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आचायª मानत ग िवरिचत

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  • आचाय मानतंुग िवरिचत

  • तावना इस तो का ार भ भ + अमर = भ ामर श द से होता ह;ै इसिलए इसका नाम भ ामर तो सव िस एवं सव चिलत हो गया ह।ै इसके थम का य ( ोक) के ततृीय पाद म यु युगादौ श द तथा ि तीय का य के चतथु पाद म यु थमं िजने म ्श द के कारण इसे थम तीथकर आिदनाथ के नाम पर आिदनाथ तो या ऋषभ तो भी कहा गया ह।ै इस तो क िवशषेता ह ैिक - इसम िकसी तीथकर िवशषे के नाम का उ लेख नह

    िकया गया ह,ै अतः इसे सभी तीथकर क भि के िलए भी उपयोग िकया जा सकता ह।ै यह तो मा 48 का य ( ोक) माण ह।ै सभी का य वस तितलका छ द म िनब ह।ै थम दो का य (1-2) म िजने तिुत करने का सकं प िकया गया ह।ै इसके बाद चार का य (3-6) म अपनी लघुता, अ प ता, अ मता का दशन िकया गया ह,ै प ात बीस का य (7-26) म िविभ न उपमाओ ं ारा िजने तिुत एवं उसके फल का िच ण िकया गया ह।ै यारह का य (27-37) म अ रहतं भगवान के समवसरण के अलौिकक वैभव अ

    ाितहाय का वणन ह,ै दस का य (38-47) म िजने भि स ेभय, सकंट आिद का िनवारण सहज सभंा य ह ैतथा अि तम का य (48) म िजने तुित का फल बताया गया ह।ै

    इस तो म किव ने अपन ेइ दवे म ‘कतृ व’ का आरोप नह िकया; अिपतु अपने आरा य इ दवे का गणुगान करते हए यह ही कहा ह ैिक जो िन वाथ भाव से आपका िनर तर मरण करता ह,ै भि करता ह उसको िसहं, हाथी, सप, अि न, समु , श ु, सेना, रोग, आपि , िवपि , आिद के भय से वयमेव ही मिु िमल जाती ह ै(का य 38-47), इस कार इस ोत म किव ने कह भी भगवान से कोई याचना नह क ह।ै अतः यह तो िन काम भि का उ कृ

  • उदाहरण ह।ै इसी िन काम भि के फल व प उ ह वतः ही इ फल (ब धन से मिु ) क ाि हई। इस भि पणू तो के रचियता आचाय मानतंुग ह। उनक इस एकमा रचना ने ही उ ह जैन भि के का य सजृक म सव च िशखर पर पहचँा िदया ह।ै आपके प रचय के बारे म अिधक जानकारी तो नह िमलती ह। समय के स ब ध म भी िभ न िभ न मा यताए ँह। पर तु उपल ध सा य के आधार पर आपका समय सातव शता दी के म य माना जाता ह।ै आचाय मानतुगं के बारे म यह कथा/िकंवद ती चिलत ह ैिक राजा भोज क आ ा के अनसुार राजदरबार म उपि थत न होने के कारण ोिधत होकर राजा ने आपको ब दी बनाकर 48 ताल के अ दर कारागार म ब द करवा िदया था। पर तु आपन ेब दी प म ही इन 48 का य ( ोक ) क रचना करके िजने दवे! क भावपणू तुित क , िजसके फल व प व े 48 ताल े वतः ही खलु गये/टूट गये। ऐितहािसक व तिु थित जो भी हो, पर त ु आज स पणू जैन समाज क िदग बर - ेता बर दोन धाराओ ंम यह भि तो सवािधक मा य एवं चिलत ह।ै अनेक साधम भाई-बिहन को तो यह कंठ थ भी ह।ै आप भी इस भि पूण

    ोत का भावपवूक अ ययन, मनन, िच तवन करके शी ही मो पी िवभिूत को ा करगे – इस मंगल भावना के साथ... 9 अ ैल 2020 पे शा ी, िछ दवाड़ा

  • िजनपद व दन भ ामर णत मौिल मिण भाणा- मु ोतकं दिलत पाप-तमो िवतानम्। स यक् ण य िजन-पादयुगं युगादा-

    वाल बनं भव-जले पततां जनानाम् ।।1।।

    पद छेद : भ –अमर णत मौिल मिण भाणाम,् उ ोतकं दिलत पाप तमः िवतानम।् स यक् ण य िजन-पादयगंु यगु-आदौ, आल बनं भवजल ेपततां जनानाम।्

    अ वय : भ ामर णत मौिल मिण भाणाम ्उ ोतकम,् पाप तमः िवतानं दिलतम।् यगुादौ भवजले पततां जनानां आल बनम,् िजनपादयगुं स यक् ण य।

    श दाथ : भ - भ , अमर - देव के, णत - झकेु हए, मौिल - मकुुट के, मिण - मिणय क , भाणाम ्- भा (काि त) को, उ ोतकम ्- बढ़ाने वाले, पाप - पाप पी, तमः - अधंकार के, िवतानम ्- िव तार के, दिलतम ्- नाशक, यगुादौ - यगु के ारंभ म भवजले - संसार पी समु म, पतताम् - िगरते हए, जनानाम ्- ािणय को, आल बनम ्- सहारा देने वाले, िजन - िजने भगवान के, पादयगुम ्- दोन चरण को, स यक् - भली भांित, ण य - नम कार करके।

    ोकाथ : काशमान मिण-मोितय स े जिड़त मकुुट से शोिभत दवे के झुके हए म तक ारा पूिजत, पाप पी अंधकार के समहू को न करनेवाले, संसार-समु म िगरे हए मनु य को युग के आिद म (कमभूिम के आरंभ म) सहारा देनवेाले िजने भगवान! (आिदनाथ) के चरणयगुल को भली-भाँित णाम करके।

  • तुित का सकं प यः सं तुतः सकल-वाड्.मय त वबोधा-

    दु ूत बुि -पटुिभः सरुलोकनाथैः। तो र्-जगत-्ि तय िच हरै दारैः,

    तो ये िकलाहमिप तं थमं िजने म ्।।2।।

    पद छेद : यः सं ततुः सकल-वाड्.मय त व-बोधात,् उ ूत बिु पटुिभः सरुलोकनाथैः। तो ैः जगत्-ि तय िच हरैः उदारैः, तो ये िकल अहम ्अिप तं थमं िजने म।्

    अ वय : य: सकल-वाड्.मय त व-बोधात् उ ूत बुि -पटुिभः सरुलोकनाथैः जगत-्ि तय िच हरैः उदारैः तो ैः सं ततुः, तं थमं िजने ं िकल अहम् अिप तो ये।

    श दाथ : यः - जो सकल-वाड्.मय - सम त ादशागं के, त वबोधात् - यथाथ ान से, उ ूत - उ प न हई, बुि -पटुिभः - िविश बुि स े खर, सरुलोकनाथैः - वग के नाथ इ के ारा जगि तय - तीन लोक के ािणय के, िच हरै: - िच को हरण करने वाले, उदारै: - उ कृ ( शंसनीय) तो ैः - तो ारा, सं ततुः - तिुत िकये गये, तम ्- उन, थमं िजने म ्– थम िजने (आिदनाथ) क , अहम ्- म, अिप - भी, तो ये - तिुत क ँ गा।

    ोकाथ : स पणू ादशांग प िजनवाणी के यथाथ ान को जानने से िजनक बिु अ य त खर हो गई है, ऐसे देवे ने तीन लोक के ािणय के िच को आनि दत करने वाले सु दर तो ारा िजनक तिुत क गयी ह ै उन थम िजने भगवान (आिदनाथ) क म भी तिुत क ं गा।

  • लघुतािभ यि बुद् या िवनाऽिप िवबुधािचत पाद-पीठ!

