कुण्डलिनी साधना.docx

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Kundalini Sadhana (ककककककककक-ककककक) ककककककककक ककककक कककक कक? ककक ककककककककककककककक ककक ककककककककक कक ककककक कक ककक कककक ककक कक- ´ककककककक ककककक´ ककक: ककक: ककककक कक कककककक कककक कककक कक कककक कककककककक कक ककककक कककककक कक ककककक कक कककककक कककककक कककक कक कककककक कककक कक कक कककक कककक ककककक कक ´कककक´ कक कककककक कक कक कककक कककक ककककक कक ´ककककक´ कककक कक ककककक ककककककक कक ककक ककककक कककककक कककक कक, ककककककक कककक ककक कक कककककककक ककककक कक ककक कक कक कककककककक कककक कक ककककककक ककककककक ककक कक ककककक कक कककक कक कक ककककककक ककक कक ककककक ककक कक कककक ककककककककक ककककक कककककककक कककक कक, ककककक कककककककक ककककक कक ककककक कक कक कककक कककक ककककककक 2 कककककककक कक ककककककककक ककककक कक 2 कककककक कककककककक कक ककककक ककककक कककक ककक कककककककककककक कक // कककककक ककक ककक ककक कक - ''कककक ककककककक ककक ककककक कक ककक कककककककक ककक कक ककककक कककक ककक कककक ककककककक ककक, कककक ककक ककक कककक ककककक कक ककक ककककक कक कककक ककककक कककक कककककककक कक कककक ककककककककक कक ककक कककक ककक कक '' ककककककक ककक ककककककककक ककककक कक कककककक कक ककककक- कककककककककक कककककककक ककककककककक कककककककककककककककककक: ककककककककककक कककककककककक ककककक।। कककककककककक ककककककक कककक ककक ककककक ककककककककक ककक कक कककक ककक ककककक कक कक ककककक ककककक कक ककक कक ककककककककक ककककककककककक ककककक कक कककककककककक ककककक ककक ककककक कक कककककक कककक ककक कक- कककककककक कककककककककक कककककककककककक कककककककककककककककककक कककककककककक कककककककककक कककककक कककककक।। कककककक ककककककक कककक ककक ककककककक कककककक कक ककककककक कककककक कककक, ककककककक कककककक कक कककककककककक कक कककककक कक कककक, ककक कक ककककक कक कककक कककककककककक ककक कककक कककक कककक कककककक कककककक ककककककककक ककककक कक कक ककककककककक ककक कककककककक कक , कककककककककक ककककककककक कक कक कककककककक कककककककक कककककक कक कककककक- कककककक कककककक ककक ककककककककक कक कक ककककककककक कक ककककक ककककक क ककक ककककक ककक ककक कककककककककक ककककककककक: ककककककक कककककककककककक ककककककककक, ककककक कककककक ककककककक ककक ककक कककक कककककककककक ककककककककक ककक ककक कककक ककककककक कक कककक कककककक ककककक कक ककक कककककककककककककक ककककककक: कककककककककककककक ककककककककककककक कककक ककककककककककककककककक:।। कककककक ककककककककक ककककक ककक ककककककक ककककककककक, ककककककक, ककककक ककककककककक ककक कक कक कककककककक कक ककककककक कक ककककक ककक कककक कक कककक ककककक ककक ककककक कककक कककककककककककक ककककककक ककककक: कककककक ककककककक कककककककककककककककककक कककककक कककक कक कककककककक।।

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Page 1: कुण्डलिनी साधना.docx

Kundalini Sadhana (कु� ण्डलि�नी�-साधनी)कु� ण्डलि�नी� शलि� क्या� है�?यो ग कु� ण्डल्यो�पनिनीषद्� में� कु� ण्डलि�नी� कु वर्ण�नी इसा तरह निकुयो गयो ह�- ´कु� ण्ड� अस्यो´ स्त: इनित: कु� ण्डलि�नी�। द् कु� ण्ड� व�� ह नी कु कुरर्ण निपण्डस्थ उसा शलि' प्रवह कु कु� ण्डलि�नी� कुहत ह)। द् कु� ण्ड� अर्था�त इड़ा और पिंप.ग�। बाईं ओर सा बाहनी व�� नीड़ा� कु ´इड़ा´ और द्निहनी� ओर सा बाहनी व�� नीड़ा� कु ´निपग�´ कुहत ह)। इनी द् नी2 नीनिडयो2 कु बा�च जि5साकु प्रवह ह त ह�, उसा सा�ष�म्नी नीड़ा� कुहत ह)। इसा सा�ष�म्नी नीड़ा� कु सार्था और भी� नीनिड़ायो8 ह त� ह�। जि5सामें� एकु लिचत्रर्ण� नीमें कु; नीड़ा� भी� ह त� ह�। इसा लिचत्रर्ण� नीमें कु; नीड़ा� में� सा ह कुर कु� ण्डलि�नी� शलि' प्रवनिहत ह त� ह�, इसालि�ए सा�ष�म्नी नीड़ा� कु; द् नी2 ओर सा बाहनी व�� उपयो�' 2 नीनिड़ायो8 ह� कु� ण्डलि�नी� शलि' कु 2 कु� ण्ड� ह)।

कु� ण्डलि�नी� याज्ञ कु� वि�श�ष �र्ण�नी कुरते� हुए मु�ण्डकु�पविनीषद कु� २/१/८ सं$दर्भ� मु& कुहै� गया� है�- ''सात्तप्रर्ण� उसा� सा उत्पन्न हुए । अग्निAनी कु; सात ज्व�एC उसा� सा प्रकुट हुईं । योह� साप्त सामिमेंधएC ह), योह� सात हनिव ह) । इनीकु; ऊ5� उनी सात � कु2 तकु 5त� जि5नीकु साH5नी परमें श्वर नी उच्च प्रयो 5नी2 कु लि�ए निकुयो गयो ह� ।''

उपविनीषद) मु& कु� ण्डलि�नी� शलि� कु� स्�रूप कु� �र्ण�नी-मेंK�धरस्यो वहवयोत्में त 5 मेंध्यो व्यवस्थिस्थत।5�वशलि': कु� ण्ड�ख्यो प्रर्णकुरर्ण त�5सा�।।

अर्था�त कु� ण्डलि�नी� मेंK�धर चक्र में� स्थिस्थत आत्मेंAनी� त 5 कु मेंध्यो में� स्थिस्थत ह�। वह 5�वनी� शलि' ह�। त 5 और प्रर्णकुर ह�।

कु� ण्डलि�नी� शलि� कु� ज्ञ�नी�र्ण�� ते$त्र मु& �र्ण�नी इसं प्रकु�र विकुया� गया� है�-मेंK�धर मेंK�निवद्दयो निवद्यु�त्कु टिट सामेंप्रभीसामें�।साKयो�कुटिट प्रत�कुश8 चन्द्रकु टिट द्रव8 निप्रयो ।।

अर्था�त मेंK�धर चक्र में� निवद्यु�त प्रकुश ह� कुर ड़ा2 निकुरर्ण2 व�, कुर ड़ा2 साKयोW और चन्द्रमेंओं कु प्रकुश कु सामेंनी, कुमें� कु; डण्ड� कु सामेंनी अनिवस्थिYन्न त�नी घे र ड� हुए मेंK� निवद्यु रूनिपर्ण� कु� ण्डलि�नी� स्थिस्थत ह�। वह कु� ण्डलि�नी� परमें प्रकुशमेंयो ह�, अनिवस्थिYन्न शलि'धर ह� और त 5 धर ह�।

घे�रण्ड सं$विहैते� कु� अनी�सं�र-घे रण्ड सा8निहत में� कु� ण्डलि�नी� कु ह� आत्मेंशलि' यो टिद्व्य शलि' व परमें द् वत कुह गयो ह�।

मेंK�धर आत्मेंशलि': कु� ण्ड�� परद् वत।शमिमेंत भी�5गकुर, साध�नित्रबा�योन्विन्वत।।

अर्था�त मेंK�धर में� परमें द् व� आत्मेंशलि' कु� ण्डलि�नी� त�नी बा�यो व�� सार्पिप.र्ण� कु सामेंनी कु� ण्ड� मेंरकुर सा रह� ह�।

मेंहकु� ण्डलि�नी� प्र ': परब्रह्म स्वरूनिपर्ण�।शब्द्ब्रह्ममेंयो� द् व� एकुऽनी कुक्षरकुH नित:।।

अर्था�त कु� ण्डलि�नी� शलि' परमें ब्रह्म स्वरूनिपर्ण�, मेंहद् व�, प्रर्ण स्वरूनिपर्ण� तर्था एकु और अनी कु अक्षर2 कु में8त्र2 कु; आकुH नित में� में� कु सामेंनी 5�ड़ा� हुई बातयो� 5त� ह�।

कुन्द् ध्व� कु� ण्ड�� शलि': सा�प्त में क्षयो यो निगनीमें�।बान्धनीयो च मेंKढ़ानी8 योस्त8 व नित सा यो निगनिवत�।।

अर्था�त कुन्द् कु ऊपर कु� ण्डलि�नी� शलि' अवस्थिस्थत ह�। योह कु� ण्डलि�नी� शलि' सा ई हुई अवस्थ में� ह त� ह�। इसा कु� ण्डलि�नी� शलि' कु द्वार ह� यो निग5नी2 कु में क्ष प्रप्त ह त ह�। सा�ख कु बान्धनी कु कुरर्ण भी� कु� ण्डलि�नी� ह�। 5 कु� ण्डलि�नी� शलि' कु अनी�भीव पKर्ण� रूप सा कुर पत ह�, वह� साच्च यो ग� ह त ह�।

संप्ते ��कु2 कु� द��� र्भ�ग�ते मु& अन्या प्रकु�र सं� उल्��ख हुआ है�-उसामें� भीKh में� धरिरत्र� भी�वh में� वयो� स्वh में� त 5सा मेंहh में� मेंहनीत, 5नीh में� 5नीसामें�द्यो, तपh में� तपश्चयो� एव8 सात्यो में� लिसाद्धवर्ण�-वकु लिसाजिद्ध रूप सात शलि'योC सामेंनिहत बातयो� गयो� ह) ।

