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http://pustak.org/bs/home.php?bookid=4883&booktype=free यय यययययय यययययय ययययययय ययययय यय ययययययययय यय ययय यय यय यययययय यययय यययययय ययय ययय ययययययय ययय यय यय ययययय यय ययय यययययय ययययय यय ययय ययययय ययययय यययय ययय ययययय यययय ययय ययययय यययययय यय ययययय यययययययय यययय यय ययय- ययययययय ववववववव ववव ववव वववव ववववववववववववववव 1. यययय , ययययययय यय यययय 2. यययय - ययययय 3. यययय - ययययय 4. यय - ययययय 5. यययययय यय यययययय यययय 6. ययय 7. यययय 8. ययययययय 9. यययययय 10. यययययय 11. ययय 12. ययययय 13. यययययय - यययययय 14. ययययययययय ययययय 15. यययययययययय ययययय 16. ययययययययययययय ययययय 17. यययय - यययय 18. ययययययय

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यह पुस्तक हिहन्दी व्याकरण ज्ञान की प्रवेशि�का है। आ�ा है हिक पाठकगण इसका समुशि त लाभ उठा पायेंगे। यदिद आप इस पृष्ठ पर कोई तु्रदि+ देखें तो हमे अवश्य शिलखें ताहिक भूल सुधार करके सही ज्ञान पाठकों के समक्ष प्रस्तुत हिकया जा सके। - धन्यवाद

व्याकरण बोध तथा रचना

वि�षयानुक्रमणिणका

1. भाषा , व्याकरण और बोली 2. वण9 - हिव ार 3. �ब्द - हिव ार 4. पद - हिव ार 5. संज्ञा के हिवकारक तत्व 6. व न7. कारक8. सव9नाम9. हिव�ेषण10. हि=या11. काल12. वाच्य13. हि=या - हिव�ेषण 14. संबंधबोधक अव्यय 15. समुच्यबोधक अव्यय 16. हिवस्मयादिदबोधक अव्यय 17. �ब्द - र ना 18. प्रत्यय19. संधिध20. समास21. पद - परिर य

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22. �ब्द - ज्ञान 23. हिवराम - शि ह्न 24. वाक्य - प्रकरण 25. अ�ुद्ध वाक्यों के �ुद्ध रूप 26. मुहावरे और लोकोशिEयाँ

http://pustak.org/bs/home.php?bookid=4883&act=continue&index=1&booktype=free#1.

अध्याय 1

1.भाषा, व्याकरण और बोली

परिरभाषा- भाषा अभिभव्यशिE का एक ऐसा समर्थ9 साधन है जिजसके द्वारा मनुष्य अपने हिव ारों को दूसरों पर प्रक+ कर सकता है और दूसरों के हिव ार जाना सकता है।संसार में अनेक भाषाए ँहैं। जैसे-हिहन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी, बँगला,गुजराती,पंजाबी,उदू9, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़, फ्रैं , ीनी, जम9न इत्यादिद।

भाषा के प्रकार- भाषा दो प्रकार की होती है-1. मौखिखक भाषा।2. शिलखिखत भाषा।आमने-सामने बैठे व्यशिE परस्पर बात ीत करते हैं अर्थवा कोई व्यशिE भाषण आदिद द्वारा अपने हिव ार प्रक+ करता है तो उसे भाषा का मौखिखक रूप कहते हैं।जब व्यशिE हिकसी दूर बैठे व्यशिE को पत्र द्वारा अर्थवा पुस्तकों एवं पत्र-पहित्रकाओं में लेख द्वारा अपने हिव ार प्रक+ करता है तब उसे भाषा का शिलखिखत रूप कहते हैं।

व्याकरण

मनुष्य मौखिखक एवं शिलखिखत भाषा में अपने हिव ार प्रक+ कर सकता है और करता रहा है हिकन्तु इससे भाषा का कोई हिनभिYत एवं �ुद्ध स्वरूप स्थि[र नहीं हो सकता। भाषा के �ुद्ध और [ायी रूप को हिनभिYत करने के शिलए हिनयमबद्ध योजना की आवश्यकता होती है और उस हिनयमबद्ध योजना को हम व्याकरण कहते हैं।

परिरभाषा- व्याकरण वह �ास्त्र है जिजसके द्वारा हिकसी भी भाषा के �ब्दों और वाक्यों के �ुद्ध स्वरूपों एवं �ुद्ध प्रयोगों का हिव�द ज्ञान कराया जाता है।भाषा और व्याकरण का संबंध- कोई भी मनुष्य �ुद्ध भाषा का पूण9 ज्ञान व्याकरण के हिबना प्राप्त नहीं कर

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सकता। अतः भाषा और व्याकरण का घहिनष्ठ संबंध हैं वह भाषा में उच्चारण, �ब्द-प्रयोग, वाक्य-गठन तर्था अर्थa के प्रयोग के रूप को हिनभिYत करता है।

व्याकरण के हिवभाग- व्याकरण के ार अंग हिनधा9रिरत हिकये गये हैं-1. वण9-हिव ार।2. �ब्द-हिव ार।3. पद-हिव ार।4. वाक्य हिव ार।

बोली

भाषा का के्षत्रीय रूप बोली कहलाता है। अर्था9त् दे� के हिवभिभन्न भागों में बोली जाने वाली भाषा बोली कहलाती है और हिकसी भी के्षत्रीय बोली का शिलखिखत रूप में स्थि[र साहिहत्य वहाँ की भाषा कहलाता है।

शिलहिप

हिकसी भी भाषा के शिलखने की हिवधिध को ‘शिलहिप’ कहते हैं। हिहन्दी और संस्कृत भाषा की शिलहिप का नाम देवनागरी है। अंग्रेजी भाषा की शिलहिप ‘रोमन’, उदू9 भाषा की शिलहिप फारसी, और पंजाबी भाषा की शिलहिप गुरुमुखी है।

साहिहत्य

ज्ञान-राशि� का संशि त को� ही साहिहत्य है। साहिहत्य ही हिकसी भी दे�, जाहित और वग9 को जीवंत रखने का- उसके अतीत रूपों को द�ा9ने का एकमात्र साक्ष्य होता है। यह मानव की अनुभूहित के हिवभिभन्न पक्षों को स्पष्ट करता है और पाठकों एवं श्रोताओं के हृदय में एक अलौहिकक अहिनव9 नीय आनंद की अनुभूहित उत्पन्न करता है।

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अध्याय 2

�ण�-वि�चार

परिरभाषा-हिहन्दी भाषा में प्रयुE सबसे छो+ी ध्वहिन वण9 कहलाती है। जैसे-अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, क्, ख् आदिद।

�ण�माला

वणa के समुदाय को ही वण9माला कहते हैं। हिहन्दी वण9माला में 44 वण9 हैं। उच्चारण और प्रयोग के आधार पर हिहन्दी वण9माला के दो भेद हिकए गए हैं-

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1. स्वर2. वं्यजन

स्�र

जिजन वणa का उच्चारण स्वतंत्र रूप से होता हो और जो वं्यजनों के उच्चारण में सहायक हों वे स्वर कहलाते है। ये संख्या में ग्यारह हैं-अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ।

उच्चारण के समय की दृधिष्ट से स्वर के तीन भेद हिकए गए हैं-1. ह्रस्व स्वर।2. दीघ9 स्वर।3. प्लुत स्वर।

1. ह्रस्� स्�र

जिजन स्वरों के उच्चारण में कम-से-कम समय लगता हैं उन्हें ह्रस्व स्वर कहते हैं। ये ार हैं- अ, इ, उ, ऋ। इन्हें मूल स्वर भी कहते हैं।

2. दीर्घ� स्�र

जिजन स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वरों से दुगुना समय लगता है उन्हें दीघ9 स्वर कहते हैं। ये हिहन्दी में सात हैं- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ।हिव�ेष- दीघ9 स्वरों को ह्रस्व स्वरों का दीघ9 रूप नहीं समझना ाहिहए। यहाँ दीघ9 �ब्द का प्रयोग उच्चारण में लगने वाले समय को आधार मानकर हिकया गया है।

3. प्लुत स्�र

जिजन स्वरों के उच्चारण में दीघ9 स्वरों से भी अधिधक समय लगता है उन्हें प्लुत स्वर कहते हैं। प्रायः इनका प्रयोग दूर से बुलाने में हिकया जाता है।

मात्राएँ

स्वरों के बदले हुए स्वरूप को मात्रा कहते हैं स्वरों की मात्राए ँहिनम्नशिलखिखत हैं-स्वर मात्राए ँ�ब्दअ × कमआ ाा कामइ िा हिकसलयई ाी खीरउ ाु गुलाबऊ ाू भूल

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ऋ ाृ तृणए ाे के�ऐ ाै हैओ ाो ोरऔ ाौ ौख+अ वण9 (स्वर) की कोई मात्रा नहीं होती। वं्यजनों का अपना स्वरूप हिनम्नशिलखिखत हैं-क् ् छ् ज ्झ् त् र््थ ध् आदिद।अ लगने पर वं्यजनों के नी े का (हल) शि ह्न ह+ जाता है। तब ये इस प्रकार शिलखे जाते हैं-क छ ज झ त र्थ ध आदिद।

वं्यजन

जिजन वणa के पूण9 उच्चारण के शिलए स्वरों की सहायता ली जाती है वे वं्यजन कहलाते हैं। अर्था9त वं्यजन हिबना स्वरों की सहायता के बोले ही नहीं जा सकते। ये संख्या में 33 हैं। इसके हिनम्नशिलखिखत तीन भेद हैं-1. स्प�92. अंतः[3. ऊष्म

1. स्पर्श�

इन्हें पाँ वगa में रखा गया है और हर वग9 में पाँ -पाँ वं्यजन हैं। हर वग9 का नाम पहले वग9 के अनुसार रखा गया है जैसे-कवग9- क् ख् ग् घ् ड़् वग9- ् छ् ज ्झ् ञ्+वग9- +् ठ् ड् ढ् ण् (ड़् ढ़्)तवग9- त् र््थ द ्ध् न्पवग9- प् फ् ब् भ् म्

2. अंतःस्थ

ये हिनम्नशिलखिखत ार हैं-य् र् ल् व्

3. ऊष्म

ये हिनम्नशिलखिखत ार हैं-�् ष् स् ह्

वैसे तो जहाँ भी दो अर्थवा दो से अधिधक वं्यजन धिमल जाते हैं वे संयुE वं्यजन कहलाते हैं, हिकन्तु देवनागरी शिलहिप में संयोग के बाद रूप-परिरवत9न हो जाने के कारण इन तीन को हिगनाया गया है। ये दो-दो वं्यजनों से

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धिमलकर बने हैं। जैसे-क्ष=क्+ष अक्षर, ज्ञ=ज+्ञ ज्ञान, त्र=त्+र नक्षत्र कुछ लोग क््ष त््र और ज्ञ् को भी हिहन्दी वण9माला में हिगनते हैं, पर ये संयुE वं्यजन हैं। अतः इन्हें वण9माला में हिगनना उशि त प्रतीत नहीं होता।

अनुस्�ार

इसका प्रयोग पं म वण9 के [ान पर होता है। इसका शि न्ह (ां) है। जैसे- सम्भव=संभव, सञ्जय=संजय, गड़्गा=गंगा।

वि�सर्ग�

इसका उच्चारण ह् के समान होता है। इसका शि ह्न (:) है। जैसे-अतः, प्रातः।

चंद्रबिबंदु

जब हिकसी स्वर का उच्चारण नाशिसका और मुख दोनों से हिकया जाता है तब उसके ऊपर ंद्रबिबंदु (ाँ) लगा दिदया जाता है।यह अनुनाशिसक कहलाता है। जैसे-हँसना, आँख।

हिहन्दी वण9माला में 11 स्वर तर्था 33 वं्यजन हिगनाए जाते हैं, परन्तु इनमें ड़्, ढ़् अं तर्था अः जोड़ने पर हिहन्दी के वणa की कुल संख्या 48 हो जाती है।

हलंत

जब कभी वं्यजन का प्रयोग स्वर से रहिहत हिकया जाता है तब उसके नी े एक हितरछी रेखा (ा्) लगा दी जाती है। यह रेखा हल कहलाती है। हलयुE वं्यजन हलंत वण9 कहलाता है। जैसे-हिवद ्या।

�ण1 के उच्चारण-स्थान

मुख के जिजस भाग से जिजस वण9 का उच्चारण होता है उसे उस वण9 का उच्चारण [ान कहते हैं।

उच्चारण स्थान तालिलका

=म वण9 उच्चारण श्रेणी

1. अ आ क् ख् ग् घ् ड़् ह् हिवसग9 कंठ और जीभ का हिन ला भाग

कंठ[

2. इ ई ् छ् ज ्झ् ञ ्य् � तालु और जीभ तालव्य3. ऋ +् ठ् ड् ढ् ण् ड़् ढ़् र् ष् मूधा9 और जीभ मूध9न्य4. त् र््थ द ्ध् न् ल् स् दाँत और जीभ दंत्य5. उ ऊ प् फ् ब् भ् म दोनों होंठ ओष्ठ्य

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6. ए ऐ कंठ तालु और जीभ कंठतालव्य7. ओ औ दाँत जीभ और होंठ कंठोष्ठ्य8. व् दाँत जीभ और होंठ दंतोष्

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अध्याय 3

र्शब्द-वि�चार

परिरभाषा- एक या अधिधक वणa से बनी हुई स्वतंत्र सार्थ9क ध्वहिन �ब्द कहलाता है। जैसे- एक वण9 से हिनर्मिमंत �ब्द-न (नहीं) व (और) अनेक वणa से हिनर्मिमंत �ब्द-कुत्ता, �ेर,कमल, नयन, प्रासाद, सव9व्यापी, परमात्मा।

र्शब्द-भेद

वु्यत्पभित्त (बनाव+) के आधार पर �ब्द-भेद-वु्यत्पभित्त (बनाव+) के आधार पर �ब्द के हिनम्नशिलखिखत तीन भेद हैं-1. रूढ़2. यौहिगक3. योगरूढ़

1. रूढ़

जो �ब्द हिकन्हीं अन्य �ब्दों के योग से न बने हों और हिकसी हिव�ेष अर्थ9 को प्रक+ करते हों तर्था जिजनके +ुकड़ों का कोई अर्थ9 नहीं होता, वे रूढ़ कहलाते हैं। जैसे-कल, पर। इनमें क, ल, प, र का +ुकडे़ करने पर कुछ अर्थ9 नहीं हैं। अतः ये हिनरर्थ9क हैं।

2. यौविर्गक

जो �ब्द कई सार्थ9क �ब्दों के मेल से बने हों,वे यौहिगक कहलाते हैं। जैसे-देवालय=देव+आलय, राजपुरुष=राज+पुरुष, हिहमालय=हिहम+आलय, देवदूत=देव+दूत आदिद। ये सभी �ब्द दो सार्थ9क �ब्दों के मेल से बने हैं।

3. योर्गरूढ़

वे �ब्द, जो यौहिगक तो हैं, हिकन्तु सामान्य अर्थ9 को न प्रक+ कर हिकसी हिव�ेष अर्थ9 को प्रक+ करते हैं, योगरूढ़ कहलाते हैं। जैसे-पंकज, द�ानन आदिद। पंकज=पंक+ज (की ड़ में उत्पन्न होने वाला) सामान्य

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अर्थ9 में प्र शिलत न होकर कमल के अर्थ9 में रूढ़ हो गया है। अतः पंकज �ब्द योगरूढ़ है। इसी प्रकार द� (दस) आनन (मुख) वाला रावण के अर्थ9 में प्रशिसद्ध है।

उत्पलि= के आधार पर र्शब्द-भेद

उत्पभित्त के आधार पर �ब्द के हिनम्नशिलखिखत ार भेद हैं-

1. तत्सम- जो �ब्द संस्कृत भाषा से हिहन्दी में हिबना हिकसी परिरवत9न के ले शिलए गए हैं वे तत्सम कहलाते हैं। जैसे-अखिग्न, के्षत्र, वायु, राहित्र, सूय9 आदिद।2. तद्भव- जो �ब्द रूप बदलने के बाद संस्कृत से हिहन्दी में आए हैं वे तद्भव कहलाते हैं। जैसे-आग (अखिग्न), खेत(के्षत्र), रात (राहित्र), सूरज (सूय9) आदिद।3. दे�ज- जो �ब्द के्षत्रीय प्रभाव के कारण परिरस्थि[हित व आवश्यकतानुसार बनकर प्र शिलत हो गए हैं वे दे�ज कहलाते हैं। जैसे-पगड़ी, गाड़ी, रै्थला, पे+, ख+ख+ाना आदिद।4. हिवदे�ी या हिवदे�ज- हिवदे�ी जाहितयों के संपक9 से उनकी भाषा के बहुत से �ब्द हिहन्दी में प्रयुE होने लगे हैं। ऐसे �ब्द हिवदे�ी अर्थवा हिवदे�ज कहलाते हैं। जैसे-स्कूल, अनार, आम, कैं ी,अ ार, पुशिलस, +ेलीफोन, रिरक्शा आदिद। ऐसे कुछ हिवदे�ी �ब्दों की सू ी नी े दी जा रही है।अंग्रेजी- कॉलेज, पैंशिसल, रेहिडयो, +ेलीहिवजन, डॉक्+र, लै+रबक्स, पैन, दि+क+, म�ीन, शिसगरे+, साइहिकल, बोतल आदिद।फारसी- अनार, श्मा, जमींदार, दुकान, दरबार, नमक, नमूना, बीमार, बरफ, रूमाल, आदमी, ुगलखोर, गंदगी, ापलूसी आदिद।अरबी- औलाद, अमीर, कत्ल, कलम, कानून, खत, फकीर, रिरश्वत, औरत, कैदी, माशिलक, गरीब आदिद।तुक�- कैं ी, ाकू, तोप, बारूद, ला�, दारोगा, बहादुर आदिद।पुत9गाली- अ ार, आलपीन, कारतूस, गमला, ाबी, हितजोरी, तौशिलया, फीता, साबुन, तंबाकू, कॉफी, कमीज आदिद।फ्रांसीसी- पुशिलस, का+ू9न, इंजीहिनयर, कर्फ्यूयू9, हिबगुल आदिद। ीनी- तूफान, ली ी, ाय, प+ाखा आदिद।यूनानी- +ेलीफोन, +ेलीग्राफ, ऐ+म, डेल्+ा आदिद।जापानी- रिरक्शा आदिद।

प्रयोर्ग के आधार पर र्शब्द-भेद

प्रयोग के आधार पर �ब्द के हिनम्नशिलखिखत आठ भेद है-1. संज्ञा2. सव9नाम3. हिव�ेषण4. हि=या5. हि=या-हिव�ेषण6. संबंधबोधक7. समुच्चयबोधक8. हिवस्मयादिदबोधक

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इन उपयु9E आठ प्रकार के �ब्दों को भी हिवकार की दृधिष्ट से दो भागों में बाँ+ा जा सकता है-1. हिवकारी2. अहिवकारी

1. वि�कारी र्शब्द

जिजन �ब्दों का रूप-परिरवत9न होता रहता है वे हिवकारी �ब्द कहलाते हैं। जैसे-कुत्ता, कुत्ते, कुत्तों, मैं मुझे,हमें अच्छा, अचे्छ खाता है, खाती है, खाते हैं। इनमें संज्ञा, सव9नाम, हिव�ेषण और हि=या हिवकारी �ब्द हैं।

2. अवि�कारी र्शब्द

जिजन �ब्दों के रूप में कभी कोई परिरवत9न नहीं होता है वे अहिवकारी �ब्द कहलाते हैं। जैसे-यहाँ, हिकन्तु, हिनत्य, और, हे अरे आदिद। इनमें हि=या-हिव�ेषण, संबंधबोधक, समुच्चयबोधक और हिवस्मयादिदबोधक आदिद हैं।

अथ� की दृविC से र्शब्द-भेद

अर्थ9 की दृधिष्ट से �ब्द के दो भेद हैं-1. सार्थ9क2. हिनरर्थ9क

1. साथ�क र्शब्द

जिजन �ब्दों का कुछ-न-कुछ अर्थ9 हो वे �ब्द सार्थ9क �ब्द कहलाते हैं। जैसे-रो+ी, पानी, ममता, डंडा आदिद।

2. विनरथ�क र्शब्द

जिजन �ब्दों का कोई अर्थ9 नहीं होता है वे �ब्द हिनरर्थ9क कहलाते हैं। जैसे-रो+ी-वो+ी, पानी-वानी, डंडा-वंडा इनमें वो+ी, वानी, वंडा आदिद हिनरर्थ9क �ब्द हैं।हिव�ेष- हिनरर्थ9क �ब्दों पर व्याकरण में कोई हिव ार नहीं हिकया जाता है।

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अध्याय 4

पद-वि�चार

सार्थ9क वण9-समूह �ब्द कहलाता है, पर जब इसका प्रयोग वाक्य में होता है तो वह स्वतंत्र नहीं रहता बल्किल्क व्याकरण के हिनयमों में बँध जाता है और प्रायः इसका रूप भी बदल जाता है। जब कोई �ब्द वाक्य में प्रयुE होता है तो उसे �ब्द न कहकर पद कहा जाता है।

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हिहन्दी में पद पाँ प्रकार के होते हैं-1. संज्ञा2. सव9नाम3. हिव�ेषण4. हि=या5. अव्यय

1. संज्ञा

हिकसी व्यशिE, [ान, वस्तु आदिद तर्था नाम के गुण, धम9, स्वभाव का बोध कराने वाले �ब्द संज्ञा कहलाते हैं। जैसे-श्याम, आम, धिमठास, हार्थी आदिद।संज्ञा के प्रकार- संज्ञा के तीन भेद हैं-1. व्यशिEवा क संज्ञा।2. जाहितवा क संज्ञा।3. भाववा क संज्ञा।

1. व्यलिE�ाचक संज्ञा

जिजस संज्ञा �ब्द से हिकसी हिव�ेष, व्यशिE, प्राणी, वस्तु अर्थवा [ान का बोध हो उसे व्यशिEवा क संज्ञा कहते हैं। जैसे-जयप्रका� नारायण, श्रीकृष्ण, रामायण, ताजमहल, कुतुबमीनार, लालहिकला हिहमालय आदिद।

2. जावित�ाचक संज्ञा

जिजस संज्ञा �ब्द से उसकी संपूण9 जाहित का बोध हो उसे जाहितवा क संज्ञा कहते हैं। जैसे-मनुष्य, नदी, नगर, पव9त, प�ु, पक्षी, लड़का, कुत्ता, गाय, घोड़ा, भैंस, बकरी, नारी, गाँव आदिद।

3. भा��ाचक संज्ञा

जिजस संज्ञा �ब्द से पदार्थa की अव[ा, गुण-दोष, धम9 आदिद का बोध हो उसे भाववा क संज्ञा कहते हैं। जैसे-बुढ़ापा, धिमठास, ब पन, मो+ापा, ढ़ाई, र्थकाव+ आदिद।हिव�ेष वEव्य- कुछ हिवद्वान अंग्रेजी व्याकरण के प्रभाव के कारण संज्ञा �ब्द के दो भेद और बतलाते हैं-1. समुदायवा क संज्ञा।2. द्रव्यवा क संज्ञा।

1. समुदाय�ाचक संज्ञा

जिजन संज्ञा �ब्दों से व्यशिEयों, वस्तुओं आदिद के समूह का बोध हो उन्हें समुदायवा क संज्ञा कहते हैं। जैसे-सभा, कक्षा, सेना, भीड़, पुस्तकालय दल आदिद।

2. द्रव्य�ाचक संज्ञा

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जिजन संज्ञा-�ब्दों से हिकसी धातु, द्रव्य आदिद पदार्थa का बोध हो उन्हें द्रव्यवा क संज्ञा कहते हैं। जैसे-घी, तेल, सोना, ाँदी,पीतल, ावल, गेहूँ, कोयला, लोहा आदिद।

इस प्रकार संज्ञा के पाँ भेद हो गए, हिकन्तु अनेक हिवद्वान समुदायवा क और द्रव्यवा क संज्ञाओं को जाहितवा क संज्ञा के अंतग9त ही मानते हैं, और यही उशि त भी प्रतीत होता है।भाववा क संज्ञा बनाना- भाववा क संज्ञाए ँ ार प्रकार के �ब्दों से बनती हैं। जैसे-

1. जावित�ाचक संज्ञाओं से

दास दासतापंहिडत पांहिडत्य बंधु बंधुत्वक्षहित्रय क्षहित्रयत्वपुरुष पुरुषत्व प्रभु प्रभुताप�ु प�ुता,प�ुत्वब्राह्मण ब्राह्मणत्वधिमत्र धिमत्रताबालक बालकपनबच्चा ब पन नारी नारीत्व

2. स��नाम से

अपना अपनापन, अपनत्व हिनज हिनजत्व,हिनजतापराया परायापन स्व स्वत्वसव9 सव9स्वअहं अहंकारमम ममत्व,ममता

3. वि�र्शेषण से

मीठा धिमठास तुर ातुय9, तुराईमधुर माधुय9 संुदर सौंदय9, संुदरताहिनब9ल हिनब9लता सफेद सफेदीहरा हरिरयाली सफल सफलताप्रवीण प्रवीणता

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मैला मैलहिनपुण हिनपुणता खट्टा ख+ास

4. विक्रया से

खेलना खेल र्थकना र्थकाव+ शिलखना लेख, शिलखाईहँसना हँसीलेना-देना लेन-देनपढ़ना पढ़ाईधिमलना मेल ढ़ना ढ़ाई मुसकाना मुसकानकमाना कमाई उतरना उतराई उड़ना उड़ानरहना-सहना रहन-सहन देखना-भालना देख-भाल

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अध्याय 5

संज्ञा के वि�कारक तत्�

जिजन तत्वों के आधार पर संज्ञा (संज्ञा, सव9नाम, हिव�ेषण) का रूपांतर होता है वे हिवकारक तत्व कहलाते हैं।वाक्य में �ब्दों की स्थि[हित के आधार पर ही उनमें हिवकार आते हैं। यह हिवकार लिलंग, व न और कारक के कारण ही होता है। जैसे-लड़का �ब्द के ारों रूप- 1.लड़का, 2.लड़के, 3.लड़कों, 4.लड़को-केवल व न और कारकों के कारण बनते हैं।लिलंग- जिजस शि ह्न से यह बोध होता हो हिक अमुक �ब्द पुरुष जाहित का है अर्थवा स्त्री जाहित का वह लिलंग कहलाता है।परिरभाषा- �ब्द के जिजस रूप से हिकसी व्यशिE, वस्तु आदिद के पुरुष जाहित अर्थवा स्त्री जाहित के होने का ज्ञान हो उसे लिलंग कहते हैं। जैसे-लड़का, लड़की, नर, नारी आदिद। इनमें ‘लड़का’ और ‘नर’ पुस्थिल्लंग तर्था लड़की और ‘नारी’ स्त्रीलिलंग हैं।

हिहन्दी में लिलंग के दो भेद हैं-1. पुस्थिल्लंग।2. स्त्रीलिलंग।

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1. पुल्लिHलंर्ग

जिजन संज्ञा �ब्दों से पुरुष जाहित का बोध हो अर्थवा जो �ब्द पुरुष जाहित के अंतग9त माने जाते हैं वे पुस्थिल्लंग हैं। जैसे-कुत्ता, लड़का, पेड़, लिसंह, बैल, घर आदिद।

2. स्त्रीलिलंर्ग

जिजन संज्ञा �ब्दों से स्त्री जाहित का बोध हो अर्थवा जो �ब्द स्त्री जाहित के अंतग9त माने जाते हैं वे स्त्रीलिलंग हैं। जैसे-गाय, घड़ी, लड़की, कुरसी, छड़ी, नारी आदिद।

