जल चेतना - csmrscsmrs.gov.in/writereaddata/publication/boond_bookletf1.pdfपर...

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जल चेतना .... समय की प कार कीय म दा एवं सामी अन संधानशाला, जल संसाधन मंालय, हौज़ खास, नई ददली -16 रभाष : 011-26563140-43, फैस : 011-26853108 वेब साइट : www.csmrs.gov.in

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  • जल चेतना .... समय की पुकार

    कें द्रीय मदृा एवं सामग्री अनुसंधानशाला,

    जल संसाधन मंत्रालय, हौज़ खास, नई ददल्ली -16

    दरूभाष : 011-26563140-43, फैक्स : 011-26853108 वेब साइट : www.csmrs.gov.in

  • आमुख

    मुरारी रत्नम

    ननदेशक

    कें द्रीय मृदा एवं सामग्री अनुसंधानशाला

    जैसा नक आपको नवनदत है नक जल की मात्रा ननरंतर संकुनित होने के कारण भारत सरकार ने वर्ष

    2013 को जल संियन की महत्ता उजागर करने हेतु 'जल संियन वर्ष' घोनर्त नकया है। मुझे यह अवनदत

    कराते हुए ख़ुशी है नक कें द्रीय मृदा एवं सामग्री अनुसन्धानशाला ने अग्रसर हो अलग अलग माध्यमों द्वारा

    इस सन्देश को देश के कोने कोने में पहुिाने के प्रयास नकये हैं। इसी संदभष में यह पुनततका भी हर एक

    आयु वगष के लोगो में जल संियन जाग्रनत उनदत करने का एक प्रयास है । इस पनत्रका में जल संियन के

    नवनभन्न पहलुओ ं पर नवततार से प्रकाश डाला गया है। इस अनुसन्धानशाला के अनधकारीयों तथा

    कमषिाररयों ने लेखों, कनवताओ,ं व्यंग्य-नित्रों तथा छायानित्रों के माध्यम से 'जल संियन महत्ता' हेतु

    अपने नविार प्रभावी रूप में प्रततुत नकये है। आशा है नक हमारा यह प्रयास जल उपलनधध संकट की इस

    कनिन पररनततनथ में एक क्ांनत लाने में सहल होगा। ोंयोंनक हमारे इस प्रयास की सहलता आप स

    नजम्मेवार नागररकों की सहभानगता पर ननभषर करती है, मैं सभी नागररकों से प्राथषना करता ह ूँ नक इस

    पुनततका के सन्देश को ध्यानपूवषक पढें और न नसहष तवयं पर लागू करें अनपतु इस सन्देश को देश के कोने

    कोने में पहुिाने में अग्रसर हो अपना योगदान दें । आने वाली पीनढयों इस प्रयास की सहलता पर

    आपकी अहसानमंद रहेंगी ।

    मैं इस पुनततका में छपे हर लेख, कनवता, व्यंग्य-नित्र तथा छायानित्र के योगदाता के प्रयास की सराहना

    करता ह ूँ । इस पुनततका की रिना हेतु नोडल अनधकारी, मीनडया सनमनत तथा उसके अन्य सदतयों द्वारा

    नकये गए नदशात्मक और अथक प्रयासों की नवशेर् रूप से सराहना करता ह ूँ नजसके हलतवरूप यह

    कायष प्रभावी रूप में संपन्न हो सका ।

    आओ स नमल कर जल संियन आन्दोलन में ढ िढ कर सहयोग करें और इसे सहल नायें ।

    “जय नहन्द”

  • आभार

    मैं इस पुनततका को प्रकानशत करने के प्रयास में ननदेशक महोदय द्वारा नकए गए मागषदशषन और ननरंतर

    उत्साहवधषन के नलए उनका आभारी ह ूँ । तत्पश्चात मैं वैज्ञाननक 'ई' (कंक्ीट), सपंादन दल के सभी सदतयों,

    इस अनुसंधानशाला के सभी अनधकाररयों तथा कमषिाररयों का नजन्होंने लेखों, कनवताओ,ं व्यंग्य-नित्रों तथा

    छायानित्रों के माध्यम से 'जल संियन महत्ता' हेतु अपने नविार प्रभावी रूप में प्रततुत नकये है उनके प्रनत भी

