धूपछ ाँव [य त्र संस्मरण भ ग 2]2 ह ऊ थ । अ उ ड...

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1 -छव [य संमरण भग 2] लसी देवी ततवरी छ लोग कह रहे थे क सपक क ाति आगरा & मथ रा मै नह रकिी क छ कह रहे थे क छ ममनट को रकिी है। दिनाक 31-8-2014 सपक क ाति ये क राय की राजधानी मै रकिी 31 अगि को ािः 5 बजे आगरा केतट पर ऱकी। ^^अरे ! अरे ! चलो उिर लेिे ह यह!^ योगेश ने हमे उसादहि ककया | सभी सकय हो गये। बचै भी जाग रहे थे। सामान बधा ह था अतनिा सामान सरकाने लगीए म खीचकर िरवाजे िक ले जाने लगी योगेश उिरने को िैयार हो रहे थे साइरन बजा और गाड़ी ने टेशन छोड़ दिया। हम सभी खीझे से एक ि सरे को िेखने लगे। रेलवे के क छ कमकचार के िबन मै आराम कर रहे थे वे भी हमार मिि करने लगे थे योगेश ने उनसे कह रखा था कति अब या हो सकिा था। ^^कोई बाि नह बेटा! मथ रा मै िैयार रह ैगे यदि गाड़ी रकी िो हम उिर लैगे! चलो ! बैठिे है ^^^ मने सामातय होने की कोमशश की। वैसे मथ रा मै टापेज नह है मािा जी आउटर पर रकिी है कभी कभी। रेल कमकचार ने जानकार ि। हम लोग प नः अपनी अपनी सीट पर बैठ गये। सामान अछी िरह जमाने लगे। िाकक जि से जि उिर सके। ^^अछा ह आ बेटा जो नह उिरे क छ न क छ अवय छ ट जािा जि बाजी मै।^^ म नह चाहिी थी कक योगेश को अपनी शाररक कमजोर का एहसास हो। हमारे भाय से सपक क ाति मथ रा टेशन से पहले आउटर पर एक हके धके के साथ रक गई। म कदठनाई से उिर पाई यकक कोच की सीदिया भ म से

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    धूप-छ ाँव[य त्र संस्मरण – भ ग 2]

    तुलसी देवी ततव री

    कुछ लोग कह रहे थे कक सम्पकक क्रान्ति आगरा & मथरुा में नह ीं रुकिी कुछ कह रहे थे कुछ ममनट को रुकिी है।

    दिनाींक – 31-8-2014

    सम्पकक क्राींति प्रत्येक राज्य की राजधानी में रुकिी 31 अगस्ि को प्रािः 5 बजे आगरा केतट पर रूकी।

    ^^अरे ! अरे ! चलो उिर लेिे हैं यह ीं!^ योगेश ने हमेँ उत्सादहि ककया | सभी सकक्रय हो गये। बच्चें भी जाग रहे थे। सामान बींधा ह था अतनिा सामान सरकान ेलगीए मैं खीींचकर िरवाजे िक ले जाने लगी योगेश उिरने को िैयार हो रहे थे कक साइरन बजा और गाड़ी ने स्टेशन छोड़ दिया। हम सभी खीझ ेसे एक िसूरे को िेखने लगे। रेलवे के कुछ कमकचार केिबन में आराम कर रहे थे वे भी हमार मिि करने लगे थे योगेश ने उनसे कह रखा था ककतिु अब क्या हो सकिा था। ^^कोई बाि नह ीं बेटा! मथरुा में िैयार रहेंगे यदि गाड़ी रुकी िो हम उिर लेंगे! चलो ! बैठिे है^।^^ मैंने सामातय होने की कोमशश की।वसैे मथरुा में स्टापेज नह ीं है मािा जी आउटर पर रुकिी है कभी कभी। रेल कमकचार ने जानकार ि ।

    हम लोग पुनः अपनी अपनी सीट पर बैठ गये। सामान अच्छी िरह जमान ेलगे। िाकक जल्ि से जल्ि उिर सके।

    ^^अच्छा हुआ बेटा जो नह ीं उिरे कुछ न कुछ अवश्य छूट जािा जल्ि बाजी में।^^ मैं नह ीं चाहिी थी कक योगेश को अपनी शार ररक कमजोर का एहसास हो।

    हमारे भाग्य से सम्पकक क्रान्ति मथरुा स्टेशन से पहले आउटर पर एक हल्के धक्के के साथ रुक गई। मैं कदठनाई से उिर पाई क्योंकक कोच की सीदियााँ भूमम से

