पoर्वरेलर्े, मालदा मंडल की ... · 2018-05-01 ·...

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व रेले, मालदा म डल की सृजनामक हिदी ई-माहसकी -14 -12 2016 जो सबको ि भाते प िी किलाते

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पूर्व रेलरे्, मालदा मंडल की सजृनात्मक हिन्दी ई-माहसकी

र्र्व-14

अंक-12

2016

जो सबको िैं भाते

पुष्प र्िी किलाते

8 2

भारत के सहंर्धान में राजभार्ा

सघं की राजभाषा हहंदी और हिहि दवेनागरी है । सघं के शासकीय प्रयोजनों के हिए प्रयोग होने वािे अकंों का रूि भारतीय अकंों का अतंराष्ट्रीय

रूि है { सहंवधान का अनुच्छेद 343 (1)} । िरन्तु हहंदी के अहतररक्त अगें्रजी भाषा का प्रयोग भी सरकारी कामकाज में हकया जा सकता है ।

ससंद का कायय हहंदी में या अगें्रजी में हकया जा सकता है । िरन्तु राज्यसभा के सभािहत महोदय या िोकसभा के अध्यक्ष महोदय हवशेष िररहथिहत में

सदन के हकसी सदथय को अिनी मातृभाषा में सदन को सबंोहधत करने की अनुमहत द ेसकते हैं ।

हकन प्रयोजनों के हिए केवि हहंदी का प्रयोग हकया जाना है, हकन के हिए हहंदी और अगें्रजी दोनों भाषाओ ंका प्रयोग आवश्यक है और हकन कायों के

हिए अगें्रजी भाषा का प्रयोग हकया जाना है, यह राजभाषा अहधहनयम 1963, राजभाषा हनयम 1976 और उनके अतंगयत समय समय िर राजभाषा हवभाग, गृह

मंत्रािय की ओर स ेजारी हकए गए हनदशेों द्वारा हनधायररत हकया गया है ।

अध्याय - 1 संघ की भाषा

ऄनचु्छेद 120. संसद ्में प्रयोग की जाने वाली भाषा - (1) भाग 17 में ककसी बात के होते हुए भी, ककंत ुऄनचु्छेद 348 के ईपबंधों के

ऄधीन रहते हुए, संसद ्में कायय कहदंी में या ऄगें्रजी में ककया जाएगा

परंत,ु यथाकथथकत, राज्य सभा का सभापकत या लोक सभा का ऄध्यक्ष ऄथवा ईस रूप में कायय करने वाला व्यकि ककसी सदथय को, जो

कहदंी में या ऄगें्रजी में ऄपनी पयायप्त ऄकभव्यकि नहीं कर सकता ह,ै ऄपनी मात-ृभाषा में सदन को संबोकधत करने की ऄनजु्ञा द ेसकेगा ।

(2) जब तक संसद ्कवकध द्रारा ऄन्यथा ईपबंध न करे तब तक आस संकवधान के प्रारंभ से पंद्रह वषय की ऄवकध की समाकप्त के पश्चात् यह

ऄनचु्छेद ऐसे प्रभावी होगा मानो “या ऄगें्रजी में” शब्दों का ईसमें से लोप कर कदया गया हो ।

ऄनचु्छेद 210: कवधान-मंडल में प्रयोग की जान ेवाली भाषा - (1) भाग 17 में ककसी बात के होते हुए भी, ककंत ुऄनचु्छेद 348 के

ईपबंधों के ऄधीन रहते हुए, राज्य के कवधान-मंडल में कायय राज्य की राजभाषा या राजभाषाओ ंमें या कहदंी में या ऄगें्रजी में ककया जाएगा

परंत,ु यथाकथथकत, कवधान सभा का ऄध्यक्ष या कवधान पररषद ्का सभापकत ऄथवा ईस रूप में कायय करन ेवाला व्यकि ककसी सदथय

को, जो पवूोि भाषाओ ंमें से ककसी भाषा में ऄपनी पयायप्त ऄकभव्यकि नहीं कर सकता ह,ै ऄपनी मातभृाषा में सदन को संबोकधत करने की

ऄनजु्ञा द ेसकेगा ।

(2) जब तक राज्य का कवधान-मंडल कवकध द्रारा ऄन्यथा ईपबंध न करे तब तक आस संकवधान के प्रारंभ से पंद्रह वषय की ऄवकध की

समाकप्त के पश्चात् यह ऄनचु्छेद ऐसे प्रभावी होगा मानो “ या ऄगें्रजी में ” शब्दों का ईसमें से लोप कर कदया गया हो :

परंतु कहमाचल प्रदशे, मकणपरु, मेघालय और किपरुा राज्यों के कवधान-मंडलों के संबंध में, यह खंड आस प्रकार प्रभावी होगा मानो आसमें अने वाले“पंद्रह वषय” शब्दों के थथान पर “पच्चीस वषय” शब्द रख कदए गए हों :

परंतु यह और कक ऄरूणाचल प्रदशे, गोवा और कमजोरम राज्यों के कवधान-मंडलों के संबंध में यह खंड आस प्रकार प्रभावी होगा मानो आसमें अन ेवाले “ पंद्रह वषय ” शब्दों के थथान पर “ चालीस वषय ” शब्द रख कदए गए हों ।

ऄनचु्छेद 343. संघ की राजभाषा--

(1) संघ की राजभाषा कहदंी और कलकप दवेनागरी होगी, संघ के शासकीय प्रयोजनों के कलए प्रयोग होने वाले ऄकंों का रूप भारतीय

ऄकंों का ऄतंरायष्ट्रीय रूप होगा ।

(2) खंड (1) में ककसी बात के होते हुए भी, आस संकवधान के प्रारंभ से पंद्रह वषय की ऄवकध तक संघ के ईन सभी शासकीय प्रयोजनों

के कलए ऄगें्रजी भाषा का प्रयोग ककया जाता रहगेा कजनके कलए ईसका ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले प्रयोग ककया जा रहा था :

परन्तु राष्ट्रपकत ईि ऄवकध के दौरान, अदशे द्रारा, संघ के शासकीय प्रयोजनों में से ककसी के कलए ऄगें्रजी भाषा के ऄकतररि कहदंी

भाषा का और भारतीय ऄकंों के ऄतंरायष्ट्रीय रूप के ऄकतररि दवेनागरी रूप का प्रयोग प्राकधकृत कर सकेगा ।

(3) आस ऄनचु्छेद में ककसी बात के होते हुए भी, संसद ्ईि पन्द्रह वषय की ऄवकध के पश्चात् , कवकध द्रारा

(क) ऄगें्रजी भाषा का, या

(ख) ऄकंों के दवेनागरी रूप का,

ऐसे प्रयोजनों के कलए प्रयोग ईपबंकधत कर सकेगी जो ऐसी कवकध में कवकनकदयष्ट ककए जाए ं।

क्रमशः

हर्र्य र्स्तु

प्रसंगवश—

—रामाशीष कसंह — 3

जीव का बंधन—

— अर के कसंह 4

ज्योकतषशास्त्र का अकवभायव

— ऄरुण कुमार झा 5

कहन्दी से डर कैसा —

— सभुाष कुमार पाठक 6

रेल समाचार—

— कनलेश कुमार 7

कोककल कंठ की मकललका

— सकच्चदानंद कजज्ञास ु 9

एटीएम...

— कवकास कुमार 11

अकदवाकसयों का ऄर्द्यकंुभ

—सकुप्रया राय 14

क्षमता एवं ईसका व््य

— भारत भषूण पाण्डेय – 15

कल एवं अज

— कवजय कुमार 17

शब्द जोड़ में—-

—सकच्चदानंद साह 18

सोचती ह —ं

— कप्रया प्रसाद 18

हनिःशुल्क हर्तरण िेतु

सरंक्षक

मोकहत कसन्हा

मंडल रेल प्रबंधक

परामशव

सबु्रतो सरकार ऄपर मुख्य राजभाषा ऄकधकारी एवं ऄपर मंडल रेल प्रबंधक

प्रधान सपंादक

रामाशीष कसंह

राजभाषा ऄकधकारी(प्र .)

सपंादक

सकच्चदानंद

क. ऄनवुादक

कायवकारी सपंादक

आदं्र ज्योकत राय

क. ऄनवुादक

सियोग

दयामय दास, ककनष्ठ आजंीकनयर

कनलेश कुमार, ए.एल.पी

3

प्रसंगर्श

सपंर्क सतू्र

संपादर्, बढ़ते र्दम

मंडल रेल प्रबंधर् र्ार्ाकलर्

पूर्क रेलर्े/मालदा

फोन- 72190/ 72192 (रेलर्े) Email – [email protected]

Web:www.er.indianrailway.gov.in

प्रकाकशत रचनाओ ंमें व्यि कवचार लेखकों के ऄपने है आससे संपादक मंडल का सहमत होना अवश्यक नही ह ै।

समुित्रानंदन पंत सकुमिानंदन पंत का जन्म 20 मइ 1900 को ऄलमोड़ा क़िले

के कौसानी नामक ग्राम में हुअ । जन्म के छह घंटे बाद ही ईनकी मााँ

का कनधन हो गया । ईनका लालन-पालन ईनकी दादी ने ककया । ईनका प्रारंकभक नाम गसुाइ दत्त रखा गया । वे सात भाइ बहनों में सबसे छोटे थे । ईनकी प्रारंकभक कशक्षा

ऄलमोड़ा में ही हुइ । ऄपने माँझले भाइ के साथ काशी अ गए और क्वींस कॉलेज में

पढ़ने लगे । वहााँ से माध्यकमक परीक्षा ईत्तीणय कर वे आलाहाबाद चले गए । ईन्हें ऄपना

नाम पसंद नहीं था, आसकलए ईन्होंने ऄपना नया नाम सकुमिानंदन पंत रख कलया ।

ऄसहयोग अंदोलन के दौरान ईन्होंने महाकवद्यालय छोड़ कदया और घर पर ही कहन्दी,

संथकृत, बाँगला और ऄगं्रजेी भाषा-साकहत्य का ऄध्ययन करने लगे । ईन्होंन े

आलाहाबाद अकाशवाणी के शरुुअती कदनों में सलाहकार के रूप में भी कायय ककया ।

ईन्हें मधमुेह हो गया था । ईनकी मतृ्य ुकदसम्बर 1977 को हो गइ ।

ईनका व्यकित्व अकषयण का कें द्र कबंद ुथा, मोहक दहेयकष्ट, गौर वणय, सुंदर एवं

सौम्य मखुाकृकत, लंबे घुंघराले बाल ईन्हें सभी से ऄलग मखुररत करता था । बीसवीं

सदी का पवूायर्द्य छायावादी ककवयों का ईत्थान काल था । सकुमिानंदन पंत ईस नये यगु

के प्रवतयक के रूप में कहन्दी साकहत्य में ईकदत हुए । कहदंी साकहत्य में छायावादी यगु के

चार प्रमखु थतंभों में पंतजी एक थथाइ थतंभ हैं । सुकमिानंदन पंत का प्रकृकत कचिण

सबमें श्रेष्ठ था । प्रकृकत के ईपादानों का प्रतीक व कबम्ब के रूप में प्रयोग ईनके काव्य