    आभार प्रकट करता ह ूँ । आशा है नक हमारा यह प्रयास 'जल संियन क्ांनत’ लाने में सहल होगा । आओ स

    नमल कर जल संियन आन्दोलन में ढ िढ कर सहयोग करें और इसे सहल नायें ।

    इस पुनततका के संपादन मे अपने सामर्थयष अनुसार पूरा ध्यान रखा गया है नहर भी अगर कोई त्रुनट रह गई हो

    तो उसके नलए संपादन दल क्षमाप्राथी है ।

    “जय नहन्द”

    पंकज शमाष

    मुख्य संपादक

  • संपादन दल

    पंकज शमाष, मुख्य संपादक

    संदीप धनोते, सहायक संपादक

    राजीव गुप्ता, सहायक संपादक

    डॉ॰ ीरेन्द्र प्रताप, सदतय

    डॉ॰ समीर व्यास, सदतय

    देवेन्द्र नसंह, सदतय

    योगदाता

    1 अतुल्य जल मनीर् गुप्ता

    2 सनुो मेरी पुकार पंकज शमाष

    3 आनखर ोंयों ? देवेन्द्र नसहं

    4 ूँटवारा सदंीप धनोते

    5 नवनाश काले नवपरीत नुि राजीव गुप्ता

    6 अनमोल धरोहर ीना आनंद

    7 मैंने नकया तुम्हारा पोर्ण तुमने नकया मेरा शोर्ण- जल अननल रुततगी

    8 जल की ित ही इसकी उपज नृपेन्द्र कुमार

    9 पृर्थवी पर जल का नवतरण नीतू नसहं

    10 कुछ करो राज कुमार प्रसाद

    11 अनाधृकृत कोलोननयों मे जल सरंक्षण एक आवश्यकता राम प्रसाद कुमावत,

    महा ीर दीनक्षत

    12 अखां तों अंजू रूढ गए गुलशन कुमार नवज

    13 जीवनामृत एस एन शमाष

    14 जल की एक ूंद और माूँ का दूध – समतुल्य राजीव भारती

    15 जल सरुक्षण आर॰ नित्रा, अिषना नवनी

    16 कुछ कही कुछ अनकही वीरेंद्र नसहं

    17 कीमत जल की समझे आर॰ पी॰ पािक

    18 हाथ ढाओ े ी कुमारी

    19 व्यथष न हाएूँ समीर व्यास

    20 आवश्यकता आनवष्कार की जननी सोहल लाल गुप्ता

    21 जल सरंक्षण – नवीन दृनिकोण नीलकंि माहुरे

    22 कल था आज ह ूँ कल ----? जल पंकज शमाष

    23 राष्रीय ततर पर हमारे कुछ प्रयास नशवानी िौहान

    24 राष्रीय राजधानी के्षत्र मे हमारे कुछ प्रयास रेवर्थही कृष्णामिारी

    25 दो ूंद पानी ीना आनंद

  • झरनों की नकलकाररयां ादलों की घनघोर घटा मोनहनी इन्द्रधनुर्ी छटा

    अगर मेरा यही तवरुप सदैव देखना िाहते हो तो,

    जल संरक्षण अनभयान का नहतसा नो ।

    अतुल्य जल

    डा० मनीर् गुप्ता

    वैज्ञाननक ‘डी’

    कभी सोिा है नक अपने आि भाई हनों में

    मै ही अनद्वतीय और आलौनकक ोंयों ह ूँ ?

    खू सूरत नहमखंड हाव की करतल ध्वनन

    ोंयोंनक मेरे पास है अतुल्य जल

    1 22

  • मै जल ह ूँ, ये है मेरी दुखद कहानी कल तक पूजनीय था आज मैं नतरतकृत ह ूँ

    ‘ऐ इसंान सुन मेरी पुकार’

    नहीं िाहता नहर से मै पूजा जाना ।

    िाहता ह ूँ मै स तुझे ये समझाना ।।

    काम आ सकूूँ मै तेरे कैसे भी ।

    तवछ तवरूप दे मुझे जैसे भी ।।

    अगर करेगा सुसंियन तू मेरा ।

    आनेवाली पीढी करेगी गुणगान तेरा ।।

    सुनो मेरी पुकार

    पंकज शमाष

    वैज्ञाननक 'सी' एवं

    नोडल अनधकारी (मीनडया सेल)

