लाक एक भारत म रा वाद का उ व : कारण ...इक ई त...

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भारतीय राीय आ दोलन BAHI 202 उराखड मु िवविवालय 1 लाक एक- भारत म रावाद का उव: कारण ,ित एव िवकास इकाई एक- भारतीय रावाद का जमः कारण एव कॉेस के थम अिधवेशन म बताये गये उेय। इकाई दो- ार िभक िदन म का ेस क मा तथा उदार राीयता का या कन। इकाई तीन- उवादी आदोलन के उदय के कारण इकाई चार- गाल म उरावाद और ब गाल का िवभाजन

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  • भारतीय रा� ीय आंदोलन BAHI 202

    उ�राख�ड म�ु िव� विव�ालय 1

    �लाक एक- भारत म� रा�वाद का उ�व: कारण ,�कृित एवं िवकास

    इकाई एक- भारतीय रा�वाद का ज�मः कारण एवं कॉ�ेस के �थम अिधवेशन म� बताये गये उ#े$य।

    इकाई दो- �ारंिभक िदन& म� कां�ेस क' मांग� तथा उदार रा�ीयता का

    मू)यांकन। इकाई तीन- उ�वादी आ�दोलन के उदय के कारण

    इकाई चार- बंगाल म� उ�रा�वाद और बंगाल का िवभाजन

  • भारतीय रा� ीय आंदोलन BAHI 202

    उ�राख�ड म�ु िव� विव�ालय 2

    इकाई एक

    भारतीय रा�वाद का ज�मः कारण एव ंकां�ेस के

    �थम अ�धवेशन म� बताए गए उ"दे#य 1.1 ��तावना 1.2 उ�ेय 1.3 भारतीय रा��वाद का ज�मः कारण

    1.3.1 �ाचीन एव ंम�यकालीन भारत म� रा��ीयता क� भावना 1.3.1.1 �ाचीनकालीन भारत म� रा��ीयता क� भावना 1.3.1.2 म�यकालीन भारत म� रा��ीयता क� भावना

    1.3.2 भारत म� उ�नीसव! शता#दी के उ$राध& म� रा��वाद के िवकास के कारण 1.3.2.1 भारतीय नवजागरण म� राजनीितक चतेना 1.3.2.2 1857 के िव)ोह म� राजनीितक चतेना का िवकास 1.3.2.3 भारतीय प-. म� राजनीितक चतेना का िवकास 1.3.2.3 भारत म� आिथ&क रा��वाद का उदय 1.3.2.4 भारत म� �वदेशी और �वशासन क� मांग का पहला चरण 1.3.2.5 लॉड& िलटन का दमनकारी तथा लॉड& 5रपन का उदार शासन

    1.4 कां6से के �थम अिधवशेन म� बताए गए उ�ेय 1.4.1 उ�नीसव! शता#दी के उ$राध& म� कां6से क� �थापना से पवू& के राजनीितक संगठन

    1.4.1.1 ि;िटश इि=डयन एसोिसयशेन 1.4.1.2 बॉ>ब ेएसोिसयशेन 1.4.1.3 मै@ास नेिटव एसोिसयशेन 1.4.1.4 ई�ट इि=डयन एसोिसयशेन

    1.4.1.5 िह�द ूमेला 1.4.1.6 पनूा साव&जिनक सभा 1.4.1.7 इि=डयन लीग 1.4.1.8 इि=डयन एसोिसयशेन 1.4.1.9 महाजन सभा 1.4.1.10 नेशनल का�Bे�स

    1.4.2 भारतीय रा��ीय कां6से क� �थापना तथा उसका �थम अिधवेशन 1.4.2.1 कां6से क� �थापना क� प5रि�थितयां 1.4.2.2 भारत म� एक रा��ीय �तर के राजनीितक दल क� आवयकता

  • भारतीय रा� ीय आंदोलन BAHI 202

    उ�राख�ड म�ु िव� विव�ालय 3

    1.4.2.3 भारतीय रा��ीय कां6से का �थम अिधवशेन 1.5 सारांश 1.6 पा5रभािषक श#दावली 1.7 अDयास �E. के उ$र 1.8 संदभ& 6थं सचूी 1.10 िनबधंाFमक �E

    1.1 �तावना

    आिद काल से ही हमारे भारत म� दशे �ेम क� भावना के सव ! दश न होते ह#। चारो वेद& म�, परुाण& तथा महाका*य& म� रा+,ीयता क� भावना सव ! *य� ह-ई ह।ै म0यकाल म� रा+,ीयता क� भावना के दश न हमको च1द बरदाई और अमीर खसुरो क� रचनाओ ंम� तथा अकबर क� �शासिनक, आिथ क व धािम क नीित म� िमलते ह#।

    उ1नीसव8 शता9दी के उ�राध म� ह-ए भारतीय नवजागरण म� धािम क, सामािजक, सां=कृितक और शैि?क चेतना के साथ-साथ राजनीितक चेतना का भी िवकास ह-आ था। राजा राममोहन राय को हम भारतीय राजनीितक चेतना का अ@दतू कह सकते ह#। दादा भाई नौरोजी, एम0 जी0 रानाडे, जी0 वी0 जोशी, िदनशा वाचा, रमेश च1C द� आिद ने आिथ क रा+,वाद का िवकास िकया उ1ह&ने िDिटश शासन क� आिथ क दोहन क� नीित क� आलोचना क� तथा भारतीय& को आिथ क =वावलFबन का लGय �ाH करन ेके िलए अनथक �यास करन ेका आवाहन िकया।

    शहरी म0यवगIय भारतीय बुिJजीिवय& ने उदार पाKाLय राजनीितक िसJा1त& से �ेMरत होकर भारतीय& के राजनीितक तथा आिथ क िहत& क� र?ा के िलए अपने-अपने राजनीितक संगठन बनाए। धीरे-धीरे भारत म� रा+,ीय =तर के राजनीितक संगठन क� आव�यकता का अनभुव िकया जाने लगा और 1885 म� भारतीय रा+,ीय कां@ेस क� =थापना ह-ई।

    28-31 िदसFबर, 1885 को बFबई म� ड9लू0 सी0 बनजI क� अ0य?ता म� भारतीय रा+,ीय कां@ेस का �थम अिधवेशन सFप1न ह-आ। कां@ेस के पहले अिधवेशन म� घोिषत उQ�ेय थेः

    • भारत के िहतैिषय& के म0य सFपक व सSाव बढ़ाना।

    • धम , सF�दाय, जाित, ?े! क� संक�ण भावना दरू कर रा+,ीय एक�करण के �यास करना।

    • िशि?त समुदाय से िवचार-िवमश कर सामािजक िवषय& पर चचा करना।

    • भारतीय& के कUयाण हते ुभावी काय Vम क� िदशा िनधा Mरत करना।

  • भारतीय रा� ीय आंदोलन BAHI 202

    उ�राख�ड म�ु िव� विव�ालय 4

    ,0 vks0 g~;we lqjsUnzukFk cuthZ MCyw0 lh0 cuthZ

    nknk HkkbZ ukSjksth ,e0 th0 jkukMs

    इस अिधवेशन म� पाMरत �=ताव& म� सरकार से संगभेदी व जाितभेदी नीित का पMरLयाग करने क� अपील िकए जाने के अितMर� भारत म� उ�रदायी सरकार क� =थापना के �थम चरण के Xप म� भारतीय& को भारतीय �शासन, िविध-िनमा ण तथा आिथ क नीित-िनधा रण म� िह=सेदारी िदए जाने क� मांग रखी गई।

  • भारतीय रा� ीय आंदोलन BAHI 202

    उ�राख�ड म�ु िव� विव�ालय 5

    1.2 उ�े�य

    इस इकाइY का उQे�य आपको आधिुनक भारत म� राजनीितक चेतना के उSव तथा उसके िवकास के �थम चरण से अवगत कराना ह।ै इस इकाई के अ0ययन के उपरांत आप अ@ांिकत के िवषय म� जानकारी �ाH कर सक� गे-

