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(9) ISSN 2455-5169 पįरवतŊन : सĭĮिȑ, सŃˋĴ Įत एवŃ Įसनĸमĭ कı वĹचĭįरकı डĺ. Ůमļद मıणĭ सहआचाय, सहंदी सवभाग, मानसवकी और भाा संकाय, महामा गाधी क ीय सववसवȨालय, मोसतहारी, सजलापूवी चंपारण, सबहार [email protected] IJ गı - झोपसायों के बदसूरत संसार म भी सौंदया देखने वाली सʼ का पररणाम है काला कररकालनजैसी तसमल सफम का आना जो सहंदी म कालाशीाक से दसशात हई है और इस सʼ के पीछे है दसलत सनदेशक पा. रंजीत की संवेदनशीलता यह सफम एक संभावनाशील सनदेशक क े ऱप म रंजीत को थासपत करती है जो अपनी सवगत गलसतयों से सबक सीखकर उह दु रत करने म पीछे नहीं रहता उनकी सपछली सफम कबालीदो सवपरीत छोरों पर खाे शशाली यवों के बीच म समु सचत तालमेल करने म असफल रही थी तसमल सुपरटार असभनेता रजनीकांत की पै सा कमाऊ लोकसय ऱि छसव को भुनाने के यास म रंजीत अपने अंदर के अंबेडकरवादी दसलत सनदेशक क े साथ याय नहीं कर पाये थे इस यास म वे न तो पूरी तरह ‘कबाली’ को वासणǛक पशा दे पाये और न ढंग से दसलत चेतना ही उसम उभार पाये लेसकन कालासफम म उहोंने बुिाते रजनीकांत की लाजार दैन लाइफ छसव का मोह याग करके उनके Ȫारा असभनीत चर की दसलत पृठभूसम को इसकार से उभारा है सक एक वैकʙक मुकमल सवमशा वे अपनी इस सफम म उठाने म सफल रहे ह यहा रजनीकांत एक असभनेता के ऱप म यादा सामने आते ह , सफमी ससतारे के ऱप म कम इस संदभा म हम यह भी नहीं भूलना चासहए सक रजनीकांत अब ससनेमाई सुपरटार मा नहीं ह , वे राजनेता के ऱप म अपनी एक दूसरी समांतर पारी की शु रआत भी कर चुके ह अतीत म सकसी भी कार की राजनीसतक महवाकांा से इनकार करते रहे रजनीकांत के सलए अब असभनेता के ऱप म सकसी दसलत

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Page 1: ड. प्रमद मणा · 2018-12-21 · क जैसे पा. र cजत ने धाराव 1 के ूप मेंझ 2्ग 1 झोपसायो c वाल

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ISSN 2455-5169 पररवततन : साहित्य, संसृ्कहत एवं हसनेमा की वैचाररकी

डॉ. प्रमोद मीणा

सहआचाया, सहंदी सवभाग,

मानसवकी और भार्ा संकाय,

महात् मा गाूँधी कें रीयीय सव‍ वसवद्यालय,

मोसतहारी, सजला–पूवी चंपारण, सबहार

[email protected]

झुग् गी - झोपसायो ं के बदसूरत संसार में भी सौदंया देखने वाली दृसष्ट का पररणाम है ‘काला कररकालन’

जैसी तसमल सफल् म का आना जो सहंदी में ‘काला’ शीर्ाक से प्रदसशात हई है। और इस दृसष्ट के पीछे है दसलत

सनदेशक पा. रंजीत की संवेदनशीलता। यह सफल् म एक संभावनाशील सनदेशक के रूप में रंजीत को स् थासपत

करती है जो अपनी सवगत गलसतयो ंसे सबक सीखकर उन् हें दुरुस् त करने में पीछे नही ंरहता। उनकी सपछली

सफल् म ‘कबाली’ दो सवपरीत छोरो ं पर खाे शन्हक्तशाली व् यन्हक्तत् वो ं के बीच में समुसचत तालमेल करने में

असफल रही थी। तसमल सुपरस् टार असभनेता रजनीकांत की पैसा कमाऊ लोकसप्रय रूि छसव को भुनाने के

प्रयास में रंजीत अपने अंदर के अंबेडकरवादी दसलत सनदेशक के साथ न् याय नही ंकर पाये थे। इस प्रयास में

वे न तो पूरी तरह ‘कबाली’ को वासणन्हज्यक स् पशा दे पाये और न ढंग से दसलत चेतना ही उसमें उभार पाये।

लेसकन ‘काला’ सफल् म में उन् होनें बुिाते रजनीकांत की लाजार दैन लाइफ छसव का मोह त् याग करके

उनके द्वारा असभनीत चररत् की दसलत पृष् ठभूसम को

इसप्रकार से उभारा है सक एक वैकन्हल्पक मुकम् मल सवमशा

वे अपनी इस सफल् म में उठाने में सफल रहे हैं। यहाूँ

रजनीकांत एक असभनेता के रूप में ज् यादा सामने आते हैं,

सफल् मी ससतारे के रूप में कम। इस संदभा में हमें यह भी

नही ं भूलना चासहए सक रजनीकांत अब ससनेमाई सुपरस् टार

मात् नही ं हैं, वे राजनेता के रूप में अपनी एक दूसरी

समांतर पारी की शुरुआत भी कर चुके हैं। अतीत में सकसी

भी प्रकार की राजनीसतक महत् वाकांक्षा से इनकार करते रहे

रजनीकांत के सलए अब असभनेता के रूप में सकसी दसलत

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चररत् का असभनय करते हये राजनीसतक रूप से उदासीन बने रहना संभव भी नही ंहै।

सनदेशक रंजीत ने काला सफल् म में देश की सबसे बाी झु्‍ गी बस् ती कहलाने वाली धारावी को

कहानी का आधार बनाकर एक प्रकार से प्रधानमंत्ी नरेंरीय मोदी के स् वच् छ भारत असभयान का दसलत पाठ

प्रस् तुत करने का सफल प्रयास सकया है। यह एक दसलत सनदेशक का साहस ही कहा जायेगा सक देश में चल

रहे अघोसर्त आपातकाल में सत् ता के न्हखलाफ जाकर भी वह ससनेमा जैसी लोकसप्रय सवधा में एक वैकन्हल्पक

सवमशा रचते हैं। उनका यह साहस इससलए भी कासबले तारीफ है क योसंक ससनेमा जैसे महूँगे लोकसप्रय माय यम

में सजसमें गैर दसलतो ंकी बाी पूूँजी और संसाधन लगे हैं, उसमें भी वे ब्राह्मणवादी व् यवस् था और मूल् यो ंको

सीधे-सीधे चुनौती देते नऽर आते हैं। और यह लााई ससफा दसलतो ंकी, गैर आयों की अपनी पहचान मात् की

लााई नही ं है, असपतु संसाधनो ंपर सनयंत्ण की एक व् यापक वगीय लााई भी है। धारावी जैसी गंदी झु्‍ गी

झोपसायाूँ भारतीय लोकतंत् के चेहरे का वह बदनुमा दाग है, सजससे हम इंकार नही ंकर सकते। सफल् म हमें

सदखाती है सक धारावी में सम् मानपूवाक जीवन सनवााह के सलए आवश्यक मानी जाने वाली आधारभूत सुसवधायें

भी नही ंहैं। ससनेमेटोग्राफर मुरली का कैमरा यह व् यंसजत करने में सफल रहा है सक धारावी के लोग यद्यसप

संपूणा मुम् बई की जीवन रेखा हैं, लेसकन मुम् बई ने कभी धारावी को नागररक समाज का सहस् सा माना ही नही।ं

सफल् म में हम पाते हैं सक धारावी की गंदी बस् ती में रहने वाले लोगो ं के घरो ं में न न्हखासकयाूँ हैं और न

शौचालय ही हैं। यहाूँ की बंद सूँकरी गसलयो ंमें लोग खुले आसमान के सलए भी तरस जाते हैं। दूसरे सनदेशको ं

