me samaj shastra...5 प kय म उ×प दन य ग Û ! ग यल सह यक उ×प...

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    पा य म अ भक प स म त अ य ो ) .डॉ (.नरेश दाधीच

    कुलप त वधमान महावीर खुला व व व यालय, कोटा (राज.)

    संयोजक / सम वयक डॉ. जे. के. शमा सहायक – आचाय, अथशा वधमान महावीर खलुा व व व यालय, कोटा (राज.)

    डॉ. जे.एन. चौधर सेवा नवृ त सह- आचाय,समाजशा वभाग राज थान व व व यालय, जयपरु

    सद य 1. ो. के. एल. शमा

    सेवा नवतृ आचाय, समाजशा वभाग जवाहरलाल नेह व व व यालय, नई द ल

    2. ो. (डॉ.) यू. आर. नाहर आचाय, समाजशा वभाग जे.एन. व. व व व यालय, जोधपरु

    3. ो.(डॉ.) इ द ुमाथुर सेवा नवृ त आचाय, समाजशा वभाग राज थान व व व यालय, जयपरु

    4. डॉ. एस. एल. दोषी सेवा नवतृ सह–आचाय, समाजशा वभाग मो. ला. स.ु व व व यालय, उदयपरु

    5. डॉ. आई. पी. मोद सेवा नवतृ सह–आचाय, समाजशा वभाग राज थान व व व यालय, जयपरु

    6. डा. ( ीमती) र ता दाधीच सहायक आचाय, समाजशा वै दक क या पी.जी. महा व यालय, जयपरु

    7. डॉ. कैलाशनाथ यास सह–आचाय, समाजशा वभाग जे.एन. व. व व व यालय, जोधपरु

    8. डा. अलका शमा सहायक आचाय, समाज शा राजक य पी.जी. महा व यालय, दौसा

    स पादन एवं पाठ लेखन स पादक डॉ एस. एल. जोशी सेवा नवतृ सह–आचाय, समाजशा वभाग मो. ला. स.ु व व व यालय, उदयपरु

    लेखक इकाई सं या लेखक इकाई सं या ो. बी. के. नागला (1,2,3,4,5,9,10) डॉ. यो त सडाना

    सेवा नवतृ सहायक आचाय जे.डी.बी. म हला महा व यालय,कोटा

    (18) सेवा नवृ त आचाय, समाजशा वभाग म. द.. व व व यालय, रोहतक ो. पी.सी. जैन

    आचाय समाजशा वभाग जे.आर.एन. व यापीठ व व व यालय जयपरु(राज.)

    (7) डॉ. एन.के. भागव (6) सेवा नवृ त आचाय, समाजशा वभाग मो.ला.स.ु व व व यालय, उदयपरु

    डॉ. नमला आडवाणी (11,12,13,16) डॉ. एस. एल. दोषी (8) सेवा नवृ त सह–आचाय, समाजशा वभाग समाजशा वभाग,उदयपरु

    सेवा नवतृ सहायक आचाय, समाजशा राजक य पी.जी. महा व यालय, कोटा (राज.) ो. ह रश दोषी

    सेवा नवतृ आचाय, समाजशा वभाग वीर नमद द ण गजुरात व व व यालय, सरूत

    (14,19) डॉ. म थलेश गु ता सहायक आचाय, समाजशा बाब ू शोभाराम राजक य क या महा व यालय अलवर

    (15,17)

    अकाद मक एवं शास नक यव था ो. नरेश दाधीच

    कुलप त वधमान महावीर खलुा व व व यालय, कोटा

    ो.डॉ. बी.के.शमा नदेशक

    सकंाय वभाग

    योगे गोयल भार

    पा य साम ी उ पादन एव ं वतरण वभाग

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    पा य म उ पादन योगे गोयल

    सहायक उ पादन अ धकार ,वधमान महावीर खलुा व व व यालय, कोटा

    पुनः उ पादन – Nov 2012 ISBN No.: 13/978–81–8496–020–4 इस साम ी के कसी भी अंश को व.म.खु. व. कोटा क ल खत अनुम त के बना कसी भी प म अथवा म मयो ाफ (च मु ण) वारा या अ य पुनः तुत करने क अनुम त नह ं है | व.म.खु. व. कोटा के लये कुलस चव व.म.खु. व. कोटा (राज.) वारा मु त एवं का शत ।

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    MASO–07

    वधमान महावीर खलुा व व व यालय, कोटा अनु म णका

    भारत म समाजशा का वकास इकाई इकाई का नाम पृ ठ सं या ख ड I भारत म समाजशा का वकास : प रचय इकाई 1 भारतीय शा ीय सा ह य म समाजशा ीय अंत ि ट 7—14 इकाई 2 वत ता पवू भारत म सामाजशा का वकास 15—22 इकाई 3 वाधीन ( वत ता के प चात)् भारत म समाजशा का वकास 23—29 इकाई 4 भारत म समाजशा ीय अनसुंधान क कृ त एव ं दशाएँ 30—44 इकाई 5 भारत म समाजशा ीय अ ययन से संबि धत व भ न उपागम 45—56 ख ड II मुख भारतीय समाजशाि य का योगदान इकाई 6 राधाकमल मुकज का योगदान 57—66 इकाई 7 डी.पी. मकुज का योगदान 67—81 इकाई 8 जी.एस. घयु का योगदान 82—103 इकाई 9 ए.आर. देसाई का योगदान 104—110 इकाई 10 एम.एन. ी नवासन का योगदान 111—121 इकाई 11 लुई यम का योगदान 122—156 इकाई 12 आ े बेताई का योगदान 157—181 ख ड III भारतीय समाजशाि य के अ ययन के मुख े इकाई 13 कृषक संबधं 182—202 इकाई 14 सामािजक आ दोलन 203—220 इकाई 15 कमजोर वग 221—234 इकाई 16 म हला अ ययन 235—260 इकाई 17 प रवार, ववाह एव ंनातदेार 261—278 इकाई 18 औ यो गक स ब ध 279—292 इकाई 19 वकास अ ययन 293—314

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    इकाई 1 भारतीय शा ीय सा ह य म समाजशा ीय अ त ि ट

    इकाई क परेखा

    1.0 उ े य 1.1 तावना 1.2 ाचीन भारतीय सामािजक चतंन 1.3 भारतीय शा ीय सा ह य म समाजशा ीय अ त ि ट

    1.3.1 वै दक ह द ूदशन के वचार 1.3.2 जैन और बौ सामािजक वचार 1.3.3 म यकाल न सामािजक चतंन के आयाम

    1.4 भारत म समाजशा का वकास 1.5 साराशं 1.6 श दावल 1.7 अ यासाथ न 1.8 संदभ थं

    1.0 उ े य इस इकाई के अ ययन के प चात ्आप–

    ाचीन भारतीय सामािजक चतंन के बारे म जानकार ा त कर सकगे । भारतीय शा ीय सा ह य म समाजशा ीय अ त ि ट के बारे म जान सकगे । भारत म समाजशा के वकास क जानकार ा त कर सकगे ।

    भारत म एक व श ट वषय के प म समाजशा के ादभुाव के पवू, ाचीनकाल से लेकर उ नीसवी सद के अ त तक सामािजक वचार क धम, दशन और आचारशा का भाव है िजसक जानकार इस इकाई के अ ययन से आप ा त कर सकगे ।

    1.1 तावना आज समाजशा एक वषद समाज व ान है । समाज व ान म अथशा ,

    राजनी त शा , व ध व ान, इ तहास और समाजशा सि म लत कये जात े ह । समाजशाि य सि म लत कये जात े ह । समाजशा समूह और सामािजक संरचनाओं म अ त: याओं म होती है, उनका अ ययन करना है । आज हमारे देवड़ म समाजशा एक समृ व ान ह ।

