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पे्रमचंद

नब़ी का नीति�-तिनर्वााह : 3मंदि�र और मस्जि��� : 17प्रेम-सूत्र : 30�ांगेर्वााले की बड़ : 48

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नबी का नीति -तिनर्वाा�ह

�र� मुहम्म� को इलहाम हुए थोडे़ ही दि�न हुए थे, �स-पांच पड़ोसिसयों और तिनकट सम्बन्धि-यों के सिसर्वाा अभी और कोई उनके �ीन पर ईमान न लाया था। यहां �क तिक

उनकी लड़की �ैनब और �ामा� अबुलआस भी, जि�नका तिर्वार्वााह इलहाम के पहले ही हो चुका था, अभी �क नये धम में �ीक्षि:� न हुए थे। �ैनब कई बार अपने मैके गई थी और अपने तिप�ा के ज्ञानोप�ेश सुने थे। र्वाह दि�ल से इसलाम पर श्रद्ध रख�ी थी, लेतिकन अबुलआस के कारण �ी:ा लेने का साहस न कर सक�ी थी। अबुलआस तिर्वाचार-�र्वाा�न्त्र्य का समथक था। र्वाह कुशल व्यापारी था। मक्के से ख�ूर, मेरे्वा आदि� जि�न्सें लेकर बन्�रगाहों को चलाना तिकया कर�ा था। बहु� ही ईमान�ार, लेन-�ेन का खरा, श्रमशील मनुष्य था, जि�से इहलोक से इ�नी फुस� न थी तिक परलोक की सिचन्�ा करे। �ैनब के सामने कदिGन सम�या थी, आत्मा धम की ओर थी, हृ�य पति� की ओर, न धम को छोड़ सक�ी थी, न पति� को। घर के अन्य प्राणी मूर्ति�Nपू�क थे और इस नये सम्प्र�ाय के शतु्र। �ैनब अपनी लगन को छुपा�ी रह�ी, यहां �क तिक पति� से भी अपनी व्यथा न कह सक�ी। र्वाे धार्मिमNक सतिहष्णु�ा के दि�न न थे। बा�-बा� पर खून की नदि�यां बह�ी थीं। खान�ान के खान�ान मिमट �ा�े थे। अरब की अलौतिकक र्वाीर�ा पारस्परिरक कलहों में व्यक्त हो�ी थी। रा�नैति�क संगGन का नाम न था। खून का ब�ल खून, धनहातिन का ब�ला खून, अपमान का ब�ला खून—मानर्वा रक्त ही से सभी झगड़ों का तिनबटारा हो�ा था। ऐसी अर्वास्था में अपने धमानुराग को प्रकट करना अबुलआस के शसिक्तशाली परिरर्वाार को मुहम्म� और उनके तिगने-तिगनाये अनुयामिययों से टकराना था। उधर पे्रम का ब-न पैरों को �कडे़ हुए था। नये धम में प्रतिर्वाष्ट होना अपने प्राण-तिप्रय पति� से स�ा के सिलए तिबछुड़ �ाना था। कुरश �ाति� के लोग ऐसे मिमक्षिश्र� तिर्वार्वााहों को परिरर्वाार के सिलए कलंक समझ�े थे। माया और धम की दुतिर्वाधा में पड़ी हुई �ैनब कुढ़�ी रह�ी थी।

म का अनुराग एक दुलभ र्वा��ु है, तिकन्�ु �ब उसका र्वाेग उG�ा है �ब बडे़ प्रचण्ड रूप से उG� है। �ोपहर का समय था। धूप इ�नी �े� थी तिक उसकी ओर �ाक�े हुए

आंखों से सिचनगारिरयां तिनकल�ी थीं। ह�र� मुहम्म� अपने मकान में सिचन्�ामग्न बैGै हुए थे। तिनराशा चारों ओर अंधकार के रूप में दि�खाई �े�ी थी। खु�ै�ा भी पास बैGी हुई एक फटा

ध3

कु�ा सी रही थी। धन-सम्पक्षिc सब कुछ इस लगन के भेंट हो चुकी थी। तिर्वाधर्मिमNयों का दुराग्रह दि�नोंदि�न बढ़�ा �ा�ा था। इसलाम के अनुयामिययों को भांति�-भांति� की या�नाए ं�ी �ा रही थीं। �र्वायं ह�र� को घर से तिनकलना मुश्किfकल था। खौफ हो�ा था तिक कहीं लोग उन पर ईंट-पत्थर न फें कने लगें। खबर आ�ी थी तिक आ� अमुक मुसलमान का घर लूटा गया, आ� फलां को लोगों नो आह� तिकया। ह�र� ये खबरें सुन-सुनकर तिर्वाकल हो �ा�े थे और बार-बार सु�ा से धैय और :मा की याचना कर�े थे।

ह�र� ने फरमाया—मुझे ये लोग अब यहां न रहने �ेंगे। मैं खु� सब कुछ झेल सक�ा हंू पर अपने �ो��ों की �कलीफ नहीं �ेखी �ा�ी।

खु�ै�ा—हमारे चले �ाने से �ो इन बेचारों को और भी कोई शरण न रहेगी। अभी कम से कम आपके पास आकर रो �ो ले�े हैं। मुसीब� में रोने का सहारा कम नहीं हो�ा।

ह�र�—�ो मैं अकेले थोडे़ ही �ाना चाह�ा हंू। मैं अपने सब �ो��ों को साथ लेकर �ाने का इरा�ा रख�ा हंू। अभी हम लोग यहां तिबखरे हुए हैं। कोई तिकसी की म�� को नहीं पहुंच सक�ा। हम बस एक ही �गह एक कुटुम्ब की �रह रहेंगे �ो तिकसी को हमारे ऊपर हमला करने की तिहम्म� न होगी। हम अपनी मिमली हुई शसिक्त से बालू का ढेर �ो हो ही सक�े हैं जि�स पर चढ़ने का तिकसी को साहस न होगा।

सहसा �ैनब घर में �ाखिखल हुई। उसके साथ न कोई आ�मी था न कोई आ�म�ा�, ऐसा मालूम हो�ा था तिक कहीं से भगी चली आ रही हैं। खु�ै�ा ने उसे गले लगाकर कहा—क्या हुआ �ैनब, खैरिरय� �ो है?

�ैनब ने अपने अन्�र्द्वन्र्द्व की कथा सुनाई और तिप�ा से �ी:ा की प्राथना की। ह�र� मुहम्म� आंखों में आंसू भरकर बोले—�ैनब, मेरे सिलए इससे ज्या�ा खुशी की और कोई बा� नहीं हो सक�ी। लेतिकन डर�ा हंू तिक �ुम्हारा क्या हाल होगा।

�ैनब—या ह�र�, मैंने खु�ा की राह में सब कुछ त्याग �ेने का तिनश्चय तिकया हैं दुतिनया के सिलए अपनी आकब� को नहीं खोना चाह�ी।

ह�र�—�ैनब, खु�ा की राह में कांटे हैं।�ैनब—लगन को कांटों की परर्वााह नहीं हो�ी।ह�र�—ससुराल से ना�ा टूट �ायेगा।�ैनब—खु�ा से �ो ना�ा �ुड़ �ायेगा।ह�र�—और अबुलआस?�ैनब की आंखों में आंसू डबडबा आये। का�र �र्वार से बोली—अब्बा�ान, इसी बेड़ी

ने इ�ने दि�नों मुझे बांधे रक्खा था, नहीं �ो मैं कब की आपकी शरण में आ चुकी हो�ी। मैं �ान�ी हंू, उनसे �ु�ा होकर �ी�ी न रहंूगी और शाय� उनको भी मेरा तिर्वायोग दु�सह होगा, पर मुझे तिर्वाश्वास है तिक एक दि�न �रूर आयेगा �ब र्वाे खु�ा पर ईमान लायेंगे और मुझे तिफर उनकी सेर्वाा का अर्वासर मिमलेगा।

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ह�र�—बेटी, अबुलआस ईमान�ार है, �याशील है, सत्यर्वाक्ता है, तिकन्�ु उसका अहंकार शाय� अन्� �क उसे ईश्वर से तिर्वामुख रखे है। र्वाह �क�ीर को नहीं मान�ा, आत्मा को नहीं मान�ा, �र्वाग और नरक को नहीं मान�ा। कह�ा है, ‘सृमिष्ट-संचालन के सिलए खु�ा की �रूर� ही क्या है? हम उससे क्यों डरें? तिर्वार्वाेक और बुजिद्ध की तिह�ाय� हमारे सिलए काफी है?’ ऐसा आ�मी खु�ा पर ईमान नहीं ला सक�ा। अधम को �ी�ना आसान है पर �ब र्वाह �शन का रूप धारण कर ले�ा है �ो अ�ये हो �ा�ा है।

�ैनब ने तिनश्चयात्मक भार्वा से कहा—ह�र�, आत्म का उपकार जि�समें हो मुझे र्वाह चातिहए। मैं तिकसी इन्सान को अपने और खु�ा के बीच न रहने दंूगी।

ह�र�—खु�ा �ुझ पर �या करे बेटी। �ेरी बा�ों ने दि�ल खुश कर दि�या। यह कहकर उन्होंने �ैनब को पे्रम से गले लगा दि�या।

दूसरे दि�न �ैनब को �मा मसजि�� में यथा तिर्वामिध कलमा पढ़ाया गया।कुरैसिशयों ने �ब यह खबर पाई �ब र्वाे �ल उGे। ग�ब खु�ा का। इसलाम ने �ो बडे़-बडे़ घरों पर हाथ साफ करना शुरू तिकया। अगर यही हाल रहा �ो धीरे-धीरे उसकी शसिक्त इ�नी बढ़ �ायेगी तिक उसका सामना करना कदिGन हो �ायगा। लोग अबुलआस के घर पर �मा हुए। अबूसिसतिफयान ने, �ो इ�लाम के शुतु्रओं से सबसे प्रति�मिv� व्यसिक्त थे (और �ो बा� को इसलाम पर ईमान लाया), अबुलआस से कहा—�ुम्हें अपनी बीर्वाी को �लाक �ेना पडे़गा।

अबुल०—हर्तिगN� नहीं।अबूसिस०—�ो क्या �ुम भी मुसलामन हो �ाओगे?अबु०—हर्तिगN� नहीं।अबूसिस०—�ो उसे मुहम्म� ही के घर रहना पडे़गा।अबु०—हर्तिगN� नहीं, आप मुझे आज्ञा �ीजि�ए तिक उसे अपने घर लाऊं।अबूसिस०—हर्तिगN� नहीं।अबु०—क्या यह नहीं हो सक�ा तिक मेरे घर में रह कर र्वाह अपने म�ानुसार खु�ा की

बन्�गी करें?अबूसिस०—हर्तिगN� नहीं।अबु०—मेरी कौम मेरे साथ इ�नी भी सहानुभूति� न करेगी?

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अबूसिस०—हर्तिगN� नहीं।अबु०—�ो तिफर आप लोग मुझे अपने समा� से पति�� कर �ीजि�ए। मुझे पति��

होना मं�ूर है, आप लोग चाहें �ो स�ा �ें, र्वाह सब मं�ूर है। पर मैं अपनी बीर्वाी को �लाक नहीं �े सक�ा। मैं तिकसी की धार्मिमNक �र्वााधीन�ा का अपहरण नहीं करना चाह�ा, र्वाह भी अपनी बीर्वाी की।

अबूसिस०—कुरैश में क्या और लड़तिकयां नहीं हैं?अबु०—�ैनब की-सी कोई नहीं।अबूसिस०—हम ऐसी लड़तिकयां ब�ा सक�े हैं �ो चां� को लस्जिx� कर �ें।अबु०—मैं सौन्�य का उपासक नहीं।अबूसिस०—ऐसी लड़तिकयां �े सक�ा हंू �ो गृह-प्रब- में तिनपुण हों, बा�ें ऐसी करें �ो

मुंह से फूल झरें, भो�न ऐसा बनाये तिक बीमार को भी रुसिच हो, और सीने-तिपरोने में इ�नी कुशल तिक पुराने कपडे़ को नया कर �ें।

अबु०—मैं इन गुणों में तिकसी का भी उपासक नहीं। मैं पे्रम और केर्वाल पे्रम का भक्त हंू और मुझे तिर्वाश्वास है, तिक �ैनब का-सा पे्रम मुझे सारी दुतिनया में नहीं मिमल सक�ा।

अबूसिस०—पे्रम हो�ा �ो �ुम्हें छोड़कर �गा न कर�ी।अबु०—मैं नहीं चाह�ा तिक पे्रम के सिलए कोई अपने आत्म�र्वा�ान्त्रय का त्याग करे।अबूसिस०—इसका म�लब यह है तिक �ुम समा� के तिर्वारोधी बनकर रहना चाह�े हो।

अपनी आंखों की कसम, समा� अपने ऊपर यह अत्याचार न होने �ेगा, मैं समझाये �ा�ा हंू, न मानोगे �ो रोओगे।

बूसिसतिफयान और उनकी टोली के लोग �ो धमतिकयां �ेकर उधर गये इधर अबुलआस ने लकड़ी सम्हाली और ससुराल �ा पहुंचे। शाम हो गई थी। ह�र� अपने मुरी�ों के

साथ मगरिरब की नमा� पढ़ रहे थे। अबुलआस ने उन्हें सलाम तिकया और �ब �क नमा� हो�ी रही, गौर से �ेख�े रहे। आ�मिमयों की क�ारों का एक साथ उGना-बैGना और सिस��े करना �ेखकर उनके दि�ल पर गहरा प्रभार्वा पड़ रहा था। र्वाह अज्ञा� भार्वा से संग� के साथ बैG�े, झुक�े और खडे़ हो �ा�े थे। र्वाहां का एक-एक परमाणु इस समय ईश्वरमय हो रहा था। एक :ण के सिलए अबुलआस भी उसी भसिक्त-प्रर्वााह में आ गये।

�ब नमा� खत्म हो गई �ब अबुलआस ने ह�र� से कहा—मैं �ैनब को तिर्वा�ा करने आया हंू।

ह�र� ने तिर्वाश्कि�म� होकर कहा—�ुम्हें मालूम नहीं तिक र्वाह खु�ा और रसूल पर ईमान ला चुकी है?

अबु०—�ी हां, मालूम है।

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ह�०—इ�लाम ऐसे सम्ब-ों का तिनषेध कर�ा है।अबु०—क्या इसका म�लब है तिक �ैनब ने मुझे �लाक �े दि�या?ह�०—अगर यही म�लब हो �ो?अबु०—�ो कुछ नहीं, �ैनब को खु�ा और रसूल की बन्�गी मुबारक हो। मैं एक बार

उससे मिमलकर घर चला �ाऊंगा और तिफर कभी आपको अपनी सूर� न दि�खाऊंगा। लेतिकन उस �शा में अगर कुरैश �ाति� आपसे लड़ने के सिलए �ैयार हो �ाय �ो इसका इल�ाम मुझ पर न होगा। हां, अगर �ैनब मेरे साथ �ायगी �ो कुरैश के क्रोध का भा�न मैं हंूगा। आप और आपके मुरी�ों पर कोई आफ� न आयेगी।

ह�०—�ुम �बार्वा में आकर �ैनब को खु�ा की �रफ से फेरने का �ो यत्न न करोगी?

अब०—मैं तिकसी के धम में तिनध्न डालना लxा�नक समझ�ा हंू।ह�०—�ुम्हें लोग �ैनब को �लाक �ेने पर �ो म�बूर न करेंगे?अबु०—मैं �ैनब को �लाक �ेने के पहले जि�न्�गी को �लाक �े दंूगा।ह�र� को अबुलआस की बा�ों से इत्मीनान हो यगा। आस को हरम में �ैनब से

मिमलने का अर्वासर मिमला। आस ने पूछा—�ैनब, मैं �ुम्हें साथ ले चलने आया हंू। धम के ब�लने से कहीं �ुम्हारा मन �ो नहीं ब�ल गया?

�ैनब रो�ी हुई पति� के पैरों पर तिगर पड़ी और बोली—�र्वाामी, धम बार-बार मिमल�ा है, हृ�य केर्वाल एक बार। मैं आपकी हंू। चाहे यहां रहंू, चाहे र्वाहां। लेतिकन समा� मुझे आपकी सेर्वाा में रहने �ेगा?