    मेरा इतना भी शोर्ण न

    करो नक आूँख के आूँसू

    भी टपकने से डरने लगें

    प्रदूर्ण, अननयनमत उपयोग, व्यथषता

    2

  • ‘तवाथी आदमी स कुछ भूल

    कर प्रकृनत के नैसनगक सन्तुलन को

    न गाड़ने पर तुला हुआ है। दुभाषग्यवश मनुष्य

    जल आपूनतष के साधन खुद ही न्द कर ैिा है। यनद

    हम ऐसे ही लापरवाह रहे तो भनवष्य में कैसी यावह नतथनत

    होगी कभी सोिा है? जहाूँ एक तरह जनसूँख्या नवतहोटक हो रही

    है, वही ूँ दूसरी ओर जल स्रोत्र सूख रहे हैं।

    रेखा-नित्र 1: भूत और भनवष्य मे प्रनत व्यनि जल उप्लभ्धता एवं जनसंख्या

    ननश्चय ही `जल संरक्षण´ आज के समाज की सवोपरर निन्ता है । जल संरक्षण हेतु जन जागरण

    अनभयान िलाने की आवश्यकता है ।

    जल संरक्षण कीनजए, ये है जीवन का आधार ।

    जल अगर न रहा, सारे जग में होगी हाहाकार ।।

    देवेन्द्र नसंह

    प्रयोगशाला सहायक

    Devender

    आनखर ोंयों

    ?

    3

  • ंटवारा

    पानी की एक ूंद का ज ंटवारा नकया गया,

    कतार मे स से आगे समुद्र पाया गया ।

    इन्हे भी आजमाइए

    पानी के नगलास छोटे साइज़ के खरीदें और उन्हे ऊपर तक भरने की आदत से ाज

    आएूँ ।

    रोजाना सु ह उिकर ‘ ासी’ पानी व्यथष न हाएूँ, दाल, सधजी, दूध आनद की तरह

    पानी एक नदन मे खरा नहीं होता है ।

    लेनरन मे फ्लश िलाकर पानी व्यथष ना हाएूँ, उसके नलए कपडे़ धोने के ाद िा

    हुआ पानी उपयोग करें ।

    प्रण करें नक एक ार नहाने मे 15 लीटर से अनधक पानी का प्रयोग नहीं करेंगे ।

    संदीप धनोते

    वैज्ञाननक ‘ ी’

    4

  • राजीव गुप्ता

    वैज्ञाननक ' ी' 5

  • रोक लो अंजुरी में नक जीवन ह न जाये ।

    ऐसा न हो नक पानी स आूँख में अटका रह जाये ।।

    सौगात जो नमली है उसे धरोहर ही समझना ।

    देने लगें भनवष्य को तो कहीं हाथ खाली न रह जाये ।।

    अनमोल

    धरोहर

    ीना आनंद

    वैज्ञाननक ' ी’

    6

  • “मैने नकया तुम्हारा पोर्ण

    तुमने नकया मेरा शोर्ण”, जल

    अननल रुततगी

    सहायक अनुसंधान अनधकारी

    7

  • “रनहमन पानी रानखए, न न पानी स सून,

    पानी गए न उ रे, मोती, मानूस, िून “।

    जल परमब्रह्म है, ये सनृि का आधार है। जन्म घुट्टी से जीवंत ।

    गंगाजल की दो ूूँद तक जल ही जीवन लीला को िलाता है। जरा सा

    सूखा पड़ते ही देवताओ ंकी ततुनत में अनायास ही कहीं

    ‘अल् लाह मेघ दे पानी दे, पानी दे गुड़ धानी दे'

    और कहीं

    "रध ा रध ा मीह रसा साडी कोिी दाने पा"

    के तवर गूूँज उिते है । पृर्थवी का दो-नतहाई नहत सा जलानतछत है, नहर भी मानव जल के नलए त्रत त है।

