आवरण कथा यूरिया...आवरण कथ व क स च धर / स...

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यूरिया जीवन से जहि तक का सफि क ूरि के दिन लि गए ह? ह सवल इसदलए कद क दिस ूर ि ने कई गुण पैिव ि बढ़कि दकसन को गिगि दक, वही अब उनह खून के आंसू ल िह है। अब उपि कम हो िही है औि िमीन के बंिि होने की दिकत भी बढ़ती ि िही ह, इसदलए दकसन ूरि से तौब किने लगे ह। एक हदल अधन म पहली बि भित म नइोिन की सदत क मूलंकन दक ग है िो बतत है दक ूर ि के अतद िक इतेमल ने नइोिन च को बु िी तिह भदवत दक है। ह पविण औि सेहत को भी नुकसन पहुंच िह है। अदत संगोमल औि अदनल असवनी िम ने ूरि के तमम पहलु की पड़तल की आवरण कथा विकास चौधरी / सीएसई 22-33Cover Story-Nitrogen.indd 22 02/01/18 12:27 PM

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  • यूरियाजीवन से जहि तक का सफिक्या ्रूि्या के दिन लि गए हैं? ्ह सवयाल इसदलए क्ोंदक दिस ्ूरि्या न ेकई गणुया पिैयावयाि बढ़याकि दकसयानों को गिगि दक्या, वही अब उनहें

    खनू के आंस ूरुलया िहया है। अब उपि कम हो िही ह ैऔि िमीन के बिंि होन ेकी दिकया्तें भी बढ़ती िया िही हैं, इसदलए दकसयान ्ूरि्या से तौबया

    किन ेलग ेहैं। एक हयादल्या अध््न में पहली बयाि भयाित में नयाइट्ोिन की स्थिदत कया मूल्यंाकन दक्या ग्या है िो बतयातया ह ैदक ्रूि्या के अत्दिक

    इ्तमेयाल न ेनयाइट्ोिन चक्र को बिुी तिह प्रभयादवत दक्या ह।ै ्ह प्यायाविण औि सहेत को भी नकुसयान पहंुचया िहया है। अदषित संगोमलया औि अदनल अस्वनी िमयाया न े्रूि्या के तमयाम पहलओुं की पड़तयाल की

    आवरण कथा

    विकास

    चौध

    री / स

    ीएसई

    22-33Cover Story-Nitrogen.indd 22 02/01/18 12:27 PM

  • 03 लाख टन नाइट्रस

    ऑकसाइड भारत के खेत छोड़ते हैं जो

    परायावरण में पहुंचकर वैश्वक तापमान में इजाफा करता है

    120 से अधिक वैज्ाधनकों ने

    करीब 5 वर्षों की मेहनत के बाद भारत में नाइट्रोजन की

    श्थिधत का मूलरांकन “इंधडरन नाइट्रोजन असेसमेंट” में

    धकरा है

    6,610धकलोग्ाम रूरररा का औसत इ्तेमाल एक

    भारतीर धकसान धपछले पांच दशकों में कर चुका

    है कराेंधक रह स्ता पड़ता है

    67 प्रधतशत रूरररा धमट्ी, जल और परायावरण में पहुंच जाता है। करीब

    33 प्रधतशत रूरररा का इ्तेमाल ही फसल कर

    पाती है

    22-33Cover Story-Nitrogen.indd 23 02/01/18 12:27 PM

  • आवरण कथा“इस बार तो हमने अपने एक एकड़ के खेत में चार-चार बार यूररया डाला। आप माननए नक 200 नकलो से अनिक का यूररया खेतों में डाल निया, लेनकन उपज नपछले साल से भी कम ही नमल पाई। अब यह यूररया हमारे नलए जी का जंजाल बन गया है। खेतों में डालो तो मुसीबत है और न डालने का तो अब सवाल ही नहीं पैिा होता।” नबहार के बेगुसराय नजले के बखरी गांव के 82 साल के नकसान नंिन पोद्ार की इस उलझन का इलाज निलहाल नकसी के पास नहीं है। यूररया उनके खेतों का वह जीवन बन गया है नजसकी िसल जहर के रूप में कट रही है।

    िेश को कृनि के क्ेत्र में मजबूत बनाने के उद्ेशय से यूररया का इसतेमाल हररत कांनत (1965-66) के बाि पूरे िेश में नकया गया। पोद्ार कहते हैं, “शुरुआती सालों में िेश के कई इलाकों में इस यूररया के बारे में नकसानों को नवनिवत जानकारी नहीं िी गई। बल्क रात में खेतों में यूररया की बोरी चुपचाप डाल िी जाती थी, इससे भी जब बात नहीं बनी तब गांव के सरपंच के माधयम से यूररया नकसानों को अपने-अपने खेतों में उपयोग करने के नलए आग्रह नकया गया।” सभी नकसानों से सरकार ने 1966-67 के िौरान यूररया का इसतेमाल करने

    की लगातार नचरौरी की। उनहोंने बताया नक हमें ऐसा लगा था नक खेती से होने वाला नुकसान यूररया के उपयोग से मुनािे में बिल जाएगा। हुआ भी ऐसा ही। पैिावार बढ़ने से हम खुश थे। हालांनक शुरू में हम डर भी रहे थे नक यूररया के इसतेमाल से कहीं हमारी िसल ही चौपट न हो जाए। हमने डरते-डरते पहली बार 1967 में एक एकड़ में केवल चार नकलो यूररया डाला। जब िसल तैयार हुई तो हमें अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हुआ। कयोंनक पहली बार हम िेख रहे थे नक गेहूं की उपज हमें तीन गुना अनिक नमली।

    पोद्ार ने बताया नक पहले हम इतने ही खेत में गोबर की खाि डाल कर चार कुंतल (400 नकलो ग्राम) उपज लेते थे। अब हम िेख रहे थे नक सीिे 1200 नकलो से अनिक गेहूं की उपज नमली। हम सभी को यकीन नहीं हुआ नक यह कौन सा चमतकार है। मेरे खेतों में बढ़ी पैिावार को िेख गांव के अनय नकसानों ने भी अगले साल यानी 1968 में अपने-अपने खेतों में सहकारी सनमनतयों से नमलने वाला यूररया डाला और वे भी अपनी-अपनी िसल िेखकर गिगि थे। आनखर तीन गुना जयािा िसल पाकर कौन नकसान होगा जो खुशी से िूला नहीं समाएगा। िेखते ही िेखते यूररया खेतों का नायक

    बन चुका था। सरकार ने भी यूररया के प्रचार में कसर नहीं

    छोड़ी थी। ऊपर से चला यह प्रचार नीचे तक जोर मारने लगा और नकसान तो इसकी ऐसे तारीि करने लगे जैसे अभी नि्मी हीरो पेपसी और कोला की करते हैं। इसकी वजह भी तो थी। भारतीय नकसानों ने आनियत का िौर बहुत कम िेखा है। आसमान और जमीन से ननकलती उममीिों में झूलते थे। एक नकसान को भला कया चानहए? उसकी खेतों की उपज उसके कुटुंब का पेट भरे। और जब खेतों की सामानय उपज से तीन गुना जयािा नमलने लगा तो जैसे लगा नक िेवी अण्णपू्णाणा प्रसन्न हो गई।

    नाइट्ोजन पौिों के नलए जरूरी होती है कयोंनक यह पौल्टक ततवों को प्रनतबंिक बनाता है। कलोरोनिल और प्रोटीन नसंथेनसस के जररए पौिे इससे भोजन तैयार करते हैं। प्राकृनतक रूप से यह जरूरी पौल्टक ततव नमट्ी में डाइएजोट्ोि जीवा्णु के जररए मौजूि रहते हैं। ये िाल जैसे पौिों की जड़ों में उपलसथत होते हैं। लेनकन औद्ोनगक कांनत के बाि यह प्राकृनतक मौजूिगी पयाणापत नहीं रही कयोंनक यह बढ़ती आबािी को भोजन उपलबि कराने में असमथणा थी। इस कार्ण प्राकृनतक रूप से मौजूि नाइट्ोजन के पूरक के नलए कृनत्रम िटटीलाइजर का