इसा प्रकुर कु� ण्डलि�नी� यो ग कु अ8तग�त चक्र सामें�द्यो में� वह साभी� कु� छ आ 5त ह�, जि5साकु; निकु भीmनितकु और आत्मित्मेंकु प्रयो 5नी2 कु लि�ए आवश्योकुत पड़ात� ह� ।

Page 2: कुण्डलिनी साधना.docx

मेंनीव� कुयो कु एकु प्रकुर सा भीK� कु कु सामेंनी मेंनी गयो ह�। इसामें� अवस्थिस्थत मेंK�धर चक्र कु पHथ्व� कु; तर्था साहस्रार कु साKयो� कु; उपमें द्r गई ह� । द् नी2 कु बा�च च�नी व� आद्नी-प्रद्नी मेंध्योमें कु में रुद्ण्ड कुह गयो ह� । ब्रह्मर8ध्र ब्रह्मण्ड कु प्रत�कु ह� । ठीvकु इसा� प्रकुर साहस्रार � कु ब्रह्मण्ड�यो च तनी कु अवतरर्ण कु न्द्र ह� और इसा मेंहनी� भीण्डगर में� सा मेंK�धर कु जि5सा कुयो� कु लि�ए जि5तनी� मेंत्र में� जि5सा स्तर कु; शलि' निकु आवश्यो' ह त� ह� उसाकु; पKर्पित. �गतर ह त� रहत� ह� ।

कु� ण्डलि�नी� प्रसा8ग यो ग वलिशष्ठ, यो ग चKड़ामेंणिर्ण, द् व� भीवगत�, शरद् नित�कु, शग्निyल्यो सापनिनीषद् में�लि'-कु पनिनीषद्, हठीयो ग सा8निहत, कु� �र्ण�नी त8त्र, यो निगनी� त8त्र निबान्दूपनिनीषद्, रुद्र योमें� त8त्र साmन्द्यो� �हर� आटिद् ग8र्था2 में� निवस्तर पKव�कु टिद्यो गयो ह� ।

याहै� कु�रर्ण है� विकु ऋग्��द मु& ऋविष कुहैते� है9-ह ''प्रर्णग्निAनी! में र 5�वनी में� ऊष बानीकुर प्रकुट2 अज्ञानी कु अ8धकुर दूर कुर2, ऐसा बा� प्रद्नी कुर जि5सासा द् व शलि'योC खिंख.च� च�� आएC ।''

वित्रशिशखिखब्रहै�पविनीषद मु& श�स्त्रकु�र नी� कुहै� है�-''यो ग साधनी द्वार 5गई हुई कु� ण्डलि�नी� निबा5�� कु सामेंनी �डपत� और चमेंकुत� ह� । उसासा 5 ह�, सा यो सा 5गत ह� । 5 5गत ह�, वह द्mड़ानी �गत ह� ।''

मुहै�मु$त्र मु& �र्ण�नी आते� है�-''5ग्रत हुई कु� ण्डलि�नी� असा�में शलि' कु प्रसाव कुरत� ह� । उसासा नीद् निबान्दू, कु� कु त�नी2 अभ्योसा स्वयो8में व साध 5त ह) । पर, पश्योन्विन्त, मेंध्योमें और बा�खर� चर2 वणिर्णयोC में�खर ह उठीत� ह) । इY शलि', ज्ञानी शलि' और निक्रयो शलि' में� उभीर आत ह� । शर�र-व�र्ण कु साभी� तर क्रमेंबाद्ध ह 5त ह) और मेंध�र ध्वनिनी में� बा5त हुए अन्तर� कु झं8कुH त कुरत ह) । शब्द्ब्रह्म कु; योह लिसाजिद्ध मेंनी�ष्यो कु 5�वनीमें�' कुर द् वत्में बानी द् त� ह� । ''

शर�र मु& कु� ण्डलि�नी� कु= अ�स्था�5नीनी जिन्द्रयो कु मेंK� में� यो लिं�.ग उपस्थ में� नीनिड़ायो2 कु एकु ग�Y ह�। यो ग शस्त्र2 में� इसा� कु “कुन्द्” कुह 5त ह�। इसा� पर कु� ण्डलि�नी� गहर� नी�द् में� 5न्में-5न्मेंन्तर सा सा रह� ह त� ह�।

कु� ण्ड� कु� टिट�कुर साप�वत� परिरकु;र्पित.त।सा शलि'श्चलि�त यो नी, सा यो�'2 नीत्र सा8शयो।।

अर्था�त कु� ण्डलि�नी� कु साप� कु आकुर कु; कु� टिट� कुह गयो ह�। जि5सा तरह सा8प कु� ण्ड�� मेंरकुर सा त ह�, उसा� प्रकुर कु� ण्डलि�नी� शलि' भी� आटिद्कु� सा ह� मेंनी�ष्यो कु अन्द्र सा ई हुई रहत� ह�।

योवत्सा निनीटिद्रत द् ह तवज्जी�व: पयो�यो र्था।ज्ञानी नी 5योत तवत� कु टिट यो गनिवध रनिप।।

अर्था�त 5बा तकु कु� ण्डलि�नी� शलि' मेंनी�ष्यो कु अन्द्र सा ई हुई अवस्थ में� रहत� ह�, तबा तकु मेंनी�ष्यो परिरस्थिस्थनित कु अध�नी रहत ह�। ऐसा व्यलि' कु आचरर्ण पश�ओं कु सामेंनी ह त ह�। ऐसा व्यलि' द्rनी-ह�नी 5�वनी योपनी कुरत ह), तर्था उनीकु रहनी-साहनी, भीव2 और निवचर2, आहर-निवहर आटिद् में� आत्में निवश्वसा, ध�यो�, साKझं-बाKझं, उमें8ग, उत्साह, उल्�सा, दृढ़ात, स्थिस्थरत, एकुग्रत, कुयो� कु� श�त, उद्रत और हृद्यो निवश�त 5�सा ग�र्ण2 कु अभीव ह त ह�। ऐसा व्यलि' अनी कु यो ग साधनी, पK5-पठी आटिद् कुरकु भी� अपनी ब्रह्मज्ञानी निवव कु कु प्रप्त नीह� कुर पत।

मेंK�धर प्रसा�प्त साऽऽमेंशलि' उस्थिन्न्द्रत-निवश�द्ध नितष्ठनित में�लि'रूप परशलि':।

अर्था�त वह प्रबा� आत्मेंशलि' मेंK�धर में� सा रह� ह�। उसाकु प्रयो ग निकुसा� बाड़ा यो चमेंत्कुर� कुयो� में� नी ह नी सा वह अपमेंनिनीत व्यलि' कु; तरह लिशलिर्था� और गनितह�नी बानी� हुई ह�। व्यलि' कु अन्द्र 5ग� हुई इYशलि' कु मेंहनी उद्द श्यो2 कु; पKर्पित. में� निनीयो जि5त वह� शलि' परशलि' कु रूप में� निवर5त� ह�।

कु� ण्डलि�नी� जा�ग@ते कुरनी� कु� कु�रर्णशर�र कु अन्द्र कु� ण्डलि�नी� शलि' कु 5गरर्ण ह नी सा शर�र कु अन्द्र मेंm5Kद् दूनिषत कुफ, निपत्त, वत आटिद् सा उत्पन्न ह नी व� निवकुर नीष्ट ह 5त ह)। इसाकु 5गरर्ण सा मेंनी�ष्यो कु अन्द्र कुमें, क्र ध, � भी, में ह 5�सा द् ष, आटिद् खत्में ह 5त ह)। इसा शलि' कु 5गरर्ण ह नी सा योह अपनी� सा ई हुई अवस्थ कु त्योग कुर सा�ध� ह 5त� ह� और निवद्यु�त तर8ग कु सामेंनी कुम्पनी कु सार्था इड़ा, पिंप.ग� नीनिड़ायो2 कु छ ड़ाकुर सा�ष�म्नी सा ह त हुए मेंस्तिस्तष्कु में� पहु8च 5त� ह�।

कु� ण्डल्यो व भीव Yलि'स्त8 त� साच�यो त बा�ध:।स्पश्योनीद्भ्रव में�ध्यो, शलि'च�नीमें�च्चत ।।

अर्था�त अपनी अन्द्र आ8तरिरकु ज्ञानी व अत्योमिधकु शलि' कु; प्रन्विप्त कु लि�ए साभी� मेंनी�ष्यो2 कु चनिहए निकु वह अपनी अन्द्र सा ई हुई कु� ण्डलि�नी� (आत्मेंशलि') कु 5गरर्ण कुर�, उसा कुयो�श�� बानीए8! प्रर्णयोमें कु द्वार 5बा मेंK�धर सा स्फूK र्पित. तर8ग कु; तरह ऊ5� शलि' उठीकुर मेंस्तिस्तष्कु

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में� आत� हुई मेंहसाKसा ह नी �ग त सामेंझंनी चनिहए निकु कु� ण्डलि�नी� शलि' 5गHत ह च�कु; ह�।

ज्ञा यो शलि'रिरयो8 निवश्नो निनीभी�यो स्वर्ण�भी: स्वर।

अर्था�त शर�र में� उत्पन्न ह नी व�� इसा कु� ण्डलि�नी� शलि' कु स्वर्ण� कु सामेंनी सा�न्द्र निवष्र्ण� कु; निनीभी�यो शलि' ह� सामेंझंनी चनिहए। योह� शलि' आत्मेंशलि', 5�वशलि' आटिद् नीमें सा भी� 5नी 5त ह�। योह� ईश्वर�यो शलि' भी� ह�, प्रर्णशलि' और कु� ण्डलि�नी� शलि' भी� ह�। मेंनी�ष्यो कु शर�र में� मेंm5Kद् कु� ण्डलि�नी� शलि' और पर�mनिकुकु शलि' द् नी2 एकु ह� शलि' कु अ�ग-अ�ग रूप ह)।

