पाठ्य म सिमित · 2018-06-02 · िववादाˆ पद है ।...

277
पाठ्यसिमित BASL -101 0 दामोदर राम िपाठी, गानाथ झा शोधपीठ, कृत िवभाग, इलाहाबाद िविवालय 0पुपा अवथी, कृ त िवभाग एस0एस0जे0परसर,कु मॉऊ िविवालय, अमोड़ा डॉ0 जेश पाडेय,एसो00 मिहला िडी कालेज, हानी डॉ0 गोपाल दत िपाठी, कृ त महािवालय हानी मुय सपादक , डॉ0 योगे कु मार , नेशनल पी0 जी0 कालेज , बड़हलग ज , गोरखप 0 एच0पी0 शुल, िनदेशक, मानिवक िवाशाखा उ0मु0िव0िव0, हानी डॉ0 देवेश कु मार िम सहायक ायापक ,कृ त िवभाग उ0मु0िव0िव 0, हानी डॉ0 स गीता बाजपेयी, अका0 एसोिसएट स कृत िवभाग उ0मु0िव0िव0, हानी सह सपादक , डॉ0 देवेश कु मार िम सहायक ायापक ,कृ त िवभाग उ0म 0िव0िव 0, हानी इकाई लेखन इकाई स या डॉ0 स गीता बाजपेयी, 1,2,13 अका0 एसोिसएट कृ त िवभाग उ0मु0िव0िव0, हानी डॉ0देवेश कु मार िम 4,10 सहायक आचाय ,संकृ त िवभाग उ0मु0िव0िव0 डॉ0 जेश पाडेय,एसो00 7,8,911,12 मिहला िडी कालेज, हानी डॉ0 िबदेवि3,5,6 सरदार पटेल महािव0 ,हरैया बुजुग ,कु शीनगर कापीराइट @ उतराखड मु िविवालय काशन वष : 2015 ISBN.978-93-84632-30-4 काशक: (उ0मु0िव0िव0)हानी -263139

Upload: others

Post on 21-Jun-2020

27 views

Category:

Documents


0 download

TRANSCRIPT

  • पाठ्य�म सिमित BASL -101

    �ो0 दामोदर राम ि�पाठी,

    गंगानाथ झा शोधपीठ, सं�कृत िवभाग, इलाहाबाद िव�िव�ालय �ो0पु�पा अव�थी, सं�कृत िवभाग

    एस0एस0जे0प�रसर,कुमॉऊ िव�िव�ालय, अ�मोड़ा डॉ0 �जेश पा�डेय,एसो0 ो0

    मिहला िड"ी कालेज, ह�&ानी डॉ0 गोपाल द� त ि�पाठी,

    सं�कृत महािव�ालय ह�&ानी मु य स! पादक ,

    डॉ0 योगे( ) कुमार , नेशनल पी0 जी0 कालेज , बड़हलगंज , गोरखपरु

    �ो0 एच0पी0 शु"ल,

    िनदशेक, मानिवक* िव�ाशाखा उ0मु0िव0िव0, ह�&ानी

    डॉ0 देवेश कुमार िम$

    सहायक ा. यापक ,सं�कृत िवभाग उ0मु0िव0िव 0, ह�&ानी

    डॉ0 सगंीता बाजपेयी,

    अका0 एसोिसएट सं�कृत िवभाग उ0मु0िव0िव0, ह�&ानी

    सह स! पादक ,

    डॉ0 दवेेश कुमार िम1 सहायक ा. यापक ,सं�कृत िवभाग

    उ0मु0िव0िव 0, ह�&ानी

    इकाई लेखन इकाई सं या

    डॉ0 सगंीता बाजपेयी, 1,2,13

    अका0 एसोिसएट सं�कृत िवभाग उ0मु0िव0िव0, ह��ानी

    डॉ0देवेश कुमार िम� 4,10 सहायक आचाय� ,स�ं कृत िवभाग

    उ0मु0िव0िव0

    डॉ0 �जेश पा�डेय,एसो0�ो0 7,8,911,12

    मिहला िड�ी कालेज, ह��ानी

    डॉ0 िब� दे� वर िम� 3,5,6

    सरदार पटेल महािव0 ,हरैया बजुगु� ,कुशीनगर कापीराइट @ उ� तराख!ड मु" िव#िव$ालय

    �काशन वष+ : 2015 ISBN.978-93-84632-30-4 �काशक: (उ0मु0िव0िव0)ह� �ानी -263139

  • मु क: उ" तरायण �काशन ह% &ानी

    नोट - इस पु� तक म, िलिखत साम.ी से स! ब0 अकादिमक सम� याओ ंका उ� तरदािय� व इकाई लेखक व पु� तक स! पादक का होगा । इस साम.ी का उपयोग उ� तराख� ड मु" त िव4 विव5ालय क6 िलिखत �शासिनक अनमुित के िबना अ7 य� कह8 नह8 िकया जा सकता ।

  • नाटक अलंकार एवं छ� द BASL101 अनु�म

    �थम ख�ड – अिभ9ानशाकु7 तलम ् प2ृ 01

    इकाई 1:नाट्य सािह4 य का उ5व एवं िवकास कािलदास का जीवन व6ृ एवं उनक* का7 य ितभा 2-16

    इकाई2: अिभ8ानशाकु(तलम ्- कथाव�तु, पा:; का च�र: िच:ण,

    "(थ का नाट्य, शा>ीय वैिश@य, पा�रभािषक शBदावली 17 -33

    इकाई 3: अिभ8ानशाकु(तलम ् थम अंक ,मलूपाठ , अथC 7 याD या 34-66

    इकाई 4:- अिभ&ानशाकु(तलम् ि�तीय एवं तृतीय अंक मूलपाठ , अथ� , या- या 67-108

    इकाई 5: अिभ8ानशाक(तलम ् चतुथC अंक मलूपाठ , अथC 7 याD या 109-144

    इकाई 6 :अिभ8ानशाकु(तलम ् पंचम अंक , मलूपाठ , अथC 7 याD या 145-178

    ि:तीय ख�ड -अलंकार, च7

  • नाटक,अलंकार एव ंछ� द BASL-101

    उ�राख�ड म�ु िव�िव�ालय 1

    �थम ख� ड - अिभ�ानशाकु� तलम ्

  • नाटक,अलंकार एव ंछ� द BASL-101

    उ�राख�ड म�ु िव�िव�ालय 2

    इकाई 1.नाट्य सािह य का उव एवं िवकास, कािलदास

    का जीवन वृ त एवं उनक� का� य �ितभा

    इकाई क� �परेखा

    1•1 �� तावना 1•2 उ�े य 1•3 नाट्य श� द का अथ� 1•4 नाट्य सािह� य का उ�व 1•4•1 उ�व स� ब� धी भारतीय मत 1•4•2 उ�व स� ब� धी पा चा� य मत 1•5 नाट्य सािह� य का िवकास 1•6 कािलदास का जीवन व�ृ त 1•6•1 ि�थितकाल 1•6•2 रचनाएं 1•7 कािलदास क% का& य �ितभा 1•8 सारांश 1•9 श� दावली 1•10 अ( यास � न) के उ� तर 1•11 स� दभ� *� थ सचूी 1•12 उपयोगी प�ु तक. 1•13 िनब� धा� मक � न

  • नाटक,अलंकार एव ंछ� द BASL-101

    उ�राख�ड म�ु िव�िव�ालय 3

    1.1 �� तावना

    सं� कृत नाटक से स बि�धत यह $थम इकाई ह ै । जसैा िक आपने पवू. म/ अ0 ययन िकया ह ैक1 सािह2 यशा� 4 म/ का5 य के दो भदे ह8 9: य का5 य, ;5 य का5 य । ;5 य का5 य म/ आन� दानभुिूत क< पना माग. से $ा> त होती ह ैजबिक 9: य का5 य के @ारा आन� द क1 $ािA रंगमचं पर साकार होती ह ै। इसी 9: य का5 य को Cप या Cपक के नाम से जाना जाता ह ै।

    $� ततु इकाई म/ आप यह जानेग/ िक नाटक िकसे कहते ह8 । इसक1 उ2 पि� तथा िवकास िकस $कार हDआ । महाकिव कािलदास के ज� म, ि�थितकाल, उनक1 रचनाओ ं तथा उनक1 का5 यकला का अ0 ययन करेग/ ।

    इस इकाई के अ0 ययन के प: चात ् आप यह बता सकेग/ िक नाटक िकसे कहते ह8 । सं� कृत नाटकG का उHव एव ंिवकास िकस $कार हDआ । महाकिव कािलदास का सं� कृत नाटकG म/ I या योगदान ह ै । नाटकG के @ारा सJदय सामािजक को आन� द क1 $ािA होती जो मानव के िलए अ2 य� त मह2 वपणू. ह ैइसक1 उपयोिगता से पLरिचत करा सकेग/ ।