    https://sahityasudha.com

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    बहुि ऊपर थीीं। मेरा पोिा अमन भी उिर पड़ा। शीघ्रिा से हमने सामान पकड़ाया और सभी लोग उिर पड़।े उस समय रवव रन्श्मयााँ अलसाई सी धरिी को हौले.हौले जगा रह ीं थीीं। हम गगट्ट भरे स्थान पर अपना समान ममला रहे थे। सम्पकक क्राींति तनकल चकुी थी वहााँ से। हमने सफलिा भर मुस्कराहट के साथ एक िसूरे को िेखा। ^^मााँ िुम ठीक िो हो न\ योगेश ने पूछा। ^^एकिम ठीक हूाँ अरे वाह! अमन िो बहुि होमशयार हो गया है सामान उिारने.चिाने में^^। मैंने अमन की प्रशींसा कर उसे उत्सादहि ककया। अब प्रश्न था .ककधर स ेजाकर हमें शहर का रास्िा ममलेगा\ इस उद्िेश्य स ेयोगेश चारों ओर नजरें कफरा रहे थे। कुछ स्थानीय यात्री हमारे साथ ह आउटर पर उिरे थे। उनकी सहायिा से हमें ज्ञाि हुआ कक सामने जो रास्िा लगभग 40 फुट ऊपर जाकर पक्की चौड़ी सड़क से ममल गया है वहााँ िक पहुाँचने पर श्रीक्ण जतमभूमम जाने के मलए आटो ममलिे हैं। एक िसूरे से कुछ कहे िबना हमने हाँसी.खशुी यथा शक्य सामान उठाया अतनिा ने नमन का हाथ पकड़ा एक हाथ में छोटा बैग था ह मैंने भी अपनी सामथे के अनुसार वजन उठाया और प्रािः की प्रसतिािायी बेला में लगभग िो फलाांग समिल पर चल कर ऊाँ चाई चिने लगे। अमन एक भार बैग के साथ चि रहा था योगेश भी सामन लािे हुए थे। रास्िा काफी गींिा था हमें िेख.िेखकर पैर रखना पड़ रहा था। इधर लोग तनवि् होने आिे हैं। यह िो पक्का हो गया था। स्थान भी आड़ वाला था ककनारे.ककनारे ममट्ट खुि हुई थी शायि सड़क ऊाँ ची करने के मलए तनकाल गई हो। कुछ झाड़.झींखाड़ भी थे और सबसे ज्यािा िो यह कक इधर भीड़.भाड़ नह ीं रहिी होगी। हम लोग जब सड़क पर पहुाँच े िब िक मेर साींस बेिहाशाए फूल रह थी। धड़कने बेकाबू थीीं। बच्च ेिो जैसे खेल रहें हों। वहााँ सड़क के ककनारे लोहे के गार्कर लगे हुए थे न्जस पर टेककर मैं जरा िम लेने लगी। पूछने पर पिा चला कक िाईं ओर थोड़ी िरू चलने पर चरैाहा ममलेगा। जहााँ से जतमभूमम िक जाने के मलए साधन ममल जायेंगे। हमने पदहये वाला बैग सींभाला और आराम से चरैाहे पर पहुाँच ेजो नह ीं.नह ीं में भी 500 मीटर िो था ह । वहााँ कुछ िकुाने हैं जो पत्थर इत्यादि रखकर लगाई जािी हैं। अभी िकुानिार िकुान नह ीं खोल पाये थे इसमलये हम लोग वहााँ बठै गये। एक िकुान खलु थी जहााँ से चाय खौलने पर तनकलने वाल मनमोहक सुगतध वािावर में घुल रह थी। िो चार लोग चाय की प्रिीक्षा में खड़ ेथे। पूछने पर पिा चला कक उसके पास मात्र चाय है। पत्थर पर बैठकर चाय पीने के बाि योगेश वाहन की िलाश में चौरस्िे की ओर बिे और थोड़ी िेर बाि ह एक आटो वाले से इस प्रकार घुल.ममलकर बािें करिे आये जैसे वह उनका गचर पररगचि हो। वह लींबा सा िबुला

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    पिला मल न वस्त्र पहने अपनी पुरानी आटो मलए आ पहुाँचा था। उसका नाम प्रमोि शमाक था। स्वजािीय होन ेके कार ह शायि हमारे प्रति उसकी आत्मीयिा अनायास जाग पड़ी थी। जब िक हम मथरुा में रहे प्रमोि ह हमारा आटो वाला रहा|

    उसने हमें श्रीक्ण जतमभूमम के चौराहे पर पहुाँचाया जहााँ याित्रयों की सावधानीपूवकक जााँच की जा रह थी। उससे गुजर कर हम लोग श्रीक्ण जतमभूमम मींदिर की बगल में न्स्थि अींिराकणय य धमकशाला पहुाँच।े योगेश ने सुरक्षा की दृन्णट के साथ ह मींदिर की तनकटिा का ध्यान रखकर यहााँ रहने का तनश्चय ककया। ररसेप्शन से उतहोंने हमारे मलए कमरा बुक करवाया। राधा जी का जतम दिवस एक दिन बाि ह था इसीमलए मथरुा में बड़ी भीड़ थी चूाँकक वर्ाकऋिु समान्प्ि पर थी। इसीमलए कुलर तनकाल मलए गये थे. कमरा नीं 17 में िो पलींग थे ककतिु हमें कम से कम िीन पलींग वाले कमरे की आवश्यकिा थी। कफलहाल हमने सामान खोलकर प्रािःकक्रया से तनवत््त होने के पश्चाि ्भगवान ्श्रीक्ण के मींदिर जाने की बाि सोची। मैं सबसे पहले िैयार होकर लगभग 100 फुट लींबी और पााँच फुट चौड़ी ग्रील के पास खड़ी होकर नीच ेका दृश्य िेखने लगी। पूरे बरामिे में ग्रील के नीच ेलगभग िीन फीट चौaड़ा स्लेब बनाया गया है जहााँ बैठकर जतमभूमम के सामने का पूरा दृश्य िेखा जा सकिा । आने वाले दिनों में यह स्थान हमारे मलए सबसे ज्यािा उपयोगी मसद्ध हुआ।

    श्री क्ण जतम भूमम मींदिर

    लौह तनममकि ववशाल द्वार पर शासकीय रक्षक याित्रयों की अच्छी प्रकार जााँच पड़िाल कर रहे थे। मेटल डर्टेन्क्टव से भी जााँच हो रह थी। मदहलाओीं के मलए मदहला पुमलस िैनाि थी। ववश्राम गह् के नीच ेवाले माले पर िरह.िरह की िकुानें हैं। ि वार से लगी चींपा की क्यार याित्रयों के बैठने के मलए बनायी गयी है। वह बेहि सुतिर लग रह थी। रामानुज शत्रहुन न े लव नामक िैत्य का वध कर न्जस मथरुा नगर की स्थापना की थी और मधु िैत्य के पुत्र की रक्षा की थीए उस मथरुा नगर में मैं बैठी हूाँ मुझ ेइसका ववश्वास नह ीं हो रहा था। उग्रसेन के अत्याचार पुत्र कीं स द्वारा प्रिाडड़ि जहााँ उसने अपनी मत््य ुके भय से अपन ेनवजाि भाींजों का लगािार वध ककया और जब उसे ज्ञाि हुआ कक िेवकी का आठवााँ पुत्र गोकुल में पल रहा है िब उसने सारे नवजािों को मारने की आज्ञा िे ि । यह िो है कीं स की जेल जो आज जतमभूमम के नाम से ववश्व प्रमसद्ध हो चकुा है। वह अपने महल में जरासींध की पुित्रयों के साथ तनवास करिा था कू्रर अत्याचार बाहुबमल कीं स आकाशवा ी सुनकर मत््यु से इस किर भयभीि हुआ कक नववववादहिा बहन िेवकी और अपने ह सेनापति वसिेुव जो अब उसके बहनोई थे उतहे कैि में र्ाल दिया। एक.एक कर छः पुत्रों को मौि के घाट

