छ: माह हहन्द पहिका अंक 1 : अक्टoबर -...

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अंक 1 : अट बर - माच 2016 छ: माही हदी पहिका

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  • अंक 1 : अक्टूबर - मार्च 2016

    छ: माही हहन्दी पहिका

  • सरंक्षक की कलम स े......

    प्रिय साप्रियों ,

    मुझे यह जानकर अत्यंत िसन्नता हो रही ह ैकक शाखा कायाालय राजकोट अपनी एक पप्रिका सोमनाि

    का िकाशन करने जा रहा ह ै। यह ििम अंक ह ैइसप्रलए हमे आप सभी के सहयोग की अपेक्षा ह ै। राजभाषा

    प्रहन्दी के िचार-िसार मे पप्रिकाओ की अहम भूप्रमका होती ह ै। ककसी भी संगठन के सर्ाांगीण प्रर्कास के

    प्रलए भाषा के िप्रत जागरूक होना आर्श्यक ह ै। भाषा सोच र् समाज से जुड़ी ह,ै इसप्रलए यह सरल या

    कठठन नहीं होती बप्रकक शब्द पठरप्रचत या अपठरप्रचत होते ह ै। प्रजतना ही बोले जाते है, उतना ही सहज हो

    जाते ह ै। अतः यह हमारा संप्रर्धाप्रनक कताव्य ह ैकक हमे कायाालय म ेराजभाषा के कायो को अप्रधक से अप्रधक

    बढ़ाना ह ै। इस पप्रिका के माध्यम स ेप्रनगम के अप्रधकाठरयों /कमाचाठरयों के बीच एक सेतु तैयार करना ह ै

    प्रजससे उन्हें राजभाषा मे काया करने म ेहो रही कठठनाइयों को दरू ककया जा सके । सोमनाि ने प्रनगम के

    कमाचाठरयों कक िप्रतभार्ों को मंच दनेे का बीड़ा उठाया ह ै मै इस सजृनशील ियास को अपनी हार्ददक

    शुभकामनाए ँ दतेा हू ।

    डॉ एस के. बाजपयेी

    उप महा िबधंक

    सी ए रजत जनै नीरज कुमार

    सहायक िबधंक(प्रर्त्त/लखेा) उप िबधंक (प्रर्पणन)

  • सरंक्षक

    डॉ एस के बाजपयेी

    उप महा िबधंक

    सपंादक

    सतंोष कुमार शमाा

    सपंादक मडंल

    नीरज कुमार

    रजत जनै

    भारतीय कपास प्रनगम प्रलप्रमटेड

    भारत सरकार का उपक्रम – र्स्त्र मिंालय

    रूड़ा प्रबल्कडग,पाँचर्ी मंप्रजल,जामनगर रोड,

    राजकोट-360001(गजुरात)

    अनुक्रमणिका हहन्दी कार्चशाला (अक्टूबर-हदसंबर 2015).....................................................................................01

    हहन्दी कार्चशाला (जनवरी-मार्च 2016)..........................................................................................02

    राजभाषा संगोष्ठी (अक्टूबर-हदसंबर 2015).....................................................................................03

    राजभाषा संगोष्ठी (जनवरी-मार्च 2016)..........................................................................................04

    गजल....................................................................................................................................05

    हवश्व की सम्पन्न भाषा हहन्दी.......................................................................................................06

    अच्छा काम (व्रं्ग).....................................................................................................................08

    कार्ाचलर्ों मे हहन्दी का प्रर्ोग बढ़ाने के कारगर उपार्........................................................................09

    मााँ के र्रणों मे समहपचत (कहवता)..................................................................................................12

    मेरा दशे बदल रहा है ।..............................................................................................................13

    हशक्षण माध्र्म हो मातभृाषा........................................................................................................14

    नारी (कहवता)..........................................................................................................................17

    खशुी के पल...........................................................................................................................18

    पषु्प की अहभलाषा....................................................................................................................19

    मंहजल...................................................................................................................................20

    अच्छे और बरु ेलोग...................................................................................................................24

    हशक्षण और हशष्र्.....................................................................................................................25

    जीवन क्र्ा है ?.......................................................................................................................26

    मेरी मााँ...................................................................................................................................27

    पे्रम-स्नेह व लगाव से हनखरता है व्र्हित्व ।....................................................................................28

    काव्र्ाधरा “ऐसा ही प्रर्ास कीहजए”..............................................................................................29

    संस्कृत व हहन्दी दशे की अनमोल धरोहर है ।..................................................................................30

    समर् की पहर्ान ।....................................................................................................................31

  • भाषा हमारी संस्कृप्रत, सभ्यता, भार्नाओं, सोच, दपृ्रि, रीप्रत–ठरर्ाजों अकद परंपराओं की र्ाहक ह ै।

    भारत एक प्रर्शाल और बहूभाषी दशे ह ै। यहा प्रर्प्रभन्न िांतो मे अलग – अलग भाषाए ँबोली जाती ह ै।

    इसप्रलए अप्रधक भारतीय स्तर पर प्रर्चारों के आदान – िदान के प्रलए एक ऐसी भाषा की आर्श्यकता महससू

    की गई, प्रजसे दशे मे सबसे अप्रधक लोग बोल और समझ सकते हो इसे ध्यान मे रखकर काफी ल्चतन – मनन

    के उपरांत हमारे दशे के मनीप्रषयों एर्ं महापुरुषों ने संपका भाषा के रूप मे प्रहन्दी को अपनाया । सर्ााप्रधक

    लोगों द्वारा बोली और समझी जानेर्ाली भाष होने के कारण संप्रर्धान सभा के सदस्यों ने इस राजभाषा के

    रूप म ेस्र्ीकार ककया, परंतु भाषा कानून माि से नहीं चलती बप्रकक िेम एर्ं सौहादा से पकलप्रर्त और पुप्रपपत

    होती ह ै। इस राष्ट्र िेम और भाषा िेम को जन-जन तक पाहुचने के प्रलए र्षा 2016 मे प्रनगम ने सोमनाि की

    शुरुर्ात की ह ै।

    आशा ह ैकक इस अंक को पाठक गण रुप्रचकर एर्ं उपयोगी पाएगें । िबुध्र् पाठकों का सहयोग र् उनकी

    िप्रतकक्रया इस पप्रिका को और अप्रधक उपयोगी बनाने मे अपनी एहम भपू्रमका अदा करेगी । इस अंक कक

    िप्रतकृया और बहुमकूय सझुार् हमारे प्रलए मूकयर्ान एर्ं आशीष ह ै। अत: एर्ं पाठकों स ेअपनी सम्मप्रत भेजने

    के प्रलए सादर अनुरोध ह ै।

    हार्दिक शुभकामनाओ ंके साथ.......।

    सतंोष कुमार शमाि

    कार्ािलर् प्रबन्धक (राजभाषा)

    प्रहन्दी मे काया करना हमारा नैप्रतक कताव्य ह ै।

  • ( 1 )

    प्रहन्दी कायाशाला का आयोजन कदनाकं 24.12.2015

    भारतीय कपास प्रनगम प्रलप्रमटेड शाखा कायाालय राजकोट म ेकदनांक 24.12.2015 को डॉ एस के

    बाजपेयी उप महा िबंधक महोदय की अध्यक्षता मे राजभाषा प्रहन्दी के िप्रत हमारा सरं्धैाप्रनक कताव्य प्रर्षय

    पर प्रहन्दी कायाशाला आयोप्रजत की गई । कायाशाला को संबोप्रधत करते हुये अध्यक्ष महोदय ने कहाकक प्रहन्दी

    एक सरल भाषा ह ैहमे कायाालयीन कामकाज मे सरल प्रहन्दी का ियोग करना चाप्रहए ।

    इस अर्सर पर श्री संतोष कुमार शमाा कायाालय िबंधक (प्रहन्दी) ने राजभाषा प्रहन्दी के िप्रत हमारा

    संर्ैधाप्रनक कताव्य प्रर्षय पर व्याख्यान कदया । इस अर्सर पर उन्होने राजभाषा अनुपालन की आर्श्यकता

