वेबनार साताहक घटनाक्रिम · 2019-11-14 ·...

25
वेबनार साताहक घटनाम मंगलवार 12 नवंबर, 2019 टॉपस : 1.राीय शा दवस का इतहास: 2.संकट पेरस समझौता 3. कै से मलेगा सबको पानी? 4.वण जमा योजनाएं और उनकी समयाएं 5.साइबर धोखाधड़ी की बढती घटनाएं ाहक को सतक रहने की जरत 6.मनरेगा जा सकता है पीएम- कसान का धन 7.राजकोषीय घाटे कै से सकता है सुधार? 8.या है RCEP समझौता?

Upload: others

Post on 14-Apr-2020

8 views

Category:

Documents


0 download

TRANSCRIPT

  • वेबनार साताहक घटनाक्रिममंगलवार 12 नवंबर, 2019

    टॉपक्स :1.राष्ट्रीय शक्षा दवस का इतहास: 2.संकट में पेरस समझौता3. कैसे मलेगा सबको पानी?4.स्वणर्ष जमा योजनाएं और उनकी समस्याएं 5.साइबर धोखाधड़ी की बढती घटनाएं ग्राहक को सतकर्ष रहने की जरूरत6.मनरेगा में जा सकता है पीएम- कसान का धन 7.राजकोषीय घाटे में कैसे आ सकता है सुधार?8.क्या है RCEP समझौता?

  • 1.राष्ट्रीय शक्षा दवस का इतहास:वैधानक रूप से ‘राष्ट्रीय शक्षा दवस’ का प्रारम्भ 11 नवम्बर, 2008 से कया गया है। यह दवस भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी, प्रसद्ध शक्षावद् एवं ‘भारत रत्न’ से सम्मानत मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की जयंती के अवसर पर मनाया जाता है।मौलाना अबुल कलाम आजाद देश के पहले शक्षा मंत्री 15 अगस्त 1947 से 02 फरवरी 1958 के मध्य बनें थे। अपनी पत्रका के माध् यम से कलाम ने न केवल अंगे्रजी हुकूमत पर हमले कए, बिल्क सांप्रदायक सौहदर्ष और हदं-ूमुिस्लम एकता पर भी बल भी दया।मौलाना आज़ाद का असल नाम अबुल कलाम गुलाम मोहउद्दीन अहमद था लेकन वह मौलाना आजाद के नाम से मशहूर हुए थे। मौलाना आजाद स्वतंत्रता संग्राम के शीषर्ष नेताओं में से एक थे। अबुल कलाम आज़ाद के पता का नाम मौलाना सैयद मोहम्मद खैरुद्दीन बन अहमद अलहुसैनी था। वह एक वद्वान थे, िजन्होंने 12 कताबें लखी थीं। अबुल कलाम पर भी उनकी वद्वता का असर आजीवन रहा।मात्र 13 साल की उम्र में मौलाना आज़ाद की शादी खदीजा बेगम से हो गई थी। उनका नाम स् वाधीनता संग्राम के अहम सेनानयों में गना जाता है।मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने कहा था - हमें एक पल के लए भी यह नहीं भूलना चाहए क शक्षा हरेक व्यिक्त का यह जन्मसद्ध अधकार है। हमें यह सुनिचत करना चाहए क हर व् यिक्त को बुनयादी शक्षा मले, बना इसके वह पूणर्ष रूप से एक नागरक के अधकार का नवर्षहन नहीं कर सकता।संगीत नाटक अकादमी, ललत कला अकादमी, साहत्य अकादमी के साथ-साथ भारतीय सांस्कृतक संबंध परषद सहत अधकांश सांस्कृतक संस्थानों की स्थापना का शे्रय आजाद को ही जाता है।वह हन्द-ूमुिस्लम एकता के सबसे बड़ ेपैरोकार थे। मौलाना आजाद ने उदूर्ष, फारसी, हन्दी, अरबी और अंगे्रजी ़ भाषाओं में महारथ हासल की। मौलाना अबुल कलाम आजाद ने 1912 में उदूर्ष में सताक पत्रका अल-हलाल नकालनी शुरू की िजससे युवाओं को क्रिांत के लए जोड़ा जा सके।मौलाना अबुल कलाम का जन्म 11 नवम्बर 1888 में हुआ था। मौलाना अबुल कलाम आजाद महात्मा गांधी से प्रभावत होकर भारत के स्वतंत्रा संग्राम में बढ़चर कर हस्सा लया और भारत के बंटवारे का घोर वरोध कया।पहला IIT, IISc, स्कूल ऑफ लानगं एंड आकर्ष टेक्चर और वववद्यालय अनुदान आयोग उनके कायर्षकाल में स्थापत कया गया था।आजाद ने महलाओं की शक्षा, सावर्षभौमक प्राथमक शक्षा और 14 साल की उम्र तक के सभी बच्चों के लए अनवायर्ष शक्षा, व्यावसायक प्रशक्षण और तकनीकी शक्षा की वकालत की। उनका दृढ़ ववास था क मातभृाषा में प्राथमक शक्षा दी जानी चाहए

  • 2.संकट में पेरस समझौताएक दशक से जलवायु परवतर्षन का संकट बढ़ता ही जा रहा है। इसी कालखंड में इस समस्या पर पयार्षवरण कायर्षकतार्षओं और वशषेज्ञों ने सबसे ज्यादा चतंा जताई। दनयाभर में जागरूकता अभयान चले। फर भी ज्यादा कुछ हो नहीं पाया, बिल्क धरती का तापमान पहले से कहीं ज्यादा तजेी से बढ़ चला है। मौसम की चाल तजेी से बदलने लगी है। ग्लेशयर पघलने लगे हैं। समुद्र का स्तर उठ रहा है। कई जीव-जंतु नई परिस्थतयों से तालमेल नहीं बैठा पाने की वजह से लुत होने की कगार पर हैं। सूझ नहीं रहा है क सात सौ सत्तर करोड़ आबादी वाले ग्रह की आबोहवा और तापमान सुधारने के लए एकमुत क्या कया जाए? हालांक इस बीच जो कुछ सूझा था, उसे करने की जी-तोड़ कोशश भी की गई। मसलन, ववस्तर पर एक पहल चार साल पहले की गई थी, िजसे पेरस समझौता कहते हैं। लेकन इस समझौते पर भी इस समय संकट है।.संयुक्त राष्ट्र के तहत यह समझौता सन 2015 में हुआ था। दनया के एक सौ छयानवे देशों ने पेरस समझौते की शतर्भों पर सहमत जताई थी। इसका मुख्य मकसद जलवायु परवतर्षन के लए िजम्मेदार काबर्षन उत्सजर्षन की एक सीमा तय करना था, ताक पथृ्वी के बढ़त ेतापमान को रोका जा सके। पेरस समझौते का लक्ष्य था क 2025 तक हर साल जलवायु परवतर्षन रोकने के काम के लए सौ अरब डालर जुटाए जाएंगे। दनया में सबसे ज्यादा काबर्षन उत्सजर्षन करने वाले देशों की सूची में पहले दो नंबर पर आने वाले अमेरका और चीन की इस समझौते में भागीदारी से इस करार की कामयाबी की काफी उम्मीदें बंधी थीं।.अमेरका ने इस कोष के लए तीन अरब डालर देने की पेशकश की थी। लेकन सरकार बदलते ही अमेरका ने पेरस समझौते से खुद को अलग करने का फैसला कर लया। राष्ट्रपत डोनाल्ड टं्रप ने एक जून, 2017 को एलान कर दया की अमेरका पेरस समझौते में अपनी प्रतभागता खत्म कर देगा। इस फैसले का कारण यह बताया गया क अमेरका का हत प्रथम है। तकर्ष दया गया क इस समझौते में बंधने से घरेलू उद्योग कारखाने एक सीमा में बंध गए हैं। इससे उत्पादन और रोजगार बढ़ाने में दक्कतें आ रही हैं। इसके अलावा, कोष के लए तीन अरब डालर की मदद को भी नई सरकार ने अमेरकी अथर्षव्यवस्था पर एक बोझ की तरह देखा।.