    तोतु ंसमु त मितर्-िवगत पोऽहं। बालं िवहाय जल सिं थत-िम दुिब ब-

    म यः कः इ छित जनः सहसा हीतुम ्।।3।।

    पद छेद : बदु् या िवना-अिप िवबधु–अिचत पादपीठ, तोतुं समु त मितः िवगत- पः अहम।् बालं िवहाय जल सिं थतम ् इ द-ुिब बम्, अ यः कः इ छित जनः सहसा

    हीतुम।्

    अ वय : िवबुधािचत पादपीठ िवगत- पः बु या िवना-अिप अहम् तोतुं समु त-मित। जल-संि थतम् इ द-ुिब बं सहसा हीतुं बालं िवहाय अ यः कः जनः इ छित।

    श दाथ : िवबधुािचत - देव के ारा पूिजत ह,ै पादपीठ - िसंहासन िजनका ऐस ेह ेिजनेश! िवगत पः - ल जा रिहत, अहम ्- म, बुद् या-िवनािप - बुि हीन होने पर भी, तोतमु ् - तवन करने के िलए, समु त-मितः - त पर बिु वाला हो रहा ह।ँ जल-

    सिं थतम ्- जल म ि थत, इ द-ुिब बम ्- च मा क छाया को, सहसा - िबना िवचारे, हीतुम ्- हण करने के िलए, बालम ्- बालक को, िवहाय - छोड़कर, अ यः - दसूरा,

    कः - कौन, जनः - ाणी, इ छित - इ छा रखता ह?ै

    ोकाथ : देव ारा पिूजत ह ैिसंहासन िजनका ऐस ेह ेिजने देव! अ य त अ पबुि वाला (बिु हीन) होने पर भी म जो आपक तिुत करने के िलए त पर हआ ह ँयह मेरी िनल जता एवं धृ ता ही ह।ै भला, जल म ितिबि बत च मा के ितिब ब को पकड़ने का साहस एक नादान अबोध बालक के अित र अ य कौन कर सकता ह?ै अथात ्कोई नह ।

  • अवणनीय गुण व ुं गुणान ्गुणसमु ! शशाङ्क का तान,् क ते मः सरु-गु ितमोऽिप बुद् या। क पा त-काल पवनो त न -च ं ,

    को वा तरीतुमल-म बुिनिधं भुजा याम ्।।4।।

    पद छेद : व ुं गुणान ्गुण-समु ! शशाङ्क का तान्, कः ते मः सरुगु ितमः अिप बदु् या। क पा त-काल पवन–उ त न -च ं , कः वा तरीतमु् अलम ् अंबुिनिधं भजुा याम।्

    अ वय : गणु-समु ! ते शशाङ्क-का तान् गुणान् व ुं बुद् या सरुगु - ितमः अिप कः मः? क पा त-काल पवनो त न च ं अ बुिनिधं भजुा याम ्तरीतमु ्कः वा अलम्?

    श दाथ : गणुसमु - ह ेगुण के सागर!, ते - आपके, शशाङ्क-का तान ्- च मा क काि त के समान उ जवल, गणुान् - गणु को, व ु म ्- कहने के िलए, बुद् या - बिु से, सरुगु - ितमः - बहृ पित के समान, अिप - भी, कः - कौन, मः - समथ ह?ै क पा तकाल - लयकाल म, पवनो त - वायु से कुिपत ( च ड), न च म ् - मगरम छ से प रपूण, अ बुिनिधम ्- समु को, भजुा याम ्- भजुाओ ंसे, तरीतमु ्- तैरने के िलए, कः - कौन, अलम ्- समथ ह?ै

    ोकाथ : ह े गुणसमु ! आपके अन त गणु च मा क काि त के तु य िनमल ह। देवताओ ंके गु बहृ पित भी उन गणु का वणन करने म समथ नह ह। तब िफर िकसक साम य ह ैजो आपके स पूण गुण का वणन कर सके अथात् िकसी म भी ऐसी शि नह ह।ै जैसे लयकाल के पवन से उ ेिलत ऐसे समु को िजसम मगरम छ, घिड़याल आिद भयकंर जलचर उथल-पुथल होकर उछल रह े ह , कौन यि अपनी दोन भजुाओ ंसे तैरकर पार करने म समथ ह?ै अथात ्कोई नह ।

  • उमड़ती हई भि सोऽहं तथािप तव भि वशा मुनीश! कत-ु तवं िवगत शि -रिप वृ ः। ी या म वीय-मिवचाय मृगी मृगे म,्

    ना येित िकं िनजिशशोः प रपालनाथम ्।।5।।

    पद छेद : सः अहम ्तथािप तव भि -वशात् मनुीश! कतु तवं िवगत-शि ः अिप वृ ः। ी या आ मवीयम ् अिवचाय मगृी मगृे म,् न अ येित िकं िनज-िशशोः

    प रपालनाथम।्

    अ वय : मनुीश! तथािप िवगतशि ः अिप सः अह ंभि वशात् तव तवं कतु वृ ः। मगृी आ मवीय अिवचाय ी या िनजिशशोः प रपालनाथम ्िकं मगेृ ं न अ येित !

    श दाथ : मनुीश! - ह ेमिुनय के वामी!, तथािप - िफर भी, िवगतशि ः - साम य हीन होते हय,े अिप - भी, सः - वह, अहम ्- म, भि वशात ्- भि के वशीभतू होकर, तव - आपक , तवम ्- तिुत को, कतमु ्- करने के िलए, वृ ः - तैयार हआ ह।ँ मगृी - िहरणी, आ मवीयम ्- अपनी शि को, अिवचाय - िवचार न करके, ी या - नेह के ारा, िनजिशशोः - अपनी संतान क , प रपालनाथ - र ा करने के िलए, िकम ्- या,

    मगृे म ्- िसंह के, ना येित - स मखु नह जाती ह?ै अथात ्जाती ही ह।ै

    ोकाथ : ह ेमुिनय के वामी! य िप आपके अन त गुण को कहने क शि मझुम नह ह, िफर भी आपक भि के वशीभूत होकर आपके गुण का तवन ( तुित) करने के िलए त पर हआ ह,ँ जैसे िहरणी अपनी शि का िवचार न करते हये ीितवश अपने ब चे क र ा करने के िलए या िसंह का सामना नह करती ह?ै अथात ्करती ही ह।ै

  • तवन म भि ही कारण अ प- ुतं ुतवतां प रहास धाम,

    वद्-भि रेव मुखरी कु ते बला माम।् यत-्कोिकलः िकल मधौ मधुरं िवरौित,

    त चा चा –किलका िनकरैक–हेतु ।।6।।

    पद छेद : अ प- तुम ् तुवताम ्प रहास धाम, वद ्भि ः एव मखुरी कु ते बलात् माम।् यत् कोिकलः िकल मधौ मधरंु िवरौित, तत् च आ चा किलका िनकर एक हतेुः।

    अ वय : अ प तुम ् तुवतां प रहासधामः माम् व ि ः एव बलात ्मखुरी कु त।े िकल यत् कोिकलः मधौ मधरंु िवरौित तत् चा चा किलका िनकरैकहतेःु।

    श दाथ : अ प तुम ्- अ प शा का जानने वाला, तुवताम ्- िव ान क , प रहास धाम - हँसी का पा बनूँगा, माम ् - मझुको, वद-्भि ः - आपक भि , एव - ही, बलात ्- बलपवूक, मखुरी कु ते - े रत कर रही ह।ै िकल - िन य ही, यत् - जब, कोिकलः - कोयल, मधौ - बसतं ऋतु म, मधरुम ्- सरुीली आवाज म, िवरौित - बोलती ह,ै तत् च - और तब, आ - आ फल क , चा किलका - सु दर मँजरी का, िनकर - समहू, एकहतेुः - एक मा कारण ह।ै

    ोकाथ : जब आ वृ क मंज रयाँ लहलहा उठती ह तभी कोयल बसंत ऋतु म मीठी वाणी बोलती ह अ य ऋतओु ंम नह । अथात् आम क मजं रयाँ ही उसके बोलने के ेरणा का के ह। इसी कार य िप म जानता ह ंिक अ प ानी ह,ँ शा का िवशषे जानकार नह ह ँअतः िव ान ारा हसँी, उपहास का पा बनूँगा, तब भी मुझको आपक भि ही बलपवूक आपक तिुत करने के िलए े रत कर रही ह ैअथात ्मुझम वयं म ऐसी शि ऐसा ान नह ह ैपर त ुआपक भि ही मझुे तो रचने के िलए े रत कर रही ह।ै

  • पाप यी तुित वत-्सं तवेन भव सतंित सि नब ,ं

    पापं णात ् य-मुपैित शरीरभाजाम।् आ ा त लोक-मिल नील-मशेष-माशु,

    सयूाशु िभ निमव शावर-मंधकारकम ्।।7।।

    पद छेद : वत ्सं तवेन भव-स तित सि नब ं, पाप ं णात् यम ्उपैित शरीरभाजाम।् आ ा त लोकम ्अिल नीलम ्अशेषम ्आशु, सयूाशु िभ नम ्इव शावरम ्अंधकारम।्

