kavyakalashhome.files.wordpress.com … · सामािजक रख दू Ðरयाँ,अè...
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धान स पादक कुशा जैन "शू य", बाँसवाडा
सह-स पादक
वनोद कुमार जैन "वा वर", सागवाड़ा
स पादक य द दशक ी नवासन अ यर , उदयपुर
श ा वद हेमे उपा याय, सरोदा आचाय संजीव वमा स लल, जबलपुर
का य कलश प का म य त वचार लेखक के है, यह ज र नह क स पादक , काशक, मु क उनसे सहमत हो।
आवरण च — कुशा जैन स पादन, संचालन, ब धन, काशन— अवैत नक अ यावसा यक का य कलश प का हेतु रचनाएं [email protected] पर आमं त ह। अपनी मौ लक रचना के साथ अपना छाया च , पता तथा काशन हेतु वीकृ त लख कर भेजे।
उप-स पादक मेघा राठ , भोपाल वजय मा , उदयपुर
वनोद पगा रया " वरल", सागवाड़ा बदामीलाल जैन, सलु बर नहा रका जैन, बागीदौरा श पी कुमार , उदयपुर माया वा वर, कानपुर
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सहसा आयी आपदा ,कोरोना अ भशाप।
आपस म रख दू रयाँ, वरन ् भोग सतंाप।।
ाकृ तक अवसाद यह , छुआछूत का रोग।
सामािजक स ब ध को , बंद कर हमलोग।।
रख हाथ नमल सदा , बार बार धो हाथ।
सनेटराइज हाथ को , तज न अपना साथ।।
तकनीक का ज़माना , मोबाइल का जाल।
रख दू रयाँ दो गजी , ह गे सब खुशहाल।।
जान सबक कुशलता , दरूभाष सलंाप।
डजीटल सहयोग ल , सामािजक ह आप।।
वपद काल हम एक ह ,संघशि त सरताज़।
चल साथ हम रा हत , लड़ एक आवाज़।।
महायु ध यह व व का , झले रहे सब दंस।
महाशि त भी प त ह , कोरोना रण कंस।।
2 www.kavyakalash.home.blog/ का य कलश
समािजक रख दू रयाँ
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कोरोना सकंट वकट,मनजुलोक का काल।
अ भमानी शातीर वह , धरे पास के खाल।।
सदा हाथ से ब धतुा , सं ामक दे साथ।
नाक कान मखु आखँ को,करे सं मत हाथ।।
कोरोना क दु मनी , दरू व छ गहृवास।
सामािजक रख दू रयाँ,अ बड़ा रख आस।।
द न ह न ुधात जो , द धन जल वर त।
ऑन लाइन है सुलभ, रा भि त अनरु त।।
सामािजक दरू सदा , करता ढ़ स ब ध।
दरू वैर आपस कलह, ी त नी त अनबु ध।।
सहयोगी हर आपदा ,सुख दखु म समवेत।
घणृा वेष उ मु त हो , सदाचार उपवेत।।
वाथ नरत दरू इतर , छल पंच आधार।
अथ दरू का है यहा,ँ रोग मु त उपचार।।
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4 www.kavyakalash.home.blog/ का य कलश
भावी इस रणनी त से , हो सुखद प रणाम।
जंग लड़ मलकर यहाँ , कोरोना अ वराम।।
कुछ दन क बात बस , भागेगा यह रोग।
कर योग प रवार म , द शासक सहयोग।।
ढक मा क मखु सवदा,शौचालय नत साफ।
रह दरू शश ुवृ ध जन , करो न इसको माफ ।।
प कार नेता जा , है सबका दा य व।
आयी है मुि कल घड़ी,रखो मनजु अि त व।।
मायावी इस रोग से , पी ड़त सकल ससंार।
लाख क ब ल ले चुका , उ यत है संहार।।
क तान क है कमी , पड़ी लवा रस लाश।
रखो समािजक दू रयाँ ,मुि त रोग मन आश।।
बने पुनः सरु भत नकंुज,चहके खग मदृगुान।
बने व व फर खुशनमुा, खले खुशी मु कान।।
क व राम कुमार झा " नकंुज"
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यह, सु त चेतना के
व थल को भेदकर, अंतमन म मनजु के, बीज ां त का बोकर, हटा न वड़तम उर का, चेतनता का भाव भर, बनकर वि न खर, शोषण को जलाती है।
सु त मतृ से बन चकेु मनुज के, मन म ां त क वाला जगाती