    1- �ाचीन काल तथा म0य काल म� भारत म� रा+,ीयता क� भावना का िवकास।

    2- उ1नीसव8 शता9दी म� भारत म� राजनीितक चेतना का िवकास।

    3- भारत म� आिथ क रा+,वाद का उदय।

    4- भारत म� ?े!ीय राजनीितक संगठन& क� =थापना।

    5- भारतीय रा+,ीय कां@ेस क� =थापना।

    6- भारतीय रा+,ीय कां@ेस के �थम अिधवेशन रखी गई मांगे। 1.3 भारतीय रा�वाद का ज�मः कारण 1.3.1 ाचीन एवं म�यकालीन भारत म� रा�ीयता क� भावना 1.3.1.1 ाचीनकालीन भारत म� रा�ीयता क� भावना

    िDिटश शासक& का यह दावा था िक उ1ह&ने ही भारतीय& को रा+,ीयता और =वदशे �ेम का पाठ पढ़ाया ह।ै इस दावे म� कुछ न कुछ सLयता अव�य थी पर1तु यह कहना सव था अनिुचत होगा िक भारतीय& म� िDिटश शासन से पवू रा+,ीयता और =वदेशी क� भावना का िनता1त अभाव था। �ाचीन काल म� भारतीयो म� दशे �ेम क� भावना के सव ! दश न होते ह#। वेद& म� रा+, क� र?ा और सुर?ा, एकता और संगठन पर अनके& बार �काश डाला गया ह।ै इनम� अपने नगर&, निदय&, वन& और पव त& के �ित अपार �ेम दशा या गया ह ैऔर अपनी मातभृिूम, मात ृसं=कृित और मातभृाषा का समादर करने क� �ेरणा दी गई ह।ै रा+, क� दवेी को रा+, का सव =व कहा गया ह।ै ‘=वरा[य’ श9द वैिदक सािहLय क� ही देन ह।ै ऋ]वेद ( ऋ]वेद 8/45/21 तथा (ऋ]वेद 5/66/6) म� कहा गया ह ैिक-

    =वरा[य के योग-?ेम के िलए सतत जागXक रहना चािहए। =वरा[य के िव=तार एवं �जाताि1!क शासन-हतुे हम सभी दशेवासी �यLनशील रह�।

    ऋ]वेद म� अपने रा[य को =वरा[य बनाने के िलए िनर1तर �यLनशील रहने का उपदेश िदया गया ह ै-

    यतेमिह �वरा�ये

    (हम �वरा�य के िलए सतत �य�न करते रह�।)

  • भारतीय रा� ीय आंदोलन BAHI 202

    उ�राख�ड म�ु िव� विव�ालय 6

    ऋ]वेद क� ही भाँित अथव वेद म� भी देश�ेम क� भावना अनेक =थान& पर मुखMरत ह-ई ह।ै अनकेता म� एकता को बनाए ह-ए देशवािसय& को रा+,ोLथान म� सतत संल]न रहना चािहए -

    िजस �कार एक घर के लोग िभ1न-िभ1न भाषाओ ंका अ0ययन करके तथा अपनी-अपनी *यि�गत धािम क आ=थाओ ंवाले होकर भी अपन ेघर क� िमलजलु कर दखेभाल करते ह# तथा उसे सुख-सिुवधा सFप1न बनाकर =वयं भी सखुी होते ह#, ठीक उसी �कार भारतवािसय& को भी अपन ेभाव-िवषयक एवं धम -िवषयक भेदभाव क� उपे?ा करके अपने सम@ रा+, का कUयाण आLमीयतापणू समवेत भावना से करना चािहए।

    ऋ]वेद के सू� 10/25 तथा अथव वेद के सू� 4/30 म� सम@ भारत रा+, क� एक रा+,दवेी के Xप म� पMरकUपना क� गई ह।ै ऋिषय& का _ि`कोण ह ैिक यह रा+,दवेी रा+, के चारो ही वणa म� ओत�ोत रहती ह;ै सौहाद , सदc्त, शौय , dान तथा आरो]य का िव=तार करती ह;ैरा+, क� आिथ क दशा म� स1तलुन करती ह;ै िविवध dान क� विृJ कराती ह;ै अनेक �संग& म� ि=थर �ितeा पाती ह।ै जो रा+, इस रा+,दवेी क� उपे?ा करते ह#, वे िवन` हो जाते ह#।

    हमारे परुाण भारत मिहमा से भरे ह-ए ह#। इनम� भारतवािसय& को एकस!ू म� बंधने क� �ेरणा दी गई ह।ै भारतभिूम को कम भिूम कहा गया ह;ै जहाँ ज1म पान ेके िलए दवेताओ ंको भी तरसता ह-आ बताया गया ह।ै भारत के पव त&, वन&, समुC&, निदय&, सरोवर&, नगर& तथा तीथa का गव के साथ वण न िकया गया ह।ै

    िव+ण ुपरुाण म� कहा गया ह ै-

    गायि�त देवाः िकल गीतकािन ध�या�तु ये भारतभूिमभागे।

    �वगा�पवगा��पदहेतुभूते भवि�त भूयः पु!षाः स!ु�वात।्।

    (इस दशे क� मिहमा का दवेता भी गान करते ह# । उनक� _ि` म� वे लोग ध1य ह#, कृताथ ह# और कृतकृLय ह# जो इस पिव! भारतभिूम म� ज1म पाते ह#। दवेLव क� समािH पर यहाँ मानव-जाित म� ज1म पाने के िलए दवेगण भी लालसा करते ह#।)

    हमारे महाका*य& - रामायण और महाभारत म�, भी =वदेश-�ेम और =वदशेी क� भावना मखुMरत ह-ई ह।ै रामायण म� कहा गया ह ै-

    जननी ज�म भूिम% �वगा�दिप गरीयसी।

    महाभारत के भी+मपव म� =वधम का पालन करते ह-ए मLृयुगित को �ाH करने को परधम का पालन करते ह-ए जीवन *यतीत करने से fेe बताया गया ह ै-

    �वधम& िनधनं (ेयः परधम) भयावहः ।

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    उ�राख�ड म�ु िव� विव�ालय 7

    कािलदास क� कृितय& म� भारत और भारतीयता के �ित असीम अनरुाग ह ैऔर अपMरिमत भि� ह।ै उनक� रचनाओ ंम� भारतीय इितहास के गौरवशाली अ0याय का िच!ण िमलता ह।ै उनका िहमालय वण न भारतीय सािहLय क� अनपुम धरोहर ह।ै

    1.3.1.2 म�यकालीन भारत म� रा�ीयता क� भावना

    म0यकाल म� हमारे दशे म� �ा1तीयता तथा ?े!वाद के भाव न ेहमारी �गित को अवgJ कर िदया। दशे�ेम अब अपने रा[य अथवा अपने ?े! तक िसमट कर रह गया। भारत पर मुि=लम आिधपLय =थािपत हो जाने के बाद िह1दओु ं क� _ि` म� िह1द ू धम क� र?ाथ उठाया जाने वाला हर �यास दशेभि� माना जाने लगा। च1दबरदाई क� रचना पhृवीराज रासो म� बार-बार यह दशा या गया ह ैिक राजपतू जातीय अिभमान क� र?ा के िलए अपने �ाण& क� परवाह नह8 करते करते थे। पhृवीराज रासो के ही काल क� रचना आUहाख�ड म� वीर& का बखान करते ह-ए कहा गया ह ैिक जो वीर यJु म� वीरगित को �ाH होते ह# उ1ह� सीधे मो? िमलता ह।ै हमारे दशे क� वीरांगनाएँ सदवै ही वीर पित क� कामना करती थ8।

    म0यकाल म� रा+,ीयता क� भावना के दश न हमको अमीर खसुरो क� रचनाओ ंम� िमलते ह# । अमीर खसुरो तुक थे पर1तु उनका ज1म िह1द=ुतान म� ह-आ था । उ1ह� अपनी ज1मभिूम ‘ िह1द ’ से अLय1त �ेम था । उ1ह� अपनी भारतीयता पर गव था। नूह ेिसपहर म� वह िलखते ह# -

    िह1द मेरी ज1मभिूम ह।ै यह मेरा वतन ह।ै अपने वतन से iयार करना हर एक के िलए उसके ईमान का िह=सा ह।ै िह1द ज1नत क� तरह ह।ै इसक� िमjी उपजाऊ ह ैऔर इसक� आबोहवा िदलकश ह।ै

