jainkosh.org · 2020. 1. 14. · 1 -2 सम्क् (स च न) सम्क् श्रिा...

46

Upload: others

Post on 10-Mar-2021

7 views

Category:

Documents


0 download

TRANSCRIPT

  • के

  • सर्वार्धि ज्ञवन कव वर्षय तो परमवणु बतवयव है और उसकेअनंतवर्े भवग को मन: पयाय ज्ञवन जवनतव है, तो परमवणु

    के अनंत भवग कैसे हो सकते हैं?

    एक परमवणु में स्पर्ा, रस, रूप, गंि गुण के अनंत अवर्भवगी प्रततच्छेद पवए जवते हैं अत: उसकी अपेक्षव से परमवणु कव भी अनंतवर्व भवग हो सकतव है |

  • कक

  • अज्ञान

    कुमति कुश्रुि विभंग

  • जाे बुद्धिविष, यन्त्र, कूट, व ंजर िथा बंध अादिक के विषय में

    वबना उ िेश स्ियं ी उ िेश द्वाराप्रिृत्त ीाेि ीै, उसे

    कुमतिज्ञान कुश्रुिज्ञानकीिे ीैं

  • • जजसके खान ेसे ज ि मर जाए विष

    •भ िर ैर रखि ेी जजसके वकिाड़ बंि ीाे जाए • जजसके द्वारा बकरी अादि काे बााँधकर ससंीादि काे कड़ा जािा ीै यंत्र

    •लकड़़ी अादि के बने • जजसस ेचूीे अादि कडे़ जाि ेीैं कूट

  • • रस् स में गााँठ लगाकर जाे जाल बनाया जािा ीै• जजसस ेहीरण, ि िर अादि कडे़ जाि ेीैं व ंजर

    • गड्ढे अादिक बनाना • ीाथ अादि काे कड़न ेके ललए बंध

  • ररभाषा• द्रव् य, क्षेत्र, काल, भाि की मयाािा ललये रू िाथा ीैं विषय जजसका • एेसा अाप् िादि के विषय में वि रीि ग्रीण

    शब् िाथा• वि = विशशष् ट जाे अिधधज्ञान •भंग = वि रीि भाि

    तनलमत्त •अिधधज्ञानािरण एिं ि याान् िराय का क्षया ेशम

    कुअिधधज्ञान / विभंगज्ञान

  • वकसका तनलमत्त

    • लमथ् यात् िादि कमाबंध का एिं •किालचि ्नरकादि गति में ूिाभि सम् बन् ध िरुाचार के ि:ुखफल काे जानकर सम् यग् िशानादिरू धमा का

    भेि • 1. भिप्रत् यय • 2. गुणप्रत् यय

    स्िाम • िेि, नारकी• मनुष् य, तियंच (द्रव् य संयमादिक गुणाें द्वारा)

    कुअिधधज्ञान / विभंगज्ञान

  • च्ाे

  • सत = विद्यमान

    असत= अविद्यमान

  • मति, श्रुि, अिधधज्ञान के प्रकारलमथ् या

    लमथ् यात् ि अाैर अनंिानबुंध का उिय

    कुमति-कुश्रिु— एकेन्द्न्द्रय से संज्ञ यााप् ि-अ यााप् ि

    कुअिधध (विभंग)— संज्ञ यााप् ि

    1 - 2

    सम् यक् (सम च न)सम् यक् श्रिा

    संज्ञ — यााप् ि अथिा तनिृात्त्य यााप् ि

    4 - 12

    कारण / तनलमत्त

    स् िाम

    गुणस् थान

  • नय किसमेें लगते ह?ै

    ज्ञान मेेंवाणी मेें

  • नय किसमेें नहीें लगते हैें?

    वस्तु मेेंकिया मेें

  • भदे

  • नयजाे भूत औाैर भकवष्य पयाायाेें मेें वतामान िा सेंिल्प िरता है या वतामान जाे पयााय पूणा नहीें हुई है उसे पूणा मानता है उस ज्ञान तथा वचन िाे नैगम नय िहते हैें |

  • नैगम नय

    भूत

    “औाज भगवान महावीर िा माेक्ष िल्याणि है”

    भावी

    “यह डाॉ है”, “यह राजा है”

    वतामान

    “भात पाि गया है”

  • नयऔपनी औपनी जातत िे औनुसार वस्तुऔाेें िा या उनिी पयाायाेें िाएि रूप से सेंग्रह िरने वाले ज्ञान िाे औाैर वचन िाे सेंग्रहनय िहते हैें|

  • नयसेंग्रह नय से ग्रहण किये हुए पदाथाेों िा

    कवधिपवूाि भेद िरना

    व्यवहार नय िहलाता है |

  • नयभूत औाैर भावी पयााय िाे छाेड िर

    जाे वतामान पयााय िाे ग्रहण िरता है

    उसे ऋजुसुत्र नय िहते हैें |

  • ऋजुसुत्र नय

    सूक्ष्म

    एि समय िाे पयााय िाे ग्रहण िरे

    स्थूल

    एि स्थूल पयाायजब ति रहती है

  • ल िंग, सिंख्या, और साधन आदद

    के व्यलभचार की दनवदृि करान ेवा े

    नय को शब्द नय कहत ेहैं

  • उदाहरण

    ल िंग व्यलिचार• आत्मा जानता है

    का व्यलिचार• मैं अग े सा आई थी

  • नययदि शब्िों में िेि है तो अथथ िेि अवश्य होना चादहये

    इस नय में पयाथयवाची शब्ि नह िं पाए जाते हैं

    अथवा जो नाना अथों को ‘सम’ अथाथत ्छोड़कर प्रधानता से एक अथथ में रुद्ध होता है उसे समलिरूढ़ नय कहते हैं

  • उदाहरण• आज्ञा-ऐश्वयथवानइन्द्र• समथथशक्र• नगर का िारण करने वा ापुरिंिर

  • नयजो वस्त ुजजस पयाथय को प्राप्त हुई है

    उसी रूप ननश्चय करने वा े नय को

    एविंितू नय कहत ेहै

  • उदाहरण• पूजा करते समय ही पजुारीपुजारी

    • पढ़ाते समय ही अध्यापकअध्यापक

    • च ते समय ही गाय गो

  • विशेष उिरोिर सकू्ष्म होने के कारण इनका क्रम इस प्रकार कहा है |

    शब्द नय पयाायवाची शब्दोिं को तो ग्रहण करता है दकन्त ुसमलभरूढ़ नय पयाायवाची शब्दोिं को ग्रहण नही िंकरता है |

    समलभरूढ़ नय स ेलजस अर्ा के ल ए लजस शब्द को स्वीकार दकया है एविंभतू नय में तो वह शब्द भी दक्रया के पररणमन के समय ही ाग ूहोगा |