा� अधिधकाश ढोगी, सवाथ�, अवसरवादी �ी दिदखायी दत

थ, अत: ऐसा �गा था हिक जिजसका य नाम �त �, व� भी उन जसा �ी �ोगा। �हिकन हिववकानद भी त) आस- पास क�ा थ? उनका अवसान हए तो पाच दशक )ीत चक थ। परनत हिववकाननद थ। �मार

)चपन की )ढती उमर म चारो ओर हिववकानद थ। घर म हिपताजी की )ातो म थ, उनक दवारा �ाकर घर म रख गय ' समगर वाङमय' म थ। उस समय �मार य�ा एक वदध सवामी आया करत थ, सवामीजी को

परतयकष दखनवा�ो म व�ी )च थ। उनस हिववकानद क जीवन की घटनाए और )ात सनत हए हिववकानद परतयकष �ोत गय, मा6 पसतकीय न�ी र�। ऐसा परतीत �ोता हिक व �मार घर म, �मार साथ �ी र�त �।

और 'पर)ोधिधनी' म काम करत हए तो हिववकानद का हिवचार- हिवशव �ी आसपास �ोता था। मा6 गाधीजी खो गय थ।

गाधीजी धिम� और इस परकार धिम� हिक उनका खोना भी परोकषतया उपयोगी र�ा। सवपरथम �मार सममख व एक वदध, सहिडसट और �गभग उनमादी क रप म आय। 'ती पा�ा, ती पा�ा, )ापजीची

पराणजयोत' कहिवता लिसखानवा�ो न उन� अपनी दधि} स मढकर �मार सामन परसतत हिकया। हिववकानद क शबदो म, हिवचारो म सिचगारी थी, यवा क लि�ए सा�स का आहवान था, `ि£वजय परापत �ोन तक रको मत' क�न वा�ी मसती थी। व� योदधा सनयासी लिचर तरण था। उनकी त�ना म सतय-अहि�सा क मा� स �दा य� )ढा हि)\क� फीका और ढ�म� �गता था। �मारी नन�ी अगलि�यो को पकडकर जिजन�ोन 'राषटरहिपता' दिदखाया, उन�ोन �मार मन पर य�ी छाप छोडी, जो समय क साथ उभरती गयी, य�ा तक हिक व� गाधी-दवष क रप म परिरणत �ोती गयी। कभी-कभी मझ परतीत �ोता � हिक गाधी की �तया क पशचात जनम �न वा� )चच-स�ी क� तो गाधी-�तया क )ाद क म�ाराषटर क दगो क का� म-या यो क� हिक मधयवग�य बराहमण घरो म जनम �न वा�ी मरी पीढी, जान-अनजान गाधी-दवष की जनमघटी पीकर �ी जनमी और )ढी। पणत: जान-अनजान।

मझ अभी दश का अथ मा�म न था-पर य� मर दश का )टवारा करनवा�ा गाधी। सामाजिजक सरोकारो का परिरचय न�ी था, हिफर भी अ\पसखयको का अनावशयक �ाड करनवा�ा य�ी �। गोडस स �कर �ोहि�या तक सभी न इन�ी हिवहिवध इपरशनस को परमख रप स उभारा और �द तो य�ा तक हई हिक क�ा जान �गा, अहि�सा यानी एक गा� पर थपपड पड तो दसरा गा� सामन कर दीजिजए। 'य� कसी अहि�सा? य� तो कायरता �। और कायर �ोन या अनयाय स�न करन की अपकषा हि�सा का उपयोग )�तर �' य� क�कर �ाखो म हिनभयता जागत करनवा�ा, पौरष को पकारनवा�ा म�ातमा )हत )ाद म समझ म आया।

सक� म सावरकर )ाई न अगरजी पढात हए 'टॉ�सटॉय फॉम' पाठ इतना सदर पढाया हिक �गा, अगरजी सीखना तो सावरकर )ाई स �ी। गाधीजी क दततिकषण अफरीका म हिकय गय परयोगो का व� पाठ। पहिडतजी का '�ाईट �ज गॉन आउट' पाठ भी वसा �ी। एक तो पहिडतजी की भाषा कावयमय अगरजी, उस पर परसग म�ातमाजी की मतय का और पढानवा�ी सावरकर )ाई। उस समय स) कछ धिम�ाकर जो

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धयान म र� गया, व� थी अगरजी भाषा। आशय क�ी मन क हिपछ� हि�सस म लिछप गया �ोगा या )ीज की तर� अदर द) गया �ोगा।

तभी एक दोप�र, एक मामा स कशती �ो गयी। मामा राजनीहित शास6 म रलिच रखन वा� पराधयापक थ। गाधीजी क 'भकत'। एक हिकसी अशभ महत पर उदिदत हई दोप�री म उन�ोन 'त भ� कर र�ा �' क�कर गाधीजी की म�ानता मानय करवान का परयतन करना शर हिकया। सिचगारिरया उडी। आवाज ऊचाई की सीमा तक पहच गयी। अत म मन उनस क�ा, ''तम गजराती �ो, इसलि�ए गाधीजी क परहित तम�ारा य� पकषपात �।'' )स हिफर तो सफोट �ी �ो गया। अहि�सा की �डाई क�ाई स स�झाई जायगी-ऐसा रणागन तयार �ो गया। मा और दादाजी न )ीच-)चाव हिकया। ')डो को तो धीरज स काम �ना चाहि�ए' क�कर मामा को एक ओर हिकया। जात-जात भी मामा क�त गय-''एक दिदन तझ अवशय मानना पडगा।'' उCर म ''अर, जा र'' क�ा तो जरर, �हिकन करोध का आवश थमन पर मामा न �गभग समझात हए क�ा, ''अर, जिजन� इतनी गालि�या दता �, व� कया था? कसा था? इसको जरा जान तो स�ी।''

�गा हिक अपन इस उथ� गा�ी-ग�ौज म एक अनयाय �। य� अ�सास भी दशक की द��ीज पार करन क )ाद हआ। समभवत: 'टॉ�सटॉय फॉम' और '�ाईट �ज गॉन आउट' क माधयम स द)ा )ीज अकरान �गा था।

शोध शर हिकया। इसी समय मर अनजान �ी म-�म-आप क हि6क की त�ाश शर �ो गयी थी। म�ातमा क शोध का 'वयास' भी इसी स जड गया। स)स प�� �ाथो म आया मणालि�नी दसाई दवारा रलिचत चरिर6 'प6 मानवाचा'। मराठी म इस कोदिट का ऊचा चरिर6 द�भ �ोगा। क�ी भी वयलिकतपजा न�ी, हिफर भी वयलिकत की म�ानता अतयनत स�ज रप स सप} की गयी। त) �गा, 'अर! ऐस थ गाधीजी'। अभी और त�ाश करनी चाहि�ए। शोध जारी र�ा। अधययन च�ता र�ा। अपन अलकिसततव का र�सय धीर-धीर उभर र�ा था। सव, अतमन, समाज, सम� आदिद शबद उ�झन म डा�न �ग थ। )ढती उमर क साथ मन की परशाहिनया भी )ढन �गी थी। सार मो�पाश मन स खीचतान कर र� थ। इन�ी दिदनो म 'सतय का परयोग' स परिरचय हआ। भाषा की स�जता, मनषय की सर�ता, उनमकतता और अपनी खोज क साथ असीम धय स सतय क परयोग करत हए `ि£�मा�य जसी भ�ो' को अतयनत पराज�ता स क)� करन का सा�स दिदखान वा� इस 'सतय क परयोग' न कछ ऐसा आकरषिषत हिकया हिक पसतक नीच रखी और मामा को फोन करक आनदपवक क�ा, ''म क)� करता ह मामा! म �ार गया।'' य� ऐसा शोध था, जिजसम �ार कर भी आननद धिम� र�ा था। इस पान म इतना समय कस �गा-इसी का खद हआ, आशचय हआ। �मारी एक )ठक म एसअ एमअ न क�ा था-(�ा, व�ी, एसअ एमअ जोशी, परिरलिचत �ोग �ी)-''�म गाधी को समझन म )हत दिदन �ग। प�� यो �ी उनक पीछ च�, कयोहिक सभी उनक पीछ जात दिदखत थ। अहि�सा का अथ समझ म न�ी आया था, मानय न�ी था, �हिकन इतना �गता था हिक यदिद हिबरदिटश स कोई मलिकत दिद�ा सकता � तो व� गाधी �ी �। इसलि�ए उनक पीछ च�। गाधीजी का वासतहिवक सवरप �म परथम अणसफोट क पशचात और भारत की सवत6ता क )ाद �ी समझ म आया। आज भी �म उन� पणरप स समझ पाय �-य� न�ी क� सकत...।' य थ एस. एम.।सोचा, हिफर ठीक �ी �, साकषात एसअ एमअ क साथ ऐसा हआ तो �म हिकस झाड की पCी �। खोज म �ग र�त �। हिकसी और क दवारा )ताय या लिसखाय जान की अपकषा य� )हत अचछा हआ हिक इस म�ातमा को �मन सवय ढढा। ततपशचात हिवनो)ा स भट। )ा)ा आमट स परिरचय। पसतक क अनक पननो की सगत। दाअ नअ लिशखर क गाधी चरिर6, आचाय जावडकर क 'आधहिनक भारत' (जो गीता-र�सय क पशचात मराठी का शरषठ गरथ �) स �ई हिफशर, हिवलि�यम लिशरर, रोमया रो�ा, `ि£परय )ाई' क �खक तरण इटालि�यन हिवदयाथª, �हिपए कॉलि�नस दवारा दिदया गया `£«फरीडम एट धिमडनाइट', ऑथर कोस�र और एडवडस दवारा गाधीजी पर की गयी आ�ोचनातमक कठोर टीका, तद�कर-लि�खिखत गाधी चरिर6 क आठ खणड, इनक अ�ावा शासन न 'समगर गाधी वाङमय' क सCाइस खणड मा6 साठ रपय म दकर �ाख-�ाख उपकार हिकया।

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�मारी 'जखमी ससकहित' क हिनमम भाषयकार वीअ एसअ नायपा� की नजरो स भी गाधीजी छट न�ी। नायपा� क�त � हिक गाधीजी भारतीय ससकहित क �ी परिरपकव फ� �। य� दसरी )ात � हिक आग जाकर उनका �ी क�ना � हिक इस गाधी 'वाद' क हिवघटन और पतन क )ीज भी इसी भारतीय ससकहित म �। ठठ ऐहित�ालिसक जडवाद स अधयातम तक की या6ा का अकन करन वा�ी जयपरकाशजी की 'मरी हिवचार या6ा' भी गाधीजी क सौजनय स आयी। पहिडतजी का 'आतमचरिर6' और 'भारत की खोज' आदिद पसतको क हिकतन नाम हिगनाऊ? इन स) क माधयम स ‘Half naked Fakir’ �ी परतयकष जीवन म अधिधक-अधिधक आता गया। गाधीजी क अनक रपो म दिदखायी दिदय-गवा�ाटी क नजदीक एक टी� पर अपनी साधना म मगन र�न वा� अम� परभादास, हि6वनदरम क कॉय� क हिकनार जनादन हिप\�, चडीगढ क एक सकटर म दिटक हए जसवस राय, एक पड�ीकजी कातगड, एक भाऊ धमाधिधकारी। सभी अपनी-अपनी हिनषठा म दढ। कभी-कभी �गता हिक इस हिनषठा की आखिखर साथकता �ी कया �? )हधा का�-)ाहय �ो चका �। परनत उनकी पाग�पन की सीमा तक पहची इस हिनषठा पर आशचय �ोता। हित�क को मडा� की सजा हई। उस समय चाय, शककर आदिद छोड दन वा� वदधो स आज भी )ीच-)ीच म भट �ो जाती �-त) परतीत �ोता � हिक य दादाजी आज भी हित�क क साथ �ी जी र� �। ऐस भावनातमक सामथय वा� धनय �, जिजन� आज भी हित�क, गाधी का साथ परापत �। 'परमाताई कटक' स परिरचय �ोन क )ाद गाधी-शोध का य� रग भी परापत हआ। घर पर अकसर आनवा� सवामी आतमानद जस हिववकानद क आसपास �ोन का अनभव परदान करत थ, वसा �ी अनभव गाधीजी क )ार म परमाताई न करवाया। ऐस अनक थ। सभी वदध भी न�ी थ, )हत-स तरण भी थ। �ा, य� सवीकार � हिक उनकी सखया कम थी और कम �ोती जा र�ी थी। जनरशन गप की आच भी दिदखायी पडन �गी थी।पीदिढयो क अनतर क सघष की सिचगारी जानन क साथ गाधीजी को जानना भी सभव हआ। उनक अ�ग-अ�ग परहितरपो म न�ी, परतयकष परद पर। परनत ऐटन)रो क 'गाधी' म न�ी। एमअ एअ (इहित�ास) करत समय नशन� आकाइवज म कई म� हिफ\म दखन का अवसर धिम�ा। उसम �सत-)ो�त गाधीजी थ। छाया-परकाश क रप म �ी, परनत उनकी आवाज सनी और व� आवाज सीध मन म परवश कर गयी। व� शात, लसिसथर, अततिभहिनवशरहि�त, परनत गमभीर आवाज। हिफर तो इहित�ास, अथशास6, इस असवसथ दशक की वसतलसिसथहित सभी म व�ी शात और गमभीर आवाज हिवततिभनन रपो म कानो स टकराती र�ी। त) तक समझ म न�ी आता था हिक )ाहयत: अतयनत अनाकषक, रख-सख �गन वा� इस सनातनी )ढ न चा�� चलकिप�न, आचहि)शप ऑफ क टर)री और अ\)ट आइनसटाइन जस हिवततिभनन कष6ो क परहितभावानो को भ�ा कस आकरषिषत हिकया �ोगा। अर! जीहिवत र�त हए तो इन परहितभावानो को आकरषिषत हिकया �ी, परनत सद� अलकिसततव समापत �ोन क )ाद भी मारटिटन �थर हिकग, डय)चक, �क वॉ�सा, अलसिकवनो आदिद तक य� गाधी पहच कस? कौन-सी शलिकत � य�? '�ाड-मास का )ना एक ऐसा मनषय इस पथवी पर जनमा था, इस पर आन वा�ी पीदिढया हिवशवास न�ी कर पायगी...' आइनसटाइन न य� वाकय क�ा �ोगा, हिवशवास न�ी �ोता था। इहित�ास, अथशास6 क अधययन-करम म ऐडम लकिसमथ-मालथस-रिरकाड�-माश� और कनस स �कर माकस-�हिनन-माओ तक का परिरचय परारमभ हआ। इस दशक की मानलिसक ��च� जस-जस समझ म आती गयी, वस-वस इस वाकय पर हिवशवास �ोन �गा। कानो स टकरायी व� शात और गभीर आवाज : ‘I must find my peace amongst turmoil’–अथात 'मझ अपनी शाहित आधी म स �ी ढढनी �।' जीवन को मोकष का साधन मानन वा� म�ातमा। अधयातमपरवण, परनत उनकी आधयातमितमकता मा6 शबद-जा� न थी। जीवन स दर, हिगरिर-कदराओ म धयान �गाकर )ठन वा�ी न थी। 'दरिरदरनारायण' शबद स पणत: जडी हई थी। य�ी, इस ससार म र�कर, मनषय की तर� जीवन जीकर मझ अपनी शाहित परापत करनी � : य� कमपरवण आधयातमितमकता थी। मन म हिववकानद स म�ातमाजी तक का एक म�ामाग हिनरमिमत �ो गया। इस म�ामाग पर कदम तजी स )ढन �ग।

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हिकसी एक को नीचा दिदखाकर खद सममाहिनत �ोनवा� भाव को दख गाधीजी ताजज) करत थ। परहितहिकरया स जनम �न वा�ा वयलिकत, समाज और दश भी दवषम�क और परहितहिकरयावादी �ोगा। गाधीजी

न इसस )चत हए दश क सवत6ता-सगराम को आग )ढान का परयतन हिकया। भारतीय राषटर क हिवचार को एक आकार धिम�ा। हिबरदिटश स �डना �, परनत दवष न�ी करना �। हिनवµर भाव स अपना 'सवतव' सथाहिपत करन का य� राषटरवाद भारतीय धिमटटी स उपजा। 'सार जगत म पहिव6 और मग�मय सरो म उदघोष करो हिक य� पराचीन भारतभधिम पन: जागत �ो र�ी �'। हिववकानद का य� कथन भारतीय राषटरहिवचार का परथम हकार था। एक सनयासी क शरीमख स हिन:सत �ोना भी अथपण था। य� उदघोष भी कस हिकया जाय? चीख-लिच\�ाकर न�ी, पहिव6 और मग�मय सरो म। )ाद क सवत6ता-आदो�न न य� स) कर दिदखाया। पराचीन भारतभधिम गाधी क सपश स जागत �ोकर आधहिनक भारतम )नन का परयतन करन �गी। गाधीजी इस ऐहित�ालिसक परहिकरया क सव�Cम परहितहिनधिध भी � और हिनमाता भी। भारतीय राषटरहिवचार का हिवशव-राषटरहिवचार स एक शख�ा की दो कहिडयो की तर�, ससगत �ोन का य� ऐहित�ालिसक परवा� था।

शरी अरहिवनद न उकराहित की परहिकरया को `ि£वसतत )ोध का वत�' क�ा �। इसका आतरिरक वत� � राषटर और 'वसधव कट)कम' )ा�री-जयादा हिवसतत वत�। उकराहित की �ी एक रखा क छोर � य। )चपन म पढी उस 'ती पा�ा, ती पा�ा, )ापजीची पराणजयोत' कहिवता म ऊपर, दर, ततिकषहितज पार जात हए कदमो क लिच6 का वासतहिवक अथ अ) थोडा-थोडा समझ म आन �गा था। जो थोडा अथ समझन �गा था, उसस क�ी अधिधक समझ म न आनवा� अथ धयान म आन �ग थ। परनत मझ कछ जञात न�ी-कछ भी जञात न�ी-इसका भान �ोना भी एक सतत परवास �ी �। इस परवास म कभी-कभी साथ �ोत गाधीजी और व�ी मझ उ�झान वा�ा परशन : मझ कया करना चाहि�ए?

ऐस समय म गाधीजी न 'म आपको एक नसखा )ताता ह' क�कर एक राम)ाण उपाय सझाया। इस सवत6 दश क लि�ए उन�ोन एक कसौटी परदान की, जिजस पर अपन मन क परशनो को कसना आवशयक �।' ज) कभी कोई योजना )नात हए या उसको कायानविनवत करत हए आपक मन म परशन उठ हिक ' कया कर ?', त) अपनी आखो क समकष समाज की अहितम सीढी पर खड स)स आखिखरी आदमी को �ाइए। जिजसस उसका हि�त �ो, व�ी करना चाहि�ए, व�ी योजना अम� म �ानी चाहि�ए।'

हिकतन सर� और सीध शबद। अतयोदय का य� हिवचार।'आखिखरी आदमी' आखो क समकष �ात �ी पता च� जाता हिक दाडी या6ा म, )ड �ौस और उतसा� स सवय सीकर एक कमीज भट दन वा�ी �डकी स गाधीजी को तीस कोदिट शट कयो चाहि�ए थ? सर सटरफोड हिकरपस को अतयनत चतराई स 'अधनगन' गाधीजी न कयो क�ा था हिक मर हि�सस क कपड आपकी रानी न प�न लि�ए �, इसलि�ए म अधनगन ह।' इस 'आखिखरी आदमी'-इस भारतीय को धयान म रखकर, उस जगात हए �ी गाधीजी न सवत6ता-सगराम �डा। हिकतन सीध और कम शबदो म हिकरपस को हिबरदिटश सामराजयवाद, शोषण, टकसटाइ� उदयोग की लसिसथहित, आयात-हिनयात का असत�न, कचच मा� स पकक मा� )नन क मधय हिबरदिटशो का भारतीय पजी �डपना आदिद भारतीय दारिरदरय का म� उघाड कर क� डा�ा। 'भारतीय' अथशास6 की एक रखा 'अतयोदय' स शर �ोती �, जो )ढत-)ढत 'सव�दय' तक पहचती �। अथशास6ीय हिवचार क रप म आज व स) �ाग न भी �ोत �ो, कयोहिक नयी अथवयवसथा क साथ नय उCर ढढन �ी पडत �, पर अचानक �ी कभी 'गाधीजी क जीनस का अवतार' सामन खडा �ो जाता �, नया अथशास6 )नाता �। उसका भी सटारटिटग पॉइट गाधीजी �ी और दिदशा-दशक लिसगन�-व�ी 'आखिखरी आदमी'।

इस आखिखरी आदमी क शोध म एक )ार माव� कष6 क कछ गावो म भटक र�ा था। हिकसी सवयसवी ससथा को व�ा अपना कोई उपकरम शर करना था। व� उपकरम कया �ो-य�ी जानन क लि�ए व�ा क

�ोगो क )ीच य� घमना था। मझ याद �, गाव भर म फरा �गात र�न वा�, दसवी फ� एक ठाकर �डक न क�ा-'कछ भी रजगार दो �म।' कौन )ो� र�ा था इस आवाज क माधयम स? गाधीजी-'रोजगार का परशन सवाधिधक म�ततवपण �। प�� �ाथो को काम दना �ोगा।' गाधीजी इस मकाम पर अपन `ि£टहिपक�' नहितक माग स पहचत �। �ाथो को काम न �ो तो मन म शतान का परवश �ोता

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�, वयलिकत का नहितक, आधयातमितमक पतन �ोता �-इसलि�ए रोजगार। 'वज एमप�ॉयमट थयौरी' का क ख ग जानन �ी �गा था हिक थोडा-थोडा समझ म आन �गा हिक भारतीय समसया का गाधीजी का हिनदान हिकतना अचक था। त) भारतीय अथवयवसथा : शरमपरधान या पजीपरधान, हिनयात�कषी हिवकास या हिवकास�कषी हिनयात जस परशन मा6 पसतकीय न�ी र� जात। सामन खड दसवी फ� ठाकर �डक का रप धारण करत � और हिफर उसका उCर भी मा6 कागजी घोडा न�ी �ो सकता। 'कछ भी रोजगार दो �म' ठाकर क म� स गाधीजी का उCर �ी वयकत �ोता �।

ऐस सभी उCर गाधीजी दत �ो, ऐसा न�ी �, )लकि\क इसक हिवपरीत कोई रडीमड उCर, तयार फॉम� या लिसदधात दना गाधीजी नकारत �। कव� त�ाश क माग की ओर उग�ी दिदखा दत � और ऐसी त�ाश कस की जानी चाहि�ए-य� सवय जी कर दिदखात �। तभी तो 'मरा जीवन �ी मरा सदश �' क� सकत �। म व�ी सदश खोजता गया।

गाधीजी की एक अनय गढता -भरी सचचाई � उनकी 'अनदर की आवाज'। परनत शीश क समकष खड �ोकर कोई भी अपन को धयान स हिनरख, तो अनभव �ोगा हिक य� 'अदर की आवाज' �म स)क पास �, जो �मस )ात करन की कोलिशश भी करती �। परनत �म �ी उसका क�ा सनन की तयारी म न�ी �ोत, कयोहिक �म )ा�र की आवाजो म वयसत �ोत �। 'एक तरी ओवी अनभवावी' को मानय करक उस म�ातमा क अदर की आवाज की एक-एक ओवी म अनभव करता गया, सनता गया।

उCर परदश क एक भतपव नता की एक ऐसी �ी ओवी सनन का अवसर धिम�ा। य� नता सवत6ता -सगराम क समय गाधीजी क स�कारी थ। सवत6ता क पशचात की लसिसथहितयो स 6सत �ोकर उन�ोन सावजहिनक जीवन का तयाग कर 'भतपव' �ोना पसद हिकया। इ�ा�ा)ाद कागरस अधिधवशन क वष की )ात �। सा� हिनततिशचत याद न�ी आ र�ा, परनत कभ-म�ा का वष था, इसलि�ए कागरस का अधिधवशन इ�ा�ा)ाद म था। वयासपीठ स )ड-)ड नताओ क भाषण च� र� थ और सामन भी )डी गड)डी मची हई थी। कभ म�ा �ी था व�। भारत का �ी एक रप। �र कोई अपन-अपन हि�सा) स उन� शात करक, अनशालिसत करन का परयतन कर र�ा था, परनत असफ�। एक क )ाद दसर, स) लिच\�ा-लिच\�ा कर थक गय, अपन सख ग� को पानी हिप�ान अपनी-अपनी जग�ो पर जा )ठ। शोर और को�ा�� सतत चा� था। त) गाधीजी पहच। वयासपीठ म दाखिख� हए और सामन पसर परचणड जनसागर की ओर उन�ोन दोनो �ाथ ऊच हिकय, हिफर अपन दाहि�न �ाथ की उग�ी अपन �ोठो पर रखी। और )स व� हिवशा� म�ासागर शात �ोन �गा, शात �ो गया। एक शबद का उचचारण न�ी हिकया और अठरापगड समाज हिन:शबद �ो गया।

इस परसग को सनन मा6 स शरीर रोमालिचत �ो उठा, जिजन�ोन इस दशय का परतयकष अनभव हिकया था, उनक परहित मझम ईषया जगन �गी। खणडपराय भारत। वहिवधयपण मानवता क जिजतन नमन �ो सकत �, स) अपनी सव हिवहिवधता सहि�त �ाजिजर। परवास करत हए य� अधिधक-अधिधक दिदखायी पडता था और इन स)म स �ोकर हिनक�न वा�ा एक स6। �ोठ पर रखी एक म�ान आधयातमितमक, अदवत अग�ी-ि£क एकरस जनसागर हिन:शबद, उCर की त�ाश म सजज एक राषटर। य� राषटर और म-इन दो हि)नदओ को जोडकर तयार �ोनवा�ी परिरधिध तक का य� दशक भर का परवास। दोनो हि)दओ का धयय आइडदिटटी-अलकिसमता की त�ाश, अलकिसमता की प�चान और दोनो हि)दओ की अलकिसमता परसपराव�म)ी, परसपर �ी हिव�ीन �ोन वा�ी। दशक-भर का परवास यानी इन दो हि)दओ क मधय फ� चम)कीय कष6 क सीधिमत लिच6। गाधीजी का शोध भी इसी म स एक भवय च)कीय कष6 र�ा। जिजतन परमाण म गाधीजी का वयलिकततव सप} �ोता गया, उतन परमाण म म और मर दश को जोडन वा�ा तततव समझ म आन �गा। जिजतना इस तततव का आक�न करन �गा, गाधीजी उतन �ी अधिधक समझ म आन �ग। य� नाता धयान म आन पर तो इस या6ा की �गन और त�ाश की तीवरता )ढती �ी गयी। अपनी ओर खीचनवा�, आहवान दन वा� आकषक च)कीय कष6 का-राषटरीय जीवन क परशनो का जरा-जरा जञान �ोन �गा। इस )ोध को परग\भता दनवा� इस परवास का परतयक कदम इस च)कीय कष6 की सीमा भी हिवसतत करता गया। परवास दशक-भर च�ता र�ा था, आज भी उसी परकार च� र�ा �। आग क दशक-भर भी जारी

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र�गा, उसक अननतर क दशक म भी और उसक )ाद भी। य� परवास कभी समापत न�ी �ोता। अलकिसमता का आहिवषकार और शोध )हत ग�रा �ोता �, इसलि�ए परवास भी अननत �। गाधीजी एक ऐस �ी परवासी थ, इसीलि�ए व पररक �। रासत क साथी �। इस तर� गाधीजी का शोध एक �ाड-मास वा� ऐहि�क अलकिसततव का शोध न�ी र� जाता, वयलिकत-कजिनदरत न�ी र�ता, व� मरी ससकहित क शोध म रपानतरिरत �ो जाता �। त) म�ातमाजी एक वचारिरक, आधयातमितमक शलिकत क रप �ोत �। इस ससकहित दवारा धारण हिकया गया )ीसवी सदी का एक सजनशी� रप और इसीलि�ए पररक।रिरचड )ाख क 'इ\यजनस' म एक पा6 अपन धिम6 को एक पसतक-मसी�ा की गाइड)क-दकर क�ता �, 'जीवन म ज) कभी तझ हिकसी समसया स उ�झना पड और मागदशन की आवशयकता म�सस �ो, त) इस पसतक को खो�। तर आवशयकतानसार पसतक क पषठ अपन आप तर सामन �ाजिजर �ो जायग।' समसयाओ क उCर दन वा� मसी�ा की ऐसी पसतक अपन आसपास सव6 हि)खरी र�ती �। �मम उस प�चानन और अपन म उतारन की योगयता �ोनी चाहि�ए। व� वाकय था-There’s an eternal struggle going between man & destiny. Let’s continue it and leave the decision to God.’

एक )ार पढा, हिफर और एक )ार पढा, हिफर )ार-)ार। वाकय की ग�राई को समझन का परयतन करन �गा। दखत-दखत मन क सार परशन, सभरम क स) भत भाग गय, कछ समय क लि�ए �ी स�ी। वाकय क �खक थ-म�ातमा गाधी, जिजन�न य� वाकय सवय प�� जी कर दिदखाया था।आसपास, चारो ओर परचणड उथ�-पथ� �। म\यो की राख उडती दिदखती � तो म\यो का हिववक रखकर तपसया करन वा� वीरो की सना का गठन भी दिदखता �। हिनराशा का रोना तो अनक रोत �-उसक लि�ए कछ करना न�ी पडता। अदमय आशा क सवर दमदार �ोत �। एक तरफ �म दिदय स दिदया ज�ान की भाषा )ो�त-सनत �, परनत परतयकषत: हिकतन �ी दिदय )झत दिदखत �। हिफर भी नय-नय दिदय हिनतय ज�त र�त �। ट)� क उस ओर स एक असवसथ दशक का अनभव �न क पशचात अ) ट)� क इस ओर )ठन पर कया करना उलिचत �-य� सोचत �ी खया� आता � हिक अनत:करण की असवसथता अभी समापत न�ी हई �। वस व� कभी समापत �ोती भी न�ी। 'हिकस रासत जाना �?' परशन का साप सरसराता हआ अपनी ओर आता �ी र�ता �। और इसी म आननद भी �। रासत मडत �, मडकर �पत �ोत दिदखत �। मडन की वदना )धती भी �। ऐस परशन चनौती दत �-य�ी उनका काम भी �। तभी परो स रासत की पकड छटती न�ी। आधिधया तो च�ती �ी र�ती �। अनCरिरत, हिनरCर करन वा� परशनो क घर )ढत जात �-त) भी उनम स एक अदमय सम�गीत, शत कोदिट का, 'कोदिट-कोदिट कठ क�क� हिननाद कर �', सम�गीत कडकता �।-'यग की जडता क खिख�ाफ एक इनक�ा) �।' जडता, मढता, क�वय आदिद क हिवरदध इनक�ा) उठाना �ोगा, शात अनागर�ी सजनशी� इनक�ा) और य� हिनवµर, हिवधायक इनक�ा) कस करना �ोगा-)तान वा�ा आशवासक सवर �-'मझ अपनी शाहित आधी म स �ी ढढनी �।' )स आज का दिदन वयतीत करन क लि�ए इतना धय काफी �। 'क�' उदिदत �ोगा �ी। सजनशी� परयतनो दवारा उसका उतसव मनात हए भहिवषय की ओर कदम )ढाना �।(मराठी स रपानतर : डॉ. नीरा ना�टा)'पजय )ाप' पषठ स?

सभाष समपत ज) �म कोई सतकाय �ाथ म �त � तो परात: समरणीय सभी दवो को नमसकार करत � और ' कषण वनद

जगतगर' शलोक का उचचारण करत हए अनत म ' कशव परहित गचछहित' क�त �। मत�) हिक सभी दवो को नमसकार करक अनत म कषण की ओर जात �। उसी तर� ज) कभी सतय, अहि�सा, धम,

असपशयता- हिनवारण व खादी जस हिवषयो पर चचा की जाती �, तो इन हिवषयो क साथ पजय )ाप का नाम अपन आप जड जाता �।

गाधीजी को समपण दश न राषटरहिपता माना- उन�ोन तो माना �ी, जो उनक हिनकट समपक म र�, जिजन�ोन अपनी आखो स उन� दखा, जिजन�ोन अपन कानो स उन� सना; उन�न भी उन� राषटरहिपता क रप म

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सममान दिदया, जो कभी उनक समपक म न�ी आय। गाधीजी थ �ी ऐस हिक सभी भारतवालिसयो न उन� अपना मखिखया माना। य�ा तक हिक हि)ना हिकसी परचार- परसार क व स�सराबदी- परष की उपाधिध स नवाज

गय। ज) �मारी 'सभा' की हिनदलिशका डॉअ सशी�ा गपता न मझस )ाप पर कछ लि�खन क लि�ए क�ा तो मन उCर दिदया, न म पण गाधीवादी ह, न इहित�ासकार ह और न �ी साहि�तयकार ह। )ाप को )स मन अनक माधयमो स जाना �। �हिकन डॉअ गपता क आगर� को म टा� न�ी सका।

पजय गाधीजी न जो भी महि�म च�ायी, व� चा� जिजतनी सामानय- सी �ो, उनक लि�ए )हत म�ततवपण थी। असपशयता- हिनवारण स �कर ' � राम' म लि�पटी पराणाहहित की अनविनतम घटना तक उन�ोन अपन

आपको दश- हि�त म समरषिपत कर दिदया। उनक जीवन का �र कदम पावन था, �र काय दसरो क उतथान क लि�ए था। उन�ोन दश की कोदिट- कोदिट जनता क लि�ए भगीरथ काम हिकया- दश की आजादी क लि�ए दश का नततव हिकया। व दश की आजादी का �ाभ करोडो दशवालिसयो तक पहचाना चा�त थ। उनकी

जिजनदगी म खश�ा�ी �ाना चा�त थ। आजादी क जशन और परशसा- परशलकिसत म उनकी कोई दिद�चसपी न�ी थी। दिद\�ी म �ा�- हिक� पर आजादी का जशन मनाया जा र�ा था और व नोआखा�ी म

सापरदाधियक दगो म घाय� �ोगो क आस पोछ र� थ। शरी पयार�ा� न लि�खा � हिक " उनका सथान उस दिदन भारत क गवनर जनर� क समीप न�ी था। ... गाधीजी का सथान तो उतपीहिडत और सनतपत �ोगो

क पास था।'' गाधीजी न दशवालिसयो को सवत6ता दिद�ायी और करोडो दशवालिसयो न सवत6 वातावरण म सास �ना सीखा। �ोगो न सवत6ता का सवाद चखा, �हिकन हिनयहित को कछ और �ी मजर था। �तयार गोडस न

उन� गोलि�यो स भन डा�ा, �हिकन �मार )ाप न �म अमन का पगाम दिदया और अमन का वातावरण पदा हिकया। आजादी और अमन की धिमसा� अनक छोट- )ड दशो की आजादी म काम आयी, जिजसम

अफरीका, एलिशया और योरप क कई म\क आ जात �। भारत म अगर �मार अ\पसखयक भाई शानविनत स र� सक तो व� गाधीजी क )लि�दान की )दौ�त �।

हि�नदसतान भ� �ी टकडो म )टकर भारत और पाहिकसतान )न गया �ो, �हिकन �मारी एकता को कोई आच न�ी आयी।

गाधीजी न असपशयता- हिनवारण क लि�ए �र सभव उपाय हिकय। उनक )ताय हए रासत पर च�कर �ोगो न दलि�तो क साथ भाईचारा हिनभाना सीखा। कायद- कानन क अनसार असपशयता जम मान लि�या गया �। कछ अपवाद भ� �ी दिदखायी दत � और दर क�ी अधर कोन म अजञानी और अ)ोध �ोग दलि�तो क साथ दवयव�ार करत दिदखायी द जात �, परनत मझ परा हिवशवास � हिक भहिवषय म शीघर �ी दलि�तो क

साथ भद- भाव की भावना नसतना)द �ो जायगी। वतमान समय म �मार सामन 'आरकषण' का नया भत खडा �। व� भी पजय गाधीजी की वयाव�ारिरक सीख स छट पायगा। दहिनया भर म का� और गोर का भद घटता जा र�ा �, य�ा तक हिक क�ाहिनयो क पषठो म और लिसनमा

क परदो पर इन दो वण¾ क )ीच हिववा�- सम)नध भी दिदखाय जात �। गाधीजी का म�भत हिवचार इसवण- वयवसथा को तोडन म कामया) र�ा। �ा, अबरा�म सि�कन, मारटिटन �थर हिकग आदिद का इसम भारी

योगदान था। गाधीजी चा�त थ हिक भारत स जाहित- परथा समापत �ो जाय सदा- सदा क लि�ए और आपस म रोटी- )टी

का वयव�ार परचलि�त �ो। उन�ोन ऐ�ान कर रखा था हिक व उस हिववा�- समारो� म खशी- खशी सतमिममलि�त �ोग, जिजसम वर- वध म स एक तो कम-स- कम �रिरजन �ो। परसननता की )ात � हिक आज

जाहित- परथा का )नधन टट गया � और शादी- बया� क उपरानत �ो�ार का �डका �ो�ार �ी )न, सोनार का )टा सोनार �ी )न और वशय का �डका वयापारी �ी )न, ऐसा �गभग न�ी �ोता �।

गाधीजी क सव�दय की हिवचारधारा स परभाहिवत �ो अनक वयावसाधियक और सामाजिजक ससथाओ न टरसटीलिशप का लिसदधानत अपना लि�या �- यानी पदाधिधकारी मालि�क )नकर न�ी, हिवशवसत )नकर काम कर;

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सवय का न�ी, ससथा का हि�त सोच। हिनससद� टरसटीलिशप क लिसदधानत को �ोकहिपरय )नान म गाधीजी का �ी योगदान माना जाना चाहि�ए।

उपवास को गाधीजी न मा6 धम और सवासथय का साधन न मानकर उस आतमशजिदध का एक वजनदार शस6 माना था। उन�ोन ज) भी इस शस6 का उपयोग हिकया, उसक पीछ म� भावना लिचनतन, मनन और

आतमशजिदध की �ी थी। हिवकट-स- हिवकट परिरलसिसथहित म भी उन�ोन उपवास क माधयम स सकारातमक �� ढढ लि�या था।

एक जमान म क�ा जाता था हिक )ताहिनया का सय पथवी- पट� पर कभी न�ी ड)ता, �हिकन इस फकीर न साहि)त कर दिदया हिक स\तनत हिकतनी भी मज)त �ो, उस सतय- अहि�सा क )� पर झकाया जा

सकता �। य� तथय लिसफ हि�नदसतान क लि�ए �ी न�ी, )लकि\क दहिनया क )हत स म\को म आजमाया जा चका �। उसी का परिरणाम � हिक गाधीजी क जरिरय हि�नदसतान क आजाद �ो जान पर )हत सार राषटरो

म नयी चतना आयी। य� स) )ाप की हिवचारधारा का �ी तो परिरणाम �! �ो सकता �, भारत दश क )हत सार हिकशोर और नवयवक भाई- )�न गाधीजी क नाम या काम स

परिरलिचत न �ो, �हिकन य� क�ना मनालिस) �ोगा हिक हिकसी भी धम म एक मसी�ा या धमगर का या उस धम क ईशवर का जो सथान �, ठीक व�ी सथान गाधीजी क नाम या गाधी- म6 को परापत �। मरा

मानना � हिक आगामी पीढी म गाधी का सदश सभी को भायगा। पजय )ाप दवारा सथाहिपत )हत सारी ससथाओ म स एक ' हि�नदसतानी परचार सभा' आज भी �, जीहिवत और जीवनत �। �मारी 'सभा' की �ाइबररी म गाधीजी क साहि�तय का हिवशा� भडार �, दीवारो पर )हत सार लिच6 �ग �। मर ककष म भी गाधीजी की एक समाधिधसथ तसवीर �। य� कव� शोभा या सथान को

)ढावा न�ी दती, )लकि\क उनकी इस तसवीर स और उनक नाम स मझ अदभत पररणा धिम�ती �। आज भ� �ी गाधीजी �मार )ीच सशरीर उपलसिसथत न�ी � और उनक नाम का �म कव� समरण- मा6

कर पात �, पर मरी समझ म सन 2048 तक गाधीजी की मरषित की अनय दवी-दवताओs की तर� एक ईशवरीय अवतार क रप म पजा की जान �गगी। इहित�ास क पननो म ज�ा- ज�ा उनका नाम �, उनक हिवचार �, उनक काय¾ का वCानत �, उनकी साधना की तसवीर �, उनक सदशो स ससलसिजजत शबद �,

व�ा स �म हिनरनतर पररणातमक शलिकत धिम�ती र�गी। �म पररणा गर�ण करग और अपन पयार )ाप क सपनो को साकार करग-

" तर उन अगततिणत सव�ो को �म रप और आकहित दग �म कोदिट-कोदिट तरी औरस सतान हिपता।''

�मारी वतमान पीढी, आनवा�ी पीढी और भहिवषय की पीदिढया इहित�ास क पषठो पर अहिकत म�ातमा गाधी क  सनदभ, अनसधान, काय व )लि�दान की गाथा पायगी। जिजन पषठो म पजय गाधीजी अहिकत

�ोग, व अमोघ �ोग और सद� न �ोत हए भी म�ातमा गाधी का माग- दशन इस ')ाप' शबद स �ी �म �ाभानविनवत करगा ।

आधहिनक समाज म गाधीवादी म\यो की परासहिगकताडॉ. सरनदर वमा

कया गाधी- दशन क स)ध म परासहिगकता का सवा� )मत�) न�ी �? नहितक नजरिरय स अगर �म दख तो गाधी को )दध और ईसा की कोदिट म रखा जा सकता �, कयोहिक गाधी न जिजन नहितक म\यो पर जोर

दिदया �, व )ौदध और ईसाई नहितक म\यो स अ�ग न�ी �। पर )दध या ईसा की परासहिगकता क सम)नध म कभी हिकसी न परशन न�ी उठाया। हिफर य� सवा� गाधी क )ार म �ी कयो उठाया जाता �?

गाधी खद अपन को एक सनातनी हि�द क�त थ और सनातन हि�द धम म सनातन नहितक म\यो को क)� हिकया गया �। य व सामानय म\य �, जो दश, का� और पा6ो क )द� जान स )द�त न�ी। य हिनरपकष म\य �। सतय, अहि�सा, असतय, अपरिरगर� और बरहमचय ऐस म\य �, जो आम तौर पर सभी क

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लि�ए सदगणो क रप म सवीकार हिकय गय �। कोई भी हिवकलिसत धम उनको नजरअदाज न�ी कर सकता। य सनातन म\य �र जमान म जररी र� �। गाधी न इन�ी कदरो को क)� हिकया �। इसलि�ए

आज  क दौर म उनकी परासहिगकता ढढना एक )मानी खोज �। व तो सभी यगो म परासहिगक �। आज क जमान म गाधीवादी कदरो पर सवा� उठाया जाना, शायद लिसयायत क नजरिरय स जररी भ�

�ो, गाधी की उपयोहिगता को लिसदध या अलिसदध करक गाधी- समथक या तथाकलिथत गाधी- हिवरोधी खम राजनहितक फायदा उठा सकत �। सच तो य� � हिक गाधी की परासहिगकता का परशन उन गाधी- हिवरोधी

तततवो न �ी उठाया �, जो गाधी- दशन को अम�ततवपण करार दना चा�त �। इस सवा� को उठाकरगाधी- समथक खम की लसिसथहित 'सरकषातमक' )ना दी गयी � और गाधीवादी )जाय इसक हिक व गाधी-

हिवचार को )ढावा द पाय, उसका ')चाव' करन म �ग गय �। परासहिगकता क परशन न गाधीवाद को कठघर म खडा कर दिदया �।

नहितक म\य �मार रोजमरा क चा�- च�न स स)धिधत म\य �। व �मार आचरण का )खान न�ी करत, )लकि\क उस कसा �ोना चाहि�ए, य� )तात �। व हिववरणातमक न �ोकर हिनयोजक (हिपरहिकरजिपटव) �। उनकी

अततिभवयलिकत का आधार 'चाहि�ए' �। हिकनत नहितक म\यो का 'चाहि�ए'- रप मनषय की वासतहिवक क)त की ओर इशारा करता �, उसकी कषमताओ की ओर सकत करता �, न हिक हिकसी ऐसी चीज की तरफ, जो पायी �ी न जा सक। जो अपरापय �, आकाश- कसम �, व� तो म\य �ो �ी न�ी सकता। अहि�सा एक नहितक म\य इसलि�ए � हिक य� �म अहि�सा )रतनी चाहि�ए- ऐसा आदश दता �। हिकनत अहि�सा म

हिनहि�त जो 'चाहि�ए' �, व� ठीक इसलि�ए ममहिकन �ो सका � हिक मनषय दरअस� अहि�सक �ो सकता �। यदिद व� अहि�सक न �ो सकता �ोता तो अहि�सा क सदभ म 'चाहि�ए' )मत�) �ो जाता। इस परसग म जमनी क सपरलिसदध दाशहिनक काट की उलिकत-' आई ऑट दयरफोर, आई कन' ( मझ करना चाहि�ए,

इसलि�ए म कर सकता ह।) दर}वय �।गाधी- दशन म नहितक म\यो क सवभाव क इसी प�� पर जोर दिदया गया �। गाधी क अनसार कोई भी

आदश ऐसा न�ी �ोता, जिजस �ालिस� न हिकया जा सक। 'आदश' ठीक इसीलि�ए आदश � हिक उस वयव�ार म उतारा जा सकता �। नहितक म\य आदशातमक (हिवहि�त, हिनयोजक) �ोत हए भी मानवी

कषमता क, इनसानी क)तो क पर न�ी �। उन� आचरण म आसानी स �ाया जा सकता �। एक )ात और। परपरागत सिचतन म ज�ा नहितक म\यो को कोर आदश¾ क रप म कव� सदधानविनतक माना गया �, व�ी उन� 'वयलिकत' तक �ी सीधिमत कर दिदया गया �। हिकनत गाधी न जिजस तर� लिसदधात और वयव�ार क हिवभाजन को खतम कर दिदया, उसी तर� वयलिकत और समाज क दवत को भी असवीकार

हिकया। वयलिकत स समाज तक एकस6ता �। इन दोनो क )ीच �म जो भी हिवभाजन- रखा खीचत �, व� �मशा मनमानी �ोती �। यदिद नहितक म\यो को कोई वयलिकत अपन आचरण म उतार सकता �, तो व

सामाजिजक आचरण म भी उतार जा सकत �, व समाज क लि�ए भी उतन �ी उप�बध �। गाधी की नहितक परहितभा खासतौर पर इस )ात म � हिक उन�ोन नहितक म\यो को कोरी आदशातमकता और हिनरी

वयलिकतकता स आजाद करक, वयाव�ारिरक जमीन पर �ाकर खडा कर दिदया। नहितक म\य मानव- सवभाव क स�ज सदगण �। व मनषय क सामानय धम �। मनषय नहितक सदगणो स �ी इनसान क रप म अपनी प�चान )नाता �। जिजस तर� आग अपनी गम� स और पानी अपनी ठडक स प�चाना जाता �, इसी तर� मनषय अपन सदगणो स जाना जाता �।

मनषय क सदभ म गाधी जी पश- )� और आतम)� म भद करत थ। एक जानवर अपनी शारीरिरक ताकत क अ�ावा और हिकसी शलिकत का उपयोग न�ी कर सकता। हिकनत मनषय म पश- )� क अहितरिरकत

आतम)� भी � और य�ी आतम)� आदमी को जानवरो स अ�ग करता �। नहितक म\य आतम)� क पयाय �, अत व स�ज मानवी सवभाव की प�चान भी �।

आधहिनक समाज स�ज मानवी सवभाव का परिरचायक न �ोकर )नावटीपन और कहि6मता की वका�त करन �गा �। गाधी आधहिनक समाज क इसी )नावटीपन क हिवरोधी थ। आधहिनक समाज अपनी

अस�जता म, अपनी हि�सा की परवततिC और परिरगर�- परम म अपनी स�ज सवाभाहिवक सदवततिCयो को भ�

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गया �। नहितक म\य, जो मनषय क वासतहिवक सवभाव की ओर सकत करत �, ज) तक मनषय न�ी अपनाता, व� मकत न�ी �ो सकता।

गाधी जी इस मलिकत क लि�ए इनसाहिनयत- हिवरोधी वततिCयो क खिख�ाफ )रा)र �डत र�। व आज भी ठीक इसीलि�ए परासहिगक � हिक अभी य� �डाई खतम न�ी हई �, )लकि\क इस और लिशददत क साथ �डा जाना

� । गाधीवादी सौनदय-)ोध एव वतमान परिरवश

मनोज कमार राय समपण सधि} को नसरषिगक कावय क रप म दखन वा�ी भारतीय मनीषा सौनदय की अवधारणा को �कर

इस हिववाद म न�ी पडती हिक सौनदय दर}ा की दधि} म �ोता � अथवा दशय वसत म। कोई वसत आतयहितक रप म इतनी सनदर न�ी �ोती हिक व� सभी का�ो म सभी दखनवा�ो क लि�ए समान रप स सनदर परतीत �ो और न हिवधाता की इस रचना म कोई वसत इतनी असनदर �ोती � हिक उसम कभी हिकसी को हिकसी तर� का सौनदय �ी दिदखायी न पड। मनषय क मन म सौदय- )ोध का हिवकास जीवन- जगत क अनक अनभवो क आधार पर �ोता �। इनम

सधि}- सौनदय का सथान परमख �। इसी क साथ सामाजिजक ससकार, आरथिथक परिरलसिसथहित एव वयलिकततव व जीवन का भी म�ततवपण सथान �ोता �। वयलिकततव जनमजात और अरजिजत दोनो ससकारो स )नता �।

" सधि} म अनत सौनदय �ोन पर भी सौनदय)ोध क हिवकास क लि�ए दर}ा क समपण वयलिकततव, समझदारी, अनतगरा�ी सवदनशी�ता, परजञा और हिववक आदिद की भी अपकषा �। इनस परिरपण दर}ा �ी भौहितक और

नसरषिगक सौनदय का भावन करन म समथ �ो सकता �।''1 सौनदय क परहित आकषण मनषय का स�ज ससकार �। गाधी जी का भी अपन ढग स था। इसक )ावजद उन पर य� आरोप �गाया जाता र�ा � हिक उनक जीवन म क�ा का कोई सथान न�ी था। इन आरोपो को त) और )� धिम�ता था, ज) म�ततवपण वयलिकतयो को भी उनकी कदिटया म कोई अ�करण

का हिवधान न�ी धिम�ता था। पर गाधी जी क क�ा- म\य �ोगो क क�ा- म\य स कछ ततिभनन थ। अत उनक सादगी- भर जीवन म �ोगो को 'क�ा' क दशन न�ी �ोत थ। पर उनका य� दधि}कोण सवथा एकागी �।

एक )ार परलिसदध लिच6कार ननद�ा� वस उनकी कदिटया म गय। व�ा पर उनकी दधि} अशवतथ- प6 की आकहित वा� ढककन पर पडी, जिजसस �ोटा ढका हआ था। गाधी जी उनकी दधि} को ताड गय और

उन�ोन क�ा-" दखो सनदर � न! इस पर परकहित की छाप � और साथ �ी उस गाव क एक �ो�ार न मझ गढकर दिदया �।''2  क�ना न �ोगा हिक गाधीवादी सौदय- )ोध का समपण रिरकथ इन दो वाकयो म लिसमट

गया �। '�ोक' और 'परकहित' क परहित इतना जीवनत हिवशवास शायद �ी क�ी दखन को धिम�। वसतत लिच6ो स रहि�त दीवारो क पीछ उनक नसरषिगक 'सौनदय-)ोध' क लिसवा कछ न�ी �। व क�त

�-" म मानता ह हिक मर आशरम की दीवारो पर लिच6 आदिद न�ी �। हिकनत इसका कारण य� � हिक म दीवारो को आड- )चाव की चीज मानता ह। य� न�ी हिक म क�ा- मा6 का �ी हिवरोधी ह। ज) म

ताराखलिचत परकाशमय आकाश की ओर दखता ह तो सोचता ह, भ�ा आदमी की सचत क�ा �म कया द सकती �! परकहित क भीतर सौनदय क इन सनातन हि)म)ो की त�ना म आदमी की क�ा हिकतनी

अपण �''!3  सप} � हिक गाधी जी परकहित को स)स )डा क�ाकार मानत थ। अपनी आतमकथा म उन�ोन लि�खा �-" म पराकहितक दशय को दखकर मदिदत �ो जाता था... । अपन पवजो क परहित शरदधा स अपना लिसर झका �ता था हिक उनक सौनदय)ोध की दधि} हिकतनी उदाC और पहिव6 थी।''

ऐसा न�ी � हिक गाधी जी को मानव- हिनरमिमत क�ा की वसतओ म कोई सौनदय न�ी दिदखता था। व सचच शरम और शोषण- हिव�ीन कम म सौनदय दखत थ। जो क�ा सभी की उननहित क लि�ए कछ कर सक, व� 'क�ा' उन� )�द हिपरय थी। चरखा इसका जव�नत उदा�रण �। चरख क सगीत क भीतर उन� शाशवत सौनदय दिदखता था। कयोहिक इसक जरिरय व करोडो को रोटी म�या करा सकत थ। व )ड �ी सर� शबदो म क�त �-" मरा धयय सदा क\याण का �, क�ा क\याणकारी �ो, तभी तक व� मझ

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सवीकाय �।... और भारतीयो न तो अपनी क�ा को मजिनदरो और गफाओ म उतारकर सावजहिनक कर दिदया �। गरी)ो को ऐस सथानो म जाकर जो चाहि�ए, सो धिम� जाता �।''5 अस� म गाधी जी ' क�ा क लि�ए क�ा' लिसदधानत क हिवरोधी �। व क�त �-" क�ा क लि�ए क�ा' मरी समझ क )ा�र �। जो क�ा �म आतम- दशन करना न लिसखाय, व� क�ा �ी न�ी �।''6  और " जो क�ा

मन को शानविनत न द सक, व� भी क�ा न�ी �।''7  उनकी दधि} म जो क�ा समाज क नहितक और आधयातमितमक उननहित म स�योग कर सक, व�ी सचची क�ा �। जिजस क�ा को समझन क लि�ए हिकसी

शास6 का अचछा जञान अपततिकषत �ो, व� क�ा न�ी �, व� असथायी �। उनकी दधि}   म " क�ा और साहि�तय को लिचरजीवी )नन क लि�ए स�ज व सर� )नना �ोगा। जिजसस �ोग उस स�जता स परापत कर

�ग और अपना भी सक ग।''8 गाधी जी को अस�ी सौनदय परकहित की वासतहिवकता और जीवन की ईमानदारी म दिदखता था। उनक हि�सा) स सौनदय का सार- तततव सतय म �ी हिनहि�त �। व क�त �-" मझ तो सतय क परहितहि)म) वा�ी

सभी वसतए सनदर �गती �- सचचा धिम6, सचचा कावय और सचचा गीत। आम तौर पर �ोगो को सतय म सौनदय न�ी दिदखता �।''9  व उदा�रण दत हए क�त � हिक-" अपन जमान क करपतम वयलिकत सकरात

को म सनदर कहगा। कयोहिक   उसकी सतय- जिजजञासा और उसकी अनवरत खोज उस समपण सौनदय परदान करती �।''10  डधिमयन कोढी था और कहिव धिम\टन अधा। आदमी कव� शरीर �ी न�ी �, )लकि\क उसस कई गना ऊची चीज �।11  गाधी का य� सौनदय- )ोध उन� भारतीय सौनदयशास6 की अनपम दन

' सतय लिशव सनदरम' क नजदीक � जाता �। आतयहितक हिवचार ज) परजञा दवारा हिनधारिरत �ोता � तो व� उचचतम सतय �, वयव�ार म ज) चरिरताथ �ोता �, त) लिशव � और ज) उसकी अततिभवयलिकत मनषय और

परकहित क रप म �ोती � तो व�ी परम सौनदय �ोता �। गाधी जी इस लिसदधानत पर एकदम खर उतरत �। उनकी दधि} म " सतय �ी म� वसत �। परनत व� सतय `ि£शव' �ोता �, सनदर �ोता �। सतय- परानविपत क )ाद तम� क\याण और सौनदय दोनो धिम� जायग। इस परकार म ईसा मसी� को )डा क�ाकार

क�ता ह, कयोहिक उन�ोन सतय की उपासना करक सतय को खोजा और सतय को परकट हिकया। म�ममद भी इसी परकार क�ाकार हए।... दोनो म स एक न भी- न ईसा न, न मसा न- क�ा पर वयाखयाए लि�खी। मझ ऐस सतय और सौनदय की �ा�सा र�ती �।''12

गाधी जी का हिवशवास � हिक सव�Cम क�ा तभी समभव �, ज) क�ाकार का वयलिकततव व चरिर6 एकदम हिनद�ष �ो। कोई भी क�ाकार, जिजसन आतमा क सौनदय को न�ी प�चाना �, व� क�ा क चरम रप

को कभी न�ी परापत कर सकता �। उनका क�ना �-" जो सव�Cम जीवन जीता �, व�ी स)स )डा क�ाकार �। कयोहिक जिजस क�ा क पीछ उदाC जीवन न �ो, व� क�ा कसी?''13

सभी क�ाओ म गाधी जी को सगीत सवाधिधक हिपरय था। भलिकत- गीत व भलिकतपण सगीत )�द हिपरय थ। एक जग� उन�ोन लि�खा �-" मीरा क... गीत )हत सनदर �। इसका कारण य� � हिक व मीरा क हदय स हिनक� �... म तो सगीत क हि)ना भारत क धारमिमक जीवन क हिवकास की क\पना भी न�ी कर सकता।''14  य�ी न�ी, उनका मानना � हिक सगीत स ईशवर का धयान आसानी क साथ हिकया

जा सकता �। व सगीत और लिच6क�ा को समसत हिवशव की एक भाषा मानत �। सगीत का म�ततव उनक जीवन म हिकतना �, य� उनक इस कथन स पता च�ता �, ज) व योगी क लि�ए भी सगीत को

अहिनवाय तततव )तात �-" सच पछा जाय तो योगी भी सगीत क हि)ना अपना काम न�ी च�ाता। उसका सगीत हदय- वीणा म स हिनक�ता �, इस कारण �म सन न�ी पात।''15

वतमान परिरवश म सगीत और सौनदय क मापदणड हिवकत �ो गय �। सगीत क नाम पर भोड और उCजक सगीत का )ो�)ा�ा � तो सौनदय क नाम पर हिवशवसनदरी, श�र- सनदरी अथवा गाव- सनदरी का

नाटक च� र�ा �। गाधी जी रप और तततव म भद न�ी करत थ। उनक लि�ए दोनो �ी अततिभनन �। �हिकन आज रप का �ी )ो�)ा�ा �। रप क गव को नारी- सवभाव का एक सवाभाहिवक अग माना गया

�, जो उसक यौवन स आरमभ �ोकर माततव- परानविपत क समय तक परकट �ोता �। पर इसम सालकिततवकता का भी पट र�ता �। कयोहिक रप- गव ज) सीमा का अहितकरमण कर जाता �, तो उसस वयलिकत का पतन

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�ोता �। उसस उसका अ� प} �ोता � हिक व� रप क )� पर सार ससार को वश म कर सकता �। परष की अपकषा नारी म य� द)�ता अधिधक �ोती �। लसिक�योपटरा, नरज�ा जस ऐहित�ालिसक उदा�रण

तो � �ी, वतमान म पाम�ा )ोडÆसो की भी कमी न�ी �। नारी क रप- सौनदय का अ�कार उस अपन रप की परशसा सनन और सममान पान क लि�ए उCजिजत करता �। और हिफर तो व� हिवशवसनदरी )नना

चा�ती �। य�ी द)�ता उसक पतन का कारण )नती �। परलिसदध कहिव और क�ानीकार जयशकर परसाद न अपनी क�ानी 'सा�वती' म इस द)�ता की चरम लसिसथहित को )ख)ी दशाया �, जिजसम सा�वती

'क�वध' स 'वशया' �ो जाती �। रप- गव का अ� वयलिकत क जीवन को असनतलि�त और मयादा- हिव�ीन )ना दता �। गाधी जी वयलिकत क जीवन म सनत�न और मयादा क पकषघर थ। उनका मानना था हिक

" वयलिकत का सचचा सौनदय उसक शदध हदय, पहिव6 जीवन और चरिर6- शदधता म �।''16

गाधी जी क लि�ए 'क�ा' सतय का दपण � और सतय उनक लि�ए अमत न �ोकर हिनततिशचत और साकार �। धयान र�, गाधी जी की दधि} म सचची व जीवनत क�ा व�ी �, जिजसका �मार जीवन स सम)नध

�।''17  ज) वयलिकत सतय म सौनदय दखन �गता �, तभी सचची क�ा का हिनमाण �ोता �। सतय वयलिकत को उसक कतवय- पा�न म दिदख सकता �। वसतत सौनदय की अततिभवयलिकत वयलिकत क मन, कम और

वचन म �ोनी चाहि�ए। गाधी जी न एक जग� लि�खा �-" कावय और क�ा को तो सतय क परचार का साधन �ोना चाहि�ए, उनका उपयोग कभी भी चाप�सी क लि�ए न�ी करना चाहि�ए। कयोहिक कहिवता क

ऐस परयोग स न कव� क�ा का हरास �ोगा, )लकि\क सतय का भी खडन �ोगा।''18

इस सकरमण का� म भारतीय मनीषा अपन लिचनतन और सामाजिजक सगठन की पनरÈचना करती र�ी �, जिजसस नयी चनौहितयो का सामना �ोता र�ा �। वतमान सकरमण स हिनक�न �त भारतीय मनीषा क लिशखर परष गाधी न �म अपन यजञमय जीवन क जरिरय एक नयी दधि} दी �। यदिद वयलिकत उनक सौनदय

की अवधारणा को अपन दहिनक जीवन म उतार सक, तो उसस उसका �ी न�ी, समपण हिवशव का क\याण समभव �।

सदभ सकत -1. दसतावज, अक 83- हिवशवनाथ हितवारी2. प6 मततिण पत� क नाम- क)र नाथ राय3. समपण गाधी वाङमय, खणड 23, प. 2074. गाधी की आतमकथा5. म�ादव भाई की डायरी, भाग 4, प. 736. व�ी7. यग इहिडया, 27 / 5 / 19268. म�ादव भाई की डायरी, भाग 4, प. 739. व�ी10. व�ी11. समपण गाधी वाङमय, खणड 33, प. 25312. म�ादव भाई की डायरी, भाग 413. समपण गाधी वाङमय, खणड 33, प. 20714. व�ी15. हिवशा� भारत 1931, प. 2916. समपण गाधी वाङमय, खणड 35, प. 3617. व�ी18. व�ी, खड 56, प. 355 म�ातमा गाधी : समसामधियक सदभ म `सतय क परयोग'

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डॉ. माधरी छडा गाधीजी क�त � हिक सतय �ी उनक लि�ए सव�परिर �। पर य� सतय सथ� सतय न�ी �; य� कव� वाणी

का न�ी, )लकि\क हिवचारो का सतय �। य� �मारी क\पना का सतय न�ी, )लकि\क सवत6 लिचरसथायी सतय �। गाधीजी सतय क पजक �, इसीलि�ए सतय �ी उनक लि�ए परमशवर �। इस सतय क व शोधक � और

शोध क इस माग पर अपनी हिपरय-स- हिपरय वसत को तयागन की भी उनकी तयारी �। गाधीजी न सतय की खोज को कव� लिसदधानतो या )ातो तक �ी सीधिमत न�ी रखा �, )लकि\क उस अपन समपण आचरण म उतारा �। इसीलि�ए उनक जीवन की घटनाए सतय क परयोग �। गाधीजी क सतय- स)धी य हिवचार और उनका आधार आज क मा�ौ� म अहिवशवसनीय �ग सकता �। आनवा�ी पीदिढया, �ो सकता � इस

)ात को सच न मान हिक इस धरती पर कोई ऐसा �ाडमास का जीवधारी �ो चका �, जिजसन सतय क ऐस परयोग आचरण म उतार �। और य� सतय मनषय- जीवन की सपणता म कोई सवाधीन सवत6 इकाई न�ी �, )लकि\क इसी सतय क साथ जडी हई � अहि�सा, आतमशजिदध, परम, रागदवष- रहि�त मानलिसकता...!

�ौहिकक सतर पर गाधीजी क सतय का साकषातकार उनकी हिकशोरावसथा म करी) तर� वष और पदर� वष की आय म दिदखायी दता �। अपनी इस आतमकथा म गाधीजी न सवीकार हिकया � हिक उन� )ीडी पीन की ग�त आदत थी। साथ �ी पदर� वष की आय म भाई क �ाथ म सोन का जो कडा था, उसम स हि)ना हिकसी को )ताय, एक टकडा काटकर चोरी करन की भ� को भी उन�ोन क)� हिकया �। इसम

म�ततवपण )ात य� � हिक चोरी करन क )ाद उन�ोन भ� म�सस की, मन-�ी- मन उन� पशचाताप हआ और मानो मन की ग�न अधरी गफा म सय�दय हआ और सतय क परकाश स उनका साकषातकार हआ। सतय क इसी परकाश म उस हिकशोरवय म चोरी का अपराध उन�ोन अपन करोध और लिसदधातवादी हिपता

क समकष सवीकार हिकया, पशचाताप वयकत हिकया और आग स ऐसी भ� न करन का वचन दिदया। सतय क इस साकषातकार का )डा �ी हदयदरावक दशय गाधीजी न शबदो क माधयम स मत हिकया �। गाधीजी न एक लिचटठी म   अपन अपराध का इकरार हिकया व लिचटठी हिपता क �ाथ म थमा दी। हिपता न लिचटठी पढी व

उनकी आखो स मोती क हि)द टपकन �ग, लिचटठी भीग गयी, प�- भर क लि�ए उन�ोन आख )नद कर �ी। इन )नद आखो क पीछ हिपता क�ी सतय क उस परकाश म शायद न�ा गय थ, उस म�सस कर र� थ। दोनो की आखो स आसओ की धार )�ी, दोनो क )ीच मौन का एक साथक सवाद रचा गया।

गाधीजी न लि�खा � " यदिद म लिच6कार �ोता तो आज उस लिच6 को उसकी पणता म लिचहि6त कर सकता; आज भी उतन �ी सप} रप म व� मरी आखो क सामन तर र�ा �।'' हिपता क न6ो स )� मोती-हि)दओ

न गाधीजी को शदध हिकया और हिफर तो अहिवर� च� पडी सतय क परयोग की व� या6ा!

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अपनी राजनीहितक गहितहिवधिधयो क दौरान उन पर मस�मानो क परहित पकषपात का आरोप �गाया जाता र�ा �। नाथराम गोडस की हि�सक परहितहिकरया भी उनक इस पकषपात की �ी दःखद परिरणहित �। दलि�तो,

�रिरजनो क परहित उनकी भावनाओ स भी �म स) परिरलिचत �। अथात अनय जाहितयो, धम¾, हिवचारधाराओ क परहित इस उदार आचरण क )ीज भी उनक )चपन म �ी दिदखायी दत �। अपनी इस

आतमकथा म इसका सकत दत हए गाधीजी न लि�खा � हिक उन� अपन राजकोट- हिनवास क दौरान अनायास �ी सभी सपरदायो क परहित समान भाव रखन का परलिशकषण धिम�ा। हि�द सपरदाय क परहित आदर

भाव का हिनधिमC )न थ माता-हिपता; जो �व�ी म जात थ, लिशवा�य म भी जात थ और राम- मदिदर म भी जात थ। उनक साथ आत- जात य� आदर- भावना हिवकलिसत व प} �ोती गयी। य�ी आदर- भाव जन धम क परहित भी उतपनन हआ। कयोहिक हिपता क पास जन धमाचाय¾ का आना- जाना भी �गातार जारी र�ता था। व�ा धम- चचा भी �ोती थी। हिपताजी क कई मस�मान व पारसी धिम6 थ। व स) अपन-अपन

धम की )ात करत थ। हिपताजी अतयत आदर व सममान क साथ उन )ातो को सना करत। उसम रलिच �त। गाधीजी अपन हिपता की सवा क लि�ए व�ा उपलसिसथत �ोत थ, इसीलि�ए य� सारी चचा व सनत।

इस सार वातावरण का उन पर य� परभाव पडा हिक सभी धम¾ क परहित उनक मन म समभाव पनपन �गा, जो आग च�कर )ड तीवर रप म उनक आचरण म दिदखायी दता

�। इस परकार धम क उस पडाव पर इन गढ )ातो को समझ पाना कदिठन �ोन क )ावजद एक मानयता

हिनरतर दढ �ोती गयी हिक य� जगत नीहित पर आधारिरत �। नीहित- मा6 का समावश सतय म �। अत सतय को तो खोजना �ी चाहि�ए। इस परकार सतय की महि�मा दिदन- परहितदिदन )ढती गयी मन म, सतय की

वयाखया हिवसतत �ोती गयी। उन�ी दिदनो नीहित का एक ऐसा पद उन� धिम�ा, जिजसन उनकी जिजनदगी को �मशा क लि�ए एक स6 द दिदया - " अपकार का )द�ा अपकार न�ी, परोपकार �ी �ो सकता �।'' इस

स6 न जीवन क अत तक गाधीजी पर अपना वचसव )नाय रखा, आदत )न गयी और इस �कर जीवन म उन�ोन अनक परयोग हिकय। जिजस पद न गाधीजी पर अपना राज च�ाया, व� था - जो हिप�ाय ज�, भोजन उसको दीज; जो नमाए शीश, दडवत उसको कीज।

आपण घास दाम, काम लिसकक का कर जाए; जो )चाए पराण, उसक दःख म मर जाए। गण क पीछ तो गण दस गना, मन, वाचा व कम स; पर अवगण क )ाद भी जो गण कर, जग म व�ी हिवजता )न सकता �।

गाधीजी क सतय परयोग और सतय क आचरण कव� सच )ो�न तक �ी सीधिमत �, ऐसा न�ी �। )लकि\क ज�ा- ज�ा भी, अनीहित, अधम, अतयाचार, अनाचार दिदखायी दिदया �, व�ा- व�ा उन�ोन सतय को सथाहिपत

हिकया �। अपन ऐस �ी सतय क परयोग की एक घटना का उ\�ख गाधीजी न अपन हिव�ायत- हिनवास क दौरान हिकया �। अपनी हिव�ायत- या6ा क लि�ए ज) गाधीजी न परसथान हिकया, त) व हिववाहि�त थ, )लकि\क एक

प6 क हिपता भी )न चक थ। उन दिदनो भारत स हिव�ायत जानवा� कई नवयवक ऐ s स थ, जो हिववाहि�त �ोन क )ावजद इस सच को इसलि�ए लिछपाया करत थ हिक व�ा की सदर यवहितयो क साथ

घमन-हिफरन, )ातचीत व मजाक- मसती का अवसर पा सक । गाधीजी न भी अपन हिववा� की )ात लिछपा रखी थी।

हिव�ायत क बराइटन �ोट� म एक वदधा क साथ गाधीजी का परिरचय हआ। धीर- धीर परिरचय ग�रा हआ और व� वदधा �र रहिववार को गाधीजी को अपन घर भोजन क लि�ए आमहि6त करन �गी। व� वदधा

गाधीजी का अनय महि��ाओ स परिरचय कराती, उन� शम छोडन को क�ती, उन� अक�ा छोड दती।धीर- धीर इन )ातो क परहित गाधीजी का आकषण )ढन �गा। व रहिववार का इतजार करत र�त। एक

नवयवती उस वदधा क साथ �ी र�ती थी। उसस गाधीजी का खास परिरचय करवाया गया। शायद वदधा

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न गाधीजी को अहिववाहि�त समझकर हिववा� की योजना भी )ना �ी थी। �हिकन हिफर धीर- धीर गाधीजी को म�सस हआ हिक य� ठीक न�ी �ो र�ा �। उन� अपन झठ पर पशचाताप �ोन �गा। उन�ोन सोचा, यदिद मन प�� �ी इस महि��ा को अपन हिववाहि�त �ोन की )ात )ता दी �ोती, तो हिकतना   अचछा �ोता!