    महारा+, म� वाराकरी पंथ के स1त& न ेमहारा+, धम का िवकास िकया। उ1ह&ने धम , सं=कृित और भाषा को आधार बनाकर मराठा जाित को एकस!ू म� बांधने का सफल �यास िकया। अकबर के अधीन भारत म� रा+,ीय एकता =थािपत करने के सफल �यास ह-ए । अकबर ने भारत को �शासिनक, राजनीितक व आिथ क _ि` से एकस!ू म� बांधा और दीन-ए-इलाही अथवा तौहीद-ए-इलाही के मा0यम से उसने भारतीय& को भावनाLमक Xप से बांधने का �यास िकया। सािहLय, संगीत, िच!कला, =थापLय कला, मCुा �णाली, खान-पान, वेशभषूा, िश`ाचार, भाषा आिद सभी ?े!& म� सम1वय के �यास ह-ए। अमीर खसुरो क� ही भाँित अकबर को भी अपनी भारतीयता पर गव था। अकबर के नवरLन अबुल फ़nल के िवचार भी =वदशे �ेम क� भावना से ओत�ोत थे। 1.3.2 भारत म� उ�नीसव! शता#दी के उ$राध& म� रा�वाद के िवकास के कारण 1.3.2.1 भारतीय नवजागरण म� राजनीितक चेतना

    भारत म� उ1नीसव8 शता9दी के �थमाध म� ही सामािजक, शैि?क, सां=कृितक एवं आिथ क चेतना का िवकास �ारFभ हो गया था। सरकार क� रंगभेदी, जाितभेदी व आिथ क शोषण नीित क� िनभIक

  • भारतीय रा� ीय आंदोलन BAHI 202

    उ�राख�ड म�ु िव� विव�ालय 8

    आलोचना करने वाले भारतीय नवजागरण के अ@दतू राजा राममोहन राय को हम भारतीय राजनीितक चेतना का भी अ@दतू कह सकते ह#। भारतीय नवजागरण ने धािम क,सामािजक, सां=कृितक, शैि?क, आिथ क और राजनीितक जागिृत क� अलख जगाई। Do समाज, �ाथ ना समाज, आय समाज आिद ने अं@ेज़& के जातीय fेeता के दावे को एक िसरे से नकार िदया। अं@ज़ेी तथा भारतीय भाषाओ ंके प!& ने भारतीय राजनीितक चेतना के �सार-�चार म� उUलेखनीय भिूमका िनभाई।

    1.3.2.2 1857 के िव)ोह म� राजनीितक चेतना का िवकास

    सन् 1857 म� िDिटश ह-कूमत का तqता पलटन े के िलए भारत म� *यापक =तर पर िवCोह ह-आ। िफरंगी शासन से दशे को मु� कराने के िलए बादशाह, राजे-महाराजे, नवाब, जागीरदार, सैिनक, िकसान और मज़दरू एकजुट ह-ए। 1857 के िवCोह का िव=तार सम=त भारत म� नह8 हो सका और न ही इसम� उ�र भारत के एक सीिमत ?े! को छोड़कर आम जनता क� भागीदारी ह-ई िक1त ुइसम� कोई स1देह नह8 िक इस काल म� दशेवािसय& म� रा+,ीय एकता क� भावना �बल ह-ई और अपने धािम क, सामािजक व सां=कृितक मUूय& पर आघात करने वाले के िवgJ सशs Vाि1त करन ेके िलए लाख& लोग एकजुट ह-ए। अं@ेज़& ने इस िवCोह को कुचल िदया और इसे मा! एक सैिनक िवCोह का जामा पहनाने का �चार िकया। �बुJ भारतीय �ायः इस िवCोह से िवलग रहे िक1त ुपरवतI काल म� उनम� से अनेक न ेइस िवCोह को भारतीय इितहास का �थम =वत1!ता सं@ाम माना। 1857 के िवCोह से भारतीय यवुाओ ंने औपिनवेिशक शासन के अ1याय का �ितकार करन ेक� �ेरणा �ाH क�। 1857 के िवCोह म� सािदकुल अख़बार,देहली उदू अख़बार, दरूबीन तथा सUुतानलु अख़बार ने िवCोह क� भावना का �चार करने का साहिसक अिभयान छेड़ा। बादशाह बहादरु शाह ज़फ़र के पौ! बेदार बuत के संचालन म� �कािशत उदू अखबार पयामे आज़ादी म� अज़ीमUुला खां रिचत बाग़ी सैिनक& का क़ौमी गीत �कािशत ह-आ था। इस कौमी तराने म� भारत क� मिहमा का गुणगान िकया गया ह ैऔर भारत म� िDिटश शासक& क� आिथ क दोहन क� िन1दा क� गई ह ैऔर आज़ादी के झ�डे के तले सभी धमा वलFबी भारतवािसय& को एकजटु होकर भारत को =वत1! कराने के िलए आगे बढ़न ेक� अपील क� गई ह-ै

    हम ह� इसके मािलक, िह�द�ुतान हमारा,

    पाक वतन ह ैक़ौम का, ज�नत से भी �यारा।

    ये ह ैहमारी िमि�कयत, िह�द�ुतान हमारा,

    इसक� �हानी से, रौशन ह ैजग सारा।

    िकतना क़दीम िकतना नईम, सब दिुनया से �यारा,

  • भारतीय रा� ीय आंदोलन BAHI 202

    उ�राख�ड म�ु िव� विव�ालय 9

    करती ह ैज़रखेज़ िजसे, गंग-जमन क� धारा।

    ऊपर बफ़"ला पव$त, पहरेदार हमारा,

    नीचे सािहल पर बजता, सागर का न&कारा।

    इसक� खान( उगल रह*, सोना, हीरा, पारा,

    इसक� शान-शौकत का, दिुनया म( जयकारा।

    आया िफरंगी दरू से, ऐसा म�तर मारा,

    लटूा दोन0 हाथ से, �यारा वतन हमारा।

    आज शहीद0 ने ह ैतुमको, अहले-वतन ललकारा,

    तोड़ो गुलामी क� ज़�जीर(, बरसाओ अगंारा।

    िह�द-ुमसु�मां, िस&ख हमारा, भाई �यारा-�यारा,

    यह ह ैआज़ादी का झ7डा, इसे सलाम हमारा।।

    1.3.2.3 भारतीय प-. म� राजनीितक चेतना का िवकास

    अं@ेज़ी तथा भारतीय भाषाओ ंके प!& ने भारतीय राजनीितक चेतना के �सार-�चार म� उUलेखनीय भिूमका िनभाई। 1857 के िवCोह से लेकर भारत क� =वत1!ता �ािH तक रा+,ीय आ1दोलन के हर चरण म� भारतीय प!काMरता ने राजनीितक चेतना के िवकास म� उUलेखनीय योगदान िदया था। आधिुनक भारतीय प!काMरता के जनक राजा राममोहन राय क� सFबाद कौमुदी तथा अ?य कुमार द� क� तLव बोिधनी पि!का, लोकिहतवादी के प! िहतवादी म� सरकार क� आिथ क नीितय& क� आलोचना क� गई थी। xाMरकानाथ टैगोर के प! ब#गाल हरकारा के 1843 के अंक& म� भारत म� भी जनता क� सम=याओ ंका िनराकरण करने के िलए 1830 क� yऱांस क� जुलाई Vाि1त का अनुकरण करने क� बात कही गई थी। िगरीश च1C घोष के प! िह1द ूपैि,एट (सFपादक हरीश च1C मुकजI) म� 1861 म� दीन ब1ध ु िम! का नाटक नील दप ण �कािशत िकया। बाद म� इस प! पर ई{र च1C िव�ासागर का िनय1!ण हो गया। इस प! ने सरकार क� nयादितय& क� कटु आलोचना क� और भारतीय& को उ|च सरकारी पद& पर िनयु� िकए जाने क� मांग क�। ई{र च1C िव�ासागर का एक अ1य प! सोम�काश भी एक रा+,वादी प! था। इस प! ने िकसानो को उनके अिधकार िदलाने के िलए अिभयान छेड़ा था। मोती लाल घोष के प! अमतृ बाज़ार पि!का को सरकार क� नीितय& क� कटु आलोचना करने के कारण उसके कोप का भाजन होना पड़ा था। भारते1द ुहMरK1C ने अपने प! किव वचन सधुा म� तन-मन-धन से =वदशेी अपनाने क� आव�यकता पर ज़ोर िदया। किव वचन सधुा

