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  • सवीकृचत क्रमांक : मराशैसंप्प/अचवचव/चशप् २०१5-१६/१६७३ चदनांक ६/4/२०१६

    महाराटिट् राजय पाठ् यपुस्तक झनझम्ण्ती ् अ यासक्रम संशोधन मंड , पुररे

    मरेरा नाम है &

    झहंदी

    छठी कक्ाबालभार्ती

  • प्थमा्ृष्त्त : २०१६ ्तीसरा पुनमु्णद्रर : 2019

    महाराटिट् राजय पाठ् यपुस्तक झनझम्ण्ती ् अ यासक्रम संशोधन मंड , पुररे - 4११००4इस पुसतक का सवा्थचिकार महाराटिट्र राज्य पाठ् ्यपुसतक चनचम्थती व अभ्यासक्रम संशोिन मंड के

    अिीन सुरचक्षत है। इस पुसतक का कोई भी भाग महाराटिट्र राज्य पाठ् ्यपुसतक चनचम्थती व अभ्यासक्रम संशोिन मंड के संिालक की चलसखत अनुमचत के चबना प्काचशत नहीं चक्या जा सकता ।

    ©

    डॉ.हेमिंरि वैद् ्य-अध्यक्ष डॉ.छा्या पाटील-सदस्य प्ा.मैनोद् दीन मुल्ा-सदस्यडॉ.द्यानंद चतवारी-सदस्यश्ी संतोष िोत्रे-सदस्य डॉ.सुचनल कुलकणसी-सदस्य श्ीमती सीमा कांब े-सदस्य डॉ.अलका पोतदार-सदस्य-सचिव

    झहंदी भाषा सझमझ्त

    डॉ.वषा्थ पुनवटकर सौ. वृंदा कुलकणसी श्ीमती मीना एस. अग्वाल डॉ.आशा वी. चमश्ाश्ी सुिाकर गावंडे श्ीमती मा्या कोर् ीकर श्ी रामचहत ्यादव श्ी प्काश बोकील श्ीमती पूचण्थमा पांडे्यश्ी रामदास काटे श्ीमती भारती श्ीवासतव डॉ.शैला िवहाणश्ीमती शारदा चब्यानीश्ी एन. आर. जेवेश्ीमती गीता जोशीश्ीमती अि्थना भुसकुटेश्ीमती रतना िौिरी

    झहंदी भाषा अ यासगि

    प्काशक :ी झ््रेक उत्तम गोसा्ी

    चन्यंत्रक,पाठ् ्यपुसतक चनचम्थती मंड ,

    प्भादेवी, मुंबई-२5

    संयोजन : डॉ.अलका पोतदार, चवशेषाचिकारी चहंदी भाषा, पाठ् ्यपुसतक मंड , पुणे सौ. संध्या चवन्य उपासनी, चवष्य सहा्यक चहंदी भाषा, पाठ् ्यपुसतक मंड , पुणे

    मुखपृ : रेशमा बवदे झचत्रांकन : राजेश लव ेकर, श्ी रा. भा. राजपुत, महेश चकरडवकर

    झनझम्णझ्त : श्ी ससच्तानंद आि े, मुख्य चनचम्थचत अचिकारीश्ी सचिन मेहता, चनचम्थचत अचिकारीश्ी चनतीन वाणी, सहा्यक चनचम्थचत अचिकारी

    अक्रांकन : भाषा चवभाग,पाठ् ्यपुसतक मंड , पुणेकागज : ७० जीएसएम, क्रीमवोवमुद्ररादरेश :मुद्रक :

    N/PB/2019-20/35,000

    M/S. UCHITHA GRAPHICS PRINTERS PVT. LTD., NAVI MUMBAI

    मु य समन्यकश्ीमती प्ािी रचवंरि साठे

  • प्स्ता्ना

    (डॉ. सुझनल मगर)संचालक

    महाराटिट्र राज्य पाठ् ्यपुसतक चनचम्थती व अभ्यासक्रम संशोिन मंड पुणे-०4

    पुररे झदनांक ः- ९ मई २०१६, अक्य ्तृ्तीया भार्तीय सौर : १९ ्ैशाख १९३8

    बच्ों का ‘ झनःशुलक ए्ं अझन्ाय्ण झशक्ाझधकार अझधझनयम २००९ और राटिट्ीय पाठ् यक्रम प्ारूप-२००5’ को दृष्टिग्त रख्तरे हुए राजय की ‘प्ाथझमक झशक्ा पाठ् यचया्ण-२०१२’ ्तैयार की गई । इस पाठ् यचया्ण पर आधारर्त ‘झहंदी बालभार्ती’ छठी कक्ा की यह पुस्तक ‘मंड ’ प्काझश्त कर रहा है । इस पुस्तक को आपके हाथों में स प्तरे हुए हमें अ्ती् आनंद हो रहा है ।

    पाठ् यपुस्तक में कझ््ता, कहानी, झनबंध, सं्ाद, हासय-वयं य आझद झ्झ्ध झ्धाओं का समा्रेश कर्तरे समय झ्द् याझथ्णयों की आयु, अझभरुझच, पू्ा्णनुभ् ए्ं भा्झ्श् पर झ्शरेष धयान झदया गया है । भाषाई कौशल ए्ं झ्झभन्न क्रेत्रों के झ्कास हरे्तु प्ाय: घर, पररसर में घझि्त होनरे्ाली घिनाओं/प्संगों, स्चछ्ता, पया्ण्रर, जल संरक्र आझद अा्शयक्ताओं/ समसयाओं को आधार बनाया गया है । कौशल ए्ं झ्झभन्न क्रेत्रों के दृढ़ीकरर हरे्तु नाझ्नयपूर्ण खरेल, कृझ्त, स्ाधयाय, उपक्रम ्तथा झ्झ्ध प्कलप झदए गए हैं । इनके माधयम सरे झ्द् याझथ्णयों की रचनातमक्ता को झ्शरेष मह ् झदया गया है । पुस्तक को अझधक बालोपयोगी बनानरे के झलए इसरे झचत्रमय ए्ं झ्द् याथ केंझद्र्त रखा गया है । भाषाई दृष्टि सरे आ्शयक अनय झ्षयों को भी समाझ्टि झकया गया है ।

    झ्द् याथ की कलपनाशील्ता, सृजनशील्ता ए्ं झ्चार शष्ति का उझच्त ढंग सरे झ्कास होना चाझहए । झशक्क ए्ं अझभभा्कों के माग्णदश्णन के झलए ‘दो शबद’ ्तथा प्तयरेक पृ पर सूचनाऍं दी गई हैं । अधययन-अधयापन की प्झकया में यरे सूचनाएँ झनष्शच्त ही उपयोगी हांरेगी । प्ाथझमक झशक्ा के झ्झभन्न चररों में झ्द् याथ झनष्शच्त रूप सरे झकन क्म्ताओं को प्ाप् करें यह अधययन-अधयापन कर्तरे समय सपटि होना चाझहए । इसके झलए प्स्तु्त पाठ् यपुस्तक के प्ारंभ में झहंदी भाषा झ्षय की अपरेझक््त क्म्ताओं का पृ झदया गया है । इन क्म्ताओं का अनुसरर कर्तरे हुए पाठ् यपुस्तक में समाझ्टि पाठ् यांशों की नाझ्नयपूर्ण प्स्तुझ्त की गई है ।

    झहंदी भाषा सझमझ्त, भाषा अ यासगि और झचत्रकारों के झन ापूर्ण परर म सरे यह पुस्तक ्तैयार की गई है । पुस्तक को दोषरझह्त ए्ं स्तरीय बनानरे के झलए राजय के झ्झ्ध भागों सरे आमंझत्र्त प्ाथझमक झशक्कों, झ्शरेषज्ों

    ारा समीक्र कराया गया है । समीक्कों की सूचनाओं और अझभप्ायों को दृष्टि में रखकर झहंदी भाषा सझमझ्त नरे पुस्तक को अंझ्तम रूप झदया है ।

    ‘मंड ’ झहंदी भाषा सझमझ्त, अ यासगि, समीक्कों, झ्शरेषज्ों, झचत्रकारों, भाषाझ्शरेषज् डॉ. प्मोद शु के प्झ्त दय सरे आभारी है । आशा है झक झ्द् याथ , झशक्क, अझभभा्क सभी इस पुस्तक का स्ाग्त करेंगरे ।

