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Page 1 धु घाटी यता : पᳯिचय civilexamonline.com 1. धु घाटी यता दिण एिया के उि पिम ि म थित एक कािथय युगीन यता िी। 2. ाचीन मᳫ एवि मेोपोटामया को मित किते हए यह व कᳱ तीन ाचीनतम भयता म े एक िी। 3. दयािाम ाहनी के नदेिन म 1921 म हडपा नामक थिि पि पहिी बाि उख कायय ािभ ᳰकया गया िा, अत: इे हडपा यता भी कहा जाता है। 4. इ यता का वथताि पिम ᳰदिा म बिुचथतान के ुकागेडोि, पूवय म आिमगीिपुि (उि दे ि), दिण म दायमाबाद (महािा) एवि उि म मिदा (जममू कमीि) तक फै िा हआ है। 1. यहाा पि छ: अागाि एवि छ: अिकुि ड ा हए है। 2. यहाा वृनुमा ईट े बने पििदाि फिय ा हए है जो िवत: खाा के गहन के काम आते िे। 3. हडपा के िोग टािकोि (डामि) बनाने कᳱ वध े अवगत िे।

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सिंधु घाटी िंभ्यता : परिचय

civilexamonline.com

1. सिंधु घाटी िंभ्यता दक्षिण एक्षिया के उत्ति पक्षिम

िेत्र में क्षथित एक काांथय युगीन िंभ्यता िी।

2. प्राचीन क्षमस्त्र एवां मेिंोपोटाक्षमया को िंक्षममक्षित

किते हुए यह क्षवश्व की तीन प्राचीनतम िंभयताओं में

िंे एक िी।

3. दयािाम िंाहनी के क्षनदिेन में 1921

में हडप्पा

नामक थिि पि पहिी बाि उत्खन्न कायय प्राांिभ ककया

गया िा, अत: इिंे हडप्पा िंभ्यता भी कहा जाता ह।ै

4. इिं िंभ्यता का क्षवथताि पक्षिम कदिा में

बिुक्षचथतान के िंुत्कागेन्डोि, पूवय में आिमगीिपुि

(उत्ति प्रदिे), दक्षिण में दायमाबाद (महािाष्ट्र) एवां

उत्ति में मांदा (जममू कश्मीि) तक फै िा हुआ है।

1. यहााँ पि छ: अन्नागाि एवां छ: अक्षिकुां ड प्रात ह हुए ह।ै

2. यहााँ वृत्तनुमा ईटों िं ेबने पांक्षिदाि फिय प्रात ह हुए ह ै

जो िंांभ्वत: खाद्यान्न के गहन के काम आते िे।

3. हडप्पा के िोग टािकोि (डामि) बनाने की क्षवक्षध

िंे अवगत िे।

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4. गृह में प्रविे के मुख्य द्वािा उत्ति कदिा में होते िे।

5. यहााँ पि R – 37 कक्षिथतान प्रात ह हुआ ह।ै

6. यहााँ पि मााँ दवेी की क्षमट्टी की मूर्तत प्रात ह हुई ह।ै

मोहनजोदडो civilexamonline.com

1. मोहनजोदडो की खोज िाखि दािं बनजी द्वािा

1922 में की गई िी।

2. सिंधी भाषा में मोहनजोदडो का िाक्षददक अिय

मृतको के टीिे ह।ै

3. यह सिंध (पाककथतान) के ििकाना क्षजिे में सिंध ु

नदी के पक्षिम में एवां सिंधु नदी एांव घग्गि हाकडा

नदी के मध्य में क्षथित ह।ै

4. सिंधु नदी वतयमान में भी इिं थिि के पूवय में बहती

ह,ै पिन्तु घग्गि – हाकडा नदी िंूख चुकी ह।ै

5. यहााँ पि एक क्षविाि स्नानागाि, एक क्षविाि

अन्नागाि, बडे हॉि, एक काांिंे की नृतकी की मूर्तत,

योगी की मोहि, एक 250 ग्राम वजनी गि ेका हाि

एवां कई अन्य मोहिें प्रात ह हुई ह।ै

6. एक िंभागाि, ििंोई व आाँगन के िंाि िंुव्यवक्षथित

घिों के िंाक्ष्य भी प्रात ह हुए ह।ै

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7. मोहनजोदडो िहि की िंात पितें इांक्षगत किती ह ै

कक िहि को िंात बाि न्ााष्ट ककया गया एवां पुन:

क्षनमायण ककया गया िा।

िोिि civilexamonline.com

1. इिंकी खोज एिं.आि.िाव द्वािा 1954 में वतयमान

गुजिात के भाि िेत्र में कक गई िी।

2. यहााँ िें िाि – कािे क्षमट्टी के बतयन, ताांबे के

औजाि, ईंटो द्वािा क्षनर्तमत टैंक की िंांिचना, एक

मोती बनाने का कािखाना एवां ईिान की मोहि

प्रात्त हुई ह।ै

कािीबांगा

1. कािीबांगा की खोज एक इतािवी भाित क्षवद ्

िुईगी क्षपयो तथेिंीटोिी द्वािा िंन 1953 में िाजथिान

के हनुमानगढ़ क्षजिे में की गई िी।

2. यह मोहनजोदडो की तिह िंुव्यवक्षथित नहीं िी।

3. यहााँ जि क्षनकािंी व्यवथिा नहीं िी, पिांतु कुछ

अक्षिकुां ड एवां एक जुते हुए खेत के िंाक्ष्य प्रात ह हुए ह।ै

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धोिावीिा

1. धोिावीिा की खोज 1922 में जे.पी. जोिी द्वािा

गुजिात के कच्छ क्षजिे में की गई िी।

2. धोिावीिा में एक दिवाज ेपि बडे अििों में क्षिख

गया िेख प्रात ह हुआ ह।ै

3. िॉक कट वाथतुकिा एवां आधुक्षनक जि प्रबांधन

व्यवथिा के िंाक्ष्य प्रात ह हुए हैं।

सिंधु घाटी िंभ् यता की प्रमुख क्षविेषताए

civilexamonline.comाँ

1. नगि क्षनयोजन हडप्पा िंभ्यता की एक प्रमुख

क्षविेषता िी। अत: यह िंभ्यता प्रिम िहिीकृत

िंभ्यता भी कहिाती ह।ै

2. कथबे दो भागों में क्षवभि ि,े यिा दगुय एवां क्षनचिा

कथबा। दगुय में िािंन प्रबांध किने वािे िंदथय िहते िे

जबकक कथबे का क्षनचिा भाग जन िंाधािण के क्षिए

िा

3. धोिावीिा इिंका एकमात्र अपवाद है क्योंकक यह

तीन भागों में क्षवभि िा।

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4. कथबे की मुख्य क्षविेषता उनकी जि क्षनकािंी

व्यवथिा िी। नाक्षियााँ पकी हुई ईंटों की बनी हुई िी

एवां बडे पत्ििों िंे ढकी हुई िी। िंफाई के क्षिए

मेनहोल्िं िे। इिंिंे ज्ञात होता ह ैकक हडप्पा के िोग

िंफाई का क्षविेष तौि पि ध्यान िखते िे।

5. इिं िंभ्यता के िोग नापतौि की ईकाईयों िंे

परिक्षचत ि ेक्योंकक यहााँ िंे कुछ िकडी के टुकडे प्रात ह

हुए क्षजन पि माप – तौि की ईकाईयााँ अांककत िी।

6. मृत्यु के बाद िव को दफनाया जाता िा।

7. बनवािी एवां कािीबांगा दो चिणों को दिायती ह,ै

पूवय हडप्पा िंभ्यता एवां हडप्पा िंभ्यता।

8. क्षबना दगुय के एकमात्र िहि चन्हुदडो िा।

कृक्षष एवां पिुपािन

1. यहााँ के िोग गेहुाँ एवां जौ की वृहत पैमाने पि कृक्षष

किते िे।

2. चावि की खेती के थपष्ट िंाक्ष्य प्रात ह नहीं हुए ह।ै

केवि िांगपुि एवां िोिि िंे चावि के कुछ दाने प्रात ह

हुए हैं, पिन्तु िंांभवत: वह बाद की अवक्षध के हैं।

3.