  • पेरस समझौते को वव बरादरी की एक ऐतहासक पहल के तौर पर प्रचारत कया गया था। दनया के लगभग सभी देशों की भागीदारी और लंबे सोच-वचार के बाद समझौते का ढांचा बना था। पेरस समझौते के अनुच्छेद-28 के तहत कोई भी देश समझौता लागू होने के तीन साल तक अपने आप को इससे अलग नहीं कर सकता था। और उन तीन साल के बाद अलग होने की प्रक्रिया की समय अवध एक साल की है। इसलए 2016 से प्रभाव में आए इस समझौते से अलग होने की प्रक्रिया शुरू करने के लए टंÑप सरकार को नवंबर, 2019 तक का इंतजार करना पड़ा।.पेरस समझौता लागू होने के तीन साल पूरे होते ही चार नवंबर को अमेरकी प्रशासन ने इस समझौते से अलग होने की औपचारक प्रक्रिया शुरू कर दी। इस तरह चार नवंबर, 2020 को यह प्रक्रिया पूरी हो जाएगी और अमेरका इस समझौते से खुद को अलग कर लेगा। उसके बाद अमेरका पर काबर्षन उत्सजर्षन नयंत्रत रखने की कोई बंदश नहीं होगी, और न ही अमेरका को संयुक्त राष्ट्र के पास अपने यहां हुए काबर्षन उत्सजर्षन की मात्रा दजर्ष करानी पड़गेी।.यह मसला एक सौ छयानवे देशों में कसी एक देश के बाहर होने तक सीमत नहीं माना जाना चाहए। दनया के सबसे ताकतवर देश के बाहर होने का असर दसूरे कई देशों पर पड़ना तय है। इस घटना को सफर्ष राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय राजनीत का मामला मानना भी समझदारी नहीं है। मसला पथृ्वी के भवष्य का है। सवाल यह है क क्या अब वह गुंजाइश बची है क कोई देश सफर्ष अपना हत देखे और खुद को वैिवक खतरों से अलग रख सके? यह बात समझी जानी चाहए क इस समय वव के सामने जलवायु परवतर्षन से ज्यादा सावर्षभौमक क्या और कोई समस्या है?.बेशक अमेरका हर क्षेत्र में बहुत ताकतवर है। लेकन देर-सवेर उसे भी सोचना पड़गेा क पयार्षवरण का मसला सफर्ष आथर्षक वदृ्ध में रुकावट तक सीमत नहीं है। इस समझौते से अलग हो जाने से अंतरराष्ट्रीय समूह में उसकी पैठ कमजार पड़ सकती है। मसलन, ऐसा करके उसने चीन और यूरोपीय यूनयन को वैिवक नेततृ्व का मौका दे दया है। चीन इन दनों िजस तरह से स्वच्छ ऊजार्ष पर जोर दे रहा है, उसे देखते हुए आगे यह आचयर्ष नहीं होना चाहए क वह इस मसले पर दनया का नेततृ्व करता नजर आने लगे।.

  • बहरहाल, पूरी दनया में अमेरका के इस कदम की आलोचना-समालोचना भी खूब हो रही है। अमेरका के अंदर और दनयाभर के जानकार टं्रप के इस फैसले के पीछे के तकर्ष समझने में लगे हैं। एक बड़ा कारण यह समझा जा रहा है क अमेरका में फॉसल फ्यूल इंडस्ट्री का वहां की राजनीत में बड़ा दबदबा है। इसी बीच, मीडया में राष्ट्रपत टं्रप, उपराष्ट्रपत पेन्स व अमेरकी एनवायरनमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी के अध्यक्ष स्कॉट प्रुइट और पेट्रोकेमकल उद्योग के बीच वशषे संबंधों का िजक्रि सुनने में आता रहा है।.वैसे यह सभी जानते हैं क पेरस समझौते से अलग होने का सबसे ज्यादा फायदा कोयला, तले, ऊजार्ष आद क्षेत्रों में लगीं अमेरकी कंपनयों को होगा। बेशक एक राष्ट्र के रूप में अमेरका के लए यह मामला उसकी आथर्षक वदृ्ध से जोड़कर दखाया जा सकता है। अमेरका ही क्या, बाकी दनया पर भी यह बात लागू है। लेकन यह बात भी दोहराई जानी चाहए क जान है तो जहान है। जलवायु परवतर्षन से दनया की जान पर बन आई है। आथर्षक वदृ्ध और वकास की बातें इसके सामने बहुत छोटी पड़ रही हैं। ऐसा भी नहीं है क इस बात को खुद अमेरका के अंदर ही बहुत सारे तबके न समझ रहे हों।.अमेरका के भीतर भी पेरस समझौते से अलग होने का वरोध हो रहा है। टं्रप प्रशासन के इस फैसले के बावजूद अमेरका के कई राज्य, शहर, उद्योग, संस्थाएं इस फैसले के खलाफ लामबंद हो रहे हैं। ऐसी करीब तीन हजार आठ सौ इकाइयों का समूह बन चुका है िजसका नाम रखा गया है- ‘वी आर िस्टल इन’ यानी हम अभी भी समझौते में हैं। इन उद्योगों-प्रतष्ठानों का इरादा अपने स्तर पर पेरस समझौते के नदर्गेशों को लागू रखना है।.गौरतलब है क अमेरका की इन सभी इकाइयों का अमेरकी सकल घरेलू उत्पाद में करीब सत्तर फीसद योगदान है। ये इकाइयां दो तहाई अमेरकी जनसंख्या का प्रतनधत्व करती हैं। यह समूह इतना बड़ा है क अगर वह एक अलग देश होता तो इसे वव की दसूरी सबसे बड़ी अथर्षव्यवस्था कहा जाता। अमेरका में कई अलग शहरों के जनप्रतनध और बड़ी कंपनयां अपने-अपने स्तर पर अपने क्षेत्रों में पेरस समझौते को लागू रखने की तरफदार हैं। इसके पीछे कई कारण हैं।.खुद अमेरका ही पछले कुछ सालों में जलवायु परवतर्षन का शकार बनने लगा है। चाहे वह कैलफोनर्षया के जंगलों की आग हो, मायामी में बढ़ता समुद्र का स्तर या ह्यूस्टन और पोटर्षोरको में भीषण तूफानों से हुई घरों और कारखानों की तबाही। ऐसी प्राकृतक आपदाएं बढ़ने लगी हैं। वैज्ञानक इसका सबसे बड़ा कारण जलवायु परवतर्षन को बता रहे हैं। कुल मलाकर समस्या की तीव्रता को लेकर कोई संशय नहीं है। न ही पेरस समझौते की जरूरत को लेकर कोई ववाद था। लेकन इधर इस समझौते पर संकट का मंडराना जरूर एक चतंा पैदा कर रहा है।.