पते�$जालि� द्वा�र� रलिBते ´या�ग दश�नी´ श�स्त्र कु� अनी�सं�र-पत85लि� द्वार रलिचत ´यो ग द्श�नी´ शस्त्र कु साधनीपद् में� कु� ण्डलि�नी� शलि' कु 5गरर्ण कु अनी कु2 उपयो बातए गए ह�। में8त्र ग्रन्थों2 में� जि5तनी यो ग2 कु वर्ण�नी ह�, व साभी� कु� ण्डलि�नी� 5गरर्ण कु; ह� साधनी ह�। मेंहबान्ध, मेंहव ध, मेंहमें�द्र, ख चर� में�द्र, निवपर�त कुरर्ण� मेंद्र, अणिश्वनी� में�द्र, यो निनी में�द्र, शलि' चलि�नी� में�द्र, आटिद् कु� ण्डलि�नी� 5गरर्ण में� साहयोत कुरत ह)। इसामें� प्रर्णयोमें कु द्वार कु� ण्डलि�नी� कु 5गरर्ण कुरनी और उसा सा�ष�म्नी में� �नी कु� ण्डलि�नी� 5गरर्ण कु साबासा अY उपयो ह�। प्रर्णयोमें कु द्वार कु� छ सामेंयो में� ह� कु� ण्डलि�नी� शलि' कु 5गरर्ण कुर उसाकु �भी2 कु प्रप्त निकुयो 5 साकुत ह�।

प्रर्णयोमें सा कु व� कु� ण्डलि�नी� शलि' ह� 5गHत ह� नीह� ह त� बास्तिल्कु इसासा अनी कु2 �भी भी� प्रप्त ह त ह)। ´यो ग द्श�नी´ कु अनी�सार प्रर्णयोमें कु अभ्योसा सा ज्ञानी पर पड़ा हुआ अज्ञानी कु पद्� नीष्ट ह 5त ह�। इसासा मेंनी�ष्यो भ्रमें, भीयो, लिंच.त, असामें85स्यो, मेंK� धरर्णए8 और अनिवद्यु व अन्धनिवश्वसा आटिद् नीष्ट ह कुर ज्ञानी, अY सा8स्कुर, प्रनितभी, बा�जिद्ध-निवव कु आटिद् कु निवकुसा ह नी �गत ह�। इसा साधनी कु द्वार मेंनी�ष्यो अपनी मेंनी कु 5ह8 चह वह8 �ग साकुत ह�। प्रर्णयोमें कु द्वार मेंनी निनीयो8त्रर्ण में� रहत ह�। इसासा शर�र, प्रर्ण व मेंनी कु साभी� निवकुर नीष्ट ह 5त ह)। इसासा शर�रिरकु क्षमेंत व शलि' कु निवकुसा ह त ह�। प्रर्णयोमें कु द्वार प्रर्ण व मेंनी कु वश में� कुरनी सा ह� व्यलि' आश्चयो�5नीकु कुयो� कु कुर साकुनी में� सामेंर्था� ह त ह�। प्रर्णयोमें आयो� कु बाढ़ानी व�, र ग2 कु दूर कुरनी व�, वत-निपत्त-कुफ कु निवकुर2 कु नीष्ट कुरनी व� ह त ह�। योह मेंनी�ष्यो कु अन्द्र ओ5-त 5 और आकुष�र्ण कु बाढ़ात ह�। योह शर�र में� स्फूK र्पित., �चकु, कु में�, श8नित और सा�दृढ़ात �त ह�। योह र' कु श�द्ध कुरनी व� ह�, चमें� र ग नीशकु ह�। योह 5ठीरग्निAनी कु बाढ़ानी व�, व�यो� द् ष कु नीष्ट कुरनी व� ह त ह�।

प्रर्णयोमें कु द्वार व�यो� और प्रर्ण कु ऊध्व�गमेंनी सा बा�जिद्ध त8त्र कु बान्द् कु ष ख��त ह�, सार्था ह� शर�र कु; नीसा-नीसा में� अत्यो8त शलि', साहसा कु सा8चर ह नी सा निक्रयोश��त कु निवकुसा भी� ह त ह�।

कु�$ डलि�नी� जा�गरर्ण कु� अर्थ� है�मेंनी�ष्यो कु प्रप्त मेंहनीशलि' कु 5ग्रत कुरनी। योह शलि' साभी� मेंनी�ष्यो2 में� सा�प्त पड़ा� रहत� ह�। कु� ण्ड�� शलि' उसा ऊ5� कु नीमें ह� 5 हर मेंनी�ष्यो में� 5न्में5त पयो� 5त� ह�। इसा 5गनी कु लि�ए प्रयोसा यो साधनी कुरनी� पड़ात� ह�।

कु�8 ड�� 5गरर्ण कु लि�ए साधकु कु शर�रिरकु, मेंनीलिसाकु एव8 आत्मित्मेंकु स्तर पर साधनी यो प्रयोसा कुरनी पड़ात ह�। 5प, तप, व्रत-उपवसा, पK5-पठी, यो ग आटिद् कु मेंध्योमें सा साधकु अपनी� शर�रिरकु एव8 मेंनीलिसाकु, अश�जिद्धयो2, कुमिमेंयो2 और बा�रइयो2 कु दूर कुर सा ई पड़ा� शलि'यो2 कु 5गत ह�। अत: हमें कुह साकुत ह) निकु निवणिभीन्न उपयो2 सा अपनी� अज्ञात, ग�प्त एव8 सा ई पड़ा� शलि'यो2 कु 5गरर्ण ह� कु�8 ड�� 5गरर्ण ह�।

यो ग और अध्योत्में में� इसा कु�8 ड��नी� शलि' कु निनीवसा र�ढ़ा कु; हड्डी� कु सामेंनी8तर स्थिस्थत छ: चक्र2 में� सा प्रर्थामें चक्र मेंK�धर कु नी�च मेंनी गयो ह�। योह र�ढ कु; हड्डी� कु आग्निखर� निहस्सा कु चर2 ओर साढ त�नी आCट �गकुर कु� ण्ड�� मेंर सा ए हुए सा8प कु; तरह सा ई रहत� ह�।

आध्योत्मित्मेंकु भीष में� इन्ह� षट�-चक्र कुहत ह)।

या� Bक्र क्रमुश:इसा प्रकुर ह�:- मेंK�धर-चक्र, स्वमिधष्ठनी-चक्र, मेंणिर्णप�र-चक्र, अनीहत-चक्र, निवश�द्ध-चक्र, आज्ञा-चक्र। साधकु क्रमेंश: एकु-एकु चक्र कु 5ग्रत कुरत हुए, आज्ञा-चक्र तकु पहु8चत ह�। मेंK�धर-चक्र सा प्रर8भी ह कुर आज्ञाचक्र तकु कु; साफ�तमें योत्र ह� कु� ण्डलि�नी� 5गरर्ण कुह�त ह�।

षट�-चक्र एकु प्रकुर कु; साKक्ष्में ग्र8लिर्थायो8 ह�। इनी चक्र ग्र8लिर्थायो2 में� 5बा साधकु अपनी ध्योनी कु एकुग्र कुरत ह� त उसा वह8 कु; साKक्ष्में स्थिस्थनित कु बाड़ा निवलिचत्र अनी�भीव ह त ह�। इनी चक्र2 में� निवनिवध शलि'यो8 सामेंनिहत ह त� ह�। उत्पद्नी, प षर्ण, सा8हर, ज्ञानी, सामेंHजिद्ध, बा� आटिद्। साधकु 5प कु द्वार ध्वनिनी तर8ग2 कु चक्र2 तकु भी 5त ह�। इनी पर ध्योनी एकुग्र कुरत ह�। प्रर्णयोमें द्वार चक्र2 कु उत्त जि5त कुरत ह�। आसानी2 द्वार शर�र कु इसाकु लि�ए उपयो�' बानीत ह�। इसा प्रकुर हमें कुह साकुत ह) निकु निवणिभीन्न शर�रिरकु, मेंनीलिसाकु एव8 आत्मित्मेंकु प्रयोसा2 कु द्वार साधकु, शलि' कु कु� द्र इनी चक्र2 कु 5ग्रत कुरत ह�।

व�टिद्कु ग्रन्थों2 में� लि�ख ह� निकु मेंनीव शर�र आत्में कु भीmनितकु घेर मेंत्र ह�। आत्में सात प्रकुर कु कु ष2 सा ढकु; हुई ह�h- १- अन्नमेंयो कु ष (द्रव्य, भीmनितकु शर�र कु रूप में� 5 भी 5नी कुरनी सा स्थिस्थर रहत ह�), २- प्रर्णमेंयो कु ष (5�वनी शलि'), ३- मेंनी मेंयो कु ष (मेंस्तिस्तष्कु 5 स्पष्टतh बा�जिद्ध सा णिभीन्न ह�), ४- निवज्ञानीमेंयो कु ष (बा�जिद्धमेंत्त), ५- आनीन्द्मेंयो कु ष (आनीन्द् यो अक्षयो आनीन्द् 5 शर�र यो टिद्मेंग सा साम्बात्मिन्धत नीह� ह त), ६- लिचत�-मेंयो कु ष (आध्योत्मित्मेंकु बा�जिद्धमेंत्त) तर्था ७- सात�-मेंयो कु ष (अन्विन्तमें अवस्थ 5 अनीन्त कु सार्था मिमें� 5त� ह�)। मेंनी�ष्यो कु आध्योत्मित्मेंकु रूप सा पKर्ण� निवकुलिसात ह नी कु लि�यो सात2 कु ष2 कु पKर्ण� निवकुसा ह नी अनित आवश्योकु ह�।

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साधकु कु; कु� ण्डलि�नी� 5बा च तनी ह कुर साहस्त्रर में� �यो ह 5त� ह�, त इसा� कु में क्ष कुह गयो ह�।

