भारत की भाषा समस्या और उसके samadhan

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    पुरालेख तथ अनुसार  । पुरालेख वषयानुसार  । हदं लकं  । हमार ेलेखक  । लेखक से

    SHUSHA HELP // UNICODE HELP  पता- [email protected]

    सािहयक नबधं हदं दवस के

    अवसर पर वशषे   भारत क भाषा समया और उसके संभावत समाधान 

     — अजय कुलेठ 

     सार-

    वव के तेज़ी से गत कर रहे सभी वकासशील देश ऐसा, अंज़ेी अपनाए बना, नज भाषाओं के मायम से कर रहे

    ह। भारत म िथत उलट है. . .यहाँ अंेज़ी क जकड़ बढ़ रह है और भारतीय भाषाएँ चपरासय क भाषाएँ हो चल 

    ह। इसका मुख कारण है हमार भाषाओं का आपसी वैमनय! इसके नराकरण के लए अछा हो, यद सभी भारतीय 

    भाषाएँ एक लप अपनाए ँजो वतमान वभन लपय को मला-जुला प हो। पर सबसे महवपूण कदम होगा दण 

    क चार भाषाओं को उतर भारत म मायता। साथ ह हं द के पायम म दूसर उतर भारतीय भाषाओं क ेठ 

    रचनाए ँजोड़ी जाए ँताक छा इन भाषाओं क नकटता से परचत ह। व ेभाषाए ँभी ऐसी ह नीत अपनाएँ।

    अंज़ेी एक अयंत महवपूण भाषा है पर वाइसराय के ज़माने से चला आ रहा हमारा आंल-पायम ववकेशूय और 

    आमघाती है। हम अंज़ेी ऐस ेपढ़ाए ँजैस ेकसी भी अय देश म एक वदेशी भाषा पढ़ाई जाती है।

    भारत को अपने यापक पछड़ेपन से यद कभी उबरना है, वभन वग क घोर असमानता यद कभी कम करनी है

    तो ज़र होगा क हम एक आम आदमी को उसी क भाषा म शा और शासन द. . .जैसा क हर वकसत दे श म

    होता ह।ै

    . . .

    भारत म ऐसे जानकार हर गल-नुकड़ पर मलते ह जो अंज़ेी को गत का पयाय मान, कोई उह झकझोरे और बताए क उनत का ोत आंल भाषा नहं। वह ान है िजसे अंज़ेी से अनूदत कर जापान, कोरया और चीन जैसे

    दशे जन-सामाय तक पहु ँचाते ह, उसका वकास करते ह और अपना वकास करते ह।

    या भारतीय भाषाएँ चीनी, जापानी आद भाषाओं क तुलना म इतनी अम ह क अं ज़ेी से अनुवाद न कया जा 

    सके? वयं अंज़ेी म नरंतर पारभाषक शद गढ़े जाते ह जो ायः ीक और लैटन भाषाओं पर आधारत होते ह ।

    संकृत का शद-भंडार इन दो ाचीन भाषाओं से अधक समृ ह। हम पारभाषक शद बनाने म कठनाई य हो?

    जापानी, कोरआई आद भाषाओ ंक तुलना म हम अधक सुभीता होना चाहए।

    पर कस भाषा म अनुवाद? यह ''अंज़ेी क महता य और कतनी?'' से भी बड़ा न है. . .भारतीय भाषाओं के

    आपसी वमैनय के कारण पहल ेइसका हल ढूँढ़।े

    भारतीय भाषाओ ंको दो भाग म बाँटा जाता है। उतर और मय भारत क भाषाए ँसीध ेसंकृत पर आधारत ह।ै दण 

    क चार भाषाओ ंका मूल भन है पर उन पर भी संकृत का यथेट भाव ह।ै

    उतर भारत क भाषाएँ गनत ेसमय ायः लोग लपय पर यान देते ह पर लपयाँ भाषाओं क भनता का सदा 

    सह माप नहं दतेी। यद भोजपुर क अपनी लप होती तो वह भी पंजाबी क तरह एक अलग भाषा मानी जाती। ऐसे

    कई और उदाहरण दए जा सकते ह, शायद इसी कारण वनोबा भावे ने कई दशक पूव आह कया था क सभी 

    भारतीय भाषाएँ संकृत क लप यानी दवेनागर अपनाए।ँ उनका यह सुझाव आया गया हो गया य क इसके अंतगत 

