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गुनाहों का देवता धर्म�वीर भारती

अनुक्रर्म

इस उपन्यास के नये संस्करण पर दो शब्द लि!खते सर्मय र्मैं सर्मझ नहीं पा रहा हूँ किक क्या लि!खँू? अधिधक-से-अधिधक र्मैं अपनी हार्दिद-क कृतज्ञता उन सभी पाठकों के प्रकित व्यक्त कर सकता हूँ जि5न्होंने इसकी क!ात्र्मक अपरिरपक्वता के बाव5ूद इसको पसन्द किकया है। र्मेरे लि!ए इस उपन्यास का लि!खना वैसा ही रहा है 5ैसा पीड़ा के क्षणों र्में पूरी आस्था से प्रार्थ�ना करना, और इस सर्मय भी र्मुझे ऐसा !ग रहा है 5ैसे र्मैं वह प्रार्थ�ना र्मन-ही-र्मन दोहरा रहा हूँ, बस...

- धर्म�वीर भारती

अगर पुराने 5र्माने की नगर-देवता की और ग्रार्म-देवता की कल्पनाए ँआ5 भी र्मान्य होतीं तो र्मैं कहता किक इ!ाहाबाद का नगर-देवता 5रूर कोई रोर्मैण्टिJKक क!ाकार है। ऐसा !गता है किक इस शहर की बनावK, गठन, जि5-दगी और रहन-सहन र्में कोई बँधे-बँधाये किनयर्म नहीं, कहीं कोई कसाव नहीं, हर 5गह एक स्वच्छन्द खु!ाव, एक किबखरी हुई-सी अकिनयधिर्मतता। बनारस की गलि!यों से भी पत!ी गलि!याँ और !खनऊ की सडक़ों से चौड़ी सडक़ें । याक� शायर और ब्राइKन के उपनगरों का र्मुकाब!ा करने वा!े लिसकिव! !ाइन्स और द!द!ों की गन्दगी को र्मात करने वा!े र्मुहल्!े। र्मौसर्म र्में भी कहीं कोई सर्म नहीं, कोई सन्तु!न नहीं। सुबहें र्म!य5ी, दोपहरें अंगारी, तो शार्में रेशर्मी! धरती ऐसी किक सहारा के रेकिगस्तान की तरह बा!ू भी धिर्म!े, र्मा!वा की तरह हरे-भरे खेत भी धिर्म!ें और ऊसर और परती की भी कर्मी नहीं। सचर्मुच !गता है किक प्रयाग का नगर-देवता स्वग�-कंु5ों से किनवा�लिसत कोई र्मनर्मौ5ी क!ाकार है जि5सके सृ5न र्में हर रंग के डोरे हैं।

और चाहे 5ो हो, र्मगर इधर क्वार, कार्तित-क तर्था उधर वसन्त के बाद और हो!ी के बीच के र्मौसर्म से इ!ाहाबाद का वातावरण नैस्Kर्शिश-यर्म और पैं5ी के फू!ों से भी ज्यादा खूबसूरत और आर्म के बौरों की खुशबू से भी ज्यादा र्महकदार होता है। लिसकिव! !ाइन्स हो या अल्फे्रड पाक� , गंगातK हो या खुसरूबाग, !गता है किक हवा एक नKखK दोशी5ा की तरह कलि!यों के आँच! और !हरों के धिर्म5ा5 से छेडख़ानी करती च!ती है। और अगर आप सद\ से बहुत नहीं डरते तो आप 5रा एक ओवरकोK डा!कर सुबह-सुबह घूर्मने किनक! 5ाए ँतो इन खु!ी हुई 5गहों की किफ5ाँ इठ!ाकर आपको अपने 5ादू र्में बाँध !ेगी। खासतौर से पौ फKने के पह!े तो आपको एक किबल्कु! नयी अनुभूकित होगी। वसन्त के नये-नये र्मौसर्मी फू!ों के रंग से र्मुकाब!ा करने वा!ी हल्की सुनह!ी, बा!-सूय� की अँगुलि!याँ सुबह की रा5कुर्मारी के गु!ाबी वक्ष पर किबखरे हुए भौंरा!े गेसुओं को धीरे-धीरे हKाती 5ाती हैं और क्षिक्षकित5 पर सुनह!ी तरुणाई किबखर पड़ती है।

एक ऐसी ही खुशनुर्मा सुबह र्थी, और जि5सकी कहानी र्मैं कहने 5ा रहा हूँ, वह सुबह से भी ज्यादा र्मासूर्म युवक, प्रभाती गाकर फू!ों को 5गाने वा!े देवदूत की तरह अल्फे्रड पाक� के !ॉन पर फू!ों की सर5र्मीं के किकनारे-किकनारे घूर्म रहा र्था। कत्थई स्वीKपी के रंग का पश्र्मीने का !म्बा कोK, जि5सका एक का!र उठा हुआ र्था और दूसरे का!र र्में सरो की एक पत्ती बKन हो! र्में !गी हुई र्थी, सफेद र्मक्खन 5ीन की पत!ी पैंK और पैरों र्में सफेद 5री की पेशावरी सैण्डिJड!ें, भरा हुआ गोरा चेहरा और ऊँचे चर्मकते हुए र्मारे्थ पर झू!ती हुई एक रूखी भूरी !K। च!ते-च!ते उसने एक रंग-किबरंगा गुच्छा इकट्ठा कर लि!या र्था और रह-रह कर वह उसे सँूघ !ेता र्था।

पूरब के आसर्मान की गु!ाबी पाँखुरिरयाँ किबखरने !गी र्थीं और सुनह!े पराग की एक बौछार सुबह के ता5े फू!ों पर किबछ रही र्थी। ''अरे सुबह हो गयी?'' उसने चौंककर कहा और पास की एक बेंच पर बैठ गया। सार्मने से एक र्मा!ी आ रहा र्था। ''क्यों 5ी, !ाइब्रेरी खु! गयी?'' ''अभी नहीं बाबू5ी!'' उसने 5वाब दिदया। वह किफर सन्तोष से बैठ गया

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और फू!ों की पाँखुरिरयाँ नोचकर नीचे फें कने !गा। 5र्मीन पर किबछाने वा!ी सोने की चादर परतों पर परतें किबछाती 5ा रही र्थी और पेड़ों की छायाओं का रंग गहराने !गा र्था। उसकी बेंच के नीचे फू!ों की चुनी हुई पक्षित्तयाँ किबखरी र्थीं और अब उसके पास लिसफ� एक फू! बाकी रह गया र्था। ह!के फा!सई रंग के उस फू! पर गहरे बैं5नी डोरे रे्थ।

''ह!ो कपूर!'' सहसा किकसी ने पीछे से कन्धे पर हार्थ रखकर कहा, ''यहाँ क्या झक र्मार रहे हो सुबह-सुबह?''

उसने र्मुडक़र पीछे देखा, ''आओ, ठाकुर साहब! आओ बैठो यार, !ाइब्रेरी खु!ने का इन्त5ार कर रहा हूँ।''

''क्यों, यूकिनवर्शिस-Kी !ाइब्रेरी चाK डा!ी, अब इसे तो शरीफ !ोगों के लि!ए छोड़ दो!''

''हाँ, हाँ, शरीफ !ोगों ही के लि!ए छोड़ रहा हूँ; डॉक्Kर शुक्!ा की !ड़की है न, वह इसकी र्मेम्बर बनना चाहती र्थी तो र्मुझे आना पड़ा, उसी का इन्त5ार भी कर रहा हूँ।''

''डॉक्Kर शुक्!ा तो पॉलि!दिKक्स किडपाK�र्मेंK र्में हैं?''

''नहीं, गवन�र्मेंK साइको!ॉजि5क! ब्यूरो र्में।''

''और तुर्म पॉलि!दिKक्स र्में रिरसच� कर रहे हो?''

''नहीं, इकनॉधिर्मक्स र्में!''

''बहुत अचे्छ! तो उनकी !ड़की को सदस्य बनवाने आये हो?'' कुछ अ5ब स्वर र्में ठाकुर ने कहा।

''लिछह!'' कपूर ने हँसते हुए, कुछ अपने को बचाते हुए कहा, ''यार, तुर्म 5ानते हो किक र्मेरा उनसे किकतना घरे!ू सम्बन्ध है। 5ब से र्मैं प्रयाग र्में हूँ, उन्हीं के सहारे हूँ और आ5क! तो उन्हीं के यहाँ पढ़ता-लि!खता भी हूँ...।''

ठाकुर साहब हँस पडे़, ''अरे भाई, र्मैं डॉक्Kर शुक्!ा को 5ानता नहीं क्या? उनका-सा भ!ा आदर्मी धिर्म!ना र्मुश्किश्क! है। तुर्म सफाई व्यर्थ� र्में दे रहे हो।''

ठाकुर साहब यूकिनवर्शिस-Kी के उन किवद्यार्शिर्थ-यों र्में से रे्थ 5ो बरायनार्म किवद्यार्थr होते हैं और कब तक वे यूकिनवर्शिस-Kी को सुशोक्षिभत करते रहेंगे, इसका कोई किनश्चय नहीं। एक अचे्छ-खासे रुपये वा!े व्यलिक्त रे्थ और घर के ताल्!ुकेदार। हँसरु्मख, फण्टिब्तयाँ कसने र्में र्म5ा !ेने वा!े, र्मगर दिद! के साफ, किनगाह के सच्चे। बो!े-

''एक बात तो र्मैं स्वीकार करता हूँ किक तुम्हारी पढ़ाई का सारा श्रेय डॉ. शुक्!ा को है! तुम्हारे घर वा!े तो कुछ खचा� भे5ते नहीं?''

''नहीं, उनसे अ!ग ही होकर आया र्था। सर्मझ !ो किक इन्होंने किकसी-न-किकसी बहाने र्मदद की है।''

''अच्छा, आओ, तब तक !ोKस-पोंड (कर्म!-सरोवर) तक ही घूर्म !ें। किफर !ाइब्रेरी भी खु! 5ाएगी!''

दोनों उठकर एक कृकिvर्म कर्म!-सरोवर की ओर च! दिदये 5ो पास ही र्में बना हुआ र्था। सीदिwय़ाँ चwक़र ही उन्होंने देखा किक एक सज्जन किकनारे बैठे कर्म!ों की ओर एकKक देखते हुए ध्यान र्में तल्!ीन हैं। लिछपक!ी से दुब!े-पत!े, बा!ों की एक !K र्मारे्थ पर झूर्मती हुई-

''कोई पे्रर्मी हैं, या कोई किफ!ासफर हैं, देखा ठाकुर?''

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''नहीं यार, दोनों से किनकृष्ट कोदिK के 5ीव हैं-ये ककिव हैं। र्मैं इन्हें 5ानता हूँ। ये रवीन्द्र किबसरिरया हैं। एर्म. ए. र्में पढ़ता है। आओ, धिर्म!ाए ँतुम्हें!''

ठाकुर साहब ने एक बड़ा-सा घास का कितनका तोडक़र पीछे से चुपके-से 5ाकर उसकी गरदन गुदगुदायी। किबसरिरया चौंक उठा-पीछे र्मुडक़र देखा और किबगड़ गया-''यह क्या बदतर्मी5ी है, ठाकुर साहब! र्मैं किकतने गम्भीर किवचारों र्में डूबा र्था।'' और सहसा बडे़ किवलिचv स्वर र्में आँखें बन्द कर किबसरिरया बो!ा, ''आह! कैसा र्मनोरर्म प्रभात है! र्मेरी आत्र्मा र्में घोर अनुभूकित हो रही र्थी...।''

कपूर किबसरिरया की र्मुद्रा पर ठाकुर साहब की ओर देखकर र्मुसकराया और इशारे र्में बो!ा, ''है यार शग! की ची5। छेड़ो 5रा!''

ठाकुर साहब ने कितनका फें क दिदया और बो!े, ''र्माफ करना, भाई किबसरिरया! बात यह है किक हर्म !ोग ककिव तो हैं नहीं, इसलि!ए सर्मझ नहीं पाते। क्या सोच रहे रे्थ तुर्म?''

किबसरिरया ने आँखें खो!ीं और एक गहरी साँस !ेकर बो!ा, ''र्मैं सोच रहा र्था किक आखिखर पे्रर्म क्या होता है, क्यों होता है? ककिवता क्यों लि!खी 5ाती है? किफर ककिवता के संग्रह उतने क्यों नहीं किबकते जि5तने उपन्यास या कहानी-संग्रह?''

''बात तो गम्भीर है।'' कपूर बो!ा, ''5हाँ तक र्मैंने सर्मझा और पढ़ा है-पे्रर्म एक तरह की बीर्मारी होती है, र्मानलिसक बीर्मारी, 5ो र्मौसर्म बद!ने के दिदनों र्में होती है, र्मस!न क्वार-कार्तित-क या फागुन-चैत। उसका सम्बन्ध रीढ़ की हड्डी से होता है। और ककिवता एक तरह का सधि�पात होता है। र्मेरा र्मत!ब आप सर्मझ रहे हैं, धिर्म. लिसबरिरया?''

''लिसबरिरया नहीं, किबसरिरया?'' ठाकुर साहब ने Kोका।

किबसरिरया ने कुछ उ5!त, कुछ परेशानी और कुछ गुस्से से उनकी ओर देखा और बो!ा, ''क्षर्मा कीजि5एगा, आप या तो फ्रायडवादी हैं या प्रगकितवादी और आपके किवचार सव�दा किवदेशी हैं। र्मैं इस तरह के किवचारों से घृणा करता हूँ...।''

कपूर कुछ 5वाब देने ही वा!ा र्था किक ठाकुर साहब बो!े, ''अरे भाई, बेकार उ!झ गये तुर्म !ोग, पह!े परिरचय तो कर !ो आपस र्में। ये हैं श्री चन्द्रकुर्मार कपूर, किवश्वकिवद्या!य र्में रिरसच� कर रहे हैं और आप हैं श्री रवीन्द्र किबसरिरया, इस वष� एर्म. ए. र्में बैठ रहे हैं। बहुत अचे्छ ककिव हैं।''

कपूर ने हार्थ धिर्म!ाया और किफर गम्भीरता से बो!ा, ''क्यों साहब, आपको दुकिनया र्में और कोई कार्म नहीं रहा 5ो आप ककिवता करते हैं?''

किबसरिरया ने ठाकुर साहब की ओर देखा और बो!ा, ''ठाकुर साहब, यह र्मेरा अपर्मान है, र्मैं इस तरह के सवा!ों का आदी नहीं हूँ।'' और उठ खड़ा हुआ।

''अरे बैठो-बैठो!'' ठाकुर साहब ने हार्थ खींचकर किबठा लि!या, ''देखो, कपूर का र्मत!ब तुर्म सर्मझे नहीं। उसका कहना यह है किक तुर्मर्में इतनी प्रकितभा है किक !ोग तुम्हारी प्रकितभा का आदर करना नहीं 5ानते। इसलि!ए उन्होंने सहानुभूकित र्में तुर्मसे कहा किक तुर्म और कोई कार्म क्यों नहीं करते। वरना कपूर साहब तुम्हारी ककिवता के बहुत शौकीन हैं। र्मुझसे बराबर तारीफ करते हैं।''

किबसरिरया किपघ! गया और बो!ा, ''क्षर्मा कीजि5एगा। र्मैंने ग!त सर्मझा, अब र्मेरा ककिवता-संग्रह छप रहा है, र्मैं आपको अवश्य भेंK करँूगा।'' और किफर किबसरिरया ठाकुर साहब की ओर र्मुडक़र बो!ा, ''अब !ोग र्मेरी ककिवताओं की इतनी र्माँग करते हैं किक र्मैं परेशान हो गया हूँ। अभी क! 'किvवेणी' के सम्पादक धिर्म!े। कहने !गे अपना लिचv दे दो। र्मैंने कहा किक कोई लिचv नहीं है तो पीछे पड़ गये। आखिखरकार र्मैंने आइडेण्टिJKKी काड� उठाकर दे दिदया!''

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''वाह!'' कपूर बो!ा, ''र्मान गये आपको हर्म! तो आप राष्ट्रीय ककिवताए ँलि!खते हैं या पे्रर्म की?''

''5ब 5ैसा अवसर हो!'' ठाकुर साहब ने 5ड़ दिदया, ''वैसे तो यह वारफ्रJK का ककिव-सम्र्मे!न, शराबबन्दी कॉन्फे्रन्स का ककिव-सम्र्मे!न, शादी-ब्याह का ककिव-सम्र्मे!न, साकिहत्य-सम्र्मे!न का ककिव-सम्र्मे!न सभी 5गह बु!ाये 5ाते हैं। बड़ा यश है इनका!''

किबसरिरया ने प्रशंसा से र्मुग्ध होकर देखा, र्मगर किफर एक गव� का भाव र्मुँह पर !ाकर गम्भीर हो गया।

कपूर र्थोड़ी देर चुप रहा, किफर बो!ा, ''तो कुछ हर्म !ोगों को भी सुनाइए न!''

''अभी तो र्मूड नहीं है।'' किबसरिरया बो!ा।

ठाकुर साहब किबसरिरया को किपछ!े पाँच सा!ों से 5ानते रे्थ, वे अच्छी तरह 5ानते रे्थ किक किबसरिरया किकस सर्मय और कैसे ककिवता सुनाता है। अत: बो!े, ''ऐसे नहीं कपूर, आ5 शार्म को आओ। ज़रा गंगा5ी च!ें, कुछ बोटिK-ग रहे, कुछ खाना-पीना रहे तब ककिवता भी सुनना!''

कपूर को बोटिK-ग का बेहद शौक र्था। फौरन रा5ी हो गया और शार्म का किवस्तृत काय�क्रर्म बन गया।

इतने र्में एक कार उधर से !ाइब्रेरी की ओर गु5री। कपूर ने देखा और बो!ा, ''अच्छा, ठाकुर साहब, र्मुझे तो इ5ा5त दीजि5ए। अब च!ँू !ाइब्रेरी र्में। वो !ोग आ गये। आप कहाँ च! रहे हैं?''

''र्मैं ज़रा जि5र्मखाने की ओर 5ा रहा हूँ। अच्छा भाई, तो शार्म को पक्की रही।''

''किबल्कु! पक्की!'' कपूर बो!ा और च! दिदया।

!ाइब्रेरी के पोर्दिK-को र्में कार रुकी र्थी और उसके अन्दर ही डॉक्Kर साहब की !ड़की बैठी र्थी।

''क्यों सुधा, अन्दर क्यों बैठी हो?''

''तुम्हें ही देख रही र्थी, चन्दर।'' और वह उतर आयी। दुब!ी-पत!ी, नाKी-सी, साधारण-सी !ड़की, बहुत सुन्दर नहीं, केव! सुन्दर, !ेकिकन बातचीत र्में बहुत दु!ारी।

''च!ो, अन्दर च!ो।'' चन्दर ने कहा।

वह आगे बढ़ी, किफर दिठठक गयी और बो!ी, ''चन्दर, एक आदर्मी को चार किकताबें धिर्म!ती हैं?''

''हाँ! क्यों?''

''तो...तो...'' उसने बडे़ भो!ेपन से र्मुसकराते हुए कहा, ''तो तुर्म अपने नार्म से र्मेम्बर बन 5ाओ और दो किकताबें हर्में दे दिदया करना बस, ज्यादा का हर्म क्या करेंगे?''

''नहीं!'' चन्दर हँसा, ''तुम्हारा तो दिदर्माग खराब है। खुद क्यों नहीं बनतीं र्मेम्बर?''

''नहीं, हर्में शरर्म !गती है, तुर्म बन 5ाओ र्मेम्बर हर्मारी 5गह पर।''

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''पग!ी कहीं की!'' चन्दर ने उसका कन्धा पकडक़र आगे !े च!ते हुए कहा, ''वाह रे शरर्म! अभी क! ब्याह होगा तो कहना, हर्मारी 5गह तुर्म बैठ 5ाओ चन्दर! कॉ!े5 र्में पहुँच गयी !ड़की; अभी शरर्म नहीं छूKी इसकी! च! अन्दर!''

और वह किहचकती, दिठठकती, झेंपती और र्मुड़-र्मुडक़र चन्दर की ओर रूठी हुई किनगाहों से देखती हुई अन्दर च!ी गयी।

र्थोड़ी देर बाद सुधा चार किकताबें !ादे हुए किनक!ी। कपूर ने कहा, ''!ाओ, र्मैं !े !ँू!'' तो बाँस की पत!ी Kहनी की तरह !हराकर बो!ी, ''सदस्य र्मैं हूँ। तुम्हें क्यों दँू किकताबें?'' और 5ाकर कार के अन्दर किकताबें पKक दीं। किफर बो!ी, ''आओ, बैठो, चन्दर!''

''र्मैं अब घर 5ाऊँगा।''

''ऊँहँू, यह देखो!'' और उसने भीतर से काग5ों का एक बंड! किनका!ा और बो!ी, ''देखो, यह पापा ने तुम्हारे लि!ए दिदया है। !खनऊ र्में कॉन्फे्रन्स है न। वहीं पwऩे के लि!ए यह किनबन्ध लि!खा है उन्होंने। शार्म तक यह Kाइप हो 5ाना चाकिहए। 5हाँ संख्याए ँहैं वहाँ खुद आपको बैठकर बो!ना होगा। और पापा सुबह से ही कहीं गये हैं। सर्मझे 5नाब!'' उसने किबल्कु! अल्हड़ बच्चों की तरह गरदन किह!ाकर शोख स्वरों र्में कहा।

कपूर ने बंड! !े लि!या और कुछ सोचता हुआ बो!ा, ''!ेकिकन डॉक्Kर साहब का हस्त!ेख, इतने पृष्ठ, शार्म तक कौन Kाइप कर देगा?''

''इसका भी इन्त5ार्म है,'' और अपने ब्!ाउ5 र्में से एक पv किनका!कर चन्दर के हार्थ र्में देती हुई बो!ी, ''यह कोई पापा की पुरानी ईसाई छाvा है। Kाइकिपस्K। इसके घर र्मैं तुम्हें पहुँचाये देती हूँ। र्मुक5r रोड पर रहती है यह। उसी के यहाँ Kाइप करवा !ेना और यह खत उसे दे देना।''

''!ेकिकन अभी र्मैंने चाय नहीं पी।''

''सर्मझ गये, अब तुर्म सोच रहे होगे किक इसी बहाने सुधा तुम्हें चाय भी किप!ा देगी। सो र्मेरा कार्म नहीं है 5ो र्मैं चाय किप!ाऊँ? पापा का कार्म है यह! च!ो, आओ!''

चन्दर 5ाकर भीतर बैठ गया और किकताबें उठाकर देखने !गा, ''अरे, चारों ककिवता की किकताबें उठा !ायी-सर्मझ र्में आएगँी तुम्हारे? क्यों, सुधा?''

''नहीं!'' लिचढ़ाते हुए सुधा बो!ी, ''तुर्म कहो, तुम्हें सर्मझा दें। इकनॉधिर्मक्स पwऩे वा!े क्या 5ानें साकिहत्य?''

''अरे, र्मुक5r रोड पर !े च!ो, ड्राइवर!'' चन्दर बो!ा, ''इधर कहाँ च! रहे हो?''

''नहीं, पह!े घर च!ो!'' सुधा बो!ी, ''चाय पी !ो, तब 5ाना!''

''नहीं, र्मैं चाय नहीं किपऊँगा।'' चन्दर बो!ा।

''चाय नहीं किपऊँगा, वाह! वाह!'' सुधा की हँसी र्में दूधिधया बचपन छ!क उठा-''र्मुँह तो सूखकर गोभी हो रहा है, चाय नहीं किपएगँे।''

बँग!ा आया तो सुधा ने र्महराजि5न से चाय बनाने के लि!ए कहा और चन्दर को स्Kडी रूर्म र्में किबठाकर प्या!े किनका!ने के लि!ए च! दी।

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वैसे तो यह घर, यह परिरवार चन्द्र कपूर का अपना हो चुका र्था; 5ब से वह अपनी र्माँ से झगडक़र प्रयाग भाग आया र्था पwऩे के लि!ए, यहाँ आकर बी. ए. र्में भरती हुआ र्था और कर्म खच� के खया! से चौक र्में एक कर्मरा !ेकर रहता र्था, तभी डॉक्Kर शुक्!ा उसके सीकिनयर Kीचर रे्थ और उसकी परिरण्डिस्थकितयों से अवगत रे्थ। चन्दर की अँग्रे5ी बहुत ही अच्छी र्थी और डॉ. शुक्!ा उससे अक्सर छोKे-छोKे !ेख लि!खवाकर पकिvकाओं र्में क्षिभ5वाते रे्थ। उन्होंने कई पvों के आर्शिर्थ-क स्तम्भ का कार्म चन्दर को दिद!वा दिदया र्था और उसके बाद चन्दर के लि!ए डॉ. शुक्!ा का स्थान अपने संरक्षक और किपता से भी ज्यादा हो गया र्था। चन्दर शरर्मी!ा !ड़का र्था, बेहद शरर्मी!ा, कभी उसने यूकिनवर्शिस-Kी के व5ीफे के लि!ए भी कोलिशश न की र्थी, !ेकिकन 5ब बी. ए. र्में वह सारी यूकिनवर्शिस-Kी र्में सव�प्रर्थर्म आया तब स्वयं इकनॉधिर्मक्स किवभाग ने उसे यूकिनवर्शिस-Kी के आर्शिर्थ-क प्रकाशनों का वैतकिनक सम्पादक बना दिदया र्था। एर्म. ए. र्में भी वह सव�प्रर्थर्म आया और उसके बाद उसने रिरसच� !े !ी। उसके बाद डॉ. शुक्!ा यूकिनवर्शिस-Kी से हKकर ब्यूरो र्में च!े गये रे्थ। अगर सच पूछा 5ाय तो उसके सारे कैरिरयर का श्रेय डॉ. शुक्!ा को र्था जि5न्होंने हरे्मशा उसकी किहम्र्मत बढ़ायी और उसको अपने !ड़के से बwक़र र्माना। अपनी सारी र्मदद के बाव5ूद डॉ. शुक्!ा ने उससे इतना अपनापन बनाये रखा किक कैसे धीरे-धीरे चन्दर सारी गैरिरयत खो बैठा; यह उसे खुद नहीं र्मा!ूर्म। यह बँग!ा, इसके कर्मरे, इसके !ॉन, इसकी किकताबें, इसके किनवासी, सभी कुछ 5ैसे उसके अपने रे्थ और सभी का उससे 5ाने किकतने 5न्र्मों का सम्बन्ध र्था।

और यह नन्ही दुब!ी-पत!ी रंगीन चन्द्रकिकरन-सी सुधा। 5ब आ5 से वष� पह!े यह सातवीं पास करके अपनी बुआ के पास से यहाँ आयी र्थी तब से !ेकर आ5 तक कैसे वह भी चन्दर की अपनी होती गयी र्थी, इसे चन्दर खुद नहीं 5ानता र्था। 5ब वह आयी र्थी तब वह बहुत शरर्मी!ी र्थी, बहुत भो!ी र्थी, आठवीं र्में पwऩे के बाव5ूद वह खाना खाते वक्त रोती र्थी, र्मच!ती र्थी तो अपनी कॉपी फाड़ डा!ती र्थी और 5ब तक डॉक्Kर साहब उसे गोदी र्में किबठाकर नहीं र्मनाते रे्थ, वह स्कू! नहीं 5ाती र्थी। तीन बरस की अवस्था र्में ही उसकी र्माँ च! बसी र्थी और दस सा! तक वह अपनी बुआ के पास एक गाँव र्में रही र्थी। अब तेरह वष� की होने पर गाँव वा!ों ने उसकी शादी पर 5ोर देना और शादी न होने पर गाँव की औरतों ने हार्थ नचाना और र्मुँह र्मKकाना शुरू किकया तो डॉक्Kर साहब ने उसे इ!ाहाबाद बु!ाकर आठवीं र्में भतr करा दिदया। 5ब वह आयी र्थी तो आधी 5ंग!ी र्थी, तरकारी र्में घी कर्म होने पर वह र्महराजि5न का चौका 5ूठा कर देती र्थी और रात र्में फू! तोडक़र न !ाने पर अकसर उसने र्मा!ी को दाँत भी काK खाया र्था। चन्दर से 5रूर वह बेहद डरती र्थी, पर न 5ाने क्यों चन्दर भी उससे नहीं बो!ता र्था। !ेकिकन 5ब दो सा! तक उसके ये उपद्रव 5ारी रहे और अक्सर डॉक्Kर साहब गुस्से के र्मारे उसे न सार्थ खिख!ाते रे्थ और न उससे बो!ते रे्थ, तो वह रो-रोकर और लिसर पKक-पKककर अपनी 5ान आधी कर देती र्थी। तब अक्सर चन्दर ने किपता और पुvी का सर्मझौता कराया र्था, अक्सर सुधा को डाँKा र्था, सर्मझाया र्था, और सुधा, घर-भर से अल्हड़ पुरवाई और किवद्रोही झोंके की तरह तोड़-फोड़ र्मचाती रहने वा!ी सुधा, चन्दर की आँख के इशारे पर सुबह की नसीर्म की तरह शान्त हो 5ाती र्थी। कब और क्यों उसने चन्दर के इशारों का यह र्मौन अनुशासन स्वीकार कर लि!या र्था, यह उसे खुद नहीं र्मा!ूर्म र्था, और यह सभी कुछ इतने स्वाभाकिवक wंग से, इतना अपने-आप होता गया किक दोनों र्में से कोई भी इस प्रकिक्रया से वाकिकफ नहीं र्था, कोई भी इसके प्रकित 5ागरूक न र्था, दोनों का एक-दूसरे के प्रकित अधिधकार और आकष�ण इतना स्वाभाकिवक र्था 5ैसे शरद की पकिवvता या सुबह की रोशनी।

और र्म5ा तो यह र्था किक चन्दर की शक्! देखकर लिछप 5ाने वा!ी सुधा इतनी wीठ हो गयी र्थी किक उसका सारा किवद्रोह, सारी झुँझ!ाहK, धिर्म5ा5 की सारी ते5ी, सारा तीखापन और सारा !ड़ाई-झगड़ा, सभी की तरफ से हKकर चन्दर की ओर केजिन्द्रत हो गया र्था। वह किवद्रोकिहनी अब शान्त हो गयी र्थी। इतनी शान्त, इतनी सुशी!, इतनी किवनम्र, इतनी धिर्मष्टभाकिषणी किक सभी को देखकर ताज्जुब होता र्था, !ेकिकन चन्दर को देखकर 5ैसे उसका बचपन किफर !ौK आता र्था और 5ब तक वह चन्दर को खिखझाकर, छेडक़र !ड़ नहीं !ेती र्थी उसे चैन नहीं पड़ता र्था। अक्सर दोनों र्में अनबो!ा रहता र्था, !ेकिकन 5ब दो दिदन तक दोनों र्मुँह फु!ाये रहते रे्थ और डॉक्Kर साहब के !ौKने पर सुधा उत्साह से उनके ब्यूरो का हा! नहीं पूछती र्थी और खाते वक्त दु!ार नहीं दिदखाती र्थी तो डॉक्Kर साहब फौरन पूछते रे्थ, ''क्या... चन्दर से !ड़ाई हो गयी क्या?'' किफर वह र्मुँह फु!ाकर लिशकायत करती र्थी और लिशकायतें भी क्या-क्या होती र्थीं, चन्दर ने उसकी हेड धिर्मस्टे्रस का नार्म ए!ीफैं Kा (श्रीर्मती हलिर्थनी) रखा र्था, या चन्दर ने उसको किडबेK के भाषण के प्वाइंK नहीं बताये, या चन्दर कहता है किक सुधा की सखिखयाँ कोय!ा बेचती हैं, और 5ब डॉक्Kर साहब कहते हैं किक वह चन्दर को डाँK देंगे तो वह खुशी से फू! उठती और चन्दर के आने पर आँखें नचाती हुई लिचढ़ाती र्थी, ''कहो, कैसी डाँK पड़ी?''

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वैसे सुधा अपने घर की पुरखिखन र्थी। किकस र्मौसर्म र्में कौन-सी तरकारी पापा को र्माकिफक पड़ती है, बा5ार र्में ची5ों का क्या भाव है, नौकर चोरी तो नहीं करता, पापा किकतने सोसायदिKयों के र्मेम्बर हैं, चन्दर के इक्नॉधिर्मक्स के कोस� र्में क्या है, यह सभी उसे र्मा!ूर्म र्था। र्मोKर या किब5!ी किबगड़ 5ाने पर वह र्थोड़ी-बहुत इं5ीकिनयरिर-ग भी कर !ेती र्थी और र्मातृत्व का अंश तो उसर्में इतना र्था किक हर नौकर और नौकरानी उससे अपना सुख-दु:ख कह देते रे्थ। पढ़ाई के सार्थ-सार्थ घर का सारा कार्म-का5 करते हुए उसका स्वास्थ्य भी कुछ किबगड़ गया र्था और अपनी उम्र के किहसाब से कुछ अधिधक शान्त, संयर्म, गम्भीर और बु5ुग� र्थी, र्मगर अपने पापा और चन्दर, इन दोनों के सार्मने हरे्मशा उसका बचपन इठ!ाने !गता र्था। दोनों के सार्मने उसका हृदय उन्रु्मक्त र्था और स्नेह बाधाहीन।

!ेकिकन हाँ, एक बात र्थी। उसे जि5तना स्नेह और स्नेह-भरी फKकारें और स्वास्थ्य के प्रकित लिचन्ता अपने पापा से धिर्म!ती र्थी, वह सब बडे़ किन:स्वार्थ� भाव से वह चन्दर को दे डा!ती र्थी। खाने-पीने की जि5तनी परवाह उसके पापा उसकी रखते रे्थ, न खाने पर या कर्म खाने पर उसे जि5तने दु!ार से फKकारते रे्थ, उतना ही ख्या! वह चन्दर का रखती र्थी और स्वास्थ्य के लि!ए 5ो उपदेश उसे पापा से धिर्म!ते रे्थ, उसे और भी स्नेह र्में पागकर वह चन्दर को दे डा!ती र्थी। चन्दर कै ब5े खाना खाता है, यहाँ से 5ाकर घर पर किकतनी देर पढ़ता है, रात को सोते वक्त दूध पीता है या नहीं, इन सबका !ेखा-5ोखा उसे सुधा को देना पड़ता, और 5ब कभी उसके खाने-पीने र्में कोई कर्मी रह 5ाती तो उसे सुधा की डाँK खानी ही पड़ती र्थी। पापा के लि!ए सुधा अभी बच्ची र्थी; और स्वास्थ्य के र्मार्म!े र्में सुधा के लि!ए चन्दर अभी बच्चा र्था। और कभी-कभी तो सुधा की स्वास्थ्य-लिचन्ता इतनी ज्यादा हो 5ाती र्थी किक चन्दर बेचारा 5ो खुद तन्दुरुस्त र्था, घबरा उठता र्था। एक बार सुधा ने कर्मा! कर दिदया। उसकी तबीयत खराब हुई और डॉक्Kर ने उसे !ड़किकयों का एक Kॉकिनक पीने के लि!ए बताया। इम्तहान र्में 5ब चन्दर कुछ दुब!ा-सा हो गया तो सुधा अपनी बची हुई दवा !े आयी। और !गी चन्दर से जि5द करने किक ''किपयो इसे!'' 5ब चन्दर ने किकसी अखबार र्में उसका किवज्ञापन दिदखाकर बताया किक !ड़किकयों के लि!ए है, तब कहीं 5ाकर उसकी 5ान बची।

इसीलि!ए 5ब आ5 सुधा ने चाय के लि!ए कहा तो उसकी रूह काँप गयी क्योंकिक 5ब कभी सुधा चाय बनाती र्थी तो प्या!े के र्मुँह तक दूध भरकर उसर्में दो-तीन चम्र्मच चाय का पानी डा! देती र्थी और अगर उसने ज्यादा स्ट्रांग चाय की र्माँग की तो उसे खालि!स दूध पीना पड़ता र्था। और चाय के सार्थ फ! और र्मेवा और खुदा 5ाने क्या-क्या, और उसके बाद सुधा का इसरार, न खाने पर सुधा का गुस्सा और उसके बाद की !म्बी-चौड़ी र्मनुहार; इस सबसे चन्दर बहुत घबराता र्था। !ेकिकन 5ब सुधा उसे स्Kडी रूर्म र्में किबठाकर 5ल्दी से चाय बना !ायी तो उसे र्म5बूर होना पड़ा, और बैठे-बैठे किनहायत बेबसी से उसने देखा किक सुधा ने प्या!े र्में दूध डा!ा और उसके बाद र्थोड़ी-सी चाय डा! दी। उसके बाद अपने प्या!े र्में चाय डा!कर और दो चम्र्मच दूध डा!कर आप ठाठ से पीने !गे, और बेतकल्!ुफी से दूधिधया चाय का प्या!ा चन्दर के सार्मने खिखसकाकर बो!ी, ''पीजि5ए, नाश्ता आ रहा है।''

चन्दर ने प्या!े को अपने सार्मने रखा और उसे चारों तरफ घुर्माकर देखता रहा किक किकस तरफ से उसे चाय का अंश धिर्म! सकता है। 5ब सभी ओर से प्या!े र्में क्षीरसागर न5र आया तो उसने हारकर प्या!ा रख दिदया।

''क्यों, पीते क्यों नहीं?'' सुधा ने अपना प्या!ा रख दिदया।

''पीए ँक्या? कहीं चाय भी हो?''

''तो और क्या खालि!स चाय पीजि5एगा? दिदर्मागी कार्म करने वा!ों को ऐसी ही चाय पीनी चाकिहए।''

''तो अब र्मुझे सोचना पडे़गा किक र्मैं चाय छोडँ़ू या रिरसच�। न ऐसी चाय र्मुझे पसन्द, न ऐसा दिदर्मागी कार्म!''

''!ो, आपको किवश्वास नहीं होता। र्मेरी क्!ासफे!ो है गेसू का5र्मी; सबसे ते5 !ड़की है, उसकी अम्र्मी उसे दूध र्में चाय उबा!कर देती है।''

''क्या नार्म है तुम्हारी सखी का?''

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''गेसू!''

''बड़ा अच्छा नार्म है!''

''और क्या! र्मेरी सबसे घकिनष्ठ धिर्मv है और उतनी ही अच्छी है जि5तना अच्छा नार्म!''

''5रूर-5रूर,'' र्मुँह किबचकाते हुए चन्दर ने कहा, ''और उतनी ही का!ी होगी, जि5तने का!े गेसू।''

''धत्, शरर्म नहीं आती किकसी !ड़की के लि!ए ऐसा कहते हुए!''

''और हर्मारे दोस्तों की बुराई करती हो तब?''

''तब क्या! वे तो सब हैं ही बुरे! अच्छा तो नाश्ता, पह!े फ! खाओ,'' और वह प्!ेK र्में छी!-छी!कर सन्तरा रखने !गी। इतने र्में ज्यों ही वह झुककर एक किगरे हुए सन्तरे को नीचे से उठाने !गी किक चन्दर ने झK से उसका प्या!ा अपने सार्मने रख लि!या और अपना प्या!ा उधर रख दिदया और शान्त लिचत्त से पीने !गा। सन्तरे की फाँकें उसकी ओर बढ़ाते हुए ज्यों ही उसने एक घूँK चाय !ी तो वह चौंककर बो!ी, ''अरे, यह क्या हुआ?''

''कुछ नहीं, हर्मने उसर्में दूध डा! दिदया। तुम्हें दिदर्मागी कार्म बहुत रहता है!'' चन्दर ने ठाठ से चाय घूँKते हुए कहा। सुधा कुढ़ गयी। कुछ बो!ी नहीं। चाय खत्र्म करके चन्दर ने घड़ी देखी।

''अच्छा !ाओ, क्या Kाइप कराना है? अब बहुत देर हो रही है।''

''बस यहाँ तो एक धिर्मनK बैठना बुरा !गता है आपको! हर्म कहते हैं किक नाश्ते और खाने के वक्त आदर्मी को 5ल्दी नहीं करनी चाकिहए। बैदिठए न!''

''अरे, तो तुम्हें कॉ!े5 की तैयारी नहीं करनी है?''

''करनी क्यों नहीं है। आ5 तो गेसू को र्मोKर पर !ेते हुए तब 5ाना है!''

''तुम्हारी गेसू और कभी र्मोKर पर चढ़ी है?''

''5ी, वह साकिबर हुसैन का5र्मी की !ड़की है, उसके यहाँ दो र्मोKरें हैं और रो5 तो उसके यहाँ दावतें होती रहती हैं।''

''अच्छा, हर्मारी तो दावत कभी नहीं की?''

''अहा हा, गेसू के यहाँ दावत खाएगँे! इसी र्मुँह से! 5नाब उसकी शादी भी तय हो गयी है, अग!े 5ाड़ों तक शायद हो भी 5ाय।''

''लिछह, बड़ी खराब !ड़की हो! कहाँ रहता है ध्यान तुम्हारा?''

सुधा ने र्म5ाक र्में पराजि5त कर बहुत किव5य-भरी र्मुसकान से उसकी ओर देखा। चन्दर ने झेंपकर किनगाह नीची कर !ी तो सुधा पास आकर चन्दर का कन्धा पकडक़र बो!ी-''अरे उदास हो गये, नहीं भइया, तुम्हारा भी ब्याह तय कराएगेँ, घबराते क्यों हो!'' और एक र्मोKी-सी इकनॉधिर्मक्स की किकताब उठाकर बो!ी, ''!ो, इस र्मुKकी से ब्याह करोगे! !ो बातचीत कर !ो, तब तक र्मैं वह किनबन्ध !े आऊँ, Kाइप कराने वा!ा।''

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चन्दर ने खिखलिसयाकर बड़ी 5ोर से सुधा का हार्थ दबा दिदया। ''हाय रे!'' सुधा ने हार्थ छुड़ाकर र्मुँह बनाते हुए कहा, ''!ो बाबा, हर्म 5ा रहे हैं, काहे किबगड़ रहे हैं आप?'' और वह च!ी गयी! डॉक्Kर साहब का लि!खा हुआ किनबन्ध उठा !ायी और बो!ी, ''!ो, यह किनबन्ध की पाJडुलि!किप है।'' उसके बाद चन्दर की ओर बडे़ दु!ार से देखती हुई बो!ी, ''शार्म को आओगे?''

''न!''

''अच्छा, हर्म परेशान नहीं करेंगे। तुर्म चुपचाप पwऩा। 5ब रात को पापा आ 5ाए ँतो उन्हें किनबन्ध की प्रकितलि!किप देकर च!े 5ाना!''

''नहीं, आ5 शार्म को र्मेरी दावत है ठाकुर साहब के यहाँ।''

''तो उसके बाद आ 5ाना। और देखो, अब फरवरी आ गयी है, र्मास्Kर wँूढ़ दो हर्में।''

''नहीं, ये सब झूठी बात है। हर्म क! सुबह आएगेँ।''

''अच्छा, तो सुबह 5ल्दी आना और देखो, र्मास्Kर !ाना र्मत भू!ना। ड्राइवर तुम्हें र्मुक5r रोड पहुँचा देगा।''

वह कार र्में बैठ गया और कार स्KाK� हो गयी किक किफर सुधा ने पुकारा। वह किफर उतरा। सुधा बो!ी, ''!ो, यह लि!फाफा तो भू! ही गये रे्थ। पापा ने लि!ख दिदया है। उसे दे देना।''

''अच्छा।'' कहकर किफर चन्दर च!ा किक किफर सुधा ने पुकारा, ''सुनो!''

''एक बार र्में क्यों नहीं कह देती सब!'' चन्दर ने झल्!ाकर कहा।

''अरे बड़ी गम्भीर बात है। देखो, वहाँ कुछ ऐसी-वैसी बात र्मत कहना !ड़की से, वरना उसके यहाँ दो बडे़-बडे़ बु!डॉग हैं।'' कहकर उसने गा! फु!ाकर, आँख फै!ाकर ऐसी बु!डॉग की भंकिगर्मा बनायी किक चन्दर हँस पड़ा। सुधा भी हँस पड़ी।

ऐसी र्थी सुधा, और ऐसा र्था चन्दर।

लिसकिव! !ाइन्स के एक उ5ाड़ किहस्से र्में एक पुराने-से बँग!े के सार्मने आकर र्मोKर रुकी। बँग!े का नार्म र्था 'रो5!ान' !ेकिकन सार्मने के कम्पाउंड र्में 5ंग!ी घास उग रही र्थी और गु!ाब के फू!ों के ब5ाय अहाते र्में र्मुरगी के पंख किबखरे पडे़ रे्थ। रास्ते पर भी घास उग आयी र्थी और और फाKक पर, जि5सके एक खम्भे की कॉर्तिन-स KूK चुकी र्थी, ब5ाय !ोहे के दरवा5े के दो आडे़ बाँस !गे हुए रे्थ। फाKक के एक ओर एक छोKा-सा !कड़ी का नार्मपK! !गा र्था, 5ो कभी का!ा रहा होगा, !ेकिकन जि5से धू!, बरसात और हवा ने लिचतकबरा बना दिदया र्था। चन्दर र्मोKर से उतरकर उस बोड� पर लि!खे हुए अधधिर्मKे सफेद अक्षरों को पwऩे की कोलिशश करने !गा, और 5ाने किकसका र्मुँह देखकर सुबह उठा र्था किक उसे सफ!ता भी धिर्म! गयी। उस पर लि!खा र्था, 'ए. एफ. किडकू्र5'। उसने 5ेब से लि!फाफा किनका!ा और पता धिर्म!ाया। लि!फाफे पर लि!खा र्था, 'धिर्मस पी. किडकू्र5'। यही बँग!ा है, उसे सन्तोष हुआ।

''हॉन� दो!'' उसने ड्राइवर से कहा। ड्राइवर ने हॉन� दिदया। !ेकिकन किकसी का बाहर आना तो दूर, एक र्मुरगा, 5ो अहाते र्में कुडकु़ड़ा रहा र्था, उसने र्मुडक़र बडे़ सन्देह और vास से चन्दर की ओर देखा और उसके बाद पंख फडफ़ड़ाते हुए, चीखते हुए 5ान छोडक़र भागा। ''बड़ा र्मनहूस बँग!ा है, यहाँ आदर्मी रहते हैं या पे्रत?'' कपूर ने ऊबकर कहा और ड्राइवर से बो!ा, ''5ाओ तुर्म, हर्म अन्दर 5ाकर देखते हैं!''

''अच्छा हु5ूर, सुधा बीबी से क्या कह देंगे?''

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''कह देना, पहुँचा दिदया।''

कार र्मुड़ी और कपूर बाँस फाँदकर अन्दर घुसा। आगे का पोर्दिK-को खा!ी पड़ा र्था और नीचे की 5र्मीन ऐसी र्थी 5ैसे कई सा! से उस बँग!े र्में कोई सवारी गाड़ी न आयी हो। वह बरार्मदे र्में गया। दरवा5े बन्द रे्थ और उन पर धू! 5र्मी र्थी। एक 5गह चौखK और दरवा5े के बीच र्में र्मकड़ी ने 5ा!ा बुन रखा र्था। 'यह बँग!ा खा!ी है क्या?' कपूर ने सोचा। सुबह साढे़ आठ ब5े ही वहाँ ऐसा स�ाKा छाया र्था किक दिद! घबरा 5ाय। आस-पास चारों ओर आधी फ!ा�ग तक कोई बँग!ा नहीं र्था। उसने सोचा बँग!े के पीछे की ओर शायद नौकरों की झोंपकिडय़ाँ हों। वह दायें बा5ू से र्मुड़ा और खुशबू का एक ते5 झोंका उसे चूर्मता हुआ किनक! गया। 'ताज्जुब है, यह स�ाKा, यह र्मनहूसी और इतनी खुशबू!' कपूर ने कहा और आगे बढ़ा तो देखा किक बँग!े के किपछवाडे़ गु!ाब का एक बहुत खूबसूरत बाग है। कच्ची रकिवशें और बडे़-बडे़ गु!ाब, हर रंग के। वह सचर्मुच 'रो5!ान' र्था।

वह बाग र्में पहुँचा। उधर से भी बँग!े के दरवा5े बन्द रे्थ। उसने खKखKाया !ेकिकन कोई 5वाब नहीं धिर्म!ा। वह बाग र्में घुसा किक शायद कोई र्मा!ी कार्म कर रहा हो। बीच-बीच र्में ऊँचे-ऊँचे 5ंग!ी चर्मे!ी के झाड़ रे्थ और कहीं-कहीं !ोहे की छड़ों के कKघरे। बेगर्मबेलि!या भी फू! रही र्थी !ेकिकन चारों ओर एक अ5ब-सा स�ाKा र्था और हर फू! पर किकसी खार्मोशी के फरिरश्ते की छाँह र्थी। फू!ों र्में रंग र्था, हवा र्में ता5गी र्थी, पेड़ों र्में हरिरया!ी र्थी, झोंकों र्में खुशबू र्थी, !ेकिकन किफर भी सारा बाग एक ऐसे लिसतारों का गु!दस्ता !ग रहा र्था जि5नकी चर्मक, जि5नकी रोशनी और जि5नकी ऊँचाई !ुK चुकी हो। !गता र्था 5ैसे बाग का र्मालि!क र्मौसर्मी रंगीनी भू! चुका हो, क्योंकिक नैस्Kर्शिश-यर्म या स्वीKपी या फ्!ाक्स, कोई भी र्मौसर्मी फू! न र्था, लिसफ� गु!ाब रे्थ और 5ंग!ी चर्मे!ी र्थी और बेगर्मबेलि!या र्थी 5ो सा!ों पह!े बोये गये रे्थ। उसके बाद उन्हीं की काK-छाँK पर बाग च! रहा र्था। बागबानी र्में कोई नवीनता और र्मौसर्म का उल्!ास न र्था।

चन्दर फू!ों का बेहद शौकीन र्था। सुबह घूर्मने के लि!ए उसने दरिरया किकनारे के ब5ाय अल्फे्रड पाक� चुना र्था क्योंकिक पानी की !हरों के ब5ाय उसे फू!ों के बाग के रंग और सौरभ की !हरों से बेहद प्यार र्था। और उसे दूसरा शौक र्था किक फू!ों के पौधों के पास से गु5रते हुए हर फू! को सर्मझने की कोलिशश करना। अपनी ना5ुक Kहकिनयों पर हँसते-र्मुसकराते हुए ये फू! 5ैसे अपने रंगों की बो!ी र्में आदर्मी से जि5-दगी का 5ाने कौन-सा रा5 कहना चाहते हैं। और ऐसा !गता है किक 5ैसे हर फू! के पास अपना व्यलिक्तगत सन्देश है जि5से वह अपने दिद! की पाँखुरिरयों र्में आकिहस्ते से सहे5 कर रखे हुए हैं किक कोई सुनने वा!ा धिर्म!े और वह अपनी दास्ताँ कह 5ाए। पौधे की ऊपरी फुनगी पर र्मुसकराता हुआ आसर्मान की तरफ र्मुँह किकये हुए यह गु!ाब 5ो रात-भर लिसतारों की र्मुसकराहK चुपचाप पीता रहा है, यह अपने र्मोकितयों-पाँखुरिरयों के होठों से 5ाने क्यों खिख!खिख!ाता ही 5ा रहा है। 5ाने इसे कौन-सा रहस्य धिर्म! गया है। और वह एक नीचे वा!ी Kहनी र्में आधा झुका हुआ गु!ाब, झुकी हुई प!कों-सी पाँखुरिरयाँ और दोहरे र्मखर्म!ी तार-सी उसकी डंडी, यह गु!ाब 5ाने क्यों उदास है? और यह दुब!ी-पत!ी !म्बी-सी ना5ुक क!ी 5ो बहुत सावधानी से हरा आँच! !पेKे है और प्रर्थर्म ज्ञात-यौवना की तरह !ा5 र्में 5ो लिसर्मKी तो लिसर्मKी ही च!ी 5ा रही है, !ेकिकन जि5सके यौवन की गु!ाबी !पKें सात हरे परदों र्में से झ!की ही पड़ती हैं, झ!की ही पड़ती हैं। और फारस के शाह5ादे 5ैसा शान से खिख!ा हुआ पी!ा गु!ाब! उस पी!े गु!ाब के पास आकर चन्दर रुक गया और झुककर देखने !गा। काकितक पूनो के चाँद से झरने वा!े अर्मृत को पीने के लि!ए व्याकु! किकसी सुकुर्मार, भावुक परी की फै!ी हुई अं5लि! के बराबर बड़ा-सा वह फू! 5ैसे रोशनी किबखेर रहा र्था। बेगर्मबेलि!या के कंु5 से छनकर आनेवा!ी तोतापंखी धूप ने 5ैसे उस पर धान-पान की तरह खुशनुर्मा हरिरया!ी किबखेर दी र्थी। चन्दर ने सोचा, उसे तोड़ !ें !ेकिकन किहम्र्मत न पड़ी। वह झुका किक उसे सँूघ ही !ें। सँूघने के इरादे से उसने हार्थ बढ़ाया ही र्था किक किकसी ने पीछे से गर5कर कहा, ''हीयर यू आर, आई हैव काK रेड-हैJडेड Kुडे!'' (यह तुर्म हो; आ5 तुम्हें र्मौके पर पकड़ पाया हूँ)

और उसके बाद किकसी ने अपने दोनों हार्थों र्में 5कड़ लि!या और उसकी गरदन पर सवार हो गया। वह उछ! पड़ा और अपने को छुड़ाने की कोलिशश करने !गा। पह!े तो वह कुछ सर्मझ नहीं पाया। अ5ब रहस्यर्मय है यह बँग!ा। एक अव्यक्त भय और एक लिसहरन र्में उसके हार्थ-पाँव wी!े हो गये। !ेकिकन उसने किहम्र्मत करके अपना एक हार्थ छुड़ा लि!या और र्मुडक़र देखा तो एक बहुत कर्म5ोर, बीर्मार-सा, पी!ी आँखों वा!ा गोरा उसे पकडे़ हुए र्था। चन्दर के दूसरे हार्थ को किफर पकडऩे की कोलिशश करता हुआ वह हाँफता हुआ बो!ा (अँग्रे5ी र्में), ''रो5-रो5 यहाँ से फू!

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गायब होते रे्थ। र्मैं कहता र्था, कहता र्था, कौन !े 5ाता है। हो...हो...,'' वह हाँफता 5ा रहा र्था, ''आ5 र्मैंने पकड़ा तुम्हें। रो5 चुपके से च!े 5ाते रे्थ...'' वह चन्दर को कसकर पकडे़ र्था !ेकिकन उस बीर्मार गोरे की साँस 5ैसे छूKी 5ा रही र्थी। चन्दर ने उसे झKका देकर धके! दिदया और डाँKकर बो!ा, ''क्या र्मत!ब है तुम्हारा! पाग! है क्या! खबरदार 5ो हार्थ बढ़ाया, अभी wेर कर दँूगा तुझे! गोरा सुअर!'' और उसने अपनी आस्तीनें चढ़ायीं।

वह धक्के से किगर गया र्था, धू! झाड़ते उठ बैठा और बड़ी ही रोनी आवा5 र्में बो!ा, ''किकतना 5ुल्र्म है, किकतना 5ुल्र्म है! र्मेरे फू! भी तुर्म चुरा !े गये और र्मुझे इतना हक भी नहीं किक तुम्हें धर्मकाऊँ! अब तुर्म र्मुझसे !ड़ोगे! तुर्म 5वान हो, र्मैं बूढ़ा हूँ। हाय रे र्मैं!'' और सचर्मुच वह 5ैसे रोने !गा हो।

चन्दर ने उसका रोना देखा और उसका सारा गुस्सा हवा हो गया और हँसी रोककर बो!ा, ''ग!तफहर्मी है, 5नाब! र्मैं बहुत दूर रहता हूँ। र्मैं लिचठ्ठी !ेकर धिर्मस किडकू्र5 से धिर्म!ने आया र्था।''

उसका रोना नहीं रुका, ''तुर्म बहाना बनाते हो, बहाना बनाते हो और अगर र्मैं किवश्वास नहीं करता तो तुर्म र्मारने की धर्मकी देते हो? अगर र्मैं कर्म5ोर न होता...तो तुम्हें पीसकर खा 5ाता और तुम्हारी खोपड़ी कुच!कर फें क देता 5ैसे तुर्मने र्मेरे फू! फें के होंगे?''

''किफर तुर्मने गा!ी दी! र्मैं उठाकर तुम्हें अभी ना!े र्में फें क दँूगा!''

''अरे बाप रे! दौड़ो, दौड़ो, र्मुझे र्मार डा!ा...पॉपी...Kॉर्मी...अरे दोनों कुत्ते र्मर गये...।'' उसने डर के र्मारे चीखना शुरू किकया।

''क्या है, बK\? क्यों लिचल्!ा रहे हो?'' बार्थरूर्म के अन्दर से किकसी ने लिचल्!ाकर कहा।

''अरे र्मार डा!ा इसने...दौड़ो-दौड़ो!''

झKके से बार्थरूर्म का दरवा5ा खु!ा बेदिदङ्-गाउन पहने हुए एक !ड़की दौड़ती हुई आयी और चन्दर को देखकर रुक गयी।

''क्या है?'' उसने डाँKकर पूछा।

''कुछ नहीं, शायद पाग! र्मा!ूर्म देता है!''

''5बान सँभा!कर बो!ो, वह र्मेरा भाई है!''

''ओह! कोई भी हो। र्मैं धिर्मस किडकू्र5 से धिर्म!ने आया र्था। र्मैंने आवा5 दी तो कोई नहीं बो!ा। र्मैं बाग र्में घूर्मने !गा। इतने र्में इसने र्मेरी गरदन पकड़ !ी। यह बीर्मार और कर्म5ोर है वरना अभी गरदन दबा देता।''

गोरा उस !ड़की के आते ही किफर तनकर खड़ा हो गया और दाँत पीसकर बो!ा, ''अरे र्मैं तुम्हारे दाँत तोड़ दँूगा। बदर्माश कहीं का, चुपके-चुपके आया और गु!ाब तोडऩे !गा। र्मैं चर्मे!ी के झाड़ के पीछे लिछपा देख रहा र्था।''

''अभी र्मैं पुलि!स बु!ाती हूँ, तुर्म देखते रहो बK\ इसे। र्मैं फोन करती हूँ।''

!ड़की ने डाँKते हुए कहा।

''अरे भाई, र्मैं धिर्मस किडकू्र5 से धिर्म!ने आया हूँ।''

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''र्मैं तुम्हें नहीं 5ानती, झूठा कहीं का। र्मैं धिर्मस किडकू्र5 हूँ।''

''देखिखए तो यह खत!''

!ड़की ने खत खो!ा और पढ़ा और एकदर्म उसने आवा5 बद! दी।

''लिछह बK\, तुर्म किकसी दिदन पाग!खाने 5ाओगे। आपको डॉ. शुक्!ा ने भे5ा है। तुर्म तो र्मुझे बदनार्म करा डा!ोगे!''

उसकी शक्! और भी रोनी हो गयी , ''र्मैं नहीं 5ानता र्था, र्मैं 5ानता नहीं र्था।'' उसने और भी घबराकर कहा।

''र्माफ कीजि5एगा!'' !ड़की ने बडे़ र्मीठे स्वर र्में साफ किहन्दुस्तानी र्में कहा, ''र्मेरे भाई का दिदर्माग ज़रा ठीक नहीं रहता, 5ब से इनकी पत्नी की र्मौत हो गयी।''

''इसका र्मत!ब ये नहीं किक ये किकसी भ!े आदर्मी की इज्जत उतार !ें।'' चन्दर ने किबगडक़र कहा।

''देखिखए, बुरा र्मत र्माकिनए। र्मैं इनकी ओर से र्माफी र्माँगती हूँ। आइए, अन्दर चलि!ए।'' उसने चन्दर का हार्थ पकड़ लि!या। उसका हार्थ बेहद ठJडा र्था। वह नहाकर आ रही र्थी। उसके हार्थ के उस तुषार स्पश� से चन्दर लिसहर उठा और उसने हार्थ झKककर कहा, ''अफसोस, आपका हार्थ तो बफ� है?''

!ड़की चौंक गयी। वह सद्य:स्नाता सहसा सचेत हो गयी और बो!ी, ''अरे शैतान तुम्हें !े 5ाए, बK\! तुम्हारे पीछे र्मैं बेदिदङ् गाउन र्में भाग आयी।'' और बेदिदङ् गाउन के दोनों का!र पकडक़र उसने अपनी खु!ी गरदन wँकने का प्रयास किकया और किफर अपनी पोशाक पर !ण्डिज्जत होकर भागी।

अभी तक गुस्से के र्मारे चन्दर ने उस पर ध्यान ही नहीं दिदया र्था। !ेकिकन उसने देखा किक वह तेईस बरस की दुब!ी-पत!ी तरुणी है। !हराता हुआ बदन, ग!े तक कKे हुए बा!। एगं्!ो-इंकिडयन होने के बाव5ूद गोरी नहीं है। चाय की तरह वह हल्की, पत!ी, भूरी और तुश� र्थी। भागते वक्त ऐसी !ग रही र्थी 5ैसे छ!कती हुई चाय।

इतने र्में वह गोरा उठा और चन्दर का कन्धा छूकर बो!ा, ''र्माफ करना, भाई! उससे र्मेरी लिशकायत र्मत करना। अस! र्में ये गु!ाब र्मेरी र्मृत पत्नी की यादगार हैं। 5ब इनका पह!ा पेड़ आया र्था तब र्मैं इतना ही 5वान र्था जि5तने तुर्म, और र्मेरी पत्नी उतनी ही अच्छी र्थी जि5तनी पम्र्मी।''

''कौन पम्र्मी?''

''यह र्मेरी बहन प्रधिर्म!ा किडकू्र5!''

''ओह! कब र्मरी आपकी पत्नी?ï र्माफ कीजि5एगा र्मुझे भी र्मा!ूर्म नहीं र्था!''

''हाँ, र्मैं बड़ा अभागा हूँ। र्मेरा दिदर्माग कुछ खराब है; देखिखए!'' कहकर उसने झुककर अपनी खोपड़ी चन्दर के सार्मने कर दी और बहुत किगड़किगड़ाकर बो!ा, ''पता नहीं कौन र्मेरे फू! चुरा !े 5ाता है! अपनी पत्नी की र्मृत्यु के बाद पाँच सा! से र्मैं इन फू!ों को सँभा! रहा हूँ। हाय रे र्मैं! 5ाइए, पम्र्मी बु!ा रही है।''

किपछवाडे़ के सहन का बीच का दरवा5ा खु! गया र्था और पम्र्मी कपडे़ पहनकर बाहर झाँक रही र्थी। चन्दर आगे बढ़ा और गोरा र्मुडक़र अपने गु!ाब और चर्मे!ी की झाड़ी र्में खो गया। चन्दर गया और कर्मरे र्में पडे़ हुए एक सोफा पर बैठ गया। पम्र्मी K्वाय!ेK कर चुकी र्थी और एक हल्की फ्रान्सीसी खुशबू से र्महक रही र्थी। शैम्पू से धु!े हुए रूखे बा! 5ो र्मच!े पड़ रहे रे्थ, खुशनुर्मा आसर्मानी रंग का एक पत!ा लिचपका हुआ झीना ब्!ाउ5 और ब्!ाउ5 पर एक फ्!ैने! का फु!पैंK जि5सके दो गेलि!स कर्मर, छाती और कन्धे पर लिचपके हुए रे्थ। होठों पर एक हल्की

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लि!पस्टिस्Kक की झ!क र्माv र्थी, और ग!े तक बहुत हल्का पाउडर, 5ो बहुत न5दीक से ही र्मा!ूर्म होता र्था। !म्बे नाखूनों पर हल्की गु!ाबी पैंK। वह आयी, किनस्संकोच भाव से उसी सोफे पर कपूर के बग! र्में बैठ गयी और बड़ी र्मु!ायर्म आवा5 र्में बो!ी, ''र्मुझे बड़ा दु:ख है, धिर्मस्Kर कपूर! आपको बहुत तवा!त उठानी पड़ी। चोK तो नहीं आयी?''

''नहीं, नहीं, कोई बात नहीं!'' कपूर का सारा गुस्सा हवा हो गया। कोई भी !ड़की किन:संकोच भाव से, इतनी अपनायत से सहानुभूकित दिदखाये और र्माफी र्माँगे, तो उसके सार्मने कौन पानी-पानी नहीं हो 5ाएगा, और किफर वह भी तब 5बकिक उसके होठों पर न केव! बो!ी अच्छी !गती हो, वरन लि!पस्टिस्Kक भी इतनी प्यारी हो। !ेकिकन चन्दर की एक आदत र्थी। और चाहे कुछ न हो, कर्म-से-कर्म वह यह अच्छी तरह 5ानता र्था किक नारी 5ाकित से व्यवहार करते सर्मय कहाँ पर किकतनी wी! देनी चाकिहए, किकतना कसना चाकिहए, कब सहानुभूकित से उन्हें झुकाया 5ा सकता है, कब अकड़कर। इस वक्त 5ानता र्था किक इस !ड़की से वह जि5तनी सहानुभूकित चाहे, !े सकता है, अपने अपर्मान के ह5ा�ने के तौर पर। इसलि!ए कपूर साहब बो!े, ''!ेकिकन धिर्मस किडकू्र5, आपके भाई बीर्मार होने के बाव5ूद बहुत र्म5बूत हैं। उफ! गरदन पर 5ैसे अभी तक 5!न हो रही है।''

''ओहो! सचर्मुच र्मैं बहुत शर्मिर्म-न्दा हूँ। देखँू!'' और का!र हKाकर उसने गरदन पर अपनी बफ !ी अँगुलि!याँ रख दीं, ''!ाइए, !ोशन र्म! दँू र्मैं!''

''धन्यवाद, धन्यवाद, इतना कष्ट न कीजि5ए। आपकी अँगुलि!याँ गन्दी हो 5ाएगँी!'' कपूर ने बड़ी शा!ीनता से कहा।

पम्र्मी के होठों पर एक हल्की-सी र्मुस्कराहK, आँखों र्में हल्की-सी !ा5 और वक्ष र्में एक हल्का-सा कम्पन दौड़ गया। यह वाक्य कपूर ने चाहे शरारत र्में ही कहा हो, !ेकिकन कहा इतने शान्त और संयत स्वरों र्में किक पम्र्मी कुछ प्रकितवाद भी न कर सकी और किफर छह बरस से साठ बरस तक की कौन ऐसी स्vी है 5ो अपने रूप की प्रशंसा पर बेहोश न हो 5ाए।

''अच्छा !ाइए, वह स्पीच कहाँ है 5ो र्मुझे Kाइप करनी है।'' उसने किवषय बद!ते हुए कहा।

''यह !ीजि5ए।'' कपूर ने दे दी।

''यह तो र्मुश्किश्क! से तीन-चार घJKे का कार्म है?'' और पम्र्मी स्पीच को उ!K-पु!Kकर देखने !गी।

''र्माफ कीजि5एगा, अगर र्मैं कुछ व्यलिक्तगत सवा! पूछँू; क्या आप Kाइकिपस्K हैं?'' कपूर ने बहुत लिशष्टता से पूछा।

''5ी नहीं!'' पम्र्मी ने उन्हीं काग5ों पर न5र गड़ाते हुए कहा, ''र्मैंने कभी Kाइपिप-ग और शाK�हैंड सीखी र्थी, और तब र्मैं सीकिनयर केण्टिम्ब्र5 पास करके यूकिनवर्शिस-Kी गयी र्थी। यूकिनवर्शिस-Kी र्मुझे छोडऩी पड़ी क्योंकिक र्मैंने अपनी शादी कर !ी।''

''अच्छा, आपके पकित कहाँ हैं?''

''राव!पिप-डी र्में, आर्मr र्में।''

''!ेकिकन किफर आप किडकू्र5 क्यों लि!खती हैं, और किफर धिर्मस?''

''क्योंकिक हर्म!ोग अ!ग हो गये हैं।'' और स्पीच के काग5 को किफर तह करती हुई बो!ी-

''धिर्मस्Kर कपूर, आप अकिववाकिहत हैं?''

''5ी हाँ?''

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''और किववाह करने का इरादा तो नहीं रखते?''

''नहीं।''

''बहुत अचे्छ। तब तो हर्म !ोगों र्में किनभ 5ाएगी। र्मैं शादी से बहुत नफरत करती हूँ। शादी अपने को दिदया 5ानेवा!ा सबसे बड़ा धोखा है। देखिखए, ये र्मेरे भाई हैं न, कैसे पी!े और बीर्मार-से हैं। ये पह!े बडे़ तन्दुरुस्त और Kेकिनस र्में प्रान्त के अचे्छ खिख!ाकिडय़ों र्में से रे्थ। एक किबशप की दुब!ी-पत!ी भावुक !ड़की से इन्होंने शादी कर !ी, और उसे बेहद प्यार करते रे्थ। सुबह-शार्म, दोपहर, रात कभी उसे अ!ग नहीं होने देते रे्थ। हनीर्मून के लि!ए उसे !ेकर सी!ोन गये रे्थ। वह !ड़की बहुत क!ाकिप्रय र्थी। बहुत अच्छा नाचती र्थी, बहुत अच्छा गाती र्थी और खुद गीत लि!खती र्थी। यह गु!ाब का बाग उसी ने बनवाया र्था और इन्हीं के बीच र्में दोनों बैठकर घंKों गु5ार देते रे्थ।

''कुछ दिदनों बाद दोनों र्में झगड़ा हुआ। क्!ब र्में बॉ! डान्स र्था और उस दिदन वह !ड़की बहुत अच्छी !ग रही र्थी। बहुत अच्छी। डान्स के वक्त इनका ध्यान डान्स की तरफ कर्म र्था, अपनी पत्नी की तरफ ज्यादा। इन्होंने आवेश र्में उसकी अँगुलि!याँ 5ोर से दबा दीं। वह चीख पड़ी और सभी इन !ोगों की ओर देखकर हँस पडे़।

''वह घर आयी और बहुत किबगड़ी, बो!ी, 'आप नाच रहे रे्थ या Kेकिनस का र्मैच खे! रहे रे्थ, र्मेरा हार्थ र्था या Kेकिनस का रैकK?' इस बात पर बK\ भी किबगड़ गया, और उस दिदन से 5ो इन !ोगों र्में खKकी तो किफर कभी न बनी। धीरे-धीरे वह !ड़की एक सा5¢K को प्यार करने !गी। बK\ को इतना सदर्मा हुआ किक वह बीर्मार पड़ गया। !ेकिकन बK\ ने त!ाक नहीं दिदया, उस !ड़की से कुछ कहा भी नहीं, और उस !ड़की ने सा5¢K से प्यार 5ारी रखा !ेकिकन बीर्मारी र्में बK\ की बहुत सेवा की। बK\ अच्छा हो गया। उसके बाद उसको एक बच्ची हुई और उसी र्में वह र्मर गयी। हा!ाँकिक हर्म !ोग सब 5ानते हैं किक वह बच्ची उस सा5¢K की र्थी !ेकिकन बK\ को यकीन नहीं होता किक वह सा5¢K को प्यार करती र्थी। वह कहता है, 'यह दूसरे को प्यार करती होती तो र्मेरी इतनी सेवा कैसे कर सकती र्थी भ!ा!' उस बच्ची का नार्म बK\ ने रो5 रखा। और उसे !ेकर दिदनभर उन्हीं गु!ाब के पेड़ों के बीच र्में बैठा करता र्था 5ैसे अपनी पत्नी को !ेकर बैठता र्था। दो सा! बाद बच्ची को साँप ने काK लि!या, वह र्मर गयी और तब से बK\ का दिदर्माग ठीक नहीं रहता। खैर, 5ाने दीजि5ए। आइए, अपना कार्म शुरू करें। चलि!ए, अन्दर के स्Kडी-रूर्म र्में च!ें!''

''चलि!ए!'' चन्दर बो!ा। और पम्र्मी के पीछे-पीछे च! दिदया। र्मकान बहुत बड़ा र्था और पुराने अँग्रे5ों के wंग पर स5ा हुआ र्था। बाहर से जि5तना पुराना और गन्दा न5र आता र्था, अन्दर से उतना ही आ!ीशान और सुर्थरा। ईस्K इंकिडया कम्पनी के 5र्माने की छाप र्थी अन्दर। यहाँ तक किक किब5!ी !गने के बाव5ूद अन्दर पुराने बडे़-बडे़ हार्थ से खींचे 5ाने वा!े पंखे !गे रे्थ। दो कर्मरों को पार कर वे !ोग स्Kडी-रूर्म र्में पहुँचे। बड़ा-सा कर्मरा जि5सर्में चारों तरफ आ!र्मारिरयों र्में किकताबें स5ी हुई र्थीं। चार कोने र्में चार र्मे5ें !गी हुई र्थीं जि5नर्में कुछ बस्K और कुछ तस्वीरें स्Kैंड के सहारे रखी हुई र्थीं। एक आ!र्मारी र्में नीचे खाने र्में KाइपराइKर रखा र्था। पम्र्मी ने किब5!ी 5!ा दी और KाइपराइKर खो!कर साफ करने !गी। चन्दर घूर्मकर किकताबें देखने !गा। एक कोने र्में कुछ र्मराठी की किकताबें रखी र्थीं। उसे बड़ा ताज्जुब हुआ-''अच्छा पम्र्मी, ओह, र्माफ कीजि5एगा, धिर्मस किडकू्र5...''

''नहीं, आप र्मुझे पम्र्मी पुकार सकते हैं। र्मुझे यही नार्म अच्छा !गता है-हाँ, क्या पूछ रहे रे्थ आप?''

''क्या आप र्मराठी भी 5ानती हैं?''

''नहीं, र्मैं तो नहीं, र्मेरी नानी5ी 5ानती र्थीं। क्या आपको डॉक्Kर शुक्!ा ने हर्म!ोगों के बारे र्में कुछ नहीं बताया?''

''नहीं!'' कपूर ने कहा।

''अच्छा! ताज्जुब है!'' पम्र्मी बो!ी, ''आपने टे्रना!ी किडकू्र5 का नार्म सुना है न?''

''हाँ हाँ, किडकू्र5 जि5न्होंने कौशाम्बी की खुदाई करवायी र्थी। वह तो बहुत बडे़ पुरातत्ववेत्ता रे्थ?'' कपूर ने कहा।

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''हाँ, वही। वह र्मेरे सगे नाना रे्थ। और वह अँग्रे5 नहीं रे्थ, र्मराठा रे्थ और उन्होंने र्मेरी नानी से शादी की र्थी 5ो एक कश्र्मीरी ईसाई र्मकिह!ा र्थीं। उनके कारण भारत र्में उन्हें ईसाइयत अपनानी पड़ी। यह र्मेरे नाना का ही र्मकान है और अब हर्म !ोगों को धिर्म! गया है। डॉ. शुक्!ा के दोस्त धिर्मस्Kर श्रीवास्तव बैरिरस्Kर हैं न, वे हर्मारे खानदान के ऐKनr रे्थ। उन्होंने और डॉ. शुक्!ा ने ही यह 5ायदाद हर्में दिद!वायी। !ीजि5ए, र्मशीन तो ठीक हो गयी।'' उसने KाइपराइKर र्में काब�न और काग5 !गाकर कहा, ''!ाइए किनबन्ध!''

इसके बाद घंKे-भर तक KाइपराइKर रुका नहीं। कपूर ने देखा किक यह !ड़की 5ो व्यवहार र्में इतनी सर! और स्पष्ट है, फैशन र्में इतनी ना5ुक और शौकीन है, कार्म करने र्में उतनी ही र्मेहनती और ते5 भी है। उसकी अँगुलि!याँ र्मशीन की तरह च! रही र्थीं। और ते5 इतनी किक एक घंKे र्में उसने !गभग आधी पांडुलि!किप Kाइप कर डा!ी र्थी। ठीक एक घJKे के बाद उसने KाइपराइKर बन्द कर दिदया, बग! र्में बैठे हुए कपूर की ओर झुककर कहा, ''अब र्थोड़ी देर आरार्म।'' और अपनी अँगुलि!याँ चKखाने के बाद वह कुरसी खिखसकाकर उठी और एक भरपूर अँगड़ाई !ी। उसका अंग-अंग धनुष की तरह झुक गया। उसके बाद कपूर के कन्धे पर बेतकल्!ुफी से हार्थ रखकर बो!ी, ''क्यों, एक प्या!ा चाय र्मँगवायी 5ाय?''

''र्मैं तो पी चुका हूँ।''

''!ेकिकन र्मुझसे तो कार्म होने से रहा अब किबना चाय के।'' पम्र्मी एक अल्हड़ बच्ची की तरह बो!ी, और अन्दर च!ी गयी। कपूर ने Kाइप किकये हुए काग5 उठाये और क!र्म किनका!कर उनकी ग!कितयाँ सुधारने !गा। चाय पीकर र्थोड़ी देर र्में पम्र्मी वापस आयी और बैठ गयी। उसने एक लिसगरेK केस कपूर के सार्मने किकया।

''धन्यवाद, र्मैं लिसगरेK नहीं पीता।''

''अच्छा, ताज्जुब है, आपकी इ5ा5त हो तो र्मैं लिसगरेK पी !ँू!''

''क्या आप लिसगरेK पीती हैं? लिछह, पता नहीं क्यों औरतों का लिसगरेK पीना र्मुझे बहुत ही नासपन्द है।''

''र्मेरी तो र्म5बूरी है धिर्मस्Kर कपूर, र्मैं यहाँ के सर्मा5 र्में धिर्म!ती-5ु!ती नहीं, अपने किववाह और अपने त!ाक के बाद र्मुझे ऐंग्!ो-इंकिडयन सर्मा5 से नफरत हो गयी है। र्मैं अपने दिद! से किहन्दुस्तानी हूँ। !ेकिकन किहन्दुस्ताकिनयों से घु!ना-धिर्म!ना हर्मारे लि!ए सम्भव नहीं। घर र्में अके!े रहती हूँ। लिसगरेK और चाय से तबीयत बद! 5ाती है। किकताबों का र्मुझे शौक नहीं।''

''त!ाक के बाद आपने पढ़ाई 5ारी क्यों नहीं रखी?'' कपूर ने पूछा।

''र्मैंने कहा न, किक किकताबों का र्मुझे शौक नहीं किबल्कु!!'' पम्र्मी बो!ी। ''और र्मैं अपने को आदधिर्मयों र्में घु!ने-धिर्म!ने के !ायक नहीं पाती। त!ाक के बाद सा!-भर तक र्मैं अपने घर र्में बन्द रही। र्मैं और बK\। लिसफ� बK\ से बात करने का र्मौका धिर्म!ा। बK\ र्मेरा भाई, वह भी बीर्मार और बूढ़ा। कहीं कोई तकल्!ुफ की गंु5ाइश नहीं। अब र्मैं हरेक से बेतकल्!ुफी से बात करती हूँ तो कुछ !ोग र्मुझ पर हँसते हैं, कुछ !ोग र्मुझे सभ्य सर्मा5 के !ायक नहीं सर्मझते, कुछ !ोग उसका ग!त र्मत!ब किनका!ते हैं। इसलि!ए र्मैंने अपने को अपने बँग!े र्में ही कैद कर लि!या है। अब आप ही हैं, आ5 पह!ी बार र्मैंने देखा आपको। र्मैं सर्मझी ही नहीं किक आपसे किकतना दुराव रखना चाकिहए। अगर आप भ!ेर्मानस न हों तो आप इसका ग!त र्मत!ब किनका! सकते हैं।''

''अगर यही बात हो तो...'' कपूर हँसकर बो!ा, ''सम्भव है किक र्मैं भ!ेर्मानस बनने के ब5ाय ग!त र्मत!ब किनका!ना ज्यादा पसन्द करँू।''

''तो सम्भव है र्मैं र्म5बूर होकर आपसे भी न धिर्म!ँू!'' पम्र्मी गम्भीरता से बो!ी।

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''नहीं, धिर्मस किडकू्र5...''

''नहीं, आप पम्र्मी ककिहए, किडकू्र5 नहीं!''

''पम्र्मी सही, आप ग!त न सर्मझें, र्मैं र्म5ाक कर रहा र्था।'' कपूर बो!ा। उसने इतनी देर र्में सर्मझ लि!या र्था किक यह साधारण ईसाई छोकरी नहीं है।

इतने र्में बK\ !डख़ड़ाता हुआ, हार्थ र्में धू! सना खुरपा लि!ये आया और चुपचाप खड़ा हो गया और अपनी धुँध!ी पी!ी आँखों से एकKक कपूर को देखने !गा। कपूर ने एक कुरसी खिखसका दी और कहा, ''आइए!'' पम्र्मी उठी और बK\ के कन्धे पर एक हार्थ रखकर उसे सहारा देकर कुरसी पर किबठा दिदया। बK\ बैठ गया और आँखें बन्द कर !ीं। उसका बीर्मार कर्म5ोर व्यलिक्तत्व 5ाने कैसा !गता र्था किक पम्र्मी और कपूर दोनों चुप हो गये। र्थोड़ी देर बाद बK\ ने आँखें खो!ीं और बहुत करुण स्वर र्में बो!ा, ''पम्र्मी, तुर्म नारा5 हो, र्मैंने 5ान-बूझकर तुम्हारे धिर्मv का अपर्मान नहीं किकया र्था?''

''अरे नहीं!'' पम्र्मी ने उठकर बK\ का र्मार्था सह!ाते हुए कहा, ''र्मैं तो भू! गयी और कपूर भी भू! गये?''

''अच्छा, धन्यवाद! पम्र्मी, अपना हार्थ इधर !ाओ!'' और वह पम्र्मी के हार्थ पर लिसर रखकर पड़ रहा और बो!ा, ''र्मैं किकतना अभागा हूँ! किकतना अभागा! अच्छा पम्र्मी, क! रात को तुर्मने सुना र्था, वह आयी र्थी और पूछ रही र्थी, बK\ तुम्हारी तबीयत अब ठीक है, र्मैंने झK अपनी आँखें wँक !ीं किक कहीं आँखों का पी!ापन देख न !े। र्मैंने कहा, तबीयत अब ठीक है, र्मैं अच्छा हूँ तो उठी और 5ाने !गी। र्मैंने पूछा, कहाँ च!ी, तो बो!ी सा5¢K के सार्थ ज़रा क्!ब 5ा रही हूँ। तुर्मने सुना र्था पम्र्मी?''

कपूर स्तब्ध-सा उन दोनों की ओर देख रहा र्था। पम्र्मी ने कपूर को आँख का इशारा करते हुए कहा, ''हाँ, हर्मसे धिर्म!ी र्थी वह, !ेकिकन बK\, वह सा5¢K के सार्थ नहीं गयी र्थी!''

''हाँ, तब?'' बK\ की आँखें चर्मक उठीं और उसने उल्!ास-भरे स्वर र्में पूछा।

''वह बो!ी, बK\ के ये गु!ाब सा5¢K से ज्यादा प्यारे हैं।'' पम्र्मी बो!ी।

''अच्छा!'' र्मुसकराहK से बK\ का चेहरा खिख! उठा, उसकी पी!ी-पी!ी आँखें और धँस गयीं और दाँत बाहर झ!कने !गे, ''हूँ! क्या कहा उसने, किफर तो कहो!''

उसने कहा, ''ये गु!ाब सा5¢K से ज्यादा प्यारे हैं, किफर इन्हीं गु!ाबों पर नाचती रही और सुबह होते ही इन्हीं फू!ों र्में लिछप गयी! तुम्हें सुबह किकसी फू! र्में तो नहीं धिर्म!ी?''

''उहँू, तुम्हें तो किकसी फू! र्में नहीं धिर्म!ी?'' बK\ ने बच्चों के-से भो!े किवश्वास के स्वरों र्में कपूर से पूछा।

चन्दर चौंक उठा। पम्र्मी और बK\ की इन बातों पर उसका र्मन बेहद भर आया र्था। बK\ की र्मुसकराहK पर उसकी नसें र्थरर्थरा उठी र्थीं।

''नहीं; र्मैंने तो नहीं देखा र्था।'' चन्दर ने कहा।

बK\ ने किफर र्मायूसी से लिसर झुका लि!या और आँखें बन्द कर !ीं और कराहती हुई आवा5 र्में बो!ा, ''जि5स फू! र्में वह लिछप गयी र्थी, उसी को किकसी ने चुरा लि!या होगा!'' किफर सहसा वह तनकर खड़ा हो गया और पुचकारते हुए बो!ा, ''5ाने कौन ये फू! चुराता है! अगर र्मुझे एक बार धिर्म! 5ाए तो र्मैं उसका खून ऐसे पी !ँू!'' उसने हार्थ की अँगु!ी काKते हुए कहा और उठकर !डख़ड़ाता हुआ च!ा गया।

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वातावरण इतना भारी हो गया र्था किक किफर पम्र्मी और कपूर ने कोई बातें नहीं कीं। पम्र्मी ने चुपचाप Kाइप करना शुरू किकया और कपूर चुपचाप बK\ की बातें सोचता रहा। घंKा-भर बाद KाइपराइKर खार्मोश हुआ तो कपूर ने कहा-

''पम्र्मी, र्मैंने जि5तने !ोग देखे हैं उनर्में शायद बK\ सबसे किवलिचv है और शायद सबसे दयनीय!''

पम्र्मी खार्मोश रही। किफर उसी !ापरवाही से अँगड़ाई !ेते हुए बो!ी, ''र्मुझे बK\ की बातों पर ज़रा भी दया नहीं आती। र्मैं उसको दिद!ासा देती हूँ क्योंकिक वह र्मेरा भाई है और बच्चे की तरह नासर्मझ और !ाचार है।''

कपूर चौंक गया। वह पम्र्मी की ओर आश्चय� से चुपचाप देखता रहा; कुछ बो!ा नहीं।

''क्यों, तुम्हें ताज्जुब क्यों होता है?'' पम्र्मी ने कुछ र्मुसकराकर कहा, ''!ेकिकन र्मैं सच कहती हूँ''-वह बहुत गम्भीर हो गयी, ''र्मुझे 5रा तरस नहीं आता इस पाग!पन पर।'' क्षण-भर चुप रही, किफर 5ैसे बहुत ही ते5ी से बो!ी, ''तुर्म 5ानते हो उसके फू! कौन चुराता है? र्मैं, र्मैं उसके फू! तोडक़र फें क देती हूँ। र्मुझे शादी से नफरत है, शादी के बाद होने वा!ी आपसी धोखेबा5ी से नफरत है, और उस धोखेबा5ी के बाद इस झूठरू्मठ की यादगार और बेईर्मानी के पाग!पन से नफरत है। और ये गु!ाब के फू!, ये क्यों र्मूल्यवान हैं, इसलि!ए न किक इसके सार्थ बK\ की जि5-दगी की इतनी बड़ी टे्र5ेडी गँुर्थी हुई है। अगर एक फू! के खूबसूरत होने के लि!ए आदर्मी की जि5-दगी र्में इतनी बड़ी टे्र5ेडी आना 5रूरी है तो !ानत है उस फू! की खूबसूरती पर! र्मैं उससे नफरत करती हूँ। इसीलि!ए र्मैं किकताबों से नफरत करती हूँ। एक कहानी लि!खने के लि!ए किकतनी कहाकिनयों की टे्र5ेडी बदा�श्त करनी होती है।''

पम्र्मी चुप हो गयी। उसका चेहरा सुख� हो गया र्था। र्थोड़ी देर बाद उसका तैश उतर गया और वह अपने आवेश पर खुद शरर्मा गयी। उठकर वह कपूर के पास गयी और उसके कन्धों पर हार्थ रखकर बो!ी, ''बK\ से र्मत कहना, अच्छा?''

कपूर ने लिसर किह!ाकर स्वीकृकित दी और काग5 सर्मेKकर खड़ा हुआ। पम्र्मी ने उसके कन्धों पर हार्थ रखकर उसे अपनी ओर घुर्माकर कहा, ''देखो, किपछ!े चार सा! से र्मैं अके!ी र्थी, और किकसी दोस्त का इन्त5ार कर रही र्थी, तुर्म आये और दोस्त बन गये। तो अब अक्सर आना, ऐं?''

''अच्छा!'' कपूर ने गम्भीरता से कहा।

''डॉ. शुक्!ा से र्मेरा अक्षिभवादन कहना, कभी यहाँ 5रूर आए।ँ''

''आप कभी चलि!ए, वहाँ उनकी !ड़की है। आप उससे धिर्म!कर खुश होंगी।''

पम्र्मी उसके सार्थ फाKक तक पहुँचाने च!ी तो देखा बK\ एक चर्मे!ी के झाड़ र्में Kहकिनयाँ हKा-हKाकर कुछ wँूढ़ रहा र्था। पम्र्मी को देखकर पूछा उसने-''तुम्हें याद है; वह चर्मे!ी के झाड़ र्में तो नहीं लिछपी र्थी?'' कपूर ने पता नहीं क्यों 5ल्दी पम्र्मी को अक्षिभवादन किकया और च! दिदया। उसे बK\ को देखकर डर !गता र्था।

सुधा का कॉ!े5 बड़ा एकान्त और खूबसूरत 5गह बना हुआ र्था। दोनों ओर ऊँची-सी र्मेड़ और बीच र्में से कंकड़ की एक खूबसूरत घुर्मावदार सड़क। दायीं ओर चने और गेहूँ के खेत, बेर और शहतूत के झाड़ और बायीं ओर ऊँचे-ऊँचे Kी!े और ताड़ के !म्बे-!म्बे पेड़। शहर से काफी बाहर देहात का-सा न5ारा और इतना शान्त वातावरण !गता र्था किक यहाँ कोई उर्थ!-पुर्थ!, कोई शोरगु! है ही नहीं। 5गह इतनी हरी-भरी किक द5� के कर्मरों के पीछे ही र्महुआ चूता र्था और !म्बी-!म्बी घास की दुपहरिरया के नी!े फू!ों की 5ंग!ी !तरें उ!झी रहती र्थीं।

और इस वातावरण ने अगर किकसी पर सबसे ज्यादा प्रभाव डा!ा र्था तो वह र्थी गेसू। उसे अच्छी तरह र्मा!ूर्म र्था किक बाँस के झाड़ के पीछे किकस ची5 के फू! हैं। पुराने पीप! पर किग!ोय की !तर चढ़ी है और करौंदे के झाड़ के पीछे एक साही की र्माँद है। नागफनी की झाड़ी के पास एक बार उसने एक !ोर्मड़ी भी देखी र्थी। शहर के एक र्मशहूर

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रईस साकिबर हुसैन का5र्मी की वह सबसे बड़ी !ड़की र्थी। उसकी र्माँ, जि5न्हें उसके किपता अदन से ब्याह कर !ाये रे्थ, शहर की र्मशहूर शायरा र्थीं। हा!ाँकिक उनका दीवान छपकर र्मशहूर हो चुका र्था, र्मगर वह किकसी भी बाहरी आदर्मी से कभी नहीं धिर्म!ती-5ु!ती र्थीं, उनकी सारी दुकिनया अपने पकित और अपने बच्चों तक सीधिर्मत र्थी। उन्हें शायराना नार्म रखने का बहुत शौक र्था। अपनी दोनों !ड़किकयों का नार्म उन्होंने गेसू और फू! रखा र्था और अपने छोKे बच्चे का नार्म हसरत। हाँ, अपने पकितदेव साकिबर साहब के हुक्के से बेहद लिचढ़ती र्थीं और उनका नार्म उन्होंने रखा र्था, 'आकितश-किफ5ाँ।'

घास, फू!, !तर और शायरी का शौक गेसू ने अपनी र्माँ से किवरासत र्में पाया र्था। किकस्र्मत से उसका कॉ!े5 भी ऐसा धिर्म!ा जि5सर्में द5� की खिखड़किकयों से आर्म की शाखें झाँका करती र्थीं इसलि!ए हरे्मशा 5ब कभी र्मौका धिर्म!ता र्था, क्!ास से भाग कर गेसू घास पर !ेKकर सपने देखने की आदी हो गयी र्थी। क्!ास के इस र्महाक्षिभकिनष्क्रर्मण और उसके बाद !तरों की छाँह र्में 5ाकर ध्यान-योग की साधना र्में उसकी एकर्माv सालिर्थन र्थी सुधा। आर्म की घनी छाँह र्में हरी-हरी दूब र्में दोनों लिसर के नीचे हार्थ रखकर !ेK रहतीं और दुकिनया-भर की बातें करतीं। बातों र्में छोKी से छोKी और बड़ी से बड़ी किकस तरह की बातें करती र्थीं, यह वही सर्मझ सकता है जि5सने कभी दो अक्षिभ� सहेलि!यों की एकान्त वाता� सुनी हो। गालि!ब की शायरी से !ेकर, उनके छोKे भाई हसरत ने एक कुत्ते का किपल्!ा पा!ा है, यह गेसू सुनाया करती र्थी और शरत के उपन्यासों से !ेकर यह किक उसकी र्मालि!न ने किग!K का कड़ा बनवाया है, यह सुधा बताया करती र्थी। दोनों अपने-अपने र्मन की बातें एक-दूसरे को बता डा!ती र्थीं और जि5तना भावुक, प्यारा, अन5ान और सुकुर्मार दोनों का र्मन र्था, उतनी ही भावुक और सुकुर्मार दोनों की बातें। हाँ भावुक, सुकुर्मार दोनों ही र्थीं, !ेकिकन दोनों र्में एक अन्तर र्था। गेसू शायर होते हुए भी इस दुकिनया की र्थी और सुधा शायर न होते हुए भी कल्पना!ोक की र्थी। गेसू अगर झाकिड़यों र्में से कुछ फू! चुनती तो उन्हें सँूघती, उन्हें अपनी चोKी र्में स5ाती और उन पर चन्द शे'र कहने के बाद भी उन्हें र्मा!ा र्में किपरोकर अपनी क!ाई र्में !पेK !ेती। सुधा !तरों के बीच र्में लिसर रखकर !ेK 5ाती और किनर्तिन-र्मेष प!कों से फू!ों को देखती रहती और आँखों से न 5ाने क्या पीकर उन्हें उन्हीं की डा!ों पर फू!ता हुआ छोड़ देती। गेसू हर ची5 का उलिचत इस्तेर्मा! 5ानती र्थी, किकसी भी ची5 को पसन्द करने या प्यार करने के बाद अब उसका क्या उपयोग है, किक्रयात्र्मक यर्थार्थ� 5ीवन र्में उसका क्या स्थान है, यह गेसू खूब सर्मझती र्थी। !ेकिकन सुधा किकसी भी फू! के 5ादू र्में बँध 5ाना चाहती र्थी, उसी की कल्पना र्में डूब 5ाना 5ानती र्थी, !ेकिकन उसके बाद सुधा को कुछ नहीं र्मा!ूर्म र्था। गेसू की कल्पना और भावुक सूक्ष्र्मता शायरी र्में व्यक्त हो 5ाती र्थी, अत: उसकी जि5-दगी र्में काफी व्यावहारिरकता और यर्थार्थ� र्था, !ेकिकन सुधा, 5ो शायरी लि!ख नहीं सकती र्थी, अपने स्वभाव और गठन र्में खुद ही एक र्मासूर्म शायरी बन गयी र्थी। वह भी किपछ!े दो सा!ों र्में तो सचर्मुच ही इतनी गम्भीर, सुकुर्मार और भावनार्मयी बन गयी र्थी किक !गता र्था किक सूर के गीतों से उसके व्यलिक्तत्व के रेशे बुन गये हैं।

!ड़किकयाँ, गेसू और सुधा के इस स्वभाव और उनकी अक्षिभ�ता से वाकिकफ र्थीं। और इसलि!ए 5ब आ5 सुधा की र्मोKर आकर सायबान र्में रुकी और उसर्में से सुधा और गेसू हार्थ र्में फाइ! लि!ये उतरीं तो काधिर्मनी ने हँसकर प्रभा से कहा, ''!ो, चन्दा-सूर5 की 5ोड़ी आ गयी!'' सुधा ने सुन लि!या। र्मुसकराकर गेसू की ओर किफर काधिर्मनी और प्रभा की ओर देखकर हँस दी। सुधा बहुत कर्म बो!ती र्थी, !ेकिकन उसकी हँसी ने उसे खुशधिर्म5ा5 साकिबत कर रखा र्था और वह सभी की प्यारी र्थी। प्रभा ने आकर सुधा के ग!े र्में बाँह डा!कर कहा, ''गेसू बानो, र्थोड़ी देर के लि!ए सुधारानी को हर्में दे दो। 5रा क! के नोK्स उतारने हैं इनसे पूछकर।''

गेसू हँसकर बो!ी, ''उसके पापा से तय कर !े, किफर तू जि5-दगी भर सुधा को पा!-पोस, र्मुझे क्या करना है।''

5ब सुधा प्रभा के सार्थ च!ी गयी तो गेसू ने काधिर्मनी के कन्धे पर हार्थ रखा और कहा, ''कम्र्मो रानी, अब तो तुम्हीं हर्मारे किहस्से र्में पड़ी, आओ। च!ो, देखें !तर र्में कुन्दरू हैं?''

''कुन्दरू तो नहीं, अब चने का खेत हरिरया आया है।'' कम्र्मो बो!ी।

गृह-किवज्ञान का पीरिरयड र्था और धिर्मस उर्मा!कर पढ़ा रही र्थीं। बीच की कतार की एक बेंच पर काधिर्मनी, प्रभा, गेसू और सुधा बैठी र्थीं। किहस्सा बाँK अभी तक कायर्म र्था, अत: काधिर्मनी के बग! र्में गेसू, गेसू के बग! र्में प्रभा और प्रभा के बाद बेंच के कोने पर सुधा बैठी र्थी। धिर्मस उर्मा!कर रोकिगयों के खान-पान के बारे र्में सर्मझा रही र्थीं। र्मे5 के बग!

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र्में खड़ी हुई, हार्थ र्में एक किकताब लि!ये हुए, उसी पर किनगाह !गाये वह बो!ती 5ा रही र्थीं। शायद अँगरे5ी की किकताब र्में 5ो कुछ लि!खा हुआ र्था, उसी का किहन्दी र्में उल्था करते हुए बो!ती 5ा रही र्थीं, ''आ!ू एक नुकसानदेह तरकारी है, रोग की हा!त र्में। वह खुश्क होता है, गरर्म होता है और ह5र्म र्मुश्किश्क! से होता है...।''

सहसा गेसू ने एकदर्म बीच से पूछा, ''गुरु5ी, गाँधी 5ी आ!ू खाते हैं या नहीं?'' सभी हँस पडे़।

धिर्मस उर्मा!कर ने बहुत गुस्से से गेसू की ओर देखा और डाँKकर कहा, ''व्हाइ Kॉक ऑव गाँधी? आई वाJK नो पोलि!दिKक! किडस्क्शन इन क्!ास। (गाँधी से क्या र्मत!ब? र्मैं द5® र्में रा5नीकितक बहस नहीं चाहती।)'' इस पर तो सभी !ड़किकयों की दबी हुई हँसी फूK पड़ी। धिर्मस उर्मा!कर झल्!ा गयीं और र्मे5 पर किकताब पKकते हुए बो!ीं, ''साइ!ेन्स (खार्मोश)!'' सभी चुप हो गये। उन्होंने किफर पढ़ाना शुरू किकया।

''जि5गर के रोकिगयों के लि!ए हरी तरकारिरयाँ बहुत फायदेर्मन्द होती हैं। !ौकी, पा!क और हर किकस्र्म के हरे साग तन्दुरुस्ती के लि!ए बहुत फायदेर्मन्द होते हैं।''

सहसा प्रभा ने कुहनी र्मारकर गेसू से कहा, ''!े, किफर क्या है, किनका! चने का हरा साग, खा-खाकर र्मोKे हों धिर्मस उर्मा!कर के घंKे र्में!''

गेसू ने अपने कुरते की 5ेब से बहुत-सा साग किनका!कर काधिर्मनी और प्रभा को दिदया।

धिर्मस उर्मा!कर अब शक्कर के हाकिन-!ाभ बता रही र्थीं, ''!म्बे रोग के बाद रोगी को शक्कर कर्म देनी चाकिहए। दूध या साबूदाने र्में ताड़ की धिर्मश्री धिर्म!ा सकते हैं। दूध तो ग्!ूको5 के सार्थ बहुत स्वादिदष्ट !गता है।''

इतने र्में 5ब तक सुधा के पास साग पहुँचा किक फौरन धिर्मस उर्मा!कर ने देख लि!या। वह सर्मझ गयीं, यह शरारत गेसू की होगी, ''धिर्मस गेसू, बीर्मारी की हा!त र्में दूध काहे के सार्थ स्वादिदष्ट !गता है?''

इतने र्में सुधा के र्मुँह से किनक!ा, ''साग काहे के सार्थ खाए?ँ'' और गेसू ने कहा, ''नर्मक के सार्थ!''

''हूँ? नर्मक के सार्थ?'' धिर्मस उर्मा!कर ने कहा, ''बीर्मारी र्में दूध नर्मक के सार्थ अच्छा !गता है। खड़ी हो! कहाँ र्था ध्यान तुम्हारा?''

गेसू स�। धिर्मस उर्मा!कर का चेहरा र्मारे गुस्से के !ा! हो रहा र्था।

''क्या बात कर रही र्थीं तुर्म और सुधा?''

गेसू स�!

''अच्छा, तुर्म !ोग क्!ास के बाहर 5ाओ, और आ5 हर्म तुम्हारे गार्जि5-यन को खत भे5ेंगे। च!ो, 5ाओ बाहर।''

सुधा ने कुछ र्मुसकराते हुए प्रभा की ओर देखा और प्रभा हँस दी। गेसू ने देखा किक धिर्मस उर्मा!कर का पारा और भी चwऩे वा!ा है तो वह चुपचाप किकताब उठाकर च! दी। सुधा भी पीछे-पीछे च! दी। काधिर्मनी ने कहा, ''खत-वत भे5ती रहना, सुधा!'' और क्!ास ठठाकर हँस पड़ी। धिर्मस उर्मा!कर गुस्से से नी!ी पड़ गयीं, ''क्!ास अब खत्र्म होगी।'' और रजि5स्Kर उठाकर च! दीं। गेसू अभी अन्दर ही र्थी किक वह बाहर च!ी गयीं और उनके 5रा दूर पहुँचते ही गेसू ने बड़ी अदा से कहा, ''बडे़ बेआबरू होकर तेरे कूचे से हर्म किनक!े!'' और सारी क्!ास किफर हँसी से गँू5 उठी। !ड़किकयाँ लिचकिड़यों की तरह फुर� हो गयीं और र्थोड़ी ही देर र्में सुधा और गेसू बैडमिर्म-Kन फील्ड के पास वा!े छतनार पाकड़ के नीचे !ेKी हुई र्थीं।

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बड़ी खुशनुर्मा दोपहरी र्थी। खुशबू से !दे हल्के-हल्के झोंके गेसू की ओढ़नी और गरारे की लिस!वKों से आँखधिर्मचौ!ी खे! रहे रे्थ। आसर्मान र्में कुछ हल्के रुपह!े बाद! उड़ रहे रे्थ और 5र्मीन पर बाद!ों की साँव!ी छायाए ँदौड़ रही र्थीं। घास के !म्बे-चौडे़ र्मैदान पर बाद!ों की छायाओं का खे! बड़ा र्मासूर्म !ग रहा र्था। जि5तनी दूर तक छाँह रहती र्थी, उतनी दूर तक घास का रंग गहरा काही हो 5ाता र्था, और 5हाँ-5हाँ बाद!ों से छनकर धूप बरसने !गती र्थी वहाँ-वहाँ घास सुनहरे धानी रंग की हो 5ाती र्थी। दूर कहीं पर पानी बरसा र्था और बाद! हल्के होकर खरगोश के र्मासूर्म स्वच्छन्द बच्चों की तरह दौड़ रहे रे्थ। सुधा आँखों पर फाइ! की छाँह किकये हुए बाद!ों की ओर एकKक देख रही र्थी। गेसू ने उसकी ओर करवK बद!ी और उसकी वेणी र्में !गे हुए रेशर्मी फीते को उँग!ी र्में उरे्मठते हुए एक !म्बी-सी साँस भरकर कहा-

बादशाहों की र्मुअत्तर ख्वाबगाहों र्में कहाँ

वह र्म5ा 5ो भीगी-भीगी घास पर सोने र्में है,

र्मुतर्मइन बेकिफक्र !ोगों की हँसी र्में भी कहाँ

!ुत्फ 5ो एक-दूसरे को देखकर रोने र्में है।

सुधा ने बाद!ों से अपनी किनगाह नहीं हKायी, बस एक करुण सपनी!ी र्मुसकराहK किबखेरकर रह गयी।

क्या देख रही है, सुधा?'' गेसू ने पूछा।

''बाद!ों को देख रही हूँ।'' सुधा ने बेहोश आवा5 र्में 5वाब दिदया। गेसू उठी और सुधा की छाती पर लिसर रखकर बो!ी-

कैफ बरदोश, बाद!ों को न देख,

बेखबर, तू न कुच! 5ाय कहीं!

और सुधा के गा! र्में 5ोर की चुKकी काK !ी। ''हाय रे!'' सुधा ने चीखकर कहा और उठ बैठी, ''वाह वाह! किकतना अच्छा शेर है! किकसका है?''

''पता नहीं किकसका है।'' गेसू बो!ी, ''!ेकिकन बहुत सच है सुधी, आस्र्माँ के बाद!ों के दार्मन र्में अपने ख्वाब Kाँक !ेना और उनके सहारे जि5-दगी बसर करने का खया! है तो बड़ा ना5ुक, र्मगर रानी बड़ा खतरनाक भी है। आदर्मी बड़ी ठोकरें खाता है। इससे तो अच्छा है किक आदर्मी को ना5ुकखया!ी से साकिबका ही न पडे़। खाते-पीते, हँसते-बो!ते आदर्मी की जि5-दगी कK 5ाए।''

सुधा ने अपना आँच! ठीक किकया, और !Kों र्में से घास के कितनके किनका!ते हुए कहा, ''गेसू, अगर हर्म !ोगों को भी शादी-ब्याह के झंझK र्में न फँसना पडे़ और इसी तरह दिदन कKते 5ाए ँतो किकतना र्म5ा आए। हँसते-बो!ते, पढ़ते-लि!खते, घास र्में !ेKकर बाद!ों से प्यार करते हुए किकतना अच्छा !गता है, !ेकिकन हर्म !ड़किकयों की जि5-दगी भी क्या! र्मैं तो सोचती हूँ गेसू; कभी ब्याह ही न करँू। हर्मारे पापा का ध्यान कौन रखेगा?''

गेसू र्थोड़ी देर तक सुधा की आँखों र्में आँखें डा!कर शरारत-भरी किनगाहों से देखती रही और र्मुसकराकर बो!ी, ''अरे, अब ऐसी भो!ी नहीं हो रानी तुर्म! ये शबाब, ये उठान और ब्याह नहीं करेंगी, 5ोगन बनेंगी।''

''अच्छा, च! हK बेशरर्म कहीं की, खुद ब्याह करने की ठान चुकी है तो दुकिनया-भर को क्यों तोहर्मत !गाती है!''

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''र्मैं तो ठान ही चुकी हूँ, र्मेरा क्या! किफ्रक तो तुर्म !ोगों की है किक ब्याह नहीं होता तो !ेKकर बाद! देखती हैं।'' गेसू ने र्मच!ते हुए कहा।

''अच्छा अच्छा,'' गेसू की ओढ़नी खींचकर लिसर के नीचे रखकर सुधा ने कहा, ''क्या हा! है तेरे अख्तर धिर्मयाँ का? र्मँगनी कब होगी तेरी?''

''र्मँगनी क्या, किकसी भी दिदन हो 5ाय, बस फूफी5ान के यहाँ आने-भर की कसर है। वैसे अम्र्मी तो फू! की बात उनसे च!ा रही र्थीं, पर उन्होंने र्मेरे लि!ए इरादा 5ाकिहर किकया। बडे़ अचे्छ हैं, आते हैं तो घर-भर र्में रोशनी छा 5ाती है।'' गेसू ने बहुत भो!ेपन से गोद र्में सुधा का हार्थ रखकर उसकी उँगलि!याँ लिचKकाते हुए कहा।

''वे तो तेरे चचा5ाद भाई हैं न? तुझसे तो पह!े उनसे बो!-चा! रही होगी।'' सुधा ने पूछा।

''हाँ-हाँ, खूब अच्छी तरह से। र्मौ!वी साहब हर्म !ोगों को सार्थ-सार्थ पढ़ाते रे्थ और 5ब हर्म दोनों सबक भू! 5ाते रे्थ तो एक-दूसरे का कान पकडक़र सार्थ-सार्थ उठते-बैठते रे्थ।'' गेसू कुछ झेंपते हुए बो!ी।

सुधा हँस पड़ी, ''वाह रे! पे्रर्म की इतनी किवलिचv शुरुआत र्मैंने कहीं नहीं सुनी र्थी। तब तो तुर्म !ोग एक-दूसरे का कान पकडऩे के लि!ए अपने-आप सबक भू! 5ाते होंगे?''

''नहीं 5ी, एक बार किफर पwक़र कौन सबक भू!ता है और एक बार सबक याद होने के बाद 5ानती हो इश्क र्में क्या होता है-

र्मकतबे इश्क र्में इक wंग किनरा!ा देखा,

उसको छुट्टी न धिर्म!ी जि5सको सबक याद हुआ"

''खैर, यह सब बात 5ाने दे सुधा, अब तू कब ब्याह करेगी?''

''5ल्दी ही करँूगी।'' सुधा बो!ी।

''किकससे?''

''तुझसे।'' और दोनों खिख!खिख!ाकर हँस पड़ीं।

बाद! हK गये रे्थ और पाकड़ की छाँह को चीरते हुए एक सुनह!ी रोशनी का तार जिझ!धिर्म!ा उठा। हँसते वक्त गेसू के कान के Kॉप चर्मक उठे और सुधा का ध्यान उधर खिख-च गया। ''ये कब बनवाया तूने?''

''बनवाया नहीं।''

''तो उन्होंने दिदये होंगे, क्यों?''

गेसू ने शरर्माकर लिसर किह!ा दिदया।

सुधा ने उठकर हार्थ से छूते हुए कहा, ''किकतने सुन्दर कर्म! हैं! वाह! क्यों, गेसू! तूने सचर्मुच के कर्म! देखे हैं?''

''न।''

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''र्मैंने देखे हैं।''

''कहाँ?''

''अस! र्में पाँच-छह सा! पह!े तक तो र्मैं गाँव र्में रहती र्थी न! ऊँचाहार के पास एक गाँव र्में र्मेरी बुआ रहती हैं न, बचपन से र्मैं उन्हीं के पास रहती र्थी। पढ़ाई की शुरुआत र्मैंने वहीं की और सातवीं तक वहीं पढ़ी। तो वहाँ र्मेरे स्कू! के पीछे के पोखरे र्में बहुत-से कर्म! रे्थ। रो5 शार्म को र्मैं भाग 5ाती र्थी और ता!ाब र्में घुसकर कर्म! तोड़ती और घर से बुआ एक !म्बा-सा सोंKा !ेकर गालि!याँ देती हुई आती र्थीं र्मुझे पकड़ने के लि!ए। 5हाँ वह किकनारे पर पहुँचतीं तो र्मैं कहती, अभी डूब 5ाएगँे बुआ, अभी डूबे, तो बहुत रबड़ी-र्म!ाई की !ा!च देकर वह धिर्म�त करतीं-किनक! आओ, तो र्मैं किनक!ती र्थी। तुर्मने तो कभी देखा नहीं होगा हर्मारी बुआ को?''

''न, तूने कभी दिदखाया ही नहीं।''

''इधर बहुत दिदनों से आयीं ही नहीं वे। आएगँी तो दिदखाऊँगी तुझे। और उनकी एक !ड़की है। बड़ी प्यारी, बहुत र्म5े की है। उसे देखकर तो तुर्म उसे बहुत प्यार करोगी। वो तो अब यहीं आने वा!ी है। अब यहीं पढे़गी।''

''किकस द5® र्में पढ़ती है?''

''प्राइवेK किवदुषी र्में बैठेगी इस सा!। खूब गो!-र्मKो! और हँसरु्मख है।'' सुधा बो!ी।

इतने र्में घंKा बो!ा और गेसू ने सुधा के पैर के नीचे दबी हुई अपनी ओढ़नी खींची।

''अरे, अब आखिखरी घंKे र्में 5ाकर क्या पढ़ोगी! हाजि5री कK ही गयी। अब बैठो यहीं बातचीत करें, आरार्म करें।'' सुधा ने अ!साये स्वर र्में कहा और खड़ी होकर एक र्मदर्माती हुई अँगड़ाई !ी-गेसू ने हार्थ पकडक़र उसे किबठा लि!या और बड़ी गम्भीरता से कहा, ''देखो, ऐसी अरसौहीं अँगड़ाई न लि!या करो, इससे !ोग सर्मझ 5ाते हैं किक अब बचपन करवK बद! रहा है।''

''धत्!'' बेहद झेंपकर और फाइ! र्में र्मुँह लिछपाकर सुधा बो!ी।

''!ो, तुर्म र्म5ाक सर्मझती हो, एक शायर ने तुम्हारी अँगड़ाई के लि!ए कहा है-

कौन ये !े रहा है अँगड़ाई

आसर्मानों को नींद आती है''

''वाह!'' सुधा बो!ी, ''अच्छा गेसू, आ5 बहुत-से शेर सुनाओ।''

''सुनो-

इक रिरदायेतीरगी है और खाबेकायनात

डूबते 5ाते हैं तारे, भीगती 5ाती है रात!''

''पह!ी !ाइन के क्या र्मत!ब हैं?'' सुधा ने पूछा।

''रिरदायेतीरगी के र्माने हैं अँधेरे की चादर और खाबेकायनात के र्माने हैं जि5-दगी का सपना-अब किफर सुनो शेर-

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इक रिरदायेतीरगी है और खाबेकायनात

डूबते 5ाते हैं तारे, भीगती 5ाती है रात!''

''वाह! किकतना अच्छा है-अन्धकार की चादर है, 5ीवन का स्वप्न है, तारे डूबते 5ाते हैं, रात भीगती 5ाती है...गेसू, उदू� की शायरी बहुत अच्छी है।''

''तो तू खुद उदू� क्यों नहीं पढ़ !ेती?'' गेसू ने कहा।

''चाहती तो बहुत हूँ, पर किनभ नहीं पाता!''

''किकसी दिदन शार्म को आओ सुधा तो अम्र्मी5ान से तुझे शेर सुनवाए।ँ यह !े तेरी र्मोKर तो आ गयी।''

सुधा उठी, अपनी फाइ! उठायी। गेसू ने अपनी ओwऩी झाड़ी और आगे च!ी। पास आकर उचककर उसने पिप्र-लिसप! का रूर्म देखा। वह खा!ी र्था। उसने दाई को खबर दी और र्मोKर पर बैठ गयी।

गेसू बाहर खड़ी र्थी। ''च! तू भी न!''

''नहीं, र्मैं गाड़ी पर च!ी 5ाऊँगी।''

''अरे च!ो, गाड़ी साढे़ चार ब5े 5ाएगी। अभी घंKा-भर है। घर पर चाय किपएगँे, किफर र्मोKर पहुँचा देगी। 5ब तक पापा नहीं हैं, तब तक जि5तना चाहो कार धिघसो!''

गेसू भी आ बैठी और कार च! दी।

दूसरे दिदन 5ब चन्दर डॉ. शुक्!ा के यहाँ किनबन्ध की प्रकितलि!किप !ेकर पहुँचा तो आठ ब5 चुके रे्थ। सात ब5े तो चन्दर की नींद ही खु!ी र्थी और 5ल्दी से वह नहा-धोकर साइकिक! दौड़ाता हुआ भागा र्था किक कहीं भाषण की प्रकितलि!किप पहुँचने र्में देर न हो 5ाए।

5ब वह बँग!े पर पहुँचा तो धूप फै! चुकी र्थी। अब धूप भ!ी नहीं र्मा!ूर्म देती र्थी, धूप की ते5ी बदा�श्त के बाहर होने !गी र्थी, !ेकिकन सुधा नी!काँKे के ऊँचे-ऊँचे झाड़ों की छाँह र्में एक छोKी-सी कुरसी डा!े बैठी र्थी। बग! र्में एक छोKी-सी र्मे5 र्थी जि5स पर कोई किकताब खु!ी हुई रखी र्थी, हार्थ र्में क्रोलिशया र्थी और उँगलि!याँ एक ना5ुक ते5ी से डोरे से उ!झ-सु!झ रही र्थीं। हल्के बादार्मी रंग की इक!ाई की !हराती हुई धोती, नारंगी और का!ी कितरछी धारिरयों का क!फ किकया चुस्त ब्!ाउ5 और एक कन्धे पर उभरा एक उसका पफ ऐसा !ग रहा र्था 5ैसे किक बाँह पर कोई रंगीन कितत!ी आकर बैठी हुई हो और उसका लिसफ� एक पंख उठा हो! अभी-अभी शायद नहाकर उठी र्थी क्योंकिक शरद की खुशनुर्मा धूप की तरह ह!के सुनह!े बा! पीठ पर !हरा रहे रे्थ। नी!काँKे की Kहकिनयाँ उनको सुनह!ी !हरें सर्मझकर अठखेलि!याँ कर रही र्थीं।

चन्दर की साइकिक! 5ब अन्दर दिदख पड़ी तो सुधा ने उधर देखा !ेकिकन कुछ भी न कहकर किफर अपनी क्रोलिशया बुनने र्में !ग गयी। चन्दर सीधा पोर्दिK-को र्में गया और अपनी साइकिक! रखकर भीतर च!ा गया डॉ. शुक्!ा के पास। स्Kडी-रूर्म र्में, बैठक र्में, सोने के कर्मरे र्में कहीं भी डॉ. शुक्!ा न5र नहीं आये। हारकर वह बाहर आया तो देखा र्मोKर अभी गैर5 र्में है। तो वे 5ा कहाँ सकते? और सुधा को तो देखिखए! क्या अकड़़ी हुई है आ5, 5ैसे चन्दर को 5ानती ही नहीं। चन्दर सुधा के पास गया। सुधा का र्मुँह और भी !Kक गया।

''डॉक्Kर साहब कहाँ हैं?'' चन्दर ने पूछा।

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''हर्में क्या र्मा!ूर्म?'' सुधा ने क्रोलिशया पर से किबना किनगाह उठाये 5वाब दिदया।

''तो किकसे र्मा!ूर्म होगा?'' चन्दर ने डाँKते हुए कहा, ''हर वक्त का र्म5ाक हर्में अच्छा नहीं !गता। कार्म की बात का उसी तरह 5वाब देना चाकिहए। उनके किनबन्ध की लि!किप देनी है या नहीं!''

''हाँ-हाँ, देनी है तो र्मैं क्या करँू? नहा रहे होंगे। अभी कोई ये तो है नहीं किक तुर्म किनबन्ध की लि!किप !ाये हो तो कोई नहाये-धोये न, बस सुबह से बैठा रहे किक अब किनबन्ध आ रहा है, अब आ रहा है!'' सुधा ने र्मुँह बनाकर आँखें नचाते हुए कहा।

''तो सीधे क्यों नहीं कहती किक नहा रहे हैं।'' चन्दर ने सुधा के गुस्से पर हँसकर कहा। चन्दर की हँसी पर तो सुधा का धिर्म5ा5 और भी किबगड़ गया और अपनी क्रोलिशया उठाकर और किकताब बग! र्में दबाकर, वह उठकर अन्दर च! दी। उसके उठते ही चन्दर आरार्म से उस कुरसी पर बैठ गया और र्मे5 पर Kाँग फै!ाकर बो!ा-''आ5 र्मुझे बहुत गुस्सा चढ़ा है, खबरदार कोई बो!ना र्मत!''