की जैसे पा. रंजीत ने धारावी के रूप में झु्‍ गी झोपसायो ंवाली सकसी बस् ती का सामान् यीकरण नही ंसकया है।

ऐसा नही ंहै सक कुछ झु्‍ गी झोपसायो ंके सवसभन् न दृ‍ यो ंको संपादन की टेसबल पर जोाकर धारावी का सृजन

कर सदया गया हो। सजसने धारावी को देखा है, वह साफ पहचान सकता है सक सफल् म में आई धारावी

वास् तसवक धारावी है।

सकंतु सफल् म सदखाती है सक मुम् बई जैसी देश की आसथाक राजधानी में कल तक उपेसक्षत रही धारावी

जैसी गंदी बस् ती की जमीनें आज ररयल स् टेट के बाे न्हखलासायो ंके सलए सोने की खदान बन चुकी हैं। मुम् बई

महानगर के सवकास और सवस् तार के साथ महानगर के बीचोबंीच आ चुकी धारावी की जमीनें आज ररयल

स् टेट के कारोबाररयो ंकी नऽरो ंमें बहमूल् य हो चुकी हैं। अत: ‘क लीन अप धारावी’ जैसी जन सहतैर्ी सदखने

वाली पररयोजना के बहाने मुम् बई के एक बाे सबल् डर और राजनेता हरी दादा की आूँखें भी धारावी पर गाी

हई हैं। वह राज् य सरकार और एक स् वयंसेवी संगठन को साथ लेकर धारावी की गंदगी को साफ करके वहाूँ

के गंदी बस् ती के रहवाससयो ंको साफ-सुथरे और आलीशान अपाटामेंटो ंका सपना सदखाता है। लेसकन इसी

धारावी में रहने वाला सफल् म का मु्‍ य पात् कररकालन उफा काला और उसके साथी धारावी के दूसरे लोगो ं

की जैसे बाहरी लोगो ंद्वारा सदखाये इस सपने से असभभूत नही ंहो पाते। कररकालन इस सपने के पीछे काम

कर रही जमीन की भूख को पहचानता है। कररकालन और उसके लोगो ं के सवरोध के चलते ‘क लीन अप

धारावी’ की महत् वाकांक्षी पररयोजना के रास् ते में रुकावट आ जाती है। बाऽार कें सरीयत नवउदारवादी सवकास

को ही सवकास मानने वाले लोग चाहे कररकालन और उसके सासथयो ंको सवकास सवरोधी बता दें जैसे सक हरर

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दादा भी कररकालन को सवकास सवरोधी और राष् टर सवरोधी कहकर बदनाम करता है। लेसकन कररकालन

जैसे दसलत-सपछाे लोगो ंके सलए सवकास की पररभार्ा वह नही ंहो सकती जो हरर दादा के सलए है या ‘क लीन

अप धारावी’ के पीछे काम करने वाले एनजीओ के सलए है। ‘क लीन अप धारावी’ के तहत प्रस् तासवत गोल् फ के

मैदान के न्हखलाफ धारावी का एक लाका कहता भी है सक वे लोग तो कबड्डी खेलते हैं, गोल् फ नही।ं ‘क लीन

अप धरावी’ के मागा में रोाा बनने वाले कररकालन से असहमत होकर उसका स् वयं का लाका लेसनन

नाराजगी में अपना घर छोाकर अपाटामेंट में रहने वाली अपनी दोस् त तूफानी के घर जाता है तो उसे भी

झु्‍ गी झौपंाी उजााकर बनाये जाने वाले अपाटामेंटो ंकी हकीकत समझ में आ जाती है। मासचस के सड‍ बो ं

जैसे इन अपाटामेंटो ंकी सजंदगी झु्‍ गी झोपसायो ंसे भी बदतर होती है। सफल् म यह भी सदखाने में सफल रहती

है सक दसलतो-ंगरीबो ंके सलए जमीन मुनाफा कमाने का संसाधन मात् नही ंहोती असपतु जमीन के साथ उनकी

अन्हिता जुाी रहती है।

शहरो-ंमहानगरो ं के सौदंयीकरण के नाम पर दशको ं से झु्‍ गी झोपसायो ंमें रहने वाले लोगो ंको

बेदखल करने की और उन गंदी अवैध बन्हस्तयो ं की बेशकीमती हो चुकी जमीनो ं पर क‍ जा करने की

तथाकसथत सरकारी नीसत के पीछे सछपे कॉरपोरेट के खेल को उजागर करती है सफल् म ‘काला’। सौदंयीकरण

और पुनसवाकास के ऊपरी आवरण के नीचे शहरी गरीबो ंको नीबू की तरह सनचोाा जा रहा है। जमीन जैसे

महत् वपूणा संसाधन की यह लूट स् वयं लोकतांसत्क ढंग से चुनी गई सरकारो ंकी मौन सहमसत से हो रही है।

सनदेशक रंजीत ने सदखाया है सक पूूँजीवादी ताकतो ंके सलए जो जमीन मुनाफा कमाने का संसाधन

होती है, वही गरीब-वंसचतो ंके सलए अपने अन्हस्तत् व का आधार होती है। अपनी आजीसवका के सलए जमीन पर

सीधे-सीधे सनभार व् यन्हक्त से, समुदाय से उसकी जमीन छीन लेना उसे गुलामी की तरफ धकेलना है। जब

दसलतो,ं सपछाो ंऔर आसदवाससयो ं से जमीनें छीन ली जाती हैं तो वे गाूँवो ं में खेत मजदूरी और शहरो ं में

सवस् थासपत हो दैसनक मजदूरी करने को बाय य हो जाते हैं। सफल् म जमीन के पीछे के इसी राजनैसतक अथाशास् त्

को धारावी जैसी गंदी बस् ती के संदभा में उठाती है।

इसप्रकार सफल् म धारावी की झु्‍ गी-झोपाी को आधार बनाकर आज के नवउदारवादी दौर में जारी

जमीन की लूट को कहानी का कें रीय बनाती है सकंतु जमीन की इस लूट को वह व् यापक देश-काल में रखकर

सदखाती है। सनदेशक सफल् म की शुरुआत में ही एनीमेशन के माय यम से यह साफ-साफ स् थासपत कर देता है

सक जमीन की यह लााई कोई आज की लााई नही ंहै। दसलत-आसदवासी अपनी मेहनत से जंगल-पहाा-

दलदल को साफ करके जमीन को उपजाऊ और रहने यो्‍ य बनाते हैं लेसकन दूसरे के श्रम पर पलने वाली

ब्राह्मणवादी-साम्राज् यवादी ताकतें हमेंशा से इन श्रमशील लोगो ंको बेदखल करके उनकी जमीनें हापती

आई हैं। सजसे आज धारावी कहा जाता है, वह तो सकसी जमाने में दलदलीय के्षत् था, जो मानव असधवास के

सलए सबल् कुल अनुपयुक त था। रोजगार की तलाश में देशभर से आने वाले दसलतो,ं सपछाो ंऔर कामगारो ंने

अपने खून-पसीने से इस दलदल को पाटकर रहने यो्‍ य बनाया। ‘काला’ सफल् म में सजस धारावी को सदखाया

गया है, उसमें तसमलनाडु से आकर बसे दसलतो-ंआसद रीयसवाो ं की बहतायत है। सफल् म के कें रीयीय पात्

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कररकालन के सपता भी सतरुनवेली से आकर धारावी को अपनी कमाभूसम बनाते हैं। सकंतु इस धारावी में

सहंदुस् तान के दूसरे सहस् सो ं से भी पलायन करने वाली दसलत-सपछाी जासतयाूँ आकर बसी हैं। पूूँजीपसतयो,ं

ठेकेदारो ंऔर साहकारो ं के शोर्ण-उत् पीान से परेशान होकर अपने जल-जंगल-जमीन छोाने को सववश

होने वाले आसदवाससयो ंको भी धारावी ने अपनी गोद में शरण दी है। आज जब अपने-अपने इलाको ं से

