परिઈिष्ट ख नियम 17 दॐઉखयॐ) -...

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परिशिट (नियम 17 देखखये) समिलित राय सेवा तयोगिता परीा के लिये तियि और पाय-ववरण टपणी- कसी भी अयी को जब तक क उसके पास आयोि से वेश का िाण-प ि हो, परीा ि समिलित िही ककया जायेिा। परीा ि समिलित होिे के लिये ककसी अयी की पाता या अपाता के समबध ि आयोि का ववतिचय अति होिा। तियि-(1) परीा ि ववषय तिमिलिखित हिे। येक ववषय के लिए उसके साििे दिये िये अंक हिे। येक ववषय ि एक ि-प होिा और येक के लिये तीि घटे का सिय दिया जायेिा । अि भाग-- सभी अयगिय वारा लिए जायिे , लसवाय संया (5) के जो केवि कोषािार अगधकारी , बी कर अगधकारी और सहायक तिबधक , सहकारी सलिततयॉ और पंचायत के पि के अयगिय के लिए है - (1) सािाय अेजी .... ........... 5 (2) तिबध ...... .......... 10 (3) सािाय दहिी ...... .......... 5 (4) सािाय ाि ......... ......... 10 (5) ारमभक िखणत (के वि उि अयगिय के लिए जो कोषािार अगधकारी, बीकर अगधकारी और सहायक तिबधक, सहकारी सलिततयॉ और पंचायत के पि के लिए समिलित हो रह ह ........... ............ 10 अि भाग-िचे िी िई स ची ि से कोषािार अगधकारी , बीकर अगधकारी और सहायक तिबधक , सहकारी सलिततयॉ और पंचायत के पि के अयगिय के लिए ( सेिा के ववयजत अगधकाररय के लिए आरत रततय के तयोगिता को ड़ोरकर ) यह आवयक है क िीचे ििई स ची से तीि और ि कक तीि से अगधक ववषय च िऔर अय सेवाओं के अयगिय के लिए यह आवयक है क चार और ि क चार से अगधक वैकपपत वषय च ि-

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  • परिशिष्ट ‘ख’ (नियम 17 देखखये)

    सम्मिलित राज्य सेवा प्रततयोगिता परीक्षा के लिये तियि और पाठ्य-वववरण टटप्पणी- ककसी भी अभ्यर्थी को जब तक कक उसके पास आयोि से प्रवेश का प्रिाण-पत्र ि हो, परीक्षा िें सम्मिलित िही ककया जायेिा। परीक्षा िें सम्मिलित होिे के लिये ककसी अभ्यर्थी की पात्रता या अपात्रता के समबन्ध िें आयोि का ववतिश्चय अम्न्ति होिा। तियि-(1) परीक्षा िें ववषय तिमिलिखित होंिे। प्रत्येक ववषय के लिए उसके साििे दिये िये अकं होंिे। प्रत्येक ववषय िें एक प्रश्ि-पत्र होिा और प्रत्येक के लिये तीि घन्टे का सिय दिया जायेिा । अिुभाग-क- सभी अभ्यगर्थियों द्वारा लिए जायेंिे, लसवाय संख्या (5) के जो केवि कोषािार अगधकारी , बबक्री कर अगधकारी और सहायक तिबन्धक , सहकारी सलिततयॉ और पंचायत के पिों के अभ्यगर्थियों के लिए है-

    (1) सािान्य अगे्रजी .... ........... 5 (2) तिबन्ध ...... .......... 10 (3) सािान्य दहन्िी ...... .......... 5 (4) सािान्य ज्ञाि ......... ......... 10 (5) प्रारम्मभक िखणत (केवि उि अभ्यगर्थियों के लिए जो कोषािार अगधकारी,

    बबक्रीकर अगधकारी और सहायक तिबन्धक, सहकारी सलिततयॉ

    और पंचायत के पिों के लिए सम्मिलित हो रहें हों

    ........... ............ 10

    अिुभाग-ख िीच ेिी िई सूची िें से कोषािार अगधकारी , बबक्रीकर अगधकारी और सहायक तिबन्धक , सहकारी सलिततयॉ और पंचायत के पिों के अभ्यगर्थियों के लिए ( सेिा के ववयम्जत अगधकाररयों के लिए आरक्षक्षत ररम्ततयों के प्रततयोगिता को ड़ोरकर ) यह आवश्यक है कक िीच ेिी िई सूची से तीि और ि कक तीि से अगधक ववषय चिुे और अन्य सेवाओं के अभ्यगर्थियों के लिए यह आवश्यक है कक चार और ि कक चार से अगधक वैकम्पपत ववषय चिु-े

  • (6) संस्कृत सादहत्य - - 100 (7) प्राचीि भारतीय संस्कृत - - 100 (8) दहन्िी सादहत्य - - 100 (9) अरबी या फारसी - - 100 (10) उिूि सादहत्य - - 100 (11) अगें्रजी सादहत्य - - 100 (12) भारतीय इततहास प्रर्थि - - 100 (13) भारतीय इततहास द्ववतीय - - 100 (14) यूरोपीय इततहास - - 100 (15) अर्थिशास्त्र - - 100 (16) िोक अर्थिशास्त्र - - 100 (17) वाखणज्य - - 100 (18) राजिीततक संिठि लसद्धांत - - 100 (19) राजिीततक संिठि - - 100 (20) िीतत िशिि और तत्व िीिांसा - - 100 (21) भारतीय िशिि - - 100 (22) ििोववज्ञाि - - 100 (23) उच्च भौततकी - - 100 (24) तिमि भौततकी - - 100 (25) उच्च रसायि ववज्ञाि - - 100 (26) तिमि रसायि ववज्ञाि - - 100 (27) उच्च विस्पतत ववज्ञाि - - 100 (28) तिमि विस्पतत ववज्ञाि - - 100 (29) उच्च प्राणी ववज्ञाि - - 100 (30) तिमि प्राणी ववज्ञाि - - 100 (31) भूिोि - - 100

  • (32) कृवष प्रर्थि संस्र्था क्रि पशुपािि और िगु्धशािा उद्योि - - 100 (33) कृवष द्ववतीय कृवष अर्थिशास्त्र और कृवष रसायि - - 100 (34) भ-ूववज्ञाि - - 100 (35) ववगध प्रर्थि प्रश्ि-पत्र - - 100 (36) ववगध द्ववतीय प्रश्ि-पत्र - - 100 (37) ववगध ततृीय प्रश्ि-पत्र - - 100 (38) िेिा परीक्षा और िेिाशास्त्र - - 100 (39) शुद्व िखणत (िघु) - - 100 (40) शुद्व िखणत (उच्च) - - 100 (41) प्रयुतत िखणत (िघु) - - 100 (42) प्रयुतत िखणत (उच्च) - - 100 (43) सांम्ख्यकी - - 100 (44) प्रयुतत यांबत्रकी - - 100 (45) प्रर्थि चािक (प्राइि िूवसि) - - 100 (46) सिाजशास्त्र - - 100 (47) सािाम्जक कायि - - 100 (48) रसायतिक अलभयंत्रण - - 100 (49) राष्ट्रीय प्रततरक्षा और सुरक्षा - - 100

