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भभभभभभ भभभभ भभभभभभ, 1860 (1860 भभ भभभभभभभ भभभभभभभभ 45) 1 [6 भभभभभभभ, 1860] भभभभभभ 1 भभभभभभभभभभ भभभभभभभभभ-- 2 [भभभभ] कक ककक कक कककककक कककक कककककक कक ककककक कककक कककककक कक; कक: कक कककककककककक ककक ककक ककककककककक कककक कककक कक :-- 1. भभभभभभ भभ भभभ भभ भभभभ भभभभभभभभ भभ भभभभभभभ--कक ककककककक कककककक कककक कककककक ककककककक, कक कककक 3 [ककककककक 4 [ककककक-कककककक ककककक कक ककककक] कककककककक कककक कक कककक ] 2. भभभभ भभ भभभभ भभभ भभ भभभभभभभ भभ भभभभ--कक ककककककक कक कककककक कक कककककककक कक कककककककक कक ककककक कक ककक कक ककक ककककक कक 5 [कककक] 6 ।।। कक कककक कककक कककक, ककक कककककक कक कककक ककककककक कककक कककककक कककक 3. भभभभ भभ भभभ भभभ भभ भभभभभभ भभभभ भभभभ भभभभ भभ भभभभभभ भभभभभभभभ भभभभभभभ भभ भभभभ-- 5 [कककक] कक ककक ककक कक ककककक कक ककक कक ककक ककककककक कककक 7 [कककककक कककक] कक कककककक कककककक कक ककककक कक, 8 [कककक] कक ककक ककक कक कककक ककककक कक ककक कककक कक कककककक कक कककककककक कक कककककक ककक कककक ककककक, कककक कक ककककक 5 [कककक] कक कककक कककक ककक कक 9 [4. भभभभभभभभभभभभभभभभ भभभभभभभ भभ भभभभभभ भभ भभभभभभभ--कक कककककक कक ककककक-- 1 कककककक ककक कककककक कक ककककककक कककक कककक ककककककक, 1941 (1941 कक 4) कककककक कककक कक कककक ककक कक कक ककक कककककककककक ककककककक कक कककककककक ककककक कककक ककक कक :-- ककककक ककककक कककककककककक कककककक (1872 कक 3) कक कककक 3 कककककक ककककक कककककक कक ; ककक ककककककक, कककक कककककक, 1929 (1929 कक 1) कक कककक 2 ककक ककककककक कककककक ककक ककककककक कक ; कककककक कककक कककककक, 1936 (1936 कक 4) कक कककक 3 कक ककककककक कककककक कककककक कककक कक ; ककककक कककक कककककक, 1936 (1936 कक 5) कक कककक 3 कक ककककककक कककककक ककककक कककक कक ; ककक कककककककक कककक ककककककक, 1874 (1874 कक 14) कक कककक 3 (क) कक कककक कककककककककक ककककक ककक कककककककक ककककक कककक ककक कक, कककककककक:-- ककककककक ककककककक कककक कककक--ककककक कककक कक ककककककक (कककककककक), 1876, ककक 1, कक0 505, कककककककक, कककककककककक कक कककक [(कक कक ककककक कककक कक ककक कक ककककक ककक,--ककककक ककककककक ककककककक (कककककककक), 1899, ककक 1, कक0 44 कक कककककक कक ककककक] कककककक ककक ककककककक ककककक ककक कककककक--ककककक कककक कक ककककककक (कककककककक), 1881, ककक 1, कक0 504 ककककककक ककककककक कक कककक 5 कक कककक कककक ककककककक ककककक ककककककककक कक कककक ककक कक-- ककककक कककक कक ककककककक (कककककककक), 1898, ककक 2, कक0 345 कक ककककककक कक ककककककक, कककक, ककक ककक ककक कक 1962 कक कककककक कक0 12 कक कककक 3 कक ककककककक कककककक ; ककककक ककक ककककक ककककक कक 1963 कक कककककक कक0 6 कक कककक 2 ककक ककककककक 1 कककककक ; ककककककककक कक 1963 कक कककककक कक0 7 कक कककक 3 कक कककककककक 1 कककककक कक कककककक, ककककककक कक कककककककक ककककक कक 1965 कक कककककक कक0 8 कक कककक 3 कक ककककककक कककककक कककक ककक कक

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भारतीय दणड सहि�ता, 1860 (1860 का अधि�हि�यम सखयाक 45)1

[6 अकतबर, 1860] अधयाय 1 परसताव�ा

उददशि!का--2[भारत] क लि�ए एक साधारण दणड सहि�ता का उपबध करना समीचीन �; अत: य� हिनमनलि�खि�त रप म अधिधहिनयधिमत हिकया जाता � :--

1. सहि�ता का �ाम और उसक परवत#� का हिवसतार--य� अधिधहिनयम भारतीय दणड सहि�ता क��ाएगा, और इसका 3[हि(सतार 4[जमम-कशमीर राजय क लिस(ाय] समपण. भारत पर �ोगा ] ।

2. भारत क भीतर हिकए गए अपरा�ो का दणड--�र वयलि2 इस सहि�ता क उपबनधो क परहितक� �र काय. या �ोप क लि�ए जिजसका (� 5[भारत] 6।।। क भीतर दोषीी �ोगा, इसी सहि�ता क अधीन दणडनीय �ोगा अनयथा न�ी ।

3. भारत स पर हिकए गए हिकनत उसक भीतर हिवधि� क अ�सार हिवचारणीय अफरा�ो का दणड--5[भारत] स पर हिकए गए अपराध क लि�ए जो कोई वयलि2 हिकसी 7[भारतीय हि(धिध] क अनसार हि(चारण का पातर �ो, 8[भारत] स पर हिकए गए हिकसी काय. क लि�ए उसस इस सहि�ता क उपबनधो क अनसार ऐसा बरता जाएगा, मानो (� काय. 5[भारत] क भीतर हिकया गया था । 9[4. राजयकषतरातीत अपरा�ो पर सहि�ता का हिवसतार--इस सहि�ता क उपबध-- 1 भारतीय दड सहि�ता का हि(सतार बरार हि(धिध अधिधहिनयम, 1941 (1941 का 4) दवारा बरार पर हिकया गया � और इस हिनमनलि�खि�त सथानो पर पर(तत

घोहिषत हिकया गया � :-- सथा� परगना वय(सथापन हि(हिनयम (1872 का 3) की धारा 3 दवारा सथा� परगनो पर ; पथ हिपप�ोदा, हि(धिध हि(हिनयम, 1929 (1929 का 1) की धारा 2 तथा अनसची दवारा पथ हिपप�ोदा पर ; �ोडम� हि(धिध हि(हिनयम, 1936 (1936 का 4) की धारा 3 और अनसची दवारा �ोडम� जिज� पर ; आग� हि(धिध हि(हिनयम, 1936 (1936 का 5) की धारा 3 और अनसची दवारा आग� जिज� पर ; इस अनसलिचत जिज�ा अधिधहिनयम, 1874 (1874 का 14) की धारा 3 (क) क अधीन हिनमनलि�खि�त जिज�ो म पर(तत घोहिषत हिकया गया �,

अथा.ती:-- सय2 परानत तराई जिज�--दखि�ए भारत का राजपतर (अगरजी), 1876, भाग 1, प0 505, �जारीबाग, �ो�ारदगगा क जिज� [(जो अब राची

जिज� क नाम स जञात �,--दखि�ए क�कतता राजपतर (अगरजी), 1899, भाग 1, प0 44 और मानभम और परगना] । दा�भम तथा सिस�भम जिज�ो म को�ा��--दखि�ए भारत का राजपतर (अगरजी), 1881, भाग 1, प0 504 ।

उपरो2 अधिधहिनयम की धारा 5 क अधीन इसका हि(सतार �शाई प�ाहिOयो पर हिकया गया �--दखि�ए भारत का राजपतर (अगरजी), 1898, भाग 2, प0 345 ।

इस अधिधहिनयम का हि(सतार, गो(ा, दमण तथा दी( पर 1962 क हि(हिनयम स0 12 की धारा 3 और अनसची दवारा ; दादरा तथा नागार �(�ी पर 1963 क हि(हिनयम स0 6 की धारा 2 तथा अनसची 1 दवारा ; पाहिडचरी पर 1963 क हि(हिनयम स0 7 की धारा 3 और अनसची 1 दवारा और �कादी(, धिमहिनकोय और अमीनदी(ी दवीप पर 1965 क हि(हिनयम स0 8 की धारा 3 और अनसची दवारा हिकया गया � ।

2 “हिRटिTश भारत” शबद अनकरमशः भारतीय स(ततरता (कनदरीय अधिधहिनयम तथा अधयादश अनक�न) आदश, 1948, हि(धिध अनक�न आदश, 1950 और 1951 क अधिधहिनयम स0 3 को धारा 3 और अनसची दवारा परहितसथाहिपत हिकए गए � ।

3 म� शबदो का सशोधन अनकरमशः 1891 क अधिधहिनयम स0 12 की धारा 2 और अनसची 1, भारत शासन (भारतीय हि(धिध अनक�न) आदश, 1937, भारतीय स(ततरता (कनदरीय अधिधहिनयम तथा अधयादश अनक�न) आदश, 1948, हि(धिध अनक�न आदश, 1950 दवारा हिकया गया � ।

4 1951 क अधिधहिनयम स0 3 को धारा 3 और अनसची दवारा “भाग � राजयो को छोOकर” क सथान पर परहितसथाहिपत । 5 “उ2 राजयकषतर” म� शबदो का सशोधन अनकरमशः भारत शासन (भारतीय हि(धिध अनक�न) आदश, 1937, भारतीय स(ततरता (कनदरीय अधिधहिनयम

तथा अधयादश अनक�न) आदश, 1948, हि(धिध अनक�न आदश, 1950 और 1951 क अधिधहिनयम स0 3 की धारा 3 और अनसची दवारा हिकया गया � ।

6 1891 क अधिधहिनयम स0 12 की धारा 2 और अनसची 1 दवारा “पर या 1861 की मई क उ2 परथम टिदन क पशचात” शबद और अक हिनरलिसत।

7 भारतीय शासन (भारतीय हि(धिध अनक�न) आदश, 1937 दवारा “सपरिरषद भारत क ग(.नर जनर� दवारा पारिरत हि(धिध” क सथान पर परहितसथाहिपत । 8 “उ2 राजयकषतरो की सीमा” म� शबदो का सशोधन अनकरमशः भारत शासन (भारतीय हि(धिध अनक�न) आदश, 1937, भारतीय स(ततरता (कनदरीय

अधिधहिनयम तथा अधयादश अनक�न) आदश, 1948, हि(धिध अनक�न आदश, 1950 और 1951 क अधिधहिनयम स0 3 की धारा 3 और अनसची दवारा हिकया गया � ।

9 1898 का अधिधहिनयम स0 4 की धारा 2 दवारा म� धारा क सथान पर परहितसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 2

1[(1) भारत क बा�र और पर हिकसी सथान म भारत क हिकसी नागरिरक दवारा ; (2) भारत म रजिजसटरीकत हिकसी पोत या हि(मान पर, चा� (� क�ी भी �ो हिकसी वयलि2 दवारा, हिकए गए हिकसी

अपराध को भी �ाग � ।]

सपषटीकरण--इस धारा म “अपराध” शबद क अनतग.त 2[भारत] स बा�र हिकया गया ऐसा �र काय. आता �, जो यटिद 5[भारत] म हिकया जाता तो, इस सहि�ता क अधीन दडनीय �ोता ।

3[दषटात ] 4।।। क. 5[जो 6[भारत का नागरिरक �]] उगाडा म �तया करता � । (� 5[भारत] क हिकसी सथान म, ज�ा (� पाया

जाए, �तया क लि�ए हि(चारिरत और दोषलिसदद हिकया जा सकता � । 7। । । । । । 8[5. कछ हिवधि�यो पर इस अधि�हि�यम दवारा परभाव � डाला जा�ा--इस अधिधहिनयम म की कोई बात भारत सरकार

की स(ा क आहिcसरो, सहिनको, नौसहिनको या (ाय सहिनको दवारा हि(दरो� और अभिभतयजन को दणडिणडत करन (ा� हिकसी अधिधहिनयम क उपबनधो, या हिकसी हि(शष या सथानीय हि(धिध क उपबनधो, पर परभा( न�ी डा�गी ।]

अधयाय 2 सा�ारण सपषटीकरण

6. सहि�ता म की परिरभाषााओ का अपवादो क अधय�ी� समझा जा�ा--इस सहि�ता म स(.तर, अपराध की �र परिरभाषीा, �र दणड उपबध और �र ऐसी परिरभाषीा या दणड उपबध का �र दषTात, “साधारण अप(ाद” शीष.क (ा� अधयाय म अनतरवि(षT अप(ादो क अधयधीन समझा जाएगा, चा� उन अप(ादो को ऐसी परिरभाषीा, दणड उपबध या दषTात म द�राया न गया �ो ।

दषटात (क) इस सहि�ता की ( धाराए, जिजनम अपराधो की परिरभाषीाए अनतरवि(षT �, य� अभिभवय2 न�ी करती हिक सात (ष. स कम आय का

लिशश ऐस अपराध न�ी कर सकता, हिकनत परिरभाषीाए उस साधारण अप(ाद क अधयधीन समझी जानी � जिजसम य� उपबनधिनधत � हिक कोई बात, जो सात (ष. स कम आय क लिशश दवारा की जाती �, अपराध न�ी � ।

(�) क, एक पलि�स आहिcसर, (ारणT क हिबना, य को, जिजसन �तया की �, पकO �ता � । य�ा क सदोष परिररोध क अपराध का दोषीी न�ी �, कयोहिक (� य को पकOन क लि�ए हि(धिध दवारा आबदध था, और इसलि�ए य� माम�ा उस साधारण अप(ाद क अनतग.त आ जाता �, जिजसम य� उपबनधिनधत � हिक “कोई बात अपराध न�ी � जो हिकसी ऐस वयलि2 दवारा की जाए जो उस करन क लि�ए हि(धिध दवारा आबदध �ो ।

7. एक बार सपषटीकत पद का भाव--�र पद, जिजसका सपषTीकरण इस सहि�ता क हिकसी भाग म हिकया गया �, इस सहि�ता क �र भाग म उस सपषTीकरण क अनरप �ी परयोग हिकया गया � ।

8. लिलग--पसि�ग (ाचक शबद ज�ा परयोग हिकए गए �, ( �र वयलि2 क बार म �ाग �, चा� नर �ो या नारी । 9. वच�--जब तक हिक सदभ. स ततपरहितक� परतीत न �ो, एक(चन दयोतक शबदो क अनतग.त बह(चन आता �, और

बह(चन दयोतक शबदो क अनतग.त एक(चन आता � । 10. “परष”। “सतरी”--“परष” शबद हिकसी भी आय क मान( नर का दयोतक � ; “सतरी” शबद हिकसी भी आय की

मान( नारी का दयोतक � । 11. वयधिकत--कोई भी कपनी या सगम, या वयलि2 हिनकाय चा� (� हिनगधिमत �ो या न�ी, “वयलि2” शबद क अनतग.त आता

� । 12. लोक--�ोक का कोई भी (ग. या कोई भी समदाय “�ोक” शबद क अनतग.त आता � ।

1 हि(धिध अनक�न आदश, 1950 दवारा म� �णड (1) स �णड (4) क सथान पर परहितसथाहिपत । 2 हि(धिध अनक�न आदश, 1948, हि(धिध अनक�न आदश, 1950 और 1951 क अधिधहिनयम स0 3 की धारा 3 और अनसची दवारा सशोधिधत �ोकर

उपरो2 रप म आया ।

3 1957 क अधिधहिनयम स0 36 की धारा 3 और अनसची 2 दवारा “दषTात” क सथान पर परहितसथाहिपत । 4 1957 क अधिधहिनयम स0 36 की धारा 3 और अनसची 2 दवारा “(क)” कोषठको और अकषर का �ोप हिकया गया । 5 हि(धिध अनक�न आदश, 1948 दवारा “कोई क�ी जो भारत का म� नागरिरक � ” क सथान पर परहितसथाहिपत । 6 हि(धिध अनक�न आदश, 1950 दवारा “भारतीय अधिध(ास का कोई हिRटिTश नागरिरक” क सथान पर परहितसथाहिपत । 7 हि(धिध अनक�न आदश, 1950 दवारा दषTात (�), (ग) तथा (घ) का �ोप हिकया गया ।

8 हि(धिध अनक�न आदश, 1950 दवारा म� धारा क सथान पर परहितसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 3

13. [“कवी�” की परिरभाषाा ।T--हि(धिध अनक�न आदश, 1950 दवारा हिनरलिसत । 1[14. “सरकार का सवक”--“सरकार का स(क” शबद सरकार क पराधिधकार क दवारा या अधीन, भारत क भीतर उस

रप म बन र�न टिदए गए, हिनय2 हिकए गए, या हिनयोजिजत हिकए गए हिकसी भी आहिcसर या स(क क दयोतक � ।] 15. [“बरिLटिट! इणडिणडया” की परिरभाषाा ।T--हि(धिध अनक�न आदश, 1937 दवारा हिनरलिसत । 16. [“गव�#मट आफ इणडिणडया” की परिरभाषाा ।T--भारत शासन (भारतीय हि(धिध अनक�न) आदश, 1937 दवारा

हिनरलिसत । 1[17. सरकार--“सरकार” कनदरीय सरकार या हिकसी 2।।। राजय की सरकार का दयोतक � ।] 3[18. भारत--“भारत” स जमम-कशमीर राजय क लिस(ाय भारत का राजयकषतर अभिभपरत � ।] 19. नयाया�ी!--“नयायाधीश” शबद न क(� �र ऐस वयलि2 का दयोतक �, जो पद रप स नयायाधीश अभिभहि�त �ो,

हिकनत उस �र वयलि2 का भी दयोतक �, जो हिकसी हि(धिध काय.(ा�ी म, चा� (� लिसहि(� �ो या दाणडिणडक, अनतिनतम हिनण.य या ऐसा हिनण.य, जो उसक हि(रदध अपी� न

�ोन पर अनतिनतम �ो जाए या ऐसा हिनण.य, जो हिकसी अनय पराधिधकारी दवारा पषT हिकए जान पर अनतिनतम �ो जाए, दन क लि�ए हि(धिध दवारा सश2 हिकया गया �ो, अथ(ा

जो उस वयलि2 हिनकाय म स एक �ो, जो वयलि2 हिनकाय ऐसा हिनण.य दन क लि�ए हि(धिध दवारा सश2 हिकया गया �ो । दषटात

(क) सन 1859 क अधिधहिनयम 10 क अधीन हिकसी (ाद म अधिधकारिरता का परयोग Eरन (ा�ा क�कTर नयायाधीश � । (�) हिकसी आरोप क सबध म, जिजसक लि�ए उस जमा.ना या कारा(ास का दणड दन की शलि2 परापत �, चा� उसकी अपी� �ोती �ो या

न �ोती �ो, अधिधकारिरता का परयोग करन (ा�ा मजिजसटरT नयायाधीश � ।

(ग) मदरास सहि�ता क सन 41816 क हि(हिनयम 7 क अधीन (ादो का हि(चारण करन की और अ(धारण करन की शलि2 र�न (ा�ी पचायत का सदसय नयायाधीश � ।

(घ) हिकसी आरोप क सबध म, जिजनक लि�ए उस क(� अनय नयाया�य को हि(चारणाथ. सपद. करन की शलि2 परापत �, अधिधकारिरता का परयोग करन (ा�ा मजिजसटरT नयायाधीश न�ी � ।

20. नयायालय--“नयाया�य” शबद उस नयायाधीश का, जिजस अक� �ी को नयाधियकत: काय. करन क लि�ए हि(धिध दवारा सश2 हिकया गया �ो, या उस नयायाधीश-हिनकाय का, जिजस एक हिनकाय क रप म नयाधियकत: काय. करन क लि�ए हि(धिध दवारा सश2 हिकया गया �ो, जबहिक ऐसा नयायाधीश या नयायाधीश-हिनकाय नयाधियकत: काय. कर र�ा �ो, दयोतक � ।

दषटात मदरास सहि�ता क सन 51816 क हि(हिनयम 7 क अधीन काय. करन (ा�ी पचायत, जिजस (ादो का हि(चारण करन और अ(धारण करन

की शलि2 परापत �, नयाया�य � । 21. लोक सवक--“�ोक स(क” शबद उस वयलि2 क दयोतक � जो एतसमिसमन पशचात हिनमनगत (ण.नो म स हिकसी म आता

�, अथा.त :-- 6। । । । ।

दसरा--7[भारत की 8।।। सना] , 9[नौ सना या (ाय सना] का �र आय2 आहिcसर ; 10[तीसरा--�र नयायाधीश जिजसक अनतग.त ऐस कोई भी वयलि2 आता � जो हिकन�ी नयायहिनण.धियक कतयो का चा� स(य

या वयलि2यो क हिकसी हिनकाय क सदसय क रप म हिन(.�न करन क लि�ए हि(धिध दवारा सश2 हिकया गया �ो ;]

चौथा--नयाया�य का �र आहिcसर 1[(जिजसक अनतग.त समापक, रिरसी(र या कधिमशनर आता �)] जिजसका ऐस आहिcसर क नात य� कत.वय �ो हिक (� हि(धिध या तथय क हिकसी माम� म अन(षण या रिरपT. कर, या कोई दसता(ज बनाए, अधिधपरमाणीकत कर, 1 हि(धिध अनक�न आदश, 1950 दवारा धारा 14 क सथान पर परहितसथाहिपत । 2 1951 क अधिधहिनयम स0 3 की धारा 3 और अनसची दवारा “भाग क” शबद और अकषर का �ोप हिकया गया । 3 1951 क अधिधहिनयम स0 3 की धारा 3 और अनसची दवारा धारा 18 क सथान पर परहितसथाहिपत ।

4 मदरास लिसहि(� नयाया�य अधिधहिनयम, 1873 (1873 का 3) दवारा हिनरलिसत । 5 मदरास लिसहि(� नयाया�य अधिधहिनयम, 1873 (1873 का 3) दवारा हिनरलिसत । 6 हि(धिध अनक�न आदश, 1950 दवारा प�� �णड का �ोप हिकया गया । 7 हि(धिध अनक�न आदश, 1948 दवारा “क(ीन का हिRटिTश भारत या कराउन क परहितहिनधिध क हिकसी सरकार क अधीन काय. करत हए” शबदो क सथान पर

परहितसथाहिपत । 8 (धिध अनक�न आदश, 1950 दवारा “डोधिमहिनयन” शबद �ोप हिकया गया । 9 1927 क अधिधहिनयम स0 10 की धारा 2 और अनसची 1 दवारा “या नौसना” क सथान पर परहितसथाहिपत । 10 1964 क अधिधहिनयम स0 40 की धारा 2 दवारा प(.(तx �णड क सथान पर परहितसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 4

या र�, या हिकसी समपभितत का भार समभा� या उस समपभितत का वययन कर, या हिकसी नयाधियक आदलिशका का हिनषपादन कर, या कोई शपथ गर�ण कराए या हिन(.चन कर, या नयाया�य म वय(सथा बनाए र� और �र वयलि2, जिजस ऐस कत.वयो म स हिकन�ी का पा�न करन का पराधिधकार नयाया�य दवारा हि(शष रप स टिदया गया �ो ;

पाचवा--हिकसी नयाया�य या �ोक स(क की स�ायता करन (ा�ा �र जरी-सदसय, अससर या पचायत का सदसय ; छठा--�र मधयसथ या अनय वयलि2, जिजसको हिकसी नयाया�य दवारा, या हिकसी अनय सकषम �ोक पराधिधकारी दवारा, कोई

माम�ा या हि(षय, हि(हिनभिशचत या रिरपोT. क लि�ए हिनदzलिशत हिकया गया �ो ; सातवा--�र वयलि2 जो हिकसी ऐस पद को धारण करता �ो, जिजसक आधार स (� हिकसी वयलि2 को परिररोध म करन या

र�न क लि�ए सश2 �ो ;

आठवा--2[सरकार] का �र आहिcसर जिजसका ऐस आहिcसर क नात य� कत.वय �ो हिक (� अपराधो का हिन(ारण कर, अपराधो की इभितत�ा द, अपराधिधयो को नयाय क लि�ए उपणडिसथत कर, या �ोक क स(ासथय, कषम या सहि(धा की सरकषा कर ;

�वा--�र आहिcसर जिजसका ऐस आहिcसर क नात य� कत.वय �ो हिक (� 8[सरकार] की ओर स हिकसी समपभितत को गर�ण कर, परापत कर, र�, वयय कर, या 8[सरकार] की ओर स कोई स(zकषण, हिनधा.रण या सहि(दा कर, या हिकसी राजस( आदलिशका का हिनषपादन कर, या 8[सरकार] क धन-सबधी हि�तो पर परभा( डा�न (ा� हिकसी माम� म अन(षण या रिरपोT. कर या 8[सरकार] क धन सबधी हि�तो स सबधिधत हिकसी दसता(ज को बनाए, अधिधपरमाणीकत कर या र�, या 8[सरकार] 3।।। धन-सबधी हि�तो की सरकषा क लि�ए हिकसी हि(धिध क वयहितकरम को रोक ;

दसवा--�र आहिcसर, जिजसका ऐस आहिcसर क नात य� कत.वय �ो हिक (� हिकसी गराम, नगर या जिज� क हिकसी धम.हिनरपकष सामानय परयोजन क लि�ए हिकसी समपभितत को गर�ण कर, परापत कर, र� या वयय कर, कोई स(zकषण या हिनधा.रण कर, या कोई रT या कर उदगग�ीत कर, या हिकसी गराम, नगर या जिज� क �ोगो क अधिधकारो क अभिभहिनशचयन क लि�ए कोई दसता(ज बनाए, अधिधपरमाणीकत कर या र� ;

4[गयार�वा--�र वयलि2 जो कोई ऐस पद धारण करता �ो जिजसक आधार स (� हिन(ा.चक नामा(�ी तयार करन, परकालिशत करन, बनाए र�न, या पनरीभिकषत करन क लि�ए या हिन(ा.चन या हिन(ा.चन क लि�ए भाग को सचालि�त करन क लि�ए सश2 �ो ;]

5[बार�वा--�र वयलि2, जो-- (क) सरकार की स(ा या (तन म �ो, या हिकसी �ोक कत.वय क पा�न क लि�ए सरकार स cीस या कमीशन क रप

म पारिरशरधिमक पाता �ो ; (�) सथानीय पराधिधकारी की, अथ(ा कनदर, परानत या राजय क अधिधहिनयम क दवारा या अधीन सथाहिपत हिनगम की

अथ(ा कमपनी अधिधहिनयम, 1956 (1956 का 1) की धारा 617 म यथा परिरभाहिषत सरकारी कमपनी की, स(ा या (तन म �ो ।]

दषटात नगरपालि�का आय2 �ोक स(क � । सपषटीकरण 1--ऊपर क (ण.नो म स हिकसी म आन (ा� वयलि2 �ोक स(क �, चा� ( सरकार दवारा हिनय2 हिकए गए �ो

या न�ी । सपषटीकरण 2--ज�ा क�ी “�ोक स(क” शबद आए �, ( उस �र वयलि2 क सबध म समझ जाएग जो �ोक स(क क

ओ�द को (ासत( म धारण हिकए हए �ो, चा� उस ओ�द को धारण करन क उसक अधिधकार म कसी �ी हि(धिधक तरटिT �ो । 6[सपषटीकरण 3--“हिन(ा.चन” शबद ऐस हिकसी हि(धायी, नगरपालि�क या अनय �ोक पराधिधकारी क नात, चा� (� कस

�ी स(रप का �ो, सदसयो क (रणाथ. हिन(ा.चन का दयोतक � जिजसक लि�ए (रण करन की पदधहित हिकसी हि(धिध क दवारा या अधीन हिन(ा.चन क रप म हि(हि�त की गई �ो ।]

1। । । । । ।

1 1964 क अधिधहिनयम स0 40 की धारा 2 दवारा अनत: सथाहिपत । 2 हि(धिध अनक�न आदश, 1950 दवारा “कराउन” क सथान पर परहितसथाहिपत जिजस हि(धिध अनक�न आदश, 1937 दवारा “सरकार” क सथान पर परहितसथाहिपत

हिकया गया था । 3 1964 क अधिधहिनयम स0 40 की धारा 2 दवारा कहितपय शबदो का �ोप हिकया गया । 4 1920 क अधिधहिनयम स0 39 की धारा 2 दवारा अनत:सथाहिपत । 5 1964 अधिधहिनयम स0 40 की धारा 2 दवारा प(.(तx �णड क सथान पर परहितसथाहिपत ।

6 1920 क अधिधहिनयम स0 39 की धारा 2 दवारा अनत:सथाहिपत भारतीय दड सहि�ता, 1860 5

22. “जगम समपधिV”--“जगम समपभितत” शबदो स य� आशधियत � हिक इनक अनतग.त �र भाहित की मत. समपभितत आती �, हिकनत भधिम और ( चीज, जो भ-बदध �ो या भ-बदध हिकसी चीज स सथायी रप स जकOी हई �ो, इनक अनतग.त न�ी आता ।

23. “सदोष अशिभलाभ”--“सदोष अभिभ�ाभ” हि(धिधहि(रदध साधनो दवारा ऐसी समपभितत का अभिभ�ाभ �, जिजसका (ध रप स �कदार अभिभ�ाभ परापत करन (ा�ा वयलि2 न �ो ।

“सदोष �ाहि�”--“सदोष �ाहिन” हि(धिधहि(रदध साधनो दवारा ऐसी समपभितत की �ाहिन �, जिजसका (ध रप स �कदार �ाहिन उठान (ा�ा वयलि2 �ो ।

“सदोष अशिभलाभ परापत कर�ा” । सदोष �ाहि� उठा�ा--कोई वयलि2 सदोष अभिभ�ाभ परापत करता �, य� तब क�ा जाता � जब हिक (� वयलि2 सदोष र� र�ता � और तब भी जबहिक (� सदोष अज.न करता � । कोई वयलि2 सदोष �ाहिन उठाता �, य� तब क�ा जाता � जब हिक उस हिकसी समपभितत स सदोष अ�ग र�ा जाता � और तब भी जबहिक उस हिकसी समपभितत स सदोष (लिचत हिकया जाता � ।

24.“बईमा�ी स”--जो कोई इस आशय स कोई काय. करता � हिक एक वयलि2 को सदोष अभिभ�ाभ कारिरत कर या अनय वयलि2 को सदोष �ाहिन कारिरत कर, (� उस काय. को “बईमानी स” करता �, य� क�ा जाता � ।

25.“कपटपव#क”--कोई वयलि2 हिकसी बात को कपTप(.क करता �, य� क�ा जाता �, यटिद (� उस बात को कपT करन क आशय स करता �, अनयथा न�ी ।

26. “हिवशवास कर� का कारण”--कोई वयलि2 हिकसी बात क “हि(शवास करन का कारण” र�ता �, य� तब क�ा जाता � जब (� उस बात क हि(शवास करन का पया.पत �तक र�ता �, अनयथा न�ी ।

27. “पत�ी, धिलहिपक या सवक क कबज म समपधिV”--जबहिक समपभितत हिकसी वयलि2 क हिनधिमतत उस वयलि2 की पतनी, लि�हिपक या स(क क कबज म �, तब (� इस सहि�ता क अथ. क अनतग.त उस वयलि2 क कबज म � ।

सपषटीकरण--लि�हिपक या स(क क नात असथाई रप स या हिकसी हि(लिशषT अ(सर पर हिनयोजिजत वयलि2 इस धारा क अथ. क अनतग.त लि�हिपक या स(क � ।

28. “कटकरण”--जो वयलि2 एक चीज को दसरी चीज क सदश इस आशय स करता � हिक (� उस सदश स पर(चना कर, या य� सभावय जानत हए करता � हिक तदद(ारा पर(चना की जाएगी. (� “कTकरण” करता �, य� क�ा जाता � ।

2[सपषटीकरण 1--कTकरण क लि�ए य� आ(शयक न�ी � हिक नक� ठीक (सी �ी �ो । सपषटीकरण 2--जब हिक कोई वयलि2 एक चीज को दसरी चीज क सदश कर द और सादशय ऐसा � हिक तदद(ारा हिकसी

वयलि2 को पर(चना �ो सकती �ो, तो जब तक हिक ततपरहितक� साहिबत न हिकया जाए, य� उपधारणा की जाएगी हिक जो वयलि2 एक चीज की दसरी चीज क इस परकार सदश बनाता � उसका आशय उस सादशय दवारा पर(चना करन का था या (� य� समभावय जानता था हिक तदद(ारा पर(चना की जाएगी ।]

29. “दसतावज”--“दसता(ज” शबद हिकसी भी हि(षय का दयोतक � जिजसक हिकसी पदाथ. पर अकषरो, अको या लिचहन क साधन दवारा, या उनस एक स अधिधक साधनो दवारा अभिभवय2 या (रणिणत हिकया गया �ो जो उस हि(षय क साकषी क रप म उपयोग हिकए जान को आशधियत �ो या उपयोग हिकया जा सक ।

सपषटीकरण 1--य� तत(�ीन � हिक हिकस साधन दवारा या हिकस पदाथ. पर अकषर, अक या लिचहन बनाए गए �, या य� हिक साकषय हिकसी नयाया�य क लि�ए आशधियत � या न�ी, या उसम उपयोग हिकया जा सकता � या न�ी ।

दषटात हिकसी सहि(दा क हिनबनधनो को अभिभवय2 करन (ा�ा ��, जो उस सहि(दा क साकषय क रप म उपयोग हिकया जा सक, दसता(ज � । बककार पर टिदया गया चक दसता(ज � । मखतारनामा दसता(ज � । मानलिचतर या र�ाक, जिजसको साकषय क रप म उपयोग म �ान का आशय �ो या जो उपयोग म �ाया जा सक, दसता(ज � ।

1 1964 क अधिधहिनयम स0 40 की धारा 2 दवारा सपषTीकरण 4 का �ोप हिकया गया । 2 1889 क अधिधहिनयम स0 1 की धारा 9 दवारा म� सपषTीकरण क सथान पर परहितसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 6

जिजस �� म हिनदzश या अनदश अनतरवि(षT �ो, (� दसता(ज � । सपषटीकरण 2--अकषरो, अको या लिचहनो स जो कछ भी (ाभिणणडिजयक या अनय परथा क अनसार वयाखया करन पर

अभिभवयकय �ोता �ो, (� इस धारा क अथ. क अनतग.त ऐस अकषरो, अको या लिचहनो स अभिभवय2 हआ समझा जाएगा, चा� (� (सतत: अभिभवय2 न हिकया गया �ो ।

दषटात क एक हि(हिनमय पतर की पीठ पर, जो उसक आदश क अनसार दय �, अपना नाम लि�� दता � । (ाभिणणडिजयक परथा क अनसार वयाखया

करन पर इस पषठाकन का अथ. � हिक धारक को हि(हिनमयपतर का भगतान कर टिदया जाए । पषठाकन दसता(ज � और इसका अथ. उसी परकार स �गाया जाना चाहि�ए मानो �सताकषर क ऊपर “धारक को भगतान करो ” शबद या ततपरभा( (ा� शबद लि�� टिदए गए �ो ।

1[29क. “इलकटराहि�क अशिभलख” शबदो का (�ी अथ. �ोगा जो सचना परौदयोहिगकी अधिधहिनयम, 2000 की धारा 2 की उपधारा (1) क �णड (न) म � ।]

30. “मलयवा� परहितभहित”--“मलय(ान परहितभहित” शबद उस दसता(ज क दयोतक �, जो ऐसी दसता(ज �, या �ोनी तातपरयियत �, जिजसक दवारा कोई हि(धिधक अधिधकार सजिजत, हि(सतत, अनतरिरत, हिनब.नधिनधत, हिन(ा.हिपत हिकया जाए, छोOा जाए या जिजसक दवारा कोई वयलि2 य� अभिभस(ीकार करता � हिक (� हि(धिधक दाधियत( क अधीन �, या अमक हि(धिधक अधिधकार न�ी र�ता � ।

दषटात क एक हि(हिनमयपतर की पीठ पर अपना नाम लि�� दता � । इस पषठाकन का परभा( हिकसी वयलि2 को, जो उसका हि(धिधपण. धारक �ो

जाए, उस हि(हिनमयपतर पर का अधिधकार अनतरिरत हिकया जाता �, इसलि�ए य� पषठाकन “मलय(ान परहितभहित” � । 31. “हिबल”--“हिब�” शबद हिकसी भी (सीयती दसता(ज का दयोतक � । 32. काय` का हि�दa! कर� वाल !बदो क अनतग#त अव� लोप आता � --जब तक हिक सदभ. स ततपरहितक� आशय

परतीत न �ो, इस सहि�ता क �र भाग म हिकए गए काय� का हिनदzश करन (ा� शबदो का हि(सतार अ(ध �ोपो पर भी � । 33. “काय#”--“काय.” शबद काया.(�ी की दयोतक उसी परकार � जिजस परकार एक काय. का । “लोप”--“�ोप” शबद �ोपा(�ी की दयोतक उसी परकार � जिजस परकार एक �ोप का । 2[34. सामानय आ!य को अगरसर कर� म कई वयधिकतयो दवारा हिकए गए काय#--जबहिक कोई आपराधिधक काय. कई

वयलि2यो दवारा अपन सबक सामानय आशय को अगरसर करन म हिकया जाता �, तब ऐस वयलि2यो म स �र वयलि2 उस काय. क लि�ए उसी परकार दाधियत( क अधीन �, मानो (� काय. अक� उसी न हिकया �ो ।]

35. जबहिक ऐसा काय# इस कारण आपराधि�क � हिक व� आपराधि�क जञा� या आ!य स हिकया गया �--जब कभी कोई काय., जो आपराधिधक जञान या आशय स हिकए जान क कारण �ी आपराधिधक �, कई वयलि2यो दवारा हिकया जाता �, तब ऐस वयलि2यो म स �र वयलि2, जो ऐस जञान या आशय स उस काय. म सनधिममलि�त �ोता �, उस काय. क लि�ए उसी परकार दाधियत( क अधीन �, मानो (� काय. उस जञान या आशय स अक� उसी दवारा हिकया गया �ो ।

36. अ!त: काय# दवारा और अ!त: लोप दवारा कारिरत परिरणाम--ज�ा क�ी हिकसी काय. दवारा या हिकसी �ोप दवारा हिकसी परिरणाम का कारिरत हिकया जाना या उस परिरणाम को कारिरत करन का परयतन करना अपराध �, (�ा य� समझा जाना � हिक उस परिरणाम का अशत: काय. दवारा और अशत: �ोप दवारा कारिरत हिकया जाना (�ी अपराध � ।

दषटात क अशत: य को भोजन दन का अ(ध रप स �ोप करक और अशत: य को पीT कर साशय य की मतय कारिरत करता � । क न �तया

की � । 37. हिकसी अपरा� को गटिठत कर� वाल कई काय` म स हिकसी एक को करक स�योग कर�ा--जबहिक कोई

अपराध कई काय� दवारा हिकया जाता �, तब जो कोई या तो अक� या हिकसी अनय वयलि2 क साथ सनधिममलि�त �ोकर उन काय� म स कोई एक काय. करक उस अपराध क हिकए जान म साशय स�योग करता �, (� उस अपराध को करता � ।

दषटात (क) क और ख पथकी-पथक रप स और हि(भिभनन समयो पर य को हि(ष की छोTी-छोTी मातराए दकर उसकी �तया करन को स�मत

�ोत � । क और ख, य की �तया करन क आशय स स�महित क अनसार य को हि(ष दत � । य इस परकार दी गई हि(ष की कई मातराओ क परभा( स मर जाता � । य�ा क और ख �तया करन म साशय स�योग करत � और कयोहिक उनम स �र एक ऐसा काय. करता �, जिजसस मतय कारिरत �ोती �, ( दोनो इस अपराध क दोषीी �, यदयहिप उनक काय. पथक � ।

(�) क और ख सय2 ज�र �, और अपनी उस �लिसयत म ( एक कदी य का बारी-बारी स एक समय म 6 घT क लि�ए सरकषण-भार र�त � य को टिदए जान क परयोजन स जो भोजन क और ख को टिदया जाता �, (� भोजन इस आशय स हिक य की मतय कारिरत कर दी जाए,

1 2000 क अधिधहिनयम स0 21 की धारा 91 और प��ी अनसची दवारा (17-10-2000 स) अतःसथाहिपत । 2 1870 क अधिधहिनयम स0 27 की धारा 1 दवारा म� धारा क सथान पर परहितसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 7

�र एक अपन �ाजिजरी क का� म य को दन का �ोप करक (� परिरणाम अ(ध रप स कारिरत करन म जानत हए स�योग करत � । य भ� स मर जाता � । क और ख दोनो य की �तया क दोषीी � ।

(ग) एक ज�र क, एक कदी य का सरकषण-भार र�ता � । क, य की मतय कारिरत करन क आशय स, य को भोजन दन का अ(ध रप स �ोप करता �, जिजसक परिरणामस(रप य की शलि2 बहत कषीण �ो जाती �, हिकनत य� कषधापीOन उसकी मतय, कारिरत करन क लि�ए पया.पत न�ी �ोता । क अपन पद स चयत कर टिदया जाता � और ख उसका उततर(तx �ोता � । क स दससधिध या स�योग हिकए हिबना ख य� जानत हए हिक ऐसा करन स सभावय � हिक (� य की मतय कारिरत कर द, य को भोजन दन का अ(ध रप स �ोप करता � । य, भ� स मर जाता � । ख �तया का दोषीी � हिकनत क न ख स स�योग न�ी हिकया, इसलि�ए क �तया क परयतन का �ी दोषीी � ।

38. आपराधि�क काय# म सपकत वयधिकत हिवशिभनन अपरा�ो क दोषाी �ो सक ग--ज�ा हिक कई वयलि2 हिकसी आपराधिधक काय. को करन म �ग हए या समप2 �, (�ा ( उस काय. क आधार पर हि(भिभनन अपराधो क दोषीी �ो सक ग ।

दषटात क गमभीर परकोपन की ऐसी परिरसथहितयो क अधीन य पर आकरमण करता � हिक य का उसक दवारा (ध हिकया जाना क(� ऐसा

आपराधिधक मान((ध �, जो �तया की कोटिT म न�ी आता � । � जो य स (मनसय र�ता �, उसका (ध करन क आशय स और परकोपन क (शीभत न �ोत हए य का (ध करन म क की स�ायता करता � । य�ा, यदयहिप क और ख दोनो य की मतय कारिरत करन म �ग हए �, ख �तया का दोषीी � और क क(� आपराधिधक मान( (ध का दोषीी � ।

39. “सवचछया”--कोई वयलि2 हिकसी परिरणाम को “स(चछया” कारिरत करता �, य� तब क�ा जाता �, जब (� उस उन साधनो दवारा कारिरत करता �, जिजनक दवारा उस कारिरत करना उसका आशय था या उन साधनो दवारा कारिरत करता � जिजन साधनो को काम म �ात समय (� य� जानता था, या य� हि(शवास करन का कारण र�ता था हिक उनस उसका कारिरत �ोना सभावय � ।

दषटात क. �T को सकर बनान क परयोजन स एक बO नगर क एक बस हए ग� म रात को आग �गाता � और इस परकार एक वयलि2 की

मतय कारिरत कर दता � । य�ा क का आशय भ� �ी मतय कारिरत करन का न र�ा �ो और (� दखि�त भी �ो हिक उसक काय. स मतय कारिरत हई � तो भी यटिद (� य� जानता था हिक सभावय � हिक (� मतय कारिरत कर द तो उसन स(चछया मतय कारिरत की � ।

1[40.“अपरा�”--इस धारा क �णड 2 और 3 म (रणिणत 2[अधयायो] और धाराओ म क लिस(ाय “अपराध” शबद इस सहि�ता दवारा दणडनीय की गई हिकसी बात का दयोतक � ।

अधयाय 4, 3[अधयाय 5क] और हिनमनलि�खि�त धारा, अथा.त धारा 4[64, 65, 66, 5[67T, 71T, 109, 110, 112, 114, 115, 116, 117, 187, 194, 195, 203, 211, 213, 214, 221, 222, 223,, 224, 225, 327, 328, 329, 330, 331, 347, 348, 388, 389 और 445 म “अपराध” शबद इस सहि�ता क अधीन या एणडितसमनपशचात यथापरिरभाहिषत हि(शष या सथानीय हि(धिध क अधीन दणडनीय बात का दयोतक � ।

और धारा 141, 176, 177, 201, 202, 212, 216 और 441 म “अपराध” शबद का अथ. उस दशा म (�ी � जिजसम हिक हि(शष या सथानीय हि(धिध क अधीन दणडनीय बात ऐसी हि(धिध क अधीन छ� मास या उसस अधिधक अ(धिध क कारा(ास स, चा� (� जमा.न सहि�त �ो या रहि�त, दणडनीय �ो ।]

41. “हिव!ष हिवधि�”--“हि(शष हि(धिध” (� हि(धिध � जो हिकसी हि(लिशषT हि(षय को �ाग �ो ।

42. “सथा�ीय हिवधि�”--“सथानीय हि(धिध” (� हि(धिध � जो 6[7।।।।।। 8[भारत]] क हिकसी हि(लिशषT भाग को �ी �ाग �ो । 43. “अव�”--“अ(ध” शबद �र उस बात को �ाग �, जो अपराध �ो, या जो हि(धिध दवारा परहितहिषदध �ो, या जो लिसहि(�

काय.(ा�ी क लि�ए आधार उतपनन करती �ो ; और “कर� क धिलए व� रप स आबदध”—कोई वयलि2 उस बात को “करन क लि�ए (ध रप स आबदध” क�ा जाता � जिजसका �ोप करना उसक लि�ए अ(ध � ।

44. “कषहित”--“कषहित” शबद हिकसी परकार की अप�ाहिन का दयोतक �, जो हिकसी वयलि2 क शरीर, मन, खयाहित या समपभितत को अ(ध रप स कारिरत हई �ो । 1 1870 क अधिधहिनयम स0 27 की धारा 2 दवारा म� धारा 40 क सथान पर परहितसथाहिपत । 2 1930 क अधिधहिनयम स0 8 की धारा 2 और अनसची 1 दवारा “अधयाय ” क सथान पर परहितसथाहिपत । 3 1913 क अधिधहिनयम स0 8 की धारा 2 दवारा अनत:सथाहिपत । 4 1882 क अधिधहिनयम स0 8 की धारा 1 दवारा अनत:सथाहिपत ।

5 1886 क अधिधहिनयम स0 10 हिक धारा 21(1) दवारा अनत:सथाहिपत । 6 हि(धिध अनक�न आदश, 1948 दवारा “हिRटिTश भारत” क सथान पर परहितसथाहिपत । 7 1952 क धिधहिनयम स0 48 की धारा 3 और अनसची 2 दवारा “समाहि(षT राजयकषतरो म” शबदो का �ोप हिकया गया ।

8 1951 क अधिधहिनयम स0 3 की धारा 3 और अनसची दवारा “राजयो” क सथान पर परहितसथाहिपत जिजस हि(धिध अनक�न आदश, 1950 दवारा “परानतो” क सथान पर परहितसथाहिपत हिकया गया था । भारतीय दड सहि�ता, 1860 8

45.“जीव�”--जब तक हिक सदभ. स ततपरहितक� परतीत न �ो, “जी(न” शबद मान( क जी(न का दयोतक � । 46.“मतय”--जब तक हिक सदभ. क ततपरहितक� परतीत न �ो, “मतय” शबद मान( की मतय का दयोतक � । 47.“जीवजनत”--“जी(जनत” शबद मान( स भिभनन हिकसी जी(धारी का दयोतक � । 48.“जलया�”--“ज�यान” शबद हिकसी चीज का दयोतक �, जो मान(ो क या समपभितत क ज� दवारा पर(�ण क लि�ए

बनाई गई �ो । 49. “वष#” या “मास”--ज�ा क�ी “(ष.” शबद या “मास” शबद का परयोग हिकया गया � (�ा य� समझा जाना � हिक

(ष. या मास की गणना हिRटिTश क�डर क अनक� की जानी � । 50. “�ारा”--“धारा” शबद इस सहि�ता क हिकसी अधयाय क उन भागो म स हिकसी एक का दयोतक �, जो लिसर पर �ग

सखयाको दवारा सभिभनन हिकए गए � । 51.“!पथ”--शपथ क लि�ए हि(धिध दवारा परहितसथाहिपत सतयहिनषठ परहितजञान और ऐसी कोई घोषणा, जिजसका हिकसी �ोक

स(क क समकष हिकया जाना या नयाया�य म या अनयथा सबत क परयोजन क लि�ए उपयोग हिकया जाना हि(धिध दवारा अपभिकषत या पराधिधकत �ो, “शपथ” शबद क अनतग.त आती � ।

52. “सदभावपव#क”--कोई बात “सदभा(प(.क” की गई या हि(शवास की गई न�ी क�ी जाती तो समयक सतक. ता और धयान क हिबना की गई या हि(शवास की गई �ो ।

1[52क. “सशरय”--धारा 157 म क लिस(ाय और धारा 130 म (�ा क लिस(ाय ज�ा हिक सशरय सभिशरत वयलि2 की पतनी या पहित दवारा टिदया गया �ो, “सशरय” शबद क अनतग.त हिकसी वयलि2 को आशरय, भोजन, पय, धन, (सतर, आयध, गो�ाबारद या पर(�ण क साधन दना, या हिकन�ी साधनो स चा� ( उसी परकार क �ो या न�ी, जिजस परकार क इस धारा म परिरगभिणत � हिकसी वयलि2 की स�ायता पकO जान स बचन क लि�ए करना, आता � ।]

अधयाय 3

दणडो क हिवषय म 53. “दणड”--अपराधी इस सहि�ता क उपबधो अधीन जिजन दणडो स दणडनीय �, ( य �—

प�ला--मतय ; 2[दसरा--आजी(न कारा(ास ;] 3। । । । चौथा--कारा(ास, जो दो भाहित का �, अथा.त :—

(1) कटिठन, अथा.त कठोर शरम क साथ ; (2) सादा ;

पाचवा--समपभितत का समप�रण ; छठा--जमा.ना ।

4[53क. हि�वा#स� क परहित हि�दa! का अथ# लगा�ा--(1) उपधारा (2) और उपधारा (3) क उपबनधो क अधयधीन हिकसी अनय ततसमय पर(तत हि(धिध म, या हिकसी ऐसी हि(धिध या हिकसी हिनरलिसत अधिधहिनयधिमहित क आधार पर परभा(शी� हिकसी लि��त या आदश म “आजी(न हिन(ा.सन” क परहित हिनदzश का अथ. य� �गाया जाएगा हिक (� “आजी(न कारा(ास” क परहित हिनदzश � । 1 1942 क अधिधहिनयम स0 8 की धारा 2 दवारा अनत:सथाहिपत जिजस हि(धिध अनक�न आदश, 1950 दवारा “परानतो” क सथान पर परहितसथाहिपत हिकया गया । 2 1955 क अधिधहिनयम स0 26 की धारा 117 और अनसची दवारा “दसरा --हिन(ा.सन” क सथान पर (1-1-1956 स) परहितसथाहिपत । 3 1949 क अधिधहिनयम स0 17 की धारा 2 दवारा (6 अपर�, 1949 स) �णड “ तीसरा ” का �ोप हिकया गया ।

4 1955 क अधिधहिनयम स0 26 की धारा 117 और अनसची दवारा (1-1-1956 स) अतःसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 9

(2) �र माम� म, जिजसम हिक हिकसी अ(धिध क लि�ए हिन(ा.सन का दणडादश दणड परहि�Eया सहि�ता (सशोधन) अधिधहिनयम, 1[1955 (1955 का 26)] क परारमभ स प(. टिदया गया �, अपराधी स उसी परकार बरता जाएगा, मानो (� उसी अ(धिध क लि�ए कटिठन कारा(ास क लि�ए दणडाटिदषT हिकया गया �ो ।

(3) हिकसी अनय ततसमय पर(तत हि(धिध म हिकसी अ(धिध क लि�ए हिन(ा.सन या हिकसी �घतर अ(धिध क लि�ए हिन(ा.सन क परहित (चा� उस कोई भी नाम टिदया गया �ो) कोई हिनदzश �पत कर टिदया गया समझा जाएगा ।

(4) हिकसी अनय ततसमय पर(तत हि(धिध म हिन(ा.सन क परहित जो कोई हिनदzश �ो--- (क) यटिद उस पद स आजी(न हिन(ा.सन अभिभपरत�, तो उसका अथ. आजी(न कारा(ास क परहित हिनदzश �ोना �गाया

जाएगा ; (�) यटिद उस पद स हिकसी �घतर (धिध क लि�ए हिन(ा.सन अभिभपरत �, तो य� समझा जाएगा हिक (� �पत कर टिदया

गया � ।] 54. मतय दणडाद! का लघकरण--�र माम� म, जिजसम मतय का दणडादश टिदया गया �ो, उस दणड को अपराधी की

सममहित क हिबना भी 2[समलिचत सरकार] इस सहि�ता दवारा उपबनधिनधत हिकसी अनय दड म �घकत कर सकगी ।

55. आजीव� कारावास क दणडाद! का लघकरण—�र माम� म, जिजसम आजी(न 3[कारा(ास] का दणडादश टिदया गया �ो, अपराधी की सममहित क हिबना भी 4[समलिचत सरकार] उस दणड को ऐसी अ(धिध क लि�ए, जो चौद� (ष. स अधिधक न �ो, दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास म �घकत कर सकगी ।

5[55क. “समधिचत सरकार” की परिरभाषाा--धारा 54 और 55 म “समलिचत सरकार” पद स,-- (क) उन माम�ो म कनदरीय सरकार अभिभपरत �, जिजनम दडादश मतय का दणडादश �, या ऐस हि(षय स, जिजस पर

सघ की काय.पा�न शलि2 का हि(सतार �, सबधिधत हिकसी हि(धिध क हि(रदध अपराध क लि�ए � ; तथा (�) उन माम�ो म उस राजय की सरकार, जिजसक अनदर अपराधी दणडाटिदषT हआ �, अभिभपरत �, ज�ा हिक

दडादश (चा� मतय �ो या न�ी) ऐस हि(षय स, जिजस पर राजय की काय.पा�न शलि2 का हि(सतार �, सबधिधत हिकसी हि(धिध क हि(रदध अपराध क लि�ए � ।] 56. यरोहिपयो तथा अमरीहिकयो को कठोरशरम कारावास का दणडाद! । दस वष# स अधि�क हिकनत जो आजीव�

कारावास स अधि�क � �ो, दणडाद! क सब� म परनतक ।] दाहिडक हि(धिध (म�(शीय हि(भदो का हिनराकरण) अधिधहिनयम, 1949 (1949 का 17) दवारा ( 6 अपर�, 1949 स ) हिनरलिसत ।

57. दणडावधि�यो की शिभनन - दणडा(धिधयो की भिभननो की गणना करन म, आजी(न 4[कारा(ास] को बीस (ष. क 4[कारा(ास] क तलय हिगना जाएगा ।

58. [हि�वा#स� स दणडाटिदषट अपराधि�यो क साथ कसा वयव�ार हिकया जाए जब तक व हि�वा#धिसत � कर टिदए जाए ।ट--दणड परहि�Eया सहि�ता (सशोधन) अधिधहिनयम, 1955 (1955 का 26) की धारा 117 और अनसची दवारा (1-1-1956 स) हिनरलिसत ।

59. [कारावास क बदल हि�वा#स�ट--दणड परहि�Eया सहि�ता (सशोधन) अधिधहिनयम, 1955 (1955 का 26) की धारा 117 और अनसची दवारा (1 जन(री, 1956 स) हिनरलिसत ।

60. दणडाटिदषट कारावास क कहितपय मामलो म समपण# कारावास या उसका कोई भाग कटिठ� या सादा �ो सकगा--�र माम� म, जिजसम अपराधी दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स दणडनीय �, (� नयाया�य, जो ऐस अपराधी को दणडादश दगा, सकषम �ोगा हिक दणडादश म य� हिनरदिदषT कर हिक ऐसा समपण. कारा(ास कटिठन �ोगा, या य� हिक ऐसा समपण. कारा(ास सादा �ोगा, या य� हिक ऐस कारा(ास का कछ भाग कटिठन �ोगा और शष सादा ।

61.[समपधिV क समप�रण का दणडाद!। ट--भारतीय दणड सहि�ता क समप�रण का दणडादश भारतीय दणड सहि�ता (सशोधन) अधिधहिनयम, 1921 (1921 का 16) की धारा 4 दवारा हिनरलिसत । 1 1957 क अधिधहिनयम स0 36 की धारा 3 और अनसची 2 दवारा “1954” क सथान पर परहितसथाहिपत । 2 हि(धिध अनक�न आदश, 1950 दवारा “कनदरीय सरकार या उस परानत की परानतीय सरकार जिजसक भीतर अपराधी को दणड टिदया जाएगा” क सथान पर

परहितसथाहिपत । मोT शबद भारत शासन (भारतीय हि(धिध अनक�न) आदश 1937 दवारा “भारत सरकार या उस सथान की सरकार” क सथान पर परहितसथाहिपत हिकए गए थ ।

3 1955 क अधिधहिनयम स0 26 की धारा 117 और अनसची दवारा (1-1-1956 स) “हिन(ा.सन” क सथान पर परहितसथाहिपत । 4 हि(धिध अनक�न आदश, 1950 दवारा “उस परानत की परानतीय सरकार जिजसक भीतर अपरा�ी को दणड टिदया जाएगा” क सथान पर परहितसथाहिपत ।

मोT शबद भारत शासन (भारतीय हि(धिध अनक�न) आदश 1937 दवारा “भारत सरकार या उस सथान की सरकार” क सथान पर परहितसथाहिपत हिकए गए थ । 5 हि(धिध अनक�न आदश, 1950 दवारा धारा 55क क सथान पर परहितसथाहिपत । धारा 55क भारत शासन (भारतीय हि(धिध अनक�न) आदश,

1937 दवारा अनत:सथाहिपत की गई थी । भारतीय दड सहि�ता, 1860 10

62.[मतय, हि�वा#स� या कारावास स दणड�ीय अपराधि�यो की बाबत समपधिV का समप�रण ।] भारतीय दणड सहि�ता (सशोधन) अधिधहिनयम, 1921 (1921 का 16) की धारा 4 दवारा हिनरलिसत ।

63. जमा#� की रकम--ज�ा हिक (� रालिश अभिभवय2 न�ी की गई � जिजतनी तक जमा.ना �ो सकता �, (�ा अपराधी जिजस रकम क जमा.न का दायी �, (� अमया.टिदत � हिकनत अतयधिधक न�ी �ोगी ।

64. जमा#�ा � द� पर कारावास का दणडाद!--1[कारा(ास और जमा.ना दोनो स दणडनीय अपराध क �र माम� म, जिजसम अपराधी कारा(ास सहि�त या रहि�त, जमा.न स दणडाटिदषT हआ �,

तथा 2[कारा(ास या जमा.न अथ(ा] क(� जमा.न स दडनीय अपराध क �र माम� म, जिजसम अपराधी जमा.न स दणडाटिदषT हआ �,]

(� नयाया�य जो ऐस अपराधी को दणडाटिदषT करगा, सकषम �ोगा हिक दणडादश दवारा हिनदश द हिक जमा.ना दन म वयहितकरम �ोन की दशा म, अपराधी अमक अ(धिध क लि�ए कारा(ास भोगगा जो कारा(ास उस अनय कारा(ास क अहितरिर2 �ोगा जिजसक लि�ए (� दणडाटिदषT हआ � या जिजसस (� दणडादश क �घकरण पर दणडनीय � ।

65. जब हिक कारावास और जमा#�ा दो�ो आटिदषट हिकए जा सकत �, तब जमा#�ा � द� पर कारावास की अवधि�--यटिद अपराध कारा(ास और जमा.ना दोनो स दणडनीय �ो, तो (� अ(धिध, जिजसक लि�ए जमा.ना दन म वयहितकरम �ोन की दशा क लि�ए नयाया�य अपराधी को कारा(ालिसत करन का हिनदश द, कारा(ास की उस अ(धिध की एक चौथाई स अधिधक न �ोगी, जो अपराध क लि�ए अधिधकतम हिनयत � ।

66. जमा#�ा � द� पर हिकस भाहित का कारावास टिदया जाए--(� कारा(ास, जिजस नयाया�य जमा.ना दन म वयहितकरम �ोन की दशा क लि�ए अधिधरोहिपत कर, ऐसी हिकसी भाहित का �ो सकगा, जिजसस अपराधी को उस अपराध क लि�ए दणडाटिदT हिकया जा सकता था ।

67. जमा#�ा � द� पर कारावास, जबहिक अपरा� कवल जमा#� स दणड�ीय �ो--यटिद अपराध क(� जमा.न स दणडनीय �ो तो 3[(� कारा(ास, जिजस नयाया�य जमा.ना दन म वयहितकरम �ोन की दशा क लि�ए अधिधरोहिपत कर, सादा �ोगा और] (� अ(धिध, जिजसक लि�ए जमा.ना दन म वयहितकरम �ोन की दशा क लि�ए नयाया�य अपराधी को कारा(ालिसत करन का हिनदश द, हिनमन मापमान स अधिधक न�ी �ोगी, अथा.त :--

जब हिक जमा.न का परिरमाण पचास रपए स अधिधक न �ो तब दो मास स अनधिधक कोई अ(धिध, तथा जब हिक जमा.न का परिरमाण एक सौ रपए स अधिधक न �ो तब चार मास स अनधिधक कोई अ(धिध, तथा हिकसी अनय दशा म छ� मास स अनधिधक कोई अ(धिध । 68. जमा#�ा द� पर कारावास का पय#वसा� �ो जा�ा--जमा.ना दन म वयहितकरम �ोन की दशा क लि�ए अधिधरोहिपत

कारा(ास तब पय.(लिसत �ो जाएगा, जब (� जमा.ना या तो चका टिदया जाए या हि(धिध की परहि�Eया दवारा उदगग�ीत कर लि�या जाए ।

69. जमा#� क आ�पाहितक भाग क द टिदए जा� की द!ा म कारावास का पय#वसा�--यटिद जमा.ना दन म वयहितकरम �ोन की दशा क लि�ए हिनयत की गई कारा(ास की अ(धिध का अ(सान �ोन स प(. जमा.न का ऐसा अनपात चका टिदया या उदगग�ीत कर लि�या जाए हिक दन म वयहितकरम �ोन पर कारा(ास की जो अ(धिध भोगी जा चकी �ो, (� जमा.न क तब तक न चकाए गए भाग क आनपाहितक स कम न �ो तो कारा(ास पय.(लिसत �ो जाएगा ।

दषटात क एक सौ रपए क जमा.न और उसक दन म वयहितकरम �ोन की दशा क लि�ए चार मास क कारा(ास स दणडाटिदषT हिकया गया � । य�ा

यटिद कारा(ास क एक मास क अ(सान स प(. जमा.न क पचतत�र रपए चका टिदए जाए या उदगग�ीत कर लि�ए जाए तो परथम मास का अ(सान �ोत �ी क उनम2 कर टिदया जाएगा । यटिद पचतत�र रपए परथम मास क अ(सान पर या हिकसी भी पशचाती(तx समय पर, जब हिक क कारा(ास म �, चका टिदए या उदगग�ीत कर लि�ए जाए, तो क तरनत उनम2 कर टिदया जाएगा । यटिद कारा(ास क दो मास क अ(सान स प(. जमा.न क पचास रपए चका टिदए जाए या उदगग�ीत कर लि�ए जाए, तो क दो मास क पर �ोत �ी उनम2 कर टिदया जाएगा । यटिद पचास रपए उन दो मास क अ(सान पर या हिकसी भी पशचाती(तx समय पर, जब हिक क कारा(ास म �, चका टिदए जाए या उदगग�ीत कर लि�ए जाए, तो क तरनत उनम2 कर टिदया जाएगा ।

70. जमा#� का छ� वष# क भीतर या कारावास क दौरा� म उदगर�णीय �ो�ा । समपधिV को दाबरियतव स मतय उनमकत ��ी करती--जमा.ना या उसका कोई भाग, जो चकाया न गया �ो, दणडादश टिदए जान क पशचात छ� (ष. क भीतर हिकसी भी समय, और यटिद अपराधी दणडादश क अधीन छ� (ष. स अधिधक क कारा(ास स दणडनीय �ो तो उस का�ा(धिध क अ(सान स प(. हिकसी समय, उदगग�ीत हिकया जा सकगा; और अपराधी की मतय हिकसी भी समपभितत को, जो उसकी मतय क पशचात उसक तरऐणो क लि�ए (ध रप स दायी �ो, इस दाधियत( स उनम2 न�ी करती ।

71. कई अपरा�ो स बरिमलकर ब� अपरा� क धिलए दणड की अवधि�--ज�ा हिक कोई बात, जो अपराध �, ऐस भागो स, जिजनम का कोई भाग स(य अपराध �, धिम�कर बनी �, (�ा अपराधी अपन ऐस अपराधो म स एक स अधिधक क दणड स दणडिणडत न हिकया जाएगा, जब तक हिक ऐसा अभिभवय2 रप स उपबनधिनधत न �ो ।

1 1882 क अधिधहिनयम स0 8 की धारा 2 दवारा “परतयक ऐसी दशा म जिजसम अपराधी जमा.न स दडाटिदषT हआ �” क सथान पर परहितसथाहिपत 2 1986 क अधिधहिनयम स0 10 की धारा 21(2) दवारा अनत:सथाहिपत ।

3 1982 क अधिधहिनयम स0 8 की धारा 3 दवारा अनत:सथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 11

1[ज�ा हिक कोई बात अपराधो को परिरभाहिषत या दणडिणडत करन (ा�ी हिकसी ततसमय पर(तत हि(धिध की दो या अधिधक पथक परिरभाषीाओ म आन (ा�ा अपराध �, अथ(ा

ज�ा हिक कई काय., जिजनम स स(य एक स या स(य एकाधिधक स अपराध गटिठत �ोता �, धिम�कर भिभनन अपराध गटिठत करत � ;

(�ा अपराधी को उसस गरततर दणड स दणडिणडत न हिकया जाएगा, जो ऐस अपराधो म स हिकसी भी एक क लि�ए (� नयाया�य, जो उसका हि(चारण कर, उस द सकता �ो ।]

दषटात (क) क, य पर �ाठी स पचास पर�ार करता � । य�ा, �ो सकता � हिक क न समपण. मारपीT दवारा उन पर�ारो म स �र एक

पर�ार दवारा भी, जिजनस (� समपण. मारपीT गटिठत �, य की स(चछया उप�हित कारिरत करन का अपराध हिकया �ो । यटिद क �र पर�ार क लि�ए दणडनीय �ोता (� �र एक पर�ार क लि�ए एक (ष. क हि�साब स पचास (ष. क लि�ए कारा(ालिसत हिकया जा सकता था । हिकनत (� समपण. मारपीT क लि�ए क(� एक �ी दणड स दणडनीय � ।

(�) हिकनत यटिद उस समय जब क, य को पीT र�ा �, म �सतकषप करता �, और क, म पर साशय पर�ार करता �, तो य�ा म पर हिकया गया पर�ार उस काय. का भाग न�ी �, जिजसक दवारा क, य को स(चछया उप�हित कारिरत करता �, इसलि�ए क, य को स(चछया कारिरत की गई उप�हित क लि�ए एक दणड स और म पर हिकए गए पर�ार क लि�ए दसर दणड स दणडनीय � ।

72. कई अपरा�ो म स एक क दोषाी वयधिकत क धिलए दणड जबहिक हि�ण#य म य� कधिथत � हिक य� सद� � हिक व� हिकस अपरा� का दोषाी �--उन सब माम�ो म, जिजनम य� हिनण.य टिदया जाता � हिक कोई वयलि2 उस हिनण.य म हि(हिनरदिदषT कई अपराधो म स एक अपराध का दोषीी �, हिकनत य� सद�पण. � हिक (� उन अपराधो म स हिकस अपराध का दोषीी �, यटिद (�ी दणड सब अपराधो क लि�ए उपबनधिनधत न�ी � तो (� अपराधी उस अपराध क लि�ए दणडिणडत हिकया जाएगा, जिजसक लि�ए कम स कम दणड उपबनधिनधत हिकया गया � ।

73. एकात परिररो�--जब कभी कोई वयलि2 ऐस अपराध क लि�ए दोषलिसदध ठ�राया जाता � जिजसक लि�ए नयाया�य को इस सहि�ता क अधीन उस कटिठन कारा(ास स दडाटिदषT करन की शलि2 �, तो नयाया�य अपन दडादश दवारा आदश द सकगा हिक अपराधी को उस कारा(ास क, जिजसक लि�ए (� दडाटिदषT हिकया गया �, हिकसी भाग या भागो क लि�ए, जो क� धिम�ाकर तीन मास स अधिधक न �ोग, हिनमन मापमान क अनसार एकात परिररोध म र�ा जाएगा, अथा.ती :--

यटिद कारा(ास की अ(धिध छ� मास स अधिधक न �ो त एक मास स अनधिधक समय ;

यटिद कारा(ास की अ(धिध छ� मास स अधिधक �ो और 2[एक (ष. स अधिधक न �ो] तो दो मास स अनधिधक समय ; यटिद कारा(ास की अ(धिध एक (ष. स अधिधक �ो तो तीन मास स अनधिधक समय । 74. एकात परिररो� की अवधि�--एकात परिररोध क दणडादश क हिनषपादन म ऐसा परिररोध हिकसी दशा म भी एक बार म

चौद� टिदन स अधिधक न �ोगा । साथ �ी ऐस एकात न की का�ा(धिधयो क बीच म उन का�ा(धिधयो स अनयन अतरा� �ोग; और जब टिदया गया कारा(ास तीन मास स अधिधक �ो, तब टिदए गए समपण. कारा(ास क हिकसी एक मास म एकात परिररोध सात टिदन स अधिधक न �ोगा, साथ �ी एकात परिररोध की का�ा(धिधयो क बीच म उन�ी का�ा(धिधयो स अनयन अतरा� �ोग ।

3[75. पव# दोषधिसशिदध क पशचाता अधयाय 12 या अधयाय 17 क अ�ी� कहितपय अपरा�ो क धिलए वरधि�त दणड-- जो कोई वयलि2---

(क) 4[भारत] म क हिकसी नयाया�य दवारा इस सहि�ता क अधयाय 12 या अधयाय 17 क अधीन तीन (ष. या उसस अधिधक की अ(धिध क लि�ए दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स दणडनीय अपराध क लि�ए, 5।।। 4। । । । ।

1 1982 क अधिधहिनयम स0 8 की धारा 4 दवारा अनत:सथाहिपत । 2 1982 क अधिधहिनयम स0 8 की धारा 5 दवारा “एक (ष. स कम न�ी �ो” क सथान पर परहितसथाहिपत ।

3 1910 क अधिधहिनयम स0 3 की धारा 2 दवारा म� धारा क सथान पर परहितसथाहिपत । 4 हि(धिध अनक�न आदश, 1948, हि(धिध अनक�न आदश, 1950 और 1951 क अधिधहिनयम स0 3 की धारा 3 और अनसची दवारा “हिRटिTश भारत” क

सथान पर सशोधिधत �ो कर उपरो2 रप म आया । 5 1951 क अधिधहिनयम स0 3 की धारा 3 और अनसची दवारा �ड (क) क अत म “अथ(ा” शबद और �ड (�) का �ोप हिकया गया ।

भारतीय दड सहि�ता, 1860 12

दोषलिसदध ठ�राए जान क पशचाती उन दोनो अधयायो म स हिकसी अधयाय क अधीन उतनी �ी अ(धिध क लि�ए (स �ी कारा(ास स दणडनीय हिकसी अपराध का दोषीी �ो, तो (� �र ऐस पशचाती(तx अपराध क लि�ए 1[आजी(न कारा(ास] स या दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दणडनीय �ोगा ।]

अधयाय 4 सा�ारण अपवाद

76. हिवधि� दवारा आबदध या तथय की भल क कारण अप� आप क हिवधि� दवारा आबदध �ो� का हिवशवास कर� वाल वयधिकत दवारा हिकया गया काय#--कोई बात अपराध न�ी �, जो हिकसी ऐस वयलि2 दवारा की जाए, जो उस करन क लि�ए हि(धिध दवारा आबदध �ो या जो तथय की भ� क कारण, न हिक हि(धिध की भ� क कारण, सदभा(प(.क हि(शवास करता �ो हिक (� उस करन क लि�ए हि(धिध दवारा आबदध � ।