    1.2 उ�े य

    इस इकाई के अ0 ययन के प: चात ्आप यह बता सकेग/ िक —

    • नाटक िकसे कहते ह8 तथा इनका उHव िकस $कार हDआ ? • उHव से स बि�धत भारतीय एव ंपा: चा2 य मतG को समझा पायेग/ । • यह बता सकेग/ िक कािलदास का ज� म कब और कहां हDआ था ? • कािलदास क1 रचनाओ ंके बारे म/ बता सकेग/ । • कािलदास क1 का5 यकला से पLरिचत होग/ ।

    1.3 नाट्य श� द का अथ�

    सािह2 यशा� 4 म/ का5 य के दो भदे ह8 - 9: य का5 य ,;5 य का5 य । 9: य का5 य के @ारा भावक िकसी भी घटना या व� त ुका चाPषु Rान Sहण करता ह,ै िक� त ु;5 य का5 य के @ारा केवल ;वण ही $ा> त होता ह ै। ;5 य का5 य म/ आन� दानभुिूत क< पना माग. से $ा> त होती ह ैजबिक 9: य का5 य के @ारा इसी आन� द क1 $ािA रंगमचं पर साकार Cप से होती ह ै।

    िजसका अिभनय िकया जा सके उसे 9: य का5 य कहते ह8 ‘9: यं त4ािभनेयं’ । इसी 9: य का5 य को Cप या Cपक संRा से भी जाना जाता ह ै। Cपक शT द क1 िनU पि� Cप धात ुम/ � वलु $2 यय के योग

  • नाटक,अलंकार एव ंछ� द BASL-101

    उ�राख�ड म�ु िव�िव�ालय 4

    से होती ह ै। ये दोनG ही शT द सािह2 य म/ ‘ नाट्य ’ के �ोतक ह ै। नाट्यशा� 4 म/ ‘दशCप’ शT द का $योग नाट्य क1 िवधाओ ं के अथ. म/ हDआ ह ै । अब $: न यह उठता ह ै िक नाट्य I या ह ै ? दशCपककार आचाय. धनंजय नाट्य क1 पLरभाषा इस $कार दतेे ह8 —‘ अव� थानकृुितना.ट्यम’् अथा.त ्अव� था के अनकुरण को नाट्य कहते ह8 ।

    1.4 नाट्य सािह� य का उ�व

    सं� कृत CपकG के उHव एवं िवकास का $: न भी नाम Cपा2 मक जगत क1 सिृW के समान िववादा� पद ह ै। अिधकांश िव@ानG का अिभमत ह ैिक परमा2 मा ने िजस $कार नामCपा2 मक जगत क1 सिृW क1 ह ैउसी $कार नाट्य िव�ा क1 भी नाट्य िव�ा के स ब� ध म/ भारतीय त2 ववे�ा मनीषी यह अवधारणा रखत/ ह8 िक इसक1 उ2 पि� के मलू म/ परमा2 मा ही ह ै। यहां हम भारतीय एव ंपा: चा2 य मतG को संPेप म/ $� ततु कर रह ेह8 —

    1.4.1 उ�व स� ब� धी भारतीय मत

    दैवीय उ� पि� िस�ा� त

    नाट्य िव�ा क1 उ2 पि� के स ब� ध म/ शभुकंर ने अपने संगीत दामोदर म/ िलखा ह ै िक एक समय दवेराज इ� X ने YZा से $ाथ.ना क1 िक व ेएक ऐसे वदे क1 रचना कर/ िजसके @ारा सामा� य लोगG का भी मनोरंजन हो सके । इ� X क1 $ाथ.ना सनुकर YZा ने समाकष.ण कर नाट्य वदे क1 सिृW क1 । सव.$थम दवेािधदवे िशव ने YZा को इस नाट्य वदे क1 िशPा दी थी और YZा ने भरतमिुन को और भरत मिुन ने मनUु य लोक म/ इसका इसका $चार $सार िकया । इस $कार िशव ‚YZा भरत मिुन नाट्य िव�ा के $ायोजक िस\् होते ह8 ।

    भरतमिुन ने नाट्यशा� 4 म/ नाट्यिव�ा के उHव के स ब� ध म/ कहा ह ैिक सभी दवेताओ ंने YZा से $ाथ.ना क1 िक व ेजनसामा� य के मनोरंजन के िलए िकसी ऐसी िवधा क1 रचना कर/ । उनके इस कथन से YZा ने ऋ^ वदे से पाठ्य सामवदे स ेगायन यजवु_द से अिभनय और अथव.वदे से रस Sहण करके इस नाट्य वदे नामक पंचम वदे क1 रचना क1 । दशCपककार आचाय. धनंजय ने भी इसी मत को � वीकार िकया ह ै। भारतीय िव@ानG क1 यह मा� यता ह ैिक पृ̀ वी पर सव.$थम इ� X0 वज महो2 सव के समय पर नाट्य का अिभनय हDआ था ।

    संवादसू� त िस�ा� त

    इस िस\ा� त के $ितपादकG का िवचार ह ैिक ऋ^ वदे के अनेक सूI तG म/ संवाद $ा> त होते ह8 । यथा — ‘यम यमी संवाद’‚ पCुरवा उव.शी‚शमा. पािण संवाद‚इ� XमCत‚ इ� X इ� Xाणी ‚िव: वािम4 नदी आिद $मखु संवाद सIू त ह ै। यजवु_द म/ अिभनय सामवदे म/ संगीत और अथव.वदे म/ रसG क1

  • नाटक,अलंकार एव ंछ� द BASL-101

    उ�राख�ड म�ु िव�िव�ालय 5

    संि�थित ह ै। इ� हa त2वG से धीरे धीरे Cपको का िवकास हDआ ।

    1•4•2 उ�व स� ब� धी पा� चा� य मत —

    सं� कृत नाटकG के उHव के स ब� ध म/ पा: चा2 य िवचारकG के मत इस $कार ह ै।

    वीरपूजा िस�ा� त

    पा: चा2 य िव@ान डा0 Lरजव ेका मत ह ैिक CपकG के उHव म/ वीर पजूा का भाव मलू कारण ह ै। िदवगंत वीर पCुषG के $ित समादर का भाव $कट करने क1 रीित Sीस‚ भारत आिद दशेG म/ अ2 यिधक $ाचीन काल से ह।ैिदवगंत आ2 माओ ं क1 $स� नता के िलए उस समय CपकG का अिभनय हDआ करता था । पर� त ुडा0 Lरजव ेके इस िस\ा� त से िव@ान सहमत नहa ह8 ।

    �कृित प�रवत न िस�ा� त

    डा0 क1थ के मतानसुार $ाकृितक पLरवत.न को मतू. Cप म/ दखेने क1 � पहृा ने इस िस\ा� त को ज� म िदया । इसके $बल समथ.क डा0 क1थ $कृित पLरवत.न से नाटक क1 उ2 पि� को � वीकार करते ह8 । ‘कंसवध’ नामक नाटक म/ हम इसके मतू. Cप का दश.न कर सकते ह8 । पर� त ुडा0 क1थ के इस मत को भी िव@ानG का समथ.न $ा> त न हो सका ।

    पु�िलका नृ� य िस�ा� त

    जम.नी के $िस\् िव@ान डा0 िपशले सं� कृत नाटक का उHव प�ुिलकाओ ंके न2ृ य तथा अिभनय से मानते ह8 । ‘स4ूधार’ एव ं � थापक शT दG का नाटक म/ $योग हDआ ह ै । इन शT दG का स ब� ध प�ुिलका न2ृ य से ह ैमहाभारत, बाल रामायण ,कथासLर2 सागर इ2 यािद म/ दाCमयी , प�ुिलका आिद शT दG का $योग इस मत को पUु टता $दान करते ह8 । पर� त ुिव@ानG के म0 य यह मत भी सव.मा� य न हो सका

    छाया नाटक िस�ा� त

    छाया नाटकG से Cपक क1 उ2पि� एव ंिवकास का समथ.न करने वाले $िस\् िव@ान डा0 < यडूस. एव ं� टेन कोनो ह ै। अपने मत के समथ.न म/ व ेमहाभाU य को $गाढ Cप म/ $� ततु करते ह8 । महाभाU य म/ शौिभक छाया नाटकG क1 छाया मिूत.यG के 5 याd याकार थे पर दतूांगद नामक छाया नाटक अिधक $ाचीन नही ह ै। अत: इसे नाटकG क1 उ2पि� का मलूकारण मानना � यायोिचत नहa । अत: िव@ानG का यह मत भी अिधक मा� य नहa हDआ ।