हडप्पा िंभ्यता एक कृक्षष वाक्षणक्षययक िंभ्यता िी।

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4. कािीबांगा एवां बनवािी िंे हि एवां कुदाि के

िंाक्ष्य प्रात ह हुए ह।ै

5. हडप्पा िंभ्यता के िोग भेड, बकिी, भैंिं एवां िंुवि

पािते ि े

6. गैंडा िंबिंे प्रमुख पिु िा, यहााँ के िोग घोडे के

बािे में नहीं जानते िे।

7. हडप्पा के िोग कपािं उत्पादन किने वािे पहिे

िोग होंग ेक्योकक यहााँ पि कपािं के िंवयप्रिम

उत्पादन के िंाक्ष्य प्रात ह हुए ह।ै

8. युनानी इिं ेसिंदो कहते िे, जो कक सिंद िदद िंे

प्रेरित है।

क्षिल्पकि

1. हडप्पा िंभ्यता काांथय युग के अन्तगयत आती ह ै

क्योंकक यहााँ के िोग काांथय के क्षनमायण एवां उपभोग िंे

परिक्षचत िे।

2. यहााँ के िोग क्षचत्र, बतयन, क्षवक्षभन्न औजाि एवां

िस्त्रों का क्षनमायण किते ि ेकुल्हाडी, चाकू, आिी, भािे

आकद।

3. बुनकि ऊन एवां कपािं के कपडे बुनते ि।े

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4. हडप्पा के िोग मोहिें, पत्िि की मरू्ततयााँ, टेिा

कोटा की मूर्ततयााँ आकद बनाते िे।

5. क्षमट्टी एवां पक्की ईंटो के क्षविाि ढााँचों को दखेकि

िगता ह ैकक ईटो के व्यापाि का हडप्पाई अियव्यवथिा

में महत्वपुणय थिान िा।

6. यहााँ के िोग िोह ेके बािे में नहीं जानत ेिे।

7. यहााँ की महुिों िंे यह ज्ञात होतो ह ैकक यहााँ के

िोगों को नाव बनाना भी आता िा।

मुहिें

1. इनका मुख्य किात्मक कायय मुहिों का क्षनमायण

किना िा।

2. मुहिें िंेिखेडी (िंाबुन – पत्िि) की बनी होती िी

एवां यह आकृक्षत में वगायकाि होती िी।

3. िंवायक्षधक वर्तणत पिु िंाांड ह।ै भेड, हािी, बाघ,

गैंडा इनका भी वणयन क्षमिता ह ैपिन्तु गाय, िेि एवां

घोडे का वणयन नहीं ह।ै

4. हडप्पा थििों िंे िगभग 200 मुहिे प्रात ह हुई ह।ै

5. थवणयकाि थवणय, चााँदी एवां मूल्यवान पत्ििों के

आभूषण बनाते िे। civilexamonline.com

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6. चुक्षडयााँ बनाने एवां खोि आभूषण का कायय भी

ककया जाता िा क्षजिंका ज्ञान चन्हुदडो, िोिि एवां

बािाकोट के जााँच – परिणामों िंे होता ह।ै

व्यापाि

1. भूक्षम व्यापाि एवां िंमुद्री व्यापाि प्रचिन में िा।

2. िोिि में एक बडा पोतगाह (जहाज बनाने का

थिान) क्षमिा ह ैजो कक िंांभवत: हडप्पा िंभ्यता की

िंबिंे िांबी इमाित ह।ै

3. िंबिंे महत्वपूणय व्यापारिक िंमबांध मेिंोपोटाक्षमया

के िंाि िे।

4. मेिंोपोटाक्षमयन क्षििािखेों में मेिूहा के िंाि

व्यापारिक िंांबधों का वणयन ह ैजो कक सिंधु िेत्र का

प्राचीन नाम माना जाता ह।ै

5. दो मध्यवत्ती व्यापारिक केन्द्र यिा कदिमन एवां

मकन को क्रमि: बहिीन एवां मकिन तट (पाककथतान)

के नाम िंे जाना गया ह।ै

6. व्यापाि की व्यवथिा वथतु क्षवक्षनमय प्रणािी िी।

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हडप् पा िंभ् यता के धमय

1. मोहन जोदडो िंे पिुपक्षत की मुहि प्रात ह हुई ह,ै क्षजिं पि योगी का क्षचत्र अांककत ह।ै

2. मुहि पि योगी का क्षचत्र चािों ओि िंे भैंिं, बाघ,

हािी, गैंडा एवां क्षहिण िंे क्षघिा हुआ ह।ै अत: योगी को

आकद – क्षिव कहा गया ह।ै

3. सिगोपािंना के क्षचह्न भी प्रात ह हुए ह।ै

4. हडप्पा के िोग मााँ दवेी की पूजा कित ेिे। यह

हडप्पा िंे प्रात ह हुई क्षमट्टी की मूर्तत िंे ज्ञात होता ह।ै

5. एक क्षविािकाय इमाित क्षजिंे महान स्नान कहा

गया ह,ै मोहन जोदडो िं ेप्रात ह हुई ह।ै यह धार्तमक

स्नान या धार्तमक कक्रयाकिापों के क्षिए काम में क्षिया

जाता ह।ै

6. यहााँ के िोग अांधक्षवश्वािंी िे एवां ताबीज पहनत े

िे। civilexamonline.com

7. हडप्पा िंभ्यता के िोग पीपि के पेड की पूजा

किते िे।

8. इिं िंभ्यता िंे मांकदिो के कोई िंाक्ष्य प्रात ह नहीं हुए

ह।ै

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हडप् पा िंभ् यता की क्षिक्षप

1. हडप्पा िंभ्यता के िोग िेखन किा को जानते िे।

2. हडप्पा िंभ्यता के िेखों के पत्ििों की मुहिों एवां

अन्य वथतुओं पि िगभग 4000 िेख प्रात ह हुए हैं।

3. हडप्पा की क्षिक्षप वणों (िददों) पि आधारित न

होकि क्षचत्रों पि आधारित ह।ै

4. अभी तक हडप्पा क्षिक्षप पढी नहीं जा िंकी ह।ै

5. क्षिक्षप में 400 क्षचह्न ह,ै क्षजनमें िंे 75 मूि ह ैएवां

िेष उन्ही के प्रकाि है।

वैकदक िंभ्यता परिचय

1- वैकदक िंभ्यता का प्रक्षतपादक आयो को माना

जाता है।

2- वे बातचीत किने के क्षिए एक भाषा का उपयोग

किते िे क्षजिंे जो कुछ कुछ िंांथकृत के िंमान िी अत:

इन्हे आयो की िंांज्ञा दी गई ।civilexamonline .

com

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3- मैक्िं मूिि के मध्य एक्षियाई क्षिंद्ाांत को आयो की