    जल-संरक्षण और इसके उपयोग का शाश् वत िक् हमारे जीवन को िलाता है। जल, उपभोग की वत तु

    नहीं, दोहन की वत तु नहीं, जल की ित ही इसकी उपज है। अ भी समय है, संभल जाए ंअन्यथा

    पानी की एक-एक ूंद को तरसना होगा। जल संरक्षण के नलए हमें भोगवादी जीवनशैली को दलना

    होगा। खान-पान और जीवन-शैली में दलाव वों त की मांग है।

    जल िाने का आन्दोलन िलाना होगा।

    आओ स नमल कर जीवनदानयनी जल की हर ूूँद को िाने का प्रण करें।

    नृपेन्द्र कुमार

    वैज्ञाननक ’ ई ‘ एवं प्रमुख (आर॰एस॰ डी॰समूह )

    जल की ित ही

    इसकी उपज

    8

  • पृर्थवी की सतह पर 71 प्रनतशत जल हैं ।

    महासागरों में पृर्थवी के पानी का 96.5 प्रनतशत हैं ।

    संयुि राष्र के अनुमानों के अनुसार पृर्थवी पर जल की कुल मात्रा लगभग 1400 नमनलयन घन नकलोमीटर है तथानप जल की इस नवशाल मात्रा में तवतछ जल

    का अनुपात हुत कम है ।

    पृर्थवी पर उपलधध समग्र जल में से लगभग 2.7 प्रनतशत जल तवतछ है नजसमें से लगभग 75.2 प्रनतशत जल धु्रवीय के्षत्रों में जमा रहता है और 22.6 प्रनतशत भूजल

    के रूप में नवद्यमान है। शेर् जल झीलों, ननदयों, वायुमण्डल, नमी, मृदा और वनतपनत में

    मौजूद है ।

    पृर्थवी पर जल का नवतरण

    डॉ० नीतू नसंह

    प्रयोगशाला सहायक

    9

  • कुछ करो

    पानी ‘जीवन का पालना’ है।

    धरती पर जीवन और पानी का ड़ा

    नजदीकी ररश्ता है। भोजन पकाने, पीने

    शरीर की साह-सहाई से ले कर कपडे़ धोने तक

    के नलए पानी का इततेमाल होता है। एक शहरी आदमी

    औसतन प्रनतनदन 100 से लेकर 500 लीटर पानी नवनभन्न

    कामों में खिष करता है। पानी की समतया गंभीर होती जा रही है।

    मानव पानी को प्रकृनत से लेने के नलए ाध्य है। नवशेर्ज्ञों की िेतावनी

    तथा प्रकृनत के संकेतों के ाद भी भू जल दोहन से ाज नहीं आता है। जल

    संरक्षण से ही हम पानी की कमी को दूर कर सकते हैं। जल संरक्षण का अथष है जल के

    प्रयोग को घटाना एवं सहाई, ननमाषण एवं कृनर् आनद के नलए अवनशि जल का पुनःिक्ण

    करना। जल संरक्षण अपने पीने के पानी की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद करता है|

    जल सरंक्षण के कुछ आसान उपाय

    जल को ररसाव से िाए ं।

    पानी की असीनमत आपूनतष वाले के्षत्रों में पानी का उपयोग सीनमत करें।

    मीनडया माध्यम से पानी के संरक्षण को ढावा दें।

    अवनशि जल का पुनःिक्ण करना जैसे हें कें जाने वाले पानी का ागवानी और सहाई के नलए उपयोग करें, कार या गाडी धोते समय नाली के जाय पोछे का उपयोग करना ेहतर

    होगा।

    नसंिाई के नलए ररिाजष गड्ढे नाना िानहए, जो वर्ाष का पानी एवं हा हुआ पानी इकट्ठा करते हैं ।

    जल ही जीवन है, इसे व्यथष न गवायें ।।

    राजकुमार प्रसाद

    सहायक अनुसंधान अनधकारी

    10

  • अनानधकृत कॉलोननयों में शुि पेय जल जैसी मूल सुनवधाओ ं का अभाव है। इन कॉलोननयों मे पीने का पानी टेंकरो द्वारा उपलधध