    मेपोलनृ� य िस�ा� त

    इस िस\ा� त के समथ.क इ� X0 वज नामक महो2 सव को नाटक क1 उ2पि� का मलू कारण � वीकार

  • नाटक,अलंकार एव ंछ� द BASL-101

    उ�राख�ड म�ु िव�िव�ालय 6

    करते ह8 । पा: चा2 य दशेG म/ मई के महीने म/ लोग वस� त क1 शोभा को दखेकर एक ल बा बाँस गाडकर उसके चारG तरफ उछलते कूदते एव ंनाचते गाते ह8 । यह इ� X0 वज जसैा ही महो2 सव ह ैऐस ेही उ2 सवG से शनै: शनै: नाटक क1 उ2 पि� हDई । पर� त ुदोनो महो2 सवG के समय म/ पया.> त अ� तर ह ैतथा इनके � वCप म/ भी पर� पर िभ� नता ह ैअत: यह िस\ा� त भी सव.मा� य नहa ह ै।

    उपयु.I त िस\ा� तG के अितLरI त कुछ िव@ान लोकि$य � वांग िस\ा� त तथा विैदक अनUु ठान िस\ा� त को भी CपकG क1 उ2पि� का कारण मानते ह8 । िक� त ुिव@ान इस मत से भी सहमत नहa ह8 । िव@ानG के उपयु.� मतG के अनशुीलन से हम इस िनU कष. पर पहDचंते ह8 िक CपकG के उHव का िवषय अ2 य� त िववादास ्पद ह ै । $ाचीन भारतीय पर परा नाट्यवदे का रचियता YZा को इिंगत करती ह ैऔर लोक $चारक के Cप म/ भरतमिुन को िनिद.U ट करती ह ै। आधिुनक िव@ान इससे िभ�न मत रखते ह8 य़�िप यह माना जा सकता ह ैिक इन मतG म/ से कोई मत नाटक क1 उ2पि� का कारण हो सकता ह ैपर� त ुयह कहना अ2 य� त किठन ह ैिक अमकु मत ही नाटक क1 उ2पि� का मलू कारण ह ै।

    1• 5 नाटक का िवकास

    ऋ^ वदे से ही हम/ नाट्य के अि�त2व का पता चलने लगता ह ै । सोम के िवgय के समय यR म/ उपि�थत दश.कG के मनोरजनं के िलए एक $कार का अिभनय होता था । ऋ^ वदे के संवाद स�ू भी नाटक1यता का �ोतन करते ह8। यजवु_द म/ ’शलैूष‘ शT द का $योग िकया गया ह ैजो नट ( अिभनेता) वाची शT द ह ै । सामवदे म/ तो संगीत ह ै ही । इस $कार नाटक के िलए आव: यक त2व गीत, न2ृ य,वा� सभी का अि�त2 व विैदक यगु म/ था । यह िनिhत ह ैिक भारतीय नाट्य पर परा के उदगम के मलू Sंथ वदे ही ह ै। आिदका5 य रामायण म/ नाट्य तiवG का उ< लेख हDआ ह ै। महिष. वदे5 यास $णीत महाभारत म/ भी नट, नत.क, गायक, स4ूधार आिद का � पU ट उ< लेख ह ै । हLरवशंपरुाण म/ उ< लेख हDआ ह ैिक कोबेरर भािभसार नामक नाटक का अिभनय हDआ था िजसम/ शरू रावण के Cप म/ और मनोवती ने र भा का Cप धारण कर रI खा था । माक. � डेय परुाण म/ भी का5 य संलाप और गीत शT द के साथ नाटक का भी $योग हDआ ह ै। सं� कृत भाषा के महान वयैाकरण महिष. पािणनी ने अपनी अU टा0 यायी म/ नट स4ूG का � पU ट उ< लेख िकया ह ै । महिष. पतंजिल ने अपने महाभाU य म/ ‘कंसवध’ और ‘बिलब� ध’ नामक नाटकG का उ< लेख करते हDए ‘शोभिनक’ शT द का $योग िकया ह ै । कौिट< य के अथ.शा� 4 म/ नट,नत.क, गायक एव ंकुशीलव शT दG का $योग हDआ ह ै ।भरतमिुन नाट्यशा� 4 के $मखु आचाय. माने गये ह8 ।

    भरतमिुन ने स$ुिस\् ‘नाट्यशा� 4’ क1 रचना क1 ह ै। इसम/ नाट्य से स बि�धत िवषयG का िविधवत ्िववचेन हDआ ह ै। इ� होन/ कोहल शाि� ड< य, वा2 सम, धिूत.ल आिद आचायj के नामG का उ< लेख िकया ह ै। इससे यह � पU ट होता ह ैिक इनके समय तक अनेक नाटकG क1 रचना हो चकु1 थी और

  • नाटक,अलंकार एव ंछ� द BASL-101

    उ�राख�ड म�ु िव�िव�ालय 7

    नाट्यकला का िविधवत ्िवकास हो चकुा था । वदेG से लेकर भरतमिुन $णीत नाट्यशा� 4 के अनशुीलन से हम यह कह सकते ह8 िक सं� कृत नाटकG क1 रचना परुातन काल से होती चली आ रही ह ैपर� त ुपLरU कृत नाटकG क1 रचना ईसा पवू. $थम शताT दी के पवूा.\् म/ मानी जाती ह ै। सं� कृत नाटकG म/ महाकिव भास के नाटक अ2 यिधक $ितU ठा को $ा> त हDए ह8 । पLरU कृत Cपक रचनाओ ंम/ भास के CपकG को $ाचीन माना जाता ह ै।

    भास के प: चात ्शXूक,कािलदास,अ: वघोष,हष.,भवभिूत,िवशाखाद�,मरुाLर,शि�भX, दामोदर िम;, राजशखेर, िदगंनाग, कृU ण िम;, जयदवे, व2 सराज आिद आते ह8 । इनके उk चकोिट के नाटकG ने सं� कृत सािह2 य क1 स यक् ;ी विृ\ क1 ह ै।

    अ( यास �� न 1

    िन निलिखत $: नG के उ�र दीिजए ।

    1. नाट्यशा� 4 के रचियता का नाम िलिखए । 2. महाभारत के रचियता का नाम िलिखए । 3. प�ुिलका न2ृ य िस\ा� त िकस िव@ान का मत ह ै। 4. नाटक के उHव से स बि�धत कौन से दो मdु य मत ह ै।

    1•6 कािलदास का जीवन वृ�

    सं� कृत सािह2 य के सव.;ेU ठ महाकिव कािलदास के ज� म � थान,समय और जीवनव�ृ के िवषय म/ अ� य किवयG क1 भांित िनिhत Cप से कुछ भी Rात नहa ह ै। कुछ िकंवदि�तयG तथा अनमुानG के आधार पर ही थोडा बहDत जाना जा सकता ह ै । अिभRानशाकु� तलम ् क1 $� तावना तथा भरतवाI य के आधार पर इतनी जानकारी तो अव: य ही $ा> त होती ह ै िक ये िवgमािद2 य के राजकिव थे । महाकिव कािलदास के िवषय म/ यह िकंवद� ती $िस\् ह ैिक व ेआर भ म/ इतने मखू. थे िक िजस डाल पर बैठे हDए थे उसी को काट रह े थे । कुछ पि�डत जो एक िवदषुी राजकुमारी से शा� 4ाथ. म/ परािजत हो गये थे व ेपि�डत CU ट होकर धोख ेस ेमखू. का िववाह उसी िवदषुी िव�ो�मा से करा दतेे ह8 । एक िदन जब वह ऊँट को उn कहकर पकुारने लग ेऔर $य2 न करने पर भी उU n न कह सके तब उनक1 प2 नी ने उ� ह/ धI का दकेर घर से िनकाल िदया । िख�न होकर वह काली दवेी के मि�दर म/ गये ओर अपनी जीभ काट कर दवेी पर चढा दी । माँ काली ने इ� ह/ स पणू. शा� 4G का Rान िदया और तभीसे यह कािलदास कहलाय/ । वहाँ से लौटकर अपने घर वापस आने पर इ� होने ‘अनावतंृ कपाटं @ारं दिेह’ कह कर अपनी प2 नी स ेिकवाड खलुवाये । िव�ो�मा ने ‘अि�त किhत वाि^वशषे: ‘ कहकर इनका स मान िकया । कािलदास ने अि�त शT द से ‘अ� 2 यु�र� याम ् िदिश दवेता2 मा ‘ कुमारसंभवम ् ‚किhत से ‘किhतका� तािवरहगCुणां ‘ से मेघदतू और वाि^वशषे: से

  • नाटक,अलंकार एव ंछ� द BASL-101

    उ�राख�ड म�ु िव�िव�ालय 8

    ‘वागथा.िवव स पIृ�o ’ से रघवुशं महाका5 य क1 रचना क1 । इनके वण.नG से Rात होता ह ैिक इ� होन/ दरू दरू तक pमण िकया था । $कृित से इ� ह/ िवशषे लगाव था । ऐसा माना जाता ह ैिक इनक1 म2ृ य ु50 वष. क1 अव� था म/ िसंहल@ीप म/ इनके िम4 कुमारदास क1 दरबारी व:े या के @ारा हDई थी । इसी $कार इनके ज� म � थान भी का: मीर‚ बंगाल‚िवदभ. तथा उq जियनी बतलाये जाते ह8 िक� त ु उq जियनी को ही इस महाकिव क1 ज� मभिूम कहलाने का गौरव हDआ ह ै।

