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  • उप-सम्पादक

    मेघा राठी, भोपाल विजय मारू, उदयपुर

    विनोद पगाररया "विरल", सागिाड़ा बदामीलाल जैन, सलुम्बर ननहाररका जैन, बागीदौरा शिल्पी कुमारी, उदयपुर माया िाग्िर, कानपुर

    सम्पादक कुिाग्र जैन "िून्य", बााँसिाडा

    सह-सम्पादक विनोद कुमार जैन "िाग्िर", सागिाड़ा

    सम्पादकीय ददग्दर्शक पुष्पा अिस्थी "स्िानि", मुम्बई श्री ननिासन अय्यर , उदयपुर

    शिक्षाविद हेमेन्र उपाध्याय, सरोदा आचायय संजीि िमाय सशलल, जबलपुर

    काव्य कलर् पत्रिका हेतु रचनाएं

    [email protected] पर पररचय एवं प्रकार्न की अनुमतत सदहत आमंत्रित हैं

    रचना हेि ुआमन्रण

    सम्पादक मडंल

    सम्पादन , संचालन, प्रबन्धन, प्रकार्न—अवैततनक/ अव्यावसातयक

  • अनकु्रमणिका

    काव्य कलि

    आचायश संजीव वमाश "सललल" जबलपुर

    1. सादहत्य ही समाज को गढ़ता है—सललल सरोज 2. दोहा कैसे सीखें- ववनोद कुमार जैन वाग्वर

    1. र्राबी का मुकदमा

    1.रोजगार की तलार् - तनहाररका जैन 2. तुम्हारे पास बैठा ह ं - महेंद्र जैन 'मनु'

    3. मन हरि घनाक्षरी छंद - भानु र्माश रंज 4. रोटी को अमेररका-जापान - सललल सरोज

    5. तेरी ही रजा में - डा मीना कौर्ल 6. रचना - सौरभ कुमार जायसवाल

    7. चााँद तुझसे कई ररश्ते द ररयााँ नजदीककयााँ - प्रवीिा त्रिवेदी,

    8. . मुक्तक - स्ममत परमार 9. बाप का सपना - र्भुम द्वववेदी

    10. पढ़ी ललखी लव मटोरी- र्भुम जैन "पराग"

    11. र्मशसार है मानवता - मनकेश्वर महाराज "भट्ट" 12. झुका दे संसार - प्रतीक प्रभाकर

    13. मैं क्रोध का कवव ह ाँ - बजरंग लाल सनैी "वज्रघन"

    14. तनमोही - ववजय र्कंर प्रसाद 15. सांवली चंचल चचतवन- ओमप्रकार् त्रबन्जवे " राजसागर "

    सम्पादकीय 4-5 सरमवती मतवन 6

    लाललत्य बोध’ 7-14

    कथा लोक 15-17

    काव्य पटल 18-36

    2 www.kavyakalash.home.blog/ काव्य कलि

  • अनकु्रमणिका

    काव्य कलि

    16. मै ससृ्टट मवरूपा आददर्स्क्त - हलधर भारद्वाज

    17. वप्रये तुम मेरी जीवन सररता - लता खरे

    18. मााँ! त मुझमें लसहं जगाती - डॉ. अनन्त लक्षेन्द्र 'मवछन्द'

    19. वेदना के दंर् पर है नतृ्य मेरा - यतीर् अककञ्चन

    20. याद कर करके तुझको - किरोज़ खान अल्फाज़

    21. तुमने तो बात कल पर - अलभषेक लमश्रा- बेअदब

    22. इश्क़ एहतराम की र्रुुआत कीस्जये - मपहृा लमश्रा "असीम"

    23. मोड़ TURN - राकेर् के लमड्ढा" 24. जन्म ललया ह ं - आर. जे. संतोष कुमार

    25. सरगोलर्यों से - देवानंद साहा"आनंद अमरपुरी"

    26. ढ ंढो इस दतुनया में ढ ंढने से - िईम बरेलवी 27. सौंदयश -कुर्ाग्र जैन “र् न्य”

    28. कैसा कलयुग आया है (वीर छन्द ) - प्रततभा यादव "ददवानी"

    29. कोरे कागज़ सा मन - पुटपा अवमथी "मवाती"

    30. मौत तो आनी है इक ददन - प्रमोद कुमार मवामी

    31. कन्यादान - ओम अग्रवाल (बबुआ), मुंबई

    32. ज़ख्मों पे मरहम रखने उतरी हो - भरत मल्होिा

    33. दररया ह ाँ मेरे दोमतों क़तरा नही - मेघा राठी 34. लर्व-तत्व - अनुजीत इकबाल

    35. हौसले की उड़ान - रोहतार् वमाश "मुसाकिर 36. चााँद तारे साथ हो तो - ध्वतन आमेटा

    37. कहा था तुमने - मनोरमा जैन पाखी 38. ददश तो उपहास हें— कुाँ वर सुरेन्द्

    39. भारतीय नारी — श्रीमती लर्वानी र्कु्ला

    काव्य कलि पत्ररका में व्यक्ि विचार लेखकों के है, यह जरूरी नही कक सम्पादक , प्रकािक, मरुक उनसे सहमि हो ।

    काव्य कलि www.kavyakalash.home.blog/ 3

  • ककसी भी सभ्यता का उत्कषश काल वहां की सादहत्य, संमकृतत और कला की उत्कृटटता का काल होता है। अपनी ववलर्टट पहचान रखने वाली भारतीय सभ्यता मे भी सादहत्य, संमकृतत और कला को अपनी ववलर्टट पहचान ददलाने वाले अंकुर पल्लववत होते रहे हैं। दहदंी सादहत्य की बचगया में भ्रमि ककया जाए तो कुछ अंकुर वटवकृ्ष की तरह मजब त से खडे़ नजर आते है।

    मुंर्ी पे्रमचंद, रामधारी लसहं ददनकर, ििीश्वर नाथ रेिु, स यशकांत त्रिपाठी 'तनराला', महादेवी वमाश, भारतेंद ुहररश्चंद्र, हररवंर् राय बच्चन, सस्च्चदानंद वात्सायायन 'अज्ञेय' आदद अनेकों सादहत्यकार दहदंी सादहत्य की बचगया के ऐसे वटवकृ्ष है, स्जन्हें देखते हुए बचगया में भ्रमि करने वाला दहदंी सादहत्य का रलसक कभी थकान महस स नहीं करता बस्ल्क इस वटवकृ्ष के तले आकर वह जो सुक न प्राप्त करता है उससे दहदंी सादहत्य की वाहवाही करने लगता है।

    इसी बचगया में से अनेक वटवकृ्ष और नवांकुररत होने वाले बीजों को साथ लेकर इस काव्य कलर् पत्रिका को संयोस्जत करने का प्रयास ककया गया है। उम्मीद है काव्य कलर् पत्रिका दहदंी सादहत्य की बचगया में एक ऐसा पौधा बन सकेगी जो सादहत्य पे्रमी रलसक बंधुओ ंको सादहत्य की ववववध धाराओ ंका रसपान करा सके।

    ि लों से दो ि ल लमले,

    बनी सुंदर सी माला,

    र्ब्द र्ब्द संग जब णखले,

    अनुभ त होती गीतमाला।।

    र्ब्दों के माधुयश का रसपान करना स्जतना सहज है उतना ही कदठन भी है। ऐसे में र्ब्द माधुयश का रसपान करना तलवार की धार पर चलने के समान ही है, अध्ययन करने के क्षि में होने वाली थोड़ी सी च क अथश का अनथश तो करती ही है, साथ ही र्ब्द माधुयश की ससृ्टट की रसातल में ले जाने की बजाए हमें भ्रमजाल में ले जाने लगती है। ऐसे में आवश्यक है की जहां बचगया की वटवकृ्ष और अंकुरों की भ लमका बचगया की सौंदयश ससृ्टट के उद्घाटन के ललए महत्वप िश हो जाती है, वही इस बचगया का अवलोकन करने वाला प्रत्येक पाठक भी सौंदयश के आमवादन के समय में महती भ लमका तनवाशह करता है।