    कराया जाता है । िंूनक यह पानी सीनमत मात्रा मे ही उपलधध कराया

    जाता है इसनलए अन्य कायों जैसे नहाने, कपडे़ एवं तषन धोने तथा साह

    सहाई हेतु लोग भूनमगत जल का सहारा लेते है । एक पररवार अपनी जरूरत का

    करी 80 प्रनतशत पानी भूनमगत श्रोत से लेता है। पनश्चमी नदल्ली के कई इलाकों में

    भू जल ततर जहां 1985 में मात्र 8 मीटर पर था अ वंही यह 50 मीटर की गहराई

    तक पहुूँि गया है । यही नतथनत रही तो वर्ष 2020 में भू जल ततर 80-100 मीटर की

    गहराई तक िला जाएगा । हो सकता है नक इस सदी के अंत तक प्रकृनत का यह अमूल्य उपहार

    आदमी की पहुूँि से हुत दूर िला जाए और उसका और दोहन असंभव हो जाए । ऐसे में नवकास की

    और अग्रसर हमारा समाज आपसी झगड़ों एवं वैमनतय में उलझकर रसातल में िला जाएगा।

    अनानधकृत कॉलोननयों में भूजल के तेजी से नगरने के ननम्न कारण प्रमुख है

    तेजी से ढती जनसखं्या

    नननमषत के्षत्र में वृनि

    सड़कों एवं सीवरों का नना

    ननमाषण गनतनवनधयां

    जल साक्षरता का अभाव

    अनानधकृत कॉलोननयों में नगरते भूजल ततर को रोकने एवं जल संरक्षण के उपाय

    वर्ाष जल का संियन एवं भूनम में पुनभषरण

    जल साक्षरता

    कानून एवं दडंात्मक कारवाई

    अनानधकृत कॉलोननयों

    में जल संरक्षण :

    एक आवश्यकता

    राम प्रसाद कुमावत, अनुसंधान सहायक

    महा ीर दीनक्षत, वैज्ञाननक ‘डी’

    11

  • पानी नवि रुढदा गंद वेख के अखां तों अंजू रूढ गए

    पानी र ाद करन दे ढंग नु वेख के

    अखां तों अंजू रूढ गए

    सड़ी धुप नवि जलदी मरू ते नंगे पांव

    सर ते मटकी मीलॉ जांदी नार नु वेख के

    अखां तों अंजू रूढ गए

    हजूल खिाष, रोढा ते कीता गन्दा,

    इसंान दी कमली हरकतां नु वेख के

    अखां तों अंजू रूढ गए

    नौ त हुण ऐ है अंजू वी रुढने थम गयॆ

    पानी दी कमी नवि अंजू इकट्ठा करन दी होढ वेख के

    अखां नवि अंजू खड़ गए, अखां नवि अंजू खड़ गए, अखां नवि अंजू खड़ गए ।

    अखां तों

    अंजू रूढ गए

    गुलशन कुमार नवज

    वैज्ञाननक’डी’

    12

  • पृर्थवी को सनृि का अतुल्य ग्रह नाया नकसने ? कौन है वो जीवन का ीज पनपाया नजसने ।

    मेरे कोमल सानन्नध्य में पनपी हर सभ्यता,

    िपन से यौवन तक परवान िढी मानवता ।

    अलौनकक पवषतमालाओ ंमें ीता मेरा प्यारा िपन,

    मैदानी वक्षतथली में आननन्दत हुआ मेरा यौवन ।

    वृिावतथा मेरी सागर नकनारा, हो जाऊूँ गा इसमें नवलीन,

    पर संतुि ह ूँ, सेवाथष ीती मेरे जीवन की ये अवतथायें तीन ।

    पानी रे पानी तेरा रंग कैसा,

    नजसमें नमला दो लगे उस जैसा ।

    करता सेवा स की तू जानत-पानत का न भेद नदखाता,

    जल ही जीवन है' भनवष्य मे नेगी मानव की भाग्यनवधाता ।

    जीवनामृत

    डॉ॰एस॰ एन॰ शमाष

    वैज्ञाननक’ ी’