  • भारतीय रा� ीय आंदोलन BAHI 202

    उ�राख�ड म�ु िव� विव�ालय 10

    के नवFबर, 1872 के अंक म� भारते1द ुने इस बात पर ज़ोर िदया िक भारतीय वािण[य का पनुरोJार करने के िलए भारतवािसय& को *यापक =तर पर तकनीक� िश?ा @हण करने क� आव�यकता थी। 23 माच , 1874 क� किववचन सुधा म� भारते1द ुहMरK1C क� अ0य?ता म� =वदशेी वs& के �योग के सFब1ध म� बनारस वािसय& xारा अंगीकार िकया गया एक �ितdा-प! �कािशत ह-आ था-

    हमलोग सवा}तया मी सब =थल म� वत मान और िनLय सLय-परमे{र को सा?ी दकेर यह िनयम मानते ह# और िलखते ह# िक हम लोग आज के िदन से कोई िवलायती कपड़ा न पिहन�गे और जो कपड़ा पिहले मोल ले चकेु ह# और आज क� िमती तक हमारे पास ह ैउनको तो उनके जीण हो जान ेतक काम म� लाव�गे पर नवीन मोल लेकर िकसी भाँित का भी िवलायती कपड़ा न पिहर�गे, िहदं=ुतान का ही बना कपड़ा पिहर�गे।

    1873 म� एक बंगला !मैािसक मुकजIज़ मै]ज़ीन म� भोलानाथ च1C न ेभारत म� िबिटश आिथ क नीित पर कठोर �हार िकए। एम0 जी0 रानाडे के मराठी प! dान �काश तथा इ1द ु�काश दोन& ही प!& म� राजनीितक एवं आिथ क चेतना का �चार-�सार िकया जाता था।

    लोकमा1य ितलक ने मराठी भाषा के प! केसरी तथा अं@ेज़ी प! मराठा म� औपिनवेिशक शासन के शोषक एवं दमनकारी =वXप का िनभIक िच!ण िकया। लोकमा1य ने मराठा म� िDिटश भारतीय सरकार xारा समाज सुधार के नाम पर भारतीय& क� सामािजक परFपराओ ंम� ह=त?ेप करने क� नीित का िवरोध िकया। उ1ह&ने 1891 के ‘एज ऑफ़ क1से1ट िबल’ का इसीिलए िवरोध िकया। िह1द,ू नेिटव ओपीिनयन, संजीवनी, dान �काश, अFबाला गज़ट, िह1दी �दीप, Dाoण, नजमलु अखबार, भारत जीवन आिद प!& म� सरकार क� आिथ क नीित क� आलोचना के साथ भारतीय& को अपने आिथ क उLथान हतुे =वयं �यास करने क� आव�यकता पर ज़ोर िदया गया था। भारतीय प!& म� अब राजनीितक दल& के गठन क� आव�यकता का अनुभव भी िकया जान ेलगा था। अपन ेप! ब#गाली के 27 मई, 1882 के अंक म� नेशनल का1yऱे1स के गठन क� आव�यकता पर सरेु1Cनाथ बनजI ने िलखा -

    य& नह8 हमको एक रा+,ीय और नह8 तो कम स े कम एक �ा1तीय कां@ेस का गठन कर लेना चािहए, िजसम� िक देश के िविभ1न भाग& से साव जिनक सं=थाओ ंके �ितिनिध अपन े िवचार रख सक� ?

    1.3.2.3 भारत म� आिथ&क रा�वाद का उदय

    दादा भाई नौरोजी भारत म� आिथ क रा+,वाद के जनक थे। उ1ह&ने एक ओर जहां िDिटश शासन क� आिथ क दोहन क� नीित के कारण भारत क� िनर1तर बढ़ती ह-ई दMरCता पर �काश डाला वह8 उ1ह&ने भारतीय& को आिथ क =वावलFबन का लGय �ाH करने के िलए अनथक �यास करने का आवाहन

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    उ�राख�ड म�ु िव� विव�ालय 11

    िकया। उनके @ंथ पॉवटI ए�ड अन-िDिटश Xल इन इि�डया को भारतीय आिथ क रा+,वाद क� आधार प=ुतक कहा जा सकता ह।ै रा+,ीय आ1दोलन के अ1य सभी नतेाओ ं ने तथा भारतीय समाचार प!& न ेभी सरकार के हर शोषक पहल ूको उभारा तथा भारत के आिथ क पनुgJार हतेु सजृनाLमक सुझाव िदए। भारत म� =वदशेी क� भावना जागतृ करने म� और आधिुनक उ�ोग का िवकास तथा कुटीर उ�ोग का पनुgLथान करने म� आिथ क रा+,वाद का अभतूपूव योगदान रहा। उदू के पहले �गितशील शायर अUताफ़ ह-सेन हाली न ेभारत के आिथ क पनुgLथान के िलए भारतीय उ�ोग और वािण[य को आधुिनक तकनीक से िवकिसत िकए जाने क� आव�यकता पर ज़ोर िदया। 1874 म� �कािशत अपनी नnम ह-9बे वतन म� उ1ह&ने भारतीय& को इस बात पर फटकार लगाई िक वे अब भी अपने िमhया जातीय गौरव क� शान बघारने से बाज़ नह8 आ रह े ह# और इस बात को अनदखेा कर रह ेह# िक वे गुलामी और गरीबी म� अपने िदन काट रह ेह# -

    इ9ज़तो-क़ौम चाहते हो अगर, जाके फैलाओ उनम( इ�मो-ह

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    1.3.2.4 भारत म� �वदेशी और �वशासन क� मांग का पहला चरण

    1867 म� ल1दन म� ड9ल0ू सी0 बनजI ने ‘भारत क� �ितिनिध तथा उ�रदायी सरकार’ िवषय पर िदए गए अपने भाषण म� भारत म� एक �ितिनिध सभा तथा सीनेट क� =थापना का सझुाव िदया। 1873 म� आन1दमोहन बोस ने Dाइटन म� िदए गए भाषण म� Vिमक चरण& म� भारत म� �ितिनिध सरकार क� =थापना का �=ताव रखा। सन् 1874 म� कृ+णदास पाल ने सन ्1874 म� िह1द ूपैि,एट म� �कािशत अपने एक लेख म� भारत म� होमXल क� =थापना क� मांग रखी। दयान1द सर=वती ने =वदेशी और =वशासन को आLमिनभ रता तथा आLम-गौरव से जोड़ कर दखेा। उ1ह&ने रा+,ीय एकता क� भावना का �सार करने के िलए िह1दी को रा+,भाषा तथा दवेनागरी िलिप को देश-*यापी िलिप के Xप म� =थािपत िकए जाने क� आव�यकता पर बल िदया।

    1.3.2.5 लॉड& िलटन का दमनकारी तथा लॉड& 5रपन का उदार शासन

    1877 म� महारानी िवटोMरया xारा भारत क� सााdी का पद @हण करने क� खशुी म� िदUली दरबार का आयोजन िकया गया। लॉड िलटन के शासनकाल म� दिुभ ? क� ि=थित म� भी आं]ल-अफ़गान यJु म� अप*यय तथा समारोह& का आयोजन करने क� �विृ� भारतीय& को सहन नह8 ह-ई। अगले वष लॉड िलटन के दमनकारी -‘वना युलर �ेस एट’, ‘इि�डयन आFस एट’ तथा ‘लाइसे1स एट’ ने ि=थित और भी िव=फोटक कर दी और भारतीय& का अस1तोष अपनी पराकाeा पर पह-चं गया।

    गवन र जनरल लाड Mरपन के शासन काल (1880-84) म� अनके सधुार िकए गए तथा भारतीय& को पहले से अिधक अिधकार िदए गए। 1883 म� भारतीय 1यायधीश& को गोर& का मकुदमा सुनने तथा उ1ह� द�ड देन े के अिधकार िवषयक इUबट िबल 1यायपािलका म� रंगभेदी *यव=था को समाH करने के उQ�ेय से रखा गया था िक1तु इसका एं]लो इि�डयन समदुाय तथा �ेस ने �बल िवरोध िकया। भारतीय& ने इस िबल के समथ न म� अपना आ1दोलन िकया। इस िवषय म� सरेु1Cनाथ बनजI पर ए]ंलो इि�डयन समुदाय पर आ?ेप करने पर मुकदमा चलाया गया और उ1ह� सज़ा दकेर कारावास भेजा गया। जेल से Mरहा होने के बाद सुरे1Cनाथ बनजI दशे के सबसे लोकि�य राजनीितक नतेा के Xप म� वह �ितिeत ह-ए।