उत्पक्षत्त के क्षवक्षभन्न क्षिंद्ाांतो में िंे व्यापक रूप िंे

थवीकाि ककया ककया गया ह।ै

4- आयो के क्षवषय में जानने के क्षिए स्त्रोत वैकदक

िंाक्षहत्य ह,ै क्षजिंमें िंे वेद िंबिें प्रमुख स्त्रोत ह।ै वेद

का अिय ह ैज्ञान।

5- वेद ककिंी धमय क्षविेष का कायय नहीं ह।ै कई

िताददीयों में वैकदक िंाक्षहत्य के पाठ्य क्रम में वृक्षद्

हुई ह ैएवां मुख वचन द्वािा एक पीढ़ी िंे दिुंिी पीढ़ी

को िंौंपा गया ह,ै इिंक्षिए इन्ह ेश्रुक्षत कहा गया ह।ै

6- वेदों को अपोरूषेय भी कहा गया ह ैक्षजिंका

तात्पयय ह ैकक आदमी न ेउनकी िचना नहीं की । एवां

क्षनत्य क्षजिंका अिय ह ैकक वे िंब िाश्वत ह।ै

7- वैकदक िंाक्षहत्य में िंाक्षहक्षत्यक कृक्षतयों के चाि वगय

ह-ै वेद, िाहमण, आिण्यक एवां उपक्षनषद।

8- वेद भजन, प्राियना, आकषयण िंूची एवां बक्षि-

क्षवक्षधयों का िंांग्रहण है। वेद चाि प्रकाि के है

वेद के प्रकाि civilexamonline.com

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1.ऋग्वेद – भजनों का िंांकिन

2.िंामदवे – गीतों का िंांग्रह

3.यजुवेद – बक्षि-क्षवक्षधयों का िंांग्रह

4.अिवयवेद – मांत्र एवां आकषयण का िंांग्रह

ऋग्वेद

1- यह 1500-1200 ई.पू. िंांकक्षित ककया गया िा।

2- ऋग का िाक्षददक अिय प्रिांिंा किना।

3- यह ईश्वि की प्रिांिंा किने वािे भजनों का िंांग्रहण

ह।ै

4- यह दिं िंांथकिणों में क्षवभाक्षजत ककया गया ह ै

क्षजन्ह ेमण्डि कहा जाता ह।ै

5- मण्डि II एवां VII िंबिंे पुिाने मण्डि ह।ै इन्ह े

पारिवारिक पुथतके कहा जाता ह ैक्योकक यह ऋक्षष –

मुक्षनयों के परिवािों िंे िंमबांक्षधत ह।ै

6- मण्डि VII एवां मण्डि IX मध्य काि िंे िंमबांक्षधत

ह।ै

7- मण्डि I एवां मण्डि X िंबिंे अांत में िंांकक्षित ककये

गए िे।civilexamonline.com

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8- मण्डि X में गायत्री मांत्र का उल्िेख ह ैक्षजिंका

िंांकिन िंाक्षवत्री दवेी की प्रिांिंा के क्षिए ककया गया

है।

9- मण्डि IX भगवान िंोम को िंमर्तपत ह ेजो पैड

पौधों के ईश्वि ह।ै

10- मण्डि X में एक भजन का उल्िेख ह ैक्षजिंे पुरूष

िंुि कहा गया ह ैक्षजिंमें वणय व्यवथिा का क्षजक्र ककया

गया ह।ै

11- जो ऋक्षष –मुक्षन ऋग्वेद में क्षनपुण होते िे उन्ह े

होत्र या होत्री कहा जाता िा।

12- ऋग्वेद में बहुत िंी बातें अवेथता के िंमान ह,ैजो

ईिानी भाषा का प्राचीनतम िेख ह।ै

िंामवेद

1- यह भजनों का िंांग्रहण ह ेक्षजिंके अक्षधकति भजन

ऋगवेद िंे क्षिए गए ह ैएवां इिंमें उनकी धुन क्षनधायरित

की गई ह।ै

2- यह मांत्रों की पुथतक ह।ै

3- िंामवेद के ज्ञान में क्षनपुण व्यक्षियों को उद्गात्री

कहा गया है। civilexamonline.com

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4- िंामवेद का िंांकिन भाितीय िंांगीत का िुभािांभ

माना जाता ह।ै

5- िंामवेद में 1810 भजन ह।ै

यजुवेद

1- यह बक्षि की क्षवक्षधयों एवां प्रकािों का िंांकिन ह।ै

2- इिंमें मांत्रोच्चािण किते िंमय ककये जाने वािे

अनुष्ठानों का वणयन ह।ै

3- यजुवेद के ज्ञान में क्षनपुण व्यक्षियों को अध्वयुय कहा

जाता िा।

4- यह गद्य एवां पद्य दोनों में पाया जाता िा।

5- यह दो भागों में क्षवभाक्षजत िा यिा कृष्ण यजुवेद

एवां िुक्ि यजवुेद।

अिवयवेद

1- यह िंौदयय एवां मांत्रों का िंांकिन ह।ै

2- इिंमें क्षवक्षभन्न िोगों िंे छुटकािा पाने के क्षिए

जादुई मांत्र िे। 3-

भाितीय क्षचककत्िंा क्षवज्ञान

क्षजिंे

आयुवेद कहता है

वह अिवयवेद िंे ही उत्पन्न हुआ है।

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िाहम ण

1- ये वे गद्य पुथतके (पाठ) क्षजनमें वैकदक कािीन

भजनों के अिय, उनके अनुप्रयोगो किाओं एवां उनकी

उत्पक्षत्त का क्षवविण ह।ै

2- ऐतिेय या कौक्षितकी िाहमण ऋग्वेद, तांड्य एवां

जैक्षमनी िाहमण िंामवेद, तैक्षतिेय एवां ितपि िाहमण

यजुवेद एवां गोपि िाहमण अिवयवेद के क्षिए क्षनर्ददष्ट

ह।ै

3- तांड्य िाहमण िंबिंे प्राचीनतम िाहमण िेख ह।ै

4- ितपि िाहमण िंबिंे थिूि िाहमण िखे ह।ै

अिण् यक

1- ये िाहमण िेखों का िंमापन भाग ह।ै

2- वे अिण्यक इिंक्षिए कह ेजाते ि ेक्योंकक उनकी

क्षवषय वथतु के िहथयमयीता एवां दाियक्षनक चरित्र के

ज्ञान के क्षिए उनका अध्ययन अिण्य (वनों) के एकाांत

वाताविण में ककया जाना चाक्षहए।

3- इन्होने भौक्षतक वादी धमय की आध्याक्षत्मक धमय में

परिवतयन की िुरूआत की। अत: इनिंे एक पिांपिा की

िचना हुई जो उपक्षनषद के रूप में िंमापन हुई।

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4- अिण्यक वेदों िंक्षहत िाह्ण िेखों एवां उपक्षनषदों के

बीच के िंांयोजक की तिह ह।ै

उपक्षनषद

1- ये वैकदक िंाक्षहत्य की अांक्षतम अवथिा ह ै

2- उपक्षनषद अध्यात्मक्षवज्ञान अिायत दियन िास्त्र पि

आधारित है।

3- इन्ह ेवेदाांत भी कहा जाता ह ैक्योकक व ेवैकदक

िंाक्षहत्य श्रांखिा की अांक्षतम पुथतके िी।

4- इनकी क्षवषय वथतु आत्मा, िाहमण, पुनजयन्म एवां

कमय क्षिंद्ाांत आकद िी।

5- उपक्षनषद ज्ञान के मागय पि बि दतेे ह।ै

6- उपक्षनषद का िाक्षददक अिय ह ैपैि के पािं बैठना

7- छन्दोग्य उपक्षनषद एवां िहदािण्यक उपक्षनषद

प्रमुख उपक्षनषद हैं।

8- अन्य मुख्य उपक्षनषद ह-ै किा उपक्षनषद, ईिा

उपक्षनषद, प्रिंना उपक्षनषद, मुण्डकोपक्षनषद आकद।

9- यम एवां नक्षचकेता के मध्य वाताय, किा उपक्षनषद

की क्षवषय वथतु है। civilexamonline.com

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10- िाष्ट्रीय क्षचहन् में प्रयिु ककया गया िदद िंत्यमेव

जयते मुण्डको उपक्षनषद िंे ही क्षिया गया ह।ै

वेदाांग

1- 600 इय.पू. के बाद का िंमय िंुत्र काि कहिाता

ह।ै इिंी काि में वेदाांगो की िचना हूई िी। अत: इन्ह े

िंुत्र िंाक्षहत्य भी कहा जाता ह।ै

2- ये वेदों के अांग के रूप में जाने जाते ह,ै अत: इन्ह े

वेदाांग कहा जाता ह।ै

ये िंांख्या में छ: ह,ै क्षजनके नाम ह ै

1. क्षििा – थवि क्षवज्ञान या उच्चािण क्षवज्ञान

2. कल्प – िथमें एवां िंमािोह

3. व्याकिण – व्याकिण

4. क्षनरूि – िदद- व्युपक्षत्त िास्त्र (िददों की उत्पक्षत्त)

5. छन्द – छन्द रूप एवां काव्य िचना के क्षनयम

6. ययोक्षतष – भक्षवष्य वाक्षणयााँ

उपवेद

नाम - क्षवषय वथतु

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1.गांधवयवेद – नृत्य, नाटक, िंांगीत