सुधा 5ाते-5ाते र्मुडक़र खड़ी हो गयी।

''हर्मने कह दिदया चन्दर एक बार किक हर्में ये सब बातें अच्छी नहीं !गतीं। 5ब देखो तुर्म लिचढ़ाते रहते हो!'' सुधा ने गुस्से से कहा।

''नहीं! लिचढ़ाएगँे नहीं तो पू5ा करेंगे! तुर्म अपने र्मौके पर छोड़ देती हो!'' चन्दर ने उसी !ापरवाही से कहा।

सुधा गयी नहीं। वहीं घास पर बैठ गयी और किकताब खो!कर पwऩे !गी। 5ब पाँच धिर्मनK तक वह कुछ नहीं बो!ी तो चन्दर ने सोचा आ5 बात कुछ गम्भीर है।

''सुधा!'' उसने बडे़ दु!ार से पुकारा। ''सुधा!''

सुधा ने कुछ नहीं कहा र्मगर दो बडे़-बडे़ आँसू Kप से नीचे किकताब पर किगर गये।

''अरे क्या बात है सुधा, नहीं बताओगी?''

''कुछ नहीं।''

''बता दो, तुम्हें हर्मारी कसर्म है।''

''क! शार्म को तुर्म आये नहीं...'' सुधा रोनी आवा5 र्में बो!ी।

''बस इस बात पर इतनी नारा5 हो, पाग!!''

''हाँ, इस बात पर इतनी नारा5 हूँ! तुर्म आओ चाहे ह5ार बार न आओ; इस पर हर्म क्यों नारा5 होंगे! बडे़ कहीं के आये, नहीं आएगेँ तो 5ैसे हर्मारा घर-बार नहीं है। अपने को 5ाने क्या सर्मझ लि!या है!'' सुधा ने लिचwक़र 5वाब दिदया।

''अरे तो तुम्हीं तो कह रही र्थी, भाई।'' चन्दर ने हँसकर कहा।

''तो बात पूरी भी सुनो। शार्म को गेसू का नौकर आया र्था। उसके छोKे भाई हसरत की सा!किगरह र्थी। सुबह 'कुरानखानी' होने वा!ी र्थी और उसकी र्माँ ने बु!ाया र्था।''

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''तो गयी क्यों नहीं?''

''गयी क्यों नहीं! किकससे पूछकर 5ाती? आप तो इस वक्त आ रहे हैं 5ब सब खत्र्म हो गया!'' सुधा बो!ी।

''तो पापा से पूछ के च!ी 5ाती!'' चन्दर ने सर्मझाकर कहा, ''और किफर गेसू के यहाँ तो यों अकसर 5ाती हो तुर्म!''

''तो? आ5 तो डान्स भी करने के लि!ए कहा र्था उसने। किफर बाद र्में तुर्म कहते, 'सुधा, तुम्हें ये नहीं करना चाकिहए, वो नहीं करना चाकिहए। !ड़किकयों को ऐसे रहना चाकिहए, वैसे रहना चाकिहए।' और बैठ के उपदेश किप!ाते और नारा5 होते। किबना तुर्मसे पूछे हर्म कहीं लिसनेर्मा, किपककिनक, 5!सों र्में गये हैं कभी?'' और किफर आँसू Kपक पडे़।

''पग!ी कहीं की! इतनी-सी बात पर रोना क्या? किकसी के हार्थ कुछ उपहार भे5 दो और किफर किकसी र्मौके पर च!ी 5ाना।''

''हाँ, च!ी 5ाना! तुम्हें कहते क्या !गता है! गेसू ने किकतना बुरा र्माना होगा!'' सुधा ने किबगड़ते हुए ही कहा। ''इम्तहान आ रहा है, किफर कब 5ाएगँे?''

''कब है इम्तहान तुम्हारा?''

''चाहे 5ब हो! र्मुझे पढ़ाने के लि!ए कहा किकसी से?''

''अरे भू! गये! अच्छा, आ5 देखो कहेंगे!''

''कहेंगे-कहेंगे नहीं, आ5 दोपहर को आप बु!ा !ाइए, वरना हर्म सब किकताबों र्में !गाये देते हैं आग। सर्मझे किक नहीं!''

''अच्छा-अच्छा, आ5 दोपहर को बु!ा !ाएगेँ। ठीक, अच्छा याद आया किबसरिरया से कहूँगा तुम्हें पढ़ाने के लि!ए। उसे रुपये की 5रूरत भी है।'' चन्दर ने छुKकारे का कोई रास्ता न पाकर कहा।

''आ5 दोपहर को 5रूर से।'' सुधा ने किफर आँखें नचाकर कहा। ''!ो, पापा आ गये नहाकर, 5ाओ!''

चन्दर उठा और च! दिदया। सुधा उठी और अन्दर च!ी गयी।

डॉ. शुक्!ा हल्के-साँव!े रंग के 5रा सू्थ!काय-से रे्थ। बहुत गम्भीर अध्ययन और अध्यापन और उम्र के सार्थ-सार्थ ही उनकी नम्रता और भी बढ़ती 5ा रही र्थी।

!ेकिकन वे !ोगों से धिर्म!ते-5ु!ते कर्म रे्थ। व्यलिक्तगत दोस्ती उनकी किकसी से नहीं र्थी। !ेकिकन उत्तर भारत के प्रर्मुख किवद्वान् होने के नाते कान्फे्रन्सों र्में, र्मौखिखक परीक्षाओं र्में, सरकारी कर्मेदिKयों र्में वे बराबर बु!ाये 5ाते रे्थ और इसर्में प्रर्मुख दिद!चस्पी से किहस्सा !ेते रे्थ। ऐसी 5गहों र्में चन्दर अक्सर उनका प्रर्मुख सहायक रहता र्था और इसी नाते चन्दर भी प्रान्त के बडे़-बडे़ !ोगों से परिरलिचत हो गया र्था। 5ब वह एर्म. ए. पास हुआ र्था तब से फाइनेन्स किवभाग र्में उसे कई बार ऊँचे-ऊँचे पदों का 'ऑफर' आ चुका र्था !ेकिकन डॉ. शुक्!ा इसके खिख!ाफ रे्थ। वे चाहते रे्थ किक पह!े वह रिरसच� पूरी कर !े। सम्भव हो तो किवदेश हो आये, तब चाहे कुछ कार्म करे। अपने व्यलिक्तगत 5ीवन र्में डॉ. शुक्!ा अन्तर्तिव-रोधों के व्यलिक्त रे्थ। पार्दिK-यों र्में र्मुस!र्मानों और ईसाइयों के सार्थ खाने र्में उन्हें कोई एतरा5 नहीं र्था !ेकिकन कच्चा खाना वे चौके र्में आसन पर बैठकर, रेशर्मी धोती पहनकर खाते रे्थ। सरकार को उन्होंने स!ाह दी किक साधुओं और संन्यालिसयों को 5बरदस्ती कार्म र्में !गाया 5ाए और र्मजिन्दरों की 5ायदादें 5ब्त कर !ी 5ाए,ँ !ेकिकन सुबह घंKे-भर तक पू5ा 5रूर करते रे्थ। पू5ा-पाठ, खान-पान, 5ात-पाँत के पक्के हार्मी, !ेकिकन व्यलिक्तगत 5ीवन र्में कभी यह नहीं 5ाना किक उनका कौन लिशष्य ब्राह्मण है, कौन बकिनया, कौन खvी, कौन कायस्थ!

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नहाकर वे आ रहे रे्थ और दुगा�सप्तशती का कोई श्लोक गुनगुना रहे रे्थ। कपूर को देखा तो रुक गये और बो!े, ''है!ो, हो गया वह Kाइप!''

''5ी हाँ।''

''कहाँ कराया Kाइप?''

''धिर्मस किडकू्र5 के यहाँ।''

''अच्छा! वह !ड़की अच्छी है। अब तो बहुत बड़ी हुई होगी? अभी शादी नहीं हुई? र्मैंने तो सोचा वह धिर्म!े या न धिर्म!े!''

''नहीं, वह यहीं है। शादी हुई। किफर त!ाक हो गया।''

''अरे! तो अके!े रहती है?''

''नहीं, अपने भाई के सार्थ है, बK\ के सार्थ!''

''अच्छा! और बK\ की पत्नी अच्छी तरह है?''

''वह र्मर गयी।''

''रार्म-रार्म, तब तो घर ही बद! गया होगा।''

''पापा, पू5ा के लि!ए सब किबछा दिदया है।'' सहसा सुधा बो!ी।

''अच्छा बेKी, अच्छा चन्दर, र्मैं पू5ा कर आऊँ 5ल्दी से। तुर्म चाय पी चुके?''

''5ी हाँ।''

''अच्छा तो र्मेरी र्मे5 पर एक चाK� है, 5रा इसको ठीक तो कर दो तब तक। र्मैं अभी आया।''

चन्दर स्Kडी-रूर्म र्में गया और र्मे5 पर बैठ गया। कोK उतारकर उसने खँूKी पर Kाँग दिदया और नक्शा देखने !गा। पास र्में एक छोKी-सी चीनी की प्या!ी र्में चाइना इंक रखी र्थी और र्मे5 पर पानी। उसने दो बँूद पानी डा!कर चाइना इंक धिघसनी शुरू की, इतने र्में सुधा कर्मरे र्में दाखिख!, ''ऐ सुनो!'' उसने चारों ओर देखकर बडे़ सशंकिकत स्वरों र्में कहा और किफर झुककर चन्दर के कान के पास र्मुँह !गाकर कहा, ''चाव! की नानखKाई खाओगे?''

''ये क्या ब!ा है?'' चन्दर ने इंक धिघसते-धिघसते पूछा।

''बड़ी अच्छी ची5 होती है; पापा को बहुत अच्छी !गती है। आ5 हर्मने सुबह अपने हार्थ से बनायी र्थी। ऐं, खाओगे?'' सुधा ने बडे़ दु!ार से पूछा।

''!े आओ।'' चन्दर ने कहा।

''!े आये हर्म, !ो!'' और सुधा ने अपने आँच! र्में लि!पKी हुई दो नानखKाई किनका!कर र्मे5 पर रख दी।

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''अरे तश्तरी र्में क्यों नहीं !ायी? सब धोती र्में घी !ग गया। इतनी बड़ी हो गयी, शऊर नहीं 5रा-सा।'' चन्दर ने किबगडक़र कहा।

''लिछपा करके !ाये हैं, किफर ये सकरी होती हैं किक नहीं? चौके के बाहर कैसे !ाते! तुम्हारे लि!ये तो !ाये हैं और तुम्हीं किबगड़ रहे हो। अन्धे को नोन दो, अन्धा कहे र्मेरी आँखें फोड़ीं।'' सुधा ने र्मुँह बनाकर कहा, ''खाना है किक नहीं?''

''हार्थ र्में तो हर्मारे स्याही !गी है।'' चन्दर बो!ा।

''हर्म अपने हार्थ से नहीं खिख!ाएगेँ, हर्मारा हार्थ 5ूठा हो 5ाएगा और रार्म रार्म! पता नहीं तुर्म रेस्तराँ र्में र्मुस!र्मान के हार्थ का खाते होगे। रू्थ-रू्थ!''

चन्दर हँस पड़ा सुधा की इस बात पर और उसने पानी र्में हार्थ डुबोकर किबना पूछे सुधा के आँच! र्में हार्थ पोंछ दिदये स्याही के और बेतकल्!ुफी से नानखKाई उठाकर खाने !गा।

''बस, अब धोती का किकनारा रंग दिदया और यही पहनना है हर्में दिदनभर।'' सुधा ने किबगडक़र कहा।

''खुद नानखKाई लिछपाकर !ायी और घी !ग गया तो कुछ नहीं और हर्मने स्याही पोंछ दी तो र्मुँह किबगड़ गया।'' चन्दर ने र्मैपिप-ग पेन र्में इंक !गाते हुए कहा।

''हाँ, अभी पापा देखें तो और किबगड़ें किक धोती र्में घी, स्याही सब !गाये रहती है। तुम्हें क्या?'' और उसने स्याही !गा हुआ छोर कसकर कर्मर र्में खोंस लि!या।

''लिछह, वही घी र्में तर छोर कर्मर र्में खोंस लि!या। गन्दी कहीं की!'' चन्दर ने चाK� की !ाइनें ठीक करते हुए कहा।

''गन्दी हैं तो, तुर्मसे र्मत!ब!'' और र्मुँह लिचढ़ाते हुए सुधा कर्मरे से बाहर च!ी गयी।

चन्दर चुपचाप बैठा चाK� दुरुस्त करता रहा। उत्तर प्रदेश के पूवr जि5!ा-बलि!या, आ5र्मगढ़, बस्ती, बनारस आदिद र्में बच्चों की र्मृत्यु-संख्या का ग्राफ बनाना र्था और एक ओर उनके नके्श पर किबन्दुओं की एक सघनता से र्मृत्यु-संख्या का किनद®श करना र्था। चन्दर की एक आदत र्थी वह कार्म र्में !गता र्था तो भूत की तरह !गता र्था। किफर उसे दीन-दुकिनया, किकसी की खबर नहीं रहती र्थी। खाना-पीना, तन-बदन, किकसी का होश नहीं रहता र्था। इसका एक कारण र्था। चन्दर उन !ड़कों र्में से र्था जि5नकी जि5-दगी बाहर से बहुत हल्की-फुल्की होते हुए भी अन्दर से बहुत गम्भीर और अर्थ�र्मयी होती है, जि5नके सार्मने एक स्पष्ट उदे्दश्य, एक !क्ष्य होता है। बाहर से चाहे 5ैसे होने पर भी अपने आन्तरिरक सत्य के प्रकित घोर ईर्मानदारी यह इन !ोगों की किवशेषता होती है और सारी दुकिनया के प्रकित अगम्भीर और उचंृ्छख! होने पर भी 5ो ची5ें इनकी !क्ष्यपरिरधिध र्में आ 5ाती हैं, उनके प्रकित उनकी गम्भीरता, साधना और पू5ा बन 5ाती है। इसलि!ए बाहर से इतना व्यलिक्तवादी और सारी दुकिनया के प्रकित किनरपेक्ष और !ापरवाह दिदख पडऩे पर भी वह अन्तरतर्म से सर्मा5 और युग और अपने आसपास के 5ीवन और व्यलिक्तयों के प्रकित अपने को बेहद उत्तरदायी अनुभव करता र्था। वह देशभक्त भी र्था और शायद सर्मा5वादी भी, पर अपने तरीके से। वह खद्दर नहीं पहनता र्था, कांग्रेस का सदस्य नहीं र्था, 5े! नहीं गया र्था, किफर भी वह अपने देश को प्यार करता र्था। बेहद प्यार। उसकी देशभलिक्त, उसका सर्मा5वाद, सभी उसके अध्ययन और खो5 र्में सर्मा गया र्था। वह यह 5ानता र्था किक सर्मा5 के सभी स्तम्भों का स्थान अपना अ!ग होता है। अगर सभी र्मजिन्दर के कंगूरे का फू! बनने की कोलिशश करने !गें तो नींव की ईंK और सीढ़ी का पत्थर कौन बनेगा? और वह 5ानता र्था किक अर्थ�शास्v वह पत्थर है जि5स पर सर्मा5 के सारे भवन का बोझ है। और उसने किनश्चय किकया र्था किक अपने देश, अपने युग के आर्शिर्थ-क पह!ू को वह खूब अच्छी तरह से अपने wंग से किवशे्लषण करके देखेगा और उसे आशा र्थी किक वह एक दिदन ऐसा सर्माधान खो5 किनका!ेगा किक र्मानव की बहुत-सी सर्मस्याए ँह! हो 5ाएगँी और आर्शिर्थ-क और रा5नीकितक के्षv र्में अगर आदर्मी खँूखार 5ानवर बन गया है तो एक दिदन दुकिनया उसकी एक आवा5 पर देवता बन सकेगी। इसलि!ए 5ब वह बैठकर कानपुर की धिर्म!ों के र्म5दूरों के वेतन का चाK� बनाता र्था, या उपयुक्त साधनों के अभाव र्में र्मर 5ाने वा!ी गरीब

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औरतों और बच्चों का !ेखा-5ोखा करता र्था तो उसके सार्मने अपना कैरिरयर, अपनी प्रकितष्ठा, अपनी किडग्री का सपना नहीं होता र्था। उसके र्मन र्में उस वक्त वैसा सन्तोष होता र्था 5ो किकसी पु5ारी के र्मन र्में होता है, 5ब वह अपने देवता की अच�ना के लि!ए धूप, दीप, नैवेद्य स5ाता है। बश्किल्क चन्दर र्थोड़ा भावुक र्था, एक बार तो 5ब चन्दर ने अपने रिरसच� के लिस!लिस!े र्में यह पढ़ा किक अँगरे5ों ने अपनी पँू5ी !गाने और अपना व्यापार फै!ाने के लि!ए किकस तरह र्मुर्शिश-दाबाद से !ेकर रोहतक तक किहन्दुस्तान के गरीब से गरीब और अर्मीर से अर्मीर बालिशन्दे को अर्मानुकिषकता से !ूKा, तब वह फूK-फूKकर रो पड़ा र्था !ेकिकन इसके बाव5ूद उसने रा5नीकित र्में कभी डूबकर किहस्सा नहीं लि!या क्योंकिक उसने देखा किक उसके 5ो भी धिर्मv रा5नीकित र्में गये, वे र्थोडे़ दिदन बाद बहुत प्रलिसजि» और प्रकितष्ठा पा गये र्मगर आदर्मीयत खो बैठे।

अपने अर्थ�शास्v के बाव5ूद वह यह सर्मझता र्था किक आदर्मी की जि5-दगी लिसफ� आर्शिर्थ-क पह!ू तक सीधिर्मत नहीं और वह यह भी सर्मझता र्था किक 5ीवन को सुधारने के लि!ए लिसफ� आर्शिर्थ-क wाँचा बद! देने-भर की 5रूरत नहीं है। उसके लि!ए आदर्मी का सुधार करना होगा, व्यलिक्त का सुधार करना होगा। वरना एक भरे-पूरे और वैभवशा!ी सर्मा5 र्में भी आ5 के-से अस्वस्थ और पाशकिवक वृक्षित्तयों वा!े व्यलिक्त रहेंगे तो दुकिनया ऐसी ही !गेगी 5ैसे एक खूबसूरत स5ा-स5ाया र्मह! जि5सर्में कीडे़ और राक्षस रहते हों।

वह यह भी सर्मझता र्था किक वह जि5स तरह की दुकिनया का सपना देखता, वह दुकिनया आ5 किकसी भी एक रा5नीकितक क्रास्टिन्त या किकसी भी किवशेष पाK\ की सहायता र्माv से नहीं बन सकती है। उसके लि!ए आदर्मी को अपने को बद!ना होगा, किकसी सर्मा5 को बद!ने से कार्म नहीं च!ेगा। इसलि!ए वह अपने व्यलिक्त के संसार र्में किनरन्तर !गा रहता र्था और सर्मा5 के आर्शिर्थ-क पह!ू को सर्मझने की कोलिशश करता रहता र्था। यही कारण है किक अपने 5ीवन र्में आनेवा!े व्यलिक्तयों के प्रकित वह बेहद ईर्मानदार रहता र्था और अपने अध्ययन और कार्म के प्रकित वह सचेत और 5ागरूक रहता र्था और वह अच्छी तरह सर्मझता र्था किक इस तरह वह दुकिनया को उस ओर बढ़ाने र्में र्थोड़ी-सी र्मदद कर रहा है। चँूकिक अपने र्में भी वह सत्य की वही लिचनगारी पाता र्था इसलि!ए ककिव या दाश�किनक न होते हुए भी वह इतना भावुक, इतना दृढ़-चरिरv, इतना सशक्त और इतना गम्भीर र्था और कार्म तो अपना वह इस तरह करता र्था 5ैसे वह किकसी की एकाग्र उपासना कर रहा हो। इसलि!ए 5ब वह चाK� के नके्श पर क!र्म च!ा रहा र्था तो उसे र्मा!ूर्म नहीं हुआ किक किकतनी देर से डॉ. शुक्!ा आकर उसके पीछे खडे़ हो गये।

''वाह, नके्श पर तो तुम्हारा हार्थ बहुत अच्छा च!ता है। बहुत अच्छा! अब उसे रहने दो। !ाओ, देखें, तुम्हारा कार्म कैसा च! रहा है। आ5 तो इतवार है न?''

डॉ. शुक्!ा पास की कुरसी पर बैठकर बो!े, ''चन्दर! आ5क! र्मैं एक किकताब लि!खने की सोच रहा हूँ। र्मैंने सोचा किक भारतवष� की 5ाकित-व्यवस्था का नये वैज्ञाकिनक wंग से अध्ययन और किवशे्लषण किकया 5ाए। तुर्म इसके बारे र्में क्या सोचते हो?''

''व्यर्थ� है! 5ो व्यवस्था आ5 नहीं तो क! चूर-चूर होने 5ा रही है, उसके बारे र्में तूर्मार बाँधना और सर्मय बरबाद करना बेकार है।'' चन्दर ने बहुत आत्र्मकिवश्वास से कहा।

''यही तो तुर्म !ोगों र्में खराबी है। कुछ र्थोड़ी-सी खराकिबयाँ 5ाकित-व्यवस्था की देख !ीं और उसके खिख!ाफ हो गये। एक रिरसच� स्कॉ!र का दृधिष्टकोण ही दूसरा होना चाकिहए। किफर हर्मारे भारत की प्राचीन सांस्कृकितक परम्पराओं को तो बहुत ही सावधानी से सर्मझने की आवश्यकता है। यह सर्मझ !ो किक र्मानव 5ाकित दुब�! नहीं है। अपने किवकास-क्रर्म र्में वह उन्हीं संस्थाओं, रीकित-रिरवा5ों और परम्पराओं को रहने देती है 5ो उसके अश्किस्तत्व के लि!ए बहुत आवश्यक होती है। अगर वे आवश्यक न हुईं तो र्मानव उससे छुKकारा र्माँग !ेता है। यह 5ाकित-व्यवस्था 5ाने किकतने सा!ों से किहन्दुस्तान र्में कायर्म है, क्या यही इस बात का प्रर्माण नहीं किक यह बहुत सशक्त है, अपने र्में बहुत 5रूरी है?''

''अरे किहन्दुस्तान की भ!ी च!ायी।'' चन्दर बो!ा, ''किहन्दुस्तान र्में तो गु!ार्मी किकतने दिदनों से कायर्म है तो क्या वह भी 5रूरी है।''

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''किबल्कु! 5रूरी है।'' डॉ. शुक्!ा बो!े, ''र्मुझे भी किहन्दुस्तान पर गव� है। र्मैंने कभी कांग्रेस का कार्म किकया, !ेकिकन र्मैं इसे नती5े पर पहुँचा हूँ किक 5रा-सी आ5ादी अगर धिर्म!ती है किहन्दुस्ताकिनयों को, तो वे उसका भरपूर दुरुपयोग करने से बा5 नहीं आते और कभी भी ये !ोग अचे्छ शासक नहीं किनक!ेंगे।''

''अरे नहीं! ऐसी बात नहीं। किहन्दुस्ताकिनयों को ऐसा बना दिदया है अँगरे5ों ने। वरना किहन्दुस्तान ने ही तो चन्द्रगुप्त और अशोक पैदा किकये रे्थ और रही 5ाकित-व्यवस्था की बात तो र्मुझे तो स्पष्ट दिदख रहा है किक 5ाकित-व्यवस्था KूK रही है।'' कपूर बो!ा, ''रोKी-बेKी की कैद र्थी। रोKी की कैद तो करीब-करीब KूK गयी, अब बेKी की कैद भी... ब्याह-शादिदयाँ भी दो-एक पीढ़ी के बाद स्वच्छन्दता से होने !गेंगी।''

''अगर ऐसा होगा तो बहुत ग!त होगा। इससे 5ाकितगत पतन होता है। ब्याह-शादी को कर्म-से-कर्म र्मैं भावना की दृधिष्ट से नहीं देखता। यह एक सार्माजि5क तथ्य है और उसी दृधिष्टकोण से हर्में देखना चाकिहए। शादी र्में सबसे बड़ी बात होती है सांस्कृकितक सर्मानता। और 5ब अ!ग-अ!ग 5ाकित र्में अ!ग-अ!ग रीकित-रिरवा5 हैं तो एक 5ाकित की !ड़की दूसरी 5ाकित र्में 5ाकर कभी भी अपने को ठीक से सन्तुलि!त नहीं कर सकती। और किफर एक बकिनया की व्यापारिरक प्रवृक्षित्तयों की !ड़की और एक ब्राह्म ï ण का अध्ययन वृक्षित्त का !ड़का, इनकी सन्तान न इधर किवकास कर सकती है न उधर। यह तो सार्माजि5क व्यवस्था को व्यर्थ� के लि!ए असन्तुलि!त करना हुआ।''

''हाँ, !ेकिकन किववाह को आप केव! सर्मा5 के दृधिष्टकोण से क्यों देखते हैं? व्यलिक्त के दृधिष्टकोण से भी देखिखए। अगर दो किवक्षिभ� 5ाकित के !ड़के-!ड़की अपना र्मानलिसक सन्तु!न ज्यादा अच्छा कर सकते हैं तो क्यों न किववाह की इ5ा5त दी 5ाए!''

''ओह, एक व्यलिक्त के सुझाव के लि!ए हर्म सर्मा5 को क्यों नुकसान पहुँचाए!ँ और इसका क्या किनश्चय किक किववाह के सर्मय यदिद दोनों र्में र्मानलिसक सन्तु!न है तो किववाह के बाद भी रहेगा ही। र्मानलिसक सन्तु!न और पे्रर्म जि5तना अपने र्मन पर आधारिरत होता है उतना ही बाहरी परिरण्डिस्थकितयों पर। क्या 5ाने ब्याह के वक्त की परिरण्डिस्थकित का दोनों के र्मन पर किकतना प्रभाव है और उसके बाद सन्तु!न रह पाता है या नहीं? और र्मैंने तो !व-र्मैरिर5े5 (पे्रर्म-किववाह) को असफ! ही होते देखा है। बो!ो है या नहीं?'' डॉ. शुक्!ा ने कहा।

''हाँ, पे्रर्म-किववाह अकसर असफ! होते हैं, !ेकिकन सम्भव है वह पे्रर्म न होता हो। 5हाँ सच्चा पे्रर्म होगा वहाँ कभी असफ! किववाह नहीं होंगे।'' चन्दर ने बहुत साहस करके कहा।

''ओह! ये सब साकिहत्य की बातें हैं। सर्मा5शास्v की दृधिष्ट से या वैज्ञाकिनक दृधिष्ट से देखो! अच्छा खैर, अभी र्मैंने उसकी रूप-रेखा बनायी है। लि!खँूगा तो तुर्म सुनते च!ना। !ाओ, वह किनबन्ध कहाँ है!'' डॉ. शुक्!ा बो!े।

चन्दर ने उन्हें Kाइप की हुई प्रकितलि!किप दे दी। उ!K-पु!Kकर डॉ. शुक्!ा ने देखा और कहा, ''ठीक है। अच्छा चन्दर, अपना कार्म इधर ठीक-ठीक कर !ो, अग!े इतवार को !खनऊ कॉन्फे्रन्स र्में च!ना है।''

''अच्छा! कार पर च!ेंगे या टे्रन से?''

''टे्रन से। अच्छा।'' घड़ी देखते हुए उन्होंने कहा, ''अब 5रा र्मैं कार्म से च! रहा हूँ। तुर्म यह चाK� बना डा!ो और एक किनबन्ध लि!ख डा!ना - 'पूवr जि5!ों र्में लिशशु र्मृत्यु।' प्रान्त के स्वास्थ्य किवभाग ने एक पुरस्कार घोकिषत किकया है।''

डॉ. शुक्!ा च!े गये। चन्दर ने किफर चाK� र्में हार्थ !गाया।

चन्दर के 5ाने के 5रा ही देर बाद पापा आये और खाने बैठे। सुधा ने रसोई की रेशर्मी धोती पहनी और पापा को पंखा झ!ने बैठ गयी। सुधा अपने पापा की लिसरचढ़ी दु!ारी बेदिKयों र्में से र्थी और इतनी बड़ी हो 5ाने पर भी वह दु!ार दिदखाने से बा5 नहीं आती र्थी। किफर आ5 तो उसने पापा की किप्रय नानखKाई अपने हार्थ से बनायी र्थी। आ5

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तो दु!ार दिदखाने का उसका हक र्था और भ!ी-बुरी हर तरह की जि5द को र्मान !ेना करना, यह पापा की र्म5बूरी र्थी।

र्मुश्किश्क! से डॉ. साहब ने अभी दो कौर खाये होंगे किक सुधा ने कहा, ''नानखKाई खाओ, पापा!''

डॉ. शुक्!ा ने एक नानखKाई तोडक़र खाते हुए कहा, ''बहुत अच्छी है!'' खाते-खाते उन्होंने पूछा, ''सोर्मवार को कौन दिदन है, सुधा!''

''सोर्मवार को कौन दिदन है? सोर्मवार को 'र्मJडे' है।'' सुधा ने हँसकर कहा। डॉ. शुक्!ा भी अपनी भू! पर हँस पडे़। ''अरे देख तो र्मैं किकतना भु!क्कड़ हो गया हूँ। र्मेरा र्मत!ब र्था किक सोर्मवार को कौन तारीख है?''

''11 तारीख।'' सुधा बो!ी, ''क्यों?''

''कुछ नहीं, 10 को कॉन्फे्रन्स है और 14 को तुम्हारी बुआ आ रही हैं।''

''बुआ आ रही हैं, और किबनती भी आएगी?''

''हाँ, उसी को तो पहुँचाने आ रही हैं। किवदुषी का केन्द्र यहीं तो है।''

''आहा! अब तो किबनती तीन र्महीने यहीं रहेगी, पापा अब किबनती को यहीं बु!ा !ो। र्मैं बहुत अके!ी रहती हूँ।''

''हाँ, अब तो 5ून तक यहीं रहेगी। किफर 5ु!ाई र्में उसकी शादी होगी।'' डॉ. शुक्!ा ने कहा।

''अरे, अभी से? अभी उसकी उम्र ही क्या है!'' सुधा बो!ी।

''क्यों, तेरे बराबर है। अब तेरे लि!ए भी तेरी बुआ ने लि!खा है।''

''नहीं पापा, हर्म ब्याह नहीं करेंगे।'' सुधा ने र्मच!कर कहा।

''तब?''

''बस हर्म पढ़ें गे। एफ.ए. कर !ेंगे, किफर बी.ए., किफर एर्म.ए., किफर रिरसच�, किफर बराबर पढ़ते 5ाएगँे, किफर एक दिदन हर्म भी तुम्हारे बराबर हो 5ाएगँे। क्यों, पापा?''

''पाग! नहीं तो, बातें तो सुनो इसकी! !ा, दो नानखKाई और दे।'' शुक्!ा हँसकर बो!े।

''नहीं, पह!े तो कबू! दो तब हर्म नानखKाई देंगे। बताओ ब्याह तो नहीं करोगे।'' सुधा ने दो नानखKाइयाँ हार्थ र्में उठाकर कहा।

''!ा, रख।''

''नहीं, पह!े बता दो।''

''अच्छा-अच्छा, नहीं करेंगे।''

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सुधा ने दोनों नानखKाइयाँ रखकर पंखा झ!ना शुरू किकया। इतने र्में किफर नानखKाइयाँ खाते हुए डॉ. शुक्!ा बो!े, ''तेरी सास तुझे देखने आएगी तो यही नानखKाइयाँ तुर्मसे बनवा कर खिख!ाएगेँ।''

''किफर वही बात!'' सुधा ने पंखा पKककर कहा, ''अभी तुर्म वादा कर चुके हो किक ब्याह नहीं करेंगे।''

''हाँ-हाँ, ब्याह नहीं करँूगा, यह तो कह दिदया र्मैंने। !ेकिकन तेरा ब्याह नहीं करँूगा, यह र्मैंने कब कहा?''

''हाँ आँ, ये तो किफर झूठ बो! गये तुर्म...'' सुधा बो!ी।

''अच्छा, ए! च!ो ओहर।'' र्महराजि5न ने डाँKकर कहा, ''एत्ती बड़ी किबदिKया हो गयी, र्मारे दु!ारे के बररानी 5ात है।'' र्महराजि5न पुरानी र्थी और सुधा को डाँKने का पूरा हक र्था उसे, और सुधा भी उसका बहुत लि!हा5 करती र्थी। वह उठी और चुपचाप 5ाकर अपने कर्मरे र्में !ेK गयी। बारह ब5 रहे रे्थ।

वह !ेKी-!ेKी क! रात की बात सोचने !गी। क्!ास र्में क्या र्म5ा आया र्था क!; गेसू किकतनी अच्छी !ड़की है! इस वक्त गेसू के यहाँ खाना-पीना हो रहा होगा और किफर सब !ोग धिर्म!कर गाएगेँ। कौन 5ाने शायद दोपहर को कव्वा!ी भी हो। इन !ोगों के यहाँ कव्वा!ी इतनी अच्छी होती है। सुधा सुन नहीं पाएगी और गेसू ने भी किकतना बुरा र्माना होगा। और यह सब चन्दर की व5ह से। चन्दर हरे्मशा उसके आने-5ाने, उठने-बैठने र्में कतर-ब्योंत करता रहता है। एक बार वह अपने र्मन से !ड़किकयों के सार्थ किपककिनक र्में च!ी गयी। वहीं चन्दर के बहुत-से दोस्त भी रे्थ। एक दोस्त ने 5ाकर चन्दर से 5ाने क्या कह दिदया किक चन्दर उस पर बहुत किबगड़ा। और सुधा किकतनी रोयी र्थी उस दिदन। यह चन्दर बहुत खराब है। सच पूछो तो अगर कभी-कभी वह सुधा का कहना र्मान !ेता है तो उससे दुगुना सुधा पर रोब 5र्माता है और सुधा को रु!ा-रु!ाकर र्मार डा!ता है। और खुद अपने-आप दुकिनयाभर र्में घूर्मेंगे। अपना कार्म होगा तो 'च!ो सुधा, अभी करो, फौरन।' और सुधा का कार्म होगा तो-'अरे भाई, क्या करें, भू! गये।' अब आ5 ही देखो, सुबह आठ ब5े आये और अब देखो दो ब5े भी 5नाब आते हैं या नहीं? और कह गये हैं दो ब5े तक के लि!ए तो दो ब5े तक सुधा को चैन नहीं पडे़गी। न नींद आएगी, न किकसी कार्म र्में तबीयत !गेगी। !ेकिकन अब ऐसे कार्म कैसे च!ेगा। इम्तहान को किकतने र्थोडे़ दिदन रह गये हैं। और सुधा की तबीयत लिसवा पोयट्री (ककिवता) के और कुछ पwऩे र्में !गती ही नहीं। कब से वह चन्दर से कह रही है र्थोड़ा-सा इकनाधिर्मक्स पढ़ा दो, !ेकिकन ऐसा स्वार्थr है किक बस चाय पी !ी, नानखKाई खा !ी, रु!ा लि!या और किफर अपने र्मस्त साइकिक! पर घूर्म रहे हैं।

यही सब सोचते-सोचते सुधा को नींद आ गयी।

और तीन ब5े 5ब गेसू आयी तो भी सुधा सो रही र्थी। प!ंग के नीचे डी.एर्म.सी. का गो!ा खु!ा हुआ र्था और तकिकये के पास क्रोलिशया पड़ी र्थी। सुधा र्थी बड़ी प्यारी। बड़ी खूबसूरत। और खासतौर से उसकी प!कें तो अपराजि5ता के फू!ों को र्मात करती र्थीं। और र्थी इतनी गोरी गुदकारी किक कहीं पर दबा दो तो फू! खिख! 5ाए। र्मूँकिगया होंठों पर 5ाने कैसा अछूता गु!ाब र्मुसकराता र्था और बाँहें तो 5ैसे बे!े की पाँखुरिरयों की बनी हों। गेसू आयी। उसके हार्थ र्में धिर्मठाई र्थी 5ो उसकी र्माँ ने सुधा के लि!ए भे5ी र्थी। वह प!-भर खड़ी रही और किफर उसने र्मे5 पर धिर्मठाई रख दी और क्रोलिशया से सुधा की गद�न गुदगुदाने !गी। सुधा ने करवK बद! !ी। गेसू ने नीचे पड़ा हुआ डोरा उठाया और आकिहस्ते से उसका चुKी!ा डोरे के एक छोर से बाँधकर दूसरा छोर र्मे5 के पाये से बाँध दिदया। और उसके बाद बो!ी, ''सुधा, सुधा उठो।''

सुधा चौंककर उठ गयी और आँखें र्म!ते-र्म!ते बो!ी, ''अब दो ब5े हैं? !ाये उन्हें या नहीं?''

''ओहो! उन्हें !ाये या नहीं किकसे बु!ाया र्था रानी, दो ब5े; 5रा हर्में भी तो र्मा!ूर्म हो?'' गेसू ने बाँह र्में चुKकी काKते हुए पूछा।

''उफ्फोह!'' सुधा बाँह झKककर बो!ी, ''र्मार डा!ा! बेदद� कहीं की! ये सब अपने उन्हीं अख्तर धिर्मयाँ को दिदखाया कर!'' और ज्यों ही सुधा ने लिसर wँकने के लि!ए पल्!ा उठाया तो देखा किक चोKी डोर र्में बँधी हुई है। इसके पह!े किक

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सुधा कुछ कहे, गेसू बो!ी, ''या सनर्म! 5रा पढ़ाई तो देखो, र्मैंने तो सुना र्था किक नींद न आये इसलि!ए !ड़के अपनी चोKी खँूKी र्में बाँध !ेते हैं पर यह नहीं र्मा!ूर्म र्था किक !ड़किकयाँ भी अब वही करने !गी हैं।''

सुधा ने चोKी से डोर खो!ते हुए कहा, ''र्मैं ही सताने को रह गयी हूँ। अख्तर धिर्मयाँ की चोKी बाँधकर नचाना उन्हें। अभी से बेताब क्यों हुई 5ाती है?''

''अरे रानी, उनके चोKी कहाँ? धिर्मयाँ हैं धिर्मयाँ?''

''चोKी न सही, दाढ़ी सही।''

''दाढ़ी, खुदा खैर करे, र्मगर वो दाढ़ी रख !ें तो र्मैं उनसे र्मोहब्बत तोड़ !ँू।''

सुधा हँसने !गी।

''!े, अम्र्मी ने तेरे लि!ए धिर्मठाई भे5ी है। तू आयी क्यों नहीं?''

''क्या बताऊँ?''

''बताऊँ-वताऊँ कुछ नहीं। अब कब आएगी तू?''

''गेसू, सुनो, इसी र्मंग!, नहीं-नहीं बृहस्पकित को बुआ आ रही हैं। वो च!ी 5ाएगँी तब आऊँगी र्मैं।''

''अच्छा, अब र्मैं च!ँू। अभी काधिर्मनी और प्रभा के यहाँ धिर्मठाई पहुँचानी है।''

गेसू र्मुड़ते हुए बो!ी।

''अरे बैठो भी।'' सुधा ने गेसू की ओwऩी पकडक़र उसे खींचकर किबठ!ाते हुए कहा, ''अभी आये हो, बैठे हो, दार्मन सँभा!ा है।''

''आहा। अब तो तू भी उदू� शायरी कहने !गी।'' गेसू ने बैठते हुए कहा।

''तेरा ही र्म5� !ग गया।'' सुधा ने हँसकर कहा।

''देख कहीं और भी र्म5� न !ग 5ाए, वरना किफर तेरे लि!ए भी इन्त5ार्म करना होगा!'' गेसू ने प!ंग पर !ेKते हुए कहा।

''अरे ये वो गुड़ नहीं किक चींKे खाए।ँ''

''देखँूगी, और देखँूगी क्या, देख रही हूँ। इधर किपछ!े दो सा! से किकतनी बद! गयी है तू। पह!े किकतना हँसती-बो!ती र्थी, किकतनी !ड़ती-झगड़ती र्थी और अब किकतना हँसने-बो!ने पर भी गुर्मसुर्म हो गयी है तू। और वैसे हरे्मशा हँसती रहे चाहे !ेकिकन 5ाने किकस खया! र्में डूबी रहती है हरे्मशा।'' गेसू ने सुधा की ओर देखते हुए कहा।

''धत् पग!ी कहीं की।'' सुधा ने गेसू के एक हल्की-सी चपत र्मारकर कहा, ''यह सब तेरे अपने खया!ी-पु!ाव हैं। र्मैं किकसी के ध्यान र्में डूबूँगी, ये हर्मारे गुरु ने नहीं लिसखाया।''

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''गुरु तो किकसी के नहीं लिसखाते सुधा रानी, किबल्कु! सच-सच, क्या कभी तुम्हारे र्मन र्में किकसी के लि!ए र्मोहब्बत नहीं 5ागी?'' गेसू ने बहुत गम्भीरता से पूछा।

''देख गेसू, तुझसे र्मैंने आ5 तक तो कभी कुछ नहीं लिछपाया, न शायद कभी लिछपाऊँगी। अगर कभी कोई बात होती तो तुझसे लिछपी न रहती और रहा र्मुहब्बत का, तो सच पूछ तो र्मैंने 5ो कुछ कहाकिनयों र्में पढ़ा है किक किकसी को देखकर र्मैं रोने !गूँ, गाने !गूँ, पाग! हो 5ाऊँ यह सब कभी र्मुझे नहीं हुआ। और रहीं ककिवताए ँतो उनर्में की बातें र्मुझे बहुत अच्छी !गती हैं। कीK्स की ककिवताए ँपwक़र ऐसा !गा है अक्सर किक र्मेरी नसों का कतरा-कतरा आँसू बनकर छ!कने वा!ा है। !ेकिकन वह र्मह5 ककिवता का असर होता है।''

''र्मह5 ककिवता का असर,'' गेसू ने पूछा, ''कभी किकसी खास आदर्मी के लि!ए तेरे र्मन र्में हँसी या आँसू नहीं उर्मड़ते! कभी अपने र्मन को 5ाँचकर तो देख, कहीं तेरी ना5ुक-खया!ी के परदे र्में किकसी एक की सूरत तो नहीं लिछपी है।''

''नहीं गेसू बानो, नहीं, इसर्में र्मन को 5ाँचने की क्या बात है। ऐसी बात होती और र्मन किकसी के लि!ए झुकता तो क्या खुद र्मुझे नहीं र्मा!ूर्म होता?'' सुधा बो!ी, ''!ेकिकन तुर्म ऐसा क्यों सोचती हो?''

''बात यह है, सुधी!'' गेसू ने सुधा को अपनी गोद र्में खींचते हुए कहा, ''देखो, तुर्म र्मुझसे इल्र्म र्में ऊँची हो, तुर्मने अँग्रे5ी शायरी छान डा!ी है !ेकिकन जि5-दगी से जि5तना र्मुझे साकिबका पड़ चुका है, अभी तुम्हें नहीं पड़ा। अक्सर कब, कहाँ और कैसे र्मन अपने को हार बैठता है, यह खुद हर्में पता नहीं !गता। र्मा!ूर्म तब होता है 5ब जि5सके कदर्म पर हर्मने लिसर रखा है, वह झKके से अपने कदर्म घसीK !े। उस वक्त हर्मारी नींद KूK 5ाती है और तब हर्म 5ाकर देखते हैं किक अरे हर्मारा लिसर तो किकसी के कदर्मों पर रखा हुआ र्था और उनके सहारे आरार्म से सोते हुए हर्म सपना देख रहे रे्थ किक हर्मारा लिसर कहीं झुका ही नहीं। और र्मुझे 5ाने तेरी आँखों र्में इधर क्या दीख रहा है किक र्मैं बेचैन हो उठी हूँ। तूने कभी कुछ नहीं कहा, !ेकिकन र्मैंने देखा किक ना5ुक अशआर तेरे दिद! को उस 5गह छू !ेते हैं जि5स 5गह उसी को छू सकते हैं 5ो अपना दिद! किकसी के कदर्मों पर चढ़ा चुका हो। और र्मैं यह नहीं कहती किक तूने र्मुझसे लिछपाया है। कौन 5ानता है तेरे दिद! ने खुद तुझसे यह रा5 लिछपा रखा हो।'' और सुधा के गा! र्थपर्थपाते हुए गेसू बो!ी, ''!ेकिकन र्मेरी एक बात र्मानेगी तू? तू कभी इस दद� को र्मो! न !ेना, बहुत तक!ीफ होती है।''

सुधा हँसने !गी, ''तक!ीफ की क्या बात? तू तो है ही। तुझसे पूछ !ँूगी उसका इ!ा5।''

''र्मुझसे पूछकर क्या कर !ेगी-

दद® दिद! क्या बाँKने की ची5 है?

बाँK !ें अपने पराये दद® दिद!?

नहीं, तू बड़ी सुकुवाँर है। तू इन तक!ीफों के लि!ए बनी नहीं र्मेरी चम्पा!'' और गेसू ने उसका लिसर अपनी छाती र्में लिछपा लि!या।

Kन से घड़ी ने साढे़ तीन ब5ाये।

सुधा ने अपना लिसर उठाया और घड़ी की ओर देखकर कहा-

''ओफ्फोह, साढे़ तीन ब5े गये और अभी तक गायब!''

''किकसके इन्त5ार र्में बेताब है तू?'' गेसू ने उठकर पूछा।

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''बस दद® दिद!, र्मुहब्बत, इन्त5ार, बेताबी, तेरे दिदर्माग र्में तो यही सब भरा रहता है आ5 क!, वही तू सबको सर्मझती है। इन्त5ार-किवन्त5ार नहीं, चन्दर अभी र्मास्Kर !ेकर आएगेँ। अब इम्तहान किकतना न5दीक है।''

''हाँ, ये तो सच है और अभी तक र्मुझसे पूछ, क्या पढ़ाई हुई है। अस! बात तो यह है किक कॉ!े5 र्में पढ़ाई हो तो घर र्में पwऩे र्में र्मन !गे और रा5ा कॉ!े5 र्में पढ़ाई नहीं होती। इससे अच्छा सीधे यूकिनवर्शिस-Kी र्में बी.ए. करते तो अच्छा र्था। र्मेरी तो अम्र्मी ने कहा किक वहाँ !ड़के पढ़ते हैं, वहाँ नहीं भे5ँूगी, !ेकिकन तू क्यों नहीं गयी, सुधा?''

''र्मुझे भी चन्दर ने र्मना कर दिदया र्था।'' सुधा बो!ी।

सहसा गेसू ने एक क्षण को सुधा की ओर देखा और कहा, ''सुधी, तुझसे एक बात पूछँू!''

''हाँ!''

''अच्छा 5ाने दे!''

''पूछो न!''

''नहीं, पूछना क्या, खुद 5ाकिहर है।''

''क्या?''

''कुछ नहीं।''

''पूछो न!''

''अच्छा, किफर कभी पूछ !ेंगे! अब देर हो रही है। आधा घंKा हो गया। कोचवान बाहर खड़ा है।''

सुधा गेसू को पहुँचाने बाहर तक आयी।

''कभी हसरत को !ेकर आओ।'' सुधा बो!ी।

''अब पह!े तुर्म आओ।'' गेसू ने च!ते-च!ते कहा।

''हाँ, हर्म तो किबनती को !ेकर आएगेँ। और हसरत से कह देना तभी उसके लि!ए तोहफा !ाएगेँ!''

''अच्छा, स!ार्म...''

और गेसू की गाड़ी र्मुश्किश्क! से फाKक के बाहर गयी होगी किक साइकिक! पर चन्दर आते हुए दीख पड़ा। सुधा ने बहुत गौर से देखा किक उसके सार्थ कौन है, र्मगर वह अके!ा र्था।

सुधा सचर्मुच झल्!ा गयी। आखिखर !ापरवाही की हद होती है। चन्दर को दुकिनया भर के कार्म याद रहते हैं, एक सुधा से 5ाने क्या खार खाये बैठा है किक सुधा का कार्म कभी नहीं करेगा। इस बात पर सुधा कभी-कभी दु:खी हो 5ाती है और घर र्में किकससे वह कहे कार्म के लि!ए। खुद कभी बा5ार नहीं 5ाती। नती5ा यह होता है किक वह छोKी-से-छोKी ची5 के लि!ए र्मोहता5 होकर बैठ 5ाती है। और कार्म नौकरों से करवा भी !े, पर अब र्मास्Kर तो नौकर से नहीं wँुढ़वाया 5ा सकता? ऊन तो नौकर नहीं पसन्द कर सकता? किकताबें तो नौकर नहीं !ा सकता? और चन्दर का यह हा! है। इसी बात पर कभी-कभी उसे रु!ाई आ 5ाती है।

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चन्दर ने आकर बरार्मदे र्में साइकिक! रखी और सुधा का चेहरा देखते ही वह सर्मझ गया। ''काहे र्मुँह बना रखा है, पाँच ब5े र्मास्Kर साहब आएगेँ तुम्हारे। अभी उन्हीं के यहाँ से आ रहे हैं। किबसरिरया को 5ानती हो, वही आएगेँ।'' और उसके बाद चन्दर सीधा स्Kडी-रूर्म र्में पहुँच गया। वहाँ 5ाकर देखा तो आरार्म-कुसr पर बैठे-ही-बैठे डॉ. शुक्!ा सो रहे हैं, अत: उसने अपना चाK� और पेन उठाया और ड्राइंगरूर्म र्में आकर चुपचाप कार्म करने !गा।

बड़ा गम्भीर र्था वह। 5ब इंक घो!ने के लि!ए उसने सुधा से पानी नहीं र्माँगा और खुद किग!ास !ाकर आँगन र्में पानी !ेने !गा, तब सुधा सर्मझ गयी किक आ5 दिदर्माग कुछ किबगड़ा है। वह एकदर्म तड़प उठी। क्या करे वह! वैसे चाहे वह चन्दर से किकतना ही wीठ क्यों न हो पर चन्दर गुस्सा रहता र्था तब सुधा की रूह काँप उठती र्थी। उसकी किहम्र्मत नहीं पड़ती र्थी किक वह कुछ भी कहे। !ेकिकन अन्दर-ही-अन्दर वह इतनी परेशान हो उठती र्थी किक बस।

कई बार वह किकसी-न-किकसी बहाने से ड्राइंगरूर्म र्में आयी, कभी गु!दस्ता बद!ने, कभी र्मे5पोश बद!ने, कभी आ!र्मारी र्में कुछ रखने, कभी आ!र्मारी र्में से कुछ किनका!ने, !ेकिकन चन्दर अपने चाK� र्में किनगाह गड़ाये रहा। उसने सुधा की ओर देखा तक नहीं। सुधा की आँख र्में आँसू छ!क आये और वह चुपचाप अपने कर्मरे र्में च!ी गयी और !ेK गयी। र्थोड़ी देर वह पड़ी रही, पता नहीं क्यों वह फूK-फूKकर रो पड़ी। खूब रोयी, खूब रोयी और किफर र्मुँह धोकर आकर पwऩे की कोलिशश करने !गी। 5ब हर अक्षर र्में उसे चन्दर का उदास चेहरा न5र आने !गा तो उसने किकताब बन्द करके रख दी और ड्राइंगरूर्म र्में गयी। चन्दर ने चाK� बनाना भी बन्द कर दिदया र्था और कुरसी पर लिसर Kेके छत की ओर देखता हुआ 5ाने क्या सोच रहा र्था।

वह 5ाकर सार्मने बैठ गयी तो चन्दर ने चौंककर लिसर उठाया और किफर चाK� को सार्मने खिखसका लि!या। सुधा ने बड़ी किहम्र्मत करके कहा-

''चन्दर!''

''क्या!'' बडे़ भरा�ये ग!े से चन्दर बो!ा।

''इधर देखो!'' सुधा ने बहुत दु!ार से कहा।

''क्या है!'' चन्दर ने उधर देखते हुए कहा, ''अरे सुधा! तुर्म रो क्यों रही हो?''

''हर्मारी बात पर नारा5 हो गये तुर्म। हर्म क्या करें, हर्मारा स्वभाव ही ऐसा हो गया। पता नहीं क्यों तुर्म पर इतना गुस्सा आ 5ाता है।'' सुधा के गा! पर दो बडे़-बडे़ र्मोती w!क आये।

''अरे पग!ी! र्मा!ूर्म होता है तुम्हारा तो दिदर्माग बहुत 5ल्दी खराब हो 5ाएगा, हर्मने तुर्मसे कुछ कहा है?''

''कह !ेते तो हर्में सन्तोष हो 5ाता। हर्मने कभी कहा तुर्मसे किक तुर्म कहा र्मत करो। गुस्सा र्मत हुआ करो। र्मगर तुर्म तो किफर गुस्सा र्मन-ही-र्मन र्में लिछपाने !गते हो। इसी पर हर्में रु!ाई आ 5ाती है।''

''नहीं सुधी, तुम्हारी बात नहीं र्थी और हर्म गुस्सा भी नहीं रे्थ। पता नहीं क्यों र्मन बड़ा भारी-सा र्था।''

''क्या बात है, अगर बता सको तो बताओ, वरना हर्म कौन हैं तुर्मसे पूछने वा!े।'' सुधा ने बड़़े करुण स्वर र्में कहा।

''तो तुम्हारा दिदर्माग खराब हुआ। हर्मने कभी तुर्मसे कोई बात लिछपायी? 5ाओ, अच्छी !ड़की की तरह र्मुँह धो आओ।''

सुधा उठी और र्मुँह धोकर आकर बैठ गयी।

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''अब बताओ, क्या बात र्थी?''

''कोई एक बात हो तो बताए।ँ पता नहीं तुम्हारे घर से गये तो एक-न-एक ऐसी बात होती गयी किक र्मन बड़ा उदास हो गया।''

''आखिखर किफर भी कोई बात तो हुई ही होगी!''

''बात यह हुई किक तुम्हारे यहाँ से र्मैं घर गया खाना खाने। वहाँ देखा चाचा5ी आये हुए हैं, उनके सार्थ एक कोई साहब और हैं। खैर बड़ी खुशी हुई। खाना-वाना खाकर 5ब बैठे तब र्मा!ूर्म हुआ किक चाचा5ी र्मेरा ब्याह तय करने के लि!ए आये हैं और सार्थ वा!े साहब र्मेरे होनेवा!े ससुर हैं। 5ब र्मैंने इनकार कर दिदया तो बहुत किबगडक़र च!े गये और बो!े हर्म आ5 से तुम्हारे लि!ए र्मर गये और तुर्म हर्मारे लि!ए र्मर गये।''

''तुम्हारी र्माता5ी कहाँ हैं?''

''प्रतापगढ़ र्में, !ेकिकन वो तो सौते!ी हैं और वे तो चाहती ही नहीं किक र्मैं घर !ौKँू, !ेकिकन चाचा5ी 5रूर आ5 तक र्मुझसे कुछ र्मुहब्बत करते रे्थ। आ5 वह भी नारा5 होकर च!े गये।''

सुधा कुछ देर तक सोचती रही, किफर बो!ी, ''तो चन्दर, तुर्म शादी कर क्यों नहीं !ेते?''

''नहीं सुधा, शादी नहीं करनी है र्मुझे। र्मैंने देखा किक जि5सकी शादी हुई, कोई भी सुखी नहीं हुआ। सभी का भकिवष्य किबगड़ गया। और क्यों एक तवा!त पा!ी 5ाए? 5ाने कैसी !ड़की हो, क्या हो?''

''तो उसर्में क्या? पापा से कहो उस !ड़की को 5ाकर देख !ें। हर्म भी पापा के सार्थ च!े 5ाएगँे। अच्छी हो तो कर !ो न, चन्दर। किफर यहीं रहना। हर्में अके!ा भी नहीं !गेगा। क्यों?''

''नहीं 5ी, तुर्म तो सर्मझती नहीं हो। जि5-दगी किनभानी है किक कोई गाय-भैंस खरीदना है!'' चन्दर ने हँसकर कहा, ''आदर्मी एक-दूसरे को सर्मझे, बूझे, प्यार करे, तब ब्याह के भी कोई र्माने हैं।''

''तो उसी से कर !ो जि5ससे प्यार करते हो!''

चन्दर ने कुछ 5वाब नहीं दिदया।

''बो!ो! चुप क्यों हो गये! अच्छा, तुर्मने किकसी को प्यार किकया, चन्दर!''

''क्यों?''

''बताओ न!''

''शायद नहीं!''

''किबल्कु! ठीक, हर्म भी यही सोच रहे रे्थ अभी।'' सुधा बो!ी।

''क्यों, ये क्यों सोच रही र्थी?''

''इसलि!ए किक तुर्मने किकया होता तो तुर्म हर्मसे र्थोडे़़ ही लिछपाते, हर्में 5रूर बताते, और नहीं बताया तो हर्म सर्मझ गये किक अभी तुर्मने किकसी से प्यार नहीं किकया।''

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''!ेकिकन तुर्मने यह पूछा क्यों, सुधा! यह बात तुम्हारे र्मन र्में उठी कैसे?''

''कुछ नहीं, अभी गेसू आयी र्थी। वह बो!ी-सुधा, तुर्मने किकसी से कभी प्यार किकया है, अस! र्में वह अख्तर को प्यार करती है। उससे उसका किववाह होनेवा!ा है। हाँ, तो उसने पूछा किक तूने किकसी से प्यार किकया है, हर्मने कहा, नहीं। बो!ी, तू अपने से लिछपाती है। तो हर्म र्मन-ही-र्मन र्में सोचते रहे किक तुर्म आओगे तो तुर्मसे पूछेंगे किक हर्मने कभी प्यार तो नहीं किकया है। क्योंकिक तुम्हीं एक हो जि5ससे हर्मारा र्मन कभी कोई बात नहीं लिछपाता, अगर कोई बात लिछपाई भी होती हर्मने, तो तुम्हें 5रूर बता देती। किफर हर्मने सोचा, शायद कभी हर्मने प्यार किकया हो और तुम्हें बताया हो, किफर हर्म भू! गये हों। अभी उसी दिदन देखो, हर्म पापा की दवाई का नार्म भू! गये और तुम्हें याद रहा। शायद हर्म भू! गये हों और तुम्हें र्मा!ूर्म हो। कभी हर्मने प्यार तो नहीं किकया न?''

''नहीं, हर्में तो कभी नहीं बताया।'' चन्दर बो!ा।

''तब तो हर्मने प्यार-वार नहीं किकया। गेसू यँू ही गप्प उड़ा रही र्थी।'' सुधा ने सन्तोष की साँस !ेकर कहा, ''!ेकिकन बस! चाचा5ी के नारा5 होने पर तुर्म इतने दु:खी हो गये हो! हो 5ाने दो नारा5। पापा तो हैं अभी, क्या पापा र्मुहब्बत नहीं करते तुर्मसे?''

''सो क्यों नहीं करते, तुर्मसे ज्यादा र्मुझसे करते हैं !ेकिकन उनकी बात से र्मन तो भारी हो ही गया। उसके बाद गये किबसरिरया के यहाँ। किबसरिरया ने कुछ बड़ी अच्छी ककिवताए ँसुनायीं। और भी र्मन भारी हो गया।'' चन्दर ने कहा।

''!ो, तब तो चन्दर, तुर्म प्यार करते होगे! 5रूर से?'' सुधा ने हार्थ पKककर कहा।

''क्यों?''

''गेसू कह रही र्थी-शायरी पर 5ो उदास हो 5ाता है वह 5रूर र्मुहब्बत-वुहब्बत करता है।'' सुधा ने कहा, ''अरे यह पोर्दिK-को र्में कौन है?''

चन्दर ने देखा, ''!ो किबसरिरया आ गया!''

चन्दर उसे बु!ाने उठा तो सुधा ने कहा, ''अभी बाहर किबठ!ाना उन्हें, र्मैं तब तक कर्मरा ठीक कर !ँू।''

किबसरिरया को बाहर किबठाकर चन्दर भीतर आया, अपना चाK� वगैरह सर्मेKने के लि!ए, तो सुधा ने कहा, ''सुनो!''

चन्दर रुक गया।

सुधा ने पास आकर कहा, ''तो अब तो उदास नहीं हो तुर्म। नहीं चाहते र्मत करो शादी, इसर्में उदास क्या होना। और ककिवता-वकिवता पर र्मुँह बनाकर बैठे तो अच्छी बात नहीं होगी।''

''अच्छा!'' चन्दर ने कहा।

''अच्छा-वच्छा नहीं, बताओ, तुम्हें र्मेरी कसर्म है, उदास र्मत हुआ करो किफर हर्मसे कोई कार्म नहीं होता।''

''अच्छा, उदास नहीं होंगे, पग!ी!'' चन्दर ने हल्की-सी चपत र्मारकर कहा और बरबस उसके र्मुँह से एक ठJडी साँस किनक!ी। उसने चाK� उठाकर स्Kडी रूर्म र्में रखा। देखा डॉक्Kर साहब अभी सो ही रहे हैं। सुधा कर्मरा ठीक कर रही र्थी। वह आकर किबसरिरया के पास बैठ गया।

र्थोड़ी देर र्में कर्मरा ठीक करके सुधा आकर कर्मरे के दरवा5े पर खड़ी हो गयी। चन्दर ने पूछा-''क्यों, सब ठीक है?''

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उसने लिसर किह!ा दिदया, कुछ बो!ी नहीं।

''यही हैं आपकी लिशष्या। सुश्री सुधा शुक्!ा। इस सा! बी.ए. फाइन! का इम्तहान देंगी।''

किबसरिरया ने किबना आँखें उठाये ही हार्थ 5ोड़ लि!ये। सुधा ने हार्थ 5ोडे़ किफर बहुत सकुचा-सी गयी। चन्दर उठा और किबसरिरया को !ाकर उसने अन्दर किबठा दिदया। किबसरिरया के सार्मने सुधा और उसकी बग! र्में चन्दर।

चुप। सभी चुप।

अन्त र्में चन्दर बो!ा-''!ो, तुम्हारे र्मास्Kर साहब आ गये। अब बताओ न, तुम्हें क्या-क्या पwऩा है?''

सुधा चुप। किबसरिरया कभी यह पुस्तक उ!Kता, कभी वह। र्थोड़ी देर बाद वह बो!ा-''आपके क्या किवषय हैं?''

''5ी!'' बड़ी कोलिशश से बो!ते हुए सुधा ने कहा-''किहन्दी, इकनॉधिर्मक्स और गृह-किवज्ञान।'' और उसके र्मारे्थ पर पसीना झ!क आया।

''आपको किहन्दी कौन पढ़ाता है?'' किबसरिरया ने किकताब र्में ही किनगाह गड़ाये हुए कहा।

सुधा ने चन्दर की ओर देखा और र्मुस्कराकर किफर र्मुँह झुका लि!या।

''बो!ो न तुर्म खुद, ये रा5ा गल्स� कॉ!े5 र्में हैं। शायद धिर्मस पवार किहन्दी पढ़ाती हैं।'' चन्दर ने कहा-''अच्छा, अब आप पढ़ाइए, र्मैं अपना कार्म करँू।'' चन्दर उठकर च! दिदया। स्Kडी रूर्म र्में र्मुश्किश्क! से चन्दर दरवा5े तक पहुँचा होगा किक सुधा ने किबसरिरया से कहा-

''5ी, र्मैं पेन !े आऊँ!'' और !पकती हुई चन्दर के पास पहुँची।

''ए सुनो, चन्दर!'' चन्दर रुक गया और उसका कुरता पकडक़र छोKे बच्चों की तरह र्मच!ते हुए सुधा बो!ी-''तुर्म च!कर बैठो तो हर्म पढ़ें गे। ऐसे शरर्म !गती है।''

''5ाओ, च!ो! हर वक्त वही बचपना!'' चन्दर ने डाँKकर कहा-''च!ो, पढ़ो सीधे से। इतनी बड़ी हो गयी, अभी तक वही आदतें!''

सुधा चुपचाप र्मुँह !Kकाकर खड़ी हो गयी और किफर धीरे-धीरे पढ़ने !ग गयी। चन्दर स्डKी रूर्म र्में 5ाकर चाK� बनाने !गा। डॉक्Kर साहब अभी तक सो रहे रे्थ। एक र्मक्खी उडक़र उनके ग!े पर बैठ गयी और उन्होंने बायें हार्थ से र्मक्खी र्मारते हुए नींद र्में कहा-''र्मैं इस र्मार्म!े र्में सरकार की नीकित का किवरोध करता हूँ।''

चन्दर ने चौंककर पीछे देखा। डॉक्Kर साहब 5ग गये रे्थ और 5र्मुहाई !े रहे रे्थ।

''5ी, आपने र्मुझसे कुछ कहा?'' चन्दर ने पूछा।

''नहीं, क्या र्मैंने कुछ कहा र्था? ओह! र्मैं सपना देख रहा र्था कै ब5 गये?''

''साढे़ पाँच।''

''अरे किबल्कु! शार्म हो गयी!'' डॉक्Kर साहब ने बाहर देखकर कहा-''अब रहने दो कपूर, आ5 काफी कार्म किकया है तुर्मने। चाय र्मँगवाओ। सुधा कहाँ है?''

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''पढ़ रही है। आ5 से उसके र्मास्Kर साहब आने !गे हैं।''

''अच्छा-अच्छा, 5ाओ उन्हें भी बु!ा !ाओ, और चाय भी र्मँगवा !ो। उसे भी बु!ा !ो-सुधा को।''

चन्दर 5ब ड्राइंग रूर्म र्में पहुँचा तो देखा सुधा किकताबें सर्मेK रही है और किबसरिरया 5ा चुका है। उसने सुधा से कहना चाहा !ेकिकन सुधा का र्मुँह देखते ही उसने अनुर्मान किकया किक सुधा !ड़ने के र्मूड र्में है, अत: वह स्वयं ही 5ाकर र्महराजि5न से कह आया किक तीन प्या!ा चाय पढ़ने के कर्मरे र्में भे5 दो। 5ब वह !ौKने !गा तो खुद सुधा ही उसके रास्ते र्में खड़ी हो गयी और धर्मकी के स्वर र्में बो!ी-''अगर क! से सार्थ नहीं बैठोगे तुर्म, तो हर्म नहीं पढ़ें गे।''

''हर्म सार्थ नहीं बैठ सकते, चाहे तुर्म पढ़ो या न पढ़ो।'' चन्दर ने ठंडे स्वर र्में कहा और आगे बढ़ा।

''तो किफर हर्म नहीं पढ़ें गे।'' सुधा ने 5ोर से कहा।

''क्या बात है? क्यों !ड़ रहे हो तुर्म !ोग?'' डॉ. शुक्!ा अपने कर्मरे से बो!े। चन्दर कर्मरे र्में 5ाकर बो!ा, ''कुछ नहीं, ये कह रही हैं किक...''

''पह!े हर्म कहेंगे,'' बात काKकर सुधा बो!ी-''पापा, हर्मने इनसे कहा किक तुर्म पढ़ाते वक्त बैठा करो, हर्में बहुत शरर्म !गती है, ये कहते हैं पढ़ो चाहे न पढ़ो, हर्म नहीं बैठें गे।''

''अच्छा-अच्छा, 5ाओ चाय !ाओ।''

5ब सुधा चाय !ाने गयी तो डॉक्Kर साहब बो!े-''कोई किवश्वासपाv !ड़का है? अपने घर की !ड़की सर्मझकर सुधा को सौंपना पढ़ने के लि!ए। सुधा अब बच्ची नहीं है।''

''हाँ-हाँ, अरे यह भी कोई कहने की बात है!''

''हाँ, वैसे अभी तक सुधा तुम्हारी ही किनगहबानी र्में रही है। तुर्म खुद ही अपनी जि5म्र्मेवारी सर्मझते हो। !ड़का किहन्दी र्में एर्म.ए. है?''

''हाँ, एर्म.ए. कर रहा है।''

''अच्छा है, तब तो किबनती आ रही है, उसे भी पढ़ा देगा।''

सुधा चाय !ेकर आ गयी र्थी।

''पापा, तुर्म !खनऊ कब 5ाओगे?''

''शुक्रवार को, क्यों?''

''और ये भी 5ाएगँे?''

''हाँ।''

''और हर्म अके!े रहेंगे?''

''क्यों, र्महराजि5न यहीं सोएगी और अग!े सोर्मवार को हर्म !ौK आएगेँ।''

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डॉ. शुक्!ा ने चाय का प्या!ा र्मुँह से !गाते हुए कहा।

एक गर्मकदे की शार्म, र्मन उदास, तबीयत उचKी-सी, लिसतारों की रोशनी फीकी !ग रही र्थी। र्माच� की शुरुआत र्थी और किफर भी 5ाने शार्म इतनी गरर्म र्थी, या सुधा को ही इतनी बेचैनी !ग रही र्थी। पह!े वह 5ाकर सार्मने के !ॉन र्में बैठी !ेकिकन सार्मने के र्मौ!लिसरी के पेड़ र्में छोKी-छोKी गौरैयों ने धिर्म!कर इतनी 5ोर से चहचहाना शुरू किकया किक उसकी तबीयत घबरा उठी। वह इस वक्त एकान्त चाहती र्थी और सबसे बढ़कर स�ाKा चाहती र्थी 5हाँ कोई न बो!े, कोई बात न करे, सभी खार्मोशी र्में डूबे हुए हों।

वह उठकर Kह!ने !गी और 5ब !गा किक पैरों र्में ताकत ही नहीं रही तो किफर !ेK गयी, हरी-हरी घास पर। र्मंग!वार की शार्म र्थी और अभी तक पापा नहीं आये रे्थ। आना तो दूर, पापा या चन्दर के हार्थ के एक पुर5े के लि!ए तरस गयी र्थी। किकसी ने यह भी नहीं लि!खा किक वे !ोग कहाँ रह गये हैं, या कब तक आएगेँ। किकसी को भी सुधा का खया! नहीं। शकिनवार या इतवार को तो वह हर रो5 खाना खाते वक्त रोयी, चाय पीना तो उसने उसी दिदन से छोड़ दिदया र्था और सोर्मवार को सुबह पापा नहीं आये तो वह इतना फूK-फूKकर रोयी किक र्महराजि5न को सिस-कती हुई रोKी छोड़कर चूल्हे की आँच किनका!कर सुधा को सर्मझाने आना पड़ा। और सुधा की रु!ाई देखकर तो र्महराजि5न के हार्थ-पाँव wी!े हो गये रे्थ। उसकी सारी डाँK हवा हो गयी र्थी और वह सुधा का र्मुँह-ही-र्मुँह देखती र्थी। क! से कॉ!े5 भी नहीं गयी र्थी। और दोनों दिदन इन्त5ार करती रही किक कहीं दोपहर को पापा न आ 5ाए।ँ गेसू से भी दो दिदन से र्मु!ाकात नहीं हुई र्थी।

!ेकिकन र्मंग! को दोपहर तक 5ब कोई खबर न आयी तो उसकी घबराहK बेकाबू हो गयी। इस वक्त उसने किबसरिरया से कोई भी बात नहीं की। आधा घंKा पwऩे के बाद उसने कहा किक उसके लिसर र्में दद� हो रहा है और उसके बाद खूब रोयी, खूब रोयी। उसके बाद उठी, चाय पी, र्मुँह-हार्थ धोया और सार्मने के !ॉन र्में Kह!ने !गी। और किफर !ेK गयी हरी-हरी घास पर।

बड़ी ही उदास शार्म र्थी। और क्षिक्षकित5 की !ा!ी के होठ भी स्याह पड़ गये रे्थ। बाद! साँस रोके पडे़ रे्थ और खार्मोश लिसतारे दिKर्मदिKर्मा रहे रे्थ। बगु!ों की धुँध!ी-धुँध!ी कतारें पर र्मारती हुई गु5र रही र्थीं। सुधा ने एक !म्बी साँस !ेकर सोचा किक अगर वह लिचकिडय़ा होती तो एक क्षण र्में उडक़र 5हाँ चाहती वहाँ की खबर !े आती। पापा इस वक्त घूर्मने गये होंगे। चन्दर अपने दोस्तों की Kो!ी र्में बैठा रँगरेलि!याँ कर रहा होगा। वहाँ भी दोस्त बना ही लि!ये होंगे उसने। बड़ा बातूनी है चन्दर और बड़ा र्मीठे स्वभाव का। आ5 तक किकसी से सुधा ने उसकी बुराई नहीं सुनी। सभी उसको प्यार करते रे्थ। यहाँ तक किक र्महराजि5न, 5ो सुधा को हरे्मशा डाँKती रहती र्थी, चन्दर का हरे्मशा पक्ष !ेती र्थी। और सुधा हरेक से पूछ !ेती र्थी किक चन्दर के बारे र्में उसकी क्या राय है? !ेकिकन सब !ोग जि5तनी चन्दर की तारीफ करते वह उतना अच्छा उसे नहीं सर्मझती र्थी। आदर्मी की परख तब होती है 5ब दिदन-रात बरते। चन्दर उसका ऊन कभी नहीं !ाकर देता र्था, बादार्मी रंग का रेशर्म र्मँगाओ तो केसरिरया रंग का !ा देता र्था। इतने नके्श बनाता रहता र्था, और सुधा ने हरे्मशा उससे कहा किक र्मे5पोश की कोई किड5ाइन बना दो तो उसने कभी नहीं बनायी। एक बार सुधा ने बहुत अच्छी वाय! कानपुर से र्मँगवायी और चन्दर ने कहा, ''!ाओ, यह बहुत अच्छी है, इस पर हर्म किकनारे की किड5ाइन बना देंगे।'' और उसके बाद उसने उसर्में तर्मार्म पान-5ैसा 5ाने क्या बना दिदया और 5ब सुधा ने पूछा, ''यह क्या है?'' तो बो!ा, ''!ंका का नक्शा है।'' 5ब सुधा किबगड़ी तो बो!ा, ''!ड़़किकयों के हृदय र्में रावण से र्मेघनाद तक करोड़ों राक्षसों का वास होता है, इसलि!ए उनकी पोशाक र्में !ंका का नक्शा ज्यादा सुशोक्षिभत होता है।'' र्मारे गुस्से के सुधा ने वह धोती अपनी र्मालि!न को दे डा!ी र्थी। यह सब बातें तो किकसी को र्मा!ूर्म नहीं। उनके सार्मने तो 5रा-सा कपूर साहब हँस दिदये, चार र्म5ाक की बातें कर दीं, छोKे-र्मोKे उनके कार्म कर दिदये, र्मीठी बातें कर !ीं और सब सर्मझे कपूर साहब तो किबल्कु! गु!ाब के फू! हैं। !ेकिकन कपूर साहब एक तीखे काँKे हैं 5ो दिदन-रात सुधा के र्मन र्में चुभते रहते हैं, यह तो दुकिनया को नहीं र्मा!ूर्म। दुकिनया क्या 5ाने किक सुधा किकतनी परेशानी रहती है चन्दर की आदतों से! अगर दुकिनया को र्मा!ूर्म हो 5ाए तो कोई चन्दर की 5रा भी तारीफ न करे, सब सुधा को ही ज्यादा अच्छा कहें, !ेकिकन सुधा कभी किकसी से कुछ नहीं कहती, र्मगर आ5 उसका र्मन हो रहा र्था किक किकसी से चन्दर की 5ी भरकर बुराई कर !े तो उसका र्मन बहुत हल्का हो 5ाए।

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''च!ो किबदिKया रानी, तई खाय !ेव, किफर भीतर !ेKो। अबकिहन !ेKे का बखत नहीं आवा!'' सहसा र्महराजि5न ने आकर सुधा की स्वप्न-शंृख!ा तोड़ते हुए कहा।

''अब हर्म नहीं खाएगँे, भूख नहीं।'' सुधा ने अपने सुनह!े सपनों र्में ही डूबी हुई बेहोश आवा5 र्में 5वाब दिदया।

''खाय !ेव किबदिKया, खाय-किपयै छोडै़ से कसस कार्म च!ी, आव उठौ!'' र्महराजि5न ने बडे़ दु!ार से कहा। सुधा पीछा छूKने की कोई आशा न देखकर उठ गयी और च! दी खाने। कौर उठाते ही उसकी आँख र्में आँसू छ!क आये, !ेकिकन अपने को रोक लि!या उसने। दूसरों के सार्मने अपने को बहुत शान्त रखना आता र्था। उसे। दो कौर खाने के बाद वह र्महराजि5न से बो!ी, ''आ5 कोई लिचठ्ठी तो नहीं आयी?''

''नहीं किबदिKया, आ5 तो दिदन भर घरै र्में रह्यो!'' र्महराजि5न ने पराठे उ!Kते हुए 5वाब दिदया-''काहे किबदिKया, बाबू5ी कुछौ नाही लि!खिखन तो छोKे बाबू तो लि!ख देते।''

''अरे र्महराजि5न, यही तो हर्मारी 5ान का रोना है। हर्म चाहे रो-रोकर र्मर 5ाए ँर्मगर न पापा को खया!, न पापा के लिशष्य को। और चन्दर तो ऐसे खराब हैं किक हर्म क्या करें। ऐसे स्वार्थr हैं, अपने र्मत!ब के किक बस! सुबह-शार्म आए ँऔर हर्म या पापा न धिर्म!ें तो आफत wा देंगे-बहुत घूर्मने !गी हो तुर्म, बहुत बाहर कदर्म किनक! गया है तुम्हारा-और सच पूछो तो चन्दर की व5ह से हर्मने सब 5गह आना-5ाना बन्द कर दिदया और खुद हैं किक आ5 !खनऊ, क! क!कत्ता और एक लिचठ्ठी भे5ने तक का वक्त नहीं धिर्म!ता! अभी हर्म ऐसा करते तो हर्मारी 5ान नोच खाते! और पापा को देखो, उनके दु!ारे उनके सार्थ हैं तो बस और किकसी की किफक्र ही नहीं। अब तुर्म र्महराजि5न, चन्दर को तो कभी कुछ चाय-वाय बना के र्मत देना।''

''काहे किबदिKया, काहे कोसत हो। कैसा चाँद-से तो हैं छोKे बाबू, और कैसा हँस के बातें करत हैं। र्माई का 5ाने कैसे किहयाव पड़ा किक उन्हें अ!ग कै दिदकिहस। बेचारा होK! र्में 5ाने कैसे रोKी खात होई। उन्हें पिह-यई बु!ाय !ेव तो अपने हार्थ की खिख!ाय के दुई र्महीना र्माँ र्मोKा कै देईं। हर्में तोसे ज्यादा उसकी र्मर्मता !गत है।''

''बीबी5ी, बाहर एक र्मेर्म पूछत हैं-पिह-या कोनो डाकदर रहत हैं? हर्म कहा, नाहीं, पिह-या तो बाबू5ी रहत हैं तो कहत हैं, नहीं यही र्मकान आय।'' र्मालि!न ने सहसा आकर बहुत स्वतंv स्वरों र्में कहा।

''बैठाओ उन्हें, हर्म आते हैं।'' सुधा ने कहा और 5ल्दी-5ल्दी खाना शुरू किकया और 5ल्दी-5ल्दी खत्र्म कर दिदया।

बाहर 5ाकर उसने देखा तो नी!काँKे के झाड़ से दिKकी हुई एक बाइलिसकिक! रखी र्थी और एक ईसाई !ड़की !ॉन पर Kह! रही है। होगी करीब चौबीस-पच्चीस बरस की, !ेकिकन बहुत अच्छी !ग रही र्थी।

''ककिहए, आप किकसे पूछ रही हैं?'' सुधा ने अँग्रे5ी र्में पूछा।

''र्मैं डॉक्Kर शुक्!ा से धिर्म!ने आयी हूँ।'' उसने शु» किहन्दुस्तानी र्में कहा।

''वे तो बाहर गये हैं और कब आएगेँ, कुछ पता नहीं। कोई खास कार्म है आपको?'' सुधा ने पूछा।

''नहीं, यँू ही धिर्म!ने आ गयी। आप उनकी !ड़की हैं?'' उसने साइकिक! उठाते हुए कहा।

''5ी हाँ, !ेकिकन अपना नार्म तो बताती 5ाइए।''

''र्मेरा नार्म कोई र्महत्वपूण� नहीं। र्मैं उनसे धिर्म! !ँूगी। और हाँ, आप उसे 5ानती हैं, धिर्मस्Kर कपूर को?''

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''आहा! आप पम्र्मी हैं, धिर्मस किडकू्र5!'' सुधा को एकदर्म खया! आ गया-''आइए, आइए; हर्म आपको ऐसे नहीं 5ाने देंगे। चलि!ए, बैदिठए।'' सुधा ने बड़ी बेतकल्!ुफी से उसकी साइकिक! पकड़ !ी।

''अच्छा-अच्छा, च!ो!'' कहकर पम्र्मी 5ाकर ड्राइंग रूर्म र्में बैठ गयी।

''धिर्मस्Kर कपूर रहते कहाँ हैं?'' पम्र्मी ने बैठने से पह!े पूछा।

''रहते तो वे चौक र्में हैं, !ेकिकन आ5क! तो वे भी पापा के सार्थ बाहर गये हैं। वे तो आपकी एक दिदन बहुत तारीफ कर रहे रे्थ, बहुत तारीफ। इतनी तारीफ किकसी !ड़की की करते तो हर्मने सुना नहीं।''

''सचर्मुच!'' पम्र्मी का चेहरा !ा! हो गया। ''वह बहुत अचे्छ हैं, बहुत अचे्छ हैं!''

र्थोड़ी देर पम्र्मी चुप रही, किफर बो!ी-''क्या बताया र्था उन्होंने हर्मारे बारे र्में?''

''ओह तर्मार्म! एक दिदन शार्म को तो हर्म !ोग आप ही के बारे र्में बातें करते रहे। आपके भाई के बारे र्में बताते रहे। किफर आपके कार्म के बारे र्में बताया किक आप किकतना ते5 Kाइप करती हैं, किफर आपकी रुलिचयों के बारे र्में बताया किक आपको साकिहत्य से बहुत शौक नहीं है और आप शादी से बेहद नफरत करती हैं और आप ज्यादा धिर्म!ती-5ु!ती नहीं, बाहर आती-5ाती नहीं और धिर्मस किडकू्र5...''

''न, आप पम्र्मी ककिहए र्मुझे?''

''हाँ, तो धिर्मस पम्र्मी, शायद इसीलि!ए आप उसे इतनी अच्छी !गीं किक आप कहीं आती-5ाती नहीं, वह !ड़किकयों का आना-5ाना और आ5ादी बहुत नापसन्द करता है।'' सुधा बो!ी।

''नहीं, वह ठीक सोचता है।'' पम्र्मी बो!ी-''र्मैं शादी और त!ाक के बाद इसी नती5े पर पहुँची हूँ किक चौदह बरस से चौंतीस बरस तक !ड़किकयों को बहुत शासन र्में रखना चाकिहए।'' पम्र्मी ने गम्भीरता से कहा।

एक ईसाई र्मेर्म के र्मुँह से यह बात सुनकर सुधा दंग रह गयी।

''क्यों?'' उसने पूछा।

''इसलि!ए किक इस उम्र र्में !ड़किकयाँ बहुत नादान होती हैं और 5ो कोई भी चार र्मीठी बातें करता है, तो !ड़किकयाँ सर्मझती हैं किक इससे ज्यादा प्यार उन्हें कोई नहीं करता। और इस उम्र र्में 5ो कोई भी ऐरा-गैरा उनके संसग� र्में आ 5ाता है, उसे वे प्यार का देवता सर्मझने !गती हैं और नती5ा यह होता है किक वे ऐसे 5ा! र्में फँस 5ाती हैं किक जि5-दगी भर उससे छुKकारा नहीं धिर्म!ता। र्मेरा तो यह किवचार है किक या तो !ड़किकयाँ चौंतीस बरस के बाद शादिदयाँ करें 5ब वे अच्छा-बुरा सर्मझने के !ायक हो 5ाए,ँ नहीं तो र्मुझे तो किहन्दुओं का कायदा सबसे ज्यादा पसन्द आता है किक चौदह वष� के पह!े ही !ड़की की शादी कर दी 5ाए और उसके बाद उसका संसग� उसी आदर्मी से रहे जि5ससे उसे जि5-दगी भर किनबाह करना है और अपने किवकास-क्रर्म से दोनों ही एक-दूसरे को सर्मझते च!ें। !ेकिकन यह तो सबसे भद्दा तरीका है किक चौदह और चौंतीस बरस के बीच र्में !ड़की की शादी हो, या उसे आ5ादी दी 5ाए। र्मैंने तो स्वयं अपने ऊपर बन्धन बाँध लि!ये रे्थ।....तुम्हारी तो शादी अभी नहीं हुई?''

''नहीं।''

''बहुत ठीक, तुर्म चौंतीस बरस के पह!े शादी र्मत करना, अच्छा हाँ, और क्या बताया चन्दर ने र्मेरे बारे र्में?''

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''और तो कुछ खास नहीं; हाँ, यह कह रहा र्था, आपको चाय और लिसगरेK बहुत अच्छी !गती है। ओहो, देखिखए र्मैं भू! ही गयी, !ीजि5ए लिसगरेK र्मँगवाती हूँ।'' और सुधा ने घंKी ब5ायी।

''रहने दीजि5ए, र्मैं लिसगरेK छोड़ रही हूँ।''

''क्यों?''

''इसलि!ए किक कपूर को अच्छा नहीं !गता और अब वह र्मेरा दोस्त बन गया है, और दोस्ती र्में एक-दूसरे से किनबाह ही करना पड़ता है। उसने आपसे यह नहीं बताया किक र्मैंने उसे दोस्त र्मान लि!या है?'' पम्र्मी ने पूछा।

''5ी हाँ, बताया र्था, अच्छा तो चाय !ीजि5ए!''

''हाँ-हाँ, चाय र्मँगवा !ीजि5ए। आपका कपूर से क्या सम्बन्ध है?'' पम्र्मी ने पूछा।

''कुछ नहीं। र्मुझसे भ!ा क्या सम्बन्ध होगा उनका, 5ब देखिखए तब किबगड़ते रहते हैं र्मुझ पर; और बाहर गये हैं और आ5 तक कोई खत नहीं भे5ा। ये कहीं सम्बन्ध हैं?''

''नहीं, र्मेरा र्मत!ब आप उनसे घकिनष्ठ हैं!''

''हाँ, कभी वह लिछपाते तो नहीं र्मुझसे कुछ! क्यों?''

''तब तो ठीक है, सच्चे दिद! के आदर्मी र्मा!ूर्म पड़ते हैं। आप तो यह बता सकती हैं किक उन्हें क्या-क्या ची5ें पसन्द हैं?''

''हाँ...उन्हें ककिवता पसन्द है। बस ककिवता के बारे र्में बात न कीजि5ए, ककिवता सुना दीजि5ए उन्हें या ककिवता की किकताब दे दीजि5ए उन्हें और उनको सुबह घूर्मना पसन्द है। रात को गंगा5ी की सैर करना पसन्द है। लिसनेर्मा तो बेहद पसन्द है। और, और क्या, चाय की पत्ती का ह!ुआ पसन्द है।''

''यह क्या होता है?''

''र्मेरा र्मत!ब किबना दूध की चाय उन्हें पसन्द है।''

''अच्छा, अच्छा। देखिखए आप सोचेंगी किक र्मैं इस तरह से धिर्म. कपूर के बारे र्में पूछ रही हूँ 5ैसे र्मैं कोई 5ासूस होऊँ, !ेकिकन अस! बात र्मैं आपको बता दँू। र्मैं किपछ!े दो-तीन सा! से अके!ी रहती रही। किकसी से भी नहीं धिर्म!ती-5ु!ती र्थी। उस दिदन धिर्मस्Kर कपूर गये तो पता नहीं क्यों र्मुझ पर प्रभाव पड़ा। उनको देखकर ऐसा !गा किक यह आदर्मी है जि5सर्में दिद! की सच्चाई है, 5ो आदधिर्मयों र्में किबल्कु! नहीं होती। तभी र्मैंने सोचा, इनसे दोस्ती कर !ँू। !ेकिकन चँूकिक एक बार दोस्ती करके किववाह, और किववाह के बाद अ!गाव, र्मैं भोग चुकी हूँ इसलि!ए इनके बारे र्में पूरी 5ाँच-पड़ता! कर !ेना चाहती हूँ। !ेकिकन दोस्त तो अब बना ही चुकी हूँ।'' चाय आ गयी र्थी और पम्र्मी ने सुधा के प्या!े र्में चाय wा!ी।

''न, र्मैं तो अभी खाना खा चुकी हूँ।'' सुधा बो!ी।

''पम्र्मी ने दो-तीन चुण्टिस्कयों के बाद कहा-''आपके बारे र्में चन्दर ने र्मुझसे कहा र्था।''

''कहा होगा!'' सुधा र्मुँह किबगाडक़र बो!ी-''र्मेरी बुराई कर रहे होंगे और क्या?''

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पम्र्मी चाय के प्या!े से उठते हुए धुए ँको देखती हुई अपने ही खया! र्में डूबी र्थी। र्थोड़ी देर बाद बो!ी, ''र्मेरा अनुर्मान ग!त नहीं होता। र्मैंने कपूर को देखते ही सर्मझ लि!या र्था किक यही र्मेरे लि!ए उपयुक्त धिर्मv हैं। र्मैंने ककिवता पwऩी बहुत दिदनों से छोड़ दी !ेकिकन किकसी कवधियvी ने, शायद धिर्मसे5 ब्राउपिन-ग ने कहीं लि!खा र्था, किक वह र्मेरी जि5-दगी र्में रोशनी बनकर आया, उसे देखते ही र्मैं सर्मझ गयी किक यह वह आदर्मी है जि5सके हार्थ र्में र्मेरे दिद! के सभी रा5 सुरक्षिक्षत रहेंगे। वह खे! नहीं करेगा, और प्यार भी नहीं करेगा। जि5-दगी र्में आकर भी जि5-दगी से दूर और सपनों र्में बँधकर भी सपनों से अ!ग...यह बात कपूर पर बहुत !ागू होती है। र्माफ करना धिर्मस सुधा, र्मैं आपसे इसलि!ए कह रही हूँ किक आप इनकी घकिनष्ठ हैं और आप उन्हें बत!ा देंगी किक र्मेरा क्या खया! है उनके बारे र्में। अच्छा, अब र्मैं च!ँूगी।''

''बैदिठए न!'' सुधा बो!ी।

''नहीं, र्मेरा भाई अके!ा खाने के लि!ए इन्त5ार कर रहा होगा।'' उठते हुए पम्र्मी ने कहा।

''आप बहुत अच्छी हैं। इस वक्त आप आयीं तो र्मैं र्थोड़ी-सी लिचन्ता भू! गयी वरना र्मैं तीन दिदन से उदास र्थी। बैदिठए, कुछ और चन्दर के बारे र्में बताइए न!''

''अब नहीं। वह अपने wंग का अके!ा आदर्मी है, यह र्मैं कह सकती हूँ...ओह तुम्हारी आँखें बड़ी सुन्दर हैं। देखँू।'' और छोKे बच्चे की तरह उसके र्मुँह को हरे्थलि!यों से ऊपर उठाकर पम्र्मी ने कहा, ''बहुत सुन्दर आँखें हैं। र्माफ करना, र्मैं कपूर से भी इतनी ही बेतकल्!ुफ हूँ!''

सुधा झेंप गयी। उसने आँखें नीची कर !ीं।

पम्र्मी ने अपनी साइकिक! उठाते हुए कहा-''कपूर के सार्थ आप आइएगा। और आपने कहा र्था कपूर को ककिवता पसन्द है।''

''5ी हाँ, गुडनाइK।''

5ब पम्र्मी बँग!े पर पहुँची तो उसकी साइकिक! के कैरिरयर र्में अँगरे5ी ककिवता के पाँच-छह ग्रन्थ बँधे रे्थ।

आठ ब5 चुके रे्थ। सुधा 5ाकर अपने किबस्तरे पर !ेKकर पwऩे !गी। अँगरे5ी ककिवता पढ़ रही र्थी। अँगरे5ी !ड़किकयाँ किकतनी आ5ाद और स्वच्छन्द होती होंगी! 5ब पम्र्मी, 5ो ईसाई है, इतनी आ5ाद है, उसने सोचा और पम्र्मी किकतनी अच्छी है उसकी बेतकल्!ुफी र्में भो!ापन तो नहीं है, पर सर!ता बेहद है। बड़ा साफ दिद! है, कुछ लिछपाना नहीं 5ानती। और सुधा से लिसफ� पाँच-छह सा! बड़ी है, !ेकिकन सुधा उसके सार्मने बच्ची !गती है। किकतना 5ानती है पम्र्मी और किकतनी अच्छी सर्मझ है उसकी। और चन्दर की तारीफ करते नहीं र्थकती। चन्दर के लि!ए उसने लिसगरेK छोड़ दी। चन्दर उसका दोस्त है, इतनी पढ़ी-लि!खी !ड़की के लि!ए रोशनी का देवदूत है। सचर्मुच चन्दर पर सुधा को गव� है। और उसी चन्दर से वह !ड़-झगड़ !ेती है, इतनी र्मान-र्मनुहार कर !ेती है और चन्दर सब बदा�श्त कर !ेता है वरना चन्दर के इतने बडे़-बडे़ दोस्त हैं और चन्दर की इतनी इज्जत है। अगर चन्दर चाहे तो सुधा की रत्ती भर परवाह न करे !ेकिकन चन्दर सुधा की भ!ी-बुरी बात बदा�श्त कर !ेता है। और वह किकतना परेशान करती रहती है चन्दर को।

कभी अगर सचर्मुच चन्दर बहुत नारा5 हो गया और सचर्मुच हरे्मशा के लि!ए बो!ना छोड़ दे तब क्या होगा? या चन्दर यहाँ से कहीं च!ा 5ाए तब क्या होगा? खैर, चन्दर 5ाएगा तो नहीं इ!ाहाबाद छोडक़र, !ेकिकन अगर वह खुद कहीं च!ी गयी तब क्या होगा? वह कहाँ 5ाएगी! अरे पापा को र्मनाना तो बायें हार्थ का खे! है, और ऐसा प्यार वह करेगी नहीं किक शादी करनी पडे़।

!ेकिकन यह सब तो ठीक है। पर चन्दर ने लिचठ्ठी क्यों नहीं भे5ी? क्या नारा5 होकर गया है? 5ाते वक्त सुधा ने परेशान तो बहुत किकया र्था। हो!डॉ! की पेKी का बक्सुआ खो! दिदया र्था और उठाते ही चन्दर के हार्थ से सब कपडे़ किबखर

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गये। चन्दर कुछ बो!ा नहीं !ेकिकन 5ाते सर्मय उसने सुधा को डाँKा भी नहीं और न यही सर्मझाया किक घर का खया! रखना, अके!े घूर्मना र्मत, र्महराजि5न से !ड़ना र्मत, पढ़ती रहना। इससे सुधा सर्मझ तो गयी र्थी किक वह नारा5 है, !ेकिकन कुछ कहा नहीं।

!ेकिकन चन्दर को खत तो भे5ना चाकिहए र्था। चाहे गुस्से का ही खत क्यों न होता? किबना खत के र्मन उसका किकतना घबरा रहा है। और क्या चन्दर को र्मा!ूर्म नहीं होगा। यह कैसे हो सकता है? 5ब इतनी दूर बैठे हुए सुधा को र्मा!ूर्म हो गया किक चन्दर नाखुश है तो क्या चन्दर को नहीं र्मा!ूर्म होगा किक सुधा का र्मन उदास हो गया है। 5रूर र्मा!ूर्म होगा। सोचते-सोचते उसे 5ाने कब नींद आ गयी और नींद र्में उसे पापा या चन्दर की लिचठ्ठी धिर्म!ी या नहीं, यह तो नहीं र्मा!ूर्म, !ेकिकन इतना 5रूर है किक 5ैसे यह सारी सृधिष्ट एक किबन्दु से बनी और एक किबन्दु र्में सर्मा गयी, उसी तरह सुधा की यह भादों की घKाओं 5ैसी फै!ी हुई बेचैनी और गी!ी उदासी एक चन्दर के ध्यान से उठी और उसी र्में सर्मा गयी।

दूसरे दिदन सुबह सुधा आँगन र्में बैठी हुई आ!ू छी! रही र्थी और चन्दर का इन्त5ार कर रही र्थी। उसी दिदन रात को पापा आ गये रे्थ और दूसरे दिदन सुबह बुआ5ी और किबनती।

''सुधी!'' किकसी ने इतने प्यार से पुकारा किक हवाओं र्में रस भर गया।

''अच्छा! आ गये चन्दर!'' सुधा आ!ू छोडक़र उठ बैठी, ''क्या !ाये हर्मारे लि!ए !खनऊ से?''

''बहुत कुछ, सुधा!''

''के है सुधा!'' सहसा कर्मरे र्में से कोई बो!ा।

''चन्दर हैं।'' सुधा ने कहा, ''चन्दर, बुआ आ गयीं।'' और कर्मरे से बुआ5ी बाहर आयीं।

''प्रणार्म, बुआ5ी!'' चन्दर बो!ा और पैर छूने के लि!ए झुका।

''हाँ, हाँ, हाँ!'' बुआ5ी तीन कदर्म पीछे हK गयीं। ''देखत्यों नैं हर्म पू5ा की धोती पहने हैं। ई के है, सुधा!''

सुधा ने बुआ की बात का कुछ 5वाब नहीं दिदया-''चन्दर, च!ो अपने कर्मरे र्में; यहाँ बुआ पू5ा करेंगी।''

चन्दर अ!ग हKा। बुआ ने हार्थ के पंचपाv से वहाँ पानी लिछडक़ा और 5र्मीन फँूकने !गीं। ''सुधा, किबनती को भे5 देव।'' बुआ5ी ने धूपदानी र्में र्महराजि5न से कोय!ा !ेते हुए कहा।

सुधा अपने कर्मरे र्में पहुँचकर चन्दर को खाK पर किबठाकर नीचे बैठ गयी।

''अरे, ऊपर बैठो।''

''नहीं, हर्म यहीं ठीक हैं।'' कहकर वह बैठ गयी और चन्दर की पैंK पर पेश्किन्स! से !कीरें खींचने !गीं।

''अरे यह क्या कर रही हो?'' चन्दर ने पैर उठाते हुए कहा।

''तो तुर्मने इतने दिदन क्यों !गाये?'' सुधा ने दूसरे पाँयचे पर पेश्किन्स! !गाते हुए कहा।

''अरे, बड़ी आफत र्में फँस गये रे्थ, सुधा। !खनऊ से हर्म !ोग गये बरे!ी। वहाँ एक उत्सव र्में हर्म !ोग भी गये और एक धिर्मकिनस्Kर भी पहुँचे। कुछ सोशलि!स्K, कम्युकिनस्K, और र्म5दूरों ने किवरोध प्रदश�न किकया। किफर तो पुलि!सवा!ों और

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र्म5दूरों र्में 5र्मकर !ड़ाई हुई। वह तो कहो एक बेचारा सोशलि!स्K !ड़का र्था कै!ाश धिर्मश्रा, उसने हर्म !ोगों की 5ान बचायी, वरना पापा और हर्म, दोनों ही अस्पता! र्में होते...''

''अच्छा! पापा ने हर्में कुछ बताया नहीं!'' सुधा घबराकर बो!ी और बड़ी देर तक बरे!ी, उपद्रव और कै!ाश धिर्मश्रा की बात करती रही।

''अरे ये बाहर गा कौन रहा है?'' चन्दर ने सहसा पूछा।

बाहर कोई गाता हुआ आ रहा र्था, ''आँच! र्में क्यों बाँध लि!या र्मुझ परदेशी का प्यार....आँच! र्में क्यों...'' और चन्दर को देखते ही उस !ड़की ने चौंककर कहा, ''अरे?'' क्षण-भर स्तब्ध, और किफर शरर्म से !ा! होकर भागी बाहर।

''अरे, भागती क्यों है? यही तो हैं चन्दर।'' सुधा ने कहा।

!ड़की बाहर रुक गयी और गरदन किह!ाकर इशारे से कहा, ''र्मैं नहीं आऊँगी। र्मुझे शरर्म !गती है।''

''अरे च!ी आ, देखो हर्म अभी पकड़ !ाते हैं, बड़ी झक्की है यह।'' कहकर सुधा उठी, वह किफर भागी। सुधा पीछे-पीछे भागी। र्थोड़ी देर बाद सुधा अन्दर आयी तो सुधा के हार्थ र्में उस !ड़की की चोKी और वह बेचारी बुरी तरह अस्त-व्यस्त र्थी। दाँत से अपने आँच! का छोर दबाये हुए र्थी बा! की तीन-चार !Kें र्मुँह पर झुक रही र्थीं और !ा5 के र्मारे लिसर्मKी 5ा रही र्थी और आँखें र्थीं किक र्मुस्काये या रोये, यह तय ही नहीं कर पायी र्थीं।

''देखो...चन्दर...देखो।'' सुधा हाँफ रही र्थी-''यही है किबनती र्मोKकी कहीं की, इतनी र्मोKी है किक दर्म किनक! गया हर्मारा।'' सुधा बुरी तरह हाँफ रही र्थी।

चन्दर ने देखा-बेचारी की बुरी हा!त र्थी। र्मोKी तो बहुत नहीं र्थी पर हाँ, गाँव की तन्दुरुस्ती र्थी, !ा! चेहरा, जि5से शरर्म ने तो दूना बना दिदया र्था। एक हार्थ से अपनी चोKी पकडे़ र्थी, दूसरे से अपने कपडे़ ठीक कर रही र्थी और दाँत से आँच! पकडे़।

''छोड़ दो उसे, यह क्या है सुधा! बड़ी 5ंग!ी हो तुर्म।'' चन्दर ने डाँKकर कहा।

''5ंग!ी र्मैं हूँ या यह?'' चोKी छोड़कर सुधा बो!ी-''यह देखो, दाँत काK लि!या है इसने।'' सचर्मुच सुधा के कन्धे पर दाँत के किनशान बने हुए रे्थ।

चन्दर इस सम्भावना पर बेतहाशा हँसने !गा किक इतनी बड़ी !ड़की दाँत काK सकती है-''क्यों 5ी, इतनी बड़ी हो गयी और दाँत काKती हो?'' उसकी हँसी रुक नहीं रही र्थी। ''सचर्मुच यह तो बडे़ र्म5े की !ड़की है। किबनती है इसका नार्म? क्यों रे, र्महुआ बीनती र्थी क्या वहाँ, 5ो बुआ5ी ने किबनती नार्म रखा है?''

वह पल्!ा ठीक से ओढ़ चुकी र्थी। बो!ी, ''नर्मस्ते।''

चन्दर और सुधा दोनों हँस पडे़। ''अब इतनी देर बाद याद आयी।'' चन्दर और भी हँसने !गा।

''किबनती! ए किबनती!'' बुआ की आवा5 आयी। किबनती ने सुधा की ओर देखा और च!ी गयी।

''और कहो सुधी,'' चन्दर बो!ा-''क्या हा!-चा! रहा यहाँ?''

''किफर भी एक लिचठ्ठी भी तो नहीं लि!खी तुर्मने।'' सुधा बड़ी लिशकायत के स्वर र्में बो!ी, ''हर्में रो5 रु!ाई आती र्थी। और तुम्हारी वो आयी र्थी।''

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''हर्मारी वो?'' चन्दर ने चौंककर पूछा।

''अरे हाँ, तुम्हारी पम्र्मी रानी।''

''अच्छा वो आयी र्थीं। क्या बात हुई?''

''कुछ नहीं; तुम्हारी तसवीर देख-देखकर रो रही र्थीं।'' सुधा ने उँगलि!याँ नचाते हुए कहा।

''र्मेरी तसवीर देखकर! अच्छा, और र्थी कहाँ र्मेरी तसवीर?''

''अब तुर्म तो बहस करने !गे, हर्म कोई वकी! हैं! तुर्म कोई नयी बात बताओ।'' सुधा बो!ी।

''हर्म तो तुम्हें बहुत-बहुत बात बताएगँे। पूरी कहानी है।''

इतने र्में किबनती आयी। उसके हार्थ र्में एक तश्तरी र्थी और एक किग!ास। तश्तरी र्में कुछ धिर्मठाई र्थी, और किग!ास र्में शरबत। उसने !ाकर तश्तरी चन्दर के सार्मने रख दी।

''ना भई, हर्म नहीं खाएगँे।'' चन्दर ने इनकार किकया।

किबनती ने सुधा की ओर देखा।

''खा !ो। !गे नखरा करने। !खनऊ से आ रहे हैं न, तकल्!ुफ न करें तो र्मा!ूर्म कैसे हो?'' सुधा ने र्मुँह लिचढ़ाते हुए कहा। चन्दर र्मुसकराकर खाने !गा।

''दीदी के कहने पर खाने !गे आप!'' किबनती ने अपने हार्थ की अँगूठी की ओर देखते हुए कहा।

चन्दर हँस दिदया, कुछ बो!ा नहीं। किबनती च!ी गयी।

''बड़ी अच्छी !ड़की र्मा!ूर्म पड़ती है यह।'' चन्दर बो!ा।

''बहुत प्यारी है। और पwऩे र्में हर्मारी तरह नहीं है, बहुत ते5 है।''

''अच्छा! तुम्हारी पढ़ाई कैसी च! रही है?''

''र्मास्Kर साहब बहुत अच्छा पढ़ाते हैं। और चन्दर, अब हर्म खूब बात करते हैं उनसे दुकिनया-भर की और वे बस हरे्मशा लिसर नीचे किकये रहते हैं। एक दिदन पढ़ते वक्त हर्म गरी पास र्में रखकर खाते गये, उन्हें र्मा!ूर्म ही नहीं हुआ। उनसे एक दिदन ककिवता सुनवा दो।'' सुधा बो!ी।

चन्दर ने कुछ 5वाब नहीं दिदया और डॉ. साहब के कर्मरे र्में 5ाकर किकताबें उ!Kने !गा।

इतने र्में बुआ5ी का ते5 स्वर आया-''हर्मैं र्मा!ूर्म होता किक ई र्मुँह-झौंसी हर्मके ऐसी नाच नचइहै तौ हर्म पैदा होतै ग!ा घोंK देइत। हरे रार्म! अक्काश लिसर पर उठाये है। कै घंKे से नरिरयात-नरिरयात गKई फK गयी। ई बो!तै नाहीं 5ैसे साँप सँूघ गवा होय।''

प्रोफेसर शुक्!ा के घर र्में वह नया सांस्कृकितक तत्व र्था। किकतनी शा!ीनता और लिशष्टता से वह रहते रे्थ। कभी इस तरह की भाषा भी उनके घर र्में सुनने को धिर्म!ेगी, इसकी चन्दर को 5रा भी उम्र्मीद न र्थी। चन्दर चौंककर उधर

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देखने !गा। डॉ. शुक्!ा सर्मझ गये। कुछ !ण्डिज्जत-से और र्मुसकराकर ग्!ाकिन लिछपाते हुए-से बो!े, ''र्मेरी किवधवा बहन है, क! गाँव से आयी है !ड़की को पहुँचाने।''

उसके बाद कुछ पKकने का स्वर आया, शायद किकसी बरतन के। इतने र्में सुधा आयी, गुस्से से !ा!-''सुना पापा तुर्मने, बुआ किबनती को र्मार डा!ेंगी।''

''क्या हुआ आखिखर?'' डॉ. शुक्!ा ने पूछा।

''कुछ नहीं, किबनती ने पू5ा का पंचपाv उठाकर ठाकुर5ी के सिस-हासन के पीछे रख दिदया र्था। उन्हें दिदखाई नहीं पड़ा, तो गुस्सा किबनती पर उतार रही हैं।''

इतने र्में किफर उनकी आवा5 आयी-''पैदा करते बखत बहुत अच्छा !ाग रहा, पा!त बखत Kें बो! गये। र्मर गये रह्यो तो आपन सन्तानौ अपने सार्थ !ै 5ात्यौ। हर्मारे र्मूड़ पर ई हत्या काहे डा! गयौ। ऐसी कु!च्छनी है किक पैदा होतेकिहन बाप को खाय गयी।''

''सुना पापा तुर्मने?''

''च!ो हर्म च!ते हैं।'' डॉ. शुक्!ा ने कहा। सुधा वहीं रह गयी। चन्दर से बो!ी, ''ऐसा बुरा स्वभाव है बुआ का किक बस। किबनती ऐसी है किक इतना बदा�श्त कर !ेती है।''

बुआ ने ठाकुर5ी का सिस-हासन साफ करते हुए कहा, ''रोवत काहे हो, कौन तुम्हारे र्माई-बाप को गरिरयावा है किक ई अँसुआ wरकाय रही हो। ई सब चोच!ा अपने ओ को दिदखाओ 5ायके। दुई र्महीना और हैं-अबकिहन से उधिधयानी न 5ाओ।''

अब अभद्रता सीर्मा पार कर चुकी र्थी।

''किबनती, च!ो कर्मरे के अन्दर, हKो सार्मने से।'' डॉ. शुक्!ा ने डाँKकर कहा, ''अब ये चरखा बन्द होगा या नहीं। कुछ शरर्म-हया है या नहीं तुर्मर्में?''

किबनती लिससकते हुए अन्दर गयी। स्Kडी रूर्म र्में देखा किक चन्दर है तो उ!Kे पाँव !ौK आयी सुधा के कर्मरे र्में और फूK-फूKकर रोने !गी।

डॉ. शुक्!ा !ौK आये-''अब हर्म ये सब करें किक अपना कार्म करें! अच्छा क! से घर र्में र्महाभारत र्मचा रखा है। कब 5ाएगँी ये, सुधा?''

''क! 5ाएगँी। पापा अब किबनती को कभी र्मत भे5ना इनके पास।'' सुधा ने गुस्सा-भरे स्वर र्में कहा।

''अच्छा-5ाओ, हर्मारा खाना परसो। चन्दर, तुर्म अपना कार्म यहाँ करो। यहाँ शोर ज्यादा हो तो तुर्म !ाइब्रेरी र्में च!े 5ाना। आ5 भर की तक!ीफ है।''

चन्दर ने अपनी कुछ किकताबें उठायीं और उसने च!ा 5ाना ही ठीक सर्मझा। सुधा खाना परोसने च!ी गयी। किबनती रो-रोकर और तकिकये पर लिसर पKककर अपनी कंुठा और दु:ख उतार रही र्थी। बुआ घंKी ब5ा रही र्थीं, दबी 5बान 5ाने क्या बकती 5ा रही र्थीं, यह घंKी के भलिक्त-भावना-भरे र्मधुर स्वर र्में सुनायी नहीं देता र्था।

!ेकिकन बुआ5ी दूसरे दिदन गयीं नहीं। 5ब तीन-चार दिदन बाद चन्दर गया तो देखा बाहर के सेहन र्में डॉ. शुक्!ा बैठे हुए हैं और दरवा5ा पकडक़र बुआ5ी खड़ी बातें कर रही हैं। !ेकिकन इस वक्त बुआ5ी काफी गम्भीर र्थीं और किकसी

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किवषय पर र्मन्vणा कर रही र्थीं। चन्दर के पास पहुँचने पर फौरन वे चुप हो गयीं और चन्दर की ओर सशंकिकत नेvों से देखने !गीं। डॉ. शुक्!ा बो!े, ''आओ चन्दर, बैठो।'' चन्दर बग! की कुसr खींचकर बैठ गया तो डॉ. साहब बुआ5ी से बो!े, ''हाँ, हाँ, बात करो, अरे ये तो घर के आदर्मी हैं। इनके बारे र्में सुधा ने नहीं बताया तुम्हें? ये चन्दर हैं हर्मारे लिशष्य, बहुत अच्छा !ड़का है।''

''अच्छा, अच्छा, भइया बइठो, तू तो एक दिदन अउर आये रह्यो, बी. ए. र्में पढ़त हौ सुधा के संगे।''

''नहीं बुआ5ी, र्मैं रिरसच� कर रहा हूँ।''

''वाह, बहुत खुशी भई तोको देख के-हाँ तो सुकु!!'' वे अपने भाई से बो!ीं, ''किफर यही ठीक होई। किबनती का किबयाह Kा! देव और अगर ई !ड़का ठीक हुई 5ाय तो सुधा का किबयाह अषाढ़-भर र्में किनपKाय देव। अब अच्छा नाहीं !ागत। ठँूठ ऐसी किबदिKया, सूनी र्माँग लि!ये छररावा करत है एहर-ओहर!'' बुआ बो!ीं।

''हाँ, ये तो ठीक है।'' डॉ. शुक्!ा बो!े, ''र्मैं खुद सुधा का ब्याह अब Kा!ना नहीं चाहता। बी.ए. तक की लिशक्षा काफी है वरना किफर हर्मारी 5ाकित र्में तो !ड़के नहीं धिर्म!ते। !ेकिकन ये 5ो !ड़कातुर्म बता रही हो तो घर वा!े कुछ एतरा5 तो नहीं करेंगे! और किफर, !ड़का तो हर्में अच्छा !गा !ेकिकन घरवा!े पता नहीं कैसे हों?''

''अरे तो घरवा!न से का करै का है तोको। !ड़कातो अ!ग है, अपने-आप पढ़ रहा है और !ड़की अ!ग रकिहए, न सास का डर, न ननद की धौंस। हर्म पvी र्मँगवाये देइत ही, धिर्म!वाय !ेव।''

डॉ. शुक्!ा ने स्वीकृकित र्में लिसर किह!ा दिदया।

''तो किफर किबनती के बारे र्में का कहत हौ? अगहन तक Kा! दिदया 5ाय न?'' बुआ5ी ने पूछा।

''हाँ हाँ,'' डॉ. शुक्!ा ने किवचार र्में डूबे हुए कहा।

''तो किफर तुर्म ही इन 5ूताकिपKऊ, बड़नक्कू से कह दिदयौ; आय के क! से हर्मरी छाती पर र्मूँग द!त हैं।'' बुआ5ी ने चन्दर की ओर किकसी को किनद®लिशत करते हुए कहा और च!ी गयीं।

चन्दर चुपचाप बैठा र्था। 5ाने क्या सोच रहा र्था। शायद कुछ भी नहीं सोच रहा र्था! र्मगर किफर भी अपनी किवचार-शून्यता र्में ही खोया हुआ-सा र्था। 5ब डॉ. शुक्!ा उसकी ओर र्मुडे़ और कहा, ''चन्दर!'' तो वह एकदर्म से चौंक गया और 5ाने किकस दुकिनया से !ौK आया। डॉ. साहब ने कहा, ''अरे! तुम्हारी तबीयत खराब है क्या?''

''नहीं तो।'' एक फीकी हँसी हँसकर चन्दर ने कहा।

''तो र्मेहनत बहुत कर रहे होगे। किकतने अध्याय लि!खे अपनी र्थीलिसस के? अब र्माच� खत्र्म हो रहा है और पूरा अप्रै! तुम्हें र्थीलिसस Kाइप कराने र्में !गेगा और र्मई र्में हर हा!त र्में 5र्मा हो 5ानी चाकिहए।''

''5ी, हाँ।'' बडे़ र्थके स्वर र्में चन्दर ने कहा, ''दस अध्याय हो ही गये हैं। तीन अध्याय और होने हैं और अनुक्रर्मक्षिणका बनानी है। अप्रै! के पह!े सप्ताह तक खत्र्म हो ही 5ायेगा। अब लिसवा र्थीलिसस के और करना ही क्या है?'' एक बहुत गहरी साँस !ेते हुए चन्दर ने कहा और र्मार्था र्थार्मकर बैठ गया।

''कुछ तबीयत ठीक नहीं है तुम्हारी। चाय बनवा !ो! !ेकिकन सुधा तो है नहीं, न र्महराजि5न है।'' डॉक्Kर साहब बो!े।

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अरे सुधा, सुधा के नार्म पर चन्दर चौंक गया। हाँ, अभी वह सुधा के ही बारे र्में सोच रहा र्था, 5ब बुआ5ी बात कर रही र्थीं। क्या सोच रहा र्था। देखो...उसने याद करने की कोलिशश की पर कुछ याद ही नहीं आ रहा र्था, पता नहीं क्या सोच रहा र्था। पता नहीं र्था...कुछ सुधा के ब्याह की बात हो रही र्थी शायद। क्या बात हो रही र्थी...?

''कहाँ गयी है सुधा?'' चन्दर ने पूछा।

''आ5 शायद साकिबर साहब के यहाँ गयी है। उनकी !ड़की उनके सार्थ पढ़ती है न, वहीं गयी है किबनती के सार्थ।''

''अब इम्तहान को किकतने दिदन रह गये हैं, अभी घूर्मना बन्द नहीं हुआ उनका?''

''नहीं, दिदन-भर पढ़ने के बाद उठी र्थी, उसके भी लिसर र्में दद� र्था, च!ी गयी। घूर्म-किफर !ेने दो बेचारी को, अब तो 5ा ही रही है।'' डॉ. शुक्!ा बो!े, एक हँसी के सार्थ जि5सर्में आँसू छ!के पड़ते रे्थ।

''कहाँ तय हो रही है सुधा की शादी?''

''बरे!ी र्में। अब उसकी बुआ ने बताया है। 5न्र्मपvी दी है धिर्म!वा !ो, किफर तुर्म 5रा सब बातें देख !ेना। तुर्म तो र्थीलिसस र्में व्यस्त रहोगे; र्मैं 5ाकर !ड़का देख आऊँगा। किफर र्मई के बाद 5ु!ाई तक सुधा का ब्याह कर देंगे। तुम्हें डॉक्KरेK धिर्म! 5ाए और यूकिनवर्शिस-Kी र्में 5गह धिर्म! 5ाए। बस हर्म तो !ड़का-!ड़की दोनों से फारिरग।'' डॉ. शुक्!ा बहुत अ5ब-से स्वरों र्में बो!े।

चन्दर चुप रहा।

''किबनती को देखा तुर्मने?'' र्थोड़ी देर बाद डॉक्Kर ने पूछा।

''हाँ, वही न जि5नको डाँK रही र्थीं ये उस दिदन?''

''हाँ, वही। उसके ससुर आये हुए हैं; उनसे कहना है किक अब शादी अगहन-पूस के लि!ए Kा! दें। पह!े सुधा की हो 5ाए, वह बड़ी है और हर्म चाहते हैं किक किबनती को तब तक किवदुषी का दूसरा खंड भी दिद!ा दें। आओ, उनसे बात कर !ें अभी।'' डॉ. शुक्!ा उठे। चन्दर भी उठा।

और उसने अन्दर 5ाकर किबनती के ससुर के दिदव्य दश�न प्राप्त किकये। वे एक प!ँग पर बैठे रे्थ, !ेकिकन वह अभागा प!ँग उनके उदर के ही लि!ए नाकाफी र्था। वे लिचत पडे़ रे्थ और साँस !ेते रे्थ तो पुराणों की उस कर्था का प्रदश�न हो 5ाता र्था किक धीरे-धीरे पृथ्वी का गो!ा वाराह के र्मुँह पर कैसे ऊपर उठा होगा। लिसर पर छोKे-छोKे बा! और कर्मर र्में एक अँगोछे के अ!ावा सारा शरीर दिदगम्बर। सुबह शायद गंगा नहाकर आये रे्थ क्योंकिक पेK तक र्में चन्दन, रो!ी !गी हुई र्थी।

डॉ. शुक्!ा 5ाकर बग! र्में कुसr पर बैठ गये; ''ककिहए दुबे5ी, कुछ 5!पान किकया आपने?''