सवस् थासपत ये दसलत-सपछाे-आसदवासी लोग धारावी को अपनी जमीन बना चुके हैं, उसे रहने यो्‍ य बना चुके

हैं तब पुन: जमीन की भूखी परजीवी ताकतें कभी सवकास के नाम पर और कभी स् वच् छतावादी असभयान के

नाम पर धारावी जैसी झु्‍ गी झोपसायो-ंबन्हस्तयो ंको बेदखल करके वहाूँ की जमीन हसथया लेना चाहती हैं।

‘काला’ सफल् म महानगर की गंदी अवैध बन्हस्तयो ंपर कें सरीयत दूसरी सफल् मो ंसे इस मायने में अलग है सक यहाूँ

झु्‍ गी झोपसायो ंमें रहने वाले गरीब लोगो ंके जातीय-प्रजातीय चररत् को साफ-साफ रेखांसकत सकया गया है।

इसके साथ ही इन झु्‍ गी बन्हस्तयो ंकी बहमूल्य जमीनो ंको सनगल जाने को आतुर सफेदपोश सबल् डरो ंऔर

राजनेताओ ंके उच् च जातीय सांप्रदासयक चररत् की भी पहचान कराई गई है।

सफल् म झु्‍ गी झौपंाीवालो ंद्वारा लाी जाती अपनी जमीन की इस लााई के साथ-साथ सवदे्वर्मूलक

ब्राह्मणवादी सांप्रदासयक राजनीसत को भी अपना सवर्य बनाती है। ‘क लीन अप धारावी’ के नाम पर धारावी की

जमीनो ंपर क‍ जा करने के सलए हरी दादा बाे लालासयत हैं सकंतु कररकालन के नेतृत् व में धारावीवासी अपना

घर, अपनी जमीन छोाने से इंकार कर देते हैं। धारावी के इन बासशंदो ंमें सहंदू और मुससलम, दोनो ंधमों के

लोग हैं सकंतु ये तमाम धमाालंबी एक जैसी वगीय न्हस्थसत रखते हैं। ये तमाम लोग कामगार वगा से आते हैं। यहाूँ

रहने वाले बहसं्‍ यक लोग सपछाी-दसलत जासतयो ंसे आते हैं, न सक उच् च सहंदू जासतयो ंसे। दसलत-सपछाी

जासत के लोगो ं की वगीय एकता और जमीन से जुाे उनके साझा सहतो ं का ही पररणाम था सक राज् य

सवधानसभा के चुनावो ंमें एक दसक्षणपंथी राजनीसतक पाटी को धारावी में मुूँह की खानी पाी। सवकास के नाम

पर महाराष् टर राज् य की शेर् सब सवधानसभा सीटें जीत लेने वाली इस राजनीसतक पाटी के सामने धारावी के

दसलत-सपछाे वासशंदे सवकाससवरोधी कहे जाने के बाद भी ससर नही ंझुकाते। सफल् म में धारावी की यह अनाया

दसलत-सपछाी आबादी बाजारोन् मुख सवकास के रथ पर सवार दसक्षणपंथी राजनीसत के मागा में दुजेय रोाा

बनकर खाी हो जाती है। सनदेशक का संदेश साफ है सक सवकास के नारे के पीछे जारी दसक्षणपंथी राजनीसत

का जबाव ससफा दसलतो-ंसपछाो ंकी वैकन्हल्पक सवाहारा राजनीसत ही दे सकती है। 12 अक टूबर, 2017 के ‘सद

सहंदू’ में छपे अपने एक साक्षात् कार में भी सनदेशक रंजीत ने समानता और जासत के उन् मूलन के सलए दसलतो ं

और वाम राजनीसतक ताकतो ंके एकता पर बल सदया था। उनकी आस् था अंबेडकरवाद और माक सावाद, दोनो ं

में रही है। इसके साथ ही ब्राह्मणवाद सवरोधी पेररयार के रीयसवा आंदोलन से भी वे पे्रररत हैं। यह अनायास नही ं

है सक सफल् म के क लाइमेक स में दसक्षणपंथी भगवा राजनीसत के प्रतीक हरी दादा के न्हखलाफ एकजुट हो सवरीयोह

पर उतारू धारावीवाससयो ं के आक्रमण वाले दृ‍ यो ंमें तीन रंग सदखाये गये हैं – काला, नीला और लाल।

काला रंग आया राष् टर वाद के सवरु् रीयसवा प्रसतरोध को सदखाता है, तो नीला व लाल रंग क्रमश: अंबेडकरवादी

और वामपंथी आंदोलनो ंका प्रतीक रहा है।

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‘काला’ उच् चजातीय सहंदुत् ववादी आया संस् कृसत की अमानवीय मान् यताओ ंके न्हखलाफ सवरीयोह करने

वाली सफल् म है। वतामान सांस् कृसतक राष् टर वाद और सहंदुत् ववादी आक्रमण के प्रसत इसमें कई जगह प्रतीकात् म

सवरीयोह नऽर आता है। जैसा सक ऊपर उल् लेन्हखत है, सफल् म के ्ेम नीले, काले और लाल रंगो ंमें डूबे सदखते

हैं। ये तीनो ंरंग क्रमश: अंबेडकरवादी दसलत आंदोलन, ब्राह्मणवाद सवरोधी पेररयार के रीयसवा आंदोलन और

कामगार वगा के माक सावादी आंदोलन की प्रतीकात् मक असभव् यन्हक्तयाूँ हैं। कररकालन भी मूलत: इन् ही ंतीनो ं

रंगो ं के कपाो ंमें सदखाया गया है। ‘काला’ सफल् म में आये समथकीय संदभों की भी अवहेलना नही ंकी जा

सकती। सनदेशक पा. रंजीत ने कररकालन और हरी दादा की इस लााई को क्रमश: रावण और राम की

लााई से जोाा है, काले और गौर वणा के बीच के संघर्ा के रूप में सचसत्त सकया है। लेसकन ‘काला’ सफल् म

इन समथको ंका पुनपााठ करती हई सही-गलत की उच् च जातीय सहंदू अवधारणा को, आया मूल् यो ंको उलट

देती है। सफल् म में संगीत का भी इसप्रकार प्रयोग सकया गया है सक आय यान्हत्मक और पसवत् माने जाने वाले

समथकीय चररत्ो ंके अंदर की कासलमा और अमानवीयता सामने आ जाती है।

धारावी के लोगो ंद्वारा अपनी धारावी को बचाने के सलए चलाये जाने वाले आंदोलन को कमजोर

करने के सलए धमा के नाम पर धारावी के सहंदू-मुन्हिम आबादी के बीच फूट डालने की सांप्रदासयक

चालबाजी को भी सनदेशक ‘काला’ में सदखाता है। लेसकन कररकालन इस सांप्रदासयक राजनीसत को समय

रहते उजागर करके धारावी के कामगारो ंकी हाताल को, दसलतो-ंसपछाो ंके आंदोलन को फूट का सशकार

होने से बचा लेता है। स् पष् ट है सक अगर दसलत-सपछाी जासतयाूँ अपने साझा आसथाक सहतो ं के आधार पर

गोलबंद होती हैं, तो दंगो ंकी सांप्रदासयक राजनीसत को जबाव सदया जा सकता है। कररकालन सफल् म के

उत् तरा ा् में अंतत: धारावी के झुग् गी बस् तीवालो ं को अंबेडकरवाद और माक सावाद, दोनो ं के आधार पर

एकजुट करके ही हरी दादा द्वारा सवकास की आा में चलाई जा रही दसक्षणपंथी राजनीसत को धराशायी कर

पाता है। ‘काला’ सफल् म दीवार पर सलखी समय की इसी आव‍ यकता को मुखररत हो आवाऽ देती है।

नवउदारवादी ताकतो ं और ब्राह्मणवाद के गठजोा वाली दसलत-सपछाा सवरोधी दसक्षणपंथी

राजनीसत के सवकल् प के रूप में अंबेडकरवाद-माक सावाद के वैकन्हल्पक गठबंधन के साथ जासत सवरोधी और

ब्राह्मणवाद सवरोधी पेररयार की रीयसवा राजनीसत की जुगलबंदी का संदेश देने वाली इस ‘काला’ सफल् म पर

कुछ लोगो ंने रजनीकांत की ससनेमाई छसव से पूरी तरह मुक त न हो पाने और कररकालन में हरर दादा का

दपाण प्रसतसबंब होने का आरोप लगाया है। जहाूँ तक सफल् म के कें रीयीय चररत् कररकालन के रूप में तसमल

ससनेमा के सबसे बाे ससतारे रजनीकांत को लेने का सवाल है तो एक रणनीसत के तहत ही सनदेशक पा.