    क  भाषा  समया   र  उसक  सभ  ा वत  समाधान - आश ष  गग  का  आलख  http://www.abhivyakti-hindi.org/snibandh/hindi_diwas/bhasha_sam

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    हदं और मराठ को छोड़कर अय सभी भाषाओं को झुकना पड़ता। समाधान ऐसा हो क दे श के भाषायी समवय के

    लए हर भाषा को कंचत याग करना पड़े।

    ऐसा संभव ह य क सभी भारतीय लपय क उिपत ाह लप से हु ई ह । यद हम इस ाह लप का ऐसा 

    आधुनक सरलकरण और ''वरत उव'' कर क वह चलत वभन लपय का मथज (hybrid) लगे तो उसे

    अपनाने म भन भाषाओं को कम आिपत होगी। (इस लप म कई अर ऐसे हगे िजनका योग कुछेक भाषा ह 

    करगी।)

    कुछ संभावनाएँ -

    ]%tr BaartIya

    ilaipyaaÐ

    dixaNa BaartIya

    ilaipyaaÐ

    sarla imaEaja

    AxarÆÆ

    पर या अपनी लप का लगाव छोड़ा जा सकेगा? थम तो यह क मज लप पूर तरह अपरचत अथवा वदशेी न 

    होगी। दूसर,े यद कुछ कठनाई होगी भी तो लाभ बड़े और दूरगामी ह , यह भी यान देन ेक बात ह ै क अकं के

    मामले म ऐसा पहले ह हो चुका है - अं तराय तर पर संसार क सभी लपय, अकं के लए अब 1,2,3,4,5. .

    .का योग करती ह।

    बात अतंरायता क आई है तो कुछ लोग कहगे क य न हम अंज़ेी क रोमन लप अपनाए?ँ

    ऐसा करना अनथकार और हायापद होगा। भारतीय वणमाला को वव का अणी ानकोश - इं सायलोपीडया 

    टेनका - भी ''वैानक'' कहता है। (ऐसा अभमत कसी दूसर वणमाला के लए यत नहं कया गया।) भारतीय लपयाँ पूर तरह वयामक (फोनेटक) ह अथात उचारण और वतनी (पेलंग) म कोई भेद नहं। (आचय नहं क 

    मेरे एक ाज़ील म ने मा एक दन म देवनागर पढ़ना सीख लया था) ऐसी लप णाल को छोड़कर यूरोपीय 

    लप अपनाना सवथा अनुचत होगा।

    इस समय हमार लपय क संसार म कोई पूछ नहं ह। यद सभी भारतीय भाषाएँ एक लप का योग कर तो शी 

    ह इस लप को अतंराय मायता मलगेी जैसी क चीनी, अरबी आद लपय को आज ात ह। एकता म बल है।

    एक-लप हो जाने पर भी भारतीय भाषाएँ भन बनी रहगी। दूसरा कठन कदम होगा एक भाषा को समत भारत म

    धान बनाने का। यह हंद होगी पर वशालदया हंद! (इस वशालदया का वतार आगे. . .) साथ ह, हंद केदण भारत म सार के लए आवयक ह क दण क चार भाषाओं को उतर भारत म मायता मले। यह अयंत 

    महवपूण बात है! हदं भाषय क संकणता ह हदं को राभाषा बनाने म सबसे बड़ी अड़चन रह ह।ै दणी भाषाओं

    के त उतर भारत म कोई िजासा नहं ह। यद है तो एक हापडल ेसापडले वाल उपहास-विृत। आचय नहं क 

    वाभमानी दण भारतीय, िजनक भाषाओं का लंबा इतहास और अपना साहय ह, हंद सार यन को इकतरफ़ा 

    और हकेड़ी भरा कहकर उसका वरोध कर।

    भारतीय सनेा म दण भारत क सेना-टुकड़य के उतर भारतीय अफ़सर को चार दणी भाषाओं म से एक सीखनी 

    पड़ती है। उतर भारत क शा णाल म ऐसा ह कुछ कया जाना नतातं आवयक ह। जैस,े हर मायमक कूल म

    क  भाषा  समया   र  उसक  सभ  ा वत  समाधान - आश ष  गग  का  आलख  http://www.abhivyakti-hindi.org/snibandh/hindi_diwas/bhasha_sam