    पर िकाश डालते हुए कहाकक इस कायाशाला के माध्यम स े प्रहन्दी म े कामकाज को बढ़ार्ा प्रमलेगा ।

    कायाशाला म ेकुल 04 अप्रधकारी एर्ं 10 कमाचाठरयो ने भाग प्रलया । कायाक्रम का संचालन श्री संतोष कुमार

    शमाा कायाालय िबंधक(राजभाषा) ने तिा आभार ज्ञापन श्री रजत जैन लखेाप्रधकारी ने ककया ।

    श्रेष्ठ संस्कार और श्रेष्ठ काया मानर् जीर्न की अमकूय प्रनप्रध ह ै ।

  • ( 2 )

    प्रहन्दी कायाशाला का आयोजन कदनाकं 14.03.2016

    भारतीय कपास प्रनगम प्रलप्रमटेड शाखा कायाालय राजकोट म ेकदनांक 14 माचा 2016 को डॉ

    एस के बाजपेयी उप महािबंधक की अध्यक्षता मे प्रहन्दी कायाशाला आयोप्रजत की गई । कायाशाला को

    संबोप्रधत करते हुय ेअध्यक्ष महोदय ने कहाकक हमे अपना कायाालयीन काया ल्हदी म ेकरना चाप्रहए । उन्होने

    कहाकक दशे भर म ेप्रहन्दी बोलने र्ालों की संख्या सबस ेअप्रधक ह ै।

    इस अर्सर पर श्री संतोष कुमार शमाा कायाालय िबंधक (प्रहन्दी) ने प्रहन्दी पिाचार,ठटप्पण आलखेन

    प्रर्षय पर उन्होने िप्रतभाप्रगयों को प्रहन्दी पिाचार, ठटप्पण, आलेखन आकद के बारे म ेप्रर्प्रधर्त जानकारी दी

    इसके साि ही ल्हदी को सरलतापूर्ाक कैसे ियोग ककया जाय प्रजसस ेकी यह कायाालयीन काया की भाषा बन

    सके इस पर भी उन्होने िकाश डाला । इस अर्सर पर श्री शमााने बताया जैसा आप सभी को प्रर्कदत ह ैकक

    इसी माह कदनांक 3.3.2016 को नगर राजभाषा कायाान्र्यन सप्रमप्रत,राजकोट की बैठक मे डॉ एस के

    बाजपेयी उप महािबंधक महोदय को ििम राजभाषा शीकड एर् ंश्री शमाा को िशप्रस्त पि नराकास अध्यक्ष

    महोदया के कर कमलों स ेिाप्त हुआ यह शाखा के सभी अप्रधकाठरयों/कमाचाठरयो के सहयोग एर्ं राजभाषा

    प्रहन्दी िेम के पठरणामस्र्रूप ही सफल हो सका ह।ै

    कायाशाला म ेकुल 02 अप्रधकारी एर्ं 15 कमाचाठरयो ने भाग प्रलया । कायाक्रम का संचालन श्री संतोष

    कुमार शमाा कायाालय िबंधक (राजभाषा) ने ककया । आभार ज्ञापन श्री रजत जैन सहायक िबंधक(प्रर्त्त/लेखा)

    ने ककया ।

    जीर्न की सुंदरता इसी मे ह ै,अच्छी बातों को याद रखो और बुरी को भूल जाओ ।

  • (3)

    राजभाषा सगंोष्ठी का आयोजन कदनाकं 30.12.2015

    भारतीय कपास प्रनगम प्रलप्रमटेड शाखा कायाालय राजकोट म ेकदनांक 30.12.2015 को डॉ एस के

    बाजपेयी उप महा िबंधक महोदय की अध्यक्षता म े राजभाषा नीप्रतयों के सफल कायाान्र्यन के प्रलए

    सापं्रर्प्रधक आर्श्यकताए ँप्रर्षय पर राजभाषा सगंोष्ठी आयोप्रजत की गयी । इस अर्सर पर संबोप्रधत करत े

    हुये अध्यक्ष महोदय ने कहाकक राष्ट्रभाषा द्वारा नर्ीन अनुभर् ,ज्ञानर्ृप्रि ,राष्ट्रीय भार्ना तिा दशे-िेम का

    संचार होता ह ै। प्रहन्दी ज्ञान के प्रबना हम अपने राष्ट्र को नहीं जान सकते।

    इस अर्सर पर श्री संतोष कुमार शमाा कायाालय िबंधक (प्रहन्दी) ने राजभाषा कायाान्र्यन कदशा र्

    दशा की जानकारी दी । इस अर्सर पर राजभाषा संगोष्ठी में अप्रतप्रि र्क्ता के रूप म े श्री पी बी ल्सह

    राजभाषा अप्रधकारी मण्डल रेल िबंधक कायाालय राजकोट को आमंप्रित ककया गया िा । उन्होने राजभाषा

    नीप्रतयों के सफल कायाान्र्यन के प्रलए सांप्रर्प्रधक आर्श्यकताए ँप्रर्षय पर िकाश डालते हुए कहाकक सरकारी

    कायाालयों मे प्रहन्दी म ेकाया करना एक संरै्धाप्रनक अपेक्षा ह ैआज प्रहन्दी मे कामकाज की मािा प्रनरंतर बढ़

    रही ह ै। कायाक्रम का सचंालन श्री संतोष कुमार शमाा कायाालय िबंधक(प्रहन्दी) ने तिा आभार ज्ञापन श्री

    रजत जैन लखेाप्रधकारी ने ककया ।

    खुश रहना ही मानर् जीर्न की सबसे बड़ी कला ह ै।

  • ( 4 )

    राजभाषा सगंोष्ठी का आयोजन कदनाकं 31.03.2016

    भारतीय कपास प्रनगम प्रलप्रमटेड शाखा कायाालय राजकोट म ेकदनांक 31.03.2016 को डॉ एस के

    बाजपेयी उप महा िबंधक महोदय की अध्यक्षता मे “सरकारी कामकाज मे सरल एर्ं सहज प्रहन्दी” प्रर्षय

    पर राजभाषा संगोष्ठी आयोप्रजत की गई । इस अर्सर पर संबोप्रधत करते हुय ेअध्यक्ष महोदय ने कहाकक

    राजभाषा नीप्रत का अनुपालन करना हमारा कताव्य ह ैहमे स्र्तः िेठरत होकर इस ेअपनाना चाप्रहए ।

    इस अर्सर पर श्री संतोष कुमार शमाा कायाालय िबंधक (राजभाषा) ने राजभाषा कायाान्र्यन

    संबंधी जानकारी दतेे हुये बताया कक इस िकार कक संगोप्रष्ठयों के आयोजन का उद्देश्य यही ह ैकक प्रहन्दी का

    ियोग केर्ल फाइलों तक ही सीप्रमत न रह ेबप्रकक प्रर्चारों के आदान िदान मे भी हो । इस अर्सर पर श्री

    शमाा ने “सरकारी कामकाज मे सरल एर्ं सहज प्रहन्दी” प्रर्षय पर जानकारी दी । कायाक्रम का सचंालन श्री

    संतोष कुमार शमाा कायाालय िबंधक(राजभाषा) ने ककया तिा आभार ज्ञापन श्री रजत जैन सहायक

    िबंधक(प्रर्त्त/लखेा)द्वारा ककया गया ।

    मनोबल और आत्म-प्रर्श्वास मे र्ह शप्रक्त ह ैजो असंभर् को संभर् कर द े।

  • ( 5 )

    गजल

    मर रहीं संर्ेदनाए ँह,ै

    अब व्यिाए ँही व्यिाए ँह ै।

    जड़ नहीं प्रर्शबेल में होती,

    ये तो परजीर्ी लताए ँह ै।

    तत्र्ता का ज्ञान ह ैआनंद,

    र्ासनाए ँ– र्ासनाए ँह ै।

    धमा म ेधमाांधता प्रर्द्रपूता,

    प्रमिर्र अधंी गुफाए ँह ै।

    पूर्ा राग, िर्ास, करुणा, मान,

    िेम की अंतरकिाए ँह ै।

    आचरण में कर कदए ह ैछेद,

    चल रही पछुआ हर्ाए ँह ै।

    ज्र्ार भाटा स ेन डर ‘सागर’