कु� ण्डलि�नी� या�ग कु� अ$तेग�ते शलि�प�ते वि�धा�नी कु� �र्ण�नी अनी�कु ग्रं$र्थ2 मु& मिमु�ते� है� जा�सं�-यो ग वलिशष्ठ, त 5निबान्दूनिनीषद्�, यो ग चKड़ामेंणिर्ण, ज्ञानी सा8कुलि�नी� त8त्र, लिशव प�रर्ण, द् व� भीगवत, शस्थिण्डपनिनीषद्, में�लि'कु पनिनीषद्, हठीयो ग सा8निहत, कु� �र्ण�व त8त्र, यो गनी� त8त्र, घे र8ड सा8निहत, कु8 ठी श्रु�नित ध्योनी निबान्दूपनिनीषद्, रुद्र योमें� त8त्र, यो ग कु� ण्डलि�नी� उपनिनीषद्�, शरद् नित�कु आटिद् ग्र8र्था2 में� इसा निवद्यु कु निवणिभीन्न पह��ओं पर प्रकुश ड� गयो ह� ।

त�त्तर�यो आरण्योकु में� चक्र2 कु द् व� कु एव8 द् व सा8स्थनी कुह गयो । श8कुरचयो� कुH त आनीन्द् �हर� कु १७ व� श्लो कु में� भी� ऐसा ह� प्रनितपद्नी ह� ।

या�ग दश�नी संमु�लिधाप�द कु� ३६��J संKत्र है�-'निवश कुयो ज्यो नितष्मेंत�'इसामें� श कु सा8तप2 कु हरर्ण कुरनी व�� ज्यो नित शलि' कु रूप में� कु� ण्डलि�नी� शलि' कु; ओर सा8कु त ह�।

हमेंर ऋनिषयो2 नी गहनी श ध कु बाद् इसा लिसाद्धन्त कु स्व�कुर निकुयो निकु 5 ब्रह्मण्ड में� ह�, वह� साबा कु� छ निपण्ड (शर�र) में� ह�। इसा प्रकुर “मेंK�धर-चक्र” सा “कुण्ठी पयो�न्त” तकु कु 5गत “मेंयो” कु और “कुण्ठी” सा � कुर ऊपर कु 5गत “परब्रह्म” कु ह�।

मेंK�द्धरजिद्ध षट�चक्र8 शलि'रर्थानीमेंKद्rरतमें� ।कुण्ठीदुपरिर मेंKद्ध�न्त8 शम्भव स्थनीमें�च्योत ॥ -वरहश्रु�नित

अर्था�त मेंK�धर सा कुण्ठीपयो�न्त शलि' कु स्थनी ह� । कुण्ठी सा ऊपर सा मेंस्तकु तकु शम्भव स्थनी ह� ।

मेंK�धर सा साहस्रार तकु कु; योत्र कु ह� मेंहयोत्र कुहत ह) । यो ग� इसा� मेंग� कु पKर कुरत हुए परमें �क्ष्यो तकु पहुCचत ह) । 5�व, सात्त, प्रर्ण, शलि' कु निनीवसा 5नीनी जिन्द्रयो मेंK� में� ह� । प्रर्ण उसा� भीKमिमें में� रहनी व� र5 व�यो� सा उत्पन्न ह त ह) । ब्रह्म सात्त कु निनीवसा ब्रह्म� कु (ब्रह्मरन्ध्र) में� मेंनी गयो ह� । योह� द्यु�� कु, द् व� कु, स्वग�� कु ह�। आत्मेंज्ञानी (ब्रह्मज्ञानी) कु साKयो� इसा� � कु में� निनीवसा कुरत ह� ।

पतनी कु गत� में� पड़ा� क्षत-निवक्षत आत्में सात्त अबा उध्व�गमें� ह त� ह� त उसाकु �क्ष्यो इसा� ब्रह्म� कु (साKयो�� कु) तकु पहुCचनी ह त ह� । यो गभ्योसा कु परमें प�रुषर्था� इसा� निनीमिमेंत्त निकुयो 5त ह� । कु� ण्डलि�नी� 5गरर्ण कु उद्द श्यो योह� ह� ।

आत्में त्कुष� कु; मेंहयोत्र जि5सा मेंग� सा ह त� ह� उसा में रुद्ण्ड यो सा�ष�म्नी कुहत ह) ।

में रुद्ण्ड कु र5मेंग� यो मेंहमेंग� कुहत ह) । इसा धरत� सा स्वग� पहुCचनी कु द् वयोनी मेंग� कुह गयो ह� । इसा योत्र कु मेंध्यो में� सात � कु ह) । इस्�में धमें� कु सातव� आसामेंनी पर ख�द् कु निनीवसा मेंनी गयो ह� । ईसाई धमें� में� भी� इसासा मिमें�त�-5��त� मेंन्योत ह� । निहन्दू धमें� कु भीKh, भी�वh, स्वh, तपh, मेंहh, सात्योमें� योह सात-� कु प्रलिसाद्ध ह� । आत्में और परमेंत्में कु मेंध्यो इन्ह� निवरमें स्थ� मेंनी गयो ह� ।

षट्)-Bक्र-र्भ�दनी-षट�-चक्र-भी द्नी निवधनी निकुतनी उपयो ग� एव8 साहयोकु ह� इसाकु; चच� कुरत हुए ‘आत्में निवव कु’ नीमेंकु साधनी ग्र8र्था में� कुह गयो ह� निकु-ग�द्लि�ङान्तर चक्रमेंधर8 त� चत�द्��में�।परमेंh साह5स्तद्वाद्नीन्द् व�रपKव�कुh॥यो गनीन्द्श्च तस्यो स्योद्rशनीटिद्द्� फ�में�।स्वमिधष्ठनी8 लिं�.गमेंK� षट�पत्रञ्त्र� क्रमेंस्यो त�॥पKव�टिद्ष� द्� ष्वहुh फ�न्यो तन्योनी�क्रमेंत�।प्रश्रुयोh क्रK रत गव¥ नीश मेंKYर� ततh परमें�॥अवज्ञा स्योद्निवश्वसा 5�वस्यो चरत ध्र�रवमें�।नीभीm द्शद्�8 चक्र8 मेंणिर्णपKरकुसा8ज्ञाकुमें�।सा�ष�न्विप्तरत्र तHष्र्ण स्योद्rष्र्यो निपश�नीत तर्था॥�ज्जी� भीयो8 घेHर्ण में हh कुषयो ऽर्था निवषटिद्त।�mन्यो8 प्रनीशh कुपट8 निवतकुWऽप्योनी�निपत॥आश्श प्रकुशणिश्चन्त च सामें�ह मेंमेंत ततh।क्रमें र्ण द्म्भ व�कुल्यो8 निववकु ऽह8क्वनितस्तर्था॥फ�न्यो तनिनी पKव�टिद्द्स्थस्योत्मेंनी2 5ग�h।कुण्ठी ऽस्तिस्त भीरत�स्थनी8 निवश�जिद्धh ष डशYद्में�॥तत्र प्रर्णव उद्गीrर्था हुC फट� वषट� स्वध तर्था।स्वह नीमें ऽमेंHत8 साप्त स्वरh षड�5द्यो निवष॥इनित पKव�टिद्पत्रस्थ फ�न्योत्मेंनिनी ष डश॥

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(1) ग�द् और लिं�.ग कु बा�च चर द्� (प8ख�निड़ायो2) व� ‘आधर चक्र’ ह�। वहC व�रत और आनीन्द् भीव कु वसा ह�।

(2) इसाकु बाद् स्वमिधष्ठनी-चक्र लिं�.ग मेंK� में� ह�। इसाकु छh द्� ह)। इसाकु 5ग्रत ह नी पर क्रK रत, गव�, आ�स्यो, प्रमेंद्, अवज्ञा, अनिवश्वसा आटिद् दुग�र्ण2 कु नीश ह त ह�।

चक्र2 कु; 5गHनित मेंनी�ष्यो कु ग�र्ण, कुमें�, स्वभीव कु प्रभीनिवत कुरत� ह�। स्वमिधष्ठनी कु; 5गHनित सा मेंनी�ष्यो अपनी में� नीव शलि' कु सा8चर अनी�भीव कुरत ह�। उसा बालि�ष्ठत बाढ़ात� प्रत�त ह त� ह�। श्रुमें में� उत्साह और गनित में� स्फूK र्पित. कु; अणिभीवHजिद्ध कु आभीसा मिमें�त ह�।

(3) नीणिभी में� द्सा द्� व� मेंणिर्णपKर-चक्र ह�। योह प्रसा�प्त पड़ा रह त तHष्र्ण, ईष्यो�, च�ग��, �ज्जी, भीयो, घेHर्ण, में ह, आटिद् कुषयो-कुल्मेंष मेंनी में� 5ड़ा 5मेंयो रहत ह)।

मेंणिर्णपKर चक्र सा साहसा और उत्साह कु; मेंत्र बाढ़ा 5त� ह�। सा8कुल्प दृढ़ा ह त ह) और परक्रमें कुरनी कु हmसा� उठीत ह)। मेंनी निवकुर स्वयो8में व घेटत 5त ह) और परमेंर्था� प्रयो 5नी2 में� अप क्षकुH त अमिधकु रसा मिमें�नी �गत ह�।

(4) हृद्यो स्थनी में� अनीहत-चक्र ह�। योह बारह द्� व� ह�। योह सा त रह त लि�प्सा, कुपट, त ड़ा-फ ड़ा, कु� तकु� , लिचन्त, में ह, द्म्भ, अनिवव कु तर्था अह8कुर सा साधकु भीर रह ग। इसाकु 5गरर्ण ह नी पर योह साबा दुग��र्ण हट 5यो�ग ।