प!ँग चरर्मराया। उस किवशा! र्मांस-पिप-ड र्में एक भूडो! आया और दुबे5ी 5!पान की याद करके गद्गद होकर हँसने !गे। एक र्थ!र्थ!ाहK हुई और कर्मरे की दीवारें किगरते-किगरते बचीं। दुबे5ी ने उठकर बैठने की कोलिशश की !ेकिकन असफ! होकर !ेKे-ही-!ेKे कहा, ''हो-हो! सब आपकी कृपा है। खूब छकके धिर्मष्टा� पाया। अब 5रा सरबत-उरबत कुछ धिर्म!ै तो 5ो कुछ पेK र्में 5!न है, सो शान्त होय!'' उन्होंने पेK पर अपना हार्थ फेरते हुए कहा।

''अच्छा, अरे भाई 5रा शरबत बना देना।'' डॉ. शुक्!ा ने दरवा5े की ओK र्में खड़ी हुई बुआ5ी से कहा। बुआ5ी की आवा5 सुनाई पड़ी, ''बाप रे! ई wाई र्मन की !हास कर्म-से-कर्म र्मसक-भर के शरबत तो उ!ीचै !ैईंहैं।'' चन्दर को

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हँसी आ गयी, डॉ. शुक्!ा र्मुसकराने !गे !ेकिकन दुबे5ी के दिदव्य र्मुखरं्मड! पर कहीं क्षोभ या उल्!ास की रेखा तक न आयी। चन्दर र्मन-ही-र्मन सोचने !गा, प्राचीन का! के ब्रह्मानन्द लिस» र्महात्र्मा ऐसे ही होते होंगे।

बुआ एक किग!ास र्में शरबत !े आयीं। दुबे5ी काँख-काँखकर उठे और एक साँस र्में शरबत ग!े से नीचे उतारकर, किग!ास नीचे रख दिदया।

''दुबे5ी, एक प्रार्थ�ना है आपसे!'' डॉ. शुक्!ा ने हार्थ 5ोडक़र बडे़ किवनीत स्वर र्में कहा।

''नहीं! नहीं!'' बात काKकर दुबे5ी बो!े, ''बस अब हर्म कुछ न खावैं। आप बहुत सत्कार किकये। हर्म एही से छक गये। आपको देखके तो हर्में बड़ी प्रस�ता भई। आप सचर्मुच दिदव्य पुरुष हौ! और किफर आप तो !ड़की के र्मार्मा हो, और किबयाह-शादी र्में 5ो है सो र्मार्मा का पक्ष देखा 5ाता है। ई तो भगवान् ऐसा 5ोड़ धिर्म!ाइन हैं किक वरपक्ष अउर कन्यापक्ष दुइन के र्मार्मा बडे़ ज्ञानी हैं। आप हैं तौन कालि!5 र्में पुरफेसर और ओहर हर्मार सार-!ड़काकेर र्मार्मा 5ौन हैं तौन डाकघर र्में र्मुंशी हैं, आपकी किकरपा से।'' दुबे5ी ने गव� से कहा। चन्दर र्मुसकराने !गा।

''अरे सो तो आपकी नम्रता है !ेकिकन र्मैं सोच रहा हूँ किक गरधिर्मयों र्में अगर ब्याह न रखकर 5ाडे़ र्में रखा 5ाए तो ज्यादा अच्छा होगा। तब तक आपके सत्कार की हर्म कुछ तैयारी भी कर !ेंगे।'' डॉ. शुक्!ा बो!े।

दुबे5ी इसके लि!ए तैयार नहीं रे्थ। वे बडे़ अचर5 र्में भरकर उनकी ओर देखने !गे। !ेकिकन बहुत कहने-सुनने के बाद अन्त र्में वे इस शत� पर रा5ी हुए किक अगहन तक हर ती5-त्यौहार पर !ड़के के लि!ए कुरता-धोती का कपड़ा और ग्यारह-बारह रुपये न5राना 5ाएगा और अगहन र्में अगर ब्याह हो रहा है तो सास-ननद और जि5ठानी के लि!ए गरर्म साड़ी 5ाएगी और 5ब-5ब दुबे5ी गंगा नहाने प्रयागरा5 आएगेँ तो उनका रोचना एक र्था!, कपडे़ और एक स्वण�र्मण्डिJडत 5ौ से होगा। 5ब डॉ. शुक्!ा ने यह स्वीकार कर लि!या तो दुबे5ी ने उठकर अपना झा!र्म-झो!ा कुरता ग!े र्में अKकाया और अपनी गठरी हार्थ र्में उठाकर बो!े-

''अच्छा तो अब आज्ञा देव, हर्म च!ी अब, और ई रुकिपया !ड़की को दै दिदयो, अब बात पक्की है।'' और अपनी KेंK से उन्होंने एक र्मुड़ा-र्मुड़ाया ते! !गा हुआ पाँच रुपये का नोK किनका!ा और डॉ. साहब को दे दिदया।

''चन्दर एक ताँगा कर दो, दुबे5ी को। अच्छा, आओ हर्म भी च!ें।''

5ब ये !ोग !ौKे तो बुआ5ी एक रै्थ!ी से कुछ धर-किनका! रही र्थीं। डॉ. शुक्!ा ने नोK बुआ5ी को देते हुए कहा, ''!ो, ये दे गये तुम्हारे सर्मधी 5ी, !ड़की को।''

पाँच का नोK देखा तो बुआ5ी सु!ग उठीं-''न गहना न गुरिरया, किबयाह पक्का कर गये ई काग5 के Kुकडे़ से। अपना-आप तो सोना और रुकिपया और कपड़ा सब !ी!ै को तैयार और देत के दाँई पेK किपराता है 5ूता-किपKऊ का। अरे रार्म चाही तो 5र्मदूत ई !हास की बोKी-बोKी करके रार्म5ी के कुत्तन को खिख!इहैं।''

चन्दर हँसी के र्मारे पाग! हो गया।

बुआ5ी ने रै्थ!ी का र्मुँह बाँधा और बो!ीं, ''अबकिहन तक किबनती का पता नै, और ऊ तुरकन-र्म!ेच्छन के किहयाँ कुछ खा-पी लि!किहस तो किफर हर्मरे किहयाँ गु5ारा नाकिह ना ओका। बड़ी आ5ाद हुई गयी है सुधा की सह पाय के। आवै देव, आ5 हर्म भद्रा उतारिरत ही।''

डॉ. शुक्!ा अपने कर्मरे र्में च!े गये। चन्दर को प्यास !गी र्थी। उसने बुआ5ी से एक किग!ास पानी र्माँगा। बुआ ने एक किग!ास र्में पानी दिदया और बो!ीं, ''बैठ के किपयो बेKा; बैठ के। कुछ खाय का देई?''

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''नहीं, बुआ5ी!'' बुआ बैठकर हँलिसया से कKह! छी!ने !गीं और चन्दर पानी पीता हुआ सोचने !गा, बुआ5ी सभी से इतनी र्मीठी बात करती हैं तो आखिखर किबनती से ही इतनी कKु क्यों हैं?

इतने र्में अन्दर चप्प!ों की आहK सुनाई पड़ी। चन्दर ने देखा, सुधा और किबनती आ गयी र्थीं। सुधा अपनी चप्प! उतारकर अपने कर्मरे र्में च!ी गयी और किबनती आँगन र्में आयी। बुआ5ी के पास आकर बो!ी, ''!ाओ, हर्म तरकारी काK दें।''

''च! हK ओहर। पकिह!े नहाव 5ाय के। कुछ खाय तो नै रहयो। एत्ती देर कहाँ घूर्मकित रहयो ? हर्म खूब अच्छी तरह 5ाकिनत ही तँू हर्मार नाक कKाइन के रहबो। पतुरिरयन के wँग सीखे हैं!''

किबनती चुप। एक तीखी वेदना का भाव उसके र्मुँह पर आया। उसने आँखें झुका !ीं। रोयी नहीं और चुपचाप लिसर झुकाये हुए सुधा के कर्मरे र्में च!ी गयी।

चन्दर क्षण-भर खड़ा रहा। किफर सुधा के पास गया। सुधा के कर्मरे र्में अके!े किबनती खाK पर पड़ी र्थी-औंधे र्मुँह, तकिकया र्में र्मुँह लिछपाये। चन्दर को 5ाने कैसा !गा। उसके र्मन र्में बेहद तरस आ रहा र्था इस बेचारी !ड़की के लि!ए, जि5सके किपता हैं ही नहीं और जि5से प्रताडऩा के लिसवा कुछ नहीं धिर्म!ा। चन्दर को बहुत ही र्मर्मता !ग रही र्थी इस अभाकिगनी के लि!ए। वह सोचने !गा, किकतना अन्तर है दोनों बहनों र्में। एक बचपन से ही किकतने असीर्म दु!ार, वैभव और स्नेह र्में प!ी है और दूसरी प्रताड़ना और किकतने अपर्मान र्में प!ी और वह भी अपनी ही सगी र्माँ से 5ो दुकिनया भर के प्रकित स्नेहर्मयी है, अपनी !ड़की को छोडक़र।

वह कुसr पर बैठकर चुपचाप यही सोचने !गा-अब आगे भी इस बेचारी को क्या सुख धिर्म!ेगा। ससुरा! कैसी है, यह तो ससुर को देखकर ही र्मा!ूर्म देता है।

इतने र्में सुधा कपडे़ बद!कर हार्थ र्में किकताब लि!ये, उसे पढ़ती हुई, उसी र्में डूबी हुई आयी और खाK पर बैठ गयी। ''अरे! किबनती! कैसे पड़ी हो? अच्छा तुर्म हो चन्दर! किबनती! उठो!'' उसने किबनती की पीठ पर हार्थ रखकर कहा।

किबनती, 5ो अभी तक किनचेष्ट पड़ी र्थी, सुधा के र्मर्मता-भरे स्पश� पर फूK-फूKकर रो पड़ी। तो सुधा ने चन्दर से कहा, ''क्या हुआ किबनती रानी को।'' और किबनती भी 5ोरों से लिससकिकयाँ भरने !गी तो सुधा ने चन्दर से कहा, ''कुछ तुर्मने कहा होगा। चौदह दिदन बाद आये और आते ही !गे रु!ाने उसे। कुछ कहा होगा तुर्मने! सर्मझ गये। घूर्मने के लि!ए उसे भी डाँKा होगा। हर्म साफ-साफ बताये देते हैं चन्दर, हर्म तुम्हारी डाँK सह !ेते हैं इसके ये र्मत!ब नहीं किक अब तुर्म इस बेचारी पर भी रोब झाडऩे !गो। इससे कभी कुछ कहा तो अच्छी बात नहीं होगी!''

''तुम्हारे दिदर्माग का कोई पुर5ा wी!ा हो गया है क्या? र्मैं क्यों कहूँगा किबनती को कुछ!''

''बस किफर यही बात तुम्हारी बुरी !गती है।'' सुधा किबगड़कर बो!ी, ''क्यों नहीं कहोगे किबनती को कुछ? 5ब हर्में कहते हो तो उसे क्यों नहीं कहोगे? हर्म तुम्हारे अपने हैं तो क्या वो तुम्हारी अपनी नहीं है?''

चन्दर हँस पड़ा-''सो क्यों नहीं है, !ेकिकन तुम्हारे सार्थ न ऐसे किनबाह, न वैसे किनबाह।''

''ये सब कुछ हर्म नहीं 5ानते! क्यों रो रही है यह?'' सुधा बो!ी धर्मकी के स्वर र्में।

''बुआ5ी ने कुछ कहा र्था।'' चन्दर बो!ा।

''अरे तो उसके लि!ए क्या रोना! इतना सर्मझाया तुझे किक उनकी तो आदत है। हँसकर Kा! दिदया कर। च! उठ! हँसती है किक गुदगुदाऊँ।'' सुधा ने गुदगुदाते हुए कहा। किबनती ने उसका हार्थ पकडक़र झKक दिदया और किफर लिससकिकयाँ भरने !गी।

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''नहीं र्मानेगी तू?'' सुधा बो!ी, ''अभी ठीक करती हूँ तुझे र्मैं। चन्दर, पकड़ो तो इसका हार्थ।''

चन्दर चुप रहा।

''नहीं उठे। उठो, तुर्म इसका हार्थ पकड़ !ो तो हर्म अभी इसे हँसाते हैं।'' सुधा ने चन्दर का हार्थ पकडक़र किबनती की ओर बढ़ते हुए कहा। चन्दर ने अपना हार्थ खींच लि!या और बो!ा, ''वह तो रो रही है और तुर्म ब5ाय सर्मझाने के उसे परेशान कर रही हो।''

''अरे 5ानते हो, क्यों रो रही है? अभी इसके ससुर आये रे्थ, वो बहुत र्मोKे रे्थ तो ये सोच रही है कहीं 'वो' भी र्मोKे हों!'' सुधा ने किफर उसकी गरदन गुदगुदाकर कहा।

किबनती हँस पड़ी। सुधा उछ! पड़ी-''!ो, ये तो हँस पड़ी, अब रोओगी?'' अब किफर सुधा ने गुदगुदाना शुरू किकया। किबनती पह!े तो हँसी से !ोK गयी किफर पल्!ा सँभा!ते हुए बो!ी, ''लिछह, दीदी! वो बैठे हैं किक नहीं!'' और उठकर बाहर 5ाने !गी।

''कहाँ च!ी?'' सुधा ने पूछा।

''5ा रही हूँ नहाने।'' किबनती पल्!ू से लिसर wँकते हुए च! दी।

''क्यों, र्मैंने तेरा बदन छू दिदया इसलि!ए?'' सुधा हँसकर बो!ी, ''ऐ चन्दर, वो गेसू का छोKा भाई है न-हसरत, र्मैंने उसे छू लि!या तो फौरन उसने 5ाकर अपना र्मुँह साबुन से धोया और अम्र्मी5ान से बो!ा, ''र्मेरा र्मुँह 5ूठा हो गया।'' और आ5 हर्मने गेसू के अख्तर धिर्मयाँ को देखा। बडे़ र्म5े के हैं। र्मैं तो गेसू से बात करती रही !ेकिकन किबनती और फू! ने बहुत छेड़ा उन्हें। बेचारे घबरा गये। फू! बहुत चु!बु!ी है और बड़ी ना5ुक है। बड़ी बो!ने वा!ी है और किबनती और फू! का खूब 5ोड़ धिर्म!ा। दोनों खूब गाती हैं।''

''किबनती गाती भी है?'' चन्दर ने पूछा, ''हर्मने तो रोते ही देखा।''

''अरे बहुत अच्छा गाती है। इसने एक गाँव का गाना बहुत अच्छा गाया र्था।...अरे देखो वह सब बताने र्में हर्म तुर्म पर गुस्सा होना तो भू! ही गये। कहाँ रहे चार रो5? बो!ो, बताओ 5ल्दी से।''

''व्यस्त रे्थ सुधा, अब र्थीलिसस तीन किहस्सा लि!ख गयी। इधर हर्म !गातार पाँच घंKे से बैठकर लि!खते रे्थ!'' चन्दर बो!ा।

''पाँच घंKे!'' सुधा बो!ी, ''दूध आ5क! पीते हो किक नहीं?''

''हाँ-हाँ, तीन गायें खरीद !ी हैं...।'' चन्दर बो!ा।

''नहीं, र्म5ाक नहीं, कुछ खाते-पीते रहना, कहीं तबीयत खराब हुई तो अब हर्मारा इम्तहान है, पडे़-पडे़ र्मक्खी र्मारोगे और अब हर्म देखने भी नहीं आ सकें गे।''

''अब किकतना कोस� बाकी है तुम्हारा?''

''कोस� तो खत्र्म र्था हर्मारा। कुछ कदिठनाइयाँ र्थीं सो किपछ!े दो-तीन हफ्ते र्में र्मास्Kर साहब ने बता दी र्थीं। अब दोहराना है। !ेकिकन किबनती का इम्तहान र्मई र्में है, उसे भी तो पढ़ाना है।''

''अच्छा, अब च!ें हर्म।''

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''अरे बैठो! किफर 5ाने कै दिदन बाद आओगे। आ5 बुआ तो च!ी 5ाएगँी किफर क! से यहीं पढ़ो न। तुर्मने किबनती के ससुर को देखा र्था?''

''हाँ, देखा र्था!'' चन्दर उनकी रूपरेखा याद करके हँस पड़ा-''बाप रे! पूरे Kैंक रे्थ वे तो।''

''किबनती की ननद से तुम्हारा ब्याह करवा दें। करोगे?'' सुधा बो!ी, ''!ड़की इतनी ही र्मोKी है। उसे कभी डाँK !ेना तो देखेंगे तुम्हारी किहम्र्मत।''

ब्याह! एकदर्म से चन्दर को याद आ गया। अभी बुआ ने बात की र्थी सुधा के ब्याह की। तब उसे कैसा !गा र्था? कैसा !गा र्था? उसका दिदर्माग घूर्म गया र्था। !गा 5ैसे एक असहनीय दद� र्था या क्या र्था-5ो उसकी नस-नस को तोड़ गया। एकदर्म...।

''क्या हुआ, चन्दर? अरे चुप क्यों हो गये? डर गये र्मोKी !ड़की के नार्म से?'' सुधा ने चन्दर का कन्धा पकड़कर झकझोरते हुए कहा।

चन्दर एक फीकी हँसी हँसकर रह गया और चुपचाप सुधा की ओर देखने !गा। सुधा चन्दर की किनगाह से सहर्म गयी। चन्दर की किनगाह र्में 5ाने क्या र्था, एक अ5ब-सा पर्थराया सूनापन, एक 5ाने किकस दद� की अर्मंग! छाया, एक 5ाने किकस पीड़ा की र्मूक आवा5, एक 5ाने कैसी किपघ!ती हुई-सी उदासी और वह भी गहरी, 5ाने किकतनी गहरी...और चन्दर र्था किक एकKक देखता 5ा रहा र्था, एकKक अप!क...।

सुधा को 5ाने कैसा !गा। ये अपना चन्दर तो नहीं, ये अपने चन्दर की किनगाह तो नहीं है। चन्दर तो ऐसी किनगाह से, इस तरह अप!क तो सुधा को कभी नहीं देखता र्था। नहीं, यह चन्दर की किनगाह तो नहीं। इस किनगाह र्में न शरारत है, न डाँK न दु!ार और न करुणा। इसर्में कुछ ऐसा है जि5ससे सुधा किबल्कु! परिरलिचत नहीं, 5ो आ5 चन्दर र्में पह!ी बार दिदखाई पड़ रहा है। सुधा को 5ैसा डर !गने !गा, 5ैसे वह काँप उठी। नहीं, यह कोई दूसरा चन्दर है 5ो उसे इस तरह देख रहा है। यह कोई अपरिरलिचत है, कोई अ5नबी, किकसी दूसरे देश का कोई व्यलिक्त 5ो सुधा को...

''चन्दर, चन्दर! तुम्हें क्या हो गया!'' सुधा की आवा5 र्मारे डर के काँप रही र्थी, उसका र्मुँह पी!ा पड़ गया, उसकी साँस बैठने !गी र्थी-''चन्दर...'' और 5ब उसका कुछ बस न च!ा तो उसकी आँखों र्में आँसू छ!क आये।

हार्थों पर एक गरर्म-गरर्म बँूद आकर पड़ते ही चन्दर चौंक गया। ''अरे सुधी! रोओ र्मत। नहीं पग!ी। हर्मारी तबीयत कुछ ठीक नहीं है, एक किग!ास पानी तो !े आओ।''

सुधा अब भी काँप रही र्थी। चन्दर की आवा5 र्में अभी भी वह र्मु!ायधिर्मयत नहीं आ पायी र्थी। वह पानी !ाने के लि!ए उठी।

''नहीं, तुर्म कहीं 5ाओ र्मत, तुर्म बैठो यहीं।'' उसने उसकी हरे्थ!ी अपने र्मारे्थ पर रखकर 5ोर से अपने हार्थों र्में दबा !ी और कहा, ''सुधा!...''

''क्यों, चन्दर!''

''कुछ नहीं!'' चन्दर ने आवा5 दी !ेकिकन !गता र्था वह आवा5 चन्दर की नहीं र्थी। न 5ाने कहाँ से आ रही र्थी...

''क्या लिसर र्में दद� है? किबनती, एक किग!ास पानी !ाओ 5ल्दी से।''

सुधा ने आवा5 दी। चन्दर 5ैसे पह!े-सा हो गया-''अरे! अभी र्मुझे क्या हो गया र्था? तुर्म क्या बात कर रही र्थीं सुधा?''

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''पता नहीं तुम्हें अभी क्या हो गया र्था?'' सुधा ने घबरायी हुई गौरेया की तरह सहर्मकर कहा।

चन्दर स्वस्थ हो गया-''कुछ नहीं सुधा! र्मैं ठीक हूँ। र्मैं तो यँू ही तुम्हें परेशान करने के लि!ए चुप र्था।'' उसने हँसकर कहा।

''हाँ, च!ो रहने दो। तुम्हारे लिसर र्में दद� है 5रूर से।'' सुधा बो!ी। किबनती पानी !ेकर आ गयी र्थी।

''!ो, पानी किपयो!''

''नहीं, हर्में कुछ नहीं चाकिहए।'' चन्दर बो!ा।

''किबनती, 5रा पेनबार्म !े 5ाओ।'' सुधा ने किग!ास 5बद�स्ती उसके र्मुँह से !गाते हुए कहा। किबनती पेनबार्म !े आयी र्थी-''किबनती, तू 5रा !गा दे इनके। अरे खड़ी क्यों है? कुसr के पीछे खड़ी होकर र्मारे्थ पर 5रा हल्की उँग!ी से !गा दे।''

किबनती आज्ञाकारी !ड़की की तरह आगे बढ़ी, !ेकिकन किफर किहचक गयी। किकसी अ5नबी !ड़के के र्मारे्थ पर कैसे पेनबार्म !गा दे। ''च!ती है या अभी काK के गाड़ देंगे यहीं। र्मोKकी कहीं की! खा-खाकर र्मुKानी है। 5रा-सा कार्म नहीं होता।''

किबनती ने हारकर पेनबार्म !गाया। चन्दर ने उसका हार्थ हKा दिदया तो सुधा ने किबनती के हार्थ से पेनबार्म !ेकर कहा, ''आओ, हर्म !गा दें।'' किबनती पेनबार्म देकर च!ी गयी तो चन्दर बो!ा, ''अब बताओ, क्या बात कर रही र्थीं? हाँ, किबनती के ब्याह की। ये उनके ससुर तो बहुत ही भदे्द र्मा!ूर्म पड़ रहे रे्थ। क्या देखकर ब्याह कर रही हो तुर्म !ोग?''

''पता नहीं क्या देखकर ब्याह कर रही हैं बुआ। अस! र्में बुआ पता नहीं क्यों किबनती से इतनी लिचढ़ती हैं, वह तो चाहती हैं किकसी तरह से बोझ K!े लिसर से। !ेकिकन चन्दर, यह किबनती बड़ी खुश है। यह तो चाहती है किकसी तरह 5ल्दी से ब्याह हो!'' सुधा र्मुसकराती हुई बो!ी।

''अच्छा, यह खुद ब्याह करना चाहती है!'' चन्दर ने ताज्जुब से पूछा।

''और क्या? अपने ससुर की खूब सेवा कर रही र्थी सुबह। बश्किल्क पापा तो कह रहे रे्थ किक अभी यह बी.ए. कर !े तब ब्याह करो। हर्मसे पापा ने कहा इससे पूछने को। हर्मने पूछा तो कहने !गी बी.ए. करके भी वही करना होगा तो बेकार Kा!ने से क्या फायदा। किफर पापा हर्मसे बो!े किक कुछ व5हों से अगहन र्में ब्याह होगा, तो बडे़ ताज्जुब से बो!ी, ''अगहन र्में?''

''सुधी, तुर्म 5ानती हो अगहन र्में उसका ब्याह क्यों K! रहा है? पह!े तुम्हारा ब्याह होगा।'' चन्दर हँसकर बो!ा। वह पूण�तया शान्त र्था और उसके स्वर र्में कर्म-से-कर्म बाहर लिसवा चुह! के और कुछ भी न र्था।

''र्मेरा ब्याह, र्मेरा ब्याह!'' आँखें फाडक़र, र्मुँह फै!ाकर, हार्थ नचाकर, कुतूह!-भरे आश्चय� से सुधा ने कहा और किफर हँस पड़ी, खूब हँसी-''कौन करेगा र्मेरा ब्याह? बुआ? पापा करने ही नहीं देंगे। हर्मारे किबना पापा का कार्म ही नहीं च!ेगा और बाबूसाहब, तुर्म किकस पर आकर रंग 5र्माओगे? ब्याह र्मेरा। हूँ!'' सुधा ने र्मुँह किबचकाकर उपेक्षा से कहा।

''नहीं सुधा, र्मैं गम्भीरता से कह रहा हूँ। तीन-चार र्महीने के अन्दर तुम्हारा ब्याह हो 5ाएगा।'' चन्दर उसे किवश्वास दिद!ाते हुए बो!ा।

''अरे 5ाओ!'' सुधा ने हँसते हुए कहा, ''ऐसे हर्म तुम्हारे बनाने र्में आ 5ाए ँतो हो चुका।''

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''अच्छा 5ाने दो। तुम्हारे पास कोई पोस्Kकाड� है? !ाओ 5रा इस कॉर्मरेड को एक लिचठ्ठी तो लि!ख दें।'' चन्दर बात बद!कर बो!ा। पता नहीं क्यों इस किवषय की बात के च!ने र्में उसे कैसा !गता र्था।

''कौन कार्मरेड?'' सुधा ने पूछा, ''तुर्म भी कम्युकिनस्K हो गये क्या?''

''नहीं, 5ी, वो बरे!ी का सोशलि!स्K !ड़का कै!ाश जि5सने झगडे़ र्में हर्म !ोगों की 5ान बचायी र्थी। हर्मने तुम्हें बताया नहीं र्था सब किकस्सा उस झगडे़ का, 5ब हर्म और पापा बाहर गये रे्थ!''

''हाँ-हाँ, बताया र्था। उसे 5रूर खत लि!ख दो!'' सुधा ने पोस्Kकाड� देते हुए कहा, ''तुम्हें पता र्मा!ूर्म है?''

चन्दर 5ब पोस्Kकाड� लि!ख रहा र्था तो सुधा ने कहा, ''सुनो, उसे लि!ख देना किक पापा की सुधा, पापा की 5ान बचाने के एव5 र्में आपकी बहुत कृतज्ञ है और कभी अगर हो सके तो आप इ!ाहाबाद 5रूर आए!ँ...लि!ख दिदया?''

''हाँ!'' चन्दर ने पोस्Kकाड� 5ेब र्में रखते हुए कहा।

''चन्दर, हर्म भी सोशलि!स्K पाK\ के र्मेम्बर होंगे!'' सुधा ने र्मच!ते हुए कहा।

''च!ो, अब तुम्हें नयी सनक सवार हुई। तुर्म क्या सर्मझ रही हो सोशलि!स्K पाK\ को। रा5नीकितक पाK\ है वह। यह र्मत करना किक सोशलि!स्K पाK\ र्में 5ाओ और !ौKकर आओ तो पापा से कहो-अरे हर्म तो सर्मझे पाK\ है, वहाँ चाय-पानी धिर्म!ेगा। वहाँ तो सब !ोग !ेक्चर देते हैं।''

''धत्, हर्म कोई बेवकूफ हैं क्या?'' सुधा ने किबगडक़र कहा।

''नहीं, सो तो तुर्म बुजि»सागर हो, !ेकिकन !ड़किकयों की रा5नीकितक बुजि» कुछ ऐसी ही होती है!'' चन्दर बो!ा।

''अच्छा रहने दो। !ड़किकयाँ न हों तो कार्म ही न च!े।'' सुधा ने कहा।

''अच्छा, सुधा! आ5 कुछ रुपये दोगी। हर्मारे पास पैसे खतर्म हैं। और लिसनेर्मा देखना है 5रा।'' चन्दर ने बहुत दु!ार से कहा।

''हाँ-हाँ, 5रूर देंगे तुम्हें। र्मत!बी कहीं के!'' सुधा बो!ी, ''अभी-अभी तुर्म !ड़किकयों की बुराई कर रहे रे्थ न?''

''तो तुर्म और !ड़किकयों र्में से र्थोडे़ ही हो। तुर्म तो हर्मारी सुधा हो। सुधा र्महान।''

सुधा किपघ! गयी-''अच्छा, किकतना !ोगे?'' अपनी पॉकेK र्में से पाँच रुपये का नोK किनका!कर बो!ी, ''इससे कार्म च! 5ाएगा?''

''हाँ-हाँ, आ5 5रा सोच रहे हैं पम्र्मी के यहाँ 5ाए,ँ तब सेकें ड शो 5ाए।ँ''

''पम्र्मी रानी के यहाँ 5ाओगे। सर्मझ गये, तभी तुर्मने चाचा5ी से ब्याह करने से इनकार कर दिदया। !ेकिकन पम्र्मी तुर्मसे तीन सा! बड़ी है। !ोग क्या कहेंगे?'' सुधा ने छेड़ा।

''ऊँह, तो क्या हुआ 5ी! सब यों ही च!ता है!'' चन्दर हँसकर Kा! गया।

''तो किफर खाना यहीं खाये 5ाओ और कार !ेते 5ाओ।'' सुधा ने कहा।

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''र्मँगाओ!'' चन्दर ने प!ँग पर पैर फै!ाते हुए कहा। खाना आ गया। और 5ब तक चन्दर खाता रहा, सुधा सार्मने बैठी रही और किबनती दौड़-दौडक़र पूड़ी !ाती रही।

5ब चन्दर पम्र्मी के बँग!े पर पहुँचा तो शार्म होने र्में देर नहीं र्थी। !ेकिकन अभी फस्K� शो शुरू होने र्में देरी र्थी। पम्र्मी गु!ाबों के बीच र्में Kह! रही र्थी और बK\ एक अच्छा-सा सूK पहने !ॉन पर बैठा र्था और घुKनों पर ठुड्डी रखे कुछ सोच-किवचार र्में पड़ा र्था। बK\ के चेहरे पर का पी!ापन भी कुछ कर्म र्था। वह देखने से इतना भयंकर नहीं र्मा!ूर्म पड़ता र्था। !ेकिकन उसकी आँखों का पाग!पन अभी वैसा ही र्था और खूबसूरत सूK पहनने पर भी उसका हा! यह र्था किक एक का!र अन्दर र्था और एक बाहर।

पम्र्मी ने चन्दर को आते देखा तो खिख! गयी। ''हल्!ो, कपूर! क्या हा! है। पता नहीं क्यों आ5 सुबह से र्मेरा र्मन कह रहा र्था किक आ5 र्मेरे धिर्मv 5रूर आएगेँ। और शार्म के वक्त तुर्म तो इतने अचे्छ !गते हो 5ैसे वह 5गर्मग लिसतारा जि5से देखकर कीK्स ने अपनी आखिखरी सानेK लि!खी र्थी।'' पम्र्मी ने एक गु!ाब तोड़ा और चन्दर के कोK के बKन हो! र्में !गा दिदया। चन्दर ने बडे़ भय से बK\ की ओर देखा किक कहीं गु!ाब को तोडे़ 5ाने पर वह किफर चन्दर की गरदन पर सवार न हो 5ाए। !ेकिकन बK\ कुछ बो!ा नहीं। बK\ ने लिसफ� हार्थ उठाकर अक्षिभवादन किकया और किफर बैठकर सोचने !गा।

पम्र्मी ने कहा, ''आओ, अन्दर च!ें।'' और चन्दर और पम्र्मी दोनों ड्राइंग रूर्म र्में बैठ गये।

चन्दर ने कहा, ''र्मैं तो डर रहा र्था किक तुर्मने गु!ाब तोडक़र र्मुझे दिदया तो कहीं बK\ नारा5 न हो 5ाए, !ेकिकन वह कुछ बो!ा नहीं।''

पम्र्मी र्मुसकरायी, ''हाँ, अब वह कुछ कहता नहीं और पता नहीं क्यों गु!ाबों से उसकी तबीयत भी इधर हK गयी। अब वह उतनी परवाह भी नहीं करता।''

''क्यों?'' चन्दर ने ताज्जुब से पूछा।

''पता नहीं क्यों। र्मेरी तो सर्मझ र्में यह आता है किक उसका जि5तना किवश्वास अपनी पत्नी पर र्था वह इधर धीरे-धीरे हK गया और इधर वह यह किवश्वास करने !गा है किक सचर्मुच वह सा5¢K को प्यार करती र्थी। इसलि!ए उसने फू!ों को प्यार करना छोड़ दिदया।''

''अच्छा! !ेकिकन यह हुआ कैसे? उसने तो अपने र्मन र्में इतना गहरा किवश्वास 5र्मा रखा र्था किक र्मैं सर्मझता र्था किक र्मरते दर्म तक उसका पाग!पन न छूKेगा।'' चन्दर ने कहा।

''नहीं, बात यह हुई किक तुम्हारे 5ाने के दो-तीन दिदन बाद र्मैंने एक दिदन सोचा किक र्मान लि!या 5ाए अगर र्मेरे और बK\ के किवचारों र्में र्मतभेद है तो इसका र्मत!ब यह नहीं किक र्मैं उसके गु!ाब चुराकर उसे र्मानलिसक पीड़ा पहुँचाऊँ और उसका पाग!पन और बढ़ाऊँ। बुजि» और तक� के अ!ावा भावना और सहानुभूकित का भी एक र्महत्व र्मुझे !गा और र्मैंने फू! चुराना छोड़ दिदया। दो-तीन दिदन वह बेहद खुश रहा, बेहद खुश और र्मुझे भी बड़ा सन्तोष हुआ किक !ो अब बK\ शायद ठीक हो 5ाए। !ेकिकन तीसरे दिदन सहसा उसने अपना खुरपा फें क दिदया, कई गु!ाब के पौधे उखाड़कर फें क दिदये और र्मुझसे बो!ा, ''अब तो कोई फू! भी नहीं चुराता, अब भी वह इन फू!ों र्में नहीं धिर्म!ती। वह 5रूर सा5¢K के सार्थ 5ाती है। वह र्मुझे प्यार नहीं करती, हरकिग5 नहीं करती, और वह रोने !गा।'' बस उसी दिदन से वह गु!ाबों के पास नहीं 5ाता और आ5क! बहुत अचे्छ-अचे्छ सूK पहनकर घूर्मता है और कहता है-क्या र्मैं सा5¢K से कर्म सुन्दर हूँ! और इधर वह किबल्कु! पाग! हो गया है। पता नहीं किकससे अपने-आप !ड़ता रहता है।''

चन्दर ने ताज्जुब से लिसर किह!ाया।

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''हाँ, र्मुझे बड़ा दु:ख हुआ!'' पम्र्मी बो!ी, ''र्मैंने तो, हर्मदद\ की किक फू! चुराने बन्द कर दिदये और उसका नती5ा यह हुआ। पता नहीं क्यों कपूर, र्मुझे !गता है किक हर्मदद\ करना इस दुकिनया र्में सबसे बड़ा पाप है। आदर्मी से हर्मदद\ कभी नहीं करनी चाकिहए।''

चन्दर ने सहसा अपनी घड़ी देखी।

''क्यों, अभी तुर्म नहीं 5ा सकते। बैठो और बातें सुनो, इसलि!ए र्मैंने तुम्हें दोस्त बनाया है। आ5 दो-तीन सा! हो गये, र्मैंने किकसी से बातें ही नहीं की हैं और तुर्मसे इसलि!ए र्मैने धिर्मvता की है किक बातें करँूगी।''

चन्दर हँसा, ''आपने र्मेरा अच्छा उपयोग wँूढ़ किनका!ा।''

''नहीं, उपयोग नहीं, कपूर! तुर्म र्मुझे ग!त न सर्मझना। जि5-दगी ने र्मुझे इतनी बातें बतायी हैं और यह किकताबें 5ो र्मैं इधर पढ़ने !गी हूँ, इन्होंने र्मुझे इतनी बातें बतायी हैं किक र्मैं चाहती हूँ किक उन पर बातचीत करके अपने र्मन का बोझ हल्का कर !ँू। और तुम्हें बैठकर सुननी होंगी सभी बातें!''

''हाँ, र्मैं तैयार हूँ !ेकिकन किकताबें पढ़नी कब से शुरू कर दीं तुर्मने?'' चन्दर ने ताज्जुब से पूछा।

''अभी उस दिदन र्मैं डॉ. शुक्!ा के यहाँ गयी। उनकी !ड़की से र्मा!ूर्म हुआ किक तुम्हें ककिवता पसन्द है। र्मैंने सोचा, उसी पर बातें करँू और र्मैंने ककिवताए ँपढ़नी शुरू कर दीं।''

''अच्छा, तो देखता हूँ किक दो-तीन हफ्ते र्में भाई और बहन दोनों र्में कुछ परिरवत�न आ गये।''

पम्र्मी कुछ बो!ी नहीं, हँस दी।

''र्मैं सोचता हूँ पम्र्मी किक आ5 लिसनेर्मा देखने 5ाऊँ। कार है सार्थ र्में, अभी पन्द्रह धिर्मनK बाकी है। चाहो तो च!ो।''

''लिसनेर्मा! आ5 चार सा! से र्मैं कहीं नहीं गयी हूँ। लिसनेर्मा, हौ5ी, बा! डांस-सभी 5गह 5ाना बन्द कर दिदया है र्मैंने। र्मेरा दर्म घुKेगा हॉ! के अन्दर !ेकिकन च!ो देखें, अभी भी किकतने ही !ोग वैसे ही खुशी से लिसनेर्मा देखते होंगे।'' एक गहरी साँस !ेकर पम्र्मी बो!ी, ''बK\ को !े च!ोगे?''

''हाँ, हाँ! तो च!ो उठो, किफर देर हो 5ाएगी!'' चन्दर ने घड़ी देखते हुए कहा।

पम्र्मी फौरन अन्दर के कर्मरे र्में गयी और एक 5ा5®K का हल्का भूरा गाउन पहनकर आयी। इस रंग से वह 5ैसे किनखर आयी। चन्दर ने उसकी ओर देखा, तो वह !5ा गयी और बो!ी, ''इस तरह से र्मत देखो। र्मैं 5ानती हूँ यह र्मेरा सबसे अच्छा गाउन है। इसर्में कुछ अच्छी !गती होऊँगी। च!ो!'' और आकर उसने बेतकल्!ुफी से उसके कन्धे पर हार्थ रख दिदया।

दोनों बाहर आये तो बK\ !ॉन पर घूर्म रहा र्था। उसके पैर !डख़ड़ा रहे रे्थ। !ेकिकन वह बड़ी शान से सीना ताने र्था। ''बK\, आ5 धिर्मस्Kर कपूर र्मुझे लिसनेर्मा दिदख!ाने 5ा रहे हैं। तुर्म भी च!ोगे?''

''हूँ!'' बK\ ने लिसर किह!ाकर 5ोर से कहा, ''लिसनेर्मा 5ाऊँगा? कभी नहीं। भू!कर भी नहीं। तुर्मने र्मुझे क्या सर्मझा है? र्मैं लिसनेर्मा 5ाऊँगा?'' धीरे-धीरे उसका स्वर र्मन्द पड़ गया...''अगर लिसनेर्मा र्में वह सा5¢K के सार्थ धिर्म! गयी तो! तो र्मैं उसका ग!ा घोंK दँूगा।'' अपने ग!े को दबाते हुए बK\ बो!ा और इतनी 5ोर से दबा दिदया अपना ग!ा किक आँखें !ा! हो गयीं और खाँसने !गा। खाँसी बन्द हुई तो बो!ा, ''वह र्मुझे प्यार नहीं करती। वह सा5¢K को प्यार करती है। वह उसी के सार्थ घूर्मती है। अगर वह धिर्म! 5ाएगी लिसनेर्मा र्में तो उसकी हत्या कर डा!ँूगा, तो पुलि!स आएगी और खे! खत्र्म हो 5ाएगा। तुर्म 5ानते हो धिर्म. कपूर, र्मैं उससे किकतना नफरत करता हूँ...और...और !ेकिकन नहीं, कौन

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5ानता है र्मैं नफरत करता होऊँ और वह र्मुझे...कुछ सर्मझ र्में नहीं आता, र्मैं पाग! हूँ, ओफ।'' और वह लिसर र्थार्मकर बैठ गया।

पम्र्मी ने चन्दर का हार्थ पकडक़र कहा, ''च!ो, यहाँ रहने से उसका दिदर्माग और खराब होगा। आओ!''

दोनों 5ाकर कार र्में बैठे। चन्दर खुद ही ड्राइव कर रहा र्था। पम्र्मी बो!ी, ''बहुत दिदन से र्मैंने कार नहीं ड्राइव की है। !ाओ, आ5 ड्राइव करँू।''

पम्र्मी ने स्Kीयरिर-ग अपने हार्थ र्में !े !ी। चन्दर इधर बैठ गया।

र्थोड़ी देर र्में कार री5ेंK के सार्मने 5ा पहुँची। लिचv र्था-'से!ार्मी, हे्वयर शी डांस्ड' ('से!ार्मी, 5हाँ वह नाची र्थी')। चन्दर ने दिKकK लि!या और दोनों ऊपर बैठ गये। अभी न्यू5 री! च! रही र्थी। सहसा पम्र्मी ने कहा, ''कपूर, से!ार्मी की कहानी र्मा!ूर्म है?''

''न! क्या यह कोई उपन्यास है!'' चन्दर ने पूछा।

''नहीं, यह बाइकिब! की एक कहानी है। अस! र्में एक रा5ा र्था हैराद। उसने अपने भाई को र्मारकर उसकी पत्नी से अपनी शादी कर !ी। उसकी भती5ी र्थी से!ार्मी, 5ो बहुत सुन्दर र्थी और बहुत अच्छा नाचती र्थी। हैराद उस पर र्मुग्ध हो गया। !ेकिकन से!ार्मी एक पैगम्बर पर र्मुग्ध र्थी। पैगम्बर ने से!ार्मी के प्रणय को ठुकरा दिदया। एक बार हैराद ने से!ार्मी से कहा किक यदिद तुर्म नाचो तो र्मैं तुम्हें कुछ दे सकता हूँ। से!ार्मी नाची और पुरस्कार र्में उसने अपना अपर्मान करने वा!े पैगम्बर का लिसर र्माँगा! हैराद वचनब» र्था। उसने पैगम्बर का लिसर तो दे दिदया !ेकिकन बाद र्में इस भय से किक कहीं राज्य पर कोई आपक्षित्त न आये, उसने से!ार्मी को भी र्मरवा डा!ा।''

चन्दर को यह कहानी बहुत अच्छी !गी। तब तो लिचv बहुत ही अच्छा होगा, उसने सोचा। सुधा की परीक्षा है वरना सुधा को भी दिदख!ा देता। !ेकिकन क्या नैकितकता है इन पाश्चात्य देशों की किक अपनी भती5ी पर ही हैराद र्मुग्ध हो गया। उसने कहा पम्र्मी से-

''!ेकिकन हैराद अपनी भती5ी पर ही र्मुग्ध हो गया?''

''तो क्या हुआ! यह तो सेक्स है धिर्म. कपूर। सेक्स किकतनी भयंकर शलिक्तशा!ी भावना है, यह भी शायद तुर्म नहीं सर्मझते। अभी तुम्हारी आँखों र्में बड़ा भो!ापन है। तुर्म रूप की आग के संसार से दूर र्मा!ूर्म पड़ते हो, !ेकिकन शायद दो-एक सा! बाद तुर्म भी 5ानोगे किक यह किकतनी भयंकर ची5 है। आदर्मी के सार्मने वक्त-बेवक्त, नाता-रिरश्ता, र्मया�दा-अर्मया�दा कुछ भी नहीं रह 5ाता। वह अपनी भती5ी पर र्मोकिहत हुआ तो क्या? र्मैंने तो तुम्हारे यहाँ एक पौराक्षिणक कहानी पढ़ी र्थी किक र्महादेव अपनी !ड़की सरस्वती पर र्मुग्ध हो गये।''

''र्महादेव नहीं, ब्रह्मा।'' चन्दर बो!ा।

''हाँ, हाँ, ब्रह्माï। र्मैं भू! गयी र्थी। तो यह तो सेक्स है। आदर्मी को कहाँ !े 5ाता है, यह अन्दा5 भी नहीं किकया 5ा सकता। तुर्म तो अभी बच्चों की तरह भो!े हो और ईश्वर न करे तुर्म कभी इस प्या!े का शरबत चखो। र्मैं भी तो तुम्हारी इसी पकिवvता को प्यार करती हूँ।'' पम्र्मी ने चन्दर की ओर देखकर कहा, ''तुर्म 5ानते हो, र्मैंने त!ाक क्यों दिदया? र्मेरा पकित र्मुझे बहुत चाहता र्था !ेकिकन र्मैं किववाकिहत 5ीवन के वासनात्र्मक पह!ू से घबरा उठी! र्मुझे !गने !गा, र्मैं आदर्मी नहीं हूँ बस र्मांस का !ोर्थड़ा हूँ जि5से र्मेरा पकित 5ब चाहे र्मस! दे, 5ब चाहे...ऊब गयी र्थी! एक गहरी नफरत र्थी र्मेरे र्मन र्में। तुर्म आये तो तुर्म बडे़ पकिवv !गे। तुर्मने आते ही प्रणय-याचना नहीं की। तुम्हारी आँखों र्में भूख नहीं र्थी। हर्मदद\ र्थी, स्नेह र्था, कोर्म!ता र्थी, किनश्छ!ता र्थी। र्मुझे तुर्म काफी अचे्छ !गे। तुर्मने र्मुझे अपनी पकिवvता देकर जि5!ा दिदया...।''

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चन्दर को एक अ5ब-सा गौरव अनुभव हुआ और पम्र्मी के प्रकित एक बहुत ऊँची आदर-भावना। उसने पकिवvता देकर जि5!ा दिदया। सहसा चन्दर के र्मन र्में आया-!ेकिकन यह उसके व्यलिक्तत्व की पकिवvता किकसकी दी हुई है। सुधा की ही न! उसी ने तो उसे लिसखाया है किक पुरुष और नारी र्में किकतने ऊँचे सम्बन्ध रह सकते हैं।

''क्या सोच रहे हो?'' पम्र्मी ने अपना हार्थ कपूर की गोद र्में रख दिदया।

कपूर लिसहर गया !ेकिकन लिशष्टाचारवश उसने अपना हार्थ पम्र्मी के कन्धे पर रख दिदया। पम्र्मी ने दो क्षण के बाद अपना हार्थ हKा लि!या और बो!ी, ''कपूर, र्मैं सोच रही हूँ अगर यह किववाह संस्था हK 5ाए तो किकतना अच्छा हो। पुरुष और नारी र्में धिर्मvता हो। बौजि»क धिर्मvता और दिद! की हर्मदद\। यह नहीं किक आदर्मी औरत को वासना की प्यास बुझाने का प्या!ा सर्मझे और औरत आदर्मी को अपना र्मालि!क। अस! र्में बँधने के बाद ही, पता नहीं क्यों सम्बन्धों र्में किवकृकित आ 5ाती है। र्मैं तो देखती हूँ किक प्रणय किववाह भी होते हैं तो वह असफ! हो 5ाते हैं क्योंकिक किववाह के पह!े आदर्मी औरत को ऊँची किनगाह से देखता है, हर्मदद\ और प्यार की ची5 सर्मझता है और किववाह के बाद लिसफ� वासना की। र्मैं तो पे्रर्म र्में भी किववाह-पक्ष र्में नहीं हूँ और पे्रर्म र्में भी वासना का किवरोध करती हूँ।''

''!ेकिकन हर !ड़की ऐसी र्थोडे़ ही होती है!'' चन्दर बो!ा, ''तुम्हें वासना से नफरत हो !ेकिकन हर एक को तो नहीं।''

''हर एक को होती है। !ड़किकयाँ बस वासना की झ!क, एक हल्की लिसहरन, एक गुदगुदी पसन्द करती हैं। बस, उसी के पीछे उन पर चाहे 5ो दोष !गाया 5ाय !ेकिकन अधिधकतर !ड़किकयाँ कर्म वासनाकिप्रय होती हैं, !ड़के ज्यादा।''

लिचv शुरू हो गया। वह चुप हो गयी। !ेकिकन र्थोड़ी ही देर र्में र्मा!ूर्म हुआ किक लिचv भ्रर्मात्र्मक र्था। वह बाइकिब! की से!ार्मी की कहानी नहीं र्थी। वह एक अर्मेरिरकन नत�की और कुछ डाकुओं की कहानी र्थी। पम्र्मी ऊब गयी। अब 5ब डाकू पकडक़र से!ार्मी को एक 5ंग! र्में !े गये तो इंKरव! हो गया और पम्र्मी ने कहा, ''अब च!ो, आधे ही लिचv से तबीयत ऊब गयी।''

दोनों उठ खडे़ हुए और नीचे आये।

''कपूर, अबकी बार तुर्म ड्राइव करो!'' पम्र्मी बो!ी।

''नहीं, तुम्हीं ड्राइव करो'' कपूर बो!ा।

''कहाँ च!ें,'' पम्र्मी ने स्KाK� करते हुए कहा।

''5हाँ चाहो।'' कपूर ने किवचारों र्में डूबे हुए कहा।

पम्र्मी ने गाड़ी खूब ते5 च!ा दी। सड़कें साफ र्थीं। पम्र्मी का का!र फहराने !गा और उड़कर चन्दर के गा!ों पर र्थपकिकयाँ !गाने !गा। चन्दर दूर खिखसक गया। पम्र्मी ने चन्दर की ओर देखा और ब5ाय का!र ठीक करने के, ग!े का एक बKन और खो! दिदया और चन्दर को पास खींच लि!या। चन्दर चुपचाप बैठ गया। पम्र्मी ने एक हार्थ स्Kीयरिर-ग पर रखा और एक हार्थ से चन्दर का हार्थ पकडे़ रही 5ैसे वह चन्दर को दूर नहीं 5ाने देगी। चन्दर के बदन र्में एक हल्की लिसहरन नाच रही र्थी। क्यों? शायद इसलि!ए किक हवा ठंडी र्थी या शायद इसलि!ए किक...उसने पम्र्मी का हार्थ अपने हार्थ से हKाने की कोलिशश की। पम्र्मी ने हार्थ खींच लि!या और कार के अन्दर की किब5!ी 5!ा दी।

कपूर चुपचाप ठाकुर साहब के बारे र्में सोचता रहा। कार च!ती रही। 5ब चन्दर का ध्यान KूKा तो उसने देखा कार र्मैकफस�न !ेक के पास रुकी है।

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दोनों उतरे। बीच र्में सड़क र्थी, इधर नीचे उतरकर झी! और उधर गंगा बह रही र्थी। आठ ब5ा होगा। रात हो गयी र्थी, चारों तरफ स�ाKा र्था। बस लिसतारों की हल्की रोशनी र्थी। र्मैकफस�न झी! काफी सूख गयी र्थी। किकनारे-किकनारे र्मछ!ी र्मारने के र्मचान बने रे्थ।

''इधर आओ!'' पम्र्मी बो!ी। और दोनों नीचे उतरकर र्मचान पर 5ा बैठे। पानी का धरात! शान्त र्था। लिसफ� कहीं-कहीं र्मछलि!यों के उछ!ने या साँस !ेने से पानी किह! 5ाता र्था। पास ही के नीवाँ गाँव र्में किकसी के यहाँ शायद शादी र्थी 5ो शहनाई का हल्का स्वर हवाओं की तरंगों पर किह!ता-डु!ता हुआ आ रहा र्था। दोनों चुपचाप रे्थ। र्थोड़ी देर बाद पम्र्मी ने कहा, ''कपूर, चुपचाप रहो, कुछ बात र्मत करना। उधर देखो पानी र्में। लिसतारों का प्रकितकिबम्ब देख रहे हो। चुप्पे से सुनो, ये लिसतारे क्या बातें कर रहे हैं।''

पम्र्मी लिसतारों की ओर देखने !गी। कपूर चुपचाप पम्र्मी की ओर देखता रहा। र्थोड़ी देर बाद सहसा पम्र्मी एक बाँस से दिKककर बैठ गयी। उसके ग!े के दो बKन खु!े हुए रे्थ। और उसर्में से रूप की चाँदनी फKी पड़ती र्थी। पम्र्मी आँखें बन्द किकये बैठी र्थी। चन्दर ने उसकी ओर देखा और किफर 5ाने क्यों उससे देखा नहीं गया। वह लिसतारों की ओर देखने !गा। पम्र्मी के का!र के बीच से लिसतारे KूK-KूKकर बरस रहे रे्थ।

सहसा पम्र्मी ने आँखें खो! दीं और चन्दर का कन्धा पकडक़र बो!ी, ''किकतना अच्छा हो अगर आदर्मी हरे्मशा सम्बन्धों र्में एक दूरी रखे। सेक्स न आने दे। ये लिसतारे हैं, देखो किकतने न5दीक हैं। करोड़ों बरस से सार्थ हैं, !ेकिकन कभी भी एक दूसरे को छूते तक नहीं, तभी तो संग किनभ 5ाता है।'' सहसा उसकी आवा5 र्में 5ाने क्या छ!क आया किक चन्दर 5ैसे र्मदहोश हो गया-बो!ी वह-''बस ऐसा हो किक आदर्मी अपने पे्रर्मास्पद को किनकKतर्म !ाकर छोड़ दे, उसको बाँधे न। कुछ ऐसा हो किक होठों के पास खींचकर छोड़ दे।'' और पम्र्मी ने चन्दर का र्मार्था होठों तक !ाकर छोड़ दिदया। उसकी गरर्म-गरर्म साँसें चन्दर की प!कों पर बरस गयीं...''कुछ ऐसा हो किक आदर्मी उसे अपने हृदय तक खींचकर किफर हKा दे।'' और चन्दर को पम्र्मी ने अपनी बाँहों र्में घेरकर अपने वक्ष तक खींचकर छोड़ दिदया। वक्ष की गरर्माई चन्दर के रोर्म-रोर्म र्में सु!ग उठी, वह बेचैन हो उठा। उसके र्मन र्में आया किक वह अभी यहाँ से च!ा 5ाए। 5ाने कैसा !ग रहा र्था उसे। सहसा पम्र्मी बो!ी, ''!ेकिकन नहीं, हर्म !ोग धिर्मv हैं और कपूर, तुर्म बहुत पकिवv हो, किनष्क!ंक हो और तुर्म पकिवv रहोगे। र्मैं जि5तनी दूरी, जि5तना अन्तर, जि5तनी पकिवvता पसन्द करती हूँ, वह तुर्मर्में है और हर्म !ोगों र्में हरे्मशा किनभेगी 5ैसे इन लिसतारों र्में हरे्मशा किनभती आयी है।''

चन्दर चुपचाप सोचने !गा, ''वह पकिवv है। एकाएक उसका र्मन 5ैसे ऊबने !गा। 5ैसे एक किवहग लिशशु घबराकर अपने नीड़ के लि!ए तड़प उठता है, वैसे ही वह इस वक्त तड़प उठा सुधा के पास 5ाने के लि!ए-क्यों? पता नहीं क्यों? यहाँ कुछ है 5ो उसे 5कड़ !ेना चाहता है। वह क्या करे?

पम्र्मी उठी, वह भी उठा। बाँस का र्मचान किह!ा। !हरों र्में हरकत हुई। करोड़ों सा! से अ!ग और पकिवv लिसतारे किह!े, आपसे र्में Kकराये और चूर-चूर होकर किबखर गये।

रात-भर चन्दर को ठीक से नींद नहीं आयी। अब गरर्मी काफी पड़ने !गी र्थी। एक सूती चादर से ज्यादा नहीं ओढ़ा 5ाता र्था और चन्दर ने वह भी ओढ़ना छोड़ दिदया र्था, !ेकिकन उस दिदन रात को अक्सर एक अ5ब-सी कँपकँपी उसे झकझोर 5ाती र्थी और वह कसकर चादर !पेK !ेता र्था, किफर 5ब उसकी तबीयत घुKने !गती तो वह उठ बैठता र्था। उसे रात-भर नींद नहीं आयी; बार-बार झपकी आयी और !गा किक खिखड़की के बाहर सुनसान अँधेरे र्में से अ5ब-सी आवा5ें आती हैं और नाकिगन बनकर उसकी साँसों र्में लि!पK 5ाती हैं। वह परेशान हो उठता है, इतने र्में किफर कहीं से कोई र्मीठी सतरंगी संगीत की !हर आती है और उसे सचेत और स5ग कर 5ाती है। एक बार उसने देखा किक सुधा और गेसू कहीं च!ी 5ा रही हैं। उसने गेसू को कभी नहीं देखा र्था !ेकिकन उसने सपने र्में गेसू को पहचान लि!या। !ेकिकन गेसू तो पम्र्मी की तरह गाउन पहने हुए र्थी! किफर देखा किबनती रो रही है और इतना किब!ख-किब!खकर रो रही है किक तबीयत घबरा 5ाए। घर र्में कोई नहीं है। चन्दर सर्मझ नहीं पाता किक वह क्या करे! अके!े घर र्में एक अपरिरलिचत !ड़की से बो!ने का साहस भी नहीं होता उसका। किकसी तरह किहम्र्मत करके वह सर्मीप पहुँचा तो देखा अरे, यह तो सुधा है। सुधा !ुKी हुई-सी र्मा!ूर्म पड़ती है। वह बहुत किहम्र्मत करके सुधा के पास बैठ गया। उसने सोचा, सुधा को आश्वासन दे !ेकिकन उसके हार्थों पर 5ाने कैसे सुकुर्मार 5ं5ीरें कसी हुई हैं। उसके र्मुँह पर

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किकसी की साँसों का भार है। वह किनश्चेष्ट है। उसका र्मन अकु!ा उठा। वह चौंककर 5ाग गया तो देखा वह पसीने से तर है। वह उठकर Kह!ने !गा। वह 5ाग गया र्था !ेकिकन किफर भी उसका र्मन स्वस्थ नहीं र्था। कर्मरे र्में ही Kह!ते-Kह!ते वह किफर !ेK गया। !गा 5ैसे सार्मने की खु!ी खिखडक़ी से सैकड़ों तारे KूK-KूKकर भयानक ते5ी से आ रहे हैं और उसके र्मारे्थ से Kकरा-Kकराकर चूर-चूर हो 5ाते हैं। एक र्मर्मा�न्तक पीड़ा उसकी नसों र्में खौ! उठी और !गा 5ैसे उसके अंग-अंग र्में लिचताए ँधधक रही हैं।

5ैसे-तैसे रात कKी और सुबह उठते ही वह यूकिनवर्शिस-Kी 5ाने से पह!े सुधा के यहाँ गया। सुधा !ेKी हुई पढ़ रही र्थी। डॉ. शुक्!ा पू5ा कर रहे रे्थ। बुआ5ी शायद रात को च!ी गयी र्थीं। क्योंकिक किबनती बैठी तरकारी काK रही र्थी और खुश न5र आ रही र्थी। चन्दर सुधा के कर्मरे र्में गया। देखते ही सुधा र्मुसकरा पड़ी। बो!ी कुछ नहीं !ेकिकन आते ही उसने चन्दर के अंग-अंग को अपनी किनगाहों के स्वागत र्में सर्मेK लि!या। चन्दर सुधा के पैरों के पास बैठ गया।

''क! रात को तुर्म कार !ेकर वापस आये तो चुप्पे से च!े गये!'' सुधा बो!ी, ''कहो, क! कौन-सा खे! देखा?''

''क! बहुत बड़ा खे! देखा; बहुत बड़ा खे!, सुधी!'' चन्दर व्याकु!ता से बो!ा, ''अरे 5ाने कैसा र्मन हो गया किक रात-भर नींद ही नहीं आयी।'' और उसके बाद चन्दर सब बता गया। कैसे वह लिसनेर्मा गया। उसने पम्र्मी से क्या बात की। उसके बाद कैसे कार पर उसने चन्दर को पास खींच लि!या। कैसे वे !ोग र्मैकफस�न झी! गये और वहाँ पम्र्मी पाग! हो गयी। किफर कैसे चन्दर को एकदर्म सुधा की याद आने !गी और किफर रात-भर चन्दर को कैसे-कैसे सपने आये। सुधा बहुत गम्भीर होकर र्मुँह र्में पेश्किन्स! दबाये कुहनी Kेके बस चुपचाप सुनती रही और अन्त र्में बो!ी, ''तो तुर्म इतने परेशान क्यों हो गये, चन्दर! उसने तो अच्छी ही बात कही र्थी। यह तो अच्छा ही है किक ये सब जि5से तुर्म सेक्स कहते हो, यह सम्बन्धों र्में न आए। उसर्में क्या बुराई है? क्या तुर्म चाहते हो किक सेक्स आए?''

''कभी नहीं, तुर्म र्मुझे अभी तक नहीं सर्मझ पायीं।''

''तो ठीक है, तुर्म भी नहीं चाहते किक सेक्स आए और वह भी नहीं चाहती किक सेक्स आए तो झगड़ा क्या है? क्यों, तुर्म उदास क्यों हो इतने?'' सुधा बो!ी बडे़ अचर5 से।

''!ेकिकन उसका व्यवहार कैसा है?'' चन्दर ने सुधा से कहा।

''ठीक तो है। उसने बता दिदया तुम्हें किक इतना अन्तर होना चाकिहए। सर्मझ गये। तुर्म !ा!ची आदर्मी, चाहते होगे यह भी अन्तर न रहे! इसीलि!ए तुर्म उदास हो गये, लिछह!'' होंठों र्में र्मुसकराहK और आँखों र्में शरारत की झ!क लिछपाते हुए सुधा बो!ी।

''तुर्म तो र्म5ाक करने !गीं।'' चन्दर बो!ा।

सुधा लिसफ� चन्दर की ओर देखकर र्मुसकराती रही। चन्दर सार्मने !गी हुई तसवीर की ओर देखता रहा। किफर उसने सुधा के कबूतरों-5ैसे उ5!े र्मासूर्म नन्हे पैर अपने हार्थ र्में !े लि!ये और भरा�यी हुई आवा5 र्में बो!ा, ''सुधा, तुर्म कभी हर्म पर किवश्वास न हार बैठना।''

सुधा ने किकताब बन्द करके रख दी और उठकर बैठ गयी। उसने चन्दर के दोनों हार्थ अपने हार्थों र्में !ेकर कहा, ''पाग! कहीं के! हर्में कहते हो, अभी सुधा र्में बचपन है और तुर्मर्में क्या है! वाह रे छुईर्मुई के फू!! किकसी ने हार्थ पकड़ लि!या, किकसी ने बदन छू लि!या तो घबरा गये! तुर्मसे अच्छी !ड़किकयाँ होती हैं।'' सुधा ने उसके दोनों हार्थ झकझोरते हुए कहा।

''नहीं सुधी, तुर्म नहीं सर्मझतीं। र्मेरी जि5-दगी र्में एक ही किवश्वास की चट्टान है। वह हो तुर्म। र्मैं 5ानता हूँ किक किकतने ही 5!-प्र!य हों !ेकिकन तुम्हारे सहारे र्मैं हरे्मशा ऊपर रहूँगा। तुर्म र्मुझे डूबने नहीं दोगी। तुम्हारे ही सहारे र्मैं !हरों से

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खे! भी सकता हूँ। !ेकिकन तुम्हारा किवश्वास अगर कभी किह!ा तो र्मैं किकन अँधेरी गहराइयों र्में डूब 5ाऊँगा, यह कभी र्मैं सोच नहीं पाता।'' चन्दर ने बडे़ कातर स्वर र्में कहा।

सुधा बहुत गम्भीर हो गयी। क्षण-भर वह चन्दर के चेहरे की ओर देखती रही, किफर चन्दर के र्मारे्थ पर झू!ती हुई एक !K को ठीक करती हुई बो!ी, ''चन्दर, और र्मैं किकसके किवश्वास पर च! रही हूँ, बो!ो! !ेकिकन र्मैंने तो कभी नहीं कहा किक चन्दर अपना किवश्वास र्मत हारना! और क्या कहूँ। र्मुझे अपने चन्दर पर पूरा किवश्वास है। र्मरते दर्म तक किवश्वास रहेगा। किफर तुम्हारा र्मन इतना डगर्मगा क्यों गया? बुरी बात है न?''

चन्दर ने सुधा के कन्धे पर अपना लिसर रख दिदया। सुधा ने उसका हार्थ !ेकर कहा, ''!ाओ, यहाँ छुआ र्था पम्र्मी ने तुम्हें!'' और उसका हार्थ होठों तक !े गयी। चन्दर काँप गया, आ5 सुधा को यह क्या हो गया है। !ेकिकन होंठों तक हार्थ !े 5ाकर झाड़ने-फँूकनेवा!ों की तरह सुधा ने फँूककर कहा, ''5ाओ, तुम्हारे हार्थ से पम्र्मी के स्पश� का 5हर उतर गया। अब तो ठीक हो गये! पकिवv हो गये! छू-र्मन्तर!''

चन्दर हँस पड़ा। उसका र्मन शान्त हो गया। सुधा र्में 5ादू र्था। सचर्मुच 5ादू र्था। किबनती चाय !े आयी। दो प्या!े। सुधा बो!ी, ''अपने लि!ए भी !ाओ।'' किबनती ने लिसर किह!ाया।

सुधा ने चन्दर की ओर देखकर कहा, ''ये पग!ी 5ाने क्यों तुर्मसे झेंपती है?''

''झेंपती कहाँ हूँ?'' किबनती ने प्रकितवाद किकया और प्या!ा भी !े आयी और 5र्मीन पर बैठ गयी। सुधा ने प्या!ा र्मुँह से !गाया और बो!ी, ''चन्दर, तुर्मने पम्र्मी को ग!त सर्मझा है। पम्र्मी बहुत अच्छी !ड़की है। तुर्मसे बड़ी भी है और तुर्मसे ज्यादा सर्मझदार, और उसी तरह व्यवहार भी करती है। तुर्म अगर कुछ सोचते हो तो ग!त सोचते हो। र्मेरा र्मत!ब सर्मझ गये न।''

''5ी हाँ, गुरुआनी5ी, अच्छी तरह से!'' चन्दर ने हार्थ 5ोडक़र किवनम्रता से कहा। किबनती हँस पड़ी और उसकी चाय छ!क गयी। नीचे रखी हुई चन्दर की 5रीदार पेशावरी सैंकिड! भीग गयी। किबनती ने झुककर एक अँगोछे से उसे पोंछना चाहा तो सुधा लिचल्!ा उठी-''हाँ-हाँ, छुओ र्मत। कहीं इनकी सैंकिड! भी बाद र्में आके न रोने !गे। सुन किबनती, एक !ड़की ने क! इन्हें छू लि!या तो आप आ5 उदास रे्थ। अभी तुर्म सैंकिड! छुओ तो कहीं 5ाके कोताव!ी र्में रपK न कर दें।''

चन्दर हँस पड़ा। और उसका र्मन धु!कर ऐसे किनखर गया 5ैसे शरद का नी!ाभ आकाश।

''अब पम्र्मी के यहाँ कब 5ाओगे?'' सुधा ने शरारत-भरी र्मुसकराहK से पूछा।

''क! 5ाऊँगा! ठाकुर साहब पम्र्मी के हार्थ अपनी कार बेच रहे हैं तो काग5 पर दस्तखत करना है।'' चन्दर ने कहा, ''अब र्मैं किनडर हूँ। कहो किबनती, तुम्हारे ससुर का क्या कोई खत नहीं आया।''

किबनती झेंप गयी। चन्दर च! दिदया।

र्थोड़ी दूर 5ाकर किफर र्मुड़ा और बो!ा, ''अच्छा सुधा, आ5 तक 5ो कार्म हो बता दो किफर एक र्महीने तक र्मुझसे कोई र्मत!ब नहीं। हर्म र्थीलिसस पूरी करेंगे। सर्मझीं?''

''सर्मझे!'' हार्थ पKककर सुधा बो!ी।

सचर्मुच डेढ़ र्महीने तक चन्दर को होश नहीं रहा किक कहाँ क्या हो रहा है। किबसरिरया रो5 सुधा और किबनती को पढ़ाने आता रहा, सुधा और किबनती दोनों ही का इम्तहान खत्र्म हो गया। पम्र्मी दो बार सुधा और चन्दर से धिर्म!ने आयी !ेकिकन चन्दर एक बार भी उसके यहाँ नहीं गया। धिर्मश्रा का एक खत बरे!ी से आया !ेकिकन चन्दर ने उसका भी

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5वाब नहीं दिदया। डॉक्Kर साहब ने अपनी पुस्तक के दो अध्याय लि!ख डा!े !ेकिकन उसने एक दिदन भी बहस नहीं की। किबनती उसे बराबर चाय, दूध, नाश्ता, शरबत और खरबू5ा देती रही !ेकिकन चन्दर ने एक बार भी उसके ससुर का नार्म !ेकर नहीं लिचढ़ाया। सुधा क्या करती है, कहाँ 5ाती है, चन्दर से क्या कहती है, चन्दर को कोई होश नहीं, बस उसका पेन, उसके काग5, स्Kडीरूर्म की र्मे5 और चन्दर है किक आखिखर र्थीलिसस पूरी करके ही र्माना।

7 र्मई को 5ब उसने र्थीलिसस का आखिखरी प�ा लि!खकर पूरा किकया और सन्तोष की साँस !ी तो देखा किक शार्म के पाँच ब5े हैं, सायबान र्में अभी परदा पड़ा है !ेकिकन धूप उतार पर है और !ू बन्द हो गयी है। उसकी कुसr के पीछे एक चKाई किबछाये हुए सुधा बैठी है। हू्यगो का अधपढ़ा हुआ उपन्यास बग! र्में खु!ा हुआ औंधा पड़ा है और आप चन्दर की एक र्मोKी-सी इकनॉधिर्मक्स की किकताब खो!े उस पर क!र्म से कुछ गोदा-गोदी कर रही है।

''सुधा!'' एक गहरी साँस !ेकर अँगड़ाई !ेते हुए चन्दर ने कहा, ''!ो, आ5 आखिखरकार 5ान छूKी। बस, अब दो-तीन र्महीने र्में र्माबदौ!त डॉक्Kर बन 5ाएगँे!''

सुधा अपने काय� र्में व्यस्त। चन्दर ने क्या कहा, यह सुनकर भी गुर्म। चन्दर ने हार्थ बढ़ाकर चोKी झKक दी। ''हाय रे! हर्में नहीं अच्छा !गता, चन्दर!'' सुधा किबगडक़र बो!ी, ''तुम्हारे कार्म के बीच र्में कोई बो!ता है तो किबगड़ 5ाते हो और हर्मारा कार्म र्थोडे़ ही र्महत्वपूण� है!'' कहकर सुधा किफर पेन !ेकर गोदने !गी।

''आखिखर कौन-सा उपकिनषद लि!ख रही हैं आप? 5रा देखें तो!'' चन्दर ने किकताब खींच !ी। Kाजि5ग की इकनॉधिर्मक्स की किकताब र्में एक पूरे प�े पर सुधा ने एक किबल्!ी बनायी र्थी और अगर किनगाह 5रा चूक 5ाए तो आप कह नहीं सकते रे्थ यह चौरासी !ाख योकिनयों र्में से किकस योकिन का 5ीव है, !ेकिकन चँूकिक सुधा कह रही है किक यह किबल्!ी है, इसलि!ए र्मानना होगा किक यह किबल्!ी ही है।

चन्दर ने सुधा की बाँह पकडक़र कहा, ''उठ! आ!सी कहीं की, च! उठा ये पोर्था! च!के पापा के पैर छू आए?ँ''

सुधा चुपचाप उठी और आज्ञाकारी !ड़की की तरह र्मोKी फाइ! उठा !ी। दरवा5े तक पहुँचकर रुक गयी और चन्दर के कन्धे पर फाइ!ें दिKकाकर बो!ी, ''ऐ चन्दर, तो सच्ची अब तुर्म डॉक्Kर हो 5ाओगे?''

''और क्या?''

''आहा!'' कहकर 5ो सुधा उछ!ी तो फाइ! हार्थ से खिखसकी और सभी प�े 5र्मीन पर।

चन्दर झल्!ा गया। उसने गुस्से से !ा! होकर एक घूँसा सुधा को र्मार दिदया। ''अरे रार्म रे!'' सुधा ने पीठ सीधी करते हुए कहा, ''बडे़ परोपकारी हो डॉक्Kर चन्दर कपूर! हर्में किबना र्थीलिसस लि!खे किडग्री दे दी! !ेकिकन बहुत 5ोर की र्थी!''

चन्दर हँस पड़ा।

खैर दोनों पापा के पास गये। वे भी लि!खकर ही उठे रे्थ और शरबत पी रहे रे्थ। चन्दर ने 5ाकर कहा, ''पूरी हो गयी।'' और झुककर पैर छू लि!ये। उन्होंने चन्दर को सीने से !गाकर कहा, ''बस बेKा, अब तुम्हारी तपस्या पूरी हो गयी। अब 5ु!ाई से यूकिनवर्शिस-Kी र्में 5रूर आ 5ाओगे तुर्म!''

सुधा ने पोर्था कोच पर रख दिदया और अपने पैर बढ़ाकर खड़ी हो गयी। ''ये क्या?'' पापा ने पूछा।

''हर्मारे पैर नहीं छुएगँे क्या?'' सुधा ने गम्भीरता से कहा।

''च! पग!ी! बहुत बदतर्मी5 होती 5ा रही है!'' पापा ने कृकिvर्म गुस्से से कहा, ''चन्दर! बहुत लिसर चढ़ी हो गयी है। 5रा दबाकर रखा करो। तुर्मसे छोKी है किक नहीं?''

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''अच्छा पापा, अब आ5 धिर्मठाई धिर्म!नी चाकिहए।'' सुधा बो!ी, ''चन्दर ने र्थीलिसस खत्र्म की है?''

''5रूर, 5रूर बेKी!'' डॉक्Kर शुक्!ा ने 5ेब से दस का नोK किनका!कर दे दिदया, ''5ाओ, धिर्मठाई र्मँगवाकर खाओ तुर्म !ोग।''

सुधा हार्थ र्में नोK लि!ये उछ!ते हुए स्Kडी रूर्म र्में आयी, पीछे-पीछे चन्दर। सुधा रुक गयी और अपने र्मन र्में किहसाब !गाते हुए बो!ी, ''दस रुपये पौंड ऊन। एक पौंड र्में आठ !च्छी। छह !च्छी र्में एक शा!। बाकी बची दो !च्छी। दो !च्छी र्में एक स्वेKर। बस एक किबनती का स्वेKर, एक हर्मारा शा!।''

चन्दर का र्मार्था ठनका। अब धिर्मठाई की उम्र्मीद नहीं। किफर भी कोलिशश करनी चाकिहए।

''सुधा, अभी से शा! का क्या करोगी? अभी तो बहुत गरर्मी है!'' चन्दर बो!ा।

भाग 2 पीछे     आगे

''अबकी 5ाडे़ र्में तुम्हारा ब्याह होगा तो आखिखर हर्म !ोग नयी-नयी ची5 का इन्त5ार्म करें न। अब डॉक्Kर हुए, अब डॉक्Kरनी आएगँी!'' सुधा बो!ी।

खैर, बहुत र्मनाने-बह!ाने-फुस!ाने पर सुधा धिर्मठाई र्मँगवाने को रा5ी हुई। 5ब नौकर धिर्मठाई !ेने च!ा गया तो चन्दर ने चारों ओर देखकर पूछा, ''कहाँ गयी किबनती? उसे भी बु!ाओ किक अके!े-अके!े खा !ोगी!''

''वह पढ़ रही है र्मास्Kर साहब से!''

''क्यों? इम्तहान तो खत्र्म हो गया, अब क्या पढ़ रही है?'' चन्दर ने पूछा।

''किवदुषी का दूसरा खJड तो दे रही है न लिसतम्बर र्में!'' सुधा बो!ी।

''अच्छा, बु!ाओ किबसरिरया को भी!'' चन्दर बो!ा।

''अच्छा, धिर्मठाई आने दो।'' सुधा ने कहा और फाइ! की ओर देखकर कहा, ''र्मुझे इस कम्बख्त पर बहुत गुस्सा आ रहा है।''

''क्यों?''

''इसकी व5ह से तुर्म डेढ़ र्महीने सीधे से बो!े तक नहीं। इम्तहान वा!े दिदन सुबह-सुबह तुम्हें हार्थ 5ोडऩे आयी तो तुर्मने लिसर पर हार्थ भी नहीं रखा!'' सुधा ने लिशकायत के स्वर र्में कहा।

''तो अब आशीवा�द दे दें। अब तो खत्र्म हुई र्थीलिसस। अब जि5तना चाहो बात कर !ो। र्थीलिसस न लि!खते तो किफर तुम्हारे चन्दर को उपाधिध कहाँ से धिर्म!ती?'' चन्दर ने दु!ार से कहा।

''तो किफर कन्वोकेशन पर तुम्हारी गाउन हर्म पहनकर फोKो खिख-चाएगेँ!'' सुधा र्मच!कर बो!ी। इतने र्में नौकर धिर्मठाई !े आया। ''5ाओ, किबनती5ी को बु!ा !ाओ।'' चन्दर ने कहा।

किबनती आयी।

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''तुर्म पढ़ चुकी!'' चन्दर ने पूछा।

''अभी नहीं।'' किबनती बो!ी।

''अच्छा, अब आ5 पढ़ाई बन्द करो, उन्हें भी बु!ा !ाओ। धिर्मठाई खाई 5ाए।'' चन्दर ने कहा।

''अच्छा!'' कहकर किबनती 5ो र्मुड़ी तो सुधा बो!ी, ''अरे !ा!लिचन! ये तो पूछ !े किक धिर्मठाई काहे की है?''

''र्मुझे र्मा!ूर्म है!'' किबनती र्मुसकराती हुई बो!ी, ''उनके यहाँ आ5 गये होंगे, पम्र्मी के यहाँ किफर आ5 कुछ उस दिदन 5ैसी बात हुई होगी।''

सुधा हँस पड़ी। चन्दर झेंप गया। किबनती च!ी गयी किबसरिरया को बु!ाने।

''अब तो ये तुर्मसे बो!ने !गी!'' सुधा ने कहा।

''हाँ, यह है बड़ी सुशी! !ड़की और बहुत शान्त। हर्में बहुत अच्छी !गती है। बो!ना तो 5ैसे आता ही नहीं इसे।''

''हाँ, !ेकिकन अब खूब सीख रही है। इसकी गुरु धिर्म!ी है गेसू। हर्मसे भी ज्यादा गेसू से पKने !गी है इसकी। दोनों ब्याह करने 5ा रही हैं और दोनों उसी की बातें करती हैं 5ब धिर्म!ती हैं तब।'' सुधा बो!ी।

''और ककिवता भी करती है यह, तुर्म एक बार कह रही र्थीं?'' चन्दर ने पूछा।

''नहीं 5ी, अस! र्में एक बड़ी सुन्दर-सी नोK-बुक र्थी, उसर्में यह 5ाने क्या लि!खती र्थी? हर्में नहीं दिदखाती र्थी। बाद र्में हर्मने देखा किक एक डायरी है। उसर्में धोबी का किहसाब लि!खती र्थी।''

''तो ककिवता नहीं लि!खतीं! ताज्जुब है, वरना सो!ह बरस के बाद पे्रर्म करके ककिवता करना तो !ड़किकयों का फैशन हो गया है, उतना ही व्यापक जि5तना उ!Kा पल्!ा ओढ़ना।'' चन्दर बो!ा।

''च!ा तुम्हारा नारी-पुराण!'' सुधा किबगड़ी।

धिर्मठाई खाने वा!े आये। आगे-आगे किबनती, पीछे-पीछे किबसरिरया। अक्षिभवादन के बाद किबसरिरया बैठ गया। ''कहो किबसरिरया, तुम्हारी लिशष्या कैसी है?''

''बस अकिद्वतीय।'' ककिव किबसरिरया ने लिसर किह!ाकर कहा। सुधा र्मुसकरा दी, चन्दर की ओर देखकर।

''और ये सुधा कैसी र्थी?''

''बस अकिद्वतीय।'' किबसरिरया ने उसी तरह कहा।

''दोनों अकिद्वतीय हैं? सार्थ ही!'' चन्दर ने पूछा।

सुधा और किबनती दोनों हँस दीं। किबसरिरया नहीं सर्मझ पाया किक उसने कौन-सी हँसने की बात की र्थी और 5ब नहीं सर्मझ पाया तो पह!े लिसर खु5!ाने !गा किफर खुद भी हँस पड़ा। उसकी हँसी पर तीनों और हँस पडे़।

''चन्दर, र्मास्Kर साहब भी खूब हैं। एक दिदन किबनती को र्महादेवी की वह ककिवता पढ़ा रहे रे्थ, 'किवरह का 5!5ात 5ीवन,' तो पढ़ते-पढ़ते बड़ी गहरी साँस भरने !गे।''

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चन्दर और किबनती दोनों हँस पडे़। किबसरिरया पह!े तो खुद हँसा किफर बो!ा, ''हाँ भाई, क्या करें, कपूर! तुर्म तो 5ानते ही हो, र्मैं बहुत भावुक हूँ। र्मुझसे बदा�श्त नहीं होता। एक बार तो ऐसा हुआ किक पच® र्में एक करुण रस का गीत आ गया अर्थ� लि!खने को। र्मैं उसे पढ़ते ही इतना व्यलिर्थत हो गया किक उठकर Kह!ने !गा। प्रोफेसर सर्मझे र्मैं दूसरे !ड़के की कॉपी देखने उठा हूँ, तो उन्होंने किनका! दिदया। र्मुझे किनका!े 5ाने का अफसोस नहीं हुआ !ेकिकन ककिवता पwक़र र्मुझे बहुत रु!ाई आयी।''

सुधा हँसी तो चन्दर ने आँख के इशारे से र्मना किकया और गम्भीरता से बो!ा, ''हाँ भाई किबसरिरया, सो तो सही है ही। तुर्म इतने भावुक न हो तो इतना अच्छा कैसे लि!ख सकते हो? तो तुर्मने पचा� छोड़ दिदया?''

''हाँ, र्मैं पच® वगैरह की क्या परवाह करता हूँ? र्मेरे लि!ए इन सभी वस्तुओं का कुछ भी अर्थ� नहीं। र्मैं भावना की उपासना करता हूँ। उस सर्मय परीक्षा देने की भावना से ज्यादा सब! उस ककिवता की करुण भावना र्थी। और इस तरह र्मैं किकतनी बार फे! हो चुका हूँ। र्मेरे सार्थ वह पढ़ता र्था न हरिरहर Kंडन, वह अब बस्ती कॉ!े5 का किप्रश्किन्सप! है। एक र्मेरा सहपाठी र्था, वह रेकिडयो का प्रोग्रार्म एक्5ीक्यूदिKव है...''

''और एक तुम्हारा सहपाठी तो हर्मने सुना किक असेम्ब!ी का स्पीकर भी है!'' चन्दर बात काKकर बो!ा। सुधा किफर हँस पड़ी। किबनती भी हँस पड़ी।

खैर धिर्मठाई का भोग प्रारम्भ हुआ। किबसरिरया कुछ तकल्!ुफ कर रहा र्था तो किबनती बो!ी, ''खाइए, धिर्मठाई तो किवरह-रोग और भावुकता र्में बहुत स्वास्थ्यप्रद होती है!''

''अच्छा, अब तो किबनती का कंठ फूK किनक!ा! अपने गुरु5ी को बना रही है।'' चन्दर बो!ा।

किबसरिरया र्थोड़ी देर बाद च!ा गया। ''अब र्मुझे एक पाK\ र्में 5ाना है।'' उसने कहा। 5ब आखिखर र्में एक रसगुल्!ा बच रहा तो किबनती हार्थ र्में !ेकर बो!ी, ''कौन !ेगा?'' आ5 पता नहीं क्यों किबनती बहुत खुश र्थी और बहुत बो! रही र्थी।

चन्दर बो!ा, ''हर्में दो!''

सुधा बो!ी, ''हर्में!''

किबनती ने एक बार चन्दर की ओर देखा, एक बार सुधा की ओर। चन्दर बो!ा, ''देखें किबनती हर्मारी है या सुधा की है।''

किबनती ने झK रसगुल्!ा सुधा के र्मुख र्में रख दिदया और सुधा के लिसर पर लिसर रखकर बो!ी-

''हर्म अपनी दीदी के हैं!'' सुधा ने आधा रसगुल्!ा किबनती को दे दिदया तो किबनती चन्दर को दिदख!ाकर खाते हुए सुधा से बो!ी, ''दीदी, ये हर्में बहुत बनाते हैं, अब हर्म भी तुम्हारी तरह बो!ेंगे तो इनका दिदर्माग ठीक हो 5ाएगा।''

''हर्म-तुर्म दोनों धिर्म!के इनका दिदर्माग ठीक करेंगे?'' सुधा ने प्यार से किबनती को र्थपर्थपाते हुए कहा, ''अब हर्म तश्तरिरयाँ धोकर रख दें।'' और तश्तरिरयाँ उठाकर च! दी।

''पानी नहीं दोगी?'' चन्दर बो!ा।

किबनती पानी !े आयी और बो!ी, ''हर्म तो आपका इतना कार्म करते हैं और आप 5ब देखो तब हर्में बनाते रहते हैं। आपको क्या आनन्द आता है हर्में बनाने र्में?''

चन्दर ने प!-भर किबनती की ओर देखा और बो!ा, ''अस! र्में बनने के बाद 5ब तुर्म झेंप 5ाती हो तो...हाँ ऐसे ही।''

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किबनती ने किफर झेंपकर र्मुँह लिछपा लि!या और !ा5 से सकुचाकर इन्द्रवधू बन गयी। किबनती देखने-सुनने र्में बड़ी अच्छी र्थी। उसकी गठन तो सुधा की तरह नहीं र्थी !ेकिकन उसके चेहरे पर एक किफरो5ी आभा र्थी जि5सर्में गु!ा! के डोरे रे्थ। आँखें उसकी बड़ी-बड़ी और प!कों र्में इस तरह डो!ती र्थीं 5ैसे किकसी सुकुर्मार सीपी र्में कोई बहुत बड़ा र्मोती डो!े। झेंपती र्थी तो र्मुँह पर साँझ र्मुसकरा उठती र्थी और गा!ों र्में फू!ों के कKोरों 5ैसे दो छोKे-छोKे गड्ढो। और किबनती के अंग-अंग र्में एक रूप की !हर र्थी 5ो नाकिगन की तरह !हराती र्थी और उसकी आदत र्थी किक बात करते सर्मय अपनी गरदन 5रा Kेढ़ी कर !ेती र्थी और अँगुलि!यों से अपने आँच! का छोर उरे्मठने !गती र्थी।

इस वक्त चन्दर की बात पर झेंप गयी और उसी तरह आँच! के छोर को उरे्मठती हुई, र्मुसकान लिछपाकर उसने ऐसी किनगाह से चन्दर की ओर देखा जि5सर्में र्थोड़ी !ा5, र्थोड़ा गुस्सा, र्थोड़ी प्रस�ता और र्थोड़ी शरारत र्थी।

चन्दर एकदर्म बो!ा उठा, ''अरे सुधा, सुधा, 5रा किबनती की आँख देखो इस वक्त!''

''आयी अभी।'' बग! के कर्मरे र्में तश्तरी रखते हुए सुधा बो!ी।

''बडे़ खराब हैं आप?'' किबनती बो!ी।

''हाँ, बनाओगी न आ5 से हर्में? हर्मारा दिदर्माग ठीक करोगी न? बहुत बो! रही र्थी, अब बताओ!''

''बताए ँक्या? अभी तक हर्म बो!ते नहीं रे्थ तभी न?''

''अब अपनी ससुरा! र्में बो!ना Kुइयाँ ऐसी! वहीं तुम्हारे बो! पर रीझेंगे !ोग।'' चन्दर ने किफर छेड़ा।

''लिछह, रार्म-रार्म! ये सब र्म5ाक हर्मसे र्मत किकया कीजि5ए। दीदी से क्यों नहीं कहते जि5नकी अभी शादी होने 5ा रही है।''

''अभी उनकी कहाँ, अभी तो तय भी नहीं हुई।''

''तय ही सर्मजिझए, फोKो इनकी उन !ोगों ने पसन्द कर !ी। अच्छा एक बात कहें, र्माकिनएगा!'' किबनती बडे़ आग्रह और दीनता के स्वर र्में बो!ी।

''क्या?'' चन्दर ने आश्चय� से पूछा। किबनती आ5 सहसा किकतना बो!ने !गी है। किबनती बो!ी, नीचे 5र्मीन की ओर देखती हुई-''आप हर्मसे ब्याह के बारे र्में र्म5ाक न किकया कीजि5ए, हर्में अच्छा नहीं !गता।''

''ओहो, ब्याह अच्छा !गता है !ेकिकन उसके बारे र्में र्म5ाक नहीं। गुड़ खाया गु!गु!े से परहे5!''

''हाँ, यही तो बात है।'' किबनती सहसा गम्भीर हो गयी-''आप सर्मझते होंगे किक र्मैं ब्याह के लि!ए उत्सुक हूँ, दीदी भी सर्मझती हैं; !ेकिकन र्मेरा ही दिद! 5ानता है किक ब्याह की बात सुनकर र्मुझे कैसा !गने !गता है। !ेकिकन किफर भी र्मैंने ब्याह करने से इनकार नहीं किकया। खुद दौड़-दौडक़र उस दिदन दुबे5ी की सेवा र्में !गी रही, इसलि!ए किक आप देख चुके हैं किक र्माँ का व्यवहार र्मुझसे कैसा है? आप यहाँ इस परिरवार को देखकर सर्मझ नहीं सकते किक र्मैं वहाँ कैसे रहती हूँ, कैसे र्माँ5ी की बातें बदा�श्त करती हूँ, वह नरक है र्मेरे लि!ए, र्माँ की गोद नरक है और र्मैं किकसी तरह किनक! भागना चाहती हूँ। कुछ चैन तो धिर्म!ेगा!'' किबनती की आँखों र्में आँसू आ गये और लिससकती हुई बो!ी, ''!ेकिकन आप या दीदी 5ब यह कहते हैं, तो र्मुझे !गता है किक र्मैं किकतनी नीच हूँ, किकतनी पकितत हूँ किक खुद अपने ब्याह के लि!ए व्याकु! हूँ, !ेकिकन आप न कहा करें तो अच्छा है!'' किबनती को आँसुओं का तार बँध गया र्था।

सुधा बग! के कर्मरे से सब कुछ सुन रही र्थी। आयी और चन्दर से बो!ी, ''बहुत बुरी बात है, चन्दर! किबनती, क्यों रो रही हो, रानी? बुआ का स्वभाव ही ऐसा है, उससे हरे्मशा अपना दिद! दुखाने से क्या !ाभ?'' और पास 5ाकर उसको

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छाती से !गाकर सुधा बो!ी, ''र्मेरी रा5दु!ारी! अब रोना र्मत, ऐं! अच्छा, हर्म !ोग कभी र्म5ाक नहीं करेंगे! बस अब चुप हो 5ाओ, रानी किबदिKया की तरह 5ाओ र्मुँह धो आओ।''

किबनती च!ी गयी। चन्दर !ण्डिज्जत-सा बैठा र्था।

''!ो, अब तुम्हें भी रु!ाई आ रही है क्या?'' सुधा ने बहुत दु!ार से कहा, ''तुर्म उससे ससुरा! का र्म5ाक र्मत किकया करो। वह बहुत दु:खी है और बहुत कदर करती है तुम्हारी। और किकसी की र्म5ाक की बात और है। हर्म या तुर्म कहते हैं तो उसे !ग 5ाता है।''

''अच्छा, वो कह रही र्थी, तुम्हारी फोKो उन !ोगों ने पसन्द कर !ी है''-चन्दर ने बात बद!ने के खया! से कहा।

''और क्या, कोई हर्मारी शक्! तुम्हारी तरह है किक !ोग नापसन्द कर दें।'' सुधा अकड़कर बो!ी।

''नहीं, सच-सच बताओ?'' चन्दर ने पूछा।

''अरे 5ी,'' !ापरवाही से र्मुँह किबचकाकर सुधा बो!ी, ''उनके पसन्द करने से क्या होता है? र्मैं ब्याह-उआह नहीं करँूगी। तुर्म इस फेर र्में न रहना किक हर्में किनका! दोगे यहाँ से।''

इतने र्में किबनती आ गयी। वह भी उदास र्थी। सुधा उठी और किबनती को पकड़ !ायी और wके!कर चन्दर के बग! र्में किबठा दिदया।

''!ो, चन्दर! अब इसे दु!ार कर !ो तो अभी गुरगुराने !गे। किबल्!ी कहीं की!'' सुधा ने उसे हल्की-सी चपत र्मारकर कहा। किबनती का र्मुँह अपनी हरे्थलि!यों र्में !ेकर अपने र्मुँह के पास !ाकर आँखों र्में आँख डा!कर कहा, ''पग!ी कहीं की, आँसू का ख5ाना !ुKाती किफरती है।''

''चन्दर!'' डॉ. शुक्!ा ने पुकारा और चन्दर उठकर च!ा गया।

सुधा पर इन दिदनों घूर्मना सवार र्था। सुबह हुई किक चप्प! पहनी और गायब। गेसू, काधिर्मनी, प्रभा, !ी!ा शायद ही कोई !ड़की बची होगी जि5सके यहाँ 5ाकर सुधा ऊधर्म न र्मचा आती हो, और चार सुख-दु:ख की बातें न कर आती हो। किबनती को घूर्मना कर्म पसन्द र्था, हाँ 5ब कभी सुधा गेसू के यहाँ 5ाती र्थी तो किबनती 5रूर 5ाती र्थी, उसे सुधा की सभी धिर्मvों र्में गेसू सबसे ज्यादा पसन्द र्थी। डॉक्Kर शुक्!ा के ब्यूरो र्में छुट्टी हो चुकी र्थी पर वे सुधा का ब्याह तय करने की कोलिशश कर रहे रे्थ। इसलि!ए वह बाहर भी नहीं गये रे्थ। चन्दर डेढ़ र्महीने तक !गातार र्मेहनत करने के बाद पढ़ाई-लि!खाई की ओर से आरार्म कर रहा र्था और उसने किनक्षिश्चत कर लि!या र्था किक अब बरसात के पह!े वह किकताब छुएगा नहीं। बडे़ आरार्म के दिदन कKते रे्थ उसके। सुबह उठकर साइकिक! पर गंगा नहाने 5ाता र्था और वहाँ अक्सर ठाकुर साहब से भी र्मु!ाकात हो 5ाती र्थी। डॉक्Kर शुक्!ा ने भी कई दफे इरादा किकया किक वे गंगा5ी च!ा करें !ेकिकन एक तो उनसे दिदन र्में कार्म नहीं होता र्था, शार्म को वे घूर्मते और सुबह उठकर किकताब लि!खते रे्थ।

एक दिदन सुबह लि!ख रहे रे्थ किक चन्दर आया और उनके पैर छूकर बो!ा, ''प्रान्तीय सरकार का वह पुरस्कार क! शार्म को आ गया!''

''कौन-सा?''

''वह 5ो उत्तर प्रान्त र्में र्माता और लिशशुओं की र्मृत्यु-संख्या पर र्मैंने किनबन्ध लि!खा र्था, उसी पर।''

''तो क्या पदक आ गया?'' डॉक्Kर शुक्!ा ने कहा।

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''5ी,'' अपनी 5ेब र्में से एक र्मखर्म!ी किडब्बा किनका!कर चन्दर ने दिदया। पदक बहुत सुन्दर र्था। 5गर्मगाता हुआ स्वण�पदक जि5सर्में प्रान्तीय रा5र्मुद्रा अंकिकत र्थी।

''ईश्वर तुम्हें बहुत यशस्वी करे 5ीवन र्में।'' डॉक्Kर शुक्!ा ने पदक उसकी कर्मी5 र्में अपने हार्थों से !गा दिदया, ''5ाओ, अन्दर सुधा को दिदखा आओ।''

चन्दर 5ाने !गा तो डॉक्Kर साहब ने बु!ाया, ''अच्छा, अब सुधा की शादी का इन्त5ार्म करना है। हर्मसे तो कुछ होने से रहा, तुम्हीं को सब करना होगा। और सुनो, 5ेठ दशहरा को !ड़के का भाई और र्माँ देखने आ रही हैं। और बहन भी आएगँी गाँव से।''

''अच्छा?'' चन्दर बैठ गया कुसr पर और बो!ा, ''कहाँ है !ड़का? क्या करता है?''

''!ड़का शाह5हाँपुर र्में है। घर के 5र्मींदार हैं ये !ोग। !ड़का एर्म. ए. है। और अचे्छ किवचारों का है। उसने लि!खा है किक लिसफ� दस आदर्मी बारात र्में आएगेँ, एक दिदन रुकें गे। संस्कार के बाद च!े 5ाएगँे। लिसवा !ड़की के गहने-कपडे़ और !ड़के के गहने-कपड़ों के और कुछ भी नहीं स्वीकार करेंगे।''

''अच्छा, ब्राह्मणों र्में तो ऐसा कु! नहीं धिर्म!ेगा।''

''तभी तो! सुधा की किकस्र्मत है, वरना तुर्म किबनती के ससुर को तो देख ही चुके हो। अच्छा 5ाओ, सुधा से धिर्म! आओ।''

वह सुधा के कर्मरे र्में आ गया। सुधा र्थी ही नहीं। वह आँगन र्में आया। देखा र्महराजि5न खाना बना रही है और किबनती बरार्मदे र्में बुरादे की अँगीठी पर पकोकिड़याँ बना रही है।

''आइए,'' किबनती बो!ी, ''दीदी तो गयी हैं गेसू को बु!ाने। आ5 गेसू की दावत है।...पीढे़ पर बैदिठएगा, !ीजि5ए।'' एक पीढ़ा चन्दर की ओर किबनती ने खिखसका दिदया। चन्दर बैठ गया। किबनती ने उसके हार्थ र्में र्मखर्म!ी किडब्बा देखा तो पूछा, ''यह क्या !ाये? कुछ दीदी के लि!ए है क्या? यह तो अँगूठी र्मा!ूर्म पड़ती है।''

''अँगूठी, वह क्या दा! र्में धिर्म!ा के खाएगी! 5ंग!ी कहीं की! उसे क्या तर्मी5 है अँगूठी पहनने की!''

''हर्मारी दीदी के लि!ए ऐसी बात की तो अच्छा नहीं होगा, हाँ!'' उसे किबनती ने उसी तरह गरदन Kेढ़ी कर आँखें डु!ाते हुए धर्मकाया-''उन्हें नहीं अँगूठी पहननी आएगी तो क्या आपको आएगी? अब ब्याह र्में सो!हों सिस-गार करेंगी! अच्छा, दीदी कैसी !गेंगी घूँघK काढ़ के? अभी तक तो लिसर खो!े चकई की तरह घूर्मती-किफरती हैं।''

''तुर्मने तो डा! !ी आदत, ससुरा! र्में रहने की!'' चन्दर ने किबनती से कहा।

''अरे हर्मारा क्या!'' एक गहरी साँस !ेते हुए किबनती ने कहा, ''हर्म तो उसी के लि!ए बने रे्थ। !ेकिकन सुधा दीदी को ब्याह-शादी र्में न फँसना पड़ता तो अच्छा र्था। दीदी इन सबके लि!ए नहीं बनी र्थीं। आप र्मार्मा5ी से कहते क्यों नहीं?''

चन्दर ने कुछ 5वाब नहीं दिदया। चुपचाप बैठा हुआ सोचता रहा। किबनती भी कड़ाही र्में से पकौकिड़याँ किनका!-किनका!कर र्था!ी र्में रखने !गी। र्थोड़ी देर बाद 5ब वह घी र्में पकौकिड़याँ डा! चुकी तब भी वह वैसे ही गुर्मसुर्म बैठा सोच रहा र्था।

''क्या सोच रहे हैं आप? नहीं बताइएगा। किफर अभी हर्म दीदी से कह देंगे किक बैठ-बैठे सोच रहे रे्थ।'' किबनती बो!ी।

''क्या तुम्हारी दीदी का डर पड़ा है?'' चन्दर ने कहा।

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''अपने दिद! से पूलिछए। हर्मसे नहीं बन सकते आप!'' किबनती ने र्मुसकराकर कहा और उसके गा!ों र्में फू!ों के कKोरे खिख! गये-''अच्छा, इस किडब्बे र्में क्या है, कुछ प्राइवेK!''

''नहीं 5ी, प्राइवेK क्या होगा, और वह भी तुर्मसे? सोने का र्मेड! है। धिर्म!ा है र्मुझे एक !ेख पर।'' और चन्दर ने किडब्बा खो!कर दिदख!ा दिदया।

''आहा! ये तो बहुत अच्छा है। हर्में दे दीजि5ए।'' किबनती बो!ी।

''क्या करेगी तू?'' चन्दर ने हँसकर पूछा।

''अपने आनेवा!े 5ी5ा5ी के लि!ए कान के बुन्दे बनवा !ेंगे।'' किबनती बो!ी, ''अरे हाँ, आपको एक ची5 दिदखाएगेँ।''

''क्या?''

''यह नहीं बताते। देखिखएगा तो उछ! पण़्डिडएगा।''

''तो दिदखाओ न!''

''अभी तो दीदी आ रही होंगी। दीदी के सार्मने नहीं दिदखाएगेँ।''

''सुधा से लिछपाकर हर्म कुछ नहीं कर सकते, यह तुर्म 5ानती हो।'' चन्दर बो!ा।

''लिछपाने की बात र्थोडे़ ही है। देखकर तब उन्हें बता दीजि5एगा। वैसे वह खुद ही सुधा दीदी से क्या लिछपाते हैं? !ो, सुधा दीदी तो आ गयीं...''

चन्दर ने पीछे र्मुडक़र देखा। सुधा के हार्थ र्में एक !म्बा-सा सरकंडा र्था और उसे झंडे की तरह फहराती हुई च!ी आ रही र्थी। चन्दर हँस पड़ा।

''खिख! गये दीदी को देखते ही!'' किबनती बो!ी और एक गरर्म पकौड़ी चन्दर के ऊपर फें क दी।

''अरे, बड़ी शैतान हो गयी हो तुर्म इधर! पा5ी कहीं की!'' चन्दर बो!ा।

सुधा चप्प! उतारकर अन्दर आयी। झूर्मती-इठ!ाती हुई च!ी आ रही र्थी।

''कहो, सेठ स्वार्थrर्म!!'' उसने चन्दर को देखते ही कहा, ''सुबह हुई और पकौड़ी की र्महक !ग गयी तुम्हें!'' पीढ़ा खींचकर उसके बग! र्में बैठ गयी और सरकंडा चन्दर के हार्थ पर रखते हुए बो!ी, ''!ो, यह ग�ा। घर र्में बो देना। और गँडेरी खाना! अच्छा!'' और हार्थ बढ़ाकर वह किडकिबया उठा !ी और बो!ी, ''इसर्में क्या है? खो!ें या न खो!ें?''

''अच्छा, खत तक तो हर्मारे किबना पूछे खो! !ेती हो। इसे पूछ के खो!ोगी!''

''अरे हर्मने सोचा शायद इस किडकिबया र्में पम्र्मी का दिद! बन्द हो। तुम्हारी धिर्मv है, शायद स्र्मृकित-लिचह्न ï र्में वही दे दिदया हो।'' और सुधा ने किडकिबया खो!ी तो उछ! पड़ी, ''यह तो उसी किनबन्ध पर धिर्म!ा है जि5सका चाK� तुर्म बनाये रे्थ!''

''हाँ!''

''तब तो ये हर्मारा है।'' किडकिबया अपने वक्ष र्में लिछपाकर सुधा बो!ी।

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''तुम्हारा तो है ही। र्मैं अपना कब कहता हूँ?'' चन्दर ने कहा।

''!गाकर देखें!'' और उठकर सुधा च! दी।

''किबनती, दो पकौड़ी तो दो।'' और दो पकौकिड़याँ !ेकर खाते हुए चन्दर सुधा के कर्मरे र्में गया। देखा, सुधा शीशे के सार्मने खड़ी है और र्मेड! अपनी साड़ी र्में !गा रही है। वह चुपचाप खड़ा होकर देखने !गा। सुधा ने र्मेड! !गाया और क्षण-भर तनकर देखती रही किफर उसे एक हार्थ से वक्ष पर लिचपका लि!या और र्मुँह झुकाकर उसे चूर्म लि!या।

''बस, कर दिदया न गन्दा उसे!'' चन्दर र्मौका नहीं चूका।

और सुधा तो 5ैसे पानी-पानी। गा!ों से !ा5 की रतनारी !पKें फूKीं और एड़ी तक धधक उठीं। फौरन शीशे के पास से हK गयी और किबगड़कर बो!ी, ''चोर कहीं के! क्या देख रहे रे्थ?''

किबनती इतने र्में तश्तरी र्में पकौड़ी रखकर !े आयी। सुधा ने झK से र्मेड! उतार दिदया और बो!ी, ''!ो, रखो सहे5कर।''

''क्यों, पहने रहो न!''

''ना बाबा, परायी ची5, अभी खो 5ाये तो डाँड़ भरना पडे़।'' और र्मेड! चन्दर की गोद र्में रख दिदया।

किबनती ने धीरे्म से कहा, ''या र्मुर!ी र्मुर!ीधर की अधरा न धरी अधरा न धरौंगी।''

चन्दर और सुधा दोनों झेंप गये। ''!ो, गेसू आ गयी।''

सुधा की 5ान र्में 5ान आ गयी। चन्दर ने किबनती का कान पकडक़र कहा, ''बहुत उ!Kा-सीधा बो!ने !गी है!''

किबनती ने कान छुड़ाते हुए कहा, ''कोई झूठ र्थोडे़ ही कहती हूँ!''

चन्दर चुपचाप सुधा के कर्मरे र्में पकौकिडय़ाँ खाता रहा। बग! के कर्मरे र्में सुधा, गेसू, फू! और हसरत बैठे बातें करते रहे। किबनती उन !ोगों को नाश्ता देती रही। उस कर्मरे र्में नाश्ता पहुँचाकर किबनती एक किग!ास र्में पानी !ेकर चन्दर के पास आयी और पानी रखकर बो!ी, ''अभी ह!ुआ !ा रही हूँ, 5ाना र्मत!'' और प!-भर र्में तश्तरी र्में ह!ुआ रखकर !े आयी।

''अब र्मैं च! रहा हूँ!'' चन्दर ने कहा।

''बैठो, अभी हर्म एक ची5 दिदखाएगेँ। 5रा गेसू से बात कर आए।ँ'' किबनती बडे़ भो!े स्वर र्में बो!ी, ''आइए, हसरत धिर्मयाँ।'' और प!-भर र्में नन्हें-र्मु�े-से छह वष� के हसरत धिर्मयाँ तन5ेब का कुरता और चूड़ीदार पाय5ारे्म पर पी!े रेशर्म की 5ाकेK पहने कर्मरे र्में खरगोश की तरह उछ! आये।

''आदाब5�।'' बडे़ तर्मी5 से उन्होंने चन्दर को स!ार्म किकया।

चन्दर ने उसे गोद र्में उठाकर पास किबठा दिदया। ''!ो, ह!ुआ खाओ, हसरत!''

हसरत ने लिसर किह!ा दिदया और बो!ा, ''गेसू ने कहा र्था, 5ाकर चन्दर भाई से हर्मारा आदाब कहना और कुछ खाना र्मत! हर्म खाएगँे नहीं।''

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चन्दर बो!ा, ''हर्मारा भी नर्मस्ते कह दो उनसे 5ाकर।''

हसरत उठ खड़ा हुआ-''हर्म कह आए।ँ'' किफर र्मुडक़र बो!ा, ''आप तब तक ह!ुआ खत्र्म कर देंगे?''

चन्दर हँस पड़ा, ''नहीं, हर्म तुम्हारा इन्त5ार करेंगे, 5ाओ।''

हसरत लिसर किह!ाता हुआ च!ा गया।

इतने र्में सुधा आयी और बो!ी, ''गेसू की ग5! सुनो यहाँ बैठकर। आवा5 आ रही है न! फू! भी आयी है इसलि!ए गेसू तुम्हारे सार्मने नहीं आएगी वरना फू! अम्र्मी5ान से लिशकायत कर देगी। !ेकिकन वह तुर्मसे धिर्म!ने को बहुत इचु्छक है, अच्छा यहीं से सुनना बैठे-बैठे...''

सुधा च!ी गयी। गेसू ने गाना शुरू किकया बहुत र्महीन, पत!ी !ेकिकन बेहद र्मीठी आवा5 र्में जि5सर्में कसक और नशा दोनों घु!े-धिर्म!े रे्थ। चन्दर एक तकिकया Kेककर बैठ गया और उनींदा-सा सुनने !गा। ग5! खत्र्म होते ही सुधा भागकर आयी-''कहो, सुन लि!या न!'' और उसके पीछे-पीछे आया हसरत और सुधा के पैरों र्में लि!पKकर बो!ा, ''सुधा, हर्म ह!ुआ नहीं खाएगँे!''

सुधा हँस पड़ी, ''पाग! कहीं का। !े खा।'' और उसके र्मुँह र्में ह!ुआ ठँूस दिदया। हसरत को गोद र्में !ेकर वह चन्दर के पास बैठ गयी और गेसू के बारे र्में बताने !गी, ''गेसू गर्मिर्म-याँ किबताने नैनीता! 5ा रही है। वहीं अख्तर की अम्र्मी भी आएगँी और र्मँगनी की रस्र्म वहीं पूरी करेंगी। अब वह पढे़गी नहीं। 5ु!ाई तक उसका किनकाह हो 5ाएगा। क! रात की गाड़ी से 5ा रहे हैं ये !ोग। वगैरह-वगैरह।''

किबनती बैठी-बैठी गेसू और फू! से बातें करती रही। र्थोड़ी देर बाद सुधा उठकर च!ी गयी। तुर्म 5ाना र्मत, आ5 खाना यहीं खाना, र्मैं किबनती को तुम्हारे पास भे5 रही हूँ, उससे बातें करते रहना।''

र्थोड़ी देर बाद किबनती आयी। उसके हार्थ र्में कुछ र्था जि5से वह अपने आँच! से लिछपाये हुई र्थी। आयी और बो!ी, ''अब दीदी नहीं हैं, 5ल्दी से देख !ीजि5ए।''

''क्या है?'' चन्दर ने ताज्जुब से पूछा।

''5ी5ा5ी की फोKो।'' किबनती ने र्मुसकराकर कहा और एक छोKी-सी बहुत क!ात्र्मक फोKो चन्दर के हार्थ र्में रख दी।

''अरे यह तो धिर्मश्र है। कॉर्मरेड कै!ाश धिर्मश्र।'' और चन्दर के दिदर्माग र्में बरे!ी की बातें, !ाठी चा5�...सभी कुछ घूर्म गया। चन्दर के र्मन र्में इस वक्त 5ाने कैसा-सा !ग रहा र्था। कभी बड़ा अचर5 होता, कभी एक सन्तोष होता किक च!ो सुधा के भाग्य की रेखा उसे अच्छी 5गह !े गयी, किफर कभी सोचता किक धिर्मश्र इतना किवलिचv स्वभाव का है, सुधा की उससे किनभेगी या नहीं? किफर सोचता, नहीं सुधा भाग्यवान है। इतना अच्छा !ड़का धिर्म!ना र्मुश्किश्क! र्था।

''आप इन्हें 5ानते हैं?'' किबनती ने पूछा।

''हाँ, सुधा भी उन्हें नार्म से 5ानती है शक्! से नहीं। !ेकिकन अच्छा !ड़का है, बहुत अच्छा !ड़का।'' चन्दर ने एक गहरी साँस !ेकर कहा और किफर चुप हो गया। किबनती बो!ी, ''क्या सोच रहे हैं आप?''

''कुछ नहीं।'' प!कों र्में आये हुए आँसू रोककर और होठों पर र्मुसकान !ाने की कोलिशश करते हुए बो!ा, ''र्मैं सोच रहा हूँ, आ5 किकतना सन्तोष है र्मुझे, किकतनी खुशी है र्मुझे, किक सुधा एक ऐसे घर 5ा रही है 5ो इतना अच्छा है, ऐसे !ड़के के सार्थ 5ा रही है 5ो इतना ऊँचा''...कहते-कहते चन्दर की आँखें भर आयीं।

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किबनती चन्दर के पास खड़ी होकर बो!ी, ''लिछह, चन्दर बाबू! आपकी आँखों र्में आँसू! यह तो अच्छा नहीं !गता। जि5तनी पकिवvता और ऊँचाई से आपने सुधा के सार्थ किनबाह किकया है, यह तो शायद देवता भी नहीं कर पाते और दीदी ने आपको 5ैसा किनश्छ! प्यार दिदया है उसको पाकर तो आदर्मी स्वग� से भी ऊँचा उठ 5ाता है, फौ!ाद से भी ज्यादा ताकतवर हो 5ाता है, किफर आ5 इतने शुभ अवसर पर आप र्में कर्म5ोरी कहाँ से? हर्में तो बड़ी शरर्म !ग रही है। आ5 तक दीदी तो दूर, हर्म तक को आप पर गव� र्था। अच्छा, र्मैं फोKो रख तो आऊँ वरना दीदी आ 5ाएगँी!'' किबनती ने फोKो !ी और च!ी गयी।

किबनती 5ब !ौKी तो चन्दर स्वस्थ र्था। किबनती की ओर क्षण भर चन्दर ने देखा और कहा, ''र्मैं इसलि!ए नहीं रोया र्था किबनती, र्मुझे यह !गा किक यहाँ कैसा !गेगा। खैर 5ाने दो।''

''एक दिदन तो ऐसा होता ही है न, सहना पडे़गा!'' किबनती बो!ी।

''हाँ, सो तो है; अच्छा किबनती, सुधा ने यह फोKो देखी है?'' चन्दर ने पूछा।

''अभी नहीं, अस! र्में र्मार्मा5ी ने र्मुझसे कहा र्था किक यह फोKो दिदखा दे सुधा को; !ेकिकन र्मेरी किहम्र्मत नहीं पड़ी। र्मैंने उनसे कह दिदया किक चन्दर आएगेँ तो दिदखा देंगे। आप 5ब ठीक सर्मझें तो दिदखा दें। 5ेठ दशहरा अग!े ही र्मंग! को है।'' किबनती ने कहा।

''अच्छा।'' एक गहरी साँस !ेकर चन्दर बो!ा।

किबनती र्थोड़ी देर तक चन्दर की ओर एकKक देखती रही। चन्दर ने उसकी किनगाह चुरा !ी और बो!ा, ''क्या देख रही हो, किबनती?''

''देख रही हूँ किक आपकी प!कें झपकती हैं या नहीं?'' किबनती बहुत गम्भीरता से बो!ी।

''क्यों?''

''इसलि!ए किक र्मैंने सुना र्था, देवताओं की प!कें कभी नहीं किगरतीं।''

चन्दर एक फीकी हँसी हँसकर रह गया।

''नहीं, आप र्म5ाक न सर्मझें। र्मैंने अपनी जि5-दगी र्में जि5तने !ोग देखे, उनर्में आप-5ैसा कोई भी नहीं धिर्म!ा। किकतने ऊँचे हैं आप, किकतना किवशा! हृदय है आपका! दीदी किकतनी भाग्यशा!ी हैं।''

चन्दर ने कुछ 5वाब नहीं दिदया। ''5ाओ, फोKो !े आओ।'' उसने कहा, ''आ5 ही दिदखा दँू। 5ाओ, खाना भी !े आओ। अब घर 5ाकर क्या करना है।''

पापा को खाना खिख!ाने के बाद चन्दर और सुधा खाने बैठे। र्महराजि5न च!ी गयी र्थी। इसलि!ए किबनती सेंक-सेंककर रोKी दे रही र्थी। सुधा एक रेशर्मी सकिनया पहने चौके के अन्दर खा रही र्थी। और चन्दर चौके के बाहर। सुबह के कच्चे खाने र्में डॉक्Kर शुक्!ा बहुत छूत-छात का किवचार रखते रे्थ।

''देखो, आ5 किबनती ने रोKी बनायी है तो किकतनी र्मीठी !ग रही है, एक तुर्म बनाती हो किक र्मा!ूर्म ही नहीं पड़ता रोKी है किक सोख्ता!'' चन्दर ने सुधा को लिचढ़ाते हुए कहा।

सुधा ने हँसकर कहा, ''हर्में किबनती से !ड़ाने की कोलिशश कर रहे हो! किबनती की हर्मसे जि5-दगी-भर !ड़ाई नहीं हो सकती!''

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''अरे हर्म सब सर्मझते हैं इनकी बात!'' किबनती ने रोKी पKकते हुए कहा और 5ब सुधा लिसर झुकाकर खाने !गी तो किबनती ने आँख के इशारे से पूछा, ''कब दिदखाओगे?''

चन्दर ने लिसर किह!ाया और किफर सुधा से बो!ा, ''तुर्म उन्हें लिचट्ठी लि!खोगी?''

''किकन्हें?''

''कै!ाश धिर्मश्रा को, वही बरे!ी वा!े? उन्होंने हर्में खत लि!खा र्था उसर्में तुम्हें प्रणार्म लि!खा र्था।'' चन्दर बो!ा।

''नहीं, खत-वत नहीं लि!खते। उन्हें एक दफे बु!ाओ तो यहाँ।''

''हाँ, बु!ाएगँे अब र्महीने-दो र्महीने बाद, तब तुर्मसे खूब परिरचय करा देंगे और तुम्हें उसकी पाK\ र्में भी भरती करा देंगे।'' चन्दर ने कहा।

''क्या? हर्म र्म5ाक नहीं करते? हर्म सचर्मुच सर्मा5वादी द! र्में शाधिर्म! होंगे।'' सुधा बो!ी, ''अब हर्म सोचते हैं कुछ कार्म करना चाकिहए, बहुत खे!-कूद लि!ये, बचपन किनभा लि!या।''

''उन्होंने अपना लिचv भे5ा है। देखोगी?'' चन्दर ने 5ेब र्में हार्थ डा!ते हुए पूछा।

''कहाँ?'' सुधा ने बहुत उत्सुकता से पूछा, ''किनका!ो देखें।''

''पह!े बताओ, हर्में क्या इनार्म दोगी? बहुत र्मुश्किश्क! से भे5ा उन्होंने लिचv!'' चन्दर ने कहा।

''इनार्म देंगे इन्हें!'' सुधा बो!ी और झK से झपKकर लिचv छीन लि!या।

''अरे, छू लि!या चौके र्में से?'' किबनती ने दबी 5बान से कहा।

सुधा ने र्था!ी छोड़ दी। अब छू गयी र्थी वह; अब खा नहीं सकती र्थी।

''अच्छी फोKो देखी दीदी। सार्मने की र्था!ी छूK गयी!'' किबनती ने कहा।

सुधा ने हार्थ धोकर आँच! के छोर से पकडक़र फोKो देखी और बो!ी, ''चन्दर, सचर्मुच देखो! किकतने अचे्छ !ग रहे हैं। किकतना ते5 है चेहरे पर, और र्मार्था देखो किकतना ऊँचा है।'' सुधा फोKो देखती हुई बो!ी।

''अच्छी !गी फोKो? पसन्द है?'' चन्दर ने बहुत गम्भीरता से पूछा।

''हाँ, हाँ, और सर्मा5वादिदयों की तरह नहीं !गते ये।'' सुधा बो!ी।

''अच्छा सुधा, यहाँ आओ।'' और चन्दर के सार्थ सुधा अपने कर्मरे र्में 5ाकर प!ँग पर बैठ गयी। चन्दर उसके पास बैठ गया और उसका हार्थ अपने हार्थ र्में !ेकर उसकी अँगूठी घुर्माते हुए बो!ा, ''सुधा, एक बात कहें, र्मानोगी?''

''क्या?'' सुधा ने बहुत दु!ार और भो!ेपन से पूछा।

''पह!े बता दो किक र्मानोगी?'' चन्दर ने उसकी अँगूठी की ओर एकKक देखते हुए कहा।

''किफर, हर्मने कभी कोई बात तुम्हारी Kा!ी है! क्या बात है?''

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''तुर्म र्मानोगी चाहे कुछ भी हो?'' चन्दर ने पूछा।

''हाँ-हाँ, कह तो दिदया। अब कौन-सी तुम्हारी ऐसी बात है 5ो तुम्हारी सुधा नहीं र्मान सकती!'' आँखों र्में, वाणी र्में, अंग-अंग से सुधा के आत्र्मसर्मप�ण छ!क रहा र्था।

''किफर अपनी बात पर कायर्म रहना, सुधा! देखो!'' उसने सुधा की उँगलि!याँ अपनी प!कों से !गाते हुए कहा, ''सुधी र्मेरी! तुर्म उस !ड़के से ब्याह कर !ो!''

''क्या?'' सुधा चोK खायी नाकिगन की तरह तड़प उठी-''इस !ड़के से? यही शक! है इसकी हर्मसे ब्याह करने की! चन्दर, हर्म ऐसा र्म5ाक नापसन्द करते हैं, सर्मझे किक नहीं! इसलि!ए बडे़ प्यार से बु!ा !ाये, बड़ा दु!ार कर रहे रे्थ!''