    दटप्पणी- (1) अभ्यर्थी को िखणत के चार और सांम्ख्यकी के प्रश्ि-पत्रों (संख्या 39 से 43) िें से िो प्रश्ि-पत्र से अगधक िेिे की अिुितत िहीं िी जायेिी। (2) ववषय संख्या 44 और 45 (प्रयुतत यांबत्रकी और प्रर्थि चािक प्राइि िूवसि) उत्तर प्रिेश पुलिस सेवा के लिए िहीं लिए जा सकते। (3) उत्तर प्रिेश कृवष सेवा विि-2 के पिों के लिए अभ्यगर्थियों को वैकम्पपत ववषयों िें से कृवष के िो प्रश्ि-पत्र िेिा अतिवायि है। अिुभाग-ग

  • (1) व्यम्ततत्व परीक्षा (िौखिक परीक्षा) (2) प्रत्येक ववषय िें अभ्यर्थी को तियत ककये िये अकंों िें से ऐसी कटौती की जायेिी म्जसे िोक सेवा आयोि यह सुतिम्श्चत करिे के लिए आवश्यक सिझ ेकक केवि ऊपरी ज्ञाि के लिए कोई िान्यता ि िी जाये। अभ्यगर्थियों को चतेाविी िी जाती है कक उन्हें अपिी उत्तर पुम्स्तकाओं के आवरण पर व्यवम्स्र्थत स्र्थाि के लसवाय अन्य कहीं अपिा अिुक्रिांक िहीं लिििा चादहये अन्यर्था ि्ड स्वूपप उिके अकंो िें कटौती की जायेिी । इसके अततररतत उन्हें कहीं पर अपिे िाि िही लिििे चादहये अन्यर्था उन्हे अिहि ककया जा सकता है। (3) यदि अभ्यर्थी की लििावट आसािी से पढ़ी ि जा सके तो कुि अकंो िें से पयािप्त अकं काटे जा सकते है, जो अन्यर्था उसे प्राप्त होते । (4) केवि ऐसे ववषयों िें ही िही जो कक अगें्रजी या दहन्िी भाषा से ववषय ूपप समबद्ध हो, बम्पक परीक्षा के सभी ववषयों िें अच्ड़ी अगें्रजी या दहन्िी के लिए म्जसिें कि से कि शब्िों का प्रयोि करिे के सार्थ-सार्थ सुव्यवम्स्र्थत, प्रभावकारी और सुस्पष्ट्ट अलभव्यम्तत भी सम्मिलित है, िान्यता िी जायेिी। (5) सभी प्रश्ि-पत्रों के उत्तर अगें्रजी या दहन्िी िेविािरी लिवप िें दिये जायेंिे, लसवाय अगें्रजी (अतिवायि या वैकम्पपक) ववषय के प्रश्ि-पत्र के, म्जसका उत्तर अगें्रजी िें दिया जािा आवश्यक है और दहन्िी (अतिवायि या वैकम्पपक) ववषय के प्रश्ि का उत्तर दहन्िी िें दिया जािा आवश्यक है और शास्त्रीय भाषाओं की िशा िें प्रश्ि-पत्र िें दिये िये तििेशों का पािि ककया जािा चादहये। म्जि प्रश्ि-पत्रों का अगें्रजी या िेविािरी लिवप िें दहन्िी िें से ककसी भी एक उत्तर िेिे का ववकपप हो उििें अभ्यर्थी को समपूणि प्रश्ि-पत्र के लिए ि कक प्रत्येक प्रश्ि या उसके अिि-अिि भाि के लिए अपिी भाषा के समबन्ध िें अपिा ववकपप िेिा आवश्यक है । यदि वे प्रश्ि-पत्र के कुड़ प्रश्िों का उत्तर एक भाषा िें और कुड़ प्रश्िों का उत्तर िसूरी भाषा िें िेते हैं तो यदि प्रश्ि-पत्र कुि 50 अकंो का हो तो पॉच अकं काट कर और प्रश्ि-पत्र 100 अकं का हो तो 10 अकं काट कर उन्हें िम््ड त ककया जायेिा भिे ही उन्होंिे वस्तुतः ककतिे ही अकं प्राप्त तयों ि ककये हो। (6) जब तक कक पाठ्य वववरण िें अन्यर्था इंगित ि हो , अतिवायि और वकैम्पपक ववषयों िें अभ्यगर्थियों के अपेक्षक्षत ज्ञाि का स्तर ऐसा होिा म्जसकी ववश्वववद्यािय की स्िातक की उपागध रििे वािे ककसी युवक से आशा की जाती है।

    पाठ्य विििण सामान्य विििण

  • 1. सामान्य अगें्रजी- प्रश्ि-पत्र िें अगें्रजी के ज्ञाि और शब्िों के कुशि प्रयोि की जॉच करिे के लिए प्रश्ि होंिे। 2. निबन्ध- कई ववतिदििष्ट्ट ववषयों िें से ककसी एक ववषय पर अगें्रजी या दहन्िी िें लिििा होिा । 3. सामान्य टिन्दी- प्रश्ि-पत्र सािान्य प्रकार का होिा और उसिें अगें्रजी से दहन्िी और दहन्िी से अगें्रजी िें अिुवाि करिे के लिए िद्यांश भी होंिे। 4. सामान्य ज्ञाि- म्जसिें वतििाि घटिाओं और दिि प्रततदिि के संप्रेक्षण और अिुभव के ऐसे ववषयों का ज्ञाि भी सम्मिलित है म्जिकी ककसी लशक्षक्षत व्यम्तत से बबिा ककसी ववशषे अध्ययि के आशा की जाती है। 5. प्रािम्भभक गखणत - केवि उि अभ्यगर्थियों के लिए जो कारािार अगधकारी, बबक्रीकर अगधकारी और सहायक तिबन्धक, सहकारी सलिततयॉ और पंचायत के पि (पिों) के लिए परीक्षा िें सम्मिलित हों। प्रश्ि-पत्र िें अकंिखणत, बीजिखणत तर्था रेिािखणत के प्रश्ि होंिे और इसका स्तर वही होिा जो िाध्यलिक लशक्षा पररषद् उत्तर प्रिेश की हाई स्कूि की परीक्षा के लिये ववदहत हो ।

