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20
वष -15 -04 2016 वष रेलवे, मालदा म डल की सृजनामक हहदी ई-माहसकी

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वषष-15

अंक-04

2016

पूवष रेलवे, मालदा मंडल की सजृनात्मक हहन्दी ई-माहसकी

8 2

भारत के सहंवधान में राजभाषा

सघं की राजभाषा हहंदी और हिहि दवेनागरी है । सघं के शासकीय प्रयोजनों के हिए प्रयोग होने वािे अकंों का रूि भारतीय अकंों का अतंराष्ट्रीय रूि

है { सहंवधान का अनुच्छेद 343 (1)} । िरन्तु हहंदी के अहतररक्त अगें्रजी भाषा का प्रयोग भी सरकारी कामकाज में हकया जा सकता है।

ससंद का कायय हहंदी में या अगें्रजी में हकया जा सकता है । िरन्तु राज्यसभा के सभािहत महोदय या िोकसभा के अध्यक्ष महोदय हवशेष िररहथिहत में

सदन के हकसी सदथय को अिनी मातृभाषा में सदन को सबंोहधत करने की अनुमहत द ेसकते हैं ।

हकन प्रयोजनों के हिए केवि हहंदी का प्रयोग हकया जाना है, हकन के हिए हहंदी और अगें्रजी दोनों भाषाओ ंका प्रयोग आवश्यक है और हकन कायों के

हिए अगें्रजी भाषा का प्रयोग हकया जाना है, यह राजभाषा अहधहनयम 1963, राजभाषा हनयम 1976 और उनके अतंगयत समय समय िर राजभाषा हवभाग, गृह

मंत्रािय की ओर स ेजारी हकए गए हनदशेों द्वारा हनधायररत हकया गया है ।

अध्यायअध्यायअध्याय --- 111 संघ की भाषा

ऄनचु्छेद 120. संसद ्में प्रयोग की जाने वाली भाषा - (1) भाग 17 में ककसी बात के होते हुए भी, ककंत ुऄनचु्छेद 348 के ईपबंधों के

ऄधीन रहते हुए, संसद ्में कायय कहदंी में या ऄगें्रजी में ककया जाएगा

परंत,ु यथाकथथकत, राज्य सभा का सभापकत या लोक सभा का ऄध्यक्ष ऄथवा ईस रूप में कायय करने वाला व्यकि ककसी सदथय को, जो

कहदंी में या ऄगें्रजी में ऄपनी पयायप्त ऄकभव्यकि नहीं कर सकता ह,ै ऄपनी मात-ृभाषा में सदन को संबोकधत करने की ऄनजु्ञा द ेसकेगा ।

(2) जब तक संसद ्कवकध द्रारा ऄन्यथा ईपबंध न करे तब तक आस संकवधान के प्रारंभ से पंद्रह वषय की ऄवकध की समाकप्त के पश्चात् यह

ऄनचु्छेद ऐसे प्रभावी होगा मानो या ऄगें्रजी में‛ शब्दों का ईसमें से लोप कर कदया गया हो ।

ऄनचु्छेद 210: कवधान-मंडल में प्रयोग की जान ेवाली भाषा - (1) भाग 17 में ककसी बात के होते हुए भी, ककंत ुऄनचु्छेद 348 के

ईपबंधों के ऄधीन रहते हुए, राज्य के कवधान-मंडल में कायय राज्य की राजभाषा या राजभाषाओ ंमें या कहदंी में या ऄगें्रजी में ककया जाएगा

परंत,ु यथाकथथकत, कवधान सभा का ऄध्यक्ष या कवधान पररषद ्का सभापकत ऄथवा ईस रूप में कायय करन ेवाला व्यकि ककसी सदथय

को, जो पवूोि भाषाओ ंमें से ककसी भाषा में ऄपनी पयायप्त ऄकभव्यकि नहीं कर सकता ह,ै ऄपनी मातभृाषा में सदन को संबोकधत करने की

ऄनजु्ञा द ेसकेगा ।

(2) जब तक राज्य का कवधान-मंडल कवकध द्रारा ऄन्यथा ईपबंध न करे तब तक आस संकवधान के प्रारंभ से पंद्रह वषय की ऄवकध की

समाकप्त के पश्चात् यह ऄनचु्छेद ऐसे प्रभावी होगा मानो ‚ या ऄगें्रजी में ‛ शब्दों का ईसमें से लोप कर कदया गया हो :

परंतु कहमाचल प्रदशे, मकणपरु, मेघालय और किपरुा राज्यों के कवधान-मंडलों के संबंध में, यह खंड आस प्रकार प्रभावी होगा मानो आसमें

अने वाले‚पंद्रह वषय‛ शब्दों के थथान पर ‚पच्चीस वषय‛ शब्द रख कदए गए हों :

परंतु यह और कक ऄरूणाचल प्रदशे, गोवा और कमजोरम राज्यों के कवधान-मंडलों के संबंध में यह खंड आस प्रकार प्रभावी होगा मानो

आसमें अन ेवाले ‚ पंद्रह वषय ‛ शब्दों के थथान पर ‚ चालीस वषय ‛ शब्द रख कदए गए हों ।

ऄनचु्छेद 343. संघ की राजभाषा--

(1) संघ की राजभाषा कहदंी और कलकप दवेनागरी होगी, संघ के शासकीय प्रयोजनों के कलए प्रयोग होने वाले ऄकंों का रूप भारतीय

ऄकंों का ऄतंरायष्ट्रीय रूप होगा।

(2) खंड (1) में ककसी बात के होते हुए भी, आस संकवधान के प्रारंभ से पंद्रह वषय की ऄवकध तक संघ के ईन सभी शासकीय प्रयोजनों

के कलए ऄगें्रजी भाषा का प्रयोग ककया जाता रहगेा कजनके कलए ईसका ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले प्रयोग ककया जा रहा था :

परन्तु राष्ट्रपकत ईि ऄवकध के दौरान, अदशे द्रारा, संघ के शासकीय प्रयोजनों में से ककसी के कलए ऄगें्रजी भाषा के ऄकतररि कहदंी

भाषा का और भारतीय ऄकंों के ऄतंरायष्ट्रीय रूप के ऄकतररि दवेनागरी रूप का प्रयोग प्राकधकृत कर सकेगा।

(3) आस ऄनचु्छेद में ककसी बात के होते हुए भी, संसद ्ईि पन्द्रह वषय की ऄवकध के पश्चात् , कवकध द्रारा

(क) ऄगें्रजी भाषा का, या

(ख) ऄकंों के दवेनागरी रूप का,

ऐसे प्रयोजनों के कलए प्रयोग ईपबंकधत कर सकेगी जो ऐसी कवकध में कवकनकदयष्ट ककए जाए।ं

क्रमशः

8 2

भारत के सहंवधान में राजभाषा

क्रमशः

राष्ट्रपति के आदशे, 1960

(गहृ मिंालय की कद. 27 ऄप्रैल, 1960 की ऄकधसचूना संख्या 2/8/60-रा.भा., की प्रकतकलकप)

अधिसचूना

- राष्ट्रपकत का कनम्नकलकखत अदशे अम जानकारी के कलए प्रकाकशत ककया जाता है :- नइ

कदल्ली, कदनाक 27 ऄप्रैल, 1960

आदशे

लोकसभा के 20 सदथयों और राज्य सभा के 10 सदथयों की एक सकमकत प्रथम-राजभाषा अयोग की कसफाररशों

पर कवचार करने कलए और ईनके कवषय में ऄपनी राय राष्ट्रपकत के समक्ष पेश करने के कलए संकवधान के ऄनचु्छेद 344 के

खडं (4) के ईपबंधों के ऄनसुार कनयिु की गइ थी । सकमकत ने ऄपनी ररपोर्य राष्ट्रपकत के समक्ष 8 फरवरी, 1959 को पेश

कर दी। नीचे ररपोर्य की कुछ मखु्य बातें दी जा रही हैं कजनसे सकमकत के सामान्य दृकष्टकोण का पररचय कमल सकता ह ै:-

(क) राजभाषा के बारे में संकवधान में बङी समकन्वत योजना दी हइु ह।ै आसमें योजना के दायरे से बाहर जाए कबना

कथथकत के ऄनसुार पररवतयन करने की गुजंाआश ह।ै

(ख) कवकभन्न प्रादकेशक भाषाएं राज्यों में कशक्षा और सरकारी काम-काज के माध्यम के रूप में तेजी से ऄगं्रेजी का

थथान ले रही हैं। यह थवाभाकवक ही ह ैकक प्रादकेशक भाषाए ंऄपना ईकचत थथान प्राप्त करें। ऄतः व्यवहाररक

दृकष्ट से यह बात अवश्यक हो गइ ह ैकक संघ के प्रयोजनों के कलए कोइ एक भारतीय भाषा काम में लाइ जाए।

ककन्त ुयह अवश्यक नहीं ह ै कक यह पररवतयन ककसी कनयत तारीख को ही हो। यह पररवतयन धीरे-धीरे आस

प्रकार ककया जाना चाकहए कक कोइ गङबङी न हो और कम से कम ऄसकुवधा हो।

(ग) 1965 तक ऄगं्रेजी मखु्य राजभाषा और कहन्दी सहायक राजभाषा रहनी चाकहए। 1965 के ईपरान्त जब कहन्दी

संघ की मखु्य राजभाषा हो जाएगी ऄगं्रेजी सहायक राजभाषा के रूप में ही चलती रहनी चाकहए।

(घ) संघ के प्रयोजनों में से ककसी के कलए ऄगं्रेजी के प्रयोग पर कोइ रोक आस समय नहीं लगाइ जानी चाकहए और

ऄनचु्छेद 343 के खडं (3) के ऄनसुार आस बात की व्यवथथा की जानी चाकहए कक 1965 के ईपरान्त भी

ऄगं्रेजी का प्रयोग आन प्रयोजनों के कलए, कजन्हें संसद ्कवकध द्रारा ईकल्लकखत करे तब तक होता रह ेजब तक

वसैा करना अवश्यक रह।े

(ड.) ऄनचु्छेद 351 का यह ईपबन्ध कक कहन्दी का कवकास ऐसे ककया जाए कक वह भारत की सामाकसक संथकृकत

के सब तत्वों की ऄकभव्यकि का माध्यम बन सके, ऄत्यन्त महत्वपूणय ह ैऔर आस बात के कलए परूा प्रोत्साहन

कदया जाना चाकहए कक सरल और सबुोध शब्द काम में लाए जाए।ं

ररपोर्य की प्रकतयां संसद के दोनों सदनों के पर्ल पर 1959 के ऄप्रैल मास में रख दी गइ थीं और ररपोर्य पर कवचार-कवमशय

लोक सभा में 2 कसतम्बर से 4 कसतम्बर, 1959 तक और राज्य सभा में 8 और 9 कसतम्बर, 1959 को हुअ था । लोक

सभा में आस पर कवचार-कवमशय के समय प्रधानमिंी ने 4 कसतम्बर, 1959 को एक भाषण कदया था। राजभाषा के प्रश्न पर

सरकार का जो दृकष्टकोण ह ैईसे ईन्होंने ऄपने आस भाषण में मोरे् तौर पर व्यि कर कदया था ।

हवषय वस्तु

प्रसंगवश—

—रामाशीष कसंह — 3

सदू के रूपये —

— श्वेता किपाठी 4

सांता क्लोज —

— कृष्ट्ण कुमार दास 8

कश्मीर —

— राहुल कमयकार 10

ऄग्नीशाखा केसर—

— कुमारी साक्षी 12

मदुगल नगरी

— ऄवधेश कुमार 14

योग्यता नतेा बनने की

— सकच्चदानंद कजज्ञास ु 15

जरा हकंसये तो

—अकदश 16

भारतीय संथकृकत की..