की कवशेषता रही ह ै।

सात वषय की ईम्र में ईन्होंने ककवता कलखना शरुु कर कदया था । कुछ ही कदनों में

वे कहदंी के नवीन धारा के प्रवतयक ककव के रूप में पहचाने जाने लगे थे । कुछ समय

पश्चात वे ऄपने भाइ दवेीदत्त के साथ ऄलमोड़ा अ गये । ईन्होंने ―रूपाभ” नामक

प्रगकतशील माकसक पि कनकाला । काफी कदनों तक अकाशवाणी से जडेु रह ेऔर

मखु्य-कनमायता के पद पर कायय ककया । ईनके ककव-जीवन के प्रथम चरण की ककवताएाँ वीणा में संककलत हैं ।

ईसके बाद उच्छवास और पल्लव का प्रकाशन हुअ । सकुमिानंदन पंत की

कुछ काव्य कृकतयााँ हैं ग्रन्थि, ग ुंजन, ग्राम्या, य गाुंत, स्वर्णन्िरर्, स्वर्णधनू्ल, िला और

बढूा चााँद, लोिायतन, न्चदुंबरा, सत्यिाम अकद । ईनके जीवनकाल में ईनकी 28

पथुतकें प्रकाकशत हुइ,ं कजनमें ककवताएं, पद्य-नाटक और कनबंध शाकमल हैं । कहदंी

साकहत्य की आस ऄनवरत सेवा के कलए ईन्हें पद्मभषूण, ज्ञानपीठ, साकहत्य ऄकादमी

तथा सोकवयत लैंड नेहरू परुथकार जैसे ईच्च श्रेणी के सम्मानों से ऄलंकृत ककया गया ।

सकुमिानंदन पंत के नाम पर कौशानी में ईनके परुाने घर को कजसमें वे बचपन में रहा

करते थ,े सुकमिानंदन पंत वीकथका के नाम से एक संग्रहालय के रूप में पररवकतयत कर

कदया गया ह ै । अज के दौर में ईनका घर कहन्दी साकहत्य प्रेकमयों के दशयनाथय एक

अकषयक केन्द्र कबन्द ुह ै । - रामाशीष कसंह

4

जीव का बंधन— इच्छाएं

अध्यात्म

मनषु्ट्य संसार का सबसे ऄप्रकतम जीव ह ै । आसके पास मन और बकुर्द् दो ऐसे गणु हैं कजसकी सहायता से वह संसार

के ऄन्य प्राकणयों से सवयथा ऄलग हो जाता ह ै । लेककन आन्हीं दो गणुों के कारण ईसके पास ऄन्य जीवो की तलुना में

ककठनाइ भी बहुत ह ै। आन सब का कारण कसफय आतना ह ैकक वह ऄपने थवरूप को भलुा चकुा ह ै । ईसे आस बात का ज्ञान

ही नहीं ह ैकक वह थवयं वही ह ैजो अनंद थवरूप इश्वर ह ै । कसफय आसी भ्ांकत की वजह से मनषु्ट्य श्रेष्ठतम प्राणी होते हुए भी

दकुनया के तमाम दखुों को भोगने के कलए बाध्य ह ै ।

हमारे ईपकनषदों में कलखा ह ैयकद मनषु्ट्य के मन में आच्छाओ ंका जन्म न हो तो वह संसार का सबसे सखुी प्राणी हो

सकता ह ै । लेककन आच्छाओ ंका जन्म क्यों नहीं होगा आसका ज्ञान हमें नहीं ह ै । हम ईन आच्छाओ ंपर ऄपना कनयंिण कैसे

पाएगं,े हमें ऐसा क्या करना चाकहए कजससे हम ऄपनी आच्छाओ ंको ऄपने कहसाब से कनयंकित कर सके या ककसी साथयक

कदशा में पररवकतयत कर सके, हमें आसका पता ही नहीं लगता ।

आच्छाए ंही दखुों का कारण हैं और जबतक आच्छाए ंरहेंगी तबतक दःुख से मकुि नहीं पाइ जा सकती ह ै । बौर्द् दशयन

में आच्छाओ ंको ही दखुों का कारण कहा गया ह ै । आच्छाए ंऄज्ञानता के कारण ईत्पन्न होती हैं और ऄज्ञान को ज्ञान के

कबना पराकजत नहीं ककया जा सकता । बरु्द् ने ऄज्ञानता को ऄकवद्या कहां ह ैयह ऄकवद्या जीव के जन्म लेते ही ईस पर

हावी हो जाती ह ैऔर वह तब तक रहती ह ैजब तक ईसे ज्ञान की कटार से काट न कदया जाए । कवज्ञान चाह ेकजतनी भी

ईन्नकत कर ले परंत ुआच्छाए ंक्यों ईत्पन्न होती हैं आसका कारण वह ऄभी तक नहीं खोज पाया ह ै । पर अध्यात्म में आस

बात का ईललेख ह ैकक आच्छाएं ऄकवद्या के कारण पैदा होती ह ैऔर ऄकवद्या तीन कारणों से ईत्पन्न होती ह ैपहला कारण

माकयक ह,ै दसूरा कारण काकमयक ह ैऔर तीसरा कारण अणकवक ह ै ।

आन कारणों को मल या अत्मा का अवरण भी कहते हैं । ये अवरण अत्मा के भीतर ईत्पन्न ऄज्ञान के कारण

होता ह ै । माकयक मल वह मल ह ैकजसकी वजह से जीव को जो ह ैवह नहीं कदखता और जो नहीं ह ैवही कदखता ह ै ।

ईदाहरण के कलए इश्वर ह ैपर मन मानता नहीं, ऄगर मानता भी ह ैतो जानता नहीं । माया का ऄथय ही ह ैजो ह ैईसका नहीं

कदखना और जो नहीं ह ैईसका कदखन । यह संसार ऄसत्य ह ैप्रकतपल पररवतयनशील ह ैक्षणभगंरु ह ैकफर भी माया की वजह

से हम आसे सतत मान लेते हैं और ईसके ऄनरुूप ही कायय करते हैं । ऄगर हमें यह बोध हो जाए कक यह पररवतयनशील ह ै

तो हम माकयक मल से बच सकते हैं

दसूरा अवरण काकमयक मल ह ै । आस संसार में जन्म लेने का एक कवशषे ईद्दशे्य ह ै वह ईदेश्य कवकभन्न प्राकणयों से

बनाए गए संबंध हैं कलए गए कनणयय हैं और ककए गए संकलप हैं । ईन सभी को काकमयक मल के ऄतंगयत रखा जाता ह ै ।

कहने का ऄथय ह ै कक हमें ईन संबंधों को, ईन कनणयय को और ईन संकलपों को परूा करने के कलए आच्छाओ ंके जाल में

घमूना होगा । ऄथायत जबतक यह मल रहगेा तबतक हमारे भीतर आच्छाए ंजन्म लेती रहगेी । यह काकमयक मल हमारे भीतर

आच्छाए ंईत्पन्न करने के कलए ऄकधकांश मािा में कजम्मवेार ह ै ।

तीसरा कारण -- आसे अकण्वक मल कहते हैं और वह ह ैऄपने को ऄण ुमान लेना । कहने का ऄथय ह ैहम भी कशव

ही हैं, हम भी इश्वर ही हैं लेककन हमने ऄपने को आतना छोटा जसेै ऄण ुहो के समान मान कलया ह ैसकू्ष्म मान कलया ह ैकक

हमें ईस इश्वरत्व का कशवत्व का बोध ही नहीं होता । यही कारण ह ैकजसकी वजह से आच्छाए ंईत्पन्न होती हैं और वह

आच्छाए ंकसफय आसकलए होती हैं कक हमें और ईसे बड़ा होना ह ैऄथायत कशवत्व को प्राप्त करना ह ै ।

यकद तीनों मलों को दरू कर कदया जाये तो कनकश्चत रूप से ऄकवद्या का नाश हो जाएगा और हम ऄपनी आच्छाओ ंके

जाल से मिु हो सकें ग े। — आर के हसंि

5

ज्योहतर् ज्योमतषशास्त्र का आमिर्ााि

गतांक से अग े

326 इथवी पवूय में महान कसकंदर भले ही भारत के पकश्चमी दरवाज े को दथतक दकेर ही लौट गया हो परंत ु आस

अक्रमण से भारतीय एव ंपकश्चमी सभ्यताओ ंके कमलन का द्रार खलु गया । कसकंदर के बाद ऄनेक यनूानी व्यापारी, कवद्रान,

ज्योकतष, कलाकार, सैकनक यहां तक की साधारण जनता भी समदु्र में छोटी-छोटी नकदयों की भांकत समाकहत होने लग े । वह

ऄपने साथ वहां की जीवन शैली, भाषा, कवज्ञान, संथकृकत, कला, यरु्द्-शलैी, वेशभषूा, थथापत्य और न जाने ककतने संपदाय

भारत लेकर अए कजससे भारत में भी हर दशे की तरह क्रांकतकारी पररवतयन पररलकक्षत होते हैं । ऐसा लगता ह ैकक यनूानी

अक्रमण ऄपने साथ एक प्रकाशपुंज लेकर अया कजसके अलोक में भारत का प्राचीन आकतहास एकाएक ऄधंेरे से

प्रकाशमान हो ईठा क्योंकक भारत में आकतहास लेखन की परंपरा नहीं थी कजससे कसकंदर से पवूय भारतीय आकतहास लगभग

ऄधंेरे में ह ै । परंत ुयनूानी साकहत्यकार मगेाथथनीज द्रारा रकचत प्रथम भारतीय आकतहास इुंन्ििा तथा कालांतर में कवदेशी

बौर्द् कभक्षओु ं(श्रीलंका, चीन, कंबोकडया) की रचनाओ ंमें तत्कालीन भारत के महान आकतहास की जानकारी प्राप्त होती ह ै ।

आन कवकभन्न पथुतकों में भारतीय ज्योकतष एव ंखगोल कवज्ञान के बारे में भारतीय कवद्रानों की पहुचं का वणयन प्राप्त होता

ह ै। यनूानी कवद्रानों ने जहां भारतीय ज्योकतष ज्ञान को सयूण न्सद्ाुंत नामक पथुतक के रूप में ऄपनी भाषा में ऄनवुाद ककया ह ै

वहीं भारतीय कवद्रानों ने भी यवनों के गकणतीय एव ंखगोलीय कौशल को यवनजाति एव ंरोमािा न्सद्ाुंत नामक पथुतकों में

संथकृत में ऄनवुाद ककया ह ै । ईस काल में प्रकसर्द् तक्षकशला कवश्वकवद्यालय जो ऄब पाककथतान में ह ैमें ऄन्य शास्त्रों की

तरह ज्योकतषशास्त्र भी पाठ्यक्रम का ऄगं था । प्राचीन भारतीय ज्योकतष अगथत की तरह आस काल में भी ऊकष परासर की

पराशर ज्योन्तष एवम ्भगृ ुकी महान पथुतक भगृ ुसंकहता ऄनमोल रचना ह ै । बनारस के थकूलों में नालंदा एव ंकवक्रमकशला

कवश्वकवद्यालय में भी ज्योकतष शास्त्र की पढ़ाइ होती थी ।

भारतीय ज्योकतषशास्त्र का सूयय वाथतव में पांचवी सदी के गपु्त काल में एकाएक ददेीप्यमान होता ह ै । ऄथय, धमय,