    मैं इस बात से आश्वमत करता ह ं कक काव्य कलर् पत्रिका के रूप में सादहत्य ससृ्टट का

    सम्पादकीय

    1 काव्य कलि 4 www.kavyakalash.home.blog/ काव्य कलि

  • तनमाशि करते हुए इस अंक में संकललत सादहत्यकार बंधुओ ंने स्जस स्जम्मेदारी से र्ब्दों की माला

    को वपरोया है, सभी पाठक लमि भी उतनी ही गहनता से सादहत्य का आमवादन कर सकें गे।

    अमतु

    उद्देलर्का

    हम, भारत के लोग, भारत को एक संप िश प्रभुत्व-संपन्न,

    समाजवादी, पंथ-तनरपेक्ष, लोकतंिात्मक गिराज्य

    बनाने के ललए, तथा उसके सममत नागररकों को : सामास्जक, आचथशक और राजनीततक न्याय,

    ववचार, अलभव्यस्क्त, ववश्वास, धमश

    और उपासना की मवतंिता,

    प्रततटठा और अवसर की समता, प्राप्त कराने के ललए, तथा उन सब में, व्यस्क्त की गररमा और राटर की एकता और अखण्डता

    सुतनस्श्चत कराने वाली, बन्धुता बढ़ाने के ललए, दृढ़ संकस्ल्पत होकर अपनी संववधान सभा में

    आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ईमवी

    (लमतत मागशर्ीषश रु्क्ल सप्तमी, संवत दो हजार छह ववक्रमी)

    को एतद् द्वारा इस संववधान को अंगीकृत, अचधतनयलमत और आत्मावपशत करते हैं।

    सम्पादकीय

    1 काव्य कलि काव्य कलि www.kavyakalash.home.blog/ 5

    भारत का संववधान

    https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AF_%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%A8_%E0%A4%95%E0%A5%80_%E0%A4%89%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE

  • मािु! सनुौ िुम आइहौ आइहौ, काव्य कला हमकौ समुझाइहौ। फेर कभी मखु दरू न जाइहौ

    गीि शसखाइहौ, बीन बजाइहौ। श्िेि िदन है, श्िेि िसन है

    श्िेि ल ैिाहन दरस ददखाइहौ। छंद शसखाइहौ, गीि सनुाइहौ, िाल बजाइहौ, िाह ददलाइहौ।

    * सरु सधंान की कामना है मोहे

    िाल बिा दीज ैमािु सरस्ििी। छंद की; गीि की चाहना है इिै, नेकु शसखा दीज ैमािु सरस्ििी। आखर-िब्द की, साधना नेंक सी रस-लय दीज ैमािु सरस्ििी। सत्य समय का; बोल-बिा सकूाँ सि-शिि दीज ैमािु सरस्ििी।

    * िब्द ननिब्द अिब्द कब ैभए, िनू्य में गूाँज सनुा रय िारद।

    पकं में पंकज ननत्य खखला रय; भ्रमरों लौं भरमा रय िारद।

    िब्द से उपज;ै िब्द में लीन हो, िब्द को िब्द ही भा रय िारद। िाल हो; थाप हो; नाद-नननाद हो िब्द की कीनिय सनुा रय िारद।

    आचायश सजंीव वमाश "सललल", जबलपुर

    सरमवती मतवन 1. सरस्ििी िंदना—बजृ भाषा

    6 www.kavyakalash.home.blog/ काव्य कलि

  • समाज का ऐसा कोई िगय नहीं है जो कभी न कभी, ककसी न ककसी रूप में सादहत्य के ककसी न ककसी विधा के सपंकय में न आया हो। इनिहास से लेकर अब िक की बाि करें िो शभविचचर ,शिलालेख ,शमट्टी और कााँसे के बियनों पर उकेरे चचर, पिों पर शलखे िब्द ,लोक सगंीि , देििाणी, सत्सगं, भजन, कीियन, उपदेि ,गांि के चौपालों पर मडंली द्िारा गाया जाने िाला सगंीि , िादी -वििाह के अिसर पर िर पक्ष को िधू पक्ष की ओर से दी जाने िाली गाशलयााँ ,दादी नानी की कहाननयााँ ,चचरकथाएाँ ,कॉशमक्स ,काटूयन ,निीन सगंीि ,नतृ्य ,नाटक एिम अन्य कई और िरह की सादहत्त्यक विधाएाँ जन मानस में रची बसी होिी हैं। सादहत्य केिल एक ख़ास िगय के शलए ही नहीं होिा ,नहीं िो आइसं्टीन और कलाम जी जैसे िैज्ञाननक सगंीि के मरुीद न होिे। सादहत्य का हर रूप समाज को जोड़ने की कोशिि ही करिा है। यह ककसी दायरे में बधंा हुआ नहीं होिा। अब्दरुयहीम खानेखाना अगर कृष्ण की भत्क्ि कर सकि े हैं िो कािी में गगंा घाट पर बैठे सन्ि-महात्मा सफूी गीि भी गए सकिे हैं। सादहत्य मनषु्य को मनषु्य बनाए रखने की सबसे बड़ी िजह है।

    "य नान,लमस्र,रोमााँ सब लमट गए जहााँ स े

    बाकी मगर है किर भी नामो -तनर्ााँ हमारा

    कुछ बात है कक हमती लमटती नहीं हमारी

    सददयों रहा है दशु्मन दौरे जहााँ हमारा " भारि से पुरानी और भव्य सभ्यिाएाँ भी गिय में चली गईं ,जो अपने सादहत्य को सभंाल कर नहीं रख पाईं। सबसे ज्यादा पढ़ने-शलखने िालों देिों में एक देि,रूस का सादहत्य बहुि ही समदृ्ध माना जािा है। िहााँ मेट्रो, रेल, बस, शलफ्ट हर जगह, हर उम्र का व्यत्क्ि कुछ न कुछ पढिा नज़र आ ही जािा है। पुत्श्कन, लरमनिेंि, गोकी, दोस्िोिसे्की जैस े विद्िानों के धरोहर को आज भी सभंाल कर रखा गया है। हालााँकक पाश्चात्य ससं्कृनि के प्रभाि से रूसी भाषा का स्िरूप जरूर बदला है लेककन लोगों के पढ़ने की रुचच आज भी बरकरार है। भारि की सादहत्त्यक धरोहर भी काफी वििाल है। बाि है कक हमें क्या शमला और हम ककिना अगली पीढ़ी के शलए बचा पाए। भारि के बारे में मकै्स मलूर ,रोमां रोलााँ ,हेनरी रोररक जैसे विद्िानों ने बेहिरीन बािें शलखी हैं। ककिनों ने अपने जीिन की सफलिा का परूा शे्रय ही भारिीय ससं्कृनि के अध्ययन