— यमनुा प्रसाद राय 17

वीर गाथा —

— ऄकभनव कसंह 18

हवाइ प्यार

— चंद्रकांत 18

कचि वीकथका 19-20

हनिःशुल्क हवतरण हेतु

सरंक्षक

मोकहत कसन्हा

मंडल रेल प्रबंधक

परामशष

कवजय कुमार साहू ऄपर मुख्य राजभाषा ऄकधकारी

एवं ऄपर मंडल रेल प्रबंधक

प्रधान सपंादक

रामाशीष कसंह

राजभाषा ऄकधकारी(प्र।)

सपंादक

सकच्चदानंद

व. ऄनवुादक

कायषकारी सपंादक

आदं्र ज्योकत राय

क. ऄनवुादक

सहयोग

दयामय दास, ककनष्ठ आजंीकनयर

3

प्रसंगवश

सपंर्क सतू्र

संपादर्, बढ़ते र्दम

मंडल रेल प्रबंधर् र्ार्ाकलर्

पूर्क रेलर्े/मालदा

फोन- 72190/ 72192 (रेलर्े) Email – [email protected]

Web: www।.er.indianrailway.gov.in

प्रकाकशत रचनाओ ं में व्यि कवचार लेखकों के ऄपने है आससे संपादक मंडल का सहमत होना अवश्यक नही ह।ै

गीता जंयती गीता जंयती गीता जंयती

कवश्व के ककसी भी धमय या संप्रदाय में ककसी भी ग्रंथ की जयंती नहीं मनाइ

जाती। कहदं ूधमय में भी कसफय गीता जयंती मनाने की परंपरा परुातन काल से चली

अ रही ह ै। कहदं ूपंचांग के ऄनुसा, मागयशीषय मास के शकु्ल पक्ष की एकादशी को

गीता जयंती का पवय मनाया जाता ह ै। श्री गीताजी की ईत्पकि धमयके्षि कुरुके्षि में

मागयशीषय मास में शकु्लपक्ष की एकादशी को हुइ थी । यह कतकथ मोक्षदा एकादशी

के नाम से कवख्यात ह ै। आस बार ये पवय 10 कदसंबर, शकनवार को ह ै। गीता एक

सावयभौम ग्रंथ ह ै । यह ककसी काल, धमय, संप्रदाय या जाकत कवशेष के कलए नहीं

ऄकपत ुसंपणूय मानव जाकत के कलए हैं । एक-दसूरे के प्राणों के प्यासे कौरवों और

पांडवों के बीच यदु्ध शरुू होने से पहले योगीराज भगवान श्रीकृष्ट्ण ने कवशाल सेना

के बीच मोह में फंसे और कमय से कवमखु ऄजुयन को गीता का ईपदशे कदया था।

श्रीकृष्ट्ण ने ऄजुयन को छंद रूप में यानी गाकर ईपदशे कदया, आसकलए आसे गीता

कहते हैं । चूंकक ईपदशे दने े वाले थवयं भगवान थे, ऄत: आस ग्रंथ का नाम

भगवद्गीता पङा । भगवद्गीता में कइ कवद्याओ ंका वणयन ह,ै कजनमें चार प्रमखु हैं-

ऄभय कवद्या, साम्य कवद्या, इश्वर कवद्या और ब्रह्म कवद्या । माना गया ह ैकक ऄभय

कवद्या मतृ्य ुके भय को दरू करती ह।ै साम्य कवद्या राग-द्रषे से छुर्कारा कदलाकर

जीव में समत्व भाव पैदा करती ह ै। इश्वर कवद्या के प्रभाव से साधक ऄहकंार और

गवय के कवकार से बचता ह ै। ब्रह्म कवद्या से ऄतंरात्मा में ब्रह्म भाव को जागता ह।ै

गीता माहात्म्य पर श्रीकृष्ट्ण ने पद्म परुाण में कहा ह ैकक भवबंधन से मकुि के

कलए गीता ऄकेले ही पयायप्त ग्रंथ ह ै । गीता का ईद्दशे्य इश्वर का ज्ञान होना माना

गया ह ै । ऄन्य ग्रंथ ककसी मनषु्ट्य द्रारा कलख ेया संककलत ककए गए हैं, जबकक

गीता का जन्म थवयं श्रीभगवान के श्रीमखु से हुअ ह ै।

गीता में यह कहा गया ह ैकक ऄपने धमय का पालन करना ही कनष्ट्काम कमययोग

ह ै । आसका सीधा का ऄथय ह ै कक अप जो भी कायय करें , परूी तरह मन लगाकर

तन्मयता से करें । फल की आच्छा न करें। ऄगर फल की ऄकभलाषा से कोइ कायय

करेंग े तो वह सकाम कमय कहलाएगा । गीता का ईपदशे कमयकवहीन वरैाग्य या

कनराशा से यिु भकि में डूबना नहीं कसखाता, वह तो सदवै कनष्ट्काम कमय करने की

प्रेरणा दतेा ह ै। वसैे तो भगवान ने ज्ञान, और भकि दोनो के ही कवषय में कवथतार

से बताया ह ैताकक मनषु्ट्य आस संसार में सखुपवूयक रहते हुए आस संसार सागर से

पार हो सके । — रामाशीष हसहं

सूद के रुपयेसूद के रुपयेसूद के रुपय े

MÉÉÆ´É EòÉ BEò MÉ®úÒ¤É ÊEòºÉÉxÉ lÉÉ ½þÊ®ú½þ®ú* ¨ÉÉÆ-¤ÉÉ{É xÉä =ºÉEäò VÉÒxÉä Eäò ʱÉB ʺɡÇò BEò ZÉÉä{ÉcÒ ¦É®ú ½þÒ UôÉäcÒ lÉÒ* ½þÊ®ú½þ®ú EòÉ

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iÉäVÉ ½þÉä VÉÉiÉÒ iÉÉä ZÉÉä{ÉcÒ ºÉä {ÉÉxÉÒ ]õ{ÉEòxÉä ±ÉMÉiÉÉ* ZÉÉä{ÉcÒ EòÒ {ÉÚ®úÒ VɨÉÒxÉ MÉÒ±ÉÒ ½þÉä SÉÖEòÒ lÉÒ* =ºÉ¨Éå Eò½þ Ó ¦ÉÒ BäºÉÒ VÉMɽþ xɽþÓ

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¨Éå ʺɽþ®úxÉ =i{ÉzÉ Eò®ú nùäiÉÒ* ±É±É¨ÉÊiɪÉÉ <ºÉ ºÉ¤É ºÉä ¤ÉäJɤɮú ºÉÉä MÉ<Ç*

iɦÉÒ =ºÉEäò ½þÉä`öÉå {É®ú ÊEòºÉÒ MɨÉÇ +Éè®ú ¨ÉÖ±ÉÉªÉ¨É SÉÒVÉ EòÉ nù¤ÉÉ´É ¨É½þºÉÚºÉ ½þÖ+É* ´É½þ SÉÒJÉ {ÉcÒ* SÉÒJÉ ºÉÖxÉiÉä ½ þÒ =ºÉEòÒ

¤É½þxÉ ¦ÉÒ VÉÉMÉ MÉ<Ç* ¤É®úɨÉnùä Eäò nùںɮúä ÊEòxÉÉ®úä {É®ú ºÉÉäB ºÉÖJÉxÉÉ xÉä =`öEò®ú ]õÉSÉÇ EòÒ ®úÉä¶ÉxÉÒ ±É±É¨ÉÊiɪÉÉ EòÒ +Éä®ú ¡åòEòÒ* ±É±É¨ÉÊiɪÉÉ,

=ºÉEòÒ UôÉä]õÒ ¤É½þxÉ +Éè®ú ºÉÖJÉxÉÉ iÉÒxÉÉå xÉä ½þÒ nùäJÉÉ, ¡äòEòxÉÉ ±É±É¨ÉÊiɪÉÉ {É®ú ZÉÖEòÉ ½þÖ+É lÉÉ* ºÉÖJÉxÉÉ +{ÉxÉä ¤Éä ]õä EòÒ <ºÉ ½þ®úEòiÉ ºÉä

+SUôÒ iÉ®ú½þ ´ÉÉÊEò¡ò lÉÉ* lÉÉäcÉ ºÉÉ ½þ±±ÉÉ-MÉÖ±±ÉÉ ¦ÉÒ ºÉ¨ÉºªÉÉ =i{ÉzÉ Eò®ú ºÉEòiÉÉ lÉÉ* +iÉ: ¤ÉÉiÉ Ê¤ÉMÉc xÉ VÉÉB, ºÉÖJÉxÉÉ +{ÉxÉä ¤Éä]õä

EòÉ {ÉIÉ ±ÉäiÉä ½þÖB ±É±É¨ÉÊiɪÉÉ {É®ú ʤÉMÉc =`öÉ* ´É½þ =ºÉä ¦É±ÉÉ-¤ÉÖ®úÉ ¤ÉEäò VÉÉ ®ú½þÉ lÉÉ* ¤ÉÒSÉ-¤ÉÒSÉ ¨Éå ´É½þ =ºÉEäò {ÉÊ®ú´ÉÉ®ú EòÉä ¦ÉÒ

MÉɱÉÒ nùä ®ú½þÉ lÉÉ* ºÉÖJÉxÉÉ EòÒ iÉäVÉ +É´ÉÉVÉ ºÉÖxÉ Eò®ú +ɺÉ-{ÉɺÉEäò ±ÉÉäMÉ nùÉècä ¦ÉÉMÉä ´É½þÉÆ iÉEò +É {ɽþÖÆSÉä* ºÉÖJÉxÉÉ ºÉ¤ÉEäò ºÉɨÉxÉä

±É±É¨ÉÊiɪÉÉ EòÉä nùÉä¹ÉÒ `ö½þ®úÉ ®ú½þÉ lÉÉ* ±É±É¨ÉÊiɪÉÉ iÉÉä ʺɡÇò ®úÉäB VÉÉ ®ú½þÒ lÉÒ* BäºÉÉ ¦ÉÒ ½þÉä ºÉEòiÉÉ ½þè, =ºÉxÉä Eò¦ÉÒ ºÉÉäSÉÉ iÉEò xɽþÓ

lÉÉ* +¤É iÉEò ½þÊ®ú½þ®ú +Éè®ú MÉÉä¨ÉiÉÒ ¦ÉÒ ¶ÉÉä®ú-MÉÖ±É ºÉÖxÉEò®ú +É {ɽþÖÆSÉä* iɨÉɶÉÉ nùäJÉxÉä +ɪÉä ±ÉÉäMÉ ¦ÉÒ ¨ÉÖƽþnùäJÉÒ ½þÒ Eò®ú ®ú½þä lÉä* ÊVɺÉä

nùäJÉÉä, ´É½þÒ ºÉÖJÉxÉÉ EòÒ iÉ®ú¡ò ºÉä ½þÒ ¤ÉÉä±ÉiÉÉ +Éè®ú ±É±É¨ÉÊiɪÉÉ EòÉä ¦É±ÉÉ-¤ÉÖ®úÉ Eò½þiÉÉ lÉÉ* ½þÊ®ú½þ®ú +Éè®ú MÉÉä¨ÉiÉÒ EòÉä iÉÉä EòÉ`ö ¨ÉÉ®ú

MɪÉÉ* lÉÉäcÒ nùä®ú ¤ÉÉnù ´Éä ¦ÉÓMÉiÉä ½þÖB +{ÉxÉä ¤ÉSSÉÉå Eäò ºÉÉlÉ +{ÉxÉÒ ZÉÉä{ÉcÒ ¨Éå ±ÉÉè]õ {Écä* BEò ÊnùxÉ ¨ÉÉèEòÉ nùäJÉEò®ú MÉÉä¨ÉiÉÒ ¤ÉÉä±ÉÒ - ""¨Éé

iÉ֨ɺÉä ÊEòiÉxÉÒ ¤ÉÉ®ú Eò½þ SÉÖEòÒ ½þÚÆ ÊEò <ºÉ ºÉÉ±É ±É±É¨ÉÊiɪÉÉ Eäò ½þÉlÉ {ÉÒ±Éä Eò®ú nùÉä* {É®ú iÉÖ¨É ½þÉä ÊEò ºÉÖxÉiÉä ½þÒ xɽþÓ!''

""+¦ÉÒ ÊEòiÉxÉä ÊnùxÉ EòÒ ½þÖ<Ç ½þè ªÉ½þ ÊEò iÉÖ¨É {É®úä¶ÉÉxÉ ½þÉä ®ú½þÒ ½þÉä?'' ""=ºÉ ÊnùxÉ +MÉ®ú Eò½þÓ >ðÆSÉ-xÉÒSÉ ½þÉä VÉÉiÉÒ iÉÉä?''