  • सभी झ्द् याझथ्णयों (झभन्न रूप सरे सक्म झ्द् याझथ्णयों सझह्त) को वयझक्तग्त, सामूझहक रूप सरे काय्ण करनरे के अ्सर और प्ोतसाहन दरेना, ्ताझक उनहें

    अपनी भाषा में बातिीत तर्ा ििा्थ करने के अवसर हों ।

    प््योग की जाने वाली भाषा की बारीचक्यों पर ििा्थ करने के अवसर हों ।

    सचक्र्य और जागरूक बनान ेवाली रिनाए,ँ समािार पत्र, पचत्रकाए,ँ चिलम और ऑचड्यो-वीचड्यो सामग्ी को दखेन,े सुनने, पढ़ने, चलखने और ििा्थ करन ेके अवसर उपलबि हों ।

    समूह में का्य्थ करने और एक-दूसरे के का्यथों पर ििा्थ करने, रा्य लेने-देने, प्शन करने की सवतंत्रता हो ।

    चहंदी के सार्-सार् अन्य भाषाओं की सामग्ी पढ़ने-चलखने की सुचविा (ब्ेल/ सांकेचतक रूप में भी) और उन पर बातिीत की आजादी हो ।

    अपने पररवेश, सम्य और समाज से संबंचि त रिनाओं को पढ़ने और उन पर ििा्थ करने के अवसर हों ।

    अपनी भाषा गढ़ते हुए लेखन संबंिी गचतचवचि्याँ आ्योचजत हों, जैसे शबद खेल ।

    चहंदी भाषा में संदभ्थ के अनुसार भाषा चवशलेषण (व्याकरण, वाक्य संरिना, चवराम चिह् न आचद) करने के अवसर हों ।

    कलपनाशीलता और सजृनशीलता को चवकचसत करन ेवाली गचतचवचि्यों, जसै े अचभन्य (भचूमका अचभन्य), कचवता, पाठ, सृजनातमक लखेन, चवचभन्न ससर्चत्यों में सवंाद आचद क े आ्योजन हाें और उनकी त्ैयारी स े सबंचंि त चसक्रपट लखेन और वतृतातं लखेन क ेअवसर हां े।

    साचहत्य और साचहसत्यक तततवों की समझ बढ़ाने के अवसर हों ।

    शबदकोश का प््योग करने के चलए प्ोतसाहन एवं सुलभ पररवेश हो ।

    संासकृचतक महततव के अवसरों पर अवसरानुकूल लोकगीतों का संग्ह करने, उनकी गीतम्य प्सतुचत देने के अवसर हों ।

    झ्द् याथ 06.02.01 चवचभन्न प्कार की धवचन्यों, सामाचजक ससंर्ाओं, पररसर एवं

    सामाचजक घटकों क ेसबंंि में जानकारी तर्ा अनभुव को प्ाप्त करने हते ुवािन करत ेहैं तर्ा साकेंचतक चिह ्नों का अपन ेढगं स ेप््योग कर उसे दैचनक जीवन से जोडकर प्सततु करत ेहैं ।

    06.02.02 ग ्य, प ्य तर्ा अन्य पचठत/अपचठत सामग्ी के आश्य का आकलन करत ेहुए तर्ा गचतचवचि्यों/घटनाओं पर बचेझझक बात करत ेहुए प्शन चनचम्थचत करके उनके सटीक उततर अपने शबदों में चलखत ेहैं ।

    06.02.03 चकसी देखी, सुनी रिनाओं, घटनाओं, प्संगों, मुख्य समािार एवं प्ासंचगक कर्ाओं के प्त्येक प्संग को उचित क्रम देते हुए अपने शबदों में प्सतुत करते हैं तर्ा उनसे संबंचित संवादों में रुचि लेते हैं, वािन करते हैं ।

    06.02.04 सिंार माध्यमों क े का्य्थक्रमों और चवज्ापनों को रुचिपवू्थक दखेत,े सनुत ेतर्ा अपन ेशबदों मं ेकहत ेहैं ।

    06.02.05 प्ासंचगक कर्ाएँ/चवचभन्न अवसरों, संदभथों, भाषण, बालसभा की ििा्थ, समारोह का वण्थन, जानकारी आचद को ध्यानपूव्थक एकाग्ता से समझते हुए सुनते हैं, सुनाते हैं तर्ा अपने ढंग से बताते हैं ।

    06.02.06 चहदंीतर चवचवि चवष्यों क ेउपक्रमों एव ंप्कलपों पर सहपाचठ्यों स ेििा्थ करत ेहुए चवसततृ जानकारी दते ेहैं ।

    06.02.07 राटिट्री्य त्योहार, राटिट्री्य महापरुुष आचद चवष्यों पर चलख ेगए भाषणों, वण्थनातमक चनबिंों एव ंहास्य कर्ाओं का रुचिपवू्थक आकलनसचहत वािन करत ेहैं तर्ा चवष्यवसत ुका अनमुान लगात ेहुए मु दों का लखेन करत ेहैं ।

    06.02.08 अपनी रुचि क े अनसुार चव ्याल्यीन एव ं घरले ू का्य्थक्रम, त्योहार, प्सगं, घटना आचद का क्रमब ि लखेन करत ेहैं तर्ा उसमें चनचहत चवष्यवसत ुकी बारीकी स ेजािँ करत ेहुए चवशषे चबदं ुको खोजत ेहुए अनमुान लगाकर चनषकष्थ चनकालत ेहैं ।

    06.02.09 अंतरजाल पर प्काचशत होने वाली सामग्ी, जानकारीपरक सामग्ी, प्शनपचत्रका आचद को समझकर पढ़ते हैं उनका संकलन करके उनके आिार पर चवष्यानुरूप अपनी पसंद, नापंसद, मत, चटपपणी देते हुए प्सतुत करते हैं ।

    06.02.10 भाषा की बारीचक्यों/व्यवसर्ा/ढंग पर ध्यान देते हुए सार््थक वाक्य बनाते हैं तर्ा उचित ल्य-ताल, आरोह-अवरोह, हावभाव के सार् वािन करते हैं ।

    06.02.11 अपनी ििा्थ में सवर, व्यजंन, चवशषे वण्थ, पिंमाक्षर, स्ंयकु्ताक्षर स े्यकु्त शबदों एव ंवाक्यों का मानक उच्ारण करत ेहुए ग ्य एव ंप ्य पररचछेदों में आए हुए शबदों को उप्यकु्त उतार-िढ़ाव और सही गचत क ेसार् पढ़त ेहुए अपने शबद भडंार में वदृ ्चि करत ेहैं ।

    06.02.12 चहंदी भाषा में चवचवि प्कार की रिनाओं, देशभसक्तपरक गीत, दोहे, िुटकुले आचद रुचि लेते हुए ध्यानपूव्थक सुनते हैं, आनंदपूव्थक दोहराते तर्ा पढ़ाते हैं ।

    अधययन झनषपष्त्तसीखनरे-झसखानरे की प्झक्रया

    झहंदी बालभार्ती अधययन झनषपष्त्त ः छठी कक्ा

  • 06.02.13 दैचनक लेखन, भाषण-संभाषण में उप्योग करने हेतु अब तक पढ़े हुए न्ये शबदों के प्चत चजज्ासा व्यक्त करते हुए उनके अर््थ समझने के चलए शबदकोश का प््योग करते हैं तर्ा न्ये शबदों का लघुशबदकोश चलसखत रूप में तै्यार करते हैं ।

    06.02.14 सुनी, पढ़ी सामग्ी तर्ा दूसरों के वारा अचभव्यक्त अनुभव से संबंचित उचित मु दों को अिोरेखांचकत करके उनका संकलन करते हुए ििा्थ करते हैं ।

    06.02.15 चवचवि चवष्यों के ग ्य-प ्य, कहानी, चनबंि, घरेलू पत्रों से संबंचित संवादों का रुचिपूव्थक वािन करते हैं तर्ा उनका आकलन करते हुए एकाग्ता से उप्युक्त चवरामचिह् नों का उप्योग करते हुए सुपाठ् ्य, सुडौल अनुलेखन, सुलेखन, शु ि लेखन करते हैं ।

    06.02.16 अलग-अलग कलाओं, जीवनोप्योगी वसतुओं की प्दश्थनी एवं ्यात्रा वण्थन समझते हुए वािन करते हैं तर्ा उनको अपने ढंग से चलखते हैं ।