अबु०—यदि� समा� न रहने �ेगा �ो मैं समा� ही से तिनकल �ाऊंगा। दुतिनया में रहने के सिलए बहु� स्थान है। रहा मैं, �ुम खूब �ान�ी हो तिक तिकसी के धम में तिर्वाघ्न डालना मेरे सिसद्धान्� के प्रति�कूल है।

�ैनब चली �ो खु�ै�ा ने उसे ब�ख्शां के लालों का एक बहुमूलय हार तिर्वा�ाई में दि�या।

सलाम पर तिर्वाधर्मिमNयों के अत्याचार दि�न-दि�न बढ़ने लगे। अर्वाहेलना की �शा में तिनकलकर उसने भय के :ेत्र में पे्रर्वाश तिकया। शतु्रओं ने उसे समूल नाश करने की

आयो�ना करना शुरू की। दूर-दूर के कबीलों से म�� मांगी गई। इसलाम में इन�ी शसिक्त न थी तिक श�त्रबल से शतु्रओं को �बा सके। ह�र� मुहम्म� ने अन्� को मक्का छोड़कर म�ीने की राह ली। उनके तिक�ने ही भक्तों ने उनके साथ तिह�र� की। म�ीने में पहुंचकर मुसलमानों में एक नई शसिक्त, एक नई सू्फर्ति�N का उ�य हुआ। र्वाे तिन:शंक होकर धम का

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पालन करने लगे। अब पड़ोसिसयों से �बने और सिछपने की �रूर� न थी। आत्मतिर्वाश्वास बढ़ा। इधर भी तिर्वाधर्मिमNयों का सामना करने की �ैयारिरयां होने लगीं।

एक दि�न अबुलआस ने आकर �त्री से कहा—�ैनब, हमारे ने�ाओं ने इसलाम पर �ेहा� करने की घोषणा कर �ी।

�ैनब ने घबराकर कहा—अब �ो र्वाे लोग यहां से चले गये तिफर �ेहा� की क्या �रूर�?

अबु०—मक्का से चले गये, अरब से �ो नहीं चले गये, उनकी ज्या�ति�यां बढ़�ी �ा रही हैं। जि�हा� के सिसर्वाा और कोई उपाय नहीं। मेरा उस जि�हा� में शरीक होना बहु� �रूरी है।

�ैन०—अगर �ुम्हारा दि�ल �ुम्हें म�बूर कर रहा है �ो शौक से �ाओ लेतिकन मुझे भी साथ ले�े चलो।

अबु०—अपने साथ?�ैन०—हां, मैं र्वाहां आह� मुसलमानों की सेर्वाा-सुश्रुषा करंूगी।अबु०—शौक से चलो।

र संग्राम हुआ। �ोनों �लों ने खूब दि�ल के अरमान तिनकाले। भाई भाई से, मिमत्र मिमत्र से, बाप बेटे से लड़ा। सिसद्ध हो गया तिक धम का ब-न रक्त और र्वाीय के ब-न से

सुदृढ़ है।घो

�ोनों �ल र्वााले र्वाीर थे। अं�र यह था तिक मुसलमानों में नया धमानुराग था, मृत्यु के पश्चा�् �र्वाग की आशा थी, दि�लों में आत्मतिर्वाश्वास था �ो नर्वा�ा� सम्प्र�ायों का ल:ण है। तिर्वाधर्मिमNयों में बसिल�ान का यह भार्वा लुप्� था।

कई दि�न �क लड़ाई हो�ी रही। मुसलमानों की संख्या बहु� कम थी, पर अन्� में उनके धम�त्साह ने मै�ान मार सिलया। तिर्वाधर्मिमNयों में अमिधकांश काम आये, कुछ घायल हुए और कुछ कै� कर सिलये गये। अबुलआस भी इन्हीं कैदि�यों में थे।

�ैनब को ज्योंही यह मालूम हुआ उसने ह�र� मुहम्म� की सेर्वाा में अबुलआस का फदि�या (मुसिक्तधन) भे�ा। यह र्वाही बहुमूल्य हार था, �ो खु�ै� ने उसे दि�या था। र्वाह अपने तिप�ा को उस धम-संकट में नहीं डालना चाह�ी थी �ो मुसिक्तधन के अभार्वा की �शा में उन पर पड़�ा। ह�र� ने यह हार �ेखा �ो खु�ै�ा की या� �ा�ी हो गई। मधुर �मृति�यों से सिचc चंचल हो उGा। अगर खु�ै�ा �ीतिर्वा� हो�ी �ो उसकी सिसफारिरश का असर उन पर इससे ज्या�ा न हो�ा जि��ना इस हार से हुआ, मानो �र्वायं खु�ै�ा इस हार के रूप में आई थी। अबुलआस के प्रति� हृ�य कोमल हो गया। उसे स�ा �ी गई, यह हार ले सिलया गया �ो खु�ै�ा की आत्मा को तिक�ना दुख होगा। उन्होंने कैदि�यों की फैसला करने के सिलए एक

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पंचाय� तिनयुक्त कर �ी थी। यद्यतिप पंचों में सभी ह�र� के इष्ट-मिमत्र थे, पर इ�लाम की सिश:ा उनके दि�लों में पुरानी आ��ें, पुरानी चेष्टाए ंन मिमटा सकी थीं। उनमें अमिधकांश ऐसे थे जि�नको अबुलआस से पारिरर्वाारिरक रे्द्वष था, �ो उनसे तिकसी पुराने खून का ब�ला लेना चाह�े थे। इसलाम ने उन में :मा और अहिहNसा के भार्वाों को अंकुरिर� न तिकया हो, पर साम्यर्वाा� को उनके रोम-रोम में प्रति�ष्ट कर दि�या था। र्वाे धम के तिर्वाषय में तिकसी के साथ रू-रिरयाय� न कर सक�े थे, चाहे र्वाह ह�र� का तिनकट सम्ब-ी ही क्यों न हो। अबुलआस सिसर झुकाये पंचों के सामने खडे़ थे और कै�ी पेश हो�े थे। उनके मुसिक्तधन का मुलातिह�ा हो�ा था और र्वाे छोड़ दि�ये �ा�े थे। अबुलआस को कोई पूछ�ा ही न था, यद्यतिप र्वाह हार एक �f�री में पंचों के सम्मुख रक्खा हुआ था। ह�र� के मन में बार-बार प्रबल इच्छा हो�ी थी तिक सहातिबयों से कहें यह हार तिक�ना बहुमूल्य है। पर धम का ब-न, जि�से उन्होंने �र्वायं प्रति�मिv� तिकया था, मुंह से एक शब्� भी न तिनकलने �े�ा था। यहां �क तिक सम�� बन्�ी�न मुक्त हो गये, अबुलआस अकेला सिसर झुकाये खड़ा रहा—ह�र� मुहम्म� के �ामा� के साथ इ�ना सिलहा� भी न तिकया गया तिक बैGने की आज्ञा �ो �े �ी �ा�ी। सहसा �ै� ने अबुलआस की ओर कटा: करके कहा—�ेखा, खु�ा इसलाम की तिक�नी तिहमाय� कर�ा है। �ुम्हारे पास हमसे पंचगुनी सेना थी, पर खु�ा ने �ुम्हारा मुंह काला तिकया। �ेखा या अब भी आंखें नहीं खुलीं?

अबुलआस ने तिर्वारक्त भार्वा से उcर दि�या—�ब आप लोग यह मान�े हैं तिक खु�ा सबका मासिलक है �ब र्वाह अपने एक बन्�े को दूसरे की ग�न काटने में म�� न �ेगा। मुसलमानों ने इससिलए तिर्वा�य पायी तिक गल� या सही उन्हें अटल तिर्वाश्वास है तिक मृत्यु के बा� हम �र्वाग में �ायेंगे। खु�ा को आप नाहक ब�नाम कर�े हैं।

�ै�—�ुम्हारा मुसिक्त-धन काफी नहीं है।अबुलआस—मैं इस हार को अपनी �ान से ज्या�ा कीम�ी समझ�ा हंू। मेरे घर में

इससे बहुमूल्य और कोई र्वा��ु नहीं है।�ै�—�ुम्हारे घर में �ैनब हैं जि�न पर ऐसे सैकड़ों हार कुबान तिकये �ा सक�े हैं।अबु०—�ो आपकी मंशा है तिक मेरी बीर्वाी मेरा फदि�या हो। इससे �ो यह कहीं बेह�र

है तिक मैं कत्ल कर दि�या �ा�ा। अच्छा, अगर मैं र्वाह फदि�या न दंू �ो?�ै�—�ो �ुम्हें आ�ीर्वान यहां गुलामों की �रह रहना पडे़गा। �ुम हमारे रसूल के

�ामा� हो, इस रिरf�े से हम �ुम्हारा सिलहा� करेंगे, पर �ुम गुलाम ही समझे �ाओंगे।ह�र� मुहम्म� तिनकट बैGे हुए ये बा�ें सुन रहे थे। र्वाे �ान�े थे तिक �ैनब और आस

एक-दूसरे पर �ान �े�े हैं। उनका तिर्वायोग �ोनों ही के सिलए घा�क होगा। �ोनों घुल-घुलकर मर �ायंगे। सहातिबयों को एक बार पंच चुन लेने के बा� उनके फैसले में �खल �ेना नीति�-तिर्वारुद्ध था। इससे इसलाम की मया�ा भंग हो�ी थी। कदिGन आत्मर्वाे�ना हुई। यहां बैGे न रह सके। उGकर अन्�र चले गये। उन्हें ऐसा मालूम हो रहा था तिक �ैनब की ग�न पर �लर्वाार

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फेरी �ा रही हैं। �ैनब की �ीन, करुणापूण मूर्ति�N आंखों के सामने खड़ी मालूम हो�ी थी। पर मया�ा, तिन�य, तिनvुर मया�ा का बसिल�ान मांग रही थी।

अबुलआस के सामने भी तिर्वाषम सम�या थी। इधर गुलामों का अपमान था, उधर तिर्वायोग की �ारुण र्वाे�ना थी।

अन्� में उन्होंने तिनfयच तिकया, यह र्वाे�ना सहूंगा, अपमान न सहूंगा। पे्रम को गौरर्वा पर समर्तिपN� कर दंूगा। बोले—मुझे आपका फैसला मं�ूर है। �ैनब मेरा फदि�या होगी।

श्चय तिकया गया तिक �ै� अबुलआस के साथ �ायं और आबा�ी से बाहर Gहरे। आस घर �ाकर �ुरन्� �ैनब को र्वाहां भे� �ें। आस पर इ�ना तिर्वाश्वास था तिक र्वाे अपना

र्वाचन पूरा करेंगे।तिन

आस घर पहुंचे �ो �ैनब उनसे गले मिमलने �ौड़ी। आस हट गये और का�र �र्वार से बोले—नहीं �ैनब, मैं �ुमसे गले न मिमलूंगा। मैं �ुम्हें अपने फदि�ये के रूप में �े आया। अब मेरा �ुमसे कोई सम्ब- नहीं है। यह �ुम्हारा हार है, ले लो, और फौरन यहां से चलने की �ैयारी करो। �ै� �ुम्हें लेने को आये हैं।

�ैनब पर र्वाज्र-सा तिगर पड़ा। पैर बंध गये, र्वाहीं सिचत्र की भांति� खड़ी रह गयी। र्वाज्र ने रक्त को �ला दि�या, आंसुओं को सुखा दि�या, चे�ना ही न रही, रो�ी और तिबलख�ी क्या। एक :ण के बा� उसने एक बार माथा Gोका—तिन�य �क�ीर के सामने सिसर झुका दि�या। चलने को �ैयार हो गयी। घोर नैराfय इ�ना दुख�ायी नहीं हो�ा जि��ना हम समझ�े हैं। उसमें एक रसहीन शान्तिन्� हो�ी है। �हां सुख की आशा नहीं र्वाहां दुख का कष्ट कहाँ!

म�ीने में रसूल की बेटी की जि��नी इx� होनी चातिहए उ�नी हो�ी थी। र्वाह तिप�ागृह की �र्वाामिमनी थी। धन था, मान था, गौरर्वा था, धम था, पे्रम न था। आंख में सब कुछ था, केर्वाल पु�ली न थी। पति� के तिर्वायोग में रोया कर�ी थी। जि�न्�ा थी, मगर जि�न्�ा �रागोर। �ीन साल �ीन युगों की भांति� बी�े। घण्टे, दि�न और र्वाष साधारण व्यर्वाहारों के सिलए है पे्रम के यहां समय का माप कुछ और ही है।

उधर अबुलआस तिर्द्वगुण उत्साह के साथ धनोपा�न में लीन हुआ, महीनों घर न आ�ा, हंसना-बोलना सब भूल गया। धन ही उसके �ीर्वान का एक मात्र आधार था; उसके प्रणय-र्वांसिच� हृ�य को तिकसी तिर्वा�मृति�कारक र्वा��ु की चाह थी। नैराfय और सिचन्�ा बहुधा शराब से शान्� हो�ी है, पे्रम उन्मा� से। अबुलआस को धनोम्मा� हो गया। धन के आर्वारण में सिछपा हुआ तिर्वायोग-दुख था, माया के प�� में सिछपा हुआ पे्रम-र्वाैराग्य।

�ाड़ों के दि�न थे। नातिड़यों में रूमिधर �मा �ा�ा था। अबुलआस मक्का से माल ला�कर एक कातिफले के साथ चला। रकफों का एक �ल भी साथ था। कुरैसिशयों ने मुसलमानों के कई कातिफले लूट सिलये थे। अबुलआस को संशय था तिक मुसलमानों के कई कातिफले लूट सिलये थे। अबुलआस को संशय था तिक मुसलमानों का आक्रमण होगा, इससिलए

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उन्होंने म�ीने की राह छोड़ एक दूसरा रा��ा अस्जिख्�यार तिकया। पर दु�ैर्वा, मुसलानों को टोह मिमल ही गयी। �ै� ने सcर चुने हुए आ�मिमयों के साथ कातिफले पर धार्वाा कर दि�या। धन के भक्त धम के सेर्वााकों से क्या बा�ी ले �ा�े। सcर के सा� सौ को मार भगाया। कुछ मरे, अमिधकांश भागे, कुछ कै� हो गये। मुसलमानों को अ�ुल धन हाथ लगा। कै�ी घा�े में मिमले। अबुलआस तिफर कै� हो गया।

दि�यों के भाग्य-तिनणय के सिलए नीति� के अनुसार पंचाय� चुनी गयी। �ैनब को यह खबर मिमली �ो आशाए ं�ाग उGीं; आशा मर�ी नहीं केर्वाल सो �ा�ी है। हिपN�रे में बन्�

प:ी की भांति� �ड़फड़ाने लगी, पर क्या करे, तिकससे कहे, अबकी �ो फदि�ये का भी कोई दिGकाना न था। या खु�ा क्या होगा?

कैपंचों ने अबकी ह�र� मुहम्म� ही को अपना प्रधान बनाया। ह�र� ने इनकार

तिकया, पर अन्� में उनके आग्रह से तिर्वार्वाश हो गये।अबुलआस सिसर झुकाये बैGे हुए थे। ह�र� ने एक बार उन पर करुणा-सूचक दृमिष्ट

डाली, तिफर सिसर झुका सिलया।पंचाय� शुरू हुई। अन्य कैदि�यों के घरों से मुसिक्तधन आ गया था। र्वाे मुक्त तिकये गये।

अबुलआस के घर से मुसिक्तधन न आया था। ह�र� ने हुक्म दि�या—इनका सारा माल और असबाब �ब्� कर सिलया �ाय और ये उस र्वाक्त �क बन्�ी रहें �ब �क इन्हें कोई छुड़ाने न आये। उनके अंति�म शब्� ये थे: अबुलआस, इसलाम की रणनीति� के अनुसार �ुम गुलाम हो। �ुम्हें बा�ार में बेचकर रुपया मुसलमानों में �कसीम होना चातिहए था। पर �ुम ईमान�ार आ�मी हो, इससिलए �ुम्हारे साथ इ�नी रिरआय� की गयी।

�ैनब �रर्वाा�े के पास आड़ में बैGी हुई थी। ह�र� का यह फैसल सुनकर रो पड़ी, �ब घर से बाहर तिनकल आयी और अबुलआस का हाथ पकड़कर बोली—अगर मेरा शौहर गुलाम है �ो मैं उसकी लौंडी हंू। हम �ोनों साथ तिबकें गे या साथ कै� होंगे।

ह�र�—�ैनब, मुझे लस्जिx� म� करो, मैं र्वाही कर रहा हंू �ो मेरा कcव्य है; न्याय पर बैGने र्वााले मनुष्य को पे्रम और रे्द्वष �ोनों ही से मुक्त होना चातिहए। यद्यतिप इस नीति� का सं�कार मैंने ही तिकया है, पर अब मैं उसका �र्वामी नहीं, �ास हंू। अबुलआस से मुझे जि��ना पे्रम है यह खु�ा के सिसर्वाा और कोई नहीं �ान सक�ा। यह हुक्म �े�े हुए मुझे जि��ना मानसिसक और आन्धित्मक कष्ट हो रहा है उसका अनुमान हर एक तिप�ा कर सक�ा है। पर खु�ा का रसूल न्याय और नीति� को अपने व्यसिक्तग� भार्वाों से कलंतिक� नहीं कर सक�ा।

सहतिबयों ने ह�र� की न्याय-व्याख्या सुनी �ो मुग्ध हो गये। अबू �फर ने अ� की—ह�र�, आपने अपना फैसला सुना दि�या, लेतिकन हम सब इस तिर्वाषय में सहम� हैं तिक

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अबुलआस �ैसे प्रति�मिv� व्यसिक्त के यह �ण्ड न्यायोसिच� हो�े हुए भी अति� कGोर है और हम सर्वासम्मति� से उसे मुक्त कर�े हैं और उसका लूटा हुआ धन लौटा �ेने की आज्ञा मांग�े हैं।