कहानी

4

कहानी ½þÊ®ú½þ®ú {ÉixÉÒ EòÒ ¤ÉÉiÉ ºÉÖxÉ Eò®ú ÊEòºÉÒ ºÉÉäSÉ ¨Éå b÷Ú¤É MɪÉÉ* ±ÉcEòÒ ¤ÉcÒ iÉÉä ½þÉä MÉ<Ç ½þè* MÉÉÆ´É ¨Éå =ºÉ ÊnùxÉ EòÒ PÉ]õxÉÉ {É®ú iÉ®ú½þ

-iÉ®ú½þ EòÒ ¤ÉÉiÉå ½þÉä ®ú½þÒ ½þé* ±ÉÉäMÉ {ÉiÉÉ xɽþÓ, CªÉÉå ¨ÉÖZɺÉä ¤ÉÉ®ú-¤ÉÉ®ú =ºÉEòÒ ¶ÉÉnùÒ Eò®ú nùäxÉä EòÉä Eò½þiÉä ½þé! +ÉÊJÉ®ú =ºÉxÉä <ºÉÒ ¤É®úºÉ

¶ÉÉnùÒ Eò®ú nùäxÉä EòÉ +{ÉxÉÉ ÊxÉhÉÇªÉ ºÉÖxÉÉ ÊnùªÉÉ* {ÉixÉÒ +ɶ´ÉiÉ ½þÉä MÉ<Ç* ¶ÉÉnùÒ-¤ªÉɽþ Eäò ÊnùxÉ +É MÉB* MÉÉä¨ÉiÉÒ ÊnùxÉ-®úÉiÉ +{ÉxÉä {ÉÊiÉ

EòÉä ¡äòEòxÉÉ ´ÉɱÉÒ PÉ]õxÉÉ EòÒ ªÉÉnù Ênù±ÉÉiÉÒ +Éè®ú =ºÉEòÒ ¶ÉÉnùÒ Eò®ú nùäxÉä Eäò ʱÉB nù¤ÉÉ´É b÷ɱÉiÉÒ* iÉÆMÉ +ÉEò®ú BEò ÊnùxÉ ½þÊ®ú½þ®ú ¤Éä]õÒ

Eäò ʱÉB ´É®ú JÉÉäVÉxÉä ÊxÉEò±É {ÉcÉ* Eò½þÓ ´É®ú ʨɱÉiÉÉ iÉÉä PÉ®ú xɽþÓ, Eò½þÓ PÉ®ú +SUôÉ Ê¨É±ÉiÉÉ iÉÉä ªÉÉäMªÉ ´É®ú xɽþÓ* Ê¡ò®ú ¦ÉÒ ´É½þ +{ÉxÉä

EòɪÉÇ ¨Éå ±ÉMÉÉ ®ú½þÉ* BEò VÉMɽþ ´É®ú ¦ÉÒ +SUôÉ lÉÉ +Éè®ú PÉ®ú ¦ÉÒ ºÉÖÆnù®ú* ±ÉcEäò ´ÉɱÉä iÉÒxÉ ½þVÉÉ®ú ¯û{ɪÉä xÉEònù EòÒ ¨ÉÉÆMÉ Eò®ú ®ú½þä lÉä

+Éè®ú =ºÉEòÒ nùںɮúÒ ¶ÉiÉÇ lÉÒ- ¤ÉÉ®úÉÊiɪÉÉå EòÒ ºÉÖÆnù®ú +ɴɦÉMÉiÉ* ½þÊ®ú½þ®ú xÉä =xÉEòÒ ¶ÉiÉæ º´ÉÒEòÉ®ú Eò®ú ±ÉÓ*

¶ÉÉnùÒ +ÉxÉxÉ-¡òÉxÉxÉ ¨Éå iÉªÉ ½þÉä MÉ<Ç* ʺɡÇò nùºÉ ÊnùxÉ EòÉ ºÉ¨ÉªÉ ®úJÉÉ MɪÉÉ* <iÉxÉä ½þÒ ÊnùxÉÉå ¨Éå ºÉÉ®úÒ ´ªÉ´ÉºlÉÉ {ÉÚ® úÒ Eò®úEäò

¶ÉÉnùÒ Eò®ú nùäxÉÒ lÉÒ* ½þÊ®ú½þ®ú JÉÖ¶ÉÒ-JÉÖ¶ÉÒ PÉ®ú ±ÉÉè]õ +ɪÉÉ* =ºÉEäò ¨ÉxÉ EòÉ ¤ÉÉäZÉ ½þ±EòÉ ½þÉä MɪÉÉ lÉÉ* {ÉixÉÒ ¦ÉÒ ¡Úò±ÉÒ xÉ ºÉ¨ÉÉ<Ç* {É®ú

ªÉ½þ JÉÖ¶ÉÒ VªÉÉnùÉ nùä®ú iÉEò Ê]õEò xÉ ºÉEòÒ* ¨ÉxÉ ±ÉɪÉEò PÉ®ú-´É®ú Ê¨É±É VÉÉxÉä EòÒ JÉÖ¶ÉÒ ¶ÉÒQÉ ½þÒ ±ÉÖ{iÉ ½þÉäxÉä ±ÉMÉÒ* PÉ®ú ¨Éå iÉÉä ¡Úò]õ

EòÉècÒ xɽþÓ lÉÒ* <iÉxÉä Eò¨É ºÉ¨ÉªÉ ¨Éå ¯û{ɪÉä EòÒ ´ªÉ´ÉºlÉÉ EèòºÉä ½þÉäMÉÒ? ¦ÉÉ®úÒ ÊSÉÆiÉÉ ¤ÉÉ®ú-¤ÉÉ®ú ¨ÉʺiɹEò {É®ú =¦É®úxÉä ±ÉMÉÒ* ½þÊ®ú½þ®ú EòÉ

Ênù̈ ÉÉMÉ EòÉ¨É xɽþÓ Eò®úiÉÉ lÉÉ ÊEò ÊEòºÉ iÉ®ú½þ ´É½þ <iÉxÉä {ÉèºÉÉå EòÉ VÉÖMÉÉc Eò®ú {ÉÉBMÉÉ? MÉÉÆ´É Eäò ±ÉMɦÉMÉ ºÉ¦ÉÒ vÉxÉÒ-MÉ®úÒ¤É Eäò {ÉÉºÉ +

{ÉxÉÒ ¡òÊ®úªÉÉnù ±ÉäEò®ú {ɽþÖÆSÉÉ* ºÉ¤ÉxÉä +{ÉxÉÒ ¨ÉVɤÉÚ®úÒ ¤ÉiɱÉÉ<Ç* EòÉä<Ç ¦ÉÒ BäºÉÉ xɽþÓ Ê¨É±ÉÉ VÉÉä =ºÉä ¯û{ɪÉä ºÉÚn ù {É®ú ¦ÉÒ nùä ºÉEòiÉÉ* {ÉèºÉÉå

EòÉ Eò½þÓ VÉÖMÉÉc xÉ ½þÉä {ÉÉxÉä ºÉä ½þÊ®ú½þ®ú nùÖJÉÒ ¨ÉxÉ ºÉä PÉ®ú ±ÉÉè]õ +ɪÉÉ* {ÉixÉÒ xÉä {ÉÉxÉÒ ±ÉÉEò®ú ÊnùªÉÉ* ´É½þ ¤Éä¨ÉxÉ ºÉä ½þÉlÉ ¨ÉÖƽþ vÉÉäEò®ú ZÉÉä

{ÉcÒ Eäò ¤Éɽþ®ú ʤÉUôÒ SÉ]õÉ<Ç {É®ú ±Éä]õ MɪÉÉ* ""Eò½þÓ {ÉèºÉÉå EòÉ VÉÖMÉÉcÉ ½þÖ+É?'' {ÉixÉÒ EòÒ +É´ÉÉVÉ ºÉÖxÉ Eò®ú ´É½þ ºÉ ÖvÉ ¨Éå +ɪÉÉ*

""xɽþÓ*'' ""Ê¡ò®ú CªÉÉ ½þÉäMÉÉ?'' ""<Ƕ´É®ú ½þÒ ¨ÉÉʱÉEò ½þè*'' ""±ÉäÊEòxÉ....* +¤É iÉÉä ʺɡÇò Uô: ÊnùxÉ ½þÒ ¤ÉSÉä ½þé* +¦ÉÒ iÉEò EÖòUô ¦ÉÒ xɽþÓ

½þÉä ºÉEòÉ ½þè*'' ""ºÉ¤É EòÉä<Ç EÖòUô ÊMÉ®ú´ÉÒ ®úJÉ Eò®ú ½þÒ {ÉèºÉä nùäxÉÉ SÉɽþiÉä ½þé*'' ""½þä ¦ÉMÉ´ÉÉxÉ! EèòºÉä +¤É SɱÉäM ÉÉ? BäºÉÉ ¦ÉÒ ½þè iÉÉä EÖòUô

xɽþÓ, ÊVɺÉä ÊMÉ®ú´ÉÒ ¦ÉÒ ®úJÉÉ VÉÉ ºÉEäò*'' nùÉäxÉÉå <ºÉÒ =vÉäc ¤ÉÖxÉ ¨Éå {Écä ®ú½þä*

nùںɮúä ÊnùxÉ ½þÊ®ú½þ®ú xÉä +{ÉxÉä ºÉÖ+®úÉå Eäò ʱÉB OÉɽþEò ¤ÉÖ±ÉÉB* =x½þÉåxÉä ¦ÉÒ =ºÉEòÒ ¨ÉVɤÉÚ®úÒ ºÉ¨ÉZÉ Eò®ú ºÉÉiÉ-+É`ö ½þVÉÉ®ú Eäò

ºÉÚ+®úÉå EòÒ EòÒ¨ÉiÉ nùÉä ½þVÉÉ®ú +ÉÆEòÒ* ¶ÉÉnùÒ ¨Éå ±ÉMɦÉMÉ {ÉÉÆSÉ ½þVÉÉ®ú iÉEò JÉSÉÇ ¤Éè`ö ®ú½þÉ lÉÉ* =ºÉxÉä ʽþºÉÉ¤É ±ÉMÉ ÉªÉÉ, {É®ú PÉ®ú ºÉ¨ÉÚSÉÒ

ºÉÆ{ÉÊkÉ ¤ÉäSÉ nùäxÉä {É®ú ¦ÉÒ {ÉÉÆSÉ ½þVÉÉ®ú iÉEò Eäò ʱÉB {ÉÚ®úÒ xɽþÓ ¤Éè`ö ®ú½þÒ lÉÒ* ¶ÉÉnùÒ ]õ±É VÉÉxÉä EòÉ +lÉÇ lÉÉ ¤Éä<VVÉiÉÒ* ¡äòEòxÉÉ EòÒ BEò

MɱÉiÉ EòÉäÊ¶É¶É xÉä ±É±É¨ÉÊiɪÉÉ Eäò SÉÊ®újÉ EòÉä iÉÉä ºÉÆÊnùMvÉ Eò®ú ½þÒ ÊnùªÉÉ lÉÉ* =ºÉ {É®ú ¦ÉÒ ¶ÉÉnùÒ ]õ±É VÉÉiÉÒ ½þè iÉ Éä MÉÉÆ´É Eäò ±ÉÉäMÉ =ºÉä

VÉÒxÉä xɽþÓ nùåMÉä* ½þÊ®ú½þ®ú ªÉ½þÒ ºÉÉäSÉ-ºÉÉäSÉ Eò®ú {ÉÉMÉ±É ½þÉä ®ú½þÉ lÉÉ* ¤ÉÉ{É-nùÉnùÉ EòÒ EòÉä<Ç VɨÉÒxÉ BäºÉÒ xɽþÓ lÉÒ, ÊVɺÉä ¤ÉÆvÉEò ®úJÉ Eò®ú

{ÉèºÉä ʱÉB VÉÉ ºÉEåò* MÉÉÆ´É ¨Éå =ºÉxÉä ÊEòºÉ-ÊEòºÉ EòÉ EòÉ¨É xɽþÓ ÊEòªÉÉ lÉÉ, {É®ú +ÉVÉ =ºÉEòÒ +ɴɶªÉEòiÉÉ {É®ú ºÉ¦ÉÒ ¨ÉÖƽþ ¡äò®ú ®ú½þä lÉä*

MÉÉÆ´É ¨Éå Eò<ǪÉÉå Eäò PÉ®ú +xÉÉ{É-¶ÉxÉÉ{É JÉSÉÇ ½þÉä ®ú½þä ½þé, EòÉä<Ç Ê¤ÉxÉÉ EòÉ¨É Eäò ¨ÉÉä]õ®úÉå ºÉä PÉÚ¨ÉiÉÉ ½þè, ¤Éä´ÉVɽþ EäòºÉ-¨ÉÖEònù¨Éä ±Écä

VÉÉ ®ú½þä ½þé* BEò ½þÒ VɨÉÒxÉ EòÉä +{ÉxÉÒ ¤ÉxÉÉ ±ÉäxÉä EòÒ Ê±ÉB =ºÉ VɨÉÒxÉ EòÒ ¤ÉÉäʱɪÉÉÆ ¤ÉÉä±É Eò®ú ʱÉJÉ´ÉɪÉÉ VÉÉiÉÉ ½ þè* +{ÉxÉÒ ZÉÚ`öÒ

¶ÉÉxÉÉä-¶ÉÉèEòiÉ EòÉä ÊxɦÉÉxÉä Eäò ʱÉB {ÉèºÉÉå EòÒ ¤É´ÉÉÇnùÒ EòÒ VÉÉ ºÉEòiÉÒ ½þè* {É®ú ¨Éé MÉ®úÒ¤É ½þÚÆ, ¨Éä®úä {ÉÉºÉ ¤ÉÉ{É-nùÉnùÉ EòÒ EòÉä<Ç VɨÉÒxÉ xɽþÓ

iÉÉä ¨ÉÖZÉä {ÉèºÉä EòVÉÇ ¦ÉÒ xɽþÓ Ê¨É±É ®ú½þä ½þé* +Éè®úÉå EòÒ iÉ®ú½þ ¨Éé ¦ÉÒ iÉÉä ºÉÚnù SÉÖEòÉ ½þÒ nùäiÉÉ* {É®ú EòÉä<Ç nùäx ÉÉ xɽþÓ SÉɽþiÉÉ* ´É½þ +{ÉxÉä EòÉä