अनीहत चक्र कु; मेंनिहमें ईसाई धमें� में� साबासा ज्योद् मेंनी� 5त� ह�। हृद्यो स्थनी पर कुमें� कु फK � कु; भीवनी कुरत ह) और उसा मेंहप्रभी� ईसा कु प्रत�कु ‘आईच�नी’ कुनीकु कुमें� मेंनीत ह)। भीरत�यो यो निगयो2 कु; दृमिष्ट सा योह भीव सा8स्थनी ह�। कु�त्मेंकु उमें8ग�-रसानी�भी�नित एव8 कु में� सा8व द्नीओं कु उत्पद्कु स्रा त योह� ह�। बा�जिद्ध कु; वह परत जि5सा निवव कु-श��त कुहत ह)। आत्में�योत कु निवस्तर, साहनी�भीKनित एव8 उद्र सा व, साहकुरिरत, इसा अनीहत चक्र सा ह� उद्भूªत ह त ह)।

(5) कुण्ठी में� निवश�द्ध-चक्र ह�। योह सारस्वत� कु स्थनी ह�। योह सा �ह द्� व� ह�। योहC सा �ह कु�एC तर्था सा �ह निवभीKनितयोC निवद्युमेंनी ह�।

कुण्ठी में� निवश�द्ध चक्र ह�। इसामें� बानिहर8ग स्वYत और अ8तर8ग पनिवत्रत कु तत्त्व रहत ह)। द् ष व दुग��र्ण2 कु निनीरकुरर्ण कु; प्र रर्ण और तद्नी�रूप सा8घेष� क्षमेंत योह� सा उत्पन्न ह त� ह�। में रुद्ण्ड में� कु8 ठी कु; सा�ध पर अवस्थिस्थत निवश�द्ध चक्र, लिचत्त सा8स्थनी कु प्रभीनिवत कुरत ह�। तद्नी�सार च तनी कु; अनित मेंहत्वपKर्ण� परत2 पर निनीयो8त्रर्ण कुरनी और निवकुलिसात एव8 परिरष्कुH त कुर साकुनी कु साKत्र हर्था में� आ 5त ह)। नीद्यो ग कु मेंध्योमें सा टिद्व्य श्रुवर्ण 5�सा� निकुतनी� ह� पर क्षनी�भीKनितयोC निवकुलिसात ह नी �गत� ह)।

(6) भ्रK-मेंध्यो में� आज्ञा चक्र ह�। योहC- ॐ, उद्गीrयो, हूँC, फट, निवषद्, स्वध, स्वह, साप्त स्वर आटिद् कु वसा ह�। आज्ञा चक्र कु 5गरर्ण ह नी सा योह साभी� शलि'योC 5ग 5त� ह)।

(7) साहस्रार मेंस्तिस्तष्कु कु मेंध्यो भीग में� ह�। शर�र सा8रचनी में� इसा स्थनी पर अनी कु मेंहत्वपKर्ण� ग्र8लिर्थायो2 कु अस्तिस्तत्व ह�। वहC सा ऊ5� कु स्वयो8भीK प्रवह ह त ह�। योह ऊ5� मेंस्तिस्तष्कु कु अगणिर्णत कु न्द्र2 कु; ओर 5त�/द्mड़ात� ह)। इसामें� सा छ टr-छ टr निकुरर्ण निनीकु�त� रहत� ह)। उनीकु; सा8ख्यो कु; साह� गर्णनी त नीह� ह साकुत�, पर व ह5र2 में� ह त� ह�। इसालि�ए इसा चक्र कु लि�यो ‘साहस्रार’ शब्द् प्रयो ग में� �यो 5त ह�। साहस्रार चक्र कु नीमेंकुरर्ण इसा� आधर पर हुआ ह�।

योह सा8स्थनी ब्रह्मण्ड�यो च तनी कु सार्था साम्पकु� साधनी में� अग्रर्ण� ह�, इसालि�ए उसा ब्रह्मरन्ध्र यो ब्रह्म� कु भी� कुहत ह)। निहन्दू धमें�नी�योयो� इसा स्थनी पर लिशख रखत ह)।

कुबी�र सं�विहैबी नी� अपनी� विनीम्नीलि�खिखते प्रलिसंद्ध रBनी� ‘कुर नी�नी2 दPद�र मुहै� मु& प्या�र� है�’ मु& संबी कुमु�2 कु� �र्ण�नी वि�स्ते�र पK��कु इसं प्रकु�र विकुया� है�-कुर नी�नी द्rद्र मेंह� में� प्योर ह� ॥ट कु॥कुमें क्र ध मेंद् � भी निबासार , सा�� सा8त ष लिछमें सात धर ।मेंद्यु में8सा मिमेंथ्यो तजि5 डर , ह ज्ञानी घे ड़ा असावर, भीरमें सा न्योर ह� ॥1॥ध त� नी त� वस्त� पओ, आसानी पद्म 5�गत सा �ओ ।कु�8 भीकु कुर र चकु कुरवओ, पनिह� मेंK� सा�धर कुर5 ह सार ह� ॥2॥मेंK� कुC व� द्� चत�र बाखनी , कुलिं�.ग 5प �� र8ग मेंनी ।द् व गनी सा तह र प र्थानी , रिरध लिसाध चCवर ढ��र ह� ॥3॥स्वद् चक्र षट�द्� निबास्तर , ब्रह्म सानिवत्र� रूप निनीहर ।उ�टिट नीनिगनी� कु लिसार मेंर , तह8 शब्द् ओंकुर ह� ॥4॥नीभी� अष्टकुC व� द्� सा5, सा त लिंसा.हसानी निबास्नी� निबार5 ।निहरिंर.ग 5प तसा� में�ख ग5, �छमें� लिसाव आधर ह� ॥5॥द्वाद्सा कुC व� हृद्यो कु मेंह�, 58ग गmर लिसाव ध्योनी �गई ।सा ह8 शब्द् तह8 ध�नी छई, गनी कुर� 5�5�कुर ह� ॥6॥ष ड़ाश द्� कुC व� कु8 ठी कु मेंह�, त निह मेंध बासा अनिवद्यु बाई ।

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हरिर हर ब्रह्म चCवर ढ�रई, 5ह8 शरिंर.ग नीमें उचर ह� ॥7॥त पर कु8 5 कुC व� ह� भीई, बाग भीmर दुह रूप �खई ।निनी5 मेंनी कुरत तह8 ठी�कुरई, साm नी�नीनी निपछवर ह� ॥8॥कु8 व�नी भी द् निकुयो निनीव�र, योह साबा रचनी निपण्ड में8झंर ।सातसा8ग कुर सातग�रु लिसार धर, वह सातनीमें उचर ह� ॥9॥आ8ख कुनी में�ख बा8द् कुरओ अनीहद् झिंझं.ग साब्द् सा�नीओ ।द् नी2 नित� इकुतर मिमें�ओ, तबा द् ख ग��5र ह� ॥10॥च8द् साKर एकु� घेर �ओ, सा�षमेंनी सा त� ध्योनी �गओ ।नितरबा नी� कु सा8घे सामेंओ, भी र उतर च� पर ह� ॥11॥घे8ट सा8ख सा�नी ध�नी द् ई साहसा कुC व� द्� 5गमेंग ह ई ।त मेंध कुरत निनीरख सा ई, बा8कुनी� धसा पर ह� ॥12॥डनिकुनी सानिकुनी� बाहु निकु�कुर�, 5में पिंकु.कुर धमें� दूत हकुर� ।सात्तनीमें सा�नी भीग� सार , 5बा सातग�रु नीमें उचर ह� ॥13॥गगनी में8ड� निवच उध�में�ख कु� इआ, ग�रुमें�ख साधK भीर भीर प�यो ।निनीग�र प्योसा मेंर निबानी कु;यो, 5 कु निहयो अ8मिधयोर ह� ॥14॥नित्रकु� टr मेंह� में� निवद्यु सार, घेनीहर गर5� बा5 नीगर ।�� बारनी साKर5 उजि5योर, चत�र कु8 व� में8झंर साब्द् ओंकुर ह� ॥15॥साध सा ई जि5नी योह गढ़ा ��नी, नीm द्रव5 परगट च�न्ह ।द्साव8 ख � 5यो जि5नी द्rन्ह, 5ह8 कु�8 फ� � रह मेंर ह� ॥16॥आग सा त सा�न्न ह� भीई, मेंनीसार वर प�टिठी अन्हई ।ह8सानी मिमें� ह8सा ह इ 5ई, मिमें�� 5 अमें� अहर ह� ॥17॥पिंकु.गर� सार8ग बा5� लिसातर, अYर ब्रह्म सा�न्न द्रबार ।द्वाद्सा भीनी� ह8सा उजि5योर, खट द्� कु8 व� में8झंर साब्द् रर8कुर ह� ॥18॥मेंहसा�न्न लिंसा.ध निबाषमें� घेटr, निबानी सातग�र पव� नीह� बाटr ।ब्योघेर लिंसा.ह सारप बाहु कुटr, तह8 साह5 अलिंच.त पसार ह� ॥19॥अष्ट द्� कु8 व� परब्रह्म भीई, द्निहनी द्वाद्सा अलिंच.त रहई ।बायो� द्सा द्� साह5 सामेंई, योK8 कु8 व�नी निनीरवर ह� ॥20॥प8च ब्रह्म प8च2 अ8ड बा�नी , प8च ब्रह्म निनीhअक्षर च�न्ह ।चर में�कुमें ग�प्त तह8 कु;न्ह , 5 मेंध बा8द्rवनी प�रुष द्रबार ह� ॥21॥द् पबा�त कु सा8ध निनीहर , भी8वर ग�फ त सा8त प�कुर ।ह8सा कुरत कु � अपर , तह8 ग�रनी द्रबार ह� ॥22॥साहसा अठीसा� द्rप रचयो , ह�र पन्न मेंह� 5ड़ायो ।में�र�� बा5त अख8ड साद्यो , तह8 सा ह8 झं�नीकुर ह� ॥23॥सा ह8 हद्द त5� 5बा भीई, सात्त � कु कु; हद् प�निनी आई ।उठीत सा�ग8ध मेंह अमिधकुई, 5 कु वर नी पर ह� ॥24॥ष ड़ासा भीनी� ह8सा कु रूप, बा�नी सात ध�नी बा5� अनीKप ।ह8सा कुरत च8वर लिसार भीKप, सात्त प�रुष द्रबार ह� ॥25॥कु टिटनी भीनी� उद्यो 5 ह ई, एत ह� प�निनी च8द्र �ख ई ।प�रुष र में सामें एकु नी ह ई, ऐसा प�रुष द्rद्र ह� ॥26॥आग अ�ख � कु ह� भीई, अ�ख प�रुष कु; तह8 ठीकु� रई ।अरबानी साKर र में सामें नीह�, ऐसा अ�ख निनीहर ह� ॥27॥त पर अगमें मेंह� इकु सा5, अगमें प�रुष तनिह कु र5 ।खरबानी साKर र में इकु �5, ऐसा अगमें अपर ह� ॥28॥त पर अकुह � कु ह) भीई, प�रुष अनीमें� तह8 रहई ।5 पहुCच 5नी ग वह�, कुहनी सा�नीनी सा न्योर ह� ॥29॥कुयो भी द् निकुयो निनीबा�र, योह साबा रचनी पिंप.ड में8झंर ।मेंयो अवगनित 5� पसार, सा कुर�गर भीर ह� ॥30॥आटिद् मेंयो कु;न्ह� चत�रई, झंKठीv बा5� पिंप.ड टिद्खई ।अवगनित रचनी रच� अ8ड मेंह�, त कु प्रनितपिंबा.बा डर ह� ॥31॥साब्द् निबाह8गमें च� हमेंर�, कुह) कुबा�र सातग�र द्इ तर� ।ख�� कुपट साब्द् झं�नीकुर�, पिंप.ड अ8ड कु पर सा द् सा हमेंर ह� ॥32॥