अबुलआस ह�र� मुहम्म� की न्यायपरायण�ा पर चतिक� हो गये। न्याय का इ�ना ऊंचा आ�श! मया�ा का इ�ना महत्र्वा! आह, नीति� पर अपना सन्�ान-पे्रम �क न्यौछार्वार कर दि�या! महात्मा, �ुम धन्य हो। ऐसे ही मम�ा-हीन सत्पुरुषों से संसार का कल्याण हो�ा है। ऐसे ही नीति�पालकों के हाथों �ाति�यां बन�ी हैं, सभ्य�ाए ंपरिरष्कृ� हो�ी हैं।

मक्के आकर अबुलआस ने अपना तिहसाब-तिक�ाब साफ तिकया, लोगों के माल लौटाये, ऋण चुकाये, और धन-बार त्यागकर ह�र� मुहम्म� की सेर्वाा में पहुंच गये।

�ैनब की मुरा� पूरी हुई।—‘सर�र्वा�ी’, माच, १९२४

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मंदिदर और मस्जि��द

धरी इ�र�अली ‘कडे़’ के बडे़ �ागीर�ार थे। उनके बु�ुग� ने शाही �माने में अंग्रे�ी सरकार की बड़ी-बड़ी खिख�म� की थीं। उनके ब�ले में यह �ागीर मिमली थी। अपने

सुप्रब-न से उन्होंने अपनी मिमश्किल्कय� और भी बढ़ा ली थी और अब इस इलाके में उनसे ज्या�ा धनी-मानी कोई आ�मी न था। अंग्रे� हुक्काम �ब इलाके में �ौरा करने �ा�े �ो चौधरी साहब की मिम�ा�पुस� के सिलए �रूर आ�े थे। मगर चौधरी साहब खु� तिकसी हातिकम को सलाम करने न �ा�े, चाहे र्वाह कमिमश्नर ही क्यों न हो। उन्होंने कचहरिरयों में न �ाने का व्र�-सा कर सिलया था। तिकसी इ�लास-�रबार में भी न �ा�े थे। तिकसी हातिकम के सामने हाथ बांधकर खड़ा होना और उसकी हर एक बा� पर ‘�ी हु�ूर’ करना अपनी शान के खिखलाफ समझ�े थे। र्वाह यथासाध्य तिकसी मामले-मुक़�मे में न पड़�े थे, चाहे अपना नुकसान ही क्यों न हो�ा हो। यह काम सोलहों आने मुख्�ारों के हाथ में था, र्वाे एक के सौ करें या सौ के एक। फारसी और अरबी के आसिलम थे, शरा के बडे़ पाबं�, सू� को हराम समझ�े, पांचों र्वाक्त की नमा� अ�ा कर�े, �ीसों रो�े रख�े और तिनत्य कुरान की �लार्वा� (पाG) कर�े थे। मगर धार्मिमNक संकीण�ा कहीं छू �क नहीं गयी थी। प्रा�:काल गंगा-�नान करना उनका तिनत्य का तिनयम था। पानी बरसे, पाला पडे़, पर पांच ब�े र्वाह कोस-भर चलकर गंगा �ट पर अर्वाfय पहुंच �ा�े। लौट�े र्वाक्त अपनी चां�ी की सुराही गंगा�ल से भर ले� और हमेशा गंगा�ी पी�े। गंगा�ी के सिसर्वाा र्वाह और कोई पानी पी�े ही न थे। शाय� कोई योगी-य�ी भी गंगा�ल पर इ�नी श्रद्धा न रख�ा होगा। उनका सारा घर, भी�र से बाहर �क, सा�र्वाें दि�न गऊ के गोबर से लीपा �ा�ा था। इ�ना ही नही, उनके यहां बगीचे में एक पस्जिण्ड� बारहों मास दुगा पाG भी तिकया कर�े थे। साधु-संन्यासिसयों का आ�र-सत्कार �ो उनके यहां जि��नी उ�ार�ा और भसिक्त से तिकया �ा�ा था, उस पर रा�ों को भी आश्चय हो�ा था। यों कतिहए तिक स�ाव्र� चल�ा था। उधर मुसलमान फकीरों का खाना बार्वाच�खाने में पक�ा था और कोई सौ-सर्वाा सौ आ�मी तिनत्य एक ���रखान पर खा�े थे। इ�ना �ान-पुण्य करने पर भी उन पर तिकसी महा�न का एक कौड़ी का भी क� न था। नीय� की कुछ ऐसी बरक� थी तिक दि�न-दि�न उन्नति� ही हो�ी थी। उनकी रिरयास� में आम हुक्म था तिक मु�� को �लाने के सिलए, तिकसी यज्ञ या भो� के सिलए, शा�ी-ब्याह के सिलए सरकारी �ंगल से जि��नी लकड़ी चाहे काट लो, चौधरी साहब से पूछने की �रूर� न थी। हिहNदू असामिमयों की बारा� में उनकी ओर से कोई न कोई �रूर शरीक हो�ा था। नर्वाे� के रुपये बंधे हुए थे, लड़तिकयों के तिर्वार्वााह में कन्या�ान के रुपये मुकरर थे, उनको हाथी, घोडे़, �ंबू, शामिमयाने, पालकी-नालकी, फश-�ाजि�में, पंखे-चंर्वार, चां�ी के महतिफली सामान उनके यहां से तिबना तिकसी दि�क्क� के मिमल �ा�े थे, मांगने-भर की �ेर रह�ी थी। इस �ानी, उ�ार, यश�र्वाी आ�मी के सिलए प्र�ा भी प्राण �ेने को �ैयार रह�ी थी।

चौ

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धरी साहब के पास एक रा�पू� चपरसी था भ�नसिसNह। पूरे छ: फुट का �र्वाान था, चौड़ा सीना, बाने का लGै�्, सैकड़ों के बीच से मारकर तिनकले आने र्वााला। उसे भय

�ो छू भी नहीं गया था। चौधरी साहब को उस पर असीम तिर्वाश्वास था, यहां �क तिक ह� करने गये �ो उसे भी साथ ले�े गये थे। उनके दुfमनों की कमी न थी, आस-पास के सभी �मीं�ार उनकी शसिक्त और कीर्ति�N से �ल�े थे। चौधरी साहब के खौफ के मारे र्वाे अपने असामिमयों पर मनमाना अत्याचार न कर सक�े थे, क्योंतिक र्वाह तिनबलों का प: लेने के सिलए स�ा �ैयार रह�े थे। लेतिकन भ�नसिसNह साथ हो, �ो उन्हें दुfमन के र्द्वार पर भी सोने में कोई शंका न थी। कई बार ऐसा हुआ तिक दुfमनों ने उन्हें घेर सिलया और भ�नसिसNह अकेला �ान पर खेलकर उन्हें बे�ाग तिनकाल लाया। ऐसा आग में कू� पड़ने र्वााला आ�मी भी तिकसी ने कम �ेखा होगा। र्वाह कहीं बाहर �ा�ा �ो �ब �क खैरिर�य� से घर न पहुंच �ाय, चौधरी साहब को शंका बनी रह�ी थी तिक कहीं तिकसी से लड़ न बैGा हो। बस, पाल�ू भेडे़ की-सी �शा थी, �ो �ं�ीर से छुट�े ही तिकसी न तिकसी से टक्कर लेने �ौड़�ा है। �ीनों लोक में चौधरी साहब तिक सिसर्वाा उसकी तिनगाहों में और कोई था ही नही। बा�शाह कहो, मासिलक कहो, �ेर्वा�ा कहो, �ो कुछ थे चौधरी साहब थे।

चौ

मुसलान लोग चौधरी साहब से �ला कर�े थे। उनका ख्याल था तिक र्वाह अपने �ीन से तिफर गये हैं। ऐसा तिर्वासिचत्र �ीर्वान-सिसद्धां� उनकी समझ में क्योंकर आ�ा। मुसलमान, सच्चा मुसलमान है �ो गंगा�ल क्यों तिपये, साधुओं का आ�र-सत्कार क्यों करे, दुगापाG क्यों करार्वाे? मुल्लाओं में उनके खिखलाफ हंतिडया पक�ी रह�ी थी और तिहन्दुओं को �क �ेने की �ैयारिरयां हो�ी रह�ी थीं। आखिखर यह राय �य पायी तिक Gीक �न्माष्टमी तिक दि�न Gाकुरर्द्वारे पर हमला तिकया �ाय और तिहन्दुओ का सिसर नीचा कर दि�या �ाय, दि�खा दि�या �ाय तिक चौधरी साहब के बल पर फूले-फूले तिफरना �ुम्हारी भूल है। चौधरी साहब कर ही क्या लेंगे। अगर उन्होंने तिहन्दुओं की तिहमाय� की, �ो उनकी भी खबर ली �ायगी, सारा तिहन्दूपन तिनकल �ायगा।

धेरी रा� थी, कडे़ के बडे़ Gाकुरर्द्वारे में कृष्ण का �नोत्सर्वा मनाया �ा रहा था। एक र्वाृद्ध महात्मा पोपले मुंह से �ंबूरो पर धु्र पर अलाप रहे थे और भक्त�न ढोल-म�ीरे

सिलये बैGे थे तिक इनका गाना बं� हो, �ो हम अपनी की�न शुरू करें। भंडारी प्रसा� बना रहा था। सैकड़ों आ�मी �माशा �ेखने के सिलए �मा थे।

अंसहसा मुलसमानों का एक �ल लादिGयां सिलये हुए आ पहुंचा, और मंदि�र पर पत्थर

बरसाना शुरू तिकया। शोर मच गया—पत्थर कहां से आ�े हैं! ये पत्थर कौन फें क रहा है!

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कुछ लोग मंदि�र के बाहर तिनकलकर �ेखने लगे। मुसलमान लोग �ो घा� में बैGे ही थे, लादिGयां �मानी शुरू कीं। तिहन्दुओं के हाथ में उस समय ढोल-मं�ीरे के सिसर्वाा और क्या था। कोई मंदि�र में आ सिछपा, कोई तिकसी दूसरी �रफ भागा। चारों �रफ शोर मच गया।

चौधरी साहब को भी खबर हुई। भ�नसिसNह से बोले—Gाकुर, �ेखों �ो क्या शुर-गुल है? �ाकर ब�माशों को समझा �ो और न माने �ो �ो-चार हाथ चला भी �ेना मगर खून-खच्चर न होने पाये।

Gाकुर यह शोर-गुल सुन-सुनकर �ां� पीस रहे थे, दि�ल पर पत्थर की सिसल रक्खे बैGे थे। यह आ�ेश सुना �ो मुंहमांगी मुरा� पायी। शतु्र-भं�न डंडा कंधे पर रक्खा और लपके हुए मंदि�र पहुंचे। र्वाहां मुसलमानों ने घोर उपद्रर्वा मचा रक्खा था। कई आ�मिमयों का पीछा कर�े हुए मंदि�र में घुस गये थे, और शीशे के सामान �ोड़-फोड़ रहे थे।

Gाकुर की आंखों में खून उ�र आया, सिसर पर खून सर्वाार हो गया। ललकार�े हुए मंदि�र मे घुस गया और ब�माशों को पीटना शुरू तिकया, एक �रफ �ो र्वाह अकेला और दूसरी �रफ पचासों आ�मी! लेतिकन र्वााह रे शेर! अकेले सबके छक्के छुड़ा दि�ये, कई आ�मिमयों को मार तिगराया। गु�से में उसे इस र्वाक्त कुछ न सूझ�ा था, तिकसी के मरने-�ीने की परर्वाा न थी। मालूम नहीं, उसमें इ�नी शसिक्त कहां से आ गयी थी। उसे ऐसा �ान पड़�ा था तिक कोई �ैर्वाी शसिक्त मेरी म�� कर रही है। कृष्ण भगर्वाान् �र्वायं उसकी र:ा कर�े हुए मालूम हो�े थे। धम-संग्राम में मनुष्यों से अलौतिकक काम हो �ा�े हैं।

उधर Gाकुर के चले आने के बा� चौधरी साहब को भय हुआ तिक कहीं Gाकुर तिकसी का खून न कर डालो, उसके पीछे खु� भी मंदि�र में आ पहुंचे। �ेखा �ो कुहराम मचा हुआ हैं। ब�माश लोग अपनी �ान ले-लेकर बे�हाशा भागे �ा रहे हैं, कोई पड़ा कराह रहा है, कोई हाय-हाय कर रहा है। Gाकुर को पुकारना ही चाह�े थे तिक सहसा एक आ�मी भागा हुआ आया और उनके सामने आ�ा-आ�ा �मीन पर तिगर पड़ा। चौधरी साहब ने उसे पहचान सिलया और दुतिनया आंखों में अंधेरी हो गयी। यह उनका इकलौ�ा �ामा� और उनकी �ाय�ा� का र्वाारिरस शातिह� हुसेन था!

चौधरी ने �ौड़कर शातिह� को संभाला और �ोर से बोला—Gाकुर, इधर आओ—लालटेन!....लालटेन! आह, यह �ो मेरा शातिह� है!

Gाकुर के हाथ-पांर्वा फूल गये। लालटेन लेकर बाहर तिनकले। शातिह� हुसैन ही थे। उनका सिसर फट गया था और रक्त उछल�ा हुआ तिनकल रहा था।

चौधरी ने सिसर पीट�े हुए कहा—Gाकुर, �ुने �ो मेरा सिचराग ही गुल कर दि�या।Gाकुर ने थरथर कांप�े हुए कहा—मासिलक, भगर्वाान् �ान�े हैं मैंने पहचाना नहीं।चौधरी—नहीं, मैं �ुम्हारे ऊपर इल�ाम नहीं रख�ा। भगर्वाान् के मंदि�र में तिकसी को

घुसने का अस्जिख्�यार नहीं है। अफसोस यही है तिक खान�ान का तिनशान मिमट गया, और �ुम्हारे हाथों! �ुमने मेरे सिलए हमेशा अपनी �ान हथैली पर रक्खी, और खु�ा ने �ुम्हारे ही हाथों मेरा सत्यानाश करा दि�या।

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चौधरी साहब रो�े �ा�े थे और ये बा�ें कह�े �ा�े थे। Gाकुर ग्लातिन और पश्चाcाप से गड़ा �ा�ा था। अगर उसका अपना लड़का मारा गया हो�ा, �ो उसे इ�ना दु:ख न हो�ा। आह! मेरे हाथों मेरे मासिलक का सर्वानाश हुआ! जि�सके पसीने की �गह र्वाह खून बहाने को �ैयार रह�ा था, �ो उसका �र्वाामी ही नहीं, इष्ट था, जि�सके �रा-से इशारे पर र्वाह आग में कू� सक�ा था, उसी के र्वांश की उसने �ड़ काट �ी! र्वाह उसकी आ��ीन का सांप तिनकला! रंुधे हुए कंG से बोला—सरकार, मुझसे बढ़कर अभागा और कौन होगा। मेरे मुंह में कासिलख लग गयी।

यह कह�े-कह�े Gाकुर ने कमर से छुरा तिनकाल सिलया। र्वाह अपनी छा�ी में छुरा घोंपकर कासिलमा को रक्त से धोना ही चाह�े थे तिक चौधरी साहब ने लपककर छुरा उनके हाथों से छीन सिलया और बोले—क्या कर�े हो, होश संभालो। ये �क�ीर के करिरfमे हैं, इसमे �ुम्हारा कोई कसूर नहीं, खु�ा को �ो मं�ूर था, र्वाह हुआ। मैं अगर खु� शै�ान के बहकार्वाे में आकर मजिन्�रर में घुस�ा और �ेर्वा�ा की �ौहीन कर�ा, और �ुम मुझे पहचानकर भी कत्ल कर �े�े �ो मैं अपना खून माफ कर �े�ा। तिकसी के �ीन की �ौहीन करने से बड़ा और कोई गुनाह नहीं हैं। गो इस र्वाक्त मेरा कले�ा फटा �ा�ा है, और यह स�मा मेरी �ान ही लेकर छोडे़गा, पर खु�ा गर्वााह है तिक मुझे �ुमसे �रा भी मलाल नहीं है। �ुम्हारी �गह मैं हो�ा, �ो मैं भी यही कर�ा, चाहे मेरे मासिलक का बेटा ही क्यों न हो�ा। घरर्वााले मुझे �ानो से छे�ेंगे, लड़की रो-रोकर मुझसे खून का ब�ला मांगेंगी, सारे मुसलान मरे खून के प्यासे हो �ाएगंे, मैं कातिफर और बे�ीन कहा �ाऊंगा, शाय� कोई �ीन का पक्का नौ�र्वाान मुझे कत्ल करने पर भी �ैयार हो �ाय, लेतिकन मै हक से मुंह न मोडंूगा। अंधेरी रा� है, इसी �म यहां से भाग �ाओ, और मेरे इलाके में तिकसी छार्वानी में सिछप �ाओ। र्वाह �ेखो, कई मुसलमान चले आ रहे हैं—मेरे घरर्वााले भी हैं—भागो, भागो!