=xÉ Ê´ÉSÉÉ®úÉå ºÉä nùÚ®ú xɽþÓ Eò®ú {ÉÉiÉÉ* {ɱÉ-{É±É =ºÉä ±É±É¨ÉÊiɪÉÉ EòÉ SÉä½þ®úÉ ÊnùJÉÉ<Ç {ÉciÉÉ ½þè* +MÉ®ú =ºÉEòÒ ¶ÉÉnùÒ ]õ Ú]õ VÉÉBMÉÒ iÉÉä CªÉÉ

=ºÉEòÉ Ênù±É xɽþÓ ]õÚ]õ VÉÉBMÉÉ? ¤ÉäSÉÉ®úÒ EòÉ CªÉÉ nùÉä¹É, =ºÉxÉä VÉÒ´ÉxÉ CªÉÉ ½þÉäiÉÉ ½þè, +¦ÉÒ ªÉ½þ ¦ÉÒ xɽþÓ VÉÉxÉÉ ½þè* Ê¡ò®ú ¦ÉÒ =ºÉä {ÉÊiÉ

Eäò PÉ®ú VÉÉxÉÉ ½þÉäMÉÉ* nùÖÊxɪÉÉ EòÒ ®úÒÊiÉ ½þè* =ºÉä EòÉèxÉ iÉÉäcäMÉÉ? ¶ÉÉnùÒ-¤ªÉɽþ ¨Éå JÉSÉÇ iÉÉä +ÉVÉ ¡èò¶ÉxÉ ½þÉä MɪÉÉ ½þè* ¨ÉÖZÉä =ºÉEòÒ EòÉä<Ç

ÊSÉÆiÉÉ xɽþÓ ½þè* ±ÉäÊEòxÉ MÉÉÆ´É ´ÉɱÉÉå EòÒ xÉVÉ®ú ¨Éå ¨Éä®úÒ ¤Éä]õÒ JÉ]õEòxÉä ±ÉMÉÒ ½þè* Eò¨ÉÉ Eò®ú ¤Éä]õÒ EòÉä ¨Éé ÊJɱÉÉiÉÉ ½þÚÆ +Éè®ú ´É½þ ¦ÉÉ®úÒ {ÉÚ®úä

MÉÉÆ´É EòÉä ±ÉMÉiÉÒ ½þè*

ºÉÒiÉÉ®úÉ¨É ¤ÉɤÉÚ Eäò ªÉ½þÉÆ {ÉSSÉÒºÉ ´É¹ÉÇ EòÒ ±ÉcEòÒ ½þè, ±ÉäÊEòxÉ ÊEòºÉÒ EòÉä ¤ÉÖ®úÉ xɽþÓ ±ÉMÉiÉÉ* EòÉä<Ç iÉÉä =xɺÉä VÉÉEò®ú xɽþÓ

Eò½þiÉÉ* Eò½þäMÉÉ ¦ÉÒ iÉÉä EèòºÉä? ´ÉÉä iÉÉä >ðÆSÉÒ VÉÉÊiÉ Eäò ±ÉÉäMÉ ½þé* =xÉEòÒ ¤Éä]õÒ ¶É½þ®ú ¨Éå ®ú½þiÉÒ ½þè +Éè®ú {ÉgiÉÒ ½þè* ±ÉäÊEòxÉ ½þ¨É ±ÉÉäMÉ

MÉ®úÒ¤É ½þé, MÉÆnùä ½þé, xÉÒSÉÒ VÉÉÊiÉ Eäò ±ÉÉäMÉ ½þé* <ºÉʱÉB ±ÉÉäMÉ ½þ¨É {É®ú +ÆMÉÖ±ÉÒ =`öÉxÉä ºÉä xɽþÓ SÉÚEòiÉä* ±ÉäÊEòxÉ ±É±É¨ÉÊiɪÉÉ EòÉ CªÉÉ nùÉä¹É

½þè? =ºÉxÉä EòÉä<Ç +{É®úÉvÉ ÊEòªÉÉ ½þÒ xɽþÓ ½þè* CªÉÉ ´É½þ +{É®úÉvÉÒ ½þè ÊEò =ºÉä <ºÉÒ =©É ¨Éå ºÉºÉÖ®úÉ±É ¦ÉäVÉ nùÚÆ? MÉÉÆ´É Eäò ½þÒ iÉÉä ±ÉÉäMÉ ½þé,

ÊVÉx½þÉåxÉä ±É±É¨ÉÊiɪÉÉ EòÉä =ºÉ ÊnùxÉ ¤ÉnùxÉÉ¨É Eò®ú ÊnùªÉÉ* ¤ÉÖ®úÉ ½þÉä ºÉÖJÉxÉÉ EòÉ VÉÉä +{ÉxÉä SÉÊ®újɽþÒxÉ ¤Éä]õä EòÉä nùÉä¹É xɽþÓ nùäEò®ú ÊxÉnùÉæ¹É

±É±É¨ÉÊiɪÉÉ {É®ú ±ÉÉÆUôxÉ ±ÉMÉÉxÉä ¨Éå xɽþÓ Ê½þSÉEòÉ* ºÉ¦ÉÒ +Éä®ú ºÉä lÉEäò-½þÉ®úä ¨ÉxÉÖ¹ªÉ EòÉä <Ƕ´É®ú Eäò ʺɴÉÉªÉ +Éè®ú EòÉä<Ç ®úɺiÉÉ xÉVÉ®ú xɽþÓ

+ÉiÉÉ ½þè* ½þÊ®ú½þ®ú EòÒ ¦ÉÒ ÊºlÉÊiÉ ´ÉèºÉÒ ½þÒ ¤ÉxÉ MÉ<Ç lÉÒ* Ê´É´Éɽþ EòÉ ÊnùxÉ BEònù¨É ʺɮú {É®ú +É {ÉÖ½þÆSÉÉ, {É®ú {ÉèºÉ Éå EòÉ EòÉä<Ç VÉÖMÉÉc +¤É

iÉEò xɽþÓ ½þÉä {ÉɪÉÉ lÉÉ* <Ƕ´É®ú {É®ú +{ÉxÉÒ <VVÉiÉ EòÉä ºÉÉé{É Eò®ú ´É½þ lÉÉäcÒ-ºÉÒ ¶ÉÉÆÊiÉ ¨É½þºÉÚºÉ Eò®úiÉÉ* {ÉixÉÒ EòÉ ÊSÉÆiÉÉ ¨Éå b÷Ú¤ÉÉ

SÉä½þ®úÉ +Éè®ú ±É±É¨ÉÊiɪÉÉ EòÉ <xÉ ºÉ¤ÉºÉä ¤ÉäJɤɮú =x¨ÉÖHò º´É¦ÉÉ´É +¤É =ºÉEòÉä Eò¹]õ Eäò +´ÉnùÉxÉ ½þÒ ±ÉMÉ ®ú½þä lÉä* 5

कहानी

+ÉVÉ ¦ÉÒ ´É½þ +{ÉxÉä ºÉÚ+®úÉå EòÉä ºÉ¤Éä®úä-ºÉ¤Éä®úä JÉÉä±É Eò®ú SÉ®úÉxÉä ÊxÉEò±É {ÉcÉ* iɦÉÒ ®úɺiÉä ¨Éå MÉÉÆ´É EòÒ +Éä®ú +ÉiÉä ½þÖB |ÉEòɶÉ

¤ÉɤÉÚ ÊnùJÉÉ<Ç ÊnùB* BEò +ɶÉÉ EòÒ IÉÒhÉ ÊEò®úhÉ ¨ÉxÉ ¨Éå =¦É®úÒ +Éè®ú +xÉɪÉÉºÉ ½þÒ =ºÉEäò Eònù¨É =xÉEòÒ +Éä®ú SÉ±É {Écä* ¤ ÉÉä±É {ÉcÉ-

""¨ÉÉʱÉEò ®úÉ¨É ®úɨÉ! +¦ÉÒ +É ®ú½þä ½þé CªÉÉ?'' ""½þÉÆ! EòÉä<Ç ºÉ´ÉÉ®úÒ xɽþÓ Ê¨É±ÉxÉä ºÉä ®úÉiÉ ¦É®ú º]õä¶ÉxÉ {É®ú ½þÒ ®ú½ þxÉÉ {ÉcÉ* MÉÉÆ´É-PÉ®ú EòÉ

ºÉ¨ÉÉSÉÉ®ú `öÒEò iÉÉä ½þè..*'' ""½þÉÆ ¨ÉÉʱÉEò! ºÉ¤É `öÒEò-`öÉEò ½þÒ SÉ±É ®ú½þÉ ½þè'' Eò½þ Eò®ú ½þÊ®ú½þ®ú |ÉEòÉ¶É ¤ÉɤÉÚ EòÒ +]õèSÉÒ =xÉEäò ½þÉlÉÉå ºÉä

±ÉäEò®ú +{ÉxÉä EòÆvÉå {É®ú =`öÉ Eò®ú SÉ±É {ÉcÉ* ®úɺiÉä ¨Éå ½þÒ =ºÉxÉä +{ÉxÉÒ ºÉ¨ÉºªÉÉ |ÉEòÉ¶É ¤ÉɤÉÚ EòÉä ¤ÉiÉÉ<Ç*

""ÊEòiÉxÉä ¯û{ɪÉÉå EòÒ iÉÖ¨½þå VÉ°ü®úiÉ {ÉcäMÉÒ, ½þÊ®ú½þ®ú?'' ""ªÉ½þÒ EòÉä<Ç {ÉÉÆSÉ ½þVÉÉ®ú ¯û{ɪÉä ¨ÉÉʱÉEò*'' ""{ÉèºÉÉå EòÉ <ÆiÉVÉÉ¨É ÊEòªÉÉ ½þè?''

""xɽþÓ ¨ÉÉʱÉEò* <Ƕ´É®ú ½þÒ ¨ÉÉʱÉEò ½þè* PÉ®ú ¨Éå ¡Úò]õÒ EòÉècÒ ¦ÉÒ xɽþÓ ½þè +Éè®ú {É®úºÉÉå ¤ÉÉ®úÉiÉ +ÉxÉä ´ÉɱÉÒ ½þè*'' Eò½þiÉä-Eò½þiÉä

=ºÉEòÒ +ÉÆJÉå b÷¤Éb÷¤ÉÉ +É<È* |ÉEòÉ¶É ¤ÉɤÉÚ EòÉ Ênù±É {ɺÉÒVÉ MɪÉÉ* =x½þÉåxÉä PÉ®ú {É®ú +ÉxÉä EòÉä Eò½þÉ* ¨ÉxÉ ¨Éå =ºÉä BEò +É¶É ¤ÉÆvÉÒ

+Éè®ú ´É½þ ºÉɨÉÉxÉ {ɽþÖÆSÉÉ Eò®ú {ÉÖxÉ: +{ÉxÉä ºÉÚ+®úÉå EòÉä nùäJÉxÉä SɱÉÉ MɪÉÉ* PÉ®ú {ɽþÖÆSÉ Eò®ú |ÉEòÉ¶É ¤ÉɤÉÚ ½þÉlÉ-¨ÉÖƽþ vÉÉäEò®ú ʴɸÉÉ¨É Eò®ú

®ú½þä lÉä* <ºÉÒ ¤ÉÒSÉ ½þÊ®ú½þ®ú nùÉä ¤ÉÉ®ú +ÉEò®ú ±ÉÉè]õ MɪÉÉ lÉÉ* VÉ¤É |ÉEòÉ¶É ¤ÉɤÉÚ EòÒ xÉÓnù JÉÖ±ÉÒ iÉÉä ÊEòºÉÒ xÉä ¤ÉiÉ ÉªÉÉ ÊEò ½þÊ®ú½þ®ú +ɪÉÉ

lÉÉ* =x½þå ªÉÉnù +ɪÉÉ +Éè®ú =x½þÉåxÉä ½þÊ®ú½þ®ú EòÉä {ÉÉÆSÉ ½þVÉÉ®ú ¯û{ɪÉä nùäxÉä Eäò ʱÉB PÉ®ú Eäò ¨ÉÉʱÉEò +{ÉxÉä Ê{ÉiÉÉ ºÉä +xÉÖ®úÉävÉ ÊEòªÉÉ* {ɽþ±Éä

=ºÉEäò Ê{ÉiÉÉ ªÉÉxÉÒ Ênù́ ÉÉEò®ú ®úÉªÉ EÖòUô xɽþÓ ¤ÉÉä±Éä {É®ú nùÖ¤ÉÉ®úÉ +ÉOɽþ ºÉÖxÉEò®ú ¤ÉÉä±Éä-""+¦ÉÒ +{ÉxÉä ½þÒ {ÉÉºÉ ÊEòiÉxÉä EòÉ¨É {Écä ½þé*''

""Ê¡ò®ú ¦ÉÒ iÉÉä*''

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7

कहानी Eò®ú SɱÉä MÉB* ¨Éä½þxÉiÉ- ¨ÉVÉnùÚ®úÒ Eò®úEäò ½þÊ®ú½þ®ú xÉä ÊEòºÉÒ iÉ®ú½þ nùÉä ½þVÉÉ®ú ¯û{ɪÉä EòÉ +Éè®ú <ÆiÉVÉÉ¨É Eò®ú ʱɪÉÉ lÉÉ* Ê¡ò®ú ¦ÉÒ BEò