    1•6•1 ि)थितकाल

    महाकिव कािलदास के ि�थितकाल के स ब� ध म/ िविभ�न िव@ानG के िविभ�न मत ह ै । इनका ि�थितकाल ईसा क1 छठी शताT दी से लेकर ईसा पवू. $थम शताT दी तक माना जाता ह ै । इसका िववरण िन निलिखत ह ै—

    ईसा क, छठी शता. दी का मत

    कािलदास ने अपने नाटकG म/ � वयं को उq जियनी के राजा िवgमािद2 य क1 राजसभा का किव बतलाया ह ै । िक� त ु िवgमािद2 य नाम के कई राजा हDए ह8 अत: कािलदास िकस िवgमािद2 य के समय म/ हDए ह8 यह एक िववादा� पद िवषय ह ै। डा0 फ^ यु.सन का मत ह ैिक उq जियनी के राजा हष. िवgमािद2 य ने 544 ई0 म/ शकG को परािजत करके िवgम स वत ्चलाया उ� होन/ इस स वत ्को $ाचीन बनाने के िलए इसका आर भ अपने समय से 600 वष. पवू. अथा.त ्ईसा से 57 वष. पवू. रखा । कािलदास इ� हa िवgमािद2 य क1 सभा के किव थे । इस मत को मानने वाले कहत ेह8 िक कािलदास के S� थG म/ शक‚ यवन और हrण आिद जाितयG का उ< लेख ह ै । हrणG ने भारत पर 500ई0 म/ आgमण िकया था अत: कािलदास का समय ईसा क1 छठवa शताT दी ह ै।

    समी/ा —

    डा0 फ^ यु.सन के इस मत क1 पिुW म/ िक िवgम स वत ्को 600 वष. पवू. चलाया इसम/ कोई � पU ट $माण नहa ह ै। कािलदास ने अपने S� थG म/ शक‚यवन और हrण आिद जाितयG का वण.न िवदशेी आgमणकाLरयG के Cप म/ नहa िकया ह ैबिु त सtाट च� Xग>ु त िवgमािद2 य ( 375— 413)क1 सभा के किव थे । इ� हa च� Xग>ु त ने शकG को भारत से बाहर िनकाल कर िवgमािद2 य क1 उपािध को धारण िकया था और पहले से ही चले आने वाले मालव स वत ्को िवgमस वत ्के नाम से चलाया

  • नाटक,अलंकार एव ंछ� द BASL-101

    उ�राख�ड म�ु िव�िव�ालय 9

    था । इस मत को मानने वालG के िन न तक. ह8 —

    कािलदास ने कुमार संभव महाका5 य क1 रचना च� Xग>ु त के प4ु कुमार ग>ु त के नाम को 0 यान म/ रख कर क1 थी । कािलदास के S� थG म/ विण.त भारत क1 सखु समिृ\ ग>ु तकाल क1 सखु समिृ\ से समानता रखती ह ै। रघवुशं म/ विण.त अ: वमधे यR का वण.न समXुग>ु त के अ: वमधे यR से समानता रखता ह ै। इन $माणG से � पU ट ह ैिक कािलदास ग>ु त काल म/ िवशेषत: च� Xग>ु त ि@तीय के काल म/ हDए होग/ ।

    समी/ा

    कािलदास ने कुमार संभव महाका5 य म/ कुमार शT द का $योग काित.केय के अथ. म/ िकया ह ै। अत: इससे कुमारग>ु त का संकेत िनकालना अनिुचत ह ै । रघ ु क1 िदि^वजय का वण.न एक का< पिनक किव2 वपणू. वण.न ह,ै ऐितहािसक नहa । िकसी भी ग>ु त सtाट का नाम ‘िवgमािद2 य’नहa था यह केवल उनक1 उपािध मा4 थी । इससे िस\् ह ैिक उनके पवू. िवgमािद2 य नाम का अित $तापी राजा हDआ होगा और उसका नाम बाद म/ उपािध के Cप म/ � वीकार कर िलया गया होगा इस $कार यह मत भी उिचत नहa ह ै।

    ईसा पूव �थम शता. दी का मत

    ऐितहािसक $माणG के आधार पर यह बात िस\् हो चकु1 ह ै िक िवgम क1 $थम शताT दी म/ िवgमािद2 य नामक राजा उq जियनी का शासक था । अत: कािलदास इसी के समकालीन रह ेहोग/ I यGिक $थम शताT दी के उ�राध. म/ महाकिव अ: व घोष क1 ि�थित िस\् होती ह ैऔर उनके ऊपर कािलदास का $भाव ह ै। अत: कािलदास का काल िवgम क1 $थम शताT दी म/ ही िस\् होता ह ै। उI त $माण से � पU ट ह ैिक कािलदास का समय ईसा पवू. $थम शताT दी ही होना चािहए ।

    1. 6. 2 रचनाए ं

    महाकिव कािलदास क1 किवता दवेवाणी का ;ंगार ह ै। कािलदास ने दो महाका5 य , दो गीितका5 य तथा तीन नाटकG क1 रचना क1 । इस $कार इनक1 कुल सात रचनाऐ ंह8 उनम/ अिभRानशाकु� तलम ् िव: व $िस\् नाटक ह ै।

    महाका� य

    कुमारसभंव तथा रघवुशं कािलदास के $िस\् महाका5 य ह8 । कुमारसंभव म/ 18 सग. ह8 िक� त ु

    िव@ान 8 सगj को ही कािलदास @ारा रिचत मानते ह8 । इसम/ पाव.ती ज� म, कामदहन , पाव.ती तप� या, िशव िववाह, काित.केय ज� म आिद का अ2 य� त स�ु दर वण.न ह ै। रघुवंश महाका5 य म/19सग.

    ह8 । इसम/ िदलीप से लेकर अि^नवण. तक के इu वाकुवंशीय राजाओ ंका वण.न ह ै। यह उनका

  • नाटक,अलंकार एव ंछ� द BASL-101

    उ�राख�ड म�ु िव�िव�ालय 10

    सव.;ेU ठ महाका5 य ह ै। गीितका2 य

    ऋतसंुहार तथा मेघदतू किव के $िस\् गीितका5 य ह8 । ऋतसंुहार म/ षडऋतुओ ं का छ: सगj म/ अ2 य� त स�ु दर वण.न ह ै। $2 यके सग. म/ gमश: एक—एक ऋतओु ंका वण.न ह।ै मेघदतू कािलदास का $िस\् गीितका5 य ह।ै इसम/ किव ने िवरही यP के @ारा मघे के मा0 यम से अपनी ि$यतमा को भजे ेगये स� दशे का वण.न िकया ह ै। भौगोिलक वण.न, $ाकृितक 9: यG का िच4ण, तथा िवरिहणी क1 मम. 5 यथाओ ंको दखेकर मेघदतू को सं� कृत काव ्य जगत का सवv�म गीितका5 य कहा जाता ह ै। यह दतू का5 य क1 पर परा का $वत.क का5 य ह ै।

    नाटक

    िवgमोव.शीयम ् , मालिवकाि^निम4म ्तथा अिभRानशाकु� तलम ्कािलदास के $िस\् Cपक ह8 । कथाव� त,ु चLर4 िच4ण , कथोपकथन , नाटक1य सि�ध तथा रसपLरपाक क1 9िW स े कािलदास केनाटकअि@तीयह8अिभRानशाकु� तलम ् िव: व के सवv�म नाटकG म/ िगना जाता ह ै । मालिवकाि^निम4म ्कािलदास का $थम नाटक ह ैइसम/ अि^निम4 तथा मालिवका क1 $णय कथा का पाँच अकंो म/ वण.न ह ै। िवgमोव.शीयम ्पाँच अकंो का नाटक ह ै। इसम/ पCुरवा तथा उव.शी क1 $णय कथा विण.त ह ै। अिभRानशाकु� तलम ् किव का सव.;ेU ठ नाटक ह ै। इसम/ सात अकं ह ै। इसके सात अकंो म/ दUु य� त तथा शकु� तला के िमलन , िवयोग तथा पनु.िमलन का स�ु दर वण.न ह ै।