    लाललत्य बोध’ 1. सादहत्य ही समाज को गढ़ता है

    काव्य कलि www.kavyakalash.home.blog/ 7

  • को दे ददया है। मलूिः यह प्रमाखणि करने की आिश्यकिा नहीं रह जािी है कक जो सादहत्य त्जिना उदार और सीखन-ेशसखाने को आिुर होिा है िह उिना ही ज्यादा दीघायय ुहोिा है। मेरा मि है कक मनषु्य बने रहने का प्रथम ििय है कक आप समाज के सादहत्य से ककसी न ककसी रूप में जुड़ ेरहे। शलखि ेरहे ,पढ़ि ेरहे और दसूरे व्यत्क्ियों को बिाि ेभी रहे। चूाँकक मैं कभी भी विज्ञान का अच्छा विद्याथी नहीं रहा और भाषाएाँ मझु े हमेिा आकवषयि करिी थी ,इसीशलए सादहत्य की ओर रूझान बचपन से ही हो गया। जिाहर लाल नेहरू विश्िविद्यालय में रूसी और िुकी भाषा सीखने के कारण विदेिी सादहत्यकारों को भी पढ़ने का मौका प्राप्ि हुआ। बचपन में नदंन,चम्पक,बालहंस ,नन्हें सम्राट ,चंदा मामा ,अहा त्ज़ंदगी ,कॉशमक्स ने मरेी इस रुचच को बनाए रखा। इंत्ग्लि हॉनसय के दौरान चचनआु अचेब ेकी चथगं्स फालेन अपाटय ,चाल्सय डडकें स की हाडय टाइम्स ,विक्रम सेठ की ए सटेुबल बॉय ,अरंुधनि रॉय की गॉड ऑफ स्माल चथगं्स ,सलमान रुश्दी की सटेैननक िसेज ,ओिो की समाचध स ेसम्भोग की ओर ,इस्मि चुगिाई और सआदि हसन मटंो की लघ ु कथाओ ं ने इस भखू को और भी बढ़ा ददया। अपने कोसय से इिर जाके ग़ज़ल,नज़्म, जीिनी, साक्षात्कार, यारा ििृांि, ससं्मरण, उपन्यास पढिा ही चला गया। यह कहना आसान नहीं होगा कक मैं सब समझिा भी चला गया लेककन सनैनक स्कूल में पढ़ने के कारण आए अनिुासन के कारण जो भी ककिाब उठाई, त्रबना पढ़े हुए मैंने नहीं छोड़ी। इसी दौरान जयिंकर प्रसाद की कामायनी, रामधारी शसहं ददनकर की रत्श्मरथी, मथैी िरण गपु्ि की भारि भारिी जैसी रचनाओ ंसे रूबरू हुआ। चूाँकक मैं खदु्द ट्यिून पढ़ाया करिा था इसशलए पसेै की कोई कमी नहीं हुई लेककन मेरी रुचच ने ही लगभग 300 सादहत्त्यक पसु्िकों को मेरी ननगाहों के सामने से पररलक्षक्षि करिाया। कुछेक ककिाबें रूह में बस गईं। धमयिीर भारिी की गनुाहों का देििा उन में से ही एक पसु्िक है। नानयका के मरने का िणयन इिना हृदयविदारक है कक कोई भी पाठक रोए िगरै उसे पूरा नहीं कर सकिा और मैं भी कई बार रोया।हालााँकक इसी पर बनी कफल्म में जीिने्र साहब ने काफी अच्छी कोशिि कक लेककन धमयिीर साहब का कोई जोड़ नहीं। हालााँकक सिेश्िर दयाल सक्सेना की सनूी चौखटें और प्रेमचंद का िरदान भी प्रेम कहानी का बेजोड़ उदहारण है लेककन गनुाहों के देििा की शमिाल नहीं। धमयिीर भारिी ने मानो सब आाँखों के सामने लाकर रख ददया हो। मैंने पढ़ने के बाद यह पुस्िक दशसयों लोगों को भेंट की और पढ़ने को बोला िाकक प्रमे का सही अथय पिा चले। इसी क्रम में दषु्यि कुमार को पढ़ा िो कफर रूका ही नहीं।

    लाललत्य बोध’

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  • "हो गई है पीर पवशत सी वपघलनी चादहए

    इस दहमालय स ेकिर कोई गगंा तनकलनी चादहए

    मेरे सीने में नहीं तो तरेे सीने में ही सही

    हो कहीं भी आग लेककन आग जलनी चादहए " ग़ज़लों में दहदंी िब्दों के प्रयोग की नए रीि चलाई दषु्यिं कुमार ने। बाबा नागाजुयन, धूशमल को पढ़कर साम्यिाद को जाना। कबीर को पढ़ा िो मानििािाद में पहुाँच गया।मीर, मोशमन, ग़ाशलब, फैज़ अहमद, फैज़ अहमद फ़राज़, परबीन िाककर, गलुज़ार, िहज़ीब हाफी को पढ़ा िो एक नए रूमानी स्िप्न में खो सा गया। बेगम अख्िर, मनु्नी बाई, बड़ ेग़लुाम अली साहब ,हरर प्रसाद चौरशसया, शिि कुमार िमाय, पंडडि जसराज, अमजद अली खान को सनुकर लगा कक सादहत्य ककिना ज़रूरी है इंसानी रूह को बचाए रखन ेके शलए। श्याम बेनेगल ,सईद जाफरी,प्रकाि झा जैसे कफल्मकारों की कफल्में जैसे की मथंन ,आक्रोि, अधयसत्य, दामलु ि ्भारि एक खोज जैसे ििृचचर को देखकर स्िय ंमें एक अलग ही िरह के ज्ञान और सम्पणूयिा का उदय होि ेहुए भी मैंने देखा। राजा रवि िमाय ,अमिृा िेरचगल ,मक़बूल कफ़दा हुसनै की चचरकारी ने सादहत्य के प्रनि मेरी ननष्ठा को और भी मजबूि कर ददया। सादहत्य के प्रनि इस प्यार ने मझुे मेरी बेहिरीन लाइब्रेरी मेरे घर में प्रदान की है। मैं आज भी इसी जोि से पढ़ने और शलखने की कोशिि कर रहा हूाँ। मेरा मानना है कक पी एच डी करने िाले हर व्यत्क्ि को शलखकर या बोलकर अपनी अगली पीढ़ी को और इस समाज को कुछ न कुछ नया जरूर देना चादहए। सादहत्य ने मझु ेइस िरह गढ़ा है कक मझु ेदहदंी और उदूय दो बहनें लगिी हैं और दहन्द ूऔर मतु्स्लम नाखून और मााँस की िरह जुड़ ेहुए लगिे हैं। सादहत्य सच में मनषु्य और समाज को गढ़ने का काम करिा है ,इसमें कोई दो राय नहीं।

    सललल सरोज

    कायशकारी अचधकारी , लोक सभा सचचवालय, नई ददल्ली

    लाललत्य बोध’

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  • आज हर कोई दोहे शलखना चाहिा है पर दोहे त्जिने आसान नजर आिे है उिने है नहीं , पर रचना करना असम्भि भी नहीं है ।दोहे की रचना से पिूय मारा गणना ननयम भी जरूरी है। +=+=+=+=×=+=+=+=+=+=+= माराओं की गणना ननम्नानुसार कर सकिे है --- १. ककसी ध्िनन-खडं को बोलने में लगनेिाले समय के आधार पर मारा चगनी जािी है। २. कम समय की एक िथा अचधक समय की दो मारा चगनी जािी है। ३. अ, इ, उ, ऋ िथा इन माराओं से युक्ि िणय की एक मारा चगनें। ४. िेष िणौं की दो-दो मारा चगनें। ५. िब्द के आरंभ में आधा अक्षर हो िो उसका कोई प्रभाि न होगा। ६. िब्द के मध्य में आधा अक्षर हो िो उसे पहले के अक्षर के साथ चगनें। क्षमा १+२, िक्ष २+१, वप्रया १+२, विप्र २+१, उक्ि २+१ आदद। ७. रेफ को आधे अक्षर की िरह चगनें। बरैया २+२+२। मारा गणना के पश्चाि ्दोहा ननयम ===================== १. दोहा द्विपददक छंद है। दोहा में दो पतं्क्ियां होिी हैं। २. हर पद में दो चरण हैं। ३. हर चरण में १३+११=२४ माराए ंहोिी हैं। ४. िेरह मात्ररक पहले िथा िीसरे चरण के आरंभ में एक िब्द में जगण ित्जयि होिा है। ५. विषम चरणों की ग्यारहिीं मारा लघु हो। ६. सम चरणों के अिं में गुरु लघु माराए ंआिश्यक हैं। ७. आधनुनक दहदंी में खाय, मसु्काय जैसे कक्रया रूप का उपयोग न करें। ८. दोहा मकु्िक छंद है। ९. शे्रष्ठ दोहे में लाक्षखणकिा, सकं्षक्षप्ििा, माशमयकिा होना चादहए। १०. दोहे में सयंोजक िब्दों और, िथा, एिं आदद का प्रयोग न करें। ११. दोहे में कोई भी िब्द अनािश्यक न हो। १२. दोहा में कारक का प्रयोग कम से कम करें। दोहा की भाषा टैलीग्राकफक भाषा की िरह कम िब्दों में अचधक अथय शलए हो।

