ii, 2012 44009 ix...page 2 of 13 ii, 2012 ix (1) (2) (3) 1. 1x5=5 शक त श र ह थ जफ...

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Page 2 of 13 II, 2012 IX (1) (2) (3) 1. 1x5=5 शिशारी हाथी जफ झूभता गलरम से गुजयता है , तो भुहरे के कु को मह बम वाबावक से सताने रगता है कहीॊ उनके सााम भं इस हाथी का याज थाऩत हो जाए। परवऩ वे अऩनी बम-लभलित शॊककत आवा भं बकते हं , खूफ बकते हं। रेककन हाथी फना ऩयवाह कए अऩनी ऩूवलनधावरयत गलत के ही अनुसाय शाॊत बाव से चरता जाता है। कहने का अथव के वर इतना बय है बम एक जड़ बाव है। बम कभजोय जीवन का बाव है। लगयने की आशॊका से लसत वही यहता है , जसकी टाॊग भं अऩने दभ ऩय खड़े यहने की ताकत नहीॊ होती। इसलरए वह धका रगने ऩय आशॊकात होकय लचराने रगता है , हड़फड़ाकय चीखने रगता है औय इस काय अऩना साया सॊतुरन ही खोकय धीये -धीये अऩने आसऩास के साये वातावयण को ही असॊतुलरत फना देता है। मा आज हभायी ऐसी जथलत नहीॊ है ? मह फह गॊबीय है , तथा कदन-ऩय कदन औय बी अलधक गॊबीय होता जा यहा है। इसलरए इस ऩय ऩूयी गॊबीयता के साथ सोच-वचाय कयने की जयत है। सोचने की फात मह है मा हभाया आज का सभाज वाकई इतना अलधक सॊवेदनशीर हो गमा है जया सा ऩशव ऩाते ही उसकी ऩमॉॊ छु ्ई-भुई के ऩोध की तयह कॉ ॊऩ उठती है ? मह अममन का योचक वषम है। (i) हाथी को देखकय कु े म बकते हं ? () फड़ी आकृलत से डयकय। () अऩने सााम भं दखर की सॊबावना से। () उसके इयाद ऩय शॊका से। () रोग को चेतावनी देने के लरए। (ii) आज के सभाज की सॊवेदनशीरता की तुरना की गई है ….. 44009

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    II, 2012

    IX

    (1)

    (2)

    (3)

    1. 1x5=5

    शक्तिशारी हाथी जफ झूभता हुआ गलरमं से गजुयता है, तो भहुल्र ेके कुत्तों को मह बम स्वाबाक्तवक रूऩ से सताने रगता है कक कहीॊ उनके साम्राज्म भं इस हाथी का याज स्थाक्तऩत न हो जाए। परस्वरूऩ वे अऩनी बम-लभलित शॊककत आवाज़ भं बंकते हं, खूफ बंकते हं। रेककन हाथी क्तफना ऩयवाह ककए अऩनी ऩवूव लनधावरयत गलत के ही अनसुाय शाॊत बाव से चरता जाता है। कहने का अथव केवर इतना बय है कक बम एक जड़ बाव है। बम कभजोय जीवन का बाव है। लगयने की आशॊका से ग्रलसत वही यहता है, जजसकी टाॊगं भं अऩने दभ ऩय खड़े यहने की ताकत नहीॊ होती। इसलरए वह धक्का रगने ऩय आशॊकाग्रस्त होकय लचल्राने रगता है, हड़फड़ाकय चीखने रगता है औय इस प्रकाय अऩना साया सॊतरुन ही खोकय धीये-धीये अऩने आसऩास के साये वातावयण को ही असॊतलुरत फना देता है। क्मा आज हभायी ऐसी जस्थलत नहीॊ है ? मह प्रश्न फहुत गॊबीय है, तथा कदन-ऩय कदन औय बी अलधक गॊबीय होता जा यहा है। इसलरए इस ऩय ऩयूी गॊबीयता के साथ सोच-क्तवचाय कयने की जरूयत है। सोचने की फात मह है कक क्मा हभाया आज का सभाज वाकई इतना अलधक सॊवेदनशीर हो गमा है कक जया सा स्ऩशव ऩाते ही उसकी ऩक्तत्तोमॉ ॊ छ्ुई-भईु के ऩोधं की तयह कॉ ॊऩ उठती है? मह अध्ममन का योचक क्तवषम है।

    (i) ‘हाथी को देखकय कुते्तो क्मं बंकते हं ?