    इUबट िबल अपने मलू Xप म� पाMरत नह8 हो सका। एं]लो-इि�डयन समुदाय क� मांग& को दखेते ह-ए सरकार ने इसम� िकंिचत पMरवत न िकए। इससे भारतीय& को संगिठत िवरोध तथा आ1दोलन क� शि� का पता चल गया और उ1ह� देश म� संगिठत राजनीितक आ1दोलन करने क� �ेरणा िमली।

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    1.4 कां6ेस के थम अिधवेशन म� बताए गए उ�े�य 1.4.1 उ�नीसव! शता#दी के उ$राध& म� कां6ेस क� �थापना से पूव& के राजनीितक संगठन 1.4.1.1 ि:िटश इि

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    1.4.1.5 िह�दू मेला

    राजनारायण बोस के ‘पैि,एट्स एसोिसयेशन’ तथा ‘सोसायटी फ़ॉर िद �मोशन ऑफ नेशनल फ़�िलंग अमंग िद एजकेुटेड निेट*ज़ ऑफ ब#गाल’ से �ेरणा लेकर 1867 म� नबगोपाल िम! ने ‘िह1द ूमेला’ क� =थापना क�। इसका उQे�य दशे क� �गित हते ु भारतीय& म� आLमिनभ रता क� भावना, रा+,ीय एकता, रा+,ीय सािहLय, भारतीय कला, सं=कृित, कुटीर उ�ोग, =वा=hय िनमा ण आिद का िवकास करना था। मेले xारा भारतीय उLपाद& क� �दश नी का िनयिमत आयोजन सराहनीय �यास था।

    1.4.1.6 पूना साव&जिनक सभा

    1870 म� पनूा म� ‘साव जिनक सभा’ क� =थापना का उQ�ेय जनता का �ितिनिधLव कर उसक� आकां?ाओ ंतथा आव�यकताओ ंको सरकार के सम? �=ततु करना था। इस सभा के माग दश क व सं=थापक एम0 जी0 रानाडे थे। इसके xारा महारानी िवटोMरया को एक यािचका �ेिषत क� गई िजसम� भारतीय& को वही राजनीितक अिधकार िदए जाने क� बात कही गई जो िक िDिटश नागMरक& को �ाH थे। 1875 म� सभा xारा िDिटश संसद म� भारतीय& को◌े �ितिनिधLव िदए जाने रखी गई।

    1.4.1.7 इि

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    इसके xारा आयोिजत जनसभाओ ंम� �ेस क� =वत1!ता, [यरूी �णाली को लाग ूकरना, जाितभेद तथा रंगभेद क� भावना का उ1मलून, नमक कर म� कमी, रेल& म� थड लास के याि!य& को अिधक सिुवधाए ंिदया जाना, उ|च �शासिनक सेवाओ ंम� भारतीय& क� अिधक िह=सेदारी आिद िवषय& को उठाया जाता था। 1877 म� इस संगठन ने आई0 सी0 एस0 परी?ा म� अयािथ य& क� अिधकतम आयु 21 वष से घटा कर 19 वष िकए जाने के िवरोध म� देश-*यापी आ1दोलन िकया। इस संगठन ने लॉड िलटन xारा लागू िकए गए ‘वना यलुर �ेस एट’, ‘इि�डयन आFस एट’ तथा ‘लाइसे1स एट’ जैसे जाितभेदी व रंगभेदी कानून& का �बल िवरोध िकया। इस संगठन के �यास& से ‘इि�डयन =टेट्यूटरी सिव स’ क� =थापना ह-ई िजसके कारण मझले =तर तक के �शासिनक पद& पर भारतीय& क� िनयिु� का माग �श=त हो गया। 1879 म� आयोिजत एक जन-सभा म� ‘इि�डयन एसोिसयेशन’ ने अफ़गान यJु पर हो रह ेखच से भारत क� अथ -*यव=था पर �ितकूल �भाव क� चचा क� तथा िD्रिटश कपड़ा िमल मािलक& को लाभ पह-चंाने व भारतीय कपड़ा िमल& के िवकास म� बाधा पह-चंाने के उQ�ेय से िवदशेी कपड़े पर आयात कर हटाने का िवरोध िकया। 1879 से इस संगठन ने रा+,ीय =तर पर =वशासन क� मांग करना भी �ारFभ कर िदया। इस संगठन ने 1879 के िवदेशी कपड़& पर लगाए जाने वाले आयात कर को हटाए जाने का िवरोध िकया।

    1.4.1.9 महाजन सभा

    मCास म� जन-जागिृत हतुे 1878 म� ‘िह1द’ू क� =थापना ह-ई। इसके समथ क& ने 1884 म� एक राजनीितक संगठन ‘महाजन सभा’ का गठन िकया। िदसFबर, 1884 म� इस संगठन ने मCास �ेसीडे1सी के बड़े शहर& के �ितिनिधय& ने िवधान पMरषद& म� सुधार, 1यायपािलका को राज=व सFब1धी दाियLव से मुि� िदलाने तथा नागMरक एवं सै1य �शासन म� कमी िकए जाने पर चचा क� और इस िवषय म� सरकार को एक =मरणप! िदया।

    1.4.1.10 नेशनल का�Aे�स

    अपन ेप! ब#गाली के 27 मई, 1882 के अंक म� नशेनल का1yऱे1स के गठन क� आव�यकता पर सरेु1Cनाथ बनजI ने िलखा -

    य& नह8 हमको एक रा+,ीय और नह8 तो कम से कम एक �ा1तीय कां@ेस का गठन कर लेना चािहए, िजसम� िक देश के िविभ1न भाग& से साव जिनक सं=थाओ ंके �ितिनिध अपने िवचार रख सक� ?

    1883 म� 28 से 30 िदसFबर तक कलक�ा म� नेशनल कॉ1yऱे1स क� �थम बैठक ह-ई। इसम� उठाए गए मQु& म� मुqय थे - �ितिनिध सभाएं, सामा1य तथा तकनीक� िश?ा, 1यायपािलका का काय पािलका से अलगाव, फ़ौजदारी 1याय �शासन तथा �शासिनक सेवाओ ं म� भारतीय& क�

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    िनयिु�। िदसFबर, 1885 म� कलक�े म� नशेनल कॉ1yऱे1स क� दसूरी बैठक ह-ई िजसम� िवधान पMरषद& म� सधुार िकए जान ेक� आव�यकता पर ज़ोर िदया गया। 1.4.2 भारतीय रा�ीय कां6ेस क� �थापना तथा उसका थम अिधवेशन 1.4.2.1 कां6ेस क� �थापना क� प5रि�थितयां

    लोकत1! क� जननी इ]ंलै�ड के उदार राजनीितक वातावरण को भारत म� भी =थािपत करने क� कामना करने वाले अनेक उदार अं@ेज़ िवचारक तथा अिधकारी भारतीय& को राजनीितक व संवैधािनक सधुार िदए जाने के प? म� थे। लॉड हिे=टं]स, एलिफ़1सटन, टॉमस मुनरो, लॉड मैकॉले और मैटकाफ़ जैसे अिधकाMरय& न ेराजनीितक एवं संवैधािनक सुधार& के िलए भारतीय& को शासन म� िह=सेदारी िदए जाने क� िसफ़ाMरश क� थी। इि�डयन िसिवल सिव स के सर ए0 ओ0 मू का मानना था िक भारत का शासन, शासक और �जा दोन& के िहत& को 0यान म� रखकर चलाना चािहए। उनका यह भी कहना था िक सरकार व जनता के म0य सFपक के िकसी संवैधािनक साधन के अभाव के कारण सरकार को भारतीय& क� सम=याओ ंक� बह-त कम जानकारी िमल पाती ह।ै लॉड िलटन के बदनाम शासन म� भारतीय अस1तोष अपनी पराकाeा पर पह-चं गया था। इस ि=थित म� एक िवiलव क� �बल सFभावना बन रही थी।