कु� ण्डलि�नी� शलि� अभी� तकु हमेंनी जि5तनी सामेंझं ह�, वह साबा शस्त्र2 कु अनी�सार सामेंझं ह� निकु कु� ण्डलि�नी� शलि' क्यो ह� और कु� सा कुमें कुरत� ह�। अबा अपनी� बात कु� ण्ड�नी� शलि' इन्सानी कु शर�र में� उसा परमेंत्में द्वार द्r गई सामेंस्त शलि'यो2 में� सा साबासा ज्योद् शलि'श�� एव8 अनित ग�प्त निवद्यु ह�।

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कु� ण्डलि�नी� शलि' कु ऊपर प्ररम्भ सा ह� अनी कु बार, अनी कु व्यखयो� द्r 5 च�कु; ह�। तर्था अनी कु बार इसाकु ऊपर शस्त्रर्था� ह च�कु ह�। आ5 कु सामेंयो में� साधकु2 कु साम्प्रद्यो द् निहस्सा2 में� बाट च�कु ह�। 5 साधकु सा8त मेंत कु मेंनीत ह), व कु� ण्डलि�नी� शलि' सा दूर रहत ह�, अर्था�त कु� ण्ड�नी� शलि' कु 5गनी और इसाकु बार में� 5नीनी व आवश्योकु नीह� सामेंझंत । उनीकु अनी�सार आज्ञा चक्र पर ध्योनी �गनी और नीमें कु 5प कुरनी, इसाकु ह� व प्रधनी मेंनीत ह�। यो साधकु आज्ञा चक्र सा नी�च कु चक्र कु कु ई भी� मेंहत्व द् नी पसान्द् नीह� कुरत । इनीकु अनी�सार नी�च कु चक्र पर साधनी कुरनी कु मेंत�बा ह�- सामेंयो कु; बारबाद्r। इनीकु अनी�सार कु� yलि�नी� शलि' 5ग्रत ह कुर आज्ञा चक्र पर ह� पहुCचत� ह�। इसालि�यो क्यो नी आज्ञा चक्र सा ह� योत्र श�रू कु; 5यो । आज्ञा चक्र सा साधनी कुरनी कु निकुतनी फयोद् ह त ह�, योह त वह� साधकु 5नी ।

निकुन्त� हमेंर� दृष्ट� में� ऐसा साम्भव नीह� ह�, क्यो2निकु निबानी कु� yलि�नी� शलि' कु 5ग्रत हुऐ आज्ञा चक्र कु 5ग्रत ह नी असाम्भव ह�। क्यो2निकु साभी� चक्र कु 5ग्रत कुरनी कु मेंK� में� कु� ण्डलि�नी� शलि' कु मेंहत्वपKर्ण� यो गद्नी ह�। 5 साधकु सा�ध ह� आज्ञा चक्र सा साधनी प्ररम्भ कुरत ह�। सा�2-सा� बा�त 5नी पर भी� उनीकु; मेंनीलिसाकु स्थिस्थत� और उनीकु; निवचरधर में� तनिनीकु/निबा�कु� � भी� बाद्�व नीह� आत। योटिद् उनी सा इसा बार में� पKछ 5यो त उनीकु अनी�सार कुमें-सा -कुमें चर 5न्में में� व अपनी� में�लि' मेंनीत ह�। कु ई उनीसा पKछनी व� ह त निकु योह 5न्में त निबातनी इतनी में�स्तिश्कु� ह�। आग कु त�नी 5न्में कु बार में� क्यो बात कुर�।उनी साधकु2 कु अनी�सार योटिद् ग�रू कुH प ह त चर 5न्में में� में�लि' साम्भव ह� और योह साधकु लिसाफ� में�लि' कु लि�यो ह� साधनी कुरत ह�। ग�रू और नीमें 5प पर इनीकु; पKर्ण� श्रुद्ध ह त� ह�। इनीमें सा अमिधकु8श साधकु नी�च कु चक्र कु नीमें सा ह� डरत ह�, व कुहत ह� निकु- योटिद् नी�च कु चक्र 5ग्रत ह गयो त अनी कु लिसाजिद्धयोC कु; प्रन्विप्त ह ग�, जि5सासा निकु साधकु में�लि' कु मेंग� सा भ्रष्ट ह साकुत ह� और लिसाजिद्धयो2 कु ��च में� फ8 सा कुर अपनी आप कु खरबा कुर � त ह�।

� निकुनी 5बा इनी साधकु2 कु; नीमें और ग�रू कु प्रनित इतनी� श्रुद्ध और निवश्वसा ह�, त योह साधकु कु� सा भीटकु साकुत ह�, क्यो2निकु इनीकु पKर्ण� ग�रू त हर व' इनीकु सार्था ह� निफर भीटकुव क्यो2 और कु� सा ?

हमेंर� नी5र में� कु ई मेंनी यो नी मेंनी यो त इनीकु ग�रूओं कु कु� ण्डलि�नी� शलि' 5गरर्ण कु निवधनी, उसाकु निनीयोमें आटिद् नीह� में�Kमें और योटिद् में�Kमें ह� त - यो अपनी लिशष्यो2 कु बातनी यो लिसाखनी नीह� चहत , क्यो2निकु कु� ण्डलि�नी� 5गरर्ण कु; प्रनिकुयो बाहुत ह� गहनी और 5टिट� ह�। कु� ण्डलि�नी� 5गरर्ण कु द्mरनी ग�रू-लिशष्यो कु सार्था-सार्था प�रूषर्था� कुरनी अनित आवश्योकु ह�। मेंत्र प्रवचनी द् कुर यो शस्त्र2/ग्रन्थों कु; कुहनिनीयोC सा�नी कुर यो रमेंयोर्ण, ग�त आटिद् कु उपद् श द् कुर कु� ण्डलि�नी� 5गरर्ण साम्भव नीह� ह�।

असा� में� कु� ण्डलि�नी� शलि' कु लि�यो पKर� में हनीत, पKर्ण� आत्में-निवश्वसा और पKर्ण�-ग�रु कु ह नी आवश्योकु ह�। क्यो2निकु कु� yलि�नी� शलि' 5ग्रत ह नी पर मेंत्र में क्ष ह� नीह�, भी ग भी� प्रद्नी कुरत� ह�।

में ट त र पर आ5 कु साधकु साम्प्रद्यो त�नी निहसा2 में� बाट हुआ ह�। ध्योनी-यो ग, हठी-यो ग और तन्त्र यो ग। त8त्र कु , साधकु यो ग नीह� मेंनीत । उनीकु; नी5र में� त8त्र यो त एकु व�भीत्सा निक्रयो ह�, यो निफर एकु चमेंत्कुर टिद्खनी कु; निवमिध। हमेंर� नी5र में� त8त्र कु अर्था� ह�- तनी�+प्रर्ण= तनी सा में�लि' पनी कु उपयो त8त्र ह�, अर्था�त अन्नमेंयो, प्रर्णमेंयो, मेंनी मेंयो, निवज्ञानीमेंयो आटिद् साप्त शर�र सा में�लि' पनी और आत्में कु उसा परमेंत्में में� पKर्ण� �यो ह नी ह� त8त्र ह�। पKर्ण� त8त्र में� निबान्दू कु र5 सा मिमें�नी कुरनी ह� कु� ण्डलि�नी� शलि' ह�, अर्था�त त8त्र कु; सावWच्चयो-भी�रव�-साधनी ह� कु� yलि�नी� साधनी ह�। 5�सा -5�सा साधकु अपनी आप कु उधव�-में�ख� कुरनी श�रू कुरत ह�। उनीकु; कु� ण्डलि�नी� शलि' 5ग्रत ह कुर पKर्ण� योत्र कु निनीकु� पड़ात� ह�। आटिद् श8कुरचयो� नी इसा कु� ण्डलि�नी� शलि' कु प्ररूप ‘श्रु� यो8त्र अर्था�त श्रु� चक्र’ कु बानीयो ह�।

बाहुत ह� ध्योनी प�व�कु योटिद् हमें त8त्र और सा8त मेंत कु अध्योयोनी यो निवश्लो षर्ण कुर त हमें ऐसा मेंहसाKसा ह ग 5�सा निकुसा� नी हमेंर� बा�जिद्ध कु ठीग लि�यो ह । सा8त मेंत कु अनी�सार-