    06.02.17 कहानी, चनबंि, घरेलू पत्र, मुहावरे, कहावतें एवं चवचवि चवष्यों से संबंचित संवादों का रुचिपूव्थक वािन करते हुए चवचभन्न संदभथों में चवचभन्न उ देश्यों के चलए चलखते सम्य शबदों, वाक्य संरिनाओं, मुहावरों आचद का उचित प््योग करते हैं ।

    दो शबद्यह पाठ् ्यपुसतक चवद् ्याचर््थ्यों के पूव्थ ज्ान को दृसटि में रखते हुए भाषा के नवीन एवं व्यावहाररक प््योगों तर्ा चवचवि मनोरंजक चवष्यों

    के सार् आपके स्मुख प्सतुत है । पाठ् ्यपुसतक को सतरी्य (ग्ेडेड) बनाने हेतु दो भागों में चवभाचजत करते हुए उसका ‘सरल से कचठन की ओर’ क्रम रखा ग्या है । ्यहाँ चवद् ्याचर््थ्यों के पूव्थ अनुभव, घर-पररवार, पररसर को आिार बनाकर श्वण, भाषण-संभाषण, वािन, लेखन के भाषाई मूल कौशलों के सार् भाषा अध्य्यन और अध्य्यन कौशल पर चवशेष बल चद्या ग्या है । इसमें सव्यं अध्य्यन एवं ििा्थ को प्ेररत करने वाली रंजक, आकष्थक, सहज और सरल भाषा का प््योग चक्या ग्या है ।

    पाठ् ्यपुसतक में क्रचमक एवं श्ेणीबद् ि कौशलाचिसष्ठत अध्य्यन सामग्ी, अध्यापन संकेत, सवाध्या्य और उपक्रम भी चदए गए हैं । चवद् ्याचर््थ्यों के चलए ल्यातमक कचवता, बालगीत, कहानी, संवाद आचद चवष्यों का समावेश है । सव्यं की अचभव्यसक्त, कलपनाशीलता के सार्-सार् वैचवध्यपूण्थ सवाध्या्य के रूप में ‘जरा सोिो......, ‘खोजबीन’, ‘मैंने समझा’, ‘अध्य्यन कौशल’ आचद का्या्थतमक कृचत्यॉं भी दी गई हैं । सृजनशील गचतचवचि्यों को बढ़ावा देने वाले अभ्यास ‘मेरी कलम से’, ‘वािन जगत से’, ‘बताओ तो सही’, ‘सुनो तो जरा’, ‘सव्यं अध्य्यन’ तर्ा ‘चविार मंर्न’ आचद का समावेश चक्या ग्या है । इन कृचत्यों में एक दृसटिकोण रखने का प््यास चक्या है चजसे समझकर चवद् ्याचर््थ्यों तक पहँुिाना और उनसे कृचत्याँ करवाना है ।

    झशक्कों ए्ं अझभभा्कों सरे यह अपरेक्ा है झक अधययन-अनुभ् दरेनरे सरे पहलरे पाठ् यपुस्तक में झदए गए अधयापन संके्त ए्ं झदशा झनदशों को अचछी ्तरह समि लें । सभी कृचत्यों का चवद् ्याचर््थ्यों से अभ्यास करवाऍं । सवाध्या्य में चदए गए ‘सुनो’, ‘पढ़ो’ की पाठ् ्यसामग्ी उपलबि कराएँ । आवश्यकतानुसार माग्थदश्थन करें । चशक्षक एवं अचभभावक पाठ् ्यपुसतक में चदए गए शबदार््थ का उप्योग करें । ल्यातमक, धवन्यातमक शबदों का अपेचक्षत उच्ारण एवं दृढ़ीकरण कराना आवश्यक है । इस पाठ् ्यपुसतक में लोक प्िचलत तद् भव शबदों का भी प््योग चक्या ग्या है । चवद् ्यार्सी इनसे सहज रूप में पररचित और अभ्यसत होते हैं । व्याकरण (भाषा अध्य्यन) को समझने हेतु ‘भाषा की ओर’ के अंतग्थत चित्रों तर्ा भाषाई खेलों को चद्या ग्या है ताचक पुनरावत्थन और न्ये व्याकरण का ज्ान हो ।

    आवश्यकतानुसार पाठ् ्येतर कृचत्यों, खेलों, संदभथों, प्संगों का समावेश करें । चशक्षक एवं अचभभावक पाठ् ्यपुसतक के माध्यम से जीवन मूल्यों, जीवन कौशलों, मूलभूत तत्वों के चवकास का अवसर चवद् ्याचर््थ्यों को प्दान करें । पाठ् ्यसामग्ी का मूल्यांकन चनरंतर होने वाली प्चक्र्या है । इससे चवद् ्यार्सी परीक्षा के तनाव से मुक्त रहेंगे । पाठ् ्यपुसतक में अंतचन्थचहत सभी क्षमताओं-श्वण, भाषण-संभाषण, वािन, लेखन, भाषा अध्य्यन (व्याकरण) और अध्य्यन कौशल का सतत मूल्यांकन अपेचक्षत है ।

    चवशवास है चक आप सब अध्य्यन-अध्यापन में पाठ् ्यपुसतक का उप्योग कुशलतापूव्थक करेंगे और चहंदी चवष्य के प्चत चवद् ्याचर््थ्यों में अचभरुचि और आतमी्यता की भावना जागृत करते हुए उनके सवाांगीण चवकास में सह्योग देंगे ।

  • क्र. पाठ का नाम पृ क्र. क्र. पाठ का नाम पृ क्र.

    * ्षा्ण ्तु १

    १. स्ाद की पाठशाला २,३

    २. पुकार 4-६

    ३. अॉंखें मूँदो नानी ७-१०

    4. नई री्त ११-१5

    5. राजसथानी १६

    ६. चाचा छक्कन नरे झचत्र िॉंगा १७-२१

    ७. आए कहाँ सरे अक्र? २२,२३

    8. इनसरे सीखो २4-२६

    ९. अष्स्तत् अपना-अपना २७-३०

    १०. आसन ३१

    ११. सा््णजझनक सपंष्त्त की सरुक्ा ३२-३5

    १२. पढ़क्क की सूि ३६-३8

    १३. घड़ी नरे खोला राज ३९-4३

    १4. झबना झिकि 44-4७

    १5. नीला अंबर 48-50

    * पुनरा््त्णन - १ 5१

    * पुनरा््त्णन - २ 5२

    १. झ्ज्ान प्दश्णनी 54-55

    २. कािो खरे्तॉं कािो ररे 5६-5७

    ३. ्तीन लघुकथाऍं 58-६१

    4. ऊजा्ण आए कहाँ सरे? ६२-६६

    5. मरेरा भा य दरेश के साथ ६७-६९

    ६. हमाररे परम्ीर ७०-७२

    ७. बूिो ्तो जानो ७३

    8. अाह् ् ान ७4-७६

    ९. िैसला ७७-8१

    १०. झदनदझश्णका 8२

    ११. सुनहररे झहमालय के दश्णन 8३-8७

    १२. दोहरे 88-९०

    १३. नई राह की ओर ९१-९4

    १4. साररे जहाँ सरे अचछा ९5-९8

    १5. िॉंसी की रानी ९९-१०१

    * एक्ता का गूंॅजरे इक्तारा १०२

    * पुनरा््त्णन - ३ १०३

    * पुनरा््त्णन - 4 १०4

    पहली इकाई दूसरी इकाई

    * अनुक्रमझरका *

  • 1

    q अधयापन संके्त : चवद् ्याचर््थ्यों से उनके अनुभव के आिार पर वषा्थॠतु का वण्थन करवाएँ । चित्र का चनरीक्षण कराऍं । चदए गएवाक्यों पर ििा्थ करके पॉंि वाक्य चलखवाऍं । वषा्थ ॠतु से संबंचित उनके पूव्थज्ान का उप्योग अध्य्यन-अध्यापन के चलए करें ।

    * ्षा्ण ्तु *

    छह ्तुएँ हैं नयारी-नयारी, अ्नी ्तो है सबकी यारी ।

    ्षा्ण है ्तुओं की रानी, िूला-कजरी हो मनमानी ।

    उमड़-घुमड़ हैं बादल छाए, दादुर-मोर-कृषक हरषाए ।

    दरेखो, पहचानो और चचा्ण करो :