    भारत का ला सकल यानी शा ीय सा ह य है । सा ह य हमार बु नयाद सं थाओं जैसे प रवार, जा त– बरादर , गाँव–चोपाल, धम आ द क पया त जानकार देता है । ववाह जैसी

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    सं था का तो इसम पया त वणन ह ले कन यह सब उ लेख म थक के प म, कथा–कहानी के व प म, धा मक उ सव के प म देखने को मलता है ।

    आ खर यह कला सकल या शा ीय सा ह य या है? लोक भाषा म, सं कृत सा ह य म देखा जा सकता है । बाद म चलकर सं कृत भाषा अप ंश हो गई । इसने बो लय का प ले लया और इस तरह यह सा ह य समाजशा के उ गम का ोत बन गया । इस सा ह य म प रवार, जा त, ब ध व, ववाह, गावँ आ द का ववरण तो है । ले कन इसम जो एक यवि थत व ान का व प होना चा हये, वह नह ं है । समाजशा ने इसी ला सकल सा ह य से उधार लेकर समाजशा को वक सत कया है । इस इकाई म हम यह देखगे क िजसे हम समाजशा कहत ेह, उसक जड़ या उसका उ गम भारतीय शा ीय सा ह य म है । यह शा ीय म है । यह शा ीय सा ह य सं कृत भाषा म है, लोक कथाओं म है, कहावत और अग णत मुहावर म है ।

    1.2 ाचीन भारतीय सामािजक चतंन ाचीन भारतीय सामािजक च तन के मुख ोत थे इसक धा मक कृ तया ँ िजनम

    वेद, उप नषद, सू एव ंपरुाण आ द सि म लत है । व भ न धम का उ पि त थान होने क ि ट से इसके धा मक थं म भी सामािजक च तन का वक सत व प दखाई देता है । ह द ू थं म रामायण, महाभारत एव ंभगव गीता आ द मह वपणू है । आ द पु ष, मन ु के सा ह य म भी सामािजक सं हताओं का व ततृ वणन मलता है ।

    भारत क भू म पर व भ न धम क उ पि त एव ं वकास हुआ है । ह द ूधम, बु धम, जैन धम, सख धम आ द ने दाश नक च तन के साथ–साथ सामािजक पृ ठभू म देने का भी य न कया है । इससे धम केवल परलौ कक ह नह ,ं लो कक एव ंसामािजक भी बन गया है । वै दक सा ह य म प रवार, यि त एव ंसमाज के समु चत पोषण हेत ुआव यक याओं को ह धम कहा गया है । वै दक–काल न च तन नै तकता से ओत ोत थे तथा उसम स य, दया एव ंस जनता आ द पर पया त जोर दया गया है ।

    इसी कम के स ा त के अनसुार आ मा क अन वरता का स ा त है । आ मा अमर है, वह कमी नह ंमरती वह अपना शर र बदलती रहती है । जैसे–जैसे आ मा ने कम कए उसी के अनसुार उसका व प अथवा शर र नि चत हो जाता है ।

    जा त था क सामािजक सं था भी भारतीय समाज क वशेषता है । ह द ूधम के वकास ने जा त को उ प न कर सम त ह दओंु को चार भोग म वभािजत कर दया– ा मण, य, वै य एव ंशु । इन चार के काय को भी 'मन'ु ने अपनी–अपनी ेणी के

    अनसुार प रभा षत कर दया । इसे समाज बना कसी वरोध के वीकार करता आ रहा है । इन जा तय म पर पर खान–पान, ववाह आ द के बारे म कई कार के नषेध च लत है िजनका पालन करना अ नवाय माना गया है ।

    उप नषद म मनु य जीवन को चार भाग म बांट दया गया है । थम अव था म मचार रहकर व याथ जीवन यतीत करना, दसूर अव था म ववैा हक जीवन यतीत

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    करना, तीसर अव था म वान थ लेना एव ंचौथी अ था म स यास ले लेना । दान–द णा भारतीय च तन का मुख वषय है । मो ाि त के लए दान–द णा देना आव यक माना है ले कन ऐसा करत ेहु ए कसी भी कार क फल ाि त क कामना का नषेध कया गया है ।

    ववाह स बधं था पत कर प रवार का नमाण एक धा मक काय माना गया है । बना प नी एव ंब च के यि त अपणू माना जाता है एव ंमो ाि त के यो य नह ंमाना जाता है । एक ववाह था यहा ँका आदश है । यहा ं ववाह को जीवन–भर का थायी स ब ध माना है। और धानत: यह ी के लए आव यक है । पल के मरने पर पु ष अ य ी से पनु: ववाह कर सकता है ले कन प त के मरने पर ी ऐसा नह ंकर सकती । अ त ववाह यहा ंक धान वशेषता है । अ तजातीय ववाह को पणू न ष माना गया है । ह द ू प रवार पणूत: पतसृ ता मक पतृ थानी एव ं पतवृशंीय होत ेह । पता प रवार का मु खया या कता कहलाता है । वै दक यगु म ि य को पु ष के समान अ धकार ा त थे । ले कन बाद म उन अ धकार म कमी आ गई और ि यो को दसूर पर आ त रहना पडा । बचपन म माता– पता पर, यवुाव था म प त पर एव ंवृ ाव था म ब च पर आ त होती है । उसक वतं ता के ऊपर कई कार के तब ध लगाये गये ह ।

    1.3 भारतीय शा ीय सा ह य म समाजशा ीय अ त ि ट भारतीय सामािजक चतंन पर वचार करने से यह प ट होता है क एक और तो

    व भ न े , नजृा तय , भाषा भा षय और धमावलि बय क अपनी व श टताएँ ह जो उनके चतंन म दखाई पड़ती है । दसूर और स दय के ऐ तहा सक, सामािजक, धा मक और दाश नक तथा पार प रक तथा अ तः या के बीच से व नमय तथा सम वय क या भी फु त होती रह है । इसके फल व प भारत म समान सामािजक, धा मक, आ थक, राजनी तक सं थाएं वक सत हु ई । एक थान तथा समय वशेष म वक सत होने पर धा मक तथा दाश नक वचार का समूण देश म द घका लन भाव पड़ता रहा । एक तरफ नज व व वै श य, दसूर तरफ क सम वय व स पक दोन तरह च तन पर परा भारत म दखाई देती है ।

    भारत म एक व श ट वषय के प म समाजशा के ादभुाव के पवू, ाचीन काल से लेकर उ नीसवी ंशता द तक सामािजक वचार क ल बी पर परा ह । 1920 के प चात ्ह समाजशा ीय पर परा वक सत हु ई अ यथा उसके पवू के वचार को समािजक तो कह सकत ेह, समाजशा ीय नह ं । कुछ ऐसे लेखक ऐसे ह िजनके वचार को सामािजक तथा समाजशाि य दोन के अ तरगत देख सकत ेहै । जैसे वनयकुमार सरकार, भगवानदास, केवल मोरवानी, पी.एन. भ ुबजे नाथ शील, राजाराम शा ी इ या द ।

    भारत के समाजशा ीय चतंन क पर परा को काल म से समझने म राधाकमल मुखज , डी.एन. मजूमदार, डी.पी मुखज एस. यमूा, ए.के. सरन, एफ.जी. बेल , ट .के. उ नीथान रामकृ ण मुखज , योगे संह, डी.एस. धना ,े योगेश अटल एस.पी. नागे क कृ तया ँउ लेखनीय है । (धनागरे, 1993)

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    सामािजक जीवन से स बि धत भारत के धा मक और दाश नक वचार का आ द प वेद म मलता है । वेद म आरि भक भारतीय जन –द तुओं तथा आय के पर प रक संघष और स पक, प रवार, ववाह, कमका ड, वण आ म आ द का वणन है । वै दक काल म ह भारतीय सामािजक संरचना के चार मुख तर –वण यव था, ाम समुदाय, कृ ष पर आधा रत यव था औ२ संयु त प रवार णाल क नींव पडी ।