  • 3. कैसे मलेगा सबको पानीहवा के बाद पानी जीवन की पहली जरूरत है। इसके बना जीवन संभव नहीं है। लेकन दनया में पीने वाले पानी की मात्रा लगातार घटती जा रही है। यह सलसला इसी तरह जारी रहा तो अगले बीस से तीस वषर्भों के भीतर कई देशों के लए अपनी आबादी के लए अनाज पैदा करना बहुत मुिकल हो जाएगा। पानी को लेकर ववाद कानून व्यवस्था के लए चुनौती बन जाएगा। 1957 में प्रत व्यिक्त पानी की उपलब्धता पांच हजार एक सौ सतहत्तर क्यूबक मीटर थी, जो अब घट कर एक हजार चार सौ से भी कम रह गई है। अस्सी फीसद पानी का उपयोग खेती में होता है और पंद्रह फीसद उद्योग-धंधों में लग जाता है। घरेलू उपयोग और पेयजल के लए मुिकल से पांच फीसद पानी बचता है। भारत जैसे देश में वषार्ष की मात्रा प्रतवषर्ष अनयमत रहती है। साल में तीन-चार महीनों में ही सारी वषार्ष हो जाती है। इस वजह से आबादी की खुराक के लए जमीन पर बुरी तरह दबाव पड़ रहा है।.इसलए सरकार को जमीन की सतह के पानी का और सतह के नीचे के पानी का कृष और उद्योग के बीच बड़ी सावधानी से बंटवारा करना पड़गेा। अधक पानी की अनिचत मात्रा के लए ट्यूबवेल पर नभर्षर करने से भी काम नहीं चलेगा। भारतीय मैदानों में जमीन के नीचे का पानी पहाड़ों से आने वाली भूगभर्ष िस्थत धाराओं से मलता हो या स्थानीय वषार्ष से आसपास की जमीन में जज्ब हुए पानी से मलता हो, उस जमीन के नीचे के पानी की मात्रा सीमत है।. सरकार ने 2022 तक सबको नल से पेयजल मुहैया कराने का वादा कया है। यह लक्ष्य अत्यंत महत्त्वाकांक्षी है। पर सवाल है क सबको पानी मलेगा कैसे? क्योंक 2030 तक चालीस फीसद आबादी के लए पीने लायक पानी ही नहीं बचेगा। यह चेतावनी नीत आयोग ने अपनी हाल की रपोटर्ष में दी है। इसके अनुसार 2020 से ही पानी की परेशानी शुरू हो जाएगी। तब करीब दस करोड़ लोग पानी की उपलब्धता से वंचत हो जाएंगे। आयोग ने तीन साल पहले भी चेताया था क देश में जल संरक्षण को लेकर अधकांश राज्यों का काम अपेक्षानुरूप नहीं है। ऐसे में जल संकट बढ़ना लािजमी है। दल्ली का नब्बे फीसद भूमगत जल का स्तर गंभीर िस्थत में पहंुच गया है। यहां के अलग-अलग क्षेत्रों में जलस्तर हर साल दो मीटर घट रहा है। दल्ली का पंद्रह प्रतशत क्षेत्र नाजुक िस्थत में है। यही हाल देश के प्रमुख महानगरों का भी होता जा रहा है।.नीत आयोग ने पछले साल जारी रपोटर्ष में कहा था क देश में करीब साठ करोड़ लोग पानी की गंभीर कल्लत का सामना कर रहे हैं। करीब दो लाख लोगों की मौत का कारण स्वच्छ जल न मल पाना बताया गया है। भारत जल गुणवत्ता सूचकांक में एक सौ बाईस देशों में एक सौ बीसवें स्थान पर है। साल 2030 तक देश में पानी की मांग उपलब्ध जल वतरण की दोगुनी हो जाएगी। इसका मतलब है क करोड़ों लोगों के लए पानी का गंभीर संकट पैदा हो जाएगा। ऐसे में अब सरकार को इस पानी के संकट का दरूगामी हल खोजना होगा।.

  • पानी के बारे में आथर्षर एचकहर्षरटर्ष ने अपनी पुस्तक ‘वाटर आर योर लाइफ’ में कई महत्वपूणर्ष जानकारयां दी हैं। आथर्षर के अनुसार एक गैलन पेट्रोल बनाने में सात से दस गैलन तक पानी लगता है। एक टन नकली रेशम (रेयॉन) बनाने की प्रक्रिया में दो से तीन लाख गैलन पानी की जरूरत होती है। एक टन कृत्रम रबर बनाने में इससे तगुना पानी चाहए। आधुनक कागज के कारखानों में एक टन कागज बनाने के लए पचास से साठ हजार गैलन पानी जरूरी होता है। दसूरे महायुद्ध के शुरू में संयुक्त राज्य अमेरका में लगभग कागज के दो सौ कारखाने थे। एक टन साबुन तैयार करने में पांच सौ गैलन पानी लगता है। जब कसी हवाई जहाज के इंजन का परीक्षण कया जाता है तो उसे ठंडा करने के लए पचास हजार से सवा लाख गैलन पानी लगता है।.संयुक्त राज्य अमेरका के कैलीफोनर्षया राज्य के लॉस एंजीलस शहर ने अपने काम के लए नलों द्वारा जमीन के भीतर का इतना पानी खींचा है क उसके आसपास की जमीन की सतह कई स्थानों पर आठ-आठ फुट तक नीचे बैठ गई है। इस राज्य के लोग बीच नामक क्षेत्र में जमीन के भीतर के पानी को खींचने से उसके जमीन के नीचे के पानी की सतह समुद्र की सतह से पचहत्तर फुट नीचे चली गई है और समुद्र तट के उस सारे भाग में कुओं का पानी खारा होने लगा है। 1939 में इन कुओं से पंप द्वारा रोज लगभग एक करोड़ गैलन पानी खींचा जा रहा था। दसूरे महायुद्ध ने उद्योग की मांग इतनी ज्यादा बढ़ा दी क 1945 में ये कुएं दो करोड़ पच्चीस लाख गैलन पानी प्रत दन मुहैया कर रहे थे। नतीजा यह हुआ क वहां एक ट्यूबवेल में पानी का स्तर समुद्र की सतह से एक सौ दो फुट नीचे चला गया।.एक और ट्यूबवेल ने जमीन से इतना अधक पानी खींचा क उसकी सतह समुद्र की सतह से एक सौ पैंसठ फुट नीची हो गई। परणामस्वरूप भूम के अंदर के पानी में समुद्र का पानी घुस जाने से वह खारा हो गया। उसी प्रदेश में स्वयं भूम का स्तर हर साल औसतन 2.4 इंच तक नीचे धंसा, कुछ स्थलों पर धंसने की यह क्रिया डढ़े फुट तक बढ़ गई। अन्य स्थानों में जैसे लुअीवली, कें टकी आद में जो समुद्र से बहुत दरू हैं और जहां युद्ध के कारण उद्योगों पर भारी दबाव पड़ा और ट्यूबवेल सूखने लगे।.