पर अभी भी दर न�ी हई। यदिद म सच )ता द, तो आन वा� सकट स )च जाऊगा। य� सोचकर गाधीजी न उन� प6 लि�खा। इसम उन�ोन अपन हिववाहि�त �ोन की व एक प6 क हिपता �ोन की )ात

क)� की। गाधीजी न लि�खा हिक मझ इस )ात का दःख � हिक मन आपस य� )ात लिछपायी। पर मझ इस )ात की खशी � हिक ईशवर न मझ सतय क�न की हि�ममत भी परदान की। ज) वदधा को य� प6

धिम�ा, त) व गाधीजी की इस पारदरथिशता पर परसनन हई, और उन� हिनमहि6त करन का लिस�लिस�ा उन�ोन )नाय रखा। वयलिकतगत आचरण क य उदा�रण दिदखात � हिक कस गाधीजी सतय क परहित अपनी हिनषठा पर दढ र�त

थ। सतय क परहित य� हिनषठा, सतयाचरण की शलिकत क परहित य� हिवशवास, धीर- धीर वयापक रप धारण करन �गा। आग च�कर उन�ोन अपन वयलिकतगत आचरण क य परयोग सावजहिनक जीवन तक � जान

क लि�ए हिकय । एक )ार म)ई स गाधीजी अपन परिरवारजनो स धिम�न क लि�ए राजकोट व पोर)दर जा र� थ। )ीच म

)ढवाण सटशन पर जनसवक क रप म हिवखयात दरजी मोती�ा� उनस धिम�न आय। उन�ोन )ताया हिक वीरमगाम म जकात को �कर जो जाच- पडता� की जाती �, उसम सामानय जनता को )डी मसी)तो

का सामना करना पडता �। गाधीजी न उनस तरनत पछा, " इसक लि�ए ज� जान को तयार �ो?'' )ाद म गाधीजी न इस सम)नध म जानकारी �ालिस� की और व ज�ा भी गय, व�ा �ोगो न इस )ात की

लिशकायत की हिक जकात की जाच- पडता� क दौरान उन� हिकतना सताया जाता �। गाधीजी न �ॉड हिवसि�गडन स भी इस स)ध म )ातचीत की। पर कछ न�ी हआ। अत म करी) दो वष¾ क प6- वयव�ार

क )ाद उन� �ॉड चमसफड स धिम�न का अवसर धिम�ा। उन�ोन आशचय वयकत हिकया हिक उन� इस सम)नध म कछ भी पता न�ी �। उन�ोन तरनत सारा प6- वयव�ार मगवाया। उसक कछ दिदनो )ाद य� जकात रदद की गयी। गाधीजी न इस जीत को सतयागर� क रप म दखा। कयोहिक इस समसया क दौरान सरकार क

सलिचव न )ताया हिक गाधीजी क )गसरा म दिदय गय भाषण की एक परहित उसक पास �। उस भाषण म गाधीजी न सतयागर� की )ात की � और उसक परहित अपनी नाराजगी भी )तायी थी। सरकारी सलिचव न गाधीजी स क�ा था हिक य� तो शलिकतमान सरकार क लि�ए धमकी �। गाधीजी न उन� )ताया हिक य�

धमकी न�ी, )लकि\क जनता क लि�ए एक तर� का परलिशकषण �। य� �मारा धम � हिक �म �ोगो को उनक दःख दर करन क सार वासतहिवक उपाय )ताय। जो जनता सवत6 �ोना चा�ती �, उसक पास अपनी रकषा का अनविनतम इ�ाज �ोना चाहि�ए। सतयागर� तो शदध अहि�सक शस6 �। उसका उपयोग व उसकी

सीमाए )नाना �मारा धम �। इसम कोई शक न�ी हिक अगरज सरकार शलिकतमान �। पर मरा हिवशवास � हिक सतयागर� सव�परिर शस6 �।

गाधीजी न अपन इस शस6 का परयोग कई मौको पर सफ�तापवक हिकया �। चपारण व खडा कासघष, रॉ�ट ऐकट क हिवरोध म पर दश म �डता� क आहवान का आशचयजनक जवा) अथात पर

हि�नदसतान म - म�ानगरो व गाव- गाव म �डता� �ो गयी। गाधीजी न इस ' भवय दशय' और ' अदभत दशय' क�ा �।

गाधीजी क बरहमचय क परयोग जग- जाहि�र �। सन 1906 क मधय खणड स एक वरत क रप म उन�ोन बरहमचय का पा�न शर हिकया। मानो, आग आनवा� सतयागर� क लि�ए य� एक परकार की आतमशजिदध

थी। कयोहिक सतयागर� क लि�ए गाधीजी न कई )ार अपनी पतनी व )टो की जिजदगी भी दाव पर �गा दी थी। दततिकषण अफरीका क हिनवास क दौरान डर)न म कसतर)ा )ीमार पडी। उनका एक ऑपरशन हआ। व

काफी कमजोर �ो चकी थी। उनक ऑपरशन क दो- तीन दिदन )ाद उन� डर)न म छोड गाधीजी जो�ाहिनस)ग गय। कछ दिदनो म उन� कसतर)ा की कमजोरी का समाचार धिम�ा। डॉकटरो की राय क

अनसार कसतर)ा को ताकत क लि�ए मास खिख�ाना जररी था। डॉकटरो न इस )ात पर ख) जोर दिदया

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हिक मरीज को )चान क लि�ए उन� मास तो खिख�ाना �ी �ोगा। य� सन गाधीजी )ड दखी हए। �ा�ाहिक व जानत थ हिक डॉकटर एक )हत अचछा इनसान �। उसक अ�सानमद थ व। पर डॉकटर की य� स�ा�

मानना उनक वश की )ात न�ी थी। �ा�ाहिक डॉकटर उनका शभसिचतक था; हिफर भी गाधीजी न उस साफ शबदो म क� दिदया हिक व अपनी पतनी को मास खिख�ान की अनमहित तो न�ी �ी दग। गाधीजी न

य�ा तक क�ा हिक मास न �न स यदिद पतनी की मतय �ो जाती �, तो उसक लि�ए व तयार �; पर मास क लि�ए न�ी। त) उनका प6 भी साथ �ी था। गाधीजी न उसस भी पछा हिक कया करना चाहि�ए तो

हिपता स स�मत �ोत हए उसन भी क�ा हिक )ाप न जो हिनणय लि�या �, व� हि)\क� स�ी �; चा� कछ भी �ो जाय, पर )ा को मास तो न�ी �ी खिख�ाया जा सकता। हिफर कसतर)ा स भी पछा गया तो उनका भी य�ी जवा) था हिक चा� आपकी गोद म मझ मतय आ जाय, पर मझ अपनी द� भर} न�ी करनी �।

गाधीजी क इस हिनणय स डॉकटर ख) नाराज हआ। ख) भ�ा- )रा भी क�ा। गाधीजी को करर व घातकी पहित की उपमा भी दी और अत म अपना हिनणय सनाया हिक यदिद उन� शोर)ा व मास न दिदया

गया, तो व� उनका इ�ाज न�ी करगा। त) )रसत पानी म )ीमार कसतर)ा को �कर गाधीजी डर)न स च� पड थ। व� एक कदिठन या6ा र�ी �ोगी गाधीजी क लि�ए। हिकसी तर� व हिफहिनकस पहच। धीर - धीर कसतर)ा ठीक �ो गयी। इस घटना न गाधीजी क आचार व हिवचारो, वाणी व आचरण क ऐकय को लिसदध हिकया। अपन लिसदधातो की रकषा क लि�ए व हिकस सीमा तक जा सकत थ, इसकी झ�क इस घटना

म दिदखायी दती �। इस आतमकथा की एक- एक घटना उस हिवराट म�ामानव की अदभत जीवन- दधि} का साकषातकार कराती �। वयलिकतगत जीवन म आचरण की शदधता, )चचो की लिशकषा, जनजागहित, अहि�सा, खान क परयोग,

पराकहितक लिचहिकतसा आदिद- आदिद न जान हिकतन आयाम... व इन स) म सतय का आगर�। इसी सतय क आगर� क च�त दध का तयाग, कव� फ� व नी)- पानी का सवन... औषधिध क रप म )करी का दध

लि�य जान पर भी पशचाताप परकट करना... य�ा तक हिक दस वष तक नमक को भी अपन भोजन स उन�ोन दर रखा।

सतय क य परयोग जीवन क अनत कष6ो तक फ� हए थ। आज हि�सा, सापरदाधियक दवष, सCा क लि�ए हिकया जानवा�ा करकष6, अपन कषदर सवाथ¾ क लि�ए चरिर6 म हिगरावट, यवा पीढी की उचछख�ता, मौज- शौक की अत�ीन तषणा, आरथिथक घोटा� आदिद- आदिद दषणो क म�ासमदर म �म हिनरतर नीच उतरत जा

र� �। पतन की ग�री खाई म )डी तजी स �म आज हिगरत हए नीच की ओर च� जा र� �। �म अधकार म परकाश की हिकरण ढढन की )ात करत �, त) )डा हिवसमय �ोता �। आपक सामन परकाश

का म�ासमदर जगमगाता �ो, त) आप अधर म एक हिकरण ढढन की )ात करत �। या शायद �मार पास व न6 �ी न�ी �, जिजनस य� परकाश दिदखायी दता �। या शायद स) जानत हए भी परकाश की ओर �मन पीठ कर �ी �। उस हिवराटता क सममख हिनरनतर �म )ौन �ोत जा र� �। �म अपना य�

)ौनापन अ) इतना खटकन �गा � हिक �म )ौख�ा गय �। इस )ौनपन स मकत �ोना, उस हिवराटता तक पहचना तो सभव न�ी �। चा� आज इसकी जररत हिकतनी �ी कयो न �ो, उस ऊचाई तक

पहचानवा� जीनस �ी न�ी � �मम। त) कया हिकया जाय? हिवकत मानलिसकता वा� �ोगो को एक �ी उपाय सझता � हिक उस खहिडत हिकया जाय। इधर स काटो उस हिक उसन परिरवार पर अनयाय हिकया;

पकषपातपण वयव�ार हिकया, तोड दो उस हिवराट परहितमा को, जिजसकी �म आज स)स जयादा जररत �।असपशयता हिनवारण का गाधी मागपरो. धनजय वमा

म�ातमा गाधी को असपशयता क हिवरदध सघष सामराजयवाद स सघष स भी क�ी अधिधक हिवकरा� �गा था। इसकी वज� य� थी हिक सामराजयवाद क हिवरदध सघष म तो उन� )ा�री ताकतो स �डना था,

�हिकन असपशयता स सघष म उनकी �डाई अपनो स थी। और अपनो की )ीच )ठा दशमन जयादा चा�ाक और खतरनाक �ोता �। 30 दिदसम)र 1920 को एक सभा को सम)ोधिधत करत हए उन�ोन

क�ा था- सामराजय की शताहिनयत धिमटाना मझ इतना जयादा मलकिशक� मा�म न�ी �ोता। सामराजय की

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शताहिनयत वयाव�ारिरक �। असपशयता की शताहिनयत न धारमिमक रग गर�ण कर लि�या �। ... �मार धमाधिधकारी अजञान म इतन अधिधक ड) � हिक उन� समझाया �ी न�ी जा सकता। असपशयता दोष क

हिनवारण का अथ �ी य� � हिक उस हि�नद समाज स सवीकार कराया जाय। अनतयज करोडो हि�नदओ का नाश करक असपशयता दोष धिमटा सक , य� असभव �। वदो या मनसमहित म यदिद य� फरमान �ो तो वदो

को )द�ना चाहि�ए। जो असपशयता का )चाव कर र� �, उनम मझ पाखणड �ी दिदखायी दता �। शताहिनयत �ी दिदखायी दती �। जिजसका व )चाव कर र� �, व� शताहिनयत �ी �।1

सामराजयवाद क हिवरदध सघष म �ी न�ी, सवराजय की सथापना क परसग म भी गाधीजी न क�ा था-"ज) तक हि�नद समाज असपशयता क पाप स मकत न�ी �ो जाता, त) तक सवराजय की सथापना असभव �।

... ज) तक हि�नद समाज म असपशयता कायम �, त) तक मझ शम आती � और हि�नद �ोन का दावा करन म भी मझ सकोच �ोता �।''2 5  नवम)र 1920 को पना क भवानी पठ की एक हिवराट सभा को

स)ोधिधत करत हए गाधीजी क� चक थ हिक " पचमो को असपशय मानना जरर शताहिनयत �। पचमो क परहित वयव�ार म तो नौकरशा�ी जिजतनी �ी शताहिनयत बराहमण कर र� �। ज) तक �म अपनी शताहिनयत न�ी धिमटा दत, त) तक �मम दसरो की शताहिनयत धिमटान की योगयता न�ी आती।''3

असपशयता हिनवारण क लि�ए गाधीजी न अपनी काय- नीहित का मसौदा पश करत हए क�ा था-" असपशयता पाप �, इसलि�ए उस पाप को धिमटाना चाहि�ए। असपशयता को धिमटाना म अपना कतवय

समझता ह, परनत व� अनतयजो क भीतर स न�ी, )लकि\क हि�नदओ म स धिमटाना चाहि�ए।'' उन�ोन'�रिरजन' म लि�खा था-' हि�नद धम क दो प�� �- एक ओर ऐहित�ालिसक हि�नद धम �, जिजसम असपशयता�, अधहिवशवास �, पतथरो और परतीको की पजा �, पश- यजञ � और दसरी ओर गीता, उपहिनषदो और

पतजलि� क योग स6 स सम)तमिनधत हि�नद धम �, जिजसम अहि�सा की पराततिणमा6 क साथ एकता की तथा एक अनतयामी, अहिवनाशी, हिनराकार और सववयापक ईशवर की हिवशदध उपासना की चरम सीमा �। हि�नद धम क ऐहित�ालिसक और दाशहिनक प��ओ क इस अनतरषिवरोध का कनदर उन� असपशयता �गा।4

नोआखा�ी म एक स)� की सर म गाधीजी क साथ शरी शरत )ोस भी थ। चचा म गाधीजी न क�ा-"म म�सस करन �गा ह हिक मर शानविनत धिमशन क लि�ए यदिद मलसिस�म कायकता आग न�ी आत, तो अक�

हि�नद �ी इस काम को कर सकत �। एक �ी शत � हिक सथानीय हि�नद ईमानदारी स अपना फज अदा कर। म उनस कम-स- कम य� आशा तो करता �ी ह हिक व अपन )ीच क असपशयता क अततिभशाप का

म� का�ा कर द; अनयथा उन� अपनी अस�ी लसिसथहित कभी परापत न�ी �ोगी।''5  गाधीजी की द�ी� य� थी हिक सापरदाधियक फट और असपशयता क क�क स मलिकत �ोन पर �ी भारत क सात �ाख सवसथ,

आतमहिनभर, साकषर और अहि�सक, उदयोगो क आधार पर स�कारी ढग स सगदिठत हए गावो को कोई ग�ाम न�ी रख सकता।6

नोआखा�ी म �ी एक दिद�चसप वाकया हआ। पततिशचम करवा म ख�ना क एक मलसिस�म मौ�ाना गाधीजी स सापरदाधियक म�जो� की समसया पर चचा करन क लि�ए आय। गाधीजी उस समय दोप�र का भोजन कर र� थ। उन�ोन मौ�ाना को अपन साथ भोजन करन का आम6ण दिदया। मौ�ाना न इनकार कर

दिदया, कयोहिक उस खान को एक गरमस�मान न छ दिदया था। इस पर गाधीजी न चटकी �त हएक�ा-" मझ पता न�ी था हिक मलसिस�म कौम पर भी अछतपन का रग चढा हआ �।'' इस परसग पर हिवचार

करत हए गाधीजी न अपन स�योहिगयो स क�ा था-'' हि�नदओ को इसस य� लिशकषा धिम�ती � हिक अगर व असपशयता की अमानहिषक परथा को आशरय दत र�, तो उनका हि�नद धम और उसका सारा भवय आधयातमितमक उCराधिधकार हिकसी काम म न�ी आयगा। अगरज भारत स च� भी जाय, तो भी असपशयता

क क�क को परी तर� धिमटाय हि)ना आजादी न�ी आयगी।7

पाखणड, शताहिनयत, पाप, अततिभशाप, क�क, अमानहिषकता- गाधीजी क शबदकोष म जो स)स अधिधक अहि�सक गालि�या �ो सकती थी, व स) उन�ोन हि�नद समाज की असपशयता को दी। सामराजयवाद क

हिवरदध सघष म �ी न�ी, आजादी की साथकता क लि�ए भी उन�ोन असपशयता हिनवारण की अहिनवाय शत रखी। 2 लिसतम)र 1945 को कागरसी महि6मणड� क म6ी अपन पद सम�ा�न स प�� भगी )सती

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म, एक छोट स आयोजन म, गाधीजी स आशीवाद �न गय। उस दिदन सोमवार था। गाधीजी का मौन वरत था। उन�ोन अपना लि�खिखत सदश दिदया - जिजस ' आदश प6' की तर� याद हिकया जाता �। उन�ोन पाच आदश दिदए- नमक कर �टा दीजिजए, दाडी- कच की याद रखिखए, हि�नद- मलसिस�म एकता लिसदध कीजिजए,

छआछत धिमटा दीजिजए, खादी को अपनाइए...।8

गाधीजी की द�ाई दनवा�ी सरकारो क हिकतन महि6यो न उनक इस 'पचशी�' की रकषा की �? सवत6ता- परानविपत क इतन वष¾ क )ाद भी कया य� पछन का हक �म �ोगो को न�ी �?11 फरवरी 1947 की �ी )ात �। आसाम स आय मततिणपरिरयो क एक लिश}मड� न गाधीजी स

लिशकायत की-" यदयहिप �मारी हिगनती सवण हि�नदओ म की जाती �, हिफर भी ऊची जाहितया �मार हि�तो की रकषा न�ी करती।'' गाधीजी न उसी दिदन पराथना- परवचन म क�ा-" म )ार- )ार क� चका ह हिक यदिद हि�नद धम को जीहिवत र�ना � तो उस जाहित- हिव�ीन )नना पडगा। यदिद सवण हि�नदओ का अथ लिसफ

बराहमण, कषहि6य और वशय �ी �ो, तो हि�नद )हत छोट अ\पमत म �ो जायग। हिफर उनक दिटक र�न की )हत कम सभावना र�गी। मझ तो आशा � हिक ज) अगरज भारत स च� जायग और य�ा सचची

सवाधीनता की सथापना �ो जायगी, त) ' उचच जाहित' का नाम- हिनशान भी न�ी र�गा, सारी असमानताए धिमट जायगी और तथाकलिथत हिपछड हए वग¾ को अपना म� म�ततव परापत �ो

जायगा।9

क�ना न �ोगा, गाधीजी की आशा आज तक परी न�ी हई। अगरज तो भारत स च� गय, �हिकन कया गाधीजी की आशा क अनरप सचची सवाधीनता सथाहिपत �ो सकी? दभागय स सवत6ता- परानविपत क इतन

वष¾ )ाद भी ऊच- नीच का भद- भाव )ना हआ � और भारतीय समाज जाहित- हिव�ीन �ोन क )जाय अधिधकाधिधक जाहितवादी �ोता जा र�ा �। चनावी राजनीहित क च�त, जाहित क आधार पर वोट )टोरन

की �ोड �गी हई �, जाहितयो और सपरदायो तथा मज�)ी हिफरको क त}ीकरण को सCा �लिथयान या उस पर काहि)ज )न र�न क लि�ए इसतमा� हिकया जा र�ा �। सCाधारी और हिवपकष दोनो इस त}ीकरण का �ी रासता अपना र� �। इस परसग म गाधीजी की हिनभ�कता याद आती �। परिरगततिणत जाहितयो क एक लिश}मड� न स�ा� की दधि} स गाधीजी स पछा-" �मारा �कषय तथाकलिथत उचच जाहितयो का दजा परापत करना और उसक लि�ए एक वग क रप म हिवशष सहिवधाए परापत करना �ोना चाहि�ए या �मारा परयतन असपशयता को सम� न}

करना �ोना चाहि�ए, जिजसस सवण और अवण का सारा भद अतीत की )ात �ो जाय।'' गाधीजी नक�ा-" मझ सवभावत दसरा रासता पसनद �। वग�ीन और जाहित�ीन समाज मरा आदश �। ज)

असपशयता सचमच धिमट जायगी, त) कोई जाहित न�ी र�गी। स) शदध और सीध- साद हि�नद �ोग। इसक हिवपरीत यदिद �रिरजन अपन लि�ए �ी हिवशषाधिधकार परापत करन की दधि} स अ�ग सगठन )नान

�गग, तो उसस ज\दी �ी वग- सघष खडा �ो जायगा। ऐस सघष म जो )राइया �ोती �, व तो र�गी�ी, इसक लिसवा एक असमान यदध �ोगा। ज�ा तक म दख सकता ह, इसम प�डा आपक )हत जयादा

हिवरदध �ो जायगा। इसक अ�ावा इस माग स जिजस असपशयता को धिमटाना आपका धयय �, व�ी एक सथाहिपत सवाथ )नकर �मशा क लि�ए इस भयकर भद को जारी रखगी।10

गाधीजी की पगम)राना भहिवषय- दधि} न जो खतर दख थ, व अ) सामन आ र� �; जिजन ' भयकर भदो' की उन� आशका थी, व सच साहि)त �ो र� �। गाधीजी चा�त तो ' परिरगततिणत जाहित' की 'त}ीकरण' का

रासता अपना सकत थ, �हिकन उन�ोन उस ' असमान यदध' क खतर को प�चान लि�या था, जो अ) छदम रप धर कर �गातार हिवकरा� �ोता जा र�ा �। आरकषण क हिवशषाधिधकार क पीछ सवण¾ की व�

साजिजश आज दलि�त चतना क पकषधरो को न�ी दिदखती, जिजसक च�त एक इतन )ड समदाय की जिजजीहिवषा कदिठत और जीवनी- शलिकत कनद की जा र�ी �। कया 'असपशयता' �ी अ) 'अनसलिचत' का

रप धर कर सदा क लि�ए 'आरततिकषत' न�ी की जा र�ी �?... और जिजस वग- सघष का रप उभर र�ा �, उसम एक ओर तो ' आरकषण की हिनरनतरता' �, दसरी ओर अनसलिचत जाहितयो पर )ढत जात अतयाचार

� और �गता � हिक असपशयता अ) सवण और अवण- दोनो समदायो म एक ' सथाहिपत सवाथ' )नकर

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इस ' भयकर भद' को �मशा क लि�ए 'आरततिकषत' करन का �लिथयार )न गयी �। ... और �मार दलि�त और नव)ौदध � हिक एक हिवशा� समाज और मखय धारा स कटकर अपनी अलकिसमता की त�ाश कर र�

� और अपन 'हिवशष' और ' आरततिकषत दजÆ' का उदघोष कर �ी सनत} �ो र� �। उधर सवण चतना � हिक व� भाषा क शबदो तक को अछत और असपशय )ना र�ी �... जिजस कभी 'म�त-तर' माना गया था, व� अ) 'म�तर' �ो गया �, एक हिवशष राजनीहितक द� को '�रिरजन' शबद स �ी पर�ज � और ' अनसलिचत जाहित' शबद भी अ) कया एक गा�ी की तर� इसतमा� न�ी �ो र�ा �?

इसीलि�ए �रिरजनो को गाधीजी की स�ा� थी हिक उन� अपन भीतर स सार जाहित- भद धिमटा दन चाहि�ए और सवचछता क हिनयमो का तथाकलिथत सवण हि�नदओ स भी अचछा पा�न करना चाहि�ए। अपन लि�ए ततिभनन परकार क वयव�ार की माग करन की दधि} स काय करन की अपकषा आपको ' हि�नद मानवता क

सागर' म हिव�ीन �ोन का परयतन करना चाहि�ए। भारत को सवत6 करन का एकमा6 उपाय य�ी �।11  इस परसग म दलि�त चतना क पकषधरो को भी पनरचिचतन करना चाहि�ए हिक उनक सोच और परयतन,

भारतीय समाज की सरचना क लि�ए हिकतन उलिचत �। 'हि�नद' और ' हि�नद धम' का अनधा हिवरोध कया क�ी परी पराचीन भारतीय ससकहित, दशन और ऐहित�ालिसक उCराधिधकार का हिवरोध न�ी �? 'हि�नद' शबद और हिवशषण तो मधयका� की दन �, इस�ाम क आगमन का परिरणाम �। कया वद और उपहिनषद गीता और पतजलि� पर सवण¾ का �ी अधिधकार �? व तो 'हि�नद' क आहिवभाव क प�� की, भारतीय �ी न�ी, समगर मानव जाहित की धरो�र �। उनम तो 'हि�नद' �ी न�ी, वरन सनातन मानव- धम का दाशहिनक लिचनतन � और कौन दाव क साथ क� सकता � हिक वदिदक और औपहिनषदिदक ऋहिषयो मस�न-अम)रीष

और स�दव, सराधस और कशयप मारीच, जता माधछनदस और नोधा गौतम, पराशर शाततय और शनशष अजीगत, रोमशा और �ोपामदरा की जाहितया कया थी? कया व स)-क- स) बराहमण थ? सवण

थ? कया उन पर लिसफ बराहमणो और सवण¾ का �ी अधिधकार �? कया दलि�त उनक उCराधिधकारी न�ी�? 'वद' का मत�) तो 'जञान' �ी �ोता � और व� हिकसी जाहित- हिवशष की )पौती न�ी �। ' हि�नद

मानवता क सागर' स गाधीजी का आशय इसी भारतीय मानवता क सागर स �, जिजसस समरस �ोकर �ी सवण और अवण, हि�नद और दलि�त स) एक राषटर क अहिवभाजय अग )नत �।

उधर सवण¾ को गाधीजी की स�ा� य� थी- आपको य� साहि)त कर दना चाहि�ए हिक जिजन धनधो म अछत �ग हए �, उन स)को अपनाकर आपन सचमच जाहित को धिमटा दिदया �। इस परकार आपको

भगी का काम करन क लि�ए तयार �ोना चाहि�ए। क�ना न�ी �ोगा हिक हिफर तो �रिरजन भी उन�ी म�\�ो म र�ग, जिजनम दसर �ोग र�त �। उन� अछतो की तर� अ�ग न�ी )साया जायगा, उन� और �ोगो की तर� �ी सारी नागरिरक सहिवधाए परापत �ोगी।12  इस परकार गाधीजी न असपशयता हिनवारण क लि�ए

दो�री लिशकषा का माग अपनाया। एक ओर तो सपशयो को धयपवक आचरण और उदा�रण क दवारा य� लिसखाना पडगा हिक असपशयता मानवता क हिवरदध एक पाप � और उसका परायततिशचत करना चाहि�ए और

दसरी ओर असपशयो को य� समझाना �ोगा हिक उन� सपशयो का डर छोड दना चाहि�ए। असपशयो को अपन म फ�ी हई करीहितया भी दर करनी �ोगी- जस शरा) पीना, मदार मास खाना तथा गनदी और स�त को नकसान पहचान वा�ी आदत रखना- ताहिक कोई उनकी तरफ हितरसकार की उग�ी न उठा सक।13

असपशयता हिनवारण क लि�ए गाधीजी न ' �रिरजन सवक सघ' का अखिख� भारतीय सगठन )नाया। इस सघ की क\पना ततवत ' परायततिशचत करनवा�ो' क एक समाज क रप म की गयी थी, जिजसस हि�नद

समाज तथाकलिथत असपशयो क परहित हिकय गय अपन पाप का परायततिशचत कर सक। उसका काय हिकसी को हिवशषाधिधकार दन क )जाय ऋण चकाना �, इसलि�ए उसकी कायकारिरणी म व �ी �ोग रख गय,

जिजन� परायततिशचत करना था।14 ' �रिरजन सवक सघ' यदयहिप असपशयता को जड- म� स धिमटा दन और �रिरजनो की दशा सधारन क उददशय स सथाहिपत हिकया गया था, �हिकन उसकी कायकारिरणी म सवण हि�नदओ को �ी लि�य जान पर अनक �ोगो न सवा� खड हिकय। गाधीजी इस परशन पर दढ र�। उन�ोन

�ोगो को समझाया हिक ' �रिरजन सवक सघ' का काम हिकसी हिवशषाधिधकार का दावा करन या हिकसी पर

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कपा करन का न�ी �, व� तो ' ऋण उतारन' का काम �। व� परायततिशचत करनवा�ो का समाज �। इस माम� म पापी तो सवण हि�नद �, इसलि�ए उन�ी को �रिरजनो की सवा करक और सवण हि�नद �ोकमत

को हि�नद धम क माथ स असपशयता का क�क दर करन की लिशकषा दकर परायततिशचत और पशचाताप करना �। ज) तक अनयाय करनवा�ा सचचा पशचाताप न कर, त) तक असपशयता जड स न�ी धिमटायी जा

सकती और पशचाताप दसरो क दवारा न�ी हिकया जा सकता- उस तो सवय �ी करना �ोता �।15

गाधीजी स पछा गया- सवण हि�नद �रिरजनो क हि�तो की दखभा� कस कर सकत �? जिजन वग¾ न उनक �ाथो दीघका� स क} उठाय �, उनकी भावनाओ को व कस समझ सकत �? गाधीजी न उCर दिदया- सवण हि�नद सवचछापवक, नाम क लि�ए न�ी, )लकि\क वयव�ार म भगी )न जाय। यदिद सवण हि�नद अपना कतवय परी तर� और अचछी तर� पा�न कर, तो �रिरजन दखत-�ी- दखत ऊपर उठ जायग और हि�नद

धम असपशयता क क�क स शदध �ोकर ससार क लि�ए )हम\य हिवरासत छोड जायगा।16

शरी पयार�ा� न सच क�ा � हिक गाधीजी न असपशयता क हिवरदध �ड जानवा� धम- यदध को अपन राजनीहितक कायकरम का अहिवभाजय अग )नाकर अपन सार राजनीहितक जीवन को खतर म डा� दिदया

था। उन�ोन ज) असपशयता हिनवारण आनदो�न च�ाया था, उस समय भी समाज और उनक हिनकट क कछ साथी उनक उस कदम को पसनद न�ी करत थ। उन�ोन अपना )ोरिरया- हि)सतर )ाधकर च� जान

की तयारी भी कर �ी थी, परनत गाधीजी इसस हिवचलि�त न�ी हए। उन� इसस आनतरिरक सतोष �ी हआ था। शरी पयार�ा� की दिटपपणी �- बरहमचय क परशन पर उनकी �डाई असपशयता हिनवारण की �डाई की तर� सतय क शोध का अथवा परम- धम की काय- पदधहित का एक सीमा- लिचहन � और उसी को लिसदध करन

क लि�ए व नोआखा�ी आय �।17

' �रिरजन सवक सघ' क कायकताओ की एक )ठक म य� सवा� उठाया गया हिक यदिद सवण हि�नद छत और अछत की समानता का दावा सचच हदय स करत �, तो उन दोनो म हिववा� कयो न�ी �ोत?

गाधीजी न उCर दिदया- आपको याद �ोगा हिक मन )हत प�� य� हिनयम )ना लि�या � हिक दो पकषो म स एक पकष यदिद �रिरजन न �ो, तो ऐस हिकसी हिववा� म न तो म उपलसिसथत �ोता ह और न उस आशीवाद दता ह। सपश मा6 स भर} करनवा�ी असपशयता अ) भतका� की वसत )न गयी �। अ) तो �रिरजनो

का सासकहितक और आरथिथक उतथान करन की जररत �, ताहिक छत- अछत क स) भद धिमट जाय।18

गाधीजी न असपशयता की तक�ीफ एक वयापक सतर पर म�सस की थी। 30 दिदसम)र 1920 की एक सभा को स)ोधिधत करत हए उन�ोन शरी गोपा�कषण गोख� को उदधत हिकया-" जस �म अतयजो को

असपशय समझत �, वस �ी यरोप क �ोग �म, हि�नद- मस�मान स)को, असपशय समझत �। �म उनक साथ र�न की अनमहित न�ी, �म उनक )रा)र अधिधकार न�ी। हि�नदओ न अनतयजो को जिजतना )�ा� हिकया �, उतना �ी दततिकषण अफरीका क गोरो न भारतवालिसयो को हिकया �। भारत स )ा�र क सामराजय

क जिजतन उपहिनवश �, उनम भी गोरो का )रताव ऐसा �ी �, जसा हिक हि�नद समाज का अछतो क साथ �।'' इसीलि�ए गोख�जी न क�ा था हिक " �म हि�नद समाज की अ) तक की शताहिनयत का फ� भोग

र� �। समाज न )डा पाप हिकया �, भारी शताहिनयत दिदखायी �। उसी क परिरणामसवरप दततिकषण अफरीका म �मारी )री �ा�त हई �।'' मन इस तरनत सवीकार कर लि�या। य� )ात हि)\क� सच थी।

उसक )ाद मरा अनभव भी ऐसा �ी �।19

चहिक गाधीजी न रगभद की इस असपशयता की यातना सवय भोगी और झ�ी थी, इसीलि�ए उनकी आतमा म हिकसी दलि�त स अधिधक दलि�त चतना की )चनी और छटपटा�ट धिम�ती �।

असपशयता सचमच मानवता क हिवरदध हिकया गया जघनयतम अपराध और कररतम हि�सा �। सामानयमानव- �तया म तो आप वयलिकत का यक)ारगी �ी शारीरिरक अनत कर दत �, �हिकन असपशयता म

मानवता क एक हिवशा� समदाय क मन म )द- )द घणा टपकात �, हित�- हित� उसकी नहितक �तया करत � और प�- प� उसकी आतमा का वध करत �, य�ा तक हिक अनतत उसका समपण

अमानवीकरण �ी कर दत �।

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इधर य� असपशयता अपन नाम- रप )द� कर हिवहिवधवण� �ो गयी �। अ) उसन वचारिरक और सदधाहितक वश- भषा प�न �ी �। सवामी हिववकानद न धम और ससकहित, दशन और लिचनतन क कष6 म

जिजस 'मतछओवाद' का नाम दिदया था, व� असपशयता भी अ) हिकतनी कटटर �ोती च�ी जा र�ी � और दभागय स लिशकषा और सभयता की इतनी आशचयजनक परगहित और गव�� हिवकास क समानानतर य�

'मतछओवाद' )ढ र�ा �। ' आ नो भदरा: करतवो यनत हिवशवतो।दबधासो अपरीतास उजिदभद,20' का वदिदक उदघोष करनवा�ी भारतीय ससकहित और लिचनतन धारा म भी हिवततिभनन हिवचारो, मतो, जाहितयो और धम¾ क

परहित हिकतनी असहि�षणता )ढ र�ी �। गाजर, घास और ककरमCो की तर� छोट- छोट जाहित- समदायो क मच और मदिदर )न र� �, राजनीहितक द�ो म परसपर अछत भावना )ढ र�ी �, वाम और दततिकषण- दोनो पथो म परसपर असपशयता हिवकलिसत �ो गयी �, )जिदधजीहिवयो म असमान हिवचार को जाहित स )ा�र करन का रिरवाज अ) आम �। दसरो को फालिससट क�न वा� �ी अपन सगठनो म, अपन हिकरया-क�ापो

म, अपन वयव�ार म हिकतन �ोकताहि6क और सवत6ता क सरकषक �ोत �? �म- आप दख र� � हिकधम, लिसदधात और हिवचारधारा ज) ससथा और सगठन म कायानतरिरत �ो जात �, तो हिकतन कटटर और

))र �ो जात �। नकस�वाद, उगरवाद और आतकवाद इसी की धिमसा� �। असपशयता �ी इनका भी म� )ीज � और चरम सकीणता �ी इनका खाद- पानी �। दभागय तो य� � हिक )जिदधजीवी और हिवदवान,

�खक और क�ाकार भी इस सकीणता स न�ी )च �। व दततिकषणपथी �ो या वामपथी- दोनो न �ी राजनीहितक नशसताओ क लि�ए तक और दशन, हिवचार और हिवजञान म�या करवाय �।

अस�मत को अछत और )म� हिवचार को दशमन करार दनवा�ी इस असपशयता का हिनवारण कस �ोगा???

सदभ सकत :(क)     गाधीजी क साथ पचचीस वष : म�ादव भाई की डायरी और(ख)     म�ातमा गाधी पणाहहित : पयार�ा�1.  डायरी : खणड-3, प. 302.  व�ी3.  डायरी : खणड-2, प. 309-3104.  पणाहहित : खणड-2, प. 49-505.  व�ी, प. 696.  पणाहहित : खणड-1, प. 807.  व�ी, खड-2, प. 2458.  व�ी, खड-1, प. 89.  व�ी, खड-2, प. 25310.  व�ी, प. 25311.  व�ी12.  व�ी13.  व�ी14.  व�ी15.  व�ी, करमश प. 254, 255 और 32516.  व�ी17.  व�ी, प. 263 और 26518.  व�ी, खणड-3, प. 15719.  डायरी, खणड-3, प. 27-2820.  यजवÆद, 25:14

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इहित�ास की अहि�सातमक वयाखयाडॉ. सरनदर वमा

गाधीजी न �म कोई वयवलसिसथत दशन परदान न�ी हिकया � और इहित�ास- दशन तो हि)�क� न�ी। उनका तो वसतत इहित�ास या इहित�ास- �खन (हि�सटॉरिरओगराफी) क परहित सामानयत एक हितरसकार और उपकषा का भाव र�ा �। पर इसक )ावजद य� मानना पडगा हिक गाधी म एक ज)रदसत इहित�ास- )ोध था और

उनकी य� इहित�ास- दधि} मनषय क आधयातमितमक हिवकास की ओर सकत करती �। परपरागत रप स जिजस �म इहित�ास क�त �, व� मनषय की आतमितमक परगहित का इहित�ास न �ोकर

कव� राजाओ- म�ाराजाओ क काय¾ का लि�खिखत इहितवC �, हिवशव- यदधो का रिरकाड �। व� मनषय क आतम)� क हिवकास म )ाधक शलिकतयो का एक �खा- जोखा भर �। व सारी घटनाए और सवततिCया,

जिजनका बयौरवार वणन इहित�ास करता �, मनषय की आतमितमक परगहित क )ार म कोई जानकारी न�ी दती। व तो कव� सघषरत दशो क )ीच समपनन हए यदधो/ कराहितयो क )ार म य� )ताती � हिक हिकस तर� एक राजय दसर पर आधिधपतय जमाता � और अपन पश- )� का इसतमा� करता �।

पर मनषय का वासतहिवक इहित�ास �म राजयो क परसपर आधिधपतय- �त सघष म न�ी धिम�ता। वासतहिवक इहित�ास को तो मनषय और उसक सवभाव म, समाज और उसक काय¾ म तथा सभयताओ क

अतरषिनहि�त अथ¾ म जो ऊधवगामी परिरवतन �ोत �- उनम परापत �ोता � ओर य परिरवतन सतय ओर अहि�सा क कदिठन माग का अनसरण करन पर परापत �ोत �।

इस इहित�ास को �म हिवशव क म�ान धम¾ क धिमथको और कथाओ म तथा म�ान आतमाओ क जीवन- वCो म दख सकत �। मनषय का वासतहिवक इहित�ास उसक पश- )� का आतम)� की ओर

परवतन �। म�ाभारत सामानय अथ¾ म कोई इहित�ास- गरथ न�ी �। इसम जिजन घटनाओ को आधार )नाकर रचना की गयी �, व अपन आप म म�ततवपण न�ी �, �हिकन इसकी कथाओ और धिमथको म

जो हिनहि�त अथ �, व� ऐहित�ालिसक नाम- रपो का अहितकरमण कर जाता �। वयलिकत और घटनाए तोआनी- जानी �। पर एक सामानय इहित�ासकार कव� इन�ी पर )� दता �। व� घटनाओ क पीछ जो

अपरिरवतनीय तततव �- जो सतय �- उस पकड पान का परयास न�ी करता। व� उसकी पकड क पर र�ता �। ज) तक �म इहित�ास का अहितकरमण न�ी कर जात, �म सतय तक न�ी पहच सकत। गाधीजी क�त �-' ट×थ टरसडस हि�सटरी'। हिकनत ज) गाधीजी सतय को इहित�ास स पर )तात �, तो इसका य� अथ कदाहिप न�ी � हिक व

ऐहित�ालिसक घटनाओ को धिमथया क�कर नकार र� �ोत �। य सभी घटनाए यथाथ रप स वासतव म समपनन �ोती �। सारा ससार इन�ी घटनाओ स गहितमान �। य�ा कछ भी लसिसथर और हिनशचय न�ी �। �हिकन दसरी ओर गाधीजी को हिनततिशचत रप स य� भी अनभहित � हिक इस गहितवान ससार म अतरषिनहि�त

एक ऐसी जीहिवत शलिकत भी �, जो अपरिरवतनीय �, जो सवय परिरवतन की भागीदार न �ोकर परिरवतन को सभव )नाती � और इसी शलिकत स हिनमाण, हिवनाश और पनरषिनमाण �ोता �। वासतहिवक इहित�ास इसी दिदशा की ओर मनषय की परगहित का सकत दता �।

मनषय और मानवी समाज म �म दो हिवरोधी वततिCयो की उपलसिसथहित दखत � और इसस दवदवातमक लसिसथहितयो का हिनमाण �ोता �। य� दवदव गाधीजी की पदाव�ी क अनसार आतम)� और पश- )� का

दवदव �। मनषय की परकहित म पश- )� हिवदयमान �। पश- )� 'हि�सा' का �ी दसरा नाम �। हि�सा म परवC �ोना

मानव- परकहित �। हिकनत य� पश- )� मनषय की हिवशषता न�ी �। य� उसकी अपनी प�चान न�ी �। य� तो सभी पशओ म पाया जाता �। मनषय म भी। पर पशओ म पश- )� क अहितरिरकत और कोई

शलिकत न�ी �ोती। जिजस �द तक मनषय एक पश �, उसम पश- )� भी �। �हिकन य� पश- )� मनषय को पशओ स अ�ग न�ी करता। हिवशषता, जो मनषयो को पशओ स ततिभनन )नाती �, उसका 'आतम)�' �। आतम)� �ी मनषय का सतय �, उसकी प�चान �, उसका सवभाव �। शरीरधारी �ोन क नात मनषय पराय पश- )� या हि�सा पर उतार �ो जाता � और पशवत वयव�ार करन �गता � और ऐसी �ी हि�सक

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घटनाओ का बयौरा परपरागत इहित�ास- �खन म दखन को धिम�ता �। य� इहित�ास मनषय म �ो र� उन सकषम परिरवतनो को न�ी दख पाता, जो उस पश- )� स ऊपर उठाकर आतम)� की ओर परवC करत

�। वासतहिवक इहित�ास इन�ी सकषम परिरवतनो का इहित�ास �, जो मनषय को उसक सवभावगत सतय अथात अहि�सा का )ोध करान म स�ायक �ोत �। इहित�ास एक अनकाथ� शबद �, हिकनत इसक यदिद �म कम म�ततवपण अनक अथ� को

छोड भी द, तो भी कम-स- कम दो अथ ऐस �, जिजनम इसका परयोग अधिधकाशत हिकया जाता �। सामानयत जिजस �म इहित�ास क�त �, व� '' अ) तक घदिटत घटनाओ या उसस स)ध रखनवा�

वयलिकतयो का का�- करमानसार वणन'' �। य� पव वCात �, परावC �। अतीत की परलिसदध घटनाओ का हिववरण �। �म ज) इग�ड, फरास, चीन, भारत आदिद क इहित�ास की )ात करत �, तो �मारा आशय

इन दशो म घटी )डी घटनाओ स �ोता �। इसी परकार का�, हिवजञान या दशन आदिद का इहित�ास भी �ो सकता / �ोता �। इहित�ास क इसी अथ को सामानयत उलिचत और स�ी माना गया �। हिकनत य� इहित�ास न �ोकर वसतत वCात- �खन (हि�सटॉरिरओगराफी) �। इस परकार क �खन म वसतहिनषठता, पणता

और तटसथता न�ी �ोती। इस हिकसी-न- हिकसी मशा स, पवगरलिथ स, अथवा पवागर� स लि�खा जाता �। य� पवागर� राजनहितक �ो सकता �, अथवा दशपरम या राषटरपरम �ो सकता �। इहित�ास- �खक सवय को इस परकार की पवगरलिथयो स मकत न�ी रख पात और इसीलि�ए उनका �खन ऐहित�ालिसक घटनाओ को

तोड- मरोडकर परसतत करता �। व� न तो बयौर की सचचाई की परवा� करता � और न �ी पर बयौर पर धयान दता �। व� कव� अपन मत�) की )ात पर )� दता �। इस परकार क वCात- �खन को �म

वजञाहिनक �खन न�ी क� सकत। य� पणत पकषपातपण, अपण और अशदध �ोता �। य� सथानीय और वग�य लि��ाज स लि�खा गया वCात �, जिजसम इहित�ास का वयलिकतक �कषय �ावी र�ता � और इसीलि�ए

य� )हत कछ का\पहिनक कथा का रप � �ता �। एक 'उपाखयान' )नकर र� जाता �। उद म इहित�ास को 'तवारीख' क�ा गया �। तवारीख तारीख (हितलिथ) का )हवचन �। हिपछ�ी तारीखो म घटी घटनाओ का वणन तवारीख और वCात- �खन एक �ी )ात �। य� पव-वCात- )ीती हई उन घटनाओ

और उनस स)ध रखनवा� परषो, सथानो आदिद का का�करम म वणन �, जो इहित�ासकार न अपन पवागर� क अनसार परसतत हिकया �। गाधीजी इस परकार क वCात- �खन को वासतहिवक इहित�ास न�ी मानत- उनक अनसार य� तो वसतत

कव� उन घटनाओ आदिद का परसततीकरण �, जो वासतहिवक इहित�ास की परहिकरया म )ाधक �ोती �। गाधीजी क लि�ए वासतहिवक इहित�ास व� इहित�ास �, जो उन तततवो की पडता� करता �, जो सतय-

साधना की ओर �ततिकषत �ोत �। अगरजी म हि�सटरी का वयतपतयातमक अथ �ी म�त 'परीकषण', ' जाचपडता�', 'पछताछ' या 'अनवषण' �। ( हि�सटरी शबद �दिटन पद 'हि�सटोरिरया' स आया �, जिजसका अथ

जञान परापत करना �।) गाधीजी इहित�ास क इसी अथ को गर�ण करत �। इस अथ म इहित�ास एक अनवषण �। पर पछा जा सकता � हिक य� हिकस )ात का अनवषण �? इहित�ास की हिवषय- सामगरी

आखिखर � कया? उसका �कषय हिकस चीज की पडता� �? ऐहित�ालिसक घटनाए और तथय अपन आप म म�ततवपण न�ी �ोत। व कव� इसलि�ए

म\यवान � हिक व कया उदघादिटत करत �, इसका �म सकत दत �। परतयक ऐहित�ालिसक   घटना / काय क पीछ और उसस पर कोई-न- कोई हिवचार �ोता �, कोई सक\प �ोता �, कोई भावना �ोती �, जो मनषय

क आतमितमक सवरप की अततिभवयलिकत �। वासतहिवक इहित�ास इस परकार उस आधयातमितमक हिनयम की खोज�, जिजसकी ओर ऐहित�ालिसक परहिकरया समपनन �ोती �।

गाधीजी की इहित�ास- वयाखया सीध- सीध उनक जीवन- दशन या क�, उनकी आधयातमितमक दधि} पर आधारिरत �। उसी स व� हिनगधिमत �। अपनी इहित�ास- वयाखया क लि�ए व आगमनातमक पदधहित न�ी

अपनात �। य� )ात दसरी � हिक ऐहित�ालिसक तथयो और उदा�रणो स व इहित�ास की अपनी आधयातमितमक वयाखया को )ाद म परिरप} कर दत �।

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गाधीजी न सCा को, वासतहिवकता को, सदव सतय क रप म दखा �। हिवशव- वयवसथा स परभाहिवत �ोकर व परी तर� आशवसत � हिक हिवशव म एक अपरिरवतनीय हिनयम काम करता �, जिजसस �र चीज हिनयहि6त

और सचालि�त �। गाधीजी क�त �, '' सतय �ी �मार अलकिसततव का हिनयम �।'' और य� हिनयम अध- हिनयम न�ी �, कयोहिक कोई भी अध- वयवसथा कम-स- कम हिववकशी� पराततिणयो क आचरण को तो

सचालि�त न�ी �ी कर सकती।गाधी- दशन की एक मौलि�क )ात य� � हिक व� सतय और अहि�सा क )ीच कोई खाई हिनरमिमत न�ीकरता, )लकि\क उनम एक समीकरण खोजता �। गाधीजी ठीक सतय की �ी भाहित अहि�सा को भी एक

तततव मीमासातमक परहितषठा परदान करत �। व अहि�सा को उसक सकारातमक रप म 'परम' क�त � और परम ठीक सतय की �ी तर� �मार अलकिसततव का आधार �। य� व� सारषिवक लिसदधात �, जिजस पर समचा

अलकिसततव हिनभर �। य� व� शलिकत �, जो हिवशव म अतरषिनहि�त �- परकहित म भी और मनषय क सवभाव म भी। हिकनत अहि�सा पण सतय न�ी �। य� कव� व�ी सतय �, जो �म परसपर )ाध रखता �। पण या परम सतय तो अभी तक हिकसी को पता न�ी �, �हिकन गाधीजी का हिवशवास � हिक पण सतय की परानविपत �म कव� अहि�सा दवारा, अहि�सक माग पर च�कर �ी �ो सकती �।

गाधीजी सतय और अहि�सा क परहित अपनी इस दधि} स �ी इहित�ास की वयाखया हिनगधिमत करत �। व ऐहित�ालिसक परहिकरया को अहि�सा की दिदशा की ओर )ढत दखत �। गाधीजी न इस ऐहित�ालिसक तथय को

रखाहिकत हिकया � हिक �मार आदिद परख नरभकषी थ। उसक )ाद एक समय ऐसा आया, ज) व नरभततिकषता स अघा गए और उन�ोन लिशकार की जिजनदगी अपना �ी। �हिकन एक लिशकारी क रप म

घमत जीवन उन� अधिधक समय तक रास न�ी आया। त) व खती- )ाडी की ओर आक} हए और म�त अपन भोजन क लि�ए धरती माता पर आधारिरत �ो गय। इस परकार उनका घमनत जीवन समापत हआ

और सथायी हिनवास की खोज शर हई। उन�ोन गाव और कस) )साय। नगर )साय। परिरवार )साय और एक समाज क, राषटर क सदसय �ो गय। जाहि�र �, य� सारी 'परगहित' �म अहि�सा की दिदशा की ओर �कषय

करती �। मनषय धीर- धीर हि�सा का अपना दायरा कम करता गया � और अहि�सा की दिदशा की ओर )ढता गया �। गाधीजी क अनसार यदिद ऐसा न हआ �ोता, तो अ) तक य� हिनततिशचत � हिक जिजस तर�

अनय छोटी परजाहितयो और पराततिणयो का अलकिसततव �ी समापत �ो गया �, मनषय का अलकिसततव भी क) का धिमट गया �ोता। आज ससार म इतन सार �ोग जीहिवत �, इसस य� सप} � हिक हिवशव सहिनक शलिकत की हि�सा पर आधारिरत न�ी �, )लकि\क परम और सतय क )� पर कायम �। परनत �मारा ऐहित�ालिसक वCात- �खन कव� यदध और हि�सा, भय और शका, ईषया और घणा क उदा�रणो को �ी रखाहिकत करता �। अहि�सा और परम, कयोहिक मानव- परकहित म सवभावगत रप स हिवदयमान �, इहित�ास आसानी स

नजरअदाज कर दता �। गाधीजी इसीलि�ए इहित�ास- �खन को )हत गभीरता स न�ी �त। य� कव� हि�सक आचरण क अपवादो पर )� दता �, जो समाज म कभी- कभी दखन को धिम�त �। गाधीजी की इहित�ास वयाखया म 'इहित�ास' अपन म� अथ म- अनवषण क अथ म- गर�ण हिकया गया �।

और इस परकार की आधयातमितमक खोज क च�त गाधीजी ऐहित�ालिसक परहिकरया म अहि�सा की दिदशा की ओर इसकी हिनरतर परगहित या वजिदध दखत �। गाधीजी इहित�ास की आरथिथक वयाखया को नकार दत �।

इहित�ास कव� आरथिथक घटको दवारा हिनधारिरत न�ी �ोता। व इस )ात को मानन को तयार न�ी � हिक'परष' क हिवचारो और सोच को 'परकहित' हिनयहि6त या सचालि�त करती �। उनक अनसार वसतत मनषय

का आतम)� या अहि�सा- शलिकत �ी इहित�ास की गहित पर अपना परभाव डा�ती �। परलिसदध आग� �खक चसटरटन न अपनी वयगयातमक श�ी म एक )ार क�ा था हिक य� क�ना हिक मानवी काय आरथिथक घटको

पर हिनभर �ोत �, ठीक ऐसा �ी मत � हिक मनषय अपन दोनो परो पर हिनभर �। आरथिथक घटक ऐहित�ालिसक अवसथाए मा6 �, इहित�ास की पररक शलिकतया न�ी �। ऐहित�ालिसक परहिकरयाए आतम)� दवारा

सचालि�त �ोती � और य�ी व� शलिकत �, जो मनषय को पशओ स - जिजनम कव� पश- )� �ोता � - ततिभनन )नाती �। यदिद �म शानविनत चा�त �, तो �म अपना आचरण अहि�सा दवारा सचालि�त करना �ी �ोगा और यदिद ऐसा न�ी �ोता तो इहित�ास की गहित हिवपरीत दिदशा म मड सकती �- अशानविनत की ओर। हिकनत

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गाधीजी को हिवशवास � हिक ऐसा �ोगा न�ी। चतन- अचतन रप स इहित�ास अहि�सा की ओर �ी, क�धिम�ाकर, अगरसर �ोता �।गाधी : भारतीय परमपरा का पनराव�ोकनडॉ. सतयनदर शमा

)ीसवी शताबदी क यथाथ को रखाहिकत करत हए हि�नदी क एक परहितधिषठत �खक शरीकानत वमा न )हत हिवचारणीय )ात क�ी � -

"18 वी शताबदी म मनषयता न एक दसरा �ी रासता पकड लि�या। य� रासता था हिवजञान और टकनो�ॉजी का। इस रासत पर च�ती हई मनषयता इन ढाई सौ वष¾ म जिजस जग� पहची �, कया व�ी उसका

गनतवय था? य� सवा� सवय मनषयता क सामन म� )ाय खडा �। यदध का भय इसान को जकड हए�, परमाण स�ार का खतरा उसकी गरदन पर हिडयॉक�ीज की त�वार की तर� झ� र�ा �, समदध

समाजो म दिदशा�ीनता �, गरी) दशो म भखमरी �, का� और गोर का भद आज प�� स अधिधक तीवर �, ऊजा क सरोत सख च� �, कराहितया वायद पर न�ी कर सकी �, हिवचारधाराए हिनपराण जान पडती�।''1  इस कथन को अनतराषटरीय मनीषी शरी आन+ टॉयन)ी क इस हिवचारपण हिनषकष स धिम�ाकरदख-" म इस हिनषकष पर पहचा ह हिक ज) स मानवजाहित न मानवतर परकहित पर आधिधपतय सथाहिपत हिकया �,

उसका अलकिसततव इतना असरततिकषत और अहिनततिशचत कभी भी हिकसी भी यग म न�ी र�ा, जिजतना आज �। मानव जाहित क अलकिसततव को आज सवय मानव जाहित की ओर स �ी खतरा �। मनषय की परौदयोहिगकी,

जिजसका दरपयोग मानव क अ� तथा द}तापण पशालिचक उददशयो की परषित क लि�ए �ो र�ा �; भकमप, जवा�ामखी-हिवसफोट, तफान, )ाढ, सखा, हिवषाणओ, रोगाणओ, शाक¾ तथा पन दात वा� शर- चीतो स

भी अधिधक घातक �।''2 )ौजिदधक ततिकषहितज म आइनसटाइन, शवाइटजर और )टरÆड रस� जस नामवर �ोगो की पलिकत म नामाहिकत

हिकय जान वा� अनतरराषटरीय इहित�ासजञ टॉयन)ी न )ौदधदशन क अधयता दाईसाक इकदा स, अपन जीवनका� क शायद उकत अहितम हिवचार सवाद म वयलिकत-समाज, राषटर-अनतरराषटर, परकहित-परौदयोहिगकी,

यदध-शाहित, लिशकषा-ससकार, जनसखया-वजिदध, परदषण, त6परणा�ी, हिवचारधाराओ क आगर�, पर) और पततिशचम दधि} आदिद नानाहिवध हि)दओ पर सकषम हिवमश करत हए आधहिनक मानव क ' तमाम वजञाहिनक और

परौदयोहिगक कौश�' स समपनन �ोन क )ावजद ऐसा ' आदिदका�ीन मानव' क�ा �, जिजसका ' अपनी आज की लसिसथहित पर हिनय6ण न�ी �।

' )ीसवी शताबदी क अधर म' उजा� दत झरोखो की सभावनाओ को त�ाशत हए नो)� परसकार हिवजता गननार धिमड� वततिशवक और हिवशषकर भारतीय सनदभ म )ार- )ार गाधी का समरण करत �, हिकनत

‘म�ततवपण गरनथ Choose Life’ म आतमा को मनषय की गरिरमा की एकमा6 प�चान और भावी मानवजाहित की आसनन चनौहितयो का समाधान धम- पररिरत आतमसयम को )तान वा� टॉयन)ी इस �म)

सवाद- करम म गाधी का जिजकर न�ी करत; य� आशचयपरद �, ज)हिक व सवय मानत �- ' हिवजञान न तो मन क अवचतन सतरो पर अनवषण परारमभ करन का सा�स अभी कछ का� पव �ी हिकया �, हिकनत भारतीय दाशहिनक �गभग ढाई �जार वष पव इस अनवषण म �ग थ।''3  गाधी भारतीय दशन

और म\य सवलि�त उदाC जीवन- परमपरा को अपन समका�ीन जीवन- समाज म धरती म उतारन म �ग थ, साथ �ी एक दश की परिरधिध को �ाधकर )�Cर समाज को परिरचालि�त करन का सवानमत शरय पा

चकन और इस अथ म व मानव- मन की परयोगशा�ा क अनवषक और आधहिनक ऋहिष- वजञाहिनक �ोन क नात इस हिवचार- सवाद म स�ज �ी समरण क योगय थ। ऐसा करन स हिवदवान टॉयन)ी की सदधानविनतक

अवधारणा को वयाव�ारिरक परमाण की मत लिसजिदध �ी �ाथ �गनी थी। असत। वासतव म गाधी की जीवन- परणा�ी और कमचतना को ज) �म एक हिवशा� औपहिनवलिशक सामराजय स

एक जाहित, समदाय या राषटर को मा6 राजनीहितक या आरथिथक तौर पर मलिकत दिद�ान क सफ� परयास क रप म दखत �, तो य� भारतीय परमपरा स अनपराततिणत उनक म�ान वयलिकततव और उनक अततिभपराय का

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असगत परिरसीमन तो कर �ी र� �ोत �; उनक जीवन क उन )ड सरोकारो को भी अनदखा करत �, जिजनकी लिसजिदध स एक हिवराट सासकहितक चतना का हिनमाण हिकया जा सकता � और जिजसका अनभव

उन�ोन सवय अपन तथा �जारो- �ाखो भकतो, परशसको व अनयाधिययो क सतर पर पाया था। इस स�ज अथ म भी गाधी मा6 एक सवाततरय वीर स अधिधक एक सासकहितक योदधा ठ�रत �; जो जाहित, वग,

नस�, सपरदाय, रग, कष6, राषटरीय परिरधिध, ऊच- नीच वाद और हिवधम स पर मानव- समाज की रचना क लि�ए सननदध और परहितशरत खड दिदखायी दत �। स�सर वष¾ स ततिभनन- ततिभनन आकरानताओ स पराधीन और )ाद म हिबरदिटश सामराजय क साय

त� घट- घट कर सास � र� भारतीय जनसम� को सवत6ता क उनमकत आकाश की छहिव दिदखाकर उस पान की आकाकषा और तदनरप च}ाए गाधी स पव राजा राममो�न राय, हित�क और गोख� आदिद और ततपशचात अनक पणय �ाथो म समपनन हई, हिकनत भारत- सहि�त दततिकषण अफरीकी ग�ाम जनो म

सवत6ता का शखनाद करनवा� गाधी का �कषय सवत6ता परथमत: तो था, हिकनत अहितम न�ी। वसवाततरय- �कषय स अधिधक आग ' आतम सवाततरय' की कामना स आपादमसतक परिरत थ। आतम सवाततरय

का य� म6 उन� पौराततिणक, ऐहित�ालिसक और आधहिनक भारत की वरद परमपरा स परापत हआ था। पराचीन का� म राम, कषण, ऐहित�ालिसक )दध और म�ावीर तथा आधहिनक सवामी हिववकानद इस परमपरा

क परजञा- परष �। दहिनया का हिवजञ- समदाय गाधी को इस परमपरा की आधहिनक कडी मानता �। दरअस� धन, अस6- शस6 और चातय पर दिटक हिवशा� अगरजी सामराजयवाद की )हिनयाद हि��ान का

काय गाधीजी न जिजन अमोघ शस6ो- सतय व अहि�सा- स लि�या, व उन�ोन भारतीय दशन और जीवन- परमपरा स �ी परापत हिकय थ। व�ी भारतीय दशन, जिजसम मनषय मन क अनवषण म शताखिबदयो की

ऋहिष- परमपरा की साधना स अरजिजत तततवो की भरिर- भरिर परशसा मकसम�र स �कर टॉयन)ी और ऑकटीहिवयो पॉज तक करत आ र� �।

गाधी की कम- चतना म भारतीय परमपरा को रदिढवादी दधि} स दखन म न लिसफ हिनराशा �ाथ �गगी, )लकि\क माम�ा गडडमडड भी �ो जाएगा, कछ उसी तर� जस गाधी जी दवारा परदC समाज क स)स दलि�त

और असपशय वग को '�रिरजन' जस उचच अततिभपराय वा� शबद म आज उस वग क कलिथत सवयभ लिचनतको दवारा गाधी जी की )दनीयती ढढी जाती � और कतक रच जात � और हिफर दश-का�, समाज

क परिरपरकषय म परमपरा, आचार- हिवचार क रप म �वा- पानी की भाहित अलकिसततवमान र�त हए भी भौहितक पदाथ¾ और क�ा- उपादानो की भाहित मत न�ी �ोती। व� सकषम, गतयातमक और यग- वयलिकततव सरजिजत

म\यो स गढी जाकर यगानरप और अदयतन �ोती �। उसकी जड दश- समाज क नाततिभ- ना� म �ोकर भी हिनत- नतन और प\�हिवत �ोती र�ती �। भारतीय परमपरा की अनतशचतना को गाधी क जीवन-

हिनयमन म समझन क लि�ए दशनशास6ी परोअ गोहिवनदचनदर पाणड का य� कथन आधारभत स�ायता करता �, जिजसम व क�त �-

" ससकहित हिवचारशी� वयलिकत क समकष म\यो को उपादानवत परसतत करती �, जिजसक आधार पर व� सवय अपन म\य गढता �। इन वयलिकत- कलसि\पत म\यो म और परमपरागत म\यो म )हधा सादशय �ोत

हए भी सदा या सवथा न�ी �ोता। य�ी परमपरा क हिनरनतर )द�त र�न का एक कारण �।...वसतत: परमपरा एकहिवध या समञजस �ोती भी न�ी �। व� गगा की धारा क समान सभी तीथ¾ और परदशो का

परभाव अपन म लि�य र�ती �। म\य- हिवचार क लि�ए उसका म�ततव कछ उस परकार का �, जसा उतपादन क परसग म कचच मा� या खहिनज पदाथ का।''4

परमपरा का म� परवा� अहिवलसिचछनन )ना र�ता � और उसम का�, परिरलसिसथहितयो की आवशयकता क अनरप और समय- समय पर जनम �नवा�ी वयलिकत- परहितभा क अनक� नय- नय म\य जनम �त और

जडत च� जात �। दखा जा सकता � हिक परमपरा क जो म\य मधयका�ीन समाज म कोर आधयातमितमक जञान व मोकष क उपाय क रप म हिवदयमान थ, आधहिनक यग म उनम मानवतावादी आचरण की

हिकरयातमकता समा गयी। हिवदवान आचाय की उलिकत साकषय क रप म द}वय �-

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"19 वी शताबदी म कोर जञान और कोरी भावकता क सथान पर सवा और परम का मानवतावादी आदशकरमश: परसफदिटत हआ। राममो�न राय स हित�क, गाधी और अरहिवनद तक )ार- )ार य� परयतन हिकया

गया � हिक उपहिनषदो और गीता की परमपरा म कम का हिन: सवाथ मानव- सवा क रप म परहितपादन हिकया जाय।''5

भारतीय परमपरा की ग�री पडता� करनवा� मनीषी शरी हिवदयाहिनवास धिमशर क हिनमनाहिकत कथन स भी �मारी धारणा की पधि} �ोती �-

"कम- परधान और सनयास- परधान दधि}यो म अनतर ज)- ज) आया �, त)- त) उसक समनवय का परयतन हआ �। भगवदगीता न समनवय का एक माग दिदया। मधययग क भकतो न उसक आग का एक दसरा माग दिदया। रामकषण परम�स, हिववकानद, हित�क, गाधी और शरी अरहिवनद न आधहिनक यग म हिफर नया माग दिदया। इसलि�ए य� समभव हआ हिक कम सनयास क रप म परिरणत �ो जाय और सनयास समसत भतो

की सवा क रप म।''6 भारतीय परमपरा क शाशवत म\यो, जिजनकी ऊषमा पराधीनता की �म)ी अवसाद- रपी राख म द) गयी

थी, गाधी न अपन हिनपण और वयसक �ाथो स अ�ग हिकया। ढक- मद म\य- ताप को अनावC हिकया, उसम )ड जतन स कम- ससकार और आचरण की सधिमधा दकर पन: परजजवलि�त कर उसक ताप और परभा स �ोगो का साकषातकार कराया। य� अपनी �ी नाततिभ स कसतरी पान जसा सयाना परयतन था। गाधी कभी भी इस हिवभरम म न�ी पड और न �ी आतम- मगध �ोकर सशयातमा क लिशकार हए हिक उन�ोन �ोगो

क सामन कोई नयी )ात रखी �, हिक व समाज को कोई नया म\य द र� �, हिक व अपनी ओर स कछ नया जोड र� �। व जीवन- भर आतयनविनतक हिवनमर भाव स य�ी क�त- दो�रात र� हिक-

"... मझ व )ात खोज कर हिनका�नी पडती �, जो प�� स �ी मौजद �। चमतकार तथा आखो को चकाचौध करन वा� जादगर को ससार म �मशा �ी सममान धिम�ता �, पर परानी चीजो की उ�ट-प�ट

करन वा� मझ जस वयलिकत को हिकसी कोन म सथान परापत करन क लि�ए भी )डी म�नत करनी पडती �।''7 

" मन ऐसा कौन- सा नया तततव- जञान �ोगो को )ताया। इतना जरर � हिक शाशवत सतय क म\य अपन दहिनक जीवन पर तथा भहिवषय म पदा �ोन वा� परशनो पर �ाग करन का म परयतन करता र�ा

ह।''8  )ा\यावसथा क ससकार- )ीज जीवन- वततिC का सथायी भाव )नकर कस जीवन को नकारातमक या सकारातमक दिदशा म पररिरत हिकय र�त �, गाधी जी का जीवन- वC इसका परतयकष परमाण �। �मारी

परमपरा म सनतहित क जनम स पव जो गभाधान और पसवन ससकार और हिनधारिरत मयादाए आदिद �, उनक पा�न स भहिवषयत शरषठ नागरिरक क हिनमाण की सभावना स इनकार न�ी हिकया जा सकता।

)�र�ा�, गाधी की )ा\यावसथा म मासम आखो स दख गय सतय नायक �रिरशचनदर, हिपतभकत शरवण और आलकिसतक मा की तपशचया क दशय अकस )नकर जीवन म )ड सरोकारो वा� हिनणयो तक म आधार-

भधिम )नत र� �।पराय: लिसदधात- आगर�ी �ोग सदधानविनतक अवधारणाओ का पग- पग पर वासता दकर वयलिकत- समाज क

हिनयमन का शषक, य6वत और असफ� परयास करत �, हिकनत गाधी जीवन की द)�ताओ और वयाव�ारिरक कदिठनाइयो को भ�ी- भाहित समझन क कारण परपरागत म\यो को वयलिकत और सावजहिनक

जीवन म उतारन क लि�ए सतय की उप�लकिबध पान का दावा न�ी, वरन ' सतय क परयोग' करत �। कौन जान आतमसयधिमत मन क) उनमकत साड )नकर अभी तक की अरजिजत साधना को भग कर द।

आखिखरकार म\य की धार पर जीना ' त�वार प धावनो �' । इस ख� को )ा�- करीडा भी न समझ, कई)ार, अधिधकाश तो परपरा- म\य की सरकषा म पराणो का मो� भी पासग पड गया �। ईसा, मो�ममद

सा�) और सवय गाधी न य� म\य चकाया �। इसलि�ए गाधी साधारणजनो को इन पारपरिरक म\यो को आचरिरत करन की पररणा दनदिदन जीवन क वयाव�ारिरक पाठ और परथम उदा�रण सवत: )नकर दत �।

अत: य� क�ना असगत न �ोगा हिक गाधी की जीवन- या6ा पर दधि} डा�ना भारतीय परपरा क ततिभनन-

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ततिभनन समय म दिदगदशन �। ऐसा करत हए �म उन म\यो का परकट सवरप दख सकन क अहितरिरकत उनकी प�चान कर नामाहिकत भी कर सकत �। इसक अहितरिरकत इस अधययन का एक अनषहिगक परहितफ� य� भी �ोगा हिक �म भारतीय सवत6ता- सगराम क म\यो का भी पनसमरण कर सक ग। य� इस कारण भी औलिचतयपण �ोगा, कयोहिक -

" �मार मलकिसतषक म तो सवाधीनता की परानविपत क )ाद क वष¾ न इतनी �गहिडया भर दी � हिक य� प�चान मलकिशक� �ो गयी � हिक �मारी सवत6ता की चतना क पीछ म\य कौन स र� �।''9

यदयहिप गाधी क दततिकषण अफरीकी परवास क उCरका�ीन अवधिध क पदचापो की धवहिन भारतीय राजनीहितक जीवन म साफ- साफ सनायी पडन �गी थी और उनका दधि}कोण तथा काय- परणा�ी भारतीय जनो क नततवकताओ म कौत�� और जिजजञासा का हिवषय )न गयी थी, हिफर भी इस अवधिध को हिवसमत भी कर दिदया जाय, तो भी भारतीय सवाततरय- सघष क �गभग चार दशक गाधी- नततव स परतयकष तौर पर सचालि�त �ोन क कारण उनक हिवचारो और काय¾ को समझना �ी सवाततरय- चतना क म\यो को समझना �। य�ा इस तथय का उ\�ख करना अपरिर�ाय � हिक दततिकषण अफरीका उनकी परयोगभधिम �, ज�ा उन�न सवानभत ससकारो और भारतीय परमपरा क म\य- उपकरणो को

सावजहिनक परयोगशी�ता म आजमाया था; उन उपकरणो म उनकी आसथा पककी �ो गयी थी। सवदश म आकर तो व उन� )ार- )ार आजमात र� और उनम धार दत र� �। व अपनी परयोगभधिम म �ी म\य-

सवलि�त ऐसा वयलिकततव हिनरमिमत कर चक थ, जिजसका परिरचय दत हए जनर� समटस न- जो अपन कतवय- हिनव�न म गाधी क परहित अनक )ार उपकषा, सखती और कररता का )रताव कर चक थ- अपन ससमरण म

लि�खा �-" मर भागय म एक ऐस वयलिकत का परहितसपध� �ोना )दा था, जिजसक सम)नध म उस समय भी मर मन म

अतयनत आदर )ना हआ था। गाधी जी क शर हिकय गय आनदो�न का सामना करना मर लि�ए कसौटी )न गया था, कयोहिक मझ ऐस कानन का पा�न करवाना था, जिजस �ोकमत का स�योग न�ी था। ज�

म मर उस परहितसपध� न मर लि�ए चपप�ो का एक जोडा )नाया था। ज� स छटन क )ाद व� जोडा उसन मझ भट हिकया। व�ी चपप� म )ाद म कई दिदन तक प�नता र�ा था। पर व� स) करत समय म

कषण- भर क लि�ए भी न�ी भ� पाता था हिक जिजस वयलिकत न मझ य� भट दी �, उसक जतो क पास खड �ोन की योगयता भी मझम न�ी थी।''10

गाधीजी क जीवन- हिनयामक तततवो को समझन क लि�ए उनक लि�ख न तो मोट- मोट गरनथ धिम�ग, न �ी परायोजिजत परवचन। उनक जीवन- स6ो को समझन क लि�ए, जसा व सवय क�त �-" आमार जीवनी

आमार )ानी'' अथात ' मरा जीवन �ी मरा सनदश �' । गाधीजी न य� वाकय अपन एक म�ीन कको�काता- परवास क )ाद, दिद\�ी रवाना �ोन स पव अपनी �सतलि�हिप म )ाग�ा म लि�खा था। य� तथयडी. जी. तनद�कर कत म�ातमा (खणड. 8) पसतक स उदधत �। उनकी जीवन-हिकरयाओ, हिनणय तथावयव�ार- पदधहित को समझना �ोगा। अ\पका� क लि�ए �ी स�ी, वकी� क तौर पर अदा�त म परसतत

उनक तक¾, हिबरदिटश सामराजय क परहितहिनधिधयो स हई उनकी वाताओ, तमाम �ोगो को लि�ख उनक प6 क मसौदो और य�ा तक हिक सामानय और हिवलिश} जनो स उनक वाता�ाप भी उन� समझन म मदद दत

�। उनका जीवन योजना)दध न�ी था। पराधीन वयलिकत- राषटर का जीवन योजना)दध �ो भी न�ी सकता। हिकनत

व� राषटरीय परमपरा और म\य- सम)दध था। अत: �नदन स अफरीका �ौटत समय या6ा म �ी उन�ोन'हि�नद-सवराजय' पसतक लि�ख डा�ी। धयान दन की )ात य� � हिक इस उन�ोन 'गजराती' म लि�खा।

�घकाय इस पसतक म श6 भाव की जग� परम, अतयाचार की जग� सहि�षणता और भौहितकता की त�ना म आधयातमितमक समजिदध का सनदश �। इसम उन�ोन साधन और साधय की पहिव6ता

तथा इन� परसपर परक )तात हए सप} लि�खा � हिक -" वकष और )ीज दोनो का जो अनयोनयाततिशरत सम)नध �, व�ी धयय और साधन का भी �, जो ईशवर की

पजा करन स धिम� सकता �, व� शतान की पजा करन स पाना असमभव �। �म जसा )ोत �, वसा �ी

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काटत �। य� )ात हिकसी को भी न�ी भ�नी चाहि�ए।11  य�ा गाधी क मन म भारतीय परमपरा कीकमफ�- मानयता क अहितरिरकत आलकिसतकता, आतमवत सवभतष का दिदवय भाव, शरयसकर अधयातम,

तजजनय सालकिततवकता और सवदशी भाषा म अततिभवयलिकत क कारण अपनी जडो की म�Cा की परहितषठा आदिद कारक साफ पता च�त �। य� क�ना भी तथयपरक �ी �ोगा हिक इन�ी आधारभतो स तो उन�ोन

सतयागर� का दिदवयास6 तयार हिकया था - य� सच � हिक गाधी क आचार स �ी उनक हिवचारो का सचचा परिरचय धिम�ता �, हिकनत लि�खिखत परमपरा म जीवन की परौढावसथा म आतमीय जनो क आगर� पर उन�ोन

' सतय क परयोग' लि�खा ( जो धारावाहि�क रप म लि�ख गय �।) दततिकषण अफरीका म ' इहिडयन ओहिपहिनयन' तथा हि�नदसतान म 'नवजीवन', ' यग इहिडया' तथा '�रिरजन' आदिद समाचार प6ो क व हिनयधिमत �खक

थ। इनम वयकत उनक हिवचार और भावनाए भी उनक सोच क साकषय �। अ�ग- अ�ग परसगो, सथानो और परिरलसिसथहितयो म हिकसी भी माधयम स वयकत उनकी म\यगत मानयताओ को उनकी सथायी और

अनविनतम मानयता समझा जाना चाहि�ए। धमगरनथो म �ोन क )ावजद जो )ात ' सतय और नयाय की कसौटी पर खरी न�ी उतरती', उनम व 'नीर- कषीर हिववक' क पकषधर थ। यदिद अछतो को ससकत पढन

या वदाधययन का अधिधकार शास6 न�ी दता ' तो भी �म शबदश: पा�न करक अपन धम क म� तततव का )लि�दान न�ी करना चाहि�ए।11  शास6 �ो, चा� �ोक-मानयता, उस सतयहिनषठ �ोना चाहि�ए, व�ी

सव�परिर �, व� मानव- मा6 क लिशवतव क भाव स भरा �, तो जाहित, सपरदाय या ऊच- नीच क आधार पर हिकसी को भी सतय की उपासना स कस वलिचत हिकया जा सकता �? व लि�खत � -

" म सतय को �ी भगवान मानता ह। मरी दधि} म भगवान को जानन का एक �ी उपाय � और व� �अहि�सा- परम। उस भधिम की सवा करना, जिजस पर म पदा हआ ह, मरा पहिव6 धम �।''12  इस एक कथन म सतय, भगवान, अहि�सा-परम, मातभधिम और धम जस )ड पदो को एक साथ परिरभाहिषत करन व

इनक परहित मानवीय कतवय- )ोध सथाहिपत करन की उनम स�ज उतकठा �। वद क�त � ' सतय अनादिद �, व� सधि} स भी प�� था और उसी स पच म�ाभत लसिसथर �। व�

सावकालि�क और सावभौधिमक �। ईशवर सत (अलकिसततव), लिचC (जञान), आननद ( अहिनवचनीय खशी), सलसिचचदानद क�ा गया �। व� हिवशवास की सव�चच सCा �। पच भत समपनन परभ �। उस अहि�सा- परम स

�ी पाया जा सकता � (' रामहि� कव� परम हिपयारा'-त�सी), मातभधिम (' जननी जनम भधिमशच सवगादहिपगरीयसी') की सवा को (' स)स सवक- धम कठोरा'-त�सी) धम- धारण ('धमजञ: सतयसघशच परजाना च