दषटात (क) हि(धिध क समादशो क अन(त.न म अपन (रिरषठ आहिcसर क आदश स एक सहिनक क भीO पर गो�ी च�ाता � । क न कोई

अपराध न�ी हिकया । (�) नयाया�य का आहिcसर क. म को हिगरफतार करन क लि�ए उस नयाया�य दवारा आटिदषT हिकए जान पर और समयक जाच क

पशचाती य� हि(शवास करक हिक य, म �, य को हिगरफतार कर �ता � । क न कोई अपराध न�ी हिकया । 77. नयाबरियकतः काय# करत हए नयाया�ी! का काय#--कोई बात अपराध न�ी �, जो नयाधियकतः काय. करत हए

नयायाधीश दवारा ऐसी हिकसी शलि2 क परयोग म की जाती �, जो या जिजसक बार म उस सदीभा(प(.क हि(शवास � हिक (� उस हि(धिध दवारा दी गई � ।

78. नयायालय क हि�ण#य या आद! क अ�सरण म हिकया गया काय#--कोई बात जो नयाया�य क हिनण.य या आदश क अनसरण म की जाए या उसक दवारा अधिधटिदषT �ो, यटिद (� उस हिनण.य या आदश क पर(त र�त, की जाए, अपराध न�ी �, चा� उस नयाया�य को ऐसा हिनण.य या आदश दन की अधिधकारिरता न र�ी �ो, परनत य� तब जब हिक (� काय. करन (ा�ा वयलि2 सदीभा(प(.क हि(शवास करता �ो हिक उस नयाया�य को (सी अधिधकारिरता थी ।

79. हिवधि� दवारा नयाया�मत या तथय की भल स अप� को हिवधि� दवारा नयाया�मत �ो� का हिवशवास कर� वाल वयधिकत दवारा हिकया गया काय#--कोई बात अपराध न�ी �, जो ऐस वयलि2 दवारा की जाए, जो उस करन क लि�ए हि(धिध दवारा नयायानमत �ो, या तथय की भ� क कारण, न हिक हि(धिध की भ� क कारण सदीभा(प(.क हि(शवास करता �ो हिक (� उस करन क लि�ए हि(धिध दवारा नयायानमत � ।

दषटात क, य को ऐसा काय. करत द�ता �, जो क को �तया परतीत �ोता � । क सदीभा(प(.क काम म �ाए गए अपन शरषठ हिनण.य क

अनसार उस शलि2 को परयोग म �ात हए, जो हि(धिध न �तयाकारिरयो को उस काय. म पकOन क लि�ए समसत वयलि2यो को द र�ी �, य को उलिचत पराधिधकारिरयो क समकष � जान क लि�ए य को अभिभग�ीत करता � । क न कोई अपराध न�ी हिकया �, चा� ततपशचाती अस� बात य� हिनक� हिक य आतम-परहितरकषा म काय. कर र�ा था ।

80. हिवधि�पण# काय# कर� म दघ#ट�ा--कोई बात अपराध न�ी �, जो दघ.Tना या दभा.गय स और हिकसी आपराधिधक आशय या जञान क हिबना हि(धिधपण. परकार स हि(धिधपण. साधनो दवारा और उलिचत सतक. ता और सा(धानी क साथ हि(धिधपण. काय. करन म �ो जाती � ।

दषटात क कल�ाOी स काम कर र�ा � ; कल�ाOी का c� उसम स हिनक� कर उछT जाता �, और हिनकT �Oा हआ वयलि2 उसस मारा जाता

� । य�ा यटिद क की ओर स उलिचत सा(धानी का कोई अभा( न�ी था तो उसका काय. माcी योगय � और अपराध न�ी � । 81. काय#, जिजसस अप�ाहि� कारिरत �ो�ा सभावय �, किकत जो आपराधि�क आ!य क हिब�ा और अनय अप�ाहि�

क हि�वारण क धिलए हिकया गया �--कोई बात क(� इस कारण अपराध न�ी � हिक (� य� जानत हए की गई � हिक उसस अप�ाहिन कारिरत �ोना सभावय �, यटिद (� अप�ाहिन कारिरत करन क हिकसी आपराधिधक आशय क हिबना और वयलि2 या सपभितत को अनय अप�ाहिन का हिन(ारण या परिर(ज.न करन क परयोजन स सदीभा(प(.क की गई �ो ।

सपषटीकरण--ऐस माम� म य� तथय का परशन � हिक जिजस अप�ाहिन का हिन(ारण या परिर(ज.न हिकया जाना � कया (� ऐसी परकहित की ओर इतनी आसनन थी हिक (� काय., जिजसस य� जानत हए हिक उसस अप�ाहिन कारिरत �ोना सभावय �, करन की जोखि�म उठाना नयायानमत या माcी योगय था ।

दषटात (क) क, जो एक (ाषप ज�यान का कपतान �, अचानक और अपन हिकसी कसर या उपकषा क हिबना अपन आपको ऐसी णडिसथहित म

पाता � हिक यटिद उसन ज�यान का माग. न�ी बद�ा तो इसस प(. हिक (� अपन ज�यान को रोक सक (� बीस या तीस याहितरयो स भरी ना( ख को अहिन(ाय.तः Tकराकर डबो दगा, और हिक अपना माग. बद�न स उस क(� दो याहितरयो (ा�ी ना( ग को डबान की जोखि�म उठानी पOती �, जिजसको (� सभ(तः बचाकर हिनक� जाए । य�ा, यटिद क ना( ग को डबान क आशय क हिबना और ख क याहितरयो क सकT का

परिर(ज.न करन क परयोजन स सदीभा(प(.क अपना माग. बद� दता � तो यदयहिप (� ना( ग को ऐस काय. दवारा Tकराकर डबो दता �, जिजसस ऐस परिरणाम का

1 1955 क अधिधहिनयम स0 26 की धारा 117 और अनसची दवारा (1-1-1956 स) “आजी(न हिन(.सन” क सथान पर परहितसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 13

उतपनन �ोना (� सभावय जानता था, तथाहिप तथयतः य� पाया जाता � हिक (� सकT, जिजस परिर(रजिजत करन का उसका आशय था, ऐसा था जिजसस ना( ग डबान की जोखि�म उठाना माcी योगय �, तो (� हिकसी अपराध का दोषीी न�ी � ।

(�) क एक बO अखिगनकाड क समय आग को c�ान स रोकन क लि�ए ग�ो को हिगरा दता � । (� इस काय. को मान( जी(न या सपभितत को बचान क आशय स सदीभा(नाप(.क करता � । य�ा, यटिद य� पाया जाता � हिक हिन(ारण की जान (ा�ी अप�ाहिन इस परकहित की ओर इतनी आसनन थी हिक क का काय. माcी योगय � तो क उस अपराध का दोषीी न�ी � ।

82. सात वष# स कम आय क शि!! का काय#--कोई बात अपराध न�ी �, जो सात (ष. स कम आय क लिशश दवारा की जाती � ।

83. सात वष# स ऊपर किकत बार� वष# स कम आय क अपरिरपकव समझ क शि!! का काय#--कोई बात अपराध न�ी �, जो सात (ष. स ऊपर और बार� (ष. स कम आय क ऐस लिशश दवारा की जाती � जिजसकी समझ इतनी परिरपक( न�ी हई � हिक (� उस अ(सर पर अपन आचरण की परकहित और परिरणामो का हिनण.य कर सक ।

84. हिवकतधिचत वयधिकत का काय#--कोई बात अपराध न�ी �, जो ऐस वयलि2 दवारा की जाती �, जो उस करत समय लिचतत-हि(कहित क कारण उस काय. की परकहित, या य� हिक जो कछ (� कर र�ा � (� दोषपण. या हि(धिध क परहितक� �, जानन म असमथ. � ।

85. ऐस वयधिकत का काय# जो अप�ी इचछा क हिवरदध मVता म �ो� क कारण हि�ण#य पर पहच� म असमथ# �--कोई बात अपराध न�ी �, जो ऐस वयलि2 दवारा की जाती �, जो उस करत समय मततता क कारण उस काय. की परकहित, या य� हिक जो कछ (� कर र�ा � (� दोषपण. या हि(धिध क परहितक� �, जानन म असमथ. �, परनत य� तब जब हिक (� चीज, जिजसस उसकी मततता हई थी, उसक अपन जञान क हिबना या इचछा क हिबना या इचछा क हि(रदध दी गई थी ।

86. हिकसी वयधिकत दवारा, जो मVता म �, हिकया गया अपरा� जिजसम हिव!ष आ!य या जञा� का �ो�ा अपशिकषत �--उन दशाओ म, ज�ा हिक कोई हिकया गया काय. अपराध न�ी �ोता जब तक हिक (� हिकसी हि(लिशषT जञान या आशय स न हिकया गया �ो, कोई वयलि2, जो (� काय. मततता की �ा�त म करता �, इस परकार बरत जान क दाधियत( क अधीन �ोगा मानो उस (�ी जञान था जो उस �ोता यटिद (� मततता म न �ोता जब तक हिक (� चीज, जिजसस उस मततता हई थी, उस उसक जञान क हिबना या उसकी इचछा क हि(रदध न दी गई �ो ।

87. सममहित स हिकया गया काय# जिजसस मतय या घोर उप�हित कारिरत कर� का आ!य � �ो और � उसकी सभावयता का जञा� �ो--कोई बात, जो मतय या घोर उप�हित कारिरत करन क आशय स न की गई �ो और जिजसक बार म कता. को य� जञात न �ो हिक उसस मतय या घोर उप�हित कारिरत �ोना सभावय �, हिकसी ऐसी अप�ाहिन क कारण अपराध न�ी � जो उस बात स अठार� (ष. स अधिधक आय क वयलि2 को, जिजसन (� अप�ाहिन स�न करन की चा� अभिभवय2, चा� हि((भिकषत सममहित द दी �ो, कारिरत �ो या कारिरत �ोना कता. दवारा आशधियत �ो अथ(ा जिजसक बार म कता. को जञात �ो हिक (� उपय.2 जस हिकसी वयलि2 को, जिजसन उस अप�ाहिन की जोखि�म उठान की सममहित द दी �, उस बात दवारा कारिरत �ोनी सभावय � ।

दषटात क और य आमोदाथ. आपस म पTबाजी करन को स�मत �ोत � । इस स�महित म हिकसी अप�ाहिन को, जो ऐसी पTबाजी म �� क

हिनयम क हि(रदध न �ोत हए कारिरत �ो, उठान की �र एक को सममहित हि((भिकषत �, और यटिद क यथाहिनयम पTबाजी करत हए य को उप�हित कारिरत कर दता �, तो क कोई अपराध न�ी करता � ।

88. हिकसी वयधिकत क फायद क धिलए सममहित स सदाभावपव#क हिकया गया काय# जिजसस मतय कारिरत कर� का आ!य ��ी �--कोई बात, जो मतय कारिरत करन क आशय स न की गई �ो, हिकसी ऐसी अप�ाहिन क कारण अपराध न�ी � जो उस बात स हिकसी ऐस वयलि2 को, जिजसक cायद क लि�ए (� बात सदीभा(प(.क की जाए और जिजसन उस अप�ाहिन को स�न, या उस अप�ाहिन की जोखि�म उठान क लि�ए चा� अभिभवय2, चा� हि((भिकषत सममहित द दी �ो, कारिरत �ो या कारिरत करन का कता. का आशय �ो या कारिरत �ोन की सभावयता कता. को जञात � ।

दषटात क, एक शलय लिचहिकतसक, य� जानत हए हिक एक हि(शष शसतरकम. स य को, जो (दनापण. वयाधिध स गरसत �, मतय कारिरत �ोन की

सभावयता � किकत य की मतय कारिरत करन का आशय न र�त हए और सदीभा(प(.क य क cायद क आशय स य की सममहित स य पर (� शसतरकम. करता � । क न कोई अपराध न�ी हिकया � ।

89. सरकषक दवारा या उसकी सममहित स शि!! या उनमV वयधिकत क फायद क धिलए सदाभावपव#क हिकया गया काय#--कोई बात, जो बार� (ष. स कम आय क या हि(कतलिचतत वयलि2 क cायद क लि�ए सदीभा(प(.क उसक सरकषक क, या हि(धिधपण. भारसाधक हिकसी दसर वयलि2 क दवारा, या की अभिभवय2 या हि((भिकषत सममहित स, की जाए, हिकसी ऐसी अप�ाहिन क

कारण, अपराध न�ी � जो उस बात स उस वयलि2 को कारिरत �ो, या कारिरत करन का कता. का आशय �ो या कारिरत �ोन की सभावयता कता. को जञात �ो :

परनतक--परनत-- प�ला--इस अप(ाद का हि(सतार साशय मतय कारिरत करन या मतय कारिरत करन का परयतन करन पर न �ोगा ; भारतीय

दड सहि�ता, 1860 14

दसरा--इस अप(ाद का हि(सतार मतय या घोर उप�हित क हिन(ारण क या हिकसी घोर रोग या अगशलिथलय स म2 करन क परयोजन स भिभनन हिकसी परयोजन क लि�ए हिकसी ऐसी बात क करन पर न �ोगा जिजस करन (ा�ा वयलि2 जानता �ो हिक उसस मतय कारिरत �ोना सभावय � ;

तीसरा--इस अप(ाद का हि(सतार स(चछया घोर उप�हित कारिरत करन या घोर उप�हित कारिरत करन का परयतन करन पर न �ोगा जब तक हिक (� मतय या घोर उप�हित क हिन(ारण क, या हिकसी घोर रोग या अगशलिथलय स म2 करन क परयोजन स न की गई �ो ;

चौथा--इस अप(ाद का हि(सतार हिकसी ऐस अपराध क दषपररण पर न �ोगा जिजस अपराध क हिकए जान पर इसका हि(सतार न�ी � ।

दषटात क सदीभा(प(.क, अपन लिशश क cायद क लि�ए अपन लिशश की सममहित क हिबना, य� सभावय जानत हए हिक शसतर कम. स उस लिशश

की मतय कारिरत �ोगी, न हिक इस आशय स हिक उस लिशश को मतय कारिरत कर द, शलयलिचहिकतसक दवारा पथरी हिनक�(ान क लि�ए अपन लिशश की शलयहि�Eया कर(ाता � । क का उददशय लिशश को रोगम2 कराना था, इसलि�ए (� इस अप(ाद क अतग.त आता � ।

90. सममहित, जिजसक सब� म य� जञात �ो हिक व� भय या भरम क अ�ी� दी गई �--कोई सममहित ऐसी सममहित न�ी � जसी इस सहि�ता की हिकसी धारा स आशधियत �, यटिद (� सममहित हिकसी वयलि2 न कषहितभय क अधीन, या तथय क भरम क अधीन दी �ो, और यटिद काय. करन (ा�ा वयलि2 य� जानता �ो या उसक पास हि(शवास करन का कारण �ो हिक ऐस भय या भरम क परिरणामस(रप (� सममहित दी गई थी ; अथ(ा

उनमत वयधिकत की सममहित--यटिद (� सममहित ऐस वयलि2 न दी �ो या लिचततहि(कहित या मततता क कारण उस बात की, जिजसक लि�ए (� अपनी सममहित दता �, परकहित और परिरणाम को समझन म असमथ. �ो ; अथ(ा

शि!! की सममहित--जब तक हिक सदभ. स ततपरहितक� परतीत न �ो, यटिद (� सममहित ऐस वयलि2 न दी �ो जो बार� (ष. स कम आय का � ।

91. ऐस काय` का अपवज#� जो कारिरत अप�ाहि� क हिब�ा भी सवतः अपरा� �--धारा 87,88 और 89 क अप(ादो का हि(सतार उन काय� पर न�ी � जो उस अप�ाहिन क हिबना भी स(तः अपराध � जो उस वयलि2 को, जो सममहित दता � या जिजसकी ओर स सममहित दी जाती �, उन काय� स कारिरत �ो, या कारिरत हिकए जान का आशय �ो, या कारिरत �ोन की सभावयता जञात �ो ।

दषटात गभ.पात कराना (जब तक हिक (� उस सतरी का जी(न बचान क परयोजन स सदीभा(प(.क कारिरत न हिकया गया �ो) हिकसी अप�ाहिन क

हिबना भी, जो उसस सतरी को कारिरत �ो या कारिरत करन का आशय �ो, स(तः अपराध � । इसलि�ए (� “ऐसी अप�ाहिन क कारण” अपराध न�ी � ; और ऐसा गभ.पात करान की उस सतरी की या उसक सरकषक की सममहित उस काय. को नयायाममत न�ी बनाती ।

92. सममहित क हिब�ा हिकसी वयधिकत क फायद क धिलए सदाभावपव#क हिकया गया काय#--कोई बात जो हिकसी वयलि2 क cायद क लि�ए सदीभा(प(.क यदयहिप, उसकी सममहित क हिबना, की गई �, ऐसी हिकसी अप�ाहिन क कारण, जो उस बात स उस वयलि2 को कारिरत �ो जाए, अपराध न�ी �, यटिद परिरणडिसथहितया ऐसी �ो हिक उस वयलि2 क लि�ए य� असभ( �ो हिक (� अपनी सममहित परकT कर या (� वयलि2 सममहित दन क लि�ए असमथ. �ो और उसका कोई सरकषक या उसका हि(धिधपण. भारसाधक को दसरा वयलि2 न �ो जिजसस ऐस समय पर सममहित अभिभपरापत करना सभ( �ो हिक (� बात cायद क साथ की जा सक :

परनतक--परनत-- प�ला--इस अप(ाद का हि(सतार साशय मतय कारिरत करन या मतय कारिरत करन का परयतन करन पर न �ोगा ; दसरा--इस अप(ाद का हि(सतार मतय या घोर उप�हित क हिन(ारण क या हिकसी घोर रोग या अगशलिथलय स म2 करन क

परयोजन स भिभनन हिकसी परयोजन क लि�ए हिकसी ऐसी बात क करन पर न �ोगा, जिजस करन (ा�ा वयलि2 जानता �ो हिक उसस मतय कारिरत �ोना सभावय � ;

तीसरा--इस अप(ाद का हि(सतार मतय या उप�हित क हिन(ारण क परयोजन स भिभनन हिकसी परयोजन क लि�ए स(चछया उप�हित कारिरत करन या उप�हित कारिरत करन का परयतन करन पर न �ोगा ;

चौथा--इस अप(ाद का हि(सतार हिकसी ऐस अपराध क दषपररण पर न �ोगा जिजस अपराध क हिकए जान पर इसका हि(सतार न�ी � ।

दषटात (क) य अपन घोO स हिगर गया और मरछिछत �ो गया । क एक शलयलिचहिकतसक का य� हि(चार � हिक य क कपा� पर शलयहि�Eया

आ(शयक � । क, य की मतय करन का आशय न र�त हए, किकत सदीभा(प(.क य क cायद क लि�ए, य क स(य हिकसी हिनण.य पर पहचन की शलि2 परापत करन स प(. �ी कपा� पर शलयहि�Eया करता � । क न कोई अपराध न�ी हिकया ।

(�) य को एक बाघ उठा � जाता � । य� जानत हए हिक सभावय � हिक गो�ी �गन स य मर जाए, किकत य का (ध करन का आशय

न र�त हए और सदीभा(प(.क य क cायद क आशय स क उस बाघ पर गो�ी च�ाता � । क की गो�ी स य को मतयकारक घा( �ो जाता � । क न कोई अपराध न�ी हिकया । भारतीय दड सहि�ता, 1860 15

(ग) क, एक शलयलिचहिकतसक, य� द�ता � हिक एक लिशश की ऐसी दघ.Tना �ो गई � जिजसका पराणातक साहिबत �ोना सभावय �, यटिद शसतरकम. तरत न कर टिदया जाए । इतना समय न�ी � हिक उस लिशश क सरकषक स आ(दन हिकया जा सक । क, सदीभा(प(.क लिशश क cायद का आशय र�त हए लिशश क अनयथा अननय करन पर भी शसतरकम. करता � । क न कोई अपराध न�ी हिकया ।

(घ) एक लिशश य क साथ क एक ज�त हए ग� म � । ग� क नीच �ोग एक कब� तान �त � । क उस लिशश को य� जानत हए हिक सभावय � हिक हिगरन स (� लिशश मर जाए किकत उस लिशश को मार डा�न का आशय न र�त हए और सदीभा(प(.क उस लिशश क cायद क आशय स ग� छत पर स नीच हिगरा दता � । य�ा, यटिद हिगरन स (� लिशश मर भी जाता �, तो भी क न कोई अपराध न�ी हिकया ।

सपषटीकरण--क(� धन सबधी cायदा (� cायदा न�ी �, जो धारा 88, 89 और 92 क भीतर आता � । 93. सदाभावपव#क दी गई ससच�ा--सदीभा(प(.क दी गई ससचना उस अप�ाहिन क कारण अपराध न�ी �, जो उस

वयलि2 की �ो जिजस (� दी गई �, यटिद (� उस वयलि2 क cायद क लि�ए दी गई �ो । दषटात

क, एक शलयलिचहिकतसक, एक रोगी को सदीभा(प(.क य� ससलिचत करता � हिक उसकी राय म (� जीहि(त न�ी र� सकता । इस आघात क परिरणामस(रप उस रोगी की मतय �ो जाती � । क न कोई अपराध न�ी हिकया �, यदयहिप (� जानता था हिक उस ससचना स उस रोगी की मतय कारिरत �ोना सभावय � ।

94. व� काय# जिजसको कर� क धिलए कोई वयधिकत �महिकयो दवारा हिवव! हिकया गया �ी--�तया और मतय स दडनीय उन अपराधो को जो राजय क हि(रदध �, छोOकर कोई बात अपराध न�ी �, जो ऐस वयलि2 दवारा की जाए जो उस करन क लि�ए ऐसी धमहिकयो स हि((श हिकया गया �ो जिजनस उस बात को करत समय उसको यलि2य2 रप स य� आशका कारिरत �ो गई �ो हिक अनयथा परिरणाम य� �ोगा हिक उस वयलि2 की ततका� मतय �ो जाए, परनत य� तब जबहिक उस काय. को करन (ा� वयलि2 न अपनी �ी इचछा स या ततका� मतय स कम अपनी अप�ाहिन की यलि2य2 आशका स अपन को उस णडिसथहित म न डा�ा �ो , जिजसम हिक (� ऐसी मजबरी क अधीन पO गया � ।

सपषटीकरण 1--व� वयलि2, जो स(य अपनी इचछा स, या पीT जान की धमकी क कारण, डाकओ की Tो�ी म उनक शी� को जानत हए सनधिममलि�त �ो जाता �, इस आधार पर �ी इस अप(ाद का cायदा उठान का �कदार न�ी हिक (� अपन सालिथयो दवारा ऐसी बात करन क लि�ए हि((श हिकया गया था जो हि(धिधना अपराध � ।

सपषटीकरण 2--डाकओ की एक Tो�ी दवारा अभिभग�ीत और ततका� मतय धमकी दवारा हिकसी बात क करन क लि�ए, जो हि(धिधना अपराध �, हि((श हिकया गया वयलि2, उदा�रणाथ., एक �ो�ार, जो अपन औजार �कर एक ग� का दवारा तोOन को हि((श हिकया जाता �, जिजसस डाक उसम पर(श कर सक और उस �T सक , इस अप(ाद का cायदा उठान क लि�ए �कदार � ।

95. तचछ अप�ाहि� कारिरत कर� वाला काय#--कोई बात इस कारण स अपराध न�ी � हिक उसस कोई अप�ाहिन कारिरत �ोती � या कारिरत की जानी आशधियत � या कारिरत �ोन की सभावयता जञात �, यटिद (� इतनी तचछ � हिक माम�ी समझ और स(भा( (ा�ा कोई वयलि2 उसकी लिशकायत न करगा ।

पराइवट परहितरकषा क अधि�कार क हिवषय म 96. पराइवट परहितरकषा म की गई बात--कोई बात अपराध न�ी �, जो पराइ(T परहितरकषा क अधिधकार क परयोग म की

जाती � । 97. !रीर तथा सपधिV की पराइवट परहितरकषा का अधि�कार--धारा 99 म अतरवि(षT हिनब.नधनो क अधयधीन, �र वयलि2

को अधिधकार � हिक, (�-- प�ला--मान( शरीर पर परभा( डा�न (ा� हिकसी अपराध क हि(रदध अपन शरीर और हिकसी अनय वयलि2 क शरीर की

परहितरकषा कर ; दसरा--हिकसी ऐस काय. क हि(रदध, जो चोरी, �T, रिरधि� या आपराधिधक अहितचार की परिरभाषीा म आन (ा�ा अपराध �,

या जो चोरी, �T, रिरधि� या आपराधिधक अहितचार करन का परयतन �, अपनी या हिकसी अनय वयलि2 की, चा� जगम, चा� सथा(र सपभितत की परहितरकषा कर ।

98. ऐस वयधिकत क काय# क हिवरदध पराइवट परहितरकषा का अधि�कार जो हिवकतधिचV आटिद �ो--जब हिक कोई काय. जो अनयथा कोई अपराध �ोता, उस काय. को करन (ा� वयलि2 क बा�कपन, समझ की परिरपक(ता क अभा(, लिचततहि(कहित या मततता क कारण, या उस वयलि2 क हिकसी भरम क कारण, (�ी अपराध न�ी �, तब �र वयलि2 उस काय. क हि(रदध पराइ(T परहितरकषा का (�ी अधिधकार र�ता �, जो (� उस काय. क (सा अपराध �ोन की दशा म र�ता ।

दषटात

(क) य, पाग�पन क असर म, क को जान स मारन का परयतन करता � । य हिकसी अपराध का दोषीी न�ी � । हिकनत क को पराइ(T परहितरकषा का (�ी अधिधकार �, जो (� य क स(सथलिचतत �ोन की दशा म र�ता । भारतीय दड सहि�ता, 1860 16

(�) क राहितर म एक ऐस ग� म पर(श करता � जिजसम पर(श करन क लि�ए (� (ध रप स �कदार � । य, सदीभा(प(.क क को ग�-भदक समझकर, क पर आकरमण करता � । य�ा य इस भरम क अधीन क पर आकरमण करक कोई अपराध न�ी करता किकत क, य क हि(रदध पराइ(T परहितरकषा का (�ी अधिधकार र�ता �, जो (� तब र�ता, जब य उस भरम क अधीन काय. न करता ।

99. काय#, जिज�क हिवरदध पराइवट परहितरकषा का कोई अधि�कार ��ी �--यटिद कोई काय., जिजसस मतय या घोर उप�हित की आशका यलि2य2 रप स कारिरत न�ी �ोती, सदीभा(प(.क अपन पदाभास म काय. करत हए �ोक स(क दवारा हिकया जाता � या हिकए जान का परयतन हिकया जाता � तो उस काय. क हि(रदध पराइ(T परहितरकषा का कोई अधिधकार न�ी �, चा� (� काय. हि(धिध-अनसार स(.था नयायानमत न भी �ो ।

यटिद कोई काय., जिजसस मतय या घोर उप�हित की आशका यलि2य2 रप स कारिरत न�ी �ोती, सदीभा(प(.क अपन पदाभास म काय. करत हए �ोक स(क क हिनदश स हिकया जाता �, या हिकए जान का परयतन हिकया जाता �, तो उस काय. हि(रदध पराइ(T परहितरकषा का कोई अधिधकार न�ी �, चा� (� हिनदश हि(धिध-अनसार स(.था नयायानमत न भी �ो ।

उन दशाओ म, जिजनम सरकषा क लि�ए �ोक पराधिधकारिरयो की स�ायता परापत करन क लि�ए समय �, पराइ(T परहितरकषा का कोई अधिधकार न�ी � ।

इस अधि�कार क परयोग का हिवसतार--हिकसी दशा म भी पराइ(T परहितरकषा क अधिधकार का हि(सतार उतनी अप�ाहिन स अधिधक अप�ाहिन करन पर न�ी �, जिजतनी परहितरकषा क परयोजन स करनी आ(शयक � ।

सपषटीकरण 1--कोई वयलि2 हिकसी �ोक स(ा दवारा ऐस �ोक स(क क नात हिकए गए या हिकए जान क लि�ए परयहितत, काय. क हि(रदध पराइ(T परहितरकषा क अधिधकार क (लिचत न�ी �ोता, जब तक हिक (� य� न जानता �ो, या हि(शवास करन का कारण न र�ता �ो, हिक उस काय. को करन (ा�ा वयलि2 ऐसा �ोक स(क � ।

सपषटीकरण 2--कीोई वयलि2 हिकसी �ोक स(क क हिनदश स हिकए गए, या हिकए जान क लि�ए परयहितत, हिकसी काय. क (रिरदध पराइ(T परहितरकषा क अधिधकार स (लिचत न�ी �ोता, जब तक हिक (� य� न जानता �ो, या हि(शवास करन का कारण न र�ता �ो, हिक उस काय. को करन (ा�ा वयलि2 ऐस हिनदश स काय. कर र�ा �, जब तक हिक (� वयलि2 उस पराधिधकार का कथन न कर द, जिजसक अधीन (� काय. कर र�ा �, या यटिद उसक पास लि�खि�त पराधिधकार �, तो जब तक हिक (� ऐस पराधिधकार को माग जान पर पश न कर द ।

100. !रीर की पराइवट परहितरकषा क अधि�कार का हिवसतार मतय कारिरत कर� पर कब �ोता �--शरीर की पराइ(T परहितरकषा क अधिधकार का हि(सतार, प(.(तx अहितम धारा म (रणिणत हिनब.नधनो क अधीन र�त हए, �म�ा(र की स(चछया मतय कारिरत करन या कोई अनय अप�ाहिन कारिरत करन तक �, यटिद (� अपराध, जिजसक कारण उस अधिधकार क परयोग का अ(सर आता �, एतसमिसमनपशचाती परगभिणत भाहितयो म स हिकसी भी भाहित का �, अथा.ती :--

प�ला--ऐसा �म�ा जिजसस यलि2य2 रप स य� आशका कारिरत �ो हिक अनयथा ऐस �म� का परिरणाम मतय �ोगा । दसरा--ऐसा �म�ा जिजसस यलि2य2 रप स आशका कारिरत �ो हिक अनयथा ऐस �म� का परिरणाम घोर उप�हित �ोगा ; तीसरा--ब�ातसग करन क आशय स हिकया गया �म�ा ; चौथा--परकहित-हि(रदध काम-तषणा की तनतिपत क आशय स हिकया गया �म�ा ; पाचवा--वयप�रण या अप�रण करन क आशय स हिकया गया �म�ा ; छठा--इस आशय स हिकया गया �म�ा हिक हिकसी वयलि2 का ऐसी परिरणडिसथहितयो म सदोष परिररोध हिकया जाए, जिजनस उस

यलि2य2 रप स य� आशका कारिरत �ो हिक (� अपन को छO(ान क लि�ए �ोक पराधिधकारिरयो की स�ायता परापत न�ी कर सकगा ।

101. कब ऐस अधि�कार का हिवसतार मतय स शिभनन कोई अप�ाहि� कारिरत कर� तक का �ोता �--यटिद अपराध प(.गामी अहितम धारा म परगभिणत भाहितयो म स हिकसी भाहित का न�ी �, तो शरीर की पराइ(T परहितरकषा क अधिधकार का हि(सतार �म�ा(र की मतय स(चछया कारिरत करन तक का न�ी �ोता, किकत इस अधिधकार का हि(सतार धारा 99 म (रणिणत हिनब.नधनो क अधयधीन �म�ा(र की मतय स भिभनन कोई अप�ाहिन स(चछया कारिरत करन तक का �ोता � ।

102. !रीर की पराइवट परहितरकषा क अधि�कार का परारभ और ब�ा र��ा--शरीर की पराइ(T परहितरकषा का अधिधकार उसी कषण परारभ �ो जाता �, जब अपराध करन क परयतन या धमकी स शरीर क सकT की यलि2य2 आशका पदा �ोती �, चा� (� अपराध न हिकया गया �ो, और (� तब तक बना र�ता � जब तक शरीर क सकT की ऐसी आशका बनी र�ती � ।

103. कब सपधिV की पराइवट परहितरकषा क अधि�कार का हिवसतार मतय कारिरत कर� तक का �ोता �--सपभितत की पराइ(T परहितरकषा क अधिधकार का हि(सतार, धारा 99 म (रणिणत हिनब.नधनो क अधयधीन दोषकता. की मतय या अनय अप�ाहिन

स(चछया कारिरत भारतीय दड सहि�ता, 1860 17

करन तक का �, यटिद (� अपराध जिजसक हिकए जान क, या हिकए जान क परयतन क कारण उस अधिधकार क परयोग का अ(सर आता �, एतसमिसमनपशचाती परगभिणत भाहितयो म स हिकसी भी भाहित का �, अथा.ती:--

प�ला--�T ; दसरा--रातरौ ग�-भदन ; तीसरा--अखिगन दवारा रिरधि�, जो हिकसी ऐस हिनमा.ण, तब या ज�यान को की गई �, जो मान( आ(ास क रप म या सपभितत

की अभिभरकषा क सथान क रप म उपयोग म �ाया जाता � ; चौथा--चोरी, रिरधि� या ग�-अहितचार, जो ऐसी परिरणडिसथहितयो म हिकया गया �, जिजनस यलि2यलि2 रप स य� आशका कारिरत

�ो हिक यटिद पराइ(T परहितरकषा क ऐस अधिधकार का परयोग न हिकया गया तो परिरणाम मतय या घोर उप�हित �ोगा । 104. ऐस अधि�कार का हिवसतार मतय स शिभनन कोई अप�ाहि� कारिरत कर� तक का कब �ोता �--यटिद (� अपराध,

जिजसक हिकए जान या हिकए जान क परयतन स पराइ(T परहितरकषा क अधिधकार क परयोग का अ(सर आता �, ऐसी चोरी, रिरधि� या आपराधिधक अहितचार �, जो प(.गामी अहितम धारा म परगभिणत भाहितयो म स हिकसी भाहित का न �ो, तो उस अधिधकार का हि(सतार स(चछया मतय कारिरत करन तक का न�ी �ोता हिकनत उसका हि(सतार धारा 99 म (रणिणत हिनब�धनो क अधयधीन दोषकता. की मतय स भिभनन कोई अप�ाहिन स(चछया कारिरत करन तक का �ोता � ।

105. समपधिV की पराइवट परहितरकषा क अधि�कार का परारभ और ब�ा र��ा--समपभितत की पराइ(T परहितरकषा का अधिधकार तब परारभ �ोता �, जब समपभितत क सकT की यलि2य2 आशका परारभ �ोती � ।

सपभितत की पराइ(T परहितरकषा का अधिधकार, चोरी क हि(रदध अपराधी क सपभितत सहि�त पहच स बा�र �ो जान तक अथ(ा या तो �ोक पराधिधकारिरयो की स�ायता अभिभपरापत कर �न या सपभितत परतयदगधत �ो जान तक बना र�ता � ।

सपभितत की पराइ(T परहितरकषा का अधिधकार �T क हि(रदध तब तक बना र�ता �, जब तक अपराधी हिकसी वयलि2 की मतय या उप�ाहित, या सदोष अ(रोध कारिरत करता र�ता या कारिरत करन का परयतन करता र�ता �, अथ(ा जब तक ततका� मतय का, या ततका� उप�हित का, या ततका� (यलि2क अ(रोध का, भय बना र�ता � ।

सपभितत की पराइ(T परहितरकषा का अधिधकार आपराधिधक अहितचार या रिरधि� क हि(रदध तब तक बना र�ता �, जब तक अपराधी आपराधिधक अहितचार या रिरधि� करता र�ता � ।

सपभितत की पराइ(T परहितरकषा का अधिधकार रातरौ ग�-भदन क हि(रदध तब तक बना र�ता �, जब तक ऐस ग�भदन स आरभ हआ ग�-अहितचार �ोता र�ता � ।

106. घातक �मल क हिवरदध पराइवट परहितरकषा का अधि�कार जब हिक हि�द}ष वयधिकत को अप�ाहि� �ो� की जोखिखम �--जिजस �म� स मतय की आशका यलि2य2 रप स कारिरत �ोती � उसक हि(रदध पराइ(T परहितरकषा क अधिधकार का परयोग करन म यटिद परहितरकषक ऐसी णडिसथहित म �ो हिक हिनद�ष वयलि2 की अप�ाहिन की जोखि�म क हिबना (� उस अधिधकार का परयोग काय.साधक रप स न कर सकता �ो तो उसक पराइ(T परहितरकषा क अधिधकार का हि(सतार (� जोखि�म उठान तक का � ।

दषटात क पर एक भीO दवारा आकरमण हिकया जाता �, जो उसकी �तया करन का परयतन करती � । (� उस भीO पर गो�ी च�ाए हिबना पराइ(T

परहितरकषा क अपन अधिधकार का परयोग काय.साधक रप स न�ी कर सकता, और (� भीO म धिम� हए छोT-छोT लिशशओ की अप�ाहिन करन की जोखि�म उठाए हिबना गो�ी न�ी च�ा सकता । यटिद (� इस परकार गो�ी च�ान स उन लिशशओ म स हिकसी लिशश को अप�ाहिन कर तो क कोई अपराध न�ी करता ।

अधयाय 5

दषपररण क हिवषय म 107. हिकसी बात का दषपररण--(� वयलि2 हिकसी बात क हिकए जान का दषपररण करता �, जो-- प�ला--उस बात को करन क लि�ए हिकसी वयलि2 को उकसाता � ; अथ(ा दसरा--उस बात को करन क लि�ए हिकसी षडीयतर म एक या अधिधक अनय वयलि2 या वयलि2यो क साथ सनधिममलि�त �ोता �,

यटिद उस षडीयतर क अनसरण म, और उस बात को करन क उददशय स, कोई काय. या अ(ध �ोप घटिTत �ो जाए ; अथ(ा

तीसरा--उस बात क हिकए जान म हिकसी काय. या अ(ध �ोप दवारा साशय स�ायता करता � । भारतीय दड सहि�ता, 1860 18

सपषटीकरण 1--जो कोई वयलि2 जानबझकर दवय.पदशन दवारा, या तानतित(क तथय, जिजस परकT करन क लि�ए (� आबदध �, जानबझकर लिछपान दवारा, स(चछया कसी बात का हिकया जाना कारिरत या उपापत करता � अथ(ा कारिरत या उपापत करन का परयतन करता �, (� उस बात का हिकया जाना उकसाता �, य� क�ा जाता � ।

दषटात क, एक �ोक आहिcसर, नयाया�य क (ारनT दवारा य को पकOन क लि�ए पराधिधकत � । ख उस तथय को जानत हए और य� भी जानत

हए हिक ग, य, न�ी �, क को जानबझकर य� वयपटिदषT करता � हिक ग, य �, और एतदीदवारा साशय क स य को पकO(ाता � । य�ा ख, ग क पकO जान का उकसान दवारा दषपररण करता � ।

सपषटीकरण 2--जो कोई या तो हिकसी काय. क हिकए जान स प(. या हिकए जान क समय, उस काय. क हिकए जान को सकर बनान क लि�ए कोई बात करता � और तदीदवारा उसक हिकए जान को सकर बनाता �, (� उस काय. क करन म स�ायता करता �, य� क�ा जाता � ।

108. दषपररक--(� वयलि2 अपराध का दषपररण करता �, जो अपराध क हिकए जान का दषपररण करता � या ऐस काय. क हिकए जान का दषपररण करता �, जो अपराध �ोता, यटिद (� काय. अपराध करन क लि�ए हि(धिध अनसार समथ. वयलि2 दवारा उसी आशय या जञान स, जो दषपररक का �, हिकया जाता ।

सपषटीकरण 1--हिकसी काय. क अ(ध �ोप का दषपररण अपराध की कोटिT म आ सकगा, चा� दषपररक उस काय. को करन क लि�ए स(य आबदध न �ो ।

सपषटीकरण 2--दषपररण का अपराध गटिठत �ोन क लि�ए य� आ(शयक न�ी � हिक दषपररिरत काय. हिकया जाए या अपराध गटिठत करन क लि�ए अपभिकषत परभा( कारिरत �ो ।

दषटात (क) ग की �तया करन क लि�ए ख को क उकसाता � । ख (सा करन स इनकार कर दता � । क �तया करन क लि�ए ख क दषपररण

का दोषीी � । (�) घ की �तया करन क लि�ए ख को क उकसाता � । ख ऐसी उकसा�T क अनसरण म घ को हि(दध करता � । घ का घा( अचछा �ो

जाता � । क �तया करन क लि�ए ख को उकसान का दोषीी � । सपषटीकरण 3--य� आ(शयक न�ी � हिक दषपररिरत वयलि2 अपराध करन क लि�ए हि(धिध-अनसार समथ. �ो, या उसका (�ी

दहिषत आशय या जञान �ो, जो दषपररक का �, या कोई भी दहिषत आशय या जञान �ो । दषटात

(क) क दहिषत आशय स एक लिशश या पाग� को (� काय. करन क लि�ए दषपररिरत करता �, जो अपराध �ोगा, यटिद (� ऐस वयलि2 दवारा हिकया जाए जो कोई अपराध करन क लि�ए हि(धिध-अनसार समथ. � और (�ी आशय र�ता � जो हिक क का � । य�ा, चा� (� काय. हिकया जाए या न हिकया जाए क अपराध क दषपररण का दोषीी � ।

(�) य की �तया करन क आशय स � को, जो सात (ष. स कम आय का लिशश �, (� काय. करन क लि�ए क उकसाता � जिजसस य की मतय कारिरत �ो जाती � । � दषपररण क परिरणामस(रप (� काय. क की अनपणडिसथहित म करता � और उसस य की मतय कारिरत करता � । य�ा यदयहिप ख (� अपराध करन क लि�ए हि(धिध-अनसार समथ. न�ी था, तथाहिप क उसी परकार स दणडनीय �, मानो ख (� अपराध करन क लि�ए हि(धिध-अनसार समथ. �ो और उसन �तया की �ो, और इसलि�य क मतय दणड स दणडनीय � ।

(ग) ख को एक हिन(ासग� म आग �गान क लि�ए क उकसाता � । ख अपनी लिचततहि(कहित क परिरणामस(रप उस काय. की परकहित या य� हिक (� जो कछ कर र�ा � (� दोषपण. या हि(धिध क परहितक� � जानन म असमथ. �ान क कारण क क उकसान क परिरणामस(रप उस ग� म आग �गा दता � । ख न कोई अपराध न�ी हिकया �, हिकनत क एक हिन(ासग� म आग �गान क अपराध क दषपररण का दोषीी �, और उस अपराध क लि�ए उपबनधिनधत दणड स दणडनीय � ।

(घ) क चोरी करान क आशय स य क कबज म स य की समपभितत �न क लि�ए � को उकसाता � । ख को य� हि(शवास करन क लि�ए क उतपररिरत करता � हिक (� समपभितत क की � । ख उस समपभितत का इस हि(शवास स हिक (� क की समपभितत �, य क कबज म स सदभा(प(.क � �ता � । ख इस भरम क अधीन काय. करत हए, उस बईमानी स न�ी �ता, और इसलि�ए चोरी न�ी करता ; हिकनत क चोरी क दषपररण का दोषीी �, और उसी दणड स दणडनीय �, मानो ख न चोरी की �ो ।

सपषटीकरण 4--अपराध का दषपररण अपराध �ोन क कारण ऐस दषपररण का दषपररण भी अपराध � ।

दषटात भारतीय दड सहि�ता, 1860 19

ग को य की �तया करन को उकसान क लि�ए � को क उकसाता � । ख तदनक� य की �तया करन क लि�ए � को उकसाता � और � क उकसान क परिरणामस(रप ग उस अपराध को करता � । ख अपन अपराध क लि�ए �तया क दणड स दणडनीय �, और क न उस अपराध को करन क लि�ए � को उकसाया, इसलि�ए क भी उसी दणड स दणडनीय � ।

सपषटीकरण 5--षडीयतर दवारा दषपररण का अपराध करन क लि�ए य� आ(शयक न�ी � हिक दषपररक उस अपराध को करन (ा� वयलि2 क साथ धिम�कर उस अपराध की योजना बनाए । य� पया.पत � हिक उस षडीयतर म सनधिममलि�त �ो जिजसक अनसरण म (� अपराध हिकया जाता � ।

दषटात य को हि(ष दन क लि�ए क एक योजना � स धिम�कर बनाता � । य� स�महित �ो जाती � हिक क हि(ष दगा । ख तब य� (रणिणत करत

हए ग को (� योजना समझा दता � हिक कोई तीसरा वयलि2 हि(ष दगा, हिकनत क का नाम न�ी �ता । ग हि(ष उपापत करन क लि�ए स�मत �ो जाता �, और उस उपापत करक समझाए गए परकार स परयोग म �ान क लि�ए � को परिरदतत करता � । क हि(ष दता �, परिरणामस(रप य की मतय �ो जाती � । य�ा, यदयहिप क और ग न धिम�कर षडयतर न�ी रचा �, तो भी ग उस षडयतर म सनधिममलि�त र�ा �, जिजसक अनसरण म य की �तया की गई � । इसलि�ए ग न इस धारा म परिरभाहिषत अपराध हिकया � और �तया क लि�ए दणड स दणडनीय � ।

1[108क. भारत स बा�र क अपरा�ो का भारत म दषपररण--(� वयलि2 इस सहि�ता क अथ. क अनतग.त अपराध का दषपररण करता �, जो 2[भारत] स बा�र और उसस पर हिकसी ऐस काय. क हिकए जान का 2[भारत] म दषपररण करता � जो अपराध �ोगा, यटिद 2[भारत] म हिकया जाए ।

दषटात क 2[भारत] म ख को, जो गो(ा म हि(दशीय �, गो(ा म �तया करन क लि�ए उकसाता � । क �तया क दषपररण का दोषीी � ।T 109. दषपररण का दणड, यटिद दषपररिरत काय# उसक परिरणामसवरप हिकया जाए, और ज�ा हिक उसक दणड क

धिलए कोई अशिभवयकत उपबनध ��ी �--जो कोई हिकसी अपराध का दषपररण करता �, यटिद दषपररिरत काय. दषपररण क परिरणामस(रप हिकया जाता �, और ऐस दषपररण क दणड क लि�ए इस सहि�ता दवारा कोई अभिभवय2 उपबनध न�ी हिकया गया �, तो (� उस दणड स दणडिणडत हिकया जाएगा, जो उस अपराध क लि�ए उपबनधिनधत � ।

सपषटीकरण--कोई काय. या अपराध दषपररण क परिरणामस(रप हिकया गया तब क�ा जाता �, जब (� उस उकसा�T क परिरणामस(रप या उस षडयतर क अनसरण म या उस स�ायता स हिकया जाता �, जिजसस दषपररण गटिठत �ोता � ।

दषटात (क) ख को, जो एक �ोक स(क �, ख क पदीय कतयो क परयोग म क पर कछ अनगर� टिद�ान क लि�ए इनाम क रप म क रिरशवत की

परसथापना करता � । � (� रिरशवत परहितग�ीत कर �ता � । क न धारा 161 म परिरभाहिषत अपराध का दषपररण हिकया � । (�) ख को धिमथया साकषय दन क लि�ए क उकसाता � । ख उस उकसा�T क परिरणामस(रप, (� अपराध करता � । क उस अपराध

क दषपररण का दोषीी �, और उसी दणड स दणडनीय � जिजसस � � । (ग) य को हि(ष दन का षडयतर क और � रचत � । क उस षडयतर क अनसरण म हि(ष उपापत करता � और उस � को इसलि�ए

परिरदतत करता � हिक (� उस य को द । ख उस षडयतर क अनसरण म (� हि(ष क की अनपणडिसथहित म य को द दता � और उसक दवारा य की मतय कारिरत कर दता � । य�ा, ख �तया का दोषीी � । क षडयतर दवारा उस अपराध क दषपररण का दोषीी �, और (� �तया क लि�ए दणड स दणडनीय � ।

110. दषपररण का दणड, यटिद दषपररिरत वयधिकत दषपररक क आ!य स शिभनन आ!य स काय# करता �--जो कोई हिकसी अपराध क हिकए जान का दषपररण करता �, यटिद दषपररिरत वयलि2 न दषपररक क आशय या जञान स भिभनन आशय या जञान स (� काय. हिकया �ो, तो (� उसी दणड स दणडिणडत हिकया जाएगा, जो उस अपराध क लि�ए उपबनधिनधत �, जो हिकया जाता यटिद (� काय. दषपररक क �ी आशय या जञान स, न हिक हिकसी अनय आशय या जञान स, हिकया जाता ।

111. दषपररक का दाबरियतव जब एक काय# का दषपररण हिकया गया � और उसस शिभनन काय# हिकया गया �--जब हिक हिकसी एक काय. का दषपररण हिकया जाता �, और कोई भिभनन काय. हिकया जाता �, तब दषपररक उस हिकए गए काय. क लि�ए उसी परकार स और उसी हि(सतार तक दाधियत( क अधीन �, मानो उसन सीध उसी काय. का दषपररण हिकया �ो :

परनतक--परनत य� तब जब हिक हिकया गया काय. दषपररण का अधिधसमभावय परिरणाम था और उस उकसा�T क असर क अधीन या उस स�ायता स या उस षडयतर क अनसरण म हिकया गया था जिजसस (� दषपररण गटिठत �ोता � ।

दषटात 1 1889 क अधिधहिनयम स0 4 की धारा 3 दवारा जोOा गया ।

2 “हिRटिTश भारत” शबद अनकरमशः भारतीय स(ततरता (कनदरीय अधिधहिनयम तथा अधयादश अनक�न) आदश, 1948, हि(धिध अनक�न आदश, 1950 और 1951 क अधिधहिनयम स0 3 को धारा 3 और अनसची दवारा परहितसथाहिपत हिकए गए � । भारतीय दड सहि�ता, 1860 20

(क) एक लिशश को य क भोजन म हि(ष डा�न क लि�ए क उकसाता �, और उस परयोजन स उस हि(ष परिरदतत करता � । (� लिशश उस उकसा�T क परिरणामस(रप भ� स म क भोजन म, जो य क भोजन क पास र�ा हआ �, हि(ष डा� दता � । य�ा, यटिद (� लिशश क क उकसान क असर क अधीन उस काय. को कर र�ा था, और हिकया गया काय. उन परिरणडिसथहितयो म उस दषपररण का अधिधसमभावय परिरणाम �, तो क उसी परकार और उसी हि(सतार तक दाधियत( क अधीन �, मानो उसन उस लिशश को म क भोजन म हि(ष डा�न क लि�ए उकसाया �ो ।

(�) ख को य का ग� ज�ान क लि�ए क उकसाता � । ख उस ग� को आग �गा दता � और उसी समय (�ा समपभितत की चोरी करता � । क यदयहिप ग� को ज�ान क दषपररण का दोषीी �, हिकनत चोरी क दषपररण का दोषीी न�ी � ; कयोहिक (� चोरी एक अ�ग काय. थी और उस ग� ज�ान का अधिधसमभावय परिरणाम न�ी थी ।

(ग) ख और ग को बस हए ग� म अध.राहितर म �T क परयोजन स भदन करन क लि�ए क उकसाता �, और उनको उस परयोजन क लि�ए आयध दता � । ख और ग (� ग�-भदन करत �, और य दवारा जो हिन(ालिसयो म स एक �, परहितरोध हिकए जान पर, म की �तया कर दत � । य�ा, यटिद (� �तया उस दषपररण का अधिधसमभावय परिरणाम थी, तो क �तया क लि�ए उपबनधिनधत दणड स दणडनीय � ।

112. दषपररक कब दषपररिरत काय# क धिलए और हिकए गए काय# क धिलए आकधिलत दणड स दणड�ीय �ी--यटिद (� काय., जिजसक लि�ए दषपररक अनतिनतम प(.गामी धारा क अनसार दाधियत( क अधीन �, दषपररिरत काय. क अहितरिर2 हिकया जाता � और (� कोई सभिभनन अपराध गटिठत करता �, तो दषपररक उन अपराधो म स �र एक क लि�ए दणडनीय न�ी � ।

दषटात ख को एक �ोक स(क दवारा हिकए गए करसथम का ब�प(.क परहितरोध करन क लि�ए क उकसाता � । ख परिरणमस(रप उस करसथम

का परहितरोध करता � । परहितरोध करन म ख करसथम का हिनषपादन करन (ा� आहिcसर को स(चछया घोर उप�हित कारिरत करता � । ख न करसथम का परहितरोध करन और स(चछया घोर उप�हित कारिरत करन क दो अपराध हिकए � । इसलि�ए ख दोनो अपराधो क लि�ए दणडनीय �, और यटिद क य� समभावय जानता था हिक उस करसथम का परहितरोध करन म ख स(चछया घोर उप�हित कारिरत करगा, तो क भी उनम स �र एक अपराध क लि�ए दणडनीय �ोगा ।

113. दषपररिरत काय# स कारिरत उस परभाव क धिलए दषपररक का दाबरियतव जो दषपररक दवारा आ!बरियत स शिभनन �ो--जब हिक काय. का दषपररण दषपररक दवारा हिकसी हि(लिशषT परभा( को कारिरत करन क आशय स हिकया जाता � और दषपररण क परिरणामस(रप जिजस काय. क लि�ए दषपररक दाधियत( क अधीन �, (� काय. दषपररक क दवारा आशधियत परभा( स भिभनन परभा( कारिरत करता � तब दषपररक कारिरत परभा( क लि�ए उसी परकार और उसी हि(सतार तक दाधियत( क अधीन �, मानो उसन उस काय. का दषपररण उसी परभा( को कारिरत करन क आशय स हिकया �ो परनत य� तब जब हिक (� य� जानता था हिक दषपररिरत काय. स (� परभा( कारिरत �ोना समभावय � ।

दषटात य को घोर उप�हित करन क लि�ए ख को क उकसाता � । ख उस उकसा�T क परिरणामस(रप य को घोर उप�हित कारिरत करता � ।

परिरणामतः य की मतय �ो जाती � । य�ा यटिद क य� जानता था हिक दषपररिरत घोर उप�हित स मतय कारिरत �ोना समभावय �, तो क �तया क लि�ए उपबनधिनधत दणड स दणडनीय � ।

114. अपरा� हिकए जात समय दषपररक की उपसथिसथहित--जब कभी कोई वयलि2 जो अनपणडिसथत �ोन पर दषपररक क नात दणडनीय �ोता, उस समय उपणडिसथत �ो जब (� काय. या अपराध हिकया जाए जिजसक लि�ए (� दषपररण क परिरणामस(रप दणडनीय �ोता, तब य� समझा जाएगा हिक उसन ऐसा काय. या अपराध हिकया � ।

115. मतय या आजीव� कारावास स दणड�ीय अपरा� का दषपररण--यटिद अपरा� ��ी हिकया जाता--जो कोई मतय या 1[आजी(न कारा(ास] स दणडनीय अपराध हिकए जान का दषपररण करगा, यटिद (� अपराध उस दषपररण क परिरणामस(रप न हिकया जाए, और ऐस दषपररण क दणड क लि�ए कोई अभिभवय2 उपबनध इस सहि�ता म न�ी हिकया गया �, तो (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ;

यटिद अप�ाहि� कर� वाला काय# परिरणामसवरप हिकया जाता �--और यटिद ऐसा कोई काय. कर टिदया जाए, जिजसक लि�ए दषपररक उस दषपररण क परिरणामस(रप दाधियत( क अधीन �ो और जिजसस हिकसी वयलि2 को उप�हित कारिरत �ो, तो दषपररक दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध चौद� (ष. की �ो सकगी, दणडनीय �ोगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।

दषटात ख को य की �तया क लि�ए क उकसाता � । (� अपराध न�ी हिकया जाता � । यटिद य की �तया ख कर दता �, तो (� मतय या

1[आजी(न कारा(ास] क दणड स दणडनीय �ोता । इसलि�ए, क कारा(ास स, जिजसका अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दणडनीय � और

जमा.न स भी दणडनीय � ; और यटिद दषपररण क परिरणामस(रप य को कोई उप�हित �ो जाती �, तो (� कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध चौद� (ष. तक की �ो सकगी, दणडनीय �ोगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।

1 1955 क अधिधहिनयम स0 26 की धारा 117 और अनसची दवारा “आजी(न हिन(ा.सन” क सथानपर परहितसथहिपत भारतीय दड सहि�ता, 1860 21

116. कारावास स दणड�ीय अपरा� का दषपररण--यटिद अपरा� � हिकया जाए--जो कोई कारा(ास स दणडनीय अपराध का दषपररण करगा यटिद (� अपराध का दषपररण करगा यटिद (� अपराध उस दषपररण क परिरणामस(रप न हिकया जाए और ऐस दषपररण क दणड क लि�ए कोई अभिभवय2 उपबनध इस सहि�ता म न�ी हिकया गया �, तो (� उस अपराध क लि�ए उपबनधिनधत हिकसी भाहित क कारा(ास स ऐसी अ(धिध क लि�ए, जो उस अपराध क लि�ए उपबनधिनधत दीघ.तम अ(धिध क एक चौथाई भाग तक की �ो सकगी, या ऐस जमा.न स, जो उस अपराध क लि�ए उपबनधिनधत �, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ;

यटिद दषपररक या दषपररिरत वयधिकत ऐसा लोक सवक �, जिजसका कत#वय अपरा� हि�वारिरत कर�ा �ो--और यटिद दषपररक या दषपररिरत वयलि2 ऐसा �ोक स(क �ो, जिजसका कत.वय ऐस अपराध क लि�ए हिकए जान को हिन(ारिरत करना �ो, तो (� दषपररक उस अपराध क लि�ए उपबधिधत हिकसी भाहित क कारा(ास स ऐसी अ(धिध क लि�ए, जो उस अपराध क लि�ए उपबधिधत दीघ.तम अ(धिध क आध भाग तक की �ो सकगी, या ऐस जमा.न स, जो उस अपराध क लि�ए उपबधिधत �, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

दषटात (क) ख को, जो एक �ोक स(क �, ख क पदीय कतयो क परयोग म क अपन परहित कछ अनगर� टिद�ान क लि�ए इनाम क रप म

रिरशवत की परसथापना करता � । ख उस रिरशवत को परहितग�ीत करन स इनकार कर दता � । क इस धारा क अधीन दणडनीय � । (�) धिमथया साकषय दन क लि�ए ख को क उकसाता � । य�ा, यटिद ख धिमथया साकषय न द, तो भी क न इस धारा म परिरभाहिषत अपराध

हिकया �, और (� तदनसार दणडनीय � । (ग) क, एक पलि�स आहिcसर, जिजसका कत.वय �T को हिन(ारिरत करना �, �T हिकए जान का दषपररण करना � । य�ा, यदयहिप (� �T

न�ी की जाती, क उस अपराध क लि�ए उपबनधिनधत कारा(ास की दीघ.तम अ(धिध क आध स, और जमा.न स भी, दणडनीय � । (घ) क दवारा, जो एक पलि�स आहिcसर �, और जिजसका कत.वय �T को हिन(ारिरत करता �, उस अपराध क हिकए जान का दषपररण ख

करता �, य�ा यदयहिप (� �T न की जाए, ख �T क अपराध क लि�ए उपबनधिनधत कारा(ास की दीघ.तम अ(धिध क आध स, और जमा.न स भी, दणडनीय � ।

117. लोक सा�ारण दवारा या दस स अधि�क वयधिकतयो दवारा अपरा� हिकए जा� का दषपररण--जो कोई �ोक साधारण दवारा, या दस स अधिधक वयलि2यो की हिकसी भी सखया या (ग. दवारा हिकसी अपराध क हिकए जान का दषपररण करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

दषटात क, एक �ोक सथान म एक प�काड. लिचपकाता �, जिजसम एक पथ को जिजसम दस स अधिधक सदसय �, एक हि(रोधी पथ क सदसयो

पर, जब हिक ( ज�स हिनका�न म �ग हए �ो, आकरमण करन क परयोजन स, हिकसी हिनभिशचत समय और सथान पर धिम�न क लि�ए उकसाया गया � । क न इस धारा म परिरभाहिषत अपराध हिकया � ।

118. मतय या आजीव� कारावास स दड�ीय अपरा� कर� की परिरकलप�ा को धिछपा�ा--जो कोई मतय या 1[आजी(न कारा(ास] स दडनीय अपराध का हिकया जाना सकर बनान क आशय स या सभावयतः तदीदवारा सकर बनाएगा य� जानत हए,

ऐस अपराध क हिकए जान की परिरकलपना क असमिसतत( को हिकसी, काय. या अ(ध �ोप दवारा स(चछया लिछपाएगा या ऐसी परिरकलपना क बार म ऐसा वयपदशन करगा जिजसका धिमथया �ोना (� जानता �,

यटिद अपरा� कर टिदया जाए--यटिद अपरा� ��ी हिकया जाए--यटिद ऐसा अपराध कर टिदया जाए, तो (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, अथ(ा यटिद अपराध न हिकया जाए, तो (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और दोनो दशाओ म स �र एक म जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

दषटात क, य� जानत हए हिक ख सथान पर डकती पOन (ा�ी �, मजिजसटरT को य� धिमथया इभितत�ा दता � हिक डकती ग सथान पर, जो हि(परीत

टिदशा म �, पOन (ा�ी � और इस आशय स हिक तदीदवारा उस अपराध का हिकया जाना सकर बनाए मजिजसटरT को भ�ा(ा दता � । डकती परिरकलपना क अनसरण म ख सथान पर पOती � । क इस धारा क अधीन दडनीय � ।

119. हिकसी ऐस अपरा� क हिकए जा� की परिरकलप�ा का लोक सवक दवारा धिछपाया जा�ा, जिजसका हि�वारण कर�ा उसका कत#वय �--जो कोई �ोक स(क �ोत हए उस अपराध का हिकया जाना, जिजसका हिन(ारण करना ऐस �ोक स(क क नात उसका कत.वय �, सकर बनान क आशय स या सभावयतः तदीदवारा सकर बनाएगा य� जानत हए,

ऐस अपराध क हिकए जान की परिरकलपना क असमिसतत( को हिकसी काय. या अ(ध �ोप दवारा स(चछया लिछपाएगा या ऐसी परिरकलपना क बार म ऐसा वयपदशन करगा जिजसका धिमथया �ोना (� जानता �,

1 1955 क अधिधहिनयम स0 26 की धारा 117 और अनसची दवारा “आजी(न हिन(ा.सन” क सथान पर परहितसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 22

यटिद अपरा� कर टिदया जाए--यटिद ऐसा अपराध कर टिदया जाए, तो (� उस अपराध क लि�ए उपबधिधत हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध ऐस कारा(ास की दीघ.तम अ(धिध क आधी तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो उस अपराध क लि�ए उपबधिधत �, या दोनो स,

यटिद अपरा� मतय आटिद स दड�ीय �--अथ(ा यटिद (� अपराध मतय या 1[आजी(न कारा(ास] स दडनीय �ो, तो (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी,

यटिद अपरा� ��ी हिकया जाए--अथ(ा यटिद (� अपराध न�ी हिकया जाए, तो (� उस अपराध क लि�ए उपबधिधत हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध ऐस कारा(ास की दीघ.तम अ(धिध की एक चौथाई तक की �ो सकगी, या ऐस जमा.न स, जो उस अपराध क लि�ए उपबधिधत �, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

दषटात क, एक पलि�स आहिcसर, �T हिकए जान स सबधिधत सब परिरकलपनाओ की, जो उसको जञात �ो जाए, इभितत�ा दन क लि�ए (ध रप स

आबदध �ोत हए और य� जानत हए हिक ख �T करन की परिरकलपना बना र�ा �, उस अपराध क हिकए जान को सकर बनान क आशय स ऐसी इभितत�ा दन का �ोप करता � । य�ा क न ख की परिरकलपना क असमिसतत( को एक अ(ध �ोप दवारा लिछपाया �, और (� इस धारा क उपबध क अनसार दडनीय � ।

120. कारावास स दड�ीय अपरा� कर� की परिरकलप�ा को धिछपा�ा--जो कोई उस अपराध का हिकया जाना, जो कारा(ास स दडनीय �, सकर बनान क आशय स या सभावयतः तदीदवारा सकर बनाएगा य� जानत हए,

ऐस अपराध क हिकए जान की परिरकलपना क असमिसतत( को हिकसी काय. या अ(ध �ोप दवारा स(चछया लिछपाएगा या ऐसी परिरकलपना क बार म ऐसा वयपदशन करगा, जिजसका धिमथया �ोना (� जानता �,

यटिद अपरा� कर टिदया जाए--यटिद अपरा� ��ी हिकया जाए--यटिद ऐसा अपराध कर टिदया जाए, तो (� उस अपराध क लि�ए उपबधिधत भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध ऐस कारा(ास की दीघ.तम अ(धिध की एक चौथाई तक की �ो सकगी, और यटिद (� अपराध न�ी हिकया जाए, तो (� ऐस कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध ऐस कारा(ास की दीघ.तम अ(धिध क आठ( भाग तक की �ो सकगी, या ऐस जमा.न स, जो उस अपराध क लि�ए उपबधिधत �, या दोनो स दहिडत हिकया जाएगा ।

1[अधयाय 5क आपराधि�क षडायतर

120क. आपराधि�क षडायतर की परिरभाषाा--जब हिक दो या अधिधक वयलि2-- (1) कोई अ(ध काय., अथ(ा (2) कोई ऐसा काय., जो अ(ध न�ी �, अ(ध साधनो दवारा, करन या कर(ान को स�मत �ोत �, तब ऐसी स�महित

आपराधिधक षडीयतर क��ाती � : परत हिकसी अपराध को करन की स�महित क लिस(ाय कोई स�महित आपराधिधक षडीयतर तब तक न �ोगी, जब तक हिक

स�महित क अ�ा(ा कोई काय. उसक अनसरण म उस स�महित क एक या अधिधक पकषकारो दवारा न�ी कर टिदया जाता । सपषटीकरण--य� तत(�ीन � हिक अ(ध काय. ऐसी स�महित का चरम उददशय � या उस उददशय का आनषीहिगक मातर � ।

120ख. आपराधि�क षडायतर का दड--(1) जो कोई मतय, 2[आजी(न कारा(ास] या दो (ष. या उसस अधिधक अ(धिध क कटिठन कारा(ास स दडनीय अपराध करन क आपराधिधक षडीयतर म शरीक �ोगा, यटिद ऐस षडीयतर क दड क लि�ए इस सहि�ता म कोई अभिभवय2 उपबध न�ी �, तो (� उसी परकार दहिडत हिकया जाएगा, मानो उसन ऐस अपराध का दषपररण हिकया था ।

(2) जो कोई प(�2 रप स दडनीय अपराध को करन क आपराधिधक षडीयतर स भिभनन हिकसी आपराधिधक षडीयतर म शरीक �ोगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध छ� मास स अधिधक की न�ी �ोगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।]

अधयाय 6 राजयो क हिवरदध अपरा�ो क हिवषय म

121. भारत सरकार क हिवरदध यदध कर�ा या यदध कर� का परयत� कर�ा या यदध कर� का दषपररण कर�ा--जो कोई 1[भारत सरकार] क हि(रदध यदध करगा, या ऐसा यदध करन का परयतन करगा या ऐसा यदध करन का दषपररण करगा, (� मतय या 2[आजी(न कारा(ास] स दहिडत हिकया जाएगा 3[और जमा.न स भी दडनीय �ोगा] । 1 1913 क अधिधहिनयम स0 8 की धारा 3 दवारा अतःसथाहिपत ।

2 1955 क अधिधहिनयम स0 26 की धारा 117 और अनसची दवारा (1-1-1956 स) “हिन(ा.सन” क सथान पर परहितसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 23

4[दषटात] 5।।। क 3[भारत सरकार] क हि(रदध हि(प�( म सनधिममलि�त �ोता � । क न इस धारा म परिरभाहिषत अपराध हिकया � । 6। । । । । 7[121क. �ारा 121 दवारा दड�ीय अपरा�ो को कर� का षडायतर--जो कोई धारा 121 दवारा दडनीय अपराधो म

स कोई अपराध करन क लि�ए 8[भारत] क भीतर 9।।। या बा�र षडीयतर करगा, या 10[क दरीय सरकार को या हिकसी 11[राजय] की सरकार को 12।।।T आपराधिधक ब� दवारा या आपराधिधक ब� क परदश.न दवारा आतहिकत करन का षडीयतर करगा, (� 13[आजी(न कारा(ास] स, या दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा 14[और जमा.न स भी दडनीय �ोगा] ।

सपषटीकरण--इस धारा क अधीन षडीयतर गटिठत �ोन क लि�ए य� आ(शयक न�ी � हिक उसक अनसरण म कोई काय. या अ(ध �ोप गटिठत हआ �ो ।]

122. भारत सरकार क हिवरदध यदध कर� क आ!य स आय� आटिद सगर� कर�ा--जो कोई 15[भारत सरकार] क हि(रदध या तो यदध करन, या यदध करन की तयारी करन क आशय स परष, आयध या गो�ाबारद सगर� करगा, या अनयथा यदध करन की तयारी करगा, (� 16[आजी(न कारा(ास] स, या दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स जिजसकी अ(धिध दस (ष. स अधिधक की न�ी �ोगी, दहिडत हिकया जाएगा 17[और जमा.न स भी दडनीय �ोगा] ।

123. यदध कर� की परिरकलप�ा को सकर ब�ा� क आ!य स धिछपा�ा--जो कोई 9[भारत सरकार] क हि(रदध यदध करन की परिरकलपना क असमिसतत(ो को हिकसी काय. दवारा, या हिकसी अ(ध �ोप दवारा, इस आशय स हिक इस परकार लिछपान क दवारा ऐस यदध करन को सकर बनाए, या य� समभावय जानत हए हिक इस परकार लिछपान क दवारा ऐस यदध करन को सकर बनाएगा, लिछपाएगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी, दडनीय �ोगा ।

124. हिकसी हिवधि�पण# !धिकत का परयोग कर� क धिलए हिवव! कर� या उसका परयोग अवरोधि�त कर� क आ!य स राषटरपहित, राजयपाल आटिद पर �मला कर�ा--जो कोई भारत क 18[राषटरपहित] या हिकसी राजय 19।।। 20।।। 21।।। क 22[राजयपा� 23।।।] को ऐस 1[राषटरपहित या 16[राजयपा� 17।।।]] की हि(धिधपण. शलि2यो म स हिकसी शलि2 का हिकसी परकार परयोग करन क लि�ए या परयोग करन स हि(रत र�न क लि�ए उतपररिरत करन या हि((श करन क आशय स, 1 हि(धिध अनक�न आदश, 1950 दवारा “क(ीन” क सथान पर परहितसथाहिपत । 2 1955 क अधिधहिनयम स0 26 की धारा 117 और अनसची दवारा (1-1-1956 स) “आजी(न हिन(ा.सन” क सथान पर परहितसथाहिपत । 3 1921 क अधिधहिनयम स0 16 की धारा 2 दवारा “और उसकी समसत सपभितत समपहत कर �गा” क सथान पर परहितसथाहिपत । 4 1957 क अधिधहिनयम स0 36 की धारा 3 और अनसची 2 दवारा “दषTात” क सथान पर परहितसथाहिपत । 5 1957 क अधिधहिनयम स0 36 की धारा 3 और अनसची 2 दवारा “(क)” कोषठको और अकषर का �ोप हिकया गया । 6 हि(धिध अनक�न आदश, 1950 दवारा दषTात (�) का �ोप हिकया गया । 7 1870 क अधिधहिनयम स0 27 की धारा 4 दवारा अतःसथाहिपत । 8 हि(धिध अनक�न आदश, 1948, हि(धिध अनक�न आदश, 1950 और 1951 क अधिधहिनयम स0 3 की धारा 3 और अनसची दवारा “हिRटिTश भारत” क

सथान पर सशोधिधत �ो कर उपरो2 रप म आया । 9 हि(धिध अनक�न आदश, 1950 दवारा “या क(ीन की परातो या उनक हिकसी भाग की परभता स (लिचत करना” शबदो का �ोप हिकया गया । 10 भारत शासन (भारतीय हि(धिध अनक�न) आदश, 1937 दवारा “भारत सरकार या हिकसी सथानीय सरकार” क सथान पर परहितसथाहिपत । 11 हि(धिध अनक�न आदश, 1950 दवारा “परातीय” क सथान पर परहितसथाहिपत । 12 हि(धिध अनक�न आदश, 1948 दवारा “या बमा. सरकार” शबदो का �ोप हिकया गया ।