    बबहार के बेगुसराय के सलौना गांव के 80 वर्षीय देवनंदन चौधरी के अनुसार, यूररया के उपयोग से कुएं और तालाब का पानी पीने लायक नहीं रह गया है

    आशुत

    ोष

    22-33Cover Story-Nitrogen.indd 24 02/01/18 12:27 PM

  • आनव्कार नकया गया। पोद्ार कहते हैं नक वह नबलकुल अजीब समय

    था। यूररया डाला तो खेतों में जा रहा था लेनकन उपज का नशा हमें चढ़ रहा था। और हम इस नशे को बढ़ाते चले गए। हमने अगले साल (1969) अपने खेतों में यूररया की मात्रा िोगुनी कर िी कयोंनक अब हमें यह महसूस होने लगा था नक नजतना अनिक यूररया डालेंगे, उतनी उपज अचछी होगी। चार के सथान पर इस बार हमने पूरे िस नकलो यूररया एक एकड़ के खेत में डाल निया। उममीि के मुतानबक तीन से बढ़कर पांच गुना यानी 1200 के मुकाबले 2000 नकलोग्राम गेहूं की उपज हमें नमली। िेश में नकसानों द्ारा 1975 के आसपास अपने-अपने खेतों में तीन से पांच गुना यूररया डालना एक सामानय सी बात बनकर रह गई थी। यह भी सही है नक उसी िर से उनका उतपािन भी बढ़ रहा रहा था। लेनकन नकसानों को इस बारे में सरकार की ओर से कोई अनिकृत जानकारी िेने का कहीं िूर-िूर तक कोई कायणाकम नहीं था। इसका नतीजा यह हुआ नक नकसान अपने खेतों में यूररया का उपयोग लगातार बढ़ा रहा था।

    उनहोंने बताया नक हम तो यह सपने में भी नहीं सोच सकते थे नक नजस यूररया को हम सोना समझ बैठे हैं, वह िीरे-िीरे हमारे खेतों को बंजर कर रहा है। 1985 से 1995 के बीच प्रनत एकड़ 125 नकलोग्राम यूररया डाल कर उपज का िस से 12 गुना बढ़ाया। यहीं से हम नीचे उतरने लगे। खेती में पैिावार घटने लगी जबनक हम यूररया की मात्रा साल िर साल बढ़ाते गए। 1997 में हमने 175 नकलो यूररया डाला और पाया कया? वही बस िस गुना। यानी अब यूररया बढ़ाने से खेतों की पैिावार नहीं बढ़ रही थी बल्क घट रही थी।

    1995 के बाि से पैिावार लगातार घट रही है। चालीस सालों से यूररया के अंिािुंि इसतेमाल ने खेतों को बंजर कर निया है। आनखर एक बार निर से नकसानों ने अपने खेतों में गोबर आनि की खाि डालनी शुरू की। इससे पैिावार तो नहीं बढ़ी लेनकन घटनी भी कम हुई। लेनकन 2010 तक आते-आते अब गोबर की खाि भी आसानी से नहीं उपलबि हो पा रही थी। आज के हालात ये हैं नक नकसान एक एकड़ के खेत में 225 से 250 नकलो यूररया डालने से भी बाज नहीं आ रहे हैं। कार्ण नक हर हाल में वही 15-20 साल पहले की 12 गुना उपज की जो िरकार है। अब तमाम कोनशशें नाकाम सानबत हो रही हैं। पोद्ार पुराने समय को याि करते हुए बताते हैं नक आज से 50 साल पहले हमारे िेश के प्रिानमंत्री हमसे यूररया इसतेमाल करने की नचरौरी कर रही थे। आज पांच िशक के बाि जब हमारे खेत पूरी तरह से खतम होने वाले हैं तो वतणामान

    प्रिानमंत्री हमसे (26 निसंबर, 2017 को प्रसाररत मन की बात में) अब यूररया का कम से कम उपयोग करने की अपील कर रहे हैं। यही नहीं अब सरकार यूररया पर सलबसडी भी कम करती जा रही है। 2015-16 के बजट में यूररया के नलए 72,438 करोड़ सलबसडी रखी गई थी, नजसे 2016-17 के िौरान घटाकर 70,000 करोड़ रुपए कर निया। पोद्ार ने एक अनुमान लगाते हुए बताया नक नपछले 50 सालों में हमने एक एकड़ के खेत में लगभग 6,610 नकलो यूररया का इसतेमाल कर लगभग 5,337 कुंतल उपज (गेहूं व चावल) हानसल की।

    नाइट्रोजन का आकलन यह नसि्फ एक अकेले नकसान नंिन पोद्ार की कहानी नहीं है। नवडंबना है नक एक अकेला नकसान

    पांच िशकों में 6,610 नकलो ग्राम से अनिक यूररया का इसतेमाल कर चुका है। जबनक पूरे िेश में अब तक 195.88 नमनलयन टन यूररया का इसतेमाल कर चुका है। अब इससे नाइट्ोजन के िु्परर्णाम सामने आने लगे हैं। नाइट्ोजन प्रिूि्ण का आकलन भारत में पहली बार 120 से अनिक वैज्ाननकों ने नकया है।

    इंनडयन नाइट्ोजन ग्रुप में शानमल इन वैज्ाननकों ने अपने आकलन में कहा है नक नपछले पांच िशकों से यूररया के बेतहाशा इसतेमाल से नाइट्ोजन प्रिूि्ण का िैलाव तेजी से हो रहा है। िरअसल, साल 2004 में भारत के सवयंसेवी वैज्ाननकों का समूह िो सवालों से जूझ रहा था। वे सवाल थे- नमट्ी और पयाणावर्ण में मौजूि नाइट्ोजन िेश में पाररलसथनतकी को नकस प्रकार प्रभानवत कर रहा है और यह कहां से आ रहा है। इन सवालों के जवाब के नलए उनहोंने खोज शुरू की। उनहोंने भारत में नाइट्ोजन के आकलन के नलए साल 2004 में सोसायटी िॉर कनजरवेशन ऑि नेचर (एससीएन) की सथापना की। आगे नवचार नवमशणा के बाि 2006 में एससीएन के अंग के रूप में इंनडयन नाइट्ोजन ग्रुप (आईएनजी) की गठन नकया। इसके तहत िस सालों में नवनभन्न क्ेत्रों में काम करने वाले करीब 120 वैज्ाननक जुड़ गए। नाइट्ोजन का स्ोत पता लगाने के नलए कृनि, बागवानी, मछली पालन, मुगटीपालन और मवेनशयों के अलावा उनहोंने भारत में तेजी से बढ़ रहे पररवहन क्ेत्र पर धयान केंनरित नकया।

    नपछले पांच सालों में नबना सरकारी मिि के उनहोंने गहन शोि नकया और नतीजा “इंनडयन नाइट्ोजन असेसमेंट” के प्रकाशन के रूप में सामने आया। अगसत 2017 में इस ेए्सनवयर ने प्रकानशत नकया है। भारत में इस तरह का यह पहला मू्यांकन

    �ोतः उवयािक सयासं््की 2014-15, सयाठवयंा सं् किण, भयाित के उवयािक संघ, नई दिलली

    संपूर्ण अवधि में कुल यूरिया की खपत

    195.88 धमधलयन टन

    यरूिया की लालसा 1960-61 स े2015-16 तक ्रूि्या की खपत कई गुणया बढ़ गई। अमरेिकया औि चीन के बयाि ्ूरि्या की खपत के मयामल ेमें भयाित तीसिे ्थियान पि है

