काका शकोहाबाद के दोहेगीत और क वताय...

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1 काका शकोहाबाद के दोहे , गीत और कवताय काका शकोहाबाद के दोहे , गीत और कवताय मरयम तवीर अब तो पानी म भी स लगती है अरमान क आग, ऐसी द नयां से द र कहं त भाग सके तो भाग। र से ह दख जाता था कहं ट टा मकान था अपना, आज करब आने पर भी कोई नहं लगता है अपना। तक भी डर कर अब तो भागने लगे ह, ज़हरले उनसे यादा आदमी जो होने लगे ह। बकर ने कहा बकरे से चल इस द नयां से र कहं हम ेम करगे,

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  • 1 काका �शकोहाबाद के दोहे, गीत और क�वताय�

    काका �शकोहाबाद के दोहे, गीत

    और क�वताय�

    म�रयम क� त�वीर

    अब तो पानी म� भी सुलगती है अरमान� क� आग,

    ऐसी द#ुनयां से दरू कहं तू भाग सके तो भाग।

    दरू से ह 'दख जाता था कहं टूटा

    मकान था अपना,

    आज करब आने पर भी कोई नहं

    लगता है अपना।

    त-क भी डर कर अब तो भागने लगे ह/,

    ज़हरले उनसे 2यादा आदमी जो होने लगे ह/।

    बकर ने कहा बकरे से चल इस द#ुनयां से

    दरू कहं हम 5ेम कर�गे,

  • 2 काका �शकोहाबाद के दोहे, गीत और क�वताय�

    बकरा बोला, तून ेदेर क�, कल बकरद है,

    आज रमज़ान ख6म ह�गे।

    जहां तक चलतेचलते थके रा7ता आगे भी नहं,

    सोच ले प8थक तू भी, मंिजल अब कहं भी नहं।

    पैसा ह एक दम से बनाना है तो

    एक काम करो,

    ;य� न म� और

  • 3 काका �शकोहाबाद के दोहे, गीत और क�वताय�

    सूरज #नकला नहं, बाIरश म� हाथ धरे

    बैठा रहा रोज़ाना का मजदरू,

    काम कुछ �मला नहं पानी पी कर सो गये

    घर के सब मजबूर।

    जलन, Kवेष, 7वाथ? छोड़कर दरू रख� कटु

    वचन� क� शमशीर,

    5ेम-Hयार कैसे पले, कुछ तो ढलं कर�

    इन IरOत� क� जंजीर।

    द#ुनयां क� इस चाल म� आंख� फूट,

    टांगे टूट कभी न �मल छांव,

    धयै? बांध के

  • 4 काका �शकोहाबाद के दोहे, गीत और क�वताय�

    जब भी

    जब भी अपने शहर म� जाता हंू,

    वह पुरानी टूट सड़क� पूछती ह/,

    ;या लेने आये हो?

    हम अभी तक नहं बदल ह/,

    तुम बदल गये, संवर गये हो, ;या यह

    बतान ेआये हो?