है। मन के बंजर को खोद, खाद डाल क पना क ,
नव क वता क फसल उगाती है।
वह, न ाण धरा को फोड़,
युग से या त जड़ता को तोड़, वं या धरा को उवर बनाती है, ता क बोया जा सके बीज,
और उगल सके धूल फर से, ह र तमा ओढ़े सुनहल फसल,
भर सके सम त जगती का, ुधातुर, आ र त उदर।
स य है कलम और कुदाल, दोन जगाते ह।
बजरंग लाल सैनी व घन खंडेला, िजला सीकर राज थान।
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कलम और कुदाल - क वता
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बेगाना घर था ना छुट जाएंगी सब याद,
घर तु हे अपना बसाना होगा।
वा पस जब कभी आओगी इस दर,
तो बीत चुका एक जमाना होगा।
फर कहा ंयाद रहता है ये
लड़ना, झगड़ना, चीखना, चलाना,
फर तो
िज़मेदार का बोझ उठाना होगा।
ना चाहते हु ए भी सुबह-सुबह
जाग जाना होगा।
भूल जाएगा मा ंका यार धीरे – धीरे सब
जब घर तेरा ये बेगाना होगा।
दद होगा तो भी
सुनेगा कोई नह ,ं य क
सबके पास अपना बहाना होगा।
या पता कोन सा आंगन,
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कोन सा महल चोबरा होगा।
या जाने मा ंके पास आना भी
ना कभी गवारा होगा।
मर भी जाती है कई
सुबक- सुबक कर, दबुक – दबुक कर,
पर जी चाहता है
तुम जहा ंभी रहो खु शया ंतेरे पास हो।
टूट गई हू ं – हार गई हू ं
दल तेरा कभी उदास हो
कोई नह ंसमझेगा तु हार
ये चीख क कह ं….
ये तु हार मजबूर तो नह ं
कठोर कर को दय अपना
य क
बेगाने घर म यार मले
ये ज र भी तो नह ं
देव नैस कबीर
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अ त थ का स कार करो , 'अ त थ देवता' भाव लए।
गाँव, शहर या देश - वदेश का ,रहो हरदम तैयार खड़े। गाँव का हो तो स धाहट क ,कुछ मीठ खशुब ूलेना ;
शहर का हो तो हँसी - ठहाके से ह घर भर लेना । अगर कह ं वदेशी हो तो उसको गले लगाना तुम ।
सं कृ त ,वेश ,चाल से उसक , कुछ अ छा अपनाना तुम।
चाल- चलन और सु वचार क कुछ सौगात बढ़ाना तुम । मु कुराहट के सौदागर से , हर दल म बस जाना तुम। स यता क यह धरोहर ,
थाती सा गले लगाना तुम । ना केवल अपने अपनाना
पीढ़ को स प के जाना तुम।
प लवी गोयल
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अ त थ देवता
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कोरोना का खौफ आजकल
हर जीवन पर भार है
कतन को ये नगल चकुा है
चं तत दु नया सार है..।।
सभी ववश ह इस कोप से
कैसी ये बीमार है
कुछ तो रहम करो भगवन अब
वनती यह हमार है..।।
सहमा-सहमा जनजीवन है
हर चेहरा भयभीत लगे
इंसानो म दरू बढ़ती
कैसी ये लाचार है..।।
कोई तो वक प मल जाए
हर चेहरा फर से मु काए
रह सतक सभी जीवन म
हम सबक अब बार है..।।
बचाव अ भयान ज र है
व छता धम अपनाना है
रहे नरोगी सबका जीवन
को शश यह हमार है..।।
को शश यह हमार है..।।
वजय कनौिजया
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को शश यह हमार है