    15

    12

    9

    6

    3

    0

    कुल ्रू

    ि्या क

    या खपत

    दमदल

    ्न ट

    1960-61 1970-71 1980-81 1990-91 2000-01 2010-11 2015-16

    नाइट्रोजन प्रदूषण बच्चों के लिए खतरनाकपीने के पानी में नाइट्ेट से छह महीने के तक बच्ों को बलू बेबी नसंड्ोम हो सकता है। इस बीमारी से ग्रनसत बच्ों के खून में ऑकसीजन की मात्रा कम हो जाती है कयोंनक नाइट्ेट हीमोगलोनबन के प्रभाव को बानित कर िेता है। हीमोगलोनबन ऑकसीजन का वाहक है। इससे बच्ों को बार-बार डायररया हो सकता है। यह शवसन नकया को भी बानित करता है। यह सकूली बच्ों में उच् रकतचाप और बलड प्रेशर भी बढ़ा िेता है।

    बिू बेबी लिंड्रोम

    www.downtoearth.org.in | 25

    22-33Cover Story-Nitrogen.indd 25 02/01/18 12:27 PM

  • कृदि उपि बढ़यान ेके दलए ्रूि्या कया इ्तमेयाल अब इतनया बढ़ ग्या ह ैदक इससे आम लोगों औि प्यायाविण की सेहत पि बिुया असि पड़ने लगया ह।ै भयाित के तमयाम ियाज् इसकया अिंयािुिं इ्तमेयाल कि िह ेहैं। उत्ति प्रििे इसमें अववल है

    मज्ज बढ़ता गया जयों-जयों दवा ली

    अप्रैल 2015 स ेमार्ज 2016 तक भाित के वववभन्न िाजयों में यरूिया की वबक्ी ( मीवट्क टन में )

    डीटीई/ सीएसई डेटा सेंटि द्ािा तैयािइंिोग्रानिकस : राज कुमार नसंहस्ोत : नडपाट्टमेंट ऑि िटटीलाइजसणा, नमननसट्ी ऑि केनमक्स, पेट्ोकनेमक्स एंड िटटीलाइजर की िटटीलाइजर मॉननटररंग नससटम की वेबसाइट - www.urvarak.co.inनवशलेि्ण : अनक्त संगोमलाअनिक इंिोग्रानिकस के नलए जाएं www.downtoearth.org.in/infographics

    अंडमान व धनकोबाि द्ीप समूह400

    अप्ैल 2015 से मार्ण 2016 तक की अवधि में भाित में यूरिया की कुल धबक्ी

    29.57 धमधलयन टन

    असम390,939

    मधरपुि19,346

    महािाष्ट्र2,360,176

    केिल140,784

    कना्णटक1,463,005

    झािखंड235,054

    जममू औि कशमीि154,844

    धहमारल प्देश73,082

    हरियारा 2,112,981

    गुजिात2,086,725

    गोवा3,641

    दमन औि दीव150दादिा औि नगि हवेली995

    छत्ीसगढ़845,057

    धबहाि2,358,174

    आंध्र प्देश1,547,249

    धदलली10,792

    मेघालय1,720

    पंजाब3,086,046

    पांधडरेिी13,272

    ओधडशा587,153

    नागालैंड540

    धमजोिम3,500

    िाजस्ान2,077,106

    तधमलनाडु1,117,679

    उत्िाखंड360,419

    पशशरम बंगाल1,438,000

    उत्ि प्देश5,798,991

    धरिपुिा23,515

    तेलंगाना1,257,352

    मधय प्देश 2,387, 499

    आवरण कथा

    26 | जनिरी 2018

    22-33Cover Story-Nitrogen.indd 26 02/01/18 12:27 PM

  • है। इसके नन्किषों में 30 ररवयू पेपसणा शानमल हैं।इसमें भारत में नाइट्ोजन की यात्रा का पूरा

    लेखा जोखा है। उतसजणान के नवनभन्न स्ोतों से लेकर उन तमाम प्रनकयाओं का नजक है नजससे यह पयाणावर्ण में पहुंचकर प्रिूि्ण का कार्ण बनता है। इसमें नाइट्ोजन को नयूनतम करने के उपाय भी सलममनलत हैं जो बताते हैं नक स्ोत में इसतेमाल कम करके इसे कािी हि तक रोका जा सकता है। इसके प्रकाशन के साथ ही भारत अमेररका और यूरोपीय संघ के बाि तीसरा ऐसा िेश बन गया है नजसने अपने क्ेत्र में नाइट्ोजन का पयाणावर्ण पर प्रभाव का आकलन नकया है।

    मू्यांकन बताता है नक भारत में नाइट्ोजन प्रिूि्ण का अहम स्ोत कृनि है। इसका अनिकांश भाग नाइट्ोजन िटटीलाइजर (उवणारक) खासकर यूररया के अतयनिक इसतेमाल से आता है। भारत में कृनि िसलों में यूररया कृनत्रम िटटीलाइजर का मुखय स्ोत है। मू्यांकन के अनुसार, िेश में उतपानित कुल नाइट्ोजन िटटीलाइजर में इसकी नहससेिारी 84 प्रनतशत है।

    भारत ने नपछले 60 सालों में यूररया का अतयनिक इसतेमाल नकया है नजससे कृनि उतपािकता में कई गु्णा बढ़ोतरी हुई है। 1960-61 में कुल नाइट्ोजन िटटीलाइजर में यूररया का अंश 10 प्रनतशत था जो 2015-16 में बढ़कर 82 प्रनतशत हो गया। िटटीलाइजर असोनसएशन ऑि इंनडया (एिएआई) के आंकड़ों के अनुसार, भारत हर साल 148 लाख टन यूररया की खपत करता है। मू्यांकन के अनुसार, यूररया के इसतेमाल की वजह इसका ससता होना है।

    यूररया के इसतेमाल ने अब तक िेश में खाद् सुरक्ा को सुननलशचत करने में योगिान निया है। लेनकन इसने भारत को उलझन भरी पररलसथनतयों में भी डाल निया है। एक तरि इसे यूररया की जरूरत है कयोंनक नकसानों को लगता है नक उनकी जमीन को यूररया की आित हो गई है। उनहें यह भी डर है नक अगर रसायन का इसतेमाल बंि कर िेंगे तो उतपािकता बेहि नीचे चली जाएगी। वहीं िूसरी तरि इसका अतयनिक इसतेमाल पयाणावर्ण को नुकसान पहुंचा रहा है नजसे ननयंनत्रत करने की जरूरत है। इस संबंि में उत्तर प्रिेश के गुनलसतानपुर गांव के 79 विटीय नकसान सरबजीत नसंह चौहान ने बताया, “अब तो हमारी जमीन को यूररया की ऐसी आित पड़ गई है जैसे िेशभर के लोगों को चाय की लत लगी हुई है।” यूररया के बेतहाशा प्रयोग से िेश में खाद्ान्न के मामले में तो िेश आतमननभणार हो गया लेनकन उसके बानशंिों का शरीर कमजोर हो गया। इस संबंि में गौतमबुद्ध नगर के ममूरा गांव के िरमवीर नसंह बताते हैं, “यूररया के अतयनिक प्रयोग

    से खाद्ान्नों में पोटेनशयम की मात्रा कम हो जाती है। पोटेनशयम उच् रकतचाप को ननयंनत्रत रखने के साथ-साथ हिय को भी सवसथ रखता है। वह कहते हैं िेशभर में रकतचाप और हिय रोनगयों नक संखया में तेजी से बढ़ोतरी वासतव में हररत कांनत का ही परर्णाम है। उनका कहना है नक इस कांनत ने गेहूं-िान में तो आशातीत उतपािन बढ़ाया लेनकन िलहन क्ेत्र इससे बुरी तरह से प्रभानवत हुआ। जबनक हमारे िेश में यह प्रोटीन का एक प्रमुख स्ोत है। इसकी कमी के कार्ण नबहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, मधय प्रिेश और ओनडशा में कुपोि्ण एक गंभीर समसया