2.आयुवेद – औषक्षध

3.क्षिल्प वेद – किा एवां वाथतु किा

4.धनुवेद – युद् कौिि

प्राचीन कािनी नकदयाां

श्रगवैकदक नाम – आधुक्षनक नाम

1.सिंधु – इांडिं

2.क्षवतथता – झेिम

3.आक्षथकनी – क्षचनाव

4.पुरूष्णी – िावी

5.क्षवपािा – व्यािं

6.ितुकद्र – िंतिज

7.द्रिद्वती – घग्घि

8.कु्रमु – कुियम

9.गोमि – गोमती

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प्रािांक्षभक वैकदक काि भौगोक्षिक क्षथिक्षत

1- प्रािांक्षभक वैकदक काि के आयय पूवी अफगाक्षनथतान

उत्तिी पक्षिमी िंीमाांत प्रान्त, पांजाब एवां पक्षिमी

उत्ति प्रदिे के भौगोक्षिक िते्रफि में क्षनवािं किते िे।

2- ऋग्वेद के अनुिंाि वह पूिा िेत्र जहाां आयय िोग

पहिी बाि भाितीय उपमहाद्वीप में बिंे िे, वह िेत्र

िंत हसिंधव या िंात नकदयों की भूक्षम कहिाया गया

िा।

3- ऋग्वेद के नदीिंुि भजन में उत्ति (गांगा) िं े

पक्षिम (काबुि) क्रमानुिंाि 21 नकदयों का क्षवविण

ह।ै

4- ऋग्वेद में क्षहमािय, मुजावेंट पवयत एवां िंमुद्र के

बािे में बािे में भी क्षजक्र ककया गया ह।ैऋग्वेद में

िंिथवती एवां सिंधु नदी को महािंागि में क्षगिना

बताया ह।े ऋग्वेद में िंिथवती नदी को पिम पूजनीय

नदी बताया गया ह।ै

5- ऋग्वेद में अफगाक्षनथतान की चाि नकदयों का

वणयन ककया गया ह-ै कुभा, कु्रमु, गोमती एवां िंुवाथतु।

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6- ऋग्वेद के अनुिंाि दिं िाजाओं एवां िंदुािं (भाित

िंमुदाय का तृत्िंु कबीिे का िाजा) के बीच पुरूष्णी

(िावी) नदी के तट पि हुआ, क्षजिंमें िंुदािं की क्षवजय

हुई

7- ऋग्वेकदक काि में गांगा औि यमुना महत्वपूणय

नकदयाां नहीं िी

वैकदक काि :िाजनीक्षत

1- प्रािांक्षभक वैकदक आयो की िाजनीक्षत मिू रूप िंे

आकदवािंी िाजनीक्षत िी, क्षजिंका मुक्षखया कबीिे के

िंदथयों में िंे ही होता िा।

2- कबीिे को जन कहा जाता िा, एवां इिंके मुक्षखया

को िाजन कहा जाता िा।

3- िाजन कबीिे के बाकी िंदथयों की िंहायता िंे

कबीिे के मामिों को िंांभािता िा। कबीिा दो

िंभाओं में क्षवभि िा यिा िंभा एवां िंक्षमक्षत।

4- िंभा में कबीिें के वरिष्ठ िंदथय होते िे, जबकक

िंक्षमक्षत का िंांबांध िंामान्य िंदथयों को िंक्षममक्षित

किते हुए नीक्षतगत क्षनणयय एवां िाजनीक्षतक व्यापाि िंे

िा।civilexamonline.com

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5- िंभा एवां क्षवधाता की िंुनवाई में मक्षहिाओं को

भाग िेन ेका अक्षधकाि िा।

6- कदन-प्रक्षतकदन के प्रिािंन कायय में एक पुिोक्षहत

िाजा की िंहायता किने के क्षिए क्षनयुि ककया गया।

वक्षिष्ठ एवां क्षवश्वाक्षमत्र दो प्रमुख पुिोक्षहत िे।

7- िाजन को एक थवैक्षच्छक भेंट दी जाती िी क्षजिंे

बािी कहा जाता िा।

8- ऋग्वेकदक िाजा िायय पि िािंन न किके केवि

एक कबीिे पि िािंन किते िे।

अियव् यवथ िा

1- अियव्यवथिा एक अधय- खानाबदोि अियव्यवथिा

िी, जो चािागाह भूक्षम पि आधारित िी।

2- प्रािांक्षमक वैकदक आयो का मुख्य व्यविंाय

पिुपािन िा। तिाक्षप िंहायक व्यविंाय के रूप में

कृक्षष कायय भी ककये जाते िे।

3- जौ इनकी िंवायक्षधक महत्वपूणय फथि िी, क्षजिंे

यावा कहा जाता िा, गेहूां एक िंहायक फिंि िी।

4- ऋगवेकदक आयो का िंवयप्रमुख पिु गाय िी।

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5- िाजन को गोपा भी कहा जाता िा क्षजिंका अिय

िा गायों का ििक।

6- िंांपन्नता की दकृ्षष्ट िंे गाय िंवयप्रमुख पिु मानी

जाती िी अत: क्षवक्षनमय का माध्यम गाय ही िी। गाय

को अघन्य भी कहा जाता िा क्षजिंका अिय ह ैवध नही

किने योग्य। civilexamonline.com

7- ऋग्वेकदक काि में मदु्रा का प्रचिन नहीं िा।

8- ऋग्वैकदक आयय घोडो का बहुतायता मात्रा में

उपयोग किते िे जबकक हडप्पा िंभ्याता में ऐिंा नहीं

िा।

9- अयािं िदद का काांथय या ताांबे के क्षिए प्रयुि

ककया जाना इिं बात का िंांकेत ह ैकक यहाां धातु कायय

भी ककया जाता िा।

धमय

1- ऋगवेद में इांद्र को िंबिंे महत्वपूणय दवेता बताया

गया ह,ै क्षजिंे पुिांदि (ककिे को तोडने वािा) कहा

गया ह।ै

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2- इांद्र एक िंनेापक्षत की भूक्षमका क्षनभाते िे एवां वषाय

के दवेता भी माने जाते िे। ऋग्वेद में इांद्र को 250

थतुक्षत गीत िंमर्तपत ह।ै

3- इांद्र के बाद दिुंिा महत्वपूणय दवे अक्षिदवे को माना

जाता िा। वह अक्षि के दवे िे। क्षजन्ह ेऋग्वेद में 200

थतुक्षत गीत िंमर्तपत िे। ये मनुष्यों एवां दवेों के बीच

मध्यथि का कायय किते िे।

ऋग्वेकदक दवेता

1.कदती – दतै्यों की माता

2.उषा – उषा की दवेी

3.िंाक्षवत्री – प्रकाि की दवेी या उ्ीत ह किने वािी

4.वरूण – जि दवेता, बादि, महािंागि, नकदयों एवां

दवेी-दवेताओं के नैक्षतक अध्यि

5.अकदती – अनांतकाि या अमित्व की दवेी

6.अक्षि – दवेों के पुिोक्षहत एवां दवेों व मनुष्यों के बीच

मध्यथि

7.मारूत – आांधी-तूफान के भगवान

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8.िंोम – पेड–पौधों के दवे

9.इांद्र – दुश्मनों का नाि किने वािा

1- तृतीय िंवयप्रमुख दवे वरूण ह ैक्षजन्ह ेजि का दवेता

कहा गया ह।ै

2- िंोम को पडे –पौधों का दवे कहा गया ह ैएवां एक

मादक पेय का नाम उनके नाम पि िखा गया ह।ै

3- ऋग्वैकदक दवेता तीन श्रेक्षणयों में क्षवभाक्षजत ककये

गये ह ैयिा द्यथुिान (आकािीय) अांतरििथिान

(हवाई) एवां पृथ्वीथिान (थििीय)।

4- ऋग्वैकदक आयय िोग दवेों की पूजा अपने

आध्याक्षत्मक उत्िान के क्षिए या अपनी जीवन की

करठनाइयों को दिु किने के क्षिए नहीं किते िे। वे

खाद्यान्न, िंपन्नता, थवाथिय आकद के क्षिए पूजा किते

िे।

िंमाज

1- िंमाज क्षपतृिंत्तात्मक िा एवां कुटुमब का वरिष्ठतम

िंदथय परिवाि का मुक्षखया होता िा।

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2- ऋग्वैकदक िंमाज व्यविंाय के अनुिंाि चाि वणों