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    उिारिा गया ककतिु मत््यु को कोई रोक सका है जो वह रोक लेिा \ िेवकी के आठवें पुत्र के रूप में स्वयीं पारब्रम्ह परमेश्वर ने जतम मलया। कीं स सदहि सभी अत्याचाररयों का नाश करने की प्रतिज्ञा जो कर रखी है उसने।

    कैसा लगिा होगा उस सद्य प्रसूिा स्त्री को न्जसके िधू भरे स्िन कुनमुना रहे हों सींिान को स्िनपान कराने के मलए। उसे क्रोड़ में सम्हालकर अपने हृिय के तनकट रखने के मलए उसकी सार.सम्हाल करने की लालसा न्जसके हृिय में सागर की लहरों की भाींति दहलोरे ले रह हों वह दिन राि अपनी सतिान का मुख िेखिी रहना चाहिी हो और शीघ्र ह उसकी सतिान उससे छीनकर मत््यु की गहर पथर ल घाट में फें क ि जािी हो \ मैं भी मााँ हूाँ िेवकी का ििक गहरे से मेरे हृिय में उिरिा गया। अपन ेपुत्र के अविर और सुरक्षक्षि जीवन की बाि सुन सोचकर ककीं गचि िसल्ल हुई होगी परतिु धयैक की उिनी कदठन पर क्षा ! पुत्र की याि में राि दिन कैसे कटे होंगे िेवकी.वसुिेव के \ जब वे गोकुल में रहे होंगे नींि बाबा यशोिा मैया के पुत्र बनकर ! कैि में था भी क्या ऐसा न्जसमें रमकर दिन.राि कटिे चले जािे वह समय िो पल.पल करके काटा होगा उतहोंने अपने पुत्र का मुख िेख पाने की अमभलार्ा में। गग्रल के पास बैठी मैं कीं घी कर रह थी दृन्णट प्रमुख द्वार पर थी लोग झुण्र् के झुण्र् आ रहे थे सुरक्षा कमी पर क्ष करके उतहें अतिर आने िे रहे थे। उस समय एक बड़ा झुण्र् प्रववणट हुआ था िेरह से पतरह िक के ककशोर ककशोररयों का प्रमुख द्वार से प्रववणट होकर बाईं ओर बनी चम्पा की वक््षावमल की िरफ आये थे छाया में पक्के चबुिरे बने हुए हैं कुछ घींटे रुकने वाले याित्रयों के ववश्राम हेिु पररसर में पेयजल की समुगचि व्यवस्था है वे सभी लोग व्यवन्स्थि हो चबुिरों पर बैठ गये। उनके साथ उनके मशक्षक भी थे जो उतहें पींन्क्िबद्ध बैठाकर कुछ समझा रहे थे बहुि मोहक प्रिीि हुआ सब कुछ उसी समय एक गोर नार छरहरे बिन की लींबे कि वाल मदहला हाथ में आरिी की थाल मलए वहााँ आ गई। उसने सभी को आरिी दिखाई कुछ रूपये प्राप्ि ककये उसने। “जीने खाने का उपाय है यह सब^^। मन ने कहा। परतिु कफर बावला क्यों उसके पीछे भागने लगा\ उम्र होगी पचासेक वर्क कपड़ े ढींग के पहने हैं हो सकिा है मींदिर स ेसींबींगधि याित्रयों के स्वागि की कोई परींपरा हो ।नह ीं ऐसा िो नह ीं लगिा यदि ऐसा होिा िो सारे याित्रयों की आरिी उिार जािी। मींदिर के सामने िशकनागथकयों की भीड़ बििी जा रह थी। कोलाहल का स्वर मेरे कानों में पड़ रहा था भजन का स्वर भी गूाँज रहा था। ^^बेटा ! जरा जल्ि करो! लाइन लींबी होिी जा रह है। मैंने िैयार हो रहे योगेश को अवाज ि ।