    13

  • जल है तो जीवन है माूँ के दूध के तरह अनमोल है

    माूँ का दूध अमूल्य है तो जल ोंया कुछ कम है

    जल की जीवन में अननवायषता का अनुमान तो लगाओ, ज कंि सूख रहा हो

    पानी की एक ूंद को तरस रहा हो, एक ूंद पानी के अनुभव का अनुमान तो लगाओ

    जीवन अनमोल है तो पानी ेमोल है, अ तो पनहिानें अनमोल जल का मोल

    पानी िाओ, जीवन िाओ

    जल की एक ंूद और माूँ

    का दूध - समतुल्य

    राजीव कुमार भारती

    वैज्ञाननक’ ी’

    14

  • पडा ज पहला कदम ।

    मनुज का सनुद्र धरा पर ।।

    नमल गया स ंल सरुनक्षत ।

    प्राण नकर जल सधुाकर ।।

    जल सहारा अनन् का है।

    जल ननयनता है ननयनत का ।।

    जल सभी की जीनवका है ।

    जल अनुग्रह है प्रगनत का ।।

    जल नाता है सघन वन ।

    जल सजाता ाग़ उपवन ।।

    पयाषय है यह सव्िछ्ता का ।

    ननतय् पावन सने्ह ंधन ।।

    ाूँध जल से हम नाते ।

    और वन न जली सहुाते ।।

    रार्र् का ननमाषण कर ।

    धनधानय् से पररपूणष करते ।।

    जगत में ज तमस का साम्राजय् था ।

    त नदखी जल सनृि में ही भूनम पावना ।।

    पंि भूतों में महतत्म ,जल पुरातन ।

    जल सधुासम ,है सनातन ।।

    जल ही जगत आधार है।

    जल ही समुंगल नदवय् तपषण ।।

    अतएव तन-मन से समपषण।

    तुम करो जल का सरुक्षण।।

    तुम करो जल का सरुक्षण।। तुम करो जल का सरुक्षण।।

    डॉ .आर .नित्रा, वैज्ञाननक ‘ ई’ एवं प्रमुख (मृदा समूह)

    अिषना नवनी, प्रयोगशाला सहायक

    जल सुरक्षण

    15

  • 16

    कुछ कही

    कुछ अनकही

    संकलनकताष: नवरेन्द्र नसंह

    आहरण एवं नवतरण अनधकारी

  • हर ूंद है इसकी अनमोल

    खुद समझें औरों को समझाए ं

    इसे यंू न व्यथष गंवाओ

    आओ स नमल इसे हम िाए ं

    जल जीवन का है आधार

    जल संरक्षण पर करो नविार ।

    तवतछ जल को अपनाओ

    ीमारी को दूर भगाओ ।

    सतिी प्रगनत का है सार जल

    जनजीवन का है आधार जल ।

    पानी प्रकृनत द्वारा नदया गया उपहार है लेनकन प्रकृनत की भी अपनी सीमाये है।

    डे़ शहरों में डे़- डे़ अपाटषमेंटों से भरे कंक्ीट के इन जंगलों में जल-संरक्षण के नलए यनद वर्ाष

    के जल का संरक्षण नकया जाय तो भू-जलततर ढाने में इसका उपयोग जल प्र ंधन के

    नलए एक मील का पत्थर सान त हो सकता

    कीमत जल की समझें

    डॉ० आर॰पी॰ पािक

    वैज्ञाननक ' ी’

    17

  • हाथ ढाऒ

    े ी कुमारी

    प्रयोगशाला पररिर

    18

  • जल जीवन का है आधार,

    इसी से िलता है संसार,

    ऑोंसीजन और हाईड्रोजन का,

    इसमें संनित है भण्डार.

    जल प्रकृनत का है उपहार,

    इससे धरती का है श्रृंगार,

    जीव जंतु व पशु पक्षी,

    ये स का है पालनहार.