    लाललत्य बोध’ 2. दोहा कैसे सीखें

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  • दोहा लयबद्ध रहे इसके शलए इसे केिल दो, िीन, चार और छह माराओं िाले िब्दों से ही िरुू ककया जािा है, पााँच माराओं िाले िब्द से दोहा का कोई चरण िरुू नहीं ककया जािा। प्रथम और ििृीय चरण िुरू करने के मात्ररक गणों के दहसाब से कुल 34 भेद छंद वििेषज्ञों ने िय ककए हैं। इसी प्रकार दसूरे और चौथे चरण के शलए 18 भेद िय ककए हैं। त्जनका क्रमिार वििरण ननम्रांककि है- दो माराओं से दोहा िुरू करने के विद्िानों ने मात्ररक गणों के अनुसार 12 भेद बिाए हैं- 2, 2, 2, 2, 2, 3 जसेै- दखु-सखु में जो सम रहे (होिा सच्चा सिं) 2, 2, 2, 2, 3, 2 जसेै- अब िक भी है गााँि में (कष्टों की भरमार) ह 2, 2, 2, 4, 3 जसेै- घर िो अब सपना हुआ (महंगी रोटी दाल) 2, 2, 4, 2, 3 जसेै- ददन-ददन बढ़िे जा रहे (झूठ और पाखडं) 2, 4, 2, 3, 2 जसेै- इक मानि की भखू है (इक साहो। की प्यास) 2, 4, 2, 5 जसेै- धन-दौलि को मानिे (जो अपना भगिान)् 2, 2, 4, 5 जसेै- घर की खानिर चादहए (त्याग समपयण प्यार) 2, 2, 4, 3, 2 जसेै- धन की अधंी दौड़ में (दौड़ रहे हैं लोग) 2, 5, 4, 2, जसेै- सब गद्दार ननकाल दो (ले सकंल्प महीप) 2, 6, 3, 2 जसेै- मााँ सुलझािी गााँठ सब (पथ करिी आसान) 2, 2, 6, 3 जसेै- नख भी कटिाया कभी (आिा है क्या याद) 2, 6, 2, 3 जसेै- पढ़ पायेंगे क्या कभी (ऐसा भी अखबार) दो मारा से प्रारम्भ होने िाले प्रथम और ििृीय चरण में िरुू में दो मारा के बाद िीन मारा िाला िब्द नहीं आिा। इसी प्रकार प्रारंभ में दो के बाद चार मारा आने पर िीन मारा नहीं आिी। साथ ही िरुू में िीन बार दो-दो मारा िाले िब्द आ रहे हों िो उनके बाद भी िीन मारा नहीं आिी। प्रारंभ में दो मारा के बाद छह मारा आने पर उसके बाद चार मारा नहीं आिी। िीन माराओं से प्रथम और ििृीय चरण िुरू करने के आठ भेद बिाए गए हैं- 3, 3, 2, 3, 2 जसेै- सजे हुए हैं िाज में (त्रबन खिुब ूके फूल) 3, 3, 2, 2, 3 जसेै- प्यार ददनों ददन बढ़ रहा (यूं यारों के बीच) 3, 3, 2, 5 जसेै- ननकल पड़ा जो ढूाँढने (पाई उसने राह) 3, 5, 5, जसेै- बम्ब, धमाके, गोशलयां (खनू सने अखबार) 3, 5, 2, 3 जसेै- कोख ककराये पर चढ़ी (ममिा हुयी नीलाम) 3, 3, 4, 3 जसेै- नया दौर रचने लगा (नए-नए प्रनिमान)

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  • 3, 5, 3, 2 जसेै- एक अकेली जान अब (चारों पर है भार) 3, 3, 5, 2 सास-ससुर लाचार हैं (बहू न पछेू हाल) िरुू में िीन मारा िब्द के बाद दो, चार और छह मारा िाले िब्द नहीं आिे। इसी प्रकार िरुू में िीन के बाद पााँच मारा हों िो उसके बाद चार मारा िाला िब्द नहीं आएगा। चार माराओं से दोहे का प्रथम और ििृीय चरण िरुू करने के 10 भेद विद्िानों द्िारा बिाए गए हैं- 4, 4, 3, 2 जसेै- मदंदर मत्स्जद चचय में (हुआ नहीं टकराि) 4, 4, 2, 3 जसेै- देिी कहिा है त्जसे (रहा गभय में माशसहं 4, 4, 5 जसेै- गाड़ी, बाँगले, चेशलयााँ (अरबों की जागीर) 4, 2, 4, 3 जसेै- चदंन िन गायब हुआ (उगने लगे बबूल) 4, 2, 2, 2, 3 जसेै- गााँिों में भी आ गया (िहरों िाला रोग) 4, 2, 2, 3, 2 जसेै- मरना है हर हाल में (सुन ले अरे ककसान) 4, 2, 2, 5 जसेै- शलखने का क्या फायदा (कलम अगर लाचार) 4, 3, 3, 3 जसेै- अच्छा हुआ न शमल सके (गंजों को नाखनू) 4, 2, 5, 2 जसेै- दोनों दल खिुहाल हैं (करिा देि विलाप) 4, 3, 4, 2 जसेै- देने लगा समाज भी (पसेै को अचधमान) चार मारा से िुरू होने िाले प्रथम और ििृीय चरण में प्रारंशभक चार के बाद पााँच मारा िाला िब्द नहीं आिा। इसी प्रकार यदद चार मारा िाले िब्द के बाद दो मारा िाला िब्द आ रहा हो िो उसके बाद िीन मारा िाला िब्द नहीं आिा। छह माराओं िाले िब्द से दोहे के प्रथम और ििृीय चरण की िरुूआि करने के चार भेद होिे हैं- 6, 2, 2, 3 जसेै- चौराहों पर लटु रही (अबलाओं की लाज) 6, 2, 3, 2 जसेै- सवुिधाओं की चाह में (त्रबकिा है ईमान) 6, 4, 3 जसेै- रामकथा करने लगे (बगुले बनकर शसद्ध) 6, 5, 2 जसेै- चौपालें खामोि हैं (पनघट है िीरान) छह मारा िाले िब्द के बाद िीन मारा िाला िब्द नहीं आिा। दोहे का द्वििीय और चिुथय चरण- प्रथम और ििृीय चरण की िरह ही दोहे का दसूरा और चौथा चरण भी केिल दो, िीन, चार और छह माराओं से ही िरुू होिा है। दो मारा से िुरू होने िाले दसूरे और चौथे चरण के विद्िानों ने आठ भेद बिाए हैं-