रंजीत ने रजनीकांत का चयन सकया था। रंजीत तसमल ससतारे रजनीकांत की लोकसप्रयता के सहारे अपने

संदेश को बृहद् दशाक समूह तक पहूँचाना चाहते थे और कें रीयीय पात् कररकालन के रूप में रजनीकांत

अंबेडकर, माक सा और पेररयार के समन्हन्रत संदेश को व् यापक स् तर पर संपे्रसर्त करने में सफल भी हये हैं।

यद्यसप सनदेशक दसलत है और धारावी के सजस तसमल समुदाय पर यह सफल् म कें सरीयत है, वह भी

दसलत है लेसकन सनदेशक ने एकदम खुलकर इस सफल् म को एक दसलत सनदेशक द्वारा सनदेसशत दसलत

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सफल् म के रूप में प्रस् तुत-प्रचाररत नही ं सकया है। सनदेशक की कोसशश रही है सक सफल् म में संरचनाब्

असमानता के न्हखलाफ इसप्रकार से सवरोध-प्रसतरोध सकया जाये सक हर एक संवेदनशील व् यन्हक्त में

असमानता के न्हखलाफ समतामूलक चेतना जाग्रत हो सके। वास् तव में हम यह भी कह सकते हैं सक पा.

रंजीत दसलत सनदेशक के ठप् पे से अपनी सफल् म को बचाना चाहते थे। वे एक ऐसी सफल् म बनाना चाहते थे जो

व् यापक दशाक वगा तक अपील करे।

यह बात सही है सक कररकालन एक क्षण के सलए आपको ऊपरी तौर पर हरी दादा का दपाण

प्रसतसबंब लग सकता है। उसका व् यवहार ऐसा है जैसे सक वह धारावी को अपनी सनजी समन्हियत समझता

हो। उसके घर का बरामदा बस् ती की सावाजसनक जमीन पर है सकंतु बस् तीवालो ंसे ज् यादा वह उसका ज् यादा

है। वह धारावी का राजा कहलाता है और धारावी को अपना सकला मानता है। ‘काला’ के इस संसार में न

कोई संस् थाब् लोकतंत् आपको समलेगा और न कानून का ही कोई सम् मान समलेगा। सफल् म में यह भी नही ं

सदखाया गया है सक कररकालन की जीसवका कैसे चलती है। लेसकन इन तमाम सवालो ंको उठाते समय क या

‘काला’ के आलोचक व् यन्हक्त कें सरीयत पूूँजीवादी लोकतंत् से पररभासर्त खेल के उन् ही ं सनयमो ंपर कररकालन

को नही ंकस रहे हैं सजन दसलत-आसदवासी-सपछाा सवरोधी इन नकली लोकतांसत्क मूल् यो ंका वह सवरोधी है

ॽ वह अनैसतक राजनैसतक हथकंडो ं में यकीन रखने वाले हरी दादा से गाूँधीवादी असहंसक आंदोलन,

असहयोग आंदोलन करता है सकंतु सफर भी सवदे्वर्वश कुछ आलोचको ं ने उसके सवरीयोह को एक व् यन्हक्त

सवशेर् का सवरीयोह ही बताया है। सफल् म के पूवाा ा् में वह जरूर हरी दादा के गंुडो ं से वैयन्हक्तक स् तर पर

मुकाबला करते बताया गया है लेसकन उत् तरा ा् तक आते-आते वह समझ जाता है सक हरी दादा एक व् यन्हक्त

नही ंअसपतु कमजोर-गरीब झु्‍ गी बस् ती वालो ंके संसाधनो ंको लूटने वाला व् यवन्हस्थत तंत् है सजसे हमारे देश

की कसथत लोकतांसत्क व् यवस् था का वरदहस् त प्राप् त है। अत: वह व् यन्हक्तगत ईष् याा, दे्वर् और लााई-झगाे से

ऊपर उठकर खेल के आधारभूत सनयम ही बदल देता है।

कररकालन धारावी के लोगो ंको यह समझाने में सफल हो जाता है सक धारावी मुम् बई की गंदगी

नही ंहै असपतु वह देश की आसथाक राजधानी मानी जाने वाली मुम् बई की उत् पादन स् थली है। जब हरी दादा के

सनदेश पर राज् य सरकार धारावी को खाली कराने के सलए वहाूँ का पानी-सबजली बंद करवा देती है,

सावाजसनक शौचालयो ंपर तालाबंदी करवा देती है तो सरकार की इस तानाशाही के न्हखलाफ कररकालन भी

धारावी के कामगारो ंको हाताल पर जाने का रास् ता सदखा देता है। कररकालन इसप्रकार अपने आप में एक

आंदोलन का आगाऽ बन जाता है। व् यन्हक्त कररकालन को मारकर हरी दादा धारावी की जमीन की लााई

अपने पक्ष में कर डालने का र्डं्यत् रचता है लेसकन कररकालन का धारावी के दसलतो-ंसपछाो ंमें सवरीयोह की

चेतना बनकर व् याप् त हो जाना उसे आंदोलन के एक चेहरे से ऊपर उठाकर स् वयं में आंदोलन बना देता है।

हरी दादा और कररकालन के बीच के इस आधारभूत अंतर को न समझने वाले ही कररकालन उफा काला

पर हरी दादा का दपाण प्रसतसबंब होने का आरोप लगा सकते हैं।

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वास् तव में ‘काला’ को दो अपराधी गुटो ंके बीच की आपसी लााई के रूप में नही ंदेखा जा सकता।

यह तो दसलतो-ंसपछाो ंके सामूसहक सवरीयोह पर कें सरीयत सफल् म है। यह सनदेशक रजनी की एक राजनीसतक

सफल् म है सजसमें महानगरो ंकी झु्‍ गी झोपसायो ंमें रहने वाले कामगार वगों की दसलत-सपछाी जातीय पहचान

को रेखांसकत करते हये उनके सतत् सवस् थापन को लेकर कुछ असहज करने वाले सवाल उठाये गये हैं।

झु्‍ गी झौपंाी में रहने वाले लोगो ंको अपनी जातीय-धासमाक संकीणाताओ ंसे ऊपर उठकर अपने आसथाक

सहतो ंके सलए वगीय आधार पर लामबंद होने की पे्ररणा दी गई है। झु्‍ गी झोपसायो ंकी इस जमीनी लााई को

अंबेडकर और पेररयार के साथ भी जोाा गया है।

धारावी को आधार बनाकर अपराधी गुटो ंकी आपसी खीचंतान पर मसण रत् नम् ने भी 1987 में

‘नायकन’ सफल् म बनाई थी। ‘नायकन’ में भी धारावी के तसमल समुदाय को कें रीय में रखा गया था। सनदेशक ने

सदखाया था सक धारावी की वे कौनसी सवपरीत पररन्हस्थसतयाूँ हैं, सजनके कारण वहाूँ अपराध फलते-फूलते हैं

और आपरासधक समूहो ंमें वचास् व के सलए खूनी संघर्ा भी होता है। नेताओ ंऔर अपराध सरगनाओ ंके बीच

के रर‍ तो ंको भी बारीकी से सव‍ लेसर्त सकया गया था। लेसकन यह सफल् म राजनीसत और अपराध जगत के

आपसी संबंधो ंकी पृष् ठभूसम में काम करने वाले राजनीसतक अथाशास् त् को नही ंपका पाई थी। सफल् म का