    िैकम्पपक विषय

    6. संस्कृत साटित्य- अभ्यगर्थियों से प्रिुि शास्त्रीय िेिकों के ववशषे संिभि िें शास्त्रीय संस्कृत सादहत्य के इततहास का और िाटकों िें प्रिुि प्राकृत का सािान्य ज्ञाि प्रिलशित करिे की आशा की जायेिी। संस्कृत से अगें्रजी िें और अगें्रजी से संस्कृत िें अिुवाि करिे के लिए भी िद्यांश दिये जा सकते है। संस्कृतत िें लिििे के लिए अपेक्षक्षत उत्तर िेविािरी लिवप िें लििे जािे चादहये । 7. प्राचीि भाितीय संस्कृनत- अभ्यगर्थियों से प्राचीि भारत की सािाम्जक तर्था राजिीततक संस्र्थाओं और भारतीय िशििशास्त्र के तत्वों का ज्ञाि रििे की आशा की जायेिी । 8. टिन्दी साटित्य- अभ्यगर्थियों से दहन्िी की िािक रचिाओं की जािकारी रििे की आशा की जायेिी यद्यवप अपेक्षाकृत कि िहत्व की पुस्तकों के समबन्ध िें भी प्रश्ि ककये जा सकें िे । उिसे सादहत्य के इततहास की जािकारी रििे तर्था सािान्य सािाम्जक इततहास की ऐसी जािकारी रििे की आशा की जायेिी म्जससे वे सादहत्य को सिझा सके। प्रश्िों के उत्तर िेविािरी लिवप िें लििे जािे चादहये। 9. अिबी या फािसी- अभ्यगर्थियों से प्रतततिगध शास्त्रीय िेिकों के ववशषे संिभि िें इततहास और सादहत्य का सािान्य ज्ञाि प्रिलशित करिे की आशा की जायेिी। सािाम्जक, राजिीततक तर्था धालििक ववकास और अलभवदृ्वव के समबन्ध िें भी प्रश्ि दिये जा सकते हैं। उतत भाषा के अगें्रजी

  • िें तर्था अगें्रजी से उतत भाषा िें अिुवाि करिे के लिए िद्यांश दिये जा सकते हैं। 10. उददू साटित्य- अभ्यगर्थियों से उिूि की सबसे अगधक-पुस्तकों की जािकारी रििे की आशा की जायेिी, यद्यवप कि िहत्व की कृततयों के समबन्ध िें भी प्रश्ि दिये जा सकें िे । उिसे सादहत्य के इततहास की जािकारी रििे और सािान्य सािाम्जक इततहास की ऐसी जािकारी रििे की भी आशा की जायेिी म्जससे वे सादहत्य को सिझ सकें । प्रश्िों के उत्तर उिूि िें लििे जािे चादहये। 11. अगें्रजी साटित्य- अभ्यगर्थियों से तिमिलिखित िेिकों की कृततयों के ववशषे संिभि िें स्पेन्सि के सिय से िेकर 1930 तक के अगें्रजी सादहत्य के इततहास की सािान्य जािकारी प्रिलशित करिे की आशा की जायेिी । शतेसवपयर, लिपटि, जािसि, डड तसे वड िसवर्थि, कीट्स, कारिायि हैतिसि हाड ी तर्था बिािड शा। प्रश्ि-पत्र बतािें िें व्यापक पठि और स्वतन्त्र ववचार प्रकट करिे को िहत्व दिया जायेिा। 12. भाित का इनतिास (प्रथम)- आयो के प्रर्थि आग्रवासि िेकर बारहवी शताब्िी के अन्त तक भारत का प्रचीि इततहास भारत के बाहार बौद्वघिि के इततहास के समबन्ध िें भी प्रश्ि दिये जा सकते हैं। 13. भाित का इनतिास (द्वितीय) - ििभि तरेहवी शताब्िी के आरमभ से िघ्यकािीि तर्था आधतुिक भारत । 14. यदिोप का इनतिास- 1453 से 1920 तक इसिें सिकािीि बिटेि का इततहास भी सम्मिलित होिा। 15. अथिूास्र- अभ्यगर्थियों से अर्थिशास्त्र के लसद्वांत की जािकारी रििे की आशा की जायेिी और उन्हें िोिो ही, तथ्यों द्वारा लसद्वांत का दृष्ट्टान्त िेिे और लसद्वांत की सहायता से तथ्यों का ववश्िेषण करिे के लिए तैयार रहिा चादहये। आगर्थिक ववचारधारा के इततहास पर भी प्रश्ि ककये जा सकते हैं। 16. लोक अथिूास्र- अभ्यगर्थियों से आगर्थिक क्षेत्र िें राज्य के कायि के केन्रीय और स्र्थािीय, प्रिुि और िोक ववत्त की जािकारी रििे की आशा की जायेिी। 17. िाखणज्य- करेन्सी बैंककि और ववत्त के समबन्ध िें और औद्योगिक और वाखणम्ज्यक संिठि के समबन्ध िें भी प्रश्ि दिये जायेंिे । 18. िाजिीनत के शसद्िांत- अभ्यगर्थियों से राजिीतत के लसद्वांत और उसके इततहास की जािकारी प्रिलशित करिे की आशा की जायेिी । राजिीतत के लसद्वांत का तात्पयि केवि ववधाि का लसद्वांत ही ि सिझा जायेिा, ककन्तु राज्य का सािान्य इततहास और न्यायशास्त्र , िोक अन्तरािष्ट्रीय ववववध और अर्थिशास्त्र जैसे सादृश्य अध्ययि से उसका समबन्ध भी सिझा जायेिा। िौलिक िेिकों के बारे िें ज्ञाि अपेक्षक्षत हैं। 19. िाजिीनतक संगठि- संववधातिक स्वूपप (प्रतततिगध सरकार, पररसंघवाि आदि) और िोक प्रशासि, केन्रीय और स्र्थािीय अभ्यगर्थियों से वतििाि संस्र्थाओं का उद्भव और ववकास सिझिे