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  • 2, 2, 2, 2, 3 जसेै- (झूठ मलाई खा रहा) छल के शसर पर िाज| 2, 2, 2, 5 जसेै- (ददन-ददन बढ़िे जा रहे) घर में ही गद्दार| 2, 2, 4, 3 जसेै- (बरगद रोया फूटकर) घुट-घुट रोया नीम| 2, 2, 3, 4 जसेै- (मािसृदन घर पर शलखा) मााँ को ददया ननकाल 2, 4, 2, 3 जसेै- (दानि से बदिर हुई) अब मानि की सोच| 2, 4, 5 जसेै- (झूठे शमलकर सत्य को) कर देिे लाचार| 2, 5, 4 जसेै- (सब गद्दार ननकाल दो) ले संकल्प महीप| 2, 6, 3 जसेै- (मनसब की यदद आरज)ू गा दरबारी राग| दोहा के दसूरे और चौथे चरण की िुरूआि दो मारा िाले िब्द से हो रही हो िो उसके बाद िीन मारा िाला िब्द नहीं आिा। िीन मारा िाले िब्द से दसूरे और चौथे चरण की िरुूआि के ननम्र भेद िय ककए गए हैं- 3, 3, 5 जसेै- (फैला भ्रष्टाचार का) सभी ओर आिंक| 3, 5, 3 जसेै- (ऊन काटकर भेड़ को) ददया दिुाला दान| 3, 3, 2, 3 जसेै- (त्जसके पीछे भीड़ है) िही सफल है आज| इसका चौथा भेद भी होिा है त्जसमें 3, 2, 3, 3 माराएाँ होिी हैं, ककंिु बीच की माराएाँ 2 और 3 िास्िि में पााँच माराओं िाले िब्द के रूप में ही प्रयोग की जािी हैं। जैसे अध जले, अन मने। िीन मारा से िरुू हो रहे दसूरे और चौथे चरण में प्रारंशभक िीन मारा िाले िब्द के बाद दो मारा िाला िब्द नहीं आिा। चार माराओं िाले िब्द से दसूरे और चौथे चरण की िरुूआि के चार भेद बिाए गए हैं- 4, 4, 3 जसेै- (रािन मखुखया खा गया) शमटिी कैसे भखू | 4, 3, 4 जसेै- (भाि जमीनों के बढे) सस्िे हुए ज़मीर| 4, 2, 2, 3 जसेै- (छोड़ गया िो पिू भी) रोने को ददन-रैन| 4, 2, 5 जसेै- (बााँट ददया ककसने यहााँ) नफ़रि का सामान| चार मारा से िुरू होने िाले दसूरे और चौथे चरण में छह मारा िाले िब्दों का प्रयोग नहीं होिा। इसी प्रकार चार मारा िाले िब्द के ठीक बाद पााँच मारा िाला िब्द नहीं आिा। छह माराओं से दसूरे और चौथे चरण की िरुूआि के केिल दो ही भेद विद्िानों ने बिाए हैं- 6, 2, 3 जसेै- (सन्नाटा है गााँि में) खौफज़दा हैं लोग| 6, 5 जसेै- (सांप नेिलों ने ककया) समझौिा चुपचाप|

    लाललत्य बोध’

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  • छह माराओं से िुरू होने िाले दसूरे और चौथे चरण में चार माराओं िाले िब्द का प्रयोग नहीं हो सकिा। इसी प्रकार छह मारा िाले िब्द की ठीक बाद िीन मारा िाला िब्द नहीं आिा। इसके साथ-साथ कुछ और भी ननयम विद्िानों ने िय ककए हैं जसेै- 1. दोहे का प्रथम और ििृीय चरण जगण अथायि ।ऽ। मारा िाले िब्द से िुरू नहीं ककया

    जा सकिा। जसेै जमीन, ककसान आदद िब्द। 2. दसूरे चरण के अिं में चार मारा िाला िब्द हमेिा जगण अथायि ।ऽ। मारा के रूप में ही आिा है। प्रस्िुि करने से पहले हर दोहे के कथ्य, शिल्प, भाषा और भाि को जांचें। दोहे का कथ्य ससु्पष्ट, लाक्षखणक, सकं्षक्षप्ि, अलकृंि िथा सारगशभयि होना चादहए । उदाहरण ---

    दोहे उिने दरू है , त्जिने िुम हो दरू । सजृन कंुज से पे्रम कर , दोहे रचें जरूर ।।

    ववनोद कुमार जनै वाग्वर ,सागवाडा

    लाललत्य बोध’

    तो आइये आज हम करते हैं दोहा अभ्यास ।। दोहों की रचना कर कम से कम दो दोहे व अचधकतम चार दोहे काव्य कलर् पटल पर टंककत करे ... शे्रटठ दोहों का चयन कर सम्मातनत ककया जावेगा ।

    काव्य कलर् पत्रिका हेतु रचनाएं

    [email protected] पर पररचय एवं प्रकार्न की अनुमतत सदहत आमंत्रित हैं

    रचना हेि ुआमन्रण

    14 www.kavyakalash.home.blog/ काव्य कलि

  • अिकाि के ददन था मास्टर सत्यव्रि अपने बरामदे में टहल रहे थ ेकक एक ऑटो ररक्िा आकर रुका, उसमें से एक विकलांग यिुक दीन ूनघसटि ेहुए आया और बोला--भाई साहब,आपके परुाने मकान के पास ही रहिा हूाँ। मझु े डॉक्टर ने ब्लेड प्रेिर की दिाए ंशलखी हैं, डॉक्टर का पचाय लेकर मेडडकल की दकुान पर गया था, ककन्ि ुउसने उधार देने से मना कर ददया, िब मझु ेआपका ध्यान आया और ऑटो करके आपके पास बड़ी उम्मीद लेकर आया हूाँ। मझु ेपांच सौ रुपये उधार दे दीत्जये, दो-िीन ददन में िापस लौटा दूाँगा। सत्यव्रि को उस पर दया आई और पांच सौ रुपये दे ददये। रुपये लेकर दीन ूिापस ऑटो में बैठ कर चला गया। िभी अंदर से उनका पोिा विजय आया और बोला--दादा जी ,आपने उस ेरुपये क्यों दे ददये, िो पक्का िराबी है, आप जाकर देख लीत्जये, िो ऑटो िाल ेके साथ ही कलारी पर शमलेगा। यह सनुकर मास्टर सत्यव्रि सोच में पड़ गये और अपनी साइककल ननकाल कर िराब की दकुान पर जा पहंुचे, उन्होंने देखा सचमचु िो ऑटोिाला, दीन ूऔर एक अन्य िराबी बैठे िराब पी रहे थे। दीन ूबोला- क्या मखूय बनाया, बड़ा आया मास्टर कहीं का। ऑटोिाला बोला- िरकीब िो मनेै बिाई थी। कफर सब कहकहे लगाने लगे। मास्टर सत्यव्रि मन ही मन गसु्सा होि ेहुये िापस आ गये। िीन ददन बाद ही दीन ू के घर जाकर सत्यव्रि ने कहा-ला भाई मेरे पांच सौ रुपये दे दे,िूने आज की बोला था। िब दीन ूबोला- अभी मेरे पास नही है,जब आ जाएंगे दे दूंगा। सत्यिि बोल-े िूने धोखा देकर रुपये शलये और दोस्िों के साथ िराब पी गया ,मन करिा है दो-चार हाथ जमा दूाँ। िब दीन ू बोला-दहम्मि हो िो हाथ लगाकर देख लो। यह सनुि ेही सत्यव्रि ने एक जोरदार चांटा उसे जमा ददया,दरू से यह िमािा देख रही उसकी बहन दौड़कर आई और गसु्से से बोली- मालमू है ये िराबी है िो पैसे देिे क्यों हो। दीन ूकी मां भी आ गई और बोली - जब िो कह रहा है दे देंगे, िो यकीन करना था। मेरे बेटे पर हाथ उठाने का िनु्हें क्या हक़? त्रबना िाप का है इसशलये दहम्मि हो गई। मास्टर सत्यििृ बोले- इसने मझु े धोखा ददया, इसी कारण मनेै चांटा मारा है, अगर िकलीफ हो रही है िो ननकालो मेरे रुपये, िरना कफर ककसी ददन आऊंगा और धुलाई