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    बस थोड़ी िेर में वे 12 वर्ीय पोिे अमन के साथ बाहर आ गये। अतनिा प्राक्तिक कार से आज मींदिर नह ीं जा रह थी। हम िीनों सीदियों से उिरकर नीच ेआये ववशाल प्राींग जो पुणपों.लिाओीं से सुसन्ज्जि था पार कर िाईं ओर उस स्थान पर आये जहााँ िशकनागथकयों की लींबी पींन्क्ि थी। सरुक्षा अगधकार सारा कुछ अनुशामसि ककये हुए थे। मींदिर पररसर के प्रवेश द्वार पर सुरक्षागधकार मेटल डर्टेक्टर से ककसी अवाींतछि सामग्री की जााँच कर रहे थे। सींिुन्णट के बाि ह व्यन्क्ि वहााँ से अतिर की ओर गमन कर पा रहे थे। इस लींबी पींन्क्ि के उस पार मदहलाओीं का प्रवेश द्वार है। उस ओर अभी अगधक भीड़ भाड़ नह ीं थी। योगेश और अमन पुरुर् पींन्क्ि में खड़ ेहो गये मैं मदहला प्रवेश द्वार की ओर तनकल गई। वहााँ पक्का चबुिरा बना हुआ है जो िशकनाथी को सीधे उस छोटे से कक्ष में ले जािा है जहााँ मदहला सरुक्षा कमी मेटल डर्टेक्टर से मदहला के सवाांग की जााँच कर रह थी। मेरे पहले कुछ ह न्स्त्रयााँ थीीं शीघ्र ह मैं अपनी जााँच करवा रह थी। उतहोंने ऊपर नीच ेछूकर मेटल डर्टेक्टर से पिा लगाया कक कोई ऐसी वस्िु िो नह ीं ले जाई जा रह है जो सुरक्षा के मलए खिरनाक हो। मेर जााँच एक नई उम्र की मदहला पुमलस कर रह थी। उसने मेरा बैग मोबाइलए कैमरा सब कुछ सामने बने काउतटर में जमा करके रसीि ले लेने का आिेश दिया। मुझ े अच्छा िो नह ीं लगा ककतिु आिींकी गतिववगधयों के समाचार से मैं पूर िरह मभज्ञ थी इस वजह से सब कुछ सहन ककया। सतिुणट होने के पश्चाि ्मुझ ेपररसर में प्रवेश की अनुमति ममल गई। अतिर घुसकर मैंने पाया कक योगेश अमन वहााँ से अतयत्र जा चकेु हैं उतहोंने कहा था कक प्रवेश द्वार वाले ककनारे पर ममलना। मैं जल्ि पहुाँच गई थी वे शायि पीछे थे। मैं ककीं गचि घबराई क्योंकक मेरे पास न मोबाइल था न एक भी पैसा। भूलवश रूपये वाले बैग में मोबाइल रखकर मैंने मालखाने में जमा कर दिया था। मुझ ेन पाकर वे बहुि परेशान होंगे यह सोचकर मैं गचन्तिि हो गई और िबना िशकन ककये ह वापस वहााँ आई जहााँ पुरूर्ों की पींन्क्ि में वे खड़ ेथे परतिु मेर मुलाकाि वहााँ भी अपने बेटे और पोिे से न हो सकी। कुछ सोच ववचार कर मैं पुनः उधर गई न्जधर मदहला प्रवेश द्वार था। मैंने मालखाने से अपना बैग मााँग कर रूपये अपने साथ मलए अब िक इधर भी लींबी लाइन लग चकुी थी। लाइन में लगी लगी मैंने आसपास के वािावर पर दृन्णट र्ाल बाईं ओर बड़ा सा प्राींग था न्जसमें वक््षावमल शोभा िे रह थी। ट न की चािरों से छाया हुआ एक बड़ा सा स्थान है जहााँ अनेक मदहला.पुरूर् साध.ुसतयासी ववधवाएाँ पररत्यक्िाएाँ रहिीीं हैं सबकी एक या िो गट्ठरों वाल गह्स्थी इस समय मसमट चकुी थी पररसर के ककनारे ककनारे और्धालय अतन क्षेत्र आदि न्स्थि हैं। जहााँ से सभी के मलए भोजन प्राप्ि होिा है। स्वच्छ जल के मलए एक्वागार्क जगह.जगह लगाये गये हैं। उसी िरफ मुझ ेवह मदहला भी नजर आई जो कुछ िेर पहले मींदिर के

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    बाहर सबको आरिी दिखाकर कुछ कमाई कर रह थी। मैंने अपन ेमन में उसके प्रति न्जज्ञासा का अनुभव ककया। पूवक की भााँति ह मझु ेतनयमानुसार मींदिर प्राींग में प्रवशे ममला। अब िक िस बज चकेु थे। धपू बड़ी िीखी लग रह थी। मैंने द्वींति से स्वयीं को तनकालकर कातहा के चर ों में अपना ध्यान केन्तरि ककया। न्जतहोंने कीं स के करागह् में जतम लेकर समस्ि जीवों को मोह माया के बींधन से छूटने का सरल मींत्र दिया। कीं स के सिाये लोगों के हृिय प्रेम और सख्य भाव से भर दिये। िो ऊीं च ेप्राचीर के मध्य पक्की चौड़ी सड़क है जो ऊाँ ची होिी गई है लगभग 25- 30 फुट की ऊाँ चाई से मींदिर की सींरचना प्रारींभ होिी है। िाईं ओर ऊाँ ची.ऊाँ ची चौड़ी.चौड़ी सीदियााँ हैं। ककनारे में प्रसाि एवीं जल की एक िकुान है। बाईं ओर ववशाल प्रेक्षागह् है जहााँ कई हजार लोग एक साथ बैठकर मींच पर होिे कायकक्रम का आनींि ले सकिे हैं। पक्का और बेशकीमिी पत्थर जड़ा प्रेक्षागह् इस समय थके हुए िशकनागथकयों के ववश्राम के उपयोग में आिा दिखाई दिया। सामने ह ऊपर जाने के मलए सीदियााँ हैं मींदिर आदि की सम्पू क सींरचना ऊपर ह है नीच ेभव्य िकुानें बनी हुई हैं न्जनमें मथरुा में ममलने वाल रबड़ी रस मलाई पूजन सामग्री खखलौने सजावट की वस्िुएाँ प्रसाि आदि सजा रहिा है। यूाँ िो िाईं ओर भी िोनों ओर सीदियााँ हैं परतिु मैं सामने ह बििी गई चौड़ी सीदियों पर हरे रींग की चटाई िबछी हुई थी मैं उनसे होकर ऊपर चिने लगी। मन उस स्थान की सुतिरिा पववत्रिा में रम जाना चाहिा था ककतिु बार.बार चौक जािा था योगेश ढूि रहा होगा मेरा बेटा मुझ े ढूींि रहा होगा उसे पिा है मैं भीड़भाड़ में मागक नह ीं ढूींि पािी। मेर तनगाहें एक बार पुनः मींदिर प्राींग में घूम जािीीं। ऊपर भी बाईं ओर िकुाने लगी हुईं हैं। िाईं ओर लगभग िस.िस फुट के पेड़ पौधे फूल पते्त लगे हुए हैं। इसी की बगल में छि पर ह कबूिरों के मलए आहार स्थान बना हुआ है उस समय िो यह स्थान सूना था कबूिर िाना खाकर मींदिर.मन्स्जि की छिों पर जहााँ जरा सा पैर टेकने का स्थान ममले बैठे थे। सामने ह कटरा केशव िेव का नया बना मींदिर अपनी दिव्यिा एवीं पववत्रिा के साथ भक्िों का स्वागि करिा सा प्रिीि हो रहा था। मींदिर के अतिर से झाींझ मींजीरे ढोलक के साथ भजन की िाल पर नत््य की ध्वतन क कगोचर हुई। बस मैं अपना वजूि भूल गई। कहााँ की हूाँ कहााँ से आई हूाँ। नाम पिा कुछ भी याि न रहा। बिकर केशव के िशकन करना चाहिी थी ककति ु लींबी पींन्क्ि ने मुझ े मयाकदिि कर दिया। मैं लाइन में लग गई। मींदिर के ववशाल द्वार पर दृन्णट र्ाल िो पत्थर पर मलखी इबारिों ने मुझ ेअपने शब्ि जाल में उलझा मलया .