में क्षवभि िा।

3- चािों वणों (िाहमण, िक्षत्रय, वैश्य, िुद्र) का क्षजक्र

पहिी बाि ऋग्वेद के मण्डि X के पुरूषिंुि में ककया

गया िा।

4- िंमाज की िंबिें छोटी ईकाई कुटुमब (परिवाि) िी

जो कक मुख्य रूप िंे एक क्षववाही या एक पत्नीक एवां

क्षपतृिंतात्मक होता िा।

5- क्षनयोग्य व्यवथिा के तहत एक िंांतानहीन क्षवधवा

स्त्री अपने मृत पक्षत के छोटे भाई िंे िंांतानोत्पक्षत के

क्षिए क्षववाह कि िंकती िी।

6- बाि क्षववाह प्रचिन में नही िा।

7- िंांयुि परिवाि की प्रिा का प्रचिन िा।

उत्ति- वैकदक आयो

1- उत्ति –वैकदक आयो का क्षवथताि पांजाब िंे िेकि

पक्षिमी उत्ति प्रदिे तक िा, जो गांगा- यमनुा दो आब

िंे आच्छाकदत िा।

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2- उन्होने पूवी िेत्र के घन ेवनों में प्रवेि ककया उन्ह े

िंाफ किते हुए वतयमान िंमय के क्षबहाि िायय में

पहुाँच गए।

4- उत्ति- वैकदक आयो की िाजनीक्षतक व्यवथिा

िाजतांत्र में परिवर्ततत हो गई िी। इिं िंमय िाजा

भूक्षम के एक िेत्र पि िािंन किने िगे ि ेक्षजिंे जनपद

कहा जाता िा। 5-

िाजा िंेना िखने िगे िे एवां नौक

ि िाही का क्षवकािं भी हो गया िा। िाजाओं का िाज

ा बनने की अवधािणा भी क्षवकक्षिंत हो गई िी।

6-

अक्षधकाांि िेखों में अक्षधिाज िाजाक्षधिाज, िंम्राट

एवां ईिकट आकद अक्षभव्यिा उपयोग की गई ह।ै

7-

अिवयवेद में ईिकट को िंवोपरि िंांप्रभु माना गया

ह।ै

8-

क्षवधाता का पद पणूय रूप िें िंमात ह हो गया िा।

तिाक्षप िंभा एवां िंक्षमक्षत इिं काि में भी व्यवथिा में

िहें।

9-

मक्षहिाओं को िंभा में उपक्षथित होने का अक्षधकाि

िंमात ह कि कदया गया िा एवां इिंमें अब िाहमणों एवां

श्रेष्ठों की प्रधान्ता िी।

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10- िाजा िाजिंूय यज्ञ ककया किते िे जो उन्ह ेिंवोच्च

िक्षि प्रदान किने में िंहायक होता िा।

11- िाजा अश्वमेघ यज्ञ ककया किता िा क्षजिंका

तात्पयय एक ऐिंे क्षनर्तववाद क्षनयांत्रण िंे ह ैजहाां िाही

घोडा बीना ककिंी बाधा के दौड िंके।

12- िाजा अपने भाइयों के क्षवरूध दौड में जीतने के

क्षिए वाजपेय यज्ञ भी ककया किते िे।

13- उिंने एक कि प्राांिभ ककया िा जो एक अक्षधकािी

को जमा किाया जाता िा। इिं अक्षधकािी को

"िंांग्रहीत्री" कहा जाता िा।

अियव् यवथ िा

1- उत्ति वैकदक काि में कृक्षष मुख्य व्यविंाय हो गया

िा, एवां पिुपािन िंहायक व्यविंाय।

2- ितपि िाहमण में जुताई अनुष्ठानों के बािें में

क्षवथतृत व्याख्या की गई ह।ै

3- चावि (क्षिही) एवां गेहूाँ (गोधूमा) उत्ति वैकदक

आयो की मुख्य फिंि बन चुकी िी, हािाांकक वे जौ

की कृक्षष भी किते िे।

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4- हि को क्षिंिा एवां हि-िेखा को िंीता कहा जाता

िा।

5- गाय का गोबि खाद्य के रूप में उपयोग ककया

जाता िा।

6- वैकदक युग में िौह नामक धातु की उत्पक्षत्त हुई िी।

इिंे श्याम अयिं एवां ताांबे को िोक्षहत अयिं कहा

जाता िा।

7- बुनाई कायय मक्षहिाओं के क्षिए िंक्षमक्षत िा पिन्तु

यह वृहद ्थति पि ककया जाता िा।

8- उत्ति-वैकदक काि के युग चाि प्रकाि के क्षमट्टी के

बतयनों के कायय िंे परिक्षचत ि ेयिा कािे-िाि िांग के

बतयन, कािे बतयन, क्षचक्षत्रत थिेटी बतयन एवां िाि िांग

के बतयन।

9- क्षवक्षनमय का माध्यम गाय एवां कुछ प्रकाि के

आभूषण िे।

10- अिवयवेद के अनुिंाि िंूखा एवां भािी वषाय कृक्षष

के क्षिए िंांकट िे।civilexamonline.com

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11- क्षिल्पकािों का िंमूह अक्षथतत्व में आ गया िा।

िंमूह के मुक्षखया को क्षगक्षखया को क्षगल्ड कहा जाता

िा।

िंमाज

1- उत्ति वैकदक काि में वणय व्यविंाय पि आधारित न

होकि जन्म पि आधारित होने िगे िे।

2- िंमाज चाि वणों म ेक्षवभाक्षजत हो गया िा यिा-

िाहमण, िाजान्यािं या िक्षत्रय, वैश्य एवां िुद्र।

व्यविंाय पि आधारित चाि वणय

1. क्षििक एवां िंांत – िाहमण

2. िािंक एवां प्रिािंक – िक्षत्रय

3. कृषक, व्यापािी, बैंककमी – वैश्य

4. कािीगि एवां श्रक्षमक – िुद्र

क्षववाह के प्रकाि

धमय क्षववाह

1. िहम क्षववाह – दो िंमान जाक्षतयों के बीच दहजे

क्षनषेध क्षववाह

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2. दवै क्षववाह – क्षपता अपनी पुत्री को यज्ञ किने वािे

िंांत को यज्ञ किने के एवज में दतेे िे।

3. अिय क्षववाह – दलु्हन की कीमत के रूप में एक

िंाांड व एक गाय िडकी के क्षपता को कदया जाता िा।

4. प्रजाप्रत्य क्षववाह –क्षपता अपनी पुत्री को क्षबना

दहेज एवां क्षबना कोई कीमत के क्षिए देते िे।

अधमय क्षववाह

1. गांधवय क्षववाह – एक प्रकाि का प्रेम क्षववाह

2. अिंुि क्षववाह – दलु्हन को खिीद कि ककया गया

क्षववाह

3. िाििं क्षववाह – िडकी का अपहिण कि उिंकी

इच्छाक्षवरूद् उिंिंे क्षववाह किना

4. क्षपिाच क्षववाह – जब िडकी िंो िही होती ह ैतो

उिंिंे जबिदथती किके उिंको ििाब क्षपिाकि पागि

कि कदया जाता िा तिा बाद में क्षववाह ककया जाता

िा।

1- तीनों उच्च वणय उपनयन िंांथकाि के हकदाि िे।

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2- चतुिय या िुद्र वणय गायत्री मांत्र का जाप किने एवां