    1.4.2.2 भारत म� एक रा�ीय �तर के राजनीितक दल क� आव�यकता

    सर ए0 ओ0 मू क� _ि` म� िDिटश सरकार के िवgJ िकसी भी जन-िवCोह के खतरे को रोकने के िलए सरकार क� ओर से कुछ ठोस सधुार िकए जाने आव�यक थे और इन सुधार& म� सबसे आव�यक था रा+,ीय आ1दोलन का एक संगठन िजसके तीन लGय ह&-

    पहला, भारत के िविभ1न ?े!& तथा जनसमूह& का सिFमfण।

    दसूरा, रा+, का आ0यािLमक, नैितक, सामािजक तथा राजनीितक उLथान।

    तीसरा, अ1यायपूण व हािनकारक तLव& को दरू कर भारत तथा इ]ंलै�ड के म0य सु_ढ़ सFब1ध =थािपत करना।

    ए0 ओ0 मू भारत म� भारतीय रा+,ीय कां@ेस क� =थापना कर उसक� वैसी ही भिूमका चाहते थे जैसी िक इ]ंलै�ड म� िवरोधी दल क� होती थी। ए0 ओ0 ूम िDिटश भारतीय शासन के िलए एक सेyटी वॉUव के Xप म� कां@ेस क� =थापना करना चाहते थे। उ1ह� आशा थी िक �बJु भारतीय& क� �ितिनिध सं=था कां@ेस क� मांग& और उसके सजृनाLमक सझुाव& को मानकर सरकार भारतीय �जा क� आकां?ाओ ंऔर अपे?ाओ ंको एक सीमा तक परूा कर उनके िकसी भी सFभािवत आVोश पर िनय1!ण लगा सकेगी और भारत पर Xस के हमले क� ि=थित म� Xसी आVमणकारी सेना के िवgJ भारतीय& के सहयोग क� अपे?ा कर सकेगी। @ेट िDटेन के उदार राजनीितd, वहां क� उदारवादी दल

  • भारतीय रा� ीय आंदोलन BAHI 202

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    क� सरकार और तLकालीन भारतीय �शासक& न ेभी ए0 ओ0 मू के �=ताव& का =वागत िकया। बFबई म� िदसFबर, 1885 म� सर ए0 ओ0 मू ने भारतीय रा+,ीय कां@ेस क� =थापना ह-ई।

    1.4.2.3 भारतीय रा�ीय कां6ेस का थम अिधवेशन

    28-31 िदसFबर, 1885 को बFबई म� गोकुलदास तेजपाल सं=कृत कॉलेज पMरसर म� ड9ल0ू सी0 बनजI क� अ0य?ता म� भारतीय रा+,ीय कां@से का �थम अिधवेशन सFप1न ह-आ। ए0 ओ0 मू इसके महासिचव थे और इसम� भाग लेने वाले सद=य& क� कुल संqया 72 थी िजनम� िक अिधकांश बॉFबे तथा मैास �ेसीडे1सी के शहरी म0यवगIय िह1द ूथे। इसके िवदेशी सद=य& म� वैडरबन और जि=टस जॉन जॉिड न सिFमिलत थे। इस अिधवेशन म� सद=य& ने िDिटश साा[य के �ित अपनी िनeा *य� क� और िDिटश भारतीय सरकार क� ओर से भी इसे संर?ण �दान िकया गया।

    • कां@ेस के पहले अिधवेशन म� घोिषत उQ�ेय थेः

    • भारत के िहतैिषय& के म0य सFपक व सSाव बढ़ाना।

    • धम , सF�दाय, जाित, ?े! क� संक�ण भावना दरू कर रा+,ीय एक�करण के �यास करना।

    • िशि?त समुदाय से िवचार-िवमश कर सामािजक िवषय& पर चचा करना।

    • भारतीय& के कUयाण हते ुभावी काय Vम क� िदशा िनधा Mरत करना।

    • इस अिधवेशन म� कुल 9 �=ताव पाMरत िकए गए िजनम� िक मुqय थे -

    • भारतीय �शासन क� काय �णाली क� जांच करन ेके िलए रॉयल कमीशन क� िनयिु� क�

    जाए।

    • भारत सिचव क� इि�डयन काउंिसल भगं क� जाए।

    • पिKमो�र �दशे तथा अवध और पंजाब म� िवधान पMरषद& का गठन िकया जाए।

    • उ|चतम तथा =थानीय िवधान पMरषद& म� िनवा िचत सद=य& को पया H संqया म� �वेश िदया

    जाए तथा उ1ह� बजट पर बहस करने का अिधकार िदया जाए।

    • हाउस ऑफ़ कॉम1स म� एक =टैि�डंग काउंिसल का गठन िकया जाए जो िक िवधान पMरषद&

    म� बह-मत से उठाए गए िवरोध& पर िवचार करे।

    • सैिनक *यय म� कमी क� जाए तथा इसका बोझ भारत और इ]ंलै�ड िमलकर उठाएं।

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    • इ]ंलै�ड तथा भारत दोन& म� ही एकसाथ इि�डयन िसिवल सिव स क� परी?ा का आयोजन

    िकया जाए तथा अयािथ य& क� आय ुक� अिधकतम सीमा बढ़ाई जाए।

    अBयास C

    1. वेद& म� *य� रा+,ीयता क� भावना पर �काश डािलए।

    2. दादा भाई नौरोजी को भारत म� आिथ क रा+,वाद का जनक य& कहा जाता ह?ै

    3. नेशनल कॉ1े1स क� �मुख मांगे या थ8?

    1.5 सारांश

    आिद काल से ही हमारे भारत म� दशेदेश �ेम क� भावना के सव ! दश न होते ह#। चारो वेद& म�, पुराण& तथा महाका*य& म� रा+,ीयता क� भावना सव ! *य� ह-ई ह।ै म0यकाल म� रा+,ीयता क� भावना के दश न हमको च1द बरदाई और अमीर खसुरो क� रचनाओ ंम� महारा+, के वाराकरी पंथ के स1त& के उपदेश& म� तथा अकबर क� �शासिनक, आिथ क व धािम क नीित म� िमलते ह#।

    भारतीय नवजागरण के अ@दतू राजा राममोहन राय को हम भारतीय राजनीितक चेतना का भी अ@दतू कह सकते ह#। 1857 के िवCोह म� दशेवािसय& म� रा+,ीय एकता क� भावना �बल ह-ई। भारतीय नवजागरण म� धािम क, सामािजक, सां=कृितक एवं शैि?क चेतना के साथ-साथ राजनीितक चेतना भी िवकास ह-आ। आिथ क रा+,वाद के अ1तग त दादा भाई नौरोजी, एम0 जी0 रानाडे, जी0 वी0 जोशी, िदनशा वाचा, रमेश च1C द�, केशब च1C सेन, दयान1द सर=वती, भारते1द ुहMरK1C, अUताफ़ ह-सेन हाली आिद न ेएक ओर जहां िDिटश शासन क� आिथ क दोहन क� नीित के कारण भारत क� ददु शा पर �काश डाला तो दसूरी ओर उ1ह&ने भारतीय& को आिथ क =वावलFबन का लGय �ाH करने के िलए �यास करने का आवाहन िकया। शहरी म0यवगIय भारतीय बिुJजीिवय& ने उदार पाKाLय राजनीितक िसJा1त& से �ेMरत होकर भारतीय& के राजनीितक तथा आिथ क िहत& क� र?ा के िलए अपने-अपने राजनीितक संगठन बनाए। धीरे-धीरे भारत म� रा+,ीय =तर के राजनीितक संगठन क� आव�यकता का अनभुव िकया जाने लगा।

    अं@ेज़ी तथा भारतीय भाषाओ ंके प!& तथा अनेक भारतीय भाषाओ ंरिचत दशेभि�पूण सािहिLयक रचनाओ ं न े भारतीय राजनीितक चेतना के �सार-�चार म� उUलेखनीय भिूमका िनभाई। सFबाद कौमुदी, तLव बोिधनी पि!का, िहतवादी, ब#गाल हरकारा, पयाम� आज़ादी, िह1द ू पैि,एट, सोम�काश, किव वचन सधुा, मकुजIज़ मै]ज़ीन, dान �काश, इ1द ु�काश, केसरी तथा ब#गाली म� राजनीितक एवं आिथ क चेतना का �चार-�सार िकया गया।