साकहत्य, कला, संथकृकत अकद हर के्षि की तरह ज्योकतषशास्त्र के कलए भारत का थवकणयम काल था । आस काल में जहा ं

साकहत्य में काकलदास, भवभकूत, पाकणनी और कचककत्सा के क्षेि में चरक, सशु्रतु अकद की तरह ज्योकतष के के्षि में भी

अययभट्ट ब्रह्मगपु्त वाराहमीकहर, ललला, भाथकर प्रथम, भाथकर कद्रतीय अकद वजै्ञाकनक एव ंखगोल शास्त्री हुए । आनके

कवकभन्न अकवष्ट्कार एव ं कलखी गइ रचनाए ंपरेू कवश्व की ऄनमोल धरोहर हैं । अज ईस काल की प्रमखु रचनाओ ंमें

अययभट्ट की आयणभटीया ब्रह्मगपु्त की ब्रम्हसप त न्सद्ाुंत वराह कमकहर पनिा न्सद्ाुंत ललला न्शष्यावरधौट, ग्रह अध्याय,

गोल अध्याय, भाथकर महत्त ्भास्िर एव ंलघ भास्िर

दकक्षण भारत में भी 1520 बीसी में केरल में ज्योकतष कें द्र की थथापना हो गइ थी । दकक्षण के ज्योकतकषयों ने भी

ऄनेक महान रचनाए ं की हैं नीलकंठन संभाजी - ज्योन्तर मीमाुंसा और ऄच्यतुशास्त्री उपरागन्िया महान गकणतज्ञ एव ं

खगोल शास्त्री रामानुज के योगदान को कौन भलुा सकता ह ै । मध्यकालीन भारत में भी तगुलक के दरबारी ज्योकतकष

श्रीपकत की सप्तऋन्द् एव ंमहेंद्र परुी कलकखत यत्न राजान्धिार तथा यत्नन्िर्णव नामक रचना महत्वपणूय ह ै । सवाइ जयकसंह

(1688 -1743 इ.) नामक राजपतू राजा कवद्रान और महान ज्योकतषी थे । ईन्होंने मथरुा, जयपरु, बनारस एव ंईज्जनै में भी

तारामडंल के थथापना की । जय कसंह कद्रतीय ने कदलली तथा ऄमरे में तारामडंल की थथापना की ।

12 वीं सदी में मोहम्मद ऄल हजारी नामक ऄरबी ज्योकतषी ने ऄनेक वषों तक भारत के ज्योकतष शास्त्र का ऄध्ययन

कर ईनका ऄनवुाद ऄरबी भाषा में ककया । ऄमरेरकी नाशा के प्रथम चंद्र ऄकभयान में कबहार के महान गकणतज्ञ श्री वकशष्ठ

नारायण कसंह की गकणतीय रचना का ईपयोग ककया गया था । पकश्चम में मसेोपोटाकमया सभ्यता में ज्योकतषी ऄन्वेषण के

प्रमाण कमलते हैं । ग्रीस के महान ज्योकतष सकुरात, प्लेटो कसकंदर के गरुु ऄरथत ुज्योकतष के के्षि में महत्वपणूय कायय ककए ।

अधकुनक यगु में कब्रकटश ज्योकतष शफेाररपल (1864 -1929) एव ंएलानकलयो (1807 -1971) ने नए ऄदंाज में ज्योकतष

को लोककप्रय ककया । ऄमरेरका में माकशयया मरू एव ंमाकय डगलस ने अधकुनक कंुडली की शरुूअत कर लोककप्रय बनाया ।

— अरुण कुमार झा

6

आलेख

महंदी स ेडर कैसा राजभाषा या राष्ट्रभाषा के रूप में कहदंी का नाम अते ही या आसकी चचाय होते ही कहदंी की भयावहता, कहदंी का

साम्राज्यवाद या कहदंी वचयथव का डर फैलने लगता ह ै । क्योंकक कुछ एक दकक्षण भारतीय राज्य में कहदंी का भय और भ्म

परम मखुर होकर प्रकट होने लगते हैं । आसके केवल राजनीकतक कारण ह,ै सामाकजक नहीं । कपछले वषय कें द्र सरकार के

एक पररपि को लेकर जो बवाल मचा वह ककसी से कछपा नहीं ह ै । आसमें सोशल साआटों पर ऄगं्रेजी के साथ कहदंी के

ईपयोग की बात कही गइ ह ै। सच तो यह ह ैकक सरकारी कामकाज में कहदंी को लाग ूकरने का कनदशे भारत सरकार के

मकंियों और ऄफसरों के कलए एक सरकारी कायय और औपचाररकता भर ह ै ।

भाषा के प्रकत लगाव या ककसी वजै्ञाकनक सोच का नतीजा नहीं । ऄसली सवाल यह ह ैकक एक छोटे से कवभाग से चली

तथाककथत कचट्ठी से या आसके माध्यम से कदखने वाली कहदंी की वकालत से ऄगं्रेजी या दसूरी भारतीय भाषाओ ं के

राजनीकतक नेततृ्व के पांव क्यों कांपने लग े? तभी तो ककसी को तकमल ऄकथमता और ककसी को ईदूय की आज्जत का ख्याल

सताने लगा । क्या वाकइ अज की तारीख में कहदंी ऐसी कवशषेाकधकार संपन्ना भाषा ह,ै जो बाकी भाषाओ ंके कहत या

ईसका कहथसा मार सके? ईपयोग सवाल पर ठीक से कवचार करें तो पाते हैं कक दरऄसल भारतीय भाषा और कहदंी के बीच

झगड़ा लगाने का काम ऄगं्रेजी कर रही ह ै। कजस सकुय लर को कहदंी के ऄखबार और टीवी चैनलों ने कुछ ईपेक्षा के साथ

दखेा ईसे ऄगं्रेजी ऄखबार और टीवी चैनलों ने भरपरू जगह दी । कुछ ने आसे आस तरह पेश ककया जसेै कहदंी का आथतेमाल

करने वाले वतयमान सरकार के मकुखया और ईनके दसूरे कहदंीप्रेमी मकंियों ने कहदंी को बढ़ावा दनेे के कलए एजेंडा के तौर पर

यह काम ककया ह ै । ईन्होंने यह भी ठीक से नहीं बताया कक दरऄसल कें द्र सरकार का सकुय लर बस कें द्रीय कवभागों,

कायायलयों और ईन राज्यों तक सीकमत ह ैजहां कहदंी बोली जाती ह ै। ईनका बाकी राज्यों के कामकाज से लेना-दनेा नहीं

ह ै।

आसी का पररणाम था कक दकक्षण भारतीय राज्यों को ऄचानक कहदंी के वचयथव का डर सताने लगा और वह कफर ऄगं्रेजी

की छतरी लेकर खडे़ हो गए । पर प्रश्न यह ह ैकक ऄगं्रेजी अकखर यह खले क्यों करती ह ैक्योंकक ऄगं्रेजी आस देश में शोषण

और कवशषेाकधकार की भाषा ह ै। आस दशे की 1% अबादी भी ऄगं्रेजी को ऄपनी मातभृाषा या मखु्य भाषा नहीं मानती

ह,ै लेककन दशे के सारे साधनों संसाधनों पर जसेै ऄगं्रेजी का कब्जा ह ै । ऄगं्रेजी की आस हकैसयत के अग ेकहदंी ही नहीं

बकलक सभी भारतीय भाषाए ंदोयम दज ेकी साकबत होती हैं । आस दृकष्ट से दखेें तो कहदंी नहीं ऄगं्रेजी भारतीय भाषाओ ंकी

दशु्मन ह ै । रोटी और रोजगार के सारे ऄवसर ऄगं्रेजी को सलुभ हैं । सरकारी और अकथयक तंि ऄगं्रेजी को सलुभ हैं ।

सरकारी और अकथयक तंि ऄगं्रेजी के बलबतेू चलते हैं । पढ़ाइ कलखाइ का माध्यम ऄगं्रेजी हुइ जा रही ह ै ।

बहुत से कहदंी वालों को यह घमडं ह ैकक कहदंी ऄभी आटंरनेट पर पसर रही ह ै। कइ दशेों में पढ़ाइ जाती ह ै । टीवी चैनलों

और ऄखबारों में नजर अती ह ैऔर ऄब तो आसमें हॉलीवडु की बड़ी बड़ी कफलमें भी डब करके कदखाइ जाती ह ै । आससे

यह लगता ह ैकक कहदंी का संसार फैल रहा ह ै। शायद दसूरी भाषाओ ंको भी यही लगता ह ैलेककन सच्चाइ यही ह ैकहदंी

बस एक बोली की तरह बची हुइ ह ैकजसका बाजार में आथतेमाल ककया जाता ह ै। ज्ञान कवज्ञान की भाषा के तौर पर कहदंी

लगातार कमजोर होती जा रही ह ै । कहने की अवश्यकता नहीं ह ै कक यही कथथकत ईदूय, तकमल या तेलग ुकी ह ै । आन

भाषाओ ंके लेखक पिकार या तो सरकारी ऄनदुान पर चलते हैं या ऄगं्रेजी संथथानों द्रारा कनकलने वाले भाषाइ ऄखबारों

या चैनलों में काम करते हैं ।

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आलेख ऄब प्रश्न ईठता ह ैआस कथथकत का सामना कैसे ककया