पुल्लिHलंर्ग की पहचान

1. आ, आव, पा, पन न ये प्रत्यय जिजन �ब्दों के अंत में हों वे प्रायः पुस्थिल्लंग होते हैं। जैसे- मो+ा, ढ़ाव, बुढ़ापा, लड़कपन लेन-देन।2. पव9त, मास, वार और कुछ ग्रहों के नाम पुस्थिल्लंग होते हैं जैसे-बिवंध्या ल, हिहमालय, वै�ाख, सूय9, ंद्र, मंगल, बुध, राहु, केतु (ग्रह)।3. पेड़ों के नाम पुस्थिल्लंग होते हैं। जैसे-पीपल, नीम, आम, �ी�म, सागौन, जामुन, बरगद आदिद।4. अनाजों के नाम पुस्थिल्लंग होते हैं। जैसे-बाजरा, गेहूँ, ावल, ना, म+र, जौ, उड़द आदिद।5. द्रव पदार्थa के नाम पुस्थिल्लंग होते हैं। जैसे-पानी, सोना, ताँबा, लोहा, घी, तेल आदिद।6. रत्नों के नाम पुस्थिल्लंग होते हैं। जैसे-हीरा, पन्ना, मूँगा, मोती माभिणक आदिद।7. देह के अवयवों के नाम पुस्थिल्लंग होते हैं। जैसे-शिसर, मस्तक, दाँत, मुख, कान, गला, हार्थ, पाँव, होंठ, तालु, नख, रोम आदिद।8. जल, [ान और भूमंडल के भागों के नाम पुस्थिल्लंग होते हैं। जैसे-समुद्र, भारत, दे�, नगर, द्वीप, आका�, पाताल, घर, सरोवर आदिद।9. वण9माला के अनेक अक्षरों के नाम पुस्थिल्लंग होते हैं। जैसे-अ,उ,ए,ओ,क,ख,ग,घ, ,छ,य,र,ल,व,� आदिद।

स्त्रीलिलंर्ग की पहचान

1. जिजन संज्ञा �ब्दों के अंत में ख होते है, वे स्त्रीलिलंग कहलाते हैं। जैसे-ईख, भूख, ोख, राख, कोख, लाख, देखरेख आदिद।2. जिजन भाववा क संज्ञाओं के अंत में +, व+, या ह+ होता है, वे स्त्रीलिलंग कहलाती हैं। जैसे-झंझ+, आह+, शि कनाह+, बनाव+, सजाव+ आदिद।3. अनुस्वारांत, ईकारांत, ऊकारांत, तकारांत, सकारांत संज्ञाए ँस्त्रीलिलंग कहलाती है। जैसे-रो+ी, +ोपी, नदी, शि ट्ठी, उदासी, रात, बात, छत, भीत, लू, बालू, दारू, सरसों, खड़ाऊँ, प्यास, वास, साँस आदिद।4. भाषा, बोली और शिलहिपयों के नाम स्त्रीलिलंग होते हैं। जैसे-हिहन्दी, संस्कृत, देवनागरी, पहाड़ी, तेलुगु पंजाबी गुरुमुखी।5. जिजन �ब्दों के अंत में इया आता है वे स्त्रीलिलंग होते हैं। जैसे-कुदि+या, खदि+या, शि हिड़या आदिद।6. नदिदयों के नाम स्त्रीलिलंग होते हैं। जैसे-गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती आदिद।7. तारीखों और हितशिर्थयों के नाम स्त्रीलिलंग होते हैं। जैसे-पहली, दूसरी, प्रहितपदा, पूर्णिणंमा आदिद।

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8. पृथ्वी ग्रह स्त्रीलिलंग होते हैं।9. नक्षत्रों के नाम स्त्रीलिलंग होते हैं। जैसे-अभिश्वनी, भरणी, रोहिहणी आदिद।

र्शब्दों का लिलंर्ग-परिर�त�न

प्रत्यय पुल्लिHलंर्ग स्त्रीलिलंर्गई घोड़ा घोड़ी

देव देवीदादा दादीलड़का लड़कीब्राह्मण ब्राह्मणीनर नारीबकरा बकरी

इया ूहा ुहिहयाशि ड़ा शि हिड़याबे+ा हिबदि+यागुड्डा गुहिड़यालो+ा लुदि+या

इन माली माशिलनकहार कहारिरनसुनार सुनारिरनलुहार लुहारिरनधोबी धोहिबन

नी मोर मोरनीहार्थी हाशिर्थनलिसंह लिसंहनी

आनी नौकर नौकरानी ौधरी ौधरानीदेवर देवरानीसेठ सेठानीजेठ जेठानी

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आइन पंहिडत पंहिडताइनठाकुर ठाकुराइन

आ बाल बालासुत सुताछात्र छात्राशि�ष्य शि�ष्या

अक को इका करके पाठक पादिठकाअध्यापक अध्याहिपकाबालक बाशिलकालेखक लेखिखकासेवक सेहिवका

इनी (इणी) तपस्वी तपल्किस्वनीहिहतकारी हिहतकारिरनीस्वामी स्वाधिमनीपरोपकारी परोपकारिरनी

कुछ हिव�ेष �ब्द जो स्त्रीलिलंग में हिबलकुल ही बदल जाते हैं।पुस्थिल्लंग स्त्रीलिलंगहिपता माताभाई भाभीनर मादाराजा रानीससुर साससम्रा+ सम्राज्ञीपुरुष स्त्रीबैल गाययुवक युवती

हिव�ेष वEव्य- जो प्राभिणवा क सदा �ब्द ही स्त्रीलिलंग हैं अर्थवा जो सदा ही पुस्थिल्लंग हैं उनके पुस्थिल्लंग अर्थवा स्त्रीलिलंग जताने के शिलए उनके सार्थ ‘नर’ व ‘मादा’ �ब्द लगा देते हैं। जैसे-

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स्त्रीलिलंग पुस्थिल्लंगमक्खी नर मक्खीकोयल नर कोयलहिगलहरी नर हिगलहरीमैना नर मैनाहिततली नर हिततलीबाज मादा बाजख+मल मादा ख+मल ील नर ीलकछुआ नर कछुआकौआ नर कौआभेहिड़या मादा भेहिड़याउल्लू मादा उल्लूमच्छर मादा मच्छर

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अध्याय 6

�चन

परिरभाषा-�ब्द के जिजस रूप से उसके एक अर्थवा अनेक होने का बोध हो उसे व न कहते हैं।हिहन्दी में व न दो होते हैं-1. एकव न2. बहुव न

एक�चन

�ब्द के जिजस रूप से एक ही वस्तु का बोध हो, उसे एकव न कहते हैं। जैसे-लड़का, गाय, शिसपाही, बच्चा, कपड़ा, माता, माला, पुस्तक, स्त्री, +ोपी बंदर, मोर आदिद।

बहु�चन

�ब्द के जिजस रूप से अनेकता का बोध हो उसे बहुव न कहते हैं। जैसे-लड़के, गायें, कपडे़, +ोहिपयाँ, मालाए,ँ माताए,ँ पुस्तकें , वधुए,ँ गुरुजन, रोदि+याँ, स्त्रिस्त्रयाँ, लताए,ँ बे+े आदिद।

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एकव न के [ान पर बहुव न का प्रयोग(क) आदर के शिलए भी बहुव न का प्रयोग होता है। जैसे-(1) भीष्म हिपतामह तो ब्रह्म ारी रे्थ।(2) गुरुजी आज नहीं आये।(3) शि�वाजी सच्चे वीर रे्थ।(ख) बड़प्पन द�ा9ने के शिलए कुछ लोग वह के [ान पर वे और मैं के [ान हम का प्रयोग करते हैं जैसे-(1) माशिलक ने कम9 ारी से कहा, हम मीटि+ंग में जा रहे हैं।(2) आज गुरुजी आए तो वे प्रसन्न दिदखाई दे रहे रे्थ।(ग) के�, रोम, अश्रु, प्राण, द�9न, लोग, द�9क, समा ार, दाम, हो�, भाग्य आदिद ऐसे �ब्द हैं जिजनका प्रयोग बहुधा बहुव न में ही होता है। जैसे-(1) तुम्हारे के� बडे़ सुन्दर हैं।(2) लोग कहते हैं।बहुव न के [ान पर एकव न का प्रयोग(क) तू एकव न है जिजसका बहुव न है तुम हिकन्तु सभ्य लोग आजकल लोक-व्यवहार में एकव न के शिलए तुम का ही प्रयोग करते हैं जैसे-(1) धिमत्र, तुम कब आए।(2) क्या तुमने खाना खा शिलया।(ख) वग9, वृंद, दल, गण, जाहित आदिद �ब्द अनेकता को प्रक+ करने वाले हैं, हिकन्तु इनका व्यवहार एकव न के समान होता है। जैसे-(1) सैहिनक दल �त्रु का दमन कर रहा है।(2) स्त्री जाहित संघष9 कर रही है।(ग) जाहितवा क �ब्दों का प्रयोग एकव न में हिकया जा सकता है। जैसे-(1) सोना बहुमूल्य वस्तु है।(2) मुंबई का आम स्वादिदष्ट होता है।बहुव न बनाने के हिनयम(1) अकारांत स्त्रीलिलंग �ब्दों के अंहितम अ को ए ँकर देने से �ब्द बहुव न में बदल जाते हैं। जैसे-

एकव न बहुव नआँख आँखेंबहन बहनेंपुस्तक पुस्तकेंसड़क सड़केगाय गायेंबात बातें

(2) आकारांत पुस्थिल्लंग �ब्दों के अंहितम ‘आ’ को ‘ए’ कर देने से �ब्द बहुव न में बदल जाते हैं। जैसे-

एकव न बहुव न एकव न बहुव न

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घोड़ा घोडे़ कौआ कौएकुत्ता कुत्ते गधा गधेकेला केले बे+ा बे+े

(3) आकारांत स्त्रीलिलंग �ब्दों के अंहितम ‘आ’ के आगे ‘ए’ँ लगा देने से �ब्द बहुव न में बदल जाते हैं। जैसे-

एकव न बहुव न एकव न बहुव नकन्या कन्याएँ अध्याहिपका अध्याहिपकाएँकला कलाएँ माता माताएँकहिवता कहिवताएँ लता लताएँ

(4) इकारांत अर्थवा ईकारांत स्त्रीलिलंग �ब्दों के अंत में ‘याँ’ लगा देने से और दीघ9 ई को ह्रस्व इ कर देने से �ब्द बहुव न में बदल जाते हैं। जैसे-

एकव न बहुव न एकव न बहुव नबुजिद्ध बुजिद्धयाँ गहित गहितयाँकली कशिलयाँ नीहित नीहितयाँकॉपी कॉहिपयाँ लड़की लड़हिकयाँर्थाली र्थाशिलयाँ नारी नारिरयाँ

(5) जिजन स्त्रीलिलंग �ब्दों के अंत में या है उनके अंहितम आ को आँ कर देने से वे बहुव न बन जाते हैं। जैसे-

एकव न बहुव न एकव न बहुव नगुहिड़या गुहिड़याँ हिबदि+या हिबदि+याँ ुहिहया ुहिहयाँ कुहितया कुहितयाँशि हिड़या शि हिड़याँ खदि+या खदि+याँबुदिढ़या बुदिढ़याँ गैया गैयाँ

(6) कुछ �ब्दों में अंहितम उ, ऊ और औ के सार्थ ए ँलगा देते हैं और दीघ9 ऊ के सार्थन पर ह्रस्व उ हो जाता है। जैसे-

एकव न बहुव न एकव न बहुव नगौ गौएँ बहू बहूएँवधू वधूएँ वस्तु वस्तुएँधेनु धेनुएँ धातु धातुएँ

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(7) दल, वृंद, वग9, जन लोग, गण आदिद �ब्द जोड़कर भी �ब्दों का बहुव न बना देते हैं। जैसे-

एकव न बहुव न एकव न बहुव नअध्यापक अध्यापकवृंद धिमत्र धिमत्रवग9हिवद्यार्थ� हिवद्यार्थ�गण सेना सेनादलआप आप लोग गुरु गुरुजनश्रोता श्रोताजन गरीब गरीब लोग

(8) कुछ �ब्दों के रूप ‘एकव न’ और ‘बहुव न’ दोनो में समान होते हैं। जैसे-

एकव न बहुव न एकव न बहुव नक्षमा क्षमा नेता नेताजल जल पे्रम पे्रमहिगरिर हिगरिर =ोध =ोधराजा राजा पानी पानी

हिव�ेष- (1) जब संज्ञाओं के सार्थ ने, को, से आदिद परसग9 लगे होते हैं तो संज्ञाओं का बहुव न बनाने के शिलए उनमें ‘ओ’ लगाया जाता है। जैसे-

एकव न बहुव न एकव न बहुव नलड़के को बुलाओ लड़को को बुलाओ बच्चे ने गाना गाया बच्चों ने गाना गायानदी का जल ठंडा है नदिदयों का जल ठंडा है आदमी से पूछ लो आदधिमयों से पूछ लो

(2) संबोधन में ‘ओ’ जोड़कर बहुव न बनाया जाता है। जैसे-बच्चों ! ध्यान से सुनो। भाइयों ! मेहनत करो। बहनो ! अपना कत9व्य हिनभाओ।

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अध्याय 7

कारक

परिरभाषा-संज्ञा या सव9नाम के जिजस रूप से उसका सीधा संबंध हि=या के सार्थ ज्ञात हो वह कारक कहलाता है। जैसे-गीता ने दूध पीया। इस वाक्य में ‘गीता’ पीना हि=या का कता9 है और दूध उसका कम9। अतः ‘गीता’ कता9 कारक है और ‘दूध’ कम9 कारक।कारक हिवभशिE- संज्ञा अर्थवा सव9नाम �ब्दों के बाद ‘ने, को, से, के शिलए’, आदिद जो शि ह्न लगते हैं वे शि ह्न कारक हिवभशिE कहलाते हैं।

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हिहन्दी में आठ कारक होते हैं। उन्हें हिवभशिE शि ह्नों सहिहत नी े देखा जा सकता है-कारक हिवभशिE शि ह्न (परसग9)1. कता9 ने2. कम9 को3. करण से, के सार्थ, के द्वारा4. संप्रदान के शिलए, को5. अपादान से (पृर्थक)6. संबंध का, के, की7. अधिधकरण में, पर8. संबोधन हे ! हरे !कारक शि ह्न स्मरण करने के शिलए इस पद की र ना की गई हैं-कता9 ने अरु कम9 को, करण रीहित से जान।संप्रदान को, के शिलए, अपादान से मान।।का, के, की, संबंध हैं, अधिधकरणादिदक में मान।रे ! हे ! हो ! संबोधन, धिमत्र धरहु यह ध्यान।।हिव�ेष-कता9 से अधिधकरण तक हिवभशिE शि ह्न (परसग9) �ब्दों के अंत में लगाए जाते हैं, हिकन्तु संबोधन कारक के शि ह्न-हे, रे, आदिद प्रायः �ब्द से पूव9 लगाए जाते हैं।

1. कता� कारक

जिजस रूप से हि=या (काय9) के करने वाले का बोध होता है वह ‘कता9’ कारक कहलाता है। इसका हिवभशिE-शि ह्न ‘ने’ है। इस ‘ने’ शि ह्न का वत9मानकाल और भहिवष्यकाल में प्रयोग नहीं होता है। इसका सकम9क धातुओं के सार्थ भूतकाल में प्रयोग होता है। जैसे- 1.राम ने रावण को मारा। 2.लड़की स्कूल जाती है।

पहले वाक्य में हि=या का कता9 राम है। इसमें ‘ने’ कता9 कारक का हिवभशिE-शि ह्न है। इस वाक्य में ‘मारा’ भूतकाल की हि=या है। ‘ने’ का प्रयोग प्रायः भूतकाल में होता है। दूसरे वाक्य में वत9मानकाल की हि=या का कता9 लड़की है। इसमें ‘ने’ हिवभशिE का प्रयोग नहीं हुआ है।

हिव�ेष- (1) भूतकाल में अकम9क हि=या के कता9 के सार्थ भी ने परसग9 (हिवभशिE शि ह्न) नहीं लगता है। जैसे-वह हँसा।(2) वत9मानकाल व भहिवष्यतकाल की सकम9क हि=या के कता9 के सार्थ ने परसग9 का प्रयोग नहीं होता है। जैसे-वह फल खाता है। वह फल खाएगा।(3) कभी-कभी कता9 के सार्थ ‘को’ तर्था ‘स’ का प्रयोग भी हिकया जाता है। जैसे-(अ) बालक को सो जाना ाहिहए। (आ) सीता से पुस्तक पढ़ी गई।(इ) रोगी से ला भी नहीं जाता। (ई) उससे �ब्द शिलखा नहीं गया।

2. कम� कारक

हि=या के काय9 का फल जिजस पर पड़ता है, वह कम9 कारक कहलाता है। इसका हिवभशिE-शि ह्न ‘को’ है। यह शि ह्न भी बहुत-से [ानों पर नहीं लगता। जैसे- 1. मोहन ने साँप को मारा। 2. लड़की ने पत्र शिलखा। पहले

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वाक्य में ‘मारने’ की हि=या का फल साँप पर पड़ा है। अतः साँप कम9 कारक है। इसके सार्थ परसग9 ‘को’ लगा है।दूसरे वाक्य में ‘शिलखने’ की हि=या का फल पत्र पर पड़ा। अतः पत्र कम9 कारक है। इसमें कम9 कारक का हिवभशिE शि ह्न ‘को’ नहीं लगा।

3. करण कारक

संज्ञा आदिद �ब्दों के जिजस रूप से हि=या के करने के साधन का बोध हो अर्था9त् जिजसकी सहायता से काय9 संपन्न हो वह करण कारक कहलाता है। इसके हिवभशिE-शि ह्न ‘से’ के ‘द्वारा’ है। जैसे- 1.अजु9न ने जयद्रर्थ को बाण से मारा। 2.बालक गेंद से खेल रहे है।पहले वाक्य में कता9 अजु9न ने मारने का काय9 ‘बाण’ से हिकया। अतः ‘बाण से’ करण कारक है। दूसरे वाक्य में कता9 बालक खेलने का काय9 ‘गेंद से’ कर रहे हैं। अतः ‘गेंद से’ करण कारक है।

4. संप्रदान कारक

संप्रदान का अर्थ9 है-देना। अर्था9त कता9 जिजसके शिलए कुछ काय9 करता है, अर्थवा जिजसे कुछ देता है उसे व्यE करने वाले रूप को संप्रदान कारक कहते हैं। इसके हिवभशिE शि ह्न ‘के शिलए’ को हैं।1.स्वास्थ्य के शिलए सूय9 को नमस्कार करो। 2.गुरुजी को फल दो।इन दो वाक्यों में ‘स्वास्थ्य के शिलए’ और ‘गुरुजी को’ संप्रदान कारक हैं।

5. अपादान कारक

संज्ञा के जिजस रूप से एक वस्तु का दूसरी से अलग होना पाया जाए वह अपादान कारक कहलाता है। इसका हिवभशिE-शि ह्न ‘से’ है। जैसे- 1.बच्चा छत से हिगर पड़ा। 2.संगीता घोडे़ से हिगर पड़ी।इन दोनों वाक्यों में ‘छत से’ और घोडे़ ‘से’ हिगरने में अलग होना प्रक+ होता है। अतः घोडे़ से और छत से अपादान कारक हैं।

6. संबंध कारक

�ब्द के जिजस रूप से हिकसी एक वस्तु का दूसरी वस्तु से संबंध प्रक+ हो वह संबंध कारक कहलाता है। इसका हिवभशिE शि ह्न ‘का’, ‘के’, ‘की’, ‘रा’, ‘रे’, ‘री’ है। जैसे- 1.यह राधेश्याम का बे+ा है। 2.यह कमला की गाय है।इन दोनों वाक्यों में ‘राधेश्याम का बे+े’ से और ‘कमला का’ गाय से संबंध प्रक+ हो रहा है। अतः यहाँ संबंध कारक है।

7. अलिधकरण कारक

�ब्द के जिजस रूप से हि=या के आधार का बोध होता है उसे अधिधकरण कारक कहते हैं। इसके हिवभशिE-शि ह्न ‘में’, ‘पर’ हैं। जैसे- 1.भँवरा फूलों पर मँडरा रहा है। 2.कमरे में +ी.वी. रखा है।इन दोनों वाक्यों में ‘फूलों पर’ और ‘कमरे में’ अधिधकरण कारक है।

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8. संबोधन कारक

जिजससे हिकसी को बुलाने अर्थवा स ेत करने का भाव प्रक+ हो उसे संबोधन कारक कहते है और संबोधन शि ह्न (!) लगाया जाता है। जैसे- 1.अरे भैया ! क्यों रो रहे हो ? 2.हे गोपाल ! यहाँ आओ।इन वाक्यों में ‘अरे भैया’ और ‘हे गोपाल’ ! संबोधन कारक है।

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अध्याय 8

स��नाम

सव9नाम-संज्ञा के [ान पर प्रयुE होने वाले �ब्द को सव9नाम कहते है। संज्ञा की पुनरुशिE को दूर करने के शिलए ही सव9नाम का प्रयोग हिकया जाता है। जैसे-मैं, हम, तू, तुम, वह, यह, आप, कौन, कोई, जो आदिद।सव9नाम के भेद- सव9नाम के छह भेद हैं-1. पुरुषवा क सव9नाम।2. हिनYयवा क सव9नाम।3. अहिनYयवा क सव9नाम।4. संबंधवा क सव9नाम।5. प्रश्नवा क सव9नाम।6. हिनजवा क सव9नाम।

1. पुरुष�ाचक स��नाम

जिजस सव9नाम का प्रयोग वEा या लेखक स्वयं अपने शिलए अर्थवा श्रोता या पाठक के शिलए अर्थवा हिकसी अन्य के शिलए करता है वह पुरुषवा क सव9नाम कहलाता है। पुरुषवा क सव9नाम तीन प्रकार के होते हैं-(1) उत्तम पुरुषवा क सव9नाम- जिजस सव9नाम का प्रयोग बोलने वाला अपने शिलए करे, उसे उत्तम पुरुषवा क सव9नाम कहते हैं। जैसे-मैं, हम, मुझे, हमारा आदिद।(2) मध्यम पुरुषवा क सव9नाम- जिजस सव9नाम का प्रयोग बोलने वाला सुनने वाले के शिलए करे, उसे मध्यम पुरुषवा क सव9नाम कहते हैं। जैसे-तू, तुम,तुझे, तुम्हारा आदिद।(3) अन्य पुरुषवा क सव9नाम- जिजस सव9नाम का प्रयोग बोलने वाला सुनने वाले के अहितरिरE हिकसी अन्य पुरुष के शिलए करे उसे अन्य पुरुषवा क सव9नाम कहते हैं। जैसे-वह, वे, उसने, यह, ये, इसने, आदिद।

2. विनश्चय�ाचक स��नाम

जो सव9नाम हिकसी व्यशिE वस्तु आदिद की ओर हिनYयपूव9क संकेत करें वे हिनYयवा क सव9नाम कहलाते हैं। इनमें ‘यह’, ‘वह’, ‘वे’ सव9नाम �ब्द हिकसी हिव�ेष व्यशिE आदिद का हिनYयपूव9क बोध करा रहे हैं, अतः ये हिनYयवा क सव9नाम है।

3. अविनश्चय�ाचक स��नाम

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जिजस सव9नाम �ब्द के द्वारा हिकसी हिनभिYत व्यशिE अर्थवा वस्तु का बोध न हो वे अहिनYयवा क सव9नाम कहलाते हैं। इनमें ‘कोई’ और ‘कुछ’ सव9नाम �ब्दों से हिकसी हिव�ेष व्यशिE अर्थवा वस्तु का हिनYय नहीं हो रहा है। अतः ऐसे �ब्द अहिनYयवा क सव9नाम कहलाते हैं।

4. संबंध�ाचक स��नाम

परस्पर एक-दूसरी बात का संबंध बतलाने के शिलए जिजन सव9नामों का प्रयोग होता है उन्हें संबंधवा क सव9नाम कहते हैं। इनमें ‘जो’, ‘वह’, ‘जिजसकी’, ‘उसकी’, ‘जैसा’, ‘वैसा’-ये दो-दो �ब्द परस्पर संबंध का बोध करा रहे हैं। ऐसे �ब्द संबंधवा क सव9नाम कहलाते हैं।

5. प्रश्न�ाचक स��नाम

जो सव9नाम संज्ञा �ब्दों के [ान पर तो आते ही है, हिकन्तु वाक्य को प्रश्नवा क भी बनाते हैं वे प्रश्नवा क सव9नाम कहलाते हैं। जैसे-क्या, कौन आदिद। इनमें ‘क्या’ और ‘कौन’ �ब्द प्रश्नवा क सव9नाम हैं, क्योंहिक इन सव9नामों के द्वारा वाक्य प्रश्नवा क बन जाते हैं।

6. विनज�ाचक स��नाम

जहाँ अपने शिलए ‘आप’ �ब्द ‘अपना’ �ब्द अर्थवा ‘अपने’ ‘आप’ �ब्द का प्रयोग हो वहाँ हिनजवा क सव9नाम होता है। इनमें ‘अपना’ और ‘आप’ �ब्द उत्तम, पुरुष मध्यम पुरुष और अन्य पुरुष के (स्वयं का) अपने आप का बोध करा रहे हैं। ऐसे �ब्द हिनजवा क सव9नाम कहलाते हैं।हिव�ेष-जहाँ केवल ‘आप’ �ब्द का प्रयोग श्रोता के शिलए हो वहाँ यह आदर-सू क मध्यम पुरुष होता है और जहाँ ‘आप’ �ब्द का प्रयोग अपने शिलए हो वहाँ हिनजवा क होता है।सव9नाम �ब्दों के हिव�ेष प्रयोग(1) आप, वे, ये, हम, तुम �ब्द बहुव न के रूप में हैं, हिकन्तु आदर प्रक+ करने के शिलए इनका प्रयोग एक व्यशिE के शिलए भी होता है।(2) ‘आप’ �ब्द स्वयं के अर्थ9 में भी प्रयुE हो जाता है। जैसे-मैं यह काय9 आप ही कर लँूगा।

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अध्याय 9

वि�र्शेषण

हिव�ेषण की परिरभाषा- संज्ञा अर्थवा सव9नाम �ब्दों की हिव�ेषता (गुण, दोष, संख्या, परिरमाण आदिद) बताने वाले �ब्द ‘हिव�ेषण’ कहलाते हैं। जैसे-बड़ा, काला, लंबा, दयालु, भारी, सुन्दर, कायर, +ेढ़ा-मेढ़ा, एक, दो आदिद।हिव�ेष्य- जिजस संज्ञा अर्थवा सव9नाम �ब्द की हिव�ेषता बताई जाए वह हिव�ेष्य कहलाता है। यर्था- गीता सुन्दर है। इसमें ‘सुन्दर’ हिव�ेषण है और ‘गीता’ हिव�ेष्य है। हिव�ेषण �ब्द हिव�ेष्य से पूव9 भी आते हैं और उसके बाद भी।

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पूव9 में, जैसे- (1) र्थोड़ा-सा जल लाओ। (2) एक मी+र कपड़ा ले आना।बाद में, जैसे- (1) यह रास्ता लंबा है। (2) खीरा कड़वा है।हिव�ेषण के भेद- हिव�ेषण के ार भेद हैं-1. गुणवा क।2. परिरमाणवा क।3. संख्यावा क।4. संकेतवा क अर्थवा साव9नाधिमक।