    जल नवनध के नवधान का है अस्त्र,

    इसकी कमी से दुननया त्रतत,

    आओ नमल कर इसे िाएूँ,

    इस दुननया मे रंग न खराएूँ॰

    व्यथष ना हाए-ं

    डा० समीर व्यास

    सहायक अनुसंधान अनधकारी

    19

  • समुद्री सतह पर वर्ाष जल संियन -

    तटवतीय इलाकों में तवतछ जल संियन का एक कारगर उपाय

    सूखा अ अतीत की ात न जायेगी - िोस वर्ाष जलाशय एक नवीन सोि

    िोस वर्ाष सामग्री से सूखाग्रतत इलाकों में भी अ हररयाली संभव

    आवश्यकता

    आनवष्कार की जननी ह ै

    आज का तवप्न

    कल की वाततनवकता

    सोहन लाल गुप्ता

    वैज्ञाननक ’ ई ‘ एवं प्रमुख (कंक्ीट समूह)

    )

    20

  • छोटे जलाशयों मे वाष्पीकरण गनत मंद करना

    जल संरक्षण हेतु एक कारगर उपाय है

    जलाशय के िारों जलाशय को गहरा जलाशय की सतह ओर पेड़ लगा कर नाना पर उसके मुहाने कृनत्रम रूप से ढक कर हवा की गनत मंद कर को छोटा रख कर

    कें द्रीय मृदा एवं सामग्री अनुसंधानशाला द्वारा नकये गए कुछ परीक्षण पररणाम

    क्मांक जलाशय

    ओसतन जल

    हलाव

    के्षत्रहल

    (हेोंटेयर).

    अनुप्रयोग नवनध

    प्रनतशत

    वाष्पीकरण

    मंदता

    1. टकल, हररयाणा

    50.59

    तारपीन तेल में

    रसायन घोल

    37.8

    2. मीर आलम, आन्ध्र

    145.69

    —do—

    41.3

    3. तख्त सागर, राजतथान

    43.31

    जल में रसायन

    इमल्शन

    48.2

    जल संरक्षण नवीन दृनिकोण

    जल संरक्षण हेतु तीन ‘पी’ नसिान्त

    का अनुसरण अनत आवश्यक

    जलाशय की सतह पर खास

    नकतम के रसायन की

    मोनोलेयर हैला कर

    नीलकंि माहुरे

    वैज्ञाननक 'डी'

    21

  • “कल था, आज ह ूँ ,

    कल-----?" जल

    पड़ा था नशखरों पर ना ननश्चल नहमखंड, गभाषशय मेरा ऊंिी पवषत श्रृखंलायें हाषनी ।

    लखाता इिलाता लहराता ननकल पड़ा ह ूँ,

    सरूज की मनोरम नकरणों ने नाया मुझे पानी ।

    मेरी जीवन की हर अवतथा में, मानव- दला तूने मेरा तवरूप,

    नजसने जैसा पहिाना मेरा सभंाव्य, ढाला मुझे उसके अनुरूप।

    हुउदे्दशीय पररयोजनाओ ंमें धं कर मैने जगाई उन्ननत की आस

    कहीं पनन जली, कहीं नसिंाई, करवाया मैंने िह ूँमुखी नवकास

    ननतवाथष सेवाथष , करता रहा न्यौछावर मैं अपना अनततत्व,

    नकया तूने मेरा शोर्ण नहीं जाना मेरा महत्व।

    पूछ उनसे जो हर-दम करते रेतीले मैदानों में मुझको तलाश,

    िाह में मेरी भटकते प्यासे पर मृगतृष्णा करती हताश

    खुश था मैं नपछली सदी तक, अलंकृत था मैं जैसे देवता,

    आज हैरान ह ूँ, परेशान ह ूँ, सोि कर होगा ोंया मेरा अन्तत:

    ढता प्रदूर्ण एवं भौगोनलक उनष्मता मिा रहे तांडव और उत्पात

    नपघलते नहमखंड, नग्न होती हाषनी नशखरें, हो रहा जल स्त्रोतों का गभषपात

    पहले ाढ, नहर सखूा, प्रिण्ड होता ये अनभशप्त काल दानव

    नमट जायेगा तेरा अनततत्व अन्यथा सधुार तवय ंको, हे मानव

    मैं सींिता रहा, धरा धमननयों में ह सनु्धरा का शरीर

    जाग, मत न ुनिहीन, ननकल जायेगा सांप, पीटता रह जायेगा लकीर

    सभंल होश में आ, तव तवाथष में आ, न कर सवषतव तवाहा

    नहीं करेगी माह तुझे आने वाली पीन ढयां, लगेगी तुझे उनकी आह

    इससे पहले नि हो जाय परमात्मा की सनृि, हानन हो अथाह

    हे मानव ! भनवष्य के गभष में नछपी देख अपनी दुदषशा, मान ये सलाह

    कर भूनमगत जल सरंक्षण, जल सम्पदा प्र न्धन और वर्ाष जल सिंयन

    न कर नवलम् अन्यथा हो जायेगा धरा से समतत जीवन का उन्मूलन।

    पंकज शमाष

    वैज्ञाननक 'सी'