हि�त रत:-वा\मीहिक) करना �ी शरयसकर �। य�ा गाधी का भारतीय धमगरनथो स सपरिरत परजञा- मन और समका�ीन जीवन- समाज को उपररिरत करनवा�ी उनकी गहितशी� वयाखया मनन करन योगय �।

गाधी क वयलिकततव म अधयातम और सासारिरक दो पथक- पथक खणड न�ी �। सासारिरक समसयाओ कोछ�, कपट और धोखाधडी स �� कर � और हिफर कमर क कपाट )नद कर राम नाम की अभयथना

कर �। ऐसा दो�रा आचरण व�ा न�ी �। उनका अधयातम तो उनक जीवन- सगराम की पररणा और परभा )नकर परहितप� उनक साथ �। धम य�ा जीवन- हिनयमन की धारणा )नकर ज)- त) सशयगरसत �ोत मन

को रा� दिदखा र�ा �, ऊषमा भर र�ा �। इसीलि�ए अधयातम तततव-सतय, अहि�सा- परम क माग स हिवदशी दासता स राजनीहितक मलिकत और आरथिथक सवाततरय पान का �कषय उन�ोन ठाना था। इस तर� उनक

�कषयोनमख 'सवराज' क चार पाय थ- सवय गाधी क शबदो म " सवराजय क )ार म मरी क\पना इस परकार �। इस सवराजय क दो प�� �। हिवदलिशयो की ग�ामी स यदिद एक भी कोण हि)गड जाय, तो समझ

�ीजिजए हिक व� हिवदरप �ो गया �।''13

गाधी क कम- कष6 म अधयातम और �ौहिकक तततवो का समनवय अनायास न था। य� भारतीय परमपरा की यगानक� कममय पनवयाखया �। गाधी क अहितरिरकत आधहिनक यग म ऐसी �ी

साथक और तजसवी पनवयाखया सवामी हिववकानद और �ोकमानय हित�क क जीवन म दिदखायी दती �।दशन- शास6ी इस परवततिC का सटीक हिवशलषण करत �-

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" आधहिनक यग म परमपरा की पनवयाखया का परयास धिम�ता �, जिजसम आधयातमितमक और मानवीय म\यो क समनवय पर धयान क दिदरत हआ �। नहितक म\यो क कष6 म इस परकार का समनवय स�ज रप

स धिम�ता �, इसलि�ए आधहिनक हिवचारक क लि�ए गीता का इतना म�ततव र�ा �।''14

शरीमदभगवदगीता भारतीय चतना का आधारभत गरनथ �, यदयहिप उपहिनषद भी गाधी क मानस को दिदशा दन म हिनणायक भधिमका हिनभात �, जिजनस व समझ सक हिक " यदिद एक मनषय दसर दव की पजा-

उपासना करता �, य� सोचत हए हिक व� एक � और उपासयदव दसरा �, त) व� सतय को जानता �ीन�ी।''15

आतमा, परमातमा अथात बरहम की एकता का पाठ उन�ोन उपहिनषदो स �ी पढा था, हिकनत परमशवर कालिचनतन, अश- आशी सम)नध, कम-वरागय, कम-फ�, अनासलिकत, पराथना और भलिकत तथा मानव-परवततिCया, सख-द:ख, �ोभ-तयाग, मो�- मरण और पौवातय लिचनतन की स)स अम\य धरो�र 'आतमतततव'

को उन�ोन गीता स �ी जाना था। य� उनक लि�ए ज�ा एक ओर सकषम जञान- तततव का परिरचायक �, व�ी दसरी ओर पराथना और भलिकत क र�सय को उदघादिटत करनवा�ी 'कामधन', 'पथ-परदरथिशका' और 'माता' त\य �। सवाततरय- सगराम का य� यदध- वीर भ�ी- भाहित समझता था हिक )रा)री भाव क )गर सामाजिजक एकता और सामाजिजक एकता क अभाव म राषटरीय आजादी सथायी और हिनरापद न�ी र� सकती, इस एकतव और समतव भाव को एकातमवाद क माधयय स जन- जन तक पहचान क लि�ए उनक पास 'गीता'

एक समथ माधयम था। इसक अ�ावा एक हिवशा� सामराजयवादी 'कौरव' सCा क सामन सतय- अहि�सा जस शस6 हिकतन कारगर �ो पायग? साथ �ी ऐस सशयातमा स�सरो �ाखो 'अजनो' को हिनभय �ोन और

चमकदार आतमा को प�चानन का काय गीता �ी करा सकती थी।'प6वत' म�ादव दसाई का असामधियक हिनधन, जीवनसहिगनी और जीवन- का� क उCरादध म 'मातवत'

कसतर)ा का हिवछो� और )ड भाई क मरण क वजरपात को यदिद गाधी अहिवचलि�त भाव स )दाशत करसक, तो मा6 इसलि�ए हिक गीता माता न उन� )ता दिदया था-' वासालिस जीणाहिन यथा हिव�ाय, नवाहिन ग�ाहित नरो।-पराततिण।

तथा शरीराततिण हिव�ाय जीणानय- नयाहिन सयाहित नवाहिन द�ी।।'शरीमदभगवदगीता, 2/22

गीता स आतमा की अजरता, अमरता क साथ उसकी वयापकता और हिवसतार- भाव तथा हिवराटता का जो तततव उनक �ाथ �गा था, व� उनकी अम\य हिनधिध )नकर जीवन- भर उनक साथ र�ा-

' उदधरतदातमनातमान नातमानमवसादयत। आतमवहयातमनो )नधरातमव रिरपरातमन:।।1

        शरीमदभगवदगीता, 6/5 वयलिकत आतमशलिकत को जान, उस स)� )नाय, ससार- सागर स अपनी नौका सवय च�ा � जाय, हिनभय

और हिनवµर तथा फ�- परानविपत क अनासकत भाव- परिरत समपण कौश� क साथ कम करता र�, अपनी अधोगहित और ऊधवगहित का अधिधकारी व� सवय �। य� आतमवाद हिवजय म अ� और पराजय म द: ख

स हिवरत �ोन क सदश क साथ �ी उस भातभाव का भी पररक था, जिजसकी अपन समाज क लि�ए गाधी को सवाधिधक आवशयकता थी -

" भातभाव का अलकिसततव कव� आतमा म और आतमा क दवारा �ी �ोता �, य� और हिकसी क स�ार दिटक �ी न�ी सकता। ज) आतमा सवत6ता की माग करती �, व� सवत6ता उसक आतम- हिवकास की अथात

मनषय की समपण सCा म उसक अनतरसथ भगवान क हिवकास की सवत6ता �ोती �। ज) व� समानता चा�ता �, तो उसकी माग य� �ोती � हिक सवत6ता स)को समान रप स परापत �ो तथा समसत मनषयो

म उसी एक �ी आतमा को, एक �ी भगवान को सवीकार हिकया जाय।...सवत6ता, समानता और एकता आतमा क सनातन गण �।''16

आतमतततव- सम)नधी शरी अरहिवनद- सजिजत उपयकत हिवशलषण स य� हिकलिचत �म)ा उदधरण य� दशान की आकाकषा स यकत � हिक गाधी को इस आतमतततव क परिरचय म- य स6 �ाथ �ग गय थ, जो उनक

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जीवन- वयापार को पणता दत थ और जिजनकी लिसजिदध स वयलिकत- समाज को पणता धिम�नी थी। अत: य� अनायास न�ी था हिक गाधी न इस कञजी स वयलिकत, परिरवार, समाज, राषटर, हिवशव और सव�परिर मानववाद क आकाश- �कषय को पान क लि�ए धरती म च�न वा� पर )ढा दिदय। इसी कञजी स उन�ोन

दामपतय-सम)नध, हिपता-प6, धिम6-भाव, आलकिसतकता, धम, परकहित, वण-वयवसथा, लिशकषा-समाज, पव- पततिशचम की परकहित, आतमसयम, आतम-परीकषण, वयलिकत- वयव�ार और सनातन सतय आदिद जिजजञासाओ क

समाधान परापत हिकय। उनक समपण जीवन- का� म उनक कथन और आचरण म एक नरनतय, सगहित तथा नधिषठक �य धिम�ती �। वासतव म व जिजस राजमाग पर च� थ, उसका सनधान उन�ोन ख) सोच-

हिवचार कर हिकया था ( कोई क� म�गो कोई क� ससतो लि�यो र तराज तो�-मीरा) और इसीलि�ए व पर आतमहिवशवास स य� घोषणा कर सक हिक-

' हि�नद धम की रकषा का सचचा माग व�ी �, जिजसका म आचरण करता र�ा ह। ईसाई, मस�मान आदिद अनक धम� का मथन करन क )ाद भी म हि�नद धम स लिचपका र�ा ह, हि�नद धम पर मरी शरदधा ददमय

�।''17

उकत हिवशलषण स �मारी धारणा की पधि} �ोती � हिक )ीती शताबदी क इस शरषठ हिवशव- मानव ( अमरिरका क एक नामधारी सवÆकषण ससथान न एक जनमत सगर� म उन� शरषठ मानव हिनरहिपत हिकया �।) की

सचालि�का शलिकत भारतीय परमपरा और जीवन- म\यो क नाततिभना� स �ी रस गर�ण करती र�ी �। गाधी- वयलिकततव और गाधी- दशन क हिवदवान ठीक क�त � हिक-

" इस म�ान भारतीय परमपरा क, इस रप म, म�ातमा गाधी अनविनतम परतीक परष �, जिजनम परी परमपरा अपनी हिवहिवधता उदाCता एव जिजजीहिवषा क साथ अपन हिवराट रप म अततिभवयकत हई �। दरअस� गाधी

की जीवन- या6ा को दखना भारतीय परमपरा का पनराव�ोकन करना �।''18

सदभ सकत :1.  शरीकानत वमा : )ीसवी शताबदी क अधर म- भधिमका स2.  टॉयन)ी एव एकदा : सजनातमक जीवन की ओर, पषठ 3393.  टॉयन)ी एव एकदा : व�ी, पषठ 934.  गोहिवनदचनदर पाणड : म\य मीमासा, पषठ 715.  गोहिवनदचनदर पाणड : व�ी, पषठ 86.  हिवदयाहिनवास धिमशर : दश, धम और साहि�तय, पषठ 107.  न. र. अभयकर : राषटरहिपता म�ातमा गाधी, पषठ 948.  न. र. अभयकर : व�ी, पषठ 1679.  हिवदयाहिनवास धिमशर : भारतीयता की प�चान, पषठ 1210.  न. र. अभयकर : राषटरहिपता म�ातमा गाधी, पषठ 3611.  न. र. अभयकर : व�ी, पषठ 2512.   The Collected works of Mahatma Gandhi-Volume-23, Page 24013.  न. र. अभयकर : राषटरहिपता म�ातमा गाधी, पषठ 17914.  गोहिवनदचनदर पाणड : म\य मीमासा, पषठ 915.  डॉ. राधाकषणन : भारत और हिवशव, पषठ 10316.  शरी अरहिवनद : मानव एकता का आदश, पषठ 276-7717.  न. र. अभयकर : राषटरहिपता म�ातमा गाधी, पषठ 41218. परो. लिसदधशवर परसाद : आसथा परष, पषठ 13वतमान हिवसगहितया और गाधीवादी चतनाडॉ. एस. ज�ीर अ�ी

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' वतमान हिवसगहितया और गाधीवादी चतना' हिवषय सकतातमक �। इसम एक प�� य� हिनक�ता � हिक हिवसगहित इसलि�ए � हिक �म गाधीवादी चतना को भ� गय। तो प�� �मको य� तय करना �ोगा हिक हिवसगहित हिकस परकार की �? इस सकट का दायरा अगर हिनततिशचत �ो जाय तो हिफर जो समसयाए इस

सकट क परभाव म �, उन पर प�� )ात �ो जाय। उसक )ाद गाधीवादी चतना या गाधीवाद क )ार म )ात की जाय। तीसरा प�� इस चचा का य� �ोगा हिक कया इस सकट का समाधान �म गाधीवादी

हिवचार पर अम� करक वाकई ढढ सकत �? ज�ा तक सकट और हिवसगहितयो का सवा� �, �मार दश म �ी न�ी, )लकि\क हिवशव- सतर पर य� समसया जारी �। इसम कई समसयाए �मार दश स सम)तमिनधत �। कई ऐसी समसयाए �, जो सववयापी �। इस हिवषय पर थोडी- )हत रोशनी डा�ना चाहगा। आज �म जिजस परिरवश (वातावरण) म सास � र� �, व� राषटरीय व अनतरराषटरीय सतर पर आतकवाद

का �। अ) य� �म)ी )�स � हिक आतकवाद हिकन कारणो स जनमा और इस कयो पा�ा- पोसा गया। एक नजरिरया य� भी � हिक ज) सोहिवयत यहिनयन हिवखहिडत और सामयवाद पतनशी� हआ, त)

अमरीकी रकषा- हिवभाग 'पटागन' क अधिधकारिरयो न अमरीकी सCा पर अपनी पकड मज)त रखन क लि�ए इस�ामी आतकवाद की )ात की और इस तर� हिवततिभनन सभयताए जान- )झकर टकरायी। कारण

य� हिक सामराजयवादी दशो को एक नय दशमन की जररत थी। 'कमयहिनजम', जो प��ा दशमन था, अ) न�ी र�ा। आज रस अमरिरका का अनयायी �, तो उनको एक नया दशमन इस�ामी आतकवाद क रप

म धिम�ा। य�ी व स)को समझा भी र� �। इसलि�ए आज भी अमरीका पर, व�ा की अथवयवसथा पर �लिथयार )नानवा� कारखानो क मालि�क की पकड )हत मज)त �। य� एक )�स का हिवषय �।

इसका एक दसरा दधि}कोण भी �ो सकता �, �हिकन इस�ामी आतकवाद एक वासतहिवक समसया �। कारण जो भी �ो, �हिकन �म य� न�ी क� सकत हिक य� कोरी क\पना �, य� एक �ौवा �, जिजस

खडा हिकया गया �। दसरी समसया, जो आज क समय म �, व� �मार दश म फ�ी हई सापरदाधियकता, हि�नदतव क नाम पर

फासीवाद, घणा और दवष �, जिजसकी वज� स अ\पसखयको का जीना दभर �ो गया �। इनका अलकिसततव खतर म �। इनकी समपततिC खतर म �। और जाहि�र �, य� स) उन�ोन �ी हिकया, जो गाधीवाद

क शर स हिवरोधी थ। तीसरी खास )ात, जो हिवसगहितयो क लिस�लिस� म क�ी जा सकती �, व� वशवीकरण

(Globalization) की �, जो हिवशव- भर की ससकहित, वयापार और अथवयवसथा पर फ�ा हआ �। और इसका परभाव �मारी राजनीहित, �मारी अथ-वयवसथा, �मारी ससकहित और जीवन- श�ी पर पड र�ा

� - लसि«जनदगी का �र प�� इसस परभाहिवत �ो र�ा �। अस� म वशवीकरण एक तर� का हिवशववयापी वयापार �। �मन ' हिवशव वयापार सघ' क दसतावज (World Trade Organization) पर �सताकषर

करक अपन दश म )कारी को हिनम6ण द दिदया �। कछ समसयाए कव� �मार दश की �, जस हिनरकषरता और घसखोरी। य समसयाए हि�नदसतान म )हत

गमभीर �। एक और हिवपदा �, जिजसस आज सारी दहिनया जझ र�ी �, इसक सकट का मखय कारण � पयावरण म परदषण। इसक )ार म चचा भारत या अनय हिवकासशी� और हिपछड दशो म भी �ोती �,

�हिकन जयादा चचा उननत दशो म �ोती �। य सारी )ात इन हिवसगहितयो म शाधिम� �। मगर इन तमाम हिवसगहितयो का समाधान गाधीवाद या गाधीवादी चतना म ढढना गाधीजी और गाधीवाद दोनो क साथ जयादती �ोगी। �र हिवचार, �र आसथा, �र नजरिरया अपनी जनमभधिम और समय की सीमा म �ोता �। गाधीवाद भी इसका अपवाद न�ी �। इसलि�ए �म इन हिववादो क सम)नध म

गाधीजी क मखय हिवचारो पर नजर डा�नी �ोगी। उसक )ाद �मको य� दखना �ोगा हिक कया �म उनक )हिनयादी हिवचारो क स�ार इन हिवसगहितयो स �ड सकत �? अगर �म गाधीजी की जिजनदगी पर नजर

डा� तो �मको य� अदाजा �ोगा हिक उनक जीवन का सघष दो दिदशाओ म च�ता र�ा - एक )ा�री जददोज�द थी, जिजसक )� पर उन�ोन हिबरदिटश सCा का सतयागर� जस �लिथयार स सामना हिकया और

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�मार दश को आजादी दिद�ायी। और दसरी थी - सतय की खोज क लि�ए उन�ोन अपन अलकिसततव स सघष हिकया और कई परयोग हिकय। अस� म दसर सघष स उनक हिवचार या गाधीवादी चतना का सम)नध �। य� जयादा अ�म �। गाधीजी एक दढ हिवशवासवा� हि�नद थ। भगवान अथात समझ म न

आनवा�ी एक शलिकत पर उनका पण हिवशवास था। इस )ात पर व भरपर यकीन रखत थ हिक इस कायनात को )नान और इसम एकातमता रखनवा�ा जो भी �, जिजस नाम स भी आप उस याद कर, व�

ईशवर (खदा) � और व�ी सतय �। गोया सतय गाधीयाई सोच का मौलि�क हि)नद �, गाधीजी न सतय की खोज क लिस�लिस� म जो �ख लि�ख, उनम )ार- )ार व इस )ात पर )� दत र� हिक ' सतय �ी भगवान

�' । तो इसम व �ोग भी भागीदार �ो जात �, जो नालकिसतक या अनीशवरवादी �। तो कया �म ऐस �ोगो को भी ग� �गा सकत �? गाधीजी का क�ना था हिक अगर आप सतय पर � तो दहिनया की कोई

ताकत, कोई सCा, कोई अतयाचार आप का कछ हि)गाड न�ी सकता, कयोहिक उनका य� मानना था हिक सCा या सरकार या अतयाचारी शासक मनषय की समपततिC या उसक शरीर पर आधिधपतय जमा सकता

�, �हिकन हिकसी की आतमा या अतरातमा पर उसका कबजा न�ी र�ता। उन�ोन सतय को भगवान मानकर एक उदार नजरिरया दिदया तो गाधीजी क धम म दहिनया क हिवततिभनन धम¾ क �ोगो क अ�ावा व

भी सतमिममलि�त �ो गय, जो नालकिसतक या अनीशवरवादी थ। य� जो उदारवादी और उनमकत नजरिरया गाधीजी का �, )हत अ�म �। उनकी )डाई कया हिगनवाऊ! )स इतना हिक आइनसटाइन न क�ा था हिक

' आनवा�ी पीढी )हत मलकिशक� स यकीन करगी हिक कभी इस तर� का वयलिकत इस धरती पर च�ता- हिफरता था।' द�ाई�ामा और मारटिटन �थर हिकग जहिनयर न न कव� गाधीजी स पररिरत �ोकर अपना

आदो�न च�ाया और सफ�ता पायी, )लकि\क उन� उन �ोगो न सवीकार भी हिकया। इसी करम म एक और परमख नाम जनर� महिßड का �, जो सवीडन क अथशास6ी �। हिवसगहितयो क हिवषय म उनका नाम �ना जररी �।

य� कसी हिवडम)ना � हिक आज �मार अपन दश म कया, गाधीजी क �ी राजय गजरात म भी उन�ी क लिसदधातो को न लिसफ रदद कर दिदया गया �; )लकि\क �र दिदन उन� रौदा भी जा र�ा �। �मन आजादी

धिम�त �ी गाधीजी को शारीरिरक रप म खतम कर दिदया, उन� गो�ी मार दी। आज �र रोज उनक हिवचारो, हिवशवासो का खन हिकया जा र�ा �। दसरी हिवशष )ात उनक सिचतन की �, अहि�सा पर व परा हिवशवास करत थ। अहि�सा क हिवषय म उन�ोन

य�ा तक लि�खा � हिक -'' मर लि�ए अहि�सा सवराजय स जयादा अ�म �। यदिद सवराजय हि�सा क रासत स आता � तो व� मझ सवीकार न�ी। य जो )ात � अहि�सा और सतय की, इन�ी दो आधार- हि)नदओ को �कर गाधीजी न अपनी राजनीहितक रणनीहित तयार की थी, जिजस 'सतयागर�' क�ा जाता �। इस उन�ोन

हि�नदसतान म न�ी, )लकि\क दततिकषण अफरीका म �ी तयार कर लि�या था। व ज) व�ा पहच, उन�ोन सोचा हिक कछ सपता� म वापस आ जाऊगा। व�ा व मकदम की परवी क लि�ए गय थ। �हिकन उन� व�ा कोई

पचचीस सा� रकना पड गया, कयोहिक व�ा उन�ोन रग- भद का भयानक च�रा दखा। उन�ोन ऐस कानन की मखा�फत की और भारतीयो को एकजट और सगदिठत हिकया। उन�ोन एक अख)ार भी हिनका�ा।

जिजसका नाम था ' इहिडयन ओहिपहिनयन' (Indian Opinion) । उसम व जो लि�खत थ, उसका व�ा की दसरी प6- पहि6काए हिवरोध करती थी। गाधीजी इसस सत} न�ी थ, त) उन�ोन अपन अख)ार म य�

हिवजञापन छापा हिक जो भी शखस उनक इस आदो�न को, जो अहि�सातमक �, अगर हिकसी और ढग स परिरभाहिषत कर सकता �, तो उस परसकार दिदया जायगा। त) मदन�ा� गाधी न, जो उनक स�कम� थ,

' सतय + आगर�' की परिरभाषा दी - नयाय और सतय क माग और काम म अहिडग र�ना। गाधीजी न मदन�ा� गाधी को परसकत तो हिकया, �हिकन व ' सतय + आगर�' की परिरभाषा स जयादा सत} न�ी

हए और उन�ोन ससकत क दो शबद सतय और आगर� को धिम�ाकर एक सयकत शबद ' सतयागर� )नाया, जिजसका शाखिबदक अथ � - सचचाई क लि�ए आगर� करना, �हिकन रणनीहित क तौर पर य� एक �लिथयार

� - �र उस अतयाचारी शासक, �र उस कानन स �डन का, जो अतरातमा क खिख�ाफ �ो। गाधीजी क�त थ हिक �र उस काय का, जो अहिनयधिमत या पराकहितक लिसदधातो या आपकी अतरातमा क हिवरदध

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�ो, परहितरोध करना �र सतयागर�ी का कतवय � और य� सतयागर� क रासत स �ी समभव �। �हिकन सतयागर� क लि�ए अहि�सा अहिनवाय �। य थ उनक सिचतन क मौलि�क हि)नद।

इसक )ाद स)स परमख )ात थी हि�नद- मलसिस�म एकता की। वस य� मददा उनक हिवचार का )हिनयादी अग न�ी था, पर उन�ोन जो राजनीहितक सघष हिकया, उसक लि�ए व हि�नद- मलसिस�म एकता को )हत जररी

समझत थ। उनका क�ना था हिक भारत क इन दोनो समदायो म अपनतव का भाव न�ी �ोगा तो इस दश की उननहित न�ी �ो सकगी।

गाधीजी मशीनो क अनावशयक इसतमा� क खिख�ाफ थ। य� )ात गाधीजी क हिवरदध परचार का �लिथयार )नी। परचार करन क कई तरीक �। जो �ोग उनक हिवरोध म तक पण कछ न�ी क� सकत, व य� क�त

� हिक व सत आदमी थ। इसस य� हिनषकष हिनक�ता � हिक व सत- म�ातमा थ, ठीक �; पर हिकसी की वयाव�ारिरक जिजनदगी स उनका कया �ना-दना? व तो मशीनो क खिख�ाफ थ, कयोहिक व मशीनो का

सीधिमत इसतमा� चा�त थ। गाधीजी न ज�ा लिसयासी हि�नदसतान का नकशा पश हिकया, व�ी व �र गाव को आरथिथक रप स सवाव�)ी और एक सवायC इकाई क रप म दखना चा�त थ। व चा�त थ हिक गाव अपन लि�ए अनाज

खद उपजाय, कपास खद पदा कर और लिसफ व�ी चीज दसर गाव स आय, जो सथानीय तौर पर पदा न�ी �ोती �। साथ- साथ व य� भी चा�त थ हिक इन सार सवायC हि�नदसतानी गावो म आपसी ता�म� र�। गज य� हिक उन�ोन )हत सादी जिजनदगी पर जोर दिदया और य�ी � गाधीवादी चतना का सार। अ) तीसरा प�� मर �ख का य� � हिक कया �म गाधीवादी चतना की रोशनी म आज की हिवसगहितयो का समाधान ढढ सकत �? ज�ा तक आतकवाद, सापरदाधियकता और फासीवाद का सम)नध �, तो

अहि�सा का रासता जररी �। गाधीजी का दभागय � हिक व जिजन दो परमख सम�ो - मस�मानो और दलि�तो क लि�ए �ड, उन�ोन �ी गाधीवाद का रासता छोड दिदया। 11 लिसतम)र 2001 की घटना �ो या

ससद पर �म�ा या अकषरधाम का काड, इसक परिरपरकषय म य� न�ी क�ा जा सकता हिक हिकसी अमक कारण स �म हि�सा और आकरमण पर उतर आय। य� गाधीवाद क परहितक� �, गाधीवादी चतना क हि)\क� हिवरदध �। अगर आप सचचाई पर � और आप समझत � हिक आपक अधिधकार छीन जा र� �,

अगर आप समझत � हिक आपक साथ अतयाचार �ो र�ा �, अनयाय �ो र�ा � तो आप कव� अहि�सा क रासत पर र�।

गाधीजी मार गय, कयोहिक उन�ोन हि�नद- मलसिस�म इC�ाद क लि�ए तीन अ�म उपवास रख - प��ा उपवास त), ज) सन 1924 म को�ाट म दगा हआ। दसरा त), ज) आजादी क समय व नोआखा�ी

जाना चा�त थ। व क�कC म रोक गय। स�रावदá त) मखयम6ी थ। मस�मानो का नरस�ार हिकया जा र�ा था। गाधीजी न व�ा उपवास रखा। उसक )ाद दिद\�ी म उन�ोन 12 जनवरी 1948 को उपवास शर हिकया, जो 18 जनवरी 1948 तक च�ा। अ)�क�ाम आजाद न शर)त दकर व� उपवास खतम

कराया। हिफर तो हि�नद, लिसकख और मस�मान आय य� क�न हिक अ) अमन व शानविनत �। �हिकन जो सCाधीन थ, उन� य� )ात पसद न�ी आयी, कयोहिक गाधीजी क अहि�सा क रासत स इस दश म मस�मान भी र�त। तभी तो उन �ोगो न उन� गो�ी मार दी। एक आदमी न मस�मानो क लि�ए अपनी

जान द दी। आज मस�मान क�त � हिक �मार साथ अनयाय �ो र�ा �, �मार अधिधकारो का शोषण �ो र�ा �, इसलि�ए �म आतकवाद का रासता अपना सकत �। य� घोर अनयाय �ोगा गाधीजी क साथ।

मस�मानो को सोचना चाहि�ए हिक य� )हत ग�त धारणा �। )रोजगारी की समसया भी व�ी स जडी हई �। मशीन �ो या सवचालि�त य6, इनक )�गाम परयोग को )द कीजिजए। वशवीकरण पर हिफर स गौर

कीजिजए। ' हिवशव वयापार सघ' क दसतावज पर जो �सताकषर हिकय गय �, उस पर हिफर हिवचार कर। मड�मन की राय इसलि�ए अ�म � हिक व क�त � हिक एलिशया म�ादवीप क दशो म खास कर परशात म�ासागर म जो छोट- छोट दश �, जिजन� �म Far East ( फार ईसट) क�त �, उन दशो म जो परगहित

आयी, व� इसलि�ए हिक उन�ोन गाधीजी क लिसदधातो का अनकरण हिकया। चा� चीन कछ भी क� � हिक

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�म सामयवाद और माकसवाद का रासता अपनाय हए �, �हिकन वासतहिवकता य� � हिक चीन की अथवयवसथा गाधीवाद की सफ�ता का परमाण �। व�ा शरधिमको पर जयादा तवजजो दी गयी और ऐस �ी

कारखानो को पराथधिमकता दी गयी, ज�ा अधिधक सखया म मजदरो को रोजगार धिम�ता �। गाधीजी का य�ी हिवचार था। �मार य�ा हिनरकषरता और ज�ा�त जो फ�ी हई �, उस धिमटान क लि�ए गाधीजी चा�त थ हिक पराथधिमक लिशकषा हिन: श\क और अहिनवाय �ो। �मार पास इसक लि�ए कोष का अभाव �, कयोहिक �म शौक �

परमाण �लिथयार )नान का। व� फड �म उधर खच कर र� �। �मको शौक � �लिथयार खरीदन का। हि�नदसतान गाधीजी क नाम का टिढढोरा तो पीटता �, �हिकन व� आज स)स जयादा �लिथयार

खरीदनवा�ा दश �। �मार जी. एन. सी. (G.N.C.) का अचछा- खासा हि�ससा �लिथयारो की खरीदारी म जाता �। आप इसको रोहिकए। आपक पास लिशकषा क लि�ए फड म�या �ो जायगा। पयावरण, परदषण का ज�ा तक सम)नध �, पततिशचम क दश और य�ा भारत म भी पयावरण को परदहिषत करनवा� कारखानो

को )नद करन और पराकहितक समपदा को )चान की )ात �ो र�ी �। इन स)स प�� सCर सा� पव उन�ोन ( गाधीजी न) लि�खा था हिक '' ज) तक आप गरामीण समाज, सादी जिजनदगी अथवा गाव को न�ी

�ौटग, अपनी जडो स न�ी जडग, त) तक आप औदयोहिगक ससकहित क ग�ाम )न र�ग।'' औदयोहिगक ससकहित क व इसलि�ए हिवरदध थ हिक य� भी हि�सा की परतीक �। हि�सा का कव� मनषय क खिख�ाफ

�ोना जररी न�ी, पड काटना भी हि�सा �। इसलि�ए गाधीजी न क�ा था हिक ' इसस पयावरण परदहिषत�ोगा।' सीधी- सादी जिजनदगी की ओर �ौटना एक आदश �। इस पर अम� करना समभव �। इसलि�ए

उन�ोन जो कछ लि�खा या क�ा, उस पर अम� करक भी दिदखाया ।उस रिरजक स मौत अचछी...परो. लिसदधशवर परसाद

मन गाधीजी को )ड करी) स दखा �। सन 1945 म ज) उन�ोन सवागराम म ' समगर गराम सवाहिवदया�य' शर हिकया था, व�ा म हिवदयाथ� था। सन 1946 म दग शर �ो गय थ। �म �ोगो की पढाई

�गभग समापत �ो गयी थी। गाधीजी न हिवदयारथिथयो स क�ा हिक तम �ोग अपन- अपन कष6 म जाओ और दगा रोकन का काम करो। म भी इस काम क लि�ए च�ा गया। गाधीजी न जो रासता )ताया, उस �म �ोग ठीक स समझ न�ी पाय हिक व� वयाव�ारिरक � या न�ी। मन नौजवानो का एक सगठन )नाया।

त) 'ब�ाक' न�ी )न थ, थाना �ोता था। �मारा थाना )हत )डा था, पर क�ी हिकसी का )ा� भी )ाका न�ी हआ - न हि�नद का, न मस�मान का, क�ी दगा हआ �ी न�ी। गाधीजी, जवा�र�ा�जी पर इस )ात का इतना परभाव पडा हिक स) �मार य�ा आय। जो �ोग क�त � हिक गाधीजी का रासता

वयाव�ारिरक न�ी �, उनकी )ात को म उतना �ी म�ततव दता ह, जस कोई �डका घडी म ए�ाम �गाक सो जाय हिक उस चार )ज उठना � और अ�ाम )जन पर उस द)ा द। आज य�ी लसिसथहित �। �म अपनी

आतमा की आवाज को द)ा र� �। �मन गाधीजी क )ताय रासत पर च�न की कोलिशश �ी क) की? वतमान हिवसगहितया पदा �ी कयो हई?

�म अपन को हि�नद क�त � और हि�नद धम की )हिनयादी )ातो पर अम� न�ी करत। �म अपन को मस�मान क�त � और करानशरीफ म जो )ात लि�खी �, उस पर अम� न�ी करत। अपन को पारसी

क�त �, या और धम� की कव� )ात करत �; तो स) जग� य�ी लसिसथहित �। आज सार ससार म परचार पर इतना पसा खच हिकया जा र�ा � हिक दिदन को रात और रात को दिदन साहि)त हिकया जा र�ा �। य� कया )ात �!

अमरिरका म 11 लिसतम)र 2001 को व+ सणटर पर �म�ा हआ। ठीक एक म�ीना प�� 11 अगसत को म अमरिरका पहचा था। म )ड- )ड �ोगो क वयाखयान सनता र�ा और अपनी )ात क�ता, )ात �ोती र�ी - )क � यहिनवरथिसटी, सटनफोड यहिनवरथिसटी, इलसिनसटटयट ऑफ टकनॉ�ॉजी, कलि�फोरषिनया यहिनवरथिसटी

क सार �ोगो स ज) म जीवन- म\यो की )ात क�ता था तो व नाराज �ो जात थ। व�ा का तरीका य� � हिक �कचर दन क )ाद व �ोग सवा� पछत �। एक सवा� क जवा) म मन मजाक म क� दिदया हिक

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‘Americans are most illiterate in the World.’ ‘How dare you say so?’ ‘Very simple. Always you equate, ten equal to hundred and hundred equal to ten.’ आप म)ई क चौरा� पर सबजी खरीदिदए तो अनपढ सबजीवा� क पास क\क�टर

न�ी �ोता, �हिकन उसका हि�सा) पकका �ोता �। उस दश को आप क�त � हिक They are not literate. Literacy is not education. दहिनया म य� भरम पदा �ो गया � हिक साकषरता �ी

लिशकषा �। इस भरम का दषपरिरणाम आज �मार सामन �। �मार दश की जो परपरा र�ी �; चा� जिजस धम की �ो, हि�द की �ो, मस�मान की �ो, ईसाई की �ो, लिसकख की �ो, पारसी की �ो, हिकतन परवचन �ोत थ, हिकतनी )ात जनता को सनायी जाती थी। आज

तो व� )ात खतम �ो गयी � न! �म लिसनमा का इतना परचार करत �, मारपीट और गडागदá दिदखायी जाती �, उसका )चचो पर हिकतना )रा असर पडता �! व टीअवीअ खो�कर )ठ र�त �। तो गाधीजी

अपरासहिगक न�ी �ो गय, गाधीजी न �मारी )ीमारी का जो इ�ाज )ताया, व� दवा �मन �ी �ी न�ी। व� दवा थी मन को )द�ना। �म )ीमार �, सारी दहिनया )ीमार �, �म दवा खाय तो! कोई हकीम क पास गया, तो हकीम न क�ा, आपको जäकाम �, सदá �, खासी �, आप द�ी मत   खाइए। घर पर

आकर उसन )ी)ी स क�ा, हकीम तो पाग� �, द�ी क हि)ना कोई खाना �ोता �! य�ी �मारी मसी)त�, दहिनया म जो )ड �ोग �, व )रा)र य� )ात क�त आय �, �म उनकी )ात न�ी मानत। डा.

इक)ा� का एक शर �, आपन सना �ोगा, कई )ार सना �ोगा - ऐ तायर-�ाहती, उस रिरजक स मौत अचछी

जिजस रिरजक स आती �ो परवाज म कोता�ी। अथात ऐ आकाश म उडनवा� पकषी! उस दान स मौत अचछी �, जिजसस तम�ार पाव )ध जात �।

पर य�ा जो भमणड�ीकरण �ो र�ा �, उसम पसा �ी स) कछ �। पसा �ी ईशवर �, पसा �ी खदा �। इनसान क लि�ए तो क�ी जग� �ी न�ी �। आपक म\क न आपको डॉकटर )नान म दस �ाख रपय

खच हिकय और आप भारत की सवा करन क )द� दसर दश म च� गय। आपको य�ा पचचीस �जार रपय धिम�त थ, �हिकन पचचीस �जार रपया वतन पानवा� भारत म हिकतन �ोग �। और आप च�

गय, ज�ा आपको पचचीस �जार डॉ�र धिम�त �। इक)ा� न इसका अनभव हिकया। �ा�ौर म ज) उनकी �ा�त खरा) �ो गयी थी तो भोपा� क नवा) न उन� )�ाया। व व�ा गय तो ससकत क एक पहिडत स ससकत सीखन और पढन �ग। उन�ोन ससकत की अचछी कहिवताओ का, उपहिनषद क कछ अचछ म6ो का फारसी और उद म अनवाद हिकया। कठोपहिनषद म � - ' न हिवCन तपणीयो मनषयो' । मनषय धन स परसनन न�ी �ोता। इक)ा� न इसका शबदश: अनवाद न�ी हिकया। ऊपर क शर म इसका

भावानवाद हिकया। भत�रिर आज स करी) दो �जार सा� प�� हए थ, उनकी पलिकतयो का भी भावानवाद डॉअ इक)ा� न हिकया था। अ) )ीसवी शताबदी म कोई कछ लि�खगा तो उसी क मताहिåक

�ी तो लि�खगा। इसीलि�ए उन�ोन लि�ख दिदया - ऐ तायर-�ाहती, उस रिरजक स मौत अचछी... आज �म व�ी कर र� � और गाधीजी को दोष दत �। परधानम6ी भाषण द र� �, मखयम6ी भाषण द र� � हिक य� करो, व� करो! �मारी हिवदशी मदरा और )ढगी। य�ा �ोग भखो मर र� �, )ीमार �, सडक अचछी न�ी �, दवा �ोगो को न�ी धिम�ती �। व क�त � हिक �मारी हिवदशी मदरा )ढगी, �मारी हिवदशी मदरा �र �पत इतनी )ढी - य� समसया का समाधान न�ी। समसया का समाधान ढढना चाहि�ए। आज �म

वासतहिवक समसयाओ स भागत हिफर र� �। गनदगी को ढककर समझत � हिक गनदगी � �ी न�ी। ऐसी � �मारी आधहिनकता! भगवान की अक� जयादा � या कम �? भगवान को अगर )नाना �ोता हि�द, मस�मान, ईसाई,

बराहमण, कषहि6य तो उन� कोई म�नत �गती? उनक य�ा सया�ी की कमी �? हिकस चीज की कमी �व�ा? व व�ी स )नाकर भजत - हि�द का खन 'ए' गरप का �ोता, आदिद आदिद। �ोगो क नाम अ�ग-

अ�ग �ोत �, �हिकन उनम कछ तो कॉमन �ोता �, जिजसकी वज� स �म उन� आदमी क�त �। ‘इनसान क�त �। �मन इस )ात को भ�ा दिदया। हिवजञान क साथ मलकिशक� य� � हिक व� Common

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Denominator पर जाता �, सCा म स�ायक �ोता �। हिवजञान की �म उपासना करत �, जिजसको �म दशनशास6 क�त �, साहि�तयशास6 क�त �, जिजसको �म क�त � मज�), जिजसको �म क�त �

धम, जिजसको �म क�त � ईमान, व� उस चीज को न�ी दखता। इन स)स समाज म हिवसगहित )ढती जा र�ी �, को�ा�� )ढता जा र�ा �।

अगरजी की 'टाइम' पहि6का न सवÆकषण हिकया हिक शताबदी- परष कौन �, स�सराबदी परष कौन �? न उसम क�ी हि�ट�र �, न क�ी चरथिच� �, न क�ी सटालि�न �। उस सवÆकषण क मताहिåक

शताबदी- परष और स�सराबदी- परष म�ातमा गाधी �। य� �रत की )ात न�ी �? दहिनया की हिकसी ससथा न गाधीजी क लि�ए कोई �ॉ)ी की थी कया? दस- )ीस �ाख डॉ�र हिकसी न खच हिकय गाधीजी क लि�एकया? न�ी। कयो? इसलि�ए हिक र�- र�कर �ोगो को �ग र�ा � हिक �मार लि�ए और कोई रासता न�ी �।

आदमी की कदिठनाई कया �? कदिठनाई आदमी की य� � हिक उसका हिनशचय दढ न�ी �। गाधीजी की स)स )डी ख)ी य�ी � हिक व कोई असाधारण मधावी छा6 न�ी थ। जस आइनसटाइन सक� म एक )ार

अनCीण �ो गय। व कोई मधावी छा6 न�ी थ, �हिकन उनम �गन की भावना थी। इसीलि�ए   व दहिनया क स)स )ड वजञाहिनक �ो गय। दहिनया का उन�ोन इहित�ास �ी )द� दिदया। अपनी हिनषठा और

आतमहिवशवास क )� पर गाधीजी न हिवशव- वयापी कराहित का ऐसा माग परशसत हिकया, जो अदभत �। आप �ोगो को य� सनकर �रत �ोगी हिक आइनसटाइन ज) जमनी स अमरिरका पहच तो उनका इतना भवय सवागत हआ हिक हिकसी भी म�ापरष का ऐसा सवागत न�ी हआ था। य� �रत की )ात न�ी �?

य� कयो हआ? गाधीजी �रिरजन कॉ�ोनी म र�त थ तो अमरिरका का राजदत �ो, इग�ड का राजदत या वाईसराय �ो, उनस धिम�न व�ी जाता था। तो �मारी मलकिशक� य� � हिक जो अ�धिमयत रखनवा�ी चीज

न�ी �, �म अपनी कमजोरी की वज� स उन�ी को अ�धिमयत दत � और उसस मसी)त म फस जात�।

�म जिजस मज�) म पदा �ो गय, �मारा कोई )स � कया? खदा न �मारा जसा च�रा )ना दिदया, उसको �म )द� सकत � कया? �हिकन गाधीजी स �मन कछ सीखा न�ी। गाधीजी की स)स )डी )ात

थी हिक उनक प�� जो )ात धम की मानी जाती थी, उसको उन�ोन सार समाज को, सारी मानवता क लि�ए परयोग करक दिदखा दिदया। सन 1893 म ज) व दततिकषण अफरीका गय तो हिकसी न सोचा था हिक

हिबरदिटश सामराजय खतम �ो जायगा? इतना )डा सामराजय कभी दहिनया म हआ �ी न�ी, जिजसक राजय म कभी सरज न�ी ड)ता था, जिजसक पास इतन �लिथयार थ। उसकी राजनीहित ऐसी थी। स) खतम �ो गया। हिफर भी आज �मारा हिवशवास गाधीजी क सतयागर� म न�ी, )लकि\क हि�सा क �लिथयारो म �। �मार

मन की कमजोरी गयी न�ी, �मम आतमहिवशवास आया न�ी। म सन 1964 स सारी दहिनया म घम र�ा ह। सारी दहिनया को हि�नदसतान स नाराजगी इस )ात की � हिक गाधीजी न भारत स गोरो का सामाजय खतम कर दिदया, जो हिकसी न हिकया न�ी था। हि�द �ो,

मस�मान �ो, लिसकख �ो, ईसाई �ो, )ौदध �ो, का�ा �ो, गोरा �ो, अर)ी )ो�ता �ो, फारसी )ो�ता �ो, हि�नदी )ो�ता �ो, उद )ो�ता �ो, तधिम� )ो�ता �ो, त�ग )ो�ता �ो, कननड )ो�ता �ो, मराठी )ो�ता

�ो, औरत �ो, मद �ो, इसका कोई सवा� न�ी �। सवा� � इनसाहिनयत का! इनसान क नात उन�ोन स)को ग� �गाया, य� छोटी )ात न�ी। हिकसी राजनीहितजञ न ऐसा न�ी हिकया। हिफर भी �मारी आसथा म�ातमा गाधी म न�ी, हिवनाशकारी �लिथयारो म �।

कछ �ोग क�त � हिक गाधीजी आज परासहिगक न�ी �। मन यरोप म, फरास म, जापान म �र जग� क�ा हिक यदिद कोई सपदनशी� �ोकत6 क�ी � तो व� भारत म �। य� गाधीजी क कारण �। और क�ी � सचचा �ोकत6? और क�ी न�ी �। कयो न�ी �? आप य� सोलिचए। जिजस रोज य� तय हआ हिक डॉअ अबद� क�ाम इस दश क राषटरपहित �ोग तो हिकतन �ोगो न मझको अमरिरका स, �दन स, क�ा- क�ा स फोन न�ी हिकया हिक कया य� सच �? डॉ. क�ाम राषटरपहित �ो र� �? एक वजञाहिनक को राषटरपहित )नान की हि�ममत अमरिरका म न�ी �, इग�ड म न�ी �, फरास म न�ी �। नशन� डमोकरदिटक फरट की

जो सरकार �, उसन अचछा काम हिकया तो उस क)� करना चाहि�ए। डॉअ क�ाम जो क�त �, व�

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करत �। मरी पतनी न मझस क�ा हिक राषटरपहित )न जान क )ाद व अपन रासत पर च�ग, आज आप दख �ीजिजए। गजरात गय, सरकार न�ी चा�ती थी; मधयपरदश गय, सरकार न�ी चा�ती थी; हि6परा गय,

सरकार न�ी चा�ती थी, मततिणपर गय, सरकार न�ी चा�ती थी। राषटरपहित राषटरपहित �ोता �, राजयपा� राजयपा� �ोता �। उसक जो अधिधकार �, उस पर )धन कम �ोता �। राजयपा� की �लिसयत स मझ जो करना था, मन हिकया। जिजसको न�ी करना �, न कर। मर शपथगर�ण

समारो� क )ाद मझस अख)ारवा� न पछा, टीअवीअ वा� न पछा, रहिडयोवा� न मरी भधिमका क )ार म पछा तो मन य�ी क�ा, “I have not come here to oust the Chief Minister, nor

I have come here to install anybody as Chief Minister, nor I have come here to allow any political party to run office from theRaj Bhawan. I will not allow.” मन व� न�ी हिकया। व�ा एक �ाख शरणाथ� )ग�ादश स आय हए थ। )ग�ादश क

राजदत मझस धिम�न क लि�ए आय। उन�ोन क�ा हिक आपका कोई सदश �? मन क�ा, ''�ा, आप अपन परधानम6ी स कहि�ए, य�ा जो एक �ाख शरणाथ� �, उनको अपन दश म � जा सकत �।'' मन उनको समझाया हिक भारत दश म उनका कया भहिवषय �? व गय। आप परम स हिकसी स )ात कीजिजए

न! �हिकन आप ऐसा न�ी करत, आप ऍटम )म का डर दिदखात �। अमरिरका क राजदत ज) मझस धिम�न क लि�ए आत थ तो म उनस )रा)र क�ता था, '' रस का तो आपन हिवघटन कर दिदया न? चीन

को कमजोर )नाकर रखा दिदया न? भारत को कमजोर )ना दिदया न?'' ओसामा हि)न �ादन क पास न कोई ऍटम )म �, न कोई रॉकट �। अगर अमरिरकन नौकरशा�ी भर} न�ी � तो जिजसन व�ा �म�ा

हिकया, उस सारी )ात कस मा�म हई? तो आप अपनी कमजोरी न�ी दखत। अमरिरका म आज तक कोई का�ा आदमी राषटरपहित कयो न�ी हआ? अमरिरका म कोई महि��ा राषटरपहित कयो न�ी हई? इग�ड म व�ा का जो राजा �ोता �, जो रानी �ोती �, व� राजय का परमख भी �ोता � और चच का भी परमख �ोता �। कया व� धमहिनरपकष दश �? कस धमहिनरपकष दश � व�? अगर व� धमहिनरपकष �, तो

आयर�ड म परोटसटट या कथोलि�क का यदध कस च�ता आ र�ा �? धमयदध तो यरोप म हआ न! न जान हिकतन वष¾ तक य� �ोता र�ा। और आप क�त � हिक भारत म मज�)ी दग �ोत �ी र�त �। �ोग सच )ो�ना तो सीख। तभी गाधीजी को समझग। य� स) �मम �ीनता की भावना भरन क लि�ए हिकया जाता �। गाधीजी म आतम)� इतना था, इतना

आतमहिवशवास था हिक उन�ोन इस परचार को नकार दिदया। मझ याद आता �, सवागराम म वधा स कोई आदमी गाधीजी स धिम�न आया था। उसन क�ा, ' अमक आदमी मझको )हत गालि�या दता �। म कया

कर, )हत परशान ह।' तो गाधीजी न क�ा, ' तम गालि�या �त कयो �ो, व� ज) गा�ी दता �, तो तम सनत र�ो, मसकरात र�ो। उसक )ाद उस अचछी धिमठाइया खिख�ाओ। उसक पास गालि�या �ौट

जायगी।' उसन क�ा, ' व� कस?' उन�ोन क�ा, ' ऊपर थककर दखो।' थक उसक �ी म� पर प�टकर हिगरा। तो गाधीजी इतन वयाव�ारिरक थ। आप ज) गालि�या न�ी �ग तो व� कया करगा? व� तो

इसीलि�ए न ऐसा करता � हिक �म गससा �ो। ज) गससा हिकया तो �म इनसाहिनयत स हिगर गय। तो गाधीजी न )गर हिकसी भदभाव क पर मानव- समाज को इनसान )नाना चा�ा। जिजस दश म व पदा हए,

उन�ोन उस भारत को ऊपर उठान क लि�ए कोई भदभाव न�ी हिकया। �म उस रासत पर च� तो न! स)को सचचाई क रासत पर च�न स कौन रोकता �? गाधीजी भौहितक हिवकास या परिरवतन क हिवरदध न�ी थ। �हिकन फक सतो न )रा)र समझाया �। गौतम )दध को आप जानत �। उनक लिशषय आनद एक )ार उनक पास चार- पाच आदधिमयो को � गय हिक य तो �मारा उपदश सनत �ी न�ी। उन�ोन आदश दिदया ' इन आदधिमयो को

न��ाओ।' उन� न��ाया गया, साफ- सथर कपड प�नाय गय, अचछा भोजन कराया गया। उन चार- पाच आदधिमयो न �ाथ जोडकर क�ा - 'तथागत! अ) म आपका उपदश सनना चा�ता ह।' य�

दधि}कोण � न! �मन स) चीजो को एकदम याहि6क )ना दिदया �। सन 1964 म ज) म इग�ड म था तो व�ा कई सक� दखन क लि�ए गया, यहिनवरथिसटी भी दखन क लि�ए गया। उस वकत टी.वी. शर- शर

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म च�ा था। जो टीअवीअ क समथक थ, व क�त थ हिक इसस लिशकषा का सतर सधरगा। तो म क�ताथा, )चच ज) कोई सवा� पछग तो उसका जवा) टीअवीअ दगा कया? मानवीय समपक अगर आप

धिमटा दग तो इनसाहिनयत खतम �ो जायगी। इस )ात को गाधीजी न जिजतना समझा, दहिनया क हिकसी हिवदवान और हिकसी हिवशषजञ न न�ी समझा। �म भारतीयो क लि�ए य�ी सतय � हिक �म गाधीजी क रासत

पर च�ना �। य�ी �मार हिवकास का रासता �, सार ससार क हिवकास का सचचा रासता �। गाधीजी की वज� स �ी आज भारत का �ोकत6 सरततिकषत �। सन 1947 की '�रिरजन' पहि6का आप

�ोग पढ ग तो दखग हिक मदरास म त) अनाज की )हत कमी थी। सन 1942-43 म )गा� म अका� पडा तो उसम 50-52 �ाख आदमी मर गय। अगरजी राजय था न? कयो ऐसा हआ! अ) उसी दश म आज इतना अनाज � हिक रखन की जग� न�ी। �मार गावो की सडक खरा) �, हि)ज�ी न�ी, सक� की �ा�त खरा) � तो भी गाववा�ो म अपन दश क परहित परम �। अनपढ �ोगो म इतना दश- परम � तो

हि�नदसतान क उन पढ- लि�ख �ोगो म, जो मम)ई व दिद\�ी म र�त �, दश- परम कयो न�ी �? �मको सोचना चाहि�ए। अनपढ द�ाती हिकसानो न अनाज, फ�, सबजी, दध स भारत का भडार भर दिदया,

पढ- लि�ख भी ऐसा कयो न�ी करत? गाधीजी न जो रासता )ताया, उसका एक उदा�रण म आपको द र�ा ह। सन 1914-15 म दश क

स)स धनी आदमी टाटा थ और दसर थ घनशयामदास हि)ड�ा। घनशयामदास हि)ड�ा क�कCा म गाधीजी स धिम�न क लि�ए गय। उन�ोन क�ा, 'घनशयामदास! तम म�ीन म अपन ऊपर हिकतना खच

करत �ो?' उन�ोन क�ा, ')ापजी! 1500-1600 रपय म�ीना।' उन�ोन क�ा, ' दसरी )ार धिम�न क लि�ए क) आऊ?' )ाप न क�ा, ' त) धिम�न क लि�ए आना, ज) तम�ारा खच 150-200 रपय म�ीना

�ो।' एक आदमी, जो उनकी )ात सन र�ा था, )ो�ा ')ाप! आपन 150-200 रपय कयो क�ा? 15 रपय कयो न�ी क�ा?' )ाप न जवा) दिदया, ' म हि)ड�ा को जिजदा रखना चा�ता ह। काम करन �ायक रखना चा�ता ह। अगर 1500 रपय स 15 रपय तक आ जाय तो व� जिजदा र� पायगा कया?'

घनशयामदास हि)ड�ा न अपन ससमरण म )ाप का जो वणन हिकया �, व� पढन- �ायक � ।

गाधीजी क आदो�न म राजा- म�ाराजा तो न�ी शाधिम� हए न! साधारण जनता शाधिम� हई। उन�ोन त�वार न�ी उठायी। और य� दश आजाद �ो गया। तभी य� दहिनया का स)स )डा �ोकत6 �। गाधी

का असर न�ी �ोता तो य� �ोकत6 न�ी र�ता। इतना �ोन पर भी �ोगो को अपन ऊपर कयो शम मा�म पडती �? आपन दखा �ोगा, दश क परधान म6ी ज) )ो�त �, तो उनक पीछ गाधी की तसवीर

र�ती �,   गो�व�कर की न�ी। कयो व गाधी की तसवीर रखत �? इसलि�ए हिक अगर �म   कछ ग�ती करत �, तो �मारी आतमा �म कचोटती � हिक तम उस आदमी का हिवसमरण कर र� �ो, जिजसन अगर चा�ा �ोता तो )ड-स- )डा पद � सकता था। ज) ' यनाइटड नशनस' की सथापना हई थी तो ससार क नता चा�त थ हिक गाधीजी व�ा जाकर र� और ' यनाइटड नशनस' क सकरटरी जनर� स)स प�� व )न। कयो? सोलिचए, ऐसी भावना त) थी, पर आज कया �? च�त- च�त �म क�ा � आय गाधीजी क उस भारत को!

जिजनना सा�) को ज) क सर �ो गया और उन� पता च� गया हिक व )चनवा� न�ी � तो उन�ोन लि�याकत अ�ी खा स क�ा, ' तम जवा�र�ा� क य�ा जाओ, म�ातमा गाधी स मलाकात का कायकरम

)नना चाहि�ए, म उनस अपनी ग�ती क लि�ए माफी मागगा। म इस �ायक न�ी ह हिक जाकर उनक सामन खडा �ोऊ। म\क एक साथ धिम�कर च�' । जिजनना सा�) )च न�ी। लि�याकत अ�ी खा को मार

दिदया गया। दहिनया की राजनीहित �ी ऐसी � हिक भारत और पाहिकसतान का जो भी नता हि�द- मस�मान क )ीच भाईचारा )नाना चा�गा, उसकी �तया करवा दी जायगी। दख �ीजिजए, जवा�र�ा� )च गय,

åाकी �ोगो की कया �ा�त हई। �ा� )�ादर शास6ी ताशकद गय थ और व�ी र� गय थ। इदिदरा गाधी की �तया �ो गयी, राजीव गाधी की �तया �ो गयी। कयो ऐसा �ोता �? जिजन�ोन कछ हिकया न�ी, व

आराम स आइसकरीम खात �, उन पर कोई खतरा न�ी   आता। उसी तर� स पाहिकसतान म लि�याकत

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अ�ी खा स �कर जनर� मशरफ स प�� तक जिजतन �ोग हए, या तो दश क )ा�र उनको र�ना पड र�ा � - )नजीर भटटो �ो या नवाज शरीफ - या उनकी गदन काट दी गयी �।

इराक स अमरिरका का कया झगडा �? हिकस )ात का झगडा �? य� �डाई इसको- उसको या आतकवाद का समापत करन क लि�ए न�ी की जा र�ी �। मधय एलिशया का त� चाहि�ए, इराक का त�

चाहि�ए। दहिनया की सारी खहिनज सपदा �मार �ाथ म र�, धिम�हिकयत �मार �ाथ म र�, �म उसक मालि�क र�। इसीलि�ए )रा)र म य� क�ता ह हिक य� भमणड�ीकरण न�ी �, जिजस �म हिवशव- )धतव

क�त �, व� न�ी �। य� )ाजारवाद �। उसम धनी दश और धनी �ोग, धनी दशो म जो धनी �, व और धनी �ोग। अमरिरका म धनी �ोग और धनी �ो गय �। गरी) और गरी) �ो गय �। हिकसान जो

अनाज पदा करता �, उसकी कीमत एक चौथाई स भी कम �ो गयी � और अमीर दश जो सामान )नात �, उनकी कीमत चार गना स जयादा �ो गयी �। य� जो असतलि�त अथवयवसथा �, य� दिटक

न�ी सकती। दहिनया म य� जो सकट आया �, व�ी � वतमान हिवसगहितया - जिजस वयवसथा म �म च� र� �, उस वयवसथा म हिवनाश क अ�ावा और कछ � �ी न�ी। अमरिरका म जो �म�ा हआ, उसकी

वज� स दस �ाख आदमी )रोजगार �ो गय। )डी- )डी कपहिनया ( जस एनरॉन) असफ� �ो गयी। दहिनया की स)स )डी कपनी ' आथर एडरसन चाटड एकाउटिटग' असफ� �ो गयी। हिकतनी कपहिनयो क

नाम )ताऊ। यनाइटड एअर�ाइनस का य�ी �ा� �। य�ा भारत म य.टी.आई. का दिदवा�ा हिपट गया। न जान हिकतन कारखान व�ा - य�ा )द �ो गय! य� द: ख की )ात �। इस �म

समझना चाहि�ए। इस हिवसगहित को �म दर कर सकत �। टकनॉ�ॉजी स न�ी, अपन दधि}कोण को )द�कर। तो )द�न का कया? गाधीजी का दधि}कोण था हिक इनसान को इनसान समझो। उस ऊपर उठाओ, उस ग�

�गाओ। �म जस- जस जयादा धनी �ोत जात �, जस- जस पढत जात �, वस- वस �मारी जाहि�लि�यत )ढती जाती �, �मारा कससकार )ढता जाता �। �मार गाव म �मार घर क दोनो तरफ एक ता�ा) था। दसरी तरफ मस�मान र�त थ। कभी य� सवा� �ी न�ी पदा �ोता था हिक एक दसर क य�ा खाना खान स �मारा धम भर} �ो जायगा। साठ वष प�� य� सवा� न�ी पदा �ोता था। आज य� सवा� पदा �ो गया �, व� )डा गभीर �। य� दीवार गाधीजी की मानवतावादी भावना स हिगरायी जा सकती

�। सरकार का सवरप जिजतना भी )द�ग, आरथिथक नीहितयो का सवरप जिजतना भी )द�ग, उसस कछ न�ी �ोगा। �म मनषय क दिदमाग का सटरकचर )द�ना पडगा। गाधीजी जसा वजञाहिनक सिचतक ससार म पदा न�ी हआ। उन�ोन अपनी आतमकथा का नाम कया रखा? - ' सतय क परयोग' । ऐसा कोई आदमी

अपनी आतमकथा का नाम रखता �? परयोग हिकया उन�ोन। सारी चीज उन�ोन �मार सामन रख दी हिक तम भी परयोग करो। और नतीजा दखो हिक स�ी हिनक�ता � हिक न�ी। आप हिकसी हिवजञान की

परयोगशा�ा म जाइए, कधिमसटरी की परयोगशा�ा म जाइए। )ताया जाता � हिक य� धिम�ाओ, व� धिम�ाओ। व� तो परयोग करक दखन की चीज �।

दहिनया म ऍटम )म अमरिरका न )नाया और अमरिरका न जापान पर हिगराया। उसक )ाद भी व क�ग हिक ससार का स)स खतरनाक हि�ससा भारत और पाहिकसतान �। अजी) )ात �। मन न जान हिकतन �ोगो

स क�ा, ' नागासाकी पर आपन )म हिगराया। आतकवादिदयो को आप श� द र� �।' कयोहिक उनका आरथिथक हि�त इसम �, राजनीहितक हि�त इसम �। सारी राजनीहित पस क लि�ए �। �र धम म, �र मज�)

म, धन को भगवान क रप म पजन को मनषय का पतन )ताया गया। और इस पतन क रासत को छोडकर अगर �म स�ी रासत पर च�ना चा�ग तो गाधीजी क रासत को छोडकर और कोई रासता न�ी।

दहिनया को हिवनाश स )चान क लि�ए और कोई रासता न�ी �, कोई मस�मान का रासता न�ी �, न व� बराहमण का रासता �, न �रिरजन का रासता �। व� इनसान का रासता �। इनसाहिनयत क रासत पर �म

च�। �म इनसाहिनयत क रासत पर च�ग तो आग का रासता �मको और साफ दिदखायी दगा और पररक दिदखायी दगा। जिजनदगी म जयादा अमन- चन आयगा, )�ार आयगी। �म जयादा सखी जीवन वयतीत  कर सक ग। सन 1971-72 म ज) म उदयोग म6ा�य म था, अहितलिथ क�त थ, चाय म चीनी न�ी �ग,

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डॉकटर न मना हिकया �। तो म मजाक करता था हिक एक अर) रपया जो आपका )क म जमा �, उसका कया करग आप? न आप कछ खा सकत �, न पी सकत �। जमा करत जा र� �, य� भी एक )ीमारी �। उसी तर� स दसरी )ीमारी य� � हिक �म दसरो को सखी न�ी दखना चा�त �। दसरा ज)

सखी � तो आपको कयो क} �ोता �? अमरिरका भ� �ी आसमान क ऊपर च�ा जाय, �हिकन भारत अगर ऊपर जाता � तो आपको कयो क} �ोता �? हि�नदसतानी और पाहिकसतानी अगर धिम�कर र�त �

दो भाई की तर� तो आपको कयो क} �ोता �? आपको परसनन �ोना चाहि�ए न? गाधीजी का क�ना � हिक तम अनभव करो। जो म क�ता ह, व� यदिद स�ी � तो उस रासत पर च�ो और उस रासत पर ज) तम च�ना शर कर दोग तो तमको रासता खद धिम�गा। थोडा भी अगर आदमी धम पर आचरण करता

�, तो )ड- )ड भय स मकत �ो जाता �। य�ी गाधीजी का रासता �। इसस सर�, इसस सीधा, कोई दसरा रासता न�ी �ो सकता। �मार आधहिनक जीवन म आधहिनकता क नाम पर, धन की पजा करन क

नाम पर, जो हिवसगहित आ गयी �, उस हिवसगहित को दर करन का और कोई रासता न�ी �। अगरजी म एक क�ावत �, अगर म�ममद का उपदश सनन क लि�ए प�ाड न�ी आयगा तो व प�ाड क पास

जायग। तो गॉधीजी जा र� � सारी   दहिनया म अपनी )ात सनान क लि�ए। गाधी और हिवशव मानवतावाद का सव�डॉ. सतयनदर शमा' मन खोजा अपनी आतमा को

उस म न�ी दख पाया मन खोजा अपन परमशवर को

ओझ� र�ाव� भी मरी दधि} स मन खोजा अपन भाई को और मन पा लि�य य तीनो -

आतमा, परमशवर और भाई।'1 यदिद कहिवता अनभहित और भावनाओ का स�जोदरक � तो )ा)ा आमट की लि�खी इन पलिकतयो को हिकसी

समरषिपत समाजसवी की परामाततिणक अनभहित मानन म �म कोई आशका न�ी �ोनी चाहि�ए, जिजसम वसाफ- साफ क�त � हिक आतमा की खोज और परमशवर की लिसजिदध का माग मनषय की सवा क जरिरय �ी

ख�ता �। मानवीय सवदना की परसार- परिरधिध जिजतनी वयापक �ोगी, आतमा और परमशवर की खोज का माग उतना �ी परशसत �ोगा।

मनषय और मानव अततिभधान क साथ 'ता' परतयय का �गना वयलिकत मन की आकलकिसमक और अनजानी च}ा का परिरणाम न�ी �, )लकि\क य� वयलिकत- चतना का सायास परहितफ� �, जिजसकी अततिभवयलिकत लिचनतन और भाषा क सतर पर हई और तदनरप व� मनषय की कम- च}ा म दिदखायी पडन �गी या वयलिकत की

सकारातमक कम- च}ा को रपाधियत करन क लि�ए 'मानवता' शबद अलकिसततव म आया, क�ना मलकिशक� �; हिकनत य� क�ा जा सकता � हिक य� सजञा भी उन असखय रचना- हिवधानो म स एक �, जो मनषय क

ससकारिरत मन का साकषय दती � और इस )ात की पधि} करती � हिक मनषय परकहित म जनम �ता � औरचतना- समपनन �ोन क कारण हिवकहित की पाशहिवक गफा म न जाकर ससकहित- हिनमाण की च}ा म �गा

र�ता �। यदिद मर इस कथन स जातीय चतना की अ�ममनयता धवहिनत न �ो तो म हिवनमरत इस तथय को रखाहिकत करना चा�ता ह हिक गाधी को जो धरा- धाम जनमत परापत हआ था, उसकी लिचनतन- धारा की कनदराr य परिरधिध म न लिसफ मनषय �, )लकि\क मनषय क रप म जनम �न क अततिभपराय की प�चान और उसक सभावय उतकष को �कर ग�री और सकषम लिचनता वयकत धिम�ती �। य�ा तक हिक मतय क )ाद अदशय

मोकष - जिजस मनषय की एक लिचC- वततिC दिद� क )��ान का अचछा खया� 2  मा6 मानती र�ी � - और जनम जनमातरवाद क हिवशवास क कारण सदकाय की कसौटी �ी मनषय- जीवन की साथकता र�ी �।

इसलि�ए य� अकारण न�ी � हिक मनषय क रप म जनम �न को हिवधिध का एक शरषठ उप�ार - न

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मानषात शरषठतर हि� हिकलिचत - मानकर उसकी जीवन- परणा�ी क मानक तय हिकय गय � और उसस शरषठतम हिकय जान की अपकषा वयकत की गयी �। क�ना न �ोगा, जीवन- परणा�ी क मानक कमोवश

मानवतावाद क �ी उपादान �। गाधी ईशवरवादी थ। उनको उसकी परम सCा पर अगाध हिवशवास था; इस सीमा तक हिक ' भगवान की इचछा क हि)ना घास का एक हितनका तक न�ी हि�� सकता।' और तो और, व राषटर और समाज- जीवन म

आनवा�ी आपततिCयो को मनषयो की द)�ता या उनक दषकम¾ का परिरणाम मानत थ। )जिदधवाद की कसौटी पर गाधी की इस तर� की मानयताए उन� रदिढवादी क��ान क लि�ए पयापत �, हिकनत गौर करन

की )ात य� � हिक य� मानयता उन� न तो अकमणय )नाती � और न �ी हिनशच}, )लकि\क इसका मत परहितफ� व आतमशजिदध की पररणा क रप म पात �। व क�त � -

' म समझता ह हिक जिजस तर� गर�ो की गहित हिनयम क अनसार �ोती �, उसी परकार य हिवपततिCया भी हिनयम)दध हआ करती �। पर इन हिनयमो का �म जञान न �ोन क कारण �म उन� आकलकिसमक समझत �

- इस हिवपततिC क कारण म अधिधक हिवनमर )नता ह। इस आपततिC को दर करन क लि�ए मझ पररणा धिम�ती �। आतम- शजिदध करन की आवशयकता का म हिवशष रप स अनभव करन �गता ह। म भगवान क

अधिधक हिनकट पहच जाता ह। मरा तक शायद ग�त भी �ो सकता �, पर उसका परिरणाम ऐसा �ी �ोता �। तक स ज) आतम- शजिदध की इचछा न�ी �ोती तो उस धमभीरता क�ा जाता �।'3 इस परकार अदशय �ी स�ी, पर उस परम सCा का हिवशवासी यदिद आतम- शजिदध की पररणा न�ी पाता तो व� धमभीर � और ऐसी धमभीरता न तो वयलिकत, न समाज और न �ी हिवशव- क\याण क काम आ

सकती �। गाधी ईशवर को जस अपन हदय म परहितधिषठत कर उस साकषी )नाकर परतयक हिनणय �त थ, ठीक उसी परकार व �ोगो क हदयो म उस ईशवर को परहितषठाहिपत दखना चा�त थ, ताहिक उसक अनदर नहितक भाव का जागरण �ो।

गाधी का ईशवर इस अथ म अदशय, अमत और हिनगण न था, जो अ�ौहिकक शलिकत क स�ार चमतकार करता �ो और समाज क ताप का �रण कर �ता �ो। व अपन आराधय राम- कषण क मानव अवतारी

रप क �ी भकत थ, जो करणा, सवदना, सतयहिनषठा, तयाग, तप, नयाय- आगर�ी और समाज- हि�त क लि�ए सघषशी� आदिद आचारो क पजीभत रप थ। उनक इ} क इस रप को समझ )गर उनक आलकिसतक

मन को न�ी समझा जा सकता, जो उनक मानवतावाद का आधारभत अवयव �। �म इस तथय कोभ�ी- भाहित समझ �ना चाहि�ए हिक गाधी उन�ी अथ¾ म ईशवरवादी थ, ज�ा तक व अपन उदाC काय¾ समनषय- जीवन क उतकष की पररणा )न सक, इसीलि�ए एक ओर ज�ा उनका ईशवर सतय का रप �, व�ी

उनक जीवन क मधयाहन तक सतय �ी ईशवर का पयाय )न जाता �। वासतव म य� उनक सावभौम मानववाद की दिदशा �। कवीनदर रवीनदर क घहिनषठ स�योगी और शानविनत हिनकतन म लिशकषक र�, गाधी क जीवनीकार शरी कषण कप�ानी इसका सटीक हिवशलषण करत �। व लि�खत � -

' ज) उन�ोन पाया हिक ईशवर को सतय क�ना असहिवधाजनक � तो उन�ोन चपक स उस स6 को उ�ट दिदया और क�ा हिक सतय ईशवर �। इसका कोई नालकिसतक भी हिवरोध न�ी कर सकता। गाधीजी क वयलिकततव की य� परमख हिवशषता थी हिक व� स�ी अथ¾ म रचनातमक �ोन क कारण हिनरतर

हिवकासमान था, नय प�� सामन �ाता र�ता था और नय आयाम गर�ण करता र�ता था। व कभी अपन हिपजर क कदी न�ी )न।'4

मानव- हि�त जिजसक लिचनतन का कनदराr य स6 �ो, व� अपन हिपजर का कदी �ो भी न�ी सकता। जीवन और समाज की हिवकासमान परहिकरया और )हहिवध समसयाओ क नय आयामो क साकषातकार क च�त

आधारभत लिचनतन का हिवकासमान, उदार और सवादी �ोना आवशयक �। हिकनत इस परहिकरया म सवाधिधक म�ततवपण तततव � जीवन क हिनमाण- का� की मानलिसक तयारी। गाधी क मानस- हिनमाण म

उनकी मा का सालकिततवक तपपत वयलिकततव, घर का वषणव परिरवश और �दन- परवास क लिशकषण- का� म एडहिवन आन+ कत भगवदगीता का अगरजी अनवाद, )दध क जीवन- चरिरत पर इसी �खक की लि�खी द �ाइफ आफ एलिशया, का�ाइ� की रचना �ीरोज एणड �ीरो वरथिशप म पग)र इस�ाम और एक ईसाई

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धिम6 स परापत )ाइहि)� और �नरी सा\ट दवारा लि�खिखत ए प�ी फार वजिजटरिरयहिनजम की म�ततवपण भधिमका थी। य�ा इस )ात का सकत करना जररी � हिक उनक लि�ए जीवन- दधि} क हिनमाणकता य

दाशहिनक, धारमिमक गरनथ जिजतन म�ततवपण थ, उतनी �ी म�ततवपण थी जीवन क सथ� आचार को हिनरटिद} करनवा�ी शाका�ार की पकषधर पसतक । वासतव म गाधी की मानवतावादी दधि} म य� तथय उ\�खनीय

� हिक लिसदधानत और वयव�ार की जसी एकरसता दिदखायी दती �, उतन �ी छोट या )ड समझ जानवा� हिवषयो पर एक- सी लिचनता, एक- सा म�ततव।

मानव- क\याण क लि�ए वयलिकत क लिचनतन और वयव�ार की उचचतम हिकरयाए ज�ा ससकहित- हिनमाण की दिदशा म एक कदम �, व�ी उनक सकारातमक वयव�ार क छोट-स- छोट काय¾ म भी मानवतावाद की झ�क दखी जा सकती �। तानाशा� और धिम6- राषटरो क )ीच च� र� म�ायदध म भारत की भधिमका पर

धिम6ो स गभीर म6णा क )ीच स उठकर गाधी का )छड की परिरचया म �ग जाना इसी तथय का परमाण �। मानवता की परवततिC क सतरभद न�ी हिकय जा सकत �। उस पारिरवारिरक, परानतीय और राषटरीय खणडो म न�ी )ाटा जा सकता, व� मानव- मन की अखणड और अहिवभाजय सCा �; इसलि�ए मर इस आ�ख क शीषक म मानवतावाद क पव 'हिवशव' शबद का सयोजन हिनरथक- सा �, हिकनत गाधी की चतना क

वततिशवक धरात� पर जोर दन क लि�ए �ी य�ा हिवशवमानवता पद का परयोग हिकया गया �। वयलिकत की पारदरथिशता मानवतावादी �ोन की अहिनवाय शत चा� न �ो, पर वाछनीय तो � �ी। पारदरथिशता

गाधी क वयलिकततव का स)स चमकदार प�� � और इसीलि�ए उनक कछ हिनणयो, वयव�ारो म हिवरोधाभास पा �ना )हत कदिठन न�ी �। दततिकषण अफरीका क उनक सघषका� म ज� हिवदरो� और

)ोअर यदध क दौरान उनका उपहिनवशी गोरो का समथन, स�योग और कागरस अधयकष क रप म चन गय नताजी सभाष )ोस का हिवरोध तथा परदश कागरस परहितहिनधिधयो की सरदार पट� क पकष म सप} राय की उपकषा कर न�र को सवत6 भारत का नततव सौपन की पकषधरता उनक कछ ऐस �ी हिनणय �।

नताजी क परहित हिकया गया उनका वयव�ार तो गाधीजी क परम शरदधा�ओ म भी टीस )नकर जिजनदा �। लिचनतक और गाधीवादी परो. लिसदधशवर परसाद न तो इस अपन ' आसथा परष' की 'हिफस�न'5  क�ा �।

गाधी क कछ और काय- वयव�ार भी परशनाहिकत हिकय जा सकत �; जो अनतत छोट हि)नद क रप म �ीस�ी, उनक मानवतावादी )ड फ�क म दख जा सकत �। इनम स कछ इहित�ास क ततका�ीन

समका�ीन परिरपरकषय म पनरषिवचार क योगय � और कछ अनततोगतवा मनषय की द)�ता क खात म रख जायग। असत!