    बन गई है। कुपोि्ण के कार्ण क्य रोनगयों की संखया में भी इजािा हो रहा है।

    कृनि में अनाज में इसतेमाल होने वाला यूररया सवाणानिक प्रिूि्ण िैलाता है। भारत में चावल और गेहूं का सबसे अनिक उतपािन नकया जाता है। करीब 370 लाख हेकटेयर में चावल और 261 लाख हेकटेयर में गेहूं की पैिावार की जाती है। अतः ये सवाणानिक 69.3 प्रनतशत नाइट्ोजन का उपभोग करते हैं। यूररया के रूप में मौजूि 33 प्रनतशत नाइट्ोजन चावल और गेहूं के पौिे नाइट्ेट (NO3) के रूप में प्रयोग करते हैं। इसे नाइट्ोजन यूज एनिनशएंसी अथवा एनयूई कहा जाता है। बाकी 67 प्रनतशत अंश नमट्ी में मौजूि रहता है और यह आसपास के वातावर्ण में पहुंच जाता है जो पयाणावर्ण और सवास्थय पर असर डालता है।

    नाइट्ोजन प्रिूि्ण के कई रूप हैं। नाइट्ेट के रूप में यह पानी को प्रिूनित करता है। यह नाइट्ेट जमीन की सतह पर घुल जाते हैं और पानी के बहाव के साथ झीलों, मछनलयों के तालाबों, ननियों और अंततः समुरि में पहुंचकर उसकी पाररलसथनतकी को नुकसान पहुंचाते हैं। इससे जैव नवनविता को भारी नुकसान पहुंचता है। उिाहर्ण के नलए भारत के तटीय क्ेत्रों में यह समुरिी घास, शैवालों और प्रवाल नभनत्तयों को क्नत पहुंचाता है। इस संबंि में मधय प्रिेश के भोपाल से साठ नकलोमीटर िूर रासलाखेड़ी गांव के 74 विटीय नकसान अशिाक अहमि बताते हैं, “अब हमें शहि बाजार से खरीिना पड़ता है जबनक पहले हमारे खेतों के आसपास लगे पेड़ों में ही मिुमकखी का छत्ता लगा होना आम बात थी, लेनकन इस यूररया के कार्ण

    भारत ने बपछले 60 सालों में यूररया का अतयबधक इसतेमाल बकया है बिससे कृबर् उतपादकता में कई गुणा बढोतरी हुई है

    मवेशी छरोड़ते हैं अमरोलनया और नाइट्ि ऑकिाइडमवेशी भारत में अमोननया के सबसे बड़े उतसजणाक हैं। कुल उतसजणान में मवेनशयों का योगिान 79.7 प्रनतशत है। अमोननया एरोसोल के जररए वातावर्ण को प्रभानवत करता है जो सांस संबंिी बीमाररयों का कारक है। यह नमट्ी को अमलीय बनाता है और उसकी उतपािकता घटा िेता है। मवेशी नाइट्स ऑकसाइड का भी उतसजणान करते हैं जो वैलशवक जलवायु पररवतणान में योगिान िेता है। इसके कुल उतसजणान में मवेशी 70.4 प्रनतशत योगिान िेते हैं। भारत में उत्तर प्रिेश सबसे जयािा अमोननया (12.7 प्रनतशत) और नाइट्स ऑकसाइड (13.1 प्रनतशत) छोड़ता है।

    िांि की बीमाररयां

    विकास

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    ीएसई

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    22-33Cover Story-Nitrogen.indd 27 02/01/18 12:27 PM

  • आवरण कथाअब मिुमकखी िसलों के िूलों पर बैठती ही नहीं। इसके अलावा खेतों से केचुए व केकड़े आनि सब गायब हो गए हैं। यहां तक नक सालों हो गए हैं हमें अपने खेतों में रंग-नबरंगी नततली को उड़ते हुए िेखे।” वह कहते हैं यह तो खेतों की बात हुई। यूररया की अनिकता के कार्ण मेरे गांव के पास से बहने वाली पात्रा निी से मछली तक गायब हो गई हैं। कयोंनक मानसून के समय हमारे खेतों से बाररश का पानी बहकर ननियों में ही जाता है और अपने साथ यूररया भी बहा ले जाता है। इसके कार्ण इस निी में अब मछनलयां खतम हो गई हैं।

    23 शहिों में उच्च सघनता मू्यांकन में पाया गया है नक नाइट्ेट केवल सतह के पानी पर ही असर नहीं डाल रहा बल्क इससे भूनमगत जल भी प्रिूनित हो रहा है। इस जल का मनु्य के सवास्थय से सीिा संबंि है। यह प्रिूि्ण पाचननकया, हृिय-सवसन पर प्रभाव, पेट के कैंसर और नशशुओं को बलू बेबी नसंड्ोम के रूप में प्रभानवत करता है। मू्यांकन के अनुसार, 21 राजयों के 387 नजलों के भूनमगत जल में नाइट्ेट भारतीय मानक बयूरो (बीआईएस) द्ारा तय मानकों (45 नमलीग्राम प्रनत लीटर) से अनिक है। यह भी पाया गया है नक 23 मेट्ोपोनलटन शहरों में नाइट्ोजन की उच् सघनता है। जमशेिपुर में यह सबसे अनिक 450 नमलीग्राम प्रनत लीटर है। नबहार के बेगुसराय के सलौना गांव के 80 विटीय िेवनंिन चौिरी कहते हैं, “बीते िशकों में लगातार अतयनिक मात्रा में यूररया के उपयोग से हमारे कुएं और तालाब का पानी पीने लायक नहीं रह गया है।”

    मू् यांकन में एक अधययन के हवाल ेस ेकहा गया है नक पजंाब, हररया्णा और उत्तर प्रिशे के कई नहससों में कुए ंऔर बोरवले के पानी में नाइटे्ट की सघनता नवशव सवास्थय सगंठन (डब्यूएचओ) द्ारा तय सीमा से अनिक है। कृनि सघनता वाले हररया्णा में यह सबस ेबितर ह।ै यहा ंकुएं के पानी में नाइटे्ट की औसत मौजिूगी 99.5 नमलीग्राम प्रनत लीटर ह ैजबनक डब्यएूचओ की ननिाणाररत सीमा 50 नमलीग्राम प्रनत लीटर ह।ै पलशचमी उत्तर प्रिशे के मजुफिरनगर के नकसान अननल चौिरी कहत ेहैं, “यह सही बात ह ैनक यहा ंकुओं के पानी में नाइटे्ट की मात्रा बहतु अनिक हो गई ह ैऔर इसके कार्ण लोग अब परूी तरह स ेटेप वाटर पर ननभणार हो गए हैं।”

    वमट्ी का सवास्थयनाइट्ोजन प्रिूि्ण नमट्ी के सवास्थय को प्रभानवत करता है नजसके परर्णामसवरूप िसलों की पैिावार कम हो जाती है। िटटीलाइजरों के अतयनिक इसतेमाल से जमीन अनुतपािक हो जाती है। ऐसा

    “वजतनी जरूित हरो, फटटीलाइजि का उतना इसतमेाल सुवनशरत किें”

    दुवनया में वे कौन से वहससे हैं जरो नाइट्रोजन रक् के टूटने के प्वत सबसे अविक संवेदनशील हैं?िुननया के सभी महतवपू्णणा क्ेत्र इस गंभीर नाइट्ोजन चक्ण के टूटने की जि में हैं। यह उन िेशों की