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कतनी आसानी से कह लेत ेहो तुम ये सब "मुझ ेगले लगाकर ...गुड मा नग ...बोल दो , धीरे से मेरे कान म ....फूल क नम छुवन को महसूस करो " ....सुनकर म सहर जाती हू ँ । काश .....तुम ये खुबसूरत अहसास करा पात े क पनाओं म जीत े जीते म थक चुक हू ँ । मेरे सामने एक एक घटना साकार होने लगी । बचपन से ह हम साथ खेले , साथ बड़ ेहु ए । ....मौसी के यहाँ बचपन म माँ के साथ हर गम क छु टय म तु हारे साथ बताए बेपरवाह दन सहसा ह याद आने लगे । थे तो तुम स मी (मौसी क बड़ी बेट )के दरू के र तदेार ले कन मौसी के यहा ँ रहकर ह तुमने अपनी पढ़ाई पूर क ।घर म सबका तुमस ेबहु त नेह व अपनापन था । तुम थे भी बहु त गंभीर कम बोलनेवाले । मौसी द पक द पक कहती थकतीं नह ंथी । घर का हर छोटा बड़ा काम हो या स मी क पढ़ाई म मदद " लाईये कर दूंगा " कहकर अपने ऊपर ले लेते थे । हमलोग को भी टेशन से लानेवाले तुम ह तो थे । कर ब एक डढ़े म हने म मौसी के घर रह , गरमी क छु टया ंखूब लंबी होती थीं ले कन तु हारे साथ म छोट लगती थी ं। बस दन रात म ती धमाचौकड़ी म बीत जाते । उन दन क याद आज मुझ ेअहसास से भगो रह ह । डा कया डाक देकर लौट गया । मौसी क च ठ थी । स मी क शाद हो रह थी । मौसी ने माँ पापा को खास आ ह कया है आने का । वहाँ स मी के ससुराल का कोई लड़का है , िजससे मेरे र ते क बात करगी । ...सुना है तुम भी आनेवाले हो । ..तुमस े मलने के याल से मन म बहु त उतावलापन हो रहा है । नींद कोस दरू है और याद लगातार आ जा रह ह । ...जैसे ये सब कल ह क बात हो । तुमम एक अजीब सा आकषण था । म तु हार सागर जैसी
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तु हार अनछुई छुवन
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गहर आँख म मानो डूबी जा रह थी । बाहर कसी चीज क ह क सी आवाज से म वतमान म लौट आई । माँ नेआवाज द "उठो सोती ह रहोगी , ेन का टाईम नकल जाएगा , पापा कब से तैयार ह । शाद म शोरगुल इतने र म रवाज -कभी महद , कभी संगीत । सब कुछ दो दन म हो गया । पर इस सबके बीच एक खाल पन सा था । बहु त दन बाद कसी शाद म शर क हु ई थी । " तु हारा इंतजार था ।तुम कह ं दखाई ह नह ं दये " । कतनी बार मन हुआ क मौसी से पु छँु । यह भी डर था क पूछने से मेरे मन क चोर कह ं पकड़ी न जाए । अब म प रप व हो गयी थी । पहलेवाल अ हड़ बे फ लड़क नह ं । य इतना याद आ रहे हो तुम । बहु त खाल खाल सा लग रहा है । सोचा अगर इस बार न मले , फर पता नह ं कब .....।ये सोचते हु ए मेर आँख भीग गयी थीं।तु हार नौकर लगने से म अपने भ व य क ओर से आ व त हो चल थी । ..तुमने कहा था " म आऊँगा ज द तु हारे यहाँ , मेरा इंतजार करोगी ना । मने ँ धे गले से कहना चाहा "मत जाओ " पर श द न नकले । अनवरत आँसू टपकते रहे । सुना है तुम आ रहे हो । तुमसे मलने क आस म अपने यार के इन अहसास म मुझ ेतु हार साँस क मीठ सी छुअन का अनायास ह अहसास हो रहा है । सुनो ....!अबक आना तो मुझ ेभी साथ ले जाना । य क ..... फर ..म न मलूँ ...शायद ....
तनुजा द ा
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चै शु ल प त दा से हो रहा,
आर भ नव वष का- मटे वकार जगत का।
माँ दगुा क अराधना से, मटे द:ुख सारे-
क याण होगा जगत का। घर घर होगा हवन जो, वातावरण होगा शु ध-
मानव व थ होगा जगत का। घर म रह कर ह सभी, कामना करे सुख क -
करे हवन महामार से मुि त का। करे वागत नव-वष का, मुि त मले महामार से- क याण हो जगत का।।"
सुनील कुमार गु ता
महामार से मु ि त"
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दल के कसी कोने म तेर त वीर बना रखी है.