जाए । यह एक लोककप्रय तकय ह ैकक ऄगं्रेजी ही दकुनया

से जोड़ रही ह,ै बाजार स ेभी ,प्रौद्योकगकी से भी और

ईच्च कशक्षा से भी । ऐसे में कहदंी या भारतीय भाषाओ ं

की बात करना कपछड़ापन की बात करना है, बेइमानी

ह।ै अइअइएम और अइअइटी की चकाचौंध भरी

दकुनया के मकुाबले ककसी देहाती संसार की कलपना

करना ह ै । मकुश्कल यह ह ैकक भाषा जसेै संवदेनशील

मसले पर हमारी राजनीकत की कोइ दृकष्ट ही नहीं ह ै।

आस पर कभी राम मनोहर लोकहया ने भरपरू कवचार

ककया था । ईनका मानना था कक बातें कसफय कहदंी कक

नहीं सभी भारतीय भाषाओ ं की होनी चाकहए और

आनके बीच ऄगं्रेजी को एजेंट का काम छोड़ दनेा

चाकहए। यही नहीं जब तक यह भाषाए ं सरकारी

कामकाज और रोजगार की भाषा ही नहीं बनाइ जाती

आनकी कोइ पछू नहीं रहगेी । लेककन हमारा परूा शासन

प्रशासन तंि ऄगं्रेजी में चलता ह ैऔर छोटे से समदुाय

की हसरतों के कहसाब से चलता ह ै । ककसी समदुाय

को कहदंी को खडे़ होन े में एक प्रकतकक्रयावादी डर

कदखाइ दतेा ह ै ।

आसके साथ ही कहदंी ह ैभारतीय भाषाओ ंमें मौकलक

शोध या लेखन के कलए राजकीय योजनाए ंऄलग से

कोइ प्रावधान नहीं करतीं । कवज्ञान की तो बात ही

छोड़ दें आकतहास या समाजशास्त्र में भी मौकलक शोध

लेखन के कलए कवश्वकवद्यालय ऄनदुान अयोग ने

आकतहास पररषद और समाज कवज्ञान शोध पररषद में

ककसी ने भी कभी आस कवषय पर गभंीर कचंतन ककया हो

आसका प्रमाण नहीं ह ै । कहन्दी को भले ही राजभाषा

का दजाय द े कदया गया हो पर वाथतव में राजभाषा के

कलए जो कायय ककए जाने चाकहए व ेनहीं हो पा रह ेहैं ।

कहदंी में ऄनशुासन कवशेष में संवाद के कलए अवश्यक

ईत्सकु समहू का होना भी जरूरी ह ै । आन सबके

बावजदू भी हमें अश्वथत होना चाकहए कक कहदंी

राष्ट्रवाद का वाहक ह,ै कवनाशक नहीं ।

-- सुभार् चंद्र पाठक

रेल सिाचार टिकि कैं टिल अब 139 पर

रेन में सफर करन ेवालों के कलए एक राहत भरी खबर

ह ै। ऄब अप फोन पर ही ऄपना कन्फमय ररजवशेन कटकट

कैं सल करा सकते हैं । जी हां, रेल यािी घर बैठे काईंटर से

खरीद ेगए रेल कटकट को 139 पर फोन कर कैं कसल करा

सकें ग े । आसके ऄलावा यािी 139 पर एसएमएस भजे कर

अइअरसीटीसी की वबेसाआट पर जाकर भी कटकट रद्द

सकते हैं । कें द्रीय रेलमिंी सरेुश प्रभ ु ने आस सकवयस की

शरुुअत की । आस सकुवधा के कलए जरूरी ह ैकक पैसेंजर न े

कटकट बकु कराते वि ऄपना मोबाआल नंबर दजय कराया

हो।

यह सकुवधा ईन याकियों के कलए ह,ै जो काईंटर से

कटकट खरीदते हैं और ककसी कवशेष कथथकत में कटकट

कैं कसल कराना चाहते हैं । आस सकुवधा के तहत काईंटर से

कटकट लेने वाला यािी कन्फमय कटकट रद्द कराने के कलए

जब 139 पर फोन करेगा तो याकियों को अइवीअर के

मने ूमें से कवकलप 6 को चनुना होगा । आसके बाद पैसेंजर

को वन टाआम पासवडय कमल जाएगा । आसके बाद तय

ऄवकध के भीतर पैसेंजर को काईंटर पर ऄपना कटकट लेकर

पहुचंना होगा और ईस पासवडय के जररए कटकट रद्द कराकर

ररफंड लेना होगा ।

ऄगर कोइ पैसेंजर एसएमएस से कटकट रद्द कराना

चाहता ह ैतो पैसेंजर को कैं सल शब्द कलखकर पीएनअर

नंबर और कफर थपेस दकेर रेन नंबर कलखकर ईसे 139 पर

एसएमएस करना होगा । ईसके बाद पैसेंजर को मोबाआल

पर ही ओटीपी कमल जाएगा । पैसेंजर को रेन रवाना होने स े

कम से कम चार घटें पहले कटकट कैं कसल करा सकते हैं ।

आसके ऄलावा रेनों के वि को दखेते हुए भी समय सीमा

तय होगी । रेन प्रथथान होने के समय से चार घटें पहले

कटकट रद्द कराने पर यािी को ररफंड कमलेगा । आसके बाद

नहीं । शाम छह बज ेसे सबुह छह बज ेके बीच रेन होने पर

ऄगले कदन सबुह काईंटर खलुने के दो घटें पहले कटकट

कदखाकर यािी ररफंड पा सकें ग े । ररफंड के कलए ईसी

थटेशन पर जाना होगा जहां से रेन पकड़नी थी ।

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समाचार घर जैि ेखान ेका आनदं िफर में

भारतीय रेलव े के याकियों के कलए

खशुखबरी ! ऄब रेन में यािा करने वाले

मसुाकफर थव-सहायता समहूों द्रारा बनाए गए

घर जसेै खाने का अनंद सफर में ले सकें ग े।

रेलव े के मतुाकबक, महाराष्ट्र के कोंकण क्षेि

में पायलट प्रोजके्ट के तौर पर आस पररयोजना

की शरुुअत हो चकुी ह ै।

अइअरसीटीसी के एमडी के ऄनसुार

ककसानों को प्रोत्साकहत करने के कलए रेन

पैसेंजसय को थथानीय भोजन दनेे के कलए आस

पररयोजना को लेकर नाबाडय के साथ

साझदेारी हुइ ह ै । कोंकण के्षि के दो थटेशनों

कंुडल और सावतंवाडी को पायलट प्रोजके्ट

के तौर पर चनुा गया ह ै। अइअरसीटीसी की

वबेसाआट पर जाकर पैसेंजर ऄपनी यािा के

दौरान भोजन की बकुकंग करा सकें ग े। आसी तरह की पहल को केरल में भी शरुू ककया गया ह ै। यह पायलट प्रोजके्ट 2016

-17 रेल बजट में रेल मिंी की घोषणा में भी शाकमल था ।

रेलव ेने याकियों को इ-कैटररंग फैकसकलटी ऑफर करने के कलए यह सेवा लॉन्च की ह ै कजससे वह फूड सप्लायसय

और पैंरी कार पर कम कनभयर रहें ।

रलेव ेमें हाफ टिकि पर पूरी िीि नहीं

रेलव ेने हाफ कटकट का कॉन्सेपट बदल कदया ह ै । ऄभी तक रेलव ेमें हाफ कटकट लेकर बच्चों के कलए परूी सीट

हाकसल करने वाली प्रकक्रया ऄब समाप्त कर दी जाएगी । हाफ कटकट पर बच्च ेऄब माता-कपता या बड़ों की सीट को ही

शयेर करेंग े।

भारतीय रेलव ेके आस बडे़ कदम से हर साल 2 करोड़ याकियों को कंफमय सीट कमल पाएगी । रेलव ेको आससे हर साल

525 करोड़ रुपए की कमाइ भी होगी । रेलव ेमें ऄभी 5 से 12 साल के बच्चों का हाफ कटकट लगता ह ैऔर ईन्हें परूी सीट

कमलती ह ै। आस योजना के ऄमल में अने के बाद आस ईम्र के बच्चों के कलए ऄगर सीट मांगी जाएगी तो ईनका ककराया भी

परूा लगगेा । हाफ कटकट वाली ऄभी भी चलती रहगेी लेककन आसमें परूी एक सीट कमलने का प्रावधान खत्म हो जाएगा ।

ये नया कनयम 22 ऄप्रैल से लाग ूहोगा । 5 साल से कम ईम्र के बच्चों को लेकर कटकट प्रकक्रया में ककसी तरह का पररवतयन

नहीं ककया गया ह ै। 5 से कम ईम्र के बच्चे कबना सीट के रेन में मफु्त सफर करते रहेंग े।

ऐसी ररपोट्यस हैं कक साल 2014-15 में 5-12 साल के 2.11 करोड़ बच्चों ने अधा कटकट पर रेलव ेमें सफर ककया

ह ै । रेलव ेने ऄनारकक्षत कटकटों की श्रेणी में बच्चों के ककराए में कोइ बदलाव नहीं ककया गया ह ै । रेलव ेऄब ररजवेशन

फॉमय भी बदलेगा कजससे यािी बच्चों के कलए फुल सीट के कलए ऄलग से ऄप्लाइ कर सकें ।

— कनलेश कुमार

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व्यंग्य

कोमकल कंठ की िमललका

गोल मटोल, अकषयक चेहरा, संगीत और कला प्रेमी, कोककल कंठ की मकललका, थवच्छन्द हाँसी, रोते को भी हाँसा

दनेेवाली, कदकाठी लगभग 5.5 फीट, थवथ्य, बलंुद चेहरा, साज श्रृंगार के नाम पर कसफय बोरोलीन, दखेने में पक्का

भारतीय नारी, बातचीत का लहजा खांटी कहन्दथुतानी 150 से 200 रुपये की मामलूी साड़ी, न पहनने का कवशषे ढ़ंग, मानों

तन को ककसी प्रकार ढक कलया हो, न मकैचंग ब्लाईज पहनने की कचन्ता, न ओठों पर कलकपकथटक, न बालों में गजरा न

अाँखों में काजल, न गालों पर लाकलमा, चलु भी कोइ खास लम्बा नहीं, न सेंट की महक कफर भी कचत्ताकषयक चेहरा !

हसं द ेतो रोते हुए को हसंा द े! संगीत गनुगनुा दें तो पकथक कठठक जायें, कहानी शरुु कर दें तो कफर कबहार से बंगाल

गाड़ी चली अए, परन्त ुमखु बन्द नहीं, मानो पाकलययामेंन्ट में या कोटय में कोइ केस बहस कर रही हो । ऄकधकांश समय

मनपसंद गाना सनुते रहना और ऄपने अप में मथत रहना, समाज सेवा में सबसे अगे, आतने गणुों की खान कक आसके जोड़

की दसूरी कमसाल कमलना तो दरू पॉसंग के बराबर भी कोइ कटक नहीं सकता । सबकी चहतेी जो एकबार आससे कमल लें, दो

बातें कर लें, वो आसके प्रशसंक बने कबना नहीं रह पाए । आसकी प्रशसंा में पलु बाँधना

ही पडे़गा ! आतने गणु, कुशलता, क्षमा, त्याग-तपथया और न

जाने ककतनी गणुों की खान ह ैवह ।

उपर जो कुछ मैंने वणयन ककया ह ै वह तो ईसकी माि

वानगी ह ै क्योंकक मरेी भी हालकफलहाल की ही ईसस े

पररचय ह ै । मरेा ईसका पररचय भी अकफस तक ही

सीकमत ह ै । ईसकी भीतरी दकुनया में कभी झौंक कर

दखेने का मौका नहीं कमला, कफर भी जो कुछ समझ

पाया, महससू ककया वह कोइ परी, ऄप्सरा से मझु ेकम

नजर नहीं अइ । ऄक्सर मैं ईसके बारे में कहते रहता

ह ाँ कक भगवान ने तमुको फुसयत में बनाया होगा। वह

बस मथुकरा दतेी ह,ै ईस मथुकान को दखेने पर

अपको भी एहसास होगा कक सचमचु वह ऄनेक

गणुों को ऄपनी साढ़े पांच फीट की काया में समटेी

हुइ ह ै।

ईसकी चालढ़ाल बातचीत के लहज ेको दखेकर

ऄजनबी व्यकि चाह ेनर हो या नारी सोचने पर

कववश हो जाते हैं कक यह बाकलका बंगाली ह ै

कक कबहारी । कुछ मकहलाएाँ तो पछू ही लेती हैं

और कबना जाने कनष्ट्कषय कनकाल लेती ह ै कक

कुछ तो मामला गड़बड़ ह ै । कनकश्चत रुप से

यह लड़की कबहारी ह,ै पर प्रमे भालोवासा

के चक्कर में पड़कर ककसी बंगाली छोकरा

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आलेख का हाथ थाम ली ह ैखरै ! वह लड़का भी कम नसीब वाला नहीं होगा कजसका वह हाथ थामी होगी । कजतनी मुाँह ईतनी

बात !