    पुराने घर क� चारदवार थी कभी,

    आज उसक� एक Sट भी नहं,

    दरवाज़े पर बैठा हुआ राजू भाग कर आते

    ह पूछता है,

    भैया �वदेश से मेरे �लये ;या

    लाये हो? �

  • 5 काका �शकोहाबाद के दोहे, गीत और क�वताय�

    वा'दय� म�

    शाम के पहले ह �सतारे से ज़Tम�

    को कोई कुरेदने लगता है,

    जैसे सूय? ढलते ह वा'दय� म� कुदरत

    का धुआं उठन ेलगता है।

    च>ूहा जलता है िजस घर म�

    दो रो'टय� के �लये,

    मेरा अतीत उसी आग म� चपुचाप

    जलने लगता है।

    जब भी करते ह/ याद तुझ ेमेरे Uबगड़ े

    हुये मांझी के साथ,

    मेर बदना�मय� का इ#तहास

    उबलने लगता है।

  • 6 काका �शकोहाबाद के दोहे, गीत और क�वताय�

    लोग तो जलाते ह/ 'दये को अपने

    घर म� रोशनी के �लये,

    उसे देखते ह मेरे 'दल का 8चराग

    जाने ;य� सुलगन ेलगता है।

    Iरवाज़-ए-द#ुनयां म� मरन ेके बाद

    इंसान को जलाया करते ह/,

    मेरा िज7म तो सदा से िजंदा ह

    जला करता है।

    मह

  • 7 काका �शकोहाबाद के दोहे, गीत और क�वताय�

    म;खी म;खी बैठW मुंह पर,

    मानव ने दतुकार के लताड़ा,

    और मारा उसके हाथ,

    बोला , शम? नहं आई तुझको?

    गंद नाल क� अभागन,

    ज़रा पहचान तो अपनी औकात?

    उड़ कर भागी म;खी और

    दरू ह से बोल मानव से,

    कोई बात नहं है बXच,ू

    और कुछ 'दन कर ले अपनी ह बात,

    जब मर जायेगा एक 'दन,

    तब बैठंूगी तेरे मुंह पर म/,

    बड़ ेह आराम के साथ। �

  • 8 काका �शकोहाबाद के दोहे, गीत और क�वताय�

    मIरयम (यीशु क� सलब के समय)

    उस अ[मुखी मIरयम क� आंख�

    म� रोता था उसका हर सपना,

    गोरे गाल� पर 8गरता था हर आंसू

    यूं गल रह थी ममता। �

    गज़ल वह हंसत ेरहे मील� तक, कोई 8गला नहं,

    हम मु7कराये एक पल, तो मंुह बना �लया।

    रहता मेरे पास तो ये फूटता ज\र,

    भला हुआ जो तुमने मुक]र चरुा �लया।

    कहा था ^_टाचार के तोड़ द�गे पैर,

    पता चला

  • 9 काका �शकोहाबाद के दोहे, गीत और क�वताय�

    जीते–जी जल, मरकर जल, ये िज़aदगी जल,

    जाने वाले ने अपना फलसफा बता 'दया।

    अपन� म� भी होता है Hयार, पता नहं,

    तुमको �मला होगा, सो तमुने बता 'दया।

    झूठ का �वरोध

  • 10 काका �शकोहाबाद के दोहे, गीत और क�वताय�

    बात िज़aद8गय� का इ#तहास

    सदा कहता आया है यह बात,

    ख6म न होती मुिOकल�,

    मारो हा-पैर तुम 'दन रात।

    एक बार को जानवर भी,

    सुन ल�गे तुcहार बात,

    मगर नहं सुनेगा आदमी,

    8च>लाओं तुम आधी रात।

    वह तो अपनी धनु म�,

    गाय�गे ह, हर जाड़ा, गमd और बरसात,

    जो शु\ हुए एक बार को,

  • 11 काका �शकोहाबाद के दोहे, गीत और क�वताय�

    भूखे पेट प6तल चाट�

    ऐसा मेरा भारत महान,

    पर�मट वाले कभी न खोल�,

    अब राशन क� दकुान। �

    IरOत-ेनात ेIरOते नात,े झूठे IरOते, सXच े

  • 12 काका �शकोहाबाद के दोहे, गीत और क�वताय�

    मजदरू बोले सागर से मेर मानेगा जानी,

    मेरे पसीने से ख़ारा कभी नहं तेरा पानी।

    चच?-नी#त का दांव है ऐसे खेलो खेल,

    हाथ �मलाओ रोज़ ह पर कभी न करो मेल।

    राजनी#त क� पहचान है, गुंडा-गदf के दांव,

    मतलब पड़ ेतो हाथ जुड़�, लाओं तुम 'दन रात।

    लकड़ी कहे आदमी से आज तू जलाता है मुझको,

    एक 'दन ऐसा आयेगा जब म/ जलाऊंगी तुझको।

    सह साधना वह है िजसम� होये न खच?,

    ईश बसाये चलते जाओ �मल जायेगा �