  • की अपेक्षा की जायेिी । भारत के संववधाि पर भी प्रश्ि ककये जा सकते हैं। 20. िैनतक दििू तथा तत्ि मीमांसा- इस ववषय के अन्तिित पूवि तर्था पम्श्चिी िीततशास्त्र का इततहास और लसद्धांन्त आते है, और इसिें िैततक िािक और उिके प्रयोि, िैततक व्यवस्र्था की सिस्याऍ और सिाज तर्था, राज्य की प्रितत ि्ड के लसद्वांत, स्र्थाि, काि और अपघात, ववकास और िान्यता ईश्वरीय स्वूपप की सिस्याओं के ववशषे सन्िभि िें पम्श्चिी िशिि का इततहास भी है। 21. भाितीय दििू- इस ववषय के अन्तिित वेि, उपतिषि और भिवतिीता की िाशितिक पररकपपिा बौद्ध और जैि ववकास, भारतीय िशिि के ड़ः अिं, अर्थाित-न्याय, वैशवेषि, साख्य, योि, पूवि िीिांसा और वेिांत, ऐततहालसक और अिोचिात्िक वववेचि आते है। 22. मिोविज्ञाि- सािान्य ििोववज्ञाि, अपसािान्य ििोववज्ञाि, औद्योगिक ििोववज्ञाि और लशक्षा ििोववज्ञाि के समबन्ध िें प्रश्ि दिये जायेंिे । इसिें तिमिलिखित ववषय सम्मिलित होंिे। आधतुिक ििोववज्ञाि की प्रिुि प्रववृत्तया, व्यवहार की प्रकक्रया, अिुभूतत और संवेि (लसद्धांत और प्रयोिात्िक) अलभप्रेरणा, अध्ययि ( रीतत और ववगध) स्ितृत, कपपिा और गचन्ति, संवेििा और अवबोध , बोध आिुवांलशकता और पयािवरण, वैयम्ततक व्यवस्र्थापि, व्यवस्र्थापि संघषि िािलसक ववकार, (ििोगचककत्सा की प्रकक्रया और कक्रया ववगध) व्यम्तत (िठि और ववकास), असािान्यता, लसद्धांन्त और िाप,) कायि र्थकाि,प्रेरणा, ििोववज्ञाि, व्यम्ततित सिस्यायें औद्योगिक समबन्ध, औद्योगिक वातावरण िें िोकतन्त्रीय और प्रागधकारवािी िेततृ्व, ववज्ञापि ििोववज्ञाि, वैयम्ततक लभन्िताओं का अघ्ययि, भाषा की सिस्यायें, बौद्ववक प्रेरणा और संवेिात्िक ववकास, उपिम्ब्ध का िूपयांकि और िाप, अध्ययि िें सािाम्जक तर्था संवेिात्िक कारण, प्रलशक्षण का अन्तरण । 23. उच्च भौनतकी- प्रश्ि-पत्र एि0एस0सी0 स्तर का होिा। इसिें आधतुिक भौततकी, पिार्थि के िुण और ध्वति, उष्ट्िा, प्रकाश ववद्युत, तर्था चमुबकत्व और इिेतराि के लसद्धांत के समबन्ध िें प्रश्ि होंिे। 24. निभि भौनतकी- प्रश्ि-पत्र बी0एस0सी0 स्तर का होिा। और इसिें सािान्य िुण, ध्वति, उष्ट्िा, प्रकाश ववद्युत, तर्था चमुबकत्व के समबन्ध िें प्रश्ि होंिे। 25. उच्च िसायि विज्ञाि- प्रश्ि-पत्र एि0एस0सी0 स्तर का होिा। इसिें अकाबितिक, काबितिक, प्रयुतत और कृवष रसायि के समबन्ध िें प्रश्ि होंिे। अभ्यगर्थियों से लसद्धांतों के ऐततहालसक ववकास की जािकारी रििे और प्रिुि रसायिज्ञों का संक्षक्षप्त वववरण िेिे की भी आशा की जायेिी। 26. निभि िसायि विज्ञाि- प्रश्ि-पत्र बी0एस0सी0 स्तर का होिा। इसिें अकाबितिक, काबितिक, भौततक रसायि के समबन्ध िें प्रश्ि होंिे। 27. उच्च ििस्पनत विज्ञाि- प्रश्ि-पत्र एि0एस0सी0 स्तर का होिा। इसिें र्थिैोफाइटा, िायोफाइटा तर्था औरोड ीफाइटा, विस्पतत कक्रया ववज्ञाि (प्िान्टकफम्जयािोजी) और कोलशका ववज्ञाि

  • (साइटोिोजी), ववकृतत बीज (म्जमिोस्पम्र्स) तर्था आिुवांलशकी (जैिेदटक) आवतृ बीज (एिम्जयोस्पम्र्स) और पररम्स्र्थतत ववज्ञाि (इकोिोजी), उत्तर प्रिेश िें फसिों के िहत्वपूणि फफूि रोि म्जसके अन्तिित जीवाणु रोि, और ववषाणु रोि (बैतटीररयि ए्ड वाइरस डड जीज) के सािान्य लसद्वान्त भी है और पौधों िें उपापचयि (िेटेबोलिज्ि इि प्िा्ट्स ) सम्मिलित है। 28. निभि ििस्पनत विज्ञाि- प्रश्ि-पत्र बी0एस0सी0 स्तर का होिा। इसिें आकृतत ववज्ञाि (िाफोिोजी) कक्रया ववज्ञाि (कफम्जयोिोजी) और कक्रप्टोिेमस और ववकृत बीज के जीवि वतृ, आवतृ बीज, सािान्य विस्पतत कक्रया ववज्ञाि पररम्स्र्थतत ववज्ञाि, क्रय ववकास, लभन्िता और अिुवांलशकता के जीवि वतृ अर्थि विस्पतत ववज्ञाि के समबन्ध िें प्रश्ि सम्मिलित होंिे। 29. उच्च प्राखण विज्ञाि- प्रश्ि-पत्र एि0एस0सी0 स्तर का होिा। इसिें अकाड टेा (िाि काड टेा) और काड टेा के प्रिुि उप-प्रभािों (सब-डड वीजिों) के सिस्त तिूपपकों का स्र्थाि और काि िें संरचिा, ववकास, जीव-पररम्स्र्थतत की (वाइिालितस) और विीकरण और ववतरण के समबन्ध िें प्रश्ि सम्मिलित होंिे । इसिें जीव ववज्ञाि के सािान्य लसद्धांतो के समबन्ध िें प्रश्ि सम्मिलित होिें म्जसके अन्तिित ववकास के ववलभन्ि लसद्धांतो और लभन्िता, आिुवांलशकता और अिुकूिि, िर-िािा कोलशकीय तथ्य (सेतससेपयूिर कफिालिन्स) आदि ववषय आतें है। 30. निभि प्राखण विज्ञाि- प्रश्ि-पत्र बी0एस0सी0 स्तर का होिा। इसिें अकाड टेा कोलशका और ऊतक, जिि और भौततकी (ररप्रोड तशि ए्ड दहस्टोिाजी)के ववषय, ववकास सािान्य लसद्धांन्त काड टेा, प्रारम्मभक कारक और भ्रूण ववज्ञाि कक्रया ववज्ञाि, भू-ववज्ञािीय और भौिोलिक ववतरण आतें हैं। 31. भदगोल- भारत के ववशषे संिभि िें ववश्व का भूिोि । ऐसे ववषयों पर प्रश्ि दिये जा सकते है। म्जिका समबन्ध अर्थिशास्त्र, इततहास, भौततकी, विस्पतत ववज्ञाि और भू-ववज्ञाि जैसे अन्य ववषयों के सार्थ संयुतत ूपप से भिूोि से हो । 32. कृवष (प्रथम)- फसि वद्धवि (क्राप हसबेन्ड री), पशुपािि और िगु्धशािा उद्योि, फसि वद्धवि के सािान्य लसद्वान्त, उत्तर प्रिेश के ववशषे संिभि िें भारत की प्रिुि क्षेत्रीय फसिों (फोन्ड , क्राप) का उत्पािि, फसिों के चक्रािुक्रि का लसद्धांत, िाि ककतिे पररिाण िें ड ािी जाये, िाि ड ाििे का सिय और उसकी ववगध, िािों का लिश्रण, उत्तर प्रिेश के सािान्य ित-पतवार और उिका तियन्त्रण कृवष क्षेत्र के प्रबन्ध के लसद्धान्त । कृवष-किि की ववलभन्ि प्रणालियों के िक्षण और उिकी आवश्यकता । कृवष श्रलिक और उिका संिठि । कृवष क्षेत्र, पशुधि और उिका प्रबन्ध । भूलि की उविरता पर प्रभाव ड ाििे वािे कारक: िधू और िगु्ध उत्पािि उत्पादित िधू की ककस्ि और उसके पररणाि पर प्रभाव ड ाििे वािे कारक । ववपणि (िाकेदटिं) िािकीकरण, पास्चरुीकरण तर्था सिम्स्र्थतीकरण (होिोजेिाइजेशि) के लिए िधू का शोध: ििाई (क्रीि), ितिि, घी, और िही तैयार करिा तर्था उन्हें बिािा: पशुओं का पोषण, राशि तियत करिे के लसद्धांत, िाद्य के िािक, श्रि और िधू के लिए िाद्य