''तुर्म अभी वायदा कर चुकी हो!'' चन्दर ने बहुत आजि55ी से कहा।

''वायदा कैसा? तुर्म कब अपने वायदे किनभाते हो? और किफर यह धोखा देकर वायदा कराना क्या? किहम्र्मत र्थी तो साफ-साफ कहते हर्मसे! हर्मारे र्मन र्में आता सो कहते। हर्में इस तरह से बाँध कर क्यों बलि!दान चढ़ा रहे हो!'' और सुधा र्मारे गुस्से के रोने !गी।

चन्दर स्तब्ध। उसने इस दृश्य की कल्पना ही नहीं की र्थी। वह क्षण भर खड़ा रहा। वह क्या कहे सुधा से, कुछ सर्मझ ही र्में नहीं आता र्था। वह गया और रोती हुई सुधा के कंधे पर हार्थ रख दिदया। ''हKो उधर!'' सुधा ने बहुत रुखाई से हार्थ हKा दिदया और आँच! से लिसर wकती हुई बो!ी, ''र्मैं ब्याह नहीं करँूगी, कभी नहीं करँूगी। किकसी से नहीं करँूगी। तुर्म सभी !ोगों ने धिर्म!कर र्मुझे र्मार डा!ने की ठानी है। तो र्मैं अभी लिसर पKककर र्मर 5ाऊँगी।'' और र्मारे तैश के सचर्मुच सुधा ने अपना लिसर दीवार पर पKक दिदया। ''अरे!'' दौडक़र चन्दर, ने सुधा को पकड़ लि!या। र्मगर सुधा ने गर5कर कहा, ''दूर हKो चन्दर, छूना र्मत र्मुझे।'' और 5ैसे उसर्में 5ाने कहाँ की ताकत आ गयी है, उसने अपने को छुड़ा लि!या।

चन्दर ने दबी 5बान से कहा, ''लिछह सुधा! यह तुर्मसे उम्र्मीद नहीं र्थी र्मुझे। यह भावुकता तुम्हें शोभा नहीं देती। बातें कैसी कर रही हो तुर्म! हर्म वही चन्दर हैं न!''

''हाँ, वही चन्दर हो! और तभी तो! इस सारी दुकिनया र्में तुम्हीं एक रह गये हो र्मुझे फोKो दिदखाकर पसन्द कराने को।'' सुधा लिससक-लिससककर रोने !गी-''पापा ने भी धोखा दे दिदया। हर्में पापा से यह उम्र्मीद नहीं र्थी।''

''पग!ी! कौन अपनी !ड़की को हरे्मशा अपने पास रख पाया है!'' चन्दर बो!ा।

''तुर्म चुप रहो, चन्दर। हर्में तुम्हारी बो!ी 5हर !गती है। 'सुधा, यह फोKो तुम्हें पसन्द है?' तुम्हारी 5बान किह!ी कैसे? शरर्म नहीं आयी तुम्हें। हर्म किकतना र्मानते रे्थ पापा को, किकतना र्मानते रे्थ तुम्हें? हर्में यह नहीं र्मा!ूर्म र्था किक तुर्म !ोग ऐसा करोगे।'' र्थोड़ी देर चुपचाप लिससकती रही सुधा और किफर धधककर उठी-''कहाँ है वह फोKो? !ाओ, अभी र्मैं 5ाऊँगी पापा के पास! र्मैं कहूँगी उनसे हाँ, र्मैं इस !ड़के को पसन्द करती हूँ। वह बहुत अच्छा है, बहुत सुन्दर है। !ेकिकन र्मैं उससे शादी नहीं करँूगी, र्मैं किकसी से शादी नहीं करँूगी! झूठी बात है...'' और उठकर पापा के कर्मरे की ओर 5ाने !गी।

''खबरदार, 5ो कदर्म बढ़ाया!'' चन्दर ने डाँKकर कहा, ''बैठो इधर।''

''र्मैं नहीं रुकँूगी!'' सुधा ने अकडक़र कहा।

''नहीं रुकोगी?''

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''नहीं रुकँूगी।''

और चन्दर का हार्थ तैश र्में उठा और एक भरपूर तर्माचा सुधा के गा! पर पड़ा। सुधा के गा! पर नी!ी उँगलि!याँ उपK आयीं। वह स्तब्ध! 5ैसे पत्थर बन गयी हो। आँख र्में आँसू 5र्म गये। प!कों र्में किनगाहें 5र्म गयीं। होठों र्में आवा5ें 5र्म गयीं और सीने र्में लिससकिकयाँ 5र्म गयीं।

चन्दर ने एक बार सुधा की ओर देखा और कुसr पर 5ैसे किगर पड़ा और लिसर पKककर बैठ गया। सुधा कुसr के पास 5र्मीन पर बैठ गयी। चन्दर के घुKनों पर लिसर रख दिदया। बड़ी भारी आवा5 र्में बो!ी, ''चन्दर, देखें तुम्हारे हार्थ र्में चोK तो नहीं आयी।''

चन्दर ने सुधा की ओर देखा, एक ऐसी किनगाह से जि5सर्में कब्र र्मुँह फाड़कर 5र्मुहाई !े रही र्थी। सुधा एकाएक किफर लिससक पड़ी और चन्दर के पैरों पर लिसर रखकर बो!ी, ''चन्दर, सचर्मुच र्मुझे अपने आश्रय से किनका!कर ही र्मानोगे! चन्दर, र्म5ाक की बात दूसरी है, जि5-दगी र्में तो दुश्र्मनी र्मत किनका!ा करो।''

चन्दर एक गहरी साँस !ेकर चुप हो गया। और लिसर र्थार्मकर बैठ गया। पाँच धिर्मनK बीत गये। कर्मरे र्में स�ाKा, गहन खार्मोशी। सुधा चन्दर के पाँवों को छाती से लिचपकाये सूनी-सूनी किनगाहों से 5ाने कुछ देख रही र्थी दीवारों के पार, दिदशाओं के पार, क्षिक्षकित5ों से परे...दीवार पर घड़ी च! रही र्थी दिKक...दिKक...

चन्दर ने लिसर उठाया और कहा, ''सुधा, हर्मारी तरफ देखो-'' सुधा ने लिसर ऊपर उठाया। चन्दर बो!ा, ''सुधा, तुर्म हर्में 5ाने क्या सर्मझ रही होगी, !ेकिकन अगर तुर्म सर्मझ पाती किक र्मैं क्या सोचता हूँ! क्या सर्मझता हूँ।'' सुधा कुछ नहीं बो!ी, चन्दर कहता गया, ''र्मैं तुम्हारे र्मन को सर्मझता हूँ, सुधा! तुम्हारे र्मन ने 5ो तुर्मसे नहीं कहा, वह र्मुझसे कह दिदया र्था-!ेकिकन सुधा, हर्म दोनों एक-दूसरे की जि5-दगी र्में क्या इसीलि!ए आये किक एक-दूसरे को कर्म5ोर बना दें या हर्म !ोगों ने स्वग� की ऊँचाइयों पर सार्थ बैठकर आत्र्मा का संगीत सुना लिसफ� इसीलि!ए किक उसे अपने ब्याह की शहनाई र्में बद! दें?''

''ग!त र्मत सर्मझो चन्दर, र्मैं गेसू नहीं किक अख्तर से ब्याह के सपने देखँू और न तुम्हीं अख्तर हो, चन्दर! र्मैं 5ानती हूँ किक र्मैं तुम्हारे लि!ए राखी के सूत से भी ज्यादा पकिवv रही हूँ !ेकिकन र्मैं 5ैसी हूँ, र्मुझे वैसी ही क्यों नहीं रहने देते! र्मैं किकसी से शादी नहीं करँूगी। र्मैं पापा के पास रहूँगी। शादी को र्मेरा र्मन नहीं कहता, र्मैं क्यों करँू? तुर्म गुस्सा र्मत हो, दुखी र्मत हो, तुर्म आज्ञा दोगे तो र्मैं कुछ भी कर सकती हूँ, !ेकिकन हत्या करने से पह!े यह तो देख !ो किक र्मेरे हृदय र्में क्या है?'' सुधा ने चन्दर के पाँवों को अपने हृदय से और भी दबाकर कहा।

''सुधा, तुर्म एक बात सोचो। अगर तुर्म सबका प्यार बKोरती च!ती हो तो कुछ तुम्हारी जि5म्र्मेदारी है या नहीं? पापा ने आ5 तक तुम्हें किकस तरह पा!ा। अब क्या तुम्हारा यह फ5� है किक तुर्म उनकी बात को ठुकराओ? और एक बात और सोचो-हर्म पर कुछ किवश्वास करके ही उन्होंने कहा है किक र्मैं तुर्मसे फोKो पसन्द कराऊँ? अगर अब तुर्म इनकार कर देती हो तो एक तरफ पापा को तुर्मसे धक्का पहुँचेगा, दूसरी ओर र्मेरे प्रकित उनके किवश्वास को किकतनी चोK !गेगी। हर्म उन्हें क्या र्मुँह दिदखाने !ायक रहेंगे भ!ा! तो तुर्म क्या चाहती हो? र्मह5 अपनी र्थोड़ी-सी भावुकता के पीछे तुर्म सभी की जि5-दगी चौपK करने के लि!ए तैयार हो? यह तुम्हें शोभा नहीं देता है। क्या कहेंगे पापा, किक चन्दर ने अभी तक तुम्हें यही लिसखाया र्था? हर्में !ोग क्या कहेंगे? बताओ। आ5 तुर्म शादी न करो। उसके बाद पापा हरे्मशा के लि!ए दु:खी रहा करें और दुकिनया हर्में कहा करे, तब तुम्हें अच्छा !गेगा?''

''नहीं।'' सुधा ने भरा�ये हुए ग!े से कहा।

''तब, और किफर एक बात और है न सुधी! सोने की पहचान आग र्में होती है न! !पKों र्में अगर उसर्में और किनखार आये तभी वह सच्चा सोना है। सचर्मुच र्मैंने तुम्हारे व्यलिक्तत्व को बनाया है या तुर्मने र्मेरे व्यलिक्तत्व को बनाया है, यह तो तभी र्मा!ूर्म होगा 5बकिक हर्म !ोग कदिठनाइयों से, वेदनाओं से, संघष� से खे!ें और बाद र्में किव5यी हों और तभी र्मा!ूर्म होगा किक सचर्मुच र्मैंने तुम्हारे 5ीवन र्में प्रकाश और ब! दिदया र्था। अगर सदा तुर्म र्मेरी बाँहों की सीर्मा र्में रहीं

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और र्मैं तुम्हारी प!कों की छाँव र्में रहा और बाहर के संघष� से हर्म !ोग डरते रहे तो कायरता है। और र्मुझे अच्छा !गेगा किक दुकिनया कहे किक र्मेरी सुधा, जि5स पर र्मुझे ना5 र्था, वह कायर है? बो!ो। तुर्म कायर कह!ाना पसन्द करोगी?''

''हाँ!'' सुधा ने किफर चन्दर के घुKनों र्में र्मुँह लिछपा लि!या।

''क्या? यह र्मैं सुधा के र्मुँह से सुन रहा हूँ! लिछह पग!ी! अभी तक तेरी किनगाहों ने र्मेरे प्राणों र्में अर्मृत भरा है और र्मेरी साँसों ने तेरे पंखों र्में तूफानों की ते5ी। और हर्में-तुम्हें तो आ5 खुश होना चाकिहए किक अब सार्मने 5ो रास्ता है उसर्में हर्म !ोगों को यह लिस» करने का अवसर धिर्म!ेगा किक सचर्मुच हर्म !ोगों ने एक-दूसरे को ऊँचाई और पकिवvता दी है। र्मैंने आ5 तक तुम्हारी सहायता पर किवश्वास किकया र्था। आ5 क्या तुर्म र्मेरा किवश्वास तोड़ दोगी? सुधा, इतनी कू्रर क्यों हो रही हो आ5 तुर्म? तुर्म साधारण !ड़की नहीं हो। तुर्म ध्रुवतारा से ज्यादा प्रकाशर्मान हो। तुर्म यह क्यों चाहती हो किक दुकिनया कहे, सुधा भी एक साधारण-सी भावुक !ड़की र्थी और आ5 र्मैं अपने कान से सुनँू! बो!ो सुधी?'' चन्दर ने सुधा के लिसर पर हार्थ रखकर कहा।

सुधा ने आँखें उठायीं, बड़ी कातर किनगाहों से चन्दर की ओर देखा और लिसर झुका लि!या। सुधा के लिसर पर हार्थ फेरते हुए चन्दर बो!ा-

''सुधा, र्मैं 5ानता हूँ र्मैं तुर्म पर शायद बहुत सख्ती कर रहा हूँ, !ेकिकन तुम्हारे लिसवा और कौन है र्मेरा? बताओ। तुम्हीं पर अपना अधिधकार भी आ5र्मा सकता हूँ। किवश्वास करो र्मुझ पर सुधा, 5ीवन र्में अ!गाव, दूरी, दुख और पीड़ा आदर्मी को र्महान बना सकती है। भावुकता और सुख हर्में ऊँचे नहीं उठाते। बताओ सुधा, तुम्हें क्या पसन्द है? र्मैं ऊँचा उठँू तुम्हारे किवश्वास के सहारे, तुर्म ऊँची उठो र्मेरे किवश्वास के सहारे, इससे अच्छा और क्या है सुधा! चाहो तो र्मेरे 5ीवन को एक पकिवv साधन बना दो, चाहो तो एक लिछछ!ी अनुभूकित।''

सुधा ने एक गहरी साँस !ी, क्षण-भर घड़ी की ओर देखा और बो!ी, ''इतनी 5ल्दी क्या है अभी, चन्दर? तुर्म 5ो कहोगे र्मैं कर !ँूगी!'' और किफर वह लिससकने !गी-''!ेकिकन इतनी 5ल्दी क्या हैï? अभी र्मुझे पढ़ !ेने दो!''

''नहीं, इतना अच्छा !ड़का किफर धिर्म!ेगा नहीं। और इस !ड़के के सार्थ तुर्म वहाँ पढ़ भी सकती हो। र्मैं 5ानता हूँ उसे। वह देवताओं-सा किनश्छ! है। बो!ो, र्मैं पापा से कह दँू किक तुम्हें पसन्द है?''

सुधा कुछ नहीं बो!ी।

''र्मौन का र्मत!ब हाँ है न?'' चन्दर ने पूछा।

सुधा ने कुछ नहीं कहा। झुककर चन्दर के पैरों को अपने होठों से छू लि!या और प!कों से दो आँसू चू पडे़। चन्दर ने सुधा को उठा लि!या और उसके र्मारे्थ पर हार्थ रखकर कहा, ''ईश्वर तुम्हारी आत्र्मा को सदा ऊँचा बनाएगा, सुधा!'' उसने एक गहरी साँस !ेकर कहा, ''र्मुझे तुर्म पर गव� है,'' और फोKो उठाकर बाहर च!ने !गा।

''कहाँ 5ा रहे हो! 5ाओ र्मत!'' सुधा ने उसका कुरता पकडक़र बड़ी आजि55ी से कहा, ''र्मेरे पास रहो, तबीयत घबराती है?''

चन्दर प!ँग पर बैठ गया। सुधा तकिकये पर लिसर रखकर !ेK गयी और फKी-फKी पर्थराई आँखों से 5ाने क्या देखने !गी। चन्दर भी चुप र्था, किबल्कु! खार्मोश। कर्मरे र्में लिसफ� घड़ी च! रही र्थी, दिKक...दिKक...

र्थोड़ी देर बाद सुधा ने चन्दर के पैरों को अपने तकिकये के पास खींच लि!या और उसके त!वों पर होठ रखकर उसर्में र्मुँह लिछपाकर चुपचाप !ेKी रही। किबनती आयी। सुधा किह!ी भी नहीं! चन्दर ने देखा वह सो गयी र्थी। किबनती ने फोKो

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उठाकर इशारे से पूछा, ''र्मं5ूर?'' ''हाँ।'' किबनती ने ब5ाय खुश होने के चन्दर की ओर देखकर लिसर झुका लि!या और च!ी गयी।

सुधा सो रही र्थी और चन्दर के त!वों र्में उसकी नरर्म क्वाँरी साँसें गँू5 रही र्थीं। चन्दर बैठा रहा चुपचाप। उसकी किहम्र्मत न पड़ी किक वह किह!े और सुधा की नींद तोड़ दे। र्थोड़ी देर बाद सुधा ने करवK बद!ी तो वह उठकर आँगन के सोफे पर 5ाकर !ेK रहा और 5ाने क्या सोचता रहा।

5ब उठा तो देखा धूप w! गयी है और सुधा उसके लिसरहाने बैठी उसे पंखा झ! रही है। उसने सुधा की ओर एक अपराधी 5ैसी कातर किनगाहों से देखा और सुधा ने बहुत दद� से आँखें फेर !ीं और ऊँचाइयों पर आखिखरी साँसें !ेती हुई र्मरणास� धूप की ओर देखने !गी।

चन्दर उठा और सोचने !गा तो सुधा बो!ी, ''क! आओगे किक नहीं?''

''क्यों नहीं आऊँगा?'' चन्दर बो!ा।

''र्मैंने सोचा शायद अभी से दूर होना चाहते हो।'' एक गहरी साँस !ेकर सुधा बो!ी और पंखे की ओK र्में आँसू पोंछ लि!ये।

चन्दर दूसरे दिदन सुबह नहीं गया। उसकी र्थीलिसस का बहुत-सा भाग Kाइप होकर आ गया र्था और उसे बैठा वह सुधार रहा र्था। !ेकिकन सार्थ ही पता नहीं क्यों उसका साहस नहीं हो रहा र्था वहाँ 5ाने का। !ेकिकन र्मन र्में एक लिचन्ता र्थी सुधा की। वह क! से किबल्कु! र्मुरझा गयी र्थी। चन्दर को अपने ऊपर कभी-कभी क्रोध आता र्था। !ेकिकन वह 5ानता र्था किक यह तक!ीफ का ही रास्ता ठीक रास्ता है। वह अपनी जि5-दगी र्में सस्तेपन के खिख!ाफ र्था। !ेकिकन उसके लि!ए सुधा की प!क का एक आँसू भी देवता की तरह र्था और सुधा के फू!ों-5ैसे चेहरे पर उदासी की एक रेखा भी उसे पाग! बना देती र्थी। सुबह पह!े तो वह नहीं गया, बाद र्में स्वयं उसे पछतावा होने !गा और वह अधीरता से पाँच ब5ने का इन्त5ार करने !गा।

पाँच ब5े, और वह साइकिक! !ेकर पहुँचा। देखा, सुधा और किबनती दोनों नहीं हैं। अके!े डॉक्Kर शुक्!ा अपने कर्मरे र्में बैठे हैं। चन्दर गया। ''आओ, सुधा ने तुर्मसे कह दिदया, उसे पसन्द है?'' डॉक्Kर शुक्!ा ने पूछा।

''हाँ, उसे कोई एतरा5 नहीं।'' चन्दर ने कहा।

''र्मैं पह!े से 5ानता र्था। सुधा र्मेरी इतनी अच्छी है, इतनी सुशी! है किक वह र्मेरी इच्छा का उल्!ंघन तो कर ही नहीं सकती। !ेकिकन चन्दर, क! से उसने खाना-पीना छोड़ दिदया है। बताओ, इससे क्या फायदा? र्मेरे बस र्में क्या है? र्मैं उसे हरे्मशा तो रख नहीं सकता। !ेकिकन, !ेकिकन आ5 सुबह खाते वक्त वह बैठी भी नहीं र्मेरे पास बताओ...'' उनका ग!ा भर आया-''बताओ, र्मेरा क्या कसूर है?''

चन्दर चुप र्था।

''कहाँ है सुधा?'' चन्दर ने पूछा।

''गैरे5 र्में र्मोKर ठीक कर रही है। र्मैं इतना र्मना किकया किक धूप र्में तप 5ाओगी, !ू !ग 5ाएगी-!ेकिकन र्मानी ही नहीं! बताओ, इस झल्!ाहK से र्मुझे कैसा !गता है?'' वृ» किपता के कातर स्वर र्में डॉक्Kर ने कहा, ''5ाओ चन्दर, तुम्हीं सर्मझाओ! र्मैं क्या कहूँ?''

चन्दर उठकर गया। र्मोKर गैरे5 र्में काफी गरर्मी र्थी, !ेकिकन किबनती वहीं एक चKाई किबछाये पड़ी सो रही र्थी और सुधा इं5न का कवर उठाये र्मोKर साफ करने र्में !गी हुई र्थी। किबनती बेहोश सो रही र्थी। तकिकया चKाई से हKकर 5र्मीन

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पर च!ा गया र्था और चोKी फश� पर सोयी हुई नाकिगन की तरह पड़ी र्थी। किबनती का एक हार्थ छाती पर र्था और एक हार्थ 5र्मीन पर। आँच!, आँच! न रहकर चादर बन गया र्था। चन्दर के 5ाते ही सुधा ने र्मुँह फेरकर देखा-''चन्दर, आओ।'' क्षीण र्मुसकराहK उसके होठों पर दौड़ गयी। !ेकिकन इस र्मुसकराहK र्में उल्!ास !ुK चुका र्था, रेखाए ँबाकी र्थीं। सहसा उसने र्मुडक़र देखा-''किबनती! अरे, कैसे घोड़ा बेचकर सो रही है! उठ! चन्दर आये हैं!'' किबनती ने आँखें खो!ीं, चन्दर की ओर देखा, !ेKे-ही-!ेKे नर्मस्ते किकया और आँच! सँभा!कर किफर करवK बद!कर सो गयी।

''बहुत सोती है कम्बख्त!'' सुधा बो!ी, ''इतना कहा इससे कर्मरे र्में 5ाकर पंखे र्में सो! !ेकिकन नहीं, 5हाँ दीदी रहेगी, वहीं यह भी रहेगी। र्मैं गैरे5 र्में हूँ तो यह कैसे कर्मरे र्में रहे। वहीं र्मरेगी 5हाँ र्मैं र्मरँूगी।''

''तो तुम्हीं क्यों गैरे5 र्में र्थीं! ऐसी क्या 5रूरत र्थी अभी ठीक करने की!'' चन्दर ने कहा, !ेकिकन कोलिशश करने पर भी सुधा को आ5 डाँK नहीं पा रहा र्था। पता नहीं कहाँ पर क्या KूK गया र्था।

''नहीं चन्दर, तबीयत ही नहीं !ग रही र्थी। क्या करती! क्रोलिसया उठायी, वह भी रख दिदया। ककिवता उठायी, वह भी रख दी। ककिवता वगैरह र्में तबीयत नहीं !गी। र्मन र्में आया, कोई कठोर कार्म हो, कोई नीरस कार्म हो !ोहे-!क्कड़, पीत!-फौ!ाद का, तो र्मन !ग 5ाए। तो च!ी आयी र्मोKर ठीक करने।''

''क्यों, ककिवता र्में भी तबीयत नहीं !गी? ताज्जुब है, गेसू के सार्थ बैठकर तुर्म तो ककिवता र्में घंKों गु5ार देती र्थीं!'' चन्दर बो!ा।

''उन दिदनों शायद किकसी को प्यार करती रही होऊँ तभी ककिवता र्में र्मन !गता र्था!'' सुधा उस दिदन की पुरानी बात याद करके बहुत उदास हँसी हँसी-''अब प्यार नहीं करती होऊँगी, अब तबीयत नहीं !गती। बड़ी फीकी, बड़ी बे5ार, बड़ी बनावKी !गती हैं ये ककिवताए,ँ र्मन के दद� के आगे सभी फीकी हैं।'' और किफर वह उन्हीं पुर5ों र्में डूब गयी। चन्दर भी चुपचाप र्मोKर की खिखडक़ी से दिKककर खड़ा हो गया। और चुपचाप कुछ सोचने !गा।

सुधा ने किबना लिसर उठाये, झुके-ही-झुके, एक हार्थ से एक तार !पेKते हुए कहा-

''चन्दर, तुम्हारे धिर्मv का परिरवार आ रहा है, इसी र्मंग! को। तैयारी करो 5ल्दी।''

''कौन परिरवार, सुधा?''

''हर्मारे 5ेठ और सास आ रही हैं, इसी बैसाखी को हर्में देखने। उन्होंने कितलिर्थ बद! दी है। तो अब छह ही दिदन रह गये हैं।''

चन्दर कुछ नहीं बो!ा। र्थोड़ी देर बाद सुधा किफर बो!ी-

''अगर उलिचत सर्मझो तो कुछ पाउडर-क्रीर्म !े आना, !गाकर 5रा गोरे हो 5ाए ँतो शायद पसन्द आ 5ाए!ँ क्यों, ठीक है न!'' सुधा ने बड़ी किवलिचv-सी हँसी हँस दी और लिसर उठाकर चन्दर की ओर देखा। चन्दर चुप र्था !ेकिकन उसकी आँखों र्में अ5ीब-सी पीड़ा र्थी और उसके र्मारे्थ पर बहुत ही करुण छाँह।

सुधा ने कवर किगरा दिदया और चन्दर के पास 5ाकर बो!ी, ''क्यों चन्दर, बुरा र्मान गये हर्मारी बात का? क्या करें चन्दर, क! से हर्म र्म5ाक करना भी भू! गये। र्म5ाक करते हैं तो वं्यग्य बन 5ाता है। !ेकिकन हर्म तुर्मको कुछ कह नहीं रहे रे्थ, चन्दर। उदास न होओ।'' बडे़ ही दु!ार से सुधा बो!ी, ''अच्छा, हर्म कुछ नहीं कहेंगे।'' और उसने अपना आँच! सँभा!ने के लि!ए हार्थ उठाया। हार्थ र्में का!ौंच !ग गयी र्थी। चन्दर सर्मझा र्मेरे कन्धे पर हार्थ रख रही है सुधा। वह अ!ग हKा तो सुधा अपने हार्थ देखकर बो!ी, ''घबराओ न देवता, तुम्हारी उज्ज्व! साधना र्में कालि!ख नहीं !गाऊँगी। अपने आँच! र्में पोंछ !ँूगी।'' और सचर्मुच आँच! र्में हार्थ पोंछकर बो!ी, ''च!ो, अन्दर च!ें, उठ किबनती! किब!ैया कहीं की!''

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चन्दर को सोफे पर किबठाकर उसी की बग! र्में सुधा बैठ गयी और अँगुलि!याँ तोड़ते हुए कहा, ''चन्दर, लिसर र्में बहुत दद� हो रहा है र्मेरे।''

''लिसर र्में दद� नहीं होगा तो क्या? इतनी तकिपश र्में र्मोKर बना रही र्थीं! पापा किकतने दुखी हो रहे रे्थ आ5? तुम्हें इस तरह करना चाकिहए? किफर फायदा क्या हुआ? न ऐसे दु:खी किकया, वैसे दु:खी कर लि!या। बात तो वही रही न? तारीफ तो तब र्थी किक तुर्म अपनी दुकिनया र्में अपने हार्थ से आग !गा देती और चेहरे पर लिशकन न आती। अभी तक दुकिनया की सभी ऊँचाई सर्मेKकर भी बाहर से वही बचपन कायर्म रखा र्था तुर्मने, अब दुकिनया का सारा सुख अपने हार्थ से !ुKाने पर भी वही बचपन, वही उल्!ास क्यों नहीं कायर्म रखती!''

''बचपन!'' सुधा हँसी-''बचपन अब खत्र्म हो गया, चन्दर! अब र्मैं बड़ी हो गयी।''

''बड़ी हो गयी! कब से?''

''क! दोपहर से, चन्दर!''

चन्दर चुप। र्थोड़ी देर बाद किफर स्वयं सुधा ही बो!ी, ''नहीं चन्दर, दो-तीन दिदन र्में ठीक हो 5ाऊँगी! तुर्म घबराओ र्मत। र्मैं र्मृत्यु-शैय्या पर भी होऊँगी तो तुम्हारे आदेश पर हँस सकती हूँ।'' और किफर सुधा गुर्मसुर्म बैठ गयी। चन्दर चुपचाप सोचता रहा और बो!ा, ''सुधी! र्मेरा तुम्हें कुछ भी ध्यान नहीं है?''

''और किकसका है, चन्दर! तुम्हारा ध्यान न होता तो देखती र्मुझे कौन झुका सकता र्था। आ5 से सा!ों पह!े 5ब र्मैं पापा के पास आयी र्थी तो र्मैंने कभी न सोचा र्था किक कोई भी होगा जि5सके सार्मने र्मैं इतना झुक 5ाऊँगी।...अच्छा चन्दर, र्मन बहुत उचK रहा है! च!ो, कहीं घूर्म आए!ँ च!ोगे?''

''च!ो!'' चन्दर ने कहा।

''5ाए ँकिबनती को 5गा !ाए।ँ वह कर्मबख्त अभी पड़ी सो रही है।'' सुधा उठकर च!ी गयी। र्थोड़ी देर र्में किबनती आँख र्म!ते बग! र्में चKाई दाबे आयी और किफर बरार्मदे र्में बैठकर ऊँघने !गी। पीछे-पीछे सुधा आयी और चोKी खींचकर बो!ी, ''च! तैयार हो! च!ेंगे घूर्मने।''

र्थोड़ी देर र्में तैयार हो गये। सुधा ने 5ाकर र्मोKर किनका!ी और बो!ी चन्दर से-''तुर्म च!ाओगे या हर्म? आ5 हर्मीं च!ाए।ँ च!ो, किकसी पेड़ से !ड़ा दें र्मोKर आ5!''

''अरे बाप रे।'' पीछे किबनती लिचल्!ायी, ''तब हर्म नहीं 5ाएगँे।''

सुधा और चन्दर दोनों ने र्मुडक़र उसे देखा और उसकी घबराहK देखकर दंग रह गये।

''नहीं। र्मरेगी नहीं तू!'' सुधा ने कहा। और आगे बैठ गयी।

''किबनती, तू पीछे बैठेगी?'' सुधा ने पूछा।

''न भइया, र्मोKर च!ेगी तो र्मैं किगर 5ाऊँगी।''

''अरे कोई र्मोKर के पीछे बैठने के लि!ए र्थोड़ी कह रही हूँ। पीछे की सीK पर बैठेगी?'' सुधा ने पूछा।

''ओ! र्मैं सर्मझी तुर्म कह रही हो पीछे बैठने के लि!ए 5ैसी बग्घी र्में साईस बैठते हैं! हर्म तुम्हारे पास बैठें गे।'' किबनती ने र्मच!कर कहा।

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''अब तेरा बचपन इठ!ा रहा है, किबल्!ी कहीं की, च! आ र्मेरे पास!'' किबनती र्मुसकराती हुई 5ाकर सुधा के बग! र्में बैठ गयी। सुधा ने उसे दु!ार से पास खींच लि!या। चन्दर पीछे बैठा तो सुधा बो!ी, ''अगर कुछ ह5� न सर्मझो तो तुर्म भी आगे आ 5ाओ या दूरी रखनी हो तो पीछे ही बैठो।''

चन्दर आगे बैठ गया। बीच र्में किबनती, इधर चन्दर उधर सुधा।

र्मोKर च!ी तो किबनती चीखी, ''अरे र्मेरे र्मास्Kर साहब!''

चन्दर ने देखा, किबसरिरया च!ा 5ा रहा र्था, ''आ5 नहीं पढ़ें गे...'' चन्दर ने लिचल्!ाकर कहा। सुधा ने र्मोKर रोकी नहीं।

चन्दर को बेहद अचर5 हुआ 5ब उसने देखा किक र्मोKर पम्र्मी के बँग!े पर रुकी। ''अरे यहाँ क्यों?'' चन्दर ने पूछा।

''यों ही।'' सुधा ने कहा। ''आ5 र्मन हुआ किक धिर्मस पम्र्मी से अँगरे5ी ककिवता सुनें।''

''क्यों, अभी तो तुर्म कह रही र्थीं किक ककिवता पwऩे र्में आ5 तुम्हारा र्मन ही नहीं !ग रहा है!''

''कुछ कहो र्मत चन्दर, आ5 र्मुझे 5ो र्मन र्में आये, कर !ेने दो। र्मेरा लिसर बेहद दद� कर रहा है। और र्मैं कुछ सर्मझ नहीं पाती क्या करँू। चन्दर तुर्मने अच्छा नहीं किकया?''

चन्दर कुछ नहीं बो!ा। चुपचाप आगे च! दिदया। सुधा के पीछे-पीछे कुछ संकोच करती हुई-सी किबनती आ रही र्थी।

पम्र्मी बैठी कुछ लि!ख रही र्थी। उसने उठकर सबों का स्वागत किकया। वह कोच पर बैठ गयी। दूसरी पर सुधा, चन्दर और किबनती। सुधा ने किबनती का परिरचय पम्र्मी से कराया और पम्र्मी ने किबनती से हार्थ धिर्म!ाया तो किबनती 5ाने क्यों चन्दर की ओर देखकर हँस पड़ी। शायद उस दिदन की घKना की याद र्में।

सहसा सुधा को 5ाने क्या खया! आ गया, किबनती की शरारत-भरी हँसी देखकर किक उसने फौरन कहा चन्दर से-''चन्दर, तुर्म पम्र्मी के पास बैठो, दो धिर्मvों को सार्थ बैठना चाकिहए।''

''हाँ, और खास तौर से 5ब वह कभी-कभी धिर्म!ते हों।''-किबनती ने र्मुसकराते हुए 5ोड़ दिदया। पम्र्मी ने र्म5ाक सर्मझ लि!या और किबना शरर्माये बो!ी-

''हर्म !ोगों को र्मध्यस्थ की 5रूरत नहीं, धन्यवाद! आओ चन्दर, यहाँ आओ।'' पम्र्मी ने चन्दर को बु!ाया। चन्दर उठकर पम्र्मी के पास बैठ गया। र्थोड़ी देर तक बातें होती रहीं। र्मा!ूर्म हुआ, बK\ अपने एक दोस्त के सार्थ तराई के पास लिशकार खे!ने गया है। आ5क! वह दिद! की शक्! का एक पाननुर्मा दफ्ती का Kुकड़ा काKकर उसर्में गो!ी र्मारा करता है और 5ब किकसी लिचकिड़या वगैरह को र्मारता है तो लिशकार को उठाकर देखता है किक गो!ी हृदय र्में !गी है या नहीं। स्वास्थ्य उसका सुधर रहा है। सुधा कोच पर लिसर Kेके उदास बैठी र्थी। सहसा पम्र्मी ने किबनती से कहा, ''आपको पह!ी दफे देखा र्मैंने। आप बातें क्यों नहीं करतीं?''

किबनती ने झेंपकर र्मुँह झुका लि!या। बड़ी किवलिचv !ड़की र्थी। हरे्मशा चुप रहती र्थी और कभी-कभी बो!ने की !हर आती तो गुKरगूँ करके घर गँु5ा देती र्थी और जि5न दिदनों चुप रहती र्थी उन दिदनों ज्यादातर आँख की किनगाह, कपो!ों की आशनाई या अधरों की र्मुसकान के द्वारा बातें करती र्थी। पम्र्मी बो!ी, ''आपको फू!ों से शौक है?''

''हाँ, हाँ'' किबनती लिसर किह!ाकर बो!ी।

''चन्दर, इन्हें 5ाकर गु!ाब दिदखा !ाओ। इधर किफर खूब खिख!े हैं!''

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किबनती ने सुधा से कहा, ''च!ो दीदी।'' और चन्दर के सार्थ बढ़ गयी।

फू!ों के बीच र्में पहुँचकर, किबनती ने चन्दर से कहा, ''सुकिनए, दीदी को तो 5ाने क्या होता 5ा रहा है। बताइए, ऐसे क्या होगा?''

''र्मैं खुद परेशान हूँ, किबनती! !ेकिकन पता नहीं कहाँ र्मन र्में कौन-सा किवश्वास है 5ो कहता है किक नहीं, सुधा अपने को सँभा!ना 5ानती है, अपने र्मन को सन्तुलि!त करना 5ानती है और सुधा सचर्मुच ही त्याग र्में ज्यादा गौरवर्मयी हो सकती है।'' इसके बाद चन्दर ने बात Kा! दी। वह किबनती से ज्यादा बात करना नहीं चाहता र्था, सुधा के बारे र्में।

किबनती ने चन्दर को र्मौन देखा तो बो!ी, ''एक बात कहें आपसे? र्माकिनएगा!''

''क्या?''

''अगर हर्मसे कभी कोई अनधिधकार चेष्टा हो 5ाए तो क्षर्मा कर दीजि5एगा, !ेकिकन आप और दीदी दोनों र्मुझे इतना चाहते हैं किक हर्म सर्मझ नहीं पाते किक व्यवहारों को कहाँ सीधिर्मत रखँू!'' किबनती ने लिसर झुकाये एक फू! को नोचते हुए कहा।

चन्दर ने उसकी ओर देखा, क्षण-भर चुप रहा, किफर बो!ा, ''नहीं किबनती, 5ब सुधा तुम्हें इतना चाहती है तो तुर्म हरे्मशा र्मुझ पर उतना ही अधिधकार सर्मझना जि5तना सुधा पर।''

उधर पम्र्मी ने चन्दर के 5ाते ही सुधा से कहा, ''क्या आपकी तबीयत खराब है?''

''नहीं तो।''

''आ5 आप बहुत पी!ी न5र आती हैं!'' पम्र्मी ने पूछा।

''हाँ, कुछ र्मन नहीं !ग रहा र्था तो र्मैं आपके पास च!ी आयी किक आपसे कुछ ककिवताए ँसुनँू, अँगरे5ी की। दोपहर को र्मैंने ककिवता पwऩे की कोलिशश की तो तबीयत नहीं !गी और शार्म को !गा किक अगर ककिवता नहीं सुनँूगी तो लिसर फK 5ाएगा।'' सुधा बो!ी।

''आपके र्मन र्में कुछ संघष� र्मा!ूर्म पड़ता है, या शायद...एक बात पूछँू आपसे?''

''क्या, पूलिछए?''

''आप बुरा तो नहीं र्मानेंगी?''

''नहीं, बुरा क्यों र्मानँूगी?''

''आप कपूर को प्यार तो नहीं करतीं? उससे किववाह तो नहीं करना चाहतीं?''

''लिछह, धिर्मस पम्र्मी, आप कैसी बातें कर रही हैं। उसका र्मेरे 5ीवन र्में कोई ऐसा स्थान नहीं। लिछह, आपकी बात सुनकर शरीर र्में काँKे उठ आते हैं। र्मैं और चन्दर से किववाह करँूगी! इतनी धिघनौनी बात तो र्मैंने कभी नहीं सुनी!''

''र्माफ कीजि5एगा, र्मैंने यों ही पूछा र्था। क्या चन्दर किकसी को प्यार करता है?''

''नहीं, किबल्कु! नहीं!'' सुधा ने उतने ही किवश्वास से कहा जि5तने किवश्वास से उसने अपने बारे र्में कहा र्था।

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इतने र्में चन्दर और किबनती आ गये। सुधा बो!ी अधीरता से, ''र्मेरा एक-एक क्षण कKना र्मुश्किश्क! हो रहा है, आप शुरू कीजि5ए कुछ गाना!''

''कपूर, क्या सुनोगे?'' पम्र्मी ने कहा।

''अपने र्मन से सुनाओ! च!ो, सुधा ने कहा तो ककिवता सुनने को धिर्म!ी!''

पम्र्मी ने आ!र्मारी से एक किकताब उठायी और एक ककिवता गाना शुरू की-अपनी हेयर किपन किनका!कर र्मे5 पर रख दी और उसके बा! र्मच!ने !गे। चन्दर के कन्धे से वह दिKककर बैठ गयी और किकताब चन्दर की गोद र्में रख दी। किबनती र्मुसकरायी तो सुधा ने आँख के इशारे से र्मना कर दिदया। पम्र्मी ने गाना शुरू किकया, !ेडी नाK�न का एक गीत-

र्मैं तुम्हें प्यार नहीं करती हूँ न! र्मैं तुम्हें प्यार नहीं करती हूँ।

किफर भी र्मैं उदास रहती हूँ 5ब तुर्म पास नहीं होते हो!

और र्मैं उस चर्मकदार नी!े आकाश से भी ईष्र्या करती हूँ

जि5सके नीचे तुर्म खडे़ होगे और जि5सके लिसतारे तुम्हें देख सकते हैं...''

चन्दर ने पम्र्मी की ओर देखा। सुधा ने अपने ही वक्ष र्में अपना लिसर छुपा लि!या। पम्र्मी ने एक पद सर्माप्त कर एक गहरी साँस !ी और किफर शुरू किकया-

''र्मैं तुम्हें प्यार नहीं करती हूँ-किफर भी तुम्हारी बो!ती हुई आँखें;

जि5नकी नीलि!र्मा र्में गहराई, चर्मक और अक्षिभव्यलिक्त है-

र्मेरी किनर्तिन-र्मेष प!कों और 5ागते अध�राकिv के आकाश र्में नाच 5ाती हैं!

और किकसी की आँखों के बारे र्में ऐसा नहीं होता...''

सुधा ने किबनती को अपने पास खींच लि!या और उसके कन्धे पर लिसर Kेककर बैठ गयी। पम्र्मी गाती गयी-

''न र्मुझे र्मा!ूर्म है किक र्मैं तुम्हें प्यार नहीं करती हूँ, !ेकिकन किफर भी,

कोई शायद र्मेरे साफ दिद! पर किवश्वास नहीं करेगा।

और अकसर र्मैंने देखा है, किक !ोग र्मुझे देखकर र्मुसकरा देते हैं

क्योंकिक र्मैं उधर एकKक देखती हूँ, जि5धर से तुर्म आया करते हो!''

गीत का स्वर बडे़ स्वाभाकिवक wंग से उठा, !हराने !गा, काँप उठा और किफर धीरे-धीरे एक करुण लिससकती हुई !य र्में डूब गया। गीत खत्र्म हुआ तो सुधा का लिसर किबनती के कंधे पर र्था और चन्दर का हार्थ पम्र्मी के कन्धे पर। चन्दर र्थोड़ी देर सुधा की ओर देखता रहा किफर पम्र्मी की एक हल्की सुनहरी !K से खे!ते हुए बो!ा, ''पम्र्मी, तुर्म बहुत अच्छा गाती हो!''

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''अच्छा? आश्चय�5नक! कहो चन्दर, पम्र्मी इतनी अच्छी है यह तुर्मने कभी नहीं बताया र्था, हर्में किफर कभी सुनाइएगा?''

''हाँ, हाँ धिर्मस शुक्!ा! काश किक ब5ाय !ेडी नाK�न के यह गीत आपने लि!खा होता!''

सुधा घबरा गयी, ''च!ो। चन्दर, च!ें अब! च!ो।'' उसने चन्दर का हार्थ पकडक़र खींच लि!या-''धिर्मस पम्र्मी, अब किफर कभी आएगेँ। आ5 र्मेरा र्मन ठीक नहीं है।''

चन्दर ड्राइव करने !गा। किबनती बो!ी, ''हर्में आगे हवा !गती है, हर्म पीछे बैठें गे।''

कार च!ी तो सुधा बो!ी, ''अब र्मन कुछ शान्त है, चन्दर। इसके पह!े तो र्मन र्में कैसे तूफान आपस र्में !ड़ रहे रे्थ, कुछ सर्मझ र्में नहीं आता। अब तूफान बीत गये। तूफान के बाद की खार्मोश उदासी है।'' सुधा ने गहरी साँस !ी, ''आ5 5ाने क्यों बदन KूK रहा है।'' बैठे ही बैठे बदन उरे्मठते हुए कहा।

दूसरे दिदन चन्दर गया तो सुधा को बुखार आ गया र्था। अंग-अंग 5ैसे KूK रहा हो और आँखों र्में ऐसी तीखी 5!न किक र्मानो किकसी ने अंगारे भर दिदये हों। रात-भर वह बेचैन रही, आधी पाग!-सी रही। उसने तकिकया, चादर, पानी का किग!ास सभी उठाकर फें क दिदया, किबनती को कभी बु!ाकर पास किबठा !ेती, कभी उसे दूर wके! देती। डॉक्Kर साहब परेशान, रात-भर सुधा के पास बैठे, कभी उसका र्मार्था, कभी उसके त!वों र्में बफ� र्म!ते रहे। डॉक्Kर घोष ने बताया यह क! की गरर्मी का असर है। किबनती ने एक बार पूछा, ''चन्दर को बु!वा दें?'' तो सुधा ने कहा, ''नहीं, र्मैं र्मर 5ाऊँ तो! र्मेरे 5ीते 5ी नहीं!'' किबनती ने ड्राइवर से कहा, ''चन्दर को बु!ा !ाओ।'' तो सुधा ने किबगडक़र कहा, ''क्यों तुर्म सब !ोग र्मेरी 5ान !ेने पर तु!े हो?'' और उसके बाद कर्म5ोरी से हाँफने !गी। ड्राइवर चन्दर को बु!ाने नहीं गया।

5ब चन्दर पहुँचा तो डॉक्Kर साहब रात-भर के 5ागरण के बाद उठकर नहाने-धोने 5ा रहे रे्थ। ''पता नहीं सुधा को क्या हो गया क! से! इस वक्त तो कुछ शान्त है पर रात-भर बुखार और बेहद बेचैनी रही है। और एक ही दिदन र्में इतनी लिचड़लिचड़ी हो गयी है किक बस...'' डॉक्Kर साहब ने चन्दर को देखते ही कहा।

चन्दर 5ब कर्मरे र्में पहुँचा तो देखा किक सुधा आँख बन्द किकये हुए !ेKी है और किबनती उसके लिसर पर आइस-बैग रखे हुए है। सुधा का चेहरा पी!ा पड़ गया है और र्मुँह पर 5ाने किकतनी ही रेखाओं की उ!झन है, आँखें बन्द हैं और प!कों के नीचे से अँगारों की आँच छनकर आ रही है। चन्दर की आहK पाते ही सुधा ने आँखें खो!ीं। अ5ब-सी आग्नेय किनगाहों से चन्दर की ओर देखा और किबनती से बो!ी, ''किबनती, इनसे कह दो 5ाए ँयहाँ से।''

किबनती स्तब्ध, चन्दर नहीं सर्मझा, पास आकर बैठ गया, बो!ा, ''सुधा, क्यों, पड़ गयी न, र्मैंने कहा र्था किक गैरे5 र्में र्मोKर साफ र्मत करो। परसों इतना रोयी, लिसर पKका, क! धूप खायी। आ5 पड़ रही! कैसी तबीयत है?''

सुधा उधर खिखसक गयी और अपने कपडे़ सर्मेK लि!ये, 5ैसे चन्दर की छाँह से भी बचना चाहती है और ते5, कड़वी और हाँफती हुई आवा5 र्में बो!ी, ''किबनती, इनसे कह दो 5ाए ँयहाँ से।''

चन्दर चुप हो गया और एकKक सुधा की ओर देखने !गा और सुधा की बात ने 5ैसे चन्दर का र्मन र्मरोड़ दिदया। किकतनी गैरिरयत से बात कर रही है सुधा! सुधा, 5ो उसके अपने व्यलिक्तत्व से ज्यादा अपनी र्थी, आ5 किकस स्वर र्में बो! रही है! ''सुधी, क्या हुआ तुम्हें?'' चन्दर ने बहुत आहत हो बहुत दु!ार-भरी आवा5 र्में पूछा।

''र्मैं कहती हूँ 5ाओगे नहीं तुर्म?'' फुफकारकर सुधा बो!ी, ''कौन हो तुर्म र्मेरी बीर्मारी पर सहानुभूकित प्रकK करने वा!े? र्मेरी कुश! पूछने वा!े? र्मैं बीर्मार हूँ, र्मैं र्मर रही हूँ, तुर्मसे र्मत!ब? तुर्म कौन हो? र्मेरे भाई हो? र्मेरे किपता हो? क! अपने धिर्मv के यहाँ र्मेरा अपर्मान कराने !े गये रे्थ!'' सुधा हाँफने !गी।

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''अपर्मान! किकसने तुम्हारा अपर्मान किकया, सुधा? पम्र्मी ने तो कुछ भी नहीं कहा? तुर्म पाग! तो नहीं हो गयीं?'' चन्दर ने सुधा के पैरों पर हार्थ रखते हुए कहा।

''पाग! हो नहीं गयी तो हो 5ाऊँगी!'' उसने पैर हKा लि!ये, ''तुर्म, पम्र्मी, गेसू, पापा डॉक्Kर सब !ोग धिर्म!कर र्मुझे पाग! कर दोगे। पापा कहते है ब्याह करो, पम्र्मी कहती है र्मत करो, गेसू कहती है तुर्म प्यार करती हो और तुर्म...तुर्म कुछ भी नहीं कहते। तुर्म र्मुझे इस नरक र्में बरसों से सु!गते देख रहे हो और ब5ाय इसके किक तुर्म कुछ कहो, तुर्मने र्मुझे खुद इस भट्टी र्में wके! दिदया!...चन्दर, र्मैं पाग! हूँ, र्मैं क्या करँू?'' सुधा बडे़ कातर स्वर र्में बो!ी। चन्दर चुप र्था। लिसफ� लिसर झुकाये, हार्थों पर र्मार्था रखे बैठा र्था। सुधा र्थोड़ी देर हाँफती रही। किफर बो!ी-

''तुम्हें क्या हक र्था क! पम्र्मी के यहाँ !े 5ाने का? उसने क्यों क! गीत र्में कहा किक र्मैं तुम्हें प्यार करती हूँ?'' सुधा बो!ी। चन्दर ने किबनती की ओर देखा-''क्यों किबनती? किबनती से र्मैं कुछ नहीं लिछपाता!'' ''क्यों पम्र्मी ने क! कहा, र्मैं तुम्हें प्यार नहीं करती! र्मेरा र्मन र्मुझे धोखा नहीं दे सकता। र्मैं तुर्मसे लिसफ� 5ाने क्या करती हूँ...किफर पम्र्मी ने क! ऐसी बात क्यों कही? र्मेरे रोर्म-रोर्म र्में 5ाने कौन-सा ज्वा!ार्मुखी धधक उठता है ऐसी बातें सुनकर? तुर्म क्यों पम्र्मी के यहाँ !े गये?''

''तुर्म खुद गयी र्थीं, सुधा!'' चन्दर बो!ा।

''तो तुर्म रोक नहीं सकते रे्थ! तुर्म कह देते र्मत 5ाओ तो र्मैं कभी 5ा सकती र्थी? तुर्मने क्यों नहीं रोका? तुर्म हार्थ पकड़ !ेते। तुर्म डाँK देते। तुर्मने क्यों नहीं डाँKा? एक ही दिदन र्में र्मैं तुम्हारी गैर हो गयी? गैर हूँ तो किफर क्यों आये हो? 5ाओ यहाँ से। र्मैं कहती हूँ; 5ाओ यहाँ से?'' दाँत पीसकर सुधा बो!ी।

''सुधा...''

''र्मैं तुम्हारी बो!ी नहीं सुनना चाहती। 5ाते हो किक नहीं...'' और सुधा ने अपने र्मारे्थ पर से उठाकर आइस-बैग फें क दिदया। किबनती चौंक उठी। चन्दर चौंक उठा। उसने र्मुडक़र सुधा की ओर देखा। सुधा का चेहरा डरावना !ग रहा र्था। उसका र्मन रो आया। वह उठा, क्षण-भर सुधा की ओर देखता रहा और धीरे-धीरे कर्मरे से बाहर च!ा गया।

बरार्मदे के सोफे पर आकर लिसर झुकाकर बैठ गया और सोचने !गा, यह सुधा को क्या हो गया? परसों शार्म को वह इसी सोफे पर सोया र्था, सुधा बैठी पंखा झ! रही र्थी। क! शार्म को वह हँस रही र्थी, !गता र्था तूफान शान्त हो गया पर यह क्या? अन्तद्व�द्व ने यह रूप कैसे !े लि!या?

और क्यों !े लि!या? 5ब वह अपने र्मन को शान्त रख सकता है, 5ब वह सभी कुछ हँसते-हँसते बरदाश्त कर सकता है तो सुधा क्यों नहीं कर सकती? उसने आ5 तक अपनी साँसों से सुधा का किनर्मा�ण किकया है। सुधा को कित!-कित! बनाया, स5ाया, सँवारा है किफर सुधा र्में यह कर्म5ोरी क्यों?

क्या उसने यह रास्ता अण्डिख्तयार करके भू! की? क्या सुधा भी एक साधारण-सी !ड़की है जि5सके पे्रर्म और घृणा का स्तर उतना ही साधारण है? र्माना उसने अपने दोनों के लि!ए एक ऐसा रास्ता अपनाया है 5ो किव!क्षण है !ेकिकन इससे क्या! सुधा और वह दोनों ही क्या किव!क्षण नहीं हैं? किफर सुधा क्यों किबखर रही है? !ड़किकयाँ भावना की ही बनी होती हैं? साधना उन्हें आती ही नहीं क्या? उसने सुधा का ग!त र्मूल्यांकन किकया र्था? क्या सुधा इस 'त!वार की धार' पर च!ने र्में असर्मर्थ� साकिबत होगी? यह तो चन्दर की हार र्थी।

और किफर सुधा ऐसी ही रही तो चन्दर? सुधा चन्दर की आत्र्मा है; इसे अब चन्दर खूब अच्छी तरह पहचान गया। तो क्या अपनी ही आत्र्मा को घोंK डा!ने की हत्या का पाप चन्दर के लिसर पर है?

तो क्या त्याग र्माv नार्म ही है? क्या पुरुष और नारी के सम्बन्ध का एक ही रास्ता है-प्रणय, किववाह और तृस्टिप्त! पकिवvता, त्याग और दूरी क्या सम्बन्धों को, किवश्वासों को जि5न्दा नहीं रहने दे सकते? तो किफर सुधा और पम्र्मी र्में क्या

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अन्तर है? क्या सुधा के हृदय के इतने सर्मीप रहकर, सुधा के व्यलिक्तत्व र्में घु!-धिर्म!कर और आ5 सुधा को इतने अन्तर पर डा!कर चन्दर पाप कर रहा है? तो क्या फू! को तोड़कर अपने ही बKन हो! र्में !गा !ेना ही पुJय है और दूसरा रास्ता गर्तिह-त है? किवनाशकारी है? क्यों उसने सुधा का व्यलिक्तत्व तोड़ दिदया है?

किकसी ने उसके कन्धे पर हार्थ रखा। किवचार-शंृख!ा KूK गयी...किबनती र्थी। ''क्या सोच रहे हैं आप?'' किबनती ने पूछा, बहुत स्नेह से।

''कुछ नहीं!''

''नहीं बताइएगा? हर्म नहीं 5ान सकते?'' किबनती के स्वर र्में ऐसा आग्रह, ऐसा अपनापन, ऐसी किनश्छ!ता रहती र्थी किक चन्दर अपने को कभी नहीं रोक पाता र्था। लिछपा नहीं पाता र्था।

''कुछ नहीं किबनती! तुर्म कहती हो, सुधा को इतने अन्तर पर र्मैंने रखा तो र्मैं देवता हूँ! सुधा कहती है, र्मैंने अन्तर पर रखा, र्मैंने पाप किकया! 5ाने क्या किकया है र्मैंने? क्या र्मुझे कर्म तक!ीफ है? र्मेरा 5ीवन आ5क! किकस तरह घाय! हो गया है, र्मैं 5ानता हूँ। एक प! र्मुझे आरार्म नहीं धिर्म!ता। क्या उतनी स5ा काफी नहीं र्थी 5ो सुधा को भी किकस्र्मत यह दJड दे रही है? र्मुझी को सभी बचैनी और दु:ख धिर्म! 5ाता। सुधा को र्मेरे पाप का दJड क्यों धिर्म! रहा है? किबनती, तुर्मसे अब कुछ नहीं लिछपा। जि5सको र्मैं अपनी साँसों र्में दुबकाकर इन्द्रधनुष के !ोक तक !े गया, आ5 हवा के झोंके उसे बाद!ों की ऊँचाई से क्यों wके! देना चाहते हैं? और र्मैं कुछ भी नहीं कर सकता?'' इतनी देर बाद किबनती के र्मर्मता-भरे स्पश� र्में चन्दर की आँखें छ!छ!ा आयीं।

''लिछह, आप सर्मझदार हैं! दीदी ठीक हो 5ाएगँी! घबराने से कार्म नहीं च!ेगा न! आपको हर्मारी कसर्म है। उदास र्मत होइए। कुछ सोलिचए र्मत। दीदी बीर्मार हैं, आप इस तरह से करेंगे तो कैसे कार्म च!ेगा! उदिठए, दीदी बु!ा रही हैं।''

चन्दर गया। सुधा ने इशारे से पास बु!ाकर किबठा लि!या। ''चन्दर, हर्मारा दिदर्माग ठीक नहीं है। बैठ 5ाओ !ेकिकन कुछ बो!ना र्मत, बैठे रहो।''

उसके बाद दिदन भर अ5ब-सा गु5रा। 5ब-5ब चन्दर ने उठने की कोलिशश की, सुधा ने उसे खींचकर किबठा लि!या। घर तो उसे 5ाने ही नहीं दिदया। किबनती वहीं खाना !े आयी। सुधा कभी चन्दर की ओर देख !ेती। किफर तकिकये र्में र्मुँह गड़ा !ेती। बो!ी एक शब्द भी नहीं, !ेकिकन उसकी आँखों र्में अ5ब-सी कातरता र्थी। पापा आये, घंKों बैठे रहे; पापा च!े गये तो उसने चन्दर का हार्थ अपने हार्थ र्में !े लि!या, करवK बद!ी और तकिकये पर अपने कपो!ों से चन्दर की हरे्थ!ी दबाकर !ेKी रही। प!कों से किकतने ही गरर्म-गरर्म आँसू छ!ककर गा!ों पर किफस!कर चन्दर की हरे्थ!ी क्षिभगोते रहे।

चन्दर चुप रहा। !ेकिकन सुधा के आँसू 5ैसे नसों के सहारे उसके हृदय र्में उतर गये और 5ब हृदय डूबने !गा तो उसकी प!कों पर उतर आये। सुधा ने देखा !ेकिकन कुछ भी नहीं बो!ी। घंKा-भर बहुत गहरी साँस !ी; बेहद उदासी से र्मुसकराकर कहा, ''हर्म दोनों पाग! हो गये हैं, क्यों चन्दर? अच्छा, अब शार्म हो गयी। 5रा !ॉन पर च!ें।''

सुधा चन्दर के कन्धे पर हार्थ रखकर खड़ी हो गयी। किबनती ने दवा दी, र्थर्मा�र्मीKर से बुखार देखा। बुखार नहीं र्था। चन्दर ने सुधा के लि!ए कुरसी उठायी। सुधा ने हँसकर कहा, ''चन्दर, आ5 बीर्मार हूँ तो कुरसी उठा रहे हो, र्मर 5ाऊँगी तो अरर्थी उठाने भी आना, वरना नरक धिर्म!ेगा! सर्मझे न!''

''लिछह, ऐसा कुबो! न बो!ा करो, दीदी?''

सुधा !ॉन र्में कुरसी पर बैठ गयी। बग! र्में नीचे चन्दर बैठ गया। सुधा ने चन्दर का लिसर अपनी कुरसी र्में दिKका लि!या और अपनी उँगलि!यों से चन्दर के सूखे होठों को छूते हुए कहा, ''चन्दर, आ5 र्मैंने तुम्हें बहुत दु:खी किकया, क्यों?

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!ेकिकन 5ाने क्यों, दु:खी न करती तो आ5 र्मुझे वह ताकत न धिर्म!ती 5ो धिर्म! गयी।'' और सहसा चन्दर के लिसर को अपनी गोद र्में खींचती हुई-सी सुधा ने कहा, ''आराध्य र्मेरे! आ5 तुम्हें बहुत-सी बातें बताऊँगी। बहुत-सी।''

किबनती उठकर 5ाने !गी तो सुधा ने कहा, ''कहाँ च!ी? बैठ तू यहाँ। तू गवाह रहेगी ताकिक बाद र्में चन्दर यह न कहे किक सुधा कर्म5ोर किनक! गयी।'' किबनती बैठ गयी। सुधा ने क्षण-भर आँखें बन्द कर !ीं और अपनी वेणी पीठ पर से खींचकर गोद र्में wा! !ी और बो!ी, ''चन्दर, आ5 किकतने ही सा! हुए, 5बसे र्मैंने तुम्हें 5ाना है, तब से अचे्छ-बुरे सभी कार्मों का फैस!ा तुम्ही करते रहे हो। आ5 भी तुम्हीं बताओ चन्दर किक अगर र्मैं अपने को बहुत सँभा!ने की कोलिशश करती हूँ और नहीं सँभा! पाती हूँ, तो यह कोई पाप तो नहीं? तुर्म 5ानते हो चन्दर, तुर्म जि5तने र्म5बूत हो उस पर र्मुझे घरं्मड है किक तुर्म किकतनी ऊँचाई पर हो, र्मैं भी उतना ही र्म5बूत बनने की कोलिशश करती हूँ, उतने ही ऊँचे उठने की कोलिशश करती हूँ, अगर कभी-कभी किफस! 5ाती हूँ तो यह अपराध तो नहीं?''

''नहीं।'' चन्दर बो!ा।

''और अगर अपने उस अन्तद्व�द्व के क्षणों र्में तुर्म पर कठोर हो 5ाती हूँ, तो तुर्म सह !ेते हो। र्मैं 5ानती हूँ, तुर्म र्मुझे जि5तना स्नेह करते हो, उसर्में र्मेरी सभी दुब�!ताए ँधु! 5ाती हैं। !ेकिकन आ5 र्मैं तुम्हें किवश्वास दिद!ाती हूँ चन्दर किक र्मुझे खुद अपनी दुब�!ताओं पर शरर्म आती है और आगे से र्मैं वैसी ही बनूँगी 5ैसा तुर्मने सोचा है, चन्दर।''

चन्दर कुछ नहीं बो!ा लिसफ� घास पर रखे हुए सुधा के पाँवों पर अपनी काँपती उँगलि!याँ रख दीं। सुधा कहती गयी, ''चन्दर, आ5 से कुछ ही र्महीने पह!े 5ब गेसू ने र्मुझसे पूछा र्था किक तुम्हारा दिद! कहीं झुका र्था तो र्मैंने इनकार कर दिदया र्था, क! पम्र्मी ने पूछा, तुर्म चन्दर को प्यार करती हो तो र्मैंने इनकार कर दिदया र्था, र्मैं आ5 भी इनकार करती हूँ किक र्मैंने तुम्हें प्यार किकया है, या तुर्मने र्मुझे प्यार किकया है। र्मैं भी सर्मझती हूँ और तुर्म भी सर्मझते हो !ेकिकन यह न तुर्मसे लिछपा है न र्मुझसे किक तुर्मने 5ो कुछ दिदया है वह प्यार से कहीं ज्यादा ऊँचा और प्यार से कहीं ज्यादा र्महान है।...र्मैं ब्याह नहीं करना चाहती र्थी, र्मैंने परसों इनकार कर दिदया र्था, इतनी रोयी र्थी, खीझी र्थी, बाद र्में र्मैंने सोचा किक यह ग!त है, यह स्वार्थ� है। 5ब पापा र्मुझे इतना प्यार करते हैं तो र्मुझे उनका दिद! नहीं दुखाना चाकिहए। पर र्मन के अन्दर की 5ो खीझ र्थी, 5ो कुwऩ र्थी, वह कहीं तो उतरती ही। वह र्मैं अपने पर उतार देना चाहती र्थी, र्मन र्में आता र्था अपने को किकतना कष्ट दे डा!ँू इसीलि!ए अपने गैरे5 र्में 5ाकर र्मोKर सँभा! रही र्थी, !ेकिकन वहाँ भी असफ! रही और अन्त र्में वह खीझ अपने र्मन पर भी न उतारकर उस पर उतारी जि5सको र्मैंने अपने से भी बढ़कर र्माना है। वह खीझ उतरी तुर्म पर!''

चन्दर ने सुधा की ओर देखा। सुधा र्मुसकराकर बो!ी, ''न, ऐसे र्मत देखो। यह र्मत सर्मझो किक अपने आ5 के व्यवहार के लि!ए र्मैं तुर्मसे क्षर्मा र्मागँूगी। र्मैं 5ानती हूँ, र्माँगने से तुर्म दु:खी भी होगे और डाँKने भी !गोगे। खैर, आ5 से र्मैं अपना रास्ता पहचान गयी हूँ। र्मैं 5ानती हूँ किक र्मुझे किकतना सँभ!कर च!ना है। तुम्हारे सपने को पूरा करने के लि!ए र्मुझे अपने को क्या बनाना होगा, यह भी र्मैं सर्मझ गयी हूँ। र्मैं खुश रहूँगी, सब! रहूँगी और सशक्त रहूँगी और 5ो रास्ता तुर्म दिदख!ाओगे उधर ही च!ँूगी। !ेकिकन एक बात बताओ चन्दर, र्मैंने ब्याह कर लि!या और वहाँ सुखी न रह पायी, किफर और उन्हें वह भावना, उपासना न दे पायी और किफर तुम्हें दु:ख हुआ, तब?''

चन्दर ने घास का एक कितनका तोडक़र कहा, ''देखो सुधा, एक बात बताओ। अगर र्मैं तुम्हें कुछ कह देता हूँ और उसे तुर्म र्मुझी को वापस दे देती हो तो कोई बहुत ऊँची बात नहीं हुई। अगर र्मैंने तुम्हें सचर्मुच ही स्नेह या पकिवvता 5ो कुछ भी दिदया है, उसे तुर्म उन सभी के 5ीवन र्में ही क्यों नहीं प्रकितफलि!त कर सकती 5ो तुम्हारे 5ीवन र्में आते हैं, चाहे वह पकित ही क्यों न हों। तुम्हारे र्मन के अक्षय स्नेह-भंडार के उपयोग र्में इतनी कृपणता क्यों? र्मेरा सपना कुछ और ही है, सुधा। आ5 तक तुम्हारी साँसों के अर्मृत ने ही र्मुझे यह सार्मग्री दी किक र्मैं अपने 5ीवन र्में कुछ कर सकँू और र्मैं भी यही चाहता हूँ किक र्मैं तुम्हें वह स्नेह दँू 5ो कभी घKे ही न। जि5तना बाँKो उतना बढे़ और इतना र्मुझे किवश्वास है किक तुर्म यदिद स्नेह की एक बँूद दो तो र्मनुष्य क्या से क्या हो सकता है। अगर वही स्नेह रहेगा तो तुम्हारे पकित को कभी कोई असन्तोष क्या हो सकता है और किफर कै!ाश तो इतना अच्छा !ड़का है, और उसका 5ीवन इतना ऊँचा किक तुर्म उसकी जि5-दगी र्में ऐसी !गोगी, 5ैसे अँगूठी र्में हीरा। और 5हाँ तक तुम्हारा अपना सवा! है, र्मैं तुर्मसे भीख

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र्माँगता हूँ किक अपना सब कुछ खोकर भी अगर र्मुझे कोई सन्तोष रहेगा तो यह देखकर किक र्मेरी सुधा अपने 5ीवन र्में किकतनी ऊँची है। र्मैं तुर्मसे इस किवश्वास की भीख र्माँगता हूँ।''

''लिछह, र्मुझसे बडे़ हो ,चन्दर! ऐसी बात नहीं कहते! !ेकिकन एक बात है। र्मैं 5ानती हूँ किक र्मैं चन्द्रर्मा हूँ, सूय� की किकरणों से ही जि5सर्में चर्मक आती है। तुर्मने 5ैसे आ5 तक र्मुझे सँवारा है, आगे भी तुर्म अपनी रोशनी अगर र्मेरी आत्र्मा र्में भरते गये तो र्मैं अपना भकिवष्य भी नहीं पहचान सकँूगी। सर्मझे!''

''सर्मझा, पग!ी कहीं की!'' र्थोड़ी देर चन्दर चुप बैठा रहा किफर सुधा के पाँवों से लिसर दिKकाकर बो!ा-''परेशान कर डा!ा, तीन रो5 से। सूरत तो देखो कैसी किनक! आयी है और बैसाखी को कु! चार रो5 रह गये। अब र्मत दिदर्माग किबगाड़ना! वे !ोग आते ही होंगे!''

''किबनती! दवा !े आ...'' किबनती उठकर गयी तो सुधा बो!ी, ''हKो, अब हर्म घास पर बैठें गे!'' और घास पर बैठकर वह बो!ी, ''!ेकिकन एक बात है, आ5 से !ेकर ब्याह तक तुर्म हर अवसर पर हर्मारे सार्मने रहना, 5ो कहोगे वह हर्म करते 5ाएगँे।''

''हाँ, यह हर्म 5ानते हैं।'' चन्दर ने कहा और कुछ दूर हKकर घास पर !ेK गया और आकाश की ओर देखने !गा। शार्म हो गयी र्थी और दिदन-भर की उड़ी हुई धू! अब बहुत कुछ बैठ गयी र्थी। आकाश के बाद! ठहरे हुए रे्थ और उन पर अरुणाई झ!क रही र्थी। एक दुरंगी पतंग बहुत ऊँचे पर उड़ रही र्थी। चन्दर का र्मन भारी र्था। हा!ाँकिक 5ो तूफान परसों उठा र्था वह खत्र्म हो गया र्था, !ेकिकन चन्दर का र्मन अभी र्मरा-र्मरा हुआ-सा र्था। वह चुपचाप !ेKा रहा। किबनती दवा और पानी !े आयी। दवा पीकर सुधा बो!ी, ''क्यों, चुप क्यों हो, चन्दर?''

''कोई बात नहीं।''

''किफर बो!ते क्यों नहीं, देखा किबनती, अभी-अभी क्या कह रहे रे्थ और अब देखो इन्हें।'' सुधा बो!ी।

''हर्म अभी बताते हैं इन्हें!'' किबनती बो!ी और किग!ास र्में र्थोड़ा-सा पानी !ेकर चन्दर के ऊपर फें क दिदया। चन्दर चौंककर उठ बैठा और किबगड़क़र बो!ा, ''यह क्या बदतर्मी5ी है? अपनी दीदी को यह सब दु!ार दिदखाया करो।''

''तो क्यों पडे़ रे्थ ऐसे? बात करेंगे ऋकिष-र्मुकिनयों 5ैसे और उदास रहेंगे बच्चों की तरह! वाह रे चन्दर बाबू!'' किबनती ने हँसकर कहा, ''दीदी, ठीक किकया न र्मैंने?''

''किबल्कु! ठीक, ऐसे ही इनका दिदर्माग ठीक होगा।''

''इतने र्में डॉक्Kर शुक्!ा आये और कुरसी पर बैठ गये। सुधा के र्मारे्थ पर हार्थ रखकर देखा, ''अब तो तू ठीक है?''

''हाँ, पापा!''

''किबनती, क! तुम्हारी र्माता5ी आ रही हैं। अब बैसाखी की तैयारी करनी है। सुधा के 5ेठ आ रहे हैं और सास।''

सुधा चुपचाप उठकर च!ी गयी। चन्दर, किबनती और डॉक्Kर साहब बैठे उस दिदन का बहुत-सा काय�क्रर्म बनाते रहे।

चन्दर को सबसे बड़ा सन्तोष र्था किक सुधा ठीक हो गयी र्थी। बैसाख पूनो के एक दिदन पह!े ही से किबनती ने घर को इतना साफ कर डा!ा र्था किक घर चर्मक उठा र्था। यह बात तो दूसरी है किक स्Kडी-रूर्म की सफाई र्में किबनती ने चन्दर के बहुत-से काग5 बुहारकर फें क दिदये रे्थ और आँगन धोते वक्त उसने चन्दर के कपड़ों को छीKों से तर कर दिदया र्था। उसके बद!े र्में चन्दर ने किबनती को डाँKा र्था और सुधा देख-देखकर हँस रही र्थी और कह रही र्थी, ''तुर्म क्यों लिचढ़ रहे हो? तुम्हें देखने र्थोडे़ ही आ रही हैं हर्मारी सास।''

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बैशाखी पूनो की सुबह डॉक्Kर साहब और बुआ5ी गाड़ी !ेकर उनको लि!वा !ाने गये रे्थ। चन्दर बाहर बरार्मदे र्में बैठा अखबार पढ़ रहा र्था और सुधा अन्दर कर्मरे र्में बैठी र्थी। अब दो दिदन उसे बहुत दब-wँककर रहना होगा। वह बाहर नहीं घूर्म सकती र्थी; क्योंकिक 5ाने कैसे और कब उसकी सास आ 5ाए ँऔर देख !ें। बुआ उसे सर्मझा गयी र्थीं और उसने एक गम्भीर आज्ञाकारी !ड़की की तरह र्मान लि!या र्था और अपने कर्मरे र्में चुपचाप बैठी र्थी। किबनती कढ़ी के लि!ए बेसन फें K रही र्थी और र्महराजि5न ने रसोई र्में दूध चढ़ा रखा र्था।

सुधा चुपके से आयी, किकवाड़ की आड़ से देखा किक पापा और बुआ की र्मोKर आ तो नहीं रही है! 5ब देखा किक कोई नहीं है तो आकर चुप्पे से खड़ी हो गयी और पीछे से चन्दर के

हार्थ से अखबार !े लि!या। चन्दर ने पीछे देखा तो सुधा एक बच्चे की तरह र्मुसकरा दी और बो!ी, ''क्यों चन्दर, हर्म ठीक हैं न? ऐसे ही रहें न? देखा तुम्हारा कहना र्मानते हैं न हर्म?''

''हाँ सुधी, तभी तो हर्म तुर्मको इतना दु!ार करते हैं!''

''!ेकिकन चन्दर, एक बार आ5 रो !ेने दो। किफर उनके सार्मने नहीं रो सकें गे।'' और सुधा का ग!ा रँुध गया और आँख छ!छ!ा आयी।

''लिछह, सुधा...'' चन्दर ने कहा।

''अच्छा, नहीं-नहीं...'' और झKके से सुधा ने आँसू पोंछ लि!ये। इतने र्में गेK पर किकसी कार का भोंपू सुनाई पड़ा और सुधा भागी।

''अरे, यह तो पम्र्मी की कार है।'' चन्दर बो!ा। सुधा रुक गयी। पम्र्मी ने पोर्दिK-को र्में आकर कार रोकी।

''है!ो, र्मेरे 5ुड़वा धिर्मv, क्या हा! है तुर्म !ोगों का?'' और हार्थ धिर्म!ाकर बेतकल्!ुफी से कुसr खींचकर बैठ गयी।

''इन्हें अन्दर !े च!ो, चन्दर! वरना अभी वे !ोग आते होंगे!'' सुधा बो!ी।

''नहीं, र्मुझे बहुत 5ल्दी है। आ5 शार्म को बाहर 5ा रही हूँ। बK\ अब र्मसूरी च!ा गया है, वहाँ से उसने र्मुझे भी बु!ाया है। उसके हार्थ र्में कहीं लिशकार र्में चोK !ग गयी है। र्मैं तो आ5 5ा रही हूँ।''

सुधा बो!ी, ''हर्में !े चलि!एगा?''

''चलि!ए। कपूर, तुर्म भी च!ो, 5ु!ाई र्में !ौK आना!'' पम्र्मी ने कहा।

''5ब अग!े सा! हर्म !ोगों की धिर्मvता की वष�गाँठ होगी तो र्मैं च!ँूगा।'' चन्दर ने कहा।

''अच्छा, किवदा!'' पम्र्मी बो!ी। चन्दर और सुधा ने हार्थ 5ोडे़ तो पम्र्मी ने आगे बwक़र सुधा का र्मुँह हरे्थलि!यों र्में उठाकर उसकी प!कें चूर्म !ीं और बो!ी, ''र्मुझे तुम्हारी प!कें बहुत अच्छी !गती हैं। अरे! इनर्में आँसुओं का स्वाद है, अभी रोयी र्थीं क्या?'' सुधा झेंप गयी।

चन्दर के कन्धे पर हार्थ रखकर पम्र्मी ने कहा, ''कपूर, तुर्म खत 5रूर लि!खते रहना। च!ते तो बड़ा अच्छा रहता। अच्छा, आप दोनों धिर्मvों का सर्मय अच्छी तरह बीते।'' और पम्र्मी च! दी।

र्थोड़ी देर र्में डॉक्Kर साहब की कार आयी। सुधा ने अपने कर्मरे के दरवा5े बन्द कर लि!ये, किबनती ने लिसर पर पल्!ा wक लि!या और चन्दर दौड़कर बाहर गया। डॉक्Kर साहब के सार्थ 5ो सज्जन उतरे वे दिठगने-से, गोरे-से, गो! चेहरे के

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कु!ीन सज्जन रे्थ और खद्दर का कुरता और धोती पहने हुए रे्थ। हार्थ र्में एक छोKा-सा सफरी बैग र्था। चन्दर ने !ेने को हार्थ बढ़ाया तो हँसकर बो!े, ''नहीं 5ी, क्या इतना-सा बैग !े च!ने र्में र्मेरा हार्थ र्थक 5ाएगा। आप !ोग तो खाकितर करके र्मुझे र्महत्वपूण� बना देंगे!''

सब !ोग स्Kडी रूर्म र्में गये। वहीं डॉक्Kर शुक्!ा ने परिरचय कराया-''यह हर्मारे लिशष्य और !ड़के, प्रान्त के होनहार अर्थ�शास्vी चन्द्रकुर्मार कपूर और आप शाह5हाँपुर के प्रलिस» काँग्रेसी काय�कता� और म्युकिनलिसप! कधिर्मश्नर श्री शंकर!ा! धिर्मश्र।''

''अब तू नहाय !ेव संकरी, किफर चाय ठंडाय 5इहै।'' बुआ5ी ने आकर कहा। आ5 बुआ5ी ने बहुत दिदनों पह!े की बूKीदार साड़ी पहन रखी र्थी और शायद वह खुश र्थीं क्योंकिक किबनती को डाँK नहीं रही र्थीं।

''नहीं, र्मैं तो वेटिK-ग-रूर्म र्में नहा चुका। चाय र्मैं पीता नहीं। खाना ही तैयार कराइए।'' और घड़ी देखकर शंकर बाबू बो!े, ''र्मुझे 5रा स्वराज्य-भवन 5ाना है और दो ब5े की गाड़ी से वापस च!े 5ाना है और शायद उधर से ही च!ा 5ाऊँगा।'' उन्होंने बहुत र्मीठे स्वर से र्मुसकराते हुए कहा।

''यह तो अच्छा नहीं !गता किक आप आये भी और कुछ रुके नहीं।'' डॉक्Kर शुक्!ा बो!े।

''हाँ, र्मैं खुद रुकना चाहता र्था !ेकिकन र्माँ5ी की तबीयत ठीक नहीं है। कै!ाश भी कानपुर गया हुआ है। र्मुझे 5ल्दी 5ाना चाकिहए।''

किबनती ने !ाकर र्था!ी रखी। चन्दर ने आश्चय� से डॉक्Kर साहब की ओर देखा। वे हँसकर बो!े, ''भाई, यह !ोग हर्मारी तरह छूत-पाक नहीं र्मानते। शंकर तुम्हारे सम्प्रदाय के हैं, यहीं कच्चा खाना खा !ेंगे।''

''इन्हें ब्राह्म ï ण कहत के है, ई तो किकरिरस्तान है, हर्मरो धरर्म किबगाकिडऩ पिह-याँ आय कै!'' बुआ5ी बो!ीं। बुआ5ी ने ही यह शादी तय करायी र्थी, !ड़काबताया र्था और दूर के रिरश्ते से वे कै!ाश और शंकर की भाभी !गती र्थीं।

शंकर बाबू ने हार्थ धोये और कुसr खींचकर बैठ गये। चन्दर, की ओर देखकर बो!े, ''आइए, होनहार डॉक्Kर साहब, आप तो र्मेरे सार्थ खा सकते हैं?''

''नहीं, आप खाइए।'' चन्दर ने तकल्!ुफ करते हुए कहा।

''अ5ी वाह! र्मैं ब्राह्म ï ण हूँ, शु»; र्मेरे सार्थ खाकर आपको 5ल्दी र्मोक्ष धिर्म! 5ाएगा। कहीं हार्थ र्में तरकारी !गी रह गयी तो आपके लि!ए स्वग� का फाKक फौरन खु! 5ाएगा! खाओ।''

दो कौर खाने के बाद शंकर बाबू ने बुआ5ी से कहा, ''यही बहू है, 5ो !ड़की र्था!ी रख गयी र्थी?''

''अरे रार्म कहौ, ऊ तो हर्मार छोरी है किबनती! पहचनत्यौ नै। किपछ!े सा! तो र्मु�े के किववाह र्में देखे होबो!'' बुआ5ी बो!ीं।

शंकर बाबू कै!ाश से काफी बडे़ रे्थ !ेकिकन देखने र्में बहुत बडे़ नहीं !गते रे्थ। खाते-पीते बो!े, ''डॉक्Kर साहब! !ड़की से ककिहए, रोKी दे 5ाये। र्मैं इसी तरह देख !ँूगा, और ज्यादा तडक़-भड़क की कोई 5रूरत नहीं!''

डॉक्Kर साहब ने बुआ5ी को इशारा किकया और वे उठकर च!ी गयीं। र्थोड़ी देर र्में सुधा आयी। सादी सफेद धोती पहने, हार्थ र्में रोKी लि!ये दरवा5े पर आकर किहचकी, किफर आकर चन्दर से बो!ी, ''रोKी !ोगे!'' और किबना चन्दर की आवा5 सुने रोKी चन्दर के आगे रखकर बो!ी, ''और क्या चाकिहए?''

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''र्मुझे कढ़ी चाकिहए!'' शंकर बाबू ने कहा। सुधा गयी और कढ़ी !े आयी। शंकर बाबू के सार्मने रख दी। शंकर बाबू ने आँखें उठाकर सुधा की ओर देखा, सुधा ने किनगाहें नीची कर !ीं और च!ी गयी।

''बहुत अच्छी है !ड़की!'' शंकर बाबू ने कहा। ''इतनी पढ़ी-लि!खी !ड़की र्में इतनी शर्म�-लि!हा5 नहीं धिर्म!ती। सचर्मुच 5ैसे आपकी एक ही !ड़की र्थी, आपने उसे खूब बनाया है। कै!ाश के किबल्कु! योग्य !ड़की है। यह तो ककिहए डॉक्Kर साहब किक लिशष्टा प्रब! होती है वरना हर्मारा कहाँ सौभाग्य र्था! 5ब से र्मेरी पत्नी र्मरी तभी से र्माता5ी कै!ाश के किववाह की जि5द कर रही हैं। कै!ाश अन्त5ा�तीय किववाह करना चाहता र्था, !ेकिकन हर्में तो अपनी 5ाकित र्में ही इतना अच्छा सम्बन्ध धिर्म! गया।''

''तो तोहरे अबकिहन कौन बैस ह्वा गयी। तुहौ काहे नाही बहुरिरया !ै अउत्यौ। सुधी के अके! र्मन न !गी!'' बुआ5ी बो!ीं।

शंकर बाबू कुछ नहीं बो!े। खाना खाकर उन्होंने हार्थ धोये और घड़ी देखी।

''अब र्थोड़ा सो !ँू, या 5ाने दीजि5ए। आइए, बातें करें हर्म और आप,'' उन्होंने चन्दर से कहा। एक ब5े तक चन्दर शंकर बाबू से बातें करता रहा और डॉक्Kर साहब और सुधा वगैरह खाना खाते रहे। शंकर बाबू बहुत हँसरु्मख रे्थ और बहुत बातूनी भी। चन्दर को तो कै!ाश से भी ज्यादा शंकर बाबू पसन्द आये। बातें करने से र्मा!ूर्म हुआ किक शंकर बाबू की आयु अभी तीस वष� से अधिधक की नहीं है। एक पाँच वष� का बच्चा है और उसी के होने र्में उनकी पत्नी र्मर गयी। अब वे किववाह नहीं करेंगे, वे गाँधीवादी हैं, काँग्रेस के प्रर्मुख स्थानीय काय�कता� हैं और म्युकिनलिसप! कधिर्मश्नर हैं। घर के 5र्मींदार हैं। कै!ाश बरे!ी र्में पढ़ता र्था। अब भी कै!ाश का कोई इरादा किकसी प्रकार की नौकरी या व्यापार करने का नहीं है, वह र्म5दूरों के लि!ए साप्ताकिहक पv किनका!ने का इरादा कर रहा है। वह सुधा को ब5ाय घर पर रखने के अपने सार्थ रखेगा क्योंकिक वह सुधा को आगे पढ़ाना चाहता है, सुधा को रा5नीकित के्षv र्में !े 5ाना चाहता है।

बीच र्में एक बार किबनती आयी और उसने चन्दर को बु!ाया। चन्दर बाहर गया तो किबनती ने कहा, ''दीदी पूछ रही हैं, ये किकतनी देर र्में 5ाएगँे?''

''क्यों?''

''कह रही हैं अब चन्दर को याद र्थोडे़ ही है किक सुधा भी इसी घर र्में है। उन्हीं से बातें कर रहे हैं।''

चन्दर हँस दिदया और कुछ नहीं कहा। किबनती बो!ी, ''ये !ोग तो बहुत अचे्छ हैं। र्मैं तो कहूँगी सुधा दीदी को इससे अच्छा परिरवार धिर्म!ना र्मुश्किश्क! है। हर्मारे ससुर की तरह नहीं हैं ये !ोग।''

''हाँ, किफर भी सुधा इतनी सेवा नहीं कर रही है इनकी। किबनती, तुर्म सुधा को कुछ लिशक्षा दे दो इस र्मार्म!े र्में।''

''हाँ-हाँ, हर्म सेवा करने की लिशक्षा दे देंगे और ब्याह करने के बाद की लिशक्षा अपनी पम्र्मी से दिद!वा देना। खुद तो उनसे !े ही चुके होंगे आप!''

चन्दर झेंप गया। ''पा5ी कहीं की, बहुत बेशरर्म हो गयी है। पह!े र्मुँह से बो! नहीं किनक!ता र्था!''

''तुर्मने और दीदी ने ही तो किकया बेशरर्म! हर्म क्या करें? पह!े हर्म किकतना डरते रे्थ!'' किबनती ने उसी तरह गद�न Kेढ़ी करके कहा और र्मुसकराकर भाग गयी।

5ब डॉक्Kर साहब आये तो शंकर बाबू ने कहा, ''अब तो र्मैं 5ा रहा हूँ, यह र्मा!ा र्मेरी ओर से बहू को दे दीजि5ए।'' और उन्होंने बड़ी सुन्दर र्मोकितयों की र्मा!ा बैग से किनका!ी और बुआ5ी के हार्थ र्में दे दी।

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''हाँ, एक बात है!'' शंकर बाबू बो!े, ''ब्याह हर्म !ोग र्महीने भर के अन्दर ही करेंगे। आपकी सब बात हर्मने र्मानी, यह बात आपको हर्मारी र्माननी होगी।''

''इतनी 5ल्दी!'' डॉक्Kर शुक्!ा चौंक उठे, ''यह असम्भव है, शंकर बाबू ! र्मैं अके!ा हूँ, आप 5ानते हैं।''

''नहीं, आपको कोई कष्ट न होगा।'' शंकर बाबू बहुत र्मीठे स्वर र्में बो!े, ''हर्म !ोग रीकित-रसर्म के तो काय! हैं नहीं। आप जि5तना चाहे रीकित-रसर्म अपने र्मन से कर !ें। हर्म !ोग तो लिसफ� छह-सात आदधिर्मयों के सार्थ आएगेँ। सुबह आएगेँ, अपने बँग!े र्में एक कर्मरा खा!ी करा दीजि5एगा। शार्म को अगवानी और किववाह कर दें। दूसरे दिदन दस ब5े हर्म !ोग च!े 5ाएगँे।''

''यह नहीं होगा।'' डॉक्Kर साहब बो!े, ''हर्मारी तो अके!ी !ड़की है और हर्मारे भी तो कुछ हौस!े हैं। और किफर !ड़की की बुआ तो यह कभी भी नहीं स्वीकार करेंगी।''

''देखिखए, र्मैं आपको सर्मझा दँू, कै!ाश शादिदयों र्में तड़क-भड़क के सख्त खिख!ाफ है। पह!े तो वह इसलि!ए 5ाकित र्में किववाह नहीं करना चाहता र्था, !ेकिकन 5ब र्मैंने उसे भरोसा दिद!ाया किक बहुत सादा किववाह होगा तभी वह रा5ी हुआ। इसीलि!ए इसे आप र्मान ही !ें किफर किववाह के बाद तो जि5-दगी पड़ी है। आपकी अके!ी !ड़की है जि5तना चाकिहए, करिरए। रहा कर्म सर्मय का तो शुभस्य शीघ्रर्म्! किफर आपको कुछ खास इन्त5ार्म भी नहीं करना, अगर कुछ हो तो ककिहए र्मैं यहीं रह 5ाऊँ, आपका कार्म कर दँू!'' शंकर बाबू हँसकर बो!े।

कुछ देर तक बातें होती रहीं, अन्त र्में शंकर बाबू ने अपने सौ5न्य और र्मीठे स्वभाव से सभी को रा5ी कर ही लि!या। उसके बाद उन्होंने सबसे किवदा र्माँगी, च!ते वक्त बुआ5ी और डॉक्Kर साहब के पैर छुए, चन्दर से हार्थ धिर्म!ाया और शंकर बाबू सबका र्मन 5ीतकर च!े गये।

बुआ5ी ने र्मा!ा हार्थ र्में !ी, उसे उ!K-प!Kकर देखा और बो!ीं, ''एक ऊ आये रहे 5ूताखोर! एक ठो काग5 र्थर्माय के च!े गये!'' और एक गहरी साँस !ेके च!ी गयीं।

डॉ. साहब ने सुधा को बु!ाया। उसके हार्थ र्में वह र्मा!ा रखकर उसे लिचपKा लि!या। सुधा पापा की गोद र्में र्मुँह लिछपाकर रो पड़ी।

उसके बाद सुधा च!ी गयी और चन्दर, डॉक्Kर साहब और बुआ5ी बैठे शादी के इन्त5ार्म की बातें करते रहे। यह तय हुआ किक अभी तो इन्हीं की इच्छानुसार किववाह कर दिदया 5ाए किफर यूकिनवर्शिस-Kी खु!ने पर सभी को बु!ाकर अच्छी दावत वगैरह दे दी 5ाए। यह भी तय हुआ किक बुआ5ी गाँव 5ाकर अना5, घी, बकिडय़ाँ और नौकर वगैरह का इन्त5ार्म कर !ाए ँऔर पन्द्रह दिदन के अन्दर !ौK आए।ँ अगवानी ठीक छह ब5े शार्म को हो 5ाए और सुबह के नाश्ते र्में क्या दिदया 5ाए, यह सभी डॉक्Kर साहब ने तय कर डा!ा। !ेकिकन किनश्चय यह किकया गया किक चँूकिक आदर्मी बहुत कर्म आ रहे हैं, अत: सुबह-शार्म के नाश्ते का कार्म यूकिनवर्शिस-Kी के किकसी रेस्तराँ को दे दिदया 5ाए।

इसी बीच र्में किबनती खरबू5ा और शरबत !ाकर रख गयी और चन्दर ने बहुत आरार्म से शरबत पीते हुए पूछा, ''किकसने बनाया है?''

''सुधा दीदी ने।''

''आ5 बड़ी खुश र्मा!ूर्म पड़ती है, चीनी बहुत कर्म छोड़ी है!'' चन्दर बो!ा। बुआ और किबनती दोनों हँस पड़ीं।

र्थोड़ी देर बाद चन्दर उठकर भीतर गया तो देखा किक सुधा अपने प!ँग पर बैठी सार्मने एक किकताब रखे 5ाने क्या देख रही है और सार्मने वह र्मा!ा पड़ी है। चन्दर गया और बो!ा, ''सुधा! आ5 र्मैं बहुत खुश हूँ।''

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सुधा ने आँखें उठायीं और चन्दर की ओर देखकर र्मुसकराने की कोलिशश की और बो!ी, ''र्मैं भी बहुत खुश हूँ।''

''क्यों, तय हो गया इसलि!ए?'' किबनती ने पूछा।

''नहीं, चन्दर बहुत खुश हैं इसलि!ए!'' और एक गहरी साँस !ेकर किकताब बन्द कर दी।

''कौन-सी किकताब है, सुधा?'' चन्दर ने पूछा।

''कुछ नहीं, इस पर उदू� के कुछ अशआर लि!खे हैं 5ो गेसू ने सुनाये रे्थ।'' सुधा बो!ी।

चन्दर ने किबनती की ओर देखा और कहा, ''किबनती, कै!ाश तो 5ैसा है वैसा ही है, !ेकिकन शंकरबाबू की तारीफ र्मैं कर नहीं सकता। क्या राय है तुम्हारी?''

''हाँ, है तो सही; दीदी इतनी सुखी रहेंगी किक बस! दीदी, हर्में भू! र्मत 5ाना, सर्मझीं!'' किबनती बो!ी।

''और हर्में भी र्मत भू!ना सुधा!'' चन्दर ने सुधा की उदासी दूर करने के लि!ए छेड़ते हुए कहा।

''हाँ, तुम्हें भू!े किबना कैसे कार्म च!ेगा।'' सुधा ने और भी गहरी साँस !ेते हुए कहा और एक आँसू गा!ों पर किफस! ही आया।

''अरे पग!ी, तुर्म सब कुछ अपने चन्दर के लि!ए कर रही हो, उसकी आज्ञा र्मानकर कर रही हो। किफर यह आँसू कैसे? लिछह! और यह र्मा!ा सार्मने रखे क्या कर रही हो?'' चन्दर ने बह!ाया।

''र्मा!ा तो दीदी इसलि!ए सार्मने रखे र्थीं किक बत!ाऊँ...बत!ाऊँ!'' किबनती बो!ी, ''अस! र्में रार्मायण की कहानी तो सुनी है चन्दर, तुर्मने? रार्मचन्द्र ने अपने एक भक्त को र्मोती की र्मा!ा दी तो वह उसे दाँत से तोडक़र देख रहा र्था किक उसके अन्दर रार्मनार्म है या नहीं। सो यह र्मा!ा सार्मने रखकर देख रही र्थीं, इसर्में कहीं चन्दर की झ!क है या नहीं?''

''चुप किग!हरी कहीं की?'' सुधा हँस पड़ी, ''बहुत बो!ना आ गया है!'' सुधा ने हँसते हुए बनावKी गुस्से से कहा। किफर सुधा तकिकये से दिKककर बैठ गयी-''आ5 गेसू नहीं है। र्मुझे गेसू की बहुत याद आ रही है।''

''क्यों?''

''इसलि!ए किक आ5 उसके कई शेर याद आ रहे हैं। एक दफे उसने सुनाया र्था-

ये आ5 किफ5ा खार्मोश है क्यों, हर 5र® को आखिखर होश है क्यों?

या तुर्म ही किकसी के हो न सके, या कोई तुम्हारा हो न सका।'

इसी की अस्टिन्तर्म पंलिक्त है-

र्मौ5ें भी हर्मारी हो न सकीं, तूफाँ भी हर्मारा हो न सका'!''

''वाह! यह पंलिक्त बहुत अच्छी है,'' चन्दर ने कहा।

''आ5 गेसू होती तो बहुत-सी बातें करते!'' सुधा बो!ी, ''देखो चन्दर, जि5-दगी भी क्या होती है! आदर्मी क्या सोचता है और क्या हो 5ाता है। आ5 से तीन-चार र्महीने पह!े र्मैंने क्या सोचा र्था! क्!ास-रूर्म से भागकर हर्म !ोग पेड़ के

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नीचे !ेKकर बातें करते रे्थ, तो र्मैं हरे्मशा कहती र्थी-र्मैं शादी नहीं करँूगी। पापा को सर्मझा !ँूगी। उस दिदन क्या र्मा!ूर्म र्था किक इतनी 5ल्दी 5ुए के नीचे गरदन डा! देनी होगी और पापा को भी 5ीतकर किकसी दूसरे से हार 5ाना होगा। अभी उसकी तय भी नहीं हुई और र्महीने-भर बाद र्मेरी...'' सुधा र्थोड़ी देर चुप रही और किफर-''और दूसरी बात उसकी, 5ो र्मैंने तुम्हें बतायी र्थी। उसने कहा र्था 5ब किकसी के कदर्म हK 5ाते हैं लिसर के नीचे से, तब र्मा!ूर्म होता है किक हर्म किकसका सपना देख रहे रे्थ। पह!े हर्में भी नहीं र्मा!ूर्म होता र्था किक हर्मारे लिसर किकसके कदर्मों पर झुक चुके हैं। याद है? र्मैंने तुम्हें बताया र्था, तुर्मने पूछा र्था!''

''याद है।'' चन्दर ने कहा। किबनती उठकर च!ी गयी !ेकिकन सुधा या चन्दर किकसी ने ध्यान भी नहीं दिदया। चन्दर बो!ा, ''!ेकिकन सुधा, इन सब बातों को सोचने से क्या फायदा, आगे का रास्ता सार्मने है, बढ़ो।''

''हाँ, सो तो है ही देवता र्मेरे! कभी-कभी 5ाने किकतनी पुरानी बातें र्मन र्में आ ही 5ाती हैं और र्मन करता है किक र्मैं सोचती ही 5ाऊँ। 5ाने क्यों र्मन को बड़ा सन्तोष धिर्म!ता है। और चन्दर, 5ब र्मैं वहाँ रहूँगी, तुर्मसे दूर, तो इन्हीं स्र्मृकितयों के अ!ावा और क्या शेष रहेगा...तुम्हें वह दिदन याद है 5ब र्मैं गेसू के यहाँ नहीं 5ा पायी र्थी और उस स्थान पर हर्म !ोगों र्में झगड़ा हो गया र्था...चन्दर, वहाँ सब कुछ है !ेकिकन र्मैं !डँ़ूगी-झगडँ़ूगी किकससे वहाँ?''

चन्दर एक फीकी-सी हँसी हँसकर बो!ा, ''अब क्या 5न्र्म-भर बच्ची ही बनी रहोगी!''

''हाँ चन्दर, चाहती तो यही र्थी !ेकिकन जि5-दगी तो 5बरदस्ती सब सुख छीन !ेती है और बद!े र्में कुछ भी नहीं देती। आओ, च!ो !ॉन पर च!ें। शार्म को तुर्मसे बातें ही करेंगे!''

उसके बाद सुधा रात को आठ ब5े उठी, 5ब बुआ तैयार होकर स्Kेशन 5ा रही र्थीं और ड्राइवर र्मोKर किनका! रहा र्था। और उदास दिKर्मदिKर्माते हुए लिसतारों ने देखा किक चन्दर और सुधा दोनों की आँखों र्में आँसुओं की अवशेष नर्मी जिझ!धिर्म!ा रही र्थी। उठते हुए सुधा ने क्षण-भर चन्दर की ओर देखा, चन्दर ने लिसर झुका लि!या और बहुत उदास आवा5 र्में कहा, ''च!ो सुधा, बहुत देर कर दी हर्म !ोगों ने।''

पन्द्रह दिदन बाद बुआ आयीं तो उन्होंने घर की शक्! ही बद! दी। दरवा5े पर और बरसाती र्में हल्दी के हार्थों की छाप !ग गयी, कर्मरों का सभी सार्मान हKाकर दरिरयाँ किबछा दी गयीं और सबसे अन्दर वा!े कर्मरे र्में सुधा का सब सार्मान रख दिदया गया। स्Kडी-रूर्म की सभी किकताबें सर्मेK दी गयीं और वहाँ एक बड़ी-सी र्मशीन !ाकर रख दी गयी जि5स पर बैठकर किबनती लिस!ाई करती र्थी। उसी को कपडे़ और गहनों का भंडार-घर बनाया गया और उसकी चाबी किबनती या बुआ के पास रहती र्थी। गाँव से एक र्महराजि5न, एक कहारिरन और दो र्म5दूर आये रे्थ, वे सभी गैरे5 र्में सोते रे्थ और दिदन-भर कार्म करते रे्थ और 'पानी पीने' को र्माँगते रहते रे्थ। सभी कुर्शिस-याँ और सोफासेK किनक!वाकर सायबान र्में !गवा दिदये गये रे्थ। रसोई के पार वा!ी कोठरी र्में कुल्हड़, पत्त!ें, प्या!े वगैरह रखे रे्थ और पू5ा वा!े कर्मरे र्में शक्कर, घी, तरकारी और अना5 र्था। धिर्मठाई कहाँ रखी 5ाएगी, इस पर बुआ5ी, र्महराजि5न और किबनती र्में घंKे-भर तक बहस हुई !ेकिकन 5ब बुआ5ी ने किबनती से कहा, ''आपन !ड़के-बच्चे का किबयाह किकयो तो कतरनी अस 5बान च!ाय लि!ह्यो, अबकिहन हर कार्म र्में काहे Kाँग अड़ावा करत हौ!'' तो किबनती चुप हो गयी और अन्त र्में बुआ5ी की राय सवÏपरिर र्मानी गयी। बुआ5ी की 5बान जि5तनी ते5 र्थी, हार्थ भी उतने ही ते5। चार बोरा गेहूँ उन्होंने साफ करके कोठरिरयों र्में भरवा दिदये। कर्म-से-कर्म पाँच तरह की दा!ें !ायी र्थीं। बेसन किपसवाया, दा! दरवायी, पापड़ बनवाये, र्मैदा छनवाया, सू5ी दरवायी, बरी-र्मुँगौरी ड!वायीं, चाव! की कचौरिरयाँ बनवायीं और सबको अ!ग-अ!ग गठरी र्में बाँधकर रख दिदया। रात को अकसर बुआ5ी, र्महराजि5न तर्था गाँव की र्महरिरन wो!क !ेकर बैठ 5ातीं और गीत गातीं। किबनती उनर्में भी शाधिर्म! रहती।

सच पूछो तो सुधा के ब्याह का जि5तना उछाह बुआ को नहीं र्था, उतना किबनती को र्था। वह सुबह से उठकर झाड़ू !ेकर सारा घर बुहार डा!ती र्थी, इसके बाद नहाकर तरकारी काKती, उसके बाद किफर चाय चढ़ाती। डॉक्Kर साहब, चन्दर, सुधा सभी को चाय देती, बैठकर चन्दर अगर कुछ किहसाब लि!खाता तो किहसाब लि!खती, किफर अपनी र्मशीन पर बैठ 5ाती और बारह-एक ब5े तक लिस!ाई करती रहती, किफर दोपहर को चाव! और दा! बीनती, शार्म को खरबू5े काKती, शरबत बनाती और रात-भर 5ाग-5ागकर गाती या दीदी को हँसाने की कोलिशश करती। एक दिदन

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सुधा ने कहा, ''र्मेरे ब्याह र्में तो इतनी खुश है, अपने ब्याह र्में क्या करेगी?'' तो किबनती ने 5वाब दिदया, ''अपने ब्याह र्में तो र्मैं खुद बैंड ब5ाऊँगी, वद\ पहनकर!''

घर चर्मक उठा र्था 5ैसे रेशर्म! !ेकिकन रेशर्म के चर्मकदार, रंगीन उल्!ास भरे गो!े के अन्दर भी एक प्राणी होता है, उदास स्तब्ध अपनी साँस रोककर अपनी र्मौत की क्षण-क्षण प्रतीक्षा करने वा!ा रेशर्म का कीड़ा। घर के इस सारे उल्!ास और चह!-पह! से धिघरा हुआ लिसफ� एक प्राणी र्था जि5सकी साँस धीरे-धीरे डूब रही र्थी, जि5सकी आँखों की चर्मक धीरे-धीरे कुम्ह!ा रही र्थी, जि5सकी चंच!ता ने उसकी न5रों से किवदा र्माँग !ी र्थी, वह र्थी-सुधा। सुधा बद! गयी र्थी। गोरा चम्पई चेहरा पी!ा पड़ गया र्था, और !गता र्था 5ैसे वह बीर्मार हो। खाना उसे 5हर !गने !गा र्था, अपने कर्मरे को छोड़कर कहीं 5ाती न र्थी। एक शीत!पाKी किबछाये उसी पर दिदन-रात पड़ी रहती र्थी। किबनती 5ब हँसती हुई खाना !ाती और सुधा के इनकार पर किबनती के आँसू छ!छ!ा आते तब सुधा पानी के घूँK के सहारे कुछ खा !ेती और उदास, किफर अपनी शीत!पाKी पर !ेK 5ाती। स्वग� को कोई इन्द्रधनुषों से भर दे और शची को 5हर किप!ा दे, कुछ ऐसा ही !ग रहा र्था वह घर।

डॉक्Kर शुक्!ा का साहस न होता र्था सुधा से बो!ने का। वह रो5 किबनती से पूछ !ेते-''सुधा खाना खाती है या नहीं?'' किबनती कहती, ''हाँ।'' तो एक गहरी साँस !ेकर अपने कर्मरे र्में च!े 5ाते।

चन्दर परेशान र्था। उसने इतना कार्म शायद कभी भी न किकया हो अपनी जि5-दगी र्में। सुनार के यहाँ, कपडे़ वा!े के यहाँ, किफर राशपिन-ग अफसर के यहाँ, पुलि!स बैंड ठीक कराने पुलि!स !ाइंस, अ5r देने र्मैजि5स्टे्रK के यहाँ, रुपया किनका!ने बैंक, शाधिर्मयाने का इन्त5ार्म, प!ँग, कुसr वगैरह का इन्त5ार्म, खाने-परोसने के बरतनों के इन्त5ार्म और 5ाने क्या-क्या...और 5ब बुरी तरह र्थककर आता, 5ेठ की तपती हुई दोपहरी र्में, तब किबनती आकर बताती-सुधा ने आ5 किफर कुछ नहीं खाया तो उसका र्मन होता र्था वह लिसर पKक-पKक दे। वह सुधा के पास 5ाता, सुधा आँसू पोंछकर बैठती, एक KूKी-फूKी र्मुसकान से चन्दर का स्वागत करती। चन्दर उससे पूछता, ''खाती क्यों नहीं?''

''खाती तो हूँ चन्दर, इससे ज्यादा गरधिर्मयों र्में र्मैं कभी नहीं खाती र्थी।'' सुधा कहती और इतने दृढ़ स्वर से किक चन्दर से कुछ प्रकितवाद नहीं करते बनता।

अब बाहरी कार्म !गभग सर्माप्त हो गये रे्थ। वैसे तो सभी 5गह हल्दी लिछडक़कर पv रवाना किकये 5ा चुके रे्थ !ेकिकन किनर्मंvण-पv भी बहुत सुन्दर छपकर आये रे्थ, हा!ाँकिक कुछ देर हो गयी र्थी। ब्याह को अब कु! सात दिदन बचे रे्थ। चन्दर सुबह दस ब5े एक किडब्बे र्में किनर्मंvण-पv और लि!फाफा-भरे हुए आया और स्Kडी-रूर्म र्में बैठ गया। किबनती बैठी हुई कुछ लिस! रही र्थी।

''सुधा कहाँ है? उसे बु!ा !ाओ।''

सुधा आयी, सू5ी आँखें, सूखे होठ, रूखे बा!, र्मै!ी धोती, किनष्प्राण चेहरा और बीर्मार चा!। हार्थ र्में पंखा लि!ये र्थी। आयी और चन्दर के पास बैठ गयी-''कहो, क्या कर आये, चन्दर! अब किकतना इन्त5ार्म बाकी है?''

''अब सब हो गया, सुधा रानी! आ5 तो पैर 5वाब दे रहे हैं। साइकिक! च!ाते-च!ाते पैर र्में 5ैसे गाँठें पड़ गयी हों।'' चन्दर ने काड� फै!ाते हुए कहा, ''शादी तुम्हारी होगी और 5ान र्मेरी किनक!ी 5ा रही है र्मेहनत से।''

''हाँ चन्दर, इतना उत्साह तो और किकसी को नहीं है र्मेरी शादी का!'' सुधा ने कहा और बहुत दु!ार से बो!ी, ''!ाओ, पैर दबा दँू तुम्हारे?''

''अरे पाग! हो गयी?'' चन्दर ने अपने पैर उठाकर ऊपर रख लि!ये।

''हाँ, चन्दर!'' गहरी साँस !ेते हुए सुधा बो!ी, ''अब र्मेरा अधिधकार भी क्या है तुम्हारे पैर छूने का। क्षर्मा करना, र्मैं भू! गयी र्थी किक र्मैं पुरानी सुधा नहीं हूँ।'' और Kप से दो आँसू किगर पडे़। सुधा ने पंखे की ओK कर आँखें पोंछ !ीं।

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''तुर्म तो बुरा र्मान गयीं, सुधा!'' चन्दर ने पैर नीचे रखते हुए कहा।

''नहीं चन्दर, अब बुरा-भ!ा र्मानने के दिदन बीत गये। अब गैरों की बात का भी बुरा-भ!ा नहीं र्मान पाऊँगी, किफर घर के !ोगों की बातों का बुरा-भ!ा क्या...छोड़ो ये सब बातें। ये क्या किनर्मंvण-पv छपा है, देखें!''

चन्दर ने एक किनर्मंvण-पv उठाया, उसे लि!फाफे र्में भरकर उस पर सुधा का नार्म लि!खकर कहा, ''!ो, हर्मारी सुधा का ब्याह है, आइएगा 5रूर!''

सुधा ने किनर्मंvण पv !े लि!या-''अच्छा!'' एक फीकी हँसी हँसकर बो!ी, ''अच्छा, अगर हर्मारे पकितदेव ने आज्ञा दे दी तो आऊँगी आपके यहाँ। उनका भी नार्म लि!ख दीजि5ए वरना बुरा न र्मान 5ाए।ँ'' और सुधा उठ खड़ी हुई।

''कहाँ च!ी?'' चन्दर ने पूछा।

''यहाँ बहुत रोशनी है! र्मुझे अपना अँधेरा कर्मरा ही अच्छा !गता है।'' सुधा बो!ी।

''च!ो किबनती, वहीं काड� !े च!ो!'' चन्दर ने कहा, ''आओ सुधा, आ5 काड� लि!खते 5ाएगँे, तुर्मसे बात करते 5ाएगँे। जि5-दगी देखो, सुधी! आ5 पन्द्रह दिदन से तुर्मसे दो धिर्मनK बैठकर बात भी न कर सके।''

''अब क्या करना है, चन्दर! 5ैसा कह रहे हो वैसा कर तो रही हूँ। अभी कुछ और बाकी है क्या? बता दो वह भी कर डा!ँू। अब तो रो-पीKकर ऊँचा बनना ही है।''

किबनती ने काड� सर्मेKे तो सुधा डाँKकर बो!ी-''रख इसे यहीं; च!ी उठा के! बड़ी चन्दर की आज्ञाकारी बनी है। ये भी हर्मारी 5ान की गाहक हो गयी अब! हर्मारे कर्मरे र्में !ायी ये सब, तो Kाँग तोड़ दँूगी! पा5ी कहीं की!''

किबनती ने काड� धर दिदये। नौकर ने आकर कहा, ''बाबू5ी, कुम्हार अपना किहसाब र्माँगता है!''

''अच्छा, अभी आया, सुधा!'' और चन्दर च!ा गया।

और इस तरह दिदन बीत रहे रे्थ। शादी न5दीक आती 5ा रही र्थी और सभी का सहारा एक-दूसरे से छूKता 5ा रहा र्था। सुधा के र्मन पर 5ो कुछ भी धीरे-धीरे र्मरघK की उदासी की तरह बैठता 5ा रहा र्था और चन्दर अपने प्यार से, अपनी र्मुसकानों से, अपने आँसुओं से धो देने के लि!ए व्याकु! हो उठा र्था, !ेकिकन यह जि5-दगी र्थी 5हाँ प्यार हार 5ाता है, र्मुसकानें हार 5ाती हैं, आँसू हार 5ाते हैं-तश्तरी, प्या!े, कुल्हड़, पत्त!ें, का!ीनें, दरिरयाँ और बा5े 5ीत 5ाते हैं। 5हाँ अपनी जि5-दगी की पे्ररणा-र्मूर्तित- के आँसू किगनने के ब5ाय कुल्हड़ और प्या!े किगनवाकर रखने पड़ते हैं और 5हाँ किकसी आत्र्मा की उदासी को अपने आँसुओं से धोने के ब5ाय पत्त!ें धु!वाना ज्यादा र्महत्वपूण� होता है, 5हाँ भावना और अन्तद्व�द्व के सारे तूफान सुनार और किब5!ीवा!ों की बातें र्में डूब 5ाते हैं, और 5हाँ दो आँसुओं र्में डूबते हुए व्यलिक्तयों की पुकार शहनाइयों की आवा5 र्में डूब 5ाती है और जि5स वक्त किक आदर्मी के हृदय का कण-कण क्षतकिवक्षत हो 5ाता है, जि5स वक्त उसकी नसों र्में लिसतारे KूKते हैं, जि5स वक्त उसके र्मारे्थ पर आग धधकती है, जि5स वक्त उसके लिसर पर से आसर्मान और पाँव त!े से धरती हK 5ाती है, उस सर्मय उसे शादी की साकिड़यों का र्मो!-तो! करना पड़ता है और बा5े वा!े को एडवान्स रुपया देना पड़ता है।

ऐसी र्थी उस वक्त चन्दर की जि5-दगी और उस जि5-दगी ने अपना चक्र पूरी तरह च!ा दिदया र्था। करोड़ों तूफान घुर्मड़ाते हुए उसे नचा रहे रे्थ। वह एक क्षण भी कहीं नहीं दिKक पाता र्था। एक प! भी उसे चैन नहीं र्था, एक प! भी वह यह नहीं सोच पाता र्था किक उसके चारों ओर क्या हो रहा है? वह बेहोशी र्में, र्मूछा� र्में र्मशीन की तरह कार्म कर रहा र्था। आवा5ें र्थीं किक उसके कानों से Kकराकर च!ी 5ाती र्थीं, आँसू रे्थ किक हृदय को छू नहीं पाते रे्थ, चक्र उसे फँसाकर खींचे लि!ये 5ा रहा र्था। किब5!ी से भी ज्यादा ते5, प्र!य से भी ज्यादा सशक्त वह खिख-चा 5ा रहा र्था। लिसफ� एक ओर। शादी का दिदन। सुधा ने नरु्थनी पहनी, उसे नहीं र्मा!ूर्म। सुधा ने कोरे कपडे़ पहने, उसे नहीं र्मा!ूर्म। सुधा ने चूडे़

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पहने, उसे नहीं र्मा!ूर्म। घर र्में गीत हुए, उसे नहीं र्मा!ूर्म। सुधा ने चूल्हा पू5ते वक्त अपना लिसर पKक दिदया, उसे नहीं र्मा!ूर्म...वह व्यलिक्त नहीं र्था, तूफान र्में उड़ता हुआ एक पी!ा पत्ता र्था 5ो वात्याचक्र र्में उ!झ गया र्था और झोंके उसे नचाये 5ा रहे रे्थ...

और उसे होश आया तब, 5ब किबनती 5बरदस्ती उसका हार्थ पकडक़र खींच !े गयी बारात आने के एक दिदन पह!े। उस छत पर, 5हाँ सुधा पड़ी रो रही र्थी, चन्दर को wके!कर च!ी आयी।

चन्दर के सार्मने सुधा र्थी। सुधा, जि5ससे वह पता नहीं क्यों बचना चाहता र्था। अपनी आत्र्मा के संघष� से, अपने अन्त:करण के घावों की कसक से घबराकर 5ैसे कोई आदर्मी एकान्त कर्मरे से भागकर भीड़ र्में धिर्म! 5ाता है, भीड़ के किनरर्थ�क शोर र्में अपने को खो देना चाहता है, बाहर के शोर र्में अन्दर का तूफान भु!ा देना चाहता है; उसी तरह चन्दर किपछ!े हफ्ते से सब कुछ भू! गया; उसे लिसफ� एक ची5 याद रहती र्थी-शादी का प्रबन्ध। सुबह से !ेकर सोने के वक्त तक वह इतना कार्म कर डा!ना चाहता र्था किक उसे एक क्षण भी बैठने का र्मौका न धिर्म!े, और सोने से पह!े वह इतना र्थक 5ाये, इतना चूर-चूर हो 5ाये किक !ेKते ही नींद उसे 5कड़ !े और उसे बेहोश कर दे। !ेकिकन उस वक्त किबनती उसे उसके किवस्र्मरण-स्थ! से खींचकर एकान्त र्में !े आयी है 5हाँ उसकी ताकत और उसकी कर्म5ोरी, उसकी पकिवvता और उसका पाप, उसकी र्मुसकान और उसके आँसू, उसकी प्रकितभा और उसकी किवस्र्मृकित; उसकी सुधा अपनी जि5-दगी के लिचरन्तन र्मोड़ पर खड़ी अपना सब कुछ !ुKा रही र्थी। चन्दर को !गा 5ैसे उसको अभी चक्कर आ 5ाएगा। वह अकु!ाकर खाK पर बैठ गया।

शार्म र्थी, सूर5 डूब रहा र्था और दिदन-भर की तपी हुई छत पर 5!ती हुई बरसाती के नीचे एक खरहरी खाK पर सुधा !ेKी र्थी। एक र्महीन पी!ी धोती पहने, कोरी र्मारकीन की कुतr, पहने, रूखे लिचकKे हुए बा! और नाक र्में बहुत बड़ी-सी नर्थ। पन्द्रह दिदन के आँसुओं ने चेहरे को 5ाने कैसा बना दिदया। न चेहरे पर सुकुर्मारता र्थी, न कठोरता। न रूप र्था, न ता5गी। लिसफ� ऐसा !गता र्था किक 5ैसा सुधा का सब कुछ !ुK चुका है। न केव! प्यार और जि5-दगी !ुKी है, वरन आवा5 भी !ुK गयी है और नीरवता भी। वैभव भी !ुK गया और याचना भी।

सुधा ने अपने पी!े पल्!े से आँसू पोंछे और उठकर बैठ गयी। दोनों चुप। पह!े कौन बो!े! किबनती आयी, चन्दर और सुधा का खाना रखकर च!ी गयी। ''खाना खाओगी, सुधा?'' चन्दर ने पूछा। सुधा कुछ बो!ी नहीं लिसफ� लिसर किह!ा दिदया। और डूबते हुए सूर5 और उड़ते हुए बाद!ों की ओर देखकर 5ाने क्या सोचने !गी। चन्दर ने र्था!ी खिखसका दी और सुधा को अपनी ओर खींचकर बो!ा, ''सुधा, इस तरह कैसे कार्म च!ेगा। तुम्हीं को देखकर तो र्मैं अपना धीर5 सँभा!ूँगा, बताओ और तुम्हीं यह कर रही हो!'' सुधा चन्दर के पास खिखसक आयी और दो धिर्मनK तक चुपचाप चन्दर की ओर फKी हुई पर्थरायी आँखों से देखती रही और एकदर्म हृदय को फाड़ देने वा!ी आवा5 र्में चीखकर रो उठी-''चन्दर, अब क्या होगा!''