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+ÉÆJÉÉå ¨Éå iÉè®úxÉä ±ÉMÉÉ* — शे्वता हिपाठी

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आलेख

सांता क्लोजसांता क्लोजसांता क्लोज सांता क्लोज कौन ह ैयह कहना ऄत्यंत ककठन ह ैजबकक कदसंबर के अते ही आसके नाम की धनु सनुाइ दनेे लगती ह।ै

कक्रसमस का त् यौहार अते ही सबसे पहले सांता की याद अती ह,ै गोलमर्ोल सांता, चेर सारे कगफ्र् लेकर अता ह ैऔर

हम सबको खशु कर दतेा ह ै। कक्रसमस के दौरान अप दकुनया के ककसी भी कोने में चले जाए,ं हर जगह सांता क्लोज एक

ही तरह से सजधज कर बच् चों के बीच खकुशयां बांर्ता कफरता ह ै। लेककन बहुत कम ही लोग सांता के बारे में जानकारी

रखते हैं, हममें से शायद ही ककसी को पता हो,

कक सांता कौन ह,ै कहा ंसे अया ह ैऔर आतना

लोककप्रय कैसे हुअ । सांता के बारे में कइ

कमथक दकुनया भर में व् याप् त ह,ै अआए जानते हैं

ऐसे ही कुछ कमथक के सांता के बारे में : -

सांता की ईत् पकि तकुकी से हुइ यह बात सच ह ै

या नहीं, ऐसा माना जाता ह ैकक सांता दखेने में

सेंर् कनकोलस की तरह लगता ह ै जो तीसरी

सदी के सेंर् थ े । मायरा के पादरी एक ऄच् छे

आसंान थे, जो बच् चों को तोफहें बार्तें थे । ऐसा

भी माना जाता ह ैकक पादरी ने ऄपने चमत् कार

से तीन बच् चों को जीवनदान कदया था । ईनके

लाल और सफेद रंग के कपङे सभी को

अककषयत करते ह ै। सांता के पास लाल रंग का

बङा थैला होता ह ै कजसमें बच् चों के कलए

तोफहें होते हैं । लेककन अज तक पता नहीं

चला कक सांता वाथ तव में ऐसा था या ईसके

कपङों को कबजनेस के कहसाब से कडजाआन ककया गया । आन कदनों सांता की डे्रस एक रेडमाकय बन चकुी ह ै।

सांता क्लोज से जङुी एक प्रकसद्ध लोककथा के ऄनसुार वह ईिर में ककसी दरू के्षि में एक बफकी ले दशे में रहता ह ै।

सांता क्लोज के ऄमरेरकी संथकरण के ऄनसुार, वह ईिरी ध्रवु में ऄपने घर में रहता ह,ै जबकक ऄक्सर ऐसा कहा जाता ह ै

की फादर कक्रसमस कफनलैंड के लोपलैंड प्रान्त में कोरवातनु्तरुी के पहाङों में रहता ह ै। सांता ऄपनी पत्नी श्रीमती क्लोज के

साथ रहता ह ै । ईसके साथ एक ऄकनकदयष्ट परन्त ुबङी संख्या में ककल्पत बौने और कम से कम अठ या नौ ईङने वाले

रेकन्डयर रहते हैं ।

एक और लोककथा जो गीत सांता क्लोज आज ककमगं रू् र्ाईन में प्रचकलत ह,ै के ऄनसुार वह परूी दकुनया के बच्चों

की एक सचूी बनाता ह,ै ईन्हें ईनके व्यवहार शरारती और ऄच्छे के ऄनसुार ऄलग ऄलग श्रेकणयों में रखता ह ै और

कक्रसमस की पवूय संध्या वाली रात, दकुनया के सभी ऄच्छे लङकों और लङककयों को कखलौने, केन्डी और ऄन्य ईपहार

दतेा ह ैऔर कभी कभी शरारती बच्चों को कोयला दतेा ह ै। आस काम के कलए वह ऄपने एक बौने की सहायता लेता ह ैजो

वकय शॉप में ईसके कलए कखलौने बनाता ह ैऔर रेकन्डयर ईसकी गाङी को खींचता ह ै।

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आलेख

सांता प् यार और थ नेह से लबरेज होते हैं । ईनके कदल में बच् चों के कलए चेर सारा प् यार होता ह ै। कइ कफल् मों में हम

सांता को हसंते हुए दखेते हैं । 1890 में एक लेखक लुइस मोइ ने एक ककताब जलेुमंडेन् स बॉग में सांता के बारे में बताया

कक वह कैसे बच् चों के कलए तोफहों को खरीदकर ईनमें बांर्ते हैं । सांता के पास कहरन वाला थ लेथ ह ै

काफी लम् बे समय से लोगों के बीच यह बात प्रचकलत ह ैकक सांता ऄपन ेतोफहों को एक थ लेथ पर रखकर बांर्ते हैं कजसे

कहरन चलाते हैं । ये बात सच ह ैया कसफय कही सनुी बात, आस बारे में कुछ भी पता नहीं ह ै। लेककन ऐसी कइ कहाकनयां

सनुने में अती ह ै।

सांता कसफय कक्रसमस पवय पर ही बच् चों को तोफहा दतेा ह ै । कक्रसमस के दौरान भगवान इश ु का जन् म होता ह,ै

इसामसीह और सांता का कोइ कनेक् शन नहीं ह ै । सांता की ईत् पकि के बारे में ककसी को पता नहीं, लोग मानते ह ैसेंर्

कनकोलस ही सांता का ऄसल रूप हैं । सांता का महत्व कक्रसमस पवय के दौरान ही सबसे ज् यादा होता ह ै।

सेंर् कनकोलस, सांता के नाम से जाना जाता ह ै। पौराकणक और ऐकतहाकसक दृकष्ट से व ेलोक कथाओ ंमें प्रचकलत एक

व्यकि हैं । कइ पकश्चमी संथकृकतयों में ऐसा माना जाता ह ैकक सांता कक्रसमस की पवूय संध्या, याकन 24 कदसम्बर की शाम या

दरे रात के समय के दौरान ऄच्छे बच्चों के घरों में अकर ईन्हें ईपहार दतेा ह ै। सांता की अधकुनक अकृकत की व्यतु्पकि

कसंर्रक्लास की डच अकृकत से हुइ कजसे संभवतया ईपहार दनेे वाले सेंर् कनकोलस से सम्बंकधत माना जाता ह ै। जनवरी

को ग्रीस में बेकसल का फीथर् कदवस मनाया जाता ह,ै आस कदन तोहफों का अदान प्रदान ककया जाता ह ै।

सांता गरीबों के घर जाकर खानपान की सामग्री एवं बच्चों के कलये कखलौने बांर्ा करता था । संत कनकोलस ऄपने

ईपहार अधी रात को ही दतेे थे क्योंकक ईन्हें ईपहार दतेे हुए नघर अना पसंद नहीं था । व ेऄपनी पहचान लोगों के सामने

नहीं लाना चाहते थे । आसी कारण बच्चों को जल्दी सुला कदया जाता । बस फुरय से रेंडीयरों को ईङना अ जाता ह ैऔर वे

कक्रसमस लाइर् की थपीड से ईङते हैं, बहुत तेज । बच्चे जो ईनका आन्तजार कर रह ेहोते हैं ।

सांता को अम तौर पर एक मोरे्, हसंमखु सछेद दाची वाले अदमी के रूप में कचकित ककया जाता ह,ै जो सछेद

कॉलर और कछ वाला लाल कोर् पहनता है, आसके साथ वह चमङे की काली बेल्र् और बरू् पहनता ह ै ईनकी कुछ

छकवयों में दाची होती ह ै लेककन मूछं नहीं। यह छकव संयिु राज्य ऄमरेरका और कनाडा में 19 वीं सदी में लोककप्रय हो

गयी। आस छकव को लोककप्रय बनाने में तत्कालीन राजनीकतक कारू्यकनथर् थॉमस नाथर् ने महत्वपूणय योगदान कदया । गानों,

रेकडयो, रे्कलकवजन, बच्चों की ककताबों और कफल्मों के माध्यम से आस छकव को बनाये रखा गया ह ै । संयिु राष्ट्र और

यरूोप में, ईन्हें ऄक्सर ऄमरेरकी सांता क्लोज के रूप में कचकित ककया जाता ह,ै परन्त ुईन्हें ऄक्सर फादर क्रिसमस कहा

जाता ह।ै

अज भी ऐसा कहा जाता ह ैकक सांता ऄपनी वाआफ और बहुत सारे बौनों के साथ ईिरी ध्रवु में रहते हैं । वहां पर

एक कखलौने की फैक्री ह ैजहां सारे कखलौने बनाए जाते हैं । सांता के ये बौने साल भर आस फैक्री में कक्रसमस के कखलौने

बनाने के कलए काम करते हैं । अज कवश्वभर में सांता के कइ पते हैं जहां बच्चे ऄपने खत भजेते हैं, लेककन ईनके कफनलैंड

वाले पते पर सबसे ज़्यादा खत भजे ेजाते हैं । आस पते पर भेज ेगए प्रत्येक खत का लोगों को जवाब भी कमलता ह ै। अप

भी ऄपने खत सांता को आस पते पर भजे सकते हैं । कक्रसमस अने वाला ह ै।

— कृष्ण कुमार दास

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कश्मीरकश्मीरकश्मीर कश् मीर को धरती का थ वगय कहा जाता ह।ै कश् मीर के जरज जरज में खबूसरूती समाइ ह ै। कश् मीर की खबूसरूत वाकदयों में

अने के बाद अप को ये महसूस होगा कक कश् मीर की हवाओ ंमें खबूसरूती बहती ह ै। कश् मीर की खबूसरूत वाकदयां हो या

ईनमें बसी हुथ न की पररयां कजनकी खशुब ूकश् मीर की वाकदयों में तैरती रहती ह ै। कश्मीर की खबूसरूती ईसके बागों से भी

ह ै। मगुल बादशाहों ने कश्मीर की खबूसरूती को बचाने के कलए एक से बचकर बागों का कनमायण करवाया था ।

कनशात बाग, डल झील के पवूकी तरफ कथथत ह,ै कजसे 1633 में हसन असफ खान, ममुताज महल के कपता और नरू

जहान के भाइ द्रारा बनाया गया था । कनशात बाग का ऄथय होता ह ैखकुशयों का बगीचा । आस गाडयन में फूलों की दलुयभ

प्रजाकतयां, कचनार वकृ्ष और सरू के पेङ भी पाए ंजाते हैं । यह मगुल गाडयन, के्षि का सबसे बङा सीचीदार ईद्यान ह ै। यहां

कथथत सुंदर फव् वारों, बङे से लॉन और खबूसरूत फूलों के कारण यह बगीचा काफी कवख् यात ह।ै

कश् मीर के जरज जरज में खबूसरूती समाइ ह ै। कश् मीर की खबूसूरत वाकदयों में अने के बाद अप को ये महससू होगा

कक कश् मीर की हवाओ ंमें खबूसरूती बहती ह ै । कश् मीर की खबूसरूत वाकदयां हो या ईनमें बसी हुथ न की पररया ं कजनकी

खशु्ब ूकश् मीर की वाकदयों में तैरती रहती ह ै। कश्मीर की खबूसरूती ईसके बागों से भी ह ै। मगुल बादशाहों ने कश्मीर की

खबूसरूती को बचाने के कलए एक से बचकर बागों का कनमायण करवाया था ।

कश्मीर का ऄच्छा-खासा आकतहास कल्हण के ग्रंथ राजतरंकगणी से और बाद के ऄन्य लेखकों से कमलता ह ै। प्राचीन

काल में यहााँ कहन्द ूअयय राजाओ ंका राज था । कश्मीर के प्राचीन आकतहास और यहां के सौंदयय का वणयन कल्हण रकचत

राज तरंकगनी में बहुत सुंदर ढंग से ककया गया ह ै । वसेै आकतहास के लंबे कालखडं में यहां मौयय, कुषाण, हूण,

करकोर्ालोहरा, मगुल, ऄफगान, कसख और डोगरा राजाओ ंका राज रहा ह ै। कश्मीर सकदयों तक एकशया में संथकृकत एव ं

दशयन शास्त्र का एक महत्वपणूय कें द्र रहा और सफूी संतों का दशयन यहां की सांथकृकतक कवरासत का महत्वपणूय कहथसा रहा

ह।ै

थथानीय लोगों का कवश्वास ह ैकक आस कवथततृ घार्ी के थथान पर कभी मनोरम झील थी कजसके तर् पर दवेताओ ंका

वास था । एक बार आस झील में ही एक ऄसरु कहीं से अकर बस गया और वह दवेताओ ंको सताने लगा । िथत दवेताओ ं

ने ऊकष कश्यप से प्राथयना की कक वह ऄसरु का कवनाश करें । दवेताओ ंके अग्रह पर ऊकष ने ईस झील को ऄपने तप के