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    लॉड िलटन क� दमनकारी एवं शोषक नीितय& के कारण भारतीय& का अस1तोष अपनी पराकाeा पर पह-चं गया। गवन र जनरल लाड Mरपन के शासन काल (1880-84) म� भारतीय& को पहले से अिधक अिधकार िदए गए िक1तु इUबट िबल िववाद से भारतीय& को संगिठत िवरोध तथा आ1दोलन क� शि� का पता चल गया और उ1ह� दशे म� संगिठत राजनीितक आ1दोलन करने क� �ेरणा िमली। उ1नीसव8 शता9दी के उ�राध म� कां@ेस क� =थापना से पवू के राजनीितक संगठन& म� िDिटश इि�डयन एसोिसयेशन, बॉFबे एसोिसयेशन, मैास नेिटव एसोिसयेशन, ई=ट इि�डयन एसोिसयेशन, िह1द ू मेला, पूना साव जिनक सभा, इि�डयन लीग, इि�डयन एसोिसयशेन, महाजन सभा तथा सरेु1Cनाथ बनजI क� नेशनल का1yऱे1स �मखु थे।

    लोकत1! क� जननी इ]ंलै�ड के उदार राजनीितक वातावरण को भारत म� भी =थािपत करने क� कामना करने वाले अनेक उदार अं@ेज़ िवचारक तथा अिधकारी भारतीय& को राजनीितक व संवैधािनक सधुार िदए जाने के प? म� थे। इि�डयन िसिवल सिव स के अवकाश �ाH अिधकारी सर ए0 ओ0 मू का मानना था िक सरकार व जनता के म0य सFपक के िकसी संवैधािनक साधन के अभाव के कारण सरकार को भारतीय& क� सम=याओ ंक� बह-त कम जानकारी िमल पाती ह।ै उनक� _ि` म� िDिटश सरकार के िवgJ िकसी भी जन-िवCोह के खतरे को रोकने के िलए सरकार क� ओर से कुछ ठोस सधुार िकए जाने आव�यक थे और इन सुधार& म� सबसे आव�यक था रा+,ीय आ1दोलन का एक संगठन। ए0 ओ0 मू भारत म� भारतीय रा+,ीय कां@ेस क� =थापना कर उसक� वैसी ही भिूमका चाहते थे जैसी िक इ]ंलै�ड म� िवरोधी दल क� होती थी। @ेट िDटेन के उदार राजनीितd, वहां क� उदारवादी दल क� सरकार और तLकालीन भारतीय �शासक& ने भी ए0 ओ0 मू के �=ताव& का =वागत िकया। बFबई म� िदसFबर, 1885 म� सर ए0 ओ0 मू ने भारतीय रा+,ीय कां@से क� =थापना ह-ई।

    28-31 िदसFबर, 1885 को बFबई म� ड9लू0 सी0 बनजI क� अ0य?ता म� भारतीय रा+,ीय कां@ेस का �थम अिधवेशन सFप1न ह-आ। कां@ेस के पहले अिधवेशन म� घोिषत उQ�ेय थेः

    • भारत के िहतैिषय& के म0य सFपक व सSाव बढ़ाना।

    • धम , सF�दाय, जाित, ?े! क� संक�ण भावना दरू कर रा+,ीय एक�करण के �यास करना।

    • िशि?त समुदाय से िवचार-िवमष कर सामािजक िवषय& पर चचा करना।

    • भारतीय& के कUयाण हते ुभावी काय Vम क� िदशा िनधा Mरत करना।

    इस अिधवेशन म� पाMरत �=ताव& म� सरकार से संगभेदी व जाितभेदी नीित का पMरLयाग करने क� अपील िकए जाने के अितMर� भारत म� उ�रदायी सरकार क� =थापना के �थम चरण के Xप म�

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    भारतीय& को भारतीय �शासन, िविध-िनमा ण तथा आिथ क नीित-िनधा रण म� िह=सेदारी िदए जाने क� मांग रखी गई।

    1.6 पा5रभािषक श#दावली

    आई0 सी0 एस0 : इि�डयन िसिवल सिव स (भारतीय �शासिनक सेवा)

    वना युलरः भारतीय भाषाएं।

    पाकः पिव!

    िमिUकयतः सFपि�

    Xहानीः आिLमक �काश

    कदीमः परुातन

    नईमः न*योपहार

    ज़रखेज़ः िसंिचत

    सािहलः िकनारा

    अहलेवतनः दशेवासी

    आज के िमती तकः आज के िदन तक

    इnज़तो-कौमः दशेवािसय& का सFमान

    इUमो-ह-नरः dान व द?ता

    ज़ात का फ़ और नसल का गXुरः अपनी जाित व अपने वंश का घम�ड

    सीमोज़रः सोना-चांदी

    1.7 अBयास C. के उ$र

    1. दिेखए 1.3.1.1 �ाचीनकालीन भारत म� रा+,ीयता क� भावना

    2. दिेखए 1.3.2.3 भारत म� आिथ क रा+,वाद का उदय

    3. दिेखए 1.4.1.10 नेशनल का1yऱे1स

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    1.8 सदंभ& 6ंथ सूची

    मजूमदार, आर0 सी0 (सFपादक)-िDिटश पैरामाउंट्सी ए�ड इि�डयन Mरनसेा, दो भाग& मे, बFबई, 1965

    ताराच1दः भारतीय =वत1!ता आ1दोलन का इितहास (चार भाग& म�), नई िदUली, 1984

    च1Cा, िबपन - िद राइज़ ए�ड @ोथ ऑफ इकानॉिमक नेशनिलnम इन इि�डया

    नई िदUली, 1965

    बनजI, एस0 एन0 - नेशन इन मेिकंग, कलक�ा, 1915

    नटेसन, जी0 ए0 (�काशक) - इि�डयन नेशनल कां@ेस, मCास, 1917

    1.9 सहायक उपयोगी पाठ्य साम@ी

    नौरोजी, दादाभाई - पॉवटI ए�ड अन िDिटश Xल इन इि�डया, ल1दन, 1902

    द�, रमेश च1C - िद इकॉनॉिमक िह=,ी ऑफ इि�डया, नई िदUली, 1965

    मजूमदार, आर0 सी0 (सFपादक) - =,गल फा ़र �डम, बFबई, 1969

    1.10 िनबंधाEमक C

    1. भारतीय रा+,ीय कां@ेस क� =थापना से पूव भारत म� =थािपत राजनीितक संगठन& क� भिूमका पर एक संि?H िनब1ध िलिखए।

    2. भारतीय रा+,ीय कां@ेस के �थम अिधवेशन के उQ�ेय& और उसम� पाMरत �=ताव& क� समी?ा क�िजए।