    अ( यास �� न 2

    LरI त � थानG क1 पिूत. क1िजए ।

    1• कािलदास का समय ईसा पवू. ——— शताT दी ह ै।

    2• कािलदास क1 प2 नी का नाम ——— ह ै।

    3• रघवुंश ——— ह ै।

    4• िवgमोव.शीयम ्——— अकंो का नाटक ह ै।

    5• अिभRानशाकु� तल का नायक ——— ह ै।

    6• मालिवकाि^निम4म ्कािलदास का ——— नाटक ह ै।

    7• मेघदतू ——— ह ै।

  • नाटक,अलंकार एव ंछ� द BASL-101

    उ�राख�ड म�ु िव�िव�ालय 11

    8• ऋतसंुहार म/ ——— ऋतुओ ंका वण.न िकया गया ह ै।

    9• अिभRानशाकु� तलम ्क1 नाियका ——— ह ै।

    10• अिभRानशाकु� तलम ्म/ ——— अकं ह ै।

    1•7 कािलदास क का� यकला

    महाकिव कािलदास क1 किवता दवेवाणी का ;ृंगार ह ै। भाषा, भाव क< पना तथा वण.न के विैव0 य क1 9िW से सं� कृत सािह2 य म/ उनके समान कोई किव िदखाई नहa दतेा । सं� कृत सािह2 याकाश के वह ददैी> यमान िदनमिण ह ै। उनक1 किवता कािमनी कला तथा भाव दोनG पPG से समलंकृत ह ै।

    महाकिव कािलदास क1 का5 यकला के स ब� ध म/ आचाय बलदेव उपा4 याय का कथन है िक ‘ कािलदास क, शैली क, एक उ� कृ6 ट िवशेषता यह है िक इसम; िकसी भाव का बह=त ल� बा चौडा वण न न करके उसके सूA म तBव क, मािम क 2 यंजना माC कर दी जाती है ’।

    भाषा

    महाकिव कािलदास क1 भाषा सरल, सरस तथा $सादगणुोपेत ह ै। उ� होने अपनी भाषा म/ पाि�ड2 य $दश.न नहa िकया ह ै । उनक1 भाषा क1 यह असाधारण िवशषेता ह ै िक वह िजस भाव को 5 यI त करना चाहते ह8 भाषा वहां पर तदनCुप $� ततु हो जाती ह ै। कोमल तथा सकुुमार भावG के िच4ण म/ वह िस\् ह� त ह8 । उनक1 भाषा पा4 के अनCुप होती ह ै। शकु� तला के िनU कलंक सौ� दय. का वण.न किव ने िकतनी स�ु दरता के साथ िकया ह ै—

    ‘‘ अनाDातं पु6 पं िकसलयमलूनं करEहै रनािव�् ंर� नं मधु नवमना) वािदतारसम ्। अखH ड ंपुH यानां फलिमव तJूपमनघं न जाने भोLारं किमह समुप) था) यित िविध: ।। ’’

    कािलदास का भाषा म/ कहa - कहa पर महुावरG के स�ु दर $योग से भाषा अ2 यिधक $वाहमयी हो जाती ह ै । उदाहरणाथ. जब अनसयूा ि$यंवदा से कहती ह ै िक दवुा.सा के शाप का Jदयिवदारक समाचार कोमलJदय शकु� तला तक न पहDचँ जाये तब ि$यंवदा उ�र दतेे हDए कहती ह ै—

    ‘ को नामो6 णोदकेन नवमािलकां िसMचित ’।

    गुण एवं रीित

    महाकिव कािलदास क1 रचनाओ ंम/ $सादगणु यIु त लिलत का5 यशलैी एव ंवदैभw रीित का $योग

  • नाटक,अलंकार एव ंछ� द BASL-101

    उ�राख�ड म�ु िव�िव�ालय 12

    हDआ ह ै । वदैभw रीित के वे सव.;ेU ठ किव ह8 । वदैभw रीित को पLरभािषत करते हDए आचाय. िव: वनाथ ने कहा ह ै ।

    ‘’ माधुय 2 यंजकैव णN: रचना लिलताि�मका

    अवृि�रO पवृि�वा वैदभPरीित�र6 यते ।। ‘‘

    अथा.त ्माधयु.5 यंजक वणv का $योग, लिलत रचना, समासG का अभाव या � व< प समासG का $योग वदैभw रीित क1 $मखु िवशषेताय/ ह8 । माधयु. गणु कािलदास क1 किवता का आभषूण ह।ै जो Jदय म/ परमान� द क1 िनझ.Lरणी को $वािहत करता ह ै। शकु� तला जसैी अि@तीय स�ु दरी के @ारा वPृ िसंचन जसैा कठोर काय. उ� ह/ िकसी भी ि�थित म/ � वीकाय. नहa ह ै अपने इस िवXोही भावG को िकतने समुधरु शT दG म/ किव अिभ5 यI त करता ह ै—

    इद ंिकला2 याजमनोहरं वपु) तप: /मं साधियतंु य इQ छित

    Sुवं स नीलो� पलपCधारया शमीलतां छे�ुमृिष2 य व) याित ।।

    य�िप कािलदास क1 रचनाओ ंम/ $साद एव ंमाधयु. गणु क1 $धानता ह ैतथािप ओजगणु भी उनक1 रचनाओ ंम/ य4 —त4 9िWगोचर होता ह ै। दUु य� त के सै� य बल को दखेकर भयS� त हाथी के वण.न म/ ओजगणु के दश.न होते ह8 —

    ती�ाघात �ितहतत� क धल� नैकद त:

    पादाकृ� ट�तितवलयासगं सजंातपाश: ।

    मतू! िव" न� तपस इव नो िभन सारंगयूथो

    धमा(र) यं �िवशित गज: � य दनालोकभीत: ।।

    अलंकार — महाकिव कािलदास ने अपनी किवता विनता को अवसर के अनकूुल िविभ�न

    अलंकारG से अलंकृत िकया ह।ैकािलदास ने शT दालंकार एवं अथा.लंकार दोनG का ही $योग िकया ह ै। उपमा उनका सव.ि$य अलंकार ह ै। कािलदास क1 उपमाऐ ंतो जगत $िस\् ह ैइसीिलए कहा भी गया ह ै— ‘उपमा कािलदास� य’ । इसके अितLरI त कािलदास ने अन$ुास, यमक, : लेष, उ2 $ेPा, � वभावोि�, 9U टा� त, अथा.� तर� यास आिद अलंकारG का भी $योग िकया ह ै।

    छ द

    छ� द का5 य का आxादक �iव ह ै । महाकिव कािलदास ने अिभRानशाकु� तल म/ 24 छ� दG का $योग िकया ह ै।

  • नाटक,अलंकार एव ंछ� द BASL-101

    उ�राख�ड म�ु िव�िव�ालय 13

    रस प�रपाक

    कािलदास के का5 यG म/ सव.4 ही रसमयता दश.नीय ह ै। य�िप कािलदास ने अपने का5 यG म/ सभी रसG का $योग िकया ह ैपर मdु यत: उनकर Jदय ;ृंगार रस म/ ही रमा ह ै। ;ृंगार के संयोग एव ंिवयोग दोनG पPG का उ� होने अ2 य� त मनोहारी वण.न िकया ह ै। मेघदतू म/ िव$ल भ ;ृंगार चरम सीमा तक पहDचँ गया ह ै । कुमार संभव तथा अिभRानशाकु� तल म/ संयोग ;ृंगार का साि2वक Cप 9िWगोचर होता ह ै। इसके अितLरI त नाटकG म/ िवदषूक के कथन म/ हा� य, कुमारसंभव के ’रित िवलाप’ तथा रघवुशंम ् के ’अज िवलाप’ म/ कCण , रघ ु— इ� X और राम —रावण के य\ु् म/ वीर तथा अ� य � थानG पर िविभ�न रसG का स�ु दर पLरपाक Jदयावज.क ह ै।

    भावािभ� यंजना

    कािलदास 5 यंजना 5 यापार के किव ह ै। उनक1 भावािभ5 यंजना अ2 य� त Jदय� पशw ह ै। इसी 5 यंजना 5 यापार के @ारा किव ने िव� ततृ एव ं रह� या2 मक िवषयG क1 स�ु दर अिभ5 यि� क1 ह ै । अिभRानशाकु� तल क1 $� तावना के िन निलिखत : लोक म/ 5 यंजना 5 यापार दिेखये —

    ’‘ सुभगसिललावगाहा: पाटलसंसग सुरिभवनवाता: । �Q छायसुलभिनJा िदवसा: प�रणामरमणीया: ।।’‘

    ‘िदवसा: पLरणामरमणीया:’ से यह 0 विनत होता ह ै िक नाटक का अ� त सखुद होगा । इसी $कार दUु य� त शकु� तला के पLरचय को जान लेने के बाद भी अपने मन के भावG को इस $कार 5 य� करता ह ै—

    ’’ भव Tदय सािभलाषं स� �ित स� देहिनण यो जात:

    आशंकसे यद्िUनं तिदद ं) पश /मं र� नम ्।।‘‘

    अत: हम कह सकते ह8 िक कािलदास क1 का5 यकला क1 यह िवशषेता ह ैिक वह भाव एव ंकला पP से समलंकृत ह ै। भाषा क1 मधरुता, सरलता , सरसता, और $सादमयता म/ वह अि@तीय ह8 और उसम/ 5 यंजना शि� क1 $धानता ह ै। इसीिलए कािलदास क1 $शंसा म/ कहा गया ह ै—