  • 2

    q चवद् ्याचर््थ्यों से चित्रों का चनरीक्षण कराएँ । भारत के चवचभन्न राज्यों के नाम और उनके चवशेष खाद् ्य पदार्थों के बारे में ििा्थ करें ।व्यंजनों के संबंि में चवद् ्याचर््थ्यों की पसंद/नापसंद की जानकारी लें । चवचभन्न खाद् ्य पदार्थों के सवाद के बारे में प्शन पूछें ।

    १. स्ाद की पाठशाला

    सरसों का साग, मक्के की रोिी,छोलरे-भिूररे चखो ्तंदूरी मोिी ।

    उंझधयो-खाखरा, खमर-ढोकला,दाल-ढोकली संग खाओ रोिला ।

    ‘पुरर पो ी’, ‘झपठलरे भाकर’,आओ बच्ो, दरेखो खाकर ।

    दरेखो, ब्ताओ और कृझ्त करो :

  • 3

    q चित्र में ंआए वाक्यों का वािन कराए ँ। मीठ,े नमकीन और तीख ेखाद ््य पदार्थों की अलग-अलग सिूी बनवाएँ । उनको सव्ंय की पसदंक ेचकसी एक खाद ््य पदार््थ को बनान ेकी चवचि की जानकारी प्ाप्त करन ेक ेचलए कहें तर्ा चवचिवत चलखन ेक ेचलए पे्ररत करें ।

    पहली इकाई

    इडली-साँभर, मसाला डोसा,उत्तम स्ाद का पूर्ण भरोसा ।

    मालपुआ, खाजा, पूड़ी, कचौड़ी, प्रेम सरे खाओ गुझिया झिर रबड़ी ।

    रसगुल्रे, संदरेश का थाल दरेख के याद आया बंगाल ।

  • 44

    q कक्षा में चवद् ्याचर््थ्यों को हाव-भाव सचहत कचवता गाकर सुनाऍं और दोहरवाएँ । कचवता की एकल, समूह में ससवर प्सतुचतकराऍं । कचवता में आए भावों पर प्शनोततर के माध्यम से ििा्थ करें तर्ा नए शबदों के अर््थ बताऍं ।

    2. nwH$ma

    उगते सूरज का प्ाकृचतक दृश्य दशा्थने वाला चित्र बनाकर रंग भरो और वण्थन करो।

    -ज्यशंकर प्सादजनम : ३० जनवरी १88९ मृतयु : १5 नवंबर १९३७ रचनाऍं : ‘कामा्यनी’ ‘सकंदगुप्त’ ‘चततली और कंकाल’ आचद आपकी प्चसद् ि रिनाऍं हैं । झरना, आँसू, लहर आचद आपकी काव्य कृचत्यॉं हैं । पररचय : चहंदी के प्चसद् ि लेखक । आपने कचवता, नाटक और कहानी आचद चविाओं में सिलतापूव्थक लेखन चक्या है । इस कचवता में सृसटि के चनमा्थता की महानता एवं गुणों का वण्थन चक्या है ।

    पढ़ो और गाओ :

    स्यं अधययन

    प्सार तेरी द्या का चकतना्ये देखना हो तो देखें सागर ।तेरी प्शंसा का गीत प्यारेतरंग मालाएँ गा रही हैं

    चवमल इंदु की चवशाल चकरणेंेप्काश तेरा बता रही हैं ।अनाचद तेरी अनंत मा्याजगत को लीला चदखा रही है

  • 5

    जो तेरी होवे द्या, द्याचनचितो पूण्थ होता ही है मनोरर् ।सभी ्ये कहते पुकार करके्यही तो आशा चदला रही है

    नए शबदअनाचद = चजसका आचद न हाे, सदा सेअनंत = चजसका कोई अंत न हो चनरखना = देखना िंचरिका = िॉंदनीचननाद = आवाजद्याचनचि = द्या के सागरमनोरर् = मन की इचछा

    शबद ्ाझिका

    q बताने, चदखान,े गान,े चलखन ेआचद कृचत्यों का मकू अचभन्य कराऍ ं। अचभन्य की इन चक्र्याओं का चवद ््याचर््थ्यों को उनक ेअपने वाक्योंमें प््योग करन ेहते ुप्रेरत करें । चवद ््याचर््थ्यों को इन कृचत्यों क ेआिार पर छोट-ेछोट ेवाक्यों की रिना करक ेबतान ेके चलए कहें ।

    तु्हारा ससमत हो चजसे चनरखनावो देख सकता है िंचरिका को ।तु्हारे हँसने की िुन में नचद्याँचननाद करती ही जा रही हैं

    जरा सोचो ्तो .... चचा्ण करो

    ्यचद शांत, हास्य ‘रस’ नहीं होते तो......

    सदै् धयान में रखोजीवन में सदैव आशावादी तर्ा कृचतशील रहना िाचहए ।

    ।। वसुिैव कुटुंबकम् ।।झ्चार मंथन

    मैंनरे समिा----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

    5

  • 6

    सुनो ्तो जरा

    ्ाचन जग्त सरे

    * ररति सथानों की पूझ्त्ण करो :

    ब्ताओ ्तो सही

    खोजबीन

    मरेरी कलम सरे

    कोई नई प्ार््थना सुनो और दोहराओ ।

    कचव चदनकर जी की कोई कचवता पढ़ो और सुनाओ। चकसी अन्य कचवता की िार पंसक्त्यों का सरल अर््थ चलखो ।

    १. चवमल इंदु की .......... चकरणें २. तेरी ..........का गीत प्यारे ३. वो देख सकता है .......... को । 4. तो पूण्थ होता ही है .......... ।

    ‘शाले्य सवचछता अचभ्यान’ में तु्हारा सह्योग क्या है ?

    सागर में चमलने वाले जीव-जंतु तर्ा वनसपचत्यों के नामों की सूिी बनाओ ।

    भाषा की ओरचबंदुओं में क्रमश: पूरी वण्थमाला चलखकर जोडो और क्रम से बोलो ।

  • 7

    q उचित आरोह-अवरोह क ेसार् कहानी क ेएक-एक पररचछदे का वािन करें । कुछ चवद ््याचर््थ्यों द ्वारा उसी पररचछदे का मखुर वािनकराऍ ं। कक्षा क ेचवद ््याचर््थ्यों द ्वारा पूरी कहानी का मौन वािन कराक ेकहानी क ेआश्य पर ििा्थ करवाऍ ं।

    ३. आँखंरे मूँदो नानी-डाॅ. चदचवक रमेश

    जनम : ६ िरवरी १९4६, चकराडी, चदल्ी पररचय : आपने बच्ों के भावचवशव से संबंचित अनेक पुसतकें चलखी हैं । रचनाऍं : बालनाट् ्य, कचवता संग्ह, काव्यनाटक, बालसाचहत्य, एवं अनूचदत रिनाऍं ।

    प्सततु कहानी में बता्या ग्या है चक छोटे-छोट ेबच् ेभी प्चतभावान होत ेहैं । कलपना क ेपखं लगाकर व ेभी ऊिँी उडान भर सकत ेहैं ।

    सुनो, समिो और ब्ताओ :

    चकसी प्चसद् ि कारटूचनसट की जानकारी प्ाप्त करो ।

    खोजबीन

    डोलू ने हँसकर कहा, ‘‘नानी, आप िाहें तो मैं पहाड ला सकती हँ ।’’

    उसकी बात सुनकर नानी िौंकी । सोिने लगी, ‘अरे ! ्यह लडकी है चक तूिान, पता नहीं इसके चदमाग में क्या िल रहा है ।’ चिर बोलीं, ‘‘लेचकन कैसे? क्या तु्हारी कोई परी दोसत है, जो मदद करेगी?’’

    ‘‘हॉं नानी ! है न मेरी परी दोसत । एक नहीं, कई ।’’ ‘‘अचछा!’’ नानी ने आशि्य्थ से आँखें िैलाईं

    ‘‘पर तुझपर चवशवास कौन करेगा? कंप्यूटर के इस जमाने मंे चकस तरह की बातंे कर रही हो?’’

