ऊव म ू लं अध: शाखा खखड़की से दिखता है ततदिन पेड़ एक ट का ि े खती ह ू म उसे (ततदिन) थोड़ी िेर नज़र अटकाकर पत की घनी हररयाली, खूब चटका बरबस खींच लेता है खग के मनका आकवण, भा भर िेता है उपन का ! अचानक दिखा पल के बीच क ु छ लघु गोल लाल शशशु क ृ ण याि आया तकाल णव उसका सिा से सुना था मेघ-नील मन से पूछा “या यही क ृ तत की चाल ?” उतर आया “ न जानती ? ... ऊपराले का खेल? “ उन छोटे लाल गोल फल मे तनदहत है जी की मूल बबन बीज कै से उगे नए वटप ज़रा सोच सब धमव िोन हाथ उठा ऊपर की ओर भु के अतत का करते ह िाा बोल मतलब यह ह ु आ कक उसका बनाया लोक नीचे है शाखा बन, स ृ जन कताव है ऊपर बन मूल --- अब समझ मे आया ! या है इसका सही तापयव | धय बरगि जसने मुझे सुझाया सय ह करे तीकार शत-शत णाम मेरे !