उपनयन िंांथकाि िंे वांक्षचत ि।े

3- मक्षहिाओं को िंमाज में क्षनम्न थिान प्रात ह िे।

4- गोत्र का प्रचिन उत्ति वकैदक काि में हुआ। गोत्र

िदद िंे तात्पयय ह ैएक ही पूवयज के वांि िोगों ने जाक्षत

के बाहि क्षववाह किना प्रािांभ कि कदया िा।

5- उत्ति वैकदक काि में चाि आश्रम अक्षथतत्व में आए

यिा िहमचािी (क्षिष्य) ग्रहथि (ग्रहथवामी) वानप्रथि

(िंाध)ु एवां िंन्यािंी (िंाांिंारिक जीवन का पूिी तिह

िंे त्याग)

6- िंांयुि परिवाि एकि परिवाि में परिवर्ततत होने

िगे ि ेक्षजिंमें पुरूषों का प्रभतु्व िा।

धमय

1- ऋग्वैकदक काि के दो प्रमुख दवेों (इांद्र एवां अक्षि) ने

अपनी भूत् पवुय महत्वपूणयता खो दी िी।

2- क्षत्रमूर्तत की अवधािणा उभिकि िंामने आई

क्षजिंके तहत प्रजापक्षत (क्षवधाता), रूद्र (पिुओं के दवे)

एवां क्षवष्णु (पािनहाि व िंांििक) अक्षथतत्व में आए।

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3- उत्ति-वैकदक काि में मूर्ततपूजा के ििण कदखाई

कदये।

4- पूिा जो मवेक्षियों की दखेभाि किते िे, िुदो के

देवता के रूप में जाने गए, यद्याक्षप ऋग्वेद काि में

पिुपािन प्रमुख व्यविंाय िा।

5- बक्षि इिं काि में अक्षत महत्पूणय हो गई िी। बक्षि

में वृहत पैमान ेपि पिुओं का वध ककया जाता िा,

क्षजिंिंे पिु िंांपदा का क्षवनाि होता िा।

6- िाहमण पुिोक्षहती ज्ञान एवां क्षविेषज्ञता के

एकाक्षधकाि का दावा किते िे।

7- इिं िंमय उपक्षनषदों की िचना हो चुकी िी क्षजनमें

प्रचक्षित अनषु्ठानों की आिोचना की गई।

8- उपक्षनषदों में इिं बात पि जोि कदया ह ैकक वयक्षि

को आत्मज्ञान होना चाक्षहए एवां आत्मा के िंाि

पिमात्मा के िंांबांध को िंमझना आवश्यक ह।ै

दियन िास्त्र के सहद ुक्षवद्यािय

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1- िंाांख्य िंभी छ: प्रणािी में िंे िंबिें प्राचीन दियन

िास्त्र ह।ै यह 25 मूितत्वों के बािें बताता ह,ै क्षजनमें

प्रकृक्षत िंभी तत्वों में िंे िंवयप्रमुख तत्व ह।ै

2- योग िंांभवत: क्षवश्व भि में िंवयप्रक्षिंद् सहद ु

दियनिास्त्र ह।ैयोग प्रणािी का प्रक्षतपादन पतांजक्षि

द्वािा ककया गया िा। िंाांख्य प्रणािी का प्रक्षतपादन

कक्षपि द्वािा ककया गया िा।

3- वैिेक्षषक क्षवश्व का यिायिवादी क्षवश्लषेणात्मक एवां

उ्ेश्यात्मक दियन िास्त्र ह।ै इिंने िंभी वथतुओं को

पााँच तत्वों में वगीकृत ककया ह,ै यिा पृथ्वी, जि,

वाय,ु अक्षि एवां आकाि।

4- वैिेक्षषक का प्रक्षतपादन कणाद ऋक्षष ने ककया।

5- न्याय दियन के अनुिंाि मोि की प्राक्षत ह ज्ञान के

अक्षधग्रहण के माध्यम िंे ही प्रात ह की जा िंकती

ह।ैन्याय दियन के िक्षचयता गौतम ऋक्षष ह।ै

6- मीमाांिंा दियन व्यक्षि के कत्तयव्यों के क्षनधायिण का

अांक्षतम प्राक्षधकािीी़ वेदों को मानता ह।ै

7- यह दो भागों में वगीकृत हैcivilexamonline.

com

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A.पूवय मीमाांिंा – इिंके प्रक्षतपादक जैक्षमनी ह।ै

B.उत्ति मीमाांिंा – इिंका प्रक्षतपादन व्यािं द्वािा

ककया गया।

कुछ महत् वपूणय तथ् य

1- धमय, अिय, काम औि मोि चाि पुरूषािय ह।ै

2- ऋक्षष ऋण, दवे ऋण एवां क्षपतृ ऋण तीन प्रकाि के

ऋण हैं।

3- भूत यज्ञ, क्षपतृ यज्ञ, दवे यज्ञ, अक्षतक्षि यज्ञ एवां िहम

यज्ञ पााँच प्रकाि के यज्ञ होते िे।

4- वेद व्यािं द्वािा िक्षचत महाभाित िामायण िंे

ययादा प्राचीन ग्रांि ह।ै

5- पूवय में महाभाित को जय िंांक्षहता कहा जाता िा।

6- उिंके बाद भाित एवां वतयमान में इिंे महाभाित

कहा जाता ह।ै इिंमें एक िाख छांद ह ैअत: इिंे

िंतिंहस्त्री िंांक्षहता भी कहा जाता है।

वैकदक काि के कुछ प्रमुख पद

1-क्षिही – चावि

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2-उथता – उाँट

3-िंािभ – हािी

4-दकु्षहत्री – पुत्री

5-गोपा – िाजा

6-चावण – िोहाि

7-क्षहिण्यक – िंुनाि

8-गोक्षवकाित्न – खेि एवां वनों का िखवािा

9-कुिाि – कुमहाि

10-िज पक्षत – चािागाह भकू्षम के प्रभािी अक्षधकािी

11-िंांग्हीत्री – खजानची

12-गोधन – अक्षतक्षि

उत् पक्षत के कािण

1- वैकदक काि के बाद िदु्रों की क्षथिक्षत औि खिाब

होती गई। िुद्रों को क्षिंफय तीनों उच्च वणों की िंेवा के

क्षिए ही माना जाता िा एवां मक्षहिाओं को वैकदक

क्षििा िंे वांक्षचत िखा जाता िा।

2- िुद्रों को अछुत िंमझा जाता िा।

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3- पुिोक्षहत वगों के वचयथव के क्षवरूद् िक्षत्रयों की

प्रकक्रया, नए धमों की उत्पक्षत्त का एक प्रमुख कािण

िा।

4- वधयमान महावीि औि गौतम बुद् दोनो ही िक्षत्रय

कुि िंे िंांबांक्षधत िे एवां दोनो ही िाह्मणों के कुि िंे

क्षववाकदत भाव िखते िे।

5- वणों के इिं पदक्रम में तीिंिा क्रम वैश्यों का िा

एवां वे भी ककिंी ऐिंे धमय की तिाि में िे जो उनकी

क्षथिक्षत में िंुधाि िा िंके।

6- कुछ महव्वपूणय िंमुदाय िे: बौद्, जैन, आजीवक

एवां चवायक।

बुद् का जीवन

1- क्षिंद्ािय का जन्म एक िाक्य कुि में 563 ई.प.ू

कक्षपिवथतु (नेपाि) के क्षनकट िुक्षमबनी नामक थिान

पि हुआ। 2-

इनके क्षपता का नाम िुद्ोधन िा। वे िा

क्य कुि के मुक्षखया िे।

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3- इनकी माता महामाया (मायादवेी) िी, जो

कोिािन वांि की िाजकुमािी िी। क्षिंद्ािय के जन्म के

िंात कदन बाद ही इनकी मृत्यु हो गई।

4- िाक्य कुि का होने के कािण इनका नाम

िाक्यमुक्षन पडा।

5- उनका िािन – पािन उनकी उपमाता गौतमी

प्रजापक्षत द्वािा ककया गया, अत: इक्षिंक्षिए उन्ह ेगौतम

भी कहा जाता िा।

6- एक बाि नगि में क्षवचिण किते हुए उन्होने चाि

क्षनम्न घटनाएाँ दखेी यिा एक वृद् व्यक्षि को, एक

बीमाि व्यक्षि को, एक िवावथिा को एवां एक मुक्षन

क्षजिंने उनका मन तपथया की तिफ अग्रेक्षषत ककया।

7-

29

वषय की आयु में वे अपने घोडे (कां टक) पि

गृहत्याग कि पिमिंुख की खोज में क्षनकि पडे।

8-

वे छ: िंाि मगध िेत्र में क्षवचिण किते िह ेएवां

इिं दौिान उन्होने िंाधना की। उन्होने योग अिािा

किमा िंे िंीखा।

9-

उन्ह े35

वषय की आयु में क्षनिांजन नदी के ककनािे

बोध गया में एक पीपि के पेड के नीच ेपूणय ज्ञान की

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प्राक्षत ह हुई। अत: क्षििा प्रात ह होने के पिात उन्ह ेबुद्