13 1955 क अधिधहिनयम स0 26 की धारा 117 और अनसची दवारा “आजी(न या उसस हिकसी �घतर अ(धिध क लि�ए हिन(ा.सन” क सथान पर परहितसथाहिपत ।

14 1921 क अधिधहिनयम स0 16 की धारा 3 दवारा अतःसथाहिपत । 15 हि(धिध अनक�न आदश, 1950 दवारा “क(ीन” क सथान पर परहितसथाहिपत । 16 1955 क अधिधहिनयम स0 26 की धारा 117 और अनसची दवारा “आजी(न हिन(ा.सन” क सथान पर परहितसथाहिपत । 17 1921 क अधिधहिनयम स0 16 की धारा 2 दवारा “और उसकी समसत सपभितत समपहत कर �ी जाएगी” क सथान पर परहितसथाहिपत । 18 हि(धिध अनक�न आदश, 1950 दवारा “ग(न.र जनर�” क सथान पर परहितसथाहिपत । 19 भारत शासन (भारतीय हि(धिध अनक�न) आदश, 1937 दवारा “या �हिपDTननT ग(न.र” शबदो का �ोप हिकया गया । 20 हि(धिध अनक�न आदश, 1948 दवारा “या भारत क ग(न.र जनर� की परिरषदी क हिकसी सदसय” शबदो का �ोप हिकया गया । 21 भारत शासन (भारतीय हि(धिध अनक�न) आदश, 1937 दवारा “या हिकसी परलिसडनसी की परिरषदी क” शबदो का �ोप हिकया गया । 22 1951 क अधिधहिनयम स0 3 दवारा “ग(न.र” क सथान पर परहितसथाहिपत ।

23 हि(धिध अनक�न (स0 2) आदश, 1956 दवारा “या राजपरम�” शबदो का �ोप हिकया गया । भारतीय दड सहि�ता, 1860 24

ऐस 18[राषटरपहित या 15[राजयपा� 16।।।]] पर �म�ा करगा या उसका सदोष अ(रोध करगा, या सदोष अ(रोध करन का परयतन करगा या उस आपराधिधक ब� दवारा या आपराधिधक ब� क परदश.न दवारा आतहिकत करगा या ऐस आतहिकत करन का परयतन करगा,

(� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी, दडनीय �ोगा ।

2[124क. राजदरो�--जो कोई बो� गए या लि�� गए शबदो दवारा या सकतो दवारा, या दशयरपण दवारा या अनयथा 3।।। 4[भारत] 5।।। म हि(धिध दवारा सथाहिपत सरकार क परहित घणा या अ(मान पदा करगा, या पदा करन का, परयतन करगा या अपरीहित परदीपत करगा, या परदीपत करन का परयतन करगा, (� 6[आजी(न कारा(ास] स, जिजसम जमा.ना जोOा जा सकगा या तीन (ष. तक क कारा(ास स, जिजसम जमा.ना जोOा जा सकगा या जमा.न स दहिडत हिकया जाएगा ।

सपषटीकरण 1--“अपरीहित” पद क अतग.त अभलि2 और शतरता की समसत भा(नाए आती � ।

सपषटीकरण 2--घणा, अ(मान या अपरीहित को परदीपत हिकए हिबना या परदीपत करन का परयतन हिकए हिबना, सरकार क कामो क परहित हि(धिधपण. साधनो दवारा उनको परिर(रवितत करान की दधि� स अननमोदन परकT करन (ा�ी Tीका-टिTपपभिणया इस धारा क अधीन अपराध न�ी � ।

सपषटीकरण 3--घणा, अ(मान या अपरीहित को परदीपत हिकए हिबना या परदीपत करन का परयतन हिकए हिबना, सरकार की परशासहिनक या अनय हि�Eया क परहित अनमोदन परकT करन (ा�ी Tीका-टिTपपभिणया इस धारा क अधीन अपराध गटिठत न�ी करती ।]

125. भारत सरकार स मतरी सब� रख� वाली हिकसी एशि!याई !धिकत क हिवरदध यदध कर�ा--जो कोई 7[भारत सरकार] स मतरी का या शाहित का सबध र�न (ा�ी हिकसी एलिशयाई शलि2 की सरकार क हि(रदध यदध करगा या ऐसा यदध करन का परयतन करगा, या ऐसा यदध करन क लि�ए दषपररण करगा, (� 8[आजी(न कारा(ास] स, जिजसम जमा.ना जोOा जा सकगा या दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, जिजसम जमा.ना जोOा जा सकगा या जमा.न स दहिडत हिकया जाएगा ।

126. भारत सरकार क साथ !ाहित का सब� रख� वाली !धिकत क राजयकषतर म लटपाट कर�ा--जो कोई 6[भारत सरकार] स मतरी का या शाहित का सबध र�न (ा�ी हिकसी शलि2 क राजयकषतर म �TपाT करगा, या �TपाT करन की तयारी करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और (� जमा.न स और ऐसी �TपाT करन क लि�ए उपयोग म �ाई गई या उपयोग म �ाई जान क लि�ए आशधियत, या ऐसी �TपाT दवारा अरजिजत सपभितत क समप�रण स भी दडनीय �ोगा ।

127. �ारा 125 और 126 म वरणिणत यदध या लटपाट दवारा ली गई समपधिV परापत कर�ा--जो कोई हिकसी समपभितत को य� जानत हए परापत करगा हिक (� धारा 125 और 126 म (रणिणत अपराधो म स हिकसी क हिकए जान म �ी गई � (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और (� जमा.न स और इस परकार परापत की गई सपभितत क समप�रण स भी दडनीय �ोगा ।

1 “ग(न.र जनर�, ग(न.र, �फTीननT ग(न.र, या परिरषदी क सदसय” म� शबदो का सशोधन अनकरमशः भारत शासन (भारतीय हि(धिध अनक�न) आदश, 1937, हि(धिध अनक�न आदश, 1948 और हि(धिध अनक�न आदश, 1950 दवारा हिकया गया � ।

2 1898 क अधिधहिनयम स0 4 की धारा 4 दवारा म� धारा 124क क सथान पर परहितसथाहिपत । म� धारा 124क को 1870 क अधिधहिनयम स0 27 की धारा 5 दवारा अतःसथाहिपत हिकया गया था ।

3 “�र मजसTी या” शबदो का हि(धिध अनक�न आदश, 1950 दवारा �ोप हिकया गया । “या कराउन परहितहिनधिध” शबदो का, जिजन� भारत शासन (भारतीय हि(धिध अनक�न) आदश, 1937 दवारा “मजसTी” शबद क पशचाती अतःसथाहिपत हिकया गया था, हि(धिध अनक�न आदश, 1948 दवारा �ोप हिकया गया ।

4 हि(धिध अनक�न आदश, 1948, हि(धिध अनक�न आदश, 1950 और 1951 क अधिधहिनयम स0 3 की धारा 3 और अनसची दवारा “हिRटिTश भारत” क सथान पर सशोधिधत �ो कर उपरो2 रप म आया ।

5 “या हिRटिTश बमा.” शबदो का, जिजन� भारत शासन (भारतीय हि(धिध अनक�न) आदश, 1937 दवारा अतःसथाहिपत हिकया गया था, हि(धिध अनक�न आदश,

1948 दवारा �ोप हिकया गया । 6 1955 क अधिधहिनयम स0 26 की धारा 117 और अनसची दवारा “आजी(न या उसस हिकसी �घतर अ(धिध क लि�ए हिन(ा.सन” क सथान पर परहितसथाहिपत

। 7 हि(धिध अनक�न आदश, 1950 दवारा “क(ीन” क सथान पर परहितसथाहिपत ।

8 1955 क अधिधहिनयम स0 26 की धारा 117 और अनसची दवारा “आजी(न हिन(ा.सन” क सथान पर परहितसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 25

128. लोक सवक का सवचछया राजकदी या यदधकदी को हि�कल भाग� द�ा--जो कोई �ोक स(क �ोत हए और हिकसी राजकदी या यदधकदी को अभिभरकषा म र�त हए, स(चछया ऐस कदी को हिकसी ऐस सथान स जिजसम ऐसा कदी परिररदध �, हिनक� भागन दगा, (� 7[आजी(न कारा(ास] स या दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और (� जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

129. उपकषा स लोक सवक का ऐस कदी का हि�कल भाग�ा स�� कर�ा--जो कोई �ोक स(क �ोत हए और हिकसी राजकदी या यदधकदी की अभिभरकषा म र�त हए उपकषा स ऐस कदी का हिकसी ऐस परिररोध सथान स जिजसम ऐसा कदी परिररदध �, हिनक� भागना स�न करगा, (� सादा कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी, दडनीय �ोगा ।

130. ऐस कदी क हि�कल भाग� म स�ायता द�ा, उस छडा�ा या सशरय द�ा--जो कोई जानत हए हिकसी राजकदी या यदधकदी को हि(धिधपण. अभिभरकषा स हिनक� भागन म मदद या स�ायता दगा, या हिकसी ऐस कदी को छOाएगा, या छOान का परयतन करगा, या हिकसी ऐस कदी को, जो हि(धिधपण. अभिभरकषा स हिनक� भागा �, सशरय दगा या लिछपाएगा या ऐस कदी क हिcर स पकO जान का परहितरोध करगा या करन का परयतन करगा, (� 1[आजी(न कारा(ास] स या दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और (� जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

सपषटीकरण--कोई राजकदी या यदधकदी, जिजस अपन परो� पर 2[भारत] म कहितपय सीमाओ क भीतर, यथचछ हि(चरण की अनजञा �, हि(धिधपण. अभिभरकषा स हिनक� भागा �, य� तब क�ा जाता �, जब (� उन सीमाओ स पर च�ा जाता �, जिजनक भीतर उस यथचछ हि(चरण की अनजञा � ।

अधयाय 7

स�ा 3[�ौस�ा और वायस�ा] स सबधि�त अपरा�ो क हिवषय म 131. हिवदरो� का दषपररण या हिकसी सहि�क, �ौसहि�क या वायसहि�क को कत#वय स हिवचधिलत कर� का परयत�

कर�ा--जो कोई 4[भारत सरकार] की सना, 5[नौसना या (ायसना] क हिकसी आहिcसर, सहिनक, 6[नौसहिनक या (ायसहिनक] दवारा हि(दरो� हिकए जान का दषपररण करगा, या हिकसी ऐस आहिcसर, सहिनक या 6[नौसहिनक या (ायसहिनक] को उसकी राजहिनषठा या उसक कत.वय स हि(चलि�त करन का परयतन करगा, (� 1[आजी(न कारा(ास] स या दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

7[सपषटीकरण--इस धारा म “आहिcसर”, 8[“सहिनक”, 9[“नौसहिनक”] और “(ायसहिनक”] शबदो क अतग.त कोई भी वयलि2 आता �, जो यथाणडिसथहित, 10[आमx ऐकT, 11[सना अधिधहिनयम, 1950] (1950 का 46)T, 9[न(� हिडलिससमिप�न ऐकT, 12।।। 13इहिडयन न(ी (हिडलिससमिप�न) ऐकT, 1934 (1934 का 34)T, 14[एअर cोस. ऐकT या 15[(ायसना अधिधहिनयम, 1950 (1950 का 45)]] क अधयधीन �ोT।]

132. हिवदरो� का दषपररण यटिद उसक परिरणामसवरप हिवदरो� हिकया जाए--जो कोई 4[भारत सरकार] की सना, 5[नौसना या (ायसना] क हिकसी आहिcसर, सहिनक, 6[नौसहिनक या (ायसहिनक] दवारा हि(दरो� हिकए जान का दषपररण करगा, यटिद उस दषपररण क 1 1955 क अधिधहिनयम स0 26 की धारा 117 और अनसची दवारा “आजी(न हिन(ा.सन” क सथान पर परहितसथाहिपत । 2 हि(धिध अनक�न आदश, 1948, हि(धिध अनक�न आदश, 1950 और 1951 क अधिधहिनयम स0 3 की धारा 3 और अनसची दवारा “हिRटिTश भारत” क

सथान पर सशोधिधत �ो कर उपरो2 रप म आया । 3 1927 क अधिधहिनयम स0 10 की धारा 2 और अनसची 1 दवारा “और नौसना” क सथान पर परहितसथाहिपत । 4 हि(धिध अनक�न आदश, 1950 दवारा “क(ीन” क सथान पर परहितसथाहिपत । 5 1927 क अधिधहिनयम स0 10 की धारा 2 और अनसची 1 दवारा “या नौसना” क सथान पर परहितसथाहिपत ।

6 1927 क अधिधहिनयम स0 10 की धारा 2 और अनसची 1 दवारा “या नौसहिनक” क सथान पर परहितसथाहिपत । 7 1870 क अधिधहिनयम स0 27 की धारा 6 दवारा अतःसथाहिपत । 8 1927 क अधिधहिनयम स0 10 की धारा 2 और अनसची 1 दवारा “और सहिनक” क सथान पर परहितसथाहिपत । 9 1934 क अधिधहिनयम स0 35 की धारा 2 और अनसची दवारा अतःसथाहिपत । 10 1927 क अधिधहिनयम स0 10 की धारा 2 और अनसची 1 दवारा “�र मजसTी की सना सशासन क लि�ए यदध हिनयमो या 1869 क अधिधहिनयम स0 5

म अनतरवि(षT यदध हिनयमो” क सथान पर परहितसथाहिपत । 11 1951 क अधिधहिनयम स0 3 की धारा 8 और अनसची दवारा “भारतीय सना अधिधहिनयम, 1911” क सथान पर परहितसथाहिपत । 12 हि(धिध अनक�न आदश, 1950 दवारा “अथ(ा उस अधिधहिनयम दवारा उपानतरिरत हिकया गया �ो” शबदो का �ोप हिकया गया । 13 अब नौसना अधिधहिनयम, 1957 (1957 का 62) दखि�ए । 14 1932 क अधिधहिनयम स0 14 की धारा 130 और अनसची दवारा “या (ाय सना अधिधहिनयम” क सथान पर परहितसथाहिपत । 15 1951 क अधिधहिनयम स0 3 की धारा 3 और अनसची दवारा “भारतीय (ाय सना अधिधहिनयम, 1932” क सथान पर परहितसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 26

परिरणामस(रप हि(दरो� �ो जाए, तो (� मतय स या 1[आजी(न कारा(ास] स, या दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और (� जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

133. सहि�क, �ौसहि�क या वायसहि�क दवारा अप� वरिरषठ आहिफसर पर जब हिक व� आहिफसर अप� पद-हि�षपाद� म �ो, �मल का दषपररण--जो कोई 4[भारत सरकार] की सना, 5[नौसना या (ायसना] क हिकसी आहिcसर, सहिनक, 6[नौसहिनक या (ायसहिनक] दवारा हिकसी (रिरषठ आहिcसर पर, जब हिक (� आहिcसर अपन पद-हिनषपादन म �ो, �म� का दषपररण करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और (� जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

134. ऐस �मल का दषपररण यटिद �मला हिकया जाए--जो कोई 1[भारत सरकार] की सना, 2[नौसना या (ायसना] क आहिcसर, सहिनक, 3[नौसहिनक या (ायसहिनक] दवारा हिकसी (रिरषठ आहिcसर पर, जब हिक (� आहिcसर अपन पद-हिनषपादन म �ो, �म� का दषपररण करगा, यटिद ऐसा �म�ा उस दषपररण क परिरणामस(रप हिकया जाए, तो (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और (� जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

135. सहि�क, �ौसहि�क या वायसहि�क दवारा अशिभतयज� का दषपररण--जो कोई 1[भारत सरकार] की सना, 2[नौसना या (ायसना] क हिकसी आहिcसर, सहिनक, 3[नौसहिनक या (ायसहिनक] दवारा अभिभतयजन हिकए जान का दषपररण करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स दहिडत हिकया जाएगा ।

136. अशिभतयाजक को सशरय द�ा--जो कोई लिस(ाय एतसमिसमनीपशचाती यथा अप(ाटिदत क, य� जानत हए या य� हि(शवास करन का कारण र�त हए हिक 1[भारत सरकार] की सना, 2[नौसना या (ायसना] क हिकसी आहिcसर, सहिनक, 3[नौसहिनक या (ायसहिनक] न अभिभतयजन हिकया �, ऐस आहिcसर, सहिनक, 3[नौसहिनक या (ायसहिनक] को सशरय दगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स दहिडत हिकया जाएगा ।

अपवाद--इस उपबध का हि(सतार उस माम� पर न�ी �, जिजसम पतनी दवारा अपन पहित को सशरय टिदया जाता � । 137. मासटर की उपकषा स हिकसी वाशिणसथिजयक जलया� पर छपा हआ अशिभतयाजक--हिकसी ऐस (ाभिणणडिजयक

ज�यान का, जिजस पर 1[भारत सरकार] की सना, 2[नौसना या (ायसना] का कोई अभिभतयाजक लिछपा हआ �ो, मासTर या भारसाधक वयलि2, यदयहिप ( ऐस लिछपन क सबध म अनभिभजञ �ो, ऐसी शासमिसत स दडनीय �ोगा जो पाच सौ रपए स अधिधक न�ी �ोगी, यटिद उस ऐस लिछपन का जञान �ो सकता था किकत क(� इस कारण न�ी हआ हिक ऐस मासTर या भारसाधक वयलि2 क नात उसक कत.वय म कछ उपकषा हई, या उस ज�यान पर अनशासन का कछ अभा( था ।

138. सहि�क, �ौसहि�क या वायसहि�क दवारा अ��ी�ता क काय# का दषपररण--जो कोई ऐसी बात का दषपररण करगा जिजस हिक (� 1[भारत सरकार] की सना, 2[नौसना या (ायसना] क हिकसी आहिcसर, सहिनक, 3[नौसहिनक या (ायसहिनक] दवारा अनधीनता का काय. जानता �ो, यटिद अनधीनता का ऐसा काय. उस दषपररण क परिरणामस(रप हिकया जाए, तो (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध छ� मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

4138क. [पव}कत �ाराओ का भारतीय सामटिदरक सवा को लाग �ो�ा ।ट--सशोधन अधिधहिनयम, 1934 (1934 का 35) की धारा 2 और अनसची दवारा हिनरलिसत ।

139. कछ अधि�हि�यमो क अधय�ी� वयधिकत--कोई वयलि2, जो 5[आमx ऐकT, 6[सना अधिधहिनयम, 1950, (1950 का 46)T, न(� हिडलिससमिप�न ऐकT, 7[8।।। 9इहिडयन न(ी (हिडलिससमिप�न) ऐकT, 1934 (1934 का 34)T, 10[एअर cोस. ऐकT या 11[(ायसना

1 हि(धिध अनक�न आदश, 1950 दवारा “क(ीन” क सथान पर परहितसथाहिपत । 2 1927 क अधिधहिनयम स0 10 की धारा 2 और अनसची 1 दवारा “या नौसना” क सथान पर परहितसथाहिपत । 3 1927 क अधिधहिनयम स0 10 की धारा 2 और अनसची 1 दवारा “या नौसहिनक” क सथान पर परहितसथाहिपत । 4 1887 क अधिधहिनयम स0 14 की धारा 79 दवारा अतःसथाहिपत । 5 1927 क अधिधहिनयम स0 10 की धारा 2 और अनसची 1 दवारा “क(ीन की सना या नौसना या ऐसी सना या नौसना क हिकसी भी भाग क लि�ए हिकन�ी

यदध हिनयमो” क सथान पर परहितसथाहिपत । 6 1951 क अधिधहिनयम स0 3 की धारा 3 और अनसची दवारा “भारतीय सना अधिधहिनयम, 1911” क सथान पर परहितसथाहिपत । 7 1934 क अधिधहिनयम स0 35 की धारा 2 और अनसची दवारा अतःसथाहिपत । 8 हि(धिध अनक�न आदश, 1950 दवारा “अथ(ा उस अधिधहिनयम दवारा उपानतरिरत हिकया गया �ो” शबदो का �ोप हिकया गया । 9 अब नौसना अधिधहिनयम, 1957 (1957 का 62) दखि�ए । 10 1932 क अधिधहिनयम स0 14 की धारा 130 और अनसची दवारा “या (ाय सना अधिधहिनयम,” क सथान पर परहितसथाहिपत ।

11 1951 क अधिधहिनयम स0 3 की धारा 3 और अनसची दवारा “भारतीय (ाय सना अधिधहिनयम, 1932” क सथान पर परहितसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 27

अधिधहिनयम, 1950 (1950 का 45)]]] क अधयधीन �, इस अधयाय म परिरभाहिषत अपराधो म स हिकसी क लि�ए इस सहि�ता क अधीन दडनीय न�ी � ।

140. सहि�क, �ौसहि�क या वायसहि�क दवारा उपयोग म लाई जा� वाली पो!ाक प���ा या टोक� �ारण कर�ा--जो कोई 1[भारत सरकार] की सनय, 1[नाहि(क या (ायसना का सहिनकT, 2[नौसहिनक या (ायसहिनक] न �ोत हए, इस आशय स हिक य� हि(शवास हिकया जाए हिक (� ऐसा सहिनक, 13[नौसहिनक या (ायसहिनक] �, ऐसी कोई पोशाक प�नगा या ऐसा Tोकन धारण करगा जो ऐस सहिनक, 13[नौसहिनक या (ायसहिनक] दवारा उपयोग म �ाई जान (ा�ी पोशाक या Tोकन स सदश �ो, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो पाच सौ रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

अधयाय 8

लोक पर!ाहित क हिवरदध अपरा�ो क हिवषय म 141. हिवधि�हिवरदध जमाव--पाच या अधिधक वयलि2यो का जमा( “हि(धिधहि(रदध जमा(” क�ा जाता �, यटिद उन वयलि2यो

का, जिजनस (� जमा( गटिठत हआ �, सामानय उददशय �ो--

प�ला--3[क दरीय सरकार को, या हिकसी राजय सरकार को, या ससदी को या, हिकसी राजय क हि(धान-मड�T को, या हिकसी �ोक स(क को, जब हिक (� ऐस �ोक स(क की हि(धिधपण. शलि2 का परयोग कर र�ा �ो, आपराधिधक ब� दवारा, या आपराधिधक ब� क परदश.न दवारा, आतहिकत करना, अथ(ा

दसरा--हिकसी हि(धिध क, या हिकसी (ध आदलिशका क, हिनषपादन का परहितरोध करना, अथ(ा तीसरा--हिकसी रिरधि� या आपराधिधक अहितचार या अनय अपराध का करना, अथ(ा चौथा--हिकसी वयलि2 पर आपराधिधक ब� दवारा या आपराधिधक ब� क परदश.न दवारा, हिकसी सपभितत का कबजा �ना या

अभिभपरापत करना या हिकसी वयलि2 को हिकसी माग. क अधिधकार क उपभोग स, या ज� का उपभोग करन क अधिधकार या अनय अमत. अधिधकार स जिजसका (� कबजा र�ता �ो, या उपभोग करता �ो, (लिचत करना या हिकसी अधिधकार या अनधिमत अधिधकार को पर(रवितत कराना, अथ(ा

पाचवा--आपराधिधक ब� दवारा या आपराधिधक ब� क परदश.न दवारा हिकसी वयलि2 को (� करन क लि�ए, जिजस करन क लि�ए (� (ध रप स आबदध न �ो या उसका �ोप करन क लि�ए, जिजस करन का (� (ध रप स �कदार �ो, हि((श करना ।

सपषटीकरण--कोई जमा(, जो इकठठा �ोत समय हि(धिधहि(रदध न�ी था, बाद को हि(धिधहि(रदध जमा( �ो सकगा । 142. हिवधि�हिवरदध जमाव का सदसय �ो�ा--जो कोई उन तथयो स परिरलिचत �ोत हए, जो हिकसी जमा( को हि(धिधहि(रदध

जमा( बनात �, उस जमा( म साशय सनधिममलि�त �ोता � या उसम बना र�ता �, (� हि(धिधहि(रदध जमा( का सदसय �, य� क�ा जाता � ।

143. दड--जो कोई हि(धिधहि(रदध जमा( का सदसय �ोगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध छ� मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

144. घातक आय� स ससथि�त �ोकर हिवधि�हिवरदध जमाव म सममिममधिलत �ो�ा--जो कोई हिकसी घातक आयध स, या हिकसी ऐसी चीज स, जिजसस आकरामक आयध क रप म उपयोग हिकए जान पर मतय कारिरत �ोनी सभावय �, सणडि�त �ोत हए हिकसी हि(धिधहि(रदध जमा( का सदसय �ोगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

145. हिकसी हिवधि�हिवरदध जमाव म य� जा�त हए हिक उसक हिबखर जा� का समाद! द टिदया गया �, सममिममधिलत �ो�ा या उसम ब� र��ा--जो कोई हिकसी हि(धिधहि(रदध जमा( म य� जानत हए हिक ऐस हि(धिधहि(रदध जमा( को हिब�र जान का समादश हि(धिध दवारा हि(हि�त परकार स टिदया गया �, सनधिममलि�त �ोगा, या बना र�गा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

146. बलवा कर�ा--जब कभी हि(धिधहि(रदध जमा( दवारा या उसक हिकसी सदसय दवारा ऐस जमा( क सामानय उददशय को अगरसर करन म ब� या कि�सा का परयोग हिकया जाता �, तब ऐस जमा( का �र सदसय बल(ा करन क अपराध का दोषीी �ोगा ।

147. बलवा कर� क धिलए दड--जो कोई बल(ा करन का दोषीी �ोगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स,

जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा । 1 1927 क अधिधहिनयम स0 10 की धारा 2 और अनसची 1 दवारा अतःसथाहिपत । 2 1927 क अधिधहिनयम स0 10 की धारा 2 और अनसची 1 दवारा “या नाहि(क” क सथान पर परहितसथाहिपत ।

3 हि(धिध अनक�न आदश, 1950 दवारा “क दरीय या हिकसी परानतीय सरकार या हि(धान-मड�” क सथान पर परहितसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 28

148. घातक आय� स ससथि�त �ोकर बलवा कर�ा--जो कोई घातक आयध स, या हिकसी ऐसी चीज स, जिजसस आकरामक आयध क रप म उपयोग हिकए जान पर मतय कारिरत �ोनी सभावय �ो, सणडि�त �ोत हए बल(ा करन का दोषीी �ोगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

149. हिवधि�हिवरदध जमाव का �र सदसय, सामानय उददशय को अगरसर कर� म हिकए गए अपरा� का दोषाी--यटिद हि(धिधहि(रदध जमा( क हिकसी सदसय दवारा उस जमा( क सामानय उददशय को अगरसर करन म अपराध हिकया जाता �, या कोई ऐसा अपराध हिकया जाता �, जिजसका हिकया जाना उस जमा( क सदसय उस उददशय को अगरसर करन म समभावय जानत थ, तो �र वयलि2, जो उस अपराध क हिकए जान क समय उस जमा( का सदसय �, उस अपराध का दोषीी �ोगा ।

150. हिवधि�हिवरदध जमाव म सममिममधिलत कर� क धिलए वयधिकतयो का भाड पर ल�ा या भाड पर ल� क परहित मौ�ा�कलता--जो कोई वयलि2 हिकसी वयलि2 को हिकसी हि(धिधहि(रदध जमा( म सनधिममलि�त �ोन या उसका सदसय बनान क लि�ए भाO पर �गा या (चनबदध या हिनयोजिजत करगा या भाO पर लि�ए जान का, (चनबदध या हिनयोजिजत करन का सपर(त.न करगा या क परहित मौनानक� बना र�गा, (� ऐस हि(धिधहि(रदध जमा( क सदसय क रप म, और हिकसी ऐस वयलि2 दवारा ऐस हि(धिधहि(रदध जमा( क सदसय क नात ऐस भाO पर �न, (चनबदध या हिनयोजन क अनसरण म हिकए गए हिकसी भी अपराध क लि�ए उसी परकार दडनीय �ोगा, मानो (� ऐस हि(धिधहि(रदध जमा( का सदसय र�ा था या ऐसा अपराध उसन स(य हिकया था ।

151. पाच या अधि�क वयधिकतयो क जमाव को हिबखर जा� का समाद! टिदए जा� क पशचाता उसम जा�त हए सममिममधिलत �ो�ा या ब� र��ा--जो कोई पाच या अधिधक वयलि2यो क हिकसी जमा( म, जिजसस �ोक शाहित म हि(घन कारिरत �ोना समभावय �ो, ऐस जमा( को हिब�र जान का समादश हि(धिधप(.क द टिदए जान पर जानत हए सनधिममलि�त �ोगा या बना र�गा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध छ� मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

सपषटीकरण--यटिद (� जमा( धारा 141 क अथ. क अनतग.त हि(धिधहि(रदध जमा( �ो, तो अपराधी धारा 145 क अधीन दडनीय �ोगा ।

152. लोक सवक जब बलव इतयाटिद को दबा र�ा �ो, तब उस पर �मला कर�ा या उस बाधि�त कर�ा--जो कोई ऐस हिकसी �ोक स(क पर, जो हि(धिधहि(रदध जमा( क हिब�रन का, या बल( या दग को दबान का परयास ऐस �ोक स(क क नात अपन कत.वय क हिन(.�न म कर र�ा �ो, �म�ा करगा या उसको �म� की धमकी दगा या उसक काम म बाधा डा�गा या बाधा डा�न का परयतन करगा या ऐस �ोक स(क पर आपराधिधक ब� का परयोग करगा या करन की धमकी दगा, या करन का परयतन करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

153. बलवा करा� क आ!य स सवरिरता स परकोप� द�ा--जो कोई अ(ध बात क करन दवारा हिकसी वयलि2 को परिरदवष स या स(रिरता स परकोहिपत इस आशय स या य� समभावय जानत हए करगा हिक ऐस परकोपन क परिरणामस(रप बल( का अपराध हिकया जाएगा ; यटिद बलवा हिकया जाए--यटिद ऐस परकोपन क परिरणामस(रप बल( का अपराध हिकया जाए, तो (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध एक (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, और यटिद बलवा � हिकया जाए--यटिद बल( का अपराध न हिकया जाए, तो (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध छ� मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

1[153क. �म#, मलव!, भाषाा, जनम-सथा�, हि�वास-सथा�, इतयाटिद क आ�ारो पर हिवशिभनन सम�ो क बीच !तरता का सपरवत#� और सौ�ादर# ब� र�� पर परहितकल परभाव डाल� वाल काय# कर�ा--जो कोई--

(क) बो� गए या लि�� गए शबदो दवारा या सकतो दवारा या दशयरपणो दवारा या अनयथा हि(भिभनन धारयिमक, म�(शीय या भाषीायी या परादलिशक सम�ो, जाहितयो या समदायो क बीच असौ�ादर. अथ(ा शतरता, घणा या (मनसय की भा(नाए, धम., म�(श, जनम-सथान, हिन(ास-सथान, भाषीा, जाहित या समदाय क आधारो पर या अनय हिकसी भी आधार पर सपर(रवितत करगा या सपर(रवितत करन का परयतन करगा, अथ(ा

(�) कोई ऐसा काय. करगा, जो हि(भिभनन धारयिमक, म�(शीय, भाषीायी या परादलिशक सम�ो या जाहितयो या समदायो क बीच सौ�ादर. बन र�न पर परहितक� परभा( डा�न (ा�ा � और जो �ोकपरशानतिनत म हि(घन डा�ता � या जिजसस उसम हि(घन पOना समभावय �ो, 2[अथ(ा]

2[(ग) कोई ऐसा अभयास, आनदो�न, क(ायद या अनय (सा �ी हि�Eयाक�ाप इस आशय स सचालि�त करगा हिक ऐस हि�Eयाक�ाप म भाग �न (ा� वयलि2 हिकसी धारयिमक, म�(शीय, भाषीायी या परादलिशक सम� या जाहित या समदाय

क हि(रदध आपराधिधक ब� या कि�सा का परयोग करग या परयोग करन क लि�ए परलिशभिकषत हिकए जाएग या य� समभावय जानत हए सचालि�त करगा हिक ऐस हि�Eयाक�ाप म भाग �न (ा� वयलि2 हिकसी धारयिमक, म�(शीय, भाषीायी या परादलिशक सम� या जाहित या समदाय क हि(रदध आपराधिधक ब� या कि�सा का परयोग करग या परयोग करन क लि�ए परलिशभिकषत हिकए जाएग अथ(ा ऐस

1 1969 क अधिधहिनयम स0 35 की धारा 2 दवारा प(.(तx धारा क सथान पर परहितसथाहिपत । 2 1972 क अधिधहिनयम स0 31 की धारा 2 दवारा अतःसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 29

हि�Eयाक�ाप म इस आशय स भाग �गा हिक हिकसी धारयिमक, म�(शीय, भाषीायी या परादलिशक सम� या जाहित या समदाय क हि(रदध आपराधिधक ब� या कि�सा का परयोग कर या परयोग करन क लि�ए परलिशभिकषत हिकया जाए या य� समभावय जानत हए भाग �गा हिक ऐस हि�Eयाक�ाप म भाग �न (ा� वयलि2 हिकसी धारयिमक, म�(शीय, भाषीायी या परादलिशक सम� या जाहित या समदाय क हि(रदध आपराधिधक ब� या कि�सा का परयोग करग या परयोग करन क लि�ए परलिशभिकषत हिकए जाएग और ऐस हि�Eयाक�ाप स ऐसी धारयिमक, म�(शीय, भाषीायी या परादलिशक सम� या जाहित या समदाय क सदसयो क बीच, चा� हिकसी भी कारण स, भय या सतरास या असरकषा की भा(ना उतपनन �ोती � या उतपनन �ोनी समभावय �,]

(� कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स दहिडत हिकया जाएगा । (2) पजा क सथा� आटिद म हिकया गया अपरा�--जो कोई उपधारा (1) म हि(हिनरदिदषT अपराध हिकसी पजा क सथान म

या हिकसी जमा( म, जो धारयिमक पजा या धारयिमक कम. करन म �गा हआ �ो, करगा, (� कारा(ास स, जो पाच (ष. तक का �ो सकगा, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।]

1[153ख. राषटरीय अखडता पर परहितकल परभाव डाल� वाल लाछ�, पराखया�--(1) जो कोई बो� गए या लि�� गए शबदो दवारा या सकतो दवारा या दशयरपणो दवारा या अनयथा,--

(क) ऐसा कोई �ाछन �गाएगा या परकालिशत करगा हिक हिकसी (ग. क वयलि2 इस कारण स हिक ( हिकसी धारयिमक, म�(शीय, भाषीायी या परादलिशक सम� या जाहित या समदाय क सदसय �, हि(धिध दवारा सथाहिपत भारत क सहि(धान क परहित सचची शरदधा और हिनषठा न�ी र� सकत या भारत की परभता और अ�डता की मया.दा न�ी बनाए र� सकत, अथ(ा

(�) य� पराखयान करगा, परामश. दगा, स�ा� दगा, परचार करगा या परकालिशत करगा हिक हिकसी (ग. क वयलि2यो को इस कारण हिक ( हिकसी धारयिमक, म�(शीय, भाषीायी या परादलिशक सम� या जाहित या समदाय क सदसय �, भारत क नागरिरक क रप म उनक अधिधकार न टिदए जाए या उन� उनस (लिचत हिकया जाए, अथ(ा

(ग) हिकसी (ग. क वयलि2यो की, बाधयता क सबध म इस कारण हिक ( हिकसी धारयिमक, म�(शीय, भाषीायी या परादलिशक सम� या जाहित या समदाय क सदसय �, कोई पराखयान करगा, परामश. दगा, अभिभ(ाकी करगा या अपी� करगा अथ(ा परकालिशत करगा, और ऐस पराखयान, परामश., अभिभ(ाकी या अपी� स ऐस सदसयो तथा अनय वयलि2यो क बीच असामजसय, अथ(ा शतरता या घणा या (मनसय की भा(नाए उतपनन �ोती � या उतपनन �ोनी सभावय �,

(� कारा(ास स, जो तीन (ष. तक का �ो सकगा, या जमा.न स, अथ(ा दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा । (2) जो कोई उपधारा (1) म हि(हिनरदिदषT कोई अपराध हिकसी उपासना सथ� म या धारयिमक उपासना अथ(ा धारयिमक कम.

करन म �ग हए हिकसी जमा( म करगा (� कारा(ास स, जो पाच (ष. तक का �ो सकगा, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।]

154. उस भबरिम का सवामी या अधि�भोगी, जिजस पर हिवधि�हिवरदध जमाव हिकया गया �--जब कभी कोई हि(धिधहि(रदध जमा( या बल(ा �ो, तब जिजस भधिम पर ऐसा हि(धिधहि(रदध जमा( �ो या ऐसा बल(ा हिकया जाए, उसका स(ामी या अधिधभोगी और ऐसी भधिम म हि�त र�न (ा�ा या हि�त र�न का दा(ा करन (ा�ा वयलि2 एक �जार रपए स अनधिधक जमा.न स दडनीय �ोगा, यटिद (� या उसका अभिभकता. या परबधक य� जानत हए हिक ऐसा अपराध हिकया जा र�ा � या हिकया जा चका � या इस बात का हि(शवास करन का कारण र�त हए हिक ऐस अपराध का हिकया जाना समभावय �, उस बात की अपनी शलि2-भर शीघरतम सचना हिनकTतम पलि�स थान क परधान आहिcसर को न द या न द उस दशा म, जिजसम हिक उस या उन� य� हि(शवास करन का कारण �ो हिक य� �गभग हिकया �ी जान (ा�ा �, अपनी शलि2-भर सब हि(धिधपण. साधनो का उपयोग उसका हिन(ारण करन क लि�ए न�ी करता या करत और उसक �ो जान पर अपनी शलि2-भर सब हि(धिधपण. साधनो का उस हि(धिधहि(रदध जमा( को हिब�रन या बल( को दबान क लि�ए उपयोग न�ी करता या करत ।

155. उस वयधिकत का दाबरियतव, जिजसक फायद क धिलए बलवा हिकया जाता �--जब कभी हिकसी ऐस वयलि2 क cायद क लि�ए या उसकी ओर स बल(ा हिकया जाए, जो हिकसी भधिम का, जिजसक हि(षय म ऐसा बल(ा �ो, स(ामी या अधिधभोगी �ो या जो ऐसी भधिम म या बल( को पदा करन (ा� हिकसी हि((ादगरसत हि(षय म कोई हि�त र�न का दा(ा करता �ो या जो उसस कोई cायदा परहितग�ीत कर या पा चका �ो, तब ऐसा वयलि2, जमा.न स दडनीय �ोगा, यटिद (� या उसका अभिभकता. या परबधक इस बात का हि(शवास करन का कारण र�त हए हिक ऐसा बल(ा हिकया जाना सभावय था या हिक जिजस हि(धिधहि(रदध जमा( दवारा ऐसा बल(ा हिकया गया था, (� जमा( हिकया जाना समभावय था अपनी शलि2-भर सब हि(धिधपण. साधनो का ऐस जमा( या बल( का हिकया जाना हिन(ारिरत करन क लि�ए और उस दबान और हिब�रन क लि�ए उपयोग न�ी करता या करत ।

156. उस सवामी या अधि�भोगी क अशिभकता# का दाबरियतव, जिजसक फायद क धिलए बलवा हिकया जाता �ी--जब कभी ऐस वयलि2 क cायद क लि�ए या ऐस वयलि2 की ओर स बल(ा हिकया जाए, जो हिकसी भधिम का, जिजसक हि(षय म ऐसा बल(ा

�ो, स(ामी �ो या 1 1972 क अधिधहिनयम स0 31 की धारा 2 दवारा अतःसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 30

अधिधभोगी �ो या जो ऐसी भधिम म या बल( क पदा करन (ा� हिकसी हि((ादगरसत हि(षय म कोई हि�त र�न का दा(ा करता �ो या जो उसस कोई cायदा परहितग�ीत कर या पा चका �ो,

तब उस वयलि2 का अभिभकता. या परबधक जमा.न स दडनीय �ोगा, यटिद ऐसा अभिभकता. या परबधक य� हि(शवास करन का कारण र�त हए हिक ऐस बल( का हिकया जाना समभावय था या हिक जिजस हि(धिधहि(रदध जमा( दवारा ऐसा बल(ा हिकया गया था, उसका हिकया जाना समभावय था, अपनी शलि2-भर सब हि(धिधपण. साधनो का ऐस बल( या जमा( का हिकया जाना हिन(ारिरत करन क लि�ए और उसको दबान और हिब�रन क लि�ए उपयोग न�ी करता या करत ।

157. हिवधि�हिवरदध जमाव क धिलए भाड पर लाए गए वयधिकतयो को सशरय द�ा--जो कोई अपन अधिधभोग या भारसाधन, या हिनयतरण क अधीन हिकसी ग� या परिरसर म हिकन�ी वयलि2यो को, य� जानत हए हिक ( वयलि2 हि(धिधहि(रदध जमा( म सनधिममलि�त �ोन या सदसय बनन क लि�ए भाO पर �ाए गए, (चनबदध या हिनयोजिजत हिकए गए � या भाO पर �ाए जान, (चनबदध या हिनयोजिजत हिकए जान (ा� �, सशरय दगा, आन दगा या सममलि�त करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध छ� मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

158. हिवधि�हिवरदध जमाव या बलव म भाग ल� क धिलए भाड पर जा�ा--जो कोई धारा 141 म हि(हिनरदिदषT काय� म स हिकसी को करन क लि�ए या करन म स�ायता दन क लि�ए (चनबदध हिकया या भाO पर लि�या जाएगा या भाO पर लि�ए जान या (चनबदध हिकए जान क लि�ए अपनी परसथापना करगा या परयतन करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध छ� मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

या स!सतर चल�ा--तथा जो कोई प(�2 परकार स (चनबदध �ोन या भाO पर लि�ए जान पर, हिकसी घातक आयध स या ऐसी हिकसी चीज स, जिजसस आकरामक आयध क रप म उपयोग हिकए जान पर मतय कारिरत �ोनी सभावय �, सणडि�त �ोकर च�गा या सणडि�त च�न क लि�ए (चनबदध �ोगा या अपनी परसथापना करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

159. दगा--जब हिक दो या अधिधक वयलि2 �ोकसथान म �Oकर �ोक शानतिनत म हि(घन डा�त �, तब य� क�ा जाता � हिक ( “दगा करत �” ।

160. दगा कर� क धिलए दड--जो कोई दगा करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध एक मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो एक सौ रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

अधयाय 9

लोक सवको दवारा या उ�स सबधि�त अपरा�ो क हिवषय म 161 स 165क--भरषTाचार हिन(ारण अधिधहिनयम, 1988 (1988 का 49) की धारा 31 दवारा हिनरलिसत । 166. लोक सवक, जो हिकसी वयधिकत को कषहित कारिरत कर� क आ!य स हिवधि� की अवजञा करता �--जो कोई

�ोक स(क �ोत हए हि(धिध क हिकसी ऐस हिनदश की जो उस ढग क बार म �ो जिजस ढग स �ोक स(क क नात उस आचरण करना �, जानत हए अ(जञा इस आशय स या य� समभावय जानत हए करगा हिक ऐसी अ(जञा स (� हिकसी वयलि2 को कषहित कारिरत करगा, (� सादा कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध एक (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

दषटात क, जो एक आहिcसर �, और नयाया�य दवारा य क पकष म दी गई हिडकरी की तधि� क लि�ए हिनषपादन म समपभितत �न क लि�ए हि(धिध दवारा

हिनदलिशत �, य� जञान र�त हए हिक य� समभावय � हिक तदीदवारा (� य को कषहित कारिरत करगा, जानत हए हि(धिध क उस हिनदश की अ(जञा करता � । क न इस धारा म परिरभाहिषत अपराध हिकया � ।

167. लोक सवक, जो कषहित कारिरत कर� क आ!य स अ!दध दसतावज रचता �--जो कोई �ोक स(क �ोत हए और ऐस �ोक स(क क नात 1[हिकसी दसता(ज या इ�कटराहिनक अभिभ�� की रचना या अन(ाद करन का भार-(�न करत हए उस दसता(ज या इ�कटराहिनक अभिभ�� की रचना, तयार या अन(ाद] ऐस परकार स जिजस (� जानता �ो या हि(शवास करता �ो हिक अशदध �, इस आशय स, या समभावय जानत हए करगा हिक तदीदवारा (� हिकसी वयलि2 को कषहित कारिरत कर, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

168. लोक सवक, जो हिवधि�हिवरदध रप स वयापार म लगता �--जो कोई �ोक स(क �ोत हए और ऐस �ोक स(क क नात इस बात क लि�ए (ध रप स आबदध �ोत हए हिक (� वयापार म न �ग, वयापार म �गगा, (� सादा कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध एक (ष. तक की �ो सकगी या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

1 2000 क अधिधहिनयम स0 21 की धारा 91 और प��ी अनसची दवारा (17-10-2000 स) कहितपय शबदो क सथान पर परहितसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 31

169. लोक सवक, जो हिवधि�हिवरदध रप स सपधिV करय करता � या उसक धिलए बोली लगाता �ी--जो कोई �ोक स(क �ोत हए और ऐस �ोक स(क क नात इस बात क लि�ए (ध रप स आबदध �ोत हए हिक (� अमक सपभितत को न तो करय कर और न उसक लि�ए बो�ी �गाए, या तो अपन हिनज क नाम म, या हिकसी दसर क नाम म, अथ(ा दसरो क साथ सय2 रप स, या अशो म उस सपभितत को करय करगा, या उसक लि�ए बो�ी �गाएगा, (� सादा कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा, और यटिद (� सपभितत करय कर �ी गई �, तो (� अधिधहत कर �ी जाएगी ।

170. लोक सवक का परहितरपण--जो कोई हिकसी हि(लिशषT पद को �ोक स(क क नात धारण करन का अपदश य� जानत हए करगा हिक (� ऐसा पद धारण न�ी करता � या ऐसा पद धारण करन (ा� हिकसी अनय वयलि2 का छदीम परहितरपण करगा और ऐस बना(Tी रप म ऐस पदाभास स कोई काय. करगा या करन का परयतन करगा (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

171. कपटपण# आ!य स लोक सवक क उपयोग की पो!ाक प���ा या टोक� को �ारण कर�ा--जो कोई �ोक स(को क हिकसी �ास (ग. का न �ोत हए, इस आशय स हिक य� हि(शवास हिकया जाए, या इस जञान स हिक समभावय � हिक य� हि(शवास हिकया जाए, हिक (� �ोक स(को क उस (ग. का �, �ोक स(को क उस (ग. दवारा उपयोग म �ाई जान (ा�ी पोशाक क सदश पोशाक प�नगा, या Tोकन क सदश कोई Tोकन धारण करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन मास तक की �ो सकगी या जमा.न स, जो दो सौ रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

1[अधयाय 9क हि�वा#च� सब�ी अपरा�ो क हिवषय म

171क. “अभयथ�”, “हि�वा#च� अधि�कार” परिरभाहिषत--इस अधयाय क परयोजनो क लि�ए-- 2[(क) “अभयथx” स (� वयलि2 अभिभपरत � जो हिकसी हिन(ा.चन म अभयथx क रप म नामहिनरदिदषT हिकया गया � ;] (�) “हिन(ा.चन अधिधकार” स हिकसी हिन(ा.चन म अभयथx क रप म �O �ोन या �O न �ोन या अभयथ.ना स अपना

नाम (ाप� �न या मत दन या मत दन स हि(रत र�न का हिकसी वयलि2 का अधिधकार अभिभपरत � । 171ख. रिरशवत--(1) जो कोई--

(त) हिकसी वयलि2 को इस उददशय स परिरतोषण दता � हिक (� उस वयलि2 को या हिकसी अनय वयलि2 को हिकसी हिन(ा.चन अधिधकार का परयोग करन क लि�ए उतपररिरत कर या हिकसी वयलि2 को इसलि�ए इनाम द हिक उसन ऐस अधिधकार का परयोग हिकया �, अथ(ा

(तत) स(य अपन लि�ए या हिकसी अनय वयलि2 क लि�ए कोई परिरतोषण ऐस हिकसी अधिधकार को परयोग म �ान क लि�ए या हिकसी अनय वयलि2 को ऐस हिकसी अधिधकार को परयोग म �ान क लि�ए उतपररिरत करन या उतपररिरत करन का परयतन करन क लि�ए इनाम क रप म परहितग�ीत करता �,

(� रिरशवत का अपराध करता � : परत �ोक नीहित की घोषणा या �ोक काय.(ा�ी का (चन इस धारा क अधीन अपराध न �ोगा । (2) जो वयलि2 परिरतोषण दन की परसथापना करता � या दन को स�मत �ोता � या उपापत करन की परसथापना या परयतन

करता �, य� समझा जाएगा हिक (� परिरतोषण दता � । (3) जो वयलि2 परिरतोषण अभिभपरापत करता � या परहितग�ीत करन को स�मत � या अभिभपरापत करन का परयतन करता �,

य� समझा जाएगा हिक (� परिरतोषण परहितग�ीत करता � और जो वयलि2 (� बात करन क लि�ए, जिजस करन का उसका आशय न�ी �, �तस(रप, या जो बात उसन न�ी की � उस करन क लि�ए इनाम क रप म परिरतोषण परहितग�ीत करता �, य� समझा जाएगा हिक उसन परिरतोषण को इनाम क रप म परहितग�ीत हिकया � ।

171ग. हि�वा#च�ो म असमयका असर डाल�ा--(1) जो कोई हिकसी हिन(ा.चन अधिधकार क हिनबा.ध परयोग म स(चछया �सतकषप करता � या �सतकषप करन का परयतन करता �, (� हिन(ा.चन म असमयकी असर डा�न का अपराध करता � ।

(2) उपधारा (1) क उपबधो की वयापकता पर परहितक� परभा( डा� हिबना जो कोई-- (क) हिकसी अभयथx या मतदाता को, या हिकसी ऐस वयलि2 को, जिजसस अभयथx या मतदाता हि�तबदध �, हिकसी

परकार की कषहित करन की धमकी दता �, अथ(ा 1 1920 क अधिधहिनयम स0 39 की धारा 2 दवारा अधयाय 9क अतःसथाहिपत ।

2 1975 क अधिधहिनयम स0 40 की धारा 9 दवारा �ड (क) क सथान पर परहितसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 32

(�) हिकसी अभयथx या मतदाता को य� हि(शवास करन क लि�ए उतपररिरत करता � या उतपररिरत करन का परयतन करता � हिक (� या कोई ऐसा वयलि2, जिजसस (� हि�तबदध �, द(ी अपरसाद या आधयानधितमक परिरहिननदा का भाजन �ो जाएगा या बना टिदया जाएगा,

य� समझा जाएगा हिक (� उपधारा (1) क अथ. क अतग.त ऐस अभयथx या मतदाता क हिन(ा.चन अधिधकार क हिनबा.ध परयोग म �सतकषप करता � ।

(3) �ोक नीहित की घोषणा या �ोक काय.(ा�ी का (चन या हिकसी (ध अधिधकार का परयोग मातर, जो हिकसी हिन(ा.चन अधिधकार म �सतकषप करन क आशय क हिबना �, इस धारा क अथ. क अतग.त �सतकषप करना न�ी समझा जाएगा ।

171घ. हि�वा#च�ो म परहितरपण--जो कोई हिकसी हिन(ा.चन म हिकसी अनय वयलि2 क नाम स, चा� (� जीहि(त �ो या मत, या हिकसी कणडिलपत नाम स, मतपतर क लि�ए आ(दन करता या मत दता �, या ऐस हिन(ा.चन म एक बार मत द चकन क पशचात उसी हिन(ा.चन म अपन नाम स मत-पतर क लि�ए आ(दन करता �, और जो कोई हिकसी वयलि2 दवारा हिकसी ऐस परकार स मतदान को दषपररिरत करता �, उपापत करता � या उपापत करन का परयतन करता �, (� हिन(ा.चन म परहितरपण का अपराध करता � ।

1[परत इस धारा की कोई बात हिकसी ऐस वयलि2 हिक �ाग न�ी �ोगी जिजस ततसमय पर(तत हिकसी हि(धिध क अधीन मतदाता की ओर स, ज�ा तक (� ऐस मतदाता की ओर स परोकषी क रप म मत दता �, परोकषी क रप म मत दन क लि�ए पराधिधकत हिकया गया � ।]

171ङ. रिरशवत क धिलए दणड--जो कोई रिरशवत का अपराध करगा, (� दोनो म स हिकसी भात क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध एक (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा :

परत सतकार क रप म रिरशवत क(� जमा.न स �ी दणडिणडत की जाएगी । सपषटीकरण--“सतकार” स रिरशवत का (� रप अभिभपरत � जो परिरतोषण, �ादय, पय, मनोरजन या रसद क रप म � । 171च. हि�वा#च�ो म असमयक असर डाल� या परहितरपण क धिलए दणड--जो कोई हिकसी हिन(ा.चन म असमयक असर

डा�न या परहितरपण का अपराध करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध एक (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

171छ. हि�वा#च� क धिसलधिसल म बरिमथया कथ�--जो कोई हिन(ा.चन क परिरणाम पर परभा( डा�न क आशय स हिकसी अभयथx क (यलि2क शी� या आचरण क सबध म तथय का कथन तातपरयियत �ोन (ा�ा कोई ऐसा कथन करगा या परकालिशत करगा, जो धिमथया �, और जिजसका धिमथया �ोना (� जानता या हि(शवास करता � अथ(ा जिजसक सतय �ोन का (� हि(शवास न�ी करता � (� जमा.न स दणडिणडत हिकया जाएगा ।

171ज. हि�वा#च� क धिसलधिसल म अव� सदाय--जो कोई हिकसी अभयथx क साधारण या हि(शष लि�खि�त पराधिधकार क हिबना ऐस अभयथx का हिन(ा.चन अगरसर करन या हिन(ा.चन करा दन क लि�ए कोई सा(.जहिनक सभा करन म या हिकसी हि(जञापन, परिरपतर या परकाशन पर या हिकसी भी अनय ढग स वयय करगा या करना पराधिधकत करगा, (� जमा.न स, जो पाच सौ रपए तक का �ो सकगा, दणडिणडत हिकया जाएगा :

परनत यटिद कोई वयलि2, जिजसन पराधिधकार क हिबना कोई ऐस वयय हिकए �ो, जो क� धिम�ाकर दस रपए स अधिधक न �ो, उस तारी� को ऐस वयय हिकए गए �ो, दस टिदन क भीतर उस अभयथx का लि�खि�त अनमोदन अभिभपरापत कर �, तो य� समझा जाएगा हिक उसन ऐस वयय उस अभयथx क पराधिधकार स हिकए � ।

171झ. हि�वा#च� लखा रख� म असफलता--जो कोई हिकसी ततसमय पर(तत हि(धिध दवारा या हि(धिध का ब� र�न (ा� हिकसी हिनयम दवारा इसक लि�ए अपभिकषत �ोत हए हिक (� हिन(ा.चन म या हिन(ा.चन क सबध म हिकए गए वययो का ��ा र�, ऐसा ��ा र�न म असc� र�गा, (� जमा.न स, जो पाच सौ रपए तक का �ो सकगा, दहिडत हिकया जाएगा ।]

अधयाय 10

लोक सवको क हिवधि�पण# पराधि�कार क अवमा� क हिवषय म 172. सम�ो की तामील या अनय काय#वा�ी स बच� क धिलए फरार �ो जा�ा--जो कोई हिकसी ऐस �ोक स(क दवारा

हिनका� गए समन, सचना या आदश की तामी� स बचन क लि�ए cरार �ो जाएगा, जो ऐस �ोक स(क क नात ऐस समन, सचना या आदश को हिनका�न क लि�ए (ध रप स सकषम �ो, (� सादा कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध एक मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो पाच सौ रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स,

1 2003 क अधिधहिनयम स. 24 की धारा 5 दवारा (22-9-2003 स) अतःसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 33

अथ(ा, यटिद समन या सचना या आदश 1[हिकसी नयाया�य म स(य या अभिभकता. दवारा �ाजिजर �ोन क लि�ए, या दसता(ज अथ(ा इ�कटराहिनक अभिभ�� पश करन क लि�ए] �ो तो (� सादा कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध छ� मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो एक �जार रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

173. सम� की तामील का या अनय काय#वा�ी का या उसक परका!� का हि�वारण कर�ा--जो कोई हिकसी �ोक स(क दवारा जो �ोक स(क उस नात कोई समन, सचना या आदश हिनका�न क लि�ए (ध रप स सकषम �ो हिनका� गए समन, सचना या आदश की तामी� अपन पर या हिकसी अनय वयलि2 पर �ोना हिकसी परकार साशय हिन(ारिरत करगा,

अथ(ा हिकसी ऐस समन, सचना या आदश का हिकसी ऐस सथान म हि(धिधप(.क �गाया जाना साशय हिन(ारिरत करगा, अथ(ा हिकसी ऐस समन, सचना या आदश को हिकसी ऐस सथान स, ज�ा हिक हि(धिधप(.क �गाया हआ �, साशय �Tाएगा, अथ(ा हिकसी ऐस �ोक स(क क पराधिधकाराधीन की जान (ा�ी हिकसी उदघोषणा का हि(धिधप(.क हिकया जाना साशय

हिन(ारिरत करगा, जो ऐस �ोक स(क क नात ऐसी उदघोषणा का हिकया जाना हिनरदिदषT करन क लि�ए (ध रप स सकषम �ो, (� सादा कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध एक मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो पाच सौ रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स,

अथ(ा, यटिद समन, सचना, आदश या उदघोषणा 2[हिकसी नयाया�य म स(य या अभिभकता. दवारा �ाजिजर �ोन क लि�ए या दसता(ज अथ(ा इ�कटराहिनक अभिभ�� पश करन क लि�ए] �ो, तो (� सादा कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध छ� मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो एक �जार रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

174. लोक सवक का आद! � मा�कर गर-�ाजिजर र��ा--जो कोई हिकसी �ोक स(क दवारा हिनका� गए उस समन, सचना, आदश या उदघोषणा क पा�न म, जिजस ऐस �ोक स(क क नात हिनका�न क लि�ए (� (ध रप स सकषम �ो, हिकसी हिनभिशचत सथान और समय पर स(य या अभिभकता. दवारा �ाजिजर �ोन क लि�ए (ध रप स आबदध �ोत हए,

उस सथान या समय पर �ाजिजर �ोन का साशय �ोप करगा, या उस सथान स, ज�ा �ाजिजर �ोन क लि�ए (� आबदध �, उस समय स प(. च�ा जाएगा, जिजस समय च�ा जाना उसक लि�ए हि(धिधपण. �ोता,

(� सादा कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध एक मास तक की �ो सकगी या जमा.न स, जो पाच सौ रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स,

अथ(ा, यटिद समन, सचना, आदश या उदघोषणा हिकसी नयाया�य म स(य या हिकसी अभिभकता. दवारा �ाजिजर �ोन क लि�ए �, तो (� सादा कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध छ� मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो एक �जार रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

दषटात

(क) क क�कतता 3[उचच नयाया�य] दवारा हिनका� गए सपीना क पा�न म उस नयाया�य क समकष उपसजात �ोन क लि�ए (ध रप स आबदध �ोत हए, उपसजात �ोन म साशय �ोप करता �, क न इस धारा म परिरभाहिषत अपराध हिकया � ।

(�) क 4[जिज�ा नयायाधीश] दवारा हिनका� गए समन क पा�न म उस 3[जिज�ा नयायाधीश] क समकष साकषी क रप म उपसजात �ोन क लि�ए (ध रप स आबदध �ोत हए, उपसजात �ोन म साशय �ोप करता � । क न इस धारा म परिरभाहिषत अपराध हिकया � ।

175. 1[दसतावज या इलकटराहि�क अशिभलख] प! कर� क धिलए व� रप स आबदध वयधिकत का लोक सवक को 1[दसतावज या इलकटराहि�क अशिभलख] प! कर� का लोप--जो कोई हिकसी �ोक स(क को, ऐस �ोक स(क क नात हिकसी 1[दसता(ज या इ�कटराहिनक अभिभ��] को पश करन या परिरदतत करन क लि�ए (ध रप स आबदध �ोत हए, उसको इस परकार पश करन या परिरदतत करन का साशय �ोप करगा, (� सादा कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध एक मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो पाच सौ रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स,

अथ(ा, यटिद (� 1[दसता(ज या इ�कटराहिनक अभिभ��] हिकसी नयाया�य म पश या परिरदतत की जानी �ो, तो (� सादा कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध छ� मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो एक �जार रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

दषटात 1 2000 क अधिधहिनयम स. 21 की धारा 91 और प��ी अनसची दवारा (17-10-2000 स) कहितपय शबदो क सथान पर परहितसथाहिपत । 2 2000 क अधिधहिनयम स. 21 की धारा 91 और प��ी अनसची दवारा (17-10-2000 स) “दसता(ज” क सथान पर परहितसथाहिपत । 3 हि(धिध अनक�न आदश, 1950 दवारा “उचचतम नयाया�य” क सथान पर परहितसथाहिपत ।

4 हि(धिध अनक�न आदश, 1950 दवारा “जिज�ा नयायाधीश” क सथान पर परहितसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 34

क, जो एक 1[एक जिज�ा नयाया�य] क समकष दसता(ज पश करन क लि�ए (ध रप स आबदध �, उसको पश करन का साशय �ोप करता � । क न इस धारा म परिरभाहिषत अपराध हिकया � ।

176. सच�ा या इधिVला द� क धिलए व� रप स आबदध वयधिकत दवारा लोक सवक को सच�ा या इधिVला द� का लोप--जो कोई हिकसी �ोक स(क को, ऐस �ोक स(क क नात हिकसी हि(षय पर कोई सचना दन या इभितत�ा दन क लि�ए (ध रप स आबदध �ोत हए, हि(धिध दवारा अपभिकषत परकार स और समय पर ऐसी सचना या इभितत�ा दन का साशय �ोप करगा, (� सादा कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध एक मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो पाच सौ रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स,

अथ(ा, यटिद दी जान क लि�ए अपभिकषत सचना या इभितत�ा हिकसी अपराध क हिकए जान क हि(षय म �ो, या हिकसी अपराध क हिकए जान का हिन(ारण करन क परयोजन स या हिकसी अपराधी को पकOन क लि�ए अपभिकषत �ो, तो (� सादा करा(ास स, जिजसकी अ(धिध छ� मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो एक �जार रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स,

2[अथ(ा, यटिद दी जान क लि�ए अपभिकषत सचना या इभितत�ा दणड परहि�Eया सहि�ता, 1898 (1898 का 5) की धारा 565 की उपधारा (1) क अधीन टिदए गए आदश दवारा अपभिकषत �, तो (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध छ� मास तक की �ो सकगी या जमा.न स, जो एक �जार रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स,] दहिडत हिकया जाएगा ।

177. बरिमथया इधिVला द�ा--जो कोई हिकसी �ोक स(क को ऐस �ोक स(क क नात हिकसी हि(षय पर इभितत�ा दन क लि�ए (ध रप स आबदध �ोत हए उस हि(षय पर सचची इभितत�ा क रप म ऐसी इभितत�ा दगा जिजसका धिमथया �ोना (� जानता � या जिजसक धिमथया �ोन का हि(शवास करन का कारण उसक पास �, (� सादा कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध छ� मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स जो एक �जार रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स,

अथ(ा, यटिद (� इभितत�ा, जिजस दन क लि�ए (� (ध रप स आबदध �ो कोई अपराध हिकए जान क हि(षय म �ो, या हिकसी अपराध क हिकए जान का हिन(ारण करन क परयोजन स, या हिकसी अपराधी को पकOन क लि�ए अपभिकषत �ो, तो (� दोनो म स, हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

दषटात (क) क, एक भ-धारक, य� जानत हए हिक उसकी भ-समपदा की सीमाओ क अदर एक �तया की गई �, उस जिज� क मजिजसटरT को

जानबझकर य� धिमथया इभितत�ा दता � हिक मतय साप काTन क परिरणामस(रप दघ.Tना स हई � । क इस धारा म परिरभाहिषत अपराध का दोषीी � । (�) क, जो गराम चौकीदार �, य� जानत हए हिक अनजान �ोगो का एक बOा हिगरो� य क ग� म, जो पOोस क गा( का हिन(ासी एक धनी वयापारी �, डकती करन क लि�ए उसक गा( स �ोकर गया � और बगा� सहि�ता क 1821 क 3हि(हिनयम 3 की धारा 7 क �ड 5 क अधीन हिनकTतम पलि�स थान क आहिcसर को उपरो2 घTना की इभितत�ा शीघर और ठीक समय पर दन क लि�ए आबदध �ोत हए, पलि�स आहिcसर को जानबझकर य� धिमथया इभितत�ा दता � हिक सटिदगधशी� क �ोगो का एक हिगरो� हिकसी भिभनन टिदशा म णडिसथत एक दरसथ सथान पर डकती करन क लि�ए गा( स �ोकर गया � । य�ा क, इस धारा क दसर भाग म परिरभाहिषत अपराध का दोषीी � ।

4[सपषटीकरण--धारा 176 म और इस धारा म “अपराध” शबद क अतग.त 5[भारत] स बा�र हिकसी सथान पर हिकया गया कोई ऐसा काय. आता �, जो यटिद भारत म हिकया जाता, तो हिनमनलि�खि�त धारा अथा.त 302, 304, 382, 392, 393, 394, 395, 396, 397, 398, 399, 402, 435, 436, 449, 450, 457, 458, 459 और 460 म स हिकसी धारा क अधीन दडनीय �ोता और “अपराधी” शबद क अतग.त कोई भी ऐसा वयलि2 आता �, जो कोई ऐसा काय. करन का दोषीी अभिभकलिथत �ो ।] 178. !पथ या परहितजञा� स इकार कर�ा, जबहिक लोक सवक दवारा व� वसा कर� क धिलए समयक रप स अपशिकषत हिकया जाए--जो कोई सतय कथन करन क लि�ए शपथ 6[या परहितजञान] दवारा अपन आप को आबदध करन स इकार करगा, जबहिक उसस अपन को इस परकार आबदध करन की अपकषा ऐस �ोक स(क दवारा की जाए जो य� अपकषा करन क लि�ए (ध रप स सकषम �ो हिक (� वयलि2 इस परकार अपन को आबदध कर, (� सादा कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध छ� मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो एक �जार रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

179. परशन कर� क धिलए पराधि�कत लोक सवक का उVर द� स इकार कर�ा--जो कोई हिकसी �ोक स(क स हिकसी हि(षय पर सतय कथन करन क लि�ए (ध रप स आबदध �ोत हए, ऐस �ोक स(क की (ध शलि2यो क परयोग म उस �ोक स(क दवारा उस हि(षय क बार म उसस पछ गए हिकसी परशन का उततर दन स इकार करगा, (� सादा कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध छ� मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो एक �जार रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

1 हि(धिध अनक�न आदश, 1950 दवारा “जिज�ा नयाया�य” क सथान पर परहितसथाहिपत । 2 1939 क अधिधहिनयम स. 22 की धारा 2 दवारा जोOा गया । 3 1862 क अधिधहिनयम स. 17 दवारा हिनरलिसत । 4 1894 क अधिधहिनयम स. 3 की धारा 5 दवारा अतःसथाहिपत । 5 हि(धिध अनक�न आदश, 1948, हि(धिध अनक�न आदश, 1950 और 1951 क अधिधहिनयम स0 3 की धारा 3 और अनसची दवारा “हिRटिTश भारत” क

सथान पर सशोधिधत �ो कर उपरो2 रप म आया । 6 1873 क अधिधहिनयम स. 10 की धारा 15 दवारा अतःसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 35

180. कथ� पर �सताकषर कर� स इकार--जो कोई अपन दवारा हिकए गए हिकसी कथन पर �सताकषर करन को ऐस �ोक स(क दवारा अपकषा हिकए जान पर, जो उसस य� अपकषा करन क लि�ए (ध रप स सकषम �ो हिक (� उस कथन पर �सताकषर कर, उस कथन पर �सताकषर करन स इकार करगा, (� सादा कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो पाच सौ रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा । 181. !पथ टिदला� या परहितजञा� करा� क धिलए पराधि�कत लोक सवक क, या वयधिकत क समकष !पथ या परहितजञा� पर बरिमथया कथ�--जो कोई हिकसी �ोक स(क या हिकसी अनय वयलि2 स, जो ऐस शपथ 4[टिद�ान या परहितजञान] दन क लि�ए हि(धिध दवारा पराधिधकत �ो, हिकसी हि(षय पर सतय कथन करन क लि�ए शपथ 4[या परहितजञान] दवारा (ध रप स आबदध �ोत हए ऐस �ोक स(क या यथाप(�2 अनय वयलि2 स उस हि(षय क सबध म कोई ऐसा कथन करगा, जो धिमथया �, और जिजसक धिमथया �ोन का या तो उस जञान �, या हि(शवास � या जिजसक सतय �ोन का उस हि(शवास न�ी �, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा, और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

1[182. इस आ!य स बरिमथया इधिVला द�ा हिक लोक सवक अप�ी हिवधि�पण# !धिकत का उपयोग दसर वयधिकत को कषहित कर� क धिलए कर--जो कोई हिकसी �ोक स(क को कोई ऐसी इभितत�ा, जिजसक धिमथया �ोन का उस जञान या हि(शवास �, इस आशय स दगा हिक (� उस �ोक स(क को पररिरत कर या य� समभावय जानत हए दगा हिक (� उसको तदद(ारा पररिरत करगा हिक (� �ोक स(क--

(क) कोई ऐसी बात कर या करन का �ोप कर जिजस (� �ोक स(क, यटिद उस उस सबध म, जिजसक बार म ऐसी इभितत�ा दी गई �, तथयो की स�ी णडिसथहित का पता �ोता तो न करता या करन का �ोप न करता, अथ(ा

(�) ऐस �ोक स(क की हि(धिधपण. शलि2 का उपयोग कर जिजस उपयोग स हिकसी वयलि2 को कषहित या कषोभ �ो, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध छ� मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो एक �जार रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

दषटात (क) क एक मजिजसटरT को य� इभितत�ा दता � हिक य एक पलि�स आहिcसर, जो ऐस मजिजसटरT का अधीनसथ �, कत.वय पा�न म उपकषा

या अ(चार का दोषीी �, य� जानत हए दता � हिक ऐसी इभितत�ा धिमथया �, और य� समभावय � हिक उस इभितत�ा स (� मजिजसटरT य को पदचयत कर दगा । क न इस धारा म परिरभाहिषत अपराध हिकया � ।

(�) क एक �ोक स(क को य� धिमथया इभितत�ा दता � हिक य क पास गपत सथान म हि(हिनहिषदध नमक � । (� इहित�ा य� जानत हए दता � हिक ऐसी इभितत�ा धिमथया �, और य� जानत हए दता � हिक य� समभावय � हिक उस इभितत�ा क परिरणामस(रप य क परिरसर की त�ाशी �ी जाएगी, जिजसस य को कषोभ �ोगा । क न इस धारा म परिरभाहिषत अपराध हिकया � ।

(ग) एक पलि�सजन को क य� धिमथया इभितत�ा दता � हिक एक हि(लिशषT गराम क पास उस पर �म�ा हिकया गया � और उस �T लि�या गया � । (� अपन पर �म�ा(र क रप म हिकसी वयलि2 का नाम न�ी �ता । हिकनत (� य� जानता � हिक य� सभावय � हिक इस इभितत�ा क परिरणामस(रप पलि�स उस गराम म जाच करगी और त�ालिशया �गी, जिजसस गराम(ालिसयो या उनम स कछ को कषोभ �ोगा । क न इस धारा म परिरभाहिषत अपराध हिकया � ।

183. लोक सवक क हिवधि�पण# पराधि�कार दवारा सपधिV धिलए जा� का परहितरो�--जो कोई हिकसी �ोक स(क क हि(धिधपण. पराधिधकार दवारा हिकसी सपभितत क � लि�ए जान का परहितरोध य� जानत हए या य� हि(शवास करन का कारण र�त हए करगा हिक (� ऐसा �ोक स(क �, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध छ� मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो एक �जार रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

184. लोक सवक क पराधि�कार दवारा हिवकरय क धिलए परसथाहिपत की गई सपधिV क हिवकरय म बा�ा उपसथिसथत कर�ा--जो कोई ऐसी हिकसी सपभितत क हि(करय म, जो ऐस �ोक स(क क नात हिकसी �ोक स(क क हि(धिधपण. पराधिधकार दवारा हि(करय क लि�ए परसथाहिपत की गई �ो, साशय बाधा डा�गा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध एक मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो पाच सौ रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