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    मींदिर का तनमाक श्री रामक्ण र्ालममयााँ ने अपनी मािा जडड़या िेवी की स्मत्ि में कराया। बाल ववग्रह की प्रा प्रतिणठा सम्वि 2014 में आर्ाि शुक्ल द्वविीया को हुई। इनका प्रथम पजून श्रीक्ण जतमाणटमी सम्वि ्2015 को गीिा प्रसे गोरख पुर से प्रकामशि कल्या के यशस्वी सम्पािक श्री हनुमान ् प्रसाि पोद्िार जी के कर कमलों द्वारा सम्पतन हुआ। अच्छा लगा पिकर आज के समय जब बहुि से लोग मािा को िो रोट िेने से किरािे हैं र्ालममयााँ जी ने एक बड़ी रकम व्यय कर मािा की स्मत्ि को लोक में गचरस्थायी बनाने का प्रयास ककया। अब मैं ऐसे स्थान पर थी जहााँ से श्री ववग्रहों के िशकन सुलभ थे। सबसे ऊपर केशविेव िादहनी िरफ राधे क्ण बाईं ओर नटवर क्ण िोनों ओर लड्रू् गोपाल ववराज रहे हैं। आज केशव िेव जी महराज सुग्गा पींखी व क के वस्त्र पहने अव कनीय सुर्मा से भक्िों को सम्मोदहि कर रहे थे। पुजार गद्ि बैठे बैठे भक्िों को पींचामि् प्रिान कर रहे थे। श्री ववग्रह का िशकन करिे हुए मैं तनणप्रभ खड़ी थी। पीछे के भक्िों ने मुझ ेआगे बिने के मलए प्रेररि ककया “वाह ! प्रभु ये वस्त्रों की शोभा गहनों की द्युति बााँसुर का स्वर भक्िों का भाव ववभोर नत््य मौज िो आपकी ह है। मन भाव मग्न हो रहा था। लग रहा था लल्ला को आगे बिकर गोि में उठा लूाँ। द्वापर में की गई शरारिों की याि दिला िूाँ। क्या पिा मैं भी कोई गोपी रह होऊीं । बहुि ऊीं चा सोच मलया मेरे ऐसे भाग्य कहााँ \ मैं िो इस ब्रज की रज होिी िो भी मेरा सौभाग्य था कुछ िो होना था कातहा जब िुम इस धरिी पर आये थे सारा प्यार राधा के मलए िुलसी की ओर एक बार मुस्करा कर िेखा भी नह ीं नह ीं नह ीं यह िो िुम पर आरोप है। िुमने िो स्वयीं अपन ेश्री मुख से कहा था कक िुलसी के िबना मेरा भोग नह ीं लगेगा। जलींधर पत्नी वत्िा के सौंियक में कुछ और ह बाि थी। उसके समान नाम होना ह बहुि है मन बहलाने के मलए। कुछ भक्ि ढोलकए हारमोतनयम बजा रहे थे एक ग्रामी मदहला घूाँघट र्ाले नाच रह थी झूम.झूमकर लहरा लहरा कर मचल कर& ^^ कतहैया िेर मुरल बैरन भई कतहैया िेर मुरल बैरन भई। रोवि बालक चलु्हे पर िोहनी मुरल की धनु सुतन भागी आई गचतिा छूदट गयी िेर मुरल बैरन भई।^^ वैसी ह िान सुना िेिे मोहन सार सुध.बुध ववकार ररश्िे नािे पि प्रतिणठा भूल कर ककसी के कुछ कहने सुनने की परवाह ककये िबना िेरे पास िौड़ी आिी। पिा नह ीं मैं प्राथकना कर रह थी या अपनी पीड़ा बयान कर रह थी कुछ समझ नह ीं आया। अतय भक्िों ने भाव लोक से खीींचकर धरिी पर ला पटका मुझ।े ^^चलो बैन जी हम भी लगे हैं वपच्छे।^^ मैं बाहर आ गई।

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    िरवाजे से तनकलने पर बाईं ओर गगररराज मींदिर है। सामने सीदियों के बाि गैलर है जहााँ से हम उस गभकगह् में पहुाँच सकिे हैं जहााँ िणुटों के अत्याचारों से सज्जनों की रक्षा करने वाले िीन लोक के स्वामी ने नर िन धार ककया था। मेरे दिल की धड़कने बि गईं। कैसा होगा कीं स का बति गह् \ हर चटाई पर चलिे हुए मैं गमलयारे में पहुाँची सुरक्षागधकार सिकक िा से अपना किकव्य तनभा रहे थे। सीि के पास ह सूचना फलक लगा हुआ है न्जस पर मींदिर से सींबींगधि महत्वपू क जानकाररयााँ अींककि हैं। आििन मेर दृन्णट वहााँ ठहर गई। इस िरफ अगधक भीड़ नह ीं थी परति ुपतरह.बीस लोग िो आगे रहे ह होंगे। अिः पींन्क्ि में लगने के समय का सिपुयोग होने लगा। मध ुमहाराज के हाथ स ेछीन कर आयों ने उस ेनगर का रूप दिया। इसका केतर भूिेश्वर मींदिर था बौद्ध स्मारकों से समद््ध मथरुा नगर के सींबींध में ग्राउज कतनींघम आदि पाश्चात्य पुरावेत्ताओीं का अमभमि है कक केशव भगवान का प्राचीन मींदिर यह ीं रहा होगा जहााँ आज जतमभूमम स्थान माना जािा है। ग्रीक लेखक दटलनी ने इसे न्क्लसोबोरा कहा वस्िुिः यह केशोपुरा ह है। अतय ववद्वानों के मिानुसार भी आज जहााँ जतमभूमम मींदिर न्स्थि है वह ीं जतमभूमम है। मथरुा के पुराित्व सींग्रहालय के भूिपूवक अध्यक्ष स्वगीय र्ाक़टर वासुिेवशर अग्रवाल ने अपने गतवरे् ापू क तनबींध में कटरा केशविेव को ह पुरािन क्ण जतमभूमम तनरूवपि ककया है। इस स्थान से लगा हुआ पोिा अथवा पौत्र कुण्र् नामक ववशाल सरोवर भी इसका साक्षी है। पुराित्व ववभाग की खोजों एवीं वविेशी याित्रयों के व कन से इस बाि का पिा चलिा है कक यहााँ समय समय पर ववशाल मींदिर बनें। अत्यींि कणट के साथ मलखना पड़ रहा है कक वविेशी आक्रातिाऑ ने बार.बार उनका ववध्वींश ककया। एक भी प्राचीन मींदिर सुरक्षक्षि नह ीं रह सका। यूाँ िो लोक प्रचमलि मातयिा के अनुसार सवकप्रथम श्रीक्ण के प्रपौत्र बज्रनाभ ने अपने कुलिेविा की याि में यहााँ एक मींदिर बनवाया। सबसे पुराना मशलालेख अब िक क्षत्रप र्ोर्स के समय ईस्वी पूवक 80 &57 का ममला है इसकी मलवप ब्राम्ह है शोर्स के राज्यकाल में वसु नामक व्यन्क्ि ने श्रीक्ण जतमस्थान पर मींदिर िोर .द्वार और वेदिका का तनमाक कराया था। ित्पश्चाि ् 400 ईस्वी के आसपास सम्राट ववक्रमादित्य के समय में हुआ उस समय मथरुा साींस्क्तिकए सादहन्त्यक गतिववगधयों की केतर बनी हुई थी। यहााँ दहति ूधमक के साथ ह बौद्ध धमक उत्कर्क पर था। बौद्धों एवीं जैतनयों के ववहार भी प्रचरु सींख्या में पाये गये हैं। सभी धमों में आपसी सामींजस्य की भावना थी।