    ‘‘ नानी, आप तो मेरी बात मानती ही नहीं । मुझे परर्यॉं अचछी लगती हैं । वे मेरी दोसत हैं ।’’

    ‘‘अचछा, क्या तु्हारी परी पहाड उठा सकती है?’’ नानी ने बात टालने की नी्यत से पूछा ।

    ‘‘हॉं, हॉं ।’’

    ‘‘पर परी तो कोमल होती है ।’’‘‘हो सकती है, पर उसमें ताकत बहुत है । वह

    बहुत कुछ कर सकती है । एक बार मैंने परी दोसत से कहा चक िरती पर खडी-खडी तारा छुओ । परी ने मुझे गोद में उठा्या और लंबी, और-और लंबी, और-और-और-और लंबी होती िली गई और पहँुि गए हम तारे के पास । मैंने तो खूब-खूब छुआ तारे को । उनके सार् खेली भी ।’’

    नानी को लगा चक कहीं डोलू की बात सि तो नहीं है । पूछा, ‘‘और क्या-क्या र्ा तारे पर ?’’

    डोलू को इस बार नानी की बात अचछी लगी । उसने उतसाह से जवाब चद्या, ‘‘तारे पर बडे ही लंबे-लंबे बच्े र्े, बॉंस जैसे ! नीिे खडे-खडे ही पहली मंचजल की छत से सामान उतार सकते र्े । इससे भी मजेदार बात ्यह है चक उनके माता-चपता कद में बौने र्े ।’’

  • 88q कहानी में आए महुावरों क ेअर््थ पछूकर वाक्य में प््योग करन ेक ेचलए कहें । (िौंक पडना, चसर सहलाना आचद की कृचत्यॉ ंकराऍ ं।)

    सह्््याचरि से चनकलने वाली नचद्यों की सूिी बनाओ ।

    स्यं अधययन

    ‘‘ऍं!’’ नानी इस बार सिमुि िौंक गई र्ीं । ‘‘हॉं, मुझे भी अिरज हुआ र्ा नानी । परी दोसत

    ने बता्या चक तारे की िरती और हमारी िरती में अंतर है । तारे की िरती पर आ्यु बढ़ने के सार् कद छोटा होता है, िरती पर बडा ।’’

    ‘‘और क्या वह बोलती भी र्ी? तूने बात की?’’ नानी ने पूछा ।

    ‘‘हॉं-हॉं नानी, खूब बातें की, पर मैं आपको बताऊॅंगी नहीं । अरे, मैंने तो परी को नदी उठाकर, आसमान में उडते भी देखा है । ’’ डोलू ने बता्या ।

    ‘‘नदी को उठाकर ! और पानी ?’’ ‘‘ अरी नानी, पानी समेत । चबलकुल लहराते लंबे

    कपडे-सी लग रही र्ी । चकतना मजा आ्या र्ा ।’’नानी को डोलू की बात पर चवशवास तो नहीं हो रहा

    र्ा पर मजा बहुत आ रहा र्ा । नानी बोली ‘‘अचछा डोलू ! तू तो हर रोज ही परी से चमलती है, परी कभी र्कती भी है चक नहीं ?’’

    ‘‘ र्कती है न नानी । जब कोई उसपर चवशवास नहीं करता, जब कोई उससे उबाऊ बातें करता है, तो बहुत र्क जाती है ।’’

    ‘‘सुनो नानी,’’ एक बार मुसकराते हुए परी ने कहा-‘‘िलो आज तु्हें पूरा जंगल चनगलकर चदखाती हँ ।’’ सुनकर मुझे कुछ-कुछ अचवशवास हुआ । जाने क्यों देखते-ही-देखते परी का मुँह उतरने लगा । उदासी

    छाने लगी । मैंने झट से अपनी गलती समझी । परी पर चवशवास चक्या । परी के मुँह पर खुशी लौट आई । वह मुझे जंगल के पास ले गई । परी ने देखते-ही-देखते पूरा जंगल चनगल चल्या । मैं तो अिरज से भरी र्ी । मैंने पूछा, ‘‘तु्हारे पेट में जंगल क्या कर रहा है?’’ परी बोली- ‘‘लो, तुम ही देख लो और सुन भी लो ।’’ परी ने आँख जैसा कोई ्यंत्र मेरी आँखों पर लगा चद्या । ्यह क्या ! मैं तो उछल ही पडी र्ी । परी के पेट में पूरा का

    पूरा जंगल चदख रहा र्ा । पेड चहल रहे र्े । जानवर घूम रहे र्े । पक्षी बोल रहे र्े । नदी बह रही र्ी । मैंने पूछा-‘‘परी, ्यह जंगल अब क्या तु्हारे पेट में ही रहेगा ?’’

    परी बोली-‘‘नहीं-नहीं, मैंने तो बस तु्हें िचकत करने के चलए जंगल चनगला र्ा । जंगल तो मेरा दोसत है, बसलक सभी का दोसत है । क्या-क्या नहीं देता जंगल आदमी को । अगर जंगल खतम हो जाए तो सभी का जीना ही दूभर हो जाए ।’’ ‘‘नानी, परी तो अपनी आँखों में पूरा समुरि भी भर सकती है, मछचल्यों और जीव-जंतुओं समेत । चबलकुल मतस्य जैसी लगती हैं तब परी की आँखें । एक बार तो सारे बादल ही पकडकर अपने बालों में भर चलए र्े । पर र्ोडी ही देर में परी ने उनहें छोड भी चद्या । अगर उनहें पकडे रखती तो बाररश कैसे होती ? बाररश न होती तो पूरी िरती को चकतना दुख पहॅुंिता ? परी कहती है चक हमेशा हमें पूरी िरती के चहत के चलए प््यतन करना िाचहए । नानी कहीं आप झूठ तो नहीं समझ रहीं?’’

  • 9

    नए शबदनी्यत = भाव, उद् देश्य बौना = छोटे कद का, नाटा कारनामा = कोई बडा का्य्थगजब = चवलक्षण, कमाल

    मैंनरे समिा

    शबद ्ाझिकाचकसी अन्य कहानी लेखन के मुद् दे तै्यार करो ।

    अधययन कौशल

    ।। साइचकल िलाओ, प्या्थवरण बिाओ ।।

    झ्चार मंथन

    नानी जरा सँभली । आँखें मसलीं । चसर को भी सहला्या । बोलीं, ‘‘नहीं-नहीं, डोलू । जब ऐसे चवससमत करने वाले कारनामे अपनी ऑंखों से देखूँगी तो चकतना मजा आएगा । सि, मैं तो अचवशवास की बात मन में लाऊँगी तक नहीं ।’’

    ‘‘हॉं-हॉं, मैं परी से आपको चमला दूँगी !’’ डोलू की आवाज में गजब का चवशवास र्ा । ‘‘पर पहले ्यह तो बताओ चक मैं पहाड लाकर चदखाऊँ?’’

    ‘‘अचछा, चदखा । सँभालकर, िोट न लगे तुझे,’’ नानी ने बच्ों की तरह कहा ।

    ‘‘तो चिर आँखें मँूदो । मैं अभी आई पहाड लकेर ।’’

    नानी ने आँखें मँूद लीं । बच्ी जो बन गई र्ीं। डोलू र्ोडी ही देर में पहाड लेकर आ गई, बोली, ‘‘नानी ऑंखें खोलो और देखो ्यह पहाड ।’’ नानी ने आँखें खोल दीं । पूछा, ‘‘कहॉं?’’

    ‘‘्यहॉं । ्यह क्या है ?’’‘‘पहाड !’’अब क्या र्ा, दोनों खूब हँसीं, खूब हँसीं । नानी ने

    डोलू को खींिकर उसका मार्ा िूम चल्या । प्यार से बोलीं, ‘‘तुम सिमुि बहुत नटखट हो डोलू !’’

    ----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

    ्यचद आपको परर्यों जैसे पंख आ जाएँ तो .....जरा सोचो ्तो ... ब्ताओ

    नानी ने अब डोलू से मुसकराते हुए पूछा, ‘‘भई डोलू, अपनी परी दोसत से भला कब चमलवाओगी ?’’

    ‘‘कहो तो अभी ।’’ ‘‘ठीक है । चमलाओ ।’’‘‘तो करो आँखेें बंद । ’’नानी ने आँखें मँूद लीं । र्ोडी ही देर में डोलू ने

    कहा, ‘‘नानी आँखें खोलो । ’’ नानी ने आँखें खोल दीं । पूछा, ‘‘कहॉं है परी?’’