185. लोक सवक क पराधि�कार दवारा हिवकरय क धिलए परसथाहिपत की गई सपधिV का अव� करय या उसक धिलए अव� बोली लगा�ा--जो कोई सपभितत क हिकसी ऐस हि(करय म, जो �ोक स(क क नात �ोक स(क क हि(धिधपण. पराधिधकार दवारा �ो र�ा �ो, हिकसी ऐस वयलि2 क हिनधिमतत चा� (� वयलि2 (� स(य �ो, या कोई अनय �ो, हिकसी सपभितत का करय करगा या हिकसी सपभितत क लि�ए बो�ी �गाएगा, जिजसक बार म (� जानता �ो हिक (� वयलि2 उस हि(करय म उस सपभितत क करय करन क बार म हिकसी हि(धिधक असमथ.ता क अधीन � या ऐसी सपभितत क लि�ए य� आशय र�कर बो�ी �गाएगा हिक ऐसी बो�ी �गान स जिजन बाधयताओ क अधीन (� अपन आप को डा�ता � उन� उस परा न�ी करना �, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स,

जिजसकी अ(धिध एक मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो दो सौ रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

1 1895 क अधिधहिनयम स.3 की धारा 1 दवारा म� धारा 182 क सथान पर परहितसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 36

186. लोक सवक क लोक कतयो क हि�व#�� म बा�ा डाल�ा--जो कोई हिकसी �ोक स(क क �ोक कतयो क हिन(.�न म स(चछया बाधा डा�गा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो पाच सौ रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

187. लोक सवक की स�ायता कर� का लोप, जबहिक स�ायता द� क धिलए हिवधि� दवारा आबदध �ो--जो कोई हिकसी �ोक स(क को, उसक �ोक कत.वय क हिनषपादन म स�ायता दन या पहचान क लि�ए हि(धिध दवारा आबदध �ोत हए, ऐसी स�ायता दन का साशय �ोप करगा, (� सादा कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध एक मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो दौ सौ रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ;

और यटिद ऐसी स�ायता की माग उसस ऐस �ोक स(क दवारा, जो ऐसी माग करन क लि�ए (ध रप स सकषम �ो, नयाया�य दवारा (ध रप स हिनका�ी गई हिकसी आदलिशका क हिनषपादन क, या अपराध क हिकए जान का हिन(ारण करन क, या बल( या दग को दबान क, या ऐस वयलि2 को, जिजस पर अपराध का आरोप � या जो अपराध का या हि(धिधपण. अभिभरकषा स हिनक� भागन का दोषीी �, पकOन क परयोजनो स की जाए, तो (� सादा कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध छ� मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो पाच सौ रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

188. लोक सवक दवारा समयक रप स परखयाहिपत आद! की अवजञा--जो कोई य� जानत हए हिक (� ऐस �ोक स(क दवारा परखयाहिपत हिकसी आदश स, जो ऐस आदश को परखयाहिपत करन क लि�ए हि(धिधप(.क सश2 �, कोई काय. करन स हि(रत र�न क लि�ए या अपन कबज म की, या अपन परबनधाधीन, हिकसी सपभितत क बार म कोई हि(शष वय(सथा करन क लि�ए हिनरदिदषT हिकया गया �, ऐस हिनदश की अ(जञा करगा ;

यटिद ऐसी अ(जञा हि(धिधप(.क हिनयोजिजत हिकन�ी वयलि2यो को बाधा, कषोभ या कषहित, अथ(ा बाधा, कषोभ या कषहित की जोखि�म कारिरत कर, या कारिरत करन की पर(भितत र�ती �ो, तो (� सादा कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध एक मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो दौ सौ रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

और यटिद ऐसी अ(जञा मान( जी(न, स(ासथय या कषम को सकT कारिरत कर, या कारिरत करन की पर(भितत र�ती �ो, या बल(ा या दगा कारिरत करती �ो, या कारिरत करन की पर(भितत र�ती �ो, तो (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स जिजसकी अ(धिध छ� मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो एक �जार रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

सपषटीकरण--य� आ(शयक न�ी � हिक अपराधी का आशय अप�ाहिन उतपनन करन का �ो या उसक धयान म य� �ो हिक उसकी अ(जञा करन स अप�ाहिन �ोना सभावय � । य� पया.पत � हिक जिजस आदश की (� अ(जञा करता �, उस आदश का उस जञान �, और य� भी जञान � हिक उसक अ(जञा करन स अप�ाहिन उतपनन �ोती या �ोनी सभावय � ।

दषटात एक आदश, जिजसम य� हिनदश � हिक अमक धारयिमक ज�स अमक सOक स �ोकर न हिनक�, ऐस �ोक स(क दवारा परखयाहिपत हिकया

जाता �, जो ऐसा आदश परखयाहिपत करन क लि�ए हि(धिधप(.क सश2 � । क जानत हए उस आदश की अ(जञा करता �, और तदद(ारा बल( का सकT कारिरत करता � । क न इस धारा म परिरभाहिषत अपराध हिकया � ।

189. लोक सवक को कषहित कर� की �मकी--जो कोई हिकसी �ोक स(क को या ऐस हिकसी वयलि2 को जिजसस उस �ोक स(क क हि�तबदध �ोन का उस हि(शवास �ो, इस परयोजन स कषहित की कोई धमकी दगा हिक उस �ोक स(क को उतपररिरत हिकया जाए हिक (� ऐस �ोक स(क क कतयो क परयोग स सस2 कोई काय. कर, या करन स परहि(रत र�, या करन म हि(�मब कर, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

190. लोक सवक स सरकषा क धिलए आवद� कर� स हिवरत र�� क धिलए हिकसी वयधिकत को उतपररिरत कर� क धिलए कषहित की �मकी--जो कोई हिकसी वयलि2 को इस परयोजन स कषहित की कोई धमकी दगा हिक (� उस वयलि2 को उतपररिरत कर हिक (� हिकसी कषहित स सरकषा क लि�ए कोई (ध आ(दन हिकसी ऐस �ोक स(क स करन स हि(रत र�, या परहितहि(रत र�, जो ऐस �ोक स(क क नात ऐसी सरकषा करन या करान क लि�ए (ध रप स सश2 �ो, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध एक (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

अधयाय 11 बरिमथया साकषय और लोक नयाय क हिवरदध अपरा�ो क हिवषय म

191. बरिमथया साकषय द�ा--जो कोई शपथ दवारा या हि(धिध क हिकसी अभिभवय2 उपबध दवारा सतय कथन करन क लि�ए (ध रप स आबदध �ोत हए, या हिकसी हि(षय पर घोषणा करन क लि�ए हि(धिध दवारा आबदध �ोत हए, ऐसा कोई कथन करगा, जो

धिमथया �, और या तो जिजसक धिमथया �ोन का उस जञान या हि(शवास �, या जिजसक सतय �ोन का उस हि(शवास न�ी �, (� धिमथया साकषय दता �, य� क�ा जाता � ।

सपषटीकरण 1--कोई कथन चा� (� मौखि�क �ो, या अनयथा हिकया गया �ो, इस धारा क अतग.त आता � । भारतीय दड सहि�ता, 1860 37

सपषटीकरण 2--अनपरमाभिणत करन (ा� वयलि2 क अपन हि(शवास क बार म धिमथया कथन इस धारा क अथ. क अतग.त आता � और कोई वयलि2 य� क�न स हिक उस उस बात का हि(शवास �, जिजस बात का उस हि(शवास न�ी �, तथा य� क�न स हिक (� उस बात को जानता � जिजस बात को (� न�ी जानता, धिमथया साकषय दन का दोषीी �ो सकगा ।

दषटात (क) क एक नयायसगत दा( क समथ.न म, जो य क हि(रदध ख क एक �जार रपए क लि�ए �, हि(चारण क समय शपथ पर धिमथया

कथन करता � हिक उसन य को ख क दा( का नयायसगत �ोना स(ीकार करत हए सना था । क न धिमथया साकषय टिदया � । (�) क सतय कथन करन क लि�ए शपथ दवारा आबदध �ोत हए कथन करता � हिक (� अमक �सताकषर क सबध म य� हि(शवास करता �

हिक (� य का �सत�� �, जबहिक (� उसक य का �सत�� �ोन का हि(शवास न�ी करता � । य�ा क (� कथन करता �, जिजसका धिमथया �ोना (� जानता �, और इसलि�ए धिमथया साकषय दता � ।

(ग) य क �सत�� क साधारण स(रप को जानत हए क य� कथन करता � हिक अमक �सताकषर क सबध म उसका य� हि(शवसास � हिक (� य का �सत�� � ; क उसक ऐसा �ोन का हि(शवास सदभा(प(.क करता � । य�ा, क का कथन क(� अपन हि(शवास क सबध म �, और उसक हि(शवास क सबध म सतय �, और इसलि�ए, यदयहिप (� �सताकषर य का �सत�� न भी �ो, क न धिमथया साकषय न�ी टिदया � ।

(घ) क शपथ दवारा सतय कथन करन क लि�ए आबदध �ोत हए य� कथन करता � हिक (� य� जानता � हिक य एक हि(लिशषT टिदन एक हि(लिशषT सथान म था, जबहिक (� उस हि(षय म कछ भी न�ी जानता । क धिमथया साकषय दता �, चा� बत�ाए हए टिदन य उस सथान पर र�ा �ो या न�ी ।

(ङ) क एक दभाहिषया या अन(ादक हिकसी कथन या दसता(ज क, जिजसका यथाथ. भाषीानतरण या अन(ाद करन क लि�ए (� शपथ दवारा आबदध �, ऐस भाषीानतरण या अन(ाद को, जो यथाथ. भाषीानतरण या अन(ाद न�ी � और जिजसक यथाथ. �ोन का (� हि(शवास न�ी करता, यथाथ. भाषीानतरण या अन(ाद क रप म दता या परमाभिणत करता � । क न धिमथया साकषय टिदया � ।

192. बरिमथया साकषय गढ�ा--जो कोई इस आशय स हिकसी परिरणडिसथहित को असमिसतत( म �ाता �, या 1[हिकसी पसतक या अभिभ�� या इ�कटराहिनक अभिभ�� म कोई धिमथया परहि(धि� करता �, या धिमथया कथन अतरवि(षT र�न (ा�ा कोई दसता(ज या इ�कटराहिनक अभिभ�� रचता �] हिक ऐसी परिरणडिसथहित, धिमथया परहि(धि� या धिमथया कथन नयाधियक काय.(ा�ी म, या ऐसी हिकसी काय.(ा�ी म जो �ोक स(क क समकष उसक उस नात या मधयसथ क समकष हि(धिध दवारा की जाती �, साकषय म दरछिशत �ो और हिक इस परकार साकषय म दरछिशत �ोन पर ऐसी परिरणडिसथहित, धिमथया परहि(धि� या धिमथया कथन क कारण कोई वयलि2 जिजस ऐसी काय.(ा�ी म साकषय क आधार पर राय कायम करनी � ऐसी काय.(ा�ी क परिरणाम क लि�ए तानतित(क हिकसी बात क सबध म ग�त राय बनाए, (� “धिमथया साकषय गढता �”, य� क�ा जाता � ।

दषटात (क) क एक बकस म, जो य का �, इस आशय स आभषण र�ता � हिक ( उस बकस म पाए जाए, और इस परिरणडिसथहित स य चोरी क

लि�ए दोषलिसदध ठ�राया जाए । क न धिमथया साकषय गढा � । (�) क अपनी दकान की ब�ी म एक धिमथया परहि(धि� इस परयोजन स करता � हिक (� नयाया�य म समपोषक साकषय क रप म काम म

�ाई जाए । क न धिमथया साकषय गढा � । (ग) य को एक आपराधिधक षडáीातर क लि�ए दोषलिसदध ठ�राया जान क आशय स क एक पतर य क �सत�� की अनकहित करक

लि��ता �, जिजसस य� तातपरयियत � हिक य न उस ऐस आपराधिधक षडáीातर क स� अपराधी को सबोधिधत हिकया � और उस पतर को ऐस सथान पर र� दता �, जिजसक सबध म (� य� जानता � हिक पलि�स आहिcसर सभावयतः उस सथान की त�ाशी �ग । क न धिमथया साकषय गढा � ।

193. बरिमथया साकषय क धिलए दड--जो कोई साशय हिकसी नयाधियक काय.(ा�ी क हिकसी परकरम म धिमथया साकषय दगा या हिकसी नयाधियक काय.(ा�ी क हिकसी परकरम म उपयोग म �ाए जान क परयोजन स धिमथया साकषय गढगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी दहिडत हिकया जाएगा, और जमा.न स भी, दडनीय �ोगा ;

और जो कोई हिकसी अनय माम� म साशय धिमथया साकषय दगा या गढगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा, और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

सपषटीकरण 1--सना नयाया�य 2।।। क समकष हि(चारणीय नयाधियक काय.(ा�ी � । सपषटीकरण 2--नयाया�य क समकष काय.(ा�ी परारमभ �ोन क प(., जो हि(धिध दवारा हिनरदिदषT अन(षण �ोता � (� नयाधियक

काय.(ा�ी का एक परकरम �, चा� (� अन(षण हिकसी नयाया�य क सामन न भी �ो । दषटात

य� अभिभहिनशचय करन क परयोजन स हिक कया य को हि(चारण क लि�ए सपद. हिकया जाना चाहि�ए, मजिजसटरT क समकष जाच म क शपथ पर कथन करता �, जिजसका (� धिमथया �ोना जानता � । य� जाच नयाधियक काय.(ा�ी का एक परकरम �, इसलि�ए क न धिमथया साकषय टिदया � ।

1 2000 क अधिधहिनयम स. 21 की धारा 91 और प��ी अनसची दवारा (17-10-2000 स) कहितपय शबदो क सथान पर परहितसथाहिपत । 2 1889 क अधिधहिनयम स0 13 दवारा “या धिमलि�टरी कोT. आc रिरक(सT क समकष” शबद हिनरलिसत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 38

सपषटीकरण 3--नयाया�य दवारा हि(धिध क अनसार हिनरदिदषT और नयाया�य क पराधिधकार क अधीन सचालि�त अन(षण नयाधियक काय.(ा�ी का एक परकरम �, चा� (� अन(षण हिकसी नयाया�य क सामन न भी �ो ।

दषटात सबधिधत सथान पर जाकर भधिम की सीमाओ को अभिभहिनभिशचत करन क लि�ए नयाया�य दवारा परहितहिनय2 आहिcसर क समकष जाच म क

शपथ पर कथन करता � जिजसका धिमथया �ोना (� जानता � । य� जाच नयाधियक काय.(ा�ी का एक परकरम �, इसलि�ए क न धिमथया साकषय टिदया � । 194. मतय स दड�ीय अपरा� क धिलए दोषधिसशिदध करा� क आ!य स बरिमथया साकषय द�ा या गढ�ा--जो कोई 1[2[भारत] म ततसमय पर(तत हि(धिध दवारा] मतय स दडनीय अपराध क लि�ए हिकसी वयलि2 को दोषलिसदध करान क आशय स या सभावयतः तदद(ारा दोषलिसदध कराएगा य� जानत हए धिमथया साकषय दगा या गढगा, (� 3[आजी(न कारा(ास] स, या कटिठन कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा, और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

यटिद हि�द}ष वयधिकत एतददवारा दोषधिसदध हिकया जाए और उस फासी दी जाए--और यटिद हिकसी हिनद�ष वयलि2 को ऐस धिमथया साकषय क परिरणामस(रप दोषलिसदध हिकया जाए, और उस cासी द दी जाए, तो उस वयलि2 को, जो ऐसा धिमथया साकषय दगा, या तो मतय दड या एतसमिसमनीप(. (रणिणत दड टिदया जाएगा ।

195. आजीव� कारावास या कारावास स दड�ीय अपरा� क धिलए दोषधिसशिदध करा� क आ!य स बरिमथया साकषय द�ा या गढ�ा--जो कोई इस आशय स या य� समभावय जानत हए हिक एतदीदवारा (� हिकसी वयलि2 को ऐस अपराध क लि�ए, जो 4[भारत 5[म ततसमय पर(तत हि(धिध दवारा] मतय स दडनीय न �ो हिकनत 6[आजी(न कारा(ास] या सात (ष. या उसस अधिधक की अ(धिध क कारा(ास स दडनीय �ो, दोषलिसदध कराए, धिमथया साकषय दगा या गढगा, (� (स �ी दहिडत हिकया जाएगा जस (� वयलि2 दडनीय �ोता जो उस अपराध क लि�ए दोषलिसदध �ोता ।

दषटात क नयाया�य क समकष इस आशय स धिमथया साकषय दता � हिक एतदीदवारा य डकती क लि�ए दोषलिसदध हिकया जाए । डकती का दड

जमा.ना सहि�त या रहि�त 7[आजी(न कारा(ास] या ऐसा कटिठन कारा(ास �, जो दस (ष. तक की अ(धिध का �ो सकता � । क इसलि�ए जमा.न सहि�त या रहि�त 4[आजी(न कारा(ास] या कारा(ास स दडनीय � ।

196. उस साकषय को काम म ला�ा जिजसका बरिमथया �ो�ा जञात �--जो कोई हिकसी साकषय को, जिजसका धिमथया �ोना या गढा �ोना (� जानता �, सचच या अस�ी साकषय क रप म भरषTताप(.क उपयोग म �ाएगा, या उपयोग म �ान का परयतन करगा, (� ऐस दहिडत हिकया जाएगा मानो उसन धिमथया साकषय टिदया �ो या गढा �ो ।

197. बरिमथया परमाणपतर जारी कर�ा या �सताकषरिरत कर�ा--जो कोई ऐसा परमाणपतर, जिजसका टिदया जाना या �सताकषरिरत हिकया जाना हि(धिध दवारा अपभिकषत �ो, या जो हिकसी ऐस तथय स सबधिधत �ो जिजसका (सा परमाणपतर हि(धिध दवारा साकषय म गराहय �ो, य� जानत हए या हि(शवास करत हए हिक (� हिकसी तानतित(क बात क बार म धिमथया �, (सा परमाणपतर जारी करगा या �सताकषरिरत करगा, (� उसी परकार दहिडत हिकया जाएगा, मानो उसन धिमथया साकषय टिदया �ो ।

198. परमाणपतर को जिजसका बरिमथया �ो�ा जञात �, सचच क रप म काम म ला�ा--जो कोई हिकसी ऐस परमाणपतर को य� जानत हए हिक (� हिकसी तानतित(क बात क सबध म धिमथया � सचच परमाणपतर क रप म भरषTताप(.क उपयोग म �ाएगा, या उपयोग म �ान का परयतन करगा, (� ऐस दहिडत हिकया जाएगा, मानो उसन धिमथया साकषय टिदया �ो ।

199. ऐसी घोषणा म, जो साकषय क रप म हिवधि� दवारा ली जा सक, हिकया गया बरिमथया कथ�--जो कोई अपन दवारा की गई या �सताकषरिरत हिकसी घोषणा म, जिजसकी हिकसी तथय क साकषय क रप म �न क लि�ए कोई नयाया�य, या कोई �ोक स(क या अनय वयलि2 हि(धिध दवारा आबदध या पराधिधकत �ो कोई ऐसा कथन करगा, जो हिकसी ऐसी बात क सबध म, जो उस उददशय क लि�ए तानतित(क �ो जिजसक लि�ए (� घोषणा की जाए या उपयोग म �ाई जाए, धिमथया � और जिजसक धिमथया �ोन का उस जञान या हि(शवास �, या जिजसक सतय �ोन का उस हि(शवास न�ी �, (� उसी परकार दहिडत हिकया जाएगा, मानो उसन धिमथया साकषय टिदया �ो । 1 हि(धिध अनक�न आदश, 1948 दवारा “हिRटिTश भारत या इग�ड की हि(धिध दवारा” क सथान पर परहितसथाहिपत । 2 1951 क अधिधहिनयम स.3 की धारा 3 और अनसची दवारा “राजयो” क सथान पर परहितसथाहिपत । 3 1955 क अधिधहिनयम स026 की धारा 117 और अनसची दवारा “आजी(न हिन(ा.सन” क सथान पर परहितसथाहिपत । 4 हि(धिध अनक�न आदश, 1948 दवारा “हिRटिTश भारत या इग�ड की हि(धिध दवारा” क सथान पर परहितसथाहिपत ।

5 1951 क अधिधहिनयम स. 3 की धारा 3 और अनसची दवारा “राजयो” क सथान पर परहितसथाहिपत । 6 1955 क अधिधहिनयम स. 26 की धारा 117 और अनसची दवारा (1-1-1956 स) “आजी(न हिन(ा.सन” क सथान पर परहितसथाहिपत ।

7 1955 क अधिधहिनयम स. 26 की धारा 117 और अनसची दवारा (1-1-1956 स) “ऐस हिन(ा.सन” क सथान पर परहितसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 39

200. ऐसी घोषणा का बरिमथया �ो�ा जा�त हए सचची क रप म काम म ला�ा--जो कोई हिकसी ऐसी घोषणा को, य� जानत हए हिक (� हिकसी तानतित(क बात क सबध म धिमथया �, भरषTताप(.क सचची क रप म उपयोग म �ाएगा, या उपयोग म �ान का परयतन करगा, (� उसी परकार दहिडत हिकया जाएगा, मानो उसन धिमथया साकषय टिदया �ो ।

सपषटीकरण--कोई घोषणा, जो क(� हिकसी अपररहिपता क आधार पर अगराहय �, धारा 199 और धारा 200 क अथ. क अतग.त घोषणा � ।

201. अपरा� क साकषय का हिवलोप�, या अपरा�ी को परहितचछाटिदत कर� क धिलए बरिमथया इधिVला द�ा--जो कोई य� जानत हए या य� हि(शवास करन का कारण र�त हए हिक कोई अपराध हिकया गया �, उस अपराध क हिकए जान क हिकसी साकषय का हि(�ोप, इस आशय स कारिरत करगा हिक अपराधी को (ध दड स परहितचछाटिदत कर या उस आशय स उस अपराध स सबधिधत कोई ऐसी इभितत�ा दगा, जिजसक धिमथया �ोन का उस जञान या हि(शवास � ;

यटिद अपरा� मतय स दड�ीय �ो--यटिद (� अपराध जिजसक हिकए जान का उस जञान या हि(शवास �, मतय स दडनीय �ो, तो (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ;

यटिद आजीव� कारावास स दड�ीय �ो--और यटिद (� अपराध 3[आजी(न कारा(ास] स, या ऐस कारा(ास स, जो दस (ष. तक का �ो सकगा, दडनीय �ो, तो (� दोनो म स हिकसी भाहित क, कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ;

यटिद दस वष# स कम क कारावास स दड�ीय �ो--और यटिद (� अपराध ऐस कारा(ास स इतनी अ(धिध क लि�ए दडनीय �ो, जो दस (ष. तक की न �ो, तो (� उस अपराध क लि�ए उपबधिधत भाहित क कारा(ास स उतनी अ(धिध क लि�ए, जो उस अपराध क लि�ए उपबधिधत कारा(ास की दीघ.तम अ(धिध की एक-चौथाई तक की �ो सकगी या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

दषटात क य� जानत हए हिक ख न य की �तया की � � को दड स परहितचछाटिदत करन क आशय स मत शरीर को लिछपान म � की स�ायता

करता � । क सात (ष. क लि�ए दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, और जमा.न स भी दडनीय � । 202. इधिVला द� क धिलए आबदध वयधिकत दवारा अपरा� की इधिVला द� का सा!य लोप--जो कोई य� जानत हए या

य� हि(शवास करन का कारण र�त हए हिक कोई अपराध हिकया गया �, उस अपराध क बार म कोई इभितत�ा जिजस दन क लि�ए (� (ध रप स आबदध �ो, दन का साशय �ोप करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध छ� मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

203. हिकए गए अपरा� क हिवषय म बरिमथया इधिVला द�ा--जो कोई य� जानत हए, या य� हि(शवास करन का कारण र�त हए, हिक कोई अपराध हिकया गया � उस अपराध क बार म कोई ऐसी इभितत�ा दगा, जिजसक धिमथया �ोन का उस जञान या हि(शवास �ो, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

1[सपषटीकरण--धारा 201 और 202 म और इस धारा म “अपराध” शबद क अतग.त 2[भारत] स बा�र हिकसी सथान पर हिकया गया कोई भी ऐसा काय. आता �, जो यटिद 2[भारत] म हिकया जाता तो हिनमनलि�खि�त धारा अथा.त 302, 304, 382, 392, 393, 394, 395, 396, 397, 398, 399, 402, 435, 436, 449, 450, 457, 458, 459 तथा 460 म स हिकसी भी धारा क अधीन दडनीय �ोता ।]

204. साकषय क रप म हिकसी 3[दसतावज या इलकटराहि�क अशिभलख] का प! हिकया जा�ा हि�वारिरत कर� क धिलए उसको �षट कर�ा--जो कोई हिकसी ऐसी 3[दसता(ज या इ�कटराहिनक अभिभ��] को लिछपाएगा या नषT करगा जिजस हिकसी नयाया�य म या ऐसी काय.(ा�ी म, जो हिकसी �ोक स(क क समकष उसकी (सी �लिसयत म हि(धिधप(.क की गई �, साकषय क रप म पश करन क लि�ए उस हि(धिधप(.क हि((श हिकया जा सक, या प(�2 नयाया�य या �ोक स(क क समकष साकषय क रप म पश हिकए जान या उपयोग म �ाए जान स हिन(ारिरत करन क आशय स, या उस परयोजन क लि�ए उस 3[दसता(ज या इ�कटराहिनक अभिभ��] को पश करन को उस हि(धिधप(.क समहिनत या अपभिकषत हिकए जान क पशचाती, ऐसी सपण. 3[दसता(ज या इ�कटराहिनक अभिभ��] को, या उसक हिकसी भाग को धिमTाएगा, या ऐसा बनाएगा, जो पढा न जा सक, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

205. वाद या अशिभयोज� म हिकसी काय# या काय#वा�ी क परयोज� स बरिमथया परहितरपण--जो कोई हिकसी दसर का धिमथया परहितरपण करगा और ऐस धर हए रप म हिकसी (ाद या आपराधिधक अभिभयोजन म कोई स(ीकहित या कथन करगा, या दा( की 1 1894 क अधिधहिनयम स. 3 की धारा 6 दवारा अतःसथाहिपत । 2 1951 क अधिधहिनयम स0 3 की धारा 3 और अनसची दवारा “ राजयो” क सथान पर परहितसथाहिपत ।

3 2000 क अधिधहिनयम स. 21 की धारा 91 और प��ी अनसची दवारा (17-10-2000 स) “दसता(ज” क सथान पर परहितसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 40

सस(ीकहित करगा, या कोई आदलिशका हिनक�(ाएगा या जमानतदार या परहितभ बनगा, या कोई भी अनय काय. करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

206. सपधिV को समप�रण हिकए जा� म या हि�षपाद� म अशिभग�ीत हिकए जा� स हि�वारिरत कर� क धिलए उस कपटपव#क �टा�ा या धिछपा�ा--जो कोई हिकसी सपभितत को, या उसम क हिकसी हि�त को इस आशय स कपTप(.क �Tाएगा, लिछपाएगा या हिकसी वयलि2 को अतरिरत या परिरदतत करगा, हिक एतदीदवारा (� उस सपभितत या उसम क हिकसी हि�त का ऐस दडादश क अधीन जो नयाया�य या हिकसी अनय सकषम पराधिधकारी दवारा सनाया जा चका � या जिजसक बार म (� जानता � हिक नयाया�य या अनय सकषम पराधिधकारी दवारा उसका सनाया जाना सभावय �, समप�रण क रप म या जमा.न क चकान क लि�ए लि�या जाना या ऐसी हिडकरी या आदश क हिनषपादन म, जो लिसहि(� (ाद म नयाया�य दवारा टिदया गया �ो या जिजसक बार म (� जानता � हिक लिसहि(� (ाद म नयाया�य दवारा उसका सनाया जाना सभावय �, लि�या जाना हिन(ारिरत कर, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

207. सपधिV पर उसक समप�रण हिकए जा� म या हि�षपाद� म अशिभग�ीत हिकए जा� स हि�वारिरत कर� क धिलए कपटपव#क दावा--जो कोई हिकसी सपभितत को, या उसम क हिकसी हि�त को, य� जानत हए हिक ऐसी हिकसी सपभितत या हि�त पर उसका कोई अधिधकार या अधिधकारपण. दा(ा न�ी �, कपTप(.क परहितग�ीत करगा, परापत करगा या उस पर दा(ा करगा अथ(ा हिकसी सपभितत या उसम क हिकसी हि�त पर हिकसी अधिधकार क बार म इस आशय स पर(चना करगा हिक तदीदवारा (� उस सपभितत या उसम क हि�त का ऐस दडादश क अधीन, जो नयाया�य या हिकसी अनय सकषम पराधिधकारी दवारा सनाया जा चका � या जिजसक बार म (� जानता � हिक नयाया�य या हिकसी अनय सकषम पराधिधकारी दवारा उसका सनाया जाना सभावय �, समप�रण क रप म या जमा.न क चकान क लि�ए लि�या जाना, या ऐसी हिडकरी या आदश क हिनषपादन म, जो लिसहि(� (ाद म नयाया�य दवारा टिदया गया �ो, या जिजसक बार म (� जानता � हिक लिसहि(� (ाद म नयाया�य दवारा उसका टिदया जाना सभावय �, लि�या जाना हिन(ारिरत कर, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

208. ऐसी राशि! क धिलए जो !ोधय � �ो कपटपव#क हिडकरी �ो� द�ा स�� कर�ा--जो कोई हिकसी वयलि2 क बाद म ऐसी रालिश क लि�ए, जो ऐस वयलि2 को शोधय न �ो या शोधय रालिश स अधिधक �ो, या हिकसी ऐसी सपभितत या सपभितत म क हि�त क लि�ए, जिजसका ऐसा वयलि2 �कदार न �ो, अपन हि(रदध कोई हिडकरी या आदश कपTप(.क पारिरत कर(ाएगा, या पारिरत हिकया जाना स�न करगा अथ(ा हिकसी हिडकरी या आदश को उसक तषT हिकए जान क पशचात या हिकसी ऐसी बात क लि�ए, जिजसक हि(षय म उस हिडकरी या आदश की तधि� कर दी गई �ो, अपन हि(रदध कपTप(.क हिनषपाटिदत कर(ाएगा या हिकया जाना स�न करगा, (� दोनो म हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

दषटात य क हि(रदध एक (ाद क सणडिसथत करता � । य य� सभावय जानत हए हिक क उसक हि(रदध हिडकरी अभिभपरापत कर �गा, ख क (ाद म,

जिजसका उसक हि(रदध कोई नयायसगत दा(ा न�ी �, अधिधक रकम क लि�ए अपन हि(रदध हिनण.य हिकया जाना इसलि�ए कपTप(.क स�न करता � हिक ख स(य अपन लि�ए या य क cायद क लि�ए य की सपभितत क हिकसी ऐस हि(करय क आगमो का अश गर�ण कर, जो क की हिडकरी क अधीन हिकया जाए । य न इस धारा क अधीन अपराध हिकया � ।

209. बईमा�ी स नयायालय म बरिमथया दावा कर�ा--जो कोई कपTप(.क या बईमानी स या हिकसी वयलि2 को कषहित या कषोभ कारिरत करन क आशय स नयाया�य म कोई ऐसा दा(ा करगा, जिजसका धिमथया �ोना (� जानता �ो, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा, और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

210. ऐसी राशि! क धिलए जो !ोधय ��ी � कपटपव#क हिडकरी अशिभपरापत कर�ा--जो कोई हिकसी वयलि2 क हि(रदध ऐसी रालिश क लि�ए, जो शोधय न �ो, या जो शोधय रालिश स अधिधक �ो, या हिकसी सपभितत या सपभितत म क हि�त क लि�ए, जिजसका (� �कदार न �ो, हिडकरी या आदश कपTप(.क अभिभपरापत कर �गा या हिकसी हिडकरी या आदश को, उसक तषT कर टिदए जान क पशचात या ऐसी बात क लि�ए, जिजसक हि(षय म उस हिडकरी या आदश की तधि� कर दी गई �ो, हिकसी वयलि2 क हि(रदध कपTप(.क हिनषपाटिदत कर(ाएगा या अपन नाम म कपTप(.क ऐसा कोई काय. हिकया जाना स�न करगा या हिकए जान की अनजञा दगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स जिजसकी अ(धिध दो (ष. की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

211. कषहित कर� क आ!य स अपरा� का बरिमथया आरोप--जो कोई हिकसी वयलि2 को य� जानत हए हिक उस वयलि2 क हि(रदध ऐसी काय.(ा�ी या आरोप क लि�ए कोई नयायसगत या हि(धिधपण. आधार न�ी � कषहित कारिरत करन क आशय स उस वयलि2 क हि(रदध कोई दाहिडक काय.(ा�ी सणडिसथत करगा या कर(ाएगा या उस वयलि2 पर धिमथया आरोप �गाएगा हिक उसन अपराध

हिकया � (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ; भारतीय दड सहि�ता, 1860 41

तथा ऐसी दाहिडक काय.(ा�ी मतय, 1[आजी(न कारा(ास] या सात (ष. या उसस अधिधक क कारा(ास स दडनीय अपराध क धिमथया आरोप पर सणडिसथत की जाए, तो (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

212. अपरा�ी को सशरय द�ा--जबहिक कोई अपराध हिकया जा चका �ो, तब जो कोई हिकसी ऐस वयलि2 को, जिजसक बार म (� जानता �ो या हि(शवास करन का कारण र�ता �ो हिक (� अपराधी �, (ध दड स परहितचछाटिदत करन क आशय स सशरय दगा या लिछपाएगा ;

यटिद अपरा� मतय स दड�ीय �ो--यटिद (� अपराध मतय स दडनीय �ो तो (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध पाच (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ;

यटिद अपरा� आजीव� कारावास स या कारावास स दड�ीय �ो--और यटिद (� अपराध 1[आजी(न कारा(ास] स, या दस (ष. तक क कारा(ास स, दडनीय �ो, तो (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ;

और यटिद (� अपराध एक (ष. तक, न हिक दस (ष. तक क कारा(ास स दडनीय �ो, तो (� उस अपराध क लि�ए उपबधिधत भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध उस अपराध क लि�ए उपबधिधत कारा(ास की दीघ.तम अ(धिध की एक-चौथाई तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

2[इस धारा म “अपराध” क अतग.त 3[भारत] स बा�र हिकसी सथान पर हिकया गया ऐसा काय. आता �, जो, यटिद 3[भारत] म हिकया जाता तो हिनमनलि�खि�त धारा, अथा.ती 302, 304, 382, 392, 393, 394, 395, 396, 397, 398, 399, 402, 435, 436, 449, 450, 457, 458, 449 और 460 म स हिकसी धारा क अधीन दडनीय �ोता और �र एक ऐसा काय. इस धारा क परयोजनो क लि�ए ऐस दडनीय समझा जाएगा, मानो अभिभय2 वयलि2 उस 3[भारत] म करन का दोषीी था ।]

अपवाद--इस उपबध का हि(सतार हिकसी ऐस माम� पर न�ी � जिजसस अपराधी को सशरय दना या लिछपाना उसक पहित या पतनी दवारा �ो ।

दषटात

क य� जानत हए हिक ख न डकती की �, ख को (ध दड स परहितचछाटिदत करन क लि�ए जानत हए लिछपा �ता � । य�ा, ख 4[आजी(न कारा(ास] स दडनीय �, क तीन (ष. स अनधिधक अ(धिध क लि�ए दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स दडनीय � और जमा.न स भी दडनीय � ।

213. अपरा�ी को दड स परहितचछाटिदत कर� क धिलए उप�ार आटिद ल�ा--जो कोई अपन या हिकसी अनय वयलि2 क लि�ए कोई परिरतोषण या अपन या हिकसी अनय वयलि2 क लि�ए हिकसी सपभितत का परतयासथापन, हिकसी अपराध क लिछपान क लि�ए या हिकसी वयलि2 को हिकसी अपराध क लि�ए (ध दड स परहितचछाटिदत करन क लि�ए, या हिकसी वयलि2 क हि(रदध (ध दड टिद�ान क परयोजन स उसक हि(रदध की जान (ा�ी काय.(ा�ी न करन क लि�ए, परहितc�स(रप परहितग�ीत करगा या अभिभपरापत करन का परयतन करगा या परहितग�ीत करन क लि�ए करार करगा,

यटिद अपरा� मतय स दड�ीय �ो--यटिद (� अपराध मतय स दडनीय �ो, तो (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा, और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ;

यटिद आजीव� कारावास या कारावास स दड�ीय �ो--तथा यटिद (� अपराध 3[आजी(न कारा(ास] या दस (ष. तक क कारा(ास स दडनीय �ो, तो (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ;

तथा यटिद (� अपराध दस (ष. स कम तक क कारा(ास स दडनीय �ो, तो (� उस अपराध क लि�ए उपबधिधत भाहित क कारा(ास स इतनी अ(धिध क लि�ए, जो उस अपराध क लि�ए उपबधिधत कारा(ास की दीघ.तम अ(धिध की एक चौथाई तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

214. अपरा�ी क परहितचछाद� क परहितफलसवरप उप�ार की परसथाप�ा या सपधिV का परतयावत#�--जो कोई हिकसी वयलि2 को कोई अपराध उस वयलि2 दवारा लिछपाए जान क लि�ए या उस वयलि2 दवारा हिकसी वयलि2 को हिकसी अपराध क लि�ए (ध

दड स परहितचछाटिदत हिकए जान क लि�ए या उस वयलि2 दवारा हिकसी वयलि2 को (ध दड टिद�ान क परयोजन स उसक हि(रदध की जान (ा�ी 1 1955 क अधिधहिनयम स. 26 की धारा 117 और अनसची दवारा (1-1-1956 स) “आजी(न हिन(ा.सन” क सथान पर परहितसथाहिपत । 2 1894 क अधिधहिनयम स0 3 की धारा 7 दवारा अतःसथाहिपत । 3 1951 क अधिधहिनयम स0 3 की धारा 3 और अनसची दवारा “राजयो” क सथान पर परहितसथाहिपत ।

4 1955 क अधिधहिनयम स0 26 की धारा 117 और अनसची दवारा “आजी(न हिन(ा.सन” क सथान पर परहितसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 42

काय.(ा�ी न की जान क लि�ए परहितc�स(रप कोई परिरतोषण दगा या टिद�ाएगा या दन या टिद�ान की परसथापना या करार करगा, या 1[कोई सपभितत परतया(रवितत करगा या कराएगा] ;

यटिद अपरा� मतय स दड�ीय �ो-- यटिद (� अपराध मतय स दडनीय �ो, तो (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ;

यटिद आजीव� कारावास या कारावास स दड�ीय �ो--तथा यटिद (� अपराध 2[आजी(न कारा(ास] स या दस (ष. तक क कारा(ास स दडनीय �ो, तो (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ;

तथा यटिद (� अपराध दस (ष. स कम तक क कारा(ास स दडनीय �ो, तो (� उस अपराध क लि�ए उपबधिधत भाहित क कारा(ास स इतनी अ(धिध क लि�ए, जो उस अपराध क लि�ए उपबधिधत कारा(ास की दीघ.तम अ(धिध की एक चौथाई तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

3[अपवाद--धारा 213 और 214 क उपबधो का हि(सतार हिकसी ऐस माम� पर न�ी �, जिजसम हिक अपराध का शमन हि(धिधप(.क हिकया जा सकता � ।]

4। । । । । । । 215. चोरी की सपधिV इतयाटिद क वापस ल� म स�ायता कर� क धिलए उप�ार ल�ा--जो कोई हिकसी वयलि2 की

हिकसी ऐसी जगम सपभितत क (ापस करा �न म, जिजसस इस सहि�ता क अधीन दडनीय हिकसी अपराध दवारा (� वयलि2 (लिचत कर टिदया गया �ो, स�ायता करन क ब�ान या स�ायता करन की बाबत कोई परिरतोषण �गा या �न का करार करगा या �न को सममत �ोगा, (�, जब तक हिक अपनी शलि2 म क सब साधनो को अपराधी को पकO(ान क लि�ए और अपराध क लि�ए दोषलिसदध करान क लि�ए उपयोग म न �ाए, दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

216. ऐस अपरा�ी को सशरय द�ा, जो अशिभरकषा स हि�कल भागा � या जिजसको पकड� का आद! टिदया जा चका �ी--जब हिकसी अपराध क लि�ए दोषलिसजिदध या आरोहिपत वयलि2 उस अपराध क लि�ए (ध अभिभरकषा म �ोत हए ऐसी अभिभरकषा स हिनक� भाग,

अथ(ा जब कभी कोई �ोक स(क ऐस �ोक स(क की हि(धिधपण. शलि2यो का परयोग करत हए हिकसी अपराध क लि�ए हिकसी वयलि2 को पकOन का आदश द, तब जो कोई ऐस हिनक� भागन को या पकO जान क आदश को जानत हए, उस वयलि2 को पकOा जाना हिन(ारिरत करन क आशय स उस सशरय दगा या लिछपाएगा, (� हिनमनलि�खि�त परकार स दहिडत हिकया जाएगा, अथा.ती :--

यटिद अपरा� मतय स दड�ीय �ो--यटिद (� अपराध, जिजसक लि�ए (� वयलि2 अभिभरकषा म था या पकO जान क लि�ए आदलिशत �, मतय स दडनीय �ो, तो (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा, और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ;

यटिद आजीव� कारावास या कारावास स दड�ीय �ो--यटिद (� अपराध 5[आजी(न कारा(ास] स या दस (ष. क कारा(ास स दडनीय �ो, तो (� जमा.न सहि�त या रहि�त दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा ;

तथा यटिद (� अपराध ऐस कारा(ास स दडनीय �ो, जो एक (ष. तक का, न हिक दस (ष. तक का �ो सकता �, तो (� उस अपराध क लि�ए उपबधिधत भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध उस अपराध क लि�ए उपबधिधत कारा(ास की दीघ.तम अ(धिध की एक चौथाई तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स दहिडत हिकया जाएगा ।

6[इस धारा म “अपराध” क अतग.त कोई भी ऐसा काय. या �ोप भी आता �, जिजसका कोई वयलि2 7[भारत] स बा�र दोषीी �ोना अभिभकलिथत �ो, जो यटिद (� 3[भारत] म उसका दोषीी �ोता, तो अपराधी क रप म दडनीय �ोता और जिजसक लि�ए, (� परतयप.ण स सबधिधत हिकसी हि(धिध क अधीन 8।।। या अनयथा 3[भारत] म पकO जान या अभिभरकषा म हिनरदध हिकए जान क दाधियत( क अधीन 1 1953 क अधिधहिनयम स0 42 की धारा 4 और तीसरी अनसची दवारा “क परतया(रवितत करन या परतया(त.न करान क लि�ए” क सथान पर परहितसथाहिपत ।

2 1955 क अधिधहिनयम स0 26 की धारा 117 और अनसची दवारा (1-1-1956 स) “आजी(न हिन(ा.सन” क सथान पर परहितसथाहिपत । 3 1882 क अधिधहिनयम स0 8 की धारा 6 दवारा म� अप(ाद क सथान पर परहितसथाहिपत । 4 दषTात 1882 क अधिधहिनयम स0 10 की धारा 2 और अनसची 1 दवारा हिनरलिसत । 5 1955 क अधिधहिनयम स0 26 की धारा 117 और अनसची दवारा (1-1-1956 स) “आजी(न हिन(ा.सन” क सथान पर परहितसथाहिपत । 6 1886 क अधिधहिनयम स0 10 की धारा 23 दवारा अतःसथाहिपत । 7 हि(धिध अनक�न आदश, 1948, हि(धिध अनक�न आदश, 1950 और 1951 क अधिधहिनयम स0 3 की धारा 3 और अनसची दवारा “हिRटिTश भारत” क

सथान पर सशोधिधत �ो कर उपरो2 रप म आया । 8 1951 क अधिधहिनयम स0 3 की धारा 3 और अनसची दवारा “या फयजिजटिT( आcनडरस ऐकT, 1881 क अधीन” शबदो का �ोप हिकया गया ।

भारतीय दड सहि�ता, 1860 43

�ो, और �र ऐसा काय. या �ोप इस धारा क परयोजनो क लि�ए ऐस दडनीय समझा जाएगा, मानो अभिभय2 वयलि2 3[भारत] म उसका दोषीी हआ था ।]

अपवाद--इस उपबध का हि(सतार ऐस माम� पर न�ी �, जिजसम सशरय दना या लिछपाना पकO जान (ा� वयलि2 क पहित या पतनी दवारा �ो ।

1[216क. लटरो या डाकओ को सशरय द� क धिलए !ाणडिसत--जो कोई य� जानत हए या हि(शवास करन का कारण र�त हए हिक कोई वयलि2 �T या डकती �ा� �ी म करन (ा� � या �ा� �ी म �T या डकती कर चक �, उनको या उनम स हिकसी को, ऐसी �T या डकती का हिकया जाना सकर बनान क, या उनको या उनम स हिकसी को दड स परहितचछाटिदत करन क आशय स सशरय दगा, (� कटिठन कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

सपषटीकरण--इस धारा क परयोजनो क लि�ए य� तत(�ीन � हिक �T या डकती 3[भारत] म करनी आशधियत � या की जा चकी �, या 3[भारत] स बा�र ।

अपवाद--इस उपबध का हि(सतार ऐस माम� पर न�ी �, जिजसम सशरय दना, या लिछपाना अपराधी क पहित या पतनी दवारा �ो ।]

5[216ख. [�ारा 212, �ारा 216 और �ारा 216क म “सशरय” की परिरभाषाा ।ट--भारतीय दड सहि�ता (सशोधन) अधिधहिनयम, 1942 (1942 का 8) की धारा 3 दवारा हिनरलिसत ।]

217. लोक सवक दवारा हिकसी वयधिकत को दड स या हिकसी सपधिV क समप�रण स बचा� क आ!य स हिवधि� क हि�द! की अवजञा--जो कोई �ोक स(क �ोत हए हि(धिध क ऐस हिकसी हिनदश की, जो उस सबध म �ो हिक उसस ऐस �ोक स(क क नात हिकस ढग का आचरण करना चाहि�ए, जानत हए अ(जञा हिकसी वयलि2 को (ध दड स बचान क आशय स या सभावयतः तदद(ारा बचाएगा य� जानत हए अथ(ा उसस दड की अपकषा, जिजसस (� दडनीय �, तदद(ारा कम दड टिद�(ाएगा या सभावय जानत हए अथ(ा हिकसी सपभितत को ऐस समप�रण या हिकसी भार स, जिजसक लि�ए (� सपभितत हि(धिध क दवारा दाधियत( क अधीन � बचान क आशय स या सभावयतः तदद(ारा बचाएगा य� जानत हए करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

218. हिकसी वयधिकत को दड स या हिकसी सपधिV को समप�रण स बचा� क आ!य स लोक सवक दवारा अ!दध अशिभलख या लख की रच�ा--जो कोई �ोक स(क �ोत हए और ऐस �ोक स(क क नात कोई अभिभ�� या अनय �� तयार करन का भार र�त हए, उस अभिभ�� या �� की इस परकार स रचना, जिजस (� जानता � हिक अशदध � �ोक को या हिकसी वयलि2 को �ाहिन या कषहित कारिरत करन क आशय स या सभावयतः तदद(ारा कारिरत करगा य� जानत हए अथ(ा हिकसी वयलि2 को (ध दड स बचान क आशय स या सभावयतः तदद(ारा बचाएगा य� जानत हए अथ(ा हिकसी सपभितत को ऐस समप�रण या अनय भार स, जिजसक दाधियत( क अधीन (� सपभितत हि(धिध क अनसार �, बचान क आशय स या सभावयतः तदद(ारा बचाएगा या जानत हए करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

219. नयाबरियक काय#वा�ी म हिवधि� क परहितकल रिरपोट# आटिद का लोक सवक दवारा भरषटतापव#क हिकया जा�ा--जो कोई �ोक स(क �ोत हए, नयाधियक काय.(ा�ी क हिकसी परकरम म कोई रिरपोT., आदश, अधिधमत या हि(हिनशचय, जिजसका हि(धिध क परहितक� �ोना (� जानता �ो, भरषTताप(.क या हि(दवषप(.क दगा, या सनाएगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

220. पराधि�कार वाल वयधिकत दवारा जो य� जा�ता � हिक व� हिवधि� क परहितकल काय# कर र�ा �, हिवचारण क धिलए या परिररो� कर� क धिलए सपद#गी--जो कोई हिकसी ऐस पद पर �ोत हए, जिजसस वयलि2यो को हि(चारण या परिररोध क लि�ए सपद. करन का, या वयलि2यो को परिररोध म र�न का उस (ध पराधिधकार �ो हिकसी वयलि2 को उस पराधिधकार क परयोग म य� जानत हए भरषTताप(.क या हि(दवषप(.क हि(चारण या परिररोध क लि�ए सपद. करगा या परिररोध म र�गा हिक ऐसा करन म (� हि(धिध क परहितक� काय. कर र�ा �, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

221. पकड� क धिलए आबदध लोक सवक दवारा पकड� का सा!य लोप--जो कोई ऐसा �ोक स(क �ोत हए, जो हिकसी अपराध क लि�ए आरोहिपत या पकO जान क दाधियत( क अधीन हिकसी वयलि2 को पकOन या परिररोध म र�न क लि�ए �ोक स(क क नात (ध रप स आबदध �, ऐस वयलि2 को पकOन का साशय �ोप करगा या ऐस परिररोध म स ऐस वयलि2 का हिनक�

भागना साशय स�न करगा या ऐस वयलि2 क हिनक� भागन म या हिनक� भागन क लि�ए परयतन करन म साशय मदद करगा, (� हिनमनलि�खि�त रप स दहिडत हिकया जाएगा, अथा.ती :--

यटिद परिररदध वयलि2 या जो वयलि2 पकOा जाना चाहि�ए था (� मतय स दडनीय अपराध क लि�ए आरोहिपत या पकO जान क दाधियत( क अधीन �ो, तो (� जमा.न सहि�त या रहि�त दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, अथ(ा

1 1894 क अधिधहिनयम स0 3 की धारा 8 दवारा अतःसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 44

यटिद परिररदध वयलि2 या जो वयलि2 पकOा जाना चाहि�ए था (� 1[आजी(न कारा(ास] या दस (ष. तक की अ(धिध क कारा(ास स दडनीय अपराध क लि�ए आरोहिपत या पकO जान क दाधियत( क अधीन �ो, तो (� जमा.न सहि�त या रहि�त दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी, अथ(ा

यटिद परिररदध वयलि2 या जो पकOा जाना चाहि�ए था (� दस (ष. स कम की अ(धिध क लि�ए कारा(ास स दडनीय अपराध क लि�ए आरोहिपत या पकO जान क दाधियत( क अधीन �ो, तो (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स । 222. दडाद! क अ�ी� या हिवधि�पव#क सपद# हिकए गए वयधिकत को पकड� क धिलए आबदध लोक सवक दवारा पकड� का सा!य लोप--जो कोई ऐसा �ोक स(क �ोत हए, जो हिकसी अपराध क लि�ए नयाया�य क दडादश क अधीन 2[या अभिभरकषा म र� जान क लि�ए हि(धिधप(.क सपद. हिकए गए] हिकसी वयलि2 को पकOन या परिररोध म र�न क लि�ए ऐस �ोक स(क क नात (धरप स आबदध �, ऐस वयलि2 को पकOन का साशय �ोप करगा, या ऐस परिररोध म स साशय ऐस वयलि2 का हिनक� भागना स�न करगा या हिनक� भागन म, या हिनक� भागन का परयतन करन म साशय मदद करगा, (� हिनमनलि�खि�त रप स दहिडत हिकया जाएगा, अथा.ती :--

यटिद परिररदध वयलि2 या जो वयलि2 पकOा जाना चाहि�ए था (� मतय दडादश क अधीन �ो, तो (� जमा.न सहि�त या रहि�त 1[आजी(न कारा(ास] स, या दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध चौद� (ष. तक की �ो सकगी, अथ(ा

यटिद परिररदध वयहित या जो वयलि2 पकOा जाना चाहि�ए था (� नयाया�य क दडादश स, या ऐस दडादश स �घकरण क आधार पर 1[आजी(न कारा(ास] 3।।। 4।।। 5।।। 6।।। या दस (ष. की या उसस अधिधक की अ(धिध क लि�ए कारा(ास क अधयधीन �ो, तो (� जमा.न सहि�त या रहि�त, दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, अथ(ा

यटिद परिररदध वयलि2 या जो वयलि2 पकOा जाना चाहि�ए था (� नयाया�य क दडादश स दस (ष. स कम की अ(धिध क लि�ए कारा(ास क अधयधीन �ो 7[या यटिद (� वयलि2 अभिभरकषा म र� जान क लि�ए हि(धिधप(.क सपद. हिकया गया �ो,] तो (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स । 223. लोक सवक दवारा उपकषा स परिररो� या अशिभरकषा म स हि�कल भाग�ा स�� कर�ा--जो कोई ऐसा �ोक स(क �ोत हए, जो अपराध क लि�ए आरोहिपत या दोषलिसदध 8[या, अभिभरकषा म र� जान क लि�ए हि(धिधप(.क सपद. हिकए गए] हिकसी वयलि2 को परिररोध म र�न क लि�ए ऐस �ोक स(क क नात (ध रप स आबदध �ो, ऐस वयलि2 का परिररोध म स हिनक� भागना उपकषा स स�न करगा, (� सादा कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

224. हिकसी वयधिकत दवारा हिवधि� क अ�सार अप� पकड जा� म परहितरो� या बा�ा--जो कोई हिकसी ऐस अपराध क लि�ए, जिजसका उस पर आरोप �ो, या जिजसक लि�ए (� दोषलिसदध हिकया गया �ो, हि(धिध क अनसार अपन पकO जान म साशय परहितरोध करगा या अ(ध बाधा डा�गा, या हिकसी अभिभरकषा स, जिजसम (� हिकसी ऐस अपराध क लि�ए हि(धिधप(.क हिनरदध �ो, हिनक� भागगा, या हिनक� भागन का परयतन करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

सपषटीकरण--इस धारा म उपबधिधत दड उस दड क अहितरिर2 � जिजसस (� वयलि2, जिजस पकOा जाना �ो, या अभिभरकषा म हिनरदध र�ा जाना �ो, उस अपराध क लि�ए दडनीय था, जिजसका उस पर आरोप �गाया गया था या जिजसक लि�ए (� दोषलिसदध हिकया गया था ।

225. हिकसी अनय वयधिकत क हिवधि� क अ�सार पकड जा� म परहितरो� या बा�ा--जो कोई हिकसी अपराध क लि�ए हिकसी दसर वयलि2 क हि(धिध क अनसार पकO जान म साशय परहितरोध करगा या अ(ध बाधा डा�गा, या हिकसी दसर वयलि2 को हिकसी ऐसी अभिभरकषा स, जिजसम (� वयलि2 हिकसी अपराध क लि�ए हि(धिधप(.क हिनरदध �ो, साशय छOाएगा या छOान का परयतन करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ;

अथ(ा यटिद उस वयलि2 पर, जिजस पकOा जाना �ो, या जो छOाया गया �ो, या, जिजसक छOान का परयतन हिकया गया �ो, 1[आजी(न कारा(ास] स, या दस (ष. तक की अ(धिध क कारा(ास स दडनीय अपराध का आरोप �ो या (� उसक लि�ए पकO जान क दाधियत( क अधीन �ो, तो (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ; 1 1955 क अधिधहिनयम स0 26 की धारा 117 और अनसची दवारा (1-1-1956 स “आजी(न हिन(ा.सन” क सथान पर परहितसथाहिपत ।

2 1870 क अधिधहिनयम स0 27 की धारा 8 दवारा अतःसथाहिपत । 3 1949 क अधिधहिनयम स0 17 की धारा 2 दवारा “या आजी(न कठोरशरम कारा(ास” शबदो का �ोप हिकया गया । 4 1957 क अधिधहिनयम स0 36 की धारा 3 और अनसची 2 दवारा “या.... क लि�ए” शबदो का �ोप हिकया गया । 5 1955 क अधिधहिनयम स0 26 की धारा 117 और अनसची दवारा “हिन(ा.सन” शबद का �ोप हिकया गया । 6 1949 क अधिधहिनयम स0 17 की धारा 2 दवारा (6-4-1949 स) “या कठोरशरम कारा(ास” शबदो का �ोप हिकया गया । 7 1955 क अधिधहिनयम स0 26 की धारा 117 और अनसची दवारा (1-1-1956 स) “आजी(न हिन(ा.सन” क सथान पर परहितसथाहिपत ।

8 1870 क अधिधहिनयम स0 27 की धारा 8 दवारा अतःसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 45

अथ(ा यटिद उस वयलि2 पर, जिजस पकOा जाना �ो या जो छOाया गया �ो, या जिजसक छOान का परयतन हिकया गया �ो, मतय-दड स दडनीय अपराध का आरोप �ो या (� उसक लि�ए पकO जान क दाधियत( क अधीन �ो, तो, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ;

अथ(ा यटिद (� वयलि2, जिजस पकOा जाना �ो या जो छOाया गया �ो, या जिजसक छOान का परयतन हिकया गया �ो, हिकसी नयाया�य क दडादश क अधीन या (� ऐस दडादश क �घकरण क आधार पर 1[आजी(न कारा(ास] 1।।। 2।।। 3।।। या दस (ष. या उसस अधिधक अ(धिध क कारा(ास स दडनीय �ो, तो (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ;

अथ(ा यटिद (� वयलि2, जिजस पकOा जाना �ो, या जो छOाया गया �ो या जिजसक छOान का परयतन हिकया गया �ो, मतय दडादश क अधीन �ो, तो (� 1[आजी(न कारा(ास] स, या दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, इतनी अ(धिध क लि�ए जो दस (ष. स अनधिधक �, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

4[225क. उ� द!ाओ म जिज�क धिलए अनयथा उपब� ��ी � लोक सवक दवारा पकड� का लोप या हि�कल भाग�ा स�� कर�ा--जो कोई ऐसा �ोक स(क �ोत हए जो हिकसी वयलि2 को पकOन या परिररोध म र�न क लि�ए �ोक स(क क नात (ध रप स आबदध �ो उस वयलि2 को हिकसी ऐसी दशा म, जिजसक लि�ए धारा 221, धारा 222 या धारा 223 अथ(ा हिकसी अनय ततसमय पर(तत हि(धिध म कोई उपबध न�ी �, पकOन का �ोप करगा या परिररोध स हिनक� भागना स�न करगा--

(क) यटिद (� ऐसा साशय करगा, तो (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी या जमा.न स, या दोनो स, तथा

(�) यटिद (� ऐसा उपकषाप(.क करगा तो (� सादा कारा(ास स जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा । 225ख. अनयथा अ�पबधि�त द!ाओ म हिवधि�पव#क पकड� म परहितरो� या बा�ा या हि�कल भाग�ा या छडा�ा--

जो कोई स(य अपन या हिकसी अनय वयलि2 क हि(धिधप(.क पकO जान म साशय कोई परहितरोध करगा या अ(ध बाधा डा�गा या हिकसी अभिभरकषा म स, जिजसम (� हि(धिधप(.क हिनरदध �ो, हिनक� भागगा या हिनक� भागन का परयतन करगा या हिकसी अनय वयलि2 को ऐसी अभिभरकषा म स, जिजसम (� वयलि2 हि(धिधप(.क हिनरदध �ो, छOाएगा या छOान का परयतन करगा (� हिकसी ऐसी दशा म, जिजसक लि�ए धारा 224 या धारा 225 या हिकसी अनय ततसमय पर(तत हि(धिध म उपबध न�ी �, दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध छ� मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।]

226. [हि�वा#स� स हिवधि�हिवरदध वापसी ।ट--दड परहि�Eया सहि�ता (सशोधन) अधिधहिनयम, 1955 (1955 का 26) की धारा 117 और अनसची दवारा हिनरलिसत ।

227. दड क परिर�ार की !त# का अहितकरमण--जो कोई दड का सशत. परिर�ार परहितग�ीत कर �न पर हिकसी शत. का जिजस पर ऐसा परिर�ार टिदया गया था, जानत हए अहितकरमण करगा, यटिद (� उस दड का, जिजसक लि�ए (� म�तः दडाटिदषT हिकया गया था, कोई भाग प�� �ी न भोग चका �ो, तो (� उस दड स और यटिद (� उस दड का कोई भाग भोग चका �ो, तो (� उस दड क उतन भाग स, जिजतन को (� प�� �ी भोग चका �ो, दहिडत हिकया जाएगा ।

228. नयाबरियक काय#वा�ी म बठ हए लोक सवक का सा!य अपमा� या उसक काय# म हिवघ�--जो कोई हिकसी �ोक स(क का उस समय, जब हिक ऐसा �ोक स(क नयाधियक काय.(ा�ी क हिकसी परकरम म बठा हआ �ो, साशय कोई अपमान करगा या उसक काय. म कोई हि(धन डा�गा, (� सादा कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध छ� मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो एक �जार रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

5[228क. कहितपय अपरा�ो आटिद स पीहिडत वयधिकत की प�चा� का परकटीकरण--(1) जो कोई हिकसी नाम या अनय बात को, जिजसस हिकसी ऐस वयलि2 की (जिजस इस धारा म इसक पशचाती पीहिOत वयलि2 क�ा गया �) प�चान �ो सकती �, जिजसक हि(रदध धारा 376, धारा 376क, धारा 376�, धारा 376ग या धारा 376घ क अधीन हिकसी अपराध का हिकया जाना अभिभकलिथत � या हिकया गया पाया गया �, मटिदरत या परकालिशत करगा (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

(2) उपधारा (1) की हिकसी भी बात का हि(सतार हिकसी नाम या अनय बात क ऐस मदरण या परकाशन पर, यटिद उसस पीहिOत वयलि2 की प�चान �ो सकती �, तब �ाग न�ी �ोता � जब ऐसा मदरण या परकाशन-- 1 1957 क अधिधहिनयम स0 36 की धारा 3 और अनसची 2 दवारा “या.... क लि�ए” शबदो का �ोप हिकया गया ।

2 1955 क अधिधहिनयम स0 26 की धारा 117 और अनसची दवारा (1-1-1956 स) “हिन(ा.सन” शबद का �ोप हिकया गया । 3 1949 क अधिधहिनयम स0 17 की धारा 2 दवारा (6-4-1949 स) “कठोरशरम कारा(ास” शबदो का �ोप हिकया गया । 4 1886 क अधिधहिनयम स0 10 की धारा 24(1) दवारा धारा 225क तथा 225� को धारा 225क, जो 1870 क अधिधहिनयम स0 27 की धारा 9

दवारा अतःसथाहिपत की गई थी, क सथान पर परहितसथाहिपत । 5 1983 क अधिधहिनयम स0 43 की धारा 2 दवारा (25-12-1983 स) अतःसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 46

(क) पलि�स थान क भारसाधक अधिधकारी दवारा या उसक लि�खि�त आदश क अधीन अथ(ा ऐस अपराध का अन(षण करन (ा� पलि�स अधिधकारी दवारा, जो ऐस अन(षण क परयोजनो क लि�ए सदीभा(प(.क काय. करता �, या उसक लि�खि�त आदश क अधीन हिकया जाता � ; या

(�) पीहिडत वयलि2 दवारा या उसक लि�खि�त पराधिधकार स हिकया जाता � ; या (ग) ज�ा पीहिOत वयलि2 की मतय �ो चकी � अथ(ा (� अ(यसक या हि(कतलिचतत � (�ा, पीहिOत वयलि2 क हिनकT

सबधी दवारा या उसक लि�खि�त पराधिधकार स, हिकया जाता � : परनत हिनकT सबधी दवारा कोई भी ऐसा पराधिधकार हिकसी मानयतापरापत कलयाण ससथा या सगठन क अधयकष या सलिच( स

चा� उसका जो भी नाम �ो, भिभनन हिकसी अनय वयलि2 को न�ी टिदया जाएगा । सपषटीकरण--इस उपधारा क परयोजनो क लि�ए “मानयतापरापत कलयाण ससथा या सगठन” स कनदरीय या राजय सरकार

दवारा इस उपधारा क परयोजनो क लि�ए हिकसी मानयतापरापत कोई समाज कलयाण ससथा या सगठन अभिभपरत � । (3) जो कोई वयलि2 उपधारा (1) म हिनरदिदषT हिकसी अपराध की बाबत हिकसी नयाया�य क समकष हिकसी काय.(ा�ी क

सबध म, उस नयाया�य की प(. अनजञा क हिबना कोई बात मटिदरत या परकालिशत करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

सपषटीकरण--हिकसी उचच नयाया�य या उचचतम नयाया�य क हिनण.य का मदरण या परकाशन इस धारा क अथ. म कोई अपराध न�ी � ।]

229. जरी सदसय या अससर का परहितरपण--जो कोई हिकसी माम� म परहितरपण दवारा या अनयथा, अपन को य� जानत हए जरी सदसय या अससर क रप म तालि�काहिकत, पनलि�त या ग�ीतशपथ साशय कराएगा या �ोन दना जानत हए स�न करगा हिक (� इस परकार तालि�काहिकत, पनलि�त या ग�ीतशपथ �ोन का हि(धिध दवारा �कदार न�ी � या य� जानत हए हिक (� इस परकार तालि�काहिकत, पनलि�त या ग�ीतशपथ हि(धिध क परहितक� हआ � ऐस जरी म या ऐस अससर क रप म स(चछा स(ा करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स दहिडत हिकया जाएगा ।

230. “धिसकका” की परिरभाषाा--1[लिसकका, ततसमय धन क रप म उपयोग म �ाई जा र�ी और इस परकार उपयोग म �ाए जान क लि�ए हिकसी राजय या सपण. परभत( समपनन शलि2 क पराधिधकार दवारा, सTानधिमपत और परचालि�त धात � ।]

भारतीय धिसकका--2[भारतीय लिसकका धन क रप म उपयोग म �ाए जान क लि�ए भारत सरकार क पराधिधकार दवारा सTानधिमपत और परचालि�त धात � ; और इस परकार सTानधिमपत और परचालि�त धात इस अधयाय क परयोजनो क लि�ए भारतीय लिसकका बनी र�गी, यदयहिप धन क रप म उसका उपयोग म �ाया जाना बनद �ो गया �ो ।]

दषटात (क) कौहिOया लिसकक न�ी � । (�) असTानधिमपत ताब क TकO, यदयहिप धन क रप म उपयोग म �ाए जात �, लिसकक न�ी � । (ग) पदक लिसकक न�ी �, कयोहिक ( धन क रप म उपयोग म �ाए जान क लि�ए आशधियत न�ी � ।

(घ) जिजस लिसकक का नाम कमपनी रपया �, (� 3[भारतीय लिसकका] � । 4[(ङ) “cर�ाबाद रपया”, जो धन क रप म भारत सरकार क पराधिधकार क अधीन प�� कभी उपयोग म �ाया जाता था,

5[भारतीय लिसकका] �, यदयहिप (� अब इस परकार उपयोग म न�ी �ाया जाता � ।] 231. धिसकक का कटकरण--जो कोई लिसकक का कTकरण करगा या जानत हए लिसकक क कTकरण की परहि�Eया क

हिकसी भाग को करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

सपषटीकरण--जो वयलि2 अस�ी लिसकक को हिकसी भिभनन लिसकक क जसा टिद��ाई दन (ा�ा इस आशय स बनाता � हिक पर(चना की जाए या य� सभावय जानत हए बनाता � हिक तदीदवारा पर(चना की जाएगी, (� य� अपराध करता � । 1 1872 क अधिधहिनयम स0 19 की धारा 1 दवारा परथम म� परा क सथान पर परहितसथाहिपत ।

2 हि(धिध अनक�न आदश, 1950 दवारा प(.(तx परा क सथान पर परहितसथाहिपत । 3 हि(धिध अनक�न आदश, 1950 दवारा “क(ीन का लिसकका” क सथान पर परहितसथाहिपत । 4 1896 क अधिधहिनयम स0 6 की धारा 1(2) दवारा जोOा गया ।

5 हि(धिध अनक�न आदश, 1950 दवारा “क(ीन क लिसकक” क सथान पर परहितसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 47

232. भारतीय धिसकक का कटकरण--जो कोई 5[भारतीय लिसकक] का कTकरण करगा या जानत हए भारतीय लिसकक क कTकरण की परहि�Eया क हिकसी भाग को करगा, (� 1[आजी(न कारा(ास] स, या दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

233. धिसकक क कटकरण क धिलए उपकरण ब�ा�ा या बच�ा--जो कोई हिकसी डाई या उपकरण को लिसकक क कTकरण क लि�ए उपयोग म �ाए जान क परयोजन स, या य� जानत हए या य� हि(शवास करन का कारण र�त हए हिक (� लिसकक क कTकरण म उपयोग म �ाए जान क लि�ए आशधियत �, बनाएगा या सधारगा या बनान या सधारन की परहि�Eया क हिकसी भाग को करगा, अथ(ा �रीदगा, बचगा या वययहिनत करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

234. भारतीय धिसकक क कटकरण क धिलए उपकरण ब�ा�ा या बच�ा--जो कोई हिकसी डाई या उपकरण को भारतीय लिसकक क कTकरण क लि�ए उपयोग म �ाए जान क परयोजन स, या य� जानत हए या य� हि(शवास करन का कारण र�त हए हिक (� 3[भारतीय लिसकक] क कTकरण म उपयोग म �ाए जान क लि�ए आशधियत �, बनाएगा या सधारगा या बनान या सधारन की परहि�Eया क हिकसी भाग को करगा अथ(ा �रीदगा, बचगा या वययहिनत करगा (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

235. धिसकक क कटकरण क धिलए उपकरण या सामगरी उपयोग म ला� क परयोज� स उस कबज म रख�ा-- जो कोई हिकसी उपकरण या सामगरी को लिसकक क कTकरण म उपयोग म �ाए जान क परयोजन स या य� जानत हए या य� हि(शवास करन का कारण र�त हए (� उस परयोजन क लि�ए उपयोग म �ाए जान क लि�ए आशधियत �, अपन कबज म र�गा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ;

यटिद भारतीय धिसकका �ो--और यटिद कTकरण हिकया जान (ा�ा लिसकका 3[भारतीय लिसकका] �ो, तो (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

236. भारत स बा�र धिसकक क कटकरण का भारत म दषपररण--जो कोई 2[भारत] म �ोत हए 1[भारत] स बा�र लिसकक क कTकरण का दषपररण करगा, (� ऐस दहिडत हिकया जाएगा, मानो उसन ऐस लिसकक क कTकरण का दषपररण 1[भारत] म हिकया �ो । 237. कटकत धिसकक का आयात या हि�या#त--जो कोई हिकसी कTकत लिसकक का य� जानत हए या हि(शवास करन का कारण र�त हए हिक (� कTकत �, 1[भारत] म आयात करगा या 1[भारत] स हिनया.त करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

238. भारतीय धिसकक की कटकहितयो का आयात या हि�या#त--जो कोई हिकसी कTकत लिसकक को, य� जानत हए या हि(शवास करन का कारण र�त हए हिक (� 3[भारतीय लिसकक] की कTकहित �, 1[भारत] म आयात करगा या 1[भारत] स हिनया.त करगा, (� 4[आजी(न कारा(ास] स, या दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

239. धिसकक का परिरदा� जिजसका कटकत �ो�ा कबज म आ� क समय जञात था--जो कोई अपन पास कोई ऐसा कTकत लिसकका �ोत हए जिजस (� उस समय, जब (� उसक कबज म आया था, जानता था हिक (� कTकत �, कपTप(.क, या इस आशय स हिक कपT हिकया जाए, उस हिकसी वयलि2 को परिरदतत करगा या हिकसी वयलि2 को उस �न क लि�ए उतपररिरत करन का परयतन करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध पाच (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

240. उस भारतीय धिसकक का परिरदा� जिजसका कटकत �ो�ा कबज म आ� क समय जञात था--जो कोई अपन पास कोई ऐसा कTकत लिसकका �ोत हए, जो 2[भारतीय लिसकक] की कTकहित �ो और जिजस (� उस समय, जब (� उसक कबज म आया था, जानता था हिक (� 2[भारतीय लिसकक] की कTकहित �, कपTप(.क, या इस आशय स हिक कपT हिकया जाए, उस हिकसी वयलि2 को परिरदतत करगा या हिकसी वयलि2 को उस �न क लि�ए उतपररिरत करन का परयतन करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