कहा गया ह ै

10- उन्होने अपना पहिा उपदिे िंािनाि में क्षहिण

उद्यान में अपने पााँच अनुयाक्षययों को कदया। इिंे

धमयचक्र पवतन िंुत्त कहा गया।

11- वे पााँच अनुयायी िे – अिंाजी, मोगिन, उपािी,

िंरिपुत्त्त एवां आनांद।

12- अक्षधकति उपदिे श्रवक्षथत में कदए गए िे।

13- बुद् के जीवन की चाि प्रमुख घटनाएाँ िी,

महाक्षभक्षनष्क्रमण, क्षनवायण, चक्र प्रवयतन एवां

महापरिक्षनवायण।

14- इनकी मृत्यु 80 वषय की आयु में 483 ई.पू. में

कुिीनगि में हुई। उनकी मृत्यु िंुवि का माांिं युि

क्षवषाि भोजन किने हुई।

15- िवदाह के बाद बुद् की िाख को आठ कबीिों में

क्षवतरित कि कदया गया। इिं िाख को ताबूतों में बांद

किके उनके उपि थतूप बना कदये गए यिा िंााँची थतू

प।civilexamonline.com

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16- बुद् के अांक्षतम िदद िे 'िंभी िंमग्र बातों को

ध्यान में िखत ेहुए अपने उद्ाि के क्षिए िगन िंे

प्रयािं किे'।

बौद् धमय की क्षििाएाँ

1- द:ुख (अिायत िंांिंाि द:ुखों िंे भिा हुआ ह।ै)

2- द:ुख िंमु्य (द:ुखों का कािण

3- द:ुख क्षनिोध (अिायत यह द:ुख दिु ककया जा िंकता

ह।ै)

4- द:ुख क्षनिोध-गाक्षमनी प्रक्षतपाद (द:ुख की िंमाक्षत ह

का मागय)

1. बुद् के अनिुंाि मानव के िंभी द:ुखों की जड

'इच्छा' ह ैएवां द:ुखों को िंमात ह किने के क्षिए इिंका

क्षवनाि आवश्यक ह।ै

2. जो कोई व्यक्षि इिं पीक्षडत जाि िं ेबाहि क्षनकि

जाए, वह अष्टाांक्षगक मागय को अपनाते हुए मोि की

प्राक्षत ह कि िंकता ह।ै

ये अष्टाांक्षगक मागय हैcivilexamonline.com

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1- िंमयक् वचन

2- िंमयक् कमायन्त

3- िंमयक् आजीव

4- िंमयक् व्यायाम

5- िंमयक् थमृक्षत

6- िंमयक् िंमाक्षध

7- िंमयक् िंांकल्प

8- िंमयक् दकृ्षष्ट

बौद् धमय

1. बुद् ने पुिी प्रकक्रया का िंांक्षित हीकिण ककया यिा

क्षिंिा (िंही आचिण), िंमाक्षध (िंही ध्यान) एवां

प्रायन (िंही ज्ञान)

2. बुद् ने मध्यम मागय की वकाित की ह ैजो चिम

िंीमाओं िंे पिे ह।ै

3. उन्होने वणय व्यवथिा एवां जाक्षतगत पाबांदीयों की

आिोचना की ह।ै

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4. आिांभ में, उनहोने 'िंांघ' में मक्षहिाओं को

िंक्षममक्षित नहीं ककया पिांतु बाद में अपने मुख्य

अनुयायी 'आांनद' की िंिाह पि िाजी हो गए। उनकी

उपमाता िंांघ में जडुने वािी पहिी मक्षहिा बनी।

5. बुद् के अनयुायी दो भागों में क्षवभि ि ेयिा

उपािंक एवां क्षभिुक।

6. बुद् नाक्षथतक िे एवां भगवान की उपक्षथिक्षत को

नकािने वािे िे।

7. बौद् धमय के िंमियकों को वणय एवां जाक्षत को

अनाधाि मानते हुए िंभी अक्षधकाि िंमान रूप िं े

प्रात ह िे।

8. बौद् धमय की तीन प्रक्षतज्ञाएाँ िी – यिा – बुद्,

धमम एवां िंांघ

बौद् िंाक्षहत् य

1- इिंे पािी िंाक्षहत्य भी कहा जाता ह।ै

2- िंुत्तक्षपटक, क्षवनय क्षपरटक औि अक्षभधमम क्षपरटक

बौद् धमय के क्षत्रक्षपटक के रूप में जाने जाते हैं।

3- क्षत्रक्षपटक बौद् धमय का प्रमुख पक्षवत्र ग्रांि ह।ै

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4- िंुत्तक्षपटक में बुद् की क्षििा एवां उपदिे िंांकक्षित

ह।ै

5- क्षवनयक्षपटक में िंांघ एवां क्षभिुकों िंे िंांबांक्षधत िािंन

के क्षनयम िंांकक्षित ह।ै

6- अक्षभधममक्षपटक बौद् धमय के दियनों िं ेिंांबांक्षधत ह।ै

7- िंुत्त क्षपटक का एक िघु भाग जातक किाओं िंे

िंांबांक्षधत ह।ै इिंमें बुद् के जन्म िंे िंांबांक्षधत 550

कहाक्षनयों को िंांकिन ह ैजो िोगों की नैक्षतक क्षवकािं

में िंहायक ह।ै

8- दीपवांि एवां महावांि श्रीिांकाई पुथतकों के रूप में

जानी जाती ह।ै अिोक ने अपने पुत्र एवां पतु्री को बौद्

धमय के प्रचाि हतेु श्रीिांका भेजा िा जहााँ इन पुथतकों

का िंांकिन हुआ।

9- क्षमक्षिन्दपन्हो भी बौद् धमय िंे िंांबांक्षधत एक

महत्वपूणय पुथतक ह।ै इिं पथुतक में ग्रीफ िाजा

मेनेण्डि (क्षमसिद) एवां नागिंेन िंाधु के मध्य

वातायिाप का क्षवविण कदया गया ह।ै क्षमसिद ने

नागिंेन िंाधु के िंमि बौद् धमय िंे िंमबांक्षधत कई प्रश्न

िखे।civilexamonline.com

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10- बुद् चरित अश्वघोष द्वािा क्षिखी गई िंांथकृत

भाषा में बुद् की जीवनी ह।ै

बौद् धमय के िंप्रदाय

बौद् धमय के तीन क्षनम्नक्षिक्षखत िंमप्रदाय ह-ै हीनयान,

महायान एवां वज्रयान।

हीनयान

1. यह एक रूकढवादी िंमूह िा।

2. बुद् की क्षििाओं का िंख्ती िंे पािन किना होता

िा हीनयान व्यक्षिगत मोि पि जोि दतेा िा।

3. ये िोग क्षचह्नो द्वािा पूजा ककया किते िे।

4. मूर्तत पूजा की आज्ञा नही िी।

5. यह िंांप्रदाय मुख्यत: मगध, श्रीिांका एवां बमाय में

प्रक्षिंद् िा।

महायान

1. यह बुद् की क्षििा की आत्मा का अनुिंिण किता

िा। civilexamonline.com

2. यह िंमुदाय िंमूह-मोि पि बि दतेा िा।

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3. यह िंमुदाय अद्य –पिमात्मा की पहचान पि