    ‘‘्यह कौन है ?’’ ‘‘परी ।’’ नानी ने कहा ।क्योंचक डोलू परी जैसे पंख लगाकर सामने खडी

    र्ी । दोनों चिर खूब हसँीं, खबू हसँीं । उसन ेअपनी ही

    फ्ॉक पर कागज लगा रखा र्ा चजसपर चलखा र्ा-‘परी’ ।

  • 10

    अपनी मनपसंद कारटून कर्ा सुनकर हाव-भाव सचहत सुनाओ ।

    िवु्रतारा स ेसबंचंित बालक ध्वु की कहानी पढ़ो एव ंसनुाओ ।

    १. डोलू की कौन-सी बात सुनकर नानी िौंकी ? २. डोलू ने परी दोसत से एक बार क्या कहा?३. तारे पर कैसे बच्े र्े? 4. परी कब र्क जाती है?5. डोलू अिरज से क्यों भर गई? ६. नानी को चकस बात में मजा आएगा?

    सजीव सृसटि की रक्षा करना आवश्यक है ।

    ‘बॉंस’ चकस-चकस जगह उप्योग में ला्या जाता है, चलखो ।

    अपनी दादी/नानी के सार् घटी कोई मजेदार घटना बताओ ।

    सुनो ्तो जरा

    ्ाचन जग्त सरे

    सदै् धयान में रखो

    ब्ताओ ्तो सही

    मरेरी कलम सरे

    * एक ्ाकय में उत्तर झलखो ।

    ‘खाे-खो’ इस खेल के चित्र में दी गई मात्राओं के आिार पर बारहखडी का उप्योग कर नीिे चदए गए ररक्त सर्ानों में अपने चमत्रों के नाम चलखो :

    भाषा की ओर

    १) सातवें क्रमांक पर कौन बैठा है?२) सातवें क्रमांक की बाईं ओर ........ है ।३) सातवें क्रमांक के सामने ........ भाग रहा ह ै।4) प्र्म क्रमांक पर ........ है ।5) तीसर ेक्रमांक क ेदाईं ओर क ेपॉिंवें क्रमाकं पर ........ ह ै।६) दसवें क्रमांक पर ........ खडा है ।

    ७) िौर्े क्रमांक के दाईं ओर ........ है ।8) पॉंिवें क्रमांक के बाईं ओर ........ है ।९) दूसरे क्रमांक के दाईं ओर ........ है ।१०) छठ ेक्रमांक क ेबाईं ओर क ेिौर् ेक्रमांक पर ........ ह ै।११) सातवें क्रमांक क ेदाईं ओर क ेदसूर ेक्रमाकं पर ........ है ।१२) ग्यारहवें क्रमाकं क ेपीछ े........ भाग रहा है ।

    ा ै ूु ारे ाैांरे

    :

    .झ

    .झ

    १ २ ३ 4 5 ६ ७ 8 ९

    १०१११२

  • 11

    पात्र : (१) देवांश (२) पापा (देवेंरि) : देवांश के पापा(३) म्मी (देव्यानी) : देवांश की माँ (4) चमताली : देवांश की बहन(5) नीलेश, अनमोल, मानस, सनी सरदार और िार-छह लडके, सभी देवांश के दोसत(६) चबमला : घर में काम करनेवाली

    [मंि पर प्काश िैलता है । एक कमरे का दृश्य। गुबबारों और सजावट के सामान से सजा हुआ। खाली मेज लगीहुई है । दूसरी ओर संगीत के वाद् ्य्यंत्र पडे हुए हैं । देवांश का जनमचदन है । देवांश के पापा और म्मी का कमरे मंे प्वेश । दोनों एक चनगाह कमरे की सजावट पर डालते हैं । चमताली ने देवांश की आँखों को अपने हार्ों से ढँका हुआ है। ]झम्ताली : (मंि पर प्वेश करते हुए) ्यह रहा तु्हारा कमरा ! दर्े ाशं : हार् तो हटाओ । (चमताली देवांश की आँखों से हार् हटा लेती है । देवांश कमरे की सजावट

    देखकर अपनी खुशी कूद-कूदकर प्कट करता है ।) पापा : आज तुम बारह साल के हो रहे हो... आज खूब मजे करो !मममी : तु्हारे सब दोसत कहॉं रह गए? झम्ताली : (कमरे क ेदरवाज ेकी ओर दखेत ेहुए) हा्य ! नीलशे, आओ । दर्े ाशं : बडी देर कर दी, बाकी सब कहॉ ंहैं? (तभी एक के बाद एक दोसतों का प्वशे । सभी के हार् में

    कोई-न-कोई उपहार ह ै। दवेाशं उन सबका पररि्य अपन ेम्मी, पापा और चमताली स ेकरवाता है ।) नीलरेश : ्यह अनमोल, ्यह रहा सनी सरदार ! (तीनों र्ोडा-सा झमूत ेहुए गात ेहैं और एक-दूसर ेके गल ेचमलते

    4 नई री्त

    q ‘‘िलो, मत रुको । िलो मत, रुको’’ इसी प्कार क ेअन्य वाक्य श्यामपट ्ट पर चलखें । उनमें चवराम चिह ्नां ेका उप्योग करें । नए चवरामचिह ्नों (बडा कोष्ठक ‘[]’, छोटा कोष्ठक ‘()’, ‘- ’ ्योजक चिह ्न,‘ -’ चनददेशक चिह ्न) का प््योग समझाए ँ।

    -प्ताप सहगलइस एकांकी में चमत्र के जनम चदन पर एक अलग तरह के उपहार द् वारा वृक्षारोपण को बढ़ावा देने की बात की गई है ।

    * झचत्र में झदए गए झ्राम झचह् नों को समिो और प्योग करो ।

    सुनो, समिो और ब्ताओ :

    िल-िल ्तोड़ना मना है ।

    यहॉं-्हॉं थूँकना मना है ।

  • 12

    हैं । इतन ेमें िार-पॉिं दोसत और आ जात ेहैं । ्यानी एक उतसव का-सा माहौल बन जाता ह ै।) दर्े ाशं : मानस नहीं अा्या? नीलरेश : लगता ह,ै अभी भी तमुस ेनाराज ह ै। पापा : नाराज क्यों? मममी : की होगी कोई शरारत, उस ेआना िाचहए, बडा प्यारा बच्ा ह ै!

    (तभी मानस का प्वशे । उसक ेहार् में एक छोटा-सा गमला ह,ै चजसमें गलुमोहर का पौिा लगा हुआ ह ै। ‘दवेाशं’ कहत ेहुए गमला उसक ेहार् में द ेदतेा ह ै।)

    मानस : तु् हार ेजनमचदन का चग ट है, इस ेआज ही घर में ्या घर क ेपास कहीं भी रोप देना । बडी जलदी बढ़ता ह ैगलुमोहर । (दवेांश सचहत सभी दोसत हरैान-स ेहैं चक मानस जनमचदन पर ्यह कसैा उपहार ला्या ह ै।)

    नीलरेश : मैं कह रहा र्ा न, मानस तझुसे नाराज ह ै। अर,े जनमचदन पर कोई गमला लाता ह?ै मानस : (रुआसँा-सा) देवाशं तझु ेअचछा नहीं लगा तो मैं िला जाता ह ँ। (गमला उठाकर जान ेलगता ह ै।) पापा : मानस ! रुको, तमु वापस नहीं जाओग े! (मानस रुक जाता ह ै।) अचछा ्यह बताओ चक ्यह कलपना

    तु् हें चकसन ेदी? मानस : अकंल, मरेी म्मी न,े मेरी म्मी कॉलजे में पढ़ाती हैं, मरेी म्मी कहती हैं, जसै ेहमें ऑकसीजन, पानी

    की आवश्यकता होती ह ैवसेै ही आज हमें सबसे ज्यादा जरूरत पडेों की ह.ै.. पडे लगाओ ।पापा : मैं भी ्यही कहता ह,ँ क्यों दवे्यानी?मममी : हॉ,ं मैं भी ्यही कहती ह ँ!पापा : चमताली, वा ेहारमोचन्यम इिर लाना तो । (चमताली हारमोचन्यम लाकर पापा को दतेी है । )

    (घर का काम करने वाली चबमला का प्वशे)मममी : कहॉ ंरह गई र्ी? मैंन ेकहा र्ा, जलदी आना शाम को ।झबमला : क्या करती बीबी जी, वो ह ैन बाबा, उसने चिर वही िीज छोड दी... घर में आ गई िीज । (पापा और

    बच् ेबड ेध्यान स ेचबमला की बात सुन रह ेहैं ।)q एकाकंी का आदश्थ वािन करें । चवद ््याचर््थ्यों स ेमखुर एव ंमौन वािन कराऍ ं। उनक ेघर आनवेाल ेमहेमानाे ंक ेसदंभ्थ में उनस ेउनके

    अनुभव पूछें । प्शनोततर क ेमाध्यम स ेचशटिािार सबंिंी ििा्थ करें । पात्रानसुार चवद ््यार्सी खड ेकरक ेएकाकंी का वािन करवाऍ ं।

    ्यचद तुम अपने गाँव का मुसख्या बन जाओ तो .....