    ाचीन भारत के सामािजक संगठन का मुख आधार वण यव था थी, ऋ वेद के पु षसू त के एक मं म वण क उ पि त का ववरण मलता है । महाभारत म वष से जा तय क उ पि त के सय म बताया गया है ।

    ार भ म वण यव था म चार वण का िज कया गया है जो इस कार है ा मण, य, वै य तथा शु । ये चार वण यि तय के यवसाय के योतक थे जो बाद म

    जा तय के प म प रव तत हो गये जो आजतक भारत म च लत है । प रवार ाचीन काल से ह प रवार को समाज क एक अ त मह वपणू सं था के प म

    वीकार कया गया है । इसक मह ता का अनभुव करत ेहु ए वै दक यगु म श ा समा त करने पर येक नातक को आचाय यह उपदेश देता था – जत त ुमा यव छे सी तैतर य उप नषद 1/11/1 अथात स तान पी त त ु व छेद मत करो ।

    भारत म िजतनी भी सामािजक सं थाएं ह उनम ह द ू ववाह वशेष उ लेखनीय है । इसका कारण यह है क उ तरवै दक यगु से ह एक ह द ूके जीवन म गहृ थ आ म को बहु त महल दया गया है । मन ुने वीकार कया है क जैसे सब वाय ुके सहारे जीत ेहै, वसेै ह सब ाणी गहृ थ आ म से जीवन धारण करत ेहै । (हु सैन, 1976, 33)

    1.3.1 वे दक ह द ूदशन के वचार

    वै दक ह द–ूदशन म सामािजक च तन का यवि थत प देखने को मलता है । वै दक सा ह य के सू म अवलोकन से पता चलता है क उस समय समाज यव था काफ उ नत थी और जीवन के आव यक मू यो पर च तन ार भ हो चुका था । साथ ह उस सामािजक यव था को बनाये रखने वाले आव यक तल पर भी गभंीरता से वचार चल रहा था । उस समय वणा म अव था यि त और समाज के जीवन को संच रत कर रह थी । यह यव था यि त और समाज के बीच सु दर सम वय का उ तम उदाहरण है ।

    धम, अथ, काम, मो चार पु षाथ जीवन के चार मुख उ े य थे' िज ह ा त करने के लए यि त य नशील रहता था और अपने यि त व का वकास करत ेहु ए समाज जीवन को उ नत बनाने के योग देता था । क को ह द ूजीवन का अि तम ल य माना गया है । वै दक सा ह य के अ ययन से पता चलता है क उस समय समाज म ि य क ि थ त उनके आ म वकास, श ा, ववाह, स प त आ द वषय म ाय: पु ष के समान थी ं। प नी के प म तो उनक ि थ त बहु त उँची थी ।

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    1.3.2 जैन और बौ सामािजक वचार

    वै दक सं कृ त धम, वण, आ म, कमका ड ब ल तथा य पर आधा रत थी । ईसा पवू छठ क सद म वण पर आधा रत सामािजक असमानता परुो हत वारा वक सत कमका ड क प त, ब ल तथा हसंा के व आवाज उठायी गयी । इनम महावीर वामी एव ंबौ धम के वतक महा मा बु का नाम मह वपणू ह ।

    इस तरह जैन और बौ धम क वचारधारा और चावाक् के भौ तकबाद दशन म वै दक पर परा से असहम त के प ट ल ण उपल ध है । बौ थं म पहला बथ ा मण नह ंबि क य है । जैन थं म वै य को े ठ तथा महाजन क सं ा द गयी है । बौ संध तथा वहार म वषा पर आधा रत यव था या जा तगत– असमानता के लए कोई थान नह ंथा । बौ धम थं म पटक, जातक, पा ल बो और सं कृत बौ थं मुख है । जातक थं म बौ का लन भारत क सामािजक. आ थक एव ंसां कृ तक यव थाओं का ववेचन मलता है । पा ल बौ और सं कृत थं म अशोक महान के समय क समाज यव था का उस समय क सामािजक एव ंसां कृ तक बशेषताओं का पता चलता है । (पी.एन. भ ु: 1954)

    जैन धम के सा ह य म मानव जीवन का ल य नवाण या मो – ा त करना बतलाया है । जैन धम का सामािजक दशन नकारा मक है जैसे 'जीव हसंा नह ंकरनी चा हए' ' ''झूठ नह ं बोलना चा हए' ''चोर नह ं करनी चा हए' आ द । इस कार जैन धम का सामािजक च तन यि त को पाप म न पड़ने देने एव ंपापर हत जीवन के लए नकारा मक नयम से स बि धत है । जैन मत के अनसुार खेती करना पाप माना जाता है य क ऐसा करने म जीव क मृ यु होने क पणू स भावना है और जो कोई ऐसा करता है वह अ छा जैनी नह ंहोता है । इस ि ट से जैन धम के अ धकतर अनयुायी यापार है । जैन धम म जा त–पा त, छुआछूत आ द के अ तर का कोई थान नह ं दया गया है ।

    बु ने एक ऐसे दशन क थापना क जो यि त म कसी अ य त शि त के नवास म व वास करता है और उस शि त का वकास करके मनु य “ नवाण” अथवा मो ा त कर सकता है । बु धम के सामािजक वचार नकारा मक न होकर सकारा मक है । इस धम म “दया” को अ य धक मह वपणू थान दया गया है और इसी को नवाण ाि त का ोत माना गया है । दयालुता के अ त र त आ म– नयं ण एव ंसंयम पर भी इसम अ धक जोर दया गया है । बु धम जा त–पा त के भेद म व वास नह ंकरता और उसक यह मा यता है क ज म एव ं यवसाय के आधार पर वग भेद करना गलत एव ंअनाव यक काय है ।

    1.3.3 म यकाल न सामािजक चतंन के आयाम

    म यकाल को हम राजपतू काल एव ंमुि लम काल दो भाग म बांट सकत ेहै । सातवी सद से बारहवी सद तक उ तर भारत म राजपतू का शासन रहा । इस समय अनेक छोटे–छोटे रा य बने जो पर पर जुडत ेरहत ेथे । इस यगु म धा मक कम का ड क वृ हु ई । उ च वग का नै तक पतन हुआ । वे वलासी जीवन जीने लगे । द ण भारत म देवदासी था का चलन हुआ । बाल ववाह एव ंजौहर का चलन था । वधवा पनु ववाह पर तब ध एव ं

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    स ती था का चलन था । यारहबी ंसद म मुह मद गोर ने द ल पर आ मण कया और पृ वीराज चौहान को हराकर मुि लम रा य क नींव डाल ।

    म यकाल न धा मक, सामािजक चतंन क धाराएँ भारत म दखाई पडती है । पहल धार के अ तगत शा ीय पर परा से भा वत संत चारक, सुधारक आ द है । इन लोग ने था पत पर पराओं को – वीकार कया । था पत और वीकृत सामािजक मयादा को

    शि तशाल करना इन संत का मुख उ े य था । दसूर धारा के अ तगत ' ह द ूधम के उन धा मक आ दोलन को सि म लत कया जा सकता है, िज ह ने जात–पात, छुवाछूत तथा परुो हत वग के वच व को चुनौती द । कनाटक के वीर शैव और असम के नव वै णव क परपरंा इसी के अ तगत आती है । बारहवी ंसद म उदभतू वीर शवै स दाय के अ धकतर महत और परुो हत गरै ा मण है ।

    म यकाल न चतंन क तीसर वचारधारा इ लाम के शा ीय प से स बि धत है । म यकाल न चतंन क चौथी धारा सश त असहम त और तरोध क है । इस वचारधारा के लोग ने ह द ूऔर इ लाम दोन धम क धा मक क रता, परुो हत क संक णता पर हार कया । इसके साथ ह उन लोग ने दोन धम के मानवीय प नगणु एके वरवाद तथा सामािजक समानता को वीकार कया । म यकाल न चतंन क पांचवी धारा उन असं य भ त एव ंक वय क है, िज ह ने सारे देश म छूआछूत, जा तगत असामनता और धा मक क रता का वरोध कया । इस काल क चतंन क अं तम धारा सूफ और फक र क थी । ये लोग इ लामक वचारधारा से भा वत थे ।