क्षवश्वािं किता िा क्षजिंे बोक्षधिंत्व कहा गया ह।ै

4. ये िोग मूर्तत द्वािा बुद् की पूजा किने िगे िे।

5. इन्होने िंांथकृत में िास्त्र क्षिखे क्षजन्ह ेवैपुल्यिंुत्र कहा

जाता ह।ै

6. कक्षनष्क बौद् धमय के महायान िंमप्रदाय का

िंमियक िा।

वज्रयान

1. यह िंमप्रदाय अिौककक िक्षियों चमत्काि, तांत्र-

मांत्र आकद में क्षवश्वािं किने िगा िा।

2. यह 10वीं िताददी ईिंवी के दौिान पवूी भाित में

प्रचक्षित हुआ।

3. पिािं वज्रयान िंांप्रदाय का अनुयायी िा।

बौद् काि की वाथ तुकिा

1. थतूप - यह एक अद्य- गोिाकाि िंांिचना िी। िंवय

महत्वपूणय थतूप िंम्राट अिोक ने िंाांची (उत्ति प्रदिे)

में बनवाया।

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2. चैत्य - ये गफुाओं में बनाये गए बौद् मांकदि िे।

उदाहिण काि ेकी गुफा (नाक्षिंक के पािं)

3. क्षवहाि - ये इमाितें िंाधओुं एवां क्षभिुओं के आवािं

के क्षिए बनाई गई िी।

पहिा क्षवहाि कुमािगुत ह द्वािा नािन्दा में बनाया गया

क्षजिंे नािन्दा महावीि कहा गया।

बौद् िंांगीक्षतयााँ

क्रमाकां

-

वषय/थिान -

िािंक -

अध्यि -

महत्व

1. प्रिम -

483

ई.प.ू िाजगहृ -

अजातित्रु -

महाकश्यप -

क्षवनयक्षपटक एवां िंुत्तक्षपटक का िंांकिन

2. क्षद्वतीय -

383

ई.पू. वैिािी -

कािािोक -

िंबाकमी -

बौद् धमय के अनयुायी थिावीिवद एवां

महािंांक्षघका में क्षवभाक्षजत हो गए िे।

3. तृतीय -

250

ई.पू. अिोक -

मोक्षग्िपुत्त क्षतथिं -

<-

> - अक्षभधमम क्षपटक का िंांकिन

4. चतुिय -

100

ईिंवी कुण्डिवन (कश्मीि) -

कक्षन्ष्क

-

वािंुक्षमत्र -

बौद् धमय का हीनयान एवां महायान में

क्षवभाजनcivilexamonline.com

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जैनधमय : परिचय

1- जैक्षनयो के अनुिंाि जैनधमय की उत्पक्षत्त अक्षत

प्राचीन काि िें पहिे की ह।ै

2- जैनी धमय 24 तीिंकि या अपने धमय के क्षवख्यात

क्षििकों में क्षवश्वािं िखते िे।

3- ऋषभदवे को जैनधमय का प्रिम तीियकि माना

जाता ह।ै इन्ह ेआकदनाि के नाम िंे भी जाना जाता

िा।

4- 23वें तीियकि पाश्वयनाि कािी के इक्िवाकू िाजा

अश्विंेना के पुत्र िे।

5- ऋषभदवे एवां अरिष्टनेक्षम का वणयन ऋग्वेद में भी

ककया गया ह।ै

6- वायुपुिाण एवां भागवद ्पुिाण में ऋषभदवे को

नािायण का अवताि बताया गया ह।ै

7- वधयमान महावीि जैक्षनयों के 24 वें तीिकंाि िे।

वधयमान महावीि का जीवन

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1- वधयमान महावीि का जन्म वैिािी के िंमीप

कुण्डग्राम नामक ग्राम में 540 ई.प.ू हुआ िा।

2- इनके क्षपताजी क्षिंद्ािय जांक्षत्रका कुि के मुक्षखया िे।

3- इनकी माता क्षत्रििा वैिािी की एक क्षिच्छवी

कुिीन मक्षहिा की बहन िी। बाद में चेतका की पुत्री

का क्षववाह मगध के िाजा क्षबक्षमबिंाि के िंाि हुआ।

4- इनका क्षववाह यिोदा के िंाि हुआ एवां वे एक

गृहथि जीवन जीने िगे।

5- इनकी पुत्री का नाम अन्नोजा एवां दामाद का नाम

जामेिी िा।

6- 30 वषय की आयु में ये िंाधु बन गए।

7- अगिे 12 वषो में इन्होन ेकठोि तपथया की।

8- 13वें वषय 42 वषय की आयु में इन्ह ेकैवल्य प्रात ह

हुआ। कैवल्य िंे तात्पयय िंवोच्च ज्ञान एवां िुंख-दखु के

बांधनो िंे मुिा। अत: इन्ह ेकैवक्षिन भी कहा गया िा।

9- वे कैवल्य के क्षिए वैिािी के िंमीप जाक्षमभका

ग्राम में ऋजुपाक्षिका नदी के ककनािे एक िंाि वृि के

नीचे बैठे गए।

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10- इन्ह ेक्षजन भी कहा जाता िा अिायत इांकद्रयों पि

क्षवजय प्रात ह किने वािा एवां इनके अनुयायी ही जैन

कहिाये गए।

11- इन्होने अपने धमय के क्षवचाि के क्षिए पावापुिी में

एक जैन िंांघ की थिापना की।

12- 468 ई.प.ू में 72 वषय की आयु में पावापुिी में

इनका क्षनधन हो गया।

जैन धमय की क्षििाएां

जैन धमय के पाांच आधािभूत िंत्य ह ैवे हैं

1-

अांक्षहिंा (जीवों को हाक्षन न पहुांचाना)

2-

िंत्य (िंदवै िंत्य बोिना)

3-

अथतेय (चोिी न किना)

4-

अपरिग्रह (िंांपक्षत्त का िंांग्रहन न किना)

5-

िहमचायय (िंांयम या िहमचाययता)

जैन धमय के क्षत्रित्न हैं

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1- िंमयक् ज्ञान (उक्षचत ज्ञान)

2- िंमयक् क्षवचाि (उक्षचत क्षवचाि)

3- िंमयक् कमय (उक्षचत कायय)

1. जैनधमय के दियन को थयाद्वाद कहा गया, क्षजिंका

िाक्षददक अिय ह ै‘’हो िंकता ह ैका क्षिंद्ात’’ इिंका

मानना ह ैकक ककिंी भी प्रश्न का पूणय तिह उक्षचत उत्ति

नहीं ह।ै

2. जैनधमय के अनुिंाि िंभी जगह आत्मा का क्षनवािं

ह ैयहाां तक की पत्ििों, चट्टानों, जि आकद में भी ।

3. जैन धमय के अनुिंाि मोि की प्राक्षत ह तभी िंांभव ह ै

जब व्यिा िंभी िंांपक्षत्तयों का त्याग किें, िांबे िंमय

तक उपवािं िख,े आत्म त्याग, क्षििा क्षचतांन, एवां

तपथया किे। अत: मोि प्रात ह् के क्षिए तपथवी जीवन

आवश्यक ह।ै

4. जैनधमय के अनुिंाि िंनातन िंांिंाि द:ुखों एवां कष्टों

िंे भिा हुआ ह।ै

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5. जैन धमय के अनुिंाि िहमाण्ड जीव (आत्मा) अजीव

(भौक्षतक िंांिचनाएां) धमय, अधमय, किा एवां आकाि िंे

क्षमिकि बना ह।ै

6. जैनधमय वणय व्यवथिा एवां आययन धमय को नहीं

मानता ह।ै

7. जैनधमय िंिि एवां िंादगीपिंन्द जीवन का िंमियन

किता है।

8. जैनधमय ईश्वि में क्षवश्वािं नहीं िखता ह।ै

9. िंल्िेखना एक रूक्षी़ढवादी जैनी पिमपिा ह ैक्षजिंमें

एक व्यक्षि उपवािं िंे थवैक्षच्छक मृत्यु को थवीकाि

किता ह।ै

10 जैनधमय के अनुिंाि ज्ञान के तीन स्त्रोत ह ैयिा

प्रत्यि, अनुमान एवां तीिंकिो के प्रवचन।

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