  • यह अनुमान लगाया गया है क दनया में 2000 से 2030 तक पानी की मांग इस हसाब से चार से पांच गुनी बढ़ जाएगी। पानी का संकट कई देशों के अिस्तत्व के लए खतरा बन कर उभर रहा है। इससे उपजाऊ भूम लगातार बंजर भूम में बदलती जा रही है। अगले दस साल में कई देशों को अपनी आबादी के हसाब से खाद्य पदाथर्भों का उत्पादन करना लगभग असंभव हो जाएगा। भारत में भी अगले कुछ वषर्भों में पेयजल के साथ सचंाई के पानी का भी संकट गहराने वाला है। नीत आयोग ने भी पानी के संकट को सबसे बड़ी चुनौती बताया है। उसने यह भी कहा है क पंजाब और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में धान एवं गन्ने की खेती में पानी की बबार्षदी भी बहुत अधक हो रही है। जल संकट वाले इलाकों में ऐसी फसलें लगाई जानी चाहए िजसमें कम पानी की जरूरत पड़ती हो। यद ऐसा नहीं कया गया तो इन क्षेत्रों में खेती के लए पानी का संकट पैदा हो जाएगा। इसलए हमें अपनी पीढ़यों के भवष्य की चतंा खुद करनी होगी और हर कीमत पर पानी को बचाने के उपाय अभी से करना होगा। इसलए अब हमारे पास वषार्ष जल के संचय के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है। इसके लए सारी मानव जात को अभी से प्रयास करना होगा। बहरहाल पानी के संकट से नपटने के लए नीत आयोग ने देश की आधी करीब साढ़े चार सौ नदयों को आपस में जोड़ने का एक वस्ततृ प्रस्ताव तैयार कया है। बरसात से या उसके बाद बहुत-सी नदयों का पानी समुद्र में जा गरता है। अगर समय रहते इस पानी को उन नदयों में ले जाया जाए, जहां साल के अधकतर महीनों में सूखा रहता है तो आसपास के क्षेत्रों में खेती हो सकती है।.

  • 4.स्वणर्ष जमा योजनाएं और उनकी समस्याएं आभूषण कारोबार में एक प्रणाली है िजसके तहत कंपनयां उपभोक्ताओं से ऋण लेती हैं। अथर्षव्यवस्था में तनाव और सोने की कीमतों में इजाफा दोनों के एक साथ आगमन ने कई आभूषण कारोबारयों के लए कठनाइयां पैदा कर दी हैं। सामान्य दनों में एक दसूरे को जानने वाले आम लोगों के बीच जो अनौपचारक व्यवस्था कारगर रहती है, वह कठन समय में ज्यादा तादाद वाले लोगों के बीच समुचत ढंग से काम नहीं करती। इस बाजार के कामकाज में सुधार के अवसर मौजूद हैं। देश में िजन कारोबारी मॉडलों पर बहुत कम ध्यान दया गया है उनमें से एक है 'स्वणर्ष जमा योजना'। इन योजनाओं में एक व्यिक्त नयमत अंतराल पर एक निचत धनराश आभूषण कारोबारी के पास जमा करता है और भवष्य की एक तारीख पर उसे इस मूल्य का सोना या आभूषण मलता है। ज्यादा से ज्यादा इसे आपसी ववास का रता कहा जा सकता है। नयमत भुगतान उपभोक्ता के लए बचत है और आभूषण वके्रिता के लए पूंजी जुटाने का तरीका। उच्च सामािजक भरोसे वाली व्यवस्था में ऐसी व्यवस्था के लए एक वैध भूमका है। परंतु ऐसे अनौपचारक उपाय ज्यादा व्यापक स्वरूप देने पर कमजोर पड़ जाते हैं। यद उपभोक्ता के पैसे से आभूषण कारोबारी सोना खरीदता है तो यहां जोखम ज्यादा नहीं होता। परंतु यद आभूषण कारोबारी सोना नहीं खरीदता है तो सोने के मूल्य से जुड़ा जोखम उभरने लगता है। जब सोने की कीमत ऊपर जाएगी तो जोखम से बचाव न रखने वाले आभूषण कारोबारी को घाटा होगा। गत वषर्ष सतंबर से इस वषर्ष अगस्त के बीच सोने की कीमतों में उल्लेखनीय वदृ्घ हुई है िजससे तनाव भी उत्पन्न हुआ है।देश में ऋण तक कमजोर पहंुच के कारण आभूषण कारोबारी ऐसे उपायों का इस्तमेाल पूंजी जुटाने के लए करते हैं। आदशर्ष िस्थत में मूल्य जोखम से बचाव के लए उनको उचत मात्रा में स्वणर्ष डरवेटव की खरीद करनी चाहए। परंतु देश में वत्तीय डरवेटव का इस्तमेाल बहुत सीमत है। ऐसा इसलए क्योंक अनेक नयामकीय और कर संबंधी बाधाएं मौजूद हैं। हाल के महीनों में ऐसी रपोटर्ष आई हैं जो बताती हैं क इन योजनाओं को चला रहे आभूषण कारोबारी मुिकल में हैं। मुंबई के अखबार मड ड ेमें नाकामी की ऐसी ही एक घटना के बारे में रपोटर्ष छपी हैं।

  • मुख्यधारा के कारोबारी या आथर्षक अखबार देश भर में घट रही ऐसी घटनाओं के सरे नहीं जोड़त।े स्वणर्ष जमा योजना, स्वणर्ष आभूषण, स्वणर्ष बॉन्ड, स्वणर्ष ईटीएफ, स्वणर्ष नवेश, आभूषण, स्वणर्ष मूल्य, स्वणर्ष मूल्यांकन आद। मड ड ेमें छपी खबरें कहती हैं क उपभोक्ताओं द्वारा ऐसी योजनाओं में जमा की गई करीब 300 करोड़ रुपये की अग्रम राश दांव पर लगी है। यद मान लया जाए क यह सटीक आकलन है तो अथर्षव्यवस्था के आकार को देखते हुए कहा जा सकता है यह राश बहुत बड़ी नहीं है। परंतु ऐसी घटना एकबारगी नहीं है: गूगल पर तलाश करने पर ऐसी तमाम खबरें पढऩे को मलती हैं। इन्हें जोड़ा जाए तो बहुत बड़ा आंकड़ा सामने आता है। ऐसी छोटी से छोटी घटना सैकड़ों परवारों को प्रभावत करती है। त्रासदी यह है क सभी प्रभावत आभूषण कारोबारी ठग नहीं हैं। परंतु ऐसी घटनाएं मजबूत कारोबार को भी ध्वस्त कर सकती हैं। एक बार अगर कानाफूसी का सलसला चालू हो गया तो इसमें यह क्षमता है क ग्राहक, आभूषण कारोबारयों से अपने पैसे वापस मांग सकत ेहैं। अगर एक बार पैसे मांगने वालों की लंबी कतार लग गई तो समस्या को हल करना नामुमकन सा हो जाएगा। मुझ ेआर के नारायणन की सन 1952 में लखी कताब फाइनैंशयल एक्सपटर्ष की याद आती है जो ऐसी घटनाओं के मानवीय पक्ष पर नजर डालती हैं।