बल से सखुा कदया । आसके साथ ही ईस ऄसरु का ऄतं हो गया और ईस थथान पर एक घार्ी बन गइ । कश्यप ऊकष द्रारा

ऄसरु को मारने के कारण ही घार्ी को कश्यप मार कहा जाने लगा । यही नाम समयांतर में कश्मीर हो गया ।

मौयय सम्रार् ऄशोक और कुषाण सम्रार् ककनष्ट्क के समय कश्मीर बौद्ध धमय और संथकृकत का मखु्य केन्द्र बन गया।

पवूय-मध्ययगु में यहााँ के चक्रवतकी सम्रार् लकलताकदत्य ने एक कवशाल साम्राज्य कायम कर कलया था। कश्मीर संथकृत कवद्या

का कवख्यात केन्द्र रहा । कश्मीर शवैदशयन भी यहीं पैदा हुअ और पनपा । यहां के महान मनीकषयों

में पतञ्जकल, दृचबल, वसगुपु्त, अनन्दवधयन, ऄकभनवगपु्त, कल्हण, क्षेमराज अकद हैं । यह धारणा ह ै कक कवष्ट्णधुमोिर

परुाण एव ंयोग वाकसष्ठ यहीं कलख ेगये।

मध्ययगु में मकुथलम अक्रान्ता कश्मीर पर काकबज हो गये । कुछ मसुलमान शाह और राज्यपाल जसेै शाह घनै-ईल-

ऄकबदीन कहन्दओु ंसे ऄच्छा व्यवहार करते थे पर कइ जसेै सलु्तान कसकन्दर बतुकशकन ने यहााँ के मलू कश्मीरी कहन्दओु ं

को मसुलमान बनने पर, या राज्य छोङने पर या मरने पर मजबरू कर कदया । कुछ ही सकदयों में कश्मीर घार्ी में मकुथलम

बहुमत हो गया । मसुलमान शाहों में ये बारी बारी से ऄफगान, कश्मीरी मसुलमान, मगुल अकद वशंों के पास गया । मगुल

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सल्तनत कगरने के बाद से कसख महाराजा रणजीत कसंह के राज्य में शाकमल हो गया । कुछ समय बाद जम्म ूके कहन्द ूडोगरा

राजा गलुाब कसंह डोगरा ने कब्रकर्श लोगों के साथ सकन्ध करके जम्म ूके साथ साथ कश्मीर पर भी ऄकधकार कर कलया

डोगरा वशं भारत की अघादी तक कायम रहा ।

कश्मीर का नाम लेते ही डल झील की तथवीर अंखों के सामने ईभरती ह।ै डल झील श्रीनगर ही नहीं कश्मीर का

एक प्रतीक हैं । आसे भारत की सबसे सुंदर झीलों में माना जा सकता ह।ै करीब बीस वगय ककलोमीर्र की यह झील ऄपने

अप में ककसी शहर से कम नहीं । पययर्कों की सकुवधा की सभी जरूरी चीजें यहां ईपलब्ध रहती ह ै। ककसी ऄच्छे होर्ल

के कमरे की तरह आन हाईस बोर् के कमरे भी सरुूकचपणूय तरीके से सजाये जाते हैं।

पययर्न के ऄलावा डल झील में मछकलयों का ईत्पादन भी बङी मािा में होता ह ै। ठंड के कदनों में जब श्रीनगर का

तापमान शनू्य से भी नीचे पहुचं जाता ह,ै तब डल झील जम जाती ह ै और बच्चे वहां कक्रकेर् खलेते नजर अते हैं ।

कशकारों पर ईन कदनों अमतौर पर कवदशेी सैलानी ही ज्यादा होते हैं । झील के जम ेहोने के कारण याकियों को लाने ले जाने

वाली छोर्ी नाव ेबंद कर दी जाती ह ै। लोग चलकर सीधे कशकारे तक पहुचंते हैं । कशकारों में पययर्कों को गमय पानी, र्ीवी,

रेथर्ोरेंर्, हीर्र जसैी सकुवधाए ंतो कमलती ही ह ै। शॉकपंग के कलए फेरी वाले भी कशकारों पर अते रहते हैं । आन फेरी वालों के

पास कश्मीर के हथतकशल्प से बनी चीजें, अकर्यकफकशयल ज्वेलरी, केसर, कशलाजीत, पश्मीना, कश्मीर के कपङे और ऄन्य

वथतएु ंईपलब्ध होती हैं ।

डल झील एक शहर जसैा ह ै। डल झील पर सैलाकनयों के रुकने के कलए हाईस बोर् तो ह ैही, रोजमराय की जरूरत

की चीजों के बाजार भी लग ेहोते हैं। कश्मीर के कइ पररवार आन कशकारों में भी रहते हैं । नाव पर ही सब्जी, ककराने का

सामान, दवा की दकुानें और यहां तक कक पोथर् ऑकफस भी ईपलब्ध ह ै। यह दशे का एक माि नाव पर चलता-कफरता

पोथर् ऑकफस ह ै। डल झील में ही तैरते हुए खते भी ह ै। आन खतेों में सकब्जयां और फूल ईगाए जाते हैं।

डल झील तीन तरफ से पहाङों से कघरी हैं । आन पहाङों पर कचनार के बङे-बङे पेङ ह ै। ऄकधकांश समय यह पहाङ

बफय से ढके होते हैं और बादलों की रु्ककङयां आन पहाङों पर ऄर्खकेलयां करती हुइ नजर अती हैं । डल झील में ऄपने

पानी के स्त्रोत तो ह ैही, कइ दसूरी झीलों का पानी भी अकर आस झील में कमल जाता हैं । डल झील की तरह ही नाकगन

झील में भी कशकारे पययर्कों के कलए ईपलब्ध है, लेककन यह झील छोर्ी ह,ै आसकलए यहां भीङ-भाङ कम होती ह ैऔर

आसीकलए कुछ पययर्क आसे चनुते ह,ै ताकक यहां शोरगलु और भी कम हो।

कहा जाता ह ैकक शाहजहंा प्रकसद्ध मगुल सम्रार् और ऄब्दलु हसन असफ खान का दामाद था और शालीमार बाग

को दखेकर वह बहुत प्रभाकवत हुअ था। आसको दखेने के बाद ईसने चपुके से यह अशा व् यक् त की थी कक ईसके ससरु ईसे

यह बाग ईपहार में द ेदें। बाद में ससरु द्रारा बगीचे को कगफ्र् न करने पर ईसने बगीचे में पानी की सप् लाइ को रूकवा कदया

था । शालीमार बाग मगुल बाग का एक ईदाहरण ह।ै आसे मगुल बादशाह जहााँगीर ने श्रीनगर में बनवाया

था। श्रीनगर भारत के ईिरतम राज्य जम्म ूएव ंकश्मीर की ग्रीष्ट्म-कालीन राजधानी ह ै । आसे जहााँगीर ने ऄपनी कप्रय एवं

बकुद्धमती पत्नी महेरुकन्नसा के कलये बनवाया था, कजसे नरूजहााँ की ईपाकध दी गइ थी।

आस बाग में चार थतर पर ईद्यान बने हैं एव ंजलधारा बहती ह ै । आसकी जलापकूतय कनकर्वतकी हररवन बाग से होती

ह।ैईच्चतम थतर पर ईद्यान, जो कक कनचले थतर से कदखाइ नहीं दतेा है, वह हरम की मकहलाओ ंहते ुबना था । यह ईद्यान

ग्रीष्ट्म एव ंपतझङ में सवोिम कहलाता ह ै । आस ऊत ुमें पिों का रंग बदलता ह ैएव ंऄनेकों फूल कखलते हैं। यही ईद्यान

ऄन्य बागों की प्रेरणा बना, खासकर आसी नाम से लाहौर, पाककथतान में ऄन्य बाग कवककसत ककए गए ।

— राहुल कमषकार

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अग्निशाखा केसर अग्निशाखा केसर अग्निशाखा केसर

केसर कवश्व का सबसे कीमती पौधा ह ै । लाल-नारंगी रंग के अग की तरह दमकते हुए केसर को संथकृत में

ऄकग्नशाखा नाम से भी जाना जाता ह।ै केसर का वानथपकतक नाम क्रोकस सैर्ाआवस ह ै । ऄगं्रेघी में आसे सैफरन नाम से

जाना जाता ह।ै कवश्व में केसर ईगाने वाले प्रमखु दशे हैं - फ्ांस, थपेन, भारत, इरान, आर्ली, ग्रीस, जमयनी, जापान, रूस,

अकथरया, तकुकय थतान, चीन, पाककथतान के क्वरे्ा एव ंकथवर्घरलैंड । अज सबसे ऄकधक केसर ईगाने का श्रेय थपेन को

जाता ह,ै आसके बाद इरान को । कुल ईत्पादन का 80% आन दोनों दशेों में ईगाया जा रहा ह ै। वसेै तो आसका मलू थथान

दकक्षण यरूोप ह,ै यद्यकप आसकी खतेी थपेन, आर्ली, ग्रीस, तकुकय थतान, इरान, चीन तथा भारत में होती ह ै । भारत में यह

केवल जम्म ूतथा कश्मीर के सीकमत क्षेिों में पैदा होती हैं । आसकी गकुर्काएाँ प्रकत वषय

ऄगथत-कसतंबर में रोपी जाती हैं और ऄक्रू्बर-कदसंबर तक आसके पि तथा पषु्ट्प साथ

कनकलते हैं ।

केसर का पौधा 15-25 सेंर्ीमीर्र उाँ चा होता ह।ै पकियााँ साँकरी, लंबी और नालीदार

होती हैं । आनके बीच से पषु्ट्पदडं कनकलता ह,ै कजसपर नीललोकहत वणय के एकाकी

ऄथवा एकाकधक पषु्ट्प होते हैं। पंखकुडऺयााँ तीन तीन के दो चक्रों में और तीन पीले रंग

के पुंकेशर होते हैं । आनकी उपर तीन कुकक्षयााँ, लगभग एक आचं लंबी, गहरे, लाल

ऄथवा लाकलमा यिु हल्के भरेू रंग की होती हैं, कजनके ककनारे दतंरु या लोमश होते हैं । केसर की गधं तीक्ष्ण, परंत ु

लाक्षकणक और थवाद ककंकचत ्करु्, परंत ुरुकचकर, होता ह ै।

आसका ईपयोग मक्खन अकद खाद्य द्रव्यों में वणय एव ंथवाद लाने के कलये ककया जाता हैं। कचककत्सा में यह ईष्ट्णवीयय,

ईिजेक, अतयवजनक, दीपक, पाचक, वात-कफ-नाशक और वदेनाथथापक माना गया ह ै। ऄत: पीकङतातयव, सदकी जकुाम

तथा कशर:शलूाकद में प्रयिु होता ह।ै

केसर की खतेी भारत में जम्म ूके ककश्तवाङ तथा कश्मीर के पंपोर के सीकमत के्षिों में ऄकधक की जाती ह ै। केसर

यहां के लोगों के कलए वरदान ह ै। क्योंकक केसर के फूलों से कनकाला जाता सोने जसैा कीमती केसर कजसकी कीमत बाघार

में तीन से साचे तीन लाख रुपये ककलो ह ै। यहां की केसर हल्की, पतली, लाल रंग वाली, कमल की तरह सनु्दर गधंयुि

होती ह ै।

ऄसली केसर बहुत महगंी होती ह ै। कश्मीरी मोंगरा सवोतम मानी गइ ह ै। एक समय था जब कश्मीर का केसर कवश्व

बाघार में श्रेष्ठतम माना जाता था । कवदशेों में भी आसकी पैदावार बहुत होती ह ैऔर भारत में आसकी अयात होती ह।ै

जम्म-ूकश्मीर की राजधानी श्रीनगर से कसफय 20 ककलोमीर्र की दरूी पर एक छोरे् शहर पंपोर के खतेों में शरद ऊतु के

अते ही खशुबदूार और कीमती जङी-बरू्ी केसर की बहार अ जाती ह ै । वषय के ऄकधकतर समय ये खते बंजर रहते हैं

क्योंकक केसर के कंद सखूी जमीन के भीतर पनप रह ेहोते हैं। शरद ऊत ुके ऄतं तक ये खते बैंगनी रंग के फूलों से सज जाते

हैं । और आस रंग की खशुब ूसारे वातावरण में बसी रहती ह ै।

आन केसर के बैंगनी रंग के फूलों को हौले-हौले चनुते हुए कश्मीरी लोग आन्हें सावधानी से तोङ कर ऄपने थैलों में

आक्ठा करते हैं । केसर की कसफय अधा ककलो मािा बनाने के कलए क़रीब 75 हघार फूल लगते हैं । प्रत्येक फूल में केवल

तीन केसर ही पाए जाते हैं ।

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केसर को ईगाने के कलए समदु्रतल से लगभग 2000 मीर्र उाँ चा पहाङी के्षि एव ं शीतोष्ट्ण सखूी जलवाय ु की