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    इकाई दो

    �ारि%भक &दन' म� कां�ेस क( मागं� तथा उदार

    रा�)यता का मू+यांकन 2.1 �=तावना

    2.2. इकाई के �ािH उQ�ेय

    2..3 �ारिFभक िदन& म� कां@ेस क� मांग�

    2..3.1 �थम चरण म� कां@ेस का संगठन

    2..3.2 1892 के इि�डयन काउंिसUस एट से पवू कां@ेस क� नीितयां

    2.3.3 1892 का इि�डयन काउंिसUस एट और कां@ेस

    2..3.4 1892 के बाद तथा बंगाल िवभाजन के िनण य से पवू कां@ेस क� नीितयां

    2.3.5 कां@ेस के �थम चरण म� उसके �ित मुसलमान& का _ि`कोण

    2.3.6 कां@ेस के �ित भारतीय सरकार, गहृ सरकार तथा िDिटश जनता का रवैया

    2.3.7 कां@ेस के भीतर तथा बाहर िवरोधी =वर& का मुखर होना

    2.4 उदार रा+,ीयता का मUूयांकन

    2.4.1 कां@ेस के �थम चरण क� सीमाए ं

    2.4.2 सरकार क� अ1यायपणू नीितय& म� बदलाव लाने म� कां@ेस क� असफलता

    2.4.3 �थम चरण म� भारतीय रा+,ीय कां@ेस क� उपलि9धयां

    2.5 सारांश

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    2.6 पाMरभािषक श9दावली

    2.7 अयास �& के उ�र

    2. 8 स1दभ @थं सचूी

    2.9 सहायक उपयोगी पाठ्य साम@ी

    2.10 िनबंधाLमक �

    2.1 �तावना

    िपछली इकाई म� हम उ1नीसव8 शता9दी म� भारत के �ारिFभक राजनीितक संगठन& के उदय से लेकर भारतीय रा+,ीय कां@ेस क� =थापना और उसके �थम अिधवेशन के उQ�ेय तथा उसम� पाMरत �=ताव& क� चचा कर चुके ह#। कां@ेस क� =थापना के बाद उसके �थम 20 वष क� अविध को नरमपंिथय& के राजनीितक �भLुव का काल माना जाता ह।ै नरमपंिथय& ने आिथ क रा+,वाद का पोषण िकया और सरकार क� शोषक एवं दमनकारी नीितय& क� आलोचना करते ह-ए उनम� सधुार लाने हतुे सजृनाLमक सुझाव रखे। नरमपिंथय& ने भारत और िDटेन के िहत& को पर=पर िवरोधी होने के =थान पर एक दसूरे का सहयोगी माना। उनको िव{ास था िक िDिटश सरकार 1858 के महारानी के घोषणाप! म� िदए गए आ{ासन& का िनeापवू क िVया1वयन करेगी। उनका िवचार था िक सरकार क� नीितय& म� जो भी दोष ह# उनके िलए =थानीय सरकार तथा नौकरशाही िज़Fमेदार ह ैन िक गहृ सरकार, िDिटश पािल यामे1ट और न ही िDिटश जनता। इसिलए उन तक अपनी बात पह-चंाने के िलए इस काल म� सिVय राजनीितक िवरोध के =थान पर कानून क� सीमाओ ंका पालन करते ह-ए अपनी िशकायत� और मांगे रखी गई।ं उनके xारा �ायः अननुय-िवनय के मा0यम से अपने अिधकार& के िलए याचना करने क� नीित को अपनाया गया। औपिनवेिशक सरकार कां@ेस को मुी भर

    िशि?त शहरी म0यवगIय िह1दओु ं का राजनीितक दल मानकर उसक� मांग& पर 0यान िदए बगैर अपनी शोषक, दमनकारी, जाितभेदी, रंगभेदी व ‘फूट डालो और शासन करो’ क� नीितय& का पूव वत पालन करती रही। कां@ेस ने भारत के सभी धािम क, सामािजक व आिथ क वगa का िहतैषी होने का दावा िकया िक1त ुइसे शहरी म0यवगIय िह1दओु ंका राजनीितक दल मानकर मुसलमान आमतौर पर इससे अलग रह।े सरकार के �ित अनाव�यक सहयोग व िवनता का gख अपनान ेके िलए कां@ेस के नरमपंथी नेताओ ंको उ@वािदय& क� कटु आलोचना का पा! भी बनना पड़ा पर1तु इसम� कोई स1देह नह8 िक भारत म� राजनीितक चेतना के �सार म� कां@ेस के इस �थम चरण महLवपणू �गित ह-ई।

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    2.2. इकाई के ािF उ�े�य

    इस इकाई म� कां@ेस क� =थापना के �थम चरण म� उसके कायa का िववरण तथा उनक� समी?ा भी क� जाएगी तथा उसक� किमय& तथा उसक� उपलि9धय& का आकलन भी िकया जाएगा। इस इकाई को पढ़कर आप जान�गेः

    कां@ेस क� =थापना के बाद उसके �थम बीस वषa म� िकए गए �मुख काय तथा उसक� नीितयां।

    इस अविध म� सरकार के काय तथा उसक� नीितयां और कां@ेस के �ित उसका रवैया

    अिधकांश मुसलमान& का =वयं को कां@ेस क� गितिविधय& से अलग रखना

    कां@ेस के भीतर ही उ@वािदय& xारा नरमपंथी नीितय& क� आलोचना

    कां@ेस क� =थापना के �थम चरण म� उसक� उपलि9धयां तथा उसक� असफलताएं।

    enueksgu ekyoh;

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    2..3 ारि=भक िदन. म� कां6ेस क� मांग� 2..3.1 थम चरण म� कां6ेस का सगंठन

    कां@ेस अपने �ारिFभक चरण म� एक राजनीितक दल क� भिूमका िनभाने म� असफल ह-ई थी। वा=तव म� इसका काम हर साल के सHाहा1त म� िकसी शहर म� दशे के रा+,ीय नेताओ ंको सिFमिलत कर तीन-चार िदन का एक आयोजन करन ेतक सीिमत था। इस आयोजन के दौरान र=मी तौर पर देश क� जनता क� शा{त एवं तLकालीन सम=याओ ंको उठाया जाता था। यूं तो कां@ेस अिधवेशन& के xार सभी के िलए खलुे थे िक1त ुइसके िलए �ितिनिध का नाम संगठन के xारा �=तािवत िकया जाना अथवा एक साव जिनक सभा म� उसका नामांकन िकया जाना आव�यक था। अिधवेशन म� �ितिनिध बनने के िलए *यि� को 10 से 20 gपय ेतक का शुUक देना होता था और इसके अितMर� उसे अपन े=थान से अिधवेशन के =थान तक आन ेजाने के *यय का भी =वय ंिनवा ह करना होता था। दशे क� जनता के तLकालीन आिथ क संसाधन& को दखेते ह-ए कां@ेस का सद=यता शुUक तथा �ितिनिध शUुक द ेसकना आम आदमी के िलए अLय1त किठन था। इसके अितMर� कां@ेस क� कार वाही आमतौर पर अं@ेज़ी भाषा म� होती थी। इन कारण& से कां@से अं@ेज़ी िश?ा �ाH शहरी म0यवग तक िसमटी ह-ई थी। 1905 म� भी नरमपंथी गोपाल कृ+ण गोखले केवल िशि?त वग के िलए ही राजनीितक अिधकार& क� मांग कर रह ेथे य&िक उनक� _ि` म� राजनीितक िवषय& क� समझ रखने के िलए िश?ा एक आव�यक शत थी। कां@ेस के अिधवेशन& क� तड़क-भड़क दखेते ही बनती थी। आमतौर पर अिधवेशन& के आयोजन& म� ही इसके संसाधन& का अिधकांश भाग खच हो जाता था।

    कां@ेस के पहले अिधवेशन म� सद=य& क� कुल संqया मा! 72 थी। इसके दसूरे स! म� यह संqया पहले स! से छह गुने से भी अिधक - कुल 434 हो गई। इसम� जनता के चनेु �ितिनिधय& ने भाग िलया। मCास म� ह-ए कां@ेस के तीसरे अिधवेशन म� �ितिनिधय& क� संqया 607 हो गई। इलाहाबाद म� कां@ेस के चौथे अिधवेशन म� इसके सद=य& क� संqया 1248 और 1889 म� बFबई म� ह-ए इसके पांचवे अिधवेशन म� यह संqया बढ़कर 1889 हो गई।

    कां@ेस के �थम अिधवेशन के अ0य? ड9लू0 सी0 बैनजI एक भारतीय ईसाई, दसूरे अिधवेशन के अ0य? दादा भाई नौरोजी एक पारसी, तीसरे अिधवेशन के अ0य? बदgQीन तैयबजी एक मसुलमान और चौथे अिधवेशन के अ0य? जॉज यूल एक अं@ेज़ थे। इन अ0य?& के चयन ने कां@ेस क� धम िनप?ता के िसJा1त म� आ=था व उसके जाितगत भेदभाव म� पणू अिव{ास को =प` कर िदया।

    सन ् 1885 से लेकर सन ् 1906 तक ए0 ओ0 मू भारतीय रा+,ीय कां@ेस के ऑनरेरी जनरल सेVेटरी बने रह।े मू कां@ेस के अिधवेशन& के सचुाg संचालन, दशे के िविभ1न नेताओ ंसे सFपक , उसके िव�ीय मामल& क� देखभाल तथा अिधवेशन& क� Mरपोट तैयार करने के दा