' वततिशवक दहिनया' क यग म मानवतावाद को �कर य� परशन अधिधक परासहिगक �ो गया � हिक वयलिकत की धारमिमक आसथा, परपरा- )ोध या जातीय चतना, राषटरभलिकत और हिनज भाषा- परम कया मानवतावाद क

आड आत �? गाधी क मानवतावादी दधि}कोण क सदभ म तो य उपकरण अधिधक हिवचारणीय �, कयोहिक इन चारो तततवो का उनक वयलिकततव म न लिसफ सप} समावश �, )लकि\क व इन ससथानो स घोहिषत

तौर पर ऊजा भी गर�ण करत �। गाधीजी क कछ कथन य�ा दर}वय � - 1. 'ईसाई, मस�मान आदिद अनक धम¾ का मथन करन क )ाद भी म हि�नद धम स लिचपका र�ा ह।

हि�नदधम पर मरी शरदधा ददमय �।'2. ' मझ अपन पवजो क धम का �ी पा�न करना चाहि�ए। अपन धम म यदिद म कछ दोष पाता ह तो

मझ उन� दर करक उस धम की सवा करनी चाहि�ए।'3. ' उपहिनषद �म लिसखाता � हिक इस हिवशव का अण- अण भगवान न �ी )नाया �। इस ससार की छोटी-

)डी सभी चीज उसी की � और परतयक वसत उसी को समरषिपत की जानी चाहि�ए।'4. ' अजञात दर}ाओ न जो कछ )ताया �, उसका कछ भाग चार वदो क रप म �मार सामन �। य�

सवाभाहिवक �ी � हिक इन वदो क �म तक पहचत- पहचत हिवततिभनन �ोगो न अपनी- अपनी क\पना क अनसार उनम कई )ात जोड दी �। वदो क काफी समय )ाद एक म�ातमा पदा हआ और उसन �म

गीता परदान की। गीता तततवजञान का म�ासागर �। गीता म )तायी हई )ातो का हिपछ� चा�ीस वष¾ स

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अनकषण पा�न करन का परयतन करत र�न क कारण म छाती ठोककर अपन आप को सनातनी क� सकता ह।' गाधीजी का मानवतावाद (1)

सजना क आधार व अनषग

गाधीजी का मानवतावाद (2) आधारभत कष6

 

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1. ' आज भी भारत को छोड दहिनया क हिकसी भी दसर सथान की अपकषा म �दन म र�ना अधिधक पसद करगा।'2. ' य� उपम�ादवीप मर लि�ए एक पहिव6 और हिपरय भधिम )न चका �, जिजसका सथान मरी मातभधिम क

)ाद �ी �।'' �म सलिशततिकषत समझ जानवा� �ोगो का, जिजन� हिवदशी भाषा क माधयम स लिशकषा धिम�ी �,

जनसाधारण स सम)नध सथाहिपत न�ी �ो सकता।' ( य सभी उदधरण शरी नाअ राअ अभयकर क गरनथ' राषटरहिपता गाधी' क हिवततिभनन पषठो स उदधत हिकय गय �।)

जनसाधारण स जड सकनवा� सवाधिधक तज माधयम को गाधीजी सव�चच पराथधिमकता दत थ। हि�नदी भाषा उनक लि�ए ऐसा �ी माधयम थी, जिजसक जरिरय उन�ोन दततिकषण आफरीका- समत हि�नदसतान

म भी सवत6ता का अ�ख जगाया था। इस सम)नध म परखर मनीषी डॉअ राम हिव�ास शमा का य� आक�न उ\�खनीय � -

' उन�ोन राषटर की धारणा को एक नयी अनतवसत दी। य� अनतवसत जातीयता थी। भारत म अनक भाषाए )ो�ी जाती �। इन भाषाओ क )ो�नवा� �ोग जाहितयो म सगदिठत �। उन� अपन परदश पनगरटिठत करक एकता)दध करन का परा अधिधकार �। अपन परदश म व अपनी भाषा का वयव�ार कर,

अतरपरादलिशक वयव�ार क लि�ए व हि�नदी स काम �। गाधीजी न हि�नदी क लि�ए जिजतना काम हिकया, उतना और स) नताओ न न�ी हिकया।'6 जनवरी सन 1942 म )नारस हि�नद हिवशवहिवदया�य क अपन वयाखयान म उन�ोन त�ग भाषी छा6ो स

जो क�ा, ऐसी सप}ोलिकत गाधीजी क �ी )स की )ात थी - ' मझ य� जानकर खशी हई हिक य�ा आनधर क 250 हिवदयाथ� �। कयो न व सर राधाकषणन क पास

जाय और उनस क� हिक य�ा �मार लि�ए एक आनधर हिवभाग खो� दीजिजए और त�ग म �मारी सारी पढाई का पर)नध करा दीजिजए? और व अगर मरी अक� स काम कर त) तो उन� क�ना चाहि�ए हिक �म

हि�नदसतानी �। �म ऐसी ज)ान म पढाइए, जो सार हि�नदसतान म समझी जा सक। और मरी ज)ान तो हि�नदी �ी �ो सकती �।'7 वासतव म गाधीजी क लि�ए हि�नदी का परशन मा6 भाषा का परशन न था। व� उस राषटर की प�चान और राषटरीयता का परशन था। उनका क�ना था -

' जिजस राषटर न अपनी भाषा का अनादर हिकया �, उस राषटर क �ोग अपनी राषटरीयता खो )ठत �। �मम स अधिधकाश �ोगो की य�ी �ा�त �ो गयी �।'8

गाधी क मानवतावादी दधि}कोण को हिनरमिमत और हिवकलिसत करन म इस �ख म हिवनमरत हिनरटिद} चारो तततव - हि�नद धम क परहित हिनषठा, जातीय परपरा-)ोध, भारत भधिम स परम और राषटरभाषा हि�नदी की परहितषठा और पकष म गाधीजी क हिवततिभनन का�करम और हिवततिभनन �ोगो स हिकय गय सवादो स ऐस सकडो बयौर दिदय जा सकत �, जिजन� भावगत पनरावततिC की आशका स य�ा छोडा जा र�ा �। इन बयौरो म जातीय )ोध और परपरा का गौरव कथन करनवा� तथा आधयातमितमक शबदाव�ी, परतीको, धिमथको आदिद स

समाहि�त उदा�रण भी य�ा न�ी दिदय जा र� �, जो ' गाधी वाङमय' म हिवप� मा6ा म उप�बध � और य परतीक और शबदाव�ी उनकी आतमाततिभवयलिकत �। परशन य� � हिक कया इस सवदशीपन क गौरव क साथ

मानवतावाद क वयापक धम का पा�न हिकया जा सकता �? कया य तततव वयलिकत को सकीण )नात �? और कया इसीलि�ए कछ ऐस )ौजिदधक 9  भी सामन आन �ग �, जो इन�ी कारणो स

गाधीजी की हिवशव मानवतावादी दधि} पर परशनलिचहन �गान का सा�स करन �ग �? हिवचारन की )ात य� � हिक गाधीजी न इन उपकरणो का इसतमा� हिकस रप म हिकया �। धम ज) ससथागत �ोकर मठ का रप धारण कर �ता �, त) अकसर उसक सकीण �ोन की आशकाए )�वती

�ो जाती �, हिकनत ज) व� जीवनचया को अनशालिसत, ससकारिरत करन और आतमपरीकषण का दपण )न जाता �, त) व� एक गहितशी� वयलिकत, समाज और मनषयता क हिनमाण म स�ायक )नता �। सच

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क�ा जाय तो गाधीजी क लि�ए य चारो तततव राषटरीय चतना को जगान और गहितशी� नागरिरक )नान क �ी साधन थ, ताहिक मानवतावाद की जयोहित को परजवलि�त हिकया जा सक।

गाधीजी 'इशोपहिनषद' क जिजस म6 पर �टट थ और जिजस हि�नद धम का सार क�त हए उसकी जसी वयाखया व करत थ, व� उनक मानवतावादी दधि}कोण को वयकत करन का स6 समझा जाना चाहि�ए -

' इस हिवशव म जो कछ भी गोचर �, उसम भगवान समाया हआ �, तयाग करो और उसम सनतोष का अनभव करो, भगवान जो कछ भी तम� द, उसका उपभोग करो - उसी म सनत} र�ो; हिकसी क धन

का अप�रण करन का हिवचार भी मर मन म न आ पाय।'10

' ईशावासयम इदम सवम यतकितकच जगतयाजगत। तयन तयकतन भजीथा: मा गध कसयलकिसवद धनम।।'

वासतव म गाधीजी क मानवतावाद की वयानविपत मनषय स �कर परकहित और जीवधारिरयो तक �। धिम6 �ो या क}दाता, गोरा �ो या का�ा, स6ी �ो या परष, )ा�क �ो या वदध, दशी �ो या हिवदशी, व� हिकसी भी रग या जाहित- समदाय का �ो, व स)क लि�ए अपना हदय खो� कर रख दत �। व त�सीदास क

भलिकतभाव और समपण क काय� थ, इसलि�ए गोसवामी त�सीदास की इन पलिकतयो - ' सीय राम मय स) जग जानी।

करउ परनाम जोरिर जग पानी।।' की भाव- भधिम म उनक मानवतावादी दधि}कोण को समझना अधिधक नयायसगत �ोगा।

गाधीजी क '�रिरजन' म वयकत इन हिवचारो स र-)- र �ोन पर उनक मानवतावाद को उसक हिवततिभनन आयामो म समझन म सीध मदद धिम�ती � -

‘Man's ultimate aim is the realisation of God and all his activities, social, political, religious, have to be guided by the ultimate aim of the vision of God, the immediate service of all human beings becomes a necessary part of the endeavour, simply because the only way to find God is to see him in his creation and be one with it. This can only be done by service of all. I am a part and parcel of the whole and I cannot find him apart from the rest of humanity. My countrymen are my nearest neighbours. They have become so helpless, so resourceless, so inert that I must concentrate myself on serving them. If I could persuade that I should find him in a Himalayan cave, I would proceed there immediately, but I know that I cannot find him apart from humanity.11

गाधी का य� कथन और उनका जीवन- भर का वयव�ार इस )ात का साकषी � हिक व एकानत और अक� �ी मलिकत क आकाकषी न थ। हि�नदी कहिव मलिकत)ोध न क�ी लि�खा � - ' मलिकत अक� न�ी �ोती।

व� �ोती � स)क साथ �ी।' गाधी न इस धारणा को चरिरताथ कर दिदखाया �। व मनषय म दवतव क अनवषक �।

हिवशव- समाज म लिचनता क दो छोर अ�ग- अ�ग साफ दिदखायी पडत �, जिजसम एक ओर पाप करन और परमसCा की कपा का परसाद पाकर मकत �ो जान का माग � तो दसर म इजिनदरय- हिनगर� की साधना स

मन का हिनरनतर परिरषकार और आतमहिववचन कर दवतव की भधिम म पहच पान का माददा �। य� दसरा माग कदिठन और तपपण अवशय �, हिकनत परिरणाम म दवतवमय �ो जान का �।

' आतमा वा अर जञातवय' (उपहिनषद) व �मार चतना गरनथ शरीमदभगवदगीता सहि�त अनक आषगरनथो की पररणा स आतमपरिरषकार की इस सा�लिसक या6ा म असखय �ोग शाधिम� �ोत र�त � और अनतर म

गोत �गाकर परापय दवतव रतन को म�ावीर और )दध )नकर समाज को )ाटत र� �। )दध क ' अपप

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दीपोभव' और आधहिनक यग म शरी अरहिवनद क अहितमानव को पान की च}ा म अनततोगतवा समाज- लिसजिदध का �ी अततिभपराय �। सामी हिववकाननद न अपनी परलिसदध लिशकागो वकतता म जिजस ' एको� )हसयाम' का चतना क सतर पर

शखनाद हिकया और )ाद म उस वयव�ार क सतर पर परहितषठाहिपत हिकया, व� राजमाग हिवशवमानवतावाद की ओर �ी जाता �, जो गाधी की कम- चतना म पग- पग पर साकार हआ �। साराश कथन य� � हिक

मानवतावाद आधहिनक )ौजिदधक समाज की कोई नवयतर उपारजिजत सजञा न�ी �, वरन इस क\पवकष की जड ' उदार चरिरताना त वसधव कटम)कम' म मौजद थी, जो कभी )गा� की खाडी स उठनवा�

चणडीदास क सवर - ' नाई चाई दव, नाई चाई दानव, चाई मानव, चाई मानव चाई मानव' म तो कभी क)ीर क सनदश म हिक ' मोको क�ा ढढ )नद म तो तर पास म' गज �, जिजस अ�ग- अ�ग दश- का� म हिवर� �ोग अपनी अपनी सामथय- भर प\�हिवत - पतमिषपत करत आय �; गाधी इस परपरा की अदयतन कडी और इस सनवा� सवाधिधक सफ� प�रए )नकर मानवतावाद की इहित�ासधारा म आकाशदीप

)नकर खड �।

सदभ सकत :1.   )ा)ा आमट : सवलसिचछक काय और गाधीवादी दधि}, स. ओझा - पषठ 152.   ' �मको मा�म � जननत की हकीकत �हिकन दिद� क )��ान को गालि�) य� खया� अचछा �।' गालि�)3.   राषटरहिपता म�ातमा गाधी : ना. रा. अभयकर, अनवादक : रा. श. क�कर, पषठ 1514.   गाधी : एक जीवनी : कषण कप�ानी, अन. नरश नदीम, पषठ 1205.   आसथा परष : परो. लिसदधशवर परसाद, पषठ 1356.   गाधी, आम)डकर, �ोहि�या और भारतीय इहित�ास की समसयाए, डॉ. रामहिव�ास शमा, भधिमका स7.   व�ी - पषठ 4068.   व�ी - व�ी - पषठ 4419.   दख, जी. डी. सिस� की पसतक Gandhi : behind the mask of divinity10.  राषटरपहित म�ातमा गाधी : ना. रा. अभयकर, पषठ 18211.  Gandhian Humanism - Mohit Chakrabarti, पषठ 23म�ातमा गाधी म�त मानवतावादी थडॉ. मो�लिसन खान

वतमान यग भ� �ी आधहिनकता की चकाचौध स भरा- परा �ो, समपण जीवन- पदधहित आरथिथकता क आधार पर सजिजत �ो, )जिदध का परा)\य �ो, हिवजञान की चकाचौध �ो, भौहितकता का )ो�- )ा�ा �ो; वततिशवक दहिनया म, भमणड�ीकरण, उदारीकरण आदिद हिकतनी �ी उपजीवय हिवचारधाराए �मार समकष �ो,

तो कया �म इस मानव-जीवन- हिवकास क समसत �कषण मान �ग? यकीनन न�ी, यदिद �मार मधय कोई सतय की अनगाधिमक हिवचारधारा का परकाश- पज अथवा यग- नायक अनपलसिसथत �ो। और आज �म ऐस

�ी अभाव क वातावरण क )ीच जी र� �, ज�ा �मारी आसथा हिवशखलि�त � और �म अनासथा, कणठा और तनाव क लिशकार )नत च� जा र� �। वतमान म �म ऐस ददम, भयानक वातावरण म सशहिकत रप स पोहिषत �ो र� �, ज�ा वामपथी हिवचारधारा का इतना परभाव )न गया � हिक �मन उस जीवन- तततव मानत हए भीतर नसो म घो� लि�या �। ऐसी सभयता का हिनमाण हिकया �, ज�ा सवाथ¾ की कषदरता,

वयलिकत-�ाभ- लिचनता और हिवरोध का हिवसफोट सर�ता स द}वय �। ऐस दःस� और हिवपरीत वातावरण म �म जीवन जीन की रा� सझाती � - गाधी लिचनतनधारा। आज भ� �ी गाधीजी क वयलिकतगत जीवन को �कर या उनकी हिवचारधारा क परिरपरकषय म हिवरोध क ऊच सवर उभर आय �ो, परनत हिवरोधो क )ीच उनका आदश रप, म\यवादी दधि}, नहितक जीवन और वयलिकततव

यग- सनदभ म परासहिगक और आवशयक �ी न�ी, )लकि\क अहिनवाय )न गया �। गाधीजी क सनदभ म यदिद

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धयानपवक हिवशलषण हिकया जाय तो आधारभत रप स एक म�ततवपण तथय दधि}गोचर �ोता � हिक व म� रप म मानवतावादी �ी थ। इसी मानवतावादी लिचनतन की भधिम पर उन�ोन अपन नहितक दशन का

हिनमाण हिकया। उनक नहितक दशन क परमख आधार आलकिसतकता, तयाग, सहि�षणता, सवा, नहितकता, कतवय, आतमदशन, तप, समतव, सतय, अहि�सा, परम और पारदरथिशता थ। उनक जीवन की स)स

म�ततवपण हिवशषता य� क�ी जा सकती � हिक व सदधानविनतक रप स कभी दाशहिनक न�ी थ या उन�ोन कभी लिसदधानतो की प��- प�� सजना न�ी की, )लकि\क ज) भी उनकी अनतरातमा न हिकसी भी

परिरलसिसथहित म जसा सतयाभास पाया, व� वयाव�ारिरक रप म जीवन म �ाग करत गय, पीछ लिसदधानतो का सवत हिनमाण �ोता गया। इसीलि�ए उन� लिसदधानतवादी कम और वयव�ारवादी अधिधक क�ा जा सकता �। वतमान म �म इसी कथनी और करनी क अनतर को प�चानकर च�ना �ोगा। आज चारो ओर

वयलिकत �ा�ाकार मचाता हआ )ाव�ा हआ जा र�ा � और कव� उपदशक की भधिमका क रप म अनयो क लि�ए उपदश-भणडार- हिवतरक )ना हआ �। व� अनयो म परिरवतन चा�ता �। ऐसी लसिसथहित अवशय

हिदवतीय शरणी की �ी माना जाएगी, कयोहिक परिरवतन सवय स प�� �ोना चाहि�ए। गाधीजी का जीवन और वयलिकततव इस )ात का सतय परमाण � हिक व कभी उपदशक न�ी )न, वरन सवय को

वातावरणानसार सकारातमकता एव रचनातमकता की ओर � गय। उसी क परभाव स जनसमदाय म रचनातमक परिरवतन आया। आज उनक समान एक� मौन सजनातमक साधना की अतयत आवशयकता

�। व �म अपन हिकसी भी काय क परहित गभीरता, आतमानशासन और सतय क परहित दढ आसथा लिसख�ात �। उनका समपण जीवन सतय स अततिभभत था। व अहितम रप स सतय को सव�परिर मानत हए सतय क पथ

पर च� और सतय म �ी समाहि�त �ो गय। गाधीजी की जो उप�लकिबधया आज �मार समकष �, व मा6 उनकी उप�लकिबधया न�ी क�ी जा सकती �, व उनक भीतर लिछप सतय- )� का शभ परिरणाम �। आज मनषय को ऐस सतयाभास की आज क यगीन सनदभ म ग�न आवशयकता और अहिनवायता �, कयोहिक

य� मा6 वयलिकत का सतय न�ी �ोता, यग- सतय �ोता � और जो यग- सतय �ोता �, व� आग च�कर आदश क रप म परिरणत �ो जाता �। गाधीजी आदश की ओर �ी उनमख थ और उनकी सामाजिजक सरचना की सक\पना म य� आदश समाजवाद क रप म हिवकलिसत हआ था। उन�ोन सतय और अहि�सा

क लिसदधानतो को आधार )नाकर समाज क नवहिनमाण की परिरक\पना की। व हिवशदध रप स राजनीहितक हिवचारक न थ, )लकि\क सचच कमयोगी थ। उन�ोन न तो हिकसी वाद की रचना की ओर न �ी हिववचना की।

उनका शस6 'सतय' था, व� उन� जिजस हिकसी रप म पररिरत करता गया, व उस ओर आसथावान एव दढ हिनशचयी �ोकर अगरसर �ोत गय। इसलि�ए उन�ोन 'सतय' और 'अहि�सा' को राजनीहित का भी आधार )नाया। उनका मानना � हिक राजनीहित म नहितकता का �ोना अहिनवाय �, साधय और साधन दोनो पहिव6

�ोन चाहि�ए। नीहितशास6 को राजनीहित और अथशास6 स व उचच समझत थ। राजनीहित को धम स जोडकर भी व दखत थ। इस सम)नध म व मानत थ हिक " जो राजनीहित धम स हिव�ीन �, व� मतय-जा�

क त\य � और आतमा को पतन क गत म धक�ती �।'' व सप} शबदो म क�त � हिक " मरी सतय-हिनषठा �ी मझ राजनीहित क कष6 म � आयी � और म तहिनक भी सकोच हिकय हि)ना पण हिवनमरता क साथ क�

सकता ह हिक जो य� क�त � हिक धम का राजनीहित स कोई सरोकार न�ी �, व धम का अथ �ी न�ीजानत।''

आरथिथकता क परिरपरकषय म व अतयत सयत �ोकर सिचतन करत थ। उनका आरथिथक सिचतन सामयवाद का ससकरण न�ी था, वरन व सामयवाद की समसत भौहितक आवशयकताओ की परषित क हिवरदध

आवशयकताओ को सयत करन व उलिचत उपभोग पर )� दत �। व शरीर- शरम की म�Cा क परहितपादक�, जिजसका उतपादन- परिरणाम वग�ीन समाज का हिनमाण कर सकता �। इस कष6 म व आतमहिनभरता

को आधार रप म चनकर इचछाओ क सयम पर )� दत �। गाधीजी का आरथिथक हिवचार सव�दय पर आधारिरत था, जो उपयोहिगतावाद क सिचतन स म� न�ी खाता और वतमान सिचतन उपयोहिगतावाद क

आदश को �कर च�ता �। )लकि\क सव�दय स)का उदय चा�ता �, अधिधकतम क\याण क आदश की

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भावना रखता �। परहि�त क लि�ए जीवन जीन का शभ सदश दता �। टरसटीलिशप म उनका अकाटय हिवशवास �। इस आधार पर व य� न�ी चा�त हिक पजीपहितयो की उपकषा की जाय, उन� )हि�षकत हिकया

जाय। उसक सथान पर हिवशवसत- मड� (टरसट) )ना दिदया जाय, जिजसस दो�र �ाभ हिवकलिसत �ोत �। पजीपहित समाज स जडता � और उस हिवशवास )ना र�ता � हिक व� पजी का सवामी भी �। जो मनषय

अपनी जीहिवका स अधिधक सगर� करता �, व� उनकी दधि} म चोरी �। इसलि�य व धन का समाज क हिवकास क लि�ए उलिचत हिवतरण पर )� दत थ।

उनक जीवन क आधार- रप म 'सतय' और 'अहि�सा' पण आसथा क साथ हिवदयमान �। व 'सतय' को ईशवर का पयाय मानत थ और उसकी लिसजिदध क लि�य व एक मा6 उपाय 'अहि�सा' को �ी सवीकार करत

थ। उनक आशय स अहि�सा का सवरप ऐसा वयव�ार, जिजसम हि�सा का स�ारा न लि�या जाय, मन, वचन, कम आदिद सभी पर �ाग �ोना चाहि�ए। इस स)ध म व क�त � - ' हिवशव क समसत जीवो स परम

करो। धरती पर हिनमनतम कोदिट का पराणी भी ईशवर का परहितरप �, इसलि�ए व� तम�ार परम का अधिधकारी �।'' उनक अनसार सकारातमक पकष क अनरप अहि�सा व� लिसदधात या नीहित �, जिजसम

अपन हिवरोधी को परम स जीता जाता �, घणा या �डाई स न�ी। गाधीजी की दधि} म हिकसी को क} पहचान का हिवचार या हिकसी का )रा चा�ना भी हि�सा �। य� स) मा6 उनक लि�ए लिसदधानत �ी न�ी थ,

वरन उन�ोन भारत की सवत6ता क लि�ए इन�ी शस6ो का परयोग कर भारत क सवत6ता- आदो�न म एक राजनीहितक लिसदधानत क रप म अपनाया और इसकी शलिकत को परमाततिणत भी हिकया। उनकी इस लिशकषा

का अथ � - 'अहि�सा' हिन)� वयलिकत का आशरय न�ी, )लकि\क शलिकतशा�ी का शस6 �। इसलि�ए य� हिवरोधी स डरकर प�ायन �ो जान की लसिसथहित भी न�ी �, अतयाचार क हिवरदध नहितक दधि} स हिवजय की

परानविपत �। समका�ीन परिरलसिसथहितयो म अहि�सा का म�ततव और भी )ढ गया �। गाधीजी क अनयायी एव अमरीकी अशवत नता मारटिटन �थर हिकग क शबदो म - " आज क अतयनत हिवनाशकारी अस6ो क यग म

�मार सामन दो �ी रासत � - या तो �म अहि�सा को अपना � या हिफर अपन अलकिसततव को �ी धिमट जानद।''

गाधीजी न वग�ीन और राजय�ीन समाज की सक\पना की थी, जो हिक �म उदाC चरिर6 क )� पर परापत �ो सकती �। व राजय की अवधारणा को आवशयक )राई क रप म सवीकारत थ। इसलि�ए उन

पर अराजकतावादी �ोन का आरोप भी �गाया गया। परनत उनकी परिरक\पना एक ऐस सदर समाज- हिनमाण की थी, ज�ा वयलिकत सचचरिर6 स आप�ाहिवत �ो तो राजय- परशासन की आवशयकता �ी न र�

जाय। वयलिकत क अनशासनातमक वयव�ार क लि�ए व )ाहय )� क आरोपण को परहितगामी मानत �। उसक सथान पर व आतमितमक- नहितक उतथान को म�ततव दत �। यदिद वयलिकत भीतर स )द�गा तो �ी उसका वासतहिवक हिवकासातमक परिरवतन सभव �। और ऐस आदश समाज म राजय- शलिकत की कोई

अहिनवायता �ी न �ोगी। इस तर� व नहितक वयलिकतवाद क समथक थ। वासतव म गाधीजी नहितक म\यो क पर)� समथक थ। उनक मानवतावाद की वयानविपत मनषय स �कर परकहित और जीवधारिरयो तक �। धिम6 �ो या क}दाता, गोरा �ो या का�ा, स6ी �ो या परष, )ा�क �ो

या वदध, दशी �ो या हिवदशी, व� हिकसी भी रग या जाहित- समदाय का �ो, व स)क लि�ए अपना हदय खो� कर रख दत थ। व त�सीदास क भलिकत- भाव और समपण क काय� थ, इसलि�ए गोसवामी

त�सीदास की पलिकतयो - " सीय राम मय स) जग जानी। करउ परनाम जोरिर जग पानी'' की भावभधिम म उनक मानवतावादी रप क दशन �ोत �। उन� एक राजनीहितजञ, दाशहिनक, नहितकतावादी - अधिधक न

मानकर अगर म� रप म मानवतावादी �ी माना जाय तो नयायसगत �ोगा। वतमान म भी �म सतय की अनगाधिमक हिवचारधारा क परकाश- पज और यग- नायक की आवशयकता एव अहिनवायता �। इस सनदभ

म गाधीजी क वयलिकततव और सिचतनधारा क अहितरिरकत �मार समकष कोई और ठोस हिवक\प �ो �ी न�ी सकता �। 

गाधी-लिचनतन : शाशवत पररक शलिकतडॉ. उमा शक�

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मानववादी म\यो क परहितषठापक म�ातमा गाधी आधहिनक भारत क जनक �, राषटरहिपता �। राषटरीय आनदो�नो क तीन दशको तक �म उनक पररक मागदशन, सफ� नततव एव मानवतावादी जीवन- म\यो

का पाथय धिम�ता र�ा �। उन�ोन अपनी कथनी और करनी स हिवशव- मनीषा को दर तक आदोलि�त हिकया �। पर हिवशव म 'सतयागर�' गाधी- लिचनतन का परथम आहिवषकार माना गया �। अहि�सक आदो�न उनका

दिदवयास6 था, जिजसका आहवान करक अनको )ार उन� अहिवसमरणीय सफ�ता धिम�ी थी। रवीनदरनाथ टगोर न क�ा �, ' ज) कोई न आस त) एक�ा च�ो र।' उन�ोन अक� �ी सतयागर� क हिवकट पथ पर

च�कर अपन अनयाधिययो को सहि�षणता और स�योग स उनकी शलिकतमCा को जगाया था, अपन'दशन' एव अनभवो को परहितधिषठत हिकया था। वासतव म उस यग म गाधी- लिचनतन पश- )� क लि�ए एक

चनौती था। गाधी- लिचनतन को शाशवत पररक शलिकत मानना जररी �, कयोहिक इसी को पश- )� क सामन एक चनौती क रप म ज) �म मानत � तो उसका एक कारण य� भी � हिक पश- )� ससार म कभी खतम न�ी �ोता। उस खतम करन क लि�ए गाधी- लिचनतन क म�ाधार सतयागर� एव अहि�सा क शस6

आवशयक �ोत �। ऐसा भी न�ी � हिक य दोनो शस6 'अहि�सा' और 'सतयागर�' सवत6ता- परानविपत क लि�ए मा6 यदध- आयध थ। व उनकी नीहित क पररक आधार भी थ। भारत की आजादी क लि�ए यदध न कर यदध का इतना सरमय तरीका मानव- सभयता क इहित�ास म इसस पव अहिवदिदत था। इस दधि} स य�

सिचतन- हिवचारधारा कव� भत या वतमान क लि�ए �ी उपयोगी न�ी �। य� हिवशव- जीवन का शाशवत म\य �। भहिवषय क लि�ए भी मानव- क\याण का म�ाधार �। इस �म एक म�ापरष या नता का लिचनतन �ी न�ी मानत, य� एक सनत और ऋहिष का लिचनतन � - व परकहित क म�ापरष थ, जिजनकी सारी परजञा

समाज क शानविनतपण परिरवतन, समानता एव नयाय- सथापन क उपायो म परवC थी। गाधीजी का जीवन- दशन हिवशदध धम- पररिरत था, व� धम भी मानव- सवा एव मानव- क\याण स अततिभपरत

था। गाधीजी की आतमकथा का नाम भी ' सतय क परयोग' �। उनकी सतय- परयोगशा�ा म मानव क उतथान क लि�ए सभी परयोग सफ� र�। गाधीजी की धारणा थी हिक हिवषमता �ी हि�सा की जननी �। यदिद

हि�सा को रोकना �ो और अहि�सा एव शानविनत की सथापना करनी �ो तो सामाजिजक- आरथिथक शोषण, अभाव, असमानता को जड स उखाडना �ोगा। यगानक� समाज- वयवसथा को )द�ना �ोगा, तभी

परिरवतन �ो सकता �, जो मनषय को सखी )ना सक। यो क�ा जाय हिक गाधी- लिचनतन इन शाशवत समसयाओ का शाशवत �� �। समाज क इसी )द�ाव एव सससकत समाज क परहितषठापन क लि�ए गाधी-

लिचनतन �ी मानव- म\यो की रकषा क लि�ए शाशवत म�ततव रखता �। सा)रमती क सत न समाज- परिरवतन क तवरिरत माग को अपनाकर लिचर ससगदिठत समाज- रचना की ग�री नीव रखन क लि�ए और मानव-

म\यो को )नाय रखन क लि�ए अपन को तपाया, ग�ाया और पर हिवशव को आतम- परिरषकार एव हदय- परिरवतन क दवारा एक नया लिचनतन एव दधि}कोण दिदया। मगर इन म\यो की सथापना म उन�ोन आतमाहहित दकर अहि�सा- यजञ पण हिकया। आज इस तयाग, तपसया और शानविनतहिपरयता की जररत

म�सस �ोती �। सदाचार स यकत, स) पराततिणयो क हि�त- साधक हिवदवान, सामथयशा�ी, पहिव6 जिजतजिनदरय और तपपत एव मनसवी गाधीजी का सोच ऐसा था, जिजसन भारत को मलिकत दिद�ायी। आज भारत

आजाद �। मगर उन म\यो का पतन एव हरास �ो गया �, जो मनषय को धरात� स ऊपर उठाकर मानव )नात �। आज यग की रलिचया )द� गयी �। आजाद भारत पर पाशचातय परभाव अधिधक � और

परिरणाम य� हआ हिक गाधी- लिचनतन की परासहिगकता को इस परभाव न गरस लि�या � और ढाप दिदया �।जीवन- यथाथ का सामना करना, सभी चनौहितयो को सवीकार करना गाधीजी का मखय उददशय था। इस

यथाथ को उन�ोन लिचनतन की परिरधिध और अनभहित की पकड म �ान की हिनरनतर कोलिशश की। उनक सार समाधान मानवीय सतर पर थ, जिजसम समची मानव- जाहित �ी सव�परिर थी। गाधीजी का मानना था

हिक भारत भधिम एक दिदन सवणभधिम थी, इसलि�ए भारतवासी सवण रप थ। जो भधिम थी, व� तो व�ी �, पर आदमी )द� गय �, इसलि�ए य� भधिम उजाड- सी �ो गयी �। इस पन सवण )नान क लि�ए �म

सदगणो दवारा सवणरप )नना �। ऐस �ी व �ोकत6वादी उसी को मानत थ, जो जनम स �ी अनशासन का पा�न करनवा�ा �ो। उनक मतानसार �ोकत6 सवाभाहिवक रप म उसी को परापत �ोता �, जो

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साधारण रप स अपन को मानवी तथा दवी सभी हिनयमो का सवचछापवक पा�न करन म अभयसत )ना �। य� उन�ोन �रिरजन सवक म सन 1939 म क�ा था। उनका मखय लिचनतन और हिवचार सतय और

शजिदध का था। साधन- शजिदध का परयोग )ड पमान पर प��ी )ार उन�ोन हिकया। समच इहित�ास म य� परयोग एक नयी चीज था, जो शाशवत म\यो पर आधारिरत था। य�ी उनका दढ हिवचार �, लिचनतन �, इसक सममख सभी हिवचार- भद गौण �।

आज गाधी- लिचनतन धध�ा कयो पडता जा र�ा �? य� परशनाक�ता �। �म )ा�री आड)रो म मकडी क जा� की तर� फस गय �। अ�)ट आइनसटाइन न म�ातमा गाधी क )ार म अपन हिवचार वयकत करत हए क�ा था हिक अपन दश क एक जन-नता, जिजन� हिकसी भी )ा�री सCा स कोई स)� परापत न�ी था; एक राजनीहितजञ, जिजनकी सफ�ता हिकसी तकनीकी उपायो की दकषता या लिश\प पर आधारिरत न �ो;

कव� अपन वयलिकततव की परभावी ताकत दवारा व� सदा हिवजयी योदधा र�, जो सदा )� परयोग की अव��ना अथवा हिनषध करत र� �ो; )जिदधमान और हिवनमर म6ी म दढ, मगर धारणा म अदमय, जिजन�ोन

यरोप की ))रता का सामना सामानय मानव क आतम)� स हिकया और सवय जिजन�ोन अपन दशवालिसयो की उननहित क लि�ए अपनी सारी ताकत �गा दी �ो तथा इस परकार जो अपन यग म का�जयी वरिरषठता क अधिधकारी �ो चक �ो, आनवा�ी पीदिढया इस )ात पर मलकिशक� स हिवशवास कर पायगी हिक इतन

हिवराट वयलिकततव क धनी इस जमीन पर �ाड- मास धारण हिकय हिवचरण करत र� थ। दःख की )ात य� � हिक गाधी दवीय शलिकत क रप म हिवसमत �ोत जा र� �, हिफर भी गाधी- लिचनतन का म�ततव �मार वतमान जीवन क सनदभ म हिनरषिववाद �। व म�ान मानवतावादी थ। ज) तक मनषय को खतरा )ना र�गा - औदयोहिगक य6वाद का, हिनहिकरयता का, त) तक गाधी- लिचनतन को वयव�ार म �ान

की आवशयकता )नी र�गी। मानव-म\य, जिजन पर मानवता दिटकी हई �, कभी परातन न�ी �ोत, व शाशवत � और र�ग। वतमान सनदभ म इस म\यो की सखत जररत �। गाधीजी वयलिकत की भ�ाई का खया� रखत थ, चा� व� वयलिकत भारत का �ो या ससार क हिकसी कोन और दश का �ो। �ा, य6- सम)नधी गाधीजी क लिचनतन की अव��ना की गयी �, जो सरासर ग�त �, कयोहिक गाधी य6ो क

वयाव�ारिरक पकष म सदा र�। आदश व यथाथ और साधारण व हिव�कषण का नीर- कषीर हिववक गाधीजी म था। य� वचारिरक दर�ता न�ी �। उन� भारतीय परमपराए )हत हिपरय थी। व य6ो क खिख�ाफ न�ी थ। व उन य6ो क दरपयोग क हिवरदध थ, जो हिक आज दिदख र�ा �। हिववक- शनय )ढोतरी क व पकष म न�ी थ। व मानत थ हिक य साधन �ोभ- परद न �ो। य6ो का वयलिकत क ऊपर �ावी �ोना उन� नापसनद था। भत म य� परयोग सफ� र�ा। मगर वतमान म पाशचातय भौहितक समजिदध स �ोग परभाहिवत हए और �ोभी

�ो गय। गाधीजी की नीहित हिकसी क लि�ए घातक न�ी थी, अ\पसखयको क शोषण की न�ी, पोषण की थी। पहिडत न�र की य�ी धारणा थी हिक औजार एक अचछी चीज �। इसस काम �\का �ो जाता �।

�हिकन औजार का )रा इसतमा� भी हिकया जा सकता �। �मार उपयोग की चीज म चाक एक स)स जयादा काम की चीज �। एक नादान आदमी इसी चाक स दसर की जान � सकता �। इसम )चार

चाक का कोई दोष न�ी �, कसर तो उस आदमी का �, जो इस औजार का दरपयोग करता �। राषटरीय परयोगशा�ाओ को हिवजञान- मदिदरो की सजञा दी जाती र�ी �। हिवजञान भी वयलिकत की भ�ाई क लि�ए �ो, न

हिक सतय स ससार को न} करन क लि�ए। परसाद की पलिकतया इस धारणा को प} करती � - ' कयो इतना आतक? ठ�र जा ओ गव��

जीन द स)को, हिफर त भी सख स जी �।' इसी धारणा को पदा करन क लि�ए, �मार वतमान म यवको क अनदर �म प�� आदशवादिदता और शलिकत का उददाम हिवसफोट पदा करना �। आज यवा पीढी म राषटरीय चरिर6 का हिवकास करन क लि�ए

गाधी- लिचनतन की जररत �। सहिनक यदिद राषटर की परथम रकषा- पलिकत � तो हिवदयाथ� हिदवतीय रकषा- पलिकत। भतका� क क} और जञान क आधार पर भहिवषय जाना जा सकता �। आज इस लिचनतन को 'कमसतय'

म )द�न की जररत �। कम मानव का धम �। शायर की पलिकतयो म - ' �मारी )ात �ी )ात �, सयद काम करता था,

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न भ�ो फक जो � क�नवा� करनवा� म।'गाधी- लिचनतन को आधार )नाकर अण- दानव को भी वश म हिकया जा सकता �, मगर धम क झरोखो स

झाककर। हिवनो)ाजी का समीकरण आज क यग- सनदभ म साथक � - हिवजञान + हि�सा = सवनाश हिवजञान + अहि�सा = सव�दय

इस समीकरण म �ी अण- यग और धम का समनवय �ो जाता �, जो हिवशव क लि�ए क\याणकारी एव मग�मय �। ' अहि�सा परमो धमः' एव ' वसधव कटम)कम' जस शानविनत क म� म6 का दावा करनवा�ा

भारत �ी �। इसको सतय- परयोग म �ानवा�ा गाधी- लिचनतन �। य� कभी न समापत �ोनवा�ा �। इसका शाशवत म\य �। आज भौहितकता का )ो�)ा�ा �, जो वयलिकत को मानव )नन स रोकता �। अथ- सघष

न नहितकता को समापत कर दिदया �। आज छीना- झपटी चारो ओर )रकरार �। वयलिकत आज वयलिकत स भयभीत �। मानव- जीवन की सगहित सत और असत क जञान- मा6 स �ी न�ी �ो जाती, )लकि\क अपन

जीवन म उस सत को ढा�न स �ोती �। गाधी इसी माग पर च�त र�। य� सच � हिक अहि�सा का माग कोई नया न�ी �। य� सनदश भारत म अनादिद और अननत �। आज और आनवा� क� म इसकी

आवशयकता अधिधक �, ज) स) कछ जीण- शीण �। आज और क� क लि�ए हिवधवस न�ी, हिनमाण चाहि�ए। इसीलि�ए गाधीजी सजनकारी हिवजञान क पकषधर र�। इसी माधयम स �म जीवन को सखमय,

सहिवधामय व आननदमय )नाकर इस पथवी पर सवग का हिनमाण कर सकत �। गाधी- लिचनतन �म काटो स गजरकर �ी फ� की सगतमिनध और कोम�ता परापत करन का आदश दता �, कयोहिक सनदर जीवन क

सव� फ�ो स न�ी, लिचनगारिरयो स सजाय जात �। आज और क� इसी लिचनतन की जररत �, जो �मार अनदर लिचनगारी पदा कर सक।

गाधी- लिचनतन का एक और )�शा�ी शस6 �, ' सादा जीवन उचच हिवचार।' आज जीवन म आड)र का )ो�)ा�ा �। सादगी और सर�ता म जो सख �, व� और क�ी न�ी। हदय की सादगी �ी हिवचारो की

सादगी �। करणा का जनम इसी स �ोता �। अ� और दमभ का इसस नाश �ोता �। जीवन को सवसथ रखन क लि�ए हिवचारो की ताजगी चाहि�ए। उन�ोन इस सादगी को जीवन म उतार लि�या था। आज जय हिवशव क लि�ए एक नय आदमी का हिनमाण करना �ोगा, जिजसकी )जिदध हिवशा� �ो और जो मनषय- मा6

को अपना कटम) समझ। वयास महिन न क�ा था - ' न मानषात शरषठतर हि� हिकलसिðचत।' गाधीजी न मानवता की घोषणा की थी और मानव को मानवता की क\याण- कामना म �गान का लिचनतन हिकया

था, जिजसका अथ था हिकसी राषटर का म\य उसक वयलिकतयो का म\य � और जनता का सख �ी राषटर का सख �। आज का वातावरण एव लसिसथहित दखत हए एक परशन खडा �ोता � हिक आज कया नयाय,

सवत6ता, समानता और भराततव क लिसदधानतो पर आधारिरत एक धमहिनरपकष और �ोकताहि6क राषटर इस आणहिवक यग म जीहिवत र� सकता �? इसका उCर य� � हिक गाधीवादी म\यो क आधार को समाज

म सथाहिपत करन स राषटर खडा र� सकता �। राषटर कोई अपन आप म इकाई न�ी �, व�ा क वयलिकतयो स धिम�कर राषटर )नता �। राषटर का म\य )ढान क लि�ए, वयलिकत का वयलिकततव हिनखारन क लि�ए म� सरोत तो

गाधी- लिचनतन �। सव�दय की क\पना मानलिसक तौर पर सवसथ र�ना �ी �। उCम जीवन जीन क लि�ए उCम मनषय क लिसदधानत पर हिवशवास करनवा�ा एक �ी वयलिकत पर हिवशव म हआ हिवशववदय )ाप। आज क समाज म जिजस तर� की अलसिसथरता और अहिववक का वातावरण �, उसक लि�ए गाधी- हिवचारधारा को मन- मलकिसतषक म उतारन की )डी जररत �, जीवन- म\य तो अपन आप सवर

जायग। गाधी- लिचनतन हिनयतकालि�क न�ी, सावकालि�क, सावदलिशक �। ज) तक मनषय र�गा, त) तकगाधी- लिचनतन र�गा। मनषय क जीवन को सधारन का माग धिम�ता र�गा। यग को नयी पररणा, नयी गहित

और नयी दिदशा धिम�ती र�गी। गाधी मानवता क जयोहित- क�श �, यगातमा �, यगदर}ा �, परणमय �, यगसर}ा � और पररक शलिकत �। कहिव लिसयाराम शरण गपत न उन� का�तीथ, आतम�ोक, सवका�,

सवातमीय, हिनखिख� )नध, का�जयी, कीरषितमान और पण हिवशवमानव घोहिषत हिकया था। कहिव की य� घोषणा शत परहितशत खरी �। गाधी- लिचनतन �म जीन की रा� दिदखा सकता �। आज मानवता भौहितक

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सपधा, यदध और सघष क कारण �ह��ान �ो र�ी �। उनका परा दधि}कोण सचचाई स सचचाई की ओर जान का था। उनका दधि}कोण वजञाहिनक था।

गाधी- लिचनतन परम और आतमितमक शलिकत का इहित�ास न�ी, मानव का वतमान और भहिवषय �। गाधीजी क लि�ए मातभधिम (भारतभधिम) हिवशव की परयोगशा�ा थी - �ोकमग� जिजसका साधय �। कयोहिक उनक भीतर पराचीन परमपरा क सनत और आधहिनक हिवचारक दोनो हिवदयमान �। उनक नाम स एक वयलिकत का

)ोध न �ोकर सतयवादी जीवन जीन की एक श�ी का )ोध �ोता �। व जीवन की हिनरनतरता क लि�ए समय की माग क परहित भी उनमख थ। य� लिचनतन आज राम- )ाण �। वासतव म भारतीयता मानवीयता

का हिनचोड �। क)रनाथ राय का हिन)नध ' गाधी की परासहिगकता' पढकर ऐसा म�सस �ोता � हिक चारो ओर क हिवष� और �ताशपण वातावरण को दखकर एक �ी वयलिकत का नाम उनक �)ो पर आता �, दसर का न�ी। उसी वयलिकत को वनदनीय- समरणीय और सथायी समाधान परसतत करनवा� वयलिकत क रप

म व दखत �। म�ातमा गाधी न म� समसया को पकड लि�या था - मनषयतव का, शी� का और अचछाई का सकट। अचछाई हि)खरी- हि)खरी �, उस हिकस परकार सगदिठत करक एक ऐस वय� म वयवलसिसथत

कर  दिदया जाय हिक व� समाज क मग� का सथायी प�रदार �ो सक। इस समसया का समाधान गाधी- लिचनतन क भीतर परापत �ोता �। मानवता का सनदश दनवा�ी उनकी आधयातमितमकता आज और क� क मनषय क मानलिसक सवासथय का दिदशा- हिनदÆश �। परातन ससकहित क आ�ोक म आधहिनक राषटरीय जीवन

को उसन कनदर- हि)नद )नाया, जो क� क राषटर क लि�ए मागलि�क लिचहन �। य�ी गाधी- लिचनतन का सारतततव � मनषय की �लिसयत स भी और सामाजिजक पराणी क रप म भी। मानव की सदवततिC को

उभारना एक सदवततिC �, जीवन को जगाना, दीनता को भगाना �ी जीवन का म� सगीतमय सवर �।

गाधीजी क जीवन म हिवचार और सजन दोनो का सामजसय �। �म अचछ मनषय )न, भत स सीख, वतमान को सखमय )नाय, भहिवषय सवत उजजव�तम �ोगा �ी, य�ी � गाधी- हिवचारधारा। य� लिचनतन

�मार भहिवषय को, समची मानवता को चरम लिशखर पर पहचा सकता �। इक)ा� न क�ा � - ' खदा तो धिम�ता �, इनसान न�ी धिम�ता।' इनसाहिनयत का सनदश गाधी न दिदया। कोई भी कहि6म परकाश राहि6

को दिदवस म परिरणत न�ी कर सकता। सय�दय क हि)ना दिदन �ो �ी न�ी सकता। गाधी- लिचनतन का म�ाधार 'सव�दय' भी कस �ो सकता �, ज) तक सतय, लिशव, सनदरम को अपन जीवन म न उतारा

जाय। अ) जो भी �ोता �, आग �ी �ोना �। दध और त� का कसा म�? दध म धिम�न क लि�ए दध �ी )नना पडता �। ' पीर पराई जाण र' का म6 मनषयतव की साथकता �, जिजस भजन स परभात- )�ा परारमभ �ोती �।

य� सतय � हिक �म वतमान क लि�ए काम कर र� �, कयोहिक �म वतमान म र�त �। हिकनत अपन काय¾ और जीवन- म\यो दवारा भहिवषय पर का) पा �ग और सवय �ी ख�कर �मार सामन सप} �ो जायगा हिक �म खोज करनी � - खोज सतय की आज सभी हिवशद अथ¾ और हिवततिभनन रपो म। हिवजञान सतय की

खोज �। आज की पीढी म क� क भारत का फ�क �, व�ी )द� दगा भारत का नकशा - भारत की हिवचारधारा - उस भारत का, जिजसम आतमा क परहित, हिवजञान म सतय की खोज क परहित आसथा �। धिघसी-

हिपटी �ीको और परानी रदिढयो को छोडकर आग )ढन क परहित इनम हिवशवास जागरत �ोगा। गाधी- लिचनतन म वजञाहिनक ससकहित का परसार वाछनीय �, जिजसस जन- जन म वजञाहिनक अततिभरलिच पदा �ो। गाधीजी ऐसा जनत6 )नाना चा�त थ, जिजस जनत6 का अथ � स�नशी�ता। स�नशी�ता लिसफ अपन समथको क परहित न�ी, )लकि\क उन �ोगो क परहित भी, जिजनका �मस मतभद � - राषटर एव हिवशव क मानस

का मनोवजञाहिनक परिरवतन प��ी )ार गाधी- लिचनतन स हआ। पता च�ा हिक शलिकत अपन स )ा�र न�ी�, व� अपन भीतर �ी �। दसरो क )� पर सवत6ता न�ी धिम�ती, व� अपनी शलिकत स �ी अरजिजत की

जा सकती �। उन�ोन गीता क कमयोग क लिसदधानत को तीनो का�ो क परिरपरकषय म परहितपादिदत हिकया �, जिजसस हिक अपना उदधार सवय �ी �ो सकता �। आज और क� को सनदर )नान क लि�ए हिकरयातमक व

अहि�सातमक सतयागर� की जररत कदम- कदम पर �, कयोहिक इस हि6वणी म सफ�ता की अधिमत शलिकत

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�। गाधी- लिचनतन न जीवन को राजनीहितक, सामाजिजक, आरथिथक एव धारमिमक टकडो म हिवभाजिजत न�ीहिकया, वरन स)को साथ �कर स)क हिवकास को एक दसर का परक माना �। आतमहिवशवास और

हिनभयता �ी जीवन क म�ाधार �। जीवन- जयोहित इनम हिनहि�त �, हिवशव म य� हिवचारधारा )नी र�गी। अमर जयोहित पर हिवशव म परजवलि�त र�गी।

)ार- )ार परशन उठता � हिक आज गाधी- लिचनतन का अनसरण कयो? इसलि�ए हिक समसत हिवशव की शानविनत खतर म �। सकटापनन समय म हिवशव को स�ार की न�ी, नवहिनमाण की आवशयकता �;

आड)र की न�ी, सादगी और साधता की जररत �, )र की न�ी, हिवशव)नधतव की जररत �; हिवधवस की न�ी, हिनमाण की आवशयकता �। उस सभयता और ससकहित की जररत �, जिजसम मानवता क

दशन �ो सक । इस उप�बध करना �, जिजसस �म सवय जीहिवत र� सक और दसरो को सखी )ना सक , सजनकारी हिवजञान क माधयम स �म जीवन को सखमय, सहिवधामय व आननदमय )नाकर इस पथवी पर

सवग का हिनमाण कर सक । दिदनकरजी की भाषा म तो आज का भारत गाधी का भारत � और गाधी नाम आज क भारत नाम का परा पयाय �। का� को खीचकर व अपनी दिदशा की ओर � गय। उनकी दिदशा शानविनत, अहि�सा और सतयागर� की थी, जो मनषय क रप को हिनम� )नाती �। उस समय भारतीय

सवाधीनता )हत )डा �कषय थी, हिकनत उसस )डा धयय मानव- सवभाव म परिरवतन �ाना था। मनषय को य� हिवशवास दिद�ाना था हिक जिजन धययो की परानविपत क लि�ए व� पाशहिवक साधनो का स�ारा �ता �, व धयय मानवोलिचत साधनो स भी परापत हिकय जा सकत �। गाधी- लिचनतन पाशहिवकता का हिवरोध �।

आतमितमक )� शारीरिरक )� स शरषठ �। भहिवषय म गाधी- लिचनतन को आधार )नाकर सभी समसयाओ का समाधान भारत की यवा पीढी खोजगी। गाधीजी न साधनापवक सभी पराचीन सतयो को जीवन म उतारकर ससार क सामन य� लिसदध कर दिदया हिक द)�-स- द)� मनषय भी मानवता क चरम लिशखर पर

पहच सकता �। जीवन की साथकता जानन म न�ी, करन म �, जिजस जनक- माग क�। वासतव मगाधी- लिचनतन हिकरयाशी� शलिकत का लिचनतन �, काधियक, वालिचक और )ौजिदधक लिचनतन �। मनषय म जो

हिकरयाशी�ता �, व�ी उसका धम भी �; जो धम मनषय क दहिनक काय¾ स अ�ग �ोता �, व� धम न�ी। क)ीर न क�ा � - 'ज�- ज� डो� सो परिरचया, जो जो कर सो पजा।' इस परयोग स हिवशव हिफर स जाग सकता �। उनकी या6ा मोकष और शानविनत की ओर र�ी �। दश- भलिकत इस या6ा का पथ �। आज

राजनीहित छ� और परपच �ी �। इस ऊपर उठान क लि�ए मनषयतव, )नधतव और सवत6ता की आवशयकता �। और आवशयकता � सामाजिजक सामजसय की। य� गाधी- लिचनतन का हिनचोड �। ज)

पडोसी भखो मरता �ो, त) मजिनदर म भोग चढाना पणय न�ी, पाप �। शलिकत- सचय और सक\प की एकता पर �ी भारत का भहिवषय हिनभर करता �। पततिशचम स हिवहिनमय करन का समय आ गया �।

आदान- परदान करना जीवन का धम �। हिवशव- सभयता अभी अधरी �, जिजस पणता की ओर � जाना �। गाधीजी मनषयता क इजीहिनयर थ। �म समय को धयान म रखकर अपन आदश¾ और म\यो का

समीकरण करना �। गाधी- लिचनतन क परभाव की गज का� की सीमा पार कर अननत दरिरयो म फ�ती र�गी। सधारवाद क सथान पर हिवकास )�तर �। समगर दश पजय गाधीजी का समरण करता �। कव� समरण- मा6 स उनको शरदधाजलि� अरषिपत न�ी �ो

सकती, )लकि\क सचची शरदधाजलि� तो व� �ोगी, ज) समगर राषटर उनक लिचनतन को त�दिद� स जीवन- वयव�ार म �ाय, ताहिक गाधीजी का मनचा�ा रामराजय पर हिवशव म सथाहिपत �ो सक। न�रजी मानत थ

हिक गाधीजी का उलिचत समारक य�ी �ोगा हिक �म आदरपवक उनक )ताय हए रासत पर च� और जीवन और मरण म अपन कतवय का पा�न कर। गाधीजी क रचनातमक कायकरम को हिनषठापवक अपनाया

जाय, ताहिक राषटरीय जीवन का परतयक अग प} )न, धरती का सवग�करण �ो।म�ातमा गाधी का ऐहित�ालिसक अवदानडॉ. अमरसिस� वधान

आज भारत म गाधी क वC को जिजतना परिर�ासपण )ना दिदया गया �, शायद �ी हिकसी अनय म�ापरष का ऐसा �ा� हआ �। दःख का गराफ त) और )ढ जाता �, ज) सतय क पजारी और राषटरहिपता का

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आदर पानवा� म�ातमा गाधी परासहिगकता क पन सवा�ो एव भवनो की दीवारो पर टगी तसवीरो क चौखटो म सवय को हिववश एव कद हआ पात �। य�ा राषटर स एक हिवनमर सवा� � हिक य� शमनाक मखौ� गाधी क आकार का �, अथवा हिवचार का � या हिफर उनक आदश¾ का �? य�ा याद कराना जररी � हिक 20 अकट)र 1931 को �दन म आयोजिजत राउड ट)� काफर स म इसी 5 फट �) और

90 पौड वजन क गाधी न अगरजो को ��कारत हए क�ा था हिक हिबरदिटश शासको न �मारी लिशकषा-वयवसथा, ससकहित और सभयता को जड स उखाड फ कन म कोई कसर न�ी छोडी। �हिकन जड मज)तथी, उखडी न�ी।इहित�ास- करम य�ी � हिक ज) नहितक एव सामाजिजक म\यो का हरास �ोता �, सिचतन लिसकड जाता � और

भौहितकतावाद का एकाधिधकार �ोता � तो अवतारो एव म�ापरषो को जीवन म उतारना सर� काय न�ी �ोता। कारण य� � हिक उनकी लिशकषाओ एव सदशो का सतय )दाशत न�ी �ोता। ईसामसी�, सकरात,

सरमद, गर तग)�ादर आदिद म�ापरषो क सतय- अवशष आज भी आखो स ओझ� न�ी हए �। गाधी न भी सतय �ी )ो�ा था, जो इधर क अधिधकाश �ोगो को हिकसी कीमत पर सवीकार न�ी �। उन�ोन

साधनो की पहिव6ता पर जोर दत हए क�ा था हिक �कषय तक पहचन क लि�ए �मार सभी अपततिकषत साधन पहिव6 �ोन चाहि�ए। आशचय न�ी हिक इहित�ास क स)स )ड सामराजय क खिख�ाफ �डनवा� गाधी क मारक साधन सतय, अहि�सा और शाहित एकदम पहिव6 साधन थ। इन�ी साधनो की )दौ�त उन�ोन भारत

क भागय को सकारातमक मोड दनवा� कई म�ततवपण हिनणय भी लि�य। यो तो दश क वतमान और भहिवषय को �कर आज भी हिनणय लि�य जा र� � और कई )हिनयादी साधनो का परयोग भी हिकया जा

र�ा �, �हिकन न तो पहिव6ता हिनणयो म � और न �ी �कषय- लिसजिदध म। गाधी नहितक आचरण क सशकत पकषधर थ और य�ी उनका परम धम था। दततिकषण अफरीका म

जो�ाहिनस)ग स 21 मी� की दरी पर टॉ\सटॉय फाम म लिशकषा का अदभत परयोग करत हए इस )ात पर )� दिदया गया था हिक लिशकषा का मखय �कषय हिवदयारथिथयो म चरिर6- हिनमाण �। गाधी की मानयता थी हिक

परतयक हिवदयाथ� को अपन धारमिमक गरथो का अधययन करना चाहि�ए। चरिर6- हिनमाण को व लिशकषा की उलिचत नीव समझत थ। उनका य� भी क�ना था हिक एक डरपोक एव धिमथयाभाषी अधयापक अपन

हिवदयारथिथयो को हिनडर एव सतयवादी )नान म कभी भी सफ� न�ी �ो सकता। भारतीय जीवन क परतयक प�� को सपश करनवा� गाधी न सतय की परयोगशा�ा म �र गहितहिवधिध को जाचा और परखा। पहिडत न�र सवय गाधी क वयलिकततव स इतन परभाहिवत थ हिक व अपन भाषणो म एथनस क म�ान राजनीहितजञ

परिरक�ीज (450 ई. प.) स गाधी की त�ना करत थ। उ\�खनीय � हिक परिरक�ीज न एथनस म आदश परजात6 की सथापना की थी। व म�ान दाशहिनक सकरात क धिम6 थ और उन�ोन यनानी क�ीन परष

एव सहिनक एलसि\सहि)एडज को भी लिशकषा दी थी। यो तो गाधी क )त �मन जग�- जग� खड कर दिदय � और उनकी पहिव6 समाधिध प�� स �ी राजघाट म

लसिसथत कर रखी �। इतना �ी न�ी, उनक नाम पर कई नगरो, माग¾, सथानो, पाक¾ आदिद क नाम भी रख दिदय �। हिफर कयो गाधी क नाम पर )ार- )ार �मारी ससकहित, त�जी), सभयता, मयादा और सीमा चकनाचर �ोती �?

16 माच 1991 को राजघाट- लसिसथत गाधी की पहिव6 समाधिध का हिनमम अपमान इस सदभ का जव�त उदा�रण �। गाधी की जीवनी की श\यहिकरया करक दख �ीजिजए, ऐसा फासीवादी तरीका क�ी न�ी धिम�गा। ताजज) न�ी हिक �गभग सवा शताबदी परानी अबराहि�म सि�कन की मरषित पर अमरीका क �ोगो

न खरोच तक न�ी आन दी, ज)हिक व�ा का�- गोरो का हिववाद च�त वष¾ )ीत गय और एक )ार व�ा ग�यदध भी हआ। ज)हिक �म भारतीय अपन राषटरहिपता की समाधिध की रकषा न�ी कर पा र� �।

कया य� सखद आशचय न�ी हिक हिवसटन चरथिच� की भतीजी क�यर शरीडन गाधी को सतय और सदाशयता का परतीक मानती �, अमरीकी मरषितकार जीअ डहिवडसन गाधी को एक म�ान हिवभहित

सवीकारत � और दततिकषण अफरीकी माता- हिपता अपन )चचो का नाम गाधी रखत �। ज)हिक राषटरहिपता क अपन �ी राषटरवासी उनका नाम धिमटान पर त� हए �, य� सचचाई जानत हए भी हिक रिरचड एटन)रो

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'गाधी' हिफ\म हिनदÆलिशत कर भारतीय हिफ\म- हिनदÆशको को करारा और यादगार सåक लिसखा चक �। दरअस� �मन गाधी क आदश¾- लिसदधानतो को परो क )� स उठाकर लिसर क )� पर खडा कर दिदया

�। य�ी वज� � हिक पाप, झठ, हि�सा, अशाहित, नशा, रगभद, छआछत, अ�गाव, आतक, शारीरिरकजयादहितया, अवसरवादिदता, उपभोकता ससकहित, सापरदाधियकता आदिद सव6 वयापत �। गाधी इन सभी

चीजो स कोसो दर थ। उन�ोन जीवन- पयनत आतमहिनभरता की )ात क�ी, छआछत और रगभद का हिवरोध हिकया, शरम को म�ततव दिदया, इचछाओ पर हिनय6ण रखन तथा नशापान स दर र�न को क�ा।

आज �र गाव, कस)ा, श�र, नगर और म�ानगर शोषण, अनयाय एव अतयाचार का लिशकार �, सCा एव वोटो की राजनीहित स दश �कवागरसत �, )रोजगारी का गराफ चरम सीमा पर � तथा आतकवादी

परवततिCया नय- नय रपो म उभर र�ी �। गाधी क सपनो का भारत ऐसा कदाहिप न था। य� भी कसी हिवड)ना � हिक दिद\�ी म राजघाट- लसिसथत गाधी समारक सगर�ा�य म रख गय गाधी क

समहित- लिचहनो की भी सरकषा न�ी की जा सकी। उनक च�तो न व�ा स गम हई चीजो का सथानानतरण )डी �ोलिशयारी स करक गाधी क भकत �ोन का नाटकीय परमाण परसतत हिकया �। अफसोस � हिक

आजादी क )ाद �म न तो गाधी को सरकषा परदान कर सक और न �ी उनक )च समहित- लिचहनो को सभा� कर रख सक। उन�ोन �म आजादी दिद�ायी थी, जिजसम �म सास � र� �। दिद\�ी- लसिसथत ' गाधी समारक

हिनधिध' क साथ स)दध ससथान क पसतका�य म गाधी क �तयार नाथराम गोडस क सग भाई गोपा� गोडस दवारा परकालिशत पसतक ' म इट प�ीज यअर ऑनर' खरीदकर पाठको क पढन क लि�ए रखी गयी

�, जिजसम गाधी की �तया को उलिचत ठ�राया गया �। ज)हिक मदरास उचच नयाया�य म कदा� आयोग क हिवरदध दायर की गयी यालिचका को ततका�ीन नयायमरषित एसअ मो�न न खारिरज करत हए एव इस

पसतक की कडी आ�ोचना करत हए य�ा तक लि�खा था - '' इस पसतक को लिचमट स भी न�ी छआ जाना चाहि�ए।'' इधर की यवा पीढी को गाधी- दशन एव गाधी क नाम स कछ जयादा �ी लिचढ �। दश, राजनीहित एव धम

की )ात छडी हिक गाधी की हिनदा शर हई। )ात- )ात पर �ोग गाधी को कोसन �गत �। गाधी भी यवा र� थ और उनका एक हिनततिशचत धिमशन था, जिजसका उन�ोन म\याकन हिकया एव उस �ालिस� भी हिकया।

आज क यवक य� ग�र म समझ � हिक कछक सवाथ� राजनताओ की कठपत�ी )नकर एव हिवदशी साजिजशकारो क इशारो पर च�कर व भारत का कोई भ�ा न�ी कर सकत �। पजा), जमम-कशमीर,

असम, आनधर परदश, म)ई, गजरात आदिद का रकतरजिजत इहित�ास �मस अभी दर न�ी गया �। इस सतय तथय स क�)�ा�ट �ो सकती � हिक गाधी न अपनी यवावसथा म न कव� नशन� इहिडयन कागरस की

सथापना की थी, )लकि\क दततिकषण अफरीका म ज)रदसत समथन भी परापत कर लि�या था। अत य� जररी � हिक आज क यवा दश की मखय धारा स जड, दिदशा�ीन रासतो एव धिमशन�ीन जिजदगी का परिरतयाग कर और गाधी की )हिनयादी व आदश नीहित की ओर �ौट। व वकत क हिनग�)ान )न, जीन स अधिधक दख,

कयोहिक घदिटया जीवन अपन आप म एक घदिटया चीज �। गाधी दश क लि�ए, य�ा क �ोगो क लि�ए सदा करणा, कषमा और शाहित का नकष6 )नकर छा जान म �ी अपन जीवन की साथकता का

अनभव करत र�। माना हिक दो इसानो म मतभद �ो सकता �। �हिकन ज�ा दश- हि�त की )ात �ो, व�ा �म धिम�कर च�ना

� और एक- दसर की मदद करनी �। गाधी न भी य�ी क�ा था। य�ी वज� थी हिक हिबरदिटश शासन क हिवरदध गाधी क ' अस�योग आनदो�न' म भारतीयो का परा स�योग था। गाधी न परत6 भारत म द)

हए, अनपढ एव डर हए �ोगो म ज)रदसत ताकत पदा करक हिबरदिटश हकमत को अदर तक हि��ा कर रख दिदया था। य� शलिकत आज भी भारतीयो म �, जो दश को अधिधक म�ान और मज)त )ना सकती

�, अमन एव जमहरिरयत को सथाधियतव परदान कर सकती �। �र अधर काम को परा हिकया जा सकता �, �र खतर का सामना हिकया जा सकता � और �र समसया का समाधान हिनका�ा जा सकता �। इसक लि�ए �म उठना �, धिम�कर च�ना � और सतकम करना �, गाधी की तर�।

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कया य� भी याद करान की जररत � हिक सापरदाधियक सदभावना, एकता की भावना एव सवजाहित- हि�त की भावना क लि�ए सघषरत र�नवा� गाधी की �ारटिदक स�ानभहित सदा दखी �ोगो क साथ र�ी?

हिफरकापरसती, हिवभाजन, आनदो�नो, �डाई- झगडो एव दगा- फसादो को रोकन क लि�ए गाधी न जिजनना सा�) स य�ा तक क� दिदया था, '' मर शरीर क दो टकड कर दो, �हिकन भारत क दो टकड मत करो।''

उन� तथा पहिडत न�र को मा�म था हिक जिजननासा�) का सवासथय कमजोर � ओर व गभीर )ीमारी क लिशकार �। उन� राषटराधयकष का अवसर दकर दश को हिवभाजिजत �ोन स )चाया जा सकता था। पहिडत

न�र क आग गाधी क सभी तक तक �ीन �ोकर हि)खर गय। अत म व�ी हआ, जिजसका गाधी को डर था। आज अपन �ी भारत म हि�सातमक कसरतो और टचची साजिजशो का जा� )ना जा र�ा �। क�ा गम �ो गयी व� सशकत भावना, जो हिनषठा स आग )ढन, दश की खाहितर क)ानी दन और सवा- तयाग क लि�ए जोर मारती र�ती थी। आज आवशयकता � �र सतर पर आयी उन कमजोरिरयो को दर करन की,

जो हिवततिभनन त)को म, समाज म और शासन म जड जमाय हई �। गाधी उस आसथा का नाम था, जिजसकी जड आतमा म जनम �ती थी और उज� ससकारो का अततिभनन हि�ससा )न जाती थी। व तो चरिर6 की कपास स मनषयता का सत काटत थ। इस अहिदवतीय म�ापरष म स)को )र)स )ाध �न की अदभत चम)कीय कषमता थी। ऐसा �गता था, मानो गाधी की पसलि�यो म

भारत क अभावो, द)ावो और परभावो क गराफ उछ� आय �ो। उन पर )ौजिदधक )�स करत समय �म याद आना चाहि�ए ' हि�नद सवराज', जो एक परकार स गाधी- दशन की )ाइहि)� �। गाधी क चरिर6 पर )�स करत समय �मारी समहितयो म उनकी आतमकथा क सतय क परयोग उतरन चाहि�ए। उनकी चतना

पर चचा करत समय 'नवजीवन', '�रिरजन' और ' यग इहिडया' जस अख)ारो क व कॉ�म याद आनचाहि�ए, जिजनकी वचारिरक ऊजा और परखरता स हिवदशी राजनीहित थरा उठती थी। कव� लिच6ो पर

मा\यापण करक गाधी क लिच6 पर �ी चचा �ोगी, तो हिफर गाधी क चरिर6 पर, आतमा पर, म\य पर, आदश पर और कम पर चचा कस �ोगी!