    अ वय : व सं तवेन शरीरभाजां भवस तित सि नब ं पापं णात् यं उपैित। इव आ ा त लोकम ्अिलनीलं शावरम ्अ धकारम ्आश ुसयूाश ुिभ नम ्।

    श दाथ : व सं तवेन - आपके तवन से, शरीरभाजाम ् - शरीरधारी ािणय के, भवस तित - अनेक भव क पर परा स,े सि नब म ्- बंधे हए, पापम ्- पाप, णात् -

    ण भर म, यम ्- य को उपैित - ा हो जाते ह। इव - जैसे, आ ा तलोकम ्- लोक म या , अिलनीलम् - भ रे के समान काला, शावरम ्-राि का, अशेषम ्- सम त, अ धकारम ्- अ धकार आश ु- शी सयूाश ु- सरूज क िकरण से, िभ नम ्- िछ न-िभ न हो जाता ह।ै

    ोकाथ : ह े भो! िजस कार लोक म या राि का मर-समूह के समान सघन काला अंधकार सयू िक िकरण का पश पाते ही पूण प स ेन हो जाता ह,ै उसी कार आपके तवन (भि ) स ेजीवधा रय के ज म ज मा तर के उपािजत एवं ब पापकम त काल ही समलू न हो जाते ह। अथात ्जैसे सयू अंधकार को शी िमटा देता ह ैउसी

    कार आपक तुित स ेजीव के पाप य हो जाते ह।

  • भुता का भाव म वेित नाथ! तव सं तवनं मयेद-

    मार यते तन-ुिधयाऽिप तव भावात।् चेतो ह र यित सतां निलनी-दलेष,ु

    मु ा फल- ुित-मुपैित ननूद-िब दुः ।।8।।

    पद छेद : म वा-इित नाथ! तव सं तवनं मया-इदम,् आर यते तनु िधया अिप तव भावात।् चेतः ह र यित सतां निलनी दलेष,ु मु ा फल- िुतम ्उपैित ननु उदिब दःु।

    अ वय : नाथ! इित म वा मया तनिुधया अिप तव इदम ्सं तवन ंआर यते। नन ुतव भावात् सतां चेतः ह र यित निलनीदलेषु उदिब दःु मु ा फल िुतम ्उपैित।

    श दाथ : नाथ! - ह े िजने !, इित - ऐसा, म वा - मानकर, मया - मेरे, तनुिधया - अ पबुि ारा, अिप - भी, तव - आपका, इदम ्- यह, सं तवनम ्- तवन, आर यते - आरंभ िकया जाता ह।ै नन ु- िन य ही, तव भावात ्- आपके भाव स,े सताम ्- स जन के, चेतः - िच का, ह र यित - हरण करेगा, उदिब दःु - ओस क बूँद, निलनीदलेषु - कमिलनी के प पर, मु ाफल िुतम ्- मोती जैसी काि त को, उपैित -

    ा होती ह।ै

    ोकाथ : ह ेिजने ! िजस कार कमिलनी के प े पर पड़ी हई ओस क बूंद मोती क तरह सु दर िदखकर लोग के िच को हरण करती है उसी कार मझु अ पबुि के ारा िकया हआ यह तवन भी आपके भाव स ेस जन के िच को हरण करेगा।

  • पाप नाशक कथा आ तां तव तवन-म त सम त दोषं, वत-्सकंथाऽिप जगतां दु रतािन हि त।

    दूरे सह िकरणः कु ते भैव, प ाकरेषु जलजािन िवकासभाि ज ।।9।।

    पद छेद : आ तां तव तवनम ्अ त सम त दोषम,् वत ्संकथा अिप जगतां दु रतािन हि त। दरेू सह -िकरणः कु ते भा एव, प ाकरेषु जलजािन िवकासभाि ज।

    अ वय : अ त-सम तदोष ं तव तवनं दरेू आ तां व संकथा अिप जगतां दु रतािन हि त। सह िकरणः भा एव प ाकरेष ुजलजािन िवकासभाि ज कु त।े

    श दाथ : अ त सम त दोषम ्- सम त दोष से रिहत, तव तवनम ्- आपका तवन, दरेू - दरू, आ ताम ्- रह,े वत ्- आपक , सकंथा - पिव कथा, अिप - भी, जगताम ्- जगत के जीव के, दु रतािन - पाप को, हि त - न कर देती ह।ै सह िकरणः - सयू का,

    भा - काश, एव - ही, प ाकरेषु - तालाब म, जलजािन - कमल को, िवकासभाि ज - िवकिसत, कु ते - कर देती ह।ै

    ोकाथ : स पणू दोष से रिहत आपका पिव क तन तो दरू क बात ह,ै मा आपके च र क पिव कथा ही ािणय के पाप को समलू न कर देती ह ैतब तवन/ तिुत क शि का तो कहना ही या। सयू के आगमन के पवू ही जब उसक भापु ज मा से ही सरोवर के कमल िखल उठते ह तब सयू दय होने पर तो उसक िकरण के पश से कमल िखलगे ही िखलगे, इसम संदेह नह ह।ै

  • े उ ारक ना यद्-भुतं भुवन भूषण! भूतनाथ!

    भूतैर-्गुणैर्-भुिव भव त-मिभ व तः। तु या भवि त भवतो ननु तेन िकं वा,

    भू याि तं य इह ना मसमं करोित ।।10।।

    पद छेद : न अित अ ुतं भवुनभषूण! भतूनाथ!, भतूैः गुणैः भिुव भव तम ्अिभ व तः। तु या भवि त भवतः नन ुतेन िकं वा, भू या आि तम् यः इह न आ म सम ंकरोित।

    अ वय : भवुनभषूण! भतूनाथ! भतैूः गणैुः भव तम ्अिभ व तः भुिव भवतः तु यः भवि त। न अित अ ुतं वा नन ु तेन िकं योजन? यः इह आि तं भू या आ मसम ंन करोित।

    श दाथ : भवुनभषूण! - ह ेसंसार के भषूण!, भतूनाथ! - ह े ािणय के र क!, भतूैः - स चे, गणैुः - गणु के ारा, भव तम ्- आपक , अिभ व तः - तिुत करने वाले पु ष, भिुव - पृ वी पर, भवतः - आपके, तु या - बराबर, भवि त - हो जाते ह। न अित-अ ुतम ्- इसम अित आ य नह ह,ै वा – अथवा, ननु - िन य स,े तेन - उस वामी से , िकम ्- या योजन ह?ै यः - जो, इह - इस लोक म, आि तम ्- अपने आधीन को, भू या - स पि के ारा, आ मसमम ्- अपने समान, न - नह , करोित - करता ह।ै

    ोकाथ : ह े ैलो य ितलक! जग नाथ! िव मान वा तिवक गुण के ारा तिुत करनेवाले भ य-पु ष िनःसदंेह आप के ही तु य भतुा को ा कर लेते ह, इसम आ य करने यो य कुछ भी नह ह।ै य िक जो िव के वैभव स प न ीमान ह यिद वे अपने आि त सवेक को अपने जैसा सखुी समिृ शाली नह बना लेते तो उनके धिनक होने स ेलाभ ही या ह?ै

  • परम दशनीय भु ्वा भव त-मिनमेष िवलोकनीयं,

    ना य तोष-मुपयाित जन य च ःु। पी वा पयः शिशकर- ुित दु धिस धोः, ारं जलं जलिनधे रिसतंु क इ छेत ्।।11।।

    पद छेद : वा भव तम ्अिनमेष िवलोकनीयं, न अ य तोषम् उपयाित जन य च ःु। पी वा पयः शिशकर- िुत दु ध-िस धोः, ारं जलं जलिनधे रिसतुं कः इ छेत?्

    अ वय : अिनमेष िवलोकनीयं भव तं ्वा जन य च ःु अ य तोषं न उपयाित। दु ध-िस धोः शिशकर- िुत पयः पी वा कः जलिनधेः ारं जलं रिसतुं इ छेत?्

    श दाथ : अिनमेष - िबना पलक झपकाये, िवलोकनीयम ्- देखने के यो य, भव तम ्- आपको वा - दखेकर, जन य - मनु य के, च ःु - ने , अ य - दसूरी जगह, तोषम् - संतोष को, न - नह , उपयाित - ा होते ह। दु धिस धोः - ीर-समु के, शिशकर िुत - च मा के समान काि त वाले, पयः - पानी को, पी वा - पीकर, कः - कौन पु ष, जलिनधेः - समु के, ारम ्- खारे, जलम ्- जल को, रिसतमु ्- पीने क , इ छेत ्- इ छा रखेगा?