  • की आवश्यकताऍ । 33. कृवष (द्वितीय)- कृवष अर्थिशास्त्र और कृवष रसायि ववज्ञाि, लिट्टी के तििािण और विीकरण के लसद्धान्त, लिट्टी के रसायतिक भौततक और भौततक रसायतिक िुण । भूलि का कटाव, उसका कारण और उसे रोकिे के उपाय । िोिा तर्था रेह लिट्टी का सुधार (एलिलियोरेशि) लिट्टी िें िाइरीकर और िारोजि ववतििेशि। लिट्टी के सूक्ष्िजीवी प्रिषूण । जैव पिार्थि का ववघटि और लिट्टी िें हाा्रमय कस संश्िेषण। पौधों िें काबोहाइड्रटे वसा (फैट्स) और प्रोटीि का संश्िेषण । एन्जाइि और ववटालिि समबन्धी प्रारम्मभक प्रत्यय और उिका समबन्ध । हारिोन्स और उपज का ववतियिि करिे वािे अन्य तत्वों का कायि। साधारण और लिगश्रत उविरकों और िािों का िूपयांकि म्जसके अन्तिित कृवष क्षेत्र की िाि और कमपोस्ट के रसायतिक िुण भी है। जुिािी करिे वािे पशुओं और अन्य पाितू पशुओं के पाचि। पशुओ के शरीर िें काबोहाइड्रटे, वसा, प्रोटीि और ितिज पिार्थि का उपापचयि । पाचि परीक्षण, स्टाचि तुपयांक एपयुलििीय अिुपात, भरण-पोषण वदृ्गध जिि, िगु्ध श्रवण और कायि उत्पािि के पोषण तत्वों की आवश्यकता । िगु्ध संघटकों, जैसे वसा, काबोहाइड्रटे और प्रोटीि के रसायतिक िुण और िहत्व । िही जिािे के िौराि िधू िें होिे वािे रसायतिक पररवतिि। िधू और घी िें लििावट और उसका पता ििािा। कृवष अथिूास्र- कृवष अर्थिशास्त्र का अर्थि, क्षेत्र और ववषय-वस्तु, कृवष उत्पािि कायिक्रि िें कृवष अर्थिशास्त्र का िहत्व । उत्पािि के कारणों का विीकरण भारत िें भूलि, उसका उपयोि और भ-ूसंरक्षण । भूलि उपयोि के सीिान्त लसद्धान्त। ववशषेज्ञता और अिेकता के लसद्वांत । सघि और ववस्ततृ िेती । कृवष के्षत्र की भूलि और उसकी उपज का िूपयांकि । कृवष उत्पािि के िूपय (प्रततफि तियि) कृवष क्षेत्र के कारबार का आकार। कृवष िें तिवेश और उत्पािि का समबन्ध । उत्तर प्रिेश के ववशषे संिभि िें भारत िें भूलि सुधार। िेततहर िजिरू, ििाि, स्वत्व और कृवष िाभ। कृवष उधार, उधार िेिे वािी संस्र्थायें, भूलि बन्धक बैंक। ग्रािीण उधार की एकीकृत योजिा। कृवष ववत्त व्यवस्र्था िें भारतीय ररजवि बैंक का योििाि । कृवष उपज का ववपणि अवसर, व्यवस्र्था और अलभकरण, ववतरण िें िुंजाइश। सहकारी ववपणि कराधाि और कृषक, कृवष क्षेत्र के कर का भार । कृवष जोत का कराधाि। कृवष उपज पर उत्पािि शुपक । कृवष समबन्धी राज्य सहायता । कृवष सहकाररता, भारत िें सहकारी सलिततयों के ववलभन्ि स्वूपप । भारत की कृवष क्षेत्र अर्थि व्यवस्र्था िें कृवष सहकाररता का योििाि है। िलुभिक्ष सहायता कायि । जिसखं्या और िाद्य समभरण, अपपववकलसत िेशों िें कृवष आयोजिा । 34. भद-विज्ञाि- िततशीि तर्था संचरचिात्िक भू-ववज्ञाि । जीवश्य ववज्ञाि (प्िेतियोिथ्योिाजी) ऐततहालसक भ-ूववज्ञाि (म्जसिें भारतीय भू-ववज्ञाि भी है), स्काट ववज्ञाि (कक्रस्टेिोग्राफी) (ितिज