    ’’ पुरा कवीनां गणना�संगे किनिVकािधिVत कािलदास: ।

    अWािप त�ुO यकवेरभावादनािमका साथ वती बभूव ।। ‘‘

    अ( यास �� न 3•

    िन निलिखत $: नG का उ2 तर हाँ या नहa म/ दीिजये ।

  • नाटक,अलंकार एव ंछ� द BASL-101

    उ�राख�ड म�ु िव�िव�ालय 14

    (क) नाट्य शा� 4 के रचियता िपगलं ऋिष ह ै। (ख) कािलदास का ज� म ईसा पवू. $थम शताT दी म/ हDआ था । (ग) कुमारस भवम ्कािलदास क1 रचना ह ै। (घ) रघवुशं ख� डका5 य ह ै। (ङ) अिभRानशाकु� तलम ्नाटक ह ै।

    1•8 सारांश इस इकाई को पढ़ने के बाद आप यह जान चकेु ह8 िक नाट्य िकसे कहते ह8 । िजसका अिभनय िकया जा सके उसे 9: य का5 य कहते ह8 ‘9: यं त4ािभनेयं’ । इसी 9: य का5 य को Cप या Cपक संRा से भी जाना जाता ह ै। Cपक शT द क1 िनU पि� Cप धात ुम/ � वलु $2 यय के योग से होती ह ै। ये दोनG ही शT द सािह2 य म/ ‘नाट्य’ के �ोतक ह ै। नाट्यशा� 4 म/ ‘दशCप’ शT द का $योग नाट्य क1 िवधाओ ंके अथ. म/ हDआ ह ै। अब $: न यह उठता ह ैिक नाट्य I या ह ै? दशCपककार आचाय. धनंजय नाट्य क1 पLरभाषा इस $कार दतेे ह8 —‘ अव� थानकृुितना.ट्यम’् अथा.त ्अव� था के अनकुरण को नाट्य कहते ह8 । इसके साथ ही आप ने यह भी जाना िक िकस $कार इसका उHव एव ं िवकास हDआ । नाट्य सािह2 य के उHव के स ब� ध म/ भारतीय एव ंपा: चा2 य िवचारकG का I या मत ह ै । साथ ही आपने यह भी जाना िक विैदक काल से से लेकर अब तक नाटकG का िवकास हDआ । इस gम म/ भास के प: चात ्शXूक,कािलदास,अ: वघोष,हष.,भवभिूत,िवशाखद�,मरुाLर,शि�भX, दामोदर िम;, राजशखेर, िदगंनाग, कृU ण िम;, जयदवे, व2 सराज आिद आते ह8 । इनके उk चकोिट के नाटकG ने सं� कृत सािह2 य क1 स यक् ;ी विृ\ क1 ह ै । इसके अितLर� आप कािलदास के जीवन व�ृ, ि�थितकाल एव ंउनक1 रचनाओ ंतथा का5 यकला को भी जान पाये ।

    1•9 श� दावली

    ;वण सनुना

    उHव उ2 पि�

    नाट्य Cपक

    िदवगंत मतृ ( मरे हDए ) पLरवत.न बदलाव

    � पहृा इk छा

  • नाटक,अलंकार एव ंछ� द BASL-101

    उ�राख�ड म�ु िव�िव�ालय 15

    िवgय बेचना

    शलैषू अिभनेता ( नट )

    $सादगणुोपेत $सादगणु से यIु त

    वप:ु शरीर

    छे�मु ् काटने के िलए

    अनघ ं िनU कलंक

    अना� वािदतम ् न चखा गया

    1•10 अ� यास � न� के उ�र

    अz यास $: न 1 — (1) आचाय. भरतमिुन (2) महिष. वदे5 यास (3) डा0 िपशले (4) भारतीय एव ंपा: चा2 य मत अz यास $: न 2— 1• $थम 2• िव�ो�मा 3• महाका5 य 4• पाँच 5• दUु य� त 6• $थम 7• गीितका5 य 8• छ: 9• शकु� तला 10• सात अकं

    अz यास $: न 3 — क ( नहa ) ख ( हाँ ) ग ( हाँ ) घ ( नहa ) ङ ( हाँ )

    1•11 स� दभ� �� थ सूची 1• शभुकंर $णीत ‘ संगीत दामोदर’;ी शषेराज शमा. रे^ मी @ारा स पािदत चौख बा $काशन वाराणसी ।

    2• नाट्यशा� 4, आचाय. भरतमिुन , चौख बा $काशन, वाराणसी ।

    3• सं� कृत सािह2 य का इितहास, आचाय. बलदवे उपा0 याय चौख बा $काशन, वाराणसी ।

    4• दशCपक, आचाय. धनंजय चौख बा $काशन, वाराणसी ।

    5• कािलदास और उनक1 का5 यकला, वागी: वर िव�ालंकार चौख बा $काशन, वाराणसी ।

    6• अिभRानशाकु� तलम,् डा0 िशवबालक ि@वेदेी , S� थम $काशन ।

    1•12 सहायक व उपयोगी पु� तक�

    1• सं� कृत सािह2 य का इितहास, आचाय. बलदवे उपा0 याय चौख बा $काशन, वाराणसी ।

  • नाटक,अलंकार एव ंछ� द BASL-101

    उ�राख�ड म�ु िव�िव�ालय 16

    2• नाट्यशा� 4, आचाय. भरतमिुन , चौख बा $काशन, वाराणसी ।

    3• अिभRानशाकु� तलम,् ताLरणीश झा ,चौख बा $काशन, वाराणसी ।

    4• अिभRानशाकु� तलम,् डा0 िशवबालक ि@वेदेी , S� थम $काशन ।

    1•13 िनब� धा� मक � न

    1• नाट्य सािह2 य के उHव एव ंिवकास पर $काश डािलये ।

    2• कािलदास के जीवन व�ृ एव ंि�थितकाल पर लेख िलिखये ।

    3• कािलदास क1 का5 यकला का वण.न क1िजये ।

  • नाटक,अलंकार एव ंछ� द BASL-101

    उ�राख�ड म�ु िव�िव�ालय 17

    इकाई .2 अिभ�ानशाकु� तलम-् कथाव� तु, पा� का च"र�

    िच�ण ,%� थ का नाट्यशा� �ीय वैिश( ट्य , पा"रभािषक

    श* दावली

    इकाई क� �परेखा

    2•1 �� तावना 2•2 उ�े य 2•3 अिभ0ानशाकु� तलम ्क% कथाव� त ु 2•3•1 मलूकथा 2•3•2 अिभ0ानशाकु� तलम ्का कथासार 2•4 च1र3—िच3ण 2•4•1 द5ु य� त 2•4•2 शकु� तला 2•4•3 क6 व

    2•5 *� थ का नाट्यशा� 3ीय वैिश5 ट्य 2•6 नाट्यशा� 3ीय पा1रभािषक श� दावली

    2•7 सारांश 2•8 श� दावली

    2 •9 अ( यास � न) के उ� तर 2•10 स� दभ� *� थ सचूी 2•11 सहायक पाठ्य साम*ी 2•12 िनब� धा� मक � न

  • नाटक,अलंकार एव ंछ� द BASL-101

    उ�राख�ड म�ु िव�िव�ालय 18

    2•1 �� तावना अिभRानशाकु� तलम ्नाटक से स बि�धत यह दसूरी इकाई ह ै। पवू. क1 इकाइ. के अ0 ययन के प: चात ्आप यह बता सकते ह8 िक नाटक I या ह ैइसका उHव एव ंिवकास िकस $कार हDआ तथा महाकिव कािलदास क1 रचनाऐ ंकौन —कौन सी ह8

    $� ततु इकाई म/ आप अिभRानशाकु� तलम ्नाटक क1 कथाव� त ुतथा $मखु पा4G के चLर4 िच4ण का अ0 ययन करेग/ । इसके साथ ही इस S� थ क1 नाट्यशा� 4ीय िवशषेताओ ं एवं पाLरभािषक शT दावली का Rान भी $ा> त करेग/ ।

    इस इकाई के अ0 ययन के प: चात ्आप यह बता सक/ ग ेिक इस नाटक क1 कथाव� त ुका मलू {ोत I या ह ै? नाटक के $मखु पा4G क1 चाLरि4क िवशषेताओ ंसे पLरिचत होग/ तथा नाटक म/ $यIु त होने वाले पाLरभािषक शT दG के मह2 व को समझा सकेग/ ।

    2•2 उ�े य इस इकाई के अ0 ययन के प: चात ्आप —

    • बता सकेग/ िक अिभRानशाकु� तलम ्क1 कथाव� त ुकहाँ से ली गयी ह ै? • नाटक के $मखु पा4G क1 चाLरि4क िवशेषताओ ंको समझा पाएग/ । • नाटक म/ $यIु त होने वाले पाLरभािषक शT दG के अथ. को समझा सकेग/ । • नाट्य त2 वG के आधार पर S� थ क1 उपादयेता को बता सकेग/ ।