    समसया है जो जीवाशम ईंिनों पर अतयनिक ननभणार हैं और जहां बड़े पैमाने पर खेती होती है। भारत और िनक््ण एनशया नवशेि रूप से संवेिनशील हैं कयोंनक यहां आबािी और उपभोग की िर तेजी से बढ़ती जा रही है। एिएओ के अनुमान के मुतानबक, 2050 तक िनक््ण एनशया में उवणारकों के इसतेमाल की िर िुननया में सबसे जयािा होगी। यह िनक््ण पूवणा एनशया से भी अनिक होगी। उतसजणान के पैमाने और पाररलसथनतकी की संवेिनशीलता पर यह ननभणार करता है। इस मामले में भी िनक््ण एनशया अहम है। नहमालय के जंगल और पहाड़ों पर नाइट्ोजन प्रिूि्ण के असर का खास अधययन नहीं हुआ है। इसके ननचले नहससे में गंगा का मैिानी इलाका है जो शायि नाइट्ोजन वायु प्रिूि्ण का वैलशवक केंरि है। इन जंगलों का पाररलसथनतक तंत्र कुछ हि कर प्रभानवत हो सकता है। उपमहाद्ीप के िूसरे छोर पर नाइट्ोजन चक के टूटने से प्रवाल नभनत्तयां अनत संवेिनशील हैं।

    भववषय में वववभन्न पारिससथिवतकी जरैसे समुद्र, झीलें व जंगल नाइट्रोजन प्दूषण से कैसे दूवषत होंगे?एिएओ के अनुसार, िनक््ण एनशया में 2050 तक उवणारकों का प्रयोग िोगुना हो जाएगा। जब तक इस प्रिूि्ण को रोकने का उपाय नहीं नकया जाएगा, तब तक यह इन सभी तंत्रों को नबगाड़ने का काम करेगा। आशंका है नक समुरिों में मृत तटीय क्ेत्र बढ़ जाएंगे, जो मछनलयों को प्रभानवत करेंगे। इसके साथ ही प्रवाल नभनत्तयों के अनतसंवेिनशील प्रवास के नलए भी खतरा बनेंगे। झीलों के साथ भी ऐसा िेखा जाएगा। उनके शैवाल की बढ़ोतरी होगी। पीने के पानी की गु्णवत्ता पर असर पड़ेगा और उसकी जैव नवनविता भी प्रभानवत होगी। जंगलों में वनसपनत और एपीिाइटस पर असर होगा। एपीिाइटस वे पौिे होते हैं जो नकसी पेड़ पर उगते और जीनवत रहते हैं। इनमें शैवाल, िनणा, काई और िूसरे पौिे शानमल हैं। वतणामान में शैवाल इत्र के नलए उगाया जाता है। यह वातावर्ण में अतयनिक नाइट्ोजन से प्रभानवत हो सकता है। नाइट्ोजन का अतयनिक प्रयोग नमट्ी को अमलीय बना सकता है और उसमें जहरीले हेवी मेट्स बढ़ा सकता है। इस कार्ण पीने के पानी की गु्णवत्ता खराब हो सकती है। ये प्रभाव ननलशचत रूप से हवा की गु्णवत्ता को पानट्टकुलेट मैटर (पीएम) के सहयोग से और खराब कर सकते हैं। अमोननयम नाइट्ेट पानट्टकल इंसानी सवास्थय को चुनौती िेंगे। वहीं नाइट्स ऑकसाइड (N2O) और अनय नाइट्ोजन नकयाएं वैलशवक तापमान पर प्रभाव डालेंगी।

    कया नाइट्रोजन करो वनयंवरित किके इसका वरैसशवक रक्ण बहाल हरो सकता हरै?भारत और नवकासशील िेशों में हो रही तरककी वैलशवक नाइट्ोजन चक्ण को बहाल करने के नलए अनत महतवपू्णणा है। इस क्ेत्र में भारत िुननया का प्रनतनननितव कर रहा है। हाल ही में इंनडयन नाइट्ोजन असेसमेंट प्रकानशत की गई है, साथ ही भारत ने नीम कोटेट यूररया नीनत के नलए प्रनतबद्धता जता चुका है। इस तरह भारत िो क्ेत्रों में अग्र्णी भूनमका ननभा सकता है। पहला, िुननया की सबसे बड़ी अथणावयवसथाओं में शानमल होने के कार्ण भारत में क्मता है नक वह वैलशवक नाइट्ोजन चक पर असर डाल सकता है। िूसरा, भारत में इस मुद्े का समथणान करके नेतृतव प्रिान कर सकता है। वह िूसरे को नाइट्ोजन के बेहतर प्रबंिन के नलए प्रोतसानहत कर सकता है।

    इटंिनेिनल नयाइट्ोिन इनीदिएदटव के अध्षि माक्क सतन न ेभयाित में नयाइट्ोिन प्रिूिण की स्थिदत पि डयाउन टू अथिया स ेबयात की

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  • इसनलए होता है कयोंनक नमट्ी से लंबे समय के नलए काबणान मात्रा (काबणान कंटेंट) घट जाती है जो इसके सवास्थय पर असर डालती है। पोिक ततवों और जैनवक खाि को मद्ेनजर रखते हुए िटटीलाइजरों के उपयोग में संतुलन बनाना जरूरी है।

    मू्यांकन में एक अधययन के हवाले से कहा गया है नक रांची में नाइट्ोजन िटटीलाइजर ने नमट्ी में काबणान की मात्रा मूल मात्रा से 28 प्रनतशत तक कम कर िी है जबनक नाइट्ोजन, िासिोरस, पोटेनशयम और जैनवक खाि ने संयुकत रूप से खेत के काबणान में 2.9 प्रनतशत की कमी कर िी है। इस संबंि में पानकसतान के नसंि से नवसथानपत और अब राजसथान के अनूपगढ़ के छयासीजी गांव के गुरुिेव नसंह कहते हैं, “यूररया के लगातार उपयोग से हमारे खेतों की नमट्ी की उवणाराशलकत पूरी तरह से खतम हो गई है।

    जलवायु परिवत्जन में यरोगदान नाइट्ोजन का िु्परर्णाम केवल पानी और नमट्ी तक ही सीनमत नहीं है। नाइट्स ऑकसाइड (N2O) के रूप में यह ग्रीन हाउस गैस भी है और वैलशवक जलवायु पररवतणान में इसका बड़ा योगिान है। 2007 में इंनडयन नेटवक्फ िॉर कलाइमेट चेंज असेसमेंट के अधययन के अनुसार, भारत में िटटीलाइजरों का नाइट्स ऑकसाइड के उतसजणान में अहम योगिान है जबनक वाहनों से होने वाले प्रिूि्ण (55.53 गीगाग्राम या Gg)औद्ोनगक और घरेलू सीवेज (15.81Gg) का भी ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ने में योगिान है।

    एससीएन के मुखय संरक्क और संसथापक यशपाल अबरोल ने डाउन टू अथणा को बताया, “ग्रीनहाउस गैस के रूप में काबणान डाई ऑकसाइड के मुकाबले नाइट्स ऑकसाइड 300 गु्णा अनिक

    प्रभावशाली है। उनहोंने कहा, “इंटरगवनणामेंटल पैनल ऑन कलाइमेट चेंज और यूनाइटेड नेशंस फ्ेमवक्फ कनवेंशन ऑन कलाइमेट चेंज द्ारा काबणान पर बहुत बहसें हुई हैं, अब हमें नाइट्स ऑकसाइड और नाइट्ोजन प्रिूि्ण पर बहुत धयान िेने की जरूरत है। 2010 में भारत में कृनि से कुल नाइट्स ऑकसाइड उतसजणान 1.4 लाख टन था। 1950 में सालाना उतसजणान 60 गीगाग्राम प्रनत साल था जो 2010 में बढ़कर 300 गीगाग्राम प्रनत साल हो गया है। नेचर कलाइमेट चेंज जनणाल में प्रकानशत 2012 के शोिपत्र के अनुसार, इसके उलट नवशव का कृनि से वानिणाक उतसजणान 6400 गीगाग्राम है।