    ये समय रि की कलाए ंह ै।

    जीर्न मे ज्यादा ठरश्ते होना जरूरी नहीं ह ैपर जो ठरश्ते ह ैउनमे जीर्न होना जरूरी ह ै।

  • ( 6 )

    * प्रर्श्व की सबस ेसम्पन्न भाषा प्रहन्दी * संतोष कुमार शमाा

    भारत एक ऐसा राष्ट्र ह ैजहा दशेी लोगों म ेप्रर्दशेी आत्मा बस्ती ह ै। यकद स्र्तन्िता के बाद हम प्रहन्दी

    भाषा को समूचे दशे की भाषा बनाने म ेसफल हो जाते तो आज हमारा रुपया "डालर"स ेऊपर आ जाता

    ।प्रहन्दी प्रसफा भाषा नहीं ह ैयह हमारे संस्कारो की जननी और संस्कृप्रत की संर्ाहक ह ैप्रहन्दी की उपके्षा करन े

    स ेही पाश्चात्य सभ्यता ने दशे म ेडरेा डाल प्रलया । हम अपने संस्कारों,अपने र्ेद-पुराणो,लोक किायो और

    दशेी आचार-प्रर्चारों तिा आचरणो को भूलकर अँगे्रजी के गुलाम बन गए । इसीप्रलए हलर्ा-परूी की जगह

    प्रपज्जा -बगार ने ले ली ।िािप्रमक संस्कार शालायों की जगह कान्र्ेंट ने ले ली । यकद प्रहन्दी की इसी तरह

    उपेक्षा होती रही तो प्रहन्दी समझने ,बोलने और प्रलखने र्ालों का भारी अभार् हो जाएगा । आज सौ मे स े

    सत्तर बचे्च अँगे्रजी में प्रशक्षा ले रह ेह ै, तो भारतीय भाषा को समझने र्ाले ही भारतीय रह जायेगे ।

    प्रर्दशेी भाषा स ेप्रशप्रक्षत बचे्च प्रर्दशेी संस्कारो में ही ढलेंगे । उनका भप्रर्पय प्रहन्दी को प्रहकारत स े

    दखेेगा । ऐसे बचे्च राष्ट्र की गौरर्शाली परम्पराओ और ऐप्रतहाप्रसक धरोहर स ेदरू हो जायेगे । गीता, कुरान,

    गुरु गं्रि साप्रहब की प्रशक्षा स ेइस पीढी का कोई सरोकार नहीं होगा । तब क्या होगा ? लेककन प्रहन्दी का

    दसूरा पक्ष गर्ा करन ेयोग्य ह ै। हमारी प्रहन्दी कदनों कदन ताकतर्र हो रही ह ै। अंतरााष्ट्रीय स्तर पर प्रहन्दी का

    मान बढ़ता जा रहा ह ै। रै्श्वीकरन एर्ं उदारीकरण के दौर मे प्रहन्दी को अनेक दशेो मे पढ़ा और सीखा जा

    रहा ह ै। अकेल ेभारत में अस्सी करोड़ लोग प्रहन्दी बोलते समझते ह ै। प्रिटेन मे प्रजतने लोग अँगे्रजी बोलते ह ै

    उसस ेअप्रधक तो अकेले मध्यिदशे मे ही बोलने र्ाले ह ै।

    दपु्रनया भर मे रह रह ेदो करोड़ लोग प्रहन्दी बोलते ह ैएप्रशया के अनेक दशेो सप्रहत बांग्लादशे, नेपाल,

    मोठरप्रसस,भूटान, प्रतब्बत, अफगाप्रनस्तान, पाककस्तान सप्रहत मध्य एप्रशयाई दशेो मे प्रहन्दी बोलने र्ालों का

    र्चास्य ह ै। कफजी, गयाना, प्रिप्रनदाद,को तो प्रहन्दी भाप्रषयों ने बसाया ह ै। अमरीका के प्रसप्रलकोंन प्रसटी म े

    अस्सी िप्रतशत प्रहन्दी भाषी ह ैअँगे्रजी माि साढ़े चार दशेों की भाषा ह ै । अमरीका, प्रिटेन, आस्रेप्रलया,

    न्यूजीलेंड और आधा कनाडा । कफर यह भाषा प्रर्श्वभाषा कैस े? प्रहन्दी क्यों नहीं ?

    हमारी प्रहन्दी सबस ेसम्पन्न भाषा ह ैक्योंकक दपु्रनया के प्रलए सबस ेबड़ा बाजार भारत ही ह ैजो प्रहन्दी

    जानेगा र्ही अपना माल भारत मे खपाएगा । इसप्रलए चीन म ेप्रहन्दी सीखने की होड मची ह ै।

    बात अच्छी ह ैतो उसकी हर जगह चचाा करे ,बुरी ह ैतो कदल मे रखे ।

  • ( 7 )

    इसप्रलए हमे प्रहन्दी पर गर्ा करना चाप्रहए क्योंकक प्रहन्दी जैसी शब्द सम्पदा प्रर्श्व की ककसी भाषा के

    पास नहीं ह ै। यह संस्कृत की पुिी ह ै। संस्कृत मे लगभग दो हजार धातु ह ै। एक धातु स ेदस ित्यय, तीन

    पुरुष, तीन र्चन, तीन ल्लग, सात प्रर्भप्रक्तया ओर बीस उपसगा आकद लगा कर शब्द बनाए तो लगभग ग्यारह

    लाख शब्द बन जाते ह ै। एक धातु स ेग्यारह लाख शब्द तो दो हजार धातुओं से ककतने शब्द बनेगे । प्रहन्दी

    ओर संस्कृत प्रमलकर सम्पूणा कंप्यूटर –प्रर्श्व पर कब्जा कर सकते ह ै। प्रर्शाल प्रर्श्व बांह ेफैलाकर प्रहन्दी का

    स्र्ागत कर रहा ह ैओर हम प्रहन्दी को र्षा म ेएक कदन “प्रहन्दी कदर्स”पर ही स्मरण क्यो करते ह ै। यह तो

    हर कदन पूजनीय ह ै। जैसा कक प्रर्नोबा भारे् ने कहा िा “ मेरा आग्रह पूर्ाक किन ह ैकक अपनी सारी मानप्रसक

    शप्रक्त प्रहन्दी भाषा के अध्ययन मे लगाए । हम यही समझे कक हमारे ििम धमो मे से एक धमा यह भी ह ै।

    पैर मे मोंच और छोटी सोच इंसान को कभी आगे नहीं बढ़ने नहीं दतेी ।

  • ( 8 )

    ll अच्छा काम ll (व्यगं्य )…….. सजंय राठी , सहायक (सामान्य )

    चलो कोई काम,अच्छा ककया जाय

    काम होगा ,नाम होगा ,प्रर्चार ककया जाए ।

    सोचा ककसी प्रगरे हुए को उठाया जाय

    या ककसी भूखे को खाना प्रखलाया जाय ।

    पहले ककसी ऐस ेको,ढंूढा तो जाए

    ढंूढा गली अपनी,कोई न प्रगरा हुआ पाए

    मोहकले-पड़ोस मे भी भूखा न ढंूढा पाए ।

    मंकदरो-समाजो मे बड़-ेबड़ ेनामधारी पाये

    सोचा कफर,पहले ककसी को प्रगराया जाए

    भीड़ के सामने कफर गर्ा से उठाया जाए

    भूख से कई कदन ककसी को तड़पाया जाय

    मनुहार से कफर खाना उस ेप्रखलाया जाय

    उनसे सकूुन से तब करार –ए-कदल आए

    गली-मोहकले मे अपना भी नाम आए

    अच्छे काम से हमे भी तो जाना जाए ।

    चलो कोई काम,अच्छा ककया जाय

    यकद आप चाहते ह ैकी आपके जीर्न मे सब अच्छा हो तो सदा अच्छा सोचो ।

  • ( 9 )