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    छँठ का से एक दण भारतीय भाषा पढ़ाने क यवथा हो। ऐसा होने पर उतर-दण का भाषायी वैमनय जाता 

    रहगेा और तदजनत साव के वातावरण म सहज ह हदं को दण भारत म वीकृत मलेगी।

    उतर भारत क दूसर भाषाओं के त हदं को वशालदया भी होना होगा। बंगाल, गुजराती, उड़या आद के शीषथ 

    साहयकार क रचनाएँ हंद पायम म जोड़ी जाए,ँ इससे छा पर अतशय भार न पड़ेगा। इन हंदतर भाषाओ ंके

    अनेक पय क भाषा हदं क खड़ी बोल से लगभग उतनी ह दूर है िजतनी रामचरतमानस क अवधी। ''वै णव जन 

    तो तेने रे कहए, जे पीड़ परायी जाणे रे '' का अथ समझने के लए कस हंद भाषी को कंु जी उठानी होगी? संकृत 

    गभत होने पर यह दूर और भी कम हो जाती है जैसा क ''जन गण मन'' और ''वं दे मातरम'' जैसी रचनाओं म दखेा 

    जा सकता है। गय पाठन भी िमुकल न होगा। ''शांतता, कोट चालू आह'े' का अथ एक बार जान लनेे पर या कसी 

    उतर भारतीय के लए याद रखना कठन है?

    उतर भारत क भाषाओं के सामीय के कई उदाहरण दए जा सकते ह - मीराबाई के भजन हंद म िजतन ेलोकय ह

    उतने ह गुजराती म। - बहार के वयापत को हदं और बंगाल भाषी दोन ह अपना मानते ह। - पंजाबी के '' गु 

    ंथ साहब'' म मराठ कव ''नामदेव'' के अनेक पद ह। (यह भी क नानक देव के अधकाशं दोह क भाषा ऐसी है क 

    यद व े''गुमुखी'' म लखे जाए ँतो पजंाबी कहलाएगँ ेऔर दवेनागर म लख ेजाए ँतो हदं )

    उतर भारतीय भाषाओं के पायम म दूसर सहोदर भाषाओं क ेठ रचनाओं को समाहत कर लेन ेसे छा वयंइस भाषायी-नकटता से अवगत हगे। हमार सांकृतक धरोहर म भन े के साहय का जो योगदान है उससे

    उनका परचय होगा। भाषायी-सौहाद तो बढ़गेा ह।

    य दशे म आज भी दूसर भारतीय भाषाओं क कुछेक रचनाएँ पढ़ाई जाती ह - पर अंज़ेी के मायम स!े इस पर कुछ 

    कहने से पहल ेहम ''अंज़ेी क महता'' के बड़े वषय को ल।

    नसदंहे वैानक, ौयोगक, यावसायक आद े म नई खोज, नए वचार क भाषा ायः अंज़ेी होती है। सबसे

    उनत दशे अमेरका क भाषा अंज़ेी है। ान-वान क िजतनी पु तक , पकाएँ अंज़ेी म उपलध ह उतनी कसी 

    और भाषा म नह।ं

    पर या इन ान को आमसात करने के लए हम अपनी भाषा छोड़कर अंज़ेी को अंगीकार कर? भारत म आज ऐसा 

    ह हो रहा है। अंज़े के जाते समय अंज़ेी भाषा क िजतनी महता थी, उससे अधक आज है। या हमारा यह अंज़ेी 

    अनुराग हमारे दशे के उथान म सहायक हुआ है अथवा इस वदेशी भाषा पर अधकार करने के अधसफल या असफल 

    यास म हम पीढ़ दर पीढ़ अपार समय और ऊजा गवँा रह ेह?

    उच शा के लए िजतने छा भारत से तवष अमेरका जाते ह, लगभग उतन ेह ताईवान, दण कोरया जैसे दशे 

    से, जहाँ वववयालय म वान तथा तकनीक वषय भी चीनी, कोरयाई जैसी भाषाओं म पढ़ाए जाते ह । (यह भी 

    यान दे क हमार जनसंया ताईवान क जनसंया से 40 गुनी और दणी कोरया क जनसंया से 20 गुनी है!)