1. रु्गण�ाचक वि�र्शेषण

जिजन हिव�ेषण �ब्दों से संज्ञा अर्थवा सव9नाम �ब्दों के गुण-दोष का बोध हो वे गुणवा क हिव�ेषण कहलाते हैं। जैसे-(1) भाव- अच्छा, बुरा, कायर, वीर, डरपोक आदिद।(2) रंग- लाल, हरा, पीला, सफेद, काला, मकीला, फीका आदिद।(3) द�ा- पतला, मो+ा, सूखा, गाढ़ा, हिपघला, भारी, गीला, गरीब, अमीर, रोगी, स्व[, पालतू आदिद।(4) आकार- गोल, सुडौल, नुकीला, समान, पोला आदिद।(5) समय- अगला, हिपछला, दोपहर, संध्या, सवेरा आदिद।(6) [ान- भीतरी, बाहरी, पंजाबी, जापानी, पुराना, ताजा, आगामी आदिद।(7) गुण- भला, बुरा, सुन्दर, मीठा, खट्टा, दानी,स , झूठ, सीधा आदिद।(8) दिद�ा- उत्तरी, दभिक्षणी, पूव�, पभिYमी आदिद।

2. परिरमाण�ाचक वि�र्शेषण

जिजन हिव�ेषण �ब्दों से संज्ञा या सव9नाम की मात्रा अर्थवा नाप-तोल का ज्ञान हो वे परिरमाणवा क हिव�ेषण कहलाते हैं।परिरमाणवा क हिव�ेषण के दो उपभेद है-(1) हिनभिYत परिरमाणवा क हिव�ेषण- जिजन हिव�ेषण �ब्दों से वस्तु की हिनभिYत मात्रा का ज्ञान हो। जैसे-(क) मेरे सू+ में साढे़ तीन मी+र कपड़ा लगेगा।(ख) दस हिकलो ीनी ले आओ।(ग) दो शिल+र दूध गरम करो।(2) अहिनभिYत परिरमाणवा क हिव�ेषण- जिजन हिव�ेषण �ब्दों से वस्तु की अहिनभिYत मात्रा का ज्ञान हो। जैसे-(क) र्थोड़ी-सी नमकीन वस्तु ले आओ।(ख) कुछ आम दे दो।(ग) र्थोड़ा-सा दूध गरम कर दो।

3. संख्या�ाचक वि�र्शेषण

जिजन हिव�ेषण �ब्दों से संज्ञा या सव9नाम की संख्या का बोध हो वे संख्यावा क हिव�ेषण कहलाते हैं। जैसे-एक, दो, हिद्वतीय, दुगुना, ौगुना, पाँ ों आदिद।संख्यावा क हिव�ेषण के दो उपभेद हैं-(1) हिनभिYत संख्यावा क हिव�ेषण- जिजन हिव�ेषण �ब्दों से हिनभिYत संख्या का बोध हो। जैसे-दो पुस्तकें मेरे

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शिलए ले आना।हिनभिYत संख्यावा क के हिनम्नशिलखिखत ार भेद हैं-(क) गणवा क- जिजन �ब्दों के द्वारा हिगनती का बोध हो। जैसे-(1) एक लड़का स्कूल जा रहा है।(2) पच्चीस रुपये दीजिजए।(3) कल मेरे यहाँ दो धिमत्र आएगेँ।(4) ार आम लाओ।(ख) =मवा क- जिजन �ब्दों के द्वारा संख्या के =म का बोध हो। जैसे-(1) पहला लड़का यहाँ आए।(2) दूसरा लड़का वहाँ बैठे।(3) राम कक्षा में प्रर्थम रहा।(4) श्याम हिद्वतीय श्रेणी में पास हुआ है।(ग) आवृभित्तवा क- जिजन �ब्दों के द्वारा केवल आवृभित्त का बोध हो। जैसे-(1) मोहन तुमसे ौगुना काम करता है।(2) गोपाल तुमसे दुगुना मो+ा है।(घ) समुदायवा क- जिजन �ब्दों के द्वारा केवल सामूहिहक संख्या का बोध हो। जैसे-(1) तुम तीनों को जाना पडे़गा।(2) यहाँ से ारों ले जाओ।(2) अहिनभिYत संख्यावा क हिव�ेषण- जिजन हिव�ेषण �ब्दों से हिनभिYत संख्या का बोध न हो। जैसे-कुछ बच्चे पाक9 में खेल रहे हैं।

4. संकेत�ाचक (विनदQर्शक) वि�र्शेषण

जो सव9नाम संकेत द्वारा संज्ञा या सव9नाम की हिव�ेषता बतलाते हैं वे संकेतवा क हिव�ेषण कहलाते हैं।हिव�ेष-क्योंहिक संकेतवा क हिव�ेषण सव9नाम �ब्दों से बनते हैं, अतः ये साव9नाधिमक हिव�ेषण कहलाते हैं। इन्हें हिनद �क भी कहते हैं।(1) परिरमाणवा क हिव�ेषण और संख्यावा क हिव�ेषण में अंतर- जिजन वस्तुओं की नाप-तोल की जा सके उनके वा क �ब्द परिरमाणवा क हिव�ेषण कहलाते हैं। जैसे-‘कुछ दूध लाओ’। इसमें ‘कुछ’ �ब्द तोल के शिलए आया है। इसशिलए यह परिरमाणवा क हिव�ेषण है। 2.जिजन वस्तुओं की हिगनती की जा सके उनके वा क �ब्द संख्यावा क हिव�ेषण कहलाते हैं। जैसे-कुछ बच्चे इधर आओ। यहाँ पर ‘कुछ’ बच्चों की हिगनती के शिलए आया है। इसशिलए यह संख्यावा क हिव�ेषण है। परिरमाणवा क हिव�ेषणों के बाद द्रव्य अर्थवा पदार्थ9वा क संज्ञाए ँआएगँी जबहिक संख्यावा क हिव�ेषणों के बाद जाहितवा क संज्ञाए ँआती हैं।(2) सव9नाम और साव9नाधिमक हिव�ेषण में अंतर- जिजस �ब्द का प्रयोग संज्ञा �ब्द के [ान पर हो उसे सव9नाम कहते हैं। जैसे-वह मुंबई गया। इस वाक्य में वह सव9नाम है। जिजस �ब्द का प्रयोग संज्ञा से पूव9 अर्थवा बाद में हिव�ेषण के रूप में हिकया गया हो उसे साव9नाधिमक हिव�ेषण कहते हैं। जैसे-वह रर्थ आ रहा है। इसमें वह �ब्द रर्थ का हिव�ेषण है। अतः यह साव9नाधिमक हिव�ेषण है।

वि�र्शेषण की अ�स्थाएँ

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हिव�ेषण �ब्द हिकसी संज्ञा या सव9नाम की हिव�ेषता बतलाते हैं। हिव�ेषता बताई जाने वाली वस्तुओं के गुण-दोष कम-ज्यादा होते हैं। गुण-दोषों के इस कम-ज्यादा होने को तुलनात्मक ढंग से ही जाना जा सकता है। तुलना की दृधिष्ट से हिव�ेषणों की हिनम्नशिलखिखत तीन अव[ाए ँहोती हैं-(1) मूलाव[ा(2) उत्तराव[ा(3) उत्तमाव[ा

(1) मूला�स्था

मूलाव[ा में हिव�ेषण का तुलनात्मक रूप नहीं होता है। वह केवल सामान्य हिव�ेषता ही प्रक+ करता है। जैसे- 1.साहिवत्री संुदर लड़की है। 2.सुरे� अच्छा लड़का है। 3.सूय9 तेजस्वी है।

(2) उ=रा�स्था

जब दो व्यशिEयों या वस्तुओं के गुण-दोषों की तुलना की जाती है तब हिव�ेषण उत्तराव[ा में प्रयुE होता है। जैसे- 1.रवीन्द्र ेतन से अधिधक बुजिद्धमान है। 2.सहिवता रमा की अपेक्षा अधिधक सुन्दर है।

(3) उ=मा�स्था

उत्तमाव[ा में दो से अधिधक व्यशिEयों एवं वस्तुओं की तुलना करके हिकसी एक को सबसे अधिधक अर्थवा सबसे कम बताया गया है। जैसे- 1.पंजाब में अधिधकतम अन्न होता है। 2.संदीप हिनकृष्टतम बालक है।हिव�ेष-केवल गुणवा क एवं अहिनभिYत संख्यावा क तर्था हिनभिYत परिरमाणवा क हिव�ेषणों की ही ये तुलनात्मक अव[ाए ँहोती हैं, अन्य हिव�ेषणों की नहीं।अव[ाओं के रूप-(1) अधिधक और सबसे अधिधक �ब्दों का प्रयोग करके उत्तराव[ा और उत्तमाव[ा के रूप बनाए जा सकते हैं। जैसे-मूलाव[ा उत्तराव[ा उत्तमाव[ाअच्छी अधिधक अच्छी सबसे अच्छी तुर अधिधक तुर सबसे अधिधक तुरबुजिद्धमान अधिधक बुजिद्धमान सबसे अधिधक बुजिद्धमानबलवान अधिधक बलवान सबसे अधिधक बलवानइसी प्रकार दूसरे हिव�ेषण �ब्दों के रूप भी बनाए जा सकते हैं।(2) तत्सम �ब्दों में मूलाव[ा में हिव�ेषण का मूल रूप, उत्तराव[ा में ‘तर’ और उत्तमाव[ा में ‘तम’ का प्रयोग होता है। जैसे-

मूलाव[ा उत्तराव[ा उत्तमाव[ाउच्च उच्चतर उच्चतमकठोर कठोरतर कठोरतमगुरु गुरुतर गुरुतममहान, महानतर महत्तर, महानतम महत्तम

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न्यून न्यूनतर न्यनूतमलघु लघुतर लघुतमतीव्र तीव्रतर तीव्रतमहिव�ाल हिव�ालतर हिव�ालतमउत्कृष्ट उत्कृष्टर उत्कृट्ठतमसंुदर संुदरतर संुदरतममधुर मधुरतर मधुतरतम

वि�र्शेषणों की रचना

कुछ �ब्द मूलरूप में ही हिव�ेषण होते हैं, हिकन्तु कुछ हिव�ेषण �ब्दों की र ना संज्ञा, सव9नाम एवं हि=या �ब्दों से की जाती है-(1) संज्ञा से हिव�ेषण बनानाप्रत्यय संज्ञा हिव�ेषण संज्ञा हिव�ेषणक अं� आंशि�क धम9 धार्मिमंक

अलंकार आलंकारिरक नीहित नैहितकअर्थ9 आर्थिर्थंक दिदन दैहिनकइहितहास ऐहितहाशिसक देव दैहिवक

इत अंक अंहिकत कुसुम कुसुधिमतसुरभिभ सुरभिभत ध्वहिन ध्वहिनतकु्षधा कु्षधिधत तरंग तरंहिगत

इल ज+ा जदि+ल पंक पंहिकलफेन फेहिनल उर्मिमं उर्मिमलं

इम स्वण9 स्वर्णिणंम रE रशिEमई रोग रोगी भोग भोगीईन,ईण कुल कुलीन ग्राम ग्रामीणईय आत्मा आत्मीय जाहित जातीयआलु श्रद्धा श्रद्धालु ईष्या9 ईष्या9लुवी मनस मनस्वी तपस तपस्वीमय सुख सुखमय दुख दुखमय

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वान रूप रूपवान गुण गुणवानवती(स्त्री) गुण गुणवती पुत्र पुत्रवतीमान बुजिद्ध बुजिद्धमान श्री श्रीमानमती (स्त्री) श्री श्रीमती बुजिद्ध बुजिद्धमतीरत धम9 धम9रत कम9 कम9रत[ समीप समीप[ देह देह[हिनष्ठ धम9 धम9हिनष्ठ कम9 कम9हिनष्ठ

(2) सव9नाम से हिव�ेषण बनानासव9नाम हिव�ेषण सव9नाम हिव�ेषणवह वैसा यह ऐसा

(3) हि=या से हिव�ेषण बनानाहि=या हिव�ेषण हि=या हिव�ेषणपत पहितत पूज पूजनीयपठ पदिठत वंद वंदनीयभागना भागने वाला पालना पालने वाला

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अध्याय 10

विक्रया

हि=या- जिजस �ब्द अर्थवा �ब्द-समूह के द्वारा हिकसी काय9 के होने अर्थवा करने का बोध हो उसे हि=या कहते हैं। जैसे-(1) गीता ना रही है।(2) बच्चा दूध पी रहा है।(3) राके� कॉलेज जा रहा है।(4) गौरव बुजिद्धमान है।(5) शि�वाजी बहुत वीर रे्थ।इनमें ‘ना रही है’, ‘पी रहा है’, ‘जा रहा है’ �ब्द काय9-व्यापार का बोध करा रहे हैं। जबहिक ‘है’, ‘रे्थ’ �ब्द होने का। इन सभी से हिकसी काय9 के करने अर्थवा होने का बोध हो रहा है। अतः ये हि=याए ँहैं।

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धातु

हि=या का मूल रूप धातु कहलाता है। जैसे-शिलख, पढ़, जा, खा, गा, रो, पा आदिद। इन्हीं धातुओं से शिलखता, पढ़ता, आदिद हि=याए ँबनती हैं।हि=या के भेद- हि=या के दो भेद हैं-(1) अकम9क हि=या।(2) सकम9क हि=या।

1. अकम�क विक्रया

जिजन हि=याओं का फल सीधा कता9 पर ही पडे़ वे अकम9क हि=या कहलाती हैं। ऐसी अकम9क हि=याओं को कम9 की आवश्यकता नहीं होती। अकम9क हि=याओं के अन्य उदाहरण हैं-(1) गौरव रोता है।(2) साँप रेंगता है।(3) रेलगाड़ी लती है।कुछ अकम9क हि=याए-ँ लजाना, होना, बढ़ना, सोना, खेलना, अकड़ना, डरना, बैठना, हँसना, उगना, जीना, दौड़ना, रोना, ठहरना, मकना, डोलना, मरना, घ+ना, फाँदना, जागना, बरसना, उछलना, कूदना आदिद।

2. सकम�क विक्रया

जिजन हि=याओं का फल (कता9 को छोड़कर) कम9 पर पड़ता है वे सकम9क हि=या कहलाती हैं। इन हि=याओं में कम9 का होना आवश्यक हैं, सकम9क हि=याओं के अन्य उदाहरण हैं-(1) मैं लेख शिलखता हूँ। (2) रमे� धिमठाई खाता है।(3) सहिवता फल लाती है। (4) भँवरा फूलों का रस पीता है।3.हिद्वकम9क हि=या- जिजन हि=याओं के दो कम9 होते हैं, वे हिद्वकम9क हि=याए ँकहलाती हैं। हिद्वकम9क हि=याओं के उदाहरण हैं-(1) मैंने श्याम को पुस्तक दी।(2) सीता ने राधा को रुपये दिदए।ऊपर के वाक्यों में ‘देना’ हि=या के दो कम9 हैं। अतः देना हिद्वकम9क हि=या हैं।

प्रयोर्ग की दृविC से विक्रया के भेद

प्रयोग की दृधिष्ट से हि=या के हिनम्नशिलखिखत पाँ भेद हैं-1.सामान्य हि=या- जहाँ केवल एक हि=या का प्रयोग होता है वह सामान्य हि=या कहलाती है। जैसे-1. आप आए। 2.वह नहाया आदिद।2.संयुE हि=या- जहाँ दो अर्थवा अधिधक हि=याओं का सार्थ-सार्थ प्रयोग हो वे संयुE हि=या कहलाती हैं। जैसे-1.सहिवता महाभारत पढ़ने लगी।

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2.वह खा ुका।3.नामधातु हि=या- संज्ञा, सव9नाम अर्थवा हिव�ेषण �ब्दों से बने हि=यापद नामधातु हि=या कहलाते हैं। जैसे-हशिर्थयाना, �रमाना, अपनाना, लजाना, शि कनाना, झुठलाना आदिद।4.पे्ररणार्थ9क हि=या- जिजस हि=या से पता ले हिक कता9 स्वयं काय9 को न करके हिकसी अन्य को उस काय9 को करने की पे्ररणा देता है वह पे्ररणार्थ9क हि=या कहलाती है। ऐसी हि=याओं के दो कता9 होते हैं- (1) पे्ररक कता9- पे्ररणा प्रदान करने वाला। (2) पे्ररिरत कता9-पे्ररणा लेने वाला। जैसे-श्यामा राधा से पत्र शिलखवाती है। इसमें वास्तव में पत्र तो राधा शिलखती है, हिकन्तु उसको शिलखने की पे्ररणा देती है श्यामा। अतः ‘शिलखवाना’ हि=या पे्ररणार्थ9क हि=या है। इस वाक्य में श्यामा पे्ररक कता9 है और राधा पे्ररिरत कता9।5.पूव9काशिलक हि=या- हिकसी हि=या से पूव9 यदिद कोई दूसरी हि=या प्रयुE हो तो वह पूव9काशिलक हि=या कहलाती है। जैसे- मैं अभी सोकर उठा हूँ। इसमें ‘उठा हूँ’ हि=या से पूव9 ‘सोकर’ हि=या का प्रयोग हुआ है। अतः ‘सोकर’ पूव9काशिलक हि=या है।हिव�ेष- पूव9काशिलक हि=या या तो हि=या के सामान्य रूप में प्रयुE होती है अर्थवा धातु के अंत में ‘कर’ अर्थवा ‘करके’ लगा देने से पूव9काशिलक हि=या बन जाती है। जैसे-(1) बच्चा दूध पीते ही सो गया। (2) लड़हिकयाँ पुस्तकें पढ़कर जाएगँी।

अपूण� विक्रया

कई बार वाक्य में हि=या के होते हुए भी उसका अर्थ9 स्पष्ट नहीं हो पाता। ऐसी हि=याए ँअपूण9 हि=या कहलाती हैं। जैसे-गाँधीजी रे्थ। तुम हो। ये हि=याए ँअपूण9 हि=याए ँहै। अब इन्हीं वाक्यों को हिफर से पदिढ़ए-गांधीजी राष्ट्रहिपता रे्थ। तुम बुजिद्धमान हो।इन वाक्यों में =म�ः ‘राष्ट्रहिपता’ और ‘बुजिद्धमान’ �ब्दों के प्रयोग से स्पष्टता आ गई। ये सभी �ब्द ‘पूरक’ हैं।अपूण9 हि=या के अर्थ9 को पूरा करने के शिलए जिजन �ब्दों का प्रयोग हिकया जाता है उन्हें पूरक कहते हैं।

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अध्याय 11

काल

काल

हि=या के जिजस रूप से काय9 संपन्न होने का समय (काल) ज्ञात हो वह काल कहलाता है। काल के हिनम्नशिलखिखत तीन भेद हैं-1. भूतकाल।2. वत9मानकाल।3. भहिवष्यकाल।

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1. भूतकाल

हि=या के जिजस रूप से बीते हुए समय (अतीत) में काय9 संपन्न होने का बोध हो वह भूतकाल कहलाता है। जैसे-(1) बच्चा गया। (2) बच्चा गया है। (3) बच्चा जा ुका र्था।ये सब भूतकाल की हि=याए ँहैं, क्योंहिक ‘गया’, ‘गया है’, ‘जा ुका र्था’, हि=याए ँभूतकाल का बोध कराती है।भूतकाल के हिनम्नशिलखिखत छह भेद हैं-1. सामान्य भूत।2. आसन्न भूत।3. अपूण9 भूत।4. पूण9 भूत।5. संदिदग्ध भूत।6. हेतुहेतुमद भूत।1.सामान्य भूत- हि=या के जिजस रूप से बीते हुए समय में काय9 के होने का बोध हो हिकन्तु ठीक समय का ज्ञान न हो, वहाँ सामान्य भूत होता है। जैसे-(1) बच्चा गया। (2) श्याम ने पत्र शिलखा। (3) कमल आया।2.आसन्न भूत- हि=या के जिजस रूप से अभी-अभी हिनक+ भूतकाल में हि=या का होना प्रक+ हो, वहाँ आसन्न भूत होता है। जैसे-(1) बच्चा आया है। (2) श्यान ने पत्र शिलखा है।(3) कमल गया है।3.अपूण9 भूत- हि=या के जिजस रूप से काय9 का होना बीते समय में प्रक+ हो, पर पूरा होना प्रक+ न हो वहाँ अपूण9 भूत होता है। जैसे-(1) बच्चा आ रहा र्था। (2) श्याम पत्र शिलख रहा र्था।(3) कमल जा रहा र्था।4.पूण9 भूत- हि=या के जिजस रूप से यह ज्ञात हो हिक काय9 समाप्त हुए बहुत समय बीत ुका है उसे पूण9 भूत कहते हैं। जैसे-(1) श्याम ने पत्र शिलखा र्था।(2) बच्चा आया र्था। (3) कमल गया र्था।5.संदिदग्ध भूत- हि=या के जिजस रूप से भूतकाल का बोध तो हो हिकन्तु काय9 के होने में संदेह हो वहाँ संदिदग्ध भूत होता है। जैसे-(1) बच्चा आया होगा।(2) श्याम ने पत्र शिलखा होगा।

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(3) कमल गया होगा।6.हेतुहेतुमद भूत- हि=या के जिजस रूप से बीते समय में एक हि=या के होने पर दूसरी हि=या का होना आभिश्रत हो अर्थवा एक हि=या के न होने पर दूसरी हि=या का न होना आभिश्रत हो वहाँ हेतुहेतुमद भूत होता है। जैसे-(1) यदिद श्याम ने पत्र शिलखा होता तो मैं अवश्य आता।(2) यदिद वषा9 होती तो फसल अच्छी होती।

2. �त�मान काल

हि=या के जिजस रूप से काय9 का वत9मान काल में होना पाया जाए उसे वत9मान काल कहते हैं। जैसे- (1) मुहिन माला फेरता है। (2) श्याम पत्र शिलखता होगा। इन सब में वत9मान काल की हि=याए ँहैं, क्योंहिक ‘फेरता है’, ‘शिलखता होगा’, हि=याए ँवत9मान काल का बोध कराती हैं।इसके हिनम्नशिलखिखत तीन भेद हैं-(1) सामान्य वत9मान।(2) अपूण9 वत9मान।(3) संदिदग्ध वत9मान।1.सामान्य वत9मान- हि=या के जिजस रूप से यह बोध हो हिक काय9 वत9मान काल में सामान्य रूप से होता है वहाँ सामान्य वत9मान होता है। जैसे-(1) बच्चा रोता है। (2) श्याम पत्र शिलखता है।(3) कमल आता है।2.अपूण9 वत9मान- हि=या के जिजस रूप से यह बोध हो हिक काय9 अभी ल ही रहा है, समाप्त नहीं हुआ है वहाँ अपूण9 वत9मान होता है। जैसे-(1) बच्चा रो रहा है। (2) श्याम पत्र शिलख रहा है।(3) कमल आ रहा है।3.संदिदग्ध वत9मान- हि=या के जिजस रूप से वत9मान में काय9 के होने में संदेह का बोध हो वहाँ संदिदग्ध वत9मान होता है। जैसे-(1) अब बच्चा रोता होगा। (2) श्याम इस समय पत्र शिलखता होगा।

3. भवि�ष्यत काल

हि=या के जिजस रूप से यह ज्ञात हो हिक काय9 भहिवष्य में होगा वह भहिवष्यत काल कहलाता है। जैसे- (1) श्याम पत्र शिलखेगा। (2) �ायद आज संध्या को वह आए।इन दोनों में भहिवष्यत काल की हि=याए ँहैं, क्योंहिक शिलखेगा और आए हि=याए ँभहिवष्यत काल का बोध कराती हैं।इसके हिनम्नशिलखिखत दो भेद हैं-1. सामान्य भहिवष्यत।

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2. संभाव्य भहिवष्यत।1.सामान्य भहिवष्यत- हि=या के जिजस रूप से काय9 के भहिवष्य में होने का बोध हो उसे सामान्य भहिवष्यत कहते हैं। जैसे- (1) श्याम पत्र शिलखेगा।(2) हम घूमने जाएगँे।2.संभाव्य भहिवष्यत- हि=या के जिजस रूप से काय9 के भहिवष्य में होने की संभावना का बोध हो वहाँ संभाव्य भहिवष्यत होता है जैसे-(1) �ायद आज वह आए। (2) संभव है श्याम पत्र शिलखे। (3) कदाशि त संध्या तक पानी पडे़।

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अध्याय 12

�ाच्य

वाच्य-हि=या के जिजस रूप से यह ज्ञात हो हिक वाक्य में हि=या द्वारा संपादिदत हिवधान का हिवषय कता9 है, कम9 है, अर्थवा भाव है, उसे वाच्य कहते हैं।वाच्य के तीन प्रकार हैं-1. कतृ9वाच्य।2. कम9वाच्य।3. भाववाच्य।1.कतृ9वाच्य- हि=या के जिजस रूप से वाक्य के उदे्दश्य (हि=या के कता9) का बोध हो, वह कतृ9वाच्य कहलाता है। इसमें लिलंग एवं व न प्रायः कता9 के अनुसार होते हैं। जैसे- 1.बच्चा खेलता है। 2.घोड़ा भागता है।इन वाक्यों में ‘बच्चा’, ‘घोड़ा’ कता9 हैं तर्था वाक्यों में कता9 की ही प्रधानता है। अतः ‘खेलता है’, ‘भागता है’ ये कतृ9वाच्य हैं।2.कम9वाच्य- हि=या के जिजस रूप से वाक्य का उदे्दश्य ‘कम9’ प्रधान हो उसे कम9वाच्य कहते हैं। जैसे- 1.भारत-पाक युद्ध में सहस्रों सैहिनक मारे गए। 2.छात्रों द्वारा ना+क प्रस्तुत हिकया जा रहा है। 3.पुस्तक मेरे द्वारा पढ़ी गई। 4.बच्चों के द्वारा हिनबंध पढे़ गए। इन वाक्यों में हि=याओं में ‘कम9’ की प्रधानता द�ा9ई गई है। उनकी रूप-र ना भी कम9 के लिलंग, व न और पुरुष के अनुसार हुई है। हि=या के ऐसे रूप ‘कम9वाच्य’ कहलाते हैं।3.भाववाच्य-हि=या के जिजस रूप से वाक्य का उदे्दश्य केवल भाव (हि=या का अर्थ9) ही जाना जाए वहाँ भाववाच्य होता है। इसमें कता9 या कम9 की प्रधानता नहीं होती है। इसमें मुख्यतः अकम9क हि=या का ही

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प्रयोग होता है और सार्थ ही प्रायः हिनषेधार्थ9क वाक्य ही भाववाच्य में प्रयुE होते हैं। इसमें हि=या सदैव पुस्थिल्लंग, अन्य पुरुष के एक व न की होती है।

प्रयोर्ग

प्रयोग तीन प्रकार के होते हैं-1. कत9रिर प्रयोग।2. कम9भिण प्रयोग।3. भावे प्रयोग।1.कत9रिर प्रयोग- जब कता9 के लिलंग, व न और पुरुष के अनुरूप हि=या हो तो वह ‘कत9रिर प्रयोग’ कहलाता है। जैसे- 1.लड़का पत्र शिलखता है। 2.लड़हिकयाँ पत्र शिलखती है।इन वाक्यों में ‘लड़का’ एकव न, पुस्थिल्लंग और अन्य पुरुष है और उसके सार्थ हि=या भी ‘शिलखता है’ एकव न, पुस्थिल्लंग और अन्य पुरुष है। इसी तरह ‘लड़हिकयाँ पत्र शिलखती हैं’ दूसरे वाक्य में कता9 बहुव न, स्त्रीलिलंग और अन्य पुरुष है तर्था उसकी हि=या भी ‘शिलखती हैं’ बहुव न स्त्रीलिलंग और अन्य पुरुष है।2.कम9भिण प्रयोग- जब हि=या कम9 के लिलंग, व न और पुरुष के अनुरूप हो तो वह ‘कम9भिण प्रयोग’ कहलाता है। जैसे- 1.उपन्यास मेरे द्वारा पढ़ा गया। 2.छात्रों से हिनबंध शिलखे गए। 3.युद्ध में हजारों सैहिनक मारे गए। इन वाक्यों में ‘उपन्यास’, ‘सैहिनक’, कम9 कता9 की स्थि[हित में हैं अतः उनकी प्रधानता है। इनमें हि=या का रूप कम9 के लिलंग, व न और पुरुष के अनुरूप बदला है, अतः यहाँ ‘कम9भिण प्रयोग’ है।3.भावे प्रयोग- कत9रिर वाच्य की सकम9क हि=याए,ँ जब उनके कता9 और कम9 दोनों हिवभशिEयुE हों तो वे ‘भावे प्रयोग’ के अंतग9त आती हैं। इसी प्रकार भाववाच्य की सभी हि=याए ँभी भावे प्रयोग में मानी जाती है। जैसे- 1.अनीता ने बेल को सीं ा। 2.लड़कों ने पत्रों को देखा है। 3.लड़हिकयों ने पुस्तकों को पढ़ा है। 4.अब उससे ला नहीं जाता है। इन वाक्यों की हि=याओं के लिलंग, व न और पुरुष न कता9 के अनुसार हैं और न ही कम9 के अनुसार, अहिपतु वे एकव न, पुस्थिल्लंग और अन्य पुरुष हैं। इस प्रकार के ‘प्रयोग भावे’ प्रयोग कहलाते हैं।