241. हिकसी धिसकक का असली धिसकक क रप म परिरदा�, जिजसका परिरदा� कर� वाला उस समय जब व� उसक कबज म प�ली बार आया था, कटकत �ो�ा ��ी जा�ता था--जो कोई हिकसी दसर वयलि2 को कोई ऐसा कTकत लिसकका, जिजसका कTकत �ोना (� जानता �ो, हिकनत जिजसका (� उस समय, जब उसन उस अपन कबज म लि�या, कTकत �ोना न�ी जानता था, अस�ी लिसकक क रप म परिरदान करगा, या हिकसी दसर वयलि2 को उस अस�ी लिसकक क रप म �न क लि�ए उतपररिरत करन का परयतन 1 1955 क अधिधहिनयम स0 26 की धारा 117 और अनसची दवारा (1-1-1956 स) “आजी(न हिन(ा.सन” क सथान पर परहितसथाहिपत । 2 “हिRटिTश भारत” शबद अनकरमशः भारतीय स(ततरता (कनदरीय अधिधहिनयम तथा अधयादश अनक�न) आदश, 1948, हि(धिध अनक�न आदश, 1950

और 1951 क अधिधहिनयम स0 3 को धारा 3 और अनसची दवारा परहितसथाहिपत हिकए गए � । 3 हि(धिध अनक�न आदश, 1950 दवारा “क(ीन क लिसकक” क सथान पर परहितसथाहिपत ।

4 1955 क अधिधहिनयम स0 26 की धारा 117 और अनसची दवारा (1-1-1956 स) “आजी(न हिन(ा.सन” क सथान पर परहितसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 48

करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या इतन जमा.न स, जो कTकत लिसकक क मलय क दस गन तक का �ो सकगा, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

दषटात क, एक लिसककाकार, अपन स�-अपराधी � को कTकत कमपनी का रपए च�ान क लि�ए परिरदतत करता �, ख उन रपयो को लिसकका

च�ान (ा� एक दसर वयलि2 ग को बच दता �, जो उन� कTकत जानत हए �रीदता � । ग उन रपयो को घ को, जो उनको कTकत न जानत हए परापत करता �, मा� क बद� द दता � । घ को रपया परापत �ोन क पशचाती य� पता च�ता � हिक ( रपए कTकत �, और (� उनको इस परकार च�ाता �, मानो ( अस�ी �ो । य�ा, घ क(� इस धारा क अधीन दडनीय �, हिकनत ख और ग, यथाणडिसथहित, धारा 239 या 240 क अधीन दडनीय � ।

242. कटकत धिसकक पर ऐस वयधिकत का कबजा जो उस समय उसका कटकत �ो�ा जा�ता था जब व� उसक कबज म आया था--जो कोई ऐस कTकत लिसकक को, जिजस (� उस समय, जब (� लिसकका उसक कबज म आया था, जानता था हिक (� कTकत �, कपTप(.क या इस आशय स हिक कपT हिकया जाए, कबज म र�गा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा । 243. भारतीय धिसकक पर ऐस वयधिकत का कबजा जो उसका कटकत �ो�ा उस समय जा�ता था जब व� उसक कबज म आया था--जो कोई ऐस कTकत लिसकक को, जो 2[भारतीय लिसकक] की कTकहित � और जिजस (� उस समय, जब (� लिसकका उसक कबज म आया था, जानता था हिक (� 2[भारतीय लिसकक] की कTकहित �, कपTप(.क, या इस आशय स हिक कपT हिकया जाए, कबजो म र�गा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

244. टकसाल म हि�योजिजत वयधिकत दवारा धिसकक को उस वज� या बरिमशरण स शिभनन कारिरत हिकया जा�ा जो हिवधि� दवारा हि�यत �--जो कोई 1[भारत] म हि(धिधप(.क सथाहिपत हिकसी Tकसा� म स हिनयोजिजत �ोत हए इस आशय स कोई काय. करगा, या उस काय. का �ोप करगा, जिजस करन क लि�ए (� (ध रप स आबदध �ो हिक उस Tकसा� स परचालि�त कोई लिसकका हि(धिध दवारा हिनयत (जन या धिमशरण स भिभनन (जन या धिमशरण का कारिरत �ो, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

245. टकसाल स धिसकका ब�ा� का उपकरण हिवधि�हिवरदध रप स ल�ा--जो कोई 1[भारत] म हि(धिधप(.क सथाहिपत हिकसी Tकसा� म स लिसकका बनान क हिकसी औजार या उपकरण को हि(धिधपण. पराधिधकार क हिबना बा�र हिनका� �ाएगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

246. कपटपव#क या बईमा�ी स धिसकक का वज� कम कर�ा या बरिमशरण परिरवरतितत कर�ा--जो कोई कपTप(.क या बईमानी स हिकसी लिसकक पर कोई ऐसी हि�Eया करगा, जिजसस उस लिसकक का (जन कम �ो जाए या उसका धिमशरण परिर(रवितत �ो जाए (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा, और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

सपषटीकरण--(� वयलि2, जो लिसकक क हिकसी भाग को �रच कर हिनका� दता �, और उस गOढ म कोई अनय (सत भर दता �, उस लिसकक का धिमशरण परिरतरवि(त करता � ।

247. कपटपव#क या बईमा�ी स भारतीय धिसकक का वज� कम कर�ा या बरिमशरण परिरवरतितत कर�ा--जो कोई कपTप(.क या बईमानी स 2[हिकसी भारतीय लिसकक] पर कोई ऐसी हि�Eया करगा जिजसस उस लिसकक का (जन कम �ो जाए या उसका धिमशरण परिर(रवितत �ो जाए, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा, और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

248. इस आ!य स हिकसी धिसकक का रप परिरवरतितत कर�ा हिक व� शिभनन परकार क धिसकक क रप म चल जाए--जो कोई हिकसी लिसकक पर इस आशय स हिक (� लिसकका भिभनन परकार क लिसकक क रप म च� जाए, कोई ऐसी हि�Eया करगा, जिजसस उस लिसकक का रप परिर(रवितत �ो जाए, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

249. इस आ!य स भारतीय धिसकक का रप परिरवरतितत कर�ा हिक व� शिभनन परकार क धिसकक क रप म चल जाए--जो कोई 2[हिकसी भारतीय लिसकक] पर इस आशय स हिक (� लिसकका भिभनन परकार क लिसकक क रप म च� जाए, कोई

ऐसी हि�Eया करगा, जिजसस उस लिसकक का रप परिर(रवितत �ो जाए, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा । 1 “हिRटिTश भारत” शबद अनकरमशः भारतीय स(ततरता (कनदरीय अधिधहिनयम तथा अधयादश अनक�न) आदश, 1948, हि(धिध अनक�न आदश, 1950

और 1951 क अधिधहिनयम स0 3 को धारा 3 और अनसची दवारा परहितसथाहिपत हिकए गए � । 2 हि(धिध अनक�न आदश, 1950 दवारा “क(ीन क हिकसी भी लिसकक” क सथान पर परहितसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 49

250. ऐस धिसकक का परिरदा� जो इस जञा� क साथ कबज म आया �ो हिक उस परिरवरतितत हिकया गया �ी--जो कोई हिकसी ऐस लिसकक को कबज म र�त हए, जिजसक बार म धारा 246 या 248 म परिरभाहिषत अपराध हिकया गया �ो, और जिजसक बार म उस समय, जब (� लिसकका उसक कबज म आया था, (� य� जानता था हिक ऐसा अपराध उसक बार म हिकया गया �, कपTप(.क या इस आशय स हिक कपT हिकया जाए, हिकसी अनय वयलि2 को (� लिसकका परिरदतत करगा, या हिकसी अनय वयलि2 को उस �न क लि�ए उतपररिरत करन का परयतन करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध पाच (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

251. भारतीय धिसकक का परिरदा� जो इस जञा� क साथ कबज म आया �ो हिक उस परिरवरतितत हिकया गया �--जो कोई हिकसी ऐस लिसकक को कबज म र�त हए, जिजसक बार म धारा 247 या 249 म परिरभाहिषत अपराध हिकया गया �ो, और जिजसक बार म उस समय, जब (� लिसकका उसक कबज म आया था, (� य� जानता था हिक ऐसा अपराध उसक बार म हिकया गया �, कपTप(.क या इस आशय स हिक कपT हिकया जाए, हिकसी अनय वयलि2 को (� लिसकका परिरदतत करगा या हिकसी अनय वयलि2 को उस �न क लि�ए उतपररिरत करन का परयतन करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

252. ऐस वयधिकत दवारा धिसकक पर कबजा जो उसका परिरवरतितत �ो�ा उस समय जा�ता था जब व� उसक कबज म आया--जो कोई कपTप(.क, या इस आशय क हिक कपT हिकया जाए, ऐस लिसकक को कबज म र�गा, जिजसक बार म धारा 246 या 248 म स हिकसी म परिरभाहिषत अपराध हिकया गया �ो और जो उस समय, जब (� लिसकका उसक कबज म आया था, य� जानता था हिक उस लिसकक क बार म ऐसा अपराध हिकया गया �, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

253. ऐस वयधिकत दवारा भारतीय धिसकक पर कबजा जो उसका परिरवरतितत �ो�ा उस समय जा�ता था जब व� उसक कबज म आया--जो कोई कपTप(.क, या इस आशय स हिक कपT हिकया जाए, ऐस लिसकक को कबज म र�गा, जिजसक बार म धारा 247 या 249 म स हिकसी म परिरभाहिषत अपराध हिकया गया �ो और जो उस समय, जब (� लिसकका उसक कबज म आया था, य� जानता था हिक उस लिसकक क बार म ऐसा अपराध हिकया गया �, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध पाच (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

254. धिसकक का असली धिसकक क रप म परिरदा� जिजसका परिरदा� कर� वाला उस समय जब व� उसक कबज म प�ली बार आया था, परिरवरतितत �ो�ा ��ी जा�ता था--जो कोई हिकसी दसर वयलि2 को कोई लिसकका, जिजसक बार म (� जानता �ो हिक कोई ऐसी हि�Eया, जसी धारा 246, 247, 248 या 249 म (रणिणत �, की जा चकी �, हिकनत जिजसक बार म (� उस समय, जब उसन उस अपन कबज म लि�या था, य� न जानता था हिक उस पर ऐसी हि�Eया कर दी गई �, अस�ी क रप म, या जिजस परकार का (� � उसस भिभनन परकार क लिसकक क रप म, परिरदतत करगा या अस�ी क रप म या जिजस परकार का (� � उसस भिभनन परकार क लिसकक क रप म, हिकसी वयलि2 को उस �न क लि�ए उतपररिरत करन का परयतन करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या इतन जमा.न स, जो उस लिसकक की कीमत क दस गन तक का �ो सकगा, जिजसक बद� म परिर(रवितत लिसकका च�ाया गया �ो या च�ान का परयतन हिकया गया �ो, दहिडत हिकया जाएगा । 255. सरकारी सटामप का कटकरण--जो कोई सरकार दवारा राजस( क परयोजन क लि�ए परचालि�त हिकसी सTामप का कTकरण करगा या जानत हए उसक कTकरण की परहि�Eया क हिकसी भाग को करगा, (� 1[आजी(न कारा(ास] स, या दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

सपषटीकरण--(� वयलि2 इस अपराध को करता �, जो एक अभिभधान क हिकसी अस�ी सTामप को भिभनन अभिभधान क अस�ी सTामप क समान टिद�ाई दन (ा�ा बना कर कTकरण करता � ।

256. सरकारी सटामप क कटकरण क धिलए उपकरण या सामगरी कबज म रख�ा--जो कोई सरकार क दवारा राजस( क परयोजन क लि�ए परचालि�त हिकसी सTामप क कTकरण क लि�ए उपयोग म �ाए जान क परयोजन स, या य� जानत हए या य� हि(शवास करन का कारण र�त हए हिक (� ऐस कTकरण क लि�ए उपयोग म �ाए जान क लि�ए आशधियत �, कोई उपकरण या सामगरी अपन कबज म र�गा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

257. सरकारी सटामप क कटकरण क धिलए उपकरण ब�ा�ा या बच�ा--जो कोई सरकार क दवारा राजस( क परयोजन क लि�ए परचालि�त हिकसी सTामप क कTकरण क लि�ए उपयोग म �ाए जान क परयोजन स, या य� जानत हए या य� हि(शवास करन का

1 . 1955 क अधिधहिनयम स0 26 की धारा 117 और अनसची दवारा (1-1-1956 स) “आजी(न हिन(ा.सन” क सथान पर परहितसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 50

कारण र�त हए हिक (� ऐस कTकरण क लि�ए उपयोग म �ाए जान क लि�ए आशधियत �, कोई उपकरण बनाएगा या बनान की परहि�Eया क हिकसी भाग को करगा या ऐस हिकसी उपकरण को �रीदगा, या बचगा या वययहिनत करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

258. कटकत सरकारी सटामप का हिवकरय--जो कोई हिकसी सTामप को य� जानत हए या य� हि(शवास करन का कारण र�त हए बचगा या बचन की परसथापना करगा हिक (� सरकार दवारा राजस( क परयोजन क लि�ए परचालि�त हिकसी सTामप की कTकहित �, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

259. सरकारी कटकत सटामप को कबज म रख�ा--जो कोई अस�ी सTामप क रप म उपयोग म �ान क या वययन करन क आशय स, या इसलि�ए हिक (� अस�ी सTामप क रप म उपयोग म �ाया जा सक, हिकसी ऐस सTामप को अपन कबज म र�गा, जिजस (� जानता � हिक (� सरकार दवारा राजस( क परयोजन क लि�ए परचालि�त सTामप की कTकहित � (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

260. हिकसी सरकारी सटामप को, कटकत जा�त हए उस असली सटामप क रप म उपयोग म ला�ा--जो कोई हिकसी ऐस सTामप को, जिजस (� जानता � हिक (� सरकार दवारा राजस( क परयोजन क लि�ए परचालि�त सTामप की कTकहित �, अस�ी सTामप क रप म उपयोग म �ाएगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

261. इस आ!य स हिक सरकार को �ाहि� कारिरत �ो, उस पदाथ# पर स, जिजस पर सरकारी सटामप लगा हआ �, लख बरिमटा�ा या दसतावज स व� सटामप �टा�ा जो उसक धिलए उपयोग म लाया गया �--जो कोई कपTप(.क, या इस आशय स हिक सरकार को �ाहिन कारिरत की जाए, हिकसी पदाथ. पर स, जिजस पर सरकार दवारा राजस( क परयोजन क लि�ए परचालि�त कोई सTामप �गा हआ �ो, हिकसी �� या दसता(ज को, जिजसक लि�ए ऐसा सTामप उपयोग म �ाया गया �ो, �Tाएगा या धिमTाएगा या हिकसी �� या दसता(ज पर स उस �� या दसता(ज क लि�ए उपयोग म �ाया गया सTामप इसलि�ए �Tाएगा हिक ऐसा सTामप हिकसी भिभनन �� या दसता(ज क लि�ए उपयोग म �ाया जाए, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

262. ऐस सरकारी सटामप का उपयोग जिजसक बार म जञात � हिक उसका प�ल उपयोग �ो चका �--जो कोई कपTप(.क, या इस आशय स हिक सरकार को �ाहिन कारिरत की जाए, सरकार दवारा राजस( क परयोजन क लि�ए परचालि�त हिकसी सTामप को, जिजसक बार म (� जानता � हिक (� सTामप उसस प�� उपयोग म �ाया जा चका �, हिकसी परयोजन क लि�ए उपयोग म �ाएगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

263. सटामप क उपयोग हिकए जा चक� क दयोतक धिचन� का छीलकर बरिमटा�ा--जो कोई कपTप(.क, या इस आशय स हिक सरकार को �ाहिन कारिरत की जाए, सरकार दवारा राजस( क परयोजन क लि�ए परचालि�त सTामप पर स उस लिचन� को छी�कर धिमTाएगा या �Tाएगा, जो ऐस सTामप पर य� दयोतन करन क परयोजन स हिक (� उपयोग म �ाया जा चका �, �गा हआ या छाहिपत �ो या ऐस हिकसी सTामप को, जिजस पर स ऐसा लिचन� धिमTाया या �Tाया गया �ो, जानत हए अपन कबज म र�गा या बचगा या वययहिनत करगा, या ऐस हिकसी सTामप को, जो (� जानता � हिक उपयोग म �ाया जा चका �, बचगा या वययनीत करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

1[263क. ब�ावटी सटामपो का परहितषघ--(1) जो कोई हिकसी बना(Tी सTामप को-- (क) बनाएगा, जानत हए च�ाएगा, उसका वयौ�ार करगा या उसका हि(करय करगा या उस डाक सबधी हिकसी

परयोजन क लि�ए जानत हए उपयोग म �ाएगा, अथ(ा (�) हिकसी हि(धिधपण. परहित�त क हिबना अपन कबज म र�गा, अथ(ा (ग) बनान की हिकसी डाइ, पटटी, उपकरण या सामहिगरयो को बनाएगा, या हिकसी हि(धिधपण. परहित�त क हिबना अपन

कबज म र�गा, (� जमा.न स, जो दो सौ रपए तक �ो सकगा, दहिडत हिकया जाएगा ।

(2) कोई ऐसा सTामप, कोई बना(Tी सTामप बनान की डाई, पटटी, उपकरण या सामहिगरया, जो हिकसी वयलि2 क कबज म �ो, 2[अभिभग�ीत की जा सकगी और अभिभग�ीत की जाए] तो समपहत कर �ी जाएगी ।

1 1895 क अधिधहिनयम स0 3 की धारा 2 दवारा जोOा गया । 2 1953 क अधिधहिनयम स0 42 की धारा 4 और अनसची 3 दवारा “अभिभग�ीत की जा सकगी और” क सथान पर परहितसथाहिपत । भारतीय दड

सहि�ता, 1860 51

(3) इस धारा म “बना(Tी सTामप” स ऐसा कोई सTामप अभिभपरत �, जिजसस य� धिमथया रप स तातपरयियत �ो हिक सरकार न डाक म�स� की दर क दयोतन क परयोजन स उस परचालि�त हिकया � या जो सरकार दवारा उस परयोजन स परचालि�त हिकसी सTामप की, कागज पर या अनयथा, अनलि�हिप, अनकहित,या समरपण �ो ।

(4) इस धारा म और धारा 255 स �कर धारा 263 तक म भी, जिजनम य दोनो धाराए भी समाहि(षT �, “सरकार” शबद क अतग.त, जब भी (� डाक म�स� की दर स दयोतन क परयोजन स परचालि�त हिकए गए हिकसी सTामप क ससग या हिनदzशन म उपयोग हिकया गया �, धारा 17 म हिकसी बात क �ोत हए भी, (� या ( वयलि2 समझ जाएग जो भारत क हिकसी भाग म और �र मजसTी की डोमीहिनयनो क हिकसी भाग म, या हिकसी हि(दश म भी, काय.पालि�का सरकार का परशासन च�ान क लि�ए हि(धिध दवारा पराधिधकत �ो ।]

अधयाय 13

बाटो और मापो स सबधि�त अपरा�ो क हिवषय म 264. तोल� क धिलए खोट उपकरणो का कपटपव#क उपयोग--जो कोई तो�न क लि�ए ऐस हिकसी उपकरण का,

जिजसका �ोTा �ोना (� जानता �, कपTप(.क उपयोग करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध एक (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

265. खोट बाट या माप का कपटपव#क उपयोग--जब कोई हिकसी �ोT बाT का या �मबाई या धारिरता क हिकसी �ोT माप का कपTप(.क उपयोग करगा, या हिकसी बाT का, या �मबाई या धारिरता क हिकसी माप का या उसस भिभनन बाT या माप क रप म कपTप(.क उपयोग करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध एक (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा । 266. खोट बाट या माप को कबज म रख�ा--जो कोई तो�न क ऐस हिकसी उपकरण या बाT को, या �मबाई या धारिरता क हिकसी माप को, जिजसका �ोTा �ोना (� जानता �, 1।।। इस आशय स कबज म र�गा हिक उस कपTप(.क उपयोग म �ाया जाए, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध एक (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

267. खोट बाट या माप का ब�ा�ा या बच�ा--जो कोई तो�न क ऐस हिकसी उपकरण या बाT को, या �मबाई या धारिरता क ऐस हिकसी माप को, जिजसका �ोTा �ोना (� जानता �, इसलि�ए हिक उसका �र की तर� उपयोग हिकया जाए या य� समभावय जानत हए हिक उसका �र की तर� उपयोग हिकया जाए, बनाएगा, बचगा या वययहिनत करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध एक (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

अधयाय 14

लोक सवासथय, कषम, सहिव�ा, शि!षटता और सदाचार पर परभाव डाल� वाल अपरा�ो क हिवषय म

268. लोक नयसनस--(� वयलि2 �ोक नयसनस का दोषीी �, जो कोई ऐसा काय. करता � या हिकसी ऐस अ(ध �ोप का दोषीी �, जिजसस �ोक को या जनसाधारण को जो आसपास म र�त �ो या आसपास की समपभितत पर अधिधभोग र�त �ो, कोई सामानय कषहित, सकT या कषोभ कारिरत �ो या जिजसस उन वयलि2यो का जिजन� हिकसी �ोक अधिधकार को उपयोग म �ान का मौका पO, कषहित, बाधा, सकT या कषोभ कारिरत �ोना अ(शयभा(ी �ो ।

कोई सामानय नयसनस इस आधार पर माcी योगय न�ी � हिक उसस कछ सहि(धा या भ�ाई कारिरत �ोती � । 269. उपकषापण# काय# जिजसस जीव� क धिलए सकटपण# रोग का सकरम फल�ा सभावय �ो--जो कोई हि(धिधहि(रदध

रप स या उपकषा स ऐसा कोई काय. करगा, जिजसस हिक और जिजसस (� जानता या हि(शवास करन का कारण र�ता �ो हिक, जी(न क लि�ए सकTपण. हिकसी रोग का सकरम c�ना सभावय �, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध छ� मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

270. परिरदवषपण# काय#, जिजसस जीव� क धिलए सकटपण# रोग का सकरम फल�ा सभावय �ो-- जो कोई परिरदवष स ऐसा कोई काय. करगा जिजसस हिक, और जिजसस (� जानता या हि(शवास करन का कारण र�ता �ो हिक, जी(न क लि�ए सकTपण. हिकसी रोक का सकरम c�ना सभावय �, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

271. करनती� क हि�यम की अवजञा--जो कोई हिकसी ज�यान को करनतीन की णडिसथहित म र� जान क, या करनतीन की णडिसथहित (ा� ज�यानो का हिकनार स या अनय ज�यानो स समागम हि(हिनयधिमत करन क, या ऐस सथानो क, ज�ा कोई सकरामक रोग

1 1953 क अधिधहिनयम स0 42 की धारा 4 और अनसची 3 दवारा “और” शबद का �ोप हिकया गया । भारतीय दड सहि�ता, 1860 52

c� र�ा �ो और अनय सथानो क बीच समागम हि(हिनयधिमत करन क लि�ए 1[।।। 2।।। 3।।। सरकार दवारा] बनाए गए और परखयाहिपत हिकसी हिनयम को जानत हए अ(जञा करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध छ� मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

272. हिवकरय क धिलए आ!बरियत खादय या पय का अपबरिमशरण--जो कोई हिकसी �ान या पीन की (सत को इस आशय स हिक (� ऐसी (सत क �ादय या पय क रप म बच या य� सभावय जानत हए हिक (� �ादय या पय क रप म बची जाएगी, ऐस अपधिमभिशरत करगा हिक ऐसी (सत �ादय या पय क रप म अपायकर बन जाए (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध छ� मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो एक �जार रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

273. अपायकर खादय या पय का हिवकरय--जो कोई हिकसी ऐसी (सत को, जो अपायकर कर दी गई �ो, या �ो गई �ो, या �ान पीन क लि�ए अनपय2 दशा म �ो, य� जानत हए या य� हि(शवास करन का कारण र�त हए हिक (� �ादय या पय क रप म अपायकर �, �ादय या पय क रप म बचगा, या बचन की परसथापना करगा या बचन क लि�ए अभिभदरछिशत करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध छ� मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो एक �जार रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

274. औषधि�यो का अपबरिमशरण--जो कोई हिकसी औषधिध या भषजीय हिनरयिमहित म अपधिमशरण इस आशय स हिक या य� समभावय जानत हए हिक (� हिकसी ओषधीय परयोजन क लि�ए ऐस बची जाएगी या उपयोग की जाएगी, मानो उसम ऐसा अपधिमशरण न हआ �ो, ऐस परकार स करगा हिक उस ओषधिध या भषजीय हिनरयिमहित की परभा(कारिरता कम �ो जाए, हि�Eया बद� जाए या (� अपायकर �ो जाए, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध छ� मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो एक �जार रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

275. अपबरिमशिशरत ओषधि�यो का हिवकरय--जो कोई य� जानत हए हिक हिकसी ओषधी या भषजीय हिनरयिमहित म इस परकार स अपधिमशरण हिकया गया � हिक उसकी परभा(कारिरता कम �ो गई या उसकी हि�Eया बद� गई �, या (� अपायकर बन गई �, उस बचगा या बचन की परसथापना करगा या बचन क लि�ए अभिभदरछिशत करगा, या हिकसी ओषधा�य स ओषधीय परयोजनो क लि�ए उस अनपोधिमभिशरत क तौर पर दगा या उसका अपधिमभिशरत �ोना न जानन (ा� वयलि2 दवारा औषधीय परयोजनो क लि�ए उसका उपयोग कारिरत करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध छ� मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो एक �जार रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

276. ओषधि� का शिभनन औषधि� या हि�रमिमहित क तौर पर हिवकरय--जो कोई हिकसी ओषधिध या भषजीय हिनरयिमहित को, भिभनन औषधिध या भषजीय हिनरयिमहित क तौर पर जानत हए बचगा या बचन की परसथापना करगा या बचन क लि�ए अभिभदरछिशत करगा या औषधीय परयोजनो क लि�ए औषधा�य स दगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध छ� मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो एक �जार रपए तक का �ो सकगा, या दानो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

277. लोक जल-सरोत या जला!य का जल कलहिषत कर�ा--जो कोई हिकसी �ोक ज�-सरोत या ज�ाशय क ज� को स(चछया इस परकार भरषT या क�हिषत करगा हिक (� उस परयोजन क लि�ए, जिजसक लि�ए (� माम�ी तौर पर उपयोग म आता �ो, कम उपयोगी �ो जाए, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो पाच सौ रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

278. वायमणडल को सवासथय क धिलए अपायकर ब�ा�ा--जो कोई हिकसी सथान क (ायमणड� को स(चछया इस परकार दहिषत करगा हिक (� जन साधारण क स(ासथय क लि�ए, जो पOोस म हिन(ास या कारबार करत �ो, या �ोक माग. स आत जात �ो अपायकर बन जाए, (� जमा.न स, जो पाच सौ रपए तक का �ो सकगा, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

279. लोक माग# पर उतावलप� स वा�� चला�ा या �ाक�ा--जो कोई हिकसी �ोक माग. पर ऐस उता(�पन या उपकषा स कोई (ा�न चा�एगा या स(ार �ोकर �ाकगा जिजसस मान( जी(न सकTापनन �ो जाए या हिकसी अनय वयलि2 को उप�हित या कषहित कारिरत �ोना समभावय �ो, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध छ� मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो एक �जार रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

280. जलया� का उतावलप� स चला�ा--जो कोई हिकसी ज�यान को ऐस उता(�पन या उपकषा स च�ाएगा, जिजसस मान( जी(न सकTापनन �ो जाए या हिकसी अनय वयलि2 को उप�हित या कषहित कारिरत �ोना समभावय �ो, (� दोनो म हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध छ� मास तक की �ो सकगी , या जमा.न स, जो एक �जार रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा । 1 भारत शासन (भारतीय हि(धिध अनक�न) आदश, 1937 दवारा “भारत सरकार दवारा या हिकसी सरकार दवारा” क सथान पर परहितसथाहिपत । 2 हि(धिध अनक�न आदश, 1950 दवारा “कनदरीय या हिकसी परादलिशक” शबदो का �ोप हिकया गया ।

3 भारतीय स(ततरता (कनदरीय अधिधहिनयम तथा अधयादश अनक�न) आदश, 1948 दवारा “या कराउन परहितहिनधिध” शबदो का �ोप हिकया गया । भारतीय दड सहि�ता, 1860 53

281. भरामक परका!, धिचन� या बोय का परद!#�--जो कोई हिकसी भरामक परकाश, लिचन� या बोय का परदश.न इस आशय स, या य� समभावय जानत हए करगा, हिक ऐसा परदश.न हिकसी नौपरिर(ा�क को माग. भरषT कर दगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

282. अकषमकर या अहित लद हए जलया� म भाड क धिलए जलमाग# स हिकसी वयधिकत का परव�ण--जो कोई हिकसी वयलि2 को हिकसी ज�यान म ज�माग. स, जानत हए या उपकषाप(.क भाO पर तब पर(�ण करगा, या कराएगा जब (� ज�यान ऐसी दशा म �ो या इतना �दा हआ �ो जिजसस उस वयलि2 का जी(न सकTापनन �ो सकता �ो, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध छ� मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो एक �जार रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

283. लोक माग# या �ौपरिरव�� पथ म सकट या बा�ा--जो कोई हिकसी काय. को करक या अपन कबज म की, या अपन भारसाधन क अधीन हिकसी समपभितत की वय(सथा करन का �ोप करन दवारा, हिकसी �ोकमाग. या नौपरिर(�न क �ोक पथ म हिकसी वयलि2 को सकT, बाधा या कषहित कारिरत करगा (� जमा.न स, जो दो सौ रपए तक का �ो सकगा, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

284. हिवषल पदाथ# क सब� म उपकषापण# आचरण--जो कोई हिकसी हि(ष� पदाथ. स कोई काय. ऐस उता(�पन या उपकषा स करगा, जिजसस मान( जी(न सकTापनन �ो जाए, या जिजसस हिकसी वयलि2 को, उप�हित या कषहित कारिरत �ोना समभावय �ो ।

या अपन कबज म क हिकसी हि(ष� पदाथ. की ऐसी वय(सथा करन का, जो ऐस हि(ष� पदाथ. स मान( जी(न को हिकसी अधिधसमभावय सकT स बचान क लि�ए पया.पत �ो, जानत हए या उपकषाप(.क �ोप करगा,

(� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध छ� मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो एक �जार रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

285. अममिग� या जवल�!ील पदाथ# क समबनध म उपकषापण# आचरण--जो कोई अखिगन या हिकसी ज(�नशी� पदाथ. स कोई काय. ऐस उता(�पन या उपकषा स करगा जिजसस मान( जी(न सकTापनन �ो जाए या जिजसस हिकसी अनय वयलि2 को उप�हित या कषहित कारिरत �ोना समभावय �ो,

अथ(ा अपन कबज म की अखिगन या हिकसी ज(�नशी� पदाथ. की ऐसी वय(सथा करन का, जो ऐसी अखिगन या ज(�नशी� पदाथ. स मान( जी(न को हिकसी अधिधसमभावय सकT स बचान क लि�ए पया.पत �ो, जानत हए या उपकषाप(.क �ोप करगा,

(� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध छ� मास तक की �ो सकगी या जमा.न स, जो एक �जार रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

286. हिवसफोटक पदाथ# क बार म उपकषापण# आचरण--जो कोई हिकसी हि(सफोTक पदाथ. स, कोई काय. ऐस उता(�पन या उपकषा स करगा, जिजसस मान( जी(न सकTापनन �ो जाए या जिजसस हिकसी अनय वयलि2 को उप�हित या कषहित कारिरत �ोना समभावय �ो,

अथ(ा अपन कबज म की हिकसी हि(सफोTक पदाथ. की ऐसी वय(सथा करन का, जसी ऐस पदाथ. स मान( जी(न को अधिधसमभावय सकT स बचान क लि�ए पया.पत �ो, जानत हए या उपकषाप(.क �ोप करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध छ� मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो एक �जार रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

287. म!ी�री क समबनध म उपकषापण# आचरण--जो कोई हिकसी मशीनरी स, कोई काय. ऐस उता(�पन या उपकषा स करगा, जिजसस मान( जी(न सकTापनन �ो जाए या जिजसस हिकसी अनय वयलि2 को उप�हित या कषहित कारिरत �ोना समभावय �ो,

अथ(ा अपन कबज म की या अपनी द�र� क अधीन की हिकसी मशीनरी की ऐसी वय(सथा करन का जो, ऐसी मशीनरी स मान( जी(न को हिकसी अधिधसमभावय सकT स बचान क लि�ए पया.पत �ो, जानत हए या उपकषाप(.क �ोप करगा,

(� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध छ� मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो एक �जार रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

288. हिकसी हि�मा#ण को हिगरा� या उसकी मरममत कर� क सब� म उपकषापण# आचरण--जो कोई हिकसी हिनमा.ण को हिगरान या उसकी मरममत करन म उस हिनमा.ण की ऐसी वय(सथा करन का, जो उस हिनमा.ण क या उसक हिकसी भाग क हिगरन स मान( जी(न को हिकसी अधिधसमभावय सकT स बचान क लि�ए पया.पत �ो, जानत हए या उपकषाप(.क �ोप करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित स कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध छ� मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो एक �जार रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

289. जीवजनत क सब� म उपकषापण# आचरण--जो कोई अपन कबज म क हिकसी जी(जनत क सबध म ऐसी वय(सथा करन का, जो ऐस जी(जनत स मान( जी(न को हिकसी अधिधसमभावय सकT या घोर उप�हित क हिकसी अधिधसभावय सकT स बचान क लि�ए भारतीय दड सहि�ता, 1860 54

पया.पत �ो, जानत हए या उपकषाप(.क �ोप करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित स कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध छ� मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो एक �जार रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

290. अनयथा अ�पबनधिनधत मामलो म लोक नयसनस क धिलए दणड--जो कोई हिकसी ऐस माम� म �ोक नयसनस करगा जो इस सहि�ता दवारा अनयथा दणडनीय न�ी �, (� जमा.न स, जो दो सौ रपए तक को �ो सकगा, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

291. नयसनस बनद कर� क वयाद! क पशचात उसका चाल रख�ा--जो कोई हिकसी �ोक स(क दवारा, जिजसको हिकसी नयसनस की पनरा(भितत न करन या उस चा� न र�न क लि�ए वयादश परचालि�त करन का पराधिधकार �ो, ऐस वयाटिदषT हिकए जान पर, हिकसी �ोक नयसनस की पनरा(भितत करगा, या उस चा� र�गा, (� सादा कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध छ� मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

1[292. अशलील पसतको आटिद का हिवकरय आटिद--2[(1) उपधारा (2) क परयोजनाथ. हिकसी पसतक, पसमिसतका, कागज, ��, र�ालिचतर, रगलिचतर रपण, आकहित या अनय (सत को अशली� समझा जाएगा यटिद (� कामोददीपक � या कामक वयलि2यो क लि�ए रलिचकर � या उसका या (ज�ा उसम दो या अधिधक सभिभनन मद समाहि(षT � (�ा) उसकी हिकसी मद का परभा(, समगर रप स हि(चार करन पर, ऐसा � जो उन वयलि2यो को दराचारी या भरषT बनाए जिजनक दवारा उसम अनतरवि(षT या सधिननहि(षT हि(षय का पढा जाना, द�ा जाना या सना जाना सभी ससगत परिरणडिसथहितयो को धयान म र�त �ए समभावय � ।]

3[(2)] जो कोई-- (क) हिकसी अशली� पसतक,पसमिसतका, कागज, र�ालिचतर, रगलिचतर, रपण या आकहित या हिकसी भी अनय अशली�

(सत को, चा� (� कछ भी �ो, बचगा, भाO पर दगा, हि(तरिरत करगा, �ोक परदरछिशत करगा, या उसको हिकसी भी परकार परचालि�त करगा, या उस हि(करय, भाO, हि(तरण �ोक परदश.न या परिरचा�न क परयोजनो क लि�ए रचगा, उतपाटिदत करगा, या अपन कबज म र�गा, अथ(ा

(�) हिकसी अशली� (सत का आयात या हिनया.त या पर(�ण प(�2 परयोजनो म स हिकसी परयोजन क लि�ए करगा या य� जानत हए, या य� हि(शवास करन का कारण र�त हए करगा हिक ऐसी (सत बची, भाO पर दी, हि(तरिरत या �ोक परदरछिशत या, हिकसी परकार स परिरचालि�त की जाएगी, अथ(ा

(ग) हिकसी ऐस कारबार म भाग �गा या उसस �ाभ परापत करगा, जिजस कारबार म (� य� जानता � या य� हि(शवास करन का कारण र�ता � हिक कोई ऐसी अशली� (सतए प(�2 परयाजनो म स हिकसी परयोजन क लि�ए रची जाती, उतपाटिदत की जाती, करय की जाती, र�ी जाती, आयात की जाती, हिनया.त की जाती, पर(�ण की जाती, �ोक परदरछिशत की जाती या हिकसी भी पराकर स परिरचालि�त की जाती �, अथ(ा

(घ) य� हि(जञाहिपत करगा या हिकन�ी साधनो दवारा ( चा� कछ भी �ो य� जञात कराएगा हिक कोई वयलि2 हिकसी ऐस काय. म, जो इस धारा क अधीन अपराध �, �गा हआ �, या �गन क लि�ए तयार �, या य� हिक कोई ऐसी अशली� (सत हिकसी वयलि2 स या हिकसी वयलि2 क दवारा परापत की जा सकती �, अथ(ा

(ङ) हिकसी ऐस काय. को, जो इस धारा क अधीन अपराध �, करन की परसथापना करगा या करन का परयतन करगा, 1[परथम दोषलिसजिदध पर दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी और जमा.न स, जो दो �जार रपए तक को �ो सकगा, तथा हिदवतीय या पशचात(तx दोषलिसजिदध की दशा म दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध पाच (ष. तक की �ो सकगी और जमा.न स भी, जो पाच �जार रपए तक का �ो सकगा] दणडिणडत हिकया जाएगा ।

2[अपवाद--इस धारा का हि(सतार हिनमनलि�खि�त पर न �ोगाः-- (क) कोई ऐसी पसतक, पसमिसतका, कागज, ��, र�ालिचतर, रगलिचतर, रपण या आकहित--

(त) जिजसका परकाशन �ोकहि�त म �ोन क कारण इस आधार पर नयायोलिचत साहिबत �ो गया � हिक ऐसी पसतक, पसमिसतका, कागज, ��, र�ालिचतर, रगलिचतर, रपण या आकहित हि(जञान, साहि�तय, क�ा या हि(दया या स(.जन समबनधी अनय उददशयो क हि�त म �, अथ(ा

(तत) जो सदभा(प(.क धारयिमक परयाजनो क लि�ए र�ी या उपयोग म �ाई जाती �; 1 1925 क अधिधहिनयम स0 8 की धारा 2 दवारा म� धारा क सथान पर परहितसथाहिपत । 2 1969 क अधिधहिनयम स0 36 की धारा 2 दवारा अतःसथाहिपत ।

3 1969 क अधिधहिनयम स0 36 की धारा 2 दवारा धारा 292 को उस धारा की उपधारा (2) क रप म पनःसखयाहिकत हिकया गया था। 1 1969 क अधिधहिनयम स0 36 की धारा 2 दवारा कहितपय शबदो क सथान पर परहितसथाहिपत ।

2 1969 क अधिधहिनयम स0 36 की धारा 2 दवारा अप(ाद क सथान पर परहितसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 55

(�) कोई ऐसा रपण जो-- (त) पराचीन ससमारक तथा परातत(ीय सथ� और अ(शष अधिधहिनयम, 1958 (1958 का 24) क अथ. म

पराचीन ससमारक पर या उसम, अथ(ा (तत) हिकसी मटिदर पर या उसम या मरवितयो क पर(�ण क उपयोग म �ाए जान (ा� या हिकसी धारयिमक परयोजन

क लि�ए र� या उपयोग म �ाए जान (ा� हिकसी रथ पर तभिकषत, उतकीण., रगलिचहितरत या अनयथा रहिपत �ो ।]] 3[293. तरण वयधिकत को अशलील वसतओ का हिवकरय आटिद--जो कोई बीस (ष. स कम आय क हिकसी वयलि2 को

कोई ऐसी अशली� (सत, जो अनहितम प(.गामी धारा म हिनरदिदषT �, बचगा, भाO पर दगा, हि(तरण करगा, परदरछिशत करगा या परिरचालि�त करगा या ऐसा करन की परसथापना या परयतन करगा 1[परथम दोषलिसजिदध पर दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी, और जमा.न स, जो दो �जार रपए तक का �ो सकगा, तथा हिदवतीय या पशचात(तx दोषलिसजिदध की दशा म दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी और जमा.न स भी, जो पाच �जार रपए तक का �ो सकगा, दणडिणडत हिकया जाएगा ।]]

4[294. अशलील काय# और गा�--जो कोई--

(क) हिकसी �ोक सथान म कोई अशली� काय. करगा, अथ(ा (�) हिकसी �ोक सथान म या उसक समीप कोई अशली� गान, प(ाO या शबद गाएगा, सनाएगा या उचचारिरत करगा,

जिजसस दसरो को कषोभ �ोता �ो, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।]

1[294क. लाटरी काया#लय रख�ा--जो कोई ऐसी कोई �ाTरी, 2[जो न तो 3[राजय �ाTरी]�ो और न ततसबधिधत 4[राजय] सरकार दवारा पराधिधकत �ाTरी �ो,] हिनका�न क परयोजन क लि�ए कोई काया.�य या सथान र�गा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध छ� मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ;

तथा जो कोई ऐसी �ाTरी म हिकसी टिTकT, �ाT, सखयाक या आकहित को हिनका�न स सबधिधत या �ाग �ोन (ा�ी हिकसी घTना या परिरणडिसथहित पर हिकसी वयलि2 क cायद क लि�ए हिकसी रालिश को दन की, या हिकसी मा� क परिरदान को, या हिकसी बात को करन की, या हिकसी बात स परहि(रत र�न की कोई परसथापना परकालिशत करगा, (� जमा.न स, जो एक �जार रपए तक को �ो सकगा, दणडिणडत हिकया जाएगा ।]

अधयाय 15

�म# स सबधि�त अपरा�ो क हिवषय म 295. हिकसी वग# क �म# का अपमा� कर� क आ!य स उपास�ा क सथा� को कषहित कर�ा या अपहिवतर कर�ा--

जो कोई हिकसी उपासना सथान को या वयलि2यो क हिकसी (ग. दवारा पहि(तर मानी गई हिकसी (सत को नषT, नकसानगरसत या अपहि(तर इस आशय स करगा हिक हिकसी (ग. क धम. का तदद(ारा अपमान हिकया जाए या य� समभावय जानत हए करगा हिक वयलि2यो का कोई (ग. ऐस नाश, नकसान या अपहि(तर हिकए जान को (� अपन धम. क परहित अपमान समझगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

5[295क. हिवमरणि!त और हिवदवषपण# काय# जो हिकसी वग# क �म# या �ारमिमक हिवशवासो का अपमा� करक उसकी �ारमिमक भाव�ाओ को आ�त कर� क आ!य स हिकए गए �ो--जो कोई 6[भारत क नागरिरको क] हिकसी (ग. की धारयिमक भा(नओ को आ�त 3 1925 क अधिधहिनयम स0 8 की धारा 2 दवारा म� धारा क सथान पर परहितसथाहिपत ।

4 1895 क अधिधहिनयम स0 3 की धारा दवारा म� धारा क सथान पर परहितसथाहिपत । 1 1870 क अधिधहिनयम स0 27 की धारा 10 दवारा अतःसथाहिपत । 2 भारत शासन (भारतीय हि(धिध अनक�न) आदश, 1937 दवारा “सरकार दवारा अपराधिधकत” क सथान पर परहितसथाहिपत । 3 1951 क अधिधहिनयम स0 3 की धारा 3 और अनसची दवारा “कनदीय सरकार या भाग क राजय या भाग � राजय की सरकार दवारा चा� की गई �ाTरी”

क सथान पर परहितसथाहिपत । 4 हि(धिध अनक�न आदश, 1950 दवारा “परादलिशक” क सथान पर परहितसथाहिपत ।

5 1927 क अधिधहिनयम स0 25 की धारा 2 दवारा अतःसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 56

करन क हि(मरछिशत और हि(दवषपण. आशय स उस (ग. क धम. या धारयिमक हि(शवासो का अपमान 7[उचचारिरत या लि�खि�त शबदो दवारा या सकतो दवारा या दशयरपणो दवारा या अनयथा] करगा या करन का परयतन करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध 8[तीन (ष.] तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स दणडिणडत हिकया जाएगा ।]

296. �ारमिमक जमाव म हिवघ� कर�ा--जो कोई धारयिमक उपासना या धारयिमक ससकारो म (ध रप स �ग हए हिकसी जमा( म स(चछया हि(घन कारिरत करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

297. कबरिLसता�ो आटिद म अहितचार कर�ा--जो कोई हिकसी उपासना सथान म, या हिकसी कहिRसतान पर या अनतयधि� हि�Eयाओ क लि�ए या मतको क अ(शषीो क लि�ए हिनकषप सथान क रप म पथक र� गए हिकसी सथान म अहितचार या हिकसी मान( श( की अ(��ना या अनतयधि� ससकारो क लि�ए एकहितरत हिकन�ी वयलि2यो को हि(घन कारिरत,

इस आशय स करगा हिक हिकसी वयलि2 की भा(नाओ को ठस पहचाए या हिकसी वयलि2 क धम. का अपमान कर, या य� समभावय जानत हए करगा हिक तदद(ारा हिकसी वयलि2 की भा(नाओ को ठस पहचगी, या हिकसी वयलि2 क धम. का अपमान �ोगा,

(� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध एक (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

298. �ारमिमक भाव�ाओ को ठस पहचा� क हिवमरणि!त आ!य स !बद उचचारिरत कर�ा आटिद--जो कोई हिकसी वयलि2 की धारयिमक भा(नओ को ठस पहचान क हि(मरछिशत आशय स उसकी शर(णगोचरता म कोई शबद उचचारिरत करगा या कोई ध(हिन करगा या उसकी दधि�गोचरता म कोई अगहि(कषप करगा, या कोई (सत र�गा,(� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध एक (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

अधयाय 16

मा�व !रीर पर परभाव डाल� वाल अपरा�ो क हिवषय म जीव� क धिलए सकटकारी अपरा�ो क हिवषय म

299. आपराधि�क मा�व व�--जो कोई मतय कारिरत करन क आशय स, या ऐसी शारीरिरक कषहित कारिरत करन क आशय स जिजसस मतय कारिरत �ो जाना समभावय �ो, या य� जञान र�त हए हिक य� समभावय � हिक (� उस काय. स मतय कारिरत कर द, कोई काय. करक मतय कारिरत कर दता �, (� आपराधिधक मान( (ध का अपराध करता � ।

दषटात (क) क एक गडढ पर �कहिOया और घास इस आशय स हिबछाता � हिक तदद(ारा मतय कारिरत कर या य� जञान र�त हए हिबछाता � हिक

समभावय � हिक तदद(ारा मतय कारिरत �ो । य य� हि(शवास करत हए हिक (� भधिम सदढ � उस पर च�ता �, उसम हिगर पOता � और मारा जाता � । क न आपराधिधक मान( (ध का अपराध हिकया � ।

(�) क य� जानता � हिक य एक झाOी क पीछ � । ख य� न�ी जानता । य की मतय करन क आशय स या य� जानत हए हिक उसस य की मतय कारिरत �ोना समभावय �, ख को उस झाOी पर गो�ी च�ान क लि�ए क उतपररिरत करता � । ख गो�ी च�ाता � और य को मार डा�ता � । य�ा, य� �ो सकता � हिक ख हिकसी भी अपराध का दोषीी न �ो, हिकनत क न आपराधिधक मान( (ध का अपराध हिकया � ।

(ग) क एक मगz को मार डा�न और उस चरा �न क आशय स उस पर गो�ी च�ाकर � को, जो एक झाOी क पीछ �, मार डा�ता �, हिकनत क य� न�ी जानता था हिक � (�ा � । य�ा, यदयहिप क हि(धिध हि(रदध काय. कर र�ा था, तथाहिप, (� आपराधिधक मान( (ध का दोषीी न�ी � कयोहिक उसका आशय � को मार डा�न का, या कोई ऐसा काय. करक, जिजसस मतय कारिरत करना (� समभावय जानता �ो, मतय कारिरत करन का न�ी था ।

सपषटीकरण 1--व� वयलि2, जो हिकसी दसर वयलि2 को, जो हिकसी हि(कार रोग अगशलिथलय स गरसत �, शारीरिरक कषहित कारिरत करता � और तदद(ारा उस दसर वयलि2 की मतय त(रिरत कर दता �, उसकी मतय कारिरत करता �, य� समझा जाएगा ।

सपषटीकरण 2--ज�ा हिक शारीरिरक कषहित स मतय कारिरत की गई �ो, (�ा जिजस वयलि2 न, ऐसी शारीरिरक कषहित कारिरत की �ो, उसन (� मतय कारिरत की �, य� समझा जाएगा, यदयहिप उलिचत उपचार और कौश�पण. लिचहिकतसा करन स (� मतय रोकी जा सकती थी । 6 हि(धिध अनक�न आदश, 1950 दवारा “हि�ज मजसTी की परजा” क सथान पर परहितसथाहिपत । 7 1961 क अधिधहिनयम स0 41 की धारा 3 दवारा कहितपय शबदो क सथान पर परहितसथाहिपत।

8 1961 क अधिधहिनयम स0 41 की धारा 3 दवारा “दो (ष.” क सथान पर परहितसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 57

सपषटीकरण 3--मा क गभ. म णडिसथत हिकसी लिशश की मतय कारिरत करना मान( (ध न�ी � । हिकनत हिकसी जीहि(त लिशश की मतय कारिरत करना आपराधिधक मान( (ध की कोटिT म आ सकगा, यटिद उस लिशश का काई भाग बा�र हिनक� आया �ो, यदयहिप उस लिशश न शवास न �ी �ो या (� पण.तः उतपनन न हआ �ो ।

300. �तया--एतसमिसमन पशचात अप(ाटिदत दशाओ को छोOकर आपराधिधक मान( (ध �तया �, यटिद (� काय., जिजसक दवारा मतय कारिरत की गई �ो, मतय कारिरत करन क आशय स हिकया गया �ो, अथ(ा

दसरा--यटिद (� ऐसी शारीरिरक कषहित कारिरत करन क आशय स हिकया गया �ो जिजसस अपराधी जानता �ो हिक उस वयलि2 को मतय कारिरत करना समभावय � जिजसको (� अप�ाहिन कारिरत की गई �, अथ(ा

तीसरा--यटिद (� हिकसी वयलि2 को शारीरिरक कषहित कारिरत करन क आशय स हिकया गया �ो और (� शारीरिरक कषहित, जिजसक कारिरत करन का आशय �ो, परकहित क माम�ी अनकरम म मतय कारिरत करन क लि�ए पया.पत �ो, अथ(ा

चौथा--यटिद काय. करन (ा�ा वयलि2 य� जानता �ो हिक (� काय. इतना आसनन सकT � हिक परी अधिधसभावयता � हिक (� मतय कारिरत कर �ी दगा या ऐसी शारीरिरक कषहित कारिरत कर �ी दगा जिजसस मतय कारिरत �ोना सभावय � और (� मतय कारिरत करन या प(�कत रप की कषहित कारिरत करन की जोखि�म उठान क लि�ए हिकसी परहित�त क हिबना ऐसा काय. कर ।

दषटात (क) य को मार डा�न क आशय स क उस पर गो�ी च�ाता � परिरणामस(रप य मर जाता � । क �तया करता � । (�) क य� जानत हए हिक य ऐस रोग स गरसत � हिक समभावय � हिक एक पर�ार उसकी मतय कारिरत कर द, शारीरिरक कषहित कारिरत करन

क आशय स उस पर आधात करता � । य उस पर�ार क परिरणामस(रप मर जाता � । क �तया का दोषीी �, यदयहिप (� पर�ार हिकसी अचछ स(सथ वयलि2 की मतय करन क लि�ए परकहित क माम�ी अनकरम म पया.पत न �ोता । हिकनत यटिद क, य� न जानत हए हिक य हिकसी रोग स गरसत �, उस पर ऐसा पर�ार रकता �, जिजसस कोई अचछा स(सथ वयलि2 परकहित क माम�ी अनकरम म न मरता, तो य�ा, क, यदयहिप शारीरिरक कषहित कारिरत करन का उसका आशय �ो, �तया का दोषीी न�ी �, यटिद उसका आशय मतय कारिरत करन का या ऐसी शारीरिरक कषहित कारिरत करन का न�ी था, जिजसस परकहित क माम�ी अनकरम म मतय कारिरत �ो जाए ।

(ग) य को त�(ार या �ाठी स ऐसा घा( क साशय करता �, जो परकहित क माम�ी अनकरम म हिकसी मनषय की मतय कारिरत करन क लि�ए पया.पत �, परिरणामस(रप य की मतय कारिरत �ो जाती �, य�ा क �तया का दोषीी �, यदयहिप उसका आशय य की मतय कारिरत करन का न र�ा �ो ।

(घ) क हिकसी परहित�त क हिबना वयलि2यो क एक सम� पर भरी हई तोप च�ाता � और उनम स एक का (ध कर दता � । क �तया का दोषीी �, यदयहिप हिकसी हि(लिशषT वयलि2 की मतय कारिरत करन की उसकी प(.लिचनतिनतत परिरकलपना न र�ी �ो ।

अपवाद 1--आपराधि�क मा�व व� कब �तया ��ी �--आपराधिधक मान( (ध �तया न�ी �, यटिद अपराधी उस समय जब हिक (� गमभीर और अचानक परकोपन स आतम सयम की शलि2 स (लिचत �ो, उस वयलि2 की, जिजसन हिक (� परकोपन टिदया था, मतयकारिरत कर या हिकसी अनय वयलि2 की मतय भ� या दघ.Tना(श कारिरत कर ।

ऊपर का अप(ाद हिनमनलि�खि�त परतको क अधयधीन �-- प�ला--य� हिक (� परकोपन हिकसी वयलि2 का (ध करन या अप�ाहिन करन क लि�ए अपराधी दवारा परहित�त क रप म

ईसमिपसत न �ो या स(चछया परकोहिपत न �ो । दसरा--य� हिक (� परकोपन हिकसी ऐसी बात दवारा न टिदया गया �ो जो हिक हि(धिध क पा�न म या �ोक स(क दवारा ऐस �ोक

स(क की शलि2यो क हि(धिधपण. परयोग म, की गई �ो । तीसरा--य� हिक (� परकोपन हिकसी ऐसी बात दवारा न टिदया गया �ो , जो पराइ(T परहितरकषा क अधिधकार क हि(धिधपण. परयोग

म की गई �ो । सपषटीकरण--परकोपन इतना गमभीर ओर अचानक था या न�ी हिक अपराध को �तया की कोटिT म जान स बचा द, य�

तथय का परशन � । दषटात

(क) य दवारा टिदए गए परकोपन क कारण परदीपत आ(श क असर म म का, जो य का लिशश �, क साशय (ध करता �। य� �तया �, कयोहिक परकोपन उस लिशश दवारा न�ी टिदया गया था और उस लिशश की मतय उस परकोपन म हिकए गए काय. को करन म दध.Tना या दभा.गय स न�ी हई � ।

(�) क को म गमभीर और अचानक परकोपन दता � । क इस परकोपन स म पर हिपसतौ� च�ाता �, जिजसम न तो उसका आशय य का, जो समीप � हिकनत दधि� स बा�र �, (ध करन का �,और न (� य� जानता � हिक समभावय � हिक (� य का (ध कर द । क, य का (ध करता � । य�ा क न �तया न�ी की �, हिकनत क(� आपराधिधक मान( (ध हिकया � । भारतीय दड सहि�ता, 1860 58

(ग) य दवारा, जो एक बलि�c �, क हि(धिधप(.क हिगरफतार हिकया जाता � । उस हिगरफतारी क कारण क को अचानक और ती� आ(श आ जाता � और (� य का (ध कर दता � । य� �तया �, कयोहिक परकोपन ऐसी बात दवारा टिदया गया था, जो एक �ोक स(क दवारा उसकी शलि2 क परयोग म की गई थी ।

(घ) य क समकष, जो एक मजिजसटरT �, साकषी क रप म क उपसजात �ोता � । य य� क�ता � हिक (� क क अभिभसाकषय क एक शबद पर भी हि(शवास न�ी करता और य� हिक क न शपथ-भग हिकया � । क को इन शबदो स अचानक आ(श आ जात � और (� य का (ध कर दता � । य� �तया � ।

(ङ) य की नाक �ीचन का परयतन क करता � । य पराइ(T परहितरकषा क अधिधकार क परयोग म ऐसा करन स रोकन क लि�ए क को पकO �ता � । परिरणामस(रप क को अचानक और ती� आ(श आ जाता � और (� य का (ध कर दता � । य� �तया �, कयोहिक परकोपन ऐसी बात दवारा टिदया गया था जो पराइ(T परहितरकषा क अधिधकार क परयोग म की गई थी ।

(च) ख पर य आघात करता � । ख को इस परकोपन स ती� करोध आ जाता � । क, जो हिनकT �ी �Oा हआ �, ख क करोध का �ाभ उठान और उसस य का (ध करान क आशय स उसक �ाथ म एक छरी उस परयोजन क लि�ए द दता � । ख उस छरी स य का (ध कर दता �, य�ा ख न चा� क(� आपराधिधक मान( (ध �ी हिकया �ो, हिकनत क �तया का दोषीी � ।

अपवाद 2--आपराधिधक मान( (ध �तया न�ी �, यटिद अपराधी, शरीर या समपभितत की पराइ(T परहितरकषा क अधिधकार को सदभा(प(.क परयोग म �ात हए हि(धिध दवारा उस दी गई शलि2 का अहितकरमण कर द, और प(. लिचनतन हिबना ओर ऐसी परहितरकषा क परयोजन स जिजतनी अप�ाहिन करना आ(शयक �ो उसस अधिधक अप�ाहिन करन क हिकसी आशय क हिबना उस वयलि2 की मतय कारिरत कर द जिजसक हि(रदध (� परहितरकषा का ऐसा अधिधकार परयोग म �ा र�ा �ो ।

दषटात क को चाबक मारन का परयतन य करता �, हिकनत इस परकार न�ी हिक क को घोर उप�हित कारिरत �ो। क एक हिपसतौ� हिनक� �ता � ।

य �म� को चा� र�ता � । क सदभा(प(.क य� हि(शवास करत हए हिक (� अपन को चाबक �गाए जान स हिकसी अनय साधन दवारा न�ी बचा सकता � गो�ी स य का (ध कर दता � । क न �तया न�ी की �, हिकनत क(� आपराधिधक मान( (ध हिकया � ।

अपवाद 3--आपराधिधक मान( (ध �तया न�ी �, यटिद अपराधी ऐसा �ोक स(क �ोत हए, या ऐस �ोक स(क को मदद दत हए, जो �ोक नयाय की अगरसरता म काय. कर र�ा �, उस हि(धिध दवारा दी गई शलि2 स आग बढ जाए, और कोई ऐसा काय. करक जिजस (� हि(धिधपण. और ऐस �ोक स(क क नात उसक कत.वय क समयक हिन(.�न क लि�ए आ(शयक �ोन का सदभा(प(.क हि(शवास करता �, और उस वयलि2 क परहित, जिजसकी हिक मतय कारिरत की गई �, (मनसय क हिबना मतय कारिरत कर ।

अपवाद 4--आपराधिधक मान( (ध �तया न�ी �, यटिद (� मान( (ध अचानक झगOा जहिनत आ(श की ती�ता म हई अचानक �Oाई म प(.लिचनतन हिबना और अपराधी दवारा अनलिचत �ाभ उठाए हिबना या कररतापण. या अपराधियक रीहित स काय. हिकए हिबना हिकया गया �ो ।

सपषटीकरण--ऐसी दशाओ म य� तत(�ीन � हिक कौन पकष परकोपन दता � या प��ा �म�ा करता � । अपवाद 5--आपराधिधक मान( (ध �तया न�ी �, यटिद (� वयलि2 जिजसकी मतय कारिरत की जाए, अठार� (ष. स अधिधक

आय का �ोत हए, अपनी सममहित स मतय �ोना स�न कर, या मतय की जोखि�म उठाए । दषटात

य को, जो अठार� (ष. स कम आय का �, उकसा कर क उसस स(चछया आतम�तया कर(ाता � । य�ा, कम उमर �ोन क कारण य अपनी मतय क लि�ए सममहित दन म असमथ. था, इसलि�ए, क न �तया का दषपररण हिकया � ।

301. जिजस वयधिकत की मतय कारिरत कर� का आ!य था उसस शिभनन वयधिकत की मतय करक आपराधि�क मा�व व�--यटिद कोई वयलि2 कोई ऐसी बात करन दवारा, जिजसस उसका आशय मतय कारिरत करना �ो, या जिजसस (� जानता �ो हिक मतय कारिरत �ोना समभावय �, हिकसी वयलि2 की मतय कारिरत करक, जिजसकी मतय कारिरत करन का न तो उसका आशय �ो और न (� य� सभावय जानता �ो हिक (� उसकी मतय कारिरत करगा, आपराधिधक मान( (ध कर, तो अपराधी दवारा हिकया गया आपराधिधक मान( (ध उस भाहित का �ोगा जिजस भाहित का (� �ोता, यटिद (� उस वयलि2 की मतय कारिरत करता जिजसकी मतय कारिरत करना उसक दवारा आशधियत था या (� जानता था हिक उस दवारा उसकी मतय कारिरत �ोना समभावय � ।

302. �तया क धिलए दणड--जो कोई �तया करगा, (� मतय या 1[आजी(न कारा(ास] स दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।

303. आजीव� धिसदधदोष दवारा �तया क धिलए दणड--जो कोई 1[आजी(न कारा(ास] क दणडादश क अधीन �ोत हए �तया करगा, (� मतय स दणडिणडत हिकया जाएगा ।

1 1955 क अधिधहिनयम स0 26 की धारा 117 और अनसची दवारा (1-1-1956 स) “आजी(न हिन(ा.सन” क सथान पर परहितसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 59

304. �तया की कोटिट म � आ� वाल आपराधि�क मा�व व� क धिलए दणड--जो कोई ऐसा आपराधिधक मान( (ध करगा, जो �तया की कोटिT म न�ी आता �, यटिद (� काय. जिजसक दवारा मतय कारिरत की गई �, मतय या ऐसी शारीरिरक कषहित, जिजसस मतय �ोना समभावय �, कारिरत करन क आशय स हिकया जाए, तो (� 1[आजी(न कारा(ास] स, या दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा ओर जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ;

अथ(ा यटिद (� काय. इस जञान क साथ हिक उसस मतय कारिरत करना समभावय �, हिकनत मतय या ऐसी शारीरिरक कषहित, जिजसस मतय कारिरत करना समभावय �, कारिरत करन क हिकसी आशय क हिबना हिकया जाए, तो (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

1[304क. उपकषा दवारा मतय कारिरत कर�ा--जो कोई उता(�पन स या उपकषापण. हिकसी ऐस काय. स हिकसी वयलि2 की मतय कारिरत करगा, जो आपराधिधक मान( (ध क कोटिT म न�ी आता, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।]

3[304ख. द�ज मतय--(1) ज�ा हिकसी सतरी की मतय हिकसी दा� या शारीरिरक कषहित दवारा कारिरत की जाती � या उसक हि((ा� क सात (ष. क भीतर सामानय परिरणडिसथहितयो स अनयथा �ो जाती � और य� दरछिशत हिकया जाता � हिक उसकी मतय क कछ प(. उसक पहित न या उसक पहित क हिकसी नातदार न, द�ज की हिकसी माग क लि�ए, या उसक सबध म, उसक साथ कररता की थी या उस तग हिकया था (�ा ऐसी मतय को “द�ज मतय” क�ा जाएगा और ऐसा पहित या नातदार उसकी मतय कारिरत करन (ा�ा समझा जाएगा ।

सपषटीकरण--इस उपधारा क परयोजनो क लि�ए “द�ज” का (�ी अथ. � जो द�ज परहितषध अधिधहिनयम, 1961 (1961 का 28) की धारा 2 म � ।

(2) जो कोई द�ज मतय कारिरत करगा (� कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. स कम की न�ी �ोगी हिकनत जो आजी(न कारा(ास तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा ।] 305. शि!! या उनमV वयधिकत की आतम�तया का दषपररण--यटिद कोई अठार� (ष. स कम आय का वयलि2 कोई उनमतत वयलि2, कोई हि(पय.सतलिचतत वयलि2, कोई जO वयलि2, या कोई वयलि2, जो मततता की अ(सथा म �, आतम�तया कर � तो जो कोई ऐसी आतम�तया क हिकए जान का दषपररण करगा, (� मतय, या 1[आजी(न कारा(ास] या कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. स अधिधक की न �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमान स भी दणडनीय �ोगा ।

306. आतम�तया का दषपररण--यटिद कोई वयलि2 आतम�तया कर, तो जो कोई ऐसी आतम�तया का दषपररण करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा । 307. �तया कर� का परयत�--जो कोई हिकसी काय. को ऐस आशय या जञान स और ऐसी परिरणडिसथहितयो म करगा हिक यटिद (� उस काय. दवारा मतय कारिरत कर दता तो (� �तया का दोषीी �ोता, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा, और यटिद ऐस काय. दवारा हिकसी वयलि2 को उप�हित कारिरत �ो जाए, तो (� अपराधी या तो 2[आजी(न कारा(ास] स या ऐस दणड स दणडनीय �ोगा, जसा एतसमिसमनप(. (रणिणत � ।

आजीव� धिसदधदोष दवार परयत�--3[जबहिक इस धारा म (रणिणत अपराध करन (ा�ा कोई वयलि2 1[आजी(न कारा(ास] क दणडादश क अधीन �ो, तब यटिद उप�हित कारिरत हई �ो, तो (� मतय स दणडिणडत हिकया जा सकगा।]

दषटात (क) य का (ध करन क आशय स क उस पर ऐसी परिरणडिसथहितयो म गो�ी च�ाता � हिक यटिद मतय �ो जाती, तो क �तया का दोषीी

�ोता । क इस धारा क अधीन दणडनीय � । (�) क कोम� (यस क लिशश की मतय करन क आशय स उस एक हिनज.न सथान म अरभिकषत छोO दता � । क न उस धारा दवारा

परिरभाहिषत अपराध हिकया �, यदयहिप परिरणामस(रप उस लिशश की मतय न�ी �ोती । (ग) य की �तया का आशय र�त हए क एक बनदक �रीदता � और उसको भरता � । क न अभी तक अपराध न�ी हिकया � । य पर

क बनदक च�ाता � । उसन इस धारा म परिरभाहिषत अपराध हिकया �, और यटिद इस परकार गो�ी मार कर (� य को घाय� कर दता �, तो (� इस धारा 4[क परथम पर] क हिपछ� भाग दवारा उपबनधिनधत दणड स दणडनीय � । 1 1870 क अधिधहिनयम स0 27 की धारा 12 दवारा अतःसथाहिपत ।

3 1986 क अधिधहिनयम स0 43 की धारा 10 दवारा (19-11-1986 स) अतःसथाहिपत । 2 1955 क अधिधहिनयम स0 26 की धारा 117 और अनसची दवारा (1-1-1956 स) “आजी(न हिन(ा.सन” क सथान पर परहितसथाहिपत । 3 1870 क अधिधहिनमय स0 27 की धारा 11 दवारा जोOा गया ।

4 1891 क अधिधहिनयम स0 12 की धारा 2 और अनसची 2 दवारा अतःसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 60

(घ) हि(ष दवारा य की �तया करन का आशय र�त हए क हि(ष �रीदता �, और उस उस भोजन म धिम�ा दता �, जो क क अपन पास र�ता �; क न इस धारा म परिरभाहिषत अपराध अभी तक न�ी हिकया � । क उस भजन को य की मजा पर र�ता �, या उसको य की मज पर र�न क लि�ए य क स(को को परिरदतत करता � । क न इस धारा म परिरभाहिषत अपराध हिकया � ।

308. आपराधि�क मा�व व� कर� का परयत�--जो कोई हिकसी काय. को ऐस आशय या जञान स और ऐसी परिरणडिसथहितयो म करगा हिक यटिद उस काय. स (� मतय कारिरत कर दता, तो (� �तया की कोटिT म न आन (ा� आपराधिधक मान( (ध का दोषीी �ोता, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा; और यटिद ऐस काय. दवारा हिकसी वयलि2 को उप�हित �ो जाए तो (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

दषटात क गमभीर और अचानक परकोपन पर, ऐसी परिरणडिसथहितयो म, य पर हिपसतौ� च�ाता � हिक यटिद तदद(ारा (� मतय कारिरत कर दता तो (�

�तया की कोटिT म न आन (ा� आपराधिधक मान( (ध का दोषीी �ोता । क न इस धारा म परिरभाहिषत अपराध हिकया � । 309. आतम�तया कर� का परयत�--जो कोई आतम�तया करन का परयतन करगा, और उस अपराध क करन क लि�ए कोई काय. करगा, (� सादा कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध एक (ष. तक की �ो सकगी, 1[या जमा.न स, या दोनो स,] दणडिणडत हिकया जाएगा ।

310. ठग--जो कोई इस अधिधहिनयम क पारिरत �ोन क पशचात हिकसी समय �तया दवारा या �तया सहि�त �T या लिशशओ की चोरी करन क परयोजन क लि�ए अनय वयलि2 या अनय वयलि2यो स अभयासतः स�य2 र�ता � (� ठग � ।

311. दणड--जो कोई ठग �ोगा, (� 1[आजी(न कारा(ास] स दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा । गभ.पात कारिरत करन, अजात लिशशओ को कषहित कारिरत करन, लिशशओ को अरभिकषत छोOन और जनम लिछपान क हि(षय म 312. गभ#पात कारिरत कर�ा--जो कोई गभ.(ती सतरी का स(चछया गभ.पात कारिरत करगा, यटिद ऐसा गभ.पात उस सतरी

का जी(न बचान क परयोजन स सदभा(प(.क कारिरत न हिकया जाए, तो (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा, और यटिद (� सतरी सपनदनगभा. �ो, तो (� दोनो स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।

सपषटीकरण--जो सतरी स(य अपना गभ.पात कारिरत करती �, (� इस धारा क अथ. क अनतग.त आती �। 313. सतरी की सममहित क हिब�ा गभ#पात कारिरत कर�ा--जो कोई उस सतरी की सममहित क हिबना, चा� (� सतरी सपनदनगभा. �ो या न�ी, प(.(तx अनतिनतम धारा म परिरभाहिषत अपराध करगा, (� 2[आजी(न कारा(ास] स, या दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।

314. गभ#पात कारिरत कर� क आ!य स हिकए गए काय` दवारा कारिरत मतय--जो कोई गभ.(ती सतरी का गभ.पात कारिरत करन क आशय स कोई ऐसा काय. करगा, जिजसस ऐसी सतरी की मतय कारिरत �ो जाए, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।

यटिद व� काय# सतरी की सममहित क हिब�ा हिकया जाए--और यटिद (� काय. उस सतरी की सममहित क हिबना हिकया जाए, तो (� 1[आजी(न कारा(ास] स, या ऊपर बताए हए दणड स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

सपषटीकरण--इस अपराध क लि�ए य� आ(शयक न�ी � हिक अपराधी जानता �ो हिक उस काय. स मतय कारिरत करना समभावय � ।

315. शि!! का जीहिवत पदा �ो�ा रोक� या जनम क पशचात उसकी मतय कारिरत कर� क आ!य स हिकया गया काय#--जो कोई हिकसी लिशश क जनम स प(. कोई काय. इस आशय स करगा हिक उस लिशश का जीहि(त पदा �ोना तदद(ारा रोका जाए या जनम क पशचात तदद(ारा उसकी मतय कारिरत �ो जाए, और ऐस काय. स उस लिशश का जीहि(त पदा �ोना रोकगा, या उसक जनम क पशचात उसकी मतय कारिरत कर दगा, यटिद (� काय. माता क जी(न को बचान क परयोजन स सदभा(प(.क न�ी हिकया गया �ो, तो (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