ल-भर भ�नसिसNह चौधरी साहब के इलाके में सिछपा रहा। एक ओर मुसलमान लोग उसकी टोह में लगे रह�े थे, दूसरी ओर पुसिलस। लेतिकन चौधरी उसे हमेशा सिछपा�े

रह�े थे। अपने समा� के �ाने सहे, अपने घरर्वाालों का ति�र�कार सहा, पुसिलस के र्वाार सहे, मुल्लाओं की धमतिकयां सहीं, पर भ�नसिसNह की खबर तिकसी का कानों-कान न होने �ी। ऐसे र्वाफा�ार �र्वाामिमभक्त सेर्वाक को र्वाह �ी�े �ी तिन�य कनून के पं�े में न �ेना चाह�े थे।

साउनके इलाके की छार्वातिनयों में कई बार �लासिशयां हुईं, मुल्लाओं ने घर के नौकारों, मामाओं, लौंतिडयों को मिमलाया, लेतिकन चौधरी ने Gाकुर को अपने एहसानों की भांति� सिछपाये रक्खा।

लेतिकन Gाकुर को अपने प्राणों की र:ा के सिलए चौधरी साहब को संकट में पडे़ �ेखकर असहय र्वाे�ना हो�ी थी। उसके �ी में बार-बार आ�ा था, चलकर मासिलक से कह दंू—मुझे पुसिलस के हर्वााले कर �ीजि�ए। लेतिकन चौधरी साहब बार-बार उसे सिछपे रहने की �ाकी� कर�े रह�े थे।

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�ाड़ों के दि�न थे। चौधरी साहब अपने इलाके का �ौर कर रहे थे। अब र्वाह मकान पर बहु� कम रह�े थे। घरर्वाालों के शब्�-बाणों से बचने का यही उपाय था। रा� को खाना खाकर लेटे ही थे तिक भ�नसिसNह आकर सामने खड़ा हो गया। उसकी सूर� इ�नी ब�ल गई थी तिक चौधरी साहब �ेखकर चौंक पडे़। Gाकुर ने कहा—सरकार अच्छी �रह है?

चौधरी—हां, खु�ा का फ�ह है। �ुम �ो तिबल्कुल पहचाने ही नही �ा�े। इस र्वाक्त कहां से आ रहे हो?

Gाकुर—मासिलक, अब �ो सिछपकर नहीं रहा �ा�ा। हुक्म हो �ो �ाकर अ�ाल� में हाजि�र हो �ाऊं। �ो भाग्य में सिलखा होगा, र्वा होगा। मेरे कारन आपको इ�नी हैरानी हो रही है, यह मुझसे नहीं �ेखा �ा�ा।

चौधरी—नहीं Gाकुर, मेरे �ी�े �ी नही। �म्हें �ान-बूझकर भाड़ के मुंह में नहीं डाल सक�ा। पुसिलस अपनी म�� के मातिफक शहा�ा�ें बना लेगी, और मुफ्� में �ुम्हें �ान से हाथ धोना पडे़गा। �ुमने मेरे सिलए बडे़-बडे़ ख�रे सहे हैं। अगर मैं �ुम्हारे सिलए इ�ना भी न कर सकंू, �ो मुझसे कुछ म� कहना।

Gाकुर—कहीं तिकसी ने सरकार...चौधरी—इसका तिबल्कुल कम न करो। �ब �क खु�ा को मं�ूर न होगा, कोई मेरा

बाल भी बांका नहीं कर सक�ा। �ुम अब �ाओ, यहां Gहरना ख�रनाक है।Gाकुर—सुन�ा हंू, लोगो ने आपसे मिमलना-�ुलना छोड़ दि�या हैंचौधरी—दुfमनों का दूर रहना ही अच्छा।लेतिकन Gाकुर के दि�ल में �ो बा� �म गई थी, र्वाह न तिनकली। इस मुलाका� ने

उसका इरा�ा और भी पक्का कर दि�या। इन्हें मेरे कारन यों मारे-मारे तिफरना पड़ रहा है। यहां इनका कौन अपना बैGा हुआ? �ो चाहे आकर हमला कर सक�ा है। मेरी इस जि�N�गानी को मिधक्कार!

प्रा�:काल Gाकुर जि�ला हातिकम के बंगले पर पहुंचा। साहब ने पूछा—�ुम अब �क चौधरी के कहने से सिछपा था?

Gाकुर—नहीं ह�ूर, अपनी �ान के खौफ से।

धरी साहब ने यह खबर सुनी, �ो सन्नाटे में आ गए। अब क्या हो? अगर मुक�मे की पैरर्वाी न की गई �ो Gाकुर का बचना मुश्किfकल है। पैरर्वाी कर�े है, �ो इसलामी दुतिनया

में �हलका पड़ �ा�ा है। चारों �रफ से फ�रे्वा तिनकलने लगेंगे। उधर मुसलमानों ने Gान ली तिक इसे फांसी दि�लाकर ही छोड़ेंगे। आपस में चं�ा तिकया गया। मुल्लाओं ने मसजि�� में चं�े की अपील की, र्द्वार-र्द्वार झोली बांधकर घूमे। इस पर कौमी मुक�मे का रंग चढ़ाया गया।

चौ

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मुसलमान र्वाकीलों को नाम लूटने का मौका मिमला। आसपास के जि�लों में लोग जि�हा� में शरीक होने के सिलए आने लगे।

चौधरी साहब ने भी पैरर्वाी करने का तिनश्चय तिकया, चाहे तिक�नी ही आफ�े क्यों न सिसर पर आ पडे़। Gाकुर उन्हें इंसाफ की तिनगाह में बेकसूर मालूम हो�ा था और बेकसूर की र:ा करने में उन्हें तिकसी का खौफ न था, घर से तिनकल खडे़ हुए और शहर में �ाकर डेरा �मा सिलया।

छ: महीने �क चौधरी साहब ने �ान लड़ाकर मुक�मे की पैरर्वाी की। पानी की �रह रुपये बहाये, आंधी की �रह �ौडे़। र्वाह सब तिकया �ो जि�न्�गी में कभी न तिकया था, और न पीछे कभी तिकया। अहलकारों की खुशाम�ें कीं, र्वाकीलों के ना� उGाये, हतिकमों को न�रें �ीं और Gाकुर को छुड़ा सिलया। सारे इलाके में धूम मच गई। जि�सने सुना, �ंग रह गया। इसे कह�े हैं शराफ�! अपने नौकर को फांसी से उ�ार सिलया।

लेतिकन साम्प्र�ामियक रे्द्वष ने इस सत्काय को और ही आंखों से �ेखा—मुसलमान झल्लाये, तिहन्दुओं ने बगलें ब�ाईं। मुसलामन समझे इनकी रही-सही मुसलमानी भी गायब हो गई। तिहन्दुओ ने खयाल तिकया, अब इनकी शुजिद्ध कर लेनी चातिहए, इसका मौका आ गया। मुल्लाओं ने �ारे-�ोर से �बलीग की हांक लगानी शुरू की, तिहन्दुओ ने भी संगGन का झंडा उGाया। मुसलमानों की मुलसमानी �ाग उGी और तिहन्दुओ का तिहन्दुत्र्वा। Gाकुर के क�म भी इस रेले में उखड़ गये। मनचले थे ही, तिहन्दुओं के मुखिखया बन बैGे। जि�न्�गी मे कभी एक लोटा �ल �क सिशर्वा को न चढ़ाया था, अब �ेर्वाी-�ेर्वा�ाओं के नाम पर लG चलाने के सिलए उद्य� हो गए। शुजिद्ध करने को कोई मुसलमान न मिमला, �ो �ो-एक चमारो ही की शुजिद्ध करा डाली। चौधरी साहब के दूसरे नौकरों पर भी असर पड़ा; �ो मुसलमान कभी मसजि�� के सामने खडे़ न हो�े थे, र्वाे पांचों र्वाक्त की नमा� अ�ा करने लगे, �ो तिहन्दू कभी मजिन्�ररों में झांक�े न थे, र्वाे �ोनों र्वाक्त सन्ध्या करने लगे।

ब��ी में तिहन्दुओं की संख्या अमिधक थी। उस पर Gाकुर भ�नसिसNह बने उनके मुखिखया, जि�नकी लाGी का लोह सब मान�े थे। पहले मुसमान, संख्या में कम होने पर भी, उन पर गासिलब रह�े थे, क्योंतिक र्वाे संगदिG� न थे, लेतिकन अब र्वाे संगदिG� हो गये थे, मुट्ठी-भर मुसलमान उनके सामने क्या Gहर�े।

एक साल और गु�र गया। तिफर �न्माष्टमी का उत्सर्वा आया। तिहन्दुओ को अभी �क अपनी हार भूली न थी। गुप्� रूप से बराबर �ैयारिरयां हो�ी रह�ी थी। आ� प्रा�:काल ही से भक्त लोग मजिन्�रर में �मा होने लगे। सबके हाथों में लादिGयां थीं, तिक�ने ही आ�मिमयों ने कमर में छुरे सिछपा सिलए थे। छेड़कर लड़ने की राय पक्की हो गई थी। पहले कभी इस उत्सर्वा में �ुलूस न तिनकला था। आ� धूम-धाम से �ुलूस भी तिनकलने की Gहरी।

�ीपक �ल चुके थे। मसजि��ों में शाम की नमा� होने लगी थी। �ुलूस तिनकला। हाथी, घोडे़, झंडे-झंतिडयां, बा�े-गा�े, सब साथ थे। आगे-आगे भ�नसिसNह अपने अखाडे़ के पट्ठों को सिलए अकड़�े चले �ा�े थे।

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�ामा मसजि�� सामने दि�खाई �ी। पट्ठों ने लादिGयां संभालीं, सब लोग स�क हो गये। �ो लोग इधर-उधर तिबखरे हुए थे, आकर सिसमट गये। आपस में कुछ काना-फूसी हुई। बा�े और �ोर से ब�ने लगगे। �य�यकार की ध्र्वातिन और �ोर से उGने लगी। �ुलूस मसजि�� के सामने आ पहुंचा।

सहसा एक मुसलमान ने मसजि�� से तिनकलकर कहा—नमा� का र्वाक्त है, बा�े बन्� कर �ो।

भ�नसिसNह—बा�े न बन्� होंगे।मुसलमान—बन्� करने पड़ेंगे।भ�नसिसNह—�ुम अपनी नमा� क्यों नहीं बन्� कर �े�े?मुसलमान—चौधरी साहब के बल पर म� फूलना। अबकी होश Gंडे हो �ायेंगे।भ�नसिसNह—चौधरी साहब के बल पर �ुम फूलो, यहां अपने ही बल का भरोसा हैं

यह धम का मामला है।इ�ने में कुछ और मुसलमान तिनकल आए, और बा� बन्� करने का आग्रह करने

लगे, इधर और �ोर से बा�े ब�ने लगे। बा� बढ़ गई। एक मौलर्वाी ने भ�नसिसNह को कातिफर कह दि�या। Gाकुर ने उसकी �ाढ़ी पकड़ ली। तिफर क्या था। सूरमा लोग तिनकल पडे़, मार-पीट शुरू हो गई। Gाकुर हल्ला मारकर मसजि�� में घुस गये, और मसजि�� के अन्�र मार-पीट होने लगी। यह नहीं कहा �ा सक�ा तिक मै�ान तिकसके हाथ रहा। तिहन्दू कह�े थे, हमने ख�ेड़-ख�ेड़कर मारा, मुसलामन कह�े थे, हमने र्वाह मार मारी तिक तिफर सामने नहीं आएगंे। पर इन तिर्वार्वाा�ों की बीच में एक बा� मान�े थे, और र्वाह थी Gाकुर भ�नसिसNह की अलौतिकक र्वाीर�ा। मुसलमानों का कहना था तिक Gाकुर न हो�ा �ो हम तिकसी को जि�न्�ा न छोड़�े। तिहन्दू कह�े थे तिक Gाकुर सचमुच महार्वाीर का अर्वा�ार है। इसकी लादिGयों ने उन सबों के छक्के छुड़ा दि�ए।

उत्सर्वा समाप्� हो चुका था। चौधरी साहब �ीर्वाानखाने में बैGे हुए हुक्का पी रहे थे। उनका मुख लाल था, त्यौंरिरया चढ़ी हुईं थी, और आंखों से सिचनगारिरयां-सी तिनकल रहीं थीं। ‘खु�ा का घर’ नापाक तिकया गया। यह ख्याल रह-रहकर उनके कले�े को भसोस�ा था।

खु�ा का घर नापाक तिकया गया! �ासिलमों को लड़ने के सिलए क्या नीचे मै�ान में �गह न थी! खु�ा के पाक घर में यह खून-खच्चर! मुसजि�� की यह बेहुरम�ी! मजिन्�रर भी खु�ा का घर है और मसजि�� भी। मुसलमान तिकसी मजिन्�रर को नापाक करने के सिलए स�ा के लायक है, क्या तिहन्दू मसजि�� को नापाक करने के सिलए उसी स�ा के लायक नहीं?

और यह हरक� Gाकुर ने की! इसी कसूर के सिलए �ो उसने मेरे �ामा� को कत्ल तिकया। मुझे मालूम हो�ा है तिक उसके हाथों ऐसा फेल होगा, �ो उसे फांसी पर चढ़ने �े�ा। क्यों उसके सिलए इ�ना हैरान, इ�ना ब�नाम, इ�ना �ेरबार हो�ा। Gाकुर मेरा र्वाफा�ार नौकर है। उसने बारहा मेरी �ान बचाई है। मेरे पसीने की �गह खून बहाने को �ैयार रह�ा है। लेतिकन आ� उसने खु�ा के घर को नापाक तिकया है, और उसे इसकी स�ा मिमलनी

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चातिहए। इसकी स�ा क्या है? �हनु्नम! �हनु्नम की आग के सिसर्वाा इसकी और कोई स�ा नहीं है। जि�सने खु�ा के घर को नापाक तिकया, उसने खु�ा की �ौहीन की। खु�ा की �ौहीन!

सहसा Gाकुर भ�नसिसNह आकर खडे़ हो गए।चौधरी साहब ने Gाकुर को क्रोधोन्मc आंखों से �ेखकर कहा—�ुम मसजि�� में घुसे

थे?भ�नसिसNह—सरकार, मौलर्वाी लोग हम लोगों पर टूट पडे़।चौधरी—मेरी बा� का �र्वााब �ो �ी—�ुम मसजि�� में घुसे थे?भ�नसिसNह—�ब उन लोगों ने मसजि��के भी�र से हमारे ऊपर पत्थर फें कना शुरू

तिकया �ब हम लोग उन्हें पकड़ने के सिलए मसजि�� में घुस गए।चौधरी—�ान�े हो मसजि�� खु�ा का घर है?भ�नसिसNह—�ान�ा हंू हु�ूर, क्या इ�ना भी नहीं �ान�ा।चौधरी—मसजि�� खु�ा का र्वाैसा ही पाक घर है, �ैसे मंदि�र।भ�नसिसNह ने इसका कुछ �र्वााब न दि�या।चौधरी—अगर कोई मुसलमान मजिन्�रर को नापाक करने के सिलए ग�न��नी है �ो

तिहन्दू भी मसजि�� को नापाक करने के सिलए ग�न��नी है।भ�नसिसNह इसका भी कुछ �र्वााब न �े सका। उसने चौधरी साहब को कभी इ�ने

गु�से में न �ेखा था।चौधरी—�ुमने मेरे �ामा� को कत्ल तिकया, और मैंने �ुम्हारी पैरर्वाी की। �ान�े हो

क्यों? इससिलए तिक मै अपने �ामा� को उस स�ा के लायक समझ�ा था �ो �ुमने उसे �ी। अगर �ुमने मेरे बेटे को, या मुझी को उस कसूर के सिलए मार डाला हो�ा �ो मैं �ुमसे खून का ब�ला न मांग�ा। र्वाही कसूर आ� �ुमने तिकया है। अगर तिकसी मुसलमान ने मसजि�� में �ुम्हें �हनु्नम में पहुंचा दि�या हो�ा �ो मुझे सच्ची खुशी हो�ी। लेतिकन �ुम बेहयाओं की �रह र्वाहां से बचकर तिनकल आये। क्या �ुम समझ�े हो खु�ा �ुम्हें इस फेल की स�ा न �ेगा? खु�ा का हुक्म है तिक �ो उसकी �ौहीन करे, उसकी ग�न मार �ेनी चातिहए। यह हर एक मुसलमान का फ� है। चोर अगर स�ा न पारे्वा �ो क्या र्वाह चोर नहीं है? �ुम मान�े हो या नहीं तिक �ुमने खु�ा की �ौहीन की?