इस अनठ इहित�ास परष की हिवराटता इस )ात म थी हिक उन�ोन वचारिरक सतर की �र सत� का सपश हिकया था। राजनीहित, लिशकषा, हिवजञान, उदयोग, परशासन, समाज-सवा, भारतीयता, राषटरीयता, धम, दलि�त

और उनकी समसया, भारत क गाव और उनका अथशास6 आदिद ऐसा कौन- सा आयाम था, जिजसम गाधी क सिचतन की धवहिनया मौजद न �ो! सचमच गाधी न मानव- जीवन क हिवराट, हिवहिवध और हिवर�

प��ओ को सतय की हिनषठा स और सतयागर� क आगर� स छआ था। व दश को सतकम, सनमाग और सहिदवचार क रासत पर � जाकर इसकी सासकहितक परहितषठा सथाहिपत करना चा�त थ। य�ी कारण � हिक

गाधी �रिरजनो एव दलि�तो क )ाप थ, मधयवग�य सवण¾ क )ाप थ और हि)ड�ा, टाटा एव )जाज क भी )ाप थ। )ापतव क इसी सावजहिनक )ोध न उन� राषटरहिपता )नाया था और रवीनदरनाथ टगोर न उन�

'म�ातमा' क�ा था। गाधी की अस�महित, उनका हिवरोध और उनका )ो�ा गया सतय )हत कट या हिनभ�क �ोता था, जो )चन तो करता था, मगर हिकसी की �तया न�ी करता था। उनकी आसथाए अहिडग थी, चा� व धम को �कर �ो, हि�नद को �कर �ो, राजनीहित को �कर �ो, सतयागर� को �कर �ो या हिफर सवदशी को �कर

�ो। गाधी न अपन �र हिवशवास को वरत की तर� धारण हिकया था। इसीलि�ए उनक �र हिवचार और कम म वरत की- सी पहिव6ता थी। उनम अपन हिवचारो को परामाततिणक सचचाई स पश करन का अदमय सा�स था।

लिशकषा, सभयता, सवरप, कानन, मशीन, राजनीहित आदिद पर गाधी न एक परी शताबदी आग जाकर सोचा था। उन�ोन जिजस �ौहिकक ससकहित की )ात क�ी, उसम तयाग, )लि�दान और हिपछड र�कर भी मनषय को जीहिवत रखन और )चान की )ात थी। उन�ोन सवराज को आतमा का अनशासन, सतयागर�

को वरत, सभयता को उस वरत की रकषक परपरा, सवदशी को वरत का कम, ससद को उस कम की सरकषक ससथा और लिशकषा को सचची नहितकता माना था। गाधी ऐस वयलिकत थ, जिजन�ोन अस�ायो,

हिन)�ो, हिनधनो और य�ा तक हिक कषठ रोहिगयो को ग� �गाया, उनकी भरपर सवा की। सवाशरम म एक )ार एक पढा- लि�खा कषठ रोगी गाधी क पास आया। उन�ोन उस आशरम म रखा और अपन �ाथो स

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उसकी सवा- सशरषा भी की। व अपन रचनातमक कायकरम म कषठ रोहिगयो की सवा को )हत ऊचा सथान दत थ। चपारन म हिकसान सतयागर� क दौरान एक वदध कषठ रोगी हिकसान क हि)छड जान पर व सवय राहि6 म �ा�टन �कर उस ढढन हिनक� पड। उन�ोन अपन ओढन क वस6 को उतारकर उसक टकड हिकय और कषठ रोगी क परो पर पदिटटया )ाधी। )ाद म उस सवय स�ारा दकर व धीर-धीर लिशहिवर तक वापस �ाय।

गाधी न जिजस राषटर क हिनमाण का सव� सजोया था, व� था गरी)ो, �रिरजनो, आदिदवालिसयो और गरामीणो की खश�ा�ी का दश। �हिकन इधर गाधी क सपन को कच�त हए )हराषटरवादिदयो, तसकरो, परहितभहित

घोटा�ा करनवा�ो और भर}ाचारिरयो क उतथान की इमारत खडी कर दी गयी। गाधी क परहित शरदधा �न�ी, �हिकन शरदधाजलि� दी जा र�ी �। दश क पास न हिवचार का वभव � और न �ी सCा की सादगी

एव ईमानदारी। ज)हिक गाधी आज हिवशव- फ�क पर )ीसवी सदी क म�ामानव की �लिसयत पदा कर चक � और वयलिकत क )जाय व शाशवत हिवचार �ो गय �। सवीडन अकादमी को य� सदमा �मशा र�ा हिक

गाधी को हिवशवशाहित क लि�ए नो)� परसकार स नवाजा न�ी गया और इसी सदम क हिवरचन क रप म न\सन मड�ा को हिवशव शाहित नो)� परसकार परदान कर अपरतयकष रप स गाधी को परसकत हिकया गया।

अकादमी की य� अकषमय भ� उसक हिववक पर एक ऐहित�ालिसक परशनलिचहन )न कर र� गयी। य� भी हिक भारतनद �रिरशचनदर क )ाद हि�नदी क साहि�नवितयक सिचतन को गाधी क वयलिकततव न अतयत परभाहिवत हिकया।

मलिथ�ीशरण गपत की ' भारत भारती', परमचद की 'रगभधिम', 'सवासदन', माखन�ा� चतवÆदी की ' कदी और कोहिक�ा', ' पषप की अततिभ�ाषा', )ा�कषण शमा 'नवीन' की ' कहिव कछ ऐसी तान सनाओ, जग म

उथ�- पथ� मच जाय', रामनरश हि6पाठी की 'पलिथक', सो�न�ा� हिदववदी की 'भरवी', रामधारी सिस� दिदनकर की ' मर नगपहित, मर हिवशा�', सभदराकमारी चौ�ान की ' झासी की रानी', जयशकर परसाद की

` हि�मादिदर तगशग स पर)दध शदध भारती, सवयपरभा समजजव�ा सवत6ता पकारती', पत की ' भारतमातागरामवालिसनी', हिनरा�ा की ' वीणा वादिदनी वर द' आदिद सभी परतीकातमक रचनाए इस सतय की साकषी �

हिक इनक रचनाकारो न गाधी- दशन स �ी सजनातमक पररणाए �ालिस� की थी। सप} � हिक गाधी- दशन एक )ार जिजस अतर म परवश कर गया, व� अतर हिफर उसी भावधारा म ड)ता- उतराता र�ा। दवनदर सतयाथ� न, जो गाधी स कई )ार धिम� थ, एक )ार )ातचीत क दौरान इन पलिकतयो क �खक स

क�ा था हिक पयार �ा� की हिनजी दिटपपततिणयो म एक जग� सकत � हिक गाधी स अ\)ट आइनसटाइन(14 माच 1879 - 18 अपर� 1955) की भट हई थी और गाधी की पसलि�यो पर उभर भारत क

नकश एव गाधी क आतम)� की उन पर अधिमट छाप पडी थी। तभी तो गाधी क अवसान पर शरदधा-सवर म आइनसटाइन न क�ा था, '' आनवा� समय म �ोग मलकिशक� स यकीन करग हिक कभी इस धरती पर

�ाड- मास का एक ऐसा भी मानव था।'' गाधी क वयलिकततव को गजो स न�ी नापा जा सकता �। उन�ोन भारत को सदिदयो क )ाद एक

वयवसथागत और हिवचारगत मौलि�कता का धिमशन दिदया था। आज यदिद �म गाधी क ऐहित�ालिसक अवदान का स�ी समरण एव म\याकन कर और उसस अपनी चतना क हिकसी हि�सस को कौधा सक तो दश- हि�त

म एक साथक काम �ो सकता �। गाधी को नकारकर भारत शायद भारत न�ी र� सकगा।म�ातमा गाधी की वजञाहिनक मनोदशा

मनोज कमार राय" आन वा�ी पीदिढया शायद मलकिशक� स �ी य� हिवशवास कर सक गी हिक गाधी जसा �ाड- मास का पत�ा

कभी इस धरती पर था।'' और य� भी हिक " गाधी इनसानो म एक चमतकार थ।'' 20 वी सदी क म�ान वजञाहिनक आइनसटाइन दवारा गाधीजी क वयलिकततव क इस आक�न म न तो कोई अहितशयोलिकत �, न मा6

औपचारिरकता। )लकि\क इसक पीछ � एक सवदनशी� वजञाहिनक सवभाव।वसतत: ज) यग हि�सा, यदध, वमनसय एव घात- परहितघात क नय- नय दाव- पचो म आकठ ड)ा �ो, त)

गाधी अहि�सा, सतय, परम और धम- यकत राजनीहित की )ात करत �। यग ज) भौहितक सभयता और ससकहित की शरषठता की वका�त करता �, त) गाधी आतम- समपननता और आधयातमितमक शरषठता की

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पनसथापना करना चा�त �। सCा- परिरवतन क लि�ए ज) यग सामहि�क हि�सा, रकत- कराहित का स�ारा �ता �, त) गाधीजी सतयागर�, हदय- परिरवतन का रासता अलसिखतयार करत �। य�ी न�ी, ज) यग समानता

की )ात करता �, त) गाधीजी सव�दय की वका�त करत �। ऐसा �गता � हिक गाधीजी क दवारा यग क परहितक� च�न क इस सवभाव को �ोगो न सत�ी तौर पर दखा �। अनयथा उनक दवारा सचालि�त

आदो�नो ( सामहि�क अथवा वयलिकतगत) म अनतरषिनहि�त भावना को दखा गया �ोता, तो शायद उनक परहित य� दरागर� हिक गाधीजी हिवजञान क परहित समरषिपत न�ी थ, न �ी उनक पास वजञाहिनक मनोदशा थी, चचा

म न�ी आता। हिवजञान � कया और वजञाहिनक मनोदशा हिकस क�त �? प�� य�ी सप} �ो जाय। करम)दध, ससगदिठत

एव सवयवलसिसथत जञान �ी हिवजञान �। वजञाहिनक मनोदशा क लि�ए आवशयक � - हिवशलषण, परयोग, हिववक अथवा तक और वासतहिवकता। वतमान समय म �म दखत � हिक एक वयलिकत पराणी- वजञाहिनक क रप म इसलि�ए खयाहित परापत कर �ता

� हिक उसन वष¾ तक पश- पततिकषयो क आचरण, र�न- स�न आदिद का हिवशलषणातमक अधययन हिकया �। उसकी परयोगशा�ा जग� �। एक भौहितक वजञाहिनक दिदन- रात अपन छोट स परयोगशा�ा म तमाम तर�

क परयोगो एव अनपरयोगो म उ�झा र�ता �। तमाम झठ- सच परिरणामो क च�त व� वजञाहिनक सवभाव का माना जान �गता �। य� अ�ग )ात � हिक तमाम वजञाहिनक अथवा वजञाहिनक अततिभरलिच रखन वा�

अपनी हिनजी जिजनदगी म हिनतानत ग�त काय¾ म लि�पत �ोत �। परनत उनक लि�ए चौकी और चौक म भद � अथवा गाधीजी क शबदो म क� तो साधन व साधय अ�ग- अ�ग �। य�ी पर �म भ� करत � और

गाधीजी पर तमाम तर� क हिनराधार आरोप �गात र�त �। गाधीजी क लि�ए साधय और साधन समानाथ� �। दोनो एक दसर क परक � और 'साधय' अदशय � तथा 'साधन' दशय �।

गाधीजी की वजञाहिनक अततिभरलिच का पता तो �म तभी च� जाता �, ज) �म य� पता च�ता � हिक उन�ोन अपनी 'आतमकथा' को ' सतय क साथ मर परयोग' का नाम दिदया �। उन�ोन इसम एक वजञाहिनक

की तर� हिनरनतर सतय को उदघादिटत करन का परयास हिकया �। परीकषण और 6दिट (Trial and Error), सवÆकषण (Observation), तक एव हिववक आदिद की झ�क जग�- जग� सप} रप स

दिदखती �। य� सवमानय तथय � हिक सभी म�ान वजञाहिनक खोज अनतपररणा की �ी उपज �ोती �। य� वजञाहिनक अनतपररणा रातो- रात तयार न�ी �ोती �। अहिपत इसक पीछ �ोती � परमपरा क परहित ग�री

आसथा, तीवर ��क, अतयधिधक परयतन और हिवलिश} परहितभा। त) य� खोज वकत क खराद पर चढकर यदिद )ची र� गयी, तो सवीकहित परापत कर �ती �।

गाधीजी का सोच पणत: सनतलि�त था। एक तरफ व हिबरदिटशो की उतपीडन- नीहित की जमकर आ�ोचना करत थ, तो दसरी तरफ य� भी क�न स न�ी चकत थ हिक अगरजो न दश को ऊजलकिसवत तथा जागरत हिकया �। साथ �ी दशवालिसयो की वजञाहिनक जिजजञासा, सतय क लि�ए हिनरनतर खोज और सिचतन तथा

अततिभवयलिकत की परिरशदधता स भी परिरचय कराया �। य� सोच उनकी हिवजञान क परहित अततिभरलिच को सप} करता �। एक जग� गाधीजी न लि�खा � - " जन धम म तक का उचचतम सवरप दधि}गोचर �ोता �। उसन हिकसी भी मानयता को सवयलिसदध न�ी माना और आतमजञान सम)नधी सतय को )जिदध दवारा गर�ण

और लिसदध करन का परयास हिकया।'' पततिशचम क चरथिचत दाशहिनक 'हयम' और 'कानट' वजञाहिनक अततिभरलिच क लि�ए उपयकत चार �कषण - हिवशषण, परयोग, तक और वासतहिवकता क घोर हि�मायती थ। जन धम क परहित गाधीजी दवारा की गयी दिटपपणी को यदिद �म धयान स दख तो इसम कलिथत वजञाहिनक अततिभरलिच क चारो घटक पणतया सतमिममलि�त �। अस� म गाधीजी क लि�ए हिवजञान का उददशय था - सतय की लिचरनतन खोज और माधयम था

- सलिचनविनतत योजना तथा हिनयहि6त एव मयादिदत परयोग एव परकषण। 'सतय' गाधी क लि�ए वयापक अथ लि�य हए था। सतय उनका आदश था। य� 'सतय, लिशव, सनदरम' का एक घटक �। य आपस म एक दसर स गथ हए �। गाधीजी क�त भी � - सतय �ी म� वसत �। परनत व� सतय लिशव �ो, सनदर �ो।

सतय- परानविपत क )ाद तम� क\याण और सौनदय दोनो धिम� जायग।

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य� स�ी � हिक गाधीजी न `हिवजञान' शबद क परहित अपनी अततिभरलिच दिदखान क लि�ए कोई योजना)दध अवधारणा परसतत न�ी की �; तो इसक पीछ मा6 इतना �ी कारण � हिक उनक पास इतना समय न�ी

था हिक गरथा�यो या परयोगशा�ाओ म )ठकर इसक लि�ए व कोई पपर तयार करत। गाधीजी का उददशय भी पहिडताऊ (Academic) न�ी था हिक व इसक लि�ए लिचनविनतत �ोत। उनका उददशय था - सव�दय,

मनषयमा6 का क\याण। एक वजञाहिनक क लि�ए जिजस हिनरपकषता और वसतहिनषठता की आशा की जाती �, व� उनम कट- कट कर भरी हई थी। जाहित, धम, रग, सि�ग इतयादिद सभी स व हिवमकत थ। अपन ऊपर

परसपर हिवरोधी (Inconsistent) )यानो क लि�ए �गनवा� आरोपो स कभी व लिचनविनतत न�ी �ोत थ। कयोहिक उन� पता था हिक 'सतय' की खोज क लि�ए च� र� इन परयोगो म ग�हितया �ोना सवाभाहिवक �।

जयो �ी गाधीजी को अपनी ग�ती का आभास �ोता था, हि)ना हि�चक व इस सवीकार कर �त थ तथा सतय क करी) �ानवा� तथय को सवीकार कर �त थ। सतय क परहित इतनी उतकट अततिभ�ाषा रखनवा� गाधी क परहित य� दिटपपणी हिक उनक अनदर हिवजञान क परहित उलिचत समपण न�ी था, हिकतनी �ासयासपद

�! गाधीजी क पास तीन तर� की परयोगशा�ाए थी, जिजनम व हिनरनतर सतय, आतम-साकषातकार, सवराजय,

खान-पान, बरहमचय, चरखा, चरिर6-हिनमाण, रामराजय, सव�दय आदिद �कषय की परानविपत क लि�ए अपन परयोग म �ग र�त थ। उनकी परथम परयोगशा�ा थी राषटर, ज�ा पर 'सतयागर�' का परयोग च�ता र�ता

था। व हिवततिभनन परिरलसिसथहितयो तथा हिवरोधी पकषो क खिख�ाफ इसका परयोग करत थ। सफ�ता- असफ�ता स व मकत थ। असफ� �ोन पर नय रप म परयोग करत थ। ज) उनस इस )ा)त पछा जाता था, तो व

साफ शबदो म क�त थ हिक म एक वजञाहिनक ह, जो हिक एकदम नय कष6 म अपना परयोग कर र�ा �।'सतयागर�' गाधीजी क लि�ए हिवजञान और क�ा दोनो था, जो अभी अपनी परसव- पीडा स गजर र�ा �।

हिफर हिकसी भी परयोग पर 'अनविनतम' की म�र �गा दना गाधीजी क सवभाव क खिख�ाफ था। व क�त भी � -

' जिजस परकार मनषय का हिवकास �ोता र�ता �, उसी परकार म�ावाकयो क अथ का हिवकास �ोता �ी र�ता �। और " ज�ा �ोग अथ¾ को मयादिदत कर डा�त �, उनक आसपास दीवार खीच दत �, व�ा समाज का पतन हए हि)ना न�ी र�ता।'' गाधीजी की दसरी परयोगशा�ा आशरम थी। आशरम म लिशकषा, कताई- )नाई तथा उतपादन-

हिकरया स सम)तमिनधत परयोग च�त र�त थ। य�ा तक हिक समरषिपत सामाजिजक कायकता और सतयागर�ी भी य�ी पर परलिशततिकषत �ोत थ। सवासथय- सफाई पर हिवशष धयान दिदया जाता था। सवधम समभाव, सतय,

अहि�सा, अपरिरगर�, असतय आदिद एकादश वरतो पर हिनरनतर सिचतन- मनन �ोता र�ता था। गाधीजी की तीसरी व अनविनतम शा�ा उनका अपना सवय का शरीर व मन थी। इस शा�ा म गाधीजी

सतय एव अहि�सा का सकषमतम धरात� पर परयोग करत थ। बरहमचय की उचचतम साधना की जाती थी। स6ी व परष क हिवभद को धिमटान का परयोग च�ता था। सवय को शनय )नान का परयास हिकया जाता था। गीता क आपत वचनो का समपण पा�न करन का अभयास हिकया जाता था। यम- हिनयम की पण

साधना की जाती थी। वसतत: जिजस तर� भौहितक वजञाहिनक )ा�री परयोगशा�ा म अपन परयोग करत �, ठीक उसी तर� गाधीजी अपन ऊपर परयोग करत र�त थ।

दरअस� हिवजञान एव परौदयोहिगकी का म�ततव सदा स र�ा �। �ा, उसका सवरप जरर ततिभनन र�ा �। गाधीजी क लि�ए धम भी हिवजञानमय �। उन�ोन धमगरथो को वजञाहिनक गरथो क रप म दखा, जिजनम गभीर

सशोधनीय जञान भर हए �। गाधीजी क�त भी � - ' जिजस )ात को �म तक की कसौटी पर कस सकत�ो, अवशय कस और जो )ात इस कसौटी पर खरी न उतर, व� भ� �ी पराचीनता क परिरवश म

दिदखायी दती �ो, उस मानन स इनकार कर द।'' जिजस तर� वजञाहिनक परमपराओ का अनविनतम मत रप हिवजञानी की लिचनतन- श�ी म �ोता �, ठीक उसी परकार धारमिमक परमपराए भी अपनी पण अततिभवयलिकत शरषठतम मनषय म पाती �। गाधीजी न एक जग� लि�खा भी � - " पगम)र अपनी जिजहवा स कछ न�ी

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क�त, )लकि\क अपन जीवन और आचरण क जरिरय )ो�त �।'' य�ी न�ी, गाधीजी न तो य�ा तक क�ा � हिक शास6ो का वयाखया- अधिधकार भी उसी को �, जिजसन यम- हिनयम की समपण साधना की �।

गाधीजी न जग�- जग� पर य6ो तथा हिवजञान क दवारा हिकय गय आहिवषकारो क दरपयोग पर दिटपपणी की �। पर इसका य� अथ कदाहिप न�ी हिनक�ता � हिक व हिवजञान- हिवरोधी थ। य� तो एकदम साधारण सी )ात � हिक य6 व तकनीक क हि)ना जीवन जीना असभव �। गाधीजी तो उन स) चीजो क हिवरोधी थ,

जो मानवता क खिख�ाफ थ। उन�ोन हिवजञान व तकनीक क हिवदरप को )ड नजदीक स दखा था। य�ी कारण � हिक व हिवजञान क इस रप स सदव खफा र�त थ। जिजस चरख को �कर उन पर परातनपथी व

हिवजञान- हिवरोधी �ोन का आरोप �गाया जाता र�ा �, उसी क )ार म गाधीजी न क�ा � - " डढ आन की कताई को दगना करन क लि�ए यदिद कोई मझ चरख जसा दसरा स�भ और आसान माग )ता द, तो म चरख को ज�ा द।'' दरअस� गाधीजी य6 न�ी, य6वाद क हिवरोधी थ। शोषण क नय- नय तरीक ईजाद

करनवा� तथाकलिथत वजञाहिनक मनोदशा क हिवरोधी थ। परकहित क साथ अतयाचार करनवा�ी जड मानलिसकता क हिवरोधी थ और उनका हिवरोध था पराततिणमा6 क खिख�ाफ च� र� हिकसी भी वजञाहिनक सोच

का।गीता- प6 गाधी ' समतव योग उचयत' क परम आगर�ी थ। परकहित क साथ हिकसी भी परकार की छडछाड

उनक सवभाव क हिवपरीत थी। व मानत थ हिक परकहित न �म अपनी आवशयकता की परषित क लि�ए स) कछ उप�बध कराया �।

गाधीजी को न समझन क कारण उनकी धिमतवययी भाषा भी �। व क�त � - " मरी भाषा सततिकषपत �ोती�।'' भाषायी सीमा स गाधीजी अचछी तर� परिरलिचत भी �। तभी तो व क�त � हिक "  भाषा हिवचारो का

)हत अपण और कमजोर वा�न �। मर दिद� म जिजतना �, उसम स थोडा- सा �ी लि�ख सका ह। भाषा की य�ी सीमा �। मन जो लि�खा �, उसका अगर मनन करोग, तो मरी )ात समझ म आ सकती �।''

अस� म नव )जिदधजीहिवयो न गाधीजी को सत�ी तौर पर दखन का परयास हिकया और अपन सवाथपरक दधि}कोण स उनक जीवन- दशन की वयाखया की �। तभी उन� गाधी कभी हिवजञान- हिवरोधी नजर आत �,

तो कभी आधहिनकता हिवरोधी। कभी परपरा क परहित आगर�ी दिदखत �, तो कभी परातनपथी। सचचाई तो य� � हिक �मन गाधी को ईमानदारी स समझन का परयास �ी न�ी हिकया। )स सनी- सनायी )ातो को

आख मद कर सवीकार कर लि�या। य� अधहिवशवास �ी गाधी क परहित अनाप- शनाप दिटपपणी क��वाता �। सच �ी � हिक सम� का अधहिवशवास खतरनाक �ोता �, तो )जिदधजीवी का अधहिवशवास भी कम

खतरनाक न�ी। आज �म इसी परकार क अधहिवशवास क दौर म च� र� �, ज�ा परतयक नवलिशततिकषत अपनी सहिवधावादी और कषदर वयलिकतगत �ा�साओ की परषित क लि�ए वजञाहिनक भाषा का कवच धारण करक च� र�ा �। अत: इनस सावधान र�न की जररत �।

गाधीवाद � परहिकरया-परकाश- �ष शमा

म�ापरषो का जीवन सघष¾ स भरा �ोता �। जस ओस की )द काटो की नोक पर उगकर ठ�र जाती�, वस �ी यग- परष भी तानाशा� क अलकिसततव को खतम कर दता �। चहिक मनषय परकहित का अश �,

अत परकहित म च� र�ा सघष मनषय क सघष की तर� �ी �ोता �। परकाश की �र हिकरण चम)क-हिवदयत क परसपर परहितहिकरया- सघष स आग )ढती �। परकाश म सतत सघष � और य� सघष म�ापरषो क

जीवन- परकाश स भी म� खाता �। सीदिढयो पर चढत- चढत ऊचाई पर चढना लिशखर को फत� करना भी � तथा य� दखना भी � हिक �र पवत को �ाघन क लि�ए सवय सीढी �, कयोहिक कोई भी पवत

एकदम खडा दस मी� ऊचा )न �ी न�ी सकता। म�ापवत तक सवय झका हआ तथा सतत धीर- धीर ऊचाई और लिशखर )नता � तो कया सतत धीर- धीर उस पर चढनवा�ा न�ी पदा �ोगा? जस

�वाईज�ाज सतत ऊधवगामी �ोकर दस हिक�ोमीटर की ऊचाई पर या6ा करता �, वस �ी आरो�ीछोटी- छोटी चढाइया चढकर एवरसट पर पहच जात �। इसीलि�ए सघष की उमर, सघष पदा कर दन वा�

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क साथ- साथ �। यदिद पापी � तो उसक मारन की हिवधिध भी �। यदिद तानाशा�ी जजीर � तो जजीरो क )ीच की फाक स वाय तथा ज� क गजर जान की जग� भी �। जो जजीर जिजतनी �ी मोटी �ोगी, उसम स �वा तथा ज� या हिकसी तर�ता क गजरन की उतनी �ी जयादा फाक �ोगी। इसस य� हिनषकष

हिनक�ता � हिक चतना हिकसी सजन का रप � और सघष )हत कदिठन न�ी, )लकि\क स�ज भी �। काटो की नोक ओस की )द को जरा भी न�ी चभती। इसलि�ए सघष- शलिकत गाधी सरस तथा स�ज एव परसनन

जीवन जीत र�, घ)रात र� अगरज। जस राणा परताप क )ाद लिशवाजी, हिफर टीप एव रानी �कषमी)ाई आ गयी, जस राम क )ाद कषण आ

गय, वस �ी सागर म असखय ��र आती र�ती �। सघष- परषो की कभी कमी न�ी �ोगी। एक चरिर6 दसर चरिर6 म उतरता �, )शतÆ हिक �नवा�ा सदगणी �ो। कषण भगवान की गीता स गाधी पररिरत �ोत �,

ज)हिक भगवान कषण सवय दय�धन को समझान गय �, �हिकन व� सई- नोक भर की जमीन भी दन क लि�ए तयार न�ी �। लिशव अवतार �नमानजी तथा म�ा)�ी अगद समझा र� �, �हिकन रावण न�ी

मानता, कयोहिक जिजस सधि} न रावण या दय�धन को )नाया �, व� इतनी र�सयमयी � हिक कषण भी न�ी समझ पात सधि} की एक नगणय ईकाई को, ज)हिक एक अनय अलकिसततव क लि�ए पसतक �ी काफी �।

गाधीजी क सघष स पररिरत �ोकर मारटिटन �थर हिकग न भी सघष हिकया। व�ी शलिकतया थी, जो उन� द)ा र�ी थी, �हिकन व द) न�ी र� थ, कयोहिक उन� जञात था हिक उनका रासता गाधीवादी �, सतय क पकष म �। इसी तर� न\सन मणड�ा न भी यातनाए स�ी, व ज� म र�, �हिकन उन�ोन सघष न�ी छोडा।

तानाशा�ी जजीर की तर� �ोती � और चहिक जजीर स हिकसी को )ाधा जाता �, अत: जो उसम )धा�, उसकी हिकरयाशी�ता स एक दिदन जजीर टट जाती �। यदिद जजीर हिकसी घाट पर �ो, त) उसम स

गजर कर पानी जजीर का कषरण करक उस तोड दता �। ऐस �ी पानी की तर� �ोता � सघषकरनवा�ा, जो धीर- धीर जजीर क जोडो को खो� दता �। जस रससी आत- जात पतथर को धिघस दती

�। जस सागर की ��र पतथर को रण म )द� दती �, वस �ी म�ामानव ��रो और रससी स )हत कम समय म �ी जजीर को तोड दता �। मनषय पानी, रससी और ��र स )हत )डा �, इसीलि�ए कम समय

�ता �। यदिद हिवकलिसत दशो और धहिनको तथा हिवकासशी� दशो तथा गरी)ो पर कोई सत )न सकता � तो व�

� गाधीवाद। कछ �ोग क� सकत � हिक धन, आयध, ऐशवय तथा पद �मारा �कषय �ोना चाहि�ए। कछ �ोग क� सकत � हिक शाहित, सख, सौमयता तथा नयाय �मारा �कषय �ोना चाहि�ए। धनी और उननत �ोग भोग तथा हिवशष वयाधिधयो स पीहिडत �, त) व उननत क�ा हए। उननत तो व� हआ, जो परमी �, सवसथ � तथा स�अलकिसततव म योगदान दता �। तो कया सार हिवकासशी� �ोग सखी �? न�ी, कयोहिक उनकी भी

सीमाए �, जस व अकमणयता, अलिशकषा तथा आ)ादी स गरसत �। व ढोग तथा अध- हिवशवासो स गरसत �। ऐस म �कषय तो य�ी �ो सकता � हिक सतय का स�ारा लि�या जाय। धिमटटी स राकट, कमपयटर,

�वाईज�ाज हिनक�ा तो धिमटटी तथा शोधकता मनषय दोनो सममान क योगय �। मान �ीजिजए हिक हिवकासशी� दश धिमटटी � तो उसस परगहित की ऊचाई )न। यानी हिक हिवकलिसत दश हिवकासशी� दश की

स�ायता कर और यदिद हि)ना धिमटटी क उपकरण )न न�ी सकत तो धिमटटी भी योगदान कर। मनषय और धिमटटी धिम�कर )�तर मनषय )नत �। मनषय (कव�) दो धिमनट भी �वा क हि)ना जिजदा न�ी र� सकता,

अत: �वा भी म�ततवपण �। यानी हिक सधि} म �र हिकसी का योगदान �। हिवकलिसत दश हिवकासशी� दश को �वा की तर� जररी मानग, तभी उन� स�ी सख धिम�गा। अनयथा व भोग की मरीलिचका म भटकत-

भटकत मरत र�ग। कया पततिशचमी दशो म सभी सवसथ वयलिकत सौ वष का जीवन जीत �? न�ी, व�ा भी अका� मतय कभी भी �ोती �। अत: सार मनषय धिम� और हि�सा कम �ो।

गाधीजी साधना को कम की हिनषकामता, मन की हिनम�ता मानत � तथा अपरिरगर� पर जोर दत �, ताहिक सभी उलिचत वसत, भोजन तथा आवास परापत कर सक और नय शोधो स मनषय को और भी )�तर )नाय, अनयथा उननहित क नाम पर पततिशचम क दस- )ार� सा� क )चच और )लसिचचया काम- वासना

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म ड) र�ग और हिवकासशी� दशो की परहितभाए उनक य�ा जाकर हिवजञान- तकनीकी पर शोध करतीर�गी।

पततिशचम म आज पढाई म�गी �, मा- )ाप भोग म ड) �। अत: सो�� सा� )ाद )चचो को )ो� दत � हिक कमाओ और जिजयो। ज)हिक हिवकासशी� दशो म मा- )ाप )चचो को जररत पड तो तीस- चा�ीस सा� तक सभा�त �। इन�ी हिवकासशी� दशो की परहितभाए हिवकलिसत दशो म हिव�कषण काय कर र�ी �,

�हिकन अपन य�ा असफ� र�ती �, कयोहिक हिवकासशी� दश दशो म शोध का मा�ौ� न�ी �। इसका मत�) य� हआ हिक हिवकलिसत और हिवकासशी� दश एक दसर क करी) आय। य� काय गाधीवाद समपनन कर सकता �, कयोहिक गाधीवाद नयाय, कमठता, मन की हिनम�ता, पाखड�ीनता और

स�अलकिसततव का नाम �। गाधीवाद परकहित म च� र�ी परहिकरयाओ का अलकिसततव �, कयोहिक य�ा �र कोई हिकरयाशी� �, चा� सय �ो, उसकी हिकरण �ो, पकषी �ो या सागर की ��र �ो। परकहित म स�अलकिसततव �।

आदमी �वा क हि)ना मर जाता �, �हिकन �ाशो क लि�ए वयथ �, अत: स�अलकिसततव �ी जीवतता �, åाकी अक�- अक� सभी वयथ �। अधहिवशवास कई तर� क �ोत �, जिजसस हिवकलिसत और हिवकासशी�

दश दोनो गरसत �। जो हिवकलिसत �, व भोग स और जो हिवकासशी� �, व अकमणयता तथा अलिशकषा- आ)ादी स गरसत या 6सत �। भोग �म अधा )नाता �, अकमणयता भी आख न�ी खो�न दती। आखिखर

आख खो�न म भी तो ऊजा �गती �। इसलि�ए गाधीवाद का सत हिवकलिसत तथा हिवकासशी� दोनो को एक करक )फ स म�ा झी� )ना सकता � और मनषय जाहित पर ईशवर को गव �ोगा, न हिक व� )ार- )ार अवतार � और रावण- कस को मारता हिफर। ज) उसन मनषय )नकर अतयाचारिरयो को मारा, त)

�मारा परथम कतवय �ो जाता � हिक �म हि�सा, भोग, अधहिवशवास तथा अकमणयता को मार। जस �र कण रोशनी का काय करता �, वस �ी �र हिवचार, साधना तथा साकषातकार भी परकाश �।

परकाश की हिकरण काट पर भी हिगरती �, फ� पर भी, पतथर पर भी, पानी पर भी, �हिकन व� क�ी रकती न�ी। इसी तर� गाधीवाद � परहिकरया-परकाश, जो भहिवषय म सदा परासहिगक �ोगा और आ�ोकमय

र�गा गाधीवाद, कयोहिक इसस परम, करणा, अहि�सा �, जो उचचतर परकाश- हिकरण �। प�� �म हिकसी वसत, हिकसी दशय या परवा� को दखत �। प�� कोई उडता पछी, )�ती हई नदी,

ददीपयमान पवत �मारी आख स �मार मलकिसतषक म उतर जाता �, हिफर व� )नता � समहित, जिजसससमय- समय पर दशय याद आता र�ता �। हिकसी मनषय क साथ सा�ो र� जाय तो व� समहित इतनी

ग�राई म उतर जाती � हिक कभी- कभी उसक हि)ना जीना सभव न�ी �ोता। इसीलि�ए दो अनजान स6ी- परष शादी क )ाद भारतवष म एक साथ सा�ो र�न क )ाद एक दसर क लि�ए इतन आवशयक �ो जात � हिक हि)छडन पर दारण द: ख धिम�ता �। य सारी चीज समहित- कोष की हिव�कषणता क कारण �। हिकसी स जडना योग की एक शरआती पदधहित �। इसी तर� हिकसी अतीत- वयलिकत स जडना तभी सभव

�, ज) �म उसक हिकरया-क�ापो, जग�ो तथा हिवचारो स परिरलिचत �ो। गाधीजी की तसवीर, हिफ\म या मरषितया दखकर, उनक ऊपर लि�ख उपनयास पढकर, व ज�ा- ज�ा र�, उन भवनो तथा जग�ो म जाकर उनका अनभव तथा अनभहित की जा सकती �। गाधीजी जिजस कोठरी म पदा हए थ, व�ा जाकर मरी लिसगरट- �त छट गयी, ज)हिक उसी

भवन क आस- पास शरा) की दकान भी �, पोर)दर म समगसि�ग भी �ोती � सागर तट स। आज भी ज)हिक पोर)दर, अ�मदा)ाद, )म)ई, पवनार-नागपर, दिद\�ी, इ�ा�ा)ाद, वाराणसी, क�कCा आदिद

वाततिणजय, हिवC, भर}ाचार, राजनीहित तथा सख�न स धिघनौन �गत �, व�ी पोर)दर की व� कोठरी, जिजसम गाधीजी जनम; अ�मदा)ाद क जिजस आशरम म गाधीजी र�; मततिण भवन, म)ई, जिजसम गाधीजी

का परकाश फ�ा, एक भवय और ग�री शानविनत स आ�ोहिकत धिम�त �। ज�ा- ज�ा भी व दीघका� तकर�, खासकर साधना- सतय और अहि�सा स म�ातमा )नन क )ाद, व जग�, भवन तथा कोठरिरया औरऐनक- खडाऊ आदिद अजी)- सी शाहित परदान करत �। म )हत स जग�ो क अदर भी गया ह, सागर क

तट पर र�ा ह और कभ आदिद को भी दखा �, मजमा जटा �न वा� परवचनकताओ को भी सना �, �हिकन गाधीजी की जनम- कोठरी जसी ग�री शाहित गीता पसतक म भी न�ी धिम�ी।

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सारनाथ म गौतम की पदमासन म भवय परहितमा स धिम�ी शाहित, लिशव क योगसथ मखमड� स हिनक�ी लसिसथरता गाधीजी की मरषित या तसवीर स मझ धिम�ती �। �ाठी लि�ए �सत, भागत गाधी की तसवीर

आनद- हिवभोर कर दती �। शाहित और आनद गाधीजी क जीवन स फटता र�ता �। लसिसथर मन स पकड तो अतीत की �र चतना �म ग�री शाहित दती �।

साहि�तय, हिवजञान, क�ा तथा सगीत स मन: लसिसथहित का हिनमाण �ोता �। कभी साहि�तय न गाधीजी को समदध हिकया तो कभी गाधीजी पर म�ानतम �ोगो न साहि�तय लि�खा। कभी च)क न हिवदयत तथा परकाश

पदा हिकया तो कभी हिवदयत न च)कतव )नाया। इसी तर� कभी गाधीजी न रतमिसकन तथा टॉ\सटॉय, वदवयास, त�सी को पढा तो कभी रोमया रो�ा न गाधीजी पर पसतक लि�खी। परकहित म स�अलकिसततव की

एक परहिकरया � परसपरता। एक दसर म उतरत हए, एक दसर को परभाहिवत करत हए सधि} म�ानता की ओर )ढ र�ी �। ज) �म कोई हिगरता हआ पड दखत �, त) �मारा मन भी टटता � और ज) �म हिकसी उडत च�च�ात पकषी को दखत �, त) �मारा मन भी परफलसि\�त �ो )�दी पर पहचता �। वषा

की असखय )दो को हिगरता दखकर मन हिगरता न�ी, )लकि\क उठता �, ज)हिक आस को हिगरता दख मन रोता �। ऐसा हिव�कषण � मन हिक उतथान- पतन क उददशय को प�चान कर व� हिवपनन या समदध �ोता �। ज) गाधीजी अगरजो की �ाठी खा र� थ, त) का दशय अजी)- सी समहित )नता � और �मार हिकसी भी सघष या क} को तचछ कर दता �। कयोहिक आज का क} तो य� � हिक गाडी हिव�म) स च� र�ी � या भोजन सवादिद} न�ी � या हिकसी रिरशतदार न अपनी सत�ी समजिदध स �मारी कम सत�ी हिवपननता को

धिधककारा �।जिजन- जिजन जग�ो, भवनो तथा कमरो म गाधीजी जयादा दिदन तक र� �, व हिकसी मदिदर स भी अधिधक

शाहित इसलि�ए दत � हिक आज मदिदरो क पड- पजारी तथा उनक वयवसथापक भर} �। हिकतन तो साध क वश म स6ी- शोषण म भी �ग हए �। कछ तो ज� की �वा भी खात �। इस तर� मदिदरो आदिद म, ज�ा ईशवर क नाम पर मरषितय का पतथर � और पजारिरयो की भर} जीवन- श�ी �, व�ी पोर)दर, अ�मदा)ाद; मततिण भवन, म)ई आदिद सथानो पर कमरो म अतीत अपन अकषत अलकिसततव क साथ ग�राई स वयापत

धिम�ता �। मौन, नीरवता, हिन: शबदता तथा साधना की सकषम तरग इन जग�ो पर म�सस की जा सकती �। ज) �म अपनी लसिसथरता, मन की भावना स इन जग�ो पर जात �, तभी �म शाहित म�सस �ोती �।

दरअस� ज) �म अ�कार, पद स जड �ोकर, जाच या य �ी घमन की दधि} स जात �, त) भी इन जग�ो म थोडी- )हत शाहित तथा चतना धिम�ती �ी �। पोर)दर की कोठरी म जान क प�� आखिखर म लिसगरट तो पीता �ी था। अत: य गाधी मदिदर परभाव तो डा�त �ी �।

गाधीजी क )ा\य ससकारो की पषठभधिम और उनक राषटरभाषा क हिवचारडॉ. हिवजयराघव रडडी

म�ातमा गाधी हिवशववदय �। हिवशव की सभी परमख भाषाओ म व समादत �। उनकी जीवनी और उनक जीवन की म�ततवपण घटनाओ पर हिवप� साहि�तय भारत की सभी भाषाओ म उप�बध �। उन�ोन अपनी

आतमकथा अपनी मातभाषा गजराती म लि�खी � और उसका नाम रखा " सतय क परयोग अथवाआतमकथा'' । य� गरथ भी हिवशव की सभी परमख भाषाओ तथा भारत की सभी भाषाओ म अनदिदत हआ

�। भारत सरकार क परकाशन- हिवभाग न सौ खणडो म अगरजी और हि�दी म ' गाधी वाङमय' परकालिशत हिकया �। गाधीजी क 18 रचनातमक कायकरमो म स हि�दी का परचार एक म�ततवपण कायकरम माना जाता �। गाधीजी क दवारा हि�दी को राषटरभाषा क रप म घोहिषत करना, सवत6ता- सगराम म राषटरभाषा हि�दी क परचार की भधिमका तथा गाधीजी की राषटरभाषा- नीहित अथात उसक सवरप और परचार क तौर-

तरीको को �कर )हत- कछ �मारी )हत भाषाओ म लि�खा गया �। इतना हिवशा� वाङमय उस म�ातमा क स)ध म उप�बध �ोन पर भी, ऐसा �गता � हिक अ) भी )हत कछ कथनीय, हिवचारणीय एव

हिवशलषणीय र� गया �। उस म�ान मनीषी का इतना )हआयामी वयलिकततव �, इतन वयापक वहिवधयपण कायकरम र�, जिजनका व अहितम सास तक हिनवा� करत र�, उन स)को समाहि�त करन म साहि�तय की

परिरधिध पयापत न�ी �ोगी। म�ातमा को समझन म और समझान म �मारी भाषाए असमथ- सी �गती �।

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इस सदभ म �म आइनसटाइन का व� कथन )र)स समरण �ो आता �, जिजसम उन�ोन क�ा था हिक सभव � हिक " आगामी पीदिढया य� कदिठनाई स हिवशवास कर हिक इस परकार का कोई रकत- मासवा�ा परष धरती पर उतपनन हआ �ोगा!''

राषटरभाषा हि�दी की हिवकास-या6ा, राषटरभाषा पद स राजभाषा क रप म उसका पद-परिरवतन, उसकी वतमान दशा-दिदशा, सवत6ता- सगराम क दिदनो म गाधीजी क नततव म हि�दी को �कर जो हिवचार दश म परचलि�त र� थ, उनक स)ध म सहिवधान- हिनमाण क समय जो हिवचार हि�दी को �कर वयकत हिकय गय थ

तथा सहिवधान �ाग �ोन क )ाद स हिवशष कर सन 1963 म उतपनन हि�दी- आदो�नो क परिरपरकषय म परवत� का� म हि�दी को �कर हिवचारो म जो परिरवतन आय � और आ र� �, इन स)क स)ध म �म

)हत- कछ पढन को धिम�ता र�ता �। इसलि�ए हि�दी की वतमान लसिसथहित या उसक भहिवषय क )ार म चचा न करत हए म य�ा य� हिवचार करना चाहगा हिक गाधीजी क दवारा हि�दी को राषटरभाषा क रप म सवीकार

करन म अनय तमाम कारणो क अ�ावा उनक )ा\य ससकारो की भी कोई भधिमका र�ी थी? उनक घर- परिरवार और उन�ोन जिजस परदश म जनम लि�या था, उस गजरात क पारपरिरक परिरवश की हिकतनी पीदिठका र�ी थी?

�म जानत � हिक गाधीजी )चपन म )हत सवदनशी� और भावपरवण वयलिकत र�। उन�ोन अपनी आतमकथा म अपन झपपन, दब)पन तथा सकोची सवभाव को सवीकार हिकया। य� भी सतय � हिक

उन�ोन घर- परिरवार और अपन गजराती समाज स धिम� ससकारो को हिकसी भी भौहितक आकषण यासख- सहिवधा क लि�ए छोडना कभी सवीकार न�ी हिकया। ज) �म गाधीजी क जनम स प�� क गजरात

क भाहिषक परिरवश पर नजर डा�त � तो �म पात � हिक भलिकत- आदो�न का गजरात पर भी )डा परभाव पडा था। भागवत पराण क मा�ातमय म " भलिकत दरहिवड उपजी'' वा� परसग म गजरात का भी उ\�ख

धिम�ता �। गजरात म सवामी व\�भाचाय और उनक प6 हिवटठ�नाथजी न वषणव धम का परचार हिकया था। वषणव धम का परचार गजराती भाषा म न �ोकर बरजभाषा म �ोता था। व\�भाचाय क पधि}माग�

वषणव सपरदाय क आठो परमख कहिवयो न बरजभाषा म गीतो की रचना की थी। इनक गीतो क सगर� को अ}छाप क�ा जाता �। गजरात क वषणव कहिवयो न अपनी कहिवताए बरजभाषा म लि�खकर व�ा की

जनता क मन म इस भाषा क परहित मो� पदा हिकया था। इन कहिवयो म भा�ण, कशवराम, )ज )ावरा, नरसी म�ता, �रखराम, दयाराम आदिद परमख �। इसक अहितरिरकत गजरात क कछ सफी कहिवयो न भी

हि�दी को अपनी अततिभवयलिकत का माधयम )नाया था। इनम स शख अ�मद खा, आ�म )खारी, म�ममद लिचशती और शा� हसनी क नाम उ\�खनीय �। ऐस आधार धिम�त � हिक गजरात म जन धम क परचार

म भी बरजभाषा का परयोग हिकया गया था। क�त � हिक आनदवन, जञानानद, हिकशनदास आदिद कहिवयो न बरजभाषा म भी रचनाए की �।

म�ातमा गाधी की पौ6ी शरीमती सधिम6ा क�कण� अपनी पसतक " अनमो� हिवरासत'' म गाधीजी क )ा\यससकारो पर लि�खत हए क�ती � हिक �मार हिपताम� का हिपरय भजन " वषणवजन तो तन कहि�य र,

ज पीर पराई जाण र'', जो नरसी म�ता का �, उन� अपन परिरवार स धिम�ा, जो उस परिरवार काजीवन- आदश भी था। व आग क�ती � हिक अनय धम¾ क परवतन क )ावजद कादिठयावाड म वषणव धम

की जड आम जनता क मानस म ग�रा गयी थी। सधिम6ा क�कण� का क�ना � हिक इस परकार की धमहिनषठा पर 14-15 वी शताबदी क भलिकत रस का पट चढ गया था। रामानजाचाय, चतनय म�ापरभ,

जयदव, मीरा, क)ीर, दततिकषण क आ�वार सत और म�ाराषटर क जञानदव, तकाराम और वाक री पथ क साथ कादिठयावाड म भलिकत रस क कहिव नरसी म�ता का अपार परभाव था। पर परात म उकत दिदनो भजन- कीतन की धम मची र�ती थी। इन स)का परभाव )ा�क गाधी पर ग�रा पडा था। इस परभाव क साथ

ततका�ीन वषणव सपरदाय की वरणय भाषा क रप म परचलि�त बरजभाषा क परहित गाधी क आकषण स इनकार न�ी हिकया जा सकता। इसक अ�ावा गजरात क सथानीय राजाओ क बरजभाषा और हि�दी क

परहित �गाव क कारण सौराषटर, कचछ और भज रजवाडो की जनता म हि�दी एव बरजभाषा क परहित आदरभाव था। भज म तो बरजभाषा पाठशा�ा की सथापना की गयी थी और बरजभाषा म कहिव �ोगो को

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तयार हिकया जा र�ा था। य स) परमाततिणत करत � हिक गजरात क राजा न कव� सवय भी हि�दी म कहिवता करत थ, अहिपत हि�दी कहिवयो को मान- सममान और आशरय दत थ। " राषटरभाषा हि�दी क परचार-

परसार म आयसमाज का योगदान'' नामक अपन आ�ख म कषण कमार गरोवर लि�खत � हिक गजरात परदश म हि�दी का ऐसा सखद और आदश वातावरण था, जिजसम सवामी दयानद सरसवती का )चपन

)ीता, जिजन�ोन ' सतयाथ परकाश' को हि�दी म लि�खकर आय समाज का परचार हि�दी क माधयम स हिकया। क�ना न �ोगा हिक गाधीजी स प�� सवामी दयानद सरसवती न हि�दी क परचार- परसार को आय समाज

की नीहित और लिसदधातो म शाधिम� कर लि�या था। गजरात परदश क ऊपर उलसि\�खिखत ततका�ीन धारमिमक और भाहिषक परिरवश म गाधीजी का )चपन )ीता

था। आलकिसतक तथा वषणव परिरवार म पदा हए, पा�- पोस हए )ा�क क )ा\य ससकारो की पषठभधिम म बरजभाषा थी, जो वरणय भाषा र�ी थी। बरजभाषा धारमिमक पषठभधिम क कारण ससकत, पा�ी, पराकत क

)ाद अगरजो क आगमन तक सार दश म समादत �ोती र�ी। य�ा य� दर}वय � हिक धमपरायण भारत की जनता क लि�ए सपक भाषा क रप म मानयता परापत करन क लि�ए उसका धम स जडा र�ना भी उसकी

एक अहितरिरकत योगयता मानी जाती र�ी �। अगरजो क आगमन क उपरात राजनहितक, सामाजिजक और ऐहित�ालिसक परिरवतन क कारण बरजभाषा का वचसव खतम �ोता गया और उसका सथान खडी )ो�ी न �

लि�या। गाधीजी इसी भाषा क सावजहिनक सपक भाषा क रप को हि�दसतानी क�त थ, जिजस �ी व राषटरभाषा का दजा दत थ। व इसी भाषा क परचार को सार दश म चा�त थ। आजादी स प�� 27

जनवरी 1946 को गाधीजी न दततिकषण भारत क पदवीदान समारो� म जो भाषण दिदया था, उसम भी उन�ोन हि�दसतानी पर अपना अततिभमत परकट हिकया। भाषण का परा पाठ य�ा उदधत �, जो भारत सरकार क परकाशन हिवभाग क सपण गाधी वाङमय- भाग 83 स लि�या गया � -

" आज का काय पणय- काय �। कई )रसो क )ाद म य�ा खास इस समारमभ म भाग �न क लि�ए आया ह। �मार सामन काम तो काफी पडा �। थोडा- थोडा करक �म परा कर �ग। ज) �म य�ा एक पणय-

काय क लि�ए इकटठा हए �, कछ आदमी आपस म )ात कर र� �। य� तो लिश}ता का भग �ो गया।य�पणय- काय �। आप स) शानविनत रख। शानत लिचC )न, जिजसस हिक य�ा जिजन- जिजन सनातक- सनाहितकाओ

को पदवीदान करन क लि�ए म आया ह, उन� सावधान कर समझा सक हिक �मारा जो काय �, व� उन� हिववक रखकर करना �। हिववक�ीन मनषय और पश तो एक स �। आज जिजन� पदहिवया धिम�गी, व )ाद

म तो �मारा �ी काय करग। हि�नदसतानी का परचार करग। इसलि�ए आप स)क पास य� हिववक- रपी समपततिC तो जरर �ोनी चाहि�ए। य� समपततिC अगर आपक पास न �ो तो आप

य� काम कस कर सक ग? दसरी )ात आज जो म क�नवा�ा ह, उसक )ार म आपको सलिचत करन क लि�ए मन सतयनारायणजी

स क�ा था। व� )ात य� � हिक आज आप �ोग जो परहितजञा �ग, उसम �मारी राषटरभाषा का नाम अ) हि�दी न र�कर हि�दसतानी र�गा। �मारी राषटरभाषा एक लि�हिप म न�ी, हिकत दो लि�हिपयो म लि�खी जाएगी।

राषटरभाषा परचार- काय क लि�ए दरवय दनवा�ो को भी य� )ात प�� समझा दनी चाहि�ए। �मारा काम उन� पसद � या न�ी, य� दखकर व मदद द। काम जो च�ता �, व� कौडी स भी च�ता �। �हिकन कौडी भी काम क पीछ- पीछ च�ती �। अगर �म इस चीज को ठीक न�ी समझत, जिजसका �म परचार करत �, त) तो व� स) वयथ �ोनवा�ा �। य� एक लिसदधात न�ी, )लकि\क अहिवच� अनभव �। �मारी

राषटरभाषा अगरजी न�ी �ो सकती �। �मार दिद� स हि�दी शबद क )द� म हि�दसतानी शबद हिनक�ना चा�ता �। और ऐस �ी भारत क चा�ीस करोड �ोगो क दिद� �ो जाय, व� भी सवाधीन भारत क - तो �मारी राषटरभाषा लिसवा हि�दसतानी क दसरी कस र� सकती �?

इस हि�दसतानी को आप अचछी तर� समझ �। हि�दसतानी तो हि�द और मस�मान दोनो )ो�त �। �हिकन आजक� उसम दो परकार �ो गय �। ससकतहिनषठ हि�दी और फारसी- धिम�ी मलकिशक� उद।

ससकतमय हि�दी म ससकत शबदो की )ाढ आयी �। इसस हि�दसतानी की ससमपननता तो )ढती �ी �। हि�दी और उद नदिदया और हि�दसतानी सागर �। इन दोनो स �म घणा न�ी �ोनी चाहि�ए, �म तो दोनो को

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अपना �ना �। हि�दसतानी का पट इतना )डा � हिक व� दोनो को अपना �गी। इसक फ�सवरप व� एक भारतीय और परौढ भाषा )न जायगी, जिजसस �मार दश और दहिनया क �ोग सीखग। हि�दसतान म

करोडो आदधिमयो की आ)ादी �। हि�दसतानी ज) करोडो आदधिमयो की और व� भी सवाधीन भारत की भाषा )न जायगी तो सचमच व� एक )हत )डी )ात �ोगी। आज जो पदवी �न आय �, व इस )ात

को हिकसी भाहित समझ � और उसक मताहिåक काय कर।'' उकत भाषण स प�� भी गाधीजी न सन 1945 म म�ा)�शवर म य� उदगार वयकत हिकया था हिक

हि�दसतानी का मत�) उद न�ी, )लकि\क हि�दी और उद की व� ख)सरत धिम�ावट �, जिजस उCर हि�दसतानी क �ोग समझ सक और जो नागरी या उद लि�हिप म लि�खी जाती �ो। य� परी राषटरभाषा �,

åाकी अधरी। गाधीजी चा�त थ हिक पाहिकसतान क )न जान पर भी भारत की राषटरभाषा व�ी ख)सरत धिम�ावटवा�ी

भाषा हि�दसतानी �ो। उन�ोन राषटरभाषा क पाच आवशयक गणो की हिगनती करत हए उसक दसर गण क )ार म क�ा हिक व� ऐसी भाषा �ो, जो भारत क धारमिमक, आरथिथक और राजनहितक सपक क लि�ए

सशकत माधयम �ो। गाधीजी न इसम सवपरथम धारमिमक सपक की )ात क�ी �, जिजस नजरअनदाज न�ी हिकया जा सकता। व मानत थ हिक हि�दसतानी �ी एक ऐसी भाषा �, जो हि�द- मलसिस�म दोनो सपरदायो को

एकजटता म रखन क लि�ए कारगर माधयम साहि)त �ोगी। इसलि�ए व अपनी मतय क अहितम दिदनो म भी हि�दसतानी पर )� दत र� थ। उनक हिनमनलि�खिखत पाच उदधरण परमाण क रप म परसतत � -

1. भ� �ी इस हिवचार क साथ आज म अक�ा �ोऊ, य� साफ � हिक ससकतमयी हि�दी हि)�क� )नावटी � और हि�दसतानी हि)�क� सवाभाहिवक �।

2. लि�हिप म स)स आ�ा दजÆ की लि�हिप नागरी को �ी मानता ह।3. ज) नागरी क पकषपाती उद लि�हिप का हिवरोध करत � तो उसम मझ दवष की और असहि�षणता यानी

तअसस) की ) आती �।4. ज�ा तक म समझता ह, हि�दसतानी क लि�ए दोनो लि�हिपयो का च�न थोड असÆ क लि�ए �ी जररी �।    ( ऊपर क 4 उदधरण ' �रिरजन सवक' क 25.01.1948 क अक स लि�य गय �।) ' हि�नदसतानी जाननवा� मझ अगरजी म खत लि�ख तो म फ क दगा, कयोहिक म जानता ह हिक व

हि�दसतानी लि�ख सकत �।' - पराथना परवचन 26.01.1948 स

�हिकन गाधी की मतय क )ाद भारत का जो सहिवधान सवीकत हआ, उसम गाधीजी क हिवचार ताक म रख दिदय गय। जो अनचछद राजभाषा क स)ध म ( राषटरभाषा न�ी) सवीकत हए, व �मार सामन � और य� भी �मार सामन � हिक राजभाषा हि�दी एव राजयो की राजभाषाओ का कया �शर �ो र�ा �।

सहिवधान की अ}म अनसची तक म हि�दसतानी न�ी जोडी गयी। �ा, गाधीजी क हि�दसतानी- हि�मायहितयो क आस पोछन क लि�ए अनचछद 351 म इस सतमिममलि�त हिकया गया �।

मीरा)ाई की परासहिगकता और म�ातमा गाधीडॉ. कम�हिकशोर गोयनका

मीरा)ाई भलिकतका� की सव�तक} भकत कवधिय6ी थी। भलिकतका� म गोसवामी त�सीदास, सरदास, क)ीर और जायसी जस म�ान कहिव उतपनन हए। इन म�ान कहिवयो म मीरा)ाई भी अपन वलिशषटय क कारण

म�ततवपण सथान रखती �, )लकि\क यदिद य� क�ा जाय हिक व अपन परकार की अक�ी कवधिय6ी � तो अहितशयोलिकत न �ोगी। व कव� कवधिय6ी न�ी थी, )लकि\क ऐसी भकत कवधिय6ी थी, जिजनका उदा�रण

धिम�ना द�भ �। व ऐस समय म जनमी थी, ज) दश म भलिकत- आनदो�न च� र�ा था और यदिद हिगरयसन क शबदो म क� तो य� धारमिमक आनदो�न अ) तक का स)स हिवशा�तम आनदो�न था, जो )ौदध

आनदो�न स भी हिवशा� था, कयोहिक उसका परभाव आज तक हिवदयमान �। हिगरयसन क�त � हिक त) धम जञान का न�ी, )लकि\क भावावश का हिवषय था और �म य�ा ऐस र�सयवाद और परमो\�ास क दश म आत � और ऐसी आतमाओ का साकषातकार करत �, जो काशी क दिदगगज पहिडतो की जाहित क न�ी थ।

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मीरा कषहि6य क� म जनमी थी और राजरानी थी। व आरमभ स �ी भगवान कषण की उपालिसका थी। मीरा न हिववा� तो हिकया, परनत �ौहिकक पहित को पहित न�ी माना। उन�ोन ईशवर- रप कषण को अपना

वासतहिवक पहित मानकर अपना जीवन कषणमय )ना लि�या, �हिकन उन�ोन इस ईशवरीय आ�म)न कोपहित- पतनी क मानवीय सम)नधो म )ाधकर उस �ोक- मानस क लि�ए स�भ )ना दिदया। इस मानवीय

सम)नध न भलिकत को नया आयाम और नया रप दिदया तथा धम की र�सयवादिदता एव घोर आधयातमितमकता क सथान पर भलिकत साधारण मनषय क जीवन का अग )न गयी। मीरा की कावय- साधना न कषण क

अ�ौहिकक एव पार�ौहिकक अलकिसततव को जस समापत कर उन� मानवीय परम की पणता एव रस- हिनषठा का परतीक )ना दिदया और परम म आतमोतसग, तनमयता, तीवरता, धिम�न- हिवयोग की ग�री समवदना का ऐसा

रागातमक सम)नध उतपनन हिकया, जिजसन वदना म आतम- परिरषकार एव आतमा- परमातमा क एकतव का माग परशसत हिकया।

मीरा का वलिशषटय इतना �ी न�ी �। मीरा न पहित की परमपरागत सCा एव अधिधकार को सवीकार न�ी हिकया और न पहित क द�ानत क )ाद सती �ोकर परमपरा को आग )ढाया। उस यग क सामनती परिरवश

तथा परष- परधान समाज म ' पहित को परमशवर' माननवा�ी हि�नद स6ी का ' परमशवर को पहित' मानन का अधिधकार परापत करना आसान न�ी था। य� एक परकार स राजनीहितक सामनतवाद तथा धारमिमक परमपराओ क हिवरदध मीरा क रप म यग की नारी का मक हिवदरो� था। मीरा इस मक हिवदरो� क कारण

'क�नाशी' क��ायी और उस हिवष का पया�ा भी पीना पडा, परनत मीरा न नारीतव को जीहिवत रखा और लिसदध कर दिदया हिक पहित की सCा क हि)ना भी नारीतव का अलकिसततव �। इस परकार मीरा न नारी की सवत6 सCा का उदघोष करक भी उस सवकीया परम स जोडा तथा परमशवर पहित क परहित एकहिनषठ परम की साधना करक भारतीय नारी को परमपरागत मयादा और सयम म रखा। वासतव म मीरा इ}दव क परहित अननय भाव, सवकीया परम की तनमयता, घनीभतता, हिवयोग म धिम�न की कामना, सयम और मयादा

आदिद क कारण भारतीय नारी का जीवनत परतीक )न गयी। मीरा क ऐस �ी रप तथा भारतीय नारी की ऐसी �ी हिवशषताओ न म�ातमा गाधी की

चतना, सघष तथा जीवन- म\यो को इतना परभाहिवत हिकया हिक उन�ोन अपन सवाधीनता- सगराम म मीरा क वयलिकततव तथा कावय- साधना का भरपर उपयोग हिकया। उन�ोन अपन जीवन- का� म �गभग पचास )ार अपन भाषणो, प6ो, �खो आदिद म मीरा)ाई का समरण हिकया और उनकी हिकसी-न- हिकसी हिवशषता का उ\�ख करक लिसदध हिकया हिक भारत की सवत6ता तथा उसक हिवकास म उनका हिकस परकार उपयोग �ो सकता �। म�ातमा गाधी अपन समय क स)स अधिधक आधहिनक भारतीय थ और उन�ोन दततिकषण

अफरीका स �ी अगरजो की दासता तथा उनक अतयाचारो क हिवरदध अहि�सक सघष शर कर दिदया था। उन�ोन भारत आकर अस�योग, सतयागर�, सहिवनय अवजञा तथा अहि�सा स सवराजय क लि�ए सघष आरमभ हिकया और इसक लि�ए उन� मधययग की भकत कवधिय6ी मीरा)ाई अतयनत उपयोगी �गी तथा व

उनक जीवन और साहि�तय का उपयोग इस राषटरीय जागरण म )रा)र करत र�। म�ातमा गाधी न स)स प�� 22 जन 1907 को मीरा)ाई का उ\�ख करत हए लि�खा हिक �म मीरा)ाई जसी �जारो तमिस6यो की आवशयकता �, जो भारत क आध स6ी- समाज को लिशततिकषत और जागरत

कर सक । ऐसी मीरा)ाई का परिरचय अपनी एक ईसाई धिम6 को दत हए गाधी न अपन 11 जन 1917 क प6 म लि�खा, ''दो- तीन शताबदीपव मीरा)ाई नामक एक म�ान रानी हई �। उन�ोन अपन हिपरय

वयलिकतयो और समसत वभव का तयाग करक परम परम का जीवन हि)ताया। अनत म उनक पहित उनक भकत )न गय। �म अकसर उनक रच हए कछ सनदर भजन आशरम म गात �। ज) तम आशरम म

आओगी, त) उन गीतो को सनोगी और हिकसी दिदन गाओगी भी।'' मीरा क इन सनदर गीतो का कारण गाधी य� मानत थ हिक व मीरा क हदय स हिनक� � तथा उनकी रचना गीत रचन की इचछा या �ोगो

को खश करन की इचछा स न�ी हई �।1  गाधी मीरा क जीवन स जड चमतकारो को उपकषणीय मानत�, कयोहिक उन� इस परकार क ईशवरीय चमतकारो म हिवशवास न�ी �। उन�ोन इसी कारण ईसामसी� स

जड चमतकारो को भी असवीकार हिकया, �हिकन मीरा क जीवन की परमख चीज की ओर धयान दिद�ाना

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व न�ी भ�त और व क�त � हिक �म जिजस चीज को धयान म रखना �, व� तो मीरा)ाई की पहिव6ता�।2

म�ातमा गाधी मीरा क परम की अदभत शलिकत स पणरप स परिरलिचत �ी न�ी थ, )लकि\क वसी परमानभहित तथा परम की शलिकत अपन परम म उतपनन करना चा�त थ। गाधी समझ चक थ हिक मीरा जसी ग�न एव

घनीभत परमानभहित �ी हिवशव को )द� सकती �। गाधी 15 नवम)र 1917 को लि�ख एक प6 म क�त � हिक मीरा को परम की कटारी ग�री �गी थी। परम की वसी कटारी �मार भी �ाथ �ग और �मम उस

भोकन का )� आ जाय तो �म दहिनया को दिदखा द। परम क अपन अनतर म �ोत हए भी म �र कषण उसक अभाव का अनभव करता र�ा ह। गाधी मीरा क उस पद का कई )ार उ\�ख करत �, जिजसम

मीरा क�ती � हिक कचच धाग स मझ �रिरजी न )ाध लि�या �। व जिजधर खीचत �, म उधर �ी मड जाती ह। मझ तो परम की कटारी �गी �।3  गाधी इसी परम क कचच धाग स मस�मानो को )ाधन तथा गाय की रकषा करना चा�त � एव भारत माता क साथ अटट सम)नध म )धन क लि�ए भी इसी परम क कचच धाग

का इसतमा� करत �। व 30 जनवरी 1921 को 'नवजीवन' म लि�खत � हिक मीरा न जो क�ा, सो करक दिदखा दिदया। परम का य�ी धागा परतयक मस�मान को )ाधन और गाय की रकषा क लि�ए काफी �।

इसी परकार गाधी ज) लिशवपरसाद गपत क आगर� पर ' भारत माता मजिनदर' का काशी म उदघाटन करत � तो क�त � हिक परम की पकार टा�ी न�ी जा सकती। मीरा क परम का धागा कचचा और कोम� था,

�हिकन व� मज)त था। ऐसा परम �ोगो को �जारो मी� दर स खीच �ाता �।4  गाधी मीरा क इस परम- पद का अनसरण यवावसथा स �ी कर र� थ5  और य�ी कारण � हिक उन�ोन मीरा क परम- दशन को

अपन जीवन का आधार )ना लि�या। व मीरा और भारत माता को एक साथ समरण करत हए क�त � हिक मीरा)ाई कश� कातनवा�ी न �ोती तो �रिरजी क परम पाश की धाग स सनदर उपमा कस दती?

भारत माता भी �म वस �ी धाग स )ाधकर ग�ामी क )नधनो स मकत करना चा�ती �।6  इस परकार म�ातमा गाधी भारत माता म मीरा का रप दख र� � और उस दासता स मकत करन क

लि�ए मीरा की परम- शलिकत का उपयोग कर र� �। म�ातमा गाधी अपन सवराजय आनदो�न को तक शी� तथा शलिकतशा�ी )नान क लि�ए मीरा)ाई का अनक

परकार स उपयोग करत �। गाधी ततिभनन- ततिभनन समय पर सतयागर�, अस�योग, सहिवनय अवजञा आनदो�न आरमभ करत � और उनक औलिचतय एव हिवशवसनीयता क लि�ए मीरा)ाई का वस �ी उ\�ख करत �,

जस त�सीदास अपनी )ात का परमाण दन क लि�ए वद का उ\�ख करत �। गाधी क शबदो म मीरा)ाई ' म�ान सतयागर�ी'7  थी। व दततिकषण अफरीका क अपन आनदो�न स �ी मीरा की इस सतयागर�ी शलिकत स

शलिकत परापत कर र� थ और मीरा क अपन सतय क लि�ए हिनदवदव भाव स हिवष- पान का )ार- )ार समरण करत �।8  गाधी मीरा क पहित स अपन सतय क लि�ए अस�योग करन का समथन करत हए क�त � हिक �मार धारमिमक गरथ ऐस अस�योग का समथन करत �। �मारी परमपरा म परहलाद न अपन हिपता स,

हिवभीषण न अपन करर भाई स तथा मीरा न अपन पहित स अस�योग करक कछ भी अनलिचत न�ीहिकया।9  य� सच � हिक अनयायी एव असतय स अस�कार एव अस�योग तथा नयायी एव सतय स

स�कार एव स�योग की परमपरा �मार य�ा र�ी �। इस कारण �म परहलाद, हिवभीषण और मीरा तीनो की �ी पजा करत �।10  गाधी मीरा क जीवन क इस सतय का भी उदघाटन करत � हिक मीरा न राणा क सभी कठोर दड तथा हिवष- पान भी हिनरषिवकार भाव स सवीकार हिकय और करोध एव परहितकार जसा कोई भाव उनक मन म उतपनन न�ी हआ। गाधी इसका उपयोग अपन अस�योग आनदो�न क लि�ए करत हए क�त �, '' मीरा)ाई न राणा कमभा क साथ जो अस�योग हिकया, उसम दवष न�ी था। राणा कमभा दवारा

दिदय गय कठोर दड उन�ोन परमपवक सवीकार हिकय। �मार अस�योग का म�म6 भी परम �ी �। उसक हि)ना स) फीका, स) खा�ी �।''11  म�ादव दसाई की हिगरपतारी पर व पन मीरा को याद करत � और

लि�खत � हिक मरा परा हिवशवास � हिक मीरा)ाई पर उनक पहित दवारा दी गयी यातनाओ का कोई असर न�ी हआ था। ईशवर क परहित परम और उसक अम\य नाम का हिनरनतर समरण उन� हिनतय परसनन )नाय

रखता था।12  गाधी मीरा क इसी एकहिनषठ ईशवर- परम की )ार- )ार सरा�ना करत � और वसा �ी परम

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अपन सतयागरहि�यो क मन म उतपनन करना चा�त �। गाधी मीरा क एक पद की वयाखया म क�त � हिक मीरा जसी भकत नारी क� गयी � हिक परभ- भलिकत म जिजसका मन �ीन �ो गया, उस दसरी चाज नीम क

रस की तर� कडवी और जगन क परकाश की तर� हिनसतज �गती �।13  गाधी क�त � हिक मीरा न य� कर दिदखाया हिक चा� राणा रठ, पर ईशवर न रठ।14  गाधी मीरा स य�ी लिशकषा �त � और 6 दिदसम)र

1944 को अपनी डायरी म लि�खत � हिक मीरा)ाई क जीवन स �म )डी )ात य� सीखत � हिक उन�ोन भगवान क लि�ए अपना स) कछ छोड दिदया।15  गाधी मीरा क राज- भोग को तयाग कर ईशवर- परम म

नाचन की भरिर- भरिर परशसा करत � और अस�योग आनदो�न म सहिकरय छा6ो स आगर� करत � हिक व सरकारी सक�ो क )हि�षकार म मीरा जस तयाग और )लि�दान म आननद की अनभहित कर।16  गाधी मीरा

की आतमा को दश की यवा पीढी क हदय म उतार दना चा�त �। म�ातमा गाधी मीरा क हिववा�, पहित- पतनी सम)नध, स6ी क अधिधकार और उसकी अलकिसमता क परशन को भी

उठात � और इस तर� व एक मधययगीन भारतीय स6ी को आधहिनक दधि} स दखन का परयतन करत �। गाधी हिववा� की परिरभाषा म क�त � हिक हिववा� शरीर दवारा दो आतमाओ का धिम�न �ोता � और इसम

परमशवर क परहित परम एव भलिकत का भाव भी हिनहि�त र�ता �। गाधी क�त �, ''पहित- पतनी का परम सथ� वसत न�ी, उसक दवारा आतमा- परमातमा क परम की झाकी दिदखायी द सकती �। य� परम वासनागत परम कभी न�ी �ो सकता। हिवषय- सवन तो पश भी करता � - ज�ा शदध परम �, व�ा )�- परयोग क लि�ए

गजाइश न�ी। और व एक दसर का मन रखकर च�त �।17  इसलि�ए गाधी मानत � हिक मीरा न य� अपन आचरण स लिसदध कर दिदया हिक पतनी क रप म उसका भी एक वयलिकततव �। गाधी की दधि} म

मीरा ' सती स6ी' थी और उसक लि�ए हिववा� वासना को तपत करन का साधन न�ी था। गाधी क हिवचार म 'सतीतव' का अथ � - ' पहिव6ता की पराकाषठा' और मीरा इसकी परहितमरषित थी। म�ातमा गाधी परष की

हिनरकशता एव एकाधिधकार क हिवरदध मीरा क हिवदरो� को तक सगत मानकर अपनी आधहिनकता क परिरचय क साथ नारी क सवत6 अलकिसततव का समथन करत �। गाधी लि�खत �, '' मीरा)ाई न माग दिदखा

दिदया �। ज) पतनी अपन को ग�ती पर न समझ और ज) उसका उददशय अधिधक ऊचा �ो, त) उस परा अधिधकार � हिक व� अपन मन का रासता अलसिखतयार कर � और नमरता स परिरणाम का सामना

कर।''18  इस परकार गाधी मीरा)ाई क साथ � और उनक पहित- हिवदरो� तथा परमपरा- हिवदरो� को औलिचतयपण मानत � और मधययगीन मीरा)ाई को आधहिनक सनदभ म भी सवीकत और मानय )ना दत

�। अनत म, म�ातमा गाधी मीरा)ाई को भारत की एक ' म�ातजलकिसवनी भकत स6ी'19, 'सतयागरहि�णी'20,

' म�ान तयागी एव )लि�दानी'21, 'सतीतव' की परतीक 22, 'सत'23, ' भकत नारी'24  आदिद मानत � और उन� अपन समय क सघष क साथ सम)दध करक और भी परासहिगक )ना दत �। गाधी का कौश� य� � हिक

व मीरा)ाई की मधययगीन भलिकत, परम- दशन और नारी- चतना को आधहिनक भारत क सवत6ता-आनदो�न क लि�ए भी सवथा साथक और उपयोगी )ना दत � और मीरा)ाई को सभी सवत6ता-परधिमयो, अनाचारो का मक हिवदरो� करनवा�ो, ईशवर- परम को सव�चच माननवा�ो तथा नारी क सवत6 अलकिसततव को सवीकार

करनवा�ो क लि�ए स�ज- स�भ )नाकर उनम अपना पहित- रप खोजन का माग परशसत कर दत �। इस परकार मीरा)ाई भारत क सवत6ता- सगराम का �ी न�ी, आधहिनक �ोक- मानस का भी अग )न जाती �। म�ातमा गाधी ज) भी मीरा को याद करत �, व 'मीरामय' �ो जात �। व आधहिनक भारत को भी

'मीरामय' )नाना चा�त �। ददाभाई की )टी �कषमी को व 'मीरा)ाई' )नाना चा�त �25  और सरोजनी नायड को तो व 'मीरा)ाई'26  क�त �ी �। उनकी कामना � हिक भारत म मीरा)ाई जसी �जारो तमिस6या

�ो, जो स6ी- समाज का कायाक\प कर द, परनत गाधी मीरा को परासहिगक )नान क अ�ावा कोई दसरी मीरा की सधि} न�ी कर पाय। कया य� गाधी की )डी असफ�ता थी?