    कथा लोक 1. र्राबी का मुकदमा

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  • करके जाऊाँ गा। यह कहकर सत्यव्रि अपने घर आ गये, अभी उनको आये एक घण्टा भी नही हुआ होगा,दो पुशलस िाले आ गये और अपने साथ थाने ले गये। िहां टी.आई.बोले - मास्टर जी,आपको िमय नही आई एक लाँगड़ े-ललेू विकलांग को मारने में, आपने उससे ट्यिून पढ़ाने के बदले िय की राशि से ज्यादा मांगी, और न देने पर उसकी वपटाई की, दो गिाह भी ये साथ लाया है।आपने इसे गाली भी दी हैं।आपके खखलाफ़ मामला दजय ककया गया है। सत्यव्रि ने बहुि सफाई दी, लेककन उनकी कुछ भी न चली, निीजा ये हुआ कक उनको एक राि िहीं काटने पड़ी। दसूरे ददन मास्टर जी को अदालि में प्रस्िुि ककया गया, जहां मतु्श्कल से उनकी जमानि मजूंर हुई। और िीन ददन बाद की िारीख शमल गई। जमानि के बाद मास्टर जी को कभी अपने विभाग से ननलम्बन का डर सिाने लगा कभी सज़ा होने की त्स्थनि ध्यान में आने लगी। िीसरे ददन सबुह-सबुह मास्टर जी अपने कमरे में टहल रहे थ,े उनका बटेा विजय और पत्नी मोबाइल चला रहे थे। िभी दीन ूआपने िकील के साथ आ गया और राजीनामे के कागज सामने रखकर बोला-िकील साहब अब आप बाहर जाकर बैदठये, इनसे म ैखदु बाि कर लूगंा। िब िकील साहब बाहर चले गये िब दीन ूबोला -मास्टर जी, आप बहुि बुरे फंस गये हो, आप पर 294, 323, 506 आदद कई धाराएं लगीं हैं, मझुे पिा है कक आपनें गलि कुछ भी नहीं ककया, ना जान से मारने की धमकी दी, न गाली दी, कफर भी आपको फंसा शलया है। कुछ दे लेकर राजीनामा कर लो,िरना नोकरी िो जायेगी ही साथ म ेकड़ी सजा भी होगी। मास्टर जी ने पांच हज़ार रुपये देकर राजीनामे पर हस्िाक्षर कर ददये। अदालि में राजीनामा पिे ककया गया, िब जज साहब बोल-ेभाई,सब धाराओं में राजीनामा स्िीकार करिा हूाँ, लेककन गाली-गलौच की धारा 294 में राजीनामा नही होिा,इसका िो मकुदमा चलेगा, अगर आरोप सात्रबि होगा िो सज़ा भी होगी। गाली-गलौच करना सामात्जक अपराध है। अगली िारीख को सब लोग अपनी िैयारी गिाह सबिू आदद के साथ आएं। जज साहब की बाि सनुकर मास्टर सत्यव्रि सोच में पड़ गये, उन्होंने दीन ूके िकील से पूछा िो उसने कहा- मास्टर जी ये अदालि है, ये अदालि दो िब्दों स ेशमलकर बनिी है, अदा और लि यानी यहां अदा ददखाि े हुये आओ और लाि खाकर जाओ। घर मे आपकी ककिनी िान और िौकि हो, लेककन यहााँ दरिाज ेपर खड़ा होकर आिाज लगाने

    कथा लोक

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  • िाला चपरासी भी असभ्य िरीके से आपको नाम से पुकारिा है। अदालि और पुशलस थाने के नाम स ेअच्छे-अच्छे भी कांपि ेहैं, आप कुछ और भेंट-पूजा कर देना दीन ूके बयान बदलिा दूंगा। िो कह देगा आपने गाली िो खूब दी थीं, लेककन उस े िो सब गाशलयां अच्छी लगीं, अरे भाई, जब अच्छी लगीं िो िो गाशलयां हो ही नही सकिी। मास्टर सत्यव्रि ने आश्चयय से सब कुछ सनुा और बोले- िकील साहब, मनेै गाशलयां िो उस ेदी ही नही कफर ये धारा कैसे लग गई। िकील बोला-अब आप अदालि में शसद्ध करना। बहुि बहस के बाद कफर पांच हज़ार में सौदा िय हुआ। ननधायररि निचथ को अदालि में कटघरे में आकर दीन ूने कहा-सर जी,इन्होंने मझुे गाली िो बहुि दी थीं लेककन मझु ेसनुने में अच्छी लगी थी, अब िो मझु ेकुछ याद भी नही हैं। िभी मास्टर सत्यव्रि जी को बटेा विजय िहां आया और बोला -जज साहब मझु े इस मकुदमे के बारे में कुछ कहना है। ये मकुदमा िुरू से ही झूठा था,मरेे पास इन लोगों की मोबाइल पर ररकाडडिंग है त्जसमे इन्होंने कुबूल ककया है कक हम ये झूठा मकुदमा जीिकर ददखाएंगे,िुमने गाली नही दी, हम चाहें िो सब कुछ शसद्ध कर देंगे। जज साहब ने मोबाइल लेकर जब ररकाडडिंग सनुी िीडडयो देखा िो बोले- दीन ूऔर उसके दोनों गिाह को चगरफ्िार ककया जाये, काननू को धोखा देने और मास्टर सत्यव्रि जी को परेिान के जुमय में इन सबको कड़ी सजा दी जाएगी। और मास्टर जी, आप ऐसे लोगों से दरू रहा कीत्जये, आपको आपकी सज्जनिा की सज़ा शमल जािी। जब मास्टर जी अदालि स े बाहर ननकल े िब उनके िकील ने कहा-मास्टर जी, हमारे पूियज कह गये हैं, कक जो पार हो उस पर ही दया करना चादहये।दनुनयां में िराबी और जुआरी अगर गमय ििे पर भी बैठ कर कसम भी खाएाँ, िब भी इनका भरोसा नही करना चादहये। इसंान को ज्यादा सीधा भी नही होना चादहये,

    धमशराज देर्राज सीहोर

    कथा लोक

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  • आज युिाओ ंके ददल में

    ददन हो या राि चलिा बस एक ही सिाल

    क्या प्राप्ि होगा मुझे रोजगार || आज का युिा

    नौकरी की िलाि में भटक रहा हर ओर ओर सोच रहा

    क्या शमलेगा मुझे रोजगार || आज का युिा बस करिा रहिा नौकरी की िलाि

    और खोजिा रहिा एक अिसर त्जससे प्राप्ि हो उसे रोजगार ||

    आज का युिा जानिा नहीं अिसर िलािने से नही

    बत्ल्क प्राप्ि समय को सही अिसर बनाने से शमलिा हैं ||

    आज का युिा सरकारी नौकरी की चाह में

    बन बैठा बेरोजगार क्या िो जानिा

    नही स्िरोजगार भी िो है एक रोजगार || आजकल के युिा

    बस करिे रहिे नौकरी की िलाि.......

    तनहाररका जैन (बांसवाडा, राज.)