    2•3 अिभ"ानशाकु� तलम ्क& कथाव� तु

    2•3•1 मूलकथा

    अिभRानशाकु� तलम ्क1 मलू कथा महाभारत के आिदपव. म/ 67 से 74 अ0 याय तक $ा> त होती ह ै। वहाँ यह कथा अ2 य� त साधारण Cप म/ $� ततु हDई ह ै। प|परुाण के � वग.-ख� ड म/ भी यह कथा $ा> त होती ह ै । प|परुाण के अनशुीलन से ऐसा Rात होता ह ै िक भाषा आिद क1 9िW से प|परुाण क1 रचना कािलदास के बाद म/ हDई हो अतएव अिभRानशाकु� तलम ्क1 मलूकथा का आधार महाभारत ही ठहरता ह।ै महाकिव कािलदास ने अपनी नतून क< पनाओ ंके @ारा इसम/ मौिलकता ला दी ह ैऔर इसे र य रोचक और $भावशाली बना िदया ह ै।

    2•3•2 अिभYानशाकु� तलम् का कथासार

    इस स पणू. नाटक म/ सात अकं ह ैिजसक1 कथा संPेप म/ इस $कार ह ै-�थम अंक म/ सव.$थम

  • नाटक,अलंकार एव ंछ� द BASL-101

    उ�राख�ड म�ु िव�िव�ालय 19

    किव S� थ क1 िनिव.} न समािA के िलए ना� दी पाठ के @ारा अU ट मिूत. भगवान िशव क1 व� दना करता ह ै । त2 प: चात सू4धार के @ारा गीU म ऋत ुका मनोहर वण.न $� ततु िकया जाता ह ै । इसके बाद आ;म के मगृ का पीछा करते हDए राजा दUु य� त सारिथ के साथ महिष. क� व के आ;म म/ $वशे करते ह8 । जसैे ही राजा मगृ को मारना चाहते ह8 उसी समय एक तप� वी िशU यG के साथ $वशे करके राजा को बतलाता ह ैिक यह आ;म का मगृ ह ैअत: अव0 य ह ै। राजा उस तप� वी क1 बात को मान लेते ह8 इस पर तप� वी उ� ह/ आशीवा.द दतेा ह ैिक त ु ह/ चgवतw प4ु क1 $ािA हो साथ ही राजा से आ;म म/ $वशे कर आित` य को � वीकार करने का आSह करता ह ै। राजा रथ को आ;म के बाहर छोड कर सामा� य वशेभषूा म/ आ;म म/ $वशे करते ह8। महिष. क� व सोमतीथ. को गये हDए ह8 इसिलए अितिथ स2 कार का भार शकु� तला पर ह।ै राजा आ;म म/ वPृ को सaचती हDई अ2 य� त स�ु दर तीन मिुनक� याओ ंको दखेता ह ै।शकु� तला के सौ� दय. से आकृU ट होकर वह उसके $ित आसI त हो जाता ह ै। अपने राजक1य � वCप को िछपाने वाला दUु य� त pमर से पीिडत शकु� तला क1 रPा करता ह ै। मधरु वाता.लाप से वह शकु� तला के ज� म का वतृा� त जानकर िक वह िव: वािम4 और मनेका क1 प4ुी ह ैऔर तात क� व के यो^ य वर से िववाह के संक< प को जानकर वह उससे िववाह करने का 9ढ़संक< प कर लेता ह ैऔर िविवध मधरु संवादG से शकु� तला को आकृU ट करने का $य2 न करता ह ै। शकु� तला भी दUु य� त से $भािवत होकर उस पर अनरुI त हो जाती ह ै। इसी बीच आ;म म/ जगंली हाथी का $वशे होता ह ैराजा अपने सैिनकG को रोकने के िलए $� थान करता ह ैऔर शकु� तला भी अपनी सिखयG के साथ से $� थान करती ह ै।

    िZतीय अंक के $ार भ म/ िवदषूक @ारा राजा के आखटे समबि�धत सचूना $ा> त होती ह ै। ;ा� त

    िवदषूक आखटे के काय.gम को रोकने क1 $ाथ.ना करताह ै। शकु� तला के $ित आकिष.त होने के कारण 5 याकुल Jदय दUु य� त िवदषूक क1 $ाथ.ना को � वीकार कर लेता ह ै आखटे के काय.gम को रोकने क1 आRा दतेा ह ै । इसके प: चात दUु य� त िवदषूक से शकु� तला के मनोहारी सौ� दय. और रमणीय काय.कलापG का वण.नकरता ह ै । राजा िवदषूक से आ;म म/ $वशे हते ु िकसी िनिम2 त को पछूता ह ै। इसी बीच तपोवन म/ Cकने क1 इk छा रखने वाले दUु य� त से दो तप� वी वहाँपर कुछ िदन रहकर आ;म के िनवािसयG के यRािद कायv म/ होने वाले िव} नG को दरू करने क1 $ाथ.ना करते ह8 ,राजा इस $� ताव को सहष. � वीकार कर लेता ह ै। इसी बीच राजधानी से माता का स� दशे लेकर दतू आता ह ैऔर कहता ह ैिक दवेी के पारण के िदन आपक1 उपि�थित माताजी के @ारा वांिछत ह ै। राजा तपोभिूम म/ अपनी उपि�थित क1 अिनवाय.ता को िवचार कर िवदषूक को राजधानी भजे दतेा ह ैऔर िवदषूक से कहता ह ैिक अभी तक जो शकु� तला के $ेम एव ंमनोहाLरता का वण.न उसके @ारा िकया गया ह ैवह पLरहास ही था यथाथ. नहa ।

    तृतीय अंक इसके $ार भ म/ िवU क भक का $योग हDआ ह ै। दUु य� त के $ित आसि� के कारण

    अ� व� थ शकु� तला $िवU ट होती ह ै। उधर कामपीिडत राजा दUु य� त का भी $वशे होता ह ै। वPृG क1 झरुमटु म/ िछपकर राजा शकु� तला और उसक1 सिखयG के वाता.लाप को सनुता ह ै।िजस समय िवरह

  • नाटक,अलंकार एव ंछ� द BASL-101

    उ�राख�ड म�ु िव�िव�ालय 20

    5 यिथत शकु� तला अपनी सिखयG के कहने पर दUु य� त के िलए कमिलनीप4 पर अपने नाखनूG से $ेमप4 िलखती ह ै उसी समय दUु य� त शकु� तला के समP आकर अपने $ेम को $गट करदतेे ह8 । दUु य� त के आ जाने पर दोनG सिखयां वहाँ से चली जाती ह ै । राजा शकु� तला के समP गा� धव. िववाह का $� ताव रखता ह ै पर� त ु इससे पहले िक दUु य� त अपनी िपपासा को शा� त करते िक सिखयाँ चgवाकवध ूको अपने ि$यतम से िवदा लेना का संकेत कर दतेी ह8 । इसी बीच शाि�त जल लेकर गौतमी $वेश करती ह ै। राजा दUु य� त लताओ ंक1 ओट म/ िछप जाता ह ैगौतमी शकु� तला को लेकर चली जाती ह8 । यR म/ िव} न डालने वाले राPस ही राजा को अपने क�.5 य क1 ओर $ेLरत कर पाते ह8 और राजा धनषु बाण लेकर अपने : लाघनीय रPा ~त म/ रत हो जाता ह ै।

    चतुथ अंक का $ार भ िवU क भक क1 समािA से होता ह ैिजससे यह Rात होता ह ैिक राजा दUु य� त

    का शकु� तला के साथ गा� धव. िववाह हो गया ह ै। राजा शकु� तला को कुछ ही िदनG म/ बलुा लेने का आ: वासन दकेर राजधानी चला जाता ह ै दUु य� त के िवयोग म/ अ2 य� त अधीर होने के कारण शकु� तला आ;म म/ आये हDए दवुा.सा ऋिष को जान नहa पाती ह ैिजससे gु\् होकर ऋिष उसे शाप द ेदतेे ह8 िक िजसको � मरण करती हDई आ;म म/ आये हDए मझु जसैे अितिथ क1 ओर 0 यान नहa द ेरही हो वह याद िदलाने पर भी तझु ेनहa पहचान सकेगा दवुा.सा का शाप शाकु� तलम ्का मोड़िब� द ुबना 1 ि$यंवदा शी जाकर दवुा.सा ऋिष से अननुय िवनय करती ह ैफल� वCप ऋिष यह कहते ह8 िक मरेा शाप अ� यथा तो नही हो सकेगा िक� तु िकसी पहचान क1 व� त ुिदखाये जाने पर वहअव: य समा> त हो जायेगा । शकु� तला के पास दUु य� त क1 नामांिकत अगंठूी ह ैअत: उसे िदखाये जाने पर वह अव: य पहचान लेगा । इस आशा से शाप व�ृा� त को व ेदोनG सिखयां िकसी को भी नहa बताती ह8 ।