�ाच्य परिर�त�न

1.कतृ9वाच्य से कम9वाच्य बनाना-(1) कतृ9वाच्य की हि=या को सामान्य भूतकाल में बदलना ाहिहए।(2) उस परिरवर्तितंत हि=या-रूप के सार्थ काल, पुरुष, व न और लिलंग के अनुरूप जाना हि=या का रूप जोड़ना ाहिहए।(3) इनमें ‘से’ अर्थवा ‘के द्वारा’ का प्रयोग करना ाहिहए। जैसे-कतृ9वाच्य कम9वाच्य

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1.श्यामा उपन्यास शिलखती है। श्यामा से उपन्यास शिलखा जाता है।2.श्यामा ने उपन्यास शिलखा। श्यामा से उपन्यास शिलखा गया।3.श्यामा उपन्यास शिलखेगी। श्यामा से (के द्वारा) उपन्यास शिलखा जाएगा।2.कतृ9वाच्य से भाववाच्य बनाना-(1) इसके शिलए हि=या अन्य पुरुष और एकव न में रखनी ाहिहए।(2) कता9 में करण कारक की हिवभशिE लगानी ाहिहए।(3) हि=या को सामान्य भूतकाल में लाकर उसके काल के अनुरूप जाना हि=या का रूप जोड़ना ाहिहए।(4) आवश्यकतानुसार हिनषेधसू क ‘नहीं’ का प्रयोग करना ाहिहए। जैसे-कतृ9वाच्य भाववाच्य1.बच्चे नहीं दौड़ते। बच्चों से दौड़ा नहीं जाता।2.पक्षी नहीं उड़ते। पभिक्षयों से उड़ा नहीं जाता।3.बच्चा नहीं सोया। बच्चे से सोया नहीं जाता।

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अध्याय 13

विक्रया-वि�र्शेषण

हि=या-हिव�ेषण- जो �ब्द हि=या की हिव�ेषता प्रक+ करते हैं वे हि=या-हिव�ेषण कहलाते हैं। जैसे- 1.सोहन संुदर शिलखता है। 2.गौरव यहाँ रहता है। 3.संगीता प्रहितदिदन पढ़ती है। इन वाक्यों में ‘सुन्दर’, ‘यहाँ’ और ‘प्रहितदिदन’ �ब्द हि=या की हिव�ेषता बतला रहे हैं। अतः ये �ब्द हि=या-हिव�ेषण हैं।अर्था9नुसार हि=या-हिव�ेषण के हिनम्नशिलखिखत ार भेद हैं-1. कालवा क हि=या-हिव�ेषण।2. [ानवा क हि=या-हिव�ेषण।3. परिरमाणवा क हि=या-हिव�ेषण।4. रीहितवा क हि=या-हिव�ेषण।1.कालवा क हि=या-हिव�ेषण- जिजस हि=या-हिव�ेषण �ब्द से काय9 के होने का समय ज्ञात हो वह कालवा क हि=या-हिव�ेषण कहलाता है। इसमें बहुधा ये �ब्द प्रयोग में आते हैं- यदा, कदा, जब, तब, हमे�ा, तभी, तत्काल, हिनरंतर, �ीघ्र, पूव9, बाद, पीछे, घड़ी-घड़ी, अब, तत्पYात्, तदनंतर, कल, कई बार, अभी हिफर कभी आदिद।2.[ानवा क हि=या-हिव�ेषण- जिजस हि=या-हिव�ेषण �ब्द द्वारा हि=या के होने के [ान का बोध हो वह [ानवा क हि=या-हिव�ेषण कहलाता है। इसमें बहुधा ये �ब्द प्रयोग में आते हैं- भीतर, बाहर, अंदर, यहाँ, वहाँ, हिकधर, उधर, इधर, कहाँ, जहाँ, पास, दूर, अन्यत्र, इस ओर, उस ओर, दाए,ँ बाए,ँ ऊपर, नी े आदिद।3.परिरमाणवा क हि=या-हिव�ेषण-जो �ब्द हि=या का परिरमाण बतलाते हैं वे ‘परिरमाणवा क हि=या-हिव�ेषण’ कहलाते हैं। इसमें बहुधा र्थोड़ा-र्थोड़ा, अत्यंत, अधिधक, अल्प, बहुत, कुछ, पया9प्त, प्रभूत, कम, न्यून, बँूद-बँूद, स्वल्प, केवल, प्रायः अनुमानतः, सव9र्था आदिद �ब्द प्रयोग में आते हैं।कुछ �ब्दों का प्रयोग परिरमाणवा क हिव�ेषण और परिरमाणवा क हि=या-हिव�ेषण दोनों में समान रूप से हिकया जाता है। जैसे-र्थोड़ा, कम, कुछ काफी आदिद।

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4.रीहितवा क हि=या-हिव�ेषण- जिजन �ब्दों के द्वारा हि=या के संपन्न होने की रीहित का बोध होता है वे ‘रीहितवा क हि=या-हिव�ेषण’ कहलाते हैं। इनमें बहुधा ये �ब्द प्रयोग में आते हैं- अ ानक, सहसा, एकाएक, झ+प+, आप ही, ध्यानपूव9क, धड़ाधड़, यर्था, तर्था, ठीक, स मु , अवश्य, वास्तव में, हिनस्संदेह, बे�क, �ायद, संभव हैं, कदाशि त्, बहुत करके, हाँ, ठीक, स , जी, जरूर, अतएव, हिकसशिलए, क्योंहिक, नहीं, न, मत, कभी नहीं, कदाहिप नहीं आदिद।

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अध्याय 14

संबंधबोधक अव्यय

संबंधबोधक अव्यय- जिजन अव्यय �ब्दों से संज्ञा अर्थवा सव9नाम का वाक्य के दूसरे �ब्दों के सार्थ संबंध जाना जाता है, वे संबंधबोधक अव्यय कहलाते हैं। जैसे- 1. उसका सार्थ छोड़ दीजिजए। 2.मेरे सामने से ह+ जा। 3.लालहिकले पर हितरंगा लहरा रहा है। 4.वीर अभिभमन्यु अंत तक �त्रु से लोहा लेता रहा। इनमें ‘सार्थ’, ‘सामने’, ‘पर’, ‘तक’ �ब्द संज्ञा अर्थवा सव9नाम �ब्दों के सार्थ आकर उनका संबंध वाक्य के दूसरे �ब्दों के सार्थ बता रहे हैं। अतः वे संबंधबोधक अव्यय है।अर्थ9 के अनुसार संबंधबोधक अव्यय के हिनम्नशिलखिखत भेद हैं-1. कालवा क- पहले, बाद, आगे, पीछे।2. [ानवा क- बाहर, भीतर, बी , ऊपर, नी े।3. दिद�ावा क- हिनक+, समीप, ओर, सामने।4. साधनवा क- हिनधिमत्त, द्वारा, जरिरये।5. हिवरोधसू क- उल+े, हिवरुद्ध, प्रहितकूल।6. समतासू क- अनुसार, सदृ�, समान, तुल्य, तरह।7. हेतुवा क- रहिहत, अर्थवा, शिसवा, अहितरिरE।8. सह रसू क- समेत, संग, सार्थ।9. हिवषयवा क- हिवषय, बाबत, लेख।10. संग्रवा क- समेत, भर, तक।

विक्रया-वि�र्शेषण और संबंधबोधक अव्यय में अंतर

जब इनका प्रयोग संज्ञा अर्थवा सव9नाम के सार्थ होता है तब ये संबंधबोधक अव्यय होते हैं और जब ये हि=या की हिव�ेषता प्रक+ करते हैं तब हि=या-हिव�ेषण होते हैं। जैसे-(1) अंदर जाओ। (हि=या हिव�ेषण)(2) दुकान के भीतर जाओ। (संबंधबोधक अव्यय)

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अध्याय 15

समुच्चयबोधक अव्यय

समुच्चयबोधक अव्यय- दो �ब्दों, वाक्यां�ों या वाक्यों को धिमलाने वाले अव्यय समुच्चयबोधक अव्यय कहलाते हैं। इन्हें ‘योजक’ भी कहते हैं। जैसे-(1) श्रुहित और गंुजन पढ़ रहे हैं।(2) मुझे +ेपरिरकाड9र या घड़ी ाहिहए।(3) सीता ने बहुत मेहनत की हिकन्तु हिफर भी सफल न हो सकी।(4) बे�क वह धनवान है परन्तु है कंजूस।इनमें ‘और’, ‘या’, ‘हिकन्तु’, ‘परन्तु’ �ब्द आए हैं जोहिक दो �ब्दों अर्थवा दो वाक्यों को धिमला रहे हैं। अतः ये समुच्चयबोधक अव्यय हैं।समुच्चयबोधक के दो भेद हैं-1. समानाधिधकरण समुच्चयबोधक।2. व्यधिधकरण समुच्चयबोधक।

1. समानालिधकरण समुच्चयबोधक

जिजन समुच्चयबोधक �ब्दों के द्वारा दो समान वाक्यां�ों पदों और वाक्यों को परस्पर जोड़ा जाता है, उन्हें समानाधिधकरण समुच्चयबोधक कहते हैं। जैसे- 1.सुनंदा खड़ी र्थी और अलका बैठी र्थी। 2.ऋते� गाएगा तो ऋतु तबला बजाएगी। इन वाक्यों में और, तो समुच्चयबोधक �ब्दों द्वारा दो समान �ब्द और वाक्य परस्पर जुडे़ हैं।समानाधिधकरण समुच्चयबोधक के भेद- समानाधिधकरण समुच्चयबोधक ार प्रकार के होते हैं-(क) संयोजक।(ख) हिवभाजक। (ग) हिवरोधसू क। (घ) परिरणामसू क।

(क) संयोजक- जो �ब्दों, वाक्यां�ों और उपवाक्यों को परस्पर जोड़ने वाले �ब्द संयोजक कहलाते हैं। और, तर्था, एवं व आदिद संयोजक �ब्द हैं।(ख) हिवभाजक- �ब्दों, वाक्यां�ों और उपवाक्यों में परस्पर हिवभाजन और हिवकल्प प्रक+ करने वाले �ब्द हिवभाजक या हिवकल्पक कहलाते हैं। जैसे-या, ाहे अर्थवा, अन्यर्था, वा आदिद।(ग) हिवरोधसू क- दो परस्पर हिवरोधी कर्थनों और उपवाक्यों को जोड़ने वाले �ब्द हिवरोधसू क कहलाते हैं। जैसे-परन्तु, पर, हिकन्तु, मगर, बल्किल्क, लेहिकन आदिद।(घ) परिरणामसू क- दो उपवाक्यों को परस्पर जोड़कर परिरणाम को द�ा9ने वाले �ब्द परिरणामसू क कहलाते हैं। जैसे-फलतः, परिरणामस्वरूप, इसशिलए, अतः, अतएव, फलस्वरूप, अन्यर्था आदिद।

2. व्यलिधकरण समुच्चयबोधक

हिकसी वाक्य के प्रधान और आभिश्रत उपवाक्यों को परस्पर जोड़ने वाले �ब्द व्यधिधकरण समुच्चयबोधक कहलाते हैं।

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व्यधिधकरण समुच्चयबोधक के भेद- व्यधिधकरण समुच्चयबोधक ार प्रकार के होते हैं-(क) कारणसू क। (ख) संकेतसू क। (ग) उदे्दश्यसू क। (घ) स्वरूपसू क।(क) कारणसू क- दो उपवाक्यों को परस्पर जोड़कर होने वाले काय9 का कारण स्पष्ट करने वाले �ब्दों को कारणसू क कहते हैं। जैसे- हिक, क्योंहिक, इसशिलए, ँूहिक, ताहिक आदिद।(ख) संकेतसू क- जो दो योजक �ब्द दो उपवाक्यों को जोड़ने का काय9 करते हैं, उन्हें संकेतसू क कहते हैं। जैसे- यदिद....तो, जा...तो, यद्यहिप....तर्थाहिप, यद्यहिप...परन्तु आदिद।(ग) उदेश्यसू क- दो उपवाक्यों को परस्पर जोड़कर उनका उदे्दश्य स्पष्ट करने वाले �ब्द उदे्दश्यसू क कहलाते हैं। जैसे- इसशिलए हिक, ताहिक, जिजससे हिक आदिद।(घ) स्वरूपसू क- मुख्य उपवाक्य का अर्थ9 स्पष्ट करने वाले �ब्द स्वरूपसू क कहलाते हैं। जैसे-यानी, मानो, हिक, अर्था9त् आदिद।

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अध्याय 16

वि�स्मयादिदबोधक अव्यय

हिवस्मयादिदबोधक अव्यय- जिजन �ब्दों में हष9, �ोक, हिवस्मय, ग्लाहिन, घृणा, लज्जा आदिद भाव प्रक+ होते हैं वे हिवस्मयादिदबोधक अव्यय कहलाते हैं। इन्हें ‘द्योतक’ भी कहते हैं। जैसे- 1.अहा ! क्या मौसम है।2.उफ ! हिकतनी गरमी पड़ रही है। 3. अरे ! आप आ गए ? 4.बाप रे बाप ! यह क्या कर डाला ? 5.शिछः-शिछः ! धिधक्कार है तुम्हारे नाम को।इनमें ‘अहा’, ‘उफ’, ‘अरे’, ‘बाप-रे-बाप’, ‘शिछः-शिछः’ �ब्द आए हैं। ये सभी अनेक भावों को व्यE कर रहे हैं। अतः ये हिवस्मयादिदबोधक अव्यय है। इन �ब्दों के बाद हिवस्मयादिदबोधक शि ह्न (!) लगता है।प्रक+ होने वाले भाव के आधार पर इसके हिनम्नशिलखिखत भेद हैं-(1) हष9बोधक- अहा ! धन्य !, वाह-वाह !, ओह ! वाह ! �ाबा� !(2) �ोकबोधक- आह !, हाय !, हाय-हाय !, हा, त्राहिह-त्राहिह !, बाप रे !(3) हिवस्मयादिदबोधक- हैं !, ऐं !, ओहो !, अरे, वाह !(4) हितरस्कारबोधक- शिछः !, ह+ !, धिधक्, धत् !, शिछः शिछः !, ुप !(5) स्वीकृहितबोधक- हाँ-हाँ !, अच्छा !, ठीक !, जी हाँ !, बहुत अच्छा !(6) संबोधनबोधक- रे !, री !, अरे !, अरी !, ओ !, अजी !, हैलो !(7) आ�ीवा9दबोधक- दीघा9यु हो !, जीते रहो !

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अध्याय 17

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र्शब्द-रचना

�ब्द-र ना-हम स्वभावतः भाषा-व्यवहार में कम-से-कम �ब्दों का प्रयोग करके अधिधक-से-अधिधक काम लाना ाहते हैं। अतः �ब्दों के आरंभ अर्थवा अंत में कुछ जोड़कर अर्थवा उनकी मात्राओं या स्वर में कुछ परिरवत9न करके नवीन-से-नवीन अर्थ9-बोध कराना ाहते हैं। कभी-कभी दो अर्थवा अधिधक �ब्दां�ों को जोड़कर नए अर्थ9-बोध को स्वीकारते हैं। इस तरह एक �ब्द से कई अर्थa की अभिभव्यशिE हेतु जो नए-नए �ब्द बनाए जाते हैं उसे �ब्द-र ना कहते हैं।�ब्द र ना के ार प्रकार हैं-1. उपसग9 लगाकर2. प्रत्यय लगाकर3. संधिध द्वारा4. समास द्वारा

उपसर्ग�

वे �ब्दां� जो हिकसी �ब्द के आरंभ में लगकर उनके अर्थ9 में हिव�ेषता ला देते हैं अर्थवा उसके अर्थ9 को बदल देते हैं, उपसग9 कहलाते हैं। जैसे-परा-परा=म, पराजय, पराभव, पराधीन, पराभूत।उपसगa को ार भागों में बाँ+ा जा सकता हैं-(क) संस्कृत के उपसग9(ख) हिहन्दी के उपसग9(ग) उदू9 के उपसग9(घ) उपसग9 की तरह प्रयुE होने वाले संस्कृत के अव्यय

(क) संस्कृत के उपसर्ग�

उपसग9 अर्थ9 (में) �ब्द-रूपअहित अधिधक, ऊपर अत्यंत, अत्युत्तम, अहितरिरEअधिध ऊपर, प्रधानता अधिधकार, अध्यक्ष, अधिधपहितअनु पीछे, समान अनुरूप, अनुज, अनुकरणअप बुरा, हीन अपमान, अपय�, अपकारअभिभ सामने, अधिधक पास अभिभयोग, अभिभमान, अभिभभावकअव बुरा, नी े अवनहित, अवगुण, अव�ेषआ तक से, लेकर, उल+ा आजन्म, आगमन, आका�उत् ऊपर, श्रेष्ठ उत्कंठा, उत्कष9, उत्पन्नउप हिनक+, गौण उपकार, उपदे�, उप ार, उपाध्यक्षदुर् बुरा, कदिठन दुज9न, दुद9�ा, दुग9म

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दुस् बुरा दुYरिरत्र, दुस्साहस, दुग9महिन अभाव, हिव�ेष हिनयुE, हिनबंध, हिनमग्नहिनर् हिबना हिनवा9ह, हिनम9ल, हिनज9नहिनस् हिबना हिनYल, हिनश्छल, हिनभिYतपरा पीछे, उल+ा पराम�9, पराधीन, परा=मपरिर सब ओर परिरपूण9, परिरजन, परिरवत9नप्र आगे, अधिधक, उत्कृष्ट प्रयत्न, प्रबल, प्रशिसद्धप्रहित सामने, उल+ा, हरएक प्रहितकूल, प्रत्येक, प्रत्यक्षहिव हीनता, हिव�ेष हिवयोग, हिव�ेष, हिवधवासम् पूण9, अच्छा सं य, संगहित, संस्कारसु अच्छा, सरल सुगम, सुय�, स्वागत

(ख) विहन्दी के उपसर्ग�

ये प्रायः संस्कृत उपसर्ग1 के अपभ्रंर्श मात्र ही हैं।

उपसग9 अर्थ9 (में) �ब्द-रूपअ अभाव, हिनषेध अजर, अछूत, अकालअन रहिहत अनपढ़, अनबन, अनजानअध आधा अधमरा, अधखिखला, अधपकाऔ रहिहत औगुन, औतार, औघ+कु बुराई कुसंग, कुकम9, कुमहितहिन अभाव हिनडर, हिनहत्था, हिनकम्मा

(र्ग) उर्दू� के उपसर्ग�

उपसग9 अर्थ9 (में) �ब्द-रूपकम र्थोड़ा कमबख्त, कमजोर, कमशिसनखु� प्रसन्न, अच्छा खु�बू, खु�दिदल, खु�धिमजाजगैर हिनषेध गैरहाजिजर, गैरकानूनी, गैरकौम

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दर में दरअसल, दरकार, दरधिमयानना हिनषेध नालायक, नापसंद, नामुमहिकनबा अनुसार बामौका, बाकायदा, बाइज्जतबद बुरा बदनाम, बदमा�, बद लनबे हिबना बेईमान, बे ारा, बेअक्लला रहिहत लापरवाह, ला ार, लावारिरससर मुख्य सरकार, सरदार, सरपं हम सार्थ हमदद­, हमराज, हमदमहर प्रहित हरदिदन, हरएक,हरसाल

(र्घ) उपसर्ग� की तरह प्रयुE होने �ाले संस्कृत अव्यय

उपसग9 अर्थ9 (में) �ब्द-रूपअ (वं्यजनों से पूव9) हिनषेध अज्ञान, अभाव, अ ेतअन् (स्वरों से पूव9) हिनषेध अनागत, अनर्थ9, अनादिदस सहिहत सजल, सकल, सहष9अधः नी े अधःपतन, अधोगहित, अधोमुखशि र बहुत देर शि रायु, शि रकाल, शि रंतनअंतर भीतर अंतरात्मा, अंतरा9ष्ट्रीय, अंतजा9तीयपुनः हिफर पुनग9मन, पुनज9न्म, पुनर्मिमलंनपुरा पुराना पुरातत्व, पुरातनपुरस् आगे पुरस्कार, पुरस्कृतहितरस् बुरा, हीन हितरस्कार, हितरोभावसत् श्रेष्ठ सत्कार, सज्जन, सत्काय9

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अध्याय 18

प्रत्यय

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प्रत्यय- जो �ब्दां� �ब्दों के अंत में लगकर उनके अर्थ9 को बदल देते हैं वे प्रत्यय कहलाते हैं। जैसे-जलज, पंकज आदिद। जल=पानी तर्था ज=जन्म लेने वाला। पानी में जन्म लेने वाला अर्था9त् कमल। इसी प्रकार पंक �ब्द में ज प्रत्यय लगकर पंकज अर्था9त कमल कर देता है। प्रत्यय दो प्रकार के होते हैं-1. कृत प्रत्यय।2. तजिद्धत प्रत्यय।

1. कृत प्रत्यय

जो प्रत्यय धातुओं के अंत में लगते हैं वे कृत प्रत्यय कहलाते हैं। कृत प्रत्यय के योग से बने �ब्दों को (कृत+अंत) कृदंत कहते हैं। जैसे-राखन+हारा=राखनहारा, घ++इया=घदि+या, शिलख+आव+=शिलखाव+ आदिद।(क) कतृ9वा क कृदंत- जिजस प्रत्यय से बने �ब्द से काय9 करने वाले अर्था9त कता9 का बोध हो, वह कतृ9वा क कृदंत कहलाता है। जैसे-‘पढ़ना’। इस सामान्य हि=या के सार्थ वाला प्रत्यय लगाने से ‘पढ़नेवाला’ �ब्द बना।प्रत्यय �ब्द-रूप प्रत्यय �ब्द-रूपवाला पढ़नेवाला, शिलखनेवाला,रखवाला हारा राखनहारा, खेवनहारा, पालनहाराआऊ हिबकाऊ, दि+काऊ, लाऊ आक तैराकआका लड़का, धड़ाका, धमाका आड़ी अनाड़ी, खिखलाड़ी, अगाड़ीआलू आलु, झगड़ालू, दयालु, कृपालु ऊ उड़ाऊ, कमाऊ, खाऊएरा लु+ेरा, सपेरा इया बदिढ़या, घदि+याऐया गवैया, रखैया, लु+ैया अक धावक, सहायक, पालक

(ख) कम9वा क कृदंत- जिजस प्रत्यय से बने �ब्द से हिकसी कम9 का बोध हो वह कम9वा क कृदंत कहलाता है। जैसे-गा में ना प्रत्यय लगाने से गाना, सँूघ में ना प्रत्यय लगाने से सँूघना और हिबछ में औना प्रत्यय लगाने से हिबछौना बना है।(ग) करणवा क कृदंत- जिजस प्रत्यय से बने �ब्द से हि=या के साधन अर्था9त करण का बोध हो वह करणवा क कृदंत कहलाता है। जैसे-रेत में ई प्रत्यय लगाने से रेती बना।प्रत्यय �ब्द-रूप प्रत्यय �ब्द-रूपआ भ+का, भूला, झूला ई रेती, फाँसी, भारीऊ झा़ड़ू न बेलन, झाड़न, बंधननी धौंकनी करतनी, सुधिमरनी

(घ) भाववा क कृदंत- जिजस प्रत्यय से बने �ब्द से भाव अर्था9त् हि=या के व्यापार का बोध हो वह भाववा क कृदंत कहलाता है। जैसे-सजा में आव+ प्रत्यय लगाने से सजाव+ बना।प्रत्यय �ब्द-रूप प्रत्यय �ब्द-रूप

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अन लन, मनन, धिमलन औती मनौती, हिफरौती, ुनौतीआवा भुलावा,छलावा, दिदखावा अंत भिभडं़त, गढं़तआई कमाई, ढ़ाई, लड़ाई आव+ सजाव+, बनाव+, रुकाव+आह+ घबराह+,शि ल्लाह+

(ड़) हि=यावा क कृदंत- जिजस प्रत्यय से बने �ब्द से हि=या के होने का भाव प्रक+ हो वह हि=यावा क कृदंत कहलाता है। जैसे-भागता हुआ, शिलखता हुआ आदिद। इसमें मूल धातु के सार्थ ता लगाकर बाद में हुआ लगा देने से वत9मानकाशिलक हि=यावा क कृदंत बन जाता है। हि=यावा क कृदंत केवल पुस्थिल्लंग और एकव न में प्रयुE होता है।प्रत्यय �ब्द-रूप प्रत्यय �ब्द-रूपता डूबता, बहता, रमता, लता ता हुआ आता हुआ, पढ़ता हुआया खोया, बोया आ सूखा, भूला, बैठाकर जाकर, देखकर ना दौड़ना, सोना

2. तणि^त प्रत्यय

जो प्रत्यय संज्ञा, सव9नाम अर्थवा हिव�ेषण के अंत में लगकर नए �ब्द बनाते हैं तजिद्धत प्रत्यय कहलाते हैं। इनके योग से बने �ब्दों को ‘तजिद्धतांत’ अर्थवा तजिद्धत �ब्द कहते हैं। जैसे-अपना+पन=अपनापन, दानव+ता=दानवता आदिद।(क) कतृ9वा क तजिद्धत- जिजससे हिकसी काय9 के करने वाले का बोध हो। जैसे- सुनार, कहार आदिद।प्रत्यय �ब्द-रूप प्रत्यय �ब्द-रूपक पाठक, लेखक, शिलहिपक आर सुनार, लुहार, कहारकार पत्रकार, कलाकार, शि त्रकार इया सुहिवधा, दुखिखया, आढ़हितयाएरा सपेरा, ठठेरा, शि तेरा आ मछुआ, गेरुआ, ठलुआवाला +ोपीवाला घरवाला, गाड़ीवाला दार ईमानदार, दुकानदार, कज9दारहारा लकड़हारा, पहिनहारा, महिनहार ी म�ाल ी, खजान ी, मो ीगर कारीगर, बाजीगर, जादूगर

(ख) भाववा क तजिद्धत- जिजससे भाव व्यE हो। जैसे-सरा9फा, बुढ़ापा, संगत, प्रभुता आदिद।प्रत्यय �ब्द-रूप प्रत्यय �ब्द-रूपपन ब पन, लड़कपन, बालपन आ बुलावा, सरा9फाआई भलाई, बुराई, दिढठाई आह+ शि कनाह+, कड़वाह+, घबराह+

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इमा लाशिलमा, महिहमा, अरुभिणमा पा बुढ़ापा, मो+ापाई गरमी, सरदी,गरीबी औती बपौती