ब्रह्म मेंर , निवष्र्ण� मेंर , मेंर श8कुर भीगवनी।अक्षर मेंर , क्षर मेंर , तबा प्रकुट पKर्ण� भीगवनी॥

त8त्र कु अनी�सार ‘श्रु� चक्र’ में� स्थिस्थत कुमें श्वर और कुमें श्वर� 5हC वसा कुरत ह)। जि5सा आसानी पर निवर5मेंनी रहत ह�, उसा आसानी कु पKव� टिद्श कु पयो ब्रह्म-प्र त ह� अर्था�त वहC पर ब्रह्म कु प्र त मेंनी गयो ह�। पणिश्चमें� पयो निवष्र्ण�-प्र त अर्था�त वहC पर श्रु� हर� कु प्र त रूप में� मेंनी गयो ह�। द्णिक्षर्ण टिद्श कु पयो रूद्र-प्र त अर्था�त योहC पर लिशव कु मेंHत मेंनी गयो ह�। उत्तर पयो ईश्वर-प्र त मेंनी गयो ह�, योहC पर अक्षर-ब्रह्म कु मेंHत मेंनी गयो ह�। कुमें श्वर और कुमें श्वर� जि5सा फ�कु कु उपर आसा�नी ह�, उसा साद्लिशव यो क्षर-ब्रहमें मेंनी गयो ह�। असा� में� कुमें श्वर और कुमें श्वर� कु ई द् व� यो द् वत नीह� ह�, बास्तिल्कु आत्में-रूप� कुमें श्वर� ह�, परब्रह्म रूप� कुमें श्वर कु सार्था आलिं�.गनी बाद्ध ह�।

5हC सा8त मेंत लिसाफ� ग�रू-तत्व कु ध्योनी कुरत ह�। वह� त8त्र यो हठी-यो ग� अनी कु2 प्रकुर कु; निक्रयोयो� कुरकु साभी� प्रकुर कु आ8नीद् � त हुऐ अपनी� आत्में रूप� प्र योसा� कु प्र�तमें रूप� परमेंत्में सा मिमें� द् त ह�। हठी यो ग कु; साधनी कु आधर अष्टCग यो ग ह�। इसाकु अ8तरगत आसानी, प्रर्णयोमें, बान्द्, योमें-निनीयोमें में�ख्यो ह�। सार्था ह� ध्योनी-धरर्ण और सामेंध� कु द्वार कु� ण्डलि�नी� 5गरर्ण कुरनी इनीकु ध्यो यो ह�। इनी साधकु2 कु; नी5र में� योटिद् प्रर्ण-वयो� कु; अपनी-वयो� में� एव8 अपनी-वयो� कु; प्रर्ण-वयो� में� आहुनित द् द्r 5यो त कु� ण्डलि�नी� 5गरर्ण साम्भव ह)। इसाकु लि�यो हठी-यो ग� मेंK� रूप सा त�नी बान्ध कु प्रयो ग कुरत ह�- मेंK�-बान्द्, उनिड़ायोनी-बान्ध, 5�न्धर-बान्ध। मेंK�-बान्ध अर्था�त ग�द् कु सा8कु चनी अर्था�त अपनी वयो� कु बाहर नी निनीकु�नी द् नी। उनिड़ायोनी बान्ध अर्था�त पKर्ण�-बाह्य-कु� म्भकु कु प्रयो ग कुरनी। 5�न्धर बान्द् अर्था�त अपनी� ठी ड़ा� कु अपनी कुन्ठी सा �गनी।

हमेंर ध्यो यो निकुसा� भी� साधनी कु अY यो बा�र बातनी नीह� ह�। 5�सा कु; आ5 कु सामेंयो में� अमिधकुतर प�रूष अपनी यो ग कु बाड़ा और दूसार

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कु यो ग कु छ ट बातत ह�। साधकु2 कु; इसा� निवचर धर कु; व5ह सा ह� निहन्दुस्तनी सा अनी कु2 निवद्युयो ��प्त ह गई ह�।

हमें एकु उद्हरर्ण द् कुर सामेंस्त साधकु2 कु सामेंझंनी कु; कु लिशश/प्रयोसा कुरत ह�। आपकु सामेंझं में� आयो यो नी आयो योह हमेंर बासा में� नीह� ह�। 5बा हमें अपनी बाच्च कु स्कुK � � कुर 5त ह�, त हमें हर च�5 कु ध्योनी रखत ह�, 5�सा कु;- स्कुK �, उसाकु अध्योपकु, कु न्टrनी और साबासा खसा च�5 निवषयो(साब्5 क्ट), बाच्च2 कु पढ़ायो 5नी व�� प�स्तकु� आटिद्। हमें अपनी बाच्च कु मेंत्र एकु ह� निवषयो नीह� टिद्�वत , उसाकु साभी� निवषयो2 कु ख्यो� रखत ह�। सार्था में� ह� ख �नी, कु� द्नी, नीHत्यो आटिद् कु भी� ध्योनी रखत ह�। हमें अपनी बाच्च कु साबा कु� छ द् त ह�, निकुन्त� वह बाच्च निकुसा� निवश ष निवषयो कु; तरफ अपनी निवश ष ध्योनी द् त ह�, और बाकु; साभी� निवषयो2 कु साधरर्ण रूप सा ग्रहर्ण कुरत ह�। अमिधकुतर ऐसा ह त ह� कु; मेंC-बाप उसा ड³क्टर, इ85�निनीयोर आटिद् बानीनी चहत ह�, निकुन्त� वह बाच्च बानीत कु� छ ओर ह� ह�। योटिद् बाच्च कु स्कुK � में� ह मेंवकु� नी मिमें� यो उसाकु; च पिंकु.ग नी ह त हमें अपनी� लिशकुयोत � कुर में�ख्यो-अध्योपकु कु पसा पहुCच 5त ह�।

हमें अपनी 5�वनी में� हर च�5 कु ख्यो� रखत ह�, हर च�5 पर ध्योनी द् त ह�। निकुन्त� हमेंनी साधनी मेंग� कु इतनी सास्त क्यो2 5नी लि�यो? क्यो2 मेंनी लि�यो?

क्यो साधनी मेंग� इतनी सास्त ह� निकु, कु ई भी� साधरर्ण व्यलि', निकुसा� भी� ग�रू यो सा8त कु पसा 5 कुर द्rक्ष ग्रहर्ण कुर और नीमें कु 5प कुर , त क्यो में�लि' साम्भव ह�?

आ5 कु ग�रूओं और लिशष्यो2, द् नी नी मिमें� कुर साधनी और में�लि' कु मेंयोनी ह� बाद्� टिद्यो ह)। हमेंर� नी5र में� मेंत्र शब्द् कु रट्टा �ग कुर, कुहनिनीयोC, निकुतबा� पढ़ाकुर प्रवचनी सा�नी कुर में�लि' साम्भव नीह� ह�।

में�लि' एकु मेंहनी और उच्च स्थनी ह�। 5हC पहुCच कुर आत्में साभी� बा8धनी2 सा में�' ह 5त� ह�।

कु� ण्डलि�नी� साधनी कु लि�यो हमें तपनी पड़ात ह�। अत्योमिधकु में हनीत कु; 5रूरत ह त� ह�। 5�सा कु ई व्यलि' 5बा निकुसा� निवश ष पर�क्ष कु; त�योर� कुरत ह� त , वह त�योर� कु द्mरनी हर तरफ सा अपनी ध्योनी हट कुर अपनी� लिशक्ष पर कु जिन्द्रत कुरत ह�। मेंत्र कु� छ टिद्नी कु लि�यो वह अपनी साबा सा�ख-सा�निवध कु त्योग कुरकु अपनी� लिशक्ष कु पKर्ण� कुरत ह�, और लिशक्ष पKर्ण� ह नी पर अर्था�त उसाकु एकु अYr नीmकुर� �ग 5नी पर वह सान्त�ष्ट ह कुर सार�-उम्र साभी� सा�ख2 कु भी ग भी गत ह�। उसा� प्रकुर योटिद् एकु साधकु चह त अपनी� साधनी कु बा� पर पKर्ण� में�लि' कु फ� प्रप्त कुर साकुत ह�, और में�' हुई 5�व आत्में शर�र में� रहत हुऐ भी� उनी मेंहनी भी ग2 कु भी गत� ह�। जि5सा कु लि�यो बाड़ा -बाड़ा सा ठी साहुकुर और धनी� तरसात ह�।

च�त -च�त द् बात- योटिद् नी�च कु चक्र, मेंयो रूप ह), 5�सा निकु कु� छ मेंत यो प8र्था2 कु मेंनीनी ह� और ऊपर कु चक्र असा�� ह� त 5 चक्र(� कु) ब्रह्मण्ड में� ह� व क्यो ह)?