    ोकाथ : ह ेपरम दशनीय िजने दवे! आप इतने अिधक लाव यमयी ह िक िनर तर िबना पलक झपकाये टकटक लगाकर दशन करने के यो य ह। जो पु ष आपको एकबार भी अ छी तरह से देख लतेा है वह िफर अ य िकसी देव को देखकर संतु नह होता। िजस कार च मा क शभु िकरण क काि त के समान धवल ीरसागर का मधुर जल पी चकुने के प ात ्ऐसा कौन पु ष होगा जो लवण समु के खारे पानी को चखने क इ छा करेगा? अथात ्कोई नह ।

  • अि तीय सु दरता यैः शा त राग िचिभः परमाणुिभस-् वं,

    िनमािपतस-्ि भुवनैक ललाम भूत! ताव त एव खलु तेऽ यणवः पिृथ यां,

    य े समान-मपरं न िह प-मि त ।।12।।

    पद छेद : यैः शा त राग िचिभः परमाणुिभः वं, िनमािपतः ि भवुन एक ललाम-भतू! ताव त एव खल ुते अिप अणवः पिृथ यां, यत् ते समानम ्अपरम ्न िह पम ्अि त।

    अ वय : ि भवुनैक-ललामभतू! वं यैः शा त राग- िचिभः परमाणिुभः िनमािपतः। खल ुपिृथ यां ते अणवः अिप ताव त एव यत ्ते समानम ्अपरं पं न िह अि त।

    श दाथ : ि भवुनैक-ललामभतू! - ह े ि भुवन के एक आभषूण! वम ्- आप, यैः - िजन, शा त राग- िचिभः - राग रिहत उ जवल, परमाणिुभः - परमाणओु ं के ारा, िनमािपत: - रचे गये। खल ु- िन य ही, पिृथ याम ्- पृ वी पर, ते - वे, अणवः - अण,ु अिप - भी, ताव त एव - उतने ही थे, यत् - य िक, त ेसमानम ्- आपके समान, अपरम ्- दसूरा, पम ्- प, न िह - नह , अि त - ह।ै

    ोकाथ : ह ेि भवुन के एक आभषूण िजने ! ऐसा तीत होता ह ैिक िजन राग रिहत उ जवल (शा त) पु ल परमाणओु ंसे आपके परम औदा रक शरीर क रचना हई ह,ै िनि त ही वे परमाणु पृ वी पर उतने ही थे। य िक यिद वे उसस ेअिधक होते तो आपके समान प दसूरा भी होना चािहए था, पर आपके समान दसूरा प ह ैही नह । इससे प ात होता ह ैिक वे उतने ही थे।

  • च वत ्मुख व ं व ते सुर नरोरग ने हा र,

    िनःशेष िनिजत जगत-्ि तयोपमानम।् िब बं कलङ्क मिलनं व िनशाकर य,

    य ासरे भवित पा डु पलाश क पम ्।।13।।

    पद छेद : व ं व ते सरु नरः उरग ने हा र, िनःशेष िनिजत जगत ्ि तय उपमानम।् िब बं कलङ्क मिलनं व िनशाकर य, यत् वासरे भवित पा डु पलाश क पम।्

    अ वय : सरु-नरोरग ने हा र िनःशेष िनिजत जगत-्ि तयोपमानं ते व ं व? कलङ्क मिलनं िनशाकर य िब बं व? यत् वासरे पलाशक पम ्पा डु भवित।

    श दाथ : सरुनरः - देव और मनु य तथा, उरग - धरणे के, ने हा र - ने को हरण करने वाला, िनःशेष - स पणू प स,े िनिजत - जीत िलया ह,ै जगि तय - तीन लोक क , उपमानम ्- उपमाओ ंको िजसने ऐसा, ते - आपका, व ं - मखु, व – कहाँ? कलङ्क-मिलनम ् - कलंक स े मिलन, िनशाकर य - च मा का, िब बम ् - म डल (छाया), व – कहाँ? यत ्- जो, वासरे - िदन म, पलाशक पम ्- ढाक के प े क तरह, पा डु - फ का, भवित - हो जाता ह।ै

    ोकाथ : ह ेनाथ! िजसने देव मनु य और धरणे के ने का हरण कर िलया ह ैऔर िजसके आगे तीन लोक के सारे उपमान फ के पड़ गये ह ैऐसे आपके अि तीय मखु-म डल क तुलना च -म डल से नह क जा सकती, य िक एक तो च मा कलंक ह;ै दसूरा वह िदन म ढाक के जीण प े क भाँित िन तेज, पीला और फ का पड़ जाता ह।ै

  • लोक यापी गुण स पूण म डल शशाङ्क कला कलाप, शु ा गुणास-्ि भुवनं तव लङ्घयि त। ये संि तास-्ि जगदी र नाथ-मेकं,

    क तान-्िनवारयित स चरतो यथे म ्।।14।।

    पद छेद : स पूण म डल-शशाङ्क कला कलाप, शु ा गुणाः ि भवुनं तव लङ्घयि त। ये सिं ताः ि -जगदी र नाथं एकं, कः तान ्िनवारयित स चरतः यथा इ म।्

    अ वय : स पणू म डल शशाङ्क कला कलाप शु ा तव गणुाः ि भुवनं लङ्घयि त। ये एकं ि जगदी र नाथं सिं ताः तान ्यथे म् स चरतः कः िनवारयित।

    श दाथ : स पूण - स पणू, म डल-शशाङ्क - च िब ब क , कला-कलाप - कलाओ ंके समूह के समान, शु ा - व छ, तव - आपके, गणुाः - गणु, ि भवुनम ्- तीन लोक को, लङ्घयि त - लाँघ रह ेह / सब जगह फैल हये ह। ये - जो, एकम ्- एक मा , ि जगदी र-नाथम ्- तीन लोक के वामी के, सिं ताः - आि त ह, तान ्- उ ह, यथे म ्- इ छानुसार, स चरतः - घमूते हए, कः - कौन, िनवारयित - रोकता ह?ै अथात ्कोई नह ।

    ोकाथ : ह ेतीन लोक के वामी! जैसे पिूणमा के च मा क कलाएँ सव या हो जाती ह उसी कार आपके ान-दशन आिद अनंत गुण तीन लोक म या हो रह ेह। कारण प ह ैिक आपके उन गणु ने जब तीन लोक के नाथ का एकमा सहारा ले िलया हो, तब उ ह सव वे छा पवूक िवचरण करने स ेभला कौन रोक सकता है? अथात ्कोई नह । वे आपके अनतं गणु तीन लोक म या होकर आप क ही भावना कर रह ेह।

  • अचलमे सी िथरता िच ं िकम यिद ते ि दशाङ्ग नािभर्- नीतं मनागिप मनो न िवकार मागम्। क पा त काल म ता चिलताचलेन,

    िकं म दराि िशखरं चिलतं कदािचत् ।।15।।

    पद छेद : िच ं िकम-्अ यिद ते ि -दशाङ्ग नािभः, नीतं मनाक् अिप मनः न िवकार मागम।् क पा त-काल म ता चिलता-अचलेन, िकं म दर-आि िशखरं चिलतं कदािचत।्

    अ वय : यिद ते मनः ि -दशाङ्ग-नािभः मनाक् अिप िवकार माग न नीतम ्अ िच ं िकम?् चिलताचलेन क पा त-काल म ता िकं कदािचत ्म दराि िशखरं चिलतम?्

    श दाथ : यिद - यिद, ते - आपका, मनः - मन, ि दशाङ्ग-नािभः - देवांगनाओ ंके ारा, मनाक्-अिप - थोड़ा भी, िवकारमागम ्- िवकार भाव को, न नीतम ्- ा नह

    कराया जा सका, अ - इसम, िच म ्- आ य, िकम ्- या ह?ै, चिलताचलेन - पहाड़ को िहला दनेेवाली, क पा त-काल - लयकाल क , म ता - पवन के ारा, िकम ्- या, कदािचत ्- कभी, म दराि - समुे पवत का, िशखरम् - िशखर, चिलतम ्- िहलाया

    गया ह?ै अथात ्नह ।

    ोकाथ : ह े तपोधन! यिद आपके यान (मन) को वग क लाव यमयी अनपुम अ सराय भी िकंिचत् चलायमान (िवकार त) करने म समथ नह हो सक , तो इसम आ य क या बात ह?ै य िक लयकाल क तेज आधँी भी छोटे-मोटे पवत को भले क पायमान कर दे पर त ु या समुे जैस े िवशालकाय पवत क चोटी को भी चलायमान करने क शि उसम ह?ै अथात ्कभी नह ।