(ग) संबंधवा क तजिद्धत- जिजससे संबंध का बोध हो। जैसे-ससुराल, भतीजा, ेरा आदिद।प्रत्यय �ब्द-रूप प्रत्यय �ब्द-रूपआल ससुराल, नहिनहाल एरा ममेरा, ेरा, फुफेराजा भानजा, भतीजा इक नैहितक, धार्मिमंक, आर्थिर्थंक

(घ) ऊनता (लघुता) वा क तजिद्धत- जिजससे लघुता का बोध हो। जैसे-लुदि+या।प्रत्ययय �ब्द-रूप प्रत्यय �ब्द-रूपइया लुदि+या, हिडहिबया, खदि+या ई कोठरी, +ोकनी, ढोलकी+ी, +ा लँगो+ी, कछौ+ी,कलू+ा ड़ी, ड़ा पगड़ी, +ुकड़ी, बछड़ा

(ड़) गणनावा क तद्धहित- जिजससे संख्या का बोध हो। जैसे-इकहरा, पहला, पाँ वाँ आदिद।प्रत्यय �ब्द-रूप प्रत्यय �ब्द-रूपहरा इकहरा, दुहरा, हितहरा ला पहलारा दूसरा, तीसरा र्था ौर्था

( ) सादृश्यवा क तजिद्धत- जिजससे समता का बोध हो। जैसे-सुनहरा।प्रत्यय �ब्द-रूप प्रत्यय �ब्द-रूपसा पीला-सा, नीला-सा, काला-सा हरा सुनहरा, रुपहरा

(छ) गुणवा क तद्धहित- जिजससे हिकसी गुण का बोध हो। जैसे-भूख, हिवषैला, कुलवंत आदिद।प्रत्यय �ब्द-रूप प्रत्यय �ब्द-रूपआ भूखा, प्यासा, ठंडा,मीठा ई धनी, लोभी, =ोधीईय वांछनीय, अनुकरणीय ईला रंगीला, सजीलाऐला हिवषैला, कसैला लु कृपालु, दयालुवंत दयावंत, कुलवंत वान गुणवान, रूपवान

(ज) [ानवा क तद्धहित- जिजससे [ान का बोध हो. जैसे-पंजाबी, जबलपुरिरया, दिदल्लीवाला आदिद।प्रत्यय �ब्द-रूप प्रत्यय �ब्द-रूपई पंजाबी, बंगाली, गुजराती इया कलकहितया, जबलपुरिरया

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वाल वाला डेरेवाला, दिदल्लीवाला

कृत प्रत्यय और तणि^त प्रत्यय में अंतर

कृत प्रत्यय- जो प्रत्यय धातु या हि=या के अंत में जुड़कर नया �ब्द बनाते हैं कृत प्रत्यय कहलाते हैं। जैसे-शिलखना, शिलखाई, शिलखाव+।तजिद्धत प्रत्यय- जो प्रत्यय संज्ञा, सव9नाम या हिव�ेषण में जुड़कर नया �ब्द बनाते हं वे तजिद्धत प्रत्यय कहलाते हैं। जैसे-नीहित-नैहितक, काला-काशिलमा, राष्ट्र-राष्ट्रीयता आदिद।

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अध्याय 19

संलिध

संधिध-संधिध �ब्द का अर्थ9 है मेल। दो हिनक+वत� वणa के परस्पर मेल से जो हिवकार (परिरवत9न) होता है वह संधिध कहलाता है। जैसे-सम्+तोष=संतोष। देव+इंद्र=देवेंद्र। भानु+उदय=भानूदय।संधिध के भेद-संधिध तीन प्रकार की होती हैं-1. स्वर संधिध।2. वं्यजन संधिध।3. हिवसग9 संधिध।

1. स्�र संलिध

दो स्वरों के मेल से होने वाले हिवकार (परिरवत9न) को स्वर-संधिध कहते हैं। जैसे-हिवद्या+आलय=हिवद्यालय।स्वर-संधिध पाँ प्रकार की होती हैं-

(क) दीर्घ� संलिध

ह्रस्व या दीघ9 अ, इ, उ के बाद यदिद ह्रस्व या दीघ9 अ, इ, उ आ जाए ँतो दोनों धिमलकर दीघ9 आ, ई, और ऊ हो जाते हैं। जैसे-(क) अ+अ=आ धम9+अर्थ9=धमा9र्थ9, अ+आ=आ-हिहम+आलय=हिहमालय।आ+अ=आ आ हिवद्या+अर्थ�=हिवद्यार्थ� आ+आ=आ-हिवद्या+आलय=हिवद्यालय।(ख) इ और ई की संधिध-इ+इ=ई- रहिव+इंद्र=रवींद्र, मुहिन+इंद्र=मुनींद्र।इ+ई=ई- हिगरिर+ई�=हिगरी� मुहिन+ई�=मुनी�।ई+इ=ई- मही+इंद्र=महींद्र नारी+इंदु=नारींदुई+ई=ई- नदी+ई�=नदी� मही+ई�=मही�(ग) उ और ऊ की संधिध-

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उ+उ=ऊ- भानु+उदय=भानूदय हिवधु+उदय=हिवधूदयउ+ऊ=ऊ- लघु+ऊर्मिमं=लघूर्मिमं शिसधु+ऊर्मिम=ंलिसंधूर्मिमंऊ+उ=ऊ- वधू+उत्सव=वधूत्सव वधू+उल्लेख=वधूल्लेखऊ+ऊ=ऊ- भू+ऊध्व9=भूध्व9 वधू+ऊजा9=वधूजा9

(ख) रु्गण संलिध

इसमें अ, आ के आगे इ, ई हो तो ए, उ, ऊ हो तो ओ, तर्था ऋ हो तो अर् हो जाता है। इसे गुण-संधिध कहते हैं जैसे-(क) अ+इ=ए- नर+इंद्र=नरेंद्र अ+ई=ए- नर+ई�=नरे�आ+इ=ए- महा+इंद्र=महेंद्र आ+ई=ए महा+ई�=महे�(ख) अ+ई=ओ ज्ञान+उपदे�=ज्ञानोपदे� आ+उ=ओ महा+उत्सव=महोत्सवअ+ऊ=ओ जल+ऊर्मिम=ंजलोर्मिमं आ+ऊ=ओ महा+ऊर्मिमं=महोर्मिमं(ग) अ+ऋ=अर् देव+ऋहिष=देवर्तिषं(घ) आ+ऋ=अर् महा+ऋहिष=महर्तिषं

(र्ग) �ृणि^ संलिध

अ आ का ए ऐ से मेल होने पर ऐ अ आ का ओ, औ से मेल होने पर औ हो जाता है। इसे वृजिद्ध संधिध कहते हैं। जैसे-(क) अ+ए=ऐ एक+एक=एकैक अ+ऐ=ऐ मत+ऐक्य=मतैक्यआ+ए=ऐ सदा+एव=सदैव आ+ऐ=ऐ महा+ऐश्वय9=महैश्वय9(ख) अ+ओ=औ वन+ओषधिध=वनौषधिध आ+ओ=औ महा+औषध=महौषधिधअ+औ=औ परम+औषध=परमौषध आ+औ=औ महा+औषध=महौषध

(र्घ) यण संलिध

(क) इ, ई के आगे कोई हिवजातीय (असमान) स्वर होने पर इ ई को ‘य्’ हो जाता है। (ख) उ, ऊ के आगे हिकसी हिवजातीय स्वर के आने पर उ ऊ को ‘व्’ हो जाता है। (ग) ‘ऋ’ के आगे हिकसी हिवजातीय स्वर के आने पर ऋ को ‘र्’ हो जाता है। इन्हें यण-संधिध कहते हैं।इ+अ=य्+अ यदिद+अहिप=यद्यहिप ई+आ=य्+आ इहित+आदिद=इत्यादिद।ई+अ=य्+अ नदी+अप9ण=नद्यप9ण ई+आ=य्+आ देवी+आगमन=देव्यागमन(घ) उ+अ=व्+अ अनु+अय=अन्वय उ+आ=व्+आ सु+आगत=स्वागतउ+ए=व्+ए अनु+एषण=अन्वेषण ऋ+अ=र्+आ हिपतृ+आज्ञा=हिपत्राज्ञा(ड़) अयादिद संधिध- ए, ऐ और ओ औ से परे हिकसी भी स्वर के होने पर =म�ः अय्, आय्, अव् और आव् हो जाता है। इसे अयादिद संधिध कहते हैं।(क) ए+अ=अय्+अ ने+अन+नयन (ख) ऐ+अ=आय्+अ गै+अक=गायक(ग) ओ+अ=अव्+अ पो+अन=पवन (घ) औ+अ=आव्+अ पौ+अक=पावकऔ+इ=आव्+इ नौ+इक=नाहिवक

2. वं्यजन संलिध

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वं्यजन का वं्यजन से अर्थवा हिकसी स्वर से मेल होने पर जो परिरवत9न होता है उसे वं्यजन संधिध कहते हैं। जैसे-�रत्+ ंद्र=�रच्चंद्र।(क) हिकसी वग9 के पहले वण9 क्, ्, +्, त्, प् का मेल हिकसी वग9 के तीसरे अर्थवा ौरे्थ वण9 या य्, र्, ल्, व्, ह या हिकसी स्वर से हो जाए तो क् को ग् ् को ज,् +् को ड् और प् को ब् हो जाता है। जैसे-क्+ग=ग्ग दिदक्+गज=दिदग्गज। क्+ई=गी वाक्+ई�=वागी� ्+अ=ज ्अ ्+अंत=अजंत +्+आ=डा ष+्+आनन=षडाननप+ज+ब्ज अप्+ज=अब्ज(ख) यदिद हिकसी वग9 के पहले वण9 (क्, ्, +्, त्, प्) का मेल न् या म् वण9 से हो तो उसके [ान पर उसी वग9 का पाँ वाँ वण9 हो जाता है। जैसे-क्+म=ड़् वाक्+मय=वाड़्मय ्+न=ञ ्अ ्+ना�=अञ्ना�+्+म=ण् ष+्+मास=षण्मास त्+न=न् उत्+नयन=उन्नयनप्+म्=म् अप्+मय=अम्मय(ग) त् का मेल ग, घ, द, ध, ब, भ, य, र, व या हिकसी स्वर से हो जाए तो द ्हो जाता है। जैसे-त्+भ=द्भ सत्+भावना=सद्भावना त्+ई=दी जगत्+ई�=जगदी�त्+भ=द्भ भगवत्+भशिE=भगवद्भशिE त्+र=द्र तत्+रूप=तद्रूपत्+ध=द्ध सत्+धम9=सद्धम9(घ) त् से परे ् या छ् होने पर , ज ्या झ् होने पर ज,् +् या ठ् होने पर +्, ड् या ढ् होने पर ड् और ल होने पर ल् हो जाता है। जैसे-त्+ =च्च उत्+ ारण=उच्चारण त्+ज=ज्ज सत्+जन=सज्जनत्+झ=ज्झ उत्+झदि+का=उज्झदि+का त्++=ट्ट तत्++ीका=तट्टीकात्+ड=ड्ड उत्+डयन=उड्डयन त्+ल=ल्ल उत्+लास=उल्लास(ड़) त् का मेल यदिद �् से हो तो त् को ् और �् का छ् बन जाता है। जैसे-त्+�्=च्छ उत्+श्वास=उच्छ्वास त्+�=च्छ उत्+शि�ष्ट=उस्थिच्छष्टत्+�=च्छ सत्+�ास्त्र=सच्छास्त्र( ) त् का मेल यदिद ह् से हो तो त् का द ्और ह् का ध् हो जाता है। जैसे-त्+ह=द्ध उत्+हार=उद्धार त्+ह=द्ध उत्+हरण=उद्धरणत्+ह=द्ध तत्+हिहत=तजिद्धत(छ) स्वर के बाद यदिद छ् वण9 आ जाए तो छ् से पहले ् वण9 बढ़ा दिदया जाता है। जैसे-अ+छ=अच्छ स्व+छंद=स्वचं्छद आ+छ=आच्छ आ+छादन=आच्छादनइ+छ=इच्छ संधिध+छेद=संधिधचे्छद उ+छ=उच्छ अनु+छेद=अनुचे्छद(ज) यदिद म् के बाद क् से म् तक कोई वं्यजन हो तो म् अनुस्वार में बदल जाता है। जैसे-म्+ ्=ां हिकम्+शि त=बिकंशि त म्+क=ां हिकम्+कर=बिकंकरम्+क=ां सम्+कल्प=संकल्प म्+ =ां सम्+ य=सं यम्+त=ां सम्+तोष=संतोष म्+ब=ां सम्+बंध=संबंधम्+प=ां सम्+पूण9=संपूण9(झ) म् के बाद म का हिद्वत्व हो जाता है। जैसे-म्+म=म्म सम्+महित=सम्महित म्+म=म्म सम्+मान=सम्मान(ञ) म् के बाद य्, र्, ल्, व्, �्, ष्, स्, ह् में से कोई वं्यजन होने पर म् का अनुस्वार हो जाता है। जैसे-म्+य=ां सम्+योग=संयोग म्+र=ां सम्+रक्षण=संरक्षणम्+व=ां सम्+हिवधान=संहिवधान म्+व=ां सम्+वाद=संवाद

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म्+�=ां सम्+�य=सं�य म्+ल=ां सम्+लग्न=संलग्नम्+स=ां सम्+सार=संसार(+) ऋ,र्, ष् से परे न् का ण् हो जाता है। परन्तु वग9, +वग9, तवग9, � और स का व्यवधान हो जाने पर न् का ण् नहीं होता। जैसे-र्+न=ण परिर+नाम=परिरणाम र्+म=ण प्र+मान=प्रमाण(ठ) स् से पहले अ, आ से भिभन्न कोई स्वर आ जाए तो स् को ष हो जाता है। जैसे-भ्+स्=ष अभिभ+सेक=अभिभषेक हिन+शिसद्ध=हिनहिषद्ध हिव+सम+हिवषम

3. वि�सर्ग�-संलिध

हिवसग9 (:) के बाद स्वर या वं्यजन आने पर हिवसग9 में जो हिवकार होता है उसे हिवसग9-संधिध कहते हैं। जैसे-मनः+अनुकूल=मनोनुकूल।

(क) हिवसग9 के पहले यदिद ‘अ’ और बाद में भी ‘अ’ अर्थवा वगa के तीसरे, ौरे्थ पाँ वें वण9, अर्थवा य, र, ल, व हो तो हिवसग9 का ओ हो जाता है। जैसे-मनः+अनुकूल=मनोनुकूल अधः+गहित=अधोगहित मनः+बल=मनोबल

(ख) हिवसग9 से पहले अ, आ को छोड़कर कोई स्वर हो और बाद में कोई स्वर हो, वग9 के तीसरे, ौरे्थ, पाँ वें वण9 अर्थवा य्, र, ल, व, ह में से कोई हो तो हिवसग9 का र या र् हो जाता है। जैसे-हिनः+आहार=हिनराहार हिनः+आ�ा=हिनरा�ा हिनः+धन=हिनध9न

(ग) हिवसग9 से पहले कोई स्वर हो और बाद में , छ या � हो तो हिवसग9 का � हो जाता है। जैसे-हिनः+ ल=हिनYल हिनः+छल=हिनश्छल दुः+�ासन=दुश्�ासन

(घ)हिवसग9 के बाद यदिद त या स हो तो हिवसग9 स् बन जाता है। जैसे-नमः+ते=नमस्ते हिनः+संतान=हिनस्संतान दुः+साहस=दुस्साहस

(ड़) हिवसग9 से पहले इ, उ और बाद में क, ख, +, ठ, प, फ में से कोई वण9 हो तो हिवसग9 का ष हो जाता है। जैसे-हिनः+कलंक=हिनष्कलंक तुः+पाद= तुष्पाद हिनः+फल=हिनष्फल

(ड)हिवसग9 से पहले अ, आ हो और बाद में कोई भिभन्न स्वर हो तो हिवसग9 का लोप हो जाता है। जैसे-हिनः+रोग=हिनरोग हिनः+रस=नीरस

(छ) हिवसग9 के बाद क, ख अर्थवा प, फ होने पर हिवसग9 में कोई परिरवत9न नहीं होता। जैसे-अंतः+करण=अंतःकरण

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अध्याय 20

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समास

समास का तात्पय9 है ‘संभिक्षप्तीकरण’। दो या दो से अधिधक �ब्दों से धिमलकर बने हुए एक नवीन एवं सार्थ9क �ब्द को समास कहते हैं। जैसे-‘रसोई के शिलए घर’ इसे हम ‘रसोईघर’ भी कह सकते हैं।सामाशिसक �ब्द- समास के हिनयमों से हिनर्मिमंत �ब्द सामाशिसक �ब्द कहलाता है। इसे समस्तपद भी कहते हैं। समास होने के बाद हिवभशिEयों के शि ह्न (परसग9) लुप्त हो जाते हैं। जैसे-राजपुत्र।समास-हिवग्रह- सामाशिसक �ब्दों के बी के संबंध को स्पष्ट करना समास-हिवग्रह कहलाता है। जैसे-राजपुत्र-राजा का पुत्र।पूव9पद और उत्तरपद- समास में दो पद (�ब्द) होते हैं। पहले पद को पूव9पद और दूसरे पद को उत्तरपद कहते हैं। जैसे-गंगाजल। इसमें गंगा पूव9पद और जल उत्तरपद है।

समास के भेद

समास के ार भेद हैं-1. अव्ययीभाव समास।2. तत्पुरुष समास।3. दं्वद्व समास।4. बहुव्रीहिह समास।

1. अव्ययीभा� समास

जिजस समास का पहला पद प्रधान हो और वह अव्यय हो उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। जैसे-यर्थामहित (महित के अनुसार), आमरण (मृत्यु कर) इनमें यर्था और आ अव्यय हैं।कुछ अन्य उदाहरण-आजीवन - जीवन-भर, यर्थासामथ्य9 - सामथ्य9 के अनुसारयर्था�शिE - �शिE के अनुसार, यर्थाहिवधिध हिवधिध के अनुसारयर्था=म - =म के अनुसार, भरपे+ पे+ भरकरहररोज़ - रोज़-रोज़, हार्थोंहार्थ - हार्थ ही हार्थ मेंरातोंरात - रात ही रात में, प्रहितदिदन - प्रत्येक दिदनबे�क - �क के हिबना, हिनडर - डर के हिबनाहिनस्संदेह - संदेह के हिबना, हरसाल - हरेक सालअव्ययीभाव समास की पह ान- इसमें समस्त पद अव्यय बन जाता है अर्था9त समास होने के बाद उसका रूप कभी नहीं बदलता है। इसके सार्थ हिवभशिE शि ह्न भी नहीं लगता। जैसे-ऊपर के समस्त �ब्द है।

2. तत्पुरुष समास

जिजस समास का उत्तरपद प्रधान हो और पूव9पद गौण हो उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे-तुलसीदासकृत=तुलसी द्वारा कृत (रशि त)ज्ञातव्य- हिवग्रह में जो कारक प्रक+ हो उसी कारक वाला वह समास होता है। हिवभशिEयों के नाम के अनुसार इसके छह भेद हैं-(1) कम9 तत्पुरुष हिगरहक+ हिगरह को का+ने वाला

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(2) करण तत्पुरुष मन ाहा मन से ाहा(3) संप्रदान तत्पुरुष रसोईघर रसोई के शिलए घर(4) अपादान तत्पुरुष दे�हिनकाला दे� से हिनकाला(5) संबंध तत्पुरुष गंगाजल गंगा का जल(6) अधिधकरण तत्पुरुष नगरवास नगर में वास

(क) नञ तत्पुरुष समास

जिजस समास में पहला पद हिनषेधात्मक हो उसे नञ तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे-समस्त पद समास-हिवग्रह समस्त पद समास-हिवग्रहअसभ्य न सभ्य अनंत न अंतअनादिद न आदिद असंभव न संभव

(ख) कम�धारय समास

जिजस समास का उत्तरपद प्रधान हो और पूव9वद व उत्तरपद में हिव�ेषण-हिव�ेष्य अर्थवा उपमान-उपमेय का संबंध हो वह कम9धारय समास कहलाता है। जैसे-

समस्त पद समास-हिवग्रह समस्त पद समात हिवग्रह ंद्रमुख ंद्र जैसा मुख कमलनयन कमल के समान नयनदेहलता देह रूपी लता दहीबड़ा दही में डूबा बड़ानीलकमल नीला कमल पीतांबर पीला अंबर (वस्त्र)

सज्जन सत् (अच्छा) जन नरलिसंह नरों में लिसंह के समान

(र्ग) वि`रु्ग समास

जिजस समास का पूव9पद संख्यावा क हिव�ेषण हो उसे हिद्वगु समास कहते हैं। इससे समूह अर्थवा समाहार का बोध होता है। जैसे-

समस्त पद समात-हिवग्रह समस्त पद समास हिवग्रहनवग्रह नौ ग्रहों का मसूह दोपहर दो पहरों का समाहारहित्रलोक तीनों लोकों का समाहार ौमासा ार मासों का समूहनवरात्र नौ राहित्रयों का समूह �ताब्दी सौ अब्दो (सालों) का समूहअठन्नी आठ आनों का समूह

3. `ं` समास

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जिजस समास के दोनों पद प्रधान होते हैं तर्था हिवग्रह करने पर ‘और’, अर्थवा, ‘या’, एवं लगता है, वह दं्वद्व समास कहलाता है। जैसे-

समस्त पद समास-हिवग्रह समस्त पद समास-हिवग्रहपाप-पुण्य पाप और पुण्य अन्न-जल अन्न और जलसीता-राम सीता और राम खरा-खो+ा खरा और खो+ाऊँ -नी ऊँ और नी राधा-कृष्ण राधा और कृष्ण

4. बहुव्रीविह समास

जिजस समास के दोनों पद अप्रधान हों और समस्तपद के अर्थ9 के अहितरिरE कोई सांकेहितक अर्थ9 प्रधान हो उसे बहुव्रीहिह समास कहते हैं। जैसे-

समस्त पद समास-हिवग्रहद�ानन द� है आनन (मुख) जिजसके अर्था9त् रावणनीलकंठ नीला है कंठ जिजसका अर्था9त् शि�वसुलो ना संुदर है लो न जिजसके अर्था9त् मेघनाद की पत्नीपीतांबर पीले है अम्बर (वस्त्र) जिजसके अर्था9त् श्रीकृष्णलंबोदर लंबा है उदर (पे+) जिजसका अर्था9त् गणे�जीदुरात्मा बुरी आत्मा वाला (कोई दुष्ट)

शे्वतांबर शे्वत है जिजसके अंबर (वस्त्र) अर्था9त् सरस्वती

संलिध और समास में अंतर

संधिध वणa में होती है। इसमें हिवभशिE या �ब्द का लोप नहीं होता है। जैसे-देव+आलय=देवालय। समास दो पदों में होता है। समास होने पर हिवभशिE या �ब्दों का लोप भी हो जाता है। जैसे-माता-हिपता=माता और हिपता।कम9धारय और बहुव्रीहिह समास में अंतर- कम9धारय में समस्त-पद का एक पद दूसरे का हिव�ेषण होता है। इसमें �ब्दार्थ9 प्रधान होता है। जैसे-नीलकंठ=नीला कंठ। बहुव्रीहिह में समस्त पद के दोनों पदों में हिव�ेषण-हिव�ेष्य का संबंध नहीं होता अहिपतु वह समस्त पद ही हिकसी अन्य संज्ञादिद का हिव�ेषण होता है। इसके सार्थ ही �ब्दार्थ9 गौण होता है और कोई भिभन्नार्थ9 ही प्रधान हो जाता है। जैसे-नील+कंठ=नीला है कंठ जिजसका अर्था9त शि�व।

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अध्याय 21

पद-परिरचय

पद-परिर य- वाक्यगत �ब्दों के रूप और उनका पारस्परिरक संबंध बताने में जिजस प्रहि=या की आवश्यकता पड़ती है वह पद-परिर य या �ब्दबोध कहलाता है।परिरभाषा-वाक्यगत प्रत्येक पद (�ब्द) का व्याकरण की दृधिष्ट से पूण9 परिर य देना ही पद-परिर य कहलाता है।�ब्द आठ प्रकार के होते हैं-1.संज्ञा- भेद, लिलंग, व न, कारक, हि=या अर्थवा अन्य �ब्दों से संबंध।2.सव9नाम- भेद, पुरुष, लिलंग, व न, कारक, हि=या अर्थवा अन्य �ब्दों से संबंध। हिकस संज्ञा के [ान पर आया है (यदिद पता हो)।3.हि=या- भेद, लिलंग, व न, प्रयोग, धातु, काल, वाच्य, कता9 और कम9 से संबंध।4.हिव�ेषण- भेद, लिलंग, व न और हिव�ेष्य की हिव�ेषता।5.हि=या-हिव�ेषण- भेद, जिजस हि=या की हिव�ेषता बताई गई हो उसके बारे में हिनद �।6.संबंधबोधक- भेद, जिजससे संबंध है उसका हिनद �।7.समुच्चयबोधक- भेद, अन्विन्वत �ब्द, वाक्यां� या वाक्य।8.हिवस्मयादिदबोधक- भेद अर्था9त कौन-सा भाव स्पष्ट कर रहा है।

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अध्याय 22

र्शब्द-ज्ञान

1. पया�य�ाची र्शब्द

हिकसी �ब्द-हिव�ेष के शिलए प्रयुE समानार्थ9क �ब्दों को पया9यवा ी �ब्द कहते हैं। यद्यहिप पया9यवा ी �ब्द समानार्थ� होते हैं हिकन्तु भाव में एक-दूसरे से बिकंशि त भिभन्न होते हैं।1.अमृत- सुधा, सोम, पीयूष, अधिमय।2.असुर- राक्षस, दैत्य, दानव, हिन�ा र।3.अखिग्न- आग, अनल, पावक, वधिह्न।4.अश्व- घोड़ा, हय, तुरंग, बाजी।5.आका�- गगन, नभ, आसमान, व्योम, अंबर।6.आँख- नेत्र, दृग, नयन, लो न।7.इच्छा- आकांक्षा, ाह, अभिभलाषा, कामना।8.इंद्र- सुरे�, देवेंद्र, देवराज, पुरंदर।9.ईश्वर- प्रभु, परमेश्वर, भगवान, परमात्मा।10.कमल- जलज, पंकज, सरोज, राजीव, अरहिवन्द।11.गरमी- ग्रीष्म, ताप, हिनदाघ, ऊष्मा।

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12.गृह- घर, हिनकेतन, भवन, आलय।13.गंगा- सुरसरिर, हित्रपर्थगा, देवनदी, जाह्नवी, भागीरर्थी।14. ंद्र- ाँद, ंद्रमा, हिवधु, �शि�, राके�।15.जल- वारिर, पानी, नीर, सशिलल, तोय।16.नदी- सरिरता, तदि+नी, तरंहिगणी, हिनझ9रिरणी।17.पवन- वायु, समीर, हवा, अहिनल।18.पत्नी- भाया9, दारा, अधा9हिगनी, वामा।19.पुत्र- बे+ा, सुत, तनय, आत्मज।20.पुत्री-बे+ी, सुता, तनया, आत्मजा।21.पृथ्वी- धरा, मही, धरती, वसुधा, भूधिम, वसंुधरा।22.पव9त- �ैल, नग, भूधर, पहाड़।23.हिबजली- पला, ं ला, दाधिमनी, सौदामनी।24.मेघ- बादल, जलधर, पयोद, पयोधर, घन।25.राजा- नृप, नृपहित, भूपहित, नरपहित।26.रजनी- राहित्र, हिन�ा, याधिमनी, हिवभावरी।27.सप9- सांप, अहिह, भुजंग, हिवषधर।28.सागर- समुद्र, उदधिध, जलधिध, वारिरधिध।29.लिसंह- �ेर, वनराज, �ादू9ल, मृगराज।30.सूय9- रहिव, दिदनकर, सूरज, भास्कर।31.स्त्री- ललना, नारी, काधिमनी, रमणी, महिहला।32.शि�क्षक- गुरु, अध्यापक, आ ाय9, उपाध्याय।33.हार्थी- कंुजर, गज, हिद्वप, करी, हस्ती।