सदभ सकत :1.  ' गाधी वाङमय', खड 23, पषठ 206, दिदनाक 2 फरवरी 1925

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2.  व�ी, खड 49, पषठ 2763.  ' गाधी वाङमय', खड 21, पषठ 311; खड 14, पषठ 88-89 तथा खड 63, पषठ 4204.  ' गाधी वाङमय', खड 63, पषठ 4205.  व�ी, खड 56, पषठ 3646.  व�ी, खड 24, पषठ 1737.  ' गाधी वाङमय', खड 15, पषठ 355 तथा खड 13, पषठ 5318.  व�ी, खड 21, पषठ 2229.  व�ी, खड 18, पषठ 12710.  व�ी, खड 18, पषठ 137      म�ातमा गाधी न समभवत कन� टाड क इहित�ास ' ऐनन\स एणड एणटीकवीटीज आफ राजसथान' स

�ी मीरा)ाई की जानकारी परापत की थी। कन� राड न मवाड क राणा कमभा ( सन 1433-68) को मीरा)ाई का पहित )ताया था, जो ऐहित�ालिसक साकषय स ग�त �। गाधी भी राणा कमभा को �ी मीरा)ाई

का पहित )तात �, परनत �रहिव�ास सारदा तथा गौरीशकर �ीराचनद ओझा न लिसदध हिकया हिक मीरा)ाई म�ाराणा सागा क प6 भोजराज की पतनी थी। अत गाधी क मत को सशोधिधत करक पढा जाय।

�तया �ो सकती � लिसफ एक आकार कीडॉ. सतयदव हि6पाठी

गाधीजी जस अभतपव इहित�ास परष पर हि�नदी साहि�तय म लिसफ एक नाटक � - �लि�त स�ग� लि�खिखत ' �तया एक आकार की' । और व� भी परोजकट क त�त åाकायदा लि�खवाया गया �। यान अपन

स नाटक लि�खन की रचनातमक पररणा हिकसी म न�ी )नी। और नाटक �ी कया, हिकसी हिवधा म न�ी लि�खा गया - अभी- अभी उपनयासो म हिगरिरराज हिकशोर क ' प��ा हिगरधिमदिटया' लि�ख जान तक। लि�खा

भी �ो, तो अन\�खय र� गया - जस का�ीदास पर लि�ख दो- दो उपनयास �, पर जान न�ी जात। तभी तो ज) ' भारत : एक खोज' क लि�ए शयाम )नग� न न�रजी दवारा वरणिणत �र चरिर6 को साहि�तय क

माधयम स वयकत करन की परहिकरया अपनायी, तो गाधीजी पर )नन वा�ी कहिडयो क लि�ए )डा टोटा म�सस हआ था। और अत म एक दततिकषणी भाषा की रचना परापत �ो सकी थी। ऐस जव�त वयलिकततव पर

रचनातमकता क इस अका� की वज�ो का हिवशलषण �ोना चाहि�ए। हिवचारणीय य� भी �ोना चाहि�ए हिक हि�नदी साहि�तय म क)ीर पर आध दजन नाटक मौजद �। ख� भी

जा चक �। कछ तो )हत मक)� हए �। तो गाधीजी को �कर ऐसा कयो �? कया गाधीजी का चरिर6 क)ीर क मका)� इतना अनाटकीय �? इस इक� नाटक ' �तया एक आकार की' का भी कछ जयादा मचन न�ी हआ। पढन म भी कोई उ\�खय �ोकहिपरयता इस न�ी धिम�ी, ज)हिक नाटक )हत अचछा �।

' �तया एक आकार की' क मचन व पठन- पाठन क अभाव क ग�न समाजशास6ीय व मनोवजञाहिनक कारण �। गजराती पसतक पर आधारिरत जो एक नाटक ख�ा गया हिपछ� दिदनो - ' गाधी हिवरदध गाधी',

व� गाधीजी क )ड )ट क समकष उनकी सीमाओ को कनदर म रखकर लि�खा व वस �ी मलिचत भी हआ �। ' मी गाधी )ो�तोय' तो सीमाओ को हिननदाओ की शरणी म � गया �ोगा, तभी तो परहित)धिधत हआ। यान दश को आजादी दिद�ान वा� इस शीष वयलिकततव और पर ससार म आदत दाशहिनक का उसी क दश म रचनातमकता क त�त ऐसा �ा�। कया व� इतना हिवराट व म�ान � हिक अटता न�ी, समाता न�ी

हिकसी रचना म? या इतना हिववादासपद � हिक डराता � सभी को? और इसी स स�ाता न�ी। सभीता न�ी �ोता लि�खन का।

जो भी �ो, पर गाधीजी क चरिर6 की इन सभी चनौहितयो स �लि�त स�ग� ख) टकराय � और गाधीजी क सोच व कतयो को अततिभयोग पकष तथा सफाई पकष की समकषता म )नत हए इस नाटक म व सभी

आरोप �ा सक �, जो गाधीजी पर �गाय जात र�। जाहि�र �, स)क समलिचत जवा) भी समाहि�त �। दो )ीज शबद दख जा सकत � नाटक म - तथय और वयाखया। लिसफ तथयो को दखन वा�ा गाधीजी को

आरोपी �ी क� सकता �, परत गाधीजी की वचारिरकता व उसक हिकरयानवयन की दधि} व परहितफ�न की

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वयाखया क )ाद सार आरोप हिनरसत �ो जात �। हिवधान म कोट का �ी रप लि�या गया �। चार �ोग धिम�कर हिकसी की �तया करन जा र� �। एक वयलिकत शका उठाता � - कयो मारन जा र� � और उस समझान की परहिकरया म चारो म स �ी एक जज, एक गवा�, एक अततिभयोग पकष का वकी� और शका

करन वा�ा (शहिकत) यवक आरोपी व अपन वकी� की भधिमका करन �गता �। हिकसी पा6 का नाम न�ी �। सभी प��, दसर, तीसर यवक �। और इसीलि�ए ' शहिकत यवक' �ी अततिभयकत का भी नाम �।

गाधीजी का क�ी नाम न�ी, पर �र शबद, �र परिरचय गाधी- गाधी पकारता �। य� अदभत रप स साकहितक नाटयक�ा का मानक �। परा नाटक गाधीजी क हिकय-क�- कराय पर परशन खड करता �।

और शहिकत यवक स)का जवा) दता �। कोट म पलसिब�क की क\पना �। उनकी �सी व परहितहिकरयाओ म शहिकत यवक क शबदो म गाधीजी क पकष का समथन पाकर अततिभयोग पकष घ)राता �। स�� करन, �ा�च दन, द)ाव डा�न का परयतन करता �। �हिकन स) कछ क फ� �ो जान क )ाद एव गाधीजी क हिवचारो व काय¾ की सचचाई परमाततिणत व नकनीयती सथाहिपत �ो जान क )ाद भी ' शहिकत यवक' की मौत

का फस�ा सनाया जाता �। ज)रदसती करत हए कोट क�ता � - ''मजरिरम, मकदमा शर करन स प�� �मारा जो फस�ा था, व�ी अ) भी �। अदा�त य� सजा सनाती � हिक तम� सर-आम...सर- रा� गो�ी मार दी जाय।'' सप} सकहितत �ोता � हिक फस�ा प�� �ो चका था। गाधीजी की सचमच की �तया का परहितरप �ी � य� नाटक। व�ा भी उनक हिवचारो की सतयता, परयोगो की सोददशय साथकता को सभी जानत थ, पर अपन दहिषत मकसदो क लि�ए मारना था, सो मार डा�ा गया। फस� का य� वाकय

परी हकीकत पर धारदार वयगय भी �। गो�ी की आवाज स मारन की कारवाई परी �ोन क )ाद शहिकत यवक क�ता � - '' तम�ारा खया� �,

दोसत, तमन उस मार दिदया। न�ी दोसत, न�ी। तमन एक आकार की �तया की � - �ाड- मास स भर एक आकार की।'' यान �तया न�ी �ो सकती हिवचार की। �तयार भी इस जानत �। हिफर भी हिवचारको की �तयाओ का लिस�लिस�ा �र दश- का� म च�ता र�ा �। उदा�रण भी हि)ना नामो\�ख क मौजद �

नाटक म। ऐस म नाटककार की सवलिसदध सथापना य�ी � हिक �तया लिसफ आकार की �ोती �। परत क�ा न} �ोता � आकार भी? व� छहिव )नकर छा जाता � स)क मन म, स)की चतना म - जस आज

भी गाधीजी छाय हए �। इस परकार �तया न�ी �ो सकती, न�ी �ोती आकार की भी। त) धयान जाता � शीषक म परयकत शबद 'एक' पर। �खक न 'एक' क माधयम स )डी सकषमता स वयकत कर दिदया � इस सचचाई को हिक �तया जसा करर-जघनय- गरकाननी ककतय भी हिकसी म�ापरष क न हिवचारो को रोक

सकत, न उसक आकार को �ी खतम कर सकत। लिसफ उस एक द� को न} करत � और हिफर तो अनक )नकर व� आकार भी छा जाता � स) पर। �तया जस भीषण दषकम को हि)ना कछ क� इस नाटक न हिकतना वयथ, हिकतना )ौना लिसदध कर दिदया �। गाधीजी क हिवशष सदभ म लि�खा य� नाटक, जसा हिक क�ा गया, गाधी- हिवषयक समसत आरोपो- हिववादो स टकराता �। �तया करन वा� चारो - )च हए तीनो - कौन �, की कोई चचा न करत हए भी

�तया �ो जान क )ाद शहिकत यवक क म� स क��वा दिदया गया � - सन 1919 क भाषण म उसन क�ा था, '' मरी मतय हि�नद- मस�मान दोनो को एक करन क परयतन म �ी �ो। और हि)ना क� स) कछ साफ �ो उठता �।'' गाधी- हिवषयक जानकारिरयो क इहित�ास का इसी परकार इतना अचछा उपयोग पर नाटक म हआ � हिक तमाम कछ अनक�ा र�कर भी क�ा �ो गया �। गाधीजी क हिवचारो व काय¾ की

कट आ�ोचना करन वा�ा एक परा वग �, या कछ जमात �, जिजन� य� नाटक म�ज 95 पषठो म तमाम नाटयधरमिमता को हिनभात हए भी मडतोड उCर द सका �। जिजन हिववादासपद परसगो को अततिभयोग

क रप म �ाकर उनकी अस� नवइयत को सामन रखा गया �, उनम परमख � - कराहितकारिरयो को अराजक व सामानय �तयारा क�ना - �हिकन द)ाव म आकर उनकी परशसा भी करना :

 -   हिवदशी शलिकतशा�ी थ। अत: उनस सन� करना -   ज�ा सभव हआ, अपनी शलिकत क दरपयोग स मतभद रखन वा�ो को जड स न} करना

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 -   31 जनवरी, 1939 को राषटरीय सगठन क द)ारा अधयकष हिनयकत �ोन वा� एक )ड दशभकत का हिवरोध करना

 -   सन 1940 म आदो�न को सथहिगत करक आजादी पान क सन�र अवसर को गवाना -   नीहित म अलसिसथरता का �ोना - अहि�सा क घोर समथन का नारा दन वा� दवारा सन 1942 म

हि�सातमक कारवाई क लि�ए क�ना -   राजाओ- पजीपहितयो को शलिकत परदान करन वा�ा  'इरहिवन-समझौता' करना -   एक )ार दश- हिवभाजन को पाप क�ना और )ाद म उसी परसताव को मान �ना -   मस�मानो क हिनजी (खिख�ाफत) आदो�न म हि�नदओ को साथ दन क लि�ए क�ना और उस राषटरीय

आदो�न का रप दना -   16 अगसत, 1946 को सीधी कारवाई म नब) �ोगो का मरना व �जारो का घाय� �ोना -   एक मस�मान की आपततिC पर नोआखा�ी म राषटरीय झणड को उतार दना -   पाहिकसतान को पचपन करोड का मआवजा दिद�ाना...आदिद-आदिद...

कया �ी अचछा �ोता हिक उकत आरोपो पर शहिकत यवक की क�ी )ातो को सहिवसतार य�ा )ताया जा सकता। �हिकन व�ी तो परा नाटक �। इस �र पाठक को पढना चाहि�ए। उनम हिनहि�त � गाधीजी की

मानयताए, उनक परयोग, उनक इराद व उनकी आसथाए, जो असफ�ताओ स डरती न�ी। सफ�ताओ स गवानविनवत न�ी �ोती। जो मानती � हिक ' झठ की सफ�ता क )द� सच की असफ�ता अनमो� �।'

' यदिद हि�सा या पाप दवारा आज �ी सवराजय धिम� र�ा �ो और अहि�सा या सतय दवारा सवराजय पान म सौ वष ठ�रना पड, तो म सौ वष ठ�रना पसद करगा और साथ �ी अपन दशवालिसयो को भी परतीकषा करन क लि�ए कहगा।'

' सवराजय क लि�ए हिवदशी शासक को हिनका� दन का �कषय जररी न�ी �। व भी दसरी अ\पसखयक जाहितयो की तर� य�ा र� सकत � और इस दश क वासी )नकर दश- सवा म योग द सकत �। य�ी �

- ' अतयाचार का हिवरोध, अतयाचारी का न�ी।'' )द� की भावना स हिकसी को मारा न जाय और हि)ना )द� की भावना क मतय का सामना हिकयाजाय।' - ऐस हिवधानो- )यानो स भरा � परा नाटक।

इस परकार परा गाधीवाद एव इसक परयोग की परहिकरया इस नाटक म समाहिव} �। क�ानी का परा मजा भी )ना र�ता �। नाटकीय टकरा�ट हिनरतर कत�� जमाय र�ती �। लिसफ चार पा6ो और माम�ी स

कस�- ट)� को �कर इसका मचन हिकया जा सकता �। नाटक पणत: वचारिरक �। )जिदधजीवी क�ा- समाज अधिधक �तफ � सकगा। वयावसाधियक सफ�ता की उममीद तो न�ी �, पर गाधीजी स जड- )न ससथानो को इसका मचन कराकर इन )ातो को अधिधकाधिधक �ोगो तक पहचाना चाहि�ए। गाधीवाद

आज जयादा-स- जयादा परासहिगक, उपयोगी और इसीलि�ए जररी �ोता जा र�ा �। इस दधि} स परसतत नाटक का मचन आवशयक �ो गया �। दरदशन आदिद भी इस �ाथो- �ाथ � सकत �। ऐस नाटको का

पदÆ क पीछ र� जाना शोचनीय �। दभागय �ी क�ा जायगा हिक इस पर )नी हिफ\म रिर�ीज �ी न�ी �ो पायी। दरदशन न भी न�ी रिर�ीज हिकया। इस पर कछ करत हए इतनी सावधानी )रतनी पडगी हिक गाधी- हिवषयक स) कछ समाहि�त करन

क परयतन म आया डॉकयमटशन कम हिकया जा सक। भाषा म थोडी ताजगी- )ो�चा�पन �ाना पडगा। वरना फॉमÆट व हिवधान )हत स�ी �। �र दधि} स ऐसी कहितयो का आज सवागत �ोना चाहि�ए। इन पर चचा �ोनी चाहि�ए। और इस परकार आज क समय म आत अफाट- अवालिछत परवा�ो को क�ी थोडा- सा

हिव�मा दन म कामया) �ोन की उममीद )धगी।हि�नदी उपनयास और गाधीवादडॉ. चदरकात )ादिदवडकर

हिकसी भी हिवचारधारा एव वयलिकततव का साहि�तय पर परभाव परोकष और अपरोकष रप म पडता � और उसको हिनततिशचत रप म सकहितत करना मलकिशक� काय �ोता �। म�ातमा गाधी इतन )ड वयलिकततववान नता

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थ हिक ऐसा क�ना अहितशयोलिकतपण न�ी �ोगा हिक गौतम )दध क )ाद भारत म गाधीजी �ी एक ऐस वयलिकत थ, जिजनका परभाव भारतीय जीवन-दधि}, हिवचारधारा, सवदना, जीवन-रीहितया, समाज-मानस,

वयलिकत- मानस इतयादिद पर पडा और य� भी क�ना अहितशयोलिकतपण न�ी �ोगा हिक आज हिफर स गाधीजीवन- दशन म�ततवपण �ोन �गा �। हिवशव अणशलिकत की स�ारक छाया म कापता हआ जी र�ा �।

पारसपरिरक सशय, भय और शका हिकसी भी )ौजिदधक हिनणय को सवीकहित दन म ज)रदसत सकोच कर र�ी �, उपभोकतावाद की अप- ससकहित सममो�क मायाजा� म समच हिवशव को फसाकर हिनग�न को तयार �ो र�ी �, अपनी जररतो को सयत करन म मनषय नाकामया) �ो र�ा �, राजनीहित सCाकजिनदरत �ोकर भर}ाचार और अपराधीकरण स सड र�ी �, एदिदरय भोग पर रोक �गाना मलकिशक� �ोता जा र�ा �,

)ड- )ड उदयोग और मशीनीकरण परकहित को भसम कर पयावरण की समसयाए पदा कर र� �, समजिदध पर मठठी- भर �ोगो का हिनय6ण जन- जीवन को हिवकत कर र�ा �, मनषय की आतमा और उसक वयव�ार क )ीच दरार )ढती जा र�ी � और मनषय भयाव� छदम का स�ारा � र�ा �। य लसिसथहितया सप} कर

चकी � हिक दहिनया क लि�ए गाधी- माग �ी एक हिवक\प �। अत गाधीजी का वयलिकततव, हिवचारधारा, जीवन- दधि} और कहिततव पर अधिधकाधिधक हिवचार आज एक जररत )न गयी �।

गाधीजी क जीवन- का� म �ी गाधीजी क समगर दशन स भारतीय जनजीवन, साहि�तय और दशन परभाहिवत हआ था। )ीच म माकसवादी यटोहिपया का आकषण )ढा और सोहिवएत हिवघटन स व� सव�

टट भी गया। अमरिरकी पजीवाद और परहितयोहिगता क दशन की सीमाए भी सप} �ो गयी �। इसलि�ए पन गाधीजी अधिधक परासहिगक �ोत जा र� �।

सन 1915 म गाधीजी भारत �ौट और उन�ोन राषटरीय, सामाजिजक और सासकहितक सतर पर तत अपना परभाव डा�ना परारभ हिकया था। भारतीय साहि�तय भी इसस अ�ग न�ी र�ा। हि�दी कहिवता पर और हि�दी उपनयास पर गाधीजी का परभाव पडा। य� परभाव अनक तर� स पडा। गाधीजी क हिवचारो एव जीवन- दधि} क आधार पर औपनयालिसक चरिर6ो का परहितरप )नाया गया, गाधीजी क जीवन की

घटनाओ का परहितहि)) परसतत हिकया गया, गाधीजी दवारा परवरषितत राषटरीय आनदो�नो का लिच6रप दशन कराया गया, गाधीजी क कछ लिसदधातो की मीमासा करन क लि�ए कथाओ की सरचना की गयी।

( उदा�रणसवरप हदय-परिरवतन, अहि�सक परहितरोध, सतय का सवरप-हिववचन, टरसटीलिशप की परिरक\पना, औदयोहिगक हिवकास क दौरान )ढन वा�ी अनहितकता, दलि�त, पीहिडत, पहितत, शोहिषत समाज क परहित स�ानभहित आदिद) क�ी गाधीवाद को शष मान कर उसकी परीकषा क परयास भी हए, गाधीजी की

बरहमचय की क\पना का मजाक भी उडाया गया, गाधीजी क जीवन- दशन को अवयाव�ारिरक मान कर खिख\�ी भी उडायी गयी। जीवन की जदिट�ता क सममख गाधीवादी सादगी, सर�ता और पहिव6ता को अपयापत मानकर वयगय भी हिकया गया। इसम सद� न�ी हिक गाधीजी न अपन वयलिकततव और कहिततव स,

हिवचारो और शी� स साहि�तयकारो को पयापत मसा�ा परदान हिकया। य�ा हि�दी उपनयास पर गाधीवादी परभाव क सकारातमक पकष को दखना अभी} �। 'रगभधिम' क सर क

नहितक हिवचार, उसका सयम, श6 क परहित भी हिनद�ष आतमीयता, पर)� आशावाद, ईशवर म परगाढ शरदधा, मतय क परहित हिनभयता, हिवशदध भावना स परिर�ास, मजाक करन की खिख�ाडी वततिC, दान क परहित

हिवतषणा, अपनी जमीन को गाव क गोरओ को चरन क लि�ए रखन की टरसटी की मानलिसकता, )ड-स- )ड अधिधकारी क सामन हिनभय �ोकर )ात करन की कषमता, ज)रदसत आतमहिवशवास आदिद गणो को

परमचद न साकार रप दिदया �। �गता �, परमचद का य� सर म�ातमा गाधी का �ी परहितरप �, परत हिव�कषण क\पनाशलिकत का परिरचय इसक सजन म परमचद न दिदया �।

परमचद की गोदान- पव परमख कहितया गाधीवाद स परभाहिवत जान पडती �। 'परमाशरम', 'रगभधिम', 'कायाक\प', 'कमभधिम' - इन उपनयासो पर गाधीवाद की सप} छाप दिदखायी दती �। 'हिनम�ा' और'ग)न' म भी गाधीवाद क लिसदधात ढढन पर आसानी स धिम� जात �।

परमचद क उपनयासो पर जो राषटरीय वातावरण का परभाव परिर�ततिकषत �ोता �, उसका म� कारण ततका�ीन राजनहितक और आरथिथक परिरलसिसथहितया क�ी जा सकती �। परमचद क परथम क�ानी- सगर�

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' सोज वतन' ( सन 1908) की उगरता दखकर सरकार न उस जबत कर लि�या था। गाधी- यग म परमचद का राषटरीय परम का सवर अधिधक पर)� हआ और कछ का� तक गाधी क जादई वयलिकततव का परभाव

परमचद पर भी पड हि)ना न र�ा। 'परमाशरम' म जमीदारो और हिकसानो क परसपर सम)नधो का और वगगत हिवशषताओ का लिच6ण परमचद न यथाथ दधि} स हिकया �। परनत गाधी की भाहित परमचद न भी हिवशवास वयकत हिकया � हिक हिकसानो और जमीदारो क सम)नध परम और स�योगपण �ो सकत �। परमशकर और मायाशकर जस जमीदार- वग क वयलिकत हिकसानो की सवा म अपन जीवन को पणतया

समरषिपत कर सकत �।1  परमशकर उसी का भधिम पर अधिधकार मानता �, जो उस जोतत �। मायाशकर भी ' स) भधिम गोपा� की' �ी सवीकार करता � तथा हिकसान और सरकार क )ीच हिकसी अनय वग या

शरणी की सCा एव अधिधकार को वतमान समाज का क�क समझता �।2  परमचद 'परमाशरम' म �खनपर गाव म आदश राजय की सथापना करत �; ज�ा सवा, परम, सतय, अहि�सा, तयाग, शारीरिरक शरम इतयादिद

की परहितषठा दिदखायी गयी �। हदय- परिरवतन क लिसदधात को भी सवीकार हिकया गया �।'रगभधिम' क गाधीवादी नायक सर का वयलिकततव अनक दधि}यो स म�ततवपण �। सर का साधन- शजिदध काआगर�, मशीनीकरण का हिवरोध, पजीवादी ससकहित की उपकषा, पराचीनका� स च�ी आयी सामनतवादी

ससकहित क परहित आकषण आदिद हिवचार गाधीवाद का परभाव सलिचत करत �। सरकार और जन- सवक क हिवरोध म सर की �डाई भी अहि�सक ढग स च�ती �। ' काया क\प' म मनषय ऐशवय और हिव�ास क

पीछ पडकर हिकस परकार पहितत �ो जाता �, इसकी चचा की गयी �। 'ग)न' म भी हिव�ासहिपरयता और शारीरिरक सख क पीछ पडन क भीषण पयवसान की ओर सकत कर सवा और तयागमय जीवन की

महि�मा गायी गयी �। य� हिनततिशचत करना कदिठन � हिक इन उपनयासो स परमचद क खद क कछ हिवचारो का परभाव हिकतना � और उस समय क गाधी- यग का हिकतना �। इतका अवशय क�ा जा सकता � हिक

परमचद क उपयकत उपनयास गाधी- यग क हिवशष अनक� लिसदध �ोत �।'कमभधिम' म गाधी क वयाव�ारिरक कायकरमो का गावो म परचार दिदखाया गया �। सत-कताई, )नाई, �रिरजनोदधार, शरा))दी, मदा जानवरो का मास- भकषण न करना, हिवततिभनन जाहितयो म रोटी-वयव�ार, मदिदर- परवश का आनदो�न इतयादिद को पढत समय गाधी- यग का वातावरण साकार �ोता जान पडता �।

सरकारी नौकर स�ीम एव घोर धन- �ोभी सठ अमरकानत का हदय- परिरवतन और उनका समपततिC- दान तथा सखदा का हिव�ास- माग को तयाग कर सवा- माग को गर�ण करना, )ढी पठाहिनन, नना इतयादिद

नारिरयो का राषटर- सवा क लि�ए ततपर �ोना गाधी- यगीन परभाव को वयकत करता �। हिवशष धयान रखन की )ात � हिक आग च�कर यथाथ क ग�र हिनरीकषण न इस जनवादी

क�ाकार की गाधीवाद क परहित आसथा को कछ हिवचलि�त कर दिदया मा�म �ोता � और 'गोदान' म आकर व समाजवाद की ओर कदम )ढात दिदखायी पडत �। �हिकन गाधीवादी तततव परमचद क वयलिकततव

स हिव�पत न�ी हआ। बराहमण मातादीन लिसलि�या चमारिरन को अपनाता �, उसका हदय- परिरवतन �ोता �। मा�ती और म�ता क स)धो म हिनरषिवषय परम का उदभव �ोता � और दोनो जन- सवा को समरषिपत �ोत �। मा�ती की हितत�ी- वततिC पणत समापत �ोती �।

गाधीवाद स परभाहिवत दसर �खक � 'जननदर' । 'परख' म गाधीवाद का परभाव 'सतयधन' पर दिदखाया गया �, परनत ढ�म� वकी� सतयधन न इस परभाव को )ाहय रप म गर�ण हिकया था। अतएव नारी, धन तथा परहितषठा क मो� को व� तयाग न�ी सका। इसक हिवपरीत हि)�ारी का वयलिकततव गाधीवादी आदश

स अनपराततिणत जान पडता �। जननदर समभवत दिदखाना चा�त थ हिक गाधीजी का आदश सामानय वयलिकत क )स की )ात न�ी �, )लकि\क व� हि)�ारी जस वयलिकत क लि�ए �ी उपयकत �, जिजसक वयलिकततव का �गर

ग�राई म पडा हआ �। ननदद�ार वाजपयी का कथन � हिक 'सनीता' तथा )ाद की रचनाओ म जननदर न गाधीवाद और मनोहिवजञान का समनवय करन का असफ� परयास हिकया �।3 'सनीता', 'सखदा',

'वयतीत' और 'हिववत' म जननदर नारी क पर- परष स परम करन की मनोवजञाहिनक समसया का समाधान गाधीवादी दधि}कोण स - हदय- परिरवतन क लिसदधात स - ढढन का परयतन करत �। वाजपयीजी इस

सम)नध म लि�खत �, '' य पा6 अपनी पतमितनयो को परतयक दशा म परी छट दत � और इस परणा�ी क

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दवारा इनक हदय- परिरवतन की परतीकषा करत �। गाधीजी न हदय- परिरवतन का आदश राजनीहितक सतर पर परहितधिषठत हिकया था। पारिरवारिरक वयव�ारो म गाधीजी हदय- परिरवतन जसी वसत को सवीकार करत थ।

कदालिचत जननदर न य� तथय गाधी- दशन स �ी गर�ण हिकया �।''4  इसी परकार 'तयाग-प6' की मणा� भी समाज दवारा दिदया गया क} मौन भाव स स�न करती �। नगनदर उसक )ार म लि�खत �, '' क} क कारणो स घणा न करत हए, क} की अहिनवायता स 6ास न खाकर, उसम आनद की भावना करना अहि�सा � और अहि�सा य� लिसखाती � हिक अमकत वासना का हिवतरण करना �ी उसकी सफ�ता

�।''5  जननदर )जिदध स दशमनी करत हए दिदखायी दत � और उनक परमख पा6 भी समसयाओ क समाधान क लि�ए )जिदध पर हिनभर र�न की अपकषा हदय और शरदधा म हिवशवास करत जान पडत �। गाधीजी )जिदध स अधिधक शरदधा म आसथा रखत थ।6  जननदर क उपनयासो म )जिदध को पराय तचछ माना

गया �। जननदर न गाधीवाद क परभाव को सीधिमत कष6 म �ी परसतत हिकया। ज�ा तक राषटरीय आनदा�नो और नारी

की राषटरीय आकाकषाओ का परशन �, जननदर क उपनयासो म उसका परभाव हिवलिच6 रप म दिदखायी पडता �। 'सनीता' म �रिरपरसनन और सवय सनीता का दश- परम तथा अनय उपनयासो म हिकया गया राषटरीय

समसयाओ का कषीण उ\�ख सीधा न�ी जान पडता। �गता �, जननदर का य� आतरिरक लिच6ण � हिक गाधीवाद हिवचारो क धरात� पर अपनाया जाय तो परसग- हिवशष म उसकी लसिसथहित )डी दयनीय �ो सकती

�। गाधीवाद को अधिधक आनतरिरकता स अपन समच वयलिकततव क साथ आपनन करना आवशयक �। �ो सकता �, सवय जननदर जी क मन म भी गाधीवाद को �कर कछ शकाए

हिवदयमान �ो। इसक हिवपरीत गाधीवाद क परहित पणत तादातमय परिर�ततिकषत �ोता � लिसयारामशरण गपत क वयलिकततव म।

आ�ोचको न लिसयारामशरण गपत को भी गाधी- �खक माना �। जननदर और लिसयारामशरण गपत क जीवनादश क सम)नध म नगनदर स�ी लि�खत �, '' दोनो वयलिकतयो का जीवनादश एक � - पण अहि�सा

की लसिसथहित परापत कर �ना, अथात अपन अ� को पणत ध�ा दना। इस साधय क लि�ए लिसयारामशरण गपत की साधना अधिधक �ारटिदक �, नहितक दमन का अभयास उनको अधिधक � और उनका अ� सचमच काफी ध� चका �। अहि�सा )हत- कछ उनक वयलिकततव का अग )न चकी �।''7  दवराज उपाधयाय भी

लिसयारामशरण गपत क कथा- साहि�तय पर अहि�सा का पण परभाव दखत �।8

लिसयारामशरण गपत क उपनयासो पर गाधीवाद का )ाहय परभाव न�ी �, परनत उनक वयलिकततव म गाधीवाद क लिसदधात- पकष का पणत पा�न हआ �। लिसयारामशरणजी सामाजिजक मानयताओ क नीच

कच� गय हिनरी� वयलिकत क परहित स�ानभहित दशात �। 'गोद' म दभागय स परताहिडत हिनरी� हिकशोरी को कठोर दणड भगतना पडा। शोभाराम की मानवता भाभी क वातस\यपण आतमीय- भाव का अव�म)न पाकर जाग �ी न�ी उठती, सहिकरय भी �ो जाती �। व� अपन भाई क खिख�ाफ हिवदरो� का झणडा उठाती

�। परनत य� हिवदरो� दयाराम क हदय- परिरवतन क उपरानत पारसपरिरक परम की परगाढ अनभहित म )द� जाता �। ' अहितम आकाकषा' का नायक एक हिनमन जाहित का सवामी- भकत और सतयहिनषठ वयलिकत �, जिजसक �ाथ स एक डाक की �तया �ो गयी �। �खक राम�ा� क हिवशा� हदय का लिच6ण करन म त\�ीन �ो गया �। 'नारी' म जमना और अजीत क हिनषक�ष सन�- भाव को लिचहि6त करन म �खक

सफ� हआ �। जमना अपन प6 स क�ती �, '' स� � इस, स� �। कमजोर कयो पडता �? जिजतना �ी अधिधक स� सकगा, उतना �ी तम )डा �ोगा।...'' इस वाकय म गाधी क सनदश की धवहिन सप} सनायी

पडती �। लिसयारामशरण गपत क पा6ो म सामाजिजक अनयाय क परहित तीवर हिवदरो�- भाव न�ी �, आकरोश का भाव भी न�ी दिदखायी दता; परनत इनकी पीडा द)� की मोटी �ाय �, जो �ो� को भी भसम कर दती �। लिसयारामशरण गपत क कथा- साहि�तय क परभाव क )ार म माचवजी न ठीक �ी लि�खा �, '' रस

की सधि} इनक हिनकट अधिधक साथक �, )हिनस)त बरहम- जिजजञासा क। परिरणामत उनक दो �ी उपनयास' दखन म छोट �ग, घाव करत गमभीर।'9

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इस परकार क� सकत � हिक गाधी- यग क समगर परभाव को परमचद न अततिभवयलिकत दी, जननदर न पारिरवारिरक कष6 क अनतगत हिवलिश} समसया का हिवशलषण करन म गाधीवाद क अहि�सा, परम और हदय-

परिरवतन क लिसदधातो का उपयोग हिकया और लिसयारामशरण गपत न गाधी क लिसदधातो को अपन वयलिकततव म पणत आतमसात कर राजनहितक, सामाजिजक तथा सासकहितक परिरलसिसथहितयो स अ�ग ( यथा

सभव) र�कर गाधी क सदधाहितक पकष को कहितपय पा6ो क माधयम स मत करन का परयतन हिकया। गाधीजी क हिवरोध म माकसवादी हिवचारधारा स परभाहिवत �खको न काफी लि�खा। बरहमचय, हदय-

परिरवतन, काम- दमन या सयम, आरथिथक कहिष- कजिनदरत नीहित, )ड उदयोगो क परहित गाधीजी का दधि}कोण, अहि�सा पर )� आदिद मददो पर करार आघात हिकय गय। �हिकन व� स) इहित�ास की वसत )न गया �, कयोहिक गाधीवाद का मखौ� उडाना आसान �, उनकी म�भत दधि}, तततव और आचरणगत वयव�ार पर दिटकाऊ हिवरोध करना कदिठन �।     गाधीजी की �तया क )ाद उनक हिपरय लिशषय न�रजी क नततव म भारत आरथिथक परगहित की रा� पर

च�न �गा। )ढती उदयोग- वयवसथा और मशीनीकरण न आलिशक रप म )ाहय सभयता को �कर परगहित अवशय की, परनत भारत की आतमा म घन �ग गया। आतरिरक आतमानशासन, शरय म\यो क परहित समरषिपत भावना, सादगी और सर� जीवन क परहित रझान, टरसटी की म�ततवपण भधिमका, शोषण, हि�सा

और असतय क परहित हिवतषणा, भोगवाद की अधी दौड क परहित सजगतापवक हिवरोध-भावना, अतशजिदध पर )� इतयादिद गाधीवादी म\यो क परहित �मारी राजनीहित न और समाज- गहित न भयाव� उपकषा- भाव

)रता �। सCा और सतयागर� क समनवय पर �मन कभी गभीरतापवक हिवचार न�ी हिकया। परिरणामत �मार समाज म शोषण और हि�सा अनक रपो म )ढ र�ी �, समाज क हिवततिभनन वग¾ म दरार पदा �ो

गयी �। लिशकषा- वयवसथा समाज क छोट समपनन वग क सवाथ की रकषा म �गी हई �। �मार जीवन म छदम फ� गया �। य� पकषाघात की लसिसथहित �, कयोहिक �मन अथ क पीछ हदय की, आतमा की उपकषा

की �। य� सतय आज क साहि�तय म वयकत �ो र�ा � - गाधीवाद का नाम न�ी लि�या जाता �, परनत � व� क�ी गाधी की आतमा की पकार। गाधी साहि�तय क दवार खटखटा र�ा �, �म सजग न�ी �ोग तो दवता कच कर सकता �। सवा� �मारी

�ी साथक अततिभवयलिकत का �।सवत6ता-पव और सवाततरयोCर हि�नदी कावय पर म�ातमा गाधी का परभावडॉ. सशी�ा गपता

म�ातमा गाधी भारत क मसी�ा थ। उनम इनसानी अचछाइया कट- कट कर भरी थी। उन अचछाइयो का परयोग व अपन लि�ए न�ी, समाज क लि�ए और दश क लि�ए करत थ। उनकी अचछाइयो की खालिसयत

य� थी हिक व सामानय आदमी की समझ म आनवा�ी और सामानय आदमी क इद- हिगद घमनवा�ी थी। भारत दश को �ी न�ी, समच ससार को अधर स उजा� की ओर � जानवा� गाधीजी का इनसानी

अचछाइयो स परिरपण �ोना इस धरती क इहित�ास की स)स गाढी सया�ी स लि�खी गयी उप�लकिबध मानी जा सकती �।

गाधीजी क )ताय हय रासत पर च�कर भारत  दश को सवत6ता धिम�ी, इसलि�ए व हिनततिशचत रप स राजनीहित क परष थ। उनकी राजनीहित आदश¾ और उस�ो पर दिटकी थी, जिजसम क�ी भी हिकसी परकार

स हिडगन की गजाइश न�ी थी। दततिकषण अफरीका क सतयागर� आनदो�न क साथी �नरी एस. एन. पो�क स एक )ार उन�ोन क�ा था, " �ोग क�त � हिक म सत ह, मगर राजनीहित म फसकर अपन आपको

गवा र�ा ह। पर सच )ात य� � हिक म एक राजनीहितजञ ह और सत )नन का भगीरथ परयतन कर र�ाह।''1  एक दसरी जग� उन�ोन क�ा �, " मरा उददशय धारमिमक �, परनत मानवता स एकाकार हए हि)ना मधम- पा�न का माग न�ी दखता। इसी काम क लि�ए मन राजनीहित का रासता चना �, कयोहिक इस रासत म मनषयो स एकाकार �ोन की गजाइश �। मनषय की सारी कोलिशश, सारी परवततिCया एक �। समाज

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और राजनीहित स धम अ�ग रखा जाय, य� ममहिकन न�ी। जो मनषय म हिकरयाशी�ता �, व�ी उसका धम भी �; जो धम मनषय क दहिनक काय¾ स अ�ग �ोता �, उसस मरा परिरचय न�ी �।2

मनषयो स एकाकार �ोनवा�ी उनकी राजनीहित छ�- कपट और धोखाधडी तथा असतय स भरी राजनीहित स कोसो दर थी। उनकी राजनीहित क दो मखय तरीक थ - सतय और अहि�सा, जिजसक )� पर उन�ोन

दहिनया को दिदखा दिदया हिक हि)ना खन- खरा) क कस आजादी �ालिस� की जा सकती �। राजनीहित का नाता धम और समाज स जोडकर और धम की मौजदगी मनषय क दहिनक कामो म दखकर �ी उन�ोन

सापरदाधियकता क खिख�ाफ अपनी आवाज )�नद की। उन� सापरदाधियक दगो म अपन पराणो की परवा� न करत हए �ोगो क )ीच उनक द:ख- दद का भागीदार )नत हए अनक भारतवालिसयो न अपनी आखो स दखा �। रामधारी सिस� दिदनकर क अनसार "वसतत: �गभग सौ वष� तक भारत दश न जो आतम-

मथन हिकया था, पराधीनता की ग�ाहिन को धोन क लि�ए अपनी शरषठ शलिकतयो का लिचनतन और धयान हिकया था, गाधीजी उसी तपसया क वरदान )नकर परकट हए थ। एक ओर भारत अपनी सवत6ता-परानविपत

क लि�ए वयगर था, दसरी ओर ससार अपनी समसयाओ क समाधान क लि�ए वयाक� था, गाधीजी दोनो की मनोकामना पण करन क लि�ए आय थ।3

एक )ार गाधीजी क एक धिम6 न उनस ' अहि�सा क लिसदधात' पर एक हिन)नध लि�खकर दन क लि�ए क�ा। उCर म गाधीजी न क�ा " इस परकार स हिन)नध लि�खकर हिकसी लिसदधात का परचार करना मरी शलिकत क )ा�र की )ात �। मरा हिनमाण शास6ीय रचनाओ क लि�ए न�ी हआ �। अपनी दधि} स जिजस म अपना कतवय समझता ह और जो मर सामन आता �, म क�ता ह। आज उस जिजस वसत की अततिभ�ाषा �

और भहिवषय म भी र�गी, व� � सचचा कम। जिजस मनषय को इस भख को धिमटान की �गन �गजायगी, व� शास6- रचना म अपना अम\य समय वयथ न�ी गवायगा।4

गाधीजी की हिवचार- धारा को एक परकार स आधयातमितमक मानववाद क�ा जा सकता �, जिजसक म� आधार � सतय और अहि�सा। उनकी दधि} म " सतय क साकषातकार स सम)जिदध परापत �ोती � और सम)जिदध स स)क परहित अहि�सा का भाव उतपनन �ोता �। उन�ोन इस )ात पर जोर दिदया � हिक अहि�सा

सतय का �ी दसरा प�� �। उनक अनसार अहि�सा सतय का भाव- पकष �, इसका अथ कव� हि�सा का अथात दवष- )र का अभाव न�ी, वरन परम का भाव �। गाधीजी की इस अहि�सा म दवष-)र-तयाग,

चराचर- परम और पण हिनषकाम भाव की सवा का समनवय �।5  इस अहि�सा की भावना न हिबरदिटश हकमत क परहित श6ता न�ी, अस�योग क लिसदधात की नीव रखी। अस�योग आनदो�न न �ोगो को दश- भलिकत की भावना स पररिरत �ो तयाग और )लि�दान क लि�ए परोतसाहि�त हिकया। आतमहिनभरता की दधि} स सवदशी

आनदो�न को भी म�ततव धिम�ा। म�ातमा गाधी क नततव म दशवालिसयो न सवराजय- आनदो�न शर हिकया। सन 1942 म गाधीजी न ' करो या मरो' का नारा दिदया था। परथम पलिकत क नताओ क )दी �ोन पर ज) गाधीजी न

ऐ�ान हिकया हिक परतयक दशवासी अपना नता खद � तो स)की आतमशलिकत स नयी- नयी प�चान हई। गणश शकर हिवदयाथ� क राषटरीय प6 'परताप' क अको म एक �म) समय स ऐस गान परकट �ो र� थ,

जो राषटर क ओज और उतसा� क साथ सतयागर� क दशन की परी मदरा लि�ए हए थ। इस आनदो�न की रपरखा पण रप स शानविनतमय थी, हिफर भी व� कव� हिवरोध �ी न�ी था। व� अनयाय क हिवरोध का

एक हिनततिशचत, हिकनत अहि�सातमक रप भी था। व� आतम)� था और एक हिन: शस6 राषटर का अ�कार �ी न �ोकर उसकी अजर- अमर आतमा का जागरत सवाततिभमान था।6  इस सतयागर� आनदो�न की म� पररणा

गाधीजी क गीता- हिवषयक दधि}कोण स आयी थी, जिजसक अनसार अहि�सा पर आधारिरत आनदो�न म पराणो की )ाजी �गान की स)स )डी जररत थी।

हिदववदी- यग क जिजन परारततिभक कहिवयो न म�ातमा गाधी की राषटरीय भावना स परभाहिवत �ो कावय- सजनहिकया, उनम )ध- दवय मलिथ�ीशरण गपत और लिसयारामशरण गपत का नाम )ड आदर स लि�या जाता �।

गाधी जी क लिसदधातो स परभाहिवत �ो खददरधारी मलिथ�ीशरण गपत न कावय- जगत म उदाC भावनाओ की सथापना की। गाधी जी सवय उनकी कहित 'भारत-भारती' स इतन परभाहिवत हए हिक उन�ोन क�ा,

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" गपत जी भारतीय भावनाओ का परहितहिनधिधतव करनवा� कहिव �, इसलि�ए म तो उन� राषटरकहिव क�करपकारगा।'' भारतवालिसयो क मन म राषटरीय चतना जगानवा� कहिव मलिथ�ीशरण गपत को पर राषटर न

राषटरकहिव क रप म सवीकार कर लि�या।'भारत-भारती' क माधयम स मलिथ�ीशरण गपत न राषटरीय चतना जगान का काय हिकया �। 'भारत-भारती' ऊघत हए अ�साय दश क लि�ए जागरण कावय �, उदबोधन कावय �, आतमकजिनदरत मनषय म

राषटरीयता का भाव भरनवा�ा कावय �- सख और द: ख म एक- सा स) भाइयो का भाग �ो,

अनत: करण म गजता राषटरीयता का राग �ो।' हिवशा� भारत' क माधयम स मलिथ�ीशरण गपत न जन- जागहित �ान का परयास हिकया �। चारो ओर

�ा�ाकार मचा �, पथवी पर धम न�ी, धन क परहित आकषण )ढता जा र�ा �, ऐस समय म गपत जी अधीर �ो भारत को उसकी जिजममदारी का अ�सास करात � -

धम राम का, कम कषण का, परम )दध का धार, कौन सभा� सकगा तमको सवय सवरप सभा�, और अहि�सा म�ावीर की, सव समनवय सार, उठ ओ, )�द हिवराट हिवशा�। गपत जी की दधि} म भारत की एकता और अखडता की रकषा क लि�ए )लि�दान का रासता �ी जररी रासता �। भारत की मयादा की रकषा �म जस- तस न�ी, )लि�दानी )नकर करना �ोगा -

उठो )नधगण करो हिववक, �ो चा� जिजतना )लि�दान, जस �ो, �ो जाओ एक। जिजय �मारा हि�नदसतान।

राषटरीय यजञ म वीरता और सयम का सदश धिम�ता � गपतजी क 'जयदरथ-वध' नामक खड- कावय स। अततिभमनय हि)ना इस )ात की लिचनता हिकय हिक चकरवय� स व� )ा�र कस हिनक�गा, माता और पतनी स

हिवदा �कर यदध- भधिम म परवश करता � और नयाय- यदध करता �। अततिभमनय क माधयम स कहिव न )लि�दानी यवको को वीरता और सयम का अदभत सनदश दिदया �।

परकहित- हिवजय कर �न स मनषय हिवजयी न�ी माना जा सकता, यदिद उसक दिद� म मानव- मा6 क लि�ए सदभावना न�ी �। अनक दशो पर हिवजय परापत करनवा�ा मनषय सफ� न�ी माना जा

सकता, यदिद व� मनषयो क दिद� न�ी जीत सकता। 'पलिथवीप6' कहिवता पर सप} रप स गाधीवादीहिवचार- धारा का परभाव �, जिजसम मानव-धम- पा�न को परमख )ताया गया �। पलिथवी- प6 दभी �, व�

यदध करना चा�ता � और हिवशव- हिवजय क लि�ए वयाक� �। व� ज) पलिथवी माता स अपन हिवकास की कथा क�ता � तो व� उCर दती � -

म तो दखती ह �ाख- �ाख गना तझम, हिवकलिसत गध व�ी साधनो क साथ �।

मानव न परकहित पर हिवजय पा �ी �, परनत कव� )ाहय परकहित पर। भीतर की परकहित - घणा, ईषया, दवष, हि�सा, �ोभ, मो�, मतसर, मद - पर तो उसन हिवजय पायी न�ी �। अनय मनषयो क परहित दभावना

समापत हिकय हि)ना वासतहिवक हिवकास क�ा! वासतहिवक हिवकास क लि�ए म�ातमा गाधी दवारा परहितपादिदत लिसदधात �, ' जीओ और जीन दो' । आग )ढो, ऊच चढो, परनत अक� न�ी, स)को �कर -

उठ )ढ, ऊचा चढ सग लि�य स)को, नाश म �गी जो )जिदध, हिव�स हिवकास म, स)क लि�ए त और तर लि�ए स) �।

गव कर म भी हिनज प6वती �ोन का। गपत जी न )त�ाया � हिक सचची मनषयता का सवरप सवाथ-तयाग, समता, �ोक- सवा और हिनषकाम कम म �, उसका पा�न करनवा� सवत: मकत � - ज�ा सवाथ का सवथा तयाग �

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ज�ा कामना छोडक कम �, सभी क लि�ए एक- सा भाग �। ज�ा आप �ी आप उदधार �, ज�ा �ोक- सवा म�ाधम �,

मनषयतव �ी मलिकत का दवार �। गपत जी क `ि£दवोदास' म आतम- सगर� और तयाग का उपदश दत हए दिदवोदास परजाजनो स क�त � - हिकनत आतम- सगर� प�� �, पीछ कोई तयाग। करक हिनज कतवय सवय �म मानग सतोष,

फ� अपन �, हिकनत अफ� म न�ी �मारा दोष। अपन अगरज की �ी तर� लिसयारामशरण गपत भी खददरधारी थ और मन- पराण स गाधीजी क अनयायी

थ। गाधीजी का म� म6 � मानव- उपासना। लिसयारामशरण जी जीवन- पयनत इसी  मानव- उपासना म �ग र�, जिजसकी अततिभवयलिकत 'मौय-हिवजय', 'अनाथ', 'आदरा', 'दवाद�', 'आतमोतसग' और ')ाप' म

दिदखायी दती �। लिसयारामशरण जी को सम)ोधिधत करत हए ')ाप' की भधिमका म शरी म�ादव दसाई न लि�खा �, " आपकी गगरी का पानी पीकर )डी परसननता हई। आप ठीक क�त � हिक )ाप एक )डा तीथ

�। उस तीथ क हिवप� सलि�� स जिजसकी जिजतनी शलिकत �ो, उतना �ी � सकता �।7

शरी लिसयारामशरण की दधि} म )ाप तधिमसर- जा� को लिछनन- ततिभनन करत हए जिजस ओर गय, व�ी नय माग का हिनमाण हआ -

लिछनन- ततिभनन करक तधिमसर जा� तम जिजस ओर गय

हिनक� पड � व�ी माग नय दगम दर� म स शका-समाधान-सम। कहिव न हिवनाश क कगार पर खड समाज की समसयाओ का हिनदान परम म ढढा �। परम की महि�मा अपार � -

परम � सवय �ी कष6, परम की �ी अनत म हिवजय �।

परम- रतन हिनतय �ी जयोहितमय �, फ�ा दो उसी का मद दीपत �ास। हि�सा क तधिमसर का सवय �ो हरास।

म�ातमा गाधी क स)नध म उन�ोन लि�खा � - " �ाया � पराई पीर नरसी क घर स''।

गाधीजी क अततिभनदन म लिसयारामशरण गपत न परम और अहि�सा क साधना- पथ का उ\�ख हिकया � - भवन �ो हिपरय परम दीततिकषत, आज नव हिनवµर पथ �ो हिवशव को गनतवय, शलिच अहि�सा म परीततिकषत, आज का आननद �ो लिचरका� का कतवय।

म�ातमा गाधी न असपशयता- हिनवारण क लि�ए घोर सघष हिकया था। उन�ोन लि�खा �, " म हिफर स जनम न�ी �ना चा�ता, �हिकन यदिद �ना भी पड तो म असपशय क रप म पदा �ोना चाहगा, जिजसस म

उनकी वदनाओ, क}ो और उनक साथ हिकय जानवा� वयव�ारो म साझीदार �ो सक।8 ' एक फ� कीचा�' नामक कहिवता म लिसयारामशरण जी न एक अछत की वदना और सामाजिजक हिवडम)ना का )डा

ममसपश� वणन हिकया �। अपनी कहिवता स जीवन की आराधना करनवा� माखन�ा� चतवÆदी की कहिवताओ म ज�ा ग�ामी की

पीडा �, व�ी उतसग और )लि�दान का आनद �। मातभधिम को पराधीनता स मकत करान की पररणा

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परदान करनवा�ो म म�ातमा गाधी क लिसदधातो क परहित आसथावान माखन�ा�जी का नाम सवणाकषरो म अहिकत �। उन�ोन )लि�दान क कदिठन माग स कावय की मधरता का सीधा सम)नध सथाहिपत करना �ी अपना कहिव- धम समझा। उनक अनसार दान म परहितदान की कामना न�ी �ोनी चाहि�ए, भ� �ी व�

)लि�दान क सतर का �ो। परहितदान की कामना )लि�दान को छोटा व तचछ )ना दती �। )लि�दानी ऐसा )लि�दान द हिक उसकी �ाजिजरी प�� �ग। उसक )लि�दान म हिनषकाम भाव �ो और उस अपनी प�चान

न�ी, दश क नवहिनमाण का आशवासन धिम� - म प��ा पतथर मदिदर का, अनजाना पथ जान र�ा ह, गड नीव म, अपन कध पर मजिनदर अनमान र�ा ह।

भीषम-परहितजञा, �व-कश- कौश� और पाथ-प6- )� का समरण करत हए चतवÆदी जी भहिवषय क परहित आशानविनवत थ। उन� हिवशवास था हिक भारत क भावी हिवदवान भारत का द: ख �रग। व सरज को सावधान

करत � और मातभधिम को धीरज परदान करत �, पततिशचम को चतावनी दत � हिक व� अपनी नीहित )द� और गभीरता धारण कर, कयोहिक -

कमकष6 म आत � अ) कई करोड दखो स वयाक� करन को जननी का 6ाण भारत क भावी हिवदवान।

कम- कष6 की द�ाई दत हए कहिव न भावी हिवदवानो पर हिकतनी )डी जिजममदारी डा� दी! माखन�ा� जी न वाणी- अततिभवयलिकत म )ाधक परस एकट का जोरदार हिवरोध हिकया था।

उन�ोन क�ा हिक ' सन 1857 म �मार )ाप- दादा �ड, व )�ादर थ, कायर कभी न�ी �ड सकत'।9  हिबरदिटश सCा दवारा )दी )नाय जान पर अपन मकदम की परवी करत हए माखन�ा� जी न क�ा था, " म इस या हिकसी भी हिबरदिटश कोट स नयाय करान क लि�ए जरा भी उतसक न�ी ह। इस )यान को पश

करन की मरी य� आनतरिरक पररणा � हिक म इस शासन- परणा�ी की नहितक द}ता को परकट करन क पहिव6 कतवय का और भी अधिधक पा�न कर। म अपनी मातभधिम को पराधीनता स मकत करान क

लि�ए इसस और अचछी सवा न�ी कर सकता हिक उसक लि�ए खशी स, धय स क} सह। म अपन दशवालिसयो को इसी माग का अव�म)न करन की लिसफारिरश करता ह।10 कम- माग पर च�न का इसस

अचछा उदा�रण और कया �ो सकता था! उनकी सवय की कोई आकाकषा न�ी - हिनषकाम कम खशी स, धय स क} स�न करन की पररणा दता �। म�ातमा गाधी न उनकी हिगरपतारी की चचा करत हए ' यग

इहिडया' म लि�खा, " पहिडत माखन�ा� सवत6 र�न की अपकषा अपनी आतमा क लि�ए ज� जाकर अपन दश की अचछी सवा कर र� �।11  गणश शकर हिवदयाथ� न उनकी हिगरपतारी का हिवरोध करत हए लि�खा,

'' हि�नदी साहि�तय क कवीनदर और भारत क �नरी फरडरिरक को पकड �ना हदय�ीनता न�ी तो कया �!12  हिबरदिटश सCा न भ� की हदय�ीनता का परिरचय दिदया �ो, चतवÆदी जी तो सवय को राषटर का सहिनक

समझत थ - ह राषटरीय सभा का सहिनक

उसकी धवहिन पर मर धिमटन मछोटा- सा अनगामी ह। म खद अपना सवामी ह।

हिन: सवाथ )लि�दान का उदाC सवरप दिदखायी दता � कम- माग क पलिथक पषप की अततिभ�ाषा म - मझ तोड �ना वनमा�ी,

मातभधिम पर शीश चढान, उस पथ पर दना तम फ क; जिजस पथ जाव वीर अनक।

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य� पषप चतवÆदी का �ी हदय- पषप �, जो अपना अभी} माग व�ी दखता �, ज�ा स )लि�दानी परष गजरत �। उन )लि�दाहिनयो क परो का व� सपश कर सक, उनक परो- त� रौदा जाय, कच�ा जाय,

भ� �ी न} �ो जाय, ऐसी चा�त, हिन: सवाथ )लि�दान और हिनषकाम कम का ऐसा )जोड उदा�रण क�ाधिम�गा! 'मरण-जवार' की भधिमका म इस )ात का उ\�ख � हिक "दश- परम और )लि�दान की जो उदाC

भावना इस कहिवता को लिचरसमरणीय )नाय हए �, व� मा6 हिकसी एक राषटर की भावना न�ी �, न व� हिकसी सामधियक सवत6ता- सगराम की परसहित- मा6 �, अहिपत व� एक सावभौधिमक सावकालि�क वसत �,

जो अपनी जयोहित स सतत जयोहितषमान �।13

गाधी जी की अहि�सा- नीहित क कारण सवत6ता- सगराम की वीरता म )लि�दानी की भावना कहिवयो की �खनी दवारा �गातार जोर पकडती र�ी। सवत6ता- सगराम क हिनभ�क वीर सहिनक )ा�कषण शमा 'नवीन'

न दश क )लि�दानी का लिशखर पर चढन क लि�ए आहवान हिकया। )लि�- पथ क सनदर जीव को थकन का नाम न�ी �ना �, उस जीवन क कज क समसत आकषण को छोडकर नतय- गीत क साथ ता� धिम�ाना

� और मा की मडमा�ा म अपना शीश हिपरोना �। )लि�दानी क जीवन का मो�क )नध कट जान दकर पजा समपनन करन क लि�ए मरण का सपर)नध कर �ना � -

� जीवन अहिनतय, कट जान द त मो�क )नध, कर द पजा आज मरण का त अपना सपर)नध।

जन- सामानय स सीध जडन की गाधीवादी भावना स पररिरत �ो 'नवीन' भरत- खड क जन- गण का आहवान करत �, दश की इस धरती का शगार करन क लि�ए और जननी का भडार करन

क लि�ए - आम6ण य� तम� हिक इस माटी का शगार करो तम,

यग क�ता � हिक इस भधिम का य� दरिरदरता भार �रो तम, आहवान � तम� हिक अपनी जननी का भडार भरो तम।

सनाय-तनत- सारगी म �ो स�शरम वनद वादय की झनझन भरत खड क तम � जन-गण।

सभदराकमारी चौ�ान दश की पकार स हिवहव� �ो दश क इहित�ास को पानी- चढ दधारो स )नन दन की कामना करती �। दशवालिसयो की �ा�ी स मा का मसतक �ा� �ोगा, तभी का�ी जजीर टटगी -

आज तम�ारी �ा�ी स मा क मसतक पर �ो �ा�ी। का�ी जजीर टट, का�ी जमना म �ो �ा�ी।

कहिव सो�न�ा� हिदववदी का अटट हिवशवास � हिक हि)ना शीश- दान क मा की कहिडया न�ी टटगी - आस हि)खरात )ीतगी, ज�ती जीवन-घहिडया। हि)ना चढाय शीश, न�ी टटगी मा की कहिडया।

म�ातमा गाधी क सवत6ता- आनदो�न स छायावाद कहिव भी अछत न�ी र�। छायावाद- यगीन साहि�तय मदश- परम और �ोक- क\याण की कहिवताए धिम�ती �। वासतव म व� यग �ी राजनीहितक ��च� का यग

था। सवत6ता क म�ायजञ म पराणो की आहहित और असतोष की आग का भडकना हिनरनतर जारी था। जयशकर परसाद की �खनी स दश का जो गणगान हआ �, व� इतन वयापक धरात� पर � हिक हिकसी

भी दश का वासी उस गीत को गाकर आतम- हिवभोर �ो सकता � - अरण य� मधमय दश �मारा,

ज�ा पहच अनजान ततिकषहितज को धिम�ता एक स�ारा। परसाद क ' �मारा भारतवष' गीत म आतमगौरव का परम ओजसवी उदबोधन धिम�ता � -

व�ी � रकत, व�ी � द�, व�ी सा�स � वसा जञान। व�ी � शाहित, व�ी � शलिकत, व�ी �म दिदवय आय सनतान। जिजय तो सदा उसी क लि�ए, य�ी अततिभमान र� य� �ष।

हिनछावर कर द �म सवसव, �मारा पयारा भारतवष।

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म�ादवी वमा वयलिकतगत पीडा स न�ी, समधि}गत वयथा स दखी � - मर गी� प�क छओ मत

ससहित की कहिडया दखो मरझाई कलि�या दखो। हिनरा�ा जी न भारतमाता को मत सवरप परदान कर उसकी हिवजय- कामना की �। इस हिवजय- गीत का

सवर यगो तक गजता र�गा - भारहित, जय हिवजय कर

गरजिजतोरमिम सागर-ज� कनक शसय कम�।

धोता शलिच चरण यग� �का पदत� शतद� सतव कर )ह अथ भर।

सधिम6ाननदन पत भी अपन दश भारत का जयगान करत � - जयोहित भधिम, जयोहित चरण धर ज�ा सभयता

जय भारत दश। उतरी तजोनमष। गाधी हिवचारधारा स परभाहिवत �ो पत जी भारत दश को सतय- अहि�सा का सनदश- वा�क और मानवता

का हिनमाता मानत �। भारतमाता की वनदना करत हए व क�त � - जय नव मानवता हिनमाता,

परयाण तय )ज उठ सतय अहि�सा दाता।

  पट� तम� गरज उठ जय � जय � शाहित अधिधषठाता।

हिवशा� सतय सनय, �ौ� भज उठ। शलिकत सवरहिपणी, )ह)� धारिरणी, वदिदत भारतमाता।

छायावादोCर का� क कहिवयो न मानवतावादी भावना म स�ज तरग पदा करन का गरतर काय हिकया। उन�ोन मतय या अगहित स साकषातकार तो हिकया, परनत उसकी उपासना न�ी की। जीवन का अथ � जीना। हिनराशा क गत म हिगर हए समाज को कहिव )चचन अखिगनपथ पर च�न की कसम दिद�ात � -

त न थकगा कभी! त न मडगा कभी! कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ! त न थकगा कभी!अखिगनपथ! अखिगनपथ! अखिगनपथ!

कहिव अच� इस )ात का ऐ�ान करत � हिक उनक सामन जो नया कदिठन पथ �, उसम व अक� न�ी � - म हिनससग न�ी, मझम � जीवन क असखय को�ा��,

पीछ घम न�ी दखगा कटी, जिजनदगी का )ीता सख, साथ च� र�ी मर कोदिट- कोदिट भख- नगो की ��च�। पीछ उ\कानाद, तम�ारा �ोगा नया कदिठन पथ सममख। कहिव दिदनकर क लिचनतन की दिदशा य�ी धरती, इसी धरती का कम और य�ी जिजनदगी थी। 'रलसिशमरथी' म कहिव न धम की वयाखया इस परकार की � -

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� धम पहचना न�ी, धम तो फ�ाकर पथ पर तमिसनगध जयोहित

जीवन भर च�न म �।दीपक- समान ज�न म �।

म�ातमा गाधी गीता दवारा परहितपादिदत इस लिसदधात क समथक थ हिक �मारा साधय �ी न�ी, साधन भी हिनषक�ष �ोना चाहि�ए। 'रलसिशमरथी' का कण इसी लिसदधात का साकार रप �।

कहिव की दधि} म आदमी )डा व� �, जो कम- पथ का पलिथक � - )डा व� आदमी जो जिजनदगी- भर काम करता �। नयी पीढी को कहिव य�ी सनदश दना चा�ता � - शरम � कव� सार, काम करना अचछा �।

सवत6ता- पव का यग गाधी- यग था। गाधी- यग म ' जो कथनी �, व�ी करनी �ो' का सनदश जन- जन तक स�ज �ी पहच र�ा था। साधय और साधन दोनो की पहिव6ता अपरिर�ाय �ो, कम- माग �ी जीवन का अस�ी माग �ो, धरती की धिमटटी स जड र�कर �ी दश- सवा �ो और स)स )ढकर )लि�दानी )नकर �ी सवत6ता- सगराम म स�भाहिगता �ो, इन नीहितयो को कहिवयो की �खनी दवारा सीधी और पनी

अततिभवयलिकत धिम�ी। परतयक जन भारत दश का परतीक �, उसकी आजादी �ी दश की आजादी �ोगी, इन म6 को जन- जन म फकनवा� गाधीजी न अपन यग म स) दशवालिसयो का नततव हिकया और उनस

पररणा गर�णकर हि�नदी क कहिवयो न जीवन- म\यो की पहिव6ता का अपनी कहितयो म मान रखा।सवत6ता- परानविपत क पशचात दश का परिरदशय )द�ा। जो अपन को )लि�दानी क�त थ, उनम स अनक क

�ाथ म दश की सCा आयी। एक यग का पटाकषप हआ और दसर यग का उदय हआ। �ोकनताओ की पराथधिमकताए धीर- धीर )द�न �गी। ' जो कथनी, व�ी करनी' का लिसदधात फीका पडन �गा। कममय

जीवन का इतना म�ततव न र�ा। जिजस कागरस क हिवसजन की )ात गाधीजी क� गय थ, उसक कनदर म वयलिकत परधान )न गया, दश गौण �ो गया। उनक लिसदधातो की दिदन- द�ाड �तया �ोन �गी। गाधी

इहित�ास- परष )न गय, दश- नता का खिखता) औरो न झटक लि�या। कहिवयो का मो�- भग हआ। जो कहिव नवीन )ौजिदधक वातावरण स कषबध थ, उन�ोन दश क कणधार की और उनकी नीहितयो, आचरणो और लिसदधातो की ख�कर आ�ोचना की।

सवाततरयोCर का� क कषबध कहिवयो म माखन�ा� चतवÆदी भी थ। दिदनकर जी यदा- कदा दश की ददशा पर आस )�ात र�, दिद\�ी क इठ�ान पर वयगय कसत र�, जनता क लि�ए सिस�ासन खा�ी करन की

ग�ार �गात र�, परनत अनत म अधयातम की ओर मड गय और उवशी- �ोक म हिवचरण करन �ग, परनत माखन�ा� चतवÆदी की न वाणी मद हई, न �खनी थमी। क�त �, उन�ोन एक )ार �री घास पर

�ट- �ट सामन दर स ग�ा) की झाड क चारो ओर एक म6मगध साप क जोड को चककर �गात हए दखा। उस जोड न उन� लिसखाया हिक मसी)तो म जो मौन र� सक, व�ी साहि�तय की सवा कर सकता

�।14  उन�ोन अपनी कदिठनाइयो का टिढढोरा न�ी पीटा, �हिकन सप}ोलिकत स भी पर�ज न�ी हिकया।सवत6ता- परानविपत क )ाद ज) उन�ोन व� स) घटत हए दखा, जिजसकी उन� अपकषा न�ी थी, तो उनकी

�खनी का हित�धिम�ाना सवाभाहिवक था - अधनग अ) भी कछ �, सवा- गरामो म,

पर दश- भकत ' पद �' कीरषित हिनचोड च�। शपथ रावी क तट पर खायी, यमना क तट पर तोड च�।

पदो पर गव करनवा�ो का उन�ोन ख�कर हितरसकार हिकया - तरी �र )ात पर रीझ, न त उस वा� का सवर सन,

तडपत �ार खात, लिसर चढ गमरा� का सवर सन।

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पद- �ो�प दश- भकतो क वतमान असनतोष को दख माखन�ा� चतवÆदी अतीत की चनौहितयो का समरण करत � और वतमान पीढी को दो टक सना दत � -

मरी पीढी जागत- )लि� थी, फ�ी थी, तो दश स�सरो यग ठीकर उठाता।

परभता क घर तो लिसफ एक स�ी थी। अ) तम पद- �ो�प दश- भकत अनदख। यग अगर ठीकरा �न स )च जाता कछ हआ न�ी �ो भ� तम�ार �ख।

परषाथ �मारा )ाना �, �म मरन स न�ी डरत, मरत तो कायर- �ो�प पश �, पौरष क दत न�ी मरत, �हिकन माखन�ा� चतवÆदी को गाधी- जयनती क दिदन कछ और �ी असलि�यत का सामना करना पडता

� - म�ग �ो गय पदो स अपन साथी स), च�ती � धिम� की ठाठ- )ाट स दकान म�गी र�, म�ग ज�ाज, म�गी दहिनया,

रोता � )स माधो कोरी, र�मत धहिनया। कहिव नागाजन और उनक साथी परगहितवादी कहिव भी य�ी म�सस करत � हिक सवत6 दश क जिजस

सवरप स उनका सामना �ो र�ा �, उसस तो उनक सार सपन चकनाचर �ो गय �। उनक सवदनशी� हदय न अनभव हिकया हिक उनक सपनो को साकार करनवा�ी सवत6ता का आगमन अभी न�ी हआ �, उसका आगमन अभी शष �। नागाजन न दखा हिक सवत6ता की वासतहिवक परानविपत दश को न�ी, वरन

कछ मटठी भर �ोगो को �ी हई � - घर- )ा�र भर गया तम�ारा

वयथ हई साधना, तयाग कछ काम न आया रCी भर भी हआ न�ी उपकार �मारा, कछ �ी �ोगो न सवत6ता का फ� पाया।

सवत6ता- परानविपत क )ाद भी गरी), भख, नग और )स�ारा ज�ा थ, व�ी पड �। नागाजन परशनो क ढर �गा दत �-

इसीलि�ए कया �मन तमको इन द)� कधो पर ढोया? इसीलि�ए कया �मन तमको रग- हिवरगी व मा�ाए प�नायी थी? इसीलि�ए कया परम पहिव6 हितरगा झडा तमको �मन दिदया थामन? इसीलि�ए कया तमको �मन अपन आग खडा हिकया था?