  • अनोखे दीपक िनधूम वित-रपविजत तैल-परूः,

    कृ नं जग य-िमद ं कटी करोिष। ग यो न जातु म तां चिलता-चलानां,

    दीपोऽपर व-मिस नाथ! जग काशः ।।16।।

    पद छेद : िनधमू-वितः अपविजत तैलपरूः, कृ नं जगत ् यम ्इद ं कटी करोिष। ग यः न जातु म तां चिलत-अचलानाम,् दीपः अपरः वम ्अिस नाथ! जगत ् काशः।

    अ वय : नाथ! िनधमूवितः अपविजत तैलपरूः इद ं कृ नं जग यं कटी करोिष। चिलताचलानां म तां जात ुन ग यः वं जग काशः अपरः दीपः अिस।

    श दाथ : नाथ! - ह े वामी! आप, िनधमूवितः - धआँु और ब ी स ेरिहत, अपविजत-तैलपरूः - तैल क पूणता से रिहत इदम ्- इस, कृ नम ्- सम त, जग यम ्- तीन लोक को, कटी करोिष - कािशत कर रह ेहो। चिलताचलानाम ् - पहाड़ को िहला देने वाली, म ताम ्- वाय ुके भी, जातु - कभी, न ग यः - ग य नह हो, ऐसे वम ्- आप, जग काशः - संसार को कािशत करने वाले, अपरः दीपः - अपवू दीपक, अिस - हो।

    ोकाथ : हे नाथ! आप सम त ससंार को कािशत करनवेाले अपूव दीपक ह, य िक अ य दीपक तेल क सहायता स े काश फैलाते ह। पर आप िबना िकसी क सहायता के काश ( ान) फैलाते ह। अ य दीपक क ब ी से धआँु िनकलता है पर आपक वित (माग) िनधमू पाप रिहत ह। अ य दीपक हवा से न हो जाते ह पर त ु आप अिवनाशी ह।ै तथा अ य दीपक थोड़ी सी जगह को ही कािशत करते ह, पर तु आप तीन लोक के स पणू पदाथ को कािशत करते ह। इस कार आप इस लौिकक दीपक स ेसवथा िभ न एक अलौिकक ( व-पर काशक) दीपक ह।

  • सयू से अिधक मिहमाव त ना तं कदािचदु-पयािस न राहग यः, प ी करोिष सहसा युगपज-्जगि त। ना भो धरोदर िन महा भावः,

    सयूाितशािय मिहमाऽिस मुनी ! लोके ।।17।।

    पद छेद : न अ तं कदािचत् उपयािस न राहग यः, प ी-करोिष सहसा यगुपत् जगि त। न अ भोधर उदर िन महा भावः, सयू अितशािय मिहमा अिस मनुी ! लोके।

    अ वय : मनुी ! कदािचत् न अ तम ्उपयािस, न राहग यः, न अ भोधर-उदर िन -महा भावः। यगुपत् जगि त सहसा प ी करोिष, लोके सयूाितशािय मिहमा अिस।

    श दाथ : मनुी ! - ह ेमुिनय के इ ! आप, कदािचत ्- कभी, न अ तम ्- न अ त दशा को, उपयािस - ा होते हो, न राहग यः - राह के ारा स ेजाते हो, न अ भोधर-उदर - न मेघ के ारा, िन -महा भावः - महान ् तेजशाली भाव िन होता ह।ै यगुपत ्- एकसाथ, जगि त - तीन लोक को, सहसा - शी ही, प ीकरोिष - कािशत करते हो, लोके - इस संसार म, सयूाितशािय - सूय से अिधक, मिहमािस - मिहमा वाल ेहो।

    ोकाथ : ह ेमनुी ! आपक उपमा सयू स ेभी नह दी जा सकती, य िक सयू उदय होकर अ त को ा हो जाता ह,ै राह ह के ारा िसत कर िलया जाता ह,ै उसका

    ताप मेघ ारा ढक िलया जाता है, िजससे वह गफुाओ-ंकंदराओ ंको कािशत नह कर पाता, पर त ुआप ऐस ेअि तीय मात ड हो िजनके ाियक ान का न कभी अ त होता ह, न उसे कोई राह िसत कर सकता ह, न कोई आवरण उसे ढक सकता है, तथा जो तीन लोक के स पणू पदाथ को एकसाथ कािशत करता रहता है, इस कार आपक मिहमा सयू स ेभी अिधक अितशय वाली ह।ै

  • अ ुत मुखच िन योदयं दिलत मोह महा धकारं, ग यं न राह वदन य न वा रदानाम्।

    िव ाजते तव मुखा ज-मन पकाि त, िव ोतयज-्जगदपूव शशाङ्क-िब बम ्।।18।।

    पद छेद : िन य उदयं दिलत मोह महा-अ धकारं, ग यं न राह-वदन य न वा रदानाम।् िव ाजते तव मखुा जम ्अन प काि त, िव ोतयत ्जगत ्अपवू शशाङ्क-िब बम।्

    अ वय : िन योदयं दिलत मोह महा धकारं न राहवदन य न वा रदानां ग यम।् अन पकाि त जगत् िव ोतयत् तव मखुा जम ्अपवू शशाङ्क-िब बं िव ाजते।

    श दाथ : िन योदयम ्- िन य उिदत रहने वाला, दिलत मोह-महा धकारम् - मोह पी अ धकार को न करने वाला, राहवदन य न ग यम ्- राह के मखु ारा स ेजाने के अयो य हो। वा रदानां न ग यम ् - मेघ के ारा िछपाने के अयो य, अन पकाि त - अिधक काि तवाला, जगत ् - संसार को, िव ोतयत ् - कािशत करनेवाला, तव - आपका, मखुा जम ्- मखुकमल, अपवू शशांक-िब बम ्- अपवू च म डल क तरह, िव ाजते - शोिभत होता ह।ै

    ोकाथ : ह ेिजने ! आपका मखुकमल च मा से भी अिधक िवल ण ह।ै य िक च मा तो केवल राि म ही उिदत होता है, पर आपका मखुच सदा ही उिदत रहता ह।ै च मा िसफ साधारण अंधकार को न करता है, पर आपका मखुच मोह पी अधंकार को भी न कर देता ह।ै च मा को राह स लेता ह,ै बादल अपनी ओट म िछपा लेते ह,ै पर आपको सनेवाला ढकनवेाला कोई भी नह ह।ै च मा मा म यलोक को ही कािशत करता ह ैपर आपका मखुच तीन लोक को कािशत करता ह।ै च मा क काि त तो कृ णप म घट जाती ह,ै पर आपके मखुच क कांित सदा समान प से ददेी यमान रहती ह।ै

  • िन यो य सूय-च िकं शवरीषु शिशनाि िवव वता वा, यु मन-्मुखे दु दिलतेषु तमःसु नाथ!

    िन प न शािलवन शािलिन जीवलोके, काय िकय जल-धरैर्-जलभार न ैः ।।19।।

    पद छेद : िकं शवरीष ु शिशना-अि िवव वता वा, यु मन् मखुे द ु दिलतेष,ु तमःस ुनाथ! िन प न शािलवन शािलिन जीवलोके, काय िकयत् जलधरैः जलभार न ैः।

    अ वय : नाथ! तमःस ुयु म मखुे द ुदिलतेष ुशवरीष ुशिशना वा अि िवव वता िकम?् िन प न शािलवन शािलिन जीवलोके जलभारन ैः जलधरैः िकयत् कायम।्

    श दाथ : नाथ! - ह े वामी!, तमःस ु- अंधकार के, यु म मखुे द ु- आपके मखुच ारा, दिलतेषु - न हो जाने पर, शवरीष ु- रात म, शिशना - च मा से, वा - अथवा,

    अि - िदन म, िवव वता - सयू स,े िकम ् - या योजन ह?ै, िन प न - पके हये, शािलवन - धा य के खेत से, शािलिन - शोभायमान, जीवलोके - संसार म, जलभारन ःै - जल के भार से झुके हये, जलधरैः - मेघ से, िकयत् - िकतना, कायम ्- काय रह जाता ह।ै

    ोकाथ : ह े वामी! िजस कार धा य (धान) क फसल पक जान ेपर वषा क कोई आव यकता नह रह जाती, वहाँ बादल का बरसना यथ व हािन द होता ह।ै उसी

    कार जहाँ आपके मखु पी च मा स ेअ ान पी अंधकार का नाश हो चकुा ह,ै वहाँ िदन म सयू क और रात म च मा क या आव यकता रह जाती है?