दु नया का कोई गम पहु ँच न पाये ऐसे छपा रखी है. ये दु नया अब बाहर नह ं जाने देती, अदंर ह घर बना रखी है.
तेर याद का सल सला टूट न जाये, इस लए भ म लगा रखी है. सुनते ह ज म सहेजने से मन ह का हो जाता है इस लए मरहम लगा
रखी है. शीशा हो या दल हो टूट ह जाता है इस लए बड़ी संभाल कर रखी है. लोग उनको दआु देते ह जो चोट खाये और गीला न कर जुँबा खामोश
रखी है.
डॉ क हैयालाल गु त
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दल के कसी कोने म
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आधु नकता
श द ह सब-कुछ कह देता है वा त वकता से परे
लक र के फक र बन कर चलना ह आधु नकता है
जीवन क आपाधापी एक दसूरे से नकलने क होड़
ख़ुद के अि त व को सबके सामने उजागर करने का
दखावा गौण होते सं कार
और जीवन मू य शू य कु थाओ ंक ब ल वेद पर
स यता सं कृ त सं कार क ब ल चढ़ हु ई है
श त होकर भी अ श त यवहार और आचरण
वभाव, समभाव और भाव ीण हो रहे ह
शम, लाज, परदेदार परदे से बाहर नकल गई है
नै तक मू य का पतन हो रहा है समरसता क कमी हो गई है
जीवन आव यकतानसुार जीने लगे
ह अपने और अपनापन खो गये ह एक अधंी, अनजानी सी भेड़ चाल
म चल रहे ह लोग
आभासी दु नया म जीने लगे ह लोग।
रपदुमन झा " पनाक " धनबाद (झारख ड
14 www.kavyakalash.home.blog/ का य कलश
आधु नकता
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ढलती शाम,न आये अब तक। वाट नहा ँ , बोलो कब तक।।
कैसे मन को धीर धराऊँ है अधीर कैसे समझाऊँ बेताबी ,बैचेनी दल क , हाल बरुा म या बतलाऊँ
अमर ेम अमर व लये है आस न टूटे,साँसे जब तक।
जीवन का ये ताना बाना हमने जाना, हमने माना मुि कल आये चाहे कोई, ेम भवँर म कसम नभाना
हमने तो है र त नभाई
और नभाय,जाँ है तब तक।
ीत लगायी, ीत नभाए ंवादा करके भूल न जाए ंइक-दजेू का हाल सुनाने, आओ मल बैठ ब तयाएं।
आस-बाग, व वास खला है रह महकत ेमरत ेदम तक
नरे ीवा तव
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गीत
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कोई रंग नह ं होता,
इ क का,
ेम का, ीत का,
राग का, गीत का,
जीवन सगंीत का,
रंग जाता है,
उसी रंग म,
जो है वजह,
इ क़ क ,
ेम क , ीत क ,
राग क , गीत क ,
जीवन सगंीत क ...
जैसे हो जाता है रंग,
जल का जो भी,
आ मले जल म,
कोई रंग नह ं होता,
मन का,
रंग जाता है,
16 www.kavyakalash.home.blog/ का य
रंग
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उसी रंग म,
जो घलु जाए
भावनाओ ंम,
बहने लगे
र त बन तन म
मन मे, जीवन मे....