हााँ तो मैं अपको ईसका पररचय करा रहा था और कहााँ से कहााँ भावावेश में भटक सा गया, कफर अ राहा ह ाँ ईसके

पास । हाथ में बस लाल पोला, शखंा और दो चार मामलूी कााँच की चकुड़यां, चप्पल फुटपाथ पर कबकने वाली सौ ढेड़ सौ

की मामलूी चप्पल, बस पांव में कफट हो जाए कजससे कक राथते में पांव में कुछ गडे़ नहीं । साड़ी, चप्पल की तो बात मैंन े

बतला दी क्योंकक मैं आसे बाहरी अाँखों से कनत रोज दखेता ह ाँ । भीतर क्या कोइ कीमती ऄंगवस्त्र पहनती होगी, सवाल ही

नहीं ईठता, न क्रीम का खचय, न कलकपथटीक, न कोइ सेंट, आि, न अाँखों में काजल, आसके वावजदू भी चााँद को लजा दनेे

वाला मखुड़ा ।

दसूरों के सामने हाथ फैलाने की जरुरत नहीं क्योंकक ऄच्छा खासा तनख्वाह पाती ह ैवह । कफर भी आतनी मामलूी वेष

में रहना क्या मडू की बात ह ै। घरों की चारकदवारों में रहनेवाली औरतों को जाकर दकेखए 400 से कम की साड़ी पहनने में

ऄपने अपको ऄपमाकनत समझती ह ै। क्या साज श्रृंगार पकूछए तो कहगेी हम नौकरी नहीं करती तो क्या मैं फटी साड़ी ही

पहनूं ? मझु ेक्या दफ्तर में अराम से कुसी तोड़नी ह ै? मझु े ककतना काम करना पड़ता ह,ै कमर टूट जाती ह,ै तो अकखर

हमारा शौक मौज कब परूा होगा । दकेखए ,आसबार कफर मैं भटक गया, बात ईसकी हो रही थी तो कफर वापस ईसके पास ही

जाता ह ाँ, ईसके संबंध में बस कनम्न पंकियााँ कहना चाह ाँगा ।

रुखा सखूा खाआके ठण्डा पानी पी

दकेख पराइ चपूड़ी मत ललचाओ जी

चेहरे को कखला रकखये लटकने न दीकजए

मनहुकसयत को पास फटकने न दीकजए

हर कफक्र और गम को हसंी में ईड़ाआए

जीने का मजा लीकजए, हाँकसए-हाँसाआये ।

कैसे हसंा जाए, मथत रहा जाए, आस कला को जानने के कलए कोककल कंठ की मकलका से हो सके तो एकबार कमल

लीकजए या ईपयुयि बाते जो ईसके संबंध में कही गइ हो ईसका ऄनसुरण करें तो अपका जीवन बहुत हद तक सधुर

जाएगा।

संतोष ं परम सखुम ् आस सिू को जीवन में ऄपनाआये । पैसे के पीछे मत दौकड़ये ऄन्यथा दौड़ते दौड़ते कजन्दगी कट

जायेगी हाथ में कुछ नहीं अयेगा । कफर तो जीने का अकखर ईदशे्य क्या ह?ै यह सब छूट जाएगा । आसीकलए कम खाआये गम

खाआये की नीकत जीवन में ऄपनाआये ।

कनकश्चत रुप से अप सखुी रहेंगें । कोककल कंठ की मकललका बहुत सरुीला गाती ह ैयूं हर वि गनुगनुाती रहती ह ैतथा

सबको सहज ही ऄपना बना लेती ह ैआकसकलए आसे सबलोग प्यार से मरेी सहलेी कहते हैं । सबके सखु दःुख में ईसके साथ

नजर अती ह ै। पर ईसकी मथुकुराहट मनचलों के कदल पर कबजली भी कगराती ह ै। सचमचु में वह सबकी कप्रय सहलेी ही हैं।

आनसे हमलोगों को प्रेरणा लेने की अवश्यकता ह,ै क्योंकक आसमें समाज सेवा का गणु कूट-कूट कर भरा ह ै। लगता तो नहीं

कक कहीं ऐसी भी नारी होती पर यह सच ह ैवह भी हमारे अपके पास ही कहीं ह ै। तभी तो मैंने आसे ऄपनी लेखनी में थथान

कदया ह ै। कोककल कंठ की मकललका को शत ्- शत ्धन्यवाद ।

—सहचचदानन्द जिज्ञासु

तकनीक

क्या ह ैएटीएम ? स्र्चाहलत गणक मशीन (आटोमने्टि

टैलर मशीन, ऄथायत एटीएम) को अटोमकेटक

बैंककंग मशीन, कैश पाआटं, होल आन द वॉल,

बैंनकोमटै जसैे नामों से यरूोप,

ऄमरेरका व रूस अकद में जाना जाता ह ै । यह

मशीन एक ऐसा दरूसंचार कनयंकित

व कंप्यटूरीकृत ईपकरण ह ैजो ग्राहकों को कवत्तीय

हथतातंरण से जडु़ी सेवाए ं ईपलब्ध कराता ह ै । आस

हथतांतरण प्रकक्रया में ग्राहक को कैकशयर, क्लकय या

बैंक टेलर के मदद की अवश्यकता नहीं होती ह ै।

खदुरा याकन ररटेल बैंककंग के के्षि में एटीएम बनाने का कवचार समांनातर तौर पर जापान, थवीडेन, ऄमरेरका और आगं्लैंड में

जन्मा और कवककसत हुअ ।

मौटे मौर पर लंदन और न्ययूॉकय में सबसे पहले आससे प्रयोग में लाए जाने के ईललेख कमलते हैं । 1960 के दशक में

आसे बैंकोग्राफ के नाम से जाना जाता था । कुछ दावों के ऄनसुार सबसे पहले प्रायोकगक तौर पर 1961 में कसटी बैंक ऑफ

न्ययूॉकय ने न्ययूॉकय शहर में ग्राहकों की सेवा में चाल ू ककया था । वसेै ग्राहकों ने तब आसे ऄथवीकृत कर कदया था । आस

कारण छह माह के बाद ही आससे हटा कलया गया था । आसके बाद टोक्यो, जापान में 1966 में आसका ईपयोग हुअ था ।

अधकुनक एटीएम की सबसे पहली पीढ़ी का प्रयोग 27 जनू, 1967 में लंदन के बाकेले बैंक ने ककया था । ईस समय तक

कुछ ही ग्राहकों को आसकी सेवा का लाभ कमल पाया था । ईस समय अज के एटीएम काडय के बजाए के्रकडट काडय के

जररए आसकी सेवाओ ंका ईपयोग ककया जाता था । आगं्लैंड में प्रयोग में लाइ गइ मशीन के अकवष्ट्कार का श्रेय जॉन शपेडय

को जाता ह ै। आसके कवकास में आजंीकनयर डे ला रूइ का भी महत्त्वपणूय योगदान ह ै। वतयमान एटीएम मशीनें आटंरबैंक नेटवकय

से जडु़ी होती हैं । यह नेटवकय पीयएूलएसआ, पीएलयएूस अकद नामों से जाने जाते हैं ।

कैस ेकाम करता ह ैएटीएम एटीएम एक तरह का डाटा टकमयनल होता ह,ै कजसमें आनपटु और अईटपटु कडवाआस होते हैं । यह होथट प्रोसेसर से

जडु़ा होता ह,ै जो बैंक और एटीएम के बीच कड़ी का काम करते हैं । यह प्रणाली टेलीफोन नेटवकय की मदद से काम

करती ह ै। आससे यजूर एटीएम में काडय डालते ही बैंक के होथट प्रोसेसर से जडु़ जाता ह ै। ऐसे में वह कबना बैंक जाए ही

ऄपने खाते से पैसा कनकाल सकता ह ै।

हर ग्राहक के डेकबट या के्रकडट काडय के कपछले कहथसे में एक खास मैग्नेकटक कथरप होती है, कजसमें ईसकी पहचान

संख्या व ऄन्य जरूरी जानकाररयां कोड के रूप में होती हैं । जब ग्राहक काडय को एटीएम के काडय-रीडर में डालता ह,ै 11

तकनीक 111 एटीएम मगै्नेकटक कथरप में कछपी आन जानकाररयों को पढ़ लेता ह ै। यह जानकारी जब होथट प्रोसेसर के पास पहुचंती ह,ै

तो वह ग्राहक के बैंक से रांजके्शन का राथता साफ करता ह ै। जब ग्राहक कैश कनकालने का कवकलप चनुता ह ैतो होथट

प्रोसेसर और ईसके बैंक ऄकाईंट के बीच एक आलेक्रॉकनक फंड रांसफर प्रकक्रया होती ह ै। आस प्रकक्रया के परूा होते ही होथट

प्रोसेसर एटीएम को एक ऄप्रवूल कोड भजेता ह ै। यह कोड एक तरह से मशीन को पैसा देने के अदशे के समान होता ह ै।

आस प्रकार अपका एटीएम काम करता ह ै।

एटीएम का उपयोग वतयमान यगु में एटीएम का प्रयोग मानव कदनचयाय का महत्त्वपणूय ऄगं बन गया ह ै। ऄतएव एटीएम प्रयोग करते समय

कुछ सावधाकनयां अवश्यक हैं । आन सावधाकनयों को ध्यान में न रखने पर बेवजह की कुछ परेशाकनयों का सामना करना पड़

सकता ह ै।

एटीएम का प्रयोग करते समय ध्यान रखें कक कोइ अपका कपन नम्बर न दखे पाए । यकद अपके साथ एटीएम केकबन

में ऄनजाना व्यकि मौजदू ह ैतो ऄपने शरीर से एटीएम की-पैड को घरेे रखें ।

एटीएम पर कपन डालते हुए ध्यान दें कक बाहर से कोइ दखे न रहा हो ।

कपन नम्बर को याद रखें । ऄगर याद नहीं हो पाता ह ैतो ईसे ऐसी जगह कलखकर रखें जहां कसफय अप की ही पहुचं

हो । एटीएम का प्रयोग करते समय आसका बेहद सावधानी से प्रयोग करें और आसे मशीन के असपास न छोडे़ ।

एटीएम से पैसा कनकालते समय, खासकर रात के समय तो एक साथी को लेकर ऄवश्य जाए ं। रात के समय आस

बात का खासतौर पर ख्याल रखें कक कोइ संदहेाथपद व्यकि अपके असपास न हो ।

एटीएम काडय को पहले से बाहर कनकाल कर रखें । मशीन के पास पहुचंन ेपर ऄपने पसय अकद से कनकालने में समय

न लगाए ं। कोकशश करें ऄगर ज्यादा रकम कनकालने जा रह ेहैं तो ऐसे के्षि का एटीएम चनुे जो तलुनात्मक तौर पर

ऄकधक सरुकक्षत हो ।

एटीएम मशीन से कनकलने के बाद कनकाली गइ राकश को कगने जरूर पर यह भी ध्यान रखें कक ऐसा करते समय

ककसी की कनगाहें अप पर न हों ।

मशीन से प्राप्त रसीद को ऄपन ेपास जरूर रखें और आसका कमलान ऄपने ऄपने बैंक थटेटमेंट से ऄवश्य करें । ऄगर