    इसी बीच तीथ. या4ा से लौटे हDए महिष. क� व को आकाशवाणी के @ारा शकु� तला और दUु य� त के गा� धव. िववाह और शकु� तला के गभ.वती होने क1 सचूना िमलती ह ै। महिष. क� व इस िववाह का अनमुोदन करते ह8 ओर शकु� तला को उसके पित के पास भजेने का िवचार करते ह8 । शकु� तला क1 िवदाई क1 तैयारी होने लगती ह ै । वन के वPृG @ारा उसको व� 4ाभषूण $दान िकये जाते ह8 । शकु� तला अपनी ि$य सिखयG ,लताओ,ंवPृG, वन मगृG आिद से िवदाई लेती ह8 । इसी समय महिष. क� व शकु� तला को पितगहृ के िलए उपय�ु आदश. िशPा और राजा के िलए स� दशे दतेे ह8 । शकु� तला आ;म से िवदा होती ह ैउसके साथ गौतमी,शारंगरव और शार@त जाते ह8 । शकु� तला को पितगहृ भजेकर महिष. क� व परम शाि�त का अनभुव करते ह8 । इसी अकं म/ शाकु� तल के चारो ;ेU ठ : लोक िव� य� त ह8 ।

    पंचम अंक म/ गौतमी,शारंगरव और शार@त शकु� तला के साथ दUु य� त के राजदरबार म/ पँहDचते ह8 ।

    अिभRान के खो जाने के कारण राजा दवुा.सा के शाप क1 अव� था से मIु त नहa ह,ैअतएव शकु� तला के साथ िववाह व�ृा� त को वह िम` या बतलाता ह ै । तपि�वयG और राजा के म0 य आवशेपणू.

  • नाटक,अलंकार एव ंछ� द BASL-101

    उ�राख�ड म�ु िव�िव�ालय 21

    बातचीत होती ह ैपर� त ुराजा शकु� तला को � वीकार नहa करता ह ै। अ� ततोग2 वा राजा का परुोिहत कहता ह ै िक आपके िवषय म/ ऐसा कहा गया ह ै िक आपके चgवतw प4ु उ2 प� न होगा । यिद यह चgवतw प4ु को ज� म देती ह8 तो इ� ह/ � वीकार कर लेना अ� यथा नहa । तब तक के िलए परुोिहत शकु� तला को अपने घर म/ रखने के िलए $� ताव करता ह ै िजसे राजा � वीकार कर लेता ह ै 1 तप� वीजन शकु� तला को छोड़कर चले जाते ह8 । शकु� तला िवलाप करती ह ै। उसी समय एक � 4ी के आकार वाली तेजोमयी q योित उसे उठाकर ले जाती ह ै। सभी लोग आ: चय. करते ह8 और राजा अ2 य� त िख� न हो जाता ह ै।

    ष6 ठ अंक म/ शकु� तला क1 खोयी हDई मिुXका धीवर को $ा> त होती ह ै1 वह उसे बाजार म/ बेचने

    के िलए जाता ह ैिक� त ुउस पर राजा का नाम अिंकत होने के कारण पिुलस उसे चोर समझ कर पकड़ लेती ह ै। िनण.य के िलए राजा के समीप ले आते ह8 । राजा उस अगंठूी को लेकर धीवर को परु� कृत करते हDए उसे मIु त कर दतेे ह8 । इस अगंठूी को दखेकर राजा को शाप के कारण भलूी हDई घटनाय/ पनु: याद आ जाती ह8 । तब राजा को शकु� तला िवयोग से पीडा होती ह ै । तभी मनेका क1 सखी सानमुती राजा क1 ि�थित Rात करने के िलए $k छ�न Cप से $मदवन म/ $कट होती ह ै। वहाँ राजा शकु� तला के अधरेू िच4 को परूा करता ह ै । राजा के Jदय म/ शकु� तला के $ित $ेम को दखे कर सानमुती अ2 यिधक $स� न होती ह ै। इसके पhात $ितहारी आकर राजा को म� 4ी का एक प4 दतेी ह ै। िजसम/ िलखा ह ै िक धनिम4 नामक एक 5 यापारी समXु म/ डूब गया स� तानहीन होने के कारण उसक1 स पि� राजकोष म/ िमला ली जायेगी । इसे पढ कर � वयं स� तानहीन होने के कारण राजा अ2 य� त दखुी होता ह ै। इसी बीच इ� X का सारिथ मातिल का आगमन होता ह,ै वह राजा को इ� X का स� दशे दतेा ह ेिक द2ै यG के संहार हते ुइ� X ने उ� ह/ बलुाया ह ै। राजा इ� X के सहायताथ. � वग. के िलए $� थान करता ह ै।

    स1 तम अंक म/ राजा य\ु ् म/ राPसG पर िवजय $ा> त करता ह।ै इ� X अ2 य� त आदर के साथ राजा

    दUु य� त को � वग. से िवदा करते ह/ । राजा दUु य� त लौटते समय हमेकूट पव.त पर महिष. मारीच के आ;म को दखेते ह8 । इसी समय राजा आ;म म/ एक होनहार बालक को िसंह के बkचे के दाँत िगनने का $यास करते हDए देखते ह8 । राजा उसके पराgम को दखेकर बहDत $भािवत होता ह ैऔर उसे प4ु के समान $ेम करने लगता ह ै । राजा को तपि�वनी @ारा यह Rात होता ह ै िक यह बालक पCुवशं का ह ै । अपरािजता नामक औषिध के @ारा दUु य� त को यह Rात हो जाता ह ैयह बालक उसका ही प4ु ह ै । इसी बीच िवयोग 5 यिथत शकु� तला आकर राजा को $णाम करती ह ै । राजा शकु� तला से Pमा माँगता ह ै ।

    राजा दUु य� त, शकु� तला एव ंभरत महिष. मारीच के दश.न के िलए जाते ह8 । महिष. मारीच दवुा.सा शाप के कारण राजा को िनदvष बताते ह8 त2 प: चात ्व ेउ� ह/ आशीवा.द दतेे ह8 । यहa पर भरतवाI य के साथ नाटक क1 सखुद एव ंमगंलमयी पLरसमािA होती ह ै।

  • नाटक,अलंकार एव ंछ� द BASL-101

    उ�राख�ड म�ु िव�िव�ालय 22

    अ( यास �� न 1

    िन निलिखत $: नG के संिP> त उ�र दीिजए —

    1• अिभRानशाकु� तलम ्के $थम अकं का सारांश िलिखए ।

    2• अिभRानशाकु� तलम ्के चतथु. अकं का सारांश िलिखए ।

    2•4 च)र* िच*ण

    नाटक म/ $यIु त पा4G के िवचार काय.$णाली उनके � वभाव एव ं� वCप के बारे म/ वण.न करना उस पा4 का चLर4 िच4ण कहलाता ह ै । अिभRान शाकु� तलम ् नाटक के नायक दUु य� त , नाियका शकु� तला एव ंमहिष. क� व का चLर4 िच4ण इस $कार ह ै—

    2•4•1 दु6 य� त

    अिभRान शाकु� तलम ् का नायक पCुवंशो2 प�न राजा दUु य� त ह ै । दUु य� त धीरोदा� नायक ह ैदशCपककार आचाय धनंजय ने धीरोदा� का लPण िकया ह ै-

    महासBवोऽितग� भीर: /मावानिवक� थन: ।ि)थरो िनगूढाहकंारो धीरोदा�ो ^ढवृत: ।।

    आदश राजा - दUु य� त एक आदश.‚ पराgमी एव ंक�.5 यिनU ठ राजा ह ै । वह अपनी $जा के

    साथ—साथ तपोवन क1 रPा म/ भी त2 पर रहता ह ै । pमर @ारा पीिडत शकु� तला के सहायताथ. पकुारे जाने पर वह कहता ह ैिक पCुविंश यG के शासक होने पर कौन अिवनय का आचरण करता ह ै? राजा दUु य� त अपनी $जा स ेउिचत कर ही Sहण करता ह ै। िवदषूक जब उससे तपि�वयG से कर लेने को कहता ह ैतो वह कहता ह ैिक यह तप� वी तो मझु ेिवशेष $कार का कर दतेे ह8 । सामा� य $जा से $ा> त कर तो नU ट हो सकता ह ैिक� त ुतप� वी हम/ अपनी तप� या का छठा भाग $दान करते ह8 िजसका कभी भी िवनाश नहa होता ह।ै दUु य� त क1 वीरता भी $शसंनीय ह ैउसक1 वीरता के कारण ही इ� X उसे दानवG से य\ु् करने के िलए बलुाते ह8 ।

    आकष क 2 यिL� व — दUु य� त स�ु दर JU ट पUु ट एव ंआकष.क 5 यि�2 व वाला यवुक ह ै ।उसका

    शारीLरक गठन एव ंसौ� दय. सभी को $भािवत कर देता ह ै। दUु य� त को दखेकर �