परशन उठता �, आधहिनक यग का कहिव- धम कव� आकरोश उग�ना �ी �? और उस आकरोश म उसकीगाधी- दशन पर हिकतनी आसथा शष �? नागाजन भख र�कर, गगा म घटन- भर धसकर, हित� और ज�

स वदध हिपताम� का तपण करक उन� ठगना न�ी चा�त, कयोहिक य� तो अपन आपको ठगना �ोगा। व गाधीजी क अनगहिनत सपनो को तो साकार करन म हिवशवास करत �, परनत सतय और अहि�सा की खो� ओढकर श6ओ की दा� न�ी ग�न दना चा�त।

झठ को )नका) करन क काम म अगरणी दिदखायी दत � भवानी परसाद धिमशर। आपातका� क दौरान अनक कहिवयो की वाणी सप}ोलिकत स पर�ज करती र�ी। नागाजन को ज� म डा� दिदया गया। �ा,

म�ादवी वमा अपनी हिनभ�क वाणी म सदा )ो�ती र�ी। भवानीपरसाद जी न ' मग� परभात' का '�य-हिव�य' क रप म रपानतर हिकया। व परहितदिदन तीन कहिवताए लि�खत र�। उन�ी दिदनो उन�ोन ' चार कौए

उफ चार �ौए' कहिवता लि�खी थी - कभी कभी जाद �ो जाता � दहिनया म,

य औगहिनए चार )ड सरताज �ो गय,

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दहिनया- भर क गण दिदखत � औगहिनया म, इनक नौकर ची�, गरड और )ाज �ो गय।

सवदनशी� �ोगो क लि�ए, हिवशष करक कहिवयो क लि�ए �र कषण, �र प� कोई-न- कोई यदध च� र�ा�, परनत व� यदध ऐसा �, जो वतमान हिवसगहितयो पर करारा पर�ार करत हए गाधीजी क )ताय रासत

की ओर � जाता �। सवÆशवरदया� सकसना की दधि} म - हिकतन छोट � व मोचÆ

उस �डाई क आग व सामरिरक चा� जो इनसाहिनयत क सनदभ म इनसान �डता �। कहिव इनसाहिनयत को जिजनदा रखना चा�ता �, इसलि�ए व� �डता �, हिकसी-न- हिकसी यदध म शरीक �ोता �। अनागत पथ का रासता हिनका�ना � तो व�ी स हिनक�गा और हिनका�गा �मारा कहिव। धमवीर भारती को कहिव की वाणी पर अगाध आसथा � - भटक हए वयलिकत का सशय,

ऐस हिकसी अनागत पथ का इहित�ासो का अनधा हिनशचय,

पावन माधयम- भर � द दोनो जिजसम पा आशरय

मरी आक� परहितभा )न जायग साथक समत�

अरषिपत रसना, गरिरक वसना, मरी वाणी। कहिव की आशा जीहिवत �, य� राषटर क लि�ए शभ �कषण �। म�ातमा गाधी न अपनी नीहितयो म य� सप}

कर दिदया था हिक सतय और अहि�सा का परिरतयाग करक �म दश की आजादी भी न�ी चाहि�ए। उनकी इस नीहित का सकत नरश म�ता ' सशय की एक रात' म करत � -

वयलिकतगत मरी समसयाए कयो ऐहित�ालिसक कारणो को जनम द। राम सीता को मकत करान क लि�ए नर- स�ार न�ी चा�त थ। आखिखर म �कषमण और हिवभीषण न उन� कम क लि�ए पररिरत हिकया था। सवग �ोक स पधार दशरथ न भी उन� समझाया हिक सशय या शका की कोई )ात न�ी, परसतत परिरलसिसथहित का उCर कम �ी �ो सकता � और यश जिजसकी छाया �, तम� उसी कम को सवीकार करना चाहि�ए। नरश म�ता का य� परयोग और म\य- परतीहित यगोपयोगी �।

वतमान यग की सचाई य� � हिक आरथिथक, सामाजिजक, नहितक और राजनीहितक हिवषमताओ क कारण भारत की म\य- आधारिरत छहिव धधिम� �ो र�ी �। म�ातमा गाधी न जो सवराजय �म दिद�ाया था, उस सराजय म परिरवरषितत करन का काय व अधरा छोड गय थ। उनक हिनधन क पशचात धीर- धीर

अवसरवादिदता का )ो�)ा�ा �ोता गया। जिजस राजनीहित का गाधी जी पहिव6ता क साथ गठ)धन करना चा�त थ, उसका सम)नध अपराधीकरण स �ो च�ा। परिरणाम य� हआ हिक गाधी- यग की उदाC

ससकहित उन�ी क दश म हिवकहित ससकहित क रप म पनप र�ी �, जिजस दखकर दश क हिवचारवान �ोग अतयत कषबध �। जाज )नाड शॉ न गाधी जी क हिनधन पर क�ा था, " )हत अचछा �ोना हिकतना

खतरनाक �ोता �!'' उस दिदन कम-स- कम गाधीजी क हिवचारो की परहितषठा को कोई आच न�ी आयी थी। आज उनक हिवचारो म भी �ोग अनासथा परगट करत � और व� भी कव� अपनी ससती �ोकहिपरयता

क लि�ए। आ�ोचनाओ की आग म तपकर आज म�ातमा गाधी क लिसदधात तथा उनकी नीहितया और परखर साहि)त �ो र�ी �। म�ातमा गाधी क हिवषय म सपरलिसदध वजञाहिनक आइनसटाइन न क�ा था हिक

आनवा�ी पीदिढया मलकिशक� स य� हिवशवास कर सक गी हिक �मार )ीच �ाड- मास का ऐसा च�ता- हिफरता

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आदमी पदा हआ था। आनवा�ी पीदिढयो का य� हिवशवास जीहिवत रखन का उCरदाधियतव �मार दश क पर)दध कहिवयो और �खको का �, जो अपनी रचनाओ क माधयम स य� काम )ख)ी कर सकत �।

हि�नदी साहि�तय म गाधीवादक. जी. )ा�कषण हिप\�

म�ातमा गाधी न आतम- हिवकास और समाज- हिवकास को �कषय करक शरीमदभगवद गीता, )ाइहि)�, करान इतयादिद धारमिमक गरथो स और पततिशचमी और पव� हिवचारको स अचछ- अचछ आदश गर�ण करक हिनजी वयलिकतक और पारिरवारिरक जीवन म और दततिकषण अफरीका तथा भारत क अपन सामाजिजक- राजनीहितक

जीवन म उनको वयाव�ारिरक रप दन क जो परयोग हिकय, उन�ी क हिनकष को शायद गाधीवाद क�ा जाता �। इसक मखय सदधानविनतक आधार � सतय और अहि�सा। असतय, बरहमचय, अपरिरगर� भी, जो हिक अ}ाग योग क परथम चरण यम क अनय तीन अग �, गाधीवाद क अनय आधार �। अपन आशरम क

हिनवालिसयो क लि�ए उन�ोन जो एकादश वरत हिनधारिरत हिकय, उनम कछ अनय लिसदधानत भी जोड-यथा- अहि�सा, सतय, असतय,बरहमचयÈ, असगर�,

शरीर शरम, असवाद, सव6 भय वजन,

सवधम समानतव,सवदशी, सपश भावना।

इन लिसदधानतो को वयाव�ारिरक रप दिदय गय तो कछ मदद उभरकर आय, जिजनम परमख � - वग-स�योग, हिवकनदराrकरण, दरसटीलिशप, हदय- परिरवतन व सतयागर�। रचनातमक कायकरम इनक सथ� रप �, जिजनक

अग � - सापरदाधियक एकता, असपशयता-हिनवारण, मदयहिनषध, खादी-परचार, गरामोदयोग, सफाई कीलिशकषा, )हिनयादी ता�ीम, हि�नदी-परचार, अनय भारतीय भाषाओ का हिवकास, तमिस6यो की उननहित, सवासथय-लिशकषा, परौढ-लिशकषा, आरथिथक समानता, कषक-सगठन, शरधिमक-सगठन, हिवदयाथ�- सगठन और सवत6ता

क लि�ए तथा सवराज क लि�ए हिनरतर सघष। अनयाय और शोषण क हिवरदध हिनभ�कता स सघष करत हए आतम)लि� दना �ी शायद गाधीवाद की मखय प�चान �, जिजस स�ी का माग भी क�ा

जाता �। साहि�तय तो समाज का दपण क�ा जाता �। समाज म जो अचछाइया और )राइया दिदखती �, उनका परहितहि)) साहि�तय म पडना सवाभाहिवक �ी �। साहि�तयकार वयलिकत- सतर पर और समाज- सतर पर जो ततिभनन परवततिCया दखता �, उनका सकषम हिनरीकषण करता �, अधययन करता �, हिवशलषण करता � और उनको

इस ढग स परसतत करता � हिक पाठक क हदय म अचछाई क परहित, सनदर क परहित आकषण �ो और )राई क परहित, असदर क परहित हिवकषण। म�ातमा गाधी क जीवन म, उनक वयलिकतगत और समाजगत परयोगो म जो कम- सौनदय परकट हआ �, हिवशषकर असतय का सतय स और हि�सा को अहि�सा स जीतन

क परयोगो म मानवता का जो हिनखार आया �, उसक परभाव स हिवशव का कोई भी साहि�तय न�ी )च सकता। गाधीजी यदयहिप हिवशव नागरिरक थ, यदयहिप उनक जीवन का एक )हत )डा भाग इग�ड और

दततिकषण अफरीका म )ीता, तो भी व मखयत भारतीय नता थ। उनक जीवन का उCरादध मखयत भारत को हिवदशी शासन स हिवमकत करन क सघष का नततव करत हए वयतीत हआ था। उस सघष स पर भारत

की जनता जड गयी थी। अत सारी भाषाओ क साहि�तयो म गाधीवाद का परभाव पडना सवाभाहिवक था। चहिक भारत क एक )ड भ- भाग म )ो�ी जानवा�ी भाषा हि�नदी र�ी, इसलि�ए हि�नदी पर गाधीवाद का

सवाधिधक परभाव पडना भी सवाभाहिवक �ी था। हि�नदी साहि�तय पर गाधीवाद का इतना ग�रा परभाव पडा � हिक सवय इसी हिवषय पर कई शोध- �ख लि�ख

गय �, कछ शोध- पर)ध भी हिनक� �। हिकतना अचछा �ोता, यदिद य सारी सामहिगरया इटरनट पर उप�बध �ो जाती। मर �ाथ जो दो शोध- गरथ �ग, व � - डॉअ अरणा चतवÆदी दवारा रलिचत ' गाधीवादी हिवचारधारा

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और हि�नदी उपनयास' तथा रखा शमा दवारा रलिचत ' गाधीवादी हिवचारधारा और हि�नदी क�ानी।' हि�नदसतानी परचार सभा, म)ई दवारा सचालि�त म�ातमा गाधी ममोरिरय� रिरसच सनटर, म)ई की शोध पहि6का

' हि�नदसतान ज)ान' क अकट)र- दिदस)र 2000 क अक म डॉअ सशी�ा गपता दवारा सपादिदत और हि�नदसतानी परचार सभा दवारा परकालिशत एक और गरथ की समीकषा शरीमती कम�श )खशी न लि�खी �।

गरथ का शीषक �-' हि�नदी साहि�तय म गाधीवादी चतना' । हि�नदी साहि�तय क कई इहित�ास- गरथो म भी हि�नदी की हिवहिवध हिवधाओ पर गाधीवाद की जो छाप पडी �, उसका हिवशलषण धिम�ता �।

मर सीधिमत अधययन क आधार पर कछ तो माखन�ा� चतवÆदी, मलिथ�ीशरण गपत, रामनरश हि6पाठी, लिसयाराम शरण गपत, )ा�कषण शमा 'नवीन', सभदरा कमारी चौ�ान, सयकानत हि6पाठी 'हिनरा�ा',

सधिम6ानदन पत आदिद की कहिवताओ म तथा परमचनद, जननदर कमार, हिवषण परभाकर आदिद क उपनयासो, क�ाहिनयो और नाटको म गाधीवाद की सवाधिधक छाप धिम�ती �।

माखन�ा� चतवÆदी की कहिवता ' पषप की अततिभ�ाषा' तो कर� क सक�ी पाठयकरम म सथान पाती र�ी �। पषप साधारणतया य�ी चा�गा हिक व� सर)ा�ा क ग�नो म गथा जाय, परमी की मा�ा म हि)धकर

पयारी को ��चाय, या दवो क लिसर पर चढकर इठ�ाय। य�ा तो पषप भगवान स य�ी पराथना करता �- ' मझ तोड �ना वनमा�ी, उस पथ पर दना तम फ क, मातभधिम पर शीश चढान' की इस अततिभ�ाषा म

गाधीवाद की �ी अनगज धिम�ती � न? माखन�ा� चतवÆदी ऐस कहिव थ, जिजन� अपनी राजनीहितक सहिकरयता क कारण कई )ार कारावास भोगना पडा था। लिसयाराम शरण गपत की य पलिकतया तो खादी परचार का �ी काम करती � -

' खादी क धाग - धाग म अपनपन का अततिभमान भरा।'

य� पलिकत भी उन�ी की � - ' काम गाधी न हिकया जो

काम आधी कर न सकती।' हि�नदी साहि�तय क )हचरथिचत छायावाद को कछ आ�ोचक गाधी- यग की �ी दन मानत �। डॉअ आ�ोक कमार रसतोगी न अपन ' हि�नदी साहि�तय का इहित�ास' शीषक गरथ क हिदवतीय खणड म लि�खा � -

'' म�ातमा गाधी न हिवशव-)धतव, �ोक- मग� की हिवचारधारा को अपनाकर सामय भाव को म�ततव दिदया। छायावादी रचनाओ म गाधी जी क इस सामय भाव और मानव- क\याण की भावनाओ को भरपर सथान

धिम�ा। यदिद छायावाद को गाधीयग की दन मान � तो कोई अहितशयोलिकत न�ी �ोगी।'' डॉअ नगनदर क अनसार '' गाधी की अहि�सा उस यग की चतना की परतीक थी, अतएव छायावाद म वयलिकतक चतना क आलकिसतक अधिधमानलिसक रप का �ी हिवकास हआ। पनत, म�ादवी जस सकमार भावनाओ क कहिवयो न

तो उस आतमसात कर लि�या। परसाद और हिनरा�ा जस उददाम कहिवयो न भी उन म\यो को �ी सवीकार हिकया।''

हि�नदी क उपनयास- समराट मान जानवा� परमचनद गाधी जी स इतन परभाहिवत हए थ हिक उन�ोन अपनी सरकारी नौकरी तयाग दी थी और जन- जागरण क काय म �ग गय थ। उनकी कई क�ाहिनयो म गाधीवादी पा6 जीहिवत �। ' �ो�ी का उप�ार' शीषक क�ानी की सखदा इसका अचछा उदा�रण �। उस

�ो�ी क अवसर पर उप�ार दन क लि�ए अमरकात एक कीमती हिवदशी साडी खरीदता �। चहिक हिवदशी वस6ो की दकानो पर सवयसवको दवारा हिपकटिटग �ो र�ी थी, इसलि�ए उस सवयसवको की नजर स )चन

क लि�ए दकान क हिपछवाड क दवार स दकान म घसना पडा था। पर )ा�र हिनक�त �ी सवयसवको न उस पकड लि�या। साडी �डप �ी। सखदा, जो उनका नततव कर र�ी थी, उस वापस दिद�ा दती �। पर

सखदा क वयलिकततव का इतना परभाव अमरकानत पर पडता � हिक व� हिवदशी साडी ज�ा दता � और दसर दिदन क हिपकटिटग म व� भी भाग �ता � और गव क साथ ज� जाता �।

परमचनद क कई उपनयासो म गाधीवाद की सप} झ�क धिम�ती �। हिवशषकर 'हिनम�ा', 'परमाशरम', 'ग)न', 'कमभधिम' और 'रगभधिम' म। 'गोदान' म भी गाधीवादी चतना मखर �, यदयहिप )चचन सिस� न

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क�ा � हिक 'गोदान' म परमचद गाधीवाद स मकत �। 'हिनम�ा' क एक पा6 को यो परसतत हिकया गया � - ' खददर क )ड परमी �, पीठ पर खादी �ाद कर द�ातो म )चन जाया करत � और वयाखयान दन म भी

चतर �।' 'परमाशरम' म एक पा6 स क��वाया � - '' इसक लि�ए �म हिवदशी वसतओ पर कर �गाना पडगा। यरोपवा� दसर दशो स कचचा मा� � जात �, ज�ाज का हिकराया द दत �, उन� मजदरो को

कडी मजदरी दनी पडती �, उस पर हि�ससदारो को नफा भी ख) चाहि�ए। �मारा घर� लिश\प इन समसत )ाधाओ स मकत र�गा।''

'ग)न' म परमचनद सवाततरयोCर भारत क नताओ, )ा)ओ और )जिदधजीहिवयो की सवाथपरता पर अपनी दरदरथिशता की दर)ीन स दधि}पात करत हए दवीदीन क मख स परशन करात � - '' तो सराज धिम�न पर

दस- दस पाच- पाच �जार क अफसर न�ी र�ग? वकी�ो की �ट न�ी र�गी? पलि�स की �ट )द �ोजाएगी?'' सवत6ता- परानविपत पर सहिवधाभोहिगता की वततिC पनपगी, इसका भी अनमान करत हए दवीदीन

स पछवात � - ''सा�), सच )ताओ, ज) तम सराज का नाम �त �ो, उसका कौन- सा रप तम�ारी आखो क सामन आता �? तम भी )डी- )डी त�) �ोग? तम भी अगरज की तर� )ग� म र�ोग? प�ाडो की �वा खाओग? अगरजी ठाठ )नाय घमोग? इस सराज स दश का कया क\याण �ोगा? तम�ारी

और तम�ार भाई- )नदो की जिजनदगी भ� ठाठ और आराम स गजर, पर दश का कोई भ�ा न �ोगा।'' 'रगभधिम' म यवको का जो सम�- गीत सोहिफया का धयान का आक} करता �, उसम गाधीवाद की �ी

तो धन �। जस - शाहित समर म कभी भ�कर धय न�ी खोना �ोगा

वजर पर�ार भ� लिसर पर �ो, न�ी हिकनत रोना �ोगा अरिर स )द�ा �न का मन - )ीज न�ी )ोना �ोगा दश - दाग को रधिधर वारिर स �रषिषत �ो धोना �ोगा। �ोगी हिनशचय जीत धम की य�ी भाव भरना �ोगा

मातभधिम क लि�ए जगत म जीना औ' मरना �ोगा। वतमान हि�नदी साहि�तयकारो का गाधी- स)धी दधि}कोण हिवषण परभाकर की इस उलिकत म सप}त झ�कता

� - ' गाधी जी न दसरो क लि�ए जीवन जीन की सीख भी दी थी। मर अतरतम का हिवशवास � हिक यदिद �ोग इस पर च� सक तो )हत- सी समसयाए अपन आप स�झ जायगी। इसस )�तर मनषय और )�तर नागरिरक )नग। हिफर गाधीवाद को, सामाजिजक सगठन या शासन की हिवधिध क रप म, मरा हिवचार

�, अभी तक न�ी �ाया गया। सफ�ता- असफ�ता का तो तभी पता च�गा, ज) इस परयोग म �ाया जाय। मरा हिवशवास � हिक �मार जस हिवकासशी� दश क लि�ए गाधीजी का गराम- सवराजय का तरीका �ी अधिधक उपयकत �ोगा। चीन न उनस �कर न�ी, )लकि\क अपन अनभव स इस दिदशा म )हत कछ हिकया

�। जापान म भी नयी ता�ीम सफ� हई �, जो गाधीवादी नयी ता�ीम स धिम�ती- ज�ती �। आशा कर, वतमान भारतीय समाज को अपनी तमाम हिवसगहितयो स मलिकत दिद�ान म हि�नदी साहि�तयकारो

की य� गाधी- उनमखी चतना अपना दाधियतव हिनभा पाएगी। हि�नदी साहि�तय म गाधी-दशन की अततिभवयलिकतपरो. इसपाक अ�ी

राषटरीय चतना क परचार- परसार म भारत की म�ान हिवभहितयो का हिवशष सथान र�ा �, जिजन�ोन अपन हिवचारो स, ससथाओ और सभाओ की सथापनाओ स जन- जीवन क परतयक कष6 म सधार करना चा�ा। उन�ोन हिनशच}, हिनराश एव हिनरव�म) जनता को अपन उचच हिवचारो का दान तथा नवचतना परदान कर,

उनक जनमजात अधिधकारो की ओर �मारी दधि} आक} की, जिजसस भारतीय सासकहितक जीवन- दशन का सवाभाहिवक हिवकास हआ। गाधीजी न इसी भारतीय जीवन- दशन तथा आधयातमितमकता को राषटरीय

आनदो�न का सम)� )नाकर जन- आनदो�न का रप दिदया था। इसका कारण य� था हिक मनषय की स�ज परकहित सामाजिजक �ोन क साथ �ी आधयातमितमक भी �। साथ �ी सोददशय जीवन- यापन क लि�ए भी

य� आवशयक � हिक मनषय का आचरण धमानक� �ो। सवत6ता को हिनयधिमत तथा नयायपण )नान क

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लि�ए धम की आवशयकता �ोती �। इसी कारण गाधीजी न यग- यग स च� आ र� भारतीय सासकहितकजीवन- दशन क परमख तततव सतय और अहि�सा को दश क लि�ए हि�तकारी माना था। उन�ोन आधहिनक

यग को ))रता स मकत करन क लि�ए अहि�सा को भारतीय जीवन- दशन का आधार चना था। गाधीजी क अहि�सा- दशन न राषटरवाद क परमख अगो को हिवकलिसत हिकया, जिजसकी अततिभवयलिकत हि�नदी साहि�तय म हई, जिजसस राषटरीय हिवचारधारा को )� धिम�ा। गाधी- दशन की अततिभवयलिकत हि�नदी कहिवता, नाटको और कथा- साहि�तय क हिवततिभनन पकषो म हई। भारतीय जीवन- दशन भौहितकता की अपकषा आधयातमितमकता को अधिधक म�ततव दता �। धम, कम, काम,

मोकष भारतीय जीवन क चार परषाथ �, �हिकन अथ तथा काम को धम दवारा हिनयहि6त हिकया गया � और मोकष अनविनतम �कषय �। गाधीजी न अपन राषटरवाद को भारत की लिचर परातन आधयातमितमक एव

दाशहिनक हिवचारधारा पर आततिशरत हिकया था। गाधीजी का वद गरनथ तथा भारत की अहित परातन धम- वयवसथा म पण हिवशवास और शरदधा थी। गाधीजी न दश क आधयातमितमक और नहितक पतन को अपनी

सकषम दधि} स दखा था, इसीलि�ए उनक राषटरीयता क दशन का परमख तथय था आधयातमितमकता और नहितकता की पन परहितषठा। गाधीजी क इस दशन पर हि�नदी साहि�तयकारो की दधि} ऋहिषयो- महिनयो दवारा परसारिरत धम तथा दशन क उतक} लिसदधातो की ओर गयी, जिजसकी साहि�तय म सनदर ढग स

अततिभवयजना की गयी �। गाधी- दशन का सतय साधय एव अहि�सा साधन �। गाधीजी क अनसार 'सतय' का उचच अथ � 'परमशवर' । साधारण तथा अपर अथ म सतय का वयजक � सतयागर�, सतय हिवचार तथा सतय वाणी। सतय अथवा परम तततव की परानविपत क लि�ए आतमा की शजिदध आवशयक �। अहि�सातमक माग

क अनगमन दवारा सतय की परानविपत हिनततिशचत �। हिनससनद� गाधीजी का सतय लिचर परातन सतय �। गाधीजी क सतय तथा अहि�सा की तालकिततवक मीमासा हि�नदी का� कष6 म भी हि6श�, माखन�ा� चतवÆदी,

लिसयाराम शरण गपत, मलिथ�ीशरण गपत, पअ रामनरश हि6पाठी, शरीमती सभदरा कमारी चौ�ान आदिद न की �। शरी हि6श� न सतयागर� अथवा सतय तततव की हिववचना करत हए लि�खा � - सतय सधि} का सार, सतय हिन)� का )� �, सतय सतय �, सतय हिनतय �, अच� अट� �।

जीवन- सर म सरस धिम6वर! य�ी कम� �, मोद मधर मकरनद, सशय सौरभ हिनम� �।। मन धिमलि�नद महिनवनद थ, मच� मच� इस पर गय। पराण गय तो इसी पर, नयौछावर �ोकर गय।।

शरी मलिथ�ीशरण गपत न 'सतयागर�' कावय म गाधीजी क 'सतयागर�' का हिववचन हिकया �। शरी माखन�ा� चतवÆदी की ' अदा�त म सतयागर� क नात )यान' कहिवता म भी गाधीजी दवारा अपनाय गय

सतयागर� तथा अहि�सा का वणन हिकया गया �। चतवÆदीजी न गाधीजी क अहि�सातमक हिवचारो, नहितक एव आतमितमक )� की शरषठता तथा सतय क वासतहिवक सवरप का अकन ततका�ीन गाधीवादी हिवचारधारा

स परभाहिवत �ोकर हिकया था। इन�ोन गाधीजी क लिसदधानतो का हिववचन अधिधक भावातमक रप स हिकया �। शरीमती सभदरा कमारी चौ�ान की राषटरीयता का टक भी सवाधीनता की कमणयता �। पअ   रामनरश

हि6पाठी न 'पलिथक' नामक परमाखयानक खणडकावय म गाधीजी की सतय- अहि�सा की पधि} की �। शरीधर पाठक न 'भरमरगीत' म गाधीवादी सतय तथा अहि�सा अथवा परम दवारा हिवशव को जीतन क लिसदधानत का

परहितपादन हिकया, जिजस सम)ोधिधत कर पाठकजी क�त � - गर�ण कर मधकर नीहित नई मधर गज- मद स प� भर को भर द भवन जयी।

लिसयाराम शरण गपत न गाधी- दशन को परतयकष रप म सवीकार हिकया �। उनक कावय म जिजस करणा का सवर परमख �, व� भौहितक कठाओ की करणा न �ोकर भारतीय अधयातम की मानव- करणा �, जो

मानव- मा6 का धम �। एक सतय स अनपराततिणत �ोन क कारण पराणी- मा6 का समान अलकिसततव �, उनक

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कावय म सतय क इस सवरप की पण अततिभवयलिकत धिम�ती �। गाधीजी की सतय- अहि�सा स अनपररिरत नीहित का समथन करत हए व लि�खत � -

तन �म )ताया - �म स) एक हिपता की � सतान,

� �म स) भाई- भाई �ी � स)क अधिधकार समान।

हि�नदी कावय की भाहित �ी हि�नदी क ऐहित�ालिसक, सामाजिजक, राजनहितक नाटको म गाधी क सतय तथा अहि�सा क लिसदधानत, हिवचार तथा वयव�ार की पण अततिभवयलिकत धिम�ती �। जयशकर परसाद,

�कषमीनारायण धिमशर, पाडय )चन शमा उगर, मलिथ�ीशरण गपत, लिसयाराम शरण गपत, सठ गोहिवनददास आदिद नाटककारो न सतय तथा अहि�सा को सघष तथा कममय जीवन का म�ान धम तथा आवशयक कतवय ठ�राया �। उनक पा6ो न कश�ता क साथ सतय तथा अहि�सा क कदिठन वरत को हिनभान का सफ� अततिभनय हिकया �। राषटरवाद क इहित�ास म य नाटक हि�नदी साहि�तय की अमर दन �।

' यग इहिडया' म गाधीजी न लि�खा थाö'' मरा हिवशवास � हिक हि�सा स अहि�सा की मयादा )�वती �, दणड दन स कषमादान क�ी वीरतव का �कषण �। कषमा- दान सचची वीरता का परमाण �। यदिद दणड दन की

मझम कषमता � और म दणड दना सवीकार न�ी करता, तो व�ी कषमा सचची कषमा �।'' पाडय )चन शमा उगर क ' म�ातमा ईसा' नामक नाटक म म�ातमा ईसा क वयलिकततव का लिच6ण गाधीजी क वयलिकततव क

सामञजसय म हआ �। उगरजी क गाधीजी क सतय, अहि�सा, कषमा आदिद की पधि} म�ातमा क जीवन- चरिर6 क दवारा करायी गयी �। गाधीजी का य� हिवशवास था हिक सतय �ी ईशवर � और सतय की परानविपत का

एकमा6 माग दया और कषमा �। जयशकर परसाद क नाटको म ऐहित�ालिसक कथानको दवारा गाधीजी की सतय और अहि�सा- स)धी हिवचारधारा का प} रप धिम�ता �। हि�नदी नाटय साहि�तय म सवदशी, चखा, खादी तथा गरामोदयोग को भी अततिभवयलिकत धिम�ती �। गाधीजी नगर क कहि6म जीवन, क�- मशीनो की अपकषा गराम क नसरषिगक एव पराकत जीवन तथा �सतक�ा उदयोग क पकषपाती थ। जयशकर परसादजी क

'कामायनी' नाटक म गाधीजी की राषटरीय हिवचारधाराओ का उ\�ख धिम�ता �। जयशकर परसाद क ऐहित�ालिसक नाटको म, परचछनन रप म समाज- सधार क रचनातमक कायकरमो को अततिभवयलिकत धिम�ती �। 'धर वसवाधिमनी' म ऐहित�ालिसक कथा क माधयम स हिवधवा- हिववा� की पधि} की गयी

�। गाधीजी क दशन का हि�नदी कथा- साहि�तय म रचनातमक कायकरम क हिवततिभनन पकषो क अनक दशय- वणन

और कथोपकथन पर परभाव पडा �। क�ाहिनयो म सवदशी- परचार की कायपरणा�ी, जन- जीवन म सवदशी का परभाव, खादी, चरख आदिद का वणन धिम�ता �। परमचनद, सदशन, हिनरा�ा, सभदरा कमारी चौ�ान,

लिसयाराम शरण गपत आदिद की क�ाहिनया उ\�खनीय �। परमचनद की ' �ो�ी का उप�ार', ' पतनी सपहित', ' स�ाग की साडी' क�ाहिनयो म सवदशी क परचार की सपण परहिकरया का उ\�ख धिम�ता �।

परमचनदजी क 'परमाशरम' और 'कमभधिम' उपनयासो म गराम- सधार एव गरामीण लिशकषा क कायकरम का हिकरयानविनवत रप दिदया गया �।

वासतव म गाधी- दशन का हि�नदी साहि�तय म दश क जन- जीवन क साथ जो घहिनषठ स)ध सथाहिपत हिकया गया �, व� अपव �। हि�नदी साहि�तय म गाधी- दशन दशवालिसयो की सतय, अहि�सा की भावना को परगाढ करता �, साथ �ी राषटरीय भावना को परोतसाहि�त करता �। गाधी- दशन म�त आधयातमितमक जीवन- दशन

�, जो जीवन का सतय � और मानव की सपरवततिCयो म भी अननय हिवशवास �, जिजसक माधयम सअनयाय, अतयाचार तथा शोषण की समसया का अहि�सातमक रीहित स समाधान धिम�ता �। गाधी- दशन स

परभाहिवत हि�नदी साहि�तय परिरधान स ससलसिजजत �ोकर यग- यग क लि�ए दश- जीवन को राषटर- हिनमाण की पररणा दता �। गाधी- दशन को साहि�नवितयक सवरप दकर साहि�तयकार का य� परम धम �ो जाता � हिक

व� वतमान समय म दश- का� की परिरलसिसथहित का हिनरीकषण कर अपन हिवशद मानस पट पर अहिकत कर

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गाधी- दशन को अपनी अनभहित क ग�र रग म रग कर वयकत कर, जिजसस साहि�तय दवारा राषटरीयता की रकषा �ो सक।

क)रनाथ राय की गाधी-हिवषयक दधि}डॉ. नीरा ना�टा

क)रनाथ राय कहिव- हदय स सलसिजजत ऐस हिन)धकार �, जो अपनी धिमटटी स रस गर�ण करक हिनरनतर ऊधवगहित की ओर )ढत र� �। उनक लि�ए �खन एक साहि�नवितयक और राषटरीय दाधियतव �। इस दाधियतव

का हिनवा� करत हए उन�ोन �लि�त हिन)ध लि�ख, जिजस उन�ोन 'आतनाद' क�ा। हि�दसतान का आतनाद। अशरपात कर र�ा � मनषय जाहित का सय

हिवपनन � मनषय जाहित का सय। अपन समय की कट सचचाइयो और तर�- तर� क अवरोधो स ग�रात अधर म सवाधिधक सिचहितत

करनवा�ा तततव � - मनषय की आतरिरक हिवपननता। उन म\यो स दर �ोत जान की लसिसथहित, जिजनकी वज� स मनषय मनषय �।

एक �खक की �लिसयत स इस अवसथा को )द�न तथा आसथा की नीव मज)त करन क लि�ए, ससकहित क हिवशा� परागण म साहि�तय-जगत, इहित�ास- )ोध और �ोक- जीवन की ग�राई म अवगा�न

करत हए उन दीघजीवी म\यवान तततवो और शाशवत सचचाइयो को उन�ोन सममख रखा, जो �मारी जीवतता और गौरव- )ोध क परिरचायक �। शरी राय का मानना � हिक पाठक की मानलिसक ऋजिदध और

ततिकषहितज का हिवसतार करना �खक का कतवय �। क)रनाथ राय न अपनी पीढी को अपन दायर स परिरलिचत करवान, उसम जीवन- दधि} का स�ी )ोध जगान का काय अपन हिन)धो दवारा हिकया �। आज

की परिरलसिसथहितयो म उन पराचीन म\यो को परासहिगक मानकर उन�ोन पनवयाखयाधियत हिकया और उसकी उपादयता लिसदध की। इस परकार हिवकास क लि�ए परमपरा की जमीन पर खड �ोन का उन�ोन समलिचत

साधन परसतत हिकया �। इस परहिकरया म उनकी दधि} भारतीय मनीषा की वचारिरक उचचता और उजजव� कततव क उन म�ान तपी

आतमाओ पर पडती �, जिजन�न भारत की अलकिसमता को धिमटन स )चाया और हिवशव क सामन इसकी साख )नायी। हिववकानद, रवीनदरनाथ और आनद कमार सवामी न करमश: भारत की दाशहिनक,

साहि�नवितयक और क�ातमक गरिरमा को परहितधिषठत हिकया। परनत म�ातमा गाधी न अपन वयापक और स�ज जीवन दवारा भारत की आतमा को हिवशव क समकष उदघादिटत हिकया।

क)रनाथ राय गाधीजी को यग का सवशरषठ मनषय मानत �। आज ज) �म अपनी आतमा स �ी )ख)र �ोत जा र� �, घोर �ताशा क इन कषणो म उन� गाधी- सिचतन क अहितरिरकत और कोई रा� न�ी सझती।

गाधीजी को समझन क लि�ए राय क अनसार कजी क रप म तीन शबद � - सतय, अहि�सा और अभय। उनकी परतयक हिवचारधारा म तीनो मौजद �, परनत हिवषयानसार जोर कभी एक पर � तो कभी दसर

पर। उनकी रस- दधि} या साहि�तय-दशन, लिश\प- दधि} को समझन क लि�ए 'सतय' पर हिवशष )� दना�ोगा।

आज चारो ओर कहि6मता, जदिट�ता और )नावटीपन क च�र इस तर� �र कष6 म उभर हए � हिक इस जडता और याहि6कता स अ�ग कछ दिदखायी न�ी दता। परनत गाधीजी )हत )ड आशावादी �। उनका मनषय की अनतरषिनहि�त अचछाइयो म दढ हिवशवास �। ' आज की य6णा का म� कारण ')राई' उतना न�ी

�, जिजतना अचछाई का अकषम और अपयापत �ो जाना।' कथोलि�क चच क पोप पायस की इस सिचता क लि�ए गाधीजी का उCर � '�ोकशलिकत' को जगाना। �ोकशलिकत की क\पना जनशलिकत स अ�ग �।

'�ोक' का एक वयलिकततव �ोता � और वयलिकततव वा�ा सदव हदय या अनत: करण वा�ा �ी �ोता �। अत: अचछाई को �ोकशलिकत म जगाकर वयलिकत- वयलिकत क माधयम स सव�दय क उदिदद} तक पहचना �। गाधीजी का अटट हिवशवास � हिक राजय- वयवसथा या अथ- वयवसथा )द�न स कछ न�ी �ोता, ज) तक

हिक �मारी सिचतन- श�ी न )द�। औसत आदमी की )ात आज तथाकलिथत वजञाहिनक सोच का गततिणत �, जो परगहित का मापक )ना हआ �। परनत गाधीजी क लि�ए परगहित औसत क रप म न�ी, सव�दय क

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रप म सवीकाय �, ज�ा आखिखरी आदमी तक समाज की हि�ससदारी पहच। अपन �र काय क लि�ए इस कसौटी मानन तथा मानलिसकता क परिरवतन पर �ी व जोर दत �। गाधीजी क जीवन, उनकी रलिच, उनक आदश पर सिचतन- मनन करक क)रनाथ राय न 'शानत, सर�,

सनदरम' क स6 दवारा उनकी दधि} का हिनचोड परसतत हिकया �। उनका मानना � हिक रस- )ोध औरसौदय- रलिच �ी �मार जीवन क शभ और अशभ का सरोत �। यदिद य दोनो सवसथ, पहिव6 और उचचगामी

र� तो वयलिकत का जीवन एव परकारानतर स सम� का जीवन सवसथ, पहिव6 और उचचगामी र�गा। इसीलि�ए आज की )ढती कहि6मता और उपभोकता ससकहित क हिव�ासपण हिवसतार क सदभ म 'शानत,

सर�, सदरम' का गाधीवादी स6 उन� सव�Cम और सवाधिधक उपयोगी �गता �। गाधीजी की दधि} सत- दधि} थी। जो सर� �, ऋज �, व�ी सदर �। उनक य�ा सर� दो

अथ¾ म परयकत �ोता � : सर� यानी सादा और अकहि6म और दसर अथ म सर� यानी हिनषकपट, पारदश�। इसी सर� का दसरा नाम � 'सशी�' । जो कदिट� �, जदिट� �, व� हिनशचय �ी 'द:शी�' �।

राय का मानना � हिक य� 'शानत, सर� सदरम', �म अपनी वदिदक पराथना क हिनकट � जाता �। �मारी सनातन पराथना य�ी र�ी � हिक ' � भगवान, )ाहय सौदय, )ा�री रो)-दा), )ा�री चमक- दमक �म पराभत न कर, �म भीतर हिनहि�त सचचाई को प�चान।' खादी भी इसी शानत-सर�- सदर सौदय)ोध का

परतीक �। गाधीजी आधयातमितमक न�ी, नहितक म\यो क दाशहिनक �। नहितक म\य ऊपर अधयातम स जड � तो नीच रोजमरा क �ोक- जीवन स। ' �र �ाथ को काम' - �मारी हिवशा� जनसखया वा� दश म गाधीजी न

खादी क दवारा सभव करन का परयास हिकया। मशीन या आधहिनक सभयता क व हिवरोधी न�ी थ, पर मशीन का �कषय � ' अधिधक उतपादन' और �मार दश क लि�ए चाहि�ए ' अधिधक �ाथो दवारा उतपादन' । इसलि�ए कटीर लिश\प को मशीन और उदयोग क सथान पर व तरजी� द र� थ। मशीनी सभयता तो धीर-

धीर मनषय क मनषयतव को �ी गरास )नाती जा र�ी �। मशीन दवारा मनषय क अवम\यन को परशरय न दन और �सतलिश\प क माधयम स स�ी तरीक स

रचनातमक काय म जडन का �कषय था खादी क पीछ। मशीन र�, मनषय क �ाथ म शख- चकर )नकरर�, उसका दिद� और सनायमणड� )न कर न�ी।

गाधीजी की भोजन- दधि} भी उनक शी�- दशन का अग थी। ' हिनराधिमष भोजन का नहितक दशन' और' सवासथय की कजी' गाधीजी की इन दोनो पसतको स उनकी भोजन- स)धी सिचता सप} �ोती �। उनक

लि�ए भोजन शरीर क आरोगय और )� क लि�ए आवशयक �। भोजन को व 'औषधिध' की दधि} स दखन क समथक थ। 'औषधवदशनमाचरत' ( भोजन वस �ी करो, जस औषधिध गर�ण करत � अथात नपी-

त�ी सतलि�त मा6ा, भख क अनसार करो और सवाद- तोष क लि�ए न�ी।) शरी राय न�)ारी क एक �ोमयोपथ कॉमरड नवीन वमन की सवीकारोलिकत उदधत करत हए क�त � हिक

उनकी धारणा म हिवशव- शाहित की सथापना सभव � गाधीवादी भोजन दवारा। स) �ोग गाधीजी की तर�सीधा- सर� भोजन करन �गग, तो हिकसी का सवभाव उगर न�ी �ोगा, स) �ोग कोम�- सर� परकहित क

�ो जायग। कोई हिकसी को दखकर अकडगा न�ी, कोई हिकसी की ओर सीग न�ी तानगा। कयोहिक सादा सालकिततवक भोजन मनषय को उCजिजत न�ी करता, उस धीर और शात रखता �। गाधीजी को नीरस, हिनषधवादी या सौनदय- हिवरोधी मान �न की यवा- पीढी की मानलिसकता को शरी राय पवागर� और भरम मानत �। उनका तो क�ना � हिक उनक जसा रसमय परष इस शताबदी क

राजनीहितक या सामाजिजक जीवन म शायद �ी कोई हआ �ो। परम उCजना स ऊपर शानत और अहिवक� लसिसथहित �। गाधीजी रामायण को परम- कावय भी मानत थ। गाधीजी की रसदधि} ' परसनन गभीर रसदधि}'

थी। 'परसनन' शबद का अथ � पारदश�। ज) �म परसनन �ोत �, �मार च�र पर �मारा हदय उतर आता �। इसीलि�ए 'परसनन' का अथ आनजिनदत भी �। गाधीजी आजीवन �र काम म परसनन व गभीर ज� की तर� र�। उन�ोन अपना भ�ा- )रा कछ न�ी लिछपाया। गाधीजी की रसदधि} म रप तभी सदर �, ज)

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कम का स�योगी �ो और सतय का )ोधक �ो। गाधीजी न सवय क�ा �, '' म सौदय को सतय क माधयम स दखता ह।''

क�ा क कष6 म भी गाधी- दधि} म तीन कसौदिटया � - सवदशी �ो, �ोकायत जीवन स जडी �ो और उपयोगी �ो। परलिसदध लिच6कार नद�ा� वस उनक आशरम क गो)र लि�प कमर म घड क पCनमा

आकार क ढककन को दखकर गाधीजी क उदगार वयकत करत � - ' दखो सदर � न! इस पर परकहित की छाप �, साथ �ी इस मझ गाव क �ो�ार न गढ कर दिदया �।' भाषा और साहि�तय क सदभ म भी गाधीजी की दधि} म कनदराr य तततव 'शी�-सौदय' �। हि�दसतानी का

परचार- परसार करत हए ' सवचछता और सर�ता क साथ उचचगाधिमता' उनकी साहि�तय- स)धी धारणा को वयाव�ारिरक रप द दती �। सर� भाषा स तातपय पराण�ीन, गवार या भदस शबदाव�ी न�ी था।

‘A call to the Nation’ शीषक स ' यग इहिडया' म लि�ख अपन �ख क लि�ए भदनत आनद कौस\यायन स गाधीजी न ' हि�दसतानी अनवाद' पछा। उन�ोन सकोच स क�ा 'आहवान' । गाधीजी सत}

�ो गय। पर भदनतजी न क�ा, ')ाप! य� तो हि�दसतानी न�ी हई।' गाधीजी न आशचय स क�ा, 'कस! 'आहवान' काफी जोरदार शबद � और ख) च�ता �।'

गाधीजी क लि�ए दशन स�ी व�ी �, जो जीवन क 'शी�' स; 'शी�ाचार' क समसत अग- परतयग स जडा �ो। गाधीजी क सिचतन क सार अग, चा� व� सतयागर� या गरामोदधार �ो, सतय या अहि�सा �ो या

मगफ�ी का त� और )करी का दध �ो, सभी एक �ी 'शी�' क उनमष, आभास और हिववCन �। इन स)की चरम परिरणहित � 'अभय' । जो इस शी� का पा�न करता �, व� अभय को परापत �ो जाता �। इहित�ास क पननो म गाधीजी क समककष शरी राय को गर गोहिवनदसिस� दिदखायी पडत �। गाधीजी की

' राम धन' की प��ी दो पलिकतया सवामी रामानद की � और अहितम पलिकतया गर गोहिवनदसिस�जी की। दोनो को धिम�ाकर ' राम धन' परी �ोती �। शरी राय )ड गव स व पलिकतया उदधत करत � -

' रघपहित राघव राजा राम      पहितत पावन सीता राम।' ( सवामी रामानद)' ईशवर अ\�ा तर नाम      स)को सनमहित द भगवान।' ( गर गोहिवदसिस�)

�ोकनायक और गर की भधिमका म आन की तयारी क रप म भी शरी राय गाधीजी क अफरीका- परवास को दखत �, कयोहिक भारतीय ससकहित लिसफ नता को �ोकनायक न�ी मान सकती। व�ी �ोकनायक �ो

सकता �, जो 'गर' �ोन की कषमता स यकत �। शरी राय गाधीजी को ' एक स�ी हि�द' क�त �। नवयपाषाण यग स आयी भारतीय परपरा स शर �ोकर

राममो�न, दयानद, गाधी तक आनवा�ी हि�दतव की परपरा �। इसी क मानलिसक उCराधिधकार क परकाश म �ी गाधी की कम-परणा�ी, सिचतन और जीवन- पदधहित का स�ी अथ ख�ता �। `ि£�नदतव' म परमपरा क हिवततिभनन सरोतो का समावश �, जिजसका चरम � ' सव धम समान रप स सतय �।' इसी दधि}कोण का एक दसरा परिरणाम � ' मधयम माग' । स) समान भाव स स�ी � तो स)की उप�लकिबधयो को सवीकार कर

समनविनवत दधि} अपनाना �। गाधीजी हिकसी भी हिवषय को जीवन क समपण अगो स जोडकर, परिरवश की समगरता क भीतर रखकर

दखत थ। उनकी रस- दधि} (शानत, सर�, सदरम) लिश\प- दधि} (स�जता, सवदशीपन, उपयोहिगता) स जडी �, लिश\प- दधि} कटीर उदयोग क अथशास6 स, अथशास6 जडा � सव�दय समाजशास6 स, सव�दय

समाजशास6 स जडा � सामहि�क शी� और राषटरीय चरिर6, हिफर य जड � वयलिकतगत 'शी�' और आचारस, वयलिकतगत शी� और आचार जड � भोजन और लिशकषा स... । इस तर� सिचतन की समगरता का वC

)नता जाता �। आज हिवततिभनन कष6ो म ग�राती समसयाओ का म� इसी समगर दधि} क अभाव म �। �र ओर छोट- छोट दवीप अपन- अपन टचच सवाथ और सीधिमत घर �मार हिवसतार को अवरदध करत दिदखायी दत �।

फ�सवरप यवा- पीढी की ऊजसवी चतना हिवकास का आकाश न पाकर दधिमत, अवदधिमत और कदिठत

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�ोती जा र�ी �। य� अवदमन उसक ससकारो म हिवकहितयो का परवश करवाता �। �म कारण न दखकर यवाओ की परवततिC को कोसन म अपना )डपपन मान �त �। क)रनाथ राय आज की भयाव� लसिसथहित म साहि�तय और साहि�तयकार क दाधियतव को हिवशष म�ततव दत �, कयोहिक व परमचद क समान �ी मानत �

हिक '' �खक कव� मजदर न�ी, )लकि\क और कछ � - व� हिवचारो का आहिवषकारक और परचारक भी �।'' व �खक को 'दर}ा' या 'ऋहिष' की भधिमका म गर�ण करत �। गाधीजी तो साधारण राजनीहितक कायकता तक क लि�ए 'सतयागर�ी' �ोन की शत रखत �, हिफर कहिव या

साहि�तयकार क लि�ए तो सतय स अ�ग रा� �ी न�ी �। उनक अनसार सच )ो�ना �ी सव�Cम कहिवता �। गाधीजी की दधि} म साहि�तयकार का दाधियतव भी य�ी � हिक व� सतय क परहित ईमानदार र� और सतय क लि�ए एक सासकारिरक और मानलिसक वातावरण तयार कर। जिजसस मनषय को 'अभय' की उप�लकिबध �ो तथा मनषय म अनतरषिनहि�त आतमितमक कषमताओ का हिवकास �ो।

गाधीजी की मानयताओ को आज क समय म भी कसौटी पर कस कर परखा जाना चाहि�ए। गाधीजी न अपन जीवन को सवय �ी ' सतय परयोग' क�ा �। व कमयोगी थ। उनकी सारी हिवचारधारा उनक आजीवन वयापी हिकरयायोग म काय क रप म अततिभवयकत हई �। साहि�तयकार की परहित)दधता हिकसी मच, द� या

हिवचारधारा स �ोन पर भी उसका कनदराय सथान 'मनषय' �ी �ोगा। जिजस �म जन, जनता और सामानय आदमी क�त �, कभी ज) सचाई उसक हिवरदध �ो - त) साहि�तयकार हिकसका साथ द? शरी राय क अनसार गाधीजी का भी य�ी उCर �ोगा हिक सच का साथ दिदया जाय, कयोहिक जन को उसक भो�पन

क कारण स)धिधत सवाथ )�का सकत �। शरी राय रवीनदरनाथ को गाधीजी क परक क रप म दखत �, कयोहिक दोनो का मौलि�क उददशय था जीवन को )ढती हई याहि6क जदिट�ता, अस�जता स मकत करक उस पन: स�ज, सर� और हिनम� रप म

परहितधिषठत करना। सवय रवीनदरनाथ न क�ा था, ' म�ातमाजी तपसया क पगम)र � और म ह आननद काकहिव।'गाधी- सिचतन की सपणता और भारत की आतमा को स�ी- स�ी और परा उदघादिटत करन वा�ी कहिवता शरी

राय की राय म रवीनदरनाथ की व� कहिवता �, जिजसका परारमभ �ोता �, ' लिचC जथा भयशनय' शबद स। कहिवता का हि�दी अनवाद � -

'' ज�ा लिचC भयशनय �, शीश ऊचा �, जञान मकत �, ज�ा वाकय हदय क उतस स जनम �त �, ज�ादश- दशानतर दिदशा- दिदशा म कमधारा स�सर सरोतो म चरिरताथ �ो र�ी �, ज�ा तचछ हिवधिध- हिनषधो और

आचार कमकाणड की मरभधिम म हिवचारो का सरोत- पथ �पत न�ी �ो गया �, ज�ा पौरष सौ टकडो म )टकर वयथ न�ी जाता �, ज�ा सार कम, सिचतन और आनद की ओर � जान वा� (नता) तम �ी �ो।

य पलिकतया �मारी अतीत शरदधा, वतमान परषाथ और उCरका�ीन आकाकषा का परहितहिनधिधतव करती �। कहिवता रवीनदरनाथ की �, पर इसकी पलिकत- पलिकत म गाधीजी की आतमा उतर आयी �। यदयहिप गाधीजी का दिदया हआ समाधान )डा कदिठन �, परनत �कषय जिजतना )डा � - मनषय क मग�

का सथायी समाधान - तो साधन भी उतना �ी कदिठन �ोगा।गाधी- सिचतन क वयाव�ारिरक स6 आज �ी अपनी परिरणहित तक न�ी पहचग। परत उस समय तक क

लि�ए �म मनषय क �ाथो को, उसकी चतना को इलसिचछत श�ी म परलिशततिकषत करत र�ना जररी �। शरी राय पर हिवशवास क साथ क�त � हिक एक दिदन ऐसा आयगा हिक सभी को सव�दय और गाधीजी की

जररत अहिनवाय �गगी। सच तो य� � हिक इस शताबदी म गाधीवादी सिचतन जसा स�झा हआ करम)दध और पणाÈग सिचतन अभी तक आया �ी न�ी।

गाधी- सिचतन को वयकत कर शरी राय ऋहिष- ऋण स मकत �ोन और भारतीय रचनाकार की दाधियतव- चतना स जडन का अनभव करत �। आधहिनक जीवन की याहि6कता, जडता और उ�झी मनोवततिC का म�

कारण अथ और काम को परभतव, �गभग एकतरफा सामराजय परापत �ोना �। शरी राय का दढ हिवशवास � हिक समाधान म गाधीवादी सिचतन क )हत स स6 स�ायक �ोग। उनका क�ना �, ''21 वी शती क दो- तीन दशको क )ाद �ी मनषय को )ाधय �ोकर राजनीहित और अथनीहित को ' मनषय कजिनदरत' करना �ी

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�ोगा। इस 20 वी शती को त) इहित�ासकार 'अधकार-यग' की सजञा दग और ' मनषय कजिनदरत' राजनीहित और अथनीहित का उदय �ी मनषय जाहित क इहित�ास का ' दसरा पनजागरण यग' क�ा जायगा।'' एक दर}ा कहिव व मनीषी की भहिवषयवाणी क परकट �ोन का समय हिनकट �। 

प��ा हिगरधिमदिटया : गाधीभाई का म�ाकावयातमक कथयडॉ. हि6भवन राय' प��ा हिगरधिमदिटया' न जीवनी �, न आतमकथा। व� कोई शोधगरथ भी न�ी � और न �ी इहित�ास की

कोई पसतक, यदयहिप इन सभी क तततव उसम घ�- धिम� हिवदयमान दीख पडत �। य� कहित अपन सपण अथ¾ म वसतत: एक साधक सजक दवारा रलिचत उपनयास �, जिजसम उसकी अपनी सरचना की शत¾ पर इतर हिवधाओ की सामगरी का सवचछनद, हिकनत परभावी रप म परयोग हिकया गया �। इसक कनदर म सतय और अहि�सा क म�ान योदधा, )ीसवी शताबदी क पवाध क म�ानायक गाधी दवारा अपन दततिकषण अफरीकी परवास क दौरान हिकया गया अभतपव एव अहिवशवसनीय सघष �, जिजसकी )�Cर परिरधिध ज�ा एक ओर

व� सवय और उनका परिरवार � तो दसरी ओर दिदन- रात अमानवीय शोषण एव यातना की चककी म हिपसनवा� �जारो हिगरधिमदिटय और दसर भारतीय परवासी �, जिजनक तन- मन क घाव गाधी भाई को

)र)स अपन �ाखो दशवालिसयो क �ह��ान घाय� च�रो क )रकस �ा खडा करत �। साथ �ी इसक भीतर ज�ा अपनी प�चान की �ौ को )झी राख क माहिननद द)- कच� आतमसममान क भीतर स करदन और जगान की कोलिशश दिदखायी दती �, व�ी आतमहिवशवास, एकजटता, समरसता और जागहित

की चतना क उस परकाश को अखवान का व� उपकरम �, जो दततिकषण अफरीका क भारतीय परवालिसयो क ततिकषहितज क अधर क साथ हिवशा� भारत क आकाश म परिरवयापत तमस को भदन की चनौती झ�न क

करम म सतत आग )ढता दीख पडता �। मो�नदास करमचद गाधी दादा अबद\�ा की कमपनी क काम स एक सा� क परधिमट पर दततिकषण

अफरीका जात �। सन 1893 क अपर� म�ीन म व� डर)न क लि�ए रवाना हए थ और मई क अत म नटा� )नदरगा� पहच थ। उस समय उनकी उमर क� जमा 28 सा� थी। भारत क लि�ए व� दततिकषण

अफरीका की धरती को अनविनतम रप स सन 1914 की ज�ाई क तीसर सपता� म छोडत �। इस )ीच व� भारत दो )ार ( सन 1893 म तथा सन 1901 म) आत जरर �, पर दततिकषण अफरीका को साथ

�कर। दततिकषण अफरीका और व�ा क भारतीयो की समसयाए जस उनक मन- पराण म )स गयी थी। इस तर� व� क� इककीस वष¾ तक दततिकषण अफरीका म र� अथवा यो क� हिक दततिकषण अफरीका, व�ा क सघष की जवा�ा उन� त) तक तपाती और पकाती र�ी, ज) तक उनका गाधीभाई म�ातमा गाधी की दिदशा की ओर उनमख �ो पता�ीस वष क परौढ साधक क रप म भारत की ओर रख न�ी करता।

नौजवान )रिरसटर मो�नदास की पीडा थी हिक उनकी शरमपण तयारी, हिनषठा और सचचाई की राजकोट म कोई कीमत न�ी। ज) हिकसी क स�ी मकदम को भी व� न�ी जिजता सकत, त) व�ा र�न स उन� कया

फायदा? इसलि�ए मशीगीरी क काम का �ी स�ी, अपन )च- खच सपनो क साथ दततिकषण अफरीका क लि�ए कच करन म व� दर न�ी करत। पर य� कया, एहिडगटन )ीच क )नदरगा� पर उतरत �ी उनक सपनो की परत उघडन �गी। उन� प��ा धकका तो अपन मालि�क दादा अबद\�ा स �ी धिम�ा, ज)

गोरो की तर� �कदक पोशाक म उन� दखकर व� )द)दा उठ थ - ' इस सफद �ाथी का म कयाकरगा?' दसरा धकका त) �गा, ज) अदा�त म मजिजसटरट न उन� पगडी उतारन का आदश दिदया।

तीसरा धकका त) �गा, ज) पीटर मरिरटज)ग सटशन पर फसट क�ास का दिटकट �ोत हए भी व� प�टफाम पर फ क दिदय गय। रग- भद का कररतम साकषातकार य�ा स�ज �ी उनक भीतर इस सवा� को

लिसर उठान का मौका दता � हिक '' कया व� �ौट जाय?'' �हिकन एक सा� का परधिमट, हिफर अपना और अपन दश क सममान क च�त व� �ौट कस सकत �? इस सवा�- जवा) क च�त उनकी अनतरातमा

उन� दढता स चताती � - '' �ौट जान का मत�) �ोगा अपन आपको... कायरता को सौप दना। उसम ड)ा दना। (और) कायरता स )डा अपमान कोई न�ी। इसलि�ए अगर इसक घटाटोप म छद करना �,

इसकी कमजोरिरयो को उघाडना � तो इसी क साथ र�ना �ोगा।'' (प. 105-106) )स हिफर कया था,

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उन� अपन मकसद का म� स6 धिम� जाता �। अ) र�ी )ात इस पर च�त हए अनयाय क मका)� क लि�ए जररी शलिकत को पान की तो उसका स6 भी उन� सटणडटन क रासत म कोच क �ीडर स )री तर� हिपटन पर त) �ाथ �ग जाता �, ज) व� भीतर-�ी- भीतर क�न �ग थ, ''मारो, जिजतना मारना �। व�

�ड न�ी सकता तो कया हआ, उसकी जयादहितया तो चप र�कर )रदाशत कर सकता �। य� भी �डाई �। हक क लि�ए जयादहितयो को स�कर...�ौटाओ।'' (प. 118) उस समय, क�ना न�ी �ोगा हिक उनकी

स�नशी�ता �ी उनकी ताकत )न गयी थी। हिवरोध क �लिथयार का इसतमा� तो व कोट रम वा�ी घटना क )ार म अख)ारो म लि�खकर प�� �ी कर चक थ। व� ता�ा) म फ की गयी ' प��ी ककडी �ी न�ी

थी, कछ और भी थी', दादा अबद\�ा की अनभवी अनतदधि} न इस तरनत ताड लि�या था। मो�नदास को दततिकषण अफरीका क उपहिनवशो म भारतीयो की दयनीय लसिसथहित को समझत

दर न�ी �गती। उन� र�- र�कर य� )ात परशान करती � हिक '' आखिखर भारतीय य�ा इतना द)कर कयो र�त �। व अपन अधिधकार को प�चानत कयो न�ी।'' ( पषठ 88) इजजत और )इजजत का उनक लि�ए कयो कोई मत�) न�ी र�ा। प�- प� मरना �ी उनक जीवन की असलि�यत कयो )न गया �? कया

पीहिडत और डर हए भारतीयो को जगाया न�ी जा सकता? य सवा� उन� भीतर तक करदत �। इसलि�ए व� भारतीय समदाय स धिम�न क लि�ए यदिद )चन �ो उठत � तो कछ भी असवाभाहिवक न�ी। या6ा क

दौरान धिम� अपन जखमो म व� पर सथानीय भारतीय समाज क जखमो को जो दख र� �ोत �! तय) सठ स अपनी पीडा का )यान करत हए व� इस )ात पर आशचय परकट हिकय हि)ना न�ी र�त हिक '' य�ा

क �ोग चा� या6ी क रप म आय �ो या )धआ मजदर यानी हिगरधिमदिटया क रप म... स)की जददोज�द पस क लि�ए �। अपन जखमो का मर�म व पसा को �ी समझत �। सख- शानविनत और इजजत स )डा

पसा...? व लिसफ पसा �ी कयो दखत �? उनकी प�चान कया लिसफ पसा )नायगी? अगर व पस को अपनी शक� मान �ग तो उनकी शक� लिसकको म )द� जाएगी। नाक- नकश पसा �ी �ो जाएगा।'' (प.

156) हि�नदसताहिनयो की प�चान )नाय रखन क उददशय स )�ायी गयी हिपरटोरिरया की प��ी )ठक म भी व�

अपनी पीडा को हि)ना �ाग- �पट क परकट करत हए व�ा क �ोगो को अपनी द�री जिजममदारी क परहित सचत करन स एकदम न�ी कतरात। सच और झठ क )ार म अपन सवकजिनदरत नजरिरय को )द�न की हि�ममत क साथ �ी �ोगो का वयलिकतगत और सामहि�क आचरण भी इस परायी धरती पर ` हि�नदसतान म

र�न वा� �ाखो करोडो हि�नदसताहिनयो क आचरण की कसौटी' )न सकता �। ऐसी लसिसथहित म व� य� क�न म तहिनक भी न�ी हि�चकत हिक अपन ऊपर �ोनवा� अतयाचारो क खिख�ाफ आवाज उठान क साथ �ी �ोगो को य� न�ी भ�ना �ोगा हिक '' आचरण की सतयता �ी सममान की कसौटी )नगी, वरना

�म �र जग� जानवरो की तर� दतकार जात र�ग।'' (प. 163) एक )ात और, गाधीभाई अतयाचार को लिसफ अतयाचार क रप म दखत �, न गोर क रप म और न का� क रप म, इसलि�ए )ा�सनदरम क खन स �थपथ च�र म पोर)नदर क �ख और उसक जस तमाम हि�नदसताहिनयो क घाय� च�र उन� अनायास दीख पडन �गत �। दततिकषण अफरीका म रग- भद क

त�त जो पीडा उन� झ�नी पडती �, व� )ार)ार उनक सामन असपशय उका और उसकी हि)रादरी क तमाम �ोगो की पीडा का साकषातकार करा दती �। परलिसडट करगर क गाड¾ स धिघरन पर धिमअ कोटस स

व� )हत ))ाक ढग स क�त � हिक अपन दश म �म भी तो अपन �ोगो पर इसी तर� का अनयाय करत �। (प. 179) इसलि�ए उनकी �डाई का एक लिसरा अपन दश की धरती को र�- र�कर छता र�ता �। य� दसरी )ात � हिक उस लिसर को अपनी धरती स समपकत �ोन क लि�ए अभी परतीकषा क दौर

स गजरना था। गाधीभाई åकौ� दादा अबद\�ा '' मकदमा मकदमो की तर� न�ी �डत... उनका नजरिरया ईमानदारी

और इनसाहिनयत का र�ता �। उसस न सचचाई को जर) आती � और न इनसाहिनयत घटती �। उन�ोननहितकता, सदभावना और पारमपरिरक हिवशवास एव आतमसममान क स�ार जिजस तर� स दादा अबद\�ा

और सठ तय) जी क चा�ीस �जार पौणड वा� मकदम को हिनपटाया �, उसस धिमसटर )कर तक

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चहिकत र� जात �। दादा अबद\�ा, जिजन�ोन प��ी �ी मलाकात म उनकी कषमताओ पर सद� वयकत हिकया था, उनकी खददारी, दरदरथिशता और सतय हिनषठा क इतन मरीद �ो जात � हिक उन� ' छोटा ईसा' तक

क� डा�त �।'' दादा अबद\�ा क मकदम क फस� क साथ �ी एक सा� की हिगरधिमट की अवधिध भी समापत �ो च�ी थी। घर मो�नदास को )�ान �गा था। कसतर स हिकया वादा भी उन� भीतर �ी भीतर कोच र�ा था।

इसलि�ए दादा अबद\�ा क आगर� क )ावजद व� भारत �ौटन का फस�ा करत �। परनत हि)दाई- समारो� म जस �ी उनकी नजर ' नटा� मक री' क इलसिणडयन फर चाइज - भारतीय मताधिधकार - शीषक समाचार पर पडती �, व� सोच म ड) जात �। समाचार की परकहित स उन� �गता �, ' अगर य� हि)�

पास �ो गया तो हि�नदसतानी व�ा मलकिशक� म पड सकत �। व� उनकी आजादी म आखिखरी की� साहि)त �ो सकता �... अगर हिकसी तर� की कोई आजादी �...।' (प. 212) हि)� की पषठभधिम को जान �न पर तो उनकी आशका यकीन म )द� जाती �। समारो� म उपलसिसथत परहितधिषठत भारतीय वयवसाधिययो क

अनरोध पर या6ा और घर स) कछ को भ�कर मो�नदास दततिकषण अफरीकी सघष क हिनणायक और हिवराट अखिगनकणड को अरषिपत �ो जात �। गाधी दततिकषण अफरीका म र� र� हि�नदसतानी हिगरधिमदिटयो की, गोरो की नजरो म जिजनकी

औकात गदगी फ�ान वा� च�ो स अधिधक न�ी थी, पीडा को )हत भीतर तक म�सस कर र� थ, �हिकन व� इनक भीतर की ताकत को भी दख र� थ। व� दख र� थ हिक उनम असनतोष का �ावा कम

न�ी और ' असनतोष �मशा जडता और ठ�राव क हिवरदध खड �ोन की शलिकत का परतीक �ोता �।' इसलि�ए मताधिधकार क माम� म व� हिगरधिमदिटयो को उपततिकषत करन क न�ी, वरन साथ �कर च�न क

पकषधर थ। इसलि�ए गवनर क नाम तयार हिकय गय अपन परतयावदन क मसौद म भारतीयो क परजोर समथन क लि�ए मो�नदास न ज�ा धिमअ कम)� और डोन को सरा�ा था, व�ी हिगरधिमदिटयो क खिख�ाफ

की गयी उनकी दिटपपततिणयो की धलसिजजया भी उडायी थी। मसौद पर चचा क दौरान पारसी रसतमजी क` हि�ससो म हक)�ा�ी' वा� परसताव को, हिक मताधिधकार �र सवत6 भारतीय को धिम�ना चाहि�ए, अपन

ढग स सवीकार करत हए व� य� क� हि)ना न�ी र�त हिक '' आप मान या न मान, �हिकन आग च�कर इस पर सघष क कवच य�ी �ोग �ोग, जिजन� आज �म हिगरधिमदिटया का नाम दकर, अपन स काटकर

अ�ग कर दना चा�त �। इनका अपना म�ततव �। कोई भी परिरवतन इनक हि)ना सभव न�ी। य ज�- प�ावन भी कर सकत � और ज�- प�ावन क समय टी�ा )नकर खड भी �ो सकत �।'' (प. 251)

हिगरधिमदिटयो की इस ताकत का अ�सास गोरो क साथ- साथ परी दहिनया को त) �ोता �, ज) तीन पौलसिणडया टकस क माम� को पाच �जार �डतालि�यो की अनशालिसत सना गाधीभाई क आहवान पर

सवसव- तयाग की भावना क साथ आग )ढती दिदखायी दती �, अथवा पराण की )ाजी �गाय खान मजदर काम पर जान स इनकार कर दत �।

मो�नदास की �डाई मताधिधकार वा� मस� स शर �ोकर एलिशयादिटक ऐकट, इधिमगरशन (रनविसटरकशन) ऐकट, तीन पौलसिणडया पो� टकस स �कर भारतीय शादिदयो की वधता वा� माम� तक इस तर� फ�ती

जाती � हिक दततिकषण अफरीका क हिवततिभनन उपहिनवशो म र�नवा� �जारो हि�नदसतानी स6ी- परष इसम अनायास तकिखचत च� जात �। �डाई का दायरा इस कदर और इतना )ढ जाता � हिक परोअ गोख� जस

वयलिकत क सममख परधानम6ी जनर� )ोथा को हि�नदसताहिनयो स तमाम परमख मागो को मान �न का वादा करना पडता �। परनत सरकार की वादाखिख�ाफी मो�नदास को अनवरत �डाई क लि�ए कमर कसन पर )ाधय कर दती �। �ा, चहिक तीन पौलसिणडया पो� टकस की �डाई हिगरधिमदिटयो की जयादा थी, इसलि�ए उन�ी क )ीच र�कर व� इस अजाम दन का फस�ा करत �। (प. 801)

सचमच व� प�� हिगरधिमदिटया थ, जिजन�ोन अपन को )रिरसटर स हिगरधिमदिटया म )द� दिदया था। इस तर� तमाम हि�नदसतानी हिगरधिमदिटयो क द:ख- दद सन आस और हिवशवास उनक अपन �ो गय थ। व� प��

हिगरधिमदिटया इस अथ म भी थ हिक अपनी अलकिसमता और दश क सममान की खाहितर भर कोट रम म गोर मजिजसटरट स य� क� सक थ - '' मी �ाड, य� फटा �। �म �ोगो क सममान का परतीक। मर लि�ए ऐसा

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करना सभव न�ी...।'' व� प�� हिगरधिमदिटया इस कारण भी थ हिक भारतीय मस�मानो क व�ा अर) क� जान और इस पर उनक दवारा कोई आपततिC दज न कराय जान पर व� अपनी पीडा- भरी परहितहिकरया लिछपा न�ी पात। धम )द�नवा� हि�नदसतानी ईसाई अपन को भारतीयता स कस अ�ग कर �त �, य�

)ात भी उन�ी को व�ा )हत भीतर तक प��ी )ार चभती �। और स)स )डी )ात, जो उन� प��ा हिगरधिमदिटया �ोन का रत)ा परदान करती �, व� � अपन सीधिमत परिरवार क साथ, )लकि\क उसक सथान पर हि�नदसतानी हिगरधिमदिटयो की परी दहिनया को अपन )�तर परिरवार क रप म अपनी आतमा म सथान दना।

तभी तो कोई भी थका- �ारा हिगरधिमदिटया उनक पास पहचकर अपन को परी तर� सरततिकषत म�सस करन �गता �। आखिखर व� थ भी तो स)क अपन भाई। दततिकषण अफरीका म गाधी, जाहि�र �, कछ खास �कर न�ी गय थ। यदिद व�ा कछ � गय थ

तो अपना जिजददीपन, ऐसा जिजददीपन हिक एक )ार जो ठान �त, व� उस करक छोडत, ग�त और अनलिचत को नकारन का सा�स। गज) का आतम)�, अपरहितम हिनभ�कता, असाधारण स�नशलिकत और

असीम धयशी�ता। उनकी समपण साधारणता म हिनहि�त असाधारणता क य�ी कछ ऐस तीर- कमान थ, जिजनक )� पर उन� गोरो की करर पाशहिवक शलिकत का परहितरोध करना था। हिकनत उस परायी धरती पर

एक )ार ज) उन� सतयागर� का बरहमास6 धिम� गया, त) दहिनया की ऐसी कौन- सी ताकत थी, जो उनक )ढत कदमो को रोक पाती! हिनससद� उन�ोन अपव �लिथयारो क स�ार एक ऐसी �डाई �डी हिक

औपहिनवलिशक हकमत अपनी तमाम ताकत क )ावजद सतततिभत �ो उठी। उनक तक , उनक परम और �डन का उनका अपना तरीका हिवरोधी को इस कदर हिववश कर दत � हिक व� हिनशचय �ी न�ी कर पाता

हिक ऐस दशमन को कस झकाया जाय, जो यातनाओ को मसकरात हए झ�ता �, हिवरोध करत हए भी अहितशय हिवनमर और अनशालिसत र�ता �, परहितपकषी क लि�ए भी जिजसक भीतर आतमीयता और परम का उमडता हआ सागर ठाट मार र�ा �ोता �, जिजसका एक कोम� सपश भी जिजनदगी की आखिखरी सास

हिगननवा� को इतनी शलिकत द जाता � हिक अहितशय शानविनत क साथ व� मसकरात हए मौत को ग� �गा �ता �।

उपनयास म नायक क वयलिकततव क अनक आयाम, मस�न राजनीहितक सघष- चतना का और सवा- भावना का आयाम और हिनजता का आयाम ख�त और हिवकलिसत �ोत �। वयलिकत रप म गाधी की हिनजता क आयाम का साकषातकार उपनयासकार उनक मो�हिनया और मो�नदास क वयलिकतक पकषो क

साथ परभावशा�ी रप म करवाता �। अपन )ाप और )ा का मो�हिनया अपनी कमजोरिरयो क )ावजद )हत आकषक, हिपरय और सभावनाशी� �। पतनी कसतर और )चचो क सदभ म उसक वयलिकत- पकष को

' प��ा हिगरधिमदिटया' क सजक न अपकषाकत तटसथता, हिकनत रोचकता और सपणता म उठान का परयास हिकया �। �र भारतीय स6ी की तर� कसतर का भी सपना � हिक उसका पहित सममाहिनत और परहितधिषठत वयलिकत क रप म समाज म सथान पाव, व� उसक पास र�, तभी तो व� )हत अनमन भाव स

मो�नदास क दततिकषण अफरीका जान का समथन करती �। कसतर की य� पीडा भी वाजिज) � हिक'' स)का द: ख सा�ता �, उसका द: ख कयो न�ी सा�ता?'' दततिकषण अफरीका म समाज- सवा म त\�ीन

और राजनीहितक धन म वयसत मो�नदास को दखकर उसका पतनीतव और माततव यदिद आ�त �ोता � और व� सोचती �, ' पतनी को न पहित धिम�ा और न )चचो को उनका भरपर )ाप', तो य� भी )जा

न�ी।'' सन 1901 म भारत �ौटत समय परापत उप�ारो को �कर गाधी स उ�झन वा�ी कसतर की इमज भी एक ऐसी भारतीय नारी की �, जिजस पहित स अधिधक )चचो और )हओ की लिचनता �ोती �। �हिकन कसतर क भीतर एक ऐसी तजसवी नारी �, जो य� कतई )रदाशत न�ी कर सकती हिक दहिनया

की कोई शलिकत उस गाधी की पतनी क रप म नकारन की हि�ममत कर। इसलि�ए भारतीय शादिदयो की वधता क माम� म गाधी क मना करन पर भी व� सवय सतयागर� म हिफहिनकस )�नो क जतथ का नततव करन क अपन फस� पर अहिडग र�ती �। कसतर म एक ऐसी हिवचार वा�ी नारी भी �, जो पहित की कमजोरी को स�ज रप म �ती �। इस दधि}

स पाट साफ करन वा� परकरण म गाधी क आपा खो दन पर परशनाक� )ट स व� इतना �ी क�ती �

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हिक आखिखर तम�ार )ाप भी आदमी �ी �। हिनससद� कसतर अपनी हिवलिश}ताओ क )ावजद घर की सीमाओ म आ)दध �, ज)हिक मो�नदास उस हिनरनतर अहितकरधिमत करत आग )ढत च�त �। पर कसतर

क परहित उनका परम हिकसी भी रप म कम न�ी। आतमलिचनतन क कषणो म ज�ा एक ओर घाय� )ा�सनदरम क रप म आ�त भारतीय अलकिसमता उनक सममख आ खडी �ोती �, व�ी दसरी ओर कसतर

स )ात करत- करत मन-�ी- मन क�न �गत � -  ''कसतर, मझ तम�ारा स�योग चाहि�ए। ईशवर, तम, )चच, म तम स)स जडा ह। तम मझस जड �ो। �हिकन य�ा �जारो हि�नदसतानी अक� �, उनका एक

दसर स जडना जररी �। अजलि� म ज� �कर सक\प एक �ता �, )ाकी स) �ाथ �गाकर स�योग का आशवासन दत �।'' (प. 339) य�ी न�ी, व� कसतर स य� आगर� भी करत � हिक कछ समय क लि�ए व� अपन मो�नदास को समाज को अरषिपत कर द। अपन सतर पर कसतर का य� सोचना भी ग�त न�ी हिक '' ज) तमन प�� �ी छोड दिदया तो �मार पास य� हक �ी क�ा )चा � हिक �म तम� हिकसी को

समरषिपत कर द।'' (प. 707) परनत मो�नदास कसतर की भावनाओ को समझत न�ी, उनका सममान न�ी करत, इस सवीकार कर पाना कदिठन �। य� कसतर की भावनाओ का �ी द)ाव था हिक उस न

चा�त हए कषठ रोगी को असपता� म दाखिख� करना पडता � और जकी को उसक पहित क पास फीजी ततिभजवाना पडता �।

इस अथ म गाधी का आतम- सघष म�ातमा )दध स अधिधक )डा और हिवलिश} )न जाता � हिक व� अपन �कषय की लिसजिदध क लि�ए कसतर की अव��ना न�ी करत। फाकसरसट ज� म कसतर की हि)गडती �ा�त

क स)ध म व� वसट को जो तार दत � और कसतर क नाम जो प6 लि�खत �, उनम कसतर क परहित उनका अथा� परम तो झ�कता �ी �, अपनी इनसानी द)�ताओ की सप} सवीकहित भी दिदखायी दती �।

(प. 738-739) �ा, अपनी हिपत- सवा क यजञ को धवसत करन क लि�ए )ार)ार काम- रपी असर को �ताडन और अपनी भोग- वासना म कसतर को )रा)र का दोषी करार दनवा� मो�नदास की भावना का समथन कर पाना कदिठन �। पता न�ी, उपनयासकार इस घटना क )ार)ार उ\�ख क दवारा हिकस )ात

का सकत करना चा�ता �। क�ी ' मानस का �स' क त�सीदास वा�ी ' काम स राम' वा�ी गरलिथ का मो�नदास क उननयन क सदभ म तो इसतमा� न�ी करना चा�ता?