    1.4 भारत म समाजशा का वकास भारत म समाजशा के वकास क या उप नवेवद से भा वत रह है ।

    औप नवे शक शासक य आव यकताओ के म ेनजर सामािजक जीवन के अ ययन पर जोर दया गया । 1 820–50 के बीच त काल न भारत म श ा, जनसं या, धम, जा त, जनजा त, ाम और नगर क संरचना पर यापक काश डाला गया है । 19 वी ंऔर 20 वीं शता द के

    म या तर पया त मा ा म मानवजा त के अ ययन हु ए । भारतीय सामािजक संरचना का मु य आधार जा त रहा है । उप नवेश काल म जो

    टश शासन रहा ह, उससे जुडा हुआ समणू ान व तुत: मानवशा या मानवजा त अ ययन से जुडा हुआ है । जब रजले ने मारत ेके लोग पर अपनी पु तक लखी तब उ ह ने उ लेख कया क टश राज को भारत के बारे म जो भी ान था, वह उ ह ा मण से ा त हुआ था । यह ा मण ह थे िज होने वज क अवधारणा को रखा था । मतलब हुआ कम ह मनु य के ज म को नधा रत करता है । अगर अ छा कम कया तो ा मण जा त म ह अगला ज म होगा । हरबट रजले ने भारत के लोग क मनोभावना को य त करत ेहु ए कहा था क भारत क भावी जा त ा मण ह है । स पणू उप नवेशकाल म अं ेज के लये धम और जा त ववादा पद मु ेरहे ह ।

    19 वी व 20 वी शता द के आर भ म म यवग ने भारतीय समाज म सुधार और आधु नक करण के वषय म यास शु कया, अथात ्सामािजक–धा मक आ दोलन के मा यम

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    से सुधारक ने सामािजक यव था के येक उस प म प रवतन का आ ह कया, िजसम ता ककता का अभाव था, अ याय व असमानता का पटु था और जडता का बोध था । अत: समाज सुधार आ दोलन ने वशेष करके ह द ूजा तय म ाि तकार प रवतन क पहल क िजसके मा यम से सती था बाल ववाह और वधै य जैसी अमानवीय थाओं पर इन आ दोलन ने नशाना साधा तथा अधं व वास एव ंकुर तय का वरोध कया ।

    दयान द सर वती आय समाज आ दोलन के णेता थे । उ ह ने वेद क शु ता को अपनाने पर जोर दया । जा तवाद को संक णता एव ंअंध व वास को दरू करने पर बल दया । दयान द एं ल वै दक कालेज (D.A.V.) ने उ तर भारत म बड ेपमैाने पर श ा का चार–सार कया । राजाराममोहन राय ने मसमाज क थापना करके त काल न समाज क उन

    बरुाइय पर हार कया, जो यव था म वभेद, शोषण व अ याय पर आधा रत थी । इसी समय महारा के यायाधीश गो व द रानाड े ने ाथना समाज क थापना क । इ ह ने ढवाद ह दओंु का नेतृ व कया । कंूकइ राज़ाराममोहन राय ने पा चा य उदारवाद ि टकोण

    अपनाया अत: ढवाद पर पराओं एव ंआधु नकता के बीच एक वदं ार भ हो गया (उनीथान, 1965) इनके अ त र त सैयद अहमद खा,ं केशवच सेन, यो तवा फुले, नारायण गु आ द ने एक नये सां कृ तक वचैा रक आ दोलन का सू पात कया । धम के े म इन आ दोलन ने मू तपजूा का वरोध कया और कहा क धा मक कमका ड को बहु त सरल तथा सामा य बना देना चा हये । इन आ दोलन ने धा मक यापकता पर जोर दया । कसी भी सं था और था क ासं गकता को इन आ दोलन ने तक तथा ववेक क कसौट पर कसने क सलाह द ।

    1.5 सारांश येक वषय का उदय कसी वशेष प रवेश के व प और तर से जुड़ा होता है, और

    उसी प रवेश म उस वषय के मु य वचार से आकार मलता है । समाज यव था म प रवतन के साथ– वषय को भी नए आयाम मलत ेह । भारत म समाज पर नै तक वचार का भाव क समृ शाल पर परा रह है । व भ न बौ क धाराओं क ठभू म म आधु नक समाजशा का वकास हुआ, और उसक वषय व त ुका नधारण हो सका । इस संदभ म हमने भारतीय शा ीय सा ह य म समाजशा ीय अ त ि ट भारतीय व याशा (Indology) एव ं ाचीन मूलपाठ (Textual) प र े य तथा भाषायी अ ययनो के वारा क है जो ाचीन इ तहास, महाका य , धा मक ह त ल खत सा ह य आ द ोत पर आधा रत है ।

    हमने इस इकाई म ाचीन एव ंम यकाल न भारतीय शा ीय सा ह य म समाजशा ीय वचार क या या क है । ाचीन भारत म महाभारत, रामायण, म यकाल म अनभुवा त अ भलेख एव ं या ा– ववरण तथा सामािजक सुधार आ दोलन के साथ–ह –साथ औप नवे शक शासन म सामािजक अ ययन भारत म समाजशा ीय अ त ि ट के आधार रहे है ।

    1.6 श दावल भारतीय व याशा एव ं ाचीन मलू पाठ – यह ाचीन इ तहास, महाका यो धा मक ह त ल खत सा ह य आ द ोत पर आधा रत है ।

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    आय समाज क थापना दयान द सर वती ने क िजसके वारा जा तवाद क संक णता एव ंअंध व वास को दरू करने का यास कया ।

    मसमाज – क थापना राजाराम मोहन राय ने करके त काल न समाज क उन बरुाइय पर हार कया जो यव था म वभेद, शोषण ब अ याय पर आधा रत थे ।

    1.7 अ यासाथ न 1 ाचीन एव ंम यकाल न वचार म सामािजक एव ंसमाजशा ीय अ त ि ट क या या

    क िजये । 2 भारतीय शा ीय सा ह य म व भ न बौ क धाराओं वारा कस कार समाजशा ीय

    अ त ि ट का वकास हुआ । 3 ाचीन सामािजक चतंन म वै दक ह द ूदशन के वचार क या या क िजये । 4 जैन और बौ धम के सामािजक वचार कस कार समाजशा ीय है? या या क िजये । 5 भारत म समाजशा के वकास क पृ ठभू म सामािजक धा मक आ दोलन क भू मका क

    चचा क िजये ।

    1.8 संदभ ंथ 1 धनागरे, डी.एन. (1998) थी स ए ड पसपेि टब इन इं डयन सो शयोजी : रावत

    पि लकेश स, जयपरु 2 डक, ट .एम. (1991) सामािजक च तन (भाग 2), ह रयाणा सा ह य अकादमी, चडीगढ 3 दोषी, एस. एल. (2009) भारतीय सामािजक वचारक, रावत पि लकेश स, जयपरु 4 उनीथान ट .एम.के. (1965) फार ए सो शयोलॉजी इन इं डया : ेि टस हाज ऑफ इं डया,

    नई द ल 5 नागला बी.कै. (2008) हं डवन सो शयोलॉिजकल थॉट, रावत पि लकेश स, जयपरु 6 भ ुपी.एन. (1954) ह द ूसोशल आगनाइजेशन 7 सहं योगे (1973) माडनाइजेशन ऑफ इं डयन डशन : थाम सन ेस ऑफ इं डया,

    द ल

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    इकाई 2 वतं ता पवू भारत म समाजशा का वकास