  • ान का भाव ानं यथा विय िवभाित कृतावकाशं,

    नैवं तथा ह र-हरािदषु नायकेषु। तेजः फुर मिणषु याित यथा मह वं,

    नैवं तु काच-शकले िकरणाकुलेऽिप ।।20।।

    पद छेद : ानं यथा विय िवभाित कृत-अवकाशं, न एव ंतथा ह र-हर आिदष ुनायकेष।ु तेजः फुरन ्मिणष ुयाित यथा मह वं, न एव ंत ुकाच-शकले िकरण आकुल ेअिप।

    अ वय : कृतावकाशं ानं यथा विय िवभाित, एवं तथा ह रहरािदषु नायकेषु न। तेजः फुर मिणषु यथा मह वं याित, त ुएवं िकरणाकुले अिप काचशकले न।

    श दाथ : कृतावकाशम ्- अवकाश को ा , ानम ्- ान, यथा - िजस कार, विय - आप म, िवभाित - शोभायमान होता ह,ै एवं तथा - उस कार, ह रहरािदष ु- िव ण,ु शकंर आिद, नायकेषु - देव म, न - नह होता। तेजः - तेज, फुर मिणष ु- चमकते हए मिणय म, यथा - िजस कार, मह वम ्- मह व को, याित - ा होता ह,ै त ु- िन य से, एवं - उस कार, िकरणाकुले - िकरण से या , काचशकले - काँच के टुकड़े म, अिप - भी, न - नह होता।

    ोकाथ : महार न म जैसा तेज होता ह ैवैसा तेज काँच के टुकड़े म सयू क तेज िकरण को हण पर भी नह होता ह,ै इसी कार लोकालोक को जानने वाला िनमल जैसे आप म शोभा को ा होता ह,ै वैसा हा, िव ण,ु महादवे आिद अ य देव म नह होता। अथात ्जैसा व-पर- काशक ान आप म ह ैवैसा व-पर काशक ान अ य देव म नह पाया जाता ह।

  • अ त म पाया सो ठीक म ये वरं ह र-हरादय एव ा,

    ेषु येषु दयं विय तोषमेित। िकं वीि तेन भवता भुिव येन ना यः,

    कि मनो हरित नाथ! भवा तरेऽिप ।।21।।

    पद छेद : म ये वरं ह र-हरादयः एव ा, षे ु येष ु दय ं विय तोषम ् एित। िकं वीि तेन भवता भिुव येन न अ यः, कि त ्मनः हरित नाथ भवा तरे अिप।

    अ वय : नाथ! म ये ा ह र-हरादयः एव वरं येषु षेु दयं विय तोषम ् एित। वीि तेन भवता िकं यने भिुव अ यः कि त ्भवा तरे अिप मनः न हरित।

    श दाथ : नाथ! - ह े वामी!, म ये - म मानता ह ँिक, ा - दखेे गये, ह र-हरादय - िव ण,ु महादवे आिद दवे, एव - ही, वरम ्- अ छे ह, येष ु- िजनके, षे ु- देखे जाने पर, दयम ्- मन, विय - आपके िवषय म, तोषम ्- सतंोष को, एित - ा होता ह।ै वीि तेन - देखने से, भवता - आपको, िकम ्- या योजन ह?ै येन - िजससे, भिुव - पृ वी पर, अ यः कि त ्- कोई दसूरा दवे, भवा तरे - दसूरे भव म, अिप - भी, मनः - िच को, न हरित - नह हर पाता।

    ोकाथ : ह े वामी! म इस बात को अ छा मानता ह ँिक मन ेअ य दवे को पहले देख िलया, उ ह दखेने के बाद आपके वीतराग प को दखेा तो िच आपम ही परम संतोष को ा हो गया। अब अ य देव को देखने का कोई योजन नह रहा। आपक वीतरागता दखेने के बाद अब तो अ य ज म म भी मेरा मन अ य सतंु नह हो सकता, वह केवल आपके (वीतराग के) दशन से ही संतु , तृ होगा।

  • आपक माँ ध य ह ीणां शतािन शतशो जनयि त पु ान,् ना या सतंु वदुपमं जननी सतूा।

    सवाः िदशो दधित भािन सह -रि मं, ा येव िदग ्जनयित फुर-दंशुजालम ्।।22।।

    पद छेद : ीणां शतािन शतशः जनयि त पु ान,् न अ या सतुं वत-्उपमं जननी सतूा। सवाः िदशः दधित भािन सह -रि मं, ाची एव िदक् जनयित फुरत ्अशंजुालम।्

    अ वय : ीणां शतािन शतशः पु ान ्जनयि त, वदपुमं सतुं अ या जननी न सतूा। भािन सवा िदशः दधित, फुर-दंशजुाल ंसह रि मं ा येव िदक् जनयित।

    श दाथ : ीणां शतािन - सैकड़ ि याँ, शतशः - सैकड़ , पु ान ्- पु को, जनयि त - ज म देती ह पर त,ु वदपुम ्- आप जैसे, सतुम ्- पु को, अ या - दसूरी, जननी - माँ, न सतूा - ज म नह दे सक । भानी - न को, सवाः िदशः - सब िदशाए,ँ दधित - धारण करती ह पर त,ु फुर-दंशजुालम् - चमक रहा ह ैिकरण का समूह िजसका ऐस,े सह रि मम ्- सयू को, ा येव िदक् - पवू िदशा ही, जनयित - कट करती ह।ै

    ोकाथ : ह ेिजने ! इस जगतीतल म कोिट-कोिट माताए ँहई ह िज ह ने समय-समय पर सकैड़ पु को ज म िदया है। िक त ुइस लोक म आप जैस ेअि तीय पु को ज म देन ेवाली अ य माता आज तक ि गोचर ही नह हई। यह स य है िक दीि मान िकरण समहूवा ले सयू को ज म देने वाली तो केवल एक पवू िदशा ही है। शेष िदशाएँ तो िटमिटमाते न को ही ज म िदया करती ह। िफर सयू से भी अिधक तेज वी आप जैसे अनपुमेय पु को ज म देनेवाली माता भी एक ही हो सकती ह,ै अनेक नह ।

  • मो माग णेता वामा-मनि त मुनयः परमं पुमांस-

    मािद य वण-ममलं तमसः परु तात।् वामेव स य-गुपल य जयि त मृ यु,ं

    ना यः िशवः िशवपद य मुनी ! प थाः ।।23।।

    पद छेद : वाम ्आमनि त मनुयः परमं पुमांसम,् आिद य वणम ्अमलं तमसः परु तात।् वाम ्एव स यक् उपल य जयि त मृ युं, न अ यः िशवः िशव-पद य मनुी ! प थाः।

    अ वय : मनुी ! मनुयः वाम ् आिद यवणम् अमलं, तमसः परु तात् परमं पुमांसम् आमनि त। वाम ्एव स यक् उपल य मृ युं जयि त, िशवपद य अ यः िशवः प थाः न।

    श दाथ : मनुी ! - ह े मिुनय के नाथ!, मनुयः - तप वीजन, वाम ् - आपको, आिद यवणम ्- सयू क तरह तेज वी, अमलम ्- िनमल, तमसः - मोह अंधकार स,े परु तात् - दरू रहनवेाले, परमं पमुांसम ्- पु ष म े , आमनि त - मानते ह। वाम ्एव - आपको ही, स यक् - अ छी तरह से, उपल य - ा कर, मृ यमु ्- मरण को, जयि त - जीत लेते ह, िशवपद य - मो पद का, अ यः - दसूरा, िशव - अ छा, प थाः - रा ता, माग, न - नह ह।ै

    ोकाथ : ह ेमनुी ! साध-ुमिुनय के समहू आपको परम-पु ष मानते ह य िक आप राग- ेष पी मल से रिहत होने स ेिनमल ह, मोह पी अधंकार का नाश करने वाले होने से सयू के समान ह। आपको ा कर (आपके बताये माग पर चलकर) ज म-मरण पर िवजय ा कर लेते ह इसिलए आपको मृ युंजय मानते ह। मो का आपके अित र अ य कोई क याणकारी िन प व माग नह ह ैइस कारण वे आपको ही मो का माग मानते ह।