    हमारे अंज़ेी-द इजंीनयर कोरया के लोग को कार, ट.वी. बनाना नहं सखाते। उनके टूट-फूट अंज़ेी बोलने वालेइजंीनयर हम, और बाक दुनया को, ऐसा सामान बनाकर बेचते ह।

    इन अंज़ेी-मोह से मुत देश क सफलता का कारण समझना कठन नहं ह। वहाँ अंज़ेी क पुतक का वदेशी 

    भाषा म अनुवाद करके उस ान को जन-साधारण के लए सुलभ कर दतेे ह। जो छा उचतर अययन के लए वदशे 

    जाना चाहते ह, अथवा जो दूसर ेकारण से अंेज़ी म च रखते ह, केवल वे ह अंज़ेी पढ़ते ह। शषे छा इस भार से

    लगभग मुत।

    इसका यह अथ कदाप नहं क इन देश म वदेशी साहय और संकृत के त च न ह। टैगोर क कवताओं से

    इन एशयाई देश के छा िजतने परचत ह उतने भारत के नहं। वहाँ महाकव का काय अपनी बोल म भाषां तर 

    क  भाषा  समया   र  उसक  सभ  ा वत  समाधान - आश ष  गग  का  आलख  http://www.abhivyakti-hindi.org/snibandh/hindi_diwas/bhasha_sam

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    करके पढ़ाया जाता है। हमारे यहा ँकरोड़ अ-बगंाल वयाथ उहं कवताओं का अंज़ेी अनुवाद पढ़ते ह जो कँु िजय क 

    मदद स ेआधा-अधूरा कसी के पल ेपड़ जाय तो बहु त समझए।

    बात हमार ेअंेज़ी पायम क आई है तो उसके अय आयाम भी देख ल। भारत म अंज़ेी एक वदेशी भाषा के प 

    म नह ंपढ़ाई जाती। इसका पठन-पाठन कुछ ऐसा है मान हम सब लंदन के नवासी ह!

    व ेछा जो अभी अंेज़ी याकरण सीख ह रहे होते ह और जो अपने मन के एक-दो सहज वचार को ठक तरह अंज़ेी 

    म यत करने म असमथ ह, उनसे कहा जाता है क वे अंज़ेी म गय तथा पय क संदभ सहत याया कर!संसार का शायद ह कोई दूसरा देश एक वदेशी भाषा को सीखने म ऐसी कमअल दखाता हो! यह शा-पत 

    टश-राज क दने ह िजससे हम आज भी वतं नहं हो पाए ह। वयं भारत के महानगर म, जहाँ ांसीसी, जमनी 

    आद भाषाएँ सखाई जाती ह वहाँ ज़ोर याकरण क पक नींव डालने और शद ान बढ़ाने पर होता ह।ै उस भाषा के

    साहय का अययन-अनुशीलन तो बहु त बाद म और अधकांश छा क उसक आवयकता ह नहं। यह उस साहय 

    क अवहेलना नहं, अपनी सीमाएँ समझने और ाथमकता नधा रत करने क बात ह। कंयूटर ोामगं के े म

    सफल होने के लए, अंज़ेी साहय तो छोड़ए, उसके याकरण के वशषे ान क भी ज़रत नह!ं

    अंज़ेी म ऐसे अनेक उच कोट के कव और लेखक ह िजनक कुछेक रचनाओं से परचत होना कसी भी शत 

    भारतीय के लए ज़र है। पर अंज़ेी साहय वव साहय नहं ह! अय वदेशी भाषाओं म भी थम तर के बहुतेरेसाहयकार ह। वातव म तासतॉय, चेखव और दॉतोयक जैसे सी दगज के आगे अं ज़ेी का कोई कथाकार 

    नहं ठहरता। हम य न सभी ेठतम वदशेी साहयकार क रचनाएँ पढ़ - पर अपनी भाषा म अन  ूदत करके, जैसा क संसार के लगभग हर दूसरे दशे म होता ह। हमारे वतमान आंल-पाठयम म ासंीसी मोपासां और सी चेखव क 

    कहानयाँ कुछ ऐसे तुत क जाती ह मान वे अंज़ेी के लेखक ह! बंगाल के टैगोर का ोभनीय उदाहरण तो हम 

    दखे ह चुके ह।

    यद हमार ेदशे से कभी अंज़ेी का दबदबा हटा तो कुछ समयाएँ भी उठ खड़ी हगीः

    समृ परवार क नाकारा नकल गई कुछेक संतान को, िजतनी एक मा योयता अं ज़ेी म गटपटाना ह, फर 