Gाकुर इस अपराध से इनकार न कर सके। चौधरी साहब के सत्संग ने हGधम� को दूर कर दि�या था। बोले—हां साहब, यह कसूर �ो हो गया।

चौधरी—इसकी �ो स�ा �ुम �े चुके हो, र्वाह स�ा खु� लेने के सिलए �ैयार हो?Gाकुर—मैंने �ान-बूझकर �ो दूल्हा मिमयां को नहीं मारा था।चौधरी—�ुमने न मारा हो�ा, �ो मैं अपने हाथों से मार�ा, समझ गए! अब मैं �ुमसे

खु�ा की �ौहीन का ब�ला लूंगा। बोलो, मेरे हाथों चाह�े हो या अ�ाल� के हाथों। अ�ाल� से कुछ दि�नों के सिलए स�ा पा �ाओंगे। मैं कत्ल करंूगा। �ुम मेरे �ो�� हो, मुझे �ुमसे

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मु�लक कीना नहीं है। मेरे दि�ल को तिक�ना रं� है, यह खु�ा के सिसर्वाा और कोई नहीं �ान सक�ा। लेतिकन मैं �ुम्हें कत्ल करंूगा। मेरे �ीन का यह हुक्म है।

यह कह�े हुए चौधरी साहब �लर्वाार लेकर Gाकुर के सामने खडे़ हो गये। तिर्वासिचत्र दृfय था। एक बूढा आ�मी, सिसर के बाल पके, कमर झुकी, �लर्वाार सिलए एक �ेर्वा के सामने खड़ा था। Gाकुर लाGी के एक ही र्वाार से उनका काम �माम कर सक�ा था। लेतिकन उसने सिसर झुका दि�या। चौधरी के प्रति� उसक रोम-रोम में श्रद्धा थी। चौधरी साहब अपने �ीन के इ�ने पक्के हैं, इसकी उसने कभी कल्पना �क न की थी। उसे शाय� धोखा हो गया था तिक यह दि�ल से तिहन्दू हैं। जि�स �र्वाामी ने उसे फांसी से उ�ार सिलया, उसके प्रति� हिहNसा या प्रति�कार का भार्वा उसके मन में क्यों कर आ�ा? र्वाह दि�लेर था, और दि�लेरों की भांति� तिनष्कपट था। उसे इस समय क्रोध न था, पश्चाcाप था। �ीन कह�ा था—मारो। सxन�ा कह�ी थी—छोड़ो। �ीन और धम में संघष हो रहा था।

Gाकुर ने चौधरी का असमं�स �ेखा। ग�ग� कंG से बोला—मासिलक, आपकी �या मुझ पर हाथ न उGाने �ेगी। अपने पाले हुए सेर्वाक को आप मार नहीं सक�े। लेतिकन यह सिसर आपका है, आपने इसे बचाया था, आप इसे ले सक�े हैं, यह मेरे पास आपकी अमान� थी। र्वाह अमान� आपको मिमल �ाएगी। सबेरे मेरे घर तिकसी को भे�कर मंगर्वाा लीजि�एगा। यहां दंूगा, �ो उपद्रर्वा खड़ा हो �ाएगा। घर पर कौन �ायेगा, तिकसने मारा। �ो भूल-चूक हुई हो, :मा कीजि�एगा।

यह कह�ा हुआ Gाकुर र्वाहां से चला गया।—‘माधुरी’, अपै्रल, १९२५

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पे्रम-सूत्र

सार में कुछ ऐसे मनुष्य भी हो�े हैं जि�न्हें दूसरों के मुख से अपनी �त्री की सौं�य-प्रशंसा सुनकर उ�ना ही आनन्� हो�ा है जि��नी अपनी कीर्ति�N की चचा सुनकर।

पक्षिश्चमी सभ्य�ा के प्रसार के साथ ऐसे प्राक्षिणयों की संख्या बढ़�ी �ा रही है। पशुपति�नाथ र्वामा इन्हीं लोगों में थ। �ब लोग उनकी परम सुन्�री �त्री की �ारीफ कर�े हुए कह�े—ओहो! तिक�नी अनुपम रूप-रासिश है, तिक�नी अलौतिकक सौन्�य है, �ब र्वामा�ी मारे खुशी और गर्वा के फूल उG�े थे।

सं

संध्या का समय था। मोटर �ैयार खड़ी थी। र्वामा�ी सैर करने �ा रहे थे, तिकन्�ु प्रभा �ाने को उत्सुक नहीं मालूम हो�ी थी। र्वाह एक कुस� पर बैGी हुई कोई उपन्यास पढ़ रही थी।

र्वामा �ी ने कहा—�ुम �ो अभी �क बैGी पढ़ रही हो।‘मेरा �ो इस समय �ाने को �ी नहीं चाह�ा।’‘नहीं तिप्रये, इस समय �ुम्हारा न चलना सिस�म हो �ाएगा। मैं चाह�ा हंू तिक �ुम्हारी

इस मधुर छतिर्वा को घर से बाहर भी �ो लोग �ेखें।’‘�ी नहीं, मुझे यह लालसा नहीं है। मेरे रूप की शोभा केर्वाल �ुम्हारे सिलए है और

�ुम्हीं को दि�खाना चाह�ी हंू।’‘नहीं, मैं इ�ना �र्वााथा- नहीं हंू। �ब �ुम सैर करने तिनकलो, मैं लोगों से यह सुनना

चाह�ा हंू तिक तिक�नी मनोहर छतिर्वा है! पशुपति� तिक�ना भाग्यशाली पुरुष है!’‘�ुम चाहो, मैं नहीं चाह�ी। �ो इसी बा� पर आ� मैं कहीं नहीं �ाऊंगी। �ुम भी

म� �ाओ, हम �ोनों अपने ही बाग में टहलेंगे। �ुम हौ� के तिकनारे हरी घास पर लेट �ाना, मैं �ुम्हें र्वाीणा ब�ाकर सुनाऊंगी। �ुम्हारे सिलए फूलों का हार बनाऊंगी, चां�नी में �ुम्हारे साथ आंख-मिमचौनी खेलूंगी।’

‘नहीं-नहीं, प्रभा, आ� हमें अर्वाfय चलना पडे़गा। �ुम कृष्णा से आ� मिमलने का र्वाा�ा कर आई हो। र्वाह बैGी हमारा रा��ा �ेख रही होगी। हमारे न �ाने से उसे तिक�ना दु:ख होगा!’

हाय! र्वाही कृष्णा! बार-बार र्वाही कृष्णा! पति� के मुख से तिनत्य यह नाम सिचनगारी की भांति� उड़कर प्रभा को �लाकर भ�म् कर �े�ा था।

प्रभा को अब मालूम हुआ तिक आ� ये बाहर �ाने के सिलए क्यों इ�ने उत्सुक हैं! इसीसिलए आ� इन्होंने मुझसे केशों को संर्वाारने के सिलए इ�ना आग्रह तिकया था। र्वाह सारी �ैयारी उसी कुलटा कृष्णा से मिमलने के सिलए थी!

उसने दृढ़ �र्वार में कहा—�ुम्हें �ाना हो �ाओ, मैं न �ाऊंगी।र्वामा�ी ने कहा—अच्छी बा� है, मैं ही चला �ाऊंगा।

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शुपति� के �ाने के बा� प्रभा को ऐसा �ान पड़ा तिक र्वाह बादिटका उसे काटने �ौड़ रही है। ईष्या की ज्र्वााला से उसका कोमल शरीर-हृ�य भ�म होने लगा। र्वाे र्वाहां कृष्णा के

साथ बैGे तिर्वाहार कर रहे होंगे—उसी नांतिगन के-से केशर्वााली कृष्णा के साथ, जि�सकी आंखों में घा�क तिर्वाष भरा हुआ है! म�� की बुजिद्ध क्यों इ�नी सू्थल हो�ी है? इन्हें कृष्णा की चटक-मटक ने क्यों इ�ना मोतिह� कर सिलया है? उसके मुख से मेरे पैर का �लर्वाा कहीं सुन्�र है। हां, मैं एक बचे्च की मां हंू और र्वाह नर्वा यौर्वाना है! �रा �ेखना चातिहए, उनमें क्या बा�ें हो रही हैं।

पयह सोचकर र्वाह अपनी सास के पास आकर बोली—अम्मा, इस समय अकेले �ी

घबरा�ा है, चसिलए कहीं घूम आर्वाें।सास बहू पर प्राण �े�ी थी। चलने पर रा�ी हो गई। गाड़ी �ैयार करा के �ोनों घूमने

चलीं। प्रभा का श्रृंगार �ेखकर भ्रम हो सक�ा था तिक र्वाह बहु� प्रसन्न है, तिकन्�ु उसके अन्���ल में एक भीषण ज्र्वााला �हक रही थी, उसे सिछपाने के सिलए र्वाह मीGे �र्वार में एक गी� गा�ी �ा रही थी।

गाड़ी एक सुरम्य उपर्वान में उड़ी �ा रही थी। सड़के के �ोनों ओर तिर्वाशाल र्वाृ:ों की सुख� छाया पड़ रही थी। गाड़ी के कीम�ी घोडे़ गर्वा से पूछं और सिसर उGोय टप-टप कर�े �ा रहे थे। अहा! र्वाह सामने कृष्णा का बंगला आ गया, जि�सके चारों ओर गुलाब की बेल लगी हुई थी। उसके फूल उस समय तिन�य कांटों की भांति� प्रभा के हृ�य में चुभने लगे। उसने उड़�ी हुई तिनगाह से बंगले की ओर �ाका। पशुपति� का प�ा न था, हां कृष्णा और उसकी बहन माया बगीचे में तिर्वाचर रही थीं। गाड़ी बंगले के सामने से तिनकल ही चुकी थी तिक �ोनों बहनों ने प्रभा को पुकारा और एक :ण में �ोनों बासिलकाए ं तिहरतिनयों की भांति� उछल�ी-कू��ी फाटक की ओर �ौड़ीं। गाड़ी रुक गई।

कृष्णा ने हंसकर सास से कहा—अम्मा �ी, आ� आप प्रभा को एकाध घण्टे के सिलए हमारे पास छोड़ �ाइए। आप इधर से लौटें �ब इन्हें ले�ी �ाइएगा, यह कहकर �ोनों ने प्रभा को गाड़ी से बाहर खींच सिलया। सास कैसे इन्कार कर�ी। �ब गाड़ी चली गई �ब �ोनों बहनों ने प्रभा को बगीचे में एक बेंच पर �ा तिबGाया। प्रभा को इन �ोनों के साथ बा�ें कर�े हुए बड़ी जिझझक हो रही थी। र्वाह उनसे हंसकर बोलना चाह�ी थी, अपने तिकसी बा� से मन का भार्वा प्रकट नहीं करना चाह�ी थी, तिकन्�ु हृ�य उनसे खिखNचा ही रहा।

कृष्णा ने प्रभा की साड़ी पर एक �ीव्र दृमिष्ट डालकर कहा—बहन, क्या यह साड़ी अभी ली है? इसका गुलाबी रंग �ो �ुम पर नहीं खिखल�ा। कोई और रंग क्यों नहीं सिलया?

प्रभा—उनकी पसन्� है, मैं क्या कर�ी।

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�ोनों बहनें Gट्ठा मारकर हंस पड़ीं। तिफर माया ने कहा—उन महाशय की रुसिच का क्या कहना, सारी दुतिनया से तिनराली है। अभी इधर से गये हैं। सिसर पर इससे भी अमिधक लाल पगड़ी थी।

सहसा पशुपति� भी सैर से तिनकल�ा हुआ सामने से तिनकला। प्रभा को �ोनों बहनों के साथ �ेखकर उसके �ी में आया तिक मोटर रोक ले। र्वाह अकेले इन �ोनों से मिमलना सिशष्टाचार के तिर्वारूद्ध समझ�ा था। इसीसिलए र्वाह प्रभा को अपने साथ लाना चाह�ा था। �ा�े समय र्वाह बहु� साहस करने पर भी मोटर से न उ�र सका। प्रभा को र्वाहां �ेखकर इस सुअर्वाार से लाभ उGाने की उसकी बड़ी इच्छा हुई। लेतिकन �ोनों बहनों की हा�य ध्र्वातिन सुनकर र्वाह संकोचर्वाश न उ�रा।

थोड़ी �ेर �क �ीनों रमक्षिणयां चुपचाप बैGी रहीं। �ब कृष्णा बोली—पशुपति� बाबू यहां आना चाह�े हैं पर शम के मारे नहीं आये। मेरा तिर्वाचार है तिक संबंमिधयों को आपस में इ�ना संकोच न करना चातिहए। समा� का यह तिनमय कम से कम मुझे �ो बुरा मालूम हो�ा है। �ुम्हारा क्या तिर्वाचार है, प्रभा?

प्रभा ने वं्यग्य भार्वा से कहा—यह समा� का अन्याय है?प्रभा इस समय भूमिम की ओर �ाक रही थी। पर उसकी आंखों से ऐसा ति�रसकार

तिनकल रहा था जि�सने �ोनों बहनों के परिरहास को लxा-सूचक मौन में परिरण� कर दि�या। उसकी आंखों से एक सिचनगारी-सी तिनकली, जि�सने �ोनों युर्वाति�यों के आमो�-प्रमोछ और उस कुर्वाृक्षिc को �ला डाला �ो प्रभा के पति�-परायण हृ�य को बाणों से र्वाेध रही थी, उस हृ�य को जि�समें अपने पति� के सिसर्वाा और तिकसी को �गह न थी।

माया ने �ब �ेखा तिक प्रभा इस र्वाक्त क्रोध से भरी बैGी है, �ब बेंच से उG खड़ी हुई और बोली—आओ बहन, �रा टहलें, यहां बैGे रहने से �ो टहलना ही अच्छा है।

प्रभा ज्यों की त्यों बैGी रही। पर र्वाे �ोनों बहने बाग मे टहलने लगीं। उस र्वाक्त प्रभा का ध्यान उन �ोनों के र्वा�त्राभूषण की ओर गया। माया बंगाल की गुलाबी रेशमी की एक महीन साड़ी पहने हुए थी जि�समें न �ाने तिक�ने चुन्नटें पड़ी हुई थीं। उसके हाथ में एक रेशमी छ�री थी जि�से उसने सूय की अमिम� तिकरणों से बचने के सिलए खोल सिलया था। कृष्णा के र्वा�त्र भी र्वाैसे ही थे। हां, उसकी साड़ी पीले रंग की थी और उसके घूंघर र्वााले बाल साड़ी के नीचे से तिनकल कर माथे और गालों पर लहरा रहे थे।

प्रभा ने एक ही तिनगाह से �ाड़ सिलया तिक इन �ोनों युर्वाति�यों में तिकसी को उसके पति� से पे्रम नहीं है। केर्वाल आमो� सिलप्सा के र्वाशीभू� होकर यह �र्वायं ब�नाम होंगी और उसके सरल हृ�य पति� को भी ब�नाम कर �ेंगी। उसने Gान सिलया तिक मैं अपने भ्रमर को इन तिर्वाषाक्त पुष्पों से बचाऊंगी और चाहे �ो कुछ हो उसे इनके ऊपर मंडराने न दंूगी, क्योंतिक यहां केर्वाल रूप और बास है, रस का नाम नहीं।

प्रभा अपने घर लौट�े ही उस कमरे में गई, उसकी लड़की शान्तिन्� अपनी �ाई की गो� में खेल रही थी। अपनी नन्हीं �ी�ी-�ाग�ी गुतिड़या की सूर� �ेख�े ही प्रभा की आंखें स�ल

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हो गई। उसने मा�ृ�नेह से तिर्वाभोर होकर बासिलका को गो� में उGा सिलया, मानो तिकसी भयंकर पशु से उसकी र:ा कर रही है। उस दु�सह र्वाे�ना की �शा में उसके मुंह से यह शब्� तिनकला गए-बच्ची, �ेरे बाप को लोग �ुझसे छीनना चाह�े हैं! हाय, �ू क्या अनाथ हो �ाएगी? नहीं-नहीं, अगर मेरा, बस चलेगा �ो मैं इन तिनबल हाथों से उन्हें बचाऊंगी।

आ� से प्रभा तिर्वाषा�मय भार्वानाओं में मग्न रहने लगी। आने र्वााली तिर्वापक्षिc की कल्पना करके कभी-कभी भया�ुर होकर सिचल्ला पड़�ी, उसकी आंखों में उस तिर्वापक्षिc की ��र्वाीर खींच �ा�ी �ो उसकी ओर क�म बढ़ाये चली आ�ी थी, पर उस बासिलका की �ो�ली बा�ें और उसकी आंखों की तिन:शंक ज्योति� प्रभा के तिर्वाकल हृ�य को शान्� कर �े�ी। र्वाह लड़की को गो� में उGा ले�ी और र्वाह मधुर हा�य-छतिर्वा �ो बासिलका के प�ले-प�ले गुलाबी ओGों पर खेल�ी हो�ी, प्रभा की सारी शंकाओं और बाधाओं को सिछन्न-क्षिभन्न कर �े�ी। उन तिर्वाश्वासमय नेत्रों में आशा का प्रकाश उसे आश्व�� कर �े�ा।

हां! अभातिगनी प्रभा, �ू क्या �ान�ी है क्या होनेर्वााला है?

ष्मकाल की चां�नी रा� थी। सप्�मी का चां� प्रकृति� पर अपना मन्� शी�ल प्रकाश डाल रहा था। पशुपति� मौलसिसरी की एक डाली हाथ से पकडे़ और �ने से सिचपटा हुआ

माया के कमरे की ओर टकटकी लगाये �ाक रहा था कमरे का र्द्वार खुला हुआ था और शान्� तिनशा में रेशमी सातिड़यों की सरसराहट के साथ �ो रमक्षिणयों की मधुर हा�य-ध्र्वातिन मिमलकर पशुपति� के कानों �क पहुंच�े-पहुंच�े आकाश में तिर्वालीन हो �ा�ी थी। एकाएक �ोनों बहनें कमरे से तिनकलीं और उसी ओर चलीं �हां पशुपति� खड़ा था। �ब �ोनों उस र्वाृ: के पास पहुंची �ब पशुपति� की परछाईं �ेखकर कृष्णा चौंक पड़ी और बोली—है बहन! यह क्या है?