नीलम पार क, बीकानेर
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जीवन म सीखे सं कृ त व सं कार, माँ का दलुार, अपन का हो यार। स पथ पर चल कर ह वजय मले, वो ख़ुशी के गीत लखना चाहता हू ँ।।
हर ब चे को को मले अ छ श ा, कोई भी सड़क पर न मांगे भ ा। आम जन क हो सके भरपरू सुर ा, ऐसी कोई नी त लखना चाहता हू ँ।।
कोई न हो कभी जीवन म नराश, उ वल भ व य क हो इक आस। िजजी वषा का मन से मेरा हो यास, ऐसा इक इ तहास लखना चाहता हू ँ।।
कोई न पी ड़त बेबस व कमजोर हो,
अ नाय व शोषण का न कह ं शोर हो। दःुख का तम कटे, सुख का भोर हो, ऐसी एक आवाज बनना चाहता हू ँ।।
झूठ व आडबंर का न कह ं पाखडं, कमजोर को ह यूँ! मलता है दंड। ललाट पर हमारे चमक हो चडं, जीवन म ऐसा तेज भरना चाहता हू ँ।।
18 www.kavyakalash.home.blog/ का य कलश
ऐसा कुछ लखना चाहता हू ँ - क वता
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कलरव करते हु ए प य का सवेरा, ज़ु म का कह ं पर न हो सके घनेरा। सभी के जीवन म ख़ु शय का बसेरा, भु से ऐसा वरदान पाना चाहता हू ँ।।
लाल देवे कुमार ीवा तव ब ती [उ र देश]
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20 www.kavyakalash.home.blog/ का य
होल के दोहे
होल हो ल हो रह , होल हो ल हष
हा हा ह ह म स लल, है सबका उ कष
होल = पव, हो चकु , प व , लए हो
*
रंग रंग के रंग का, भले उतरता रंग
ेम रंग य द चढ़ गया कभी न उतरे रंग
*
पड़ा भगं म रंग जब, हु आ रंग म भगं
रंग बदलते देखता, रंग रंग को दंग
*
श द-श द पर मल रहा, अथ अबीर गलुाल
अथ-अनथ न हो कह ,ं मन म करे ख़याल
*
पच ्कार द वार पर, पचकार द मार
जीत गई झट गंदगी, गई सफाई हार
*
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दखा सफाई हाथ क , कह उठाकर माथ
देश साफ़ कर रहे ह, बँटा रहे चपु हाथ
*
अनशुासन जन म रहे, शासन हो उ दंड
द:ुशासन तोड़ े नयम, बना न मलता दंड
*
अलंकार चचा न कर, रह जाते नर मौन
नार सुन माँगे अगर, जान बचाए कौन?
*
गोरस मधरुस का य रस, नीरस नह ंसराह
करतल व न कर सरस क , कर सभी जन वाह
*
जला गंदगी व छ रख, मन ुतन-मन-संसार
मत तन मन रख व छ त,ू हो आसार म सार
*
आराधे राधे; कहे आ राधे! घन याम
वाम न होकर वाम हो, य मझुसे हो याम
संजीव वमा स लल
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मने बड़ी देर तक कदम संभाले थे।
काँटे थे जो पथ के हँस कर टाले थे।
जवाँ हु ए तो आकर बँट गई िजदंगी,
बचपन के वो खेल बहु त नराले थे।
एकता का बीज ईक थाल म ह था,
अब देखा तो रोट के कई नवाले थे।
गाँव,शहर, मु क म यक न था बखरा,
अब घर म सबके भ न भ न ताले थे।
जन हत क आवाज हर जबुां पर थी,
अब अपनी अपनी जेब के रखवाले थे।
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न - जीवन क लहर
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कैसे करते सफा रश ईमान बरत कर,
ऊँचे ओहदे वाल के तो धधें काले थे।
खून के पाँव देख क गया “ मसुा फर ”,
रेत पर बनते दखे कुछ अ मट छाले थे।।
रोहताश वमा “मुसा फर”
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मझुको मां फर से लोर सुना दो।
बचपन का वो चांद भी दलवा दो।।
मेरे चदंा मामा को बलुवा दो।
च मच से दधू भात खला दो।।
मझुको मां फर से लोर सुना दो।
मझुको मां फर से याद दलवा दो।।
बचपन के वो सब दो त मलवा दो।
उन खेल के खलौने दलवा दो।।
मामा का घर आगंन दखला दो।
मेरे नाना-नानी से भी मलवा दो।।
मझुको मां फर से लोर सुना दो।
मझुको मां फर से याद दलवा दो।।
मझुको फर से बचपन म पहु ंचा दो।
बना नाप के अचकन पहना दो।।
े ठ का अपना पन भी दलवा दो।
मां क लोर .....
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बीते पल म मझुे फर से पहु ंचा दो।।
मझुको मां फर से लोर सुना दो।
यश को मां फर से याद दलवा दो।।
यशवतं राय े ठ (दबुौल गोरखपरु )
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अजीब रोशनी धमक सी गू ंजी कतने स नाटे ह शहर म
मौत भी मौत से डरती न ह अब कुछ खास नह ं जहर म
दरबाजे खड़ कयाँ खोल दो कुछ धु द और कुछ धुँआ है
िज दगानी थी ह ती हु ई और मौत भी देखी एक पहर म
जहाँ लगते थे रोश नय के मेले कुछ दकुाने खाक सी है
कुछ लाशे भी रोती छटपटाती ह जा लम के कहर म
शांत सी आबो हवा कुछ बीरान सी पड़ी मह फले भी है
ताऊ बीती साथ था एहतेशाम थी खशुनमुा गुजर बसर म
अजीब रोशनी धमक सी गू ंजी कतने स नाटे ह शहर मे ।।
रामे कुमार सोनी. मौठ झाँसी
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स नाटे है शहर म
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हाहाकार है हर तरफ
कोरोना ...