  • अगर ऐसे रते ववास के सीमत दायरे में हों और लोग सोशल मीडया से परे आपस में मलकर इन्हें खारज कर सकें तो भी यह कारगर रह सकता है। परंतु जहां लोग एक दसूरे को नहीं जानते वहां रता भंगुर हो जाता है। आम परवार ऐसी योजनाओं में पैसे लगाने जैसे जोखम क्यों लेत ेहैं? यहां कई कारक काम करते हैं। देश में औपचारक वत्त खराब तरीके से काम करता है। सोना एक ऐसी परसंपत्त है जो काफी अहम है और िजसे आसानी से छीना भी नहीं जा सकता। भारत की असंगठत अथर्षव्यवस्था काफी बड़ी है और औपचारक वत्त से जुड़ा नगरानी तंत्र लोगों को डरा रहा है। लोग पैसे जमा करने के अनौपचारक तरीके तलाश कर रहे हैं। मड ड ेमें प्रकाशत खबरों की एक और खासयत यह है क जहां कई लोग संबंधत कारोबारयों से पैसा वापस चाहते हैं, वहीं केवल दो लोगों ने पुलस में शकायत करने की मंशा जताई। इन दो लोगों ने भी अब तक अपने दावों की पुिष्टï में कोई दस्तावेज नहीं पेश कया है। जब फमर्ष नाकाम होती है और यद वह ढेरों उपभोक्ताओं के प्रत जवाबदेह है तो यह मकान खरीदने वालों की दक्कत की तरह है। जरूरत नस्तारण के एक बेहतर ढांचे की है। फमर्ष नाकाम होती रहती हैं। जरूरत है एक नष्पक्ष प्रणाली की ताक लोग आगे बढ़ सकें । दक्कत यह है क अनौपचारक अनुबंधों के मामले में हमारे देश का प्रदशर्षन बहुत अच्छा नहीं है। हम ऐसे कारोबारी मॉडल आसानी से चुन सकत ेहैं जो दोनों पक्षों के लए हतकारी हों। आम परवार नयमत बचत करना चाहते हैं। वे भवष्य में सोने की खरीद पर मूल्य जोखम से भी बचाव चाहते हैं। इसे बेहतर तरीके से कैसे कया जा सकता है? आम परवार सस्टमैटक इन्वेस्टमेंट लान की सहायता ले सकत ेहैं। इसके माध्यम से हर महीने एक निचत राश गोल्ड ईटीएफ में डाली जा सकती है। भवष्य की कसी तथ में वे इसे बेच सकत ेहैं। आभूषण कारोबारी कच्चे माल यानी सोने के लए कायर्षशील पूंजी चाहते हैं। गोल्ड ईटीएफ बैंकों को शुल्क के बदले सोना उधार दे सकत ेहैं। यह मौजूदा व्यवस्था से बेहतर होगा जहां सोना बेकार पड़ा रहता है। बैंक उस सोने को आभूषण कारोबारी को उधार दे सकत ेहैं और शुल्क प्रात कर सकत ेहैं। ऐसे अनुबंध में उपभोक्ता, आभूषण कारोबारी, गोल्ड ईटीएफ और बैंक सभी बेहतर िस्थत में रहते हैं। इसमें दो बाधाएं हैं। हमारे देश में वत्त के कें द्रीय नयोजन की मौजूदा व्यवस्था के अधीन हर चरण के कारोबारी रतों में वत्तीय नयामक की मंजूरी चाहए। इन व्यवस्थाओं का इस्तमेाल करने वाले सरकार की नगरानी व्यवस्था में आ ही जाएंगे जो शायद उन्हें रास न आए।

  • 5.साइबर धोखाधड़ी की बढती घटनाएं ग्राहक को सतकर्ष रहने की जरूरत साइबर सेंधमारी और डटेा लीक के मामले भारत में पछले दनों सुखर्षयों में रहे हैं। एक स्तर पर, केके नाभकीय ऊजार्ष संयंत्र पर सफल साइबर हमले की घटना अधक डरावनी है। यह भारत के ऊजार्ष क्षेत्र के आधारभूत ढांचे की असुरक्षत हालत को दशार्षता है। दसूरे स्तर पर, पेगासस की तरफ से कुछ भारतीय एिक्टवस्ट की नगरानी का मामला सबसे ज्यादा परेशान करने वाला है। यह एक व्यवस्थागत, गैरकानूनी नगरानी का पैटनर्ष दशार्षता है िजसकी जद में दजर्षनों भारतीय एक तय समय तक जरूर रहे। अभी तक सामने आए तमाम साक्ष्यों से यही लगता है क इस नगरानी को सरकारी एजेंसयों ने अंजाम दया था।पछले दनों सामने आया साइबर हमले का तीसरा मामला एक वव रकॉडर्ष ही बना गया। गत 28 अक्टूबर को 'इंडया-मक्स-न्यू-01' नाम के डटेा लीक में करीब 13 लाख के्रिडट एवं डबट काडर्ष से संबंधत ववरणों की बक्रिी की पेशकश डाकर्ष वेब पर की गई थी। खुद को जोकसर्ष स्टैश बताने वाली वेबसाइट पर यह मामला सामने आया। इन काडर्भों में से 98 फीसदी से भी अधक को भारतीय बैंकों ने जारी कया हुआ है। बक्रिी के लए उपलब्ध काडर्ष के मामले में यह सबसे बड़ा वाकया है। हरेक काडर्ष का ववरण करीब 100 डॉलर की रकम में देने की बात कही गई है। यह बताता है क साइबर- अपराधयों की नजर में इस ब्योरे की कीमत कतनी अधक है। अमूमन के्रिडट एवं डबट काडर्ष के ब्योरा एक डॉलर प्रत काडर्ष की दर पर मल जाता है। इस घटना के बारे में जानकारी देने वाली साइबर सुरक्षा फमर्ष ग्रुप-आईबी का मुख्यालय सगंापुर में है जबक इसका स्वामत्व रूसी शोधकतार्षओं के एक समूह के पास है िजसके मुखया इलया साखकोव हैं। ग्रुप-आईबी का अनुमान है क अधकांश काडर्भों के ववरण 'िस्कमगं' के जरये जुटाए गए हैं। दकुानों में काडर्ष स्वैपगं के लए लगी पीओएस मशीनों में छेड़छाड़ कर िस्कमगं की जाती है। वहीं कुछ काडर्भों का ब्योरा एटीएम मशीनों में छेड़छाड़ से जुटाया गया है।

  • भौतक िस्कमगं की गुंजाइश सबसे ज्यादा होती है। बक्रिी के लए रखे गए आंकड़ ेटै्रक1 एवं टै्रक2 से संबंधत हैं। कसी काडर्ष के पछले हस्से पर लगी चुंबकीय पट्टी में तीन टै्रक तक हो सकत ेहैं। इनमें से हरेक टै्रक में लेनदेन के लए जरूरी जानकारयां दजर्ष होती हैं। काडर्षधारक का नाम-पता, काडर्ष नंबर, उसकी वैधता अवध और काडर्ष पुिष्टकरण मूल्य (सीवीवी) के अलावा धोखाधड़ी से बचाव के लए दजर्ष सूचना भी टै्रक पर कूटबद्ध रूप में दजर्ष होती हैं। कई के्रिडट-डबट काडर्ष में केवल दो टै्रक ही होते हैं। जब भी काडर्ष को कसी एटीएम या पीओएस मशीन में लगाया जाता है तो काडर्ष पर बने टै्रक में उपलब्ध जानकारयां पढ़ी जाती हैं। वहीं ऑनलाइन लेनदेन में टै्रक को पढ़े जाने की जरूरत नहीं होती है। पुिष्टकरण का काम सीवीवी संख्या दजर्ष कर कया जाता है। काडर्ष के पछले हस्से पर बनी सफेद पट्टï◌ी के पास अंकत तीन-चार अंकों की संख्या ही सीवीवी होती है।

    काडर्ष के टै्रक्स पर दजर्ष सूचनाओं को बेचने की इस पेशकश से पता चलता है क ये जानकारयां काडर्ष स्वाइप के जरये जुटाई गई हैं। तमाम के्रिडट काडर्ष कंपनयों एवं बैंकों की तरफ से जारी ये काडर्ष बेतरतीब मेल एवं अनुपात में हैं। इनमें अकेले एक भारतीय बैंक के ही करीब 18 फीसदी काडर्ष हैं। यह मश्रण बताता है क छेड़छाड़ की शकार कई पीओएस या एटीएम मशीनों से आंकड़ ेजुटाए गए हैं, न क कसी एक जगह से। इसकी वजह यह है क कसी एटीएम मशीन में इस्तमेाल होने वाले काडर्ष में उसी बैंक की तरफ से जारी काडर्ष की संख्या सबसे अधक होती है।