  • ववज्ञाि शैि-ववज्ञाि, पेरोिाजी) और आगर्थिक भू-ववज्ञाि। 35. विधध प्रथम- न्याय शास्त्र, संववधाि ववगध, अपकृत्य ववगध साक्ष्य ववगध । 36. विधध द्वितीय- संवविा ववगध के सािान्य लसद्धान्त, पररत्राण ववगध, प्रत्याभूतत, उपतिधाि, गिरवी और अलभकरण, िाि की बबक्री, भािीिारी ववगध और पराक्रामय लिखित और बैंककि । 37. विधध ततृीय- अन्तरािष्ट्रीय ववगध । 38. िेिा परीक्षा और िेिा किि- (1) िेिा परीक्षा िेि परीक्षा के लसद्धान्त, और प्रकक्रया उिका सभी प्रकार के व्यवसायतिक वाखणज्यक, औद्योगिक, बैंककि, बीिा िोकोपयोिी और ववतियोजि उपक्रि (इन्वेस्टिेन्ट अन्ड रटेककंग्स) िें व्यवहाररक प्रयोि। िेिा-परीक्षणों के अगधकार और कतिव्य। वास्तववक और संदिग्ध जाि-साजी की आन्तररक िेिा-परीक्षा और अिुसंधाि । िेिा-परीक्षा को की ररपोटि, प्रिाण-पत्र और राय । िेिा परीक्षा की पररसीिायें। (2) िेिा-किि प्रश्ि-पत्र िें िेिे की िहाजिी पद्धतत, भािीिारी िेिा की ववशषे सिस्यायें, कमपिी िेिा म्जसके अन्तिित सिािेिि, सववलियि और पुिििठि भी है, िोहरी िेिा पद्धतत, बैंक िेिा, स्वालित्व िेिा, भाड ा ा़ क्रय करार और ककस्त प्रणािी, वैभागिक और शािा िेिा, अवक्ष्यण, रदहत और तिक्षेप तिगध (अगग्रि) के प्रश्ि सम्मिलित होंिे। 39. शुद्व िखणत (तिमि)- प्रश्ि-पत्र बी0 एस0सी0 स्तर का होिा। प्रश्ि-पत्र िें तिमिलिखित ववषय होिें- (1) बीजिखणत, बत्रकोणलितत और सारखणक के सार्थ सिीकरण लसद्धान्त (2) शुद्व सिति रेिािखणत तर्था द्वव-ववलितीय और बत्रववलितीय वैश्िेवषक रेिािखणत । (3) अवकिि िखणत और सिाकिि और अवकिि सिीकरण । 40. शुद्व िखणत (उच्च)- प्रश्ि-पत्र एि0 एस0सी0 स्तर का होिा। प्रश्ि-पत्र िें तिमिलिखित ववषय होिें- (1) अिन्त शे्रणी और िणुिफि। (2) ववश्िेषण (क) वास्तववक सम्मिश्रचर के फिि (ि) सम्मिश्रचर के फिि (3) अवकिि रेिािखण सदहत उच्च रेिािखणत, स्र्थाि आवरण िें वक्रता, पषृ्ट्ठ वक्रता, वक्रता रेिा, अपपत्तरी । 41. प्रयुतत िखणत (तिमि)- प्रश्ि-पत्र बी0 एस0सी0 स्तर का होिा। प्रश्ि-पत्र िें तिमिलिखित ववषय होिें- (1) स्र्थतैतक, म्जसिें आकषिण और ववभव के लसद्धान्त और रवम्स्र्थतत ववज्ञाि भी सम्मिलित हैं। (2) कण ितत ववज्ञाि और प्रारम्मभक दृढ़ ितत ववज्ञाि 42. प्रयुतत िखणत (उच्च)- प्रश्ि-पत्र एि0 एस0सी0 स्तर का होिा। प्रश्ि-पत्र िें तिमिलिखित

  • ववषय होिें- (1) स्र्थतैतक, म्जसके अन्तिित आकषिण और ववभव भी है। (2) रव म्स्र्थतत ववज्ञाि, तरि िबाव, वायुि्ड िीय िबाव, कोलशका। (3) कण तर्था दृढ़ वपडं ो का ितत ववज्ञाि । कण ितत ववज्ञाि, केन्रीय कक्ष, तिवूपद्ध ितत, अवरोधक िाध्यि िें ितत, गचववलितीय िें ितत । दृढ़ ितत ववज्ञाि-द्ववववलितीय िें ितत। संविे (िोिेन्टि) और ितत ऊजाि । िैिरेि का ितत सिीकरण और ड़ोटे िोििों (ओसीिेशन्स िें उिका प्रयोि)। (4) रव ितत ववज्ञाि, म्जसिें ककसी रव के िाध्यि से ठोस पिार्थि की ितत का प्रारम्मभक लसद्धान्त और पषृ्ट्ठीय तरंि भी है। (5) ववद्युत और चमुबकत्व (6) ऊष्ट्िा िततकी, िैसों का िततज लसद्धान्त, ववककरण। 43. सांख्यकी- (1) बारमबारता बंटि (फ्रीतवेंसी डड स्रीब्यूशि) औसत प्रततशतक (परसेिटाइि) और प्रसार (डड सपरशि) िापिे के साधारण रीतत िेिागचत्रीय रीततयॉ, िुणात्िक आंकरों का व्यवहार अर्थाित ा् अिुपात की तूििा द्वारा साहचयि एसोलसयेशि का अिुसंधाि, अन्तवेशि (अटरपोिेशि), की िेिागचत्रीय और बीजिखणत रीततयों, की कायिप्रणािी । (2) िूपय िजिरूी और आय, व्यवसाय पररवहि, उत्पािि और उपभोि, लशक्षा आदि के आंकरो के ववश्िेषण और तिवािचि िें प्रयुतत व्यवहाररक रीततयॉ, जिसंख्या और जन्ि-ितृ्यु के आकरों पर ववचार करिे की रीतत, प्रयोि या समप्रेक्षण के आकरों को व्यवहार िें िािे िें प्रयुतत प्रकीणि (रीततयां) । सांख्यकी के आधतुिक िखणतीय लसद्धान्त के तत्व, बारमबारता, वक्रता और सािान्यतया सिूहों के िखणतीय तिूपपण (ररप्रेजेन्टेशि) औसत, प्रततशत िािक और ववचिि को प्रभाववत करिे वािे प्रततिलशियों (सेमपलििं) की शुद्धता, सिूह आदि के औसतों के बीच प्रेक्षक्षत अन्तर का िहत्व, िो पररवततियों (बेररयेबबपस) के लिये सहसमबन्ध का लसद्धान्त । 44. प्रयुतत यांबत्रकी-(क) भवि-ड़त कैं ची (ूपफ रस्यसेज) के तििािण िें प्रयुतत की जािे वािी सािग्री पर ववचार । इस्पात और इिारती िकरी । ववलभन्ि रीततयों से कैं ची के प्रततबि (स्रेस) का अवधारण । अचि भार (ड डे िोड्स) और वायु िबाव, सुरक्षा से उपािाि (फैतटसि) और सकक्रय प्रततबि (वककि ि स्रेस) । ड़त कैं ची की डड जाइि। ड़त कैगचयों और ड़त आवरणों (रतत कवररगं्स) के ववलभन्ि प्रकार ििपट्ट (कािर बोि) और हैिर बोि कैं गचयॉ । र्थाि (स्रट) की डड जाइि िें यूिर, िाड िि, रैंककि, कफड रि, जािसि के सूत्र का और सीधी िाइि के सूत्र (फारिूिा) का उपयोि । र्थाि िें बहकाव (बकलििं), ववलभन्ि सूत्रों से प्राप्त र्थाि की तुििात्िक सािाथ्र्य (स्टैग्र्थ) को बतािे वािे वक्र ि्रो के आकार चिुाव । इस्पात के कायि वािे