2. अनेक र्शब्दों के लिलए एक र्शब्द

1 जिजसे देखकर डर (भय) लगे डरावना, भयानक2 जो स्थि[र रहे [ावर3 ज्ञान देने वाली ज्ञानदा4 भूत-वत9मान-भहिवष्य को देखने (जानने) वाले हित्रकालद��5 जानने की इच्छा रखने वाला जिजज्ञासु6 जिजसे क्षमा न हिकया जा सके अक्षम्य7 पंद्रह दिदन में एक बार होने वाला पाभिक्षक8 अचे्छ रिरत्र वाला सच्चरिरत्र9 आज्ञा का पालन करने वाला आज्ञाकारी10 रोगी की शि हिकत्सा करने वाला शि हिकत्सक11 सत्य बोलने वाला सत्यवादी

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12 दूसरों पर उपकार करने वाला उपकारी13 जिजसे कभी बुढ़ापा न आये अजर14 दया करने वाला दयालु15 जिजसका आकार न हो हिनराकार16 जो आँखों के सामने हो प्रत्यक्ष17 जहाँ पहुँ ा न जा सके अगम, अगम्य18 जिजसे बहुत कम ज्ञान हो, र्थोड़ा जानने वाला अल्पज्ञ19 मास में एक बार आने वाला माशिसक20 जिजसके कोई संतान न हो हिनस्संतान21 जो कभी न मरे अमर22 जिजसका आ रण अच्छा न हो दुरा ारी23 जिजसका कोई मूल्य न हो अमूल्य24 जो वन में घूमता हो वन र25 जो इस लोक से बाहर की बात हो अलौहिकक26 जो इस लोक की बात हो लौहिकक27 जिजसके नी े रेखा हो रेखांहिकत28 जिजसका संबंध पभिYम से हो पाYात्य29 जो स्थि[र रहे [ावर30 दुखांत ना+क त्रासदी31 जो क्षमा करने के योग्य हो क्षम्य32 बिहंसा करने वाला बिहंसक33 हिहत ाहने वाला हिहतैषी34 हार्थ से शिलखा हुआ हस्तशिलखिखत35 सब कुछ जानने वाला सव9ज्ञ36 जो स्वयं पैदा हुआ हो स्वयंभू37 जो �रण में आया हो �रणागत38 जिजसका वण9न न हिकया जा सके वण9नातीत39 फल-फूल खाने वाला �ाकाहारी40 जिजसकी पत्नी मर गई हो हिवधुर

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41 जिजसका पहित मर गया हो हिवधवा42 सौतेली माँ हिवमाता43 व्याकरण जाननेवाला वैयाकरण44 र ना करने वाला र धियता45 खून से रँगा हुआ रEरंजिजत46 अत्यंत सुन्दर स्त्री रूपसी47 कीर्तितंमान पुरुष य�स्वी48 कम ख 9 करने वाला धिमतव्ययी49 मछली की तरह आँखों वाली मीनाक्षी50 मयूर की तरह आँखों वाली मयूराक्षी51 बच्चों के शिलए काम की वस्तु बालोपयोगी52 जिजसकी बहुत अधिधक ा9 हो बहु र्थि ंत53 जिजस स्त्री के कभी संतान न हुई हो वंध्या (बाँझ)

54 फेन से भरा हुआ फेहिनल55 हिप्रय बोलने वाली स्त्री हिप्रयंवदा56 जिजसकी उपमा न हो हिनरुपम57 जो र्थोड़ी देर पहले पैदा हुआ हो नवजात58 जिजसका कोई आधार न हो हिनराधार59 नगर में वास करने वाला नागरिरक60 रात में घूमने वाला हिन�ा र61 ईश्वर पर हिवश्वास न रखने वाला नाल्किस्तक62 मांस न खाने वाला हिनराधिमष63 हिबलकुल बरबाद हो गया हो ध्वस्त64 जिजसकी धम9 में हिनष्ठा हो धम9हिनष्ठ65 देखने योग्य द�9नीय66 बहुत तेज लने वाला द्रुतगामी67 जो हिकसी पक्ष में न हो त+[68 तत्त्त्तव को जानने वाला तत्त्त्तवज्ञ69 तप करने वाला तपस्वी

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70 जो जन्म से अंधा हो जन्मांध71 जिजसने इंदिद्रयों को जीत शिलया हो जिजतेंदिद्रय72 लि ंता में डूबा हुआ लि ंहितत73 जो बहुत समय कर ठहरे शि र[ायी74 जिजसकी ार भुजाए ँहों तुभु9ज75 हार्थ में = धारण करनेवाला =पाभिण76 जिजससे घृणा की जाए घृभिणत77 जिजसे गुप्त रखा जाए गोपनीय78 गभिणत का ज्ञाता गभिणतज्ञ

79 आका� को ूमने वाला गगन ंुबी80 जो +ुकडे़-+ुकडे़ हो गया हो खंहिडत818 आका� में उड़ने वाला नभ र82 तेज बुजिद्धवाला कु�ाग्रबुजिद्ध83 कल्पना से परे हो कल्पनातीत84 जो उपकार मानता है कृतज्ञ85 हिकसी की हँसी उड़ाना उपहास86 ऊपर कहा हुआ उपयु9E87 ऊपर शिलखा गया उपरिरशिलखिखत88 जिजस पर उपकार हिकया गया हो उपकृत89 इहितहास का ज्ञाता अहितहासज्ञ90 आलो ना करने वाला आलो क91 ईश्वर में आ[ा रखने वाला आल्किस्तक92 हिबना वेतन का अवैतहिनक93 जो कहा न जा सके अकर्थनीय94 जो हिगना न जा सके अगभिणत95 जिजसका कोई �त्रु ही न जन्मा हो अजात�तु्र96 जिजसके समान कोई दूसरा न हो अहिद्वतीय97 जो परिरशि त न हो अपरिरशि त98 जिजसकी कोई उपमा न हो अनुपम

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3. वि�परीताथ�क (वि�लोम र्शब्द)

�ब्द हिवलोम �ब्द हिवलोम �ब्द हिवलोमअर्थ इहित आहिवभा9व हितरोभाव आकष9ण हिवकष9णआधिमष हिनराधिमष अभिभज्ञ अनभिभज्ञ आजादी गुलामीअनुकूल प्रहितकूल आद्र9 �ुष्क अनुराग हिवरागआहार हिनराहार अल्प अधिधक अहिनवाय9 वैकस्थिल्पकअमृत हिवष अगम सुगम अभिभमान नम्रताआका� पाताल आ�ा हिनरा�ा अर्थ9 अनर्थ9अल्पायु दीघा9यु अनुग्रह हिवग्रह अपमान सम्मानआभिश्रत हिनराभिश्रत अंधकार प्रका� अनुज अग्रजअरुशि रुशि आदिद अंत आदान प्रदानआरंभ अंत आय व्यय अवा9 ीन प्रा ीनअवनहित उन्नहित क+ु मधुर अवनी अंबरहि=या प्रहितहि=या कृतज्ञ कृतघ्न आदर अनादरकड़वा मीठा आलोक अंधकार =ुद्ध �ान्तउदय अस्त =य हिव=य आयात हिनया9तकम9 हिनष्कम9 अनुपस्थि[त उपस्थि[त खिखलना मुरझानाआलस्य सू्फर्तितं खु�ी दुख, गम आय9 अनाय9गहरा उर्थला अहितवृधिष्ट अनावृधिष्ट गुरु लघुआदिद अनादिद जीवन मरण इच्छा अहिनच्छागुण दोष इष्ट अहिनष्ट गरीब अमीरइस्थिच्छत अहिनस्थिच्छत घर बाहर इहलोक परलोक र अ र उपकार अपकार छूत अछूतउदार अनुदार जल र्थल उत्तीण9 अनुत्तीण9जड़ ेतन उधार नकद जीवन मरणउत्थान पतन जंगम [ावर उत्कष9 अपकष9उत्तर दभिक्षण जदि+ल सरस गुप्त प्रक+एक अनेक तुच्छ महान ऐसा वैसादिदन रात देव दानव दुरा ारी सदा ारी

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मानवता दानवता धम9 अधम9 महात्मा दुरात्माधीर अधीर मान अपमान धूप छाँवधिमत्र �त्रु नूतन पुरातन मधुर क+ुनकली असली धिमथ्या सत्य हिनमा9ण हिवना�मौखिखक शिलखिखत आल्किस्तक नाल्किस्तक मोक्ष बंधनहिनक+ दूर रक्षक भक्षक बिनंदा स्तुहितपहितव्रता कुल+ा राजा रंक पाप पुण्यराग दे्वष प्रलय सृधिष्ट राहित्र दिदवसपहिवत्र अपहिवत्र लाभ हाहिन हिवधवा सधवापे्रम घृणा हिवजय पराजय प्रश्न उत्तरपूण9 अपूण9 वसंत पतझर परतंत्र स्वतंत्रहिवरोध समर्थ9न बाढ़ सूखा �ूर कायरबंधन मुशिE �यन जागरण बुराई भलाई�ीत उष्ण भाव अभाव स्वग9 नरकमंगल अमंगल सौभाग्य दुभा9ग्य स्वीकृत अस्वीकृत�ुक्ल कृष्ण हिहत अहिहत साक्षर हिनरक्षरस्वदे� हिवदे� हष9 �ोक बिहंसा अबिहंसास्वाधीन पराधीन क्षभिणक �ाश्वत साधु असाधुज्ञान अज्ञान सुजन दुज9न �ुभ अ�ुभसुपुत्र कुपुत्र सुमहित कुमहित सरस नीरसस झूठ साकार हिनराकार श्रम हिवश्रामस्तुहित बिनंदा हिव�ुद्ध दूहिषत सजीव हिनज�वहिवषम सम सुर असुर हिवद्वान मूख9

4. एकाथ�क प्रतीत होने �ाले र्शब्द

1. अस्त्र- जो हशिर्थयार हार्थ से फें ककर लाया जाए। जैसे-बाण।�स्त्र- जो हशिर्थयार हार्थ में पकडे़-पकडे़ लाया जाए। जैसे-कृपाण।2. अलौहिकक- जो इस जगत में कदिठनाई से प्राप्त हो। लोकोत्तर।अस्वाभाहिवक- जो मानव स्वभाव के हिवपरीत हो।असाधारण- सांसारिरक होकर भी अधिधकता से न धिमले। हिव�ेष।

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3. अमूल्य- जो ीज मूल्य देकर भी प्राप्त न हो सके।बहुमूल्य- जिजस ीज का बहुत मूल्य देना पड़ा।4. आनंद- खु�ी का [ायी और गंभीर भाव।आह्लाद- क्षभिणक एवं तीव्र आनंद।उल्लास- सुख-प्रान्विप्त की अल्पकाशिलक हि=या, उमंग।प्रसन्नता-साधारण आनंद का भाव।5. ईष्या9- दूसरे की उन्नहित को सहन न कर सकना।डाह-ईष्या9युE जलन।दे्वष- �त्रुता का भाव।स्पधा9- दूसरों की उन्नहित देखकर स्वयं उन्नहित करने का प्रयास करना।6. अपराध- सामाजिजक एवं सरकारी कानून का उल्लंघन।पाप- नैहितक एवं धार्मिमंक हिनयमों को तोड़ना।7. अनुनय-हिकसी बात पर सहमत होने की प्रार्थ9ना।हिवनय- अनु�ासन एवं शि�ष्टतापूण9 हिनवेदन।आवेदन-योग्यतानुसार हिकसी पद के शिलए कर्थन द्वारा प्रस्तुत होना।प्रार्थ9ना- हिकसी काय9-शिसजिद्ध के शिलए हिवनम्रतापूण9 कर्थन।8. आज्ञा-बड़ों का छो+ों को कुछ करने के शिलए आदे�।अनुमहित-प्रार्थ9ना करने पर बड़ों द्वारा दी गई सहमहित।9. इच्छा- हिकसी वस्तु को ाहना।उत्कंठा- प्रतीक्षायुE प्रान्विप्त की तीव्र इच्छा।आ�ा-प्रान्विप्त की संभावना के सार्थ इच्छा का समन्वय।सृ्पहा-उत्कृष्ट इच्छा।10. संुदर- आकष9क वस्तु। ारु- पहिवत्र और संुदर वस्तु।रुशि र-सुरुशि जाग्रत करने वाली संुदर वस्तु।मनोहर- मन को लुभाने वाली वस्तु।11. धिमत्र- समवयस्क, जो अपने प्रहित प्यार रखता हो।सखा-सार्थ रहने वाला समवयस्क।सगा-आत्मीयता रखने वाला।सुहृदय-संुदर हृदय वाला, जिजसका व्यवहार अच्छा हो।12. अंतःकरण- मन, शि त्त, बुजिद्ध, और अहंकार की समधिष्ट।शि त्त- स्मृहित, हिवस्मृहित, स्वप्न आदिद गुणधारी शि त्त।मन- सुख-दुख की अनुभूहित करने वाला।13. महिहला- कुलीन घराने की स्त्री।पत्नी- अपनी हिववाहिहत स्त्री।स्त्री- नारी जाहित की बोधक।14. नमस्ते- समान अव[ा वालो को अभिभवादन।नमस्कार- समान अव[ा वालों को अभिभवादन।प्रणाम- अपने से बड़ों को अभिभवादन।अभिभवादन- सम्माननीय व्यशिE को हार्थ जोड़ना।

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15. अनुज- छो+ा भाई।अग्रज- बड़ा भाई।भाई- छो+े-बडे़ दोनों के शिलए।16. स्वागत- हिकसी के आगमन पर सम्मान।अभिभनंदन- अपने से बड़ों का हिवधिधवत सम्मान।17. अहंकार- अपने गुणों पर घमंड करना।अभिभमान- अपने को बड़ा और दूसरे को छो+ा समझना।दंभ- अयोग्य होते हुए भी अभिभमान करना।18. मंत्रणा- गोपनीय रूप से पराम�9 करना।पराम�9- पूण9तया हिकसी हिवषय पर हिव ार-हिवम�9 कर मत प्रक+ करना।

5.समोच्चरिरत र्शब्द

1. अनल=आग अहिनल=हवा, वायु2. उपकार=भलाई, भला करनाअपकार=बुराई, बुरा करना3. अन्न=अनाज अन्य=दूसरा4. अणु=कण अनु=पYात 5. ओर=तरफऔर=तर्था6. अशिसत=काला अशि�त=खाया हुआ 7. अपेक्षा=तुलना में उपेक्षा=हिनरादर, लापरवाही 8. कल=संुदर, पुरजाकाल=समय9. अंदर=भीतर अंतर=भेद 10. अंक=गोद अंग=देह का भाग 11. कुल=वं�कूल=हिकनारा12. अश्व=घोड़ा अश्म=पत्थर 13. अशिल=भ्रमरआली=सखी 14. कृधिम=की+

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कृहिष=खेती15. अप ार=अपराध उप ार=इलाज 16. अन्याय=गैर-इंसाफी अन्यान्य=दूसरे-दूसरे 17. कृहित=र नाकृती=हिनपुण, परिरश्रमी18. आमरण=मृत्युपय½त आभरण=गहना 19. अवसान=अंत आसान=सरल 20. कशिल=कशिलयुग, झगड़ाकली=अधखिखला फूल21. इतर=दूसरा इत्र=सुगंधिधत द्रव्य 22. =म=शिसलशिसला कम9=काम 23. परुष=कठोरपुरुष=आदमी24. कु+=घर,हिकला कू+=पव9त 25. कु =स्तन कू =प्र[ान 26. प्रसाद=कृपाप्रासादा=महल27. कुजन=दुज9न कूजन=पभिक्षयों का कलरव 28. गत=बीता हुआ गहित= ाल 29. पानी=जलपाभिण=हार्थ30. गुर=उपाय गुरु=शि�क्षक, भारी 31. ग्रह=सूय9, ंद्र गृह=घर 32. प्रकार=तरहप्राकार=हिकला, घेरा33. रण=पैर ारण=भा+ 34. शि र=पुराना ीर=वस्त्र 35. फन=साँप का फनफ़न=कला

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36. छत्र=छाया क्षत्र=क्षहित्रय,�शिE 37. ढीठ=दुष्ट,जिजद्दीडीठ=दृधिष्ट 38. बदन=देहवदन=मुख39. तरभिण=सूय9 तरणी=नौका 40. तरंग=लहर तुरंग=घोड़ा 41. भवन=घरभुवन=संसार42. तप्त=गरम तृप्त=संतुष्ट 43. दिदन=दिदवस दीन=दरिरद्र 44. भीहित=भयभिभभित्त=दीवार45. द�ा=हालत दिद�ा=तरफ़ 46. द्रव=तरल पदारअर्थ द्रव्य=धन 47. भाषण=व्याख्यानभीषण=भयंकर48. धरा=पृथ्वी धारा=प्रवाह 49. नय=नीहित नव=नया 50. हिनवा9ण=मोक्ष हिनमा9ण=बनाना 51. हिनज9र=देवता हिनझ9र=झरना 52. मत=रायमहित=बुजिद्ध53. नेक=अच्छा नेकु=तहिनक 54. पर्थ=राह पथ्य=रोगी का आहार 55. मद=मस्तीमद्य=मदिदरा56. परिरणाम=फल

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परिरमाण=वजन 57. मभिण=रत्न फणी=सप9 58. मशिलन=मैलाम्लान=मुरझाया हुआ59. मातृ=मातामात्र=केवल 60. रीहित=तरीका रीता=खाली 61. राज=�ासनराज=रहस्य62. लशिलत=संुदर लशिलता=गोपी 63. लक्ष्य=उदे्दश्य लक्ष=लाख 64. वक्ष=छातीवृक्ष=पेड़65. वसन=वस्त्र व्यसन=न�ा, आदत 66. वासना=कुस्थित्सत हिव ार बास=गंध 67. वस्तु= ीजवास्तु=मकान68. हिवजन=सुनसान व्यजन=पंखा 69. �ंकर=शि�व संकर=धिमभिश्रत 70. हिहय=हृदयहय=घोड़ा71. �र=बाण सर=तालाब 72. �म=संयम सम=बराबर 73. =वाक= कवा =वात=बवंडर74. �ूर=वीर सूर=अंधा 75. सुधिध=स्मरण सुधी=बुजिद्धमान 76. अभेद=अंतर नहीं

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अभेद्य=न +ू+ने योग्य77. संघ=समुदाय संग=सार्थ 78. सग9=अध्याय स्वग9=एक लोक 79. प्रणय=पे्रमपरिरणय=हिववाह80. समर्थ9=सक्षम सामथ्य9=�शिE 81. कदि+बंध=कमरबंधकदि+बद्ध=तैयार 82. =ांहित=हिवद्रोहक्लांहित=र्थकाव+83. इंदिदरा=लक्ष्मी इंद्रा=इंद्राणी

6. अनेकाथ�क र्शब्द

1. अक्षर= नष्ट न होने वाला, वण9, ईश्वर, शि�व।2. अर्थ9= धन, ऐश्वय9, प्रयोजन, हेतु।3. आराम= बाग, हिवश्राम, रोग का दूर होना।4. कर= हार्थ, हिकरण, +ैक्स, हार्थी की सँूड़।5. काल= समय, मृत्यु, यमराज।6. काम= काय9, पे�ा, धंधा, वासना, कामदेव।7. गुण= कौ�ल, �ील, रस्सी, स्वभाव, धनुष की डोरी।8. घन= बादल, भारी, हर्थौड़ा, घना।9. जलज= कमल, मोती, मछली, ंद्रमा, �ंख।10. तात= हिपता, भाई, बड़ा, पूज्य, प्यारा, धिमत्र।11. दल= समूह, सेना, पत्ता, हिहस्सा, पक्ष, भाग, शि ड़ी।12. नग= पव9त, वृक्ष, नगीना।13. पयोधर= बादल, स्तन, पव9त, गन्ना।14. फल= लाभ, मेवा, नतीजा, भाले की नोक।15. बाल= बालक, के�, बाला, दानेयुE डंठल।16. मधु= �हद, मदिदरा, ैत मास, एक दैत्य, वसंत।17. राग= पे्रम, लाल रंग, संगीत की ध्वहिन।18. राशि�= समूह, मेष, कक9 , वृभिYक आदिद राशि�याँ।19. लक्ष्य= हिन�ान, उदे्दश्य।20. वण9= अक्षर, रंग, ब्राह्मण आदिद जाहितयाँ।21. सारंग= मोर, सप9, मेघ, हिहरन, पपीहा, राजहंस, हार्थी, कोयल, कामदेव, लिसंह, धनुष भौंरा, मधुमक्खी, कमल।

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22. सर= अमृत, दूध, पानी, गंगा, मधु, पृथ्वी, तालाब।23. के्षत्र= देह, खेत, तीर्थ9, सदाव्रत बाँ+ने का [ान।24. शि�व= भाग्य�ाली, महादेव, श्रृगाल, देव, मंगल।25. हरिर= हार्थी, हिवष्णु, इंद्र, पहाड़, लिसंह, घोड़ा, सप9, वानर, मेढक, यमराज, ब्रह्मा, शि�व, कोयल, हिकरण, हंस।

7. पर्शु-पणिbयों की बोलिलयाँ

प�ु बोली प�ु बोली प�ु बोलीऊँ+ बलबलाना कोयल कूकना गाय रँभानाशि हिड़या ह हाना भैंस डकराना (रँभाना) बकरी धिमधिमयानामोर कुहकना घोड़ा हिहनहिहनाना तोता +ैं-+ैं करनाहार्थी शि घाड़ना कौआ काँव-काँव करना साँप फुफकारना�ेर दहाड़ना सारस =ें -=ें करनादि++हरी +ीं-+ीं करना कुत्ता भौंकना मक्खी भिभनभिभनाना

8. कुछ जड़ पदाथ1 की वि�र्शेष ध्�विनयाँ या विक्रयाएँ

जिजह्वा लपलपाना दाँत हिक+हिक+ानाहृदय धड़कना पैर प+कनाअश्रु छलछलाना घड़ी दि+क-दि+क करनापंख फड़फड़ाना तारे जगमगानानौका डगमगाना मेघ गरजना

9. कुछ सामान्य अर्शुणि^याँ

अ�ुद्ध �ुद्ध अ�ुद्ध �ुद्ध अ�ुद्ध �ुद्ध अ�ुद्ध �ुद्धअगामी आगामी शिलखायी शिलखाई सप्ताहिहक साप्ताहिहक अलोहिकक अलौहिककसंसारिरक सांसारिरक क्यूँ क्यों आधीन अधीन हस्ताके्षप हस्तके्षपव्योहार व्यवहार बरात बारात उपन्याशिसक औपन्याशिसक क्षत्रीय क्षहित्रयदुहिनयां दुहिनया हितर्थी हितशिर्थ कालीदास काशिलदास पूरती पूर्तितंअहितर्थी अहितशिर्थ नीती नीहित गृहणी गृहिहणी परिरस्थि[त परिरस्थि[हित

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आर्थि�वंाद आ�ीवा9द हिनरिरक्षण हिनरीक्षण हिबमारी बीमारी पस्त्रित्न पत्नी�ताखिब्द �ताब्दी लड़ायी लड़ाई [ाई [ायी श्रीमहित श्रीमतीसाधिमग्री सामग्री वाहिपस वापस प्रदर्थि�ंनी प्रद�9नी ऊत्थान उत्थानदुसरा दूसरा साधू साधु रेणू रेणु नुपुर नूपुरअनुदिदत अनूदिदत जादु जादू बृज ब्रज प्रर्थक पृर्थकइहितहाशिसक ऐहितहाशिसक दाइत्व दाधियत्व सेहिनक सैहिनक सैना सेनाघबड़ाना घबराना श्राप �ाप बनस्पहित वनस्पहित बन वनहिवना हिबना बसंत वसंत अमावश्या अमावस्या प्र�ाद प्रसादहंशिसया हँशिसया गंवार गँवार असोक अ�ोक हिनस्वार्थ9 हिनःस्वार्थ9दुस्कर दुष्कर मुल्यवान मूल्यवान शिसरीमान श्रीमान महाअन महाननवम् नवम क्षात्र छात्र छमा क्षमा आद9� आद�9षष्टम् षष्ठ पं्रतु परंतु प्रीक्षा परीक्षा मरयादा मया9दादुद�ा9 दुद9�ा कहिवत्री कवधियत्री प्रमात्मा परमात्मा घहिनष्ट घहिनष्ठराजभिभषेक राज्याभिभषेक हिपयास प्यास हिवतीत व्यतीत कृप्या कृपाव्यशिEक वैयशिEक मांशिसक मानशिसक समवाद संवाद संपहित संपभित्तहिवषे� हिव�ेष �ा�न �ासन दुःख दुख मूलतयः मूलतःहिपओ हिपयो हुये हुए लीये शिलए सहास साहसरामायन रामायण रन रण रनभूधिम रणभूधिम रसायण रसायनप्रान प्राण मरन मरण कल्यान कल्याण पडता पड़ताढे़र ढेर झाडू झाड़ू मेंढ़क मेढक श्रेष्ट श्रेष्ठषष्टी षष्ठी हिनष्टा हिनष्ठा सृधिष्ठ सृधिष्ट इष्ठ इष्टस्वा[ स्वास्थ्य पांडे पांडेय स्वतंत्रा स्वतंत्रता उपलक्ष उपलक्ष्यमहत्व महत्त्त्व आल्हाद आह्लाद उज्वल उज्जवल व्यस्क वयस्क