कोइ समथया हो तो संबंकधत बैंक से संपकय करें ।

ऄपने फोन नम्बर, घर के पते, नाम या संकेताक्षरों अकद पर ऄपना कपन नम्बर न कलखें।

कपन डालते समय कीपैड को ऄपने दसूरे हाथ से छुपाए रखें ।

एटीएम मशीनों के साथ समस्याएं

ग्राहकों के कलए बैंकों से रुपयों की कनकासी सरल बनाने हतेु एटीएम मशीनों को चाल ूककया

गया था, लेककन आन एटीएम मशीनों में भी कइ समथयाए ंअती रहती हैं । आनके कारण ग्राहकों

को कइ बार परेशानी ईठानी पड़ जाती ह ै । मशीन से कभी नकली नोट कनकल अते हैं तो

कभी कबना नोट कनकले ही कनकाले गए रुपयों की खाली रसीद बाहर कनकल अती ह ै। आसका

संभाकवत कारण कुछ हद तक बैंकों में चाआनीज कंप्यटूर तकनीक का प्रयोग माना जा रहा ह ै।

आसके ऄलावा हाल की कुछ घटनाओ ंसे एटीएम मशीन को ही चोरी कर ले जाने की घटनाए ं

सनुाइ दी हैं । आनके कारण चोरी या लटू का ऄलामय न बजना या मशीन के तार काटे जाने 12

तकनीक

पर कथवच यानी कंरोल रूम को खबर भी न लग पाना अकद हैं । एटीएम मशीन मरम्मत के कलये खलुी होने की कथथकत में

कथवच के साथ ऄपना संपकय तोड़ दतेी ह ै । ऐसे समय बैंक ऄकधकारी या एटीएम वैंडर के सामने मशीन की अवश्यक

मरम्मत की जाती ह ै। ऐसे में संभव ह ैकक मशीन चोर ले जाए ंऔर कथवच को खबर भी न लग े।

एटीएम काडय का गलत आथतेमाल तो ग्राहक को पकुलस या कोटय कचहरी के चक्कर भी कटवा सकता ह ै। यकद अपने

ककसी दसूरे बैंक का एटीएम काडय ककसी दसूरे बैंक के एटीएम में आथतेमाल ककया ह ैऔर राकश नहीं कमली ह ैतो दोगनुी

मानकसक परेशानी झलेनी पडे़गी। एटीएम मशीन फेल होने की दशा में बैंक की एकांईकटंग प्रणाली भी फेल हो जाती ह ै।

एटीएम कोड के ऄनुसार राकश का भगुतान हो भी सकता ह ैऔर नहीं भी हो सकता । मशीन में ईपलब्ध 100, 500 व

1000 के कडब्बों से दसूरी करेंसी की अपकूतय न हो सके आसके कलए न तो कोइ मकैकनकल न ही कोइ साफ्टवयेर में व्यवथथा

ह ै। आस दृकष्ट से ये मशीनें बैंककंग के कलये सरुकक्षत नहीं मानी जा सकती । गलत भगुतान की प्रकवकष्टयों को ठीक करने की

व्यवथथा भी कारगर नहीं ह ै।

कइ बार ककसी एटीएम मशीन से नकली नोट कनकल पड़ते हैं और बैंक आनकी कोइ कजम्मदेारी लेने को तैयार नहीं

होता । कइ बार जब एटीएम मशीन खाते से रुपये तो कनकाला कदखा दतेी ह ैलेककन नकदी मशीन से बाहर नहीं अती या

कभी कम ही कनकालती ह ै। ऐसी कशकायतों के कलये ग्राहक बैंक में पछूताछ करते हैं तो बैंक ऄपने काल सेंटर का नबंर

थमा दतेे हैं । टोल फ्री नंबर पर चलाए जा रह ेआस काल सेंटर की लाआन कमलना ही पहले तो मकुश्कल ह ैऔर कमल भी जाए

तो अधे घटें की बातचीत के बावजदू ग्राहक को राहत नहीं कमल पाती ह ै। सामान्यत: काल सेंटर ग्राहकों को कबना मांग े

कशकायत संख्या तक ईपलब्ध नहीं कराते । ग्राहक कशकायत संख्या लेकर मानकसक तनाव ग्रथत हो आससे कहीं बेहतर ह ै

कक बैंक में जाकर चैक से ऄपनी राकश कनकाले और आन झझंटों से मिु रह े।

प्रायः एटीएम काडय और आटंरनेट बैंककंग के अवदेन पर साफ कलखा होता ह ै कक ककसी ककथम के नकुसान के कलए

बैंक की जवाबदहेी नहीं होगी । हकैकंग और पासवडय चोरी में बैंकककमययों की संकलप्तता के मामले भी ऄब खलुने लग ेहैं ।

ग्राहक ऄपने खोए हुए एटीएम काडय को ऄपने बैंक में जाकर कैं कसल नहीं करवा सकते । बैंक दावा करता ह ै कक अप

ककसी भी शाखा से एटीएम काडय जारी करवा सकते हैं, लेककन यही काडय खो जाए तो पहले बैंक के काल सेंटर में आसकी

कशकायत दजय करानी ह ै। कशकायत नंबर लेकर बैंक को सकूचत करना ह ै। खोए हुए एटीएम काडय से नकदी कनकालने के

ऄलावा खरीददारी भी संभव ह ैसो ग्राहक चाहता ह ैकक तरंुत ईसे खोए काडय से मकुि कमलनी चाकहए ।

कभी मशीन अवाज करती रहती ह,ै पैसा बाहर नहीं कनकलता और एटीएम हैंग हो जाता ह ै। कभी यह राकश ककसी

दसूरे ग्राहक को ऄनायास ही कमल जाती ह ैक्योंकक राकश बीच में ऄटकी रहती ह ैऔर एटीएम ऄचानक काम करना शरुू

कर दतेा ह ै। कभी ग्राहक की यही राकश एटीएम में नकदी, कागज या ररबन फीड करन ेवाली कम्पनी के लोगों के हाथ भी

लग जाती ह ै।

एटीएम के साथ सावधानी एव ंव्यवस्था

एटीएम मशीनों के मेंटीनैंस के नाम पर एटीएम में नकदी भरना, दो बार कदन में एटीएम पररसर की सफाइ,

एयरकंडीशन का चाल ूरहना, एटीएम मशीन का जीरो डाईन होना, सरुक्षा की दृकष्ट से दृश्य और ऄदृश्य कैमरों का चाल ू

रहना, एटीएम से हर प्रचालन की पची कनकलना, दरवाज ेका बंद रहना ताकक एक समय में एक ग्राहक एटीएम में रह,े रात

में पयायप्त रोशनी की व्यवथथा, सरुक्षा के कलये गाडय अकद आनके वाकषयक मटेीनैंस के कुछ प्रमखु कहथसे हैं कजनका पालन नहीं

होता । — हर्कास कुमार

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आलेख

राजमहल की सरुम्य पहाकड़यों को चीर कर बहती ह ै

पावन गगंा । आस गगंा नदी के तट पर प्रत्येक वषय माघ के महीने

में अयोकजत होता ह ै । झारखडं राज्य के राजकीय मलेा का

दजाय प्राप्त ह ै आस प्रकसर्द् माघी मलेा को । यह राजमहल के

सामाकजक, सांथकृकतक और धाकमयक पहचान ह ै के रूप में

जाना जाता ह ै। आस मलेा को संथाल परगना के अकदवाकसयों

का ऄधय कंुभ भी कहा जाता ह ै। आस मलेा में संथाल परगना के

ऄलाव ेपकश्चम बंगाल, ईड़ीसा, ऄसम, नेपाल और कबहार के

सीमावती कजलों से बड़ी संख्या में श्रर्द्ाल ुगगंा थनान करने के कलए पहुचंते हैं ।

झारखडं में रहने वाले अकदवाकसयों के साथ साथ पड़ोसी राज्यों में रहने वाले साफा होड़ और अकदवासी समदुाय की

बड़ी संख्या आस मेला में गगंा थनान के कलए पहुचंती ह ै । साफा होड़ के ऄनयुायी शवै संप्रदाय के ऄतंगयत अते हैं । आस

समदुाय के लोग सफेद वस्त्र पहनते हैं । पणूय रूप से साकत्वक भोजन करने वाला यह समदुाय मांस व मकदरा का सेवन नहीं

करता ह ै। थनान कर ये लोग पीतल के लोटों में गगंा जल भरकर भोले नाथ को ऄकपयत करते हैं । बड़ी संख्या में अकदवासी

समदुाय के जमावड़ा के कारण आसे ऄधयकंुभ की संख्या भी दी जाती ह ै।

आस मलेे के आकतहास की बात करें तो ककसी को भी नहीं पता कक यह मलेा कब से अरंभ हुअ ।

कहा जाता ह ै कक मगुलों के शासन के पहले जब राजमहल में चारों ओर जगंल ही जंगल था तब आस आलाके में

अकदवासी कबीलों का राज था । ईस वक़्त सभी प्रकार की कवपकत्तयों से बचने के कलए राजमहल के गगंा तट पर भगवान

शकंर की पजूा की जाती थी । ईसी वि से सभी मकहला व परुुष भि पकूणयमा के कदन गगंा में नहाकर भगवान शकंर की

पजूा करते हैं । पजूा का प्रभाव परेू अकदवासी समदुाय पर अज भी दखेा जा सकता ह ै।

ऐसी मान्यता ह ैकक गगंा में थनान करने से अकदवासी समाज और समदुाय पर अइ कवपकत्त टल जाती ह,ै शरीर में कोइ

रोग व्याकध नहीं रहती । आसी धाकमयक अथथा के कारण दशे के कोने-कोने से अकदवासी समाज के लोग आस माघी मलेा में

थनान करने को अते हैं । कजस प्रकार आलाहाबाद में संगम के तट पर थनान का महत्व ह ैईसी प्रकार राजमहल में गगंा के तट

पर थनान का महत्व अकदवासी समदुाय के बीच ह ै।

जन श्रकुत के ऄनसुार माघी मेला में पकूणयमा के कदन आस थथान पर थनान करने से सभी पापों से मकुि कमल जाती ह ै। आस

मलेे का कववरण मगेाथथनीज और प्रकसर्द् चीनी यािी हे्वनसागं ने ऄपनी यािा कववरण में कदया ह ै। पकवि गगंा मां से मागंी

गयी मन्नत परूी होन ेपर माघी पकूणयमा पर श्रद्राल ुगगंा में थनान कर पजूा-ऄचयना के बाद जोड़ा कबतूर, पाठा व डाव गगंा

नदी में चढ़ाते हैं । आसके ऄलावा आस ऄवसर पर बच्चों का मुडंन भी ककया जाता ह ै। आस मलेे में कवकभन्न ऄखाड़ों के साध ु

संन्यासी भी मां गगंा की भकि में लीन होने के कलए राजमहल पहुचंते हैं।

आस मेला को राज्य सरकार द्रारा राजकीय मेला का दजाय कदया गया ह ै। आस मेले में राज्य सरकार के कवकभन्न कवभागों

द्रारा थटाल लगाये जाते हैं । आन थटालों के माध्यम से लोगों को मलेे के संबंध में जानकाररयां ईपलब्ध करायी जाती ह ै। रंग