  • टै्रक1 एवं टै्रक2 डटेा की उपयोगता इस बात में है क इसका इस्तमेाल कर एक नए काडर्ष को जन्म दया जा सकता है। एक काडर्षधारक के तमाम ववरणों को इस नए काडर्ष की चुंबकीय पट्टी पर अंकत कया जा सकता है और फर इस क्लोन काडर्ष से लेनदेन कया जा सकता है। भारत के बाहर अधकांश ऑनलाइन लेनदेन के लए 2-फैक्टर सत्यापन (2एफए) जरूरी नहीं है लहाजा कोई भी चालाक साइबर अपराधी खाते से जुड़ ेफोन नंबर को बदलकर 2एफए को आसानी से चकमा दे सकता है। टै्रक1 एवं टै्रक2 डटेा में उपभोक्ता से संबंधत तमाम जानकारयां मौजूद होती हैं िजनका इस्तमेाल सत्यापन में कया जा सकता है। सवाल है क क्या आपको घबराना चाहए? भारतीय रजवर्ष बैंक के दशानदर्गेशों के मुताबक, अगर तीसरे पक्ष की सेंधमारी के चलत ेअनधकृत लेनदेन होता है तो उसमें ग्राहक की कोई जवाबदेही नहीं होती है। यहां पर तीसरे पक्ष की गलती का मतलब यह है क न तो बैंक और न ही ग्राहक की तरफ से कोई त्रट बरती गई है। इसकी शतर्ष बस यह है क ऐसा लेनदेन होने के तीन कारोबारी दनों के भीतर ही ग्राहक बैंक को इसकी जानकारी दे दे। इसका मतलब है क ग्राहकों को बैंक की तरफ से आने वाले मोबाइल संदेशों और ईमेल पर नजर रखनी चाहए और अगर कोई भी संदग्ध लेनदेन दखे तो बैंक को फौरन उसकी जानकारी दें। अगर आप काडर्ष का कम इस्तमेाल करते हैं तो एक छोटा ऑनलाइन लेनदेन कर आप यह पता कर सकत ेहैं क आपको अलटर्ष संदेश मल रहे हैं या नहीं। एक नागरक के तौर पर आप इससे ज्यादा कुछ नहीं कर सकत ेहैं। हालांक कुछ सावधानयां रखी जा सकती हैं। पहला, कसी भी ऐसे एटीएम का इस्तमेाल न करें जहां काडर्ष-रीडर लगे होने का अंदेशा हो। इसके अलावा डबट काडर्ष की तुलना में के्रिडट काडर्ष के इस्तमेाल को प्राथमकता दें।

  • 6.मनरेगा में जा सकता है पीएम- कसान का धन खपत बढ़ाने के मकसद से ग्रामीण इलाकों में नकदी बढ़ाने के लए सरकार पीएम-कसान के तहत 2019-20 के लए आवंटत धनराश का वह हस्सा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी ऐक्ट (मनरेगा) में लगा सकती है, जो खचर्ष नहीं हो सका है। अधकारयों ने कहा क पीएम-कसान के तहत इस साल लक्षत लाभाथर्वी 2015-16 की कृष जनगणना के आधार पर लगाए गए अनुमान से कम होने की वजह से इस योजना में आवंटत राश में से करीब 20,000 से 25,000 करोड़ रुपये बच जाएंगे, िजसके लए 75,000 करोड़ रुपये का बजट रखा गया है। एक वरष्ठ अधकारी ने कहा, 'इस योजना के लए आवंटत धन के एक हस्से को मनरेगा में लगाया जा सकता है।' सूत्रों ने कहा क ग्रामीण वकास मंत्रालय ने 2019-20 के लए मनरेगा मद में 20,000 करोड़ रुपये की मांग की है, जो इस वत्त वषर्ष के लए आवंटत 60,000 करोड़ रुपये के अतरक्त होगा। हालांक पीएम-कसान की पूरी बचत का स्थानांतरण मनरेगा की अतरक्त जरूरतों के लए नहीं कया जाएगा, लेकन सूत्रों ने कहा क निचत रूप से इस राश का एक हस्सा मनरेगा में डाला जाएगा। उपरोक्त उिल्लखत अधकारी ने कहा, 'मनरेगा के लए धन की आपूत र्ष संभवत: अनुदान मांग के माध्यम से की जाएगी। कम अवध के लए ग्रामीण हाथों में ज्यादा धन देने का वचार सामने आया है, जो मांग और खपत बढ़ाने के लए सबसे ज्यादा प्रभावी तरीका है।' अधकारयों ने कहा क मनरेगा के लए दए जाने वाले अतरक्त धनराश का इस्तमेाल रबी की बुआई के बाद मांग में संभावत वदृ्घ को पूरा करने या मजदरूी में इजाफा करने के लए कया जा सकता है। अधकारयों ने कहा क सतंबर 2019 तक मनरेगा के तहत आवंटत 60,000 करोड़ रुपये में से से कें द्र ने करीब 48,396.81 करोड़ रुपये जारी कर दए िजसमें 2018-19 का बकाया भी शामल है। यह रकम पछले वषर्ष की समान अवध से करीब 4,629.61 करोड़ रुपये अधक है। अक्टूबर 2019 के मध्य तक मनरेगा में लगभग 152 करोड़ व्यिक्त कायर्ष दवस मुहैया कराए गए जो क करीब 2018-19 के समान ही है।

  • 2018-19 में कें द्र सरकार ने कुल 267.98 करोड़ व्यिक्त कायर्ष दवस मुहैया कराए थे जबक इसकी अनुमानत संख्या 256.65 करोड़ थी। इस खबर के लए बजनेस स्टैंडडर्ष से बात करने वाले अधकारयों ने स्पष्टï कया क 2019-20 की राजकोषीय लक्ष्य को पूरा करने के लए कें द्र सरकार के ग्रामीण बजट में से कोई कटौती नहीं की जाएगी। पीएम-कसान योजना में कें द्र ने 2019-20 के लए 75,000 करोड़ रुपये का आवंटन कया था। यह रकम इस योजना में करीब 14.5 करोड़ कसानों के पंजीकृत होने के अनुमान के आधार पर आवंटत की गई थी। लेकन सूत्रों ने बताया क अब तक इस योजना के तहत लगभग 7.6 करोड़ कसानों ने ही अपना पंजीयन कराया है। एक वरष्ठï अधकारी ने कहा, '2019-20 के अंत तक बहुत से बहुत 10-11 करोड़ कसान ही इस योजना में पंजीकृत हो पाएंगे क्योंक बहुत सी जगहों पर कसानों के भूम रकॉडर्ष दरुुस्त नहीं है तो दसूरी ओर कुछ राज्य सरकारें अपने कसानों को इसमें पंजीयन कराने को लेकर आगे नहीं आ रही हैं।' 3 नवंबर तक पीएम-कसान में पंजीकृत हो चुके 7.6 करोड़ कसानों में से करीब 7.17 करोड़ कसानों को 2,000 रुपये की पहली कस्त मल चुकी है। जबक 6.12 करोड़ कसान इसकी दो कस्तें पा चुके हैं वहीं लगभग 3.65 करोड़ कसानों ने ही तीसरी कस्त के लए पंजीयन कराया है। इस योजना के तहत समय पर पंजीयन नहीं करा पाने वाले कसानों को बकाये राश का भुगतान नहीं कया जाता है।