    कायाालयो म ेप्रहन्दी का ियोग बढ़ान ेके कारगर उपाय

    प्रनज भाषा उन्नप्रत अह,ैसब उन्नप्रत को भलू ।

    प्रबन प्रनज भाषा ज्ञान के,प्रमटे न प्रहय शलू ।।

    ककसी भी राष्ट्र की पहचान उसके नागठरक,उसकी संस्कृप्रत,उसकी सभ्यताए ंऔर उसकी भाषा स े

    होती ह ै। कश्मीर से कन्याकुमारी और पोरबंदर से इम्फाल तक न जाने ककतनी भाषाएँ, ककतनी बोप्रलयाँ,

    ककतनी सभ्यताए ंऔर ककतनी ही संस्कृप्रतयाँ ह ै ,इतनी अनेकताओं के बार्जूद हमारा दशे भारत-“अखंड

    भारत” एकता की एक प्रमसाल ह ै। दशे को एकता के सूि मे प्रपरोकर रखने मे हमारी राष्ट्रभाषा प्रहन्दी का

    महत्र्पूणा योगदान ह ै।

    हमारे दशे के महान संप्रर्धान प्रनमााताओ ने भी प्रहन्दी के महत्र् को पहचाना और दशे की अन्य

    भाषाओं को पूरा सम्मान दतेे हुए प्रहन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप म ेअपनाया । महात्मा गांधी ने कहा िा कक

    “अगर स्र्राज अँगे्रजी बोलन ेर्ाल ेभारतीयो का और उन्ही के प्रलए होने र्ाला हो,तो प्रनसंदहे अगेँ्रजी ही

    राष्ट्रभाषा होगी । लेककन अगर स्र्राज करोड़ों भखू े मरने र्ालों और करोड़ों प्रनरक्षर बहनो,दप्रलतो र्

    आत्माओं का हो और सबके प्रलए होने र्ाला हो तो प्रहन्दी ही एकमाि राष्ट्रभाषा हो सकती ह ै।” संप्रर्धान म े

    ऐसी व्यर्स्िा की गयी कक िशासप्रनक कामो के प्रलए अँगे्रजी का इस्तेमाल धीमे-धीम ेकम करके राष्ट्रभाषा

    प्रहन्दी को पूणातः अपना प्रलया जाए ।

    दशे के ििम िधान मंिी पंप्रडत जर्ाहर लाल नेहरू ने कहा िा कक “आज की पहली और सबसे बड़ी

    समाजसेर्ा यह ह ैकक हम अपनी दशेी भाषाओं की ओर मुड़ ेऔर प्रहन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में िप्रतप्रष्ठत करें

    । हमे अपनी सभी िादपे्रशक कायार्ाप्रहयाँ अपनी-अपनी भाषाओं मे चलनी चाप्रहए तिा हमारी राष्ट्रीय

    कायार्ाप्रहयों की भाषा प्रहन्दी होनी चाप्रहए ।”लेककन हमारा यह दभुााग्य रहा कक गुलामी की प्रर्रासत म े

    राजकीय कामों से अँगे्रजी प्रनकल नहीं सके । माि दो िप्रतशत लोगो द्वारा समझी और बोली जाने र्ाली

    अँगे्रजी भाषा को दशे के करोड़ों जनमानस की भाषा की भाषा से राजकीय और िशासप्रनक कायों के प्रलए

    िािप्रमकता दी जाती ह ै । करोड़ों भारतीयों की अंतरात्मा की भाषा होने के बार्जूद “आज भी हमारी

    राजभाषा प्रहन्दी का ियोग कायाालयों मे कैस ेबढ़ाए ँ?” यह एक यक्ष िश्न बना हुआ ह ै।

    आज भी सरकारी कायाालयों म ेप्रहन्दी अनुर्ाद की भाषा बनी हुई ह ै। कायाालयों म ेमूल काम-काज

    तो अँगे्रजी मे होता ह ैऔर संर्ैधाप्रनक मजबूठरयों के कारण उनका अनुर्ाद प्रहन्दी मे उपलब्ध करा कदया जाता

    ह ै। प्रहन्दी को जब तक मलू भाषा के रूप मे स्र्ीकार नहीं ककया जायेगा,तब तक प्रहन्दी को यह स्िान

    फलदार र्ृक्ष और गुणर्ान मनुपय झुकते ह ैपर लकड़ी और मूखा व्यप्रक्त नहीं झुकते ।

  • (10)

    नहीं प्रमल पायेगा, प्रजसकी पठरककपना हमारे सपं्रर्धान प्रनमााताओ ने की िी । दरअसल प्रहन्दी को

    अपनी जीर्नशैली और कायाालयो म ेमूलभाषा के रूप म ेअपनाना होगा और यकद आर्श्यक हो तो उसका

    अँगे्रजी अनुर्ाद करना होगा । अक्सर यह दखेा जाता ह ैकक प्रहन्दी राज्यों मे भी कायाालयों मे प्रहन्दी प्रलखने

    और बोलने र्ालों को हये दपृ्रष्ठ स ेदखेा जाता ह ै। बठैकों, साक्षात्कार के समय अँगे्रजी बोलने को ही िािप्रमकता

    दी जाती ह ै। हमे इस मानप्रसकता को पठरर्र्ततत करना होगा । कायाालयों म ेप्रहन्दी प्रलखने बोलने र्ालों को

    िोत्साहन और बढ़ार्ा प्रमलना चाप्रहए ।

    ककसी धारा का िर्ाह ऊंचे स्तर से नीचे स्तर कक और होता ह ै। ऐसे ही ककसी भी कायाालय/प्रर्भाग

    की कायाशलैी, नीप्रतयाँ उसके उच्च अप्रधकाठरयों द्वारा अपनाये गय ेव्यर्हार पर प्रनभार करती ह।ै प्रहन्दी के

    िचार-िसार और उसको पूणातः अपनाने के प्रलए उच्च अप्रधकाठरयों को पहल करनी चाप्रहए और एक उदाहरण

    के रूप म ेस्र्यं को िस्तुत करना चाप्रहए। प्रहन्दी के ियोग को प्रनरंतर बढ़ाने के प्रलए ठोस योजनाए ँहोनी

    चाप्रहए और चरणबि तरीके स ेइन योजनाओ को कायााप्रन्र्त करने के प्रलए गंभीर ियास होने चाप्रहए ।

    समय-समय पर इसकी समीक्षा होनी चाप्रहए और यकद आर्शयक हो तो योजनाओं मे व्यार्हाठरक पठरर्तान

    कर इसका पूणारूपेण पालन सुप्रनप्रश्चत करना चाप्रहए । दरअसल कायाालयो /प्रर्भागो के र्ठरष्ठ अप्रधकाठरयों

    का यह संर्ैधाप्रनक दाप्रयत्र् भी ह ैकक इससे उसके अधीन काया कर रह ेअप्रधकाठरयों/कमाचाठरयों को िरेणा

    प्रमलेगी तिा राजभाषा नीप्रत के अनुपालन को उंप्रचत गप्रत प्रमलेगी ।

    राजभाषा प्रहन्दी के िचार-िसार मे राजभाषा अनुभाग महती भूप्रमका अदा करते ह ै । ऐसे म े

    राजभाषा अनुभाग को महत्र् प्रमलना चाप्रहए । उनके कायाक्रमों के कायाान्र्यन मे पूरा समिान प्रमलना

    चाप्रहए । कप्रर्-सम्मेलन, िश्नमंच, र्ाद-प्रर्र्ाद, र्जै्ञाप्रनक संगोप्रष्ठयाँ जैसे कायाक्रम प्रहन्दी म ेअप्रधक से अप्रधक

    होने चाप्रहए । प्रहन्दी को बढ़ार्ा दनेे र्ाले को यिोप्रचत पुरस्कार प्रमलना चाप्रहए ,प्रजससे अप्रधक-स-ेअप्रधक