इस कहित म उपनयासकार की शलिकत का एक पकष मारमिमक परसगो की उदभावना और करणादरावी दशयो क उकरन म भी �ततिकषत �ोता �। सकत रप म य�ा कहितपय मारमिमक परसगो का उ\�ख करना पयापत �ोगा। पीटर मरिरटजवग सटशन पर अपमाहिनत और परताहिडत गाधी को हि�नदसतानी परहि)य क�ी का )च

क नीच छपकर हिकया गया य� स)ोधन - '' )ा) य�ा )हत जाडा )ा, वटिटग रम म )ठ जाय।'' हिफर अपन दो क )ीच क एक कम)� को चपचाप गाधी को ओढा दना - सतयपरक घटना की य� रचनातमक परसतहित पाठक को भीतर तक दरहिवत कर जाती �। गाधी क सपक म मदिट+ा क घर का घर )न र�ना,

टोगार क धनी वयवसायी क घर अहितरिरकत 6 पौणड की स�ायता क लि�ए परी रात मो�नदास की अगवाई म उनक सालिथयो का भख डट र�ना और अत म मो�नदास क य� क�न पर हिक '' पसा �ना मरा

एकमा6 उददशय न�ी...'' सठ का अपनी भ� का अ�सास �ोना, )स�म की �डता� का व� परसग, ज�ा एक ओर �डता�ी मजदर अपनी माग - गाधीभाई को �ाओ, �मारी रानी और राजकमारो को

छोडो- स टस-स- मस न�ी �ो र� थ और दसरी ओर जनर� \यहिकन हिकसी भी कषण गो�ी च�ान का हकम दन क लि�ए )ता) �ो र�ा था। तभी अठार� सा� क वरवो सोरा) का जनर� क घोड की �गाम

को पकडकर उस ख)रदार करना और परम क )� पर मजदरो को काम पर �ौट च�न क लि�ए मना �ना। इस तर� क और भी ढर सार परसग �, जो पाठको को रोमालिचत हिकय हि)ना न�ी र�त। इस तर� सCर सा� क )ढ �र)त सिस�, 16 सा� की वलि�यममा मदलि�यार क )लि�दानी परसग भी �मारी आख गी�ी कर जात �। करणादरावी दशयो म करन हिप\� की मौत, कोट की फाइ�ो म द)ी अध ततिभखारी की

ददनाक गाथा, तफानी )रसात म रट� की खाडी म कलि�यो को �ान वा� ज�ाज क ड)न पर डच मालि�क और उसकी )ीवी क )ीच का वाता�ाप और दिठठरत चार हि�नदसतानी कलि�यो की रोगट खडी

कर दन वा�ी �ाचारी की उपनयास क आरभ म �खक न अस� म जो पषठभधिम हिनरमिमत की �, व�

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इतनी करण और हदयदरावी � हिक मच पर गाधी क सघष¾ क शखनाद की एक )डी �ी सटीक और उपररक पीदिठका )न गयी �।

हिनससद� गाधीभाई जस �ोक- परहितधिषठत और हिवशव- हिवशरत वयलिकत पर उपनयास लि�खना अपन आप म एक चनौती भरा काम था। व� गाधीभाई, जिजनका दततिकषण अफरीकी सघष इहित�ास क पननो म अहिकत �, जिजन�ोन सवय अपनी आतमकथा लि�खी �, जिजनकी हिवततिभनन रपो म एकाधिधक जीवहिनया उप�बध �,

शोधकताओ न जिजनक वयलिकततव और कहिततव क अनक अनछए प��ओ को शरम क साथ उजागर हिकया �, भाई हिगरिरराज हिकशोर क पास हिफर उसको �कर कया कछ नया क�न क लि�ए )चा था। यदिद न�ी

तो य� उनक रचनाकार का दससा�स �ी क�ा जाता। परनत हि�नदी क सौभागय स उपनयासकार हिगरिरराज हिकशोर न वष¾ तक गाधीभाई को हिवततिभनन धरात�ो पर मथा �ी न�ी �, वरन उन� परी ईमानदारी क

साथ जिजया भी �। ग�न मथन स परापत गाधी को अतशचतना का अग )नाकर क\पना क अमत रस स सिसलिचत करक उन�ोन ' प��ा हिगरधिमदिटया' क रप म जिजस गाधी को सजिजत हिकया �, व� अपनी

द)�ताओ क )ावजद इतना उदाC और अवदात � हिक पाठक की चतना अनायास समदध �ो उठती �। गाधी की सजना �त �खक न य�ा हिनशचय �ी एक उपयकत एव सशकत भाषा को भी सरजिजत एव

हिवकलिसत हिकया �। ' प��ा हिगरधिमदिटया' अपनी हिवलिश}ताओ क कारण हिवगत शताबदी क उCराध का शरषठतम उपनयास �ी न�ी �, उसम म�ाभारत और रामायण की तर� आन वा� समय म भारतीय

जनमानस को सपररिरत करन की सभावना स भी इनकार न�ी हिकया जा सकता। उपनयासकार न ' प��ा हिगरधिमदिटया' लि�खकर गाधी क ऋण को उतारन की )ात क�ी �। �हिकन य�

ऋण मकमम� तौर पर त) तक न�ी उतर सकता, ज) तक हिक य� उपनयास )�Cर पाठक- समाज तक न�ी पहचता। कया गाधी स जडी ससथाए गीता परस गोरखपर की भधिमका म उतरकर इस म�ततवपण कहित को ससत ससकरण क माधयम स पाठको तक पहचा पायगी? मझ न�ी �गता हिक �खक की ओर

स इसम कोई )ाधा आयगी।गाधी-यग का परकाश-सतमभ : उननव �कषमीनारायण पनत� कत 'मा�पलसि\�'डॉ. भीमसन 'हिनम�'

समका�ीन समाज म वयापत सामाजिजक, राजनीहितक, धारमिमक आदिद परिरवतनो क परिरजञान अथवा दिदगदशन क लि�ए यदिद साहि�तय को शरषठ साधन माना जाय तो 20 वी शती क परारततिभक कहितपय दशको

क आधर-जन- जीवन का समगर लिच6 परसतत करनवा�ी शरषठ रचना � 'मा�पलसि\�' । य� आधर क गरामीण जीवन क हिवकासकरम को कावयोलिचत रप म परसतत करनवा�ा अनयतम उपनयास �। इस उपनयास म वरणिणत 'सट�मट' (सधार-क दर), ज�, अदा�त, पाठशा�ाए, पलि�स, खादी-धारण, अस�योग, �ट-

खसोट, सवराजय- आनदो�न आदिद हिवषयो स स)धिधत अनकानक हिववरण इस रचना को ' सामाजिजक अततिभ�ख का म�ततव परदान करत �। य� जन- साहि�तय )डा सजीव तथा सदर उदा�रण परसतत करता �।

उस समय की सरकार न 'मा�पलसि\�' पर परहित)ध �गाया था, इसी स इस उपनयास की राषटरीय म�Cा और चतना का )ोध �ोता �। आधर क इस सपरलिसदध उपनयास क �खक � परलिसदध दश- भकत नता शरी उननव �कषमीनारायण।

शरी उननव �कषमीनारायण का जनम गनटर जिज� क सCनपलसि\� ता�का क 'वम�रपाड' म सन 1873 म हआ था। आधर हिकरततिशचयन कॉ�ज, गनटर म एफअ एअ तक लिशकषा परापत कर उन�ोन वका�त का

अधययन हिकया और व�ी कई वष तक वका�त करत र�। सन 1913 म आयर�ड क डलसिब�न नगर स उन�ोन )रिरसटरी की उपाधिध परापत की। व�ी आयर�ड क सवत6ता- आनदो�न न उन� )हत परभाहिवत हिकया। हिवदश स �ौटकर )रिरसटरी म शरी �कषमीनारायण न ख) नाम और धन कमाया। सन 1920 स म�ातमा गाधीजी क आदशानसार अस�योग आनदो�न म उन�न सहिकरय भाग लि�या और कई )ार ज�

की या6ा की। ज�- जीवन स परिरप} उनक हिवसतत अनभव 'मा�पलसि\�' क रप म, ज� म �ी परसतत और परिरवरजिदधत हए।

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शरी वीरशसि�गम ( हि�नदी म भारतनद �रिरशचनदर क समककष) की पररणा स शरी  �कषमीनारायण न स6ी- जनोदधार क लि�ए अनक सरा�नीय काय हिकय, जिजनम हिवधवाओ क लि�ए आशरम की सथापना, हिवधवा-

हिववा� को सामाजिजक सतर पर परोतसाहि�त करना आदिद परमख �। तमिस6यो म लिशकषा- परचार क लि�ए उन�ोन गनटर म ' शारदा हिनकतन' की सथापना की, जो आज भी उनकी कीरषित- पताका )न, उनक यश को चारो

ओर फ�ा र�ा �। आधर क सामाजिजक कष6 म सधार �ानवा�ो तथा राजनीहितक जागहित उतपनन करनवा�ो म शरी उननव �कषमीनारायण अगरगणय �।

'मा�पलसि\�' क अहितरिरकत शरी �कषमीनारायण की अनय रचनाओ म 'नायकरा�', 'भावतरगम�', 'सवराजय सोद' ( सोद का अथ भहिवषयवाणी �) आदिद उ\�खनीय �। उनकी अनविनतम रचना `ि£तककना' �। यदिद

का� क करा� गा� स �खक कछ समय तक सरततिकषत र�त तो हिनशचय �ी य� परौढतम रचना लिसदध �ोती। असत, अपनी सदय: परसता कहित को उसक शशव म �ी छोड कर, वाणी क य� वरदप6 सन

1952 म दिदवगत हए। शासकीय तथा सामाजिजक कष6 म अनयपण जीवन का समगर एव सजीव लिच6 परसतत करनवा�ा, आधर

वाङमय का समादत )�दकाय उपनयास � 'मा�पलसि\�' । इसका दसरा नाम 'सग-हिवजयम' �। कथानायक रामदास तथा सगदास क आदश¾ की हिवजय स परिरपण इस उपनयास का हिदवतीय नाम अधिधक साथक

�। 'मा�पलसि\�' का सततिकषपत इहितवC इस परकार � - ' मग�ापरम गराम की 'मा�पलसि\�' ( �रिरजनो की )सती) का मखिखया � रामदास। 'मा�ा' (असपशय) �ोन

पर भी व� सलिशततिकषत, लसिसथतपरजञ एव राजयोगी �। उसकी पतनी म�ा�कषमममा आदश भारतीय नारी �। उनक तीन प6 - वकटदास, सगदास और रगड और एक प6ी �। जयषठ वकटदास सचचा हिकसान, पर हिवदरो�ी सवभाव का यवक �। सगदास गाधीजी क लिसदधातो म अट� हिवशवास रखनवा�ा एव उन लिसदधातो

को कायानविनवत करन म तन-मन- धन की )ाजी �गानवा�ा �। व� गाव क मखिखया चौधरयया क य�ा नौकरी करता र�ता �। रामदास की प6ी जयोहित सर� तथा आदश सवभाव वा�ी कनया �, जो अपन

चरिर6- )� स समगर उपनयास को जयोहितत करती र�ती �। रामदास की )�न का प6 अपपादास आदश यवक �। अपपादास तथा जयोहित म )चपन स �ी सन� पनपता र�ता �। इस मखय कथा क साथ

उपनयासकार न चौधरयया क परिरवार की कथा का भी आक�न, सवभाव- वषमय आदिद क परदशनाथ हिकया �। चौधरयया करर तथा �ोभी सवभाव का � और उसकी पतनी �कषमममा अहित उदार तथा सन�ी �। आरमभ म सनतान क अभाव म व� स)धिधयो म स एक )ा�क को गोद �ता �। परनत इसक कछ समय

)ाद उस एक प6 की परानविपत �ो जाती � और उसका नामकरण �ोता � रामानायड। दCक प6 वकटयया और रामानायड दोनो �ी )ड �ोकर, हिववाहि�त �ोकर, खती- )ाडी म अपन हिपता की स�ायता करत �।

रामानायड इसी समय प6 परापत करता � और उसका नाम रखा जाता � गोपीकषण। रामदास अपन परिरशरम और भ�मानसी क कारण चार- पाच एकड जमीन का सवामी )न

खती- )ाडी का काम करता र�ता �। उसका परिरवार )डा � और उसी परकार उसक उCरदाधियतव भी। अपना उCरदाधियतव हिनभात हए व� अपनी ग�सथी क कामो स फरसत पाकर, वदानत की चचाओ म मन �गाता �। यथासमय व� गर स दीकषा गर�ण करता �। ऐहि�क हिवषयो क परहित उसका दधि}कोण अलि�पत-

सा �। रामदास 'चाडा�' क��ानवा�ी अपनी जाहित क �ोगो क उदधार क लि�ए परयतनशी� र�ता �। उसक मतानसार उन �ोगो की दरवसथा क दो परधान कारण � - दरिरदरता और अजञान। उसका प6 सगदास

अपन हिपता क अभी} काय की सफ�ता क लि�ए तन- मन स परयतनशी� र�ता �। व� �रिरजनोदधार- आनदो�न म सहिकरय भाग �ता �, सभा- समम�नो म जाता � और व�ा भाषण आदिद दकर अपनी जाहित

क �ोगो को पर)दध )नान का परयतन करता �। अपन मालि�क चौधरयया क प6 रामानायड को व� अपन वयाखयान तथा वयव�ार स परभाहिवत करता �। सगदास की कायहिनषठा तथा आदश¾ क कारण रामानायड

उस पर �टट �ो जाता � और धीर- धीर उन दोनो म घहिनषठता )ढन �गती �। रामानायड का एक �रिरजन

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(सगदास) क साथ धिम�ज�कर र�ना चौधरयया को अचछा न�ी �गता, कयोहिक इसस उसक 'अ�म' को ठस पहचती �।

चौधरयया, पट� और हिनकट क दसर गावो क कछ भसवामी धिम�कर षडय6 करत � हिक खतो म काम करनवा� मजदरो को अनाज की जग� पस दिदय जाय, हिकनत मजदरो क नता इस )ात को सवीकार न�ी

करत। गावो म इस )ात को �कर )डी ख�)�ी मचती �। मजदरो का पकष �कर सगदास चौधरयया को समझान का हिनषफ� परयतन करता �। एक दिदन व� अपन साथ रामानायड को भी खत पर काम

करन � जाता �। व�ा स) कछ सवय दखकर रामानायड मजदरो की ददशा स खिखनन �ो उठता �। इस पर चौधरयया और भी नाराज �ो जाता � और सोचता � हिक इस �रिरजन की सगहित स रामानायड

हि)गडता जा र�ा �, अत: जस भी �ो, इन� पथक करना चाहि�ए। �रिरजनोदधार स)धी सभाओ म भाग �न क लि�ए दसरी ओर रामानायड को सगदास हिवजयवाडा � जाता �। व�ा सगदास अपन वाक-चातय

स सभी को मगध कर दता �। सोमयज� जस परातन- पनथी भी उसकी )ातो स परभाहिवत �ोत �। इन वयाखयानो क माधयम स �खक न वणाशरम-वयवसथा, गराम-हिनमाण-पदधहित, सवशासन की उCमता आदिद

का सहिवसतार वणन हिकया �। इस सभा का परिरणाम �ोता � सहिवधिध जागरक वयलिकत का काय म परवC न �ोना। अत: मजदर भी काम पर जान स इनकार कर दत �। खत पर काम रक जाता �। चौधरयया करोधावश म सगदास क लिसर

पर �गी द मारता � और व� )चारा व�ी ढर �ो जाता �। चौधरयया इस अपरतयालिशत घटना स डरकर घर म लिछप जाता �। पट�, पटवारी आदिद पनत� क दवारा चौधरयया स ख) पस एठत � और इस �तयाकाड को द)ा दत �। व रिरपोट करना उलिचत न�ी समझत और स) कछ ईशवर पर छोड दत �।

सगदास की अनतयधि} क )ाद 'मग�ापरम' म सगदास की समाधिध )नायी जाती � और गरामीणो दवारा उसी क हिनकट 'सगपीठम' की सथापना �ोती �। व�ा �रिरजनो की लिशकषा- दीकषा का सनदर पर)नध हिकया जाता �। रामदास मजदरो क )चचो क लि�ए पाठशा�ा च�ाता � तो अपपादास रात क समय मजदरो

की लिशकषा क पर)नध की जिजममदारी अपन ऊपर � �ता �। रामानायड अपनी पसतक तथा पहि6काए'सगपीठम' स सम)दध पसतका�य म भट कर दता �। उस ससथा की सवयवसथा स आकरषिषत �ोकर गाव

क उचचवण¾ क �ोग भी व�ा आन �गत �। यदयहिप चौधरयया �तया करक साफ- साफ )च जाता �, तथाहिप व� रामदास क समाज- सधारक कायकरम

को अचछी नजर स न�ी दख पाता। व� परान कागज- प6 हिनका� कर, षडय6 रचकर, रामदास क खतो पर अततिभयोग च�ाता �। दभागय स रामदास उस अततिभयोग म �ार जाता �। परनत भगवान की इचछा को

सव�परिर माननवा�ा व� साध परष नयाया�य म जान स इनकार कर दता �। उसका सवसव चौधरयया क अधीन �ो जाता � और उस अपना घर छोड, अपपादास क घर म र�न क लि�ए हिववश �ोना पडता �।

हिपता क ककम¾ का फ� सदाचारी प6 को भोगना पडता �। रामानायड की पतनी कम�ा मो�नराव( रामानायड क चचर भाई) क साथ मदरास भाग जाती �। )चारा रामानायड वयलिथत �ो उठता �। कम�ा

और मो�नराव तीन- चार म�ीन मौज स गजारत �। कभी- कभी कम�ा को गोपीकषण ( जिजस व 'साह' क�कर पकारत थ) की याद सताती �। इस काणड को जानकर मो�नराव का भाई उस ( मो�नराव को)

अपन गाव � जाता �। इसी मधय कम�ा चचक स आकरानत �ो, धमाथ- लिचहिकतसा�य म मरणासनन �ो जाती � और उस अनय शवो क साथ फ क दिदया जाता �। उसी समय मो�नराव व�ा �ौटता � और कम�ा क हिनधन- समाचार स वयाक� �ो गाव �ौटता � और कषय रोग स पीहिडत �ो जाता

�। अपपादास 'सगपीठम' की पाठशा�ा म हिनयधिमत रप स और )डी योगयता क साथ पढान �गता �।

सवय ससकत क पच- म�ाकावयो का अधययन कर व� जयोहित को भी सलिशततिकषत करता �। जयोहित भी पराचीन कावय- गरनथो का अधययन कर अपपादास क साथ कई हिवषयो पर चचाए करती र�ती �।

'सगपीठम' म भाषणो का पर)नध �ोता �, �रिरकथा, पराण- पाठ तथा परवचन आदिद �ोत र�त �। एक

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)ार व�ा ' परहलाद चरिर6' नामक यकषगान का मचन �ोता �। इस परकार 'सगपीठम' उस परानत म सामाजिजक जागरण का कनदर )न जाता �।

खतो क �ाथ स हिनक� जान क )ाद रामदास को मजदरी करनी पडती �। इन अतयाचारो को न स� सकन क कारण रामदास का जयषठ प6 वकटदास घर स भाग हिनक�ता � और ' तकक� जगगड' क नाम

स डाक )नकर, धनी साहकारो को �टकर, दीन- दखिखयो की स�ायता करन �ग जाता �। कम�ा मरती न�ी, )ीमारी स करप )न, अपन प6 की दख- रख म दिदन हि)ताती �। दभागयवश

गोपीकषण को पाणड रोग �ो जाता � और व� सदा क लि�ए आख )नद कर �ता �। उस द: ख को न स� पान क कारण व� भी एक दिदन पहित क चरणसपश कर, अनविनतम कषणो म कव� पहित को अपना

परिरचय द, पराण छोड दती �। चौधरी क अतयाचारो की सीमा न�ी र�ती। व� अपनी साख क परभाव स अपपादास को नौकरी स

हिनक�वा दता �। रामदास की ग�सथी क लि�ए )र दिदन आत �। व� सतमिब)सदिटट नामक साहकार क पास स कछ कपड �कर, आस- पास क गावो म )च डा�न क लि�ए हिनक� पडता �। माग म जगगड क

अनयायी उस पकड �त � और कपड �कर, दगना दाम - चार सौ रपय दत �। ईमानदार रामदास सारी रकम सदिटट को दता �, परनत व� ऊपर स दो सौ रपय चपचाप ज) म डा� �ता � और रामदास

को उनम स हि�ससा तक न�ी दता। उसी दिदन रात को जगगड क अनयायी सतमिब)सदिटट का घर- )ार �ट �त �। जगगड को पकडन क लि�ए सरकार अनक परयतन करती �, पर कोई �ाभ न�ी �ोता। साहकारो और

जमीदारो क अतयाचारो स पीहिडत साधारण जनता की स�ानभहित परापत करन क कारण, सरकार को उसकी गहितहिवधिधयो का कोई समाचार परापत न�ी �ोता।

मग�ापरम म पादरी �ोग अपन धम का परचार करन आत �। रामदास वाद- हिववाद म सवधम को शरषठ लिसदध करता �। अगरज पादरी अपना- सा म� लि�य च� जात �। पर उन� सरकार का स�योग परापत था,

इसलि�ए जगगड की चोरी- डकती क लिस�लिस� म रामदास क परिरवार को हिगरपतार कर लि�या जाता � और उन� सधार- कनदर म भजा जाता �। व�ा उन� अनक क}ो का सामना करना पडता �। व�ा

सपरिरटडट पॉ� जयोहित को दख मोहि�त �ो जाता �। रामदास को उसका वयव�ार पसनद न�ी आता।सधार- कनदर भी एक परकार स ईसाई धम क परचार- कनदर �ी थ। रामदास अपन धम पर अहिडग र�ता �।

उसक कारण व�ा क अलिशततिकषत �ोगो म अपन धम क परहित हिनषठा जागत �ोती �। इस जागरण को और जयोहित को फसान म अपनी असफ�ता को दख पॉ� और व�ा क पादरी दोन धिम�कर रामदास क साथ

कछ और �ोगो पर मकदमा च�ाकर उस ज� भजन का षडय6 रचत �। अदा�त म सनवाई �ोती � और रामदास तथा म�ा�कषमममा को छ: म�ीन का कठोर दणड दिदया जाता �। जयोहित और रगड सधार- कनदर म �ी र� जात �।

चौधरयया की मतय क )ाद रामानायड और वकटयया य� हिनशचय करत � हिक अपनी सारी जायदाद'सगपीठम' को द द। रामानायड जयोहित और रगड को वाहिपस गाव म �ान का परयतन करता �। पर

पादरी सवय को उनका सरकषक घोहिषत करता �। दसरी ओर अवसर पाकर एक दिदन पॉ� जयोहित पर अतयचार करन का परयतन करता � तो व� नदी म कदकर जान द दती �। उसी समय व�ा आया हआ अपपादास जयोहित क शव क साथ नदी म ड)कर अपनी जान द दता �।

जयोहित और अपपादास का स�मरण परानत- भर म त��का मचा दता �। सरकारी सधार- कनदर की वयवसथा को सधारन क लि�ए परयतन �ोन �गत �।

जगगड क अनयाधिययो और सरकारी सना म घमासान यदध �ोता �, जिजसम जगगड घाय� �ोकर पकडा जाता �। पकड जान क )ाद असपता� म व� अपना परिरचय दता �। मग�ापरम क �ोग अपन �ी गाव क एक वयलिकत क सा�लिसक कतयो को जानकर आशचयचहिकत �ो जात �। तदननतर उस

पर अततिभयोग च�ता � और वकटदास ( उफ जगगड) को पाच सा� की सजा दी जाती � और उस भी व�ा भज दिदया जाता �, ज�ा रामदास और म�ा�कषमममा थ।

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�खक न इस अवसर पर ततका�ीन हिबरदिटश शासन की ज�- वयवसथा तथा व�ा क अतयाचारो का हिवसतार क साथ वणन हिकया �। रामदास और म�ा�कषमममा को ज� म अनक यातनाओ को स�ना पडता �। वकटदास क मख स

जयोहित और अपपादास क स�मरण का समाचार सनकर तथा उसकी ददशा को दख म�ा�कषमी का हदय फट जाता � और व� ततका� मर जाती �। उसक )ाद �ी अनविनतम समय तक भगवान का नाम न �कर

हिवदरो�ी वकटदास भी मर जाता �। तदननतर ज� म अनक क}ो का सामना कर रामदास मलिकत- �ाभ करता � और अपन गाव च�ा आता �। व�ा रामानायड आदिद उसका सवागत करत �। मग�ापरम म जगगड मजदर सभा क लि�ए रकम की वयवसथा करता �।

मो�नराव अपन ककम का परायततिशचत करन क लि�ए, कषय रोग स मरत समय अपनी सारी जायदाद'हिव जय क�ाशा�ा' को द जाता �। ' हिवजय क�ाशा�ा' आदश म�ाहिवदया�य क रप म )हिनयादी लिशकषा

का कनदर )न सवराजय आनदो�न की माग- दरथिशका )नती �। इस परकार जीवन म पग- पग पर क}ो का सामना करनवा�ा रामदास अचच� भाव स अपन काय म हिनमगन र�ता �। एक दिदन व� अकसमात अरणय की ओर च�ा जाता � और य�ी उपनयास भी समापत �ो जाता �।

इस उपनयास म सगदास क सवतोमखी जञान, अदभत तयाग, जयोहित- अपपादास का अशरीरी परम, म�ा�कषमममा क वातस\य, वकटदास क आतमसमपण, रामानायड क अकदिठत सवाभाव आदिद और

रामदास क हिनषकाम कमभाव का सनदर तथा परभावशा�ी वणन हिकया गया �।'मग�ापरम' मानव- धम का 'मग�पर' �। इस उपनयास म य� दशाया गया � हिक मानव क म�ततव का

म� कारण तयाग-वरागय, गण-शी�, परम-हिनगर�, भलिकत- शरदधा आदिद �, न हिक भोग-हिव�ास, क�-समपततिC, परजञा-पाहिडतय, दमभ- अ�कार आदिद।

रामदास 'मा�पलसि\�' अथवा 'सगहिवजय' का हदयभत �। सख-द: ख म समता का अनभव करनवा�ा व� लसिसथतपरजञ वासतव म कमयोगी और पण वदानती �। रामदास क लि�ए दखो की परमपराए, राग-दवष,

ममता, अ�कार, मान- अततिभमान आदिद सभी आतमहिवजय क �ी साधन )न �। सारी जायदाद का लिछनजाना, सगदास की �तया, सधार- कनदर और ज� की यातनाए, जयोहित और अपपादास का स�मरण,

पतनी और प6 की मतय आदिद समसत घटनाए उसक आतमोदधार की साधिधका �ी लिसदध हई �। हिनषकाम कमयोग क अभयास न रामदास क लि�ए ' अनता राममयम, ई जगमनता राममयम' ( लिसयाराममय स)

जग) परक धम को सवस�भ )नाया �। रामदास का चरिर6 आदश �। व� अपन चरिर6- )� स'मा�पलसि\�' को 'महिनपलसि\�' ( महिनयो की )सती) )नाता �।

भलिकत और परम ज) इजिनदरयानभव स हिवरत �ोकर, आतमाथ की ओर उनमख �ोत � तो आतमाननद की अनभहित �ोती �। शरीमदभागवत म परहितपादिदत इस परमाथ- तततव को 'मा�पलसि\�' म जयोहित और अपपादास क चरिर6ो दवारा अततिभवयकत हिकया गया �। धमारजिजत समपततिC सकत म �ी खच �ोती � और पापारजिजत परपीडन म। इसीलि�ए चौधरयया का करोध

तथा �ोभ आतमनाश का कारण )नता � और वकटदास का तयाग और सवाभाव धम- हिवजय का। वकटदास का चरिर6 अतयनत हिव�कषण �। जगत की वयवसथा एव अतयाचारो स असत} �ोकर व�

भगवान क अलकिसततव म �ी सनद� परकट करन �गता � और वतमान वयवसथा को )द� दन क लि�ए आतम)लि�दान कर दता �। उसका कायकरम सामाजिजक परिरवतन की दिदशा म एक नतन अधयाय जोडता

�। इस उपनयास म वरणिणत सधार-कनदर, ज�-अदा�त, पाठशा�ा, खादी, अस�योग, धारमिमक �ट-खसोट,

सवराजयानदो�न, अहि�सा आदिद हिवषयो स सम)दध अनक हिववरणो दवारा 'मा�पलसि\�' सचमच समका�ीन समाज का परहितहि)म) )ना हआ �। 'मा�पलसि\�' क परतयक पषठ म, भाषा म, भावो म तथा रचना- लिश\प

म नव जीवन की झाहिकया परसतत की गयी �।

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आधर क गरामीण जीवन का जीता- जागता लिच6 परसतत करत हए इस उपनयास न आदश समाज की सथापना की ओर इहिगत हिकया � और आधर जनता को तहिदवषयक जागरकता परदान कर, अभी} काय-

परषित की दिदशा म अगरसर कर अपन दाधियतव को हिनभाया �। हिवशवदाता काशीनाथहिन नागशवरराव पत� क शबदो म ' त�ग शबद, त�ग दश, त�ग साहि�तय, त�ग

हदय, त�ग सक\प आदिद न 'मा�पलसि\�' को अहिनवचनीय परहितभा परदान की �।' आधर क उपनयास- साहि�तय म 'मा�पलसि\�' का अपरहितम सथान �।

भोजपरी �ोकगीतो म गाधी-दशनडॉ. राजशवरी शाहिड\य

�ोकगीत सामानयत �ोककठ म र�त �। यदिद उन� अकषरो क माधयम स कागज पर उतार दिदया जाय तो व साहि�तय की धरो�र �ो जायग और जनम- जनमातर तक उनक परभाव की अनभहित उप�बध र�गी।

गाधीजी सवय मतय स पर एक म�ान आतमा थ, जिजनक सपश स पतथर भी सवण )न गया। दश की काया प�ट गयी। गाधीजी तथा उनक दवारा सचालि�त सवत6ता- सगराम आदो�न का परभाव भोजपरी कष6 म

दश क अनय भागो की अपकषा अधिधक र�ा, कयोहिक इस आदो�न का परारमभ गाधीजी न सवय सन1917 म चमपारण स हिकया था और इसकी पणाहहित सन 1942 म )लि�या जिज� म अगरजी शासन को

उखाड फ ककर अमर श�ीद लिचC पाणडय न हिकया। इन दो धर वो क मधय �गभग 25 वष¾ की सघष- गाथा अपन अतमन म अनक घटनाओ क हि)म)- परहितहि)म) सजोय हए �। इनम स अनक द}ात इहित�ास

क पननो स भी ओझ� �, परत �ोक- मन सदा सवदनशी� र�ता �। उसकी दधि} भी )डी सकषम एव हिववचक �ोती �। परिरणामसवरप इन भावनाओ का परसफटन �ोकगीतो क माधयम स �ोकर जन- जन म

वयापत �ो जाता �। इन �ोकगीतो न सवत6ता- सगराम की अखिगन की जवा�ा म घी का काम हिकया। अनक नर- नारिरयो न जान की परवा� हिकय हि)ना गाधीजी क नाम पर इस कराहित म कद कर अपना उतसग करदिदया।

म�ातमा गाधी मा6 इस दश क न�ी, वरन हिवशव - सतर क इस शताबदी क म�ानतम राजनीहितजञ, धमभीर, धमहिपरय एव मानव- हिपरय वयलिकत थ। उनक हदय म दश क परहित जो दद था, व� मा6 य�ा क दशवालिसयो

तक सीधिमत न�ी र�ा, वरन व� समपण हिवशव- समदाय क लि�ए, ससार क समसत शोहिषत, दलि�त, पीहिडत एव दिदगभरधिमत मानव- मा6 क लि�ए परसफदिटत हआ था। इस परकार की दशभलिकत या मानव- परम )�ात

हिकसी वयलिकत म उतपनन न�ी �ो सका। य गण सदव ससकारजहिनत �ोत �, परत परिरवश परापत कर उन� अकरिरत एव प\�हिवत �ोन म स�ायता धिम�ती �। गाधीजी न अपन )ार म जो कछ लि�खा �, उसस

पता च�ता � हिक उनक ऊपर सत नरसी म�ता क ' वषणव जन तो तन कहि�ए...' भजन का )हत परभाव पडा था। गाधीजी को दततिकषण अफरीका क परवासी भारतीयो तथा अशवतो की लसिसथहित म भारतीय परिरलसिसथहितयो स समानता दिदखायी पडी। उसस गाधीजी अपन दशवालिसयो क परहित दिदनो- दिदन करणा, दया एव स�ानभहित

स दरहिवत �ोत गय। इसका परिरणाम य� हआ हिक व सशरीर तो दततिकषण अफरीका म थ, परत मन, हदय एव )जिदध स सदव भारतीयो क )ार म सिचहितत र�न �ग।

दततिकषण अफरीका म गाधीजी न सतयागर� और आशरम- स)धी परयोगो पर अम� तो हिकया �ी, उनक हदय म सघष, सहि�षणता, हिववक, )लि�दान, तयाग, सतय, अहि�सा, असतय, शरम, मानव- मा6 की समानता

आदिद क हिवचारो का भी मथन हआ तथा इन लिसदधातो पर भी व कई परयोग करन म सफ� हए। गाधीजी क सार परयोग भारत म भी सफ� हए, कयोहिक इन हिवचारो क )ार म अ) व परिरपकव एव अनभवी �ो चक थ। सतय एव अहि�सा क )ार म गाधीजी न अपन हिवचार सन 1936 म इस परकार वयकत हिकय थ -

' हिकसी भी आदमी को य� न�ी सोचना चाहि�ए हिक व� सतय और अहि�सा म तो हिवशवास करता �, �हिकन दसतकारी या खादी और गावो क �ोगो की सवा करन म हिवशवास न�ी करता। इसी परकार हिकसी को य�

न�ी क�ना चाहि�ए हिक व� सतय और अहि�सा म तो हिवशवास करता �, �हिकन व� हि�नद- मलसिस�म एकता और असपशयता- हिनवारण म हिवशवास न�ी करता।''

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य� एक सयोग �ी � हिक इस दश क हि)�ार क चमपारण जिज� म नी� क हिकसानो एव मजदरो को नी� कोठी क मालि�को दवारा दशको स परताहिडत एव शोहिषत हिकया जा र�ा था। चमपारण- परवास म गाधीजी

को जो क} उठान पड तथा उनक लि�ए व�ा की जनता म जो सदभाव, पयार, शरदधा एव सममान था, व� स) ऐहित�ालिसक द}ात )न चक �। यदयहिप उस समय आवागमन की सहिवधा, सचार-वयवसथा, समपक क

साधन अतयत अ\प एव अहिवकलिसत थ, परत हिफर भी गाधीजी क क�ी आन- जान की )ात चमपारण की जनता म ततका� अखिगन- जवा�ा की तर� फ� जाती थी, परिरणामसवरप गाधीजी ज�ा भी जात, �ाखो

की सखया म जनता उपलसिसथत �ोकर उनका जय- जयकार करती, कयोहिक गाधीजी क रप म उन� उनकक}- हिनवारणाथ साकषात भगवान चमपारण पधार चक थ। गाधीजी सवय चमपारणवालिसयो क परम, शरदधा

एव सममान तथा अपन काय की सफ�ता स इतन अततिभभत हए हिक उन�ोन अपन आतमकथन म )ड आतमीय शबदो म हिनमन परकार स इसका उ\�ख हिकया �, ' हि)�ार न �ी मझ हि�नदसतान म

जाहि�र हिकया। उसस प�� तो मझ कोई जानता भी न था।'' '' प�� म जानता भी न था हिक चमपारण क�ा �, �हिकन ज) य�ा आया तो मझ ऐसा मा�म हआ हिक म हि)�ार क �ोगो को सदिदयो स जानता था और व भी मझ प�चानत थ।''

चमपारण स परारभ �ोकर गोरखपर क रासत )लि�या तक की सवत6ता- सगराम की हिवभीहिषका न भोजपरी पर अपना जो रग जमाया, उसस कोई भी नर-नारी, )ा�-वदध, यवक- यवती )च न�ी पाया। �मार

क�न का आशय य� न�ी � हिक इतन हिवशा� भोजपरी- कष6 म मा6 तीन �ी गाथाए उ\�खनीय �। समपण भोजपरी कष6 का परतयक नगर, परतयक गाव, परतयक ग�ी, परतयक खत एव खलि��ान सवत6ता

परापत करन क लि�ए स) कछ नयौछावर करन क लि�ए तयार था और ग�ी- ग�ी म ईट-स- ईट )ज र�ी थी। इन परमख घटनाओ का जो उनमादक परभाव जनता पर पडना चाहि�ए, व� सप}

दधि}गोचर �ो र�ा था।गाधी- दशन क हिवकास म भोजपरी कष6 का एक और दधि} स अतयधिधक म�ततव �। सन 1920 म

)नारस हि�नद हिवशवहिवदया�य म अधययनरत �गभग 11 छा6ो न गाधीजी क अस�योग आदो�न म भाग �न क लि�ए अपना अधययन तयागकर काशी म भारतवष क परथम ' शरी गाधी आशरम' की सथापना की।

इसका उददशय गाधी- दशन क परमख लिसदधात, गरामीण हिवकास, कटीर उदयोग, सवदशी की भावना, सवाव�म)न आदिद रख गय। इन छा6ो म सवशरी आचाय कप�ानी, हिवलिच6 नारायण शमा, आचाय

)ीर)� सिस� एव कहिप�दव का नाम परमख �। 10 फरवरी 1921 को गाधीजी न �ी )नारस म काशी हिवदयापीठ का लिश�ानयास हिकया, ज�ा भारतवष क एकमा6 ' भारत माता मजिनदर' का हिनमाण हिकया गया।

गाधी- दशन को भ�ीभाहित आतमसात करन क लि�ए उसकी पषठभधिम पर भी दधि}पात करन की आवशयकता �। गाधीजी क पव �ी भोजपरी जवान मग� पाणड न, जो एक सहिनक थ, सन 1857 म

सवत6ता की जयोहित परजजवलि�त कर दश का वातावरण �ी )द� दिदया था। यदयहिप मग� पाणड को फासी का दणड धिम�ा और सन 1857 का हिवप�व भी हि)ना हिकसी परिरणहित क समापत �ो गया, परत

सवत6ता- परानविपत की �ा�सा की जिजस जयोहित को मग� पाणड, )�ादर शा� जफर, रानी �कषमी)ाई, वीरागना झ�कारी)ाई, अवती)ाई और तातया टोप जस वीर)ाकरो न धिम�कर ज�ाया था, उसकी �ौ

)झ तो गयी थी, परत अखिगन भीतर �ी भीतर धधकती र�ी। अफरीका स �ौटन क पशचात गाधीजी क समकष य� स)स )डी चनौती थी हिक सन 1857 की कराहित का, जिजसन परतयक भारतीय क हदय म सवत6 �ोन की जो एक अदमय इचछा शलिकत उतपनन कर दी �, दो�न हिकस परकार हिकया जाय, ताहिक आग

की रणनीहित सफ� �ो सक। इस दिदशा म कहितपय गीतकारो की परमख भधिमका र�ी, उनम )कसर क भोजपरी कहिव एव गायक डॉ. कम�ा परसाद धिमशर 'हिवपर' का नाम अगरणी र�ा, जिजन�ोन अपन हिनमन गीत

क माधयम स राषटर को एक आहवान दिदया था - �म � इसक मालि�क हि�नदसतान �मारा,

� पाकवतन कौम का जननत स पयारा। य� � धिमलकि\कयत हि�नदोसता �मारा,

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इसकी कदीम हिकतना नईम सार ज�ा स नयारा, करती � जरखज जिजस गगा यमना की धारा। ऊपर )फ��ा पवत प�रदार �मारा। नीच साहि�� पर )जता सागर का नगाडा।।

भोजपरी कष6 क परमख कराहितकारी )ा) रघ)ीर नारायण सिस� न ')टोहि�या' गीत की रचना करक सपण उCरी भारत म त��का मचा दिदया था, कयोहिक इस गीत म भारत- दशन क साथ- साथ उसक परमख

वयलिकतयो, उनक लिसदधातो और दश की नदिदयो, वनसपहितयो तथा पश- पततिकषयो क )ार म भी अतयत जीवत वणन परसतत हिकया गया �। इस गीत को पढकर, गाकर और सनकर �ोगो म अपनी सदर मातभधिम क

परहित नयौछावर �ोन की उतकठा उतपनन हई - सनदर सभधिम भया भारत क दसवा स मोर परान )स हि�म खो� र )टोहि�या।

एक दवार घर राम हि�म- कोतव�वा स, तीन दवारसिसध घ�राव र )टोहि�या। उसी शरणी क एक अनय साहि�तयकार न, जो पराचाय भी थ और जिजन� पराचाय मनोरजन परसाद सिस� क नाम स जाना जाता था, 'हिफरहिगया' नामक एक गीत की रचना की, जो अतयत �ोकहिपरय हआ। इस गीत

म भी उन�ोन अगरजो क शासन- का� म भारत की हि)गडती आरथिथक, राजनीहितक एव धारमिमक लसिसथहित का उ\�ख करत हए दशवालिसयो का आहवान हिकया हिक जस भी �ो, दश की रकषा क लि�ए अगरजो को भगाना �ी �ोगा। य� गीत परवासी भारतीयो म भी )हत �ोकहिपरय )न गया। इस गीत पर )ाद म अगरजी शासन न परहित)ध �गा दिदया था। य� गीत भी �गभग दो पषठो का �, परत इसक कछ

अश �ी परसतत करना इस हिन)ध क लि�ए पयापत � - सनदर सघर भधिम भारत क र� रामा आज इ� भइ� मसान र हिफरहिगया

अनन, धन, जन, )�, )जिदध स) नास भइ�, कौनौ क ना र�� हिनसान र हिफरहिगया। गोपा� शास6ी हि)�ार म सारण जिज� क ससकत क हिवदवान थ। व सन 1932 म उCर परदश कागरस क अधयकष भी चन गय। अस�योग आदो�न क व अगआ थ। शास6ीजी दवारा रलिचत राषटरीय �ोकगीत न

कव� )हत �ोकहिपरय हए, )लकि\क उनका परचार भी )हत �ो गया था। व अगरजो की नजर पर चढ गय और उनका सारा साहि�तय जबत कर लि�या गया। उनक राषटरीय गीत की एक )ानगी परसतत की जा र�ी �

- उठ उठ भारतवासी अ)ह त चत कर,

सत� म �ट�लिस दश र हिवदलिशया। जननी - जनम भधिम जान स अधिधक जाहिन, जनम� राम अर कषण र हिवदलिशया।

इसी शख�ा म शा�ा)ाद- हिनवासी सरदार �रिर�र सिस� का नाम शरदधा स लि�या जा सकता �। व सन1969 म हि)�ार क मखयम6ी भी )न, परत व एक उचचकोदिट क साहि�तयकार थ, अस�योग आदो�न,

नमक आदो�न एव भारत छोडो आदो�न तथा हि�नद फौज की गहितहिवधिधयो क )ार म उन�ोन नय ढग स तथयो को परसतत कर परसपर सौ�ाद की भावना जागरत करन एव अगरजो स दश को मकत करान का

आहवान हिकया था। उनका एक परलिसदध गीत दर}वय � - च� भया आज सभ जन हि�लि�धिम�ी, सत� ज भारत क भाई क जगाई जा। जसा हिक प�� �ी उ\�ख हिकया जा चका � हिक इन आदो�नो की सफ�ता क पीछ गाधीजी क

वयलिकतगत जीवन का म�ततवपण योगदान र�ा �। गाधीजी अपन वयलिकतगत जीवन को एक साधक क रप म हिवकलिसत करन क लि�ए सदव सच} र�। दततिकषण अफरीका म उन�ोन रतमिसकन और टॉ�सटॉय की

पसतको क साथ गीता का समयक अधययन हिकया। भारत जान पर उन�ोन ईसाई धमगरथ )ाइहि)� का

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अधययन हिकया और व म�ातमा ईसा क ' हिगरिर परवचनो' स )हत परभाहिवत हए। इसी परकार चीनी धमगरओ �ाओतस एव कनपयलिशयस की लिशकषाओ का भी उन पर गभीर परभाव पडा। �ाओतस न क�ा

� - '' जो मर परहित अचछ �, उनक परहित म अचछा ह।'' इस परकार सभी अचछ �ो जायग। कनपयलिशयस न घोषणा की थी हिक �म आपस म एक- दसर क परहित ऐसा वयव�ार न�ी करना चाहि�ए, जिजसकी अपकषा

�म दसरो स अपन परहित न कर। गाधीजी न इन लिशकषाओ को गर�ण कर अपन अतमन म इन� आतमसात भी कर लि�या, जो उनक जीवन क आदश )न गय।

गाधीजी न अपन जीवन को 11 आदश¾ पर ढा�न का परयास हिकया, जिजसम व सामानयत सफ� भी हए। गाधीजी दवारा अपनाय गय य �ी वरत गाधी- दशन क आधार- सतभ �, जो राषटरीय आदो�न की

पषठभधिम म आ�ोक- सतभ की भाहित सदढ रप स खड र�। इनकी समयक हिववचना की आवशयकता न�ी �, कयोहिक य इतन वयापक एव सवसवीकत �ो चक � हिक जन- जन क मन म इनकी सप}

छहिव लिचहि6त �। हिकसी भी दाशहिनक क सिचतन-मनन, धम- कम और अधयातम का परभाव उसक वयलिकततव क अनसार �ी

सामानयजन पर पडता �। गाधीजी राजनीहित म अवशय थ, परत व साधना, शलिचता, तप, सतय और अहि�सा को अपन जीवन का मखय उददशय )नाकर दश- सवा म �ग र�। गाधीजी की कथनी और करनी

म न कव� समानता थी, वरन व सव� म भी असतय वचन या छ�- कपट की भाषा का परयोग न करन क लि�ए दढसक\प थ। हिवशव- इहित�ास की य� समभवत अन�ोनी घटना � हिक फकीर और साध क रप म एक राजनीहितक परष न धम और अधयातम क पथ पर च�त हए अपनी साधना क )� पर हिबरदिटश

सामराजय जस परहितदवदवी को पछाड कर दश- हिनका�ा द दिदया। आज- क� क राजनताओ का वयलिकतगत जीवन इतना गदा, दहिषत एव छ�- कपट स पण � हिक उनक परहित जनसामानय म कोई शरदधा न�ी र�ती। उनकी राजसCा, द)गई या हितकडम क कारण भ� �ोग ऐस राजनताओ क म� पर उनकी परशसा

करत �ो। सवत6ता- सगराम और उसक )ाद �गभग एक दशक तक परानी पीढी क राजनताओ म गाधीजी क परभाव क कारण आचरण की शदधता, सवाथ- रहि�त दश- सवा की परहित)दधता और परिरवारवाद

या भाई- भतीजावाद क परहित पर)� हिवदरो� था। गाधीजी क इसी हिनशछ� वयलिकततव क कारण �ोक म भी गाधीजी घर- घर क पजय )न गय, शरदधासपद )न गय और आदश परष क रप म परसतत हए। इसी

जनभावना को �ोकगीतो म इस परकार परदरथिशत हिकया गया � - गाधी क�, गाधी क�, मन लिचC �ाइको। गगा सरज चा� कपा पर न�ाइ क।

लि��� अवतार ए�ी दशवा म आइ क, चकर क )द�ा म चरखा च�ाइ क। गाधी क�...।

गाधी- दशन क परमख हि)नदओ म चरखा का म�ततवपण सथान र�ा �। चरखा कव� सत कात कर वस6 )नान या तन ढकन का �ी उपकरण न�ी र�ा। इसकी दाशहिनक पषठभधिम अतयत जदिट� एव गढ �। यरोप म औदयोगीकरण क पशचात मशीनीकरण का यग परारमभ �ो चका था और उसका परभाव भारत पर

भी पडन �गा था। गाधीजी न सन 1925 म ज) अ\पका� क लि�ए राजनीहित स सनयास �कर दो- तीन वष¾ तक गभीर सिचतन- मनन हिकया, त) उन� ततका�ीन औदयोहिगक परिरपरकषय म चरख का म�ततव

म�सस हआ। गाधीजी न ज) सावजहिनक रप स चरख का हिवषय उठा कर इस अपन सिचतन और आदो�न का एक अग घोहिषत कर दिदया तो अनक नता, )जिदधजीवी या अगरज परशासक �तपरभ र� गय,

कयोहिक उन� य� हिवशवास न�ी था हिक चरख स �डकर अगरजो क हिवरदध सघष जीता जा सकता था। चरखा गाधीजी क रचनातमक कायकरम का एक अग था। व क�त थ हिक उन� आधहिनकता स पर�ज

न�ी � और न तो व आधहिनक य6ीकरण क हिवरोधी �। हिकत उनका हिवचार था हिक मशीन का कद कभी भी आदमी स )डा न�ी �ो सकता। व सामाजिजक म\यो को )रकरार रखत हए समाजवादी वयवसथा क

अधीन वयलिकत क वचसव क अवम\यन क पकषधर न�ी थ। गाधीजी क�ा करत थ हिक व चरख को रढ न�ी )नाना चा�त थ। जनता क वतमान आरथिथक सकट को दर करन क लि�ए यदिद कोई दसरा उपाय

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)ता द तो गाधीजी चरखा को ज�ा दन तक क लि�ए तयार थ। व अमरिरकनो क लि�ए भी चरख को एक मशीन क रप म पश करना चा�त थ। गाधीजी क अनसार चरख स हिवचार- मथन की पररणा धिम�ती �। उनकी इचछा थी हिक सारी वयवसथा म शलिचता आय तथा वयलिकत की भागीदारी की क�ी उपकषा न �ो, कयोहिक वयलिकत की उपकषा �ोगी तो वयवसथा क परहित अहिवशवास एव उदारीकरण का अकरण �ोगा। गाधीजी की परासहिगकता वतमान अथवयवसथा और औदयोगीकरण क मा�ौ� म उनक जीवन- का� स �ी म�सस �ोती आ र�ी �। गाधीजी न चरख को न कव� सवाव�म)न एव आतमहिनभरता का परतीक

)नाया, वरन य� शारीरिरक शरम, सवदशी की भावना, स�कारिरता एव सवधम समभाव का भी आधार )ना। डॉअ राजनदर परसाद न लि�खा � हिक ज) चरखा त�ाश करक )ाप न प��- प�� उस च�ाना शर हिकया तो दश म एक भ�ी हई, खोई हई चाज को उन�ोन हिफर स परहितधिषठत हिकया। उसका सारा इहित�ास �मन अपनी आखो स दखा �। धीर- धीर चरखा �ोकहिपरय �ो गया। गाधीजी राजनीहित क कष6 म मानव तथा मानव- म\यो को पराथधिमकता दकर सव�परिर रखना चा�त थ। उनकी राजनीहित धम- हिव�ीन एव

आचरण- हिव�ीन न�ी थी। चरख क माधयम स व राजनीहितजञो म भी हिवनमरता, उदारता, समयक दधि} एव समभाव का हिवसतार चा�त थ। उन�ोन क�- कारखानो क �ोत हए भी चरख को दश क सामन रखा।

और इस )ात की चनौती दी हिक चरख क दवारा �म न कव� सवराज �ग, वरन एक नय समाज की सथापना भी करग। सवराज )ाप की दधि} म म\यवान जरर था, परत व� अनविनतम आदश की वसत न�ी

था। चरख का इतना परचार- परसार �ो गया हिक घर- घर म इसस सत )ना कर �ोग सत क )द� वस6 � आत थ। य� इतना �ोकहिपरय �ो गया हिक चरख की परशलकिसत म असखय �ोकगीतो की रचनाए की गयी।

1 दसवा क �ाज रहि� � चरखा स, गाधीजी क मान सनसवा

हिपया जहिन जा �ो हिवदसवा।।2

चरखा म )डा गन भइया घोरवा सन-सनख�- ख� म काम लिसखाव )डा हनर )डा गन।

चरख स �ी सम)दध खादी का कायकरम गाधीजी न च�ाया। य� कायकरम तथा खादी वस6 इतन �ोकहिपरय हए हिक सभरानत परिरवारो म भी इसन सथान )ना लि�या और खादी प�नन म �ोग अपनी

परहितषठा समझन �ग। अस�योग- आनदो�न की अवधिध म गाधीजी की एक माग य� भी थी हिक हिवदशी वस6ो का आयात न )ढन दिदया जाय। इस समय हिवदशी वस6ो की �ो�ी ज�ायी गयी और अनक

दशभकतो न य� सक\प लि�या हिक व हिवदशी वस6 धारण न�ी करग। चरखा का परारभ �ोत �ी खादी- उदयोग पनपन �गा।य� उदयोग मतावसथा म पड चका था, कयोहिक �मार दश म �जारो वष¾ स घर� कपडा )नान की रीहित थी, ज) एक-स- एक मज)त, सदर एव सदशन कपड )नत थ। ढाक की म�म�

भी इसी दश की प�चान थी। शर- शर म खादी क वस6 हिनततिशचत रप स थोड मोट एव खरदर �ोत थ, परत उसस कभी कोई हिडगा न�ी। उसको प�नन म �ी �ोग अपनी शान समझन �ग, कयोहिक इसम उनका परिरशरम था। उनक जीवन का आदश था और उनकी आकाकषाओ की परषित �ोती दिदखायी दती

थी। खादी क स)ध म गाधीजी न सप} घोषणा की - '' खादी म\क की सारी जनता की आरथिथक आजादी और समानता क आरमभ की सचक �। खादी का अथ � सववयापी सवदशी भावना, जीवन की

स) आवशयक वसतए हि�नदसतान म �ी और उन� भी गाववा�ो की म�नत और )जिदध क उपयोग दवारा परापत करन का हिनशचय।'' गाधीजी खादी को भारतीयो की एकता, आरथिथक सवत6ता एव सामाजिजक

समरसता का परतीक मानत थ। व चा�त थ हिक कपड क रप म इस दश का एक पसा भी हिवदशी वयापारिरयो को न दिदया जाय। उसका �ाभ दशवालिसयो को धिम�, कयोहिक कपास पदा करनवा�, उसको

चननवा�, ओटनवा�, साफ करनवा�, धननवा�, हिपउनी )नानवा�, कातनवा�, माडी दनवा�,

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रगनवा�, ताना- )ाना करनवा�, )ननवा�, धोनवा�, मा� ढोनवा� एव हि)करी करनवा� सभी समान रप स उसका �ाभ उठाय और दश का गरामोदयोग खादी क स�ार पनप उठ।

गाधीजी क वरतो म सवदशी वरत का एक म�ततवपण सथान था। यदयहिप सवदशी की भावना )डी वयापक एव )हमखी � और उस चरखा या खादी तक सीधिमत न�ी हिकया जा सकता, परत सवदशी क दशन का

स6पात करन म चरखा एव खादी क कायकरम न एक म�ततवपण भधिमका का हिनवा� हिकया �। गाधीजी क नहितक एव राजनहितक हिवचारो पर तीन आधहिनक दाशहिनक म�ापरषो का हिवशष परभाव पडा। उनम

जॉन रतमिसकन, डहिवड थोरो तथा टॉ�सटॉय का नाम परमख रप स लि�या जाता �। जॉन रतमिसकन की पसतक ' अणट दिदस �ासट' स गाधीजी न शरम क म�ततव को समझकर शारीरिरक शरम को आदर दना सीखा। साथ �ी उन�ोन उस आरथिथक वयवसथा को सव�Cम माना, जिजसस स)को �ाभ �ोता �ो। गाधीजी

क आरथिथक कायकरमो का एक म�ततवपण उददशय �ोता था। उनक हिवचार स जिजस आरथिथक कायकरम क माधयम स समाज क अहितम सोपान पर लसिसथत वयलिकत को �ाभ धिम�ता �ो, उसक क\याण की सभावना

�ो, व�ी सफ� कायकरम �। इस दधि} स खादी स सवाततिभमान और सामदाधियक भावना का भी उदय हआ। खादी मा6 एक वस6 न �ोकर एक हिवचार )न गया। सवत6ता- सगराम का एक परतीक- लिचहन )न

गया और सवत6ता- सगराम क सनाहिनयो की प�चान खादी स �ोन �गी। सन 1926 म आगरा क सट जॉनस का�ज म हिवदयारथिथयो की एक सभा को गाधीजी सम)ोधिधत कर र� थ तो उन�ोन जिजजञासा वयकत

की हिक हिकतन छा6 खादी प�नत �। मलकिशक� स एक दजन छा6ो न �ाथ उठाया और अधिधकाश न हिनवदन हिकया हिक यदयहिप व गाधीजी क आदश¾ पर हिवशवास करत �, परत व उस वयव�ार म �ान म असमथ �। गाधीजी का उCर था हिक व छा6ो स असमथता शबद सनन को तयार न�ी �। उन�ोन छा6ो

स क�ा हिक समपण हिवदवCा मा6 उनक पसतकीय जञान म सीधिमत न �ोकर इसका परकाश उनक चरिर6, आचरण, सयम एव वयव�ार म भी �ोना चाहि�ए। उनका तातपय था हिक खादी वस6 को धारण करन क

लि�ए उसक योगय )नना पडगा, एक इचछा- शलिकत जागरत करनी �ोगी। इसी परकार काशी हि�नद हिवशवहिवदया�य क छा6ो को सम)ोधिधत करत हए एक )ार गाधीजी न क�ा था हिक यदिद छा6गण चरिर6 की

आवशयकता को आचरण म वयकत करना चा�त � तो उन� इसक लि�ए चरखा एव खादी क अहितरिरकत कोई अनय माधयम उपयकत दिदखायी न�ी द र�ा �। गाधीजी की प�� पर सन 1926 म गो�ाटी कागरस

अधिधवशन म कागरस क सदसयो क लि�ए खादी वस6 प�नन का परसताव पारिरत हआ। उनका हिवचार था हिक खादी कोई मरणशी� सपरदाय न�ी �, य� एक पराणवान तथा जीवनत दशन �। इसीलि�ए तो गाधीजी

न खादी को �मारी ससकहित का एक अग )नान �त य� नारा दिदया था - ' जिजय तो )दन पर सवदशी )सन �ो, मर तो )दन पर सवदशी कफन �ो।'' खादी- भावना जन- जन तक पहच गयी, जिजसका

यशगान �ोक- कठ स फट पडा। खादी- गान स)धी इस गीत स इसका अनमान �गाया जा सकता � - खददर की धोती पहि�र, खददर क करता पहि�र, आव क )रिर गाधी )ा)ा अवर राजनदर )ा) सीदिटया )जव� उदिठ गइ� स) सराजी, सराजी झडा �ाथ म।।

उपयकत �ोकगीतो क अधययन स य� सप} � हिक भोजपरी जनमानस न गाधी- दशन को सवत6ता- आदो�न क परिरपरकषय म परी तर� आतमसात कर लि�या था। गाधीजी की तर� तपोहिनषठ, अहिडग, तयागी,

)रागी और दश- सवा का वरती �ोना तो स)क लि�ए समभव न�ी था, परत �ोगो न वयापक रप स गाधीजी क अतमन की वदना को सना और समझा तथा उस पर च�न का अपना आतम)� परदरथिशत

हिकया। गाधीजी का य� आतम)� �ी था हिक उसस पररणा �कर सपण दश गाधी- पथ का अनयायी )न गया।

गाधी- दशन क कहितपय अनय परमख हि)नदओ म चमपारण-आनदो�न, नमक- आनदो�न और राषटरीय आनदो�न क सामाजिजक रप का घर- घर म परवश करन की उदभावना �। �म गाधी- दशन क इन सभी

हि)नदओ क स)ध म हिवसतार म न जाकर कव� उनक एक- एक �ोकगीत �ी परसतत करना पयापत समझत �, कयोहिक इसस अधिधक कछ क�न का अवकाश य�ा न�ी � -

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1 भय आधिम� क राजा परजा स) भयउ दखारी धिम� ज� �ट गाव गमसता और पटवारी।।

2�ा�ा, धहिन धहिन भइ� नमकवा र।�ा�ा, सदर सराज क सिसगार

नमकवा धहिन धहिन र।�ा�ा, दमरी अध�ा क नमकवा र।3

हि�नद म सराज क हित�क भा�पव� त आठो याम तोको परनाम र नमकवा कव� सिसगार र�� भोजन क दहिनया म,

दादा )ा)ा इ� स) जान र नमकवा।4

जहि� घर जनम ��नवा, त ओहि� घर धहिन धहिन �ो। रामा धहिन धहिन क� परिरवार त धहिन धहिन �ोग स) �ो।

इस परकार सप} � हिक भोजपरी कष6 क �ोक- जीवन म गाधी- दशन कोई अपरासहिगक अथवा हिकता)ी हिवषय न�ी र� गया था, )लकि\क घर-घर, जन-जन, स6ी-परष, )ा�-वदध, साध-सनयासी, रागी- )रागी

सभी इस रग म रग चक थ। �ोकगीतो न सवत6ता- आनदो�न और गाधी- दशन को घर- घर � जाकर भोजपरी जनमानस की सवदनातमक शलिकत को )�Cर ढग स उजागर हिकया �।

राषटरहिपता गाधी का साहि�तयकार रपडॉ. सशी�ा गपता

य� )ात सवहिवदिदत � हिक म�ातमा गाधी पर जिजतना साहि�तय लि�खा गया, उतना शायद �ी हिकसी अनयमनीषी, लिचनतक, हिवचारक या साहि�तयकार पर लि�खा गया �। गाधी पर स)स प�� हिकसन पसतकलि�खी, इसक )ार म कछ क�ना तो कदिठन �, �हिकन �ा� �ी म परकालिशत पसतको म स एक म�ततवपण

पसतक � नशन� पलसिब�सिशग �ाउस, नयी दिद\�ी दवारा परकालिशत ' आसथा परष', जिजसक �खक � हि6परा क पव राजयपा� परोअ लिसदधशवर परसाद। इस �ख का परयोजन गाधी- साहि�तय पर हिवमश का न�ी, )लकि\क म�ातमा गाधी दवारा लि�खिखत साहि�तय क

अव�ोकन का �। वसतत म�ातमा गाधी ऐस साहि�तयकार थ, जिजन�ोन सतय क अपन परयोग क )ार म अनवरत लि�खा। ससार का शायद �ी ऐसा कोई जीवनोपयोगी हिवषय �ोगा, जिजस पर गाधीजी न परयोग

न�ी हिकया �ो और शायद �ी उनका कोई परयोग �ो, जिजस पर उन�ोन �खनी न�ी उठायी �ो। परोअ लिसदधशवर परसाद न लि�खा �, '' मानव जीवन की शायद �ी कोई परवततिC �ो, जिजस उन�ोन अपन कायकरम

म शाधिम� न हिकया �ो और जीवन क हिकसी भी पकष की, छोटी-स-छोटी, शायद �ी कोई )ात �ो, जिजस पर उन�ोन क�म न च�ायी �ो। इस रप म व मानव- इहित�ास क स)स )ड पर)धक और परवततिC-परवCक क साथ- साथ सपरषक थ। हिकसक जीवन को, हिकस काय को, हिकस परवततिC को उन�ोन अपना सन�-

सिसचन न�ी दिदया? �र वयलिकत म लिछप दवतव को उन�ोन जगान की कोलिशश की, �र पहितत को उन�ोन उठान की कोलिशश की। ' ज पीड पराई जान र' उनक लि�ए भजन न�ी, )लकि\क कण- कण म वयापत ईशवर

की पीडा का जीहिवत अनभव था।'' म�ातमा गाधी दवारा लि�खिखत पसतको की सखया क� धिम�ाकर चा�ीस क आसपास �, जिजनका परकाशन

सव सवा सघ, ससता साहि�तय मणड�, नवजीवन और सव�दय मणड� आदिद न हिकया �। उनकी अतयनत म�ततवपण पसतक �-' सतय क परयोग' अथवा 'आतमकथा', ' अनालिसकत योग', 'सव�दय', ' मर सपनो का

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भारत', 'हिव दयारथिथयो को सदश', ' महि��ाओ स', 'पचरतन' आदिद। य सारी पसतक गजराती भाषा म �, जिजनक हि�नदी अनवाद उप�बध �। म�ातमा गाधी की पसतको को पढन पर य� सप} �ो जाता � हिक व आवशयकता पडन पर अपन परान हिवचारो को तयाग कर नय हिवचार )डी ततपरता स अपना �त थ। उन�ोन एक जग� लि�खा �, '' ज)

हिकसी को मर दो �खो म हिवरोध जसा �ग, त) अगर मरी समझदारी म हिवशवास �ो तो व� एक �ी हिवषय क दो �खो म स मर )ाद क �ख को परमाणभत मान।'' �म गाधीजी क इस हिवचार स स�मत

�ोना पडगा हिक हिनत नय परयोग क कारण हिवचारो म नवीनता का आना सवाभाहिवक �। म�ातमा गाधी क जीवन, लिसदधानत और कायपदधहित की परी झाकी उनकी परलिसदध पसतक ' सतय क परयोग

अथवा आतमकथा' म धिम�ती �। अपन परहित इतनी ईमानदारी और अनतमन क हिवचारो का ऐसा ))ाक उदघाटन हिवशव क शायद �ी हिकसी गरथ म धिम�गा। य� हिवशषता �खक क पारदश� वयलिकततव क कारण

�। इस पसतक की भधिमका म उन�ोन लि�खा �, '' यदिद मझ कव� लिसदधातो का अथात तततवो का �ी वणन करना �ो, त) तो य� आतमकथा मझ लि�खनी �ी न�ी चाहि�ए। �हिकन मझ तो उन पर रच गय काय¾ का इहित�ास दना � और इसीलि�ए मन इन परयतनो को ' सतय क परयोग' जसा प��ा नाम दिदया

�।... य� सतय सथ� वालिचक सतय न�ी �। य� तो वाणी की तर� हिवचारो का भी सतय �। य� सतय कव� �मारा कलसि\पत सतय न�ी �, )लकि\क सवत6 लिचरसथायी सतय �।''

शरी कम� हिकशोर गोयनका का हिवशवास � हिक '' आदश परषो म एक )डी लिसफत य� �ोती � हिक अपनी ग�ती तस�ीम करन म व जरा भी आगा- पीछा न�ी करत।'' म�ातमा गाधी की इसी लिसफत न उन� इतना म�ान )ना दिदया हिक सपरलिसदध वजञाहिनक आइनसटाइन को उनक )ार म य� क�ना पडा हिक

आनवा�ी पीदिढया मलकिशक� स य� हिवशवास कर सक गी हिक �मार )ीच �ाड- मास का ऐसा च�ता- हिफरता आदमी पदा हआ था।'' गाधीजी मौखिखक रप स �ी न�ी, लि�खिखत रप स अपनी ग�हितया सवीकार

करत थ, ग�हितयो स सåक सीखत थ, जो सåक सीखत थ, व� अपन ऊपर �ाग करत थ और दसरो को सवय पर �ाग करन क लि�ए पररिरत करत थ। व �ी सåक उनक लिसदधानत थ - गाधी- लिसदधानत थ।

उनकी आतमा- कथा म इन�ी स) )ातो का वणन � हि)ना हिकसी �ाग- �पट क, हि)ना हिकसी दराव-लिछपाव क। चा� हिवषयासलिकत की )ात �ो, चा� एक सामानय हिवदयाथ� �ोन की �ो, चा� चोरो की तर� लिछपकर

मासा�ार करन की �ो, चा� जठी )ीडी चराकर पीन की �त �ो, चा� गोर अधिधकारिरयो दवारा )ार- )ार अपमाहिनत हिकय जान की �ो - स)- कछ उन�ोन अपनी आतमकथा म लि�खा �। ऐसी घटनाए आतम-

हिनरीकषण क लि�ए पररिरत करती � और आतम- हिनरीकषण आतम- परिरषकार का माग परशसत करता � तथाआतम- परिरषकार अपन साथ- साथ दसरो का भी परिरषकार करता �। इन�ी स) परहिकरयाओ की अततिभवयलिकत

का नाम � ' सतय क परयोग अथात आतमकथा'।आतम- परिरषकार न �ी म�ातमा गाधी को आतमशजिदध का माग दिदखाया, सतय की अनभहित करायी और

दिदखाया अहि�सा का माग। अपनी आतमकथा क अनत म उन�ोन य उदगार परगट हिकय �, '' मन क हिवकारो को जीतना, ससार को शस6- यदध स जीतन की अपकषा भी मझ कदिठन मा�म �ोता �। हि�नदसतान आन क )ाद भी म अपन अनदर लिछप हए हिवकारो को दख सका ह, शरमिमनदा ह, हिकनत �ारा न�ी। सतय क

परयोग करत हए मन रस �टा �, आज भी �ट र�ा ह। �हिकन म जानता ह हिक अभी मझ हिवकट माग परा करना �। इसक लि�ए मझ शनयवत )नना �। ज) तक मनषय सवचछा स अपन को स)स नीच न�ी

रखता, त) तक उस मलिकत न�ी धिम�ती। अहि�सा नमरता की पराकाषठा �। और य� अनभव- लिसदध )ात � हिक इस नमरता क हि)ना मलिकत कभी धिम�ती न�ी।''

म�ातमा गाधी न सतय क परयोग क लि�ए जिजस तर� अपनी आतमकथा लि�खी, उसी ढरÆ पर गीता का अपन ढग स अनवाद हिकया। य� सवीकार करत हए हिक उनको ससकत और गजराती भाषा का अनवाद करन �ायक जञान न�ी �, उन�ोन गद साहि�तय और नकारातमक साहि�तय की )ाढ स जन- साधारण को )चान क लि�ए गीता का अनवाद हिकया और उस 'अनासलिकतयोग' नाम दिदया। इस काय म उन�

�ोकमानय )ा� गगाधर हित�क क 'कमयोगशास6' स पररणा धिम�ी। उन�ोन अपनी पसतक म गीता का

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अनवाद करक और आवशयकतानसार दिटपपणी दकर जीवन क म�भत लिसदधानत अनासलिकतयोग का परहितपादन हिकया।

म�ातमा गाधी दाव क साथ क�त � हिक '' गीता ऐहित�ालिसक गरथ न�ी �, )लकि\क इसम भौहितक यदध क )�ान परतयक मनषय क हदय क भीत �ोत र�नवा� दवदव- यदध का �ी वणन �, मानषी योदधाओ की रचना हदयगत यदध को रोचक )नान क लि�ए गढी हई क\पना �।'' उनक अनसार '' मनषय का शरीर �ी धमकष6 रपी करकष6 �, जिजसम अचछी और )री वततिCयो का यदध च�ता र�ता �। म�ाभारत क पा6

अपन म� रप म ऐहित�ालिसक भ� �ी �ो, उनका उपयोग वयास भगवान न कव� धम का दशन करान क लि�ए �ी हिकया �।'' जो अनहिगनत �ोग अपन जीवन म काम को म�ततव न�ी दत, हि)ना परिरशरम हिकय अपना वकत गजारत �,

गाधीजी उनकी आख खो�न का परयतन करत �। उनक अनसार कम हिकय हि)ना मनषय का क\याण �ो �ी न�ी सकता। व क�त �, '' ज�ा शरीर �, व�ा कम तो � �ी'' - जो �ोग कम को )नधन मानत �,

गाधीजी उन� ढोगी मानत � - ऐस ढोगी �ोगो को अपनी चारपाई स उतरना भी गवारा न�ी, व ढोगी �ाथ स �ोटा उठाना भी कम- )नधन मानत � - ऐस �ोग अपन कम को तयागकर अपन जीवन का कषय करत �। गाधीजी क अनसार ''कम- हि)ना हिकसी न लिसजिदध न�ी पायी, जनक आदिद भी कम दवारा जञानी हए। यदिद म भी आ�सय- रहि�त �ोकर कम न करता रह तो इन �ोको का नाश �ो जाय।'' व कम की

वयाखया करत हए क�त � हिक '' �मारी शारीरिरक और मानलिसक सभी च}ाए कम �।'' गीता म जिजस तर� कम करत हए भी )नधन- मलिकत का रासता )ताया गया �, व� अनय हिकसी गरथ म न�ी धिम�ता। कम

को धम स जोडन का काम गाधीजी �ी क )स का था, उन�ोन कम की भावना को धम क सतर तक �ाकर धम को सकीणता क घर स )ा�र हिनका�ा और कम को हिनषकाम कम का दजा दिदया। व कम

करत हए भी )नधन- मकत र�न पर जोर दत �। उन�ी क शबदो म गीता का उपदश � - '' फ�ासलिकत छोडो और कम करो, हिनषकाम �ोकर कम करो। जो कम छोडता �, व� हिगरता �, कम करत हए भी

जो उसका फ� छोडता �, व� चढता �। फ�- तयाग का मत�) य� न�ी हिक परिरणाम क सम)नध म �ापरवा� र�, परिरणाम और साधन का हिवचार और उसका जञान अहित आवशयक �। जञान �ोत क )ाद

जो मनषय परिरणाम की इचछा हिकय हि)ना साधन म तनमय र�ता �, व� फ�तयागी �।'' म�ातमा गाधी य� मानत थ हिक '' गीताकार की भाषा क अकषरो स य� )ात भ� �ी हिनक�ती �ो हिक समपण तयागी दवारा भौहितक यदध �ो सकता �, हिकनत गीता की लिशकषा को पण रप स अम� म �ान क

)ाद चा�ीस वष¾ तक सतत परयतन करन पर मझ तो नमरतापवक ऐसा जान पडा हिक सतय और अहि�सा का पण रप स पा�न हिकय हि)ना समपण कमफ�- तयाग मनषय क लि�ए असमभव �।''

गाधीजी का दढ मत था हिक '' गीता म जञान की महि�मा सरततिकषत �, तथाहिप गीता )जिदधगमय न�ी �, व�हदय- गमय �। अत व� अशरदधा�ओ क लि�ए न�ी �। व� हिवधिध- ि£नषध )तानवा�ा गरथ न�ी � - �ा,

हिनहिषदध कव� फ�ासलिकत �, हिवहि�त � अनासलिकत।'' धिमअ पो�ाक न म�ातमा गाधी को रतमिसकन की पसतक ' अट दिदस �ासट' उस समय दी, ज) व

जो�ाहिनस)ग स टरन दवारा नटा� क लि�ए रवाना हए। चौ)ीस घट क सफर म उन�ोन परी पसतक पढ �ी। उस पसतक न गाधीजी को नयी दधि} दी। गजराती म उसका अनवाद उन�ोन 'सव�दय' नाम स

हिकया, जिजसका आग च�कर हि�नदी अनवाद हआ। सव�दय क लिसदधानतो को गाधीजी न इस परकार परसतत हिकया � - 1)  स)की भ�ाई म �ी �मारी भ�ाई � 2) वकी� और नाई दोनो क काम की कीमत

एक �ोनी चाहि�ए और 3) सादा म�नत- मजदरी का, हिकसान का जीवन �ी सचचा जीवन �। गाधी जी क�त थ हिक सव�दय न मझ दीय की तर� दिदखा दिदया हिक प��ी चीज म

दसरी दोनो चीज समायी हई �।'सव�दय' म गाधीजी न सतय को पारसमततिण माना �।व क�त �, '' भारत एक दिदन सवणभधिम क��ाताथा, इसलि�ए हिक भारतवासी सवण रप- स थ। भधिम तो व�ी �, पर आदमी )द� गय �, इसलि�ए य�

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भधिम उजाड- सी �ो गयी �। इस पन सवण )नानवा�ा पारसमततिण दो अकषरो म अनतरषिनहि�त � और व� � 'सतय'।''' मर सपनो का भारत' की भधिमका डॉअ राजनदर परसाद न लि�खी �। अपनी भधिमका म उन�ोन पाठको को

समरण दिद�ान की कोलिशश की � हिक सवत6ता तो �मन गाधीजी क नततव म परापत कर �ी, अ) आग की जिजममदारिरयो को हिनभाना �मारा काम �। व क�त �, '' य� पसतक पाठको क सामन न कव� उन

आधारभत )हिनयादी उस�ो को �ी रखती �, )लकि\क य� भी )ताती � हिक सवत6ता- परानविपत क )ाद उपयकत राजनीहितक और   सामाजिजक जीवन की सथापना करक, सहिवधान की मदद स तथा अपार

मानव- शलिकत की मदद स, जिजस य� हिवशा� दश हि)ना हिकसी भीतरी या )ा�री )नधनो क अ) काम म�गायगा, �म गाधीजी क उन उस�ो को कस मतरप द सकत �।''

इस पसतक म गाधीजी न भारत को भोगभधिम न�ी, कमभधिम माना � और सवय का जीवन अहि�सा- धम क पा�न दवारा भारत की सवा क लि�ए समरषिपत हिकया �। व दशी और हिवदशी क फक स नफरत करत � और सादा जीवन तथा उचच लिचनतन पर जोर दत �। व शरम का म�ततव समझात � तथा कतवय व

अधिधकार का तारतमय लिसखात �, साधय की परानविपत क लि�ए साधन की शदधता को म�ततव दत �। व सापरदाधियक एकता और धारमिमक सहि�षणता पर )� दत �। सव- क\याणकारी नयी जीवन- पदधहित क

हिवकास क लि�ए व उपहिनषद क ' तन तयCन भजीथाः' म6 का उदघोष करत � तथा सतयागर�, गरामोदयोग, नयी ता�ीम व तमिस6यो क पनरतथान की )ात करत �।

' महि��ाओ स' पसतक क माधयम स गाधीजी न महि��ाओ का आतम- सममान �ौटान का परयास हिकया � और य� )ात साहि)त की � हिक यदिद उन� अवसर धिम� तो व )ख)ी अपनी जिजममदारी उठा सकती �।

उन�ोन सवामी हिववकानद और तधिम� कहिव सबरहमणयम भारती क उदधरण दकर इस )ात को रखाहिकत हिकया � हिक तमिस6यो का सममान करक �ी कोई राषटर उननहित कर सकता �। तमिस6यो को आभषणो का

परिरतयाग करन की लिशकषा दत हए उन�ोन क�ा �, '' म भारत की तमिस6यो को )ता दना चा�ता ह हिक शरीर को धात और पतथरो स �ादन स सजावट न�ी �ोती, )लकि\क हदय को पहिव6 करन और आतमा का

सौनदय )ढान स �ोती �।'''हिव दयारथिथयो को सनदश' पसतक म म�ातमा गाधी न मकसम�र क हिवचारो का �वा�ा दकर क�ा � हिक

‘�मारा धम DUTY’ (कतवय) क चार अकषरो म समाया हआ �, ‘न हिक RIGHT’(अधिधकार) क पाच अकषरो म। गाधीजी का हिवदयारथिथयो स परशन था हिक व उCम गणो को )ा�र �ानवा�ी लिशकषा पा र� � या सरकारी कमचारी अथवा वयापारी दपतरो क क�क )ननवा�ी लिशकषा परापत कर र� �? व साकषरता की

अपकषा चरिर6- हिनमाण पर अधिधक )� दत थ। व सवदशी भाषाओ को अपनान पर जोर दत थ और हि�नदसतानी को राषटरभाषा क पद पर आसीन करना चा�त थ। उनका दढ मत था हिक '' अगरजी लिशकषा न

�मारी साहि�नवितयक परहितभा का �नन कर दिदया �, �मारी )जिदध को जकड दिदया �... �म आजादी की धप तो खाना चा�त �, �हिकन �म ग�ाम )नानवा�ी परणा�ी �मार राषटर क परषतव को न} करती जा र�ी

�।'''पचरतन' पसतक म म�ातमा गाधी न मसतफा कमा� पाशा क दश- परम का )डा सजीव वणन हिकया �, '' मर पयार दश! मरा पयार, मरा रकत, मरा शवास, मरी )जिदध, मरा वकततव, मरा हिवचार और मरा दिद� मरा

सभी कछ म तझ सौपता ह। त �ी मरा जीवन �।'' जिजनम सवदश- परम की भावना न�ी, उनक परहित कमा� पाशा क उदगार �, '' जो मनषय दसर का सवदशाततिभमान दखकर अपन दश को न�ी चा�ता �,

उस �म कया क�? पतथर क समान दिद�वा� दसरो की दश- भलिकत स यदिद उCजिजत न�ी �ोत � तो इसम आशचय �ी कया �? जिजनम सवदश- परम का जोश न�ी �, व दया क पा6 �।''

' नीहितधम अथवा धमनीहित' म गाधीजी न नीहित की सप} वयाखया की �। उन�ोन समझाया � हिक मशीन की तर� काय करन और हिववक)जिदध क आधार पर काय करन म अनतर �ोता �। नीहितधम का पा�न करनवा�ा कौन �, इस परशन क उCर म गाधीजी का कथन � हिक जो मनषय सवय शदध �,

हिकसी स दवष न�ी करता, हिकसी क दवारा अनलिचत �ाभ न�ी उठाता और सदा मन को पहिव6 रखकर

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आचरण करता �, व�ी मनषय धमातमा �, व�ी सखी �, व�ी धनवान �।... जिजस दिदयास�ाई म आग न�ो, व� दसरी �कहिडयो को कस स�गा सकती �? जो मनषय सवय नीहित का पा�न न�ी करता, व�

दसरो को कया लिसखा सकता �? जो सवय ड) र�ा �, दसर को कस )चा सकता �? म�ातमा गाधी गदय- �खक �ी न�ी, पदय- �खक भी थ। अपनी सपरलिसदध कहिवता ' सवक की पराथना' म व

ईशवर स य�ी वरदान मागत � - � नमरता क समराट

दीन भगी की �ीन कदिटया क हिनवासी �म वरदान द हिक सवक और धिम6 क नात जिजस जनता की �म सवा करना चा�त � उसस कभी अ�ग न पड जाय।

�म तयाग, भलिकत और नमरता की मरषित )ना ताहिक दश को �म जयादा समझ

और जयादा चा�। म�ातमा गाधी का जीवन �ी सवय म साहि�तय �। उनक जीवन का अनकरण- अनसरण करन क साथ-

साथ जो उनकी कहितयो का अधययन करत �, उन� अपन जीवन म )हत कछ �ालिस� �ो सकता � - शत य� � हिक पाठक उनक साहि�तय का अधययन अपन च�र स मखौट उतारकर कर। जिजनक जीवन म क�ी )नावटीपन न�ी था, जो धमहिनषठ ईमानदार राजनीहितजञ थ, जो पारदश� वयलिकततव व चरिर6 क धनी

थ, जो जनता क सचच सवक थ, जो साहि�तयकारो क साहि�तयकार थ, उनक साहि�तय का अवगा�न मखौट उतारकर �ी हिकया जा सकता �। तभी ऋता शक� क शबदो म पाठको दवारा नयी सदी की

आकाकषा परी की जा सकती � - अनय न�ी, सख - शाहित

धिमट सक� भय कराहित मानव �ो सव�परिर

चा� र�ी नयी सदी। सवरणिणम उतकष �ो

कण - कण हिवजधियनी �ो गा र�ी नयी सदी।