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अध्याय 23

वि�राम-लिचह्न

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हिवराम-शि ह्न- ‘हिवराम’ �ब्द का अर्थ9 है ‘रुकना’। जब हम अपने भावों को भाषा के द्वारा व्यE करते हैं तब एक भाव की अभिभव्यशिE के बाद कुछ देर रुकते हैं, यह रुकना ही हिवराम कहलाता है।इस हिवराम को प्रक+ करने हेतु जिजन कुछ शि ह्नों का प्रयोग हिकया जाता है, हिवराम-शि ह्न कहलाते हैं। वे इस प्रकार हैं-1. अल्प हिवराम (,)- पढ़ते अर्थवा बोलते समय बहुत र्थोड़ा रुकने के शिलए अल्प हिवराम-शि ह्न का प्रयोग हिकया जाता है। जैसे-सीता, गीता और लक्ष्मी। यह संुदर [ल, जो आप देख रहे हैं, बापू की समाधिध है। हाहिन-लाभ, जीवन-मरण, य�-अपय� हिवधिध हार्थ।2. अध9 हिवराम (;)- जहाँ अल्प हिवराम की अपेक्षा कुछ ज्यादा देर तक रुकना हो वहाँ इस अध9-हिवराम शि ह्न का प्रयोग हिकया जाता है। जैसे-सूयÁदय हो गया; अंधकार न जाने कहाँ लुप्त हो गया।3. पूण9 हिवराम (।)- जहाँ वाक्य पूण9 होता है वहाँ पूण9 हिवराम-शि ह्न का प्रयोग हिकया जाता है। जैसे-मोहन पुस्तक पढ़ रहा है। वह फूल तोड़ता है।4. हिवस्मयादिदबोधक शि ह्न (!)- हिवस्मय, हष9, �ोक, घृणा आदिद भावों को द�ा9ने वाले �ब्द के बाद अर्थवा कभी-कभी ऐसे वाक्यां� या वाक्य के अंत में भी हिवस्मयादिदबोधक शि ह्न का प्रयोग हिकया जाता है। जैसे- हाय ! वह बे ारा मारा गया। वह तो अत्यंत सु�ील र्था ! बड़ा अफ़सोस है !5. प्रश्नवा क शि ह्न (?)- प्रश्नवा क वाक्यों के अंत में प्रश्नवा क शि ह्न का प्रयोग हिकया जाता है। जैसे-हिकधर ले ? तुम कहाँ रहते हो ?6. कोष्ठक ()- इसका प्रयोग पद (�ब्द) का अर्थ9 प्रक+ करने हेतु, =म-बोध और ना+क या एकांकी में अभिभनय के भावों को व्यE करने के शिलए हिकया जाता है। जैसे-हिनरंतर (लगातार) व्यायाम करते रहने से देह (�रीर) स्व[ रहता है। हिवश्व के महान राष्ट्रों में (1) अमेरिरका, (2) रूस, (3) ीन, (4) हिब्र+ेन आदिद हैं।नल-(खिखन्न होकर) ओर मेरे दुभा9ग्य ! तूने दमयंती को मेरे सार्थ बाँधकर उसे भी जीवन-भर कष्ट दिदया।7. हिनद �क शि ह्न (-)- इसका प्रयोग हिवषय-हिवभाग संबंधी प्रत्येक �ीष9क के आगे, वाक्यों, वाक्यां�ों अर्थवा पदों के मध्य हिव ार अर्थवा भाव को हिवशि�ष्ट रूप से व्यE करने हेतु, उदाहरण अर्थवा जैसे के बाद, उद्धरण के अंत में, लेखक के नाम के पूव9 और कर्थोपकर्थन में नाम के आगे हिकया जाता है। जैसे-समस्त जीव-जंतु-घोड़ा, ऊँ+, बैल, कोयल, शि हिड़या सभी व्याकुल रे्थ। तुम सो रहे हो- अच्छा, सोओ।द्वारपाल-भगवन ! एक दुबला-पतला ब्राह्मण द्वार पर खड़ा है।8. उद्धरण शि ह्न (‘‘ ’’)- जब हिकसी अन्य की उशिE को हिबना हिकसी परिरवत9न के ज्यों-का-त्यों रखा जाता है, तब वहाँ इस शि ह्न का प्रयोग हिकया जाता है। इसके पूव9 अल्प हिवराम-शि ह्न लगता है। जैसे-नेताजी ने कहा र्था, ‘‘तुम हमें खून दो, हम तुम्हें आजादी देंगे।’’, ‘‘ ‘राम रिरत मानस’ तुलसी का अमर काव्य गं्रर्थ है।’’9. आदे� शि ह्न (:- )- हिकसी हिवषय को =म से शिलखना हो तो हिवषय-=म व्यE करने से पूव9 इसका प्रयोग हिकया जाता है। जैसे-सव9नाम के प्रमुख पाँ भेद हैं :-(1) पुरुषवा क, (2) हिनYयवा क, (3) अहिनYयवा क, (4) संबंधवा क, (5) प्रश्नवा क।10. योजक शि ह्न (-)- समस्त हिकए हुए �ब्दों में जिजस शि ह्न का प्रयोग हिकया जाता है, वह योजक शि ह्न कहलाता है। जैसे-माता-हिपता, दाल-भात, सुख-दुख, पाप-पुण्य।11. लाघव शि ह्न (.)- हिकसी बडे़ �ब्द को संके्षप में शिलखने के शिलए उस �ब्द का प्रर्थम अक्षर शिलखकर उसके आगे �ून्य लगा देते हैं। जैसे-पंहिडत=पं., डॉक्+र=डॉ., प्रोफेसर=प्रो.।

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अध्याय 24

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�ाक्य-प्रकरण

वाक्य- एक हिव ार को पूण9ता से प्रक+ करने वाला �ब्द-समूह वाक्य कहलाता है। जैसे- 1. श्याम दूध पी रहा है। 2. मैं भागते-भागते र्थक गया। 3. यह हिकतना संुदर उपवन है। 4. ओह ! आज तो गरमी के कारण प्राण हिनकले जा रहे हैं। 5. वह मेहनत करता तो पास हो जाता।ये सभी मुख से हिनकलने वाली सार्थ9क ध्वहिनयों के समूह हैं। अतः ये वाक्य हैं। वाक्य भाषा का रम अवयव है।

�ाक्य-खंड

वाक्य के प्रमुख दो खंड हैं-1. उदे्दश्य।2. हिवधेय।1. उदे्दश्य- जिजसके हिवषय में कुछ कहा जाता है उसे सू हिक करने वाले �ब्द को उदे्दश्य कहते हैं। जैसे-1. अजु9न ने जयद्रर्थ को मारा।2. कुत्ता भौंक रहा है। 3. तोता डाल पर बैठा है।इनमें अजु9न ने, कुत्ता, तोता उदे्दश्य हैं; इनके हिवषय में कुछ कहा गया है। अर्थवा यों कह सकते हैं हिक वाक्य में जो कता9 हो उसे उदे्दश्य कह सकते हैं क्योंहिक हिकसी हि=या को करने के कारण वही मुख्य होता है।2. हिवधेय- उदे्दश्य के हिवषय में जो कुछ कहा जाता है, अर्थवा उदे्दश्य (कता9) जो कुछ काय9 करता है वह सब हिवधेय कहलाता है। जैसे- 1. अजु9न ने जयद्रर्थ को मारा।2. कुत्ता भौंक रहा है। 3. तोता डाल पर बैठा है।इनमें ‘जयद्रर्थ को मारा’, ‘भौंक रहा है’, ‘डाल पर बैठा है’ हिवधेय हैं क्योंहिक अजु9न ने, कुत्ता, तोता,-इन उदे्दश्यों (कता9ओं) के कायa के हिवषय में =म�ः मारा, भौंक रहा है, बैठा है, ये हिवधान हिकए गए हैं, अतः इन्हें हिवधेय कहते हैं।उदे्दश्य का हिवस्तार- कई बार वाक्य में उसका परिर य देने वाले अन्य �ब्द भी सार्थ आए होते हैं। ये अन्य �ब्द उदे्दश्य का हिवस्तार कहलाते हैं। जैसे-1. संुदर पक्षी डाल पर बैठा है।2. काला साँप पेड़ के नी े बैठा है।इनमें संुदर और काला �ब्द उदे्दश्य का हिवस्तार हैं।उदे्दश्य में हिनम्नशिलखिखत �ब्द-भेदों का प्रयोग होता है-(1) संज्ञा- घोड़ा भागता है।(2) सव9नाम- वह जाता है।(3) हिव�ेषण- हिवद्वान की सव9त्र पूजा होती है।(4) हि=या-हिव�ेषण- (जिजसका) भीतर-बाहर एक-सा हो।(5) वाक्यां�- झूठ बोलना पाप है।वाक्य के साधारण उदे्दश्य में हिव�ेषणादिद जोड़कर उसका हिवस्तार करते हैं। उदे्दश्य का हिवस्तार नी े शिलखे �ब्दों के द्वारा प्रक+ होता है-

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(1) हिव�ेषण से- अच्छा बालक आज्ञा का पालन करता है।(2) संबंध कारक से- द�9कों की भीड़ ने उसे घेर शिलया।(3) वाक्यां� से- काम सीखा हुआ कारीगर कदिठनाई से धिमलता है।हिवधेय का हिवस्तार- मूल हिवधेय को पूण9 करने के शिलए जिजन �ब्दों का प्रयोग हिकया जाता है वे हिवधेय का हिवस्तार कहलाते हैं। जैसे-वह अपने पैन से शिलखता है। इसमें अपने हिवधेय का हिवस्तार है।कम9 का हिवस्तार- इसी तरह कम9 का हिवस्तार हो सकता है। जैसे-धिमत्र, अच्छी पुस्तकें पढ़ो। इसमें अच्छी कम9 का हिवस्तार है।हि=या का हिवस्तार- इसी तरह हि=या का भी हिवस्तार हो सकता है। जैसे-श्रेय मन लगाकर पढ़ता है। मन लगाकर हि=या का हिवस्तार है।

�ाक्य-भेद

र ना के अनुसार वाक्य के हिनम्नशिलखिखत भेद हैं-1. साधारण वाक्य।2. संयुE वाक्य।3. धिमभिश्रत वाक्य।

1. साधारण �ाक्य

जिजस वाक्य में केवल एक ही उदे्दश्य (कता9) और एक ही समाहिपका हि=या हो, वह साधारण वाक्य कहलाता है। जैसे- 1. बच्चा दूध पीता है। 2. कमल गेंद से खेलता है। 3. मृदुला पुस्तक पढ़ रही हैं।हिव�ेष-इसमें कता9 के सार्थ उसके हिवस्तारक हिव�ेषण और हि=या के सार्थ हिवस्तारक सहिहत कम9 एवं हि=या-हिव�ेषण आ सकते हैं। जैसे-अच्छा बच्चा मीठा दूध अच्छी तरह पीता है। यह भी साधारण वाक्य है।

2. संयुE �ाक्य

दो अर्थवा दो से अधिधक साधारण वाक्य जब सामानाधिधकरण समुच्चयबोधकों जैसे- (पर, हिकन्तु, और, या आदिद) से जुडे़ होते हैं, तो वे संयुE वाक्य कहलाते हैं। ये ार प्रकार के होते हैं।(1) संयोजक- जब एक साधारण वाक्य दूसरे साधारण या धिमभिश्रत वाक्य से संयोजक अव्यय द्वारा जुड़ा होता है। जैसे-गीता गई और सीता आई।(2) हिवभाजक- जब साधारण अर्थवा धिमश्र वाक्यों का परस्पर भेद या हिवरोध का संबंध रहता है। जैसे-वह मेहनत तो बहुत करता है पर फल नहीं धिमलता।(3) हिवकल्पसू क- जब दो बातों में से हिकसी एक को स्वीकार करना होता है। जैसे- या तो उसे मैं अखाडे़ में पछाडँ़ूगा या अखाडे़ में उतरना ही छोड़ दँूगा।(4) परिरणामबोधक- जब एक साधारण वाक्य दसूरे साधारण या धिमभिश्रत वाक्य का परिरणाम होता है। जैसे- आज मुझे बहुत काम है इसशिलए मैं तुम्हारे पास नहीं आ सकँूगा।

3. मिमणिiत �ाक्य

जब हिकसी हिवषय पर पूण9 हिव ार प्रक+ करने के शिलए कई साधारण वाक्यों को धिमलाकर एक वाक्य की र ना करनी पड़ती है तब ऐसे रशि त वाक्य ही धिमभिश्रत वाक्य कहलाते हैं।

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हिव�ेष- (1) इन वाक्यों में एक मुख्य या प्रधान उपवाक्य और एक अर्थवा अधिधक आभिश्रत उपवाक्य होते हैं जो समुच्चयबोधक अव्यय से जुडे़ होते हैं।(2) मुख्य उपवाक्य की पुधिष्ट, समर्थ9न, स्पष्टता अर्थवा हिवस्तार हेतु ही आभिश्रत वाक्य आते है।आभिश्रत वाक्य तीन प्रकार के होते हैं-(1) संज्ञा उपवाक्य।(2) हिव�ेषण उपवाक्य।(3) हि=या-हिव�ेषण उपवाक्य।1. संज्ञा उपवाक्य- जब आभिश्रत उपवाक्य हिकसी संज्ञा अर्थवा सव9नाम के [ान पर आता है तब वह संज्ञा उपवाक्य कहलाता है। जैसे- वह ाहता है हिक मैं यहाँ कभी न आऊँ। यहाँ हिक मैं कभी न आऊँ, यह संज्ञा उपवाक्य है।2. हिव�ेषण उपवाक्य- जो आभिश्रत उपवाक्य मुख्य उपवाक्य की संज्ञा �ब्द अर्थवा सव9नाम �ब्द की हिव�ेषता बतलाता है वह हिव�ेषण उपवाक्य कहलाता है। जैसे- जो घड़ी मेज पर रखी है वह मुझे पुरस्कारस्वरूप धिमली है। यहाँ जो घड़ी मेज पर रखी है यह हिव�ेषण उपवाक्य है।3. हि=या-हिव�ेषण उपवाक्य- जब आभिश्रत उपवाक्य प्रधान उपवाक्य की हि=या की हिव�ेषता बतलाता है तब वह हि=या-हिव�ेषण उपवाक्य कहलाता है। जैसे- जब वह मेरे पास आया तब मैं सो रहा र्था। यहाँ पर जब वह मेरे पास आया यह हि=या-हिव�ेषण उपवाक्य है।

�ाक्य-परिर�त�न

वाक्य के अर्थ9 में हिकसी तरह का परिरवत9न हिकए हिबना उसे एक प्रकार के वाक्य से दूसरे प्रकार के वाक्य में परिरवत9न करना वाक्य-परिरवत9न कहलाता है।(1) साधारण वाक्यों का संयुE वाक्यों में परिरवत9न-साधारण वाक्य संयुE वाक्य1. मैं दूध पीकर सो गया। मैंने दूध हिपया और सो गया।2. वह पढ़ने के अलावा अखबार भी बे ता है। वह पढ़ता भी है और अखबार भी बे ता है3. मैंने घर पहुँ कर सब बच्चों को खेलते हुए देखा। मैंने घर पहुँ कर देखा हिक सब बच्चे खेल रहे रे्थ। 4. स्वास्थ्य ठीक न होने से मैं का�ी नहीं जा सका। मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं र्था इसशिलए मैं का�ी नहीं जा सका।5. सवेरे तेज वषा9 होने के कारण मैं दर्फ्यूतर देर से पहुँ ा। सवेरे तेज वषा9 हो रही र्थी इसशिलए मैं दर्फ्यूतर देर से पहुँ ा।(2) संयुE वाक्यों का साधारण वाक्यों में परिरवत9न-संयुE वाक्य साधारण वाक्य1. हिपताजी अस्व[ हैं इसशिलए मुझे जाना ही पडे़गा। हिपताजी के अस्व[ होने के कारण मुझे जाना ही पडे़गा।2. उसने कहा और मैं मान गया। उसके कहने से मैं मान गया।3. वह केवल उपन्यासकार ही नहीं अहिपतु अच्छा वEा भी है। वह उपन्यासकार के अहितरिरE अच्छा वEा भी है।4. लू ल रही र्थी इसशिलए मैं घर से बाहर नहीं हिनकल सका। लू लने के कारण मैं घर से बाहर नहीं हिनकल सका।5. गाड9 ने सी+ी दी और टे्रन ल पड़ी। गाड9 के सी+ी देने पर टे्रन ल पड़ी।

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(3) साधारण वाक्यों का धिमभिश्रत वाक्यों में परिरवत9न-साधारण वाक्य धिमभिश्रत वाक्य1. हरलिसंगार को देखते ही मुझे गीता की याद आ जाती है। जब मैं हरलिसंगार की ओर देखता हूँ तब मुझे गीता की याद आ जाती है।2. राष्ट्र के शिलए मर धिम+ने वाला व्यशिE सच्चा राष्ट्रभE है। वह व्यशिE सच्चा राष्ट्रभE है जो राष्ट्र के शिलए मर धिम+े।3. पैसे के हिबना इंसान कुछ नहीं कर सकता। यदिद इंसान के पास पैसा नहीं है तो वह कुछ नहीं कर सकता।4. आधी रात होते-होते मैंने काम करना बंद कर दिदया। ज्योंही आधी रात हुई त्योंही मैंने काम करना बंद कर दिदया।(4) धिमभिश्रत वाक्यों का साधारण वाक्यों में परिरवत9न-धिमभिश्रत वाक्य साधारण वाक्य1. जो संतोषी होते हैं वे सदैव सुखी रहते हैं संतोषी सदैव सुखी रहते हैं।2. यदिद तुम नहीं पढ़ोगे तो परीक्षा में सफल नहीं होगे। न पढ़ने की द�ा में तुम परीक्षा में सफल नहीं होगे।3. तुम नहीं जानते हिक वह कौन है ? तुम उसे नहीं जानते।4. जब जेबकतरे ने मुझे देखा तो वह भाग गया। मुझे देखकर जेबकतरा भाग गया।5. जो हिवद्वान है, उसका सव9त्र आदर होता है। हिवद्वानों का सव9त्र आदर होता है।

�ाक्य-वि�शे्लषण

वाक्य में आए हुए �ब्द अर्थवा वाक्य-खंडों को अलग-अलग करके उनका पारस्परिरक संबंध बताना वाक्य-हिवशे्लषण कहलाता है।साधारण वाक्यों का हिवशे्लषण1. हमारा राष्ट्र समृद्ध�ाली है।2. हमें हिनयधिमत रूप से हिवद्यालय आना ाहिहए।3. अ�ोक, सोहन का बड़ा पुत्र, पुस्तकालय में अच्छी पुस्तकें छाँ+ रहा है।उदे्दश्य हिवधेयवाक्य उदे्दश्य उदे्दश्य का हि=या कम9 कम9 का पूरक हिवधेय =मांक कता9 हिवस्तार हिवस्तार का हिवस्तार1. राष्ट्र हमारा है - - समृद्ध -2. हमें - आना हिवद्यालय - �ाली हिनयधिमत ाहिहए रूप से3. अ�ोक सोहन का छाँ+ रहा पुस्तकें अच्छी पुस्तकालयबड़ा पुत्र है मेंधिमभिश्रत वाक्य का हिवशे्लषण-1. जो व्यशिE जैसा होता है वह दूसरों को भी वैसा ही समझता है।2. जब-जब धम9 की क्षहित होती है तब-तब ईश्वर का अवतार होता है।3. मालूम होता है हिक आज वषा9 होगी।4. जो संतोषी होत हैं वे सदैव सुखी रहते हैं।5. दा�9हिनक कहते हैं हिक जीवन पानी का बुलबुला है।संयुE वाक्य का हिवशे्लषण-1. तेज वषा9 हो रही र्थी इसशिलए परसों मैं तुम्हारे घर नहीं आ सका।

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2. मैं तुम्हारी राह देखता रहा पर तुम नहीं आए।3. अपनी प्रगहित करो और दूसरों का हिहत भी करो तर्था स्वार्थ9 में न हिह को।

अथ� के अनुसार �ाक्य के प्रकार

अर्था9नुसार वाक्य के हिनम्नशिलखिखत आठ भेद हैं-1. हिवधानार्थ9क वाक्य।2. हिनषेधार्थ9क वाक्य।3. आज्ञार्थ9क वाक्य।4. प्रश्नार्थ9क वाक्य।5. इच्छार्थ9क वाक्य।6. संदेर्थ9क वाक्य।7. संकेतार्थ9क वाक्य।8. हिवस्मयबोधक वाक्य।1. हिवधानार्थ9क वाक्य-जिजन वाक्यों में हि=या के करने या होने का सामान्य कर्थन हो। जैसे-मैं कल दिदल्ली जाऊँगा। पृथ्वी गोल है।2. हिनषेधार्थ9क वाक्य- जिजस वाक्य से हिकसी बात के न होने का बोध हो। जैसे-मैं हिकसी से लड़ाई मोल नहीं लेना ाहता।3. आज्ञार्थ9क वाक्य- जिजस वाक्य से आज्ञा उपदे� अर्थवा आदे� देने का बोध हो। जैसे-�ीघ्र जाओ वरना गाड़ी छू+ जाएगी। आप जा सकते हैं।4. प्रश्नार्थ9क वाक्य- जिजस वाक्य में प्रश्न हिकया जाए। जैसे-वह कौन हैं उसका नाम क्या है।5. इच्छार्थ9क वाक्य- जिजस वाक्य से इच्छा या आ�ा के भाव का बोध हो। जैसे-दीघा9यु हो। धनवान हो।6. संदेहार्थ9क वाक्य- जिजस वाक्य से संदेह का बोध हो। जैसे-�ायद आज वषा9 हो। अब तक हिपताजी जा ुके होंगे।7. संकेतार्थ9क वाक्य- जिजस वाक्य से संकेत का बोध हो। जैसे-यदिद तुम कन्याकुमारी लो तो मैं भी लँू।8. हिवस्मयबोधक वाक्य-जिजस वाक्य से हिवस्मय के भाव प्रक+ हों। जैसे-अहा ! कैसा सुहावना मौसम है।

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अध्याय 25

अर्शु^ �ाक्यों के र्शु^ �ाक्य

(1) व न-संबंधी अ�ुजिद्धयाँअ�ुद्ध �ुद्ध1. पाहिकस्तान ने गोले और तोपों से आ=मण हिकया। पाहिकस्तान ने गोलों और तोपों से आ=मण हिकया।2. उसने अनेकों गं्रर्थ शिलखे। उसने अनेक गं्रर्थ शिलखे।3. महाभारत अठारह दिदनों तक लता रहा। महाभारत अठारह दिदन तक लता रहा।4. तेरी बात सुनते-सुनते कान पक गए। तेरी बातें सुनते-सुनते कान पक गए।

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5. पेड़ों पर तोता बैठा है। पेड़ पर तोता बैठा है।(2) लिलंग संबंधी अ�ुजिद्धयाँ-अ�ुद्ध �ुद्ध1. उसने संतोष का साँस ली। उसने संतोष की साँस ली।2. सहिवता ने जोर से हँस दिदया। सहिवता जोर से हँस दी।3. मुझे बहुत आनंद आती है। मुझे बहुत आनंद आता है।4. वह धीमी स्वर में बोला। वह धीमे स्वर में बोला।5. राम और सीता वन को गई। राम और सीता वन को गए।(3) हिवभशिE-संबंधी अ�ुजिद्धयाँ-अ�ुद्ध �ुद्ध1. मैं यह काम नहीं हिकया हूँ। मैंने यह काम नहीं हिकया है।2. मैं पुस्तक को पढ़ता हूँ। मैं पुस्तक पढ़ता हूँ।3. हमने इस हिवषय को हिव ार हिकया। हमने इस हिवषय पर हिव ार हिकया4. आठ बजने को दस धिमन+ है। आठ बजने में दस धिमन+ है।5. वह देर में सोकर उठता है। वह देर से सोकर उठता है।(4) संज्ञा संबंधी अ�ुजिद्धयाँ-अ�ुद्ध �ुद्ध1. मैं रहिववार के दिदन तुम्हारे घर आऊँगा। मैं रहिववार को तुम्हारे घर आऊँगा।2. कुत्ता रेंकता है। कुत्ता भौंकता है।3. मुझे सफल होने की हिनरा�ा है। मुझे सफल होने की आ�ा नहीं है।4. गले में गुलामी की बेहिड़याँ पड़ गई। पैरों में गुलामी की बेहिड़याँ पड़ गई।(5) सव9नाम की अ�ुजिद्धयाँ-अ�ुद्ध �ुद्ध1. गीता आई और कहा। गीता आई और उसने कहा।2. मैंने तेरे को हिकतना समझाया। मैंने तुझे हिकतना समझाया।3. वह क्या जाने हिक मैं कैसे जीहिवत हूँ। वह क्या जाने हिक मैं कैसे जी रहा हूँ।(6) हिव�ेषण-संबंधी अ�ुजिद्धयाँ-अ�ुद्ध �ुद्ध1. हिकसी और लड़के को बुलाओ। हिकसी दूसरे लड़के को बुलाओ।2. लिसंह बड़ा बीभत्स होता है। लिसंह बड़ा भयानक होता है।3. उसे भारी दुख हुआ। उसे बहुत दुख हुआ।4. सब लोग अपना काम करो। सब लोग अपना-अपना काम करो।(7) हि=या-संबंधी अ�ुजिद्धयाँ-अ�ुद्ध �ुद्ध1. क्या यह संभव हो सकता है ? क्या यह संभव है ?2. मैं द�9न देने आया र्था। मैं द�9न करने आया र्था।3. वह पढ़ना माँगता है। वह पढ़ना ाहता है।4. बस तुम इतने रूठ उठे बस, तुम इतने में रूठ गए।5. तुम क्या काम करता है ? तुम क्या काम करते हो ?(8) मुहावरे-संबंधी अ�ुजिद्धयाँ-

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अ�ुद्ध �ुद्ध1. युग की माँग का यह बीड़ा कौन बाता है युग की माँग का यह बीड़ा कौन उठाता है।2. वह श्याम पर बरस गया। वह श्याम पर बरस पड़ा।3. उसकी अक्ल क्कर खा गई। उसकी अक्ल करा गई।4. उस पर घड़ों पानी हिगर गया। उस पर घड़ों पानी पड़ गया।(9) हि=या-हिव�ेषण-संबंधी अ�ुजिद्धयाँ-अ�ुद्ध �ुद्ध1. वह लगभग दौड़ रहा र्था। वह दौड़ रहा र्था।2. सारी रात भर मैं जागता रहा। मैं सारी रात जागता रहा।3. तुम बड़ा आगे बढ़ गया। तुम बहुत आगे बढ़ गए.4. इस पव9तीय के्षत्र में सव9स्व �ांहित है। इस पव9तीय के्षत्र में सव9त्र �ांहित है।

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अध्याय 26

मुहा�रे और लोकोलिEयाँ

मुहावरा- कोई भी ऐसा वाक्यां� जो अपने साधारण अर्थ9 को छोड़कर हिकसी हिव�ेष अर्थ9 को व्यE करे उसे मुहावरा कहते हैं।लोकोशिE- लोकोशिEयाँ लोक-अनुभव से बनती हैं। हिकसी समाज ने जो कुछ अपने लंबे अनुभव से सीखा है उसे एक वाक्य में बाँध दिदया है। ऐसे वाक्यों को ही लोकोशिE कहते हैं। इसे कहावत, जनश्रुहित आदिद भी कहते हैं।मुहावरा और लोकोशिE में अंतर- मुहावरा वाक्यां� है और इसका स्वतंत्र रूप से प्रयोग नहीं हिकया जा सकता। लोकोशिE संपूण9 वाक्य है और इसका प्रयोग स्वतंत्र रूप से हिकया जा सकता है। जैसे-‘हो� उड़ जाना’ मुहावरा है। ‘बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी’ लोकोशिE है।कुछ प्र शिलत मुहावरे

1. अंर्ग संबंधी मुहा�रे

1. अंग छू+ा- (कसम खाना) मैं अंग छूकर कहता हूँ साहब, मैने पाजेब नहीं देखी।2. अंग-अंग मुसकाना-(बहुत प्रसन्न होना)- आज उसका अंग-अंग मुसकरा रहा र्था।3. अंग-अंग +ू+ना-(सारे बदन में दद9 होना)-इस ज्वर ने तो मेरा अंग-अंग तोड़कर रख दिदया।4. अंग-अंग ढीला होना-(बहुत र्थक जाना)- तुम्हारे सार्थ कल लँूगा। आज तो मेरा अंग-अंग ढीला हो रहा है।

2. अक्ल-संबंधी मुहा�रे

1. अक्ल का दुश्मन-(मूख9)- वह तो हिनरा अक्ल का दुश्मन हिनकला।2. अक्ल कराना-(कुछ समझ में न आना)-प्रश्न-पत्र देखते ही मेरी अक्ल करा गई।

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3. अक्ल के पीछे लठ शिलए हिफरना (समझाने पर भी न मानना)- तुम तो सदैव अक्ल के पीछे लठ शिलए हिफरते हो।4. अक्ल के घोडे़ दौड़ाना-(तरह-तरह के हिव ार करना)- बडे़-बडे़ वैज्ञाहिनकों ने अक्ल के घोडे़ दौड़ाए, तब कहीं वे अणुबम बना सके।