    लोगो को प्रहन्दी म ेकम करने की िेरणा प्रमले। हर कायाालय म ेएक ऐसी र्ेब साइट होनी चाप्रहए प्रजसम े

    प्रहन्दी मे काम करने मे आ रही कठठनाइयों को प्रलख सके और उसको तुरंत प्रनर्ारण होना चाप्रहए प्रहन्दी के

    ियोग और उसका िचार िसार बढ़ाने के प्रलए चलायी जाने र्ाली प्रर्प्रभन्न िोत्साहन योजनाओं का व्यापक

    िचार-िसार होना चाप्रहए,ताकक अप्रधक –से अप्रधक कमाचारी /अप्रधकारी इन योजनाओं का लाभ उठा सके

    । और अप्रधक स ेअप्रधक कामकाज प्रहन्दी म ेहो सके । कंप्यूटर के इस यगु म ेजहां कायाालयों म ेअप्रधकतम

    काम कंप्यूटर से ही होता ह ै। प्रहन्दी के सॉफ्टर्येर को आप्रधकाप्रधक ियोग मे लाना चाप्रहए । कायाालय के

    दपै्रनक कायों को प्रहन्दी मे सुगम और सरल बनाने के प्रलए उपलब्ध सोफ्टर्ेयसा का व्यापक उपयोग करना

    चाप्रहए। प्रहन्दी टंकण / आशुप्रलप्रपक संबंधी िप्रशक्षण कायाक्रमों का समयबि तरीके स ेपूरा होना सुप्रनप्रश्चत

    करना चाप्रहए ।

    जो व्यप्रक्त सच्चा और ईमानदार ह,ैर्ह हमेशा हकका और मकु्त रहता ह ै।

  • (11)

    कहते ह ै– दशे का भप्रर्पय आज के नौप्रनहाल ही तय करते ह ै। अतः आर्श्यक ह ैकक हम प्रर्द्यालयों

    मे राष्ट्रभाषा प्रहन्दी का महत्र् समझाए ँ। प्रहन्दी को बच्चो के पाठ्यक्रम म ेअप्रधक-से-अप्रधक समार्ेप्रशत करें

    और बच्चो को अपनी राष्ट्रभाषा का अप्रधकाप्रधक ियोग करने के प्रलए िोत्साप्रहत करें । आई. आई.टी.,मेप्रडकल,

    आई. आई.एम.जैस ेिप्रतप्रष्ठत कॉलेजों की िरे्श परीक्षा प्रहन्दी म ेभी आयोप्रजत की जाए ँऔर कॉलजेों म ेभी

    प्रहन्दी का ियोग करने र्ालों को िोत्साहन प्रमले । दशे के गैर प्रहन्दी भाषी राज्यो मे भी पाठ्यक्रम मे प्रहन्दी

    को समुप्रचत स्िान प्रमलना चाप्रहए और र्हाँ पर भी प्रहन्दी का अप्रधकाप्रधक ियोग करने के प्रलए िोत्साहन

    प्रमलना चाप्रहए । दरअसल,हम सबको अिाात एक आम नागठरक को यह समझना होगा कक प्रहन्दी का ियोग

    एर्ं िचार- िसार केर्ल सरकार या राजभाषा अनुभाग की प्रिम्मेदारी नहीं,अप्रपतु हम सबकी नैप्रतक

    प्रिम्मेदारी र् संर्ैधाप्रनक कताव्य ह ै। इसप्रलए आज के समय की य ेआर्शयक ह ैकक िबल इच्छा, दढ़ृ सकंकप

    और आत्मप्रर्श्वास के साि इस कदशा मे कदम बढ़ाए ँऔर अपनी राजभाषा प्रहन्दी को उसका खोया गौरर्

    कदलाए ँ।

    आज र्तामान ह,ैउसे ही दपे्रखये ,उसे ही संर्ाठरए,यही कल की सफलता ह ै ।

  • (12)

    मा ँके चरणों म ेसमर्तपत…….(कप्रर्ता ) श्रीमती र्ीणा मेहता, प्रहन्दी टंकक

    जीर्न की जननी ह ैमाँ

    संस्कारों की ििम प्रशप्रक्षका ह ैमाँ

    लाड़ प्यार और ममता स ेपठरपूणा ह ैमाँ

    सुख की फुहार ह ैमाँ

    आत्मा की पुकार ह ैमाँ

    सत्य की संर्ाद और अनुर्ाद की पीड़ा ह ै माँ

    चन्दन की खुशब ूऔर र्ात्सकय की प्रर्भूप्रत ह ैमाँ

    लालन-पालन की र्ैशाखी ह ैमाँ

    खुशी और आनंद की रग-रग मे बहती धारा ह ैमाँ

    महाकाली, महासरस्र्ती

    महालक्ष्मी की शप्रक्त ह ैमाँ

    र्ीरता एर्ं पराक्रम की प्रमसाल ह ैमाँ

    दया करुणा और मन्नत की अनुराधा ह ैमाँ

    दसूरों को क्षमा करे इसप्रलए नहीं ककर् ेक्षमा के हकदार ह ैबप्रकक आप शांप्रत के हकदार ह ै।

  • (13)

    मरेा दशे बदल रहा ह ै। सशु्री जे. एच. गोप्रहल, का. ि. (लेखा )

    कल क्या पता िा हम े? की

    इतनी जकदी बदल जाएगी ये दपु्रनया !!

    कल की चीज – बाते आज बन गयी रद्दी - परुानी

    र्क्त को बदलने मे दरे कैसी ? ........ ?

    आज हम पहुचँ गए जमीन से मंगल पर

    कल क्या पता ? की उसके भी

    आगे कही और पहुचँ जाएगें हम !!

    चीन,जापान,अमेठरका को पीछे छोड़कर

    और आगे प्रनकाल जाएगें हम ............

    गाँर् बना बड़ा शहर, शहर बना मेगाप्रसटी

    दशे बना महान,हम बने सुपरमैन –सुपरर्ुमेन

    पापा बन गए डडे,मम्मी बन गयी मोम

    बचे्च बन गए (मोबाइल)से टेकनीप्रशयन !!

    बेठटयाँ हमारी उड़ती ह ैआसमान मै, और

    खेलती ह ैटेप्रनस,कक्रकेट और बॉल्क्सग स े

    नेट स ेसब काम हो गया ह ैआसान

    नहीं करना पड़ता ह,ैअब ककसी का र्ेट

    सभी के जेबमें आ गयी ह ैआज दपु्रनया

    बदल रही ह ैदपु्रनया, बदल रह ेह ैहम

    हमे और भी बदलना होगा

    यकद आप गलती नहीं कर सकते ह ैतो आप कुछ नहीं कर सकते ह ै।

  • (14)

    प्रशक्षण का माध्यम हो मातभृाषा : गाधँी जी

    मै हाईस्कूल म ेभती हुआ । र्हाँ पहल ेतीन साल तो मेरी मातृभाषा – गुजराती में पढ़ाई हुई ।

    लेककन प्रशक्षको का िधान कम छािों के कदमाग मे ककसी तरह अँगे्रजी ठंूस- ठँूसकर भरने का ही िा ।

    फलस्र्रूप हमारा आधे से भी ज्यादा समय तो अगेँ्रजी की पढ़ाई म ेऔर उसके ककसी भी िकार के प्रनयम के

    अधीन नहीं,ऐसे उच्चारण सीखने मे ही बरबाद होता िा ।

    जो भाषा जैसी प्रलखी जाती ह,ै रै्सी बोली जाती नहीं,ऐसी भाषा सीखनी पड़गेी,यह सुनते ही भारी

    दखु हुआ । शब्दो के “स्पेल्लग” रटने का मेरा अनुभर् यह पहला िा ।

    चोिे साल स ेतो मुसीबत ही मसुीबत िी । भूप्रमप्रत, बीजगप्रणत, रसायनशास्त्र, खगोलशास्त्र, इप्रतहास,

    भूगोल,आकद सारे प्रर्षय अँगे्रजी माध्यम से ही प्रसखाये जाने लगे । अँगे्रजी का आक्रमण इतना भारी िा कक