नायक पररन्हस्थसतयो ंके चक्र में फंसकर अपराधी बनता है सकंतु वह उन सामासजक पररन्हस्थसतयो ंको लेकर न

तो कही ंसकसी प्रकार के असंतोर् और खेद से ग्रससत लगता है और न ही चीजो ंको बदलने के सलए प्रयासरत

सदखता है।

‘काला’ सफल् म भी मंुबई की उसी धारावी पर कें सरीयत है, सजस पर नायकन बनी थी। इस सफल् म का

कें रीयीय पात् नायकन के कें रीयीय पात् की जैसे मूलत: तसमल है। लेसकन दोनो ंसफल् मो ंके सनदेशको ंका धारावी

को लेकर दृसष्टकोण अलग-अलग है। जहाूँ मसणरत् नम् ने धारावी के राजनीसतक अथाशास् त् के मूल में काम

करने वाली जातीय-वगीय वास् तसवकताओ ंको सछपाने का भरकस प्रयास सकया था, वही ंसनदेशक पा. रंजीत

ने भारतीय समाज की इन आधारभूत सच् चाइयो ंके पररपे्रष् य में ही धारावी को सचसत्त सकया है। कररकालन

को अपने वतामान को लेकर न खेद है और न ही वह यथान्हस्थसतवादी है असपतु वह धारावी के लोगो ंकी

दसलत-सपछाी पृष् ठभूसम को स् वीकारते हये भी उनके श्रम के महत् व को जानता है। वह भरीयता और गंदगी के

परंपरागत दै्वत को, आपरासधक झु्‍ गी बस् ती बनाम आसभजात् य नागर समाज के दं्वद्व को पलटते हये यह

सासबत कर देता है सक धारावी मंुबई के सौदंया पर बदनुमा कलंक नही ंहै असपतु मंुबई को देश की आसथाक

राजधानी बनाने वाला उत् पादक कें रीय है। वह भरीय सदखनेवाले आसभजात् य नागर हरी दादा के उस काले चेहरे

को पहचानता है जो कामगार लोगो ंके श्रम और संसाधनो ंको लूटकर ही सफेदपोश बना सफरता है।

सफल् म में कररकालन का यह संघर्ा समय और अवसर को देखते हये बाहबली प्रसतसक्रया और

लोकतांसत्क लााई, दोनो ंको साधता है। वास् तव में कररकालन में उनके दोनो ंबेटो ं– लेसनन और सेल् वा का

योग देखा जा सकता है। लेसनन एक सशसक्षत आंदोलनकारी है जो तंत् की खासमयो ंको तंत् की सीमाओ ंके

अंदर रहकर दुरुस् त करने में यकीन रखता है जबसक सेल् वा समस् याओ ंका त् वररत समाधान चाहता है। वह

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कानून तोाकर भी तंत् को बदलने में यकीन रखता है। सफल् म के उत् तरा ा् में जाकर तो करर कालन अंतत:

पंूजीवाद का क्रीतदास बन चुके भ्रष् ट मनुवादी लोकतंत् को झुकाने के सलए धारावी के कामगार वगा की

हाताल करवा देता है लेसकन उससे पहले वह बीच-बीच में अपने बाहबल से भी शोर्णकारी सहंसक ताकतो ं

को रोकने की कोसशश करता है। वह जानता है सक उच् चजातीय अनैसतक कॉरपोरेट ताकतो ंसे लोकतांसत्क

ढंग से लाते-लाते कई बार आपातकाल में जबावी सहंसा का सहारा लेना ही पाता है। सफल् म की शुरुआत

में ही हम लेसनन के नेतृत् व में चल रहे असहंसक सवरोध प्रदशान की सीमा साफ देख पाते हैं। धारावी के

धोबीघाट को तोाने के सलए सरकारी आदेश से एक असभयान चलाया जा रहा है और लेसनन के नेतृत् व में

इसके न्हखलाफ स् थानीय धारावीवासी आंदोलन कर रहे हैं। यह आंदोलन-प्रदशान पूणात: असहंसक है लेसकन

जब पंूजीवादी ताकतें और राजसत् ता, दोनो ं समलकर सनहत् थे प्रदशानकाररयो ं पर पुसलससया बल प्रयोग का

सहारा लेते हैं तो हमारे इस लोकतांसत्क देश में ही हमें क यो ंन लगे सक गाूँधीवाद अपनी प्रासंसगकता खोता जा

रहा है ॽ लोकतांसत्क ढंग से चुनी गई सरकार ही जब स् वाथी ताकतवर भूमासफया और सबल् डरो ंके दबाव में

तमाम नैसतकता और संवैधासनक मयाादा को ताक पर रखकर जनता के लोकतांसत्क सवरोध प्रदशान को

कुचलने के सलए पशुबल का इस् तेमाल करने लगती है तो गरीब, अनपि और सपछाे लोगो ंका भी अपने

अन्हस्तत् व की रक्षा के सलए सहंसा का सहारा लेना स् वाभासवक है। सरकारी सहंसा के जबाव में धारावी के

आंदोलनरत लोगो ंको भी बीच-बचाव के सलए धारावी के स् थानीय बाहबली कररकालन को बुलाना पाता है।

कररकालन दसलतो-ंसपछाो ं के वगा शतु् को अच् छी तरह पहचानता है, उसे हरी दादा से सकसी प्रकार की

नेकनीयसत का भरोसा नही ं है। वह न गाूँधीवादी हृदय पररवतान में सव‍ वास करता है और न साधन की

पसवत्ता में ही। वह हरी दादा की जातीय शे्रष् ठता को चुनौती देने के सलए, अपने दसलत-सपछाे धारावी वाससयो ं

के सहतो ंकी रक्षा के सलए जरूरत पाने पर शतु् पर हाथ उठाने से भी नही ंसझझकता। लेसकन कररकालन को

सहंसक प्रसतरोध के सलए बाय य करने वाली यही कसथत लोकतांसत्क व् यवस् था है। जब लोकतांसत्क व् यवस् था में

ही असहमसत और बहस के सलए स् पेस बचा न रह जाये, तो एक सीमा के बाद दसमत व् यन्हक्त का अपने बचाव

में, अपने लोगो ंके बचाव में हसथयार उठा लेना कोई अनहोनी नही ंहै।

सफल् म में पूूँजीवादी ताकतो ं के पैसो ंपर फलने-फूलने वाले स् वयंसेवी संगठनो ंकी यथान्हस्थसतवादी

भूसमका को भी सामने लाया गया है। पूूँजीवादी लोकतांसत्क व् यवस् था की जन सवरोधी नीसतयो ं के न्हखलाफ

बिते असंतोर् और लोगो ंमें सत् ता के न्हखलाफ फूटते आक्रोश को सदशा भ्रसमत करने के सलए पूूँजीवाद ने

सेफ्टी वॉल् व के रूप में स् वयंसेवी संगठनो ंका एक पूरा तंत् खाा कर सलया है। अपनी लोक कल् याणकारी

भूसमका से पीछे हटते हये आज राज् य ने इस लोक कल् याण का दासयत् व इन स् वयंसेवी संगठनो ंपर डालकर

अपनी भूसमका ससफा शासन करने तक सीसमत कर ली है। एक तरफ इन स् वयंसेवी संगठनो ं के माफा त

सरकारी पैसो ंकी बंदरबांट की जाती है, दूसरी तरफ जन सवरोधी पूूँजीवादी पररयोजनाओ ंऔर नीसतयो ंके

पक्ष में माहौल बनाया जाता है। ऐसा नही ंहै सक सारे स् वयंसेवी संगठन पूूँजीवादी लोकतंत् का ही सहस् सा बन

चुके हो ंया इन स् वयंसेवी संगठनो ंमें काम करने वाले तमाम लोग भ्रष् ट ही होते हो।ं ‘काला’ में भी कररकालन

की पूवा पे्रसमका जरीना अपने स् वयंसेवी संगठन के माय यम से धारावी की गंदगी और अमानवीय न्हस्थसत को दूर