316. ऐस काय# दवारा जो आपराधि�क मा�व व� की कोटिट म आता �, हिकसी सजीव अजात शि!! की मतय कारिरत कर�ा--जो कोई ऐसा कोई काय. ऐसी परिरणडिसथहितयो म करगा हिक यटिद (� तदद(ारा मतय कारिरत कर दता, तो (�

आपराधिधक मान( (ध का 1 1882 क अधिधहिनयम स0 8 की धारा 7 दवारा “और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा” क सथान पर परहितसथाहिपत ।

2 1955 क अधिधहिनयम स0 26 की धारा 117 और अनसची दवारा (1-1-1956 स) “आजी(न हिन(ा.सन” क सथान पर परहितसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 61

दोषीी �ोता और ऐस काय. दवारा हिकसी सजी( अजात लिशश को मतय कारिरत करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा, और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।

दषटात क, य� समभावय जानत हए हिक (� गभ.(ती सतरी की मतय कारिरत कर द, ऐसा काय. करता �, जो यटिद उसस उस सतरी की मतय कारिरत

�ो जाती, तो (� आपराधिधक मान( (ध की कोटिT म आता । उस सतरी को कषहित �ोती �, हिकनत उसकी मतय न�ी �ोती, हिकनत तदद(ारा उस अजात सजी( लिशश की मतय �ो जाती �, जो उसक गभ. म � । क इस धारा म परिरभाहिषत अपराध का दोषीी � ।

317. शि!! क हिपता या माता या उसकी दखरख रख� वाल वयधिकत दवारा बार� वष# स कम आय क शि!! का अरशिकषत डाल टिदया जा�ा और परिरतयाग--जो कोई बार� (ष. स कम आय क लिशश का हिपता या माता �ोत हए, या ऐस लिशश की द�र� का भार र�त हए, ऐस लिशश का पण.तः परिरतयाग करन क आशय स उस लिशश को हिकसी सथान म अरभिकषत डा� दगा या छोO दगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

सपषटीकरण--यटिद लिशश अरभिकषत डा� टिदए जान क परिरणामस(रप मर जाए, तो, यथाणडिसथहित, �तया या आपराधिधक मान( (ध क लि�ए अपराधी का हि(चारण हिन(ारिरत करना इस धारा स आशधियत न�ी � ।

318. मत !रीर क गपत वयय� दवारा जनम धिछपा�ा--जो कोई हिकसी लिशश क मत शरीर को गपत रप स गाOकर या अनयथा उसका वययन करक, चा� ऐस लिशश की मतय उसक जनम स प(. या पशचात या जनम क दौरान म हई �ो, ऐस लिशश क जनम को साशय लिछपाएगा या लिछपान का परयास करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

उप�हित क हिवषय म 319. उप�हित--जो कोई वयलि2 को शारीरिरक पीOा रोग या अग-शलिथलय कारिरत करता �, (� उप�हित करता �, य� क�ा

जाता � । 320. घोर उप�हित--उप�हित की क(� नीच लि��ी हिकसम “घोर” क��ाती �-- प�ला--पसत(�रण । दसरा--दोनो म स हिकसी भी नतर की दधि� का सथायी हि(चछद । तीसरा--दोनो म स हिकसी भी कान की शर(णशलि2 का सथायी हि(चछद । चौथा--हिकसी भी अग या जोO का हि(चछद । पाचवा--हिकसी भी अग या जोO का की शलि2यो का नाश या सथायी हरास । छठा--लिसर या च�र का सथायी हि(दरहिपकरण । सातवा--अणडिसथ या दात का भग या हि(सधान । आठवा--कोई उप�हित जो जी(न को सकTापनन करती � या जिजसक कारण उप�त वयलि2 बीस टिदन तक ती� शारीरिरक

पीOा म र�ता � या अपन माम�ी कामकाज को करन क लि�ए असमथ. र�ता � । 321. सवचछया उप�हित कारिरत कर�ा--जो कोई हिकसी काय. को इस आशय स करता � हिक तदीदवारा हिकसी वयलि2 को

उप�हित कारिरत कर या इस जञान क साथ करता � हिक य� सभावय � हिक (� तदीदवारा हिकसी वयलि2 को उप�हित कारिरत कर और तदीदवारा हिकसी वयलि2 को उप�हित कारिरत करता �, (� “स(चछया उप�हित करता �”, य� क�ा जाता � ।

322. सवचछया घोर उप�हित कारिरत कर�ा--जो कोई वयलि2 स(चछया उप�हित कारिरत करता �, यटिद (� उप�हित, जिजस कारिरत करन का उसका आशय � या जिजस (� जानता � हिक उसक दवारा उसका हिकया जाना समभावय � घोर उप�हित �, और यटिद (� उप�हित, जो (� कारिरत करता �, घोर उप�हित को, तो (� “स(चछया घोर उप�हित करता �”, य� क�ा जाता � ।

सपषटीकरण--कोई वयलि2 स(चछया घोर उप�हित कारिरत करता �, य� न�ी क�ा जाता � लिस(ाय जब हिक (� घोर उप�हित करता � और घोर उप�हित कारिरत करन का उसका आशय �ो या घोर उप�हित कारिरत �ोना (� समभावय जानता �ो । हिकनत यटिद (� य� आशय र�त हए या य� सभावय जानत हए हिक (� हिकसी एक हिकसम की घोर उप�हित कारिरत कर द (ासत( म दसरी �ी हिकसम की घोर उप�हित कारिरत करता �, तो (� स(चछया घोर उप�हित करता �, य� क�ा जाता � ।

दषटात भारतीय दड सहि�ता, 1860 62

क, य� आशय र�त हए या य� समभावय जानत हए हिक (� य क च�र को सथायी रप स हि(दरहिपत कर द, य क च�र पर पर�ार करता � जिजसस य का च�रा सथायी रप स हि(दरहिपत तो न�ी �ोता, हिकनत जिजसस य को बीस टिदन तक ती� शारीरिरक पीOा कारिरत �ोती � । क न स(चछया घोर उप�हित कारिरत की � ।

323. सवचछया उप�हित कारिरत कर� क धिलए दणड--उस दशा क लिस(ाय, जिजसक लि�ए धारा 334 म उपबध �, जो कोई स(चछया उप�हित कारिरत करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसक अ(धिध एक (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो एक �जार रपए का �ो सकगा, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

324. खतर�ाक आय�ो या सा��ो दवारा सवचछया उप�हित कारिरत कर�ा--उस दशा क लिस(ाय, जिजसक लि�ए धारा 334 म उपबध �, जो कोई असन, (धन या काTन क हिकसी उपकरण दवारा या हिकसी ऐस उपकरण दवारा जो यटिद आकरामक आयध क तौर पर उपयोग म �ाया जाए, तो उसस मतय कारिरत �ोना समभावय �, या अखिगन या हिकसी तपत पदाथ. दवारा, या हिकसी हि(ष या हिकसी सकषारक पदाथ. दवारा या हिकसी हि(सफोTक पदाथ. दवारा या हिकसी ऐस पदाथ. दवारा, जिजसका शवास म जाना या हिनग�ना या र2 म पहचना मान( शरीर क लि�ए �ाहिनकारक �, या हिकसी जी(जनत दवारा स(चछया उप�हित कारिरत करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

325. सवचछया घोर उप�हित कारिरत कर� क धिलए दणड--उस दशा क लिस(ाय, जिजसक लि�ए धारा 335 म उपबध �, जो कोई स(चछया घोर उप�हित कारिरत करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा, और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा । 326. खतर�ाक आय�ो या सा��ो दवारा सवचछया घोर उप�हित कारिरत कर�ा--उस दशा क लिस(ाय, जिजसक लि�ए धारा 335 म उपबध �, जो कोई असन, (धन या काTन क हिकसी उपकरण दवारा या हिकसी ऐस उपकरण दवारा, जो यटिद आकरामक आयध क तौर पर उपयोग म �ाया जाए, तो उसस मतय कारिरत �ोना समभावय �, या अखिगन या हिकसी तपत पदाथ. दवारा, या हिकसी हि(ष या सकषारक पदाथ. दवारा, या हिकसी हि(सफोTक पदाथ. दवारा, या हिकसी ऐस पदाथ. दवारा, जिजसका शवास म जाना या हिनग�ना या र2 म पहचना मान( शरीर क लि�ए �ाहिनकारक �, या हिकसी जी(जनत दवारा स(चछया घोर उप�हित कारिरत करगा, (� 1[आजी(न कारा(ास] स, या दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।

327. सपधिV उददाहिपत कर� क धिलए या अव� काय# करा� को मजबर कर� क धिलए सवचछया उप�हित कारिरत कर�ा--जो कोई इस परयोजन स स(चछया उप�हित कारिरत करगा हिक उप�त वयलि2 स, या उसस हि�तबदध हिकसी वयलि2 स, कोई समपभितत या मलय(ान परहितभहित उददाहिपत की जाए या उप�त वयलि2 को या उसस हि�तबदध हिकसी वयलि2 को कोई ऐसी बात, जो अ(ध �ो, या जिजसस हिकसी अपराध का हिकया जाना सकर �ोता �ो, करन क लि�ए मजबर हिकया जाए, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।

328. अपरा� कर� क आ!य स हिवष इतयाटिद दवारा उप�हित कारिरत कर�ा--जो कोई इस आशय स हिक हिकसी वयलि2 को उप�हित कारिरत की जाए या अपराध करन क, या हिकए जान को सकर बनान क आशय स, या य� समभावय जानत हए हिक (� तदद(ारा उप�हित कारिरत करगा, कोई हि(ष या जहिOमाकारी, नशा करन (ा�ी या अस(ासथयकर ओषधिध या अनय चीज उस वयलि2 को दगा या उसक दवारा लि�या जाना कारिरत करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा । 329. समपधिV उददाहिपत कर� क धिलए या अव� काय# करा� को मजबर कर� क धिलए सवचछया घोर उप�हित कारिरत कर�ा--जो कोई इस परयोजन स स(चछया घोर उप�हित कारिरत करगा हिक उप�त वयलि2 स या उसस हि�तबदध हिकसी वयलि2 स कोई समपभितत या मलय(ान परहितभहित उददाहिपत की जाए या उप�त वयलि2 को या उसस हि�तबदध हिकसी वयलि2 को कोई ऐसी बात, जो अ(ध �ो या जिजसस हिकसी अपराध का हिकया जाना सकर �ोता �ो, करन क लि�ए मजबर हिकया जाए, (� 2[आजी(न कारा(ास] स, या दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।

330. ससवीकहित उददाहिपत कर� या हिवव! करक सपधिV का परतयावत#� करा� क धिलए सवचछया उप�हित कारिरत कर�ा--जो कोई इस परयोजन स स(चछया उप�हित कारिरत करगा हिक उप�त वयलि2 स या उसस हि�तबदध हिकसी वयलि2 स कोई सस(ीकहित या कोई जानकारी, जिजसस हिकसी अपराध अथ(ा अ(चार का पता च� सक, उददाहिपत की जाए अथ(ा उप�त वयलि2 या उसस हि�तबदध वयलि2 को मजबर हिकया जाए हिक (� कोई समपभितत या मलय(ान परहितभहित परतया(रवितत कर, या कर(ाए, या हिकसी दा( या माग की पधि�, या ऐसी जानकारी द, जिजसस हिकसी समपभितत या मलय(ान परहितभहित का परतया(त.न कराया जा सक, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी

दणडनीय �ोगा । 1 1955 क अधिधहिनयम स0 26 की धारा 117 और अनसची दवारा (1-1-1956 स) “आजी(न हिन(ा.सन” क सथान पर परहितसथाहिपत ।

2 1955 क अधिधहिनयम स0 26 की धारा 117 और अनसची दवारा (1-1-1956 स) “आजी(न हिन(ा.सन” क सथान पर परहितसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 63

दषटात (क) क, एक पलि�स आहिcसर, य को य� सस(ीकहित करन को हिक उसन अपराध हिकया � उतपररिरत करन क लि�ए यातना दता � । क

इस धारा क अधीन अपराध का दोषीी � । (�) क, एक पलि�स आहिcसर, य� बत�ान को हिक अमक चराई हई समपभितत क�ा र�ी � उतपररिरत करन क लि�ए ख को यातना दता �

। क इस धारा क अधीन अपराध का दोषीी � । (ग) क, एक राजस( आहिcसर, राजस( की (� बकाया, जो य दवारा शोधय �, दन को य को हि((श करन क लि�ए उस यातना दता � ।

क इस धारा क अधीन अपराध का दोषीी � । (घ) क,एक जमीदार, भाTक दन को हि((श करन क लि�ए अपनी एक रयत को यातना दता � । क इस धारा क अधीन अपराध का

दोषीी � । 331. ससवीकहित उददाहिपत कर� क धिलए या हिवव! करक समपधिV का परतयावत#� करा� क धिलए सवचछया घोर

उप�हित कारिरत कर�ा--जो कोई इस परयोजन स स(चछया घोर उप�हित कारिरत करगा हिक उप�त वयलि2 स या उसस हि�तबदध हिकसी वयलि2 स कोई सस(ीकहित या कोई जानकारी, जिजसस हिकसी अपराध अथ(ा अ(चार का पता च� सक, उददाहिपत की जाए अथ(ा उप�त वयलि2 या उसस हि�तबदध वयलि2 को मजबर हिकया जाए हिक (� कोई समपभितत या मलय(ान परहितभहित परतया(रवितत कर, या कर(ाए, या हिकसी दा( या माग की पधि� कर, या ऐसी जानकारी द, जिजसस हिकसी समपभितत या मलय(ान परहितभहित का परतया(त.न कराया जा सक, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।

332. लोक सवक अप� कत#वय स भयोपरत कर� क धिलए सवचछया उप�हित कारिरत कर�ा--जो कोई हिकसी ऐस वयलि2 को, जो �ोक स(क �ो, उस समय जब (� (स �ोक स(क क नात अपन कत.वय का हिन(.�न कर र�ा �ो अथ(ा इस आशय स हिक उस वयलि2 को या हिकसी अनय �ोक स(क को, (स �ोक स(क क नात उसक अपन कत.वय क हिन(.�न स हिन(ारिरत या भयोपरत कर, अथ(ा (स �ोक स(क क नात उस वयलि2 दवारा अपन कत.वय क हि(धिधपण. हिन(.�न म की गई या हिकए जान क लि�ए परयहितत हिकसी बात क परिरणामस(रप स(चछया घोर उप�हित कारिरत करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

333. लोक सवक को अप� कत#वयो स भयोपरत सवचछया घोर उप�हित कारिरत कर�ा--जो कोई हिकसी ऐस वयलि2 को, जो �ोक स(क �ो, उस समय जब (� (स �ोक स(क क नात अपन कत.वय का हिन(�न कर र�ा �ो अथ(ा इस आशय स हिक उस वयलि2 को, या हिकसी अनय �ोक स(क को (स �ोक स(क क नात उस वयलि2 दवारा अपन कत.वय क हि(धिधपण. हिन(.�न म की गई या हिकए जान क लि�ए परयहितत हिकसी बात क परिरणास(रप स(चछया घोर उप�हित कारिरत करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।

334. परकोप� पर सवचछया उप�हित कर�ा--जो कोई गमभीर और अचानक परकोपन पर स(चछया उप�हित कारिरत करगा, यटिद न तो उसका आशय उस वयलि2 स भिभनन, जिजसन परकोपन टिदया था, हिकसी वयलि2 को उप�हित कारिरत करन का �ो और न (� अपन दवारा ऐसी उप�हित कारिरत हिकया जाना समभावय जानता �ो, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध एक मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो पाच सौ रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

335. परकोप� पर सवचछया घोर उप�हित कारिरत कर�ा--जो कोई गमभीर और अचानक परकोपन पर 1[ स(चछया] घोर उप�हित कारिरत करगा, यटिद न तो उसका आशय उस वयलि2 स भिभनन, जिजसन परकोपन टिदया था, हिकसी वयलि2 को घोर उप�हित कारिरत करन का �ो और न (� अपन दवारा ऐसी उप�हित कारिरत हिकया जाना समभावय जानता �ो, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध चार (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो दो �जार रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

सपषटीकरण--अनतिनतम दो धाराए उन�ी परनतको क अधयधीन �, जिजनक अधयधीन धारा 300 का अप(ाद 1 � । 336. काय# जिजसस दसरो का जीव� या वयधिकतक कषम सकटापनन �ो--जो कोई इतन उता(�पन या उपकषा स कोई

काय. करगा हिक उसस मान( जी(न या दसरो का (यलि2क कषम सकTापनन �ोता �ो, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो ढाई सौ रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

337. ऐस काय# दवारा उप�हित कारिरत कर�ा, जिजसस दसरो का जीव� या वयधिकतक कषम सकटापनन �ो जाए--जो कोई ऐस उता(�पन या उपकषा स कोई काय. करन दवारा, जिजसस मान( जी(न या दसरो का (यलि2क कषम सकTापनन �ो जाए, हिकसी वयलि2 को उप�हित कारिरत करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध छ� मास तक की �ो

सकगी, या जमा.न स, जो पाच सौ रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा । 1 1882 क अधिधहिनयम स0 8 की धारा 8 दवारा अनतःसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 64

338. ऐस काय# दवारा घोर उप�हित कारिरत कर�ा जिजसस दसरो का जीव� या वयधिकतक कषम सकटापनन �ो जाए--जो कोई ऐस उता(�पन या उपकषा स कोई काय. करन दवारा, जिजसस मान( जी(न या दसरो का (यलि2क कषम सकTापनन �ो जाए, हिकसी वयलि2 को घोर उप�हित कारिरत करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो एक �जार रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

सदोष अवरो� और सदोष परिररो� क हिवषय म 339. सदोष अवरो�--जो कोई हिकसी वयलि2 को स(चछया ऐस बाधा डा�ता � हिक उस वयलि2 को उस टिदशा म, जिजसम

उस वयलि2 को जान का अधिधकार �, जान स हिन(ारिरत कर द, (� उस वयलि2 का सदोष अ(रोध करता �, य� क�ा जाता � । अपवाद--ीाधिम क या ज� क ऐस पराइ(T माग. म बाधा डा�ना जिजसक समबनध म हिकसी वयलि2 को सदभा(प(.क हि(शवास �

हिक (�ा बाधा डा�न का उस हि(धिधपण. अधिधकार �, इस धारा क अथ. क अनतग.त अपराध न�ी � । दषटात

क एक माग. म, जिजसस �ोकर जान का य का अधिधकार �, सदभा(प(.क य� हि(शवास न र�त हए हिक उसको माग. रोकन का अधिधकार परापत �, बाधा डा�ता � । य जान स तदद(ारा रोक टिदया जाता � । क, य का सदोष अ(रोध करता � ।

340. सदोष परिररो�--जो कोई हिकसी वयलि2 का इस परकार सदोष अ(रोध करता � हिक उस वयलि2 को हिनभिशचत परिरसीमा स पर जान स हिन(ारिरत कर द, (� उस वयलि2 का “सदोष परिररोध” करता �, य� क�ा जाता � ।

दषटात (क) य को दी(ार स धिघर हए सथान म पर(श कराकर क उसम ता�ा �गा दता � । इस परकार य दी(ार की परिरसीमा स पर हिकसी भी

टिदशा म न�ी जा सकता । क न य का सदोष परिररोध हिकया � । (�) क एक भ(न क बा�र जान क दवारो पर बनदकधारी मनषयो को बठा दता � और य स क� दता � हिक यटिद य भ(न क बा�र जान

का परयतन करगा, तो ( य को गो�ी मार दग । क न य का सदोष परिररोध हिकया � । 341. सदोष अवरो� क धिलए दणड--जो कोई हिकसी वयलि2 का सदोष अ(रोध करगा, (� सादा कारा(ास स, जिजसकी

अ(धिध एक मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो पाच सौ रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा । 342. सदोष परिररो� क धिलए दणड--जो कोई हिकसी वयलि2 का सदोष परिररोध करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क

कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध एक (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो एक �जार रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

343. ती� या अधि�क टिद�ो क धिलए सदोष परिररो�--जो कोई हिकसी वयलि2 का सदोष परिररोध तीन या अधिधक टिदनो क लि�ए करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

344. दस या अधि�क टिद�ो क धिलए सदोष परिररो�--जो कोई हिकसी वयलि2 का सदोष परिररोध दस या अधिधक टिदनो क लि�ए करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।

345. ऐस वयधिकत का सदोष परिररो� जिजसक छोड� क धिलए रिरट हि�कल चका �--जो कोई य� जानत हए हिकसी वयलि2 को सदोष परिररोध म र�गा हिक उस वयलि2 को छोOन क लि�ए रिरT समयक रप स हिनक� चका � । (� हिकसी अ(धिध क उस कारा(ास क अहितरिर2, जिजसस हिक (� इस अधयाय की हिकसी अनय धारा क अधीन दणडनीय �ो, दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

346. गपत सथा� म सदोष परिररो�--जो कोई हिकसी वयलि2 का सदोष परिररोध इस परकार करगा जिजसस य� आशय परतीत �ोता �ो हिक ऐस परिररदध वयलि2 स हि�तबदध हिकसी वयलि2 को या हिकसी �ोक स(क को ऐस वयलि2 क परिररोध की जानकारी न �ोन पाए या एतसमिसमनीप(. (रणिणत हिकसी ऐस वयलि2 या �ोक स(क को, ऐस परिररोध क सथान की जानकारी न �ोन पाए या उसका पता (� न च�ा पाए, (� उस दणड क अहितरिर2 जिजसक लि�ए (� ऐस सदोष परिररोध क लि�ए दणडनीय �ो, दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

347. समपधिV उददाहिपत कर� क धिलए या अव� काय# कर� क धिलए मजबर कर� क धिलए सदोष परिररो�--जो कोई हिकसी वयलि2 का सदोष परिररोध इस परयोजन स करगा हिक उस परिररदध वयलि2 स, या उसस हि�तबदध हिकसी वयलि2 स, कोई समपभितत या मलय(ान परहितभहित उददाहिपत की जाए, अथ(ा उस परिररदध वयलि2 को या उसस हि�तबदध हिकसी वयलि2 स, कोई समपभितत या मलय(ान परहितभहित उददाहिपत की जाए, अथ(ा उस परिररदध वयलि2 को या उसस हि�तबदध हिकसी वयलि2 को कोई ऐसी अ(ध बात

करन क लि�ए, भारतीय दड सहि�ता, 1860 65

या कोई ऐसी जानकारी दन क लि�ए जिजसस अपराध का हिकया जाना सकर �ो जाए, मजबर हिकया जाए, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी, दणडनीय �ोगा ।

348. ससवीकहित उददाहिपत कर� क धिलए या हिवव! करक समपधिV का परतयावत#� कर� क धिलए सदोष परिररो�-- जो कोई हिकसी वयलि2 का सदोष परिररोध इस परयोजन स करगा हिक उस परिररदध वयलि2 स, या उसस हि�तबदध हिकसी वयलि2 स, कोई सस(ीकहित या कोई जानकारी, जिजसस हिकसी अपराध या अ(चार का पता च� सक, उददाहिपत की जाए, या (� परिररदध वयलि2 या उसस हि�तबदध कोई वयलि2 मजबर हिकया जाए हिक (� हिकसी समपभितत या हिकसी मलय(ान परहितभहित को परतया(रवितत कर या कर(ाए या हिकसी दा( या माग की तधि� कर या कोई ऐसी जानकारी द जिजसस हिकसी समपभितत या हिकसी मलय(ान परहितभहित का परतया(त.न कराया जा सक, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।

आपराधि�क बल और �मल क हिवषय म 349. बल--कोई वयलि2 हिकसी अनय वयलि2 पर ब� का परयोग करता �, य� क�ा जाता �, यटिद (� उस अनय वयलि2 म

गहित, गहित-परिर(त.न या गहित�ीनता कारिरत कर दता � या यटिद (� हिकसी पदाथ. म ऐसी गहित, गहित-परिर(त.न या गहित�ीनता कारिरत कर दता �, जिजसस उस पदाथ. का सपश. उस अनय वयलि2 क शरीर क हिकसी भाग स या हिकसी ऐसी चीज स, जिजस (� अनय वयलि2 प�न हए � या � जा र�ा �, या हिकसी ऐसी चीज स, जो इस परकार णडिसथत � हिक ऐस ससपश. स उस अनय वयलि2 की स(दन शलि2 पर परभा( पOता �, �ो जाता �: परत य� तब जब हिक गहितमान, गहित-परिर(त.न या गहित�ीन करन (ा�ा वयलि2 उस गहित, गहित-परिर(त.न या गहित�ीनता को एणडितसमनपशचात (रणिणत तीन तरीको म स हिकसी एक दवारा कारिरत करता �, अथा.त :--

प�ला--अपनी हिनजी शारीरिरक शलि2 दवारा । दसरा--हिकसी पदाथ. क इस परकार वययन दवारा हिक उसक अपन या हिकसी अनय वयलि2 दवारा कोई अनय काय. क हिकए जान

क हिबना �ी गहित या गहित-परिर(त.न या गहित�ीनता घटिTत �ोती � । तीसरा--हिकसी जी(जनत को गहितमान �ोन, गहित-परिर(त.न करन या गहित�ीन �ोन क लि�ए उतपररण दवारा । 350. आपराधि�क बल--जो कोई हिकसी वयलि2 पर उस वयलि2 की सममहित क हिबना ब� का परयोग हिकसी अपराध को

करन क लि�ए उस वयलि2 को, जिजस पर ब� का परयोग हिकया जाता �, कषहित, भय या कषोभ, ऐस ब� क परयोग स कारिरत करन क आशय स, या ऐस ब� क परयोग स समभावयतः कारिरत करगा य� जानत हए साशय करता �, (� उस अनय वयलि2 पर आपराधिधक ब� का परयोग करता �, य� क�ा जाता � ।

दषटात (क) य नदी क हिकनार रससी स बधी हई ना( पर बठा � । क रणडिससयो को उदबनधिनधत करता � और उस परकार ना( को धार म साशय ब�ा

दता � । य�ा क, य को साशय गहितमान करता �, और (� ऐसा उन पदाथ� को ऐसी रीहित स वययहिनत करक करता � हिक हिकसी वयलि2 की ओर स कोई अनय काय. हिकए हिबना �ी गहित उतपनन �ो जाती � । अतए(, क न य पर ब� का परयोग साशय हिकया �, और यटिद उसन य की सममहित क हिबना य� काय. कोई अपराध करन क लि�ए या य� आशय र�त हए, या य� समभावय जानत हए हिकया � हिक ऐस ब� क परयोग स (� य को कषहित, भय या कषोभ कारिरत कर, तो क न य पर आपराधिधक ब� का परयोग हिकया � ।

(�) य एक रथ म स(ार �ोकर च� र�ा � । क, य क घोOो को चाबक मारता �, और उसक दवारा उनकी चा� को तज कर दता � । य�ा क न जी(जनतओ को उनकी अपनी गहित परिर(रवितत करन क लि�ए उतपररिरत करक य का गहित-परिर(त.न कर टिदया � । अतए(, क न य पर ब� का परयोग हिकया �, और यटिद क न य की सममहित क हिबना य� काय. य� आशय र�त हए या य� समभावय जानत हए हिकया � हिक (� उसस य को कषहित, भय या कषोभ उतपनन कर तो क न य पर आपराधिधक ब� का परयोग हिकया � ।

(ग) य एक पा�की म स(ार �ोकर च� र�ा � । य को �Tन का आशय र�त हए क पा�की का डडा पकO �ता �, और पा�की को रोक दता � । य�ा, क न य को गहित�ीन हिकया �, और य� उसन अपनी शारीरिरक शलि2 दवारा हिकया �, अतए( क न य पर ब� का परयोग हिकया �, और क न य की सममहित क हिबना य� काय. अपराध करन क लि�ए साशय हिकया �, इसलि�ए क न य पर आपराधिधक ब� का परयोग हिकया � ।

(घ) क सOकपर साशय य को धकका दता �, य�ा क न अपनी हिनजी शारीरिरक शलि2 दवारा अपन शरीर को इस परकार गहित दी � हिक (� य क ससपश. म आए । अतए( उसन साशय य पर ब� का परयोग हिकया �, और यटिद उसन य की सममहित क हिबना य� काय. य� आशय र�त हए या य� समभावय जानत हए हिकया � हिक (� उसस य को कषहित, भय या कषोभ उतपनन कर, तो उसन य पर आपराधिधक ब� का परयोग हिकया � ।

(ङ) क य� आशय र�त हए या य� बात समभावय जानत हए एक पतथर c कता � हिक (� पतथर इस परकार य, या य क (सतर क या य दवारा � जाई जान (ा�ी हिकसी (सत क ससपश. म आएगा या य� हिक (� पानी म हिगरगा और उछ�कर पानी य क कपOो पर या य दवारा � जाई जान (ा�ी हिकसी (सत पर जा पOगा । य�ा, यटिद पतथर क c क जान स य� परिरणाम उतपनन �ो जाए हिक कोई पदाथ. य, या य क (सतरो

क ससपश. म आ जाए, तो क न य पर ब� का परयोग हिकया � ; और यटिद उसन य की सममहित क हिबना य� काय. उसक दवारा य को कषहित, भय या कषोभ उतपनन करन का आशय र�त हए हिकया �, तो उसन य पर आपराधिधक ब� का परयोग हिकया � । भारतीय दड सहि�ता, 1860 66

(च) क हिकसी सतरी का घघT साशय �Tा दता � । य�ा, क न उस पर साशय ब� का परयोग हिकया �, और यटिद उसन उस सतरी की सममहित क हिबना य� काय. य� आशय र�त हए या य� समभावय जानत हए हिकया � हिक उसस उसको कषहित, भय या कषोभ उतपनन �ो, तो उसन उस पर आपराधिधक ब� का परयोग हिकया � ।

(छ) य सनान कर र�ा � । क सनान करन क Tब म ऐसा ज� डा� दता � जिजस (� जानता � हिक (� उब� र�ा � । य�ा, उब�त हए ज� म ऐसी गहित को अपनी शारीरिरक शलि2 दवारा साशय उतपनन करता � हिक उस ज� का ससपश. य स �ोता � या अनय ज� स �ोता �, जो इस परकार णडिसथत � हिक ऐस ससपश. स य की स(दन शलि2 परभाहि(त �ोती �; इसलि�ए क न य पर साशय ब� का परयोग हिकया �, और यटिद उसन य की सममहित क हिबना य� काय. य� आशय र�त हए या य� समभावय जानत हए हिकया � हिक (� उसस य को कषहित, भय या कषोभ उतपनन कर, तो क न आपराधिधक ब� का परयोग हिकया � ।

(ज) क, य की सममहित क हिबना, एक कतत को य पर झपTन क लि�ए भOकाता � । य�ा यटिद क का आशय य को कषहित, भय या कषोभ कारिरत करन का � तो उसन य पर आपराधिधक ब� का परयोग हिकया � ।

351. �मला--जो कोई, कोई अगहि(कषप या कोई तयारी इस आशय स करता �, या य� समभावय जानत हए करता � हिक ऐस अगहि(कषप या ऐसी तयारी करन स हिकसी उपणडिसथत वयलि2 को य� आशका �ो जाएगी हिक जो (सा अगहि(कषप या तयारी करता �, (� उस वयलि2 पर आपराधिधक ब� का परयोग करन �ी (ा�ा �, (� �म�ा करता �, य� क�ा जाता � ।

सपषटीकरण--क(� शबद �म� की कोटिT म न�ी आत । हिकनत जो शबद कोई वयलि2 परयोग करता �, ( उसक अगहि(कषप या तयारिरयो को ऐसा अथ. द सकत � जिजसस ( अगहि(कषप या तयारिरया �म� की कोटिT म आ जाए ।

दषटात (क) य पर अपना मकका क इस आशय स या य� समभावय जानत हए हि��ाता � हिक उसक दवारा य को य� हि(शवास �ो जाए हिक क, य

को मारन (ा�ा �ी � । क न �म�ा हिकया � । (�) क एक कि�सर कतत की म�बनधनी इस आशय स या य� समभावय जानत हए �ो�ना आरभ करता � हिक उसक दवारा य को य�

हि(शवास �ो जाए हिक (� य पर कतत स आकरमण करान (ा�ा � । क न य पर �म�ा हिकया � । (ग) य स य� क�त हए हिक “म तम� पीTगा” क एक छOी उठा �ता � । य�ा यदयहिप क दवारा परयोग म �ाए गए शबद हिकसी अ(सथा म

�म� की कोटिT म न�ी आत और यदयहिप क(� अगहि(कषप बनाना जिजसक साथ अनय परिरणडिसथहितयो का अभा( �, �म� की कोटिT म न भी आए तथाहिप शबदो दवारा सपषTीकत (� अगहि(कषप �म� की कोटिT म आ सकता � ।

352. गमभीर परकोप� �ो� स अनयथा �मला कर� या आपराधि�क बल का परयोग कर� क धिलए दणड--जो कोई हिकसी वयलि2 पर �म�ा या आपराधिधक ब� का परयोग उस वयलि2 दवारा गमभीर और अचानक परकोपन टिदए जान पर करन स अनयथा करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो पाच सौ रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

सपषटीकरण--इस धारा क अधीन हिकसी अपराध क दणड म कमी गमभीर और अचानक परकोपन क कारण न�ी �ोगी, यटिद (� परकोपन अपराध करन क लि�ए परहित�त क रप म अपराधी दवारा ईसमिपसत या स(चछया परकोहिपत हिकया गया �ो, अथ(ा

यटिद (� परकोपन हिकसी ऐसी बात दवारा टिदया गया �ो जो हि(धिध क पा�न म, या हिकसी �ोक स(क दवारा ऐस �ोक स(क की शलि2 क हि(धिधपण. परयोग म, की गई �ो, अथ(ा

यटिद (� परकोपन हिकसी ऐसी बात दवारा टिदया गया �ो जो पराइ(T परहितरकषा क अधिधकार क हि(धिधपण. परयोग म की गई �ो । परकोपन अपराध को कम करन क लि�ए पया.पत गमभीर और अचानक था या न�ी, य� तथय का परशन � । 353. लोक सवक को अप� कत#वय क हि�व#�� स भयोपरत कर� क धिलए �मला या आपराधि�क बल का

परयोग--जो कोई हिकसी ऐस वयलि2 पर, जो �ोक स(क �ो, उस समय जब (स �ोक स(क क नात (� उसक अपन कत.वय का हिनषपादन कर र�ा �ो, या इस आशय स हिक उस वयलि2 को (स �ोक स(क क नात अपन कत.वय क हिन(.�न स हिन(ारिरत कर या भयोपरत कर या ऐस �ोक स(क क नात उसक अपन कत.वय क हि(धिधपण. हिन(.�न म की गई या की जान क लि�ए परयहितत हिकसी बात क परिरणामस(रप �म�ा करगा या आपराधिधक ब� का परयोग करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

354. सतरी की ल�ा भग कर� क आ!य स उस पर �मला या आपराधि�क बल का परयोग--जो कोई हिकसी सतरी की ��ा भग करन क आशय स या य� समभावय जानत हए हिक तदद(ारा (� उसकी ��ा भग करगा, उस सतरी पर �म�ा करगा या आपराधिधक ब� का परयोग करगा, (� दोनो म स, हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

355. गमभीर परकोप� �ो� स अनयथा हिकसी वयधिकत का अ�ादर कर� क आ!य स उस पर �मला या

आपराधि�क बल का परयोग--जो कोई हिकसी वयलि2 पर �म�ा या आपराधिधक ब� का परयोग उस वयलि2 दवारा गमभीर और अचानक परकोपन टिदए जान पर भारतीय दड सहि�ता, 1860 67

करन, स अनयथा, इस आशय स करगा हिक तदद(ारा उसका अनादर हिकया जाए, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

356. हिकसी वयधिकत दवारा ल जाई जा� वाली सपधिV की चोरी क परयत�ो म �मला या आपराधि�क बल का परयोग--जो कोई हिकसी वयलि2 पर �म�ा या आपराधिधक ब� का परयोग हिकसी ऐसी समपभितत की चोरी करन क परयतन म करगा जिजस (� वयलि2 उस समय प�न हए �ो, या लि�ए जा र�ा �ो, (� दोनो म स, हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

357. हिकसी वयधिकत का सदोष परिररो� कर� क परयत�ो म �मला या आपराधि�क बल का परयोग--जो कोई हिकसी वयलि2 पर �म�ा या आपराधिधक ब� का परयोग उस वयलि2 का सदोष परिररोध करन का परयतन करन म करगा, (� दोनो म स, हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध एक (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो एक �जार रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

358. गमभीर परकोप� बरिमल� पर �मला या आपराधि�क बल का परयोग--जो कोई हिकसी वयलि2 पर �म�ा या आपराधिधक ब� का परयोग उस वयलि2 दवारा टिदए गए गमभीर और अचानक परकोपन पर करगा, (� सादा कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध एक मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो दो सौ रपए तक का �ो सकगा या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

सपषटीकरण--अहितम धारा उसी सपषTीकरण क अधयधीन � जिजसक अधयधीन की धारा 352 � । वयप�रण, अप�रण, दासतव और बलाताशरम क हिवषय म

359. वयप�रण--वयप�रण दो हिकसम का �ोता � ; 1[भारत] म स वयप�रण और हि(धिधपण. सरकषकता म स वयप�रण । 360. भारत म स वयप�रण--जो कोई हिकसी वयलि2 का उस वयलि2 की, या उस वयलि2 की ओर स सममहित दन क लि�ए (ध रप स पराधिधकत हिकसी वयलि2 की सममहित क हिबना, 1[भारत] की सीमाओ स पर पर(�ण कर दता �, (� 1[भारत] म स उस वयलि2 का वयप�रण करता �, य� क�ा जाता � ।

361. हिवधि�पण# सरकषकता म स वयप�रण--जो कोई हिकसी अपरापतवय को, यटिद (� नर �ो, तो 2[सो��] (ष. स कम आय (ा� को, या यटिद (� नारी �ो तो 3[अठार�] (ष. स कम आय (ा�ी को या हिकसी हि(कतलिचतत वयलि2 को, ऐस अपरापत(य या हि(कतलिचतत वयलि2 क हि(धिधपण. सरकषक की सरकषकता म स ऐस सरकषक की सममहित क हिबना � जाता � या ब�का � जाता �, (� ऐस अपरापत(य या ऐस वयलि2 का हि(धिधपण. सरकषकता म स वयप�रण करता �, य� क�ा जाता � ।

सपषटीकरण--इस धारा म “हि(धिधपण. सरकषक” शबदो क अनतग.त ऐसा वयलि2 आता � जिजस पर ऐस अपरापत(य या अनय वयलि2 की द�र� या अभिभरकषा का भार हि(धिधप(.क नयसत हिकया गया � ।

अपवाद--इस धारा का हि(सतार हिकसी ऐस वयलि2 क काय. पर न�ी �, जिजस सदभा(प(.क य� हि(शवास � हिक (� हिकसी अधम.ज लिशश का हिपता �, या जिजस सदभा(प(.क य� हि(शवास � हिक (� ऐस लिशश की हि(धिधपण. अभिभरकषा का �कदार �, जब तक हिक ऐसा काय. दराचारिरक या हि(धिधहि(रदध परयोजन क लि�ए न हिकया जाए ।

362. अप�रण--जो कोई हिकसी वयलि2 को हिकसी सथान स जान क लि�ए ब� दवारा हि((श करता �, या हिकन�ी पर(चनापण. उपायो दवारा उतपररिरत करता �, (� उस वयलि2 का अप�रण करता �, य� क�ा जाता � ।

363. वयप�रण क धिलए दणड--जो कोई 4[भारत] म स या हि(धिधपण. सरकषकता म स हिकसी वयलि2 का वयप�रण करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।

5[363क. भीख माग� क परयोज�ो क धिलए अपरापतवय का वयप�रण का हिवकलागीकरण--(1) जो कोई हिकसी अपरापत(य का इसलि�ए वयप�रण करगा या अपरापत(य का हि(धिधपण. सरकषक स(य न �ोत हए अपरापत(य की अभिभरकषा इसलि�ए अभिभपरापत करगा हिक ऐसा अपरापत(य भी� मागन क परयोजनो क लि�ए हिनयोजिजत या परय2 हिकया जाए, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा । 1 “हिRटिTश भारत” शबद अनकरमशः भारतीय स(ततरता (कनदरीय अधिधहिनयम तथा अधयादश अनक�न) आदश, 1948, हि(धिध अनक�न आदश, 1950

और 1951 क अधिधहिनयम स0 3 को धारा 3 और अनसची दवारा परहितसथाहिपत हिकए गए � । 2 1949 क अधिधहिनयम स0 42 की धारा 2 दवारा “चौद�” क सथान पर परहितसथाहिपत ।

3 1949 क अधिधहिनयम स0 42 की धारा 2 दवारा “सो��” क सथान पर परहितसथाहिपत । 4 “हिRटिTश भारत” शबद अनकरमशः भारतीय स(ततरता (कनदरीय अधिधहिनयम तथा अधयादश अनक�न) आदश, 1948, हि(धिध अनक�न आदश, 1950

और 1951 क अधिधहिनयम स0 3 को धारा 3 और अनसची दवारा परहितसथाहिपत हिकए गए � । 5 1959 क अधिधहिनयम स0 52 की धारा 2 दवारा (15-1-1960 स) अतःसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 68

(2) जो कोई हिकसी अपरापत(य को हि(क�ाग इसलि�ए करगा हिक ऐसा अपरापत(य भी� मागन क परयोजनो क लि�ए हिनयोजिजत या परय2 हिकया जाए, (� आजी(न कारा(ास स दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।

(3) ज�ा हिक कोई वयलि2, जो अपरापत(य का हि(धिधपण. सरकषक न�ी �, उस अपरापत(य को भी� मागन क परयोजनो क लि�ए हिनयोजिजत या परय2 करगा, (�ा जब तक हिक ततपरहितक� साहिबत न कर टिदया जाए, य� उपधारणा की जाएगी हिक उसन इस उददशय स उस अपरापत(य का वयप�रण हिकया था या अनयथा उसकी अभिभरकषा अभिभपरापत की थी हिक (� अपरापत(य भी� मागन क परयोजनो क लि�ए हिनयोजिजत या परय2 हिकया जाए।

(4) इस धारा म-- (क) “भी� मागन” स अभिभपरत �--

(त) �ोक सथान म भिभकषा की याचना या परानतिपत चा� गान, नाचन, भागय बतान, करतब टिद�ान या चीज बचन क ब�ान अथ(ा अनयथा करना,

(तत) भिभकषा की याचना या परानतिपत करन क परयोजन स हिकसी पराइ(T परिरसर म पर(श करना, (ततत) भिभकषा अभिभपरापत या उददाहिपत करन क उददशय स अपना या हिकसी अनय वयलि2 का या जी(जनत का कोई

�ण, घा(, कषहित, हि(रपता या रोग अभिभदरछिशत या परदरछिशत करना, (तध) भिभकषा की याचना या परानतिपत क परयोजन स अपरापत(य का परदरछिशत क रप म परयोग करना ;

(�) अपरापत(य स (� वयलि2 अभिभपरत �, जो-- (त) यटिद नर �, तो सो�� (ष. स कम आय का � ; तथा (तत) यटिद नारी �, तो अठार� (ष. स कम आय की � ।]

364. �तया कर� क धिलए वयप�रण या अप�रण--जो कोई इसलि�ए हिकसी वयलि2 का वयप�रण या अप�रण करगा हिक ऐस वयलि2 की �तया की जाए या उसको ऐस वययहिनत हिकया जाए हिक (� अपनी �तया �ोन क �तर म पO जाए, (� 1[आजी(न कारा(ास] स या कटिठन कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।

दषटात

(क) क इस आशय स या य� समभावय जानत हए हिक हिकसी द( मरवित पर य की बलि� चढाई जाए 1[भारत] म स य का वयप�रण करता � । क न इस धारा म परिरभाहिषत अपराध हिकया � ।

(�) ख को उसक ग� स क इसलि�ए ब�प(.क या ब�काकर � जाता � हिक ख की �तया की जाए । क न इस धारा म परिरभाहिषत अपराध हिकया � ।

2[364क. हिफरौती, आटिद क धिलए वयप�रण--जो कोई इसलि�ए हिकसी वयलि2 का वयप�रण या अप�रण करगा या ऐस वयप�रण या अप�रण क पशचात ऐस वयलि2 को हिनरोध म र�गा और ऐस वयलि2 की मतय या उसकी उप�हित कारिरत करन की धमकी दगा या अपन आचरण स ऐसी यलि2य2 आशका पदा करगा हिक ऐस वयलि2 की मतय �ो सकती � या उसको उप�हित की जा सकती � या ऐस वयलि2 को उप�हित या उसकी मतय कारिरत करगा जिजसस हिक सरकार या 3[हिकसी हि(दशी राजय या अतरराषटरीय अतर-सरकारी सगठन या हिकसी अनय वयलि2] को हिकसी काय. को करन या करन स परहि(रत र�न क लि�ए या हिcरौती दन क लि�ए हि((श हिकया जाए, (� मतय या आजी(न कारा(ास स दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।]

365. हिकसी वयधिकत का गपत रीहित स और सदोष परिररो� कर� क आ!य स वयप�रण या अप�रण--जो कोई इस आशय स हिकसी वयलि2 का वयप�रण या अप�रण करगा हिक उसका गपत रीहित स और सदोष परिररोध हिकया जाए, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।

366. हिववा� आटिद क कर� को हिवव! कर� क धिलए हिकसी सतरी को वयपहत कर�ा, अपहत कर�ा या उतपररिरत कर�ा--जो कोई हिकसी सतरी का वयप�रण या अप�रण उसकी इचछा क हि(रदध हिकसी वयलि2 स हि((ा� करन क लि�ए उस सतरी को हि((श करन क आशय स या (� हि((श की जाएगी य� समभावय जानत हए अथ(ा अय2 सभोग करन क लि�ए उस सतरी को हि((श या हि(�बध करन क लि�ए या (� सतरी अय2 सभोग करन क लि�ए हि((श या हि(�बध की जाएगी य� सभावय जानत हए करगा, (� दोनो म स

1 1955 क अधिधहिनयम स0 26 की धारा 117 और अनसची दवारा (1-1-1956 स) “आजी(न हिन(ा.सन” क सथान पर परहितसथाहिपत । 2 1955 क अधिधहिनयम स0 24 की धारा 2 दवारा “हिकसी अनय वयलि2” शबदो क सथान पर परहितसथाहिपत ।

3 1995 क अधिधहिनयम स0 24 की धारा 2 दवारा “हिकसी अनय वयलि2” शबदो क सथान पर परहितसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 69

हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ; 1[और जो कोई हिकसी सतरी को हिकसी अनय वयलि2 स अय2 सभोग करन क लि�ए हि((श या हि(�बध करन क आशय स यी (� हि((श या हि(�बध की जाएगी य� सभावय जानत हए इस सहि�ता म यथा परिरभाहिषत आपराधिधक अभिभतरास दवारा अथ(ा पराधिधकार क दरपयोग या हि((श करन क अनय साधन दवारा उस सतरी को हिकसी सथान स जान को उतपररिरत करगा, (� भी प(�2 परकार स दणडिणडत हिकया जाएगा ।]

2[366क. अपरापतवय लडकी का उपाप�--जो कोई अठार� (ष. स कम आय की अपरापत(य �Oकी को अनय वयलि2 स अय2 सभोग करन क लि�एहि((श या हि(�बध करन क आशय स या तदद(ारा हि((श या हि(�बध हिकया जाएगा य� समभावय जानत हए ऐसी �Oकी को हिकसी सथान स जान को या कोई का¹ीा करन को हिकसी भी साधन दवारा उतपररिरत करगा, (� कारा(ास स जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।

366ख. हिवद! स लडकी का आयात कर�ा--जो कोई इककीस (ष. स कम आय की हिकसी �Oकी को 3[भारत] क बा�र क हिकसी दश स 4[या जमम-कशमीर राजय स] आयात, उस हिकसी अनय वयलि2 स अय2 सभोग करन क लि�ए हि((श या हि(�बध करन क आशय स या तदद(ारा (� हि((श या हि(�बध की जाएगी य� समभावय जानत हए करगा 5।।।

(� कारा(ास स जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।] 367. वयधिकत को घोर उप�हित, दासतव, आटिद का हिवषय ब�ा� क उददशय स वयप�रण या अप�रण--जो कोई

हिकसी वयलि2 का वयप�रण या अप�रण इसलि�ए करगा हिक उस घोर उप�हित या दासत( का या हिकसी वयलि2 की परकहित हि(रदध काम (ासना का हि(षय बनाया जाए या बनाए जान क �तर म (� जस पO सकता � (स उस वययहिनत हिकया जाए या समभावय जानत हए करगा हिक ऐस वयलि2 को उपय.2 बातो का हि(षय बनाया जाएगा या उपय.2 रप स वययहिनत हिकया जाएगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।

368. वयपहत या अपहत वयधिकत को सदोष धिछपा�ा या परिररो� म रख�ा--जो कोई य� जानत हए हिक कोई वयलि2 वयपहत या अपहत हिकया गया �, ऐस वयलि2 को सदोष लिछपाएगा या परिररोध म र�गा, (� उसी परकार दणडिणडत हिकया जाएगा मानो उसन उसी आशय या जञान या परयोजन स ऐस वयलि2 का वयप�रण या अप�रण हिकया �ो जिजसस उसन ऐस वयलि2 को लिछपाया या परिररोध म हिनरदध र�ा � ।

369. दस वष# स कम आय क शि!! क !रीर पर स चोरी कर� क आ!य स उसका वयप�रण या अप�रण--जो कोई दस (ष. स कम आय क हिकसी लिशश का इस आशय स वय(�रण या अप�रण करगा हिक ऐस लिशश क शरीर पर स कोई जगम समपभितत बईमानी स � �, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।

370. दास क रप म हिकसी वयधिकत को खरीद�ा या वयय� कर�ा- जो कोई हिकसी वयलि2 को दास क रप म आयात करगा, हिनया.त करगा, अपसारिरत करगा, �रीदगा, बचगा या वययहिनत करगा या हिकसी वयलि2 क दास क रप म परहितगर�ण, परानतिपत या हिनरोध उसकी इचछा क हि(रदध करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा । 371. दासो का आभयाधिसक वयौ�ार कर�ा--जो कोई अभयासतः दासो को आयात करगा, हिनया.त करगा, अपसारिरत करगा, �रीदगा, बचगा या उनका दवया.पार या वयौ�ार करगा, (� 6[आजी(न कारा(ास] स, या दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. स अधिधक न �ोगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।

372. वशयावधिV आटिद क परयोज� क धिलए अपरापतवय को बच�ा--जो कोई 7[अठार� (ष. क कम आय क हिकसी वयलि2 को इस आशय स हिक ऐसा वयलि2 हिकसी आय म भी (शया(भितत या हिकसी वयलि2 स अय2 सभोग करन क लि�ए या हिकसी हि(धिधहि(रदध और दराचारिरक परयोजन क लि�ए काम म �ाया या उपयोग हिकया जाए या य� समभावय जानत हए हिक ऐसा वयलि2, हिकसी आय म भी] ऐस हिकसी परयोजन क लि�ए काम म �ाया जाएगा या उपयोग हिकया जाएगा, बचगा, भाO पर दगा या अनयथा वययहिनत करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा । 1 1923 क अधिधहिनयम स0 20 की धारा 2 दवारा जोOा गया । 2 1923 क अधिधहिनयम स0 20 की धारा 3 दवारा अतःसथाहिपत ।

3 “हिRटिTश भारत” शबद अनकरमशः भारतीय स(ततरता (कनदरीय अधिधहिनयम तथा अधयादश अनक�न) आदश, 1948, हि(धिध अनक�न आदश, 1950 और 1951 क अधिधहिनयम स0 3 को धारा 3 और अनसची दवारा परहितसथाहिपत हिकए गए � ।

4 1951 क अधिधहिनयम स0 3 की धारा 3 और अनसची दवारा अतःसथाहिपत । 5 1951 क अधिधहिनयम स0 3 की धारा 3 और अनसची दवारा कहितपय शबदो का �ोप हिकया गया । 6 1955 क अधिधहिनयम स0 26 की धारा 117 और अनसची दवारा (1-1-1956 स) “आजी(न हिन(ा.सन” क सथान पर परहितसथाहिपत । 7 1924 क अधिधहिनयम स0 18 की धारा 2 दवारा कहितपय शबदो क सथान पर परहितसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 70

1[सपषटीकरण 1--जबहिक अठार� (ष. स कम आय की नारी हिकसी (शया को या हिकसी अनय वयलि2 को, जो (शयाग� च�ाता �ो या उसका परबध करता �ो, बची जाए, भाO पर दी जाए या अनयथा वययहिनत की जाए, तब इस परकार ऐसी नारी को वययहिनत करन (ा� वयलि2 क बार म, जब तक हिक ततपरहितक� साहिबत न कर टिदया जाए, य� उपधारणा की जाएगी हिक उसन उसको इस आशय स वययहिनत हिकया � हिक (� (शया(भितत क लि�ए उपयोग म �ाई जाएगी ।

सपषटीकरण 2--“अय2 सभोग” स इस धारा क परयोजनो क लि�ए ऐस वयलि2यो म मथन अभिभपरत � जो हि((ा� स सय2 न�ी �, या ऐस हिकसी सयोग या बनधन स सय2 न�ी � जो यदधहिप हि((ा� की कोटिT म तो न�ी आता तथाहिप उस समदाय की , जिजसक ( � या यटिद ( भिभनन समदायो क � तो ऐस दोनो समदायो की, स(ीय हि(धिध या रटिढ दवारा उनक बीच म हि((ा�-सदश समबनध अभिभजञात हिकया जाता �ो ।]

373. वशयावधिV आटिद क परयोज� क धिलए अपरापतवय का खरीद�ा--जो कोई, 2[अठार� (ष. स कम आय क हिकसी वयलि2 को इस आशय स हिक ऐसा वयलि2 हिकसी आय म भी (शया(भितत या हिकसी वयलि2 स अय2 सभोग करन क लि�ए या हिकसी हि(धिधहि(रदध दराचारिरक परयोजन क लि�ए काम म �ाया या उपयोग हिकया जाए या य� सभावय जानत हए हिक ऐसा वयलि2 हिकसी आय म भी] ऐस हिकसी परयोजन क लि�ए काम म �ाया जाएगा या उपयोग हिकया जाएगा, �रीदगा, भाO पर �गा, या अनयथा उसका कबजा अभिभपरापत करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।

2[सपषटीकरण--अठार� (ष. स कम आय की नारी को �रीदन (ा�ी, भाO पर �न (ा�ी या अनयथा उसका कबजा अभिभपरापत करन (ा�ी हिकसी (शया क या (शयाग� च�ान या उसका परबनध करन (ा� हिकसी वयलि2 क बार म, जब तक हिक ततपरहितक� साहिबत न कर टिदया जाए, य� उपधारणा की जाएगी हिक ऐसी नारी का कबजा उसन इस आशय स अभिभपरापत हिकया � हिक (� (शया(भितत क परयोजनो क लि�ए उपयोग म �ाई जाएगी ।

सपषटीकरण 2--“अय2 सभोग” का (�ी अथ. �, जो धारा 372 म � ।] 374. हिवधि�हिवरदध अहि�वाय# शरम--जो कोई हिकसी वयलि2 को उस वयलि2 की इचछा क हि(रदध शरम करन क लि�ए

हि(धिधहि(रदध तौर पर हि((श करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध एक (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

3[यौ� अपरा� 375. बलातसग -- जो परष एतसमिसमन पशचात अप(ाटिदत दशा क लिस(ाय हिकसी सतरी क साथ हिनमनलि�खि�त छ� भाहित की

परिरणडिसथहितयो म स हिकसी परिरणडिसथहित म मथन करता � (� परष ब�ातीसग करता �, य� क�ा जाता �ः- प�ला--उस सतरी की इचछा क हि(रदध । दसरा--उस सतरी की सममहित क हिबना । तीसरा--उस सतरी की सममहित स जबहिक उसकी सममहित, उस या ऐस हिकसी वयलि2 को, जिजसस (� हि�तबदध �, मतय या

उप�हित क भय म डा�कर अभिभपरापत की गई � । चौथा--उस सतरी की सममहित स, जबहिक (� परष य� जानता � हिक (� उस सतरी का पहित न�ी � और उस सतरी न सममहित

इसलि�ए दी � हिक (� हि(शवास करती � हिक (� ऐसा परष � जिजसस (� हि(धिधप(.क हि((ाहि�त � या हि((ाहि�त �ोन का हि(शवास करती � ।

पाचवा--उस सतरी की सममहित स जब ऐसी सममहित दन क समय (� हि(कतलिचतत या मततता या हिकसी सजञा शनयकारी या अस(ासथयकर पदाथ. उसक दवारा वयलि2गत रप म या हिकसी अनय वयलि2 क माधयम स टिदए जान क कारण उस बात की, जिजसक बार म (� सममहित दती �; परकहित और परिरणामो को समझन म असमथ. � ।

छठा--उस सतरी की सममहित स या हिबना सममहित क जबहिक (� सो�� (ष. स कम आय की � । सपषटीकरण--ब�ातसग क अपराध क लि�ए आ(शयक मथन गटिठत करन क लि�ए पर(शन पया.पत � । अपवाद--परष का अपनी पतनी क साथ मथन ब�ातसग न�ी � जबहिक पतनी पनदर� (ष. स कम आय की न�ी � ।

1 1924 क अधिधहिनयम स0 18 की धारा 3 दवारा अतःसथाहिपत । 2 1924 क अधिधहिनयम स0 18 की धारा 4 दवारा अतःसथाहिपत ।

31983 क अधिधहिनयम स0 43 की धारा 3 दवारा “ब�ातसग क हि(षय म” शीष. और धारा 375 और धारा 376 क सथान पर परहितसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 71

376. बलातसग क धिलए दणड--(1) जो कोई, उपधारा (2) दवारा उपबनधिनधत माम�ो क लिस(ाय, ब�ातसग करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. स कम की न�ी �ोगी हिकनत जो आजी(न या दस (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा, लिस(ाय तब क जब हिक (� सतरी जिजसक साथ ब�ातसग हिकया गया �, उसकी अपनी पतनी � और बार� (ष. स कम आय की न�ी � और ऐस माम� म (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा :

परनत नयाया�य पया.पत और हि(शष कारणो स, जो हिनण.य म उणडिल�खि�त हिकए जाएग, सात (ष. स कम अ(धिध क कारा(ास का दणडादश अधिधरोहिपत कर सकगा ।

(2) जो कोई-- (क) पलि�स अधिधकारी �ोत हए--

(त) उस पलि�स थान की सीमाओ क भीतर, जिजसम (� हिनय2 �, ब�ातसग करगा, या (तत) हिकसी भी थान क परिरसर म चा� (� ऐस पलि�स थान म, जिजसम (� हिनय2 �, णडिसथत � या न�ी,

ब�ातसग करगा, या (ततत) अपनी अभिभरकषा म या अपन अधीनसथ हिकसी पलि�स अधिधकारी की अभिभरकषा म हिकसी सतरी क साथ

ब�ातसग करगा ; या (�) �ोक स(क �ोत हए, अपनी शासकीय णडिसथहित का �ाभ उठाकर, हिकसी ऐसी सतरी क साथ जो ऐस �ोक स(क

क रप म उसकी अभिभरकषा म या उसक अधीनसथ हिकसी �ोक स(क की अभिभरकषा म �, ब�ातसग करगा ; या (ग) हिकसी ज�, परहितपरषण ग� या ततसमय पर(तत हिकसी हि(धिध दवारा या उसक अधीन सथाहिपत अभिभरकषा क अनय

सथान क या नधिसतरयो या बा�को की हिकसी ससथा क परबध या कम.चारिर(द म �ोत हए, अपनी शासकीय णडिसथहित का �ाभ उठा कर ऐसी ज�, परहितपरषण ग�, सथान या ससथा क हिकसी हिन(ासी क साथ ब�ातसग करगा ; या

(घ) हिकसी असपता� क परबध या कम.चारिर(द म �ोत हए, अपनी शासकीय णडिसथहित का �ाभ उठाएगा और उस असपता� म हिकसी सतरी क साथ ब�ातसग करगा ; या

(ङ) हिकसी सतरी क साथ य� जानत हए हिक (� गभ.(ती �, ब�ातसग करगा ; या (च) हिकसी सतरी क साथ, जो बार� (ष. स कम आय की �, ब�ातसग करगा ; या (छ) सामहि�क ब�ातसग करगा,

(� कठोर कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. स कम न�ी �ोगी, हिकनत जो आजी(न �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा :

परनत नयाया�य पया.पत और हि(शष कारणो स, जो हिनण.य म उणडिल�खि�त हिकए जाएग, दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास का, जिजसकी अ(धिध दस (ष. स कम की �ो सकगी, दणडादश अधिधरोहिपत कर सकगा ।

सपषटीकरण 1--ज�ा हिकसी सतरी क साथ ब�ातसग वयलि2यो क सम� म स एक या अधिधक वयलि2यो दवारा, अपन सामानय आशय को अगरसर करन क लि�ए हिकया जाता �, (�ा परतयक वयलि2 क बार म य� समझा जाएगा हिक उसन इस उपधारा क अथ. म सामहि�क ब�ातसग हिकया � ।

सपषटीकरण 2--“नधिसतरयो या बा�को की हिकसी ससथा” स ऐसी कोई ससथा अभिभपरत � जिजसका नाम चा� अनाथा�य �ो या उपभिकषत नधिसतरयो या बा�को क लि�ए ग� �ो या हि(ध(ाओ क लि�ए ग� या कोई भी अनय नाम �ो, जो नधिसतरयो और बा�को को गर�ण करन और उनकी द�भा� करन क लि�ए सथाहिपत या अनरभिकषत � ।

सपषटीकरण 3--“असपता�” स असपता� का अ�ाता अभिभपरत � और इसक अनतग.त ऐसी हिकसी ससथा का अ�ाता � जो उल�ाध (आरोगय सथापन) क दौरान वयलि2यो को या लिचहिकतसीय धयान या पन(ा.स की अपकषा र�न (ा� वयलि2यो को, परहि(षT करन और उनका उपचार करन क लि�ए � ।

376क. पथक कर टिदए जा� क दौरा� हिकसी परष दवारा अप�ी पत�ी क साथ सभोगर--जो कोई अपनी पतनी क साथ, जो पथकीकरण की हिकसी हिडकरी क अधीन या हिकसी परथा अथ(ा रटिढ क अधीन, उसस पथक र� र�ी �, उसकी सममहित क हिबना उसक साथ मथन करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।

376ख. लोक सवक दवारा अप�ी अशिभरकषा म की हिकसी सतरी क साथ सभोग--जो कोई, �ोक स(क �ोत हए अपनी शासकीय णडिसथहित का �ाभ उठाकर हिकसी सतरी को जो ऐस �ोक स(क क रप म उसकी अभिभरकषा म �, या उसक अधीनसथ हिकसी भारतीय दड सहि�ता, 1860 72

�ोक स(क की अभिभरकषा म �, ऐसा मथन करन क लि�ए उतपररिरत या हि(�बध करगा, जो ब�ातसग क अपराध की कोटिT म न�ी आता �, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स जिजसकी अ(धिध पाच (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।

376ग. जल, परहितपरषण ग� आटिद क अ�ीकषक दवारा सभोग--जो कोई हिकसी ज�, परहितपरषण ग� या अभिभरकषा क ऐस अनय सथान का जो ततसमय पर(तत हिकसी हि(धिध दवारा या उसक अधीन सथाहिपत हिकया गया � या नधिसतरयो या बा�को की हिकसी ससथा का अधीकषक या परबनधक �ोत हए अपनी शासकीय णडिसथहित का �ाभ उठाकर ज�, परहितपरषण ग�, सथान या ससथा की हिकसी सतरी हिन(ासी को, ऐसा मथन करन क लि�ए जो ब�ातसग क अपराध की कोटिT म न�ी आता �, उतपररिरत या हि(�बध करगा (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स जिजसकी अ(धिध पाच (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।

सपषटीकरण 1--हिकसी ज�, परहितपरषण ग� या अभिभरकषा क हिकसी अनय सथान या नधिसतरयो या बा�को की हिकसी ससथा क समबनध म, “अधीकषक” क अनतग.त कोई ऐसा वयलि2 भी � जो ऐसी ज�, परहितपरषण ग�, सथान या ससथा म ऐसा कोई पद धारण करता �, जिजसक आधार पर (� उसक हिन(ालिसयो पर हिकसी पराधिधकार या हिनयतरण का परयोग कर सकता � ।

सपषटीकरण 2--“नधिसतरयो या बा�को की हिकसी ससथा” पद का (�ी अथ. � जो धारा 376 की उपधारा (2) क सपषTीकरण 2 म उसका � ।

376घ. असपताल क परबनध या कम#चारिरवनद आटिद क हिकसी सदसय दवारा उस असपताल म हिकसी सतरी क साथ सभोग--जो कोई, हिकसी असपता� क परबनध म �ोत हए या हिकसी असपता� क कम.चारिर(नद म �ोत हए, अपनी शासकीय णडिसथहित का �ाभ उठाकर और हिकसी सतरी क साथ, जो उस असपता� म �, ऐसा मथन करगा जो ब�ातसग की कोटिT म न�ी आता �, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स जिजसकी अ(धिध पाच (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

सपषटीकरण--“असपता�” पद का (�ी अथ. � जो धारा 376 की उपधारा (2) क सपषTीकरण 3 म उसका � । परकहित हिवरदध अपरा�ो क हिवषय म

377. परकहित हिवरदध अपरा� -- जो कोई हिकसी परष, सतरी या जी(जनत क साथ परकहित की वय(सथा क हि(रदध स(चछया इजिनदरयभोग करगा (� 1[आजी(न कारा(ास] स, या दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।

सपषटीकरण--इस धारा म (रणिणत अपराध क लि�ए आ(शयक इजिनदरयभोग गटिठत करन क लि�ए पर(शन पया.पत � । अधयाय 17

समपधिV क हिवरदध अपरा�ो क हिवषय म चोरी क हिवषय म

378. चोरी--जो कोई हिकसी वयलि2 क कबज म स, उस वयलि2 की सममहित क हिबना, कोई जगम समपभितत बईमानी स � �न का आशय र�त हए (� समपभितत ऐस �न क लि�ए �Tाता �, (� चोरी करता �, य� क�ा जाता � ।

सपषटीकरण 1--जब तक कोई (सत भबदध र�ती �, जगम समपभितत न �ोन स चोरी का हि(षय न�ी �ोती ; हिकनत जयो �ी (� भधिम स पथक की जाती � (� चोरी का हि(षय �ोन योगय �ो जाती � ।

सपषटीकरण 2--�Tाना, जो उसी काय. दवारा हिकया गया � जिजसस पथककरण हिकया गया �, चोरी �ो सकगा । सपषटीकरण 3--कोई वयलि2 हिकसी चीज का �Tाना कारिरत करता �, य� क�ा जाता � जब (� उस बाधा को

�Tाता � जो उस चीज को �Tान स रोक हए �ो या जब (� उस चीज को हिकसी दसरी चीज स पथक करता � तथा जब (� (ासत( म उस �Tाता � ।

सपषटीकरण 4--(� वयलि2 जो हिकसी साधन दवारा हिकसी जी(जनत का �Tाना कारिरत करता �, उस जी(जनत को �Tाता �, य� क�ा जाता � ; और य� क�ा जाता � हिक (� ऐसी �र एक चीज को �Tाता � जो इस परकार उतपनन की गई गहित क परिरणामस(रप उस जी(जनत दवारा �Tाई जाती � ।

सपषटीकरण 5--परिरभाषीा म (रणिणत सपभितत अभिभवय2 या हि((भिकषत �ो सकती �, और (� या तो कबजा र�न (ा� वयलि2 दवारा, या हिकसी ऐस वयलि2 दवारा, जो उस परयोजन क लि�ए अभिभवय2 या हि((भिकषत पराधिधकार र�ता �, दी जा सकती � ।

1. 1955 क अधिधहिनयम स0 26 की धारा 117 और अनसची दवारा (1-1-1956 स) “आजी(न हिन(ा.सन” क सथान पर परहितसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 73

दषटात (क) य की सममहित क हिबना य क कबज म स एक (कष बईमानी स �न क आशय स य की भधिम पर �ग हए उस (कष को क काT

डा�ता � । य�ा, जयोहि� क न इस परकार �न क लि�ए उस (कष को पथक हिकया, उसन चोरी की । (�) क अपनी जब म कततो क लि�ए ��चान (ा�ी (सत र�ता �, और इस परकार य क कततो को अपन पीछ च�न क लि�ए उतपररिरत

करता � । य�ा, यटिद क का आशय य की सममहित क हिबना य क कबज म स उस कतत को बईमानी स �ना �ो, तो जयो�ी य क कतत क क पीछ च�ना परारभ हिकया, क न चोरी की ।

(ग) मलया(ान (सत की पTी � जात हए एक ब� क को धिम�ता � । (� उस ब� को इसलि�ए एक �ास टिदशा म �ाकता � हिक ( मलय(ान (सतए बईमानी स � सक । जयो�ी उस ब� न गहितमान �ोना परारभभ हिकया, क न मलय(ान (सतए चोरी की ।

(घ) क, जो य का स(क � जिजस य न अपनी प�T की द�र� नयसत कर दी �, य की सममहित क हिबना प�T को �कर बईमानी स भाग गया । क न चोरी की ।

(ङ) य यातरा को जात समय अपनी प�T �ौTकर आन तक, क को, जो एक भाणडागारिरक �, नयसत कर दता � । क उस प�T को एक सनार क पास � जाता � और (� प�T बच दता � । य�ा (� प�T य क कबज म न�ी थी, इसलि�ए (� य क कबज म स न�ी �ी जा सकती थी और क न चोरी न�ी की �, चा� उसन आपराधिधक नयासभग हिकया �ो ।

(च) जिजस ग� पर य का अधिधभोग � उसक मज पर य की अगठी क को धिम�ती � । य�ा, (� अगठी य क कबज म �, और यटिद क उसको बईमानी स �Tाता �, तो (� चोरी करता � ।

(छ) क को राजमाग. पर पOी हई अगठी धिम�ती �, जो हिकसी वयलि2 क कबज म न�ी � । क न उसक � �न स चोरी न�ी की �, भ� �ी उसन सपभितत का आपराधिधक दरवि(हिनयोग हिकया �ो ।

(ज) य क घर म मज पर पOी हई य की अगठी क द�ता � । त�ाशी और पता �गान क भय स उस अगठी का तरत दरवि(हिनयोग करन का सा�स न करत हए क उस अगठी को ऐस सथान पर, ज�ा स उसका य को कभी भी धिम�ना अहित अनधिधसमभावय �, इस आशय स लिछपा दता � हिक लिछपान क सथान स उस उस समय � � और बच द जबहिक उसका �ोया जाना याद न र� । य�ा, क न उस अगठी को परथम बार �Tात समय चोरी की � ।

(झ) य को, जो एक जौ�री �, क अपनी घOी समय ठीक करन क लि�ए परिरदतत करता � । य उसको अपनी दकान पर � जाता � । क, जिजस पर उस जौ�री का, कोई ऐसा तरऐण न�ी �, जिजसक लि�ए हिक (� जौ�री उस घOी को परहितभहित क रप म हि(धिधप(.क रोक सक, �� तौर पर उस दकान म घसता �, य क �ाथ स अपनी घOी ब�प(.क � �ता �, और उसको � जाता � । य�ा क न भ� �ी आपराधिधक अहितचार और �म�ा हिकया �ो, उसन चोरी न�ी की �, कयोहिक जो कछ भी उसन हिकया बईमानी स न�ी हिकया ।

(ञ) यटिद उस घOी की मरममत क सबध म य को क स धन शोघय �, और यटिद य उस घOी को उस तरऐण की परहितभहित क रप हि(धिधप(.क र� सकता � और क उस घOी को य क कबज म स इस आशय स � �ता � हिक य को उसक तरऐण की परहितभहित रप उस सपभितत स (लिचत कर द तो उसन चोरी की � कयोहिक (� उस बईमानी स �ता � ।

(T) और यटिद क अपनी घOी य क पास पणयम करन क बाद घOी क बद� लि�ए गए तरऐण को चकाए हिबना उस य क कबज म स य की सममभितत क हिबना � �ता �, तो उसन चोरी की �, यदयहिप (� घOी उसकी अपनी �ी सपभितत �, कयोहिक (� उसको बईमानी स �ता � ।