  • जोड ों की कफतिश, लसरा वैयररिं की डड जाइि, लसरों को जोरिे और उिके अविमबि की रीतत । र्थाि वतृ और िीघिवतृ (इलिप्स) का प्रयोि और संरचिा की डड जाइि िें तिेप्राि का प्रिेय (ब्योरि) । ढिे हुये िोहे और इस्पात के िमभे- इस्पात के िमबों िें कोरिार (फिेन्ज) और पेर के जोर (वेप किेतशि) लसरे (केप्स), आधार (वैसेज), िमभो की जारी ताि ििािा (रांसवसि रलसिं आ आफ काल्र्स)। िींव (फाउन्ड शेि) सुरक्षक्षत िाव, िमभों की िींव, पदटया की िींव बाहुधरि (कैन्टीिीवर) िींव झझरीिार (ग्रीिेज) िींव। िीवािा िट्ठा (पाइपस) पुश्ता (ररटैतििं वापस) और लिट्टी का िबाव- रेककि का लसद्धान्त, बैज का लसद्धान्त, बबकंर और ब्िाई की िेिा गचत्रीय रचिा (ग्राकफक कन्सरकशन्स) शुद्गधयों सदहत पतकी गचिाई (िेसोिरी) िें ववलभन्ि प्रकार की पुश्ता िीवारों की डड जाइि। पक्की धचिाई की औि इस्पात की ऊची धचमनियॉ- लसद्वांत और डड जाइि इस्पात औि पक्की धचिाई के जलाियों की डिजाइि- वायु के िबाव का ववचार रिते हुये। अततररततंिी ढ़ाचों (ररड िड ने्ट फे्रमस) िें ढाचंिेार संरचिा (फे्रमस स्रतचसि) ववस्र्थापि (डड फिैशि) और ततबिों का अवधारण । िििपूणि (बैंडड ि िोिेन्ट) के लिए प्रभाि आरेि (इिफपयेन्स ड ाइग्रामस) और धारणों से तिलिित कैगचयों के सािाि ूपप से ववभाम्जत और अतियलित भारों के लिए कतिि (लशयार) और तीि कीि वाि परवितयकं (गर्थरी वपन्ड पैरावोलिक), अधि अराकर और अधि िोिाकार ड ाट । (िुमबज डड जाइि के सािान्य लसद्वांत) भवि की डड जाइि के लसद्धान्त के भविों पर भार का ववचार, भविों के लिए इस्पात के काि से िड िर , आदि। (ि) पुि- ऊपरी ढाचं े(सुपरस्रतचर) की डड जाइि । िततिाि भार के कारण ििि भार का िेिागचत्रीय और वैश्िेवषक ववगध द्वारा अवधारण वायु िाब। पतकी गचिाई के पुिों और पुलियों की डड जाइि। प्िेट-वेव िड िर । प्रततबि का ववश्िेषण । वारेि तर्था जाििार िड िर। तीि कोि वािे ड ाट- िोहरी कोि वािे और दृढ़ ड ाट। भूिा (सस्पेन्शि) बाहुधारण तर्था िालिका (कन्टीिीवि और टेबुिर) पुि की डड जाइि का सािान्य ववचार। इस्पात की ड ाट वािे पुि । िोियिाि (म्स्वि) पुि। (ि) प्रचलित कंक्रीट- कतिि, ििि और प्रकीणि (ड ायििि), तिाव उसकी प्रकृतत, ववकास और प्रबिि का स्र्थाि । साधारण और िोहरी प्रचलित धरि और अिेकाधार (कम्न्टन्यूअस) धि की

  • डड जाइि। प्रचलित कंक्रीट के िमभों और िट्ठों का लसद्धान्त और उिकी डड जाइि । पदटया की िींव की डड जाइि । साधारण बाहुधरि और िोहरा पुश्ते की डड जाइि । प्रचलित कंक्रीट ि्ड ों के लिए इन्टरलसया के सितुपय पूणि / िचीिावस्र्थापि का लसद्धान्त और प्रचलित कंक्रीट ड ाटा िें प्रततबि के अिुसंधार के ूपप-रेिा । (घ) सािान्य- प्रततबि का ववश्िेषण ववकृतत (स्रेि) का ववश्िेषण, इिाम्स्टक सीिा और चरि शाम्तत। इिाम्स्टक म्स्र्थरों के बीच समबन्धः ककसी संरचिा अवयव के कायिकारी प्रततबि के लिए िाि हाड ि बेरोच का सूत्र और उसकी आरी काट वािे क्षेत्र का अवधारण । प्रततबि की आवतृत। अचि भार के ििि पूणि और करति बि के रेिागचत्र / ढ़ाचों िें प्रततबि का िेिागचत्रीय अवधारण । वायु के िबाव का प्रभाव, काट ववगध, ििि के कारण धरि की आरी काट िें प्रततबि (एि0आई0एफ0 / वाई-इ0आर0)। संयुग्िां प्रततबि का यौगिक । भू-िबाव के समबन्ध िें रेंककि का लसद्धान्त िीव की िहराई और फदटि का सािथ्र्य । ग्रिेजिीव, भू-िबाव के समबन्ध िें कैिा का लसद्धान्त रे भाि के कारण पररवतिि। चि भार (लिव िोड ) के लिए ििि घूणि और बतिि बव आरेि। एक सािाि और लभन्ि सिािता के प्रततबि का ववश्िेषण । धरिी के ििि का इिाम्स्टक लसद्धान्त, धरिी िें ििि और करति प्रततबि। ि्ड ों और सिकक्ष क्षेत्रों का िापांक / उत्केन्र भार म्स्र्थत (एतसोिरक िोड ) के कारण जोर िें अगधकति तर्था न्यूिति प्रततबि । बॉध (ड िे) और गचितियों िें प्रततबि । ि्ड तििािण संरचिा का स्र्थातयत्व । ररवेटिार जोरों की डड जाइि और वाइिर िोिों (सेपस) िें प्रततबि कैगचयों के समबन्ध िें फयूिर का लसद्धान्त, रैककि, िाड िि, तर्था अन्य िोिों के कारण पररवतिि । ऐठि (टासिरि) सम्मिलित ऐठिे और ििि ववस्र्थापि आबद्ध (एिकास्टर) धरि अिकाधर धरि और बत्रपररवि (र्थोरोिािेन्ट्स) का प्रिेय । ड ाटाि की इिाम्स्टक का लसद्धान्त, पतकी गचिाई के ड ाट। 45. प्रथम चालक प्राइम मदसस ूईधि गैस संयन्र औि बाइलि- (क) ईधि, कोयिा, िकरी, पेरोलियि, िैस, पेरोि, अपकोहि आदि। भौततक िक्षण सम्न्िकट रसायतिक रचिा, िहि का ताप। (ि) िैस संयन्त्र िैस उत्पािक , िबाव तर्था चषूण संयन्त्र (सतसि प्िा्ट), ववन्यास और कायिकरण । (ि) बाइिर-प्रवात (ड्राट) प्राकृततक, प्रपोदित और प्रेररत। तिश्चि िाकोिोदटव के साधारण ूपप, सिुरी जि-िलिका (िैरीि वाटरट्यूब) और भट्ठी जािी क्षेत्र (फायर गे्रट एररया) के पषृ्ट्ठ को िरि करिे वािे अन्य प्रकार, वाइिर िक्षता अतत तापक (सुपर हीटर) भरण जि तापक (फीड वाटर हीटर) उप साधि और तिन्यास।