चन्दर की सर्मझ र्में नहीं आया, वह क्या करे! आँसू उसके सूख चुके रे्थ। वह रो नहीं सकता र्था। उसके र्मन पर कहीं कोई पत्थर रखा र्था 5ो आँसुओं की बँूदों को बनने के सार्थ ही सोख !ेता र्था !ेकिकन वह तड़प उठा, ''सुधा!'' वह घबराकर बो!ा, ''सुधा, तुम्हें हर्मारी कसर्म है-चुप हो 5ाओ! चुप...किबल्कु! चुप...हाँ...ऐसे ही!'' सुधा चन्दर के पाँवों र्में र्मुँह लिछपाये र्थी-''उठकर बैठो ठीक से सुधा...इतना सर्मझ-बूझकर यह सब करती हो, लिछह! तुम्हें अपना दिद! र्म5बूत करना चाकिहए वरना पापा को किकतना दुख होगा।''

''पापा ने तो र्मुझसे बो!ना भी छोड़ दिदया है, चन्दर! पापा से कह दो आ5 तो बो! !ें, क! से हर्म उन्हें परेशान करने नहीं आएगेँ, कभी नहीं आएगेँ। अब उनकी सुधा को सब !े 5ा रहे हैं, 5ाने कहाँ !े 5ा रहे हैं!'' और किफर वह फफक-फफककर रो पड़ी।

चन्दर ने किबनती से पापा को बु!वाया। सुधा को रोते हुए देखकर किबनती खड़ी हो गयी, ''दीदी, रोओ र्मत दीदी, किफर हर्म किकसके भरोसे रहेंगे यहाँ?'' और सुधा को चुप कराते-कराते किबनती भी रोने !गी। और आँसू पोंछते हुए च!ी गयी।

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पापा आये। सुधा चुप हो गयी और कुछ कहा नहीं, किफर रोने !गी। डॉक्Kर शुक्!ा भरा�ये ग!े से बो!े, ''र्मुझे यह रोआई अच्छी नहीं !गती। यह भावुकता क्यों? तुर्म पढ़ी-लि!खी !ड़की हो। इसी दिदन के लि!ए तुम्हें पढ़ाया-लि!खाया गया र्था! भावुकता से क्या फायदा?'' कहते-कहते डॉक्Kर शुक्!ा खुद रोने !गे। ''च!ो चन्दर यहाँ से! अभी 5नवासा ठीक करवाना है।'' चन्दर और डॉक्Kर शुक्!ा दोनों उठकर च!े गये।

अपनी शादी के पह!े, हरे्मशा के लि!ए अ!ग होने से पह!े सुधा को इतना ही र्मौका धिर्म!ा...उसके बाद...

सुबह छह ब5े गाड़ी आती र्थी, !ेकिकन खुशकिकस्र्मती से गाड़ी !ेK र्थी; डॉक्Kर शुक्!ा तर्था अन्य !ोग बारात का स्वागत करने स्Kेशन पर 5ा रहे रे्थ और चन्दर घर पर ही रह गया र्था 5नवासे का इन्त5ार्म करने। 5नवासा बग! र्में र्था। र्मारु्थर साहब के बँग!े के दोनों हॉ! और कर्मरा खा!ी करवा लि!ये गये रे्थ। चन्दर सुबह छह ही ब5े आ गया र्था और 5नवासे र्में सब सार्मान !गवा दिदया र्था। नहाने का पानी और बाकी इन्त5ार्म कर वह घर आया। 5!पान का इन्त5ार्म तो केदार के हार्थ र्में र्था !ेकिकन कुछ तौलि!ये क्षिभ5वाने रे्थ।

''किबनती, कुछ तौलि!ये किनका! दो।'' चन्दर ने किबनती से कहा।

किबनती उद� की दा! धो रही र्थी। उसने फौरन उठकर हार्थ धोये और कर्मरे की ओर च!ी गयी।

''ऐ किबनती...'' बुआ5ी ने भंडारे के अन्दर से आवा5 !गायी-''5ाने कहाँ र्मर गयी र्मुँहझौंसी! अरे सिस-गार-पKार बाद र्में कर लि!यो, कार्म र्में तकिनक दीदा नै !गते। बेसन का कनस्Kर कहाँ रखा है?''

''अभी आये!'' किबनती ने चन्दर से कहा और अपनी र्माँ के पास दौड़ी, पन्द्रह धिर्मनK हो गये !ेकिकन किबनती !ौKी ही नहीं। ब्याह का घर! हर तरफ से किबनती की पुकार र्मचती और किबनती पंख !गाये उड़ रही र्थी। 5ब किबनती नहीं !ौKी तो चन्दर ने सुधा को wँुwक़र कहा, ''सुधी, एक बहुत बड़ा-सा तौलि!या किनका! दो।''

सुधा चुपचाप उठी और स्Kडी-रूर्म र्में च!ी गयी। चन्दर भी पीछे-पीछे गया।

''बैठो, अभी किनका!कर !ाते हैं!'' सुधा ने भरी हुई आवा5 र्में कहा और बग! के कर्मरे र्में च!ी गयी। वहाँ से !ौKी तो उसके हार्थ र्में र्मीठे की तश्तरी र्थी।

''अरे खाने का वक्त नहीं है, सुधा! आठ ब5े !ोग आ 5ाएगँे।''

''अभी दो घंKे हैं, खा !ो चन्दर! अब कभी तुम्हारे कार्म र्में हर5ा करके खाने को नहीं कहूँगी!'' सुधा बो!ी। चन्दर चुप।

''याद है, चन्दर! इसी 5गह आँच! र्में लिछपाकर नानखKाई !ायी र्थी। आओ, आ5 अपने हार्थ से खिख!ा दँू। क! ये हार्थ पराये हो 5ाएगँे। और सुधा ने एक इर्मरती तोडक़र चन्दर के र्मुँह र्में दे दी। चन्दर की आँखों र्में दो आँसू छ!क आये-सुधा ने अपने हार्थ से आँसू पोंछ दिदये और बो!ी, ''चन्दर, घर र्में कोई खाने का खया! करने वा!ा नहीं है। खाते-पीते 5ाना, तुम्हें हर्मारी कसर्म है। र्मैं शाह5हाँपुर से !ौKकर आऊँगी तो दुब!े र्मत धिर्म!ना।'' चन्दर कुछ बो!ा नहीं। आँसू बहते गये, सुधा खिख!ाती गयी, वह खाता गया। सुधा ने किग!ास र्में पानी दिदया, उसने हार्थ धोया और 5ेब से रूर्मा! किनका!ा।

''क्यों, आ5 आँच! र्में हार्थ नहीं पोंछोगे?'' सुधा बो!ी। चन्दर ने आँच! हार्थ र्में !े लि!या और प!कों पर आँच! दबाकर फूK-फूKकर रो पड़ा।

''लिछह, चन्दर! आ5 तो हर्म सँभ! गये हैं, हर्मने सब स्वीकार कर लि!या चुपचाप। अब तुर्म कर्म5ोर र्मत बनो, तुर्मने कहा र्था, र्मैं शान्त रहूँ तो शान्त हो गयी। अब क्यों र्मुझे भी रु!ाओगे! उठो।'' चन्दर उठ खड़ा हुआ।

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सुधा ने एक पान चन्दर के र्मुँह र्में देकर कत्था उसकी कर्मी5 से !गा दिदया। चन्दर कुछ नहीं बो!ा।

''अरे, आ5 तो !ड़ !ो, चन्दर! आ5 से खत्र्म कर देना।''

इतने र्में किबनती तौलि!या !े आयी। ''दीदी, इन्हें कुछ खिख!ा दो। ये खा नहीं रहे हैं।'' किबनती ने कहा।

''खिख!ा दिदया।'' सुधा बो!ी, ''देखो चन्दर, आ5 र्मैं नहीं रोऊँगी !ेकिकन एक शत� पर। तुर्म बराबर र्मेरे सार्मने रहना। र्मंडप र्में रहोगे न?''

''हाँ, रहूँगा।'' चन्दर ने आँसू पीते हुए कहा।

''कहीं च!े र्मत 5ाना! र्मेरी आखिखरी किबनती है।'' सुधा बो!ी। चन्दर तौलि!या !ेकर च!ा आया।

चँूकिक बारात र्में कु! आठ ही !ोग रे्थ अत: घर की और र्मारु्थर साहब की दो ही कारों से कार्म च! गया। 5ब ये !ोग आये तो नाश्ते का सार्मान तैयार र्था और चन्दर चुपचाप बैठा र्था। उसने फौरन सबका सार्मान !गवाया और सार्मान रखवाकर वह 5ा ही रहा र्था किक कै!ाश ने पीछे से कन्धे पर हार्थ रखकर उसे पीछे घुर्मा लि!या और ग!े से !गकर बो!ा, ''कहाँ च!े कपूर साहब, नर्मस्ते! च!ो, पह!े नाश्ता करो।'' और खींचकर वह चन्दर को !े गया। अपने बग! की र्मे5 पर किबठाकर, उसकी चाय अपने हार्थ से बनायी और बो!ा, ''कुछ नारा5 रे्थ क्या, कपूर? खत का 5वाब क्यों नहीं देते रे्थ?''

''हर्म तो बराबर खत का 5वाब देते रहे, यार!'' कपूर चाय पीते हुए बो!ा।

''अच्छा तो हर्म घूर्मते रहे इधर-उधर, खत गड़बड़ हो गये होंगे।...!ो, सर्मोसा खाओ!'' कै!ाश ने कहा। चन्दर ने लिसर किह!ाया तो बो!ा, 'अरे, वाह म्याँ? शादी तुम्हारी नहीं हो रही है, हर्मारी हो रही है, सर्मझे? तुर्म क्यों तकल्!ुफ कर रहे हो। अच्छा कपूर...कार्म तो तुम्हीं पर होगा सब!''

''हाँ!'' कपूर बो!ा।

''बड़ा अफसोस है, यार!'' 5ब हर्म !ोग पह!ी दफा धिर्म!े रे्थ तो यह नहीं र्मा!ूर्म र्था किक तुर्म और डॉक्Kर साहब इतना अच्छा इनार्म दोगे, अपने को बचाने का। हर्मारे !ायक कोई कार्म हो तो बताओ!''

''आपकी दुआ है!'' चन्दर ने लिसर झुकाकर कहा, और सभी हँस पडे़। इतने र्में शंकर बाबू डॉक्Kर साहब के सार्थ आये और सब !ोग चुप हो गये।

दिदन भर के व्यवहार से चन्दर ने देखा किक कै!ाश भी उतना ही अच्छा हँसरु्मख और शा!ीन है जि5तने शंकर बाबू रे्थ। वह उसे रा5नीकितक के्षv र्में जि5तना फौ!ादी !गा र्था, घरे!ू जि5-दगी र्में उतना ही अच्छा !गा। चन्दर का र्मन खुशी से नाच उठा। सुधा की ओर से वह र्थोड़ा किनक्षिश्चन्त हो गया। अब सुधा किनभा !े 5ाएगी। वह र्मौका किनका!कर घर र्में गया। देखा, सुधा को औरतें घेरे हुए बैठी हैं और र्महावर !गा रही हैं। किबनती कनस्तर र्में से घी किनका! रही र्थी। चन्दर गया और किबनती की चोKी घसीKकर बो!ा, ''ओ किग!हरी, घी पी रही है क्या?''

किबनती ने दंग होकर चन्दर की ओर देखा। आ5 तक कभी अचे्छ-भ!े र्में तो चन्दर ने उसे नहीं लिचढ़ाया र्था। आ5 क्या हो गया? आ5 5बकिक किपछ!े पन्द्रह रो5 से चन्दर के होठ र्मुसकराना भू! गये हैं।

''आँख फाड़कर क्या देख रही है? कै!ाश बहुत अच्छा !ड़का है, बहुत अच्छा। अब सुधा बहुत सुखी रहेगी। किकतना अच्छा होगा, किबनती! हँसती क्यों नहीं किग!हरी!'' और चन्दर ने किबनती की बाँह र्में चुKकी काK !ी।

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''अच्छा! हर्में दीदी सर्मझा है क्या? अभी बताती हूँ।'' और घी भरे हार्थ से चन्दर की बाँह पकड़कर किबनती ने 5ोर से घुर्मा दी। चन्दर ने अपने को छुड़ाया और किबनती को चपत र्मारकर गुनगुनाता हुआ च!ा गया।

किबनती ने कनस्तर के र्मुँह पर !गा घी पोंछा और र्मन र्में बो!ी, 'देवता और किकसे कहते हैं?'

शार्म को बारात चढ़ी। सादी-सी बारात। लिसफ� एक बैंड र्था। कै!ाश ने शेरवानी और पाय5ार्मा पहना र्था, और Kोपी। लिसफ� एक र्मा!ा ग!े र्में पड़ी र्थी और हार्थ र्में कंगन बँधा र्था। र्मौर पीछे किकसी आदर्मी के हार्थ र्में र्था। 5यर्मा!ा की रस्र्म होने वा!ी र्थी। !ेकिकन बुआ5ी ने स्पष्ट कर दिदया किक हर्मारी !ड़की कोई ऐसी-वैसी नहीं किक ब्याह के पह!े भरी बारात र्में र्मुँह खो!कर र्मा!ा पहनाये। !ेकिकन घूँघK के र्मार्म!े पर सुधा ने दृढ़ता से र्मना किकया र्था, वह घूँघK किबल्कु! नहीं करेगी।

अन्त र्में पापा उसे !ेकर र्मंडप र्में आये। घर का कार्म-का5 किनबK गया र्था। सभी !ोग आँगन र्में बैठे रे्थ। काधिर्मनी, प्रभा, !ी!ा सभी र्थीं, एक ओर बाराती बैठे रे्थ। सुधा शान्त र्थी !ेकिकन उसका र्मुँह ग्रहण के चन्द्रर्मा की तरह किनस्ते5 र्था। र्मंडप का एक बल्ब खराब हो गया र्था और चन्दर सार्मने खड़ा उसे बद! रहा र्था। सुधा ने 5ाते-5ाते चन्दर को देखा और आँसू पोंछकर र्मुसकराने !गी और र्मुसकराकर किफर आँसू पोंछने !गीं। काधिर्मनी, प्रभा, !ी!ा तर्मार्म !ड़किकयाँ कै!ाश पर फण्टिब्तयाँ कस रही र्थीं। सुधा लिसर झुकाये बैठी र्थी। पापा से उसने कहा, ''किबनती को हर्मारे पास भे5 दो।'' किबनती आकर सुधा के पीछे बैठ गयी। कै!ाश ने आँख के इशारे से चन्दर को बु!ाया। चन्दर 5ाकर पीछे बैठा तो कै!ाश ने कहा, ''यार, यहाँ 5ो !ोग खडे़ हैं इनका परिरचय तो बता दो चुपके से!'' चन्दर ने सभी का परिरचय बताया। काधिर्मनी, प्रभा, !ी!ा सभी के बारे र्में 5ब चन्दर बता रहा र्था तो किबनती बो!ी, ''बडे़ !ा!ची र्मा!ूर्म देते हैं आप? एक से सन्तोष नहीं है क्या? वाह रे 5ी5ा5ी!'' कै!ाश ने र्मुसकराकर चन्दर से पूछा, ''इसका ब्याह तय हुआ किक नहीं?''

''हो गया।'' चन्दर ने कहा।

''तभी बो!ने का अभ्यास कर रही हैं; र्मंडप र्में भी इसीलि!ए बैठी हैं क्या?'' कै!ाश ने कहा। किबनती झेंप गयी और उठकर च!ी गयी।

संस्कार शुरू हुआ। कै!ाश के हार्थ र्में नारिरय! और उसकी र्मुठ्ठी पर सुधा के दोनों हार्थ। सुधा अब चुप र्थी। इतनी चुप...इतनी चुप किक !गता र्था उसके होठों ने कभी बो!ना 5ाना ही नहीं। संस्कार के दौरान ही पारस्परिरक वचन का सर्मय आया। कै!ाश ने सभी प्रकितज्ञाए ँस्वयं कहीं। शंकरबाबू ने कहा, !ड़की भी लिशक्षिक्षत है और उसे भी स्वयं वचन करने होंगे। सुधा ने लिसर किह!ा दिदया। एक असन्तोष की !हर-सी बाराकितयों र्में फै! गयी। चन्दर ने किबनती को बु!ाया। उसके कान र्में कहा, ''5ाकर सुधा से कह दो किक पाग!पन नहीं करते। इससे क्या फायदा?'' किबनती ने 5ाकर बहुत धीरे से सुधा के कान र्में कहा। सुधा ने लिसर उठाकर देखा। सार्मने बरार्मदे की सीदिwय़ों पर चन्दर बैठा हुआ बड़ा लिचस्टिन्तत-सा कभी शंकरबाबू की ओर देखता और कभी सुधा की ओर। सुधा से उसकी किनगाह धिर्म!ी और वह लिसहर-सा उठा, सुधा क्षण-भर उसकी ओर देखती रही। चन्दर ने 5ाने क्या कहा और सुधा ने आँखों-ही-आँखों र्में उसे क्या 5वाब दे दिदया। उसके बाद सुधा नीचे रखे हुए पू5ा के नारिरय! पर !गे हुए लिसन्दूर को देखती रही किफर एक बार चन्दर की ओर देखा। किवलिचv-सी र्थी वह किनगाह, जि5सर्में कातरता नहीं र्थी, करुणा नहीं र्थी, आँसू नहीं रे्थ, कर्म5ोरी नहीं र्थी, र्था एक गम्भीरतर्म किवश्वास, एक उपर्माहीन स्नेह, एक सम्पूण�तर्म सर्मप�ण। !गा, 5ैसे वह कह रही हो-सचर्मुच तुर्म कह रहे हो, किफर सोच !ो चन्दर...इतने दृढ़ हो...इतने कठोर हो...र्मुझसे र्मुँह से क्यों कह!वाना चाहते हो...क्या सारा सुख !ूKकर र्थोड़ी-सी आत्र्मवंचना भी र्मेरे पास नहीं छोड़ोगे?...अच्छा !ो, र्मेरे देवता! और उसने हारकर लिससकिकयों से सने स्वरों र्में अपने को कै!ाश को सर्मर्तिप-त कर दिदया। प्रकितज्ञाए ँदोहरा दीं और उसके बाद साड़ी का एक छोर खींचकर, नर्थ की डोरी ठीक करने के बहाने उसने आँसू पोंछ लि!ये।

चन्दर ने एक गहरी साँस !ी और बग! र्में बैठी हुई बुआ5ी से कहा, ''बुआ5ी, अब तो बैठा नहीं 5ाता। आँखों र्में 5ैसे किकसी ने धिर्मच� भर दी हो।''

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''5ाओ...5ाओ, सोय रहो ऊपर, खाK किबछी है। क! सुबह दस ब5े किवदा करे को है। कुछ खायो किपयो नै, तो पडे़ रहबो!'' बुआ ने बडे़ स्नेह से कहा।

चन्दर ऊपर गया तो देखा एक खाK पर किबनती औंधी पड़ी लिससक रही है। ''किबनती! किबनती!'' उसने किबनती को पकडक़र किह!ाया। किबनती फूK-फूKकर रो पड़ी।

''उठ पग!ी, हर्में तो सर्मझाती है, खुद अपने-आप पाग!पन कर रही है।'' चन्दर ने रँुधे ग!े से कहा।

किबनती उठकर एकदर्म चन्दर की गोद र्में सर्मा गयी और दद�नाक स्वर र्में बो!ी, ''हाय चन्दर...अब...क्या...होगा?''

चन्दर की आँखों र्में आँसू आ गये, वह फूK पड़ा और किबनती को एक डूबते हुए सहारे की तरह पकडक़र उसकी र्माँग पर र्मुँह रखकर फूK-फूKकर रो पड़ा। !ेकिकन किफर भी सँभ! गया और किबनती का र्मार्था सह!ाते हुए और अपनी लिससकिकयों को रोकते हुए कहा, ''रो र्मत पग!ी!''

धीरे-धीरे किबनती चुप हुई। और खाK के पास नीचे छत पर बैठ गयी और चन्दर के घुKनों पर हार्थ रखकर बो!ी, ''चन्दर, तुर्म आना र्मत छोड़ना। तुर्म इसी तरह आते रहना! 5ब तक दीदी ससुरा! से !ौK न आए।ँ''

''अच्छा!'' चन्दर ने किबनती की पीठ पर हार्थ रखकर कहा, ''घबराते नहीं। तुर्म तो बहादुर !ड़की हो न! सब ची5 बहादुरी से सहना चाकिहए। कैसी दीदी की बहन हो? क्यों?''

किबनती उठकर नीचे च!ी गयी।

चन्दर !ेK रहा। उसकी पोर-पोर र्में दद� हो रहा र्था। नस-नस को 5ैसे कोई तोड़ रहा हो, खींच रहा हो। हकिड्डयों के रेशे-रेशे र्में र्थकान धिर्म! गयी र्थी !ेकिकन उसे नींद नही आयी। आँगन र्में पुरोकिहत5ी के र्मंv-पाठ का स्वर और बीच-बीच र्में आने वा!े किकसी बाराती या औरतों की आवा5ें उसके र्मन को अस्त-व्यस्त कर देती र्थीं। उसकी र्थकान और उसकी अशास्टिन्त ही उसको बार-बार झKके से 5गा देती र्थी। वह करवK बद!ता, कभी ऊपर देखता, कभी आँखें बन्द कर !ेता किक शायद नींद आ 5ाए !ेकिकन नींद नहीं ही आयी। धीरे-धीरे नीचे का रव भी शान्त हो गया। संस्कार भी सर्माप्त हुआ। बाराती उठकर च!ने !गे और वह आवा5ों से यह पहचानने की कोलिशश करने !गा किक अब कौन क्या कर रहा है। धीरे-धीरे सब शोर शान्त हो गया।

चन्दर ने किफर करवK बद!ी और आँख बन्द कर !ी। धीरे-धीरे एक कोहरा उसके र्मन पर छा गया। वह इतना 5ागा किक अब अगर वह आँख भी बन्द करता तो 5ब प!कें पुतलि!यों से छा 5ातीं तो एक बहुत कड़ुआ दद� होने !गा र्था। 5ैसे-तैसे उसकी र्थोड़ी-सी आँख !गी...

किकसी ने सहसा 5गा दिदया। प!क बन्द करने र्में जि5तना दद� हुआ र्था उतना ही प!कें खो!ने र्में। उसने प!कें खो!ीं-देखा सार्मने सुधा खड़ी र्थी...

र्माँग और र्मारे्थ र्में लिसन्दूर, क!ाई र्में कंगन, हार्थ र्में अँगूदिठयाँ, कडे़, चूडे़, ग!े र्में गहने, बड़ी-सी नरु्थनी डोरे के सहारे कान र्में बँधी हुई, आँखें-जि5नर्में भादों की घKाओं की गर5 खार्मोश हो रही बरसात-सी हो गयी र्थी।

वह क्षण-भर पैताने खड़ी रही। चन्दर उठकर बैठ गया! उसका दिद! इस तरह धडक़ रहा र्था 5ैसे किकसी के सार्मने भाग्य का रूठा हुआ देवता खड़ा हो। सुधा कुछ बो!ी नहीं। उसने दोनों हार्थ 5ोडे़ और झुककर चन्दर के पैरों पर र्मार्था Kेक दिदया। चन्दर ने उसके लिसर पर हार्थ रखकर कहा, ''ईश्वर तुम्हारा सुहाग अK! करे! तुर्म बहुत र्महान हो। र्मुझे तुर्म पर आ5 से गव� है। आ5 तक तुर्म 5ो कुछ र्थी उससे कहीं ज्यादा हो र्मेरे लि!ए, सुधा!''

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सुधा कुछ बो!ी नहीं। आँच! से आँसू पोंछती हुई पायताने 5र्मीन पर बैठ गयी। और अपने ग!े से एक बे!े का हार उतारा। उसे तोड़ डा!ा और चन्दर के पाँव खींचकर खाK के नीचे 5र्मीन पर रख लि!ये।

''अरे यह क्या कर रही हो, सुधा।'' चन्दर ने कहा।

''5ो र्मेरे र्मन र्में आएगा!'' बहुत र्मुश्किश्क! से रँुधे ग!े से सुधा बो!ी, ''र्मुझे किकसी का डर नहीं, तुर्म 5ो कुछ दंड दे चुके हो, उससे बड़ा दंड तो अब भगवान भी नहीं दे सकें गे?'' सुधा ने चन्दर के पाँवों पर फू! रखकर उन्हें चूर्म लि!या और अपनी क!ाई र्में बँधी हुई एक पुकिड़या खो!कर उसर्में से र्थोड़ा-सा लिसन्दूर उन फू!ों पर लिछडक़कर, चन्दर के पाँवों पर लिसर रखकर चुपचाप रोती रही।

र्थोड़ी देर बाद उठी और उन फू!ों को सर्मेKा। अपने आँच! के छोर र्में उन्हें बाँध लि!या और उठकर च!ी...धीरे्म-धीरे्म किन:शब्द...

''कहाँ च!ी, सुधा?'' चन्दर ने सुधा का हार्थ पकड़ लि!या।

''कहीं नहीं!'' अपना हार्थ छुड़ाते हुए सुधा ने कहा।

''नहीं-नहीं, सुधा, !ाओ ये हर्म रखेंगे!'' चन्दर ने सुधा को रोकते हुए कहा।

''बेकार है, चन्दर! क! तक, परसों तक ये 5ूठे हो 5ाएगँे, देवता र्मेरे!'' और सुधा लिससकते हुए च!ी गयी।

एक चर्मकदार लिसतारा KूKा और पूरे आकाश पर किफस!ते हुए 5ाने किकस क्षिक्षकित5 र्में खो गया।

दूसरे दिदन आठ ब5े तक सारा सार्मान स्Kेशन पहुँच गया र्था। शंकर बाबू और डॉक्Kर साहब पह!े ही स्Kेशन पहुँच गये रे्थ। बाराती भी सब वहीं च!े गये रे्थ। कै!ाश और सुधा को स्Kेशन तक !ाने का जि5म्र्मा चन्दर पर र्था। बहुत 5ल्दी करते-कराते भी सवा नौ ब5े गये रे्थ। उसने किफर 5ाकर कहा। कै!ाश और सुधा खडे़ हुए रे्थ। पीछे से नाइन सुधा के लिसर पर पंखा रखी र्थी और बुआ5ी रोचना कर रही र्थीं। चन्दर के 5ल्दी र्मचाने पर अन्त र्में उन्हें फुरसत धिर्म!ी और वह आगे बढे़। र्मोKर पर सुधा ने ज्यों ही पाँव रखा किक किबनती पाँव से लि!पK गयी और रोने !गी। सुधा 5ोर से किब!ख-किब!खकर रो पड़ी। चन्दर ने किबनती को छुड़ाया। सुधा पीछे बैठकर खिखड़की पर र्मुँह रखकर लिससकती रही। र्मोKर च! दी। सुधा र्मुडक़र अपने घर की ओर देख रही र्थी। किबनती ने हार्थ 5ोडे़ तो सुधा चीखकर रो पड़ी। किफर चुप हो गयी।

स्Kेशन पर भी सुधा किबल्कु! शान्त रही। सुधा और कै!ाश के लि!ए सेकें ड क्!ास र्में एक बर्थ� सुरक्षिक्षत र्थी। बाकी !ोग ड्योढे़ र्में रे्थ। शंकर बाबू ने दोनों को उस किडब्बे र्में पहुँचाया और बो!े, ''कै!ाश, तुर्म 5रा हर्मारे सार्थ आओ। धिर्मस्Kर कपूर, 5रा बहू के पास आप रकिहए। र्मैं डॉक्Kर साहब को यहाँ भे5 रहा हूँ।''

चन्दर खिखडक़ी के पास खड़ा हो गया। शंकर बाबू का छोKा बच्चा आकर अपनी नयी चाची के पास बैठ गया और उनकी रेशर्मी चादर से खे!ने !गा। चन्दर चुपचाप खड़ा र्था।

सहसा सुधा ने उसके हार्थों पर अपना र्मेहँदी !गा हार्थ रख दिदया और धीरे्म से कहा, ''चन्दर!'' चन्दर ने र्मुडक़र देखा तो बो!ी, ''अब कुछ सोचो र्मत। इधर देखो!'' और सुधा ने 5ाने किकतने दु!ार से चन्दर से कहा, ''देखो, किबनती का ध्यान रखना। उसे तुम्हारे ही भरोसे छोड़ रही हूँ और सुनो, पापा को रात को सोते वक्त दूध र्में ओवल्Kीन 5रूर दे देना। खाने-पीने र्में गड़बड़ी र्मत करना, यह र्मत सर्मझना किक सुधा र्मर गयी तो किफर किबना दूध की चाय पीने !गो। हर्म 5ल्दी से आ 5ाएगँे। पम्र्मी का कोई खत आये तो हर्में लि!खना।''

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इतने र्में डॉक्Kर साहब और कै!ाश आ गये। कै!ाश कम्पाK�र्मेंK के बार्थरूर्म र्में च!ा गया। डॉक्Kर साहब आये और सुधा के लिसर पर हार्थ रखकर बो!े, ''बेKा! आ5 तेरी र्माँ होती तो किकतना अच्छा होता। और देख, र्महीने-भर र्में बु!ा !ेंगे तुझे! वहाँ घबराना र्मत।''

गाड़ी ने सीKी दी।

पापा ने कहा, ''बेKा, अब ठीक से रहना और भावुकता या बचपना र्मत करना। सर्मझी!'' पापा ने आँख से रूर्मा! !गा लि!या-''किववाह बहुत बड़ा उत्तरदाधियत्व है। अब तुम्हारी नयी जि5-दगी है। अब तक बेKी र्थी, अब बहू हो...।''

सुधा बो!ी, ''पापा, तुम्हारा ओवल्Kीन का किडब्बा शीशे वा!ी र्मे5 पर है। उसे पी लि!या करना और पापा, किबनती को गाँव र्मत भे5ना। चन्दर को अब घर पर ही बु!ा !ो। तुर्म अके!े पड़ गये! और हर्में 5ल्दी बु!ा !ेना...''

गाड� ने सीKी दी। कै!ाश ने 5ल्दी से डॉक्Kर साहब के पैर छुए। चन्दर से हार्थ धिर्म!ा लि!या। सुधा बो!ी, ''चन्दर, ये पु5ा� किबनती को देना और देखो र्मेरा नती5ा किनक!े तो तार देना।'' गाड़ी च! पड़ी। ''अच्छा पापा, अच्छा चन्दर...'' सुधा ने हार्थ 5ोडे़ और खिखडक़ी पर दिKककर रोने !गी। और बार-बार आँसू पोंछ-पोंछकर देखने !गी।...

गाड़ी प्!ेKफार्म� के बाहर च!ी गयी तब चन्दर र्मुड़ा। उसके बदन र्में पोर-पोर र्में दद� हो रहा र्था। वह कैसे घर पर पहुँचा उसे र्मा!ूर्म नहीं।

दो

चन्दर को हफ्ते-भर तक होश नहीं रहा। शादी के दिदनों र्में उसे एक नशा र्था जि5सके ब! पर वह र्मशीन की तरह कार्म करता गया। शादी के बाद इतनी भयंकर र्थकावK उसकी नसों र्में कसक उठी किक उसका च!ना-किफरना र्मुश्किश्क! हो गया र्था। वह अपने घर से होK! तक खाना खाने नहीं 5ा पाता र्था। बस पड़ा-पड़ा सोता रहता। सुबह नौ ब5े सोता; पाँच ब5े उठता; र्थोड़ी देर होK! र्में बैठकर किफर वापस आ 5ाता। चुपचाप छत पर !ेKा रहता और किफर सो 5ाता। उसका र्मन एक उ5डे़ हुए नीड़ की तरह र्था जि5सर्में से किवचार, अनुभूकित, स्पन्दन और रस के किवहंगर्म कहीं दूर उड़ गये रे्थ। !गता र्था, 5ैसे वह सब कुछ भू! गया है। सुधा, किबनती, पम्र्मी, डॉक्Kर साहब, रिरसच�, र्थीलिसस, सभी कुछ! ये सब ची5ें कभी-कभी उसके र्मन र्में नाच 5ातीं !ेकिकन चन्दर को ऐसा !गता किक ये किकसी ऐसी दुकिनया की ची5ें हैं जि5सको वह भू! गया है, 5ो उसके स्र्मृकित-पK! से धिर्मK चुकी है, कोई ऐसी दुकिनया 5ो कभी र्थी, कहीं र्थी, !ेकिकन किकसी भयंकर 5!प्र!य ने जि5सका कण-कण ध्वस्त कर दिदया र्था। उसकी दुकिनया अपनी छत तक सीधिर्मत र्थी, छत के चारों ओर की ऊँची दीवारों और उन चारदीवारों से बँधे हुए आकाश के चौकोर Kुकडे़ तक ही उसके र्मन की उड़ान बँध गयी र्थी। उ5ा!ा पाख र्था। पह!े वह !ुब्धक तारे की रोशनी देखता किफर धीरे-धीरे चाँद की दूधिधया रोशनी सफेद कफन की तरह छा 5ाती और वह र्मन र्में र्थके हुए स्वर 5ैसे चाँदनी को ओढ़ता हुआ-सा कहता, ''सो 5ा र्मुरदे...सो 5ा।''

छठे दिदन उसका र्मन कुछ ठीक हुआ। र्थकावK, 5ो एक कें चु! की तरह उस पर छायी हुई र्थी, धीरे-धीरे उतर गयी और उसे !गा 5ैसे र्मन र्में कुछ KूKा हुआ-सा दद� कसक रहा है। यह दद� क्यों है, कैसा है, यह उसके कुछ सर्मझ र्में नहीं आता र्था। पाँच ब5े रे्थ !ेकिकन धूप किबल्कु! नहीं र्थी। पी!े उदास बाद!ों की एक झीनी तह ने w!ते हुए आषाढ़ के सूर5 को wँक लि!या र्था। हवा र्में एक ठंडक आ गयी र्थी; !गता र्था किक झोंके किकसी वषा� के देश से आ रहे हैं। वह उठा, नहाया और किबनती के घर च! पड़ा।

डॉक्Kर शुक्!ा !ॉन पर हार्थ र्में किकताब लि!ये Kह! रहे रे्थ। पाँच दिदनों र्में 5ैसे वह बहुत बूढे़ हो गये रे्थ। बहुत झुके हुए-से किनस्ते5 चेहरा, डबडबायी आँखें और चा! र्में 5ैसे उम्र र्थक गयी हो। उन्होंने चन्दर का स्वागत भी उस तरह नहीं किकया 5ैसे पह!े करते रे्थ। लिसफ� इतना बो!े, ''चन्दर, दो दफे ड्राइवर को भे5कर बु!ाया तो र्मा!ूर्म हुआ तुर्म सो रहे हो। अब अपना सार्मान यहीं !े आओ।'' और वे बैठकर किकताब उ!K-प!K कर देखने !गे। अभी तक वे बूढे़ रे्थ, उनका व्यलिक्तत्व तरुण र्था। आ5 !गता र्था 5ैसे उनके व्यलिक्तत्व पर झुर्रिर-याँ पडऩे !गी हैं, उनके व्यलिक्तत्व की कर्मर

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भी झुक गयी है। चन्दर कुछ नहीं बो!ा। चुपचाप खड़ा रहा। सार्मने आकाश पर एक अ5ब-सी 5द\ छा रही र्थी। डॉक्Kर साहब ने किकताब बन्द की और बो!े, ''सुना है...कॉ!े5 के किप्रश्किन्सप! आ गये हैं। 5ाऊँ 5रा उनसे तुम्हारे बारे र्में बात कर आऊँ। तुर्म 5ाओ, सुधा का खत आया है किबनती के पास।''

''बुआ5ी हैं?'' चन्दर ने पूछा।

''नहीं, आ5 ही सुबह तो गयीं। हर्म !ोग किकतना रोकते रहे !ेकिकन उन्हें कहीं और चैन ही नहीं पड़ता। किबनती को बड़ी र्मुश्किश्क! से रोका र्मैंने।'' और डॉक्Kर साहब गैरे5 की ओर च! पडे़।

चन्दर भीतर गया। सारा घर इतना सुनसान र्था, इतना भयंकर स�ाKा किक चन्दर के रोए-ँरोए ँखडे़ हो गये। शायद र्मौत के बाद का घर भी इतना नीरव और इतना भयानक न !गता होगा जि5तना यह शादी के बाद का घर। लिसफ� रसोई से कुछ खKपK की आवा5 आ रही र्थी। ''किबनती!'' चन्दर ने पुकारा। किबनती चौके र्में र्थी। वह किनक! आयी। किबनती को देखते ही चन्दर दंग हो गया। वह !ड़की इतनी दुब!ी हो गयी र्थी किक 5ैसे बीर्मार हो। रो-रोकर उसकी आँखें सू5 गयी र्थीं और होठ र्मोKे पड़ गये रे्थ। चन्दर को देखते ही उसने कड़ाही उतारकर नीचे रख दी और किबखरी हुई !Kें सुधारकर, आँच! ठीक कर बाहर किनक! आयी। कर्मरे से खींचकर एक चौकी आँगन र्में डा!कर चन्दर से बहुत उदास स्वर र्में बो!ी, ''बैदिठए!''

''घर किकतना सूना !ग रहा है किबनती, तुर्म अके!े कैसे रहती होगी?'' चन्दर ने कहा। किबनती की आँखों र्में आँसू छ!छ!ा आये।

''किबनती, रोती क्यों हो? लिछह! र्मुझे देखो। र्मैं कैसे पत्थर बन गया हूँ। क्यों? तुर्म तो इतनी अच्छी !ड़की हो।'' चन्दर ने किबनती के कन्धे पर हार्थ रखकर कहा।

किबनती ने आँसू भरी प!कें चन्दर की ओर उठायीं और बडे़ ही कातर स्वर र्में कहा, ''आप देवता हो सकते हैं, !ेकिकन हरेक तो देवता नहीं है। किफर आपने कहा र्था आप आएगेँ बराबर। किपछ!े हफ्ते से आये भी नहीं। यह भी नहीं सोचा किक हर्मारा क्या हा! होगा! रो5 सुबह-शार्म कोई भी आता तो हर्म दौडक़र देखते किक आप आये हैं या नहीं। दीदी आपकी र्थीं! बस उन तक आपका रिरश्ता र्था। हर्म तो आपके कोई नहीं हैं।''

''नहीं किबनती! इतने र्थक गये रे्थ किक हर्म कहीं आने-5ाने की किहम्र्मत ही नहीं पड़ती र्थी। बुआ5ी को 5ाने क्यों दिदया तुर्मने? उन्हें रोक !ेती!'' चन्दर ने कहा।

''अरे, वह र्थीं तो रोने भी नहीं देती र्थीं। र्मैं दो-तीन दिदन तक रोयी तो र्मुझ पर बहुत किबगड़ीं और र्महराजि5न से बो!ीं, ''हर्मने तो ऐसी !ड़की ही नहीं देखी। बड़ी बहन का ब्याह हो गया तो र्मारे 5!न के दिदन-रात आँसू बहा-बहाकर अर्मंग! बनाती है। 5ब बखत आएगा तभी शादी करेंगे किक अभी ही किकसी के सार्थ किनका! दँू।'' किबनती ने एक गहरी साँस !ेकर कहा, ''आप सर्मझ नहीं सकते किक जि5-दगी किकतनी खराब है। अब तो हर्मारी तबीयत होती है किक र्मर 5ाए।ँ अभी तक दीदी र्थीं, सहारा दिदये रहती र्थीं। किहम्र्मत बँधाये रहती र्थीं, अब तो कोई नहीं हर्मारा।''

''लिछह, ऐसी बातें नहीं करते, किबनती! र्महीने-भर र्में सुधा आ 5ाएगी। और र्माँ की बातों का क्या बुरा र्मानना?''

''आप !ड़की होते तो सर्मझते, चन्दर बाबू!'' किबनती बो!ी और 5ाकर एक तश्तरी र्में नाश्ता !े आयी, ''!ो, दीदी कह गयी र्थीं किक चन्दर के खाने-पीने का खया! रखना !ेकिकन यह किकसको र्मा!ूर्म र्था किक दीदी के 5ाते ही चन्दर गैर हो 5ाएगँे।''

''नहीं किबनती, तुर्म ग!त सर्मझ रही हो। 5ाने क्यों एक अ5ीब-सी खिख�ता र्मन र्में आ गयी र्थी। कुछ करने की तबीयत ही नहीं होती र्थी। आ5 कुछ तबीयत ठीक हुई तो सबसे पह!े तुम्हारे ही पास आया। किबनती! अब सुधा के बाद र्मेरा है ही कौन, लिसवा तुम्हारे?'' चन्दर ने बहुत उदास स्वर र्में कहा।

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''तभी न! उस दिदन र्मैं बु!ाती रह गयी और आप यह गये, वह गये और आँख से ओझ!! र्मैंने तो उसी दिदन सर्मझ लि!या र्था किक अब पुराने चन्दर बाबू बद! गये।'' किबनती ने रोते हुए कहा।

चन्दर का र्मन भर आया र्था, ग!े र्में आँसू अKक रहे रे्थ !ेकिकन आदर्मी की जि5-दगी भी कैसी अ5ब होती है। वह रो भी नहीं सकता र्था, र्मारे्थ पर दुख की रेखा भी झ!कने नहीं दे सकता र्था, इसलि!ए किक सार्मने कोई ऐसा र्था, 5ो खुद दुखी र्था और सुधा की र्थाती होने के नाते किबनती को सर्मझाना उसका पह!ा कत�व्य र्था। किबनती के आँसू रोकने के लि!ए वह खुद अपने आँसू पी गया और किबनती से बो!ा, ''!ो, कुछ तुर्म भी खाओ।'' किबनती ने र्मना किकया तो उसने अपने हार्थ से किबनती को खिख!ा दिदया। किबनती चुपचाप खाती रही और रह-रहकर आँसू पोंछती रही।

इतने र्में र्महराजि5न आयी। किबनती ने चौके के कार्म सर्मझा दिदये और चन्दर से बो!ी, ''चलि!ए, ऊपर च!ें।'' चन्दर ने चारों ओर देखा। घर का स�ाKा वैसा ही र्था। सहसा उसके र्मन र्में एक अ5ीब-सी बात आयी। सुधा के सार्थ कभी भी कहीं भी वह 5ा सकता र्था, !ेकिकन किबनती के सार्थ छत पर अके!े 5ाने र्में क्यों उसके अन्त:करण ने गवाही नहीं दी। वह चुपचाप बैठा रहा। किबनती कुछ भी हो, किकतनी ही सर्मीप क्यों न हो, किबनती सुधा नहीं र्थी, सुधा नहीं हो सकती र्थी। ''नहीं, यहीं ठीक है।'' चन्दर बो!ा।

किबनती गयी। सुधा का पv !े आयी। चन्दर का र्मन 5ाने कैसा होने !गा। !गता र्था 5ैसे अब आँसू नहीं रुकें गे। उसके र्मन र्में लिसफ� इतना आया किक अभी बहत्तर घंKे पह!े सुधा यहीं र्थी, इस घर की प्राण र्थी; आ5 !गता है 5ैसे इस घर र्में सुधा र्थी ही नहीं...

आँगन र्में अँधेरा होने !गा र्था। वह उठकर सुधा के कर्मरे के सार्मने पड़ी हुई कोच पर बैठ गया और किबनती ने बत्ती 5!ा दी। खत छोKा-सा र्था-

''डॉक्Kर चन्दर बाबू,

क्या तुर्म कभी सोचते रे्थ किक तुर्म इतनी दूर होगे और र्मैं तुम्हें खत लि!खँूगी। !ेकिकन खैर!

अब तो घर र्में चैन की बंसी ब5ाते होंगे। एक अके!े र्मैं ही काँKे-5ैसी खKक रही र्थी, उसे भी तुर्मने किनका! फें का। अब तुम्हें न कोई परेशान करता होगा, न तुम्हारे पढ़ने-लि!खने र्में बाधा पहुँचती होगी। अब तो तुर्म एक र्महीने र्में दस-बारह र्थीलिसस लि!ख डा!ोगे।

5हाँ दिदन र्में चौबीस घंKे तुर्म आँख के सार्मने रहते रे्थ, वहाँ अब तुम्हारे बारे र्में एक शब्द सुनने के लि!ए तड़प उठती हूँ। कई दफे तबीयत आती है किक 5ैसे किबनती से तुम्हारे बारे र्में बातें करती र्थी वैसे ही इनसे (तुम्हारे धिर्मv से) तुम्हारे बारे र्में बातें करँू !ेकिकन ये तो 5ाने कैसी-कैसी बातें करते हैं।

और सब ठीक है। यहाँ बहुत आ5ादी है र्मुझे। र्माँ5ी भी बहुत अच्छी हैं। परदा किबल्कु! नहीं करतीं। अपने पू5ा के सारे बरतन पह!े ही दिदन हर्मसे र्मँ5वाये।

देखो, पापा का ध्यान रखना। और किबनती को 5ैसे र्मैं छोड़ आयी हूँ उतनी ही र्मोKी रहे। र्मैं र्महीने-भर बाद आकर तुम्हीं से किबनती को वापस !ँूगी, सर्मझे? यह न करना किक र्मैं न रहूँ तो र्मेरे ब5ाय किबनती को रु!ा-रु!ाकर, कुढ़ा-कुढ़ाकर र्मार डा!ो, 5ैसी तुम्हारी आदत है।

चाय ज्यादा र्मत पीना-खत का 5वाब फौरन!

तुम्हारी-सुधा।''

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चन्दर ने लिचठ्ठी एक बार किफर पढ़ी, दो बार पढ़ी, और बार-बार पढ़ता गया। ह!के हरे काग5 पर छोKे-छोKे का!े अक्षर 5ाने कैसे !ग रहे रे्थ। 5ाने क्या कह रहे रे्थ, छोKे-छोKे अर्था�त कुछ उनर्में अर्थ� र्था 5ो शब्द से भी ज्यादा गम्भीर र्था। युगों पह!े वैयाकरणों ने उन शब्दों के 5ो अर्थ� किनक्षिश्चत किकये रे्थ, सुधा की क!र्म से 5ैसे उन शब्दों को एक नया अर्थ� धिर्म! गया र्था। चन्दर बेसुध-सा तन्र्मय होकर उस खत को बार-बार पढ़ता गया और किकस सर्मय वे छोKे-छोKे नादान अक्षर उसके हृदय के चारों ओर कवच-5ैसे बौजि»कता और सन्तु!न के !ौह पv को चीरकर अन्दर पिब-ध गये और हृदय की धड़कनों को र्मरोडऩा शुरू कर दिदया, यह चन्दर को खुद नहीं र्मा!ूर्म हुआ 5ब तक किक उसकी प!कों से एक गरर्म आँसू खत पर नहीं Kपक पड़ा। !ेकिकन उसने किबनती से वह आँसू लिछपा लि!या और खत र्मोड़क़र किबनती को दे दिदया। किबनती ने खत !ेकर रख लि!या और बो!ी, ''अब चलि!ए खाना खा !ीजि5ए!'' चन्दर इनकार नहीं कर सका।

र्महराजि5न ने र्था!ी !गायी और बो!ी, ''भइया, नीचे अबकिहन आँगन धोवा 5ाई, आप 5ाय के ऊपर खाय !ेव।''

चन्दर को र्म5बूरन ऊपर 5ाना पड़ा। किबनती ने खाK किबछा दी। एक स्Kू! डा! दिदया। पानी रख दिदया और नीचे र्था!ी !ाने च!ी गयी। चन्दर का र्मन भारी हो गया र्था। यह वही 5गह है, वही खाK है जि5स पर शादी की रात वह सोया र्था। इसी के पैताने सुधा आकर बैठी र्थी अपने नये सुहाग र्में लि!पKी हुई-सी। यही पर सुधा के आँसू किगरे रे्थ...।

किबनती र्था!ी !ेकर आयी और नीचे बैठकर पंखा करने !गी।

''हर्मारी तबीयत तो है ही नहीं खाने की, किबनती!'' चन्दर ने भरा�ये हुए स्वर र्में कहा।

''अरे, किबना खाये-पीये कैसे कार्म च!ेगा? और किफर आप ऐसा करेंगे तो हर्मारी क्या हा!त होगी? दीदी के बाद और कौन सहारा है! खाइए!'' और किबनती ने अपने हार्थ से एक कौर बनाकर चन्दर को खिख!ा दिदया! चन्दर खाने !गा। चन्दर चुप र्था, वह 5ाने क्या सोच रहा र्था। किबनती चुपचाप बैठी पंखा झ! रही र्थी।

''क्या सोच रहे हैं आप?'' किबनती ने पूछा।

''कुछ नहीं!'' चन्दर ने उतनी ही उदासी से कहा।

''नहीं बताइएगा?'' किबनती ने बडे़ कातर स्वर से कहा।

चन्दर एक फीकी र्मुसकान के सार्थ बो!ा, ''किबनती! अब तुर्म इतना ध्यान न रखा करो! तुर्म सर्मझती नहीं, बाद र्में किकतनी तक!ीफ होती है। सुधा ने क्या कर दिदया है यह वह खुद नहीं सर्मझती!''

''कौन नहीं सर्मझता!'' किबनती एक गहरी साँस !ेकर बो!ी, ''दीदी नहीं सर्मझती या हर्म नहीं सर्मझते! सब सर्मझते हैं !ेकिकन 5ाने र्मन कैसा पाग! है किक सब कुछ सर्मझकर धोखा खाता है। अरे दही तो आपने खाया ही नहीं।'' वह पूड़ी !ाने च!ी गयी।

और इस तरह दिदन कKने !गे। 5ब आदर्मी अपने हार्थ से आँसू र्मो! !ेता है, अपने-आप दद� का सौदा करता है, तब दद� और आँसू तक!ीफ-देह नहीं !गते। और 5ब कोई ऐसा हो 5ो आपके दद� के आधार पर आपको देवता बनाने के लि!ए तैयार हो और आपके एक-एक आँसू पर अपने सौ-सौ आँसू किबखेर दे, तब तो कभी-कभी तक!ीफ भी भ!ी र्मा!ूर्म देने !गती है। !ेकिकन किफर भी चन्दर के दिदन कैसे कK रहे रे्थ यह वही 5ानता र्था। !ेकिकन अकबर के र्मह! र्में 5!ते हुए दीपक को देखकर अगर किकसी ने 5ाडे़ की रात 5र्मुना के घुKनों-घुKनों पानी र्में खडे़ होकर काK दी, तो चन्दर अगर सुधा के प्यारे-प्यारे खतों के सहारे सर्मय काK रहा र्था तो कोई ताज्जुब नहीं। अपने अध्ययन र्में प्रौढ़, अपने किवचारों र्में उदार होने के बाव5ूद चन्दर अपने स्वभाव र्में बच्चा र्था, जि5ससे जि5-दगी कुछ भी करवा सकती र्थी बशत® जि5-दगी को यह आता हो किक इस भो!े-भा!े बच्चे को कैसे बह!ावा दिदया 5ाये।

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बह!ावे के लि!ए र्मुसकानें ही 5रूरी नहीं होती हैं, शायद आँसुओं से र्मन 5ल्दी बह! 5ाता है। किबनती के आँसुओं र्में चन्दर सुधा की तसवीर देखता र्था और बह! 5ाता र्था। वह रो5 शार्म को आता और किबनती से सुधा की बातें करता, 5ाने किकतनी बातें, 5ाने कैसी बातें और किबनती के र्माध्यर्म से सुधा र्में डूबकर च!ा आता र्था। चँूकिक सुधा के किबना उसका दिदन कKना र्मुश्किश्क! र्था, एक क्षण कKना र्मुश्किश्क! र्था इसलि!ए किबनती उसकी एक 5रूरत बन गयी र्थी। वह 5ब तक किबनती से सुधा की बात नहीं कर !ेता र्था, तब तक 5ैसे वह बेचैन रहता र्था, तब तक उसकी किकसी कार्म र्में तबीयत नहीं !गती र्थी।

5ब तक सुधा सार्मने रही, कभी भी उसे यह नहीं र्मा!ूर्म हुआ किक सुधा का क्या र्महत्व है उसकी जि5-दगी र्में। आ5 5ब सुधा दूर र्थी तो उसने देखा किक सुधा उसकी साँसों से भी ज्यादा आवश्यक र्थी उसकी जि5-दगी के लि!ए। !गता र्था वह एक क्षण सुधा के किबना जि5न्दा नहीं रह सकता। सुधा के अभाव र्में किबनती के र्माध्यर्म से वह सुधा को wँूढ़ता र्था और 5ैसे सूर5 के डूब 5ाने पर चाँद सूर5 की रोशनी उधार !ेकर रात को उजि5यारा कर देता है उसी तरह किबनती सुधा की याद से चन्दर के प्राणों पर उजि5यारी किबखेरती रही। चन्दर किबनती को इस तरह अपनी साँसों की छाँह र्में दुबकाये रहा 5ैसे किबनती सुधा का स्पश� हो, सुधा का प्यार हो।

किबनती भी चन्दर के र्मारे्थ पर उदासी के बाद! देखते ही तड़प उठती र्थी। !ेकिकन किफर भी किबनती चन्दर को हँसा नहीं पायी। चन्दर का पुराना उल्!ास !ौKा नहीं। साँप का काKा हुआ 5ैसे !हरें !ेता है वैसे ही चन्दर की नसों र्में फै!ा हुआ उदासी का 5हर रह-रहकर चन्दर को झकझोर देता र्था। उन दिदनों दो-दो तीन-तीन दिदन तक चन्दर कुछ नहीं करता र्था, किबनती के पास भी नहीं 5ाता र्था, किबनती के आँसुओं की भी परवाह नहीं करता र्था। खाना नहीं खाता र्था, और अपने को जि5तनी तक!ीफ हो सकती र्थी, देता र्था। किफर ज्यों ही सुधा का कोई खत आता र्था, वह उसे चूर्म !ेता और किफर स्वस्थ हो 5ाता र्था। किबनती चाहे जि5तना करे !ेकिकन चन्दर की इन भयंकर उदासी की !हरों को चन्दर से छीन नहीं पायी र्थी। चाँद किकतनी कोलिशश क्यों न करे, वह रात को दिदन नहीं बना सकता।

!ेकिकन आदर्मी हँसता है, दुख-दद� सभी र्में आदर्मी हँसता है। 5ैसे हँसते-हँसते आदर्मी की प्रस�ता र्थक 5ाती है वैसे ही कभी-कभी रोते-रोते आदर्मी की उदासी र्थक 5ाती है और आदर्मी करवK बद!ता है। ताकिक हँसी की छाँह र्में कुछ किवश्रार्म कर किफर वह आँसुओं की कड़ी धूप र्में च! सके।

ऐसी ही एक सुबह र्थी 5बकिक चन्दर के उदास र्मन र्में आ रहा र्था किक वह र्थोड़ी देर हँस भी !े। बात यों हुई र्थी किक उसे शे!ी की एक ककिवता बहुत पसन्द आयी र्थी जि5सर्में शै!ी ने भारतीय र्म!य5 को सम्बोधिधत किकया है। उसने अपना शे!ी-कीK्स का ग्रन्थ उठाया और उसे खो!ा तो वही आर्म के अचार के दाग सार्मने पड़ गये 5ो सुधा ने शरारतन डा! दिदये रे्थ। बस वह शे!ी की ककिवता तो भू! गया और उसे याद आ गयी आर्म की फाँक और सुधा की शरारत से भरी शोख आँखें। किफर तो एक के बाद दूसरी शरारत प्राणों र्में उठ-उठकर चन्दर की नसों को गुदगुदाने !गी और चन्दर उस दिदन 5ाने क्यों हँसने के लि!ए व्याकु! हो उठा। उसे ऐसा !गा 5ैसे सुधा की यह दूरी, यह अ!गाव सभी कुछ झूठ है। सच तो वे सुनह!े दिदन रे्थ 5ो सुधा की शरारतों से र्मुसकराते रे्थ, सुधा के दु!ार र्में 5गर्मगाते रे्थ। और कुछ भी हो 5ाये, सुधा उसके 5ीवन का एक ऐसा अर्मर सत्य है 5ो कभी भी डगर्मगा नहीं सकता। अगर वह उदास होता है, दु:खी होता है तो वह ग!त है। वह अपने ही आदश� को झूठा बना रहा है, अपने ही सपने का अपर्मान कर रहा है। और उसी दिदन सुधा का खत भी आया जि5सर्में सुधा ने साफ-साफ तो नहीं पर इशारे से लि!खा र्था किक वह चन्दर के भरोसे ही किकसी तरह दिदन काK रही र्थी। उसने सुधा को एक पv लि!खा, जि5सर्में वही शरारत, वही खिखझाने की बातें र्थीं 5ो वह हरे्मशा सुधा से करता र्था !ेकिकन जि5से वह किपछ!े तीन र्महीने र्में भू! गया र्था।

उसके बाद वह किबनती के यहाँ गया।

किबनती अपनी धोती र्में क्रोलिशया की बे! Kाँक रही र्थी। ''!े किग!हरी, तेरी दीदी का खत! !ाओ, धिर्मठाई खिख!ाओ।''

''हर्म काहे को खिख!ाए!ँ आप खिख!ाइए 5ो खिख!े पडे़ हैं आ5!'' किबनती बो!ी।

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''हर्म! हर्म क्यों खिख!ाएगेँ! यहाँ तो सुधा का नार्म सुनते ही तबीयत कुढ़ 5ाती है!''

''अरे चलि!ए, आपका घर र्मेरा देखा है। र्मुझसे नहीं बन सकते आप!'' किबनती ने र्मुँह लिचढ़ाकर कहा, ''आ5 बडे़ खुश हैं!''

''हाँ, किबनती...'' एक गहरी साँस !ेकर चन्दर चुप हो गया, ''कभी-कभी उदासी भी र्थक 5ाती है!'' और र्मुँह झुकाकर बैठ गया।

''क्यों, क्या हुआ?'' किबनती ने चन्दर की बाँह र्में सुई चुभो दी-चन्दर चौंक उठा। ''हर्मारी शक्! देखते ही आपके चेहरे पर र्मुहर�र्म छा 5ाता है!''

''अ5ी नहीं, आपका र्मुख-र्मंड! देखकर तो आकाश र्में चन्द्रर्मा भी !ण्डिज्जत हो 5ाता होगा, श्रीर्मती किबनती किवदुषी!'' चन्दर ने हँसकर कहा। आ5 चन्दर बहुत खुश र्था।

किबनती !5ा गयी और किफर उसके गा!ों र्में फू! के कKोरे खिख! गये और उसने चन्दर के कन्धे से किफर सूई चुभोकर कहा, ''आपको एक बडे़ र्म5े की बात बतानी है आ5!''

''क्या?''

''किफर हँलिसएगा र्मत! और लिचढ़ाइएगा नहीं!'' किबनती बो!ी।

''कुछ तेरे ब्याह की बात होगी!'' चन्दर ने कहा।

''नहीं, ब्याह की नहीं, पे्रर्म की!'' किबनती ने हँसकर कहा और झेंप गयी।

''अच्छा, किग!हरी को यह रोग कब सेï?'' चन्दर ने हँसकर पूछा, ''अपनी र्माँ5ी की शक! देखी है न, काKकर कुए ँर्में फें क देंगी तुझे!''

''अब क्या करें, कोई लिसर पर पे्रर्म र्मढ़ ही दे तो!'' किबनती ने बडे़ आत्र्मकिवश्वास से कहा। र्थी बड़ी खु!े स्वभाव की !ड़की।

''आखिखर कौन अभागा है वह! 5रा नार्म तो सुनें।'' चन्दर बो!ा।

''हर्मारे र्महाककिव र्मास्Kर साहब।'' किबनती ने हँसकर कहा।

''अच्छा, यह कब से! तूने पह!े तो कभी बताया नहीं।''

''अब तो 5ाकर हर्में र्मा!ूर्म हुआ। पह!े सोचा दीदी को लि!ख दें। किफर कहा वहाँ 5ाने किकसके हार्थ र्में लिचठ्ठी पडे़। तो सोचा तुम्हें बता दें!''

''हुआ क्या आखिखर?'' चन्दर ने पूछा।

''बात यह हुई किक पह!े तो हर्म दीदी के सार्थ पढ़ते रे्थ तब तो र्मास्Kर साहब कुछ नहीं बो!ते रे्थ, इधर 5बसे हर्म अके!े पwऩे !गे तब से ककिवताए ँसर्मझाने के बहाने दुकिनया-भर की बातें करते रहे। एक बार स्कन्दगुप्त पढ़ाते-पढ़ाते बड़ी ठंडी साँस !ेकर बो!े, काश किक आप भी देवसेना बन सकतीं। बड़ा गुस्सा आया र्मुझे। र्मन र्में आया कह दँू किक र्मैं तो देवसेना बन 5ाती !ेकिकन आप अपना ककिव सम्र्मे!न का पेशा छोड़कर स्कन्दगुप्त कैसे बन पाएगँे।

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!ेकिकन किफर र्मैंने कुछ कहा नहीं। दीदी से सब बात कह दी। दीदी तो हैं ही !ापरवाह। कुछ कहा ही नहीं उन्होंने। और र्मास्Kर साहब वैसे अचे्छ हैं, पढ़ाते भी अच्छा हैं, !ेकिकन यह किफतूर 5ाने कैसे उनके दिदर्माग र्में चढ़ गया।'' किबनती बडे़ सह5 स्वभाव से बो!ी।

''!ेकिकन इधर क्या हुआ?'' चन्दर ने पूछा।

''अभी क! आये, एक हार्थ र्में उनके एक र्मोKी-सी कॉपी र्थी। दे गये तो देखा वह उनकी ककिवताओं का संग्रह है और उसका नार्म उन्होंने रखा है 'किबनती'। अभी आते होंगे। क्या करें कुछ सर्मझ र्में नहीं आता। अभी तक दीदी के भरोसे हर्मने सब छोड़ दिदया र्था। वह पता नहीं कब आएगँी।''

''अच्छा !ाओ, वह संग्रह हर्में दे दो।'' चन्दर ने कहा, ''और किबसरिरया से कह देना वह चन्दर के हार्थ पड़ गया। किफर क! सुबह तुम्हें र्म5ा दिदख!ाएगँे। !ेकिकन हाँ, यह पह!े बता दो किक तुम्हारा तो कुछ झुकाव नहीं है उधर, वरना बाद र्में हर्में कोसो?'' चन्दर ने छेड़ते हुए कहा।

''अरे हाँ, र्मुस!र्मान भी हो तो बेहना के संग! ककिवयों से प्यार !गाकर कौन बवा!त पा!े!'' किबनती ने झेंपते हुए कहा।

दूसरे दिदन सुबह पहुँचा तो किबसरिरया साहब पढ़ा रहे रे्थ। किबसरिरया की शक्! पर कुछ र्मायूसी, कुछ परेशानी, कुछ लिचन्ता र्थी। उसको किबनती ने बता दिदया किक संग्रह चन्दर के पास पहुँच गया है। चन्दर को देखते ही वह बो!ा, ''अरे कपूर, क्या हा! है?'' और उसके बाद अपने को किनदÏष बताने के लि!ए फौरन बो!ा, ''कहो, हर्मारा संग्रह देखा है?''

''हाँ देखा है, 5रा आप इन्हें पढ़ा !ीजि5ए। आपसे कुछ 5रूरी बातें करनी हैं।'' चन्दर ने इतने कठोर स्वर र्में कहा किक किबसरिरया के दिद! की धडक़नें डूबने-सी !गीं। वह काँपती हुई आवा5 र्में बहुत र्मुश्किश्क! से अपने को सम्हा!ते हुए बो!ा, ''कैसी बातें? कपूर, तुर्म कुछ ग!त सर्मझ रहे हो।''

कपूर एक उपेक्षा की हँसी हँसा और च!ा गया। डॉक्Kर साहब पू5ा करके उठे रे्थ। दोनों र्में बातें होती रहीं। उनसे र्मा!ूर्म हुआ किक अग!े र्महीने र्में सम्भवत: चन्दर की किनयुलिक्त हो 5ाएगी और तीन दिदन बाद डॉक्Kर साहब खुद सुधा को !ाने के लि!ए शाह5हाँपुर 5ाएगँे। उन्होंने बुआ5ी को पv लि!खा है किक यदिद वह आ 5ाए ँतो अच्छा है, वरना चन्दर को दो-तीन दिदन बाद यहीं रहना पडे़गा क्योंकिक किबनती अके!ी है। चन्दर की बात दूसरी है !ेकिकन और !ोगों के भरोसे डॉक्Kर साहब किबनती को अके!े नहीं छोड़ सकते।

अकिवश्वास आदर्मी की प्रवृक्षित्तयों को जि5तना किबगाड़ता है, किवश्वास आदर्मी को उतना ही बनाता है। डॉक्Kर साहब चन्दर पर जि5तना किवश्वास करते रे्थ, सुधा चन्दर पर जि5तना किवश्वास करती र्थी और इधर किबनती उस पर जि5तना किवश्वास करने !गी र्थी उसके कारण चन्दर के चरिरv र्में इतनी दृढ़ता आ गयी र्थी किक वह फौ!ाद बन गया र्था। ऐसे अवसरों पर 5ब र्मनुष्य को गम्भीरतर्म उत्तरदाधियत्व सौंपा 5ाता है तब स्वभावत: आदर्मी के चरिरv र्में एक किवलिचv-सा किनखार आ 5ाता है। यह किनखार चन्दर के चरिरv र्में बहुत उभरकर आया र्था और यहाँ तक किक बुआ5ी अपनी !ड़की पर अकिवश्वास कर सकती र्थीं, वह भी चन्दर को देवता ही र्मानती र्थीं, किबनती पर और चाहे 5ो बन्धन हो !ेकिकन चन्दर के हार्थ र्में किबनती को छोड़कर वे किनक्षिश्चन्त र्थीं।

डॉक्Kर साहब और चन्दर बैठे बातें कर ही रहे रे्थ किक किबनती ने आकर कहा, ''चलि!ए, र्मास्Kर साहब आपका इन्त5ार कर रहे हैं!'' चन्दर उठ खड़ा हुआ। रास्ते र्में किबनती बो!ी, ''हर्मसे बहुत नारा5 हैं। कहते हैं तुम्हें हर्म ऐसा नहीं सर्मझते रे्थ!'' चन्दर कुछ नहीं बो!ा। 5ाकर किबसरिरया के सार्मने कुसr पर बैठ गया। ''तुर्म 5ाओ, किबनती!'' किबनती च!ी गयी तो चन्दर ने कहा, बहुत गम्भीर स्वरों र्में, ''किबसरिरया साहब, आपका संग्रह देखकर बहुत खुशी हुई !ेकिकन र्मेरे र्मन र्में लिसफ� एक शंका है। यह 'किबनती' नार्म के क्या र्माने हैं?''

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किबसरिरया ने अपने ग!े की Kाई ठीक की, वह गरर्मी र्में भी Kाई !गाता र्था, और दिदन र्में नाइK कैप पहनता र्था। Kाई ठीक कर, खँखारकर बो!ा, ''र्मैं भी यही सर्मझता र्था किक आपको यह ग!त-फहर्मी होगी। !ेकिकन वास्तकिवक बात यह है किक र्मुझे र्मध्यका! की ककिवता बहुत पसन्द है, खासतौर र्में उसर्में किबनती (प्रार्थ�ना) शब्द बड़ा र्मधुर है। र्मैंने यह संग्रह तो बहुत पह!े तैयार किकया र्था। र्मुझे बड़ा ताज्जुब हुआ 5ब र्मैं किबनती से धिर्म!ा। र्मैंने उनसे कहा किक यह संग्रह भी किबनती नार्म का है। किफर र्मैंने उन्हें !ाकर दिदख!ा दिदया।''

चन्दर र्मुसकराया और र्मन-ही-र्मन कहा, 'है किबसरिरया बहुत चा!ाक। !ेकिकन खैर र्मैं हार नहीं र्मान सकता।' और बहुत गम्भीर होकर बैठ गया।

''तो यह संग्रह इस !ड़की के नार्म पर नहीं है?''

''किबल्कु! नहीं।''

''और किबनती के लि!ए आपके र्मन र्में कहीं कोई आकष�ण नहीं?''

''किबल्कु! नहीं। लिछह, आप र्मुझे क्या सर्मझते हैं।'' किबसरिरया बो!ा।

''लिछह, र्मैं भी कैसा आदर्मी हूँ, र्माफ करना किबसरिरया! र्मैंने व्यर्थ� र्में शक किकया।''

किबसरिरया यह नहीं 5ानता र्था किक यह दाँव इतना सफ! होगा। वह खुशी से फू! उठा। सहसा चन्दर ने एक गहरी साँस !ी।

''क्या बात है चन्दर बाबू?'' किबसरिरया ने पूछा।

''कुछ नहीं किबसरिरया, आ5 तक र्मुझे तुम्हारी प्रकितभा, तुम्हारी भावना, तुम्हारी क!ा पर किवश्वास र्था, आ5 से उठ गया।''

''क्यों?''

''क्यों क्या? अगर किबनती-5ैसी !ड़की के सार्थ रहकर भी तुर्म उसके आन्तरिरक सौन्दय� से अपनी क!ा को अक्षिभसिस-लिचत न कर सके तो तुम्हारे र्मन र्में क!ात्र्मकता है; यह र्मैं किवश्वास नहीं कर पाता। तुर्म 5ानते हो, र्मैं पुराने किवचारों का संकीण�, बड़ा बु5ुग� तो हूँ नहीं, र्मैं भी भावनाओं को सर्मझता हूँ। र्मैं सौन्दय�-पू5ा या प्यार को पाप नहीं सर्मझता और र्मुझे तो बहुत खुशी होती यह 5ानकर किक तुर्मने ये ककिवताए ँकिबनती पर लि!खी हैं, उसकी पे्ररणा से लि!खी हैं। यह र्मत सर्मझना किक र्मुझे इससे 5रा भी बुरा !गता। यह तो क!ा का सत्य है। पाश्चात्य देशों र्में तो !ोग हर ककिव को पे्ररणा देने वा!ी !ड़किकयों की खो5 र्में वष� किबता देते हैं, उसकी ककिवता से ज्यादा र्महत्व उसकी ककिवता के पीछे रहने वा!े व्यलिक्तत्व को देते हैं। किहन्दोस्तान र्में पता नहीं क्यों हर्म नारी को इतना र्महत्वहीन सर्मझते हैं, या डरते हैं, या हर्मर्में इतना नैकितक साहस नहीं है। तुम्हारा स्वभाव, तुम्हारी प्रकितभा किकसी हा!त र्में र्मुझे किवदेश के किकसी ककिव से कर्म नहीं !गती। र्मैंने सोचा र्था, 5ब तुर्म अपनी ककिवताओं के पे्ररणात्र्मक व्यलिक्तत्व का नार्म घोकिषत करोगे तो सारी दुकिनया किबनती को और हर्मारे परिरवार को 5ान 5ाएगी। !ेकिकन खैर, र्मैंने ग!त सर्मझा र्था किक किबनती तुम्हारी पे्ररणा-किबन्दु र्थी।'' और चन्दर चुपचाप गम्भीरता से किबसरिरया के संग्रह के पृष्ठ उ!Kने !गा।

किबसरिरया के र्मन र्में किकतनी उर्थ!-पुर्थ! र्मची हुई र्थी। चन्दर का र्मन इतना किवशा! है, यह उसे कभी नहीं र्मा!ूर्म र्था। यहाँ तो कुछ लिछपाने की 5रूरत ही नहीं और 5ब चन्दर इतनी स्पष्ट बातें कर रहा है तो किबसरिरया क्यों लिछपाये।

''कपूर, र्मैं तुर्मसे कुछ नहीं लिछपाऊँगा। र्मैं कह नहीं सकता किक किबनती 5ी र्मेरे लि!ए क्या हैं। शेक्सकिपयर की धिर्मराJडा, प्रसाद की देवसेना, दाँते की बीएकिvस, कीK्स की फैनी और सूर की राधा से बढ़कर र्माधुय� अगर र्मुझे कहीं धिर्म!ा है

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तो किबनती र्में। इतना, इतना डूब गया र्मैं किबनती र्में किक एक ककिवता भी नहीं लि!ख पाया। र्मेरा संग्रह छपने 5ा रहा र्था तो र्मैंने सोचा किक इसका नार्म ही क्यों न 'किबनती' रखँू।''

चन्दर ने बड़ी र्मुश्किश्क! से अपनी हँसी रोकी। दरवा5े के पास लिछपी खड़ी हुई किबनती खिख!खिख!ाकर हँस पड़ी। चन्दर बो!ा, ''नार्म तो 'किबनती' बहुत अच्छा सोचा तुर्मने, !ेकिकन लिसफ� एक बात है। र्मेरे 5ैसे किवचार के !ोग सभी नहीं होते। अगर घर के और !ोगों को यह र्मा!ूर्म हो गया, र्मस!न डॉक्Kर साहब को, तो वह न 5ाने क्या कर डा!ेंगे। इन !ोगों को ककिवता और उसकी पे्ररणा का र्महत्व ही नहीं र्मा!ूर्म। उस हा!त र्में अगर तुम्हारी बहुत बेइज्जती हुई तो न हर्म कुछ बो! पाएगँे न किबनती। डॉक्Kर साहब पुलि!स को सौंप दें, यह अच्छा नहीं !गता। वैसे र्मेरी राय है किक तुर्म किबनती ही नार्म रखो; बड़ा नया नार्म है; !ेकिकन यह सर्मझ !ो किक डॉक्Kर साहब बहुत सख्त हैं इस र्मार्म!े र्में।''

किबसरिरया की सर्मझ र्में नहीं आता र्था किक वह क्या करे। र्थोड़ी देर तक लिसर खु5!ाता रहा, किफर बो!ा, ''क्या राय है कपूर, तुम्हारी? अगर र्मैं कोई दूसरा नार्म रख दँू तो कैसा रहेगा?''

''बहुत अच्छा रहेगा और सुरक्षिक्षत रहेगा। अभी अगर तुर्म बदनार्म हो गये तो आगे तुम्हारी उ�कित के सभी र्माग� बन्द हो 5ाएगँे। आदर्मी पे्रर्म करे र्मगर 5रा सोच-सर्मझकर; र्मैं तो इस पक्ष र्में हूँ।''

''भावना को कोई नहीं सर्मझता इस दुकिनया र्में। कोई नहीं सर्मझता, हर्म क!ाकारों की किकतनी र्मुसीबत है।'' एक गहरी साँस !ेकर किबसरिरया बो!ा, ''!ेकिकन खैर! अच्छा तो कपूर, क्या राय है तुम्हारी? र्मैं क्या नार्म रखँू इसका?''

चन्दर गम्भीरता से लिसर झुकाये र्थोड़ी देर तक सोचता रहा। किफर बो!ा, ''तुम्हारी ककिवताओं र्में बहुत रस है। कैसा रहे अगर तुर्म इसका नार्म 'गडे़रिरयाँ' रखो!''

''क्या?'' किबसरिरया ताज्जुब से बो!ा।

''हाँ-हाँ गडे़रिरयाँ, र्मेरा र्मत!ब है ग�े की गडे़रिरयाँ!'' दरवा5े के पीछे किबनती से न रहा गया और खिख!खिख!ाकर हँस पड़ी और सार्मने आ गयी। चन्दर भी अट्ट ï हास कर पड़ा।

किबसरिरया क्षण-भर आँख फाडे़ दोनों की ओर देखता रहा। उसके बाद वह ज्यों ही र्म5ाक सर्मझा, उसका चेहरा !ा! हो गया। हैK उठाकर बो!ा, ''अच्छा, आप !ोग र्म5ाक बना रहे रे्थ र्मेरा। कोई बात नहीं, र्मैं देखँूगा। धिर्मस्Kर कपूर, आप अपने को क्या सर्मझते हैं?'' वह च! दिदया।

''अरे, सुनो किबसरिरया!'' चन्दर ने पुकारा, वह हँसी नहीं रोक पा रहा र्था। किबसरिरया र्मुड़ा। र्मुड़कर बो!ा, ''क! से र्मैं पढ़ाने नहीं आ सकता। र्मैं आपकी शक! भी नहीं देखना चाहता।'' उसने किबनती से कहा।

''तो र्मुँह फेरकर पढ़ा दीजि5एगा।'' चन्दर बो!ा। किबनती किफर हँस पड़ी। किबसरिरया ने र्मुडक़र बडे़ गुस्से से देखा और पैर पKकते हुए च!ा गया।

''बेचारे ककिव, क!ाकार आ5 की दुकिनया र्में प्यार भी नहीं कर पाते।'' चन्दर ने कहा और दोनों की हँसी बहुत देर तक गँू5ती रही।

अगस्त की उदास शार्म र्थी, पानी रिरर्मजिझर्मा रहा र्था और डॉक्Kर शुक्!ा के सूने बँग!े र्में बरार्मदे र्में कुसr डा!े, !ॉन पर छोKे-छोKे गड्ढों र्में पंख धोती और कु!े!ें करती हुई गौरैयों की तरफ अप!क देखता हुआ चन्दर 5ाने किकन खया!ों र्में डूबा हुआ र्था। डॉक्Kर साहब सुधा को लि!वाने के लि!ए शाह5हाँपुर गये रे्थ। किबनती भी जि5द करके उनके सार्थ गयी र्थी। वहाँ से ये !ोग दिदल्!ी घूर्मने के लि!ए च!े गये रे्थ !ेकिकन आ5 पन्द्रह रो5 हो गये उन !ोगों का कोई भी खत नहीं आया र्था। डॉक्Kर साहब ने ब्यूरो को र्मह5 एक अ5r भे5 दी र्थी। चन्दर को डॉक्Kर साहब के 5ाने के पह!े ही कॉ!े5 र्में 5गह धिर्म! गयी र्थी और उसने क्!ास !ेने शुरू कर दिदये रे्थ। वह अब इसी बँग!े र्में आ गया र्था।

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सुबह तो क्!ास के पाठ की तैयारी करने और नोK्स बनाने र्में कK 5ाती र्थी, दोपहर कॉ!े5 र्में कK 5ाती र्थी !ेकिकन शार्में बड़ी उदास गु5रती र्थीं और किफर पन्द्रह दिदन से सुधा का कोई भी खत नहीं आया। वह उदास बैठा सोच रहा र्था।

!ेकिकन यह उदासी र्थी, दुख नहीं र्था। और वह भी उदासी, एक देवता की उदासी 5ो दुख भरी न होकर सुन्दर और सुकुर्मार अधिधक होती है। एक बात 5रूर र्थी। 5ब कभी वह उदास होता र्था तो 5ाने क्यों वह यह हरे्मशा सोचने !गता र्था किक उसके 5ीवन र्में 5ो कुछ हो गया है उस पर उसे गव� करना चाकिहए 5ैसे वह अपनी उदासी को अपने गव� से धिर्मKाने का प्रयास करता र्था। !ेकिकन इस वक्त एक बात रह-रहकर उभर आती र्थी उसके र्मन र्में, 'सुधा ने खत क्यों नहीं लि!खा?'

पानी किबल्कु! बन्द हो गया र्था। पक्षिश्चर्म के दो-एक बाद! खु! गये रे्थ। और पके 5ार्मुन के रंग के एक बहुत बडे़ बाद! के पीछे से डूबते सूर5 की उदास किकरणें झाँक रही र्थीं। इधर की ओर एक इन्द्रधनुष खिख! गया र्था 5ो र्मोKर गैरे5 की छत से उठकर दूर पर युण्डिक्!प्Kस की !म्बी शाखों र्में उ!झ गया र्था।

इतने र्में छाता !गाये पोस्Kर्मैन आया, उसने पोर्दिK-को र्में अपने 5ूतों र्में !गी कीचड़ झाड़ी, पैर पKके और किकरधिर्मच के झो!े से खत किनका!े और सीढ़ी पर फै!ा दिदये। उनर्में से wँूढ़कर तीन लि!फाफे किनका!े और चन्दर को दे दिदये। चन्दर ने !पककर लि!फाफे !े लि!ये। पह!ा लि!फाफा बुआ का र्था किबनती के नार्म, दूसरा र्था ओरिरयंK! इन्श्योरेन्स का लि!फाफा डॉक्Kर साहब के नार्म और तीसरा एक सुन्दर-सा नी!ा लि!फाफा। यह सुधा का होगा। पोस्Kर्मैन 5ा चुका र्था। उसने इतने प्यार से लि!फाफे को चूर्मा जि5तने प्यार से डूबता हुआ सूर5 नी!ी घKाओं को चूर्म रहा र्था। ''पग!ी कहीं की! परेशान कर डा!ती है। यहाँ र्थी तो वही आदत, वहाँ है तो वही आदत !'' चन्दर ने र्मन र्में कहा और लि!फाफा खो! डा!ा।

लि!फाफा पम्र्मी का र्था, र्मसूरी से आया। उसने झल्!ाकर लि!फाफा फें क दिदया। सुधा किकतनी !ापरवाह है। वह 5ानती है किक चन्दर को यहाँ कैसा !ग रहा होगा। किबनती ने बता दिदया होगा किफर भी वही !ापरवाही! र्मारे गुस्से के...

र्थोड़ी देर बाद उसने पम्र्मी का खत पढ़ा। छोKा-सा खत र्था। पम्र्मी अभी र्मसूरी र्में ही है, अक्Kूबर तक आएगी। !गभग सभी याvी 5ा चुके हैं !ेकिकन उसे पहाड़ों की बरसात बहुत अच्छी !ग रही है। बK\ इ!ाहाबाद च!ा गया है। उसके सार्थ वहाँ से एक पहाड़ी ईसाई !ड़की भी गयी है। बK\ कहता है किक वह उसके सार्थ शादी करेगा। बK\ अब बहुत स्वस्थ है। चन्दर चाहे तो 5ाकर बK\ से धिर्म! !े।

सुधा के खत के न आने से चन्दर के र्मन र्में बहुत बेचैनी र्थी। उसे ठीक से र्मा!ूर्म भी नहीं हो पा रहा र्था किक ये !ोग हैं कहाँ? बK\ के आने की खबर धिर्म!ने पर उसे सन्तोष हुआ, च!ो एक दिदन बK\ से ही धिर्म! आएगेँ, अब देखें कैसे हैं वह?

तीसरे या चौरे्थ दिदन 5ब अकस्र्मात पानी बन्द र्था तो वह कार !ेकर बK\ के यहाँ गया। बरसात र्में इ!ाहाबाद की लिसकिव! !ाइन्स का सौन्दय� और भी किनखर आता है। रूखे-सूखे फुKपार्थों और र्मैदानों पर घास 5र्म 5ाती है; बँग!े की उ5ाड़ चहारदीवारिरयों तक हरी-भरी हो 5ाती हैं। !म्बे और घने पेड़ और झाकिडय़ाँ किनखरकर, धु!कर हरे र्मखर्म!ी रंग की हो 5ाती हैं और को!तार की सडक़ों पर र्थोड़ी-र्थोड़ी पानी की चादर-सी !हरा उठती है जि5सर्में पेड़ों की हरी छायाए ँकिबछ 5ाती हैं। बँग!े र्में प!ी हुई बत्तखों के द! सड़क पर च!ती हुई र्मोKरों को रोक !ेते हैं और हर बँग!े र्में से रेकिडयो या ग्रार्मोफोन के संगीत की !हरें र्मच!ती हुई वातावरण पर छा 5ाती हैं।

कॉ!े5 से !ौKकर, एक प्या!ा चाय पीकर, कार !ेकर चन्दर बK\ के यहाँ च! दिदया। वह बहुत दिदन बाद बK\ को देखने 5ा रहा है। जि5न व्यलिक्तयों को उसने अपने 5ीवन र्में देखा र्था, बK\ शायद उन सभी से किनरा!ा र्था, अद्भतु र्था। !ेकिकन किकतना अभागा र्था। नहीं, अभागा नहीं कर्म5ोर र्था बK\। और वही क्या कर्म5ोर र्था यह सारी दुकिनया किकतनी कर्म5ोर है।

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बK\ का बँग!ा आ गया र्था। वह उतरकर अन्दर गया। बाहर कोई नहीं र्था। बरार्मदे र्में एक पिप-5रा Kँगा हुआ र्था जि5सर्में एक बहुत छोKा तोते का बच्चा Kँगा र्था। चन्दर भीतर 5ाने र्में किहचक रहा र्था क्योंकिक एक तो पम्र्मी नहीं र्थी और दूसरे कोई और !ड़की भी बK\ के सार्थ आयी र्थी, बK\ की भावी पत्नी। चन्दर ने आवा5 दी। अन्दर कोई बहुत भारी पुरुष-स्वर र्में एक साधारण गीत गा रहा र्था। चन्दर ने किफर आवा5 दी। बK\ बाहर आया। चन्दर उसे देखकर दंग रह गया, बK\ का चेहरा भर गया र्था, 5वानी !ौK आयी र्थी, पी!ेपन की ब5ाय चेहरे पर खून दौड़ गया र्था, सीना उभर आया र्था। बK\ खाकी रंग का कोK, बहुत र्मोKा खाकी हैK, खाकी किब्रचे5, लिशकारी बूK पहने हुए र्था और कन्धे पर बन्दूक !Kक रही र्थी। वह आया ड्राइंगरूर्म के दरवा5े पर पीठ झुकाकर एक हार्थ से बन्दूक पकडक़र और एक हार्थ आँखों के आगे रखकर उसने इस तरह देखा 5ैसे वह लिशकार wँूढ़ रहा हो। चन्दर के प्राण सूख गये। उसने र्मन-ही-र्मन सोचा, पह!ी बार तो वह कुश्ती र्में बK\ से 5ीत गया र्था, !ेकिकन अबकी बार 5ीतना र्मुश्किश्क! है। कहाँ बेकार फँसा आकर। उसने घबरायी हुई आवा5 र्में कहा-

''यह र्मैं हूँ धिर्मस्Kर बK\, चन्दर कपूर, पम्र्मी का धिर्मv!''

''हाँ-हाँ, र्मैं 5ानता हूँ।'' बK\ तनकर खड़ा हो गया और हँसकर बो!ा, ''र्मैं आपको भू!ा नहीं; र्मैं तो आपको यह दिदख!ा रहा र्था किक र्मैं पाग! नहीं हूँ, लिशकारी हो गया हूँ।'' और उसने चन्दर के कन्धे पकड़कर इतना 5ोर से झकझोर दिदया किक चन्दर की पसलि!याँ चरर्मरा उठीं। ''आओ!'' उसने चन्दर के कन्धे दबाकर बरार्मदे की ही कोच पर किबठा दिदया और सार्मने कुसr पर बैठता हुआ बो!ा, ''र्मैं तुम्हें अन्दर !े च!ता, !ेकिकन अन्दर 5ेनी है और एक र्मेरा धिर्मv। दोनों बातें कर रहे हैं। आ5 5ेनी की सा!किगरह है। तुर्म 5ेनी को 5ानते हो न? वह तराई के कस्बे र्में रहती र्थी। र्मुझे धिर्म! गयी। बहुत खराब औरत है! र्मैं तन्दुरुस्त हो गया हूँ न!''

''बहुत, र्मुझे ताज्जुब है किक तन्दुरुस्ती के लि!ए तुर्मने क्या किकया तीन र्महीने तक!''

''नफरत, धिर्मस्Kर कपूर! औरतों से नफरत। उससे ज्यादा अच्छा Kॉकिनक तन्दुरुस्ती के लि!ए कोई नहीं है।''

''!ेकिकन तुर्म तो शादी करने 5ा रहे हो, !ड़की !े आये हो वहाँ से।''

''अके!ी !ड़की नहीं, धिर्मस्Kर! र्मैं वहाँ से दो ची5 !ाया हूँ। एक तो यह तोते का बच्चा और एक 5ेनी, वही !ड़की। तोते को र्मैं बहुत प्यार करता हूँ, यह बड़ा हो 5ाएगा, बो!ने !गेगा तो इसे गो!ी र्मार दँूगा और !ड़की से र्मैं बहुत नफरत करता हूँ, इससे शादी कर !ँूगा! क्यों, है न ठीक? इसको लिशकार का चाव कहते हैं और अब र्मैं लिशकारी हूँ न!''

चन्दर हाँ कहे या न कहे। अभी बK\ का दिदर्माग किबल्कु! वैसा ही है, इसर्में कोई शक नहीं। वह क्या बात करे? अन्त र्में बो!ा-

''यह बन्दूक तो उतारकर रखिखए। हरे्मशा बाँधे रहते हैं!''

''हाँ, और क्या? लिशकार का पह!ा लिस»ान्त है किक 5हाँ खतरा हो, 5ंग!ी 5ानवर हों वहाँ कभी किबना बन्दूक के नहीं 5ाना चाकिहए?'' और बहुत धीरे्म से चन्दर के कान र्में बK\ बो!ा, ''तुर्म 5ानते हो चन्दर, एक औरत है 5ो चौबीस घंKे घर र्में रहती है। र्मैं तो एक क्षण को बन्दूक अ!ग नहीं रखता।''

सहसा अन्दर से कुछ किगरने की आवा5 आयी, कोई चीखा और !गा 5ैसे कोई ची5 किपयानो पर किगरी और परदों को तोड़ती हुई नीचे आ गयी। किफर कुछ झगड़ों की आवा5 आयी।

चन्दर चौंक उठा, ''क्या बात है बK\, देखो तो!''

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बK\ ने हार्थ पकडक़र चन्दर को खींच लि!या-''बैठो, बैठो! अन्दर र्मेरे धिर्मv और 5ेनी सा!किगरह र्मना रहे हैं, अन्दर र्मत 5ाना!''

''!ेकिकन यह आवा5ें कैसी हैं?'' चन्दर ने लिचन्ता से पूछा।

''शायद वे !ोग पे्रर्म कर रहे होंगे!'' बK\ बो!ा और किनक्षिश्चन्तता से बैठ गया।

और क्षण-भर बाद उसने अ5ब-सा दृश्य देखा। एक बK\ का ही हर्मउम्र आदर्मी हार्थ से र्मारे्थ का खून पोंछता हुआ आया। वह नशे र्में चूर र्था। और बहुत भद्दी गालि!याँ देता हुआ च!ा 5ा रहा र्था। वह किगरता-पड़ता आया और उसने बK\ को देखते ही घूँसा ताना-''तुर्मने र्मुझे धोखा दिदया। र्मुझसे पचास रुपये उपहार !े लि!या...र्मैं अभी तुम्हें बताता हूँ।'' चन्दर स्तब्ध र्था। क्या करे क्या न करे? इतने र्में अन्दर से 5ेनी किनक!ी। !म्बी-तगड़ी, कर्म-से-कर्म तीस वष� की औरत। उसने आते ही पीछे से उस आदर्मी की कर्मी5 पकड़ी और उसे सीढ़ी से नीचे कीचड़ र्में wके! दिदया और सैकड़ों गा!ी देते हुए बो!ी, ''5ा सीधे, वरना हड्डी नहीं बचेगी यहाँ।'' वह किफर उठा तो खुद भी नीचे कूद पड़ी और घसीKती हुई दरवा5े के बाहर wके! आयी।

बK\ साँस रोके अपराधी-सा खड़ा र्था। वह !ौKी और बK\ का का!र पकड़ लि!या-''र्मैं किनदÏष हूँ! र्मैं कुछ नहीं 5ानता!'' सहसा 5ेनी ने चन्दर की ओर देखा-''हूँ, यह भी तुम्हारा दोस्त है। अभी बताती हूँ!'' और 5ो वह चन्दर की ओर बढ़ी तो चन्दर ने र्मन-ही-र्मन पम्र्मी का स्र्मरण किकया। कहाँ फँसाया उस कम्बख्त ने खत लि!खकर। ज्यों ही 5ेनी ने चन्दर का का!र पकड़ा किक बK\ बडे़ कातर स्वर र्में बो!ा, ''उसे छोड़ दो! वह र्मेरा नहीं पम्र्मी का धिर्मv है!'' 5ेनी रुक गयी। ''तुर्म पम्र्मी के धिर्मv हो? अच्छा बैठ 5ाओ, बैठ 5ाओ, तुर्म शरीफ आदर्मी र्मा!ूर्म पड़ते हो। र्मगर आगे से तुम्हारा कोई धिर्मv आया तो र्मैं उसकी हत्या कर डा!ँूगी। सर्मझे किक नहीं, बK\?''

बK\ ने लिसर किह!ाया, ''हाँ, सर्मझ गये!'' 5ेनी अन्दर च! दी, किफर सहसा बाहर आयी और बK\ को पकडक़र घसीKती हुई बो!ी, ''पानी बरस रहा है, इतनी सद\ बढ़ रही है और तुर्मने स्वेKर नहीं पहना, च!ो पहनो, र्मरने की ठानी है। र्मैं साफ बताये देती हूँ चाहे दुकिनया इधर की उधर हो 5ाये, र्मैं किबना शादी किकये र्मरने नहीं दँूगी तुम्हें।'' और वह बकरे की तरह बK\ का कान पकडक़र अन्दर घसीK !े गयी।

चन्दर ने र्मन र्में कहा, यह कुछ इस रहस्यर्मय बँग!े का असर है किक हरेक का दिदर्माग खराब ही र्मा!ूर्म देता है। दो धिर्मनK बाद 5ब बK\ !ौKा तो उसके ग!े र्में गु!बन्द, ऊनी स्वेKर, ऊनी र्मो5े रे्थ। वह हाँफता हुआ आकर बैठ गया।

''धिर्मस्Kर कपूर! तुम्हें र्मानना होगा किक यह !ड़की, यह डाइन 5ेनी बहुत कू्रर है।''

''र्मानता हूँ, बK\! सो!हों आने र्मानता हूँ।'' चन्दर ने र्मुसकराहK रोककर कहा, ''!ेकिकन यह झगड़ा क्या है?''

''झगड़ा क्या होता है? औरतों को सर्मझना बहुत र्मुश्किश्क! है।''

''इस औरत के फन्दे र्में फँसे कैसे तुर्म?'' चन्दर ने पूछा।

''शी! शी!'' होठ पर हार्थ रखकर धीरे बो!ने का इशारा करते हुए बK\ ने कहा, ''धीरे बो!ो। बात ऐसी हुई किक 5ब र्मैं तराई र्में लिशकार खे! रहा र्था तो एक बार अके!े छूK गया! यह एक पेंशनर फॉरेस्K गाड� की अनब्याही !ड़की र्थी। लिशकार र्में बहुत होलिशयार। र्मैं भKकते हुए पहुँचा तो इसका बाप बीर्मार र्था। र्मैं रुक गया। तीसरे दिदन वह र्मर गया। उसे 5ाने कौन-सा रोग र्था किक उसका चेहरा बहुत डरावना हो गया र्था और पेK फू! गया र्था। रात को इसे बहुत डर !गा तो यह र्मेरे पास आकर !ेK गयी। बीच र्में बन्दूक रखकर हर्म !ोग सो गये। रात को इसने बीच से बन्दूक हKा दी और अब वह कहती है किक र्मुझसे ब्याह करेगी और नहीं करँूगा तो र्मार डा!ेगी। पम्र्मी भी र्मुझसे बो!ी-तुम्हें अब ब्याह करना ही होगा। अब र्म5बूरी है, धिर्मस्Kर कपूर!''

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चन्दर चुप बैठा सोच रहा र्था, कैसी किवलिचv जि5-दगी है इस अभागे की! र्मानो प्रकृकित ने सारे आश्चय� इसी की किकस्र्मत के लि!ए छोड़ रखे रे्थ। किफर बो!ा-

''यह आ5 क्या झगड़ा र्था?''

''कुछ नहीं। आ5 इसकी सा!किगरह र्थी। यह बो!ी, ''र्मुझे कुछ उपहार दो।" र्मैं बहुत देर तक सोचता रहा। क्या दँू इसे? कुछ सर्मझ ही र्में नहीं आया। बहुत देर सोचने के बाद र्मैंने सोचा-र्मैं तो इसका पकित होने 5ा रहा हूँ। इसे एक पे्रर्मी उपहार र्में दे दँू। र्मैंने एक धिर्मv से कहा किक तुर्म र्मेरी भावी पत्नी से आ5 शार्म को पे्रर्म कर सकते हो? वह रा5ी हो गया, र्मैं !े आया।''

चन्दर 5ोर से हँस पड़ा।

''हँसो र्मत, हँसो र्मत, धिर्मस्Kर कपूर!'' बK\ बहुत गम्भीर बनकर बो!ा, ''इसका र्मत!ब यह है किक तुर्म औरतों को सर्मझते नहीं। देखो, एक औरत उसी ची5 को ज्यादा पसन्द करती है, उसी के प्रकित सर्मप�ण करती है 5ो उसकी जि5-दगी र्में नहीं होता। र्मस!न एक औरत है जि5सका ब्याह हो गया है, या होने वा!ा है, उसे यदिद एक नया पे्रर्मी धिर्म! 5ाये तो उसकी प्रस�ता का दिठकाना नहीं रहता। वह अपने पकित की बहुत कर्म परवा करेगी अपने पे्रर्मी के सार्मने। और अगर क्वाँरी !ड़की है तो वह अपने पे्रर्मी की भावनाओं की पूरी तौर से हत्या कर सकती है यदिद उसे एक पकित धिर्म! 5ाये तो! र्मैं तो सर्मझता हूँ किक कोई भी पकित अपनी पत्नी को यदिद कोई अच्छा उपहार दे सकता है तो वह है एक नया पे्रर्मी और कोई भी पे्रर्मी अपनी रानी को यदिद कोई अच्छा उपहार दे सकता है तो वह यह किक उसे एक पकित प्रदान कर दे। तुम्हारी अभी शादी तो नहीं हुई?''

''न!''

''तो तुर्म पे्रर्म तो 5रूर करते होंगे...न, लिसर र्मत किह!ाओ...र्मैं यकीन नहीं कर सकता...। र्मैं इतनी स!ाह तुम्हें दे रहा हूँ, किक अगर तुर्म किकसी !ड़की से प्यार करते हो तो ईश्वर के वास्ते उससे शादी र्मत करना-तुर्म र्मेरा किकस्सा सुन चुके हो। अगर दिद! से प्यार करना चाहते हो और चाहते हो किक वह !ड़की 5ीवन-भर तुम्हारी कृतज्ञ रहे तो तुर्म उसकी शादी करा देना...यह !ड़किकयों के सेक्स 5ीवन का अस्टिन्तर्म सत्य है...! हा! हा! हा!'' बK\ हँस पड़ा।

चन्दर को !गा 5ैसे आग की !पK उसे तपा रही है। उसने भी तो यही किकया है सुधा के सार्थ जि5से बK\ किकतने किवलिचv स्वरों र्में कह रहा है। उसे !गा 5ैसे इस पे्रत-!ोक र्में सारा 5ीवन किवकृत दिदखाई देता है। वहाँ साधना की पकिवvता भी कीचड़ और पाग!पन र्में उ!झकर गंदी हो 5ाती है। लिछह, कहाँ बK\ की बातें और कहाँ उसकी सुधा...

वह उठ खड़ा हुआ। 5ल्दी से किवदा र्माँगकर इस तरह भागा 5ैसे उसके पैरों के नीचे अंगारे लिछपे हों।

किफर उसे नींद नहीं आयी। चैन नहीं आया। रात को सोया तो वह बार-बार चौंक-सा उठा। उसने सपना देखा, एक बहुत बउ़ा कपूर का पहाड़ है। बहुत बड़ा। र्मु!ायर्म कपूर की बड़ी-बड़ी चट्टानें और इतनी पकिवv खुशबू किक आदर्मी की आत्र्मा बे!े का फू! बन 5ाये। वह और सुधा उन सौरभ की चट्टानों के बीच चढ़ रहे हैं। केव! वह है और सुधा...सुधा सफेद बाद!ों की साड़ी पहने है और चन्दर किकरनों की चादर !पेKे है। 5हाँ-5हाँ चन्दर 5ाता है, कपूर की चट्टानों पर इन्द्रधनुष खिख! 5ाते हैं और सुधा अपने बाद!ों के आँच! र्में इन्द्रधनुष के फू! बKोरती च!ती है।

सहसा एक चट्ट ï न किह!ी और उसर्में से एक भयंकर पे्रत किनका!ा। एक सफेद कंका!-जि5सके हार्थ र्में अपनी खोपड़ी और एक हार्थ र्में 5!ती र्मशा! और उस र्मुंडहीन कंका! ने खोपड़ी हार्थ र्में !ेकर चन्दर को दिदखायी। खोपड़ी हँसी और बो!ी, ''देखो, जि5-दगी का अस्टिन्तर्म सत्य यह है। यह!'' और उसने अपने हार्थ की र्मशा! ऊँची कर दी। ''यह कपूर का पहाड़, यह बाद!ों की साड़ी, यह किकरनों का परिरधान, यह इन्द्रधनुष के फू!, यह सब झूठे हैं। और यह र्मशा!, 5ो अपने एक स्पश� र्में इस सबको किपघ!ा देगी।''

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और उसने अपनी र्मशा! एक ऊँचे लिशखर से छुआ दी। वह लिशखर धधक उठा। किपघ!ती हुई आग की एक धार बरसाती नदी की तरह उर्मडक़र बहने !गी।

''भागो, सुधा!'' चन्दर ने चीखकर कहा, ''भागो!''

सुधा भागी, चन्दर भागा और वह किपघ!ी हुई आग की र्महानदी !हराते हुए अ5गर की तरह उन्हें अपनी गंु5लि!का र्में !पेKने के लि!ए च! पड़ी। शैतान हँस पड़ा, ''हा! हा! हा!'' चन्दर ने देखा, सुधा शैतान की गोद र्में र्थी।

चन्दर चौंककर 5ाग गया। पानी बंद र्था !ेकिकन घनघोर अँधेरा र्था। और किपशाचनी की तरह पाग! हवा पेड़ों को झकझोर रही र्थी 5ैसे युग के 5र्मे हुए किवश्वासों को उखाड़ फें कना चाहती हो। चन्दर काँप रहा र्था, उसका र्मार्था पसीने से तर र्था।

वह उठकर नीचे आया। उसके कदर्म ठीक नहीं पड़ रहे रे्थ। बरार्मदे की बत्ती 5!ायी। र्महराजि5न उठी-''का है भइया!'' उसने पूछा।

''कुछ नहीं, अन्दर सोऊँगा।'' चन्दर ने कहा और सुधा के कर्मरे र्में 5ाकर बत्ती 5!ायी। सुधा की चारपाई पर !ेK गया। किफर उठा, चारों ओर के दरवा5े बन्द कर दिदये किक कहीं कोई किफर ऐसा सपना बाहर के भयंकर अँधेरे र्में से न च!ा आये।

!ेकिकन बK\ की बातों से अन्दर-ही-अन्दर उसके र्मन र्में 5ाने कहाँ क्या KूK गया 5ो किफर बन नहीं पाया। अभी तक उसे अपने पर गव� र्था, किवश्वास र्था, अब कभी-कभी वह अपने व्यलिक्तत्व का किवशे्लषण करने !गा र्था। अब वह कभी-कभी अपने किवश्वासों पर लिसर ऊँचा करने के ब5ाय उन्हें सार्मने फें क देता और एक किनरपेक्ष वैज्ञाकिनक की तरह उनकी चीर-फाड़ करता, उनकी शव-परीक्षा किकया करता। अभी तक उसके किवश्वास का सम्ब! र्था, अब किकसी ने उसे तक� का अस्v-शस्v दे दिदया र्था। 5ाने किकस राक्षसी पे्ररणा से उसने अपनी आत्र्मा को चीरना शुरू किकया। और इस तक� -किवतक� और अकिवश्वास के भयंकर 5!-प्र!य की एक !हर ने उसे एक दिदन नरक के किकनारे !े 5ा पKका।

सुधा का खत आया र्था। दिदल्!ी र्में पापा अपने कुछ कार्म से रुके रे्थ और सुधा की तबीयत खराब हो गयी र्थी। अब वह दो-तीन रो5 र्में आ 5ाएगी।

!ेकिकन चन्दर के र्मन पर एक अ5ब-सा असर हुआ र्था इस खत का। सुधा का पv नहीं आया र्था, सुधा दूर र्थी तब वह खुश र्था, वह उल्!लिसत र्था। सुधा का पv आते ही सहसा वह उदास हो गया। उदास तो क्या उसे उबकाई-सी आने !गी। उसे यह सब सहसा, पता नहीं एक नाKक-सा !गने !गा र्था, एक बहुत सस्ता, नीचे स्तर का नाKक। उसे !गता र्था-ये सब चारों ओर का त्याग, साधन, सौन्दय�, यह सब झूठ है। सुधा भी अन्ततोगत्वा वही साधारण !ड़की है 5ो क्वाँरे 5ीवन र्में पकित और किववाकिहत 5ीवन र्में पे्रर्मी की भूखी होती है।

वह भी शैतान से पूण�तया हारा नहीं र्था। वह !ड़ने की कोलिशश करता र्था। !ेकिकन वह हार रहा र्था, यह भी उसे र्मा!ूर्म र्था। और चन्दर के जि5स गव� ने उसकी 5ीत र्में सार्थ दिदया र्था, वही गव� उसकी हार र्में सार्थ दे रहा र्था। उसने र्मन र्में सोच लि!या किक वह सुधा से, सभी !ड़किकयों से, इस सारे नाKक से नफरत करता है। सुधा का किववाह होना ही र्था, सुधा को किववाह करना र्था, सुधा के आँसू झूठे रे्थ, अगर चन्दर सुधा को न भी सर्मझाता तो घूर्म-किफर सुधा किववाह करती ही।

तब किफर किवश्वास काहे का? त्याग काहे का?

किवश्वास KूK चुका र्था, गव� जि5-दा र्था, गव� घरं्मड र्में बद! गया र्था, घरं्मड नफरत र्में, और नफरत नसों को चूर-चूर कर देने वा!ी उदासी र्में।

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सुधा 5ब आयी तो उसने चन्दर को किबल्कु! बद!ा हुआ पाया। एक बात और हुई जि5सने और भी आग सु!गा दी। यह !ोग दोपहर को एक ब5े के !गभग आये 5बकिक चन्दर कॉ!े5 गया र्था। पापा तो आते ही नहा-धोकर सोने च!े गये। सुधा और किबनती ने आते ही अपने कर्मरे की सफाई शुरू की; कर्मरे की सारी किकताबों झाड़ीं, कपडे़ ठीक किकये, र्मे5ें साफ कीं और उसके बाद कर्मरा धोने र्में !ग गयीं। किबनती बाल्Kी र्में पानी भर-भर !ाने !गी और सुधा झाड़ू से फश� धोने !गी। हार्थों र्में चूडे़ अब भी रे्थ, पाँव र्में किबलिछया और र्माँग र्में लिसन्दूर-चेहरा बहुत पी!ा पड़ गया र्था सुधा का; चेहरे की हकिड्डï याँ किनक! आयी र्थीं और आँखों की रोशनी भी र्मै!ी पड़ गयी र्थी। वह 5ाने क्यों कर्म5ोर भी हो गयी र्थी।

झाड़ू !गाते-!गाते सुधा किबनती से बो!ी, ''आ5 र्मा!ूर्म पड़ता है किक र्मैं आदर्मी हूँ! क! तक तो हैवान र्थी। पापा को भी 5ाने क्या सूझा किक इन्हें भी सार्थ दिदल्!ी !े गये। र्मैं तो शरर्म से र्मरी 5ाती र्थी।''

र्थोड़ी देर बाद चन्दर आया। बाहर ही उसे र्मा!ूर्म हो गया र्था किक सब !ोग आ गये हैं। उसे 5ाने क्यों ऐसा !ग रहा र्था किक वह उ!Kे !ौK 5ाये, वह अगर इस घर र्में गया तो 5ाने उससे क्या अनर्थ� हो 5ाएगा, !ेकिकन वह बढ़ता ही गया। स्Kडी-रूर्म र्में डॉक्Kर साहब सो रहे रे्थ। वह !ौKा और अपने कपडे़ उतारने के लि!ए ड्राइंग-रूर्म की ओर च!ा। सुधा ने ज्यों ही आहK पायी, वह फौरन झाड़ू फें ककर भागी, लिसर खु!ा, धोती कर्मर र्में खँुसी हुई, हार्थ गन्दे, बा! किबखरे और बेतहाशा दौड़कर चन्दर से लि!पK गयी और बच्चों की भो!ी हँसी हँसकर बो!ी, ''चन्दर, चन्दर! हर्म आ गये, अब बताओ!'' और चन्दर को इस तरह कस लि!या किक अब कभी छोडे़गी नहीं।

''लिछह, दूर हKो, सुधा! यह क्या नाKक करती हो! आ5 तुर्म बच्ची नहीं हो!'' और सुधा को बड़ी रुखाई से परे हKाकर अपने कोK पर से सुधा के हार्थ से !गी हुई धिर्मट्टी झाड़ते हुए चन्दर चुपचाप अपने कर्मरे र्में च!ा गया।

सुधा पर 5ैसे किब5!ी किगर पड़ी हो। वह पत्थर की तरह खड़ी रही। किफर 5ैसे !डख़ड़ाती हुई अपने कर्मरे र्में गयी और चारपाई पर !ेKकर फूK-फूKकर रोने !गी। चन्दर सुधा से नहीं ही बो!ा। डॉक्Kर साहब के 5गते ही उनसे बातें करने !गा, शार्म को वह साइकिक! !ेकर घूर्मने किनक! गया। !ौKकर ऊपर छत पर च!ा गया और किबनती को पुकारकर कहा, ''अगर तक!ीफ न हो तो 5रा ऊपर खाना दे 5ाओ।'' किबनती ने र्था!ी !गायी और सुधा से कहा, ''!ो दीदी! दे आओ!'' सुधा ने लिसर किह!ाकर कहा, ''तू ही दे आ! र्मैं अब कौन रह गयी उनकी।'' किबनती के बहुत सर्मझाने पर सुधा ऊपर खाना !े गयी। चन्दर !ेKा र्था गुर्मसुर्म। सुधा ने स्Kू! खींचकर खाना रखा। चन्दर कुछ नहीं बो!ा। उसने पानी रखा। चन्दर कुछ नहीं बो!ा।

''खाओ न!'' सुधा ने कहा और एक कौर बनाकर चन्दर को देने !गी।

''तुर्म 5ाओ!'' चन्दर ने बडे़ रूखे स्वर र्में कहा, ''र्मैं खा !ँूगा!''

सुधा ने कौर र्था!ी र्में रख दिदया और चन्दर के पायताने बैठकर बो!ी, ''चन्दर, तुर्म क्यों नारा5 हो, बताओ हर्मसे क्या पाप हो गया है? किपछ!े डेढ़ र्महीने हर्मने एक-एक क्षण किगन-किगनकर काKे हैं किक कब तुम्हारे पास आए।ँ हर्में क्या र्मा!ूर्म र्था किक तुर्म ऐसे हो गये हो। र्मुझे 5ो चाहे स5ा दे !ो !ेकिकन ऐसा न करो। तुर्म तो कुछ भी नहीं सर्मझते।'' और सुधा ने चन्दर के पैरों पर लिसर रख दिदया। चन्दर ने पैर झKक दिदये, ''सुधा, इन सब बातों से फायदा नहीं है। अब इस तरह की बातें करना और सुनना र्मैं भू! गया हूँ। कभी इस तरह की बातें करते अच्छा !गता र्था। अब तो किकसी सोहाकिगन के र्मुँह से यह शोभा नहीं देता!''

सुधा कित!धिर्म!ा उठी, ''तो यह बात है तुम्हारे र्मन र्में! र्मैं पह!े से सर्मझती र्थी। !ेकिकन तुम्हीं ने तो कहा र्था, चन्दर! अब तुम्हीं ऐसे कह रहे हो? शरर्म नहीं आती तुम्हें।'' और सुधा ने हार्थ से ब्याह वा!े चूडे़ उतारकर छत पर फें क दिदये, किबलिछया उतारने !गी-और पाग!ों की तरह फKी आवा5 र्में बो!ी, ''5ो तुर्मने कहा, र्मैंने किकया, अब 5ो कहोगे वह करँूगी। यही चाहते हो न!'' और अन्त र्में उसने अपनी किबलिछया उतारकर छत पर फें क दी।

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चन्दर काँप गया। उसने इस दृश्य की कल्पना भी नहीं की र्थी। ''किबनती! किबनती!'' उसने घबराकर पुकारा और सुधा से बो!ा, ''अरे, यह क्या कर रही हो! कोई देखेगा तो क्या सोचेगा! पहनो 5ल्दी से।''

''र्मुझे किकसी की परवा नहीं। तुम्हारा तो 5ी ठंडा पड़ 5ाएगा!''

चन्दर उठा। उसने 5बरदस्ती सुधा के हार्थ पकड़ लि!ये। किबनती आ गयी र्थी।

''!ो, इन्हें चूडे़ तो पहना दो!'' किबनती ने चुपचाप चूडे़ और किबलिछया पहना दी। सुधा चुपचाप उठी और नीचे च!ी गयी।

चन्दर अपनी खाK पर लिसर झुकाये !ण्डिज्जत-सा बैठा र्था।

''!ीजि5ए, खाना खा !ीजि5ए।'' किबनती बो!ी।

''र्मैं नहीं खाऊँगा।'' चन्दर ने रँुधे ग!े से कहा।

''खाइए, वरना अच्छी बात नहीं होगी। आप दोनों धिर्म!कर र्मुझे र्मार डालि!ए बस किकस्सा खत्र्म हो 5ाए। न आप सीधे र्मुँह से बो!ते हैं, न दीदी। पता नहीं आप !ोगों को क्या हो गया है?''

चन्दर कुछ नहीं बो!ा।

''खाइए, आपको हर्मारी कसर्म है। वरना दीदी खाना नहीं खाएगँी! आपको र्मा!ूर्म नहीं, दीदी की तबीयत इधर बहुत खराब है। उन्हें सुबह-शार्म बुखार रहता है। दिदल्!ी र्में तबीयत बहुत खराब हो गयी र्थी। आप ऐसे कर रहे हैं। बताइए, उनका क्या हा! होगा। आप सर्मझते होंगे यह बहुत सुखी होंगी !ेकिकन आपको क्या र्मा!ूर्म!...पह!े आप दीदी के एक आँसू पर पाग! हो उठते रे्थ, अब आपको क्या हो गया है?''

चन्दर ने लिसर उठाया-और गहरी साँस !ेकर बो!ा, ''5ाने क्या हो गया है, किबनती! र्मैं कभी नहीं सोचता र्था किक सुधा को र्मैं इतना दु:ख दे सकँूगा। इतना अभागा हूँ किक र्मैं खुद भी इधर घु!ता रहा और सुधा को भी इतना दुखी कर दिदया। और सचर्मुच चन्दर की आँखों र्में आँसू भर आये। किबनती चन्दर के पीछे खड़ी र्थी। चन्दर का लिसर अपनी छाती र्में !गाकर आँसू पोंछती हुई बो!ी, ''लिछह, अब और दु:खी होइएगा तो दीदी और भी रोएगँी। !ीजि5ए, खाइए!''

''5ाओ, दीदी को बु!ा !ो और उन्हें भी खिख!ा दो!'' चन्दर ने कहा। किबनती गयी। किफर !ौKकर बो!ी, ''बहुत रो रही हैं। अब आ5 उनका नशा उतर 5ाने दीजि5ए, तब क! बात कीजि5एगा।''

''किफर सुधा ने न खाया तो?''

''नहीं, आप खा !ीजि5एगा तो वे खा !ेंगी। उनको खिख!ाए किबना र्मैं नहीं खाऊँगी।'' किबनती बो!ी और अपने हार्थ से कौर बनाकर चन्दर को देने !गी। चन्दर ने खाना शुरू किकया और धीरे-से गहरी साँस-!ेकर बो!ा, ''किबनती! तुर्म हर्मारी और सुधा की उस 5नर्म की कौन हो?''

सुबह के वक्त चन्दर 5ब नाश्ता करने बैठा तो डॉक्Kर साहब के सार्थ ही बैठा। सुधा आयी और प्या!ा रखकर च!ी गयी। वह बहुत उदास र्थी। चन्दर का र्मन भर आया। सुधा की उदासी उसे किकतना !ण्डिज्जत कर रही र्थी, किकतना दुखी कर रही र्थी। दिदन-भर किकसी कार्म र्में उसकी तबीयत नहीं !गी। उसने क्!ास छोड़ दिदये। !ाइब्रेरी र्में भी 5ाकर किकताबें उ!K-प!Kकर च!ा आया। उसके बाद पे्रस गया 5हाँ उसे अपनी र्थीलिसस छपने को देनी र्थी, उसके बाद ठाकुर साहब के यहाँ गया। !ेकिकन कहीं भी वह दिKक नहीं पाया। 5ब तक वह सुधा को हँसा न !े, सुधा के आँसू सुखा न दे; उसे चैन नहीं धिर्म!ेगा।

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शार्म को वह !ौKा तो खाना तैयार र्था। किबनती से उसने पूछा, ''कहाँ है सुधा?'' ''अपनी छत पर।'' किबनती ने कहा। चन्दर ऊपर गया। पानी परसों से बंद र्था और बाद! भी खु!े हुए रे्थ !ेकिकन ते5 पुरवैया च! रही र्थी। ती5 का चाँद शरर्मी!ी दुल्हन-सा बाद!ों र्में र्मुँह लिछपा रहा र्था। हवा के ते5 झकोरों पर बाद! उड़ रहे रे्थ और कचनार बाद!ों र्में ती5 का धनुषाकार चाँद आँखधिर्मचौ!ी खे! रहा र्था। सुधा ने अपनी खाK बरसाती के बाहर खींच !ी र्थी। छत पर धुँध!ा अँधेरा र्था और रह-रहकर सुधा पर चाँदनी के फू! बरस 5ाते रे्थ। सुधा चुपचाप !ेKी हुई बाद!ों को देखती हुई 5ाने क्या सोच रही र्थी।

चन्दर गया। चन्दर को देखते ही सुधा उठ खड़ी हुई और उसने किब5!ी 5!ा दी और चुपचाप बैठ गयी। चन्दर बैठ गया। वह कुछ भी नहीं बो!ी। बग! र्में किबछी हुई किबनती की खाK पर सुधा बैठ गयी।

चन्दर को सर्मझ नहीं आता र्था किक वह क्या कहे। सुधा को इतना दु:ख दिदया उसने। सुधा उससे क! शार्म से बो!ी तक नहीं।

''सुधा, तुर्म नारा5 हो गयी! र्मुझे 5ाने क्या हो गया र्था। !ेकिकन र्माफ नहीं करोगी?'' चन्दर ने बहुत काँपती हुई आवा5 र्में कहा। सुधा कुछ नहीं बो!ी-चुपचाप बाद!ों की ओर देखती रही।

''सुधा?'' चन्दर ने सुधा के दो कबूतरों 5ैसे उ5!े र्मासूर्म पैरों को !ेकर अपनी गोद र्में रख लि!या और भरे हुए ग!े से बो!ा, ''सुधा, र्मुझे 5ाने क्या हो 5ाता है कभी-कभी! !गता है वह पह!े वा!ी ताकत KूK गयी। र्मैं किबखर रहा हूँ। तुर्म आयी और तुम्हारे सार्मने र्मन का 5ाने कौन-सा तूफान फूK पड़ा! तुर्मने उसका इतना बुरा र्मान लि!या। बताओ, अगर तुर्म ही ऐसा करोगी तो र्मुझे सँभा!ने वा!ा किफर कौन है, सुधा?'' और चन्दर की आँखों से एक बँूद आँसू सुधा के पाँवों पर चू पड़ा। सुधा ने चौंककर अपने पाँव खींच लि!ये। और उठकर चन्दर की खाK पर बैठ गयी और चन्दर के कन्धे पर लिसर रखकर फूK-फूKकर रो पड़ी। बहुत रोयी...बहुत रोयी। उसके बाद उठी और सार्मने बैठ गयी।

''चन्दर! तुर्मने ग!त नहीं किकया। र्मैं सचर्मुच किकतनी अपराधिधन हूँ। र्मैंने तुम्हारी जि5-दगी चौपK कर दी है। !ेकिकन र्मैं क्या करँू? किकसी ने तो र्मुझे कोई रास्ता नहीं बताया र्था। अब हो ही क्या सकता है, चन्दर! तुर्म भी बदा�श्त करो और हर्म भी करें।'' चन्दर नहीं बो!ा। उसने सुधा के हार्थ अपने होठों से !गा लि!ये। ''!ेकिकन र्मैं तुम्हें इस तरह किबखरने नहीं दँूगी! तुर्मने अब अगर इस तरह किकया तो अच्छी बात नहीं होगी। किफर हर्म तो बराबर हर प! तुम्हारे ही बारे र्में सोचते रहे और तुम्हारी ही बातें सोच-सोचकर अपने को धीर5 देते रहे और तुर्म इस तरह करोगे तो...''

''नहीं सुधा, र्मैं अपने को KूKने नहीं दँूगा। तुम्हारा प्यार र्मेरे सार्थ है। !ेकिकन इधर र्मुझे 5ाने क्या हो गया र्था!''