    संस्कृत,और फारसी भी,मातृभाषा के माध्यम से ही सीखनी पड़ती िी ।

    कोई छाि र्गा म ेयकद अपनी मातृभाषा बोलता तो उस ेसजा सहनी पड़ती िी । कोई छाि यकद

    प्रबककुल ही अशिु अँगे्रजी बोलता अिर्ा सही उच्चारण न करता,तो कोई बात नहीं,प्रशक्षक को उसकी परर्ाह

    नहीं िी क्योंकक प्रशक्षक की भी यही हालत िी । हम लोगो को,छािों को,ऐसी बातें भी रटनी पड़ती िी,जो

    कक हम लोग प्रबककुल समझाने की कोप्रशश करते ि,ेउस र्क्त तो मेरा कदमाग ही चकरा जाता िा । इतना तो

    कबूल करता हू ँकक मेरी अपनी मातृभाषा – गुजराती पर गहरा िेम होते हुए भी भूप्रमप्रत, बीजगप्रणत आकद

    के पयाायर्ाचक गुजरती शब्द आज भी नहीं जानता मै अब समझा हु कक यकद मुझे भूप्रमप्रत बीजगप्रणत,

    रसायनशास्त्र एर्ं खगोलशास्त्र, का प्रजतना अंश, अँगे्रजी के माध्यम से नहीं, ककन्तु मातृभाषा के माध्यम स े

    प्रसखलाया होता तो बहुत आसानी से उतना एक ही साल मे सीख लेता,इसमे कोई संदहे नहीं । और उस ज्ञान

    का उपयोग म ैअपने घर मे भी कर पाता ।

    अँगे्रजी के द्वारा कक गयी पढ़ाई के कारण ही मै पाठरर्ाठरक सदस्यो के बीच,पहाड़-सा अन्तराल रूप

    बन गया िा । म ैक्या करता िा ,क्या पढ़ता िा । मेरे प्रपताजी कुछ नहीं जानते िे । मै जो पढ़ता िा,उसम े

    मै अपने प्रपताजी को रस पैदा कराने कक मेरी यकद इच्छा भी होती,तो भी म ैकुछ नहीं कर पाता । क्योंकक

    उनकी बुप्रि तीव्र होते हुए भी अँगे्रजी का एक अक्षर भी नहीं जानते ि।े मै अपने घर म ेही पराया बनता जा

    रहा िा । “ म ैदसूरों स ेकुछ कहता हु ” ऐसा बनता जा रहा िा । मरेा रहन-सहन और मेरी र्ेशभूषा आकद

    कई प्रर्षयो मे मेरा पूरा पठरर्तान होता जा रहा िा । मेरे बारे मे जो कुछ हुआ,यह कोई असाधारण अनुभर्

    नहीं िा। मेरे जेस ेअनेक छािों की उस र्क्त यही हालत िी। हाईस्कूल स ेमेरे िारप्रम्भक तीन सालों म ेमरेे

    ज्ञान मे कोई प्रर्शेष अप्रभर्ृप्रि नहीं हुई । ये तीन र्षा तो प्रर्द्यार्तियों को ित्येक प्रर्षय अँगे्रजी द्वारा सीखने

    योग्य बनाने के प्रलए ही िे । उस र्क्त “हाईस्कूल” तो अँगे्रजी संस्कृप्रत के प्रर्षय की एक सूचक िी । हमारी

    हाईस्कूल के करीब 300 छािों का ज्ञान उनकी अपनी सम्मप्रत – सा हो गया िा। र्ह आम जनता को बाटने

    योग्य नहीं िा। हम ेअँगे्रजी गद्य की एर्ं – पद्य की अनेक पुस्तके पढ़ाई गयी िी ।

    यकद आप सच बोलते ह ैतो आपको कुछ भी याद रखने की जरूरत नहीं पड़गेी ।

  • ( 15 )

    यह बेशक अच्छा ही िा । लेककन यह ज्ञान जनसमहू की सेर्ा करन ेके काम मे और जनसमूह का संपका

    करने मे प्रबककुल प्रनरुपयोगी रहा । मैने जो अँग्रेजी सीखा र्ह यकद न सीखा होता तो “मैने कुछ अमूकय – सी

    प्रर्रल चीज गर्ाई ह ै” ऐसा म ैमहससू नहीं करता । उसके बदल ेयकद य ेसात साल मैने अपनी मातृभाषा

    गुजरती की पढ़ाई म ेप्रबताए ँहोते अिर्ा गप्रणत, प्रर्ज्ञान, संस्कृत आकद सारे प्रर्षय गुजराती माध्यम स ेसीख े

    होते तो मै अपना ज्ञान अपने पड़ोप्रसयो को आसानी से बाँट सकता। संभर् ह ेमैने गुजराती भाषा की समृप्रि

    मे र्ृप्रि की होती और एकाग्रतापूर्ाक काम करने को मेरी आदत द्वारा मै जनसमूह की सेर्ा मे प्रर्शेष सहयोग

    द ेपाता ।

    मै अँगे्रजी भाषा को एर्ं अँगे्रजी साप्रहत्य को प्रनम्न कक्षा का कहना नहीं चाहता। मुझे अँगे्रजी भाषा एर्ं

    उसके साप्रहत्य की िप्रत ककतना अनुराग ह,ैयह आप मेरी अँगे्रजी पप्रिका “हठरजन” द्वारा समझ सकते ह ै।

    लेककन इंग्लंड की समशीतोंपण हर्ा एर्ं र्हाँ के सुहार्ने नेसर्तगक दशृ्य प्रजस तरह भारतीय जनता के प्रलए

    प्रनरिाक ह,ैप्रबककुल उसी तरह इंग्लंड का साप्रहत्य,भारतीय आम जनता के प्रलए अनुपयोगी ह।ै भारत की

    जलर्ायु भारत के नेसर्तगक दशृ्य भारत का साप्रहत्य इंग्लंड के माने प्रनम्न कोठट के ह,ैकफर भी हमें अपनी ही

    जलर्ायु द्वारा प्रर्कास करना ह।ै हमें और हमारे बच्चो को अपनी ही जमीन पर इमारत खड़ी करनी है । हम

    प्रर्दशेी खाना खाकर सभी प्रहस्ठ - पुि नहीं हो सकते।

    अँगे्रजी भाषा स ेही क्यों ? प्रर्श्व की अन्य भाषाओ स ेभरे हुए रत्नभंडार भी हमारा दशे अपनी भाषाओ

    द्वारा िाप्त करें ऐसा मै चाहता हू ँ। श्री रर्ीन्द्रनाि की अिप्रतम कृप्रतओं का रसास्र्ाद लेने के प्रलए मुझे बंगाली

    भाषा सीखनी आर्श्यक नहीं । मै उस ेअनुकदत कृप्रतओं द्वारा िाप्त कर सकता हू ँ। टालस्टाय की कहाप्रनयों का

    रसस्र्ाद लेने के प्रलए मझुे या अन्य लोगो को रप्रशयन भाषा सीखने की आर्श्यकता नहीं,र्े अच्छे अनुर्ाद के

    द्वारा ले सकते ह ै। अँगे्रजी संर्गा यह कहते ह ैकक प्रर्श्व की ककसी भी भाषा मे िप्रसि हुए साप्रहत्य को हम एक

    ही सप्ताह म ेसरल अँगे्रजी मे अंगे्रि िजा के सामने रख दतेे ह।ै शेक्सप्रपयर,प्रमकटन आकद िप्रसि लखेको ने जो

    सोचा, जो प्रलखा, उसके सर्ोत्तम अंश जानने औए पढ़ने के प्रलए मुझे अँगे्रजी भाषा सीखनी ही चाप्रहए ऐसा

    नही ह।ै प्रर्श्व कक प्रर्प्रर्ध भाषाओ म ेप्रलखा गया और सीखने योग्य जो साप्रहत्य ह ैउस ेपढ़कर अपनी भाषा

    मे अनूकदत करके समाज के ऐस ेलोगो की, छािों की एक अलग कक्षा करें । इसस ेन केर्ल दशे के द्रव्य की,