अवश्यकता होती ह ै । पौधे के कलए दोमर् कमट्टी ईपयिु रहता ह ै। यह पौधा कली कनकलने से पहले वषाय एव ंकहमपात

दोनों बदायश्त कर लेता ह,ै लेककन ककलयों के कनकलने के बाद ऐसा होने पर परूी फसल चौपर् हो जाती ह ै।

आन फूलों की आतनी तेघ खशुबू होती ह ैकक असपास का के्षि महक ईठता ह ै। केसर की गंध तीक्ष्ण, परंत ुलाक्षकणक

और थवाद ककंकचत ्करु्, परंत ुरुकचकर, होता ह ै। आसके बीज अयताकार, तीन कोणों वाले होते हैं कजनमें से गोलकार मींगी

कनकलती ह।ै

केसर को कनकालने के कलए पहले फूलों को चनुकर ककसी छायादार थथान में कबछा दतेे हैं । सखू जाने पर फूलों से

मादा ऄगं याकन केसर को ऄलग कर लेते हैं । रंग एव ंअकार के ऄनसुार आन्हें - मोंगरा, लच्छी, गचु्छी अकद श्रेकणयों में

वगकी कत करते हैं । डेच लाख फूलों से लगभग एक ककलो सखूा केसर प्राप्त होता ह ैकजसे कनकालना एक ककठन कायय ह।ै

केसर खाने में कङवा होता ह,ै लेककन खशुबू के कारण कवकभन्न व्यंजनों एव ंपकवानों में डाला जाता ह ै। आसका ईपयोग

मक्खन अकद खाद्य द्रव्यों में वणय एव ंथवाद लाने के कलये ककया जाता हैं । गमय पानी में डालने पर यह गहरा पीला रंग दतेा

ह ै। यह पानी में घलुनशील होता ह,ै साथ ही ऄत्यंत पीला भी ।

आसमें इथर्र कीर्ोन एव ंवाष्ट्पशील सगुधंी तेल भी कुछ मािा में कमलते हैं । ऄन्य रासायकनक यौकगकों में तारपीन

एकल्डहाआड एव ं तारपीन एल्कोहल भी पाए जाते हैं । आन रासायकनक एव ं काबयकनक यौकगकों की ईपकथथकत केसर को

ऄनमोल औषकध बनाती ह ै । केसर की रासायकनक बनावर् का कवशे्लषण करने पर पता चला हैं कक आसमें तेल 1.37

प्रकतशत, अद्रयता 12 प्रकतशत, कपक्रोसीन नामक कति द्रव्य, शकय रा, मोम, प्रोर्ीन, भथम और तीन रंग द्रव्य पाए जाते हैं।

ऄनेक खाद्य पदाथो में केसर का ईपयोग रंजन पदाथय के रूप में ककया जाता ह ै।

केसर का ईपयोग अयवुजकदक नथुखों में, खाद्य व्यंजनों में और दवे पजूा अकद में तो केसर का ईपयोग होता ही था पर

ऄब पान मसालों और गरु्कों में भी आसका ईपयोग होने लगा ह ै। केसर बहुत ही ईपयोगी गणुों से यिु होती ह ै। यह कफ

नाशक, मन को प्रसन्न करने वाली, मकथतष्ट्क को बल दनेे वाली, रृदय और रि के कलए कहतकारी, तथा खाद्य पदाथय और

पेय को रंगीन और सगुकन्धत करने वाली होती ह ै।

कचककत्सा में यह ईष्ट्णवीयय, अतयवजनक, वात-कफ-नाशक और वदेनाथथापक माना गया ह ै। ऄत: पीकङतातयव, सदकी

जकुाम तथा कशर:शलूाकद में प्रयिु होता ह ै। अयवुजद के ऄनुसार केसर ईिजेक होती ह ैऔर कामशकि को बचाती ह।ै यह

मिूाशय, कतल्ली, यकृत (लीवर), मकथतष्ट्क व नेिों की तकलीफों में भी लाभकारी होती ह।ै प्रदाह को दरू करने का गणु भी

आसमें पाया जाता ह।ै

यह ईिेजक, वाजीकारक, यौनशकि बनाए रखने वाली, कामोिजेक, किदोष नाशक, अक्षेपहर, वातशलू शामक,

दीपक, पाचक, रुकचकर, माकसक धमय साफ लान ेवाली, गभायशय व योकन संकोचन, त्वचा का रंग ईज्ज्वल करन ेवाली,

रिशोधक, धात ु पौकष्टक, प्रदर और कनम्न रिचाप को ठीक करने वाली, कफ नाशक, मन को प्रसन्न करने वाली,

वातनाकङयों के कलए शामक, बल्य, वषृ्ट्य, मिूल, थतन में दगू्धवद्धयक, मकथतष्ट्क को बल दनेे वाली, रृदय और रि के कलए

कहतकारी, तथा खाद्य पदाथय और पेय को रंगीन और सगुकन्धत करने वाली होती ह ै । कुल कमलाकर केसर एक लेककन

आसके गणु हजार ।

—- कुमारी साक्षी

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मदुगलमदुगलमदुगल िगरी िगरी िगरी मदुगल नगरी कइ पहाकङयों से कघरा हुअ सकुवककसत नगर था । वतयमान में यह भारत के कबहार राज्य का प्रमखु केन्द्र

मुगंरे शहर एव ंकघला ह ै। मुगंरे कघले का प्रशासकनक मखु्यालय, कबहार राज्य, पवूोिर भारत, गगंा नदी पर कथथत ह ै। कहा

जाता ह ैकक मुगंरे की थथापना गपु्त शासकों ने चौथी शताब्दी में की थी । यहााँ एक कक़ला ह,ै कजसमें मकुथलम संत शाह मशु्क

नछा कजनकी मतृ्य ु1497 में हुइ थी, की मघार ह ै। 1793 में बंगाल के नवाब मीर क़ाकसम ने मुगंरे को ऄपनी राजधानी बना

कर यहााँ शस्त्रागार और कइ महलों का कनमायण करवाया । महाभारत में मुंगरे शहर को 'मोदाकगरर' कहा गया ह ै।

ककंवदन्ती के ऄनसुार मुगंरे की नींव डालने वाला चंद्र नामक राजा था । नगर के कनकर् सीताकुण्ड नामक थथान

ह।ैआस कंुड का नाम परुुषोत् तम राम की धमयपत् नी सीता के नाम पर रखा गया ह ै । कहा जाता ह ै कक जब राम सीता

को रावण के चंगलु से छुङाकर लाए थे तो ईनको ऄपनी को पकविता साकबत करने के कलए ऄकग्न परीक्षा दनेी पङी थी।

धमयशाथ िों के ऄनुसार ऄकग्न परीक्षा के बाद सीता माता ने कजस कंुड में थ नान ककया था यह वही कंुड ह ै। कहा जाता ह ै

कक सीता ऄपने दसूरे वनवास काल में ऄकग्न प्रवशे के कलए ईतरी थी । मुगंरे से 6 कक.मी. पवूय में कथथत सीता कंुड मुगंरे

अनेवाले पययर्कों के अकषयण का प्रमखु कें द्र ह ै। चंडी थथान भी प्राचीन थथल ह ै। एक ककंवदन्ती में मुगंरे का वाथतकवक

नाम मकुनगहृ भी बताया जाता ह ै । कहते हैं कक यहीं पहाङी पर मदुगल मकुन का कनवास थथान होने से ही यह

थथान मदुगल नगरी कहलाता था । कुछ कवद्रानों का मत ह ैकक मुगंरे का एक नाम कहरण्यपवयत भी ह,ै जो सातवीं शती या

ईसके कनकर्वतकी काल में प्रचकलत था ।

मुगंरे में मकुथलम बादशाहों ने भी काछी समय तक ऄपना मखु्य प्रशासन केन्द्र बनाया था कजसके फलथवरूप यहााँ पर

ईस समय के कइ ऄवशेष हैं । मगुलों के समय का एक कघला भी ईल्लेखनीय ह ै। यह गगंा के तर् पर बना ह ै। आसके ईिर

पकश्चम के कोन ेमें कष्टताररणी नामक गगंा घार् ह ै। जहााँ 10वीं शती का एक ऄकभलेख ह ै। कक़ले से अधा मील पर 'मान

पत्थर' ह,ै जो गगंा के ऄन्दर एक चट्टान ह ै। कहा जाता ह ैकक आस पर श्रीकृष्ट्ण के पदकचह्न बने हैं । कक़ले के पकश्चम की ओर

मलु्ला सइद का मकबरा ह ै। ये ऄशरछ नाम से छारसी में ककवता कलखते थे और औरंगघबे की पिुी जबेकुन्नसा के काव्य

गरुु भी थे । आनका मलू कनवास थथान कैकथपयन सागर के पास मजनदारन नामक थथान था । ऄकबर के समय

में र्ोडरमल न ेबंगाल के कवद्रोकहयों को दबाने के कलए ऄकभयान का मखु्य केन्द्र मुगंरे में बनाया था । शाहजहााँ के

पिु शाहशजुा ने ईिराकधकार यदु्ध के समय आस थथान में दो बार शरण ली थी ।

मुगंरे ककला का आकतहास बंगाल के नवाब मीर काकसम से जङुा हुअ ह ै। बंगाल पर जब ऄगं्रेजों ने अक्रमण ककया,

तो मीर काकसम ने मुंगरे में गंगा तर् पर ककला का कनमायण कराया और मुगंरे को ही ऄपनी राजधानी बनाया । ककला के बाहर

चारों तरफ से करीब 30 फीर् गहरा गढ्डा ह ै। आस गड्डे का कनमायण मीर काकसम ने ऄगं्रेजों के अक्रमण से बचने के कलए

कराया था ।

ककला पररसर में ही मीर काकसम का अवास था । मीर काकसम ने ककला पररसर में ही सरंुग का कनमायण भी कराया।

सरंुग का एक कसरा गगंा घार् पर कनकलता था कजससे नबाव मीर काकसम की बेगम और ऄन्य मकहलाए ंगगंा घार् तक

पहुचंती थी । वहीं, सरंुग का दसूरा कसरा पीर नफा पहाङ की ओर कनकलता था लेककन, सरंुग ऄब कमट्टी से भर गया ह।ै

ककला में तीन द्रार ह ैमखु्य द्रार, ईतरी और दकक्षणी द्रार । तीनों द्रार पर मीर काकसम के सैकनक तैनात रहते थ े। 1885 में यह

ककला हनेरी डेरोकजयों के कब्ज ेमें अ गया कजसका ईन्होंने जीणोद्धार भी कराया था और ईनके सहयोग से ककला द्रार पर

बङी घङी लगाइ गइ। — अवधेश हसंह

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व्यंग्य

योनयता ितेा बिि ेकी योनयता ितेा बिि ेकी योनयता ितेा बिि ेकी !!! ‚सर ! मरेा नाम रोशन ह ै। मैं अपके पास के गााँव रघनुाथपुर में रहता हूाँ । मरेे माता कपता ने मरेा नाम रोशन रखा ह,ै

ऄतः मैं ऄपना नाम रौशन करना चाहता हूाँ । मैं सर ! बी.ए. पास हूाँ। मझु ेऄपने दल में शाकमल कर लीकजए । मैं बहुत

इमानदार हूाँ, काफी महेनती हूाँ ,खबू अपका तथा समाज की सेवा करुाँ गा । कृपया मझु ेऄपने दल में शाकमल कर लीकजए

तथा रघनुाथपरु से मझु ेपार्की का कर्कर् द ेदीकजए । मैं ऄवश्य जीत जाउाँ गा, बस थोडी अपकी कृपा दृकष्ट चाकहए । मैंन े

अजतक कोइ ईल्र्ा सीधा कायय नहीं ककया ह ै , बहुत इमानदार हूाँ सर ! अप मझुपर एक बार भरोसा करके तो दकेखए

रोशन एक सरु में ही आतना कह डाला ।‛

‚नेता जी ने माथा खजुलाया, मदं मदं मसुकुराये तथा कहा ठीक ह ै। नेता बनने की योग्यता ह ैतमुमें तो आसकी परीक्षा

लेनी होगी तब तक तुम मरेे चंद सवालों का जबाब ही दो ।‛

‚रोशन यह सनुकर बाग बाग हो गया और कहा, सर पकूछए ।‛

‚ऄच्छा बतलाओ । ऄबतक तमु ककतनी हत्याएाँ कर चकेु हो ? सर यह क्या कह रह ेहैं ? रोशन तपाक से पछू बैठा ।

नेता जी ने कहा तकय -कवतकय मत करो । हााँ या ना में कसफय जवाब दो ।‛ रोशन ने कसफय कसर कहलाया ।‚ककतने बलात्कार कर

चकेु हो ? ककतनी बार जेल गये हो? ककतनी बार दगंा करवाये हो ? रोशन का माथा ठनका और माथा पकङ कर बैठ गया

और मन ही मन सोचने लगा क्या कलखा पची का कोइ दाम नहीं ? क्या सज्जनता, इमानदारी, परोपकाररता बस कदखाव ेके

कलए नेता लोग जनता के सामने बोलते हैं । रोशन को कनराश हताश दखे नेता जी प्रश्न का मॉडल थोङा हल्का कर दतेे हैं।

और घबराओ मत रोशन, तमु्हें ऄपना नाम रौशन करना ह ैतो नेता जी के कलए ली जा रही परीक्षा में कम से कम पास माकय

40% तो पा जाओ, कफर मैं तुम्हें ऄपने पार्की से कर्कर् भी दूाँगा और कजताकर मिंी भी बना दूगंा । यह सनुकर रोशन को

लगा कक नेता जी मझुसे मजाक कर रह ेथे । सो पनुः कहम्मत कर रोशन ने कहा सर ! पकूछए न ऄपना नेता बनने वाले प्रश्न ?