    उन्ही के पास बैठा हंू ,उन्हे छूने से डरिा हूाँ ।

    ननगाहें चार होिी है, मगर िकने से डरिा हूाँ ॥

    न शसला है न चगला है ,

    जहााँ बैठें िो टीला है । छुुुपाकर ख़ि जो लाया हंू ,

    उन्हे देने से डरिा हूाँ ॥

    महकिे फूल का गजरा , चमन से मांग लाया हूाँ ।

    हिा िू थम जरा पगली , महक जाने से डरिा हूाँ ॥

    सरक चुनरी जो आाँचल से, मेरे नजदीक आई है ।

    उठाकर दे नहीं सकिा , उसे छूने से डरिा हूाँ ॥

    करे िो क्या करे इज़हार ,

    ददले बीमार बैठे है । 'मनु' ननगहबान होकर भी, रजू करने से डरिा हूाँ ॥

    महेंद्र जैन 'मनु'

    इन्दौर

    काव्य पटल 1. रोजगार की तलार् 2. तुम्हारे पास बैठा ह ं

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  • रूपसी का यौिन जो चचि को चुराये चचि मोहनी की मोहनी ने मन को चुरा शलया

    चाल गजगाशमनी सी दंिकांनि दामनी सी नैनों से लडा ा़ के नैंन चैन को चुरा शलया

    पे्रम की जो मधुिाला लगिी है मुझे हाला ददल ढूाँ ढे ददलिाला ददल को चुरा शलया

    यौिन के हुश्न ने जो फें का ऐसा माया जाल

    लूटा नहीं कुछ ककंिु सब ही चुरा शलया

    के मध्य रख , मुरली बजी थी जब , दहय में पे्रम की अब , आग जलने लगी।

    मंद मदं समीर जो, छुने लगी है बदन ,

    नैनों में भी ननददया जो, अब खलने लगी ।

    त्रबन नीर मीन जब , मचली हो जैसे आज , यौिन में िैसे दामनी मचलने लगी ।

    कैसी मोहनी थी सखी , मोहन की मुरली में , जब भी बजिी थी िो , दहय छलने लगी ।

    भानु र्माश रंज

    धौलपुर

    रोटी को भी बहलाया फुसलाया जािा है

    जब आग के दामन से उसे बचाया जािा है

    रोटी प्रजािंर का बहुि िानिर खखलाड़ी है िभी िो इसे भरे पेट में खखलाया जािा है

    झुकोगे,चगरोगे,िरसोगे और कलपोगे भी जब रोटी का अशभमान ददखाया जािा है

    िुम्हारी गरीबी का शिगूफा बना बना कर रोटी को अमेररका-जापान घुमाया जािा है

    कहीं ककसी कोने से क्रांनि न खखल उठे

    देर सिेर रोटी का िूफ़ान मचाया जािा है सललल सरोज

    िेरी ही रजा में भला है हमारा। िू सियदिी सभी का सहारा।।

    सही बन्द राहें ये मन जब भी हारा। सदा हाथ पकड़ा दखुों से उबारा।। कभी आिय हो जब हृदय से पुकारा। ददया नाथ केिल िुम्हीं ने सहारा।। मझधार में नाि नाविक हमारा।

    कृपा शसन्धु आकर बनो िुम सहारा।। डा मीना कौर्ल

    गोण्डा ,उ.प्र.

    काव्य पटल 3. मन हरि घनाक्षरी छंद 4. रोटी को अमेररका-जापान

    5. तेरी ही रजा में

    काव्य कलि www.kavyakalash.home.blog/ 19

  • आभारी हूाँ में मााँ भारिी का की जन्म हुआ मेरा यहााँ। आदद काल से चलिी आ रही संस्कृनि का दहस्सा बना। देिभूशम ये पुण्यधाम है, पविरिा का दसूरा नाम है।

    हवषयि हररयाली , पुलककि हर प्राण है। सत्ज्जि है िेद ,पुराण , िास्र से । जीिन सफल है जन्म मार से। महादेि की डमरू से गुतं्जि। योद्धाओ के रक्ि से संचचि।

    हर प्राणी स्नेह पार है। आयो की भूशम है ये।

    विश्ि पटल पे अटल व्याप्ि है।

    सौरभ कुमार जायसवाल, बरारी कदटहार

    6. रचना

    काव्य पटल

    काव्य कलि 7

    1.

    धिल िीिल चत्न्रका सोहिी िन िीचथका चाहिा है हर युगल िुझसे बढ़ाना प्रीनियााँ चााँद िुझसे कई ररश्िे दरूरयााँ नजदीककयााँ

    2.

    मेरे मन की ये उमगंें छेड़िीं उर की िरंगें है रशसक िेरा चकोर गाये विरह की पत्क्ियां

    चााँद िुझसे कई ररश्िे दरूरयााँ नजदीककयााँ

    3.

    पिय करिा चौथ आया साथी का दीदार पाया हर ककसी मन की िरह होिी हैं िेरी नीनियां चााँद िुझसे कई ररश्िे दरूरयााँ नजदीककयााँ

    प्रवीिा त्रिवेदी,

    नई ददल्ली

    7. चााँद िुझसे कई ररश्िे दरूरयााँ नजदीककयााँ

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  • (1)

    ककसी से की गई उम्मीदें मन में टूट जािी है जिानी आज कल हमसे भी अकसर रूठ जािी है कभी हम कह नहीं पािे, कभी िो सुन नहीं पाि े मुहब्बि की कहानी सब अधरूी छूट जािी है

    (2)

    हमें बुझिा हुआ दीपक जलाना िो पड़ेगा ही नदी को भी समदंर से शमलाना िो पड़ेगा ही

    जो हमसे रूठ जािा हो, जो हमको ना बुलािा हो हमारा फज़य है उसको बुलाना िो पड़ेगा ही

    (3)

    जला के दीप को िनेु शसिारा कर शलया होिा मेरी हर बाि उलफ़ि में गिारा कर शलया होिा ज़माना छोड़ कर उस ददन िुम्हारे पास आ जािा अगर िूने मुझे उस ददन इिारा कर शलया होिा

    (4)

    अगर िू चााँद है िो कफर शसिारे ही रहेंगे हम िुम्हारी इन ननगाहों के नज़ारे ही रहेंगे हम

    हमारी त्ज़ंदगी का एक ही मक़सद रहा अब िक िुम्हारे थे, िमु्हारे है, िुम्हारे ही रहेंगे हम

    - स्ममत परमार, आनदं, गजुरात

    बापू का सपना सच हो, हर बच्च-बच्चेुे का यही लक्ष्य हो,

    पढ़े शलखे शिक्षक्षि सब हों, िो ये भारि भूशम धन्य हो।

    राष्ट्रवपिा का सपना सच हो,

    सभी लोग स्िच्छ हों, सम्पूणय देि स्िच्छ हो,

    िो बापू का संघषय सच हो।

    मन स्िच्छ हो, िन स्िच्छ हो, भूशम स्िच्छ हो,

    ये पविर भारि मााँ स्िच्छ, बापू का सपना सच हो।।।

    र्ुभम द्वववेदी ,तुलसीतीथश राजापरु ,चचिक ट

    8. मुक्िक 9. बापू का सपना

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  • सिालों के जिाब ढंूढने में उलझी-उलझी सी ददखी थी कैसे न मानु ? यह कक,

    मेरी लि स्टोरी पढ़ी शलखी थी

    लम्हों का दहसाब िह बखूबी करना जानिी थी इसशलए मेरी खुिी को

    िह अपनी खुिी मानिी थी

    मेरी खामोशियां पढ़ने को उसने नजरों की भाषा सीखी थी

    कैसे न मानु ? यह कक, मेरी लि स्टोरी पढ़ी शलखी थी

    उकेरने कों मेरा चचर

    ह्रदय में अपने बड़ी अदब से उसने चचरकारी सीखी थी

    प्यार में राजनीनि करना उसे नहीं आिी थी

    इसशलए िह जिािी नहीं थी पर बड़ी शिद्दि से मुझे चाहिी थी

    ननश्छल पे्रम और अगाध श्रद्धा मुझे उसके समपयण में ददखी थी

    कैसे न मानु ? यह की, मेरी लि स्टोरी पढ़ी शलखी थी....