    एवं नोडल अनधकारी (मीनडया सेल)

    22

  • राष्रीय ततर पर

    हमारे कुछ प्रयास

    नशवानी िौहान

    आशुनलनपक

    नोंवज़ प्रनतयोनगता, पेंनटंग प्रनतयोनगता, जल संरक्षण दौड़ तथा

    संपे्रर्ण नतकल प्रनतयोनगता का आयोजन

    पूवोत्तर राज्य मेघालय में

    गारो नहल के तुरा नजला तथा जनन्टया नहल

    के ोंलाररहत्त नजला में के॰मृ॰सा॰अ॰शाला

    द्वारा आयोनजत जल सरंक्षण कायषक्म

    की कुछ झलनकयां

    23

  • राष्रीय राजधानी के्षत्र

    में हमारे कुछ

    प्रयास

    रेवर्थही कृष्णामिारी

    वैयनिक सहायक

    राष्रीय राजधानी के्षत्र में जल संरक्षण पर

    के॰मृ॰सा॰अ॰शाला द्वारा आयोनजत जल संरक्षण

    कायषक्मों की कुछ झलनकयां

    24

  • दो बूूँद पानी की है ये कहानी सुनी तो सबने है , पर ककसने है मानी

    मरुस्थल की तपती रेतों में, मीलों मीलों तक चलकर इक थार की नार जब लाती है इक गगरी भरकर

    यही है वो पानी बहा देते हैं जजसे हम इतने ननममम बनकर

    वो अमतृ -सा जल , या जल - सा अमतृ, पानी में झाकंती वो सलोनी सूरत रखती है सहेज उसे उतने ही जतन से, लाई सींचकर जजतने खनू -पसीने औ श्रम से

    उसकी तो ससमटी है बस इसी में जजदंगानी, दो बूूँद पानी की है ये कहानी

    यही अलभ्य हो जय सुलभ जब, तब कीमत की करें क्या बात जजतना जजसका जी चाहेगा, उतना ही करें बबामद जल की गुद्वात्ता का भी नहीं ककसी को रहा ध्यान जल संचय और जल संरक्षण, नही ंककसी का रहा मान

    जल से ससचंचत इस धरती को जल से ही असभससचंचत रहने दो रोक सको तो रोक लो यारो तीसरे जल महा ववश्व यदु्ध को बात सुने कोई न सुने पर कफर भी दोहराती है दीवानी

    दो बूूँद पानी की है ये कहानी, दो बूूँद पानी की है ये कहानी

    वक्त की बहती धार को समझो, धरती की आवाज़ को समझो आज अगर हम नहीं जगे तो, न जाने कैसी कल सुबह होगी पानी बबना ये कैसा जीवन, कैसी धरती, कफजा क्या होगी आने वाले कल की खानतर चलो प्रण इक आज उठायें

    प्रहरी बन पयामवरण के अपनी संुदर धरा बचाए ं जनजीवन खानतर आओ दनुनया को हम दें ये सन्देश

    जल संचय और जल संरक्षण ही है इस जीवन का असभषेक

    बीना आनदं

    दो बूूँद पानी

    बीना आनदं वजै्ञाननक 'बी’

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  • आओ चलो सब बढ़ाओ हाथ प्रण करें सब समल कर साथ जल में है अनमोल शजक्त

    आओ करें सब समल कर जल भजक्त

    कें द्रीय मदृा एवं सामग्री अनुसंधानशाला, जल संसाधन मंत्रालय,

    हौज़ खास, नई ददल्ली -16

    दरूभाष : 011-26563140-43, फैक्स : 011-26853108 वेब साइट : www.csmrs.gov.in