    इकाई क परेखा

    2.0 उ े य 2.1 तावना 2.2 वतं ता पवू भारत म समाजशा का वकास

    2.2.1 थम चरण (1769–1900) 2.2.2 वतीय चरण (1900–1950)

    2.3 वतं ता पवू भारत म समाजशा का व व व यालय म वकास 2.3.1 कलक ता व व व यालय म समाजशा 2.3.2 ब बई व व व यालय म समाजशा 2.3.3 लखनऊ व व व यालय म समाजशा 2.3.4 द ण भारत म समाजशा

    2.4 समी ा एव ंसाराशं 2.5 अ यासाथ न 2.6 संदभ थं

    2.0 उ े य इस इकाई का मु य उ े य वतं ापवू भारत म समाजशा का वकास कैसे हुआ

    इसका यवि थत वणन देता है । इस इकाई के अ ययन के बाद आपको न न ब दओंु क प ट जानकार होगी । वतं ता पवू भारत म समाजशा का वकास कन कारण से हुआ । वतं ता पवू भारत म कस कार के अ ययन समाजशा म कये गये । वतं ता पवू भारत म समाजशा का वकास व व व यालय म कैसे हुआ?

    2.1 तावना समाजशा का ज म यरूोप म 19 वी शता द म हुआ । औ यो गक ां त और ांस

    क ां त ने समाज क धारणा के बारे म लोग को सोचने क ेरणा द । समानता, वतं ता और बधंु व क धारणा से आम आदमी भी प र चत हो गया । इसके साथ न केवल औ यो गक ां त ह हु ई । लाक म लन बि तया ंबढ़ और कारखाने के कामगार का जीवन वपर त प

    से भा वत हुआ । उनके पर परागत यवसाय समा त हो गए । औ यो गकरण नगर करण और पूँजीवाद ने समाज क नई संरचना तो बनाई क त ुयह संरचना अपने दु प रणाम से बच न सक । अत: नई सिृजत प रि थ तय को समझना भी अवयशक हो गया और इ ह ने समाजशा के वषय के आ वभाव को अ नवाय बना दया, िजनके अधीन इनका अवि थत

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    अ ययन हो सके । इसका मु य ल य समाज के ऐसे नमाण से था जो उ योग के दु प रणाम से मु त हो ।

    िजन स ा तवे ताओ ने समाज क उपरो त सम याओं के बारे म पहल करके यवि थत प से वचार कया, उ ह समाजशा का सं थापक जनक माना जाता है । इस नाते अग त कोट, हरबट पे सर, ईमान दखु म, काल मा स और मे स वेबर को बना कसी ववाद के सं थापक जनक माना जाता है और समाजशा क उ पि त के बारे म इनका चतंन समय क कसौट पर खरा उतरा है । इन सं थापक ने समाजशा को प रभा षत करने का यास कया है । इसक कृ त का व लेषण कया है और इसक वषय व त ुके अ ययन के लए सामािजक घटना और प तशा आधार भी तुत कए । य द समाज एक वा त वकता है तो वै ा नक व ध से ह इसका अ ययन कया जाना चा हए । इस संदभ म वतं ता पवू भारत म समाजशा का वकास कैसे हुआ, इसका अ ययन हम इस इकाई म

    करगे ।

    2.2 वतं ता पूव भारत म समाजशा का वकास वतं ता पवू भारत म समाजशा का वकास को दो चरण म वभािजत कया जा

    सकता है । थम चरण 1789–1900 िजसम अं ेज ने अपने शासन म भारतीय समाज को समझने के लसे व वान समाजशा ीय अ ययन के लये े रत कया । दसूरे चरण म 1900–1950 म समाजशा क उ पि त एक वषय के प म हु ई तथा कॉलेज छ व व व यालयो म समाजशा का अ यापन एव ंअनसुंधान कया जाने लगा ।

    इ ह ंचरण को एम.एन. ी नवास 1973 ने अपने एक पखं म 1773 से 1900 तक के काल को भारतीय मानवशा के साथ–साथ समाजशा का ारि भक काल माना है ले कन समाजशा के वकास के इस थम कालख ड को सह मायने म समाजशा का ारं भक काल नह ंमाना जा सकता है । इसके असहम त के दो कारण है – 1 जब समाजशा एक वषय के प म 19 वी सद के उ तरा म ांस म ज म दया है तो भारत म इसका उ गम 16 थी सद म खोजना अवै ा नक है । 2 19 वीं सद तक भारतीय समाज और सं कृ त पर िजतने भी काम कये गये ह वे समाजशा ीय ि टकोण से ब कुल ह गरै समाजशा ीय थे वे तमाम मु य प से इ तहास, धमशा ीय सा ह य एव ंनजृा त व ान वे अंग थे । समाजशा क थापना भारत म 20 द सद के ार भ म हु ई है िजसे एम.एन. ीनवास ने समाजशा के वकास का दवतीय काल ख ड (1900–1950) माना है । सह मायने म दवतीय काल ख ड ह समाजशा के वकास का थम काल ख ड ह था। समाजशा के े म मानवशाि य का काफ बोल बाला था । फर भी हम इन दोन चरण के बारे म या या करगे िजनके बारे म व भ न व वान ने अपने वचाररखे है ।

    2.2.1 थम चरण

    इस चरण म सबसे पहले यास 1769 म हेनर बेरेल ट क देख–रेख म कया गया जो त का लन बगंाल एव ं बहार के गवनर को ासंीसी बशुान ने 1907 म मानव सेव ण

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    कया। 1916 म अपनी पु तक ह द ूमेनस. क टमस एव ंसेरे मो नज म एव ं यबू जो एक मैसरू च मशनर के सद य थे ने जा त यव था क वशेषताओं एव ं व भ न 'जा तय के यि तय के बीच अ त: याओं का वणन कया है । ए जा ा फ स टे टसकल एंड ह य टकल डसकृपसन ऑफ ह दो तान एंड ए जेसे ट कं ज के नाम से 1820 म हक म टन गजे टयर का शत हु ई िजसम भारत क जनसं या का अनमुान लगाया गया ।

    इस कार के काय ने 19 वीं सद के म य म यवि थत अ ययन के लये आधार बताया । 1871 म टश सरकार ने थम स पणू भारत क जनगणना क । इसक आव यकता कुछ सम याओं के बारे म सूचना एक त करना तथा इसका उ े य उन सम याओं को हल करता था । इनम से मु य सम याएँ अकाल, महामार , वा य इ या द से जुडी हु ई थी । इसके अलावा उन मनु य के बारे म व ततृ जानकार लेना जो सामािजक एव ंसां कृ तक प रवतन से व लन हो रहे थे । उप नवेशीय सरकार सद य िजनम मु य वलसन, र जले, बे स ल ट थसटन, ओ माले हटन इ या द के यास से जनसं या, समाज एव ंसां कृ तक जीवन के बारे म सचूना का जनगणना एक मह वपणू ोत बना ।

    टश बधंक ने जनमानस के जीवन शलै को समझने के लये भारतीय शा ीय सा ह य को समझने क िज ासा ने भी मानवशा ीय एव ंसमाजशा ीय अ ययन म च दखाई । इन ब धको ने धा मक यवहार , र त– रवाज एव ंकाननू संबधंी मसल को सुलझाने म सं कृत एव ंअरे बक व वानो क सहायता यायधीश को दान क । 1176 म टश यायधीश के लये सं कृत वदवान क सहायता से एक अं ेजी मे ह द ूलॉ पर एक पु तक