    भारत के नलए िुभाणागय यह है नक कृनि, नाइट्ोजन प्रिूि्ण का केवल एक स्ोत है। मू्यांकन प्रकानशत करने वाले आईएनजी के अधयक् एन रघुराम बताते हैं, “सीवेज और जैनवक ठोस कचरा

    ्रूि्या नयाइट्ोिन कया सबस ेबड़या �ोत ह।ै ्ह प्यायाविण में कई रूपों में मौििू िहतया ह।ै दमट्ी, हवया औि पयानी में दमलकि सहेत औि पयारिस्थिदतक तंत्र पि ्ह अपनया प्रभयाव डयालतया है

    यरूिया का रक्

    वकसान : दकसयान खते में िो ्रूि्या डयालतया उसकया 33 प्रदतित फसल इ्तमेयाल किती है औि बयाकी 67 प्रदतित हवया, पयानी औि दमट्ी में चलया ियातया है

    भवूमगत जल : ्रूि्या नयाइट्रेट के रूप में दमट्ी से भूदमगत िल में पहंुच ियातया ह ैऔि उस ेप्रिदूित कितया है

    नदी औि झील : ्रूि्या िब निी औि झील में ियातया ह ैतो िली् वन्पदत में वृदधि कितया ह ैऔि इस बयाकी प्रयादण्ों केया ऑकसीिन नहीं दमल पयातया

    समदु्र : ्रूि्या निी व झीलों के मयाध्म स ेसमदु्र में पहुचं ियातया है औि िली् िीवों को दमलन ेवयाली ऑकसीिन कम कि ितेया है

    मछली पालन : मछदल्ों के दलए िरूिी ऑकसीिन िली् वन्पदत इ्तमेयाल कि लते ेहैं

    उद्रोग : औद्ोदगक इकयाइ्ों से नयाइट्ोिन नयाइट्स ऑकसयाइड व नयाइट्ोिन डयाईऑकसयाइड के रूप में प्यायाविण में पहुचंतया है

    वाहन : नयाइट्ोिन ऑकसयाइड वयाहनों के िएु ंसे दनकलतया है व सयासं सबंिंी बीमयारि्ों कया कयािण बनतया है

    वन: बयारिि व नदि्ों से नयाइट्ोिन वनों में पहुचंकि उनके प्रयाकृदतक सतंलुन औि िवै दवदवितया पि असि डयालतया है

    NR (प्रदतदक्र्यािील नयाइट्ोिन) 100

    NR 67

    NR 33

    NR

    NR

    बादल: प्यायाविण में पहुचंया नयाइट्स ऑकसयाइड व नयाइट्ोिन ऑकसयाइड बयारिि के िरिए वयापस िमीन पि आ ियातया है

    ग्रानि

    कस :

    राज

    कुमा

    र नस

    ंह

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  • आवरण कथा

    “नाइट्रोजन के गरैि कृवष उदगम पि िरोक लगान ेकी जरूित हरै”

    भाित का नाइट्रोजन प्दूषण दुवनया से अलग कैसे हरै?नाइट्ोजन प्रिूि्ण स्ोत के योगिान के नहसाब से अलग-अलग िेशों में अलग हो सकता है। कृनि, घरेलू एवं ननगमों के सीवेज से लेकर जीवाशम ईंिनों का इसतेमाल, वाहन, उद्ोग और पराली में आग आनि इसके स्ोत हो सकते हैं। नाइट्ोजन प्रिूि्ण के नलए सबसे बड़ा मानव नननमणात स्ोत खेतों का अप्रयुकत िटटीलाइजर है, चाहे वह मूलरूप से जैनवक हो या रासायननक। भारत में नप्रनसजन कृनि अवहनीय है और िटटीलाइजरों के सटीक इसतेमाल के नलए श्रम लागत अनिक है। अतः नकसान

    िटटीलाइजरों का अनिक इसतेमाल करते हैं। लेनकन िसलें िटटीलाइजरों का पू्णणा इसतेमाल नहीं कर पातीं, इसनलए नाइट्ोजन प्रिूि्ण में उनका योगिान होता है। अनिकांश प्रिूि्ण अनाजों से होता है, जबनक िूसरे िेशों जैसे चीन में बागवानी की िसलों और नगिी िसलों का सवाणानिक योगिान होता है। यूरोप में यह चारे, मवेनशयों और पशुपालन से अनिक प्रिूि्ण होता है। अफ्ीका का नकारातमक योगिान है। इसका अथणा है नक पयाणापत मात्रा में रासायननक िटटीलाइजरों, खाि उपलबि न होने से नकसान जमीन में जो नाइट्ोजन उपलबि है, उसका िोहन कर रहे हैं नजससे नमट्ी की गु्णवत्ता कम हो रही है।

    कया हम खाद् संिक्षण सुवनसशरत किने के साथि फटटीलाइजिों के इसतेमाल औि नाइट्रोजन प्दूषण के बीर तालमेल वबठा सकते हैं?

    हां। भारत में खाद् उतपािन उस नहसाब से नहीं बढ़ रहा है नजस अनुपात में िटटीलाइजरों का उपभोग हो रहा है। नपछले िो िशकों में अनाज के उतपािन में नाइट्ोजन का योगिान कम हुआ है। अनय कारकों पर धयान निए नबना िटटीलाइजरों का बढ़ता इसतेमाल िसलों की कम उतपािकता के रूप में ही िेखने को नमलेगा। पयाणावर्ण को भी इसकी कीमत चुकानी होगी। नसंनचत क्ेत्रों जहां एक साल में कई िसलें उगाई जाती हैं, वहां हमें नाइट्ोजन िटटीलाइजरों के असंतुनलत इसतेमाल पर तक्फपू्णणा संतुलन की जरूरत है। हमें यह सुननलशचत करना होगा नक सभी क्ेत्रों में नजतना जरूरी है, उतना िटटीलाइजर ही प्रयोग नकया जाए, भले ही मानसून पर ननभणार भूनम पर िटटीलाइजरों के इसतेमाल में थोड़ा इजािा करना पड़े। सबसे अहम बात, हमें नाइट्ोजन के गैर कृनि स्ोतों पर रोक लगाने की जरूरत है जो कािी तेज गनत से प्रिूि्ण बढ़ा रहा है।

    कया भाित में नाइट्रोजन प्दूषण के कृवष स्रोत पि प्वतबंि लगाकि वरैसशवक नाइट्रोजन रक्ण पुनः सथिावपत हरो सकता हरै?भारत के आकार को िेखते हुए कहा जा सकता है नक भारतीय उतसजणान अमेररका और चीन से कािी कम है लेनकन निर भी नवशव में इसका अचछा खासा योगिान है। मामूली प्रनतबंि वैलशवक चलन पर खास प्रभाव नहीं डालेंगे, लेनकन बड़े उपाय जरूर असर डाल सकते हैं। मसलन, हाल के िो नीनतगत नन्णणायों को ही लीनजए। अननवायणा नकया गया है नक खुिरा बाजार में नीम कोटेड यूररया ही यूररया का एकमात्र स्ोत होगा। यूररया के थैले का आकार भी िस प्रनतशत कम नकया जा रहा है। एक ऐसे िेश में नजसके खेत 3,00,000 टन नाइट्स ऑकसाइड ग्रीनहाउस गैस छोड़ते हैं, वहां नीम कोटेड यूररया और अनय उपायों से इसे अनिकतम 1,00,000 टन पर सीनमत नकया जा सकता है। अगर ऐसा सच में हो पाया तो भारत वैलशवक उतसजणान में उ्लेखनीय सुिार कर सकता है।