    (क) फड़ी आकृलत से डयकय।

    (ख) अऩने साम्राज्म भं दखर की सॊबावना से।

    (ग) उसके इयादं ऩय शॊका से।

    (घ) रोगं को चेतावनी देने के लरए।

    (ii) आज के सभाज की सॊवेदनशीरता की तरुना की गई है…..

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    (क) औद मोलगक सॊस्कृलत स े

    (ख) नगयीकयण स े

    (ग) क्तवऻान स े

    (घ) छुई-भईु के ऩौधे स े

    (iii) बम ककसे होता है —

    (क) चोय को

    (ख) कभज़ोय को

    (ग) फच्चचं को

    (घ) फढ़ूों को

    (iv) लगयने की आशॊका ककसे होती है।

    (क) जो ऩहाड़ ऩय चढ़ोा हो ।

    (ख) जो ऩेड़ से उतय न ऩा यहा हो

    (ग) जजसकी टाॉगं अशि हं

    (घ) जो फीभायी से उठा हो।

    (v) ककस शब्द भं कोई प्रत्मम नहीॊ है ?

    (क) गॊबीयता

    (ख) गजुयता

    (ग) असॊतलुरत

    (घ) योचक

    2. 1x5=5

    ऩसै ेदेकय क्तवद मा खयीदनं की मह क्रम-क्तवक्रम ऩद्धलत लनस्सॊदेह इस बायतीम लभट् टी की उऩज नहीॊ है। महॉ ॊ लशऺणारम एक प्रकाय के आिभ अथवा भॊकदय के सभान थे। गरुू को साऺात ऩयभेश्वय ही सभझा जाता था। लशष्म ऩतु्र से अलधक क्तप्रम होत ेथे। महॉ ॊ सम्भान लभरना ही शक्ति ऩाने का यहस्म यहा है। प्राचीन-कार भं गरुू की लशऺा-दान कक्रमा उनका आध्माजत्भक अनषु्टान था, ऩयभेश्वय प्रालि का उनका वह एक भाध्मभ था। वह आज ऩेट ऩारने का जरयमा फन गमा है। कक्तवता के भभवऻ औय यलसक स्वमॊ कक्तव से अलधक भहान होत ेहं। सॊगीत के ऩागर सनुने वारे ही स्वमॊ सॊगीतकाय से अलधक सॊगीत का यसास्वादन कयत ेहं। महाॉ ऩजू्म नहीॊ ऩजुायी ही िषे्ठ है। महॉ ॊ सम्भान ऩाने वारे नहीॊ, सम्भान देने वारे भहान हं। स्वमॊ ऩषु्ऩ भं कुछ नहीॊ है, ऩषु्ऩ का संदमव उस ेदेखन ेवारे की दृक्तष्ट भं है। दलुनमा भं कुछ नहीॊ है। जो कुछ बी है हभायी चाह भं हं, हभायी दृक्तष्ट भं है। मह अद बतु बायतीम व्माख्मा अजीफ सी रग सकती है, ऩय हभाये ऩवूवज सदा इसी ऩथ के मात्री यहे हं। ककसी बी देव-भॊकदय की भलूतव की शक्ति

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    उतनी भात्रा तक ही सॊबव है जजतनी भात्रा तक उसके ऩजुायी की बाव-ऩजूा नवैेद म बयी यहती है।