    तैयार क गई । बगंाल क रायल ए शया टक सोसायट के सं थापक अ य वलयन जो स क सं कृत म खास च थी । उनका सोसायट ऑफ बगंाल 1784 के लए सं कृत एव ंअरे बक सा ह य के अ ययन के आधार पर लेख का शत करना था । 19 वी ंसद म मे समलूर एव ंजमन व वान ने कई भारतीय शा ीय ' सा ह य का जमन म अनवुाद कया । िजनका बाद म अं ेजी म भी अनवुाद कया गया । इस कार के सा ह य का 19 वीं सद के अि तम दशक के व वान ने अपने अ ययन म योग कया । उदाहरण के तौर पर, अपनी दो पु तक मे हैनर मेन ने, एन शये ट ल तथा वलेज क यू न टज इन द इ ट एंड बे ट 1871 पु तक म भारत पर कये गये अ ययन म उपरो त कहे गये सा ह य का िज कया । वे भारत भी आये । काल मा स एव मे स वेबर के अ ययन समाजशा के वकास म मह वपणू है उनम भी इस सा ह य के वारा भारत के बारे म सूचनाओं का उपयोग कया गया ।

    इन अ ययन के आधार पर अंगेज ने भारत म शासक के सरल संचालन म उपयोग कया । अत: भारत म शासन करने के लये, टश पदा धका रय ने भारतीय समाज एव ंसं कृ त के बारे म जानकार ा त करना आव यक समझा जो शासक के संचालन म एक सरल साधन बना । उ ह ने पूँजीप त प रवार एव ंउनके रवाज के बारे म सूचनाएँ एक त क िजनम उ ह एक त म सहायक हु ई । यह सोचा गया क थानीय समाज के नयम एव ं रवाज के अनसुार शा सत कया जाएगा तो शाि त एव ंसामंज य बना रहेगा । इसी वचार से भारत म समाजशा का उदभव हुआ ।

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    2.2.2 वतीय चरण – (1900–1950)

    ार भ से टश पदा धका रय ने भारतीय जनता के नयम , रवाज तथा जीवन शैल के अ ययन को जार रखा । ु क, शे रग थसटन, रसेज, ह शलाल इवे सन तथा अ य कई व वान से जा त एव ंजनजा तय पर थं तैयार करवाये । हर थं म भारत के व भ न समाज उनक जनसं या एव ं फैलाव का सं त ववरण था । कुछ थं म जनजा तय के जा तय म बदलाव को अं कत कया है । सर हबट रजेल ने अपनी पु तक पीपल ऑफ इं डया 1916 म सव थम जनजा त–जा त क नर तरता क चचा क । इसके साथ ह यरूोप के मानवशाि य एव ंसमाजशाि य ने 1991–1902 म गहन े य काय कया । 1906 म ड ल.ूएच. रवस ने टोडा, नल गर के चरागाह समुदाय पर एक मोनो ाफ का शत कया । उ ह ने बाद म अपने व याथ ए.आर. ाउन को अंडमान आइलै ड के े यकाय के लए भेजा। यह ाउन बाद ए.आर. रे क फ ाउन के नाम से जाना गया । ाउन ने दो वष 1906–08 अं मा नज के साथ बताये ले कन वहा ंके लोग पर मोनो ाफ 1922 म का शत हुआ । रवस को सबसे थम कलक ता मानवशा दमाग के अ य के लये चुना गया ले कन उनक मृ यु 1921 म होने के कारण दमाग का पदभार हण नह ंकर पाये । उ ह ने जो या यान कलक ता म देने के लए लखे थे उनका काशन 1924 म सो शयल आगनाइजेशन के नाम से का शत हु ए । भारतीय समाजशा म उनका भाव उनके श य मु यतया: जी.एस धुर एव ंके. पी. चटटोपा याय के काय के वाराबता रहा ।

    20 वी सद के थम दो दशक म, एल.के. अन त कृ णन अ यर एव ंएस.सी.राय का मु य योगदान रहा । अययर ने केरल के स दयन ि चन के उपयोगी सव ण के अलावा को चन एव ंमैसरू जा त एव ंजनजा त का यौरा दया । एस.सी. राय, जो पेशे से बक ल थे, ने ओराव, मु ंडा एव ं बरहारे जनजा तय का अ ययन कया । इसी काल म भारतीय व व व यालय म समाजशा एव ंसामािजक मानवशा के शै णक वषय के प म ारंभ करने के यास कये गये ।

    इसी काल म भारतीय समाज पर भारतीय एव ं वदेशी व वान ने कई मह वपणू अ ययन कये । एस. सी.राय के अलावा जे.एच. हटन एव ंजे.सी. म स ने नागा पहा ड़य क जनजा तय का व ततृ अ ययन कया । बे रयर एल वन एव ं टोन बोन यरू – हेम डॉफ ने जनजा तय क दशा म सुधार करने के लये कुछ नि चत उपागम एह तर क को सुझाये । डी.एन.मजूमदार ने उ तर एंव पि चम भारत म े य काय कये एव ं उ कृ ट काय को का शत कया । उ ह ने 1947 म इ टन ए धो ोसोिज ट शै णक प का का शत करने क

    शु आत क । इस चरण के अि तम दशक म एम.एन. ी नवास ने कुउस का अ ययन कया जो 1942 म मे रज एव ं े मल इन मैसरू के नाम से का शत हुआ ।

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    2.3 वतं तापूव भारत म समाजशा का व व व यालय म वकास भारत म समाजशा का वकास पि चमी दशन और वै ा नक परंपराओं के आपसी

    टकराव का प रणाम है, फर भी समाजशा पर भारत क अग णत आतं रक याओं का भाद भी पडा है । इन याओं म भारत वष म टश उप नवेशवाद तथा वतं गणतं क

    ि थ त भी सि म लत है । भारत वष म समाजशा के वतक क ह ंअ य व श ट शै क वभाग म कायरत थे । समाजशा का कलक ता व व व यालय के राजनी तक, आ थक और राजनी तक दशन वमा म 1988 म ारंभ हुआ। शु म इन दमाग म समाजशा के दो पच वषय के प म रखे गये । हालां क कलक ता व व व यालय म समाजशा एंव अलग वषय के प म 1976 म शु हुआ, इससे पहले समाजशा के वषय को अथशा , राजनी त शा , मानव भूगोल और मानवशा के साथ पढ़ाया जाता था । कलक ता म समाजशा के वतक दाश नक शास नक ज नाथ सील (1864–1938), अथशा वनयकुमार सरकार

    (1887–1949), मानवशा के.पी च ोपा याय (1887–1963) मानव भूगोलवे ता नमल कुमार बोस (1904 – 1972) थे ।

    2.3.1 कलक ता व व व यालय म समाजशा

    बी.एल. सील के यास से 1917 म कलक ता व व व यालय म अथशा के साथ समाजशा क पढ़ाई एक ऐि छक वषय के प म ार भ क गयी । बाद म इस वषय के साथ राधाकृ ण मुकज एंव वनयकुमार सरकार जैसे लोग जुड गये । 1921 म कलक ता व व व यालय म के.पी चटोपा याय क अ य ता म मानवशा के वभाग क थापना हु ई और 1926 म बी.एस. गहुा जैसे मानवशा ी इस वभाग आ गये । ले कन कलक ता व व व यालय म मानवशाि य के एका धकार के कारण समाजशा एक वषय के प म कभी नह ंपनप सका ।

    2.3.2 ब बई व व व यालय म समाजशा

    भारत म समाजशा क वा त वक उ पि त का इ तहास बबंई (अब मु बई) व व व यालय के कूल इकोनॉ म स से आ हुआ है । अत: 1914 म बबंई वशव व यालय म समाजशा अ यापन क शु आत हु ई । उस समय इसक पढ़ाई अथशा के साथ एक ऐि छक प के प म क गयी । वहा ँ 1919 म नाग रक शा के साथ समाजशा का संयु त वभाग था पत कया गया ओर पे टक गे डस इसके थम अ यय बने । इस कार पे टक गे डस समाजशा के सं थापक माने जात ेह । िजनक पर परा को जी.एस. घयु एंव के.एम. कपा डया जैसे लोग ने आगे बढ़ाया । पर ये लोग बु नयाद प से मानवशा ी ह थे । इनका श ण इं लै ड के मानवशा के े म ह हुआ था ।