    इदंड्न नयाइट्ोिन ग्पु के अध्षि एन िघिुाम न ेभयाित में नयाइट्ोिन प्रिूिण की स्थिदत पि डयाउन टू अथिया स ेबयात की

    भारत में नाइट्ोजन प्रिूि्ण का िूसरा सबसे बड़ा स्ोत है। नवकनसत िेशों में ऐसा नहीं है कयोंनक वहां सीवेज और ठोस कचरा प्रबंिन के बेहतर तंत्र ने इससे होने वाले प्रिूि्ण पर लगाम लगा िी है। बल्क इनसे पोिक ततवों की ररकवरी तक की जाती है जबनक भारत में यह स्ोत तेजी से बढ़ रहे हैं। िटटीलाइजरों के मुकाबले इनकी वृनद्ध िर चार गु्णा अनिक है।” वह भारत में औद्ोनगक और घरेलू सीवेज से नाइट्ोजन के पुनचणाक्ण पर जोर िेते हैं और िटटीलाइजर के रूप में इसे इसतेमाल करने की वकालत करते हैं। उनके अनुसार, िेश में इस तरह का अभयास करके 40 प्रनतशत िटटीलाइजर की बचत की जा सकती है।

    भारत का पररवहन क्ेत्र भी नाइट्ोजन प्रिूि्ण में अहम योगिान िेता है। नाइट्ोजन ऑकसाइड (NOx) के रूप में यह वायु में प्रिूि्ण का मुखय घटक है और यह सांस संबंिी बीमाररयों की वजह बनता है। ओजोन के जररए यह जलवायु पररवतणान में परोक् रूप से योगिान िेता है। वैलशवक ग्रीन हाउस प्रभाव के नलए यह 10-15 प्रनतशत नजममेिार है। भारत में वाहन अनिकतम 32 प्रनतशत नाइट्ोजन ऑकसाइड का उतसजणान करते हैं। इसमें सड़क यातायात का योगिान 28 प्रनतशत है। नि्ली में सड़क पररवहन का योगिान 66 से 74 प्रनतशत है जो ठंड में समॉग के रूप में पररलनक्त होता है।

    ऊजाणा क्ेत्र भी नाइट्ोजन ऑकसाइड और नाइट्स ऑकसाइड के उतसजणान में अचछा खासा योगिान िेता है। 2010 में नबजली उतपािन से सबसे अनिक 11.68 गीगाग्राम नाइट्स ऑकसाइड उतसनजणात हुआ। यह इस क्ेत्र के कुल उतसजणान (12.06 Gg) में करीब 97 प्रनतशत है।

    नाइट्रोजन सीमा से कई गुणा अविक यह भारतीय मू्यांकन अहम है कयोंनक मनु्य िरती पर नाइट्ोजन की सीमा को पार कर चुके हैं। साल 2009 में नेचर जनणाल में प्रकानशत शोि में जोहेन रॉकसट्ॉम ने नवनलयम सटीिन के साथ पयाणावर्ण में पोिक ततवों, उतसजणान एवं अनय मानव नननमणात पररवतणानों की सीमा को सथानपत नकया था। इसके िायरे में रहकर मानवों की कई पीनढ़यां गुजर बसर कर सकती हैं।

    वतणामान में ऑसट्ेनलयन नेशनल यूननवनसणाटी में सेवामुकत पयाणावर्ण प्रोिेसर सटीिन ने डाउन टू अथणा को बताया,“नाइट्ोजन की सालाना सीमा 44 टेराग्राम (Tg) ननिाणाररत की थी। उनहोंने बताया नक मुखय रूप से नाइट्ोजन का िटटीलाइजर के रूप में इसतेमाल करीब 150 टेराग्राम प्रनत विणा है जो िरती की सीमा से तीन गु्णा जयािा है। असल में िटटीलाइजरों के माधयम से वैलशवक सतर

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  • पर कृनत्रम नाइट्ोजन बायलॉनजकल नाइट्ोजन निकसेसन (बीएनएि) से अनिक हो गया है। भारतीय मृिा नवज्ान संसथान से जुड़े एवं मू्यांकन में योगिान िेने वाले डीएलएन राव कहते हैं, “बीएनएि और िटटीलाइजर का वैलशवक अनुपात करीब 1.4:1 होगा।

    केनमकल िटटीलाइजर बीएनएि को पीछे छोड़कर करीब 40 प्रनतशत अनिक हो गए हैं।” उनहोंने आगे कहा, “कुछ साल पहले तक यह और अनिक था, नवकनसत िेशों में इसमें कुछ नगरावट हुई है कयोंनक उन िेशों ने नाइट्ोजन िटटीलाइजरों की राशननंग शुरू कर िी है।” अमेररका ने साल 2012 में अपना नाइट्ोजन असेसमेंट तैयार नकया था। इसने िेश में नाइट्ोजन के प्रबंिन के नलए नीनतयों में बिलाव का मागणा प्रशसत नकया। उिाहर्ण के नलए नाइट्ोजन िटटीलाइजरों के इसतेमाल के नलए अमेररका में तीन बेसट मैनेजमेंट प्रैलकटसेस (BMPs)के सेट हैं। इसमें भुट्े जैसी तमाम िसलों के नलए िटटीलाइजरों के उपयोग की िर, टाइनमंग और तरीकों का धयान रखा गया है।

    मू्यांकन के अनुसार, िुननया के अलग-अलग नहससों में कृनि अथणावयवसथा की प्रकृनत और आबािी की संसकृनत खासकर आहार के चलते नाइट्ोजन प्रिूि्ण के स्ोत अलग-अलग हो सकते हैं। उिाहर्ण के नलए भारत में अनाज का उतपािन का इसमें योगिान सबसे अनिक है, चीन में बागवानी पहले सथान पर है जबनक यूरोपीय िेशों में मीट और िूि के नलए मवेनशयों का पालना सबसे ऊपर है।

    कया हरै उपायअपने नवशलेि्ण के आिार पर एससीएन का सुझाव है नक भारत ऐसी नीनतयां बनाए नजससे उसका एनयूई बढ़ सके। ऐसा करके पयाणावर्ण, मनु्यों के सवास्थय और जलवायु पररवतणान पर नाइट्ोजन प्रिूि्ण के असर को कम नकया जा सकता है। नाइट्ोजन का इसतेमाल ननयंनत्रत करके इसे कािी कम नकया जा सकता है। इससे भारत सरकार की ओर से िटटीलाइजरों पर िी जाने वाले सलबसडी का भार कम होगा।

    1991 में अथणावयवसथा में उिारीकर्ण के बाि से अनय िटटीलाइजरों से सरकार ने अपना ननयंत्र्ण

    हटा नलया था लेनकन यूररया नजसमें सबसे अनिक नाइट्ोजन होता है, उसे अब तक पूरी तरह ननयंनत्रत नकया जा रहा है। िूसरे शबिों में कहें तो सरकार इसके उतपािन, आयात और नवतर्ण पर ननयंत्र्ण रखती है। सरकार नकसानों को यूररया खरीिने के नलए अनुिान भी िेती है। यह अनय िटटीलाइजरों के मुकाबले ससता पड़ता है, इसनलए नकसान इसका खुलकर इसतेमाल करते हैं। इसका नतीजा यह ननकलता है नक नमट्ी अनय पोिक ततवों से वंनचत रह जाती है और इससे उसके सवास्थय पर नकारातमक असर पड़ता है।