''हाँ, सर्मझ !ो, चन्दर! तुम्हें हर्मारे सुहाग की !ा5 है, हर्म किकतने दुखी हैं, तुर्म सर्मझ नहीं सकते। एक तुम्हीं को देखकर हर्म र्थोड़ा-सा दुख-दद� भू! 5ाते हैं, सो तुर्म भी इस तरह करने !गे! हर्म !ोग किकतने अभागे हैं!'' और वह किफर चुपचाप !ेKकर ऊपर देखती हुई 5ाने क्या सोचने !गी। चन्दर ने एक बार धुँध!ी रेशर्मी चाँदनी र्में र्मुरझाये हुए सोन5ुही के फू!-5ैसे र्मुँह की ओर देखा और सुधा के नरर्म गु!ाबी होठों पर ऊँगलि!याँ रख दीं। र्थोड़ी देर वह आँसू र्में भीगे हुए गु!ाब की दुख-भरी पंखरिरयों से उँगलि!याँ उ!झाये रहा और किफर बो!ा-

''क्या सोच रही र्थीं?'' चन्दर ने बहुत दु!ार से सुधा के र्मारे्थ पर हार्थ फेरकर कहा। सुधा एक फीकी हँसी हँसकर बो!ी-

''5ैसे आ5 !ेKी हुई बाद!ों को देख रही हूँ और पास तुर्म बैठे हो, उसी तरह एक दिदन कॉ!े5 र्में दोपहर को र्मैं और गेसू !ेKे हुए बाद!ों को देख रहे रे्थ। उस दिदन उसने एक शेर सुनाया र्था। 'कैफ बरदोश बाद!ों को न देख, बेखबर तू कुच! न 5ाए कहीं।' उसका कहना किकतना सच किनक!ा! भाग्य ने कहाँ !े 5ा पKका र्मुझे!''

''क्यों, वहाँ तुम्हें कोई तक!ीफ तो नहीं?'' चन्दर ने पूछा।

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''हाँ, सर्मझते तो सब यही हैं, !ेकिकन 5ो तक!ीफ है वह र्मैं 5ानती हूँ या किबनती 5ानती है।'' सुधा ने गहरी साँस !ेकर कहा, ''वहाँ आदर्मी भी बने रहने का अधिधकार नहीं।''

''क्यों?'' चन्दर ने पूछा।

''क्या बताए ँतुम्हें चन्दर! कभी-कभी र्मन र्में आता है किक डूब र्मरँू। ऐसा भी 5ीवन होगा र्मेरा, यह कभी र्मैं नहीं सोचती र्थी।'' सुधा ने कहा।

''क्या बात है? बताओ न!'' चन्दर ने पूछा।

''बता दँूगी, देवता! तुर्मसे भ!ा क्या लिछपाऊँगी !ेकिकन आ5 नहीं, किफर कभी!''

सुधा ने कहा, ''तुर्म परेशान र्मत हो। कहाँ तुर्म, कहाँ दुकिनया! काश किक कभी तुम्हारी गोद से अ!ग न होती र्मैं!'' और सुधा ने अपना र्मुँह चन्दर की गोद र्में लिछपा लि!या। चाँदनी की पंखरिरयाँ बरस पड़ीं।

उल्!ास और रोशनी का र्म!य पवन किफर !ौK आया र्था, किफर एक बार चन्दर, सुधा और किबनती के प्राणों को किवभोर कर गया र्था किक सुधा को र्महीने-भर बाद ही 5ाना है और सुधा भू! गयी र्थी किक शाह5हाँपुर से भी उसका कोई नाता है। किबनती का इम्तहान हो गया र्था और अकसर चन्दर और सुधा किबनती के ब्याह के लि!ए गहने और कपडे़ खरीदने 5ाते। जि5-दगी किफर खुशी के किहल्कोरों पर झू!ने !गी र्थी। किबनती का ब्याह उतरते अगहन र्में होने वा!ा र्था। अब दो-wाई र्महीने रह गये रे्थ। सुधा और चन्दर 5ाकर कपडे़ खरीदते और !ौKकर किबनती को 5बरदस्ती पहनाते और गुकिडय़ा की तरह उसे स5ाकर खूब हँसते। दोनों के बडे़-बडे़ हौस!े रे्थ किबनती के लि!ए। सुधा किबनती को स!वार और चु�ी का एक सेK और गरारा और कुरते का एक सेK देना चाहती र्थी। चन्दर किबनती को एक हीरे की अँगूठी देना चाहता र्था। चन्दर किबनती को बहुत स्नेह करने !गा र्था। वह किबनती के ब्याह र्में भी 5ाना चाहता र्था !ेकिकन गाँव का र्मार्म!ा, कान्यकुब्5ों की बारात। शहर र्में सुधा, किबनती और चन्दर को जि5तनी आ5ादी र्थी उतनी वहाँ भ!ा क्योंकर हो सकती र्थी! किफर कहने वा!ों की 5बान, कोई क्या कह बैठे! यही सब सोचकर सुधा ने चन्दर को र्मना कर दिदया र्था। इसीलि!ए चन्दर यहीं किबनती को जि5तने उपहार और आशीवा�द देना चाहता र्था, दे रहा र्था। सुधा का बचपन !ौK आया र्था और दिदन-भर उसकी शरारतों और किक!कारिरयों से घर किह!ता र्था। सुधा ने चन्दर को इतनी र्मर्मता र्में डुबो लि!या र्था किक एक क्षण वह चन्दर को अपने से अ!ग नहीं रहने देती र्थी। जि5तनी देर चन्दर घर र्में रहता, सुधा उसे अपने दु!ार र्में, अपनी साँसों की गरर्माई र्में सर्मेKे रहती र्थी, चन्दर के र्मारे्थ पर हर क्षण वह 5ाने किकतना स्नेह किबखेरती रहती र्थी!

एक दिदन चन्दर आया तो देखा किक किबनती कहीं गयी है और सुधा चुपचाप बैठी हुई बहुत-से पुराने खतों को सँभा! रही है। एक गम्भीर उदासी का बाद! घर र्में छाया हुआ है। चन्दर आया। देखा, सुधा आँख र्में आँसू भरे बैठी है।

''क्या बात है, सुधा?''

''रुखसती की लिचठ्ठी आ गयी चन्दर, परसों शंकर बाबू आ रहे हैं।''

चन्दर के हृदय की धडक़नों पर 5ैसे किकसी ने हर्थौड़ा र्मार दिदया। वह चुपचाप बैठ गया। ''अब सब खत्र्म हुआ, चन्दर!'' सुधा ने बड़ी ही करुण र्मुस्कान से कहा, ''अब सा!-भर के लि!ए किवदा और उसके बाद 5ाने क्या होगा?''

चन्दर कुछ नहीं बो!ा। वहीं !ेK गया और बो!ा, ''सुधा, दु:खी र्मत हो। आखिखर कै!ाश इतना अच्छा है, शंकर बाबू इतने अचे्छ हैं। दुख किकस बात का? रहा र्मैं तो अब र्मैं सशक्त रहूँगा। तुर्म र्मेरे लि!ए र्मत घबराओ!''

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सुधा एकKक चन्दर की ओर देखती रही। किफर बो!ी, ''चन्दर! तुम्हारे 5ैसे सब क्यों नहीं होते? तुर्म सचर्मुच इस दुकिनया के योग्य नहीं हो! ऐसे ही बने रहना, चन्दर र्मेरे! तुम्हारी पकिवvता ही र्मुझे जि5न्दा रख सकेगी वना� र्मैं तो जि5स नरक र्में 5ा रही हूँ...''

''तुर्म उसे नरक क्यों कहती हो! र्मेरी सर्मझ र्में नहीं आता!''

''तुर्म नहीं सर्मझ सकते। तुर्म अभी बहुत दूर हो इन सब बातों से, !ेकिकन...'' सुधा बड़ी देर तक चुप रही। किफर खत सब एक ओर खिखसका दिदये और बो!ी, ''चन्दर, उनर्में सबकुछ है। वे बहुत अचे्छ हैं, बहुत खु!े किवचार के हैं, र्मुझे बहुत चाहते हैं, र्मुझ पर कहीं से कोई बन्धन नहीं, !ेकिकन इस सारे स्वग� का र्मो! 5ो देकर चुकाना पड़ता है उससे र्मेरी आत्र्मा का कण-कण किवद्रोह कर उठता है।'' और सहसा घुKनों र्में र्मुँह लिछपाकर रो पड़ी।

चन्दर उठा और सुधा के र्मारे्थ पर हार्थ रखकर बो!ा, ''लिछह, रोओ र्मत सुधा! अब तो 5ैसा है, 5ो कुछ भी है, बदा�श्त करना पडे़गा।''

''कैसे करँू, चन्दर! वह इतने अचे्छ हैं और इसके अ!ावा इतना अच्छा व्यवहार करते हैं किक र्मैं उनसे क्या कहूँ? कैसे कहूँ?'' सुधा बो!ी।

''5ाने दो सुधी, 5ैसी जि5-दगी हो वैसा किनबाह करना चाकिहए, इसी र्में सुन्दरता है। और 5हाँ तक र्मेरा खया! है वैवाकिहक 5ीवन के प्रर्थर्म चरण र्में ही यह नशा रहता है, किफर किकसको यह सूझता है। आओ, च!ो चाय पीए!ँ उठो, पाग!पन नहीं करते। परसों च!ी 5ाओगी, रु!ाकर नहीं 5ाना होता। उठो!'' चन्दर ने अपने र्मन की 5ुगुप्सा पीकर ऊपर से बहुत स्नेह से कहा।

सुधा उठी और चाय !े आयी। चन्दर ने अपने हार्थ से एक कप र्में चाय बनायी और सुधा को किप!ाकर उसी र्में पीने !गा। चाय पीते-पीते सुधा बो!ी-

''चन्दर, तुर्म ब्याह र्मत करना! तुर्म इसके लि!ए नहीं बने हो।''

चन्दर सुधा को हँसाना चाहता र्था-''च! स्वार्थr कहीं की! क्यों न करँू ब्याह? 5रूर करँूगा! और 5नाब, दो-दो करँूगा! अपने आप तो कर लि!या और र्मुझे उपदेश दे रही हैं!''

सुधा हँस पड़ी। चन्दर ने कहा-

''बस ऐसे ही हँसती रहना हरे्मशा, हर्मारी याद करके और अगर रोयी तो सर्मझ !ो हर्म उसी तरह किफर अशान्त हो उठें गे 5ैसे अभी तक रे्थ!...'' किफर प्या!ा सुधा के होठों से !गाकर बो!ा, ''अच्छा सुधी, कभी तुर्म सुनो किक र्मैं उतना पकिवv नहीं रहा जि5तना किक हूँ तो तुर्म क्या करोगी? कभी र्मेरा व्यलिक्तत्व अगर किबगड़ गया, तब क्या होगा?''

''होगा क्या? र्मैं रोकने वा!ी कौन होती हूँ! र्मैं खुद ही क्या रोक पायी अपने को! !ेकिकन चन्दर, तुर्म ऐसे ही रहना। तुम्हें र्मेरे प्राणों की सौगन्ध है, तुर्म अपने को किबगाडऩा र्मत।''

चन्दर हँसा, ''नहीं सुधा, तुम्हारा प्यार र्मेरी ताकत है। र्मैं कभी किगर नहीं सकता 5ब तक तुर्म र्मेरी आत्र्मा र्में गँुर्थी हुई हो।''

तीसरे दिदन शंकर बाबू आये और सुधा चन्दर के पैरों की धू! र्मारे्थ पर !गाकर च!ी गयी...इस बार वह रोयी नहीं, शान्त र्थी 5ैसे वधस्थ! पर 5ाता हुआ बेबस अपराधी।

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5ब तक आसर्मान र्में बाद! रहते हैं तब तक झी! र्में बाद!ों की छाँह रहती है। बाद!ों के खु! 5ाने के बाद कोई भी झी! उनकी छाँह को सुरक्षिक्षत नहीं रख पाती। 5ब तक सुधा र्थी, चन्दर की जि5-दगी का किफर एक बार उल्!ास और उसकी ताकत !ौK आयी र्थी, सुधा के 5ाते ही वह किफर सबकुछ खो बैठा। उसके र्मन र्में कोई स्थाधियत्व नहीं रहा। !गता र्था 5ैसे वह एक 5!ागार है 5ो बहुत गहरा है, !ेकिकन जि5सर्में हर चाँद, सूर5, लिसतारे और बाद! की छाँह पड़ती है और उनके च!े 5ाने के बाद किफर वह उनका प्रकितकिबम्ब धो डा!ता है और बद!कर किफर वैसा ही हो 5ाता है। कोई भी ची5 पानी को रँग नहीं पाती, उसे छू नहीं पाती, हाँ, !हरों र्में उनकी छाया का रूप किवकृत हो 5ाता है।

चन्दर को चारों ओर की दुकिनया सह5 गु5रते हुए बाद!ों का किनस्सार तर्माशा-सी !ग रही र्थी। कॉ!े5 की चह!-पह!, w!ती हुई बरसात का पानी, र्थीलिसस और किडग्री, बK\ का पाग!पन और पम्र्मी के खत-ये सभी उसके सार्मने आते और सपनों की तरह गु5र 5ाते। कोई ची5 उसके हृदय को छू न पाती। ऐसा !गता र्था किक चन्दर एक खोख!ा व्यलिक्त है जि5सर्में लिसफ� एक सापेक्ष अन्त:करण र्माv है, कोई किनरपेक्ष आत्र्मा नहीं और हृदय भी 5ैसे सर्माप्त हो गया र्था। एक 5!हीन हल्के बाद! की तरह वह हवा के हर झोंके पर तैर रहा र्था। !ेकिकन दिKकता कभी भी नहीं र्था। उसकी भावनाए,ँ उसका र्मन, उसकी आत्र्मा, उसके प्राण, उसका सबकुछ सो गया र्था और वह 5ैसे नींद र्में च!-किफर रहा र्था, नींद र्में सबकुछ कर रहा र्था। 5ाने के आठ-नौ रो5 बाद सुधा का खत आया-

''र्मेरे भाग्य!

र्मैं इस बार तुम्हें जि5स तरह छोड़ आयी हूँ उससे र्मुझे प!-भर को चैन नहीं धिर्म!ता। अपने को तो बेच चुकी, अपने र्मन के र्मोती को कीचड़ र्में फें क चुकी, तुम्हारी रोशनी को ही देखकर कुछ सन्तोष है। र्मेरे दीपक, तुर्म बुझना र्मत। तुम्हें र्मेरे स्नेह की !ा5 है।

र्मेरी जि5-दगी का नरक किफर र्मेरे अंगों र्में क्षिभदना शुरू हो गया है। तुर्म कहते हो किक 5ैसे हो किनबाह करना चाकिहए। तुर्म कहते हो किक अगर र्मैंने उनसे किनबाह नहीं किकया तो यह तुम्हारे प्यार का अपर्मान होगा। ठीक है, र्मैं अपने लि!ए नहीं, तुम्हारे लि!ए किनबाह करँूगी, !ेकिकन र्मैं कैसे सँभा!ूँ अपने को? दिद! और दिदर्माग बेबस हो रहे हैं, नफरत से र्मेरा खून उब!ा 5ा रहा है। कभी-कभी 5ब तुम्हारी सूरत सार्मने होती है तो 5ैसे अपना सुख-दुख भू! 5ाती हूँ, !ेकिकन अब तो जि5-दगी का तूफान 5ाने किकतना ते5 होता 5ा रहा है किक !गता है तुम्हें भी र्मुझसे खींचकर अ!ग कर देगा।

!ेकिकन तुम्हें अपने देवत्व की कसर्म है, तुर्म र्मुझे अब अपने हृदय से दूर न करना। तुर्म नहीं 5ानते किक तुम्हारी याद के ही सहारे र्मैं यह नरक झे!ने र्में सर्मर्थ� हूँ। तुर्म र्मुझे कहीं लिछपा !ो-र्मैं क्या करँू, र्मेरा अंग-अंग र्मुझ पर वं्यग्य कर रहा है, आँखों की नींद खत्र्म है। पाँवों र्में इतना तीखा दद� है किक कुछ कह नहीं सकती। उठते-बैठते चक्कर आने !गा है। कभी-कभी बदन काँपने !गता है। आ5 वह बरे!ी गये हैं तो !गता है र्मैं आदर्मी हूँ। तभी तुम्हें लि!ख भी रही हूँ। तुर्म दुखी र्मत होना। चाहती र्थी किक तुम्हें न लि!खँू !ेकिकन किबना लि!खे र्मन नहीं र्मानता। र्मेरे अपने! तुर्मने तो यही सोचकर यहाँ भे5ा र्था किक इससे अच्छा !ड़का नहीं धिर्म!ेगा। !ेकिकन कौन 5ानता र्था किक फू! र्में कीडे़ भी होंगे।

अच्छा, अब र्माँ5ी नीचे बु!ा रही हैं...च!ती हूँ...देखो अपने किकसी खत र्में इन सब बातों का जि5क्र र्मत करना! और इसे फाड़कर फें क देना।

तुम्हारी अभाकिगन-सुधी।''

चन्दर को खत धिर्म!ा तो एक बार 5ैसे उसकी र्मूच्छा� KूK गयी। उसने खत लि!या और किबनती को बु!ाया। किबनती हार्थ र्में साग और डलि!या लि!ये आयी और पास बैठ गयी। चन्दर ने वह खत किबनती को दे दिदया। किबनती ने पढ़ा और चन्दर को वापस दे दिदया और चुपचाप तरकारी काKने !गी।

वह उठा और चुपचाप अपने कर्मरे र्में च!ा गया। र्थोड़ी देर बाद किबनती चाय !ेकर आयी और चाय रखकर बो!ी, ''आप दीदी को कब खत लि!ख रहे हैं?''

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''र्मैं नहीं लि!खँूगा!'' चन्दर बो!ा।

''क्यों?''

''क्या लि!खँू किबनती, कुछ सर्मझ र्में नहीं आता!'' कुछ झल्!ाकर चन्दर ने कहा। किबनती चुपचाप बैठ गयी। र्थोड़ी देर बाद चन्दर बडे़ र्मु!ायर्म स्वर र्में बो!ा, ''किबनती, एक दिदन तुर्मने कहा र्था किक र्मैं देवता हूँ, तुम्हें र्मुझ पर गव� है। आ5 भी तुम्हें र्मुझ पर गव� है?''

''पह!े से ज्यादा!'' किबनती बो!ी।

''अच्छा, ताज्जुब है!'' चन्दर बो!ा, ''अगर तुर्म 5ानती किक आ5क! कभी-कभी र्मैं क्या सोचता हूँ तो तुम्हें ताज्जुब होता! तुर्म 5ानती तो, सुधा के इस खत से र्मुझे 5रा-सा भी दुख नहीं हुआ, लिसफ� झल्!ाहK ही हुई है। र्मैं सोच रहा र्था किक क्यों सुधा इतना स्वाँग भरती है दुख और अंतद्व�द्व का! किकस !ड़की को यह सब पसन्द नहीं? किकस !ड़की के प्यार र्में शरीर का अंश नहीं होता? !ाख प्रकितभाशालि!नी !ड़किकयाँ हों !ेकिकन अगर वे किकसी को प्यार करेंगी तो उसे अपनी प्रकितभा नहीं देंगी, अपना शरीर ही देंगी और यदिद वह अस्वीकार कर लि!या 5ाय तो शायद प्रकितपिह-सा से तड़प भी उठेंगी। अब तो र्मुझे ऐसा !गने !गा किक सेक्स ही प्यार है, प्यार का र्मुख्य अंश है, बाकी सभी कुछ उसकी तैयारी है, उसके लि!ए एक सर्मुलिचत वातावरण और किवश्वास का किनर्मा�ण करना है...5ाने क्यों र्मुझे इस सबसे बहुत नफरत होती 5ाती है। अभी तक र्मैं सेक्स और प्यार को दो ची5ें सर्मझता र्था, प्यार पर किवश्वास करता र्था, सेक्स से नफरत, अब र्मुझे दोनों ही एक ची5ें !गती हैं और 5ाने कैसे अरुलिच-सी हो गयी है इस जि5-दगी से। तुम्हारी क्या राय है, किबनती?''

''र्मेरी? अरे, हर्म बे-पढे़-लि!खे आदर्मी, हर्म क्या आपसे बात करेंगे! !ेकिकन एक बात है। ज्यादा पwऩा-लि!खना अच्छा नहीं होता।''

''क्यों?'' चन्दर ने पूछा।

''पढ़ने-लि!खने से ही आप और दीदी 5ाने क्या-क्या सोचते हैं! हर्मने देहात र्में देखा है किक वहाँ !ड़किकयाँ सर्मझती हैं किक उन्हें क्या करना है। इसलि!ए कभी इन सब बातों पर अपना र्मन नहीं किबगाड़तीं। बश्किल्क र्मैंने तो देखा है सभी शादी के बाद र्मोKी होकर आती हैं। और दीदी अब छोKी-सी नहीं किक ऐसी उनकी तबीयत खराब हो 5ाय। यह सब र्मन र्में घुKने का नती5ा है। 5ब यह होना ही है तो क्यों दीदी दु:खी होती हैं? उन्हें तो और र्मोKी होना चाकिहए।'' किबनती बो!ी।

इस सर्मस्या का इतना सर! सर्माधान सुनकर चन्दर को हँसी आ गयी।

''अब तुर्म ससुरा! 5ा रही हो। र्मोKी होकर आना!''

''धत्, आप तो र्म5ाक करने !गे!''

''!ेकिकन किबनती, तुर्म इस र्मार्म!े र्में बड़ी किवद्वान र्मा!ूर्म देती हो। अभी तक यह किवद्वत्ता कहाँ लिछपा रखी र्थी?''

''नहीं, आप र्म5ाक न बनाइए तो र्मैं सच बताऊँ किक देहाती !ड़किकयाँ शहर की !ड़किकयों से ज्यादा होलिशयार होती हैं इन सब र्मार्म!ों र्में।''

''सच?'' चन्दर ने पूछा। वह गाँव की जि5-दगी को बेहद किनरीह सर्मझता र्था।

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''हाँ और क्या? वहाँ इतना दुराव, इतना गोपन नहीं है। सभी कुछ उनके 5ीवन का उन्रु्मक्त है। और ब्याह के पह!े ही वहाँ !ड़किकयाँ सबकुछ...''

''अरे नहीं!'' चन्दर ने बेहद ताज्जुब से कहा।

''!ो यकीन नहीं होता आपको? र्मुझे कैसे र्मा!ूर्म हुआ इतना। र्मैं आपसे कुछ नहीं लिछपाती, वहाँ तो सब !ोग इसे इतना स्वाभाकिवक सर्मझते हैं जि5तना खाना-पीना, हँसना-बो!ना। बस !ड़किकयाँ इस बात र्में सचेत रहती हैं किक किकसी र्मुसीबत र्में न फँसें!''

चन्दर चुपचाप बैठ चाय पीता रहा। आ5 तक वह जि5-दगी को किकतना पकिवv र्मानता रहा र्था !ेकिकन जि5-दगी कुछ और ही है। जि5-दगी अब भी वह है 5ो सृधिष्ट के आरम्भ र्में र्थी...और दुकिनया किकतनी चा!ाक है! किकतनी भु!ावा देती है! अन्दर से र्मन र्में 5हर लिछपाकर भी होठों पर कैसी अर्मृतर्मयी र्मुसकान झ!काती रहती है! यह किबनती 5ो इतनी शान्त, संयत और भो!ी !गती र्थी, इसर्में भी सभी गुन भरे हैं। इस दुकिनया र्में? चन्दर ने जि5-दगी को परखने र्में किकतना बड़ा धोखा खाया है।...जि5-दगी यह है-र्मांस!ता और प्यास और उसके सार्थ-सार्थ अपने को लिछपाने की क!ा।

वह बैठा-बैठा सोचता रहा। सहसा उसने पूछा-

''किबनती, तुर्म भी देहात र्में रही हो और सुधा भी। तुर्म !ोगों की जि5-दगी र्में वह सब कभी आया?''

किबनती क्षण-भर चुप रही, किफर बो!ी, ''क्यों, क्या नफरत करोगे सुनकर!''

''नहीं किबनती, जि5तनी नफरत और अरुलिच दिद! र्में आ गयी है उससे ज्यादा आ सकती है भ!ा! बताना चाहो तो बता दो। अब र्मैं जि5-दगी को सर्मझना चाहता हूँ, वास्तकिवकता के स्तर पर!'' चन्दर ने गम्भीरता से पूछा।

''र्मैंने आपसे कुछ नहीं लिछपाया, न अब लिछपाऊँगी। पता नहीं क्यों दीदी से भी ज्यादा आप पर किवश्वास 5र्मता 5ा रहा है। सुधा दीदी की जि5-दगी र्में तो यह सब नहीं आ पाया। वे बड़ी किवलिचv-सी र्थीं। सबसे अ!ग रहती र्थीं और पढ़तीं और कर्म! के पोखरे र्में फू! तोड़ती र्थीं, बस! र्मेरी जि5-दगी र्में...''

चन्दर ने चाय का प्या!ा खिखसका दिदया। 5ाने किकस भाव से उसने किबनती के चेहरे की ओर देखा। वह शान्त र्थी, किनर्तिव-कार र्थी और किबना किकसी किहचक के कहती 5ा रही र्थी।

चन्दर चुप र्था। किबनती ने अपने पाँवों से चन्दर के पाँवों की उँगलि!याँ दबाते हुए पूछा, ''क्या सोच रहे हैं आप? सुन रहे हैं आप?''

''5ाने दो, र्मैं नहीं सुनँूगा। !ेकिकन तुर्म र्मुझ पर इतना किवश्वास क्यों करती हो?'' चन्दर ने पूछा।

''5ाने क्यों? यहाँ आकर र्मैंने दीदी के सार्थ आपका व्यवहार देखा। किफर पम्र्मी वा!ी घKना हुई। र्मेरे तन-र्मन र्में एक किवलिचv-सी श्र»ा आपके लि!ए छा गयी। 5ाने कैसी अरुलिच र्मेरे र्मन र्में दुकिनया के लि!ए र्थी, आपको देखकर र्मैं किफर स्वस्थ हो गयी।''

''ताज्जुब है! तुम्हारे र्मन की अरुलिच दूर हो गयी दुकिनया के प्रकित और र्मेरे र्मन की अरुलिच बढ़ गयी। कैसे अन्तर्तिव-रोध होते हैं र्मन की प्रकितकिक्रयाओं र्में! एक बात पूछँू, किबनती! तुर्म र्मेरे इतने सर्मीप रही हो। सैकड़ों बार ऐसा हुआ होगा 5ो र्मेरे किवषय र्में तुम्हारे र्मन र्में शंका पैदा कर देता, तुर्म सैकड़ों बार र्मेरे लिसर को अपने वक्ष पर रखकर र्मुझे सान्त्वना दे चुकी हो। तुर्म र्मुझे बहुत प्यारी हो, !ेकिकन तुर्म 5ानती हो र्मैं तुम्हें प्यार नहीं करता हूँ, किफर यह सब क्या है, क्यों है?''

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किबनती चुप रही-''पता नहीं क्यों है? र्मुझे इसर्में कभी कोई पाप नहीं दिदखा और कभी दिदखा भी तो र्मन ने कहा किक आप इतने पकिवv हैं, आपका चरिरv इतना ऊँचा है किक र्मेरा पाप भी आपको छूकर पकिवv हो 5ाएगा।''

''!ेकिकन किबनती...''

''बस?'' किबनती ने चन्दर को Kोककर कहा, ''इससे अधिधक आप कुछ र्मत पूलिछए, र्मैं हार्थ 5ोड़ती हूँ!''

चन्दर चुप हो गया।

चन्दर जि5तना सु!झाने का प्रयास कर रहा र्था, ची5ें उतनी ही उ!झती 5ा रही र्थीं। सुधा ने जि5-दगी का एक पक्ष चन्दर के सार्मने रखा र्था। किबनती उसे दूसरी दुकिनया र्में खींच !ायी। कौन सच है, कौन झूठ? वह किकसका कितरस्कार करे, किकसको स्वीकार करे। अगर सुधा ग!ती पर है तो चन्दर का जि5म्र्मा है, चन्दर ने सुधा की हत्या की है...!ेकिकन किकतनी क्षिभ� हैं दोनों बहनें! किबनती किकतनी व्यावहारिरक, किकतनी यर्थार्थ�, संयत और सुधा किकतनी आदश�, किकतनी कल्पनार्मयी, किकतनी सूक्ष्र्म, किकतनी ऊँची, किकतनी सुकुर्मार और पकिवv।

5ीवन की सर्मस्याओं के अन्तर्तिव-रोधों र्में 5ब आदर्मी दोनों पक्षों को सर्मझ !ेता है तब उसके र्मन र्में एक ठहराव आ 5ाता है। वह भावना से ऊपर उठकर स्वच्छ बौजि»क धरात! पर जि5-दगी को सर्मझने की कोलिशश करने !गता है। चन्दर अब भावना से हKकर जि5-दगी को सर्मझने की कोलिशश करने !गा र्था। वह अब भावना से डरता र्था। भावना के तूफान र्में इतनी ठोकरें खाकर अब उसने बुजि» की शरण !ी र्थी और एक प!ायनवादी की तरह भावना से भाग कर बुजि» की एकांकिगता र्में लिछप गया र्था। कभी भावुकता से नफरत करता र्था, अब वह भावना से ही नफरत करने !गा र्था। इस नफरत का भोग सुधा और किबनती दोनों को ही भुगतना पड़ा। सुधा को उसने एक भी खत नहीं लि!खा और किबनती से एक दिदन भी ठीक से बातें नहीं की।

5ब भावना और सौन्दय� के उपासक को बुजि» और वास्तकिवकता की ठेस !गती है तब वह सहसा कKुता और वं्यग्य से उब! उठता है। इस वक्त चन्दर का र्मन भी कुछ ऐसा ही हो गया र्था। 5ाने किकतने 5हरी!े काँKे उसकी वाणी र्में उग आये रे्थ, जि5न्हें वह कभी भी किकसी को चुभाने से बा5 नहीं आता र्था। एक किनर्म�र्म किनरपेक्षता से वह अपने 5ीवन की सीर्मा र्में आने वा!े हर व्यलिक्त को कKुता के 5हर से अक्षिभकिषक्त करता च!ता र्था। सुधा को वह कुछ लि!ख नहीं सकता र्था। पम्र्मी यहाँ र्थी नहीं, !े-देकर बची अके!ी किबनती जि5से इन 5हरी!े वाणों का लिशकार होना पड़ रहा र्था। लिसतम्बर बीत रहा र्था और अब वह गाँव 5ाने की तैयारी कर रही र्थी। डॉक्Kर साहब ने दिदसम्बर तक की छुट्टी !ी र्थी और वे भी गाँव 5ाने वा!े रे्थ। शादी के र्महीने-भर पह!े से उनका 5ाना 5रूरी र्था।

चन्दर खुश नहीं र्था, नारा5 नहीं र्था। एक स्वग�भ्रष्ट देवदूत जि5से किपशाचों ने खरीद लि!या हो, उन्हीं की तरह वह जि5-दगी के सुख-दु:ख को ठोकर र्मारता हुआ किकनारे खड़ा सभी पर हँस रहा र्था। खास तौर से नारी पर उसके र्मन का सारा 5हर किबखरने !गा र्था और उसर्में उसे यह भी अकसर ध्यान नहीं रहता र्था किक वह किकससे क्या बात कर रहा है। किबनती सबकुछ चुपचाप सहती 5ा रही र्थी, किबनती को सुधा की तरह रोना नहीं आता र्था; न उसकी चन्दर इतनी परवा ही करता र्था जि5तनी सुधा की। दोनों र्में बातें भी बहुत कर्म होती र्थीं, !ेकिकन किबनती र्मन-ही-र्मन दु:खी र्थी। वह क्या करे! एक दिदन उसने चन्दर के पैर पकड़कर बहुत अनुनय से कहा-''आपको यह क्या होता 5ा रहा है? अगर आप ऐसे ही करेंगे तो हर्म दीदी को लि!ख देंगे!''

चन्दर बड़ी भयावनी हँसी हँसा-''दीदी को क्या लि!खोगी? र्मुझे अब उसकी परवा नहीं। वह दिदन गये, किबनती! बहुत बन लि!ये हर्म।''

''हाँ, चन्दर बाबू, आप !ड़की होते तो सर्मझते!''

''सब सर्मझता हूँ र्मैं, कैसा दोहरा नाKक खे!ती हैं !ड़किकयाँ! इधर अपराध करना, उधर र्मुखकिबरी करना।''

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किबनती चुप हो गयी। एक दिदन 5ब चन्दर कॉ!े5 से आया तो उसके लिसर र्में दद� हो रहा र्था। वह आकर चुपचाप !ेK गया। किबनती ने आकर पूछा तो बो!ा, ''क्यों, क्यों र्मैं बत!ाऊँ किक क्या है, तुर्म धिर्मKा दोगी?''

किबनती ने चन्दर के लिसर पर हार्थ रखकर कहा, ''चन्दर, तुम्हें क्या होता 5ा रहा है? देखो कैसी हकिड्डयाँ किनक! आयी हैं इधर। इस तरह अपने को धिर्मKाने से क्या फायदा?''

''धिर्मKाने से?'' चन्दर उठकर बैठ गया-''र्मैं धिर्मKाऊँगा अपने को !ड़किकयों के लि!ए? लिछह, तुर्म !ोग अपने को क्या सर्मझती हो? क्या है तुर्म !ोगों र्में लिसवा एक नशी!ी र्मांस!ता के? इसके लि!ए र्मैं अपने को धिर्मKाऊँगा?''

किबनती ने चन्दर को किफर लि!Kा दिदया।

''इस तरह अपने को धोखा देने से क्या फायदा, चन्दर बाबू? र्मैं 5ानती हूँ दीदी के न होने से आपकी जि5-दगी र्में किकतना बड़ा अभाव है। !ेकिकन...''

''दीदी के न होने पर? क्या र्मत!ब है तुम्हारा?''

''र्मेरा र्मत!ब आप खूब सर्मझते हैं। र्मैं 5ानती हूँ, दीदी होतीं तो आप इस तरह न धिर्मKाते अपने को। र्मैं 5ानती हूँ दीदी के लि!ए आपके र्मन र्में क्या र्था?'' किबनती ने लिसर र्में ते! डा!ते हुए कहा।

''दीदी के लि!ए क्या र्था?'' चन्दर हँसा, बड़ी किवलिचv हँसी-''दीदी के लि!ए र्मेरे र्मन र्में एक आदश�वादी भावुकता र्थी 5ो अधकचरे र्मन की उप5 र्थी, एक ऐसी भावना र्थी जि5सके औलिचत्य पर ही र्मुझे किवश्वास नहीं, वह एक सनक र्थी।''

''सनक!'' किबनती र्थोड़ी देर तक चुपचाप लिसर र्में ते! ठोंकती रही। किफर बो!ी, ''अपनी साँसों से बनायी देवर्मूर्तित- पर इस तरह !ात तो न र्मारिरए। आपको शोभा नहीं देता!'' किबनती की आँख र्में आँसू आ गये, ''किकतनी अभागी हैं दीदी!''

चन्दर एकKक किबनती की ओर देखता रहा और किफर बो!ा, ''र्मैं अब पाग! हो 5ाऊँगा, किबनती!''

''र्मैं आपको पाग! नहीं होने दँूगी। र्मैं आपको छोडक़र नहीं 5ाऊँगी।''

''र्मुझे छोडक़र नहीं 5ाओगी!'' चन्दर किफर हँसा-''5ाइए आप! अब आप श्रीर्मती किबनती होने वा!ी हैं। आपका ब्याह होगा। र्मैं पाग! हो रहा हूँ, इससे क्या हुआ? इन सब बातों से दुकिनया नहीं रुकती, शहनाइयाँ नहीं बंद होतीं, बन्दनवार नहीं तोडे़ 5ाते!''

''र्मैं नहीं 5ाऊँगी चन्दर अभी, तुर्म र्मुझे नहीं 5ानते। तुम्हारी इतनी ताड़ना और वं्यग्य सहकर भी तुम्हारे पास रही, अब दुकिनया-भर की !ांछना और वं्यग्य सहकर तुम्हारे पास रह सकती हूँ।'' किबनती ने तीखे स्वर र्में कहा।

''क्यों? तुम्हारे रहने से क्या होगा? तुर्म सुधा नहीं हो। तुर्म सुधा नहीं हो सकती! 5ो सुधा है र्मेरी जि5-दगी र्में, वह कोई नहीं हो सकता। सर्मझीं? और र्मुझ पर एहसान र्मत 5ताओ! र्मैं र्मर 5ाऊँ, र्मैं पाग! हो 5ाऊँ, किकसी का साझा! क्यों तुर्म र्मुझ पर इतना अधिधकार सर्मझने !गीं-अपनी सेवा के ब! पर? र्मैं इसकी रत्ती-भर परवा नहीं करता। 5ाओ, यहाँ से!'' और उसने किबनती को धके! दिदया, ते! की शीशी उठाकर बाहर फें क दी।

किबनती रोती हुई च!ी गयी। चन्दर उठा और कपडे़ पहनकर बाहर च! दिदया, ''हूँ, ये !ड़किकयाँ सर्मझती हैं अहसान कर रही हैं र्मुझ पर!''

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किबनती के 5ाने की तैयारी हो गयी र्थी और लि!या-दिदया 5ाने वा!ा सारा सार्मान पैक हो रहा र्था। डॉक्Kर साहब भी र्महीने-भर की छुट्ट !ेकर सार्थ 5ा रहे रे्थ। उस दिदन की घKना के बाद किफर किबनती चन्दर से किबल्कु! ही नहीं बो!ी र्थी। चन्दर भी कभी नहीं बो!ा।

ये !ोग कार पर 5ाने वा!े रे्थ। सारा सार्मान पीछे-आगे !ादा 5ाने वा!ा र्था। डॉक्Kर साहब कार !ेकर बा5ार गये रे्थ। चन्दर उनका होल्डॉ! सँभा! रहा र्था। किबनती आयी और बो!ी, ''र्मैं आपसे बातें कर सकती हूँ?''

''हाँ, हाँ! तुर्म उस दिदन की बात का बुरा र्मान गयीं! अर्मूर्मन !ड़किकयाँ सच्ची बात का बुरा र्मान 5ाती हैं! बो!ो, क्या बात है?'' चन्दर ने इस तरह कहा 5ैसे कुछ हुआ ही न हो।

किबनती की आँख र्में आँसू रे्थ, ''चन्दर, आ5 र्मैं 5ा रही हूँ!''

''हाँ, यह तो र्मा!ूर्म है, उसी का इन्त5ार्म कर रहा हूँ!''

''पता नहीं र्मैंने क्या अपराध किकया चन्दर किक तुम्हारा स्नेह खो बैठी। ऐसा ही र्था चन्दर तो आते ही आते इतना स्नेह तुर्मने दिदया ही क्यों र्था?...र्मैं तुर्मसे कभी भी दीदी का स्थान नहीं र्माँग रही र्थी...तुर्मने र्मुझे ग!त क्यों सर्मझा?''

''नहीं, किबनती! र्मैं अब स्नेह इत्यादिद पसन्द नहीं करता हूँ। पूण� परिरपक्व र्मनुष्य हूँ और ये सब भावनाए ँअब अच्छी नहीं !गतीं र्मुझे। स्नेह वगैरह की दुकिनया अब र्मुझे बड़ी उर्थ!ी !गती है!''

''तभी चन्दर! इतने दिदन र्मैंने रोते-रोते किबताये। तुर्मने एक बार पूछा भी नहीं। जि5-दगी र्में लिसवा दीदी और तुम्हारे, कौन र्था? तुर्मने र्मेरे आँसुओं की परवा नहीं की। तुम्हें कसूर नहीं देती; कसूर र्मेरा ही होगा, चन्दर!''

''नहीं, कसूर की बात नहीं किबनती! औरतों के रोने की कहाँ तक परवा की 5ाए, वे कुत्ते, किबल्!ी तक के लि!ए उतने ही दु:ख से रोती हैं।''

''खैर, चन्दर! ईश्वर करे तुर्म 5ीवन-भर इतने र्म5बूत रहो। र्मैंने अगर कभी तुम्हारे लि!ए कुछ किकया, वैसे किकया भी क्या, !ेकिकन अगर कुछ भी किकया तो लिसफ� इसलि!ए किक र्मेरे र्मन की 5ाने किकतनी र्मर्मता तुर्मने 5ीत !ी, या र्मैं हरे्मशा इस बात के लि!ए पाग! रहती र्थी किक तुम्हें 5रा-सी भी ठेस न पहुँचे, र्मैं क्या कर डा!ँू तुम्हारे लि!ए। तुर्मने, तुम्हारे व्यलिक्तत्व ने र्मुझे 5ादू र्में बाँध लि!या र्था। तुर्म र्मुझसे कुछ भी करने के लि!ए कहते तो र्मैं किहचक नहीं सकती र्थी-!ेकिकन खैर, तुम्हें र्मेरी 5रूरत नहीं र्थी। तुर्म पर भार हो उठती र्थी र्मैं। र्मैंने अपने को खींच लि!या, अब कभी तुम्हारे 5ीवन र्में आने का साहस नहीं करँूगी। यह भी कैसे कहूँ किक कभी तुम्हें र्मेरी 5रूरत पडे़गी। र्मैं 5ानती हूँ किक तुम्हारे तूफानी व्यलिक्तत्व के सार्मने र्मैं बहुत तुच्छ हूँ, कितनके से भी तुच्छ। !ेकिकन आ5 5ा रही हूँ, अब कभी यहाँ आने का साहस न करँूगी। !ेकिकन क्या च!ते वक्त आशीवा�द भी न दोगे? कुछ आगे का रास्ता न बताओगे?''

किबनती ने झुककर चन्दर के पैर पकड़ लि!ये और लिससक-लिससककर रोने !गी। चन्दर ने किबनती को उठाया और पास की कुसr पर किबठा दिदया और लिसर पर हार्थ रखकर बो!ा, ''आशीवा�द देवताओं से र्माँगा 5ाता है। र्मैं अब पे्रत हो चुका हूँ, किबनती!''

चन्दर अब एकान्त चाहता र्था और वह चन्दर को धिर्म! गया र्था। पूरा घर खा!ी, एक र्महराजि5न, र्मा!ी और नौकर। और सारे घर र्में लिसफ� स�ाKा और उस स�ाKे का पे्रत चन्दर। चन्दर चाहे जि5तना KूK 5ाये, चाहे जि5तना किबखर 5ाये, !ेकिकन चन्दर हारने वा!ा नहीं र्था। वह हार भी 5ाये !ेकिकन हार स्वीकार करना उसे नहीं आता र्था। उसके र्मन र्में अब स�ाKा र्था, अपने र्मन के पू5ागृह र्में स्थाकिपत सुधा की पावन, प्रां5! देवर्मूर्तित- को उसने कठोरता से उठाकर बाहर फें क दिदया र्था। र्मजिन्दर की र्मूर्तित-र्मयी पकिवvता, किबनती को अपर्माकिनत कर दिदया र्था और र्मजिन्दर के पू5ा-उपकरणों को, अपने 5ीवन के आदश� और र्मानदंडों को उसने चूर-चूर कर डा!ा र्था, और बुतलिशकन किव5ेता की तरह कू्ररता से हँसते हुए र्मजिन्दर के भग्नावशेषों पर कदर्म रखकर च! रहा र्था। उसका र्मन KूKा हुआ खँडहर र्था

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जि5सके उ5ाड़, बेछत कर्मरों र्में चर्मगादड़ बसेरा करते हैं और जि5सके ध्वंसावशेषों पर किगरकिगK पहरा देते हैं। काश किक कोई उन खँडहरों की ईंKें उ!Kकर देखता तो हर पत्थर के नीचे पू5ा-र्मन्v लिससकते हुए धिर्म!ते, हर धू! की पत� र्में घंदिKयों की बेहोश ध्वकिनयाँ धिर्म!तीं, हर कदर्म पर र्मुरझाये हुए पू5ा के फू! धिर्म!ते और हर शार्म-सवेरे भग्न देवर्मूर्तित- का करुण रुदन दीवारों पर लिसर पKकता हुआ धिर्म!ता...!ेकिकन चन्दर ऐसा-वैसा दुश्र्मन नहीं र्था। उसने र्मजिन्दर को चूर-चूर कर उस पर अपने गव� का पहरा !गा दिदया र्था किक कभी भी कोई उस पर खँडहर के अवशेष कुरेदकर पुराने किवश्वास, पुरानी अनुभूकितयाँ, पुरानी पू5ाए ँकिफर से न 5गा दे। बुतलिशकन तो र्मजिन्दर तोडऩे के बाद सारा शहर 5!ा देता है, ताकिक शहर वा!े किफर उस र्मजिन्दर को न बना पाए-ँऐसा र्था चन्दर। अपने र्मन को सुनसान कर !ेने के बाद उसने अपनी जि5-दगी, अपना रहन-सहन, अपना र्मकान और अपना वातावरण भी सुनसान कर लि!या र्था। अगहन आ गया र्था, !ेकिकन उसके चारों ओर 5ेठ की दुपहरी से भी भयानक स�ाKा र्था।

किबनती 5ब से गयी उसने कोई खत नहीं भे5ा र्था। सुधा के भी पv बन्द हो चुके रे्थ। पम्र्मी के दो खत आये। पम्र्मी आ5क! दिदल्!ी घूर्म रही र्थी, !ेकिकन चन्दर ने पम्र्मी को कोई 5वाब नहीं दिदया। अके!ा...अके!ा...किबल्कु! अके!ा...सहारा र्मरुस्थ! की नीरस भयावनी शास्टिन्त और वह भी 5ब तक किक काँपता हुआ !ा! सूर5 बा!ू के क्षिक्षकित5 पर अपनी आखिखरी साँसें तोड़ रहा हो और बा!ू के Kी!ों की अधर्मरी छायाए ँ!हरदार बा!ू पर धीरे-धीरे रेंग रही हों।

किबनती के ब्याह को पन्द्रह दिदन रह गये रे्थ किक सुधा का एक पv आया...

'' र्मेरे देवता, र्मेरे नयन, र्मेरे पंर्थ, र्मेरे प्रकाश!

भाग 3 पीछे    

आ5 किकतने दिदनों बाद तुम्हें खत लि!खने का र्मौका धिर्म! रहा है। सोचा र्था, किबनती के ब्याह के र्महीने-भर पह!े गाँव आ 5ाऊँगी तो एक दिदन के लि!ए तुम्हें आकर देख 5ाऊँगी। !ेकिकन इरादे इरादे हैं और जि5-दगी जि5-दगी। अब सुधा अपने 5ेठ और सास के !ड़के की गु!ार्म है। ब्याह के दूसरे दिदन ही च!ा 5ाना होगा। तुम्हें यहाँ बु!ा !ेती, !ेकिकन यहाँ बन्धन और परदा तो ससुरा! से भी बदतर है।

र्मैंने किबनती से तुम्हारे बारे र्में बहुत पूछा। वह कुछ नहीं बतायी। पापा से इतना र्मा!ूर्म हुआ किक तुम्हारी र्थीलिसस छपने गयी है। कन्वोकेशन न5दीक है। तुम्हें याद है, वायदा र्था किक तुम्हारा गाउन पहनकर र्मैं फोKो खिख-चवाऊँगी। वह दिदन याद करती हूँ तो 5ाने कैसा होने !गता है! एक कन्वोकेशन की फोKो खिख-चवाकर 5रूर भे5ना।

क्या तुर्मने किबनती को कोई दु:ख दिदया र्था? किबनती हरदर्म तुम्हारी बात पर आँसू भर !ाती है। र्मैंने तुम्हारे भरोसे किबनती को वहाँ छोड़ा र्था। र्मैं उससे दूर, र्माँ का सुख उसे धिर्म!ा नहीं, किपता र्मर गये। क्या तुर्म उसे इतना भी प्यार नहीं दे सकते? र्मैंने तुम्हें बार-बार सहे5 दिदया र्था। र्मेरी तन्दुरुस्ती अब कुछ-कुछ ठीक है, !ेकिकन 5ाने कैसी है। कभी-कभी लिसर र्में दद� होने !गता है। 5ी धिर्मच!ाने !गता है। आ5क! वह बहुत ध्यान रखते हैं। !ेकिकन वे र्मुझको सर्मझ नहीं पाये। सारे सुख और आ5ादी के बीच र्मैं किकतनी असन्तुष्ट हूँ। र्मैं किकतनी परेशान हूँ। !गता है ह5ारों तूफान हरे्मशा नसों र्में घहराया करते हैं।

चन्दर, एक बात कहूँ अगर बुरा न र्मानो तो। आ5 शादी के छह र्महीने बाद भी र्मैं यही कहूँगी चन्दर किक तुर्मने अच्छा नहीं किकया। र्मेरी आत्र्मा लिसफ� तुम्हारे लि!ए बनी र्थी, उसके रेशे र्में वे तत्व हैं 5ो तुम्हारी ही पू5ा के लि!ए रे्थ। तुर्मने र्मुझे दूर फें क दिदया, !ेकिकन इस दूरी के अँधेरे र्में भी 5न्र्म-5न्र्मान्तर तक भKकती हुई लिसफ� तुम्हीं को wँूwँूगी, इतना याद रखना और इस बार अगर तुर्म धिर्म! गये तो जि5-दगी की कोई ताकत, कोई आदश�, कोई लिस»ान्त, कोई प्रवंचना र्मुझे तुर्मसे अ!ग नहीं कर सकेगी। !ेकिकन र्मा!ूर्म नहीं पुन5�न्र्म सच है या झूठ! अगर झूठ है तो सोचो चन्दर किक इस अनादिदका! के प्रवाह र्में लिसफ� एक बार...लिसफ� एक बार र्मैंने अपनी आत्र्मा का सत्य wँूढ़ पाया र्था और अब

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अनन्तका! के लि!ए उसे खो दिदया। अगर पुन5�न्र्म नहीं है तो बताओ र्मेरे देवता, क्या होगा? करोड़ों सृधिष्टयाँ होंगी, प्र!य होंगे और र्मैं अतृप्त लिचनगारी की तरह असीर्म आकाश र्में तड़पती हुई अँधेरे की हर परत से Kकराती रहूँगी, न 5ाने कब तक के लि!ए। ज्यों-ज्यों दूरी बढ़ती 5ा रही है, त्यों-त्यों पू5ा की प्यास बढ़ती 5ा रही है! काश र्मैं लिसतारों के फू! और सूर5 की आरती से तुम्हारी पू5ा कर पाती! !ेकिकन 5ानते हो, र्मुझे क्या करना पड़ रहा है? र्मेरे छोKे भती5े नी!ू ने पहाड़ी चूहे पा!े हैं। उनके पिप-5डे़ के अन्दर एक पकिहया !गा है और ऊपर घंदिKयाँ !गी हैं। अगर कोई अभागा चूहा उस चक्र र्में उ!झ 5ाता है तो ज्यों-ज्यों छूKने के लि!ए वह पैर च!ाता है त्यों-त्यों चक्र घूर्मने !गता है; घंदिKयाँ ब5ने !गती हैं। नी!ू बहुत खुश होता है !ेकिकन चूहा र्थककर बेदर्म होकर नीचे किगर पड़ता है। कुछ ऐसे ही चक्र र्में फँस गयी हूँ, चन्दर! सन्तोष लिसफ� इतना है किक घंदिKयाँ ब5ती हैं तो शायद तुर्म उन्हें पू5ा के र्मजिन्दर की घंदिKयाँ सर्मझते होगे। !ेकिकन खैर! लिसफ� इतनी प्रार्थ�ना है चन्दर! किक अब र्थककर 5ल्दी ही किगर 5ाऊँ!

र्मेरे भाग्य! खत का 5वाब 5ल्दी ही देना। पम्र्मी अभी आयी या नहीं?

तुम्हारी, 5न्र्म-5न्र्म की प्यासी-सुधा।''

चन्दर ने खत पढ़ा और फौरन लि!खा-

''किप्रय सुधा,

तुम्हारी पv बहुत दिदनों के बाद धिर्म!ा। तुम्हारी भाषा वहाँ 5ाकर बहुत किनखर गयी है। र्मैं तो सर्मझता हूँ किक अगर खत कहीं छुपा दिदया 5ाये तो !ोग इसे किकसी रोर्मांदिKक उपन्यास का अंश सर्मझें, क्योंकिक उपन्यासों के ही पाv ऐसे खत लि!खते हैं, वास्तकिवक 5ीवन के नहीं।

खैर, र्मैं अच्छा हूँ। हरेक आदर्मी जि5-दगी से सर्मझौता कर !ेता है किकन्तु र्मैंने जि5-दगी से सर्मप�ण कराकर उसके हलिर्थयार रख लि!ये हैं। अब किक!े के बाहर से आनेवा!ी आवा5ें अच्छी नहीं !गतीं, न खतों के पाने की उत्सुकता, न 5वाब लि!खने का आग्रह। अगर र्मुझे अके!ा छोड़ दो तो बहुत अच्छा होगा। र्मैं किवनती करता हूँ, र्मुझे खत र्मत लि!खना-आ5 किवनती करता हूँ क्योंकिक आज्ञा देने का अब साहस भी नहीं, अधिधकार भी नहीं, व्यलिक्तत्व भी नहीं। खत तुम्हारा तुम्हें भे5 रहा हूँ।

कभी जि5-दगी र्में कोई 5रूरत आ पडे़ तो 5रूर याद करना-बस, इसके अ!ावा कुछ नहीं।

अपने र्में सन्तुष्ट-चन्द्रकुर्मार कपूर।''

उसके बाद किफर वही सुनसान जि5-दगी का wरा�। खँडहर के स�ाKे र्में भू!कर आयी हुई बाँसुरी की आवा5 की तरह सुधा का पv, सुधा का ध्यान आया और च!ा गया। खँडहर का स�ाKा, स�ाKे के उल्!ू, किगरकिगK और पत्थर काँपे और किफर र्मुस्तैदी से अपनी 5गह पर 5र्म गये और उसके बाद किफर वही उदास स�ाKा, KूKता हुआ-सा अके!ापन और र्मूर्च्छिच्छ-त दोपहरी के फू!-सा चन्दर...

नवम्बर का एक खुशनुर्मा किवहान; सोने के काँपते तारे सुबह की ठJडी हवाओं र्में उ!झे हुए रे्थ। आकाश एक छोKे बच्चे के नी!र्म नयनों की तरह भो!ा और स्वच्छ !ग रहा र्था। क्यारिरयाँ शरद के फू!ों से भर गयी र्थीं और एक नयी ता5गी र्मौसर्म और र्मन र्में पु!क उठी र्थी। चन्दर अपना पुराना कत्थई स्वेKर और पी!े रंग के पश्र्मीने का !म्बा कोK पहने !ॉन पर Kह! रहा र्था। छोKे-छोKे किपल्!े दूब पर किक!ो! कर रहे रे्थ। सहसा एक कार आकर रुकी और पम्र्मी उसर्में से कूद पड़ी और क्वाँरी किहरणी की तरह दौडक़र चन्दर के पास पहुँच गयी-''ह!ो र्माई ब्वॉय, र्मैं आ गयी!''

चन्दर कुछ नहीं बो!ा, ''आओ, ड्राइंगरूर्म र्में बैठो!'' उसने उसी र्मुदा�-सी आवा5 र्में कहा। उसे पम्र्मी के आने की कोई प्रस�ता नहीं र्थी। पम्र्मी उसके उदास चेहरे को देखती रही, किफर उसके कन्धे पर हार्थ रखकर बो!ी, ''क्यों कपूर, कुछ बीर्मार हो क्या?''

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''नहीं तो, आ5क! र्मुझे धिर्म!ना-5ु!ना अच्छा नहीं !गता। अके!ा घर भी है!'' उसने उसी फीकी आवा5 र्में कहा।

''क्यों, धिर्मस सुधा कहाँ है? और डॉक्Kर शुक्!ा!''

''वे !ोग धिर्मस किबनती की शादी र्में गये हैं।''

''अच्छा, उसकी शादी भी हो गयी, डैर्म इK। 5ैसे ये !ोग पाग! हो गये हैं, बK\, सुधा, किबनती!...क्यों, धिर्म!ते-5ु!ते क्यों नहीं तुर्म?''

''यों ही, र्मन नहीं होता।''

''सर्मझ गयी, 5ो र्मुझे तीन-चार सा! पह!े हुआ र्था, कुछ किनराशा हुई है तुम्हें!'' पम्र्मी बो!ी।

''नहीं, ऐसी तो कोई बात नहीं।''

''कहना र्मत अपनी 5बान से, स्वीकार कर !ेने से पुरुष का गव� KूK 5ाता है।...यही तो तुम्हारे चरिरv र्में र्मुझे प्यारा !गता है। खैर, यह ठीक हो 5ाएगा...! र्मैं तुम्हें ऐसे नहीं रहने दँूगी।''

''र्मसूरी र्में इतने दिदन क्या करती रहीं?'' चन्दर ने पूछा।

''योग-साधन!'' पम्र्मी ने हँसकर कहा, ''5ानते हो, आ5क! र्मसूरी र्में बफ� पड़ रही है। र्मैंने कभी बफ� के पहाड़ नहीं देखे रे्थ। अँगरे5ी उपन्यासों र्में बफ� पड़ने का जि5क्र सुना बहुत र्था। सोचा, देखती आऊँ। क्या कपूर! तुर्म खत क्यों नहीं लि!खते रे्थ?''

''र्मन नहीं होता र्था। अच्छा बK\ की शादी कब होगी?'' चन्दर ने बात Kा!ने के लि!ए कहा।

''हो भी गयी। र्मैं आ भी नहीं पायी किक सुनते हैं 5ेनी एक दिदन बK\ को पकड़क़र खींच !े गयी और पादरी से बो!ी, 'अभी शादी करा दो।' उसने शादी करा दी। !ौKकर 5ेनी ने बK\ का लिशकारी सूK फाड़ डा!ा और अच्छा-सा सूK पहना दिदया। बडे़ किवलिचv हैं दोनों। एक दिदन सद\ के वक्त बK\ स्वेKर उतारकर 5ेनी के कर्मरे र्में गया तो र्मारे गुस्से के 5ेनी ने लिसवा पत!ून के सारे कपडे़ उतारकर बK\ को कर्मरे से बाहर किनका! दिदया। र्मैं तो 5ब से आयी हूँ, रो5 नाKक देखती हूँ। हाँ, देखो यह तो र्मैं भू! ही गयी र्थी...'' और उसने अपनी 5ेब से पीत! की एक छोKी-सी र्मूर्तित- किनका!कर र्मे5 पर रखी-''एक भोदिKया औरत इसे बेच रही र्थी। र्मैंने इसे र्माँगा तो वह बो!ी-यह लिसफ� र्मद� के लि!ए है।' र्मैंने पूछा, 'क्यों?' तो बो!ी-'इसे अगर र्मद� पहन !े तो उस पर किकसी औरत का 5ादू नहीं च!ता। वह औरत या तो र्मर 5ाती है या भाग 5ाती है या उसका ब्याह किकसी दूसरे से हो 5ाता है।' तो र्मैंने सोचा, तुम्हारे लि!ए !ेती च!ँू।''

चन्दर ने देखा वह अव!ोकिकतेश्वर की र्महायानी र्मूर्तित- र्थी। उसने हँसकर उसे !े लि!या किफर बो!ा, ''और क्या !ायी अपने लि!ए?''

''अपने लि!ए एक नया रहस्य !ायी हूँ।''

''क्या?''

''इधर देखो, र्मेरी ओर, र्मैं सुन्दर !गती हूँ?''

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चन्दर ने देखा। पम्र्मी अठारह सा! की !ड़की-सी !गने !गी है। चेहरे के कोने भी 5ैसे गो! हो गये रे्थ और र्मुँह पर बहुत ही भो!ापन आ गया र्था, आँखों र्में क्वाँरापन आ गया र्था, चेहरे पर सोना और केसर, चम्पा, हरसिस-गार घु!-धिर्म! गये रे्थ।

''सचर्मुच पम्र्मी, !गता है 5ैसे कौर्माय� !ौK आया है तुर्म पर तो! परिरयों के कंु5 से अपना बचपन किफर चुरा !ायी क्या?''

''नहीं कपूर, यही तो रहस्य !ायी हूँ, हरे्मशा सुन्दर बने रहने का और परिरयों के कंु5ों से नहीं, गुनाहों के कंु5ों से। र्मैंने किहर्मा!य की छाँह र्में एक नया संगीत सुना कपूर, र्मांस!ता का संगीत। र्मसूरी के सर्मा5 र्में घु!-धिर्म! गयी और र्मादक अनुभूकितयाँ बKोरती रही-किबना किकसी पश्चात्ताप के और र्मैंने देखा किक दिदनों-दिदन किनखरती 5ा रही हूँ। कपूर, सेक्स इतना बुरा नहीं जि5तना र्मैं सर्मझती र्थी। तुम्हारी क्या राय है?''

''हाँ, र्मैं देख रहा हूँ, सेक्स !ोगों को उतना बुरा नहीं !गता, जि5तना र्मैं सर्मझता र्था।''

''नहीं चन्दर, लिसफ� इतना ही नहीं, अच्छा र्मान !ो 5ैसे तुर्म आ5क! उदास हो और तुम्हारा लिसर इस तरह अपनी गोद र्में रख !ँू तो कुछ सन्तोष नहीं होगा तुम्हें?'' और पम्र्मी ने चन्दर का लिसर सचर्मुच अपने श्वासान्दोलि!त वक्ष से लिचपका लि!या। चन्दर झल्!ाकर अ!ग हK गया। कैसी अ5ब !ड़की है! र्थोड़ी देर चुप बैठा रहा, किफर बो!ा-

''क्यों पम्र्मी, तुर्म एक !ड़की हो, र्मैं तुम्हीं से पूछता हूँ-क्या !ड़किकयों के पे्रर्म र्में सेक्स अकिनवाय� है?''

''हाँ।'' पम्र्मी ने स्पष्ट स्वरों र्में 5ोर देकर कहा।

''!ेकिकन पम्र्मी, र्मैं तुर्मसे नार्म तो नहीं बताऊँगा !ेकिकन एक !ड़की है जि5सको र्मैंने प्यार किकया है !ेकिकन शायद वह र्मुझसे शादी नहीं कर पाएगी। र्मेरे उसके कोई शारीरिरक सम्बन्ध भी नहीं हैं। क्या तुर्म इसे प्यार नहीं कहोगी?''

''कुछ दिदन बाद 5ब उसकी शादी हो 5ाये तब पूछना, तुम्हारा सारा पे्रर्म र्मर 5ाएगा। पह!े र्मैं भी तुर्मसे कहती र्थी-पुरुष और नारी के सम्बन्धों र्में एक अन्तर 5रूरी है। अब !गता है यह सब एक भु!ावा है।'' अपने से पम्र्मी ने कहा।

''!ेकिकन दूसरी बात तो सुनो, उसी की एक सखी है। वह 5ानती है किक र्मैं उसकी सखी को प्यार करता हूँ, उसे नहीं कर सकता। कहीं सेक्स की तृस्टिप्त का सवा! नहीं किफर भी वह र्मुझे प्यार करती है। इसे तुर्म क्या कहोगी?'' चन्दर ने पूछा।

''यह और दूसरे wंग की परिरण्डिस्थकित है। देखो कपूर, तुर्मने किहप्नोदिKज्र्म के बारे र्में नहीं पढ़ा। ऐसा होता है किक अगर कोई किहप्नोदिKस्K एक !ड़की को किहप्नोKाइ5 कर रहा है और बग! र्में एक दूसरी !ड़की बैठी है 5ो चुपचाप यह देख रही है तो वातावरण के प्रभाव से अकसर ऐसा देखा 5ाता है किक वह भी किहप्नोKाइ5 हो 5ाती है, !ेकिकन वह एक क्षक्षिणक र्मानलिसक र्मूच्छा� होती है 5ो KूK 5ाती है।'' पम्र्मी ने कहा।

चन्दर को !गा 5ैसे बहुत कुछ सु!झ गया। एक क्षण र्में उसके र्मन का बहुत-सा भार उतर गया।

''पम्र्मी, र्मुझे तुम्हीं एक !ड़की धिर्म!ी 5ो साफ बातें करती हो और एक शु» तक� और बुजि» के धरात! से। बस, र्मैं आ5क! बुजि» का उपासक हूँ, भगवान से लिचढ़ है।''

''बुजि» और शरीर बस यही दो आदर्मी के र्मू! तत्व हैं। हृदय तो दोनों के अन्त:संघष� की उ!झन का नार्म है।'' पम्र्मी ने कहा और सहसा घड़ी देखते हुए बो!ी, ''नौ ब5 रहे हैं, च!ो साढे़ नौ से र्मैदिKनी है। आओ, देख आए!ँ''

''र्मुझे कॉ!े5 5ाना है, र्मैं 5ाऊँगा नहीं कहीं!''

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''आ5 इतवार है, प्रोफेसर कपूर?'' पम्र्मी चन्दर को उठाकर बो!ी, ''र्मैं तुम्हें उदास नहीं होने दँूगी, र्मेरे र्मीठे सपने! तुर्मने भी र्मुझे इस उदासी के इन्द्र5ा! से छुड़ाया र्था, याद है न?'' और चन्दर के र्मारे्थ पर अपने गरर्म र्मु!ायर्म होठ रख दिदये।

र्मारे्थ पर पम्र्मी के होठों की गु!ाबी आग चन्दर की नसों को गुदगुदा गयी। वह क्षण-भर के लि!ए अपने को भू! गया...पम्र्मी के रेशर्मी फ्रॉक के गुदगुदाते हुए स्पश�, उसके वक्ष की अ!भ्य गरर्माई और उसके स्पश� के 5ादू र्में खो गया। उसके अंग-अंग र्में सुबह की शबनर्म w!कने !गी। पम्र्मी उसके बा!ों को अँगुलि!यों से सु!झाती रही। किफर कपूर के गा! र्थपर्थपाकर बो!ी, ''च!ो!'' कपूर 5ाकर बैठ गया। ''तुर्म ड्राइव करो।'' पम्र्मी बो!ी। चन्दर ड्राइव करने !गा और पम्र्मी कभी उसके कॉ!र, कभी उसके बा!, कभी उसके होठों से खे!ती रही।

सात चाँद की रानी ने आखिखर अपनी किनगाहों के 5ादू से स�ाKे के पे्रत को 5ीत लि!या। स्पशÏ के सुकुर्मार रेशर्मी तारों ने नगर की आग को शबनर्म से सींच दिदया। ऊबड़-खाबड़ खंडहर को अंगों के गु!ाब की पाँखुरिरयों से wँक दिदया और पीड़ा के अँधिधयारे को सीकिपया प!कों से झरने वा!ी दूधिधया चाँदनी से धो दिदया। एक संगीत की !य र्थी जि5सर्में स्वग�भ्रष्ट देवता खो गया, संगीत की !य र्थी या उद्दार्म यौवन का भरा हुआ ज्वार र्था 5ो चन्दर को एक र्मासूर्म फू! की तरह बहा !े गया...5हाँ पू5ा-दीप बुझ गया र्था, वहाँ तरुणाई की साँस की इन्द्रधनुषी सर्माँ जिझ!धिर्म!ा उठी र्थी, 5हाँ फू! र्मुरझाकर धू! र्में धिर्म! गये रे्थ वहाँ पुखरा5ी स्पश� के सुकुर्मार हरसिस-गार झर पडे़....आकाश के चाँद के लि!ए जि5-दगी के आँगन र्में र्मच!ता हुआ कन्हैया, र्था!ी के प्रकितकिबम्ब र्में ही भू! गया...

चन्दर की शार्में पम्र्मी के अदम्य रूप की छाँह र्में र्मुस्करा उठीं। ठीक चार ब5े पम्र्मी आती, कार पर चन्दर को !े 5ाती और चन्दर आठ ब5े !ौKता। प्यार के किबना किकतने र्महीने कK गये, पम्र्मी के किबना एक शार्म नहीं बीत पाती, !ेकिकन अब भी चन्दर ने अपने को इतना दूर रखा र्था किक कभी पम्र्मी के होठों के गु!ाबों ने चन्दर के होठों के र्मूँगे से बातें भी नहीं की र्थीं।

एक दिदन रात को 5ब वह !ौKा तो देखा किक अपनी कार आ गयी है। उसका र्मन फू! उठा। 5ैसे कोई अनार्थ भKका हुआ बच्चा अपने संरक्षक की गोद के लि!ए तड़प उठता है, वैसे ही वह किपछ!े डेढ़ र्महीने से डॉक्Kर साहब के लि!ए तरस गया र्था। 5हाँ इस वक्त उसके 5ीवन र्में लिसफ� नशा और नीरसता र्थी, वहीं हृदय के एक कोने र्में लिसफ� एक सुकुर्मार भावना शेष रह गयी र्थी, वह र्थी डॉक्Kर शुक्!ा के प्रकित। वह भावना कृतज्ञता की भावना नहीं र्थी, डॉक्Kर शुक्!ा इतने दूर नहीं रे्थ किक अब वह उनके प्रकित कृतज्ञ हो, इतने बडे़ हो 5ाने पर भी वह 5ब कभी डॉक्Kर को देखता र्था तो !गता र्था 5ैसे कोई नन्हा बच्चा अपने अक्षिभभावक की गोद र्में आकर किनक्षिश्चन्त हो 5ाता हो।

उसने पास आकर देखा, डॉक्Kर साहब बरार्मदे र्में Kह! रहे रे्थ। चन्दर दौडक़र उनके पाँव पर किगर पड़ा। डॉक्Kर साहब ने उसे उठाकर ग!े से !गा लि!या और बडे़ प्यार से उसकी पीठ पर हार्थ फेरते हुए बो!े-''कन्वोकेशन हो गया? किडग्री 5ीत !ाये?''

''5ी हाँ!'' बड़ी किवनम्रता से चन्दर ने कहा।

''बहुत ठीक, अब डी. लि!K्. की तैयारी करो। तुम्हें 5ल्दी ही सेंट्र! गवन�र्मेंK र्में 5ाना है।'' डॉक्Kर साहब बो!े, ''र्मैं तो पंद्रह 5नवरी को दिदल्!ी 5ा रहा हूँ। कर्म-से-कर्म सा! भर के लि!ए?''

''इतनी 5ल्दी; ऑफर कब आया?'' चन्दर ने अचर5 से पूछा।

''र्मैं उन दिदनों दिदल्!ी गया र्था न, तभी ए5ुकेशन धिर्मकिनस्Kर से बात हुई र्थी!'' डॉक्Kर साहब ने चन्दर को देखते हुए कहा, ''अरे, तुर्म कुछ दुब!े हो रहे हो! क्यों र्महराजि5न ने ठीक से कार्म नहीं किकया?''

''नहीं!'' चन्दर हँसकर बो!ा, ''किबनती की शादी ठीक-ठाक हो गयी?''

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''किबनती की शादी!'' डॉक्Kर साहब ने लिसर झुकाये हुए, Kह!ते हुए एक बड़ी फीकी हँसी हँसकर कहा, ''किबनती और तुम्हारी बुआ5ी दोनों अन्दर हैं।''

''अन्दर हैं!'' चन्दर को यह रहस्य कुछ सर्मझ र्में ही नहीं आता र्था। ''इतनी 5ल्दी किबनती !ौK आयी?''

''किबनती गयी ही कहाँ?'' डॉक्Kर साहब ने बहुत चुपचाप लिसर झुका कर कहा और बहुत करुण उदासी उनके र्मुँह पर छा गयी। वह बेचैनी से बरार्मदे र्में Kह!ने !गे। चन्दर का साहस नहीं हुआ कुछ पूछने का। कुछ अर्मंग! अवश्य हुआ है।

वह अन्दर गया। बुआ5ी अपनी कोठरी र्में सार्मान रख रही र्थीं और किबनती बैठी लिस! पर उरद की भीगी दा! पीस रही र्थी! किबनती ने चन्दर को देखा, दा! र्में सने हुए हार्थ 5ोड़कर प्रणार्म किकया, लिसर को आँच! से wँककर चुपचाप दा! पीसने !गी, कुछ बो!ी नहीं। चन्दर ने प्रणार्म किकया और 5ाकर बुआ के पैर छू लि!ये।

''अरे चन्दर है, आओ बेKवा, हर्म तो !ुK गये!'' और बुआ वहीं देहरी पर लिसर र्थार्मकर बैठ गयीं।

''क्या हुआ, बुआ5ी?''

''होता का भइया! 5ौन बदा रहा भाग र्में ओ ही भवा।'' और बुआ अपनी धोती से आँसू पोंछकर बो!ीं, ''ईं हर्मरी छाती पर र्मूँग दरै के लि!ए बदी रही तौन 5र्मी है। भगवान कौनों को ऐसी क!ंकिकनी किबदिKया न दे। तीन भाँवरी के बाद बारात उठ गयी, भइया! हर्मारा तो कु! डूब गया।'' और बुआ5ी ने उच्च स्वर र्में रुदन शुरू किकया। किबनती ने चुपचाप हार्थ धोये और उठकर छत पर च!ी गयी।

''चुप रहो हो। अब रोय-रोय के काहे जि5उ हल्कान करत हउ। गुनवन्ती किबदिKया बाय, हज्जारन आय के किबदिKया के लि!ए गोडे़ किगरिरहैं। अपना एकान्त होई के बैठो!'' र्महराजि5न ने पूड़ी उतारते हुए कहा।

''आखिखर बात क्या हुई, र्महराजि5न?'' चन्दर ने पूछा।

र्महराजि5न ने 5ो बताया उससे पता !गा किक !ड़के वा!े बहुत ही संकीण�र्मना और स्वार्थr रे्थ। पह!े र्मा!ूर्म हुआ किक !ड़काउन्होंने गे्र5ुएK बताया र्था। वह र्था इंKर फे!। किफर दरवा5े पर झगड़ा किकया उन्होंने। डॉक्Kर साहब बहुत किबगड़ गये, अन्त र्में र्मड़वे र्में !ोगों ने देखा किक !ड़के के बायें हार्थ की अँगुलि!याँ गायब हैं। डॉक्Kर साहब इस बात पर किबगडे़ और उन्होंने र्मड़वे से किबनती को उठवा दिदया। किफर बहुत !ड़ाई हुई। !ाठी तक च!ने की नौबत आ गयी। 5ैसे-तैसे झगड़ा किनपKा। तीन भाँवरों के बाद ब्याह KूK गया।

''अब बताओ, भइया!'' सहसा बुआ आँसू पोंछकर गर5 उठीं-''ई इन्हें का हुइ गवा रहा, इनकी र्मकित र्मारी गयी। गुस्से र्में आय के किबनती को उठवाय लि!किहन। अब हर्म एत्ती बड़ी किबदिKया !ै के कहाँ 5ाईं? अब हर्मरी किबरादरी र्में कौन पूछी एका? एत्ता पढ़-लि!ख के इन्हें का सूझा? अरे !ड़की वा!े हरे्मशा दब के च!ै चाहीं।''

''अरे तो क्या आँख बन्द कर !ेते? !ँगडे़-!ू!े !ड़के से कैसे ब्याह कर देते, बुआ! तुर्म भी ग5ब करती हो!'' चन्दर बो!ा।

''भइया, 5ेके भाग र्में !ँगड़ा-!ू!ा बदा होई ओका ओही धिर्म!ी। !ड़किकयन को किनबाह करै चाही किक सक! देखै चाही। अबकिहन ब्याह के बाद कौनों के हार्थ-गोड़ KूK 5ाये तो औरत अपने आदर्मी को छोड़ के ग!ी-ग!ी की हाँड़ी चाKै? हर्म रहे तो 5ब किबनती तीन बरस की हुई गयी, तब उनकी सक! उ5े!े र्में देखा रहा। 5ैसा भाग र्में रहा तैसा होता!''

चन्दर ने किवलिचv हृदय-हीन तक� को सुना और आश्चय� से बुआ की ओर देखने !गा।....बुआ5ी बकती 5ा रही र्थीं-

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''अब कहते हैं किक किबनती को पढ़उबै! ब्याह न करबै! रही-सही इज्जत भी बेच रहे हैं। हर्मार तो किकस्र्मत फूK गयी...'' और वे किफर रोने !गीं, ''पैदा होते काहे नहीं र्मर गयी कु!बोरनी...कु!च्छनी...अभाकिगन!''

सहसा किबनती छत से उतरी और आँगन र्में आकर खड़ी हो गयी, उसकी आँखों र्में आग भरी र्थी-''बस करो, र्माँ5ी!'' वह चीखकर बो!ी, ''बहुत सुन लि!या र्मैंने। अब और बदा�श्त नहीं होता। तुम्हारे कोसने से अब तक नहीं र्मरी, न र्मरँूगी। अब र्मैं सुनँूगी नहीं, र्मैं साफ कह देती हूँ। तुम्हें र्मेरी शक्! अच्छी नहीं !गती तो 5ाओ तीरर्थ-याvा र्में अपना पर!ोक सुधारो! भगवान का भ5न करो। सर्मझी किक नहीं!''

चन्दर ने ताज्जुब से किबनती की ओर देखा। वह वही किबनती है 5ो र्माँ5ी की 5रा-5रा-सी बात से लि!पKकर रोया करती र्थी। किबनती का चेहरा तर्मतर्माया हुआ र्था और गुस्से से बदन काँप रहा र्था। बुआ उछ!कर खड़ी हो गयीं और दुगुनी चीखकर बो!ीं, ''अब बहुत 5बान च!ै !गी है। कौन है तोर 5े के ब! पर ई चर्मक दिदखावत है? हर्म काK के धर देबै, तोके बताय देइत हई। र्मुँहझौंसी! ऐसी न होती तो काहे ई दिदन देखै पड़त। उन्हें तो खाय गयी, हर्महूँ का खाय !ेव!'' अपना र्मुँह पीKकर बुआ बो!ीं।

''तुर्म इतनी र्मीठी नहीं हो र्माँ5ी किक तुम्हें खा !ँू!'' किबनती ने और तड़पकर 5वाब दिदया।

चन्दर स्तब्ध हो गया। यह किबनती पाग! हो गयी है। अपनी र्माँ को क्या कह रही है!

''लिछह, किबनती! पाग! हो गयी हो क्या? च!ो उधर!'' चन्दर ने डाँKकर कहा।

''चुप रहो, चन्दर! हर्म भी आदर्मी हैं, हर्मने जि5तना बदा�श्त किकया है, हर्मीं 5ानते हैं। हर्म क्यों बदा�श्त करें! और तुर्मसे क्या र्मत!ब? तुर्म कौन होते हो हर्मारे बीच र्में बो!ने वा!े?''

''क्या है यह सब? तुर्म !ोग सब पाग! हो गये हो क्या? किबनती, यह क्या हो रहा है?'' सहसा डॉक्Kर साहब ने आकर कहा।

किबनती दौडक़र डॉक्Kर साहब से लि!पK गयी और रोकर बो!ी, ''र्मार्मा5ी, र्मुझे दीदी के पास भे5 दीजि5ए! र्मैं यहाँ नहीं रहूँगी।''

''अच्छा बेKी! अच्छा! 5ाओ चन्दर!'' डॉक्Kर साहब ने कहा। किबनती च!ी गयी तो बुआ 5ी से बो!े, ''तुम्हारा दिदर्माग खराब हो गया है। उस पर गुस्सा उतारने से क्या फायदा? हर्मारे सार्मने ये सब बातें करोगी तो ठीक नहीं होगा।''

''अरे हर्म काहे बो!बै! हर्म तो र्मर 5ाईं तो अच्छा है...'' बुआ5ी पर 5ैसे देवी र्माँ आ गयी हों इस तरह से झूर्म-झूर्मकर रो रही र्थीं...''हर्म तो वृन्दावन 5ाय के डूब र्मरीं! अब हर्म तुर्म !ोगन की सक! न देखबै। हर्म र्मर 5ाईं तो चाहे किबनती को पढ़ायो चाहे नचायो-गवायो। हर्म अपनी आँख से न देखबै।''

उस रात को किकसी ने खाना नहीं खाया। एक किवलिचv-सा किवषाद सारे घर पर छाया हुआ र्था। 5ाडे़ की रात का गहन अँधेरा खार्मोश छाया हुआ र्था, र्मह5 एक अर्मंग! छाया की तरह कभी-कभी बुआ5ी का रुदन अँधेरे को झकझोर 5ाता र्था।

सभी चुपचाप भूखे सो गये...

दूसरे दिदन किबनती उठी और र्महराजि5न के आने के पह!े ही उसने चूल्हा 5!ाकर चाय चढ़ा दी। र्थोड़ी देर र्में चाय बनाकर और Kोस्K भूनकर वह डॉक्Kर साहब के सार्मने रख आयी। डॉक्Kर साहब क! की बातों से बहुत ही व्यलिर्थत रे्थ। रात को भी उन्होंने खाना नहीं खाया र्था, इस वक्त भी उन्होंने र्मना कर दिदया। किबनती चन्दर के कर्मरे र्में गयी, ''चन्दर, र्मार्मा5ी ने क! रात को भी कुछ नहीं खाया, तुर्मने भी नहीं खाया, च!ो चाय पी !ो!''

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चन्दर ने भी र्मना किकया तो किबनती बो!ी, ''तुर्म पी !ोगे तो र्मार्मा5ी भी शायद पी !ें।'' चन्दर चुपचाप गया। किबनती र्थोड़ी देर र्में गयी तो देखा दोनों चाय पी रहे हैं। वह आकर र्मेवा किनका!ने !गी।

चाय पीते-पीते डॉक्Kर साहब ने कहा, ''चन्दर, यह पास-बुक !ो। पाँच सौ किनका! !ो और दो ह5ार का किहसाब अ!ग करवा दो।...अच्छा देखो, र्मैं तो च!ा 5ाऊँगा दिदल्!ी, किबनती को शाह5हाँपुर भे5ना ठीक नहीं है। वहाँ चार रिरश्तेदार हैं, बीस तरह की बातें होंगी। !ेकिकन र्मैं चाहता हूँ अब आगे 5ब तक यह चाहे, पढे़! अगर कहो तो यहाँ छोड़ 5ाऊँ, तुर्म पढ़ाते रहना!''

किबनती आ गयी और तश्तरी र्में भुना र्मेवा रखकर उसर्में नर्मक धिर्म!ा रही र्थी। चन्दर ने एक स्!ाइस उठायी और उस पर नर्मक !गाते हुए बो!ा, ''वैसे आप यहाँ छोड़ 5ाए ँतो कोई बात नहीं है, !ेकिकन अके!े घर र्में अच्छा नहीं !गता। दो-एक रो5 की बात दूसरी होती है। एकदर्म से सा!-भर के लि!ए...आप सर्मझ !ें।''

''हाँ बेKा, कहते तो तुर्म ठीक हो! अच्छा, कॉ!े5 के होस्K! र्में अगर रख दिदया 5ाए!'' डॉक्Kर साहब ने पूछा।

''र्मैं !ड़किकयों को होस्K! र्में रखना ठीक नहीं सर्मझता हूँ।'' चन्दर बो!ा, ''घर के वातावरण और वहाँ के वातावरण र्में बहुत अन्तर होता है।''

''हाँ, यह भी ठीक है। अच्छा तो इस सा! र्मैं इसे दिदल्!ी लि!ये 5ा रहा हॅँ। अग!े सा! देखा 5ाएगा...चन्दर, इस र्महीने-भर र्में र्मेरा सारा किवश्वास किह! गया। सुधा का किववाह किकतनी अच्छी 5गह किकया गया, र्मगर सुधा पी!ी पड़ गयी है। किकतना दु:ख हुआ देखकर! और किबनती के सार्थ यह हुआ! सचर्मुच यह 5ाकित, किववाह सभी परम्पराए ँबहुत ही बुरी हैं। बुरी तरह सड़ गयी हैं। उन्हें तो काK फें कना चाकिहए। र्मेरा तो वैसे इस अनुभव के बाद सारा आदश� ही बद! गया।''

चन्दर बहुत अचर5 से डॉक्Kर साहब की ओर देखने !गा। यही 5गह र्थी, इसी तरह बैठकर डॉक्Kर साहब ने 5ाकित-किबरादरी, किववाह आदिद सार्माजि5क परम्पराओं की किकतनी प्रशंसा की र्थी! जि5-दगी की !हरों ने हर एक को दस र्महीने र्में कहाँ से कहाँ !ाकर पKक दिदया है। डॉक्Kर साहब कहते गये...''हर्म !ोग जि5-दगी से दूर रहकर सोचते हैं किक हर्मारी सार्माजि5क संस्थाए ँस्वग� हैं, यह तो 5ब उनर्में धँसो तब उनकी गंदगी र्मा!ूर्म होती है। चन्दर, तुर्म कोई गैर 5ात का अच्छा-सा !ड़काwँूढ़ो। र्मैं किबनती की शादी दूसरी किबरादरी र्में कर दँूगा।''

किबनती, 5ो और चाय !ा रही र्थी, फौरन बडे़ दृढ़ स्वर र्में बो!ी, ''र्मार्मा5ी, आप 5हर दे दीजि5ए !ेकिकन र्मैं शादी नहीं करँूगी। क्या आपको र्मेरी दृढ़ता पर किवश्वास नहीं?''

''क्यों नहीं, बेKी! अच्छा, 5ब तक तेरी इच्छा हो, पढ़!''

दूसरे दिदन डॉक्Kर साहब ने बुआ5ी को बु!ाया और रुपये दे दिदये।

''!ो, यह पाँच सौ पह!े खच® के हैं और दो ह5ार र्में से तुम्हें धीरे-धीरे धिर्म!ता रहेगा।''

दो-तीन दिदन के अन्दर बुआ ने 5ाने की सारी तैयारी कर !ी, !ेकिकन तीन दिदन तक बराबर रोती रहीं। उनके आँसू र्थर्मे नहीं। किबनती चुप र्थी। वह भी कुछ नहीं बो!ी, चौरे्थ दिदन 5ब वह सार्मान र्मोKर पर रखवा चुकीं तो उन्होंने चन्दर से किबनती को बु!वाया। किबनती आयी तो उन्होंने उसे ग!े से !गा लि!या-और बेहद रोयीं। !ेकिकन डॉक्Kर साहब को देखते ही किफर बो! उठीं-''हर्मरी !ड़की का दिदर्माग तुर्म ही किबगाडे़ हो। दुकिनया र्में भाइयौ अपना नै होत। अपनी !ड़की को किबया दिदयौ! हर्मरी !ड़की...'' किफर किबनती को लिचपKाकर रोने !गीं।

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चन्दर चुपचाप खड़ा सोच रहा र्था, अभी तक किबनती खराब र्थी। अब डॉक्Kर साहब खराब हो गये। बुआ ने रुपये सँभा!कर रख लि!ये और र्मोKर पर बैठ गयीं। सर्मस्त !ांछनों के बाव5ूद डॉक्Kर साहब उन्हें पहुँचाने स्Kेशन तक गये।

किबनती बहुत ही चुप-सी हो गयी र्थी। वह किकसी से कुछ नहीं बो!ती और चुपचाप कार्म किकया करती र्थी। 5ब कार्म से फुरसत पा !ेती तो सुधा के कर्मरे र्में 5ाकर !ेK 5ाती और 5ाने क्या सोचा करती। चन्दर को बड़ा ताज्जुब होता र्था किबनती को देखकर। 5ब किबनती खुश र्थी, बो!ती-चा!ती र्थी तो चन्दर किबनती से लिचढ़ गया र्था, !ेकिकन किबनती के 5ीवन का यह नया रूप देखकर पह!े की सभी बातें भू! गया। और उससे किफर बात करने की कोलिशश करने !गा। !ेकिकन किबनती ज्यादा बो!ती ही नहीं।

एक दिदन दोपहर को चन्दर यूकिनवर्शिस-Kी से !ौKकर आया और उसने रेकिडयो खो! दिदया। किबनती एक तश्तरी र्में अर्मरूद काKकर !े आयी और रखकर 5ाने !गी। ''सुनो किबनती, क्या तुर्मने र्मुझे र्माफ नहीं किकया? र्मैं किकतना व्यलिर्थत हूँ, किबनती! अगर तुर्मको भू! से कुछ कह दिदया तो तुर्म उसका इतना बुरा र्मान गयीं किक दो-तीन र्महीने बाद भी नहीं भू!ीं!''

''नहीं, बुरा र्मानने की क्या बात है, चन्दर!'' किबनती एक फीकी हँसी-हँसकर बो!ी, ''आखिखर नारी का भी एक स्वाक्षिभर्मान है, र्मुझे र्माँ बचपन से कुच!ती रही, र्मैंने तुम्हें दीदी से बwक़र र्माना। तुर्म भी ठोकरें !गाने से बा5 नहीं आये, किफर भी र्मैं सब सहती गयी। उस दिदन 5ब र्मंडप के नीचे र्मार्मा5ी ने 5बरदस्ती हार्थ पकड़कर खड़ा कर दिदया तो र्मुझे उसी क्षण !गा किक र्मुझर्में भी कुछ सत्व है, र्मैं इसीलि!ए नहीं बनी हूँ किक दुकिनया र्मुझे कुच!ती ही रहे। अब र्मैं किवरोध करना, किवद्रोह करना भी सीख गयी हूँ। जि5-दगी र्में स्नेह की 5गह है, !ेकिकन स्वाक्षिभर्मान भी कोई ची5 है। और तुम्हें अपनी जि5-दगी र्में किकसी की 5रूरत भी तो नहीं है!'' कहकर किबनती धीरे-धीरे च!ी गयी।

अपर्मान से चन्दर का चेहरा का!ा पड़ गया। उसने रेकिडयो बन्द कर दिदया और तश्तरी उठाकर नीचे रख दी और किबना कपडे़ बद!े पम्र्मी के यहाँ च! दिदया।

र्मनुष्य का एक स्वभाव होता है। 5ब वह दूसरे पर दया करता है तो वह चाहता है किक याचक पूरी तरह किवनम्र होकर उसे स्वीकार करे। अगर याचक दान !ेने र्में कहीं भी स्वाक्षिभर्मान दिदख!ाता है तो आदर्मी अपनी दानवृक्षित्त और दयाभाव भू!कर नृशंसता से उसके स्वाक्षिभर्मान को कुच!ने र्में व्यस्त हो 5ाता है। आ5 हफ्तों के बाद चन्दर के र्मन र्में किबनती के लि!ए कुछ स्नेह, कुछ दया 5ागी र्थी, किबनती को उदास र्मौन देखकर; !ेकिकन किबनती के इस स्वाक्षिभर्मान-भरे उत्तर ने किफर उसके र्मन का सोया हुआ साँप 5गा दिदया र्था। वह इस स्वाक्षिभर्मान को तोड़कर रहेगा, उसने सोचा।

पम्र्मी के यहाँ पहुँचा तो अभी धूप र्थी। 5ेनी कहीं गयी र्थी, बK\ अपने तोते को कुछ खिख!ा रहा र्था। कपूर को देखते ही हँसकर अक्षिभवादन किकया और बो!ा, ''पम्र्मी अन्दर है!'' वह सीधा अन्दर च!ा गया। पम्र्मी अपने शयन-कक्ष र्में बैठी हुई र्थी। कर्मरे र्में !म्बी-!म्बी खिखड़किकयाँ र्थीं जि5नर्में !कड़ी के चौखKों र्में रंग-किबरंगे शीशे !गे हुए रे्थ। खिखड़किकयाँ बन्द र्थीं और सूर5 की किकरणें इन शीशों पर पड़ रही र्थीं और पम्र्मी पर सातों रंग की छायाए ँखे! रही र्थीं। वह झुकी हुई सोफे पर अध!ेKी कोई किकताब पढ़ रही र्थी। चन्दर ने पीछे से 5ाकर उसकी आँखें बन्द कर !ीं और बग! र्में बैठ गया।

''कपूर!'' अपनी सुकुर्मार अँगुलि!यों से चन्दर के हार्थ को आँखों पर से हKाते हुए पम्र्मी बो!ी और प!कों र्में बेहद नशा भरकर सोन5ुही की र्मुस्कान किबखेरकर चन्दर को देखने !गी। चन्दर ने देखा, वह ब्राउपिन-ग की ककिवता पढ़ रही र्थी। वह पास बैठ गया।

पम्र्मी ने उसे अपने वक्ष पर खींच लि!या और उसके बा!ों से खे!ने !गी। चन्दर र्थोड़ी देर चुप !ेKा रहा, किफर पम्र्मी के गु!ाबी होठों पर अँगुलि!याँ रखकर बो!ा, ''पम्र्मी, तुम्हारे वक्ष पर लिसर रखकर र्मैं 5ाने क्यों सबकुछ भू! 5ाता हूँ? पम्र्मी, दुकिनया वासना से इतना घबराती क्यों है? र्मैं ईर्मानदारी से कहता हूँ किक अगर किकसी को वासनाहीन प्यार करके, किकसी के लि!ए त्याग करके र्मुझे जि5तनी शास्टिन्त धिर्म!ती है, पता नहीं क्यों र्मांस!ता र्में भी उतनी ही शास्टिन्त

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धिर्म!ती है। ऐसा !गता है किक शरीर के किवकार अगर आध्याण्टित्र्मक पे्रर्म र्में 5ाकर शान्त हो 5ाते हैं तो !गता है आध्याण्टित्र्मक पे्रर्म र्में प्यासे रह 5ाने वा!े अभाव किफर किकसी के र्मांस!-बन्धन र्में ही आकर बुझ पाते हैं। किकतना सुख है तुम्हारी र्मर्मता र्में!''

''शी!'' चन्दर के होठों को अपनी अँगुलि!यों से दबाती हुई पम्र्मी बो!ी, ''चरर्म शास्टिन्त के क्षणों को अनुभव किकया करो। बो!ते क्यों हो?''

चन्दर चुप हो गया। चुपचाप !ेK रहा।

पम्र्मी की केसर श्वासें उसके र्मारे्थ को रह-रहकर चूर्म रही र्थीं और चन्दर के गा!ों को पम्र्मी के वक्ष र्में धड़कता हुआ संगीत गुदगुदा रहा र्था। चन्दर का एक हार्थ पम्र्मी के ग!े र्में पड़ी इर्मीKेशन हीरे की र्मा!ा से खे!ने !गा। सारस के पंखों से भी ज्यादा र्मु!ायर्म सुकुर्मार गरदन से छूKने पर अँगुलि!याँ !ा5वन्ती की पक्षित्तयों की तरह सकुचा 5ाती र्थीं। र्मा!ा खो! !ी और उसे उतारकर अपने हार्थ र्में !े लि!या। पम्र्मी ने र्मा!ा !ेने के लि!ए हार्थ बढ़ाया ही र्था किक ग!े के बKन Kच-से KूK गये...बफा�नी चाँदनी उफनकर छ!क पड़ी। चन्दर को !गा उसके गा!ों के नीचे किब5लि!यों के फू! लिसहर उठे हैं और एक र्मदर्माता नशा KूKते हुए लिसतारों की तरह उसके शरीर को चीरता हुआ किनक! गया। वह काँप उठा, सचर्मुच काँप उठा। नशे र्में चूर वह उठकर बैठ गया और उसने पम्र्मी को अपनी गोद र्में डा! लि!या। पम्र्मी अनंग के धनुष की प्रत्यंचा की तरह दोहरी होकर उसकी गोद र्में पड़ रही। तरुणाई का चाँद KूKकर दो Kुकडे़ हो गया र्था और वासना के तूफान ने झीने बाद! भी हKा दिदये रे्थ। 5हरी!ी चाँदनी ने नाकिगन बनकर चन्दर को !पेK लि!या। चन्दर ने पाग! होकर पम्र्मी को अपनी बाँहों र्में कस लि!या, इतनी प्यास से !गा किक पम्र्मी का दीपलिशखा-सा तन चन्दर के तन र्में सर्मा 5ाएगा। पम्र्मी किनश्चेष्ट आँखें बन्द किकये र्थी !ेकिकन उसके गा!ों पर 5ाने क्या खिख! उठा र्था! चन्दर के ग!े र्में उसने र्मृणा!-सी बाँहें डा! दी र्थीं। चन्दर ने पम्र्मी के होठों को 5ैसे अपने होंठों र्में सर्मेK !ेना चाहा...इतनी आग...इतनी आग...नशा...

''ठाँय!'' सहसा बाहर बन्दूक की आवा5 हुई। चन्दर चौंक उठा। उसने अपने बाहुपाश wी!े कर दिदये। !ेकिकन पम्र्मी उसके ग!े र्में बाँहें डा!े बेहोश पड़ी र्थी। चन्दर ने क्षण-भर पम्र्मी के भरपूर रूप यौवन को आँखों से पी !ेना चाहा। पम्र्मी ने अपनी बाँहें हKा !ीं और नशे र्में र्मखरू्मर-सी चन्दर की गोद से एक ओर !ुढ़क गयी। उसे अपने तन-बदन का होश नहीं र्था। चन्दर ने उसके वस्v ठीक किकये और किफर झुककर उसकी नशे र्में चूर प!कें चूर्म !ीं।

''ठाँय!'' बन्दूक की दूसरी आवा5 हुई। चन्दर घबराकर उठा।

''यह क्या है, पम्र्मी?''

''होगा कुछ, 5ाओ र्मत।'' अ!सायी हुई नशी!ी आवा5 र्में पम्र्मी ने कहा और उसे किफर खींचकर किबठा लि!या। और किफर बाँहों र्में उसे सर्मेKकर उसका र्मार्था चूर्म लि!या।

''ठाँय!'' किफर तीसरी आवा5 हुई।

चन्दर उठ खड़ा हुआ और 5ल्दी से बाहर दौड़ गया। देखा बK\ की बन्दूक बरार्मदे र्में पड़ी है, और वह पिप-5डे़ के पास र्मरे हुए तोते का पंख पकडक़र उठाये हुए है। उसके घावों से बK\ के पत!ून पर खून चू रहा र्था। चन्दर को देखते ही बK\ हँस पड़ा, ''देखा! तीन गो!ी र्में इसे किबल्कु! र्मार डा!ा, वह तो कहो लिसफ� एक ही !गी वरना...'' और पंख पकड़कर तोते की !ाश को झु!ाने !गा।

''लिछह! फें को उसे; हत्यारे कहीं के! र्मार क्यों डा!ा उसे?'' चन्दर ने कहा।

''तुर्मसे र्मत!ब! तुर्म कौन होते हो पूछने वा!े? र्मैं प्यार करता र्था उसे, र्मैंने र्मार डा!ा!'' बK\ बो!ा और आकिहस्ते से उसे एक पत्थर पर रख दिदया। रूर्मा! किनका!कर फाड़ डा!ा। आधा रूर्मा! उसके नीचे किबछा दिदया और आधे से

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उसका खून पोंछने !गा। किफर चन्दर के पास आया। चन्दर के कन्धे पर हार्थ रखकर बो!ा, ''कपूर! तुर्म र्मेरे दोस्त हो न! 5रा रूर्मा! दे दो।'' और चन्दर का रूर्मा! !ेकर तोते के पास खड़ा हो गया। बड़ी हसरत से उसकी ओर देखता रहा। किफर झुककर उसे चूर्म लि!या और उस पर रूर्मा! ओढ़ा दिदया। और बडे़ र्मातर्म की र्मुद्रा र्में उसी के पास लिसर झुकाकर बैठ गया।

''बK\, बK\, पाग! हो गये क्या?'' चन्दर ने उसका कन्धा पकड़ाकर किह!ाते हुए कहा, ''यह क्या नाKक हो रहा है?''

बK\ ने आँखें खो!ीं और चन्दर को भी हार्थ पकडक़र वहीं किबठा लि!या और बो!ा, ''देखो कपूर, एक दिदन तुर्म आये रे्थ तो र्मैंने तोता और 5ेनी दोनों को दिदखाकर कहा र्था किक 5ेनी से र्मैं नफरत करता हूँ, उससे शादी कर !ँूगा और तोते से र्मैं प्यार करता हूँ, इसे र्मार डा!ँूगा। कहा र्था किक नहीं? कहो हाँ।''

''हाँ, कहा र्था।'' चन्दर बो!ा, ''!ेकिकन क्यों कहा र्था?''

''हाँ, अब पूछा तुर्मने! तुर्म पूछोगे 'र्मैंने क्यों र्मार डा!ा' तो र्मैं कहूँगा किक इसे अब र्मर 5ाना चाकिहए र्था, इसलि!ए इसे र्मार डा!ा। तुर्म पूछोगे, 'इसे क्यों र्मर 5ाना चाकिहए?' तो र्मैं कहूँगा, '5ब कोई 5ीवन की पूण�ता पर पहुँचा 5ाता है तो उसे र्मर 5ाना चाकिहए। अगर वह अपनी जि5-दगी का !क्ष्य पूरा कर चुका है और नहीं र्मरता तो यह उसका अन्याय है। वह अपनी जि5-दगी का !क्ष्य पूरा कर चुका र्था, किफर भी नहीं र्मरता र्था। र्मैं इसे प्यार करता र्था !ेकिकन यह अन्याय नहीं सह सकता र्था, अत: र्मैंने इसे र्मार डा!ा!''

''अच्छा, तो तुम्हारे तोते की भी जि5-दगी का कोई !क्ष्य र्था?''

''हरेक की जि5दगी का !क्ष्य होता है। और वह !क्ष्य होता है सत्य को, चरर्म सत्य को 5ान 5ाना। वह सत्य 5ान !ेने के बाद आदर्मी अगर जि5न्दा रहता है, तो उसकी यह असीर्म बेहयाई है। र्मैंने इसे वह सत्य लिसखा दिदया। किफर भी यह नहीं र्मरा तो र्मैंने र्मार डा!ा। किफर तुर्म पूछोगे किक वह चरर्म सत्य क्या है? वह सत्य है किक र्मौत आदर्मी के शरीर की हत्या करती है। और आदर्मी की हत्या ग!ा घोंK देती है। र्मस!न तुर्म अगर किकसी औरत के पास 5ा रहे हो या किकसी औरत के पास से आ रहे हो। और सम्भव है उसने तुम्हारी आत्र्मा की हत्या कर डा!ी हो...''

''ऊँह! अब तुर्म 5ल्दी ही पूरे पाग! हो 5ाओगे?'' चन्दर ने कहा और किफर वह पम्र्मी के पास !ौK गया। पम्र्मी उसी तरह र्मदहोश !ेKी र्थी। उसने 5ाते ही किफर बाँहें फै!ाकर चन्दर को सर्मेK लि!या और चन्दर उसके वक्ष की रेशर्मी गरर्माई र्में डूब गया।

5ब वह !ौKा तो बK\ हार्थ र्में खुरपा लि!ये एक गड्ढ ï बन्द कर रहा र्था। ''सुनो, कपूर! यहाँ र्मैने उसे गाड़ दिदया। यह उसकी सर्माधिध है। और देखो, आते-आते यहाँ लिसर झुका देना। वह बेचारा 5ीवन का सत्य 5ान चुका है। सर्मझ !ो वह सेंK पैरK (सन्त शुकदेव) हो गया है!''

''अच्छा, अच्छा!'' चन्दर लिसर झुकाकर हँसते हुए आगे बढ़ा।

''सुनो, रुको कपूर!'' किफर बK\ ने पुकारा और पास आकर चन्दर के कन्धे पर हार्थ रखकर बो!ा, ''कपूर, तुर्म र्मानते हो किक नहीं किक पह!े र्मैं एक असाधारण आदर्मी र्था।''

''अब भी हो।'' चन्दर हँसते हुए बो!ा।

''नहीं, अब र्मैं असाधारण नहीं हूँ, कपूर! देखो, तुम्हें आ5 रहस्य बताऊँ। वही आदर्मी असाधारण होता है 5ो किकसी परिरण्डिस्थकित र्में किकसी भी तथ्य को स्वीकार नहीं करता, उनका किनषेध करता च!ता है। 5ब वह किकसी को भी स्वीकार कर !ेता है, तब वह पराजि5त हो 5ाता है। र्मैं तो कहूँगा असाधारण आदर्मी बनने के लि!ए सत्य को भी स्वीकार नहीं करना चाकिहए।''

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''क्या र्मत!ब, बK\! तुर्म तो दश�न की भाषा र्में बो! रहे हो। र्मैं अर्थ�शास्v का किवद्यार्थr हूँ, भाई!'' चन्दर ने कौतूह! से कहा।

''देखो, अब र्मैंने किववाह स्वीकार कर लि!या। 5ेनी को स्वीकार कर लि!या। चाहे यह 5ीवन का सत्य ही क्यों न हो पर र्महत्ता तो किनषेध र्में होती है। सबसे बड़ा आदर्मी वह होता है 5ो अपना किनषेध कर दे...!ेकिकन र्मैं अब साधारण आदर्मी हूँ। सस्ती किकस्र्म का अदना व्यलिक्त। र्मुझे किकतना दुख है आ5। र्मेरा तोता भी र्मर गया और र्मेरी असाधारणता भी।'' और बK\ किफर तोते की कब्र के पास लिसर झुकाकर बैठ गया।

वह घर पहुँचा तो उसके पाँव 5र्मीन पर नहीं पड़ रहे रे्थ। उसने उफनी हुई चाँदनी चूर्मी र्थी, उसने तरुणाई के चाँद को स्पश� से लिसहरा दिदया र्था, उसने नी!ी किब5लि!याँ चूर्मी र्थीं। प्राणों की लिसहरन और गुदगुदी से खे!कर वह आ रहा र्था, वह पम्र्मी के होठों के गु!ाबों को चूर्म-चूर्मकर गु!ाबों के देश र्में पहुँच गया र्था और उसकी नसों र्में बहते हुए रस र्में गु!ाब झूर्म उठे रे्थ। वह लिसर से पैर तक एक र्मदहोश प्यास बना हुआ र्था। घर पहुँचा तो 5ैसा उल्!ास से उसका अंग-अंग नाच रहा हो। किबनती के प्रकित दोपहर को 5ो आक्रोश उसके र्मन र्में उभर आया र्था, वह भी शान्त हो गया र्था।

किबनती ने आकर खाना रखा। चन्दर ने बहुत हँसते हुए, बडे़ र्मीठे स्वर र्में कहा, ''किबनती, आ5 तुर्म भी खाओ।''

''नहीं, र्मैं नीचे खाऊँगी।''

''अरे च! बैठ, किग!हरी!'' चन्दर ने बहुत दिदन पह!े के स्नेह के स्वर र्में कहा और किबनती के पीठ र्में एक घूँसा र्मारकर उसे पास किबठा लि!या-''आ5 तुम्हें नारा5 नहीं रहने देंगे। !े खा, पग!ी!''

नफरत से नफरत बढ़ती है, प्यार से प्यार 5ागता है। किबनती के र्मन का सारा स्नेह सूख-सा गया र्था। वह लिचड़लिचड़ी, स्वाक्षिभर्मानी, गम्भीर और रूखी हो गयी र्थी !ेकिकन औरत बहुत कर्म5ोर होती है। ईश्वर न करे, कोई उसके हृदय की र्मर्मता को छू !े। वह सबकुछ बदा�श्त कर !ेती है !ेकिकन अगर कोई किकसी तरह उसके र्मन के रस को 5गा दे, तो वह किफर अपना सब अक्षिभर्मान भू! 5ाती है। चन्दर ने, 5ब वह यहाँ आयी र्थी, तभी से उसके हृदय की र्मर्मता 5ीत !ी र्थी। इसलि!ए चन्दर के सार्मने सदा झुकती आयी !ेकिकन किपछ!ी बार से चन्दर ने ठोकर र्मारकर सारा स्नेह किबखेर दिदया र्था। उसके बाद उसके व्यलिक्तत्व का रस सूखता ही गया। क्रोध 5ैसे उसकी भौंहों पर रखा रहता र्था।

आ5 चन्दर ने उसको इतने दु!ार से बु!ाया तो !गा वह 5ाने किकतने दिदनों का भू!ा स्वर सुन रही है। चाहे चन्दर के प्रकित उसके र्मन र्में कुछ भी आक्रोश क्यों न हो, !ेकिकन वह इस स्वर का आग्रह नहीं Kा! सकती, यह वह भ!ी प्रकार 5ानती र्थी। वह बैठ गयी। चन्दर ने एक कौर बनाकर किबनती के र्मुँह र्में दे दिदया। किबनती ने खा लि!या। चन्दर ने किबनती की बाँह र्में चुKकी काK कर कहा-''अब दिदर्माग ठीक हो गया पग!ी का! इतने दिदनों से अकड़ी किफरती र्थी!''

''हूँ!'' किबनती ने बहुत दिदन के भू!े हुए स्नेह के स्वर र्में कहा, ''खुद ही तो अपना दिदर्माग किबगाडे़ रहते हैं और हर्में इल्5ार्म !गाते हैं। तरकारी ठJडी तो नहीं है?''

दोनों र्में सु!ह हो गयी...5ाड़ा अब काफी बढ़ गया र्था। खाना खा चुकने के बाद किबनती शा! ओढे़ चन्दर के पास आयी और बो!ी, ''!ो, इ!ायची खाओगे?'' चन्दर ने !े !ी। छी!कर आधे दाने खुद खा लि!ये, आधे किबनती के र्मुँह र्में दे दिदये। किबनती ने धीरे से चन्दर की अँगु!ी दाँत से दबा दी। चन्दर ने हार्थ खींच लि!या। किबनती उसी के प!ँग पर पास ही बैठ गयी और बो!ी, ''याद है तुम्हें? इसी प!ँग पर तुम्हारा लिसर दबा रही र्थी तो तुर्मने शीशी फें क दी र्थी।''

''हाँ, याद है! अब कहो तुम्हें उठाकर फें क दँू।'' चन्दर आ5 बहुत खुश र्था।

''र्मुझे क्या फें कोगे!'' किबनती ने शरारत से र्मुँह बनाकर कहा, ''र्मैं तुर्मसे उठँूगी ही नहीं!''

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5ब अंगों का तूफान एक बार उठना सीख !ेता है तो दूसरी बार उठते हुए उसे देर नहीं !गती। अभी वह अपने तूफान र्में पम्र्मी को पीसकर आया र्था। लिसरहाने बैठी हुई किबनती, हल्का बादार्मी शा! ओढे़, रह-रहकर र्मुस्कराती और गा!ों पर फू!ों के कKोरे खिख! 5ाते, आँख र्में एक नयी चर्मक। चन्दर र्थोड़ी देर देखता रहा, उसके बाद उसने किबनती को खींचकर कुछ किहचकते हुए किबनती के र्मारे्थ पर अपने होठ रख दिदये। किबनती कुछ नहीं बो!ी। चुपचाप अपने को छुड़ाकर लिसर झुकाये बैठी रही और चन्दर के हार्थ को अपने हार्थ र्में !ेकर उसकी अँगुलि!याँ लिचKकाती रही। सहसा बो!ी, ''अरे, तुम्हारे कफ का बKन KूK गया है, !ाओ लिस! दँू।''

चन्दर को पह!े कुछ आश्चय� हुआ, किफर कुछ ग्!ाकिन। किबनती किकतना सर्मप�ण करती है, उसके सार्मने वह...!ेकिकन उसने अच्छा नहीं किकया। पम्र्मी की बात दूसरी है, किबनती की बात दूसरी। किबनती के सार्थ एक पकिवv अन्तर ही ठीक रहता-

किबनती आयी और उसके कफ र्में बKन सीने !गी...सीते-सीते बचे हुए डोरे को दाँत से तोड़ती हुई बो!ी, ''चन्दर, एक बात कहें र्मानोगे?''

''क्या?''

''पम्र्मी के यहाँ र्मत 5ाया करो।''

''क्यों?''

''पम्र्मी अच्छी औरत नहीं है। वह तुम्हें प्यार नहीं करती, तुम्हें किबगाड़ती है।''

''यह बात ग!त है, किबनती! तुर्म इसीलि!ए कह रही हो न किक उसर्में वासना बहुत तीखी है!''

''नहीं, यह नहीं। उसने तुम्हारी जि5-दगी र्में लिसफ� एक नशा, एक वासना दी, कोई ऊँचाई, कोई पकिवvता नहीं। कहाँ दीदी, कहाँ पम्र्मी? किकस स्वग� से उतरकर तुर्म किकस नरक र्में फँस गये!''

''पह!े र्मैं भी यही सोचता र्था किबनती, !ेकिकन बाद र्में र्मैंने सोचा किक र्माना किकसी !ड़की के 5ीवन र्में वासना ही तीखी है, तो क्या इसी से वह किनन्दनीय है? क्या वासना स्वत: र्में किनन्दनीय है? ग!त! यह तो स्वभाव और व्यलिक्तत्व का अन्तर है, किबनती! हरेक से हर्म कल्पना नहीं र्माँग सकते, हरेक से वासना नहीं पा सकते। बाद! है, उस पर किकरण पडे़गी, इन्द्रधनुष ही खिख!ेगा, फू! है, उस पर किकरण पडे़गी, तबस्सुर्म ही आएगा। बाद! से हर्म र्माँगने !गें तबस्सुर्म और फू! से र्माँगने !गें इन्द्रधनुष, तो यह तो हर्मारी एक ककिवत्वर्मयी भू! होगी। र्माना एक !ड़की के 5ीवन र्में प्यार आया, उसने अपने देवता के चरणों पर अपनी कल्पना चढ़ा दी। दूसरी के 5ीवन र्में प्यार आया, उसने चुम्बन, आसि!-गन और गुदगुदी की किब5लि!याँ दीं। एक बो!ी, 'देवता र्मेरे! र्मेरा शरीर चाहे जि5सका हो, र्मेरी पू5ा-भावना, र्मेरी आत्र्मा तुम्हारी है और वह 5न्र्म-5न्र्मान्तर तक तुम्हारी रहेगी...' और दूसरी दीपलिशखा-सी !हराकर बो!ी, 'दुकिनया कुछ कहे अब तो र्मेरा तन-र्मन तुम्हारा है। र्मैं तो बेकाबू हूँ! र्मैं करँू क्या? र्मेरे तो अंग-अंग 5ैसे अ!सा कर चूर हो गये है तुम्हारी गोद र्में किगर पडऩे के लि!ए, र्मेरी तरुणाई पु!क उठी है तुम्हारे आसि!-गन र्में किपस 5ाने के लि!ए। र्मेरे !ा5 के बन्धन 5ैसे लिशलिर्थ! हुए 5ाते हैं? र्मैं करँू तो क्या करँू? कैसा नशा किप!ा दिदया है तुर्मने, र्मैं सब कुछ भू! गयी हूँ। तुर्म चाहे जि5से अपनी कल्पना दो, अपनी आत्र्मा दो, !ेकिकन एक बार अपने 5!ते हुए होठों र्में र्मेरे नरर्म गु!ाबी होठ सर्मेK !ो न!' बताओ किबनती, क्यों पह!ी की भावना ठीक है और दूसरी की प्यास ग!त?''

किबनती कुछ देर तक चुप रही, किफर बो!ी, ''चन्दर, तुर्म बहुत गहराई से सोचते हो। !ेकिकन र्मैं तो एक र्मोKी-सी बात 5ानती हूँ किक जि5सके 5ीवन र्में वह प्यास 5ग 5ाती है वह किफर किकसी भी सीर्मा तक किगर सकता है। !ेकिकन जि5सने त्याग किकया, जि5सकी कल्पना 5ागी, वह किकसी भी सीर्मा तक उठ सकता है। र्मैंने तो तुम्हें उठते हुए देखा है।''

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''ग!त है, किबनती! तुर्मने किगरते हुए देखा है र्मुझे! तुर्म र्मानोगी किक सुधा से र्मुझे कल्पना ही धिर्म!ी र्थी, त्याग ही धिर्म!ा र्था, पकिवvता ही धिर्म!ी र्थी। पर वह किकतनी दिदन दिKकी! और तुर्म यह कैसे कह सकती हो किक वासना आदर्मी को नीचे ही किगराती है। तुर्म आ5 ही की घKना !ो। तुर्म यह तो र्मानोगी किक अभी तक र्मैंने तुम्हें अपर्मान और कितरस्कार ही दिदया र्था।''

''खैर, उसकी बात 5ाने दो!'' किबनती बो!ी।

''नहीं, बात आ गयी तो र्मैं साफ कहता हूँ किक आ5 र्मैंने तुम्हारा प्रकितदान देने की सोची, आ5 तुम्हारे लि!ए र्मन र्में बड़ा स्नेह उर्मड़ आया। क्यों? 5ानती हो? पम्र्मी ने आ5 अपने बाहुपाश र्में कसकर 5ैसे र्मेरे र्मन की सारी कKुता, सारा किवष खींच लि!या। र्मुझे !गा बहुत दिदन बाद र्मैं किफर किपशाच नहीं, आदर्मी हूँ। यह वासना का ही दान है। तुर्म कैसे कहोगी किक वासना आदर्मी को नीचे ही !े 5ाती है!''

किबनती कुछ नहीं बो!ी, चन्दर भी र्थोड़ी देर चुप रहा। किफर बो!ा, ''!ेकिकन एक बात पूछँू, किबनती?''

''क्या?''

''बहुत अ5ब-सी बात है। सोच रहा हूँ पूछँू या न पूछँू!''

''पूछो न!''

''अभी र्मैंने तुम्हारे र्मारे्थ पर होठ रख दिदये, तुर्म कुछ भी नहीं बो!ीं, और र्मैं 5ानता हूँ यह कुछ अनुलिचत-सा र्था। तुर्म पम्र्मी नहीं हो! किफर भी तुर्मने कुछ भी किवरोध नहीं किकया...?''

किबनती र्थोड़ी देर तक चुपचाप अपने पाँव की ओर देखती रही। किफर शा! के छोर से एक डोरा खींचते हुए बो!ी, ''चन्दर, र्मैं अपने को कुछ सर्मझ नहीं पाती। लिसफ� इतना 5ानती हूँ किक र्मेरे र्मन र्में तुर्म 5ाने क्या हो; इतने र्महान हो, इतने र्महान हो किक र्मैं तुम्हें प्यार नहीं कर पाती, !ेकिकन तुम्हारे लि!ए कुछ भी करने से अपने को रोक नहीं सकती। !गता है तुम्हारा व्यलिक्तत्व, उसकी शलिक्त और उसकी दुब�!ताए,ँ उसकी प्यास और उसका सन्तोष, इतना र्महान है, इतना गहरा है किक उसके सार्मने र्मेरा व्यलिक्तत्व कुछ भी नहीं है। र्मेरी पकिवvता, र्मेरी अपकिवvता, इन सबसे ज्यादा र्महान तुम्हारी प्यास है।...!ेकिकन अगर तुम्हारे र्मन र्में र्मेरे लि!ए 5रा भी स्नेह है तो तुर्म पम्र्मी से सम्बन्ध तोड़ !ो। दीदी से अगर र्मैं बताऊँगी तो 5ाने क्या हो 5ाएगा! और तुर्म 5ानते नहीं, दीदी अब कैसी हो गयी हैं? तुर्म देखो तो आँसू...''

''बस! बस!'' चन्दर ने अपने हार्थ से किबनती का र्मुँह बन्द करते हुए कहा, ''सुधा की बात र्मत करो, तुम्हें कसर्म है। जि5-दगी के जि5स पह!ू को हर्म भू! चुके हैं, उसे कुरेदने से क्या फायदा?''

''अच्छा, अच्छा!'' चन्दर का हार्थ हKाकर किबनती बो!ी, ''!ेकिकन पम्र्मी को अपनी जि5-दगी से हKा दो।''

''यह नहीं हो सकता, किबनती?'' चन्दर बो!ा, ''और 5ो कहो, वह र्मैं कर दँूगा। हाँ, तुम्हारे प्रकित आ5 तक 5ो दुव्य�वहार हुआ है, उसके लि!ए र्मैं तुर्मसे क्षर्मा र्माँगता हूँ।''

''लिछह, चन्दर! र्मुझे शर्मिर्म-न्दा र्मत करो।'' काफी रात हो गयी र्थी। चन्दर !ेK गया। किबनती ने उसे र5ाई उढ़ा दी और Kेब! पर किब5!ी का स्Kैंड रखकर बो!ी, ''अब चुपचाप सो 5ाओ।''

किबनती च!ी गयी। चन्दर पड़ा-पड़ा सोचने !गा, दुकिनया ग!त कहती है किक वासना पाप है। वासना से भी पकिवvता और क्षर्माशी!ता आती है। पम्र्मी से उसे 5ो कुछ धिर्म!ा, वह अगर पाप है तो आ5 चन्दर ने 5ो किबनती को दिदया, उसर्में इतनी क्षर्मा, इतनी उदारता और इतनी शास्टिन्त क्यों र्थी?