ग्री

पशुपति� र्वाृ: के नीचे से आकर सामने खड़ा हो गया। कृष्णा उन्हें पहचान गई और कGोर �र्वार में बोली—आप यहां क्या कर�े हैं? ब�लाइए, यहां आपका क्या काम है? बोसिलए, �ल्�ी।

पशुपति� की सिसट्टभ्-तिपट्टी गुम हो गई। इस अर्वासर के सिलए उसने �ो पे्रम-र्वााक्य रटे थे र्वाे सब तिर्वा�मृ� हो गये। सशंक होकर बोला—कुछ नहीं तिप्रय, आ� सन्ध्या समय �ब मैं आपके मकान के सामने से आ रहा था �ब मैंने आपको अपनी बहन से कह�े सुना तिक आ� रा� को आप इस र्वाृ: के नीचे बैGकर चां�नी का आनन्� उGाएगंी। मैं भी आपसे कुछ कहने के सिलए....आपके चरणों पर अपना...समर्तिपN� करने के सिलए...

यह सुन�े ही कृष्णा की आंखों से चंचल ज्र्वााला-सी तिनकली और उसके ओGों पर वं्यग्यपूण हा�य की झलक दि�खाई �ी। बोली—महाशय, आप �ो आ� एक तिर्वासिचत्र अक्षिभनय करने लगे, कृपा करके पैरों पर से उदिGए और �ो कुछ कहना चाह�े हों, �ल्� कह डासिलए

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और जि��ने आंसू तिगराने हों एक सेकेण्ड में तिगरा �ीजि�ए, मैं रुक-रुककर और मिघमिघया-मिघमिघयाकर बा�ें करनेर्वाालों को पसन्� नहीं कर�ी। हां, और �रा बा�ें और रोना साथ-साथ न हों। कतिहए क्या कहना चाह�े हैं....आप न कहेंगे? लीजि�ए समय बी� गया, मैं �ा�ी हंू।

कृष्णा र्वाहां से चल �ी। माया भी उसके साथ ही चली गई। पशुपति� एक :ण �क र्वाहां खड़ा रहा तिफर र्वाह भी उनके पीछे-पीछे चला। मानो र्वाह सुई है �ो चुम्बक के आकषण से आप ही आप खिखNचा चला �ा�ा है।

सहसा कृष्णा रुक गई और बोली—सुतिनए पशुपति� बाबू, आ� संध्या समय प्रभा की बा�ों से मालूम हो गया तिक उन्हें आपका और मेरा मिमलना-�ुलना तिबल्कुल नहीं भा�ा...

पशुपति�—प्रभा की �ो आप चचा ही छोड़ �ीजि�ए।कृष्णा—क्यों छोड़ दंू? क्या र्वाह आपकी �त्री नहीं है? आप इस समय उसे घर में

अकेली छोड़कर मुझसे क्या कहने के सिलए आये हैं? यही तिक उसकी चचा न करंू?पशुपति�—�ी नहीं, यह कहने के सिलए तिक अब र्वाह तिर्वारहाखिग्न नहीं सही �ा�ी।कृष्णा ने GG्टा मारकर कहा—आप �ो इस कला में बहु� तिनपुण �ान पड़�े हैं।

पे्रम! समपण! तिर्वारहाखिग्न! यह शब्� आपने कहां सीखे!पशुपति�—कृष्णा, मुझे �ुमसे इ�ना पे्रम है तिक मैं पागल हो गया हंू।कृष्णा—�ुम्हें प्रभा से क्यों पे्रम नहीं है?पशुपति�—मैं �ो �ुम्हारा उपासक हंू।कृष्णा—लेतिकन यह क्यों भूल �ा�े हो तिक �ुम प्रभा के �र्वाामी हो?पशुपति�—�ुम्हारा �ो �ास हंू।कृष्णा—मैं ऐसी बा�ें नहीं सुनना चाह�ी।पशुपति�—�ुम्हें मेरी एक-एक बा� सुननी पडे़गी। �ुम �ो चाहो र्वाह करने को मैं

�ैयार हंू।कृष्णा—अगर यह बा�ें कहीं र्वाह सुन लें �ो?पशुपति�—सुन ले �ो सुन ले। मैं हर बा� के सिलए �ैयार हंू। मैं तिफर कह�ा हंू, तिक

अगर �ुम्हारी मुझ पर कृपादृमिष्ट न हुई �ो मैं मर �ाऊंगा।कृष्णा—�ुम्हें यह बा� कर�े समय अपनी पत्नी का ध्यान नहीं आ�ा?पशुपति�—मैं उसका पति� नहीं होना चाह�ा। मैं �ो �ुम्हारा �ास होने के सिलए बनाया

गया हंू। र्वाह सुग- �ो इस समय �ुम्हारी गुलाबी साड़ी से तिनकल रही है, मेरी �ान है। �ुम्हारे ये छोटे-छोटे पांर्वा मेरे प्राण हैं। �ुम्हारी हंसी, �ुम्हारी छतिर्वा, �ुम्हारा एक-एक अंग मेरे प्राण हैं। मैं केर्वाल �ुम्हारे सिलए पै�ा हुआ हंू।

कृष्णा—भई, अब �ो सुन�े-सुन�े कान भर गए। यह व्याख्यान और यह गद्य-काव्य सुनने के सिलए मेरे पास समय नहीं है। आओ माया, मुझे �ो स�¨ लग रही है। चलकर अन्�र बैGे।

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यह तिनvुर शब्� सुनकर पशुपति� की आंखों के सामने अंधेरा छा गया। मगर अब भी उसका मन यही चाह�ा था तिक कृष्णा के पैरों पर तिगर पडे़ और इससे भी करुण शब्�ों में अपने पे्रम-कथा सुनाए। तिकन्�ु �ोनों बहनें इ�नी �ेर में अपने कमरे में पहुंच चुकी थीं और र्द्वार बन्� कर सिलया था। पशुपति� के सिलए तिनराश घर लौट आने के सिसर्वाा कोई चारा न रह गया। कृष्णा अपने कमरे में �ाकर थकी हुई-सी एक कुस� पर बैG गई और सोचने लगी—कहीं प्रभा सुन ले �ो बा� का ब�ंगड़ हो �ाय, सारे शहर में इसकी चचा होने लगे और हमें कहीं मुंह दि�खाने को �गह न रहे। और यह सब एक �रा-सी दि�ल्लगी के कारण पर पशुपति� का प्रम सच्चा हें, इसमें सन्�ेह नहीं। र्वाह �ो कुछ कह�ा है, अन्�:करण से कह�ा है। अगर में इस र्वाक्त �रा-सा संके� कर दँू �ो र्वाह प्रभा को भी छोड़ �ेगा। अपने आपे में नहीं है। �ो कुछ कहूँ र्वाह करने को �ैयार है। लेतिकन नहीं, प्रभा डरो म�, मै। �ुम्हारा सर्वानाश न करँुगी। �ुम मुझसे बहु� नीचे हों यह मेरे अनुपम सौन्�य के सिलए गौरर्वा की बा� नहीं तिक �ुम �ैसी रुप-तिर्वाहीना से बा�ी मार ले �ाऊं। अभागे पशुपति�, �ुम्हारे भाग्य में �ो कुछ सिलखा था र्वाह हो चुका। �ुम्हारे ऊपर मुझे �या आ�ी है, पर क्या तिकया �ाय।

४क ख� पहले हाथ पड़ चुका था। यह दूसरा पत्र था, �ो प्रभा को पति��ेर्वा के कोट की �ेब में मिमला। कैसा पत्र था आह इसे पढ़�े ही प्रभा की �ेह में एक ज्र्वााला-सी उGने

लगी। �ो यों कतिहए तिक ये अब कृष्णा के �ो चुके अब इसमें कोई सन्�ेह नहीं रहा। अब मेरे �ीने को मिधक्कार है �ब �ीर्वान में कोई सुख ही नहीं रहा, �ो क्यों न इस बोझ को उ�ार कर फेक दँू। र्वाही पशुपति�, जि�से कतिर्वा�ा से लेशमात्र भी रुसिच न थी, अब कतिर्वा हो गया था और कृष्णा को छन्�ों में पत्र सिलख�ा था। प्रभा ने अपने �र्वाामी को उधर से हटाने के सिलए र्वाह सब कुछ तिकया �ो उससे हो सक�ा था, पर पे्रम का प्रर्वााह उसके रोके न रुका और आ� उस प्रर्वााह �के उसके �ीर्वान की नौका तिनराधार र्वाही चली �ा रही है।

इसमें सन्�ेह नहीं तिक प्रभा को अपने पति� से सच्चा पे्रम था, लेतिकन आत्मसमपण की �ुष्टी आत्मसमपण से ही हो�ी है। र्वाह उपे:ा और तिनvुर�ा को सहन नही कर सक�ा। प्रभा के मन के तिर्वाद्रोह का भार्वा �ाग्र� होने लगा। उसके आत्माक्षिभमान �ा�ा रहा। उसके मन मे न �ाने तिक�ने भीषण संकल्प हो�े, तिकन्�ु अपनी असमथ�ा और �ीन�ा पर आप ही आप रोने लग�ी। आह! उसका सर्वा�र्वा उससे छीन सिलया गया और अब संसार मे उसका कोई मिमत्र नहीं, कोई साथी नही!

पशुपति� आ�कल तिनत्य बनार्वा-सर्वाार मे मग्न रह�ा, तिनत्य नये-नये सूट ब�ल�ा। उसे आइने के सामने अपने बालों को संर्वाार�े �ेखकर प्रभा की आखों से आंसू बहने लग�े। सह सारी �ैयारी उसी दुष्ट के सिलए हो रही है। यह सिचन्�ा �हरीले सापं की भांति� उसे डस ले�ी थी; र्वाह अब अपने पति� को प्रत्येक बा� प्रत्येक गति� को सूक्ष्म दृमिष्ट से �ेख�ी। तिक�नी ही

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बा�ें जि�न पर र्वाह पहले ध्यान भी न �े�ी थी, अब रह�य से भरी हुई �ान पड़�ी। र्वाह रा� का न सो�ी, कभी पशुपति� की �ेब टटोल�ी, कभी उसकी मे� पर रक्खें हुए पत्रों को पढ़�ी! इसी टोह मे र्वाह रा�-दि�न पड़ी रह�ी।

र्वाह सोचने लगी—मै क्या पे्रम-र्वांसिच�ा बनी बैGी रहंू? क्या मै प्राणेश्वरी नही बन सक�ी? क्या इसे परिरत्यक्ता बनकर ही काटना होगा! आह तिन�यी �ूने मुझे धोखा दि�या। मुझसे आंखें फेर ली। पर सबसे बड़ा अनथ यह तिकया तिक मुझे �ीरर्वान का कलुतिष� माग दि�खा दि�या। मै भी तिर्वाश्वासघा� करके �ुझे धोखा �ेकर क्या कलुतिष� पे्रम का आन्न� नही उGा सक�ी? अश्रुधारा से सीचंकर ही सही, पर क्या अपने सिलए कोई बादिटका नही लगा सक�ी? र्वाह सामने के मकान मे घुघंराले बालोंर्वााला युर्वाक रह�ा है और �ब मौका पा�ा है, मेरी ओर सचेष्ट नेत्रों से �ेख�ा । क्या केर्वाल एक पे्रम-कटा: से मै उसके हृ�य पर अमिधकार नहीं प्राप्� कर सक�ी? अगर मै इस भांति� तिनvुर�ा का ब�ला लूं �ो क्या अनुसिच� होगा? आखिखर मैने अपना �ीर्वान अपने पति� को तिकस सिलए सौंपा था? इसीसिलए �ो तिक सुख से �ीर्वान व्य�ी� करँू। चाहंू और चाही �ाऊं और इस पे्रम-साम्राज्य की अधीश्वर बनी रहंू। मगह आह! र्वाे सारी अक्षिभलाषाए ंधूल मे मिमल गई। अब मेरे सिलए क्या रह गया है? आ� यदि� मै मर �ाऊं �ो कौन रोयेगा? नहीं, घी के सिचराग �लाए �ाएगंें। कृष्णा हंसकर कहेगी—अब बस हम है और �ुम। हमारे बीच मे कोई बाधा, कोई कंटक नहीं है।

आखिखर प्रभा इन कलुतिष� भार्वानाओं के प्रर्वााह मे बह चली। उसके हृ�य में रा�ों को, तिनद्रा और आशतिर्वाहीन रा�ों को बडे़ प्रबल र्वाेग से यह �ूफान उGने लगा। पे्रम �ो अब तिकसी अन्य पुरूष्ज्ञ के साथ कर सक�ी थी, यह व्यापार �ो �ीर्वान में केर्वाल एक ही बार हो�ा है। लेतिकन र्वाह प्राणेश्वरी अर्वाfय बन सक�ी थी और उसके सिलए एक मधुर मु�कान, एक बांकी तिनगाह काफी थी। और �ब र्वाह तिकसी की पे्रमिमका हो �ायेगी �ो यह तिर्वाचार तिक मैने पति� से उसकी बेर्वाफाई का ब�ला ले सिलया तिक�ना आनन्�प्र� होगा! �ब र्वाह उसके मुख की ओर तिक�ने गर्वा, तिक�ने सं�ोष, तिक�ने उल्लास से �ेखेगी।

सन्ध्या का समय था। पशुपति� सैर करने गया था। प्रभा कोGे पर चढ गई और सामने र्वााले मकान की ओर �ेखा। घुंघराले बोलोर्वााला युर्वाक उसके कोGे की ओर �ाक रहा था। प्रभा ने आ� पहली बार उस युर्वाक की ओर मु�करा कर �ेखा। युर्वाक भी मु�कराया और अपनी ग�न झुकाकर मानों यह संके� तिकया तिक आपकी पे्रम दृमिष्ट का क्षिभखारी हंू। प्रभा ने गर्वा से भरी हुई दृमिष्ट इधर-उधर �ौड़ाई, मानों र्वाह पशुपति� सेकहना चाह�ी थी—�ुम उस कुलटा केपैरो पड़�े हो और समझ�े हो तिक मेरे हृ�य को चोट नही लग�ी। लो �ुम भी �ेखो और अपने हृ�य पर चोट न लगने �ो, �ुम उसे प्यार करो, मै भी इससे हंसू-बोलू। क्यों? यह अच्छा नही लग�ा? इस दृfय को शान्� सिच� से नही �ेख सक�े? क्यों रक्त खौलने लग�ा है? मै र्वाही �ो कह रही हंू �ो �ुम कर रहे हो!

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आह! यदि� पशुपति� को ज्ञा� हो �ा�ा तिक मेरी तिनvुर�ा ने इस स�ी के हृ�य की तिक�नी कायापलट कर �ी है �ो क्या उसे अपने कृत्य पर पश्चा�ाप न हो�ा, क्या र्वाह अपने तिकये पर लस्जिx� न हो�ा!

प्रभा ने उस युर्वाक से इशारें मे कहा—आ� हम और �ुम पूर्वा र्वााले मै�ान में मिमलेगें और कोGे के नीचे उ�र आई।

प्रभा के हृ�य मे इस समय एक र्वाही उत्सुक�ा थी जि�समें प्रति�कार का आनन्� मिमक्षिश्र� था। र्वाह अपने कमरे मे �ाकर अपने चुने हुए आभूषण पहनने लगी। एक :ण मे र्वाह एक फालसई रंग की रेशमी साड़ी पहने कमरे से तिनकली और बाहर �ाना ही चाह�ी थी तिक शान्�ा ने पुकारा—अम्मा �ी, आप कहां �ा रहा है, मै भी आपके साथ चलंूगी।

प्रभा ने झट बासिलका को गो� मे उGा सिलया और उसेछा�ी से लगा�े ही उसके तिर्वाचारों ने पलटा खाया। उन बाल नेत्रों मे उसके प्रति� तिक�ना असीम तिर्वाश्वास, तिक�ना सरल �नेह, तिक�ना पतिर्वात्र पे्रम झलक रहा था। उसे उस समय मा�ा का कcव्य या� आया। क्या उसकी पे्रमाकां:ा उसके र्वाात्सल्य भार्वा को कुचल �ेगीं? क्या र्वाह प्रति�कार की प्रबल इच्छा पर अपने मा�ृ-कcव्य को बसिल�ान कर �ेगी? क्या र्वाह अपने :क्षिणक सुख के सिलए उस बासिलका का भतिर्वाष्य, उसका �ीर्वान धूल में मिमला �ेगी? प्रभा कीआखों से आसूं की �ो बूंदंू तिगर पड़ी। उसने कहा—नही, क�ातिप नहीं, मै अपनी प्यारी बच्ची के सिलए सब कुछ सह सक�ी हंू।

क महीना गु�र गया। प्रभा अपनी सिचन्�ाओं को भूल �ाने की चेष्टा कर�ी रह�ी थी, पर पशुपति� तिनत्य तिकसी न तिकसी बहने से कॄष्णा की चचा तिकया कर�ा। कभी-कभी

हंसकर कह�ा—प्रभा, अगर �ुम्हारी अनुमति� हो �ो मै कृष्णा से तिर्वार्वााह कर लूं। प्रभा इसके �र्वााब मे रोने के सिसर्वाा और क्या कर सक�ी थी?