‚क्या थकूल कॉलेज में कभी छाि नेता बना था ?‛

नहीं

‚ऄब तक ककतनी बार मारपीर्, छाि अन्दोलन ककये हो ?‛

एक बार भी नहीं

‚ककतनी बार जले गए हो ?‛

कभी नहीं

‚ककतनी बार धरना प्रदशयन कर रेल रोके हो या सङक जाम ककये हो ?‛

कभी नहीं

‚ऄबतक ककतने लोगों का मडयर ककये हो ?‛

‚सर ! क्या कहते हैं ?‛

तब तो तमुमें नेता बनने का कोइ भी लक्षण नहीं ह।ै मझु ेऄफसोस हो रहा ह ै। रोशन, तुम जा सकते हो । सर ! एक

चान्स और दीकजए थोङा सीधा तथा सरल प्रश्न पकूछए ना सर ! मैं पास माकय ले अउाँ गा । ऄच्छा एक चांस दनेा ही होगा ।

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ठीक ह,ै रोशन तीसरी बार प्रश्न का सेर् बदल रहा हूाँ । यह ऄकंतम परीक्षा ह।ै समझ े? सोच समझकर जबाब दनेा । डरना

मत। मैं हूाँ न तेरे कलए ।

‚क्या तमु घकङयाली अाँस ूजनता के सामने बहा सकते हो ?‛

नहीं । ‚क्या तमु मानव के लाश पर चल सकते हो ?‛

नहीं । ‚क्या तमु धमायत्मा बनकर लोगों को ठग सकते हो ?‛

नहीं । ‚क्या मझु ेएक कंुवारी कन्या प्रकत रात लाकर द ेसकते हो ?‛

नहीं । ‚क्या तमु लोगों को वबेकुफ बनाकर ईसकी गाठी कमाइ को हङप सकते हो ?‛

नहीं । ‚क्या तमु ककसी का कत्ल,बलात्कार,ऄपहरण कर सकते हो ?‛

नहीं । क्या तमु अपस में दो भाइयों, समाज के दो धमय वालों को लङा सकते हो ?

नहीं । ‚क्या तमु कालाधन को सफेद धन बना सकते हो ?‛

नहीं । ‚क्या तमु ऄरबों खरबों रुपये के कोयला, कसमेंर्, बाल,ू लोहा, ऄलकतरा चारा अकद को डकार सकते

हो ?‛

नहीं । ‚क्या तमु जनता के सामने भीख मााँग सकते हो ?‛

नहीं । ‚तो तमु नेता नहीं बन सकते । नेता बनने के कलए सवय गणु सम्पन्न होना चाकहए । घबराओ मत, रोशन ! तमु

एक काम करो, चाय की दकुान चलाओ । हो सकता ह ैतेरी ककथमत भी चमके और तमु दशे का प्रधानमिंी बन जाओ ।

जाओ मरेी यही शभुकामना ह ै।‛

डॉक्र्र: मरीज सेः तमु कदन में ककतनी कसगरेर् कपते हो?

मरीजः जी 20

डॉक्र्रः दखेो ऄगर मझुसे आलाज कराना हो तो तमु्हें

कसगरेर् से परहजे करना होगा, एक काम करो , एक कनयम

बना लो, कसफय भोजन के बाद ही एक कसगरेर् कपयोग।े

मरीज ने डॉक्र्र की बात मानकर आलाज शरुू ककया।

कुछ ही महीने बाद मरीज का थवाथथ एकदम सधुर गया।

डॉक्र्रः दखेा मरेे बताये गए परहजे से तमु्हारा थवाथथ

ककतना सधुर गया।

मरीजः लेककन डॉक्र्र साहब कदन में 20 बार भोजन करना

भी तो कोइ सरल काम नहीं ह।ै

***

कववाकहत (ऄकववाकहत कमि से कहा) - कमि अपने ऄभी

तक शादी क्यों नहीं की? .

ऄकववाकहत (मथुकराते हुए) - जाको राख ेसाआयां, मार सके

ना कोय...

***

एक यवुती ने ऄपनी सहलेी की मतृ्यु का द:ुख व्यि करते

हुए ईसके पकत से कहा: ‘तीन महीने हो गए, मरेी सहलेी का

दहेांत हुए, पर मरेा कदल ऄब भी ककसी काम में नहीं लगता।

अप प्लीज ईसकी कोइ प्यारी वथत ु मझु े दें, मैं ऄपने

कलेज ेसे लगा कर रखूंगी।’

पकत: ‘ईसकी सबसे कप्रय वथतु तो मैं ही हू ं। ककहए तो मैं

अपके साथ चलूं ।’ — आहदश

जरा हंग्सए तो

चुटकुले

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आलेख

भारतीय संस्कृग्त की मग्हमाभारतीय संस्कृग्त की मग्हमाभारतीय संस्कृग्त की मग्हमा

ककसी दशे की संथकृकत वह सदुृच अधारकशला ह ैकजस पर वहां के लोगों का ज्ञान, कवश्वास, नैकतकता, रीकत-ररवाज

या ऄन्य क्षमताए ंतथा अदतें कनकमयत होती हैं । केवल मनषु्ट्य ही ऐसा प्राणी ह ैजो संथकृकत कनकमयत कर सकता ह ै। संथकृकत

का लक्ष्य ह ैकक लोकसंग्रह की मयायदा को सरुकक्षत रखा जाए तथा कनरंतर सवाांगीण प्रगकत की जाए ।

संथकृकत का अधार अतंररक ध्यान तथा एकाग्रता होना चाकहए न कक केवल भौकतकता । मनषु्ट्य कचंतनशील तथा

मननशील प्राणी ह ैतथा कवचारों तथा भाव का कनरीक्षण करके ईकचत कनणयय लेकर जीवन का लक्ष्य कनधायररत करके ईसको

ऄनथक पररश्रम द्रारा साकार रूप प्रदान कर सकता ह ै।

मनषु्ट्य का परम धमय तथा सवोपरर कतयव्य ह ै कक वह ऄपने कवचारों तथा भावनाओ ंको कनरंतर शदु्ध एव ंपररष्ट्कृत

करता रह ेएव ंऄपनी दृच आच्छा शकि तथा समपयण द्रारा कमय कुशलता से ईिरोिर प्रगकत के कीकतयमान थथाकपत करता जाए

जो ऄन्य व्यकियों के कलए प्रेरणा का स्रोत हो । ससंुथकृत होने के कलए प्रकतपल जागरूक रहकर कमयशील रहने की

अवश्यकता ह ै। संथकृकत कोइ वथत ुनहीं ह ैजो बाजार से खरीदी जा सके आसे घोर प्रयत्न से ऄकजयत करना पङता ह।ै

मनषु्ट्य परमात्मा का ऄशं ह ैपर ईसमें परमात्मा के कदव्य ज्ञान, गणु तथा शकियां सपु्तावथथा में पङे हैं । ऄपने मन को

ध्यान तथा एकाग्रता द्रारा परमात्मा का कचंतन करके कदव्यता को ग्रहण करना तथा प्रशकथत करना भारतीय संथकृत का

लक्ष्य रहा ह ै। आसी कारण भारतीय संथकृकत की जङें बहुत गहरी तथा कवथततृ हैं । भारतीय संथकृकत भगवता, अध्यात्म

तथा मानवता का अधार ह ैएव ंचेतना के कवकास द्रारा प्रेम, समरसता तथा मानवीय मलू्यों को संपणूय मान्यता प्रदान करती

ह ै। आसमें चररि तथा अतंररक गणुों पर कवशेष बल कदया गया ह ै। मनषु्ट्य के कमय तथा व्यवहार में कदव्य गणु पररलकक्षत होने

चाकहए ।

पश्चात्य संथकृकत भोग प्रधान ह,ै बङे खदे की बात ह ै कक वतयमान पररप्रेक्ष में भारतवासी भी आस भौकतकता प्रधान

सभ्यता की चंगलु में फस रह ेहैं कजसमें मानवीय मलू्यों का ह्रास हो रहा ह ै। संबंधों में कोइ प्रेम नहीं ह,ै प्रत्येक व्यकि थवाथय

का गलुाम होता जा रहा ह।ै आस कशक्षा का लक्ष्य केवल पैसा बनाना रह गया ह,ै भ्रष्टाचार का बोलबाला ह,ै गरीबी ऄमीरी

का ऄतंर काल बच गया ह,ै पयायवरण प्रदकूषत हो गया ह ैतथा प्रत्येक व्यकि कचंता तथा तनाव से ग्रथत हो गया ह ै।

वजै्ञाकनक ईन्नकत ने सकुवधाए ंप्रदान की ह ैककंत ुवाथतकवक सखु तथा प्रेम संबंध लपु्त हो गए हैं । मनषु्ट्य थवाथय ऄहकंार

तथा तचु्छ आच्छाओ ंका दास हो गया ह ै। ऐसी सोचनीय कथथकत में भारतीय संथकृकत की शरण में जाकर जीवन का ईत्थान

ककया जा सकता ह ैतथा मानवता को नवीन रूप प्रदान ककया जा सकता है, यही प्रत्येक व्यकि का सवोिम धमय तथा परम

कतयव्य होना चाकहए । आसके कलए भारतीय संथकृकत के कनम्नकलकखत तत्वों का सदा कचतंन तथा मनन ककया जाए एव ं

ईनको प्रयत्न के द्रारा अचरण में लाया जाए कजसके पररणाम थवरुप एक महान मिु क्रांकत द्रारा मानवता का कदव्य

रुपांतरण संभव ह ै।

अध्याकत्मक तथा कवज्ञान दोनों ही अनंदथवरूप प्रमात्मा की ही ऄकभव्यकियां हैं । हमें परमात्मा से यिु होकर

अतंररक तथा वाह्य दोनों पक्षों में प्रगकत करनी होगी । ऄहकंार, थवाथय मन की नकारात्मक वकृियां हमें छू भी न पाए ं ।

परमकपता परमात्मा से प्राथयना ह ै कक वह हम ेसदु्बकद्ध, शकि तथा ज्ञान दें ताकक हम कदव्यता को ऄकजयत करें तथा ईसका

कवथतार करें ।

— यमुना प्रसाद राय

कहवताए ं

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कहवताए ं

हवाई प्यारहवाई प्यारहवाई प्यार

हफ़्तों ईनसे कमले हो गए हमें

कबछुङन में हम ढीले हो गए

ईनके जङूों की उाँ चाइयााँ छूने

कइ मकंजलें के फासले हो गये

रसोइए से प्यार ईनका हुअ

कजदंगी में हमारे कमठास कम हो गये

अज ईनकी शादी हुइ, कल तलाक

जाने क्या गजब वाककये हो गए

माशकू की यादों के उाँ चे महल

जाने क्यूं हवा- हवाइ हो गए

हाकशये को छोङ छपी जब खबर

दरू सारे हमारे कशकव ेहो गए

—चंद्रकांत

वीर गाथा जो शीश ऄपना दकेर, शीश उपर कर गये ,

मााँ भारती के अन पर जीवन बकलदान कर गये।

द ेके जान भी फर्ने न दी मााँ की चनुररया,

वीरता के आकतहास की गच रह ेहम कहाकनयााँ ॥

छााँव हो या धपू हो या कफर बरसात हो,

शरद ्की चााँदनी या हमेतं की सौगात हो।

बााँधे कफन चल पङे हम तोङ दी सब बेकडऺयां,

वीरता के आकतहास की गच रह ेहम कहाकनयााँ॥

द ेगये हमें कनशानी प्यार की दलुार की,

बहनों की राकखयां, मां के कवश्वास की।

त्याग ऄपना घर द्रार बच चले सीमा को

वीरता के आकतहास की गच रह ेहम कहाकनयााँ॥

— अहभनव हसंह

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राजभाषा पखवाडा –2016 के दौरान आयोहजत पूवष रेलवे हहन्दी उच्च हवद्यालय

साहेबगंज में आशुभाषण प्रहतयोहगता के कुछ दृष्य

मालदा मडंल द्वारा स्वच्छता के संबंध में जागरुकता फैलाने के हलए हवहभन्न रेलवे

स्टेशनों पर हकए गए सफाई कायषक्रम के कुछ दृष्य