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करके ‘क लीन अप धारावी’ के माय यम से धारावी के दसलतो-ंसपछाो ं को अपाटामेंटो ं की खुशहाल और

सुसवधाजनक सजंदगी देना चाहती है। लेसकन जरीना जैसे नेक इरादे रखने वाले लोगो ंसे पूूँजीवादी व् यवस् था का

लुटेरा चररत् नही ंबदल जाता। महानगरो ंऔर नगरो ंकी तमाम सवकास पररयोजनाओ ंकी तरह ही ‘क्लीन अप

धारावी’ का चररत् भी ब्राह्मणवादी और गरीब सवरोधी है। कररकालन जरीना की तरह ऊूँ ची जासत के बाहरी

अमीर लोगो ंकी सहृदयता को लेकर सकसी गलतफहमी में भी नही ंरहता।

कररकालन को पिे-सलखे आदशावादी लोगो ंकी क्रांसतकाररता में भी यकीन नही ंहै क योसंक वह पाता

है सक अपने ही लोगो ंसे कट चुके ये लोग यह भी नही ंजानते सक वे सजन लोगो ंकी लााई लाना चाहते हैं ,

उनके वास् तसवक मुदे्द और सपने क या हैं ! वह धारावी के लोगो ंको जरीना द्वारा सदखाये साफ-सुथरे आधुसनक

अपाटामेंटो ंके सपनो ंके पीछे भागने से रोकता है। वह जरीना के स् वयंसेवी संगठन के हवाई सपनो ंमें खोने

पर अपने बेटे लेसनन को भी टोकता है। कररकालन चाहे अपने बेटे लेसनन की जैसे पिा-सलखा न हो, लेसकन

वह अपनी जमीन से, अपने लोगो ं से जुाा हआ है। कररकालन का यह चररत् पि-सलखकर अपने दसलत-

सपछाे समाज के सलए कुछ करने की इच् छा रखने वाले लेसनन जैसे आदशावादी युवको ंको अपनी जाो ंको

पहचानने का संदेश देता है। सबना अपने समाज से जुाे, सबना उसकी जरूरतो-ंमाूँगो ंको समझे हम कोई

क्रांसतकारी बदलाव नही ंला सकते।

राजनीसत में उतरने की घोर्णा सवसधवत् कर चुके तसमल सफल् म उद्योग के सबसे चमकदार ससतारे

रजनीकांत के सलए ‘काला’ सफल् म वह राजनीसतक जमीन सासबत हो सकती है जो उनके राजनीसतक जीवन

की सदशा तय करे। तसमलनाडु की राजनीसत में मु्‍ यमंत्ी के पद तक पहूँचने का रास् ता ससनेमा जगत से

होकर जरूर जाता है लेसकन राजनीसत की यह दूसरी पारी इस उम्र में रजनीकांत के सलए आसान नही ंहो

सकती। एम.जी.आर. जैसी तसमल ससनेमा की लोकसप्रय शन्ह्‍सयत को भी अपनी चुनावी स् वीकायाता सुसन‍ चत

करने और एक राजनेता के रूप में अपनी संभावनाओ ंको तलाशने के सलए सनमााता बी. नागा रेड्डी से ‘नाम

नाडु’ जैसी सफल् म बनाने का अनुरोध करना पाा था। 1969 में आई ‘नाम नाडु’ सफल् म ने सजसप्रकार

एम.जी.आर. के राजनीसतक सफर की सफलता पर दशाको ंकी मुहर लगाने का काम सकया, लगभग उसी

तराजू में हम ‘काला’ को भी रख सकते हैं। यह सफल् म तसमल ससनेमा के सबसे बाे ससतारे रजनीकांत की

सफल् म नही ंहै असपतु असभनेता से राजनेता बनने जा रहे रजनीकांत के सलए बनाई गई पा. रंजीत की सफल् म

है। एक तरह से यह अच् छा ही हआ है क योसंक इसके चलते ससतारा रजनीकांत असभनेता रजनीकांत पर हावी

नही ं हो पाये हैं। और पा. रंजीत को भी दसलत सवरोधी और रीयसवा सवरोधी ब्राह्मणवादी राजनीसत के

सवकासवादी सवमशा की जन सवरोधी सच् चाइयाूँ सामने रखने का पूरा मौका समल पाया है।

सफल् म में कररकालन के रूप में जब परदे पर पहली मताबा रजनीकांत आते हैं तभी यह स् पष् ट हो

जाता है सक यह तसमल ससनेमा के सुपर स् टार रजनीकांत की सफल् म नही ंहै असपतु असभनेता रजनीकांत की

सफल् म है। रजनीकांत असभनीत कररकालन अपने पहले दृ‍ य में धारावी की झु्‍ गी बस् ती के अंदर बच् चो ंके

साथ सक्रकेट खेलता नऽर आता है। दशाक कररकालन के रूप में रजनीकांत से यह उम् मीद लगाते हैं सक

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सुपरस् टार रजनीकांत छक का उाायेगा सकंतु गेंद उनके बीच का स् टम् प ले उाती है। रेफरी वसलअप् पन से की

गई कररकालन की नो बॉल की अपील भी खाररऽ हो जाती है और वसलअप् पन वाइड बॉल करार देकर उन् हें

आउट घोसर्त कर देता है। सक्रकेट के खेल में कररकालन का यो ंआउट हो जाना ही बता जाता है सक पा.

रंजीत अपनी इस सफल् म में रजनीकांत की सुपर स् टार वाली छसव को तोाने वाले हैं। आगे चलकर भी हम

पाते हैं सक धारावी चाहे कररकालन का सकला हो सजसमें से सबना उसकी अनुमसत से हरी दादा जैसा ताकतवर

व् यन्हक्त भी बाहर न सनकल सकता हो सकंतु अपने इस सकले के बाहर कररकालन आम व् यन्हक्त की जैसे

असहाय है। धारावी से बाहर पुसलस थाने में उसे अवैध ढंग से सहरासत में रखकर प्रतासात सकया जाता है।

हरी दादा के सामने उसे जमीन पर बैठाया जाता है और हरी दादा के पैर छूने को बाय य सकया जाता है। गंुडो ं

से हमला करवाकर उसे मारने की सासजश की जाती है। इस हमले में वह तो जैसे तैसे बच जाता है सकंतु

उसकी पत् नी सेल् वी और एक बेटा सेल् वा मारा जाता है। स् पष् ट है सक कररकालन की ताकत उसके लोग हैं,

वह धारावी के लोगो ंके बीच में धारावी का राजा जरूर है सकंतु उसे भी उसके लोगो ंसे अलगाकर व् यवस् था

कुचल सकती है।

पा. रंजीत का अपनी इस सफल् म में झु्‍ गी बन्हस्तयो ंमें रहने वाले लोगो ंकी वास् तसवक सजंदगी को

सचसत्त करते हये उनकी जमीनी सच् चाइयो ंऔर आकांक्षाओ ंको य वसनत करने के क्रम में तसमल सुपर स् टार

रजनीकांत को एक लंबे असे के बाद असभनेता मात् के रूप में प्रस् तुत करने में सफल रहना बहत महत् व का

है। अपनी कई सफल् मो ंमें वे पहले भी गरीबो-ंसपछाो ंके नायक बनकर पदे पर आ चुके थे। लेसकन एक तो

उन सफल् मो ंमें भ्रष् टाचार-अन् याय आसद को लेकर बाे ही सामान्य ढंग से चीजो ंको उठाया गया और दूसरे,

अकेले नायक की जवांमदी और प्रसतशोध से तमाम समस् याओ ंका हल सदखा सदया गया। सकंतु यहाूँ पा. रंजीत

दसलतो-ंसपछाो ंकी समस् याओ ंका न तो सामान् यीकरण करते हैं और न ही रजनीकांत की लाजार दैन लाइफ

छसव के सहारे समस् याओ ंका कोई सरलीकृत हल देते नऽर आते हैं। इस सफल् म में रजनीकांत अपनी दूसरी