    जरा सोचो ्तो ... ब्ताओ

  • 13

    ओजोन परत के बारे में अचिक जानकारी प्ाप्त करो ।

    खोजबीन

    पापा : िीज, क्या िीज?झबमला : बीबी जी सब जानती हैं । (पापा म्मी की ओर दखेते हैं ।) मममी : इसकी अपनी भाषा ह ैबात समझान ेकी, कोई आतमा-वातमा, भतू-प्ते का िक्कर ह ै!पापा : अर,े चकन िक्करों में पडी हो ! ्यह सब अपन ेमन का डर होता है, चजसका िा्यदा ्ेय ढोंगी लोग

    उठात ेहैं... हम तो ्यहॉ ंनई रीत की बात कर रह ेहैं और तुम लोग पड ेहो पुरान ेजमाने मं े! तु् हें कसैे नजर आ गई वह िीज? (चबमला मुहँ चबिकाकर रसोई में जान ेलगती है । )

    पापा : रुको । मममी : काम करन ेदो उस े।पापा : नहीं, इस ेभी सनुन ेदो, बठैो ! (चबमला एक ओर बैठ जाती है ।)पापा : हॉ,ं मैं कह रहा र्ा, नई रीत, िीज-वीज छोडो, बठैो और सनुो । हॉ,ं उपहार दनेे की ्यह ‘नई रीत’ हो

    गई । तमु सभी अभी खबू-खूब नािना, खबू-खबू मज ेकरना, लचेकन पहल ेसब चमलकर नई रीत बनात ेहैं... चमताली, दवे्यानी, दवेाशं और सब बच्ो, ध्यान से सुनना और मरेा सार् दनेा । (हारमोचन्यम पर िनु छडेते हैं । आलाप लते ेहैं और चिर गान ेलगत ेहैं ।)

    सभी बच्रे : िलो, नई रीत िलाऍ ं। पापा : आ आ िलो नई कोई रीत िलाऍं, जनमचदन जब-जब हो चजसका । बोलो बच्ोबच्रे : जनमचदन जब-जब हो चजसकापापा : आस-पास कुछ पडे लगाऍ ं। आ आस-पास कुछ पेड लगाऍं । सभी झमलकर : िलो नई कोई रीत िलाऍ ं।पापा : बस-बस... बस, बहुत हो ग्या... (चबमला स)े बात कुछ आई समझ में? िलो अब कके काटेंग े। मममी : अभी कके नहीं । पहल ेअंत्याक्षरी खलेत ेहैं... खलेोग?ेएक बच्ा : मझु ेबहुत गान े्याद हैं ।पापा : नो गान.े.. ्यहॉ ंभी नई रीत । मममी : हॉ,ं आिे बच् ेइिर और आि ेबच् ेउिर । (बच् ेउठकर बटँ जाते हैं ।) हॉं, हम खलेेंग ेदशेों के

    नाम । सब बच्रे : त्ैयार ।पापा : भारत ।नीलरेश : तजंाचनआ ।पापा : अनमोल आ स े।अनमोल : आसटट्रचेल्या । मानस : ्य स े्या ‘्या’ से? झम्ताली : दोनों में स ेचकसी एक स ेिलेगा । मानस : ्यरूोप ।दर्े ाशं : परेरस ।

  • 14

    नए शबदरीत = रीचत, प्र्ा माहौल = वातावरण हैरान = परेशानमुहा्ररेमँुह चबिकाना = मुँह टेढ़ा करना गपपे लगाना = बातें करना

    अधययन कौशल

    शबद ्ाझिका

    मैंनरे समिा

    आए हुए मेहमान के सवागत हेतु चकए जाने वाले अंग्ेजी संबोिनों की जानकारी एकचत्रत करो ।

    स्यं अधययन

    इस एकांकी को कक्षा में साचभन्य प्सतुत करो ।

    १4

    झबमला : (प्वशे करत ेहुए) बीबी जी, हो ग्या और कुछ...?पापा : जलदी क्या है, तु् हारी उस िीज को मैंन ेपकड चल्या ह ै। (हसँन ेलगता ह)ै िलो, अब कके काटते

    हैं।(केक पर मोमबसतत्यॉ ंलगाकर जलाई जाती हैं । दवेाशं सभी क ेसार् चमलकर कके काटता ह,ै सभी को सखलाता है चिर बज उठता ह ैडके । बच्ों के सार् दवे्यानी और दवेेंरंि भी नाित ेहैं ।)

    मममी : िलो बच्ो, अब कुछ पटेपजूा (एक ओर रख ेचडबब ेएक-एक करके सभी बच्ों को पकडाती जातीहैं । बच् ेखान ेऔर गपप ेलगान ेमें मसत हो जाते हैं ।)

    (प्काश कुछ देर के चलए िीमा होता है । हलका-सा मिुर संगीत बजता रहता है । कुछ क्षणों बाद ही प्काश तेज होता है।)

    पापा : आज मानस ने एक पौिा चग ट करक ेनई रीत िलाई ह ै। हमन ेभी सोि रखा र्ा चक कुछ अलग करेंगे । आज उपहार में सभी को एक-एक चकताब... दवेांश ।

    (दवेांश जलदी स ेचकताबें उठाकर लाता ह ै। चमताली भी सार् देती है । दवेांश एक-एक करके सभी बच्ों को उपहार क ेपकेैट पकडाना शरुू करता ह ै। इसी क ेसार् प्काश िीरे-िीरे मदं होता ह ैऔर ‘िलो नई कोई रीत िलाऍं ’ गीत बजन ेलगता ह ै। ) (पटाक्षपे)

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  • 15

    अपररचित व्यसक्त से चमलने पर चकए जाने वाले संवादों को सुनो और सुनाओ ।

    सवागत गीतों काे पढ़ो और उनका संकलन करो ... अपन ेघर आए अचतचर् सतकार का कोई एक प्सगं चलखो ।

    चकसी क ेघर जान ेसे पहल ेउसे सचूित चक्या जाना िाचहए ।

    १. ‘‘बडी जलदी बढ़ता ह ैगुलमोहर ।’’ २. ‘‘आज हमें सबस ेज्यादा जरुरत पडेों की ह ै..... पडे लगाओ ।’’३. ‘‘्यह सब अपने मन का डर होता है ।’’ 4. ‘‘कोई आतमा-वातमा, भूत-प्ते का िक्कर है ।’’

    तुम अचतचर् बनकर चकसके घर जाना िाहते हो ?

    सुनो ्तो जरा

    मरेरी कलम सरे

    सदै् धयान में रखो

    * झकसनरे झकससरे कहा ।

    ब्ताओ ्तो सही

    ्ाचन जग्त सरे

    संज्ा के प्कार पहिानकर ताचलका पूण्थ करो ।

    भाषा की ओर

    १5

    जाझ्त्ाचक वयष्ति्ाचक भा््ाचक समूह्ाचक द्रवय्ाचक१. १. १. १. १.

    २. २. २. २. २.

    ३. ३. ३. ३. ३.