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    सम्राट चतरगुप्ि द्वारा तनममकि इस भव्य मींदिर का ववध्वींश करिे हुए महमूि गजनवी ने सन ्1017 में इसे पूर िरह लूट मलया। उसके मीर मुतशी अल ्उिवी न ेिार खे याममनी नामक पुस्िक में इस प्रकार मलखा है . शहर के बीचों बीच एक बहुि बड़ा भव्य मींदिर था। न्जसे लोग िेवििूों की कार गर कहिे थे। उसका बयान लब्जों या िस्वीरों में नह ीं हो सकिा। उसे िेखकर महमूि गजनवी ने स्वयीं कहा था .^^ ऐसे मींदिर के तनमाक में िस करोड़ दिनार सोने के मसक्के और 200 वर्क का समय लग जायेगा। चाहे ककिने ह अनुभवी कार गर क्यों न बना रहे हों।^^ इस प्यारे से मींदिर को िोड़िे हुए महमूि को जरा भी पीड़ा नह ीं हुई क्योंकक वह इसे िोड़ना अपने धमक की सेवा समझ रहा था। सम्वि ्1207 में ित्कामलन मथरुा के महाराज ववजयपाल िेव के राज्य में जज्ल नामक एक व्यन्क्ि ने श्रीक्ण जतम स्थान पर पुनः एक भव्य मींदिर का तनमाक कराया। इसका आलेख कटरा केशविेव से प्राप्ि एक मशलालेख में हुआ है। सम्वि 1515 में चिैतय महाप्रभु यहााँ आये थे। यहााँ के वािावर से प्रभाववि होकर प्रेमावेश में व ेनत््य कर उठे थे। इस सुतिर मींदिर को मसकतिर लोि ने 16 वीीं शिाब्ि में िोड़.फोड़कर नणट कर दिया। इन बािों को यािकर मेरा मन क्षुब्ध हो उठा। वह कैसा धमक है जो िसूरे धमक को नणट करने में अपनी ववजय समझिा है \ अशोक की अदहींसा नीति का ऐसा परर ाम होगा यह िो उतहोंने कभी सोचा ह नह ीं होगा। इस घटना के 125 वर्क पश्चाि ् जहााँगीर के शासन काल में ओरछा नरेश वीरमसींह िेव बुतिेले ने उसी स्थान पर िैंिीस लाख रूपये की लागि से लगभग 250 कफट ऊाँ चा एक अतय भव्य मींदिर बनवाया। सुरक्षा की दृन्णट से उसे ऊाँ च ेप्राचीर से तघरवा दिया। उसका कुछ भाग आज िक बचा हुआ है। ि वार के िक्षक्ष ी पन्श्चमी कुाँ ए पर स्िींभ भी है पानी इिना ऊाँ चा उठाकर मींदिर प्राींग में फव्वारे चलाये जाि ेथे। ककिना जोशीला प्रयास था वीरमसींह िेव बुतिेले का। सोचिे.सोचिे मैं मााँ अणटभुजा के सम्मुख खड़ी थी। इस समय रेशमी पिाक एक ओर मसमटा था। भक्िग करबद्ध हो मााँ के ममत्व की वर्ाक में भीींग रहे थे। मैं िो पू करुपे उनकी िलुार बेट हूाँ। जब भी सींसार की व्यागधयााँ मुझे परास्ि करने पर उिारू होिी हैं आाँखों में मशकायि भर वेिना लेकर उनकी ओर िेखिी हूाँ “मााँ! िुम्हारे रहिे िुम्हार पुत्री की यह हालि!^^ वे मुझ ेअदृश्य शन्क्ि से आवेन्णठि कर िेिी हैं। या िो मैं उस युद्ध में ववजयी होिी हूाँ या हार स्वीकार करने की शन्क्ि से भर पूर अनुभव करिी हूाँ। मााँ की आठ भुजाओ वाल दिव्य मूति क के िशकन से मैं भाव ववह्वल हो गई। आाँखों में आाँसू भरकर कहा “मााँ! मुझ ेअपने अींक में लेकर मेरे मसर पर हाथ फेर िो! मुझ ेगले लगा लो मााँ! िुम्हार यह अज्ञानी बेट िुम्हारे अतिररक्ि ककसकी शर में जाये मााँ \^^