सफल् मो ंकी जैसे अपने दम पर व् यवस् था बदलते नऽर नही ंआते। उनके द्वारा असभनीत कररकालन के चररत्

को बहत अच् छे से इस वास् तसवकता का अहसास है सक वह अकेला दसलतो-ंसपछाो ंकी लााई नही ंला

सकता। इससलए वह धारावी के दसलतो-ंसपछाो ंको उनकी सामूसहक ताकत का अहसास कराकर उनमें

सवरीयोह का अंकुर जगा देता है। और धीरे-धीरे इसी क्रम में वह धारावी के लोगो ंको अपने असधकारो ंके सलए

लाना ससखाने वाली आंदोलनधमी चेतना बन जाता है।

सनदेशक पा. रंजीत ने कररकालन की वैयन्हक्तक भावनाओ ंपर कैमरे को ज् यादा कें सरीयत न करके

कररकालन की आंदोलनधसमाता के सलए ज् यादा स् पेस सनकाल सलया है। हरी दादा से बदला लेने के सलए

कररकालन के पास सनजी कारण भी थे। यह हरी दादा ही था सजसने कररकालन के सपता की हत् या की थी

और वही उसकी पे्रसमका के दूर जाने का हेतु बन रहा था। यह भी हरी दादा ही है सजसने कररकालन की

पत् नी और एक बेटे को अपने गंुडो ंके हाथो ंमरवा सदया है। लेसकन सनदेशक ने कररकालन के इन वैयन्हक्तक

आघातो ं पर ज् यादा समय नही ं सदया है। कररकालन के अतीत को तो उन् होनें एनीमेशन के माय यम से ही

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सफल् माया है तासक रजनीकांत को अपने से आधी उम्र के युवा कररकालन की भूसमका न सनभानी पाे।

कररकालन के मन पर पाे भावनात् मक आघातो ंका सजक्र मात् करके सफल् म को वैयन्हक्तकता के भूँवर में

फंसने से बचा सलया गया है। कररकालन भी अपने सनजी जीवन की त्ाससदयो ं से ऊपर उठकर स् वयं को

धारावी की कही ं बाी और व् यापक समस् या से जोा पाता है। वास् तव में हमारे महानगरो ं में आज झु्‍ गी

झोपसा यो ंके दसलत-वंसचत लोग अपने अन्हस्तत् व की लााई ला रहे हैं। यह आंतररक उपसनवेशवाद के कारण

सवस् थासपत हो गंदी बन्हस्तयो ंमें जैसे-तैसे गुजर बसर कर रहे लोगो ं के सलए यु् जैसा दौर है और यु् में

इक्का-दुक का मौतें त्ासदी नही ंहोती हैं, ससफा मृत लोगो ं के आंकाो ंमें इजाफा करने वाली होती हैं। यही

कारण है सक हरी दादा के गंुडो ंके हाथो ंकररकालन की पत् नी और बेटे की मौतो ंको सनदेशक ने त्ासदी के

रूप में पेश नही ंसकया है।

रजनीकांत की अन् य सफल् मो ंकी तरह उसके मु्‍ य चररत् कररकालन के सामने इस सफल् म में अन् य

चररत्ो ंको बौना नही ंसकया गया है। वे रजनीकांत की लाजार दैन लाइफ छसव के सामने बौनसाई नही ंरह गये

हैं। कररकालन की पत् नी सेल् वी, बेटा लेसनन, पूवा पे्रसमका जरीना, समत् और साला वसलअप् पन आसद सवसभन् न

प्रसंगो ंमें रजनीकांत से अपनी असहमसत खुलकर व् यक त करते हैं। यहाूँ तक सक रजनीकांत द्वारा असभनीत

मु्‍ य चररत् कररकालन की हूँसी भी ये उााते नऽर आते हैं।

‘काला’ सफल् म के प्रमुख स् त्ी चररत्ो ंका स् वासभमानी स् वतंत् व् यन्हक्तत् व भी इस संदभा में य यातव् य है।

रजनीकांत जैसे ससतारा असभनेता वाली सफल् मो ंमें प्राय: स् त्ी पात् पंुसवादी भारतीय संस् कृसत द्वारा पररभासर्त

पसतव्रता द‍ बू चररत्ो ंके रूप में ही रखे जाते हैं। लेसकन यह सफल् म ब्राह्मणवादी आया सहंदू संस् कृसत के बरक स

दसलत-सपछाे भारत की वैकन्हल्पक संस् कृसत सामने रखती है। धारावी में रहने वाले ये दसलत-सपछाे अनाया

लोग पंुसवादी स् तै्ण सांस् कृसतक आदशों में यकीन नही ं रखते। कररकालन का हृदय अपनी पूवा पे्रसमका

जरीना को देखकर चाहे प्रौिावस् था में भी धाकना भूल जाता हो लेसकन वह अपनी पत् नी सेल् वी के प्रसत

सव‍ वासघात नही ंकर सकता। सेल् वी भी अपने पसत के अतीत को सहजता से लेती है। अपने पसत कररकालन

की पूवा पे्रसमका जरीना के घर आने पर सेल् वी के जीवन में कोई भूचाल नही ंआ जाता। जहाूँ सेल् वी अपने पसत

के हाथ पर बने उसकी पूवा पे्रसमका के टेटू पर आपसि नही ंकरती, वही ंवह अपने पसत के सामने यह कहने

का साहस भी रखती है सक शादी से पूवा उसका भी कोई पे्रमी था और उसे भी अब अपने पसत की जैसे ही

अपने पूवा पे्रम से समलने जाना है।

जरीना धारावी की ही बेटी है लेसकन पि-सलखकर अपने पैरो ं पर खाी हो चुकी है। अपने

अंतरराष्टर ीय एन.जी.ओ. के साथ वह देश-सवदेश में गरीबो ंऔर झु्‍ गी बस्ती वालो ंके सलए काम कर चुकी है।

भारत लौटने के बाद वह अपने धारावी के लोगो ंकी सजंदगी सुधारने का लष् य रखती है। कररकालन उसका

पूवा पे्रमी जरूर है लेसकन वह उथली भावुकता में नही ं बहती और कररकालन के सवरोध के बावजूद भी

‘क लीन अप धारावी’ के अपने सपने को साकार करने की वह भरपूर कोसशश करती है। जरीना के इस सपने

में सै्ांसतक और व् यावहाररक खासमयाूँ जरूर हैं लेसकन उसकी नेक-नीयत पर संदेह नही ंसकया जा सकता।

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ISSN 2455-5169 पररवततन : साहित्य, संसृ्कहत एवं हसनेमा की वैचाररकी

जरीना और सेल् वी कररकालन की कहानी में स् पेस भरने वाली स् त्ी पात् मात् नही ंहैं असपतु वे ‘काला’ की

कहानी की अंतभूात पात् हैं।

दसलत स् त्ी चेतना की दृसष्ट से सफल् म का सबसे सशक त ससक वेंस वह है जब धारावी को बचाने के

सलए आंदोलनरत एक स् त्ी (तूफानी) की सहम् मत तोाने के सलए पुसलसवाले उसकी देह पर आक्रमण करते हैं,

उसकी सलवार उतार डालते हैं। उसके सामने एक तरफ अपनी कुचली हई सलवार पाी है और दूसरी

तरफ एक लाठी पाी हई है। वह अपनी देह ढकने के सलए सलवार नही ंउठाती असपतु आंदोलन और सवरोध

प्रदशान के अपने असधकार की रक्षा के सलए लाठी उठाकर पुसलसवालो ंपर हमला कर देती है। वह घर की

चार दीवारी तक सीसमत रहने वाली और यौन शुसचतावाद की जंजीरो ंमें जकाी उच् च जातीय सहंदू युवती नही ं

है। वह खोखली स् तै्ण नैसतकता के सलए असहमसत और सवरोध के अपने असधकार को नही ंछोा सकती।

‘काला’ सफल् म अल् पसं्‍ यको ंकी त्ासदी को भी सचसित करती है। कररकालन और उसके लोग कई