चह नी�च कु चक्र योनिनी � कु ह यो ऊपर कु चक्र ह , ह) त शर�र कु अन्द्र ह�।

5 अण्ड में� ह�, व निपण्ड में� ह) और 5 निपण्ड में� ह), व अण्ड में� ह)। योह कुहनी त ठीvकु ह� निकुन्त� 5बा मेंHत्यो� कु उपरन्त 5बा निपण्ड 5�कुर ख़ाकु ह 5एग त निफर आत्में निकुसा चक्र यो � कु में� वसा कुर ग�। क्यो2निकु सार� उम्र त निपण्ड में� अण्ड कु आभीसा कुरकु , निपण्ड कु � कु2 योनिनी चक्र कु; साधनी कु; ह�। � निकुनी 5बा निपण्ड खत्में ह 5एग, त आत्में कु निकुसा � कु में� स्थनी मिमें� ग, फ� सा� त तबा ह� ह ग। क्यो2निकु मेंनी कु साहर जि5नी � कु कु; साधनी कु; र्था�, व त खत्में ह गयो । अबा आत्में कु सामेंनी असा�� � कु अर्था�त मेंण्ड� ह)। जि5नीकु द् व2 कु; साधनी नीह� कु;, कुभी� आरधनी नीह� कु;। क्यो व द् व इसा आत्में कु अपनी � कु में� स्थनी द्�ग , कुद्निप नीह�। मेंनी कु जि5तनी में5· भीरमें � , लिशष्यो2 कु जि5तनी में5· बाहकु � । सात्यो त एकु टिद्नी ख�� कुर रह ग, निकु निपण्ड कु बाहर 5 ह�, वह� सात्यो ह� और निपण्ड कु अन्द्र 5 ह� वह मिमेंथ्यो ह�। इसालि�यो कु� छ सा8त2 नी 5गत कु मिमेंथ्यो यो मेंयो कु ख � कुह ह�।

5बा तकु साKक्ष्में-शर�र, स्थK�-शर�र सा अ�ग ह कुर ब्रह्मण्ड कु सात्यो � कु यो मेंण्ड�2 कु; आरधनी, सा व, भी5नी, द्श�नी नीह� कुर ग, तबा तकु साबा बा कुर ह�। साKक्ष्में-शर�र कु स्थK�-शर�र सा अ�ग कुरनी कु मेंत्र एकु ह� निवधनी ह�- कु� ण्डलि�नी� साधनी।

उद्हरर्ण कु तmर पर- जि5सा प्रकुर एकु छ ट बाच्च खनी प�नी, बा �नी-च�नी, लि�खनी-पढ़ानी आटिद् कु प्ररम्भ त घेर सा ह� कुरत ह�, निकुन्त� कु� छ सामेंयो बाद् हमें उसा उच्च लिशक्ष ह त� अY निवद्यु�यो में� प्रव श कुर द् त ह)। उसा� प्रकुर एकु साधकु कु लि�यो साधनी कु प्ररम्भ त शर�र में� स्थिस्थत मेंण्ड�2 सा ह� ह त ह�, निकुन्त� 5बा साKक्ष्में-शर�र, स्थK�-शर�र सा अ�ग ह 5त ह�, त ब्रह्मण्ड में� स्थिस्थत उच्च � कु कु; साधनी कुरकु , पKर्ण� ब्रह्म-ज्ञानी कु प्रप्त कुरकु , 5�व आत्में पKर्ण� कु� वल्यो पद् कु प्रप्त कुर � त� ह�। जि5सा प्रकुर हमेंर द् श में� एकु अY साधK यो नी त कु; इज्जीत कु; 5त� ह�, उसा� प्रकुर उसा आत्में कु भी�, उच्च � कु में� व�सा ह� साम्मेंनी यो आद्र निकुयो 5त ह�।

कु� y�नी� साधनी बाहुबा� कु; साधनी ह�। आप कु साहसा, आप कु आत्में-निवश्वसा और आपकु; साहनी-श��त कु; साधनी ह�।

योटिद् हमें कु� ण्डलि�नी� साधकु कु; उपमें द् त ऐसा� ह ग�, 5�सा एकु व�र 5वनी अपनी द् श कु; रक्ष कु लि�यो अपनी साव�स्व बालि�द्नी कुरकु सा�नी तनी , 5नी हर्था �� पर लि�यो खड़ा ह । वह� एकु साधरर्ण साधकु कु; उपमें ध्योनी यो ग� कु; उपमें, नीमें-5प कुरनी व�2 कु; उपमें, मेंत्र ऐसा� ह�- 5�सा एकु सामें5 सा�धरकु कु; छनिव ह त� ह�।

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अबा आपनी फ� सा� कुरनी ह� निकु, आप कु निकुसा रस्त पर च�नी ह�। हमेंनी 5 5नी, 5 पयो, 5 सामेंझं, व आपकु सामेंनी रख टिद्यो ह�। शब्द्2 कु कुभी� अन्त नीह� ह त, उद्हरर्ण कु; सा8ख्यो नीह� ह त�। सामेंझंनी व� और सामेंझंनी व� पर निनीभी�र कुरत ह� निकु, व निकुतनी सामेंझं साकुत ह�, और दूसार निकुतनी सामेंझं साकुत ह�। साभी� बात2 कु लि�ख कुर नीह� सामेंझंयो 5 साकुत।

रूद्रया�मु� मु& कु� ण्डलि�नी�-सं�धाकु2 कु� लि�या� एकु ‘उदघे�ट्नी-कु�B’ दिदया� गया� है� जिजासंकु� श्रद्ध�-पK��कु प�ठ कुरनी� सं�धाकु2 कु� लि�या� अत्यान्ते ��र्भप्रद मु�नी� गया� है�-॥ उदघे�ट्नी-कु�B ॥मेंK�धर स्थिस्थत द् निव, नित्रप�र चक्र नीमियोकु ।नीH5न्में भी�नित-नीशर्था¸, सावधनी साद्ऽस्त� ॥1॥स्वमिधष्ठनीख्यो चक्रस्थ, द् व� श्रु�नित्रप�र लिशनी� ।पश� बा�झिंद्ध. नीशमियोत्व, साव¹श्वयो� प्रद्ऽस्त� में ॥2॥मेंणिर्णप�र स्थिस्थत द् व�, नित्रप�र श�नित निवश्रु�त ।स्त्र� 5न्में-भी�नित नीशर्था¸, सावधनी साद्ऽस्त� ॥3॥स्वस्तिस्तकु सा8स्थिस्थत द् व�, श्रु�मेंत�-नित्रप�र सा�न्द्र� ।श कु भी�नित परिरत्रस्त8, पत� मेंमेंनीघे8 साद् ॥4॥अनीहतख्यो निनी�यो, श्रु�मेंत�-नित्रप�र वलिसानी� ।अज्ञानी भी�नितत रक्ष8, निवद्धत� साद् मेंमें ॥5॥नित्रप�र श्रु�रिरनित ख्योत, निवश�द्धख्यो स्थ� स्थिस्थत ।5र द्�-भीव भीयोत� पत�, पवनी� परमें श्वर� ॥6॥आज्ञा चक्र स्थिस्थत द् व�, नित्रप�र मेंलि�नी� त� यो ।सा मेंHत्यो� भी�नितत रक्ष8, निवद्धत� साद् मेंमें ॥7॥��ट पद्में� सा8स्थनी, लिसाद्ध यो नित्रप�रटिद्कु ।सा पत� प�ण्यो साम्भKनितर�-भी�नित-सा8घेत� सा�र श्वर� ॥8॥नित्रप�रम्बा नित निवख्योत, लिशरh पद्म सा�-सा8स्थिस्थत ।सा पप भी�नितत रक्ष8, निवद्धत� साद् मेंमें ॥9॥यो परम्बा पद् स्थनी गमेंनी , निवघ्नी साञ्चयोh ।त भ्यो रक्षत� यो ग श�, सा�न्द्र� साकु�र्पित.ह ॥10॥

कु� ण्डलि�नी� 5गरर्ण कु यो2 त अनी कु2 उपयो ह), निकुन्त� बाबा 5� द्वार रलिचत यो ग�रु-स्त त्र अपनी आप में� एकु अनी�भी�त प्रयो ग ह�। कु� ण्डलि�नी� 5गरर्ण कु इY� कु साधकु योटिद् सा-स्वर इसा स्त त्र कु �गतर पठी कुरत ह) त बाहुत ह� 5ल्द्r कु� ण्डलि�नी� 5गरर्ण ह नी �ग ग� और साधकु2 कु कु� ण्डलि�नी� 5गरर्ण कु अनीKठी अनी�भीव ह नी �ग�ग ।

॥ ग�रु-स्ते�त्र ॥॥ ॐ ग�रु ॐ ॐ ग�रु ॐ ॥ ॐ ग�रु ॐ ॐ ग�रु ॐ ॥द्यो� ग�रु ह�, बायो� ग�रु ह� । आग ग�रु ह�, प�छ ग�रु ह� ॥ऊपर ग�रु ह�, नी�च ग�रु ह� । अ8द्र ग�रु ह�, बाहर ग�रु ह� ॥ॐ ग�रु ॐ ॐ ग�रु ॐ ॥ ॐ ग�रु ॐ ॐ ग�रु ॐ ॥1॥

अ8ड में� ग�रु ह�, पिंप.ड में� ग�रु ह� । 5� में� ग�रु ह�, र्था� में� ग�रु ह� ॥पवनी में� ग�रु ह�, अनी� में� ग�रु ह� । नीभी में� ग�रु ह�, अ8तर में� ग�रु ह� ॥ॐ ग�रु ॐ ॐ ग�रु ॐ ॥ ॐ ग�रु ॐ ॐ ग�रु ॐ ॥2॥

तनी में� ग�रु ह�, मेंनी में� ग�रु ह� । घेर में� ग�रु ह�, वनी में� ग�रु ह� ॥में8त्र में� ग�रु ह�, में� यो8त्र ग�रु ह� । त8त्र में� ग�रु ह�, में� में� ग�रु ह� ॥ॐ ग�रु ॐ ॐ ग�रु ॐ ॥ ॐ ग�रु ॐ ॐ ग�रु ॐ ॥3॥

धKप में� ग�रु ह�, द्rप में� ग�रु ह� । फK � में� ग�रु ह�, फ� में� ग�रु ह� ॥भी ग में� ग�रु ह�, पK5 में� ग�रु ह� । � कु में� ग�रु ह�, पर� कु में� ग�रु ह� ॥ॐ ग�रु ॐ ॐ ग�रु ॐ ॥ ॐ ग�रु ॐ ॐ ग�रु ॐ ॥4॥

5प में� ग�रु ह�, तप में� ग�रु ह� । हठी में� ग�रु ह�, योज्ञा में� ग�रु ह� ॥5 ग में� ग�रु ह�, में� यो ग ग�रु ह� । ज्ञानी में� ग�रु ह�, ध्योनी में� ग�रु ह� ॥ॐ ग�रु ॐ ॐ ग�रु ॐ ॥ ॐ ग�रु ॐ ॐ ग�रु ॐ ॥5॥

॥ ॐ तत्सात� ॥

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