    वष 1919 म बबंई व व व यालय म नातको तर तर पर समाजशा के साथ राजनी तकशा को जोडा जाना मह वपणू था । क त ुइससे भी मह वपणू जानकार जो बाद

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    म हु ई िजसके आधार पर यह त य काया म आया क पे टक गे डस से भी पवू यामजी–कृ ण वमा नाम के एक वतं ता सेनानी हु ए थे, जो क सामािजक ाि तकार थे । समाजशा पर लखा क वतं ता सेनानी होने के नाते उसक च भारतीय समाज को समझने और उसका व लेषण करने म थी । याम जी कृ ण वमा ने एक शोध प का नकाल िजसका नाम इं डयन सो शयोलॉिज ट रखा । यह शोध प का अ धक समय तक नह ंचल सक ।

    2.3.3 लखनऊ व व व यालय म समाजशा

    मु बई के बाद समाजशा क पढ़ाई 1921 म बी.एन.सीज के यास से लखनऊ व व व यालय म ारभ हु ई । साधाकमल मुखज इस वभाग के थम अ य बने िज ह ने अथशा एव ंसमाजशा के संयु त वभाग म समाजशा का व धवत अ ययन एव ंशोध ारंभ कया । एक वष बाद, डी.पी मुखज भी वभाग मे नयु त हु ए तथा 1928 म डी.एन

    मजमूदार क नयिु त आ दम अथ यव था क पढ़ाई के लये हु ई । लखनऊ व व व यालय के तीन खर अ यापक राधाकमल मुखज , धुत र साद मुखज तथा अवध कशोर सरन का नजी एव ं व श ट योगदान है । 1951 म समाजशा के एक वतं वभाग क थापना लखनऊ व व व यालय म हु ई जो समाजशा एंव सामािजक काय के नाम से जाना गया ।

    भारत म इन तीन के – कलक ता ब बई एव ंलखनऊ से समाजशाि य क पहल पीढ़ तैयार हु ई । इ ह ने भारत म इसके वकास के लये अ यापन और शोध दोन ह काय कये । भारत म समाजशा के े म अ यतं ति ठत नाम है एम.एन. ी नवास, के.एम. कपा ड़या इरावती कव, एस. सी. दबेु, ए.आर. देसाई, इ या द ।

    2.3.4 द ण भारत म समाजशा

    द ण भारत म, 1928 बी.एन. सीज एंव ए.फ.वा डया के यास से मैसरू व व व यालय म समाजशा क शु आत हु ई । उसी वष उ मा नया व व व यालय, हैदराबाद म समाजशा म पवू नातक क पढ़ाई ारंभ हु ई । जमनी म श ा लेने के बाद जफर हसन नु मा नया व व व यालय के समाजशा वनाग म आये । पणेू व व व यालय म इस वषय क थापना मानवशा के साथ 1938 म क गई िजसक थम अ य ा ईरावती कव हु ई । 1920 से लेकर 1950 के बीच मानवशा एव ंसमाजशा म कई व वत–शोध प काओं का काशन ार भ हुआ ।

    1917 से लेकर 1946 के बीच समाजशा का वकास एक वषय के प भारत म सभी व व व यालय म समान प से नह ंरहा और कसी प म उ साहवधक भी नह ंरहा । इस चरण म केवल ब बई समाजशा का एक के रहा । ब बई कूल भारत व एव ंनजृा त व ान का एक मले जुले ि टकोण का व प रहा । इस काल म ब बई के कई व वान का समाजशा ीय अ ययन एंव अनसुंधान म योगदान रहा । उनम से मु य के.एम. कपा डया, इराबती कव, एस. व. करनद कर एम.एन. ी नवासए ए.आर. देसाई, आई.पी देसाई, एम.एन. गोरे, डी.एन. दामले इ या द । आगे चलकर ब बई व व व यालय के छा व वान के

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    प म ति ठत हु ए और उ ह ने देश के व भ न व व व यालय म समाजशा के वभाग क थापना म यास कया और उनको वक सत कया ।

    ार भ म मानवशा समाजशा , नाग रकशा , अथशा एव ं दशनशा इ या द साथ–साथ चल रहे थे. ले कन 20 वीं सद के ारि भक वष म तमाम वषय एक दसूरे से धीरे–धीरे अलग होने लगे । मानवशा और समाजशा जो एक दसूरे से वशेष प से जुड़ा हुआ था वह भी एक दसूरे से दरू होने लगा । इसके बावजूद मानवशा ी समाजशा के वकास पर काफ भावपणू ढंग से दखल देत े रहे, िजसका अवशेष अब भी प ट प से भारतीय समाजशा म देखने मलता है ।

    2.4 समी ा एवं सारांश यरूोप म वशेषकर ांस एंव इं लै ड म समाजशा का उदय औ यो गक ां त से

    उ प न सामािजक, आ थक एह राजनै तक प रवतन के प रणाम व प हुआ, ले कन भारत म औ यो गक ां त बहु त देर से ार भ हु ई और समाजशा क उ पि त म उप नवेवाद के प रणाम व प होने वाले पि चमीकरण एंव आधु नक श ा का चार सार क मह वपणू भू मका रह ।

    यरूोपीय शासक एंव यापा रय ने अपने देश के मानवशाि य शासक एंव इ तहासकार एंव इसाई धम के चारक को भारतीय समाज म जा त– यव था, जनजा तय ामीण समुदायसंयु त प रवार, धम, सा ह य एंव सं कृ त का अ यापन करने के लये काफ ो या हत कया ता क वे भारत पर सफलतापवूक मुख कायम रख सक । इस यास म

    अ तराि य तर के भारत व या ा ये ता पदैा हु ए । इन वहान ने भारतीये समाज और सं कृ त का च तुत कया उससे ऐसा लगता है क भारत एक बहु त ह पछड़ा ाचीन, द कयानसू व च एंव ि थर स यता एव ंसं कृ त वाला देश है ।

    ारं भक पा चा य वहान क कृ तय ने बहु त सारे भारतीय को भी अपने समाज एंव सं कृ तक का अ ययन करने के लए े रत कया । भारतीय श ा जगत म एक नये कार क बौ क ां त हु ई । भारतीय श ा णाल का पाठशाला से व व व यालय तक व तार हुआ । अत: पा चा य व वान क कृ तय से काफ भारतीय लोग भा वत हु ए और एक नये बु जीवी वग का उदय हुआ । उनम से कुछ लोग ने, अ य व वान क कू तय से काफ भारतीय लोग भा वत हु ए और एक नव बु जी व वग का उदय हुआ । उनम से कुछ लोग ने अ य वषय के अलावा, भारतीय दशन, सामािजक एंव सां कृ तक वषय म वशेष च दखायी। बे लोग ाय: ाभा वक तौर पर उ चजा त एंव जमींदार प रवार से जुड ेहु ए थे । वे आ थक प से इतने स प न और सामािजक ि ट से इतने जाग क थे क भारतीय महानगर एंव इं लै ड जाकर उ च श ा ा त कर सके । ार भ म बु जी व अं ेजी शासन के समथक थे और अ ेज क मदद से भारतीय समाज म सुधार तथा अं ेजी श ा के चार सार म वशेष च लेत ेथे । उस काल के व वान को मु यत: दो भाग म बांटा जा सकता है – एक तो दे काल जो घोर रा वाद थे और दसूरे बे मा सवाद थे ।

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    2.5 अ यासाथ न 1. वतं ता पवू भारत म समाजशा का वकास कन कारण से हुआ तथा कस कार के

    अ ययन समाजशा हु ए उनक या या क िजए । 2. वतं ता पवू भारत म समाजशा का वकास व व व यालय म कैसे हुआ है? वणन