    नौकरया ँकौन दगेा?हदं के फ़म जगत म तो बकुल उथल-पुथल मच जाएगी। वहा ँजो कुछ हदं बोल जाती ह वह पद पर कैमरा हटते

    ह उन अधपढ़ क भीड़ म जो िजतनी अमेरक-ढरक स ेअंज़ेी बोलता है, अपने आप को उतना ह कुलन समझता है।

    यद अंज़ेी क महता गई तो इस उयोग के लोग अपना उथलापन, अपनी अभता कहा ँकैसे छपाएगँ?े

    ऐसी दक़त तो हगी. . .कुछ और वग भी वरोध करगे मानो समथ अं ज़ेी का भुत जाते ह देश बसेहारा हो 

    जाएगा। अछा हो यद ये लोग वयं अंज़ेी भाषा का अपना इतहास जान ल -

    आज से 500 वष पहल ेवव क भाषाओं म अंज़ेी क कोई गनती नहं थी।ं

    इसको बोलन ेवाल ेदो-एक टापू तक सीमत थे और वहाँ भी ववान क भाषा लैटन थीं। शासक वग म लैटन क पुी 

    इतालवी को सीखने का लोग को सबसे अधक चाव था, पर इं लडवासी इस वदेशी-भाषा-िभत से ऊपर उठे। उहनेउस समय के सभी महवपूण थं का - बाइबल िजनम मुख थी - अपनी बोल म अनुवाद ारंभ कया। वदे शी 

    पुतक, कथाओं आद के आधार पर अपनी भाषा म साहय रचा। उनक भाषा समृ और सशत हु ई और साथ ह 

    सबल हुआ वह समाज। उनके उकष क शेष कहानी तो हम जानते ह है।

    पाचँ सद पूव क अंज़ेी क तुलना म हमार भाषाओं क वतमान िथत येकर ह। संकृत क वपुल शद संपदा 

    हमार थाती है। अगर कमी है तो केवल इछािशत क, एक संकप क, आपसी भाषायी राग-वशे को मटाकर आगे

    बढ़न ेक. . .

    क  भाषा  समया   र  उसक  सभ  ा वत  समाधान - आश ष  गग  का  आलख  http://www.abhivyakti-hindi.org/snibandh/hindi_diwas/bhasha_sam

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    आज देश म जो भी गत हो रह ह उसका लाभ ायः उच मयवगय 20 करोड़ लोग तक सीमत ह , शेष 80

    तशत के पास अपना जीवनतर सुधारने के बहुत कम राते ह, िजसका एक कारण अंज़ेी क भुसता है। (और 

    ऊपर का वह 20 तशत भी, अंज़ेी भाषा-ान बढ़ाने म सतत समय गँ वाता, दूसरे एशयाई देश क तुलना म

    फसडी लगता है।)

    यद भारत को कभी उनत देश क ेणी म गना जाना है तो ज़र है क हम अंेज़ी क बेड़य से मुत ह। उसे

    एक अतथ-सा समान द। गृहवामनी न मान। आम आदमी को उसी क भाषा म शा और शासन दया जाय।

    हम अय दशे से सीख। आज चीन िजस तरह दन दूनी, रात चौगुनी तरक कर रहा है, आचय नह ंक इस शताद 

    के मय तक चीनी भाषा वव म उतनी ह महवपूण हो जाय िजतनी अंज़ेी।(इसके संकेत अमेरका म अभी से

    दखन ेलगे ह।) तब हम और दयनीय लगगे।

    हम समय रहते च ेतना चाहए।

    अपनी तया   लख / पढ़

    पुरालेख तथ अनुसार  । पुरालेख वषयानुसार  । हदं लकं  । हमार ेलेखक  । लेखक से

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    © सवाधकार सुरत 

    "अभियत" ियतगत अभच क अयवसायक सािहयक पका है। इस म काशत सभी रचनाओं के सवाधकार 

    संबंधत लखेक अथवा काशक के पास सुरत ह। लखेक अथवा काशक क लखत वीकृत के बना इनके कसी 

    भी अशं के पुनकाशन क अनुमत नहं है। यह पका येक सोमवार को परवधत होती ह।ै

     

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