कबरंग ेपररधानों में सज ेधज ेअकदवासी समदुाय के नर नारी आस मलेे में अते हैं और मलेा घमूते हुए सकय स, झलेू, एव ंऄन्य

मनोरंजक ईपादानों का लाभ ईठाते हैं । ककशोर और यवुकतयां नाच और कथयेटरों का भरपरू लतु्फ ईठाते हैं ।

--सुहप्रया राय

आलेख

क्षिता और उसका व्यय ऄपने शशैव के कदनों की थमकृतयों में से बहुत सी बातें बहुत ही पीछे छूट गइ ह ैया यूाँ कह ेकवथमतृ हो गइ ह ैपर कुछ

बातें मकथतष्ट्क में छप गइ ह ैऔर ईसे चाह कर भी ऄपने थमकृतयों में से ऄलग करना ऄसंभव ह।ै परमशे्वर की ऄसीम कृपा

थी कक मझुमें प्रारंभ से ही साकहत्य से ऄनरुाग था। ऄगं्रेजी भाषा से भय कभी नहीं रहा ककंत ुईसके गढू ऄथों को समझने में

ऄसमथय जरूर था ककंत ुकहदंी साकहत्य के ऄतल तल में डुबकी लगाने में काफी अनंद प्राप्त होता था। 'चंदा मामा ' और

'चाचा चौधरी 'की कहाकनयों से प्रारंकभक सफर शरुू हुअ तथा दसम कक्षा तक पहुचते - पहुचते प्रेमचंद, शरतचदं ,कवष्ट्ण ुप्रभाकर, मकैक्सम गोकी, श्रीलाल शकु्ल जसेै न जाने ककतने हथताक्षर साकहत्यकारों के कहदंी भाषा में ईपलब्ध कहाकनयों

और ईपन्यासों को समाप्त ककए बगरै छोडने की तकबयत नहीं होती थी। मरेे कमिों को सदवै आस पर कौतहुल होता था कक मैं

आतने मोटी -मोटी ईपन्यासों को आतनी तन्मयता से कैसे पढ़ता ह ं। ईनके कलए पाठ्यक्रम में दी गइ कहाकनयों को एक बार से दो बार पढ़ने की आच्छा नहीं रहती थी ऄथवा चूाँकक मातभृाषा में कहाकनयााँ थी, व ेऄकत अत्मकवश्वास के कशकार थे ।

फलत:परीक्षाओ ंमें मझु ेऄगं्रेजी और कहदंी साकहत्य के पचों में सदवै ऄव्वल ऄकं प्राप्त होते तथा मैं साकहत्य पढ़ाने वाले

गरुूजनों का कवशेष कृपा पाि बना हुअ था। शायद यही कारण था कक गरुूजन मझु ेकवशेष छाि समझते हुए पाठ्यक्रम से

आत्तर की बातें भी चचाय करते। ईस चचाय में मझु ेअनंद कमलता और मैं ऄपनी ईपकथथकत भी दजय करता। ईसी चचाय में

महुावरों और लोकोकत्तयों की भी चचाय हुअ करती थी। महुावरों और लोकोकत्तयों के ऄथों को मैं थपष्ट भी कर दतेा परंत ु

ऄब मझु ेलगता ह ैकक ईस समय मैं महुावरों के ऄथों को तो समझता था ककंत ुईसके व्यापकता के अस -पास कभी नहीं रहा। अज जब मैं महुावरों और लोकोकत्तयों के ऄपने संकलन को दखे रहा था, मझु ेएक लोकोकि प्राप्त हुइ - ―ऄपना

सारा पैसा एक काम में मत लगाओ/सारी सम्पकत्त एक जगह मत रखो "(Do not put all your eggs in one basket)।

आसने मझु ेबरबस प्रभाकवत ककया और कुछ कलखने के कलए प्रेररत ककया आसकलए ऄपने को हलका करने के प्रयोजन से आस

पर कुछ कलखने की आच्छा ईत्पन्न हुइ। ऄब मरेे कवचार से आसका व्यापक ऄथय हुअ- “ऄपनी क्षमता को एक जगह मत लगाओ"(Do not put all your

efforts at one place)। क्षमता ऐसे ही नहीं अती। ईसके आकतहास के पषृ्ठभकूम में समय, तन्मयता, लगन, चषे्टा, अकांक्षा, साधना या तप, बकलदान, का ऄतीत में व्यय करने के भरपरू संकेत हैं। आतने प्रचेष्टा से क्षमता की प्राकप्त हुइ ह ै

और जब आस क्षमता को व्यय ककया जाएगा तो एक ऄलग तत्व रूपाकयत (Transform) होकर कनकलेगा। रूपाकयत हो

जाने पर थवाभाकवक ह,ै अत्म संतकुष्ट की प्राकप्त होती ह ैजो कालांतर में शांकत प्राप्त करने के मागय को प्रशथत करती ह।ै

कली कखलने के पहले ही मझुाय जाए, ऐसी आच्छा न तो कली की रहती ह ैऔर न ही माली की । मरेा दशयन तो यह कहता ह ै

कक कली कखले, खलेे और आठलाए तथा मदमथती में झमूते हुए सौन्दयय और सरुकभ को वातावरण में फैला कर थवयं भी

तथा ऄन्य को भी अनन्द से भर द े। ऄकभमान करने का मौका प्रदान करे तभी ईसके ऄथतीत्व को मयायदा प्राप्त होगी। ठीक

ईसी तरह क्षमता की कथथकत ह।ै क्षमता कली है, ईसे रूपाकयत होना ह,ै फूल बनना ह,ै सगुधं और सौन्दयय को प्राप्त करना ह,ै

दसूरों को अनन्द प्रदान करना ह,ै थवयं के कलए संतोष और शांकत को बटोरना ह ै।

आस तरह से खदु को प्रसन्न रखना ह।ै थवयं एव ंसमाज के कलए गवय तथा प्रशसंा का पाि बनना ह।ै समाज के कलए यह

एक दृष्टांत भी हो सकता ह,ै ऄनकुरणीय होने की संभावना भी आसमें ह।ै यही आसकी यािा का ऄकंतम पडाव ह,ै चरम ह,ै

कनष्ट्कषय ह ै। दसूरे शब्दों में क्षमता एक बीज ह ै। रोपा गया, कसंचा गया, संरक्षा और सरुक्षा दकेर बचाया गया, पौध बना,

वकृ्ष बना और तब फल और छांव कदया ।बीज का जीवन साथयक बना । खदु सड़ - गलकर,ऄसंख्य -ऄसंख्य फल और

बीज का सजृन कर ऄपने जीवन को साथयक बनाया । आसी में ईसकी साथयकता ह ै। वह मर कर भी ऄमर ह ै। ककंत ुऄब

सोकचए, यह बीज जाने -ऄनजाने ऐसे जगह लगाया गया जहां ईसे जीवन ही नहीं कमला । सूख कर लकड़ी बन गया तथा

धपू की तपीस, प्रकतकूल पररकथथकतयों के प्रहार से वह सड़ गल गया । ईसकी ऐसी पररणकत ? आस हालात के कलए शायद

ही ककसी के पास दया और सहानभुकूत रह।े सब व्यथय !

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आलेख

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कमिों ; सावधानी हटी ,दघुयटना घटी । यकद अप क्षमतावान हैं तो एक लोकोकत्त सदवै थमरण रखना ईकचत होगा,- “ऄच्छा होने से पवूोपाय बेहतर "(Prevention is better then cure )। ऄपनी क्षमता को पहचान कर ईसे रूपाकयत

(Transform) होने कदया जाना चाकहए । ईसे छायादार तथा फलदार वकृ्ष बनने दें । यह ककलयगु ह,ै थोड़ी सी ऄसावधानी

माि से ही समथत अशाए ंऔर संभावनाए ंसमाप्त हो जाएगी । आसकलए अज के पररप्रेक्ष्य में आस लोकोकत्त को व्यापक ऄथय

दनेे और समझने की जरूरत ह ै। बहुत बेहतर होगा कक 'छक्का नहीं तो फक्का 'ऄथवा ' अए अम चाह ेजाए लबेदा ' जसेै महुावरों के चक्कर में न पड़ा जाए तथा ऄपनी समथत क्षमताओ ंको ककसी एक ही जगह न लगाकर ईसे कइ जगहों पर

सावधानी से लगाइ जाए तथा परूी आमानदारी एव ंलगन से ईसे बचाते हुए संवार -दलुार कर बढ़ाया जाए । खदुा न खाथता एक अध जगह से यकद कनराशा भी प्राप्त हो तो ऄन्य जगह से अशा की संभावनाए ंरहेंगी । जब तक अशा ह ैतभी तक

जीवन जीने की कामना रहगेी ऄन्यथा जीकवत होकर भी मदुों सा जीवन जीने के कलए बाध्य रहना पडे़गा । जीवन को लौटरी

के सहारे न छोड़कर ईसे कजन्दादीली से जीया जाए । क्षमताओ ंकी व्याख्या एव ं थवरुप के बारे में भी ऄकधकांशत: लोगों की धारणा ऄथपष्ट होती ह ै । मिंों या कथा

परुाणों की भांकत हम सनुी -सनुाइ जमुलों का ईच्चारण माि करते हैं मानो कुछ कहना ह ैसो कह कदया । कही हुइ बात कणय कप्रय ऄवश्य होती ह ैमसलन ऄमकु की क्षमता बहुत ह ैया खदु के बारे में भी अत्म प्रशंसा के प्रयोजन से कहते हुए सनुे

जाते हैं कक मैं क्या कम क्षमतावान ह ं? या कफर आसकी समानाथी शब्द सामथयय से लगा कलया जाता ह ैपरंत ुईलट कर यकद

कहने वाले से यह प्रश्न पछू कलया जाए कक ऄमकु ऄथवा अप ककस कवषय में क्षमता रखते हैं तो कथथकत ऄक्सर हाथयाथपद

हो जाया करती ह।ै वथततु:इश्वर परम दयाल ुह।ै ईन्होंने प्राकणयों में ईसके जन्म के साथ ही क्षमता को भी ईपहार थवरूप पहले से ही प्रदान कर कदया ह ैजो कालांतर में ककसी के पास चक्रवकृि व्याज की माकफक सतत बढ़ती रहती ह ैतो ककसी में

घनु लग जाता ह ैऔर शनै शनै समाप्त प्राय:हो जाता ह।ै मरेे ख्याल से क्षमताओ ंकी श्रीवकृर्द् में महत्वकांक्षा की ऄहम

भकूमका हुअ करती ह।ै यहााँ भी हम प्राय:भ्कमत रहते हैं। कुछ ऄपवाद छोड़कर आसका सहज मतलब तेज तरायर होने से लगा

कलया जाता ह।ै वथतुत:यह महत्व की अकांक्षा से तात्पयय रखता ह।ै

ऄकं गकणत के एककक कनयम सा यकद आसे तोड़ तोड़कर दखेा जाए तो यह गगंोिी के जल सा साफ – साफ कदखाइ

पड़ने लगता ह।ै आसका ईत्तर प्राप्त करना भी आतना सहज नहीं ह।ै यकद यहााँ हम ककसी बेहतरीन रेथतरा या होटेल के खाने की