जन-जन म शोर . है
कोरोना ...
जगे रहो न जकडगेा
कोरोना ...
जनता क यू करो ना. है
कोरोना ...
डरो नह ं , डटे रहो. है
कोरोना ...
अफवाह नाकाम कर . है
कोरोना ...
देश हत जाग क रहे.है.
कोरोना ...
बढ रहे आकँड़े तपल. है
कोरोना ...
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कोरोना
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खूद से संक प ले . कहे पी एम - है.
कोरोना ...
सामा य नह ं , बड़ा संकट है
कोरोना ...
मौत तय है ,लापरवाह न डसे. है
कोरोना ...
सजग रह व थ रहो. है
कोरोना ...
वनोद कुमार जनै वा वर, सागवाड़ा
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दो दल मले चपुके-चपुके
नलेश आज जो हु आ वो ठ क नह ंथा, हां सीमा इस बात का मझु ेभी
एहसास है क हमसे अ जाने म बहु त बड़ी ग ती हो गई , ले कन
यक न मानो मेरा ऐसा कोई इरादा नह ंथा ।
शायद व त ने आज हम ये एहसास दलाया क हम दोन के दल एक
दजेू को चाहते ह , हम बेशक अपनी िज़ मेदा रय से , अपने प रवार
से, अपनी मज़बु रय से बधें ह ,ले कन दल तो आज़ाद ह ये कसी
के बांधे कभी बधें ह , हमारे दल चपुके से कब एक -दजेू के हो गए ,
कब ये मल गए हम पता ह नह ं चला । सच कह रहे हो नलेश
ये दल तु हारे दल से चपुके से ब तयाने लगा म तो जान भी नह ं
पाई, शायद इसी को ह यार का नाम देते ह लोग । शाद शुदा होते
हु ए भी म यार का अथ नह ं जानती थी , कभी यार मला ह नह ,ं
बस ब तर क ज़ रत और घर म काम क मशीन , और एक ए. ट .
एम. बन कर रह गई थी । सीमा फर तुम अपने प त से तलाक
य नह ंले लेती ?? हू ंहह , ये नह ं हो सकता आकाश मझु ेतलाक
नह ं देते , के कहा था एक बार, जब से तलाक क बात हु ई है तब से
यादा मार-पीट और गाल -गलौच करने लगे ह । सीमा का प त
आकाश अ सर शराब पी कर आता था सीमा पर हाथ उठाता , उस पर
ग दे इ ज़ाम लगाता , वो चपुचाप सह रह थी , बस उसे अगर कह ं
सुकून मलता तो आ फस म , यहां आकर सब दूं:ख भूल जाती थी ,
उसे नलेश का साथ अ छा लगता, नलेश को भी सीमा का साथ
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अ छा लगता, अ सर काम म उसक मदद करता , लंच-टाउम म दोन
एक साथ लंच करते और अपने-अपने दूं:ख-सुख सांझा करते, नलेश
उसके प त क हरकत जानकर बड़ा दूं:खी होता सीमा को सां वना देता
था , देखा जाए तो दोन ह अपने जीवन साथी से बहु त परेशान थे ,
नलेश क प नी भी मु ंहफट और झगड़ाल ू क म क थी इस लए दोन
को आ फस म एक दजेू का साथ अ छा लगता।
दो दन का आ फस म टगं टूर था मु बई का और नलेश के बक से
नलेश और सीमा को चनुा गया , दोन वहां म टगं से फा रग हो कर
होटल वा पस आ रहे थे टै सी से तो सीमा के प त आकाश का फोन
आया जो बहु त बरू तरह से सीमा को गाल दे रहा था , सीमा क आखं
भीग गई , टै सी से उतरते ह सीमा सीधी अपने कमरे म गई और फूट
-फूट कर रोने लगी । नलेश उसक हालात देखकर अपने कमरे म ना
जाकर सीमा के म म चला गया उसे ढांढस बधंाने , ले कन क मत
को कुछ और ह मंजरू था , जसेै ह नलेश ने उसके आसं ूप छने चाहे
सीमा का बांध टूट गया और वो नलेश के गले लग कर खूब रोई ,