    भलूतव भं स्वमॊ कुछ बी नहीॊ है। ऩजुायी की शक्ति ही भलूतव भं क्तवकसलत होने रगती है। काश, बायतीम सॊस्कृलत का मह यहस्म बायतीम सभझ ऩाते। इसका ऻान न होना ही तो आज हभाये दखुं का कायण है।

    (i) लशऺा की क्रम-क्तवक्रम ऩद्धलत से आशम है -

    (क) ऩसु्तकं खयीदना-फेचना ।

    (ख) पीस का रेन-देन ।

    (ग) गयीफं से चॊदा रेना ।

    (घ) सॊऩन्न रोगं को ऩढ़ोाना ।

    (ii) प्राचीन कार भं गरुू की लशऺा-दान की कक्रमा क्मा थी ?

    (क) आध्माजत्भक अनषु्ठान

    (ख) ऩेट-ऩारने का जरयमा

    (ग) आिभ चराने का साधन

    (घ) सभाज सेवा

    (iii) ककसकी शक्ति भलूतव भं क्तवकलसत होने रगती है?

    (क) ऩजुायी की

    (ख) भ ूलतवकाय की

    (ग) सॊगीतकाय की

    (घ) कक्तव की

    (iv) बायतीम सॊस्कृलत भं भहान है —

    (क) लशऺा देने वारा

    (ख) सम्भान ऩाने वारा

    (ग) सम्भान देने वारा

    (घ) सॊगीतकाय

    (v) इस गद्याॊश का शीषवक हो सकता है।

    (क) ऻान का रेन देन

    (ख) ऩजुायी की ऩजूा

    (ग) प्राचीन औय नवीन लशऺा

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    (घ) बायतीमता

    3. 1x5=5

    देव ! तमु्हाये कई उऩासक, कई ढॊग से आत ेहं।

    सेवा भं फहुभलू्म बंट वे, कई यॊग की राते हं।

    धूभधाभ से साजफाज स,े वे भॊकदय भं आते हं।

    भिुाभजण फहुभलू्म वस्तऍु ॊ, राकय तमु्हं चढ़ोाते हं।

    भ ंही हूॉ गयीफन ऐसी, जो कुछ साथ नहीॊ राई।

    कपय बी साहस कय भॊकदय भं ऩजूा कयने को आई।

    धूऩ दीऩ नवैेद्य नहीॊ है, झाॊकी का िृॊगाय नहीॊ

    हाम गरे भं ऩकहनाने को, पूरं का बी हाय नहीॊ।

    स्तलुत भ ंकैसे करूॉ कक स्वय भं भेये है भाधुयी नहीॊ?