    अप्रपतु जनता के समय एर्ं शप्रक्त की बचत होगी ।

    हमारे राजकतााओ ने गलत तरीका अपनाया ह।ै फलस्र्रूप हमने भी अच्छा मागा छोडकर गलत रह

    पकड़ ली ह ै। भारतीयता को प्रमटा दनेे र्ाली गलत एर्ं अंतरााष्ट्रीय प्रशक्षा िणाली अपना ली। इसस ेअपने

    करोड़ो भाई – बहनो और ग्रामीण जनता का अन्याय हुआ ह।ै मुझे िप्रतकदन इस बात का अनुभर् हो रहा ह ै।

    कुछ गे्रजुएट मेरे अच्छे सािी ह ै । र्े अपने कदल कक गहराई मे भरे प्रर्चारो को व्यक्त करना चाहते ह ै ,तो

    हरैान,परेशान हो जाते ह ै। उन्ह ेबड़ी परेशानी महसूस होती ह ै। मानों र्े अपने ही घर में िाए-स ेलगते हैं ।

    उनके पास अपनी मात्तृभाषा का शब्दकोष इतना मयााकदत ह ैकक अंगे्रजी शब्द का ही नहीं, अंगे्रजी र्ाक्यों का

    भी प्रबना इस्तेमाल ककए, र्ो जो कुछ कहना चाहते हैं, नहीं कह सकते ।

    ज्ञानी जन प्रर्र्ेक से सीखते ह ै,साधारण मनुपय अनुभर् से ,अज्ञानी पुरुष आर्श्यकता से और पशु स्र्भार् से ।

  • ( 16 )

    इतना ही नहीं, प्रबना अंगे्रजी पुस्तकों के, र्े जी ही नहीं सकते । र् ेपि व्यर्हार भी अंगे्रजी में ही करते

    हैं ।

    इस प्रर्षय में कई लोग ऐसी दलील करते हैं, जो कक अंगे्रजी माध्यम के पक्षपाती हैं, कॉलेजों में पढ़ने

    र्ाले छािों में स ेएकाध भी जगदीश बोस जैसा व्यप्रक्त प्रनकल आए तो कॉलेजो में ककया गया व्यय, दरुव्यय

    या अपव्यय नहीं माना जाएगा । एकाध जगदीश बोस के पैदा होने स ेउपयुाक्त दलील को सहारा नहीं प्रमलता

    । क्योंकक श्री बोस र्तामान प्रशक्षण िणाली का ही सुफल नहीं ह ै। उनके अपने जीर्न में प्रजन प्रर्षम कठठनाइयों

    का सामना करना पड़ा या उनसे प्रनपटना पड़ा, उनसे लड़-प्रभड़कर बाहर आए हुए एक मदा कापयााय ‘ बोस

    ’ ह ै। उनका ज्ञान आम आदमी के प्रलए अिाप्य ही िा । हम लोगों की यह मान्यता दढ़ृ हो गई ह ैकक प्रबना

    अंगे्रजी पढे कोई बोस जैसा हो ही नहीं सकता । मैं समझता हु कक इसस ेबड़ा कोई र्हम नहीं होगा । हम प्रजस

    लाचारी का अनुभर् कर रह ेहैं, ऐसी लाचारी का अनुभर् करन ेर्ाला शायद ही कोई जापानी प्रमल े।

    प्रशक्षण का माध्यम ककसी भी तरह हर हालत में तुरन्त बदलना चाप्रहए । अपनी िांतीय भाषाओं को

    उनका अपना स्िान जकद से जकद प्रमलना चाप्रहए । अंगे्रजी माध्यम चलाने र्ाले इन स्कूल-कॉलेजों के पीछे

    िप्रतकदन जो धन का दरुव्यय हो रहा ह,ै उसस ेतो सच ह ैकक उन स्कूल-कॉलेजों में शैक्षप्रणक गड़बड़ी पैदा हो

    । िांतीय भाषाओं की िप्रतष्ठा एर्ं उनका गौरर् बढ़ाने के प्रलए र्हां की अदालतों में उसी भाषा के द्वारा काम

    होना चाप्रहए, जो कक उस िदशे कक आम भाषा हो ।

    अनुभर् की पाठशाला मे जो पाठ सीखे जाते ह ै,र्े पुस्तकों और प्रर्श्वप्रर्द्यालयों मे नहीं प्रमलते ।

  • ( 17 )

    “नारी” इन्द्र िकाश लाटा, सहायक (सा)

    नारी सबला के रूप म े

    “सृप्रि रचप्रयता स ेिश्न ह ैमेरा यही

    सोच के भला क्या नारी को बनाया िा ?

    पीड़ा संताप और र्ेदना ,संर्ेदना को उस कोमला की काया स ेक्यो प्रलपटाया िा ?

    बेटी हो,बहन हो,पत्नी हो ,चाह ेजननी हो

    त्याग करना क्यो केर्ल उन्ह ेप्रसखलाया िा ?

    और नमन ह ैमेरा िभ ुरचना को तेरी,जहा

    माँ के हर रूप मे भी तू ही तो समाया िा “

    नारी बेटी के रूप म े

    “बेठटयाँ तो चंचल ह ैनन्ही मुस्कान स े

    हर एक मुस्कान स ेिकाश फैलती

    ऐसे ककसी कदये की बाती बन जाती ।।“

    नारी बहन के रूप म े

    “छोटी खुप्रशयों को त्याग भला

    भाइयो के चेहरे पर मुस्कान लाती ह।ै।“

    ममता के सागर माँ के रूप म े

    “उदार म ेरख कर करती ह ैपालन जो

    और प्रबना कदखा प्यार र्ो लौटती ह ै

    क्षमाँ कर िभु माँ ही ह ैजो ठुसे ऊँचा दजाा पप्रत ह।ै।“

    ईश्वर की उपासना का कोई प्रनप्रश्चत प्रनयम नहीं,केर्ल प्रनपकाम िेम ही सच्चा प्रनयम है ।

  • (18)

    खशुी के पल... एम. एच. बिर्ार, का. ि. (सा)

    आज इस िगप्रतशील दशे मे आधुप्रनक सुप्रर्धायों के मध्य जहा हम अपने संस्कारोंका मदान कर पाश्चात्य

    सभ्यता की ओर बढ़ रह ेह ै,र्ही ,हम कही न कही अपने नैप्रतक मूकयो का हनन कर रह ेह,ैऔर अपनी मयाादा

    को लांघ कर सर्ाश्रेष्ठ बनने की होड म ेलगे ह।ै सच तो यह ह ैकक आज भी हम ईपयाा,द्वषे,आपसी रंप्रजश को

    लेकर घुटन भरी ल्जदगी जी रह ेह ै,लेककन हम इन सबके बीच काही न काही कोई बहुमूकय एर्ं दलुाभ र्स्तु

    खो रह ेह ै। प्रजस पर हमारा जन्मप्रसि अप्रधकार ह,ैजो कक हमे हमारे जन्म के साि ही प्रबना शुकक प्रमली ह ै।

    र्ह बहुमकूय र्स्तु ह ैिसन्नता याप्रन खुशी ।

    आज की मंहगाई के युग मे मनुपय कही भूख तो कही प्यास स ेमर रहा ह ै,लेककन प्रजसका पेट भरा ह ै

    र्ह खुशी के पल के अभार् म ेभी मर रहा ह ै। एक धनी व्यप्रक्त सब कुछ होने के पश्चात भी अपनी पाठरर्ाठरक

    कलह के कारण दखुी ह,ैर्ह पठरर्ार जनो के मध्य प्यार के पल दखेने को तरस जाता ह ै। सखु चैन एर्ं खुशी

    ककसे अच्छी नहीं लगती, खुशी के पल पाने के प्रलए हर कोई तत्पर रहता है, लेककन दसूरों को खशुी के पल

    दनेे के प्रलए कंजूसी करता ह।ै यहा तक कक दसूरों को खुश दखेकर ईपयाा करता ह ै। खुशी बांटने से खुशी