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उसके बाद किबनती को वह बहुत दु!ार और पकिवvता से रखने !गा। कभी-कभी 5ब वह घूर्मने 5ाता तो किबनती को भी !े 5ाता र्था। न्यू ईयस� डे के दिदन पम्र्मी ने दोनों की दावत की। किबनती पम्र्मी के पीछे चाहे चन्दर से पम्र्मी का किवरोध कर !े पर पम्र्मी के सार्मने बहुत लिशष्टता और स्नेह का बरताव करती र्थी।

डॉक्Kर साहब की दिदल्!ी 5ाने की तैयारी हो गयी। किबनती ने काय�क्रर्म र्में कुछ परिरवत�न करा लि!या र्था। अब वह पह!े डॉक्Kर साहब के सार्थ शाह5हाँपुर 5ाएगी और तब दिदल्!ी।

किनश्चय करते-करते अन्त र्में पह!ी फरवरी को वे !ोग गये। स्Kेशन पर बहुत-से किवद्यार्थr और डॉक्Kर साहब के धिर्मv उन्हें किवदा देने के लि!ए आये रे्थ। किबनती किवद्यार्शिर्थ-यों की भीड़ से घबराकर इधर च!ी आयी और चन्दर को बु!ाकर कहने !गी-''चन्दर! दीदी के लि!ए एक खत तो दे दो!''

''नहीं।'' चन्दर ने बहुत रूखे और दृढ़ स्वर र्में कहा।

किबनती कुछ क्षण तक एकKक चन्दर की ओर देखती रही; किफर बो!ी, ''चन्दर, र्मन की श्र»ा चाहे अब भी वैसी हो, !ेकिकन तुर्म पर अब किवश्वास नहीं रहा।''

चन्दर ने कुछ 5वाब नहीं दिदया, लिसफ� हँस पड़ा। किफर बो!ी, ''चन्दर, अगर कभी कोई 5रूरत हो तो 5रूर लि!खना, र्मैं च!ी आऊँगी, सर्मझे?'' और किफर चुपचाप 5ाकर बैठ गयी।

5ब चन्दर !ौKा तो उसके सार्थ कई सार्थी प्रोफेसर रे्थ। घर पहुँचकर वह कार !ेकर पम्र्मी के यहाँ च! दिदया। पता नहीं क्यों किबनती के 5ाने का चन्दर को कुछ र्थोड़ा-सा दु:ख र्था।

गरर्मी का र्मौसर्म आ गया र्था। चन्दर सुबह कॉ!े5 5ाता, दोपहर को सोता और शार्म को वह किनयधिर्मत रूप से पम्र्मी को !ेकर घूर्मने 5ाता। डॉक्Kर साहब कार छोड़ गये रे्थ। कार पम्र्मी और चन्दर को !ेकर दूर-दूर का चक्कर !गाया करती र्थी। इस बार उसने अपनी छुदिट्टयाँ दिदल्!ी र्में ही किबताने की सोची र्थीं। पम्र्मी ने भी तय किकया र्था किक र्मसूरी से !ौKते सर्मय 5ु!ाई र्में वह एक हफ्ते आकर डॉक्Kर शुक्!ा की र्मेहर्मानी करेगी और दिदल्!ी के पूव�परिरलिचतों से भी धिर्म! !ेगी।

यह नहीं कहा 5ा सकता किक चन्दर के दिदन अच्छी तरह नहीं बीत रहे रे्थ। उसने अपना अतीत भु!ा दिदया र्था और वत�र्मान को वह पम्र्मी की नशी!ी किनगाहों र्में डुबो चुका र्था। भकिवष्य की उसे कोई खास लिचन्ता नहीं र्थी। उसे !गता र्था किक यह पम्र्मी की किनगाहों के बाद!ों और स्पश� के फू!ों की 5ादू भरी दुकिनया अर्मर है, शाश्वत है। इस 5ादू ने हरे्मशा के लि!ए उसकी आत्र्मा को अक्षिभभूत कर लि!या है, ये होठ कभी अ!ग न होंगे, यह बाहुपाश इसी तरह उसे घेरे रहेगा और पम्र्मी की गरर्म तरुण साँसें सदा इसी प्रकार उसके कपो!ों को लिसहराती रहेंगी। आदर्मी का किवश्वास हरे्मशा सीर्माए ँऔर अन्त भू! 5ाने का आदी होता है। चन्दर भी सबकुछ भू! चुका र्था।

अप्रै! की एक शार्म। दिदन-भर !ू च!कर अब र्थक गयी र्थी। !ेकिकन दिदन-भर की !ू की व5ह से आसर्मान र्में इतनी धू! भर गयी र्थी किक धूप भी हल्की पड़ गयी र्थी। र्मा!ी बाहर लिछड़काव कर रहा र्था। चन्दर सोकर उठा र्था और सुस्ती धिर्मKा रहा र्था। र्थोड़ी देर बाद वह उठा, दिदशाओं की ओर किनरुदे्दश्य देखने !गा। बड़ी उदास-सी शार्म र्थी। सड़क भी किबल्कु! सूनी र्थी, लिसफ� दो-एक साइकिक!-सवार !ू से बचने के लि!ए कानों पर तौलि!या !पेKे हुए च!े 5ा रहे रे्थ। एक बफ� का ठे!ा भी च!ा 5ा रहा र्था। ''5ाओ, बफ� !े आओ?'' चन्दर ने र्मा!ी को पैसे देते हुए कहा। र्मा!ी ने ठे!ावा!े को बु!ाया। ठे!ावा!ा आकर फाKक पर रुक गया। र्मा!ी बफ� तुड़वा ही रहा र्था किक एक रिरक्शा, जि5स पर परदा बँधा र्था, वह भी फाKक के पास र्मुड़ा और ठे!े के पास आकर रुक गया। ठे!ावा!े ने ठे!ा पीछे किकया। रिरक्शा अन्दर आया। रिरक्शा र्में कोई परदानशीन औरत बैठी र्थी, !ेकिकन रिरक्शा के सार्थ कोई नहीं र्था, चन्दर को ताज्जुब हुआ, कौन परदानशीन यहाँ आ सकती है! रिरक्शा से एक !ड़की उतरी जि5से चन्दर नहीं 5ानता र्था, !ेकिकन बाहर का परदा जि5तना गन्दा और पुराना र्था, !ड़की की पोशाक उतनी ही साफ और चुस्त। वह सफेद रेशर्म की स!वार, सफेद रेशर्म का चुस्त कुरता और उस पर बहुत हल्के शरबती फा!सई रंग की चु�ी ओढे़ हुई र्थी। वह उतरी और

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रिरक्शावा!े से बो!ी, ''अब घंKे भर र्में आकर र्मुझे !े 5ाना।'' रिरक्शावा!ा लिसर किह!ाकर च! दिदया और वह सीधे अन्दर च! दी। चन्दर को बड़ा अचर5 हुआ। यह कौन हो सकती है 5ो इतनी बेतकल्!ुफी से अन्दर च! दी। उसने सोचा, शायद शरणार्शिर्थ-यों के लि!ए चन्दा र्माँगने वा!ी कोई !ड़की हो। र्मगर अन्दर तो कोई है ही नहीं! उसने चाहा किक रोक दे किफर उसने नहीं रोका। सोचा, खुद ही अन्दर खा!ी देखकर !ौK आएगी।

र्मा!ी बफ� !ेकर आया और अन्दर च!ा गया। वह !ड़की !ौKी। उसके चेहरे पर कुछ आश्चय� और कुछ लिचन्ता की रेखाए ँर्थीं। अब चन्दर ने उसे देखा। एक साँव!ी !ड़की र्थी, कुछ उदास, कुछ बीर्मार-सी !गती र्थी। आँखें बड़ी-बड़ी !गती र्थीं 5ो रोना भू! चुकी हैं और हँसने र्में भी अशक्त हैं। चेहरे पर एक पी!ी छाँह र्थी। ऐसा !गता र्था, देखने ही से किक !ड़क़ी दु:खी है पर अपने को सँभा!ना 5ानती है।

वह आयी और बड़ी फीकी र्मुस्कान के सार्थ, बड़ी लिशष्टता के स्वर र्में बो!ी, ''चन्दर भाई, स!ार्म! सुधा क्या ससुरा! र्में है?''

चन्दर का आश्चय� और भी बढ़ गया। यह तो चन्दर को 5ानती भी है!

''5ी हाँ, वह ससुरा! र्में है। आप...''

''और किबनती कहाँ है?'' !ड़की ने बात काKकर पूछा।

''किबनती दिदल्!ी र्में है।''

''क्या उसकी भी शादी हो गयी?''

''5ी नहीं, डॉक्Kर साहब आ5क! दिदल्!ी र्में हैं। वह उन्हीं के पास पढ़ रही है। बैठ तो 5ाइए!'' चन्दर ने कुसr खिखसकाकर कहा।

''अच्छा, तो आप यहीं रहते हैं अब? नौकर हो गये होंगे?''

''5ी हाँ!'' चन्दर ने अचर5 र्में डूबकर कहा, ''!ेकिकन आप इतनी 5ानकारी और परिरचय की बातें कर रही हैं, र्मैंने आपको पहचाना नहीं, क्षर्मा कीजि5एगा...''

वह !ड़की हँसी, 5ैसे अपनी किकस्र्मत, जि5-दगी, अपने इकितहास पर हँस रही हो।

''आप र्मुझको कैसे पहचान सकते हैं? र्मैं 5रूर आपको देख चुकी र्थी। र्मेरे-आपके बीच र्में दरअस! एक रोशनदान र्था, र्मेरा र्मत!ब सुधा से है!''

''ओह! र्मैं सर्मझा, आप गेसू हैं!''

''5ी हाँ!'' और गेसू ने बहुत तर्मी5 से अपनी चु�ी ओढ़ !ी।

''आप तो शादी के बाद 5ैसे किबल्कु! खो ही गयीं। अपनी सहे!ी को भी एक खत नहीं लि!खा। अख्तर धिर्मयाँ र्म5े र्में हैं?''

''आपको यह सब कैसे र्मा!ूर्म?'' बहुत आकु! होकर गेसू बो!ी और उसकी पी!ी आँखों र्में और भी र्मै!ापन आ गया।

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''र्मुझे सुधा से र्मा!ूर्म हुआ र्था। र्मैं तो उम्र्मीद कर रहा र्था किक आप हर्म !ोगों को एक दावत 5रूर देंगी। !ेकिकन कुछ र्मा!ूर्म ही नहीं हुआ। एक बार सुधा5ी ने र्मुझे आपके यहाँ भे5ा तो र्मा!ूर्म हुआ किक आप !ोगों ने र्मकान ही छोड़ दिदया है।''

''5ी हाँ, र्मैं देहरादून र्में र्थी। अम्र्मी5ान वगैरह सभी वहीं र्थीं। अभी हा! र्में वहाँ कुछ पनाहगीर पहुँचे...''

''पनाहगीर?''

''5ी, पं5ाब के लिसख वगैरह। कुछ झगड़ा हो गया तो हर्म !ोग च!े आये। अब हर्म !ोग यहीं हैं।''

''अख्तर धिर्मयाँ कहाँ हैं?''

''धिर्मर5ापुर र्में पीत! का रो5गार कर रहे हैं!''

''और उनकी बीवी देहरादून र्में र्थी। यह स5ा क्यों दी आपने उन्हें?''

''स5ा की कोई बात नहीं।'' गेसू का स्वर घुKता हुआ-सा र्मा!ूर्म दे रहा र्था। ''उनकी बीवी उनके सार्थ है।''

''क्या र्मत!ब? आप तो अ5ब-सी बातें कर रही हैं। अगर र्मैं भू! नहीं करता तो आपकी शादी...''

''5ी हाँ!'' बड़ी ही उदास हँसी हँसकर गेसू बो!ी, ''आपसे चन्दर भाई, र्मैं क्या लिछपाऊँगी, 5ैसे सुधा वैसे आप! र्मेरी शादी उनसे नहीं हुई!''

''अरे! गुस्ताखी र्माफ कीजि5एगा, सुधा तो र्मुझसे कह रही र्थी किक अख्तर...''

''र्मुझसे र्मुहब्बत करते हैं!'' गेसू बात काKकर बो!ी और बड़ी गम्भीर हो गयी और अपनी चु�ी के छोर र्में Kँके हुए लिसतारे को तोड़ती हुई बो!ी, ''र्मैं सचर्मुच नहीं सर्मझ पायी किक उनके र्मन र्में क्या र्था। उनके घरवा!ों ने र्मेरे ब5ाय फू! को ज्यादा पसन्द किकया। उन्होंने फू! से ही शादी कर !ी। अब अच्छी तरह किनभ रही है दोनों की। फू! तो इतने अरसे र्में एक बार भी हर्म !ोगों से धिर्म!ने नहीं आयी!''

''अच्छा...'' चन्दर चुप होकर सोचने !गा। किकतनी बड़ी प्रवंचना हुई इस !ड़की की जि5-दगी र्में! और किकतने दबे शब्दों र्में यह कहकर चुप हो गयी! एक भी आँसू नहीं, एक भी लिससकी नहीं। संयत स्वर और फीकी र्मुस्कान, बस। चन्दर चुपचाप उठकर अन्दर गया। र्महराजि5न आ गयी र्थी। कुछ नाश्ता और शरबत भे5ने के लि!ए कहकर चन्दर बाहर आया। गेसू चुपचाप !ॉन की ओर देख रही र्थी, शून्य किनगाहों से। चन्दर आकर बैठ गया और बो!ा-''बहुत धोखा दिदया आपको!''

''लिछह! ऐसी बात नहीं कहते, चन्दर भाई! कौन 5ानता है किक यह अख्तर की र्म5बूरी रही हो! जि5सको र्मैंने अपना सरता5 र्माना उसके लि!ए ऐसा खया! भी दिद! र्में !ाना गुनाह है। र्मैं इतनी किगरी हुई नहीं किक यह सोचँू किक उन्होंने धोखा दिदया!'' गेसू दाँत त!े 5बान दबाकर बो!ी।

चन्दर दंग रह गया। क्या गेसू अपने दिद! से कह रही है? इतना अखंड किवश्वास है गेसू को अख्तर पर! शरबत आ गया र्था। गेसू ने तकल्!ुफ नहीं किकया। !ेकिकन बो!ी, ''आप बडे़ भाई हैं। पह!े आप शुरू कीजि5ए।''

''आपकी किफर कभी अख्तर से र्मु!ाकात नहीं हुई?'' चन्दर ने एक घूँK पीकर कहा।

''हुई क्यों नहीं? कई बार वह अम्र्मी5ान के पास आये।''

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''आपने कुछ नहीं कहा?''

''कहती क्या? यह सब बातें कहने-सुनने की होती हैं! और किफर फू! वहाँ आरार्म से है, अख्तर भी फू! को 5ान से ज्यादा प्यार से रखते हैं, यही र्मेरे लि!ए बहुत है। और अब कहकर क्या करँूगी! 5ब फू! से शादी तय हुई और वे रा5ी हो गये तभी र्मैंने कुछ नहीं कहा, अब तो फू! की र्माँग, फू! का सुहाग र्मेरे लि!ए सुबह की अ5ान से ज्यादा पाक है।'' गेसू ने शरबत र्में किनगाहें डुबाये हुए कहा। चन्दर क्षण-भर चुप रहा किफर बो!ा-

''अब आपकी शादी अम्र्मी5ान कब कर रही हैं?''

''कभी नहीं! र्मैंने कस्द कर लि!या है किक र्मैं शादी ताउम्र नहीं करँूगी। देहरादून के र्मैKर्तिन-Kी सेंKर र्में कार्म सीख रही र्थी। कोस� पूरा हो गया। अब किकसी अस्पता! र्में कार्म करँूगी।''

''आप...!''

''क्यों, आपको ताज्जुब क्यों हुआ? र्मैंने अम्र्मी5ान को इस बात के लि!ए रा5ी कर लि!या है। र्मैं अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती हूँ।''

चन्दर ने शरबत से बफ� किनका!कर फें कते हुए कहा-

''र्मैं आपकी 5गह होता तो दूसरी शादी करता और अख्तर से भरसक बद!ा !ेता!''

''बद!ा!'' गेसू र्मुस्कराकर बो!ी, ''लिछह, चन्दर भाई! बद!ा, गुरे5, नफरत इससे आदर्मी न कभी सुधरा है न सुधरेगा। बद!ा और नफरत तो अपने र्मन की कर्म5ोरी को 5ाकिहर करते हैं। और किफर बद!ा र्मैं !ँू किकससे? उससे, दिद! की तनहाइयों र्में र्मैं जि5सके स5दे पड़ती हूँ। यह कैसे हो सकता है?''

गेसू के र्मारे्थ पर किवश्वास का ते5 दर्मक उठा, उसकी बीर्मार आँखों र्में धूप !ह!हा उठी और उसका कंचन!ता-सा तन 5गर्मगाने !गा। कुछ ऐसी दृढ़ता र्थी उसकी आवा5 र्में, ऐसी गहराई र्थी उसकी ध्वकिन र्में किक चन्दर देखता ही रह गया। वह 5ानता र्था किक गेसू के दिद! र्में अख्तर के लि!ए किकतना पे्रर्म र्था, वह यह भी 5ानता र्था किक गेसू अख्तर की शादी के लि!ए किकस तरह पाग! र्थी। वह सारा सपना ताश के र्मह! की तरह किगर गया। और परिरण्डिस्थकितयों ने नहीं, खुद अख्तर ने धोखा दिदया, !ेकिकन गेसू है किक र्मारे्थ पर लिशकन नहीं, भौंहों र्में ब! नहीं, होठों पर लिशकायत नहीं। नारी के 5ीवन का यह कैसा अधिर्मK किवश्वास र्था! यानी जि5से गेसू ने अपने पे्रर्म का स्वण�र्मजिन्दर सर्मझा र्था, वह ज्वा!ार्मुखी बनकर फूK गया और उसने दद� की किपघ!ी आग की धारा र्में गेसू को डुबो देने की कोलिशश की !ेकिकन गेसू है किक अK! चट्टान की तरह खड़ी है।

चन्दर के र्मन र्में कहीं कोई Kीस उठी। उसके दिद! की धडक़नों ने कहीं पर उससे पूछा। '...और चन्दर, तुर्मने क्या किकया? तुर्म पुरुष रे्थ। तुम्हारे सब! कंधे किकसी के प्यार का बोझ क्यों नहीं wो पाये, चन्दर?' !ेकिकन चन्दर ने अपनी अन्त:करण की आवा5 को अनसुनी करते हुए पूछा- ''तो आपके र्मन र्में 5रा भी दद� नहीं अख्तर को न पाने का?''

''दद�?'' गेसू की आवा5 डूबने !गी, किनगाहों की 5द� पाँखुरिरयों पर हल्की पानी की !हर दौड़ गयी-''दद�, यह तो लिसफ� सुधा सर्मझ सकती है, चन्दर भाई! बचपन से वह र्मेरे लि!ए क्या रे्थ, यह वही 5ानती है। र्मैं तो उनका सपना देखते-देखते उनका सपना ही बन गयी र्थी, !ेकिकन खैर दद� इंसान के यकीदे को और र्म5बूत न कर दे, आदर्मी के कदर्मों को और ताकत न दे, आदर्मी के दिद! को ऊँचाई न दे तो इंसान क्या? दद� का हा! पूछते हैं आप! कयार्मत के रो5 तक र्मेरी र्मय्यत उन्हीं का आसरा देखेगी, चन्दर भाई! !ेकिकन इसके लि!ए जि5-दगी र्में तो खार्मोश ही रहना होगा। बंद घर र्में 5!ते हुए लिचराग की तरह घु!ना होगा। और अगर र्मैंने उनको अपना र्माना है तो वह धिर्म!कर ही रहेंगे। आ5 न सही कयार्मत के बाद सही। र्मुहब्बत की दुकिनया र्में 5ैसे एक दिदन उनके किबना कK 5ाता है वैसे एक जि5-दगी उनके किबना कK 5ाएगी...!ेकिकन उसके बाद वे र्मेरे होकर रहेंगे।''

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चन्दर का दिद! काँप उठा। गेसू की आवा5 र्में तारे बरस रहे रे्थ...

''और आपसे क्या कहूँ, चन्दर भाई! क्या आपकी बात र्मुझसे लिछपी है? र्मैं 5ानती हूँ। सबकुछ 5ानती हूँ। सच पूलिछए तो 5ब र्मैंने देखा किक आप किकतनी खार्मोशी से अपनी दुकिनया र्में आग !गते देख रहे हैं, और किफर भी हँस रहे हैं, तो र्मैंने आपसे सबक लि!या। हर्में नहीं र्मा!ूर्म र्था किक हर्म और आप, दोनों भाई-बहनों की किकस्र्मत एक-सी है।''

चन्दर के र्मन र्में 5ाने किकतने घाव कसक उठे। उसके र्मन र्में 5ाने किकतना दद� उर्मड़ने-सा !गा। गेसू उसे क्या सर्मझ रही है र्मन र्में और वह कहाँ पहुँच चुका है! जि5सने चन्दर की जि5-दगी से अपने र्मन का दीप 5!ाया, वह आ5 देवता के चरण तक पहुँच गया, !ेकिकन चन्दर के र्मन की दीपलिशखा? उसने अपने प्यार की लिचता 5!ा डा!ी। चन्दर के र्मुँह पर ग्!ाकिन की कालि!र्मा छा गयी। गेसू चुपचाप बैठी र्थी। सहसा बो!ी, ''चन्दर भाई, आपको याद है, किपछ!े सा! इन्हीं दिदनों र्मैं सुधा से धिर्म!ने आयी र्थी और हसरत आपको र्मेरा स!ार्म कहने गया र्था?''

''याद हैï!'' चन्दर ने बहुत भारी स्वर र्में कहा।

''इस एक सा! र्में दुकिनया किकतनी बद! गयी!'' गेसू ने एक गहरी साँस !ेकर कहा, ''एक बार ये दिदन च!े 5ाते हैं, किफर बेदद� कभी नहीं !ौKते! कभी-कभी सोचती हूँ किक सुधा होती तो किफर कॉ!े5 5ाते, क्!ास र्में शोर र्मचाते, भागकर घास र्में !ेKते, बाद!ों को देखते, शेर कहते और वह चन्दर की और हर्म अख्तर की बातें करते...'' गेसू का ग!ा भर आया और एक आँसू चू पड़ा... ''सुधा और सुधा की ब्याह-शादी का हा! बताइए। कैसे हैं उनके शौहर?''

चन्दर के र्मन र्में आया किक वह कह दे, गेसू, क्यों !ण्डिज्जत करती हो! र्मैं वह चन्दर नहीं हूँ। र्मैंने अपने किवश्वास का र्मजिन्दर भ्रष्ट कर दिदया...र्मैं पे्रत हूँ...र्मैंने सुधा के प्यार का ग!ा घोंK दिदया है...!ेकिकन पुरुष का गव�! पुरुष का छ!! उसे यह भी नहीं र्मा!ूर्म होने दिदया किक उसका किवश्वास चूर-चूर हो चुका है और किपछ!े किकतने ही र्महीनों से उसने सुधा को खत लि!खना भी बन्द कर दिदया है और यह भी नहीं र्मा!ूर्म करने का प्रयास किकया किक सुधा र्मरती है या 5ीती!

घंKा-भर तक दोनों सुधा के बारे र्में बातें करते रहे। इतने र्में रिरक्शावा!ा !ौK आया। गेसू ने उसे ठहरने का इशारा किकया और बो!ी, ''अच्छा, 5रा सुधा का पता लि!ख दीजि5ए।'' चन्दर ने एक काग5 पर पता लि!ख दिदया। गेसू ने उठने का उपक्रर्म किकया तो चन्दर बो!ा, ''बैदिठए अभी, आपसे बातें करके आ5 5ाने किकतने दिदनों की बातें याद आ रही हैं!''

गेसू हँसी और बैठ गयी। चन्दर बो!ा, ''आप अभी तक ककिवताए ँलि!खती हैं?''

''ककिवताए.ँ..'' गेसू किफर हँसी और बो!ी, ''जि5-दगी किकतनी हर्मगीर है, किकतनी पुरशोर, और इस शोर र्में नगर्मों की हकीकत किकतनी! अब हकिड्डयाँ, नसें, पे्रशर-प्वाइंK, पदिट्टयाँ और र्मरहर्मों र्में दिदन बीत 5ाता है। अच्छा चन्दर भाई, सुधा अभी उतनी ही शोख है? उतनी ही शरारती है!''

''नहीं।'' चन्दर ने बहुत उदास स्वर र्में कहा, ''5ाओ, कभी देख आओ न!''

''नहीं, 5ब तक कहीं 5गह नहीं धिर्म! 5ाती, तब तक तो इतनी आ5ादी नहीं धिर्म!ेगी। अभी यहीं हूँ। उसी को बु!वाऊँगी और उसके पकित देवता को लि!खँूगी। किकतना सूना !ग रहा है घर 5ैसे भूतों का बसेरा हो। 5ैसे परेत रहते हों!''

''क्यों 'परेत' बना रही हैं आप? र्मैं रहता हूँ इसी घर र्में।'' चन्दर बो!ा।

''अरे, र्मेरा र्मत!ब यह नहीं र्था!'' गेसू हँसते हुए बो!ी, ''अच्छा, अब र्मुझे तो अम्र्मी5ान नहीं भे5ेंगी, आ5 5ाने कैसे अके!े आने की इ5ा5त दे दी। आपको किकसी दिदन बु!वाऊँ तो आइएगा 5रूर!''

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''हाँ, आऊँगा गेसू, 5रूर आऊँगा!'' चन्दर ने बहुत स्नेह से कहा।

''अच्छा भाई5ान, स!ार्म!''

''नर्मस्ते!''

गेसू 5ाकर रिरक्शा पर बैठ गयी और परदा तन गया। रिरक्शा च! दिदया। चन्दर एक अ5ीब-सी किनगाह से देखता रहा 5ैसे अपने अतीत की कोई खोयी हुई ची5 wँूढ़ रहा हो, किफर धीरे-धीरे !ौK आया। सूर5 डूब गया र्था। वह गुस!खाना बन्द कर नहाने बैठ गया। 5ाने कहाँ-कहाँ र्मन भKक रहा र्था उसका। चन्दर र्मन का अण्डिस्थर र्था, र्मन का बुरा नहीं र्था। गेसू ने आ5 उसके सार्मने अचानक वह तस्वीर रख दी र्थी जि5सर्में वह स्वग� की ऊँचाइयों पर र्मँडराया करता र्था। और 5ाने कैसा दद�-सा उसके र्मन र्में उठ गया र्था, गेसू ने अपने अ5ाने र्में ही चन्दर के अकिवश्वास, चन्दर की प्रकितपिह-सा को बहुत बड़ी हार दी र्थी। उसने लिसर पर पानी डा!ा तो उसे !गा यह पानी नहीं है जि5-दगी की धारा है, किपघ!े हुए अंगारों की धारा जि5सर्में पडक़र केव! वही जि5न्दा बच पाया है, जि5सके अंगों र्में प्यार का अर्मृत है। और चन्दर के र्मन र्में क्या है? र्मह5 वासना का किवष...वह सड़ा हुआ, ग!ा हुआ शरीर र्माv 5ो केव! सधि�पात के 5ोर से च! रहा है। उसने अपने र्मन के अर्मृत को ग!ी र्में फें क दिदया है...उसने क्या किकया है?

वह नहाकर आया और शीशे के सार्मने खड़ा होकर बा! काwऩे !गा-किफर शीशे की ओर एकKक देखकर बो!ा, ''र्मुझे क्या देख रहे हो, चन्दर बाबू! र्मुझे तो तुर्मने बबा�द कर डा!ा। आ5 कई र्महीने हो गये और तुर्मने एक लिचट्ठी तक नहीं लि!खी, लिछह!'' और उसने शीशा उ!Kकर रख दिदया।

र्महराजि5न खाना !े आयी। उसने खाना खाया और सुस्त-सा पड़ रहा। ''भइया, आ5 घूरै्म न 5ाबो?''

''नहीं!'' चन्दर ने कहा और पड़ा-पड़ा सोचने !गा। पम्र्मी के यहाँ नहीं गया।

यह गेसू दूसरे कर्मरे र्में बैठी र्थी। इस कर्मरे र्में किबनती उसे कै!ाश का लिचv दिदखा रही र्थी।...लिचv उसके र्मन र्में घूर्मने !गे...चन्दर, क्या इस दुकिनया र्में तुम्हीं रह गये रे्थ फोKो दिदखाकर पसन्द कराने के लि!ए...चन्दर का हार्थ उठा। तड़ से एक तर्माचा...चन्दर, चोK तो नहीं आयी...र्मान लि!या किक र्मेरे र्मन ने र्मुझसे न कहा हो, तुर्मसे तो र्मेरा र्मन कोई बात नहीं लिछपाता...तो चन्दर, तुर्म शादी कर क्यों नहीं !ेते? पापा !ड़की देख आएगेँ...हर्म भी देख !ेंगे...तो किफर तुर्म बैठो तो हर्म पढ़ें गे, वरना हर्में शरर्म !गती है...चन्दर, तुर्म शादी र्मत करना, तुर्म इस सबके लि!ए नहीं बने हो...नहीं सुधा, तुम्हारे वक्ष पर लिसर रखकर किकतना सन्तोष धिर्म!ता है...

आसर्मान र्में एक-एक करके तारे KूKते 5ा रहे रे्थ।

वह पम्र्मी के यहाँ नहीं गया। एक दिदन...दो दिदन...तीन दिदन...अन्त र्में चौरे्थ दिदन शार्म को पम्र्मी खुद आयी। चन्दर खाना खा चुका र्था और !ॉन पर Kह! रहा र्था। पम्र्मी आयी। उसने स्वागत किकया !ेकिकन उसकी र्मुस्कराहK र्में उल्!ास नहीं र्था।

''कहो कपूर, आये क्यों नहीं? र्मैं सर्मझी, तुर्म बीर्मार हो गये!'' पम्र्मी ने !ॉन पर पड़ी एक कुसr पर बैठते हुए कहा, ''आओ, बैठो न!'' उसने चन्दर की ओर कुसr खिखसकायी।

''नहीं, तुर्म बैठो, र्मैं Kह!ता रहूँगा!'' चन्दर बो!ा और कहने !गा, ''पता नहीं क्यों पम्र्मी, दो-तीन दिदन से तबीयत बहुत उदास-सी है। तुम्हारे यहाँ आने को तबीयत नहीं हुई!''

''क्यों, क्या हुआ?'' पम्र्मी ने पूछा और चन्दर का हार्थ पकड़ लि!या। चन्दर पम्र्मी की कुसr के पीछे खड़ा हो गया। पम्र्मी ने चन्दर के दोनों हार्थ पकडक़र अपने ग!े र्में डा! लि!ये और अपना लिसर चन्दर से दिKकाकर उसकी ओर देखने

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!गी। चन्दर चुप र्था। न उसने पम्र्मी के गा! र्थपर्थपाये, न हार्थ दबाया, न अ!कें किबखेरीं और न किनगाहों र्में नशा ही किबखेरा।

औरत अपने प्रकित आने वा!े प्यार और आकष�ण को सर्मझने र्में चाहे एक बार भू! कर 5ाये, !ेकिकन वह अपने प्रकित आने वा!ी उदासी और उपेक्षा को पहचानने र्में कभी भू! नहीं करती। वह होठों पर होठों के स्पश� के गूढ़तर्म अर्थ� सर्मझ सकती है, वह आपके स्पश� र्में आपकी नसों से च!ती हुई भावना पहचान सकती है, वह आपके वक्ष से लिसर दिKकाकर आपके दिद! की धड़कनों की भाषा सर्मझ सकती है, यदिद उसे र्थोड़ा-सा भी अनुभव है और आप उसके हार्थ पर हार्थ रखते हैं तो स्पश� की अनुभूकित से ही 5ान 5ाएगी किक आप उससे कोई प्रश्न कर रहे हैं, कोई याचना कर रहे हैं, सान्त्वना दे रहे हैं या सान्त्वना र्माँग रहे हैं। क्षर्मा र्माँग रहे हैं या क्षर्मा दे रहे हैं, प्यार का प्रारम्भ कर रहे हैं या सर्माप्त कर रहे हैं। स्वागत कर रहे हैं या किवदा दे रहे हैं। यह पु!क का स्पश� है या उदासी का चाव और नशे का स्पश� है या खिख�ता और बेर्मनी का।

पम्र्मी चन्दर के हार्थों को छूते ही 5ान गयी किक हार्थ चाहे गरर्म हों, !ेकिकन स्पश� बड़ा शीत! है, बड़ा नीरस। उसर्में वह किपघ!ी हुई आग की शराब नहीं है 5ो अभी तक चन्दर के होठों पर धधकती र्थी, चन्दर के स्पश� र्में किबखरती र्थी।

''कुछ तबीयत खराब है कपूर, बैठ 5ाओ!'' पम्र्मी ने उठकर चन्दर को 5बरदस्ती किबठा! दिदया, ''आ5क! बहुत र्मेहनत पड़ती है, क्यों? च!ो, तुर्म हर्मारे यहाँ रहो!''

पम्र्मी र्में केव! शरीर की प्यास र्थी, यह कहना पम्र्मी के प्रकित अन्याय होगा। पम्र्मी र्में एक बहुत गहरी हर्मदद\ र्थी चन्दर के लि!ए। चन्दर अगर शरीर की प्यास को 5ीत भी !ेता तो उसकी हर्मदद\ को वह नहीं ठुकरा पाता र्था। उस हर्मदद\ का कितरस्कार होने से पम्र्मी दु:खी होती र्थी और उसे वह तभी स्वीकृत सर्मझती र्थी 5ब चन्दर उसके रूप के आकष�ण र्में डूबा रहे। अगर पुरुषों के होठों र्में तीखी प्यास न हो, बाहुपाशों र्में 5हर न हो तो वासना की इस लिशलिर्थ!ता से नारी फौरन सर्मझ 5ाती है किक सम्बन्धों र्में दूरी आती 5ा रही है। सम्बन्धों की घकिनष्ठता को नापने का नारी के पास एक ही र्मापदंड है, चुम्बन का तीखापन!

चन्दर के र्मन र्में ही नहीं वरन स्पश� र्में भी इतनी किबखरती हुई उदासी र्थी, इतनी उपेक्षा र्थी किक पम्र्मी र्मर्मा�हत हो गयी। उसके लि!ए यह पह!ी परा5य र्थी! आ5क! पम्र्मी 5ान 5ाती र्थी किक चन्दर का रोर्म-रोर्म इस वक्त पम्र्मी की साँसों र्में डूबा हुआ है।

!ेकिकन पम्र्मी ने देखा किक चन्दर उसकी बाँहों र्में होते हुए भी दूर, बहुत दूर न 5ाने किकन किवचारों र्में उ!झा हुआ है। वह उससे दूर च!ा 5ा रहा है, बहुत दूर। पम्र्मी की धड़कनें अस्त-व्यस्त हो गयीं। उसकी सर्मझ र्में नहीं, आया वह क्या करे! चन्दर को क्या हो गया? क्या पम्र्मी का 5ादू KूK रहा है? पम्र्मी ने अपनी परा5य से कंुदिठत होकर अपना हार्थ हKा लि!या और चुपचाप र्मुँह फेरकर उधर देखने !गी। चन्दर चाहे जि5तना उदास हो !ेकिकन पम्र्मी की उदासी वह नहीं सह सकता र्था। बुरी या भ!ी, पम्र्मी इस वक्त उसकी सूनी जि5-दगी का अके!ा सहारा र्थी और पम्र्मी की हर्मदद\ का वह बहुत कृतज्ञ र्था। वह सर्मझ गया, पम्र्मी क्यों उदास है! उसने पम्र्मी का हार्थ खींच लि!या और अपने होठ उसकी हरे्थलि!यों पर रख दिदये और खींचकर पम्र्मी का लिसर अपने कंधे पर रख लि!या...

पुरुष के 5ीवन र्में एक क्षण आता है 5ब वासना उसकी कर्म5ोरी, उसकी प्यास, उसका नशा, उसका आवेश नहीं रह 5ाती। 5ब वासना उसकी हर्मदद\ का, उसकी सान्त्वना का साधन बन 5ाती है। 5ब वह नारी को इसलि!ए बाँहों र्में नहीं सर्मेKता किक उसकी बाँहें प्यासी हैं, वह इसलि!ए उसे बाँहों र्में सर्मेK !ेता है किक नारी अपना दुख भू! 5ाए। जि5स वक्त वह नारी की सीकिपया प!कों के नशे र्में नहीं वरन उसकी आँखों के आँसू सुखाने के लि!ए उसकी प!कों पर होठ रख देता है, 5ीवन के उस क्षण र्में पुरुष जि5स नारी से सहानुभूकित रखता है, उसके र्मन की परा5य को भु!ाने के लि!ए वह नारी को बाहुपाश के नशे र्में बह!ा देना चाहता है! !ेकिकन इन बाहुपाशों र्में प्यास 5रा भी नहीं होती, आग 5रा भी नहीं होती, लिसफ� नारी को बह!ावा देने का प्रयास र्माv होता है।

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इसर्में कोई सन्देह नहीं किक चन्दर के र्मन पर छाया हुआ पम्र्मी के रूप का गु!ाबी बाद! उचKता 5ा रहा र्था, नशा उखड़ा-सा रहा र्था। !ेकिकन चन्दर पम्र्मी को दु:खी नहीं करना चाहता र्था, वह भरसक पम्र्मी को बह!ाये रखता र्था...!ेकिकन उसके र्मन र्में कहीं-न-कहीं किफर अंतद्व�द्व का एक तूफान च!ने !गा र्था...

गेसू ने उसके सार्मने उसकी सा!-भर पह!े की जि5-दगी का वह लिचv रख दिदया र्था, जि5सकी एक झ!क उस अभागे को पाग! कर देने के लि!ए काफी र्थी। चन्दर 5ैसे-तैसे र्मन को पत्थर बनाकर, अपनी आत्र्मा को रूप की शराब र्में डुबोकर, अपने किवश्वासों र्में छ!कर उसको भु!ा पाया र्था। उसे 5ीता पाया र्था। !ेकिकन गेसू ने और गेसू की बातों ने 5ैसे उसके र्मन र्में र्मूर्च्छिच्छ-त पड़ी अक्षिभशाप की छाया र्में किफर प्राण-प्रकितष्ठा कर दी र्थी और आधी रात के स�ाKे र्में किफर चन्दर को सुनाई देता र्था किक उसके र्मन र्में कोई का!ी छाया बार-बार लिससकने !गती है और चन्दर के हृदय से Kकराकर वह रुदन बार-बार कहता र्था, ''देवता! तुर्मने र्मेरी हत्या कर डा!ी! र्मेरी हत्या, जि5से तुर्मने स्वग� और ईश्वर से बढ़कर र्माना र्था...'' और चन्दर इन आवा5ों से घबरा उठता र्था।

किवस्र्मरण की एक तरंग 5हाँ चन्दर को पम्र्मी के पास खींच !ायी र्थी, वहाँ अतीत के स्र्मरण की दूसरी तरंग उसे वेग र्में उ!झाकर 5ैसे किफर उसे दूर खींच !े 5ाने के लि!ए व्याकु! हो उठी। उसको !गा किक पम्र्मी के लि!ए उसके र्मन र्में 5ो र्मादक नशा र्था, उस पर ग्!ाकिन का कोहरा छाता 5ा रहा है और अभी तक उसने 5ो कुछ किकया र्था, उसके लि!ए उसी के र्मन र्में कहीं-न-कहीं पर हल्की-सी अरुलिच झ!कने !गी र्थी। किफर भी पम्र्मी का 5ादू बदस्तूर कायर्म र्था। वह पम्र्मी के प्रकित कृतज्ञ र्था और वह पम्र्मी को कहीं, किकसी भी हा!त र्में दुखी नहीं करना चाहता र्था। भ!े वह गुनाह करके अपनी कृतज्ञता 5ाकिहर क्यों न कर पाये, !ेकिकन 5ैसे किबनती के र्मन र्में चन्दर के प्रकित 5ो श्र»ा र्थी, वह नैकितकता-अनैकितकता के बन्धन से ऊपर उठकर र्थी, वैसे ही चन्दर के र्मन र्में पम्र्मी के प्रकित कृतज्ञता पुJय और पाप के बन्धन से ऊपर उठकर र्थी। किबनती ने एक दिदन चन्दर से कहा र्था किक यदिद वह चन्दर को असन्तुष्ट करती है, तो वह उसे इतना बड़ा गुनाह !गता है किक उसके सार्मने उसे किकसी भी पाप-पुJय की परवा नहीं है। उसी तरह चन्दर सोचता र्था किक सम्भव है किक उसका और पम्र्मी का यह सम्बन्ध पापर्मय हो, !ेकिकन इस सम्बन्ध को तोड़कर पम्र्मी को असन्तुष्ट और दु:खी करना इतना बड़ा पाप होगा 5ो अक्षम्य है।

!ेकिकन वह नशा KूK चुका र्था, वह साँस धीर्मी पड़ गयी र्थी...अपनी हर कोलिशश के बाव5ूद वह पम्र्मी को उदास होने से बचा न पाता र्था।

एक दिदन सुबह 5ब वह कॉ!े5 5ा रहा र्था किक पम्र्मी की कार आयी। पम्र्मी बहुत ही उदास र्थी। चन्दर ने आते ही उसका स्वागत किकया। उसके कानों र्में एक नी!े पत्थर का बुन्दा र्था, जि5सकी हल्की छाँह गा!ों पर पड़ रही र्थी। चन्दर ने झुककर वह नी!ी छाँह चूर्म !ी।

पम्र्मी कुछ नहीं बो!ी। वह बैठ गयी और किफर चन्दर से बो!ी, ''र्मैं !खनऊ 5ा रही हूँ, कपूर!''

''कब? आ5 ï?''

''हाँ, अभी कार से।''

''क्यों?''

''यों ही, र्मन ऊब गया! पता नहीं, कौन-सी छाँह र्मुझ पर छा गयी है। र्मैं शायद !खनऊ से र्मसूरी च!ी 5ाऊँ।''

''र्मैं तुम्हें 5ाने नहीं दँूगा, पह!े तो तुर्मने बताया नहीं!''

''तुम्हीं ने कहाँ पह!े बताया र्था!''

''क्या?''

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''कुछ भी नहीं! अच्छा, च! रही हूँ।''

''सुनो तो!''

''नहीं, अब रोक नहीं सकते तुर्म...बहुत दूर 5ाना है चन्दर...'' वह च! दी। किफर वह !ौKी और 5ैसे युगों-युगों की प्यास बुझा रही हो, चन्दर के ग!े र्में झू! गयी और कस लि!या चन्दर को...पाँच धिर्मनK बाद सहसा वह अ!ग हो गयी और किफर किबना कुछ बो!े अपनी कार र्में बैठ गयी। ''पम्र्मी...तुम्हें हुआ क्या यह?''

''कुछ नहीं, कपूर।'' पम्र्मी कार स्KाK� करते हुए बो!ी, ''र्मैं तुर्मसे जि5तनी ही दूर रहूँ उतना ही अच्छा है, र्मेरे लि!ए भी, तुम्हारे लि!ए भी! तुम्हारे इन दिदनों के व्यवहार ने र्मुझे बहुत कुछ लिसखा दिदया है?''

चन्दर लिसर से पैर तक ग्!ाकिन से कंुदिठत हो उठा। सचर्मुच वह किकतना अभागा है! वह किकसी को भी सन्तुष्ट नहीं रख पाया। उसके 5ीवन र्में सुधा भी आयी और पम्र्मी भी, एक को उसके पुJय ने उससे छीन लि!या, दूसरी को उसका गुनाह उससे छीने लि!ये 5ा रहा है। 5ाने उसके ग्रहों का र्मालि!क किकतना कू्रर खिख!ाड़ी है किक हर कदर्म पर उसकी राह उ!K देता है। नहीं, वह पम्र्मी को नहीं खो सकता-उसने पम्र्मी का कॉ!र पकड़ लि!या, ''पम्र्मी, तुम्हें हर्मारी कसर्म है-बुरा र्मत र्मानो! र्मैं तुम्हें 5ाने नहीं दँूगा।''

पम्र्मी हँसी-बड़ी ही करुण !ेकिकन सशक्त हँसी। अपने कॉ!र को धीरे्म-से छुड़ाकर चन्दर की अँगुलि!यों को कपो!ों से दबा दिदया और किफर वक्ष के पास से एक लि!फाफा किनका!कर चन्दर के हार्थों र्में दे दिदया और कार स्KाK� कर दी...पीछे र्मुडक़र नहीं देखा...नहीं देखा।

कार कड़ुवे धुए ँका बाद! चन्दर की ओर उड़ाकर आगे च! दी।

5ब कार ओझ! हो गयी, तब चन्दर को होश आया किक उसके हार्थ र्में एक लि!फाफा भी है। उसने सोचा, फौरन कार !ेकर 5ाये और पम्र्मी को रोक !े। किफर सोचा, पह!े पढ़ तो !े, यह है क्या ची5? उसने लि!फाफा खो!ा और पwऩे !गा-

''कपूर, एक दिदन तुम्हारी आवा5 और बK\ की चीख सुनकर अपूण� वेश र्में ही अपने शंृगार-गृह से भाग आयी र्थी और तुम्हें फू!ों के बीच र्में पाया र्था, आ5 तुम्हारी आवा5 र्मेरे लि!ए र्मूक हो गयी है और असन्तोष और उदासी के काँKों के बीच र्मैं तुम्हें छोडक़र 5ा रही हूँ।

5ा रही हूँ इसलि!ए किक अब तुम्हें र्मेरी 5रूरत नहीं रही। झूठ क्यों बो!ूँ, अब क्या, कभी भी तुम्हें र्मेरी 5रूरत नहीं रही र्थी, !ेकिकन र्मैंने हरे्मशा तुम्हारा दुरुपयोग किकया। झूठ क्यों बो!ें, तुर्म र्मेरे पकित से भी अधिधक सर्मीप रहे हो। तुर्मसे कुछ लिछपाऊँगी नहीं। र्मैं तुर्मसे धिर्म!ी र्थी, 5ब र्मैं एकाकी र्थी, उदास र्थी, !गता र्था किक उस सर्मय तुर्म र्मेरी सुनसान दुकिनया र्में रोशनी के देवदूत की तरह आये रे्थ। तुर्म उस सर्मय बहुत भो!े, बहुत सुकुर्मार, बहुत ही पकिवv रे्थ। र्मेरे र्मन र्में उस दिदन तुम्हारे लि!ए 5ाने किकतना प्यार उर्मड़ आया! र्मैं पाग! हो उठी। र्मैंने तुम्हें उस दिदन से!ार्मी की कहानी सुनायी र्थी, लिसनेर्मा घर र्में, उसी अभाकिगन से!ार्मी की तरह र्मैं भी पैगम्बर को चूर्मने के लि!ए व्याकु! हो उठी।

देखा, तुर्म पकिवvता को प्यार करते हो। सोचा, यदिद तुर्मसे प्यार ही 5ीतना है, तो तुर्मसे पकिवvता की ही बातें करँू। र्मैं 5ानती र्थी किक सेक्स प्यार का आवश्यक अंग है। !ेकिकन र्मन र्में तीखी प्यास !ेकर भी र्मैंने तुर्मसे सेक्स-किवरोधी बातें करनी शुरू कीं। र्मुँह पर पकिवvता और अन्दर र्में भोग का लिस»ान्त रखते हुए भी र्मेरा अंग-अंग प्यासा हो उठा र्था...तुम्हें होठों तक खींच !ायी र्थी, !ेकिकन किफर साहस नहीं हुआ।

किफर र्मैंने उस छोकरी को देखा, उस किनतान्त प्रकितभाहीन दुब�!र्मना छोकरी धिर्मस सुधा को। वह कुछ भी नहीं र्थी, !ेकिकन र्मैं देखते ही 5ान गयी र्थी किक तुम्हारे भाग्य का नक्षv है, 5ाने क्यों उसे देखते ही र्मैं अपना आत्र्मकिवश्वास खो-

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सा बैठी। उसके व्यलिक्तत्व र्में कुछ न होते हुए भी कर्म-से-कर्म अ5ब-सा 5ादू र्था, यह र्मैं भी स्वीकार करती हूँ, !ेकिकन र्थी वह छोकरी ही!

तुम्हें न पाने की किनराशा और तुम्हें न पाने की असीर्म प्यास, दोनों के पीस डा!ने वा!े संघष� से भागकर, र्मैं किहर्मा!य र्में च!ी आयी। जि5तना तीखा आकष�ण होता है कपूर कभी-कभी नारी उतनी ही दूर भागती है। अगर कोई प्या!ा र्मुँह से न !गाकर दूर फें क दे, तो सर्मझ !ो किक वह बेहद प्यासा है, इतना प्यासा किक तृस्टिप्त की कल्पना से भी घबराता है। दिदन-रात उस पहाड़ी की धव! चोदिKयों र्में तुम्हारी किनगाहें र्मुस्कराती र्थीं, पर र्मैं !ौKने का साहस न कर पाती र्थी।

!ौKी तो देखा किक तुर्म अके!े हो, किनराश हो। और र्थोड़ा-र्थोड़ा उ!झे हुए भी हो। पह!े र्मैंने तुर्म पर पकिवvता की आड़ र्में किव5य पानी चाही र्थी, अब तुर्म पर वासना का सहारा !ेकर छा गयी। तुर्म र्मुझे बुरा सर्मझ सकते हो, !ेकिकन काश किक तुर्म र्मेरी प्यास को सर्मझ पाते, कपूर! तुर्मने र्मुझे स्वीकार किकया। वैसे नहीं 5ैसे कोई फू! शबनर्म को स्वीकार करे। तुर्मने र्मुझे उस तरह स्वीकार किकया 5ैसे कोई बीर्मार आदर्मी र्माकिफया (अफीर्म) के इन्5ेक्शन को स्वीकार करे। तुम्हारी प्यासी और बीर्मार प्रवृक्षित्तयाँ बद!ी नहीं, लिसफ� बेहोश होकर सो गयीं।

!ेकिकन कपूर, पता नहीं किकसके स्पश� से वे एकाएक किबखर गयीं। र्मैं 5ानती हूँ, इधर तुर्मर्में क्या परिरवत�न आ गया है। र्मैं तुम्हें उसके लि!ए अपराधी नहीं ठहराती, कपूर ! र्मैं 5ानती हूँ तुर्म र्मेरे प्रकित अब भी किकतने कृतज्ञ हो, किकतने स्नेहशी! हो !ेकिकन अब तुर्मर्में वह प्यास नहीं, वह नशा नहीं। तुम्हारे र्मन की वासना अब र्मेरे लि!ए एक तरस र्में बद!ती 5ा रही है।

र्मुझे वह दिदन याद है, अच्छी तरह याद है चन्दर, 5ब तुम्हारे 5!ते हुए होठों ने इतनी गहरी वासना से र्मेरे होठों को सर्मेK लि!या र्था किक र्मेरे लि!ए अपना व्यलिक्तत्व ही एक सपना बन गया र्था। !गता र्था, सभी लिसतारों का ते5 भी इसकी एक लिचनगारी के सार्मने फीका है। !ेकिकन आ5 होठ होठ हैं, आग के फू! नहीं रहे-पह!े र्मेरी एक झ!क से तुम्हारे रोर्म-रोर्म र्में सैकड़ों इच्छाओं की आँधिधयाँ गर5 उठती र्थीं...आ5 तुम्हारी नसों का खून ठंडा है। तुम्हारी किनगाहें पर्थरायी हुई हैं और तुर्म इस तरह वासना र्मेरी ओर फें क देते हो, 5ैसे तुर्म किकसी पा!तू किबल्!ी को पावरोKी का Kुकड़ा दे रहे हो।

र्मैं 5ानती हूँ किक हर्म दोनों के सम्बन्धों की उष्णता खत्र्म हो गयी है। अब तुम्हारे र्मन र्में र्मह5 एक तरस है, एक कृतज्ञता है, और कपूर, वह र्मैं स्वीकार नहीं कर सकँूगी। क्षर्मा करना, र्मेरा भी स्वाक्षिभर्मान है।

!ेकिकन र्मैंने कह दिदया किक र्मैं तुर्मसे लिछपाऊँगी नहीं! तुर्म इस भ्रर्म र्में कभी र्मत रहना किक र्मैंने तुम्हें प्यार किकया र्था। पह!े र्मैं भी यही सोचती र्थी। क! र्मुझे !गा किक र्मैंने अपने को आ5 तक धोखा दिदया र्था। र्मैंने इधर तुम्हारी खिख�ता के बाद अपने 5ीवन पर बहुत सोचा, तो र्मुझे !गा किक प्यार 5ैसी स्थायी और गहरी भावना शायद र्मेरे 5ैसे रंगीन बकिहर्मु�ख स्वभावशा!ी के लि!ए है ही नहीं। प्यार 5ैसी गम्भीर और खतरनाक तूफानी भावना को अपने कन्धों पर wोने का खतरा देवता या बुजि»हीन ही उठा सकते हैं-तुर्म उसे वहन कर सकते हो (कर रहे हो। प्यार की प्रकितकिक्रया भी प्यार की ही परिरचायक है कपूर), र्मेरे लि!ए आँसुओं की !हरों र्में डूब 5ाना सम्भव नहीं। या तो प्यार आदर्मी को बाद!ों की ऊँचाई तक उठा !े 5ाता है, या स्वग� से पाता! र्में फें क देता है। !ेकिकन कुछ प्राणी हैं, 5ो न स्वग� के हैं न नरक के, वे दोनों !ोकों के बीच र्में अन्धकार की परतों र्में भKकते रहते हैं। वे किकसी को प्यार नहीं करते, छायाओं को पकड़ने का प्रयास करते हैं, या शायद प्यार करते हैं या किनरन्तर नयी अनुभूकितयों के पीछे दीवाने रहते हैं और प्यार किबल्कु! करते ही नहीं। उनको न दु:ख होता है न सुख, उनकी दुकिनया र्में केव! संशय, अण्डिस्थरता और प्यास होती है...कपूर, र्मैं उसी अभागे !ोक की एक प्यासी आत्र्मा र्थी। अपने एकान्त से घबराकर तुम्हें अपने बाहुपाश र्में बाँधकर तुम्हारे किवश्वास को स्वग� से खींच !ायी र्थी। तुर्म स्वग�-भ्रष्ट देवता, भू!कर र्मेरे अक्षिभशप्त !ोक र्में आ गये रे्थ।

आ5 र्मा!ूर्म होता है किक किफर तुम्हारे किवश्वास ने तुम्हें पुकारा है। र्मैं अपनी प्यास र्में खुद धधक उठँू, !ेकिकन तुम्हें र्मैंने अपना धिर्मv र्माना र्था। तुर्म पर र्मैं आँच नहीं आने देना चाहती। तुर्म र्मेरे योग्य नहीं, तुर्म अपने किवश्वासों के !ोक र्में !ौK 5ाओ।

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र्मैं 5ानती हूँ तुर्म र्मेरे लि!ए लिचस्टिन्तत हो। !ेकिकन र्मैंने अपना रास्ता किनक्षिश्चत कर लि!या है। स्vी किबना पुरुष के आश्रय के नहीं रह सकती। उस अभागी को 5ैसे प्रकृकित ने कोई अक्षिभशाप दे दिदया है।...र्मैं र्थक गयी हूँ इस पे्रर्म!ोक की भKकन से।...र्मैं अपने पकित के पास 5ा रही हूँ। वे क्षर्मा कर देंगे, र्मुझे किवश्वास है।

उन्हीं के पास क्यों 5ा रही हूँ? इसलि!ए र्मेरे धिर्मv, किक र्मैं अब सोच रही हूँ किक स्vी स्वाधीन नहीं रह सकती। उसके पास पत्नीत्व के लिसवा कोई चारा नहीं। 5हाँ 5रा स्वाधीन हुई किक बस उसी अन्धकूप र्में 5ा पड़ती है 5हाँ र्मैं र्थी। वह अपना शरीर भी खोकर तृस्टिप्त नहीं पाती। किफर प्यार से तो र्मेरा किवश्वास 5ैसे उठा 5ा रहा है, प्यार स्थायी नहीं होता। र्मैं ईसाई हूँ, पर सभी अनुभवों के बाद र्मुझे पता !गता है किक किहन्दुओं के यहाँ पे्रर्म नहीं वरन धर्म� और सार्माजि5क परिरण्डिस्थकितयों के आधार पर किववाह की रीकित बहुत वैज्ञाकिनक और नारी के लि!ए सबसे ज्यादा !ाभदायक है। उसर्में नारी को र्थोड़ा बन्धन चाहे क्यों न हो !ेकिकन दाधियत्व रहता है, सन्तोष रहता है, वह अपने घर की रानी रहती है। काश किक तुर्म सर्मझ पाते किक खु!े आकाश र्में इधर-उधर भKकने के बाद, तूफानों से !ड़ने के बाद र्मैं किकतनी आतुर हो उठी हूँ बन्धनों के लि!ए, और किकसी सशक्त डा! पर बने हुए सुखद, सुकोर्म! नीड़ र्में बसेरा !ेने के लि!ए। जि5स नीड़ को र्मैं इतने दिदनों पह!े उ5ाड़ चुकी र्थी, आ5 वह किफर र्मुझे पुकार रहा है। हर नारी के 5ीवन र्में यह क्षण आता है और शायद इसीलि!ए किहन्दू पे्रर्म के ब5ाय किववाह को अधिधक र्महत्व देते हैं।

र्मैं तुम्हारे पास नहीं रुकी। र्मैं 5ानती र्थी किक हर्म दोनों के सम्बन्धों र्में प्रारम्भ से इतनी किवलिचvताए ँर्थीं किक हर्म दोनों का सम्बन्ध स्थायी नहीं रह सकता र्था, किफर भी जि5न क्षणों र्में हर्म दोनों एक ही तूफान र्में फँस गये रे्थ, वे क्षण र्मेरे लि!ए अर्मूल्य किनधिध रहेंगे। तुर्म बुरा न र्मानना। र्मैं तुर्मसे 5रा भी नारा5 नहीं हूँ। र्मैं न अपने को गुनहगार र्मानती हूँ, न तुम्हें, किफर भी अगर तुर्म र्मेरी स!ाह र्मान सको तो र्मान !ेना। किकसी अच्छी-सी सीधी-सादी किहन्दू !ड़की से अपना किववाह कर !ेना। किकसी बहुत बौजि»क !ड़की, 5ो तुम्हें प्यार करने का दर्म भरती हो, उसके फन्दे र्में न फँसना कपूर, र्मैं उम्र और अनुभव दोनों र्में तुर्मसे बड़ी हूँ। किववाह र्में भावना या आकष�ण अकसर 5हर किबखेर देता है। ब्याह करने के बाद एक-आध र्महीने के लि!ए अपनी पत्नी सकिहत र्मेरे पास 5रूर आना, कपूर। र्मैं उसे देखकर वह सन्तोष पा !ँूगी, 5ो हर्मारी सभ्यता ने हर्म अभागों से छीन लि!या है।

अभी र्मैं सा! भर तक तुर्मसे नहीं धिर्म!ँूगी। र्मुझे तुर्मसे अब भी डर !गता है !ेकिकन इस बीच र्में तुर्म बK\ का खया! रखना। कभी-कभी उसे देख !ेना। रुपये की कर्मी तो उसे न होगी। बीवी भी उसे ऐसी धिर्म! गयी है, जि5सने उसे ठीक कर दिदया है...उस अभागे भाई से अ!ग होते हुए र्मुझे कैसा !ग रहा है, यह तुर्म 5ानते, अगर तुर्म बहन होते।

अग!ा पv तुम्हें तभी लि!खँूगी 5ब र्मेरे पकित से र्मेरा सर्मझौता हो 5ाएगा...नारा5 तो नहीं हो?

-प्रधिर्म!ा किडकू्र5।''

चन्दर पम्र्मी को !ौKाने नहीं गया। कॉ!े5 भी नहीं गया। एक !म्बा-सा खत किबनती को लि!खता रहा और इसकी प्रकितलि!किप कर दोनों नत्थी कर भे5 दिदये और उसके बाद र्थककर सो गया...किबना खाना खाये!

तीन

गर्मिर्म-यों की छुदिट्टयाँ हो गयी र्थीं और चन्दर छुदिट्टयाँ किबताने दिदल्!ी गया र्था। सुधा भी आयी हुई र्थी। !ेकिकन चन्दर और सुधा र्में बो!चा! नहीं र्थी। एक दिदन शार्म के वक्त डॉक्Kर साहब ने चन्दर से कहा, ''चन्दर, सुधा इधर बहुत अनर्मनी रहती है, 5ाओ इसे कहीं घुर्मा !ाओ।'' चन्दर बड़ी र्मुश्किश्क! से रा5ी हुआ। दोनों पह!े कनॉK प्!ेस पहुँचे। सुधा ने बहुत फीकी और KूKती हुई आवा5 र्में कहा, ''यहाँ बहुत भीड़ है, र्मेरी तबीयत घबराती है।'' चन्दर ने कार घुर्मा दी शहर से बाहर रोहतक की सड़क पर, दिदल्!ी से पन्द्रह र्मी! दूर। चन्दर ने एक बहुत हरी-भरी 5गह र्में कार रोक दी। किकसी बहुत पुराने पीर का KूKा-फूKा र्म5ार र्था और कब्र के चबूतरे को फोडक़र एक नीर्म का पेड़ उग आया र्था। चबूतरे के दो-तीन पत्थर किगर गये रे्थ। चार-पाँच नीर्म के पेड़ !गे रे्थ और कब्र के पत्थर के पास एक लिचराग बुझा हुआ पड़ा र्था और कई एक सूखी हुई फू!-र्मा!ाए ँहवा से उड़कर नीचे किगर गयी र्थीं। कब्र के आस-पास wेरों नीर्म के कितनके और सूखे हुए नीर्म के फू! 5र्मा रे्थ।

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सुधा 5ाकर चबूतरे पर बैठ गयी। दूर-दूर तक स�ाKा र्था। न आदर्मी न आदर्म5ाद। लिसफ� गोधूलि! के अ!साते हुए झोंकों र्में नीर्म चरर्मरा उठते रे्थ। चन्दर आकर सुधा की दूसरी ओर बैठ गया। चबूतरे पर इस ओर सुधा और उस ओर चन्दर, बीच र्में लिचर-नीरव कब्र...

सुधा र्थोड़ी देर बाद र्मुड़ी और चन्दर की ओर देखा। चन्दर एकKक कब्र की ओर देख रहा र्था। सुधा ने एक सूखा हार उठाया और चन्दर पर फें ककर कहा, ''चन्दर, क्या हरे्मशा र्मुझे इसी भयानक नरक र्में रखोगे? क्या सचर्मुच हरे्मशा के लि!ए तुम्हारा प्यार खो दिदया है र्मैंने?''

''र्मेरा प्यार?'' चन्दर हँसा, उसकी हँसी उस स�ाKे से भी ज्यादा भयंकर र्थी...''र्मेरा प्यार! अच्छी याद दिद!ायी तुर्मने! र्मैं आ5 प्यार र्में किवश्वास नहीं करता। या यह कहूँ किक प्यार के उस रूप र्में किवश्वास नहीं करता!''

''किफर?''

''किफर क्या, उस सर्मय र्मेरे र्मन र्में प्यार का र्मत!ब र्था त्याग, कल्पना, आदश�। आ5 र्मैं सर्मझ चुका हूँ किक यह सब झूठी बातें हैं, खोख!े सपने हैं!''

''तब?''

''तब! आ5 र्मैं किवश्वास करता हूँ किक प्यार के र्माने लिसफ� एक है; शरीर का सम्बन्ध! कर्म-से-कर्म औरत के लि!ए। औरत बड़ी बातें करेगी, आत्र्मा, पुन5�न्र्म, पर!ोक का धिर्म!न, !ेकिकन उसकी लिसजि» लिसफ� शरीर र्में है और वह अपने प्यार की र्मंजि5!ें पार कर पुरुष को अन्त र्में एक ही ची5 देती है-अपना शरीर। र्मैं तो अब यह किवश्वास करता हूँ सुधा किक वही औरत र्मुझे प्यार करती है 5ो र्मुझे शरीर दे सकती है। बस, इसके अ!ावा प्यार का कोई रूप अब र्मेरे भाग्य र्में नहीं।'' चन्दर की आँख र्में कुछ धधक रहा र्था...सुधा उठी, और चन्दर के पास खड़ी हो गयी-''चन्दर, तुर्म भी एक दिदन ऐसे हो 5ाओगे, इसकी र्मुझे कभी उम्र्मीद नहीं र्थी। काश किक तुर्म सर्मझ पाते किक...'' सुधा ने बहुत दद� भरे स्वर र्में कहा।

''स्नेह है!'' चन्दर ठठाकर हँस पड़ा-और उसने सुधा की ओर र्मुडक़र कहा, ''और अगर र्मैं उस स्नेह का प्रर्माण र्माँगँू तो? सुधा!'' दाँत पीसकर चन्दर बो!ा, ''अगर तुर्मसे तुम्हारा शरीर र्माँगँू तो?''

''चन्दर!'' सुधा चीखकर पीछे हK गयी। चन्दर उठा और पाग!ों की तरह उसने सुधा को पकड़ लि!या, ''यहाँ कोई नहीं है-लिसवा इस कब्र के। तुर्म क्या कर सकती हो? बहुत दिदन से र्मन र्में एक आग सु!ग रही है। आ5 तुम्हें बबा�द कर दँू तो र्मन की नारकीय वेदना बुझ 5ाए....बो!ो!'' उसने अपनी आँख की किपघ!ी हुई आग सुधा की आँखों र्में भरकर कहा।

सुधा क्षण-भर सहर्मी-पर्थरायी दृधिष्ट से चन्दर की ओर देखती रही किफर सहसा लिशलिर्थ! पड़ गयी और बो!ी, ''चन्दर, र्मैं किकसी की पत्नी हूँ। यह 5न्र्म उनका है। यह र्माँग का लिसन्दूर उनका है। इस शरीर का शंृगार उनका है। र्मुझ ग!ा घोंKकर र्मार डा!ो। र्मैंने तुम्हें बहुत तक!ीफ दी है। !ेकिकन...''

''!ेकिकन...'' चन्दर हँसा और सुधा को छोड़ दिदया, ''र्मैं तुम्हें स्नेह करती हूँ, !ेकिकन यह 5न्र्म उनका है। यह शरीर उनका है-ह:! ह:! क्या अन्दा5 हैं प्रवंचना के। 5ाओ सुधा...र्मैं तुर्मसे र्म5ाक कर रहा र्था। तुम्हारे इस 5ूठे तन र्में रखा क्या है?''

सुधा अ!ग हKकर खड़ी हो गयी। उसकी आँखों से लिचनगारिरयाँ झरने !गीं, ''चन्दर, तुर्म 5ानवर हो गये; र्मैं आ5 किकतनी शर्मिर्म-न्दा हूँ। इसर्में र्मेरा कसूर है, चन्दर! र्मैं अपने को दंड दँूगी, चन्दर! र्मैं र्मर 5ाऊँगी! !ेकिकन तुम्हें इंसान बनना पडे़गा, चन्दर!'' और सुधा ने अपना लिसर एक KूKे हुए खम्भे पर पKक दिदया।

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चन्दर की आँख खु! गयी, वह र्थोड़ी देर तक सपने पर सोचता रहा। किफर उठा। बहुत अ5ब-सा र्मन र्था उसका। बहुत पराजि5त, बहुत खोया हुआ-सा, बेहद खिखलिसयाहK से भरा हुआ र्था। उसके र्मन र्में एकाएक खया! आया किक वह किकसी र्मनोरं5न र्में 5ाकर अपने को डुबो दे-बहुत दिदनों से उसने लिसनेर्मा नहीं देखा र्था। उन दिदनों बना�ड� शॉ का 'सी5र ऐंड ण्डिक्!योपेट्रा' !गा हुआ र्था, उसने सोचा किक पम्र्मी की धिर्मvता का परिरपाक लिसनेर्मा र्में हुआ र्था, उसका अन्त भी वह लिसनेर्मा देखकर र्मनाएगा। उसने कपडे़ पहने, चार ब5े से र्मैदिKनी र्थी, और वक्त हो रहा र्था। कपडे़ पहनकर वह शीशे के सार्मने आकर बा! सँवारने !गा। उसे !गा, शीशे र्में पड़ती हुई उसकी छाया उससे कुछ क्षिभ� है, उसने और गौर से देखा-छाया रहस्यर्मय wंग से र्मुस्करा रही र्थी; वह सहसा बो!ी-

''क्या देख रहा है?'' 'र्मुखड़ा क्या देखे दरपन र्में।' एक !ड़की से पराजि5त और दूसरी से सपने र्में प्रकितपिह-सा !ेने का क!ंक नहीं दिदख पड़ता तुझे? अपनी छकिव किनरख रहा है? पापी! पकितत!''

कर्मरे की दीवारों ने दोहराया-''पापी! पकितत!''

चन्दर तड़प उठा, पाग!-सा हो उठा। कंघा फें ककर बो!ा, ''कौन है पापी? र्मैं हूँ पापी? र्मैं हूँ पकितत? र्मुझे तुर्म नहीं सर्मझते। र्मैं लिचर-पकिवv हूँ। र्मुझे कोई नहीं 5ानता।''

''कोई नहीं 5ानता! हा, हा!'' प्रकितकिबम्ब हँसा, ''र्मैं तुम्हारी नस-नस 5ानता हूँ। तुर्म वही हो न जि5सने आ5 से डेढ़ सा! पह!े सपना देखा सुधा के हार्थ से !ेकर अर्मृत बाँKने का, दुकिनया को नया सन्देश देकर पैगम्बर बनने का। नया सन्देश! खूब नया सन्देश दिदया र्मसीहा! पम्र्मी...किबनती...सुधा...कुछ और छोकरिरयाँ बKोर !े। चरिरvहीन!''

''र्मैंने किकसी को नहीं बKोरा! 5ो र्मेरी जि5-दगी र्में आया, अपने-आप आया, 5ो च!ा गया, उसे र्मैंने रोका नहीं। र्मेरे र्मन र्में कहीं भी अहर्म की प्यास नहीं र्थी, कभी भी स्वार्थ� नहीं र्था। क्या र्मैं चाहता तो सुधा को अपने एक इशारे से अपनी बाँहों र्में नहीं बाँध सकता र्था!''

''शाबाश! और नहीं बाँध पाये तो सुधा से भी 5ी भरकर बद!ा किनका! रहा है। वह र्मर रही है और तू उस पर नर्मक लिछड़कने से बा5 नहीं आया। और आ5 तो उसे एकान्त र्में भ्रष्ट करने का सपना देख अपनी प!कों को देवर्मजिन्दर की तरह पकिवv बना लि!या तूने! किकतनी उ�कित की है तेरी आत्र्मा ने! इधर आ, तेरा हार्थ चूर्म !ँू।''

''चुप रहो! परा5य की इस वे!ा र्में कोई भी वं्यग्य करने से बा5 नहीं आता। र्मैं पाग! हो 5ाऊँगा।''

''और अभी क्या पाग!ों से कर्म है तू? अहंकारी पशु! तू बK\ से भी गया-गु5रा है। बK\ पाग! र्था, !ेकिकन पाग! कुत्तों की तरह काKना नहीं 5ानता र्था। तू काKना भी 5ानता है और अपने भयानक पाग!पन को साधना और त्याग भी साकिबत करता रहता है। दम्भी!''

''बस करो, अब तुर्म सीर्मा !ाँघ रहे हो।'' चन्दर ने र्मुदिठ्ठयाँ कसकर 5वाब दिदया।

''क्यों, गुस्सा हो गये, र्मेरे दोस्त! अहंवादी इतने बडे़ हो और अपनी तस्वीर देखकर नारा5 होते हो! आओ, तुम्हें आकिहस्ते से सर्मझाऊँ, अभागे! तू कहता है तूने स्वार्थ� नहीं किकया। किवक!ांग देवता! वही स्वार्थr है 5ो अपने से ऊपर नहीं उठ पाता! तेरे लि!ए अपनी एक साँस भी दूसरे के र्मन के तूफान से भी ज्यादा र्महत्वपूण� रही है। तूने अपने र्मन की उपेक्षा के पीछे सुधा को भट्टी र्में झोंक दिदया। पम्र्मी के अस्वस्थ र्मन को पहचानकर भी उसके रूप का उपभोग करने र्में नहीं किहचका, किबनती को प्यार न करते हुए भी किबनती को तूने स्वीकार किकया, किफर सबों का कितरस्कार करता गया...और कहता है तू स्वार्थr नहीं। बK\ पाग! हो !ेकिकन स्वार्थr नहीं है।''

''ठहरो, गालि!याँ र्मत दो, र्मुझे सर्मझाओ न किक र्मेरे 5ीवन-दश�न र्में कहाँ पर ग!ती रही है! गालि!यों से र्मेरा कोई सर्मझौता नहीं।''

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''अच्छा, सर्मझो! देखो, र्मैं यह नहीं कहता किक तुर्म ईर्मानदार नहीं हो, तुर्म शलिक्तशा!ी नहीं हो, !ेकिकन तुर्म अन्तर्मु�खी रहे, घोर व्यलिक्तवादी रहे, अहंकारग्रस्त रहे। अपने र्मन की किवकृकितयों को भी तुर्मने अपनी ताकत सर्मझने की कोलिशश की। कोई भी 5ीवन-दश�न सफ! नहीं होता अगर उसर्में बाह्य यर्थार्थ� और व्यापक सत्य धूप-छाँह की तरह न धिर्म!ा हो। र्मैं र्मानता हूँ किक तूने सुधा के सार्थ ऊँचाई किनभायी, !ेकिकन अगर तेरे व्यलिक्तत्व को, तेरे र्मन को, 5रा-सी ठेस पहुँचती तो तू गुर्मराह हो गया होता। तूने सुधा के स्नेह का किनषेध कर दिदया। तूने किबनती की श्र»ा का कितरस्कार किकया। तूने पम्र्मी की पकिवvता भ्रष्ट की...और इसे अपनी साधना सर्मझता है? तू याद कर; कहाँ र्था तू एक वष� पह!े और अब कहाँ है?''

चन्दर ने बड़ी कातरता से प्रकितकिबम्ब की ओर देखा और बो!ा, ''र्मैं 5ानता हूँ, र्मैं गुर्मराह हूँ !ेकिकन बेईर्मान नहीं! तुर्म र्मुझे क्यों धिधक्कार रहे हो! तुर्म कोई रास्ता बता दो न! एक बार उसे भी आ5र्मा !ँू।''

''रास्ता बताऊँ! 5ो रास्ता तुर्मने एक बार बनाया र्था, उसी पर तुर्म र्म5बूत रह पाये? किफर क्या एक के बाद दूसरे रास्ते पर चह!दर्मी करना चाहते हो? देखो कपूर, ध्यान से सुनो। तुर्मसे शायद किकसी ने कभी कहा र्था, शायद बK\ ने कहा र्था किक आदर्मी तभी तक बड़ा रहता है 5ब तक वह किनषेध करता च!ता है। पता नहीं किकस र्मानलिसक आवेश र्में एक के बाद दूसरे तत्व का किवध्वंस और किवनाश करता च!ता है। हर चट्टान को उखाड़क फें कता रहता है और तुर्मने यही 5ीवन-दश�न अपना लि!या र्था, भू! से या अपने अन5ाने र्में ही। तुम्हारी आत्र्मा र्में एक शलिक्त र्थी, एक तूफान र्था। !ेकिकन यह !क्ष्य भ्रष्ट र्था। तुम्हारी जि5-दगी र्में !हरें उठने !गीं !ेकिकन गहराई नहीं। और याद रखो चन्दर, सत्य उसे धिर्म!ता है जि5सकी आत्र्मा शान्त और गहरी होती है सर्मुद्र की गहराई की तरह। सर्मुद्र की ऊपरी सतह की तरह 5ो किवकु्षब्ध और तूफानी होता है, उसके अंतद्व�द्व र्में चाहे किकतनी गर5 हो !ेकिकन सत्य की शान्त अर्मृतर्मयी आवा5 नहीं होती।''

''!ेकिकन वह गहराई र्मुझे धिर्म!ी नहीं?''

''बताता हूँ-घबराते क्यों हो! देखो, तुर्मर्में बहुत बड़ा अधैय� रहा है। शलिक्त रही, पर धैय� और दृढ़ता किबल्कु! नहीं। तुर्म गम्भीर सर्मुद्रत! न बनकर एक सशक्त !ेकिकन अशान्त !हर बन गये 5ो हर किकनारे से Kकराकर उसे तोड़ने के लि!ए व्यग्र हो उठी। तुर्मर्में ठहराव नहीं र्था। साधना नहीं र्थी! 5ानते हो क्यों? तुम्हें 5हाँ से 5रा भी तक!ीफ धिर्म!ी, अवरोध धिर्म!ा वहीं से तुर्मने अपना हार्थ खींच लि!या! वहीं तुर्म भाग खडे़ हुए। तुर्मने हरे्मशा उसका किनषेध किकया-पह!े तुर्मने सर्मा5 का किनषेध किकया, व्यलिक्त को साधना का केन्द्र बनाया; किफर व्यलिक्त का भी किनषेध किकया। अपने किवचारों र्में, अन्तर्मु�खी भावनाओं र्में डूब गये, कर्म� का किनषेध किकया। किफर तो कर्म� र्में ऐसी भागदौड़, ऐसी किवरु्मखता शुरू हुई किक बस! न र्मानवता का प्यार 5ीवन र्में प्रकितफलि!त कर सका, न सुधा का। पम्र्मी हो या किबनती, हरेक से तू किनण्टिष्क्रय खिख!ौने की तरह खे!ता गया। काश किक तूने सर्मा5 के लि!ए कुछ किकया होता! सुधा के लि!ए कुछ किकया होता !ेकिकन तू कुछ न कर पाया। जि5सने तुझे जि5धर चाहा उधर उत्प्रेरिरत कर दिदया और तू अंधे और इच्छाकिवहीन परतंv अंधड़ की तरह उधर ही हू-हू करता हुआ दौड़ गया। र्माना र्मैंने किक सर्मा5 के आधार पर बने 5ीवन-दश�न र्में कुछ कधिर्मयाँ हैं: !ेकिकन अंशत: ही उसे स्वीकार कर कुछ कार्म करता, र्माना किक सुधा के प्यार से तुझे तक!ीफ हुई पर उसकी र्महत्ता के ही आधार पर तू कुछ किनर्मा�ण कर !े 5ाता। !ेकिकन तू तो 5रा-से अवरोध के बहाने सम्पूण� का किनषेध करता गया। तेरा 5ीवन किनषेधों की किनण्टिष्क्रयता की र्मानलिसक प्रकितकिक्रयाओं की शंृख!ा रहा है। अभागे, तूने हरे्मशा जि5-दगी का किनषेध किकया है। दुकिनया को स्वीकार करता, यर्थार्थ� को स्वीकार करता, जि5-दगी को स्वीकार करता और उसके आधार पर अपने र्मन को, अपने र्मन के प्यार को, अपने 5ीवन को सन्तुलि!त करता, आगे बढ़ता !ेकिकन तूने अपनी र्मन की गंगा को व्यलिक्त की छोKी-सी सीर्मा र्में बाँध लि!या, उसे एक पोखरा बना दिदया, पानी सड़ गया, उसर्में गंध आने !गी, सुधा के प्यार की सीपी जि5सर्में सत्य और सफ!ता का र्मोती बन सकता र्था, वह र्मर गयी और रुके हुए पानी र्में किवकृकित और वासना के कीडे़ कु!बु!ाने !गे। शाबाश! क्या अर्मृत पाया है तूने! धन्य है, अर्मृत-पुv!''

''बस करो! यह वं्यग्य र्मैं नहीं सह सकता! र्मैं क्या करता!''

''कैसी !ाचारी का स्वर है! लिछह, असफ! पैगम्बर! साधना यर्थार्थ� को स्वीकार करके च!ती है, उसका किनषेध करके नहीं। हर्मारे यहाँ ईश्वर को कहा गया है नेकित नेकित, इसका र्मत!ब यह नहीं किक ईश्वर परर्म किनषेध स्वरूप है। ग!त,

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नेकित र्में 'न' तो केव! एक वण� है। 'इकित' दो वण� हैं। एक किनषेध तो कर्म-से-कर्म दो स्वीकृकितयाँ। इसी अनुपात र्में कल्पना और यर्थार्थ� का सर्मन्वय क्यों नहीं किकया तूने?''

''र्मैं नहीं सर्मझ पाता-यह दश�न र्मेरी सर्मझ र्में नहीं आता!''

''देखो, इसको ऐसे सर्मझो। घबराओ र्मत! कै!ाश ने अगर नारी के व्यलिक्तत्व को नहीं सर्मझा, सुधा की पकिवvता को कितरस्कृत किकया, !ेकिकन उसने सर्मा5 के लि!ए कुछ तो किकया। गेसू ने अपने किववाह का किनषेध किकया, !ेकिकन अख्तर के प्रकित अपने प्यार का किनषेध तो नहीं किकया। अपने व्यलिक्तत्व का किनर्मा�ण किकया। अपने चरिरv का किनर्मा�ण किकया। यानी गेसू, एक !ड़की से तुर्म हार गये, लिछह!''

''!ेकिकन र्मैं किकतना र्थक गया र्था, यह तो सोचो। र्मन को किकतनी ऊँची-नीची घादिKयों से, र्मौत से भी भयानक रास्तों से गु5रने र्में और कोई होता तो र्मर गया होगा। र्मैं जि5-दा तो हूँ!''

''वाह, क्या जि5-दगी है!''

''तो क्या करँू, यह रास्ता छोड़ दँू? यह व्यलिक्तत्व तोड़ डा!ँू?''

''किफर वही किनषेध और किवध्वंस की बातें। लिछह देखो, च!ने को तो गाड़ी का बै! भी रास्ते पर च!ता है! !ेकिकन सैकड़ों र्मी! च!ने के बाद भी वह गाड़ी का बै! ही बना रहता है। क्या तुर्म गाड़ी के बै! बनना चाहते हो? नहीं कपूर! आदर्मी जि5-दगी का सफर तय करता है। राह की ठोकरें और र्मुसीबतें उसके व्यलिक्तत्व को पुख्ता बनाती च!ती हैं, उसकी आत्र्मा को परिरपक्व बनाती च!ती हैं। क्या तुर्मर्में परिरपक्वता आयी? नहीं। र्मैं 5ानता हूँ, तुर्म अब र्मेरा भी किनषेध करना चाहते हो। तुर्म र्मेरी आवा5 को भी चुप करना चाहते हो। आत्र्म-प्रवंचना तो तेरा पेशा हो गया है। किकतना खतरनाक है तू अब...तू र्मेरा भी...कितरस्कार...करना...चाहता...है।'' और छाया, धीरे-धीरे एक वह किबन्दु बनकर अदृश्य हो गयी।

चन्दर चुपचाप शीशे के सार्मने खड़ा रहा।

किफर वह लिसनेर्मा नहीं गया।

चन्दर सहसा बहुत शान्त हो गया। एक ऐसे भो!े बच्चे की तरह जि5सने अपराध कर्म किकया, जि5ससे नुकसान ज्यादा हो गया र्था, और जि5स पर डाँK बहुत पड़ी र्थी। अपने अपराध की चेतना से वह बो! भी नहीं पाता र्था। अपना सारा दुख अपने ऊपर उतार !ेना चाहता र्था। वहाँ एक ऐसा स�ाKा र्था 5ो न किकसी को आने के लि!ए आर्मस्टिन्vत कर सकता र्था, न किकसी को 5ाने से रोक सकता र्था। वह एक ऐसा र्मैदान र्था जि5स पर की सारी पगडंकिडयाँ तक धिर्मK गयी हों; एक ऐसी डा! र्थी जि5स पर के सारे फू! झर गये हों, सारे घोंस!े उ5ड़ गये हों। र्मन र्में उसके असीर्म कंुठा और वेदना र्थी, ऐसा र्था किक कोई उसके घाव छू !े तो वह आँसुओं र्में किबखर पडे़। वह चाहता र्था, वह सबसे क्षर्मा र्माँग !े, किबनती से, पम्र्मी से, सुधा से और किफर हरे्मशा के लि!ए उनकी दुकिनया से च!ा 5ाए। किकतना दुख दिदया र्था उसने सबको!

इसी र्मन:ण्डिस्थकित र्में एक दिदन गेसू ने उसे बु!ाया। वह गया। गेसू की अम्र्मी5ान तो सार्मने आयीं पर गेसू ने परदे र्में से ही बातें कीं। गेसू ने बताया किक सुधा का खत आया है किक वह 5ल्दी ही आएगी, गेसू से धिर्म!ने। गेसू को बहुत ताज्जुब हुआ किक चन्दर के पास कोई खबर क्यों नहीं आयी!

चन्दर 5ब घर पहुँचा तो कै!ाश का एक खत धिर्म!ा-

''किप्रय चन्दर,

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बहुत दिदन से तुम्हारा कोई खत नहीं आया, न र्मेरे पास न इनके पास। क्या नारा5 हो हर्म दोनों से? अच्छा तो !ो, तुम्हें एक खुशखबरी सुना दँू। र्मैं सांस्कृकितक धिर्मशन र्में शायद ऑस्टे्रलि!या 5ाऊँ। डॉक्Kर साहब ने कोलिशश कर दी है। आधा रुपया र्मेरा, आधा सरकार का।

तुम्हें भ!ा क्या फुरसत धिर्म!ेगी यहाँ आने की! र्मैं ही इन्हें !ेकर दो रो5 के लि!ए आऊँगा। इनकी कोई र्मुस!र्मान सखी है वहाँ, उससे ये भी धिर्म!ना चाहती हैं। हर्मारी खाकितर का इन्त5ार्म रखना-र्मैं 11 र्मई को सुबह की गाड़ी से पहुँचँूगा।

तुम्हारा-कै!ाश।''

सुधा के आने के पह!े चन्दर ने घर की ओर न5र दौड़ायी। लिसवा ड्राइंगरूर्म और !ॉन के सचर्मुच बाकी घर इतना गन्दा पड़ा र्था किक गेसू सच ही कह रही र्थी किक 5ैसे घर र्में पे्रत रहते हों। आदर्मी चाहे जि5तना सफाई-पसन्द और सुरुलिचपूण� क्यों न हो, !ेकिकन औरत के हार्थ र्में 5ाने क्या 5ादू है किक वह घर को छूकर ही चर्मका देती है। औरत के किबना घर की व्यवस्था सँभ! ही नहीं सकती। सुधा और किबनती कोई भी नहीं र्थी और तीन ही र्महीने र्में बँग!े का रूप किबगड़ गया र्था।

उसने सारा बँग!ा साफ कराया। हा!ाँकिक दो ही दिदन के लि!ए सुधा और कै!ाश आ रहे रे्थ, !ेकिकन उसने इस तरह बँग!े की सफाई करायी 5ैसे कोई नया सर्मारोह हो। सुधा का कर्मरा बहुत स5ा दिदया र्था और सुधा की छत पर दो प!ँग ड!वा दिदये रे्थ। !ेकिकन इन सब इंत5ार्मों के पीछे उतनी ही किनण्टिष्क्रय भावहीनता र्थी 5ैसे किक वह एक होK! का र्मैने5र हो और दो आगन्तुकों का इन्त5ार्म कर रहा हो। बस।

र्मानसून के दिदनों र्में अगर कभी किकसी ने गौर किकया हो तो बारिरश होने के पह!े ही हवा र्में एक नर्मी, पक्षित्तयों पर एक हरिरया!ी और र्मन र्में एक उरं्मग-सी छा 5ाती है। आसर्मान का रंग बत!ा देता है किक बाद! छानेवा!े हैं, बँूदें रिरर्मजिझर्माने वा!ी हैं। 5ब बाद! बहुत न5दीक आ 5ाते हैं, बँूदें पड़ने के पह!े ही दूर पर किगरती हुई बँूदों की आवा5 वातावरण पर छा 5ाती है, जि5से धुरवा कहते हैं।

ज्यों-ज्यों सुधा के आने का दिदन न5दीक आ रहा र्था, चन्दर के र्मन र्में हवाए ँकरवKें बद!ने !ग गयी र्थीं। र्मन र्में उदास सुनसान र्में धुरवा उर्मड़ने-घुर्मड़ने !गा र्था। र्मन उदास सुनसान आकु! प्रतीक्षा र्में बेचैन हो उठा र्था। चन्दर अपने को सर्मझ नहीं पा रहा र्था। नसों र्में एक अ5ीब-सी घबराहK र्मच!ने !गी र्थी, जि5सका वह किवशे्लषण नहीं करना चाहता र्था। उसका व्यलिक्तत्व अब पता नहीं क्यों कुछ भयभीत-सा र्था।

इम्तहान खत्र्म हो रहे रे्थ, और 5ब र्मन की बेचैनी बहुत बढ़ 5ाती र्थी तो परीक्षकों की आदत के र्मुताकिबक वह काकिपयाँ 5ाँचने बैठ 5ाता र्था। जि5स सर्मय परीक्षकों के घर र्में पारिरवारिरक क!ह हो, र्मन र्में अंतद्व�द्व हो या दिदर्माग र्में किफतूर हो, उस सर्मय उन्हें कॉकिपयाँ 5ाँचने से अच्छा शरणस्थ! नहीं धिर्म!ता। अपने 5ीवन की परीक्षा र्में फे! हो 5ाने की खीझ उतारने के लि!ए !डक़ों को फे! करने के अ!ावा कोई अच्छा रास्ता ही नहीं है। चन्दर 5ब बेहद दु:खी होता तो वह कॉकिपयाँ 5ाँचता।

जि5स दिदन सुबह सुधा आ रही र्थी, उस रात को तो चन्दर का र्मन किबल्कु! बेकाबू-सा हो गया। !गता र्था 5ैसे उसने सोचने-किवचाने से ही इनकार कर दिदया हो। उस दिदन चन्दर एक क्षण को भी अके!ा न रहकर भीड़-भाड़ र्में खो 5ाना चाहता र्था। सुबह वह गंगा नहाने गया, कार !ेकर। कॉ!े5 से !ौKकर दोपहर को अपने एक धिर्मv के यहाँ च!ा गया। !ौKकर आया तो नहाकर एक किकताब की दुकान पर च!ा गया और शार्म होने तक वहीं खड़ा-खड़ा किकताबें उ!Kता और खरीदता रहा। वहाँ उसने किबसरिरया का गीत-संग्रह देखा 5ो 'किबनती' नार्म बद! उसने 'किवप्!व' नार्म से छपवा लि!या र्था और प्रर्मुख प्रगकितशी! ककिव बन गया र्था। उसने वह संग्रह भी खरीद लि!या।

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अब सुधा के आने र्में र्मुश्किश्क! से बारह घंKे की देर र्थी। उसकी तबीयत बहुत घबराने !गी र्थी और वह किबसरिरया के काव्य-संग्रह र्में डूब गया। उन सडे़ हुए गीतों र्में ही अपने को भु!ाने की कोलिशश करने !गा और अन्त र्में उसने अपने को इतना र्थका डा!ा किक तीन ब5े का अ!ार्म� !गाकर वह सो गया। सुधा की गाड़ी साढे़ चार ब5े आती र्थी।

5ब वह 5ागा तो रात अपने र्मखर्म!ी पंख पसारे नींद र्में डूबी हुई दुकिनया पर शास्टिन्त का आशीवा�द किबखेर रही र्थी। ठंडे झोंके !हरा रहे रे्थ और उन झोंकों पर पकिवvता छायी हुई र्थी। यह पछुआ के झोंके रे्थ। ब्राह्म र्मुहूत� र्में प्राचीन आय� ने 5ो रहस्य पाया र्था, वह धीरे-धीरे चन्दर की आँखों के सार्मने खु!ने-सा !गा। उसे !गा 5ैसे यह उसके व्यलिक्तत्व की नयी सुबह है। एक बड़ा शान्त संगीत उसकी प!कों पर ओस की तरह लिर्थरकने !गा।

क्षिक्षकित5 के पास एक बड़ा-सा लिसतारा 5गर्मगा रहा र्था! चन्दर को !गा 5ैसे यह उसके प्यार का लिसतारा है 5ो 5ाने किकस अज्ञात पाता! र्में डूब गया र्था और आ5 से वह किफर उग गया है। उसने एक अन्धकिवश्वासी भो!े बच्चे की तरह उस लिसतारे को हार्थ 5ोडक़र कहा, ''र्मेरी कंचन 5ैसी सुधा रानी के प्यार, तुर्म कहाँ खो गये रे्थ? तुर्म र्मेरे सार्मने नहीं रहे, र्मैं 5ाने किकन तूफानों र्में उ!झ गया र्था। र्मेरी आत्र्मा र्में सारी गुरुता सुधा के प्यार की र्थी। उसे र्मैंने खो दिदया। उसके बाद र्मेरी आत्र्मा पी!े पत्ते की तरह तूफान र्में उड़कर 5ाने किकस कीचड़ र्में फँस गयी र्थी। तुर्म र्मेरी सुधा के प्यार हो न! र्मैंने तुम्हें सुधा की भो!ी आँखों र्में 5गर्मगाते हुए देखा र्था। वेदर्मंvों-5ैसे इस पकिवv सुबह र्में आ5 किफर र्मेरे पाप र्में लि!प्त तन को अर्मृत से धोने आये हो। र्मैं किवश्वास दिद!ाता हूँ किक आ5 सुधा के चरणों पर अपने 5ीवन के सारे गुनाहों को चढ़ाकर हरे्मशा के लि!ए क्षर्मा र्माँग !ँूगा। !ेकिकन र्मेरी साँसों की साँस सुधा! र्मुझे क्षर्मा कर दोगी न?'' और किवलिचv-से भावावेश और पु!क से उसकी आँख र्में आँसू आ गये। उसे याद आया किक एक दिदन सुधा ने उसकी हरे्थलि!यों को होठों से !गाकर कहा र्था-5ाओ, आ5 तुर्म सुधा के स्पश� से पकिवv हो...काश किक आ5 भी सुधा अपने धिर्मसरी-5ैसे होठों से चन्दर की आत्र्मा को चूर्मकर कहे-5ाओ चन्दर, अभी तक जि5-दगी के तूफान ने तुम्हारी आत्र्मा को बीर्मार, अपकिवv कर दिदया र्था...आ5 से तुर्म वही चन्दर हो। अपनी सुधा के चन्दर। हरिरणी-5ैसी भो!ी-भा!ी सुधा के र्महान पकिवv चन्दर...

तैयार होकर चन्दर 5ब स्Kेशन पहुँचा तो वह 5ैसे र्मोहाकिवष्ट-सा र्था। 5ैसे वह किकसी 5ादू या Kोना पढ़ा-हुआ-सा घूर्म रहा र्था और वह 5ादू र्था सुधा के प्यार का पुनरावत�न।

गाड़ी घंKा-भर !ेK र्थी। चन्दर को एक प! काKना र्मुश्किश्क! हो रहा र्था। अन्त र्में लिसगन! डाउन हुआ। कुलि!यों र्में ह!च! र्मची और चन्दर पKरी पर झुककर देखने !गा। सुबह हो गयी र्थी और इं5न दूर पर एक का!े दाग-सा दिदखाई पड़ रहा र्था, धीरे-धीरे वह दाग बड़ा होने !गा और !म्बी-सी हरी पँूछ की तरह !हराती हुई टे्रन आती दिदखाई पड़ी। चन्दर के र्मन र्में आया, वह पाग! की तरह दौड़कर वहाँ पहुँच 5ाए। जि5स दिदन एक घोर अकिवश्वासी र्में किवश्वास 5ाग 5ाता है, उस दिदन वह पाग!-सा हो उठता है। उसे !ग रहा र्था 5ैसे इस गाड़ी र्में सभी किडब्बे खा!ी हैं। लिसफ� एक किडब्बे र्में अके!ी सुधा होगी। 5ो आते ही चन्दर को अपनी प्यार-भरी किनगाहों र्में सर्मेK !ेगी।

गाड़ी के प्!ेKफार्म� पर आते ही ह!च! बढ़ गयी। कुलि!यों की दौड़धूप, र्मुसाकिफरों की हड़बड़ी, सार्मान की उठा-धरी से प्!ेKफॉर्म� भर गया। चन्दर पाग!ों-सा इस सब भीड़ को चीरकर किडब्बे देखने !गा। एक दफे पूरी गाड़ी का चक्कर !गा गया। कहीं भी सुधा नहीं दिदखाई दी। 5ैसे आँसू से उसका ग!ा रँुधने !गा। क्या आये नहीं ये !ोग! किकस्र्मत किकतना वं्यग्य करती है उससे! आ5 5ब वह किकसी के चरणों पर अपनी आत्र्मा उत्सग� कर किफर पकिवv होना चाहता र्था तो सुधा ही नहीं आयी। उसने एक चक्कर और !गाया और किनराश होकर !ौK पड़ा। सहसा सेकें ड क्!ास के एक छोKे-से किडब्बे र्में से कै!ाश ने झाँककर कहा, ''कपूर!''

चन्दर र्मुड़ा, देखा किक कै!ाश झाँक रहा है। एक कु!ी सार्मान उतारकर खड़ा है। सुधा नहीं है।

5ैसे किकसी ने झोंके से उसके र्मन का दीप बुझा दिदया। सार्मान बहुत र्थोड़ा-सा र्था। वह किडब्बे र्में चwक़र बो!ा, ''सुधा नहीं आयी?''

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''आयी हैं, देखो न! कुछ तबीयत खराब हो गयी है। 5ी धिर्मत!ा रहा है।'' और उसने बार्थरूर्म की ओर इशारा कर दिदया। सुधा बार्थरूर्म र्में बग! र्में !ोKा रखे लिसर झुकाये बैठी र्थी-''देखो! देखती हो?'' कै!ाश बो!ा, ''देखो, कपूर आ गया।'' सुधा ने देखा और र्मुश्किश्क! से हार्थ 5ोड़ पायी होगी किक उसे धिर्मत!ी आ गयी...कै!ाश दौड़ा और उसकी पीठ पर हार्थ फेरने !गा और चन्दर से बो!ा-''पंखा !ाओ!'' चन्दर हतप्रभ र्था। उसके र्मन ने सपना देखा र्था...सुधा लिसतारों की तरह 5गर्मगा रही होगी और अपनी रोशनी की बाँहों र्में चन्दर के प्राणों को सु!ा देगी। 5ादूगरनी की तरह अपने प्यार के पंखों से चन्दर की आत्र्मा के दाग पोंछ देगी। !ेकिकन यर्थार्थ� कुछ और र्था। सुधा 5ादूगरनी, आत्र्मा की रानी, पकिवvता की साम्राज्ञी सुधा, बार्थरूर्म र्में बैठी है और उसका पकित उसे सान्त्वना दे रहा र्था।

''क्या कर रहे हो, चन्दर!...पंखा उठाओ 5ल्दी से।'' कै!ाश ने व्यग्रता से कहा। चन्दर चौंक उठा और 5ाकर पंखा झ!ने !गा। र्थोड़ी देर बाद र्मुँह धोकर सुधा उठी और कराहती हुई-सी 5ाकर सीK पर बैठ गयी। कै!ाश ने एक तकिकया पीछे !गा दिदया और वह आँख बन्द करके !ेK गयी।

चन्दर ने अब सुधा को देखा। सुधा उ5ड़ चुकी र्थी। उसका रस र्मर चुका र्था। वह अपने यौवन और रूप, चंच!ता और धिर्मठास की एक 5द� छाया र्माv रह गयी र्थी। चेहरा दुब!ा पड़ गया र्था और हकिड्डयाँ किनक! आयी र्थीं। चेहरा दुब!ा होने से !गता र्था आँखें फKी पड़ती हैं। वह चुपचाप आँख बन्द किकये पड़ी र्थी। चन्दर पंखा हाँक रहा र्था, कै!ाश एक सूKकेस खो!कर दवा किनका! रहा र्था। गाड़ी यहीं आकर रुक 5ाती है, इसलि!ए कोई 5ल्दी नहीं र्थी। कै!ाश ने दवा दी। सुधा ने दवा पी और किफर उदास, बहुत बारीक, बहुत बीर्मार स्वर र्में बो!ी, ''चन्दर, अचे्छ तो हो! इतने दुब!े कैसे !गते हो? अब कौन तुम्हारे खाने-पीने की परवा करता होगा!'' सुधा ने एक गहरी साँस !ी। कै!ाश किबस्तर !पेK रहा र्था।

''तुम्हें क्या हो गया है, सुधा?''

''र्मुझे सुख-रोग हो गया है!'' सुधा बहुत क्षीण हँसी हँसकर बो!ी, ''बहुत सुख र्में रहने से ऐसा ही हो 5ाता है।''

चन्दर चुप हो गया। कै!ाश ने किबस्तर कु!ी को देते हुए कहा, ''इन्होंने तो बीर्मारी के र्मारे हर्म !ोगों को परेशान कर रखा है। 5ाने बीर्मारिरयों को क्या र्मुहब्बत है इनसे! च!ो उठो।'' सुधा उठी।

कार पर सुधा के सार्थ पीछे सार्मान रख दिदया गया और आगे कै!ाश और चन्दर बैठे। कै!ाश बो!ा, ''चन्दर, तुर्म बहुत धीरे्म ड्राइव करना वरना इन्हें चक्कर आने !गेगा...'' कार च! दी। चन्दर कै!ाश की किवदेश-याvा और कै!ाश चन्दर के कॉ!े5 के बारे र्में बात करते रहे। र्मुश्किश्क! से घर तक कार पहुँची होगी किक कै!ाश बो!ा, ''यार चन्दर, तुम्हें तक!ीफ तो होगी !ेकिकन एक दिदन के लि!ए कार तुर्म र्मुझे दे सकते हो?''

''क्यों?''

''र्मुझे 5रा रीवाँ तक बहुत 5रूरी कार्म से 5ाना है, वहाँ कुछ !ोगों से धिर्म!ना है, क! दोपहर तक र्मैं च!ा आऊँगा।''

''इसके र्मत!ब र्मेरे पास नहीं रहोगे एक दिदन भी?''

''नहीं, इन्हें छोड़ 5ाऊँगा। !ौKकर दिदन-भर रहूँगा।''

''इन्हें छोड़ 5ाओगे? नहीं भाई, तुर्म 5ानते हो किक आ5क! घर र्में कोई नहीं है।'' चन्दर ने कुछ घबराकर कहा।

''तो क्या हुआ, तुर्म तो हो!'' कै!ाश बो!ा और चन्दर के चेहरे की घबराहK देखकर हँसकर बो!ा, ''अरे यार, अब तुर्म पर इतना अकिवश्वास नहीं है। अकिवश्वास करना होता तो ब्याह के पह!े ही कर !ेते।''

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चन्दर र्मुस्करा उठा, कै!ाश ने चन्दर के कन्धे पर हार्थ रखकर धीरे्म से कहा ताकिक सुधा न सुन पाये-''वैसे चाहे र्मुझे कुछ भी असन्तोष क्यों न हो, !ेकिकन इनका चरिरv तो सोने का है, यह र्मैं खूब परख चुका हूँ। इनका ऐसा चरिरv बनाने के लि!ए तो र्मैं तुम्हें बधाई दँूगा, चन्दर! और किफर आ5 के युग र्में!''

चन्दर ने कुछ 5वाब नहीं दिदया।

कार पोर्दिK-को र्में !गी। सुधा, कै!ाश, चन्दर उतरे। र्मा!ी और नौकर दौड़ आये, सुधा ने उन सबसे उनका हा! पूछा। अन्दर 5ाते ही र्महराजि5न दौडक़र सुधा से लि!पK गयी। सुधा को बहुत दु!ार किकया।

कै!ाश र्मुँह-हार्थ धो चुका र्था, नहाने च!ा गया। र्महराजि5न चाय बनाने !गी। सुधा भी र्मुँह-हार्थ धोने और नहाने च!ी गयी। कै!ाश तौलि!या !पेKे नहाकर आया और बैठ गया। बो!ा, ''आ5 और क! की छुट्टी !े !ो, चन्दर! इनकी तबीयत ठीक नहीं है और र्मुझे 5ाना 5रूरी है!''

''अच्छा, !ेकिकन आ5 तो 5ाकर हाजि5री देना 5रूरी होगा। किफर !ौK आऊँगा!'' र्महराजि5न चाय और नाश्ता !े आयी। कै!ाश ने नाश्ता !ौKा दिदया तो र्महराजि5न बो!ी, ''वाह, दार्माद हुइके अके!ी चाय पीबो भइया, अबकिहन डॉक्Kर साहब सुकिनहैं तो का ककिहहैं।''

''नहीं र्माँ5ी, र्मेरा पेK ठीक नहीं है। दो दिदन के 5ागरण से आ रहा हूँ। किफर !ौKकर खाऊँगा। !ो चन्दर, चाय किपयो।''

''सुधा को आने दो!'' चन्दर बो!ा।

''वह पू5ा-पाठ करके खाती हैं।''

''पू5ा-पाठ!'' चन्दर दंग रह गया, ''सुधा पू5ा-पाठ करने !गी?''

''हाँ भाई, तभी तो हर्मारी र्माता5ी अपनी बहू पर र्मरती हैं। अस! र्में वह पू5ा-पाठ करती र्थीं। शुरुआत की इन्होंने पू5ा के बरतन धोने से और अब तो उनसे भी ज्यादा पक्की पु5ारिरन बन गयी हैं।'' कै!ाश ने इधर-उधर देखा और बो!ा, ''यार, यह र्मत सर्मझना र्मैं सुधा की लिशकायत कर रहा हूँ, !ेकिकन तुर्म !ोगों ने र्मुझे ठीक नहीं चुना!''

''क्यों?'' चन्दर कै!ाश के व्यवहार पर र्मुग्ध र्था।

''इन 5ैसी !ड़किकयों के लि!ए तुर्म कोई ककिव या क!ाकार या भावुक !ड़काwँूढ़ते तो ठीक र्था। र्मेरे 5ैसा व्यावहारिरक और नीरस रा5नीकितक इनके उपयुक्त नहीं है। घर भर इनसे बेहद खुश है। 5ब से ये गयी हैं, र्माँ और शंकर भइया दोनों ने र्मुझे ना!ायक करार दे दिदया है। इन्हीं से पूछकर सब करते हैं, !ेकिकन र्मैंने 5ो सोच रखा र्था, वह र्मुझे नहीं धिर्म! पाया!''

''क्यों, क्या बात है?'' चन्दर ने पूछा, ''ग!ती बताओ तो हर्म इन्हें सर्मझाए।ँ''

''नहीं, देखो ग!त र्मत सर्मझो। र्मैं यह नहीं कहता किक इनकी ग!ती है। यह तो ग!त चुनाव की बात है।'' कै!ाश बो!ा, ''न इसर्में र्मेरा कसूर, न इनका! र्मैं चाहता र्था कोई !ड़की 5ो र्मेरे सार्थ रा5नीकित का कार्म करती, र्मेरी सब!ता और दुब�!ता दोनों की संकिगनी होती। इसीलि!ए इतनी पढ़ी-लि!खी !ड़की से शादी की। !ेकिकन इन्हें धर्म� और साकिहत्य र्में जि5तनी रुलिच है, उतनी रा5नीकित से नहीं। इसलि!ए र्मेरे व्यलिक्तत्व को ग्रहण भी नहीं कर पायीं। वैसे र्मेरी शारीरिरक प्यास को इन्होंने चाहे सर्मप�ण किकया, वह भी एक बेर्मनी से, उससे तन की प्यास भ!े ही बुझ 5ाती हो कपूर, !ेकिकन र्मन तो प्यासा ही रहता है...बुरा न र्मानना। र्मैं बहुत स्पष्ट बातें करता हूँ। तुर्मसे लिछपाना क्या?...और स्वास्थ्य के र्मार्म!े र्में ये इतनी !ापरवाह हैं किक र्मैं बहुत दु:खी रहता हूँ।'' इतने र्में सुधा नहाकर आती हुई दिदख पड़ी। कै!ाश चुप हो गया। सुधा की ओर देखकर बो!ा, ''र्मेरी अKैची भी ठीक कर दो। र्मैं अभी च!ा 5ाऊँ वरना दोपहर र्में

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तपना होगा।'' सुधा च!ी गयी। सुधा के 5ाते ही कै!ाश बो!ा, ''भरसक र्मैं इन्हें दु:खी नहीं होने देता, हाँ, अकसर ये दुखी हो 5ाती हैं; !ेकिकन र्मैं क्या करँू, यह र्मेरी र्म5बूरी है, वैसे र्मैं इन्हें भरसक सुखी रखने का प्रयास करता हूँ...और ये भी 5ाय5-ना5ाय5 हर इच्छा के सार्मने झुक 5ाती हैं, !ेकिकन इनके दिद! र्में र्मेरे लि!ए कोई 5गह नहीं है, वह 5ो एक पत्नी के र्मन र्में होती है। !ेकिकन खैर, जि5-दगी च!ती 5ा रही है। अब तो 5ैसे हो किनभाना ही है!''

इतने र्में सुधा आयी और बो!ी, ''देखिखए, अKैची सँवार दी है, आप भी देख !ीजि5ए...'' कै!ाश उठकर च!ा गया। चन्दर बैठा-बैठा सोचने !गा-कै!ाश किकतना अच्छा है, किकतना साफ और स्वच्छ दिद! का है! !ेकिकन सुधा ने अपने को किकस तरह धिर्मKा डा!ा...

इतने र्में सुधा आयी और चन्दर से बो!ी, ''चन्दर! च!ो, वो बु!ा रहे हैं!''

चन्दर चुपचाप उठा और अन्दर गया। कै!ाश ने तब तक याvा के कपडे़ पहन लि!ये रे्थ। देखते ही बो!ा, ''अच्छा चन्दर, र्मैं च!ता हूँ। क! शार्म तक आ 5ाने की कोलिशश करँूगा। हाँ देखो, ज्यादा घुर्माना र्मत। इनकी सखी को यहाँ बु!वा !ो तो अच्छा।'' किफर बाहर किनक!ता हुआ बो!ा, ''इनकी जि5द र्थी आने की, वरना इनकी हा!त आने !ायक नहीं र्थी। र्माता5ी से र्मैं कह आया हूँ किक !खनऊ र्मेकिडक! कॉ!े5 !े 5ा रहा हूँ।''

कै!ाश कार पर बैठ गया। किफर बो!ा, ''देखो चन्दर, दवा इन्हें दे देना याद से, वहीं रखी है।'' कार स्KाK� हो गयी।

चन्दर !ौKा। बरार्मदे र्में सुधा खड़ी र्थी। चुपचाप बुझी हुई-सी। चन्दर ने उसकी ओर देखा, उसने चन्दर की ओर देखा, किफर दोनों ने किनगाहें झुका !ीं। सुधा वहीं खड़ी रही। चन्दर ड्राइंग-रूर्म र्में 5ाकर किकताबें वगैरह उठा !ाया और कॉ!े5 5ाने के लि!ए किनक!ा। सुधा अब भी बरार्मदे र्में खड़ी र्थी। गुर्मसुर्म...चन्दर कुछ कहना चाहता र्था...!ेकिकन क्या? कुछ र्था, 5ो न 5ाने कब से संलिचत होता आ रहा र्था, 5ो वह व्यक्त करना चाहता र्था, !ेकिकन सुधा कैसी हो गयी है! यह वह सुधा तो नहीं जि5सके सार्मने वह अपने को सदा व्यक्त कर देता र्था। कभी संकोच नहीं करता र्था, !ेकिकन यह सुधा कैसी है अपने र्में लिसर्मKी-सकुची, अपने र्में बँधी-बँधायी, अपने र्में इतनी लिछपी हुई किक !गता र्था दुकिनया के प्रकित इसर्में कहीं कोई खु!ाव ही नहीं। चन्दर के र्मन र्में 5ाने किकतनी आवा5ें तड़प उठीं !ेकिकन...कुछ नहीं बो! पाया। वह बरार्मदे र्में दिठठक गया, किनरुदे्दश्य। वहाँ अपनी किकताबें खो!कर देखने !गा, 5ैसे वह याद करना चाहता र्था किक कहीं भू! तो नहीं आया है कुछ !ेकिकन उसके अन्तर्म�न र्में केव! एक ही बात र्थी। सुधा कुछ तो बो!े। यह इतना गहरा, इतनी घुKनवा!ा र्मौन, यह तो 5ैसे चन्दर के प्राणों पर घुKन की तरह बैठता 5ा रहा र्था। सुधा...किनवा�त किनवास र्में दीपलिशखा-सी अच!, किनस्पन्द, र्थर्मे हुए तूफान की तरह र्मौन। चन्दर ने अन्त र्में नोK्स लि!ए, घड़ी देखी और च! दिदया। 5ब वह सीढ़ी तक पहुँचा तो सहसा सुधा की छायारू्मर्तित- र्में हरकत हुई। सुधा ने पाँव के अँगूठे से फश� पर एक !कीर खींचते हुए नीचे किनगाह झुकाये हुए कहा, ''किकतनी देर र्में आओगे?'' चन्दर रुक गया। 5ैसे चन्दर को लिसतारों का रा5 धिर्म! गया हो। सुधा भ!ा बो!ी तो! !ेकिकन, किफर भी अपने र्मन का उल्!ास उसने 5ाकिहर नहीं होने दिदया, बो!ा, ''कर्म-से-कर्म दो घंKे तो !गेंगे ही।''

सुधा कुछ नहीं बो!ी, चुपचाप रह गयी। चन्दर ने दो क्षण प्रतीक्षा की किक सुधा अब कुछ बो!े !ेकिकन सुधा किफर भी चुप। चन्दर किफर र्मुड़ा। क्षण-भर बाद सुधा ने पूछा, ''चन्दर, और 5ल्दी नहीं !ौK सकते?''

5ल्दी! सुधा अगर कहे तो चन्दर 5ाये भी न, चाहे उसे इस्तीफा देना पडे़। क्या सुधा भू! गयी किक चन्दर के व्यलिक्तत्व पर अगर किकसी का शासन है तो सुधा का! वह 5ो अपनी जि5द से, उछ!कर, !डक़र, रूठकर चन्दर से हरे्मशा र्मनचाहा कार्म करवाती रही है...आ5 वह इतनी दीनता से, इतनी किवनय से, इतने अन्तर और इतनी दूरी से क्यों कह रही है किक 5ल्दी नहीं !ौK सकते? क्यों नहीं वह पह!े की तरह दौडक़र चन्दर का कॉ!र पकड़ !ेती और र्मच!कर कहती, 'ए, अगर 5ल्दी नहीं !ौKे तो...' !ेकिकन अब तो सुधा बरार्मदे र्में खड़ी होकर गम्भीर-सी, डूबती हुई-सी आवा5 र्में पूछ रही है-5ल्दी नहीं !ौK सकते! चन्दर का र्मन KूK गया। चन्दर की उरं्मग चट्टान से Kकराकर किबखर गयी...उसने बहुत भारी-सी आवा5 र्में पूछा, ''क्यों?''

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''5ल्दी !ौK आते तो पू5ा करके तुम्हारे सार्थ नाश्ता कर !ेते! !ेकिकन अगर ज्यादा कार्म हो तो रहने दो, र्मेरी व5ह से हर5 र्मत करना!'' उसने उसे ठJडे, लिशष्ट और भावहीन स्वर र्में कहा।

हाय सुधा! अगर तुर्म 5ानती होती किक र्महीनों उदभ््रान्त चन्दर का KूKा और प्यासा र्मन तुर्मसे पुराने स्नेह की एक बँूद के लि!ए तरस उठा है तो भी क्या तुर्म इसी दूरी से बातें करती! काश, किक तुर्म सर्मझ पाती किक चन्दर ने अगर तुर्मसे कुछ दूरी भी किनभायी है तो उससे खुद चन्दर किकतना किबखर गया है। चन्दर ने अपना देवत्व खो दिदया है, अपना सुख खो दिदया है, अपने को बबा�द कर दिदया है और किफर भी चन्दर के बाहर से शान्त और सुगदिठत दिदखने वा!े हृदय के अन्दर तुम्हारे प्यार की किकतनी गहरी प्यास धधक रही है, उसके रोर्म-रोर्म र्में किकतनी 5हरी!ी तृष्णा की किब5लि!याँ कौंध रही हैं, तुर्मसे अ!ग होने के बाद अतृस्टिप्त का किकतना बड़ा रास्ता उसने आग की !पKों र्में झु!सते हुए किबताया है। अगर तुर्म इसे सर्मझ !ेती तो तुर्म चन्दर को एक बार दु!ारकर उसके 5!ते हुए प्राणों पर अर्मृत की चाँदनी किबखेरने के लि!ए व्यग्र हो उठती; !ेकिकन सुधा, तुर्मने अपने बाह्य किवद्रोह को ही सर्मझा, तुर्मने उस गम्भीर प्यार को सर्मझा ही नहीं 5ो इस बाहरी किवद्रोह, इस बाहरी किवध्वंस के र्मू! र्में पयश्किस्वनी की पावन धारा की तरह बहता 5ा रहा है। सुधा, अगर तुर्म एक क्षण के लि!ए इसे सर्मझ !ो...एक क्षण-भर के लि!ए चन्दर को पह!े की तरह दु!ार !ो, बह!ा !ो, रूठ !ो, र्मना !ो तो सुधा चन्दर की 5!ती हुई आत्र्मा, नरक लिचताओं र्में किफर से अपना गौरव पा !े, किफर से अपनी खोयी हुई पकिवvता 5ीत !े, किफर से अपना किवस्र्मृत देवत्व !ौKा !े...!ेकिकन सुधा, तुर्म बरार्मदे र्में चुपचाप खड़ी इस तरह की बातें कर रही हो 5ैसे चन्दर कोई अपरिरलिचत हो। सुधा, यह क्या हो गया है तुम्हें? चन्दर, किबनती, पम्र्मी सभी की जि5-दगी र्में 5ो भयंकर तूफान आ गया है, जि5सने सभी को झकझोर कर र्थका डा!ा है, इसका सर्माधान लिसफ� तुम्हारे प्यार र्में र्था, लिसफ� तुम्हारी आत्र्मा र्में र्था, !ेकिकन अगर तुर्मने इनके चरिरvों का अन्तर्तिन-किहत सत्य न देखकर बाहरी किवध्वंस से ही अपना आगे का व्यवहार किनक्षिश्चत कर लि!या तो कौन इन्हें इस चक्रवात से खींच किनका!ेगा! क्या ये अभागे इसी चक्रवात र्में फँसकर चूर हो 5ाएगँे...सुधा...