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    लाल गोटेिार चनुर सोने का मुकुट बड़ी सी नथ सवाांग आभूर् ों अथवा अस्त्र.शस्त्रों से सुशोमभि और वरि हस्ि मींिन्स्मि माीं का मोहक रूप हृिय में बसाये मींत्र मुग्धावस्था में ह मैंने वह गमलयारा पार ककया न्जसका द्वार लोहे का है। ि वारों पर भी लगिा है लोहे की चद्िरें मि हुईं हैं। ऊपर की ि वारें लाल पत्थर की हैं। पत्थरों को आयिाकार काटा गया है मैं गमलयारा पारकर गभकगह् में आ गयी थी एक ऊाँ च ेमसींहासन जैसे चबुिरे पर बहुि सारे ववग्रह सजाये गये हैं। आाँखों के साथ मन भी अटक.अटक जा रहा था िादहनी िरफ िेवकी को समझािे हुए ब्रम्हा ववण ु महेश के छायागचत्र लगे हैं। बायीीं ओर जतम के िुरति बाि के दृश्य का गचत्र है। भयभीि िेवकी शींख चक्र गिा पद्म धार भगवान ्ववण ु के आगे घुटनों के बल बैठीीं प्राथकना कर रह ीं हैं। सामने की ि वारों पर राधा क्ण के कई गचत्र स्विः तनममकि बिाये जाि ेहैं। शोधकिाकओीं के द्वारा दिये गये तनणकर्ों के आधार पर इसी श्रीक्ण चबूिरे पर आज से 5257 ईस्वी पूवक उन जगिाधार का प्राकट्य हुआ था न्जतहोंने िणुटों के ववनाश के समय नािे.ररश्िों की िरफ ध्यान नह ीं दिया। अनेक पुराित्वीय अवशरे् ब्रम्हमलवप में मलखे प्राचीन मशलालेख इन िथ्यों की पुन्णट करिे हैं। मैं उस पववत्र चबूिरे के समक्ष मींत्रमुग्ध खड़ी रह गई थी। वहााँ की पववत्रिा साींसों के द्वारा मेरे नस.नस में प्रवादहि होने लगी थी। इन मोट .मोट ि वारों से तघरे इस स्थान पर नजरबींि िेवकी वसुिेव ने कैसे अपना समय व्यिीि ककया होगा \ न्जनके हाथ से नवजाि सींिान को छीनकर मत््य ुके घाट उिार दिया जािा रहा होगा\ वे ककस मन से पुनः सींिति प्रान्प्ि का यत्न करिे होंगे। टैवतनकयर ने मलखा है . ^^कैसा अद्भुि तनमाक कराया था वीर मसींहिेव बुतिेले ने। बनारस के बाि सबसे प्रमसद्ध यह मींदिर लाल रींग के पत्थरों से बना अठपहलवा था। पत्थरों पर की गई नक्काशी के कार अत्यींि सुशोमभि हो रहा था। ववशाल चबुिरे पर आधे में जगमोहन और बीच में मींर्प बना हुआ था। अनेक िरवाजे खखड़ककयों के कार हवािार था। समिल पर होने के पश्चाि ् भी 10 बारह मील िरू से ह दिखाई िेने लगिा था क्योंकक इसकी ऊाँ चाई बहुि अगधक थी। इटेमलयन यात्री मनूची की मलखी पींन्क्ियााँ स्मत्ि पटल पर गुिगुि करने लगी। ^^केशविेव मींदिर का स्व ाकच्छादिि मशखर 36 मील िरू आगरा िक स्पणट दृन्णटगोचर होिा था। बािशाह औरींगजेब के हृिय पर साींप लोट जाया करिा था जब ि पावल की राि इस मींदिर की ि पमामलका वह िेखा करिा था उसने अपने तघनौने मनसूबों को 1669 में उस मींदिर को िोड़कर पू क ककया। आक्रातिाओीं के जुल्म से भारिीय जनिा पशुवि ् जीवन जीने को वववश थी दहतिसु्िानी राजाओीं के िलन के मलए परान्जि राज्य के युवकों को सेना में भरिी

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    ककया जािा था। मदहलाओीं की न्स्थति िो पशु से भी बििर थी जो जीििा उसी के हरम में ठूस ि जािी गायए भैंस की िरह उनका शार ररक शोर् िो बहुि साधार सी बाि होिी थी। मींदिर को िोड़ने वाले लोग भी दहति ूह होिे थे जो आका के भय अथवा वफािार तनभािे हुए उनकी आज्ञा का पालन करिे थे। इस मींदिर को िोड़न ेवाला गुलाम एक चिुर दहति ूथा जब उसने िेखा कक श्रीक्ण जतमभूमम वाला चबुिरा िोड़कर बािशाह वह ीं मन्स्जि बनाने की आज्ञा िे रहा है िब बड़ी ववनय स ेबोला& ^हुज़ूर ! यहााँ वह नापाक बुि खाना था इसीमलए पाक मन्स्जि बनाना उगचि नह ीं। औरींगजेब की समझ में बाि आ गई उसने मूल स्थान छोड़कर कुसी के ह एक भाग पर उसी सामग्री से ईिगाह बनवा दिया जो अब िब सह सलामि है। इस त्रासि के पश्चाि ् एक लींबे काल िक यह स्थान खींर्हर के रूप में उपेक्षक्षि खड़ा दहतिओूीं की वववशिा और तनबकलिा की कहानी कहिा रहा। वविेशी भ्रम ाथी भी इसकी िशा िेखकर अपने मुाँह से हाय तनकलने से नह ीं रोक सकिे थे। 1803 में मथरुा िब्रदटश साम्राज्य का अींग बना िब ईस्ट इींडर्या कीं पनी ने इस ेनीलाम ककया न्जसे बनारस के ित्काल न राजा पटनीमल ने क्रय कर मलया। उनकी प्रबल इच्छा थी कक जतम स्थान पर पुनः केशविेव का मींदिर बनवाया जाय परति ुउनकी यह इच्छा पू क न हो सकी। आगे उनके वींशजों को यह स्थान उत्तरागधकार में ममलिा रहा। मथरुा के मुसलमानों ने िो बार ि वानी तयायालय में ित्कामलन स्वामी रायक्ण िास के अगधकारों को चनुौिी ि परतिु िोनों पर इलाहाबाि उच्च तयायालय ने रायक्ण िास को इस सम्पवत्त का स्वामी मानकर उतह ीं के पक्ष में फैसला दिया। महामना पींडर्ि मिन मोहन मालवीय जी जतमभूमम की ििुकशा से अत्यींि क्षुब्ध रहा करिे थे उतहोंन श्री जुगल ककशोर िबड़ला जी की आगथकक मिि से यह स्थान रायक्ण िास से मात्र 13000 रूपये में 7---2---1944 को क्रय कर मलया। यह मुकि में व्यय की गई रामश थी। इस िीथक के पुनरूत्थान का स्वप्न मालवीय जी के जीवनकाल में पू क न हो सका परतिु क्ण भक्िों को एक उद्िेश्य अवश्य ममल गया ^ ^जतमभूमम को प्राचीन मान.सम्मान दिलाने का।^^ सोचिे ववचारिे हुए मैं िसूरे द्वार से बाहर तनकल चकुी थी। जैसा कक मैंन ेपहले ह मलखा है सारा तनमाक छि पर हुआ है। मैं बाईं ओर मुड़कर आगे बि यहााँ िस पतरह फुट िक के वक््ष छि पर लगे हुए थे सींरचना िेखकर मन चककि था। इधर भी भााँति.भााँति की वस्िुओीं से सजी िकुानें हैं और उनकी ि वार से लगी खड़ी शाह ईिगाह। ऊाँ ची.ऊची ि वारों से तघर ए न्जनके ऊपर कट ले िार की बाि बनाई गई हैए उसका द्वार िसूर ओर है। मींदिर में न्जिना कोलाहल मन्स्जि में उिनी खामोशीएअल्लाह अपने बतिे की अज्ञानिा से आज िक स्िब्ध है ऐसा लगा मुझ।े स्लेट रींग के असींख्य कबूिर मन्स्जि की ि वारों से गचपके कभी चोंच से चोंच