  • िविभ न नाम आपके ही वा-म ययं िवभु-मिच य-मसं य-मा ं,

    ाण-मी र-मन त-मनंग केतमु।् योगी रं िविदत योग-मनेक-मेकं,

    ान व प-ममलं वदि त स तः ।।24।।

    अ वय : स तः वाम ्अ ययं िवभमु ्अिच यम ्असं यम ्आ म,् ाणम ् ई रम ्अन तम ्अनंग-केतुम,् योगी रं िविदत-योगम ्अनेकम ्एकम,् ान- व पम ्अमलम ्

    वदि त।

    श दाथ : स तः - स जन पु ष वाम ् - आपको, अ ययम ् - अिवनाशी, िवभुम ् - यापक, अिच यम ्- िच तन के अयो य, असं यम ् - गणना रिहत, आ म ्- थम

    (आिद), ाणम ्- ा, ई रम ्- ई र, अन तम ्- अन त, अनंगकेतमु ्- कामजयी, योगी रम ्- योिगय म े , िविदत-योगम ्- योग के ाता, अनेकम ्- अनेक, एकम ्- एक, ान व पम ्- ान व प, अमलम ्- िनमल, वदि त - कहते ह।

    ोकाथ : भगवन!् स पु ष आपको आ मा का कभी नाश नह होता, इसिलए ‘अ यय’। केवल ान तीन लोक म फैला हआ ह,ै इसिलए ‘िवभ’ु। व प का कोई िचंतन नह कर सकता, इसिलए ‘अिचं य’। गणु क गणना नह हो सकती, इसिलए ‘असं य’। युग के आिद म हये ह, इसिलए ‘आ ’। अन त गुण से बढ़े हये ह, इसिलए ‘ ा’। कृतकृ य हो गये, इसिलए ‘ई र’। सामा य व प क अपे ा अ त रिहत ह, इसिलए ‘अन त’। काम को न करने के िलए केतु ह के समान ह, इसिलए ‘अनंगकेत’ु। योगी-मिुनय के वामी ह, इसिलए ‘योगी र’। योग, यान आिद के ाता ह, इसिलए ‘िविदतयोग’। पयाय क अपे ा अनेक प ह, इसिलए ‘अनेक’। सामा य व प क अपे ा एक ह, इसिलए ‘एक’। केवल ान प ह, इसिलए ‘ ान व प’ तथा कममल स ेरिहत ह,ै इसिलए ‘अमल’ कहते ह।

  • ा, िव णु, शंकर, बु आप ही बु स-् वमेव िवबुधािचत बुि बोधात,् वं शङ्करोऽिस भुवन- य शङ्कर वात।्

    धाताऽिस धीर! िशवमाग िवधेर-्िवधानात,् य ं वमेव भगवन!् पु षो मोऽिस ।।25।।

    पद छेद : बु ः वम ्एव िवबधु अिचत बिु बोधात,् वं शङ्करः अिस भवुन- य शङ्कर वात्। धाता अिस धीर! िशवमाग िवधेः िवधानात्, य ं वम ् एव भगवन्! पु षो मः अिस।

    अ वय : िवबधुािचत बुि बोधात ् वम ् एव बु ः, भवुन य शङ्कर वात् वम ् एव शङ्करः अिस। धीर! िशवमागिवधेः िवधानात ् वम ्एव धातािस, भगवन!् वम ्एव य ं पु षो मः अिस।

    श दाथ : िवबुधािचत - दवे अथवा िव ान के ारा पूिजत, बुि बोधात् - ान वाले होने से, वम् एव - आप ही, बु ः - बु हो, भवुन य - तीन लोक म, शंकर वात् - मंगल (शाि त) करने वाले होने से, वम् एव - आप ही, शङ्करः - शंकर, अिस - हो। धीर! - ह ेधीर!, िशवमागिवधेः - मो माग क िविध के, िवधानात् - करने (बताने) वाले होने से, वम ्एव - आप ही, धातािस - ा हो, भगवन!् - ह ेभगवान!्, वम ्एव - आप ही, य म ्- प प से, पु षो मः - उ म पु ष अथात ् िव ण ु(नारायण), अिस - हो।

    ोकाथ : ह ेदेवािधदेव! केवल ान सिहत होन ेसे, गणधर व ािनय ारा पूिजत होने स ेआप ही ‘बु ’ ह। तीन लोक के सखु या शाि त के करने वाल ेहोने से आप ही ‘शकंर’ ह। आपने ही र न य प धम का उपदशे दकेर मो माग का िन पादन िकया ह,ै अतः आप ही स चे ‘ ा’ ह।ै इसी तरह आपने अपनी पयाय म सव कृ पु ष व य कर िलया ह ैइसिलए आप ही ‘पु षो म’ ह।

  • आपको नम कार हो तु यं नमस-्ि भुवनाित हराय नाथ! तु यं नमः ि ित तलामल भूषणाय।

    तु यं नमस-्ि जगतः परमे राय, तु यं नमो िजन! भवोदिध शोषणाय ।।26।।

    पद छेद : तु यं नमः ि भवुन-आित हराय नाथ!, तु यं नमः ि ित तल अमल भषूणाय। तु यं नमः ि जगतः परमे राय, तु यं नमः िजन! भवोदिध शोषणाय।

    अ वय : नाथ! ि भवुनाित हराय तु यं नमः, ि िततल अमल भषूणाय तु यं नमः। ि जगतः परमे राय तु यं नमः, िजन! भवोदिध शोषणाय तु यं नमः।

    श दाथ : नाथ! - ह े वामी! ि भवुन - तीन लोक के, आित - द:ुख को, हराय - हरने वाले, तु यम ्- आपको, नमः - नम कार हो, ि िततल पृ वी तल के, अमल - िनमल, भषूणाय - आभषूण व प, तु यम ्- आपको, नमः - नम कार हो। ि जगतः - तीन जगत के, परमे राय - परमे र व प, तु यम ्- आपको, नमः - नम कार हो, िजन! - ह ेिजने देव!, भवोदिध - संसार समु के, शोषणाय - सखुाने (न करने) वाले, तु यम ्- आपको, नमः - नम कार हो।

    ोकाथ : ह े वामी! आप तीन लोक के द:ुख को हरने वाल ेह, इसिलए आपको नम कार हो। आप पृ वी तल के िनमल आभषूण व प ह, इसिलए आपको नम कार हो। आप ऊ वलोक, म यलोक तथा अधोलोक तीन के परमे र व प ह, इसिलए आपको नम कार हो। ह ेिजने दवे! आप ही संसार पी समु के सखुाने (न करने) वाले ह,ै इसिलए आपको नम कार हो।

  • दोष रिहत गुण के वामी को िव मयोऽ यिद नाम गुणै-रशेषैस-्

    वं सिं तो िनरवकाशतया मुनीश! दोषै- पा िविवधा य जात गवः,

    व ना तरेऽिप न कदािचद-पीि तोऽिस ।।27।।

    पद छेद : कः िव मयः अ यिद नाम गणैुः अशेषैः, वं सिं तः िनः अवकाशतया मुनीश! दोषैः उपा िविवध आ य जात गवः, व न अ तरे अिप न कदािचत् अिप ईि तः अिस।

    अ वय : मनुीश! यिद नाम िनरवकाशतया वम ्अशेषैः गणैुः संि तः उपा िविवधा य जातगवः दोषैः व नान तरे अिप कदािचत ्न ईि तः अिस अ कः िव मयः?

    श दाथ : मुनीश! - ह ेमुिनय के वामी! यिद नाम - यिद, िनरवकाशतया - अ य जगह थान न िमलने स,े वम ् - आप, अशेषैः - सम त, गणैुः - गणु के ारा, सिं तः -

    आ य को, उपा - ा हए। िविवधा य - अनेक आ य िमलने से, जातगवः - उ प न हआ है अहकंार िजनको ऐसे, दोषैः - दोष के ारा, व न - व न के, अ तरे - म य म, अिप - भी, कदािचत ्- कभी, अिप - भी, न ईि तः - नह देखे गये, अिस - हो, अ - इसम, कः - या, िव मयः - आ य ह?