!ेकिकन सुधा और कुछ नहीं बो!ी। चन्दर च! दिदया। 5ाकर !गा 5ैसे कॉ!े5 के परीक्षा भवन र्में 5ाना भी भारी र्मा!ूर्म दे रहा र्था। वह 5ल्दी ही भाग आया।

हा!ाँकिक सुधा के व्यवहार ने उसका र्मन 5ैसे तोड़-सा दिदया र्था, किफर भी 5ाने क्यों वह अब आ5 सुधा को एक प्रकाशवृत्त बनकर !पेK !ेना चाहता र्था।

5ब चन्दर !ौK आया तो उसने देखा-सुधा तो उसी के कर्मरे र्में है। उसने उसके कर्मरे के एक कोने र्में दरी हKा दी है, वहाँ पानी लिछड़क दिदया और एक कुश के आसन पर सार्मने चौकी पर कोई पोर्थी धरे बैठी है। चौकी पर एक शे्वत वस्v किबछाकर धूपदानी रख दी है जि5सर्में धूप सु!ग रही है। !ॉन से शायद कूछ फू! तोड़ !ायी र्थी 5ो धूपदानी के पास रखे हुए रे्थ। बग! र्में एक रुद्राक्ष की र्मा!ा रखी र्थी। एक शु» शे्वत रेशर्म की धोती और केव! एक चो!ी पहने हुए पल्!े से बाँहों तक wँके हुए वह एकाग्र र्मनोयोग से ग्रन्थ का पारायण कर रही र्थी। धूपदानी से धूम्र-रेखाए ँर्मच!ती हुईं, !हराती हुईं, उसके कपो!ों पर झू!ती हुईं सूखी-रूखी अ!कों से उ!झ रही र्थीं। उसने नहाकर केश बाँधे नहीं रे्थ...चन्दर ने 5ूते बाहर ही उतार दिदये और चुपचाप प!ँग पर बैठकर सुधा को देखने !गा। सुधा ने लिसफ� एक बार बहुत शान्त, बहुत गहरी आकाश-5ैसी स्वच्छ किनगाहों से चन्दर को देखा और किफर पwऩे !गी। सुधा के चारों ओर एक किवलिचv-सा वातावरण र्था, एक अपार्शिर्थ-व स्वर्तिग-क ज्योकित के रेशों से बुना हुआ झीना प्रकाश उस पर छाया हुआ र्था। ग!े र्में पड़ा हुआ आँच!, पीठ पर किबखरे हुए सुनह!े बा!, अपना सबकुछ खोकर किवरलिक्त र्में खिख� सुहाग पर छाये हुए वैधव्य की तरह सुधा !ग रही र्थी। र्माँग सूनी र्थी, र्मारे्थ पर रो!ी का एक बड़ा-सा Kीका र्था और चेहरे पर स्वग� के र्मुरझाये हुए फू!ों की घु!ती हुई उदासी, 5ैसे किकसी ने चाँदनी पर हरसिस-गार के पी!े फू! छींKे दे दिदये हों।

र्थोड़ी देर तक सुधा स्पष्ट स्वरों र्में पढ़ती रही। उसके बाद उसने पोर्थी बन्द कर रख दी। उसके बाद आँख बन्द कर 5ाने किकस अज्ञात देवता को हार्थ 5ोडक़र नर्मस्कार किकया...किफर उठ खड़ी हुई और फश� पर चन्दर के पास बैठ गयी। आँच! कर्मर र्में खोंस लि!या और किबना लिसर उठाये बो!ी, ''च!ो, नाश्ता कर !ो!''

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''यहीं !े आओ!'' चन्दर बो!ा। सुधा उठी और नाश्ता !े आयी। चन्दर ने उठाकर एक Kुकड़ा र्मुँह र्में रख लि!या। !ेकिकन 5ब सुधा उसी तरह फश� पर चुपचाप बैठी रही तो चन्दर ने कहा, ''तुर्म भी खाओ!''

''र्मैं!'' वह एक फीकी हँसी हँसकर बो!ी, ''र्मैं खा !ँू तो अभी कै हो 5ाये। र्मैं लिसवा नींबू के शरबत और खिखचड़ी के अब कुछ नहीं खाती। और वह भी एक वक्त!''

''क्यों?''

''अस! र्में पह!े र्मैंने एक व्रत किकया, पन्द्रह दिदन तक केव! प्रात:का! खाने का, तब से कुछ ऐसा हो गया किक शार्म को खाते ही र्मन किबगड़ 5ाता है। इधर और कई रोग हो गये हैं।''

चन्दर का र्मन रो आया। सुधा, तुर्म चुपचाप इस तरह अपने को धिर्मKाती रहीं! र्मान लि!या चन्दर ने एक खत र्में तुम्हें लि!ख ही दिदया र्था किक अब पv-व्यवहार बन्द कर दो! !ेकिकन क्या अगर तुर्म पv भे5तीं तो चन्दर की किहम्र्मत र्थी किक वह उत्तर न देता! अगर तुर्म सर्मझ पातीं किक चन्दर के र्मन र्में किकतना दुख है!

चन्दर चाहता र्था किक सुधा की गोद र्में अपने र्मन की सभी बातें किबखेर दे...!ेकिकन सुधा कहे, कुछ लिशकायत करे तो चन्दर अपनी सफाई दे...!ेकिकन सुधा तो है किक लिशकायत ही नहीं करती, सफाई देने का र्मौका ही नहीं देती...यह देवत्व की र्मूर्तित--सी पर्थरी!ी सुधा! यह चन्दर की सुधा तो नहीं! चन्दर का र्मन बहुत भर आया। उसके रँुधे ग!े से पूछा, ''सुधा, तुर्म बहुत बद! गयी हो। खैर और तो 5ो कुछ है उसके लि!ए अब र्मैं क्या कहूँ, !ेकिकन अपनी तन्दुरुस्ती किबगाड़कर क्यों तुर्म र्मुझे दुख दे रही हो! अब यों भी र्मेरी जि5-दगी र्में क्या रहा है! !ेकिकन एक ही सन्तोष र्था किक तुर्म सुखी हो। !ेकिकन तुर्मने र्मुझसे वह सहारा छीन लि!या...पू5ा किकसकी करती हो?''

''पू5ा कहाँ, पाठ करती हूँ, चन्दर! गीता का और भागवत का, कभी-कभी सूर सागर का! पू5ा अब भ!ा किकसकी करँूगी? र्मुझ 5ैसी अभाकिगनी की पू5ा भ!ा स्वीकार कौन करेगा?''

''तब यह एक वक्त का भो5न क्यों?''

''यह तो प्रायक्षिश्चत्त है, चन्दर!'' सुधा ने एक गहरी साँस !ेकर कहा।

''प्रायक्षिश्चत...?'' चन्दर ने अचर5 से कहा।

''हाँ, प्रायक्षिश्चत्त...'' सुधा ने अपने पाँव के किबलिछयों को धोती के छोर से रगड़ते हुए कहा, ''किहन्दू गृह तो एक ऐसा 5े! होता है 5हाँ कैदी को उपवास करके प्राण छोड़ने की भी इ5ा5त नहीं रहती, अगर धर्म� का बहाना न हो! धर्म� के बहाने उपवास करके कुछ सुख धिर्म! 5ाता है।''

एक क्षण आता है किक आदर्मी प्यार से किवद्रोह कर चुका है, अपने 5ीवन की पे्ररणा-र्मूर्तित- की गोद से बहुत दिदन तक किनवा�लिसत रह चुका है, उसका र्मन पाग! हो उठता है किफर से प्यार करने को, बेहद प्यार करने को, अपने र्मन का दु!ार फू!ों की तरह किबखरा देने को। आ5 किवद्रोह का तूफान उतर 5ाने के बाद अपनी उ5ड़ी हुई जि5-दगी र्में बीर्मार सुधा को पाकर चन्दर का र्मन तड़प उठा। सुधा की पीठ पर !हराती हुई सूखी अ!कें हार्थ र्में !े !ीं। उन्हें गँूर्थने का असफ! प्रयास करते हुए बो!ा-

''सुधा, यह तो सच है किक र्मैंने तुम्हारे र्मन को बहुत दुखाया है, !ेकिकन तुर्म तो हर्मारी हर बात को, हर्मारे हर क्रोध को क्षर्मा करती रही हो, इस बात का तुर्म इतना बुरा र्मान गयी?''

''किकस बात का, चन्दर!'' सुधा ने चन्दर की ओर देखकर कहा, ''र्मैं किकस बात का बुरा र्मान गयी!''

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''किकस बात का प्रायक्षिश्चत्त कर रही हो तुर्म, इस तरह अपने को धिर्मKाकर!''

''प्रायक्षिश्चत्त तो र्मैं अपनी दुब�!ता का कर रही हूँ, चन्दर!''

''दुब�!ता?'' चन्दर ने सुधा की अ!कों को घKाओं की तरह लिछKकाकर कहा।

''दुब�!ता-चन्दर! तुम्हें ध्यान होगा, एक दिदन हर्म !ोगों ने किनश्चय किकया र्था किक हर्मारे प्यार की कसौKी यह रहेगी चन्दर, दूर रहकर भी हर्म !ोग ऊँचे उठें गे, पकिवv रहेंगे। दूर हो 5ाने के बाद चन्दर, तुम्हारा प्यार तो र्मुझर्में एक दृढ़ आत्र्मा और किवश्वास भरता रहा, उसी के सहारे र्मैं अपने 5ीवन के तूफानों को पार कर !े गयी; !ेकिकन पता नहीं र्मेरे प्यार र्में कौन-सी दुब�!ता रही किक तुर्म उसे ग्रहण नहीं कर पाये...र्मैं तुर्मसे कुछ नहीं कहती। र्मगर अपने र्मन र्में किकतनी कंुदिठत हूँ किक कह नहीं सकती। पता नहीं दूसरा 5न्र्म होता है या नहीं; !ेकिकन इस 5न्र्म र्में तुम्हें पाकर तुम्हारे चरणों पर अपने को न चढ़ा पायी। तुम्हें अपने र्मन की पू5ा र्में यकीन न दिद!ा पायी, इससे बढ़कर और दुभा�ग्य क्या होगा? र्मैं अपने व्यलिक्तत्व को किकतना गर्तिह-त, किकतना लिछछ!ा सर्मझने !गी हूँ, चन्दर!''

चन्दर ने नाश्ता खिखसका दिदया। अपनी आँख र्में झ!कते हुए आँसू को लिछपाते हुए चुपचाप बैठ गया।

''नाश्ता कर !ो, चन्दर! इस तरह तुम्हें अपने पास किबठाकर खिख!ाने का सुख अब कहाँ नसीब होगा! !ो।'' और सुधा ने अपने हार्थ से उसे एक नर्मकीन सेव खिख!ा दिदया। चन्दर के भरे आँसू सुधा के हार्थों पर चू पडे़।

''लिछह, यह क्या, चन्दर!''

''कुछ नहीं...'' चन्दर ने आँसू पोंछ डा!े।

इतने र्में र्महराजि5न आयी और सुधा से बो!ी, ''किबदिKया रानी! !ेव ई नानखKाई हर्म कल्है से बनाय के रख दिदया रहा किक तोके खिख!ाइबे!''

''अच्छा! हर्म भी र्महराजि5न, इतने दिदन से तुम्हारे हार्थ का खाने के लि!ए तरस गये, तुर्म च!ो हर्मारे सार्थ!''

''किहयाँ चन्दर भइया के कौन देखी? अब किबदिKया इनहूँ के ब्याह कर देव, तो हर्म च!ी तोहरे सार्थ!''

सुधा हँस पड़ी, चन्दर चुपचाप बैठा रहा। र्महराजि5न खिखचड़ी डा!ने च!ी गयी। सुधा ने चुपचाप नानखKाई की तश्तरी उठाकर एक ओर रख दी-चन्दर चुप, अब क्या बात करे! पह!े वह दोनों घंKों क्या बात करते रे्थ! उसे बड़ा ताज्जुब हुआ। इस वक्त कोई बात ही नहीं सूझती है। पह!े 5ाने किकतना वक्त गु5र 5ाता र्था, दोनों की बातों का खात्र्मा ही नहीं होता र्था। सुधा भी चुप र्थी। र्थोड़ी देर बाद चन्दर बो!ा, ''सुधी, तुर्म सचर्मुच पू5ा-पाठ र्में किवश्वास रखती हो...''

''क्यों, करती तो हूँ, चन्दर! हाँ, र्मूर्तित- 5रूर नहीं पू5ती, पर कृष्ण को 5रूर पू5ती हूँ। अब सभी सहारे KूK गये, तुर्मने भी र्मुझे छोड़ दिदया, तब र्मुझे गीता और रार्मायण र्में बहुत सन्तोष धिर्म!ा। पह!े र्मैं खुद ताज्जुब करती र्थी किक औरतें इतना पू5ा-पाठ क्यों करती हैं, किफर र्मैंने सोचा-किहन्दू नारी इतनी असहाय होती है, उसे पकित से, पुv से, सभी से इतना !ांछन, अपर्मान और कितरस्कार धिर्म!ता है किक पू5ा-पाठ न हो तो पशु बन 5ाये। पू5ा-पाठ ही ने किहन्दू नारी का चरिरv अभी तक इतना ऊँचा रखा है।''

''र्मैं तो सर्मझता हूँ यह अपने को भु!ावा देना है।''

''र्मानती हूँ चन्दर, !ेकिकन अगर कोई किहन्दू धर्म� की इन किकताबों को ध्यान से पढे़ तब वह 5ाने, क्या है इनर्में! 5ाने किकतनी ताकत देती हैं ये! अभी तक जि5-दगी र्में र्मैंने यह सोचा है किक पुरुष हो या नारी, सभी के 5ीवन का एकर्माv सम्ब! किवश्वास है, और इन ग्रन्थों र्में सभी संशयों को धिर्मKाकर किवश्वास का इतना गहन उपदेश है किक र्मन पु!क उठता

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है।...र्मैं तुर्मसे कुछ नहीं लिछपाती। चन्दर, 5ब किबनती के ब्याह र्में तुर्मने र्मेरा पv !ौKा दिदया तो र्मैं तड़प उठी। एक अकिवश्वास र्मेरी नस-नस र्में गँुर्थ गया। र्मैंने सर्मझ लि!या किक तुम्हारी सारी बातें झूठी र्थीं। एक 5ाने कैसी आग र्मुझे हरदर्म झु!साती रहती र्थी! र्मेरा स्वभाव बहुत किबगड़ गया र्था। र्मुझे हरेक से नफरत हो गयी र्थी। हरेक पर झल्!ा उठती र्थी...किकसी बात र्में र्मुझे चैन नहीं धिर्म!ता र्था। धीरे-धीरे र्मैंने इन किकताबों को पwऩा शुरू किकया। र्मुझे !गने !गा किक शास्टिन्त धीरे-धीरे र्मेरी आत्र्मा पर उतर रही है। र्मुझे !गा किक यह सभी ग्रन्थ पुकार-पुकारकर कह रहे हैं-'संशयात्र्मा किवनश्यकित!' धीरे-धीरे र्मैंने इन बातों को अपने 5ीवन पर घKाना शुरू किकया, तो र्मैंने देखा किक सारी भलिक्त की किकताबें और उनका दश�न बड़ा र्मनोहर रूपक है, चन्दर! कृष्ण प्यार के देवता हैं। वंशी की ध्वकिन किवश्वास की पुकार है। धीरे-धीरे तुम्हारे प्रकित र्मेरे र्मन र्में 5गा हुआ अकिवश्वास धिर्मK गया, र्मैंने कहा, तुर्म र्मुझसे अ!ग ही कहाँ हो, र्मैं तो तुम्हारी आत्र्मा का एक Kुकड़ा हूँ 5ो एक 5नर्म के लि!ए अ!ग हो गयी। !ेकिकन हरे्मशा तुम्हारे चारों ओर चन्द्रर्मा की तरह चक्कर !गाती रहूँगी, जि5स दिदन र्मैंने पढ़ा-

सव�धर्मा�न् परिरत्यज्य र्मारे्मकं शरणं व्र5।

अहं त्वां सव�पापेभ्यो र्मोक्षधियष्याधिर्म र्मा शुच:॥

तो र्मुझे !गा किक तुम्हारा खोया हुआ प्यार र्मुझे पुकारकर कह रहा है-र्मेरी शरण र्में च!े आओ, और लिसवा तुम्हारे प्यार के र्मेरा भगवान और है ही क्या...उसके बाद से चन्दर, र्मेरे र्मन र्में किवश्वास और पे्रर्म झ!क आया, अपने 5ीवन की परिरधिध र्में आने वा!े हर व्यलिक्त के लि!ए। सभी र्मुझे बहुत चाहने !गे...!ेकिकन चन्दर, 5ब किबनती यहाँ से दिदल्!ी 5ाते वक्त र्मेरे सार्थ गयी और उसने सब हा! बताया तो र्मुझे किकतना दु:ख हुआ। किकतनी ग्!ाकिन हुई। तुम्हारे ऊपर नहीं, अपने ऊपर।''

बातें भावनात्र्मक स्तर से उठकर बौजि»क स्तर पर आ चुकी र्थीं। चन्दर फौरन बो!ा, ''सुधा, ग्!ाकिन की तो कोई बात नहीं, कर्म-से-कर्म र्मैंने 5ो कुछ किकया है उस पर र्मुझे 5रा-सी भी शर्म� नहीं!'' चन्दर के स्वर र्में किफर एक बार गव� और कड़वाहK-सी आ गयी र्थी-''र्मैंने 5ो कुछ किकया है उसे र्मैं पाप नहीं र्मानता। तुम्हारे भगवान ने तुम्हें 5ो कुछ रास्ता दिदख!ाया, वह तुर्मने किकया। र्मेरे भगवान ने 5ो रास्ता र्मुझे दिदख!ाया, वह र्मैंने किकया। तुर्म 5ानती ही हो र्मेरी जि5-दगी की पकिवvता तुर्म र्थी, तुम्हारी भो!ी किनष्पाप साँसें र्मेरे सभी गुनाह, र्मेरी सभी कर्म5ोरिरयाँ सु!ाती रही हैं। जि5स दिदन तुर्म र्मेरी जि5-दगी से च!ी गयीं, कुछ दिदन तक र्मैंने अपने को सँभा!ा। इसके बाद र्मेरी आत्र्मा का कण-कण द्रोह कर उठा। र्मैंने कहा, स्वग� के र्मालि!क साफ-साफ सुनो। तुर्मने र्मेरी जि5-दगी की पकिवvता को छीन लि!या है, र्मैं तुम्हारे स्वग� र्में वासना की आग धधकाकर उसे नरक से बदतर बना दँूगा। और र्मैंने होठों के किकनारे चुम्बन की !पKें सु!गानी शुरू कर दीं...धीरे-धीरे र्महाश्र्मशान के स�ाKे र्में करोड़ों वासना की !पKें 5हरी!े साँपों की तरह फँुफकारने !गीं। र्मेरे र्मन को इसर्में बहुत सन्तोष धिर्म!ा, बहुत शास्टिन्त धिर्म!ी। यहाँ तक किक किबनती के लि!ए र्मैं अपने र्मन की सारी कKुता भू! गया। र्मैं कैसे कह दँू किक यह सब गुनाह र्था। सुधा, अगर ठीक से देखो, गम्भीरता से सर्मझो तो 5ो कुछ तुम्हारे लि!ए र्मेरे र्मन र्में र्था, उसी की प्रकितकिक्रया वह है 5ो र्मेरे र्मन र्में पम्र्मी के लि!ए है। तुम्हारा दु!ार और पम्र्मी की वासना दोनों एक लिसक्के के दो पह!ू हैं। अपने पह!ू को सही और दूसरे पह!ू को ग!त क्यों कहती हो? देवता की आरती र्में 5!ता हुआ दीपक पकिवv है और उससे किनक!ा हुआ धुआँ अपकिवv! दीप-लिशखा नैकितक है और धूर्म-रेखा अनैकितक? ग्!ाकिन किकस बात की, सुधा?'' चन्दर ने बहुत आवेश र्में कहा।

''लिछह, चन्दर! तुर्म र्मुझे सर्मझे नहीं! र्मैं नैकितक-अनैकितक की बात ही नहीं करती। र्मेरे भगवान ने, र्मेरे प्यार ने र्मुझे अब उस दुकिनया र्में पहुँचा दिदया है 5ो नैकितक-अनैकितक से उठकर है। तुर्मने अपने भगवान से किवद्रोह किकया, !ेकिकन उन्होंने तुम्हारी बात पर कोई फैस!ा भी तो दिदया होता। वे इतने दया!ु हैं किक कभी र्मानव के काय� पर फैस!ा ही नहीं देते। दंड तो दूर की बात, वे तो केव! आदर्मी को सर्मझाकर, उसकी कर्म5ोरिरयाँ सर्मझकर उसे क्षर्मा करने और उसे प्यार करने की बात कहते हैं, चन्दर! वहाँ नैकितकता-अनैकितकता का प्रश्न ही नहीं।''

''तब? यह ग्!ाकिन किकस बात की तुम्हें!'' चन्दर ने पूछा।

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''ग्!ाकिन तो र्मुझे अपने पर र्थी, चन्दर! रहा तुम्हारा पम्र्मी से सम्बन्ध तो र्मैं किबनती की तरह नहीं सोचती, इतना किवश्वास रखो। र्मेरी पाप और पुJय की तरा5ू ही दूसरी है। किफर कर्म-से-कर्म अब इतना देख-सुनकर र्मैं यह नहीं र्मानती किक शरीर की प्यास ही पाप है! नहीं चन्दर, शरीर की प्यास भी उतनी ही पकिवv और स्वाभाकिवक है जि5तनी आत्र्मा की पू5ा। आत्र्मा की पू5ा और शरीर की प्यास दोनों अक्षिभ� हैं। आत्र्मा की अक्षिभव्यलिक्त शरीर से है, शरीर का संस्कार, शरीर का सन्तु!न आत्र्मा से है। 5ो आत्र्मा और शरीर को अ!ग कर देता है, वही र्मन के भयंकर तूफानों र्में उ!झकर चूर-चूर हो 5ाता है। चन्दर, र्मैं तुम्हारी आत्र्मा र्थी। तुर्म र्मेरे शरीर रे्थ। पता नहीं कैसे हर्म !ोग अ!ग हो गये! तुम्हारे किबना र्मैं केव! सूक्ष्र्म आत्र्मा रह गयी। शरीर की प्यास, शरीर की रंगीकिनयाँ र्मेरे लि!ए अपरिरलिचत हो गयीं। पकित को शरीर देकर भी र्मैं सन्तोष न दे पायी...और र्मेरे किबना तुर्म केव! शरीर रह गये। शरीर र्में डूब गये...पाप का जि5तना किहस्सा तुम्हारा उतना ही र्मेरा...पाप की वैतरणी के इस किकनारे 5ब तक तुर्म तड़पोगे, तभी तक र्मैं भी तड़पूँगी...दोनों र्में से किकसी को भी चैन नहीं और कभी चैन नहीं धिर्म!ेगा...''

''!ेकिकन किफर...''

''हKाओ इन सब बातों को, चन्दर! तुर्मने व्यर्थ� यह बात उठायी। र्मैं अब बात करना भू!ती 5ा रही हूँ। र्मैं तो आयी र्थी तुम्हें देखकर कुछ र्मन का ताप धिर्मKाने। उठो, खाना खाए!ँ'' सुधा बो!ी।

''नहीं, र्मैं चाहता हूँ, बातें सु!झ 5ाए,ँ सुधा!'' चन्दर ने सुधा के हार्थ पर अपना लिसर रखकर कहा, ''र्मेरी तक!ीफ अब बेहद बढ़ती 5ा रही है। र्मैं पाग! न हो 5ाऊँ!''

''लिछह, ऐसी बात नहीं सोचते। उठो!'' चन्दर को उठाकर सुधा बो!ी। दोनों ने खाना खाया। र्महराजि5न बडे़ दु!ार से परसती रहीं और सुधा से बातें करती रहीं। खाना खाकर चन्दर !ेK गया और सोचने !गा, अब क्या सचर्मुच उसके और सुधा के बीच र्में कोई इतना भयंकर अन्तर आ गया है किक दोनों पह!े 5ैसे नहीं हो सकते?

!गभग चार ब5े वह 5ागा तो उसने देखा किक उसके पाँवों के पास लिसर रखकर सुधा सो रही है। पंखे की हवा वहाँ तक नहीं पहुँचती। वह पसीने से तर-बतर हो रही है। चन्दर उठा, उसे नींद र्में ऐसा !गा किक 5ैसे इधर कुछ हुआ ही नहीं है। सुधा वही सुधा है, चन्दर वही चन्दर है। उसने सुधा के पल्!े से सुधा के र्मारे्थ और ग!े का पसीना पोंछ दिदया और हार्थ बढ़ाकर पंखा उसकी ओर घुर्मा दिदया। सुधा ने आँखें खो!ीं, एक अ5ीब-सी किनगाह से चन्दर की ओर देखा और चन्दर के पाँव को खींचकर वक्ष से !गा किफर आँख बन्द करके !ेK गयी। चन्दर ने अपना एक हार्थ सुधा के र्मारे्थ पर रख लि!या और वह चुपचाप बैठा सोचने !गा, आ5 से !गभग सा!-भर पह!े की बात, 5ब उसने पह!े-पह! सुधा को कै!ाश का लिचv दिदखाया र्था, और सुधा रो-धोकर उसके पाँवों र्में इसी तरह र्मुँह लिछपाकर सो गयी र्थी...और आ5...सुधा सा!-भर र्में कहाँ से कहाँ 5ा पहुँची है! चन्दर कहाँ से कहाँ पहुँच गया है! काश किक कोई उनकी जि5-दगी की स्!ेK से इस वष�-भर र्में खींची हुए र्मानलिसक रेखाओं को धिर्मKा सके तो किकतने सुखी हो 5ाए ँदोनों! चन्दर ने सुधा को किह!ाया और बो!ा-

''सुधा, सो रही हो?''

''नहीं।''

''उठो।''

''नहीं चन्दर, पड़ी रहने दो। तुम्हारे चरणों र्में सबकुछ भू!कर एक क्षण के लि!ए भी सो सकँूगी, र्मुझे इसका किवश्वास नहीं र्था। सबकुछ छीन लि!या है तुर्मने, एक क्षण की आत्र्म-प्रवंचना क्यों छीनते हो?'' सुधा ने उसी तरह पडे़ हुए 5वाब दिदया।

''अरी, उठ पग!ी!'' चन्दर के र्मन र्में 5ाने कहाँ र्मरा पड़ा हुआ उल्!ास किफर से जि5न्दा हो उठा र्था। उसने सुधा की बाँह र्में 5ोर से चुKकी काKते हुए कहा, ''उठती है या नहीं, आ!सी कहीं की!''

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सुधा उठकर बैठ गयी। क्षण-भर चन्दर की ओर पर्थरायी हुई किनगाह से देखती रही और बो!ी, ''चन्दर, र्मैं 5ाग रही हूँ। तुम्हीं ने उठाया है र्मुझे...चन्दर। कहीं सपना तो नहीं है किक किफर KूK 5ाए!'' और सुधा लिससक-लिससक कर रो पड़ी। चन्दर की आँखों र्में आँसू आ गये। र्थोड़ी देर बाद वह बो!ा, ''सुधा, कोई 5ादूगर अगर हर्म !ोगों के र्मन से यह काँKा किनका! देता तो र्मैं किकतना सुखी होता! !ेकिकन सुधा, अब र्मैं तुम्हें दुखी नहीं करँूगा।''

''यह तो तुर्मने पह!े भी कहा र्था, चन्दर! !ेकिकन इधर 5ाने कैसे हो गये। !गता है तुम्हारे चरिरv र्में कहीं स्थाधियत्व नहीं...इसी का तो र्मुझे दुख है, चन्दर!''

''अब रहेगा, सुधा! तुम्हें खोकर, तुम्हारे प्यार को खोकर र्मैं देख चुका हूँ किक र्मैं आदर्मी नहीं रह पाता, 5ानवर बन 5ाता हूँ। सुधा, अगर तुर्म आ5 से र्महीनों पह!े धिर्म! 5ातीं तो 5ो 5हर र्मेरे र्मन र्में घुK रहा है, वह तुहारे सार्मने व्यक्त करके र्मैं किबल्कु! किनक्षिश्चन्त हो 5ाता। अच्छा सुधा, यहाँ आओ। चुपचाप !ेK 5ाओ, र्मैं तुर्मसे सबकुछ कह डा!ँू, किफर सब भू! 5ाऊँ। बो!ो, सुनोगी?''

सुधा चुपचाप !ेK गयी और बो!ी, ''चन्दर! या तो र्मत बताओ या किफर सभी स्पष्ट बता दो...''

''हाँ, किबल्कु! स्पष्ट सुधी; तुर्मसे कुछ लिछपा सकता हूँ भ!ा!'' चन्दर ने हल्की-सी चपत र्मारकर कहा, ''आ5 र्मन 5ैसे पाग! हो रहा है तुम्हारे चरणों पर किबखर 5ाने के लि!ए...5ादूगरनी कहीं की! देखो सुधा-किपछ!ी दफे तुर्मने र्मुझे बहुत कुछ बताया र्था, कै!ाश के बारे र्में!''

''हाँ।''

''बस, उसके बाद से एक अ5ीब-सी अरुलिच र्मेरे र्मन र्में तुम्हारे लि!ए होने !गी र्थी; र्मैं तुर्मसे कुछ लिछपाऊँगा नहीं। तुम्हारे 5ाने के बाद बK\ आया। उसने र्मुझसे कहा किक औरत केव! नयी संवेदना, नया स्वाद चाहती है और कुछ नहीं, अकिववाकिहत !ड़किकयाँ किववाह, और किववाकिहत !ड़किकयाँ नये पे्रर्मी...बस यही उनका चरर्म !क्ष्य है। !ड़किकयाँ शरीर की प्यास के अ!ावा और कुछ नहीं चाहतीं...5ैसे अरा5कता के दिदनों र्में किकसी देश र्में कोई भी चा!ाक नेता शलिक्त छीन !ेता है, वैसे ही र्मानलिसक शून्यता के क्षणों र्में बK\ 5ैसे र्मेरा दाश�किनक गुरु हो गया। उसके बाद आयी पम्र्मी। उससे र्मैंने कहा किक क्या आवश्यक है किक पुरुष और नारी के सम्बन्धों र्में सेक्स हो ही? उसने कहा, 'हाँ, और यदिद नहीं है तो प्!ेKाकिनक (आदश�वादी) प्यार की प्रकितकिक्रया सेक्स की ही प्यास र्में होती है।' अब र्मैं तुम्हें अपने र्मन का चोर बत!ा दँू। र्मैंने सोचा किक तुर्म भी अपने वैवाकिहक 5ीवन र्में रर्म गयी हो। शरीर की प्यास ने तुम्हें अपने र्में डुबा दिदया है और 5ो अरुलिच तुर्म र्मेरे सार्मने व्यक्त करती हो वह केव! दिदखावा है। इसलि!ए र्मन-ही-र्मन र्मुझे तुर्मसे लिचढ़-सी हो गयी। पता नहीं क्यों यह संस्कार र्मुझर्में दृढ़-सा हो गया और इसी के पीछे र्मैं तुम्हीं को नहीं, पम्र्मी को छोड़कर सभी !ड़किकयों से नफरत-सी करने !गा। किबनती को भी र्मैंने बहुत दुख दिदया। ब्याह र्में 5ाने के पह!े ही बहुत दुखी होकर गयी। रही पम्र्मी की बात तो र्मैं उस पर इसलि!ए खुश र्था किक उसने बड़ी यर्थार्थ�-सी बात कही र्थी। !ेकिकन उसने र्मुझसे कहा किक आदश�वादी प्यार की प्रकितकिक्रया शारीरिरक प्यास र्में होती है। तुर्मको इसका अपराधी र्मानकर तुर्मसे तो नारा5 हो गया !ेकिकन अन्दर-ही-अन्दर वह संस्कार र्मेरा व्यलिक्तत्व बद!ने !गा। सुधा, पता नहीं, तुम्हारे 5ीवन र्में प्रकितकिक्रया के रूप र्में शारीरिरक प्यास 5ागी या नहीं पर र्मेरे र्मन के गुनाह तो तूफान की तरह !हरा उठे। !ेकिकन तुर्मसे एक बात नहीं लिछपाऊँगा। वह यह किक ऐसे भी क्षण आये हैं 5ब पम्र्मी के सर्मप�ण ने र्मेरे र्मन की सारी कKुता धो दी है....बो!ो, तुर्म कुछ तो बो!ो, सुधा!''

''तुर्म कहते च!ो, चन्दर! र्मैं सुन रही हूँ।''

''हाँ...!ेकिकन उस दिदन गेसू आयी। उसने र्मुझे किफर पुराने दिदनों की याद दिद!ा दी और किफर 5ैसे पम्र्मी के लि!ए आकष�ण उखड़-सा गया। अच्छा सुधा, एक बात बताओ। तुर्म यह र्मानती हो किक कभी-कभी एक व्यलिक्त के र्माध्यर्म से दूसरे व्यलिक्त की भावनाओं की अनुभूकित होने !गती है?''

''क्या र्मत!ब?''

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''र्मेरा र्मत!ब 5ैसे र्मुझे गेसू की बातों र्में उस दिदन ऐसा !गा, 5ैसे तुर्म बो! रही हो। और दूसरी बात तुम्हें बताऊँ। तुम्हारे पीछे किबनती रही र्मेरे पास। सारे अँधेरे र्में वही एक रोशनी र्थी, बड़ी क्षीण, दिKर्मदिKर्माती हुई, सारहीन-सी। बश्किल्क र्मुझे तो !गता र्था किक वह रोशन ही इसलि!ए र्थी किक उसर्में रोशनी तुम्हारी र्थी। र्मैंने कुछ दिदन किबनती को बहुत प्यार किकया। र्मुझे ऐसा !गता र्था किक अभी तक तुर्म र्मेरे सार्मने र्थीं, अब तुर्म उसके र्माध्यर्म से आती हो। !गता र्था 5ैसे वह एक व्यलिक्तत्व नहीं है, तुम्हारे व्यलिक्तत्व का ही अंश है। उस !ड़की र्में जि5स अंश तक तुर्म र्थीं वह अंश बार-बार र्मेरे र्मन र्में रस उभार देता र्था। क्यों सुधा! र्मन की यह भी कैसी अ5ब-सी गकित है!''

सुधा र्थोड़ी देर चुप रही, किफर बो!ी, ''भागवत र्में एक 5गह एक Kीका र्में हर्मने पढ़ा र्था चन्दर किक जि5सको भगवान बहुत प्यार करते हैं, उसर्में उनकी अंशाक्षिभव्यलिक्त होती है। बहुत बड़ा वैज्ञाकिनक सत्य है यह! र्मैं किबनती को बहुत प्यार करती हूँ, चन्दर!''

''सर्मझ गया र्मैं।'' चन्दर बो!ा, ''अब र्मैं सर्मझा, र्मेरे र्मन र्में इतने गुनाह कहाँ से आये। तुर्मने र्मुझे बहुत प्यार किकया और वही तुम्हारे व्यलिक्तत्व के गुनाह र्मेरे व्यलिक्तत्व र्में उतर आये!''

सुधा खिख!खिख!ाकर हँस पड़ी। चन्दर के कन्धे पर हार्थ रखकर बो!ी, ''इसी तरह हँसते-बो!ते रहते तो क्यों यह हा! होता? र्मनर्मौ5ी हो। 5ब चाहो खुश हो गये, 5ब चाहो नारा5 हो गये!''

उसके बाद वह उठी और बाहर से एक तश्तरी र्में कुछ फ! काKकर !ायी। चन्दर ने देखा-आर्म। ''अरे आर्म! अभी कहाँ से आर्म !े आयीï? कौन !ाया?''

''!खनऊ उतरी र्थी? वहाँ से तुम्हारे लि!ए !ेती आयी।''

चन्दर ने एक आर्म की फाँक उठाकर खायी और किकसी पुरानी घKना की याद दिद!ाने के लि!ए आँच! से हार्थ पोंछ दिदये। सुधा हँस पड़ी और बड़ी दु!ार-भरी ताडऩा के स्वर र्में बो!ी, ''बो!ो, अब तो दिदर्माग नहीं किबगाड़ोगे अपना?''

''कभी नहीं सुधी, !ेकिकन पम्र्मी का क्या होगा? पम्र्मी से र्मैं सम्बन्ध नहीं तोड़ सकता। व्यवहार चाहे जि5तना सीधिर्मत कर दँू।''

''र्मैं कब कहती हूँ, र्मैं तुम्हें कहीं से कभी बाँधना ही नहीं चाहती। 5ानती हूँ किक अगर चाहूँ भी तो कभी अपने र्मन के बाहुपाश wी!े कर तुम्हें लिचरर्मुलिक्त तो र्मैं न दे पाऊँगी, तो भ!ा बन्धन ही क्यों बाँधूँ! पम्र्मी शार्म को आएगी?''

''शायद...''

दरवा5ा खKका और गेसू ने प्रवेश किकया। आकर, दौडक़र सुधा से लि!पK गयी। चन्दर उठकर च!ा आया। ''च!े कहाँ भाई5ान, बैदिठए न।''

''नहा !ँू, तब आता हूँ...'' चन्दर च! दिदया। वह इतना खुश र्था, इतना खुश किक बार्थ-रूर्म र्में खूब गाता रहा और नहा चुकने के बाद उसे खया! आया किक उसने बकिनयाइन उतारी ही नहीं र्थी। नहाकर कपडे़ बद!कर वह आया तब भी गुनगुना रहा र्था। कर्मरे र्में आया तब देखा गेसू अके!ी बैठी है।

''सुधा कहाँ गयी?'' चन्दर ने नाचते हुए स्वर र्में कहा।

''गयी है शरबत बनाने।'' गेसू ने चु�ी से लिसर wँकते हुए और पाँवों को स!वार से wँकते हुए कहा। चन्दर इधर-उधर बक्स र्में रूर्मा! wँूwऩे !गा।

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''आ5 बडे़ खुश हैं, चन्दर भाई! कोई खायी हुई ची5 धिर्म! गयी है क्या? अरे, र्मैं बहन हूँ कुछ इनार्म ही दे दीजि5ए।'' गेसू ने चुKकी !ी।

''इनार्म की बात क्या, कहो तो वह ची5 ही तुम्हें दे दँू!''

''हाँ, कै!ाश बाबू के दिद! से पूलिछए।'' गेसू बो!ी।

''उनके दिद! से तुम्हीं बात कर सकती हो!''

गेसू ने झेंपकर र्मुँह फेर लि!या।

सुधा हार्थ र्में दो किग!ास लि!ए आयी। ''!ो गेसू, किपयो।'' एक किग!ास गेसू को देकर बो!ी, ''चन्दर, !ो।''

''तुर्म किपयो न!''

''नहीं, र्मैं नहीं किपऊँगी। बफ� र्मुझे नुकसान करेगी!'' सुधा ने चुपचाप कहा। चन्दर को याद आ गया। पह!े सुधा लिचढ़-लिचढ़कर अपने आप चाय, शरबत पी 5ाती र्थी...और आ5...

''क्या wँूढ़ रहे हो, चन्दर?'' सुधा बो!ी।

''रूर्मा!, कोई धिर्म! ही नहीं रहा!''

''सा!-भर र्में रूर्मा! खो दिदये होंगे! र्मैं तो तुम्हारी आदत 5ानती हूँ। आ5 कपड़ा !ा दो, क! सुबह रूर्मा! सी दँू तुम्हारे लि!ए।'' और उठकर उसने कै!ाश के बक्स से एक रूर्मा! किनका!कर दे दिदया।

उसके बाद चन्दर बा5ार गया और कै!ाश के लि!ए तर्था सुधा के लि!ए कुछ कपडे़ खरीद !ाया। इसके सार्थ ही कुछ नर्मकीन 5ो सुधा को पसन्द र्था, पेठा, एक तरबू5, एक बोत! गु!ाब का शरबत, एक सुन्दर-सा पेन और 5ाने क्या-क्या खरीद !ाया। सुधा ने देखकर कहा, ''पापा नहीं हैं, किफर भी !गता है र्मैं र्मायके आयी हूँ!'' !ेकिकन वह कुछ खा-पी नहीं सकी।

चन्दर खाना खाकर !ॉन र्में बैठ गया, वहीं उसने अपनी चारपाई ड!वा !ी। सुधा के किबस्तर छत पर !गे रे्थ। उसके पास र्महराजि5न सोनेवा!ी र्थीं। सुधा एक तश्तरी र्में तरबू5 काKकर !े आयी और कुसr डा!कर चन्दर भी चारपाई के पास बैठ गया। चन्दर तरबू5 खाता रहा...र्थोड़ी देर बाद सुधा बो!ी-

''चन्दर, किबनती के बारे र्में तुम्हारी क्या राय है?''

''राय? राय क्या होती? बहुत अच्छी !ड़की है! तुर्मसे तो अच्छी ही है!'' चन्दर ने छेड़ा।

''अरे, र्मुझसे अच्छी तो दुकिनया है, !ेकिकन एक बात पूछें? बहुत गम्भीर बात है!''

''क्या?''

''तुर्म किबनती से ब्याह कर !ो।''

''किबनती से? कुछ दिदर्माग तो नहीं खराब हो गया है?''

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''नहीं! इस बारे र्में पह!े-पह!े 'ये' बो!े किक चन्दर से किबनती का ब्याह क्यों नहीं करती, तो र्मैंने चुपचाप पापा से पूछा। पापा किबल्कु! रा5ी हैं, !ेकिकन बो!े र्मुझसे किक तुम्हीं कहो चन्दर से। कर !ो; चन्दर! बुआ5ी अब दख! नहीं देंगी।''

चन्दर हँस पड़ा, ''अच्छी खुराफातें तुम्हारे दिदर्माग र्में उठती हैं! याद है, एक बार और तुर्मने ब्याह करने के लि!ए कहा र्था?''

सुधा के र्मुँह से एक हल्का किन:श्वास किनक! पड़ा-''हाँ, याद है! खैर, तब की बात दूसरी र्थी, अब तो तुम्हें कर !ेना चाकिहए।''

''नहीं सुधा, शादी तो र्मुझे नहीं ही करनी है। तुर्म कह क्यों रही हो? तुर्म र्मेरे-किबनती के सम्बन्धों को कुछ ग!त तो नहीं सर्मझ रही हो?''

''नहीं 5ी, !ेकिकन यह 5ानती हूँ किक किबनती तुर्म पर अन्धश्र»ा रखती है। उससे अच्छी !ड़की तुम्हें धिर्म!ेगी नहीं। कर्म-से-कर्म जि5-दगी तुम्हारी व्यवण्डिस्थत हो 5ाएगी।''

चन्दर हँसा, ''र्मेरी जि5-दगी शादी से नहीं, प्यार से सुधरेगी, सुधा! कोई ऐसी !ड़की wँूढ़ दो 5ो तुम्हारी 5ैसी हो और प्यार करे तो र्मैं सर्मझँू भी किक तुर्मने कुछ किकया र्मेरे लि!ए। शादी-वादी बेकार है और कोई बात करनी है या नहीं?''

''नहीं चन्दर, शादी तो तुम्हें करनी ही होगी। अब र्मैं ऐसे तुम्हें नहीं रहने दँूगी। किबनती से न करो तो दूसरी !ड़की wँूwँूगी। !ेकिकन शादी करनी होगी और र्मेरी पसन्द से करनी होगी।''

चन्दर एक उपेक्षा की हँसी हँसकर रह गया।

सुधा उठ खड़ी हुई।

''क्यों, च! दीं?''

''हाँ, अब नींद आ रही होगी तुम्हें, सोओ।''

चन्दर ने रोका नहीं। उसने सोचा र्था, सुधा बैठेगी। 5ाने किकतनी बातें करेंगे! वह सुधा से उसका सब हा! पूछेगा, !ेकिकन सुधा तो 5ाने कैसी तKस्थ, किनरपेक्ष और अपने र्में सीधिर्मत-सी हो गयी है किक कुछ सर्मझ र्में नहीं आता। उसने चन्दर से सबकुछ 5ान लि!या !ेकिकन चन्दर के सार्मने उसने अपने र्मन को कहीं 5ाकिहर ही नहीं होने दिदया, सुधा उसके पास होकर भी 5ाने किकतनी दूर र्थी! सरोवर र्में डूबकर पंछी प्यासा र्था।

करीब घंKा-भर बाद सुधा दूध का किग!ास !ेकर आयी। चन्दर को नींद आ गयी र्थी। वह चन्दर के लिसरहाने बैठ गयी-''चन्दर, सो गये क्या?''

''क्यों?'' चन्दर घबराकर उठ बैठा।

''!ो, दूध पी !ो।'' सुधा बो!ी।

''दूध हर्म नहीं किपएगँे।''

''पी !ो, देखो बफ� और शरबत धिर्म!ा दिदया है, पीकर तो देखो!''

''नहीं, हर्म नहीं किपएगँे। अब 5ाओ, हर्में नींद !ग रही है।'' चन्दर गुस्सा र्था।

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''पी !ो र्मेरे रा5दु!ारे, चर्मक रहे हैं चाँद-लिसतारे...'' सुधा ने !ोरी गाते हुए चन्दर को अपनी गोद र्में खींचकर बच्चों की तरह किग!ास चन्दर के र्मुँह से !गा दिदया। चन्दर ने चुपचाप दूध पी लि!या। सुधा ने किग!ास नीचे रखकर कहा, ''वाह, ऐसे तो र्मैं नी!ू को दूध किप!ाती हूँ।''

''नी!ू कौन?''

''अरे र्मेरा भती5ा! शंकर बाबू का !ड़का।''

''अच्छा!''

''चन्दर, तुर्मने पंखा तो छत पर !गा दिदया है। तुर्म कैसे सोओगे?''

''र्मुझे नींद आ 5ाएगी।''

चन्दर किफर !ेK गया। सुधा उठी नहीं। वह दूसरी पाKी से हार्थ Kेककर चन्दर के वक्ष के आर-पार फू!ों के धनुष-सी झुककर बैठ गयी। एकादशी का ण्टिस्नग्ध पकिवv चन्द्रर्मा आसर्मान की नी!ी !हरों पर अधखिख!े बे! के फू! की तरह काँप रहा र्था। दूध र्में नहाये हुए झोंके चाँदनी से आँख-धिर्मचौ!ी खे! रहे रे्थ। चन्दर आँखें बन्द किकये पड़ा र्था और उसकी प!कों पर, उसके र्मारे्थ पर, उसके होठों पर चाँदी की पाँखुरिरयाँ बरस रही र्थीं। सुधा ने चन्दर का कॉ!र ठीक किकया और बडे़ ही र्मधुर स्वर र्में पूछा, ''चन्दर, नींद आ रही है?''

''नहीं, नींद उचK गयी!'' चन्दर ने आँख खो!कर देखा। एकादशी का पकिवv चन्द्रर्मा आकाश र्में र्था और पू5ा से अक्षिभकिषक्त एकादशी की उदास चाँदनी उसके वक्ष पर झुकी बैठी र्थी। उसे !गा 5ैसे पकिवvता और अर्मृत का चम्पई बाद! उसके प्राणों र्में लि!पK गया है।

उसने करवK बद!कर कहा, ''सुधा, जि5-दगी का एक पह!ू खत्र्म हुआ। दद� की एक र्मंजि5! खत्र्म हो गयी। र्थकान भी दूर हो गयी, !ेकिकन अब आगे का रास्ता सर्मझ र्में नहीं आता। क्या करँू?''

''करना बहुत है, चन्दर! अपने अन्दर की बुराई से !ड़ लि!ये, अब बाहर की बुराई से !ड़ो। र्मेरा तो सपना र्था चन्दर किक तुर्म बहुत बडे़ आदर्मी बनोगे। अपने बारे र्में तो 5ो कुछ सोचा र्था वह सब नसीब ने तोड़ दिदया। अब तुम्हीं को देखकर कुछ सन्तोष धिर्म!ता है। तुर्म जि5तने ऊँचे बनोगे, उतना ही चैन धिर्म!ेगा। वना� र्मैं तो नरक र्में भुन रही हूँ।''

''सुधा, तुम्हारी इसी बात से र्मेरी सारी किहम्र्मत, सारा ब! KूK 5ाता है। अगर तुर्म अपने परिरवार र्में सुखी होती तो र्मेरा भी साहस बँधा रहता। तुम्हारा यह हा!, तुम्हारा यह स्वास्थ्य, यह असर्मय वैराग्य और पू5ा, यह घुKन देखकर !गता है क्या करँू? किकसके लि!ए करँू?''

''र्मैं भी क्या करँू, चन्दर! र्मैं यह 5ानती हूँ किक अब ये भी र्मेरा बहुत खया! रखते हैं, !ेकिकन इस बात पर र्मुझे और भी दुख होता है। र्मैं इन्हें सन्तुलि!त नहीं कर पाती और उनकी खु!कर उपेक्षा भी नहीं कर पाती। यह अ5ब-सा नरक है र्मेरा 5ीवन भी, !ेकिकन यह 5रूर है चन्दर किक तुम्हें ऊँचा देखकर र्मैं यह नरक भी भोग !े 5ाऊँगी। तुर्म दिद! र्मत छोKा करो। एक ही जि5-दगी की तो बात है, उसके बाद...''

''!ेकिकन र्मैं तो पुन5�न्र्म र्में किवश्वास ही नहीं करता।''

''तब तो और भी अच्छा है, इसी 5न्र्म र्में 5ो सुख दे सकते हो, दे !ो। जि5तना ऊँचे उठ सकते हो, उठ !ो।''

''तुर्म 5ो रास्ता बताओ वह र्मैं अपनाने के लि!ए तैयार हूँ। र्मैं सोचता हूँ, अपने व्यलिक्तत्व से ऊपर उठँू...!ेकिकन र्मेरे सार्थ एक शत� है। तुम्हारा प्यार र्मेरे सार्थ रहे!''

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''तो वह अ!ग कब रहा, चन्दर! तुम्हीं ने 5ब चाहा र्मुँह फेर लि!या। !ेकिकन अब नहीं। काश किक तुर्म एक क्षण का भी अनुभव कर पाते किक तुर्मसे दूर वहाँ, वासना के कीचड़ र्में फँसी हुई र्मैं किकतनी व्याकु!, किकतनी व्यलिर्थत हूँ तो तुर्म ऐसा कभी न करते! र्मेरे 5ीवन र्में 5ो कुछ अपूण�ता रह गयी है चन्दर, उसकी पूण�ता, उसकी लिसजि» तुम्हीं हो। तुम्हें र्मेरे 5न्र्म-5न्र्मान्तर की शास्टिन्त की सौगन्ध है, तुर्म अब इस तरह न करना! बस ब्याह कर !ो और दृढ़ता से ऊँचाई की ओर च!ो।''

''ब्याह के अ!ावा तुम्हारी सब बातें स्वीकार हैं। !ेकिकन किफर भी तुर्म अपना प्यार वापस नहीं !ोगी कभी?''

''कभी नहीं।''

''और हर्म कभी नारा5 भी हो 5ाए ँतो बुरा नहीं र्मानोगी?''

''नहीं!''

''और हर्म कभी किफस!ें तो तुर्म तKस्थ होकर नहीं बैठोगी बश्किल्क किबना डरे हुए र्मुझे खींच !ाओगी उस द!द! से?''

''यह कदिठन है चन्दर, आखिखर र्मेरे भी बन्धन हैं। !ेकिकन खैर...अच्छा यह बताओ, तुर्म दिदल्!ी कब आओगे?''

''अब दिदल्!ी तो दशहरे र्में आऊँगा। गर्मिर्म-यों र्में यहीं रहूँगा।...!ेकिकन हो सका तो !ौKने के बाद शाह5हाँपुर आऊँगा।''

सुधा चुपचाप बैठी रही। चन्दर भी चुपचाप !ेKा रहा। र्थोड़ी देर बाद चन्दर ने सुधा की हरे्थ!ी अपने हार्थों पर रख !ी और आँखें बन्द कर !ीं। 5ब वह सो गया तो सुधा ने धीरे-से हार्थ उठाया, खड़ी हो गयी। र्थोड़ी देर अप!क उसे देखती रही और धीरे-धीरे च!ी आयी।

दूसरे दिदन सुबह सुधा ने आकर चन्दर को 5गाया। चन्दर उठ बैठा तो सुधा बो!ी-''5ल्दी से नहा !ो, आ5 तुम्हारे सार्थ पू5ा करेंगे!''

चन्दर उठ बैठा। नहा-धोकर आया तो सुधा ने चौकी के सार्मने दो आसन किबछा रखे रे्थ। चौकी पर धूप सु!ग रही र्थी और फू! गर्मक रहे रे्थ। wेर-के-wेर बे!ें और अगस्त के फू!। चन्दर को किबठाकर सुधा बैठी। उसने किफर वही वेश धारण कर लि!या र्था। रेशर्म की धोती और रेशर्म का एक अन्तवा�सक, गी!े बा! पीठ पर !हरा रहे रे्थ।

''!ेकिकन र्मैं बैठा-बैठा क्या करँूगा?'' उसने पूछा।

सुधा कुछ नहीं बो!ी। चुपचाप अपना कार्म करती गयी। र्थोड़ी देर बाद उसने भागवत खो!ी और बडे़ र्मधुर स्वरों र्में गोकिपका-गीत पढ़ती रही। चन्दर संस्कृत नहीं सर्मझता र्था, पू5ा र्में किवश्वास नहीं करता र्था, !ेकिकन वह क्षण 5ाने कैसा !ग रहा र्था! चन्दर की साँस र्में धूप की पावन सौरभ के डोरे गँुर्थ गये रे्थ। उसके घुKनों पर रह-रहकर सद्य:स्नाता सुधा के भीगे केशों से गी!े र्मोती चू पड़ते रे्थ। कृशकाय, उदास और पकिवv सुधा के पू5ा के प्रसाद 5ैसे र्मधुर स्वर र्में श्रीर्मद्भागवत के श्लोक उसकी आत्र्मा को अर्मृत से धो रहे रे्थ। !गता र्था, 5ैसे इस पू5ा की श्र»ास्टिन्वत बे!ा र्में उसके 5ीवन-भर की भू!ें, कर्म5ोरिरयाँ, गुनाह सभी धु!ता 5ा रहा र्था।...5ब सुधा ने भागवत बन्द करके रख दिदया तो पता नहीं क्यों चन्दर ने प्रणार्म कर लि!या-भागवत को या भागवत की पु5ारिरन को, यह नहीं र्मा!ूर्म।

र्थोड़ी देर बाद सुधा ने पू5ा की र्था!ी उठायी और उसने चन्दर के र्मारे्थ पर रो!ी !गा दी।

''अरे र्मैं!''

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''हाँ तुर्म! और कौन...र्मेरे तो दूसरा न कोई!'' सुधा बो!ी और wेर-के-wेर फू! चन्दर के चरणों पर चढ़ाकर, झुककर चन्दर के चरणों को प्रणार्म कर लि!या। चन्दर ने घबराकर पाँव खींच लि!ए, ''र्मैं इस योग्य नहीं हूँ, सुधा! क्यों !ण्डिज्जत कर रही हो?''

सुधा कुछ नहीं बो!ी...अपने आँच! से एक छ!कता हुआ आँसू पोंछकर नाश्ता !ाने च!ी गयी।

5ब वह यूकिनवर्शिस-Kी से !ौKा तो देखा, सुधा र्मशीन रखे कुछ लिस! रही है। चन्दर ने कपडे़ बद!कर पूछा, ''कहो, क्या लिस! रही हो?''

''रूर्मा! और बकिनयाइन! कैसे कार्म च!ता र्था तुम्हारा? न सन्दूक र्में एक भी रूर्मा! है, न एक भी बकिनयाइन। !ापरवाही की भी हद है। तभी कहती हूँ ब्याह कर !ो!''

''हाँ, किकसी द5r की !ड़की से ब्याह करवा दो!'' चन्दर खाK पर बैठ गया और सुधा र्मशीन पर बैठी-बैठी लिस!ती रही। र्थोड़ी देर बाद सहसा उसने र्मशीन रोक दी और एकदर्म से घबरा कर उठी।

''क्या हुआ, सुधा...''

''बहुत दद� हो रहा है....'' वह उठी और खाK पर बेहोश-सी पड़ रही। चन्दर दौडक़र पंखा उठा !ाया। और झ!ने !गा। ''डॉक्Kर बु!ा !ाऊँ?''

''नहीं, अभी ठीक हो 5ाऊँगी। उबकाई आ रही है!'' सुधा उठी।

''5ाओ र्मत, र्मैं पीकदान उठा !ाता हूँ।'' चन्दर ने पीकदान उठाकर रख दिदया और सुधा की पीठ सह!ाने !गा। किफर सुधा हाँफती-सी !ेK गयी। चन्दर दौड़कर इ!ायची और पानी !े आया। सुधा ने इ!ायची खायी और किफर पड़ रही। उसके र्मारे्थ पर पसीना झ!क आया।

''अब कैसी तबीयत है, सुधा?''

''बहुत दद� है अंग-अंग र्में...र्मशीन च!ाना नुकसान कर गया।'' सुधा ने बहुत क्षीण स्वरों र्में कहा।

''5ाऊँ किकसी डॉक्Kर को बु!ा !ाऊँ?''

''बेकार है, चन्दर! र्मैं तो !खनऊ र्में दिदखा आयी। इस रोग का क्या इ!ा5 है। यह तो जि5-दगी-भर का अक्षिभशाप है!''

''क्या बीर्मारी बतायी तुम्हें?''

''कुछ नहीं।''

''बताओ न?''

''क्या बताऊँ, चन्दर!'' सुधा ने बड़ी कातर किनगाहों से चन्दर की ओर देखा और फूK-फूKकर रो पड़ी। बुरी तरह लिससकने !गी। सुधा चुपचाप पड़ी कराहती रही। चन्दर ने अKैची र्में से दवा किनका!कर दी। कॉ!े5 नहीं गया। दो घंKे बाद सुधा कुछ ठीक हुई। उसने एक गहरी साँस !ी और तकिकये के सहारे उठकर बैठ गयी। चन्दर ने और कई तकिकये पीछे रख दिदये। दो ही घंKे र्में सुधा का चहेरा पी!ा पड़ा गया। चन्दर चुपचाप उदास बैठा रहा।

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उस दिदन सुधा ने खाना नहीं खाया। लिसफ� फ! लि!ये। दोपहर को दो ब5े भयंकर !ू र्में कै!ाश वापस आया और आते ही चन्दर से पूछा, ''सुधा की तबीयत तो ठीक रही?'' यह 5ानकर किक सुबह खराब हो गयी र्थी, वह कपडे़ उतारने के पह!े सुधा के कर्मरे र्में गया और अपने हार्थ से दवा देकर किफर कपडे़ बद!कर सुधा के कर्मरे र्में 5ाकर सो गया। बहुत र्थका र्मा!ूर्म पड़ता र्था।

चन्दर आकर अपने कर्मरे र्में कॉकिपयाँ 5ाँचता रहा। शार्म को काधिर्मनी, प्रभा तर्था कई !ड़किकयाँ, जि5न्हें गेसू ने खबर दे दी र्थी, आयीं और सुधा और कै!ाश को घेरे रहीं। चन्दर उनकी खाकितर-तवज्जो र्में !गा रहा। रात को कै!ाश ने उसे अपनी छत पर बु!ा लि!या और चन्दर के भकिवष्य के काय�क्रर्म के बारे र्में बात करता रहा। 5ब कै!ाश को नींद आने !गी, तब वह उठकर !ॉन पर !ौK आया और !ेK गया।

बहुत देर तक उसे नींद नहीं आयी। वह सुधा की तक!ीफों के बारे र्में सोचता रहा। उधर सुधा बहुत देर तक करवKें बद!ती रही। यह दो दिदन सपनों की तरह बीत गये और क! वह किफर च!ी 5ाएगी चन्दर से दूर, न 5ाने कब तक के लि!ए!

सुबह से ही सुधा 5ैसे बुझ गयी र्थी। क! तक 5ो उसर्में उल्!ास वापस आ गया र्था, वह 5ैसे कै!ाश की छाँह ने ही ग्रस लि!या र्था। चन्दर के कॉ!े5 का आखिखरी दिदन र्था। चन्दर कै!ाश को !े गया और अपने धिर्मvों से, प्रोफेसरों से उसका परिरचय करा !ाया। एक प्रोफेसर, जि5नकी आदत र्थी किक वे कांग्रेस सरकार से सम्बण्टिन्धत हर व्यलिक्त को दावत 5रूर देते रे्थ, उन्होंने कै!ाश को भी दावत दी क्योंकिक वह सांस्कृकितक धिर्मशन र्में 5ा रहा र्था।

वापस 5ाने के लि!ए रात की गाड़ी तय रही। हफ्ते-भर बाद ही कै!ाश को 5ाना र्था अत: वह ज्यादा नहीं रुक सकता र्था। दोपहर का खाना दोनों ने सार्थ खाया। सुधा र्महराजि5न का लि!हा5 करती र्थी, अत: वह कै!ाश के सार्थ खाने नहीं बैठी। किनश्चय हुआ किक अभी से सार्मान बाँध लि!या 5ाए ताकिक पाK\ के बाद सीधे स्Kेशन 5ा सकें ।

5ब सुधा ने चन्दर के !ाये हुए कपडे़ कै!ाश को दिदखाये तो उसे बड़ा ताज्जुब हुआ। !ेकिकन उसने कुछ नहीं कहा, कपडे़ रख लि!ये और चन्दर से 5ाकर बो!ा, ''अब 5ब तुर्मने !ेने-देने का व्यवहार ही किनभाया है तो यह बता दो, तुर्म बडे़ हो या छोKे?''

''क्यों?'' चन्दर ने पूछा।

''इसलि!ए किक बडे़ हो तो पैर छूकर 5ाऊँ, और छोKे हो तो रुपया देकर 5ाऊँ!'' कै!ाश बो!ा। चन्दर हँस पड़ा।

घर र्में दोपहर से ही उदासी छा गयी। न चन्दर दोपहर को सोया, न कै!ाश और न सुधा। शार्म की पाK\ र्में सब !ोग गये। वहाँ से !ौKकर आये तो सुधा को !गा किक उसका र्मन अभी डूब 5ाएगा। उसे शादी र्में भी 5ाना इतना नहीं अखरा र्था जि5तना आ5 अखर रहा र्था। र्मोKर पर सार्मान रखा 5ा रहा र्था तो वह खम्भे से दिKककर खड़ी रो रही र्थी। र्महराजि5न एक Kोकरी र्में खाने का सार्मान बाँध रही र्थी।

कै!ाश ने देखा तो बो!ा, ''रो क्यों रही हो? छोड़ 5ाए ँतुम्हें यहीं? चन्दर से सँभ!ेगा!'' सुधा ने आँसू पोंछकर आँखों से डाँKा-''र्महराजि5न सुन रही हैं किक नहीं।'' र्मोKर तक पहुँचते-पहुँचते सुधा फूK-फूKकर रो पड़ी और र्महराजि5न उसे ग!े से !गाकर आँसू पोंछने !गीं। किफर बो!ीं, ''रोवौ न किबदिKया! अब छोKे बाबू का किबयाह कर देव तो दुई-तीन र्महीना आयके रह 5ाव। तोहार सास छोण़्डिडहैं किक नैं?''

सुधा ने कुछ 5वाब नहीं दिदया और पाँच रुपये का नोK र्महराजि5न के हार्थ र्में र्थर्माकर आ बैठी।

टे्रन प्!ेKफार्म� पर आ गयी र्थी। सेकें ड क्!ास र्में चन्दर ने इन !ोगों का किबस्तर !गवा दिदया। सीK रिर5व� करवा दी। गाड़ी छूKने र्में अभी घंKा-भर देर र्थी। सुधा की आँखों र्में किवलिचv-सा भाव र्था। क! तक की दृढ़ता, ते5, उल्!ास बुझ गया र्था और अ5ब-सी कातरता आ गयी र्थी। वह चुप बैठी र्थी। चन्दर से 5ब नहीं देखा गया तो वह उठकर

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प्!ेKफार्म� पर Kह!ने !गा। कै!ाश भी उतर गया। दोनों बातें करने !गे। सहसा कै!ाश ने चन्दर के कन्धे पर हार्थ रखकर कहा, ''हाँ यार, एक बात बहुत 5रूरी र्थी।''

''क्या?''

''इन्होंने तुर्मसे किबनती के बारे र्में कुछ कहा?''

''कहा र्था!''

''तो क्या सोचा तुर्मने?''

''र्मैं शादी-वादी नहीं करँूगा।''

''यह सब आदश�वाद र्मुझे अच्छा नहीं !गा, और किफर उससे शादी करके सच पूछो तो बहुत बड़ी बात करोगे तुर्म! उस घKना के बाद अब ब्राह्म ï णों र्में तो वर उसे धिर्म!ने से रहा। और ये कह रही र्थीं किक वह तुम्हें र्मानती भी बहुत है।''

''हाँ, !ेकिकन इसके र्मत!ब यह नहीं किक र्मैं शादी कर !ँू। र्मुझे बहुत कुछ करना है।''

''अरे 5ाओ यार, तुर्म लिसवा बातों के कुछ नहीं कर सकते।''

''हो सकता है।'' चन्दर ने बात Kा! दी। वह शादी तो नहीं ही करेगा।

र्थोड़ी देर बाद चन्दर ने पूछा, ''इन्हें दिदल्!ी कब भे5ोगे?''

''अभी तो जि5स दिदन र्मैं 5ाऊँगा, उस दिदन ये दिदल्!ी र्मेरे सार्थ 5ाएगँी, !ेकिकन दूसरे दिदन शाह5हाँपुर !ौK 5ाएगँी।''

''क्यों?''

''अभी र्माँ बहुत किबगड़ी हुई हैं। वह इन्हें आने र्थोडे़ ही देती र्थीं। वह तो !खनऊ के बहाने र्मैं इन्हें !े आया। तुर्म शंकर भइया से कभी जि5क्र र्मत करना-अब दिदल्!ी तो इसलि!ए च!ी 5ाए ँकिक र्मैं दो-तीन र्महीने बाद !ौKँूगा...किफर शायद लिसतम्बर, अक्Kूबर र्में ये तीन-चार र्महीने के लि!ए दिदल्!ी 5ाएगँी। यू नो शी इ5 कैरीइङ्!''

''हाँ, अच्छा!''

''हाँ, यही तो बात है, पह!ा र्मौका है।''

दोनों !ौKकर कम्पाK�र्मेंK र्में बैठ गये।

सुधा बो!ी, ''तो लिसतम्बर र्में आओगे न, चन्दर?''

''हाँ-हाँ!''

''5रूर से? किफर वक्त कोई बहाना न बना देगा।''

''5रूर आऊँगा!''

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कै!ाश उतरकर कुछ !ेने गया तो सुधा ने अपनी आँखों से आँसू पोंछकर झुककर चन्दर के पाँव छू लि!ये और रोकर बो!ी, ''चन्दर, अब बहुत KूK चुकी हूँ...अब हार्थ न खींच !ेना...'' उसका ग!ा रँुध गया।

चन्दर ने सुधा के हार्थों को अपने हार्थ र्में !े लि!या और कुछ भी नहीं बो!ा। सुधा र्थोड़ी देर चुप रही, किफर बो!ी-

''चन्दर, चुप क्यों हो? अब तो नफरत नहीं करोगे? र्मैं बहुत अभागी हूँ, देवता! तुर्मने क्या बनाया र्था और अब क्या हो गयी!...देखो, अब लिचठ्ठी लि!खते रहना। नहीं तो सहारा KूK 5ाता है...'' और किफर वह रो पड़ी।

कै!ाश कुछ किकताबें और पकिvकाए ँखरीदकर वापस आ गया। दोनों बैठकर बातें करते रहे। यह किनश्चय हुआ किक 5ब कै!ाश !ौKेगा तो ब5ाय बम्बई से सीधे दिदल्!ी 5ाने के, वह प्रयाग से होता हुआ 5ाएगा।

गाड़ी च!ी तो चन्दर ने कै!ाश को बहुत प्यार से ग!े !गा लि!या। 5ब तक गाड़ी प्!ेKफॉर्म� के अन्दर रही, सुधा लिसर किनका!े झाँकती रही। प्!ेKफार्म� के बाहर भी पी!ी चाँदनी र्में सुधा का फहराता हुआ आँच! दिदखता रहा। धीरे-धीरे वह एक सफेद किबन्दु बनकर अदृश्य हो गया। गाड़ी एक किवशा! अ5गर की तरह चाँदनी र्में रेंगती च!ी 5ा रही र्थी।

5ब र्मन र्में प्यार 5ाग 5ाता है तो प्यार की किकरन बाद!ों र्में लिछप 5ाती है। अ5ब र्थी चन्दर की किकस्र्मत! इस बार तो, सुधा गयी र्थी तो उसके तन-र्मन को एक गु!ाबी नशे र्में सराबोर कर गयी र्थी। चन्दर उदास नहीं र्था। वह बेहद खुश र्था। खूब घूर्मता र्था और गरर्मी के बाव5ूद खूब कार्म करता र्था। अपने पुराने नोK्स किनका! लि!ये रे्थ और एक नयी किकताब की रूपरेखा सोच रहा र्था। उसे !गता र्था किक उसका पौरुष, उसकी शलिक्त, उसका ओ5, उसकी दृढ़ता, सभी कुछ !ौK आया है। उसे हरदर्म !गता किक गु!ाबी पाँखुरिरयों की एक छाया उसकी आत्र्मा को चूर्मती रहती है। वह 5ब कभी !ेKता तो उसे!गता किक सुधा फू!ों के धनुष की तरह उसके प!ँग के आर-पार पाKी पर हार्थ Kेके बैठी है। उसे !गता-कर्मरे र्में अब भी धूप की सौरभ !हरा रही है और हवाओं र्में सुधा के र्मधुर कंठ के श्लोक गँू5 रहे हैं।

दो ही दिदन र्में चन्दर को !ग रहा र्था किक उसकी जि5-दगी र्में 5हाँ 5ो कुछ KूK-फूK गया है, वह सब सँभ! रहा है। वह सब अभाव धीरे-धीरे भर रहा है। उसके र्मन का पू5ा-गृह खँडहर हो चुका र्था, सहसा उस पर 5ैसे किकसी ने आँसू लिछड़ककर 5ीवन के वरदान से अक्षिभकिषक्त कर दिदया र्था। पत्थर के बीच दबकर किपसे हुए पू5ा-गीत किफर से सस्वर हो उठे रे्थ। र्मुरझाये हुए पू5ा-फू!ों की पाँखुरिरयों र्में किफर रस छ!क आया र्था और रंग चर्मक उठे रे्थ। धीरे-धीरे र्मजिन्दर का कँगूरा किफर लिसतारों से सर्मझौता करने की तैयारी करने !गा र्था। चन्दर की नसों र्में वेद-र्मन्vों की पकिवvता और ब्र5 की वंशी की र्मधुराई प!कों र्में प!कें डा!कर नाच उठी र्थी। सारा कार्म 5ैसे वह किकसी अदृश्य आत्र्मा की आत्र्मा की आज्ञा से करता र्था। वह आत्र्मा लिसवा सुधा के और भ!ा किकसकी र्थी! वह सुधार्मय हो रहा र्था। उसके कदर्म-कदर्म र्में, बात-बात र्में, साँस-साँस र्में सुधा का प्यार किफर से !ौK आया र्था।

तीसरे दिदन किबनती का एक पv आया। किबनती ने उसे दिदल्!ी बु!ाया र्था और र्मार्मा5ी (डॉक्Kर शुक्!ा) भी चाहते रे्थ किक चन्दर कुछ दिदन के लि!ए दिदल्!ी च!ा आये तो अच्छा है। चन्दर के लि!ए कुछ कोलिशश भी कर रहे रे्थ। उसने लि!ख दिदया किक वह र्मई के अन्त र्में या 5ून के प्रारम्भ र्में आएगा। और किबनती को बहुत, बहुत-सा स्नेह। उसने सुधा के आने की बात नहीं लि!खी क्योंकिक कै!ाश ने र्मना कर दिदया र्था।

सुबह चन्दर गंगा नहाता, नयी पुस्तकें पढ़ता, अपने नोK्स दोहराता। दोपहर को सोता और रेकिडयो ब5ाता, शार्म को घूर्मता और लिसनेर्मा देखता, सोते वक्त ककिवताए ँपढ़ता और सुधा के प्यार के बाद!ों र्में र्मुँह लिछपाकर सो 5ाता। जि5स दिदन कै!ाश 5ाने वा!ा र्था, उसी दिदन उसका एक पv आया किक वह और सुधा दिदल्!ी आ गये हैं। शंकर भइया और नी!ू उसे पहुँचाने बम्बई 5ाएगँे। चन्दर सुधा के इ!ाहाबाद 5ाने का जि5क्र किकसी को भी न लि!खे। यह उसके और चन्दर के बीच की बात र्थी। खत के नीचे सुधा की कुछ !ाइनें र्थीं।

''चन्दर,

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रार्म-रार्म। तुर्मने र्मुझे 5ो साड़ी दी र्थी वह क्या अपनी भावी श्रीर्मती के नाप की र्थी? वह र्मेरे घुKनों तक आती है। बूढ़ी होकर धिघस 5ाऊँगी तो उसे पहना करँूगी-अच्छा स्नेह। और 5ो तुर्मसे कह आयी हूँ उन बातों का ध्यान रहेगा न? र्मेरी तन्दुरुस्ती ठीक है। इधर र्मैंने गाँधी5ी की आत्र्मकर्था पढ़नी शुरू की है।

तुम्हारी-सुधा।

''...और हाँ, !ा!ा5ी! धिर्मठाई खिख!ाओ, दिदल्!ी र्में बहुत खबर है किक शरणार्थr किवभाग र्में प्रयाग के एक प्रोफेसर आने वा!े हैं!''

कै!ाश तो अब बम्बई च! दिदया होगा। बम्बई के पते से उसने बधाई का एक तार भे5 दिदया और सुधा को एयर र्मे! से उसने एक खत भे5ा जि5सर्में उसने बहुत-सी धिर्मठाइयों का लिचv बना दिदया र्था।

!ेकिकन वह पसोपेश र्में पड़ गया। दिदल्!ी 5ाए या न 5ाए। वह अपने अन्तर्म�न से सरकारी नौकरी का किवरोधी र्था। उसे तत्का!ीन भारतीय सरकार और किब्रदिKश सरकार र्में ज्यादा अन्तर नहीं !गता र्था। किफर हर दृधिष्टकोण से वह सर्मा5वादिदयों के अधिधक सर्मीप र्था। और अब वह सुधा से वायदा कर चुका र्था किक वह कार्म करेगा। ऊँचा बनेगा। प्रलिस» होगा, !ेकिकन पद स्वीकार कर ऊँचा बनना उसके चरिरv के किवरु» र्था। किकन्तु डॉक्Kर शुक्!ा कोलिशश कर कर रहे रे्थ। चन्दर केन्द्रीय सरकार के किकसी ऊँचे पद पर आए, यह उनका सपना र्था। चन्दर को कॉ!े5 की स्वच्छन्द और wी!ी नौकरी पसन्द र्थी। अन्त र्में उसने यह सोचा किक पह!े नौकरी स्वीकार कर !ेगा। बाद र्में किफर कॉ!े5 च!ा आएगा-एक दिदन रात को 5ब वह किब5!ी बुझाकर, किकताब बन्द कर सीने पर रखकर लिसतारों को देख रहा र्था और सोच रहा र्था किक अब सुधा दिदल्!ी !ौK गयी होगी, अगर दिदल्!ी रह गया तो बँग!े र्में किकसे दिKकाया 5ाएगा...इतने र्में किकसी व्यलिक्त ने फाKक खो!कर बँग!े र्में प्रवेश किकया। उसे ताज्जुब हुआ किक इतनी रात को कौन आ सकता है, और वह भी साइकिक! !ेकर! उसने किब5!ी 5!ा दी। तार वा!ा र्था।

साइकिक! खड़ी कर, तार वा!ा !ॉन पर च!ा गया और तार दे दिदया। दस्तखत करके उसने लि!फाफा फाड़ा। तार डॉक्Kर साहब का र्था। लि!खा र्था किक ''अग!ी टे्रन से फौरन च!े आओ। स्Kेशन पर सरकारी कार होगी स!ेKी रंग की।'' उसके र्मन ने फौरन कहा, चन्दर, हो गये तुर्म केन्द्र र्में!

उसकी आँखों से नींद गायब हो गयी। वह उठा, अग!ी टे्रन सुबह तीन ब5े 5ाती र्थी। ग्यारह ब5े रे्थ। अभी चार घंKे रे्थ। उसने एक अKैची र्में कुछ अचे्छ-से-अचे्छ सूK रखे, किकताबें रखीं, और र्मा!ी को सहे5कर च! दिदया। र्मोKर को स्Kेशन से वापस !ाने की दिदक्कत होती, ड्राइवर अब र्था नहीं, अत: नौकर को अKैची देकर पैद! च! दिदया। राह र्में लिसनेर्मा से !ौKता हुआ रिरक्शा धिर्म! गया।

चन्दर ने सेकें ड क्!ास का दिKकK लि!या और ठाठ से च!ा। कानपुर र्में उसने सादी चाय पी और इKावा र्में रेस्तराँ-बार र्में 5ाकर खाना खाया। उसके बग! र्में र्मारवाड़ी दम्पकित बैठे रे्थ 5ो सेकें ड क्!ास का किकराया खच� करके प्रायक्षिश्चतस्वरूप एक आने की पकौड़ी और दो आने की दा!र्मोठ से उदर-पूर्तित- कर रहे रे्थ। हार्थरस स्Kेशन पर एक र्म5ेदार घKना घKी। हार्थरस र्में छोKी और बड़ी !ाइनें क्रॉस करती हैं। छोKी !ाइन ऊपर पु! पर खड़ी होती है। स्Kेशन के पास 5ब टे्रन धीर्मी हुई तो सेठ5ी सो रहे रे्थ। सेठानी ने बाहर झाँककर देखा और किनस्संकोच उनके पृरु्थ! उदर पर कर-प्रहार करके कहा, ''हो! देखो रे!गाड़ी के लिसर पर रे!गाड़ी!'' सेठ एकदर्म चौंककर 5ागे और उछ!कर बो!े, ''बाप रे बाप! उ!K गयी रे!गाड़ी। 5ल्दी सार्मान उतार। !ुK गये रार्म! ये तो 5ंग! है। कहते रे्थ 5ेवर न !े च!।''

चन्दर खिख!खिख!ाकर हँस पड़ा। सेठ5ी ने परिरण्डिस्थकित सर्मझी और चुपचाप बैठ गये। चन्दर करवK बद!कर किफर पढ़ने !गा।

इतने र्में ऊपर की गाड़ी से उतर कर कोई औरत हार्थ र्में एक गठरी लि!ये आयी और अन्दर ज्यों ही घुसी किक र्मारवाड़ी बो!ा, ''बुड्ढी, यह सेकें ड क्!ास है।''

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''होई! सेकेJड-र्थड� तो सब गोकिवन्द की र्माया है, बच्चा!''

चन्दर का र्मुँह दूसरी ओर र्था, !ेकिकन उसने सोचा गोकिवन्द5ी की र्माया का वण�न और किवशे्लषण करते हुए रे! के डब्बों के वगrकरण को भी र्माया5ा! बताना शायद भागवतकार की दिदव्यदृधिष्ट से सम्भव होगा। !ेकिकन यह भी र्मारवाड़ी कोई सुधा तो र्था नहीं किक वैष्णव साकिहत्य और गोकिवन्द5ी की र्माया का भक्त होता। 5ब उसने कहा-गाड� साहब को बु!ाऊँ? तो बुदिढ़या गर5 उठी-''बस-बस, च! हुआँ से, गाड� का तोर दर्माद !गत है 5ौन बु!ाइहै। र्मोKका कद्द!ू''

चन्दर हँस पड़ा, कर्म-से-कर्म गा!ी की नवीनता पर। दूसरी बात; गाड़ी उस सर्मय ब्र5क्षेv र्में र्थी, वहाँ यह अवधी का सफ! वक्ता कौन है! उसने घूर्मकर देखा। एक बुदिढ़या र्थी, लिसर र्मुड़ाये। उसने कहीं देखा है इसे!

''कहाँ 5ाओगी, र्माई?''

''कानपुर 5ाबै।''

''!ेकिकन यह गाड़ी तो दिदल्!ी 5ाएगी?''

''तुहूँ बोल्यो Kुप्प से! हर्म ऐसे धर्मकावे र्में नै आइत। ई कानपुर 5इहै!'' उसने हार्थ नचाकर चन्दर से कहा। और किफर 5ाने क्यों रुक गयी और चन्दर की ओर देखने !गी। किफर बो!ी, ''अरे चन्दर बेKवा, कहाँ से आवत हौ तू!''

''ओह! बुआ5ी हैं। लिसर र्मुड़ा लि!या तो पहचान र्में ही नहीं आतीं!'' चन्दर ने फौरन उठकर पाँव छुए। बुआ5ी वृन्दावन से आ रही र्थीं। वह बैठ गयीं, बो!ीं, ''ऊ नदिKकिनयाँ र्मर गयी किक अबकिहन है?''

''कौन?''

''ओही किबनती!''

''र्मरेगी क्यों?''

''भइया! सुकु! तो हर्मार कु! डुबोय दिदकिहन। !ेकिकन 5ैसे ऊ हर्मरी किबदिKया के र्मड़वा तरे से उठाय लि!किहन वैसे भगवान चाही तो उनहू का !ड़की से सर्मझी!''

चन्दर कुछ नहीं बो!ा। र्थोड़ी देर बाद खुद बड़बड़ाती हुई बुआ5ी बो!ीं, ''अब हर्में का करै को है। हर्म सब र्मोह-र्माया त्याग दिदया। !ेकिकन हर्मरे त्याग र्में कुच्छौ सर्मरर्थ है तो सुकु! को बद!ा धिर्मलि!है!''

कानपुर की गाड़ी आयी तो चन्दर खुद उन्हें किबठा! आया। किवलिचv र्थीं बुआ5ी, बेचारी कभी सर्मझ ही नहीं पायीं किक किबनती को उठाकर डॉक्Kर साहब ने उपकार किकया या अपकार और र्म5ा तो यह है किक एक ही वाक्य के पूवा�»� र्में र्मायार्मोह से किवरलिक्त की घोषणा और उत्तरा»� र्में दुवा�सा का शाप...किहन्दुस्तान के लिसवा ऐसे नर्मूने कहीं भी धिर्म!ने र्मुश्किश्क! हैं। इतने र्में चन्दर की गाड़ी ने सीKी दी। वह भागा। बुआ5ी ने चन्दर का खया! छोड़कर अपने बग! के र्मुसाकिफर से !ड़ना शुरू कर दिदया।

वह दिदल्!ी पहुँचा। दो-तीन सा! पह!े भी वह दिदल्!ी आया र्था !ेकिकन अब दिदल्!ी स्Kेशन की चह!-पह! ही दूसरी र्थी। गाड़ी घंKा-भर !ेK र्थी। नौ ब5 चुके रे्थ। अगर र्मोKर न धिर्म!ी तो भी इतनी र्मशहूर सड़क पर डॉक्Kर साहब का बँग!ा र्था किक चन्दर को किवशेष दिदक्कत न होती। !ेकिकन ज्यों ही वह प्!ेKफॉर्म� से बाहर किनक!ा तो उसने देखा किक 5हाँ र्मरकरी की बड़ी सच�!ाइK !गी है, ठीक उसी के नीचे स!ेKी रंग की शानदार कार खड़ी र्थी जि5सके आगे-पीछे क्राउन !गा र्था और सार्मने कितरंगा, आगे !ा! वद\ पहने एक खानसार्मा बैठा है। और पीछे एक लिसख ड्राइवर खड़ा

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है। चन्दर का सूK चाहे जि5तना अच्छा हो !ेकिकन इस शान के !ायक तो नहीं ही र्था। किफर भी वह बडे़ रोब से गया और ड्राइवर से बो!ा, ''यह किकसकी र्मोKर है?''

''सका�री गड्डी हैज्जी।'' लिसख ने अपनी प्रकितभा का परिरचय दिदया।

''क्या यह डॉक्Kर शुक्!ा ने भे5ी है?''

''5ी हाँ, हु5ूर!'' एकदर्म उसका स्वर बद! गया-''आप ही उनके !ड़के हैं-चन्दर बहादुर साहब?'' उसने उतरकर स!ार्म किकया। दरवा5ा खो!ा, चन्दर बैठ गया। कु!ी को एक अKैची के लि!ए एक अठ�ी दी। र्मोKर उड़ च!ी।

चन्दर बहुत उदार किवचारों का र्था !ेकिकन आ5 तक वह डॉक्Kर साहब की उ�ीसवीं सदी वा!ी पुरानी कार पर ही चढ़ा र्था। इस रा5र्मुकुK और राष्ट्रीय ध्व5 से सुशोक्षिभत र्मोKर पर खानसार्मे के सार्थ चwऩे का उसका पह!ा ही र्मौका र्था। उसे !गा 5ैसे इस सर्मय कितरंगे का गौरव और र्महान किब्रदिKश साम्राज्य के इस क्राउन का शासनदम्भ उसके र्मन को उड़ाये लि!ये 5ा रहा है। चन्दर तनकर बैठा !ेकिकन र्थोड़ी देर बाद स्वयं उसे अपने र्मन पर हँसी आ गयी। किफर वह सोचने !गा किक जि5न !ोगों के हार्थ र्में आ5 शासन-सत्ता है; र्मोKरों और खानसार्मों ने उनके हृदयों को इस तरह बद! दिदया है। वे भी तो बेचारे आदर्मी हैं, इतने दिदनों से प्रभुता के प्यासे। बेकार हर्म !ोग उन्हें गा!ी देते हैं। किफर चन्दर उन !ोगों का खया! करके हँस पड़ा।

दिदल्!ी र्में इ!ाहाबाद की अपेक्षा कर्म गरर्मी र्थी। कार एक बँग!े के अन्दर र्मुड़ी और पोर्दिK-को र्में रुक गयी। बँग!ा नये सादे अर्मेरिरकन wंग का बना हुआ र्था। खानसार्मे ने उतरकर दरवा5ा खो!ा। चन्दर उतर पड़ा। ड्राइवर ने हॉन� दिदया। दरवा5ा खु!ा और किबनती किनक!ी। उसका र्मुँह सूखा हुआ र्था, बा! अस्त-व्यस्त रे्थ और आँखें 5ैसे रो-रोकर सू5 गयी र्थीं। चन्दर का दिद! धक्-से हो गया, राह-भर के सुनहरे सपने KूK गये।

''क्या बात है, किबनती? अच्छी तो हो?'' चन्दर ने पूछा।

''आओ, चन्दर?'' किबनती ने कहा और अन्दर 5ाते ही दरवा5ा बन्द कर दिदया और चन्दर की बाँह पकडक़र लिससक-लिससककर रो पड़ी। चन्दर घबरा गया। ''क्या बात है? बताओ न! डॉक्Kर साहब कहाँ हैं?''

''अन्दर हैं।''

''तब क्या हुआ? तुर्म इतनी दु:खी क्यों हो?'' चन्दर ने किबनती के लिसर पर हार्थ रखकर पूछा...उसे !गा 5ैसे इस सर्मस्त वातावरण पर किकसी बडे़ भयानक र्मृत्यु-दूत के पंखों की का!ी छाया है...''क्या बात है? बताती क्यों नहीं?''

किबनती बड़ी र्मुश्किश्क! से बो!ी, ''दीदी...सुधा दीदी...''

चन्दर को !गा 5ैसे उस पर किब5!ी KूK पड़ी-''क्या हुआ सुधा को?'' किबनती कुछ नहीं बो!ी, उसे ऊपर !े गयी और कर्मरे के पास 5ाकर बो!ी, ''उसी र्में हैं दीदी!''

कर्मरे के अन्दर की रोशनी उदास, फीकी और बीर्मार र्थी। एक नस� सफेद पोशाक पहने प!ँग के लिसरहाने खड़ी र्थी, और कुसr पर लिसर झुकाये डॉक्Kर साहब बैठे रे्थ। प!ँग पर चादर ओढे़ सुधा पड़ी र्थी। नस� सार्मने र्थी, अत: सुधा का चेहरा नहीं दिदखाई पड़ रहा र्था। चन्दर के भीतर पाँव रखते ही नस� ने आँख के इशारे से कहा, ''बाहर 5ाइए।'' चन्दर दिठठककर खड़ा हो गया, डॉक्Kर साहब ने देखा और वे भी उठकर च!े आये।

''क्या हुआ सुधा को?'' चन्दर ने बहुत व्याकु!, बहुत कातर स्वर र्में पूछा। डॉक्Kर साहब कुछ नहीं बो!े। चुपचाप चन्दर के कन्धे पर हार्थ रखे हुए अपने कर्मरे र्में आये और बहुत भारी स्वर र्में बो!े, ''हर्मारी किबदिKया गयी, चन्दर!'' और आँसू छ!क आये।

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''क्या हुआ उसे?'' चन्दर ने किफर उतने ही दु:खी स्वर र्में पूछा।

डॉक्Kर साहब क्षण-भर पर्थराई आँखों से चन्दर की ओर देखते रहे, किफर लिसर झुकाकर बो!े, ''एबॉश�न!'' र्थोड़ी देर बाद लिसर उठाकर व्याकु! की तरह चन्दन का कन्धा पकडक़र बो!े, ''चन्दर, किकसी तरह बचाओ सुधा को, क्या करें कुछ सर्मझ र्में नहीं आता...अब बचेगी नहीं...परसों से होश नहीं आया। 5ाओ कपडे़ बद!ो, खाना खा !ो, रात-भर 5ागरण होगा...''

!ेकिकन चन्दर उठा नहीं, कुसr पर लिसर झुकाये बैठा रहा।

सहसा नस� आकर बो!ी, ''ब्!ीपिड-ग किफर शुरू हो गयी और नाड़ी डूब रही है। डॉक्Kर को बु!ाइए...फौरन!'' और वह !ौK गयी।

डॉक्Kर साहब उठ खडे़ हुए। उनकी आँखों र्में बड़ी किनराशा र्थी। बड़ी उदासी से बो!े, ''5ा रहा हूँ, चन्दर! अभी आता हूँ!'' चन्दर ने देखा, कार बड़ी ते5ी से 5ा रही है। किबनती आकर बो!ी, ''खाना खा !ो, चन्दर!'' चन्दर ने सुना ही नहीं।

''यह क्या हुआ, किबनती!'' उसने घबराई आवा5 र्में पूछा।

''कुछ सर्मझ र्में नहीं आता, उस दिदन सुबह 5ी5ा5ी गये। दोपहर र्में पापा ऑकिफस गये रे्थ। र्मैं सो रही र्थी, सहसा 5ी5ी चीखी। र्मैं 5ागी तो देखा दीदी बेहोश पड़ी हैं। र्मैंने 5ल्दी से फोन किकया। पापा आये, डॉक्Kर आये। उसके बाद से पापा और नस� के अ!ावा किकसी को नहीं 5ाने देते दीदी के पास। र्मुझे भी नहीं।''

और किबनती रो पड़ी। चन्दर कुछ नहीं बो!ा। चुपचाप पत्थर की र्मूर्तित--सा कुसr पर बैठा रहा। खिखडक़ी से बाहर की ओर देख रहा र्था।

र्थोड़ी देर र्में डॉक्Kर साहब वापस आये। उनके सार्थ तीन डॉक्Kर रे्थ और एक नस�। डॉक्Kरों ने करीब दस धिर्मनK देखा, किफर अ!ग कर्मरे र्में 5ाकर स!ाह करने !गे। 5ब !ौKे तो डॉक्Kर साहब ने बहुत किवह्व ï ! होकर कहा, ''क्या उम्र्मीद है?''

''घबराइए र्मत, घबराइए र्मत-अब तो 5ब तक अन्दरूनी सब साफ नहीं हो 5ाएगा तब तक खून 5ाएगा। नब्5 के लि!ए और होश के लि!ए एक इं5ेक्शन देते हैं-अभी।''

इं5ेक्शन देने के बाद डॉक्Kर च!े गये। पापा वहीं 5ाकर बैठ गये। किबनती और चन्दर चुपचाप बैठे रहे। करीब पाँच धिर्मनK के बाद सुधा ने भयंकर स्वर र्में कराहना शुरू किकया। उन कराहों र्में 5ैसे उनका क!े5ा उ!Kा आता हो। डॉक्Kर साहब उठकर यहाँ च!े आये और चन्दर से बो!े, ''वेहीर्मेंK ब्!ीपिड-ग...'' और कुसr पर लिसर झुकाकर बैठ गये। बग! के कर्मरे से सुधा की दद�नाक कराहें उठती र्थीं और स�ाKे र्में छKपKाने !गती र्थीं। अगर आपने किकसी जि5न्दा र्मुगr के पंख और पँूछ नोचे 5ाते हुए देखा हो तभी आप उसका अनुर्मान कर सकते हैं; उस भयानकता का, 5ो उन कराहों र्में र्थी। र्थोड़ी देर बाद कराहें बन्द हो गयीं, किफर सहसा इस बुरी तरह से सुधा चीखी 5ैसे गाय डकार रही हो। पापा उठकर भागे-वह भयंकर चीख उठी और स�ाKे र्में र्मँडराने !गी-किबनती रो रही र्थी-चन्दर का चेहरा पी!ा पड़ गया र्था और पसीने से तर हो गया र्था वह।

पापा !ौKकर आये, ''हर्म !ोग देख सकते हैं?'' चन्दर ने पूछा।

''अभी नहीं-अब ब्!ीपिड-ग खत्र्म है।...नस� अभी कपडे़ बद! दे तो च!ेंगे।''

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र्थोड़ी देर र्में तीनों गये और 5ाकर खडे़ हो गये। अब चन्दर ने सुधा को देखा। उसका चेहरा सफेद पड़ गया र्था। 5ैसे 5ाडे़ के दिदनों र्में र्थोड़ी देर पानी र्में रहने के बाद उँगलि!यों का रंग रक्तहीन शे्वत हो 5ाता है। गा!ों की हकिड्डï याँ किनक! आयी र्थीं और होठ का!े पड़ गये रे्थ। प!कों के चारों ओर का!ापन गहरा गया र्था और आँखें 5ैसे बाहर किनक!ी पड़ती र्थीं। खून इतना अधिधक गया र्था किक !गता र्था बदन पर चर्मडे़ की एक हल्की जिझल्!ी र्मढ़ दी गयी हो। यहाँ तक किक भीतर की हड्डी के उतार-चढ़ाव तक स्पष्ट दिदख रहे रे्थ। चन्दर ने डरते-डरते र्मारे्थ पर हार्थ रखा। सुधा के होठों र्में कुछ हरकत हुई, उसने र्मुँह खो! दिदया और आँखें बन्द किकये हुए ही उसने करवK बद!ी, किफर कराही और लिसर से पैर तक उसका बदन काँप उठा। नस� ने नाड़ी देखी और कहा, अब ठीक है। कर्म5ोरी बहुत है। र्थोड़ी देर बाद पसीना किनक!ना शुरू हुआ। पसीना पोंछते-पोंछते एक ब5 गया। किबनती बो!ी डॉक्Kर साहब से-''र्मार्मा5ी, अब आप सो 5ाइए। चन्दर देख !ेंगे आ5। नस� है ही।''

डॉक्Kर साहब की आँखें !ा! हो रही र्थीं। सबके कहने पर वह अपनी सीK पर !ेK रहे। नस� बो!ी, ''र्मैं बाहर आरार्म कुसr पर र्थोड़ा बैठ !ँू। कोई 5रूरत हो तो बु!ा !ेना।'' चन्दर 5ाकर सुधा के लिसरहाने बैठ गया। किबनती बो!ी, ''तुर्म र्थके हुए आये हो। च!ो तुर्म भी सो रहो। र्मैं देख रही हूँ!''

चन्दर ने कुछ 5वाब नहीं दिदया। चुपचाप बैठा रहा। किबनती ने सभी खिखड़किकयाँ खो! दीं और चन्दर के पास ही बैठ गयी। सुधा सो रही र्थी चुपचाप। र्थोड़ी देर बाद किबनती उठी, घड़ी देखी, र्मुँह खो!कर दवा दी। सहसा डॉक्Kर साहब घबराये हुए-से आये-''क्या बात है, सुधा क्यों चीखी!''

''कुछ नहीं, सुधा तो सो रही है चुपचाप!'' किबनती बो!ी।

''अच्छा, र्मुझे नींद र्में !गा किक वह चीखी है।'' किफर वह खडे़-खडे़ सुधा का र्मार्था सह!ाते रहे और किफर !ौK गये। नस� अन्दर र्थी। किबनती चन्दर को बाहर !े आयी और बो!ी, ''देखो, तुर्म क! 5ी5ा5ी को एक तार दे देना!''

''!ेकिकन अब वह होंगे कहाँ?''

''किव5गापट्टर्म या को!म्बो र्में 5हा5ी कम्पनी के पते से दिद!वा देना तार।''

दोनों किफर 5ाकर सुधा के पास बैठ गये। नस� बाहर सो रही र्थी। साढे़ तीन ब5 गये रे्थ। ठंडी हवा च! रही र्थी। किबनती चन्दर के कन्धे पर लिसर रखकर सो गयी। सहसा सुधा के होठ किह!े और उसने कुछ असु्फK स्वर र्में कहा। चन्दर ने सुधा के र्मारे्थ पर हार्थ रखा। र्मार्था सहसा 5!ने !गा र्था; चन्दर घबरा उठा। उसने नस� को 5गाया। नस� ने बग! र्में र्थर्मा�र्मीKर !गाया। तापक्रर्म एक सौ पाँच र्था। सारा बदन 5! रहा र्था और रह-रहकर वह काँप उठती र्थी। चन्दर ने किफर घबराकर नस� की ओर देखा। ''घबराइए र्मत! डॉक्Kर अभी आएगा।'' !ेकिकन र्थोड़ी देर र्में हा!त और किबगड़ गयी। और किफर उसी तरह दद�नाक कराहें सुबह की हवा र्में लिसर पKकने !गीं। नस� ने इन !ोगों को बाहर भे5 दिदया और बदन अँगोछने !गी।

र्थोड़ी देर र्में सुधा ने चीखकर पुकारा-''पापा...'' इतनी भयानक आवा5 र्थी किक 5ैसे सुधा को नरक के दूत पकडे़ !े 5ा रहे हों। पापा गये। सुधा का चेहरा !ा! र्था और वह हार्थ पKक रही र्थी।...पापा को देखते ही बो!ी, ''पापा...चन्दर को इ!ाहाबाद से बु!वा दो।''

''चन्दर आ गया बेKा, अभी बु!ाते हैं।'' ज्यों ही पापा ने र्मारे्थ पर हार्थ रखा किक सुधा चीख उठी-''तुर्म पापा नहीं हो...कौन हो तुर्म?...दूर हKो, छुओ र्मत...अरे किबनती...''

डॉक्Kर शुक्!ा ने नस� की ओर देखा। नस� बो!ी-

सुधा ने किफर करवK बद!ी और नस� को देखकर बो!ी, ''कौन गेसू...आओ बैठो। चन्दर नहा रहा है। अभी बु!ाती हूँ। अरे चन्दर...'' और किफर हाँफने !गी, आँखें बन्द कर !ीं और रोकर बो!ी, ''पापा, तुर्म कहाँ च!े गये?''

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नस� ने चन्दर और किबनती को बु!ाया। किबनती पास 5ाकर खड़ी हो गयी-आँसू पोंछकर बो!ी, ''दीदी, हर्म आ गये।'' और सुधा की बाँह पर हार्थ रख दिदया। सुधा ने आँखें नहीं खो!ीं, किबनती के हार्थ पर हार्थ रखकर बो!ी, ''किबनती, पापा कहाँ गये हैं?''

''खडे़ तो हैं र्मार्मा5ी!''

''झूठ र्मत बो! कम्बख्त...अच्छा !े, शरबत तैयार है, 5ा चन्दर स्Kडीरूर्म र्में पढ़ रहा है बु!ा !ा, 5ा!''

किबनती फफककर रो पड़ी।

''रोती क्यों है?'' सुधा ने कराहकर कहा, ''र्मैं 5ाऊँगी तो चन्दर को तेरे पास छोड़ 5ाऊँगी। 5ा चन्दर को बु!ा !ा, नहीं बफ� घु! 5ाएगी-शरबत छान लि!या है?''

चन्दर आगे आया। रँुधे ग!े से आँसू पीते हुए बो!ा, ''सुधा, आँखें खो!ो। हर्म आ गये, सुधी!''

डॉक्Kर साहब कुसr पर पडे़ लिससक रहे रे्थ...सुधा ने आँखें खो!ीं और चन्दर को देखते ही किफर बहुत 5ोर से चीखी...''तुर्म...तुर्म ऑस्टे्रलि!या से !ौK आये? झूठे! तुर्म चन्दर हो? क्या र्मैं तुम्हें पहचानती नहीं? अब क्या चाकिहए? इतना कहा, तुर्मसे हार्थ 5ोड़ा, र्मेरी क्या हा!त है? !ेकिकन तुम्हें क्या? 5ाओ यहाँ से वना� र्मैं अभी लिसर पKक दँूगी...'' और सुधा ने लिसर पKक दिदया-''नहीं गये?'' नस� ने इशारा किकया-चन्दर कर्मरे के बाहर आया और कुसr पर लिसर झुकाकर बैठ गया। सुधा ने आँखें खो!ीं और फKी-फKी आँखों से चारों ओर देखने !गी। किफर नस� से बो!ी-

''गेसू, तुर्म बहुत बहादुर हो! तुर्मने अपने को बेचा नहीं; अपने पैर पर खड़ी हो। किकसी के आश्रय र्में नहीं हो। कोई खाना-कपड़ा देकर तुम्हें खरीद नहीं सकता, गेसू। किबनती कहाँ गयी...?''

''र्मैं खड़ी हूँ, दीदी?''

''हैं...अच्छा, पापा कहाँ हैं?'' सुधा ने कराहकर पूछा।

डॉक्Kर साहब उठकर आ गये-''बेKा!'' बडे़ दु!ार से सुधा के र्मारे्थ पर हार्थ रखकर बो!े। सुधा रो पड़ी-''कहाँ रे्थ पापा, अभी तक तुर्म? हर्मने इतना पुकारा, न तुर्म बो!े न चन्दर बो!ा...हर्में तो डर !ग रहा र्था, इतना सूना र्था...5ाओ र्महराजि5न ने रोKी सेंक !ी है-खा !ो। हाँ, ऐसे बैठ 5ाओ। !ो पापा, हर्मने नानखKाई बनायी...''

डॉक्Kर शुक्!ा रोते हुए च!े गये-किबनती ने चन्दर को बु!ाया। देखा चन्दर कुसr पर हरे्थ!ी र्में र्मुँह लिछपाये बैठा र्था। किबनती गयी और चन्दर के कन्धे पर हार्थ रखा। चन्दर ने देखा और लिसर झुका लि!या, ''च!ो चन्दर, दीदी किफर बेहोश हो गयीं।''

इतने र्में नस� बो!ी। ''वह किफर होश र्में आयी हैं; आप !ोग वहीं चलि!ए।''

सुधा ने आँखें खो! दी र्थीं-चन्दर को देखते ही बो!ी, ''चन्दर आओ, कोई र्मास्Kर ठीक किकया तुर्मने? 5ो कुछ पढ़ा र्था वह भू! रही हूँ। अब इम्तहान र्में पास नहीं होऊँगी।''

''डे!ीरिरयर्म अब भी है।'' नस� बो!ी। सहसा सुधा ने चन्दर का हार्थ छोड़ दिदया और झK से हरे्थलि!याँ आँखों पर रख !ीं और बो!ी, ''ये कौन आ गया? यह चन्दर नहीं है। चन्दर नहीं है। चन्दर होता तो र्मुझे डाँKता-क्यों बीर्मार पड़ीं? अब बताओ र्मैं चन्दर को क्या 5वाब दँूगी...चन्दर को बु!ा दो, गेसू! जि5-दगी र्में दुश्र्मनी किनभायी, अब र्मौत र्में तो न किनभाए।''

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''उफ! र्मरी5 के पास इतने आदर्मी? तभी डे!ीरिरयर्म होता है।'' सहसा डॉक्Kर ने प्रवेश किकया। कोई दूसरा डॉक्Kर र्था, अँग्रे5 र्था। किबनती और चन्दर बाहर च!े आये। किबनती बो!ी, ''ये लिसकिव! स5�न हैं।'' उसने खून र्मँगवाया, देखा, किफर डॉक्Kर शुक्!ा को भी हKा दिदया। लिसफ� नस� रह गयी। र्थोड़ी देर बाद वह किनक!ा तो उसका चेहरा स्याह र्था। ''क्या यह पै्रग्नेन्सी पह!ी र्मत�बा र्थी?''

''5ी हाँ?''

डॉक्Kर ने लिसर किह!ाया और कहा, ''अब र्मार्म!ा हार्थ से बाहर है। इं5ेक्शन !गेंगे। अस्पता! !े चलि!ए।''

''डॉक्Kर शुक्!ा, र्मवाद आ रहा है, क! तक सारे बदन र्में फै! 5ाएगा, किकस बेवकूफ डॉक्Kर ने देखा र्था...''

चन्दर ने फोन किकया। ऐम्बु!ेन्स कार आ गयी। सुधा को उठाया गया...

दिदन बड़ी ही लिचन्ता र्में बीता। तीन-तीन घंKे पर इं5ेक्शन !ग रहे रे्थ। दोपहर को दो ब5े इं5ेक्शन खत्र्म कर डॉक्Kर ने एक गहरी साँस !ी और बो!ा, ''कुछ उम्र्मीद है-अगर बारह घंKे तक हाK� ठीक रहा तो र्मैं आपकी !ड़की आपको वापस दँूगा।''

बड़ा भयानक दिदन र्था। बहुत ऊँची छत का कर्मरा, दा!ानों र्में KाK के परदे पडे़ रे्थ और बाहर गर्मr की भयानक !ू हू-हू करती हुई दानवों की तरह र्मुँह फाडे़ दौड़ रही र्थी। डॉक्Kर साहब लिसरहाने बैठे रे्थ, पर्थरी!ी किनगाहों से सुधा के पी!े र्मृतप्राय चेहरे की ओर देखते हुए...किबनती और चन्दर किबना कुछ खाये-पीये चुपचाप बैठे रे्थ-रह-रहकर किबनती लिससक उठती र्थी, !ेकिकन चन्दर ने र्मन पर पत्थर रख लि!या र्था। वह एकKक एक ओर देख रहा र्था...कर्मरे र्में वातावरण शान्त र्था-रह-रहकर किबनती की लिससकिकयाँ, पापा की किन:श्वासें तर्था घड़ी की किनरन्तर दिKक-दिKक सुनाई पड़ रही र्थी।

चन्दर का हार्थ किबनती की गोद र्में र्था। एक र्मूक संवेदना ने किबनती को सँभा! रखा र्था। चन्दर कभी किबनती की ओर देखता, कभी घड़ी की ओर। सुधा की ओर नहीं देख पाता र्था। दुख अपनी पूरी चोK करने के वक्त अकसर आदर्मी की आत्र्मा और र्मन को क्!ोरोफार्म� सँुघा देता है। चन्दर कुछ भी सोच नहीं पा रहा र्था। संज्ञा-हत, नीरव, किनश्चेष्ट...

घड़ी की सुई अकिवरार्म गकित से च! रही र्थी। स5�न कई दफे आये। नस� ने आकर Kेम्परेचर लि!या। रात को ग्यारह ब5े Kेम्परेचर उतरने !गा। डॉक्Kर शुक्!ा की आँखें चर्मक उठीं। ठीक बाहर ब5कर पाँच धिर्मनK पर सुधा ने आँखें खो! दीं। चन्दर ने किबनती का हार्थ र्मारे खुशी से दबा दिदया।

''किबनती कहाँ है?'' बडे़ क्षीण स्वर र्में पूछा।

सुधा ने आँख घुर्माकर देखा। पापा को देखते ही र्मुस्करा पड़ी।

किबनती और चन्दर उठकर आ गये।

''आहा, चन्दर तुर्म आ गये? हर्मारे लि!ए क्या !ाये?''

''पग!ी कहीं की!'' र्मारे खुशी के चन्दर का ग!ा भर गया।

''!ेकिकन तुर्म इतनी देर र्में क्यों आये, चन्दर!''

''क! रात को ही आ गये रे्थ हर्म।''

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''च!ो-च!ो, झूठ बो!ना तो तुम्हारा धर्म� बन गया। क! रात को आ गये होते तो अभी तक हर्म अचे्छ भी हो गये होते।'' और वह हाँफने !गी।

स5�न आया, ''बात र्मत करो...'' उसने कहा।

उसने एक धिर्मक्सचर दिदया। किफर आ!ा !गाकर देखा, और डॉक्Kर शुक्!ा को अ!ग !े 5ाकर कहा, ''अभी दो घंKे और खतरा है। !ेकिकन परेशान र्मत होइए। अब सत्तर प्रकितशत आशा है। र्मरी5 5ो कहे, उसर्में बाधा र्मत दीजि5एगा। उसे 5रा भी परेशानी न हो।''

सुधा ने चन्दर को बु!ाया, ''चन्दर, पापा से र्मत कहना। अब र्मैं बचँूगी नहीं। अब कहीं र्मत 5ाना, यहीं बैठो।''

''लिछह पग!ी! डॉक्Kर कह रहा है अब खतरा नहीं है।'' चन्दर ने बहुत प्यार से कहा, ''अभी तो तुर्म हर्मारे लि!ए जि5न्दा रहोगी न!''

''कोलिशश तो कर रही हूँ चन्दर, र्मौत से !ड़ रही हूँ! चन्दर, उन्हें तार दे दो! पता नहीं देख पाऊँगी या नहीं।''

''दे दिदया, सुधा!'' चन्दर ने कहा और लिसर झुकाकर सोचने !गा।

''क्या सोच रहे हो, चन्दर! उन्हें इसीलि!ए देखना चाहती हूँ किक र्मरने के पह!े उन्हें क्षर्मा कर दँू, उनसे क्षर्मा र्माँग !ँू!...चन्दर, तुर्म तक!ीफ का अन्दा5ा नहीं कर सकते।''

डॉक्Kर शुक्!ा आये। सुधा ने कहा, ''पापा, आ5 तुम्हारी गोद र्में !ेK !ें।'' उन्होंने सुधा का लिसर गोद र्में रख लि!या। ''पापा, चन्दर को सर्मझा दो, ये अब अपना ब्याह तो कर !े।...हाँ पापा, हर्मारी भागवत र्मँगवा दो...''

''शार्म को र्मँगवा देंगे बेKी, अब एक ब5 रहा है...''

''देखा...'' सुधा ने कहा, ''किबनती, यहाँ आओ!''

किबनती आयी। सुधा ने उसका र्मार्था चूर्मकर कहा, ''रानी, 5ो कुछ तुझे आ5 तक सर्मझाया वैसा ही करना, अच्छा! पापा तेरे जि5म्र्मे हैं।''

किबनती रोकर बो!ी, ''दीदी, ऐसी बातें क्यों करती हो...''

सुधा कुछ न बो!ी, गोद से हKाकर लिसर तकिकये पर रख लि!या।

''5ाओ पापा, अब सो रहो तुर्म।''

''सो !ँूगा, बेKी...''

''5ाओ। नहीं किफर हर्म अचे्छ नहीं होंगे! 5ाओ...''

स5�न का आदेश र्था किक र्मरी5 के र्मन के किवरु» कुछ नहीं होना चाकिहए-डॉक्Kर शुक्!ा चुपचाप उठे और बाहर किबछे प!ँग पर !ेK रहे।

सुधा ने चन्दर को बु!ाया, बो!ी, ''र्मैं झुक नहीं सकती-किबनती यहाँ आ-हाँ, चन्दर के पैर छू...अरे अपने र्मारे्थ र्में नहीं पग!ी र्मेरे र्मारे्थ से !गा दे। र्मुझसे झुका नहीं 5ाता।'' किबनती ने रोते हुए सुधा के र्मारे्थ र्में चरण-धू! !गा दी, ''रोती

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क्यों है, पग!ी! र्मैं र्मर 5ाऊँ तो चन्दर तो है ही। अब चन्दर तुझे कभी नहीं रु!ाएगँे...चाहे पूछ !ो! इधर आओ, चन्दर! बैठ 5ाओ, अपना हार्थ र्मेरे होठों पर रख दो...ऐसे...अगर र्मैं र्मर 5ाऊँ तो रोना र्मत, चन्दर! तुर्म ऊँचे बनोगे तो र्मुझे बहुत चैन धिर्म!ेगा। र्मैं 5ो कुछ नहीं पा सकी, वह शायद तुम्हारे ही र्माध्यर्म से धिर्म!ेगा र्मुझे। और देखो, पापा को अके!े दिदल्!ी र्में न छोडऩा...!ेकिकन र्मैं र्मरँूगी नहीं, चन्दर...यह नरक भोगकर भी तुम्हें प्यार करँूगी...र्मैं र्मरना नहीं चाहती, 5ाने किफर कभी तुर्म धिर्म!ो या न धिर्म!ो, चन्दर...उफ किकतनी तक!ीफ है, चन्दर! हर्म !ोगों ने कभी ऐसा नहीं सोचा र्था...अरे हKो-हKो...चन्दर!'' सहसा सुधा की आँखों र्में किफर अँधेरा छा गया-''भागो, चन्दर! तुम्हारे पीछे कौन खड़ा है?'' चन्दर घबराकर उठ गया-पीछे कोई नहीं र्था... ''अरे चन्दर, तुम्हें पकड़ रहा है। चन्दर, तुर्म र्मेरे पास आओ।'' सुधा ने चन्दर का हार्थ पकड़ लि!या-किबनती भागकर डॉक्Kर साहब को बु!ाने गयी। नस� भी भागकर आयी। सुधा चीख रही र्थी-''तुर्म हो कौन? चन्दर को नहीं !े 5ा सकते। र्मैं च! तो रही हूँ। चन्दर, र्मैं 5ाती हूँ इसके सार्थ, घबराना र्मत। र्मैं अभी आती हूँ। तुर्म तब तक चाय पी !ो-नहीं, र्मैं तुम्हें उस नरक र्में नहीं 5ाने दँूगी, र्मैं 5ा तो रही हूँ-किबनती, र्मेरी चप्प! !े आ...अरे पापा कहाँ हैं...पापा...''

और सुधा का लिसर चन्दर की बाँह पर !ुढ़क गया-किबनती को नस� ने सँभा!ा और डॉक्Kर शुक्!ा पाग! की तरह स5�न के बँग!े की ओर दौडे़...घड़ी ने Kन-Kन दो ब5ाये...

5ब एम्बु!ेन्स कार पर सुधा का शव बँग!े पहुँचा तो शंकर बाबू आ गये रे्थ-बहू को किवदा कराने...

उपसंहार

जि5-दगी का यन्vणा-चक्र एक वृत्त पूरा कर चुका र्था। लिसतारे एक क्षिक्षकित5 से उठकर, आसर्मान पार कर दूसरे क्षिक्षकित5 तक पहुँच चुके रे्थ। सा!-डेढ़ सा! पह!े सहसा जि5-दगी की !हरों र्में उर्थ!-पुर्थ! र्मच गयी र्थी और किवकु्षब्ध र्महासागर की तरह भूखी !हरों की बाँहें पसारकर वह किकसी को दबोच !ेने के लि!ए हुंकार उठी र्थी। अपनी भयानक !हरों के लिशकं5े र्में सभी को झकझोरकर, सभी के किवश्वासों और भावनाओं को चकनाचूर कर अन्त र्में सबसे प्यारे, सबसे र्मासूर्म और सबसे सुकुर्मार व्यलिक्तत्व को किनग!कर अब धरात! शान्त हो गया-तूफान र्थर्म गया र्था, बाद! खु! गये रे्थ और लिसतारे किफर आसर्मान के घोंस!ों से भयभीत किवहंग-शावकों की तरह झाँक रहे रे्थ।

डॉक्Kर शुक्!ा छुट्टी !ेकर प्रयाग च!े आये रे्थ। उन्होंने पू5ा-पाठ छोड़ दिदया र्था। उन्हें कभी किकसी ने गाते हुए नहीं सुना र्था। अब वह सुबह उठकर !ॉन पर Kह!ते और एक भ5न गाते रे्थ। किबनती, 5ो इतनी सुन्दर र्थी, अब केव! खार्मोश पीड़ा और अवशेष स्र्मृकित की छाया र्माv र्थी। चन्दर शान्त र्था, पत्थर हो गया र्था, !ेकिकन उसके र्मारे्थ का ते5 बुझ गया र्था और वह बूढ़ा-सा !गने !गा र्था और यह सब केव! पन्द्रह दिदनों र्में।

5ेठ दशहरे के दिदन डॉक्Kर साहब बो!े, ''चन्दर, आ5 5ाओ, उसके फू! छोड़ आओ, !ेकिकन देखो, शार्म को 5ाना 5ब वहाँ भीड़-भाड़ न हो, अच्छा!'' और चुपचाप Kह!कर गुनगुनाने !गे।

शार्म को चन्दर च!ा तो किबनती भी चुपचाप सार्थ हो !ी; न किबनती ने आग्रह किकया न चन्दर ने स्वीकृकित दी। दोनों खार्मोश च! दिदये। कार पर चन्दर ने किबनती की गोद र्में गठरी रख दी। किvवेणी पर कार रुक गयी। हल्की चाँदनी र्मै!े कफन की तरह !हरों की !ाश पर पड़ी हुई र्थी। दिदन-भर कर्माकर र्मल्!ाह र्थककर सो रहे रे्थ। एक बूढ़ा बैठा लिच!र्म पी रहा र्था। चुपचाप उसकी नाव पर चन्दर बैठ गया। किबनती उसकी बग! र्में बैठ गयी। दोनों खार्मोश रे्थ, लिसफ� पतवारों की छप-छप सुन पड़ती र्थी। र्मल्!ाह ने तख्त के पास नाव बाँध दी और बो!ा, ''नहा !ें बाबू!'' वह सर्मझता र्था बाबू लिसफ� घूर्मने आये हैं।

''5ाओ!''

वह दूर तख्तों की कतार के उस छोर पर 5ाकर खो गया। किफर दूर-दूर तक फै!ा संगर्म...और स�ाKा...चन्दर लिसर झुकाये बैठा रहा...किबनती लिसर झुकाये बैठी रही। र्थोड़ी देर बाद किबनती लिससक पड़ी। चन्दर ने लिसर उठाया और

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फौ!ादी हार्थों से किबनती का कंधा झकझोरकर बो!ा, ''किबनती, यदिद रोयी तो यही फें क देंगे उठाकर कम्बख्त, अभागी!''

किबनती चुप हो गयी।

चन्दर चुपचाप बैठा तख्त के नीचे से गु5रती हुई !हरों को देखता रहा। र्थोड़ी देर बाद उसने गठरी खो!ी...किफर रुक गया, शायद फें कने का साहस नहीं हो रहा र्था...किबनती ने पीछे से आकर एक र्मुट्ठी राख उठा !ी और अपने आँच! र्में बाँधने !गी। चन्दर ने चुपचाप उसकी ओर देखा, किफर झपKकर उसने किबनती का आँच! पकडक़र राख छीन !ी और गुरा�ता हुआ बो!ा, ''बदतर्मी5 कहीं की!...राख !े 5ाएगी-अभागी!'' और झK से कपडे़ सकिहत राख फें क दी और आग्नेय दृधिष्ट से किबनती की ओर देखकर किफर लिसर झुका लि!या। !हरों र्में राख एक 5हरी!े पकिनया!े साँप की तरह !हराती हुई च!ी 5ा रही र्थी।

किबनती चुपचाप लिससक रही र्थी।

''नहीं चुप होगी!'' चन्दर ने पाग!ों की तरह किबनती को wके! दिदया, किबनती ने बाँस पकड़ लि!या और चीख पड़ी।

चीख से चन्दर 5ैसे होश र्में आ गया। र्थोड़ी देर चुपचाप रहा किफर झुककर अं5लि! र्में पानी !ेकर र्मुँह धोया और किबनती के आँच! से पोंछकर बहुत र्मधुर स्वर र्में बो!ा, ''किबनती, रोओ र्मत! र्मेरी सर्मझ र्में नहीं आता कुछ भी! रोओ र्मत!'' चन्दर का ग!ा भर आया और आँख र्में आँसू छ!क आये-''चुप हो 5ाओ, रानी! र्मैं अब इस तरह कभी नहीं करँूगा-उठो! अब हर्म दोनों को किनभाना है, किबनती!'' चन्दर ने तख्त पर छीना-झपKी र्में किबखरी हुई राख चुKकी र्में उठायी और किबनती की र्माँग र्में भरकर र्माँग चूर्म !ी। उसके होठ राख र्में सन गये।

लिसतारे KूK चुके रे्थ। तूफान खत्र्म हो चुका र्था।

नाव किकनारे पर आकर !ग गयी र्थी-र्मल्!ाह को चुपचाप रुपये देकर किबनती का हार्थ र्थार्मकर चन्दर ठोस धरती पर उतर पड़ा...र्मुदा� चाँदनी र्में दोनों छायाए ँधिर्म!ती-5ु!ती हुई च! दीं।

गंगा की !हरों र्में बहता हुआ राख का साँप KूK-फूKकर किबखर चुका र्था और नदी किफर उसी तरह बहने !गी र्थी 5ैसे कभी कुछ हुआ ही न हो।