    क िजये। 3. वतं ता पवू भारत म समाजशा के वकास क या या करत ेहु ए समी ा क िजये ।

    2.6 संदभ ंथ 1 Dhangare, D.N. (1998)Themes Pesspenchves in India Sociology

    Jaipur, Rawat Publication 2 Mukharjee, Ramkrishna (1979)Sociology to Indian Sociology Bombay :

    Allied Publication 3 Nagla, B.K. (2008) Indian sociological Thought Jaipur : Rawat

    Publication 4 Singh, Yogender (1986) Indian Sociology New Delhi: Vistar Publication

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    इकाई 3 वाधीन ( वतं ता के प चात)् भारत म समाजशा का

    वकास इकाई को संरचना

    3.0 उ े य 3.1 तावना 3.2 भारत म समाजशा का वकास

    3.2.1 1970 के दशक म भारत म समाजशा का वकास 3.2.2 1980 के दशक म भारत म समाजशा ीय ि टकोण 3.2.3 1990 के दशक म भारत म समाजशा का या मक व प

    3.3 भारत म समाजशा क श ा 3.4 भारत म समाजशा ीय अनसुंधान 3.5 भारत म समाजशा ीय अनसुंधान संकट क अव था 3.6 साराशं 3.7 अ यास न 3.8 संदभ थं

    3.0 उदे य इस इकाई के अ ययन के प चात ्आप – भारत म समाजशा का वकास कैसे हुआ?

    भारत म व व व यालय और कालेज म समाजशा क श ा म वकास कतना हुआ? भारत म सामािजक अनसुंधान कैसे हो रहा है? भारत म सामािजक अनसुंधान से कस कार का संकट है?

    3.1 तावना पछले पाठ म हमने वतं ता के पवू म समाजशा के वकास क चचा क है । अब

    हम उसी चचा को वतं ता के बाद भारत म समाजशा के वकास के प म करगे । वा तव म वतं ता के बाद ह समाजशा एक वषय के प म भारत म कॉलेज और व व व यालय मे पढ़या जाने लगा । अ मता (1974) म समाजशा के वकास को तीन भाग मे वभािजत कया । थम 1917–1948 दसूरा 1947–1988 तथा तीसरा और उसके बाद थम काम क चचा हम इससे पवू पाठ म कर चुके ह िजसम यह बताया गया है क भारत म 1917 म कलक ता व व व यालय तथा 1919 म ब बई व व व यालय म समाजशा क पढ़ाई ारंभ हु ई िजसक व ततृ जानकार इससे पहले पाठ म द जा चकु है । यहा ँपर अगले काय क चचा करगे । वतं ता के प चात ्भारत म समाजशा का वकास

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    वा तव म समाजशा का वकास भारत म वतं ता के प चात ह हुआ िजसक चचा स मता म अपने लेख ''भारत म समाजशा क श ा एव ंअनसुधंान (1974) के दसूरे और तीसरे भाग म क है । उनके अनसुार पहले चरण म देश के व भ न रा य म समाजशा क पढ़ाई े य भाषाओं म क जाने लगी । कॉलेज एंव व व व यालय म पढ़ाई े ीय भाषाओं म क जाने लगी । कॉलेज एव ं व व व यालय म पढ़ाई के अ त र त केि य सरकार ने सामाज व ान शोध के लए औपचा रक संगठन क भी थापना क । इस तरह समाजशा ी दो तर पर शै णक अ त: या करने लगे । एक और पठन–पाठन का काय तो दसूर और शोध सं थाओं वारा समाज के व भ न वषय पर अनसुधंान करने लगे । इसी समय म ब बई भारतीय समाजशा ीय सं था– था पत क गई िजसके वारा सो शयोलॉिजक बलेु टन नामक शोध प का ारंभ क गई िजसम समाजशा के व भ न वषय पर लेख का शत होने लगे । िजसका आज तक समाजशा क वकास म वशेष योगदान रहा । इसके

    साथ लखनऊ कूल ने अ खल भारतीय व षक समाजशा ीय का े स करने का शुभार भ कया िजसम समाजशा ीय अ यापक –छा तथा अ य समाजशाि य को शै णक अ त: याओं का अवसर मलने लगा ।

    लगभग 1974 म समाजशा ीय अनसुधंान के वकास तीन तर पर या या क है । थम, व व व यालय म तहत ् तर पी.एच.डी. क शै णक ड ी के लये अनसुधंान कये

    गय। दसूरा, एक तरफ योजन के लये अनसुंधान ने समाजशा ीय अ ययन के शोध के वृ क । तीसरा, समाज व ान अनसुधंान के मह व को पहचानत ेहु ए अनसुधंान क सं थाओं क थापनाएँ भी इस चरण म होने लगी । अनसुधंान के वकास से रोजगार के अवसरो म भी

    वृ होने लगी । इसके साथ–साथ व व व यालयो एंव कॉलेज क सं थाओं म भी वृ हु ई । 1950

    तक समाजशा क पढ़ाई व भ न व व व यालय म क जाने लगी । इस संदभ म राव (1982 ने बात कह के इस कार है – थम, समाजशा को एक वषय के प म दजा मल गया और व भ न े सै ाि तक प से वक सत होने लगे । दसूरा समाजशा वषय के प म वतं पहचान बनी जब क इससे पवू समाजशा क पढ़ाई मनो व ान, मानवशा दशनशा सामािजक काय आ द वभाग के साथ क जाती थी । समाज क आव यकताओं को समझने के लये व भ न पा य म तैयार कये गये जैसे ामीण–नगर य समाजशा , नातेदार का समाजशा , धम का समाजशा , ान का समाजशा शान का समाजशा , आ थक समाजशा राजनै तक समाज, जनसं या, तर करण, आयु वजान का समाजशा आ द । तीसरा, इस व श ट व भ नताओं से सामािजक जीवन का समािजक जीवन का समाजशा ीय अ ययन कया जाने लगा । यह वतं भारत क बढ़ती हु ई आव यकताओं से स बि धत थे । ाचीन सा ा यवाद पीरवेश को यान म रखत ेहु ए जातां क याओं वारा तर पर लाग ूकया गया । समाजशाि य का झुकाव, गावँ, शहर एंव जनजा तय क सम याओं को समझने के लए हुआ इस पर काफ शोध कये गये िजसम मु य ामीण वकास, औ यो गकरण श ा म वकास, जनसं या नयं ण, नई राजनै तक याएँ, सामािजक राजनै तक आ दोलन आ द।

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    इन व भ न े म समाजशा ीय अनसुंधान से वकास क संरचना, ग तशीलता एंव सम याओं क जानकार हु ई । इसी आधार पर समाजशा क श ा व भ न तर पर द जाने लगी ।

    भारत म वतं ता के पवू, एक वष म समाजशा क श ा म वदेशी व वान का भाव, रहा जैसे क खासतौर से वतं ता के पवू टश समाजशाि य या मानवशाि यो का

    था । वतं ता के बाद हम अमे रकन समाजशाि य के स पक म आए और उनके स ा त का योग कया जाने लगा । उदाहरण के तौर पर पारस स एव ं मदन के संरचना मक काया मक स ा त का उपयोग कया जब क इससे पवू मे लतो क इ या द टश

    समाजशा ी एव ंमानवशा ी के सारवाद एव ं कायवाद स ा त का भाव रहा । टश एव ंअमे रका के अलावा े च, जमन के समाजशाि य ने भी भा वत कया । इसी तरह कायवाद के अलावा मा सवाद पर भी अ ययन, कया जाने लगा । इ ह ं वदेशी स ा त पर

    धीरे–धीरे भारतीय समाजशा ी आलोचनाएँ करत े हु ए इनम प रवतन एव ं भारतीय संदभ के उपागम क चचा होने लगी ।

    3.2 भारत म समाजशा का वकास

    3.2.1 1970 के दशक म भारत म समाजशा का वकास

    1970 एव ं इस