    ोकाथ : ह ेमुिनय के वामी! संसार म िजतने गणु थे उन सबन ेआप म इस सघनता स ेिनवास कर िलया िक िफर कुछ भी अवकाश ( थान) शेष नह रहा। िजससे दोष को आपम िब कुल भी थान नह िमला। वे दोष-दगुणु अ य चल ेगये, अ य आ य िमल जाने के गव से वे दगुणु पनुः लौटकर व न म भी आपक ओर नह आये। अथात ्ससंार के सम त गणु आपम िव मान ह, दगुणु एक भी नह ह ैतो इसम या आ य ह?ै

  • थम ाितहाय - अशोक वृ उ चै-रशोक त सिं त-मु मयूख-

    माभाित प-ममलं भवतो िनता तम।् प ो लसत ्िकरण-म त तमो-िवतानं

    िब बं रवे रव पयोधर पा वित ।।28।।

    पद छेद : उ चैः अशोक त संि तम ् उ मयखूम,् आभाित पम् अमलम ् भवतः िनता तम।् प उ लसत ्िकरणम ्अ त तमः िवतानं, िब बं रवेः इव पयोधर पा वित।

    अ वय : उ चैः अशोकत संि तम ्उ मयखू ंभवतः अमलं पं प ो लसत।् िकरणम ्अ त तमोिवतानं पयोधर-पा वित रवेः िब बम ्इव िनता तम ्आभाित।

    श दाथ : उ चैः - ऊँचे, अशोकत - अशोक वृ के, संि तम ् - नीचे ि थत, उ मयखूम ्- िजसक िकरण ऊपर को फैल रही ह ऐसा, भवतः - आपका, अमलम ्- उ जवल, पम ्- प, प ो लसत ्- प प से शोभायमान ह।ै िकरणम् - िकरण, अ त - न कर िदया ह,ै तमोिवतानम ्- अंधकार का समहू िजसने, पयोधर - मेघ के, पा वित - पास म ि थत, रवेः िब बम ्इव - सयू के िब ब क तरह, िनता तम ्- अ यंत, आभाित - शोिभत होता ह।

    ोकाथ : ह े भो! िजस कार सयू का ितिब ब अपनी िकरण को प प से ऊपर फकता हआ याममल सघन बादल के बीच म शोभायमन होता ह, उसी कार आपक पावन िद य देह भी अपनी ददैी यमान िकरण को ऊपर क ओर िबखेरती हई समवसरण म ह रत अशोक वृ के नीचे अ य त शोभा को ा हो रही ह।ै

  • ि तीय ाितहाय – िसहंासन िसंहासने मिण-मयूख िशखा िविच े, िव ाजते तव वपःु कनका-वदातम।्

    िब बं िवयद्-िवलस-दशुंलता िवतानं, तुङ्गोदयाि िशरसीव सह -र मेः ।।29।।

    पद छेद : िसंहासने मिण मयखू िशखा िविच े, िव ाजते तव वपःु कनक अवदातम।् िब बं िवयत ्िवलसत ्अशं ुलता िवतानं, तङ्ुग-उदय-आि िशरिस इव सह र मेः।

    अ वय : मिण-मयखू िशखा िविच े िसंहासने तव कनकावदातम ् वपःु तङ्ुगोदयाि िशरिस िवयत-्िवलसत।् अंश-ुलता िवतानं सह र मेः िब बं इव िव ाजते।

    श दाथ : मिण-मयखू - र न क िकरण के, िशखा - अ भाग स,े िविच े - िच िविच , िसहंासने - िसंहासन पर, तव - आपका, कनकावदातम ् - सवुण क तरह उ जवल, वपुः - शरीर, तङ्ुगोदयाि - ऊँचे उदयाचल के, िशरिस - िशखर पर, िवयत् - आकाश म, िवलसत् - शोभायमान ह। अंश-ुलता िवतानम ्- िकरण पी लताओ ंका समहू ह ैिजसके ऐसे, सह र मेः - सयू के, िब बम ्- िब ब क , इव - तरह, िव ाजते - शोभायमान हो रहा ह।ै

    ोकाथ : ह े भो! िजस कार ऊँचे उदयिग र पवत क चोटी पर उगता हआ सयू चार ओर फैली अपनी विणम िकरण से आकाश म अ यंत शोभायमान होता ह।ै उसी कार आपका वण के समान उ जवल शरीर भी उस र नजिड़त िसंहासन पर अ यिधक शोभायमान हो रहा ह,ै जो मिणय क िकरण के अ भाग से िविवध रंग से िच -िविच हो रहा ह।ै

  • तृतीय ाितहाय – चँवर कु दावदात चल-चामर चा शोभं,

    िव ाजते तव वपःु कलधौत का तम।् उ त-्शशाङ्क शुिच-िनझर वा रधार-

    मु चै तटं सरुिगरे- रव शातकौ भम ्।।30।।

    पद छेद : कु द अवदात चल चामर चा शोभं, िव ाजते तव वपुः कलधौत का तम।् उ त-्शशाङ्क शुिच िनझर वा रधारम,् उ चैः तटं सरु-िगरेः इव शातकौ भम।्

    अ वय : कु दावदात चल-चामर चा शोभं कलधौत का तं तव वपुः उ छशाङ्क शिुच िनझर वा रधारं सरुिगरेः शातकौ भम ्उ चै तटं इव िव ाजते।

    श दाथ : कु दावदात - कु द के पु प के समान व छ, चल-चामर - िहलते हये चँवर क , चा - सु दर, शोभम ्- शोभा स ेयु , कलधौत - वण के समान, का तम ्- चमक वाला तव - आपका, वपःु - शरीर, उ छशाङ्क - उदीयमान च मा के समान, शिुच - पिव (िनमल), िनझर - झरन क , वा रधारम ् - जल क धारा स ेयु , सरुिगरेः - समुे पवत के, शातकौ भम ् - वणमयी, उ चै तटम् - ऊँच े तट क इव - समान, िव ाजते - शोभायमान होता ह।ै

    ोकाथ : ह े भो! समवशरण म विणम काि त वाली आपक िद य देह उन कु द पु प के समान ते (धवल) और दोन ओर ढुरते हये चँवर के बीच म वैसी ही सुंदर

    तीत होती है, जैसे वणिग र (समुे पवत) के ऊपर दोन ओर से उदीयमान च मा क िकरण के समान उ वल जल- पात क िगरती हई धवल धारा हो।

  • चतुथ ाितहाय – छ य छ - यं तव िवभाित शशाङ्क का त- मु चैः ि थतं थिगत भानु कर- तापम।्

    मु ाफल कर जाल िववृ शोभं, यापयत ्ि जगतः परमे र वम ्।।31।।

    पद छेद : छ यं तव िवभाित शशाङ्क का तम,् उ चैः ि थतं थिगत भानकुर तापम।् मु ाफल कर जाल िववृ शोभ,ं यापयत ्ि जगतः परमे र वम।्

    अ वय : शशाङ्क-का तं भानुकर तापं थिगत मु ाफल करजाल िववृ शोभं तव उ चैः ि थतं छ यं ि जगतः परमे र वं यापयत् िवभाित।

    श दाथ : शशाङ्क-का तम ्- च मा के समान सु दर, भानकुर - सयू क िकरण के, तापम ्- भाव को, थिगत - रोकने वाले, मु ाफल - मोितय के, करजाल - समह

    वाली झालर से, िववृ - बढ़ रही ह,ै शोभम ्- शोभा ऐसे, तव - आपके, उ चैः - ऊपर ि थतम ्- ि थत, छ यम ्- तीन छ , ि जगतः - तीन लोक के, परमे र वम ्- वािम व को, यापयत ्- कट करते हए, िवभाित - शोभायमान होते ह।ै

    ोकाथ : हे िजने ! जो च मा के समान कांितयु ह,ै िजनके चार ओर ेत मोितय के समहू वाली झालार शोभा को बढ़ा रही ह ैऐसे तीन छ आपके ऊपर सशुोिभत हो रह ेह वे तीन छ सयू क खर िकरण से उ प न आतप को रोकते हए मानो आपके तीन जगत के परमे र व को कट करते है।

  • पाँचवां ाितहाय – दु दुिभ ग भीर तार रव-पू रत िदि वभागस-् ैलो य लोक शुभ सङ्गम भूित द ः। स म राज जय घोषण घोषकः सन,्

    खे दु दुिभर् वनित ते यशसः वादी ।।32।।

    पद छेद : ग भीर तार रव-पू रत िदि वभागः, लैो य लोक शभु सङ्गम भिूत द ः। सत-्धमराज जय घोषण घोषकः सन,् खे दु दिुभः वनित ते यशसः वादी।

    अ वय : ग भीर तार रवपू रत िदि वभागः ैलो य लोक शभुसङ्गम भिूतद ः स मराज जयघोषण घोषकः सन् दु दिुभः ते यशसः वादी ख े वनित।

    श दाथ : ग