  • 7.राजकोषीय घाटे में कैसे आ सकता है सुधार?भारतीय अथर्षव्यवस्था गहरी आथर्षक मंदी के चक्रि में है। हालात में बदलाव लाने के लए कुछ अहम सुधारों की आवयकता है और उनकी रूपरेखा भी पूरी तरह स्पष्ट है। इनमें से कुछ सुधार पूरे होंगे, और कुछ नहीं। क्या वहृद आथर्षक नीत का सबसे अहम हस्सा, राजकोषीय घाटे को देखने के हमारे नजरये में बदलाव में नहीं नहत होना चाहए? कहने का तात्पयर्ष यह है क यद बढ़ा हुआ या घटा हुआ सरकारी व्यय श्रम और उत्पाद बाजार को संतुलत रखने का काम करता है तो क्या ऐसे व्यय को दो हस्सों में नहीं बांट दया जाना चाहए? क्या एक हस्सा ऐसा नहीं होना चाहए िजसके घटने पर सरकार का राजनीतक जोखम बढ़े और आथर्षक लाभों में इजाफा हो? आखर हम सब जानते हैं क राजस्व घाटे और राजनीतक जोखम दोनों आपस में बहुत गहरे तक जुड़ ेहुए हैं। हालांक आथर्षक लाभ नवेश व्यय से आत ेहैं। इन दोनों को वत्तीय उद्देय से अलग-अलग कया जाना चाहए। पुराने दनों में जब तक भेद समात नहीं हुआ था, इन्हें योजनागत और गैर योजनागत व्यय कहा जाता था। हमें थोड़ ेसुधार के साथ उस दशा में वापसी करनी होगी। बिल्क गैर योजनागत व्यय को भी दो हस्सों में बांटा जाना चाहए। पहला, िजसमें कमी के राजनीतक जोखम हों, मसलन: सिब्सडी और वेतन तथा पेंशन। दसूरा है रखरखाव का उच्च व्यय िजसमें इजाफा समग्र उत्पादकता में सुधार करता है। फलहाल तो इनमें से पहले में कसी भी तरह का इजाफा बाद वाले में कटौती करता है। ऐसा हर वषर्ष होता है क्योंक हर साल एक या दो स्थानों पर चुनाव भी होते हैं। देश में बुनयादी ढांचे की दयनीय दशा की यही वजह है। अरवदं केजरीवाल के अधीन दल्ली शहर इसका उदाहरण है। यह कोई नई बात नहीं है क राजनीतक जोखम कम करने पर होने वाले व्यय को आथर्षक जोखम वाले व्यय से अलग कया जाना चाहए। ऐसा करके ही हम उस पाखंड को दरू कर पाएंगे जो प्रतस्पधर्वी राजनीतक व्यवस्था में घर कर गया है और िजसके चलत ेराजनीतक जोखम को जानबूझकर सत्ताधारी दल से और गरीब कल्याण को लेकर उसकी चतंाओं से जोड़ा जाता है।

  • पारदशर्षता की ओर ऐसा करने के पचात ही राजकोषीय घाटे को लेकर कोई लक्ष्य तय कया जा सकेगा। तब निचत रूप से इसे 3 फीसदी के स्तर पर रखा जा सकता है। ऐसी पारदशर्षता के अभाव में बजट को आकषर्षक बनाकर पेश करने की घटनाएं बढ़ती हैं। ऐसा हमेशा से होता रहा है लेकन सन 2005 के बजट में संयुक्त प्रगतशील गठबंधन सरकार ने मनरेगा के साथ इसे नई ऊंचाइयों पर पहंुचा दया। तब से यह सलसला अबाध ढंग से चला आ रहा है। अब नमर्षला सीतारमण के सामने अवसर है क वह इसे बंद करें। उन्हें प्रधानमंत्री को यह यकीन दलाना चाहए क वे इस समस्या से सीधा टकराव मोल लें।अगर ऐसा नहीं होता है तो सरकार हमेशा अनावयक दबाव में रहेगी। सन 2014 से ऐसा ही देखने को मल रहा है और इसने अथर्षव्यवस्था को हद से ज्यादा नुकसान पहंुचाया है। अनावयक रूप से कम राजकोषीय घाटे का लक्ष्य तथा कम मुद्रास्फीत संबंधी लक्ष्य ने भी इसमें इजाफा कया है। इतना ही नहीं कुल व्यय के राजनीतक हस्से की फाइनैंसगं कर राजस्व तथा घाटे की फाइनैंसगं के आथर्षक हस्से से की जानी चाहए। अगली बात, राजनीत हस्से को भी ब्रटश पीएसबीआर (सावर्षजनक क्षेत्र की ऋण आवयकता) सीमा के समकक्ष होना चाहए िजसे लेकर पांच वषर्ष तक कोई मोलभाव नहीं हो सकता।कें द्र सरकार को सिब्सडी, वेतन और पेंशन पर और अधक व्यय नहीं करना चाहए जबक अभी सरकार ऐसा ही कर रही है। नई चीजों के लए उधारी लेने पर भी उसे केवल उच्च ब्याज भुगतान ही करना चाहए। कसी अन्य चीज के लए उसे उधार भी नहीं लेना चाहए। अगले वषर्ष से राजनीतक वजहों से जुड़ ेतमाम वदृ्घकारक व्यय राज्यों से आने चाहए। इसके लए उन्हें यह इजाजत दी जानी चाहए क वे व्यिक्तगत आय पर कर लगा सकें । आयकर पर कें द्र के एकाधकार की कोई वजह नहीं है।

  • वहृद अथर्षशास्त्र के मौलाना

    एक अच्छे पुजारी की एक वशष्टता यह होती है क वह तमाम संदभर्भों के परे धमर्षग्रंथों में लखी बातों पर टका रहता है। उसके लए ये ग्रंथ अप्रनेय होते हैं। आज ऐसा ही वहृद अथर्षशािस्त्रयों के साथ है। यही कारण है क आज हर चीज से नपटने के लए एक जैसा रुख अपनाया जा रहा है जो वास्तव में मूखर्षतापूणर्ष है। अगर आप वहृद आथर्षक वचार प्रक्रिया के इतहास पर नजर डालेंगे तो आप पाएंगे क तमाम सफल सरकारों ने पुरानी समझ को नकारा यानी औसत अथर्षशािस्त्रयों की सहज समझ को। फ्रैं कलन रूजवेल्ट इसके सबसे अच्छे उदाहरण हैं। मागर्गेर्ट थैचर और रोनाल्ड रीगन को भी इस शे्रणी में रखा जा सकता है।

    सरकार जो करती है उसकी वैधता के लए उसे बौद्घक जमात की प्रतपुिष्ट चाहए। कींस के सद्घांत सन 1950 के दशक से ऐसा कर रहे हैं। लेकन अब इसमें बदलाव की आवयकता है क्योंक कींस ने सरकारी घाटे को लेकर कोई सीमा नधार्षरत नहीं की। उन्होंने केवल इतना कहा था क उतना ही व्यय करें िजतना अथर्षव्यवस्था को गरावट से उबारने के लए आवयक हो। उनका जोर व्यय पर था, कसी सीमा पर नहीं। तमाम शिक्तशाली बॉन्ड बाजार उनके दमाग तक में नहीं थे। अब हमें एक बार फर कींस की शरण में जाना होगा न क उनके व्याख्याकारों की शरण में। कम से कम अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष में बैठे लोगों के पास तो कतई नहीं जो सबके लए एक समान सद्घांत के सबसे बड़ ेहमायती हैं। कसी सरकार को ऐसी बना दमाग का इस्तमेाल कए सुझाए जा रहे उपायों पर वचार नहीं करना चाहए।