(ठ) क एक (सत को उस समय तक र� �न क आशय स जब तक हिक उसक परतया(.तन क लि�ए परसकार क रप म उस य स धन अभिभपरापत न �ो जाए, य की सपभितत क हिबना य क कबज म स �ता � । य�ा क बईमानी स �ता �, इसलि�ए, क न चोरी की ।

(ड) क, जो य का धिमतर �, य की अनपणडिसथहित म य क पसतका�य म जाता �, और य की अभिभवय2 सममहित क हिबना एक पसतक क(� पढन क लि�ए और (ापस करन क आशय स � जाता � । य�ा य� अधिधसभभावय � हिक क न य� हि(चार हिकया �ो हिक पसतक उपयोग म �ान क लि�ए उसको य की हि((भिकषत सममहित परापत �, यटिद क का य� हि(चार था, तो क न चोरी न�ी की � ।

(ढ) य की पतनी स क �रात मागता � । (� क को धन, भोजन और कपO दती � जिजनको क जानता � हिक ( उसक पहित य क � । य�ा, य� अधिधसभभावय � हिक क का य� हि(चार �ो हिक य की पतनी को भिभकषा दन का पराधिधकार � । यटिद क का य� हि(चार था, तो क न चोरी न�ी की � ।

(ण) क, य की पतनी का जार � । (� क को एक मलय(ान सपभितत दती � जिजसक सबध म क य� जानता � हिक (� उसक पहित य की �, और (� ऐसी सपभितत �, जिजसको दन का पराधिधकार उस य स परापत न�ी � । यटिद क उस सपभितत को बईमानी स �ता �, तो (� चोरी करता � ।

(त) य की सपभितत को अपनी स(य की सपभितत �ोन का सदभा(प(.क हि(शवास करत हए ख क कबज म स उस सपभितत को क � �ता � । य�ा क बईमानी स न�ी �ता, इसलि�ए (� चोरी न�ी करता ।

379. चोरी क धिलए दड--जो कोई चोरी करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

380. हि�वास-ग� आटिद म चोरी--जो कोई ऐस हिकसी हिनमा.ण, तमब या ज�यान म चोरी करगा, जो हिनमा.ण, तमब या ज�यान मान( हिन(ास क रप म, या सपभितत की अभिभरकषा क लि�ए उपयोग म आता �ो, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा, और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा । भारतीय दड सहि�ता, 1860 74

381. धिलहिपक या सवक दवारा सवामी क कबज म सपधिV की चोरी--जो कोई लि�हिपक या स(क �ोत हए, या लि�हिपक या स(क की �लिसयत म हिनयोजिजत �ोत हए, अपन मालि�क या हिनयो2ा क कबज की हिकसी सपभितत की चोरी करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।

382. चोरी कर� क धिलए मतय, उप�हित या अवरो� कारिरत कर� की तयारी क पशचात चोरी--जो कोई चोरी करन क लि�ए, या चोरी करन क पशचात हिनक� भागन क लि�ए, या चोरी दवारा �ी गई सपभितत को र� र�न क लि�ए, हिकसी वयलि2 की मतय, या उस उप�हित या उसका अ(रोध कारिरत करन की, या मतय का, उप�हित का या अ(रोध का भय कारिरत करन की तयारी करक चोरी करगा, (� कटिठन कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।

दषटात (क) य क कबज म की सपभितत पर क चोरी करता � और य� चोरी करत समय अपन पास अपन (सतरो क भीतर एक भरी हई हिपसतौ�

र�ता �, जिजस उसन य दवारा परहितरोध हिकए जान की दशा म य को उप�हित करन क लि�ए अपन पास र�ा था । क न इस धारा म परिरभाहिषत अपराध हिकया � ।

(�) क, य की जब काTता �, और ऐसा करन क लि�ए अपन कई सालिथयो को अपन पास इसलि�ए हिनय2 करता � हिक यटिद य य� समझ जाए हिक कया �ो र�ा � और परहितरोध कर, या क को पकOन का परयतन कर, तो ( य का अ(रोध कर । क न इस धारा म परिरभाहिषत अपराध हिकया � ।

उददाप� क हिवषय म 383. उददाप�--जो कोई हिकसी वयलि2 को स(य उस वयलि2 को या हिकसी अनय वयलि2 को कोई कषहित करन क भय म

साशय डा�ता �, और तदीदवारा इस परकार भय म डा� गए वयलि2 को, कोई सपभितत या मलय(ान परहितभहित या �सताकषरिरत या मदराहिकत कोई चीज, जिजस मलय(ान परहितभहित म परिर(रवितत हिकया जा सक, हिकसी वयलि2 को परिरदतत करन क लि�ए बईमानी स उतपररिरत करता �, (� “उददापन” करता � ।

दषटात (क) क य� धमकी दता � हिक यटिद य न उसको धन न�ी टिदया, तो (� य क बार म मान�ाहिनकारक अपमान�� परकालिशत करगा ।

अपन को धन दन क लि�ए (� इस परकार य को उतपररिरत करता � । क न उददापन हिकया � । (�) क, य को य� धमकी दता � हिक यटिद (� क को कछ धन दन क सबध म अपन आपको आबदध करन (ा�ा एक (चनपतर

�सताकषरिरत करक क को परिरदतत न�ी कर दता, तो (� य क लिशश को सदोष परिररोध म र�गा । य (चनपतर �सताकषरिरत करक परिरदतत कर दता � । क न उददापन हिकया � ।

ग) क य� धमकी दता � हिक यटिद य, ख को कछ उपज परिरदतत करान क लि�ए शासमिसतय2 बधपतर �सताकषरिरत न�ी करगा और ख को न दगा, तो (� य क �त को जोत डा�न क लि�ए �ठत भज दगा और तदीदवारा य को (� बधपतर �सताकषरिरत करन क लि�ए और परिरदतत करन क लि�ए उतपररिरत करता � । क न उददापन हिकया � ।

(घ) क, य को घोर उप�हित करन क भय म डा�कर बईमानी स य को उतपररिरत करता � हिक (� कोर कागज पर �सताकषर कर द या अपनी मदरा �गा द और उस क को परिरदतत कर द । य उस कागज पर �सताकषर करक उस क को परिरदतत कर दता � य�ा, इस परकार �सताकषरिरत कागज मलय(ान परहितभहित म परिर(रवितत हिकया जा सकता �, इसलि�ए क न उददापन हिकया � ।

384. उददाप� क धिलए दड--जो कोई उददापन करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

385. उददाप� कर� क धिलए हिकसी वयधिकत को कषहित क भय म डाल�ा--जो कोई उददापन करन क लि�ए हिकसी वयलि2 को हिकसी कषहित क पहचान क भय म डा�गा या भय म डा�न का परयतन करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

386. हिकसी वयधिकत को मतय या घोर उप�हित क भय म डालकर उददाप�--जो कोई हिकसी वयलि2 को स(य उसकी या हिकसी अनय वयलि2 की मतय या घोर उप�हित क भय म डा�कर उददापन करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

387. उददाप� कर� क धिलए हिकसी वयधिकत को मतय या घोर उप�हित क भय म डाल�ा--जो कोई उददापन करन क लि�ए हिकसी वयलि2 को स(य उसकी या हिकसी अनय वयलि2 की मतय या घोर उप�हित क भय म डा�गा या भय म डा�न का परयतन

करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा । भारतीय दड सहि�ता, 1860 75

388. मतय या आजीव� कारावास, आटिद स दड�ीय अपरा� का अशिभयोग लगा� की �मकी दकर उददाप�--जो कोई हिकसी वयलि2 को स(य उसक हि(रदध या हिकसी अनय वयलि2 क हि(रदध य� अभिभयोग �गान क भय म डा�कर हिक उसन कोई ऐसा अपराध हिकया �, या करन का परयतन हिकया �, जो मतय स या 1[आजी(न कारा(ास] स या ऐस कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दडनीय �, अथ(ा य� हिक उसन हिकसी अनय वयलि2 को ऐसा अपराध करन क लि�ए उतपररिरत करन का परयतन हिकया �, उददापन करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा, तथा यटिद (� अपराध ऐसा �ो जो इस सहि�ता की धारा 377 क अधीन दडनीय �, तो (� 1[आजी(न कारा(ास] स दहिडत हिकया जा सकगा ।

389. उददाप� कर� क धिलए हिकसी वयधिकत को अपरा� का अशिभयोग लगा� क भय म डाल�ा--जो कोई उददापन करन क लि�ए हिकसी वयलि2 को, स(य उसक हि(रदध या हिकसी अनय वयलि2 क हि(रदध य� अभिभयोग �गान का भय टिद��ाएगा या य� भय टिद��ान का परयतन करगा हिक उसन ऐसा अपराध हिकया �, या करन का परयतन हिकया �, जो मतय स या 1[आजी(न कारा(ास] स, या दस (ष. तक क कारा(ास स दणडनीय �, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ; तथा यटिद (� अपराध ऐसा �ो जो इस सहि�ता की धारा 377 क अधीन दडनीय �, तो (� 1[आजी(न कारा(ास] स दहिडत हिकया जा सकगा ।

लट और डकती क हिवषय म

390. लट--सब परकार की �T म या तो चोरी या उददापन �ोता � ।

चोरी कब लट �--चोरी “�T” �, यटिद उस चोरी को करन क लि�ए, या उस चोरी क करन म या उस चोरी दवारा अभिभपरापत समपभितत को � जान या � जान का परयतन करन म, अपराधी उस उददशय स स(चछया हिकसी वयलि2 की मतय, या उप�हित या उसका सदोष अ(रोध या ततका� मतय का, या ततका� उप�हित का, या ततका� सदोष अ(रोध का भय कारिरत करता या कारिरत करन का परयतन करता � ।

उददाप� कब लट �--उददापन “�T” �, यटिद अपराधी (� उददापन करत समय भय म डा� गए वयलि2 की उपणडिसथहित म �, और उस वयलि2 को स(य उसका या हिकसी अनय वयलि2 की ततका� मतय या ततका� उप�हित या ततका� सदोष अ(रोध क भय म डा�कर (� उददापन करता � और इस परकार भय म डा�कर इस परकार भय म डा� गए वयलि2 को उददापन की जान (ा�ी चीज उसी समय और (�ा �ी परिरदतत करन क लि�ए उतपररिरत करता � ।

सपषटीकरण -- अपराधी का उपणडिसथत �ोना क�ा जाता �, यटिद (� उस अनय वयलि2 को ततका� मतय क, ततका� उप�हित क, या ततका� सदोष अ(रोध क भय म डा�न क लि�ए पया.पत रप स हिनकT �ो ।

दषटात

(क) क, य को दबोच �ता �, और य क कपO म स य का धन और आभषण य की सममहित क हिबना कपTप(.क हिनका� �ता � । य�ा, क न चोरी की � और (� चोरी करन क लि�ए स(चछया य का सदोष अ(रोध कारिरत करता � । इसलि�ए क न �T की � ।

(�) क, य को राजमाग. पर धिम�ता �, एक हिपसतौ� टिद��ाता � और य की थ�ी मागता � । परिरणामस(रप य अपनी थ�ी द दता � । य�ा क न य को ततका� उप�हित का भय टिद��ाकर थ�ी उददाहिपत की � और उददापन करत समय (� उसकी उपणडिसथहित म � । अतः क न �T की � ।

(ग) क राजमाग. पर य और य क लिशश स धिम�ता � । क उस लिशश को पकO �ता � और य� धमकी दता � हिक यटिद य उसको अपनी थ�ी परिरदतत न�ी कर दता, तो (� उस लिशश को कगार स नीच c क दगा । परिरणामस(रप य अपनी थ�ी परिरदतत कर दता � । य�ा क न य को य� भय कारिरत करक हिक (� उस लिशश को, जो (�ा उपणडिसथत �, ततका� उप�हित करगा, य स उसकी थ�ी उददाहिपत की � । इसलि�ए क न य को �Tा � ।

(घ) क, य स य� क� कर, समपभितत अभिभपरापत करता � हिक “तम�ारा लिशश मरी Tो�ी क �ाथो म �, यटिद तम �मार पास दस �जार रपया न�ी भज दोग, तो (� मार डा�ा जाएगा ।” य� उददापन �, और इसी रप म दणडनीय � ; हिकनत य� �T न�ी �, जब तक हिक य को उसक लिशश की ततका� मतय क भय म न डा�ा जाए ।

391. डकती--जबहिक पाच या अधिधक वयलि2 सय2 �ोकर �T करत � या करन का परयतन करत � या ज�ा हिक ( वयलि2, जो सय2 �ोकर �T करत � या करन का परयतन करत � और ( वयलि2 जो उपणडिसथत � और ऐस �T क हिकए जान या

ऐस परयतन म मदद करत �, क� धिम�ाकर पाच या अधिधक �, तब �र वयलि2 जो इस परकार �T करता �, या उसका परयतन करता � या उसम मदद करता �, क�ा जाता � हिक (� “डकती” करता � ।

1 1955 क अधिधहिनयम स0 26 की धारा 117 और अनसची दवारा (1--1-1956 स) “आजी(न हिन(ा.सन” क सथान पर परहितसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 76

392. लट क धिलए दणड--जो कोई �T करगा, (� कटिठन कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा, और यटिद �T राजमाग. पर सया.सत और सय�दय क बीच की जाए, तो कारा(ास चौद� (ष. तक का �ो सकगा ।

393. लट कर� का परयत�--जो कोई �T करन का परयतन करगा, (� कटिठन कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।

394. लट कर� म सवचछया उप�हित कारिरत कर�ा--यटिद कोई वयलि2 �T करन म या �T का परयतन करन म स(चछया उप�हित कारिरत करगा, तो ऐसा वयलि2 और जो कोई अनय वयलि2 ऐसी �T करन म, या �T का परयतन करन म सय2 तौर पर सप2 �ोगा, (� 1[आजी(न कारा(ास] स या कटिठन कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।

395. डकती क धिलए दणड--जो कोई डकती करगा, (� 1[आजी(न कारा(ास] स, या कटिठन कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा । 396. �तया सहि�त डकती -- यटिद ऐस पाच या अधिधक वयलि2यो म स, जो सय2 �ोकर डकती कर र� �ो, कोई एक वयलि2 इस परकार डकती करन म �तया कर दगा, तो उन वयलि2यो म स �र वयलि2 मतय स, या 1[आजी(न कारा(ास] स, या कटिठन कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।

397. मतय या घोर उप�हित कारिरत कर� क परयत� क साथ लट या डकती--यटिद �T या डकती करत समय अपराधी हिकसी घातक आयध का उपयोग करगा, या हिकसी वयलि2 को घोर उप�हित कारिरत करगा, या हिकसी वयलि2 की मतय कारिरत करन या उस घोर उप�हित कारिरत करन का परयतन करगा, तो (� कारा(ास, जिजसस ऐसा अपराधी दणडिणडत हिकया जाएगा, सात (ष. स कम का न�ी �ोगा ।

398. घातक आय� स ससथि�त �ोकर लट या डकती कर� का परयत� -- यटिद �T या डकती करन का परयतन करत समय, अपराधी हिकसी घातक आयध स सणडि�त �ोगा, तो (� कारा(ास, जिजसस ऐसा अपराधी दणडिणडत हिकया जाएगा, सात (ष. स कम का न�ी �ोगा ।

399. डकती कर� क धिलए तयारी कर�ा--जो कोई डकती करन क लि�ए कोई तयारी करगा, (� कटिठन कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा, और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा । 400. डाकओ की टोली का �ो� क धिलए दणड--जो कोई इस अधिधहिनयम क पारिरत �ोन क पशचात हिकसी भी समय ऐस वयलि2यो की Tो�ी का �ोगा, जो अभयासतः डकती करन क परयोजन स स�य2 �ो, (� 1[आजी(न कारा(ास] स, या कटिठन कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।

401. चोरो की टोली का �ो� क धिलए दणड--जो कोई इस अधिधहिनयम क पारिरत �ोन क पशचात हिकसी भी समय ऐस वयलि2यो की हिकसी घमती-हिcरती या अनय Tो�ी का �ोगा जो, अभयासतः चोरी या �T करन क परयोजन स स�य2 �ो और (� Tो�ी ठगो या डाकओ की Tो�ी न �ो, (� कटिठन कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

402. डकती कर� क परयोज� स एकहितरत �ो�ा--जो कोई इस अधिधहिनयम क पारिरत �ोन क पशचात हिकसी भी समय डकती करन क परयोजन स एकहितरत पाच या अधिधक वयलि2यो म स एक �ोगा, (� कटिठन कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

समपधिV क आपराधि�क दरतिवहि�योग क हिवषय म 403. समपधिV का बईमा�ी स दरतिवहि�योग--जो कोई बईमानी स हिकसी जगम समपभितत का दरवि(हिनयोग करगा या उसको

अपन उपयोग क लि�ए सपरिर(रवितत कर �गा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

दषटात (क) क, य की समपभितत को उस समय जब हिक क उस समपभितत को �ता �, य� हि(शवास र�त हए हिक (� समपभितत उसी की �, य क

कबज म स सदभा(प(.क �ता � । क, चोरी का दोषीी न�ी � । हिकनत यटिद क अपनी भ� मा�म �ोन क पशचात उस समपभितत का बईमानी स अपन लि�ए हि(हिनयोग कर �ता �, तो (� इस धारा क अधीन अपराध का दोषीी � ।

1 1955 क अधिधहिनयम स0 26 की धारा 117 और अनसची दवारा (1-1-1956 स) “आजी(न हिन(ा.सन” क सथान पर परहितसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 77

(�) क, जो य का धिमतर �, य की अनपणडिसथहित म य क पसतका�य म जाता � और य की अभिभवय2 सममभितत क हिबना एक पसतक � जाता � । य�ा यटिद, क का य� हि(चार था हिक पढन क परयोजन क लि�ए पसतक �न की उसको य की हि((भिकषत सममहित परापत �, तो क न चोरी न�ी की � । हिकनत यटिद क बाद म उस पसतक को अपन cायद क लि�ए बच दता �, तो (� इस धारा क अधीन अपराध का दोषीी � ।

(ग) क और ख एक घोO क सय2 स(ामी � । क उस घोO को उपयोग म �ान क आशय स ख क कबज म स उस � जाता � । य�ा, क को उस घोO को उपयोग म �ान का अधिधकार �, इसलि�ए (� उसका बईमानी स दरवि(हिनयोग न�ी � । हिकनत यटिद क उस घोO को बच दता �, और समपण. आगम का अपन लि�ए हि(हिनयोग कर �ता � तो (� इस धारा क अधीन अपराध का दोषीी � ।

सपषटीकरण 1--क(� कछ समय क लि�ए बईमानी स दरवि(हिनयोग करना इस धारा क अथ. क अतग.त दरवि(हिनयोग � । दषटात

क को य का एक सरकारी (चनपतर धिम�ता �, जिजस पर हिनरक पषठाकन � । क, य� जानत हए हिक (� (चनपतर य का �, उस तरऐण क लि�ए परहितभहित क रप म बकार क पास इस आशय स हिगर(ी र� दता � हिक (� भहि(षय म उस य को परतया(रवितत कर दगा । क न इस धारा क अधीन अपराध हिकया � ।

सपषटीकरण 2---जिजस वयलि2 को ऐसी समपभितत पOी धिम� जाती �, जो हिकसी अनय वयलि2 क कबज म न�ी � और (� उसक स(ामी क लि�ए उसको सरभिकषत र�न या उसक स(ामी को उस परतया(रवितत करन क परयोजन स ऐसी समपभितत को �ता �, (� न तो बईमानी स उस �ता � और न बईमानी स उसका दरवि(हिनयोग करता �, और हिकसी अपराध का दोषीी न�ी �, हिकनत (� ऊपर परिरभाहिषत अपराध का दोषीी �, यटिद (� उसक स(ामी को जानत हए या �ोज हिनका�न क साधन र�त हए अथ(ा उसक स(ामी को �ोज हिनका�न और सचना दन क यलि2य2 साधन उपयोग म �ान और उसक स(ामी को उसकी माग करन को समथ. करन क लि�ए उस समपभितत की यलि2य2 समय तक र� र�न क प(. उसको अपन लि�ए हि(हिनयोजिजत कर �ता � ।

ऐसी दशा म यलि2य2 साधन कया �, या यलि2य2 समय कया �, य� तथय का परशन � । य� आ(शयक न�ी � हिक पान (ा�ा य� जानता �ो हिक समपभितत का स(ामी कौन � या य� हिक कोई हि(लिशषT वयलि2 उसका

स(ामी � । य� पया.पत � हिक उसको हि(हिनयोजिजत करत समय उस य� हि(शवास न�ी � हिक (� उसकी अपनी समपभितत �, या सदभा(प(.क य� हि(शवास � हिक उसका अस�ी स(ामी न�ी धिम� सकता ।

दषटात (क) क को राजमाग. पर एक रपया पडा धिम�ता � । य� न जानत हए हिक (� रपया हिकसका � क उस रपए को उठा �ता � । य�ा क

न इस धारा म परिरभाहिषत अपराध न�ी हिकया � । (�) क को सOक पर एक लिचटठी पOी धिम�ती �, जिजसम एक बक नोT � । उस लिचटठी म टिदए हए हिनदश और हि(षय (सत स उस य�

जञात �ो जाता � हिक (� नोT हिकसका � । (� उस नोT का हि(हिनयोग कर �ता � । (� इस धारा क अधीन अपराध का दोषीी � । (ग) (ा�क-दय एक चक क को पOा धिम�ता � । (� उस वयलि2 क सबध म जिजसका चक �ोया �, कोई अनमान न�ी �गा सकता,

हिकनत उस चक पर उस वयलि2 का नाम लि��ा �, जिजसन (� चक लि��ा � । क य� जानता � हिक (� वयलि2 क को उस वयलि2 का पता बता सकता � जिजसक पकष म (� चक लि��ा गया था, क उसक स(ामी को �ोजन का परयतन हिकए हिबना उस चक का हि(हिनयोग कर �ता � । (� इस धारा क अधीन अपराध का दोषीी � ।

(घ) क द�ता � हिक य की थ�ी, जिजसम धन �, य स हिगर गई � । क (� थ�ी य को परतया(रवितत करन क आशय स उठा �ता � । हिकनत ततपशचात उस अपन उपयोग क लि�ए हि(हिनयोजिजत कर �ता � । क न इस धारा क अधीन अपराध हिकया � ।

(ङ) क को एक थ�ी, जिजसम धन �, पOी धिम�ती � । (� न�ी जानता � हिक (� हिकसकी � । उसक पशचात उस य� पता च� जाता � हिक (� य की �, और (� उस अपन उपयोग क लि�ए हि(हिनय2 कर �ता � । क इस धारा क अधीन अपराध का दोषीी � ।

(च) क को एक मलय(ान अगठी पOी धिम�ती � । (� न�ी जानता � हिक (� हिकसकी � । क उसक स(ामी को �ोज हिनका�न का परयतन हिकए हिबना उस तरनत बच दता � । क इस धारा क अधीन अपराध का दोषीी � ।

404. ऐसी समपधिV का बईमा�ी स दरतिवहि�योग जो मत वयधिकत की मतय क समय उसक कबज म थी--जो कोई हिकसी समपभितत को, य� जानत हए हिक ऐसी समपभितत हिकसी वयलि2 की मतय क समय उस मत वयलि2 क कबज म थी, और तब स हिकसी वयलि2 क कबज म न�ी र�ी �, जो ऐस कबज का (ध रप स �कदार �, बईमानी स दरवि(हिनयोजिजत करगा या अपन उपयोग म सपरिर(रवितत कर �गा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा, और यटिद (� अपराधी, ऐस वयलि2 की मतय क समय लि�हिपक या स(क क रप म उसक दवारा हिनयोजिजत था, तो कारा(ास सात (ष. तक का �ो सकगा ।

दषटात य क कबज म cनxचर और धन था । (� मर जाता � । उसका स(क क, उस धन क हिकसी ऐस वयलि2 क कबज म आन स प(., जो

ऐस कबज का �कदार � बईमानी स उसका दरवि(हिनयोग करता � । क न इस धारा म परिरभाहिषत अपराध हिकया � ।

आपराधि�क नयासभग क हिवषय म भारतीय दड सहि�ता, 1860 78

405. आपराधि�क नयासभग--जो कोई समपभितत या समपभितत पर कोई भी अ�तयार हिकसी परकार अपन को नयसत हिकए जान पर उस समपभितत का बईमानी स दरवि(हिनयोग कर �ता � या उस अपन उपयोग म सपरिर(रवितत कर �ता � या जिजस परकार ऐसा नयास हिन(.�न हिकया जाना �, उसको हि(हि�त करन (ा�ी हि(धिध क हिकसी हिनदश का, या ऐस नयास क हिन(.�न क बार म उसक दवारा की गई हिकसी अभिभवय2 या हि((भिकषत (घ सहि(दा का अहितकरमण करक बईमानी स उस समपभितत का उपयोग या वययन करता �, या जानबझकर हिकसी अनय वयलि2 का ऐसा करना स�न करता �, (� “आपराधिधक नयास भग” करता � ।

1[2[सपषटीकरण 1ट--जो वयलि2 3[हिकसी सथापन का हिनयोजक �ोत हए, चा� (� सथापन कम.चारी भहि(षय-हिनधिध और परकीण. उपबध अधिधहिनयम, 1952 (1952 का 17) की धारा 17 क अधीन छT परापत � या न�ीT, ततसमय पर(तत हिकसी हि(धिध दवारा सथाहिपत भहि(षय-हिनधिध या कTब पशन हिनधिध म जमा करन क लि�ए कम.चारी-अभिभदाय की कTौती कम.चारी को सदय मजदरी म स करता � उसक बार म य� समझा जाएगा हिक उसक दवारा इस परकार कTौती हिकए गए अभिभदाय की रकम उस नयसत कर दी गई � और यटिद (� उ2 हिनधिध म ऐस अभिभदाय का सदाय करन म, उ2 हि(धिध का अहितकरमण करक वयहितकरम करगा तो उसक बार म य� समझा जाएगा हिक उसन यथाप(�2 हि(धिध क हिकसी हिनदश का अहितकरमण करक उ2 अभिभदाय की रकम का बईमानी स उपयोग हिकया � ।]

4[सपषटीकरण 2--जो वयलि2, हिनयोजक �ोत हए, कम.चारी राजय बीमा अधिधहिनयम, 1948 (1948 का 34) क अधीन सथाहिपत कम.चारी राजय बीमा हिनगम दवारा धारिरत और शालिसत कम.चारी राजय बीमा हिनगम हिनधिध म जमा करन क लि�ए कम.चारी को सदय मजदरी म स कम.चारी-अभिभदाय की कTौती करता �, उसक बार म य� समझा जाएगा हिक उस अभिभदाय की (� रकम नयसत कर दी गई �, जिजसकी उसन इस परकार कTौती की � और यटिद (� उ2 हिनधिध म ऐस अभिभदाय क सदाय करन म, उ2 अधिधहिनयम का अहितकरमण करक, वयहितकरम करता �, तो उसक बार म य� समझा जाएगा हिक उसन यथाप(�2 हि(धिध क हिकसी हिनदश का अहितकरमण करक उ2 अभिभदाय की रकम का बईमानी स उपयोग हिकया � ।]

दषटात

(क) क एक मत वयलि2 की हि(� का हिनषपादक �ोत हए उस हि(धिध की, जो चीजबसत को हि(� क अनसार हि(भाजिजत करन क लि�ए उसको हिनदश दती �, बईमानी स अ(जञा करता �, और उस चीजबसत को अपन उपयोग क लि�ए हि(हिनय2 कर �ता � । क न आपराधिधक नयासभग हिकया � ।

(�) क भाडागारिरक � । य यातरा को जात हए अपना cनxचर क क पास उस सहि(दा क अधीन नयसत कर जाता � हिक (� भाडागार क कमर क लि�ए ठ�राई गई रालिश क द टिदए जान पर �ौTा टिदया जाएगा । क उस मा� को बईमानी स बच दता � । क न आपराधिधक नयासभग हिकया � ।

(ग) क, जो क�कतता म हिन(ास करता �, य का, जो टिदल�ी म हिन(ास करता � अभिभकता. � । क और य क बीच य� अभिभवय2 या हि((भिकषत सहि(दा � हिक य दवारा क को परहिषत सब रालिशया क दवारा य क हिनदश क अनसार हि(हिनहि�त की जाएगी । य, क को इन हिनदशो क साथ एक �ा� रपए भजता � हिक उसको कपनी पतरो म हि(हिनहि�त हिकया जाए । क उन हिनदशो की बईमानी स अ(जञा करता � और उस धन को अपन कारबार क उपयोग म � आता � । क न आपराधिधक नयासभग हिकया � ।

(घ) किकत यटिद हिपछ� दषTात म क बईमानी स न�ी परतयत सदभा(प(.क य� हि(शवास करत हए हिक बक आc बगा� म अश धारण करना य क लि�ए अधिधक cायदापरद �ोगा, य क हिनदशो की अ(जञा करता �, और कपनी पतर �रीदन क बजाए य क लि�ए बक आc बगा� क अश �रीदता �, तो यदयहिप य को �ाहिन �ो जाए और उस �ाहिन क कारण, (� क क हि(रदध लिसहि(� काय.(ा�ी करन का �कदार �ो, तथाहिप, यतः क न, बईमानी स काय. न�ी हिकया �, उसन आपराधिधक नयासभग न�ी हिकया � ।

(ङ) एक राजस( आहिcसर, क क पास �ोक धन नयसत हिकया गया � और (� उस सब धन को, जो उसक पास नयसत हिकया गया �, एक हिनभिशचत �जान म जमा कर दन क लि�ए या तो हि(धिध दवारा हिनदzलिशत � या सरकार क साथ अभिभवय2 या हि((भिकषत सहि(दा दवारा आबदध � । क उस धन को बईमानी स हि(हिनयोजिजत कर �ता � । क न आपराधिधक नयासभग हिकया � ।

(च) भधिम स या ज� स � जान क लि�ए य न क क पास, जो एक (ा�क �, सपभितत नयसत की � । क उस सपभितत का बईमानी स दरवि(हिनयोग कर �ता � । क न आपराधिधक नयासभग हिकया � ।

406. आपराधि�क नयासभग क धिलए दड--जो कोई आपराधिधक नयासभग करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

407. वा�क, आटिद दवारा आपराधि�क नयासभग--जो कोई (ा�क, घाT(ा�, या भाडागारिरक क रप म अपन पास सपभितत नयसत हिकए जान पर ऐसी सपभितत क हि(षय म आपराधिधक नयासभग करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा । 1 1973 क अधिधहिनयम स0 40 की धारा 9 दवारा (1-11-1973 स) अतःसथाहिपत ।

2 1975 क अधिधहिनयम स0 38 की धारा 9 दवारा (1-9-1975 स) सपषTीकरण को सपषTीकरण 1 क रप म पनसखयाहिकत हिकया गया । 3 1988 क अधिधहिनयम स0 33 की धारा 27 दवारा (1-8-1988 स) “हिनयोजक �ोत हए” क सथान पर परहितसथाहिपत ।

4 1975 क अधिधहिनयम स0 38 की धारा 9 दवारा (1-9-1975 स) अतःसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 79

408. धिलहिपक या सवक दवारा आपराधि�क नयासभग--जो कोई लि�हिपक या स(क �ोत हए, या लि�हिपक या स(क क रप म हिनयोजिजत �ोत हए, और इस नात हिकसी परकार सपभितत, या समभितत पर कोई भी अखतयार अपन म नयसत �ोत हए, उस सपभितत क हि(षय म आपराधिधक नयासभग करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा । 409. लोक सवक दवारा या बकार, वयापारी या अशिभकता# दवारा आपराधि�क नयासभग--जो कोई �ोक स(क क नात अथ(ा बकार, वयापारी, cकTर, द�ा�, अTनx या अभिभकता. क रप म अपन कारबार क अनकरम म हिकसी परकार सपभितत या सपभितत पर कोई भी अखतयार अपन को नयसत �ोत हए उस सपभितत क हि(षय म आपराधिधक नयासभग करगा, (� 1[आजी(न कारा(ास] स, या दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

चराई हई सपधिV परापत कर� क हिवषय म 410. चराई हई सपधिV--(� सपभितत, जिजसका कबजा चोरी दवारा, या उददापन दवारा या �T दवारा अतरिरत हिकया गया �,

और (� सपभितत, जिजसका आपराधिधक दरवि(हिनयोग हिकया गया �, या जिजसक हि(षय म आपराधिधक नयासभग 2।।। हिकया गया �, चराई हई “सपभितत” क��ाती �, 3[चा� (� अतरण या (� दरवि(हिनयोग या नयासभग 4[भारत] क भीतर हिकया गया �ो या बा�र] । किकत यटिद ऐसी सपभितत ततपशचात ऐस वयलि2 क कबज म पहच जाती �, जो उसक कबज क लि�ए (ध रप स �कदार �, तो (� चराई हई सपभितत न�ी र� जाती ।

411. चराई हई सपधिV को बईमा�ी स परापत कर�ा--जो कोई हिकसी चराई हई सपभितत को, य� जानत हए या हि(शवास करन का कारण र�त हए हिक (� चराई हई सपभितत �, बईमानी स परापत करगा या र�गा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा । 412. ऐसी सपधिV को बईमा�ी स परापत कर�ा जो डकती कर� म चराई गई �--जो कोई ऐसी चराई गई सपभितत को बईमानी स परापत करगा या र� र�गा, जिजसक कबज क हि(षय म (� य� जानता � या हि(शवास करन का कारण र�ता � हिक (� डकती दवारा अतरिरत की गई �, अथ(ा हिकसी ऐस वयलि2 स, जिजसक सबध म (� य� जानता � या हि(शवास करन का कारण र�ता � हिक (� डाकओ की Tो�ी का � या र�ा �, ऐसी सपभितत, जिजसक हि(षय म (� य� जानता � या हि(शवास करन का कारण र�ता � हिक (� चराई हई �, बईमानी स परापत करगा, (� 1[आजी(न कारा(ास] स, या कटिठन कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा, और जमा.न स भी, दडनीय �ोगा । 413. चराई हई सपधिV का अभयासतः वयापार कर�ा--जो कोई ऐसी सपभितत, जिजसक सबध म (� य� जानता �, या हि(शवास करन का कारण र�ता � हिक (� चराई हई सपभितत �, अभयासतः परापत करगा, या अभयासतः उसम वय(�ार करगा, (� 1[आजी(न कारा(ास] स, या दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

414. चराई हई सपधिV धिछपा� म स�ायता कर�ा--जो कोई ऐसी सपभितत को लिछपान म, या वययहिनत करन म, या इधर उधर करन म स(चछया स�ायता करगा, जिजसक हि(षय म (� य� जानता � या हि(शवास करन का कारण र�ता � हिक (� चराई हई सपभितत �, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध 3 (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकसा जाएगा ।

छल क हिवषय म 415. छल--जो कोई हिकसी वयलि2 स पर(चना कर उस वयलि2 को, जिजस इस परकार पर(लिचत हिकया गया �, कपTप(. या

बईमानी स उतपररिरत करता � हिक (� कोई सपभितत हिकसी वयलि2 को परिरदतत कर द, या य� सममहित द द हिक कोई वयलि2 हिकसी सपभितत को र� र� या साशय उस वयलि2 को, जिजस इस परकार पर(लिचत हिकया गया �, उतपररिरत करता � हिक (� ऐसा कोई काय. कर, या करन का �ोप कर, जिजस (� यटिद उस इस परकार पर(लिचत न हिकया गया �ोता तो, न करता, या करन का �ोप न करता, और जिजस काय. या �ोप स उस वयलि2 को शारीरिरक, मानलिसक, खयाहित सबधी या सामपभिततक नकसान या अप�ाहिन कारिरत �ोती �, या कारिरत �ोनी सभभावय �, (� “छ�” करता �, य� क�ा जाता � ।

सपषटीकरण--तथयो का बईमानी स लिछपाना इस धारा क अथ. क अतग.त पर(चना � । दषटात

1 1955 क अधिधहिनयम स0 26 की धारा 117 और अनसची दवारा (1-1-1956) “आजी(न हिन(ा.सन” क सथान पर परहितसथाहिपत । 2 1891 क अधिधहिनयम स0 12 की धारा 2 और अनसची 1 और 1882 क अधिधहिनयम स0 8 की धारा 9 दवारा “का अपराध” शबद हिनरलिसत । 3 1882 क अधिधहिनयम स0 8 की धारा 9 दवारा अतःसथाहिपत । 4 “हिRटिTश भारत” शबद अनकरमशः भारतीय स(ततरता (कनदरीय अधिधहिनयम तथा अधयादश अनक�न) आदश, 1948, हि(धिध अनक�न आदश, 1950

और 1951 क अधिधहिनयम स0 3 को धारा 3 और अनसची दवारा परहितसथाहिपत हिकए गए � । भारतीय दड सहि�ता, 1860 80

(क) क लिसहि(� स(ा म �ोन का धिमथया अपदश करक साशय य स पर(चना करता �, और इस परकार बईमानी स य को उतपररिरत करता � हिक (� उस उधार पर मा� � �न द, जिजसका मलय चकान का उसका इरादा न�ी � । क छ� करता � ।

(�) क एक (सत पर कTकत लिचहन बनाकर य स साशय पर(चना करक उस य� हि(शवास कराता � हिक (� (सत हिकसी परलिसदध हि(हिनमा.ता दवारा बनाई गई �, और इस परकार उस (सत का करय करन आर उसका मलय चकान क लि�ए य को बईमानी स उतपररिरत करता � । क छ� करता � ।

(ग) क, य को हिकसी (सत का, नक�ी समप� टिद�ा�ाकर य स साशय पर(चना करक उस य� हि(शवास कराता � हिक (� (सत समप� क अनरप �, और तदद(ारा उस (सत को �रीदन और उसका मलय चकान क लि�ए य को बईमानी स उतपररिरत करता � । क छ� करता � ।

(घ) क हिकसी (सत का मलय दन म ऐसी कोठी पर हडी करक, ज�ा क का कोई धन जमा न�ी �, और जिजसक दवारा क को हडी का अनादर हिकए जान की परतयाशा �, साशय य स पर(चना करता �, और तदद(ारा बईमानी स य को उतपररिरत करता � हिक (� (सत परिरदतत कर द जिजसका मलय चकान का उसका आशय न�ी � । क छ� करता � ।

(ङ) क ऐस नगो को, जिजनको (� जानता � ( �ीर न�ी �, �ीरो क रप म हिगर(ी र�कर य स साशय पर(चना करता �, और तदद(ारा धन उधार दन क लि�ए य को बईमानी स उतपररिरत करता � । क छ� करता � ।

(च) क साशय पर(चना करक य को य� हि(शवास कराता � हिक क को जो धन य उधार दगा उस (� चका दगा, और तदद(ारा बईमानी स य को उतपररिरत करता � हिक (� उस धन उधार द द, जबहिक क का आशय उस धन को चकान का न�ी � । क छ� करता � ।

(छ) क, य स साशय पर(चना करक य� हि(शवास टिद�ाता � हिक क का इरादा य को नी� को पौधो का एक हिनभिशचत परिरमाण परिरदतत करन का �, जिजसको परिरदतत करन का उसका आशय न�ी �, और तदद(ारा ऐस परिरदान क हि(शवास पर अहिगरम धन दन क लि�ए य को बईमानी स उतपररिरत करता � । क छ� करता � । यटिद क धन अभिभपरापत करत समय नी� परिरदतत करन का आशय र�ता �ो, और उसक पशचात अपनी सहि(दा भग कर द और (� उस परिरदतत न कर, तो (� छ� न�ी करता �, किकत सहि(दा भग करन क लि�ए क(� लिसहि(� काय.(ा�ी क दाधियत( क अधीन � ।

(ज) क साशय पर(चना करक य को य� हि(शवास टिद�ाता � हिक क न य क साथ की गई सहि(दा क अपन भाग का पा�न कर टिदया �, जब हिक उसका पा�न उसन न�ी हिकया �, और तदद(ारा य को बईमानी स उतपररिरत करता � हिक (� धन द । क छ� करता � ।

(झ) क, ख को एक सपदा बचता � और �सतातरिरत करता � । क य� जानत हए हिक ऐस हि(करय क परिरणामस(रप उस सपभितत पर उसका कोई अधिधकार न�ी �, ख को हिकए गए प(. हि(करय और �सतातरण क तथय को परकT न करत हए उस य क �ाथ बच दता � या बधक र� दता �, और य स हि(करय या बधक धन परापत कर �ता � । क छ� करता � ।

416. परहितरपण दवारा छल--कोई वयलि2 “परहितरपण दवारा छ� करता �”, य� तब क�ा जाता �, जब (� य� अपदश करक हिक (� कोई अनय वयलि2 �, या एक वयलि2 को हिकसी अनय वयलि2 क रप म जानत हए परहितसथाहिपत करक, या य� वयपटिदषT करक हिक (� या कोई अनय वयलि2, कोई ऐसा वयलि2 �, जो (सततः उसस या अनय वयलि2 स भिभनन �, छ� करता � ।

सपषटीकरण--य� अपराध �ो जाता � चा� (� वयलि2 जिजसका परहितरपण हिकया गया �, (ासतहि(क वयलि2 �ो या कालपहिनक ।

दषटात (क) क उसी नाम का अमक धन(ान बकार � इस अपदश दवारा छ� करता � । क परहितरपण दवारा छ� करता � । (�) ख, जिजसकी मतय �ो चकी �, �ोन का अपदश करन दवारा क छ� करता � । क परहितरपण दवारा छ� करता � । 417. छल क धिलए दड--जो कोई छ� करगा, दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध एक (ष. तक की

�ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा । 418. इस जञा� क साथ छल कर�ा हिक उस वयधिकत को सदोष �ाहि� �ो सकती � जिजसका हि�त सरशिकषत रख� क

धिलए अपरा�ी आबदध �--जो कोई इस जञान क साथ छ� करगा हिक य� समभावय � हिक (� तदद(ारा उस वयलि2 को सदोष �ाहिन पहचाए, जिजसका हि�त उस सवय(�ार म जिजसस (� छ� सबधिधत �, सरभिकषत र�न क लि�ए (� या तो हि(धिध दवारा, या (ध सहि(दा दवारा, आबदध था, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

419. परहितरपण दवारा छल क धिलए दड--जो कोई परहितरपण दवारा छ� करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

420. छल कर�ा और सपधिV परिरदV कर� क धिलए बईमा�ी स उतपररिरत कर�ा-- जो कोई छ� करगा, और तदद(ारा उस वयलि2 को, जिजस पर(लिचत हिकया गया �, बईमानी स उतपररिरत करगा हिक (� कोई सपभितत हिकसी वयलि2 को परिरदतत कर द, या हिकसी भी मलय(ान परहितभहित को, या हिकसी चीज को, जो �सताकषरिरत या मदराहिकत �, और जो मलय(ान परहितभहित म सपरिर(रवितत हिकए जान योगय �, पण.तः या अशतः रच द, परिर(रवितत कर द, या नषT कर द, (� दोनो म स हिकसी भाहित क

कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा । भारतीय दड सहि�ता, 1860 81

421. ल�दारो म हिवतरण हि�वारिरत कर� क धिलए सपधिV का बईमा�ी स या कपटपव#क अपसारण या धिछपा�ा--जो कोई हिकसी सपभितत का अपन �नदारो या हिकसी अनय वयलि2 क �नदारो क बीच हि(धिध क अनसार हि(तरिरत हिकया जाना तदद(ारा हिन(ारिरत करन क आशय स, या तदद(ारा समभावयतः हिन(ारिरत करगा य� जानत हए उस सपभितत को बईमानी स या कपTप(.क अपसारिरत करगा या लिछपाएगा या हिकसी वयलि2 को परिरदतत करगा या पया.पत परहितc� क हिबना हिकसी वयलि2 को अतरिरत करगा या कराएगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

422. तरऐण को ल�दारो क धिलए उपलबध �ो� स बईमा�ी स या कपटपव#क हि�वारिरत कर�ा--जो कोई हिकसी तरऐण का या माग का, जो स(य उसको या हिकसी अनय वयलि2 को शोधय �ो, अपन या ऐस अनय वयलि2 क तरऐणो को चकान क लि�ए हि(धिध क अनसार उप�भय �ोना कपTप(.क या बईमानी स हिन(ारिरत करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

423. अनतरण क ऐस हिवलख का, जिजसम परहितफल क सब� म बरिमथया कथ� अनतरतिवषट �, बईमा�ी स या कपटपव#क हि�षपाद�--जो कोई बईमानी स या कपTप(.क हिकसी ऐस हि(�� या लि��त को �सताकषरिरत करगा, हिनषपाटिदत करगा, या उसका पकषकार बनगा, जिजसस हिकसी समपभितत का, या उसम क हिकसी हि�त का, अतरिरत हिकया जाना, या हिकसी भार क अधीन हिकया जाना, तातपरयियत �, और जिजसम ऐस अतरण या भार क परहितc� स सबधिधत, या उस वयलि2 या उन वयलि2यो स सबधिधत, जिजसक या जिजनक उपयोग या cायद क लि�ए उसका पर(रवितत �ोना (ासत( म आशधियत �, कोई धिमथया कथन अनतरवि(षT �, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

424. समपधिV का बईमा�ी स या कपटपव#क अपसारण या धिछपाया जा�ा -- जो कोई बईमानी स या कपTप(.क अपनी या हिकसी अनय वयलि2 की हिकसी समपभितत को लिछपाएगा या अपसारिरत करगा, या उसक लिछपाए जान म या अपसारिरत हिकए जान म बईमानी स या कपTप(.क स�ायता करगा, या बईमानी स हिकसी ऐसी माग या दा( को, जिजसका (� �कदार �, छोO दगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

425. रिरहि�--जो काई इस आशय स, या य� समभावय जानत हए हिक, (� �ोक को या हिकसी वयलि2 को सदोष �ाहिन या नकसान कारिरत कर, हिकसी समपभितत का नाश या हिकसी समपभितत म या उसकी णडिसथहित म ऐसी तबदी�ी कारिरत करता �, जिजसस उसका मलय या उपयोहिगता नषT या कम �ो जाती �, या उस पर कषहितकारक परभा( पOता �, (� “रिरधि�” करता � ।

सपषटीकरण 1--रिरधि� क अपराध क लि�ए य� आ(शयक न�ी � हिक अपराधी कषहितगरसत या नषT समपभितत क स(ामी को �ाहिन या नकसान कारिरत करन का आशय र� । य� पया.पत � हिक उसका य� आशय � या (� य� समभावय जानता � हिक (� हिकसी समपभितत को कषहित करक हिकसी वयलि2 को, चा� (� समपभितत उस वयलि2 की �ो या न�ी, सदोष �ाहिन या नकसान कारिरत कर ।

सपषटीकरण 2--ऐसी समपभितत पर परभा( डा�न (ा� काय. दवारा, जो उस काय. को करन (ा� वयलि2 की �ो, या सय2 रप स उस वयलि2 की और अनय वयलि2यो की �ो, रिरधि� की जा सकगी ।

दषटात (क) य की सदोष �ाहिन कारिरत करन क आशय स य की मलय(ान परहितभहित को क स(चछया ज�ा दता �। क न रिरधि� की � । (�) य की सदोष �ाहिन करन क आशय स, उसक बc. -घर म क पानी छोO दता �, और इस परकार बc. को ग�ा दता � । क न रिरधि�

की � । (ग) क इस आशय स य की अगठी नदी म स(चछया स c क दता � हिक य को तदद(ारा सदोष �ाहिन कारिरत कर । क न रिरधि� की � । (घ) क य� जानत हए हिक उसकी चीज-बसत उस तरऐण की तधि� क लि�ए जो य को उस दवारा शोधय �, हिनषपादन म �ी जान (ा�ी �,

उस चीज-बसत को इस आशय स नषT कर दता � हिक ऐसा करक तरऐण की तधि� अभिभपरापत करन म य को हिन(ारिरत कर द और इस परकार य को नकसान कारिरत कर । क न रिरधि� की � ।

(ङ) क एक पोत का बीमा करान क पशचात उस इस आशय स हिक बीमा करन (ा�ो को नकसान कारिरत कर, उसको स(चछया सतय2 करा दता � । क न रिरधि� की � ।

(च) य को, जिजसन बाTमरी पर धन उधार टिदया �, नकसान कारिरत करन क आशय स क उस पोत को सतय2 करा दता � । क न रिरधि� की � ।

(छ) य क साथ एक घोO म सय2 सपभितत र�त हए य को सदोष �ाहिन कारिरत करन क आशय स क उस घोO को गो�ी मार दता � । क न रिरधि� की � ।

(ज) क इस आशय स और य� समभावय जानत हए हिक (� य हिक cस� को नकसान कारिरत कर, य क �त म ढोरो का पर(श कारिरत कर दता � क न रिरधि� की � ।

426. रिरहि� क धिलए दणड--जो कोई रिरधि� करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा । भारतीय दड सहि�ता, 1860 82

427. रिरहि� जिजसस पचास रपए का �कसा� �ोता �--जो कोई रिरधि� करगा और तदद(ारा पचास रपए या उसस अधिधक रिरधि� की �ाहिन या नकसान कारिरत करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

428. दस रपए क मलय क जीवजनत को व� कर� या उस हिवकलाग कर� दवारा रिरहि�--जो कोई दस रपए या उसस अधिधक क मलय क हिकसी जी(जनत या जी(जनतओ को (ध करन, हि(ष दन, हि(क�ाग करन या हिनरपयोगी बनान दवारा रिरधि� करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

429. हिकसी मलय क ढोर, आटिद को या पचास रपए क मलय क हिकसी जीवजनत को व� कर� या उस हिवकलाग कर� दवारा रिरहि�--जो कोई हिकसी �ाथी, ऊT, घोO, �चचर, भस, साO, गाय या ब� को, चा� उसका कछ भी मलय �ो, या पचास रपए या उसस अधिधक मलय क हिकसी भी अनय जी(जनत को (ध करन, हि(ष दन, हि(क�ाग करन या हिनरपयोगी बनान दवारा रिरधि� करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध पाच (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

430. लिसच� सकम# को कषहित कर� या जल को दोषपव#क मोड� दवारा रिरहि�--जो कोई हिकसी ऐस काय. क करन दवारा रिरधि� करगा, जिजसस कहिषक परयोजनो क लि�ए, या मान( पराभिणयो क या उन जी(जनतओ क, जो समपभितत �, �ान या पीन क, या सcाई क या हिकसी हि(हिनमा.ण को च�ान क ज�परदाय म कमी कारिरत �ोती �ो या कमी कारिरत �ोना (� समभावय जानता �ो (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध पाच (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

431. लोक सडक, पल, �दी या जलसरणी को कषहित पहचाकर रिरहि�--जो कोई हिकसी ऐस काय. क करन दवारा रिरधि� करगा, जिजसस हिकसी �ोक सOक, प�, नावय, नदी या पराकहितक या कहितरम नावय ज�सरणी को यातरा या समपभितत पर(�ण क लि�ए अगमय या कम हिनरापद बना टिदया जाए या बना टिदया जाना (� समभावय जानता �ो, (� दोनो म स, हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध पाच (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

432. लोक जल हि�कास म �कसा�परद जलपलाव� या बा�ा कारिरत कर� दवारा रिरहि�--जो कोई हिकसी ऐस काय. क करन दवारा रिरधि� करगा, जिजसस हिकसी �ोक ज�हिनकास म कषहितपरद या नकसानपरद ज�प�ा(न या बाधा कारिरत �ो जाए, या �ोना (� समभावय जानता �ो, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध पाच (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

433. हिकसी दीपग� या समदरी-धिचहन को �षट करक, �टाकर या कम उपयोगी ब�ाकर रिरहि�--जो कोई हिकसी दीपग� को, या समदरी- लिचहन क रप म उपयोग म आन (ा� अनय परकाश क, या हिकसी समदरी-लिचहन या बोया या अनय चीज क, जो नौ-चा�को क लि�ए माग. परदश.न क लि�ए र�ी गई �ो, नषT करन या, �Tान दवारा अथ(ा कोई ऐसा काय. करन दवारा, जिजसस कोई ऐसा दीपग�, समदरी- लिचहन, बोया या प(�2 जसी अनय चीज नौ-चा�को क लि�ए माग. परदश.क क रप म कम उपयोगी बन जाए, रिरधि� करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

434. लोक पराधि�कारी दवारा लगाए गए भबरिम धिचहन क �षट कर� या �टा� आटिद दवारा रिरहि�--जो कोई �ोक स(क क पराधिधकार दवारा �गाए गए हिकसी भधिम लिचहन क नषT करन या �Tान दवारा अथ(ा कोई ऐसा काय. करन दवारा, जिजसस ऐसा भधिम लिचहन ऐस भधिम लिचहन क रप म कम उपयोगी बन जाए, रिरधि� करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध एक (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा । 435. सौ रपए का या (कहिष उपज की द!ा म) दस रपए का �कसा� कारिरत कर� क आ!य स अममिग� या हिवसफोटक पदाथ# दवारा रिरहि�--जो कोई हिकसी समपभितत को, एक सौ रपए या उसस अधिधक का 1[या (ज�ा हिक समपभितत कहिष उपज �ो, (�ा) दस रपए या उसस अधिधक] का नकसान कारिरत करन क आशय स, या य� समभावय जानत हए हिक (� तदद(ारा ऐसा नकसान कारिरत करगा, अखिगन या हिकसी हि(सफोTक पदाथ. दवारा रिरधि� करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा । 436. ग� आटिद को �षट कर� क आ!य स अममिग� या हिवसफोटक पदाथ# दवारा रिरहि�--जो कोई हिकसी ऐस हिनमा.ण का, जो माम�ी तौर पर उपासनासथान क रप म या मान(-हि(कास क रप म या सपभितत की अभिभरकषा क सथान क रप म उपयोग म आता �ो, नाश कारिरत करन क आशय स, या य� सभभावय जानत हए हिक (� तदद(ारा उसका नाश कारिरत करगा, अखिगन या हिकसी हि(सफोTक पदाथ. दवारा रिरधि� करगा, (� 2[आजी(न कारा(ास] स, या दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा, और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

1 1882 क अधिधहिनयम स0 8 की धारा 10 दवारा अतःसथाहिपत । 2 1955 क अधिधहिनयम स0 26 की धारा 117 और अनसची दवारा “आजी(न हिन(ा.सन” क सथान पर परहितसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 83

437. तललायकत या बीस ट� बोझ वाल जलया� को �षट कर� या सापद ब�ा� क आ!य स रिरहि�--जो कोई हिकसी तल�ाय2 ज�यान या बीस Tन या उसस अधिधक बोझ (ा� ज�यान को नषT करन या सापद बना दन क आशय स, या य� सभभावय जानत हए हिक (� तदद(ारा उस नषT करगा, या सापद बना दगा, उस ज�यान की रिरधि� करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा । 438. �ारा 437 म वरणिणत अममिग� या हिवसफोटक पदाथ# दवारा की गई रिरहि� क धिलए दड--जो कोई अखिगन या हिकसी हि(सफोTक पदाथ. दवारा ऐसी रिरधि� करगा या करन का परयतन करगा, जसी अहितम प(.(तx धारा म (रणिणत �, (� 2[आजी(न कारा(ास] स, या दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

439. चोरी, आटिद कर� क आ!य स जलया� को सा!य भबरिम या हिक�ार पर चढा द� क धिलए दड--जो कोई हिकसी ज�यान को य� आशय र�त हए हिक (� उसम अतरवि(षT हिकसी सपभितत की चोरी कर या बईमानी स ऐसी हिकसी सपभितत का दरवि(हिनयोग कर, या इस आशय स हिक ऐसी चोरी या सपभितत का दरवि(हिनयोग हिकया जाए, साशय भधिम पर चढा दगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

440. मतय या उप�हित कारिरत कर� की तयारी क पशचात की गई रिरहि�--जो कोई हिकसी वयलि2 को मतय या उस उप�हित या उसका सदोष अ(रोध कारिरत करन की अथ(ा मतय का, या उप�हित का, या सदोष अ(रोध का भय कारिरत करन की, तयारी करक रिरधि� करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध पाच (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

441. आपराधि�क अहितचार--जो कोई ऐसी सपभितत म या ऐसी सपभितत पर, जो हिकसी दसर क कबज म �, इस आशय स पर(श करता �, हिक (� कोई अपराध कर या हिकसी वयलि2 को, जिजसक कबज म ऐसी सपभितत � ; अभिभतरसत, अपमाहिनत या कषबध कर,

अथ(ा ऐसी सपभितत म या ऐसी सपभितत पर, हि(धिधप(.क पर(श करक (�ा हि(धिधहि(रदध रप म इस आशय स बना र�ता � हिक तदद(ारा (� हिकसी ऐस वयलि2 को अभिभतरसत, अपमाहिनत या कषबध कर या इस आशय स बना र�ता � हिक (� कोई अपराध कर,

(� “आपराधिधक अहितचार” करता �, य� क�ा जाता � । 442. ग�-अहितचार--जो कोई हिकसी हिनमा.ण, तमब या ज�यान म, जो मान(-हिन(ास क रप म उपयोग म आता �, या

हिकसी हिनमा.ण म, जो उपासना-सथान क रप म, या हिकसी सपभितत की अभिभरकषा क सथान क रप म उपयोग म आता �, पर(श करक या उसम बना र� कर, आपराधिधक अहितचार करता �, (� “ग�-अहितचार” करता �, य� क�ा जाता � ।

सपषटीकरण--आपराधिधक अहितचार करन (ा� वयलि2 क शरीर क हिकसी भाग का पर(श ग�-अहितचार गटिठत करन क लि�ए पया.पत पर(श � ।

443. परचछनन ग�-अहितचार--जो कोई य� प(ा.(धानी बरतन क पशचात ग�-अहितचार करता � हिक ऐस ग�-अहितचार को हिकसी ऐस वयलि2 स लिछपाया जाए जिजस उस हिनमा.ण, तमब या ज�यान म स, जो अहितचार का हि(षय �, अहितचारी को अप(रजिजत करन या बा�र कर दन का अधिधकार �, (� “परचछनन ग�-अहितचार” करता �, य� क�ा जाता � ।

444. रातरौ परचछनन ग�-अहितचार--जो कोई सया.सत क पशचात और सय�दय स प(. परचछनन ग�-अहितचार करता �, (� “रातरौ परचछनन ग�-अहितचार” करता �, य� क�ा जाता � ।

445. ग�-भद�--जो वयलि2 ग�-अहितचार करता �, (� “ग�-भदन” करता �, य� क�ा जाता �, यटिद (� उस ग� म या उसक हिकसी भाग म एतीसमिसमनपशचात (रणिणत छ� तरीको म स हिकसी तरीक स पर(श करता � अथ(ा यटिद (� उस ग� म या उसक हिकसी भाग म अपराध करन क परयोजन स �ोत हए, या (�ा अपराध कर चकन पर, उस ग� स या उसक हिकसी भाग स ऐस छ� तरीको म स हिकसी तरीक स बा�र हिनक�ता �, अथा.ती :-

प�ला--यटिद (� ऐस रासत स पर(श करता � या बा�र हिनक�ता �, जो स(य उसन या उस ग�-अहितचार क हिकसी दषपररक न (� ग�-अहितचार करन क लि�ए बनाया �,

दसरा--यटिद (� हिकसी ऐस रासत स, जो उसस या उस अपराध क दषपररक स भिभनन हिकसी वयलि2 दवारा मान( पर(श क लि�ए आशधियत न�ी �, या हिकसी ऐस रासत स, जिजस तक हिक (� हिकसी दी(ार या हिनमा.ण पर सीढी दवारा या अनयथा चढकर पहचा �, पर(श करता � या बा�र हिनक�ता �,

तीसरा--यटिद (� हिकसी ऐस रासत स पर(श करता � या बा�र हिनक�ता � जिजसको उसन या उस ग�-अहितचार क हिकसी दषपररक न (� ग�-अहितचार करन क लि�ए हिकसी ऐस साधन दवारा �ो�ा �, जिजसक दवारा उस रासत का �ो�ा जाना उस ग� क अधिधभोगी दवारा आशधियत न�ी था,

चौथा--यटिद उस ग�-अहितचार को करन क लि�ए, या ग�-अहितचार क पशचात उस ग� स हिनक� जान क लि�ए (� हिकसी ता� को �ो�कर पर(श करता या बा�र हिनक�ता �, भारतीय दड सहि�ता, 1860 84

पाचवा--यटिद (� आपराधिधक ब� क परयोग या �म� या हिकसी वयलि2 पर �म�ा करन की धमकी दवारा अपना पर(श करता � या परसथान करता �,

छठा--यटिद (� हिकसी ऐस रासत स पर(श करता � या बा�र हिनक�ता � जिजसक बार म (� जानता � हिक (� ऐस पर(श या परसथान को रोकन क लि�ए बद हिकया हआ � और अपन दवारा या उस ग�-अहितचार क दषपररक दवारा �ो�ा गया � ।

सपषटीकरण--कोई उपग� या हिनमा.ण जो हिकसी ग� क साथ-साथ अधिधभोग म �, और जिजसक और ऐस ग� क बीच आन जान का अवय(हि�त भीतरी रासता �, इस धारा क अथ. क अतग.त उस ग� का भाग � ।

दषटात

(क) य क ग� की दी(ार म छद करक और उस छद म स अपना �ाथ डा�कर क ग�-अहितचार करता � । य� ग�-भदन � । (�) क तल�ो बीच की बारी म स रग कर एक पोत म पर(श करन दवारा ग�-अहितचार करता � । य� ग�-भदन � । (ग) य क ग� म एक खि�Oकी स पर(श करन दवारा क ग�-अहितचार करता � । य� ग�-भदन � । (घ) एक बद दवार को �ो�कर य क ग� म उस दवार स पर(श करन दवारा क ग�-अहितचार करता � । य� ग�-भदन � । (ङ) य क ग� म दवार क छद म स तार डा�कर लिसTकनी को ऊपर उठाकर उस दवार म पर(श करन दवारा क ग�-अहितचार करता � ।

य� ग�-भदन � । (च) क को य क ग� क दवार की चाबी धिम� जाती �, जो य स �ो गई थी, और (� उस चाबी स दवार �ो� कर य क ग� म पर(श

करन दवारा ग�-अहितचार करता � । य� ग�-भदन � । (छ) य अपनी डीयोढी म �Oा � । य को धकक स हिगराकर क उस ग� म ब�ात पर(श करन दवारा ग�-अहितचार करता � । य� ग�-

भदन � । (ज) य, जो म का दरबान �, म की डीयोढी म �Oा � । य को मारन की धमकी दकर क उसको हि(रोध करन स भयोपरत करक उस

ग� म पर(श करन दवारा ग�-अहितचार करता � । य� ग�-भदन � । 446. रातरौ ग�-भद�--जो कोई सया.सत क पशचात और सय�दय स प(. ग�-भदन करता �, (� “रातरौ ग�-भदन” करता

�, य� क�ा जाता � । 447. आपराधि�क अहितचार क धिलए दड--जो कोई आपराधिधक अहितचार करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क

कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो पाच सौ रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

448. ग�-अहितचार क धिलए दड--जो कोई ग�-अहितचार करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध एक (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो एक �जार रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

449. मतय स दड�ीय अपरा� को रोक� क धिलए ग�-अहितचार--जो कोई मतय स दडनीय कोई अपराध करन क लि�ए ग�-अहितचार करगा, (� 1[आजी(न कारा(ास] स, या कटिठन कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. स अधिधक न�ी �ोगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

450. अपजीव� कारावास स दड�ीय अपरा� को कर� क धिलए ग�-अहितचार--जो कोई [आजी(न कारा(ास] स दडनीय कोई अपराध करन क लि�ए ग�-अहितचार करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. स अधिधक न�ी �ोगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

451. कारावास स दड�ीय अपरा� को कर� क धिलए ग�-अहितचार--जो कोई कारा(ास स दडनीय कोई अपराध करन क लि�ए ग�-अहितचार करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा, तथा यटिद (� अपराध, जिजसका हिकया जाना आशधियत �ो, चोरी �ो, तो कारा(ास की अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी ।

452. उप�हित, �मला या सदोष अवरो� की तयारी क पशचात ग�-अहितचार--जो कोई हिकसी वयलि2 को उप�हित कारिरत करन की, या हिकसी वयलि2 पर �म�ा करन की, या हिकसी वयलि2 का सदोष अ(रोध करन की अथ(ा हिकसी वयलि2 को उप�हित क, या �म� क, या सदोष अ(रोध क भय म डा�न की तयारी करक ग�-अहितचार करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

453. परचछनन ग�-अहितचार या ग�-भद� क धिलए दड--जो कोई परचछनन ग�-अहितचार या ग�-भदन करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

1 1955 क अधिधहिनयम स0 26 की धारा 117 और अनसची दवारा (1-1-1956 स) “आजी(न हिन(ा.सन” क सथान पर परहितसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 85

454. कारावास स दड�ीय अपरा� कर� क धिलए परचछनन ग�-अहितचार या ग�-भद�--जो कोई कारा(ास स दडनीय अपराध करन क लि�ए परचछनन ग�-अहितचार या ग�-भदन करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा, तथा यटिद (� अपराध, जिजसका हिकया जाना आशधियत �ो, चोरी �ो, तो कारा(ास की अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी ।

455. उप�हित, �मल या सदोष अवरो� की तयारी क पशचात परचछनन ग�-अहितचार या ग�-भद�--जो कोई हिकसी वयलि2 को उप�हित कारिरत करन की या हिकसी वयलि2 पर �म�ा करन की या हिकसी वयलि2 का सदोष अ(रोध करन की अथ(ा हिकसी वयलि2 को उप�हित क, या �म� क, या सदोष अ(रोध क भय म डा�न की तयारी करक, परचछनन ग�-अहितचार या ग�-भदन करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

456. रातरौ परचछनन ग�-अहितचार या रातरौ ग�-भद� क धिलए दड--जो कोई रातरौ परचछनन ग�-अहितचार या रातरौ ग�-भदन करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

457. कारावास स दड�ीय अपरा� कर� क धिलए रातरौ परचछनन ग�-अहितचार या रातरौ ग�-भद�--जो कोई कारा(ास स दडनीय कोई अपराध करन क लि�ए रातरौ परचछनन ग�-अहितचार या रातरौ ग�-भदन करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध पाच (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा, तथा यटिद (� अपराध जिजसका हिकया जाना आशधियत �ो, चोरी �ो, तो कारा(ास की अ(धिध चौद� (ष. तक की �ो सकगी ।

458. उप�हित, �मला या सदोष अवरो� की तयारी क पशचात रातरौ परचछनन ग�-अहितचार--जो कोई हिकसी वयलि2 को उप�हित कारिरत करन की या हिकसी वयलि2 पर �म�ा करन की या हिकसी वयलि2 का सदोष अ(रोघ करन की अथ(ा हिकसी वयलि2 को उप�हित क, या �म� क, या सदोष अ(रोध क भय म डा�न की तयारी करक, रातरो परचछनन ग�-अहितचार या रातरो ग�-भदन करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध चौद� (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

459. परचछनन ग�-अहितचार या ग�-भद� करत समय घोर उप�हित कारिरत �ो--जो कोई परचछनन ग�-अहितचार या ग�-भदन करत समय हिकसी वयलि2 को घोर उप�हित कारिरत करगा या हिकसी वयलि2 की मतय या घोर उप�हित कारिरत करन का परयतन करगा, (� 1[आजी(न कारा(ास] स, या दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

460. रातरौ परचछनन ग�-अहितचार या रातरौ ग�-भद� म सयकततः समपकत समसत वयधिकत दड�ीय �, जबहिक उ�म स एक दवारा मतय या घोर उप�हित कारिरत �ो--यटिद रातरौ परचछनन ग�-अहितचार या रातरौ ग�-भदन करत समय ऐस अपराध का दोषीी कोई वयलि2 स(चछया हिकसी वयलि2 की मतय या घोर उप�हित कारिरत करगा या मतय या घोर उप�हित कारिरत करन का परयतन करगा, तो ऐस रातरौ परचछनन ग�-अहितचार या रातरौ ग�-भदन करन म सय2तः समप2 �र वयलि2, 1[आजी(न कारा(ास] स, या दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दडनीय �ोगा ।

461. ऐस पातर को, जिजसम सपधिV �, बईमा�ी स तोडकर खोल�ा--जो कोई हिकसी ऐस बद पातर को, जिजसम सपभितत �ो या जिजसम सपभितत �ोन का उस हि(शवास �ो, बईमानी स या रिरधि� करन क आशय स तोOकर �ो�गा या उपबधिधत करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

462. उसी अपरा� क धिलए दड, जब हिक व� ऐस वयधिकत दवारा हिकया गया � जिजस अशिभरकषा नयसत की गई �--जो कोई ऐसा बद पातर, जिजसम सपभितत �ो, या जिजसम सपभितत �ोन का उस हि(शवास �ो, अपन पास नयसत हिकए जान पर उसको �ो�न का पराधिधकार न र�त हए, बईमानी स या रिरधि� करन क आशय स, उस पातर को तोOकर �ो�गा या उपबधिधत करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

अधयाय 18

दसतावजो और सपधिV 2।।। धिचहनो सब�ी अपरा�ो क हिवषय म

463. कटरच�ा--3[जो कोई हिकसी धिमथया दसता(ज या धिमथया इ�कटराहिनक अभिभ�� अथ(ा दसता(ज या इ�कटराहिनक अभिभ�� क हिकसी भाग कोT इस आशय स रचता � हिक �ोक को या हिकसी वयलि2 को नकसान या कषहित कारिरत की जाए, या

हिकसी दा( या �क का समथ.न हिकया जाए, या य� कारिरत हिकया जाए हिक कोई वयलि2 सपभितत अ�ग कर या कोई अभिभवय2 या हि((भिकषत सहि(दा कर या इस आशय स रचता � हिक कपT कर, या कपT हिकया जा सक, (� कTरचना करता � । 1 1955 क अधिधहिनयम स0 26 की धारा 117 और अनसची दवारा (1-1-1956 स) “आजी(न हिन(ा.सन” क सथान पर परहितसथाहिपत । 2 1958 क अधिधहिनयम स0 43 की धारा 135 और अनसची दवारा (25-11-1959 स) “वयापार या” शबदो का �ोप हिकया गया ।

3 2000 क अधिधहिनयम स0 21 की धारा 91 और प��ी अनसची दवारा (17-10-200 स)कहितपय शबदो क सथान पर परहितसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 86

464. बरिमथया दसतावज रच�ा--2[“उस वयलि2 क बार म य� क�ा जाता � हिक (� वयलि2 धिमथया दसता(ज या धिमथया इ�कटराहिनक अभिभ�� रचता �,--

प�ला--जो बईमानी स या कपTप(.क इस आशय स-- (क) हिकसी दसता(ज को या दसता(ज क भाग को रलिचत, �सताकषरिरत, मदराहिकत या हिनषपाटिदत करता � ; (�) हिकसी इ�कटराहिनक अभिभ�� को या हिकसी इ�कटराहिनक अभिभ�� क भाग को रलिचत या पारहिषत करता � ; (ग) हिकसी इ�कटराहिनक अभिभ�� पर कोई अकीय लिचहनक �गाता � ; (घ) हिकसी दसता(ज क हिनषपादन का या ऐस वयलि2 या अकीय लिचहनक की अधिधपरमाभिणकता का दयोतन करन (ा�ा

कोई लिचहन �गाता �, हिक य� हि(शवास हिकया जाए हिक ऐसा दसता(ज या दसता(ज क भाग, इ�कटराहिनक अभिभ�� या अकीय लिचहनक की रचना,

�सताकषरण, मदराकन, हिनषपादन, पारषण या �गाना ऐस वयलि2 दवारा या ऐस वयलि2 क पराधिधकार दवारा हिकया गया था, जिजसक दवारा या जिजसक पराधिधकार दवारा उसकी रचना, �सताकषरण, मदराकन या हिनषपादन, �गाए जान या पारहिषत न �ोन की बात (� जानता � ; या

दसरा--जो हिकसी दसता(ज या इ�कटराहिनक अभिभ�� क हिकसी तानतित(क भाग म परिर(त.न, उसक दवारा या ऐस हिकसी अनय वयलि2 दवारा, चा� ऐसा वयलि2, ऐस परिर(त.न क समय जीहि(त �ो या न�ी, उस दसता(ज या इ�कटराहिनक अभिभ�� क रलिचत या हिनषपाटिदत हिकए जान या अकीय लिचहन �गाए जान क पशचाती, उस रदद करक या अनयथा, हि(धिधप(.क पराधिधकार क हिबना, बईमानी स या कपTप(.क करता � ; अथ(ा