3. आँख-संबंधी मुहा�रे

1. आँख दिदखाना-(गुस्से से देखना)- जो हमें आँख दिदखाएगा, हम उसकी आँखें फोड़ देगें।2. आँखों में हिगरना-(सम्मानरहिहत होना)- कुरसी की होड़ ने जनता सरकार को जनता की आँखों में हिगरा दिदया।3. आँखों में धूल झोंकना-(धोखा देना)- शि�वाजी मुगल पहरेदारों की आँखों में धूल झोंककर बंदीगृह से बाहर हिनकल गए।4. आँख ुराना-(शिछपना)- आजकल वह मुझसे आँखें ुराता हिफरता है।5. आँख मारना-(इ�ारा करना)-गवाह मेरे भाई का धिमत्र हिनकला, उसने उसे आँख मारी, अन्यर्था वह मेरे हिवरुद्ध गवाही दे देता।6. आँख तरसना-(देखने के लालाधियत होना)- तुम्हें देखने के शिलए तो मेरी आँखें तरस गई।7. आँख फेर लेना-(प्रहितकूल होना)- उसने आजकल मेरी ओर से आँखें फेर ली हैं।8. आँख हिबछाना-(प्रतीक्षा करना)- लोकनायक जयप्रका� नारायण जिजधर जाते रे्थ उधर ही जनता उनके शिलए आँखें हिबछाए खड़ी होती र्थी।9. आँखें सेंकना-(संुदर वस्तु को देखते रहना)- आँख सेंकते रहोगे या कुछ करोगे भी10. आँखें ार होना-(पे्रम होना,आमना-सामना होना)- आँखें ार होते ही वह खिखड़की पर से ह+ गई।11. आँखों का तारा-(अहितहिप्रय)-आ�ीष अपनी माँ की आँखों का तारा है।12. आँख उठाना-(देखने का साहस करना)- अब वह कभी भी मेरे सामने आँख नहीं उठा सकेगा।13. आँख खुलना-(हो� आना)- जब संबंधिधयों ने उसकी सारी संपभित्त हड़प ली तब उसकी आँखें खुलीं।14. आँख लगना-(नींद आना अर्थवा व्यार होना)- बड़ी मुल्किश्कल से अब उसकी आँख लगी है। आजकल आँख लगते देर नहीं होती।15. आँखों पर परदा पड़ना-(लोभ के कारण स ाई न दीखना)- जो दूसरों को ठगा करते हैं, उनकी आँखों पर परदा पड़ा हुआ है। इसका फल उन्हें अवश्य धिमलेगा।16. आँखों का का+ा-(अहिप्रय व्यशिE)- अपनी कुप्रवृभित्तयों के कारण राजन हिपताजी की आँखों का काँ+ा बन गया।17. आँखों में समाना-(दिदल में बस जाना)- हिगरधर मीरा की आँखों में समा गया।

4. कलेजा-संबंधी कुछ मुहा�रे

1. कलेजे पर हार्थ रखना-(अपने दिदल से पूछना)- अपने कलेजे पर हार्थ रखकर कहो हिक क्या तुमने पैन नहीं तोड़ा।2. कलेजा जलना-(तीव्र असंतोष होना)- उसकी बातें सुनकर मेरा कलेजा जल उठा।3. कलेजा ठंडा होना-(संतोष हो जाना)- डाकुओं को पकड़ा हुआ देखकर गाँव वालों का कलेजा ठंढा हो गया।4. कलेजा र्थामना-(जी कड़ा करना)- अपने एकमात्र युवा पुत्र की मृत्यु पर माता-हिपता कलेजा र्थामकर रह

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गए।5. कलेजे पर पत्थर रखना-(दुख में भी धीरज रखना)- उस बे ारे की क्या कहते हों, उसने तो कलेजे पर पत्थर रख शिलया है।6. कलेजे पर साँप लो+ना-(ईष्या9 से जलना)- श्रीराम के राज्याभिभषेक का समा ार सुनकर दासी मंर्थरा के कलेजे पर साँप लो+ने लगा।

5. कान-संबंधी कुछ मुहा�रे

1. कान भरना-( ुगली करना)- अपने साशिर्थयों के हिवरुद्ध अध्यापक के कान भरने वाले हिवद्यार्थ� अचे्छ नहीं होते।2. कान कतरना-(बहुत तुर होना)- वह तो अभी से बडे़-बड़ों के कान कतरता है।3. कान का कच्चा-(सुनते ही हिकसी बात पर हिवश्वास करना)- जो माशिलक कान के कच्चे होते हैं वे भले कम9 ारिरयों पर भी हिवश्वास नहीं करते।4. कान पर जू ँतक न रेंगना-(कुछ असर न होना)-माँ ने गौरव को बहुत समझाया, हिकन्तु उसके कान पर जू ँतक नहीं रेंगी।5. कानोंकान खबर न होना-(हिबलकुल पता न लना)-सोने के ये हिबस्कु+ ले जाओ, हिकसी को कानोंकान खबर न हो।

6. नाक-संबंधी कुछ मुहा�रे

1. नाक में दम करना-(बहुत तंग करना)- आतंकवादिदयों ने सरकार की नाक में दम कर रखा है।2. नाक रखना-(मान रखना)- स पूछो तो उसने स कहकर मेरी नाक रख ली।3. नाक रगड़ना-(दीनता दिदखाना)-हिगरहक+ ने शिसपाही के सामने खूब नाक रगड़ी, पर उसने उसे छोड़ा नहीं।4. नाक पर मक्खी न बैठने देना-(अपने पर आँ न आने देना)-हिकतनी ही मुसीबतें उठाई, पर उसने नाक पर मक्खी न बैठने दी।5. नाक क+ना-(प्रहितष्ठा नष्ट होना)- अरे भैया आजकल की औलाद तो खानदान की नाक का+कर रख देती है।

7. मँुह-संबंधी कुछ मुहा�रे

1. मुँह की खाना-(हार मानना)-पड़ोसी के घर के मामले में दखल देकर हरद्वारी को मुँह की खानी पड़ी।2. मुँह में पानी भर आना-(दिदल लल ाना)- लड्डडुओं का नाम सुनते ही पंहिडतजी के मुँह में पानी भर आया।3. मुँह खून लगना-(रिरश्वत लेने की आदत पड़ जाना)- उसके मुँह खून लगा है, हिबना शिलए वह काम नहीं करेगा।4. मुँह शिछपाना-(लस्थिज्जत होना)- मुँह शिछपाने से काम नहीं बनेगा, कुछ करके भी दिदखाओ।5. मुँह रखना-(मान रखना)-मैं तुम्हारा मुँह रखने के शिलए ही प्रमोद के पास गया र्था, अन्यर्था मुझे क्या आवश्यकता र्थी।6. मुँहतोड़ जवाब देना-(कड़ा उत्तर देना)- श्याम मुँहतोड़ जवाब सुनकर हिफर कुछ नहीं बोला।7. मुँह पर काशिलख पोतना-(कलंक लगाना)-बे+ा तुम्हारे कुकमa ने मेरे मुँह पर काशिलख पोत दी है।8. मुँह उतरना-(उदास होना)-आज तुम्हारा मुँह क्यों उतरा हुआ है।

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9. मुँह ताकना-(दूसरे पर आभिश्रत होना)-अब गेहूँ के शिलए हमें अमेरिरका का मुँह नहीं ताकना पडे़गा।10. मुँह बंद करना-( ुप कर देना)-आजकल रिरश्वत ने बडे़-बडे़ अफसरों का मुँह बंद कर रखा है।

8. दाँत-संबंधी मुहा�रे

1. दाँत पीसना-(बहुत ज्यादा गुस्सा करना)- भला मुझ पर दाँत क्यों पीसते हो? �ी�ा तो �ंकर ने तोड़ा है।2. दाँत खटे्ट करना-(बुरी तरह हराना)- भारतीय सैहिनकों ने पाहिकस्तानी सैहिनकों के दाँत खटे्ट कर दिदए।3. दाँत का+ी रो+ी-(घहिनष्ठता, पक्की धिमत्रता)- कभी राम और श्याम में दाँत का+ी रो+ी र्थी पर आज एक-दूसरे के जानी दुश्मन है।

9. र्गरदन-संबंधी मुहा�रे

1. गरदन झुकाना-(लस्थिज्जत होना)- मेरा सामना होते ही उसकी गरदन झुक गई।2. गरदन पर सवार होना-(पीछे पड़ना)- मेरी गरदन पर सवार होने से तुम्हारा काम नहीं बनने वाला है।3. गरदन पर छुरी फेरना-(अत्या ार करना)-उस बे ारे की गरदन पर छुरी फेरते तुम्हें �रम नहीं आती, भगवान इसके शिलए तुम्हें कभी क्षमा नहीं करेंगे।

10. र्गले-संबंधी मुहा�रे

1. गला घों+ना-(अत्या ार करना)- जो सरकार गरीबों का गला घों+ती है वह देर तक नहीं दि+क सकती।2. गला फँसाना-(बंधन में पड़ना)- दूसरों के मामले में गला फँसाने से कुछ हार्थ नहीं आएगा।3. गले मढ़ना-(जबरदस्ती हिकसी को कोई काम सौंपना)- इस बुद्ध ूको मेरे गले मढ़कर लालाजी ने तो मुझे तंग कर डाला है।4. गले का हार-(बहुत प्यारा)- तुम तो उसके गले का हार हो, भला वह तुम्हारे काम को क्यों मना करने लगा।

11. लिसर-संबंधी मुहा�रे

1. शिसर पर भूत सवार होना-(धुन लगाना)-तुम्हारे शिसर पर तो हर समय भूत सवार रहता है।2. शिसर पर मौत खेलना-(मृत्यु समीप होना)- हिवभीषण ने रावण को संबोधिधत करते हुए कहा, ‘भैया ! मुझे क्या डरा रहे हो ? तुम्हारे शिसर पर तो मौत खेल रही है‘।3. शिसर पर खून सवार होना-(मरने-मारने को तैयार होना)- अरे, बदमा� की क्या बात करते हो ? उसके शिसर पर तो हर समय खून सवार रहता है।4. शिसर-धड़ की बाजी लगाना-(प्राणों की भी परवाह न करना)- भारतीय वीर दे� की रक्षा के शिलए शिसर-धड़ की बाजी लगा देते हैं।5. शिसर नी ा करना-(लजा जाना)-मुझे देखते ही उसने शिसर नी ा कर शिलया।

12. हाथ-संबंधी मुहा�रे

1. हार्थ खाली होना-(रुपया-पैसा न होना)- जुआ खेलने के कारण राजा नल का हार्थ खाली हो गया र्था।2. हार्थ खीं ना-(सार्थ न देना)-मुसीबत के समय नकली धिमत्र हार्थ खीं लेते हैं।

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3. हार्थ पे हार्थ धरकर बैठना-(हिनकम्मा होना)- उद्यमी कभी भी हार्थ पर हार्थ धरकर नहीं बैठते हैं, वे तो कुछ करके ही दिदखाते हैं।4. हार्थों के तोते उड़ना-(दुख से हैरान होना)- भाई के हिनधन का समा ार पाते ही उसके हार्थों के तोते उड़ गए।5. हार्थोंहार्थ-(बहुत जल्दी)-यह काम हार्थोंहार्थ हो जाना ाहिहए।6. हार्थ मलते रह जाना-(पछताना)- जो हिबना सो े-समझे काम �ुरू करते है वे अंत में हार्थ मलते रह जाते हैं।7. हार्थ साफ करना-( ुरा लेना)- ओह ! हिकसी ने मेरी जेब पर हार्थ साफ कर दिदया।8. हार्थ-पाँव मारना-(प्रयास करना)- हार्थ-पाँव मारने वाला व्यशिE अंत में अवश्य सफलता प्राप्त करता है।9. हार्थ डालना-(�ुरू करना)- हिकसी भी काम में हार्थ डालने से पूव9 उसके अचे्छ या बुरे फल पर हिव ार कर लेना ाहिहए।

13. ह�ा-संबंधी मुहा�रे

1. हवा लगना-(असर पड़ना)-आजकल भारतीयों को भी पभिYम की हवा लग ुकी है।2. हवा से बातें करना-(बहुत तेज दौड़ना)- राणा प्रताप ने ज्यों ही लगाम हिहलाई, ेतक हवा से बातें करने लगा।3. हवाई हिकले बनाना-(झूठी कल्पनाए ँकरना)- हवाई हिकले ही बनाते रहोगे या कुछ करोगे भी ?4. हवा हो जाना-(गायब हो जाना)- देखते-ही-देखते मेरी साइहिकल न जाने कहाँ हवा हो गई ?

14. पानी-संबंधी मुहा�रे

1. पानी-पानी होना-(लस्थिज्जत होना)-ज्योंही सोहन ने माताजी के पस9 में हार्थ डाला हिक ऊपर से माताजी आ गई। बस, उन्हें देखते ही वह पानी-पानी हो गया।2. पानी में आग लगाना-(�ांहित भंग कर देना)-तुमने तो सदा पानी में आग लगाने का ही काम हिकया है।3. पानी फेर देना-(हिनरा� कर देना)-उसने तो मेरी आ�ाओं पर पानी पेर दिदया।4. पानी भरना-(तुच्छ लगना)-तुमने तो जीवन-भर पानी ही भरा है।

15. कुछ मिमले-जुले मुहा�रे

1. अँगूठा दिदखाना-(देने से साफ इनकार कर देना)-सेठ रामलाल ने धम9�ाला के शिलए पाँ हजार रुपए दान देने को कहा र्था, हिकन्तु जब मैनेजर उनसे मांगने गया तो उन्होंने अँगूठा दिदखा दिदया।2. अगर-मगर करना-(+ालम+ोल करना)-अगर-मगर करने से अब काम लने वाला नहीं है। बंधु !3. अंगारे बरसाना-(अत्यंत गुस्से से देखना)-अभिभमन्यु वध की सू ना पाते ही अजु9न के नेत्र अंगारे बरसाने लगे।4. आडे़ हार्थों लेना-(अच्छी तरह काबू करना)-श्रीकृष्ण ने कंस को आडे़ हार्थों शिलया।5. आका� से बातें करना-(बहुत ऊँ ा होना)-+ी.वी.+ावर तो आका� से बाते करती है।6. ईद का ाँद-(बहुत कम दीखना)-धिमत्र आजकल तो तुम ईद का ाँद हो गए हो, कहाँ रहते हो ?7. उँगली पर न ाना-(व� में करना)-आजकल की औरतें अपने पहितयों को उँगशिलयों पर न ाती हैं।8. कलई खुलना-(रहस्य प्रक+ हो जाना)-उसने तो तुम्हारी कलई खोलकर रख दी।9. काम तमाम करना-(मार देना)- रानी लक्ष्मीबाई ने पीछा करने वाले दोनों अंग्रेजों का काम तमाम कर

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दिदया।10. कुत्ते की मौत करना-(बुरी तरह से मरना)-राष्ट्रद्रोही सदा कुत्ते की मौत मरते हैं।11. कोल्हू का बैल-(हिनरंतर काम में लगे रहना)-कोल्हू का बैल बनकर भी लोग आज भरपे+ भोजन नहीं पा सकते।12. खाक छानना-(दर-दर भ+कना)-खाक छानने से तो अच्छा है एक जगह जमकर काम करो।13. गडे़ मुरदे उखाड़ना-(हिपछली बातों को याद करना)-गडे़ मुरदे उखाड़ने से तो अच्छा है हिक अब हम ुप हो जाए।ँ14. गुलछर  उड़ाना-(मौज करना)-आजकल तुम तो दूसरे के माल पर गुलछर  उड़ा रहे हो।15. घास खोदना-(फुजूल समय हिबताना)-सारी उम्र तुमने घास ही खोदी है।16. ंपत होना-(भाग जाना)- ोर पुशिलस को देखते ही ंपत हो गए।17. ौकड़ी भरना-(छलाँगे लगाना)-हिहरन ौकड़ी भरते हुए कहीं से कहीं जा पहुँ े।18. छक्के छुडा़ना-(बुरी तरह पराजिजत करना)-पृथ्वीराज ौहान ने मुहम्मद गोरी के छक्के छुड़ा दिदए।19. +का-सा जवाब देना-(कोरा उत्तर देना)-आ�ा र्थी हिक कहीं वह मेरी जीहिवका का प्रबंध कर देगा, पर उसने तो देखते ही +का-सा जवाब दे दिदया।20. +ोपी उछालना-(अपमाहिनत करना)-मेरी +ोपी उछालने से उसे क्या धिमलेगा?21. तलवे ा+ने-(खु�ामद करना)-तलवे ा+कर नौकरी करने से तो कहीं डूब मरना अच्छा है।22. र्थाली का बैंगन-(अस्थि[र हिव ार वाला)- जो लोग र्थाली के बैगन होते हैं, वे हिकसी के सच्चे धिमत्र नहीं होते।23. दाने-दाने को तरसना-(अत्यंत गरीब होना)-ब पन में मैं दाने-दाने को तरसता हिफरा, आज ईश्वर की कृपा है।24. दौड़-धूप करना-(कठोर श्रम करना)-आज के युग में दौड़-धूप करने से ही कुछ काम बन पाता है।25. धस्थिज्जयाँ उड़ाना-(नष्ट-भ्रष्ट करना)-यदिद कोई भी राष्ट्र हमारी स्वतंत्रता को हड़पना ाहेगा तो हम उसकी धस्थिज्जयाँ उड़ा देंगे।26. नमक-धिम 9 लगाना-(बढ़ा- ढ़ाकर कहना)-आजकल समा ारपत्र हिकसी भी बात को इस प्रकार नमक-धिम 9 लगाकर शिलखते हैं हिक जनसाधारण उस पर हिवश्वास करने लग जाता है।27. नौ-दो ग्यारह होना-(भाग जाना)- हिबल्ली को देखते ही ूहे नौ-दो ग्यारह हो गए। 28. फँूक-फँूककर कदम रखना-(सो -समझकर कदम बढ़ाना)-जवानी में फँूक-फँूककर कदम रखना ाहिहए।29. बाल-बाल ब ना-(बड़ी कदिठनाई से ब ना)-गाड़ी की +क्कर होने पर मेरा धिमत्र बाल-बाल ब गया।30. भाड़ झोंकना-(योंही समय हिबताना)-दिदल्ली में आकर भी तुमने तीस साल तक भाड़ ही झोंका है।31. मस्थिक्खयाँ मारना-(हिनकम्मे रहकर समय हिबताना)-यह समय मस्थिक्खयाँ मारने का नहीं है, घर का कुछ काम-काज ही कर लो।32. मार्था ठनकना-(संदेह होना)- लिसंह के पंजों के हिन�ान रेत पर देखते ही गीदड़ का मार्था ठनक गया।33. धिमट्टी खराब करना-(बुरा हाल करना)-आजकल के नौजवानों ने बूढ़ों की धिमट्टी खराब कर रखी है।34. रंग उड़ाना-(घबरा जाना)-काले नाग को देखते ही मेरा रंग उड़ गया।35. रफू क्कर होना-(भाग जाना)-पुशिलस को देखते ही बदमा� रफू क्कर हो गए।36. लोहे के ने बाना-(बहुत कदिठनाई से सामना करना)- मुगल सम्रा+ अकबर को राणाप्रताप के सार्थ +क्कर लेते समय लोहे के ने बाने पडे़।37. हिवष उगलना-(बुरा-भला कहना)-दुयÁधन को गांडीव धनुष का अपमान करते देख अजु9न हिवष उगलने लगा।38. श्रीगणे� करना-(�ुरू करना)-आज बृहस्पहितवार है, नए वष9 की पढाई का श्रीगणे� कर लो।

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39. हजामत बनाना-(ठगना)-ये हिहप्पी न जाने हिकतने भारतीयों की हजामत बना ुके हैं।40. �ैतान के कान कतरना-(बहुत ालाक होना)-तुम तो �ैतान के भी कान कतरने वाले हो, बे ारे रामनार्थ की तुम्हारे सामने हिबसात ही क्या है ?41. राई का पहाड़ बनाना-(छो+ी-सी बात को बहुत बढ़ा देना)- तहिनक-सी बात के शिलए तुमने राई का पहाड़ बना दिदया।

कुछ प्रचलिलत लोकोलिEयाँ

1. अधजल गगरी छलकत जाए-(कम गुण वाला व्यशिE दिदखावा बहुत करता है)- श्याम बातें तो ऐसी करता है जैसे हर हिवषय में मास्+र हो, वास्तव में उसे हिकसी हिवषय का भी पूरा ज्ञान नहीं-अधजल गगरी छलकत जाए।2. अब पछताए होत क्या, जब शि हिड़याँ ुग गई खेत-(समय हिनकल जाने पर पछताने से क्या लाभ)- सारा साल तुमने पुस्तकें खोलकर नहीं देखीं। अब पछताए होत क्या, जब शि हिड़याँ ुग गई खेत।3. आम के आम गुठशिलयों के दाम-(दुगुना लाभ)- हिहन्दी पढ़ने से एक तो आप नई भाषा सीखकर नौकरी पर पदोन्नहित कर सकते हैं, दूसरे हिहन्दी के उच्च साहिहत्य का रसास्वादन कर सकते हैं, इसे कहते हैं-आम के आम गुठशिलयों के दाम।4. ऊँ ी दुकान फीका पकवान-(केवल ऊपरी दिदखावा करना)- कनॉ+प्लेस के अनेक स्+ोर बडे़ प्रशिसद्ध है, पर सब घदि+या दज  का माल बे ते हैं। स है, ऊँ ी दुकान फीका पकवान।5. घर का भेदी लंका ढाए-(आपसी फू+ के कारण भेद खोलना)-कई व्यशिE पहले कांग्रेस में रे्थ, अब जनता (एस) पा+­ में धिमलकर काग्रेंस की बुराई करते हैं। स है, घर का भेदी लंका ढाए।6. जिजसकी लाठी उसकी भैंस-(�शिE�ाली की हिवजय होती है)- अंग्रेजों ने सेना के बल पर बंगाल पर अधिधकार कर शिलया र्था-जिजसकी लाठी उसकी भैंस।7. जल में रहकर मगर से वैर-(हिकसी के आश्रय में रहकर उससे �त्रुता मोल लेना)- जो भारत में रहकर हिवदे�ों का गुणगान करते हैं, उनके शिलए वही कहावत है हिक जल में रहकर मगर से वैर।8. र्थोर्था ना बाजे घना-(जिजसमें सत नहीं होता वह दिदखावा करता है)- गजेंद्र ने अभी दसवीं की परीक्षा पास की है, और आलो ना अपने बडे़-बडे़ गुरुजनों की करता है। र्थोर्था ना बाज ेघना।9. दूध का दूध पानी का पानी-(स और झूठ का ठीक फैसला)- सरपं ने दूध का दूध,पानी का पानी कर दिदखाया, असली दोषी मंगू को ही दंड धिमला।10. दूर के ढोल सुहावने-(जो ीजें दूर से अच्छी लगती हों)- उनके मसूरी वाले बंगले की बहुत प्र�ंसा सुनते रे्थ हिकन्तु वहाँ दुग½ध के मारे तंग आकर हमारे मुख से हिनकल ही गया-दूर के ढोल सुहावने।11. न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी-(कारण के नष्ट होने पर काय9 न होना)- सारा दिदन लड़के आमों के शिलए पत्थर मारते रहते रे्थ। हमने आँगन में से आम का वृक्ष की क+वा दिदया। न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी।12. ना न जाने आँगन +ेढ़ा-(काम करना नहीं आना और बहाने बनाना)-जब रवींद्र ने कहा हिक कोई गीत सुनाइए, तो सुनील बोला, ‘आज समय नहीं है’। हिफर हिकसी दिदन कहा तो कहने लगा, ‘आज मूड नहीं है’। स है, ना न जाने आँगन +ेढ़ा।13. हिबन माँगे मोती धिमले, माँगे धिमले न भीख-(माँगे हिबना अच्छी वस्तु की प्रान्विप्त हो जाती है, माँगने पर साधारण भी नहीं धिमलती)- अध्यापकों ने माँगों के शिलए हड़ताल कर दी, पर उन्हें क्या धिमला ? इनसे तो बैक कम9 ारी अचे्छ रहे, उनका भत्ता बढ़ा दिदया गया। हिबन माँगे मोती धिमले, माँगे धिमले न भीख।14. मान न मान मैं तेरा मेहमान-(जबरदस्ती हिकसी का मेहमान बनना)-एक अमेरिरकन कहने लगा, मैं एक मास आपके पास रहकर आपके रहन-सहन का अध्ययन करँूगा। मैंने मन में कहा, अजब आदमी है, मान

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न मान मैं तेरा मेहमान।15. मन ंगा तो कठौती में गंगा-(यदिद मन पहिवत्र है तो घर ही तीर्थ9 है)-भैया रामेश्वरम जाकर क्या करोगे ? घर पर ही ई�स्तुहित करो। मन ंगा तो कठौती में गंगा।16. दोनों हार्थों में लड्डू-(दोनों ओर लाभ)- महेंद्र को इधर उच्च पद धिमल रहा र्था और उधर अमेरिरका से वजीफा उसके तो दोनों हार्थों में लड्डू रे्थ।17. नया नौ दिदन पुराना सौ दिदन-(नई वस्तुओं का हिवश्वास नहीं होता, पुरानी वस्तु दि+काऊ होती है)- अब भारतीय जनता का यह हिवश्वास है हिक इस सरकार से तो पहली सरकार हिफर भी अच्छी र्थी। नया नौ दिदन, पुराना नौ दिदन।18. बगल में छुरी मुँह में राम-राम-(भीतर से �त्रुता और ऊपर से मीठी बातें)- साम्राज्यवादी आज भी कुछ राष्ट्रों को उन्नहित की आ�ा दिदलाकर उन्हें अपने अधीन रखना ाहते हैं, परन्तु अब सभी दे� समझ गए हैं हिक उनकी बगल में छुरी और मुँह में राम-राम है।19. लातों के भूत बातों से नहीं मानते-(�रारती समझाने से व� में नहीं आते)- सलीम बड़ा �रारती है, पर उसके अब्बा उसे प्यार से समझाना ाहते हैं। हिकन्तु वे नहीं जानते हिक लातों के भूत बातों से नहीं मानते।20. सहज पके जो मीठा होय-(धीरे-धीरे हिकए जाने वाला काय9 [ायी फलदायक होता है)- हिवनोबा भावे का हिव ार र्था हिक भूधिम सुधार धीरे-धीरे और �ांहितपूव9क लाना ाहिहए क्योंहिक सहज पके सो मीठा होय।21. साँप मरे लाठी न +ू+े-(हाहिन भी न हो और काम भी बन जाए)- घनश्याम को उसकी दुष्टता का ऐसा मजा खाओ हिक बदनामी भी न हो और उसे दंड भी धिमल जाए। बस यही समझो हिक साँप भी मर जाए और लाठी भी न +ू+े।22. अंत भला सो भला-(जिजसका परिरणाम अच्छा है, वह सवÁत्तम है)- श्याम पढ़ने में कमजोर र्था, लेहिकन परीक्षा का समय आते-आते पूरी तैयारी कर ली और परीक्षा प्रर्थम श्रेणी में उत्तीण9 की। इसी को कहते हैं अंत भला सो भला।23. मड़ी जाए पर दमड़ी न जाए-(बहुत कंजूस होना)-महेंद्रपाल अपने बे+े को अचे्छ कपडे़ तक भी शिसलवाकर नहीं देता। उसका तो यही शिसद्धान्त है हिक मड़ी जाए पर दमड़ी न जाए।24. सौ सुनार की एक लुहार की-(हिनब9ल की सैकड़ों ो+ों की सबल एक ही ो+ से मुकाबला कर देते है)- कौरवों ने भीम को बहुत तंग हिकया तो वह कौरवों को गदा से पी+ने लगा-सौ सुनार की एक लुहार की।25. सावन हरे न भादों सूखे-(सदैव एक-सी स्थि[हित में रहना)- गत ार वषa में हमारे वेतन व भत्ते में एक सौ रुपए की बढ़ोत्तरी हुई है। उधर 25 प्रहित�त दाम बढ़ गए हैं-भैया हमारी तो यही स्थि[हित रही है हिक सावन हरे न भागों सूखे।