पीसियो ंपहले तसमलनाडु से मंुबई आकर रोजगार के सलए धारावी में बस गये थे। इन दसलतो-ंमुसलमानो ंने

नीच माना जाने वाला चमाे का काया सकया। आगे चलकर मंुबई की दूसरी आसथाक गसतसवसधयो ंको भी

इन् होनें अपने श्रम से गसत प्रदान की। इतने दशको ंतक अपने खून-पसीने से मंुबई को सुखी-समृ् बनाते

रहने के बाद भी ये अल् पसं्‍ यक तसमल, मराठी भार्ी बहसं्‍ यको ंके बीच आज भी बाहरी हैं। तसमलो ंके

अलावा देश के दूसरे तमाम सहस् सो ंसे भी धारावी में आकर कामगारो ंने अपना आसशयाना बसाया है। इन् ही ं

दसलत-सपछाे कामगारो ंके श्रम पर ही हरी दादा जैसी परजीवी शोर्क ताकतें पल रही हैं। देशभर से आकर

मंुबई की समृन्ह् में इजाफा करने वाले धारावी के इन रहवाससयो ंके योगदान को हरी दादा द्वारा नकारना

और उनका मंुबई पर कोई असधकार न मानना कृतघ् नता की चरम पराकाष् ठा है – ‘बॉम् बे, बम् बई, मुम् बई

हमारी थी, हमारी है।’

हरी दादा के इस दावे में सबल् कुल भी दम नही ं है सक मुम् बई उनका (उच् च जातीय मराठी भार्ी

समुदाय) का है और धारावी के लोग तो बाहर के हैं। धारावी के लोग देश के सवसभन् न सहस् सो ंसे आकर धारावी

में जरूर बस गये हैं लेसकन मंुबई के सनमााण में उनका भी बराबर का योगदान है। धारावी को मानव

असधवास के रूप में सवकससत करने का शे्रय तो पूरी तरह इन् ही ं‘बाहरी’ लोगो ंको जाता है। स् वयं धारावी जैसी

अवैध मलीन बन्हस्तयो ंमें रहकर भी इन लोगो ंने मंुबई को साफ-सुथरा और समृ् बनाया है। सनदेशक रंजीत

सफल् म के दशाको ंको स् थानीय-बाहरी की इस नकली बहस से उबारकर सवशेर्ासधकार प्राप् त परजीवी वगा

बनाम मेहनती उत् पादक कामगार वगा के दं्वद्व को समझाने का सफल प्रयास करते हैं। वे हमें याद सदलाते

रहते हैं सक धारावी के रहने वाले लोगो ंके पास चाहे अपने घर और जमीन के वैध दस् तावेज न हो,ं लेसकन इस

धारावी को यहाूँ रहने वाले लोगो ं ने बनाया है। कररकालन बारंबार दावा करता है सक धारावी उसकी है,

धारावी के लोगो ंकी है। वास् तव में आज जहाूँ धारावी बसी हई है, पहले वहाूँ दलदल होता था जो आज के

ससयोन और महीम को अलगाने का काम करता था। इस दलदल को पाटकर रहने यो्‍ य बनाने का शे्रय

धारावी के इन् ही ंवतामान बाससंदो ंको जाता है।

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धारावी को देखने की पा. रंजीत की दृसष्ट सफेदपोश आसभजात् य दृसष्ट नही ंहै सजसे धारावी में ससवाय

गंदगी और अपराध के कुछ नही ंसदखाई देता। सनदेशक ने सजस रूप में धारावी को सदखाया है, उस रूप में

धारावी हमारे सामने लघु भारत की प्रसतसनसध बनकर सामने आती है। और उसका लघु भारत वाला स् वरूप

सहज ही उभर आया है, उसके सलए न सरकार को कोई सवशेर् प्रयास करना पाा है और न सनदेशक ने इसे

सदखाने की कोई सचेतन कोसशश की है। यद्यसप सफल् म की कहानी धारावी के तसमल दसलत समुदाय पर

कें सरीयत है लेसकन धारावी में हम देशभर से आकर बसे समसश्रत समाज को आसानी से देख सकते हैं। रंजीत

की सफल् म ‘काला’ हमें बताती है सक धारावी में मुससलम, सहंदू, दसलत, सपछाे और अन् य समुदाय पारस् पररक

सहयोग से रहते हैं। अपनी पुरानी के्षत्ीय-स् थानीय पहचानो ंको पीछे छोा ये लोग धारावी के साथ अपनी

अन्हिता जोा चुके हैं। छोटी-मोटी झापें भी समय-समय पर इनके बीच होती हैं लेसकन इन झापो ंऔर

झगाो ंको उकसाने वाली ताकतें बाहरी होती हैं। जब धारावी को बचाने के सलए कररकालन के समझाने पर

ये सब धारावीवासी आंदोलन करते हैं, वहाूँ के कामगार हाताल पर चले जाते हैं तो हरी दादा सुअर-गाय का

पुराना झगाा करवा देता है लेसकन कररकालन इस सांप्रदासयक राजनीसत को समझने-समझाने में सफल

रहता है।

संके्षप में ‘काला’ सफल् म का सवसभन् न स् तरीय वैकन्हल्पक राजनीसतक सवमशा देश की सवसवधता-

सभन् नता को नकारकर नवउदारवादी भगवा रंग में रंगने के र्डं्यत् के न्हखलाफ अपनी तरह का एक मुक कमल

प्रसतरोध है। एक तरफ यह सफल् म सामासजक समता और जासत उन् मूलन का अंबेडकरवादी दशान हमें देती है,

दूसरी और धारावी जैसी गंदी बस् ती में भी श्रम का सौदंया खोज लेती है। यह हमें ससखाती है सक झु्‍ गी बन्हस्तयाूँ

सकसी शहर के ऊपर बोझ नही ंहोती ंअसपतु इन् हें तो शहर की आसथाक सजंदगी का ऊजाा ोोत समझा जाना

चासहए। आयों के रामराज् य वाले राष् टर के बरक स यह सफल् म तसमल राष् टर वाद का हल् का - सा संकेत देकर

प्रकारांतर से एक राष् टर के नारे के नीचे सजंदा जातीय अन्हिताओ ंको दफन कर सदये जाने की सहंदूत् ववादी

कसथत राष् टर ीय संस् कृसत की राजनीसत का पदााफाश करती है। यह गोरे रंग को शे्रष् ठ मानने वाली सहंदुओ ंकी

उच् च जातीय मानससकता के नस् लवादी चररत् के भी न्हखलाफ है। आया और रीयसवा, गौर वणा और ‍ याम वणा

के बीच की टकराहट और सांस् कृसतक अंतराल को उभारने के सलए रामायण के कथानक को भी सांकेसतक

रूप से सफल् म में समासवष् ट सकया गया है। धमा आधाररत राष् टर वाद द्वारा अपने बचाव में, अपनी वैधता असजात

करने की रणनीसत के तहत बाऽार कें सरीयत सवकास का जो मुखौटा ओिा जा रहा है, उस मुखौटे को नोचकर

इस नकली राष् टर वाद के असली साम्राज् यवादी चररत् को नंगा कर देती है यह सफल् म। यह सकसी लोकसप्रय

जुमलेबाजी में न फंसकर अंबेडकरवाद के क्रांसतकारी दशान को सामने रखती है। अंबेडकरवादी दसलत

राजनीसत के सवसभन् न संदभों से यह सफल् म शुरु से अंत तक भरी हई है। सामासजक न् याय और दसलतो-ंसपछाो ं

के राजनीसतक सशन्हक्तकरण को लेकर चला रीयसवा आंदोलन नवें दशक में जब थकने लगा तो अंबेडकरवाद

ने उसे एक नई ऊजाा प्रदान की। पेररयार और अंबेडकर के इस समन् वय को भी इस सफल् म में सचसित सकया

जा सकता है। जासत के उन् मूलन और समानता की स् थापना के संघर्ा पर बल देते हये इसके सलए सनदेशक ने

दसलत और वामपंथी राजनीसत की एकता को अपेसक्षत बताया है।