  • राजकोषीय घाटा : कसी देश में सरकार कर जैसे स्रोतों के माध्यम से राजस्व कमाती है. साथ ही सरकार खचर्ष भी करती है. जब सरकार का कुल व्यय अपने कुल राजस्व से अधक हो जाता है, तो सरकार को बाजार से अतरक्त राश को उधार लेना पड़ता है. यह राश जो सरकार उधार लेती है वह राजकोषीय घाटे के बराबर होती है. आसान भाषा में सरकार की कुल कमाई और खचर्ष के अंतर को राजकोषीय घाटा कहा जाता है.बहुत अधक राजकोषीय घाटा ब्याज दरों को बढ़ाता है और अथर्षव्यवस्था पर मुद्रास्फीत का दबाव डाल सकता है.राजस्व व्यय : यह व्यय एक आवतर्वी प्रकृत है कमर्षचारी के वेतन, उधार ली गई पूंजी पर ब्याज भुगतान आद चीजों पर कया जाता है।वभन्न सरकारी वभागों और सेवाओं पर खचर्ष, ऋण पर ब्याज की अदायगी और सिब्सडयों पर होने वाले व्यय को राजस्व व्यय कहते है.राजस्व घाटा : राजस्व घाटा तब होता है जब कसी सरकार की वास्तवक शुद्ध आय उसकी अनुमानत शुद्ध आय से कम होती है. सरकार की राजस्व प्राित और राजस्व व्यय के बीच के अंतर को राजस्व घाटा कहते हैं.

  • 8.क्या है RCEP समझौता?क्षेत्रीय व्यापक आथर्षक भागीदारी (RCEP ) एक मुक्त व्यापार समझौता है, जो क 16 देशों के मध्य कया जा रहा था। भारत के इसमें शामल न होने के नणर्षय के पचात ्अब इसमें 15 देश रह गए है ।इसमें 10 आसयान देश तथा उनके FTA भागीदार- भारत, चीन, जापान, कोरया, ऑस्टे्रलया और न्यूज़ीलैंड शामल थे।इसका उद्देय व्यापार और नवेश को बढ़ावा देने के लये इसके सदस्य देशों के बीच व्यापार नयमों को उदार बनाना एवं सभी 16 देशों में फैले हुए बाज़ार का एकीकरण करना है। अथार्षत सभी सदस्य देशों के उत्पादों और सेवाओं का संपूणर्ष क्षेत्र में पहँुचना आसान होगा।इसकी औपचारक शुरुआत नवंबर 2012 में कंबोडया में आयोिजत आसयान शखर सम्मेलन में की गई थी।RCEP को ट्रांस-पैसफक भागीदारी के एक वकल्प के रूप में भी देखा जाता है।यद भारत सहत यह समझौता संपन्न होता तो यह वैिवक सकल घरेलू उत्पाद के 25 प्रतशत और वैिवक व्यापार के 30 प्रतशत का प्रतनधत्व करता।साथ ही यह लगभग 5 अरब लोगों की आबादी के लहाज़ से सबसे बड़ा व्यापार संगठन बन जाता।RCEP समझौते में वस्तुओं एवं सेवाओं का व्यापार, नवेश, आथर्षक और तकनीकी सहयोग, बौद्धक संपदा, प्रतस्पद्र्षधा, ववाद नपटान तथा अन्य मुद्दे शामल हैं।

  • ASEAN क्या है ? दक्षण पूवर्वी एशयाई राष्ट्रों का संगठन के सदस्य राष्ट्र है ।ब्रुनेईकंबोडयाइंडोनेशयालाओसमलेशयाम्यांमारफलीपींससगंापुरथाइलैंडवयतनामदक्षण पूवर्वी एशयाई राष्ट्रों का संगठन (ASEAN ) दस दक्षण-पूवर्ष एशयाई देशों का समूह है, जो आपस में आथर्षक वकास और समदृ्ध को बढ़ावा देने और क्षेत्र में शांत और िस्थरता कायम करने के लए भी कायर्ष करते हैं। इसका मुख्यालय इंडोनेशया की राजधानी जकातार्ष में है। आसयान की स्थापना 8 अगस्त, 1967 को थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में की गई थी। इसके संस्थापक सदस्य थाईलैंड, इंडोनेशया, मलेशया, फलपींस और सगंापुर थे।

  • कन कारणों से भारत हुआ RCEP समझौते से बाहर, क् या होगा इसका असर?नया के सबसे मजबूत टे्रड ब्लॉक के तौर पर प्रचारत आरसेप (RCEP)में भारत शामल नहीं होगा। बैंकॉक में सोमवार को आरसेप (RCEP)वातार्ष के लए तैयार 16 देशों के शीषर्ष नेताओं की बैठक में पीएम नरेंद्र मोदी ने दो टूक कह दया क मौजूदा वैिवक हालात और समझौते के प्रारुप में उसके हतों व मुद्दों को पूरा स्थान नहीं दए जाने की वजह से भारत इसमें शामल नहीं होगा। अब भारत के बगैर ही एशया-प्रशांत क्षेत्र के 15 बड़ ेदेश आरसेप यानी रजनल कंप्रहेंसव इकोनॉमक पाटर्षनरशप नाम से गठत होने वाले मुक्त व्यापार समझौते को आगे बढ़ाएंगे। माना जा रहा है क सस्त ेआयात से अपने उद्योग-धंधों को बचाने के प्रत समझौते में खास प्रावधान नहीं होने की वजह से ही भारत ने अंतत: इससे बाहर होने का फैसला कया है।

    आरसेप के शीषर्ष नेताओं की बैठक को संबोधत करते हुए पीएम मोदी ने कहा क भारत आरसेप (RCEP) में शामल नहीं होगा और इसके लए ना तो गांधी के सद्धांत और ना ही उनका जमीर इस समझौते में शामल होने की इजाजत दे रहा है। यह फैसला एक आम भारतीय के जीवन और उसके जीवनयापन के साधनों खास तौर पर समाज के बेहद नचले तबके के जीवन पर पड़ने वाले असर को देखते हुए कया जा रहा है।पीएम ने यह भी साफ तौर पर बताया क आरसेप (RCEP) का मौजूदा मसौदा पत्र इसके मूलभूत सद्धांतों के मुताबक नहीं है और कुछ मूल मुद्दों के साथ भारत कोई समझौता नहीं कर सकता। इसके साथ ही पीएम मोदी ने आरसेप के उन देशों को लताड़ भी लगाई जो भारत पर दबाव बनाने की कोशश में है। उन्होंने कहा, मुझ ेयह बताने में कोई गुरेज नहीं क अब वे दन नहीं है जब बड़ी शिक्तयां भारत पर वैिवक सौदेबाजी करने का दबाव बना देती थी। बढ़त ेकारोबारी घाटे में कटौती करना और भारतीय सेवाओं व नवेश के लए समान मौका मलना भारत की दो प्रमुख मांग थी िजसके प्रत सदस्य देशों ने गंभीरता नहीं दखाई है।

  • भारत के गरीब तबके पर हो सकता है बड़ा असरइस बैठक में शामल वदेश मंत्रालय में सचव (पूवर्ष) वजय ठाकुर सहं ने बाद में बताया, पीएम ने स्पष्ट कया क हम गांधी जी के इस सद्धांत के अनुसार चल रहे हैं क जब भी इस तरह का कोई फैसला करना हो तो समाज के सबसे गरीब व्यिक्त को होने वाले फायदे या नुकसान पर सोचना चाहए। हमारा मानना है क इस समझौता से भारत के गरीब तबके पर इसका बड़ा असर हो सकता है। सनद रहे क आरसेप (RCEP) के खलाफ पूरे देश में पछले कुछ दनो