एआखिखर एक दि�न पशुपति� ने उसे तिर्वानयपूण शब्�ों में कहा-कहा कहूं प्रभा, उस रमणी

की छतिर्वा मेरी आंखों से नही उ�र�ी। उसने मुझे कहीं का नही रक्खा। यह कहकरउसने कई बार अपना माथा Gोका। प्रभा का हृ�य करूणा से द्रतिर्वा� हो गया। उसकी �शा उस रोगी की-सी-थी �ो यह �ान�ा हो तिक मौ� उसके सिसर परखेल रही हैं, तिफर भी उसकी �ीर्वान-लालसा दि�न-दि�न बढ�ी �ा�ी हो। प्रभा इन सारी बा�ो पर भी अपने पति� से पे्रम कर�ी थी और �त्री-सुलभ �र्वाभार्वा के अनुसार कोई बहाना खो��ी थी तिक उसके अपराधों को भूल �ाय और उसे :माकर �े।

एक दि�न पशुपति� बड़ी रा� गये घर आया और रा�-भर नीं� मे ‘कृष्णा! कृष्णा!’ कहकर बरा�ा रहा। प्रभा ने अपने तिप्रय�म का यह आ�ना� सुना और सारी रा� चुपके-चुपके रोया की…बस रोया की!

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प्रा�: काल र्वाह पशुपति� के सिलए दुध का प्याला सिलये खड़ी थी तिक र्वाह उसके पैरा पर तिगर पड़ा और बोला—प्रभा, मेरी �ुमसे एक तिर्वानय है, �ुम्ही मेरी र:ा कर सक�ी हो, नहीं मै मर �ाऊंगा। मै �न�ा हंू तिक यह सुनकर �ुम्हें बहु� कष्टहोगा, लेतिकन मुझ पर �या करों। मै �ुम्हारी इस कृपा को कभी न भूलूंगा। मुझ पर �या करो।

प्रभा कांपने लगी। पशुपति� क्या कहना चाह�ा है, यह उसका दि�ल साफ ब�ा रहा था। तिफर भी र्वाह भयभी� होकर पीछे हट गई और दूध का प्याला मे� पर रखकर अपने पीले मुख को कांप�ेहुए हाथों सेसिछपा सिलया। पशुपति� ने तिफर भी सब कुछ ही कह डाला। लालसाखिग्न अब अं�र न रह सक�ी थी, उसकीज्र्वााला बाहर तिनकल ही पड़ी। �ात्पय यह था तिक पशुपति� ने कृष्णा के साथ तिर्वार्वााह करना तिनश्चय कर सिलया था। र्वाह से दूसरे घर मे रक्खेगा और प्रभा के यहां �ो रा� और एक रा� उसके यहां रहेगा।

ये बा�ें सुनकर प्रभा रोई नहीं, र्वारन ��श्कि¬� होकर खड़ी रह गई। उसे ऐसा मालूम हुआ तिक उसके गले मे कोई ची� अटकी हुई है और र्वाह सांस नही ले सक�ी।

पशुपति� ने तिफर कहा—प्रभा, �ुम नही �ान�ी तिक जि��ना पे्रम �ुमसे मुझे आ� है उ�ना पहले कभी नही था। मै �ुमसे अलग नही हो सक�ा। मै �ीर्वान-पयन्� �ुम्हे इसी भांति� प्यार कर�ा रहंूगा। पर कृष्णा मुझे मार डालेगी। केर्वाल �ुम्ही मेर र:ा कर सक�ी हो। मुझे उसके हाथ म� छोड़ों, तिप्रये!

अभातिगनी प्रभा! �ुझसे पूछ-पूछ कर �ेरी ग�न पर छुरी चलाई �ा रही है! �ू ग�न झुका �ेगी यच आत्मगौरर्वा से सिसर उGाकर कहेगी—मै यह नीच प्र��ार्वा नही सुन सक�ी।

प्रभा ने इन बा�ों मे एक भी न की। र्वाह अचे� होकर भूमिम पर तिगर पड़ी। �ब होश आया, कहने लगी—बहु� अच्छा, �ैसी �ुम्हारी इच्छा! लेतिकन� मुझे छोड़ �ों, मै अपनी मां के घर �ाऊंगी, मेरी शान्�ा मुझे �े �ों।

यह कहकर र्वाह रो�ी हुई र्वाहां से शां�ा को लेने चली गई और उसे गो� में लेकर कमरे से बाहर तिनकली। पशुपति� लxा और ग्लातिन से सिसर झुकायें उसके पीछे-पीछे आ�ा रहा और कह�ा रहा—�ैसी �ुम्हारी इच्छा हो प्रभा, र्वाह करो, और मै क्या कहूं, हिकN�ु मेरी प्यारी प्रभा, र्वाा�ा करों तिक �ुम मुझे :मा कर �ोगी। तिकन्�ु प्रभा ने उसको कुछ �र्वााब न दि�यय और बराबर र्द्वार की ओर चल�ी रही। �ब पशुपति� ने आगे बढ़कर उसेपकड सिलया और उसके मुरझाये हुए पर अश्रु-सिससिचN� कपोलों को चूम-चूमकर कहने लगा—तिप्रये, मुझे भूल न �ाना, �ुम्हारी या� मेरे हृ�य मे स�ैर्वा बनी रहेगी। अपनी अंगूGी मुझे �े�ी �ाओ, मै उसे �ुम्हारी तिनशानी समझ कर रक्खूगां और उसे हृ�य से लगाकर इस �ाह को शी�ल करंूगा। ईश्वर के सिलएप्रभा, मुझे छोड़ना म�, मुझसे नारा� न होना…एक सप्�ाह के सिलए अपनी मा�ा केपास �ाकर रहो। तिफर मै �ुम्हें �ाकर लाऊंगा।

प्रभा ने पंशुपति� के कर-पाश से अपने को छुड़ा सिलया और अपनी लड़की का हाथ पकडे़ हुए गाड़ी की ओर चली। उसने पशुपति� को न कोई उcर दि�या और न यह सुना तिक र्वाह क्या कर रहा है।

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अम्मां, आप क्यों हंस रही है?

‘कुछ �ो नहीं बेटी।‘‘र्वाह पीले-पीले पुराने काग� �ुम्हारे हाथ में क्या हैं?’‘ये उस ऋण के पु�� हैं �ो र्वाापस नही मिमला।‘‘ये �ो पुराने ख� मालूम हो�े है?’‘नही बेटी।‘बा� यह थी तिक प्रभा अपनी चौ�ह र्वाष की युर्वा�ी पुत्री के सामने सत्य का प�ा नही

खोलना चाह�ी थी। हां, र्वाे काग� र्वाा��र्वा मे एक ऐसे क� के पु�� थे �ो र्वाापस नही मिमला। ये र्वाही पुरानें पत्र थे �ो आ� एक तिक�ाब मे रक्खें हुए मिमले थे और ऐसे फूल की पशुतिड़यां की भांति� दि�खाई �े�े थे जि�नका रंग और गंध तिक�ाब मे रक्खें-रक्खें उड़ गई हो, �थातिप र्वाे सुख के दि�नों को या� दि�ला रहे थे और इस कारण प्रभा की दूमिष्ट मे र्वाे बहुमूल्य थे।

शां�ा समझ गई तिक अम्मा कोई ऐसा काम कर रही है जि�सकी खबर मुझे नही करना चाह�ी और इस बा� से प्रसन्न होकर तिक मेरी दुखी मा�ा आ� अपना शोक भूल गई है और जि��नी �ेर �क र्वाह इस आनन्� मे मग्न रहे उ�ना ही अच्छा है, एक बहाने से बाहर चली गई। प्रभा �ब कमरे मे अकेली रह गई �ब उसने पत्रों का तिफर पढ़ना शुरू तिकया।

आह! इन चौ�ह र्वाष� मे क्या कुछ नही हो गया! इस समय उस तिर्वारहणी के हृ�य मे तिक�नी ही पूर्वा �मृति�यॉँ �ग्र� हो गई, जि�न्होने हष और शोक के स्रो� एक साथ ही खोल दि�ए।

प्रभा के चले �ाने के बा� पशुपति� ने बहु� चाहा तिक कृष्णा से उसका तिर्वार्वााह हो �ाय पर र्वाह रा�ी न हुई। इसी नैराfय और क्रोध की �शा मे पशुपति� एक कम्पनी का ए�ेण्ट होकर योरोप चला गया। �ब तिफर उसे प्रभा की या� आई। कुछदि�नों �क उसके पास से :माप्राथना-पूण पत्र आ�े रहे, जि�नमें र्वाह बहु� �ल्� घर आकर प्रभासे मिमलने के र्वाा�े कर�ा रहा औ पे्रम के इस नये प्रर्वााह में पुरानी कटु�ाओ कों �लमग्न कर �ेने के आशामय �र्वाप्न �ेख�ा रहा। पति�-परायणा प्रभा के सं�प्� हृ�य मे तिफर आशा की हरिरयाली लहराने लगी, मुरझाई हुई आशा-ल�ाए ं तिफर पल्लतिर्वा� होने लगी! तिकन्�ु यह भी भाग्य की एक क्रीड़ा ही थी। थोडे़ ही दि�नों मे रसिसक पशुपति� एक नये पे्रम-�ाल मे फंस गया और �ब से उसके पत्र आने बन्� हो गये। इस र्वाक्त प्रभा के हाथ मे र्वाही पत्र थे �ो उसके पति� ने यारोप से उस समय भे�े थे �ब नैराfय का घार्वा हरा था। तिक�नी सिचकनी-चुपडी बा�ें थी। कैसे-कैसे दि�ल खुश करने र्वााले र्वाा�े थे! इसके बा� ही मालूम हुआ तिक पशुपति� ने एक

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अंग्रे� लड़की से तिर्वार्वााह कर सिलया है। प्रभा पर र्वाज्र-सा तिगर पड़ा—उसके हृ�य के टुकडे़ हो गये—सारी आशाओं पर पानी तिफर गय। उसका तिनबल शरीर इस आघा� का सहन न कर सका। उसे ज्र्वार आने लगा। और तिकसी को उसके �ीर्वान की आशा न रही। र्वाह �र्वायं मृत्यु की अक्षिभलातिषणी थी और मालूम भी हो�ा था तिक मौ� तिकसी सप की भांति� उसकी �ेह से सिलपट गई है। लेतिकन बुलने से मौ� भी नही आ�ी। ज्र्वार शान्� हो गया और प्रभा तिफर र्वाही आशातिर्वाह तिर्वाहीन �ीर्वान व्य�ी� करने लगी।

क दि�न प्रभा ने सुना तिक पशुपति� योरोप से लौट आया है और र्वाह योरोपीय �त्री उसके साथ नही है। बश्किल्क उसके लौटने क कारण र्वाही �त्री हुई है। र्वाह और� बारह साल �क

उसकी सहयोतिगनी रही पर एक दि�न एक अंग्रे� युर्वाक के साथ भाग गई। इस भीषण और अत्यन्� कGोर आघा� ने पशुपति� की कमर �ोड़ �ी। र्वाह नौकरी छोड़कर घर चला आया। अब उसकी सूर� इ�नी ब�ल गई थी उसके मिमत्र लोग उससे बा�ार मे मिमल�े �ो उसे पहचान न सक�े थे—मालूम हो�ा था, कोई बूढ़ा कमर झुकाये चला �ा�ा है। उसके बाल �क सफे� हो गये।

घर आकर पशुपति� ने एक दि�न शान्�ा को बुला भे�ा। इस �रह शां�ा उसके घर आने-�ाने लगी। र्वाह अपने तिप�ा की �शा �ेखकर मन ही मन कुढ़�ी थी।

इसी बीच मे शान्�ा के तिर्वार्वााह के सन्�ेश आने लगे, लेतिकन प्रभा को अपने र्वाैर्वाातिहक �ीर्वान मे �ो अनुभर्वा हुआ था र्वाह उसे इन सन्�ेशों को लौटने पर म�बूर कर�ा था। र्वाह सोच�ी, कहीं इस लडकी की भी र्वाही गति� न हो �ो मेरी हुई हैं। उसे ऐसा मालूम हो�ा था तिक यदि� शान्� का तिर्वार्वााह हो गया �ो इस अन्तिन्�म अर्वास्था मे भी मुझे चैन न मिमलेगा और मरने के बा� भी मै पुत्री का शोक लेकर �ाऊंगी। लेतिकन अन्� मे एक ऐसे अचे्छ घराने से सन्�ेश आया तिक प्रभा उसे नाही न कर सकी। घर बहु� ही सम्पन््न था, र्वार भी बहु� ही सुयोग्य। प्रभा को �र्वाीकार ही करना पडे़गा। लेतिकन तिप�ा की अनुमति� भी आर्वाfयक थी। प्रभा ने इस तिर्वाषय मेपशुपति� को एक पत्र सिलखा और शान्�ा के ही हाथ् भे� दि�या। �ब शान्�ा पत्र लेकर चली गई �ब प्रभा भो�न बनाने चली गई। भाति�-भांति� की अमंगल कल्पनाए ंउसके मन मे आने लगी और चूल्हे से तिनकल�े धुए ंमे उसे एक सिचत्र-सा दि�खाई दि�या तिक शान्�ा के प�ले-प�ले होंG सूखे हूए है और र्वाह कांप रही है और जि�स �रह प्रभा पति�गृह से आकर मा�ा की गो� मे तिगर गई थी उसी �र शान्�ा भी आकर मा�ा की गो� मे तिगर पड़ी है।

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शुपति� ने प्रभा का पत्र पढ़ा �ो उसे चुप-सी लग गई। उसने अपना सिसगरेट �लाया और �ोर-�ोर कश खीचनें लगा।पतिफर र्वाह उG खड़ा हुआ और कमरे मे टहलने लगा। कभी मूंछों को �ां�ों से काट�ा

की खिखचड़ी �ाढ़ी को नीचे की ओर खींच�ा।सहसा र्वाह शान्�ा के पास आकर खड़ा हो गया और कांप�े हुए �र्वार मे बोला—बेटी

जि�स घर को �ेरी मां �र्वाीकार कर�ी हो उसे मै कैसे नाही कर सक�ा हंू। उन्होने बहु� सोच-समझकर हामी भरी होगी। ईश्वर करे �ुम स�ा सौभागय्र्वा�ी रहों। मुझे दुख है �ो इ�ना ही तिक �ब �ू अपने घर चली �ायेगी �ब �ेरी मा�ा अकेली रह �ायगी। कोई उसके आंसू पोंछने र्वााला न रहेगा। कोई ऐसा उपाय सोच तिक �ेरी मा�ा का क्लेश दूर हो और मै भी इस �रह मारा-मारा न तिफरंू। ऐसा उपाय �ू ही तिनकाल सक�ी है। स¬र्वा है लxा और संकोच के कारण मै अपने हृ�य की बा� �ुझसे कभी न कह सक�ा, लेतिकन अब �ू �ा रही है और मुझे संकोच का त्याग करने के सिसर्वाा कोई उपाय नही है। �ेरी मां �ुझे प्यार कर�ी है और �ेरा अनुरोध कभी न टालेगी। मेरी �शा �ो �ू अपनी आंखों से �ेश रही है यही उनसे कह �ेना। �ा, �ेरा सौभाग्य अमर हो।

शान्�ा रो�ी हुई तिप�ा की छा�ी से सिलपट गई और यह समय से पहले बूढ़ा हो �ाने र्वााला मनुष्य अपनी दुर्वाासनाओं का �ण्ड भोगने के बा� पश्चा�ाप और ग्लातिन के आंसू बहा-बहाकर शान्�ा क केशरासिश को क्षिभगोने लगा।

पति�परायणा प्रभा क्या शान्�ा का अनुरोध टाल सक�ी थी? इस पे्रम-सूत्र ने �ोनों भग्न-हृ�य को स�ैर्वा के सिलए मिमला दि�या।

—‘सर�र्वा�ी’ �नर्वारी, १९२६

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ांगेर्वाालने की बड़

खक को इलाहाबा� मे एक बार �ाँगे मे लम्बा सफर करने का संयोग हुआ। �ांगे र्वााले मिमयां �म्मन बडे़ बा�ूनी थे। उनकी उम्र पचास के करीब थी, उनकी बड़ से रा��ा इस

आसानी से �स हुआ तिक कुछ मालूम ही न हुआ। मै पाGकों के मनोरं�न के सिलए उनकी �ीर्वान और बड़ पेश कर�ा हंू।

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म्मन—कतिहए बाबू�ी, �ांगा…र्वाह �ो इस �रफ �ेख�े ही नहीं, शाय� इक्का लेंगे। मुबारक। कम खच बालानशीन, मगर कमर रह �ायगी बाबू�ी, सडक खराब है, इक्के