    प्रमलती ह ै,यह उतना ही सच ह ैप्रजतना कक पृथ्र्ी गोल ह ै। माता प्रपता अपने बचों की खशुी के प्रलए अपना

    सब कुछ द ेदतेे ह ै। इसप्रलए बच्चो का भी फजा बनता ह ैकक जब भी मौका प्रमले ,खुशी के कुछ पल अपने माता-

    पीता को समर्तपत करे । यकीन माप्रनए उनकी खुशी को दखेकर आपको एक ऐसा आनंद िाप्त होगा,प्रजसको

    अपने कभी ककपना भी नहीं कक होगी । बच्चो का जन्म कदन तो माँ-बाप हमशेा ही मनाते ह ैऔर बचे्च की खुशी

    को इंजोय करते ह ै। लेककन जब बचे्च आशा के प्रर्परीत अपने माता-प्रपता का जन्मकदन या शादी की सालप्रगरह

    सेप्रलिेट करते ह,ै तो माता-प्रपता की खुशी दखेते ही बनती ह ैप्रजसको कक जब-जब आप याद करेगे, अपनी

    खुशी के आंस ूरोक नहीं पाएगे ।

    अर्सर न प्रमलना दभुााग्य नहीं ह,ै दभुााग्य ह ैअर्सर को गर्ा दनेा ।

  • (19)

    पपुप की अप्रभलाषा मानलाल चतुर्ेदी

    चाह नहीं, मै सुरबाला के गहनों मे गूिा जाऊ,

    चाह नहीं, िेमी-माला म ेल्बध प्यारी को ललचाऊ,

    चाह नहीं सम्राटों के शर् पर डाला जाऊ,

    चाह नहीं दरे्ों के प्रसर सर चढ़ू भाग्य पर इठलाऊ,

    मुझे तोड़ दनेा र्नमाली !

    उस पि मे दनेा तुम फें क ।

    मातृ-भूप्रम पर शीश चढ़ाने,

    प्रजस पि जार्ें र्ीर अनेक ।

    मनुपय के प्रलए प्रनराशा के समान दसूरा पाप नहीं ह ै। इसप्रलए मनुपय को आशार्ादी बनना चाप्रहए ।

  • (20)

    मंप्रजल

    सृप्रि बनाकर ईश्वर ने सतंोष की साँस ली और प्रनरीक्षण की दपृ्रि स ेससंार को दखेा ।

    प्रर्स्तृत धरा िी । धरा पर मखमली घास िी । घास घूँगट को हटाकर फूल शमाकर झाँक रह ेि ेऔर

    फूलों की गोद म ेप्रततप्रलयाँ अपने रंगीन परों को समेटकर सो रही िी । ककन्तु इस कोमल िणय को दखेनेर्ाला

    कोई भी न िा । ईश्वर म ेएक अभार् का अनुभर् ककया ।

    उन्मुक्त नीला आसमान िा, प्रजसमे रात को रुपहली चाँदनी हसती िी, कदन को सुनहली धूप लहरती

    िी, सुबह को शबनम झरती िी, रात को तारे जगमगाते ि;े ककन्तु तारों को प्रगन-प्रगन कर रात प्रबतानेर्ाला

    कोई नहीं िा ।

    ईश्वर ने एक अभार् का अनुभर् ककया ।

    आसमान की सतह पर स्र्गा िा । स्र्गा म ेअप्सराए ँिी । अप्सराओं के साि दरे्ता ि े। केसर का तीर

    चलानेर्ाला अनंग िा ।मादकता प्रबखेर दनेेर्ाली रप्रत िी । रै्भर् िा,रूप िा, रंग िा, मादकता िी प्रर्स्मृप्रत

    िी ।

    ककन्तु इन र्ैभर्ों से आकर्तषत होकर स्र्गा पाने की साधना करनेर्ाला कोई भी न िा ।

    ईश्वर ने अभार् का अनुभर् ककया ।

    इशर्ाए के र्ैभर् के सामने नतमस्तक होने र्ाला कोई भी न िा । ईश्वर असंतुि हो गया ।

    अभार् ! अभार् ! अभार् !

    और तक ईश्वर ने अभार् को दरू करने के प्रलए एक भार् सृप्रि की । र्ह भार् आकाश-सा प्रर्स्तृत िा,

    फूल-सा ताजा िा दबू-सा कोमल िा, अप्सराओं-सा लजीला िा, स्र्गा-सा आकषाक िा । संसार मे जहा ंजो

    भी कुछ सुंदर िा, आकषाक िा सबको प्रमलाकर उस भार् की रचना हुई । उस भार् का नाम ईश्वर ने रखा –

    मनुपयत्र् । मनुपयत्र् अनंग की चंचलता िी, रप्रत की मादकता िी, धूप की गमी िी, दबु की नमी िी, शबनम

    की चमक िी, प्रततली का प्रनखार िा ।

    ईश्वर ने मनुपयत्र् का प्रनमााण ककया और धरा पर उस ेउतार कदया ।

    लेककन उसकी इच्छा पूरी नहीं हुई ।

    प्रजसे स्र्यं पर प्रर्श्वास न हो र्ह नाप्रस्तक ह ै।

  • (21)

    ईश्वर ने सोचा, मनुपयत्र् उसके सामने प्रसर झकुाएगा । लेककन र्ह केर्ल भार् िा । असीम भार्,

    अनंत ककपना और उसकी र्ह सीमाहीन ककपना केर्ल धरा स ेसंतुि न हुई,

    ईश्वर के सामने नतमस्तक न हुई । उसने आकाश के तारे तोड़ने शरुू ककए, अनंग के तीर चुरा प्रलए,

    रप्रत की मादकता लटू ली और नए स्र्गा का प्रनमााण शुरू कर कदया ।

    ईश्वर सहम गया । उसने क्षणभर सोचा – अच्छा मनुपयत्र् को सीप्रमत कर दो । धरा की कारा म े

    मनुपयत्र् को बंदी बना दो । उसम ेदो मुट्ठी धलू उठाई और असीम भार् को सीप्रमत दहे मे आबिा कर कदया

    । मनुपयत्र् अब मनुपय बन गया ।

    लेककन मनुपय ने भी हार न मानी । उसके तन के सौरभ स ेआकर्तषत होकर प्रततप्रलयाँ चारों ओर उड़ने

    लगी, फूल उसके परैों के नीचे प्रबछ गए, शबनम उसके पैरों को चूमने लगी । मनुपय इस सबके स्नेह से तृप्त

    होकर हसँ पड़ा और उसकी हसँी आसमान म ेककरने बनकर प्रछटक गई ; ककन्तु मनुपय झुका नहीं ।

    ईश्वर असफल रहा ।

    उसने सोचा, मनुपय अभी शबनम, प्रततली सभी को प्यार करता ह ै। अभी उसका प्यार असीम ह,ै

    इसप्रलए उसकी सत्ता भी अप्रसम ह,ै उसकी शप्रक्त भी असीम ह,ै क्योंकक प्यार का ही दसूरा नाम अप्रस्तत्र् ह ै

    और अप्रस्तत्र् रखने के सामथ्या का नाम शप्रक्त ह ै। अत: उसने सोचा उसके प्यार को भी सीप्रमत कर दो ।

    और अब ईश्वर ने प्रनमााण ककया नारी का ।

    सौरभ की कोमलता, पुपप की पार्तिर्ता के संयोग से नारी का प्रनमााण हुआ और एक कदन पुरुष ने

    दपे्रख – फूलों स ेलड़ी हुई बसंती झप्रड़यों के बीच म ेलाज से सकुची हुई नारी । पुरुष को एक नया सािी प्रमला

    । र्ह हसतीं तो फूल झरते ि े। पुरुष फूलों को भलू गया । उसकी आँखों मे चाँदनी प्रछटकती िी । र्ह चाँद

    को भलू गया । नारी के गप्रत मे ईश्वरत्र् की शान िी और पुरुष ईश्वर को भूल गया ।

    और ईश्वर कफर स ेहार गया ।

    घने पेड़ों की शीतल छाया म,े हर