    मू्यांकन में पाया गया है नक संभानवत नवकय मू्य 78.8 अमेररकी डॉलर प्रनत टन नाइट्ोजन िटटीलाइजर के आिार पर नगि सलबसडी करीब 7 नबनलयन अमेररकी डॉलर बनती है। इससे िेश के करिाताओं पर भारी बोझ आ जाता है। वैज्ाननकों का अनुमान है नक भारत हर साल करीब 10 नबनलयन अमेररकी डॉलर के मू्य के नाइट्ोजन का प्रयोग करता है। जबनक नाइट्ोजन प्रिूि्ण का सवास्थय, पाररसथनतकी और जलवायु पर पड़ने वाला भार प्रनत विणा 75 नबनलयन अमेररकी डॉलर के बराबर है। उनहोंने यह भी पाया है नक अगर एनयूई में 20 प्रनतशत सुिार नकया जाए तो वैलशवक सतर पर हर साल करीब 170 नबनलयन अमेररकी डॉलर का लाभ होगा।

    कया भारत िटटीलाइजरों के जयािा इसतेमाल के जररए खाद् सुरक्ा और नाइट्ोजन प्रिूि्ण के िु्परर्णामों के बीच संतुलन सथानपत कर सकता है। जानकार हां में जवाब िेते हैं। रघुराम बताते हैं

    िड़कचों िे नाइट्रोजनभारत में पररवहन क्ेत्र नाइट्ोजन ऑकसाइड का सबसे बड़ा उतसजणाक है। ये भी सांस संबंिी बीमाररयों के कार्ण हैं। 2007 में सड़क पररवहन से इसका 86.8 प्रनतशत उतसजणान हुआ है। सड़क पर चलने वाले वाहन ट्क और लॉरी से सबसे जयािा 39 प्रनतशत नाइट्ोजन ऑकसाइड का उतसजणान होता है। भारतीय शहरों में चेन्नै सबसे जयािा नाइट्ोजन ऑकसाइड (353.67 नमलीग्राम प्रनत वगणा नकलोमीटर) छोड़ता है। िूसरे नंबर पर बैंगलोर (323.75 नमलीग्राम प्रनत वगणा नकलोमीटर) है। ये आंकड़े 2009 के हैं।

    “70 के ििक में केंद्र ने ्रूि्या के प्र्ोग के दलए प्रोतसयादहत दक्या। उतपयािन में अप्रत्यादित वदृधि हुई। ऐसया लगया दक हम फसल उतपयािन में सबसे आगे होंगे। लदेकन, कुछ सयाल

    बयाि इसके नकयाियातमक प्रभयाव सयामने आने लग।े िमीन की उवयािक िसकत खतम होने लगी। खयाि के बगिै कुछ भी उगयानया मसु्कल हो ग्या”

    - सिबिीत दसंह, गुदल्तयापुि गयांव,गौतमबुधिनगि, उत्ति प्रिेि

    “पिैयावयाि बढ़न ेस ेहम कयाफी खिु थि।े कुछ सयाल बयाि ही पतया चल ग्या दक ्ह मीठया िहि है। आि स्थिदत ्ह है दक हमयािे िमयान ेमें दिस खते से अचछी पिैयावयाि होती थिी,

    आि उस खते में फसल लगयानया घयाटरे कया सौिया हो ग्या है। एक तिह स ेकहें तो ्रूि्या कया इ्तेमयाल कि हमन ेअपन ेपैिों पि कुलहयाड़ी मयािी है।” - गुलयाब दसंह, ग्ेटि नोएडया, उत्ति प्रिेि

    वाहनचों का यरोगदान

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  • आवरण कथा

    नक नजस गनत से िटटीलाइजरों का इसतेमाल बढ़ रहा है, उस अनुपात में उतपािन में इजािा नहीं हो रहा। ऐसा इसनलए कयोंनक अनय सीनमत कारक भी हैं। वह कहते हैं, “नसंचाई व अनय पोिक ततवों में सुिार नकए नबना अगर िटटीलाइजरों को उपयोग बढ़ता रहता है तो िसलों की गु्णवत्ता में नगरावट िजणा होगी।”

    सटीिन कहते हैं, “हमें नाइट्ोजन और िासिोरस िटटीलाइजरों के कम प्रयोग से िसल उगाने के तरीके सीखने होंगे। ऐसा करने के नलए सबसे महतवपू्णणा उपाय को नप्रनसजन एग्रीक्चर (कृनि की ऐसी वयवसथा नजसमें पौिों के नलए पोि्ण ततवों को सही जरूरत के अनुसार इसतेमाल नकया जाए) कहा जाता है। इसमें पौिे की जरूरत को िेखते हुए सही समय में नाइट्ोजन की सही मात्रा उपयोग में लाई जाती है। इससे जहां िटटीलाइजर की बबाणािी नहीं होती, वहीं िसलों को भी नुकसान नहीं पहुंचता। इससे वैलशवक नाइट्ोजन का उपयोग कम होगा अथवा वह ग्रह की सीमा के भीतर रहेगा। लेनकन नप्रनसजन एग्रीक्चर केवल कुछ सथानों पर ही अपनाई जाती है। इसका नवसतार करने की जरूरत है।”

    इंटरनेशनल नाइट्ोजन इनीनशएनटव के माक्फ सतन कहते हैं, “नाइट्ोजन िटटीलाइजरों के इसतेमाल को कम करके और जैनवक खाि के पुनचणाक्ण से भारतीय नकसानों को सुरनक्त खाद्ान्न उतपािन की बेहतर संभावना है। इससे लाभ भी होगा और सरकार की बड़ी िनरानश की भी बचत होगी। इस समय काबणान और नाइट्ोजन की बचत करने वाले अभयासों पर भी बहुत धयान िेने की

    जरूरत है। ऐसा करके बेहतर नाइट्ोजन प्रबंिन में मिि नमलेगी और नमट्ी की संरचना में सुिार नकया जा सकता है। साथ ही सूखे में लचीलापन, नमट्ी के कटाव और अनय जलवायु से संबंनित खतरों को कम नकया जा सकता है।” उनके अनुसार, इन तरीकों को अपनाकर भारत वैलशवक नाइट्ोजन प्रबंिन के क्ेत्र में नवशव की अगुवाई कर सकता है। भारत आईएनजी के माधयम से पहले से इस निशा में काम कर रहा है नजसने मू्यांकन प्रकानशत नकया है और इंटरनेशनल नाइट्ोजन इनीनशएनटव में िनक््ण एनशयाई अधयाय की अगुवाई की है।

    रघुराम जोर िेकर कहते हैं, “हमारी ररपोट्ट ने प्रमान्णत नकया है नक हमारे पास वह वैज्ाननक

    क्मता है जो प्रनतनकयाशील नाइट्ोजन का आकलन, स्ोत, प्रवाह और भनव्य का आकलन कर सकती है। साथ ही उपाय भी तलाश सकती है। अगर हम बिलते पररिृशय में अपनी वैज्ाननक और पयाणावर्णीय कूटनीनत की ताकत का िायिा उठा लें तो हम नवशव की अगुवाई कर सकते हैं। खोने के नलए हमारे पास कािी कम है और पाने की संभावना बहुत जयािा। भारत सरकार ने नीम कोटेड(नीम की परत चढ़ा हुआ) यूररया को बढ़ावा िेकर अनजाने में सही इस निशा में किम बढाए हैं। इससे संकट कम नकया जा सकता है। नीम कोटेड यूररया िीमी गनत से नाइट्ोजन छोड़ता है और पौिों को इसे अवशोनित करने का समय िेता है। इसमें नाइट्ोजन का अनिकतम इसतेमाल होता है।

    नसड रनवनूतला की ओर से हावणाड्ट में जमा की गई थीनसस रीनडजाइननंग इंनडयाज यूररया पॉनलसी के अनुसार, भारत सरकार यूररया को अननयंनत्रत करने की प्रनकया में है नजससे िटटीलाइजर का उतपािन और उपयोग की िक्ता में इजािा होगा। इसमें यूररया को अननयंनत्रत करने और नकसानों की नडनजटल पहचान के माधयम से लक्य आिाररत अनुिान का लक्य है। इससे जहां सरकार को अनुिान की बचत होती वहीं नमट्ी के सवास्थय और पयाणावर्ण पर प्