मे �कलीफ होगी। अखबार मे पढ़ा होगा कल चार इक्के इसी सड़क पर उलट गये। चुंगी (म्युतिनश्किस्पलटी) सलाम� रहे, इक्के तिबल्कुल बन्� हो �ायेगें। मोटर, �ारी �ो सड़क खराब करे और नुकसान हो हम गरीब इक्केर्वाालों का। कुछ दि�नों मे हर्वााई �हा� मे सर्वाारिरयां चलेंगी, �ब हम इक्केर्वाालों कों सड़क मिमल �ायेगी। �ेखेंगे उस र्वाक्त इन लारिरयों को कौन पूछे�ा है, आ�ायबघरों मे �ेखने को मिमले �ो मिमलें। अभी �ो उनके दि�माग ही नही मिमल�े। अरे साहब, रा��ा तिनकलना दुश्वार कर दि�या है, गोया कुल सड़क उन्ही के र्वाा��े है और हमारे र्वाा��े पटरी और धूल! अभी ऐG�ें है, हर्वााई �हा�ों को आने �ीजि�ए। क्यो हू�ुर, इन मोटर र्वााले की आधी आम�नी लेकर सरकार सड़क की मरम्म� मे क्यों नही खच कर�ी? या पेट्रोल पर चौगुना टैक्स लगा �े। यह अपने को टैक्सी कह�े है, इसके माने �ो टैक्स �ेने र्वााले है। ऐ हु�ूर, मेरी बुदिढया कह�ी है इक्का छोड़ �ांगा सिलया, मगर अब �ांगे मे भी कुछ नही रहा, मोटर लो। मैने �र्वााब दि�या तिक अपने हाथ-पैर की सर्वाारी रखोगी या दूसरे के। बस हु�ूर र्वाह चुप हे गयी। और सुतिनए, कल की बा� है कल्लन ने मोटर चलाया, मिमयां एक �रख्� से टकरागये, र्वाही शही� हो गये। एक बेर्वाा और �स बचे्च य�ीम छोडे़। हु�ूर, मै गरीब आ�मी हंू, अपने बच्चों को पाल ले�ा हंू, और क्या चातिहए। आ� कुछ कम चालीस साल से इक्केर्वाानी कर�ा हंू, थोडे़ दि�न और रहे र्वाह भी इसी �रह चाबुक सिलये कट �ायेगें। तिफर हु�ूर �ेखें, �ो इक्का, �ांगा और घोड़ा तिगरे पर भी कुछ-न-कुछ �े ही �ायेगा। बरअक्स इसके मोटर बन्� हो �ाय �ो हु�ूर उसका लोहा �ो रूपये मे भी कोई न लेगा। हु�ूर घोड़ा घोड़ा ही है, सर्वाारिरयां पै�ल �ा रही है, या हाथी की लाश खीचं रही है। हु�ूर घोडे़ पर हर �रह का काबू और हर सूर� मे नफा। मोटर मे कोई आराम थोडे़ ही है। �ांगे मे सर्वाारी भी सो रही है, हम भी सो रहे है और घोड़ा भी सो रहा है मगर मंजि�ल �य हो रही है। मोटर के शारे से �ो कान के प�� फट�े है और हांकने र्वााले को �ो �ैस चक्की पीसना पड़�ा है।

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हु�ूर, और�ों भी इक्के-�ांगे को बड़ी बे��¨ से इ��ेमाल कर�ी है। कल की बा� है, सा�-आG और�े आई और पूछने लगी तिक ति�रेबेनी का क्यो लोगे। हु�ूर तिनख �ो �य

है, कोई व्हाइटर्वाे की दुकान �ो है नहीं तिक साल मे चार बार सेल हो। तिनख से हमारी म�दूरी चुका �ो और दुआए लो। यों �ो हु�ूर मासिलक है, चाहें एक बर कुछ न �ें मगर सरकार, और�ें एक रूपए का काम हे �ो आG ही आना �े�ी हैं। हु�ूर हम �ो साहब लोगों का काम कर�े है। शरीफ हमशा शरीफ रह�े है ओर हु�ूर और� हर �गह और� ही रहेगी। एक �ो प�� के बहाने से हम लोग हटा दि�ए �ा�े है। इक्के-�ांगे मे ��नों सर्वारिरयां और बचे्च बैG �ा�े है। एक बार इक्के की कमानी टूटी �ो उससे एक न �ो पूरी �ेरह और�े तिनकल आई। मै गरीब आ�मी मर गयां। हु�ूर सबको हैर� हो�ी है तिक तिकस �रह ऊपर नीचें बैG ले�ी है तिक कैची मारकर बैG�ी है। �ांगे मे भी �ान नही बच�ी। �ोनों घुटनो पर एक-एक बच्चा को भी ले ले�ी है। इस �रह हु�ूर �ांगे के अन्�र सक स का-सा नक्शा हो �ा�ा है। इस पर भी पूरी-पूरी म�दूरी यह �ेना �ान�ी ही नहीं। पहले �ो प�� को �ारे था। म�� से बा�ची� हुई और म�दूरी मिमल गई। �ब से नुमाइश हुई, प�ा उखड गया और और�ें बाहन आने-�ानें लगी। हम गरीबों का सरासर नुकसान हो�ा है। हु�ूर हमारा भी अल्लाह मासिलक है। साल मे मै भी बराबर हो रह�ा हंू। सौ सुनार की �ो एक लोहार की भी हो �ा�ी है। तिपछले महीने �ो घंटे सर्वाारी के बा� आG आने पैसे �ेकर बी अन्�र भागीं। मेरी तिनगाह �ो �ांगे पर पड़ी �ो क्या �ेख�ाहूं तिक एक सोने का झुमका तिगरकर रह गया। मै सिचल्लाया माई यह क्या, �ो उन्होने कहा अब एक हब्बा और न मिमलेग और �रर्वाा�ा बन्�। मै �ो-चार मिमनट �क �ो �क�ा रह गया मगर तिफर र्वाापस चला आया। मेरी म�ू�री माई के पास रही गई और उनका झुमका मेरे पास।

ल की बा� है, चार �र्वााराजि�यों न मेरा �ांगा तिकया, कटरे से �टेशन चले, हुकुम मिमला तिक �े� चलों। रा��े-भर गांधी�ी की �य! गांधी�ी की �य! पुकार�े गए। कोई

साहब बाहर से आ रहे थे और बड़ी भीडे़ और �ुलूस थे। कGपु�ली की �रह रा��े-,भर उछल�े-कू��े गए। �टेशन पहुचकर मुश्किfकल से चार आने दि�ए। मैने पूर तिकराया मांगा, मगर र्वाहां गांधी �ी की �य! गांधी �ी की �य के सिसर्वााय क्या था! मै सिचल्लाया मेरा पेट! मेरा पेट! मेरा�ांगा सिथएटर का �टे� था, आप नाचे-कू�े और अब म�दूरी नी �े�े! मगर मै सिचल्ला�ा ही रहा, र्वाह भीड़ मे गायब हो गए। मै �ो समझ�ा हू तिक लोग पागल हो गए है, �र्वारा� मांग�े है, इन्ही हरक�ों पर �र्वारा� मिमलेगा! ऐ हु�ूर अ�ब हर्वाा चल रही है। सुधर �ो कर�े नही, �र्वारा� मांग�े है। अपने करम �ो पहले दुरू�� होले। मेरे लड़के को बरगलाया, उसने सब कपडे़ इकटGे तिकए और लगा जि�� करने तिक आग लाग दंूगा। पहले �ो

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मैने समझाया तिक मै गरीब आ�मी हंू, कहा से और कपडे़ लाऊंगा, मगर �ब र्वाह न माना �ो मैने तिगराकर उसको खूब मारा। तिफर क्या था होश दिGकाने हो गए। हु�ूर �ब र्वाक्त आएगा �ो हमी इक्के-�ांगेर्वााला �र्वारा� हांककर लांएगे। मोटर पर �र्वारा� हर्तिगN� न आएगा। पहले हमको पूरी म�दूरी �ो तिफर �र्वारा� मांगो। हु�ूर और�े �ो और�ें हम उनसे न �बान खोल सक�े है न कुछ कह सक�े है, र्वाह �ो कुछ �े �े�ी है, लेना पड़�ा है। मगर कोई-कोई नकली शरीफ लोग और�ो के भी कान काट�े है। सर्वाार होने से पहले हमारे नम्बर �ेख�े है, अगर कोई चील रा��े मे उनकी लापरर्वााही से तिगर �ाय �ो र्वाह भी हमारे सिसर Gोक�े है और म�ा यह तिक तिकराया कम �े �ो हम उफ न करें। एक बार का जि�क्र सुतिनए, एक नकली ‘र्वाेल-र्वाेल’ करके लाट साहब के �फ्�र गए, मुझको बाहर छोड़ा और कहां तिक एक मिमनट मे आ�े है, र्वाह दि�न है तिक आ� �क इन्��ार ही कर रहा हंू। अगर यह ह�र� कही दि�खाई दि�ये �ो एक बार �ो दि�ल खोलकर ब�ला ले लूंगा तिफर चाहे �ो कुछ हो।

ब न पहले के-से मेहरबान रहे न पहले की-सी हाल�। खु�ा �ाने शराफ� कहां गायब हो गई। मोटर के साथ हर्वाा हुई �ा�ी है। ऐ हु�ूर आप ही �ैसे साहब लोग

हम इक्केर्वाालों की कद्र कर�े थे, हमसें भी इx� पेश आ�े थे। अब र्वाह र्वाक्त है तिक हम लोग छोटे आ�मी है, हर बा� पर गाली मिमल�ी है, गु�सा सहना पड़�ा है। कल �ो बाबू लोग �ा रहे थे, मैने पूछा, �ांगा…�ो एक ने कहा, नही हमको �ल्�ी है। शाय� यह म�ाक होगां। आगे चलकर एक साहब पूछ�े है तिक टैक्सी कहां मिमलेगी? अब कतिहए यह छोटा शहर है, हर �गह �ल्� से �ल्� हम लोग पहुचा �े�े है। इस पर भी हमीं ब�लाए ं तिकटैक्सी कहां मिमलेगी। अ-ेरे है अ-ेरे! खयाल �ो कीजि�ए यह नन्ही सी �ान घोड़ों की, हम और हमारे बाल-बचे्च और चौ�ह आने घंटा। हु�ूर, चौ�ह आने मे �ो घोड़ी को एक कमची भी लगाने को �ी नही चाह�ा। हु�ूर हमें �ो कोई चौबीस घंटे के र्वाा��े मोल ले ले।

कोई-कोई साहब हमीं से तिनयारिरयापन कर�े है। चालीस साल से हु�ूर, यहीकाम कर रहा हंू। सर्वाारी को �ेखा और भांप गए तिक क्या चाह�े है। पैसा मिमला और हमारी घोड़ी के पर तिनकल आए। एक साहब ने बडे़ �ूम-�ड़ाक के बा� घंटों के तिहसाब से �ांगा �य तिकया और र्वाह भी सरकारी रेट से कम। आप �ेखे तिक चुंगी ही ने रेट मुकरर कर�े र्वाक्त �ान तिनकाल ली है लेतिकन कुछ लोग बगैर ति�लों के �ेल तिनकालना चा�े है। खैर मैने भी बेकारी मे कम रेट ही मान सिलया। तिफर �नाब थोड़ी दूर चलकर हमारा�ांगा भी �ना�े की चाल चलने लगा। र्वाह कह रहे है तिक भाई �रा �े� चलो, मै कह�ा हंू तिक रो� का दि�न है, घोड़ी का �म न टूटे। �ब र्वाह फरमा�े है, हमें क्या �ुमहार ही घंटा �ेर मे होगा। सरकार मुझे �ो इसमें खुशी है आप ही सर्वाार रहे और गुलाम आपको तिफरा�ा रहे।

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ट साहब के �फ्�रमें एक बडे़ बाबू थे। कटरे मे रह�े थे। खु�ा झूG न बुलर्वााए उनकी कमर �ीन ग� से कम न होगी। उनको �ेखकर इक्के-�ांगेर्वााले आगे हट

�ा�े थे। तिक�ने ही इक्के र्वाह �ोड़ चुक थे। इ�ने भारी होने पर भी इस सफाई से कू��े थे तिक खु� कभी चोट न खाई। यह गुलाम ही तिक तिहम्म� थी तिक उनको ले �ा�ा था। खु�ा उनको खुश रक्खे, म�दूरी भी अच्छी �े�े थे। एक बार मै ईंदू का इक्का सिलए �ा रहा था, बाबू मिमल गए और कहा तिक �फ्�र �क पहुचा �ोगे? आ� �ेर हो गई है, �ुम्हारे घोडे़ मे सिसफ ढाचां ही रह गया है। मैने �र्वााब दि�या, यह मेरा घोड़ा नही है, हु�ूर �ो डबल म�दूरी �े�े है, हुकूम �े �ो �ो इक्के एक साथ बांध लू और तिफर चलंू।

ला

र सुतिनए, एक सेG�ी ने इक्का भाड़ा तिकया। सब्�ी मंडी से सब्�ीर्वागैरह ली और भगा�े हुए �टेशन आए। इनाम की लालच मे मै घोड़ी पीट�ा लाया। खु�ा�ान�ा है,

उस रो� �ानर्वार पर बड़ी मार पड़ी। मेरे हाथ �� करने लगे। रेल का र्वाक्त सचमुच बहु� ही �ंग था। �टेशन पर पहूचें �ो मेरे सिलए र्वाही चर्वान्नी। मै बोला यह क्या? सेG �ी कह�े है, �ुम्हारा भाड़ा �ख्�ी दि�खाओ। मैने कहा �ेर करे आप और मेरा घोड़ा मुफ्� पीटा �ाय। सेG�ी �र्वााब �े�े है तिक भई �ुम भी �ो �ल्�ी फराग� पा गए और चोट �ुम्हारे �ो लगी नही। मैने कहा तिक महारा� इस �ानर्वार पर �ो �या तिक�ीए। �ब सेG�ी ढीले पडे़ और कहां, हां इस गरीब का �रूर सिलहा� होना चातिहए और अपनी टोकरी से चार पcे गोभी के तिनकाले और घोड़ी को खिखलाकर चल दि�ए। यह भी शाय� म�ाक होगां मगर मै गरीब मुफ्� मरा। उस र्वाक्त से घोड़ी का हा�मा ब�ल गया।

अ�ब र्वाक्त आ गा है, पस्जिब्लक अब दूसरों का �ोसिलहा� ही नही कर�ी। रंग-ढ़ग �ौर-�रीका सभी कुछ ब�ल गए है। �ब हम अपनी म�दूरी मांग�े है �ो �र्वााब मिमल�ा है तिक �ुम्हारी अमल�ारी है, खुली सड़क पर लूट लो! अपने �ानर्वारो को सेG�ी हलुआ-�लेबी खिखलाएगें, मगर हमारी ग�न मारेगें। कोई दि�न थे, तिक हमको तिकराये के अलार्वाा मालपूर भी मिमल�े थे।

अब भी इस तिगरे �माने मे भी कभी-कभी शरीफ रईस न�र आ ही �ा�े है। एक बार का जि�क्र सुतिनए, मेरे �ांगे मे सर्वाांरिरया बैGी। कfमीरी होटल से तिनकलकर कुछ थोड़ी-सी चढ़ी थी। कीटगं� पहुचकर सामने र्वााले ने चौरा��ा आने से पहले ही चौ�ह आने दि�ये और उ�र गया। तिफर तिपछली एक सर्वाारी ने उ�रकर चौ�ह आने दि�ए। अब �ीसरी उ�र�ी नही। मैने कहा तिक ह�र� चौराहा आ गया। �र्वााब न�ार�। मैने कहा तिक बाबू इन्हे भी उ�ार लो। बाबू ने �ेखा-भाला मगर र्वाह नशे मे चूर है उ�ार कौन! बाबू बोले अब क्या करें। मैने कहा—

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क्या करोगे। मामला �ो तिबल्कुल साफ है। थाने �ाइए और अगर �स मिमनट मे काई र्वाारिरस ने पै�ा हो �ो माल आपका।

बस हु�ूर, इस पेश मे भी तिन� नये �माशे �ेखने मे आ�े है। इन आखों सब कुछ �ेखा है हु�ूर। प�� पड़�े थे, �ाजि�में बांधी �ा�ी थी, घटाटोप लगाये �ा�े थे, �ब �नानी सर्वाारिरयां बैG�ी थी। अब हु�ूर अ�ब हाल� है, प�ा गया हर्वाा के बहाने से। इक्का कुछ सुखो थोड़ा ही छोड़ा है। जि�सको �ेखो यही कह�ा थातिक इक्का नही �ांगा लाओं, आराम को न �ेखा। अब �ान को नही �ेख�े और मोटर-मोटर, टैक्सी-टैक्सी पुकार�े है। हु�ूर हमें क्या हम �ो �ो दि�न के मेहमान है, खु�ा �ो दि�खायेगा, �ेख लेगें। —‘�माना’सिस�म्बर, १९२६

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