मने ुके कसर्द्ांत को ऄमल में लाए तो आस प्रश्न को कुछ हद तक सरल ककया जा सकता ह।ै यहााँ हमें आसी तजय पर कभन्न -कभन्न आच्छाओ ंकी फेहररथत तैयार करनी पडे़गी और तब चयन करने में सकुवधा हो जाएगी ऄन्यथा हमें दसूरों की इच्छा को

ही जबरदथती ऄपनी इच्छा बनानी पड़ जाएगी और तब ईसे प्राप्त करने में ताईम्र व्यतीत करना पडे़गा। कमल गया तो ठीक

नहीं कमला तो ऄपनी ककथमत। ऐसी कथथकत में इश्वर ही कंुठाग्रथत होने से बचाए। ऄममुन यह दखेा गया ह ैकक महत्वकांक्षा

की प्रमखु्यत:दो शाखाए ंह।ै पहली शाखा ज्ञान की अकांक्षा को परूा करते हुए तथा दसूरी धन की अकांक्षा को प्राप्त करते

हुए महत्वपूणय बनने की रहती ह।ै आनकी ईपलकब्ध एव ंकवथतार के ऄनपुात में ही हमें प्रकतष्ठा की प्राकप्त होती ह।ै यकद हम

कुल कमलाकर दखे ेतो व्यकि को औसतन प्रकतष्ठा प्राकप्त की प्रबल अकांक्षा रहती ह ैकजसे आन माध्यमों से होकर ही प्राप्त

ककया जा सकता ह।ै आसके कवपररत ककसी दवैी कृपा से या सांथकाररक ऄथवा सामाकजक कारण से ककसी -ककसी में समपयण और सेवा भाव कूट-कूट कर भरा होता ह।ै आस तरह के व्यकि नर के रूप में नारायण के दशयन करते हैं और वह कबना ककसी

अकांक्षा के सेवा भाव में वषों तललीन रहते हैं। चूाँकक यह भी एक ककया गया कमय ह ैतो फल की प्राकप्त ऄवश्यंभावी ह।ै आसे

भी प्रकतष्ठा की प्राकप्र होती ह ैऔर तब ईसके ऄदंर महत्व की अकांक्षा का जन्म होता ह।ै ऄक्सर ऐसे व्यकि मोक्ष की

कामना करने लग जाते हैं और ईसे प्राप्त करने में तललीन हो जाते हैं।

क्षमता के बारे में मोटे तौर पर यह व्याख्या पयायप्त होनी चाकहए। कम से कम कुहासे का कोहरा तो ऄवश्य कम हुइ

होगी कफर यकद कोइ चाह ेतो संभवत:ऄपनी क्षमताओ ंका कवकास एव ंव्यय समकुचत तौर पर करने में ऄपने अप को भ्म

की कथथकत में न पाए पर मरेी दृकष्ट में मरेा यह थपष्ट मत ह ैकक यह एक गभंीर एव ंसंवदेनशील मसला ह।ै ऐसे में सब कुछ इश्वर

के सहारे नहीं छोड़ा जाना चाकहए बकलक इश्वर ने हमें जो कृपापकूय ईपहार कदए हैं ईनका तरीका और सकलका से व्यवार

करना कववकेपणूय होगा कफर कजस ककसी भी तरह हो, आसे समझ कलया जाना चाकहए। आसे कतइ हलके में न लेकर आस बात पर

ऄपनी पैनी नजर रखनी होगी कजससे क्षमताओ ंका ऄपक्षय या दरुूपयोग रूक सके तथा आसके थथान पर आसे नया जीवन और गकत प्राप्त हो जा । — भारत भूर्ण पाण्डेय

कल और आज

कजस दशे में कभी थी बहती दधू की नकदयां,

ईस दशे में ऄब पानी कबकते दखेा ।

जहां इमानदारी का परचम था लहराता

ईस दशे में इमान ऄब कबकते दखेा ।

वचन कनभाते हररश्चंद्र का तन भी जहां कबकते दखेा,

वही पल-पल लोगों का वचन अज बदलते देखा ।

महात्मा गांधी, महावीर, बरु्द् का त्याग और तपथया दखेा

वही अज थवाथय के वाथते लोगों का खनू बहाते देखा ।

ऄगंठूा काटकर एकलव्य को गरुुदकक्षणा दतेे दखेा,

वही अज गरुु-कशष्ट्य परंपरा का दम यहा ं पर घटुते दखेा ।

सोने की कचकड़यों के दशे में वभैव, संपन्नता का अलम दखेा

वही रोटी के टुकडे़ के कलए बढू़े बच्चों को कबलखते दखेा ।

जहां श्रवण कुमार की सेवा से माता कपता को धन्य होते दखेा,

वही अज छोड़ मात ु कपता, को पिु को पत्नी सेवा करते दखेा ।

मानो तो क्या पेड़ पौधों को भी पर दखु में असं ू बहाते दखेा,

वही अज दखु की घकड़यों में थवजन को ईनपे हसंते दखेा ।

जहां प्रेम और सद्भावना का रस चारों ओर कबखरेते दखेा

वही इष्ट्याय द्रषे की अग में लोगों को यह जलते दखेा ।

जहां पजू्य गरुुजनों के अग े लोगों को शीश झकुाते दखेा,

वही श्रर्द्ा, कवश्वास, अथथा का थवरूप यहां बदलते दखेा

जहां मानवीय मलूयों के अलोक से सारा कवश्व अलोककत दखेा,

वही अज ऄधंकार में सारा दशे भटकते दखेा ।

जहां कवश्व कलयाण की कामना हर शख्स को यहां करते दखेा,

वहीं अज यहां हर आसंा को तांडव नतृ्य करते दखेा ।

जहां दवे संथकृकत का धमय ध्वज चहुओर लहराते दखेा

वही अज दानव संथकृकत को जन जन के बीच फैलाते दखेा ।

ऄब अओ संवारे राष्ट्र का गौरव कफर कवजय कनशान यहां लहराए

न कशकवा रह े होठों पर ककसी के, न कगला कोइ औरों स े हो।

— हर्जय कुमार

कहर्ताए ं

बढ़ते कदम

ने कवगत दो

वषों में ऄपने

24 ऄंकों के

कनयकमत

प्रकाशन को सफलतापवूयक पणूय कर एक

गौरवमयी ईपलकब्ध हाकसल ककया ह ै। आसका

अगामी ऄंक बाल कथा जवशेषांक के रूप

में प्रकाकशत होने जा रहा ह ै । आस ऄवसर पर

सभी सधुी पाठकों और रेलवे काकमयकों व

लेखकों से ऄकधकतम 600 शब्दों में थवरकचत

बाल कथायें प्रकाशनाथय अमंकित की जाती

हैं। सवयशे्रष्ठ रचनाओ ं को बढ़ते कदम के

अगामी ऄंक में प्रकाकशत ककया जायेगा ।

कनयमानसुार प्रत्येक प्रकाकशत कहानी पर बाल

कथा लेखक को मानदेय थवरूप 500/-

रू.प्रदान ककया जायेगा । रचनायें हाकशया

छोड़कर कागज के एक ओर साफ-साफ

हथतकलकखत या टंककत होनी चाकहए । रचनायें

इ-मेल से या कनम्न पते पर कदनांक

15.06.2016 तक ऄवश्य भेज दी जाए ।

संपादक

बढ़ते कदम

राजभाषा ऄनभुाग, कद्रतीय तल

मंडल रेल प्रबंधक कायायलय/मालदा

पो.—झलझकलया

मालदा, कपन-732102

इ-मेल[email protected]

दरूभाष– 72190/72192 (रेल) 17

कहर्ताए ं

शब्द जोड़ िें

ककवता में ककव की

हुकंार, कनझयररणी सी प्रवाहों का

सम-कालीन का प्रभाव हो

सकुोमल पदों का रमणीय

मखमली शै् या का ईर्द्रण हो

कनवायध ककवता का बोध

ऄमकु छाया का साक्षात दशयन हो

नभतल, भतूल में

ऄलौककक, पारलौककक प्रकतकबंब का सीधा

प्रदशयन हो

शब्द जोड़ में

प्रकतमा व यशथवी का ऄकद्रतीय वणयन

काव्यात्मक भाव भकंगमा से ओतप्रोत

जीवन साध्य हो

अत्मबोकध सथुवर बोल ध्वकनत कर

ककव का सपुकुष्ट भाव प्रकट हो

शब्द जोड़ में

काव्य ऄत्यंत भाव कवभोरी व

कथनग्ध हो, जब ककवता की गूंज

गुकंजत हो समा भावाकुल हो जाए

मन मगु्ध हो, कदलेश ुअसं ू

बकहगयत हो, नयन चमकने लग े

शब्द जोड़ में

प्रांश ुकलपना का साररष्ठ चमत्कार हो

दखुी, बोकझल मन हकषयत हो ईठे

उंची छलांग कर जीवन मतृ्य ुकी राह

तय कर पलक पल कर ले यही बोध हो

ककरणपुंज का प्रकाशमयी सवरेा हो

शब्द जोड़ में

— सहचदानंद साि

सोचती ह ं

सोचती ह ं

मैं बस सोचती ह ं

तेरी दोथती को सोचती ह ं

तेरे साथ बीते हुए

पल हर पल को सोचती ह ं

जो गजुर गया

भलुा नहीं पाती

लगातार सोचती ह ं

खबू ह ैकसला दोथती का

पास कभी रहते नहीं

पर सोचती ह ं

कोइ तो पल अएगा

मरेी भी याद कदलाएगा

चले गए दरू तो क्या हुअ

वि कभी तमु्हें पास लाएगा

मौका जब भी कमलता ह ै

बस सोचती ह ं

पर मरेी सोच का क्या

तमु भी कभी सोचते हो

चलो कोइ बात नहीं/तेरे बदले भी

मैं ही सोच लेती ह ।ं

मैं तो अज भी

ईसी ककनारे पर खड़ी ह ं

जहां से तुम चल कदए थ े

तमु सोचो न सोचो

पर मैं सोचती ह ं

ककसी ने सही कहा ह ै

समय ककसी के कलए नहीं रुकता

नहीं ठहरती हवा ककसी के कलए

मैंने मान कलया ह ैतुमको ऄपना

आसकलए यह सोच नहीं रुकती

तभी तो सोचती ह ं । — हप्रया प्रसाद

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सरंक्षा हर्भाग, मालदा मंडल द्वारा रेलों पर अहग्न के शमन, दमन एर्ं उपयोग की

नर्ीनतम जानकारी से संबंहधत आयोहजत सेहमनार के कुछ दृष्य

मालदा मंडल द्वारा र्र्व 2014-15 एर्ं 2015-16 के दौरान बढ़ते कदम के 24 अंकों के

सफल एर्ं अनर्रत प्रकाशन से कुछ चुहनंदा आर्रण पृष्ठ

मालदा मंडल द्वारा र्र्व 2014-15 एर्ं 15-16 के दौरान माहसक हिन्दी पहिका बढ़ते

कदम के 24 अंकों के सफल एर्ं अनर्रत प्रकाशन के कुछ चुहनदंा आर्रण पृष्ठ

पुस्तकों से बढ़कर कोई मित्र नहीं

पढ़ते रहें तो होगा कोई गि नहीं।