  • उष्मा इन्जि का शसद्धान्त- (क) ऊष्ट्िािततकीय लसद्धान्त (र्थरिोड ाइिेलिकि वप्रलंसपुपस) करिाट का चक्रपूणि ताप इन्जि, द्ववतीय तियि। (ि) वायु इन्जि-स्टलििि और अन्य प्रकार। (ि) अततररतत िहि इन्जि-िैस, तेि और पेरोि इन्जि चक्रों के प्रकार और उिके कायि के िक्षण, लिश्रण िक्षता का सिािुपात । (घ) वाष्ट्प-के उत्पािि के ऊष्ट्िािततकी, वाष्ट्प का प्रसार और संघिि। ऊष्ट्िा आरेि आदि। (ड ) आधतुिक ववकास के ववशषे सन्िभि िें वाष्ट्प इन्जि और टरबाइि। (च) प्रशीति संयन्त्र (रेफ्रीजरेशि प्िान्ट्स)- लसद्धान्त और अगधक प्रचलित प्रकार के प्रशीति संयन्त्रों का सािान्य ववन्यास । (ड़) वायु संपीड क (एअर कमप्रेशसि)- वायुवीय कायिकारक (न्यूिेदटक वककि क) का लसद्धान्त, जिि संयंत्र, उपसाधि के ब्यौरे। (क) अगधक िहत्वपूणि प्रकार के संयत्रों का सािान्य ववन्यास और तििािण। (ि) काबरेटर और इग्िीशि की पद्धतत। (ि) लसलिडं र, वपस्टर, क्रासहेड , िाइड , संयोजि ड़र,े कै्रकसि, िवििस, िततपाि पदहया (फिाईवीि) वापव और वापव गियर, ग्िै्ड और पाइप । (घ) इंजि की जॉच- भाप और ईधि िैस की िपत और ड ाइििोिीटर, सूचक (इम्न्ड केटसि) और सूचांक आरेि । 46. समाजिास्र- सिाजशास्त्र के लसद्धान्त (सािाम्जक पद्धतत, )भारतीय सािाम्जक पद्धतत , सिाजशास्त्र के लसद्धान्त (सािाम्जक तियंत्रण और सािाम्जक पररवतिि),प्रयुतत सिाजशास्त्र। 47. सामाम्जक कायू- िाििीय समबन्धों की िींव सािाम्जक कायि के लसद्धान्त और उसका व्यवहार सािुिातयक ववकास और कपयाण सािम्जक व्यवस्र्था। 48. िासायनिक इन्जीनियरिगं- प्रश्ि-पत्र बी0एस0-सी0 (रासायतिक इन्जीतियररिं) स्तर का होिा और इसिें तिमि लिखित ववषयों पर प्रश्ि-पत्र होिें- (क). प्रिुि रासायतिक उद्योि, इकाई प्रकक्रया, भौततक और ऊजाि संतुिि। (ि). रासायतिक इन्जीतियररिं, तापितत ववज्ञाि और ितत ववज्ञाि। (ि). अगधक सािान्य इकाई प्रकक्रया- जैसे रव प्रवाहः ताप अन्तरण, आसवि, अवशोषण ।

    (घ) अगधक सािान्य इकाई प्रकक्रया- जैसे रव प्रवाहः ताप अन्तरण, आसवि, अवशोषण तिष्ट्कषिण, शुष्ट्कि और आरीकरण इत्यादि। 49. िाष्रीय प्रनतिक्षा औि सुिक्षा- प्रश्ि-पत्र सािान्य ूपप से बरी शम्ततयों और ववस्तार से भारत की प्रततरक्षा और सुरक्षा सिस्याओं के समबन्ध िें होिा।

  • 1- राष्ट्रीय प्रततरक्षा के तत्व- (क). भैिोलिक तत्व, सीिान्त भू-भाि, (ि). आगर्थिक तत्व, स्त्रोत, भारतीय और वैज्ञातिक ववकास, पररवहि और संचार साधि, (ि). आंतररक राजिीततक म्स्र्थतत, (घ). आधतुिक राज्य की प्रततरक्षा तंत्र, 2-आधतुिक प्रततरक्षा और सुरक्षा- (क). प्रततरक्षा और सैतिक संगध (ि). तटस्र्थता और िुट तिरपेक्षता, (ि). तिरस्तीकरण और ववश्व शांतत संिठि 3-भारत की प्रततरक्षा और सुरक्षा- (क). ऐततहालसक पषृ्ट्ठभूलि और सिस्यायें (ि). स्वतंत्र भारत की प्रततरक्षा सिस्यायें, (1). अन्तरािष्ट्रीय शम्तत की राजिैततक के संिभि िें भारत की ववशेष िीतत और परोसी िेश से उसके समबन्ध (2). भारत के सािररक िहत्व के स्र्थि और सीिा क्षेत्र (3). भारत की आगर्थिक शम्तत (4). भारत की प्रततरक्षा सिंठि 50. व्यम्क्तत्ि पिीक्षण (मौखखक पिीक्षा)- परीक्षा बौद्गधक ूपगच के ववषयों के ववषयों िें ि होकर सिान्य ूपगच के और ववलशष्ट्ट ूपप से तिधािररत ववषयों िें होिी। प्रत्येक अभ्यर्थी को बुद्गध, व्यम्ततत्व, चररत्र, स्वास्थ्य और सेवा िें सािान्य उत्सुकता के लिए अकं दिये जायेिें। िौखिक परीक्षा िें अंक िेते सिय सेिा के ववयोम्जत अगधकाररयों के लिए आरक्षक्षत ररम्ततयों िें अभ्यर्थी की सैन्य सेवा के अलभिेि पर ववचार ककया जायेिा।