    आकाश

    रुचि

    श्द् िा रघुनार्

    गौरव

    ।। अचतचर् देवो भव ।।झ्चार मंथन

  • 16

    5. राजसथानी

    q चवद ््याचर््थ्यों से ऊपर चदए दोनों चित्रों का सकू्म चनरीक्षण कराऍ ं। दोनों चित्रों में उनहें ज्यादा-स ेज्यादा अतंर ढँूढ़कर बतान ेक ेचलए कहें ।चवद ््याचर््थ्यों को भारत क ेअलग-अलग राज्यों की चवशषे वशेभषूा और आभषूणों की जानकारी जटुान ेक ेचलए प्रेरत करें ।

    अं्तर ब्ताओ :

  • 17

    q कहानी में आए कारक शबदों को (को, की, से, ने, हे!, पर, स,े में, के) शामपट् ट पर चलखें । कारक को सरल प््योग द ्वारा समझाए ँ।उपरोक्त कृचत करवान ेके पशिात चवद ््याचर््थ्यों स ेइस प्कार के अन्य वाक्य पाठ में स ेचलखवाऍ ं। दृढ़ीकरण होन ेतक अभ्यास करवाऍ ं।

    ६. चचा छक्कन नरे झचत्र िॉंगा- इस्त्याज अली ताज

    रचनाऍं : प्सतुत कहानी में लेखक ने हास्य के माध्यम से ऐसे व्यसक्त का चित्रण चक्या है, जो खुद ठीक से काम नहीं करते । ‘वे ही सारा काम करते हैं’, इसका केवल चदखावा करते हैं ।

    पढ़ो, समिो और ब्ताओ :

    ििा छक्कन कभी-कभार कोई काम अपने चज्मे क्या ले लेते हैं, घर भर को चतनगी का नाि निा देते हैं । ्ये कीजो, वो कीजो । घर-बाजार एक हो जाता है । दूर क्यों जाओ, परसों की ही बात है । दुकान से चित्र का अभी िौखटा लगकर आ्या, उस वक्त तो वह दीवानखाने में रख चद्या ग्या । शाम कहीं ििी की नजर उसपर पडी तो बोलीं, ‘‘छुट ्टन के अबबा, चित्र कबसे रखा हुआ है, देखो बच्ों का घर ठहरा, कहीं टूट-िूट ग्या तो बैठे-चबठाए रुप्ये-दो-रुप्ये का िक्का लग जाएगा । कौन टाँगेगा इसको?’’ ‘‘टॉंगता और कौन? मैं खुद टॉंगूंॅगा। कौन-सी बडी बात है ! मैं अभी सब कुछ खुद ही चकए लेता हँ ।’’

    कहने के सार् ही शेरवानी उतार, ििा चित्र टांॅगने

    को तै्यार हो गए । ईमामी से कहा, ‘‘बीवी से दो आने पैसे लेकर कीलें ले आ ।’’ इिर वो दरवाजे से चनकला, उिर मौदे से कहा-‘‘मौदे, मौदे, जाना ईमानी के पीछे, कहो तीन-तीन इंि की हो कीलें । भागकर जा । जा पकड लो उसे रासते में ही ।’’ लीचजए, चित्र टांॅगने का काम शुरू हो ग्या । अब आई घर भर की शामत ।

    ननहे को पुकारा-‘‘ओ ननहे ! जाना जरा हर्ौडा ले आना । सीढ़ी की जरूरत भी तो होगी हमको ।’’ ‘‘अरे भाई, लल्ू ! जरा तुम जाकर चकसी से कह देते । सीढ़ी ्यहॉं लाकर लगा दे । और हॉं ! देखना वो लकडी के तखतेवाली कुससी भी लेते आते तो खूब होता ।’’ ‘‘छुट् टन बेटे !

    5. हल ... बैल खोलरे ।६. झकसान ... पतनी भोजन लाई ।

    * झकसान क ेदझैनक जी्नचक्र द ्् ारा कारक झचह ्न पहचानकर ्ाकय परू्ण करो : (को, की, सरे, नरे, !, पर , को, सरे)

    १. झकसान ... बीज झलए ।२. हल ... कंधरे पर उठाया । ३. बैल गाड़ी ... खरे्त गया ।

    4. हल सरे बैलों ... अलग झकया ।

    ७. चिाई ... बैठकर दोनों नरे भोजन झकया । 8. घर जा्तरे समय प्ाथ्णना की, ‘‘... पालनहार

    हमाररे खरे्त की रक्ा करना ।’’बीज

  • 18

    प्चतबंचित दवाइ्यों के नाम खोजकर चलखो ।

    खोजबीन

    १8

    िा्य पी ली? जरा जाना तो अपने उन हमसाए मीरबाकर अली के घर कहना अबबा ने सलाम कहा है और पूछा है अापकी टॉंग अब कैसी है? और कचह्यो वाे जो है ना अापके पास, क्या नाम है उसका? ऐ लो भूल ग्या । पलूल र्ा चक टलूल, न जाने क्या र्ा? खैर वो कुछ भी र्ा, तो ्यूँ कह दीजौ चक वो जो अापके पास आला है ना चजससे सीि मालूम होती है वो जरा दे दीचजए, चित्र टॉंगना है । जाइ्यो मेरे बेटे, पर देखना सलाम जरूर करना और टॉंग का पूछना न भूल जाना । अचछा ..... ।’’

    ‘‘हे! ठहरे रहो । सीढ़ी पर रोशनी कौन चदखाएगा हमको? आ ग्या ईमामी? ले आ्या कीलें? मौदा चमल ग्या र्ा? तीन-तीन इंि ही की है ना? बस बहुत ठीक है । ्ये लो सुतली मँगवाने का तो ध्यान ही नहीं रहा? अब क्या करूँ? जाना मेरे भाई जलदी से हवा की तरह जा और देखाे बस गज सवा गज हो सुतली, न बहुत मोटी हो न पतली । कह देना चित्र टाँगने के चलए िाचहए । ले आ! दद् दू चम्यॉं इसी वक्त सबको

    अपने-अपने काम की सूझी है, ्यूँ नहीं चक आकर जरा हार् बँटाएँ ।’’

    लीचजए साहब, जैसे-तैसे चित्र टांॅगने का सम्य आ्या । मगर जो होना र्ा वही हुआ । ििा उस चित्र काे उठाकर जरा वजन कर ही रहे र्े चक हार् से छूट ग्या । चगरकर शीशा िूर-िूर हो ग्या । हा्य-हा्य कहकर सब एक-दूसरे का मुँह ताकने लगे । ििा ने अब चकरिों काे उठाना िाहा चक शीशा उँगली मंे िुभ ग्या, खून की िार बहने लगी, सब चित्र को भूल अपना रूमाल ढूँढ़ने लगे । रूमाल कहॉं से चमलेगा? रूमाल र्ा शेरवानी की जेब में, शेरवानी उतारकर न जाने कहॉं रखी र्ी? अब जनाब घर भर ने चित्र टांॅगने का सामान ताक पर रखा और शेरवानी की ढॅँॅुढ़ाई हाेने लगी । ििा कमरे में नािते चिर रहे हैं । कभी इससे टकराते कभी उससे । ‘‘सारे घर में से चकसी को इतना ख्याल नहीं चक मेरी तो शेरवानी ढूँढ़ चनकाले और क्या, झूठ कहता हँ कुछ? छह-छह आदमी हैं और एक शेरवानी नहीं ढूँढ़ सकते । अभी पॉंि चमनट भी तो नहीं हुए, मैंने उतारकर रखी है भई?’’

    q इस हास्य कहानी का उचित आरोह-अवरोह एवं चवराम चिह ्नों सचहत चवद् ्याचर््थ्यों से मुखर वािन कराऍं । चवद् ्याचर््थ्यों कोकर्ाकर्न पद् िचत से व्यंग्य रिना सुनाऍं । पाठ का व्यंग्य चवद् ्याचर््थ्यों से प्शनोततर के माध्यम से कहलवाऍं ।

  • 19

    छक्कन चम्यॉं बडबडा उठे । इतने में ििा चकसी जगह से बैठे-बैठे उठते हैं

    और देखते हैं चक शेरवानी पर ही बैठे हुए र्े । अब पुकार-पुकार कर कह रहे हैं, ‘‘अरे भाई! रहने देना, शेरवानी ढूँढ़ ली हमने, तुमको तो आँखों के सामने बैल भी खडा हो तो नजर नहीं आता ।’’ आिे घंटे तक उँगली बँिती-बँिाती रही । न्या शीशा मँगवाकर िौखटे में जडा और दो घंटे बाद चिर चित्र टॉंगने का चसलचसला शुरू हुआ । औजार आए । सीढ़ी आई । िौकी आई । मोमबतती लाई �