तीसरा--जो हिकसी वयलि2 दवारा, य� जानत हए हिक ऐसा वयलि2 हिकसी दसता(ज या इ�कटराहिनक अभिभ�� की हि(षय(सत को या परिर(त.न क रप को, हि(कतलिचतत या मततता की �ा�त �ोन क कारण जान न�ी सकता था या उस पर(चना क कारण, जो उसस की गई �, जानता न�ी �, उस दसता(ज या इ�कटराहिनक अभिभ�� को बईमानी स या कपTप(.क �सताकषरिरत, मदराहिकत, हिनषपाटिदत या परिर(रवितत हिकया जाना या हिकसी इ�कटराहिनक अभिभ�� पर अपन अकीय लिचहनक �गाया जाना कारिरत करता � ।”

दषटात (क) क क पास य दवारा ख पर लि��ा हआ 10,000 रपए का एक परतयय पतर � । ख स कपT करन क लि�ए क 10,000 म एक

शनय बढा दता � और उस रालिश को 1,00,000 रपए इस आशय स बना दता � हिक ख य� हि(शवास कर � हिक य न (� पतर ऐसा �ी लि��ा था । क न कTरचना की � ।

(�) क इस आशय स हिक (� य की समपदा ख को बच द और उसक दवारा ख स करय धन अभिभपरापत कर �, य क पराधिधकार क हिबना य की मदरा एक ऐसी दसता(ज पर �गाता �, जो हिक य की ओर स क की समपदा का �सतानतरपतर �ोना तातपरयियत � । क न कTरचना की � ।

(ग) एक बकार पर लि�� हए और (ा�क को दय चक को क उठा �ता � । चक ख दवारा �सताकषरिरत �, हिकनत उस चक म कोई रालिश अहिकत न�ी � । क 10,000 रपए की रालिश अहिकत करक चक को कपTप(.क भर �ता � । क कTरचना करता � ।

(घ) क अपन अभिभकता. ख क पास एक बकार पर लि��ा हआ, क दवारा �सताकषरिरत चक, दय धनरालिश अहिकत हिकए हिबना छोO दता � । ख को क इस बात क लि�ए पराधिधकत कर दता � हिक (� कछ सदाय करन क लि�ए चक म ऐसी धनरालिश, जो दस �जार रपए स अधिधक न �ो अहिकत करक चक भर � । ख कपTप(.क चक म बीस �जार रपए अहिकत करक उस भर �ता � । ख कTरचना करता � ।

(ङ) क, ख क पराधिधकार क हिबना ख क नाम म अपन ऊपर एक हि(हिनमय पतर इस आशय स लि��ता � हिक (� एक बकार स अस�ी हि(हिनमयपतर की भाहित बटटा दकर उस भना �, और उस हि(हिनमयपतर को उसकी परिरपक(ता पर � �, य�ा क इस आशय स उस हि(हिनमयपतर को लि��ता � हिक पर(चना करक बकार को य� अनमान करा द हिक उस ख की परहितभहित परापत �, और इसलि�ए (� उस हि(हिनमयपतर को बटटा �कर भना द । क कTरचना का दोषीी � ।

(च) य की हि(� म य शबद अनतरवि(षT � हिक “म हिनदश दता ह हिक मरी समसत शष समपभितत क, ख और ग म बराबर बाT दी जाए” । क बईमानी स ख का नाम इस आशय स �रच डा�ता � हिक य� हि(शवास कर लि�या जाए हिक समसत समपभितत उसक स(य क लि�ए और ग क लि�ए �ी छोOी गई थी । क न कTरचना की � ।

(छ) क एक सरकारी (चनपतर को पषठाहिकत करता � और उस पर शबद “य को या उसक आदशानसार द दो” लि��कर और पषठाकन पर �सताकषर करक उस य को या उसक आदशानसार दय कर दता � । ख बईमानी स “य को या उसक आदशानसार द दो” इन शबदो को छी�कर धिमTा डा�ता �, और इस परकार उस हि(शष पषठाकन को एक हिनरक पषठाकन म परिर(रवितत कर दता � । ख कTरचना करता � ।

(ज) क एक समपदा य को बच दता � और उसका �सतातर-पतर लि�� दता � । उसक पशचात क, य को कपT करक समपदा स (लिचत करन क लि�ए उसी समपदा को एक �सतानतर-पतर जिजस पर य क �सतानतर-पतर की तारी� स छ� मास प(. की तारी� पOी हई �, ख क नाम

इस आशय स हिनषपाटिदत कर दता � हिक य� हि(शवास कर लि�या जाए हिक उसन अपनी समपदा य को �सतानतरिरत करन स प(. ख को �सतानतरिरत कर दी थी । क न कTरचना की � । भारतीय दड सहि�ता, 1860 87

(झ) य अपनी हि(� क स लि��(ाता � । क साशय एक ऐस (सीयतदार का नाम लि�� दता �, जो हिक उस (सीयतदार स भिभनन �, जिजसका नाम य न क�ा �, और य को य� वयपटिदषT करक हिक उसन हि(� उसक अनदशो क अनसार �ी तयार की �, य को हि(� पर �सताकषर करन क लि�ए उतपररिरत करता � । क न कTरचना की � ।

(ञ) क एक पतर लि��ता � और ख क पराधिधकार क हिबना, इस आशय स हिक उस पतर क दवारा य स और अनय वयलि2यो स भिभकषा अभिभपरापत कर, ख क नाम क �सताकषर य� परमाभिणत करत हए कर दता � हिक क अचछ शी� का वयलि2 � और अन(भिकषत दभा.गय क कारण दीन अ(सथा म � । य�ा क, न य को समपभितत, अ�ग करन क लि�ए उतपररिरत करन को धिमथया दसता(ज रची �, इसलि�ए क न कTरचना की � ।

(T) ख क पराधिधकार क हिबना क इस आशय स हिक उसक दवारा य क अधीन नौकरी अभिभपरापत कर, क क शी� को परमाभिणत करत हए एक पतर लि��ता �, और उस ख क नाम स �सताकषरिरत करता � । क न कTरचना की � कयोहिक उसका आशय कTरलिचत परमाणपतर दवारा य को पर(लिचत करन का और ऐसा करक य को स(ा की अभिभवय2 या हि((भिकषत सहि(दा म परहि(षT �ोन क लि�ए उतपररिरत करन का था ।

सपषटीकरण 1--हिकसी वयलि2 का स(य अपन नाम का �सताकषर करना कTरचना की कोटिT म आ सकगा । दषटात

(क) क एक हि(हिनमयपतर पर अपन �सताकषर इस आशय स करता � हिक य� हि(शवास कर लि�या जाए हिक (� हि(हिनमयपतर उसी नाम क हिकसी अनय वयलि2 दवारा लि��ा गया था । क न कTरचना की � ।

(�) क एक कागज क TकO पर शबद “परहितग�ीत हिकया” लि��ता � और उस पर य क नाम क �सताकषर इसलि�ए करता � हिक ख बाद म इस कागज पर एक हि(हिनमयपतर, जो ख न य क ऊपर हिकया �, लि�� और उस हि(हिनमयपतर का इस परकार परकरामण कर, मानो (� य क दवारा परहितग�ीत कर लि�या गया था । क कTरचना का दोषीी �, तथा यटिद ख इस तथय को जानत हए क क आशय क अनसरण म, उस कागज पर हि(हिनमयपतर लि�� दता �, तो ख भी कTरचना का दोषीी � ।

(ग) क अपन नाम क हिकसी अनय वयलि2 क आदशानसार दय हि(हिनमयपतर पOा पाता � । क उस उठा �ाता � और य� और हि(शवास करान क आशय स स(य अपन नाम पषठाहिकत करता � हिक इस हि(हिनमयपतर पर पषठाकन उसी वयलि2 दवारा लि��ा गया था जिजसक आदशानसार (� दय � । (�ा, क न कTरचना की � ।

(घ) क, ख क हि(रदध एक हिडकरी क हिनषपादन म बची गई समपदा को �रीदता � । ख समपदा क अभिभग�ीत हिकए जान क पशचात य क साथ दससनधिनध करक क को कपT(लिचत करन और य� हि(शवास करान क आशय स हिक (� पटटा अभिभगर�ण स प(. हिनषपाटिदत हिकया गया था, नाममातर क भाTक पर और एक �मबी का�ा(धिध क लि�ए य क नाम उस समपदा का पटटा कर दता � और पटट पर अभिभगर�ण स छ� मास प(. की तारी� डा� दता � । ख यदयहिप पटट का हिनषपादन स(य अपन नाम स करता �, तथाहिप उस पर प(. की तारी� डा�कर (� कTरचना करता � ।

(ङ) क एक वयापारी अपन टिद(ा� का प(ा.नमान करक अपनी चीज(सत ख क पास क क cायद क लि�ए और अपन �नदारो को कपT(लिचत करन क आशय स र� दता � ; और परापत मलय क बद� म, ख को एक धनरालिश दन क लि�ए अपन को आबदव करत हए, एक (चनपतर उस सवय(�ार को सचचाई की रगत दन क लि�ए लि�� दता �, और इस आशय स हिक य� हि(शवास कर लि�या जाए हिक (� (चनपतर उसन उस समय स प(. �ी लि��ा था जब उसका टिद(ा�ा हिनक�न (ा�ा था, उस पर प�� की तारी� डा� दता � । क न परिरभाषीा क परथम शीष.क क अधीन कTरचना की � ।

सपषटीकरण 2--कोई धिमथया दसता(ज हिकसी कणडिलपत वयलि2 क नाम स इस आशय स रचना हिक य� हि(शवास कर लि�या जाए हिक (� दसता(ज एक (ासतहि(क वयलि2 दवारा रची गई थी, या हिकसी मत वयलि2 क नाम स इस आशय स रचना हिक य� हि(शवास कर लि�या जाए हिक (� दसता(ज उस वयलि2 दवारा उसक जी(न का� म रची गई थी, कTरचना की कोटिT म आ सकगा ।

1[सपषटीकरण 3--इस धारा क परयोजनो क लि�ए, “अकीय लिचहनक �गान” पद का (�ी अथ. �ोगा जो उसका सचना परौदयोहिगकी अधिधहिनयम, 2000 की धारा 2 की उपधारा (1) क �ड (घ) म � ।]

दषटात क एक कणडिलपत वयलि2 क नाम कोई हि(हिनमयपतर लि��ता �, और उसका परकरामण करन क आशय स उस हि(हिनमयपतर को ऐस कणडिलपत

वयलि2 क नाम स कपTप(.क परहितग�ीत कर �ता � । क कTरचना करता � । 465. कटरच�ा क धिलए दणड--जो कोई कTरचना करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध

दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

466. नयायालय क अशिभलख की या लोक रजिजसटर आटिद की कटरच�ा--2[जो कोई ऐस दसता(ज की या ऐस इ�कटराहिनक अभिभ�� कीT जिजसका हिक हिकसी नयाया�य का या नयाया�य म अभिभ�� या काय.(ा�ी �ोना, या जनम, (पहितसमा, हि((ा� या अनतयधि� का रजिजसTर, या �ोक स(क दवारा �ोक स(क क नात र�ा गया रजिजसTर �ोना तातपरयियत �ो, अथ(ा हिकसी परमाणपतर की या ऐसी दसता(ज की जिजसक बार म य� तातपरयियत �ो हिक (� हिकसी �ोक स(क दवारा उसकी पदीय �लिसयत म रची

गई �, या जो हिकसी (ाद को सणडिसथत करन या (ाद म परहितरकषा करन का, उसम कोई काय.(ा�ी करन का, या दा(ा सस(ीकत कर �न का, 1 2000 क अधिधहिनयम स0 21 की धारा 91 और प��ी अनससची दवारा (17-10-2000 स) अतःसथाहिपत ।

2 2000 क अधिधहिनयम स0 21 की धारा 91 और प��ी अनसची दवारा (17-10-2000 स) कहितपय शबदो क सथान पर परहितसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 88

1[सपषटीकरण--इस धारा क परयोजनो क लि�ए, “रजिजसTर” क अतग.त सचना परौदयोहिगकी अधिधहिनयम, 2000 की धारा 2 की उपधारा (1) क �ड (द) म परिरभाहिषत इ�कटराहिनक रप म र�ी गई कोई सची, डाTा या हिकसी परहि(धि� का अभिभ�� भी � ।]

467. मलयवा� परहितभहित, हिवल, इतयाटिद की कटरच�ा--जो काई हिकसी ऐसी दसता(ज की, जिजसका कोई मलय(ान परहितभहित या हि(� या पतर क दततकगर�ण का पराधिधकार �ोना तातपरयियत �ो, अथ(ा जिजसका हिकसी मलय(ान परहितभहित की रचना या अनतरण का, या उस पर क म�धन, बयाज या �ाभाश को परापत करन का, या हिकसी धन, जगम समपभितत या मलय(ान परहितभहित को परापत करन या परिरदतत करन का पराधिधकार �ोना तातपरयियत �ो, अथ(ा हिकसी दसता(ज को, जिजसका धन टिदए जान की अभिभस(ीकहित करन (ा�ा हिनसतारणपतर या रसीद �ोना, या हिकसी जगम सपभितत या मलय(ान परहितभहित क परिरदान क लि�ए हिनसतारणपतर या रसीद �ोना तातपरयियत �ो, कTरचना करगा (� 1[आजी(न कारा(ास] स, या दानो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।

468. छल क परयोज� स कटरच�ा--जो कोई कTरचना इस आशय स करगा हिक 2[(� दसता(ज या इ�कटराहिनक अभिभ�� जिजसकी कTरचना की जाती �,] छ� क परयोजन स उपयोग म �ाई जाएगी, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा, और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।

469. खयाहित को अप�ाहि� पहचा� क आ!य स कटरचनन--2[जो कोई कTरचना इस आशय स करगा हिक (� दसता(ज या इ�कटराहिनक अभिभ��] जिजसकी कTरचना की जाती �, हिकसी पकषकार की खयाहित की अप�ाहिन करगी, या य� समभावय जानत हए करगा हिक इस परयोजन स उसका उपयोग हिकया जाए, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।

470. कटरधिचत 2[दसतावज या इलकटराहि�क अशिभलखट--(� धिमथया 4[दसता(ज या इ�कटराहिनक अभिभ��] जो पण.तः या भागतः कTरचना दवारा रची गई �, “कTरलिचत 4[दसता(ज या इ�कटराहिनक अभिभ��] ” क��ाती � ।

471. कटरधिचत 4[दसतावज या इलकटराहि�क अशिभलख] का असली क रप म उपयोग म ला�ा--जो कोई हिकसी ऐसी 4[दसता(ज या इ�कटराहिनक अभिभ��] को, जिजसक बार म (� य� जानता या हि(शवास करन का कारण र�ता �ो हिक (� कTरलिचत 4[दसता(ज या इ�कटराहिनक अभिभ��] �, कपTप(.क या बईमानी स अस�ी क रप म उपयोग म �ाएगा, (� उसी परकार दणडिणडत हिकया जाएगा, मानो उसन ऐसी 4[दसता(ज या इ�कटराहिनक अभिभ��] की कTरचना की �ो । 472. �ारा 467 क अ�ी� दणड�ीय कटरच�ा कर� क आ!य स कटकत मदरा, आटिद का ब�ा�ा या कबज म रख�ा--जो कोई हिकसी मदरा, पटटी या छाप �गान क अनय उपकरण को इस आशय स बनाएगा या उसकी कTकहित तयार करगा हिक उस कोई ऐसी कTरचना करन क परयोजन क लि�ए उपयोग म �ाया जाए, जो इस सहि�ता की धारा 467 क अधीन दणडनीय �, या इस आशय स, हिकसी ऐसी मदरा, पटटी या अनय उपकरण को, उस कTकत जानत हए अपन कबज म र�गा, (� 3[आजी(न कारा(ास] स, या दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।

473. अनयथा दणड�ीय कटरच�ा कर� क आ!य स कटकत मदरा, आटिद का ब�ा�ा या कबज म रख�ा--जो कोई हिकसी मदरा, पटटी या छाप �गान क अनय उपकरण को इस आशय स बनाएगा या उसकी कTकहित करगा, हिक उस कोई ऐसी कTरचना करन क परयोजन क लि�ए उपयोग म �ाया जाए, जो धारा 467 स भिभनन इस अधयाय की हिकसी धारा क अधीन दणडनीय �, या इस आशय स हिकसी ऐसी मदरा, पटटी या अनय उपकरण को, उस कTकत जानत हए अपन कबज म र�गा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।

474. �ारा 466 या 467 म वरणिणत दसतावज को, उस कटरधिचत जा�त हए और उस असली क रप म उपयोग म ला� का आ!य रखत हए, कबज म रख�ा--3[जो कोई, हिकसी दसता(ज या हिकसी इ�कटराहिनक अभिभ�� को उस कTरलिचत जानत हए और य� आशय र�त हए हिक (� कपTप(.क या बईमानी स अस�ी रप म उपयोग म �ाया जाएगा, अपन कबज म र�गा, यटिद (� दसता(ज या इ�कटराहिनक अभिभ�� इस सहि�ता की धारा 466 म (रणिणत भाहित का �ो] तो (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा, तथा यटिद (� दसता(ज 1 1955 क अधिधहिनयम स0 26 की धारा 117 और अनसची दवारा “आजी(न हिन(ा.सन” क सथान पर परहितसथाहिपत । 2 2000 क अधिधहिनयम स0 21 की धारा 91 और प��ी अनसची दवारा (17-10-2000 स) “दसता(ज” क सथान पर परहितसथाहिपत । 3 2000 क अधिधहिनयम स0 21 की धारा 91 और प��ी अनसची दवारा (17-10-2000 स) कहितपय शबदो क सथान पर परहितसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 89

धारा 467 म (रणिणत भाहित की �ो तो (� 1[आजी(न कारा(ास] स, या दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा । 475. �ारा 467 म वरणिणत दसतावजो क अधि�परमाणीकरण क धिलए उपयोग म लाई जा� वाली अशिभलकषणा या धिचहन की कटकहित ब�ा�ा या कटकत धिचहनयकत पदाथ# को कबज म रख�ा--जो कोई हिकसी पदाथ. क ऊपर, या उसक उपादान म, हिकसी ऐसी अभिभ�कषणा या लिचहन की, जिजस इस सहि�ता की धारा 467 म (रणिणत हिकसी दसता(ज क अधिधपरमाणीकरण क परयोजन क लि�ए, उपयोग म �ाया जाता �ो, कTकहित य� आशय र�त हए बनाएगा हिक ऐसी अभिभ�कषणा या ऐस लिचहन की, ऐस पदाथ. पर उस समय कTरलिचत की जा र�ी या उसक पशचात कTरलिचत की जान (ा�ी हिकसी दसता(ज को अधिधपरमाणीकत का आभास परदान करन क परयोजन स उपयोग म �ाया जाएगा या जो ऐस आशय स कोई ऐसा पदाथ. अपन कबज म र�गा, जिजस पर या जिजसक उपादान म ऐसी अभिभ�कषणा को या ऐस लिचहन की कTकहित बनाई गई �ो, (� 2[आजी(न कारा(ास] स, या दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा । 476. �ारा 467 म वरणिणत दसतावजो स शिभनन दसतावजो क अधि�परमाणीकरण क धिलए उपयोग म लाई जा� वाली अशिभलकषणा या धिचहन की कटकहित ब�ा�ा या कटकत धिचहनयकत पदाथ# को कबज म रख�ा--जो कोई हिकसी पदाथ. क ऊपर, या उसक उपादान म, हिकसी ऐसी अभिभ�कषणा या लिचहन की, जिजस इस सहि�ता की धारा 467 म (रणिणत दसता(जो स भिभनन 2[हिकसी दसता(ज या इ�कटराहिनक अभिभ��] क अधिधपरमाणीकरण क परयोजन क लि�ए, उपयोग म �ाया जाता �ो, कTकहित य� आशय र�त हए बनाएगा हिक (� ऐसी अभिभ�कषणा या ऐस लिचहन को, ऐस पदाथ. पर उस समय कTरलिचत की जा र�ी या उसक पशचात कTरलिचत की जान (ा�ी हिकसी दसता(ज को अधिधपरमाणीकत का आभास परदान करन क परयोजन स उपयोग म �ाया जाएगा या जो ऐस आशय स कोई ऐसा पदाथ. अपन कबज म र�गा, जिजस पर या जिजसक उपादान म ऐसी अभिभ�कषणा या ऐस लिचहन की कTकहित बनाई गई �ो, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा । 477. हिवल, दVकगर�ण पराधि�कार-पतर या मलयवा� परहितभहित को कपटपव#क रददा, �षट, आटिद कर�ा--जो कोई कपTप(.क या बईमानी स, या �ोक को या हिकसी वयलि2 को नकसान या कषहित कारिरत करन क आशय स, हिकसी ऐसी दसता(ज को, जो हि(� या पतर क दततकगर�ण करन का पराधिधकार-पतर या कोई मलय(ान परहितभहित �ो, या �ोना तातपरयियत �ो, रदद, नषT या हि(रहिपत करन का परयतन करगा, या लिछपाएगा या लिछपान का परयतन करगा या ऐसी दसता(ज क हि(षय म रिरधि� करगा, (� 2[आजी(न कारा(ास] स, या दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।

3[477क. लखा का बरिमथयाकरण--जो कोई, लि�हिपक, आहिcसर या स(क �ोत हए, या लि�हिपक, आहिcसर या स(क क नात हिनयोजिजत �ोत या काय. करत हए, हिकसी 4[पसतक, इ�कटराहिनक अभिभ��, कागज, ��,] मलय(ान परहितभहित या ��ा म जानबझकर और कपT करन क आशय स कोई धिमथया परहि(धि� करगा या करन क लि�ए दषपररण करगा, या उसम स या उसम हिकसी तानतित(क हि(लिशधि� का �ोप या परिर(त.न करगा या करन का दषपररण करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

सपषटीकरण--इस धारा क अधीन हिकसी आरोप म, हिकसी हि(लिशषT वयलि2 का, जिजसस कपT करना आशधियत था, नाम बताए हिबना या हिकसी हि(लिशषT धनरालिश का, जिजसक हि(षय म कपT हिकया जाना आशधियत था या हिकसी हि(लिशषT टिदन का, जिजस टिदन अपराध हिकया गया था, हि(हिनदzश हिकए हिबना, कपT करन क साधारण आशय का अभिभकथन पया.पत �ोगा ।]

5सपधिV 6धिचहनो और अनय धिचहनो क हिवषय म 478. [वयापार धिचहन ।] वयापार और पणय लिचहन अधिधहिनयम, 1958 (1958 का 43) की धारा 135 और अनसची

दवारा (25-11-1959 स) हिनरलिसत । 479. समपधिV-धिचहन--(� लिचहन जो य� दयोतन करन क लि�ए उपयोग म �ाया जाता � हिक जगम सपभितत हिकसी हि(लिशषT

वयलि2 की �, समपभितत लिचहन क�ा जाता � । 480. [बरिमथया वयापार धिचहन का परयोग हिकया जा�ा ।] वयापार और पणय लिचहन अधिधहिनयम, 1958 (1958 का

43) की धारा 135 और अनसची दवारा (25-11-1959 स) हिनरलिसत । 1 1955 क अधिधहिनयम स0 26 की धारा 117 और अनसची दवारा (1-1-1956 स) “आजी(न हिन(ा.सन” क सथान पर परहितसथाहिपत ।

2 2000 क अधिधहिनयम स0 21 की धारा 91 और प��ी अनसची दवारा (17-10-2000 स) “हिकसी दसता(ज” क सथान पर परहितसथाहिपत । 3 1895 क अधिधहिनयम स0 3 की धारा 4 दवारा अतःसथाहिपत । 4 2000 क अधिधहिनयम स0 21 की धारा 91 और प��ी अनसची दवारा (17-10-2000 स) “पसतक, कागज, ��ा” क सथान पर परहितसथाहिपत । 5 1889 क अधिधहिनयम स0 4 की धारा 3 दवारा म� शीष. और धारा 478 स 489 क सथान पर परहितसथाहिपत ।

6 1958 क अधिधहिनयम स0 43 की धारा 135 और अनसची दवारा (25-11-1959 स) “वयापार” शबद का �ोप हिकया गया । भारतीय दड सहि�ता, 1860 90

481. बरिमथया समपधिV-धिचहन को उपयोग म ला�ा--जो कोई हिकसी जगम समपभितत या मा� की या हिकसी पTी, पकज या अनय पातर को, जिजसम जगम समपभितत या मा� र�ा �, ऐसी रीहित स लिचखिन�त करता � या हिकसी पTी, पकज या अनय पातर को, जिजन पर कोई लिचहन �, ऐसी रीहित स उपयोग म �ाता �, जो इसलि�ए यलि2य2 रप स परकणडिलपत � हिक उसस य� हि(शवास कारिरत �ो जाए हिक इस परकार लिचखिन�त समपभितत या मा�, या इस परकार लिचखिन�त हिकसी ऐस पातर म र�ी हई कोई समपभितत या मा�, ऐस वयलि2 का �, जिजसका (� न�ी �, (� धिमथया समपभितत- लिचहन का उपयोग करता �, य� क�ा जाता � ।

482. बरिमथया समपधिV-धिचहन को उपयोग कर� क धिलए दणड--जो कोई 1।।। हिकसी धिमथया समपभितत लिचहन का उपयोग करगा, जब तक हिक (� य� साहिबत न कर द हिक उसन कपT कन क आशय क हिबना काय. हिकया �, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध एक (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स दणडिणडत हिकया जाएगा ।

483. अनय वयधिकत दवारा उपयोग म लाए गए समपधिV धिचहन का कटकरण--जो कोई हिकसी 2।।। समपभितत- लिचहन का, जो हिकसी अनय वयलि2 दवारा उपयोग म �ाया जाता �ो, कTकरण करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

484. लोक सवक दवारा उपयोग म लाए गए धिचहन का कटकरण--जो कोई हिकसी समपभितत- लिचहन का, जो �ोक स(क दवारा उपयोग म �ाया जाता �ो ; या हिकसी ऐस लिचहन का, जो �ोक स(क दवारा य� दयोतन करन क लि�ए उपयोग म �ाया जाता �ो हिक कोई समपभितत हिकसी हि(लिशषT वयलि2 दवारा या हिकसी हि(लिशषT समय या सथान पर हि(हिनरयिमत की गई �, या य� हिक (� समपभितत हिकसी हि(लिशषT क(ालि�Tी की � या हिकसी हि(लिशषT काया.�य म स पारिरत �ो चकी �, या य� हिक हिकसी छT की �कदार �, कTकरण करगा, या हिकसी ऐस लिचहन को उस कTकत जानत हए अस�ी क रप म उपयोग म �ाएगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।

3[485. समपधिV-धिचहन क कटकरण क धिलए कोई उपकरण ब�ा�ा या उस पर कबजा--जो कोई समपभितत- लिचहन क कTकरण क परयोजन स कोई डाई, पटटी या अनय उपकरण बनाएगा या अपन कबज म र�गा, अथ(ा य� दयोतन करन क परयोजन स हिक कोई मा� ऐस वयलि2 का �, जिजसका (� न�ी �, हिकसी समपभितत- लिचहन को अपन कबज म र�गा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।]

486. कटकत समपधिV-धिचहन स धिचखिन�त माल का हिवकरय--4[जो कोई हिकसी मा� या चीजो को, स(य उन पर या हिकसी ऐसी पTी, पकज या अनय पातर पर, जिजसम ऐसा मा� र�ा �ो, कोई कTकत समपभितत- लिचहन �गा हआ या छपा हआ �ोत हए, बचगा या बचन क लि�ए अभिभदरछिशत करगा या अपन कबज म र�गा] , जब तक हिक (� य� साहिबत न कर द हिक--

(क) इस धारा क हि(रदध अपराध न करन की सब यलि2य2 प(ा.(धानी बरतत हए, लिचहन क अस�ीपन क समबनध म सद� करन क लि�ए उसक पास कोई कारण अभिभकलिथत अपराध करत समय न�ी था, तथा

(�) अभिभयोजक दवारा या उसकी ओर स माग हिकए जान पर, उसन उन वयलि2यो क हि(षय म, जिजनस उसन ऐसा मा� या चीज अभिभपरापत की थी, (� सब जानकारी द दी थी, जो उसकी शलि2 म थी, अथ(ा

(ग) अनयथा उसन हिनद�हिषताप(.क काय. हिकया था, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध एक (ष. तक की �ो सकगी या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

487. हिकसी ऐस पातर क ऊपर बरिमथया धिचहन ब�ा�ा जिजसम माल रखा �--जो कोई हिकसी पTी, पकज या अनय पातर क ऊपर, जिजसम मा� र�ा हआ �ो, ऐसी रीहित स कोई ऐसा धिमथया लिचहन बनाएगा, जो इसलि�ए यलि2य2 रप स परकणडिलपत � हिक उसस हिकसी �ोक स(क को या हिकसी अनय वयलि2 को य� हि(शवास कारिरत �ो जाए हिक ऐस पातर म ऐसा मा� �, जो उसम न�ी �, या य� हिक उसम ऐसा मा� न�ी �, जो उसम �, या य� हिक ऐस पातर म र�ा हआ मा� ऐसी परकहित या क(ालि�Tी का � जो उसकी (ासतहि(क परकहित या क(ालि�Tी स भिभनन �, जब तक हिक (� य� साहिबत न कर द हिक उसन (� काय. कपT करन क आशय क हिबना हिकया � (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

488. हिकसी ऐस बरिमथया धिचहन को उपयोग म ला� क धिलए दणड--कोई अनतिनतम प(.गामी धारा दवारा परहितहिषदध हिकसी परकार स हिकसी ऐस धिमथया लिचहन का उपयोग करगा, जब तक हिक (� य� साहिबत न कर द हिक उसन (� काय. कपT करन क आशय क हिबना हिकया �, (� उसी परकार दणडिणडत हिकया जाएगा, मानो उसन उस धारा क हि(रदध अपराध हिकया �ो । 1 1958 क अधिधहिनयम स0 43 की धारा 135 और अनसची दवारा (25-11-1959 स) “हिकसी धिमथया वयापार लिचहन या” शबदो का �ोप हिकया गया ।

2 1958 क अधिधहिनयम स0 43 की धारा 135 और अनसची दवारा (25-11-1959 स) “वयापार लिचहन या” शबदो का �ोप हिकया गया । 3 1958 क अधिधहिनयम स0 43 की धारा 135 और अनसची दवारा (25-11-1959 स) म� धारा क सथान पर परहितसथाहिपत ।

4 1958 क अधिधहिनयम स0 43 की धारा 135 और अनसची दवारा (25-11-1959 स) कहितपय शबद क सथान पर परहितसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 91

489. कषहित कारिरत कर� क आ!य स समपधिV-धिचहन को हिबगाड�ा--जो कोई हिकसी समपभितत-लिचहन को, य� आशय र�त हए, या य� समभावय जानत हए हिक (� तदद(ारा हिकसी वयलि2 को कषहित कर, हिकसी समपभितत-लिचहन को अपसारिरत करगा, नषT करगा, हि(रहिपत करगा या उसम कछ जोOगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध एक (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।]

1[करसी �ोटो और बक �ोटो क हिवषय म 489क. करनसी �ोटो या बक �ोटो का कटकरण--जो कोई हिकसी करनसी नोT या बक नोT का कTकरण करगा, या जानत हए करनसी नोT या बक नोT क कTकरण की परहि�Eया क हिकसी भाग को समपाटिदत करगा, (� 2[आजी(न कारा(ास] स, या दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।

सपषटीकरण--इस धारा क और धारा 489�, 3[489ग, 489घ और 489ङ] क परयोजनो क लि�ए “बक नोT” पद स उसक (ा�क को माग पर धन दन क लि�ए ऐसा (चनपतर या (चनबध अभिभपरत �, जो ससार क हिकसी भी भाग म बककारी करन (ा� हिकसी वयलि2 दवारा परचालि�त हिकया गया �ो, या हिकसी राजय या सपण. परभत( सपनन शलि2 दवारा या उसक परधिधकार क अधीन परचालि�त हिकया गया �ो और जो धन क समतलय या सथानापनन क रप म उपयोग म �ाए जान क लि�ए आशधियत �ो ।

489ख. कटरधिचत या कटकत करसी �ोटो या बक �ोटो को असली क रप म उपयोग म ला�ा--जो कोई हिकसी कTरलिचत या कTकत करनसी नोT या बक नोT को, य� जानत हए या हि(शवास करन का कारण र�त हए हिक (� कTरलिचत या कTकत �, हिकसी अनय वयलि2 को बचगा या उसस �रीदगा या परापत करगा या अनयथा उसका दवया.पार करगा या अस�ी क रप म उस उपयोग म �ाएगा, (� 1[आजी(न कारा(ास] स, या दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।

489ग. कटरधिचत या कटकत करनसी �ोटो या बक �ोटो को कबज म रख�ा--जो कोई हिकसी कTरलिचत या कTकत करनसी नोT या बक नोT को य� जानत हए या हि(शवास करन का कारण र�त हए हिक (� कTरलिचत या कTकत � और य� आशय र�त हए हिक उस अस�ी क रप उपयोग म �ाए या (� अस�ी क रप म उपयोग म �ाई जा सक, अपन कबज म र�गा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा । 489घ. करनसी �ोटो या बक �ोटो की कटरच�ा या कटकरण क धिलए उपकरण या सामगरी ब�ा�ा या कबज म रख�ा--जो कोई हिकसी मशीनरी, उपकरण या सामगरी को हिकसी करनसी नोT या बक नोT की कTरचना या कTकरण क लि�ए उपयोग म �ाए जान क परयोजन स, या य� जानत हए या हि(शवास करन क कारण र�त हए हिक (� हिकसी करनसी नोT या बक नोT की कTरचना या कTकरण क लि�ए उपयोग म �ाए जान क लि�ए आशधियत �, बनाएगा, या बनान की परहि�Eया क हिकसी भाग का सपादन करगा या �रीदगा, या बचगा, या वययहिनत करगा, या अपन कबज म र�गा, (� 2[आजी(न कारा(ास] स, या दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।]

4[489ङ. करनसी �ोटो या बक �ोटो स सदशय रख� वाली दसतावजो की रच�ा या उपयोग--(1) जो कोई हिकसी दसता(ज को, जो करनसी नोT या बक नोT �ोना तातपरयियत �ो या करनसी नोT या बक नोT क हिकसी भी परकार सदश �ो या इतन हिनकTतः सदश �ो हिक पर(चना �ो जाना परकणडिलपत �ो, रचगा या रच(ाएगा या हिकसी भी परयोजन क लि�ए उपयोग म �ाएगा या हिकसी वयलि2 को परिरदतत करगा, (� जमा.न स, जो एक सौ रपए तक का �ो सकगा, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

(2) यटिद कोई वयलि2 जिजसका नाम ऐसी दसता(ज पर �ो, जिजसकी रचना उपधारा (1) क अधीन अपराध �, हिकसी पलि�स आहिcसर को उस वयलि2 का नाम और पता, जिजसक दवारा (� मटिदरत की गई थी या अनयथा रची गई थी, बतान क लि�ए अपभिकषत हिकए जान पर उस हि(धिधपण. परहित�त क हिबना बतान स इकार करगा, (� जमा.न स, जो दो सौ रपए तक का �ो सकगा, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

(3) ज�ा हिक हिकसी ऐसी दसता(ज पर जिजसक बार म हिकसी वयलि2 पर उपधारा (1) क अधीन अपराध का आरोप �गाया गया �ो, या हिकसी अनय दसता(ज पर, जो उस दसता(ज क समबनध म उपयोग म �ाई गई �ो, या हि(तरिरत की गई �ो, हिकसी वयलि2 का नाम �ो, (�ा जब तक ततपरहितक� साहिबत न कर टिदया जाए, य� उपधारणा की जा सकगी हिक उसी वयलि2 न (� दसता(ज रच(ाई � ।]

अधयाय 19

सवा सहिवदाओ क अपराधि�क भग क हिवषय म 1 1899 क अधिधहिनयम स0 12 की धारा 2 दवारा जोOा गया । 2 1955 क अधिधहिनयम स. 26 की धारा 117 और अनसची दवारा (1-1-1956 स) “आजी(न हिन(ा.सन” क सथान पर परहितसथाहिपत । 3 1950 क अधिधहिनयम स0 35 की धारा 3 और अनसची 2 दवारा “489ग और 489घ” क सथान पर परहितसथाहिपत ।

4 1943 क अधिधहिनयम स0 6 की धारा 2 दवारा अतःसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 92

490. [समदर यातरा या यातरा क दौरा� सवा भग ।T--कम.कार सहि(दा भग (हिनरसन) अधिधहिनयम, 1925 (1925 का 3) की धारा 2 और अनसची दवारा हिनरलिसत ।

491. अस�ाय वयधिकत की परिरचया# कर� की और उसकी आवशयकताओ की परतित कर� की सहिवदा का भग--जो कोई ऐस वयलि2 की, जो हिकशोरा(सथा या लिचततहि(कहित या रोग या शारीरिरक दब.�ता क कारण अस�ाय �, या अपन हिनजी कषम की वय(सथा या अपनी हिनजी आ(शयकताओ की परवित करन क लि�ए असमथ. �, परिरचया. करन क लि�ए या उसकी आ(शयकताओ की परवित करन क लि�ए हि(धिधपण. सहि(दा दवारा आबदध �ोत हए, स(चछया ऐसा करन का �ोप करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन मास तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो दो सौ रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

492. [दर वाल सथा� पर सवा कर� का सहिवदा भग ज�ा सवक को माधिलक क खचa पर ल जाया जाता � ।T--कम.कार सहि(दा भग (हिनरसन) अधिधहिनयम, 1925 (1925 का 3) की धारा 2 और अनसची दवारा हिनरलिसत ।

अधयाय 20

हिववा� समबनधी अपरा�ो क हिवषय म 493. हिवधि�पण# हिववा� का परवच�ा स हिवशवास उतपररिरत कर� वाल परष दवारा कारिरत स�वास---�र परष जो

हिकसी सतरी को, जो हि(धिधप(.क उसस हि((ाहि�त न �ो, पर(चना स य� हि(शवास कारिरत करगा हिक (� हि(धिधप(.क उसस हि((ाहि�त � और इस हि(शवास म उस सतरी का अपन साथ स�(ास या मथन कारिरत करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।

494. पहित या पत�ी क जीव�काल म प�ः हिववा� कर�ा--जो कोई पहित या पतनी क जीहि(त �ोत हए हिकसी ऐसी दशा म हि((ा� करगा जिजसम ऐसा हि((ा� इस कारण शनय � हिक (� ऐस पहित या पतनी क जी(नका� म �ोता �, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडीय �ोगा ।

अपवाद--इस धारा का हि(सतार हिकसी ऐस वयलि2 पर न�ी �, जिजसका ऐस पहित या पतनी क साथ हि((ा� सकषम अधिधकारिरता क नयाया�य दवारा शनय घोहिषत कर टिदया गया �ो,

और न हिकसी ऐस वयलि2 पर �, जो प(. पहित या पतनी क जी(नका� म हि((ा� कर �ता �, यटिद ऐसा पहित या पतनी उस पशचाती(तx हि((ा� क समय ऐस वयलि2 स सात (ष. तक हिनरनतर अनपणडिसथत र�ा �ो, और उस का� क भीतर ऐस वयलि2 न य� न�ी सना �ो हिक (� जीहि(त �, परनत य� तब जब हिक ऐसा पशचाती(तx हि((ा� करन (ा�ा वयलि2 उस हि((ा� क �ोन स प(. उस वयलि2 को, जिजसक साथ ऐसा हि((ा� �ोता �, तथयो की (ासतहि(क णडिसथहित की जानकारी, ज�ा तक हिक उनका जञान उसको �ो, द द ।

495. व�ी अपरा� पव#वत� हिववा� को उस वयधिकत स धिछपाकर जिजसक साथ पशचातावत� हिववा� हिकया जाता �--जो कोई प(.(तx अनतिनतम धारा म परिरभाहिषत अपराध अपन प(. हि((ा� की बात उस वयलि2 स लिछपाकर करगा जिजसस पशचाती(तx हि((ा� हिकया जाए, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दस (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।

496. हिवधि�पण# हिववा� क हिब�ा कपटपव#क हिववा� कम# परा कर ल�ा--जो कोई बईमानी स या कपTपण. आशय स हि((ाहि�त �ोन का कम. य� जानत हए परा करगा हिक तदद(ारा (� हि(धिधप(.क हि((ाहि�त न�ी हआ �, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।

497. जारकम#--जो कोई ऐस वयलि2 क साथ, जो हिक हिकसी अनय परष की पतनी � और जिजसका हिकसी अनय परष की पतनी �ोना (� जानता � या हि(शवास करन का कारण र�ता �, उस परष की सममहित या मौनानक�ता क हिबना ऐसा मथन करगा जो ब�ातसग क अपराध की कोटिT म न�ी आता, (� जारकम. क अपराध का दोषीी �ोगा, और दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध पाच (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा । ऐस माम� म पतनी दषपररक क रप म दणडनीय न�ी �ोगी ।

498. हिववाहि�त सतरी को आपराधि�क आ!य स फसलाकर ल जा�ा, या ल जा�ा या हि�रदध रख�ा--जो कोई हिकसी सतरी को, जो हिकसी अनय परष की पतनी �, और जिजसका अनय परष की पतनी �ोना (� जानता �, या हि(शवास करन का कारण र�ता �, उस परष क पास स, या हिकसी ऐस वयलि2 क पास स, जो उस परष की ओर स उसकी द�र� करता �, इस आशय स � जाएगा, या cस�ाकर � जाएगा हिक (� हिकसी वयलि2 क साथ अय2 सभोग कर या इस आशय स ऐसी हिकसी सतरी को लिछपाएगा या हिनरदध करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा । भारतीय दड सहि�ता, 1860 93

1[अधयाय 20क पहित या पहित क �ातदारो दवारा कररता क हिवषय म

498क. हिकसी सतरी क पहित या पहित क �ातदार दवारा उसक परहित कररता कर�ा--जो कोई, हिकसी सतरी का पहित या पहित नातदार �ोत हए, ऐसी सतरी क परहित कररता करगा, (� कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध तीन (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।

सपषटीकरण--इस धारा क परयोजनो क लि�ए,“ कररता” हिनमनलि�खि�त अभिभपरत �ः-- (क) जानबझकर हिकया गया कोई आचरण जो ऐसी परकहित का � जिजसस सतरी को आतम�तया करन क लि�ए या उसक

जी(न, अग या स(ासथय (जो चा� मानलिसक �ो या शारीरिरक) क परहित गभीर कषहित या �तरा कारिरत करन क लि�ए उस पररिरत करन की समभा(ना �; या

(�) हिकसी सतरी को तग करना, ज�ा उस या उसस समबनधिनधत हिकसी वयलि2 को हिकसी समपभितत या मलय(ान परहितभहित क लि�ए हिकसी हि(धिधहि(रदध माग को परी करन क लि�ए परपीहिडत करन को दधि� स या उसक अथ(ा उसस सबधिधत हिकसी वयलि2 क ऐस माग परी करन म असc� र�न क कारण इस परकार तग हिकया जा र�ा � ।]

अधयाय 21

मा��ाहि� क हिवषय म 499. मा��ाहि�--जो कोई या तो बो� गए या पढ जान क लि�ए आशधियत शबदो दवारा या सकतो दवारा, या दषय रपणो

दवारा हिकसी वयलि2 क बार म कोई �ाछन इस आशय स �गाता या परकालिशत करता � हिक ऐस �ाछन स ऐस वयलि2 की खयाहित की अप�ाहिन की जाए या य� जानत हए या हि(शवास करन का कारण र�त हए �गाता या परकालिशत करता � ऐस �ाछन स ऐस वयलि2 की खयाहित की अप�ाहिन �ोगी, एतसमिसमनपशचात अप(ाटिदत दशाओ क लिस(ाय उसक बार म क�ा जाता � हिक (� उस वयलि2 की मान�ाहिन करता � ।

सपषटीकरण 1--हिकसी मत वयलि2 को कोई �ाछन �गाना मान�ाहिन की कोटिT म आ सकगा यटिद (� �ाछन उस वयलि2 की खयाहित की, यटिद (� जीहि(त �ोता, अप�ाहिन करता, और उसक परिर(ार या अनय हिनकT समबनधिनधयो की भा(नाओ को उप�त करन क लि�ए आशधियत �ो ।

सपषटीकरण 2--हिकसी कमपनी या सगम या वयलि2यो क सम� क समबनध म उसकी (सी �लिसयत म कोई �ाछन �गाना मान�ाहिन की कोटिT म आ सकगा ।

सपषटीकरण 3--अनकलप क रप म, या वयगोलि2 क रप म अभिभवय2 �ाछन मान�ाहिन की कोटिT म आ सकगा । सपषटीकरण 4--कोई �ाछन हिकसी वयलि2 की खयाहित की अप�ाहिन करन (ा�ा न�ी क�ा जाता जब तक हिक (� �ाछन

दसरो की दधि� म परतयकषतः या अपरतयकषतः उस वयलि2 क सदाचारिरक या बौजिदधक स(रप को �य न कर या उस वयलि2 की जाहित क या उसकी आजीहि(का क समबनध म उसक शी� को �य न कर या उस वयलि2 की सा� को नीच न हिगराए या य� हि(शवास न कराए हिक उस वयलि2 का शरीर घणोतपादक दशा म � या ऐसी दशा म � जो साधारण रप स हिनकषT समझी जाती � ।

दषटात (क) क य� हि(शवास करान क आशय स हिक य न ख की घOी अ(शय चराई �, क�ता �, “य एक ईमानदार वयलि2 �, उसन ख की

घOी कभी न�ी चराई �” । जब तक हिक य� अप(ादो म स हिकसी क अनतग.त न आता �ो य� मान�ाहिन � । (�) क स पछा � हिक ख की घOी हिकसन चराई � । क य� हि(शवास करान क आशय स हिक य न ख की घOी चराई �, य की ओर

सकत करता � जब तक हिक य� अप(ादो म स हिकसी क अनतग.त न आता �ो, य� मान�ाहिन � । (ग) क य� हि(शवास करान क आशय स हिक य न ख की घOी चराई �, य का एक लिचतर �ीचता � जिजसम (� ख की घOी �कर भाग

र�ा � । जब तक हिक य� अप(ादो म स हिकसी क अनतग.त न आता �ो य� मान�ाहिन � । प�ला अपवाद--सतय बात का लाछ� जिजसका लगाया जा�ा या परकाशि!त हिकया जा�ा लोक कलयाण क धिलए

अपशिकषत �--हिकसी ऐसी बात का �ाछन �गाना, जो हिकसी वयलि2 क समबनध म सतय �ो, मान�ाहिन न�ी �, यटिद य� �ोक कलयाण क लि�ए �ो हिक (� �ाछन �गाया जाए या परकालिशत हिकया जाए । (� �ोक कलयाण क लि�ए � या न�ी य� तथय का परशन � ।

दसरा अपवाद--लोक सवको का लोकाचरण--उसक �ोक कतयो क हिन(.�न म �ोक स(क क आचरण क हि(षय म या उसक शी� क हि(षय म, ज�ा तक उसका शी� उस आचरण स परकT �ोता �ो, न हिक उसस आग, कोई राय, चा� (� कछ भी

�ो, सदभा(प(.क अभिभवय2 करना मान�ाहिन न�ी � । 1 1983 क अधिधहिनयम स0 46 की धारा 2 दवारा अनतःसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 94

तीसरा अपवाद--हिकसी लोक परशन क समबनध म हिकसी वयधिकत का आचरण--हिकसी �ोक परशन क समबनध म हिकसी वयलि2 क आचरण क हि(षय म, और उसक शी� क हि(षय म, ज�ा तक हिक उसका शी� उस आचरण स परकT �ोता �ो, न हिक उसस आग, कोई राय, चा� (� कछ भी �ो, सदभा(प(.क अभिभवय2 करना मान�ाहिन न�ी � ।

दषटात हिकसी �ोक परशन पर सरकार को अजx दन म, हिकसी �ोक परशन क लि�ए सभा ब�ान क अपकषण पर �सताकषर करन म, ऐसी सभा का

सभापहितत( करन म या उसम �ाजिजर �ोन म, हिकसी ऐसी सधिमहित का गठन करन म या उसम सनधिममलि�त �ोन म, जो �ोक समथ.न आमहितरत करती �, हिकसी ऐस पद क हिकसी हि(लिशषT अभयथx क लि�ए मत दन म या उसक पकष म परचार करन म, जिजसक कत.वयो क दकषतापण. हिन(.�न स �ोक हि�तबदध �, य आचरण क हि(षय म क दवारा कोई राय, चा� (� कछ भी �ो, सदभा(प(.क अभिभवय2 करना मान�ाहिन न�ी � ।

चौथा अपवाद--नयायालयो की काय#वाहि�यो की रिरपोट` का परका!�-- हिकसी नयाया�य की काय.(ाहि�यो की या हिकन�ी ऐसी काय.(ाहि�यो क परिरणाम की सारतः स�ी रिरपोT. को परकालिशत करना मान�ाहिन न�ी � ।

सपषटीकरण--कोई जनतिसTस आc पीस या अनय आहिcसर, जो हिकसी नयाया�य म हि(चारण स प(. की परारसमिमभक जाच �� नयाया�य म कर र�ा �ो, उपरो2 धारा क अथ. क अनतग.त नयाया�य � ।

पाचवा अपवाद--नयायालय म हिवहि�शिशचत मामल क गणागण या साशिकषयो तथा समपकत अनय वयधिकतयो का आचरण--हिकसी ऐस माम� क गणागण क हि(षय म चा� (� लिसहि(� �ो या दाणडिणडक, जो हिकसी नयाया�य दवारा हि(हिनभिशचत �ो चका �ो या हिकसी ऐस माम� क पकषकार, साकषी या अभिभकता. क रप म हिकसी वयलि2 क आचरण क हि(षय म या ऐस वयलि2 क शी� क हि(षय म, ज�ा तक हिक उसका शी� उस आचरण स परकT �ोता �ो, न हिक उसक आग, कोई राय, चा� (� कछ भी �ो, सदभा(प(.क अभिभवय2 करना मान�ाहिन न�ी � ।

दषटात (क) क क�ता � “ म समझता ह हिक उस हि(चारण म य का साकषय ऐसा परसपर हि(रोधी � हिक (� अ(शय �ी म�. या बईमान �ोना

चाहि�ए ” । यटिद क ऐसा सदभा(प(.क क�ता � तो (� इस अप(ाद क अनतग.त आ जाता �, कयोहिक जो राय (� य क शी� क समबनध म अभिभवय2 करता �, (� ऐसी � जसी हिक साकषी क रप म य क आचरण स, न हिक उसक आग, परकT �ोती � ।

(�) हिकनत यटिद क क�ता � “जो कछ य न उस हि(चारण म दढताप(.क क�ा �, म उस पर हि(शवास न�ी करता कयोहिक म जानता ह हिक (� सतय(ाटिदता स रहि�त वयलि2 �,” तो क इस अप(ाद क अनतग.त न�ी आता �, कयोहिक (� राय जो (� य क शी� क समबनध म अभिभवय2 करता �, ऐसी राय �, जो साकषी क रप म य क आचरण पर आधारिरत न�ी � ।

छठा अपवाद--लोककहित क गणागण--हिकसी ऐसी कहित क गणागण क हि(षय म, जिजसको उसक कता. न �ोक क हिनण.य क लि�ए र�ा �ो, या उसक कता. क शी� क हि(षय म, ज�ा तक हिक उसका शी� ऐसी कहित म परकT �ोता �ो, न हिक उसक आग, कोई राय सदभा(प(.क अभिभवय2 करना मान�ाहिन न�ी � ।

सपषटीकरण--कोई कहित �ोक क हिनण.य क लि�ए अभिभवय2 रप स या कता. की ओर स हिकए गए ऐस काय� दवारा, जिजनस �ोक क हिनण.य क लि�ए ऐसा र�ा जाना हि((भिकषत �ो, र�ी जा सकती � ।

दषटात (क) जो वयलि2 पसतक परकालिशत करता � (� उस पसतक को �ोक क हिनण.य क लि�ए र�ता � । (�) (� वयलि2, जो �ोक क समकष भाषण दता �, उस भाषण को �ोक क हिनण.य क लि�ए र�ता � । (ग) (� अभिभनता या गायक, जो हिकसी �ोक रगमच पर आता �, अपन अभिभनय या गायन को �ोक क हिनण.य क लि�ए र�ता � । (घ) क, य दवारा परकालिशत एक पसतक क सबध म क�ता � “य की पसतक म�.तापण. �, य अ(शय कोई दब.� परष �ोना चाहि�ए । य

की पसतक अलिशषTतापण. �, य अ(शय �ी अपहि(तर हि(चारो का वयलि2 �ोना चाहि�ए” । यटिद क ऐसा सदभा(प(.क क�ता �, तो (� इस अप(ाद क अनतग.त आता �, कयोहिक (� राय जो (�, य क हि(षय म अभिभवय2 करता �, य क शी� स (�ी तक, न हिक उसस आग समबनध र�ती � ज�ा तक हिक य का शी� उसकी पसतक स परकT �ोता � ।

(ङ) हिकनत यटिद क क�ता � “मझ इस बात का आशचय. न�ी � हिक य की पसतक म�.तापण. तथा अलिशषTतापण. � कयोहिक (� एक दब.� और �मपT वयलि2 �” । क इस अप(ाद क अनतग.त न�ी आता कयोहिक (� राय, जो हिक (� य क शी� क हि(षय म अभिभवय2 करता �, ऐसी राय � जो य की पसतक पर आधारिरत न�ी � ।

सातवा अपवाद--हिकसी अनय वयधिकत क ऊपर हिवधि�पण# पराधि�कार रख� वाल वयधिकत दवारा सदभावपव#क की गई परिरहि�नदा--हिकसी ऐस वयलि2 दवारा, जो हिकसी अनय वयलि2 क ऊपर कोई ऐसा पराधिधकार र�ता �ो, जो या तो हि(धिध दवारा परदतत �ो या उस वयलि2 क साथ की गई हिकसी हि(धिधपण. सहि(दा स उदभत �ो, ऐस हि(षयो म, जिजनस हिक ऐसा हि(धिधपण. पराधिधकार समबनधिनधत �ो, उस अनय वयलि2 क आचरण की सदीभा(प(.क की गई कोई परिरहिननदा मान�ाहिन न�ी � ।

दषटात भारतीय दड सहि�ता, 1860 95

हिकसी साकषी क आचरण की या नयाया�य क हिकसी आहिcसर क आचरण की सदभा(प(.क परिरहिननदा करन (ा�ा कोई नयायाधीश, उन वयलि2यो की, जो उसक आदशो क अधीन �, सदभा(प(.क परिरहिननदा करन (ा�ा कोई हि(भागाधयकष, अनय लिशशओ की उपणडिसथहित म हिकसी लिशश की सदभा(प(.क परिरहिननदा करन (ा�ा हिपता या माता, अनय हि(दयारछिथयो की उपणडिसथहित म हिकसी हि(दयाथx की सदभा(प(.क परिरहिननदा करन (ा�ा लिशकषक, जिजस हि(दयाथx क माता-हिपता क पराधिधकार परापत �, स(ा म लिशलिथ�ता क लि�ए स(क की सदभा(प(.क परिरहिननदा करन (ा�ा स(ामी, अपन बक क रोकहिOए की, ऐस रोकहिङए क रप म ऐस रोकहिङए क आचरण क लि�ए, सदभा(प(.क परिरहिननदा करन (ा�ा कोई बककार इस अप(ाद क अनतग.त आत � ।

आठवा अपवाद--पराधि�कत वयधिकत क समकष सदभावपव#क अशिभयोग लगा�ा--हिकसी वयलि2 क हि(रदध कोई अभिभयोग ऐस वयलि2यो म स हिकसी वयलि2 क समकष सदीभा(प(.क �गाना, जो उस वयलि2 क ऊपर अभिभयोग की हि(षय(सत क समबनध म हि(धिधपण. पराधिधकार र�त �ो, मान�ाहिन न�ी � ।

दषटात यटिद क एक मजिजसटरT क समकष य पर सदभा(प(.क अभिभयोग �गाता �, यटिद क एक स(क य क आचरण क समबनध म य क मालि�क

स सदीभा(प(.क लिशकायत करता � ; यटिद क एक लिशश य क समबनध म य क हिपता स सदभा(प(.क लिशकायत करता � ; तो क इस अप(ाद क अनतग.त आता � ।

�ौवा अपवाद--अप� या अनय क हि�तो की सरकषा क धिलए हिकसी वयधिकत दवारा सदभावपव#क लगाया गया लाछ�--हिकसी अनय क शी� पर �ाछन �गाना मान�ाहिन न�ी �, परनत य� तब जब हिक उस �गान (ा� वयलि2 क या हिकसी अनय वयलि2 क हि�त की सरकषा क लि�ए, या �ोक कलयाण क लि�ए, (� �ाछन सदीभा(प(.क �गाया गया �ो ।

दषटात (क) क एक दकानदार � । (� ख स, जो उसक कारबार का परबनध करता �, क�ता �, “य को कछ मत बचना जब तक हिक (� तम�

नकद धन न द द, कयोहिक उसकी ईमानदारी क बार म मरी राय अचछी न�ी �”। यटिद उसन य पर य� �ाछन अपन हि�तो की सरकषा क लि�ए सदभा(प(.क �गाया �, तो क इस अप(ाद क अनतग.त आता � ।

(�) क, एक मजिजसटरT अपन (रिरषठ आहिcसर को रिरपोT. दत हए, य क शी� पर �ाछन �गाता � । य�ा, यटिद (� �ाछन सदभा(प(.क और �ोक कलयाण क लि�ए �गाया गया �, तो क इस अप(ाद क अनतग.त आता � ।

दसवा अपवाद--साव�ा�ी, जो उस वयधिकत की भलाई क धिलए, जिजस हिक व� दी गई � या लोक कलयाण क धिलए आ!बरियत �--एक वयलि2 को दसर वयलि2 क हि(रदध सदभा(प(.क सा(धान करना मान�ाहिन न�ी �, परनत य� तब जब हिक ऐसी सा(धानी उस वयलि2 की भ�ाई क लि�ए, जिजस (� दी गई �ो, या हिकसी ऐस वयलि2 की भ�ाई क लि�ए, जिजसस (� वयलि2 हि�तबदध �ो, या �ोक कलयाण क लि�ए आशधियत �ो ।

500. मा��ाहि� क धिलए दणड--जो कोई हिकसी अनय वयलि2 की मान�ाहिन करगा, (� सादा कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

501. मा��ाहि�कारक जा�ी हई बात को मटिदरत या उतकीण# कर�ा--जो कोई हिकसी बात को य� जानत हए या हि(शवास करन का अचछा कारण र�त हए हिक ऐसी बात हिकसी वयलि2 क लि�ए मान�ाहिनकारक �, मटिदरत करगा, या उतकीण. करगा, (� सादा कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

502. मा��ाहि�कारक हिवषय रख� वाल मटिदरत या उतकीण# पदाथ# का बच�ा--जो कोई हिकसी मटिदरत या उतकीण. पदाथ. को, जिजसम मान�ाहिनकारक हि(षय अनतरवि(षT �, य� जानत हए हिक उसम ऐसा हि(षय अनतरवि(षT �, बचगा या बचन की परसथापना करगा, (� सादा कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

अधयाय 22

आपराधि�क अशिभतरास, अपमा� और कषोभ क हिवषय म 503. आपराधि�क अशिभतरास--जो कोई हिकसी अनय वयलि2 क शरीर, खयाहित या समपभितत को या हिकसी ऐस वयलि2 क

शरीर या खयाहित को, जिजसस हिक (� वयलि2 हि�तबदध �ो कोई कषहित करन की धमकी उस अनय वयलि2 को इस आशय स दता � हिक उस सतरास कारिरत हिकया जाए, या उसस ऐसी धमकी क हिनषपादन का परिर(ज.न करन क साधन स(रप कोई ऐसा काय. कराया जाए, जिजस करन क लि�ए (� (ध रप स आबदध न �ो, या हिकसी ऐस काय. को करन का �ोप कराया जाए, जिजस करन क लि�ए (� (ध रप स �कदार �ो, (� आपराधिधक अभिभतरास करता � ।

सपषटीकरण--हिकसी ऐस मत वयलि2 की खयाहित को कषहित करन की धमकी जिजसस (� वयलि2, जिजस धमकी दी गई �, हि�तबदध �ो, इस धारा क अनतग.त आता � । भारतीय दड सहि�ता, 1860 96

दषटात लिसहि(� (ाद च�ान स उपरत र�न क लि�ए ख को उतपररिरत करन क परयोजन स ख क घर को ज�ान की धमकी क दता � । क

आपराधिधक अभिभतरास का दोषीी � । 504. लोक!ाहित भग करा� को परकोहिपत कर� क आ!य स सा!य अपमा�--जो कोई हिकसी वयलि2 को साशय

अपमाहिनत करगा और तदद(ारा उस वयलि2 को इस आशय स, या य� समभावय जानत हए, परकोहिपत करगा हिक ऐस परकोपन स (� �ोक शानतिनत भग या कोई अनय अपराध कारिरत करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

1[505. लोक रिरहि�कारक वकतवय--2[(1)] जो कोई हिकसी कथन, जनशरहित या रिरपोT. की--

(क) इस आशय स हिक, या जिजसस य� समभावय �ो हिक, 3[भारत की] सना, 4[नौसना या (ायसना] का कोई आहिcसर, सहिनक, 5[नाहि(क या (ायसहिनक] हि(दरो� कर या अनयथा (� अपन उस नात, अपन कत.वय की अ(��ना कर या उसक पा�न म असc� र�, अथ(ा

(�) इस आशय स हिक, या जिजसस य� समभावय �ो हिक, �ोक या �ोक क हिकसी भाग को ऐसा भय या सतरास कारिरत �ो जिजसस कोई वयलि2 राजय क हि(रदध या �ोक-परशानतिनत क हि(रदध अपराध करन क लि�ए उतपररिरत �ो, अथ(ा

(ग) इस आशय स हिक, या जिजसस य� समभावय �ो हिक, उसस वयलि2यो का कोई (ग. या समदाय हिकसी दसर (ग. या समदाय क हि(रदध अपराध करन क लि�ए उददीपत हिकया जाए,

रचगा, परकालिशत करगा या परिरचालि�त करगा, (� कारा(ास स, जो 6[तीन (ष.] तक का �ो सकगा, या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

7[(2) हिवशिभनन वग` म !तरता, घणा या वम�सय पदा या समपरवरतितत कर� वाल कथ�--जो कोई जनशरहित या सतरासकारी समाचार अनतरवि(षT करन (ा� हिकसी कथन या रिरपोर] को, इस आशय स हिक, या जिजसस य� सभावय �ो हिक, हि(भिभनन धारयिमक, म�(शीय, भाषीायी या परादलिशक सम�ो या जाहितयो या समदायो क बीच शतरता, घणा या (मनसय की भा(नाए, धम., म�(श, जनम-सथान, हिन(ास-सथान, भाषीा, जाहित या समदाय क आधारो पर या अनय हिकसी भी आधार पर पदा या सपर(रवितत �ो, रचगा, परकालिशत करगा या परिरचालि�त करगा, (� कारा(ास स, जो तीन (ष. तक का �ो सकगा, या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

(3) पजा क सथा� आटिद म हिकया गया उप�ारा (2) क अ�ी� अपरा�--जो कोई उपधारा (2) म हि(हिनरदिदषT अपराध हिकसी पजा क सथान म या हिकसी जमा( म, जो धारयिमक पजा या धारयिमक कम. करन म �गा हआ �ो, करगा, (� कारा(ास स, जो पाच (ष. तक का �ो सकगा, दहिडत हिकया जाएगा और जमा.न स भी दणडनीय �ोगा ।]

अपवाद--ऐसा कोई कथन, जनशरहित या रिरपोT. इस धारा क अथ. क अनतग.त अपराध की कोटिT म न�ी आती,जब उस रचन (ा�, परकालिशत करन (ा� या परिरचालि�त करन (ा� वयलि2 क पास इस हि(शवास क लि�ए यलि2य2 आधार �ो हिक ऐसा कथन, जनशरहित या रिरपोT. सतय � और 8[(� उस सदभा(प(.क तथा प(�2 जस हिकसी आशय क हिबना] रचता �, परकालिशत करता � या परिरचालि�त करता � ।

506. आपराधि�क अशिभतरास क धिलए दणड--जो कोई आपराधिधक अभिभतरास का अपराध करगा, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा । यटिद �मकी मतय या घोर उप�हित इतयाटिद कारिरत कर� की �ो--तथा यटिद धमकी मतय या घोर उप�हित कारिरत करन की, या अखिगन दवारा हिकसी समपभितत का नाश कारिरत करन की या मतय दणड स या 9[आजी(न कारा(ास] स, या सात (ष. की अ(धिध तक क कारा(ास स दणडनीय अपराध कारिरत करन की, या हिकसी सतरी पर असहितत( का �ाछन �गान की �ो ; तो (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध सात (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत जाएगा । 1 1898 क अधिधहिनयम स0 4 की धारा 6 दवारा म� धारा क सथान पर परहितसथाहिपत । 2 1969 क अधिधहिनयम स0 35 की धारा 3 दवारा धारा 505 को उसकी उपधारा (1) क रप म पनःसखयाहिकत हिकया गया । 3 हि(धिध अनक�न आदश, 1950 दवारा “ �र मजसTी की या इमपीरिरय� सरवि(स T¹पस” क सथान पर परहितसथाहिपत । “मजसTी” शबद क पशचाती(तx “या राय�

इहिडयन मरिरन म” शबदो का 1934 क अधिधहिनयम स0 35 की धारा 2 और अनसची दवारा �ोप हिकया गया था ।

4 1927 क अधिधहिनयम स0 10 की धारा 2 और अनसची 1 दवारा “या नौसना ” क सथान पर परहितसथाहिपत । 5 1927 क अधिधहिनयम स0 10 की धारा 2 और अनसची 1 दवारा “या नौसहिनक” क सथान पर परहितसथाहिपत । 6 1961क अधिधहिनयम स0 41 की धारा 4 दवारा “दो (ष.” क सथान पर परहितसथाहिपत । 7 1969 क अधिधहिनयम स0 35 की धारा 3 दवारा अतःसथाहिपत । 8 1969 क अधिधहिनयम स0 35 की धारा 3 दवारा अतःसथाहिपत । 9 1955 क अधिधहिनयम स0 26 की धारा 117 और अनसची दवारा (1-1-1956 स) “हिन(ारछिसन” क सथान पर परहितसथाहिपत । भारतीय दड सहि�ता, 1860 97

507. अ�ाम ससच�ा दवारा आपराधि�क अशिभतरास--जो कोई अनाम ससचना दवारा या उस वयलि2 का, जिजसन धमकी दी �ो, नाम या हिन(ास-सथान लिछपान की प(ा.(धानी करक आपराधिधक अभिभतरास का अपराध करगा, (� प(.(तx अहितम धारा दवारा उस अपराध क लि�ए उपबनधिनधत दणड क अहितरिर2, दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध दो (ष. तक की �ो सकगी, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

508. वयधिकत को य� हिवशवास कर� क धिलए उतपररिरत करक हिक व� दवी अपरसाद का भाज� �ोगा कराया गया काय#--जो कोई हिकसी वयलि2 को य� हि(शवास करन क लि�ए उतपररिरत करक, या उतपररिरत करन का परयतन करक, हिक यटिद (� उस बात को न करगा, जिजस उसस कराना अपराधी का उददशय �ो, या यटिद (� उस बात को करगा जिजसका उसस �ोप कराना अपराधी का उददशय �ो, तो (� या कोई वयलि2, जिजसस (� हि�तबदध �, अपराधी क हिकसी काय. स द(ी अपरसाद का भाजन �ो जाएगा, या बना टिदया जाएगा, स(चछया उस वयलि2 स कोई ऐसी बात कर(ाएगा या कर(ान का परयतन करगा, जिजस करन क लि�ए (� (ध रप स आबदध न �ो, या हिकसी ऐसी बात क करन का �ोप कर(ाएगा या कर(ान का परयतन करगा, जिजस करन क लि�ए (� (ध रप स �कदार �ो, (� दोनो म स हिकसी भाहित क कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध एक (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

दषटात (क) क, य� हि(शवास करान क आशय स य क दवार पर धरना दता � हिक इस परकार धरना दन स (� य को द(ी अपरसाद का भाजन

बना र�ा � । क न इस धारा म परिरभाहिषत अपराध हिकया � । (�) क, य को धमकी दता � हिक यटिद य अमक काय. न�ी करगा, तो क अपन बचचो म स हिकसी एक का (ध ऐसी परिरणडिसथहितयो म कर

डा�गा जिजसस ऐस (ध करन क परिरणामस(रप य� हि(शवास हिकया जाए, हिक य द(ी अपरसाद का भाजन बना टिदया गया � । क न इस धारा म परिरभाहिषत अपराध हिकया � ।

509. !बद, अगहिवकषप या काय# जो हिकसी सतरी की ल�ा का अ�ादर कर� क धिलए आ!बरियत �--जो कोई हिकसी सतरी की ��ा का अनादर करन क आशय स कोई शबद क�गा, कोई ध(हिन या अग हि(कषप करगा, या कोई (सत परदरछिशत करगा, इस आशय स हिक ऐसी सतरी दवारा ऐसा शबद या ध(हिन सनी जाए, या ऐसा अगहि(कषप या (सत द�ी जाए, अथ(ा ऐसी सतरी की एकानतता का अहितकरमण करगा, (� सादा कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध एक (ष. तक की �ो सकगी, या जमा.न स, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

510. मV वयधिकत दवारा लोक सथा� म अवचार--जो कोई मततता की �ा�त म हिकसी �ोक सथान म, या हिकसी ऐस सथान म, जिजसम उसका पर(श करना अहितचार �ो, आएगा और (�ा इस परकार का आचरण करगा जिजसस हिकसी वयलि2 को कषोभ �ो, (� सादा कारा(ास स, जिजसकी अ(धिध चौबीस घT तक की �ो सकगी, या जमा.न स, जो दस रपए तक का �ो सकगा, या दोनो स, दहिडत हिकया जाएगा ।

अधयाय 23

अपरा�ो को कर� क परयत�ो क हिवषय म 511. आजीव� कारावास या अनय कारावास स दणड�ीय अपरा�ो को कर� क परयत� कर� क धिलए दणड--जो

कोई इस सहि�ता दवारा 2[आजी(न कारा(ास] स या कारा(ास स दणडनीय अपराध करन का, या ऐसा अपराध कारिरत हिकए जान का परयतन करगा, और ऐस परयतन म अपराध करन की टिदशा म कोई काय. करगा, ज�ा हिक ऐस परयतन क दणड क लि�ए कोई अभिभवय2 उपबनध इस सहि�ता दवारा न�ी हिकया गया �, (�ा (� 1[उस अपराध क लि�ए उपबनधिनधत हिकसी भाहित क कारा(ास स उस अ(धिध क लि�ए, जो, यथाणडिसथहित, आजी(न कारा(ास स आध तक की या उस अपराध क लि�ए उपबनधिनधत दीघ.तम अ(धिध क आध तक की �ो सकगी] या ऐस जमा.न स, जो उस अपराध क लि�ए उपबनधिनधत �, या दोनो स, दणडिणडत हिकया जाएगा ।

दषटात (क) क, एक सनदक तोङकर �ो�ता � और उसम स कछ आभषण चरान का परयतन करता � । सनदक इस परकार �ो�न क पशचात उस जञात �ोता � हिक उसम कोई आभषण न�ी � । उसन चोरी करन की टिदशा म काय. हिकया �,

और इसलि�ए, (� इस धारा क अधीन दोषीी � । (�) क, य की जब म �ाथ डा�कर य की जब स चरान का परयतन करता � । य की जब म कछ न �ोन क परिरणामस(रप क अपन

परयतन म असc� र�ता � । क इस धारा क अधीन दोषीी � । 1 1955 क अधिधहिनयम स0 26 की धारा 117 और अनसची दवारा (1-1-19576 स) कहितपय शबदो क सथान पर परहितसथाहिपत ।