नलेश ने उसे बाह म भर लया और एक वारभाटा आया और दोन
को एक करके चला गया ।
हां सीमा म भी यार क त पश को आज महससू कर पाया हू ,ं दोन के
चेहर पर एक सुकून भी था , दोन तृ त हो चकेु थे ।
सीमा तुम घबराओ मत मानता हू ं जो हुआ नह ंहोना चा हए था , अब
एक ह रा ता है म वा पस जाते ह अपना तबादला करा दूंगा , ता क
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फर कभी ऐसा ना हो, और नलेश ने आते ह दो दन म अपना
तबादला करा लया । दोन एक -दजेू से दरू हो गए ले कन एक -दजेू
को दल से ना नकाल सके, उनके तो चपुके से एक-दजेू से बात करते
थे, एक -दजेू से मलते थे ।
ेम बजाज
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जीवाणु वषाण ुक अजब कहानी।
हर जीव क हैअपनी ह जबुानी
कभी आया लेग कभी आया वाईन लू ।
कभी आया मले रया तो कभी आया हैजा।
कभी चकनगु नया तो कभी आया कोरोना।
अपन जीवन का कभी रोना न रोना।
य क सनातन धम है सब से महान।
उसम है जीवन क हर सम या का समाधान।
कोरोना सेअब आप कभी डरोना
सनातनी धम के जीवन नयम का
करो हमेशा ह नवहन एव ंपालन
हमेशा ह साफ सुथरा व छ रहो।
खान पान के नयम का पालन करो।
देखो सदा ह रहेगी नरोगी काया
कभी भी पास ना आ पाएगा कोरोना।
अब कभी न कोरोना अब कभी न कोरोना।
डॉ.मुकुल तवार ।
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कोरोना
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लकर-धकर
कतनी तेजी से
लगभग
दौड़ती हु ई
लौट रह है
वह मां
िजसका
दधू पीता ब चा
छूटा हुआ
घर म
उसक
आतुर ती ा म है
सुबह-सुबह
नकल थी
वह
पास के
क बे म
बेचने के लए
बाड़ी क
ताजी सि जयां
शहर श द क
मलावट भाषा म
अमतृ तु य
जै वक सि जयां
अब
जब
सूरज
ढलने-ढलने को
हो चला है
गांव के
बचे-खुचे
म रयल से
गाय क
बर दयां भी का य कलश www.kavyakalash.home.blog/ 33
पंख ज र देना
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अपने
बछड़ के पास
घं टयां टुनटुनाती
लौट रह ं ह
और
इस लइकोर मां का
रा ता
अभी
बहु त बचा हुआ है
उसे
अपने
ब चे क
आतुर भखू
आसंी
ला रह है
उसक
मैराथन ग त
और और
ती तर होती है
एक
स य: ज मे
बछड़े के
मां क वकल बेकल से
भाग रह है वह
अपने बछड़े क ओर
सोचती-सोचती
हे भगवान !
ब चा दया
साथ म
पखं भी
दे देता तो
म
उड़कर
अपने रा ता ताकते
याकुल ब चे तक
ज द पहु ंच जाती !
भगवान !
हर मां को 34 www.kavyakalash.home.blog/ का य कलश
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कई-कई हाथ
और
पखं ज र से देना !
ता क वह
यार क तेजी से
उड़कर
ब चे तक
पहु ंच पाए !
शीलकांत पाठक
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कुछ भी तो नह ंबदला है
सम दर आज भी पहाड़ को छू नह ं पाता
समक होने क बात तो बहु त दरू
िजतना यादा कोलाहल मचाते थे पहाड़ी नाले
पहचान नह ं बना पाते यादा व त
उसी सफर म हर कोई चालाक से करता है
बेवकूफ बनाने क नाकाम को शश
हा सल कर नह ं पाता अ सर कुछ भी
देखते व न कामयाबी के
जोड़ते जगुाड़ तरह-तरह के
आ खर, रोते ह दखे ह ।।
के.के. वै य
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नाकाम को शश