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    जोड़कर अपनी भार्ा में कुछ वािाकलाप करिे कभी थोड़ी ऊाँ चाई िक उड़िे पुनः छाया िेखकर बैठ जािे अब मेरा मन कफर अपने पररवार की परेशानी की ओर पलटा। ^^आज िो योगेश मेर खदटया खड़ी करेगा।^^ मैंने खिु से कहा। सामने ह एक बड़ा सा हाल नजर आया। उसमें होिे भजन से आक्णट होकर मैन े उसमें प्रवेश ककया। कक्ष के मध्य में चिैतय महाप्रभु की भन्क्ि में ल न हाथ उठाकर भजन करिी हुई मूति क ववरान्जि है और चार व्यन्क्ि वैण वी वेशभरू्ा में मसरघुटाए ित्रपुण्र् तिलक श्वेि धोिी एक धोिी ऊपर ओिे हुए ढोलक झाींझ मींजीरा हारमोतनयम बजािे हुए मधरु स्वर में हरे राम हरे राम राम राम हरे.हरे हरे क्ण हरे क्ण क्ण क्ण हरे.हरे का गायन कर रहे थे। मुझ े परम ववश्रान्ति का अनुभव हुआ। कुछ िेर रुककर नाम सींकीिकन श्रव की अमभलार्ा जागि् हुई ककतिु मैंने इसे रोका। बाजू में न्स्थि भागवि ्भवन में प्रवेश का लोभ सींवर कर मैं उसी िरफ की सीदियों से नीच ेउिर आई। दटककट खखड़की और श्रीक्ण ल ला मींच से लगा हुआ गोचार ल ला िशकन झाींकी का तनमाक ककया गया है। गगर राज की िलहट में गोचार के समय श्रीक्ण बलराम की सखाओीं एवीं जल भरने आईं राधाजी के साथ की गई ल ला िेखकर मन भाव ववभोर हो उठा है। गुफा झााँकी अत्यींि सजीव बन पड़ी है। मूतिकयााँ ववद्युि चामलि हैं। श्रीक्ण ल ला स ेसींबींगधि क्षेत्रों की रज वक््ष लिाओीं जल आदि की यहााँ स्थापना की गई है न्जससे मथरुा आने वाले भक्ि श्रीक्ण ल ला का जीवींि िशकन कर पुण्य लाभ कर सकें । क्षख क द्वति के बाि मुझ े लगा हो सकिा है मेरा बेटा मेरे पोिे अमन को गुफा िशकन करा रहा हो। मैं दटककट लेकर अतिर घुसकर िशकन लाभ ले आई। लगा जैसे मैं वास्िव में द्वापर युग में यमुना के ककनारे.ककनारेए गगररराज जी की छाया में ववचर कर रह हूाँ। घर के लोग वहााँ नह ीं ममले। अिः अब मेरा हृिय पुनः व्याकुल होने लगा। जैसे गई थी वैसे ह प्राींग से बाहर आ गई। कमरे िक पहुाँचना मुन्श्कल था मैंने अपना सामान भींर्ार की खखड़की से प्राप्ि ककया और अतिराकणय य धमकशाला के बड़ ेस ेद्वार को पहचानिे हुए पुरूर् पींन्क्ि के ककनारे से अपने कमरे में पहुाँच गई। बच्च ेकमरे में मेर प्रिीक्षा कर रहे थे। उतहोंने मेर लापरवाह के प्रति चपु रहकर नाराजगी जादहर की। सुबह िोपहर की ओर बि रह थी अभी िक पेट पूजा नह ीं हुई थी। हमन ेमींदिर के पास की िकुान से हल्का.फुल्का भोजन मींगवा मलया। इस समय कमरा गमी से िप रहा था। इिना कक जी बेचनै हो रहा था। योगेश ने हमारे मलए ऊपर ह एक बड़ा कमरा ले मलया था न्जसमें कई पलींग िबछ सकिे हैं। हमारे मलए चार पलींग

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    िबस्िर सदहि ममल गया था। पींखा चल रहा था ककतिु वह भी गरम हवा उगल रहा था। हमने प्रािःकाल सुखाये गये अपने कपड़ ेउठाकर रखा।

    आज की शाम आस.पास के िशकनीय स्थलों को िेखने का कायकक्रम बनाया गया। सुबह वाले आटो चालक प्रमोि शमाक का नींबर योगेश के पास था उसे बुला मलया गया। हम लोग िीन बजे के लगभग िैयार होकर कमरे से बाहर तनकले।

    पुमलस चौकी के पास शमाक खड़ा ममल गया।

    क्रमश:

    mailto: [email protected]