    र्भुम जैन "पराग"

    उदयपुर (राज.)

    10. पढ़ी ललखी लव मटोरी

    काव्य पटल

    त्रबक जािी है यूाँ ही ख्िाइिें सरेआम ,,

    खखलौने की दकुान पर रोिा बदनसीब अनजान ,, भूख की आग में चोरी

    करिा िो बालक नादान ,, उसपर भी मानििा

    की रेखा पार करें ,, हर बाबू बुद्चधजीिी अििेष ।।

    मनकेश्वर महाराज "भट्ट"

    मधेपुरा , त्रबहार

    11. र्मशसार है मानवता

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  • थामे जो रफ्िार को शमटाये हाहाकार को

    िह िुमने क्षमिा है जो झुका दे संसार को ।।

    िुम चलो िो धरिी दहले झुका दो आसमान नीले विश्िास खुद पर हो जब

    िो दहला दे पहाड़ को ।।

    िुम रोक दो िूफान को हाशसल करो सम्मान को पथ पर बस नजर रखो

    ददखा दो हर नर नार को ।।

    रोक के दखुों का गजयन कर लो मेहनि से अजुयन विष वपया अब और नहीं वपयो अमिृ के धार को ।।

    थामे जो रफ्िार को शमटाए हाहाकार को िह िुम में क्षमिा है

    जो झुका दे संसार को।।

    प्रतीक प्रभाकर महनार वैर्ाली, त्रबहार

    मैं क्रोध का कवि हूाँ। िासन की ननरंकुििा के विरोध का कवि हूाँ,

    मैं क्रोध का कवि हूाँ। व्यिस्था जब पथ से भटके, काज मनजुिा के हो अटके, भटके जन पाने न्याय को,

    राजनीनि पोवषि करे अन्याय को, िब हर जन की पीड़ा की छवि हूाँ।

    मैं क्रोध का कवि हूाँ। िासन की ननरंकुििा के विरोध का कवि हूाँ,

    भूखे को भोजन ना प्यासे को पानी, बेकार ही बीि रही हो जब जिानी, रस्ि ककसान, नष्ट हो रही ककसानी,

    मजदरू,कामगार,व्यापारी की यही कहानी, िब िोषण के िम को िोड़िा रवि हूाँ।

    मैं क्रोध का कवि हूाँ। िासन की ननरंकुििा के विरोध का कवि हूाँ।

    बच्चों का बचपन जब कोई छीनिा हो, हृदय होिा विदीणय जब िह कचरा बीनिा हो,

    चौराहों की लाल हरी बिी पर शभखमंगे बच्चों की िो लाचारी,

    ऐसा लगिा है कक स्ियं महादेि करने लगे हो प्रलय की ियैारी।

    िब उनके जीिन यज्ञ में जलिा हवि हूाँ, मैं क्रोध का कवि हूाँ।

    िासन की ननरंकुििा के विरोध का कवि हूाँ। जब िक िासन नही ंचेिेगा,

    "िज्रघन" कवि चुपचाप नहीं बैठेगा, कलम से क्रांनि का एक सैलाब उठेगा, शसिम और शसिमगर का िजूद शमटेगा,

    प्रसुप्ि चेिना को उद्दीप्ि करिी अत्ग्न हूाँ, मैं क्रोध का कवि हूाँ।

    िासन की ननरंकुििा के विरोध का कवि हूाँ।

    बजरंग लाल सैनी "वज्रघन" खंडेला स्जला सीकर राजमथान

    12. झुका दे संसार 13. मैं क्रोध का कवव ह ाँ

    काव्य पटल

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  • सांिली चंचल चचििन में नेह भींगा समपयण शलये, प्रीि के दीप जलाये,

    िुम ने ननदंयारी पलकों में।

    महक जाये सूनी बचगया, खुले खुिबुओ ंके दरीचे।

    मेरी प्रीि का जहां आबाद है, कजरारी पलकों के नीचे। मेरे ही सपनें सजाये,

    िुम ने ननदंयारी पलकों में। प्रीि के दीप जलाये

    िुम ने ननदंयारी पलकों में।

    िुम्हारे सुखय लबों पर, मेरे गीि यूं मचलिे है। जैसे बहारों के मौसम में, हसीं गुलाब खखलिे है।

    िफा के फूल खखलाये,

    िुम ने ननदंयारी पलकों में प्रीि के दीप जलाये

    िुम ने ननदंयारी पलकों में।

    बोलिी है झुकी झुकी नजरे, मौसम गुलाबी लगिा है। जानेमन ये भोला चेहरा,

    मुझ को ककिाबी लगिा है। कैसे कैसे राज छुपाये,

    िुम ने ननदंयारी पलकों में प्रीि के दीप जलाये

    िुम ने ननदंयारी पलकों में।

    ओमप्रकार् त्रबन्जवे " राजसागर "

    एक अजनबी और उसका संसार, भीड़ में िन्हा कफक्रमंद प्यार । ननमोही पथ पर अग्रसर सार, िक़्ि को लेकर भी विचार । अकेलेपन कीमिी हिा है यार, शसिारों के बीच चांद स्िीकार । फलक में सूरज भी आधार,

    ककसे नहीं है िकरार अचधकार ? हर हैशसयि को शमला आकार,

    कटु-मधुर अनुभि है हमें स्िीकार । शिखर िक कौिूहल पैदा बारम्बार,

    मंत्जल िक पहंुचकर ननिान यादगार ।

    सफ़र में साचगदय नहीं अहंकार,

    पररदंों के भी धरा पर उिार ! अंधेरी राि में न जुगनू लाचार, वप्रयिमा से रहें न कुछ उधार !!

    लहरों में त्जंदगी के मंजर िार-िार, ख्िादहिें नदी-सागर और मीन िैरिी पहाड़ ।

    अश्क आखंों में यौिना है चधक्कार, श्रृंगार कर इंिजार नहीं लौटािा बहार ।

    ववजय र्कंर प्रसाद

    14. ननमोही

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    15. सांवली चंचल चचतवन

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  • मै सतृ्ष्ट स्िरूपा आददित्क्ि मैं सतृ्जि विश्ि रखिाली हूाँ।

    मै रौर स्िरूपा महाकाली मैं राम - कृष्ण महिारी हूाँ।

    मुझसे भारि का गौरि हैं मैं स्िाशभमान की काया हूाँ ।

    मैं िीर शििा, राणाप्रिाप और भगि शसहं की मािा हूाँ

    मैने िोखणि को मथ मथकर इनिहासो का गान शलखा।

    मैं त्याग िपस्या की मूरि मैं श्रम ननष्ठा कल्याणी हूाँ।।

    मै जदटल जटा से मागय खोजिी शिि गंगा की धारा हूाँ।

    मैं सरस्ििी कृष्णा यमुना मैं शसधं राज्य की िारा हूाँ।

    मैं नमय स्िभािा सी िीिल मदृ ुनमयदा की उशमय हूाँ।

    मैं िेरििी सरयू िापी और गोदािरी त्ररिेणी हूाँ।।

    मैं स्िणयमयी सी सोननदी मैं महाकाल की क्षक्षप्रा हूाँ ।

    मै दबुली पिली पीििणय घन की विरही ननवियन्ध्या हूाँ।

    मैं िनिासी श्री राम प्रभु की पथगाशमनी सीिा हूाँ।

    मैं ज्ञानमयी परम