    भन का बाव प्रकट कयने को, भझुभं है चातयुी नहीॊ।

    नहीॊ दान है नहीॊ दजऺणा, खारी हाथ चरी आई।

    ऩजूा की क्तवलध नहीॊ जानती, कपय बी नाथ चरी आई।

    ऩजूा औय ऩजुाऩा प्रबवुय, इसी ऩजुारयन को सभझो।

    दान-दजऺणा औय लनछावय, इसी लबखारयन को सभझो

    भ ंउन्भत्तो प्रेभ की रोबी, हृदम कदखाने आई हूॉ

    जो कुछ है फस मही ऩास है, इसे चढ़ोाने आई हूॉ

    चयणं ऩय अऩवण है, इसको चाहो तो स्वीकाय कयो।

    मह तो वस्त ुतमु्हायी ही है, ठुकया दो मा प्माय कयो।।

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    (1) प्रस्ततु कक्तवता का शीषवक होना चाकहए : (क) देव तमु्हाये कई उऩासक (ख) भॊकदय-भजस्जद एक सभान (ग) ठुकया दो मा प्माय कयो (घ) दान-दजऺणा औय लनछावय (2) कक्तवता भं ऩजुारयन क्मा चढ़ोाने आई है? (क) पूरं का हाय (ख) फहुभलू्म बंट (ग) दान-दजऺणा (घ) अऩना हृदम (3) भॊकदय भं कैसे उऩासक कभ आते हं? (क) खारी हाथ आने वारे (ख) फहुभलू्म बंट राने वारे (ग) दान-दजऺणा देने वारे (घ) कदखावा कयने वारे (4) ऩजुारयन की क्तववशता है कक वह बजन बी नहीॊ गा सकती, क्मंकक : (क) उसभं बाव प्रकट कयने की चातयुी नहीॊ है। (ख) उसके ऩास झाॉकी का िृॊगाय नहीॊ है। (ग) उसका कॊ ठ भधुय नहीॊ है। (घ) उसे बजन माद नहीॊ है। (5) कौन-सा क्तवशेषण ऩजुारयन का नहीॊ है : (क) उन्भ त्तो (ख) प्रेभ की रोबी (ग) हठी (घ) हृदम कदखाने वारी

    4. 1x5=5

    वीय जवानो सनुो, तमु्हाये सम्भखु एक सवार है

    जजस धयती को तभुने सीॊचा

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    अऩने खून-ऩसीनं स,े

    हाय गई दशु्भन की गोरी

    वज्र सयीखे सीनं से।

    जफ-जफ उठी तमु्हायी फाहं, होता वश भं कार है।

    जजस धयती के लरमे सदा

    तभुने सफ कुछ कुफावन ककमा,

    शरूी ऩय चढ़ो कय, हंस-हंस कय

    कारकूट का ऩान ककमा।

    जफ-जफ तभुने कदभ फढ़ोामा, हुई कदशाऍ ॊ रार हं।

    उस धयती को टुकड़े-टुकड़े

    कयना चाह यहे दशु्भन,

    फड़े गौय से अजफ तमु्हायी

    चुप्ऩी चाह यहे दशु्भन,

    जालत-ऩालत, वगं-कपयकं के वह पैराता जार है।

    कुछ देशं की रोरऩु नज़यं

    रगी तमु्हायी ओय हं

    कुछ अऩने ही जमचॊदं के

    भन भं फठैा चोय है।

    सावधान कय दो उसको जो ऩहने कऩटी खार है।

    (1) ‘धयती’ शब्द से कक्तव का अलबप्राम है : (क) अऩने खेतं से (ख) अऩने देश स े (ग) सॊऩणूव ऩथृ्वी से (घ) अऩने याज्मं से (2) अऩने ही ‘जमचॊदं’ का प्रतीकाथव है : (क) क्तवश्वासघाती रोग

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    (ख) वीय-फहादयु (ग) क्तवजमी वीय (घ) आतॊकवादी रोग (3) ‘धयती’ के दशु्भन कौन हं? (क) आतॊकवादी (ख) जातीमतावादी (ग) क्तवश्वासघाती (घ) शत्रु के ऩऺऩाती (4) ‘रोरऩु’ का अथव है : (क) लछऩा हुआ (ख) क्तवरिु (ग) रारची (घ) ईष्मावर ु(5) ‘कऩटी खार’ ऩहनने का बाव है : (क) फनावटी व्मवहाय (ख) देशद्रोह की बावना (ग) बराई का कदखावा (घ) क्तवश्वासघात

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    (क) स्भाटव क्रास के राब

    क्तवद्यालथवमं की अलधक सकक्रमता

    कभ सभम भं अलधक जानकायी

    क्तवद्यालथवमं ऩय प्रबाव

    (ख) भनोयॊजन के आधुलनक साधन

    साधनं के क्तवलबन्न प्रकाय

    क्तवशेषताएॉ

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    राब व हालन

    (ग) बायतीम ककसान ्

    कृक्तष प्रधान देश बायत

    अन्नदाता की वषाव ऩय लनबवयता

    गयीफी, अबाव से सॊघषव

    18. अऩनी भाॉ को एक ऩत्र लरजखए, जजसभ ंउनकी फीभायी औय हार-चार के क्तवषम भं ऩछूा गमा हो । 5

    क्तवद्यारम की ऩक्तत्रका भं आऩकी कक्तवता प्रकालशत हुई है। इसकी सचूना देते हुए अऩने लभत्र को ऩत्र लरजखए।